Author name: Prasanna

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

HBSE 10th Class Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Questions and Answers

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा Question Answer HBSE 10th Class प्रश्न 1.
हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी में लेखक ने उपेक्षित समाज के लोगों द्वारा आज़ादी की लड़ाई में योगदान पर प्रकाश डाला है। दुलारी एक गीत गाने वाली स्त्री है, जिसे समाज हेय दृष्टि से देखता है। टुन्नू एक किशोर युवक है। वह भी गीत गाता है तथा राष्ट्रीय आंदोलन और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। दुलारी को फेंकू सरदार मानचेस्टर तथा लंका शायर की मिलों में बनी मखमली किनारे वाली कोरी धोतियों का बंडल लाकर देता है। दुलारी को बढ़िया-बढ़िया साड़ियाँ पहनने का चाव भी है। किंतु दुलारी के मन में देश-प्रेम की भावना भी है। वह उस बंडल को विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर उनकी होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे देती है। वह टुन्नू के द्वारा दी हुई खादी आश्रम में बनाई साड़ी को पहनती है। वह फेंकू सरदार, जो अंग्रेज़ों का मुखबर है, को झाड़ मार-मार कर घर से निकाल देती है। टुन्नू विदेशी वस्त्रों को जला देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का साथ देता है और इसी कारण अंग्रेज़ पुलिस द्वारा मारा जाता है। इस प्रकार लेखक ने प्रस्तुत कहानी में समाज में उपेक्षित समझे जाने वाले लोगों द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में दिए गए सहयोग का सजीव चित्रण किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Class 10th Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 2.
कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
उत्तर-
दुलारी एक गौनहारी है। उसे अत्यंत कठोर हृदय वाली स्त्री समझा जाता है। होली के अवसर पर साड़ी लाने पर वह टुन्नू को डाँट देती है। इतना ही नहीं, वह साड़ी को फैंक देती है। किंतु जब टुन्नू उसे कहता है कि “मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” उसके ये शब्द सुनकर कठोर दिखने वाली दुलारी का मन ही नहीं, आत्मा भी पिघल जाती है। टुन्नू के चले जाने पर वह साड़ी को उठाकर बार-बार चूमती है। इसी प्रकार दुलारी जब टुन्नू की मृत्यु का समाचार सुनती है तो व्याकुल हो उठती है और उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती है। उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर से नहीं, आत्मा से प्रेम करता है। वह उसकी गायन कला का प्रेमी था। ऐसे व्यक्ति की मृत्यु पर गौनहारिन दुलारी का विचलित होना स्वाभाविक था।

कक्षा 10 कृतिका पाठ 4 के प्रश्न उत्तर HBSE प्रश्न 3.
कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
कजली लोक गायन की एक शैली है। इसे भादो मास की तीज़ के अवसर पर गाया जाता है। कजली दंगल में दो कजली-गायकों के बीच प्रतियोगिता होती थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसके आयोजन पर खूब भीड़ जमा होती थी। यह आम जनता के मनोरंजन का प्रमुख साधन भी था। मनोरंजन के लिए ही ऐसे दंगलों का आयोजन किया जाता था। इसके माध्यम से जन प्रचार भी किया जाता था तथा गायन शैली में नए प्रयोग भी किए जाते थे। स्वतंत्रता के आंदोलनों के समय तो इन दंगलों के माध्यम से जनता में देश-भक्ति की भावना का संचार किया जाता था। हरियाणा में रागनी प्रतियोगिता व सांग भी लोक नाट्य परंपरा के प्रमुख उदाहरण हैं। ‘आल्हा- उत्सव’ राजस्थान की लोक गायन कला है। आजकल क्षेत्रीय लोक-गायकी के आयोजन किए जाते हैं। लोक-गायक इनमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

Class 10th Hindi Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 4.
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। -इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
गौनहारिन होने के कारण दुलारी को समाज अच्छी दृष्टि से नहीं देखता। वह समाज की दृष्टि में उपेक्षित और तिरस्कृत है। दूसरे शब्दों में विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक व सांस्कृतिक दायरे से बाहर है। किंतु उसके व्यक्तिगत गुण इतने अच्छे हैं कि वह अति विशिष्ट समझी जाती है। उसके अग्रलिखित गुण व व्यक्तिगत विशेषताएँ ही उसे यह दर्जा दिलवाते हैं

  • कुशल गायिका-दुलारी एक कुशल गायिका थी। हर व्यक्ति उसके सामने गीत -गाने की हिम्मत नहीं रखता था। उसका स्वर मधुर एवं आकर्षक था। वह मौके के अनुसार हर प्रकार का गीत गा सकती थी।
  • कवयित्री-दुलारी एक कुशल गायिका ही नहीं, अपितु सफल कवयित्री भी थी। वह आशु कवयित्री थी। वह तुरंत ऐसा पद्य तैयार कर देती थी कि सुनने वाले दंग रह जाते थे।
  • स्वाभिमानी-दुलारी को भले ही समाज उपेक्षा के भाव से देखता था, किंतु वह कभी किसी वस्तु के लिए दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाती थी। जब कभी उसके स्वाभिमान पर चोट की गई तो उसने अपने स्वाभिमान की स्वयं साहसपूर्वक रक्षा की।
  • सच्ची प्रेमिका-दुलारी एक गौनहारिन है। उसे समाज में उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। किंतु उसके हृदय में सच्चे प्रेम के प्रति आदर का भाव है। वह टुन्नू के हृदय की भावना को समझ जाती है। वह उससे मन-ही-मन प्रेम करने लगती है। जब फेंकू सरदार टुन्नू के विषय में कुछ गलत कहता है, तो वह उसे झाड़ से पीटती हुई घर से बाहर निकाल देती है।

Chapter 4 Kritika Class 10 HBSE  प्रश्न 5.
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
उत्तर-
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय तीज के अवसर पर आयोजित ‘कजली दंगल’ में हुआ था। इस कंजली दंगल का आयोजन खोजवाँ बाजार में हो रहा था। दुलारी खोजवाँ वालों की ओर से प्रतिद्वंद्वी थी, तो दूसरे पक्ष यानि बजरडीहा वालों ने टुन्नू को अपना प्रतिद्वंद्वी बनाया था। इसी प्रतियोगिता में दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय हुआ था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Class 10th Kritika Chapter 4 HBSE प्रश्न 6.
दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“तें सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट?…” दुलारी ‘ के इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
दुलारी इस कथन के माध्यम से टुन्नू पर यह आक्षेप लगाती है कि वह बढ़-चढ़कर बोलता है। उसके कथनों में सत्यता नहीं है। इसी प्रसंग में आगे वह उस पर बगुला भगत होने का भी आक्षेप लगाती है। वह आज के युवा-वर्ग को बड़बोलापन त्यागकर गंभीर बनने का संदेश देती है। उन्हें आडंबरों को त्यागकर गाँधी जी जैसा सीधा-सादा जीवन जीना चाहिए। देश के लिए त्यागशीलता की भावना होना अनिवार्य है।

Class 10 Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 7.
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया ?
उत्तर-
दुलारी और टुन्नू ने अपने-अपने ढंग से भारत के स्वाधीनता आंदोलन में योगदान दिया। टुन्नू ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने में भाग लेकर विदेशी शासकों का विरोध किया। उसने विदेशी वस्त्र इकट्ठे करके उनकी होली जलाई जिससे लोगों में देशभक्ति की भावना का संचार हुआ। इसी आंदोलन में भाग लेने के कारण उसे अपने प्राणों से भी हाथ धोने पड़े।
दुलारी एक गौनहारिन थी, किंतु उसके हृदय में देशभक्ति की भावना भी विद्यमान थी। उसने फेंकू सरदार द्वारा दी गई कीमती साड़ियों को विदेशी वस्त्रों की होली में फेंक दिया और खादी की साड़ी धारण की। टुन्नू की निर्मम हत्या से वह व्याकुल हो उठी और उसके बलिदान पर आँसू बहाने लगी।

कक्षा 10 कृतिका पाठ 4 के प्रश्न-उत्तर HBSE प्रश्न 8.
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। यह प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुंचाता है?
उत्तर-
कहानी से पता चलता है कि दुलारी और टुन्नू के बीच शारीरिक प्रेम नहीं था। उनका प्रेम आत्मिक प्रेम था। दुलारी के गायन और उसकी काव्य कला से टुन्नू बहुत प्रभावित था। टुन्नू अभी सोलह-सत्रह वर्ष का किशोर था और दुलारी यौवन की अंतिम सीमा भी लाँघने वाली थी। वह उसे फटकारती भी है कि मैं तुम्हारी माँ से भी एक-आध वर्ष बड़ी हूँ। उसके मन के किसी एकांत कोने में टुन्नू ने अपना स्थान बना लिया था। यह सब दोनों के कलाकार मन और कला के कारण ही हुआ। टुन्नू द्वारा विदेशी कपड़ों के स्थान पर खादी पहनना और देश के लिए मर-मिटना दुलारी को भी देश-प्रेम के बहाव में बहाकर ले जाता है। वह टुन्नू की कुर्बानी से इतनी प्रभावित हुई कि उसने अपनी कीमती साड़ियों का बंडल अग्नि के हवाले कर दिया। स्वयं भी खादी की धोती पहनकर उस स्थान पर जाने के लिए तत्पर हो गई, जहाँ टुन्नू का कत्ल किया गया था। कहने का भाव है कि टुन्नू का महान् त्याग ही दुलारी को देश-प्रेम के मार्ग पर ले आता है।

Class 10 Kritika Chapter 4 HBSE प्रश्न 9.
जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परंत दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है? ..
उत्तर-
विदेशी वस्त्रों को जलाने वाले आंदोलनकारियों द्वारा फैलाई गई चादर पर लोग फटे-पुराने वस्त्र ही फेंक रहे थे। अच्छे वस्त्र उनमें बहुत ही कम थे। किंतु दुलारी ने फेंकू सरदार द्वारा लाई गई विदेशी साड़ियों को ही आग के हवाले करने के लिए दे दिया था। इससे पता चलता है कि उसके मन में देश-प्रेम की सच्ची भावना थी।

एही ठैयाँ झुलनी हो रामा HBSE 10th Class प्रश्न 10.
“मन पर किसी का बस नहीं है; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है, परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा? ?
उत्तर-
निश्चय ही टुन्नू का यह कथन सत्य है। मन पर किसी का बस नहीं चलता। वैसे भी टुन्नू का दुलारी के प्रति आत्मिक प्रेम था। उसे दुलारी के रूप व आयु से कोई सरोकार नहीं था, क्योंकि यह प्रेम शरीर की भूख की तृप्ति के लिए नहीं था। इसलिए उसने इसे देश-प्रेम के मार्ग की ओर मोड़ दिया था जो स्वार्थहीन और प्रेम का सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोच्च स्वरूप है। देश-प्रेम के रूप में व्यक्ति की आत्मा का उदात्तीकरण होता है। टुन्नू देश के लिए अपना बलिदान कर देता है। दुलारी में देश के प्रति सद्भावना जागती है। वह विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर खादी आश्रम में बनी सूती धोती धारण करती है और टुन्नू की मृत्यु पर बेचैन हो उठती है। कहने का भाव है कि दोनों का प्रेम देश-प्रेम में बदल गया था।

Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 11.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर-
यह पंक्ति लोकगीत की प्रथम पंक्ति है। इसका शाब्दिक अर्थ है-इसी स्थान पर मेरी नाक की लोंग खो गई है। इसका प्रतीक अत्यंत गंभीर है। नाक में पहना जाने वाला झुलनी नामक आभूषण सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है। वह किसके नाम की झुलनी अपने नाक में पहने। किंतु आत्मिक स्तर पर वह टुन्नू से प्रेम करती थी और उसी के नाम की झुलनी उसने मानसिक व आत्मिक स्तर पर पहन ली थी। जिस स्थान पर वह यह गीत गा रही थी, उसी स्थान पर टुन्नू की हत्या की गई थी। अतः इस पंक्ति का भावार्थ यह हुआ कि यही वह स्थान है जहाँ उसका सुहाग लुटा था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

HBSE 10th Class Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Important Questions and Answers

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा HBSE 10th Class प्रश्न 1.
“एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!” पाठ का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस पाठ में लेखक का परम उद्देश्य उपेक्षित कहे जाने वाले लोगों के द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए महान् सहयोग को उजागर करना है। इस लक्ष्य में लेखक पूर्ण रूप से सफल रहा है। इस पाठ में लेखक ने टुन्नू और दुलारी के आत्मिक प्रेम को देश-प्रेम जैसी उदात्त भावना में परिवर्तित करके इस लक्ष्य की पूर्ति की है। टुन्नू किशोरावस्था में है और दुलारी यौवन के अंतिम छोर पर खड़ी है। टुन्नू का दुलारी के प्रति प्रेम आत्मिक प्रेम है। उसे उसके रूप-सौंदर्य से कुछ लेना-देना नहीं है। वह उसके कलाकार मन से प्रेम करता है। दुलारी भी उससे इसी भाव से प्रेम करती है। उसको फटकार कर उसका हित चाहती है। किंतु उसके जाने के बाद अपने मन में एक अजीब-सा भाव अनुभव करती है। टुन्नू के प्रति फेंकू सरदार द्वारा कहे गए अपशब्द सुनकर वह उसे झाड़ से पीटकर घर से बाहर निकाल देती है। फेंकू सरदार द्वारा दी गई कीमती साड़ियों को विदेशी वस्त्रों की होली में फैंक देती है और खादी की साड़ी धारण कर लेती है तथा टुन्नू की हत्या करने वालों पर व्यंग्य करती है। अतः इस कहानी का प्रमुख उद्देश्य देश-प्रेम और त्याग की भावना की प्रेरणा देना है।

Hindi Class 10 Chapter 4 Kritika HBSE प्रश्न 2.
दुलारी के दिन का आरंभ कैसे होता था?
उत्तर-
दुलारी के दिन का आरंभ कसरत से होता था। वह मराठी महिलाओं की भाँति धोती तथा कच्छा-बाँधकर प्रतिदिन प्रातःकाल कसरत करती थी। वह इतनी कठोर कसरत करती थी कि उसके शरीर से पसीना बहने लगता था। कसरत करने के पश्चात् वह अंगोछे से अपना पसीना पोंछती थी। वह सिर पर बंधे बालों के जूड़े को खोलकर बालों को सुखाती थी। उसके पश्चात् वह आदम कद शीशे के सामने खड़ी होकर पहलवानों की भाँति अपने भुजदंडों को मुग्ध दृष्टि से देखती थी। उसका प्रातःकाल का नाश्ता प्याज, हरी मिर्च व भीगे हुए चनों से होता था।

प्रश्न 3.
पठित पाठ के आधार पर टुन्नू के चरित्र पर प्रकाश डालिए। अथवा [H.B.S.E. March, 2018 (Set-A)] टुन्नू के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
टुन्नू “एही छैयां झुलनी हेरानी हो रामा!” कहानी का प्रमुख पात्र है। उसे कहानी का नायक भी कहा जा सकता है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  • गायक-वह एक उच्चकोटि का गायक कलाकार है। वह एक किशोर है, किंतु अपनी गायिकी से सुप्रसिद्ध गौनहारिन दुलारी का मुकाबला ही नहीं करता, अपितु उसे मात भी दे देता है।
  • गुण ग्राहक वह दूसरों के गुणों को शीघ्र ही पहचान लेता है और उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता है। जब उसे पता चलता है कि दुलारी महान् गायिका है तो वह श्रद्धापूर्वक उसके पास गायिकी सीखने के लिए जाता है। वह उसकी कला का पुजारी बन जाता है।
  • देशभक्त निश्चय ही टुम्नू एक देशभक्त था। वह देश के राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेता है और देश के लिए अपना बलिदान भी देता है।
  • सच्चा प्रेमी-टुन्नू एक सच्चा प्रेमी है। वह दुलारी को एक कलाकार होने के नाते प्रेम करता है। उसका प्रेम आत्मिक है। इसलिए वह कहता भी है कि मन पर किसी का कोई बसें नहीं चलता। इससे सिद्ध हो जाता है कि उसके मन में दुलारी के प्रति सच्चा एवं पवित्र प्रेम भाव था।

प्रश्न 4.
दुलारी द्वारा टुन्नू के उपहार को ठुकराने के पीछे क्या भावना थी?
उत्तर-
दुलारी एक गौनहारिन स्त्री थी। वह नाच-गाकर लोगों का मन बहलाव करती थी। उसे समाज उपेक्षा की दृष्टि से देखता था। टुन्नू एक संस्कारी ब्राह्मण का पुत्र था। वह अभी किशोरावस्था में था। वह दुलारी की गायन कला से बेहद प्रभावित था। उसकी उम्र भी ऐसी न थी कि उसे समाज की ऊँच-नीच का पता हो। वह दुलारी के पास कभी-कभार आकर बैठ जाता था। उसने कभी कोई हल्की बात नहीं कही और न ही अपने मन की भावना ही प्रकट की। होली के त्योहार पर वह दुलारी को खादी की धोती उपहारस्वरूप देना चाहता था, किंतु दुलारी ने उसे फटकार दिया और उसके द्वारा लाई गई धोती को भी पटक दिया। दुलारी ने यह सब उसको अपमानित करने के लिए नहीं किया था। वह टुन्नू के प्रेम की सात्विकता की भावना को पहचानती थी। वह नहीं चाहती थी, टुन्नू उसकी बदनाम बस्ती में आए और समाज उसे और टुन्नू को लेकर ऊँगली उठाए। उसने टुन्नू के द्वारा लाए गए उपहार को इसलिए ठुकरा दिया था ताकि वह कभी उसकी ओर रुख न करे। वास्तव में वह टुन्नू की भलाई चाहती थी।

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प्रश्न 5.
टुन्नू के पद्यात्मक आक्षेप का दुलारी ने क्या उत्तर दिया था?
उत्तर-
टुन्नू द्वारा दुलारी को साँवले रंग की और दूसरों द्वारा पोषित होने का आक्षेप लगाया गया था। इस आक्षेप को दुलारी ने हँसते-हँसते झेला और इसका उत्तर देती हुई वह गीत के माध्यम से कहती है, “अरे कोढ़ी अपने मुख पर लगाम दे, यहाँ तू बड़ी-बड़ी बातें बना रहा है। तेरा बाप तो घाट पर बैठा-बैठा सारा दिन कौड़ी-कौड़ी जोड़ता है। त सिर-फिरा है। तने कभी जिंदगी में नोट देखे भी हैं। कब देखे हैं, बता तू मुझसे परमेसरी नोट (वादा) माँग रहा है, जरा अपनी औकात तो देख।” इस प्रकार दुलारी ने टुन्नू की दयनीय आर्थिक दशा और अनुभवहीनता पर आक्षेप करके उसके आक्षेप का तगड़ा उत्तर दिया जिसे सुनकर सभा में उपस्थित लोगों ने उसकी खूब प्रशंसा की।

प्रश्न 6.
शर्मा जी द्वारा लिखित रिपोर्ट को सार रूप में लिखिए।
उत्तर-
शर्मा जी अखबार के रिपोर्टर थे। उन्होंने टुन्नू के कत्ल की घटना वाले दिन होने वाली वारदात पर रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। उसका सार इस प्रकार है
उन्होंने “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!” शीर्षक रिपोर्ट में लिखा कि कल छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर नगर में पूर्ण हड़ताल रही। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई और जुलूस निकाला। इस जुलूस में टुन्नू ने भी भाग लिया था। जिसे पुलिस के जमादार अली सगीर ने पकड़ा और गालियाँ दीं। विरोध करने पर उसे ठोकर मारी। टुन्नू गिर पड़ा और उसके मुख से खून आने लगा। गोरे सिपाहियों ने उसे अस्पताल ले जाने का बहाना किया, किंतु उसे वरुणा के जल में प्रवाहित कर दिया। संवाददाता ने गाड़ी का पीछा करके पता लगाया था कि टुन्नू मर चुका था। टुन्नू और दुलारी के संबंधों की चर्चा करते हुए संवाददाता ने दुलारी को पुलिस के द्वारा बलपूर्वक टाऊन हॉल में उसी स्थान पर नाचने के लिए विवश करने का विवरण भी दिया जहाँ टुन्नू की हत्या की गई थी। वह नाचते हुए. आँखों से आँसू बहाती रही।

प्रश्न 7.
कजली दंगल की मजलिस के बदमज़ा होने का क्या कारण था? सार रूप में उत्तर दीजिए।
उत्तर-
खोजवाँ बाजार में कजली दंगल का आयोजन किया गया था। ‘कजली दंगल’ में दुलारी का मुकाबला टुन्नू कर रहा था। लोग दोनों के तेवर देखकर आनंद ले रहे थे। टुन्नू ने दुलारी पर कोयल की भांति दूसरों पर पोषित होने का आक्षेप किया, तो दुलारी ने भी उसे बगुला भक्त कहकर उसकी औकात की याद दिला दी। उसे बगुलाभक्त कहकर किसी बुरे नतीजे के लिए तैयार रहने के लिए चेताया। इस पर टुन्नू ने भी बढ़कर चोट करते हुए कहा कि तुम कितनी भी गालियाँ दो हम तो अपने मन की बात को डंके की चोट पर कहेंगे। इस बात पर फेंकू सरदार लाठी लेकर टुन्नू को मारने दौड़े। दुलारी ने टुन्नू को बचाया। इसके बाद कोई गाने के लिए तैयार नहीं हुआ और मजलिस बदमज़ा हो गई।

प्रश्न 8.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासो मैं पूढूँ’-दुलारी के इस गीत का दूसरा चरण क्या है?
उत्तर-
‘सास से पूछू, ननदिया से पूछू, देवर से पूछत लजानी हो रामा’।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) शिवपूजन सहाय
(B) कमलेश्वर
(C) मधु कांकरिया .
(D) शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’
उत्तर-
(D) शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’

प्रश्न 2.
दुलारी ने किस प्रदेश की महिलाओं की भाँति धोती बाँधी हुई थी?
(A) महाराष्ट्र की महिलाओं की भाँति
(B) उत्तर प्रदेश की महिलाओं की भाँति
(C) हरियाणा की महिलाओं की भाँति
(D) पंजाब की महिलाओं की भाँति
उत्तर-
(A) महाराष्ट्र की महिलाओं की भाँति

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प्रश्न 3.
पाठ के आरंभ में दुलारी को क्या करते हुए दिखाया गया है?
(A) सोते हुए
(B) गीत गाते हुए
(C) दंड लगाते हुए
(D) प्राणायाम करते हुए
उत्तर-
(C) दंड लगाते हुए

प्रश्न 4.
दुलारी को मिलने के लिए कौन आता है?
(A) दुलारी का भाई
(B) टुन्नू
(C) दुलारी का पिता
(D) पुलिस का सिपाही
उत्तर-
(B) टुन्नू

प्रश्न 5.
टुन्नू दुलारी के लिए क्या लेकर आया था?
(A) भोजन
(B) आभूषण
(C) खादी की साड़ी
(D) छाता
उत्तर-
(C) खादी की साड़ी

प्रश्न 6.
“मन पर किसी का बस नहीं। वह उमर या रूप का कायल नहीं।” ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) दुलारी ने
(B) दुलारी की सखी ने
(C) किसी अजनबी ने
(D) टुन्नू ने
उत्तर-
(D) टुन्नू ने

प्रश्न 7.
दुलारी का मुख्य धंधा क्या था?
(A) काव्य रचना
(B) नृत्य करना
(C) कजली गीत गाना
(D) कीर्तन करना
उत्तर-
(C) कजली गीत गाना

प्रश्न 8.
‘तीर कमान होना’ का क्या अर्थ है?
(A) लड़ने के लिए तैयार होना
(B) तीर की भाँति तेज गति से जाना
(C) कमान की भाँति गोल होना..
(D) कमान से तीर चलाना
उत्तर-
(A) लड़ने के लिए तैयार होना

प्रश्न 9.
टुन्नू के पिता क्या कार्य करते थे?
(A) अध्यापन
(B) पंडिताई
(C) वकालत
(D) व्यापार
उत्तर-
(B) पंडिताई

प्रश्न 10.
दुलारी किस की ओर से कजली गाने आई थी?
(A) बजरडीहा की ओर से
(B) सुंदरगढ़ की ओर से
(C) खोजवाँ बाजार की ओर से
(D) राम नगर की ओर से
उत्तर-
(C) खोजवाँ बाजार की ओर से

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Summary in Hindi

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! पाठ का सार

प्रश्न-
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने यथार्थ और आदर्श, दंत कथा और इतिहास, मानव मन की कमजोरियों और उदात्तताओं को उजागर किया है। लेखक ने इन सबको क्षेत्रीय भाषा की रंगत में रंगकर अभिव्यक्त किया है। यह एक प्रेम कहानी-सी लगती है, किंतु इसमें प्रेम भाव के अतिरिक्त आदर्श, यथार्थ और व्यंग्य का संगम कुछ इस प्रकार हुआ है कि इन्हें अलग-अलग करके देखना संभव नहीं है। पाठ का सार इस प्रकार है

बनारस में चार-पाँच के समूह में गाने वालियों की एक परंपरा रही है-‘गौनहारिन परंपरा’ । कहानी की मुख्य नारी पात्र दुलारी बाई उसी परंपरा की एक कड़ी रही है। दुलारी दनादन दंड लगा रही थी और उसका पसीना भूमि पर पसीने का पुतला बना रहा था। वह कसरत समाप्त कर पसीना पोंछ रही थी कि तभी किसी ने उसके दरवाजे की कुंडी खटखटाई। दुलारी ने स्वयं को व्यवस्थित किया, धोती पहनी, केश बाँधे और दरवाज़ा खोल दिया। बगल में बंडल दबाए बाहर टुन्नू खड़ा था। टुन्नू भी एक गायक था। उसकी आँखों में शर्म और होंठों पर झेंप भरी मुस्कराहट थी। दुलारी ने आते ही उसे फटकरा, “ मैंने तुम्हें यहाँ आने के लिए मना किया था न?” गिरे हुए मन से टुन्नू बोला, “साल भर का त्योहार था इसीलिए मैंने सोचा कि ……….,” कहते हुए उसने बगल से बंडल निकालकर दुलारी को दे दिया। इसमें खद्दर की एक साड़ी थी। दुलारी का रुख और कड़ा हो गया और बोली, लेकिन तुम इसे यहाँ क्यों लाए हो। तुम्हें जलने के लिए कोई और चिता नहीं मिली। तुम मेरे मालिक हो, बेटे हो, भाई हो क्या हो? उसने साड़ी टुन्नू के पैरों के पास फैंक दी। टुन्नू सिर झुकाए हुए ही बोला, “पत्थर की देवी भी अपने भक्त द्वारा दी गई भेंट को नहीं ठुकराती, फिर तुम तो हाड़-माँस की बनी हो। उसकी कज्जल भरी आँखों से आँसू टपक-टपककर धोती पर गिरने लगे। दुलारी कहती रही कि हाड़-माँस की बनी हूँ, तभी तो कहती हूँ कि अभी तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे। बाप तो कौड़ी-कौड़ी जुटाकर गृहस्थी चलाता है और बेटा आशिकी के घोड़े पर सवार है। यह गली तुम्हारे लिए नहीं है। मैं तो शायद तुम्हारी माँ से भी वर्ष भर बड़ी हूँ।

पत्थर की तरह मूर्तिवत खड़ा टुन्नू बोला, ‘मन पर किसी का बस नहीं। वह उमर या रूप का कायल नहीं।’ वह धीरे-धीरे . सीढ़ियाँ उतरने लगा। उसके जाने के बाद दुलारी के भाव बदले उसने धोती उठाई जिस पर टुन्नू के आँसू गिरे हुए थे। एक बार गली में टुन्नू को जाते देखा और धोती पर पड़े आँसुओं के धब्बों को बार-बार चूमने लगी।

भादो की तीज पर खोजवाँ बाजार में गाने का कार्यक्रम था। दुलारी गाने में निपुण थी। उसमें पद में सवाल – जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। बड़े-बड़े शायर भी उसके सामने गाते हुए घबराते थे। खोजवाँ बाजार वाले दुलारी को अपनी तरफ से खड़ा करके अपनी जीत सुनिश्चित कर चुके थे। उसके विपक्ष में सोलह-सत्रह वर्ष का टुन्नू किशोर था। टुन्नू के पिता यजमानी करके अपनी घर-गृहस्थी चलाते थे। किंतु टुन्नू को गायकी और शायरी का चस्का लग गया था। टुन्नू ने उस दिन जमकर दुलारी का मुकाबला किया। दुलारी को भी टुन्नू का गाना अच्छा लग रहा था। मुकाबले में टुन्नू के मुख से दुलारी की तारीफ सुनकर सुंदर के ‘मालिक’ फेंकू सरदार ने टुन्नू पर लाठी का वार किया। दुलारी ने टुन्नू की उस वार से रक्षा की थी। टुन्नू के चले जाने के बाद भी दुलारी. उसी के विषय में सोचती रही। टुन्नू उस दिन अत्यंत सभ्य लग रहा था। दुलारी ने घर जाकर टुन्नू द्वारा दी हुई साड़ी को संदूक में रख दिया। उसके मन में भी टुन्नू के प्रति कोमल भाव जागृत होने लगे थे। टुन्नू कई दिनों से उसके पास आने लगा था और उसकी बातों को बड़े गौर से सुनने लगा था। दुलारी का यौवन ढल रहा था। टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का था जबकि दुलारी दुनिया देख चुकी थी। वह समझ गई थी कि टुन्नू और उसका संबंध शारीरिक नहीं, आत्मा का था। वह यह बात टुन्नू के सामने स्वीकार करने से डर रही थी। उसी समय फेंकू धोतियों का एक बंडल लेकर उसके पास आता है। फेंकू सरदार उसे तीज पर बनारसी साड़ी दिलवाने का वादा करता है। जब ये दोनों बातचीत कर रहे थे, तभी गली में नीचे विदेशी कपड़ों की होली जलाने वाली टोली निकली। लोग पुराने विदेशी कपड़े जलाने के लिए फैंक रहे थे। किंतु दुलारी ने फेंकू सरदार द्वारा दी गई बढ़िया साड़ियों का बंडल फैंक दिया। दुलारी द्वारा फैंके गए बंडल को देखकर सबकी आँखें उसकी ओर उठ गईं। जुलूस के पीछे चल रही खुफिया पुलिस के रिपोर्टर अली सगीर ने भी दुलारी को देख लिया।

दुलारी फेंकू सरदार की किसी बात पर बिगड़ गई और झाड़ से मारती हुई बोली निकल यहाँ से। यदि मेरी देहरी पर डाँका तो दाँत से तेरी नाक काट लूँगी। आँगन में खड़ी संगनियों और पड़ोसिनों ने दुलारी को अत्यंत हैरानी से देखा। चूल्हे पर चढ़ी दाल को दुलारी ने ठोकर मारकर गिरा दिया। दाल के गिरने से चूल्हे की आग तो बुझ गई, किंतु दुलारी के दिल की आग न बुझ सकी। पड़ोसिनों के मीठे वचनों की जलधारा से दुलारी के हृदय की आग कुछ ठंडी हुई। उनकी आपस की बातचीत से पता चला कि फेंकू सरदार टुन्नू से जलन रखता था। इसी बात को लेकर दुलारी ने फेंकू पर झाड़ बरसाए थे। तभी नौ वर्षीय झींगुर आकर बताता है कि टुन्नू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार डाला और लाश को उठा ले गए। टुन्नू की मौत की खबर सुनते ही दुलारी की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। अब पड़ोसिनें दुलारी के दिल का हाल जान गई थीं। सभी ने उसके रोने को नाटक समझा किंतु दुलारी अपने मन की सच्चाई जानती थी। उसने टुन्नू द्वारा दी गई साधारण साड़ी पहन ली। वह झींगुर से टुन्नू की शहीदी के स्थान का पता पूछकर वहाँ जाने के लिए घर से निकली ही थी कि तभी थाने के मुंशी और फेंकू सरदार ने उसे थाने चलकर अमन सभा के समारोह में गाने के लिए कहा। न चाहते हुए भी उसे उनके साथ जाना पड़ा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

उधर अखबार के दफ्तर में प्रधान संवाददाता शर्मा जी की लिखी रिपोर्ट को पढ़कर क्रोध से लाल हो रहे थे। संपादक जी के आदेश पर शर्मा जी रिपोर्ट पढ़ने लगे, शीर्षक दिया था, “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा,” रिपोर्ट में लिखा था कि कल नगर भर में हड़ताल थी। यहाँ तक कि खोमचे वाले भी बाजार में दिखाई नहीं दिए थे।

सुबह से ही विदेशी कपड़ों को एकत्रित करके उनकी होली जलाने वालों के जुलूस निकलते रहे। उनके साथ प्रसिद्ध गायक टुन्नू भी था। जुलूस टाऊन हॉल पर पहुंचकर समाप्त हो गया। जब सब अपने-अपने घरों को लौट रहे थे तो पुलिस के जमादार अली सगीर ने टुन्नूं को गालियाँ दीं। प्रतिवाद करने पर उसे जमादार ने खूब पीटा और बूट से ठोकर मारी। इससे उसकी पसली पर चोट आई। वह गिर पड़ा और उसके मुख से खून निकलने लगा। गोरे सिपाहियों ने उसे अस्पताल में ले जाने की अपेक्षा वरुणा में प्रवाहित कर दिया, जिसे संवाददाता ने भी देखा था। इस टुन्नू नामक गायक का दुलारी से भी संबंध बताया जाता है।

शाम को टाऊन हॉल में आयोजित अमन सभा में जहाँ जनता का एक भी प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था, दुलारी को नचाया व गवाया गया था। टुन्नू की मृत्यु से दुलारी बहुत उदास थी। उसने खद्दर की साधारण धोती पहनी हुई थी। वह उस स्थान पर गाना नहीं चाहती थी, जहाँ आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या कर दी गई थी। फिर भी उसने कुख्यात जमादार अली सगीर के कहने पर गाया, किंतु उसके स्वर में दर्द स्पष्ट रूप में अनुभव किया जा सकता था। उसके गीत के बोल थे “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा। कासों मैं पूछू।” उसने सारा गीत उस स्थान पर नज़र गड़ाकर गाया जहाँ टुन्नू का कत्ल किया गया था। गाते-गाते उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी थी। उसके आसुओं की बूंदें ऐसी लग रही थीं जैसे टुन्नू की लाश को वरुणा के जल में फैंकने से उस जल की बूंदें छिटक गई थीं।” संपादक महोदय को रिपोर्ट तो सत्य लगी, किंतु इसे वे छाप न सके।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-31) दनादन = तेज़ गति से। चणक-चर्वण-पर्व = चने चबाने का त्योहार। बाकायदे = ठीक ढंग से। विलोल = असली। विलीन = गायब होना, नष्ट होना।

(पृष्ठ-33) शीर्ण वदन = कमज़ोर शरीर। खैरियत = कुशल। उपेक्षापूर्ण = निरादर के भाव से। कज्जल-मलिन = काजल से मैली हुई। पाषाण = पत्थर। प्रतिमा = मूर्ति। वक्र = टेढ़ी। दुक्कड़ = शहनाई के साथ बजाया जाने वाला यंत्र। महती = अत्यधिक। पद्य = कविता। क्षमता = शक्ति। कजली = एक प्रकार का लोकगीत। कायल = मानने वाला। कोर दबना = लिहाज करना।

(पृष्ठ-34) गौनहारियों की गोल = गाने वालों का समूह। प्रतिकूल = उलट। स्वर = आवाज़ । मुग्ध = मोहित। सार्वजनिक आविर्भाव = मंच पर लोगों के सामने अपनी कला दिखाने का अवसर। यजमानी = पुरोहित की जीविका। चस्का = स्वाद। रंग उतर गया = निराश हो गए। मद-विह्वल = अहंकार से पूर्ण। कोढ़ियल = कुरूप, कोढ़ के रोग से पीड़ित।

(पृष्ठ-35) सरबउला = पागल। व्यर्थ = बेकार। मजलिस = महफिल। बदमज़ा = बेस्वाद। प्रकृतिस्थ = स्वाभाविक। आबरवाँ = बहुत महीन मलमल। चंचल = अस्थिर, व्याकुल । दुर्बलता = कमज़ोरी।

(पृष्ठ-36) मनोयोग = लगन। यौवन का अस्ताचल = जवानी के समाप्त होने की दशा। उन्माद = पागलपन। कृशकाय = दुबला-पतला। पाँडुमुख = पीला मुख। करुणा = दया। आसक्त = मोहित, ललचाया हुआ। कृत्रिम = बनावटी। निभृत = एकांत। प्रस्तुत = तैयार। सहसा = एकाएक।

(पृष्ठ-37-38) आकृति = रूप, शक्ल । मुखबर = वह अपराधी जो अपराध स्वीकार करके सरकारी गवाह बन जाता है। तमोली = पान बेचने वाला। शपाशप = निरंतर। देहरी डाँकना = दहलीज पार करना। उत्कट = प्रबल। अधर = होंठ। कुतूहल = हैरानी। बटलोही = दाल पकाने का बर्तन। कातर = व्याकुल। स्तब्ध = हक्का-बक्का रह जाना। आँखों में मेघमाला घिर आना = आँखों से निरंतर आँसू बहना।

(पृष्ठ-39) कर्कशा = कटु वचन बोलने वाली। वनिता-सुलभ = सद् गृहिणियों के अनुरूप। दिल्लगी = मज़ाक। सहकर्मी = साथ काम करने वाला। बूते की बात नहीं = वश का काम नहीं। बड़ा घर = यहाँ जेल के लिए प्रयोग हुआ है। सजग = सावधान, चौकन्ने। झेंप = लज्जा। मुद्रा = भाव।

(पृष्ठ-40-41) विघटित = छंट गया, अलग-अलग हो गया। शव = मृत शरीर। विवश = मजबूर। आमोदित = प्रसन्न। उद्घांत दृष्टि = उड़ती-सी बेचैन नज़रें। अधर-प्रांत पर = होंठों पर। स्मित = हल्की-सी मुसकान। आविर्भाव = उदय होना।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

HBSE 10th Class Hindi साना साना हाथ जोड़ि Textbook Questions and Answers

साना साना हाथ जोड़ि के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर-
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका के मन में सम्मोहन उत्पन्न कर रहा था। वहाँ की सुंदरता ने लेखिका पर एक जादू सा कर दिया था, कि वह एकटक उसे देखती ही रह गई। उसे उस समय सब कुछ ठहरा हुआ-सा लग रहा था। उसके आस-पास व उसके अंतर्मन में एक शून्य-सा समा गया था।

साना-साना हाथ जोड़ि के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?
उत्तर-
मेहनतकश से यहाँ अभिप्राय है, कड़ा परिश्रम करने वाले लोग। ‘बादशाह’ से तात्पर्य है अपनी इच्छानुसार काम करने वाले। गंतोक पहाड़ी स्थल है। पहाड़ी क्षेत्र का जीवन कठिन होता है। अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यहाँ के लोग कड़ी मेहनत करने से घबराते नहीं, अपितु मेहनत करते हुए भी मस्त रहते हैं। उन्हें किसी की परवाह नहीं होती और न ही वे दूसरों की सहायता के लिए किसी के आगे हाथ फैलाते हैं। इसीलिए लेखिका ने गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ कहा है।

Class 10 Kritika Chapter 3 HBSE प्रश्न 3.
कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
श्वेत पताकाएँ किसी बौद्ध धर्म के अनुयायी की मृत्यु पर फहराई जाती हैं। किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु हो जाने पर नगर से बाहर वीरान स्थान पर मंत्र-लिखित एक सौ आठ पताकाएँ फहराई जाती हैं। उन्हें उतारा नहीं जाता। वे धीरे-धीरे स्वयं नष्ट हो जाती हैं। रंगीन पताकाएँ काम के शुभारंभ के समय फहराई जाती हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

Class 10th Kritika Chapter 3 HBSE प्रश्न 4.
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति के बारे में, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं। लिखिए।
उत्तर-
जितेन नार्गे सिक्किम का नागरिक था। वह ड्राइवर और गाइड दोनों का कार्य अकेले ही करता था। लेखिका ने जितेन नार्गे के साथ ही सिक्किम की यात्रा की थी। वह लेखिका को यात्रा के दौरान वहाँ की प्राकृतिक, भौगोलिक व जनजीवन की महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ देता रहता था। उसने बताया कि सिक्किम में प्राकृतिक नज़ारे अत्यंत सुंदर हैं। गंतोक से यूमथांग 149 किलोमीटर दूर है। यह मार्ग खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों से भरा पड़ा है। कहीं घाटियाँ फूलों से भरी हुई हैं। अनेक झरने कल-कल की ध्वनि करते हुए बहते हैं। कहीं घाटियों को फूलों की वादियाँ भी कहते हैं। सिक्किम की सीमा चीन से सटी हुई है। पहले यहाँ राजा का शासन था किंतु अब वह भारत का अंग है।

यहाँ बौद्ध धर्म का बोल-बाला है। यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु हो जाए तो उसकी आत्मा की शांति के लिए एक सौ आठ सफेद पताकाएँ फहराई जाती हैं। जब किसी कार्य का शुभारंभ किया जाता है तो रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। यहाँ की औरतें बहुत मेहनत करती हैं। यहाँ बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल कम हैं। बच्चों को स्कूल भेजने के लिए आवागमन के साधन भी कम हैं। यहाँ की नारियाँ रंगीन कपड़े पहनना पसंद करती हैं। उनका परंपरागत परिधान ‘बोकु’ है।

Class 10 Kritika Chapter 3 Solutions HBSE प्रश्न 5.
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर-
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र के विषय में जितेन नार्गे ने बताया कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका उस घूमते हुए चक्र को देखकर सोचने लगती हैं कि पूरे भारत में ऐसे विश्वास पाए जाते हैं। इसलिए भारत के लोगों की आत्मा एक-जैसी है, विज्ञान ने चाहे कितनी ही तरक्की क्यों न कर ली हो फिर भी लोगों की पाप-पुण्य संबंधी मान्यताएँ एक-जैसी ही हैं। वह चाहे पहाड़ी क्षेत्र हो अथवा मैदानी क्षेत्र। इन मान्यताओं में कहीं कोई अंतर नहीं है।

साना साना हाथ जोड़ी पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 6.
जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?
उत्तर-
जितेन नार्गे केवल गाइड ही नहीं, अपितु कुशल ड्राइवर भी था। एक कुशल गाइड की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि उसे उस क्षेत्र का पूरा ज्ञान होना चाहिए जिसमें वह गाइड का काम कर रहा है। जितेन एक कुशल गाइड है क्योंकि उसे सिक्किम के सारे पहाड़ी क्षेत्र का पूरा ज्ञान था। वह सैलानियों को उस क्षेत्र की पूरी जानकारी देता है। वह छोटी-से-छोटी जानकारी भी यात्रियों को देता है। इसके अतिरिक्त एक कुशल गाइड यात्रियों को कभी निराश नहीं होने देता। जितेन भी लेखिका और उसके सहयात्रियों को दिलासा दिलाता है कि उन्हें आगे चलकर बर्फ अवश्य देखने को मिलेगी। वह यात्रियों के साथ मित्र जैसा व्यवहार करता है। वह संगीत का ज्ञान भी रखता है। यात्रियों की थकान को दूर करने के लिए उनकी पसंद का संगीत सुनाता है। एक गाइड को अपने क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति का पूरा ज्ञान होना चाहिए। जितेन इस दृष्टि से एक कुशल गाइड है। उसे सिक्किम के इतिहास और संस्कृति का पूरा ज्ञान है। वह लेखिका और अन्य यात्रियों को उससे अवगत कराता है। इसी प्रकार एक कुशल गाइड अपने क्षेत्र के जन-जीवन, वहाँ के प्रमुख व्यवसाय आदि की भी जानकारी रखता है। जितेन नार्गे को भी यह जानकारी थी। मार्ग में काम करने वाली सिक्किम नारियों के जीवन के बारे में वह पूर्ण जानकारी देता है। वहाँ के लोगों के धार्मिक स्थलों और लोगों के विश्वास व आस्थाओं की भी जानकारी देता है। अतः स्पष्ट है कि जितेन एक कुशल गाइड है। उसके मार्गदर्शन में यात्रा करने वाले यात्रियों का आनंद दुगुना हो जाता है। वह आस-पास के वातावरण को प्रसन्नतायुक्त बना देता है।

Kritika Chapter 3 Class 10th HBSE प्रश्न 7.
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
लेखिका की पहाड़ी यात्रा गंतोक से यूमथांग जाने के लिए आरंभ होती है। वे अपने पूरे दल के साथ जीप में बैठकर यात्रा शुरु करती है। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं वैसे-वैसे ऊँचाई भी बढ़ती जाती है। उन्होंने देखा कि हिमालय का प्राकृतिक दृश्य पल-पल में बदलता है। हिमालय का विराट रूप सामने आता है। अब हिमालय अपने विशाल रूप में दिखाई देने लगता है। आसमान में घटाएँ फैली हुई हैं। घाटियों में दूर – दूर तक खिले हुए फूल फैले हुए हैं। चारों ओर एक गहन शांति पसरी हुई थी। लेखिका हिमालय के उस चमत्कारी रूप को अपनी आत्मा में समेट लेना चाहती है। वह उस दृश्य से एकात्म हो उठती है। वह हिमालय को मेरे नगपति, मेरे विशाल कहकर सलामी देती है। हिमालय कहीं हरे रंग का कालीन ओढ़े हुए नज़र आता है तो कहीं सफेद बर्फ की चादर ओढ़े हुए और कहीं-कहीं बादल में लुका-छिपी का खेल खेलता सा लगता है। लेखिका को पर्वत क्षेत्र ‘जादू की छाया’ ‘माया एवं खेल लगता है तो कहीं लेखिका उसे देखकर गहन विचारों में डूब जाती है। उसे वह परम् सत्य का अनुभव होने लगता है। इसी प्रकार वह वहाँ के जन-जीवन का चित्र अंकित करने लगती है।

Class 10 Kritika Ch 3 Solutions HBSE प्रश्न 8.
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर-
हिमालय,की प्राकृतिक छटा पल-पल बदलती है। लेखिका हिमालय पर प्रकृति के अनंत और विराट रूप को देखकर अवाक् रह जाती है। वह प्रकृति के ‘माया’ और ‘छाया’ के रूप को देखकर सम्मोहित हो जाती है। उसे ऐसा लगता है कि प्रकृति उसे अपना परिचय दे रही है। वह उसे अधिक सयानी बनाने के लिए उसके सामने अपने रहस्यों का उद्घाटन कर रही है। प्रकृति के उस विराट रूप को देखकर उसे अनेक अनुभूतियाँ होती हैं। उसे अनुभव होता है कि जीवन की सार्थकता झरनों और फूलों की भाँति स्वयं को दे देने में है। झरनों की भांति निरंतर गतिशील रहना और फूलों की भांति सदा मुस्कुराते रहने में ही जीवन की जीवंतता है। जीवन में दूसरों के लिए कुछ कर गुज़रना ही जीवन को सार्थक बनाता है। ऐसी अनुभूति लेखिका को प्रकृति के विराट और अनंत स्वरूप को देखकर ही होती है।

Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 Short Answers HBSE प्रश्न 9.
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर-
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को सड़क बनाने वाली पहाड़ी औरतों के द्वारा पत्थर तोड़ने के दृश्य झकझोर गए। लेखिका ने देखा कि उस प्राकृतिक सौंदर्य के दृश्यों से बेपरवाह कुछ अत्यंत सुंदर एवं कोमलांगी पहाड़ी औरतें पत्थर तोड़ने में लीन थीं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े थे। कईयों की पीठ पर तो डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे हुए थे। यह विचार लेखिका को बार-बार झकझोरता था कि नदियों, फूलों, झरनों, वादियों के प्राकृतिक नज़ारों के बीच भूख, प्यास, मौत और मानव के जीने की इच्छा के बीच कड़ा संघर्ष चल रहा था। वे नारियाँ उस संघर्ष से जीतने के लिए जीतोड़ परिश्रम कर रही थीं। मानव ने सदा कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की है।

Kritika Chapter 3 Class 10 HBSE प्रश्न 10.
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर-
सैलानियों को प्राकृतिक छटा का अनुभव कराने में अनेक लोगों का योगदान रहता है। सर्वप्रथम सैलानियों को पर्यटन-स्थलों पर ठहराने का प्रबंध करने वाले लोगों का योगदान रहता है। इसके पश्चात् उनके लिए वाहनों का प्रबंध करने वाले लोगों का योगदान रहता है। वाहनों के चालकों व गाइडों का योगदान भी सराहनीय होता है। मार्गदर्शक (गाइड) की भूमिका तो और भी महत्त्वपूर्ण रहती है, क्योंकि वह सैलानियों को वहाँ के स्थानों की जानकारी के साथ – साथ वहाँ के इतिहास व सांस्कृतिक परंपराओं में विश्वास, जन-जीवन व परंपराओं की जानकारी देकर उनकी यात्रा को रोचक बनाता है। इनके अतिरिक्त वहाँ स्थानीय लोगों व सरकारी रख-रखाव के प्रबंध की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

Chapter 3 Kritika Class 10 Questions And Answers HBSE प्रश्न 11.
“कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती है।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर-
निश्चय ही देश की आर्थिक प्रगति में आम जनता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। देश की महत्त्वपूर्ण योजनाओं को सफल बनाने में आम जनता सहयोग देती है। सड़कों का निर्माण करने हेतु पत्थर तोड़ने व पत्थर जोड़ने से लेकर बहुमंजली अट्टालिकाएँ खड़ी करने में आम-जनता का परिश्रम ही काम करता है। किंतु आम जनता के इस कार्य के बदले में उन्हें बहुत कम पैसे मिलते हैं। बड़े-बड़े कामों को अंजाम देने वाली यह आम जनता अपनी दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति भी बड़ी मुश्किल से कर पाती है। सड़कों के निर्माण, बाँध-बाँधने, बड़ी- बड़ी फैक्टरियों के निर्माण की नींव आम जनता के खून-पसीने पर रखी जाती है। सड़कों के निर्माण से आवागमन सुगम हो जाता है। समान एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से पहुंचाया जा सकता है। इससे देश में आर्थिक प्रगति होती है। बड़ी-बड़ी फैक्टरियों के द्वारा वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। बाँधों से बिजली का उत्पादन होता है। फसलों की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होता है। इन सब कार्यों में आम-जनता का पूर्ण योगदान रहता है। आम-जनता के सहयोग व भूमिका के बिना देश का आर्थिक विकास संभव नहीं है।

प्रश्न 12.
आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह खिलवाड़ किया जा रहा है? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए?
उत्तर-
आज की पीढ़ी का विश्वास भौतिक उन्नति तक सीमित हो गया है। वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर है। वह केवल आज के विषय में सोचती है। इसलिए वह प्रकृति के प्रति भी निर्ममता का व्यवहार करती है। वह भूल चुकी है, कि प्रकृति को नष्ट करके हम भी नष्ट हो जाएँगे। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदियों के जल का दुरुपयोग तथा कृषि योग्य भूमिका बड़े-बड़े नगर बसाने व औद्योगिक संस्थान खड़े करने से प्राकृतिक संतुलन समाप्त हो जाएगा।

आज हमें देखना होगा कि हम ऐसा कोई कार्य न करें, जिससे प्रकृति को हानि पहुँचती है या हम वे कार्य कम-से-कम करें जिससे प्रकृति का नुकसान हो। हमें वृक्षों के काटने पर ही रोक नहीं लगानी चाहिए, अपितु अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाने का प्रयास भी करना चाहिए। हम विद्यार्थी भी अपने आँगन या घर के आस-पास की खाली पड़ी धरती पर छायादार वृक्षों के पौधे लगाकर प्रकृति को बचाने में योगदान दे सकते हैं। अपने विद्यालय में खड़े वृक्षों की देखभाल करके व और वृक्ष लगाकर प्रकृति के प्रति किए जा रहे खिलवाड़ को रोकने में सहायता दे सकते हैं। हमें जल के उचित प्रयोग के प्रति समाज में जागरूकता उत्पन्न करनी होगी, ताकि जल का सही प्रयोग हो। हमें नदियों में गंदगी नहीं फैंकनी चाहिए। कारखानों से निकले गंदे पानी को नदियों के पानी में नहीं बहाना चाहिए। कृषि योग्य भूमि का भी सदुपयोग करने का प्रचार करके हम प्रकृति को हानि पहुँचने से रोक सकते हैं। सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करके भी हम इस नेक कार्य में योगदान दे सकते हैं।

प्रश्न 13.
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
उत्तर-
प्रदूषण के कारण सबसे बड़ा दुष्परिणाम तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ना है। प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा है। प्रदूषण से सारे देश व समाज का आर्थिक और सामाजिक वातावरण बिगड़ रहा है। खेती के उगाने के कृत्रिम उपायों, खादों आदि के प्रयोग से जहाँ धरती की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो रही है, वहीं खराब फसलें उत्पन्न हो रही हैं, जिनके खाने से मानव के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। इसी प्रकार ध्वनि व वायु-प्रदूषण ने भी हमारे प्राकृतिक वातावरण को विकलांग बना दिया है। वायु-प्रदूषण से फेफड़ों की बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। ध्वनि-प्रदूषण से मन की शांति नष्ट हो रही है और तनाव बढ़ता जा रहा है। ध्वनि-प्रदूषण से बहरेपन की बीमारी बढ़ रही है। इस प्रदूषण की बढ़ती समस्या के प्रति हर व्यक्ति का जागरूक होना अति अनिवार्य है। सरकार को चाहिए की प्रदूषण को रोकने के लिए कड़े नियम बनाए और उनको सख्ती से लागू करे।

प्रश्न 14.
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?
उत्तर-
‘कटाओ’ को भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। वह स्विटज़रलैंड से भी अधिक सुंदर स्थान है, जिसे देखकर लोग अपने आपको ईश्वर के निकट समझते हैं। वहाँ उन्हें अद्भुत शांति मिलती है। यदि वहाँ पर दुकानें खुल जातीं, तो लोगों की भीड़ बढ़ जाती। गंदगी फैल जाती। वहाँ का प्राकृतिक वातावरण नष्ट हो जता। उसे भारत का स्विट्ज़रलैंड नहीं कहा जा सकता था। इसलिए ‘कटाओ’ पर किसी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है।

प्रश्न 15.
प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर-
प्रकृति के नियम अनोखे हैं। वह हर कार्य की व्यवस्था अपने ही ढंग से करती है। उसकी जल संचय व्यवस्था भी अत्यंत रोचक है। सर्दियों में बर्फ के रूप में जल एकत्रित होता है। गर्मियों में जब लोग प्यास से व्याकुल होते हैं तो प्रकृति के द्वारा एकत्रित बर्फ रूपी जल पिघलकर जलधारा बनकर बहने लगता है। जिसे प्राप्त करके लोग अपनी प्यास को बुझाते हैं।

प्रश्न 16.
देश की सीमा पर बैठे फौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
उत्तर-
देश की सीमाओं पर बैठे फौजी विशेषकर पहाड़ी क्षेत्र की सीमाओं पर उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहाँ वे बर्फीली हवाओं और तूफानों का सामना करते हैं। पौष और माघ की ठंड में तो पेट्रोल के अतिरिक्त सब कुछ जम जाता है। फौजी बड़ी मुश्किल से अपने शरीर का तापमान सामान्य रखते हुए देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं। वहाँ तक पहुँचने के मार्ग अत्यंत संकरे और खतरनाक हैं। कहीं-कहीं पर तो कोई वाहन भी नहीं जा सकता। वहाँ फौजी अपना सामान अपनी पीठ पर लादकर ले जाते हैं। वहाँ कभी भी किसी के भी प्राण जाने की संभावना बनी रहती है। किंतु फौजी अपने आपको खतरे में डालकर हमारे आने वाले कल को सुरक्षित करते हैं।

देश की सीमाओं की सुरक्षा करने वाले फौजियों के प्रति हमारा उत्तरदायित्व बनता है, कि हम उनका हौसला बढ़ाएँ और उनके परिवार की खुशहाली के लिए प्रयत्नशील रहें ताकि फौजी अपने परिवार की चिंता से मुक्त होकर सीमाओं की रक्षा कर सकें। समय-समय पर उनका साहस बढ़ाने के लिए उनके बीच जाकर उनका मनोरंजन करना चाहिए। हमें अपने फौजियों का सम्मान करना चाहिए।

HBSE 10th Class Hindi जॉर्ज पंचम की नाक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका को गंतोक से कंजनजंघा की पहाड़ियाँ क्यों नहीं दिखाई दे रही थीं?
उत्तर-
लेखिका प्रातःकाल जब जगी तो वह तुरंत बाहर आकर कंचनजंघा की पहाड़ियाँ देखने लगी। किंतु उसे वे पहाड़ियाँ दिखाई नहीं दीं, क्योंकि उस प्रातः मौसम साफ नहीं था। मौसम के साफ रहने पर ही कंचनजंघा की पहाड़ियाँ दिखाई दे सकती हैं। किंतु उस दिन आकाश में हल्के-हल्के बादल छाए हुए थे। ..

प्रश्न 2.
लेखिका को लायुंग में बर्फ देखने को क्यों नहीं मिली?
उत्तर-
लेखिका अपने सहयात्रियों के साथ आगे बढ़ती जा रही थी। उन्हें उम्मीद थी कि वे लायुग में बर्फ देख सकेंगे। किंतु वहाँ उन्हें बर्फ के दर्शन नहीं हुए। किंतु जैसे ही लेखिका प्रातः उठी उन्हें विश्वास था, कि उन्हें बर्फ देखने को मिलेगी। किंतु ऐसा नहीं हुआ और लेखिका निराश हो गई। वहाँ बर्फ का एक भी कतरा न था। वहाँ स्थानीय लोगों ने बताया कि प्रदूषण के बढ़ने के कारण वहाँ बर्फ नहीं पड़ती। जिस प्रकार तेजगति से प्रदूषण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे प्रकृति के साधनों में भी कमी आती जा रही है।

प्रश्न 3.
लेखिका के गाइड ने उसे कैसा स्थान बताया था, जहाँ बर्फ मिल सकती थी? उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लेखिका के गाइड जितेन नार्गे ने लेखिका को बताया था, कि कटाओ में बर्फ अवश्य देखने को मिलेगी। कटाओ को अभी टूरिस्ट स्थान नहीं बनाया गया। वह अपने प्राकृतिक रूप में विद्यमान है। उसे भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। कटाओ लायुंग से 500 फुट की ऊँचाई पर है। लायुंग से कटाओ पहुँचने के लिए लगभग दो घंटे लग जाते हैं। यहाँ के रास्ते अत्यंत संकरे एवं खतरनाक हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

प्रश्न 4.
लायुंग के विषय में सार रूप में लिखते हुए बताइए, कि यहाँ आजकल बर्फ कम क्यों पड़ने लगी है?
उत्तर-
लायुंग सिक्किम राज्य का एक छोटा-सा कस्बा है। यह गंतोक और यूमथांग के बीच का मुख्य पड़ाव है। यहाँ के लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब का व्यापार हैं। यद्यपि यह कस्बा समुद्र-तल से 14000 फुट की ऊँचाई पर है, किंतु यहाँ हिमपात बहुत कम होता है। इसका प्रमुख कारण पर्वतीय क्षेत्र में बढ़ता प्रदूषण है।

प्रश्न 5.
‘साना-साना हाथ जोड़ि……’ पाठ में झरने के संगीत में विलीन आत्मा के संगीत पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
लेखिका मार्ग में आने वाले एक खूबसूरत झरने के पास रुकी। उसका नाम था ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’। लेखिका वहाँ पत्थरों पर बैठकर झरने के संगीत के साथ ही आत्मा का संगीत भी सुनने लगी थी। उसका मन भी झरने के संगीत को सुनकर काव्यमय हो उठा। आत्मा सत्य व सौंदर्य का छूने लगी। आत्मा को झरना अनंतता का प्रतीक अनुभव हो रहा था। उससे उसे जीवन की शक्ति का भी एहसास होने लगा था। ऐसा लगा कि उसके जीवन से सभी कुटिलताएँ और दुष्ट भावनाएँ इस निर्मल धारा में बह गई हैं। उसका . जीवन असीम बनकर बहने लगा हो। वह कामना करती है कि मैं भी अनंत समय तक ऐसे ही बहती रहूँ और इस झरने की पुकार को सुनती रहूँ।

प्रश्न 6.
पताकाओं को लेखिका ने बौद्ध संस्कृति का अंग क्यों कहा है? अथवा घाटी में दिखाई देने वाली रंगीन पताकाएँ कब लगाई जाती हैं?
उत्तर-
लेखिका को जितेन ने बताया है कि जब किसी बौद्ध अनुयायी की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी आत्मा की शांति हेतु मंत्र-लिखित एक सौ आठ पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उतारा नहीं जाता, अपितु ये स्वयं नष्ट हो जाती हैं। जब कोई नया कार्य आरंभ किया जाता है, तो रंगदार पताकाएँ फहराई जाती हैं। अतः स्पष्ट है कि पताकाएँ बौद्ध संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। ये बौद्ध संस्कृति की पहचान भी कही जा सकती हैं।

प्रश्न 7.
सिक्किमी नवयुवक ने ‘कटाओ’ के बारे में लेखिका को क्या जानकारी दी?
उत्तर-
युवक ने लेखिका को बताया कि कटाओ जाने पर लेखिका को शर्तिया बर्फ मिल जाएगी-कटाओ यानि भारत का स्विट्जरलैंड! जो कि अभी तक टूरिस्ट स्पॉट नहीं बनने के कारण सुर्खियों में नहीं आया था और अपने प्राकृतिक स्वरूप में था।

प्रश्न 8.
किस कारण से कटाओ के मार्ग में सभी यात्री मौन हो गए थे, केवल उनकी साँसों की ध्वनि ही सुनाई देती थी?
उत्तर-
लायुंग और कटाओ के बीच का मार्ग अत्यंत संकरा और खतरनाक था। वाहन चालक को एक-एक इंच का ध्यान रखना पड़ता है। उसकी ज़रा- सी भूल से न जाने क्या हो जाए। जब लेखिका और उसके सहयात्री आगे बढ़े तो उस समय हल्की-हल्की वर्षा हो रही थी और धुंध भी छाई हुई थी। रास्ते के खतरे के अहसास ने सभी को खामोश कर दिया था। उस धुंध और फिसलन भरे रास्ते में कुछ भी घटित हो सकता था। इसलिए वे सब सारी मस्ती भूलकर अपना दम साधे बैठे थे।

प्रश्न 9.
कटाओ के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर लेखिका क्या सोचने लगी थी?
उत्तर-
कटाओ का प्राकृतिक सौंदर्य जहाँ अनुपम एवं पवित्र था, वहीं उसका प्रभाव भी जादू की भाँति असरदार था। लेखिका उसकी सम्मोहन शक्ति से न बच पाई थी। वह उसे अपनी आत्मा में समा लेना चाहती थी। वह अनुभव करने लगी, कि विभोर कर देने वाली उस दिव्यता के बीच बैठकर हमारे ऋषि-मुनियों ने वेदों की रचना की होगी। उन्होंने ऐसे ही दिव्य प्राकृतिक वातावरण में बैठकर जीवन के सत्य को खोजा होगा। ‘सर्वे भवंतु सुखिनः के महामंत्र का उच्चारण किया होगा।

प्रश्न 10.
जितेन ने सैलानियों से गुरु नानक देव जी से संबंधित किस घटना का वर्णन किया है?
उत्तर-
जितेन को उस क्षेत्र के इतिहास और भौगोलिक स्थिति का पूरा ज्ञान था। वह लेखिका और उसके सहयात्रियों को रास्ते में अनेक जानकारियाँ देता रहता है। एक स्थान पर उसने बताया कि यहाँ पर एक पत्थर पर गुरु नानक देव जी के पैरों के निशान हैं। जब गुरु नानक देव जी यहाँ आए थे उस समय उनकी थाली से कुछ चावल छिटककर बाहर गिर गए थे। जहाँ-जहाँ चावल छिटके थे, वहाँ-वहाँ चावलों की खेती होने लगी थी।

प्रश्न 11.
सिक्किम के अधिकतर लोगों की जीविका का साधन क्या है?
उत्तर-
सिक्किम के अधिकतर लोग मेहनत मजदूरी करते हैं। उनके खेत छोटे होते हैं तथा वे पशु-पालन का काम भी करते हैं।

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बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ नामक पाठ की रचयिता का क्या नाम है?
(A) महादेवी वर्मा
(B) मधु कांकरिया
(C) कमलेश्वर
(D) शिवपूजन सहाय
उत्तर-
(B) मधु कांकरिया

प्रश्न 2.
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ नामक पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
(A) कहानी
(B) निबंध
(C) यात्रा वृत्तांत
(D) संस्मरण
उत्तर-
(C) यात्रा वृत्तांत

प्रश्न 3.
‘गैंगटॉक’ नगर किस राज्य की राजधानी है?
(A) आसाम
(B) सिक्किम
(C) बंगाल
(D) अरुणाचल
उत्तर-
(B) सिक्किम

प्रश्न 4.
सिक्किम भारत की किस दिशा में स्थित है?
(A) पश्चिम
(B) पश्चिमोत्तर
(C) पूर्व
(D) पूर्वोत्तर
उत्तर-
(D) पूर्वोत्तर

प्रश्न 5.
लेखिका ने गैंगटॉक को किन लोगों का शहर बताया है?
(A) मेहनतकश बादशाहों को
(B) गरीबों का
(C) नवाबों का
(D) राजाओं का
उत्तर-
(A) मेहनतकश बादशाहों को

प्रश्न 6.
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ प्रार्थना लेखिका ने किस देश की युवती से सीखी थी?
(A) वर्मा की
(B) श्रीलंका की
(C) नेपाल की
(D) चीन की
उत्तर-
(C) नेपाल की

प्रश्न 7.
‘कंचनजंघा’ किस पर्वत की चोटी का नाम है?
(A) हिमालय पर्वत
(B) कंचन पर्वत
(C) सुमेरू पर्वत
(D) नीलमणि पर्वत
उत्तर-
(A) हिमालय पर्वत

प्रश्न 8.
गैंगटॉक से यूमथांग कितनी दूर है?
(A) 139 किलोमीटर
(B) 149 किलोमीटर
(C) 159 किलोमीटर
(D) 169 किलोमीटर
उत्तर-
(B) 149 किलोमीटर

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प्रश्न 9.
लेखिका के ड्राइवर-कम-गाइड का क्या नाम है?
(A) रामदीन
(B) विक्रम थापा
(C) जितेन नार्गे
(D) उथापा
उत्तर-
(C) जितेन नार्गे

प्रश्न 10.
लेखिका को मार्ग में सफेद रंग के जो ध्वज दिखाई दिए थे, वे किस धर्म से संबंधित थे?
(A) बौद्धधर्म
(B) जैनधर्म
(C) ईसाई धर्म
(D) मुस्लिम धर्म
उत्तर-
(A) बौद्धधर्म

प्रश्न 11.
बौद्ध धर्म में किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु पर उसकी आत्मा की शांति के लिए कितनी पताकाएँ फहराई जाती हैं?
(A) 130
(B) 140
(C) 150
(D) 108
उत्तर-
(D) 108

प्रश्न 12.
जितेन नार्गे की जीप में किसकी तस्वीर लगी हुई थी?
(A) महात्मा गाँधी की
(B) दलाई लामा की
(C) महात्मा बुद्ध की
(D) महावीर की
उत्तर-
(B) दलाई लामा की

प्रश्न 13.
‘कवी-लोंगस्टॉक’ नामक स्थान पर कौन-सी हिंदी फिल्म की शूटिंग हुई थी?
(A) गाइड
(B) क्रांति
(C) उपकार
(D) देश प्रेमी
उत्तर-
(A) गाइड

प्रश्न 14.
लेखिका को पूरे देश में एक जैसी कौन-सी वस्तु दिखाई दी थी?
(A) आस्थाएँ
(B) धर्म
(C) वेशभूषा
(D) खानपान
उत्तर-
(A) आस्थाएँ

प्रश्न 15.
सिलीगुड़ी के पास लेखिका को कौन-सी नदी दिखाई दी थी? ।
(A) गंगा
(B) यमुना
(C) तिस्ता
(D) ब्यास
उत्तर-
(C) तिस्ता

प्रश्न 16.
‘मशगूल’ शब्द का अर्थ है-
(A) मशहूर
(B) व्यस्त
(C) प्रसिद्ध
(D) सुंदर
उत्तर-
(B) व्यस्त

प्रश्न 17.
लेखिका ने किस जंगल में पत्ते तलाशती हुई युवतियाँ देखीं थीं?
(A) पलामू
(B) सतपूड़ा
(C) पलाश के जंगल
(D) गीर के जंगल
उत्तर-
(A) पलामू

प्रश्न 18.
प्रकृति के विराट रूप को देकर लेखिका को क्या प्रेरणा मिलती है?
(A) सदा काम में लगा रहना चाहिए।
(B) सदा मुस्कराते रहना चाहिए
(C) चिंता नहीं करनी चाहिए
(D) लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए
उत्तर-
(B) सदा मुस्कराते रहना चाहिए

प्रश्न 19.
लायुंग समुद्रतल से कितनी ऊँचाई पर है?
(A) 10000 फीट
(B) 11000 फीट
(C) 12000 फीट
(D) 14000 फीट
उत्तर-
(D) 14000 फीट

प्रश्न 20.
कटाओ लायुग से कितनी ऊँचाई पर स्थित है?
(A) 500 फीट
(B) 400 फीट
(C) 300 फीट
(D) 200 फीट
उत्तर-
(A) 500 फीट

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प्रश्न 21.
कटाओ को हिंदुस्तान का क्या कहा जाता है?
(A) इंग्लैंड
(B) अमेरिका
(C) स्विट्ज़रलैंड
(D) जर्मनी
उत्तर-
(C) स्विट्ज़रलैंड

जॉर्ज पंचम की नाक Summary in Hindi

जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का सार

प्रश्न-
‘साना साना हाथ जोड़ि…….’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘साना साना हाथ जोड़ि…….’ ‘मधु कांकरिया’ द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत है। इस पाठ में लेखिका ने सिक्किम राज्य की राजधानी गैंगटॉक से हिमालय तक की यात्रा का सजीव एवं भावपूर्ण वर्णन किया है। लेखिका का मत है कि यात्राओं से मनोरंजन, ज्ञानवर्धन एवं अज्ञात स्थलों की जानकारी के साथ-साथ भाषा और संस्कृति का आदान-प्रदान होता है। प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने हिमालय के अनंत – सौंदर्य का अत्यंत अद्भुत एवं काव्यात्मक वर्णन किया है कि मानो हिमालय का पल-पल बदलता सौंदर्य हम अपनी आँखों से देख रहे हों। इस यात्रा वृत्तांत में महिला यायावरी विशिष्टता भी देखी जा सकती है। प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत में प्राकृतिक नज़ारों के साथ-साथ वहाँ के जीवन का भी यथार्थ चित्र अंकित किया गया है।

लेखिका गैंगटॉक में रात को तारों से जगमगाते आसमान को देखती है। रात में ऐसा सम्मोहन था कि कोई भी देखने वाला उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। लेखिका भी ऐसे दृश्य को देखकर उसमें खो जाती है। उसकी आत्मा भाव-शून्य हो जाती है। वह प्रातः उठकर नेपाली भाषा में प्रातःकालीन की जाने वाली प्रार्थना करती है। उसी सुबह उन्हें यूमथांग जाना था। यदि मौसम ‘साफ हो तो वहाँ से हिमालय की सबसे ऊँची चोटी दिखाई देती है। मौसम साफ था, किंतु आकाश में हल्के-हल्के बादल थे इसलिए हिमालय की ऊँची चोटी कंचनजंघा दिखाई न दे सकी। यूमथांग गैंगटॉक से लगभग 149 किलोमीटर दूर था। उनके ड्राइवर-कम-गाइड का नाम जितेन नार्गे था। यूमथांग का मार्ग फूलों भरी घाटियों वाला था। मार्ग में उन्हें एक स्थान पर सफेद रंग की बौद्ध पताकाएँ दिखाई दीं। ये पताकाएँ अहिंसा और शांति की प्रतीक थीं।

नार्गे ने बताया कि जब कोई बुद्धिस्ट मर जाता है तो एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। जिन्हें उतारा नहीं जाता। किसी नए कार्य के आरंभ के समय रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। जितेन नार्गे ने बताया कि कवी-लोंग स्टॉक नामक स्थान पर ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग हुई थी। उन लोगों ने मार्ग में एक घूमता हुआ चक्र भी देखा जिसे धर्म चक्र कहते हैं। वहाँ के लोगों का विश्वास है कि उसे घुमाने से घुमाने वाले के सभी पाप धुल जाते हैं। लेखिका को लगा कि सब स्थानों के लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वासों और पाप- पुण्य संबंधी धारणाएँ लगभग एक समान हैं ज्यों-ज्यों उनकी जीप ऊपर बढ़ती जा रही थी, त्यों- त्यों, बाज़ार, लोग, बस्तियाँ पीछे छूटते जा रहे थे। बड़ी-बड़ी पहाड़ियाँ सामने अपने विराट रूप में दिखाई देने लगी थीं। पास जाकर देखने से लगता था कि वे सौंदर्य के वैभव से मंडित थीं।

धीरे-धीरे मार्ग घुमावदार होते जा रहे थे। चारों ओर हरियाली-ही-हरियाली दिखाई देती थी। लगता था कि वे किसी हरी-भरी गुफा में प्रवेश कर रहे हैं। वहाँ के अत्यंत सुंदर मौसम का प्रभाव सब पर हो रहा था किंतु लेखिका चुपचाप बैठी हुई वहाँ के संपूर्ण दृश्यों को अपने में समा लेना चाहती थी। सिलीगुड़ी से साथ चल रही तिस्ता नदी का सौंदर्य अब देखते ही बनता था। लेखिका नदी के सौंदर्य को देखकर रोमांचित हो रही थी। साथ ही मन-ही-मन हिमालय को सलामी दे रही थी। जीप ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ पर जाकर रुकती है। सभी लोग वहाँ के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने-अपने कैमरों में बंद करने लगते हैं किंतु लेखिका अत्यंत तल्लीनता के साथ झरने से बह रहे संगीत को आत्मलीन होकर सुन रही थीं। उन्हें लगता था कि जैसे उन्होंने सत्य एवं सौंदर्य को छू लिया हो। झरने का बहता पानी उनमें एक जोश, शक्ति और अहसास भर रहा था। उन्हें लग रहा था कि उनके अंतःकरण की सारी कुटिलताएँ और बुरी इच्छाएँ पानी की धारा के साथ बह गई थीं। वे वहाँ से हटने के लिए तैयार नहीं थीं।

जब जितेन ने आकर कहा कि आगे इससे भी सुंदर दृश्य हैं, तब वे आगे चलने को तैयार हुईं। मार्ग में आँखों और आत्मा को आनंद प्रदान करने वाले अनेक दृश्य बिखरे हुए थे। मार्ग में प्राकृतिक दृश्य पल-पल में अपना रंग बदलते थे। लगता था कि कोई जादू की छड़ी घुमाकर जल्दी-जल्दी दृश्य बदल रहा है। माया और छाया का यह अनूठा खेल लेखिका को जीवन के रहस्य समझा रहा था। चारों ओर के दृश्य रहस्यों से भरे हुए थे। उनकी जीप थोड़ी देर के लिए रुक जाती है, जहाँ जीप रुकी थी वहाँ लिखा हुआ था ‘थिंक ग्रीन’ । वहाँ पूरे, ब्रह्मांड का दृश्य मानो एक साथ देखने को मिल रहा था। वहाँ बहते झरने, तिस्ता नदी का तीव्र वेग, धुंध का आवरण, ऊपर आकाश में बादल थे और हवा धीरे-धीरे बह रही थी। आस-पास खिले हुए फूलों की हँसी बिखरी हुई थी। संपूर्ण अद्भुत वातावरण को देखकर तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हमारा अस्तित्व भी इस वातावरण के साथ ही बहता जा रहा है।

धुंधली चादर के हटते ही सामने विपरीत दिशाओं में खड़े पहाड़ दिखाई दिए। इन पहाड़ों के बीच स्वर्ग के समान सुंदर दृश्य बिखरे हुए थे। पर्वत, झरने, फूलों, घाटियों और वादियों के दुर्लभ नज़ारे लेखिका को कहीं बहुत गहरे अपने आपसे जोड़ रहे थे। उसकी आत्मा उदार होती जा रही थी। उसे लगा कि वह ईश्वर के बहुत समीप है। उसके होंठों पर फिर वही प्रार्थना “साना-साना हाथ जोड़ि ….” आने लगी। कुछ ही दूर चलने पर, लेखिका की दृष्टि पहाड़ी औरतों पर पड़ी। वे औरतें पत्थर तोड़ रही थीं, उनकी काया कोमल थी, किंतु उनके हाथों में हथौड़े और कुदाल थे। कुछ की पीठ पर तो उनके बच्चे भी बँधे हुए थे। वे पूरी ताकत के साथ पत्थर तोड़ रही थीं। वे उस अलौकिक सौंदर्य से निरपेक्ष अपनी जीविका के संघर्ष में लगी हुई थीं। लेखिका को एकाएक लगा मानो किसी समाधि भाव से नाचती नृत्यांगना के धुंघरू टूट गए हों। स्वर्गीय सौंदर्य के बीच मौत, भूख और जिंदा रहने की लड़ाई उनके सामने थी।

पूछने पर पता चला कि ये पहाड़िने सड़क को चौड़ा करने का काम कर रही थीं। यह बहुत ही खतरे से भरा हुआ कार्य है। आपको हैरानी होगी, किंतु इस काम को करने में बहुत-से लोगों ने तो मौत को भी झुठला दिया है। लेखिका गहरी चिंता में डूब गई थी। उन्हें देखकर जितेन नार्गे ने कहा, “मैडम, ये मेरे देश की आम जनता है। इन्हें तो आप कहीं भी देख सकती हो। आप पहाड़ों की सुंदरता को देखिए जिनको देखने के लिए आप पैसे खर्च करके आई हैं।” किंतु लेखिका सोच रही थी कि मेरे देश की जनता कितना कम लेकर कितना अधिक देती है। तभी वे श्रम-सुंदरियाँ किसी बात पर खिलखिला पड़ी। लेखिका को लगा कि खंडहर ताजमहल बन गया हो।

जीप चढ़ाई चढ़ती जा रही थी। हेयर पिन बेंट से पहले एक पड़ाव पर बहुत सारे पहाड़ी बच्चे स्कूल से लौट रहे थे। वे लिफ्ट माँग रहे थे। जितेन ने बताया कि यहाँ स्कूल बस की कोई व्यवस्था नहीं है। नीचे तराई में एक ही स्कूल है। दूर-दूर से बच्चे वहीं पढ़ने आते हैं। ये बच्चे पढ़ते ही नहीं, अपितु अपनी माताओं के साथ मवेशी चराते हैं, पानी भरते हैं और लकड़ियों के गट्ठर भी उठाकर लाते हैं। अब आगे का मार्ग और भी संकरा (तंग) हो गया था। जगह-जगह चेतावनी के बोर्ड लगाए हुए थे।

सूरज ढलने पर पहाड़ी औरतें और बच्चे गाय चराकर लौट रहे थे। कुछ के सिर पर लकड़ियों के गट्ठर थे। शाम का समय हो गया था। जीप चाय के बागानों से गुज़र रही थी। बागानों में कुछ युवतियाँ सिक्किमी परिधान पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनके चेहरे ढलती शाम के सूरज की रोशनी में चमक रहे थे। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखेर रहे थे। लेखिका इतना अधिक प्राकृतिक सौंदर्य देखकर खुशी से चीख उठी थी। यूमथांग पहुँचने से पूर्व लोग कुछ समय के लिए लायुंग रुके थे। लायुंग में लकड़ी से बने छोटे-छोटे घर थे। लेखिका थकान उतारने के लिए तिस्ता नदी के पत्थरों पर जाकर बैठ गई थी। वहाँ का वातावरण शांत था। ऐसा लग रहा था मानो प्रकृति अपनी लय, ताल और गति में कुछ कह रही हो। इस सफर में लेखिका दार्शनिक-सी बन गई थी। रात होने पर जितेन व अन्य साथियों ने नाच-गाना आरंभ कर दिया था। लेखिका की सहयात्री मणि ने अति सुंदर नृत्य किया। लागुंग के लोगों का मुख्य व्यवसाय आलू, धान की खेती और शराब था। लेखिका, की इच्छा वहाँ बर्फ देखने की थी, किंतु वहाँ बर्फ दिखाई नहीं दे रही थी।

वे लोग इस समय 14000 फीट की ऊँचाई पर थे। एक स्थानीय युवक का मानना था कि यहाँ प्रदूषण के कारण स्नोफाल नहीं होता। उसने बताया ‘कटाओ’ नामक स्थान पर बर्फ देखने को मिल सकती है। ‘कटाओ’ को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं। ‘कटाओ’ को अभी तक टूरिस्ट स्थान नहीं बनाया गया था। इसलिए वह अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। लागुंग से ‘कटाओ’ का सफर केवल दो घंटे का था। अब रास्ता और भी खतरनाक था। सब लोग खामोश बैठे हुए थे। जितेन अंदाज़ से गाड़ी चला रहा था। वहाँ के सारे वातावरण में बादल छाए हुए थे। जरा-सी असावधानी से कोई भी दुर्घटना हो सकती थी। थोड़ी दूर चलने पर मौसम साफ हो गया। मणि स्विट्ज़रलैंड देख चुकी थी।

इसलिए उसने एकाएक कहा यह स्थान तो स्विट्ज़रलैंड से भी अधिक सुंदर है। ‘कटाओ’ दिखने लगा था। चारों ओर बर्फ रूपी चाँदी की चादर फैली हुई थी। कटाओ पहुँचते ही थोड़ी-थोड़ी बर्फ पड़ने लगी थी। बर्फ को देखकर सभी के हृदय खिल गए थे। सभी यात्री वहाँ की बर्फ के फोटो खींच रहे थे। लेखिका बर्फ में जाना चाहती थी किंतु उनके पास बर्फ में पहनने वाले जूते नहीं थे। लेखिका फोटो खींचने की अपेक्षा वहाँ के वातावरण को अपनी साँसों में समा लेना चाहती थी। उन्हें लग रहा था कि यहाँ के वातावरण ने ही ऋषि-मुनियों को वेदों की रचना करने की प्रेरणा दी होगी। ऐसे अनुपम सौंदर्य को यदि कोई अपराधी भी देख ले तो वह भी कुछ समय के लिए आध्यात्मिक हो जाएगा। मणि के मन में भी आध्यात्मिकता का भाव जागने लगा था। लेखिका सोचती है कि ये हिमशिखर ही पूरे एशिया को पानी देते हैं। प्रकृति अपने ढंग से सर्दियों में हमारे लिए पानी एकत्रित करती है और गर्मियों में ये बर्फ की शिलाएँ पिघलकर जलधारा बनकर हमारी प्यास को शांत करती हैं। प्रकृति की जल संचय की यह विधि भी अद्भुत है। हम इन हिमशिखरों और नदियों के ऋणी हैं।

लेखिका और उसके सहयोगी यात्री कुछ आगे बढ़ते हैं तो वहाँ उन्हें फौजी छावनियाँ दिखाई देती हैं। वहाँ से कुछ ही दूरी पर चीन की सीमा है। फौजी जवान कड़कती ठंड में अपने आपको कष्ट देकर हमारी सुरक्षा करते हैं। लेखिका फौजियों को देखकर कुछ उदास हो जाती है कि जहाँ बैशाख के महीने में भी इतनी अधिक ठंड है तो वे लोग पौष – माघ की ठंड में किस तरह रहते होंगे। वहाँ जाने का रास्ता भी मुसीबतों से भरा हुआ है। वास्तव में फौजी अपना सुख त्यागकर हमारे लिए शांतिपूर्वक कल का निर्माण करते हैं।

वे लोग वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों को अपनी आत्मा में संजोकर लौट पड़े थे। यूमथांग की संपूर्ण घाटी फूलों से भरी हुई थी। जितेन नार्गे ने बताया कि यहाँ के लोग बंदर का माँस भी खाते हैं। बंदर का माँस खाने से कैंसर नहीं होता। उसकी बातों पर लेखिका के अतिरिक्त किसी को विश्वास नहीं हो रहा था, क्योंकि उसने पठारी इलाकों की भयानक गरीबी देखी थी। लोगों को सूअर का दूध पीते देखा था। यूमथांग पहुँचकर लोगों को सब कुछ फीका- फीका लग रहा था। वहाँ के लोग अपने आपको भारतीय कहलवाने में गर्व अनुभव करते हैं। पहले सिक्किम स्वतंत्र राज्य था। अब वह भारत का ही एक हिस्सा बन गया है। ऐसा होने से वहाँ के लोग बहुत खुश हैं। मणि ने बताया कि पहाड़ी कुत्ते केवल चाँदनी रात में ही भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान हुई। उसे लगा कि पहाड़ी कुत्तों पर भी ज्वारभाटे की तरह पूर्णिमा की चाँदनी का प्रभाव पड़ता है। लौटते समय जितेन नार्गे ने और भी बहुत-सी जानकारियाँ उन्हें दी थीं। मार्ग में उन्हें एक ऐसा स्थान दिखाया, जहाँ पूरे एक किलोमीटर के क्षेत्र में देवी-देवताओं का निवास है। जो वहाँ गंदगी फैलाएंगा वह मर जाएगा, ऐसा विश्वास किया जाता है। उसने यह भी बताया कि वे पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते। वे लोग गंतोक बोलते हैं। गंतोक का अर्थ है-पहाड़। सिक्किम में अधिकतर क्षेत्रों को टूरिस्ट स्पॉट बनाने का श्रेय भारतीय आर्मी के कप्तान शेखर दत्ता को जाता है। लेखिका को इस यात्रा के पश्चात् लगा कि मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली खोज का नाम ही सौंदर्य है।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-17) संधि-स्थल = मिलने का स्थान। सम्मोहन = मोहित होने का भाव। स्थगित = कुछ समय के लिए टाला गया। अतींद्रियता = इंद्रियों से परे जाने का भाव। उजास = प्रकाश।

(पृष्ठ-18) रकम-रकम के = तरह- तरह के। गहनतम = सबसे गहरा। गाइड = मार्गदर्शक। जायज़ा = अनुभव और अनुमान। पताकाएँ = झंडे। बुद्धिस्ट = बौद्ध धर्म को मानने वाले। संधि-पत्र = समझौते के लिए लिखा गया पत्र। अवधारणाएँ = मानसिक विचार।

(पृष्ठ-19) परिदृश्य = नज़ारा। रफ्ता-रफ़्ता = धीरे-धीरे। वीरान = सुनसान। सँकरे = तंग। विशालकाय = बहुत बड़े आकार वाला। परिवर्तन = बदलाव। काम्य = मन की चाहत। वादियाँ = पर्वतों के बीच फैला हुआ भाग।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

(पृष्ठ-20) मुंडकी = सिर। सैलानी = सैर करने आए यात्री। पराकाष्ठा = पूरी ऊँचाई पर। फेन = झाग। जल-प्रपात = जल का ऊँचाई से गिरना। मशगूल = व्यस्त। अभिशप्त = जिसे अभिशाप दिया गया हो। काव्यमय = कविता से संबंधित। सरहद = सीमा। अनंतता = अंत न होने का भाव। लम्हे = पल। तामसिकताएँ = बुरी भावनाएँ।

(पृष्ठ-21) सतत = निरंतर। वजूद = होने का भाव। छोर तक = किनारे तक। तंद्रिल अवस्था = नींद जैसी स्थिति में होना। आत्मलीन = अपने-आप में लीन। निरपेक्ष = जो किसी से पक्ष-पात न करे। समाधिस्थ = समाधि की दशा में।

(पृष्ठ-22-23) अकस्मात = अचानक। संजीदा = गंभीर। डाइनामाइट = एक प्रकार का विस्फोटक पदार्थ । चुहलबाजी = हंसी मज़ाक। वंचना = वंचित होने का भाव (कमी)। गमगीन = गम में डूबा हुआ। हेयर पिन बेंट = बालों में लगाने वाली सूई के आकार का। पड़ाव = ठहराव, ठहरने का स्थान।

(पृष्ठ-24-25) सात्विक = पवित्र। आभा = चमक। असहाय = असहनीय। संकल्प = निश्चय। हलाहल = ज़हर। जन्नत = स्वर्ग। परिदे = पक्षी। अनायास = अचानक।

(पृष्ठ-26-27) अहसास = अनुभव । गर्व = अभिमान। डाइवोर्स = तलाक। ख्वाहिश = इच्छा। विभोर = लीन होना। सर्वे भवंतु सुखिनः, = सभी सुखी हों। अमंगल = बुरा। वृत्ति = स्वभाव। अभिभूत = भावना से भरकर। बार्डर = सीमा।

(पृष्ठ-28-29) टुडे = आज। टुमारो = आने वाला कल। मीआद = समय-सीमा। अपेक्षाकृत = की बजाय। रोमांचक = रोमांच से भर देने वाला। फुटप्रिंट = पाँवों के निशान।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ? Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

HBSE 10th Class Hindi मैं क्यों लिखता हूँ? Textbook Questions and Answers

Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 Question Answer HBSE प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?
उत्तर-
लेखक का मत है कि सच्चा लेखन भीतरी मज़बूरी या विवशता से ही उत्पन्न होता है। यह मजबूरी मन के भीतर से उत्पन्न अनुभूति से ही जगती है। बाहरी घटनाओं या दबाव से उत्पन्न नहीं होती। जब तक किसी लेखक का हृदय अनुभव के कारण पूरी तरह संवेदनशील नहीं हो उठता, उसमें अभिव्यक्ति की आकुलता पैदा नहीं होती, तब तक वह कुछ लिख नहीं पाता।

Class 10 Kritika Chapter 5 Solutions HBSE प्रश्न 2.
लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब.और किस तरह महसूस किया?
उत्तर-
लेखक हिरोशिमा गया और वहाँ के विस्फोट के दुष्परिणामों को प्रत्यक्ष रूप में देखकर भी विस्फोट का भोक्ता नहीं बन सका था। किंतु एक दिन जब लेखक जापान के हिरोशिमा नगर की सड़क पर घूम रहा था, अचानक उसकी नज़र एक पत्थर पर पड़ी। उस पत्थर पर एक मानव की छाया छपी हुई थी। वास्तविकता यह है कि विस्फोट के समय कोई मनुष्य उस पत्थर के समीप खड़ा होगा। रेडियम-धर्मी किरणों ने उस मनुष्य को भाप की तरह उड़ाकर उसकी छाया पत्थर पर डाल दी। उसे देखकर लेखक के मन में एक अनुभूति जगी थी। उसके मन में विस्फोट का प्रत्यक्ष दृश्य साकार हो उठा। उस समय वह विस्फोट का भोक्ता बन गया था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

मैं क्यों लिखता हूँ पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class  प्रश्न 3.
‘मैं क्यों लिखता हूँ” के आधार पर बताइए कि
(क) लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?
(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं?
उत्तर-
(क) लेखक के अनुसार वह स्वयं जानना चाहता है कि वह क्यों लिखना चाहता है? यही जानने की इच्छा ही उसे लिखने की प्रेरणा देती है। वह अपने भीतर उत्पन्न होने वाली विवशता से मुक्ति पाने के लिए भी लिखता है। यह विवशता ही वह भावना है जो उसे लिखने के लिए मजबूर करती है। वस्तुतः लेखक अपने भीतर उत्पन्न विवशता से मुक्ति पाने की इच्छा और तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने की भावना ही लेखक को लिखने की प्रेरणा देती है।

(ख) यह बात काफी हद तक सही है कि एक ही रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए उत्साहित करते हैं। जापान के हिरोशिमा नामक स्थान पर अणु-बम गिराने वाले ने भी अपना दुष्कर्म करके लेखक को लिखने के लिए प्रेरित किया। कभी-कभी व्यक्ति संपादकों, प्रकाशकों व आर्थिक लाभ से उत्साहित होकर भी लेखन कार्य करता है। किंतु यह कारण कोई जरूरी नहीं है। किंतु वास्तविक एवं सच्चा कारण तो लेखक के भीतर उत्पन्न आकुलता या विवशता ही होती है।

मैं क्यों लिखता हूँ कहानी का सारांश HBSE 10th Class प्रश्न 4.
कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के साथ-साथ बाह्य दबाव भी महत्त्वपूर्ण होता है। ये बाह्य दबाव कौन-कौन से हो सकते हैं? .
उत्तर-
ये बाह्य दबाव निम्नलिखित हो सकते हैं(1) संपादकों का आग्रह। (2) प्रकाशकों का तकाजा। (3) आर्थिक लाभ। . (4) किसी विषय-विशेष पर प्रचार-प्रसार करने का दबाव।

Class 10 Kritika Chapter 5 Question Answer HBSE प्रश्न 5.
क्या बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?
उत्तर-
बाह्य दबाव तो सभी क्षेत्रों से जुड़े लोगों या कलाकारों को प्रभावित करते हैं। यदि कोई व्यक्ति कला के किसी क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है तो लोगों की उससे अपेक्षाएँ और भी बढ़ जाती हैं। इसके साथ-साथ आर्थिक लाभ की लालसा भी हर व्यक्ति पर दबाव बनाती है। वह लोगों के दबाव व धन के लालच में आकर कार्य करता है। वर्तमान युग में धन के बिना कोई कार्य संपन्न नहीं होता। इसी कारण धन की आवश्यकता जैसा बाह्य दबाव तो हर क्षेत्र के व्यक्ति से जुड़ा रहता है। अतः स्पष्ट है कि केवल रचनाकारों को ही नहीं, अपितु हर क्षेत्र से जुड़े कलाकारों को भी बाह्य दबाव प्रभावित करते हैं।

Kritika Chapter 5 Class 10 HBSE प्रश्न 6.
हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है यह आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर-
हिरोशिमा पर लिखी लेखक की कविता को हम उनके आंतरिक दबाव का परिणाम कह सकते हैं। उसके लिए उन्हें किसी संपादक या प्रकाशक ने तकाजा नहीं किया था और न ही उनके सामने कोई आर्थिक अभाव था। इस कविता को उन्होंने अपनी आंतरिक अनुभूति की जागृति के प्रकाश से प्रभावित होकर लिखा है। अतः यह कविता कवि की आंतरिक अनुभूति का परिणाम है।

Ch 5 Kritika Class 10 HBSE प्रश्न 7.
हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और – किस तरह से हो रहा है?
उत्तर-
निश्चय ही हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है, किंतु आज भी विज्ञान का दुरुपयोग करके मानव, मानव का विनाश करने पर तुला हुआ है। परमाणु बम, एटम बम, हाइड्रोजन बम, मिसाइल्स तथा अनेक ऐसे विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र बनाकर मानव विज्ञान का दुरुपयोग कर रहा है। इन अस्त्र-शस्त्रों से संसार कभी भी नष्ट हो सकता है। आज एक से बढ़कर एक विषैली गैसें तैयार की जा रही हैं जिससे किसी भी देश का जलवायु विषाक्त किया जा सकता है। जिससे लोगों का जीवन पलक झपकते ही नष्ट हो सकता है। आज विश्व भर में आतंकवादी विस्फोटक पदार्थों का प्रयोग कर आतंक फैला रहे हैं। शक्तिशाली देश विज्ञान से प्राप्त शक्ति से कमज़ोर देशों पर आक्रमण करके वहाँ के जीवन को नष्ट कर रहे हैं।

विज्ञान के दुरुपयोग से चिकित्सक बच्चों का गर्भ में भ्रूण-परीक्षण कर रहे हैं। इससे जनसंख्या संतुलन बिगड़ता जा रहा है। कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करने से अनाज की पैदावार तो बढ़ जाती है, किंतु उनसे उत्पन्न अनाज स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। आज विज्ञान के परीक्षणों से वातावरण भी दूषित हो रहा है।

मैं क्यों लिखता हूँ प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 8.
एक सवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?
उत्तर-
आज के युग में विज्ञान के बिना जीवन संभव नहीं है, किंतु विज्ञान का दुरुपयोग भी बराबर किया जा रहा है। मैं विज्ञान के दुरुपयोग को रोकने के लिए चाहूँगा कि उन सब कार्यों के विरुद्ध प्रचार करूँ जो मानवता के लिए हानिकारक हैं। उदाहरणार्थ पोलिथीन का निर्माण न हो क्योंकि इसके अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। पोलिथीन से वातावरण तो दूषित हो ही रहा है इससे पशुओं की जान भी चली जाती है। इसी प्रकार कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग भी सोच-समझकर करना चाहिए। इनके प्रयोग से बहुत सारा जहर हमारे शरीर में जाता है, जिससे कैंसर जैसी बीमारी लग जाती है। खेतों में अधिक रासायनिक खादों की अपेक्षा गोबर से बनी खाद का प्रयोग करना चाहिए। इन सब कार्यों से कुछ सीमा तक विज्ञान के दुरुपयोग को रोका जा सकता है।

HBSE 10th Class Hindi मैं क्यों लिखता हूँ? Important Questions and Answers

Class 10 Hindi Ch 5 Kritika HBSE प्रश्न 1.
‘मैं क्यों लिखता हूँ?’ शीर्षक पाठ का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
इस पाठ में लेखन कार्य की प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया है। लेखक ने बताया है कि लेखन कार्य वास्तव में आंतरिक . अनुभूति से उत्पन्न भावों की व्याकुलता से होता है। कभी-कभी बाहरी दबाव के कारण भी लेखन कार्य किया जाता है। किंतु जो लेखन कार्य आंतरिक अनुभूति की प्रेरणा से लिखा जाता है, वह ही वास्तविक कृति होती है और उसके लेखक को कृतिकार कहा जाता है। लेखक ने इस बात को हिरोशिमा में घटित घटना के वर्णन से सिद्ध किया है। लेखक ने जब वहाँ एक पत्थर पर मनुष्य की आकृति को देखा जो विस्फोट के समय भाप बनकर उड़ गया था, तब लेखक ने विस्फोट से उत्पन्न भयानक दृश्य को साक्षात रूप में अनुभव किया था और उसकी अनुभूति की प्रेरणा से ही हिरोशिमा नामक कविता लिखी थी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 Summary HBSE प्रश्न 2.
लेखक और कृतिकार में क्या अंतर बताया गया है?
उत्तर-
श्री अज्ञेय ने लेखक और कृतिकार में अंतर करते हुए बताया है कि कुछ भी लिखना लेखन कार्य नहीं होता। सच्चा लेखन वही होता है जो आंतरिक दबाव से लिखा जाए। मन की छटपटाहट को व्यक्त करने के लिए लिखा जाए ऐसा लेखन ही कृति कहलाता है और ऐसे लेखक को कृतिकार कहा जाता है। इसके विपरीत जिस लेखन में धन या यश की प्रेरणा रहती है, वह सामान्य लेखन कार्य कहलाता है।

Class 10th Kritika Chapter 5 Question Answer HBSE प्रश्न 3.
अज्ञेय जी ने अपने लिखने का क्या कारण बताया है?
उत्तर-
अज्ञेय जी ने अपने लिखने के कारण पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि वह अपने भीतर (मन की) की विवशता से मुक्ति पाने के लिए लिखता है। वह भी अपनी आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने के लिए तथा तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने के लिए लिखता है। अज्ञेय जी स्वीकार करते हैं कि वह बाह्य दबाव में आकर बहुत कम लिखता है। उसके लिखने का प्रमुख कारण तो उसकी आंतरिक विवशता है। लिखकर ही वह अपनी विवशता से मुक्ति प्राप्त करता है।

मैं क्यों लिखता हूँ Summary HBSE 10th Class प्रश्न 4.
लेखक ने अणु बम द्वारा होने वाले व्यर्थ जीवनाश को कैसे अनुभव किया?
उत्तर-
लेखक ने युद्ध के समय देखा कि पूर्वी सीमा पर सैनिक ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंककर हजारों मछलियाँ मार रहे थे। जबकि उनकी आवश्यकता कम थी। इस प्रकार लेखक ने अनुभव किया न केवल मछलियाँ ही, अपितु जल में रहने वाले दूसरे जीवों को बिना किसी कारण मारा जा रहा था। यह देखकर लेखक ने अनुभव किया कि अणु बम के द्वारा असंख्य लोगों को व्यर्थ ही मारा जा रहा है। हिरोशिमा पर गिराया गया अणु बम इसका स्पष्ट उदाहरण है।

मैं क्यों लिखता हूं प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 5.
अज्ञेय जी के लेखन के लिए बाहरी दबावों का कितना सहयोग रहता है?
उत्तर-
अज्ञेय ऐसे कवि हैं जो लेखन कार्य के लिए आंतरिक अनुभूति से उत्पन्न आकुलता के कारण ही रची गई, रचना को उत्तम साहित्य या काव्य मानते हैं। किंतु वे बाहरी दबावों को भी अस्वीकार नहीं करते। उन्होंने अपने लेखन कार्य के लिए बाहरी दबावों को कभी. महत्त्व नहीं दिया। यदि बाहरी दबावों की प्रेरणा उन पर दबाव बनाए तो भी इसमें उन्हें कोई बाधा प्रतीत नहीं होती। वे कहते भी हैं, “मुझे इस सहारे की आवश्यकता नहीं पड़ती लेकिन कभी इससे बाधा भी नहीं होती।”

प्रश्न 6.
प्रत्यक्ष अनुभव और अनुभूति के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रत्यक्ष अनुभव सामने घटी घटना से प्राप्त होता है। यह आवश्यक नहीं कि सामने घटने वाली घटना देखने वाले के मन में अनुभूति जगा दे। अनुभूति आंतरिक भाव है। जब किसी घटना के अनुभव से मन में किसी भाव की गहरी आकुलता जाग उठती है तो वह ही अनुभूति होती है। वास्तव में यह अनुभूति ही लेखन कार्य की प्रेरणा बनती है।

प्रश्न 7.
लेखक ने बाहरी दबाव की तुलना किससे की है?
उत्तर-
लेखक ने बताया है कि कुछ लेखक बाहरी दबाव के बिना नहीं लिख पाते। उन लोगों की स्थिति कुछ ऐसी होती है कि कोई व्यक्ति प्रातःकाल नींद खुल जाने पर भी अलार्म बजने तक बिस्तर पर पड़ा रहता है। अलार्म बजता है, तभी उठता है। कुछ लेखक ऐसे होते हैं कि जब तक उन पर बाहरी दबाव न पड़े, तब तक वे लेखन कार्य नहीं करते। ऐसे लेखक बाहरी दबाव के बिना लिख नहीं सकते।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) अज्ञेय
(B) शिवपूजन सहाय
(C) मधु कांकरिया
(D) कमलेश्वर
उत्तर-
(A) अज्ञेय

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार कोई लेखक लिखता क्यों है?
(A) शौक के लिए
(B) अभ्यांतर विवशता के लिए
(C) दिखावे के लिए
(D) प्रसिद्धि के लिए
उत्तर-
(B) अभ्यांतर विवशता के लिए

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 3.
कोई भी लेखक लिखने के पश्चात् क्या अनुभव करता है?
(A) निराशा
(B) भय
(C) मुक्ति
(D) बंधन
उत्तर-
(C) मुक्ति

प्रश्न 4.
भीतरी उन्मेष किसे कहते हैं?
(A) मानसिक ज्ञान
(B) भीतरी शक्ति
(C) मानसिक विकास
(D) अनुशासन
उत्तर-
(A) मानसिक ज्ञान

प्रश्न 5.
आत्मानुशासन किसे कहते हैं?
(A) आत्मा को अनुशासन में रखना
(B) अपने आप अपनाए गए नियम
(C) किसी भी आत्मा पर दबाव डालना
(D) अपना अनुशासन
उत्तर-
(B) अपने आप अपनाए गए नियम

प्रश्न 6.
हिरोशिमा नगर किस देश में स्थित है?
(A) जापान
(B) फ्रांस
(C) भारत
(D) जर्मनी
उत्तर-
(A) जापान

प्रश्न 7.
लेखक द्वितीय विश्व युद्ध के समय कहाँ था?
(A) भारत की पश्चिमी सीमा पर
(B) पूर्वीय सीमा पर
(C) दक्षिण भारत में
(D) उत्तरी सीमा पर
उत्तर-
(B) पूर्वीय सीमा पर

प्रश्न 8.
जापान में किसे देखकर लेखक की अनुभूति को बल मिला था?
(A) जापान के लोगों को
(B) जापान की सड़कों को
(C) पत्थर पर बनी छाया को
(D) जापान की घटना के वर्णन को
उत्तर-
(C) पत्थर पर बनी छाया को

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

मैं क्यों लिखता हूँ? Summary in Hindi

मैं क्यों लिखता हूँ? पाठ का सार

प्रश्न-
में क्यों लिखता हूँ?’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत लघु निबंध में श्री अज्ञेय ने बताया है कि रचनाकार की भीतरी विवशता ही उसे लिखने के लिए मजबूर करती है तथा रचनाकार लिखने पर ही अपनी उस विवशता से मुक्ति पाता है।

लेखक का मत है कि जब प्रत्यक्ष अनुभव ही अनुभूति का रूप धारण करता है तभी रचना की उत्पत्ति होती है। यह आवश्यक नहीं कि हर अनुभव अनुभूति बने। अनुभव जब भाव-जगत और संवेदना का भाग बनता है तभी वह कलात्मक अनुभूति में बदल जाता है।

लेखक ने लिखने के कारणों के साथ-साथ लेखक के प्रेरणा स्रोतों को भी उजागर किया है। हर रचनाकार की आत्मानुभूति ही उसे लिखने के लिए प्रेरित करती है। इसके अतिरिक्त कुछ बाहरी दबाव भी होते हैं जिनके कारण लेखक लिखता है। बाहरी दबावों में संपादक का आग्रह, प्रकाशक का तकाजा तथा आर्थिक आवश्यकता होती है। वास्तव में बाहरी दबाव से लेखक कम प्रभावित है। उसकी आंतरिक अनुभूति ही उसे लिखने के लिए अधिक प्रेरित करती है। लेखक का मत है कि प्रत्यक्ष अनुभव एवं अनुभूति गहरी चीज़ है। अनुभव तो सामने घटित एक रचनाकार के लिए घटना को देखकर होता है, किंतु अनुभूति संवेदना और कल्पना के द्वारा उस सत्य को भी ग्रहण कर लेती है जो रचनाकार के सामने घटित नहीं हुआ। फिर वह सत्य आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है और रचनाकार उसका वर्णन करता है। लेखक बताता है कि उनके द्वारा लिखी ‘हिरोशिमा’ नामक कविता भी ऐसी ही है। एक बार जब वह जापान गयां तो वहाँ हिरोशिमा में उसने देखा कि एक पत्थर बुरी तरह झुलसा हुआ है और उस पर एक व्यक्ति की लंबी उजली छाया है। उसे देखकर उसने अनुमान लगाया कि जब हिरोशिमा पर अणु-बम गिराया गया तो उस समय वह व्यक्ति इस पत्थर के पास खड़ा होगा और अणु-बम के प्रभाव से वह भाप बनकर उड़ गया, किंतु उसकी छाया उस पत्थर पर ही रह गई।

उस छाया को देखकर लेखक को थप्पड़-सा लगा। मानो उसके मन में एक सूर्य-सा उगा और डूब गया। यही प्रत्यक्ष अनुभूति थी। इसी क्षण वह हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया। इसी से कविता लिखने की विवशता जगी। मन की आकुलता बुद्धि से आगे बढ़कर संवेदना का विषय बनी। धीरे-धीरे कवि ने उसे अनुभव से अलग कर लिया। एक दिन कवि ने हिरोशिमा पर एक कविता लिख दी। यह कविता जापान में नहीं, अपितु भारत में रेलगाड़ी में यात्रा करते हुए लिखी। कवि को कविता के अच्छे-बुरे होने से कोई सरोकार नहीं। यह कविता अनुभूति प्रसूत है यही कवि के लिए प्रमुख बात है।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ–42) आंतरिक = भीतरी, हृदय संबंधी। कठिन = मुश्किल। संक्षेप = छोटा। स्पर्श = छूना। आभ्यंतर = भीतरी। विवशता = मजबूरी। मुक्त = स्वतंत्र, आज़ाद। तटस्थ = अलग। कृतिकार = रचना लिखने वाला। ख्याति = प्रसिद्धि। संपादक = पत्र या पत्रिका की सामग्री व्यवस्थित करने वाला। प्रकाशक = छापने वाला। तकाजा = कहना। भेद = अंतर। आर्थिक = धन से संबंधित। भीतरी उन्मेष = मानसिक प्रकाश, मानसिक ज्ञान। निमित्ति = कारण।

(पृष्ठ-43) आत्मानुशासन = अपने आप अपनाए गए नियम। बिछौना = बिस्तर। समर्पित होना = पूरी तरह लग पाना। यंत्र = मशीन। भौतिक यथार्थ = संसार की वास्तविकता। बखानना = वर्णन कर पाना। कदाचित् = शायद। रेडियम-धर्मी तत्त्व = रेडियम किरणों का फैलना। अध्ययन = पढ़ना। भेदन = तोड़ना। सैद्धांतिक = सिद्धांत संबंधी। परवर्ती प्रभाव = बाद में पड़ने वाला प्रभाव। विवरण = ब्योरा। ऐतिहासिक प्रमाण = इतिहास में घटित वास्तविकता। दुरुपयोग = गलत उपयोग। विद्रोह = विरोध। अनुभूति का स्तर = मन में अपने-आप भावों का उमड़ना। बौद्धिक पकड़ = बुद्धि की पकड़।
तर्क संगति = तर्क-परंपरा। अपव्यय = फिजूलखर्ची। व्यथा = दुःख। अनुभव = बोध, ज्ञान। आहत = घायल। प्रत्यक्ष = आँखों के सामने, सीधा। घटित = घटा हुआ। संवेदना = भावना। आत्मसात् करना = मन में धारण करना।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

(पृष्ठ-44-45) ज्वलंत प्रकाश = तेज़ प्रकाश। अनुभूति प्रत्यक्ष = मन-ही-मन किसी दृश्य का साकार हो उठना। तत्काल = तुरंत । कसर = कमी। रुद्ध = रुकी हुई। समूची = सारी। ट्रेजडी = दुखद घटना। अवाक् = मौन। सहसा = एकाएक। भोक्ता = भोगने वाला। आकुलता = बेचैनी। अनुभूति-प्रसूत = अनुभूति से उत्पन्न।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

HBSE 10th Class Hindi संस्कृति Textbook Questions and Answers

Chapter 17 संस्कृति HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 1.
लेखक की दृष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर-
लेखक का मत है कि रूढ़िवादी अपनी रूढ़ियों से इस प्रकार बँधे हुए हैं कि हर पल, हर क्षण बदलते इस संसार से पिछड़ जाते हैं। वे अपनी बँधी हुई सीमाओं तक ही सीमित रह जाते हैं। ऐसे लोग अपनी संकीर्ण सोच और संकुचित दृष्टिकोण के कारण सभ्यता एवं संस्कृति के लोककल्याणकारी पक्ष नहीं देख पाते तथा अपने व्यक्तिगत, जातिगत व वर्गगत हितों की रक्षा में लगे रहते हैं। वे इसे अपनी सभ्यता और संस्कृति मान बैठते हैं। यद्यपि सच्चाई यह है कि सभ्यता और संस्कृति में बिना किसी वर्गगत, जातिगत यहाँ तक कि धर्मगत भावना का कोई स्थान नहीं होता, उसमें पूरी मानवता के कल्याण की भावना रहती है। यही कारण है कि अब तक लोगों की सभ्यता और संस्कृति के प्रति सही सोच नहीं बन पाई है।

HBSE 10th Class Hindi Kshitij Chapter 17 संस्कृति प्रश्न 2.
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर-
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज है क्योंकि वह मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता को पूरी करती है। वह भोजन पकाने में काम आती है और भोजन से मनुष्य की भूख समाप्त हो जाती है। आज भी इस खोज का महत्त्व सर्वोप्रिय है। आज भी हम हर सांस्कृतिक कार्य के आरंभ में दीप जलाते हैं। सर्दियों में तो आग का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। ठंडी रात में जहाँ आग से तपन मिलती है वहीं अँधेरा भी दूर भाग जाता है। आदिम युग में केवल पेट की भूख को दूर करने के लिए आग की खोज की भावना रही होगी। तत्पश्चात् आग के अन्य लाभ सामने आने पर इसे देवता तुल्य पूजा जाने लगा था। आज भी आग का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

संस्कृति Chapter 17 HBSE 10th Class Hindi Kshitij प्रश्न 3.
वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उत्तर-
जो व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक से मानवता को किसी नए तथ्य के दर्शन कराता है, अर्थात् निःस्वार्थ भाव से मानव-कल्याण के लिए कार्य करता है, उसे ही वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ कहते हैं। ऐसा व्यक्ति आंतरिक प्रेरणा से नए-नए आविष्कार करता रहता है।

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प्रश्न 4.
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर-
न्यूटन एक महान् वैज्ञानिक थे। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया था, जो उनसे पहले किसी ने नहीं किया था, संस्कृत मानव वह कहलवाएगा जो बिना किसी भेदभाव के सबके लिए नया काम करेगा। किसी पूर्व खोजी हुई वस्तु या सिद्धांत में परिमार्जन करने वाले व्यक्ति को संस्कृत मानव नहीं कहा जाता क्योंकि वह पहले आविष्कृत काम को ही आगे बढ़ा रहा है। न्यूटन के सिद्धांत की कोई कितनी ही बारीकियाँ क्यों न जान ले परंतु संस्कृत कहलवाने का अधिकारी तो उस सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाला व्यक्ति ही रहेगा। अन्य व्यक्ति सभ्य हो सकते हैं, किंतु संस्कृत नहीं।।

प्रश्न 5.
किन महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर-
आदिम युग में मनुष्य जंगलों में नंगा घूमता था। उसे सर्दी-गर्मी के कष्टों को सहना पड़ता था। इन्हीं कष्टों से बचने के कारण ही मनुष्य ने सुई-धागे का आविष्कार किया होगा। इसके अतिरिक्त अपने शरीर को ढकने व सजाने के भाव के कारण भी उसे ऐसी वस्तु की तलाश होगी जो दो वस्तुओं को जोड़ सके। किंतु दूसरा विचार गौण प्रतीत होता है और पहला प्रथम।

प्रश्न 6.
मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।” किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख करें जब-
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर-
(क) मानव संस्कृति अविभाज्य है परंतु कभी-कभी मानव ने अज्ञानतावश संस्कृति को भी धर्म व सामाजिक विश्वासों के आधार पर विभाजित करने का दुस्साहस किया है। हिंदू-मुस्लिम भावनाओं को भड़काकर लड़ाई-झगड़े करवाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना आज के नेताओं का आम कार्य हो गया है। आजकल आरक्षण के नाम पर संस्कृति को विभाजित किया जाता है।

(ख) जब-जब भी कुछ स्वार्थी लोगों ने संस्कृति को विभाजित करने का प्रयास किया तब-तब संस्कृति के वे तत्त्व उभरकर सामने आते हैं, जो उसे एक बनाए रखते हैं। यथा ‘त्याग’ संस्कृति का प्रमुख तत्त्व है। इसे सब मानते हैं। त्यागशील व्यक्ति किसी भी धर्म व संस्कृति का हो वह सबके लिए काम करता है। हिंसा के सभी विरोधी हैं। जापान पर परमाणु बम के आक्रमण का संपूर्ण विश्व ने एक स्वर में विरोध किया था। रसखान ने मुसलमान होकर कृष्ण की आराधना की। बिस्मिल्ला खाँ भी मुसलमान था किंतु बालाजी से आशीर्वाद लेकर संगीत का सम्राट बन गया। सभी हिंदू लोग गुरुद्वारों में जाकर माथा टेकते हैं। पीर-पैगंबरों के सामने जाकर मन्नतें माँगते हैं। अतः संस्कृति मानवीय गुण है। इसे विभाजित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? ,
उत्तर-
लेखक प्रश्न करता है मानव की जो योग्यता, भावना, प्रेरणा और प्रवृत्ति उससे विनाशकारी हथियारों का निर्माण करवाती है, उसे हम संस्कृति कैसे कहें? वह तो आत्म-विनाश कराती है। लेखक कहता है ऐसी भावना और योग्यता को असंस्कृति कहना चाहिए।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 8.
लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं? लिखिए।
उत्तर-
मेरे विचार से संस्कृति वह है जो मानवता के हित के लिए किया गया कार्य हो। कर्म हमारे विचारों के अनुसार ही घटित होते हैं। जो ज्ञान या विचार हमारे कर्मों को श्रेष्ठ व महान् बनाएँ वे ही संस्कृति की संज्ञा प्राप्त कर सकते हैं। संस्कृति के सामने संपूर्ण मानवता एक है। उसमें किसी धर्म व जातिगत भेदभाव नहीं होते। संस्कृति ही हमारी सभ्यता को श्रेष्ठ बनाती है। कहा भी गया है कि सभ्यता संस्कृति का परिणाम होता है। जो समाज जितना सुसंस्कृत होगा वह उतना ही सुसभ्य भी होगा।

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भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 9.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए-
गलत-सलत
आत्म-विनाश
महामानव
पददलित
हिंदू- मुसलिम
यथोचित
सुलोचना
उत्तर-
HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति 1

पाठेतर सक्रियता

“स्थूल भौतिक कारण ही आविष्कारों का आधार नहीं है।” इस विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।
उन खोजों और आविष्कारों की सूची तैयार कीजिए जो आपकी नज़र में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। इन्हें विद्यार्थी स्वयं करें।

HBSE 10th Class Hindi संस्कृति Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक ने किस वस्तु को रक्षणीय और वांछित नहीं कहा है?
उत्तर-
लेखक ने कहा है कि संस्कृति के नाम से जिस कूड़े-करकट के ढेर का बोध होता है, वह न संस्कृति है और न रक्षणीय वस्तु है। ऐसी वस्तुएँ वांछनीय भी नहीं हैं। ऐसी वस्तु की रक्षा के लिए किसी प्रकार की दलबंदी करने की आवश्यकता भी नहीं है।

प्रश्न 2.
संस्कृत व्यक्ति के वंशज संस्कृत होंगे या सभ्य? सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
लेखक के अनुसार संस्कृत व्यक्ति के वंशज सभ्य तो होंगे, किंतु संस्कृत नहीं। संस्कृत होने के लिए नई-नई वस्तुओं की खोज करने की योग्यता, प्रेरणा और प्रवृत्ति का होना आवश्यक है। लेखक का यह विचार संकीर्ण एवं एकपक्षीय है।

प्रश्न 3.
संस्कृति अविभाज्य कैसे है? सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
संस्कृति एक विचार है, उसे जातिगत व धर्मगत आधारों पर नहीं बाँटा जा सकता। जिस व्यक्ति ने आग या सुई-धागे का आविष्कार किया, वह किसी एक जाति या धर्म का न होकर मानव मात्र के लिए है। इसलिए संस्कृति को बाँटा नहीं जा सकता। वह अविभाज्य है।

प्रश्न 4.
सभ्यता या संस्कृति के विनाश का खतरा कब और कैसे होता है?
उत्तर-
सभ्यता या संस्कृति खतरे में तब पड़ जाती है जब किसी जाति अथवा देश पर अन्य लोगों की ओर से विनाशकारी आक्रमण होते हैं। हिटलर के आक्रमण से मानव संस्कृति खतरे में पड़ गई थी। धर्म, जाति, संप्रदाय व वर्ग भावना से प्रेरित होकर किए जाने वाले दंगों से भी सभ्यता एवं संस्कृति के खतरे बढ़ जाते हैं।

प्रश्न 5.
पेट की भूख शांत होने और तन ढकने के पश्चात् मानव की क्या स्थिति होती है?
उत्तर-
जब मानव का पेट भर जाता है और उसका तन भी ढका होता है, तो वह खुले आकाश के नीचे लेटा हुआ आकाश में जगमगाते हुए तारों को देखकर यह जानने के लिए बेचैन हो उठता है कि यह तारों से भरा हुआ औंधा थाल कैसे लटका हुआ है। इसका मूल कारण क्या है। मानव कभी भी निट्ठला नहीं बैठ सकता। मानव मन की आंतरिक प्रेरणा ही उसे कुछ नया करने या वर्तमान वस्तुओं के रहस्य या सत्य को जानने के लिए प्रेरित करती रहती है। आंतरिक प्रेरणा ही वह प्रेरणा है जो मानव को जन-कल्याण के कार्य करने के लिए व्याकुल बना देती है।

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विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘संस्कृति’ नामक निबंध के संदेश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने संस्कृति और असंस्कृति के अंतर को स्पष्ट करते हुए बताया है कि महान् कार्य करना, जिनसे मानवता मात्र का कल्याण संभव है, वह संस्कृति है। इसके विपरीत लूट-पाट, भ्रष्टाचार, रिश्वत, धोखा-धड़ी, हर प्रकार की अहिंसा, अविश्वास आदि सभी कार्य संस्कृति नहीं हो सकते, वे असंस्कृति के कार्य हैं। इससे स्पष्ट है कि लेखक ने बताया है कि हमें सदा संस्कृत बनने का प्रयास करना चाहिए। इसी प्रकार सभ्यता और असभ्यता के अंतर को स्पष्ट करते हुए हमें सदा सभ्य बनने की प्रेरणा दी है। लेखक का मत है कि हम जितने अधिक सुसंस्कृत होंगे, उतने ही सभ्य होंगे। इससे पता चलता है कि इस पाठ में सुसंस्कृत एवं सुसभ्य बनने पर बल दिया गया है।

प्रश्न 7.
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने किस-किस विचारधारा का पक्ष लिया है और किसका विरोध किया है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने लेनिन व कार्लमार्क्स की साम्यवादी विचारधारा का पक्ष लिया है। कहा गया है कि लेनिन ने दूसरों की भूख को दूर करने के लिए डबलरोटी के सूखे टुकड़े बचाकर रखे और कार्लमार्क्स ने मजदूरों को सुखी देखने के लिए सारा जीवन दुखों में बिताया। इसी प्रकार संसार के दुखों से मनुष्य को निजात दिलाने के लिए सिद्धार्थ ने संसार को त्यागकर तपस्या की। इसके साथ-साथ उन्होंने हिंदी-संस्कृति या विचारधारा को परंपरावादी या पुरानी रूढ़ियाँ कहकर उसका विरोध किया है।

इसी प्रकार संस्कृति या संस्कृत व्यक्ति तथा सभ्य व्यक्ति का पक्ष लिया है तथा असंस्कृत और असभ्य व्यक्ति का विरोध किया है। लेखक ने विरोध के कारण नहीं बताए।

प्रश्न 8.
पठित पाठ के आधार पर सभ्यता और संस्कृति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
किसी जाति अथवा राष्ट्र की वे सब बातें जो उसके शिक्षित सहभावनायुक्त एवं उन्नत होने के सूचक ही उसकी सभ्यता कहलाती है अर्थात् मानव-जीवन के बाहरी चाल-चलन व्यवहार को सभ्यता का नाम दिया गया है। किन्तु संस्कृति का सम्बन्ध किसी जाति व राष्ट्र की उन सब बातों से होता है जो उसकी मन, रुचि, आचार-विचार, कला-कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास होता है। सभ्यता का विकास संस्कृति पर ही निर्भर करता है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘संस्कृति’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर-
‘संस्कृति’ पाठ के लेखक भदंत आनंद कौसल्यायन हैं।

प्रश्न 2.
भदंत आनंद कौसल्यायन का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
भदंत आनंद कौसल्यायन का जन्म सन् 1905 में हुआ था।

प्रश्न 3.
भदंत आनंद कौसल्यायन ने किस धर्म को अपनाया था?
उत्तर-
भदंत आनंद कौसल्यायन ने बौद्ध धर्म को अपनाया था।

प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार कौन संस्कृत व्यक्ति कहलाता है?
उत्तर-
लेखक के अनुसार आविष्कार करने वाला व्यक्ति संस्कृत व्यक्ति कहलाता है।

प्रश्न 5.
‘शीतोष्ण’ से बचने के लिए मानव ने किसकी खोज की थी?
उत्तर-
शीतोष्ण’ से बचने के लिए मानव ने सुई-धागे की खोज की थी।

प्रश्न 6.
संस्कृत व्यक्ति के कार्यों के पीछे कौन-सी भावना रहती है?
उत्तर-
संस्कृत व्यक्ति के कार्यों के पीछे जन-कल्याण की भावना रहती है।

प्रश्न 7.
लेखक ने मनीषी किसे कहा है?
उत्तर-
जो मन की जिज्ञासा की तृप्ति के लिए प्राकृतिक रहस्यों को जानना चाहते हों, लेखक ने उसे मनीषी कहा है।

प्रश्न 8.
सिद्धार्थ ने बड़े होकर किस धर्म की स्थापना की थी?
उत्तर-
सिद्धार्थ ने बड़े होकर बौद्ध धर्म की स्थापना की थी।

प्रश्न 9.
लेखक ने असंस्कृत व्यक्ति किसे कहा है?
उत्तर-
मानव-कल्याण की भावना से हीन व्यक्ति को असंस्कृत व्यक्ति कहा है।

प्रश्न 10.
मानव संस्कृति कैसी वस्तु है?
उत्तर-
मानव संस्कृति अविभाज्य वस्तु है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भदंत आनंद कौसल्यायन किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) उत्तर प्रदेश
(C) मध्य प्रदेश
(D) राजस्थान
उत्तर-
(A) हरियाणा

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प्रश्न 2.
भदंत आनंद कौसल्यायन ने कहाँ से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) बनारस से
(B) लखनऊ से
(C) लाहौर से
(D) चंडीगढ़ से
उत्तर-
(C) लाहौर से

प्रश्न 3.
श्री भदंत आनंद कौसल्यायन जी का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1980 में
(B) सन् 1985 में
(C) सन् 1988 में
(D) सन् 1990 में
उत्तर-
(C) सन् 1988 में

प्रश्न 4.
श्री भदंत आनंद कौसल्यायन का बचपन का क्या नाम था?
(A) हरिराम
(B) हरनाम दास
(C) हरदेव सिंह
(D) हरिप्रसाद
उत्तर-
(B) हरनाम दास

प्रश्न 5.
भदंत आनंद कौसल्यायन किस महान कांग्रेसी नेता से प्रभावित थे और उन्होंने अपने जीवन का लंबा समय उनके साथ बिताया?
(A) जवाहर लाल नेहरू
(B) लाल बहादुर शास्त्री
(C) सरदार वल्लभ भाई पटेल
(D) महात्मा गांधी
उत्तर-
(D) महात्मा गांधी

प्रश्न 6.
अपने पूर्वजों की खोज की गई वस्तु को अनायास प्राप्त करने वाला व्यक्ति क्या कहलाता है?
(A) बुद्धिमान
(B) ज्ञानवान
(C) सभ्य
(D) संस्कृत
उत्तर-
(C) सभ्य

प्रश्न 7.
संसार के मज़दूरों को सुखी देखने का सपना किसने देखा था?
(A) लेनिन ने
(B) रूसो ने
(C) कार्ल मार्क्स ने
(D) गाँधी ने
उत्तर-
(C) कार्ल मार्क्स ने

प्रश्न 8.
तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता को सुख से रखने के लिए घर का त्याग किसने किया?
(A) सिद्धार्थ ने
(B) अशोक ने
(C) लेनिन ने
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(A) सिद्धार्थ ने

प्रश्न 9.
रूस का भाग्य-विधाता माना गया है
(A) लेनिन
(B) मार्क्स
(C) सिद्धार्थ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(A) लेनिन

प्रश्न 10.
जो योग्यता किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है वह क्या कहलाती है?
(A) विश्वास
(B) सभ्यता
(C) धर्म
(D) संस्कृति
उत्तर-
(D) संस्कृति

प्रश्न 11.
नई चीज़ की खोज कौन करता है?
(A) सभ्य व्यक्ति
(B) संस्कृत व्यक्ति
(C) जंगली व्यक्ति
(D) प्रवीण व्यक्ति
उत्तर-
(A) सभ्य व्यक्ति

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प्रश्न 12.
‘मोती भरा थाल’ किसे कहा गया है?
(A) मोतियों से भरी थाली को
(B) चाँद-तारों को
(C) तारों से भरे आकाश को
(D) घास पर चमकती हुई ओस की बूंदों को
उत्तर-
(C) तारों से भरे आकाश को

प्रश्न 13.
लेखक के अनुसार मनुष्य किस प्रकार का प्राणी है?
(A) चिन्तनशील
(B) आलसी
(C) लालची
(D) निठल्ला
उत्तर-
(A) चिन्तनशील

प्रश्न 14.
संस्कृति का संबंध मानव के किस जीवन से होता है?
(A) भौतिक जीवन से
(B) बाहरी जीवन से
(C) सामाजिक जीवन से
(D) आंतरिक जीवन से
उत्तर-
(D) आंतरिक जीवन से

प्रश्न 15.
कौन डबल रोटी के सूखे टुकड़े स्वयं न खाकर दूसरों को खिला देता था?
(A) कार्ल मार्क्स
(B) महात्मा गांधी
(C) लेनिन
(D) सिद्धार्थ
उत्तर-
(C) लेनिन

प्रश्न 16.
संसार के मजदूरों को सुखी देखने का स्वप्न देखते हुए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन किसमें बिता दिया?
(A) दुख
(B) सुख
(C) गरीबी
(D) कल्पना
उत्तर-
(A) दुख

प्रश्न 17.
प्रस्तुत पाठ के अनुसार सिद्धार्थ ने कितने वर्ष पूर्व घर का त्याग किया?
(A) 4500
(B) 3500
(C) 1500
(D) 2500
उत्तर-
(D) 2500

प्रश्न 18.
लेखक ने सभ्यता को किसका परिणाम बताया है?
(A) राजनीति का
(B) धर्म का
(C) संस्कृति का
(D) शिक्षा का
उत्तर-
(C) संस्कृति का

प्रश्न 19.
लेखक ने मानव सभ्यता किसे कहा है?
(A) मानव के बाह्य व्यवहार को
(B) मानव की जन-कल्याण की भावना को
(C) मानव की हिंसात्मक प्रवृत्ति को
(D) मानव की नई खोज को
उत्तर-
(A) मानव के बाह्य व्यवहार को

प्रश्न 20.
लेखक ने असभ्यता की जननी किसे कहा है?
(A) सभ्यता को
(B) संस्कृति को
(C) असंस्कृति को
(D) लालची प्रवृत्ति को
उत्तर-
(C) असंस्कृति को

प्रश्न 21.
मानव संस्कृति कैसी वस्तु है?
(A) अविभाज्य
(B) विभाज्य
(C) स्थूल
(D) अस्थायी
उत्तर-
(A) अविभाज्य

प्रश्न 22.
यह संसार परिवर्तित होता है
(A) शताब्दियों में
(B) प्रतिवर्ष
(C) क्षण-क्षण
(D) कभी-कभी
उत्तर-
(C) क्षण-क्षण

प्रश्न 23.
आग के आविष्कार की पृष्ठभूमि में मूल तत्त्व का नाम है
(A) बारूद
(B) पेट की ज्वाला
(C) सौर ऊर्जा
(D) बड़वानल
उत्तर-
(B) पेट की ज्वाला

प्रश्न 24.
सिद्धार्थ के गृह-त्याग का सर्वोच्च लक्ष्य था-
(A) निर्वाण
(B) मानव-सुख
(C) निर्जरा
(D) विपश्यना
उत्तर-
(B) मानव-सुख

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प्रश्न 25.
संस्कृति के दायरे में न्यूटन थे-
(A) राजनीतिज्ञ
(B) संगीतज्ञ
(C) योगाचार्य
(D) संस्कृत
उत्तर-
(D) संस्कृत

संस्कृति गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) एक संस्कृत व्यक्ति किसी नयी चीज़ की खोज करता है; किंतु उसकी संतान को वह अपने पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति की बुद्धि ने अथवा उसके विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है और उसकी संतान जिसे अपने पूर्वज से वह वस्तु अनायास ही प्राप्त हो गई है, वह अपने पूर्वज की भाँति सभ्य भले ही बन जाए, संस्कृत नहीं कहला सकता। एक आधुनिक उदाहरण लें। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत मानव था। आज के युग का भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण से तो परिचित है ही, लेकिन उसके साथ उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्राप्त है, जिनसे शायद न्यूटन अपरिचित ही रहा। ऐसा होने पर भी हम आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी को न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य भले ही कह सके; पर न्यूटन जितना संस्कृत नहीं कह सकते। [पृष्ठ 129]

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प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा गया है?
(ग) संस्कृत व्यक्ति की संतान के संस्कृत न होने का क्या कारण बताया गया है?
(घ) संस्कृत व्यक्ति की संतान लेखक की दृष्टि में क्या और क्यों है?
(ङ) लेखक ने संस्कृत व्यक्ति के कौन-से गुण बताए हैं?
(च) न्यूटन कौन था? उसने क्या आविष्कार किया था?
(छ) सभ्य विद्यार्थी किसे कहा जा सकता है?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति। लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) संस्कृत व्यक्ति उसे कहा गया है, जो अपनी प्रवृत्ति, योग्यता और प्रेरणा के आधार पर कोई नई खोज कर सकता है। उदाहरणार्थ न्यूटन एक संस्कृत व्यक्ति था। उसने अपनी प्रवृत्ति एवं योग्यता के बल पर गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोज की थी।

(ग) संस्कृत व्यक्ति की संतान को संस्कृत व्यक्ति इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि संस्कृत व्यक्ति जिस नई वस्तु का आविष्कार करता है, उसकी संतान को वह वस्तु बिना प्रयास के ही उत्तराधिकार में मिल जाती है। उसे उस वस्तु की खोज के लिए अथवा प्राप्त करने के लिए कोई पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता। इसलिए वह संस्कृत व्यक्ति नहीं हो सकता।

(घ) लेखक की दृष्टि में संस्कृत व्यक्ति की संतान सभ्य है, क्योंकि उसने न तो किसी सभ्य के दर्शन किए और न ही अपनी बुद्धि व विवेक के बल पर किसी नई वस्तु की खोज की है। उसने तो पूर्वजों द्वारा की गई आविष्कृत वस्तु को उत्तराधिकारी के रूप में प्राप्त करके उसका प्रयोग या उपयोग किया है।

(ङ) लेखक ने संस्कृत व्यक्ति होने के लिए बताया है कि वह प्रखर बुद्धि वाला हो, विचारवान हो, परिश्रमी, त्यागशील और मानवतावादी हो। उसमें कुछ नया करने की इच्छा शक्ति का होना भी नितांत आवश्यक है। उसके सभी कार्यों के पीछे जनकल्याण की भावना निहित रहती है। वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने की अपेक्षा दूसरों की सहायता करने में अधिक विश्वास रखता है।

(च) न्यूटन एक वैज्ञानिक था। उसने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोज की थी। उसके सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण के बल पर अपने परिवेश की सारी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है।

(छ) सभ्य विद्यार्थी कहलवाने के लिए आवश्यक है कि वह संस्कृत लोगों द्वारा दिए गए ज्ञान का प्रयोग करने वाला हो। संस्कृत लोगों के द्वारा की गई खोजों का सदुपयोगकर्ता होना चाहिए। जो विद्यार्थी इतना भी नहीं करते, वे न तो सभ्य कहलवाएँगे और न संस्कृत।

(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बताया है कि वही व्यक्ति संस्कृत व्यक्ति है जो समाज के हित के लिए कुछ नया करता है। उसकी यह उपलब्धि उसकी संतान को अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के विवेक में किसी भी नए तथ्य की खोज हो, वही संस्कृत व्यक्ति कहलाता है। उसकी इस खोज को उसकी संतान अनायास ही प्राप्त कर लेती है। वे अपने पूर्वजों की भाँति सभ्य भले ही हो, किंतु संस्कृत नहीं कहला सकती। इस विषय में गुरुत्वाकर्षण की खोज का उदाहरण लिया जा सकता है। न्यूटन ने इस सिद्धांत की खोज की थी। इसके अतिरिक्त भी उन्हें और भी बातों का ज्ञान था, जिनसे केवल वही परिचित थे। आज के विद्यार्थी भले ही सभ्य हों, किंतु न्यूटन जितने संस्कृत नहीं कहला सकते। कहने का भाव है कि जो समाज के लिए कुछ नया करते हैं, वे संस्कृत हैं तथा जो उसे प्राप्त कर समाज-हित में उसका प्रयोग करते हैं, वे सभ्य हैं।

(2) आग के आविष्कार में कदाचित पेट की ज्वाला की प्रेरणा एक कारण रही। सुई-धागे के आविष्कार में शायद शीतोष्ण से बचने तथा शरीर को सजाने की प्रवृत्ति का विशेष हाथ रहा। अब कल्पना कीजिए उस आदमी की जिसका पेट भरा है, जिसका तन ढंका है, लेकिन जब वह खुले आकाश के नीचे सोया हुआ रात के जगमगाते तारों को देखता है, तो उसको केवल इसलिए नींद नहीं आती क्योंकि वह यह जानने के लिए परेशान है कि आखिर यह मोती भरा थाल क्या है? पेट भरने और तन ढंकने की इच्छा मनुष्य की संस्कृति की जननी नहीं है। पेट भरा और तन ढंका होने पर भी ऐसा मानव जो वास्तव में संस्कृत है, निठल्ला नहीं बैठ सकता। हमारी सभ्यता का एक बड़ा अंश हमें ऐसे संस्कृत आदमियों से ही मिला है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रधान रहा है, किंतु उसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों से भी मिला है जिन्होंने तथ्य-विशेष को किसी भौतिक प्रेरणा के वशीभूत होकर नहीं, बल्कि उनके अपने अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात के तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान का ऐसा ही प्रथम पुरस्कर्ता था। [पृष्ठ 129]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक की दृष्टि में मनुष्य ने आग का आविष्कार क्यों किया होगा?
(ग) सुई-धागे के आविष्कार के पीछे मनुष्य की कौन-सी भावना काम कर रही होगी?
(घ) ‘मोती भरे थाल’ से क्या तात्पर्य है और उसके रहस्य को जानने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को क्या कहा गया है?
(ङ) मनुष्य किस प्रकार का प्राणी है?
(च) हमारी सभ्यता का अधिकांश भाग किन संस्कृत आदमियों ने निर्मित किया है?
(छ) मनीषी किसे कहा गया है? वे किस प्रेरणा के बल पर ज्ञान की प्राप्ति करते हैं?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति। लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) आदि मानव जंगलों में रहता हुआ कंद-मूल, फल आदि खाकर अपना पेट भरता था। किंतु इससे उसकी भूख शांत नहीं होती थी। पेट की भूख को शांत करने के लिए उसने आग का आविष्कार किया होगा।

(ग) सर्दी-गर्मी के कष्ट से बचने के लिए मनुष्य ने अपने को ढंकना चाहा होगा। उसने अपनी इसी इच्छापूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार किया होगा।

(घ) ‘मोती भरे थाल’ से तात्पर्य’ आकाश में खिले तारों से है। जो लोग पेट भरा और तन ढका होने पर भी जागकर तारों के रहस्य को जानने की इच्छा रखते हैं, उन्हें लेखक ने मनीषी कहा है। उन्हें वास्तविक संस्कृत मनुष्य की संज्ञा दी गई है।

(ङ) मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। उसके मन में सदा कुछ-न-कुछ जानने की इच्छा बनी रहती है। वह अपनी इसी इच्छा की पूर्ति हेतु कुछ-न-कुछ नया करता रहता है। वह कभी विचारहीन होकर नहीं बैठ सकता। वह सदा नए-नए कार्य करता रहता है।

(च) आज हम जिस सभ्यता में जी रहे हैं, उसके अधिकांश भाग का निर्माण ऐसे संस्कृत व्यक्तियों ने किया है, जो इस भौतिक संसार को सुखी और सुविधापूर्ण बनाना चाहते थे। उन्होंने ही आग, सुई-धागा, परिवहन के साधन, बिजली व बिजली से चलित मशीनों का आविष्कार किया है।

(छ) मनीषी ऐसे संस्कृत व्यक्तियों को कहा गया है, जो भौतिक आवश्यकता की अपेक्षा मन की जिज्ञासा की तप्ति हेतु प्रकृति के रहस्यों को जानना चाहते हैं। सूक्ष्म और अज्ञात तथ्यों को जानना उनका स्वाभाविक गुण होता है। वे अपने मन की सहज सांस्कृतिक प्रेरणा के बल पर ज्ञान की खोज करते हैं। वे भौतिक उपकरणों को बनाने में अपनी शक्ति व्यर्थ नहीं करते।

(ज) आशय/व्याख्या-इस गद्यांश में लेखक ने उन कारणों पर प्रकाश डाला है जिनकी वजह से व्यक्ति ने नए-नए आविष्कार किए हैं। लेखक का मानना है कि पेट की भूख को शांत करने के लिए ही आग का आविष्कार किया गया होगा। इसी प्रकार शरीर को गर्मी-सर्दी से बचाने हेतु ही सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा। किंतु सभी नई खोजों पर यह बात लागू नहीं होती। एक व्यक्ति का पेट भरा हुआ है, वस्त्र भी उसने पहने हुए हैं और वह रात को लेट कर आसमान में जगमगाते हुए तारों को देखता है तो केवल इसलिए नहीं कि उसे नींद नहीं आती, अपितु वह यह सोचता है कि वास्तव में यह तारों से भरा हुआ आकाश है क्या चीज? पेट भरने और शरीर को ढंकने की इच्छा को संस्कृति नहीं कह सकते। हमें हमारी सभ्यता का बड़ा भाग ऐसे ही लोगों से प्राप्त हुआ है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रमुख रहा है। किंतु समाज में कुछ ऐसे मनीषी भी रहे हैं जिन्होंने तथ्य विशेष की खोज भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति से प्रेरित होकर नहीं की, अपितु उनको अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात को तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान को प्रस्तुत करता है। कहने का भाव है कि मनीषी भौतिक आवश्यकताओं की अपेक्षा मन की जिज्ञासा की तृप्ति हेतु प्रकृति के रहस्यों को जानना चाहते हैं। प्रकृति के अज्ञात तथ्यों को जानना चाहते हैं। प्रकृति के अज्ञात तथ्यों को जानना उनका स्वाभाविक गुण होता है। वे अपने इसी गुण के कारण नई-नई खोज करते हैं, तभी लेखक ने उन्हें संस्कृत व्यक्ति कहा है।

(3) भौतिक प्रेरणा, ज्ञानेप्सा-क्या ये दो ही मानव संस्कृति के माता-पिता हैं? दूसरे के मुँह में कौर डालने के लिए जो अपने मुँह का कौर छोड़ देता है, उसको यह बात क्यों और कैसे सूझती है? रोगी बच्चे को सारी रात गोद में लिए जो माता बैठी रहती है, वह आखिर ऐसा क्यों करती है? सुनते हैं कि रूस का भाग्यविधाता लेनिन अपनी डैस्क में रखे हुए डबल रोटी के सूखे टुकड़े स्वयं न खाकर दूसरों को खिला दिया करता था। वह आखिर ऐसा क्यों करता था? संसार के मजदूरों को सूखी देखने का स्वप्न देखते हुए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन दुख में बिता दिया। और इन सबसे बढ़कर आज नहीं, आज से ढाई हज़ार वर्ष पूर्व सिद्धार्थ ने अपना घर केवल इसलिए त्याग दिया कि किसी तरह तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता सुख से रह सके। [पृष्ठ 129-130]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) मानव संस्कृति का जन्म किन-किन भावों के कारण होता है?
(ग) दूसरों के लिए सर्वस्व त्याग करने वाले व्यक्तियों में लेखक ने किन-किन महापुरुषों का नामोल्लेख किया है?
(घ) संस्कृति के कौन-से तीन रूप गिनाए गए हैं?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(च) सिद्धार्थ का प्रमुख गुण क्या था?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति।
लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) मानव संस्कृति का जन्म भौतिक प्रेरणा, आग व सुई-धागे के आविष्कार, ज्ञानेप्सा-तारों आदि के रहस्य जानने की इच्छा, अन्य लोगों के लिए त्याग की भावना आदि कारणों से हुआ है। इनके अतिरिक्त मानव की बौद्धिक इच्छा एवं शक्ति भी मानव संस्कृति को जन्म देने में सहयोगी सिद्ध हुई है।

(ग) सर्वस्व त्यागने वालों में कवि ने निम्नलिखित महानुभावों के नामों का उल्लेख किया है-

  • लेनिन-जो अपने डेस्क में रखे डबल रोटी के सूखे टुकड़े भी दूसरों को खिला देता था।
  • कार्ल मार्क्स-जिसने मजदूरों के हक के लिए सारा जीवन दुःख में बिता दिया।
  • सिद्धार्थ-जिसने तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता के सुख के लिए अपना घर-बार त्याग दिया।

(घ) संस्कृति के निम्नलिखित तीन रूप गिनाए गए हैं-

  • भौतिक प्रेरणा (पेट की भूख व तन को ढकने अर्थात् आग व सुई-धागा) के आविष्कार वाली संस्कृति।
  • ज्ञानेप्सा–तारों के संसार को जानने की इच्छा से उत्पन्न संस्कृति।
  • सर्वस्व त्याग कराने वाली संस्कृति।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में मानव संस्कृति की उपलब्धि के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डाला गया है।
लेखक ने संस्कृति निर्माण में सक्रिय प्रमुख तत्त्वों का भी उद्घाटन किया है। संस्कृति के प्रकार पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने उन महान् पुरुषों का उल्लेख किया, जिन्होंने संस्कृति निर्माण में महान् योगदान दिया है। लेखक का मूल उद्देश्य मानव को संस्कृत मानव बनने की प्रेरणा देना है।

(च) सिद्धार्थ एक राजकुमार था। वह चाहता तो अपना सारा जीवन ऐशो-आराम में व्यतीत कर सकता था, किंतु उसने इस संसार के दुःखी लोगों के लिए अपना आराम का जीवन त्यागकर घोर तपस्या की और उसके फलस्वरूप चिंतन-मनन को उपदेश के रूप में संसार के लोगों तक पहुँचाया जिससे उनका जीवन सुखी बन सके।

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने मानव संस्कृति के जन्म के कारणों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि मानव संस्कृति का जन्म भौतिक प्रेरणा, आग या सूई-धागे के आविष्कार अथवा ज्ञानेप्सा तारों आदि के रहस्य जानने की इच्छा तथा अन्य लोगों के लिए त्याग भावना आदि कारणों से होता है। इनके अतिरिक्त मानव की बौद्धिक इच्छा-शक्ति की भावना संस्कृति को जन्म देने में सहायक सिद्ध हुई है। लेखक ने संस्कृति के निर्माण में सक्रिय प्रमुख तत्त्वों का भी उद्घाटन किया है। संस्कृति के प्रकार पर अपना मत व्यक्त करते हुए उन्होंने उन महापुरुषों का उदाहरण दिया है, जिन्होंने मानव-संस्कृति के निर्माण के लिए अपना सर्वस्व त्याग करके महान् सहयोग दिया है। उनमें लेनिन, कार्ल मार्क्स, सिद्धार्थ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। लेखक का मूल उद्देश्य मानव-संस्कृति द्वारा मानव बनाने की प्रेरणा देना है। दूसरों के दुख को समझना और उसे दूर करने के लिए किए गए त्याग की भावना ही मानव संस्कृति की सच्ची रचयिता है। भले ही वह माँ का त्याग हो या फिर सिद्धार्थ का।

(4) और सभ्यता? सभ्यता है संस्कृति का परिणाम । हमारे खाने-पीने के तरीके, हमारे ओढ़ने पहनने के तरीके, हमारे गमनागमन के साधन, हमारे परस्पर कट मरने के तरीके; सब हमारी सभ्यता हैं। मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? और जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म-विनाश में जुटा हुआ है, उन्हें हम उसकी सभ्यता समझें या असभ्यता? संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यंभावी परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा?[पृष्ठ 130]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक के अनुसार सभ्यता क्या है?
(ग) सभ्यता और संस्कृति में क्या अंतर है?
(घ) लेखक ने असंस्कृति किसे कहा है?
(ङ) असभ्यता क्या है?
(च) संस्कृति में कौन-सी भावना प्रधान रहती है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति। लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) लेखक ने बताया है कि सभ्यता हमारी संस्कृति का ही परिणाम होता है। हमारे जीवनयापन के तौर-तरीके, रहन-सहन, खान-पान, हमारे ओढ़ने-पहनने के तरीके हमारे गमना-गमन के साधन, परस्पर मेल-जोल, लड़ाई-झगड़े सबके-सब हमारी सभ्यता को दर्शाते हैं। हमारे कार्य जितने सुसंस्कृत ढंग से होंगे हमारी सभ्यता भी वैसी ही अच्छी होगी।

(ग) कहा गया है कि सभ्यता संस्कृति की ही उपज है। यदि कोई व्यक्ति अपनी प्रेरणा और योग्यता के बल पर सर्वकल्याण हेतु कोई आविष्कार करता है तो वह हमारी संस्कृति कहलाती है। तत्पश्चात् जब उस आविष्कारित वस्तु का प्रयोग किया जाता है तो उसे सभ्यता कहते हैं। संस्कृति का संबंध विचार से है और सभ्यता बाहरी जीवन से संबंध रखती है। एक यदि विचार है या सूक्ष्म है तो दूसरा विचार के अपनाने का ढंग है और स्थूल है।

(घ) लेखक ने मनुष्य के उन कार्यों को असंस्कृति का जनक कहा है, जिनके कारण वह ऐसे उपकरणों का उत्पादन करता है, जिनसे मानवता का विनाश होता है। मानव-कल्याण की भावना-विहीन व्यक्ति असंस्कृत व्यक्ति होता है। इसी प्रकार लूट-मार, हिंसा, चोरी आदि सभी कार्य असंस्कृति की पहचान हैं।

(ङ) जैसे संस्कृति सभ्यता की जननी होती है, वैसे ही असंस्कृति असभ्यता की जननी है। जैसे संस्कृत व्यक्ति सभ्यता को जन्म देता है वैसे ही असंस्कृत व्यक्ति अपने बुरे कर्मों से असभ्यता का निर्माण करता है। मानवता और मानव कल्याण के विरुद्ध किए गए सभी कार्य असभ्यता के अंतर्गत आते हैं। चोरी-डकैती, भ्रष्टाचार, झूठ, युद्ध आदि सब कार्य असभ्यता के सूचक हैं।

(च) संस्कृति में सदैव कल्याण की भावना ही प्रधान रहती है। इसी भावना से प्रेरित होकर व्यक्ति मानवता के उत्थान या कल्याण के कार्य करता है। ऐसी प्रेरणा मनुष्य की आंतरिक प्रेरणा होती है। जन-कल्याण की भावना किसी बाहरी या भौतिक आकर्षण का कारण नहीं हुआ करती। अतः संस्कृति सदैव मानव कल्याण की भावना से ही विकसित होती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने संस्कृति-असंस्कृति तथा सभ्यता और असभ्यता का अंतर स्पष्ट किया है। लेखक का मत है कि सभ्यता संस्कृति का परिणाम होती है। हमारे जीवन-यापन के सभी साधन-खान-पान, रहन-सहन, गमनागमन के साधन, आपस में मेल-जोल यहाँ तक कि लड़ने का ढंग भी हमारी सभ्यता को दर्शाता है। हमारे ये कार्य जितने सुसंस्कृत ढंग से होंगे, हमारी सभ्यता भी उतनी ही श्रेष्ठ होगी। संस्कृति का संबंध हमारे विचारों से है तथा सभ्यता हमारे बाहरी जीवन से संबंध रखती है। विचार सूक्ष्म होता है और उसे कार्यान्वित करने का ढंग सभ्यता है जो स्थूल है। मानवता का विनाश करने वाले सभी कार्य असंस्कृति होते हैं। असंस्कृत व्यक्ति अपने बुरे कार्यों से असभ्यता का निर्माण करता है। चोरी, डकैती, हिंसा, झूठ, रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि सभी असभ्यता के अंतर्गत आते हैं। संस्कृति सदैव कल्याण की भावना को प्रेरित करती है। वह बाहरी नहीं, अपितु आंतरिक तत्त्व होता है।

संस्कृति Summary in Hindi

संस्कृति लेखक-परिचय

प्रश्न-
भदंत आनंद कौसल्यायन का जीवन-परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-भदंत आनंद कौसल्यायन एक सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु एवं हिंदी के महान् प्रचारक-प्रसारक थे। उनका जन्म सन् 1905 में अंबाला जिले के सोहाना नामक गाँव में हुआ था। बौद्ध भिक्षु होने के कारण उन्होंने देश-विदेश का बहुत भ्रमण किया है। वे गाँधी जी के साथ भी एक लंबे समय तक रहे। उनकी रचनाओं में गाँधी जी के जीवन-दर्शन का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। बौद्ध धर्म के कार्यों के साथ-साथ उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य की निरंतर सेवा की है। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से संबद्ध रहे तथा बाद में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सचिव पद पर रहकर हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार का कार्य करते रहे। सन् 1988 में उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-भदंत आनंद कौसल्यायन की 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिनमें ‘भिक्षु के पत्र’, ‘जो भूल ना सका’, ‘आह! ऐसी दरिद्रता’, ‘बहानेबाजी’, ‘यदि बाबा ना होते’, ‘रेल का टिकट’, ‘कहाँ क्या देखा’ आदि प्रमुख हैं। बौद्धधर्म-दर्शन से संबंधित उनके मौलिक और अनूदित अनेक ग्रंथ हैं जिनमें जातक कथाओं का अनुवाद विशेष उल्लेखनीय है।

3. साहित्यिक विशेषताएँ भदंत कौसल्यायन की पर्यटन में रुचि होने के कारण वे देश-विदेश की यात्राएँ करते रहे। उनको जीवन का महान् अनुभव था, जो उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से झलकता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में तत्कालीन अनेकानेक विषयों का अत्यंत सहज एवं सरल रूप में वर्णन किया है। उनका संपूर्ण जीवनदर्शन गाँधी जी के आदर्शों से प्रभावित है। उनके साहित्य में मानवीय आचार-व्यवहार, यात्रा- संस्मरण, गाँधी जी के महत्त्वपूर्ण संस्मरण रहे हैं। उनके साहित्य में विषय-वर्णन की ताज़गी देखते ही बनती है। उनके संपूर्ण साहित्य में मानवतावाद का स्वर मुखरित हुआ है।

4. भाषा-शैली-कौसल्यायन जी के साहित्य की भाषा सरल, सहज एवं व्यावहारिक है। उन्होंने अपनी रचनाओं में खड़ी-बोली हिंदी का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया है। भाषा की आडंबरहीनता उनके साहित्य की सबसे बड़ी कलात्मक विशेषता है। उनकी भाषा को जन-भाषा कहना भी उचित होगा। उनके प्रस्तुत निबंध में कहीं-कहीं भाषा की शिथिलता खटकती है।

संस्कृति पाठ का सार

प्रश्न-
‘संस्कृति’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने संस्कृति और सभ्यता से जुड़े अनेक प्रश्नों पर प्रकाश डाला है। लेखक ने अनेक उदाहरण देकर सभ्यता और संस्कृति के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उनके अंतर पर भी प्रकाश डाला है। लेखक ने बताया है कि सभ्यता और संस्कृति दो अलग-अलग वस्तुएँ हैं। सभ्यता संस्कृति का परिणाम है किंतु संस्कृति अविभाज्य वस्तु है। वे संस्कृति का विभाजन नहीं करना चाहते। लेखक की दृष्टि में जो मानव के लिए कल्याणकारी नहीं है, वह संस्कृति या सभ्यता हो ही नहीं सकती। पाठ का सार इस प्रकार है

लेखक ने सभ्यता और संस्कृति के स्वरूप को समझने के लिए उदाहरण देते हुए कहा है कि आग का आविष्कार और सुई-धागे का आविष्कार मनुष्य की खोजने की शक्ति या प्रवृत्ति का परिणाम है। इसे ही लेखक ने संस्कृति बताया है। इस आविष्कार के परिणामस्वरूप आग और सुई-धागे को सभ्यता कहते हैं। दूसरे शब्दों में प्रवृत्ति या प्रेरणा को संस्कृति और आविष्कृत वस्तु को सभ्यता कहते हैं। जिस मनुष्य में प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी वह उतना ही अच्छा आविष्कारक होगा और उतना ही अधिक संस्कृत भी।

लेखक ने अपनी अवधारणा को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है कि एक आविष्कारक व्यक्ति सुसंस्कृत होता है, किंतु उसकी संतान जिसने यह आविष्कृत वस्तु-एकाएक या अनायास ही प्राप्त कर ली है वह सभ्य हो सकता है, सुसंस्कृत नहीं। इस दृष्टि से न्यूटन एक संस्कृत था किंतु आज उसके सिद्धांत व अन्य ज्ञान रखने वाले संस्कृत नहीं अपितु सभ्य कहलाएँगे।

जब भी कोई आविष्कार भौतिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए होगा तो उसमें संस्कृति कम और सभ्यता अधिक कही जा सकती है। किंतु जब पेट भरा होने पर भी कुछ लोग रात को जगमगाते तारों का रहस्य जानने का प्रयास करते हैं, वे संस्कृति के जनक हैं। पेट भरने और तन ढकने के भौतिक कारणों की प्रेरणा वाला व्यक्ति संस्कृति का जनक नहीं है। भौतिक कारणों की अपेक्षा अंदर की भावना से प्रभावित होकर जो ज्ञान पैदा करता है, वह सच्चा संस्कृति का आविष्कारक कहलाएगा।

भौतिक प्रेरणा और ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा-ये दोनों ही मानव संस्कृति के जनक हैं। दूसरों के मुख में रोटी का टुकड़ा डालने के लिए जो अपने मुँह का कौर छोड़ देता है या फिर रोगी बच्चे को सारी रात गोद में लिए जो माँ बैठी रहती है, वह ऐसा क्यों करती है। इसी प्रकार कार्लमार्क्स मज़दूरों का जीवन सुखी देखने के लिए अपना सारा जीवन दुःखों में गला देता है। इसी प्रकार सिद्धार्थ ने अपना घर-बार इसलिए त्याग दिया था, ताकि तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता सुख से रह सके। अतः हम समझ सकते हैं कि संस्कृति ही आग और सुई-धागे का आविष्कार कराती है, तो वह तारों की दुनिया के रहस्य का ज्ञान कराती है और वह योग्यता जो किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है, भी संस्कृति ही है।

सभ्यता क्या है? वह संस्कृतियों का परिणाम है। खान-पान, रहन-सहन, ओढ़ने-पहनने और कटने-मरने के तरीके भी सभ्यता के अंतर्गत आते हैं। मानव की जो योग्यता मानव-विनाश का कारण बनती है, वही असंस्कृति है। उससे पैदा हुए हथियार आदि भी असभ्यता के सूचक हैं।

संस्कृति के नाम पर जिस कूड़े-करकट के ढेर का ज्ञान होता है, वह संस्कृति नहीं हो सकता। हर क्षण बदलने वाली इस दुनिया की किसी भी चीज़ को पकड़कर नहीं बैठा जा सकता। लेखक का मत है कि मानव संस्कृति या नए तथ्यों की रक्षा के लिए दलबंदियों की आवश्यकता नहीं है। मानव संस्कृति अविभाज्य है। उसमें कल्याणकारी अंश श्रेष्ठ ही नहीं, स्थायी भी है।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-128) सभ्यता = रहन-सहन के ढंग। संस्कृति = विचार-चिंतन की विधि। भौतिक = ठोस संसार संबंधी वस्तु। आध्यात्मिक = आत्मा-परमात्मा संबंधी। साक्षात् = सम्मुख मिलन। आविष्कार = खोज। आविष्कर्ता = खोज करने वाला। प्रवृत्ति = स्वभाव, रुझान। प्रेरणा = गतिशील बनाने की शक्ति या भावना।

(पृष्ठ-129) संस्कृत व्यक्ति = अच्छे संस्कार या गुणों वाला व्यक्ति। पूर्वज = बाप-दादा आदि। अनायास = अचानक। परिष्कृत = शुद्ध । तथ्य = सत्य, सार। सिद्धांत = नियम। अपरिचित = अनजान। ज्वाला = आग। शीतोष्ण = ठंड तथा गर्मी। हाथ होना = सहयोग होना। मोती भरा थाल = आकाश । जननी = पैदा करने वाली, माँ। चेतना = बुद्धि। निठल्ला = बेकार। पुरस्कर्ता = बढ़ाने वाला। ज्ञानेप्सा = ज्ञान पाने की इच्छा। कौर = रोटी का टुकड़ा।

(पृष्ठ-130) भाग्यविधाता = भाग्य का निर्माण करने वाला। तृष्णा = इच्छा। सिद्धार्थ = महात्मा बुद्ध का वास्तविक नाम । सर्वस्व = सब कुछ। मानवता = मनुष्य जाति। गमनागमन = आना-जाना, यातायात। असंस्कृति = जो संस्कृति न हो। प्रज्ञा = बुद्धि। कल्याण = मंगल। नाता = संबंध। अविभाज्य = जो विभाजित न हो। अंश = भाग। अकल्याणकर = जो कल्याणकारी न हो। स्थायी = टिकाऊ।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

HBSE 10th Class Hindi नौबतखाने में इबादत Textbook Questions and Answers

नौबतखाने में इबादत का सारांश HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 1.
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर-
अमीरुद्दीन अर्थात् उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ, जो शहनाईवादन के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध हैं, का जन्म डुमराँव गाँव में हुआ था। इस कारण शहनाई की दुनिया में डुमराँव गाँव को याद किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण यह भी है कि शहनाई बजाने के लिए जिस ‘रीड’ का प्रयोग किया जाता है, वह नरकट (एक विशेष प्रकार की घास) से बनती है, जो डुमराँव गाँव के समीप सोन नदी के किनारे पाई जाती है। इन दोनों कारणों से शहनाई की दुनिया में डुमराँव गाँव को याद किया जाता है।

नौबतखाने में इबादत प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class Kshitij  प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर-
जहाँ भी कोई संगीत का आयोजन हो या अन्य कोई मांगलिक कार्य का आयोजन हो वहाँ सर्वप्रथम उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की ध्वनि सुनाई देगी। समारोहों में शहनाई की गूंज का अभिप्राय उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ से है। उनकी शहनाई की आवाज़ लोगों के सिर चढ़कर बोलती है। गंगा के किनारे स्थित बालाजी का मंदिर हो या विश्वनाथ का मंदिर अथवा संकटमोचन मंदिर सब जगह संगीत के समारोहों में भी बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की चर्चा रहती थी। इन सब मंदिरों में प्रभाती मंगलस्वर बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के रूप में सुनाई पड़ता है। वे अपनी मधुर शहनाईवादन कला के द्वारा हर व्यक्ति के मन को प्रभावित करने में सफल रहते हैं। इसलिए उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहते हैं।

नौबतखाने में इबादत HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 3.
‘सुषिर-वाद्यों’ से क्या तात्पर्य है? शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर-
‘सुषिर’ बाँस अथवा मुँह से फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों से निकलने वाली ध्वनि को कहा जाता है। इसी कारण ‘सुषिर-वाद्यों’ से अभिप्राय उन वाद्ययंत्रों से है जो फूंककर बजाए जाने पर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। फूंककर बजाए जाने वाले वाद्य जिनमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, को ‘नय’ कहा जाता है। इसी कारण शहनाई को ‘शाहेनय’ अर्थात् ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ कहते हैं। अतः स्पष्ट है कि शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई होगी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) ‘फटा सुर न बख्शे। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।
उत्तर-
दिन-रात सुरों की इबादत में लगे रहने वाले बिस्मिल्ला खाँ से जब उनकी एक शिष्या ने कहा कि वे फटी लुंगी न पहना करें तो उन्होंने कहा कि लुंगी यदि आज फटी है तो कल सिल जाएगी, किंतु यदि एक बार सुर बिगड़ गया तो उसका सँवरना मुश्किल है। अतः अपने पहनावे से कहीं अधिक ध्यान उनका सुरों पर रहता था।

(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से बताया गया है कि बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्षों से शहनाई बजा रहे हैं। वे शहनाईवादन में बेजोड़ हैं। फिर भी नमाज़ पढ़ते समय वे परमात्मा से यही प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर! मुझे मधुर स्वर प्रदान कर। मेरे सुरों में ऐसा प्रभाव उत्पन्न कर दे जिसे सुनकर लोग प्रभावित हो उठे। उनकी आँखों से भावावेश में सच्चे मोतियों के समान अनायास आँसुओं की झड़ी लग जाए।

प्रश्न 5.
काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर-
काशी के पक्का महाल से मलाई-बरफ बेचने वाले जा चुके थे। न ही वहाँ अब देसी घी की कचौड़ी-जलेबी थी और न ही संगीत के लिए गायकों के मन में आदर भाव रह गया था। इस प्रकार वहाँ से संगीत, साहित्य और संस्कृति संबंधी अनेक परंपराएँ लुप्त होती जा रही थीं, जिनके कारण बिस्मिल्ला खाँ को बहुत दुःख था और वे उनके विषय में सोचकर अत्यंत व्याकुल हो उठते थे।

प्रश्न 6.
पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि-
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे। अथवा शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।
उत्तर-
(क) निम्नलिखित कथनों के आधार पर कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे
1. वह एक शिया मुसलमान का बेटा था जो सुबह उठकर बाबा विश्वनाथ के मंदिर में शहनाई बजाता। फिर गंगा स्नान करता और बालाजी के सामने रियाज़ करता। फिर भी वह हिंदू नहीं हो गया था। पाँच बार नमाज़ पढ़ने वाला मुसलमान ही था जो मानता था कि उसे बालाजी ने शहनाई में सिद्धि दे दी है।
2. वे अल्लाह की इबादत भैरवी में करते थे। नाम अल्लाह का है, राग तो भैरव है। वे इन दोनों को एक मानकर ही साधते थे।
(ख) पाठ में उद्धृत निम्नलिखित प्रसंगों व कथनों के आधार पर कहा जा सकता है कि बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे. वे अपनी शहनाई बजाने की कला को सदैव ईश्वर की देन मानते थे। इतने बड़े शहनाईवादक होने पर भी वे अत्यंत सरल एवं साधारण जीवन जीते थे। उन्होंने अपनी कला को कभी बाजारू वस्तु नहीं बनाया। वे हवाईजहाज़ की यात्रा को बहुत महँगी समझते थे। इसलिए उन्होंने कभी हवाईजहाज़ से यात्रा नहीं की। कभी पाँच सितारा होटल में नहीं ठहरे। शहनाई बजाने की फीस भी उतनी ही माँगते थे जितनी उन्हें आवश्यकता होती थी। वे सदा सच्चे और खरे इंसान रहे थे। जैसा उनकी शहनाई बजाना मधुर था, वैसा ही उनका जीवन भी अत्यंत मधुर एवं सरल व सच्चा था।

प्रश्न 7.
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में अनेक ऐसे लोगों का संबंध रहा है जिन्होंने उनकी संगीत-साधना को समृद्ध किया है, यथा बालाजी के मंदिर के मार्ग में रसूलनबाई व बतूलनबाई दो बहनें थीं जो ठुमरी, टप्पे आदि का गायन किया करती थीं। बिस्मिल्ला खाँ उनका संगीत सुनने के लिए उनके घर के सामने से गुज़रा करते थे। उन्होंने बाल्यावस्था में ही उनके जीवन में संगीत के प्रेम की भावना भर दी थी।

अमीरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) के नाना भी एक महान् शहनाईवादक थे। वह नाना के शहनाईवादन को छुप-छुपकर सुनता था और चोरी से नाना की शहनाई उठाकर उसे बजा-बजाकर देखता था। इससे उन्हें शहनाई बजाने की प्रेरणा मिली थी। इसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ के मामा अलीबख्श खाँ एक अच्छे शहनाईवादक थे। वे बिस्मिल्ला खाँ के उस्ताद भी थे। उन्होंने उसे शहनाई बजाने की कला सिखाई थी। उनका सहयोग अत्यंत सराहनीय रहा है।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं ने मुझे प्रभावित किया है

  • बिस्मिल्ला खाँ अपनी कला के प्रति समर्पित हैं। वे सच्ची लगन से शहनाईवादन का काम करते हैं। उसके विकास हेतु नए-नए प्रयोग करते हैं। इसीलिए उन्हें पद्मभूषण व भारतरत्न जैसे महान् पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।
  • सादगीपूर्ण जीवन जीना तो मानो उनका स्वभाव बन चुका है। इतने बड़े-बड़े पुरस्कार और उपाधियाँ प्राप्त करके भी उनके मन में कहीं अहंकार की भावना नहीं आई। वे पूर्ववत् सरल एवं साधारण जीवन व्यतीत करते रहे। उन्होंने इतनी शोहरत प्राप्त करके भी कभी बनाव-श्रृंगार नहीं किया।
  • ईश्वर के प्रति आस्थावान बने रहना उनके व्यक्तित्व की अन्य प्रमुख विशेषता है जिसने मुझे प्रभावित किया। वे सदा प्रभु से प्रार्थना करते कि वे उन्हें सुरों की नियामत प्रदान करें। उन्होंने जो कुछ जीवन में प्राप्त किया, उसे वे प्रभु की कृपा समझते थे।
  • धार्मिक उदारता उनके जीवन की अन्य विशेषता है। वे मुसलमान होते हुए भी दूसरे धर्मों का सम्मान करते थे। • बिस्मिल्ला खाँ बचपन से ही विनोद प्रिय थे। वे सदा विनोद से भरे रहते थे। वे खाने-पीने एवं संगीत सुनने के भी शौकीन थे।

प्रश्न 9.
मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ मुस्लिम धर्म में मनाए जाने वाले त्योहारों में अत्यंत उत्साहपूर्वक भाग लेते थे। मुहर्रम से तो उनका विशेष लगाव था। मुहर्रम के दस दिनों में वे किसी प्रकार का मंगल वाद्य नहीं बजाते थे तथा न ही कोई राग-रागनी गाते थे। इन दिनों में वे शहनाई भी नहीं बजाते थे। आठवें दिन दालमंडी से चलने वाले मुहर्रम के जुलूस में पूरे उत्साह के साथ आठ किलोमीटर रोते हुए नौहा बजाते हुए चलते थे।

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प्रश्न 10.
बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ कला के उपासक थे। उन्होंने अस्सी वर्षों तक लगातार शहनाई बजाकर इस बात को सिद्ध कर दिया है। वे प्रतिदिन ईश्वर से अच्छे सुर की प्राप्ति हेतु प्रार्थना किया करते थे। उन्हें सदा ऐसा लगता था कि खुदा उन्हें कोई ऐसा सुर देगा जिसे सुनकर श्रोता भाव-विभोर हो उठेंगे और उनकी आँखों से आनंद के आँसू बह निकलेंगे। वे अपने आपको कभी पूर्ण नहीं मानते थे। वे सदा कुछ-न-कुछ सीखने का प्रयास करते रहते थे। उन्हें कभी अपनी शहनाईवादन कला पर घमंड नहीं हुआ। वे उसमें सुधार लाने के लिए प्रयत्नरत रहते थे। इससे सिद्ध होता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।

भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 11.
निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए-
(क) यह ज़रूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है, जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर-
(क) 1. यह ज़रूर है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। – (संज्ञा उपवाक्य)

(ख) 1. रीड अंदर से पोली होती है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। – (विशेषण उपवाक्य)

(ग) 1. रीड नरकट से बनाई जाती है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। – (विशेषण उपवाक्य)

(घ) 1. उनको यकीन है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। – (संज्ञा उपवाक्य)

(ङ) 1. हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. जिसकी गमक उसी में समाई है। – (विशेषण उपवाक्य)

(च) 1. खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।- (संज्ञा उपवाक्य)

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
उत्तर-
(क) यही वह बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी की यह प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है कि यहाँ संगीत आयोजन होते हैं।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न जो हमको मिला है, ऊ शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) यह काशी का नायाब हीरा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

पाठेतर सक्रियता

कल्पना कीजिए कि आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध संगीतकार के शहनाईवादन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की सूचना देते हुए बुलेटिन बोर्ड के लिए नोटिस बनाइए।
उत्तर-
शहनाईवादन-यह जानकर सभी विद्यार्थियों को प्रसन्नता होगी कि दिनांक 15 अप्रैल, 2008 को विद्यालय के विशाल कक्ष में सुप्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद हुसैन अली का शहनाईवादन कार्यक्रम होगा। हुसैन अली देश के जाने-माने शहनाईवादक हैं। यह कार्यक्रम प्रातः 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक चलेगा। सभी विद्यार्थी एवं अध्यापक आमंत्रित हैं।

आप अपने मनपसंद संगीतकार के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

हमारे साहित्य, कला, संगीत और नृत्य को समृद्ध करने में काशी (आज के वाराणसी) के योगदान पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

काशी का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने काशी की बहुत-सी चीजें उभरने लगती हैं, वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

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यह भी जानें

सम – ताल का एक अंग, संगीत में वह स्थान जहाँ लय की समाप्ति और ताल का आरंभ होता है।
श्रुति – एक स्वर से दूसरे स्वर पर जाते समय का अत्यंत सूक्ष्म स्वरांश
वाद्ययंत्र – हमारे देश में वाद्य यंत्रों की मुख्य चार श्रेणियाँ मानी जाती हैं
ताल-वितत- तार वाले वाद्य-वीणा, सितार, सारंगी, सरोद
सुषिर – फूंक कर बजाए जाने वाले वाद्य-बाँसुरी, शहनाई, नागस्वरम्, बीन
घनवाद्य – आघात से बजाए जाने वाले धातु वाद्य-झाँझ, मंजीरा, घुघरू
अवनद्ध – चमड़े से मढ़े वाद्य-तबला, ढोलक, मृदंग आदि।

चैती – एक तरह का चलता गाना
चैती
चढ़ल चइत चित लागे ना रामा
बाबा के भवनवा
बीर बमनवा सगुन बिचारो
कब होइहैं पिया से मिलनवा हो रामा
चढ़ल चइत चित लागे ना रामा

ठुमरी – एक प्रकार का गीत जो केवल एक स्थायी और एक ही अंतरे में समाप्त होता है।

ठुमरी-
बाजुबंद खुल-खुल जाए
जादु की पुड़िया भर-भर मारी
हे! बाजुबंद खुल-खुल जाए

टप्पा – यह भी एक प्रकार का चलता गाना ही कहा जाता है। ध्रुपद एवं ख्याल की अपेक्षा जो गायन संक्षिप्त है, वही टप्पा है।

टप्पा –
बागाँ विच आया करो
बागाँ विच आया करो मक्खियाँ तों डर लगदा
गुड़ ज़रा कम खाया करो।

दादरा – एक प्रकार का चलता गाना। दो अर्द्धमात्राओं के ताल को भी दादरा कहा जाता है।
दादरा-
तड़प तड़प जिया जाए
साँवरिया बिना
गोकुल छाड़े मथुरा में छाए
किन संग प्रीत लगाए
तड़प तड़प जिया जाए

HBSE 10th Class Hindi नौबतखाने में इबादत Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बिस्मिल्ला खाँ को संगीत की आरंभिक शिक्षा किससे और कैसे मिली?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ महान संगीत प्रेमी थे। उन्हें संगीत सीखने की प्रारंभिक प्रेरणा काशी की रसूलनबाई और बतलनबाई नाम की दो गायिका बहनों के ठुमरी, टप्पे आदि गीत सुनकर मिली थी। जब बालक अमीरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) शहनाई का रियाज़ करने बालाजी के मंदिर जाया करते तो मार्ग में उन्हें इन दोनों बहनों के गीत सुनने को मिलते थे। वहीं से उनके मन में संगीत सीखने की प्रेरणा जागृत हुई थी।

प्रश्न 2.
‘बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई एक-दूसरे के पूरक हैं’-इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
भारतवर्ष के किसी भी कोने में संगीत का आयोजन होता था तो वहाँ सर्वप्रथम बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के मांगलिक स्वर अवश्य सुने जाते थे। संगीत आयोजन बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के अभाव में अधूरे एवं फीके लगते थे। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब उनकी शहनाई, शहनाई का मतलब उनका हाथ और हाथ से आशय उनकी शहनाई से सुरों का निकलना। फिर देखते-ही-देखते संपूर्ण वातावरण सुरीला हो उठता था। अतः यह कहना उचित ही है कि बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई एक-दूसरे के पूरक हैं।

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प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ को किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया और उनकी सबसे बड़ी देन क्या है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ को उनकी शहनाईवादन कला के क्षेत्र में महान् उपलब्धियों के कारण अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा अनेक मानद उपाधियों से अलंकृत किया गया।
भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण व भारतरत्न जैसे महान् पुरस्कारों से पुरस्कृत किया। बिस्मिल्ला खाँ की सबसे बड़ी देन यही है कि अस्सी वर्षों तक उन्होंने संगीत को संपूर्णता और एकाधिकार से सीखने की इच्छा को अपने भीतर जीवित रखा।

प्रश्न 4.
बिस्मिल्ला खाँ की ऐतिहासिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आज तक किसी भी संगीतकार को वह गौरव प्राप्त करने का सौभाग्य नहीं मिला जो बिस्मिल्ला खाँ को प्राप्त हुआ। उन्हें भारत की आज़ादी की पहली सुबह 15 अगस्त, 1947 को लाल किले पर शहनाई बजाने का अवसर मिला था। दूसरा अवसर उन्हें 26 जनवरी, 1950 को लोकतांत्रिक गणराज्य के मंगल प्रभात के रथ की अगुवाई पर बिस्मिल्ला खाँ को लालकिले पर शहनाई बजाने पर मिला।

प्रश्न 5.
ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे बिस्मिल्ला खाँ को लगता था कि बालाजी ने उन्हें शहनाईवादन में सिद्धि दी है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ चार वर्ष की आयु में ही अपने मामा के घर बनारस में आ गए थे। उनके नाना व मामा बाबा विश्वनाथ के मंदिर के नौबतखाने में शहनाई बजाया करते थे। बालक बिस्मिल्ला खाँ भी उनके साथ बाबा विश्वनाथ को जगाने के बाद बालाजी के घाट पर गंगा में गोते लगाते थे। तत्पश्चात् बालाजी के सामने बैठकर रियाज़ करते थे। उन्हें सुरों की साधना में घंटों लग जाते थे। एक दिन सुरों की साधना की इबादत करते-करते उन्हें बालाजी ने प्रकट होकर साक्षात् रूप में दर्शन दिए। उनके सिर पर हाथ रखकर उन्हें आजीवन आनंद करने का आशीर्वाद दिया। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को लगता था कि बालाजी ने उन्हें शहनाईवादन की सिद्धि प्रदान की है।

प्रश्न 6.
‘बिस्मिल्ला खाँ ने संगीत के क्षेत्र में उन्नति के साथ-साथ जीवन को अत्यंत सरलता और सादगी से व्यतीत किया है’-पाठ से उदाहरण देकर इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही बिस्मिल्ला खाँ महान् संगीतकार थे। उन्होंने शहनाईवादन कला को जिन बुलंदियों तक पहुँचाया है, वह एक असाधारण उपलब्धि कही जा सकती है। वे चाहते तो अपने भौतिक सुख के लिए धन-दौलत बटोर सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा न करके संगीत की साधना के साथ-साथ सरल ढंग से जीवन व्यतीत किया। उदाहरणार्थ एक बार अमेरिका का राकफलेर फाउंडेशन उन्हें और उनके संगतकार साथियों को परिवार सहित अमेरिका में उनकी जीवन-शैली के अनुसार रखना चाहता था। किंत बिस्मिल्ला खाँ ने अमेरिका के ऐश्वर्य की चाह न रखते हुए उनसे पूछा कि वहाँ गंगा नदी कहाँ से लाएँगे। इससे उनकी उपलब्धि अन्य से अधिक दिखाई देती है। वे चाहते तो अपने लिए सभी प्रकार के सुख और आराम एकत्रित कर सकते थे, किंतु उन्होंने अपना जीवन अपनी इच्छा और सादगी के साथ जीना ही पसंद किया।

प्रश्न 7.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में गंगा नदी का क्या महत्त्व है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पाठ में बताया गया है कि बालक बिस्मिल्ला खाँ बचपन से ही गंगा नदी में स्नान करता और तत्पश्चात् बालाजी के मंदिर में घंटों रियाज़ करता है। उनका यह क्रम आजीवन बना रहा। गंगा का उनके जीवन में इतना सहचर्य रहा है कि परिवार के सदस्यों व संगतकारों की भाँति वह उनके जीवन का अभिन्न अंग थी। गंगा के सहचर्य को वे कभी भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। बड़े-से-बड़ा लालच भी उनके इस सहचर्य की भावना को हिला न सका। अमेरिका के राकफलेर फांउडेशन ने उन्हें और उनके संगतकारों को अमेरिका में उनके ढंग से रहने के लिए निमंत्रित किया था। किंतु उन्होंने कहा था कि वहाँ गंगा नदी कहाँ से लाएँगे। गंगा नदी उन्हें सदा सुख व आनंद देने वाली लगती थी। उनके लिए संसार के सभी सुख-ऐश्वर्य गंगा के सामने व्यर्थ थे। उन्हें जीवन का जो आनंद गंगा नदी के सहचर्य से मिलता था, वह कहीं और नहीं। इसलिए उनके जीवन में गंगा नदी का अत्यधिक महत्त्व रहा है।

प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ साहब की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ को ईश्वर ने जैसे शहनाई के क्षेत्र में अत्यधिक सफलता प्रदान की थी, वैसे ही उन्हें लंबी आयु का वरदान भी दिया था। वे नब्बे वर्ष तक जीवित रहे। दिनांक 21 अगस्त, 2006 को यह महान् संगीतकार इस नश्वर संसार को अलविदा कह गया था। उनकी मृत्यु के इस दुखद समाचार से संगीत प्रेमियों को गहरा सदमा लगा था। सबकी आँखें नम हो गई थीं। ऐसे महान् संगीतकार कभी-कभी ही धरती पर आते हैं।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न 9.
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ का प्रमुख संदेश क्या है?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने महान् शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन पर प्रकाश डाला है। जहाँ एक ओर खाँ साहब के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों व विशेषताओं को उजागर किया गया है, वहीं कला के प्रति प्रेम, सरल एवं सादगीयुक्त जीवन जीने तथा धार्मिक उदारता की प्रेरणा भी दी गई है। इस पाठ में बताया गया है कि कला कोई भी हो, जब तक हम उसमें तल्लीनता व सच्चे मन से कार्य नहीं करेंगे, तब तक हमें सफलता नहीं मिल सकती। इसी प्रकार हमें अपने धर्म के साथ-साथ दूसरे धर्मों का सम्मान भी करना चाहिए। हमें सफलता प्राप्ति पर कभी अहंकार व घमंड नहीं करना चाहिए। हमें सदा ईश्वर के सम्मुख मन में समर्पण की भावना रखनी चाहिए।

प्रश्न 10.
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन पद्धति कैसी थी तथा उससे हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन पद्धति अत्यंत सरल एवं सहज थी। वे इतने महान् शहनाईवादक होकर भी एक साधारण व्यक्ति की भाँति जीवन व्यतीत करते थे। वे मुसलमान होते हुए भी अन्य धर्मों का आदर करते थे। दिखावा व अहंकार तो उनके पास फटकता तक न था। उनके जीवन-जीने की इस पद्धति से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें सहज एवं स्वाभाविक जीवन जीना चाहिए। विनम्रता और अहंकार-रहित जीवन महानता का गुण है, जिसे हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हमें भी दूसरों के धर्म का सम्मान करना चाहिए और अपने काम में ही अपना ध्यान लगाना चाहिए।

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प्रश्न 11.
काशी का भारतीय संस्कृति में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
काशी भारतवर्ष का एक धार्मिक स्थल है। यह नगर साहित्य, संगीत आदि कलाओं का केंद्र रहा है। यहाँ बड़े-बड़े साहित्यकार एवं संगीतकार हुए हैं जिन्होंने अपनी कला के माध्यम से भारतीय साहित्य एवं संस्कृति को न केवल जीवित रखा, अपितु उसे विकास की ओर अग्रसर किया। उदाहरणार्थ शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ की शहनाईवादन कला को लिया जा सकता है। उन्होंने अपने जीवन के अस्सी वर्षों तक शहनाईवादन कला में नए-नए सुरों का प्रयोग करके उसे बुलंदियों तक पहुँचा दिया। इसी प्रकार काशी शिक्षा का केंद्र रहा है। यहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते रहे हैं। वे यहाँ की संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। वे अपने जीवन में यहाँ की संस्कृति और संस्कार ग्रहण कर उनके अनुसार जीवनयापन करते। अतः स्पष्ट है कि काशी का भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
नौबतखाने में इबादत’ पाठ के लेखक श्री यतींद्र मिश्र हैं।

प्रश्न 2.
‘नौबतखाना’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने के स्थान को नौबतखाना कहते हैं।

प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का क्या नाम था?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम अमीरुद्दीन था।

प्रश्न 4.
अमीरुद्दीन के परदादा का क्या नाम था?
उत्तर-
अमीरुद्दीन के परदादा का नाम सलार हुसैन खाँ था।

प्रश्न 5.
बालक अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में क्यों जाता था?
उत्तर-
बालक अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में शहनाई वादन का अभ्यास करने के लिए जाता था।

प्रश्न 6.
बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की किस चीज़ पर विश्वास है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की वरदान शक्ति पर विश्वास है।

प्रश्न 7.
पुराणकार का संबंध किस रचना से है?
उत्तर-
पुराणकार का संबंध भागवत से है।

प्रश्न 8.
लेखक ने काशी का नायाब हीरा किसे कहा है?
उत्तर-
लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ को काशी का नायाब हीरा कहा है।

प्रश्न 9.
शहनाई को बजाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
शहनाई को बजाने के लिए रीड का प्रयोग किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ के लेखक कौन हैं?
(A) यतींद्र मिश्र
(B) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(C) मंगलेश डबराल
(D) मन्नू भंडारी
उत्तर-
(A) यतींद्र मिश्र

प्रश्न 2.
यतींद्र मिश्र जी का जन्म कब हुआ था?
(A) सन् 1967 में
(B) सन् 1970 में
(C) सन् 1977 में
(D) सन् 1987 में
उत्तर-
(C) सन् 1977 में

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प्रश्न 3.
यतींद्र मिश्र किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) पंजाब
(B) उत्तर प्रदेश
(C) हिमाचल प्रदेश
(D) मध्य प्रदेश
उत्तर-
(B) उत्तर प्रदेश

प्रश्न 4.
यतींद्र मिश्र ने किस भाषा में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) संस्कृत में
(B) पंजाबी में
(C) अंग्रेज़ी में
(D) हिंदी में
उत्तर-
(D) हिंदी में

प्रश्न 5.
‘लाखों सजदे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। यहाँ ‘सजदे’ का अर्थ है-
(A) भक्त
(B) सिर
(C) शिष्य
(D) लोग
उत्तर-
(B) सिर

प्रश्न 6.
‘नौबतखाने में इबादत’ किस प्रकार की साहित्यिक विधा से संबंधित है?
(A) जीवनी
(B) भाव चित्र
(C) रेखा चित्र
(D) व्यक्ति चित्र
उत्तर-
(D) व्यक्ति चित्र

प्रश्न 7.
अरब देश में बजाए जाने वाले वाद्य, जिसमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, उसे क्या कहते हैं?
(A) शहनाई
(B) शृंगी
(C) नय
(D) सुषिर वाद्य
उत्तर-
(C) नय

प्रश्न 8.
पंचगंगा घाट किस शहर में है?
(A) कानपुर में
(B) इलाहाबाद में
(C) पटना में
(D) बनारस में
उत्तर-
(D) बनारस में

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

प्रश्न 9.
अमीरुद्दीन का जन्म किस राज्य में हुआ था?
(A) पंजाब
(B) बिहार (डुमराँव)
(C) राजस्थान
(D) महाराष्ट्र
उत्तर-
(B) बिहार (डुमराँव)

प्रश्न 10.
अमीरुद्दीन का ननिहाल कहाँ है?
(A) रामपुर
(B) डुमरखाँ
(C) काशी
(D) बीजागढ़
उत्तर-
(C) काशी

प्रश्न 11.
बिस्मिल्ला खाँ की एक रीड कितने मिनट में अंदर से गीली हो जाया करती थी?
(A) 15 से 20 मिनट में
(B) 1 से 10 मिनट में
(C) 5 से 10 मिनट में
(D) 10 से 15 मिनट में
उत्तर-
(A) 15 से 20 मिनट में

प्रश्न 12.
बिस्मिल्ला खाँ का देहांत कितने वर्ष की आयु में हुआ था?
(A) 70 वर्ष
(B) 80 वर्ष
(C) 90 वर्ष
(D) 100 वर्ष
उत्तर-
(C) 90 वर्ष

प्रश्न 13.
खाँ साहब कितने वर्ष तक खुदा के आगे सच्चे सुर की इबादत में झुकते रहे थे?
(A) 60 वर्ष
(B) 80 वर्ष
(C) 70 वर्ष
(D) 90 वर्ष
उत्तर-
(B) 80 वर्ष

प्रश्न 14.
अमीरुद्दीन के बड़े भाई का क्या नाम था?
(A) सादिक हुसैन
(B) मुहम्मद अली
(C) शम्सुद्दीन
(D) नूर मुहम्मद
उत्तर-
(C) शम्सुद्दीन

प्रश्न 15.
शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक कौन थे?
(A) तानसेन
(B) बैजू
(C) चित्ररथ
(D) बिस्मिल्ला खाँ
उत्तर-
(D) बिस्मिल्ला खाँ

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प्रश्न 16.
शहनाई को बजाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
(A) रीड
(B) पाइप
(C) पानी
(D) बिजली
उत्तर-
(A) रीड

प्रश्न 17.
शहनाई बजाने के प्रयोग में आने वाली ‘रीड’ किससे बनाई जाती है?
(A) स्टील से
(B) नरकट से
(C) बाँस से
(D) तूंबी से
उत्तर-
(B) नरकट से

प्रश्न 18.
उस मन्दिर का नाम लिखें जिससे बिस्मिल्ला खाँ को रोज एक अठन्नी मेहनताना मिलता था-
(A) अक्षरधाम
(B) सोमनाथ
(C) विश्वनाथ
(D) बाला जी
उत्तर-
(D) बाला जी

प्रश्न 19.
संकटमोचन मंदिर काशी की किस दिशा में है?
(A) पूर्व
(B) दक्षिण
(C) पश्चिम
(D) उत्तर
उत्तर-
(B) दक्षिण

प्रश्न 20.
‘नरकट’ नामक घास डुमराँव में किस नदी के पास पाई जाती है?
(A) गंगा
(B) यमुना
(C) नर्मदा
(D) सोन
उत्तर-
(D) सोन

प्रश्न 21.
मुहर्रम के गमजदा माहौल से अलंग कभी-कभी सुकून के क्षणों में बिस्मिल्ला खाँ अपने किन दिनों को याद करते थे?
(A) बचपन
(B) बुढ़ापा
(C) यौवन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(C) यौवन

प्रश्न 22.
‘फटा सुर न बख्शें! लुंगिया का क्या है, आज फटी तो कल सी जाएगी’-मालिक से यह दुआ कौन माँगता है?
(A) बिस्मिल्ला खाँ
(B) शिष्या
(C) शम्सुद्दीन
(D) डुमराँव गाँव के लोग
उत्तर-
(A) बिस्मिल्ला खाँ

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प्रश्न 23.
प्रवेश द्वार के ऊपर मंगलध्वनि बजाने का स्थान क्या कहलाता है?
(A) अटारी
(B) चौबारा
(C) नौबतखाना
(D) दरवाजा
उत्तर-
(C) नौबतखाना

नौबतखाने में इबादत गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) अमीरुद्दीन अभी सिर्फ छः साल का है और बड़ा भाई शम्सुद्दीन नौ साल का। अमीरुद्दीन को पता नहीं है कि राग किस चिड़िया को कहते हैं। और ये लोग हैं मामूजान वगैरह जो बात-बात पर भीमपलासी और मुलतानी कहते रहते हैं। क्या वाज़िब मतलब हो सकता है इन शब्दों का, इस लिहाज से अभी उम्र नहीं है अमीरुद्दीन की, जान सके इन भारी शब्दों का वज़न कितना होगा। गोया, इतना ज़रूर है कि अमीरुद्दीन व शम्सुद्दीन के मामाद्वय सादिक हुसैन तथा अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाईवादक हैं। विभिन्न रियासतों के दरबार में बजाने जाते रहते हैं। रोज़नामचे में बालाजी का मंदिर सबसे ऊपर आता है। हर दिन की शुरुआत वहीं ड्योढ़ी पर होती है। मंदिर के विग्रहों को पता नहीं कितनी समझ है, जो रोज़ बदल-बदलकर मुलतानी, कल्याण, ललित और कभी भैरव रागों को सुनते रहते हैं। ये खानदानी पेशा है अलीबख्श के घर का। उनके अब्बाजान भी यहीं ड्योढ़ी पर शहनाई बजाते रहते हैं। [पृष्ठ 116]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) अमीरुद्दीन कौन है और उसकी आयु कितनी है?
(ग) अमीरुद्दीन के बड़े भाई का क्या नाम था और उसकी उम्र क्या थी?
(घ) भीमपलासी और मुलतानी क्या हैं? अमीरुद्दीन को इनका पता क्यों नहीं था?
(ङ) अमीरुद्दीन के मामूजानों के क्या नाम थे और वे किस काम के लिए प्रसिद्ध थे?
(च) सादिक हुसैन तथा अलीबख्श प्रतिदिन प्रातः के समय कहाँ शहनाई बजाते थे?
(छ) अलीबख्श के अब्बाजान क्या काम करते थे?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

(ख) अमीरुद्दीन उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का बचपन का नाम है। वह उस समय केवल छः वर्ष के थे।

(ग) अमीरुद्दीन के बड़े भाई का नाम शम्सुद्दीन था। उस समय उसकी आयु केवल नौ वर्ष की थी।

(घ) भीमपलासी और मुलतानी संगीत के रागों के नाम हैं। उस समय अमीरुद्दीन केवल छः वर्ष का बालक था, इसलिए उसे रागों का बोध नहीं था।

(ङ) अमीरुद्दीन के मामूजानों के नाम सादिक हुसैन तथा अलीबख्श थे। वे शहनाईवादक के रूप में प्रसिद्ध थे।

(च) सादिक हुसैन तथा अलीबख्श प्रतिदिन प्रातः के समय बालाजी के मंदिर की ड्योढ़ी में शहनाई बजाते थे। वहीं से वे अपना दैनिक कार्य आरंभ करते थे।

(छ) अलीबख्श के अब्बाजान भी शहनाईवादन का कार्य करते थे। इस क्षेत्र में उन्होंने भी खूब नाम कमाया था।

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(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अमीरुद्दीन के बचपन और उनके परिवार की जानकारी दी है। अमीरुद्दीन अभी छः वर्ष का है और उसका बड़ा भाई शम्सुद्दीन नौ वर्ष का है। अमीरुद्दीन अपने मामा के घर में रहता है। उसे अभी रागों का ज्ञान नहीं है। किंतु उसके मामा आदि बात-बात में विभिन्न रागों के नाम लेकर उनका वर्णन करते रहते हैं। इन शब्दों का वास्तिक अर्थ क्या है, . यह जानने के लिए अमीरुद्दीन की आयु अभी बहुत कम है। इतना अवश्य है कि उसके मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श देश के सुप्रसिद्ध शहनाई वादक हैं। वे भिन्न-भिन्न रियासतों के दरबारों में शहनाई बजाने जाते हैं। वे प्रतिदिन प्रातः बाला जी के मंदिर की ड्योढ़ी पर भी शहनाई बजाते हैं। वे हर रोज़ विभिन्न रागों में शहनाई वादन करते हैं। शहनाई वादन उनका खानदानी पेशा है। उनके अब्बाजान भी यहीं ड्योढ़ी पर शहनाई बजाते रहते थे।

(2) मसलन बिस्मिल्ला खाँ की उम्र अभी 14 साल है। वही काशी है। वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज़ के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है। एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र में अनुभव की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने उकेरी है। [पृष्ठ 117]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) 14 वर्षीय बिस्मिल्ला खाँ को बालाजी के मंदिर में जाने के लिए कौन-सा रास्ता अच्छा लगता था?
(ग) अमीरुद्दीन को रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से जाना क्यों अच्छा लगता था?
(घ) रसूलनबाई और बतूलनबाई कौन-कौन से रागों में गाती थीं?
(ङ) अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में क्यों जाते थे?
(च) अमीरुद्दीन अपने जीवन में संगीत का प्रथम प्रेरक किसे मानते हैं और क्यों?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र।
पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

(ख) 14 वर्षीय बिस्मिल्ला खाँ को बालाजी के मंदिर में जाने के लिए वह रास्ता अच्छा लगता जिसमें रसूलनबाई और बतूलनबाई का घर था।

(ग) अमीरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) को रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से जाना इसलिए अच्छा लगता था क्योंकि वह उनकी गायकी को सुनकर बहुत प्रसन्न होता था। उसे हर प्रातः वहाँ से गुज़रते हुए तरह-तरह के मधुर रागों से युक्त उनकी ध्वनि सुनाई पड़ती थी। इसी कारण वह इस रास्ते से जाता था।

(घ) रसूलनबाई तथा बतूलनबाई ठुमरी, टप्पे व दादरा आदि रागों में गाती थीं जो मधुर ध्वनियुक्त राग हैं।

(ङ) अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में शहनाईवादन का रियाज़ करने जाते थे।

(च) अमीरुद्दीन अपने जीवन में संगीत का प्रथम प्रेरक रसूलनबाई व बतूलनबाई नामक दो गायिका-बहनों को मानते हैं, क्योंकि वे प्रतिदिन बालाजी के मंदिर में जाते समय उनके संगीत को सुनते थे। उनके संगीत से आकृष्ट होकर उन्होंने संगीत में रुचि लेनी आरंभ की थी।

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि अमीरुद्दीन ही बड़ा होकर बिस्मिल्ला खाँ के नाम से प्रसिद्ध होता है। वह अभी 14 वर्ष का है, उसे प्रतिदिन बालाजी के मंदिर में नौबतखाने में शहनाई वादन के अभ्यास के लिए जाना पड़ता है। आम रास्ते के अतिरिक्त एक दूसरा रास्ता भी है जो बालाजी के मंदिर को जाता है। अमीरुद्दीन उसी रास्ते से जाता है। वह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के आगे से होकर जाता है। ये दोनों बहनें गायिकाएँ थीं और इनके गाए गए ठुमरी, टप्पे, दादरा आदि के बोल बालक अमीरुद्दीन को बहुत अच्छे लगते थे। उसे उनका संगीत सुनकर बहुत अच्छा लगता था। बाद में बिस्मिल्ला खाँ ने स्वीकार भी किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में गीत-संगीत की प्रेरणा इन दोनों गायिका बहनों को सुनकर मिली है। उनके मन की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला इन दोनों बहनों ने ही लिखी है। कहने का भाव है कि महान् शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ के गीत-संगीत की प्रेरणा ये दोनों बहनें ही रही हैं।

(3) शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज़ इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सज़दे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते हैं-‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर उनकी ओर उछालेगा, फिर कहेगा, ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी मुराद पूरी। [पृष्ठ 117]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ को किसका नायक कहा गया है?
(ग) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष से क्या माँग रहे हैं?
(घ) शहनाई की ध्वनि को क्या कहा जाता है?
(ङ) ‘सच्चे सुर की नेमत’ का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
(च) नमाज़ के पश्चात् उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ सज़दे में क्या कहते हैं और क्यों?
(छ) बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की किस चीज़ पर विश्वास है?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत ।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मांगलिक ध्वनि का नायक कहा गया है, क्योंकि उन्होंने शहनाईवादन में नए-नए सुरों को ढाला है।

(ग) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष से खुदा से सच्चे सुर का वरदान माँग रहे हैं, जो श्रोताओं के मन में आनंदानुभूति उत्पन्न कर दे।

(घ) शहनाई की ध्वनि को मंगल ध्वनि कहा जाता है, क्योंकि बिस्मिल्ला खाँ इस ध्वनि से अपनी दिनचर्या आरंभ करते थे। वे सबसे पहले बालाजी के मंदिर की ड्योढ़ी में इसे बजाते थे।

(ङ) इस वाक्य के द्वारा लेखक ने बताया है कि बिस्मिल्ला खाँ शहनाईवादन में सर्वश्रेष्ठ हैं। वे निरंतर शहनाई बजाते रहते हैं तथा अपने वादन से सबको मंत्र-मुग्ध कर देते हैं, फिर भी वे खुदा से विनती करते रहते हैं कि उनकी शहनाई से सच्चे सुर ही निकलें।

(च) नमाज़ के पश्चात् सज़दे में बिस्मिल्ला खाँ यही कहते हैं कि हे प्रभु! मुझे सच्चा सुर प्रदान करो। मेरे सुरों में ऐसा प्रभाव उत्पन्न कर दो कि भावविभोर होकर मेरी आँखों से अनायास ही अश्रुधारा बह निकले। वे ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि वे सदा अच्छी से-अच्छी शहनाई बजाना चाहते हैं।

(छ) बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की वरदान-शक्ति पर पूरा विश्वास है। उसे यह भी विश्वास है कि उसे शहनाईवादन की जो कला मिली है, वह भी ईश्वर का ही वरदान है। आगे भी उसे सुरों की जो कला प्राप्त होगी, वह भी प्रभु की ही देन होगी।

(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में शहनाई वादन के महान् कलाकार बिस्मिल्ला खाँ के विनम्र एवं उदार स्वभाव तथा शहनाई वादन की कला के प्रति उनकी समर्पण की भावना को अभिव्यक्त किया गया है। शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी वर्ष से ईश्वर से सच्चे सुर के वरदान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते आ रहे हैं। वे अपनी प्रतिदिन की पाँच बार की नमाज़ (प्रार्थना) को भी सच्चे सुर के लिए खर्च करते हैं। वे लाखों बार प्रभु के सामने इसी सुर के लिए माथा टेक चुके हैं। वे हर बार यही माँगते हैं कि सुर में ऐसी विशेषता उत्पन्न कर दे कि भावविभोर होकर उसकी आँखों से अनायास ही अश्रु-धारा बह निकलें। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर उन पर एक-न-एक दिन अवश्य ही मेहरबान होकर सुर रूपी फल दे देंगे। कहने का तात्पर्य है कि बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष तक शहनाई वादन के क्षेत्र में नए-नए सुरों का अभ्यास करते रहे और परमात्मा से अच्छे से अच्छे सुर की प्रार्थना भी करते रहे।

(4) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं। वे जब उनका ज़िक्र करते हैं तब फिर उसी नैसर्गिक आनंद में आँखें चमक उठती हैं। अमीरुद्दीन तब सिर्फ चार साल का रहा होगा। छुपकर नाना को शहनाई बजाते हुए सुनता था, रियाज़ के बाद जब अपनी जगह से उठकर चले जाएँ तब जाकर ढेरों छोटी-बड़ी शहनाइयों की भीड़ से अपने नाना वाली शहनाई ढूँढता और एक-एक शहनाई को फेंक कर खारिज़ करता जाता, सोचता-‘लगता है मीठी वाली शहनाई दादा कहीं और रखते हैं।’ जब मामू अलीबख्श खाँ (जो उस्ताद भी थे) शहनाई बजाते हुए सम पर आएँ, तब धड़ से एक पत्थर ज़मीन पर मारता था। सम पर आने की तमीज़ उन्हें बचपन में ही आ गई थी, मगर बच्चे को यह नहीं मालूम था कि दाद वाह करके दी जाती है, सिर हिलाकर दी जाती है, पत्थर पटक कर नहीं। [पृष्ठ 119]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) इस गद्यांश में अमीरुद्दीन की किस अवस्था का वर्णन किया गया है?
(ग) चार वर्षीय बालक अमीरुद्दीन शहनाइयों में से किसकी शहनाई खोजता था और क्यों?
(घ) अमीरुद्दीन के नाना के विषय में कैसे विचार थे?
(ङ) अमीरुद्दीन के उस्ताद का क्या नाम था?
(च) अमीरुद्दीन दाद कैसे देता था?
(छ) शहनाईवादन में दाद देने का सही ढंग क्या है?
(ज) सम पर आने से क्या अभिप्राय है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

(ख) इस गद्यांश में अमीरुद्दीन की बाल्यावस्था का वर्णन किया गया है जिसमें उनकी बालसुलभ क्रियाएँ अत्यंत आकर्षक हैं।

(ग) चार वर्षीय अमीरुद्दीन नाना के चले जाने के बाद नौबतखाने में रखी हुई शहनाइयों में से अपने नाना की शहनाई को खोजता था। उसके नाना बहुत मीठी शहनाई बजाते थे। इसलिए वह उन्हीं की शहनाई को खोजता था।

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(घ) अमीरुद्दीन का अपने नाना के प्रति अत्यंत स्नेह था। वह उन्हें अपना आदर्श मानता था। वह उन्हीं की शहनाई खोजकर बजाना चाहता था। किंतु शहनाई न मिलने पर सोचता था कि नाना ने अपनी शहनाई कहीं छुपाकर रख दी है।

(ङ) अमीरुद्दीन के उस्ताद का नाम अलीबख्श खाँ था जो उसके मामा भी थे।

(च) अमीरुद्दीन शहनाई के सम पर पत्थर को ज़मीन पर पटककर दाद देता था।

(छ) शहनाईवादन में सही दाद सिर हिलाकर दी जाती है अथवा ‘वाह’ शब्द बोलकर भी दाद दी जाती है।

(ज) शहनाईवादन क्रिया में जब लय समाप्त होती है और ताल आरंभ होती है, तो उसे सम की स्थिति कहा जाता है।

(झ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने शहनाई वादन के क्षेत्र के शहंशाह बिस्मिल्ला खाँ (अमीरुद्दीन) के बचपन की कुछ यादों का भावपूर्ण वर्णन किया है। जब बिस्मिल्ला खाँ अपने बचपन की यादों का वर्णन करते हैं तो एक सात्विक आनंद से उनकी आँखें चमक उठती हैं। वे बताते हैं कि जब वे चार वर्ष के थे तो छुपकर नाना जी को शहनाई बजाते हुए देखते थे। अभ्यास के पश्चात् जब वे उठकर चले जाते थे तो वहाँ रखी बहुत-सी शहनाइयों में से वह शहनाई ढूँढ़ते थे जिससे उनके नाना जी अभ्यास करते थे। उसके लिए वे एक-एक शहनाई को उठाकर खारिज कर देते थे और सोचते थे कि नाना जी ने मीठी वाली शहनाई कहीं और रख दी है। एक घटना को याद करते हुए वे कहते हैं कि जब उनके मामा अलीबख्श खाँ शहनाई बजाते समय सम पर आते तो वे एक पत्थर ज़मीन पर मारते थे। उनकी इस हरकत को देखकर उनके मामा ने कहा था कि दाद वाह करके या सिर हिलाकर दी जाती है, न कि ज़मीन पर पत्थर मार कर। निश्चय ही बालक अमीरुद्दीन की ये दोनों यादें बहुत ही मीठी यादें हैं।

(5) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं, थोड़ी देर ही सही, मगर उसी ओर शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता है और भीतर की आस्था रीड के माध्यम से बजती है। [पृष्ठ 119]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) काशी में कौन-सी प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा रही है?
(ग) हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित संगीत सभा का परिचय दीजिए।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ की काशी विश्वनाथ के प्रति कैसी भावनाएँ थीं?
(ङ) काशी के संकटमोचन मंदिर के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
(च) इस गद्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम श्री यतींद्र मिश्र। . पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा रही है। इस परंपरा के कारण काशी का नाम सर्वत्र आदर से लिया जाता है। ।

(ग) हनुमान जयंती के अवसर पर काशी के सुप्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर में पाँच दिनों तक शास्त्रीय व उपशास्त्रीय संगीत की श्रेष्ठ । सभा का आयोजन किया जाता है। इस सभा में उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का शहनाईवादन अवश्य होता है।

(घ) बिस्मिल्ला खाँ संगीत के साथ-साथ धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति थे। वे अपने धर्म के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। वे पाँचों वक्त नमाज़ पढ़ते थे। इसके साथ वे बालाजी के मंदिर में शहनाईवादन भी करते थे। वे काशी के विश्वनाथ मंदिर में भी शहनाई बजाते थे। उनकी काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा थी। वे सदा ही उन्हें स्मरण करते थे।

(ङ) काशी में नगर के दक्षिण में लंका पर संकटमोचन मंदिर विद्यमान है। यहाँ प्रतिवर्ष धार्मिक एवं संगीत के विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हनुमान जयंती के अवसर पर तो संगीत के विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर लोग उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की मधुर शहनाई का आनंद भी उठाते हैं।

(च) इस गद्यांश के माध्यम से लेखक ने काशी नगर की सांस्कृतिक भूमि को उजागर किया है। काशी जी में संगीत सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है। ऐसे अवसरों पर बिस्मिल्ला खाँ जैसे महान् संगीतकार भाग लेते थे। इसलिए काशी नगरी के सांस्कृतिक जीवन को उद्घाटित करना प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव है।

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने काशी नगरी की शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन वादन की श्रेष्ठ परंपरा और बिस्मिल्ला खाँ की बालाजी के प्रति अटूट श्रद्धा का वर्णन किया है। काशी में संगीत आयोजन की प्राचीन परंपरा रही है। इसी परंपरा के कारण काशी का आदर भी किया जाता है। बालाजी के मंदिर में हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर शास्त्रीय संगीत का समायोजन किया जाता है। इस सभा में बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई वादन अवश्य होता है। यद्यपि बिस्मिल्ला खाँ में अपने धर्म के प्रति अत्यधिक समर्पण की भावना है फिर भी उनकी अपार श्रद्धा काशी विश्वनाथ के प्रति भी है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब भी वे विश्वनाथ व बालाजी के मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके शहनाई वादन अवश्य करते हैं। उनकी यह हार्दिक आस्था ही उनकी शहनाई के रूप में प्रकट होती है। कहने का भाव है कि बिस्मिल्ला खाँ का धार्मिक दृष्टिकोण अत्यंत उदार है और शहनाई वादन कला के प्रति भी पूर्णतः समर्पित है।

(6) काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी .. आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज़ सिखाने वाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा। [पृष्ठ 121]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) आज की काशी की स्थिति कैसी है?
(ग) काशी में मरना मंगलमय क्यों माना जाता है?
(घ) नायाब हीरा किसे और क्यों कहा गया है?
(ङ) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने किन दो कौमों को कैसी प्रेरणा दी है?
(च) लेखक ने काशी को आनंदकानन क्यों कहा है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

(ख) आज काशी की स्थिति अत्यंत अच्छी है। यहाँ संगीत कला का आदर किया जाता है। काशी आज भी संगीत के स्वरों से जागती है और संगीत की थपकी से ही सोती है। कहने का भाव है कि काशी में प्रातः बिस्मिल्ला खाँ जैसे महान् संगीतज्ञ द्वारा शहनाईवादन किया जाता है।

(ग) काशी में मरना इसलिए मंगलमय माना जाता है, क्योंकि यह शिव की नगरी है। यहाँ मरने से मनुष्य को शिव लोक प्राप्त होता है। वह सांसारिक आवागमन से मुक्त हो जाता है।

(घ) नायाब हीरा उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ को कहा गया है, क्योंकि सुर एवं लय से वह काशी में आनंद की धारा प्रवाहित करता है। उसने सदा सबको मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा दी है।

(ङ) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने हिंदुओं एवं मुसलमानों को मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा दी है। उनके अनुसार अपनी मेल-जोल की भावना से समाज में एकता एवं प्रेमभाव का विकास होता है।

(च) लेखक ने काशी को आनंदकानन इसलिए कहा है क्योंकि यहाँ विश्वनाथ विराजमान हैं। उनकी कृपा से यहाँ सर्वत्र मंगल वर्षा होती रहती है। उनकी दया से ही जीवात्माएँ मोक्ष को प्राप्त होती हैं। काशी जी में सदा संगीत सभाओं का आयोजन किया जाता है। इसलिए वहाँ संगीतमय वातावरण बना रहता है। अतः काशी को आनंदकानन कहना उचित है।

(छ) आशय/व्याख्या प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने काशी नगरी के संगीत-प्रेम का उल्लेख किया है। साथ ही उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के चरित्र के उदात्त गुणों का उल्लेख किया है। लेखक का मत है कि काशी में सुबह-शाम संगीत के स्वर थिरकते हैं। काशी जी में मरण भी शुभ माना जाता है। काशी नगरी आनंद देने वाला उपवन है। इससे भी अच्छी बात यह है कि काशी के पास बिस्मिल्ला खाँ जैसा सुर और लय का ज्ञान देने वाला अनोखा हीरा है। वह सदा ही दो जातियों (हिंदू और मुसलमान) के लोगों को आपस के मतभेद को भूलकर भाईचारे के साथ अर्थात् मिलजुल कर रहने की प्रेरणा देता रहा है।

नौबतखाने में इबादत Summary in Hindi

नौबतखाने में इबादत लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री यतींद्र मिश्र का जीवन-परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री यतींद्र मिश्र का जन्म सन् 1977 में राम-जन्मभूमि अयोध्या में हुआ। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से हिंदी विषय में एम.ए. की परीक्षा पास की। वे आजकल स्वतंत्र लेखन के साथ अर्द्धवार्षिक ‘सहित’ पत्रिका का संपादन कर रहे हैं। सन् 1999 से अब तक वे ‘विमला देवी फाउंडेशन’ नामक एक सांस्कृतिक न्यास का संचालन कर रहे हैं। इस न्यास का संबंध साहित्य और कलाओं के संवर्द्धन से है।

2. प्रमुख रचनाएँ-(क) काव्य-संग्रह ‘यदा-कदा’, ‘अयोध्या तथा अन्य कविताएँ’, ‘ड्योढ़ी पर आलाप’।
(ख) अन्य रचनाएँ–’गिरिजा’ (शास्त्रीय संगीत गायिका गिरिजा देवी की जीवनी), ‘कवि द्विजदेव की ग्रंथावली का सह-संपादन’, ‘थाती’ (स्पिक मैके के लिए विरासत-2001 के कार्यक्रम के लिए रूपंकर कलाओं पर केंद्रित)।

3. सम्मान-उन्हें ‘भारत भूषण अग्रवाल कविता सम्मान’, ‘हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार’, ‘ऋतुराज सम्मान’ आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

4. भाषा-शैली-श्री यतींद्र मिश्र की भाषा-शैली सरल, सहज एवं व्यावहारिक है। ‘नौबतखाने में इबादत’ नामक पाठ में सुप्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन के विभिन्न पक्षों का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह एक सफल व्यक्ति-चित्र है। इसमें शास्त्रीय संगीत परंपरा के विभिन्न पहलुओं को सफलतापूर्वक उजागर किया गया है। इस पाठ की भाषा में लेखक ने संगीत से संबंधित प्रचलित शब्दों का सार्थक प्रयोग किया है, यथा-सम, सर, ताल, ठुमरी, टप्पा, दादरी, रीड, कल्याण, मुलतानी, भीमपलासी आदि। उर्दू-फारसी के शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया गया है, यथा दरबार, पेशा, साहबजादे, खानदानी मुराद, गमजदा, बदस्तूर आदि। कहीं संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। वाक्य रचना सुगठित एवं व्याकरण सम्मत है। कहीं-कहीं संवादों का भी सफल प्रयोग किया गया है, जिससे विषय में रोचकता का समावेश हुआ है। भावात्मक, वर्णनात्मक एवं चित्रात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया गया है।

नौबतखाने में इबादत पाठ का सार

प्रश्न-
‘नौबतखाने में इबादत’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने सुप्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन एवं उनकी शहनाईवादन कला के विभिन्न पक्षों का सजीव उल्लेख किया है। सन् 1916 से 1922 के आस-पास का समय था, जब छः वर्ष का अमीरुद्दीन अपने बड़े भाई शम्सुद्दीन के साथ काशी में अपने मामूजान सादिक हुसैन और अलीबख्श के पास रहने के लिए आया था। इनके दोनों मामा सुप्रसिद्ध शहनाईवादक थे। वे दिन की शुरुआत पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर की ड्योढ़ी पर शहनाई बजाकर किया करते थे। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का बचपन का नाम अमीरुद्दीन था। इनका जन्म बिहार के डुमराँव नामक गाँव में हुआ। वैसे तो डुमराँव और शहनाई में कोई संबंध नहीं है लेकिन डुमराँव गाँव में सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली नरकट नामक घास से शहनाई की रीड बनाई जाती है, जिससे शहनाई बजती है। इनके पिता का नाम उस्ताद पैगंबर बख्श खाँ और माता का नाम मिट्ठन था।

अमीरुद्दीन चौदह वर्ष की आयु में बालाजी के मंदिर में जाते समय रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के रास्ते से होकर जाते थे। इन दोनों बहनों द्वारा गाए हुए टप्पे, दादरा, ठुमरी आदि के बोल उन्हें बहुत अच्छे लगते थे। उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में इन्हीं गायिका बहनों से संगीत की प्रेरणा मिली है।

वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता। अरब देशों में फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों को ‘नय’ कहते हैं। शहनाई को ‘शाहेनय’ कहकर ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ माना जाता है। सोलहवीं शती के अंत में तानसेन द्वारा रचित राग कल्पद्रुम की बंदिश में शहनाई, मुरली, वंशी शृंगी और मुरछंग का वर्णन मिलता है। अवधी के लोकगीतों में शहनाई का भी वर्णन देखा जा सकता है। मंगल कार्य के समय ही शहनाई का वादन किया जाता है। दक्षिण भारत में शहनाई प्रभाती की मंगलध्वनि मानी जाती है।

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष की आयु में भी परमात्मा से सदा ‘सुर में तासीर’ पैदा करने की दुआ माँगते थे। वे ऐसा अनुभव करते थे कि वे अभी तक सुरों का सही प्रयोग करना नहीं सीख पाए हैं। वे अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। मुहर्रम के दिनों की आठवीं तारीख को खड़े होकर शहनाईवादन किया करते थे और उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार वालों के बलिदान की याद में भीग जाती थीं।

लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ के यौवन के दिनों के विषय में बताया है कि उन्हें कुलसुम हलवाइन की दुकान की कचौड़ियाँ खाने व गीताबाली और सुलोचना की फ़िल्में देखने का जुनून सवार रहता था। वे बचपन में माम, मौसी और नाना से पैसे लेकर घंटों लाइन में खड़े होकर टिकट हासिल कर फिल्म देखने जाते थे। जब बालाजी के मंदिर पर शहनाई बजाने के बदले उन्हें अठन्नी मिलती थी तो वे कचौड़ी खाने और फिल्म देखने अवश्य जाते थे। . लेखक ने पुनः लिखा है कि कई वर्षों से काशी में संगीत का आयोजन संकटमोचन मंदिर में होता है। हनुमान जयंती पर तो पाँच दिनों तक शास्त्रीय व उपशास्त्रीय संगीत का सम्मेलन होता है। इस अवसर पर उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ विशेष रूप में उपस्थित रहते थे। उन्हें काशी के विश्वनाथ के प्रति भी अपार श्रद्धा थी। वे जब भी काशी से बाहर होते तो विश्वनाथ एवं बालाजी के मंदिर की ओर मुख करके अवश्य ही शहनाईवादन करते। उन्हें काशी और गंगा से बहुत लगाव था। उन्हें काशी और शहनाई से बढ़कर कहीं स्वर्ग दिखाई नहीं देता था। काशी की अपनी एक संस्कृति है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का पर्याय शहनाई है। इनकी फंक से शहनाई में जादुई ध्वनि उत्पन्न होती थी। एक बार उनकी एक शिष्या ने उन्हें कहा कि आपको भारतरत्न मिल चुका है, आप फटी हुई तहमद न पहना करें। इस पर उन्होंने कहा कि भारतरत्न शहनाई पर मिला है, न कि तहमद पर। हम तो मालिक से यही दुआ करते हैं कि फटा हुआ सुर न दे, तहमद भले फटा रहे। उन्हें इस बात की कमी खलती थी कि पक्का महाल क्षेत्र से मलाई बरफ बेचने वाले चले गए। देसी घी की कचौड़ी-जलेबी भी पहले जैसी नहीं बनती। संगीत, साहित्य और अदब की प्राचीन परंपराएँ भी लुप्त होती जा रही हैं।

काशी में आज भी संगीत की गुंजार सुनाई पड़ती है। यहाँ मरना भी मंगलमय माना जाता है। यहाँ बिस्मिल्ला खाँ और विश्वनाथ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। यहाँ की गंगा-जमुनी संस्कृति का विशेष महत्त्व है। भारतरत्न और अनेकानेक पुरस्कारों से सम्मानित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ सदा संगीत के अजेय नायक बने रहेंगे। नब्बे वर्ष की आयु में 21 अगस्त, 2006 को यह संगीत की दुनिया का महान् साधक संगीत प्रेमियों की दुनिया से विदा हो गया।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-116) ड्योढ़ी = दहलीज़। नौबतखाना = प्रवेशद्वार के ऊपर मंगलध्वनि बजाने का स्थान। इबादत = पूजा। घाट = नदी का किनारा। मंगलध्वनि = आनंददायक आवाज़ । मामूजान = प्रिय मामाजी। भीमपलासी, मुलतानी = संगीत के रागों के नाम। वाजिब = ठीक। लिहाज = शर्म। गोया = फिर भी। वादक = बजाने वाला। रियासत = शासन-क्षेत्र। रोज़नामचा = दैनिक जमा-खर्च का खाता। पेशा = व्यवसाय । खानदान = परिवार । ननिहाल = नाना का घर। उपयोगी = काम में आने वाला। साहबजादा = पुत्र।

(पृष्ठ-117) रियाज़ = अभ्यास। बोल-बनाव = गीत के सुरों की रचना। ठुमरी = एक चलता गीत। टप्पा = गाने की एक शैली। दादरा = गायन-शैली। साक्षात्कार = भेंट। आसक्ति = लगाव, मोह। अनुभव = तजुरबा। अबोध = अनजान। वर्णमाला = आरंभिक ज्ञान। सुषिर-वाद्य = खोखले यंत्र, जिन्हें फूंककर बजाया जाता है। नाड़ी = तने का खोखला डंठल। शास्त्रांतर्गत = शास्त्र के अंदर। उत्तरार्द्ध = अंतिम भाग। बंदिश = सुरों की रचना। श्रृंगी = सींग से बना वाद्ययंत्र। मुरछंग = वाद्ययंत्र का नाम। चैती = गीत की शैली। परिवेश = वातावरण। मांगलिक विधि-विधान = कल्याणकारी आयोजन। प्रभाती = प्रातःकाल में की जाने वाली आनंदमय ध्वनि। नेमत = वरदान। सज़दा = माथा टेकना। मुराद = इच्छा। ऊहापोह = उलझन। दुश्चिता = बुरी चिंता। तिलिस्म गढ़ना = नई योजना बनाना। महक = सुगंध।

(पृष्ठ-118) गमक = खुशबू, सुगंध। तमीज़ = तरीका, ढंग। सलीका = ढंग। वंशज = परिवार के सदस्य। अज़ादारी = शोक मनाना। शिरकत करना = सम्मिलित होना। नौहा बजाना = करबला के शहीदों पर लिखे हुए शोक-गीत की धुन में वाद्य बजाना। अदायगी = प्रस्तुति। निषेध = रोक। शहादत = कुर्बानी, बलिदान। नम = गीली। पुनर्जीवित = फिर से जीवित होना। संपन्न = पूरा होना। मानवीय रूप = मानवीय भावनाओं से युक्त रूप। गमजदा = दुख से भरपूर। माहौल = वातावरण। सुकून = चैन। जुनून = नशा, सनक। अब्बाजान = पिता जी। उस्ताद = गुरु। बदस्तूर = तरीके से। कायम = बनी हुई।

(पृष्ठ-119) बालसुलभ = बच्चों जैसी। नैसर्गिक = प्राकृतिक, स्वाभाविक। आँखें चमकना = आँखों में आनंद प्रकट होना। खारिज़ करना = छोड़ना। सम = लय की समाप्ति और ताल के आरंभ के बीच की स्थिति। दाद = प्रशंसा करना। बुखार = नशा। मेहनताना = मेहनत से पाया हुआ पैसा। कलकलाता = पूरी तरह गरम। आरोह-अवरोह = उतार-चढ़ाव । स्वादी = स्वाद लेने वाले, आनंद लेने वाले। शक = संदेह। हाथ लगना = प्राप्त होना। अद्भुत परंपरा = अनोखा रिवाज़ । शास्त्रीय = शास्त्र की परंपरा के अनुसार। गायन-वादन = गाना और बजाना। उत्कृष्ट = श्रेष्ठ। मजहब = धर्म। समर्पित = लगे हुए, अर्पित। श्रद्धा = आदर। आस्था = विश्वास।

(पृष्ठ-120) पुश्त = पीढ़ी। शहनाईवाज़ = शहनाई बजाने वाले। अदब = लोक-व्यवहार का उचित ढंग। जन्नत = स्वर्ग। आनंदकानन = आनंदमय वन। रसिक = आनंद लेने वाला। उपकृत = जिस पर उपकार किया गया हो। तहज़ीब = तौर-तरीका। गम = दुख। सेहरा बन्ना = दूल्हे की सेहराबंदी पर गाए जाने वाले गीत। सिर पर चढ़कर बोलना = जादू का-सा प्रभाव रखना। परवरदिगार = परमात्मा। नसीहत = शिक्षा। सुबहान अल्लाह = बहुत अच्छा। अलहमदुलिल्लाह = तमाम तारीफ़ ईश्वर के लिए। करतब = जादू, कला। अजान = बाँग, नमाज के समय की सूचना ऊँचे स्वर में देना। कतार = पंक्ति। सरताज होना = सबसे ऊँचा होना। दुआ लगना = शुभकामना का असर होना। लुंगिया = लुंगी। खाक = बेकार, व्यर्थ।

(पृष्ठ-121) शिद्दत = तीव्रता, प्रबलता। संगती = संगतकार, गायक के साथ वाद्य-यंत्र बजाने वाले कलाकार। अफसोस = दुख। लुप्त होना = छुप जाना। सुर साधक = सुर की साधना करने वाला। सामाजिक = समाज का उदार हृदय मनुष्य। पूरक = पूरा करने वाला। ताजिया = मुहर्रम के अवसर पर चमकीली पन्नियों से बना शव के आकार का ताबूत। अबीर = चमकीला पाउडर। गंगा-जमुनी संस्कृति = मिली-जुली संस्कृति। थाप = ताल। तमीज = सलीका, तरीका। नायाब हीरा = अनमोल रत्न। कौम = जाति। मानद उपाधि = मान के रूप में दी जाने वाली उपाधि। अजेय = जिसे जीता न जा सके। नायक = अगुआ। एकाधिकार = पूरी तरह अधिकार रखना। जिजीविषा = जीने की इच्छा।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का अँचल

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का अँचल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का अँचल

HBSE 10th Class Hindi माता का अँचल Textbook Questions and Answers

Class 10 Kritika Chapter 1 Question Answer HBSE  प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर-
निश्चय ही पाठ में दिखाया गया है कि बच्चे (लेखक) को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता ने उसके लालन-पालन में ही सहयोग नहीं दिया, अपितु वे उसके अच्छे दोस्त भी थे। उसके खेल में साथ रहते थे। विपदा के समय बच्चे को लाड़-प्यार की अपेक्षा ममता एवं सुरक्षा की भावना की आवश्यकता होती है, वह उसे माँ की गोद में मिल सकती है। बच्चा माँ की गोद में अपने-आपको जितना सुरक्षित महसूस करता है उतना पिता के लाड़-प्यार की छाया में नहीं। इसी कारण संकट में बच्चे को माँ की याद आती है, पिता की नहीं। माँ की ममता बच्चे के घाव भरने में मरहम का काम करती है।

Class 10 Kritika Chapter 1 Solution HBSE प्रश्न 2.
आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर–
बच्चा सदैव अपने साथियों में खेलना व रहना पसंद करता है। भोलानाथ भी एक साधारण बालक था। उसे अपने साथियों के साथ खेलने में गहरा आनंद मिलता था। वह अपने साथियों को शोर मचाते, शरारतें करते और खेलते हुए देखकर सब कुछ भूल जाता है। इसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता था।

Class 10th Kritika Chapter 1 Question Answer HBSE प्रश्न 3.
आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

Kritika Chapter 1 Class 10 HBSE प्रश्न 4.
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-
आज के युग में और भोलानाथ के युग में बहुत अंतर आ गया है। आज माता-पिता बच्चों को भोलानाथ और उसके साथियों की भाँति ऐसे-वैसे गली-मोहल्ले में घूमने की इजाजत नहीं देते। वे बच्चों का बहुत ध्यान रखते हैं। आज के बच्चे घर बनाना, विवाह रचना, चिड़ियाँ पकड़ना, दुकान बनाना, खेती करना आदि खेल नहीं खेलते। आज के बच्चे क्रिकेट, साइकिल चलाना, दौड़ना, कार्टून बनाना, तैरना, लूडो, आदि खेल खेलते हैं। भोलानाथ के समय के बच्चों के खेलों की सामग्री और साधन भी अलग थे; जैसेचबूतरा, सरकंडे, टूटी चूहेदानी, गीली मिट्टी, टूटे हुए घड़े के टुकड़े, पुराने व टूटे हुए कनस्तर आदि। आजकल के बच्चों के खेलों की सामग्री व साधन हैं टी.वी., कंप्यूटर, साइकिल, बैट-बॉल, फुटबॉल आदि।

Hindi Class 10 Kritika Chapter 1 Question Answers HBSE प्रश्न 5.
पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर-
पाठ में आए कुछ ऐसे प्रसंग हैं जो पाठक के हृदय को छू जाते हैं-
(1) देखिए, मैं खिलाती हूँ। मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए, और महतारी के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है। यह कह वह थाली में दही-भात सानती और अलग-अलग तोता, मैना, कबूतर हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे; पर हम उन्हें इतनी जल्दी उड़ा जाते थे कि उड़ने का मौका ही नहीं मिलता।

(2) एक टीले पर जाकर हम लोग चूहों के बिल में पानी उलीचने लगे। नीचे से ऊपर पानी फेंकना था। हम सब थक गए। तब तक गणेश जी के चूहे की रक्षा के लिए शिव जी का साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते हम लोग बेतहाशा भाग चले!

(3) इसी समय बाबू जी दौड़े आए। आकर झट हमें मइयाँ की गोद से अपनी गोद में लेने लगे। पर हमने मइयाँ के आँचल की प्रेम और शांति के चँदोवे की-छाया न छोड़ी………।

Class 10 Kritika Chapter 1 HBSE प्रश्न 6.
इस उपन्यास के अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं? ।
उत्तर-
तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति और आज की ग्राम्य संस्कृति में पर्याप्त अंतर दिखाई देता है। आज कुओं से पानी भरना व कुओं से खेतों की सिंचाई का प्रचलन समाप्त हो गया है। गाँवों में पीने के लिए पानी की वाटर सप्लाई हो गई है और खेतों में ट्यूबवैल लग गए हैं। खेतों में बैलों की अपेक्षा ट्रैक्टर से काम लिया जाता है। संपूर्ण ग्राम अंचल के विवाह संबंधी रीति-रिवाज़ बदल गए हैं। भौतिकवाद और उपभोक्तावाद का प्रभाव ग्राम्य संस्कृति में भी दिखाई देने लगा है। आपसी भाईचारा व मेल-मिलाप भी कम होने लगा है। आज मनोरंजन के साधन बदल चुके हैं। चौपालों में हुक्के गुड़गुड़ाने की अपेक्षा हमारे बुजुर्ग भी टी.वी. के आगे बैठकर क्रिकेट के मैच का आनंद लेते हुए देखे जा सकते हैं। ग्रामीण अंचल की मौज-मस्ती भरे जीवन के स्थान पर व्यस्त एवं तेज़ रफ़्तार वाला जीवन देखा जाता है।

Kritika Chapter 1st Question Answer HBSE 10th Class प्रश्न 7.
पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर-
बचपन में पिता के स्थान पर माता ही हमें जगाया करती थी तथा शीघ्रता से नहाकर खाना खाने के लिए कहती, यदि इस काम में थोड़ी सी देरी हो जाती तो डाँट पड़नी निश्चित थी। पिता जी ने पैरों पर बिठाकर कई बार झूले दिए थे। जब सबसे ऊँचा झूला मिलता था तो हमारी खुशी का ठिकाना न रहता। कभी पिता जी अपने साथ खेत में भी ले जाया करते थे। वहाँ तरह-तरह की फसलों को देखकर हम बहुत खुश होते थे। खेतों में चरते हुए पशु भी मुझे बहुत अच्छे लगते थे। खेत में चल रहे ट्यूबवैल के चबचों में नहाने का तो आनंद ही और था। स्कूल में जाते समय माता-पिता से पैसे लेना हम कभी नहीं भूलते थे। उन पैसों को दोस्तों के साथ मिलकर खर्च करने का आनंद भी कम नहीं था। देर तक घर से बाहर रहने पर कई बार फटकार भी सुननी पड़ती थी।

Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 HBSE प्रश्न 8.
यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में आदि से अंत तक माता-पिता का बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का ही उद्घाटन हुआ है। यह व्यक्त करना ही पाठ का प्रमुख लक्ष्य है। लेखक का उसके पिता के पास सोना प्रातः समय पर उठकर उनके साथ नहाना-धोना और पिता के द्वारा भोजन कराया जाना, कम भोजन खाने पर चिंता व्यक्त करना। पिता जी द्वारा कंधे पर बैठाकर गंगा के किनारे ले जाना। उसके साथ कुश्ती करना। बच्चों को खुश रखने के लिए खेल में हार जाना। साँप को देखने से डर जाने पर माँ द्वारा आँचल में छुपा लेना आदि में वात्सल्य भाव का ही चित्रण हुआ है।

Class 10th Kritika Chapter 1st HBSE प्रश्न 9.
‘माता का अँचल’ शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर-
माता का अँचल’ नामक पाठ का शीर्षक उपयुक्त नहीं है क्योंकि यह पाठ के अंतिम भाग पर लागू होता है, संपूर्ण पाठ में पिता और पुत्र के संबंधों का उल्लेख किया गया है। केवल एक घटना में बच्चे सर्प को देखकर डर जाते हैं तथा लेखक (बालक) माँ से अलग होने का नाम नहीं लेता। यह बात पूरी काल्पनिक सी लगती है, क्योंकि बच्चा दिन-रात पिता के साथ घुला-मिला रहता है। उसका अधिकांश समय पिता के साथ बीतता है लेकिन जब पिता डरे हुए बालक के पास जाता है तो वह और भी अधिक माँ के आँचल में छुप जाता है। ऐसा संभव नहीं क्योंकि पिता, पिता ही नहीं बालक का अच्छा मित्र भी है। इस पाठ का शीर्षक हो सकता है ‘मेरा बचपन’ अथवा ‘मेरा शैशवकाल’ ।

Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 Question Answer HBSE  प्रश्न 10.
बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर-
बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहते हुए, माता-पिता की बताई हुई अच्छी बातों पर अमल करके, उनके साथ खेलकर, उनकी आज्ञा का पालन करके, उनकी गोद में बैठकर आदि बातों से अपने प्रेम को उनके प्रति व्यक्त करते हैं।

Class 10 Hindi Mata Ka Aanchal Question Answer HBSE प्रश्न 11.
इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर-
यह पाठ काफी समय पहले का लिखा हुआ है। उस समय और आज के समय के जीवन में दिन-रात का अंतर हो गया . है। उस समय के बचपन में बच्चों पर पढ़ाई-लिखाई का कोई दबाव नहीं था। सब बच्चे मिल-जुलकर खूब खेलते थे। किंतु अब आपस में स्नेह भाव, विचारों का आदान-प्रदान व विश्वास की कमी हो गई है। आज के युग में बच्चों की पढ़ाई के पाठ्यक्रम इतने मुश्किल हो गए हैं कि उन्हें पूरा करने में इतना समय लगता है कि उनके पास खेलने तक का समय नहीं बचता। इसके अतिरिक्त माता-पिता के पास भी इतना समय नहीं कि वे बच्चों के साथ कुछ समय खेल सकें। आज खेल की सामग्री व साधन भी बदल गए हैं। गिल्ली-डंडे के स्थान पर क्रिकेट है। वीडियो गेम, टी.वी. आदि अनेक आधुनिकतम साधन हैं। गली में नाटक खेलना, गीली मिट्टी के खिलौने बनाना, विवाह रचना, खेती करना आदि खेल अब नहीं रह गए हैं।

Mata Ka Aanchal Class 10 Question Answer HBSE  प्रश्न 12.
फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने विद्यालय के पुस्तकालय से इन रचनाओं को लेकर स्वयं पढ़ें।

HBSE 10th Class Hindi माता का अँचल Important Questions and Answers

Mata Ka Aanchal Question Answer HBSE 10th Class प्रश्न 1.
‘माता का अँचल’ पाठ का मूल भाव लिखिए।
उत्तर-‘माता का अँचल’ पाठ में लेखक की बाल्यावस्था का अत्यंत आकर्षक रूप में चित्रण किया गया है। लेखक ने बताया है कि उसे अपने माता-पिता का भरपूर स्नेह मिला है। बचपन में कितनी निश्चिंतता और भोलापन होता है, इसका साक्षात् रूप पाठ में देखने को मिलता है। बच्चे अपने खेल में तल्लीन होकर खेलते हैं। वहाँ किसी प्रकार का भेदभाव, घृणा व जलन का भाव नहीं होता। बच्चों की दुनिया की सजीव तस्वीर अंकित करना लेखक का प्रमुख लक्ष्य रहा है, जिसमें उसे पूर्ण सफलता भी मिली है।

Hindi Class 10 Chapter 1 Kritika HBSE प्रश्न 2.
लेखक का तारकेश्वरनाथ से भोलानाथ नाम कैसे पड़ा?
उत्तर-
लेखक के पिता बहुत सवेरे उठते थे। वे अपने साथ-साथ लेखक और उसके भाई को भी उठा देते थे। अपने साथ ही उन्हें नहला-धुलाकर पूजा में बिठा लेते थे। पूजा के पश्चात् दोनों बेटों के चौड़े मस्तक पर चंदन की अर्धचंद्राकार रेखाएँ बना देते थे। उन दोनों के लंबे-लंबे बाल भी थे। लेखक के मस्तक पर भभूत भी बहुत अच्छी लगती थी। इसलिए प्यार से तारकेश्वरनाथ को उनके पिता भोलानाथ कहकर पुकारते थे। तभी उनका नाम भोलानाथ पड़ा था।

Chapter 1 Kritika Class 10 HBSE प्रश्न 3.
‘मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए’ इस पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से पुरुष वर्ग पर करारा व्यंग्य किया गया है। यह वाक्य लेखक की माता ने उनके पिता से कहा था। यह पूर्ण सत्य है कि नारी की अपेक्षा पुरुष में ममता का भाव कम होता है। एक बच्चे को जो लाड़-प्यार माता के रूप में एक नारी कर सकती है, वह पिता के रूप में एक पुरुष नहीं कर सकता। पिता की अपेक्षा माँ बच्चों के मनोभाव को शीघ्र भाँप जाती है। माँ भावात्मक रूप से अपने बच्चों से जुड़ी रहती है लेकिन पुरुष ऐसा नहीं कर पाते।

प्रश्न 4.
पाठ में बच्चों के द्वारा बनाए गए घरौंदे का उल्लेख अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-
लेखक की बचपन की मित्र-मंडली ने एक दिन घर बनाने का खेल खेलने का निश्चय किया। धूल-मिट्टी की दीवारें खड़ी की गईं तथा तिनकों को जोड़कर छप्पर डाला गया, दातुन के खंभे खड़े किए गए दियासलाई की डिब्बी के किवाड़ खड़े किए गए, टूटे हुए घड़े के टुकड़ों से चूल्हा-चक्की बनाई गई, घर में पानी का घी बनाया गया, धूल के पिसान और बालू की चीनी बनाई। भोजन का भी प्रबंध किया गया। सब लोगों ने घर के अंदर पंगत में बैठकर भोजन किया। इस प्रकार लेखक ने बच्चों के अद्भुत व विचित्र घरौंदे का सजीव चित्र अंकित किया है।

प्रश्न 5.
पठित पाठ के आधार पर लेखक के पिता के जीवन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
‘माता का अँचल’ नामक पाठ पढ़ने पर पता चलता है कि लेखक के पिता ईश्वर में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। वे प्रतिदिन ईश्वर की वंदना करते थे। साथ ही अपने दोनों बेटों को भी वंदना करते समय अपने पास बिठा लेते थे। तत्पश्चात् वे ‘रामनामा बही’ पर हजार बार ‘राम-राम’ लिखते थे। वे राम-नाम की पर्चियाँ बनाकर उनमें आटा लपेटकर गंगा नदी में मछलियों को खिला आते थे। इस प्रकार पता चलता है कि लेखक के पिता ईश्वरभक्त व्यक्ति थे।
वे स्वभाव से सरल एवं भोले थे। उनके मन में संतान के प्रति अथाह स्नेह था। अपने बच्चों को डरे हुए देखकर वे व्याकुल हो उठते थे। वे बच्चों के साथ मित्रता का व्यवहार करते थे।

प्रश्न 6.
‘बचपन में बच्चे सरल, निर्दोष और मस्त होते हैं पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
बचपन में सभी बच्चे सरल होते हैं। उनके मन में जो भाव उठते हैं वे उन्हें सहज एवं सरल वाणी में कह देते हैं। वे मन से भी निर्दोष होते हैं। उन्हें किसी प्रकार की चिंता व भय नहीं सताता। वे बूढ़े दूल्हे को पसंद नहीं करते, इसलिए उसे खसूट कह देते हैं। उन्हें अपनी शरारत के दुष्परिणाम का बोध नहीं था, इसलिए बूढ़ा दूल्हा उनके पीछे पड़ जाता है। बच्चे खेल में इतने मस्त हो जाते हैं, कि उन्हें घर-बार यहाँ तक कि माँ की भी याद नहीं आती।

प्रश्न 7.
खेल खेलते हुए बच्चे पिता को देखकर क्यों भाग खड़े होते हैं?
उत्तर-
गाँव में बच्चे अपनी इच्छा एवं रुचि के अनुकूल खेल खेलते हैं। वे वैसी सामग्री भी जुटाते हैं। वे खेल में पूर्णतः लीन हो जाते हैं। वे अपनी खेल की दुनिया में किसी की दखलअंदाजी नहीं चाहते अर्थात् वे नहीं चाहते कि उनके खेल में बड़े लोग भी सम्मिलित हों। इसलिए जब भी लेखक के पिता ने उन्हें खेलते हुए देखा और उनके करीब चले गए, तो बच्चे अपना खेल अधूरा छोड़कर भाग खड़े होते हैं।

प्रश्न 8.
पठित पाठ से हमें बाल्य जीवन की कौन-सी जानकारी प्राप्त होती है?
उत्तर-
इस पाठ से पता चलता है बाल्य जीवन में बच्चे मन में दूसरों के प्रति कोई भेदभाव की भावना नहीं रखते। वे सब मिलकर खेल रचते हैं। उनके मन में किसी प्रकार की जातिगत भावना भी नहीं होती। सब जाति-धर्मों के बच्चे मिलकर खेलते हैं। बच्चे अपने मन में किसी प्रकार की बात को छुपाकर नहीं रखते। यदि वे दुःखी हैं या भयभीत हैं तो रोकर या चिल्लाकर व्यक्त कर देते हैं। प्रसन्नता के भाव को वे खिलखिलाकर व हँसकर व्यक्त कर देते हैं। इसी प्रकार रोते-रोते खुश हो जाना और तुरंत खेल में लग जाना बच्चों का विचित्र स्वभाव है। वे मन में कभी बदले की भावना नहीं रखते। जो उनके मन में भाव या इच्छा होती है उसे वे कह डालते हैं। उसका परिणाम क्या होगा, उसकी चिंता उन्हें नहीं होती।

सबसे बड़ी बात यह है कि बच्चों के मन पर तनाव या किसी विचार का बोझ नहीं होता। वे बीती बातों को याद करके दुःखी नहीं होते। उनके सामने जो भी उनकी रुचि के अनुकूल खेल या प्रसंग आता है वे उसी में लीन हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
बूढ़े दूल्हे पर की गई टिप्पणी के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर–
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बूढ़े दूल्हे पर बच्चों के माध्यम से व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है। लेखक ने यहाँ यह बताया है कि बुढ़ापे में विवाह करना उचित कार्य नहीं है। हर कार्य समय पर ही अच्छा लगता है। बुढ़ापे में दूल्हा बनना न केवल सामाजिक दृष्टि से बल्कि नैतिक दृष्टि से भी उचित नहीं है। लेखक का संदेश है कि वृद्ध-विवाह नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 10.
लेखक को बचपन में स्कूल के अध्यापक से डाँट क्यों सुननी पड़ी थी?
उत्तर-
लेखक को बचपन में स्कूल के अध्यापक की डाँट-फटकार इसलिए सुननी पड़ी थी क्योंकि उसने अन्य बच्चों के साथ मिलकर मूसन तिवारी नामक बूढ़े व्यक्ति को अपशब्द कहे थे। बैजू नामक लड़के ने मस्ती करते हुए मूसन तिवारी को ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा’ कहकर चिढ़ाया था। अन्य बच्चों ने भी मस्ती में आकर ये शब्द दोहराए थे। नतीजा यह हुआ कि मूसन तिवारी अपने अपमान का बदला लेने के लिए स्कूल में जा पहुँचे और बच्चों को अध्यापक से खूब डाँट पड़वाई।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘माता का अँचल’ नामक कहानी के लेखक कौन हैं?
(A) कमलेश्वर
(B) शिवपूजन सहाय
(C) प्रेमचंद
(D) मधु कांकरिया
उत्तर-
(B) शिवपूजन सहाय

प्रश्न 2.
लेखक के पिता प्रातः उठकर क्या करते थे?
(A) कसरत
(B) सैर
(C) पूजा
(D) समाचार पढ़ना
उत्तर-
(C) पूजा

प्रश्न 3.
लेखक बचपन में किसका तिलक लगाता था?
(A) चंदन का
(B) गोरस का
(C) रोली का
(D) भभूत का
उत्तर-
(D) भभूत का

प्रश्न 4.
भभूत लगाने से लेखक क्या बन जाते थे?
(A) श्रीकृष्ण
(B) श्रीराम
(C) बम-भोला
(D) राजकुमार
उत्तर-
(C) बम-भोला

प्रश्न 5.
लेखक का वास्तविक नाम क्या था?
(A) तारकेश्वरनाथ
(B) महेशनाथ
(C) पृथ्वीराज
(D) भोलानाथ
उत्तर-
(A) तारकेश्वरनाथ

प्रश्न 6.
लेखक के पिता बचपन में उसे क्या कहकर पुकारते थे?
(A) नाथ
(B) भोलानाथ
(C) अमरनाथ
(D) शिव महाराज
उत्तर-
(B) भोलानाथ

प्रश्न 7.
लेखक के पिता कितनी बार ‘राम’ शब्द लिखकर ‘रामनामा बही पोथी बंद करते थे?
(A) पाँच सौ बार
(B). छह सौ. बार
(C) सात सौ बार
(D) एक हज़ार बार
उत्तर-
(D) एक हज़ार बार

प्रश्न 8.
लेखक के पिता कितनी बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटकर मछलियों को खिलाने जाते थे?
(A) पाँच सौ बार
(B) चार सौ बार
(C) तीन सौ पाँच बार
(D) दो सौ इक्कावन बार
उत्तर-
(A) पाँच सौ बार

प्रश्न 9.
‘मरदुए’ शब्द कहानी में किसने किसके लिए प्रयोग किया है?
(A) लेखक ने पिता के लिए
(B) लेखक की माता ने उसके पिता के लिए
(C) लेखक की माता ने लेखक के लिए
(D) इनमें से किसी ने नहीं
उत्तर-
(B) लेखक की माता ने उसके पिता के लिए

प्रश्न 10.
‘ठौर’ शब्द का अर्थ है-
(A) ठहरना
(B) दौड़ना
(C) स्थान
(D) आकाश
उत्तर-
(C) स्थान

प्रश्न 11.
लेखक गली में कौन-सा खिलौना लेकर जाते थे?
(A) कार
(B) बैलगाड़ी
(C) हाथी
(D) काठ का घोड़ा
उत्तर-
(D) काठ का घोड़ा

प्रश्न 12.
लेखक को बचपन में कैसे खेल पसंद थे?
(A) तरह-तरह के नाटक करना
(B) गिल्ली-डंडा खेलना
(C) लुका-छिपी खेलना
(D) चोर-सिपाही बनना
उत्तर-
(A) तरह-तरह के नाटक करना

प्रश्न 13.
वर्षा आने पर बच्चों ने कहाँ का आसरा लिया था?
(A) झोंपड़ी में
(B) पेड़ की जड़ों के पास
(C) किसी कमरे में
(D) छतरी के नीचे
उत्तर-
(B) पेड़ की जड़ों के पास

प्रश्न 14.
बच्चों की शिकायत किस व्यक्ति ने की थी?
(A) लेखक के पिता ने
(B) बाग के मालिक ने
(C) मूसन तिवारी ने
(D) लेखक की माता ने
उत्तर-
(C) मूसन तिवारी ने

प्रश्न 15.
‘चिरौरी करना’ का क्या अर्थ है?
(A) चिड़ाना
(B) नकल करना
(C) चोरी करना
(D) विनती करना
उत्तर-
(D) विनती करना

प्रश्न 16.
“चिड़िया की जान जाए, लड़कों का खिलौना।” ये शब्द किसने कहे?
(A) लेखक के पिता जी और उनके मित्रों ने
(B) लेखक की माता ने
(C) लेखक के मित्रों और उनके मित्रों ने
(D) खेत के मालिक ने
उत्तर-
(A) लेखक के पिता जी और उनके मित्रों ने

प्रश्न 17.
बूढ़े दूल्हे पर की गई टिप्पणी के द्वारा क्या संदेश दिया गया है?
(A) बूढ़ा दूल्हा सुंदर नहीं होता
(B) बुढ़ापे में विवाह करना उचित नहीं
(C) हर कार्य समय पर अच्छा होता है
(D) बूढ़ा दूल्हा सम्मानित नहीं होता
उत्तर-
(B) बुढ़ापे में विवाह करना उचित नहीं

प्रश्न 18.
भोलानाथ को सबसे अच्छा क्या लगता है?
(A) भोजन खाना
(B) पढ़ना
(C) खेलना
(D) सोना
उत्तर-
(C) खेलना

माता का अँचल Summary in Hindi

माता का अँचल पाठ का सार

प्रश्न-
‘माता का अँचल’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ श्री शिवपूजन सहाय के ‘देहाती दुनिया’ नामक उपन्यास का अंश है। ‘देहाती दुनिया’ हिंदी साहित्य का पहला आंचलिक उपन्यास है। इसे शिशु भोलानाथ के चरित्र को मध्य में रखकर रचा गया है। संकलित अंश में ग्रामीण अंचल और उसके चरित्रों का एक अद्भुत चित्र अंकित किया गया है। बालकों के खेल, कौतूहल, माँ की ममता, पिता का प्यार, लोकगीत आदि का एक साथ चित्रण किया गया है। बाल-सुलभ मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है। साथ ही तत्कालीन समाज के पारिवारिक परिवेश का भी उल्लेख किया गया है। पाठ का सार इस प्रकार है-

लेखक अभी बच्चा ही था कि वह अपने पिता जी के साथ प्रातः शीघ्र उठकर, स्नान आदि करके पूजा करने बैठ जाता था। वह अपने पिता से जिद्द करके माथे पर त्रिपुंड लगवाया करता था। अपनी लंबी-लंबी जटाओं के कारण वह भोलानाथ अथवा बम-भोला ही लगता था। लेखक अपने पिता जी को बाबू जी और माताजी को मइयाँ कहकर पुकारता था। जब उसके पिता जी रामायण का पाठ करते तो वह भी वहाँ बैठ जाता था। वह वहाँ बैठा-बैठा दर्पण देखा करता था, जब उसके पिता जी उसकी तरफ देखते तो वह हँस पड़ता था। लेखक के पिता पूजा-पाठ करने के पश्चात् रामनामा बही पर हज़ार बार राम-नाम लिखते थे। फिर कागज़ के टुकड़ों पर पाँच सौ बार राम-नाम लिखकर तथा उन्हें आटे की गोलियों में लपेटकर गंगा जी में मछलियों को खिलाने के लिए जाते थे। भोलानाथ भी पिता के साथ गंगा तट पर जाता था। उस समय वह पिता के कंधों पर बैठकर मुस्कराता रहता था।

लेखक बचपन में पिता के.साथ अनेक खेल खेलता था। कभी-कभी कुश्ती भी लड़ता था और उनकी छाती पर बैठकर उनकी मूंछे उखाड़ने लगता था। तब उसके पिता उससे पूँछे छुड़वाकर उसका हाथ चूम लेते थे। पिता जी उसके दोनों गाल चूमते व उन पर अपनी दाढ़ी रगड़ देते। लेखक फिर उनकी मूंछे उखाड़ने लगता और वे झूठ-मूठ का रोने लगते। लेखक पिता जी के साथ भोजन करता। पिता उसे अपने हाथों से भोजन खिलाते थे। जब उसका पेट भर जाता था तो उसे माँ और भोजन खिलाने की जिद्द करती और कहती-

‘जब खाएगा बड़े-बड़े कौर, तब पाएगा दुनिया में ठौर’ वह अपने पति को ताना देती हुई कहती है कि आप मर्द लोग बच्चों को खाना खिलाना क्या जानो। तब माँ उसे तोता, मैना, चिड़िया, मोर आदि पक्षियों के नाम ले-लेकर भोजन कराती। कभी-कभी माँ उसके बालों में चुल्लू भर कड़वा तेल लगा देती, उसके माथे पर बिंदी लगा देती, उसकी चोटी गूंथ देती तथा उसमें फूलदार लट्ट भी बाँध देती। उसे रंगीन कुर्ता और टोपी पहना देती। तब वह गली में खेलने के लिए चल देता।

लेखक बच्चों के साथ मिलकर तरह-तरह के खेल खेलता था। वह मिठाइयों की दुकान सजाता तो कभी नाटक किया करता। दुकान में पत्तों की पूरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियाँ भी बनाई जातीं। जब पिता उन्हें ऐसे खेलता देख लेता तो वह सबको तोड़-फोड़ देता और पिता हँसने लगते। इसी प्रकार लेखक घर बनाने का खेल व विवाह रचाने, बारात को भोजन कराने के खेल भी खेला करता था। वह बच्चों के साथ मिलकर बारात का जुलूस निकालने का खेल भी खेलता था जिसमें कनस्तर का तंबूरा बजता, आम के पौधे की शहनाई बजती, टूटी हुई चूहेदानी की पालकी सजाई जाती, समधी बनकर बकरे पर चढ़ जाते। यह जुलूस चबूतरे के एक कोने से दूसरे कोने तक जाता। कभी-कभी खेती करने का खेल भी खेला जाता। इस प्रकार के खेल और नाटक करना प्रतिदिन का काम था।

कभी किसी दूल्हे के आगे चलती पालकी देखते तो ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगते। एक बार एक बूढ़े वर ने लेखक मंडली को खदेड़कर ढेलों से मारा। एक बार रास्ते में आते हुए मूसन तिवारी को बुढ़वा बेईमान कहकर चिढ़ा दिया। मूसन तिवारी ने भी उनको खूब डाँटा। उसके बाद मूसन तिवारी स्कूल पहुंच गए। वहाँ चारों लड़कों में से बैजू तो भाग निकला, किंतु लेखक और उसका भाई पकड़े गए। यह सुनकर बाबू जी दौड़ते हुए पाठशाला गए। गुरु जी से विनती कर बाबू जी उन्हें घर ले गए। लेखक और उसके मित्र एक बार मकई के खेत में चिड़ियाँ पकड़ने घुस गए। चिड़ियाँ तो पकड़ी नहीं गईं और खेत से अलग होकर वे सब मिलकर ‘राम जी की चिरई, राम जी का खेत, खा लो चिरई, भर-भर पेट’ गीत गाने लगे। कुछ ही दूरी पर खड़े बाबूजी व अन्य लोग उनका यह तमाशा देखकर प्रसन्न हो रहे थे।

टीले पर जाकर लेखक और उसका भाई अपने मित्रों के साथ चूहों के बिलों में पानी डालने लगे। कुछ देर बाद उसमें से श्रीगणेश जी के चूहे की अपेक्षा सर्प निकल आया। उससे वे इतने डर गए कि वहाँ से रोते-चिल्लाते भागते हुए घर आ गए। गिरने, फिसलने व काँटे लग जाने के कारण सब लहूलुहान हो गए। सब अपने-अपने घरों में घुस गए। उस समय बाबू जी बरामदे में बैठकर हुक्का पी रहे थे। वे दोनों अपनी माँ की गोद में जाकर छिप गए। उन्हें डर से काँपते हुए देखकर माँ भी रोने लगी। वह व्याकुल होकर कारण पूछने लगी। वह उन्हें कभी अपने आँचल में छिपाती तो कभी गले से लगाती। माँ ने तुरंत हल्दी पीसकर लेखक और उसके भाई के घावों पर लगाई। उनके शरीर अभी भी काँप रहे थे। आँखें चाहकर भी नहीं खुलती थीं। बाबू जी भी उन्हें अपनी गोद में लेने लगे। किंतु वे माँ के आँचल में ही छिपे रहे।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-1) अँचल = गोद, आँचल। संग = साथ। मृदंग = वाद्य यंत्र। तड़के = प्रातःकाल। नाता = संबंध। भभूत = राख। दिक करना = तंग करना। लिलार = ललाट। त्रिपुंड करना = माथे पर तीन आड़ी या अर्धचंद्राकार रेखाएँ बनाना। जटाएँ = बालों का जुड़कर रस्सी के समान बन जाना। रमाने = लगाना। बम-भोला = शिव का ही एक नाम। आइना = दर्पण। निहारना = देखना। पोथी = ग्रंथ, पुस्तक।

(पृष्ठ-3) विराजमान = उपस्थित। शिथिल = ढीला, सुस्त। पछाड़ना = हराना। उतान पड़ना = पीठ के बल लेटना। नोचना = जोर से खींचना। चौका = भोजन बनाने का स्थान । गोरस = दूध । भात = चावल । सानकर = मिलाकर। फूल का कटोरा = काँच का कटोरा। अफरना = भरपेट से अधिक खा लेना। कौर = रोटी का टुकड़ा। ठौर = स्थानं । मरदए = मर्द, पुरुष । महतारी = माता।

(पृष्ठ-4) काठ = लकड़ी। कड़वा तेल = सरसों का तेल। बिगड़ना = क्रोध में आना, गुस्सा करना। बोथना = लगाना। नाभी = पेट का मध्य भाग। बाट जोहना = प्रतीक्षा करना। हमजोली = साथी। रंगमंच = नाटक खेलने का स्थान। तमाशे करना = खेल खेलना। सरकंडा = एक प्रकार का नुकीला पौधा। चँदोआ = छोटा शामियाना। खोंचा = ढाँचा। बताशे = चीनी की मिठाई। ठीकरा = मिट्टी का टुकड़ा। घरौंदा = घर, रहने का स्थान। आचमनी = पानी पीने के काम आने वाला बर्तन। कलछी = दाल या भात डालने वाला बर्तन। पिसान = पिसी हुई वस्तु। बालू = रेत। ज्योनार = दावत, भोजन। पाँत = पंक्ति। जीमना = भोजन खाना। लोट-पोट हो जाना = खूब ज़ोर से हँसना।

(पृष्ठ-5) कनस्तर = टिन का खाली पीपा। तंबूरा = एक प्रकार का बर्तन। कलसा = कलश। खटोली = छोटी-सी चारपाई। ओहार = परदे के लिए डाला हुआ कपड़ा। कुल्हिए = मिट्टी का बर्तन। गराड़ी = गरारी। कसोरा = मिट्टी का बना बर्तन। जुआठा = बैल को हल में जोतना। ओसाना = अनाज को भूसे से अलग करना। पटाना = सींचना । बटोही = राही, पथिक। ठिठककर = चौंककर।

(पृष्ठ-6) रहरी = अरहर। खसूट-खब्बीस = लूटने वाला पापी व्यक्ति। जमाई = दामाद। घोड़ मुँहा = घोड़े के मुख जैसा। पट पड़ना = औंधे पड़ना। मेघ = बादल। कौंधना = चमकना। छितराई = फैली हुई। बिलाई = धुल गई। अँठई = कुत्ते या शेर के शरीर में चिपके रहने वाले छोटे कीड़े। चोखा = भरथा। सुर = स्वर। बेतहाशा = बहुत ज़ोर-शोर से, आवेग के साथ। आँधी होना = तेज़ भागना। नौ-दो ग्यारह होना = गायब होना। खबर लेना = कठोरता से व्यवहार करना। चिरौरी = दीनतापूर्वक की गई प्रार्थना।

(पृष्ठ-7-8) हाथ न आना = पकड़ में न आना। चिरई = चिड़िया। पराई पीर = दूसरों का दुःख। उलीचना = हाथों से पानी डालना। अंटाचिट = पूरी तरह से चित करना। छलनी होना = बिंध जाना। ओसारा = बरामदा। अमनिया = साफ। कुहराम मचाना = शोर मचाना। रोंगटे खड़े होना = हैरान होना।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

HBSE 10th Class Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers

Class 10 Kshitij Chapter 12 Question Answer HBSE प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर-
लेखक ने जब रेल के डिब्बे में प्रवेश किया तो उन्होंने देखा कि वहाँ पहले से एक सज्जन विराजमान हैं। वे सीट पर पालथी मारे बैठे हुए थे। उनके सामने एक तौलिए पर खीरे रखे हुए थे। उन्होंने लेखक की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। उसको देखते ही उनके चेहरे पर ऐसे भाव व्यक्त हुए कि जैसे लेखक का वहाँ आना उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे लेखक ने वहाँ आकर उनके चिंतन में बाधा डाल दी हो। वे कुछ परेशान-से दिखाई दिए। अपनी इसी दशा में वे कभी खिड़की के बाहर देखते तो कभी सामने रखे खीरों की ओर। उनकी असुविधा और असंतोष वाली स्थिति से ही लेखक ने अनुभव कर लिया था, कि वे उससे बातचीत करने को उत्सुक नहीं थे।

पाठ 12 लखनवी अंदाज के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, ‘नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर-
नवाबों की दूसरों पर अपना प्रभाव डालने की प्रवृत्ति होती है। उसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े, वे करते हैं। इसलिए वे सामान्य समाज के तौर-तरीकों को नकारते हैं तथा नए-नए तरीके ढूँढते हैं जिनसे अपनी अमीरी को दर्शाया जा सके। नवाब साहब अकेले में बैठकर खीरे जैसी साधारण वस्तु को खाने की तैयारी में थे। किंतु उसी वक्त लेखक वहाँ आ टपका। उसे देखकर उनके मन में नवाबी स्वभाव उभर आया और उन्हें अपनी नवाबगिरी दिखाने का अवसर मिल गया। उन्होंने दुनिया के तौर-तरीकों से हटकर खीरे काटे, नमक-मिर्च लगाया, उन्हें सूंघा और खिड़की में से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा केवल सामने वाले पर अपने नवाबी स्वभाव का रौब जमाने के लिए किया।

Kshitij Class 10 Chapter 12 Question Answer HBSE प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर-
यशपाल का यह विचार अपने-आप में अधूरा-सा प्रतीत होता है। इसलिए हम इससे पूर्णतः सहमत नहीं हैं कि बिना विचारों, घटनाओं या पात्रों के कहानी लिखना संभव है। कहानी में कोई-न-कोई विचार, घटना अथवा पात्र अवश्य ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में विद्यमान रहता है। उदाहरणार्थ पठित कहानी ‘लखनवी अंदाज़’ को लिया जा सकता है। इस कहानी के लिखने के पीछे लेखक का प्रमुख उद्देश्य लखनऊ के पतनशील नवाबी वर्ग पर करारा व्यंग्य करना है। इसी विचार पर कहानी का पूरा ताना-बाना बुना गया है। इस कहानी में घटनाओं की अपेक्षा विचारों की प्रधानता है। घटना के रूप में रेलयात्रा, यात्री के रूप लखनवी नवाबों जैसा दिखने वाला सज्जन और उनके पतन को दिखाना है। अतः यह कहना उचित नहीं कि बिना विचार, घटना व पात्रों के कहानी बन सकती है।

Class 10 Ch 12 Hindi Shitish Question Answer HBSE प्रश्न 4.
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में आदि से अंत तक नवाब की अकड़ या नवाब होने के अहंकार का ही उल्लेख किया गया है। वह अपने सामने की सीट पर बैठे हुए सहयात्री से बोलना भी पसंद नहीं करता। उसके सामने खीरा खाना अपनी तौहीन समझता है। वह खीरे खाने की अपेक्षा उन्हें सूंघकर चलती हुई गाड़ी की खिड़की से बाहर फेंक देता है। वह खीरों की सुगंध से ही स्वयं के संतुष्ट होने का नाटक करता है, क्योंकि खाने की वस्तु को खाकर ही संतुष्टि प्राप्त हो सकती है, सूंघकर नहीं। अतः इस पाठ का शीर्षक ‘नवाबी तहज़ीब’ हो सकता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

रचना और अभिव्यक्ति-

लखनवी अंदाज पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
नवाब साहब ने अचानक घूमकर लेखक को आदाब-अर्ज़ किया। फिर उन्होंने तौलिए पर रखे दो ताज़े खीरे उठाए। उनको धोया, पोंछा। फिर उन्होंने लेखक से कहा, क्या आप खीरा खाना पसंद करेंगे। लेखक के मना करने पर वे खीरे को छीलकर और काटकर तौलिए पर रखने लगे। बड़े इत्मीनान से खीरे को काट चुकने के बाद उन्होंने उन कटे हुए खीरों पर नमक और मिर्च का पाउडर छिड़का। फिर बड़े इत्मीनान से एक-फाँक को उठाकर सूंघा एवं उसके स्वाद के आनंद को अनुभव किया। फिर एक-एक फाँक को वे सूंघते जाते और उसे खिड़की से बाहर फेंकते जाते।
(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं? उत्तर-यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

Lakhnavi Andaaz Question Answer HBSE 10th Class प्रश्न 6.
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

Lakhnavi Andaaz Summary HBSE 10th Class प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
निश्चित रूप से सनक का सकारात्मक रूप हो सकता है। जितने भी बड़े-बड़े कार्य या अनुसंधान हुए हैं, वे सनकी व्यक्तियों द्वारा ही किए गए हैं। हम कुछ वैज्ञानिकों के उदाहरण ले सकते हैं। वे सनक के कारण ही रात-दिन अपने कार्य में इतने डूबे रहते हैं कि उन्हें अपने आस-पास की गतिविधियों का भी बोध नहीं रहता है। ऐसे लोग बड़े-से-बड़े जोखिम को उठाने से भी नहीं डरते। विश्व में जितनी भी बड़ी-बड़ी खोजें हुई हैं, वे सनकी वैज्ञानिकों की देन हैं। अतः स्पष्ट है कि सनक का सकारात्मक रूप भी होता है।

भाषा-अध्ययन-

लखनवी अंदाज प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए-
(क) एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर-
(क) बैठे थे – अकर्मक।
(ख) दिखाया – सकर्मक।
(ग) बैठे- अकर्मक।
कल्पना करना – अकर्मक।
है – अकर्मक।
(घ) काटना – सकर्मक।
खरीदे होंगे – सकर्मक।
(ङ) काटा – सकर्मक।
गोदकर – सकर्मक।
निकाला – सकर्मक।
(च) देखा – अकर्मक (प्रयोग)।
(छ) लेट गए – अकर्मक।
थककर – अकर्मक।
(ज) निकाला – सकर्मक।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

पाठेतर सक्रियता

‘किबला शौक फरमाएँ,’ ‘आदाब-अर्ज…शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

‘खीरा… मेदे पर बोझ डाल देता है। क्या वास्तव में खीरा अपच करता है? किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी’ ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढकर पढ़िए और संभव हो तो फिल्म भी देखिए।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

HBSE 10th Class Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

Lakhnavi Andaaz Class 10 Solutions HBSE प्रश्न 1.
नवाब साहब ने लेखक के गाड़ी में चढ़ने पर कोई उत्साह क्यों नहीं दिखाया?
उत्तर-
नवाब साहब पर अभी तक सामंती प्रभाव था। वे अपने आपको विशिष्ट व्यक्ति समझते थे। यदि वे लेखक के गाड़ी में चढ़ने पर उत्साह दिखाते तो उनका सम्मान कम हो जाता, उनकी शान-ए-शौकत में बट्टा लग सकता था। उनको यह सहन नहीं था कि शहर का कोई सफेदपोश उनको मँझले दर्जे में सफर करते देखे।

प्रश्न 2.
लेखक को नवाब साहब का अचानक भाव परिवर्तन कैसा लगा?
उत्तर-
लेखक को नवाब साहब का अचानक भाव परिवर्तन अच्छा नहीं लगा। वह शराफत का भ्रम बनाए रखने के लिए ही लेखक को खीरा खाने के लिए कह रहे थे। उनके इस व्यवहार में दिखावा ही झलक रहा था।

प्रश्न 3.
लेखक और नवाब दोनों ने सेकंड क्लास में यात्रा क्यों की? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पाठ में इस विषय में स्पष्ट रूप में कुछ नहीं कहा गया कि नवाब ने ऐसा क्यों किया। अनुमान लगाया जा सकता है कि नवाबों की आर्थिक दशा अच्छी नहीं रह गई थी। अब नवाब कहने मात्र के रह गए थे। इसलिए पैसे बचाने के लिए उसने सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा की होगी।
लेखक ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने नई कहानी के संबंध में कुछ चिंतन-मनन करने या सोचने के लिए तथा खिड़की में से कुछ प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए सेकंड क्लास की यात्रा थी। दोनों का विश्वास था कि डिब्बा खाली होगा।

प्रश्न 4.
नवाब ने अपनी नवाबी का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर-
नवाब ने खीरों को पहले पानी से धोया फिर उन्हें तौलिए से पोंछा फिर जेब से चाकू निकालकर उनके सिरे काटे और छीलकर उनकी फाँकें काट-काटकर तौलिए पर रखीं और उन पर नमक-मिर्च का मिश्रण छिड़का। फिर लेखक को भी खीरे खाने का निमंत्रण दिया। अन्त में एक-एक फाँक को खाने की अपेक्षा सूंघ-सूंघ कर खिड़की से बाहर फेंकने लगा। उसने ऐसा दिखावा किया कि उसे सुगंध से ही बहुत तृप्ति मिली थी।

प्रश्न 5.
लेखक को नवाब साहब का न बोलना और बोलना दोनों ही बुरे लगे, क्यों?
उत्तर-
लेखक ने जब रेल के डिब्बे में प्रवेश किया तो नवाब अपनी सीट पर बैठा रहा। उसने लेखक की ओर देखना भी गवारा न किया। लेखक को नवाब साहब की यह अकड़ बुरी लगी। इसी प्रकार नवाब ने जब लेखक को खीरे खाने का निमंत्रण दिया तो लेखक को बुरा लगा क्योंकि उसे ऐसा अनुभव हुआ कि वह ऐसा करके अपना प्रभाव उस पर जमा रहा है। वह नहीं चाहता कि नवाब उस पर अपनी झूठी शान-ए-शौकत का प्रभाव छोड़े। लेखक को ऐसा नवाबों के प्रति अपनी पूर्व-धारणा के कारण भी लगा होगा।

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विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यह पाठ एक महत्त्वपूर्ण संदेश की अभिव्यक्ति करता है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने बताया है कि हर रचना के पीछे कोई-न-कोई विचार या चिंतन अवश्य रहता है। उस विचार या चिंतन को रचना में प्रस्तुत करने के लिए लेखक को एक निश्चित प्रक्रिया में से गुज़रना पड़ता है। इस रचना का प्रमुख संदेश दिखावा पसंद लोगों की जीवन शैली को दिखाना है। लेखक को रेल के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। वह खीरे खाने की तैयारी में था, किंतु डिब्बे में लेखक के आ जाने से लेखक के सामने खीरे खाने में उसे संकोच होता है। इसलिए वह खीरे खाने की तैयारी विशेष ढंग से करता है किंतु उन्हें खाने की अपेक्षा सँघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है तथा तृप्ति अनुभव करने का दिखावा करता है। अतः नवाब के इस व्यवहार से पता चलता है कि जो लोग जिस कार्य को एकांत में छुपकर करते हैं, उसे दूसरों के सामने करने में अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। यहाँ उनके चोरी आहार की तुष्टि होती है। इसमें वास्तविकता कुछ भी नहीं है, मात्र दिखावा है।

प्रश्न 7.
लेखक ने नवाब की असुविधा व संकोच को कैसे अनुभव किया?
उत्तर-
लेखक रेल के जिस डिब्बे में चढ़ा, वहाँ पहले से ही एक सज्जन पालथी मारे बैठा था। उनके डिब्बे में प्रवेश करने पर पहले से ही उपस्थित व्यक्ति ने लेखक को दुआ-सलाम कुछ भी नहीं कहा, अपितु वह उससे नज़रें बचाने का प्रयास करता रहा। लेखक ने उसकी इसी असुविधा और संकोच से अनुमान लगाया कि वह नहीं चाहता था कि कोई उसे वहाँ बैठे हुए देखे कि नवाब होते हुए सेकंड क्लास में यात्रा कर रहा है। उसके सामने रखे हुए खीरों से तो उनका संकोच और भी बढ़ गया था जिसे सही देखा जा सकता था। उन खीरों को लेखक के सामने खाने में भी उसे संकोच हो रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करना और खीरे खाना उसकी असुविधा और संकोच का कारण बन रहे थे जिसे लेखक ने सहज ही अनुभव कर लिया था।

प्रश्न 8.
‘लखनवी अंदाज’ पाठ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लखनवी अंदाज’ पाठ में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो जीवन की शान-बान का दिखावा करते हैं। वे जीवन की सहजता व स्वाभाविकता को स्वीकार करने से इन्कार करते हैं। लेखक ने दिखाया है कि खीरा एक साधारण वस्तु है तथा आम लोग उसका सेवन करते हैं किन्तु वह लखनवी नवाब उसे खाने में अपनी तौहीन समझता है। उसे सूंघकर चलती गाड़ी से नीचे फैंक देता है। वे इसी में अपनी महानता समझते हैं। ऐसे लोग सेकंड क्लास में यात्रा करना भी अपना बड़प्पन समझते हैं। इस प्रकार लेखक ने तथाकथित नवाबों के दिखावटी जीवन पर करारा व्यंग्य किया है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर-
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ के लेखक का नाम यशपाल है।

प्रश्न 2.
‘नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश पालथी मारे बैठे थे’-‘सफेदपोश’ का अर्थ क्या है?
उत्तर-
“सफेदपोश’ का अर्थ भद्रपुरुष है।

प्रश्न 3.
लेखक ने खीरा खाने से क्यों इंकार कर दिया था?
उत्तर-
आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया था।

प्रश्न 4.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर क्यों फेंक दिया था?
उत्तर-
खानदानी रईसों का अंदाज दिखाने के लिए नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया था।

प्रश्न 5.
लेखक की पुरानी आदत क्या थी?
उत्तर-
अकेले में तरह-तरह की कल्पनाएँ करना लेखक की पुरानी आदत थी।

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प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार नवाबों की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर-
लेखक के अनुसार अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझना नवाबों की प्रमुख विशेषता है।

प्रश्न 7.
‘खीरे की पनियाती फाँके देखकर पानी मुँह में जरूर आ रहा था’ यहाँ ‘पनियाती’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘पनियाती’ शब्द का अर्थ है रसीली।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक ने ‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ में किस पर कटाक्ष/व्यंग्य किया है?
(A) कृषक वर्ग पर
(B) पतनशील सामंती वर्ग पर
(C) मध्य वर्ग पर
(D) निम्न मध्य वर्ग पर
उत्तर-
(B) पतनशील सामंती वर्ग पर

प्रश्न 2.
ट्रेन के सेकंड क्लास डिब्बे में एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के कैसे सज्जन पालथी मारे बैठे थे?
(A) सफेदपोश
(B) नवाब
(C) लम्बी दाड़ी वाले
(D) पठानी पोशाक वाले
उत्तर-
(A) सफेदपोश

प्रश्न 3.
‘नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश पालथी मारे बैठे थे’-‘सफेदपोश’ का अर्थ है-
(A) सफेद कपड़े पहने व्यक्ति
(B) सफेद दाढ़ी वाला व्यक्ति
(C) नवाब
(D) भद्रपुरुष
उत्तर-
(D) भद्रपुरुष

प्रश्न 4.
सफेदपोश सज्जन ने तौलिए पर कौन-सी वस्तु रखी हुई थी?
(A) आम
(B) तरबूज
(C) खीरे
(D) नींबू
उत्तर-
(C) खीरे

प्रश्न 5.
‘आँखें चुराना’ मुहावरे का अर्थ है-
(A) आँखों की चोरी करना
(B) आँखें न रहना
(C) नज़रें बचाना
(D) आँखों को छुपा देना
उत्तर-
(C) नज़रें बचाना

प्रश्न 6.
लेखक की दृष्टि में ‘खीरा’ किस वर्ग का प्रतीक है?
(A) मामूली लोगों के वर्ग का
(B) उच्च वर्ग का
(C) सामंती वर्ग का
(D) मध्यवर्ग का
उत्तर-
(A) मामूली लोगों के वर्ग का

प्रश्न 7.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को किस प्रकार देखा था?
(A) नवाबी
(B) खोई-खोई
(C) लालची
(D) सतृष्ण
उत्तर-
(D) सतृष्ण

प्रश्न 8.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर क्यों फेंक दिया था?
(A) कड़वी होने के कारण
(B) खराब होने के कारण
(C) खानदानी रईसों का अंदाज दिखाने के लिए
(D) मूर्खता के कारण
उत्तर-
(C) खानदानी रईसों का अंदाज दिखाने के लिए

प्रश्न 9.
“खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।” ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) डॉक्टर ने
(B) कथानायक ने
(C) तीसरे मुसाफिर ने
(D) नवाब साहब ने
उत्तर-
(D) नवाब साहब ने

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प्रश्न 10.
‘ज्ञान-चक्षु खुलना’ का अर्थ है-
(A) आँखें खुलना
(B) ज्ञान के द्वार खुलना
(C) ज्ञान होना
(D) ज्ञान की नदी बहना
उत्तर-
(C) ज्ञान होना

प्रश्न 11.
गाड़ी के डिब्बे में कौन बैठा था?
(A) टिकट निरीक्षक
(B) जेबकतरा
(C) नवाबी नस्ल का व्यक्ति
(D) स्वयं लेखक
उत्तर-
(C) नवाबी नस्ल का व्यक्ति

प्रश्न 12.
लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या था?
(A) डिब्बा खाली नहीं था
(B) डिब्बा भरा हुआ था
(C) डिब्बा साफ नहीं था
(D) डिब्बा छोटा था
उत्तर-
(A) डिब्बा खाली नहीं था

प्रश्न 13.
नवाब साहब ने पलकें क्यों मूंद ली थीं?
(A) आनंदित होने के दिखावे के कारण
(B) अपने-आपको श्रेष्ठ दिखाने के लिए
(C) लेखक को हीन समझने के कारण
(D) अपनी संतुष्टि प्रकट करने के कारण
उत्तर-
(A) आनंदित होने के दिखावे के कारण।

प्रश्न 14.
नवाब साहब ने खीरे का स्वाद कैसे प्राप्त किया?
(A) खाकर
(B) सूंघकर
(C) देखकर
(D) दूसरों से सुनकर
उत्तर-
(B) सूंघकर

प्रश्न 15.
‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील’ यहाँ ‘सकील’ शब्द का अर्थ है-
(A) आसानी से न पचने वाला
(B) सुपाच्य
(C) रसीला
(D) कोमल
उत्तर-
(A) आसानी से न पचने वाला

प्रश्न 16.
‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली से फूंकार रही थी’-यहाँ ‘मुफस्सिल’ का अर्थ है-
(A) यात्रियों
(B) केन्द्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान
(C) वातानुकूलित
(D) लम्बी दूरी
उत्तर-
(B) केन्द्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान

प्रश्न 17.
यशपाल ने खीरे को क्या माना है?
(A) अपदार्थ वस्तु
(B) बहुमूल्य फल
(C) दुर्लभ फल
(D) अमर फल
उत्तर-
(A) अपदार्थ वस्तु

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प्रश्न 18.
लखनऊ के खीरे की विशेषता थी
(A) आलम
(B) लज़ीज़
(C) बालम
(D) देसी
उत्तर-
(B) लज़ीज़

प्रश्न 19.
नवाब साहब रेलगाड़ी में किस श्रेणी में सफर कर रहे थे?
(A) प्रथम श्रेणी
(B) वातानुकूलित
(C) तृतीय श्रेणी
(D) द्वितीय श्रेणी
उत्तर-
(D) द्वितीय श्रेणी

लखनवी अंदाज़ गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।
नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। हमने भी उनके सामने की बर्थ पर बैठकर आत्मसम्मान में आँखें चुरा ली।
[पृष्ठ 78]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक क्या सोचकर सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा था?
(ग) लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या था?
(घ) गाड़ी के डिब्बे में कौन और कैसे बैठा था?
(ङ) लेखक ने पहले से बैठे सज्जन के विषय में क्या कल्पना की?
(च) लेखक और पहले से बैठे सज्जन ने एक-दूसरे से कैसा व्यवहार किया?
(छ) ‘लखनऊ की नवाबी नस्ल के सफेदपोश सज्जन’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
(ज) पहले बैठे सज्जन के सामने क्या रखा हुआ था?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़। लेखक का नाम यशपाल।

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(ख) लेखक यह सोचकर सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा था कि यह डिब्बा बिल्कुल खाली होगा। उसमें कोई यात्री नहीं होगा। वह वहाँ बैठकर अपनी इच्छानुसार बाहर के दृश्य देख सकेगा और चिंतन-मनन कर सकेगा।

(ग) लेखक के अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा बिल्कुल खाली नहीं था. अथवा डिब्बे का वातावरण बिल्कुल निर्जन नहीं था क्योंकि उसमें पहले से ही एक नवाबी स्वभाव वाला व्यक्ति बैठा हुआ था। इसलिए लेखक के लिए वहाँ बैठकर नई कहानी के विषय में सोचना संभव न हो सका।

(घ) गाड़ी के डिब्बे की बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल का एक सफेदपोश सज्ज़न बड़ी सुविधा से पालथी मारकर बैठा हुआ था।

(ङ) लेखक जब गाड़ी में आया तो उसने वहाँ एक लखनवी नवाबी किस्म के व्यक्ति को अकेले बैठे देखा। उसे देखकर लेखक ने कल्पना की कि हो सकता है कि यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हो या फिर खीरे जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हो।

(च) लेखक और पहले से बैठे व्यक्ति ने एक-दूसरे के प्रति अनजान, बेगानेपन और अवांछितों जैसा व्यवहार किया। मानो दोनों एक-दूसरे को अपने रास्ते में बाधा समझ रहे हों। पहले नवाबी स्वभाव वाले व्यक्ति ने लेखक की ओर से मुँह फेरा तो फिर उसने भी आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु उसकी ओर से ध्यान हटा लिया। इस प्रकार दोनों का एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार नहीं रहा।

(छ) प्रस्तुत वाक्य के माध्यम को लेखक ने नवाबी स्वभाव वाले की विचित्रता को अभिव्यक्त किया है। वे स्वयं को बहुत ही नाजुक-मिज़ाज एवं सलीकेदार मनुष्य समझते हैं और दूसरों को हीन भाव से देखते हैं। उनकी ये विशेषताएँ कुछ अधिक बढ़ी-चढ़ी हुई होती हैं। वे अपने-आपको वास्तविकता से अधिक दिखाने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों की इस विचित्रता को दिखाने के लिए ‘नस्ल’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। मानो ये इंसान की नस्ल के न होकर अन्य किसी प्रजाति के लोग हों।

(ज) पहले बैठे हुए सज्जन के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे हुए थे।

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित पाठ ‘लखनवी अंदाज’ में से लिया गया है। इसके रचयिता श्री यशपाल हैं। इस पाठ में लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग के दिखावे की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। यह वर्ग दिखावटी शैली का आदी है तथा वास्तविकता से बेखबर रहता है।

आशय/व्याख्या-लेखक को पास के स्टेशन तक की यात्रा करनी थी। इसलिए वह टिकट खरीदकर सेंकड क्लास के एक छोटे से डिब्बे में दौड़कर चढ़ गया। लेखक का अनुमान था कि डिब्बा खाली होगा, किंतु ऐसा नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल का व्यक्ति बड़े आराम से बैठा हुआ था। उसने अपने सामने दो कच्चे खीरे तौलिए पर रखे हुए थे। लेखक के एकाएक डिब्बे में आ जाने से उस भद्रपुरुष की आँखों में एकांत चिंतन में बाधा का असंतोष स्पष्ट देखा जा सकता था। लेखक का अनुमान था कि शायद यह व्यक्ति भी कहानी लिखने की सूझ की चिंता में हो अथवा खीरे जैसी सस्ती वस्तु का शौक करते हुए देखे जाने के संकोच में हो। नवाब साहब ने लेखक की संगति करने की इच्छा व्यक्त नहीं की। लेखक ने भी आत्मसम्मान की रक्षा हेतु उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। कहने का भाव है कि दोनों ने एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया।

(2) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे।… अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ? । – [पृष्ठ 78]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक की पुरानी आदत क्या और क्यों है?
(ग) लेखक ने नवाब के बारे में क्या सोचा?
(घ) लेखक नवाबों के विषय में किस धारणा से ग्रस्त है?
(ङ) यद्यपि लेखक ने भी सेकंड क्लास में यात्रा की फिर भी उसने नवाबों के चरित्र में कमियाँ निकाली, ऐसा क्यों?
(च) नवाब साहब खीरे क्यों नहीं खा रहे थे?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़। लेखक का नाम यशपाल।

(ख) लेखक की पुरानी आदत थी कि जब वह अकेला होता तो तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगता था। लेखक होने के कारण वह कल्पना के आधार पर अपनी रचनाओं का निर्माण करता था। खाली समय में वह यही सोचता रहता था कि कौन-सी रचना लिखी जाए और उसका रूप-आकार कैसा होगा।

(ग) लेखक ने जब गाड़ी के डिब्बे में प्रवेश किया तो वहाँ नवाब साहब को देखकर सोचा होगा कि शायद ये इस डिब्बे में अकेले यात्रा करना चाहते होंगे। उन्होंने अंदाज़ा लगाया होगा कि सेकंड क्लास का डिब्बा खाली होगा। इसलिए उन्होंने किराया बचाने के लिए भी सेकंड क्लास का टिकट खरीदा होगा। किंतु अब वे नहीं चाहते कि कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में यात्रा करते हुए देखे। वे इसे अपनी तौहीन समझते होंगे।

(घ) लेखक के मन में नवाबों के विषय में धारणा बन चुकी थीं कि ये नवाब अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं और सदा अपनी आन-शान के विषय में बढ़ा-चढ़ाकर बातें करने में लगे रहते हैं। वे स्वयं को ऊँचे दर्जे के प्राणी मानते हैं और ऊँचे दर्जे में यात्रा करके अपने आप को ऊँचे सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं। यदि कभी सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करते देख लिए जाएँ तो अपनी तौहीन समझने लगते हैं। इसलिए ऐसे अवसर पर वे नज़रें चुराते फिरते हैं।

(ङ) निश्चय ही लेखक स्वयं सेकंड क्लास के दर्जे में यात्रा करता है और इसी दर्जे में नवाब को बैठे देखकर उसमें कमियाँ निकालता है। वह अपने विषय में कहता है कि उसने एकांत में बैठकर नई कहानी के विषय में चिंतन करने हेतु ही ऐसा किया। यद्यपि नवाब ने भी किसी ऐसे ही कारण से मँझोले दर्जे में यात्रा करने का निश्चय किया होगा। किंतु लेखक की धारणा बन चुकी है कि नवाब हमेशा ही अपनी शान बघारते रहते हैं। अतः लेखक पूर्व धारणा से ग्रस्त होने के कारण ऐसा कहता है।

(च) लेखक के अनुसार नवाब साहब ने अकेले में सफर करने के लिए, खीरे खाने के लिए खरीदे होंगे। किंतु अब खीरे इसलिए नहीं खा रहे होंगे कि कोई सफेदपोश व्यक्ति उन्हें खीरे जैसी सामान्य वस्तु खाते देख रहा है। इससे उनकी तौहीन होगी।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘लखनवी अंदाज़’ नामक पाठ से अवतरित है। इस पाठ के रचयिता श्री यशपाल हैं। इस पाठ में उन्होंने जहाँ एक ओर सामंती वर्ग के दिखावे की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है वहीं दूसरी ओर लेखकों की कल्पनाशीलता को भी उजागर किया है।

आशय/व्याख्या इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि लेखक कल्पनाशील एवं एकांतप्रिय होते हैं। वे आसपास के जीवन को गहराई से देखते हैं तथा मानव-मनोविज्ञान में भी रुचि रखते हैं। लेखक सामने बैठे नवाब साहब की असुविधा एवं संकोच के कारण का अनुमान लगाने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले में यात्रा करने के विचार से ही सेकंड क्लास की टिकट खरीदी हो क्योंकि आम लोग सेकंड क्लास में सफर नहीं करते। अब उन्हें यह बात भी अच्छी नहीं लगी होगी कि नगर का शिक्षित व्यक्ति उन्हें मध्य श्रेणी के दर्जे में सफर करते देखे। लेखक का अनुमान है कि उसने समय काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे, किंतु अब उन्हें किसी शिक्षित व्यक्ति के सामने खीरे खाने में संकोच हो रहा हो। कहने का भाव है कि नवाब साहब अपने-आपको अमीर व्यक्ति दिखाने का प्रयास कर रहे थे, जबकि वास्तव में वे थे नहीं। खीरा एक अति साधारण फल है। लेखक के सामने खीरा खाने से नवाब साहब की हेठी होती थी। इसलिए वह खीरे को कैसे खा सकता था।

(3) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सँघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का बूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए। [पृष्ठ 79-80]

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प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों की ओर किस प्रकार देखा?
(ग) नवाब साहब ने खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ साँस क्यों लिया?
(घ) नवाब साहब ने अपनी पलकें क्यों मूंद लीं?
(ङ) नवाब साहब खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर क्यों फेंकने लगे?
(च) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों का स्वाद कैसे प्राप्त किया?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़। लेखक का नाम यशपाल।

(ख) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों की ओर सतृष्ण नज़रों से देखा मानो वह खीरा खाने के लिए बहुत ही उतावले हों।

(ग) नवाब साहब ने खिड़की से बाहर देखकर दीर्घ साँस इसलिए भरी थी क्योंकि वे चाहकर भी खीरा नहीं खा पा रहे थे। यही कारण था कि उन्हें खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकना पड़ा था। उनकी लंबी साँस ही उनकी खीरे को खाने की चाह को भी व्यक्त कर रही थी।

(घ) नवाब साहब खीरे के स्वाद के आनंद में डूबे हुए थे, उनकी खुशबू से आनंदित होकर उन्होंने अपनी आँखें मूंद ली थीं।

(ङ) नवाब साहब खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर यह दर्शाना चाहते थे कि वे अब भी वही पुराने नवाब हैं। उनके शौक शाही हैं। उनमें किसी प्रकार का अंतर नहीं आया है।

(च) नवाब साहब ने खीरे की कटी हुई फाँक को उठाया, अपनी ललचाई हुई दृष्टि से उन्हें अपने होंठों तक ले आए। इसके बाद फाँक को भली-भाँति सूंघा। उन्हें ऐसा करने से बहुत आनंद प्राप्त हुआ। सूंघने के पश्चात् उन्हें खिड़की के बाहर फेंक दिया।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं श्री यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य पाठ ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इस पाठ में लेखक ने सामंती वर्ग की दिखावा करने की आदत का व्यंग्यपूर्ण उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि नवाब साहब किस प्रकार अपनी नवाबी शान, खानदानी तहज़ीब, लखनवी अंदाज और नज़ाकत प्रकट करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने आम व्यक्ति की तरह खीरा नहीं खाया, अपितु उसे सूंघ कर ही पेट भर लिया।

आशय/व्याख्या-लेखक कहता है कि नवाब साहब ने बहुत ललचाई हुई आँखों से नमक-मिर्च लगी हुई खीरे की चमकती हुई फाँकों को देखा। उन्होंने खिड़की की ओर देखकर एक लंबी साँस ली। इस प्रकार खीरे को देखकर लंबी साँस भरना नवाब साहब की विवशता को दर्शाता है। उन्होंने फाँक को हाथ में उठाया और सूंघा। स्वाद के आनंद का दिखावा करने के लिए पलकें बंद कर ली, किंतु मुँह में भर आए पानी का यूंट उनके गले से उतर गया। कहने का भाव है कि भले ही नवाब साहब खीरा न खाने का ढोंग कर रहे थे, किंतु वास्तविकता तो यह थी कि खीरे को देखकर उसे खाने के लिए उनका मन ललचा रहा था। तब नवाब साहब ने खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस प्रकार नवाब साहब ने सभी फाँकों को नाक के पास ले जाकर केवल सूंघकर उसका रसास्वादन करके उन्हें खिड़की से बाहर फेंक दिया। कहने का भाव है कि नवाब साहब को फाँकों को इसलिए फैंकना पड़ा था क्योंकि वे चाहकर भी दूसरे व्यक्ति के सामने खीरे जैसी साधारण वस्तु नहीं खाना चाहते थे। उनके द्वारा ली गई लंबी साँस ही उनकी खीरा खाने की चाह को व्यक्त कर रही थी।

(4) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफासत और नज़ाकत!
हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है?
नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’ । [पृष्ठ 80]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) नवाब साहब क्यों थककर लेट गए थे?
(ग) नवाब साहब ने खीरा खाने की तैयारी कैसे की?
(घ) नवाब साहब की जीवन शैली देखकर लेखक ने क्या सोचा?
(ङ) लेखक को नवाब साहब की किस बात पर सिर खम करना पड़ा?
(च) नवाब साहब डकार लेकर क्या दिखाना चाहते थे?
(छ) नवाब साहब ने खीरा न खाने का क्या कारण बताया?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग बताकर उसके आशय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़।
लेखक का नाम-यशपाल।

(ख) नवाब साहब को खीरे खाने की तैयारी में खीरे को धोने, साफ करने, सिरे काटकर मलने, छीलने, फाँके काटने, नमकमिर्च छिड़कने आदि कार्य करने और चाहकर भी उन्हें खा नहीं पाने के कारण थक गए थे।

(ग) नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से पानी का लोटा निकालकर खीरों को खिड़की के बाहर धोया और तौलिए से साफ किया। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिरों को काटा
और उन्हें गोदकर झाग निकाला। खीरों को सावधानी से छीला और फिर उनकी एक-एक फाँक काटते गए और तौलिए पर सजाते गए। तत्पश्चात् उन पर नमक-मिर्च छिड़का। अब खीरे खाने हेतु तैयार थे।

(घ) नवाब साहब की जीवन-शैली देखकर लेखक ने मन-ही-मन सोचा कि केवल स्वाद और सुगंध की कल्पना से उनका पेट कैसे भरता होगा? जब खीरा सूंघकर फेंक दिया तो पेट की तीव्र भूख कैसे शांत होगी। ऐसा करने से भूख का शांत होना तो असंभव ही है।

(ङ) लेखक को नवाब साहब द्वारा खीरे के प्रयोग की विधि पर अपना सिर झुकाना पड़ा था। वे किस प्रकार अपनी खानदानी शिष्टता, स्वच्छता तथा कोमलता का दिखावा करते हुए खीरे का रसास्वादन मात्र सूंघकर करते हैं। केवल अपनी शान-बान बघारने के लिए वे ऐसा क्यों करते हैं? वे सहज जीवन में शर्म अनुभव क्यों करते हैं।

(च) नवाब साहब ने डकार लेकर यह बताना चाहा है कि उनका पेट सुगंध और कल्पना से ही भर गया है। साथ ही यह भी दिखाना चाहते हैं कि वे ऊँचे, श्रेष्ठ और सूक्ष्म स्वादप्रिय व्यक्ति हैं।

(छ) नवाब साहब ने खीरा न खाने का कारण बताते हुए कहा कि खीरा होता तो बहुत ही स्वादिष्ट है, किंतु वह आसानी से पचता नहीं। इससे मेदे पर बोझा पड़ता है। इसलिए वे खीरा नहीं खाते।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित पाठ ‘लखनवी अंदाज’ से उद्धृत है। इस पाठ के रचयिता श्री यशपाल हैं। इस गद्यांश में लेखक ने नवाबों के खीरा खाने की शैली अथवा केवल सूंघकर या कल्पना से पेट भरने के दिखावे पर कटाक्ष किया है। यहाँ लेखक ने नवाब द्वारा खीरा न खाने के बहाने को भी उजागर किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि नवाब साहब खीरे खाने की तैयारी और उसके प्रयोग से थककर लेट गए। लेखक को सम्मान में सिर झुकाना पड़ा कि यह है उनकी पारिवारिक शिष्टता, स्वच्छता और नाजुक मिज़ाजी अर्थात् कोमलता। कहने का भाव है कि नवाब साहब ने खीरा काटने व खाने में अपनी नवाबी शान-शौकतं को बड़ी सफाई से दिखाया। लेखक बताता है कि वह भली-भाँति देख रहा था कि खीरे को प्रयोग करने के इस ढंग को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, बढ़िया अथवा अमूर्त ढंग अवश्य कहा जा सकता है, किंतु क्या खीरा खाने के ऐसे ढंग से पेट की तृप्ति भी हो सकती है अर्थात् क्या खीरा सूंघने मात्र से पेट भर सकता है। लेखक को नवाब साहब द्वारा ली गई डकार का शब्द सुनाई दिया। इससे अनुमान लगाया जा सकता था कि वास्तव में ही नवाब साहब का पेट भर गया होगा। नवाब साहब ने डकार लेने के बाद लेखक की ओर देखकर कहा कि यह खीरा भी स्वादिष्ट होता है, किंतु होता बहुत भारी है। अभागा मेदे पर बोझ डाल देता है, अर्थात् जल्दी से हज़्म नहीं होता। कहने का भाव है कि नवाब साहब ने डकार मारने से यह सिद्ध करना चाहा है कि बड़े लोग साधारण तरीके से नहीं खाते। उनके अपने ही अंदाज होते हैं।

लखनवी अंदाज़ Summary in Hindi

लखनवी अंदाज़ लेखक-परिचय

प्रश्न-
यशपाल का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-यशपाल हिंदी के प्रमुख कहानीकारों में से एक हैं। इनका जन्म 3 दिसंबर, सन् 1903 को पंजाब के फीरोज़पुर छावनी में हुआ था। सन् 1921 में फीरोज़पुर जिले से मैट्रिक परीक्षा में प्रथम आकर उन्होंने अपनी कुशाग्र प्रतिभा का परिचय दिया। सन् 1921 में ही इन्होंने स्वदेशी आंदोलन में सहपाठी लाजपतराय के साथ जमकर भाग लिया। इन्हें सरकार की ओर से प्रथम आने पर छात्रवृत्ति भी मिली। परंतु न केवल इन्होंने उस छात्रवृत्ति को ठुकरा दिया, बल्कि सरकारी कॉलेज में नाम लिखवाना भी मंजूर नहीं किया। शीघ्र ही यशपाल काँग्रेस से उदासीन हो गए। इन्होंने पंजाब के राष्ट्रीय नेता लाला लाजपतराय द्वारा स्थापित लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला ले लिया। यहाँ से प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु के संपर्क में आए।

कॉलेज के विद्यार्थी जीवन में ही ये क्रांतिकारी बन गए। भगतसिंह द्वारा सार्जेंट सांडर्स को गोली मारना, दिल्ली असेम्बली पर बम फेंकना तथा लाहौर में बम फैक्टरी पकड़े जाना आदि इन सभी षड्यंत्रों में उनका भी हाथ था। बाद में समाजवादी प्रजातंत्र सेना के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद के इलाहाबाद में, अंग्रेजों की गोली का शिकार हो जाने पर ये इस सेना के कमांडर नियुक्त हुए। 23 फरवरी, 1932 को अंग्रेजों से लड़ते हुए ये गिरफ्तार हो गए। इन्हें चौदह वर्ष की सज़ा हो गई। जेल में ही इन्होंने विश्व की अनेक भाषाओं; जैसे फ्रेंच, इटालियन, बांग्ला आदि का अध्ययन किया। जेल में ही इन्होंने अपनी प्रारंभिक कहानियाँ लिखीं। सन 1936 में जेल में ही इनका विवाह प्रकाशवती कपूर से हुआ। इनकी तरह वे भी क्रांतिकारी दल की सदस्या थीं। उनका झुकाव मार्क्सवादी चिंतन की ओर अधिक हुआ। उनकी कहानी ‘मक्रील’ के द्वारा उन्हें बहुत यश मिला। उनकी यह कहानी ‘भ्रमर’ नामक पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी। उन्होंने हिंदी साहित्य की सेवा साहित्यकार और प्रकाशक दोनों रूपों में की। 26 दिसंबर, 1976 को उनकी मृत्यु हो गई।

2. प्रमुख रचनाएँ-यशपाल ने अनेक रचनाओं का निर्माण किया, उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं- ..

  • कहानी संग्रह-‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वो दुनिया’, ‘तर्क का तूफान’, ‘ज्ञानदान’, ‘अभिशप्त’, ‘फूलों का कुर्ता’, ‘धर्म-युद्ध’, ‘उत्तराधिकारी’, ‘चित्र का शीर्षक’, ‘तुमने क्यों कहा था कि मैं सुंदर हूँ’, ‘उत्तमी की माँ’, ‘ओ भैरवी’, ‘सच बोलने की भूल’, ‘खच्चर और आदमी’, ‘भूख के तीन दिन’, ‘लैंप शेड’ ।
  • उपन्यास ‘दादा कॉमरेड’, ‘देशद्रोही’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कॉमरेड’, ‘मनुष्य के रूप’, ‘अमिता’, ‘झूठा सच’, ‘बारह घंटे’, ‘अप्सरा का श्राप’, ‘क्यों फँसे’, ‘मेरी तेरी उसकी बात’।
  • व्यंग्य लेख-चक्कर क्लब’ ।
  • संस्मरण-‘सिंहावलोकन’।
  • विचारात्मक निबंध ‘मार्क्सवाद’, ‘न्याय का संघर्ष’, ‘गाँधीवाद की शव परीक्षा’, ‘बात-बात में बात’, ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी’, ‘रामराज्य की कथा’, ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’।

3. भाषा-शैली-भाषा के बारे में यशपाल जी का बड़ा ही उदार दृष्टिकोण रहा है। उन्होंने उर्दू, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों से कभी परहेज़ नहीं किया। ‘लखनवी अंदाज’ कहानी में जहाँ एक ओर संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है, वहाँ दूसरी ओर उर्दू एवं सामान्य बोलचाल के शब्दों का भी प्रयोग है। इस कहानी की भाषा स्थान, काल तथा चरित्र की प्रकृति के अनुसार गठित हुई है। इसका कारण यह है कि उन्हें न तो संस्कृत के शब्दों से अधिक प्रेम था और न ही अंग्रेज़ी, उर्दू शब्दों से परहेज़। वे भाषा को अभिव्यक्ति का साधन मानते थे। अतः उन्होंने इस कहानी में भाषा का सरल, सहज एवं स्वाभाविक रूप में प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ संवादात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया है।

कुल मिलाकर लेखक ने सीधी-सादी और सामान्य हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है। प्रस्तुत कहानी में उर्दू मिश्रित हिंदी का प्रयोग किया गया है।

लखनवी अंदाज़ कहानी का सार

प्रश्न-
लखनवी अंदाज़’ शीर्षक कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक कहानी एक व्यंग्य रचना है। इसमें लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग पर व्यंग्य किया है। जो. वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन-शैली का आदी है। आज के युग में भी समाज पर पलने वाली संस्कृति के लोगों को देखा जा सकता है। कहानी का सार इस प्रकार है-

लेखक को पास के स्टेशन तक ही यात्रा करनी थी। यद्यपि सेकंड क्लास में पैसे अधिक लगते थे। फिर भी सोचा कि नई कहानी के बारे में सोचने का और खिड़की से बाहर दृश्य देखने का अवसर भी मिल जाएगा। लेखक यही सोचकर सेकंड क्लास का टिकट लेकर रेल के डिब्बे में जा बैठा। वहाँ पहले से ही एक सज्जन बैठे थे। उनका पहनावा लखनवी नवाबों जैसा था। वे सीट पर पालथी मारकर बैठे हुए थे। उनके सामने तौलिए पर दो ताज़ा-चिकने खीरे रखे हुए थे। लेखक के आने से उन्हें कुछ विघ्न अनुभव हुआ, किंतु लेखक ने इसकी ओर विशेष ध्यान नहीं दिया।

लेखक नवाब के विषय में अनुमान लगाने लगा कि उसे लेखक का आना अच्छा क्यों नहीं लगा होगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे खाने के लिए पूछा। किंतु लेखक ने इंकार कर दिया। नवाब ने दो खीरों को धोया, तौलिए से साफ किया। खीरों को चाकू से सिरों से काटकर उनके झाग निकाले और बहुत सलीके के साथ छीलकर काटा और उन पर नमक-मिर्च छिड़का। नवाब साहब का मुख देखकर ऐसा लगता था कि खीरे की फाँकें देखकर उनके मुँह में पानी आ रहा है। खीरे की सजावट को देखकर लेखक की खीरे खाने की इच्छा हो रही थी, किंतु लेखक एक बार इंकार कर चुका था, इसलिए अब नवाब द्वारा पुनः पूछे जाने पर आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु इंकार करना पड़ा।

नवाब साहब भी खीरे की फाँकों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। उन्होंने खीरे की एक-एक फाँक उठाई, उन्हें सूंघा और खिड़की के बाहर फेंक दिया। बाद में नवाब ने लेखक की ओर देखा ऐसा लग रहा था जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का एक अनोखा ढंग है।

लेखक मन-ही-मन सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा? इतने में नवाब साहब जोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब बोले कि खीरा खाने में बहुत अच्छा लगता है, किंतु अपच होने के कारण मेदे पर भारी पड़ता है। लेखक ने सोचा कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है तो बिना घटना, पात्र और विचार के नई कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-78) मुफस्सिल = केंद्रीय स्थान। पैसेंजर ट्रेन = यात्री गाड़ी। उतावली = जल्दी में। फूंकार करना = तेज़ आवाज़ करना। दाम = कीमत। अनुमान = अंदाज़ा। प्रतिकूल = उल्टा। निर्जन = एकांत, खाली। बर्थ = रेल के डिब्बे में बैठने की सीट। सफेदपोश = भला व्यक्ति। नवाबी नस्ल = नवाबों के स्वभाव वाला। सुविधा = आराम। सहसा = अचानक। चिंतन = विचार करना। विघ्न = बाधा। असंतोष = संतोष न होना। अपदार्थ वस्तु = तुच्छ वस्तु। आँखें चुराना = नज़रें बचाना। असुविधा = जहाँ सुविधा न हो। किफायत = बचत। संगति = साथ। संकोच = शर्म। गवारा न होना = सहन न होना। वक्त काटना = समय व्यतीत करना। गौर करना = ध्यान देना। आदाब-अर्जु = स्वागत या अभिवादन की एक विधि। शौक फरमाना = आनंद लेना। भाँप लेना = जान लेना, समझ लेना। गुमान = भ्रम। हरकत = गति, कार्य। लथेड़ लेना = सम्मिलित करना। किबला = सम्मानपूर्ण संबोधन।

(पृष्ठ-79) गोदकर = चुभाकर। एहतियात = सावधानी। हाज़िर = उपस्थित। करीने से = अच्छे ढंग से। सुर्जी = लाली। बुरकना = छिड़कना। स्फुरण = हिलना। भाव-भंगिमा = चेहरे पर उभरे हुए भाव। रईस = अमीर। असलियत = वास्तविकता। प्लावित होना = भर आना। पनियाती = रस से युक्त। मुँह में पानी आना = ललचाना। महसूस होना = अनुभव होना। मेदा = पाचन शक्ति। सतृष्ण = प्यास। दीर्घ निश्वास = लंबी साँस । पलकें मूंदना = आँखें बंद करना।

(पृष्ठ-80) रसास्वादन = रस का स्वाद लेना। गर्व = अभिमान। गुलाबी आँखें = अभिमान से भरी नज़रें। तसलीम = सम्मान। सूक्ष्म = बारीक। नफीस = बढ़िया। एब्स्ट्रैक्ट = अमूर्त, जिसका स्थूल आकार न हो। नज़ाकत = कोमलता। उदर = पेट। नामुराद = अभागा। ज्ञान चक्षु = ज्ञान रूपी नेत्र। सकील = भारी।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

HBSE 10th Class Hindi संगतकार Textbook Questions and Answers

संगतकार कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है?
उत्तर-
संगतकार के माध्यम से कवि ऐसे लोगों की ओर संकेत करना चाह रहा है जिनका किसी कार्य के करने में योगदान तो पूरा रहता है किंतु उनका नाम कोई नहीं जानता। सारा श्रेय मुखिया को ही जाता है। कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि समाज में हर व्यक्ति का अपना-अपना महत्त्व है। जिस प्रकार कोई टीम केवल कैप्टन के प्रयास से नहीं जीतती, अपितु हर खिलाड़ी के प्रयास से जीतती है। अतः जीत का श्रेय हर खिलाड़ी को मिलना चाहिए।

संगतकार HBSE 10th Class प्रश्न 2.
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
उत्तर-
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा नाटक, फिल्म, विभिन्न खेलों की टीम, राजनीति आदि अनेक क्षेत्रों में दिखलाई पड़ते हैं। वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रमुख वैज्ञानिक के साथ अनेक दूसरे वैज्ञानिक भी काम करते हैं। किंतु किसी महत्त्वपूर्ण खोज का श्रेय मुख्य वैज्ञानिक को दिया जाता है। कहने का अभिप्राय है कि काम तो अनेक लोग करते हैं, किंतु सफलता का श्रेय मुख्य व्यक्ति को ही दिया जाता है।

Sangatkar Class 10 Vyakhya HBSE प्रश्न 3.
संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?
उत्तर-
संगतकार अनेक प्रकार से मुख्य गायक-गायिकाओं की सहायता करते हैं, जैसे वे अपनी आवाज़ और गूंज को मुख्य गायक की आवाज़ और गूंज से मिलाकर उसे बल प्रदान करते हैं। वे मुख्य गायक द्वारा कहीं गहरे में चले जाने पर या आवाज़ को लंबी खींचने पर उनकी स्थायी पंक्ति अर्थात् गीत की टेक को पकड़े रखते हैं और गीत को बेसुरा नहीं होने देते। वे मुख्य गायक को मूल स्वर पर लौटा लाने का काम भी करते हैं। जब मुख्य गायक की आवाज़ थककर बिखरने व टूटने लगती है तो उस समय भी संगतकार उसे शक्ति प्रदान करते हैं। उसे अकेला नहीं पड़ने देते।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

संगतकार कविता की व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर-
देखिए काव्यांश ‘3’ का अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न ‘ग’ भाग।

संगतकार प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 5.
किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
समाज में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाते हैं। हम किसी भी विद्यालय के प्रधानाध्यापक या मुख्याध्यापकों का उदाहरण ले सकते हैं। विद्यालय को विकास के पथ पर ले जाने की सफलता का श्रेय प्रधानाचार्य को मिलता है जबकि उसमें अध्यापकों एवं अन्य कर्मचारियों का सहयोग भी रहता है। अकेला प्रधानाचार्य कुछ नहीं कर सकता। इसी प्रकार संसार के बड़े-बड़े सफल लोगों के उदाहरण भी दिए जा सकते हैं, जैसे-बिल गेट्स, अंबानी, लक्ष्मी मित्तल को देख लीजिए। इसकी सफलता के पीछे मैनेजमैंट से जुड़े लोगों की पूरी टीम है। ये लोग दिन-रात परिश्रम करते हैं। अकेले व्यक्ति के प्रयास से इतनी सफलता नहीं मिलती। अतः स्पष्ट है कि किसी भी महान् व्यक्ति की सफलता में अनेक लोगों का योगदान रहता है। कहा भी गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

Sangatkar Vyakhya HBSE 10th Class प्रश्न 6.
कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
संगतकार की प्रमुख भूमिका यही है कि वह मुख्य गायक का पूरा सहयोग करता है। जब भी उसका स्वर टूटने लगता है तो संगतकार उनकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर उन्हें बल देता है, श्रोताओं को इसका पता ही नहीं चलता। यदि मुख्य गायक बिना संगतकार के गीत गा रहा है तो उसका स्वर बीच-बीच में बिखरता रहेगा। संगतकार ही उसके स्वर को बिखरने से बचाता है। यही संगतकार की विशिष्ट भूमिका है।

Sangatkar Prashn Uttar HBSE 10th Class प्रश्न 7.
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं? ‘
उत्तर-
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं, तब उसके सहयोगी उसे अपना पूर्ण योगदान या सहयोग देकर सँभालते हैं। उसे मानसिक तौर पर सहारा देने हेतु अपनी सहानुभूति भी देते हैं। उसके साथ रहते हुए बार-बार उसकी योग्यताओं का अहसास करवाते रहते हैं ताकि वह पहले से अधिक परिश्रम कर सके। . वे अपनी सारी शक्ति उसके लिए लगा देते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

संगतकार की व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुंच पाए
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
उत्तर-
(क) ऐसी स्थिति में आरंभ में तो थोड़ी चिंता होगी कि सहयोगी कलाकार के बिना काम करना कठिन होगा। किंतु समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना अति आवश्यक है तो मन में यह निश्चित करके अपना गीत व नृत्य अवश्य करूँगा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

(ख) ऐसी स्थिति को सँभालने के लिए सहयोगी कलाकारों से संपर्क करके उन्हें बुलाने का प्रयास करूंगा। उनसे संपर्क न होने की स्थिति में किसी नये संगतकार को बुलाने की कोशिश करूँगा। कुछ क्षणों के लिए नये सहयोगी कलाकारों के साथ अभ्यास करूँगा ताकि हमारी उनसे ताल-मेल ठीक बैठ जाए। यदि ऐसा न हो सका तो कार्यक्रम को स्थगित कर दूंगा तथा कार्यक्रम कि अन्य तिथि की घोषणा कर दूंगा।

Sangatkar Ke Prashn Uttar HBSE 10th Class प्रश्न 9.
आपके विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका पर एक अनुच्छेद लिखिए। .
उत्तर-
विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में जितना महत्त्व मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले का है, उतना ही महत्त्व मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों का भी है। मंच पर उद्घोषणा करने वाले सहयोगी के समान ही अन्य सहयोगी कलाकारों का भी महत्त्व है। जिस प्रकार अच्छी नींव पर मजबूत भवन खड़ा हो सकता है। वैसे ही अच्छे एवं कुशल सहयोगी कलाकारों के बल पर ही कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम सफल होता है। संगीत व नृत्य के कार्यक्रम तो मंच के पीछे के सहयोगी कलाकारों के बिना होना संभव ही नहीं है। संगतकार नृत्य एवं संगीत के कार्यक्रमों की जान होते हैं। वे कार्यक्रम को जीवंतता प्रदान करते हैं। प्रकाश की अनुकूल व्यवस्था मंच के पीछे काम करने वाले ही करते हैं। प्रकाश की व्यवस्था का नाटक की प्रस्तुति में तो अत्यधिक महत्त्व रहता है। इसी प्रकार मंच की साज-सज्जा का दर्शक के मन पर सर्वप्रथम प्रभाव पड़ता है। साज-सज्जा का प्रभाव सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति पर पड़ता है। इसलिए मंच साज-सज्जा करने वाले सहायकों का महत्त्व भी उल्लेखनीय है। ध्वनि व्यवस्था का भी अपना ही महत्त्व है। ध्वनि की उचित व्यवस्था के अभाव में कार्यक्रम संभव नहीं है। किसी नृत्य की प्रस्तुति में मंच के पीछे गायन या वाद्य ध्वनि प्रस्तुत करने वाले कलाकारों की भूमिका का अत्यधिक महत्त्व है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक समारोह की प्रस्तुति में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 10.
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर नहीं पहुँच पाते होंगे?
उत्तर-
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले प्रतिभावान लोग मुख्य कलाकार नहीं बन पाते। इसका मुख्य कारण है कि वे मुख्य गायक या कलाकार के सहायक के रूप में आते हैं। यदि वे आजीवन तबला, हारमोनियम आदि वाद्ययंत्र ही बजाते रहें तो मुख्य गायक या कलाकार नहीं बन सकते। यदि वे स्वतंत्र रूप से अपनी प्रतिभा दिखाएँ तो वे मुख्य कलाकार बन सकते हैं। भले ही वे अपना तबला या हारमोनियम के बजाने की कला का प्रदर्शन करें। हाँ, यदि दूसरों के सहायक बनकर काम करेंगे तो उन्हें मुख्य कलाकार बनने का अवसर नहीं मिलेगा।

यदि संगतकार प्रतिभावान है तो वह शीघ्र ही अपनी कला में इतनी प्रसिद्धि प्राप्त कर लेगा कि उसे मुख्य कलाकार के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। प्रायः देखने में आया है कि संगतकार द्वितीय श्रेणी की प्रतिभा वाले होते हैं। इसलिए वे सदा मुख्य कलाकार के सहायक के रूप में बने रहते हैं। इसमें संदेह नहीं कि संगतकार हमेशा ही मंच के पीछे रहते हैं, इसलिए वे प्रतिभा संपन्न होकर भी श्रेष्ठ स्थान प्राप्त नहीं कर सकते।

पाठेतर सक्रियता

आप फिल्में तो देखते ही होंगे। अपनी पसंद की किसी एक फिल्म के आधार पर लिखिए कि उस फिल्म की सफलता में अभिनय करने वाले कलाकारों के अतिरिक्त और किन-किन लोगों का योगदान रहा?
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध गायिका की गीत प्रस्तुति का आयोजन है।
(क) इस संबंध पर सूचना पट के लिए एक नोटिस तैयार कीजिए।
(ख) गायिका व उसके संगतकारों का परिचय देने के लिए आलेख (स्क्रिप्ट) तैयार कीजिए।
उत्तर-
(क) नोटिस
विद्यालय के सांस्कृतिक क्लब द्वारा एक गीतों भरी संध्या का आयोजन विद्यालय के सांस्कृतिक भवन में दिनांक 5.5.20….. को सायं पाँच बजे किया जा रहा है। देशभर में ही नहीं अपितु संसार भर में सुप्रसिद्ध गायिका मुनिश्वरी देवी और मनोज देव अपने-अपने मधुर स्वरों में गंगा बहाने आ रहे हैं। आप अपने माता-पिता के साथ इस आयोजन में सादर आमंत्रित हैं। आप समय पर पहुँचकर अपना-अपना स्थान ग्रहण करें।

रामपाल
अध्यक्ष
विद्यालय सांस्कृतिक क्लब

(ख) स्वरों की मल्लिका मुनिश्वरी देवी देशभर में अपनी मधुर आवाज़ के लिए प्रसिद्ध हैं। इनका नाम गीत-संगीत की दुनिया में बड़े आदर से लिया जाता है। इन्होंने अनेक फिल्मों के लिए गीत गाए हैं। बाल गीतों और भजनों के क्षेत्र में भी इन्होंने अपनी मधुर ध्वनि का सिक्का जमाया हुआ है। इनके साथ संगतकारों की पूरी टीम है। इस सभा में हारमोनियम पर पवन कुमार, तबला पर मुनीश, सारंगी पर उदय शर्मा, बाँसुरी पर अजीज तथा मृदंग पर गुरविन्द्र पाल साथ देंगे।

यह भी जानें

सरगम संगीत के लिए सात स्वर तय किए गए हैं। वे हैं-षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन्हीं नामों के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।
सप्तक-सप्तक का अर्थ है सात का समूह। सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा। लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। यदि साधारण ध्वनि है तो उसे ‘मध्य सप्तक’ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक’ कहेंगे तथा यदि ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं।

HBSE 10th Class Hindi संगतकार Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मुख्य गायक एवं संगतकार के संबंधों पर सार रूप में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मुख्य गायक और संगतकार का संबंध प्राचीनकाल से चला आ रहा है। मुख्य गायक और संगतकार का संबंध चोलीदामन का संबंध है। मुख्य गायक को संगतकारों के सहयोग के बिना प्रसिद्धि नहीं मिल सकती तथा मुख्य गायक के बिना संगतकारों की कला महत्त्वहीन ही रहती है। संगतकार मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर सदा से उसे बल प्रदान करता आया है। वह मुख्य कलाकार या गायक की आवाज़ के मुकाबले में अपनी आवाज़ को कमज़ोर व धीमा रखता आया है।

प्रश्न 2.
गायन के क्षेत्र में प्रयोग होने वाले ‘स्थायी’ एवं ‘अंतरा’ शब्दों का अर्थ समझाइए।
उत्तर-
स्थायी-गायन के क्षेत्र में ‘स्थायी’ का अर्थ गीत की मुख्य पंक्ति या टेक है जिसे बार-बार दोहराया जाता है।।
अंतरा-‘अंतरा’ गीत की टेक की पंक्ति के अतिरिक्त दूसरी पंक्तियों को कहते हैं। गीत में एक से अधिक चरण या अंतरे होते हैं। हर अंतरे के पश्चात् स्थायी अर्थात् टेक की पंक्तियाँ होती हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

प्रश्न 3.
सरगम किसे कहते हैं?
उत्तर-
‘सरगम’ संगीत के क्षेत्र में सात स्वरों के समूह को सरगम कहते हैं। संगीत के सात स्वर हैं-षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम्, धैवत और निषाद। इन्हीं नामों के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।

प्रश्न 4.
सप्तक किसे कहते हैं? उसके कितने भेद होते हैं?
उत्तर-
संगीत के क्षेत्र में सप्तक का अत्यधिक महत्त्व है। सप्तक का अर्थ है-सात का समूह । सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा। लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। यदि साधारण ध्वनि से है तो उसे ‘मध्य सप्तक’ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक’ कहेंगे तथा ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
‘संगतकार’ कविता का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘संगतकार’ शीर्षक कविता में कवि का लक्ष्य मुख्य कलाकार के सहयोगी कलाकारों की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें सम्मान प्रदान करना है। ठीक इसी प्रकार समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भूमिका रूप में रहते हुए समाज के विकास में योगदान देने वाले लोगों को भी सम्मान देने की भावना को बढ़ावा देना है। संगतकार भले ही मुख्य कलाकार के सहायक हैं तथा उसके पीछे-पीछे चलते हैं। उसकी आवाज़ और गूंज में अपनी आवाज़ और गूंज मिलाकर उसे शक्ति व बल प्रदान करते हैं। उसे गीत के मुख्य स्वर से विचलित नहीं होने देते। उनके बिना मुख्य गायक सफल नहीं हो सकता। इसी प्रकार समाज में सामान्य लोगों के सहयोग के बिना शासक भी सफल नहीं हो सकता। अतः कविता का परम लक्ष्य संगतकारों के महत्त्व को उजागर करना है।

प्रश्न 6.
‘संगतकार’ शब्द यहाँ प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इस शब्द के माध्यम से लेखक ने क्या स्पष्ट किया?
उत्तर-
‘संगतकार’ मुख्य कलाकार के सहायक को कहा जाता है। वह अपनी शक्ति को मुख्य कलाकार का बल बना देता है। वह अपनी संपूर्ण शक्ति का प्रयोग मुख्य कलाकार को आगे बढ़ाने में करता है। वह स्वयं पीछे रहकर उसे आगे बढ़ाता है। इस प्रतीक के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि जीवन के हर क्षेत्र में सहायकों का कार्य महत्त्वपूर्ण होता है। वे कभी स्वयं ऊपर नहीं आ पाते। उनका समाज में उतना ही योगदान है जितना कि मुख्य कलाकारों का। यह सब कुछ जानते हुए भी वे अपने नेता को ही आगे बढ़ाते हैं। अतः उनके इस निःस्वार्थ भाव से किए गए त्याग को उजागर करना ही कविता का परम लक्ष्य है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री मंगलेश डबराल का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
श्री मंगलेश डबराल का जन्म सन् 1948 में हुआ था।

प्रश्न 2.
कवि ने अपने काव्य में किसका पक्ष लिया है?
उत्तर-
कवि ने अपने काव्य में उपेक्षितों का पक्ष लिया है।

प्रश्न 3.
अंतरा किसे कहते हैं?
उत्तर-
स्थायी टेक को छोड़कर गीत के शेष भाग को अंतरा कहते हैं।

प्रश्न 4.
‘संगतकार’ कविता में स्थायी किसे कहा गया है?
उत्तर-
‘संगतकार’ कविता में गीत की मुख्य टेक को स्थायी कहा गया है।

प्रश्न 5.
संगतकार मुख्य गायक को ढाँढस कब बँधाता है?
उत्तर-
जब उसका राग गिरने लगता है, तब संगतकार मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता है।

प्रश्न 6.
संगतकार की मुख्य भूमिका क्या होती है?
उत्तर-
मुख्य गायक के स्वर को शक्ति देना संगतकार की मुख्य भूमिका होती है।

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प्रश्न 7.
‘संगतकार’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
मुख्य गायक के सहायक गायक को संगतकार कहा है।

प्रश्न 8.
‘मनुष्यता’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘मनुष्यता’ का अर्थ है-भलाई की भावना।

प्रश्न 9.
कवि ने संगतकार की कौन-सी महानता की ओर संकेत किया है?
उत्तर-
कवि ने संगतकार की मुख्य गायक के स्वर को उठाने के लिए अपने स्वर को नीचे रखने वाली महानता की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 10.
‘संगतकार’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री मंगलेश डबराल।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्री मंगलेश डबराल किस प्रदेश के रहने वाले हैं?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) उत्तराखंड
(C) हरियाणा
(D) पंजाब
उत्तर-
(B) उत्तराखंड

प्रश्न 2.
संगतकार की आवाज कैसी कही गई है?
(A) भारी
(B) ऊँची
(C) अति मधुर
(D) कमजोर
उत्तर-
(A) भारी

प्रश्न 3.
मुख्य गायक का गला किसमें बैठता है?
(A) शीत में
(B) तारसप्तक में
(C) रोग में
(D) प्रीतिभोज में
उत्तर-
(B) तारसप्तक में

प्रश्न 4.
‘संगतकार’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) मंगलेश डबराल
(B) ऋतुराज
(C) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(D) जयशंकर प्रसाद
उत्तर-
(A) मंगलेश डबराल

प्रश्न 5.
संगतकार शब्द का प्रतीकार्थ है-
(A) सहयोगी
(B) संग चलने वाला
(C) भजन सुनने वाला
(D) उपदेश-श्रोता
उत्तर-
(A) सहयोगी

प्रश्न 6.
‘संगतकार’ कौन-सी रचना है-
(A) उपन्यास
(B) नाटक
(C) कविता
(D) निबन्ध
उत्तर-
(C) कविता

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प्रश्न 7.
किसकी आवाज़ को कमजोर एवं काँपती हुई बताया गया है?
(A) मुख्य गायक की
(B) संगतकार की
(C) श्रोता की
(D) गीत-लेखक की
उत्तर-
(B) संगतकार की

प्रश्न 8.
संगतकार का क्या काम है?
(A) मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाना
(B) मुख्य गायक की प्रशंसा करना।
(C) मुख्य गायक का गीत सुनना
(D) मुख्य गायक की कमियाँ निकालना
उत्तर-
(A) मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाना

प्रश्न 9.
प्रस्तुत कविता में स्थायी या टेक को छोड़कर गीत के चरण को क्या कहा है?
(A) तान
(B) तार सप्तक
(C) अंतरा
(D) सरगम
उत्तर-
(C) अंतरा

प्रश्न 10.
नौसिखिया किसे कहते हैं?
(A) जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो
(B) नौ बातें जानने वाला
(C) नई शिक्षा
(D) नया काम सिखाने वाला
उत्तर-
(A) जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो

प्रश्न 11.
‘मुख्य गायक की गरज में’ यहाँ गरज का अर्थ है
(A) गर्जन
(B) गड़गड़ाहट
(C) ऊँची गंभीर आवाज़
(D) ऊंची गंभीर आवाज़
उत्तर-
(D) ऊँची गंभीर आवाज़

प्रश्न 12.
‘स्थायी’ किसे कहा गया है?
(A) स्थान को
(B) स्थिर को
(C) गीत की मुख्य टेक को
(D) गीत के शेष भाग को
उत्तर-
(C) गीत की मुख्य टेक को

प्रश्न 13.
‘अनहद’ का कविता के संदर्भ में क्या अर्थ है?
(A) सीमाहीन
(B) असीम
(C) अनंत
(D) असीम मस्ती
उत्तर-
(D) असीम मस्ती

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प्रश्न 14.
‘तारसप्तक’ किसे कहा गया है?
(A) सरगम के ऊँचे स्वर को
(B) पक्के राग को
(C) मध्य स्वर में गाए गए राग को
(D) अति धीमे स्वर को
उत्तर-
(A) सरगम के ऊँचे स्वर को

प्रश्न 15.
किस कारण से मुख्य गायक की आवाज़ साथ नहीं देती?
(A) थक जाने के कारण
(B) स्वर ताल उखड़ने के कारण
(C) गला बैठ जाने के कारण
(D) सांस फूल जाने के कारण
उत्तर-
(C) गला बैठ जाने के कारण

प्रश्न 16.
मुख्य गायक को यह अहसास कौन दिलाता है कि वह अकेला नहीं है?
(A) श्रोतागण
(B) वाद्यतंत्र को बजाने वाले
(C) गीत लेखक
(D) संगतकार
उत्तर-
(D) संगतकार

प्रश्न 17.
मुख्य गायक का स्वर किसमें खो जाता है?
(A) मध्यम अंतरे की तान में
(B) अंतरे की जटिल तान में
(C) अंतरे की तान में
(D) अंतरे की सरल तान में
उत्तर-
(B) अंतरे की जटिल तान में

प्रश्न 18.
संगतकार के धीमे स्वर में क्या निहित रहती है?
(A) प्रेरणा
(B) मनुष्यता
(C) विफलता
(D) पीड़ा
उत्तर-
(B) मनुष्यता

प्रश्न 19.
मुख्य गायक के साथ स्वर साधने वाला है
(A) सितारवादक
(B) तबलावादक
(C) सह-गायिका
(D) संगतकार
उत्तर-
(D) संगतकार

प्रश्न 20.
‘सरगम’ का अर्थ है
(A) ज्ञान
(B) सरककर चलना
(C) स्वर-बोध
(D) सरोवर
उत्तर-
(C) स्वर-बोध

प्रश्न 21.
मुख्य गायक के भारी स्वर का उपमान क्या है?
(A) चट्टान
(B) समुद्र
(C) स्वर-बोध
(D) झील
उत्तर-
(A) चट्टान

संगतकार पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज़ में
वह अपनी गूंज मिलाता आया है प्राचीन काल से [पृष्ठ 54]

शब्दार्थ-संगतकार = मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या कोई वाद्य बजाने वाला। मुख्य गायक = प्रधान गायक। शिष्य = चेला। गरज़ = ऊँची गंभीर आवाज़। गूंज = स्वर। प्राचीन काल = पुराना समय।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) मुख्य गायक की आवाज़ का साथ कौन देती है?
(ङ) संगतकार का स्वर कैसा है?
(च) संगतकार का काम क्या है?
(छ) मुख्य गायक की आवाज़ की प्रमुख विशेषता क्या है?
(ज) इस काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(झ) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल। कविता का नाम-संगतकार।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘संगतकार’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। कवि ने इस कविता में मुख्य गायक के साथ गाने वाले संगतकार की भूमिका का वर्णन करते हुए उसके महत्त्व को प्रतिपादित किया है। संगतकार के बिना मुख्य गायक अधूरा-सा लगता है।

(ग) कवि का कथन है कि जब गायक मंडली का मुख्य गायक अपनी चट्टान जैसी भारी-भरकम आवाज़ में गाता था तो उसका संगतकार सदा उसका साथ देता था। संगतकार की आवाज़ बहुत सुंदर, कमज़ोर और काँपती हुई सी थी। वह संगतकार ऐसा लगता था मानो मुख्य गायक का छोटा भाई हो या उसका कोई शिष्य हो या फिर कोई दूर का संबंधी हो जो पैदल चलकर उसके पास संगीत सीखने आता है। कहने का भाव है कि संगतकार मुख्य गायक से छोटा एवं महत्त्वहीन-सा लगता था। ऐसा उसके व्यवहार से जान पड़ता था। यह संगतकार आज से नहीं प्राचीन काल से मुख्य गायक की गरज में अपना स्वर मिलाता आया है।

(घ) मुख्य गायक की भारी-भरकम आवाज़ का साथ संगतकार की आवाज़ देती है।

(ङ) संगतकार का स्वर सुंदर, कमज़ोर और काँपता हुआ था।

(च) संगतकार का काम है-मुख्य गायक की गरजदार आवाज में अपनी मधुर-सी गूंज मिलाना। इस प्रकार मुख्य गायक की आवाज को और अधिक बल देकर उसे ऊपर उठाना। .

(छ) मुख्य गायक की आवाज भारी-भरकम होती हुई भी कड़क और गरजदार है। उसमें चट्टान जैसा भारीपन है।

(ज) मुख्य गायक गाकर अपनी गायन कला का प्रदर्शन करता है। किंतु संगतकार उसकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाता ही नहीं, अपितु वह मुख्य गायक के स्वर और दिशा को भी संभालता है। उसे स्वरों से दूर भटकने से रोकता है। इस प्रकार कवि ने इस पद्यांश में संगतकार के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।

(झ)

  • कवि ने संगीतकार व गायक के साथ-साथ संगतकार के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
  • खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  • सामान्य बोलचाल के शब्दों का सार्थक एवं सटीक प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।
  • उपमा एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

(ञ) कविवर डबराल शब्दों को नए अर्थ देने के लिए माहिर हैं। भाषा सरल एवं सहज है। उनकी भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता पारदर्शिता है। सम्पूर्ण पद्यांश में प्रयुक्त भाषा प्रसादगुण सम्पन्न है।

[2] गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँधकर चला जाता
है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था। [पृष्ठ 54]

शब्दार्थ-अंतरा = स्थायी टेक को छोड़कर गीत का शेष चरण। जटिल तान = कठिन आलाप। सरगम = संगीत के सात स्वरों को उठाना। लाँघकर = पार करके। अनहद = असीम, बहुत दूर, बहुत ऊँचा। स्थायी = गीत की मुख्य टेक, लय। समेटना = इकट्ठा करना। नौसिखिया = जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘अंतरे की जटिल तानों के जंगल’ से क्या तात्पर्य है?
(ङ) ‘सरगम को लाँघने’ का अर्थ स्पष्ट करें।
(च) ‘अनहद’ का कविता के संदर्भ में क्या अर्थ है?
(छ) संगतकार मुख्य गायक को नौसिखिया की स्थिति कैसे याद दिलाता है?
(ज) स्थायी को संभालने का क्या अभिप्राय है?
(झ) इस पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल।
कविता का नाम-संगतकार।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक :क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘संगतकार’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। इसमें मुख्य गायक के साथ-साथ सम्मान से वंचित सहायकों की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। भले ही लोग उनका नाम तक लेते हों, किंतु सच्चाई यह है कि मुख्य गायक की सफलता इनके सहयोग पर ही निर्भर करती है।

(ग) कवि कहता है कि मुख्य गायक जब स्वर को लंबा खींचकर अंतरे की कठिन तानों के जंगल में खो जाता है अर्थात् मुख्य गायक जब गीत की मुख्य पंक्ति को गाने के पश्चात् गीत की अन्य पंक्तियों को गाने लगता है तो वह टेढ़े-मेढ़े स्वरों में उलझ जाता है और मुख्य स्वर से भटक जाता है। वह अपने निश्चित स्वरों की सीमा को लाँघकर गहरी संगीत-साधना में लीन हो जाता है, असीम-सी मस्ती में डूब जाता है। तब संगतकार ही गीत की मुख्य टेक के स्वर को अलापता रहता है तथा उसे सँभाले रखता है। इस प्रकार वह मुख्य गायक को मूल स्वर में लौटा लाता है। ऐसा लगता है कि मानो वह मुख्य गायक के पीछे छूटे हुए सामान को सँभालने में लगा हो। मानो वह मुख्य गायक को उसके बचपन की याद दिला रहा हो। जब वह नया-नया संगीत सीख रहा था तथा अकसर मूल स्वर को भूल जाता था, तब उसने संगीत में निपुणता प्राप्त नहीं की थी।

(घ) अंतरे की जटिल तानों के जंगल से तात्पर्य है कि गीत की मुख्य टेक के अतिरिक्त गीत के चरण की अन्य पंक्तियाँ, जिनके स्वर बहुत कठिन एवं अधिक होते हैं।

(ङ) सरगम को लाँघने का अर्थ है-गीत की मुख्य लय या स्वर की सीमा को भूलकर और अधिक कठिन आलापों में खो जाना और मुख्य स्वर से अधिक ऊँचा स्वर उठाना।

(च) ‘अनहद’ का शाब्दिक अर्थ है-असीम, सीमाहीन, अनंत। ‘अनहद’ का आध्यात्मिक अर्थ है-आध्यात्मिक मस्ती। कविता के संदर्भ में इसका अर्थ है- असीम मस्ती।

(छ) कभी-कभी मुख्य गायक गीत गाने में इतना डूब जाता है कि गीत के लय व स्वर को भूल जाता है अथवा जटिल तानों में खो जाता है। इससे गीत की मुख्य तान में आघात पहुँचता है। संगतकार उसे वापस मूल स्वर में लौटा लाता है। यही स्थिति किसी नए-नए गीत सीखने वाले की होती है, जो गीत गाते-गाते मुख्य स्वर को भूल जाता है, उस्ताद उसे फिर मुख्य स्वर में लाता है। संगतकार मुख्य गायक को गीत के स्वर में लौटा लाता है। ऐसी स्थिति बचपन में मुख्य गायक की होती थी। इस प्रकार संगतकार मुख्य गायक को उसके बचपन में ले जाता है।

(ज) स्थायी को संभालने का तात्पर्य है किसी गीत की मुख्य पंक्ति या टेक के मुख्य स्वर को गाते रहना। उसकी टेक को बिखरने न देना। उसकी गति, लय आदि को कम या अधिक न होने देना।

(झ) कवि ने मुख्य गायक के सहायक की भूमिका को अत्यंत मनोरम शब्दों में व्यक्त किया है। मुख्य गायक जब कोई गीत गाता है तो संगतकार उसमें केवल अपनी आवाज़ को ही नहीं मिलाता, अपितु गीत के स्वर को सँभालता भी है। वह उसे स्वरों से दूर भटकने से भी रोकता है तथा उसे सही दिशा में ले जाता है।

(ञ)

  • कवि ने संगतकार की भूमिका के महत्त्व को अत्यंत कलात्मकतापूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान की है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति के कारण कवि का कथन अत्यंत सरल एवं सहज बन पड़ा है।
  • भाषा में बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  • अतुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।
  • रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ट) प्रस्तुत पद्यांश में सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। कवि ने लययुक्त भाषा का सफल प्रयोग किया है। कविता का प्रमुख विषय गायक व संगतकार से सम्बन्धित है इसलिए विषय से सम्बन्धित शब्दों का सफल प्रयोग किया गया है। सजगता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता है।

[3] तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है।
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए। [पृष्ठ 54-55]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

शब्दार्थ-तारसप्तक = सरगम के ऊँचे स्वर। प्रेरणा = आगे बढ़ने की इच्छा-शक्ति। उत्साह अस्त होता हुआ = हौंसला कम होता हुआ। राख जैसा = बुझता हुआ, कम होता हुआ। ढाढ़स बंधाना = सांत्वना देना, तसल्ली देना। राग = ताल, लय-स्वर। हिचक = संकोच। विफलता = असफलता। मनुष्यता = मानवता, भलाई की भावना।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) तारसप्तक से क्या तात्पर्य है?
(ङ) किस कारण से गायक की आवाज़ साथ नहीं देती?
(च) मुख्य गायक को कौन धीरज बँधाता है और कैसे?
(छ) किसकी आवाज़ में हिचक सुनाई पड़ती है और क्यों?
(ज) संगतकार अपने स्वर को ऊँचा क्यों नहीं उठने देता?
(झ) कवि ने किसे मानवता माना है?
(ञ) इस पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल। कविता का नाम-संगतकार।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश श्री मंगलेश डबराल द्वारा रचित सुप्रसिद्ध कविता ‘संगतकार’ से उद्धृत है। इसमें कवि ने मुख्य गायक के साथ-साथ उसके सहायक के कार्य के महत्त्व को भी उजागर किया है। संगतकार मुख्य गायक के महत्त्व को बढ़ाने में अपनी योग्यता एवं शक्ति को लगा देता है। कवि ने उसकी इसी मनुष्यता को उजागर किया है।

(ग) कवि कहता है कि तारसप्तक को गाते हुए जब उतार-चढ़ाव के कारण मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, तो उसकी आवाज़ भी उसका साथ नहीं देती। गाते-गाते उसकी साँस भी उखड़ने लगती है। उसके मंद पड़ते उत्साह को संगतकार ही अपनी आवाज़ का सहारा देकर उसे उबारता है। वह उसे सांत्वना देता है और उसका धैर्य बँधाता है वह कहता है कि तुम अकेले नहीं हो अपितु में भी तुम्हारे साथ हूँ। जिस राग को वह गा रहा है, उसे कोई और भी फिर से गा सकता है अर्थात् संगतकार मुख्य गायक के गाए हुए राग को उसके पीछे-पीछे दोहराकर बता देना चाहता है कि कोई भी उसे गा सकता है। इससे मुख्य गायक का हौसला बढ़ता है।
कवि कहता है कि संगति करने वाले गायक की आवाज़ में एक संकोच स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है कि वह अपने स्वर को उस्ताद के स्वर से नीचे ही रखता है। इसको उसकी कमज़ोरी न समझकर उसकी मनुष्यता या मानवता ही समझना चाहिए।

(घ) ऊँचे स्वर में गाए गए सरगम को तार सप्तक कहते हैं।

(ङ) ऊँचे स्वर में गाते रहने के कारण मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, आवाज़ डूबने लगती है। गाने की इच्छा भी नहीं होती। इससे गायक की आवाज़ उसका साथ छोड़ देती है।

(च) मुख्य गायक को संगतकार धीरज बँधाता है। वह उसके पीछे-पीछे लगातार गाता रहता है। वह उसके डूबते स्वर को सँभाले रहता है।

(छ) मुख्य गायक संगतकार की आवाज़ में हिचक साफ सुनाई देती है क्योंकि वह जान-बूझकर मुख्य गायक की आवाज़ की भाँति खुलकर नहीं गाना चाहता ताकि मुख्य गायक का स्वर उभरकर आ सके।

(ज) संगतकार अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा इसलिए नहीं उठाता क्योंकि यह उसका धर्म है। वह मुख्य गायक के स्वर को ऊँचाई और शक्ति देने की भूमिका निभाता है। मुख्य गायक के स्वर से ऊँचे स्वर में गाना उसके लक्ष्य के विरुद्ध है।

(झ) कवि संगतकार द्वारा अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से कम रखना ही उसकी मनुष्यता मानता है। अपने-आपको पीछे या भूमिका में रखते हुए दूसरों के महत्त्व को बढ़ावा देना ही सच्ची मानवता है।

(ञ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने संगतकार के माध्यम से बताया है कि मुख्य गायक के सहायक गायक भी महानता में सम्मिलित हैं। वे मुख्य गायक को ऊँचा उठाने की कोशिश में अपने स्वर को और अपने-आपको कुछ नीचा रखते हैं। कवि के अनुसार उनका यह त्याग ही उनकी महानता का संकेत है।

(ट)

  • भाषा गद्यात्मक किंतु लययुक्त है।
  • भाषा सुगम, सरल एवं सुव्यवस्थित है।
  • उत्साह अस्त होना, राख जैसा कुछ गिरना आदि प्रतीकात्मक प्रयोग दृष्टव्य हैं।
  • अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  • छंद युक्त कविता है।

(ठ) कविवर डबराल ने प्रस्तुत काव्यांश में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। कवि ने मुख्य गायक व संगतकार के अन्तः सम्बन्धों को व्यक्त करने हेतु विषयानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। भाषा पारदर्शी और व्यावहारिक है। प्रवाहमयता एवं लयबद्धता भाषा प्रयोग की मुख्य विशेषता है।

संगतकार Summary in Hindi

संगतकार कवि-परिचय

प्रश्न-
मंगलेश डबराल का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-मंगलेश डबराल आधुनिक हिंदी कवि एवं पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) के काफलपानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई थी। दिल्ली आकर ये पत्रकारिता से जुड़ गए थे। श्री डबराल जी ने हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास आदि पत्र-पत्रिकाओं में काम किया। तत्पश्चात् ये भारत भवन, भोपाल से प्रकाशित होने वाले पत्र पूर्वग्रह में सहायक संपादक के पद पर नियुक्त हुए। इन्होंने इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित होने वाले अमृत प्रभात में भी काम किया। सन् 1983 में जनसत्ता में साहित्यिक संपादक के पद को सँभाला था। श्री डबराल ने कुछ समय के लिए सहारा समय का भी संपादन किया है। आजकल डबराल जी नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़कर ‘काम कर रहे हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

2. प्रमुख रचनाएँ-अब तक डबराल जी के चार काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’ । इनकी रचनाओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, पोल्स्की, बल्गारी आदि भाषाओं में भी अनुवाद हो चुके हैं। काव्य के अतिरिक्त साहित्य सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति से संबंधित विषयों पर भी इनकी गद्य रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के कारण इन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। श्री डबराल कवि के रूप में ही अधिक प्रतिष्ठित हुए हैं तथा अच्छे अनुवादक के रूप में भी इन्होंने नाम कमाया है।

3. काव्यगत विशेषताएँ-श्री मंगलेश डबराल के काव्य में सामंती बोध एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का विरोध किया गया है। वे यह विरोध अथवा प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, अपितु प्रतिपक्ष में सुंदर सपना रचकर करते हैं। वे वंचितों का पक्ष लेकर काव्य रचना करते हैं। इनकी कविताओं में अनुभूति एवं रागात्मकता विद्यमान है। श्री डबराल जहाँ पुरानी परंपराओं का विरोध करते हैं, वहाँ नए जीवन-मूल्यों का पक्षधर बनकर सामने आते हैं। इनका सौंदर्य बोध अत्यंत सूक्ष्म है। सजग भाषा की सृष्टि इनकी कविताओं के कलापक्ष की प्रमुख विशेषता है।।

4. भाषा-शैली-इन्होंने शब्दों का प्रयोग नए अर्थों में किया है। छंद विधान को भी इन्होंने परंपरागत रूप में स्वीकार नहीं किया, किंतु कविता में लय के बंधन का निर्वाह सफलतापूर्वक किया है। इन्होंने काव्य में नई-नई कल्पनाओं का सृजन किया है। बिंब-विधान भी नवीनता लिए हुए हैं। नए-नए प्रतीकों के प्रति इनका मोह छुपा हुआ नहीं है। भाषा पारदर्शी और सुंदर है।

संगतकार कविता का सार

प्रश्न-
‘संगतकार’ शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘संगतकार’ कविता में कवि ने मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका पर प्रकाश डाला है। कवि ने बताया है कि दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियाँ; यथा-नाटक, फिल्म, संगीत नृत्य के बारे में तो यह बिल्कुल सही है। किंतु समाज और इतिहास में भी हम ऐसे अनेक उदाहरण देख सकते हैं। नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रस्तुत कविता में कवि ने यही संदेश दिया है कि हर व्यक्ति की अपनी-अपनी भूमिका होती है, अपना-अपना महत्त्व होता है। उनका सामने न आना उनकी कमज़ोरी नहीं, अपितु मानवीयता है। युगों से संगतकार अपनी आवाज़ को मुख्य गायक से मिलाते आए हैं। जब मुख्य गायक अंतरे की जटिल तान में खो जाता है या अपने सरगम को लाँघ जाता है, तब संगतकार ही स्थायी पंक्ति को संभालकर आगे बढ़ाता है। ऐसा करके वह मुख्य गायक के गिरते हुए स्वर को ढाँढस बँधाता है। कभी-कभी उसे यह भी अहसास दिलाता है कि वह अकेला नहीं है, उसका साथ देने वाला है। जो राग पहले गाया जा चुका है, उसे फिर से गाया जा सकता है। वह सक्षम होते हुए भी मुख्य गायक के समान अपने स्वर को ऊँचा उठाने का प्रयास नहीं करता। इसे उसकी असफलता नहीं समझनी चाहिए। यह उसकी मानवीयता है, वह ऐसा करके मुख्य गायक के प्रति अपना सम्मान प्रकट करता है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

HBSE 10th Class Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Questions and Answers

यह दंतुरित मुसकान कविता की व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 1.
‘बच्चे की दंतुरित मुसकान’ का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [H.B.S.E. 2018, 2019 (Set-A)]
उत्तर-
बच्चे की दंतरित मुसकान को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है। उसके निराश और उदास मन में पुनः स्फूर्ति आ जाती है। उसे ऐसा लगता है मानों उसकी झोपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों। मानों उसके मन में स्नेह की धारा प्रवाहित हो गई हो या फिर बबूल व बाँस के वृक्ष से मानों शेफालिका के फूल झड़ने लगे हों। कहने का भाव है कि कवि का मन बच्चे की दंतुरित मुसकान से अत्यधिक प्रभावित हुआ था।

यह दंतुरित मुसकान कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर-
बच्चे की मुसकान निश्छल एवं स्वाभाविक होती है। उसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता, किंतु बड़े व्यक्ति की मुसकान में छल-कपट व दिखावा हो सकता है। उसे न चाहते हुए भी मुसकाना पड़ता है। बड़ों की मुसकान उनके मन की स्वाभाविक गति न होकर लोक व्यवहार का अंग भी हो सकती है।

यह दंतुरित मुस्कान के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर-
कवि ने बच्चे की मुसकान को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है(क) बच्चे की मुसकान से मृतक भी प्राणवान् हो जाता है। (ख) बच्चे की मुसकान ऐसी लगती है मानों झोंपड़ी में कमल का फूल खिल गया हो। (ग) बच्चे की मुसकान से मानों चट्टानों ने पिघलकर जलधारा का रूप धारण कर लिया हो। (घ) मानों बाँस व बबूल के वृक्षों से शेफालिका के फूल झड़ने लगे हों।

Ch 6 Hindi Class 10 Kshitij Explanation HBSE प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
उत्तर-
(क) कवि को ऐसा लगा कि उस छोटे बच्चे की मुसकान तो ईश्वरीय वरदान के समान थी। वह धूल-धूसरित अंग-प्रत्यंगों वाला तो जैसे तालाब में खिले कमल के समान मोहक और मनोरम था जो उसकी झोंपड़ी में आकर बस गया था।
(ख) नन्हें बालक का रूप ऐसा मनोरम था कि चाहे कोई कितना भी निर्मम क्यों न हो, उसे देख मन-ही-मन प्रसन्नता से भर . उठता था। चाहे बाँस के समान हो या बबूल के समान, पर उसकी सुंदरता से प्रभावित हो वह उसकी ओर देख मुसकराने के लिए विवश हो जाता था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

रचना और अभिव्यक्ति

Yaha Danturit Muskan Question Answer HBSE 10th Class प्रश्न 5.
मुसकान और क्रोध दो भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर-
मुसकान और क्रोध दोनों ही मानव मन में उत्पन्न होने वाले भाव हैं। मुसकान एक सुखद भाव है, जबकि क्रोध एक मनोविकार है जिसका उत्पन्न होना अधिकतर हानिकारक होता है। मुसकान सुखद है। इससे हँसी-खुशी का वातावरण बनता है। आपस में प्रेम भाव का संचार होता है। समाज में मेल-जोल बढ़ता है। इसके विपरीत क्रोध उन सबको कष्ट पहुंचाता है जो क्रोध करने वाले व्यक्ति के समीप होते हैं। क्रोध में लिए गए, निर्णय का परिणाम कभी लाभदायक नहीं होता। मुसकान से हर व्यक्ति के हृदय को जीता जा सकता है, किंतु क्रोध से सदा शत्रुता बढ़ती है।

Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6 Vyakhya HBSE प्रश्न 6.
दंतरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
इस कविता को पढ़कर अनुमान लगाया जा सकता है कि बच्चे की आयु 7 और 9 मास के बीच रही होगी, क्योंकि इसी आयु में ही बच्चों के दूध के दाँत निकलने आरंभ होते हैं। इसी आयु में बच्चा अपने माता-पिता को भी पहचानने लगता है।

यह दंतुरित मुसकान कविता का सारांश HBSE 10th Class प्रश्न 7.
बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
कवि कई मास के पश्चात् घर लौटने पर बच्चे से मिला। बच्चा उन्हें देखकर मुसकाने लगता है। बच्चे की नए-नए दाँतों वाली मुसकान को देखकर कवि का मन प्रसन्नता से खिल उठा। नन्हें बच्चे की भोली-सी मुसकान को देखकर उसके निराश जीवन में मानो प्राण आ गए। कवि को लगा कि कमल का सुंदर फूल उनकी झोंपड़ी में उग आया हो। उसके बूढ़े व नीरस शरीर को ऐसा प्रतीत हुआ मानो बबूल के पेड़ पर शेफालिका के फूल खिल गए हों। आरंभ में बालक कवि को अजनबी की भाँति देखता रहा किंतु बच्चे की माँ ने दोनों के बीच माध्यम बनकर दोनों का परिचय कराया। बच्चा कवि को तिरछी नज़रों से देखकर मुँह फेरने लगा। किंतु माँ के द्वारा परिचय करवाने पर दोनों में स्नेह बढ़ने लगा। बच्चा मुस्करा पड़ा और उसके नए-नए उगे हुए दो दाँत दिखाई देने लगे। .

पाठेतर सक्रियता

आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव . को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

एन०सी०ई०आर०टी० द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फिल्म देखिए।
उत्तर-
विद्यार्थी विद्यालय की ओर से फिल्म मँगवाकर देख सकते हैं।

फसल

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर-
कवि के अनुसार, फसल मनुष्य और प्रकृति के सम्मिलित प्रयासों का परिणाम है। फसल अनेक नदियों के जल का जादू, करोड़ों लोगों के हाथों के स्पर्श अथवा परिश्रम की गरिमा तथा भूरी, काली व संदली मिट्टी का गुण धर्म है। फसल सूर्य की किरणों का रूपांतरण भी है, जिसे हवा नचाती व लहराती है।

प्रश्न 2.
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्त्वों की बात कही गई है वे आवश्यक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
कवि के अनुसार फसल के लिए आवश्यक तत्त्व हैं-मिट्टी, खाद, पानी, सूर्य की किरणें और हवा।

प्रश्न 3.
फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर-
कवि बताना चाहता है कि फसल पैदा करने के लिए घर के सभी व्यक्तियों को परिश्रम करना पड़ता है। किसान का पूरा परिवार फसल को पैदा करने में जुटा रहता है। फसल से अनेक लोगों का पेट पलता है। यह एक नहीं अनेक हाथों की महिमा है। अतः स्पष्ट है कि कवि ने किसान के परिश्रम के. महत्त्व को प्रतिपादित करने का सफल प्रयास किया है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर-कवि ने स्पष्ट किया है कि ये फसलें और कुछ नहीं सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। फसलों की हरियाली सूरज की किरणों के प्रभाव के कारण आती है तथा सूर्य की गर्मी से ही फसलें पकती हैं। फसलों को बढ़ाने में हवा की थिरकन का भी भरपूर योगदान है। मानों हवा सिमट-सिकुड़कर फसलों में समा जाती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है।
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर-
(क) मिट्टी के गुण-धर्म से तात्पर्य उसकी उपजाऊ शक्ति से है जो उसमें मिले विभिन्न तत्त्वों के कारण होती है। उन तत्त्वों के कारण ही मिट्टी विभिन्न रंगों को प्राप्त करती है। मिट्टी के तत्त्व ही फसल को उगाने व विकसित करने में सहायक होते हैं।
(ख) वर्तमान जीवन-शैली मिट्टी को प्रदूषित कर रही है। उसके सहज-स्वाभाविक गुणों को नष्ट कर रहे हैं। आज रासायनिक पदार्थों के अधिक प्रयोग से मिट्टी के स्वाभाविक गुणों में परिवर्तन आ रहा है। तरह-तरह के कीटनाशक व खरपतवार नाशक मिट्टी को हानि पहुंचाते हैं। इनके प्रयोग से भले ही हमें फसल अधिक मिलती हो किंतु इनके दूरगामी परिणाम बहुत ही हानिकारक हैं।
(ग) यदि मिट्टी अपना मूल गुण-धर्म और स्वभाव छोड़ देगी तो जीवन का स्वरूप विकृत हो जाएगा अर्थात् मिट्टी में फसल नहीं उग सकेगी। शायद जीवन तो नष्ट न हो किंतु वह विद्रूप अवश्य हो जाएगा।
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हम बहुत कुछ कर सकते हैं। सबसे पहली बात हम सचेत हों। हम मिट्टी के . . गुण-धर्म को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में जानें। इससे हम स्वयमेव जागरूक हो जाएँगे। हम स्वयं जागकर अन्य लोगों को जगाने का कार्य भी कर सकते हैं तथा मिट्टी को पहुँचने वाली हानि को रोक सकते हैं।

पाठेतर सक्रियता

इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के माध्यमों द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर-
सेवा में,
संपादक महोदय,
दैनिक ट्रिब्यून,
चंडीगढ़।

विषय : सुदृढ़ कृषि व्यवस्था हेतु कुछ सुझाव।
आदरणीय महोदय,

मैं आपके सुप्रसिद्ध समाचार-पत्र के माध्यम से सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था पर कुछ सुझाव कृषकों तक पहुँचाना चाहता हूँ जो किसान व उनके खेतों के लिए निश्चित रूप से लाभदायक सिद्ध होंगे। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। कृषि व किसानों के हित में सोचना हम सबका नैतिक कर्त्तव्य है।

कृषि व्यवस्था को समुचित बनाने हेतु हमें कृषि करने योग्य भूमि पर समय पर फसल की बिजाई कर देनी चाहिए। कृषि करने के परंपरागत तरीकों के स्थान पर नई-नई कृषि पद्धतियों व विधियों को निःसंकोच अपनाना चाहिए। फसल की बिजाई करने से पहले हमें अपने खेत की मिट्टी की जाँच अवश्य करवा लेनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि उसमें कौन-सी फसल उगानी चाहिए जिससे अच्छी-से-अच्छी फसल हो सके। यदि हमारे खेत की मिट्टी में किसी तत्त्व की कमी हो तो हमें उसे दूर कर लेना चाहिए। हमें श्रेष्ठ श्रेणी के बीजों का प्रयोग करना चाहिए। उन्नत किस्म के बीजों को हमें सरकारी एजेंसी से ही प्राप्त करना चाहिए। हमें फसलों को बदल-बदलकर बोना चाहिए। एक ही प्रकार की फसल बोने से जमीन की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। खरपतवार नाश करने वाली और कीटनाशकों का प्रयोग एक निश्चित सीमा तक रहकर करना चाहिए। सारा खेत समतल होना चाहिए और उसकी सिंचाई भी एक बार में ही करनी चाहिए। गोबर की खाद का प्रयोग भी बीच-बीच में करते रहना चाहिए। इससे पृथ्वी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और फसल भी अच्छी होती है।
आशा है कि आप अपने सुप्रसिद्ध समाचार-पत्र में इन सुझावों को प्रकाशित करके मुझे अनुगृहीत करेंगे।

भवदीय
अविनाश कुमार

फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्व क्यों नहीं दिया जाता है? इसके बारे में . कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी अपने अध्यापक व अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

HBSE 10th Class Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में शिशु के भोलेपन एवं सौंदर्य को व्यक्त किया गया है-सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
‘यह दंतुरित मुसकान’ नामक कविता में कवि ने शिशु के भोलेपन का वर्णन किया है। शिश कवि को अपरिचित की भाँति देखता है। उसे पहचानने के प्रयास से उसकी ओर निरंतर देखता रहता है। इसी प्रकार शिशु की मनमोहक छवि को देखकर कवि भी प्रभावित हुए बिना न रह सका। बालक के नए-नए उगे हुए दो दाँतों को देखकर कवि उनकी प्रशंसा किए बिना न रह सका। नन्हा शिशु जब हँसता है तो उसके नए-नए दो दाँत अत्यंत सुंदर लगते हैं। उसकी हँसी की सुंदरता में ऐसा प्रभाव है कि उन्हें देखकर पत्थर दिल व्यक्ति भी पिघल जाता है। इस प्रकार कवि ने नन्हें बच्चे के भोलेपन एवं सौंदर्य का उल्लेख किया गया है।

प्रश्न 2.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में बाँस और बबूल किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर-
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने नन्हें बालक की हँसी के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि उसकी हँसी का प्रभाव ऐसा है कि जिसे देखकर बाँस और बबूल के वृक्षों से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। यहाँ बाँस और बबूल का प्रयोग बुरे व्यक्तियों के लिए किया गया है। कहने का तात्पर्य है कि समाज के बुरे-से-बुरे लोग भी नन्हें बच्चे की हँसी को देखकर हँसने लगते हैं। उनके मन में भी बच्चे के प्रति अच्छी भावना जागृत हो जाती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 3.
शिशु किसी अनजान व्यक्ति को एकटक क्यों देखने लगता है?
उत्तर-
जब शिशु किसी अनजान व्यक्ति से मिलता है तो उसे पहचानने का प्रयास करता है। इसीलिए वह उसकी ओर एकटक देखता रहता है। मानों वह उसके मन के भावों को पढ़ने का प्रयास करता है। कभी-कभी ऐसा भी अनुभव होता है कि वह अजनबी व्यक्ति को देखते-देखते थक-सा गया है।

प्रश्न 4.
‘फसल’ नामक कविता में कवि ने फसल उगाने के संबंध में मिट्टी की किस विशेषता का उल्लेख किया है?
उत्तर-
‘फसल’ नामक कविता में कवि ने मिट्टी या धरती के उन गुणों का उल्लेख किया है जिसके कारण वह फसल उगाने में सहायक होती है। कवि के अनुसार मिट्टी ‘भूरी’, ‘काली’, ‘संदली’ आदि कई प्रकार की होती है। विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। मिट्टी में मिले तत्त्वों के कारण ही मिट्टी के गुण अलग-अलग होते हैं। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति के कारण ही फसलें उगाई जाती हैं। यदि मिट्टी में यह शक्ति न होती तो फसलों के उगने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थीं।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
‘यह दंतुरित मुसकान’ क्या-क्या कर सकती है?
उत्तर-
कवि के अनुसार ‘दंतुरित मुसकान’ में बहुत कुछ करने की क्षमता है। दंतुरित मुसकान कठोर-से-कठोर हृदय वाले व्यक्ति के मन में कोमलता का संचार कर सकती है। ‘दंतुरित मुसकान’ निराश एवं उदास लोगों के हृदयों में प्रसन्नता एवं खुशी के भाव उत्पन्न कर सकती है। जो व्यक्ति इस संसार से विमुख हो चुका है जब वह नन्हें शिशु की निश्छल हँसी को देखेगा तो वह मुसकराए बिना नहीं रह सकेगा। दंतुरित मुसकान का प्रभाव इतना अधिक है कि वह मृतक में भी प्राण फूंक सकती है। कहने का तात्पर्य है कि ‘दंतुरित मुसकान’ अत्यधिक प्रभावशाली है। ..

प्रश्न 6.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि का उद्देश्य छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान के प्रभाव का चित्रण करना है। छोटे बच्चे के मुख में उगे हुए नए-नए दाँतों वाली हँसी को देखकर कवि के मन में जो भाव उमड़ते हैं, उन्हें कवि ने विभिन्न बिंबों की योजना के द्वारा व्यक्त किया है जो कविता का प्रमुख लक्ष्य है। कवि का यह मानना है कि बच्चे की इस निश्छल हँसी में जीवन का संदेश छिपा हुआ है। इस दंतुरित मुसकान की सुंदरता का प्रभाव ऐसा है कि उसे देखकर कठोर-से-कठोर हृदय भी पिघल जाता है। दंतुरित मुसकान की सुंदरता को उस समय चार चाँद लग जाते हैं जब उसके साथ बच्चे की नज़रों का बाँकपन भी जुड़ जाता है। अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत कविता का लक्ष्य नन्हें बच्चे की निश्छल एवं मनमोहक हँसी के प्रभाव का उल्लेख करना है।

प्रश्न 7.
कवि ने ‘फसल’ के द्वारा किन-किन में आपसी सहयोग का भाव अभिव्यक्त किया है? .
उत्तर-
कवि ने ‘फसल’ कविता के माध्यम से फसल के उगाने में मनुष्य के शारीरिक बल और परिश्रम तथा प्रकृति में निहित अथाह ऊर्जा के पारस्परिक सहयोग के भाव को अभिव्यक्त किया है। कवि के अनुसार जब मनुष्य का परिश्रम और प्रकृति का सहयोग आपस में मिल जाते हैं तो फसलें उत्पन्न होती हैं। अकेली मानवीय परिश्रम की शक्ति या अकेली प्राकृतिक शक्ति कुछ नहीं कर सकती। इनके सहयोग में ही महान शक्ति छिपी हुई है। इसी सहयोग की शक्ति को प्रस्तुत कविता में अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास किया गया है।

प्रश्न 8.
‘फसल’ शीर्षक कविता के प्रतिपाय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता का प्रमुख प्रतिपाद्य किसानों के परिश्रम के साथ-साथ प्राकृतिक तत्त्वों के प्रभाव का सम्मान करना है। कवि ने स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिन फसलों से उत्पन्न अन्न को हम खाते हैं उसके लिए किसी एक व्यक्ति, नदी या प्राकृतिक तत्त्व को श्रेय नहीं दिया जा सकता, अपितु सभी नदियों के जल, सब खेतों की विविध प्रकार की मिट्टियों के गुणों, सूर्य की गर्मी, वायु और किसानों के श्रम के सामूहिक सहयोग से ही फसलें उगाई जाती हैं। अतः इन सब पर सबका सहज अधिकार होना चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री नागार्जुन का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
श्री नागार्जुन का जन्म सन् 1911 में हुआ था।

प्रश्न 2.
‘पाषाण पिघलने’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
पाषाण पिघलने’ से तात्पर्य है कठोर हृदय में दया उत्पन्न होना।

प्रश्न 3.
‘फसल’, कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
‘फसल’, कविता के रचयिता नागार्जुन हैं।

प्रश्न 4.
‘दंतरित मुसकान’ कविता में कवि के ध्यानाकर्षण का केन्द्र कौन है?
उत्तर-
दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि के ध्यानाकर्षण का केन्द्र उसका नन्हा बालक है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 5.
किसके कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा बताई गई है?
उत्तर-
किसान के कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा बताई गई है।

प्रश्न 6.
कवि ने किसे हाथों के स्पर्श की महिमा कहा है?
उत्तर-
कवि ने फसल को हाथों के स्पर्श की महिमा कहा है।

प्रश्न 7.
यह दंतुरित मुसकान’ कविता में तालाब छोड़कर जलजात कहाँ खिलने की बात कही है?
उत्तर-
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में तालाब छोड़कर जलजात कवि की झोंपड़ी में खिलने की बात कही है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्री नागार्जुन किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) पंजाब
(C) उत्तर प्रदेश
(D) बिहार
उत्तर-
(D) बिहार

प्रश्न 2.
श्री नागार्जुन का वास्तविक नाम क्या था?
(A) रामचंद्र
(B) मेघनाद
(C) वैद्यनाथ मिश्र
(D) रामनरेश मिश्र
उत्तर-
(C) वैद्यनाथ मिश्र

प्रश्न 3.
कवि ने श्रीलंका में जाकर कौन-सा धर्म अपना लिया था?
(A) हिंदू
(B) मुस्लिम
(C) सिक्ख
(D) बौद्ध
उत्तर-
(D) बौद्ध

प्रश्न 4.
श्री नागार्जुन का देहांत कब हुआ था?
(A) सन् 1998 में
(B) सन् 1996 में
(C) सन् 1995 में
(D) सन् 1994 में
उत्तर-
(A) सन् 1998 में

प्रश्न 5.
नागार्जुन कृत कविता का नाम है
(A) संगतकार
(B) कन्यादान
(C) फसल
(D) उत्साह
उत्तर-
(C) फसल

प्रश्न 6.
‘दंतुरित मुसकान’ में कवि के ध्यानाकर्षण का केन्द्र है-
(A) शेर का बच्चा
(B) खरगोश का बच्चा
(C) कवि का नन्हा बच्चा
(D) छोटा बच्चा
उत्तर-
(C) कवि का नन्हा बच्चा

प्रश्न 7.
बच्चे की दंतुरित मुसकान किसमें भी जान डाल देगी?
(A) रोगी में
(B) पक्षी में
(C) कमजोर में .
(D) मृतक में
उत्तर-
(D) मृतक में

प्रश्न 8.
कवि की झोपड़ी में क्या खिल रहे थे?
(A) जलजात
(B) गेंदा
(C) गुलाब
(D) जूही
उत्तर-
(A) जलजात

प्रश्न 9.
‘चिर प्रवासी मैं इतर’ वाक्यांश में ‘चिर प्रवासी’ कौन है?
(A) कवि
(B) पुत्र
(C) माता
(D) श्रोता
उत्तर-
(A) कवि

प्रश्न 10.
किसके प्राणों का स्पर्श पाकर कठिन पाषाण पिघल गया होगा?
(A) कवि के
(B) माता के
(C) बच्चे के
(D) पिता के
उत्तर-
(C) बच्चे के

प्रश्न 11.
दही, घी, शहद, जल और दूध का योग, जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है, उसे ‘यह दंतुरित मुसकान’
कविता में कहा है-
(A) प्रसाद
(B) मधुपर्क
(C) इत्र
(D) गव्य
उत्तर-
(B) मधुपर्क

प्रश्न 12.
‘अनिमेष देखना’ का अर्थ है-
(A) रुक-रुक कर देखना
(B) कभी-कभी देखना
(C) लगातार देखना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(C) लगातार देखना

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प्रश्न 13.
मधुपर्क किसकी उँगलियाँ करती हैं?
(A) पिता की
(B) माँ की
(C) कवि की
(D) भाई की
उत्तर-
(B) माँ की

प्रश्न 14.
छोटे बच्चे के स्पर्श-मात्र से कौन-से फूल झड़ने लगे थे?
(A) शेफालिका
(B) कमल
(C) गुलाब
(D) चंपा
उत्तर-
(A) शेफालिका

प्रश्न 15.
कठिन पाषाण पिघलकर क्या बन गया होगा?
(A) जल
(B) सुंदरता
(C) नदी
(D) झरना
उत्तर-
(A) जल

प्रश्न 16.
प्रस्तुत कविता में किसकी आँखें चार होने की बात कही है?
(A) माँ और बच्चे की
(B) कवि और बच्चे की
(C) कवि और बच्चे की माँ की
(D) कवि और पाठक की
उत्तर-
(B) कवि और बच्चे की

प्रश्न 17.
‘कवि ने फसल को कितनी नदियों का जादू कहा है?
(A) एक
(B) दो
(C) ढेर सारी
(D) अनेक
उत्तर-
(C) ढेर सारी

प्रश्न 18.
‘फसल’ में किसकी प्रधानता है?
(A) आत्मा की
(B) परमात्मा की
(C) प्रकृति की
(D) माया की
उत्तर-
(C) प्रकृति की

प्रश्न 19.
फसल के लिए जादू का काम कौन करता है?
(A) नदियों का पानी.
(B) तालाब का पानी
(C) वर्षा का पानी
(D) गड्ढे का पानी
उत्तर-
(A) नदियों का पानी

प्रश्न 20.
फसल कितने हाथों के स्पर्श की गरिमा होती है?
(A) करोड़ों
(B) दर्जनों
(C) हज़ारों
(D) सैकड़ों
उत्तर-
(A) करोड़ों

प्रश्न 21.
फसल किसके स्पर्श की महिमा है?
(A) मिट्टी की
(B) हवा की
(C) जल की
(D) हाथों की
उत्तर-
(D) हाथों की

प्रश्न 22.
फसल कविता की भाषा की विशिष्टता है
(A) बोलचाल की
(B) भाव प्रधान
(C) व्यंग्यात्मक
(D) ओज गुण संपन्न
उत्तर-
(A) बोलचाल की

प्रश्न 23.
फसल को किसका सिमटा हुआ संकोच कहा गया है?
(A) नदियों के पानी का
(B) हवा की थिरकन का
(C) सूरज की किरणों का
(D) उपर्युक्त सभी का
उत्तर-
(B) हवा की थिरकन का

प्रश्न 24.
फसल किसका रूपांतरण है?
(A) वायु का
(B) वर्षा की बूंदों का
(C) सूर्य की किरणों का
(D) किसान की सोच का
उत्तर-
(C) सूर्य की किरणों का

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यह दंतुरहित मुस्कान और फसल पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…
छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल? [पृष्ठ 39-40]

शब्दार्थ-दंतुरित = बच्चों के नए-नए दाँत। मृतक = मरा हुआ। जान डाल देना = जीवित कर देना। धूलि-धूसर = धूल में सना हुआ। गात = शरीर। जलजात = कमल का फूल। परस = स्पर्श । कठिन पाषाण = कठोर पत्थर।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘दंतुरित मुसकान’ किसकी है?
(ङ) बच्चे का शरीर किससे सना हुआ है?
(च) कवि की झोंपड़ी में नन्हा बच्चा किस रूप में है?
(छ) मृतक में जान डालने का सामर्थ्य किसमें है? मृतक में जान डालने का क्या अभिप्राय है?
(ज) धूल से सने बच्चे को देखकर कवि को क्या अनुभव हुआ?
(झ) “पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(अ) शेफालिका के फल क्यों और किससे झरने लगे?
(ट) ‘बाँस और बबूल’ किसको कहा गया है?
(3) प्रस्तुत पयांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) प्रस्तुत पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम यह दंतुरित मुसकान।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘यह दंतुरित मुसकान’ नामक कविता में से · ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री नागार्जुन हैं। इस कविता में उन्होंने छोटे बच्चे के प्रति अपने भावों को विविध बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है। जब कवि ने अपने छोटे-से बच्चे के मुसकराते हुए मुख में दो दाँत देखे तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। कवि ने उन भावों को ही इन शब्दों में व्यक्त किया है।

(ग) कवि अपने छोटे-से मुस्कुराते हुए बच्चे को देखकर कहता है कि तुम्हारी मुसकान इतनी मनमोहक है कि वह मुर्दे में भी जान डाल देती है अर्थात् यदि कोई जीवन से निराश हुआ व्यक्ति भी तुम्हारी इस भोली-सी हँसी को देख ले तो वह भी प्रसन्न हो उठेगा। मैं जब तुम्हारे इस धूल से सने हुए शरीर को देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि कमल का जो फूल तालाब के जल में खिलता है वह मानों तालाब के जल को छोड़कर मेरी झोंपड़ी में खिल गया है। कवि के कहने का भाव है कि धूल में सना हुआ यह नन्हा-सा बालक कमल के फूल के समान कोमल एवं सुंदर है।

कवि पुनः कहता है कि हे शिशु! तुम ऐसे प्राणवान एवं सुंदर हो कि तुम्हें छूकर ही ये कठोर चट्टानें पिघलकर जल की धारा बनकर बहने लगी हैं। कवि के कहने का अभिप्राय है कि बच्चे की मधुर एवं निश्छल हँसी को देखकर कठोर एवं निर्दयी व्यक्ति का हृदय भी द्रवित हो जाता है। इस शिशु के सामने चाहे बाँस का पेड़ हो अथवा बबूल का वृक्ष, शेफालिका के फूल बरसाने लगता है। कहने का भाव है कि बच्चे की मुसकान के सामने बुरे-से-बुरा व्यक्ति भी सरस बन जाता है। एक क्षण के लिए वह भी अपनी बुराई त्यागकर मुसकाने लगता है।

(घ) दंतुरित मुसकान उस छोटे बच्चे की है जिसके मुख में अभी-अभी दो नए दाँत उगे हों। (ङ) बच्चे का शरीर धूल मिट्टी से सना हुआ है। (च) कवि की झोपड़ी में नन्हा बच्चा कमल के समान सुंदर एवं कोमल फूल के रूप में है।

(छ) नए-नए दाँत निकालने वाले नन्हें बच्चे की हँसी में मृतक में जान डालने की शक्ति व सामर्थ्य होता है। मृतक में जान डालने का अभिप्राय है-निराश और उदास व्यक्ति के मन में प्रसन्नता को उत्पन्न करना।

(ज) धूल से सने बच्चे को देखकर कवि को ऐसा अनुभव हुआ मानो उसकी झोंपड़ी में कमल का फूल खिल उठा हो। कहने का भाव है कि बच्चे की सुकोमलता को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है।

(झ) कवि ने नन्हें से बच्चे की पावन हँसी को देखकर कल्पना की है कि छोटे बच्चे की हँसी में इतना आकर्षण होता है कि पत्थर की भाँति कठोर हृदय वाले व्यक्ति के मन में भी बच्चे की इस हँसी को देखकर सहज एवं सरस भाव उत्पन्न हो जाते हैं। वह उसे देखकर अपनी कठोरता व निर्दयता को कुछ क्षणों के लिए त्याग देता है।

(ञ) नन्हें शिशु के स्पर्श से बाँस व काँटेदार वृक्ष बबूल के समान बुरे व्यक्ति के मन में शेफालिका के फूल के समान सरस एवं सुंदर भाव उत्पन्न हो जाते हैं।

(ट) कवि ने यहाँ बाँस व बबूल नीरस, रूखे, निर्दयी एवं कठोर स्वभाव वाले पुरुष को कहा है।

(ठ) प्रस्तुत पद में कवि की बच्चे के प्रति अत्यंत कोमल एवं सरस भावों की कलात्मक अभिव्यक्ति हुई है। कवि अपने बच्चे के मुसकाने पर उसके मुख में उत्पन्न दो नए-नए उगे हुए दाँतों को देखकर अत्यंत प्रसन्न हो उठता है। पिता के अपने नन्हें से बच्चे के प्रति अत्यंत कोमल भावों का मनोरम वर्णन किया गया है। बच्चे की मधुर, निश्छल एवं पावन हँसी के प्रभाव का अत्यंत सजीव चित्रण भी देखते ही बनता है। कवि को अनुभव होता है कि बच्चे की कोमल हँसी में अपार सुंदरता एवं प्रभाव छुपा हुआ है।

(ड)

  • कवि ने अपने कोमल भावों को कल्पना के सहयोग से अत्यंत मधुर वाणी में व्यक्त किया है। .
  • तद्भव एवं तत्सम शब्दावली के मिश्रित प्रयोग से भाषा अत्यंत रोचक एवं व्यावहारिक बन पड़ी है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।
  • प्रतीकों एवं बिंबों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  • प्रश्न, अनुप्रास एवं अतिशयोक्ति अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
  • अतुकांत छंद है।

(ढ) प्रस्तुत काव्यांश में कविवर नागर्जुन ने शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। यहाँ भाषा के बोल-चाल रूप का प्रयोग किया गया है। जनवादी कवि होने के कारण ही भाषा में ग्रामीण एवं देशज शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दों के कारण भाषा अत्यन्त रोचक एवं व्यावहारिक बन पड़ी है।

[2] तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान [पृष्ठ 40]

शब्दार्थ-अनिमेष = निरंतर देखना, बिना पलक झपकाए देखना। परिचित = जाने-पहचाने। माध्यम = साधन।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवितांश का प्रसंग लिखें।
(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि ‘तुम मुझे पाए नहीं पहचान’ ?
(ङ) कवि नन्हें बालक को क्यों नहीं पहचान पाया?
(च) कवि बालक की मधुर मुसकान किसके माध्यम से देख सका?
(छ) नन्हा बालक कवि की ओर एकटक क्यों देख रहा था?
(ज) इस काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(झ) उपर्युक्त पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इन काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम यह दंतरित मुसकान।

(ख) प्रस्तुत कवितांश श्री नागार्जुन द्वारा रचित सुप्रसिद्ध कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से लिया गया है। कवि जब कई मास के पश्चात् घर लौटता है तो उनकी दृष्टि अपने छोटे बच्चे की निश्छल मसकान पर पड़ती है। कवि उस मुसकान से अत्यंत प्रभावित होता है। कवि के मन में वात्सल्य भाव जागृत होते हैं, जिनका वर्णन इन पंक्तियों में किया गया है।

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(ग) कवि अपने नन्हें बालक को देखकर उससे पूछता है कि क्या तुम मुझे पहचान गए हो? क्या तुम मुझे इस प्रकार एकटक देखते ही रहोगे। क्या तुम इस प्रकार मेरी ओर निरंतर देखते हुए थक गए हो? क्या मैं तुम्हारी ओर से अपना मुँह फेर लूँ अर्थात् वह बच्चे की ओर न देखे। कवि पुनः कहता है कि क्या हुआ कि यदि वह मुझे पहली बार न पहचान सका। कहने का तात्पर्य है कि वह अभी बहुत छोटा है किंतु बहुत भोला और सुंदर है।
कवि पुनः कहता है कि हे सुंदर दाँतों वाले मेरे बच्चे! यदि तुम्हारी माँ मेरे और तुम्हारे बीच माध्यम न बनी होती तो मैं कभी भी तुम्हारे सुंदर कोमल रूप और तुम्हारी मधुर मुसकान को देख न पाता। कवि के कहने का भाव है कि संतान और पिता के बीच संबंध जोड़ने का माध्यम माँ ही होती है। यदि वह बच्चे की माँ होती है तो पिता की पत्नी भी होती है।

(घ) नन्हा बच्चा अनजान व्यक्ति को सामने पाकर उसे टकटकी लगाकर देखने लगा। बच्चे की आँखों में उत्सुकता और अजनबीपन का भाव था। इसलिए कवि ने बच्चे के इस अनोखे भाव को देखकर ये शब्द कहे थे।

(ङ) कवि लंबे समय के पश्चात् घर लौटा था। बच्चे का जन्म उसकी अनुपस्थिति में हुआ होगा और कवि ने पहली बार बच्चे को देखा होगा इसलिए कवि बच्चे को पहचान नहीं पाया था।

(च) कवि शिशु की मधुर मुसकान शिशु की माँ के माध्यम से ही देख पाया था। जब तक बच्चा कवि के लिए अनजान था तब तक मौन एवं स्थिर बना रहा, किंतु जब उसकी माँ ने बच्चे का कवि से परिचय करवाया तभी वह मुसकाने लगा।

(छ) नन्हें बालक ने कवि को पहली बार देखा था। वह कवि को पहचानने का प्रयास कर रहा था। कवि कई मास के पश्चात् घर लौटा था। इसलिए बच्चा उसे अजनबी समझकर उसे पहचानने का प्रयास कर रहा था।

(ज) कवि अपनी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भली-भाँति नहीं कर पाया था। इसलिए कवि के मन का अपराध बोध व्यक्त हो रहा है। दूसरी ओर, बालक की मधुर एवं निश्छल मुसकान के प्रभाव का भी सजीव चित्रण हुआ है।

(झ)

  • प्रस्तुत कवितांश में कवि ने अपने भावों का उल्लेख अत्यंत सरल भाषा में किया है।
  • भाषा सरल, सहज, आडंबरहीन एवं भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
  • संबोधन शैली के कारण विषय रोचक बन पड़ा है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ तद्भव एवं देशज शब्दों का भी सार्थक प्रयोग किया गया है।

(ञ) इन काव्य पंक्तियों में कवि ने सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। कविवर नागार्जुन ने अपने छोटे बच्चे की मधुर एवं पावन मुसकान को प्रभावशाली भाषा में अभिव्यक्त किया है। ग्राम्यभाषा अथवा लोकभाषा के शब्दों के प्रयोग के कारण भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है। छोटे-छोटे शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में लयात्मकता का समावेश हुआ है।

[3] धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रह संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही है मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान! [पृष्ठ 40]

शब्दार्थ-धन्य = सम्मान के योग्य, भाग्यशाली। चिर प्रवासी = देर तक घर से बाहर दूर देश में रहने वाला। इतर = अन्य, दूसरा। संपर्क = संबंध। मधुपर्क = दही, घी, शहद, जल और दूध का मिश्रण, जिसे पंचामृत कहा जाता है, आत्मीयता से परिपूर्ण वात्सल्य। कनखी मार = तिरछी नज़रों से। आँखें चार होना = प्रेम होना, नज़रें मिलना। छविमान = सुंदर।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम बताइए।
(ख) प्रस्तुत कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किसे और क्यों धन्य कहा है?
(ङ) कवि ने अपने आपको चिर प्रवासी क्यों कहा है?
(च) मधुपर्क से क्या अभिप्राय है? मधुपर्क का सांकेतिक अर्थ क्या है?
(छ) कविता में किस-किसकी आँखें चार हुई हैं?
(ज) कवि को क्या छविमान लगती है?
(झ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम यह दंतुरित मुसकान।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘यह दंतरित मुसकान’ से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता नागार्जुन हैं। इस कविता में कवि ने एक नन्हें बालक की मधुर मुसकान के प्रति उत्पन्न भावों को सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की है। कवि लंबे समय के पश्चात् घर लौटता है। उसने अपने बच्चे के मुँह में उगे हुए नए-नए दाँतों की चमक से शोभायमान मुसकान को देखा था। इससे उसे असीम खुशी प्राप्त हुई थी।

(ग) कवि शिशु को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम सौभाग्यशाली हो और तुम्हारी माँ भी अत्यंत सौभाग्यशाली है। मैं तुम दोनों के प्रति आभारी हूँ। मैं तो बहुत लंबे समय से घर से बाहर रहा हूँ इसलिए मैं तो बाहर वाला व कोई दूसरा हूँ। मेरे प्रिय बच्चे मैं तो तुम्हारे लिए किसी अतिथि की भाँति हूँ। तुम्हारे लिए मेरा कोई संबंध नहीं रहा। तुम्हारे लिए तो मैं अनजान-सा ही हूँ। मेरी लंबे समय की अनुपस्थिति में तुम्हारी माँ ही आत्मीयतापूर्ण तुम्हारा पालन-पोषण करती रही है। तुम्हें अपनी स्नेह देती रही। वह तुम्हें पंचामृत चटाकर तुम्हारा पोषण करती रही। तुम मेरी ओर बड़ी हैरानी से कनखियों में से देख रहे थे। जब भी अचानक तुम्हारी और मेरी नज़रें मिल जाती थीं तो मुझे तुम्हारे चमकते हुए दातों से युक्त मुसकान दिखाई दे जाती है। वास्तव में, मुझे तुम्हारी दुधिया दाँतों से सजी हुई मुसकान बहुत ही सुंदर लगती है। मैं तुम्हारी इस निश्छल मुसकान पर मुग्ध हूँ।

(घ) कवि ने अपनी पत्नी और बेटे को धन्य कहा है क्योंकि उनके कारण उसे अपार प्रसन्नता प्राप्त हुई थी। वह स्वयं को भी धन्य मानने के योग्य बना था।

(ङ) कवि ने अपने-आपको चिर प्रवासी इसलिए कहा है कि क्योंकि वह अधिकतर घर से बाहर ही रहता था और इस समय भी वह कई महीनों के पश्चात् घर आया था।

(च) मधुपर्क दूध, दही, घी, शहद और जल के मिश्रण को कहते हैं। यहाँ मधुपर्क का सांकेतिक अर्थ है-माँ की आत्मीयता भरा वात्सल्य।

(छ) कविता में कवि और नन्हें शिशु की आँखें चार हुई हैं अर्थात् कवि की ओर शिशु टकटकी लगाए देखता रहा। शिशु कवि को देखकर मुसकराने लगता है।

(ज) कवि को शिशु की नए-नए दाँतों वाली मधुर मुसकान छविमान लगती है जिससे देखकर कवि का हृदय गद्गद् हो उठता है।

(झ) प्रस्तुत पद्यांश में माँ और बच्चे के आत्मीय संबंध की महिमा का उल्लेख किया गया है। नए-नए उगे हुए दाँतों वाले नन्हें बच्चे की मुसकान, उसकी तिरछी नज़रों से देखना और प्रेम व्यक्त करना आदि भावों का मनोरम चित्रण किया गया है।

(ञ)

  • कवि ने नन्हें शिशु की मधुर मुसकान से संबंधी भावों को अत्यंत सजीवतापूर्वक व्यक्त किया है।
  • भाषा मुहावरेदार है। ‘आँखें चार होना’ मुहावरे का सफल प्रयोग देखते ही बनता है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सार्थक प्रयोग हुआ है।
  • तुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।
  • अनुप्रास अलंकार का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग है।

(ट) प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि ने सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। ‘आँख चार होना’ आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा में सारगर्भिता एवं रोचकता का समावेश हुआ है। संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव तथा देशज शब्दों के प्रयोग से भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है। अलंकारों के सफल प्रयोग से भाषा को अलंकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है।

फसल

कविता का सार

प्रश्न-
‘फसल’ नामक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
‘फसल’ शब्द के सुनते ही लहलहाती फसल का चित्र आँखों के सामने आ जाता है। प्रस्तुत कविता ‘फसल’ में कवि ने बताया है कि फसल को उत्पन्न करने में विभिन्न तत्त्वों का योगदान रहता है। उनके अनुसार फसल उगाने में नदियों के पानी का, अनेक मनुष्य के हाथों की मेहनत का तथा खेतों की उपजाऊ मिट्टी का योगदान रहता है। इनके अतिरिक्त फसलों को उत्पन्न करने में , सूरज की किरणों और हवा का भी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। साथ ही कवि ने स्पष्ट किया है कि प्रकृति और मनुष्य के सहयोग से ही सृजन संभव है। आज के उपभोक्तावादी संस्कृति के युग में कवि ने कृषि-संस्कृति का जोरदार शब्दों में समर्थन किया है।

पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म : [पृष्ठ 40-41]

शब्दार्थ-पानी का जादू = पानी का प्रभाव। कोटि = करोड़ों। स्पर्श = छूना। गरिमा = गौरव।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘एक के नहीं, दो के नहीं’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(ङ) ‘कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(च) ‘मिट्टी का गुण धर्म’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(छ) इस पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ज) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(झ) प्रस्तुत काव्यांश के भाषा वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम-फसल।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘फसल’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता नागार्जुन हैं। इस कविता में कवि ने बताया है कि फसल उत्पन्न करने के लिए मनुष्य एवं प्रकृति एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।
(ग) कवि कहता है कि फसल उत्पन्न करने के लिए अनेक नदियों के पानी का अपना जादू जैसा प्रभाव दिखाई देता है अर्थात् नदियों से प्राप्त पानी से ही फसलें उगाई जाती हैं। पानी से उगकर फसलें बड़ी होती हैं। फसल को उगाने के लिए करोड़ों व्यक्तियों का सहयोग होता है अर्थात् फसल उगाने के लिए करोड़ों लोग काम करते हैं। यह करोड़ों लोगों के परिश्रम का फल होता है। इसमें अनेक खेतों की उपजाऊ मिट्टी के गुणों का योगदान भी होता है। इसके पीछे मिट्टी के गुण धर्म भी छिपे रहते हैं।

(घ) कवि के इस कथन का तात्पर्य है कि फसल उगाने के लिए अनेक नदियों के जल का सहयोग रहता है। इसी प्रकार एक दो व्यक्तियों के सहयोग से नहीं, अपितु अनेकानेक लोगों की मेहनत से फसल उगाई जाती है। इसी तरह अनगिनत खेतों का भी योगदान रहता है। .

(ङ) इस पंक्ति का भाव है कि फसल उगाने में देश के करोड़ों किसान अपने हाथ से काम करते हैं। फसल उगाने में करोड़ों किसानों के श्रम का गौरव सम्मिलित है।

(च) ‘मिट्टी का गुण धर्म’ का तात्पर्य है कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति व विशेषताएँ। हमारे देश में कई प्रकार की मिट्टी पाई जाती है तथा हर प्रकार की मिट्टी की विशेषताएँ व गुण अलग-अलग होते हैं। इसलिए मिट्टी के इन्हीं गुणों के कारण यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलें होती हैं।

(छ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने फसल उगाने अथवा कृषि के क्षेत्र में किए जाने वाले श्रम के महत्त्व को उजागर किया है। कवि ने देश की विभिन्न नदियों, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, वातावरण एवं मानव श्रम से संबंधित अपने भावों को सशक्त भाषा में अभिव्यक्त किया है।

(ज)

  • प्रस्तुत कविता में कवि ने फसलें उगाने वाली सभी शक्तियों व साधनों का काव्यात्मक उल्लेख किया है।
  • ‘एक नहीं दो नहीं’ की आवृत्ति के कारण, जहाँ कविता की भाषा में प्रवाह का संचार हुआ है वहाँ भाव को सर्वव्यापकता भी मिली है।
  • ‘पानी का जादू’ प्रयोग से पानी के महत्त्व व गुणों की ओर संकेत किया गया है।
  • पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास अलंकारों का सहज एवं सफल प्रयोग किया गया है।
  • भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
  • तत्सम, तद्भव एवं देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

(झ)

प्रस्तुत काव्यांश में कविवर नागार्जुन ने सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। छोटे-छोटे शब्दों के सफल प्रयोग से जहाँ विषय को रोचकतापूर्ण भाषा में स्पष्ट किया है, वहीं भाषा भी प्रभावशाली बन पड़ी है। आदि से अन्त तक भाषा का प्रवाह बना हुआ है। शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में लयात्मकता का समावेश हुआ है।

[2] फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का! [पृष्ठ 41]

शब्दार्थ-महिमा = यश। संदली = एक विशेष प्रकार की मिट्टी। रूपांतर = बदला हुआ रूप। संकोच = सिमटा हुआ रूप। थिरकन = नाचना, लहराना।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसका वर्णन किया है?
(ङ) ‘हाथों के स्पर्श की महिमा’ किसे कहा है और क्यों?
(च) फसलों को सूर्य की किरणों का रूपांतर कहना कहाँ तक उचित है?
(छ) मिट्टी के लिए ‘संदली’ शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है?
(ज) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(झ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम-फसल।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘फसल’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री नागार्जुन हैं। उन्होंने बताया है कि फसल उगाना मनुष्य और प्रकृति का सम्मिलित प्रयास है।

(ग) कवि प्रश्न करता है कि आखिर फसल क्या है? कवि अपने आप इस प्रश्न का उत्तर देता हुआ कहता है कि ये फसलें और कुछ नहीं हैं, वे तो नदियों के पानी से सिंचकर पुष्ट हुई हैं। इन फसलों पर नदियों के जल का जादू जैसा प्रभाव होता है। किसानों के हाथों का स्पर्श और श्रम पाकर फसलें खूब फलती-फूलती हैं। कवि के कहने का भाव है कि फसलों को उगाने और उनके फलने-फूलने में नदियों का पानी और किसानों की मेहनत ही काम करती है। किसानों की मेहनत से ही फसलें फली-फूली हैं। ये फसलें विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगती हैं। कहीं काली व भूरी मिट्टी है तो कहीं संदली मिट्टी है। हर प्रकार की मिट्टी में अपना-अपना गुण होता है, उसी के अनुसार उनमें फसलें उगाई जाती हैं। कहने का भाव है कि मालिटी के गुण, स्वभाव और विशेषताएँ भी छिपी रहती हैं। ये फसलें सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। सूत्र को किरणों की गर्मी से ही फसलें पकती हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि फसलें सूर्य की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। ऐसा लगता है कि हवाओं की थिरकन सिमटकर इन फसलों में समा गई है अर्थात् हवा के चलने पर खेतों में खड़ी फसलें लहलहाने लगती हैं। कहने का तात्पर्य है कि फसलों को उगाने में हवाओं का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।

(घ) इस पद्यांश में कवि ने फसलों पर विचार करते हुए उनके उगाने में पानी, किसान के परिश्रम, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, सूर्य की गर्मी और हवाओं की भूमिका का वर्णन किया है।

(ङ) ‘हाथों के स्पर्श की महिमा’ किसान के द्वारा किए गए परिश्रम के महत्त्व को कहा गया है। किसान दिन-रात परिश्रम करता है, तब कहीं जाकर फसलें उगती हैं। बिना परिश्रम के फसलें नहीं उगाई जा सकतीं। अतः किसान की मेहनत के महत्त्व को उजागर करने के लिए ये शब्द कहे गए हैं।

(च) फसलें सूर्य की किरणों का रूपांतर अर्थात् बदला हुआ रूप हैं। सूर्य की किरणों की गर्मी से फसलें पकती हैं। अतः इन्हें सूर्य की किरणों का रूपांतर कहना उचित है।

(छ) संदली का अर्थ है-चंदन। ऐसी मिट्टी जिसमें सौंधी-सौंधी-सी गंध आती हो। ऐसी मिट्टी फसल उगाने के लिए अत्यंत उपयुक्त होती है। कवि ने मिट्टी की इसी विशेषता को प्रकट करने के लिए ‘संदली’ शब्द का प्रयोग किया है।

(ज) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने फसलों को उगाने वाले सभी तत्त्वों के प्रभाव और उनके महत्त्व को सफलतापूर्वक अभिव्यंजित किया है। कवि ने किसान के परिश्रम, पानी के महत्त्व, सूर्य की गर्मी के प्रभाव, हवाओं की भूमिका आदि का फसलों के संदर्भ में उल्लेख किया है।

(झ)

  • कवि ने सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग करके विषय को अत्यंत ग्रहणीय बनाया है।
  • ‘पानी का जादू’ आदि लाक्षणिक प्रयोग देखते ही बनते हैं।
  • प्रश्नोत्तर शैली के प्रयोग से विषय रोचक बन पड़ा है।
  • संस्कृत के शब्दों के साथ तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया गया है।
  • तुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।

(ञ) श्री नागार्जुन ने इन काव्य पंक्तियों में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। छोटे-छोटे वाक्यों का सफल प्रयोग किया गया है। तद्भव व तत्सम शब्दावली का प्रयोग विषयानुकूल किया गया है। प्रवाहमयता, रोचकता तथा भावाभिव्यक्ति की क्षमता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषताएँ हैं।

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Summary in Hindi

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर नागार्जुन का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं और भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-सुप्रसिद्ध जनवादी कवि नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था। आपका जन्म बिहार प्रदेश के दरभंगा जिले के सतलखा नामक गाँव में सन् 1911 में हुआ। अल्पायु में ही इनकी माँ का देहांत हो गया। एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में इनका लालन-पालन हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत विद्यालय में हुई। सन् 1936 में श्रीलंका में जाकर इन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली। राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के कारण अनेक बार उनको जेल भी जाना पड़ा। संस्कृत, पाली, प्राकृत तथा हिंदी सभी भाषाओं का इन्होंने गहरा अध्ययन किया। बाल्यावस्था में कष्टों और पीड़ाओं को भोगने के कारण इनके काव्य में पीड़ा का अधिक महत्त्व है। वैसे ये स्वभाव से फक्कड़, मस्तमौला तथा अपने मित्रों में नागा बाबा के नाम से जाने जाते हैं। सन् 1998 में उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-1) काव्य–’युगधारा’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘सतरंगे पंखों वाली’, ‘प्यासी परछाई’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘हजार-हजार बाँहों वाली’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘खून और शोले’, ‘चना जोर गर्म’ तथा ‘भस्मांकुर’ (खंडकाव्य)।
(ii) उपन्यास-‘वरुण के बेटे’, ‘हीरक जयंती’, ‘बलचनमा रतिनाथ की चाची’, ‘नई पौध’, ‘कुंभीपाक और उग्रतारा’ । __ आपने दीपक (हिंदी मासिक) तथा विश्वबंधु (साप्ताहिक) का संपादन भी किया। मैथिली में रचित काव्य रचना पर इनको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला है।

3. काव्यगत विशेषताएँ-नागार्जुन एक जनवादी कवि हैं, अतः इनका काव्य मानव-जीवन से संबद्ध है। इनका काव्य वैविध्यपूर्ण है। इनकी कुछ कविताओं में मानव मन की रागात्मक अनुभूति का सुंदर वर्णन हुआ है। कुछ रचनाओं में इन्होंने सामाजिक विषमताओं तथा राजनीतिक विद्रूपताओं पर व्यंग्य किया है। इस प्रकार प्रगतिवादी विचारधारा के साथ-साथ प्रेम और सौंदर्य का चित्रण भी इनके काव्य में हुआ है। अन्यत्र ये प्रकृति वर्णन में भी रुचि लेते हुए दिखाई देते हैं। इनके समूचे काव्य में देश-प्रेम की भावना विद्यमान है। पुनः नागार्जुन ने वर्तमान व्यवस्था के प्रति आक्रोश प्रकट करते हुए समाज की रूढ़ियों और जड़ परंपराओं पर भी प्रहार किया है।

4. भाषा-शैली-नागार्जुन की भाषा खड़ी बोली है, लेकिन इन्होंने खड़ी बोली के बोलचाल रूप को ही अपनाया है। जनवादी कवि होने के कारण इनकी भाषा में ग्रामीण और देशज शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। कुछ स्थलों पर अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। इन्होंने अपनी कविताओं में शृंगार, वीर तथा करुण तीनों रसों को समाविष्ट किया है, इससे भाषा में भी सरलता, कोमलता तथा कठोरता आ गई है। जहाँ आक्रोश तथा व्यंग्यात्मकता का पुट है, वहाँ अलंकारों का बहुत कम प्रयोग हुआ है। शब्द की तीनों शक्तियों-अभिधा, लक्षणा तथा व्यंजना का सार्थक प्रयोग हुआ है। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। कुछ स्थलों पर प्रतीक विधान तथा बिंब योजना भी देखी जा सकती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल कविता का सार

प्रश्न-
‘यह दंतुरित मुसकान’ नामक कविता का सार लिखें।
उत्तर-
“यह दंतुरित मुसकान’ नागार्जुन की प्रमुख कविता है। इसमें उन्होंने छोटे बच्चे की अत्यंत आकर्षक मुसकान को देखकर मन में उमड़े हुए भावों को विविध बिंबों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। कवि के मतानुसार इस सुंदरता में जीवन का संदेश है। बच्चे की उस मधुर मुसकान के सामने कठोर-से-कठोर हृदय भी पिघल जाता है। उसकी मुसकान में अद्भुत शक्ति है जो किसी मृतक में भी नया जीवन फूंक सकती है। धूल मिट्टी में सना हुआ बच्चा तो ऐसा लगता है मानो वह कमल का कोमल फूल है जो तालाब का जल त्यागकर उसकी झोंपड़ी में खिल उठा हो। उसे छूकर तो पत्थर भी जल बन जाता है। उसे छूकर शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। छोटा-सा शिशु कवि को पहचान नहीं सका। इसलिए वह उसकी ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है। कवि मानता है कि वह उस मोहिनी सूरत वाले बालक और उसके सुंदर दाँतों को उसकी माँ के कारण ही देख सका था। वह माँ धन्य है और बालक की मधुर मुसकान भी धन्य है। वह इधर-उधर घूमने वाले प्रवासी के समान था। इसलिए उसकी पहचान नन्हें बच्चे के साथ नहीं हो सकी थी। जब वह कनखियों से कवि की ओर देखता तो उसकी छोटे-छोटे दाँतों से सजी मुसकान कवि का मन मोह लेती थी।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

HBSE 10th Class Hindi बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers

पाठ 11 बालगोबिन भगत प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? .
उत्तर-
बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी करने वाले गृहस्थ थे, किंतु उनका संपूर्ण व्यवहार साधुओं जैसा था। सर्वप्रथम तो हम कह सकते हैं कि उनका जीवन उनके ईश्वर (साहब) के प्रति अर्पित था। उनमें किसी प्रकार का अहम् भाव नहीं था। वे अपने-आपको ईश्वर का बंदा मानते थे। वे अपनी कमाई पर सर्वप्रथम ईश्वर का अधिकार मानते थे। इसलिए वे अपने खेत में उत्पन्न होने वाली फसल को सर्वप्रथम कबीरपंथी मठ में ले जाते थे। वहाँ से उन्हें जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता था, उससे वे अपना गुजारा करते थे। वे तो अपने जीवन को ही प्रभु की देन मानते थे। वे सदैव सुख-दुःख में समभाव रहते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और न ही किसी से धोखे का व्यवहार करते थे। वे तन-मन से प्रभु के गुणों का गान करते रहते थे। इन सब बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी साधु कहलाते थे।

बालगोबिन भगत के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर-
भगत की पुत्रवधू बहुत समझदार युवती थी। पुत्र की मृत्यु के बाद भगत के घर में एकमात्र उनकी पुत्रवधू ही थी जो उनकी देखभाल कर सकती थी। वह सोचती थी कि यदि मैं भी यहाँ से चली गई तो कौन इनकी देखभाल करेगा? बुढ़ापे में कौन इनकी सेवा करेगा? बीमार होने पर कौन इनकी दवा-पानी करेगा? कौन इनको भोजन देगा? इन सब बातों के कारण ही वह भगत को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी।

बालगोबिन भगत पाठ का सार HBSE 10th Class प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस प्रकार व्यक्त की?
उत्तर-
बालगोबिन भगत का पुत्र उनकी एकमात्र संतान थी। वह कुछ सुस्त और बोदा-सा था। भगत उसे बहुत प्यार करते थे। किंतु अब वह बीमार रहने लगा और भगत द्वारा बचाने के प्रयास करने पर भी वह मर गया। भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर दूसरों की भाँति शोक नहीं मनाया। उनका मत था कि उनके बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। आज एक विरहिणी अपने प्रियतम के पास चली गई है। उसके मिलन का दुःख कैसा, उसके मिलन की तो खुशी मनाई जानी चाहिए। उन्होंने अपने बेटे के शव को फूलों से सजाया और उसके सामने आसन जमाकर प्रभु भजन गाने लगे। उसके सिराहने दीप जलाकर रख दिया था। जब उनकी पुत्रवधू रोने लगी तो उन्होंने उसे भी खुशी मनाने के लिए कहा था।

बालगोबिन भगत पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत की आयु लगभग साठ वर्ष की रही होगी। वे मँझोले कद वाले गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे। उनके बाल सफेद थे। उनके चेहरे पर उनके सफेद बाल चमचमाते रहते थे। माथे पर चंदन का लेप रहता था। कपड़ों के नाम पर कमर पर एक लंगोटी
और एक कबीरपंथी टोपी रहती थी। सर्द ऋतु आने पर वे काले रंग की कमली धारण करते थे। उनके गले में तुलसी की जड़ों से बनी एक बेडौल माला पड़ी रहती थी। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उनमें एक सच्चे साधु-संन्यासियों के सभी गुण थे। वे कबीर के पदों को अपनी मधुर आवाज़ में गाते रहते थे। वे सदा कबीर के द्वारा बताए गए आदर्शों पर चलते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कभी किसी से धोखा नहीं करते थे। वे सबसे सदा खरा-खरा व्यवहार करते थे। वे सदा सत्य बोलते थे तथा कभी किसी से व्यर्थ का झगड़ा नहीं करते थे। दूसरों की वस्तुओं को कभी लेते या छूते तक नहीं थे। ईश्वर में पूर्ण रूप से उनकी आस्था थी। वे सदैव समभाव रहते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

Bal Govind Bhagat Class 10th Hindi HBSE प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए थी क्योंकि वे अपने दैनिक जीवन में भी नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। वे प्रातः बहुत जल्दी उठते और गाँव से लगभग दो मील दूर नदी पर जाकर स्नान करते थे। वापसी पर पोखर के ऊँचे स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाते हुए कबीर के पदों का गान करते थे। वे गर्मी-सर्दी की चिंता किए बिना प्रतिदिन ऐसा करते थे। वे बिना पूछे किसी की वस्तु को छूते नहीं थे, यहाँ तक कि किसी के खेत में कभी शौच भी न करते थे। इस प्रकार अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में नियमों का ऐसा दृढ़ता से पालन करना लोगों के अचरज का कारण था।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास से अत्यधिक प्रभावित थे। यहाँ तक कि उन्हें ‘साहब’ कहते थे। इसलिए वे कबीर के प्रभु भक्ति संबंधी पदों का तल्लीनतापूर्ण गायन करते थे। उनके स्वर प्रभु की सच्ची पुकार थी। उनके गीतों का स्वर हृदय से निकला हुआ स्वर था। उनके गीतों को सुनने वाला हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता था। औरतें और बच्चे तो उनके गीतों को गुनगुनाने लग जाते थे। खेतों में काम करने वाले किसानों व मजदूरों के हाथ और पाँव एक विशेष लय में चलने लगते थे। उनके संगीत का हर दिल पर एक विशेष प्रभाव पड़ता था। जब भगत भजन गाता था तो चारों ओर एक मधुर वातावरण छा जाता था। गर्मी-सर्दी आदि हर मौसम में उनकी मधुर ध्वनि की लहरियाँ सुनी जा सकती थीं।।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–
पाठ के आधार पर कहा जा सकता है कि निश्चित रूप से बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। इस बात को प्रमाणित करने के लिए पाठ के कुछ मार्मिक प्रसंग इस प्रकार हैं
पुत्र की मृत्यु पर विलाप न करके उसके शव के सामने आसन जमाकर तल्लीनता से गीत गाना। पुत्र की चिता को अग्नि स्वयं या किसी अन्य पुरुष से दिलवाने की अपेक्षा अपनी पुत्रवधू से दिलवाना। इसके साथ-साथ पुत्रवधू को उसके भाई के साथ वापस भेज देना ताकि वह पुनः विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत कर सके। एक गृहस्थ होते हुए भी वे सच्चे साधु का जीवन व्यतीत करते थे।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए। .
उत्तर-
आषाढ़ के महीने में वर्षा होने पर चारों ओर खेतों में धान की फसल की ज्यों ही रोपाई आरंभ होती तो बालगोबिन भगत के भगवद् भक्ति के गीतों की स्वर लहरियाँ भी चारों ओर के वातावरण को संगीतमय बना देती थीं। ऐसा लगता था कि उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत की सीढ़ियों पर चढ़ाकर मानो स्वर्ग की ओर भेज रहा हो। खेलते हुए बच्चे झूम उठते थे, मेंड़ पर खड़ी औरतें गुनगुनाने लगती थीं, हलवाहों के पैर ताल के साथ उठने लगते थे और रोपनी करने वालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थीं। चाहे मूसलाधार वर्षा हो, चाहे तेज़ गर्मी या जाड़ों की कड़कती सुबह, उनके संगीत को कोई भी मौसम प्रभावित नहीं कर पाता था। गर्मियों की उमस भरी संध्या में उनके घर में आँगन में खंजड़ी-करताल की भरमार हो जाती थी। एक निश्चित ताल और निश्चित गति से जब उनका स्वर ऊपर उठता था तो उनकी प्रेमी-मंडली के मन भी ऊपर उठते जाते थे और फिर धीरे-धीरे सभी बालगोबिन के साथ नृत्यशील हो उठते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास के अनन्य उपासक एवं श्रद्धालु थे। उनकी यह श्रद्धा व उपासना विभिन्न रूपों में व्यक्त हुई है-
कबीरदास ईश्वर में आस्था रखते थे। इसलिए बालगोबिन भगत कबीरदास की इस भावना से अत्यंत प्रभावित हुए और उनके बताए हुए जीवन आदर्शों पर चलने लगे थे। जैसे कबीरदास ने गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए प्रभु भक्ति की, वैसे ही बालगोबिन भगत भी गृहस्थ जीवन में रहते हुए सदा प्रभु-भजन में लीन रहते थे। कबीर जीवन में दिखावे व पाखंड से दूर रहे, सामाजिक परंपराओं और अंधविश्वास का खंडन किया। बालगोबिन भगत ने पुत्रवधू के हाथ से पति की चिता को आग दिलवाकर और उसे स्वयं पुनर्विवाह के लिए प्रेरित करके कबीरदास के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है। वे कबीर की भाँति सदा सत्य आचरण का पालन करते रहते थे।
कबीर की भाँति उन्होंने भी नर-नारी को समान माना और संसार व शरीर को नश्वर और आत्मा को अमर माना। वे कबीर की भाँति मन को ईश्वर भक्ति में लगाने की प्रेरणा देते थे।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर-
भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के अनेक कारण थे, यथा-कबीर समाज में प्रचलित रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे भगवान् के निराकार रूप को मानते थे जिसमें मनुष्य के अंत समय में आत्मा से परमात्मा का मिलन होता . है। वे गृहस्थी होते हुए भी व्यवहार से साधु थे। इसी प्रकार कबीर जीवन और जीवन की वस्तुओं में ईश्वर की कृपा मानते थे। बालगोबिन भगत कबीर के जीवन की इन विशेषताओं के कारण ही उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखते होंगे।

प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर-
गाँव में किसानों की संख्या अधिक होती है। उनका मुख्य धंधा खेती होता है। ज्येष्ठ की तपती गर्मी के पश्चात् आषाढ़ मास में बादल उमड़कर वर्षा करने के लिए आ जाते हैं। इससे किसानों के हृदयों में प्रसन्नता का भाव भर जाता है। वर्षा की रिमझिम आरंभ हो जाती है। किसान धान की रोपाई का काम आरंभ कर देते हैं। गाँव के लोग खेतों में काम पर लग जाते हैं। बच्चे भी गीली मिट्टी में लिथड़कर भरपूर आनंद उठाते हैं। औरतें भी खेतों के काम करने के लिए निकल पड़ती हैं। अतः आषाढ़ के आते ही गाँव के सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में उल्लास भर जाता है।

प्रश्न 12.
“ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर-
साधु की पहचान उसके पहनावे से नहीं की जा सकती। आज के युग में लाखों की संख्या में साधु का पहनावा पहनकर लोग पेट-पूजा करने में जुटे हुए हैं। क्या उन सबको साधु मान लिया जाए, वास्तव में साधु की पहचान तो उसके व्यवहार एवं विचारों से ही की जानी चाहिए। साधु व्यक्ति की पहचान हम निम्नलिखित आधारों पर कर सकते हैं

(क) ईश्वर में आस्था होनी चाहिए और उसका जीवन प्रभु के प्रति समर्पित होना चाहिए।
(ख) सच्चे साधु का सरल स्वभाव होना नितांत आवश्यक है। यदि वह चंचल स्वभाव वाला है तो उसका व्यवहार भी वैसा ही होगा।
(ग) मधुर वाणी सच्चे साधु की अन्य प्रमुख पहचान है। कबीरदास ने भी मीठी वाणी की प्रशंसा की है। जो व्यक्ति सामाजिक बुराइयों का खंडन करता है और उनसे बचकर रहता है तथा उनके प्रति समाज के लोगों को सचेत करता है, वही सच्चा साधु कहलाता है।
ये सभी विशेषताएँ जिस व्यक्ति के जीवन में हों वह भले ही गृहस्थी क्यों न हो, फिर भी सच्चा साधु कहलाता है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे ?
उत्तर-
मोह और प्रेम दो भिन्न भाव हैं। बालगोबिन भगत का एक ही बेटा था जो दिमाग से सुस्त था। भगत जी ने उसका पालनपोषण बहुत प्यार एवं ध्यानपूर्वक किया। भगत का मत है कि ऐसे बच्चों को सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक प्यार की आवश्यकता होती है। भगत ने उसका विवाह भी बड़े चाव से किया। जब उसके बेटे की मृत्यु हो गई तब भगत ने बेटे के मोह में पड़कर उसकी मृत्यु का शोक नहीं किया। यहाँ तक कि उसकी पत्नी को भी शोक नहीं मनाने दिया। उसने जान लिया था कि शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है जो शरीर के नष्ट हो जाने पर परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार उसे अपने बेटे से प्रेम तो था, किंतु मोह नहीं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर-
(1) जब जब वह सामने आता
जब जब-कालवाची क्रियाविशेषण
सामने स्थानवाचक क्रियाविशेषण

(2) कपड़े बिल्कुल कम पहनते
बिल्कुल कम परिमाणवाची क्रियाविशेषण

(3) थोड़ी देर पहले मूसलाधार वर्षा हुई।
मूसलाधार–परिमाणवाची क्रियाविशेषण।

(4) न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते।
खामखाह रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(5) वे दिन-दिन. छीजने लगे।
दिन-दिन-कालवाची क्रियाविशेषण।

(6) जो सदा-सर्वदा सुनने को मिलते।
सदा-सर्वदा कालवाची क्रियाविशेषण।

(7) धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा।
धीरे-धीरे-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(8) मैं कभी-कभी सोचता हूँ।
कभी-कभी-कालवाचक क्रियाविशेषण।

(9) इधर पतोहू रो-रोकर कहती।।
रो-रोकर-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(10) उस दिन संध्या में गीत गाए।
संध्या में कालवाचक क्रियाविशेषण

पाठेतर सक्रियता

पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फोटो का संग्रह कर एक अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

पाठ में आषाढ़, भादो, माघ आदि में विक्रम संवत कलैंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कलैंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रातःकाल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर-
मैं रामपुर नगर का रहने वाला छात्र हूँ। यहाँ का वातावरण पाठ में दिखाए सांस्कृतिक वातावरण से नितांत भिन्न है। नगर में पक्की, चौड़ी सड़कें हैं। बड़े-बड़े कारखाने हैं जिनकी चिमनियों से धुआँ निकलता रहता है। वाहनों की ध्वनियाँ होती रहती हैं। सब लोग अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। गाड़ियों की भरमार है। वर्षा आने न आने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। गर्मी से बचने के लिए वर्षा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती क्योंकि यहाँ कूलर व ए०सी० जैसे आधुनिक साधन उपलब्ध हैं। यहाँ लोग रात को देर तक जागते हैं और प्रातःकाल में देर से उठने के आदी हो चुके हैं। यहाँ गाँवों की अपेक्षा प्रदूषण अत्यधिक है।

यह भी जानें-

प्रभातियाँ मुख्य रूप से बच्चों को जगाने के लिए गाई जाती हैं। प्रभाती में सूर्योदय से कुछ समय पूर्व से लेकर कुछ समय बाद तक का वर्णन होता है। प्रभातियों का भावक्षेत्र व्यापक और यथार्थ के अधिक निकट होता है। प्रभातियों या जागरण गीतों में केवल सुकोमल भावनाएँ ही नहीं वरन् वीरता, साहस और उत्साह की बातें भी कही जाती हैं। कुछ कवियों ने प्रभातियों में राष्ट्रीय चेतना और विकास की भावना पिरोने का प्रयास किया है।

श्री शंभूदयाल सक्सेना द्वारा रचित एक प्रभाती
पलकें, खोलो, रैन सिरानी।
बाबा चले खेत को हल ले सखियाँ भरती पानी ॥
बहुएँ घर-घर छाछ बिलोतीं गातीं गीत मथानी।
चरखे के संग गुन-गुन करती सूत कातती नानी ॥
मंगल गाती चील चिरैया आस्मान फहरानी।
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी ॥
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी।।
आलस छोड़ो, उठो न सुखदे! मैं तब मोल बिकानी।।
पलकें खोलो हे कल्याणी।।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

HBSE 10th Class Hindi बालगोबिन भगत Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बालगोबिन भगत किस संत को ‘साहब’ कहते थे और उन पर उसका कितना प्रभाव था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत संत कबीर को ‘साहब’ कहते थे अर्थात् उन्हें अपना स्वामी या ईश्वर समझते थे। उनके जीवन पर कबीरदास का गहरा प्रभाव था। कबीरदास अत्यंत निर्भीक तथा दो टूक बात कहने वाले संत थे। कबीरदास की भाँति बालगोबिन भगत भी सदा सत्य बोलने का पालन करते रहे और सबके साथ खरी-खरी बातें करते थे। वे अपने खेत की फसल को सबसे पहले कबीर पंथी मठ में ले जाकर उनके प्रति अर्पित करते थे। वे वहाँ से मिले शेष अनाज को प्रसाद समझकर स्वीकार करते थे। अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत कबीरदास के प्रति गहन आस्था रखते थे।

प्रश्न 2.
लेखक बालगोबिन भगत की किन बातों से प्रभावित था?
उत्तर-
लेखक बालगोबिन भगत की ईश्वरं भक्ति से अत्यधिक प्रभावित था। उनकी ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना से तो लेखक अत्यधिक प्रभावित था। इसके अतिरिक्त उनके मधुर गायन का प्रभाव भी लेखक पर देखा जा सकता है। जब वे अपनी मधुर ध्वनि में गाते थे तो अन्य लोग भी अपना काम छोड़कर उनकी मधुर संगीत लहरी को सुनने में तल्लीन हो जाते थे।

प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत बहुत सवेरे जाग जाते थे। वे गंगा-स्नान करने के पश्चात् किसी स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाकर प्रभु-भजन गाते थे। उसके पश्चात् वे अपने पशुओं का काम करते और स्वयं भोजन करके खेत में काम करने निकल पड़ते। संध्या होने पर वे घर लौट आते थे।

प्रश्न 4.
आपकी दृष्टि में बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष कब होता है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही बालगोबिन भगत एक अच्छे संगीतकार व गायक थे। किंतु उनकी संगीत साधना का चरमोत्कर्ष तब देखने को मिलता है जब अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे पहले की भाँति तल्लीनता से गाते रहे थे। उनका विश्वास था कि मृत्यु के पश्चात् आत्मा परमात्मा के पास चली जाती है। इससे बढ़कर खुशी का अवसर और क्या हो सकता है। यह समय रोने या शोक मनाने का नहीं, अपितु उत्सव मनाने का है।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत अपनी पुत्रवधू का पुनः विवाह क्यों करना चाहते थे? इसके पीछे उनकी कौन-सी भावना के दर्शन होते हैं?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू अभी जवान थी। उसका सारा जीवन उसके सामने पड़ा था। वे नहीं चाहते थे कि वह अपना सारा जीवन विधवा बनकर काटे। उनका यह भी मानना था कि वह अभी जवान है और उसकी आयु अभी वासनाओं पर नियंत्रण करने की नहीं है, वह पुनः विवाह करके लोगों द्वारा दिए जाने वाले तानों में भी बच सकती है। बालगोबिन भगत समाज की रूढ़िवादिता में विश्वास नहीं रखते थे और समाज की वस्तु-स्थिति को भी भली-भाँति समझते थे। इसलिए यह निर्णय उनकी दूरदर्शिता को व्यक्त करता है।

प्रश्न 6.
कार्तिक मास से फाल्गुन मास तक बालगोबिन भगत का प्रमुख कार्य क्या होता था? ।
उत्तर-
कार्तिक मास के आरंभ होते ही बालगोबिन भगत का प्रभाती गायन आरंभ हो जाता था। उनकी प्रभाती फाल्गुन मास तक निरंतर चलती थी। वे बहुत सवेरे उठते दो मील दूर गंगा-स्नान करते और वापसी में गाँव के पोखर पर बैठकर अपनी बँजड़ी बजाते हुए प्रभु-भजन गाते रहते थे। वे इतनी तल्लीनता से गाते थे कि अपने आस-पास के वातावरण को भी भूल जाते थे। वे माघ की सर्दी में इतनी उत्तेजना से गाते थे कि उन्हें पसीना आ जाता था जबकि सुनने वाले ठंड से काँप रहे होते थे।

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत की मृत्यु पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर–
बालगोबिन भगत हर वर्ष गंगा-स्नान के लिए जाते थे, किंतु अब वे अत्यधिक बूढ़े हो गए थे। उनका शरीर भी कमज़ोर पड़ चुका था। किंतु वे अपने नियम पर अङिग रहे और गंगा स्नान के लिए पहले की भाँति ही गए। वे मार्ग मे कुछ नहीं खाते थे। इस वर्ष जब वे गंगा-स्नान से लौटे तो उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरने लगा किंतु वे अपने जीवन के नेम-व्रत पालन पर अङिग रहे। वे दोनों समय स्नान ध्यान व गायन करते तथा खेतीबाड़ी की देखभाल भी करते। लोग उन्हें आराम करने की सलाह देते तो हँसकर टाल देते। एक दिन वे गीत गाकर सोए तो उनके प्राण पखेरू उड़ गए। उनके साँसों की माला टूटकर बिखर गई। लोगों को पता चला कि बालगोबिन भगत नहीं रहे। अतः उनकी मृत्यु स्वाभाविक मृत्यु थी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन ईश्वर के भगत हैं। वे पाठ के मुख्य पात्र हैं। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
वे गृहस्थ होते हुए भी एक साधु जैसा जीवन व्यतीत करते थे। उनकी आयु साठ वर्ष के लगभग थी। वे एक धोती ही पहनते थे और सिर पर कबीर कनफटी टोपी धारण करते थे। सर्दी आने पर काला कंबल ओढ़ लेते थे। उनके माथे पर चंदन का टीका लगा रहता था।
बालगोबिन भगत अन्य ग्रामीण लोगों की भाँति खेतीबाड़ी का काम करते थे। वे खेत में काम करते हुए भी प्रभु-भजन में लीन रहते थे। बालगोबिन भगत मधुर स्वर में प्रभु-भजन गाया करते थे। वे कबीर के पद गाते थे। उनके संगीत का जादू ऐसा था कि जो भी उसे सुनता, उसमें लीन हो जाता था।

बालगोबिन भगत अत्यंत संतोषी व्यक्ति थे। उनकी इच्छाएँ अत्यंत सीमित थीं। वे सबके साथ खरा एवं सच्चा व्यवहार करते थे। उनके मन में ईश्वर के प्रति अगाध आस्था थी। सांसारिक मोह उन्हें छू भी नहीं सकता था। वे शरीर को नश्वर और आत्मा को परमात्मा का अंश मानते थे। मृत्यु उनके लिए मोक्ष प्राप्ति का साधन थी। वे उसे एक उत्सव के रूप में मानते थे।
सामाजिक रूढ़ियों में उनका विश्वास नहीं था। उसकी दृष्टि में नर-नारी सब समान थे। वे विधवा-विवाह के पक्ष में थे।
अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत एक सच्चे साधु थे।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 9.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश/मूलभाव दिया है।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ के माध्यम से लेखक ने संदेश दिया है कि ईश्वर की भक्त करने के लिए मनुष्य को समाज छोड़कर जंगलों में आने की आवश्यकता नहीं है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी प्रभु-भक्ति की जा सकती है। बालगोबिन भगत का जीवन इसका प्रमाण है। वह साधारण गृहस्थी है। वह खेतीबाड़ी का काम करता है, और सदा सच बोलता है। वह दूसरों से कभी कपटपूर्ण व्यवहार नहीं करता। जो कुछ भी वह कमाता है, उसे ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण करता है। सांसारिक मोह के बंधन से मुक्त है। वह सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं करता। सुख-दुःख में सदैव प्रभु गुणगान करता रहता है। अतः स्पष्ट है कि लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन के माध्यम से महान संदेश दिया है कि प्रभु-भक्ति गृहस्थ जीवन में भी संभव है।

प्रश्न 10.
लेखक ने मनुष्य की श्रेष्ठता के कौन-से प्रमुख आधार बताए हैं? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पठित पाठ में लेखक ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य की श्रेष्ठतां उसके बाह्य दिखावे व पहनावे पर नहीं, अपितु उसके गुणों पर आधारित होती है। पाठ में बालगोबिन तेली जाति से संबंधित था। तेली जात को समाज नीची जाति समझता है। स्वयं लेखक भी ऐसा ही समझता था और बालगोबिन के सामने सिर झुकाना अपना अपमान समझता था किंतु बालगोबिन की प्रभु-भक्ति की भावना ने लेखक का हृदय जीत लिया और लेखक उसका सम्मान करने लगा था। न केवल लेखक ही, बल्कि सारा गाँव उसका सम्मान करता था।

प्रश्न 11.
“पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है-” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–
प्रस्तुत पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है। लेखक ने बताया है कि मनुष्य जन्म या जाति के आधार पर बड़ा नहीं होता, मनुष्य तो अपने शुभ कर्मों व गुणों के आधार पर बड़ा होता है। लेखक स्वयं ब्राह्मण जाति से संबंधित था और ब्राह्मणत्व के नशे में चूर रहता था। वह छोटी जाति के लोगों का आदर नहीं करता था। वह तेली जाति के लोगों को हीन समझता था। किंतु लेखक को बड़े होने पर यह बात समझ आई कि व्यक्ति की महानता जाति या जन्म के आधार पर नहीं होती, अपितु व्यक्ति के कर्मों और गुणों के आधार पर होती है। इसलिए लेखक ने जाति-प्रथा को समाज विरोधी समझकर उस पर करारा व्यंग्य किया है।

प्रश्न 12.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ में लेखक के मृत्यु संबंधी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में मृत्यु को दुःख या शोक का कारण न बताकर उत्सव व प्रसन्नता का कारण बताया गया है। बालगोबिन भगत अपने बेटे की मृत्यु पर जरा भी दुःखी नहीं हुए और न अपनी पुत्रवधू को रोने दिया। वे मृत्यु को आत्मा का परमात्मा से मिलन का साधन मानते हैं। इसलिए मृत्यु को उत्सव की भाँति समझना चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ साहित्य रेखाचित्र विधा के अंतर्गत आता है।

प्रश्न 2.
बालगोबिन की टोपी कैसी थी?
उत्तर-
बालगोबिन की टोपी कबीरपंथियों जैसी थी।

प्रश्न 3.
लेखक बालगोबिन भगत की किस विशेषता पर अत्यधिक मुग्ध था?
उत्तर-
लेखक बालगोबिन भगत के मधुर के गान पर अत्यधिक मुग्ध था।

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत के कितने बेटे थे?
उत्तर-
एक बेटा था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत आत्मा और परमात्मा के बीच कौन-सा संबंध मानते थे?
उत्तर-
बालगोबिन भगत आत्मा और परमात्मा के बीच प्रेमी-प्रेमिका का संबंध मानते थे।

प्रश्न 6.
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील क्या थी?
उत्तर-
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील पतोहू का पुनर्विवाह करवाना था।

प्रश्न 7.
लेखक ने बालगोबिन भगत की आयु कितनी बताई है?
उत्तर-
साठ वर्ष से अधिक।

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत ने पुत्र की मृत्यु के उपरांत पतोहू को रोने के बदले क्या करने को कहा?
उत्तर-
बालगोबिन भगत ने पुत्र की मृत्यु के उपरांत पतोहू को रोने के बदले उत्सव मनाने को कहा।

प्रश्न 9.
घर की पूरी प्रबंधिका बनकर बालगोबिन भगत को किसने दुनियादारी से मुक्त कर दिया था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू ने।

प्रश्न 10.
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु का क्या कारण था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु का कारण बीमारी था।

प्रश्न 11.
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष किस दिन देखा गया?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जब अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे तल्लीनता से गाते रहे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) यशपाल
(B) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(C) रामवृक्ष बेनीपुरी
(D) स्वयं प्रकाश
उत्तर-
(C) रामवृक्ष बेनीपुरी

प्रश्न 2.
बालगोबिन भगत की आयु कितनी थी?
(A) 50 वर्ष
(B) 60 वर्ष से अधिक
(C) 70 वर्ष
(D) 80 वर्ष
उत्तर-
(B) 60 वर्ष से अधिक

प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत किसके आदर्शों पर चलते थे?
(A) तुलसीदास के
(B) कबीर के
(C) सूरदास के
(D) नानक के
उत्तर-
(B) कबीर के

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत कैसे कद के व्यक्ति थे
(A) लम्बे
(B) छोटे
(C) मंझोले
(D) सामान्य
उत्तर-
(C) मंझोले

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत अपनी फसल को पहले कहाँ ले जाते थे?
(A) मंदिर में
(B) गुरुद्वारे में
(C) मस्जिद में
(D) कबीरपंथी मठ में
उत्तर-
(D) कबीरपंथी मठ में

प्रश्न 6.
लेखक ने “रोपनी’ किसे कहा है?
(A) रोपण को
(B) धान की रोपाई को
(C) धान की कटाई को
(D) धान की खेती को
उत्तर-
(B) धान की रोपाई को

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत खेत में क्या करते हैं?
(A) केवल गीत गाते हैं .
(B) खेत की मेंड़ पर बैठते हैं
(C) धान के पौधे लगाते हैं
(D) उपदेश देते हैं
उत्तर-
(C) धान के पौधे लगाते हैं

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत का रंग कैसा था
(A) साँवला
(B) काला
(C) गेहुंआ
(D) गोरा चिट्टा
उत्तर-
(D) गोरा चिट्टा

प्रश्न 9.
बालगोबिन भगत के गीतों में कौन-सा भाव व्यक्त होता था?
(A) शृंगार का भाव
(B) विरह का भाव
(C) ईश्वर भक्ति का भाव
(D) वैराग्य का भाव
उत्तर-
(C) ईश्वर भक्ति का भाव ।

प्रश्न 10.
‘तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग ज़रा!’ इस पंक्ति में मुसाफिर किसे कहा गया है?
(A) यात्री को
(B) मनुष्य को
(C) पथिक को
(D) बालक को
उत्तर-
(B) मनुष्य को

प्रश्न 11.
कार्तिक मास आने पर बालगोबिन भगत क्या करने लगते थे?
(A) प्रभातफेरी शुरू करने लगते
(B) गंगा-स्नान करने लगते
(C) भजन करने लगते
(D) सत्संग करने लगते
उत्तर-
(A) प्रभातफेरी शुरू करने लगते

प्रश्न 12.
बालगोबिन भगत के संगीत को लेखक ने क्या कहा है?
(A) उपदेश
(B) लहर
(C) जादू
(D) शहनाई
उत्तर-
(C) जादू

प्रश्न 13.
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील क्या थी?
(A) पतोहू का पुनर्विवाह करवाना
(B) पतोहू को शिक्षा दिलवाना
(C) पतोहू को घर से निकालना
(D) पतोहू से घृणा करना
उत्तर-
(A) पतोहू का पुनर्विवाह करवाना

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प्रश्न 14.
बालगोबिन भगत की मृत्यु का क्या कारण था?
(A) दुर्घटना
(B) बीमारी
(C) भूख
(D) बेटे की मृत्यु की चिंता
उत्तर-
(B) बीमारी

प्रश्न 15.
बाल गोबिन भगत की प्रभातियाँ कब तक चलती थीं-
(A) फागुन तक
(B) कार्तिक तक
(C) बैशाख तक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(A) फागुन तक

प्रश्न 16.
बालगोबिन भगत गंगा स्नान करने किस साधन से जाते थे?
(A) मोटरगाड़ी से
(B) रेलगाड़ी से
(C) बैलगाड़ी से
(D) पैदल
उत्तर-
(D) पैदल

प्रश्न 17.
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु पर अंतिम संस्कार में आग किससे दिलाई गई?
(A) स्वयं बालगोबिन भगत से
(B) पतोहू से
(C) रिश्तेदार से
(D) पतोहू के भाई से
उत्तर-
(B) पतोहू से

प्रश्न 18.
बालगोबिन भगत के घर से गंगा नदी कितनी कोस दूर थी?
(A) 10
(B) 30
(C) 50
(D) 80
उत्तर-
(B) 30

प्रश्न 19.
बालगोबिन भगत के कितने बेटे थे?
(A) तीन
(B) चार
(C) दो ।
(D) एक
उत्तर-
(D) एक

प्रश्न 20.
बालगोबिन भगत कौन-सा वाद्य यंत्र बजाते थे?
(A) बाँसुरी
(B) तानपूरा
(C) सितार
(D) बँजड़ी
उत्तर-
(D) बँजड़ी

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बालगोबिन भगत गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे। नहीं, बिलकुल गृहस्थ! उनकी गृहिणी की तो मुझे याद नहीं, उनके बेटे और पतोहू को तो मैंने देखा था। थोड़ी खेतीबारी भी थी, एक अच्छा साफ-सुथरा मकान भी था।
किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज़ ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुज़र चलाते! [पृष्ठ 70]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ऊपर की तस्वीर के अनुसार बालगोबिन कैसे लगते थे?
(ग) क्या बालगोबिन एक गृहस्थ थे? स्पष्ट कीजिए।
(घ) बालगोबिन किसको साहब मानते थे?
(ङ) बालगोबिन गृहस्थ होते हुए भी साधु थे-कैसे?
(च) बालगोबिन का दूसरों के प्रति व्यवहार कैसा था?
(छ) मठ बालगोबिन की फसलों का क्या करता था?
(ज) इस गद्यांश का मूलभाव क्या है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) ऊपर की तस्वीर के अनुसार बालगोबिन एक साधु लगते थे। उनकी आयु साठ वर्ष के लगभग होगी। वे रंग-रूप में अत्यधिक गोरे थे। उनके सिर और दाढ़ी के बाल सफेद हो चुके थे। उनका कद मँझोला था। वे प्रायः एक लंगोटी में रहते थे। सिर पर कबीरपंथियों के समान कनफटी टोपी धारण करते थे। सर्दी आने पर काला कंबल ओढ़ते थे। उनके माथे पर चंदन का लेप रहता था और गले में तुलसी की माला रहती थी।

(ग) बालगोबिन भगत वास्तव में ही गृहस्थ थे। वे देखने में भले ही संन्यासी लगते हों, किंतु एक सच्चे गृहस्थी के सारे कर्तव्यों का पालन करते थे। उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी किंतु उनका बेटा और बहू उनके साथ रहते थे। वे दूसरों से सदा ही सद्व्यवहार करते थे। वे दूसरों से कोई भी वस्तु माँगने से या उधार लेने से बचते थे। यहाँ तक कि वे किसी दूसरे के खेत में शौच तक न जाते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

(घ) बालगोबिन संत कबीर को अपना ‘साहब’ अर्थात् स्वामी मानते थे।

(ङ) बालगोबिन भगत गृहस्थी थे और एक सच्चे गृहस्थी की भाँति व्यवहार करते थे। किंतु उनका व्यवहार साधु-संन्यासियों जैसा था। उन्हें ईश्वर (साहब) में पूर्ण विश्वास था। उन्हें संसार की किसी भी वस्तु से मोह नहीं था। वे सबसे सच्चा और खरा व्यवहार करते थे। उनकी बातों में जरा भी संदेह नहीं होता था। अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं गया था।

(च) बालगोबिन का दूसरों के प्रति अत्यंत उचित व्यवहार था। वे कभी किसी से झूठ नहीं बोलते थे और न ही किसी प्रकार का धोखा करते थे। किसी से उधार माँगकर कभी किसी को तंग नहीं करते थे। कभी किसी बात पर दूसरों से झगड़ा नहीं करते थे।

(छ) कबीरपंथी मठ का सेवक बालगोबिन की फसल में से कुछ अंश अपने पास रख लेता था और शेष उन्हें प्रसाद के रूप में लौटा देता था। इस अनाज को लेकर बालगोबिन घर आ जाता था और उसी से घर का गुजारा चलाता था।

(ज) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया है। वे कभी किसी से झूठ, लोभ व क्रोधयुक्त व्यवहार नहीं करते थे। वे पूर्णरूप से ईश्वर में विश्वास रखते थे। वे अपनी नेक कमाई को पहले भगवान के प्रति अर्पित करते थे और फिर भोग करते थे। उनके भोग में त्याग की भावना सदैव बनी रहती थी। कहने का भाव है कि यदि हम भी बालगोबिन के इन गुणों को अपना लें तो हमारा भी कल्याण हो जाएगा।

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से लिया गया है। इस पाठ में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन और आदर्शों पर प्रकाश डाला है।

आशय/व्याख्या-बालगोबिन भगत की बनाई गई तस्वीर से वे एक साधु लगते थे, किंतु वास्तव में वे एक गृहस्थी थे। उनकी पत्नी की तो लेखक को याद नहीं है, किंतु उनके बेटे और बेटे की पत्नी को अवश्य देखा था। वे थोड़ा-बहुत खेतीबाड़ी (कृषि) का काम भी करते थे। उनका एक साफ-सुथरा मकान भी था। बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी के साथ-साथ पारिवारिक काम भी करते थे। इन सबके होते हुए भी वे भगत एवं साधु-संन्यासी थे। उनमें साधु-संन्यासियों वाले सभी गुण थे। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उन्हीं के आदर्शों पर चलते थे और कभी झूठ नहीं बोलते थे। वे दूसरों के साथ सच्चा एवं खरा व्यवहार करते थे। किसी के साथ बिना बात के झगड़ा भी नहीं करते थे। दूसरों की वस्तुओं को स्पर्श तक नहीं करते थे। बिना पूछे कभी किसी की वस्तु का प्रयोग भी नहीं करते थे। उनके ऐसे व्यवहार को देखकर लोग हैरान रह जाते थे। वे दूसरों के खेत में शौच भी नहीं जाते थे। वे अपनी हर वस्तु को ईश्वर की वस्तु मानते थे। उनके खेत में जो अनाज उत्पन्न होता, उसे अपने सिर पर उठाकर साहब के दरबार में ले जाते थे। दरबार कबीरपंथी मठ था। वहाँ से जो अनाज उन्हें प्रसाद रूप में मिलता था, उसे घर लाते और उसी में गुजारा करते थे।

(2) आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अँगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करने वालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू! [पृष्ठ 71]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने किस अवसर का वर्णन किया है?
(ग) बालगोबिन भगत क्या कर रहे थे?
(घ) बालगोबिन भगत के संगीत का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ङ) बालगोबिन भगत के संगीत को जादू क्यों कहा गया?
(च) बच्चे और महिलाएँ क्या कर रहे थे?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली रिमझिम वर्षा का वर्णन किया है। इस अवसर पर गाँव में किसान धान की फसल रोपने का काम करते हैं। आकाश बादलों से घिरा हुआ था तथा पुरवाई हवाएँ चल रही थीं।

(ग) बालगोबिन भगत अपने खेत में धान के रोपने का काम कर रहे थे। वे हर पौधे को पंक्ति में लगा रहे थे।

(घ) बालगोबिन भगत धान के रोपन के साथ-साथ मधुर कंठ से गीत गा रहे थे। उनके गीत का वहाँ उपस्थित लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे मंत्रमुग्ध हो गए तथा गीत की ताल पर क्रम से काम करने लगे।

(ङ) भगत जी के संगीत को जादू इसलिए कहा गया है क्योंकि उसका सभी के हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था। उसे सुनकर बच्चे मस्त हो जाते तथा स्त्रियाँ उसके साथ-साथ गुनगुनाने लगती थीं। किसानों के पैरों में तो मानो लय-सी आ जाती थी। धान रोपते हुए किसानों की अँगुलियाँ क्रम से चलने लगती थीं।

(च) बच्चे उछल-उछलकर मौसम का आनंद उठा रहे थे और गीली मिट्टी में लिथड़कर खुश हो रहे थे। औरतें किसानों के लिए नाश्ता भोजन लेकर खेतों की मेंड़ों पर बैठी थीं।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने वर्षा ऋतु के प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण किया है। आषाढ़ के महीने में सभी किसान अपने-अपने खेतों में धान रोपने के काम में जुट जाते हैं। लेखक बालगोबिन भगत की मस्ती, तल्लीनता और उसकी संगीत-कला की जादुई मिठास का वर्णन करना चाहता है। वह किसान भी है और संगीतकार भी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

(ज) प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली वर्षा और बालगोबिन भगत द्वारा धान रोपने का वर्णन किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक कहता है कि आसमान पर बादल छाए हुए थे, धूप कहीं भी दिखाई नहीं देती थी। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। ऐसे मनभावन समय में एक मधुर स्वर की झंकार कानों में सुनाई पड़ रही थी। वहाँ के लोगों को इस मधुर स्वर व उसके गाने वाले के विषय में पूछना नहीं पड़ता। बालगोबिन भगत जिनका समूचा शरीर कीचड़ से लथपथ है, अपने खेत में धान की फसल का आरोपण कर रहे हैं। उनके हाथों की अगुलियाँ जहाँ धान के एक-एक पौधे को पंक्ति में बैठा रही हैं, वहीं उनके कंठ से निकला एक-एक शब्द संगीत की सीढ़ियों से चढ़कर स्वर्ग की ओर जा रहा है। उनके मधुर स्वर को सुनकर बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं। स्त्रियाँ उन शब्दों को अपने स्वर में गुनगुनाने लगती हैं। हल चलाने वालों के पैर उसके शब्दों की ताल के अनुसार ही उठने लगते हैं। खेत में धान के पौधों को रोपने वाले लोगों की अंगुलियाँ भी उनके संगीतमय स्वर के अनुकूल ही काम करने लगती हैं। बालगोबिन भगत के संगीत का प्रभाव आस-पास के लोगों पर जादू-सा काम करता है।

(3) भादो की वह अँधेरी अधरतिया। अभी, थोड़ी ही देर पहले मुसलधार वर्षा खत्म हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प .. में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर्र बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती। उनकी बँजड़ी डिमक-डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं-“गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना!” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है, वह अकेली है, चमक उठती है, चिहक उठती है। उसी भरे-बादलों वाले भादो की आधी रात में उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है! तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा! [पृष्ठ 71]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) भादो की रात का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
(ग) भगत जी के गीतों में कौन-सा भाव व्यक्त होता था?
(घ) ‘तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग ज़रा’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ङ) जब सारा संसार सो रहा था तब कौन जाग रहा था?
(च) प्रस्तुत गद्यांश में बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता उभरकर सामने आती है?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) लेखक ने भादो की रात का वर्णन करते हुए कहा है कि भादो की रात अत्यधिक अँधेरी थी। आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। वर्षा होने वाली थी। बादल गरज रहे थे और बिजली कड़क रही थी। झाड़ियों से झिल्ली की झंकार सुनाई दे रही थी। मेंढकों के टर्राने की ध्वनि भी सुनाई पड़ रही थी। ऐसे वातावरण को बालगोबिन का गीत और भी मधुर बना रहा था।

(ग) बालगोबिन भगत के गीत ईश्वर-भक्ति की भावना से भरे होते थे। उनमें परमात्मा से बिछुड़ने की पीड़ा और भूले हुओं को जगाने के भाव भरे होते थे।

(घ) इस पंक्ति में कवि ने मनुष्य को विषय-वासनाओं से सावधान रहते हुए जीवन व्यतीत करने की चेतावनी दी है। कवि कहता है, हे मानव! तेरे जीवन का हर क्षण नष्ट हो रहा है। जीवन रूपी गठरी को पंच विकार रूपी चोर चुराने में लगे हुए हैं। अतः समय रहते तू सावधान हो जा और प्रभु का भजन कर जिससे तुझे मोक्ष प्राप्त हो सकेगा।

(ङ) जब सारा संसार खामोशी में सो रहा था तब बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा था अर्थात् उस समय बालगोबिन जागकर प्रभु-भजन कर रहे थे।

(च) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व के विषय में बताया है कि वे एक सच्चे भगत थे। उनका जीवन साधु-संन्यासियों जैसा त्यागशील एवं मोह रहित था। वे गृहस्थी होते हुए भी सच्चे साधु थे। उनकी ईश्वर में गहन आस्था थी। वे रात को जाग-जागकर प्रभु-भक्ति के गीत गाते थे। उसे प्रभु को भूले हुए लोगों को प्रभु की याद दिलाना बहुत अच्छा लगता था।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में से संकलित एवं श्री रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से अवतरित है। इस पाठ में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन के गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि भादो की अंधेरी रातों में बालगोबिन भगत जाग-जाग कर ईश्वर-भक्ति के गीत गाते थे। वे अपने गीतों के माध्यम से लोगों को ईश्वर-भक्ति की याद दिलाते थे।

आशय/व्याख्या-लेखक ने भादो की रात का वर्णन करते हुए कहा है कि भादो की अंधेरी रात थी। आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। अभी-अभी वर्षा समाप्त हुई थी। बादल गरज रहे थे। बिजली कड़क रही थी। झिल्ली की झंकार और मेंढकों के टर्राने की ध्वनि सुनाई दे रही थी, किंतु ये सब मिलकर भी बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सके। उनकी बँजड़ी धीरे-धीरे, डिमक-डिमक कर बज रही थी और वे मधुर ध्वनि में गा रहे थे ‘गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया चिहुँक उठे ना” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है कि वह अकेली है। वह चमक उठती है। कहने का भाव है कि आत्मा और परमात्मा सदा साथ-साथ रहते हैं। उस बादलों से भरी हुई भादो की आधी रात को उनका यह मधुर गीत अँधेरे में एकाएक ऐसे कौंध जाता है जैसे अँधेरी रात में बादलों में बिजली चमक उठती है। जब सारा संसार एकांत में सोया होता है, तब बालगोबिन भगत का संगीत निरंतर जाग रहा होता है
और लोगों को भी जगा रहा होता है। वे कहते हैं, “तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा।” अर्थात् हे मनुष्य! तेरा जीवन प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। जीवन रूपी गठरी को पंच विकार रूपी चोर चुराने में लगे हुए हैं। इसलिए तुझे सावधान रहना चाहिए।

(4) बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किंतु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज़्यादा नज़र रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील मिली थी। घर की पूरी प्रबंधिका बनकर भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त कर दिया था उसने। उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुरसत! किंतु मौत तो अपनी ओर सबका ध्यान खींचकर ही रहती है। हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया। कुतूहलवश उनके घर गया। देखकर दंग रह गया। बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपते रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है। और, उसके सामने ज़मीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं! वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। [पृष्ठ 72-73]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) जिस दिन बालगोबिन का बेटा मरा, उस दिन क्या देखा गया? ।
(ग) लेखक ने बेटे की मृत्यु पर गायन को संगीत-साधना का चरमोत्कर्ष क्यों कहा है?
(घ) बालगोबिन भगत अपने बेटे को किस कारण अधिक प्यार करते थे?
(ङ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू कैसी थी?
(च) लेखक में किस बात का कुतूहल था?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार आपको बालगोबिन के जीवन की कौन-सी विशेषता प्रभावित करती है?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) जिस दिन बालगोबिन का बेटा मरा, उस दिन उनके संगीत का चरमोत्कर्ष देखा गया। उस दिन एक सच्चे संगीतकार की साधना की सफलता भी देखी गई थी।

(ग) लेखक के अनुसार साधना वही है जब व्यक्ति अपनी सुध-बुध खोकर परमात्मा की भक्ति में लीन हो जाए और उसको किसी प्रकार का दुःख प्रभावित न कर सके। इकलौते बेटे की मृत्यु से बढ़कर और कोई दुःख नहीं हो सकता। जो व्यक्ति अपने बेटे की मृत्यु पर भी भजन गा सकता है, उसके लिए उससे बढ़कर संगीत साधना और क्या हो सकती है।

(घ) बालगोबिन भगत अपने पुत्र से बहुत प्यार करते थे। उनका वह पुत्र बहुत ही कमज़ोर और सुस्त था। उनका मानना था कि ऐसे बच्चों को प्यार की अधिक ज़रूरत होती है। इसलिए वे अपने पुत्र को अधिक प्यार करते थे।

(ङ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू बहुत ही सुंदर एवं सुशील युवती थी। वह घर के काम-काज में निपुण थी तथा एक अच्छी प्रबंधिका भी थी। उसके इस प्रबंधन के गुण के कारण ही बालगोबिन जी गृहस्थ जीवन से मुक्त हो पाए थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

(च) लेखक को इस बात को लेकर कुतूहल था कि उसका इकलौता बेटा मर गया है तथा उसका शव अभी घर में ही पड़ा हुआ है। ऐसे में वह कैसे गा सकता है? उसे तो शोक मनाना चाहिए था किंतु लेखक ने देखा कि वह पुत्र की लाश के पास ही आसन जमाकर गाए जा रहा था।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार, बालगोबिन भगत की सच्ची भक्ति, तल्लीनता, धैर्य और संगीत की मस्ती हमें अत्यधिक प्रभावित करती है। उनके हृदय में प्रभु के प्रति अडिग विश्वास था जो सबके हृदय को प्रभावित किए बिना नहीं रहता।

(ज) प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इन पंक्तियों में उन्होंने बालगोबिन भगत के बेटे की मृत्यु की घटना का वर्णन किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि जिस दिन बालगोबिन भगत का बेटा मरा था, उस दिन उनकी संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष अर्थात् चरम सीमा देखी गई थी। एक सफल एवं सच्चे संगीतकार की सफलता देखी गई थी। बालगोबिन का इकलौता बेटा कुछ सुस्त एवं कमजोर था। इसी कारण बालगोबिन उसका अधिक ध्यान रखते थे। बालगोबिन का मत था कि ऐसे व्यक्तियों पर हमें अधिक ध्यान देना चाहिए और दूसरों की अपेक्षा उन्हें प्यार भी अधिक करना चाहिए। वे देखभाल और प्यार के ज्यादा हकदार होते हैं। उन्होंने बहुत-ही सीधे ढंग से अपने बेटे का विवाह करवाया था। उसकी पत्नी बहुत सुशील एवं विनम्र स्वभाव वाली थी। उसने घर का सारा काम-काज संभाल लिया था, जिससे बालगोबिन भगत ने दुनियादारी से छुटकारा पा लिया था। बालगोबिन का बेटा बीमार पड़ गया, परंतु काम-काज की व्यस्तता से किसको फुर्सत जो बीमार का हाल जानें, किंतु मृत्यु तो सबका ध्यान अपनी ओर दिला देती है और एक दिन उसकी मौत हो गई। उसकी मौत का समाचार सारे गाँव को मिल गया। लेखक भी उसके घर गया। यह देखकर हैरान था कि बालगोबिन ने अपने बेटे के शव को आंगन में एक चटाई पर लिटाकर सफेद कपड़े से ढक रखा था। उस पर कुछ फूल और तुलसी के पत्ते बिखेर दिए थे। उसके सिराहने एक दीप जलाया हुआ था। वे उसके सामने बैठकर गीत गा रहे थे। उनके गीत का स्वर पहले जैसा ही था और उतनी ही तल्लीनता भी थी। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत की ईश्वर-भक्ति और गीत की तल्लीनता को बेटे की मौत जैसा आघात भी नहीं डिगा सका था।

(5) बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू
के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहतीमैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए। लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा-यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती? [पृष्ठ 73]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बालगोबिन की दृष्टि में स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं है-स्पष्ट कीजिए।
(ग) बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं रखते, पठित गद्यांश के आधार पर सिद्ध कीजिए।
(घ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू उनके पास क्यों रहना चाहती थी?
(ङ) बालगोबिन भगत ने अपनी पुत्रवधू को वापस भेजने के लिए किस युक्ति से काम लिया?
(च) भगत जी की पुत्रवधू की क्या इच्छा थी?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश में बालगोबिन भगत के चरित्र की किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग बताते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) बालगोबिन भगत उदार एवं प्रगतिशील विचारों वाले व्यक्ति हैं। उनकी दृष्टि में स्त्री-पुरुष बराबर हैं। हमारे समाज में प्राचीनकाल से माना जाता है कि मृतक को आग लगाने का अधिकार पुत्र या किसी पुरुष को है। स्त्री इस कार्य को नहीं कर सकती। नारी को तो श्मशान भूमि में जाने तक की अनुमति नहीं है। किंतु बालगोबिन भगत ने इन मान्यताओं को नहीं माना और अपने बेटे की चिता को अपनी पुत्रवधू से आग दिलवाई थी। इससे पता चलता है कि बालगोबिन भगत की दृष्टि में नर-नारी सब एक समान हैं।

(ग) निश्चय ही बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों को नहीं मानते। उन्होंने अपनी पुत्रवधू से अपने बेटे की चिता को आग दिलवाकर सदियों से चली आ रही परंपरा को सहज ही तोड़ डाला। ऐसी हिम्मत किसी-किसी व्यक्ति में ही होती है। इससे पता चलता है कि भगत जी सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं रखते थे।

(घ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू पति की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत के पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन बनाने व गृहस्थी के अन्य कार्य करने के लिए ही उनके पास रहना चाहती थी।

(ङ) जब बालगोबिन भगत ने अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ जाने के लिए कहा तो वह जिद्द करने लगी कि वह उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाएगी। आजीवन उनकी सेवा करती रहेगी। किंतु बालगोबिन भी अपने इरादे के पक्के थे। उन्होंने कहा यदि
यहाँ रहना चाहती है तो रह, किंतु मैं यह घर छोड़कर अन्यत्र चला जाऊँगा। भगत जी की यह धमकी सुनकर उनकी पुत्रवधू अपने मायके जाने के लिए तैयार हो गई थी।

(च) भगत जी की पुत्रवधू उनके पास रहकर उनके बुढ़ापे का सहारा बनना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन बनाना चाहती थी और उनकी सेवा करना चाहती थी।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर हम कह सकते हैं कि बालगोबिन भगत एक उदार हृदय और सुलझे हुए व्यक्ति थे। वे अपने निजी स्वार्थ के लिए दूसरों के जीवन में किसी प्रकार की बाधा नहीं बनना चाहते थे। यही कारण है कि वह अपनी चिंता किए बिना अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ भेज देते हैं ताकि वह पुनः विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत कर सके। बालगोबिन भगत दृढ़ विचारों वाले व्यक्ति थे। वे जिस काम को करने का निश्चय कर लेते, उसे पूर्ण करके छोड़ते थे।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ में लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी ने बालगोबिन भगत के जीवन का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में बालगोबिन भगत के विषय में बताया गया है कि वे स्त्री-पुरुष में कोई अन्तर नहीं समझते थे और न ही सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास करते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

आशय/व्याख्या-लेखक ने बताया है कि बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की चिता को आग स्वयं न देकर उसकी पत्नी से ही दिलवाई थी। समाज में ऐसा नहीं होता था। चिता को आग हमेशा से पुरुष ही देते आए थे। ज्यों ही श्राद्ध का समय पूरा हुआ पतोहू के भाई को बुलाकर उसे उसके साथ भेज दिया तथा यह आदेश भी दे दिया कि इसका दूसरा विवाह अवश्य कर देना। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत विधवा विवाह के पक्ष में थे, किंतु बालगोबिन की पतोहू जिद्द करने लगी कि वह उनके साथ रहकर उनकी सेवा करेगी। यदि मैं चली जाऊँगी तो इस बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा। यदि बीमार पड़ गए तो कौन आपको पानी देगा। मैं आपके पैर पड़ती हूँ आप मुझे अपने से अलग मत कीजिए, किंतु बालगोबिन भगत का निर्णय अटल था। उन्होंने कहा कि यदि तू इस घर से नहीं जाएगी तो मैं यह घर छोड़कर चला जाऊँगा। यह उनका आखिरी तर्क था। इस तर्क के सामने पतोहू की एक न चली। उसे अपने भाई के साथ जाना पड़ा। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत दृढ़ निश्चयी और उदार दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे।

बालगोबिन भगत Summary in Hindi

बालगोबिन भगत लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी के सुप्रसिद्ध निबंधकार हैं। इनका जन्म सन् 1899 को बिहार प्रदेश के मुजफ्फरपुर जिले के छोटे से गाँव बेनीपुर में हुआ था। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया था। इनका पालन-पोषण इनके ननिहाल में हुआ। इन्होंने बड़ी कठिनाई से मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की थी। श्री बेनीपुरी जी सन् 1920 में महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने स्वाध्याय के बल पर हिंदी ज्ञान में निपुणता प्राप्त की तथा अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाओं का भी गंभीर अध्ययन किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय श्री बेनीपुरी जी दस बार जेल गए। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् सन् 1957 में आप बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। बेनीपुरी जी ने लगभग 15 वर्ष की आयु में पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू किया तथा पत्रकारिता को जीवनयापन के साधन के रूप में अपना लिया। इन्होंने समय-समय पर ‘किसान मित्र’, ‘तरुण भारत’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘जनवाणी’, ‘नई धारा’, ‘कर्मवीर’ आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया है। इनका निधन सन् 1968 में हुआ था।

2. प्रमुख रचनाएँ श्री बेनीपुरी जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-

  • उपन्यास-‘कैदी की पत्नी’ और ‘पतितों के देश में’।
  • कहानी-संग्रह ‘चिता के फूल’।
  • नाटक तथा एकांकी-‘अंबपाली’, ‘संघमित्रा’, ‘सीता की माँ’, ‘नेत्रदान’, ‘तथागत’, ‘विजेता’, ‘राम- राज्य’ तथा ‘गाँव का देवता’।
  • रेखाचित्र-‘माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ और गुलाब’, ‘मन और विजेता’।
  • निबंध तथा संस्मरण-‘जंजीरें और दीवारें’, ‘मुझे याद है’, ‘मेरी डायरी’, ‘नयी नारी’, ‘मशाल’।
  • यात्रा-वृत्तांत-‘मेरे तीर्थ’, ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’, ‘पैरों में पंख बाँधकर’।
  • जीवनी-‘कार्ल मार्क्स’, ‘जयप्रकाश नारायण’।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाओं में प्रमुख रूप से स्वाधीनता की चेतना, मनुष्यता की चिंता और इतिहास की युगानुरूप व्याख्या है। वे निष्ठावान भारतीय संस्कृति के पुजारी भी हैं। इनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। इनके साहित्य में गहन अनुभूतियों और उच्च कल्पनाओं का सुंदर मिश्रण है। इनकी रचनाओं में जहाँ जीवन से संबंधित ज्वलंत समस्याओं को उठाया गया है, वहाँ उनके समाधानों की ओर संकेत भी किए गए हैं। सार रूप में कहा जा सकता है कि रामवृक्ष बेनीपुरी जी का साहित्य उच्चकोटि का साहित्य है, जिससे मानवता के विकास की प्रेरणा मिलती है।

4. भाषा-शैली-श्री रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य की भाषा सरल, सहज, रोचक एवं ओजस्वी है। अलंकृत एवं भावनापूर्ण शैली के कारण हिंदी गद्य-साहित्य में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव, देशज, उर्दू-फारसी व अंग्रेज़ी के शब्दों का अत्यंत सटीक एवं सार्थक प्रयोग किया है। इन्होंने लोक प्रचलित मुहावरों व लोकोक्तियों का भी सफल प्रयोग किया है।

बालगोबिन भगत पाठ का सार

प्रश्न-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ एक रेखाचित्र है। लेखक ने इसमें एक ऐसे विलक्षण चरित्र का वर्णन किया है जो मानवता, संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। लेखक की मान्यता है कि वेशभूषा व बाह्य दिखावे से कोई संन्यासी नहीं होता। संन्यास का आधार तो जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं। पाठ का सार इस प्रकार है

बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे वर्ण के व्यक्ति थे। उनकी आयु साठ से ऊपर की थी। उनके सिर के बाल और दाढ़ी सफेद थे। वे शरीर पर कपड़ों के नाम पर केवल एक लंगोटी बाँधते थे और सिर पर कबीर टोपी पहनते थे और सर्दी के मौसम में काली कमली ओढ़ लेते थे। वे माथे पर चंदन और गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। वे संन्यासी नहीं, गृहस्थ थे और थोड़ी बहुत खेतीबाड़ी भी करते थे। वे गृहस्थ होते हुए भी साधु की परिभाषा में खरे उतरते थे। वे कबीर के विचारों से बहुत प्रभावित थे। वे सदा सत्य बोलते और सद्व्यवहार करते थे। वे किसी से व्यर्थ में झगड़ा मोल नहीं लेते थे। वे बिना पूछे किसी वस्तु को नहीं छूते थे। उनके लिए कबीर ‘साहब’ थे और उनका सब कुछ ‘साहब’ का था। उनके खेत में जो फसल उत्पन्न होती थी, उसे वे सबसे पहले साहब के दरबार में ले जाते थे। वह उनके घर से चार कोस दूर था।

बालगोबिन भगत एक अच्छे गायक भी थे। उनका मधुर गान सदा सुनाई पड़ता था। वे कबीर के पदों को गाते रहते थे। आषाढ़ आते ही खेतों में धान की रोपाई शुरू हो जाती थी। पूरा गाँव, अर्थात् आदमी, औरतें और बच्चे खेतों में दिखाई देते थे। खेतों में रोपाई करते समय हर किसी के कानों में गाने का स्वर गूंजता रहता था। उनके संगीत से सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था। सभी लोग एक ताल में एक क्रम में काम करने लगते थे। वे भादों की अंधेरी रातों में पिया के प्यार के गीत गाते थे। उनके अनुसार पिया के साथ होते हुए भी प्रियतमा अपने-आपको अकेली समझती है और बिजली की चमक से चौंक उठती है। जब सारा संसार सो रहा होता था, उस समय बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। बालगोबिन कार्तिक से फागुन तक प्रभाती गाया करते थे। वे सुबह अंधेरे में उठकर, दो मील चलकर नदी स्नान करते थे। वापसी में गाँव के बाहर पोखरे पर वे अपनी खजड़ी लेकर बैठ जाते और गीत गाने लगते थे। लेखक को देर तक सोने की आदत थी, परंतु एक दिन उसकी आँख जल्दी खुल गई। वे माघ के दिन थे। लेखक को बालगोबिन का संगीत गाँव के बाहर पोखर पर ले गया। वे अपने संगीत में बहुत मस्त थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं लेकिन लेखक ठंड के मारे काँप रहा था। गर्मियों में उमसभरी शाम को वे अपने गीतों से शीतल कर देते थे। उनके गीत लोगों के मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। वे भी बालगोबिन की तरह मस्ती में नाचने लगते थे। उनके घर का आँगन संगीत-भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था।

बालगोबिन की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष उस दिन देखने को मिला जिस दिन उनके बेटे की मृत्यु हुई थी। उनका एक ही बेटा था जो कुछ सुस्त रहता था। वे उसे अत्यधिक प्रेम करते थे और उसका ध्यान भी रखते थे। वह उनका इकलौता बेटा था। उसकी शादी भी उन्होंने बड़ी साध से करवाई थी। उनकी पुत्रवधू गृह प्रबंध में अत्यंत कुशल थी। उसने आते ही घर का सारा काम-काज संभाल लिया था। लेखक बालगोबिन भगत के उस कार्य से हैरान रह गया था। उन्होंने अपने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढक रखा था। उसके सिर की ओर चिराग जला रखा था। वे अपनी पुत्रवधू को भी उत्सव मनाने के लिए कहते हैं, क्योंकि उनका मानना था कि उसकी आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। भला इससे बढ़कर आनंद की क्या बात हो सकती है? यह उनका विश्वास बोल रहा था। वह विश्वास जो मृत्यु पर विजयी होता आया है। उन्होंने अपनी पतोहू से ही बेटे की चिता में अग्नि दिलवाई थी। बालगोबिन ने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर कहा था कि इसे यहाँ से ले जाओ और इसका विवाह कर दो। किंतु वह वहाँ रहकर बालगोबिन भगत की सेवा करना चाहती थी। लेकिन बालगोबिन का कहना था कि वह अभी जवान है और उसका अपनी इंद्रियों पर काबू रखना मुश्किल है। किंतु वह आग्रह कर रही थी कि मुझे अपने चरणों में ही रहने दो। भगत भी अपने निर्णय पर अटल थे। उन्होंने कहा कि यदि तू यहाँ रहेगी तो मुझे घर छोड़कर जाना पड़ेगा।

बालगोबिन भगत की मौत वैसे ही हुई जैसी वह चाहते थे। वे हर वर्ष गंगा-स्नान तथा संत-समागम के लिए जाते थे। वे घर से खाकर चलते थे और घर पर ही आकर खाते थे। उन्हें गंगा-स्नान के लिए आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे गृहस्थी थे, इसलिए किसी से भीख भी नहीं माँग सकते थे। इस बार जब गंगा-स्नान करके लौटे तो खाने-पीने के बाद भी उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ। तेज़ बुखार में भी उनके नेम-व्रत वैसे ही चलते रहे। लोगों ने नहाने-धोने व काम करने से मना किया और आराम करने के लिए कहा। उस संध्या को भी गीत गाए। ऐसा लगता था कि उसके जीवन का धागा टूट गया हो। मानो माला का एक-एक मनका बिखर गया हो। भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना, जाकर देखा तो पता चला कि बालगोबिन नहीं रहे। वहाँ सिर्फ उनका पिंजर ही पड़ा था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

कठिन शब्दों के अर्थ-

(पृष्ठ-70) मँझोले = न अधिक लंबे न छोटे। गोरे-चिट्टे = बहुत गोरे। जटाजूट = लंबे बाल। कबीरपंथी = कबीर के पंथ को मानने वाले। कनफटी. = ऐसी टोपी जिस पर कान के स्थान पर जगह कटी रहती थी। कमली = कंबल। मस्तक = माथा।
रामानंदी = रामानंद द्वारा प्रचलित। चंदन = माथे पर किया जाने वाला लेप। बेडौल = अनगढ़। गृहस्थ = विवाहित आदमी। गृहिणी = पत्नी। पतोहू = बेटे की पत्नी। खरा उतरना = सही सिद्ध होना। खरा व्यवहार रखना = सच्चा व्यवहार करना। दो-टूक बात करना = साफ-साफ बात कहना। संकोच करना = शरमाना, बचना। झगड़ा मोल लेना = जान-बूझकर लड़ाई करना। व्यवहार में लाना = प्रयोग करना। कुतूहल = जिज्ञासा, जानने की उत्सुकता। साहब = भगवान। दरबार = मंदिर, घर। प्रसाद = बाँट में मिलने वाला पदार्थ। मुग्ध = प्रसन्न, खुश। सर्वदा = हमेशा। सजीव = जीवित। रिमझिम = हल्की-हल्की बारिश। समूचा = सारा। रोपनी = धान के पौधे को खेत में रोपना। कलेवा = नाश्ता। मेंड़ = खेत का ऊँचा किनारा।

(पृष्ठ-71) पुरवाई = पूर्व दिशा से बहने वाली हवा। स्वर-तरंग = स्वर की लहर। झंकार = बजती हुई आवाज़। पंक्तिबद्ध = पंक्ति में बाँधे हुए। जीने = सीढ़ी। हलवाहों = किसान। ताल = संगीत। क्रम = सिलसिला। अधरतिया = आधी रात। मुसलधार वर्षा = तेज वर्षा। झिल्ली की झंकार = गहरी काली रातों में झाड़ियों से उठने वाला झींगुरों का स्वर। दादुर = मेंढक। खैजड़ी = डपली के आकार का उससे कुछ छोटा वाद्य-यंत्र। सखिया = सखी। चिहुँक = खुशी से चिल्ला पड़ना। कौंध उठना = चमक उठना। निस्तब्धता = सन्नाटा। प्रभाती = प्रातःकाल गाया जाने वाला गीत।

(पृष्ठ-72) पोखरे = छोटा तालाब। भिंडे = ऊँची उठी जगह। टेरना = ऊँची आवाज़ में बोलना। दाँत किटकिटानेवाली = ठंड के कारण दाँतों को कैंपाने वाली। लोही लगना = सुबह की लाली। कुहासा = कोहरा। रहस्य = छिपी हुई बात। आवृत = ढका हुआ। कुश = एक प्रकार की लंबी घास। ताँता लगना = लगातार निकलना। सुरूर = नशा। उत्तेजित = जोश से भड़का हुआ। श्रमबिंदु = पसीने की बूंदें। उमस = घुटन। करताल = तालियाँ। भरमार = अधिकता। तिहराती = तीसरी बार कहती। हावी होना = भारी पड़ना। नृत्यशील = नाचने को होना। ओतप्रोत = भरा हुआ। चरम उत्कर्ष = सबसे अधिक ऊँचाई। बोदा = कमज़ोर। निगरानी = देखभाल। साध = इच्छा, कामना। सुभग = सुंदर। सुशील = भले व्यवहार वाली। प्रबंधिका = प्रबंध करने वाली। निवृत्त = आज़ाद, मुक्त, अलग। कुतूहलवश = जानने की इच्छा के कारण। दंग = हैरान। चिराग = दीपक।

(पृष्ठ-73) तल्लीनता = पूरे मन से। उत्सव मनाना = त्योहार के समान खुशी मनाना। क्रिया-कर्म = मृत्यु के बाद निभाई जाने वाली रस्में। तूल करना = महत्त्व देना। आग दिलाना = मुर्दे को आग लगाना। श्राद्ध = मृत्यु के बाद पितरों की शांति के लिए किया गया क्रिया-कर्म। निर्णय = फैसला। अटल = जिसे टाला न जा सके। दलील = तर्क। आस्था = विश्वास। संत-समागम = संतों के साथ संगति करना। लोक-दर्शन = संतों के दर्शन। संबल = सहारा। भिक्षा = भीख। उपवास = भूखे रहना, व्रत रखना। टेक = आदत, नियम। तबीयत = स्वास्थ्य। नेम-व्रत = नियम-व्रत आदि। जून = समय। छीजन = कमज़ोर होना। तागा टूटना = जीवन की साँसें पूरी होना। पंजर = शरीर।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

HBSE 10th Class Hindi छाया मत छूना Textbook Questions and Answers

छाया मत छूना व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर-
यथार्थ का पूजन करके अर्थात यथार्थ को स्वीकार करके ही मानव जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। मनुष्य को वास्तविकता का सामना करना ही पड़ता है। हर मनुष्य अपनी परिस्थितियों में जीता है और उनके अनुसार जीवन को ढालता है। भूली-बिसरी यादों के सहारे जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। इसलिए कवि ने कठिन यथार्थ की पूजा करने के लिए कहा है।

छाया मत छूना प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट करेंप्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर-
मनुष्य प्रभुता एवं सुख-सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए जीवन-भर दौड़ता रहता है, परंतु उसकी यह दौड़ निरर्थक सिद्ध . होती है क्योंकि सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं। सुख के बाद दुःख आता ही है।

छाया मत छूना कविता की व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?
उत्तर-
कविता में ‘छाया’ शब्द अतीत की यादों के लिए प्रयुक्त हुआ है जो अब वास्तविकता से दूर हो गई हैं। इसलिए अतीत की स्मृतियों रूपी छायाएँ अनुभव करने में भले ही मधुर प्रतीत होती हों, किंतु वर्तमान की वास्तविकता नहीं हो सकती। पुरानी यादों या छाया से चिपके रहने वाला मनुष्य अपने वर्तमान को सुधार नहीं सकता और न ही भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है। इसलिए कवि ने छाया को छूने से मना किया है।

Class 10 Kshitij Chapter 7 Question Answer HBSE प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ।
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर-
गिरिजाकुमार माथुर छायावादी काव्य से प्रभावित हैं, इसलिए उन्होंने प्रस्तुत कविता में विविध विशेषण शब्दों का प्रयोग करके विषय-वर्णन में रोचकता उत्पन्न की है। आलोच्य कविता में अनेक विशेषण शब्द प्रयुक्त हुए हैं, उनमें से प्रमुख विशेषण निम्नांकित हैं

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(क) दूना दुख-दूना शब्द दुःख की गहराई को व्यक्त करता है।
(ख) सुरंग सुधियाँ यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ग) छवियों की चित्र-गंध-सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता को व्यक्त किया गया है।
(घ) तन-सुगंध-सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता है।
(ङ) शरण-बिंब-जीवन में आधार बनने की विशेषता को व्यक्त किया गया है।
(च) यथार्थ कठिन-जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता दिखाई गई है।
(छ) दुविधा-हत साहस-साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ज) शरद्-रात-रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
(झ) रस-वसंत-वसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।

छाया मत छूना HBSE 10th Class प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर-
‘मृगतृष्णा’ शब्द का साधारण अर्थ है-भ्रम या धोखा। गर्मी के मौसम में रेगिस्तान के रेत पर पड़ती हुई सूर्य की किरणों की चमक में जल का भ्रम या धोखा हो जाता है और प्यासा मृग धोखे के कारण इसे जल समझ लेता है और इसे प्राप्त करने के लिए इसके पीछे दौड़ता है, किंतु कविता में इसका प्रयोग सुख-सुविधाओं के लिए हुआ है। व्यक्ति प्रभुता एवं सुखसुविधाओं की प्राप्ति हेतु दिन-रात उनके पीछे भागता है, किंतु उसकी यह दौड़ अंतहीन है और एक दिन वह थककर गिर जाता है। इसलिए कविता में संदेश दिया गया है कि मनुष्य को मृगतृष्णा की भावना से बचकर रहना चाहिए।

Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7 HBSE  प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर-
उपरोक्त भाव निम्नलिखित पंक्ति में झलकता है’जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’।

छाया मत छूना के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस कविता में दुःख का कारण अतीत की सुखद यादों को बताया गया है। मनुष्य के जीवन में जब थोड़ा-सा भी दुःख आता है तो वह अपने वर्तमान जीवन की तुलना अतीत से करने लगता है। अतीत की मधुर स्मृतियाँ उसके मानस-पटल पर अंकित हो जाती हैं। इससे उसकी कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसा करके वह अपने दुःखों पर विजय नहीं पाता, बल्कि उसका साहस भी मंद पड़ जाता है और दुःख बढ़ जाते हैं जो उसके आगे बढ़ने के रास्ते में बाधा बन जाते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

छाया मत छूना का भावार्थ HBSE 10th Class प्रश्न 8.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’, से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन । की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र इसे स्वयं करें।

प्रश्न 9.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर? कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर-
निश्चय ही उचित समय पर प्राप्त उपलब्धियाँ अच्छी लगती हैं, जैसे गर्मी बीत जाने पर ए.सी. किस काम का? फसलें सूख जाने पर वर्षा किस काम की? इसी प्रकार रोगी के दम तोड़ देने के पश्चात् डॉक्टर का पहुँचना व्यर्थ होता है। ये सब उदाहरण देखकर लगता है कि समय बीत जाने के बाद यदि उपलब्धियाँ प्राप्त हुईं तो किस काम की। अतः हम समय पर प्राप्त उपलब्धियों के महत्त्व के पक्ष में हैं।

पाठेतर सक्रियता

आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफर करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं अपने अनुभव लिखें।

कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

यह भी जानें
प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome का हिंदी अनुवाद ‘होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।

HBSE 10th Class Hindi छाया मत छूना Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘छाया मत छूना’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
बीते हुए सुखी जीवन की स्मृति को कवि ने छाया कहा है। इसलिए कवि का कथन है कि बीते हुए सुखी जीवन की घड़ियों को स्मरण करने से कुछ प्राप्त नहीं होगा, बल्कि वर्तमान जीवन और दुःखी होगा तथा भविष्य भी भ्रम में पड़ जाएगा। यही कारण है कि कवि ने छाया अर्थात् अतीत के सुखी जीवन की यादों को भूलना ही हितकर बताया है।

प्रश्न 2.
कविता में कवि किसकी और क्यों पूजा करने पर बल देता है?
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने बताया है कि अतीत के सुखी जीवन की यादों से चिपटे रहकर तथा भविष्य की आकांक्षाओं में खोए रहने से मानव-जीवन कभी सुखी नहीं हो सकता। बीते दिनों की सुखद यादें हमें कुछ देर के लिए तो मधुर लग सकती हैं, किंतु अंत में उनसे कुछ लाभ नहीं हो सकता। उनमें डूबे रहने से वर्तमान जीवन दुःखी बन जाता है। भविष्य की आकांक्षाओं से मनुष्य दुविधा में फँस जाता है। वह निर्णय नहीं ले सकता कि उसे क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए। इसलिए कवि ने वर्तमान के कठोर यथार्थ को पूजने का आग्रह किया है।

प्रश्न 3.
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।’ जीवन से उदाहरण देकर इस तथ्य की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयत्न किया है कि सुख-दुःख जीवन में बराबर आते रहते हैं। जिस प्रकार दिन के बाद रात का आना निश्चित होता है, उसी प्रकार मानव-जीवन में आए सुख का अंत होना भी निश्चित है। मानव-जीवन सुख-दुःख का एक अनोखा क्रम है। मानव-जीवन में प्रायः देखा जाता है कि आज हम उत्सव मनाने में मग्न हैं तो कल शोकाकुल हैं। आज विवाह है तो कल मांग का सिंदूर मिट जाता है। आज कोई व्यक्ति सफलता की खुशियाँ मना रहा है तो कल वही व्यक्ति असफलता पर भी रोता दिखाई देता है। अतः कवि ने ठीक ही कहा है कि हर चांदनी रात में एक अंधेरी रात छिपी रहती है अर्थात् सुख और दुःख जीवन में निरंतर आते रहते हैं।

प्रश्न 4.
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने मानव-जीवन के दुःखों का क्या कारण बताया है?
उत्तर-
कवि कहता है कि व्यक्ति का अतीत की बातों की याद में दिन-रात खोए रहने से तथा प्रेम की असफलताओं पर पश्चात्ताप करते रहने से वर्तमान जीवन दुःखद बन जाता है। अतीत की यादों से चिपके रहने वाला व्यक्ति सदा दुःखी रहता है। वर्तमान की वास्तविकताओं को भुलाकर भविष्य की कल्पनाओं में डूबे रहना भी व्यक्ति के जीवन को दुःखी बना देता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्ति की व्याख्या कीजिएप्रभुता की शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है।
उत्तर-
प्रभुत्व की प्राप्ति की शरण का बिंब एक मृगतृष्णा के समान धोखा है, मिथ्या है। जिस प्रकार रेगिस्तान में चमकती रेत को देखकर मृग को पानी होने का भ्रम हो जाता है तथा उसे प्राप्त करने के लिए भागता है किंतु अंत में कुछ भी हाथ न लगने के कारण निराश हो जाता है, उसी प्रकार प्रभुत्व प्राप्ति की शरण भी मृगतृष्णा के समान एक धोखा है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘छाया मत छूना’ कविता का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. 2017 (Set-B), Sample Paper,.2019]
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि का उद्देश्य यह उजागर करना है कि अतीत की सुखद यादों में निरंतर खोए रहना उचित नहीं है क्योंकि इससे वर्तमान जीवन दुखद और भविष्य अनिश्चित बन जाता है। जीवन की कठोर वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर जीने में ही मानव की भलाई है। कवि ने यह भी बताया है कि भविष्य की आकांक्षाओं में जीने से भी मानव-जीवन दुःखी बनता है। अतः कवि का स्पष्ट मत है कि वर्तमान जीवन के आधार पर जीना ही उचित है।

प्रश्न 7.
‘छाया मत छूना’ में कवि की आशावादी और यथार्थवादी भावनाओं की एक साथ अभिव्यक्ति हुई है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही कविवर गिरिजाकुमार माथुर की इस कविता में आशावादी चेतना के दर्शन होते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने अतीत के दुःखों व असफलताओं को याद करने की अपेक्षा अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने का प्रयास करना चाहिए
“जो न मिला भूल उसे, कर तू भविष्य वरण।”

इसी प्रकार कविवर माथुर अतीत की सुखद यादों व कल्पनाओं को तथा अवास्तविकताओं को त्यागकर जीवन में यथार्थ को स्वीकार करते हुए जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
“जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन”।

प्रश्न 8.
‘दुविधा-हत साहस है दिखाता पंथ नहीं’ पंक्ति कवि की किस विचारधारा की ओर संकेत करती है?
उत्तर-
इस पंक्ति में कवि की जीवन के प्रति यथार्थ एवं स्पष्ट विचारधारा व्यक्त हुई है। कवि ने बताया है कि जब मनुष्य का मन दुविधाओं से ग्रस्त रहता है, तब उसे आगे बढ़ने का कोई उचित मार्ग नहीं सूझता। उसका साहस भी नष्ट होने लगता है। जीवन में वह किसी एक निर्णय पर नहीं पहुँच सकता। इसलिए कवि ने स्पष्ट किया है कि हमें अपने मन में किसी भी प्रकार की दुविधा को स्थान नहीं देना चाहिए। हमारी जीवन-शैली दुविधा रहित होनी चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में हुआ था।

प्रश्न 2.
गिरिजाकुमार माथुर का निधन कब हुआ था?
गिरिजाकुमार माथुर का निधन सन् 1994 में हुआ था?

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
‘छाया’ शब्द का प्रयोग मधुर स्मृतियों के लिए किया गया है।

प्रश्न 4.
चाँदनी रात को देखकर कवि को क्या याद आता है?
उत्तर-
चाँदनी रात को देखकर कवि को प्रियतमा के केशों में गूंथे हुए फूलों की याद आती है।

प्रश्न 5.
किसके तन की सुगंध की यादें शेष रह गई हैं?
उत्तर-
कवि की पत्नी के तन की सुगंध की यादें शेष रह गई हैं।

प्रश्न 6.
‘छाया मत छूना’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री गिरिजाकुमार माथुर।

प्रश्न 7.
‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने किस ओर संकेत किया है?
उत्तर-
‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने दुख रूपी रात की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 8.
कवि को पंथ दिखाई क्यों नहीं देता?
उत्तर-
कवि को दुविधाग्रस्त होने के कारण पंथ दिखाई नहीं देता।

प्रश्न 9.
‘छाया मत छूना’ कविता में जो न मिला उसे भूलकर किसका वरण करने की बात कही है?
उत्तर-
कवि ने जो नहीं मिला उसे भूलकर भविष्य को वरण करने को कहा है।

प्रश्न 10.
‘रस-बसंत’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
रस-बसंत’ का अभिप्राय सुखमय जीवन है।

प्रश्न 11.
कवि के अनुसार छाया को छूने से क्या होता है?
उत्तर-
कवि के अनुसार छाया को छूने से दुख की प्राप्ति होती है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गिरिजाकुमार माथुर किस प्रदेश के रहने वाले थे?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) हरियाणा
(C) मध्य प्रदेश
(D) पंजाब
उत्तर-
(C) मध्य प्रदेश

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 2.
गिरिजाकुमार माथुर कृत कविता का नाम है
(A) छाया मत छूना
(B) फसल
(C) संगतकार .
(D) कन्यादान
उत्तर-
(A) छाया मत छूना

प्रश्न 3.
कवि ने किसे छुने से मना किया है?
(A) छाया को
(B) बादल को
(C) आग को
(D) पानी को
उत्तर-
(A) छाया को

प्रश्न 4.
कवि के अनुसार छाया को छूने से क्या होता है?
(A) सुख की प्राप्ति
(B) दुख की प्राप्ति
(C) धन की प्राप्ति
(D) भोजन की प्राप्ति
उत्तर-
(B) दुख की प्राप्ति

प्रश्न 5.
‘यामिनी’ का क्या अर्थ है?
(A) सर्पनी
(B) अंधेरी रात
(C) प्रातःकाल
(D) चाँदनी रात
उत्तर-
(D) चाँदनी रात

प्रश्न 6.
‘यश है या न वैभव है मान है न सरमाया’, यहाँ ‘सरमाया’ का अर्थ है
(A) शर्म आना
(B) शर्म न करना
(C) परिश्रम
(D) पूँजी
उत्तर-
(D) पूँजी

प्रश्न 7.
दुविधा की अधिकता के कारण कवि को क्या दिखाई नहीं देता?
(A) लक्ष्य
(B) सहायक
(C) पंथ
(D) साथी
उत्तर-
(C) पंथ

प्रश्न 8.
‘भरमाया’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) भटका हुआ
(B) भ्रमित होना
(C) सुधरा हुआ
(D) दौड़ता हुआ
उत्तर-
(A) भटका हुआ

प्रश्न 9.
पूज्य कठिन यथार्थ क्या है?
(A) पलायन
(B) कल्पना
(C) उपदेश
(D) चुनौती स्वीकारना
उत्तर-
(D) चुनौती स्वीकारना

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 10.
‘मृगतृष्णा’ का अर्थ है
(A) मृग की प्यास
(B) मृग की दौड़
(C) छलावा
(D) दिखावा
उत्तर-
(C) छलावा

प्रश्न 11.
‘चन्द्रिका’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ के लिए किया गया है?
(A) सुख के दिनों के लिए
(B) दुख के दिनों के लिए
(C) आलस्य के अर्थ में
(D) मस्ती के दिनों के लिए
उत्तर-
(A) सुख के दिनों के लिए

प्रश्न 12.
कवि ने मानव को किसका ‘पूजन’ करने के लिए कहा है?
(A) भगवान का
(B) धन का
(C) यथार्थ का
(D) भविष्य का
उत्तर-
(C) यथार्थ का

प्रश्न 13.
क्या होते हुए भी दुविधा से ग्रस्त रहते हैं?
(A) धन
(B) साहस
(C) पराक्रम
(D). यौवन
उत्तर-
(B) साहस

प्रश्न 14.
प्रस्तुत कविता में हर चंद्रिका में क्या छिपी होने की बात कही है?
(A) चाँदनी
(B) ज्योत्स्ना
(C) काली रात
(D) खुशी
उत्तर-
(C) काली रात

प्रश्न 15.
जीवन में सुहावनी चीजें क्या हैं?
(A) वैभव
(B) सुरंग सुधियाँ
(C) कर्म
(D) अमीरी
उत्तर-
(B) सुरंग सुधियाँ

प्रश्न 16.
‘कुंतल’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) रेशमी वस्त्र
(B) फूल
(C) लम्बे केश .
(D) कंचुकी
उत्तर-
(C) लम्बे केश

प्रश्न 17.
‘छवियों की चित्र गंध’ किस प्रकार की है?
(A) आकर्षक
(B) आनंददायक
(C) मनभावनी
(D) सुहावनी
उत्तर-
(C) मनभावनी

प्रश्न 18.
प्रस्तुत कविता में किसका वरण करने की बात की गई है?
(A) जो न मिला हो
(B) भविष्य का
(C) ईश्वर का
(D) खुशियों का
उत्तर-
(B) भविष्य का

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 19.
पथ न दिखने पर साहस कैसा होता है?
(A) अपार
(B) आनन्दमय
(C) दुविधा-हत
(D) अकथनीय
उत्तर-
(C) दुविधा-हत

छाया मत छूना पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना। [पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-छाया मत छूना = अतीत को याद न करना। सुरंग = रंग-बिरंगी। सुधियाँ = यादें, स्मृतियाँ। छवियों की चित्र-गंध = सौंदर्य की स्मृति, चित्र की स्मृति के साथ उसके आसपास की गंध का अनुभव होना। यामिनी = चाँदनी रात। कुंतल = केश। छुअन = स्पर्श। छाया = भ्रम।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) जीवन में सुधियाँ कैसी हैं?
(ङ) कवि छाया को छूने से मना क्यों कर रहा है?
(च) छाया को छूने का क्या परिणाम होगा और कैसे?
(छ) ‘छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ज) चाँदनी रात को देखकर कवि को किसकी स्मृति आती है और क्यों?
(झ) ‘बीत गई यामिनी’ में कवि का कौन-सा भाव मुखरित हुआ है?
(अ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘छाया मत छूना’ से उद्धृत है। प्रस्तुत कविता में कवि ने बीते हुए सुखी जीवन की स्मृतियों को त्यागकर वर्तमान जीवन को सुखी बनाने की प्रेरणा दी है। इन पंक्तियों में कवि ने अतीत के प्रेम और सुख की यादें सुखद होने पर भी वर्तमान को दुखद बनाने वाली बताया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(ग) कवि अपने मन को संबोधित करते हुए कहता है कि हे मन! अतीत की यादों को मत छूना क्योंकि उन्हें स्मरण करके वर्तमान जीवन दुःखी होता है तथा भविष्य भ्रामक कल्पनाओं में उलझ जाता है। अतीत के प्रेम और प्रिय की रंग-बिरंगी सुहावनी अनेक स्मृतियाँ होती हैं। इन यादों में बीते हुए क्षणों के चित्र उभरकर एक सुहावनी सुगंध की मादकता मन में भर देते हैं। अतः प्रिय के तन की सुगंध की स्मृतियों में ही सारी रात बीत जाती है। प्रिय के केशों में लगे फूलों की याद चाँदनी के समान मन रूपी आसमान पर छाई रहती है। प्रिय के तन का स्पर्श, जो भुलाया नहीं जा सकता, वह पुनः बीते क्षणों को जीवंत कर देता है। अतः हे मन! अतीत की यादों को मत छूना वरन् वर्तमान और भविष्य दोनों दुखद बन जाएँगे।

(घ) जीवन में सुधियाँ रंग-बिरंगी, सुहावनी तथा मन को भाने वाली हैं।

(ङ) कवि के अनुसार छाया को छूने अर्थात् अतीत की यादों में जीने का परिणाम अच्छा नहीं होता अथवा अतीत की यादों में जीने का परिणाम दुखद होता है। हम पुराने दिनों के बीत जाने पर उन्हें याद करके दुःखी होते हैं। इसका हमारे वर्तमान जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए कवि छाया को छूने से मना करता है।

(च) छाया को छूने का अर्थात् अतीत की मधुर स्मृतियों को मन में संजोये रखने का परिणाम अच्छा नहीं होता। यदि हम अपने अतीत में ही जीते रहेंगे तो हमारा वर्तमान और भविष्य दोनों अच्छे नहीं बन सकेंगे। इसलिए छाया को छूते रहने से जीवन अभावग्रस्त एवं दुःखी होता है।

(छ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने बताया है कि जब हम पुरानी यादों में जीते हैं अर्थात् बीते हुए समय को याद करते हैं तो हमारे सामने न केवल बीती हुई मीठी यादों के दृश्य ही आते हैं अपितु उन क्षणों की सुगंध भी तरोताजा हो जाती है। वे हमें सजीव-सी प्रतीत होती हैं।

(ज) चाँदनी रात को देखकर कवि को अपनी प्रियतमा के केशों में गूंथे हुए फूलों की स्मृति आती है क्योंकि उन्हें चाँदनी को देखकर अपने बीते हुए प्रेम के सुहावने दिनों की याद आती है।

(झ) ‘बीत गई यामिनी’ में पुरानी यादों में रात बीतने की पीड़ा व्यक्त हुई है। कवि के कहने का तात्पर्य है कि पुरानी यादों की स्मृतियों में पूरा जीवन ही समाप्त हो जाता है, किंतु यादें फिर भी बनी रहती हैं। किंतु उनसे वर्तमान जीवन के लिए कुछ ठोस प्राप्त नहीं हो सकता।

(ञ) इस कवितांश में कवि ने मानव मन की उस स्थिति का मनोरम वर्णन किया है जो उसे अतीत से जोड़े रखती है। कवि ने पुरानी यादों से उत्पन्न निराशा को गहरा करने की मनोभावना का उल्लेख किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि पुरानी यादों से मधुरता कम और निराशा अधिक उत्पन्न होती है तथा निराशा का हमारे वर्तमान पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(ट)

  • कवि ने मानव मन की गहराइयों को अत्यंत सशक्त एवं समर्थ भाषा में उजागर किया है।
  • संपूर्ण काव्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  • मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
  • संस्कृत के शब्दों की अधिकता है।
  • तुकांतता के कारण विषय प्रभावशाली बन पड़ा है।
  • कोमलकांत शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है।

(ठ) गिरिजाकुमार माथुर भाषा के मर्मज्ञ विद्वान थे। उन्होंने अपनी कविताओं में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। प्रयुक्त काव्यांश में सरल एवं सामान्य बोलचाल की हिन्दुस्तानी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है। तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग विषयानुकूल है। सम्पूर्ण पद में प्रसाद गुण संयुक्त भाषा का प्रयोग हुआ है।

[2] यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना। [पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-यश = सम्मान। वैभव = सुख-साधन, धन-दौलत। सरमाया = पूँजी, धन। भरमाया = भटका। प्रभुता का शरण-बिंब = बड़प्पन का अहसास। मृगतृष्णा = छलावा, धोखा। रात कृष्णा = काली रात, दुखद समय। यथार्थ = सत्य। पूजन = पूजा करना, अर्चना करना।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट करें।
(ग) इस काव्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) दुःख क्यों दुगुना होने लगता है?
(ङ) ‘भरमाया’ में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए।
(च) ‘मृगतृष्णा’ क्या है और इसका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(छ) ‘चंद्रिका’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है?
(ज) ‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने किसकी ओर संकेत किया है?
(झ) यथार्थ को कठिन क्यों कहा गया है?
(ञ) इस काव्यांश के भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(ट) इस पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।

(ख) ये पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखित कविता ‘छाया मत छूना’ में से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अतीत के साथ चिपके रहने का विरोध किया है। उन्होंने बताया है कि अतीत की यादें चाहे कितनी भी मधुर क्यों न हों, किंतु दुःख की घड़ी में ये और भी अधिक दुखद. बन जाती हैं।

(ग) कवि का कथन है कि बीती सुखद एवं प्रेम की घड़ियों की स्मृतियों के पीछे दौड़ने से मान, यश, ऐश्वर्य आदि कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। अतीत की सुखद स्मृतियों के पीछे भागने से कुछ मिलने की अपेक्षा और भ्रम में पड़ सकते हैं। किसी प्रकार की प्रभुता की छाया अर्थात् अधिकार पाने का विचार भी एक धोखा ही है। यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि हर चाँदनी रात में एक काली रात भी छिपी रहती है अर्थात् हर सुख के साथ दुःख तथा मिलन के साथ जुदाई जुड़ी रहती है। अतीत को भूलकर वर्तमान जीवन का जो कटु सत्य है उसी को स्वीकार करना चाहिए अर्थात् उसी की पूजा करनी चाहिए। बीते समय की यादों के पीछे भागना तो दुख को बुलावा देने जैसा है।

(घ) मनुष्य जब दुःख के समय में बीते हुए जीवन के सुखों को याद करने लगता है तो वर्तमान जीवन के दुःख दुगुने लगने लगते हैं।

(ङ) ‘भरमाया’ का शाब्दिक अर्थ है-भटका हुआ। कवि ने इस शब्द के माध्यम से बताया है कि सुख-संपत्ति के साधनों या सुखों को प्राप्त करने के लिए मनुष्य जितनी अधिक भाग-दौड़ करता है, वह उतना ही अधिक भ्रम में पड़ता है। उसकी परेशानियाँ या कठिनाइयाँ कम होने की अपेक्षा बढ़ती ही जाती हैं। . (च) ‘मृगतृष्णा’ एक धोखा है। जो न होकर भी होने का आभास देता है, वही मृगतृष्णा है। जीवन में प्रभुता पाने को कवि ने धोखा बताया है। इसी धोखे को या प्रभुता की चमक-दमक को कवि ने मृगतृष्णा की संज्ञा दी है। इसका जीवन पर विपरीत प्रभाव पाता है जिससे वह इधर-उधर रहता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(छ) ‘चंद्रिका’ शब्द का साधारण अर्थ है-चाँदनी। किंतु कवि ने यहाँ उसका प्रयोग सुखों को व्यक्त करने के लिए किया है। हर मनुष्य अपने जीवन में सुखों रूपी चाँदनी को प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है।

(ज) ‘कृष्णा’ का प्रयोग सायास किया गया है। कृष्णा शब्द दुःख रूपी अमावस्या का बोध कराने हेतु प्रयुक्त किया गया है। कवि ने बताया है कि हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है। जीवन में दुःखों का आना-जाना तो लगा ही रहता है। इसलिए उनके विषय में सोचकर मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए।

(झ) यथार्थ जीवन का कटु सत्य होता है, जिसे हर व्यक्ति को सहन करना पड़ता है। इससे मुख मोड़कर जीवन नहीं जिया जा सकता। कठोर परिश्रम करना और जीवन को सुखी बनाने का प्रयास इससे संबंधित है।

(ञ) कवि ने स्पष्ट किया है कि दुःख की घड़ियों में बीते हुए समय के सुखों को याद करने से दुःख घटने की अपेक्षा बढ़ता है। इसी प्रकार कवि ने बताया है कि मनुष्य धन-दौलत व सुखों की प्राप्ति के लिए जितना इनके पीछे भागता है, वह उतना ही भ्रमित होता जाता है। यह एक मृगतृष्णा है। हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है जिसे मनुष्य को भूलना नहीं चाहिए। मनुष्य को जीवन के यथार्थ को ही मन में रखना चाहिए।

(ट)

  • प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जीवन से संबंधित सुख-दुःख की भावना को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यक्त किया है।
  • खड़ी बोली के साहित्यिक रूप का सफल प्रयोग किया गया है।
  • सुप्रसिद्ध तत्सम शब्दों का सार्थकता पूर्ण प्रयोग देखते ही बनता है।
  • अनुप्रास, रूपक आदि अलंकारों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
  • तुकांत छंद है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।

(ठ) दिए गए काव्यांश में कविवर माथुर ने सरल, सहज एवं सामान्य बोलचाल की भाषा का सफल प्रयोग किया है। कवि ने सरमाया, पूजन, भरमाया, दूना आदि तद्भव शब्दों के साथ-साथ शरण-बिम्ब, मृगतृष्णा, चंद्रिका, वैभव आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग भी विषयानुकूल किया है। कवि ने ग्रामीण अंचल के शब्दों का सफल प्रयोग करके भाषा को अधिक व्यावहारिक बनाया है।

[3] दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।[पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-दुविधा-हत साहस = साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना। पंथ = रास्ता। देह = शरीर । अंत नहीं = सीमा नहीं। शरद-रात = सर्दी की रात। भविष्य वरण = आने वाले समय को धारण करना।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘दुविधा-हत साहस’ से क्या अभिप्राय है?
(ङ) “पंथ’ में निहित भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(च) हर प्रकार के सुख-सुविधाओं की प्राप्ति पर भी मनुष्य को किसके अंत का पता नहीं चलता?
(छ) रस बसंत से क्या तात्पर्य है?
(ज) कवि ने इन पंक्तियों में क्या संदेश दिया है?
(झ) ‘न चाँद खिला’ का क्या अभिप्राय है?
(ञ) इस पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘छाया मत छूना’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार माथुर हैं। इस कवितांश में कवि ने मनुष्य को सचेत करते हुए कहा है कि अतीत के सुखों की बातों में डूबा रहना उचित नहीं है। इससे जीवन में दुःखों की छाया बढ़ती है। मनुष्य को वर्तमान में रहते हुए परिश्रम करके अपने भविष्य को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।

(ग) कवि कहता है कि तुम्हारा साहस मन की दुविधाओं के कारण नष्ट होता जा रहा है। कल क्या होगा, क्या नहीं, सफलता मिलेगी या नहीं, आदि दुविधाओं के कारण तुम्हारा साहस नष्ट हो रहा है। तुम्हें आगे बढ़ने के लिए दुविधा के कारण ही कोई निश्चित मार्ग दिखाई नहीं देता। शरीर सुखी होने पर भी मन में असीम दुःख हैं। हर प्रकार की सुख-सुविधा होने पर भी तुम मन से प्रसन्न नहीं हो। तुम्हें इस बात का भी दुःख है कि शरद् की रात आने पर भी आकाश में चाँद नहीं खिला। कहने का अभिप्राय है कि हर प्रकार के सुख की प्राप्ति के पश्चात् भी तुम्हारा मन प्रसन्न नहीं हुआ। यदि बसंत ऋतु के समाप्त होने पर फूल खिलें तो उनका क्या लाभ? यह ठीक है कि तुम्हें समय पर सफलता नहीं मिली। फिर तुम्हें इन असफलताओं को भूलकर अपने भविष्य को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को अतीत व कल्पनाओं में जीने की अपेक्षा वर्तमान में जीने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए यह तुम्हारे लिए हितकर सिद्ध होगा।

(घ) ‘दुविधा-हत साहस’ से अभिप्राय है-सफलता-असफलता, शुभ-अशुभ तथा गलत-ठीक के भ्रम में पड़ने पर मन में साहस का न जग पाना।

(ङ) ‘पंथ’ से तात्पर्य जीवन के उन उद्देश्यों से है जिन्हें हम दुविधाग्रस्त होने के कारण प्राप्त नहीं कर सके।

(च) मनुष्य को हर प्रकार की सुख-सुविधाओं के प्राप्त होने पर भी मन में व्याप्त दुःखों के अंत का पता नहीं अर्थात् मनुष्य के जीवन में दुःख तो आते ही रहते हैं।

(छ) रस बसंत से कवि का तात्पर्य सुखमय जीवन से है। दूसरे शब्दों में, रस बसंत जीवन के यौवन व उचित अवसर का प्रतीक है।

(ज) कवि ने इन पंक्तियों में संदेश दिया है कि जीवन में हमें जो कुछ नहीं मिला, उसे भूल जाओ। वर्तमान के यथार्थ को स्वीकार करो और भविष्य को सुधारने का प्रयास करो। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हमें जीवन में सफलता प्राप्त नहीं हो सकेगी।

(झ) ‘न चाँद खिला’ का अभिप्राय सुखों का प्राप्त न होना है। कवि ने यहाँ चाँद का प्रतीकात्मक प्रयोग किया है जिसका अर्थ सुख है। समय पर सुखों की प्राप्ति न होने पर मन प्रसन्न नहीं होता।

(ञ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने बताया है कि जब मन में दुविधाएँ बनी हुई हों तो मनुष्य साहसी होते हुए भी साहसपूर्ण कार्य नहीं कर सकता। मन की दुविधाओं से केवल साहस ही नष्ट नहीं होता, अपितु मनुष्य अपने भले-बुरे, लाभ-हानि को भी नहीं पहचान सकता। इसलिए कवि ने मन में दुविधा को न रखने की प्रेरणा दी है।

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(ट)

  • कवि ने इन पंक्तियों में सहज भाषा का प्रयोग करते हुए गंभीर भावों को अभिव्यंजित किया है।
  • सुप्रसिद्ध तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • स्वरमैत्री के प्रयोग के कारण काव्यांश में लय एवं संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।
  • अनुप्रास, प्रश्न एवं रूपक अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

(ठ) उपर्युक्त काव्यांश में कविवर माथुर ने अत्यन्त सरल, सामान्य एवं सहज भाषा का भावानुकूल प्रयोग किया है। कवि ने दो अलग-अलग विरोधी भावों को एक-साथ चित्रित किया है जिससे विषय की रोचकता के साथ-साथ भाषा में भी सौंदर्य का समावेश हुआ है। वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग किया है। भाषा प्रसाद गुण सम्पन्न है।

सूरदास के पद Summary in Hindi

छाया मत छूना कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर गिरिजाकुमार माथुर का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं और भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में मध्य प्रदेश के गुना नामक स्थान पर हुआ। प्रारंभिक शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने एम०ए० अंग्रेज़ी व एल०एल०बी० की उपाधि लखनऊ से प्राप्त की।
आरंभ में इन्होंने कुछ समय तक वकालत की। तत्पश्चात् आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत हुए। नौकरी के साथ-साथ गिरिजाकुमार माथुर जी निरंतर साहित्य-साधना भी करते रहे। इन्होंने अनेक रचनाओं का निर्माण करके माँ भारती के आँचल को भर दिया। उनका निधन सन् 1994 में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’ (काव्य-संग्रह); ‘जन्म कैद’ (नाटक); ‘नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ’ (आलोचना)।

3. काव्यगत विशेषताएँ-गिरिजाकुमार माथुर रुमानी भाव-बोध के कवि हैं। इस क्षेत्र में उनको खूब सफलता मिली थी। यद्यपि उनकी आरंभिक रचनाओं में छायावादी प्रवृत्तियाँ दिखलाई पड़ती हैं, किंतु बाद में माथुर जी प्रगतिवाद से जुड़कर लिखने लगे थे। माथुर जी मानव मन की गहराइयों को छूने की अद्भुत क्षमता रखते थे। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण सदा यथार्थवादी रहा है। वे जीवन की निराशाओं से हार मानकर बैठने वाले नहीं थे, अपितु वे उन्हें नए-नए रूपों में ढालने के पक्ष में थे।
गिरिजाकुमार माथुर विषय की मौलिकता के पक्षधर थे, साथ ही शिल्प की विलक्षणता को अनदेखा नहीं करना चाहते थे। वे विषय को अधिक स्पष्ट एवं सजीव रूप में प्रस्तुत करने के लिए वातावरण के रंग भी भरने के पक्ष में थे। .

4. भाषा-शैली-गिरिजाकुमार माथुर मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता संभव कर सके। इनकी रुमानी कविताओं की भाषा सहज, सरल, सरस तथा सामान्य बोलचाल की हिंदुस्तानी भाषा है। परंतु क्लासिकल कविताओं में इन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। लेकिन स्थानीय बोली और ग्रामीण आँचल के शब्दों के प्रति इनका विशेष मोह है। ऐसे स्थलों पर वे वातावरण निर्माण के लिए स्थानीय शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार से उन्होंने बिंबों और प्रतीकों का खुलकर प्रयोग किया है। विशेषकर रंग, दृश्य, प्राण तथा प्रकृति बिंबों की प्रमुखता है। इसके अतिरिक्त माथुर साहब ने अभिधात्मक, क्लासिकल और वर्णनात्मक सभी प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया है। मुक्त छंद के प्रति इनका विशेष आग्रह है।

छाया मत छूना कविता का सार

प्रश्न-
‘छाया मत छूना’ नामक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने अपने मन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे मन! तू कभी भी बीते हुए सुख के समय की यादों के पीछे मत दौड़ना। ऐसा करने से दुःख कम होने की अपेक्षा दुगुना ही होगा। सुख स्मृतियों के पीछे भागना मन को भटकन में डालना है। मानव धन-दौलत, आदर-मान जितना प्राप्त करना चाहता है, उतना ही वह दुविधा में जकड़ा जाता है। कवि का कहना है कि प्रत्येक चाँदनी से युक्त रात के पीछे अंधकारपूर्ण रात छिपी रहती है। अतः जीवन के यथार्थ को समक्ष रखकर जीवन-यापन करना चाहिए। कवि का मत है कि दुविधा युक्त मानव कभी भी जीवन का सही मार्ग नहीं चुन सकता। भौतिक पदार्थों के पर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर लेने पर भी यदि मानव की इच्छाएँ फलीभूत होती हैं तो भले ही उसे शारीरिक सुख अनुभव हो, किंतु मानसिक पीड़ा फिर भी बनी रहेगी। कवि पुनः कहता है कि हे मानव! जिस वस्तु को तू प्राप्त नहीं कर सकता, उसे भूलकर अपने भविष्य का मार्ग निर्धारित कर। अतीत की घटनाओं को याद करके उन पर पश्चात्ताप करने से कोई लाभ नहीं होता। भाव यह है कि अतीत से जुड़े रहना केवल मूर्खता है। इससे वर्तमान और भविष्य दोनों दुखद बनते हैं।

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