Author name: Prasanna

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 4 कार्बन एवं इसके यौगिक

HBSE 10th Class Science कार्बन एवं इसके यौगिक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एथेन का आण्विक सूत्र-C2H2, है। इसमें
(a) 6 सहसंयोजक आबन्ध हैं
(b) 7 सहसंयोजक आबन्ध हैं
(c) 8 सहसंयोजक आबन्ध हैं
(d) 9 सहसंयोजक आबन्ध हैं।
उत्तर-
(b) 7 सहसंयोजक आबन्ध हैं।

प्रश्न 2.
ब्यूटेनॉन, चर्तु-कार्बन यौगिक है जिसका प्रकार्यात्मक समूह है
(a) कार्बोक्सिलिक अम्ल
(b) ऐल्डिहाइड
(c) कीटोन
(d) ऐल्कोहॉल।
उत्तर-
(c) कीटोन।

प्रश्न 3.
खाना बनाते समय यदि बर्तन की तली बाहर से काली हो रही है तो इसका मतलब है कि
(a) भोजन पूरी तरह नहीं पका है
(b) ईंधन पूरी तरह से नहीं जल रहा है
(c) ईंधन आई है
(d) ईंधन पूरी तरह से जल रहा है।
उत्तर-
(b) ईंधन पूरी तरह से नहीं जल रहा है।

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प्रश्न 4.
CH3Cl में आबन्ध निर्माण का उपयोग कर सहसंयोजक आबन्ध की प्रकृति समझाइए।
उत्तर-
CH3Cl,
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CH3CI में आबन्ध संरचना-एकल सहसंयोजक आबन्ध है।

प्रश्न 5.
इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचना बनाइए
(a) एथेनॉइक अम्ल
(b)H2S
(c) प्रोपेनोन
(d) F2
उत्तर-
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प्रश्न 6.
समजातीय श्रेणी क्या है? उदाहरण के साथ समझाइए।
उत्तर-
समजातीय श्रेणी यौगिकों का एक समूह या परिवार होता है जिसमें एक समान क्रियात्मक समूह विद्यमान रहता है परन्तु श्रृंखला की लम्बाइयाँ अलग-अलग होती हैं। अतः इन यौगिकों के रासायनिक गुण एकसमान होते हैं। उदाहरण, ऐल्केन समजातीय श्रेणी का सामान्य सूत्र CnH2n+2 होता है। इस श्रेणी के सदस्य मेथेन CH4, एथेन C2H6 प्रोपेन C3H8 ब्यूटेन C4H10…. आदि हैं।

प्रश्न 7.
भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्मों के आधार पर एथेनॉल एवं एथेनोइक अम्ल में आप कैसे अन्तर करेंगे? [CBSE 2015]
उत्तर-
एथेनॉल तथा एथेनोइक अम्ल के बीच अन्तर निम्नलिखित हैं –

एथेनॉलएथेनोइक अम्ल
भौतिक गुण
1. इसका लिटमस पत्र पर . कोई प्रभाव नहीं होता।
1. यह अम्लीय होने के कारण नीले लिटमस को लाल कर देता है।
2. इसकी गन्ध अच्छी होती है।2. इसकी गन्ध तीक्ष्ण तथा यह स्वाद में खट्टा होता है।
3. इसका क्वथनांक 391 K है।3. इसका क्वथनांक 351 K है।
4. इसका गलनांक 156 K है।4. इसका गलनांक 290 K है।
रासायनिक गुण
5. इसमें सोडियम धातु डालने पर हाइड्रोजन गैस बुदबुदाहट के साथ निकलती है।
5. इसमें सोडियम धातु डालने पर हाइड्रोजन गैस बुदबुदाहट के साथ नहीं निकलती है।
6. इसमें सोडियम बाइ- कार्बोनेट मिलाने पर CO2, गैस नहीं निकलती है।6. इसमें सोडियम बाइकार्बोनेट मिलाने पर CO2 गैस निकलती है।

प्रश्न 8.
जब साबुन को जल में डाला जाता है तो मिसेल का निर्माण क्यों होता है ? क्या एथेनॉल जैसे दूसरे विलायकों में भी मिसेल का निर्माण होगा?
उत्तर-
जब साबुन को जल में डाला जाता है तो इसके अणु के दो सिरे दो भिन्न गुणधर्मों को प्रदर्शित करते हैं, जल में विलयशील हाइड्रोफिलिक और हाइड्रोकार्बन में विलयशील हाइड्रोफोबिक। यह जल में घुलनशील नहीं होते हैं। पानी में डालने पर साबुन का आयनिक सिरा जल के भीतर होता है, जबकि हाइड्रोकार्बन पूँछ (दूसरा सिरा) जल के बाहर होती है। जल के अन्दर इन अणुओं की विशेष व्यवस्था होती है जिससे इसका हाइड्रोकार्बन सिरा जल के बाहर बना होता है। ऐसा अणुओं का बड़ा समूह बनने के कारण होता है या जिसमें हाइड्रोफोबिक पूँछ बड़े समूह के भीतरी हिस्से में वन होती है, जबकि उसका आयनिक सिरा बड़े समूह की सतह पर होता है। इस संरचना को मिसेल कहते हैं। साबुन एथेनॉल जैसे दूसरे विलायकों में घुल जाता है त्र इसलिए मिसेल का निर्माण नहीं करता है।

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प्रश्न 9.
कार्बन एवं उसके यौगिकों का उपयोग अधिकतर अनुप्रयोगों में ईंधन के रूप में क्यों किया जाता
उत्तर-
कार्बन एवं उसके यौगिकों का उपयोग ईंधन के 5] रूप में करने के निम्नलिखित कारण हैं-
(i) ये स्वच्छ ईंधन तर होते हैं तथा धुआँ उत्पन्न नहीं करते हैं।
(ii) इनका उच्च कैलोरी मान होता है।
(iii) इनको जलाने पर हानिकारक गैसें उत्पन्न नहीं होती हैं।
(iv) इनका ज्वलन ताप मध्यम होता है।

प्रश्न 10.
कठोर जल को साबुन से उपचारित करने पर झोग के निर्माण को समझाइए।
उत्तर-
जल की कठोरता का कारण कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के लवण होते हैं। जब कठोर जल साबुन से अभिक्रिया करता है तो साबुन कैल्सियम तथा मैग्नीशियम यह लवणों के साथ अभिक्रिया करके अविलेय पदार्थ बना देता है। ये अविलेय पदार्थ जल में झाग की परत बनाते हैं।

प्रश्न 11.
यदि आप लिटमस पत्र (लाल एवं नीला) से साबुन की जाँच करें तो आपका प्रेक्षण क्या होगा?
उत्तर-
साबुन क्षारकीय प्रकृति का होता है इसलिए वह लाल लिटमस को नीला कर देगा। इसका नीले लिटमस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

प्रश्न 12.
हाइड्रोजनीकरण क्या है ? इसका औद्योगिक अनुप्रयोग क्या है ?
उत्तर-
असंतृप्त हाइड्रोकार्बन का द्वि अथवा त्रिबन्ध के दोनों ओर हाइड्रोजन का योग हाइड्रोजनीकरण कहलाता है, जैसे
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औद्योगिक उपयोग-इस प्रक्रिया से वनस्पति तेलों को वनस्पति घी में बदला जाता है, वनस्पति तेलों में द्विआबन्ध (C = C) होता है। निकल उत्प्रेरक की उपस्थिति में हाइड्रोजनीकरण पर ये वनस्पति तेल को वनस्पति घी में बदल देते हैं।
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प्रश्न 13.
दिए गए हाइड़ाकान C2H6, C3H8 C3,H6.. C2H2, एवं CH4. में किसमें संकलन अभिक्रिया होती
उत्तर-
संकलन अभिक्रिया दशनि वाले हाइड्रोकार्बन C3,H6 तथा C2H2 हैं।

प्रश्न 14.
संतृप्त एवं असंतृप्त कार्बन के बीच रासायनिक अंतर समझने के लिए एक परीक्षण बताइए।
उत्तर-
ब्रोमीन परीक्षण-

  • थोड़े से यौगिक को गर्म करके उसमें कुछ बूंदें ब्रोमीन जल डालते हैं। ब्रोमीन जल का रंग नहीं उड़ता। इससे यह पता चलता है कि यह संतृप्त कार्बनिक यौगिक है।
  • दिए गए यौगिक में कुछ बूंदें ब्रोमीन जल की डालकर हिलाते हैं। कुछ समय बाद ब्रोमीन जल का रंग उड़ . जाता है। इससे यह पता चलता है कि यह असंतृप्त कार्बनिक यौगिक है।

प्रश्न 15.
साबुन की सफाई प्रक्रिया की क्रियाविधि समझाइए। [CBSE 2015]
उत्तर-
साबुन में ऐसे अणु होते हैं जिसके दोनों सिरों के विभिन्न गुणधर्म होते हैं। जल में घुलनशील एक सिरे को हाइड्रोफिलिक कहते हैं तथा हाइड्रोकार्बन में विलयशील दूसरे सिरे को हाइड्रोफोबिक कहते हैं। जब साबुन जल की सतह पर होता है तब इसके अणु अपने आपको इस प्रकार व्यवस्थित कर लेते हैं कि इसका आयनिक सिरा जल के भीतर होता है, जबकि हाइड्रोकार्बन पूँछ जल के बाहर होती है। जल के अन्दर इन अणुओं की विशेष व्यवस्था होती है जिससे इसका हाइड्रोकार्बन सिरा जल के बाहर बना होता है, ऐसा अणुओं का बड़ा समूह बनने के कारण होता है। यह हाइड्रोफोबिक पूँछ समूह के भीतरी हिस्से में होती है, जबकि उसका आयनिक सिरा समूह की सतह पर होता है। इस संरचना को मिसेल कहते हैं। मिसेल के रूप में साबुन सफाई करने में सक्षम होता है।
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पाठ्यपुस्तक के अन्तर्गत दिये गये क्रियाकलाप पर आधारित प्रश्नोत्तर (Intext Activities Based Questions And Answers)

HBSE 10th Class Science कार्बन एवं इसके यौगिक  InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. स. 68)

प्रश्न 1.
CO2, सूत्र वाले कार्बन डाइऑक्साइड की इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचना क्या होगी?
उत्तर-
CO2, की इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचना-
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प्रश्न 2.
सल्फर के आठ परमाणुओं से बने सल्फर के अणु की इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचना क्या होगी ?
उत्तर-
सल्फर के आठ परमाणु एक अंगूठी के रूप में आपस में जुड़े होते हैं। 16 S = 2, 8, 6
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(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 76)

प्रश्न 1.
पेन्टेन के लिए आप कितने संरचनात्मक समावयवों का चित्रण कर सकते हैं ?
उत्तर-
पेन्टेन के तीन संरचनात्मक समावयवों का चित्रण किया जा सकता है।
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प्रश्न 2.
कार्बन के दो गुणधर्म कौन-से हैं, जिनके कारण हमारे चारों ओर कार्बन यौगिकों की विशाल संख्या दिखाई देती है?
उत्तर-
(i) श्रृंखलन (Catenation)-कार्बन में कार्बन के ही अन्य परमाणुओं के साथ बन्ध बनाने की क्षमता होती है। इस गुण को श्रंखलन कहते हैं। कार्बन के परमाण एकल, द्विबन्ध या त्रिबन्ध के द्वारा आपस में जुड़ सकते हैं।

(ii) चतुःसंयोजकता-कार्बन की संयोजकता चार होने के कारण इसकी अन्य संयोजक तत्वों के परमाणुओं के साथ बन्ध बनाने की क्षमता होती है। ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, क्लोरीन तथा अनेक तत्वों के साथ कार्बन के विभिन्न यौगिक बनते हैं।

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प्रश्न 3.
साइक्लोपेन्टेन का सूत्र तथा इलेक्ट्रॉन बिन्दु संरचना क्या होंगे?
उत्तर-
C2H10
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प्रश्न 4.
निम्न यौगिकों की संरचनाएँ चित्रित कीजिए
(i) एथेनॉइक अम्ल
(ii) ब्रोमोपेन्टेन
(iii) ब्यूटेनोन-2
(iv) हेक्सेनैल। क्या ब्रोमोपेन्टेन के संरचनात्मक समावयव सम्भव हैं?
उत्तर-
(i) एथेनॉइक अम्ल की संरचना (CH3COOH)
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(ii) ब्रोमोपेन्टेन की संरचना (C5H11Br)

(iii) ब्यूटेनोन-2 की संरचना (C2H5COCH3)
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(iv) हेक्सेनैल की संरचना (C5H11CHO) ।
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हाँ, ब्रोमोपेन्टेन के संरचनात्मक समावयवी सम्भव हैं। कार्बन के साथ ब्रोमीन का स्थान बदलने के साथ ब्रोमोपेन्टेन विभिन्न संरचनात्मक समावयवता प्रदर्शित करता ये निम्न प्रकार हैं –
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित यौगिकों का नामकरण कैसे करेंगे?
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उत्तर-
(i) CH3 – CH2 – Br को एथेन से प्राप्त किया जाता है। इसका अनुलग्न ब्रोमीन है। इसका उपसर्ग ब्रोमो है।
∴ इसका नाम है
ब्रोमो + एथेन = ब्रोमोएथेन
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∴ यह मेथेनैल है।

(iii) यौगिक में छ: कार्बन परमाणु हैं इसलिए यह हैक्सेन है। यौगिक असंतृप्त है और इसमें तीन बन्ध हैं और तीसरा बन्ध श्रृंखला में कार्बन परमाणु के पहले स्थान पर है।
इसलिए यौगिक 1 हेक्साइन है। इसे हेक्साइन भी कह सकते हैं। .

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 79)

प्रश्न 1.
एथेनॉल से एथेनॉइक अम्ल में परिवर्तन को ऑक्सीकरण अभिक्रिया क्यों कहते हैं ?
किया जाता है ?
उत्तर-
उत्तर-
एथेनॉइक अम्ल, एथेनॉल से ऑक्सीजन के योग द्वारा उत्पन्न होता है अतः यह एक ऑक्सीकरण अभिक्रिया है।

प्रश्न 2.
ऑक्सीजन तथा एथाइन के मिश्रण का दहन वेल्डिंग के लिए किया जाता है क्या आप बता सकते हैं कि एथाइन तथा वायु के मिश्रण का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है ?
उत्तर-
वायु तथा एथाइन के मिश्रण को जलाने पर पूर्ण दहन करने हेतु ऑक्सीजन की उपलब्धता अपर्याप्त होगी जिससे ऊष्मा की कम मात्रा का उत्पादन होगा, परन्तु ऑक्सीजन व एथाइन के मिश्रण को जलाने पर पूर्ण दहन वेल्डिंग के लिए किया जाता है । क्या आप बता सकते हैं ही होता है तथा वेल्डिंग हेतु पर्याप्त ऊष्मा का उत्पादन होता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 83)

प्रश्न 1.
प्रयोग द्वारा आप ऐल्कोहॉल एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल में कैसे अन्तर कर सकते हैं ?
उत्तर-
ऐल्कोहॉल एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल में प्रयोग द्वारा विभेद निम्नलिखित रूप से कर सकते हैं-
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प्रश्न 2. ऑक्सीकारक क्या हैं ?
उत्तर-
ऑक्सीकारक वे पदार्थ हैं जो अन्य पदार्थों को ऑक्सीजन प्रदान करने की क्षमता रखते हैं तथा स्वयं अपचयित होकर दूसरे को ऑक्सीकृत करते हैं;
जैसे -KMnO4 , Cr2O7,ऑक्सीकारक पदार्थ हैं।

(पाठ्य पुस्तक पृ. सं.-85)

प्रश्न 1,
क्या आप डिटरजेंट का उपयोग करके बता सकते हैं कि कोई जल कठोर है अथवा नहीं ?
उत्तर-
नहीं डिटरजेंट कठोर जल के साथ झाग बनाता है। यह कठोर जल के साथ साबुन की तरह सफेद तलछट तैयार नहीं करता है।

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प्रश्न 2.
लोग विभिन्न प्रकार से कपड़े धोते हैं। सामान्यतः साबुन लगाने के बाद लोग कपड़े को पत्थर पर पटकते हैं, डण्डे से पीटते हैं, ब्रुश से रगड़ते हैं या वाशिंग मशीन में कपड़े रगड़े जाते हैं। कपड़ा साफ करने के लिए उसे रगड़ने की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
साबुन से कपड़ा साफ करने में रगड़ना इसलिए आवश्यक है ताकि साबुन के अणु तेल के धब्बों, मैल के कणों को हटाने के लिए मिसेल बना सकें। मिसेल गन्दे मैल या तेल के धब्बों को हटाने में सहायक होता है।

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क्रियाकलाप 4.1 (पा.पु. पृ. सं. 64)

प्रश्न 1.
(i) सुबह से आपने जिन वस्तुओं का उपयोग अथवा उपभोग किया हो उनमें से दस वस्तुओं की सूची बनाइये।
(ii) इस सूची को अपने सहपाठियों द्वारा बनाई गयी सूची के साथ मिलाइये तथा सभी वस्तुओं को निम्न सारणी में वर्गीकृत करें।
(iii) एक से अधिक सामग्रियों से बनी वस्तुओं को दोनों उपयुक्त वर्गों में रखें।
उत्तर –
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प्रश्न 2.
कार्बन से युक्त यौगिक को जलाने पर क्या उत्पाद बनता है?
उत्तर-
कार्बन युक्त यौगिक को जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बनती है।

क्रियाकलाप 4.2 (पा. पु. पृ. सं. 74)

प्रश्न 1.
सूत्रों तथा आणविक द्रव्यमानों में अन्तर की गणना करें-
(a) CH3OH एवं C2H5OH
(b) C2H5OH एवं C3H7OH तथा
(c) C3H7OH तथा C4H9OH.
इन तीनों में समानता देखिए तथा क्या इन्हें समजातीय श्रेणी का कहा जा सकता है?
उत्तर-
1.
(a) CH3OH एवं C2H5OH
(i) सूत्र में अन्तर
C2H5OH-CH3OH=CH2,

(ii) अणुभार में अन्तर
[2×12+5×1+16+ 1] – [12+3+16+1]
= [24+5+17]- [32]
=46- 32
=14

(b) C3H7OH एवं C2H5OH
(i) सूत्र में अन्तर
C3H7OH-C2H5OH= CH2

(ii) अणुभार में अन्तर
[3×12+7×1+16+1]-[2×12+5×1+16+1]
= [36+7+16+1]-[24+5+16+1]
=60-46=14

(c) C4H9OH एवं C3H7OH
(i) सूत्र में अन्तर
C4H9OH-C3H7OH = CH2|

(iii) अणुभार में अन्तर
(4×12+ 9.×1+16+ 1) – (3 x 12 +7×1+16+ 1)
= (48+9+ 16 + 1)-(36+7+16-1)
=74-60 = 4
चारों ऐल्कोहॉलों में कार्बन परमाणुओं की संख्या के बढ़ते क्रम में निम्न प्रकार हैं
CH3OH<C2H5OH<C3H7OH<C4H9OH
हाँ, ये चारों ऐल्कोहॉल एक समजात श्रेणी बनाते हैं।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रकार्यात्मक समूहों के लिए चार कार्बनों तक के यौगिकों वाली समजातीय श्रेणी तैयार करें
(i) हैलो (-CI और -Br)
(ii) ऐल्डिहाइड(-CHO)
(iii) कीटोन (-Co)
(iv) कार्बोक्सिलिक अम्ल (-COOH)
उत्तर-
दिये गये प्रकार्यात्मक समूहों की, समजात श्रेणी निम्न है
(a) हैलो (-CI और – Br)
CH3Cl, C2H5Cl, C3H7Cl, C4H9Cl एवं CH3Br, C2H5Br, C3H7Br, C4H9Br

(b) ऐल्डिहाइड (CHO)
HCHO, CH3CHO, C2H5CHO, C3H7CHO

(c) कीटोन (-CO)
CH3-CO-CH3, CH3CH2-CO-CH3
CH3CH2-CO-CH2CH3,
CH3CH2CH2 -CO- CH2CH3

(d) कार्बोक्सिलिक अम्ल (-COOH)
H-COOH, CH3COOH,
CH3CH2 -COOH, CH3CH2CH2-COOH

क्रियाकलाप 4.3 (पा. पु. पृ. सं.76)

प्रश्न 1.
ज्वाला की प्रकृति का प्रेक्षण कीजिए तथा लिखिए कि धुआँ हुआ या नहीं।
उत्तर-
वायु की प्रचुर उपस्थिति में संतृप्त हाइड्रोकार्बन नीली धुआँ रहित लौ के साथ जलते हैं। असंतृप्त हाइड्रोकार्बन वायु में पीली लौ की ज्वाला एवं अधिक धुएँ के साथ जलते हैं।

प्रश्न 2.
ज्वाला के ऊपर धातु की एक तश्तरी रखिए। इनमें से किसी भी यौगिक के कारण तश्तरी पर कोई निक्षेपण हुआ?
उत्तर-
नैफ्थलीन और कैम्फर को जलाने पर तश्तरी पर निक्षेपण हुआ।

क्रियाकलाप 4.4 (पा. पु. पृ. सं. 77)

प्रश्न 1.
पीली, कज्जली ज्वाला कब प्राप्त हुई?
उत्तर-
वायु की नियन्त्रित आपूर्ति से अपूर्ण दहन होता है जिसके कारण पीली चमकदार ज्वाला प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
नीली ज्वाला कब प्राप्त हुई?
उत्तर-
जब ऑक्सीजन की समुचित मात्रा उपलब्ध कराई जाती है तो पूर्ण दहन होता है तथा नीली ज्वाला प्राप्त होती है।

क्रियाकलाप 4.5 (पा. पु. पृ. सं. 78)

प्रश्न 1.
क्या परमैंगनेट का गुलाबी रंग प्रारम्भ में ऐल्कोहॉल में मिलाने पर लुप्त होता है। .
उत्तर-
परमैंगनेट का गुलाबी रंग प्रारम्भ में ऐल्कोहॉल में मिलाने पर तुरन्त लुप्त हो जाता है।

प्रश्न 2.
यदि परमैंगनेट को ऐल्कोहॉल में अधिकता में मिलाया जाता है तो इसका रंग लुप्त नहीं होता है ? क्यों ?
उत्तर-
यदि ऐल्कोहॉल में 5% क्षारीय KMnO4 का विलयन धीरे-धीरे मिलाया जाता है तो इसका रंग विलुप्त हो जाता है क्योंकि यह ऐथेनॉल को एथेनोइक अम्ल में ऑक्सीकृत कर देता है और स्वयं यह मैंगनीज डाइऑक्साइड (MnO2) में अपचयित हो जाता है। लेकिन यदि KMnO4 को अधिकता में मिला दिया जाये तो इसकी मात्रा एथेनॉल को एथेनोइक अम्ल में ऑक्सीकृत करने के लिए आवश्यक मात्रा से अत्यधिक है अतः इसका गुलाबी रंग अधिक मात्रा की उपस्थिति के कारण होता है।

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क्रियाकलाप 4.6 (पा. पु. पृ. सं. 80)

प्रश्न 1.
आप क्या प्रेक्षित करते हैं?
उत्तर-
हम यह प्रेक्षित करते हैं कि अभिक्रिया के दौरान कोई गैस मुक्त होती है।

प्रश्न 2.
उत्सर्जित गैस की आप कैसे जाँच करेंगे?
उत्तर-
उत्सर्जित गैस के पास एक जलती हुई तीली या मोमबत्ती ले जाने पर यह फट-फट की ध्वनि (pop sound) के साथ जलती है।

क्रियाकलाप 4.7 (पा. पु. पृ. सं. 81)

प्रश्न 1.
क्या लिटमस परीक्षण में दोनों अम्ल सूचित होते हैं?
उत्तर-
हाँ, क्योंकि ये नीले लिटमस पत्र को लाल कर देते हैं।

प्रश्न 2.
सार्वत्रिक सूचक से क्या दोनों अम्लों के प्रबल होने का पता चलता है?
उत्तर-
नहीं, ऐसीटिक अम्ल दुर्बल अम्ल जबकि हाइड्रोक्लोरिक अम्ल प्रबल अम्ल होता है। नोट-एथेनॉइक अम्ल (CH3COOH) को सामान्यतः ऐसीटिक अम्ल कहते हैं। इसका 34% विलयन सिरका कहलाता है जोकि अचार में परिरक्षक के रूप में इस्तेमाल होता है। शुद्ध एथेनॉइक अम्ल का गलनांक 290K होता है इसलिये ठंडी जलवायु में शीत के दिनों में यह जम जाता है इसलिये इसे ग्लैशल ऐसीटिक अम्ल (Glacial Acetic Acid) कहते हैं।

क्रियाकलाप 4.8 (पा. पु. पृ. सं. 81).

प्रश्न 1.
अभिक्रिया से क्या निष्कर्ष निकलता है?
उत्तर-
एथिल ऐल्कोहॉल एवं ऐसीटिक अम्ल, सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में क्रिया करके एस्टर बनाते हैं। अभिक्रिया का समीकरण निम्न है –
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प्रश्न 2.
एस्टर की सुगन्ध कैसी होती है?
उत्तर-
एस्टर की सुगन्ध मीठी होती है।

क्रियाकलाप 4.9 (पा. पु. पृ. सं. 82)

प्रश्न 1.
आप क्या प्रेक्षित करते हैं? .
उत्तर-
अभिक्रिया के दौरान बुदबुदाहट के साथ गैस उत्पन्न होती है, यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड है।

प्रश्न 2.
ताजे चूने के जल में इस गैस को प्रवाहित करने पर आप क्या देखते हैं?
उत्तर-
ताजे चूने के जल में CO2 गैस के प्रवाहित करने पर चूने का पानी दूधिया हो जाता है।

प्रश्न 3.
क्या इस परीक्षण से एथेनॉइक अम्ल एवं सोडियम कार्बोनेट की अभिक्रिया से उत्पन्न गैस का पता चल सकता है?
उत्तर-
हाँ।

क्रियाकलाप 4.10 (पा. पु. पृ. सं. 83)

प्रश्न 1.
क्या हिलाना बन्द करने के बाद दोनों परखनलियों में आप तेल व जल की परतों को अलग-अलग देख सकते हैं?
उत्तर-
नहीं, केवल परखनली B में एक परत ही दिखाई देती है। इससे सिद्ध होता है कि साबुन में तेल घुल गया है अतः कपड़े इसी प्रकार साफ होते हैं।

प्रश्न 2.
कुछ देर तक दोनों परखनलियों को स्थिर रखिए एवं फिर उस पर ध्यान दीजिए। क्या तेल की परत अलग हो जाती है? ऐसा किस परखनली में होता है?
उत्तर-
परखनली A में तल की परत अलग हो जाती  है|

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क्रियाकलाप 4.11 (पा. पु. पृ. सं. 85)

प्रश्न 1.
किस परखनली में अधिक झाग बनता है?
उत्तर-
आसुत जल वाली परखनली में अधिक झाग बनता है।

प्रश्न 2.
क्या दोनों में झाग की मात्रा समान है?
उत्तर-
नहीं।

प्रश्न 3.
किस परखनली में दही जैसा ठोस पदार्थ बनता है?
उत्तर-
कठोर जल वाली परखनली में दही जैसा ठोस पदार्थ बनता है।

क्रियाकलाप 4.12 (पा. पु. पृ. सं. 85)

प्रश्न 1.
दोनों परखनलियों में क्या झाग की मात्रा समान है?
उत्तर-
हाँ, दोनों परखनलियों में झाग की मात्रा समान होती है।

प्रश्न 2.
किस परखनली में दही जैसा ठोस पदार्थ बनता
उत्तर-
किसी भी परखनली में दही जैसा ठोस पदार्थ नहीं बनता है।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Textbook Exercise Questions, and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

HBSE 10th Class Science विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन किसी लम्बे विद्युत धारावाही तार के निकट चुम्बकीय क्षेत्र का सही वर्णन करता है?
(a) चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के लम्बवत् होती हैं।
(b) चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के समान्तर होती हैं।
(c) चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ अरीय होती हैं जिनका उद्भव तार से होता है।
(d) चुम्बकीय क्षेत्र की संकेन्द्रीय क्षेत्र रेखाओं का केन्द्र तार होता है।
उत्तर-
(d) चुम्बकीय क्षेत्र की संकेन्द्रीय क्षेत्र रेखाओं का केन्द्र तार होता है।

प्रश्न 2.
वैद्युत-चुम्बकीय प्रेरण की परिघटना
(a) किसी वस्तु को आवेशित करने की प्रक्रिया है।
(b) किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की प्रक्रिया है।
(c) कुंडली तथा चुम्बक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
(d) किसी विद्युत मोटर की कुंडली को घूर्णन कराने की प्रक्रिया है।
उत्तर-
(c) कुंडली तथा चुम्बक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।

प्रश्न 3.
विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति को कहते हैं-
(a) जनित्र
(b) गैल्वेनोमीटर
(c) ऐमीटर
(d) मोटर।
उत्तर-
(a) जनित्र।

प्रश्न 4.
किसी ac जनित्र तथा dc जनित्र में एक मूलभूत अन्तर यह है कि- .
(a) ac जनित्र में विद्युत चुम्बक होता है जबकि dc मोटर में स्थायी चुम्बक होता है।
(b) dc जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(c) ac जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं, जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।
उत्तर-
(d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं, जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 5.
लघुपथन के समय, परिपथ में विद्युत धारा का मान
(a) बहुत कम हो जाता है
(b) परिवर्तित नहीं होता
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है
(d) निरन्तर परिवर्तित होता है।
उत्तर-
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्रकथनों में कौन-सा सही है तथा कौन-सा गलत है? इसे प्रकथन के सामने अंकित कीजिए
(a) विद्युत मोटर यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित करता है।
(b) विद्युत जनित्र विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है।
(c) किसी लम्बी वृत्ताकार विद्युत धारावाही कुंडली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र समान्तर सीधी क्षेत्र रेखाएँ होता है।
(d) हरे विद्युतरोधन वाला तार प्रायः विद्युन्मय तार होता है।
उत्तर-
(a) असत्य,
(b) सत्य,
(c) सत्य,
(d) असत्य।

प्रश्न 7.
चुम्बकीय क्षेत्र के तीन स्त्रोतों की सूची बनाइए।
उत्तर-
चुम्बकीय क्षेत्र के स्रोत हैं-
(1) स्थायी चुम्बक,
(2) विद्युत धारा तथा
(3) गतिमान आवेश।

प्रश्न 8.
परिनालिका चुम्बक की भाँति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुम्बक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं।
उत्तर-
धारावाही परिनालिका एक छड़ चुम्बक की भाँति ही व्यवहार करती है। इनमें निम्नलिखित समानताएँ होती हैं-

  • धारावाही परिनालिका एवं छड़ चुम्बक दोनों को स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाए जाने पर दोनों के अक्ष उत्तर एवं दक्षिण दिशा में ठहरते हैं।
  • धारावाही परिनालिका एवं छड़ चुम्बक दोनों के समान ध्रुवों में प्रतिकर्षण एवं असमान ध्रुवों में आकर्षण होता है।
  • दोनों ही लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तथा दिक्सूचक सुई लाने पर सुई विक्षेपित हो जाती है।

दण्ड चुम्बक की सहायता से परिनालिका के ध्रुवों का निर्धारण-दण्ड चुम्बक द्वारा परिनालिका के ध्रुवों का निर्धारण निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

  • परिनालिका को उसके केन्द्र पर धागा बाँधकर स्वतन्त्रतापूर्वक लटका देते हैं।
  • दण्ड चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को परिनालिका के एक सिरे के पास लाते हैं। यदि परिनालिका का यह सिरा चुम्बक की ओर आकर्षित होता है तो परिनालिका का यह सिरा दक्षिणी ध्रुव होगा तथा विपरीत सिरा उत्तरी ध्रुव होगा।
  • यदि दण्ड चुम्बक का उत्तरी ध्रुव समीप लाने पर परिनालिका विक्षेपित हो जाती है तब दण्ड चुम्बक के उत्तरी ध्रुव के सामने वाला परिनालिका का सिरा उत्तरी ध्रुव होगा तथा विपरीत सिरा दक्षिणी ध्रुव होगा।

प्रश्न 9.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है?
उत्तर-
जब चालक चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् रखा गया हो तब आरोपित बल अधिकतम होता है।

प्रश्न 10.
मान लीजिए आप किसी चैम्बर में अपनी पीठको किसी एक दीवार से लगाकर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार से सामने की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आपके दाईं ओर विक्षेपित हो जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
उत्तर-
फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम के अनुसार चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ऊर्ध्वाधरतः नीचे की ओर होगी।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 11.
विद्युत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धान्त तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। विद्युत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्त्व है? (CBSE 2018)
उत्तर-
विद्युत मोटर (Electric Motor) विद्युत मोटर द्वारा विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में बदला जाता है।
सिद्धान्त (Principle)-यदि किसी चुम्बकीय क्षेत्र में एक बन्द कुंडली रखकर उसमें विद्युत धारा प्रवाहित की जाए तो कुंडली विक्षेपित हो जाती है। यदि कुंडली में धारा का प्रवाह एक ही दिशा में होता रहे तो कुंडली भी एक दिशा में घूमती रहेगी। इस तथ्य का उपयोग विद्युत मोटर बनाने में किया जाता है। इसे विद्युत मोटर का सिद्धान्त कहा जाता है।

रचना-विद्युत मोटर के निम्नांकित मुख्य भाग होते हैं
(i) क्षेत्र चुम्बक,
(ii) आर्मेचर,
(iii) विभक्त वलय,
(iv) ब्रुश।

(i) क्षेत्र चुम्बक (Field magnet)-यह एक शक्तिशाली स्थायी चुम्बक होता है, जिसके ध्रुव खण्ड N व S हैं। इस चुम्बक के ध्रुवों के बीच उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र में आर्मेचर कुंडली घूमती है।

(ii) आर्मेचर (Armature) यह अनेक फेरों वाली एक आयताकार कुंडली ABCD होती है जो कच्चे लोहे के क्रोड पर ताँबे के पृथक्कित तार लपेटकर बनायी जाती है।

(iii) विभक्त वलय (Split rings) यह दो अर्द्ध-वृत्ताकार वलयों L व M के रूप में होता है। कुंडली के सिरे A व B इन भागों में अलग-अलग जुड़े रहते हैं। यह कुंडली में प्रवाहित होने वाली धारा की दिशा को इस प्रकार परिवर्तित करता है कि कुंडली सदैव एक ही दिशा में क्षैतिज अक्ष पर घूमती है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 1

(iv) बुश (Brush) विभक्त वलय L व M धातु की बनी दो पत्तियों को स्पर्श करते हैं। इन्हें ब्रुश कहते हैं। इन ब्रुशों का सम्बन्ध दो संयोजक पेचों से कर दिया जाता है। बाह्य परिपथ से आने वाली धारा को इन्हीं पेचों से सम्बन्धित कर देते हैं।

कार्यविधि (Working)-जब बैटरी से कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तब फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियमानुसार, कुंडली की भुजाओं AB तथा CD पर बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में दो बल कार्य करने लगते हैं। ये बल एक बलयुग्म का निर्माण करते हैं, जिसके कारण कुंडली दक्षिणावर्त दिशा में घूमने लगती है। आधे चक्कर के बाद कुंडली की भुजाएँ AB तथा CD अपना स्थान बदल देती हैं तथा साथ ही साथ विभक्त वलय L व M भी अपनी स्थितियाँ बदल देते हैं। इन विभक्त वलयों की सहायता से धारा की दिशा इस प्रकार रखी जाती है कि कुंडली पर बलयुग्म एक ही दिशा में कार्य करे अर्थात् कुंडली एक ही दिशा में घूमती रहे।

कुंडली के घूमने की दर निम्नलिखित उपायों से बढ़ाई जा सकती है-

  • कुंडली में प्रवाहित धारा को बढ़ाकर,
  • कुंडली में फेरों की संख्या बढ़ाकर,
  • कुंडली का क्षेत्रफल बढ़ाकर तथा
  • चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता बढ़ाकर।

प्रश्न 12.
ऐसी कुछ युक्तियों के नाम लिखिए जिनमें विद्युत मोटर उपयोग किए जाते हैं?
उत्तर-
विद्युत मोटर का उपयोग बिजली के पंखे, विद्युत मिश्रकों, वाशिंग मशीनों, कम्प्यूटरों आदि में किया जाता है।

प्रश्न 13.
कोई विद्युतरोधी ताँबे के तार की कुंडली किसी गैल्वेनोमीटर से संयोजित है। क्या होगा यदि कोई छड़ चुम्बक-
(i) कुंडली में धकेला जाता है।
(ii) कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाता है।
(iii) कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है।
उत्तर-
(i) कुंडली में एक प्रेरित धारा उत्पन्न होगी तथा धारामापी विक्षेप प्रदर्शित करेगा।
(ii) प्रेरित धारा उत्पन्न होने से धारामापी में विक्षेप होगा, विक्षेप की दिशा पहले से विपरीत होगी।
(iii) कोई प्रेरित धारा उत्पन्न नहीं होगी, धारामापी में कोई विक्षेप नहीं आएगा।

प्रश्न 14.
दो वृत्ताकार कुंडली A तथा B एक-दूसरे के निकट स्थित हैं। यदि कुंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करें तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगी? कारण लिखिए।
उत्तर-
कुंडली B में धारा प्रेरित होगी। इसका कारण यह है कि जब कुंडली A में प्रवाहित धारा में बदलाव किया जाता है तो इसके चारों ओर स्थित चुम्बकीय क्षेत्र में भी परिवर्तन होता है। इस क्षेत्र की बल रेखाओं के कुंडली B से गुजरते समय बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होने के कारण कुंडली B में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए
(i) किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र,
(ii) किसी चुम्बकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लम्बवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल, तथा
(iii) किसी चुम्बकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा।
उत्तर-
(i) किसी धारावाही चालक के चारों ओर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम द्वारा निर्धारित होती है, इस नियम के अनुसार, “यदि दाएँ हाथ की अंगुलियों को धारावाही चालक के चारों ओर मोड़कर, अंगूठे को धारावाही चालक में प्रवाहित धारा के अनुदिश रखें तो मुड़ी हुई अंगुलियाँ चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा को प्रदर्शित करेंगी।”

(ii) चुम्बकीय क्षेत्र में रखे गये धारावाही चालक पर लगने वाले बल की दिशा फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम द्वारा निर्धारित की जाती है।
फ्लेमिंग का बाएँ हाथ का नियम-इस नियम के अनुसार, “यदि हम बाएँ हाथ के अंगूठे तथा पहली दो अंगुलियों को इस प्रकार फैलाएँ कि तीनों परस्पर लम्बवत् रहें तब यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, मध्यमा चालक में प्रवाहित धारा की दिशा को प्रदर्शित करे तो अँगूठा चालक पर लगने वाले बल की दिशा को प्रदर्शित करेगा।”

(iii) किसी चुम्बकीय क्षेत्र में किसी कुंडली की गति के कारण उसमें उत्पन्न प्रेरित धारा की दिशा फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम से ज्ञात की जाती है- फ्लेमिंग का दाएँ हाथ का नियम-इस नियम के अनुसार, “यदि दाएँ हाथ का अंगूठा, उसके पास वाली तर्जनी अंगुली तथा मध्यमा अंगुली को परस्पर एक-दूसरे के लम्बवत् फैलाकर इस प्रकार रखें कि तर्जनी अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा में हो तो मध्यमा अंगुली चालक में धारा की दिशा बताएगी।”

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 16.
नामांकित आरेख खींचकर किसी विद्युत जनित्र का मूल सिद्धान्त तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इसमें ब्रुशों का क्या कार्य है?
उत्तर-
विद्युत जनित्र अथवा प्रत्यावर्ती धारा डायनमो (Electric Generator or Alternating Current Dynamo)- विद्युत जनित्र (डायनमो) एक ऐसा यन्त्र है जो कि यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।

सिद्धान्त (Principle)-जब किसी शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में किसी बन्द कुंडली को घुमाया जाता है, तो उसमें से होकर गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण कुंडली में एक विद्युत वाहक बल तथा विद्युत धारा प्रेरित हो जाती है। कुंडली को घुमाने में जो कार्य किया जाता है वह विद्युत ऊर्जा के रूप में परिणित हो जाता है।

संरचना (Construction)-इसके मुख्य भाग निम्नलिखित हैं-
(i) क्षेत्र चुम्बक,
(ii) आर्मेचर,
(iii) सपी वलय,
(iv) ब्रुश।

(i) क्षेत्र चुम्बक (Field magnet)-यह एक अति शक्तिशाली नाल चुम्बक होता है जिसके ध्रुवों के मध्य शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में एक कुंडली को तीव्र गति से घुमाया जाता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 2

(ii) आर्मेचर या कुंडली (Armature)-यह मुलायम लोहे के एक क्रोड पर लिपटी अत्यधिक संख्या में पृथक्कृत तारों की कुंडली है जिसे चुम्बकीय क्षेत्र में तीव्र गति से घुमाया जाता है। यह सामान्य रूप से 50 चक्कर प्रति सेकण्ड की दर से चक्कर लगाती है जो प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति. कहलाती है।

(iii) सी वलय (Slip rings)-कुंडली के सिरे A व D क्रमशः अलग-अलग पृथक्कृत धात्विक वलयों C, व C, से जोड़ दिए जाते हैं। ये कुंडली के साथ-साथ घूमते हैं।

(iv) बुश (Brushes)-ये कार्बन या किसी धातु की पत्तियों से बने दो ब्रुश होते हैं। इनका एक सिरा सी वलयों को स्पर्श करता है एवं शेष दूसरे सिरों को बाह्य परिपथ से सम्बन्धित कर दिया जाता है। ब्रुश कुंडली के साथ नहीं घूमते हैं।

कार्यविधि (Working)-माना कि कुंडली ABCD दक्षिणावर्त दिशा में घूम रही है, जिससे भुजा CD नीचे की ओर व भुजा AB ऊपर की ओर आ रही होती है तब फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियमानुसार, इन भुजाओं में प्रेरित धारा की दिशा चित्रानुसार होगी। अतः बाह्य परिपथ में धारा B2, से जाएगी तथा B1, से वापस आएगी। जब कुंडली अपनी
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 3
ऊर्ध्वाधर स्थिति से गुजरेगी, तब भुजा AB नीचे की ओर तथा CD ऊपर की ऊपर की ओर जाने लगेगी। इस कारण AB तथा CD में धारा की दिशाएँ पहले से विपरीत हो जाएँगी। इस प्रकार की धारा को प्रत्यावर्ती धारा (alternating current) कहते हैं, क्योंकि प्रत्येक आधे चक्कर के बाद बाह्य परिपथ में धारा की दिशा बदल जाती है।

प्रश्न 17.
किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता
उत्तर-
जब विद्युन्मय तार एवं उदासीन तार परस्पर सम्पर्कित हो जाते हैं तो परिपथ लघुपथित हो जाता है। इस स्थिति में परिपथ का प्रतिरोध अचानक शून्य हो जाता है तथा धारा का मान अचानक बहुत अधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 18.
भूसंपर्क तार का क्या कार्य है? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कित करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
भूसंपर्क तार-घरेलू विद्युत परिपथ में विद्युन्मय एवं उदासीन तारों के साथ एक तीसरा तार भी लगा होता है, इस तार का सम्पर्क घर के निकट जमीन के नीचे दबी धातु के प्लेट के साथ होता है। इस तार को भूसंपर्क तार कहते हैं। धातु के साधित्रों जैसे बिजली की प्रेस, फ्रिज, टोस्टर आदि को भूसंपर्क तार से जोड़ देने पर साधित्र के आवरण से विद्युत धारा का क्षरण होने पर आवरण का विभव भूमि के बराबर हो जाता है। इससे साधित्र का उपयोग करने वाले व्यक्ति को तीव्र विद्युत आघात लगने का खतरा समाप्त हो जाता है।

HBSE 10th Class Science विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 250)

प्रश्न 1.
चुम्बक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित क्यों हो जाती है?
उत्तर-
चुम्बक के समीप लाए जाने पर, चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण दिक्सूचक सुई पर एक बलयुग्म कार्य करने लगता है जो सुई को विक्षेपित कर देता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 255)

प्रश्न 1.
किसी छड़ चुम्बक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ खींचिए।
उत्तर-
किसी छड़ चुम्बक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ –
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 4

प्रश्न 2.
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए।
उत्तर-
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के निम्नलिखित गुण हैं-

  • चुम्बक के बाहर इन बल रेखाओं की दिशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर तथा चुम्बक के अन्दर दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होती है। ये बन्द वक्र के रूप में होती हैं।
  • चुम्बकीय बल रेखा के किसी बिन्दु पर खींची गयी स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है!
  • चुम्बकीय बल रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती, क्योंकि एक बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ सम्भव नहीं हैं।
  • एक समान चुम्बकीय क्षेत्र की चुम्बकीय बल रेखाएँ, परस्पर समान्तर एवं बराबर दूरियों पर होती हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 3.
दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करती?
उत्तर-
यदि दो चुम्बकीय बल रेखाएँ एक-दूसरे को परस्पर काटेंगी तो उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होंगी जोकि असम्भव है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 256)

प्रश्न 1.
मेज के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस पाश में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए। .
उत्तर-
चित्र के अनुसार, यदि दाहिने हाथ की अंगुलियाँ तार के ऊपर इस प्रकार लपेटी जाएँ कि अँगूठा तार में प्रवाहित धारा की दिशा में हों, तब अंगुलियों के मुड़ने की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करेगी।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 5
अतः पाश के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पाश के तल (मेज के तल) के लम्बवत् नीचे की ओर होगी, जबकि पाश के बाहर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पाश (मेज) के तल के लम्बवत् ऊपर की ओर होगी।

प्रश्न 2.
किसी दिए गए क्षेत्र में चुम्बकीय क्षेत्र एक समान है। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए।
उत्तर-
एक समान चम्बकीय क्षेत्र परस्पर समान्तर बल रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाएगा जैसा कि निम्न चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 6

प्रश्न 3.
सही विकल्प चुनिए
किसी विद्युत धारावाही सीधी लम्बी परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र
(a) शून्य होता है।
(b) इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।
(c) इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।
(d) सभी बिन्दुओं पर समान होता है।
उत्तर-
(b) इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 259)

प्रश्न 1.
किसी प्रोटॉन का निम्नलिखित में से कौन-सा गुण चुम्बकीय क्षेत्र में मुक्त गति करते समय परिवर्तित हो जाता है?
(a) द्रव्यमान
(b) चाल
(c) वेग
(d) संवेग।
उत्तर-
(c) वेग तथा (d) संवेग।

प्रश्न 2.
क्रियाकलाप 13.7 में, हमारे विचार से छड़ AB का विस्थापन किस प्रकार प्रभावित होगा, यदि
(a) छड़ AB में प्रवाहित विद्युत धारा में वृद्धि हो जाए
(b) अधिक प्रबल नाल चुम्बक प्रयोग किया जाए और
(c) छड़ AB की लम्बाई में वृद्धि कर दी जाए?
उत्तर-
(a) छड़ का विस्थापन बढ़ जाएगा; क्योंकि इस पर कार्यरत बल प्रवाहित विद्युत धारा के अनुक्रमानुपाती होता है।
(b) छड़ का विस्थापन बढ़ जाएगा; क्योंकि इस पर कार्यरत बल चुम्बकीय क्षेत्र के अनुक्रमानुपाती होता है।
(c) छड़ का विस्थापन बढ़ जाएगा; क्योंकि इस पर कार्यरत बल छड़ की लम्बाई के अनुक्रमानुपाती होता है।

प्रश्न 3.
पश्चिम की ओर प्रक्षेपित कोई धनावेशित कण (अल्फा-कण) किसी चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा उत्तर की ओर विक्षेपित हो जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा क्या
(a) दक्षिण की ओर
(b) पूर्व की ओर
(c) अधोमुखी
(d) उपरिमुखी।
उत्तर-
(d) उपरिमुखी।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 261)

प्रश्न 1.
फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम लिखिए।
उत्तर-
फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम-इस नियम के अनुसार, “यदि हम अपने बाएँ हाथ के अंगूठे तथा पहली दो चुम्बकीय क्षेत्र
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अंगुलियों को इस प्रकार फैलाएँ कि तीनों परस्पर लम्बवत् रहें, तब यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करे, मध्यमा चालक में प्रवाहित धारा की दिशा को प्रदर्शित करे तो अँगूठा चालक पर लगने वाले बल की दिशा को प्रदर्शित करेगा।

प्रश्न 2.
विद्युत मोटर का क्या सिद्धान्त है?
उत्तर-
विद्युत मोटर का सिद्धान्त-जब किसी कुंडली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कुंडली पर एक बलयुग्म कार्य करता है जो कुंडली को उसकी अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुंडली अपनी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो वह घूमने लगती है। यही विद्युत मोटर का सिद्धान्त है।

प्रश्न 3.
विद्युत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है?
उत्तर-
विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक्परिवर्तक का कार्य करता है। वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है, उसे दिक्परिवर्तक कहते हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 264)

प्रश्न 1.
किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

  • यदि कुंडली को स्थिर रखकर, दण्ड चुम्बक को कुण्डली की ओर लाएँ या कुण्डली से दूर ले जाएँ, तो कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न की जा सकती है।
  • चुम्बक को स्थिर रखकर कुंडली को चुम्बक के समीप या उससे दूर ले जाकर कुण्डली में विद्युत धारा प्रेरित की जा सकती है।
  • कुंडली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाकर उसमें धारा प्रेरित की जा सकती है।
  • कुंडली के समीप रखी किसी अन्य कुण्डली में प्रवाहित धारा में परिवर्तन करके भी पहली कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित की जा सकती है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 265)

प्रश्न 1.
विद्युत जनित्र का सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर-
विद्युत जनित्र का सिद्धान्त-जब किसी बन्द कुंडली को किसी शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है तब उसमें से होकर गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होने के कारण कुंडली में एक विद्युत धारा प्रवाहित हो जाती है। कुंडली को घुमाने में किया गया कार्य ही कुंडली में विद्युत-ऊर्जा के रूप में परिणित हो जाता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 2.
दिष्ट धारा के कुछ स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  1. विद्युत सेल या बैटरी तथा
  2. दिष्ट धारा जनित्र।

प्रश्न 3.
प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर-
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र द्वारा प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 4.
सही विकल्प का चयन कीजिए-ताँबे के तार की एक आयताकार कुंडली किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णी गति कर रही है। इस कुंडली में प्रेरित विद्युत् धारा की दिशा में कितने परिभ्रमण के पश्चात् परिवर्तन होता है।
(a) दो
(b) एक
(c) आधे
(d) चौथाई।
उत्तर-
(c) आधे।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 267)

प्रश्न 1.
विद्युत परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यतया उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम लिखिए।
उत्तर-
(i) विद्युत फ्यूज,
(ii) भू सम्पर्क तार ।

प्रश्न 2.
2kW शक्ति अनुमतांक का एक विद्युत तन्दूर किसी घरेलू विद्युत परिपथ (220V) में प्रचालित किया जाता है जिसका विद्युत धारा अनुमतांक 5A है, इससे आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
विद्युत तन्दूर की शक्ति
P=2kW =2000w
V=220V
I = \(\frac{\mathrm{P}}{\mathrm{V}}=\frac{2000 \mathrm{~W}}{200 \mathrm{~V}}\)
=9.09A
विद्युत धारा का अनुमतांक 5A है, विद्युत तन्दूर इससे बहुत अधिक धारा ले रहा है जिससे अतिभारण हो जाएगा तथा फ्यूज गल जाएगा एवं विद्युत पथ अवरोधित हो जाएगा।

प्रश्न 3.
घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर-
घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए मेन स्विच के पास, विद्युन्मय तार में उचित सामर्थ्य का फ्यूज तार जोड़ना चाहिए।

HBSE 10th Class Science विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 13.1. (पा. पु. पृ. सं. 249)

प्रेक्षण (Observation)-दिक्सूचक सुई विक्षेपित हो जाती है, इसका अर्थ है कि ताँबे के तार से प्रवाहित विद्युत धारा ने एक चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न किया है। इस प्रकार यह ज्ञात होता है कि विद्युत तथा चुम्बकत्व एक दूसरे से सम्बन्धित

क्रियाकलाप 13.2. (पा. पु. पृ. सं. 250)

प्रश्न 1.
आप क्या प्रेक्षण करते हैं ?
उत्तर-
लौह-चूर्ण चित्र में दर्शाए गए पैटर्न के अनुसार व्यवस्थित हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
यह पैटर्न क्या निर्देशित करता हैं ?
उत्तर-
लौह-चूर्ण एक बल का अनुभव करता है जो उस चुम्बक के चारों ओर होता है। इसे चुम्बकीय क्षेत्र कहते हैं।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 8

प्रश्न 3.
लौह-चूर्ण किस स्थान पर अधिक आकर्षित होता है ?
उत्तर-
दोनों ध्रुवों पर।

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क्रियाकलाप 13.3. (पा. पु. पृ. सं. 251)
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 9
प्रेक्षण (Observation) चुम्बकीय क्षेत्र में परिमाण एवं दिशा दोनों होते हैं, किसी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा वह मानी जाती है जिसके अनुदिश दिक्सूची का उत्तरी ध्रुव उस क्षेत्र के भीतर गमन करता है। अतः चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से प्रकट होती हैं तथा दक्षिणी ध्रुव पर विलीन हो जाती हैं। चुम्बक के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उसके दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होती है अतः चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक बन्द वक्र के रूप में होती हैं।

क्रियाकलाप 13.4. (पा. पु. पृ. सं. 252)

प्रश्न 1.
दिक्-सूचक सुई के ऊपर यदि धारावाही चालक रखा जाए तो क्या होगा ?
उत्तर-
दिक्-सूचक सुई की भुजाओं में विचलन होगा। यह दिशा SNOW नियम की मदद से ज्ञात कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
SNOW नियम क्या है ?
उत्तर-
यदि चालक में धारा की दिशा दक्षिण से उत्तर दिशा की तरफ हो तो दिक्सूचक सुई की दिशा के पश्चिम दिशा में विक्षेपण होगा।

प्रश्न 3.
क्या होगा यदि धारावाही चालक में धारा की दिशा को उल्टा कर दिया जाए ?
उत्तर-
दिक्सूचक सुई की भुजाओं में विक्षेपण की दिशा उल्टी हो जाएगी।

प्रश्न 4.
यदि सीधे तार में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा को उत्क्रमित कर दिया जाए, तो क्या चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा भी उत्क्रमित हो जाएगी?
उत्तर-
हाँ, चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा भी उत्क्रमित हो जाएगी।

क्रियाकलाप 13.5. (पा. पु. पृ. सं. 253)

प्रश्न 1.
लौह-चूर्ण किस प्रकार व्यवस्थित होते हैं? .
उत्तर-
लौह-चूर्ण संरेखित होकर तार के चारों ओर संकेन्द्री वृत्तों के रूप में व्यवस्थित होते हैं।

प्रश्न 2.
ये संकेन्द्री वृत्त क्या निरूपित करते हैं ? ।
उत्तर-
ये संकेन्द्री वृत्त, चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं को निरूपित करते हैं।

प्रश्न 3.
इस प्रकार उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा आप कैसे ज्ञात करेंगे?
उत्तर-
दिक्सूची द्वारा ज्ञात करेंगे। वृत्त के किसी बिंदु P पर दिक्सूची का उत्तर ध्रुव विद्युत धारा द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखा की दिशा बताता है।

प्रश्न 4.
विद्युत धारा की दिशा उत्क्रमित करने पर क्या होता है ?
उत्तर-
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा भी उत्क्रमित हो जाती है।

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प्रश्न 5.
क्या दिक्सूची के विक्षेप पर धारा के परिमाप – में वृद्धि और तार से दूरी का प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
हाँ, धारा के परिमाप में वृद्धि होने पर विक्षेप में भी वृद्धि होती है तथा तार के दूसरे किसी बिंदु Q पर दिक्सूची रखने पर इसका विक्षेप घट जाता है।

क्रियाकलाप 13.6. (पा. पु. पृ. सं. 256)

प्रश्न 1.
कार्ड बोर्ड को हल्के से कुछ बार थपथपाइए। कार्ड बोर्ड पर जो पैटर्न बनता दिखाई दे उसका प्रेक्षण कीजिए।
उत्तर-
दोनों छिद्रों के पास लौह-चूर्ण संकेन्द्रीय वृत्ताकार पैटर्न में व्यवस्थित हो जाते है। इसका अर्थ हुआ कि धारावाही वृत्ताकार चालक का प्रत्येक भाग चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है जो संकेन्द्रीय वृत्ताकार होते हैं।

प्रश्न 2.
क्या धारावाही वृत्ताकार चालक के आस-पास चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है ?
उत्तर-
हाँ, धारावाही वृत्ताकार चालक के आसपास चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

प्रश्न 3.
धारावाही वृत्ताकार चालक के दो विपरीत बिन्दुओं पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की प्रकृति में अन्तर बताइए।
उत्तर-
दोनों ही बिन्दुओं पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा विपरीत होती है। इन दोनों बिन्दुओं पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ संकेन्द्रीय वृत्ताकार होती हैं।

प्रश्न 4.
धारावाही वृत्ताकार चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का मान सबसे अधिक कहाँ पर होता है?
उत्तर-
धारावाही वृत्ताकार चालक के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान सबसे अधिक होता है।

क्रियाकलाप 13.7. (पा. पु. पृ. सं. 257)

प्रश्न 1.
आप क्या देखते हैं ?
उत्तर-
हम देखते हैं कि विद्युत धारा प्रवाहित होते ही छड़ बाईं दिशा में विस्थापित होती है।

प्रश्न 2.
अब छड़ में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा की दिशा उत्क्रमित कीजिए और छड़ के विस्थापन की दिशा नोट कीजिए। अब यह दाईं ओर विस्थापित होती है। छड़ क्यों विस्थापित होती है?
उत्तर-
फ्लेमिंग के अनुसार धारावाही चालक पर चुम्बकीय क्षेत्र में बल लगता है। इसलिए धारावाही चालक की चुम्बक के ध्रुवों के बीच स्थिर रखने पर अपनी स्थिति से विस्थापित हो जाता है। इस छड़ पर लगने वाला बल छड़ पर लम्बवत दिशा में होता है।

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प्रश्न 3.
जब एक धारावाही चालक को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो क्या होता है ?
उत्तर-
ज़ब धारावाही चालक को चुम्बकीय क्षेत्र में रखते हैं तो उस पर एक बल आरोपित होता है।

प्रश्न 4.
उस नियम का मात्र नाम लिखो जिसकी मदद से धारावाही चालक पर चुम्बकीय क्षेत्र में लगने वाले बल की दिशा ज्ञात करते हैं ?
उत्तर-
फ्लेमिंग का वामहस्त का नियम।

प्रश्न 5.
किन कारकों पर चालक पर आरोपित बल का मान निर्भर करता है ?
उत्तर-

  • चुम्बकीय क्षेत्र के मान पर,
  • चालक की लम्बाई पर,
  • चालक में प्रवाहित धारा के मान पर।

प्रश्न 6.
क्या होगा यदि चुम्बकीय क्षेत्र में रखे चालक में प्रवाहित धारा की दिशा को विपरीत दिशा में प्रवाहित किया जाए ?
उत्तर-
चालक पर आरोपित बल की दिशा विपरीत दिशा में हो जाती है।

क्रियाकलाप 13.8. (पा. पु. पृ. सं. 261)

प्रश्न-इस क्रियाकलाप से आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं ? ..
उत्तर-
इस क्रियाकलाप से यह स्पष्ट होता है कि कुंडली के सापेक्ष चुंबक की गति एक प्रेरित विभवान्तर उत्पन्न करती है, जिसके कारण परिपथ में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है। याद रखिए गैल्वेनोमीटर एक ऐसा उपकरण है, जो किसी परिपथ में विद्युत् धारा की उपस्थिति संसूचित करता है।

क्रियाकलाप 13.9. (पा. पु. पृ. सं. 263)

प्रश्न 1.
जब एक धारावाही कुण्डली को दूसरी कुण्डली के पास लाते है तो क्या होता है ?
उत्तर-
दूसरी कुण्डली में धारा प्रेरित होती है।

प्रश्न 2.
प्राथमिक कुंडली में स्थिर धारा प्रवाहित होने पर द्वितीय कुण्डली में धारा का मान क्या होगा ?
उत्तर-
शून्य।

प्रश्न 3.
धारावाही कुंडली एवं प्रेरित धारा कुण्डली का क्या नाम है ?
उत्तर-
धारावाही कुण्डली को प्राथमिक कुण्डली एवं प्रेरित धारा कुण्डली को द्वितीयक कुण्डली कहते हैं।

प्रश्न 4.
कौन-सी कुण्डली से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है ?
उत्तर-
प्राथमिक कुण्डली से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है क्योंकि यह धारावाही कुण्डली होती है।

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प्रश्न 5.
कुण्डली 2 में प्रेरित धारा की प्रबलता को कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-

  1. प्राथमिक कुण्डली में धारा की प्रबलता।
  2. प्राथमिक कुण्डली में तार के फेरों की संख्या।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

HBSE 10th Class Science जीव जनन कैसे करते है Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है –
(a) अमीबा में
(b) यीस्ट में
(c) प्लाज्मोडियम में
(d) लेस्मानिया में।
उत्तर-
(b) यीस्ट।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तन्त्र का भाग नहीं है
(a) अण्डाशय
(b) गर्भाशय
(c) शुक्रवाहिका
(d) डिम्बवाहिनी।
उत्तर-
(c) शुक्रवाहिका।

प्रश्न 3.
परागकोश में होते हैं-.
(a) बाह्यदल
(b) अण्डाशय
(c) अण्डप
(d) पराग कण।
उत्तर –
(d) पराग कण।

प्रश्न 4.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर –
अलैंगिक जनन में केवल एक जीवधारी के लक्षण ही संतति जीव में आते हैं। इन संतति जीवों में आनुवंशिक ओज क्षीण होता है। इनके जननद्रव्य में विभिन्नताओं की सम्भावना कम होती है।

लैंगिक जनन निम्नलिखित कारणों से अलैंगिक जनन की अपेक्षा अधिक लाभकारी है-

  • लैंगिक जनन में नर एवं मादा के सम्मिलन से नये जीव की उत्पत्ति होती है जिससे दो प्रकार के जनन द्रव्यों का मिलन होता है। इन संतति जीवों में विभिन्नता की सम्भावनाएँ होती हैं।
  • लैंगिक जनन से गुणसूत्रों के नये जोड़े बनते हैं। – इससे विकासवाद की दिशा को नये आयाम प्राप्त होते हैं।
  • लैंगिक जनन से उत्पन्न जीवों में श्रेष्ठ गुणों का समावेश होता है तथा इनमें संकर ओज अधिक होता है।

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प्रश्न 5.
मानव में वृषण के क्या कार्य हैं ?
उत्तर-
मानव में वृषण के प्रमुख कार्य निम्न हैं-

  • ये शुक्राणुओं का निर्माण करते हैं।
  • ये टेस्टोस्टेरॉन नामक हॉर्मोन उत्पन्न करते हैं, जो शुक्राणुओं के उत्पादन को नियन्त्रित करता है।
  • यह हॉर्मोन बालकों में द्वितीय लक्षणों के विकास को प्रेरित करता है।

प्रश्न 6.
ऋतुस्राव क्यों होता है?
उत्तर-
स्त्रियों में अण्डाशय प्रत्येक माह एक अण्ड का निर्मोचन (Ovulation) करता है। निषेचित अण्डाणु द्वारा बने भ्रूण के रोपण के लिए गर्भाशय में कुछ परिवर्तन होते हैं। गर्भाशय की भित्ति में सूक्ष्मांकुर बन जाते हैं, चौड़ी वाहिकाओं का निर्माण हो जाता है तथा भ्रूण के पोषण के लिए परिवर्तन होते हैं। यदि अण्ड का निषेचन नहीं होता है तो गर्भाशय में हुए परिवर्तनों से पुन: सामान्य सी स्थिति बनती है जिसमें गर्भाशय भित्ति, सूक्ष्मांकुरों, म्यूकस तथा वाहिकाओं का विघटन होता है। ये सभी रचनाएँ एक स्राव के रूप में प्रत्येक 28 दिन पश्चात् योनि मार्ग से स्रावित होती हैं। इसे ऋतुस्राव (menstruation cycle) कहते हैं। यदि अण्ड का निषेचन हो जाता है तो ऋतुस्राव चक्र रुक जाता है और गर्भ धारण हो जाता है।

प्रश्न 7.
पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
पुष्य की अनुदैर्ध्य काट-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है 1

प्रश्न 8.
गर्भ निरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी
उत्तर-
मादा द्वारा गर्भधारण न होने देना गर्भ निरोधन (Contraception) कहलाता है। गर्भ निरोधन की विधियाँ , निम्नलिखित हैं:
1. रासायनिक विधियाँ-अनेक प्रकार के रासायनिक पदार्थ मादा में निषेचन क्रिया को रोक सकते हैं। ऐसी अनेक गोलियाँ (pills) बाजारों में उपलब्ध हैं जिन्हें खाने से गर्भधारण नहीं हो पाता है। झाग की गोली, जैली तथा विभिन्न क्रीमों के प्रयोग से भी गर्भधारण रोका जा सकता है।

2. शल्य विधियाँ-पुरुष नसबंदी (Vasectomy) तथा स्त्री नसबंदी (Tubectomy) द्वारा निषेचन क्रिया को बाधित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में कुशल चिकित्सकों द्वारा पुरुषों में शुक्रवाहिनी तथा स्त्रियों में अण्डवाहिनी को काटकर बाँध दिया जाता है जिससे शुक्राणुओं का अण्डाणुओं से मिलन नहीं हो पाता है।

3. भौतिक विधियाँ-इन विधियों में कुछ उपकरणों द्वारा शुक्राणु एवं अण्डाणु के मिलन को रोक दिया जाता है। पुरुष कण्डोम, स्त्री कण्डोम, कॉपर ‘टी’, गर्भ निरोधन लूप आदि भौतिक गर्भ निरोधन युक्तियाँ हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

प्रश्न 9.
एककोशिक तथा बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
एककोशिक तथा बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में अन्तर –

एककोशिक जीवों में जननबहुकोशिक जीवों में जनन
1. इनमें जनन विधि सरल होती है।इनमें जनन विधि जटिल होती है।
2. इनमें जनन प्रायः अलैं- गिक विधियों द्वारा होताइनमें जनन प्रायः लैंगिक विधियों द्वारा होता है।
3. इनमें जनन के लिए विशेष प्रकार की कोशिकाएँ नहीं होती हैं।इनमें जनन के लिए विशिष्ट प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं।
4. इनमें जनन के लिए कोई विशेष अंग भी नहीं होता हैं।इनमें जनन के लिए विशेष अंग होते हैं।
5. यह सामान्यतः सूत्री विभाजन द्वारा होता है।यह प्रायः अर्धसूत्री विभाजन द्वारा होता है।

प्रश्न 10.
जनन किसी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर-
जनन द्वारा पैतृक पीढ़ी से पुत्री पीढ़ी का निर्माण होता है। पुत्री पीढ़ी आगे चलकर पैतृक पीढ़ी का कार्य करती है और सन्तान उत्पन्न करती है। यह क्रम लगातार चलता रहता है और इस प्रकार स्पीशीज की समष्टि का स्थायित्व बना रहता है।

प्रश्न 11.
गर्भ-निरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर-
गर्भ-निरोधक युक्तियों के अपनाने के निम्नलिखित कारण हैं

  • इनके द्वारा बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
  • इसके द्वारा अवांछित सन्तान से बचा जा सकता है।
  • इनके द्वारा जल्दी-जल्दी गर्भधारण को रोका जा सकता है क्योंकि जल्दी-जल्दी गर्भधारण से स्त्री के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव होता है।
  • कुछ गर्भ निरोधन युक्तियाँ यौन-संचारित रोगों से बचने में सहायता करती हैं।
  • परिवार नियोजन अपना कर खुशहाल जीवनयापन किया जा सकता है। .

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(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 142)

प्रश्न 1.
डी.एन.ए. प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व
उत्तर-
डी.एन.ए. में आनुवंशिक सूचनाएँ निहित होती हैं। डी.एन.ए. गुणसूत्रों के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं। अतः डी.एन.ए. द्वारा अपने जैसे ही प्रतिरूप बनाने की क्षमता होती है। ऐसा डी.एन.ए. के प्रतिकृतिकरण द्वारा होता है। इसके द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी डी.एन.ए. की मात्रा सन्तुलित बनी रहती है।

प्रश्न 2.
जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है परन्तु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है क्यों ?
उत्तर-
विभिन्नताएँ प्रजाति (Species) के लिए लाभदायक होती हैं, क्योंकि इनके कारण प्रजाति में कुछ ऐसे सदस्य उत्पन्न हो जाते हैं, जो अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए स्वयं को अनुकूलित कर लेते हैं या इनके प्रतिरोधी होते हैं। प्राकृतिक चयन के फलस्वरूप योग्यतम जीव जीवित रहते हैं। व्यक्तिगत सदस्य में उत्पन्न विभिन्नताएँ पर्यावरण से अनुकूलित न रहने के कारण सदस्य जीवित नहीं रह पाता है। अतः विभिन्नताएँ प्रजाति के लिए लाभदायक किन्तु व्यष्टि के लिए हानिकारक होती हैं। विभिन्नताएं प्रजाति की उत्तरजीविता बनाये रखने में उपयोगी हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 146)

प्रश्न 1.
द्विखण्डन बहुखण्डन से किस प्रकार भिन्न
उत्तर-
द्विखण्डन तथा बहुखण्डन में अन्तर-

द्विखण्डन (Binary Fission)बहुखण्डन (Multiple Fission)
1. यह प्रायः अनुकूल परि स्थितियों में होता है।यह प्रायः प्रतिकूल परि स्थितियों में होता है।
2. इसमें केन्द्रक दो पुत्री केन्द्रकों में विभाजित होता है।इसमें केन्द्रक अनेक संतति केन्द्रकों में विभाजित होता है।
3. इसमें केन्द्रक विभाजन के साथ ही कोशिकाद्रव्य का विभाजन भी होता है।इसमें केन्द्रक का विभाजन होने के पश्चात् प्रत्येक संतति केन्द्रक के चारों ओर थोड़ा- थोड़ा जीवद्रव्य एकत्र हो जाता है।
4. इसमें एक मातृ जीव से दो संतति जीव बनते हैं।इसमें एक मातृ जीव से अनेक संतति जीव बनते हैं।

प्रश्न 2.
बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है ?
उत्तर-
बीजाणुजनन प्रायः पौधों में पाया जाता है। बीजाणुओं के ऊपर एक मोटा रक्षी आवरण होता है, जो इनकी प्रतिकूल पर्यावरण में रक्षा करता है। हल्के होने के कारण वायु द्वारा इनका प्रकीर्णन सरल होता है। अनुकूल परिस्थितियाँ (उचित ताप, नमी, भोज्य पदार्थ आदि) मिलने पर बीजाणु अंकुरण करके नये जीव को जन्म देते हैं। जैसे-राइजोपस, म्यूकर आदि।

प्रश्न 3.
क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नयी संतति उत्पन्न नहीं कर सकते ?
उत्तर-
जटिल संरचना वाले जीवधारियों में कोशिकाएँ कार्यों के लिए विशिष्टीकृत होती हैं। ये कोशिकाएँ मिलकर, ऊतक, अंग, अंगतन्त्र तथा जीव शरीर का निर्माण करती हैं। इनमें केवल लैंगिक कोशिकाओं (नर तथा मादा युग्मक) के मिलने से ही नया जीव उत्पन्न होता है। इन जीवों की किसी अन्य कोशिका या ऊतक में नयी संतति उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती। इसके विपरीत कुछ सरल बहुकोशिकीय जीवों,जैसे-स्पंजों, हाइड्रा आदि में पुनरुद्भवन द्वारा नयी संतति बनाने की क्षमता होती है। इस प्रक्रिया में जीव का कोई कटा हुआ भाग नये जीव का निर्माण कर लेता है। जटिल संरचना वाले जीवों में पुनरुद्भवन की क्षमता केवल घाव भरने तक सीमित रह जाती है।

प्रश्न 4.
कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर-
कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग निम्नलिखित कारणों से किया जाता है –

  • कायिक प्रवर्धन से प्राप्त पौधे पूर्ण रूप से अपने जनकों के समान लक्षणों वाले होते हैं।
  • कुछ पौधे जिनके बीजों में जनन क्षमता नहीं होती उनका कायिक प्रवर्धन किया जा सकता है।
  • कायिक प्रजनन द्वारा कम समय में अधिक पौधे प्राप्त किये जा सकते हैं।
  • पौधों को बीज से उत्पन्न करने में लम्बा समय लगता है, जबकि कायिक प्रवर्धन से काफी बड़े पौधे कम समय में तैयार किये जा सकते हैं।
  • कायिक प्रवर्धन एक सस्ती विधि है।

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प्रश्न 5.
डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक है। यह जनन के लिए एक मूल घटना है। जनक कोशिका की दो कोशिकाएँ बनती है। ये दोनों प्रतिकृतियाँ अलग होना आवश्यक हैं तभी जनन हो सकता है। इसके लिए एक अलग से कोशिकीय संरचना आवश्यक है। एक प्रतिकृति नई संरचना में तथा एक मूल कोशिका में रह जाती है। इस प्रकार दो प्रतिकृतियाँ दो नई कोशिकाएँ बनाने में सहायता करती हैं और जनन होता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 154)

प्रश्न 1.
परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न
उत्तर-
परागण तथा निषेचन में अन्तर-

परागण (Pollination)निषेचन  (Fertilization)
1. परागकोष (anther) से परागकणों का वर्तिकाग्र पर पहुँचना परागण कहलाती है।1. नर तथा मादा युग्मकों के मिलने की क्रिया निषेचन कहलाता है।
2. यह क्रिया किसी माध्यम (जैसे-वायु, जल, कीट, पक्षी आदि) द्वारा होती है।2. निषेचन में नर युग्मक परागण नलिका के माध यम से मादा युग्मक तक पहुँचते हैं। अत: किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।
3. यह क्रिया निषेचन से पहले होती है।3. परागण क्रिया के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के पश्चात् निषेचन की क्रिया होती है।

प्रश्न 2.
शुक्राशय तथा प्रोस्टेट ग्रन्थि की क्या भूमिका
उत्तर-
शुक्राशय (Seminal Vesicle) तथा प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate gland) नर जनन तन्त्र के भाग होते हैं। शुक्राशय एक पोषक तरल पदार्थ स्रावित करता है जो शुक्राणुओं के साथ मिलकर वीर्य (Semen) बनाता है। यह तरल शुक्राणुओं का पोषण करता है, इनकी सुरक्षा करता है तथा इन्हें सक्रिय बनाये रखता है। यह तरल स्त्री की योनि के अम्लीय प्रभाव को कम करके शुक्राणुओं की रक्षा करता है।

प्रोस्टेट ग्रन्थि से हल्का अम्लीय तरल स्रावित होता है। यह वीर्य का लगभग 25 प्रतिशत भाग बनाता है। इसमें उपस्थित पदार्थ शुक्राणुओं के स्कन्दन को रोकते हैं तथा इन्हें सक्रिय रखते हैं।

प्रश्न 3.
यौवनारम्भ के समय लड़कियों में कौन-कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर-
लड़कों एवं लड़कियों में बाल्यावस्था में इनके जननांगों के अलावा अन्य शारीरिक लक्षणों तथा व्यवहार
आदि में विशेष अन्तर नहीं होता है। लड़कियों में लगभग 11 से 13 वर्ष की आयु से यौवनारम्भ था किशोरावस्था प्रारम्भ होती है।

इसमें निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं-

  • स्तनों की वृद्धि तथा दुग्धग्रन्थियों का विकास होने लगता है।
  • स्तनों के मध्य उभरे भाग पर स्थित चूचुक (nipples) के चारों ओर छोटा-सा रंगयुक्त क्षेत्र और अधिक गहरा हो जाता है।
  • श्रोणि भाग चौड़ा और नितम्ब भारी हो जाते हैं।
  • आवाज महीन एवं सुरीली हो जाती है।
  • त्वचा तैलीय हो जाती है।
  • बगल एवं जंघा प्रदेश में बाल उग आते हैं।
  • आर्तव चक्र (Menstrual cycle) प्रारम्भ हो जाता
  • व्यवहार में भी बदलाव होने लगते हैं।
  • अंडवाही नलियाँ (fallopian tube), गर्भाशय (uterus) और योनि (vagina) के आकार में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 4.
माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है?
उत्तर-
मनुष्य एक स्तनधारी प्राणी है। निम्न श्रेणी के स्तनधारियों को छोड़कर अन्य सभी स्तनधारी जरायुजी (Viviparous) होते हैं अर्थात् शिशु को जन्म देते हैं। इनमें भ्रूण का विकास गर्भाशय में होता है और विकासशील भ्रूण का पोषण माता के गर्भाशय की दीवारों से अपरा (Placenta) द्वारा होता है। भ्रूणीय विकास के तीसरे सप्ताह में भ्रूण का रोपण गर्भाशय में प्राथमिक रसांकुरों (Primary Villi) द्वारा होता है और अन्त में अपरा नाल द्वारा गर्भाशय की दीवार से जुड़ जाता है। अपरा द्वारा पोषक पदार्थ तथा ऑक्सीजन भ्रूण को प्राप्त होती रहती है तथा भ्रूण के उत्सर्जी पदार्थ अपरा द्वारा ही माँ के रुधिर में छोड़ दिये जाते हैं, जहाँ से ये बाहर उत्सर्जित किये जाते हैं।

प्रश्न 5.
यदि कोई महिला कॉपर ‘टी’ का प्रर कर रही है तो क्या यह उसकी यौन-संचारित रोगों से रक्षा करेगी?
उत्तर-
नहीं। कॉपर ‘टी’ का प्रयोग गर्भ निरोधन के लिए किया जाता है। इसका यौन-संचारित रोगों से बचाव में कोई योगदान नहीं होता है।

HBSE 10th Class Science जीव जनन कैसे करते है InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 8.1 (पा. पु. पृ. सं. 142)

प्रेक्षण (Observation)-यीस्ट कोशिकाएँ रंगहीन तथा गोलाकार दिखाई देती हैं। इनका ऊपरी सिरा उभरा हुआ दिखाई देता है। यीस्ट कोशिकाएँ श्रृंखलाओं और झुण्डों के रूप में दिखाई देती हैं।

क्रियाकलाप 8.2  (पा. पु. पृ. सं. 142)

प्रेक्षण (Observation)-प्रारम्भ में डबलरोटी पर सफेद रंग के धागे बिखरे दिखाई देते हैं जो धीरे-धीरे घने होकर एक जाल जैसी रचना बना लेते हैं, जिसे कवक-जाल (Mycelium) कहते हैं। एक सप्ताह के अन्त तक ये अत्यधिक घने तथा धूसर रंग के हो जाते हैं। क्योंकि स्पोरेजियम तथा स्पोर (बीजाणु) बन जाते हैं।

क्रियाकलाप 8.3 (पा. पु. पृ. सं. 143)
प्रेक्षण (Observation)-अमीबा की स्थाई स्लाइड में अमीबा की कोशिका दिखाई देती है जिसमें कोशिका द्रव्य तथा केन्द्रक दिखाई देते हैं। जबकि द्विखण्डन की स्थायी स्लाइड में केन्द्रक दो भागों में विभाजित होता हुआ प्रतीत होता है। प्रारंभ में इसका आकार बढ़ता है तथा केन्द्रक और कोशिका द्रव्य दो भागों में विभक्त हो जाते हैं।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है 2

क्रियाकलाप 8.4 (पा. पु. पृ. सं. 143)
प्रेक्षण (Observation)-स्लाइड में अशाखित तन्तु दिखाई देते हैं जो एक ही पंक्ति पर निरन्तर रखी कोशिकाओं से बने हैं। ये कोशिकाएँ बेलनाकार हैं। इनकी चौड़ाई की अपेक्षा लम्बाई अधिक है। इनका ऊपरी सिरा गुम्बद जैसा है।
प्रश्न-क्या आप स्पाइरोगाइरा तन्तुओं में विभिन्न ऊतक पहचान सकते हैं ?
उत्तर-
स्पाइरोगाइरा में ऊतक नहीं होते हैं। यह एक तन्तुवत् शैवाल है। इनके तन्तु अनेक कोशिकाओं के मिलने से बनते हैं।

क्रियाकलाप 8.5 (पा. पु. पृ. सं. 145)

प्रेक्षण (Observation) -आलू के कुछ टुकड़ों में गर्त दिखाई देते हैं। ये गर्त कलिकाएँ कहलाते हैं जिनसे नमी की उपस्थिति में प्ररोह तथा जड़ें विकसित होती हैं। गर्तरहित टुकड़ों से प्ररोह व जड़ों का निर्माण नहीं होता है।

प्रश्न-वे कौन-से टुकड़े हैं जिनसे हरे प्ररोह तथा जड़ विकसित हो रहे हैं?
उत्तर-
गर्तयुक्त टुकड़े।

क्रियाकलाप 8.6 (पा. पु. पृ. सं. 145)

प्रेक्षण (Observation)-कुछ टुकड़ों में कायिक जनन होता है तथा नई पत्तियाँ आदि निकलती हैं कुछ अन्य में ऐसी क्रिया नहीं होती है।

प्रश्न 1.
कौन-से टुकड़ो में वृद्धि होती है तथा नयी पत्तियाँ निकलती हैं?
उत्तर-
दो पत्तियों के मध्य वाले भाग में शीघ्र वृद्धि होती है और नई पत्तियाँ निकलती हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

प्रश्न 2.
आप अपने प्रेक्षणों से क्या निष्कर्ष निकालते
उत्तर-
पत्तियों के निकट या टुकड़ों पर जहाँ कलिका थी वहाँ कायिक जनन के कारण पत्तियाँ निकलनी आरम्भ हुईं। इससे स्पष्ट है कि मनीप्लाण्ट कायिक जनन करता है।

क्रियाकलाप 8.7  (पा. पु. पृ. सं. 149)

प्रेक्षण (Observation)-हाँ, चित्र में दिए गए सभी भागों को पहचाना जा सकता है। ये भाग हैं- बीजपत्र, प्रांकुर तथा मूलांकुर।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है 3

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

HBSE 11th Class Geography वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. यदि धरातल पर वायुदाब 1,000 मिलीबार है तो धरातल से 1 कि०मी० की ऊँचाई पर वायुदाब कितना होगा?
(A) 700 मिलीबार
(B) 900 मिलीबार
(C) 1,100 मिलीबार
(D) 1,300 मिलीबार
उत्तर:
(B) 900 मिलीबार

2. अंतर उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र प्रायः कहाँ होता है?
(A) विषुवत् वृत्त के निकट
(B) कर्क रेखा के निकट
(C) मकर रेखा के निकट
(D) आर्कटिक वृत्त के निकट
उत्तर:
(A) विषुवत् वृत्त के निकट

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

3. उत्तरी गोलार्ध में निम्नवायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(A) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(B) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(C) समदाब रेखाओं के समकोण पर
(D) समदाब रेखाओं के समानांतर
उत्तर:
(B) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत

4. वायुराशियों के निर्माण के उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौन-सा है-
(A) विषुवतीय वन
(B) साइबेरिया का मैदानी भाग
(C) हिमालय पर्वत
(D) दक्कन पठार
उत्तर:
(B) साइबेरिया का मैदानी भाग

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
वायुदाब मापने की इकाई क्या है? मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्र तल तक क्यों घटाया जाता है?
उत्तर:
वायदाब मापने की इकाई ‘मिलीबार’ है जिसे किलो पास्कल (hpa) लिखा जाता है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समान अंतराल पर खींची समदाब रेखाओं द्वारा किया जाता है। समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ है जो समुद्रतल से एक समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलती है। दाब पर ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने और तुलनात्मक बनाने के लिए, वायुदाब मापने के बाद इसे समुद्रतल के स्तर पर घटाया जाता है।

प्रश्न 2.
जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफ हो अर्थात् उपोष्ण उच्च दाब से विषुवत वृत्त की ओर हो तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्णकटिबंध में पवनें उत्तरी पूर्वी क्यों होती हैं?
उत्तर:
जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर हो तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्ण कटिबंध में पवनें उत्तर-पूर्वी होती हैं क्योंकि पवनों की दिशा कॉरिआलिस बल से प्रभावित होती है।

प्रश्न 3.
भूविक्षेपी पवनें क्या हैं?
उत्तर:
जब समदाब रेखाएँ सीधी हों तथा घर्षण का प्रभाव न हो तो दाब प्रणवता बल कॉरिआलिस बल से सन्तुलित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर बहती हैं, जिन्हें ‘भू-विक्षेपी पवनें’ कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
समुद्र व स्थल समीर का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थलीय समीर-रात्रि को जब सूर्य का प्रभाव नहीं होता तो स्थल और समुद्र दोनों ही ठण्डे होने लगते हैं। परन्तु स्थल, समुद्र की अपेक्षा अधिक ठण्डा हो जाता है। इस प्रकार स्थल पर जल की अपेक्षा तापमान कम तथा वायुभार अधिक होता है। इसलिए रात्रि के समय स्थल से समुद्र की ओर ठण्डी वायु चलती है जिसे स्थलीय समीर (Land Breeze) कहते हैं।

समुद्री समीर-दिन के समय सूर्य से ऊष्मा प्राप्त करके स्थल तथा जल दोनों ही गरम होना शुरू कर देते हैं, परन्तु स्थल, जल की अपेक्षा शीघ्र एवं अधिक गरम हो जाता है। फलस्वरूप स्थलीय भाग का तापमान अधिक तथा जलीय भाग का तापमान कम होता है। अतः समुद्र पर स्थल की अपेक्षा वायु का भार अधिक है। इससे ठण्डी हवा समुद्र से स्थल की ओर चलना आरम्भ कर देती है जिसे जलीय या समुद्री समीर (Sea Breeze) कहते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारण बताएँ।
उत्तर:
पवन की उत्पत्ति, दिशा और वेग को नियन्त्रित करने वाले कारक (Factors Affecting the Velocity, Direction and Origin of Wind)
1. दाब प्रवणता बल (Pressure Gradient Force)-दो बिन्दुओं के बीच वायुदाब में परिवर्तन की दर को दाब प्रवणता कहा जाता है। अतः दो स्थानों के बीच दाब प्रवणता जितनी अधिक होगी, वायु की गति उतनी ही तीव्र होगी। दाब प्रवणता से प्रेरित होकर ही वायु उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती है।

2. विक्षेपण बल (Deflection Force)-शुरू में तो पवनें दाब प्रवणता के अनुसार बहती हैं। लेकिन जैसे ही बहने लगती हैं उनकी दिशा पृथ्वी के घूर्णन तथा उसके साथ सापेक्ष वायुमंडल के घूर्णन के प्रभाव से विक्षेपित होने लगती हैं। इसे कॉरिआलिस प्रभाव (Coriolis Effect) कहते हैं जिसके प्रभावाधीन उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें अपने दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं। कॉरिआलिस प्रभाव भूमध्य रेखा पर शून्य होता है और ध्रुवों की ओर उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है।

3. भू-घर्षण (Land Friction)-महाद्वीपों पर पाई जाने वाली धरातलीय विषमताओं; जैसे पर्वत, पठार और मैदान के कारण पवनों के मार्ग में अवरोध और घर्षण पैदा हो जाते हैं जिससे पवनों की गति और दिशा दोनों प्रभावित होते हैं। महासागरों पर किसी प्रकार का अवरोध न होने के कारण वहाँ पवनें तेज़ी से बहती हैं और उनकी दिशा भी स्पष्ट होती है।

4. अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force)-इस बल के प्रभावाधीन किसी भी वक्राकार पथ पर चलती हुई पवनें, धाराएँ या कोई भी गतिमान वस्तु वक्र के केन्द्र से बाहर की ओर छूटने या जाने की प्रवृत्ति रखती है। पवन मार्ग के वक्र के छोटा होने तथा पवन की गति बढ़ने पर अपकेन्द्री बल भी बढ़ने लगता है अर्थात् पवनें और अधिक तेजी से वक्र मार्ग से बाहर की ओर जाने का प्रयास करती हैं।

प्रश्न 2.
पृथ्वी पर वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करते हुए चित्र बनाएँ। 30° उत्तरी व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब के संभव कारण बताएँ।
उत्तर:
वायुमंडल का सामान्य परिसंचरण-वायुमंडलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को ही वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण कहा जाता है। यह वायुमंडलीय परिसंचरण महासागरीय जल को गतिमान करता है जो पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है। भूमंडलीय पवनों का प्रारूप मुख्यतः निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है

  • वायुमंडलीय तापन में अक्षांशीय भिन्नता
  • वायुदाब पट्टियों की उपस्थिति
  • वायुदाब पट्टियों का सौर किरणों के साथ विस्थापन
  • महासागरों व महाद्वीपों का वितरण
  • पृथ्वी का घूर्णन।

उच्च सूर्यातप व निम्न वायुदाब के कारण भू-मंडलीय वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है। उष्ण कटिबंधों से आने वाली पवनें इस निम्न-दाब क्षेत्र में अभिसरण करती हैं। यह वाय क्षोभमंडल के ऊपर 14 कि०मी० की ऊँचाई तक ऊपर चढ़ती है। फिर ध्रुवों की तरफ प्रवाहित होती है। इसके परिणामस्वरूप 30° उत्तर व 30° दक्षिण अक्षांश पर वायु एकत्रित हो जाती है। इस एकत्रित वायु का अवतलन होता है जिसके कारण उपोष्ण कटिबंधीय उच्च-दाब क्षेत्र बनता है।

वायुमंडल का सामान्य परिसंचरण महासागरों को भी प्रभावित करता है। वायुमंडल में वृहत पैमाने पर चलने वाली पवनें धीमी तथा अधिक गति की महासागरीय धाराओं को प्रवाहित करती हैं।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है? उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के किस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है और उच्च वेग की पवनें चलती हैं और क्यों?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आक्रामक तूफान हैं जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों पर होती है। क्योंकि इनका जन्म प्रायः अधिक गर्मी पड़ने से ही होता है और ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं। ये चक्रवात आक्रामक पवनों के कारण विस्तृत विनाश, अत्यधिक वर्षा और तूफान लाते हैं।

हिन्द महासागर में ‘चक्रवात’ अटलांटिक महासागर में ‘हरीकेन’, पश्चिम प्रशांत और दक्षिण चीन सागर में ‘टाइफन’ तथा पश्चिमी आस्ट्रेलिया में ‘विली-विलीज’ के नाम से जाने जाते हैं। इनकी उत्पत्ति व विकास के लिए अनुकूल स्थितियाँ हैं।

  • बृहत् समुद्री सतह; जहाँ तापमान 27° से० अधिक हो
  • कोरिऑलिस बल
  • ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में अंतर कम होना
  • कमजोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण का होना
  • समुद्री तल तंत्र पर ऊपरी अपसरण।

वे चक्रवात जो प्रायः 20° उत्तरी अक्षांश से गुजरते हैं, उनकी दिशा अनिश्चित होती है और ये अधिक विध्वंसक होते हैं। एक विकसित उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की विशेषता इसके केंद्र के चारों तरफ प्रबल सर्पिल पवनों का परिसंचरण है, जिसे इसकी आँख कहा जाता है। इस परिसंचरण प्रणाली का व्यास 150 से 250 कि०मी० होता है। इसके केंद्र में वायु शान्त होती है। अक्षु के चारों तरफ अक्षुभिति होती है जहाँ वायु का प्रबल व वृत्ताकार रूप से आरोहण होता है, यह आरोहण क्षोभसीमा की ऊँचाई तक पहुँचता है। इसी क्षेत्र में पवनों का वेग अधिकतम होता है, जो 250 कि०मी० प्रति घंटा तक होता है। इन चक्रवातों से मूसलाधार वर्षा होती है।

वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ HBSE 11th Class Geography Notes

→ वायुदाब (Air Pressure)-किसी स्थान पर ऊपर स्थित वायु के सम्पूर्ण स्तंभ का भार वायुदाब कहलाता है।

→ पछुवा पवनें (Westerlies) उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंधों से उपध्रुवीय निम्न-दाब कटिबंधों की तरफ वर्ष-भर चलने वाली पवनें पछुवा पवनें कहलाती हैं।

→ ध्रुवीय पवनें (Polar Winds)-ध्रुवीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर वर्ष भर चलने वाली पवनों को ध्रुवीय पवनें कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

→ मिस्ट्रल (Mistral)-शीत ऋतु में आल्प्स पर्वत से भूमध्य-सागर की तरफ फ्रांस और स्पेन के तटों पर बहने वाली तेज, शुष्क व ठण्डी पवन को मिस्ट्रल कहते हैं।

→ चक्रवात (Cyclones) चक्रवात वायु की वह राशि है जिसके मध्य में न्यून वायुदाब होता है तथा बाहर की तरफ वायुदाब बढ़ता जाता है।

→ वाताग्र जनन (Frontogenesis)-वातारों के बनने की प्रक्रिया को वाताग्र जनन कहा जाता है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. सूर्य द्वारा ऊष्मा की प्रसारण क्रिया को कहा जाता है
(A) ऊष्मा प्रसार
(B) सौर विकिरण
(C) सूर्यातप
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) सौर विकिरण

2. पृथ्वी तक पहुँचने वाली सूर्य की ऊष्मा को क्या कहा जाता है?
(A) सौर विकिरण
(B) पार्थिव विकिरण
(C) सूर्यातप
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सूर्यातप

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

3. सूर्य से पृथ्वी की दूरी है
(A) 5 करोड़ कि०मी०
(B) 8 करोड़ कि०मी०
(C) 12 करोड़ कि०मी०
(D) 15 करोड़ कि०मी०
उत्तर:
(D) 15 करोड़ कि०मी०

4. पृथ्वी पर सौर विकिरण का कितना भाग पहुँचता है?
(A) 1 अरबवाँ भाग
(B) 2 अरबवाँ भाग
(C) 3 अरबवाँ भाग
(D) 4 अरबवाँ भाग
उत्तर:
(B) 2 अरबवाँ भाग

5. वायुमंडल की सबसे ऊपरी सतह पर प्राप्त ऊष्मा में से वायुमंडल और पृथ्वी द्वारा अवशोषित इकाइयों को क्या कहते हैं?
(A) भौमिक विकिरण
(B) पृथ्वी का एल्बिडो
(C) प्रभावी सौर विकिरण
(D) प्रवेशी सौर विकिरण
उत्तर:
(C) प्रभावी सौर विकिरण

6. सूर्य की किरणों की गति क्या है?
(A) 1 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
(B) 2 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
(C) 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
(D) 4 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
उत्तर:
(C) 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड

7. निम्नलिखित में से सर्वाधिक तापमान कब अंकित किया जाता है?
(A) दोपहर 12 बजे
(B) दोपहर बाद 1 बजे
(C) दोपहर बाद 2 बजे
(D) दोपहर बाद 3 बजे
उत्तर:
(C) दोपहर बाद 2 बजे

8. वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पहुँचने वाले सूर्यातप का कितना भाग भूतल पर पहुँचता है?
(A) 21%
(B) 31%
(C) 41%
(D) 51%
उत्तर:
(D) 51%

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

9. किसी स्थान विशेष के औसत तापमान और उसके अक्षांशीय तापमान के औसत के बीच के अंतर को कहा जाता है-
(A) तापीय व्युत्क्रमण
(B) तापक्रमीय विसंगति
(C) अक्षांशीय विसंगति
(D) तापीय अनुकूलता
उत्तर:
(B) तापक्रमीय विसंगति

10. वह काल्पनिक रेखा जो समुद्रतल के समानीत समान तापमान वाले स्थानों को मिलाती है, उसे कहते हैं
(A) समताप रेखा
(B) समदाब रेखा
(C) समानीत रेखा
(D) सम समुद्रतल रेखा
उत्तर:
(A) समताप रेखा

11. किसी स्थान के मध्यमान या सामान्य तापमान का अर्थ है-
(A) दिन का औसत तापमान
(B) महीने का औसत तापमान
(C) वर्ष का औसत तापमान
(D) 35 वर्षों के वार्षिक औसत तापमानों का औसत
उत्तर:
(D) 35 वर्षों के वार्षिक औसत तापमानों का औसत

12. एल्बिडो है-
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा की सीमा पर स्थित झील
(B) उच्च कपासी बादलों का उपनाम
(C) किसी सतह को प्राप्त होने वाली एवं उससे परावर्तित विकिरण ऊर्जा की मात्रा का अनुपात
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) किसी सतह को प्राप्त होने वाली एवं उससे परावर्तित विकिरण ऊर्जा की मात्रा का अनुपात

13. सुबह और शाम की तुलना में दोपहर में गर्मी अधिक क्यों होती है?
(A) क्योंकि सर्य की किरणें दोपहर में सीधी पडती हैं।
(B) क्योंकि पृथ्वी गर्मी को सोखकर उसे दोपहर को छोड़ती है
(C) दोपहर के वक्त समुद्र से गर्म पवनें चलती हैं
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) क्योंकि सर्य की किरणें दोपहर में सीधी पडती हैं।

14. विश्व में सर्वाधिक ठंडा स्थान कौन-सा है जिसका तापमान सर्दियों में -50°C तक गिर जाता है?
(A) कारगिल
(B) वोयान्सक
(C) द्रास
(D) बर्जन
उत्तर:
(B) वोयान्सक

15. हिमालय तथा आल्प्स की किन ढलानों पर अधिक तापमान के कारण मानव बस्तियाँ और कृषि कार्य केंद्रित हैं?
(A) उत्तरी ढाल
(B) दक्षिणी ढाल
(C) पूर्वी ढाल
(D) पश्चिमी ढाल
उत्तर:
(B) दक्षिणी ढाल

16. समुद्रतल से 900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक शहर का जुलाई का औसत मासिक तापमान 22°C है। समुद्रतल पर इस शहर का समानीत तापमान कितना होगा?
(A) 27.5°C
(B) 16.5°C
(C) 22°C
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) 27.5°C

17. कौन-सी मिट्टी जल्दी गरम और जल्दी ठण्डी हो जाती है?
(A) जलोढ़ मिट्टी
(B) काली मिट्टी
(C) रेतीली मिट्टी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) रेतीली मिट्टी

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर सौर विकिरण का कितना भाग पहुँचता है?
उत्तर:
दो अरबवाँ भाग।

प्रश्न 2.
सूर्यातप को किस इकाई में मापते हैं?
उत्तर:
कैलोरी में।

प्रश्न 3.
मानचित्र पर तापमान का क्षैतिज वितरण किन रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है?
उत्तर:
समताप रेखाओं द्वारा।

प्रश्न 4.
पृथ्वी पर ऊष्मा का सबसे बड़ा स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
सूर्य।

प्रश्न 5.
उत्तरी गोलार्द्ध में पर्वतों के कौन-से ढाल सूर्य के सामने पड़ते हैं?
उत्तर:
दक्षिणी ढाल।

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प्रश्न 6.
दक्षिणी गोलार्द्ध में पर्वतों के कौन-से ढाल सूर्य के सामने पड़ते हैं?
उत्तर:
उत्तरी ढाल।

प्रश्न 7.
ऊँचाई के साथ तापमान घटने की जगह यदि बढ़ने लग जाए तो उसे क्या कहा जाता है?
उत्तर:
तापमान की विलोमता।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर पहुँचने वाले सूर्यातप का कितना भाग भूतल तक पहुँचता हैं?
उत्तर:
51 प्रतिशत भाग अथवा 100 में से 51 इकाइयाँ।

प्रश्न 2.
वायुमण्डल के गरम होने की प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
विकिरण, संचालन तथा संवहन।

प्रश्न 3.
सूर्य क्या है?
उत्तर:
धधकती हुई गैसों का गोला जो ऊष्मा को अन्तरिक्ष में चारों ओर प्रसारित करता रहता है।

प्रश्न 4.
सूर्य से पृथ्वी की दूरी कितनी है?
उत्तर:
लगभग 15 करोड़ कि०मी०।

प्रश्न 5.
सूर्य की किरणों की गति क्या है?
उत्तर:
3 लाख कि०मी० प्रति सैकिण्ड।

प्रश्न 6.
तापमान मापने की दो प्रमुख इकाइयाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
डिग्री सेल्सियस व डिग्री फारेनहाइट।

प्रश्न 7.
दैनिक अधिकतम तापमान कब रिकॉर्ड किया जाता है?
उत्तर:
दोपहर में 2.00 बजे के लगभग।

प्रश्न 8.
जब सूर्य की क्षैतिज से ऊँचाई केवल 4° होती है तो सूर्य की किरणों को कितने मोटे वायुमण्डल से गुजरना पड़ता है?
उत्तर:
12 गुणा मोटे वायुमण्डल से।

प्रश्न 9.
तापमान की सामान्य हास दर क्या है?
उत्तर:
1°C प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर।

प्रश्न 10.
सूर्यातप आधिक्य वाले क्षेत्र कौन-से होते हैं?
उत्तर:
जहाँ धूप की लम्बी अवधि और रातें छोटी होती हैं, सूर्यातप आधिक्य वाले क्षेत्र कहलाते हैं।

प्रश्न 11.
ऊष्मा-हानि वाले क्षेत्र कौन-से होते हैं?
उत्तर:
जहां दिन छोटे और रातें लम्बी हों अर्थात् सूर्यातप की मात्रा कम और विकिरित हुई ऊष्मा अधिक हो उन्हें ऊष्मा-हानि वाले क्षेत्र कहते हैं।

प्रश्न 12.
ऊँचा दैनिक तापान्तर किन क्षेत्रों में पाया जाता है?
उत्तर:
मरुस्थलों तथा महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में।

प्रश्न 13.
कम दैनिक तापान्तर किन क्षेत्रों में पाया जाता है?
उत्तर:

  1. तटों के पास
  2. मेघाच्छादित क्षेत्रों में।

प्रश्न 14.
कैलोरी क्या होती है?
उत्तर:
समुद्रतल पर उपस्थित वायुदाब की दशा में एक ग्राम जल का तापमान 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊर्जा को कैलोरी कहा जाता है।

प्रश्न 15.
दिन छोटे-बड़े क्यों होते रहते हैं? कारण बताओ।
उत्तर:

  1. पृथ्वी का 66/2° पर झुका अक्ष।
  2. पृथ्वी की दैनिक व वार्षिक गति।

प्रश्न 16.
सौर कलंक क्या होते हैं?
उत्तर:
सूर्य के तल पर काले रंग के गहरे व उथले बनते-बिगड़ते धब्बों को सौर कलंक कहा जाता है।

प्रश्न 17.
सौर कलंकों की संख्या व सौर विकिरण में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
इन कलंकों की संख्या बढ़ने और घटने पर सूर्यातप की मात्रा बढ़ती और घटती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 18.
उपसौरिका (Perihelion) की स्थिति क्या होती है?
उत्तर:
3 जनवरी को जब पृथ्वी सूर्य से 14.70 करोड़ किलोमीटर की निकटतम दूरी पर होती है।

प्रश्न 19.
अपसौरिका (Aphelion) की स्थिति क्या होती है?
उत्तर:
4 जुलाई को जब पृथ्वी सूर्य से 15.20 करोड़ कि०मी० की अधिकतम दूरी पर होती है।

प्रश्न 20.
उष्ण कटिबन्ध का विस्तार बताइए।
उत्तर:
231/2° उत्तर से 231/2° दक्षिण अक्षांश।

प्रश्न 21.
शीतोष्ण कटिबन्ध का क्या विस्तार है?
उत्तर:
23/2° से 66/2° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांश।

प्रश्न 22.
शीत कटिबन्ध कहाँ से कहाँ तक विस्तृत है?
उत्तर:
661/2° से ध्रुवों तक दोनों गोलार्डों में।

प्रश्न 23.
पृथ्वी पर सूर्यातप के वितरण को कौन-से दो प्रमुख कारक नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:

  1. सूर्य की किरणों का सापेक्षिक झुकाव
  2. दिन की अवधि।

प्रश्न 24.
विश्व में औसत तापमान क्यों बढ़ रहे हैं?
उत्तर:
जैव-ईंधन के बढ़ते उपयोग तथा वनों की कटाई के कारण।

प्रश्न 25.
सूर्य के सामने पड़ी ढालों पर सूर्यातप व तापमान अधिक क्यों प्राप्त होता है?
उत्तर:
सूर्य की सीधी किरणों के कारण।

प्रश्न 26.
सूर्य से विपरीत दिशा में स्थित ढालों पर सूर्यातप व तापमान कम क्यों रहते हैं?
उत्तर:
सूर्य की तिरछी किरणों के कारण।

प्रश्न 27.
कौन-सी मिट्टियाँ सूर्यातप का अवशोषण करके अपने क्षेत्र के तापमान को बढ़ा देती हैं?
उत्तर:
काली अथवा गहरी मिट्टियाँ तथा रेत से ढके भू-पृष्ठ।

प्रश्न 28.
समताप रेखाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
जिन स्थानों पर सूर्यातप की मात्रा समान होती है, उन स्थानों का तापमान भी समान होता है। समुद्र तल से समान तापमान वाले स्थानों को आपस में मिलाने वाली रेखा को समताप रेखा कहते हैं।

प्रश्न 29.
भौमिक विकिरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सौर ऊर्जा भूतल से टकराकर दीर्घ तरंगों के रूप में वापस लौट जाती है जिसे भौमिक विकिरण कहते हैं। यही कारण है कि वायुमण्डल नीचे से ऊपर की ओर गरम होता है। वायुमण्डल के गरम होने का प्रमुख स्रोत भौमिक विकिरण है।

प्रश्न 30.
सौर स्थिरांक किसे कहते हैं?
उत्तर:
भू-वैज्ञानिकों के मतानुसार पृथ्वी प्रति मिनट 2 कैलोरी ऊर्जा प्रति वर्ग सें०मी० प्राप्त करती है जिसे सौर स्थिरांक कहते हैं। ऊर्जा की यह मात्रा बदलती नहीं है बल्कि स्थिर रहती है।

प्रश्न 31.
ऊष्मा तथा तापमान में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
ऊष्मा ऊर्जा का वह रूप है जो वस्तुओं को गरम करती है। तापमान ऊष्मा की मात्रा का माप है। ऊष्मा की मात्रा घटने या बढ़ने से तापमान घटता और बढ़ता है।

प्रश्न 32.
किसी स्थान के तापमान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान पर मानक अवस्था में मापी गई भूतल से लगभग चार फुट ऊँची वायु की गर्मी को उस स्थान का तापमान कहते हैं। प्रायः तापमान और सूर्यातप को पर्यायवाची के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वास्तव में ये दो शब्द दो भिन्न अवधारणाएँ हैं।

प्रश्न 33.
तापीय भूमध्य रेखा क्या होती है?
उत्तर:
ग्लोब के निम्न आक्षांशों के चारों ओर प्रत्येक देशान्तर के मध्यमान उच्चतम तापमान वाले बिन्दुओं को मिलाने वाली कल्पित रेखा को तापीय भूमध्य रेखा कहते हैं। यह रेखा वास्तविक भूमध्य रेखा के उत्तर में रहती है क्योंकि उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलखण्ड अधिक हैं जो समुद्रों की अपेक्षा अधिक ऊष्मा का अवशोषण करते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सौर विकिरण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी पर ऊष्मा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। यह धधकती हुई गैसों का एक विशाल गोला है जो ऊष्मा को अन्तरिक्ष में चारों ओर निरन्तर प्रसारित करता रहता है। सूर्य द्वारा ऊष्मा की प्रसारण क्रिया को सौर विकिरण कहा जाता है।

प्रश्न 2.
सूर्यातप क्या है?
उत्तर:
प्रवेशी सौर विकिरण को सूर्यातप कहते हैं अर्थात् पृथ्वी पर पहुंचने वाली सूर्य की ऊष्मा को सूर्यातप कहा जाता है। सूर्य से लगभग 15 करोड़ कि०मी० दूर स्थित पृथ्वी सूर्य से विकिरित होने वाली समस्त ऊष्मा का केवल 2 अरबवाँ भाग ही प्राप्त कर पाती है। सौर ऊर्जा सूर्य से लघु तरंगों के रूप में 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिण्ड की गति से पृथ्वी पर पहुँचती है।

प्रश्न 3.
तापमान के ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समुद्र तल से ऊँचाई की ओर वितरण को तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण कहा जाता है। वायुमण्डल में ऊँचाई की ओर जाने पर तापमान कम होता है। यह तापमान 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सेल्सियस की दर से कम होता है। इसे तापमान की सामान्य पतन दर कहते हैं। यह ह्रास (पतन) दर क्षोभमण्डल तक ही रहती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 4.
तापमान के क्षैतिज वितरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
तापमान के क्षैतिज वितरण से अभिप्राय तापमान के अक्षांशीय वितरण से है। भूमध्य रेखा से दोनों गोलार्डों में ध्रुवों की ओर जाने पर तापमान में क्रमशः कमी होती जाती है जिसे तापमान का क्षैतिज वितरण कहते हैं। इसे समताप रेखाओं द्वारा ही प्रकट किया जाता है। तापमान के क्षैतिज वितरण के आधार पर ही पृथ्वी को उष्ण कटिबन्ध, शीतोष्ण कटिबन्ध तथा शीत कटिबन्ध नामक तीन ताप कटिबन्धों में बाँटा जाता है।

प्रश्न 5.
दैनिक तापान्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान के 24 घण्टे या एक दिन के अधिकतम तापमान तथा न्यूनतम तापमान के अन्तर को दैनिक तापान्तर या दैनिक ताप परिसर कहते हैं। उदाहरणार्थ, किसी स्थान A पर किसी दिन विशेष का अधिकतम तापमान 35° सेल्सियस तथा न्यूनतम तापमान 22° सेल्सियस रहा हो तो स्थान A का दैनिक तापान्तर 35°-22° = 13° सेल्सियस होगा। दैनिक तापान्तर तटीय क्षेत्रों में कम होता है तथा आन्तरिक स्थलीय भागों और मरुस्थलीय क्षेत्रों में अधिक होता है।

प्रश्न 6.
वार्षिक तापान्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान के सबसे ठण्डे मास के औसत तापमान और सबसे गरम मास के औसत तापमान के अन्तर को वार्षिक तापान्तर कहते हैं। दैनिक तापान्तर की भाँति वार्षिक तापान्तर भी स्थलीय भागों में अधिक तथा सागरीय भागों में कम रहता है। उत्तरी भारत के जिन भागों में शीतकाल में सबसे ठण्डे मास का तापमान 10° सेल्सियस रहता है, वहीं ग्रीष्मकाल में तापमान 40° सेल्सियस रहता है, परन्तु सागरीय तटीय भागों में तापमान कम रहता है। सबसे अधिक वार्षिक तापान्तर साइबेरिया में वोयान्सक में 38° सेल्सियस रहता है।

प्रश्न 7.
पृथ्वी के ऊष्मा बजट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी सूर्य से जितनी ऊष्मा प्राप्त करती है, उतनी ऊष्मा का वह त्याग भी कर देती है। इसलिए पृथ्वी पर औसत तापमान सदा एक-जैसा बना रहता है। पृथ्वी द्वारा प्राप्त सूर्यातप और उस द्वारा छोड़े जाने वाले भौमिक विकिरण के खाते को पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहा जाता है। पृथ्वी के इसी बजट को पृथ्वी का ऊष्मा सन्तुलन भी कहा जाता है।

प्रश्न 8.
अक्षांशीय ऊष्मा सन्तुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हमारी पृथ्वी का आकार गोलाकार है जिसके कारण पृथ्वी पर सूर्य की किरणों का झुकाव अलग-अलग है इसलिए प्रत्येक अक्षांश पर सूर्यातप तथा भौमिक विकिरण में विभिन्नता दिखाई देती है। भूमध्य रेखीय क्षेत्रों के आस-पास ऊष्मा अधिक तथा ध्रुवीय प्रदेशों में ऊष्मा कम होती है । वायुमण्डल तथा महासागरों में ऊष्मा का आदान-प्रदान होता रहता है। इसी प्रकार ऊष्मा निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर स्थानान्तरित होती रहती है, जिसे अक्षांशीय ऊष्मा संतुलन कहते हैं।

प्रश्न 9.
सूर्यातप की मात्रा सूर्य की किरणों के आपतन कोण से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
भूतल पर पहुँचने वाले सौर विकिरण को सूर्यातप कहते हैं। इसकी मात्रा सूर्य की किरणों के आपतन कोण पर निर्भर करती है। आपतन किरणें दो प्रकार की होती हैं

  • लम्बवत् किरणें।
  • तिरछी अथवा आड़ी किरणें।

लम्बवत् किरणें तिरछी किरणों की तुलन में भूतल का कम क्षेत्र घेरती हैं जिससे प्रति इकाई क्षेत्र को अधिक ताप प्राप्त होता है तथा तापमान अधिक हो जाता है। इसी प्रकार लम्बवत् किरणों को तिरछी किरणों की अपेक्षा कम वायुमण्डल पार करना पड़ता है जिससे वायुमण्डल की गैसें तथा जलवाष्प द्वारा अवशोषण, परावर्तन और बिखराव द्वारा सूर्यातप की बहुत कम मात्रा नष्ट होती है जिससे उस स्थान का तापमान तिरछी किरणों की तुलना में अधिक होता है।

प्रश्न 10.
सूर्यातप को जलवायु का प्रमुख नियन्त्रक कारक क्यों कहते हैं?
उत्तर:
सूर्यातप जलवायु का प्रमुख नियन्त्रक है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

  1. सूर्यातप पर बहुत-सी भौतिक क्रियाएँ आधारित हैं।
  2. इसी के कारण पवनें तथा समुद्री धाराएँ चलती हैं।
  3. सूर्यातप की मात्रा के कारण ही ऋतु-परिवर्तन होता है।
  4. सूर्यातप पर वायुमण्डलीय गतियाँ और वायुराशियाँ आधारित हैं। इस प्रकार सूर्य जलवायु के सभी तत्त्वों एवं पक्षों पर नियन्त्रण करता है।

प्रश्न 11.
विभिन्न अक्षांशों पर प्राप्त सूर्यातप की मात्रा भिन्न क्यों होती है?
उत्तर:
सूर्यातप की मात्रा मुख्य रूप से सूर्य की किरणों के आपतन कोण तथा दिन की अवधि पर निर्भर करती है। विभिन्न अक्षांशों पर पृथ्वी की वार्षिक गति तथा पृथ्वी के अक्ष के 22/5° पर झुकाव के कारण सूर्य की किरणों का आपतन कोण तथा दिन की अवधि भिन्न-भिन्न होती है। भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लगभग लम्बवत् रूप से चमकती हैं, परन्तु भूमध्य रेखा से ध्रुवों करणें तिरछी होती जाती हैं तथा दिन की अवधि भी अधिक हो जाती है इसलिए विभिन्न अक्षांशों पर सूर्यातप की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है, परन्तु एक ही अक्षांश के सभी स्थानों पर सूर्यातप की मात्रा समान होती है।

प्रश्न 12.
वायुमण्डल सूर्यातप की अपेक्षा भौमिक विकिरण से अधिक गरम क्यों होता है?
उत्तर:
सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष रूप से वायुमण्डल को गरम नहीं करतीं। ये किरणे लघु तरंगों के रूप में वायुमण्डल में से गुज़रती हैं। वायुमण्डल इन तरंगों को अपने अंदर समाने में अर्थात् अवशोषित करने में असमर्थ होता है। पहले सौर ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है, इसे पार्थिव या भौमिक विकिरण कहते हैं। भूतल को उष्णता लम्बी तरंगों के रूप में प्राप्त होती है जिसका 90% भाग १ रातल अवशोषित कर लेता है। इससे वायुमण्डल गरम होता रहता है। पार्थिव विकिरण द्वारा वायुमण्डल की निचली परतें ही गरम होती हैं। अधिक ऊँचाई पर इसका प्रभाव बहुत कम होता है इसलिए वायुमण्डल नीचे से ऊपर गरम होता है।

प्रश्न 13.
समताप रेखाओं की दिशा अधिकतर पूर्व-पश्चिम क्यों रहती है?
उत्तर:
प्रत्येक अक्षांश रेखा पर स्थित सभी स्थानों पर सूर्य की किरणों का आपतन कोण तथा दिन की अवधि समान होती है इसलिए ये सभी स्थान समान मात्रा में सूर्यातप की मात्रा प्राप्त करते हैं जिससे इन सभी स्थानों का तापमान समान होता है। समान तापमान वाले स्थानों को एक रेखा से मिलाते हैं जिसे समताप रेखा कहते हैं। अक्षांश पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले हुए हैं, इसलिए समताप रेखाओं तथा अक्षांश रेखाओं में अनुरूपता दिखाई पड़ती है। इसलिए ये रेखाएँ अक्षांश रेखाओं का अनुकरण करते हुए पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई हैं।

प्रश्न 14.
समताप रेखाएँ मौसम के अनुसार उत्तर और दक्षिण की ओर क्यों खिसकती हैं?
उत्तर:
समताप रेखाओं की स्थिति मख्य रूप से सर्यातप की अधिकतम मात्रा पर आधारित होती है। मौसम के अनुसार इन किरणों में परिवर्तन होता रहता है। उदाहरण के लिए, जून मास में सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् रूप से चमकता है जिससे ग्रीष्मकाल में सूर्यातप की अधिकतम मात्रा उत्तरी गोलार्द्ध में होती है, परन्तु दिसम्बर मास में सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् रूप से चमकता है। जिससे शीतकाल में सूर्यातप की अधिकतम मात्रा दक्षिणी गोलार्द्ध में होती है, इसलिए ग्रीष्मकाल में समताप रेखाएँ उत्तर दिशा की ओर तथा शीतकाल में दक्षिण दिशा की ओर खिसक जाती हैं।

प्रश्न 15.
समताप रेखाएँ सबसे अधिक कहाँ खिसकती हैं? स्थल पर या जल पर? इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समताप रेखाएँ जल की अपेक्षा स्थल पर अधिक खिसकती हैं, क्योंकि स्थल तथा जल में गरम होने की क्षमता में विभिन्नता पाई जाती है। स्थल शीघ्र गरम हो जाते हैं तथा शीघ्र ही ठण्डे हो जाते हैं, परन्तु जल देर से गरम होता है और देर से ही ठण्डा होता है। इसलिए मौसम के अनुसार जलीय क्षेत्रों की तुलना में स्थलीय क्षेत्रों के तापमान में अधिक अन्तर पाया जाता है, परन्तु तापमान का यह अन्तर सागरों तथा महासागरों पर कम होता है। इसलिए स्थलीय क्षेत्रों पर मौसम के अनुसार समताप रेखाएँ अधिक खिसकती हैं।

प्रश्न 16.
दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ अधिक अनियमित क्यों होती हैं?
उत्तर:
स्थलीय क्षेत्रों तथा जलीय क्षेत्रों में गरम होने की क्षमता में विभिन्नता पाई जाती है इसलिए समताप रेखाएँ महासागरों से महाद्वीपों अथवा महाद्वीपों से महासागरों की ओर आते समय मुड़ जाती हैं। ये समताप रेखाएँ जुलाई मास में उत्तरी गोलार्द्ध में महाद्वीपों से गुजरते समय भूमध्य रेखा की ओर मुड़ जाती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थिति इसके विपरीत होती है। मुख्य रूप से इसके दो निम्नलिखित कारण हैं

  • जल तथा स्थल क्षेत्रों का असमान वितरण।
  • स्थल तथा जल के गरम होने की क्षमता में विभिन्नता।

उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलीय क्षेत्रों का विस्तार अधिक है, परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय क्षेत्रों का विस्तार अधिक है। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ अनियमित हैं, परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में नियमित तथा सीधी हैं।

प्रश्न 17.
यद्यपि न्यूयार्क 40°N तथा बर्लिन 52°N पर स्थित है, परन्तु जनवरी मास का औसत तापमान लगभग समान क्यों रहता है?
उत्तर:
यद्यपि बर्लिन तथा न्यूयार्क में 52°- 40° = 12° अक्षांश का अन्तर है। बलिन न्यूयार्क से 12° उत्तर में स्थित है। उत्तर की ओर जाते समय तापमान में कमी आती है, परन्तु बर्लिन के निकट उत्तरी अन्ध-महासागर की गरम धारा बहती है जो इस स्थान के तापमान को बढ़ा देती है। इसलिए बर्लिन उच्च अक्षांशों में स्थित होते हा भी इसका तापमान जनवरी में न्यूयार्क के समान होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 18.
मनुष्य एवं प्रकृति के लिए सौर्मिक ऊर्जा के महत्त्व का उल्लेख करें।
उत्तर:
इस पथ्वी पर सभी प्रकार के जीवन और हर प्रकार की गति और संचरण के पीछे एक ही शक्ति है- सौर्यिक ऊर्जा।

  1. पाला रहित दिनों की संख्या ही फसलों के पकने की अवधि तय करती है। फसलों के पकने की अवधि भूमध्य रेखा से दूर जाने पर घटती जाती है।
  2. सूर्यातप की मात्रा निर्धारित करती है कि उस क्षेत्र में किस प्रकार की फसलें, वनस्पति और जीव-जगत होगा।
  3. वायुमण्डल के सामान्य संचरण के लिए सूर्यातप ही जिम्मेदार है। आँधी, तूफान, चक्रवात, पवनें सभी सौर्यिक ऊर्जा के कारण होते हैं।
  4. समुद्री जल की गति भी सूर्यातप से जुड़ी हुई है। नदियों का होना भी सूर्य के कारण है।
  5. सूर्यातप चट्टानों के भौतिक अपक्षय में सहयोग देता है।
  6. पृथ्वी पर नित्य बदलता भू-दृश्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सौर्यिक ऊर्जा की ही उपज है।

प्रश्न 19.
विभिन्न अक्षांश सूर्यातप की भिन्न-भिन्न मात्रा क्यों प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान पर सूर्यातप की मात्रा सूर्य की किरणों के आपतन कोण तथा दिन की अवधि पर निर्भर करती है। पृथ्वी के अक्ष के झुकाव तथा पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण भिन्न-भिन्न अक्षांशों पर सूर्य की किरणों का आपतन कोण भिन्न-भिन्न होता है तथा दिन की अवधि भी एक-समान नहीं होती। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर सूर्य की किरणों का सापेक्ष्य तिरछापन बढ़ता सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान जाता है और साथ ही दिन की अवधि भी बढ़ती जाती है। लेकिन किरणों के तिरछेपन के कारण सूर्यातप की मात्रा घटती जाती है। इसलिए भिन्न-भिन्न अक्षांशों पर सूर्यातप की मात्रा अलग-अलग पाई जाती है। हाँ, एक ही अक्षांश पर सूर्यातप की मात्रा सभी स्थानों पर एक-समान होती है।

प्रश्न 20.
दैनिक उच्चतम तापमान क्या होता है और यह कब होता है?
उत्तर:
किसी विशेष दिन के अधिकतम तापमान को उस दिन का उच्चतम तापमान कहा जाता है। दिन में दोपहर के समय सूर्य आकाश में सबसे ऊँचा होता है तथा सूर्य की किरणें लगभग सीधी पड़ती हैं। इससे धरातल गरम होने लगता है। भूतल के सम्पर्क में आने वाला वायुमण्डल पार्थिव विकिरण अर्थात् पृथ्वी द्वारा छोड़ी गई ऊष्मा से गरम हो जाता है। इसलिए वायुमण्डल का उच्चतम तापमान दोपहर बाद दिन के 2.00 बजे होता है। यह सत्य भी है कि दोपहर की अपेक्षा ‘दोपहर बाद’ तापमान अधिक होता है।

प्रश्न 21.
दैनिक न्यूनतम तापमान क्या होता है? यह कब होता है?
उत्तर:
दिन भर में सबसे कम तापमान को दैनिक न्यूनतम तापमान कहते हैं। न्यूनतम तापमान रात के 12 बजे नहीं होता अपितु प्रातः 4 बजे होता है। धरातल द्वारा गर्मी छोड़ने की क्रिया ‘विकिरण’ (Radiation) सुबह तक होती रहती है। जब पृथ्वी पूर्ण रूप से ठण्डी हो जाती है तो वायुमण्डल में न्यूनतम ताप होता है।

प्रश्न 22.
मध्यमान दैनिक तापमान क्या होता है और यह कैसे निकलता है?
उत्तर:
किसी भी दिन के उच्चतम तथा न्यूनतम तापमान की औसत को मध्यमान दैनिक तापमान कहते हैं।
Mean, Daily Tempt. = \(\frac { Max. Temp. + Min. Temp. }{ 2 }\)
यदि किसी स्थान का किसी विशेष दिन का अधिकतम तापमान 38°C तथा न्यूनतम तापमान 28°C है तो उस स्थान का मध्यमान दैनिक तापमान = \(\frac{38^{\circ} \mathrm{C}+28^{\circ} \mathrm{C}}{2}\) = 33°C

प्रश्न 23.
किसी स्थान के मध्यमान तापमान से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक लम्बे समय (पिछले 35 वर्षों) के मध्यमान वार्षिक तापमान को जोड़कर 35 से भाग देने पर किसी स्थान का औसत तापमान निकल आता है। इसे किसी स्थान का सामान्य तापमान भी कहते हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि किसी स्थान की जलवायु गरम है या ठण्डी।

प्रश्न 24.
सूर्यातप और तापमान में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सूर्यातप और तापमान में निम्नलिखित अन्तर हैं-

सूर्यातपतापमान
1. सूर्यातप ऊर्जा का एक रूप है जो वस्तुओं को गरम करती है।1. तापमान किसी पदार्थ की गरमी या ठंडक की माप है।
2. सूर्यातप को जूल और कैलोरी में प्रकट किया जाता है।2. तापमान आवश्यकतानुसार कई पैमानों पर मापा जाता है लेकिन इसमें सेल्सियस और फारेनहाइट प्रमुख हैं।
3. सूर्यातप का संचार/स्थानांतरण चालन, संवहन और विकिरण द्वारा होता है।3. तापमान का संचरण नहीं होता।
4. सूर्यातप या ऊष्मा पदार्थों को गरम करती है। इससे ठोस पदार्थ तरल और गैस अवस्था में बदल जाते हैं।4. पदार्थों को ऊष्मा मिलने से उनका तापमान बढ़ता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सूर्यातप क्या है? भूतल पर सूर्यातप के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
सूर्यातप का अर्थ पृथ्वी पर पहुँचने वाली सूर्य की ऊष्मा को सूर्यातप कहा जाता है। यह ऊर्जा सूर्य से लघु तरंगों के रूप में 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिण्ड की गति से पृथ्वी पर पहुँचती है।

सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक:
भू-तल पर सभी जगह सूर्यातप की मात्रा एक समान नहीं होती। सूर्यातप के वितरण को अनेक कारक नियन्त्रित करते हैं जिनका वर्णन अग्रलिखित प्रकार से है-
1. सूर्य की किरणों का सापेक्ष्य झुकाव-सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर इन किरणों का तिरछापन बढ़ता जाता है। सूर्य की किरणों का तिरछापन धरातल पर पहुँचने वाली सूर्यातप की मात्रा को दो प्रकार से प्रभावित करता है
(क) क्षेत्रफल-जब सूर्य लगभग मध्याह्न में होता है तो उसकी किरणें धरातल पर लम्बवत् पड़ती हैं। लम्बवत् किरणें भू-पृष्ठ की अपेक्षाकृत कम क्षेत्रफल पर फैलती हैं जिसके कारण उस स्थान का प्रति इकाई ताप भी अधिक हो जाता है। तिरछी किरणों का उतना ही समूह भू-पृष्ठ के अधिक क्षेत्रफल को घेरता है। अधिक क्षेत्रफल को गर्म करने के कारण वहाँ प्रति इकाई सूर्यातप की तीव्रता भी कम हो जाती है।

(ख) वायुमण्डल की मोटाई-सीधी किरणों की अपेक्षा तिरछी किरणों को वायुमण्डल की मोटी परत पार करनी पड़ती है। उदाहरणतः जब सूर्य की क्षैतिज से ऊँचाई केवल 4° होती है तो सूर्य की किरणों को 12 गुना मोटे वायुमण्डल से गुजरना पड़ता है। वायुमण्डल में सूर्य की किरणें जितनी अधिक दूरी तय करेंगी उनका बिखराव, परावर्तन और अवशोषण भी उतना ही अधिक होगा। परिणामस्वरूप पृथ्वी पर कम सूर्यातप पहुँचेगा।

2. दिन की अवधि-जिन स्थानों पर दिन लम्बे और रातें छोटी होती हैं वहाँ प्राप्त होने वाला सूर्यातप अधिक और रात को भू-पृष्ठ से विकरित होकर अन्तरिक्ष में जाने वाली ऊष्मा अपेक्षाकृत कम होती है। ऐसे क्षेत्र सूर्यातप-आधिक्य वाले क्षेत्र कहलाते हैं। इसके विपरीत जिन स्थानों पर दिन छोटे और रातें लम्बी होती हैं वहाँ सूर्यातप की मात्रा कम और विकरित होकर नष्ट हुई ऊष्मा। की मात्रा अधिक होती है। ऐसे क्षेत्रों को ऊष्मा-हानि वाले क्षेत्र कहा जाता है। दिन की अवधि ऋतु और अक्षांश द्वारा निर्धारित होती है। वास्तव में सूर्य की किरणों का सापेक्ष्य झुकाव और दिन की अवधि दोनों मिलकर पृथ्वी पर सूर्यातप के वितरण को नियन्त्रित करते हैं। अकेले दिन की अवधि से बात नहीं बनती। उदाहरणतः उत्तरी गोलार्द्ध के उच्च अक्षांशों में दिन की अवधि 6 मास की होने के बावजूद सूर्यातप की मात्रा न्यूनतम होती है और वहाँ बर्फ जमी रहती है। इसके लिए सूर्य की किरणों का तिरछापन उत्तरदायी है।

3. वायमण्डल की पारगम्यता-जिन क्षेत्रों में वायमण्डल में आर्द्रता. बादल और धलकण जैसी परिवर्तनशील दशाएँ अधिक पाई जाती हैं वहाँ परावर्तन, अवशोषण व प्रकीर्णन द्वारा सूर्यातप का हास होता रहता है। इसके विपरीत जहाँ वायुमण्डल निर्मल होता है वहाँ अपेक्षाकृत अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है। यही कारण है कि अफ्रीका के सहारा मरुस्थल में मेघ-रहित आकाश होने के कारण अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है जबकि भूमध्य रेखा पर स्थित ज़ायरे बेसिन (अफ्रीका) में मेघाच्छन्न आकाश के कारण बहुत मात्रा में सूर्यातप परावर्तित हो जाता है।

सूर्यातप को प्रभावित करने वाले गौण कारक-
4. भूमि का ढाल-पर्वतों के जो ढाल सूर्य के सामने पड़ते हैं उन पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं और वहाँ अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है। जो ढाल सूर्य से विमुख होते हैं, वहाँ पड़ने वाली सूर्य की तिरछी किरणें कम सूर्यातप दे पाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में, पर्वतों के दक्षिणी ढाल सूर्य के सामने और उत्तरी ढाल से विमुख पड़ते हैं।

5. सौर कलंकों की संख्या-सूर्य के तल पर काले रंग के गहरे व उथले अनेक धब्बे बनते और बिगड़ते रहते हैं, उन्हें सौर कलंक हते हैं। सौर विकिरण और सौर कलंकों की संख्या में गहरा सम्बन्ध होता है। इन कलंकों की संख्या के बढ़ने और घटने पर पृथ्वी पर सूर्यातप की मात्रा बढ़ती और घटती है।

6. पृथ्वी की सूर्य से दूरी-सूर्य के चारों ओर अण्डाकार पथ पर परिक्रमण करती हुई पृथ्वी कभी सूर्य से दूर व कभी सूर्य के पास आ जाती है। 4 जुलाई को अपसौरिका की स्थिति में पृथ्वी सूर्य से 15.20 करोड़ किलोमीटर की अधिकतम दूरी पर होती है। 3 जनवरी को उपसौरिका की स्थिति में पृथ्वी सूर्य से 14.70 करोड़ किलोमीटर की निकटतम दूरी पर होती है। इस प्रकार 3 जनवरी को 4 जुलाई की अपेक्षा पृथ्वी को लगभग 7% अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है।

7. जल-स्थल का वितरण-धरातल का तीन-चौथाई भाग जल से तथा एक-चौथाई भाग स्थल से ढका हुआ है। जल और स्थल भिन्न-भिन्न तापमान पर गरम और ठण्डे होते हैं। जल की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होने के कारण वह देर से गरम और देर से ठण्डा होता है। इस प्रकार जल और स्थल का वितरण भी सूर्यातप की मात्रा को प्रभावित करता है।

8. धरातल की प्रकृति धरातल पर कुछ वस्तुएँ सूर्यातप का अधिक अवशोषण करती हैं व अन्य कुछ कम। जहाँ सूर्यातप का अवशोषण अधिक होता है वहाँ सूर्यातप की मात्रा अधिक पाई जाती है; जैसे काली व गहरे रंग की मिट्टियों के क्षेत्र । बर्फीले व पथरीले प्रदेश सूर्यातप की अधिकांश मात्रा का प्रतिबिम्बन कर देते हैं। अतः ऐसे क्षेत्रों में कम सूर्यातप प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के ऊष्मा बजट का विस्तृत सचित्र विवरण दीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी सूर्य से जितनी ऊष्मा प्राप्त करती है, उतनी ऊष्मा का वह त्याग भी कर देती है। इसलिए पृथ्वी पर औसत तापमान सदा एक जैसा बना रहता है। पृथ्वी द्वारा प्राप्त सूर्यातप और उसके द्वारा छोड़े जाने वाले भौमिक विकिरण (Terrestrial Radiation) के खाते को पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहा जाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान 1
मान लीजिए वायुमण्डल की सबसे ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली ऊष्मा 100 इकाई है। इनमें से 35 इकाइयाँ धरातल पर पहुँचने से पहले ही अन्तरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। इन 35 इकाइयों में से 6 इकाइयाँ धूलकणों से प्रकीर्णन (Scatterring) द्वारा, 27 इकाइयाँ मेघों द्वारा और शेष 2 इकाइयाँ बर्फ से ढके क्षेत्रों द्वारा परावर्तित होकर अन्तरिक्ष में लौट जाती हैं (6+27 + 2 = 35)। सौर विकिरण की यह परावर्तित मात्रा पृथ्वी की एल्बिडो (Albedo of the earth) कहलाती है।

बची हुई ऊष्मा की 65 इकाइयों में से 14 इकाइयाँ वायुमण्डल द्वारा और 51 इकाइयाँ पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं (14+ 51 = 65)। ऊष्मा की इस मात्रा को प्रभावी सौर विकिरण कहा जाता है। इस प्रकार सूर्य से प्राप्त ऊष्मा के छोटे-से अंश का भी लगभग आधा भाग ही पृथ्वी पहुँच पाता है।

पृथ्वी द्वारा अवशोषित 51 इकाइयाँ पुनः भौमिक विकिरण के रूप में वापस शून्य में लौट जाती हैं। इन 51 इकाइयों में से 17 इकाइयाँ सीधे अन्तरिक्ष में चली जाती हैं और 34 इकाइयाँ वायुमण्डल द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं- (17+ 34 = 51)। इन 34 इकाइयों में से 6 इकाइयाँ स्वयं वायुमण्डल द्वारा, 9 इकाइयाँ संवहन द्वारा व 19 इकाइयाँ गुप्त ऊष्मा द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।

इस प्रकार वायुमण्डल 48 इकाइयों का अवशोषण करके (34 भौमिक विकिरण की व 14 सौर विकिरण की) उन्हें अन्तरिक्ष में लौटा देता है। पृथ्वी और वायुमण्डल दोनों मिलकर 17 + 48 = 65 इकाइयों को अन्तरिक्ष में भेजते हैं। इससे पृथ्वी और वायुमण्डल द्वारा अवशोषित 51 + 14 = 65 इकाइयों का हिसाब बराबर हो जाता है। इसी को पृथ्वी का ऊष्मा बजट अथवा ऊष्मा सन्तुलन कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 3.
तापमान को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी स्थान के तापमान को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
1. अक्षांश अथवा भूमध्य रेखा से दूरी पृथ्वी के गोलाकार होने के कारण सूर्य की किरणें सारा वर्ष भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं। भूमध्य रेखा से दूर ध्रुवों की ओर जाने पर सूर्य की किरणें अधिकाधिक तिरछी होती जाती हैं। लाम्बिक या सीधी किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा अधिक ऊष्मा प्रदान करती हैं, क्योंकि वे तिरछी किरणों की अपेक्षा कम क्षेत्रफल को गरम करती हैं और अपेक्षाकृत परतें वायुमण्डल से गुजरती हैं। अतः भूमध्य रेखा के निकट स्थित स्थानों का तापमान ऊँचा होता है जबकि भूमध्य रेखा से दूर स्थित स्थानों का तापमान कम होता है, यहाँ तक कि ध्रुवों पर तापमान हिमांक से नीचे गिर जाता है।

2. समुद्र तल से ऊँचाई-वायुमण्डल धूलकणों, गैस व अशुद्धियों द्वारा अवशोषित ऊष्मा से गरम होता है। ऊँचाई के साथ वायु विरल होती जाती है और उसका घनत्व भी घटता जाता है। परिणामस्वरूप ऊँचाई के साथ वायु में अवशोषित होने वाली ऊष्मा की मात्रा भी घटती जाती है। सामान्यतः वायु की निचली परतों में 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सेल्सियस अथवा 1 किलोमीटर की ऊँचाई पर 6.4° सेल्सियस तापमान गिर जाता है। ऊँचाई के साथ तापमान का यह ह्रास विभिन्न स्थानों और विभिन्न ऋतुओं में अलग-अलग होता है। इसी कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की अपेक्षा अधिक ठण्डे होते हैं।

3. समुद्र तट से दूरी-उच्चतर विशिष्ट ऊष्मा के कारण जल देर से गरम और देर से ठण्डा होता है जबकि स्थलीय भाग शीघ्र गरम और शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं। इसी कारण समुद्र तटीय प्रदेशों का तापमान भीतरी प्रदेशों की अपेक्षा अधिक समान रहता है। तटीय स्थानों पर सर्दियों में कम सर्दी, गर्मियों में कम गर्मी और वार्षिक तापान्तर कम होता है जबकि समुद्र से दूर स्थित भीतरी प्रदेशों में सर्दियों में अधिक सर्दी, गर्मियों में अधिक गर्मी और वार्षिक तापान्तर भी अधिक रहता है।

4. समुद्री धाराएँ-समुद्री धाराएँ भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर ऊष्मा का और ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर ठण्ड का स्थानान्तरण करती रहती हैं। गरम या ठण्डी धाराएँ जिन तटीय क्षेत्रों के पास से गुजरती हैं वे वहाँ का तापमान उसी के अनुरूप अधिक या कम कर देती हैं। इसका कारण यह है कि इन धाराओं के ऊपर से बहने वाली पवनें अपने साथ गर्म या ठण्डी धाराएँ तटीय क्षेत्रों में ले आती हैं। उदाहरणतः उत्तर:पश्चिमी यूरोप के तट के साथ बहने वाली गरम गल्फ स्ट्रीम या उत्तर अटलाण्टिक ड्रिफ्ट वहाँ के तटीय भागों का तापमान ऊँचा रखती है जिससे वहाँ के बन्दरगाह साल भर खुले रहते हैं। इसके विपरीत उन्हीं अक्षांशों पर स्थित उत्तर:पूर्वी कनाडा के लैब्रेडोर तट पर लैब्रेडोर की ठण्डी धारा बहती है जिससे वहाँ का तापमान हिमांक से भी नीचे हो जाता है और वर्ष के 8-9 महीने बन्दरगाहें बर्फ से जमी रहने के कारण बन्द रहती हैं।

5. प्रचलित पवनें हवाओं की दिशा भी किसी स्थान के तापमान को प्रभावित करती है। उष्ण कटिबन्धों से आने वाली तप्त पवनें तापमान को बढ़ा देती हैं जबकि ध्रुवीय प्रदेशों से आने वाली ठण्डी पवनें तापमान को कम कर देती हैं। समुद्र से आने वाली पवनें आर्द्र होती हैं और वर्षा लाती हैं और तापमान की विषमता को कम करती हैं जबकि महाद्वीपों के आंतरिक भागों से आने वाली
शुष्क पवनें तापमान की विषमता को बढ़ा देती हैं।

6. भूमि का ढाल-उत्तरी गोलार्द्ध में पर्वतों के दक्षिणी ढाल और दक्षिणी गोलार्द्ध में पर्वतों के उत्तरी ढाल सूर्य के सामने पड़ते हैं। सूर्य के सामने पड़ी ढालों पर किरणें सीधी पड़ती हैं जो अधिक सूर्यातप प्रदान करती हैं जिससे तापमान बढ़ता है। सूर्य से विपरीत दिशा में स्थित ढालों पर किरणें तिरछी पड़ती हैं जिससे वहाँ कम सूर्यातप व कम तापमान रहता है। यही कारण है कि हिमालय और आल्पस की दक्षिणी ढलानों पर अधिक तापमान के कारण मानव बस्तियाँ व कृषि कार्य केन्द्रित हैं जबकि उत्तरी ठण्डे ढालों पर केवल सघन वन पाए जाते हैं।

7. भू-तल का स्वभाव-किसी स्थान का तापमान वहाँ प्राप्त सूर्यातप के अवशोषण और प्रतिबिम्बन की मात्रा पर निर्भर करता है। हिम तथा वनस्पति से ढके प्रदेश सूर्यातप की अधिकांश मात्रा को प्रतिबिम्बित करके वापस वायुमण्डल में लौटा देते हैं जिस कारण इन प्रदेशों का तापमान कम रहता है। इसके विपरीत काली अथवा गहरी मिट्टियों और रेत से ढके भू-पृष्ठ के भाग सूर्यातप की अधिकांश मात्रा को अवशोषित करके वहाँ के तापमान को ऊँचा कर देते हैं।

8. मेघ तथा वर्षा-जिन प्रदेशों में आकाश अधिकतर बादलों से ढका रहता है और वहाँ वर्षा भी अधिक होती है। वहाँ तापमान बहुत अधिक नहीं हो पाता क्योंकि बादल सूर्य की किरणों को पृथ्वी तल तक नहीं पहुँचने देते और उन्हें वापिस प्रतिबिम्बित कर देते हैं। यही कारण है कि भूमध्यरेखीय प्रदेश में सूर्य की किरणें सारा वर्ष सीधी पड़ने के बावजूद वहाँ तापमान इतना अधिक नहीं हो पाता जितना कि मेघ-रहित उष्ण मरुस्थलों में।

9. पर्वतों का अवरोध-पर्वत ठण्डी हवाओं को रोककर दूसरी ओर स्थित क्षेत्र को ठण्ड से बचाते हैं जिससे तापमान नीचे नहीं गिर पाता। उदाहरणतः कोलकाता और चीन का कैण्टन दोनों तटीय नगर हैं और एक ही अक्षांश पर स्थित हैं। कैण्टन कोलकाता की अपेक्षा ठण्डा है। इसका कारण यह है कि हिमालय कोलकाता को मध्य एशिया से आने वाली ठण्डी पवनों से बचा लेता है जबकि कैण्टन के पास पर्वतीय अवरोध न होने के कारण वहाँ भयंकर ठण्ड होती है। इसी प्रकार यूरोप में आल्पस पर्वत इटली को ध्रुवीय ठण्डी पवनों से बचाते हैं।

प्रश्न 4.
समताप रेखाएँ क्या हैं? इनकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
समताप रेखाएँ-समताप रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं जो मानचित्र पर समान तापक्रम वाले स्थानों को मिलाती हैं। समताप रेखाओं की विशेषताएँ-समताप रेखाओं में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं-
(1) धरातल पर एक अक्षांश पर सूर्यातप की मात्रा लगभग समान पाई जाती है, इसलिए तापक्रम भी एक अक्षांश पर बराबर रहता है। यही वजह है कि समताप रेखाएँ पूर्व-पश्चिम दिशा में एक-दूसरे के लगभग समानान्तर तथा अक्षांशों के समानान्तर खींची जाती हैं।

(2) समताप रेखाओं के बीच की दूरी से ताप प्रवणता ज्ञात की जाती है। यदि समताप रेखाओं के बीच की दूरी कम है तो इसका तात्पर्य है कि दो स्थानों के तापक्रम में तीव्र वृद्धि हो रही है अर्थात् ताप प्रवणता अधिक है और यदि उनके बीच की दूरी अधिक है तो ताप प्रवणता कम होगी।

(3) जल तथा स्थल का तापक्रम भिन्न-भिन्न होता है, इसलिए जब समताप रेखाएँ तटीय भागों पर आती हैं तो एकदम मुड़ जाती हैं। इसका तात्पर्य है कि तापक्रम में अचानक परिवर्तन आ जाता है।

(4) दक्षिणी गोलार्द्ध जलीय गोलार्द्ध है जिसमें जल की प्रधानता है इसलिए समताप रेखाएँ कम मुड़ती हैं, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल की अधिकता के कारण ये अधिक टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं।

(5) भूमध्य रेखीय एवं उष्ण कटिबन्धीय भागों में समताप रेखाओं का मान अधिक होता है, जबकि ध्रुवों की ओर जाने पर इनका मान क्रमशः घटता जाता है।

(6) स्थलीय भाग से समुद्र की ओर जाते समय समताप रेखाएँ शीतकाल में भूमध्य रेखा की ओर तथा ग्रीष्मकाल में ध्रुवों की ओर मुड़ जाती हैं, क्योंकि शीतकाल में स्थलीय भाग समुद्रों से अधिक ठण्डे (कम तापक्रम) होते हैं।

प्रश्न 5.
जनवरी तथा जुलाई के तापमान के वितरण के मुख्य लक्षण क्या हैं?
उत्तर:
संसार में जनवरी तथा जुलाई के महीने प्रायः न्यूनतम तथा अधिकतम तापक्रम वाले महीने होते हैं इसलिए इन दो महीनों के तापक्रम का विश्लेषण आवश्यक है।
1. जनवरी के तापमान का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Temperature of January) जनवरी के महीने में सूर्य की स्थिति दक्षिणायन होती है अर्थात् मकर रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं इसलिए दक्षिणी गोलार्द्ध में इस समय ग्रीष्म ऋतु होती है। इस समय ऑस्ट्रेलिया, पूर्वी मध्य अफ्रीका तथा उत्तरी-पश्चिमी अर्जेन्टीना में तापमान लगभग 30° सेल्सियस के आस-पास रहता है, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान की स्थिति इसके विपरीत होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु होती है, रातें बड़ी होती हैं और तापक्रम कम होता है। साइबेरिया में वोयान्सक विश्व का सबसे ठण्डा क्षेत्र है जहाँ पर जनवरी महीने का तापमान -50° सेल्सियस तक गिर जाता है।

उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल की अधिकता है और तापमान स्थलीय भागों में कम रहता है, इसलिए समताप रेखाएँ जैसे ही स्थलों से महासागरों में पहुँचती हैं तो भूमध्य रेखा की ओर मुड़ जाती हैं क्योंकि सागरीय भागों में तापक्रम अपेक्षाकृत अधिक रहता है। अतः उत्तरी गोलार्द्ध में ताप प्रवणता अधिक रहती है। (क्योंकि समताप रेखाओं के बीच की दूरी कम रहती है।) दक्षिणी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ महासागरीय प्रभाव के कारण दूर-दूर रहती हैं और महाद्वीपों से गुजरते समय दक्षिणी ध्रुव की ओर मुड़ जाती हैं। समताप रेखाएँ उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में अधिक नियमित होती हैं।

2. जुलाई के तापमान का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Temperature of July)-जुलाई के माह में उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लम्बवत होती हैं, इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की अवधि लम्बी तथा ग्रीष्म ऋतु होती है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में शीत ऋतु होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में 10° से 40° अक्षांशों के मध्य अधिकतम तापक्रम रहता है। तापक्रम का औसत 30° सेल्सियस से अधिक रहता है। समताप रेखाएँ एक-दूसरे से दूर-दूर स्थित होती हैं।

जब ये रेखाएँ स्थलीय भागों से महासागरों की ओर जाती हैं तो महासागर की सीमा से दक्षिण की ओर भूमध्य रेखा की ओर स्थल की ओर गुजरते समय ध्रुवों की ओर मुड़ जाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी स्थिति अत्यधिक अनियमित होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पश्चिमी एशिया, उत्तरी-पश्चिमी भारत, अमेरिका का दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा अफ्रीका में सहारा मरुस्थल का तापमान अत्यधिक अर्थात् 35° सेल्सियस से अधिक रहता है। न्यूनतम तापमान ध्रुवीय क्षेत्रों में पाया जाता है। पाकिस्तान तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत ग्रीष्म ऋतु में ‘लू’ की चपेट में आ जाते हैं, लेकिन जुलाई के प्रथम सप्ताह में वर्षा के कारण तापक्रम में कुछ कमी आ जाती है।

प्रश्न 6.
तापमान के क्षैतिज वितरण का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
तापमान के क्षैतिज वितरण का आशय अंक्षाशीय वितरण से है। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर (दोनों गोलार्डों में) जाने पर तापमान में क्रमशः कमी होती जाती है। इस क्षैतिज वितरण के आधार पर पृथ्वी को तीन कटिबन्धों या मण्डलों में विभक्त किया जाता है
1. उष्ण-कटिबन्ध (Torrid Zone) यह कटिबन्ध दोनों गोलार्डों में 237° उत्तरी तथा 237° दक्षिणी अक्षांशों के बीच का क्षेत्र है अर्थात् कर्क और मकर रेखा के बीच के क्षेत्र को उष्ण कटिबन्ध कहा जाता है। यहाँ साल भर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं जिससे तापक्रम ऊँचा रहता है। भूमध्य रेखा के आस-पास तो शीत ऋतु होती ही नहीं, वहाँ औसत तापक्रम ऊँचा रहता है।

2. शीतोष्ण कटिबन्ध (Temperature Zone)-यह कटिबन्ध दोनों गोलार्डों में 23/2° से 66/2° अक्षांशों के मध्य स्थित है। इस प्रदेश में दिन-रात की अवधि मौसम के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है। जब सूर्य की स्थिति उत्तरायण होती है तो उस समय उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बड़े तथा रातें छोटी हैं और ग्रीष्म ऋतु होती है, लेकिन जब सूर्य की स्थिति दक्षिणायन होती है तो दक्षिणी . गोलार्द्ध में दिन बड़े तथा रातें छोटी होती हैं और उत्तरी गोलार्द्ध में इसके विपरीत स्थिति होती है।

3. शीत कटिबन्ध (Frigid Zone)-इस कटिबन्ध का विस्तार दोनों गोलार्डों में 66%° से ध्रुवों (90°) तक है। यहाँ सूर्य की किरणे अत्यधिक तिरछी पड़ती हैं जिसके कारण दिन की अवधि छोटी होती है। जब सूर्य की किरणें दक्षिणायन होती हैं तो उत्तरी गोलार्द्ध के ध्रुवों पर 6 महीने की रात तथा जब सूर्य की स्थिति उत्तरायण होती है तो ऐसी दशा में दक्षिणी ध्रुव पर 6 महीने की रात होती है। 6 महीने की रात के कारण सूर्यातप बहुत कम प्राप्त होता है जिससे तापक्रम साल भर नीचा तथा हिमांक से कम रहता है अर्थात् तापक्रम दोनों ध्रुवों पर कम पाया जाता है।

प्रश्न 7.
वायुमंडल के तापन और शीतलन की विधियों का वर्णन कीजिए। अथवा वायुमंडल उष्मा संचरण की कौन-सी विधियों से गरम और ठण्डा होता है? इनका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायुमंडल के गर्म तथा ठण्डा होने में पार्थिव या भौमिक शक्ति (Terrestrial Force) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस पार्थिव शक्ति के कारण कुछ भौतिक क्रियाएं होती हैं जिनके कारण वायुमण्डल गर्म तथा ठण्डा होता रहता है। ये भौतिक विधियाँ निम्नलिखित हैं
1. विकिरण (Radiation) सूर्य से आने वाली तरंगों के द्वारा वायुमण्डल का गर्म होना विकिरण (Radiation) कहलाता है। सूर्य से प्राप्त सौर ऊर्जा द्वारा वायुमण्डल तथा पृथ्वी दोनों ही गर्म होते हैं। पृथ्वी पर प्राप्त सौर ऊर्जा से पृथ्वी गर्म होती है। इसे पार्थिव या भौमिक विकिरण (Terrestrial Radiation) कहते हैं। भू-तल को उष्णता लम्बी तरंगों के रूप में प्राप्त होती है जिसका 90% धरातल अवशोषित कर लेता है और वायुमण्डल गर्म होता रहता है। पार्थिव विकिरण द्वारा वायुमण्डल की निचली परतें ही गर्म होती हैं। अधिक ऊँचाई पर इसका प्रभाव बहुत कम होता है।

2. परिचालन (Conduction) जब दो असमान प्रकृति वाली वस्तुएँ एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं तो जो अधिक तापमान वाली वस्तु है, वह कम तापमान वाली वस्तु की ओर प्रवाहित होती है अर्थात् अधिक तापमान वाली वस्तु से तापमान का संचालन कम तापमान वाली वस्तु की ओर होता है और यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक दोनों वस्तुओं का तापमान एक-जैसा या समान न हो जाए। इसे संचालन भी कहते हैं। वायु ऊष्मा की कुचालक है, अतः वायुमण्डल में ऊष्मा का संचालन आसानी से नहीं होता। केवल वायुमण्डल की निचली परत पर ही ऊष्मा का संचालन होता है अथवा वायुमण्डल की निम्न परत ही गर्म होती है। ऊपरी परतों पर इसका प्रभाव नगण्य होता है। प्रकृति का यह नियम है कि वह प्रत्येक वस्तु में समानता चाहती है, इसलिए गर्म एवं तप्त सूर्य पृथ्वी को लगातार अपनी किरणों द्वारा ताप प्रदान करता रहता है। यह ताप वायुमण्डल की विभिन्न परतों से धरातल पर आने का प्रयास करता है जिससे सूर्यातप में धरातल पर समानता बनी रहे।

3. संवहन (Convection) सूर्यातप के विकिरण द्वारा धरातल की वायु गर्म होती है। गर्म वायु हल्की होकर ऊपर उठती है तथा फैलती है लेकिन वायुमण्डल में ऊँचाई पर जाने पर तापमान की कमी के कारण यही वायु ठण्डी हो जाती है। ठण्डी होने के कारण यह भारी होकर पुनः धरातल पर नीचे उतर जाती है और पुनः धरातल से गर्म होकर ऊपर उठती है। इसी प्रक्रिया के कारण वायुमण्डल में संवहन (Convection) शुरू हो जाता है तथा लम्बवत् रूप में संवहनिक तरंगें चलने लगती हैं। इस प्रकार की क्रियाएँ उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों में अधिक होती हैं। इस प्रकार वायुमण्डल में या तरल पदार्थ में जो ऊष्मा का एक भाग से दूसरे भाग में स्थानान्तरण होता है, उसे संवहन कहा जाता है।

4. अभिवहन (Advection)अभिवहन वह क्रिया है जिसमें ऊष्मा का स्थानान्तरण क्षैतिज रूप में होता है। जब भूमध्य रेखीय या उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों की गर्म वायुराशियाँ मध्य महाद्वीपों या उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में पहुँचती हैं तो वहाँ की ठण्डी वायुराशियों को कम कर देती हैं। इसी प्रकार गर्म समुद्री धाराएँ, जो उष्ण प्रदेशों से उत्पन्न होती हैं और ठण्डे प्रदेशों में प्रवेश करती हैं तो वहाँ के तापमान में वृद्धि कर देती हैं। इस क्रिया को ही अभिवहन कहते हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. वायुमंडल में जलवाष्प का अनुपात कितना होता है?
(A) 0 – 4%
(B) 4 – 8%
(C) 8 – 12%
(D) 12 – 16%
उत्तर:
(A) 0 – 4%

2. कोहरे में अधिकतम दृश्यता कितनी होती है?
(A) एक कि०मी० से कम
(B) 2 कि०मी० से अधिक
(C) 3 कि०मी० से अधिक
(D) 4 कि०मी० से अधिक
उत्तर:
(A) एक कि०मी० से कम

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3. ओसांक पर वायु की सापेक्ष आर्द्रता कितनी होती है?
(A) 25%
(B) 50%
(C) 75%
(D) 100%
उत्तर:
(D) 100%

4. सापेक्ष आर्द्रता को किस इकाई में मापा जाता है?
(A) मीटर में
(B) कि०मी० में
(C) प्रतिशत में
(D) सें०मी० में
उत्तर:
(C) प्रतिशत में

5. मौसमी घटनाओं के लिए वायुमंडल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक कौन-सा है?
(A) ऑक्सीजन
(B) धूलकण
(C) नाइट्रोजन
(D) जलवाष्प
उत्तर:
(D) जलवाष्प

6. शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सामान्यतः किस प्रकार की वर्षा होती है?
(A) संवहनीय
(B) चक्रवातीय
(C) पर्वतीय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) चक्रवातीय

7. निम्नलिखित में से कौन-से बादल अधिक वर्षा करते हैं?
(A) कपासी
(B) कपासी वर्षा
(C) वर्षा-स्तरी
(D) पक्षाभ-स्तरी
उत्तर:
(C) वर्षा-स्तरी

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8. प्रायः समुद्री किनारों और झीलों के तटों पर पाया जाने वाला कोहरा होता है
(A) वाताग्री कोहरा
(B) अभिवहन कोहरा
(C) विकिरण कोहरा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अभिवहन कोहरा

9. ‘4 बजे वाली वर्षा’ किसे कहा जाता है?
(A) यूरोप में सायंकाल में होने वाली स्थानीय वर्षा को
(B) पवनाभिमुखी ढालों पर होने वाली पर्वतकृत वर्षा को
(C) वाताग्री वर्षा को
(D) भूमध्य रेखीय प्रदेशों में होने वाली संवहनीय वर्षा को
उत्तर:
(D) भूमध्य रेखीय प्रदेशों में होने वाली संवहनीय वर्षा को

10. जलवृष्टि व हिमवृष्टि के मिले-जुले रूप को कहते हैं-
(A) ओलावृष्टि
(B) हिमवृष्टि
(C) सहिम वृष्टि
(D) वर्षा
उत्तर:
(C) सहिम वृष्टि

11. बिना तरल अवस्था में आए वाष्प का हिम में बदलना कहलाता है-
(A) ऊर्ध्वपातन
(B) द्रवण
(C) संघनन
(D) परिवर्तन
उत्तर:
(A) ऊर्ध्वपातन

12. सांध्यकालीन सर्वाधिक रंगीन मेघ है-
(A) कपासी
(B) पक्षाभ
(C) स्तरी
(D) बर्फीले
उत्तर:
(A) कपासी

13. एलनीनो, के दौरान असामान्य रूप से बाढ़ की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं
(A) इक्वेडोर में
(B) उत्तरी पीरू में
(C) मध्य चिली में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी में

14. एलनीनो के दौरान असामान्य रूप से सूखे की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं-
(A) इंडोनेशिया में
(B) ऑस्ट्रेलिया में
(C) उत्तर:पूर्वी दक्षिण अमेरिका में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी में

15. निम्नलिखित में से किसे उच्च बादलों में शामिल नहीं किया जाता?
(A) पक्षाभ
(B) पक्षाभ स्तरी
(C) स्तरी कपासी
(D) पक्षाभ कपासी
उत्तर:
(C) स्तरी कपासी

16. किसी स्थान की वर्षा निर्भर करती है-
(A) पर्वतों की दिशा पर
(B) समुद्री जल के वाष्पीकरण पर
(C) ग्रीष्मकाल की अवधि पर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) पर्वतों की दिशा पर

17. वायुमंडल की कौन-सी प्रक्रिया ठोस पदार्थों के अभाव में नहीं हो सकती है?
(A) संतृप्तीकरण
(B) संघनन
(C) वाष्पीकरण
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(B) संघनन

18. यदि किसी स्थान के तापमान में अचानक वृद्धि हो जाए तो वहाँ की सापेक्षिक आर्द्रता-
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) समान रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(B) घटेगी

19. जलवाष्प की मात्रा समान रहने पर वायु के ताप में कमी होने पर सापेक्षिक आर्द्रता-
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) समान रहेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

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20. ओस किस प्राकृतिक घटना का उदाहरण है?
(A) वाष्पीकरण
(B) सूर्य की तिरछी किरणें
(C) संघनन
(D) वाष्पोत्सर्जन
उत्तर:
(C) संघनन

21. भारत में अधिकतर वर्षा कौन-सी होती है?
(A) पर्वतकृत वर्षा
(B) चक्रवातीय वर्षा
(C) संवहनीय वर्षा
(D) वाताग्री वर्षा
उत्तर:
(A) पर्वतकृत वर्षा

22. सर्दियों में उत्तर:पश्चिमी भारत में होने वाली वर्षा किस प्रकार की होती है?
(A) पर्वतकृत
(B) चक्रवातीय
(C) संवहनीय
(D) वाताग्री
उत्तर:
(B) चक्रवातीय

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
जलवाष्प का प्रमुख स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
महासागर।

प्रश्न 2.
जलीय चक्र को ऊर्जा कहाँ से मिलती है?
उत्तर:
सूर्य से।

प्रश्न 3.
सापेक्ष आर्द्रता को किस इकाई में मापा जाता है?
उत्तर:
प्रतिशत में।

प्रश्न 4.
ओसांक पर वायु की सापेक्ष आर्द्रता कितनी होती है?
उत्तर:
100 प्रतिशत।

प्रश्न 5.
वायुमण्डलीय आर्द्रता को किस यन्त्र से मापते हैं?
उत्तर:
हाइग्रोमीटर से।

प्रश्न 6.
भारत में अधिकतर वर्षा कौन-सी होती है?
उत्तर:
पर्वतकृत वर्षा।

प्रश्न 7.
पवनविमुखी पर्वतीय ढाल पर स्थित शुष्क प्रदेश को क्या कहते हैं?
उत्तर:
वृष्टिछाया प्रदेश।

प्रश्न 8.
कोहरे में अधिकतम दृश्यता कितनी होती है?
उत्तर:
एक किलोमीटर से कम।

प्रश्न 9.
वायुमण्डल में जलवाष्प का अनुपात कितना होता है?
उत्तर:
शून्य से 4 प्रतिशत तक।

प्रश्न 10.
महासागर के अतिरिक्त जलवाष्प के अन्य स्रोत कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
सागर, झीलें, नदियाँ।

प्रश्न 11.
विकिरण कोहरा प्रायः कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
विस्तृत मैदानी भागों में।

प्रश्न 12.
वर्षा को मापने वाले यन्त्र का नाम बताएँ।
उत्तर:
रेन गेज या वर्षा-मापी यन्त्र।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्द्रता को व्यक्त करने की तीन विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. निरपेक्ष आर्द्रता
  2. विशिष्ट आर्द्रता और
  3. सापेक्ष आर्द्रता।

प्रश्न 2.
सापेक्ष आर्द्रता ज्ञात करने का सूत्र बताइए।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
कोहरे के प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. विकिरण
  2. अभिवहन तथा
  3. वाताग्री।

प्रश्न 4.
संघनन के कौन-कौन-से रूप होते हैं?
उत्तर:
ओस, पाला, कोहरा, कुहासा और बादल।

प्रश्न 5.
वाष्पीकरण को नियन्त्रित करने वाले कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. तापमान
  2. स्वच्छ आकाश
  3. वायु की शुष्कता
  4. पवनों की गति
  5. जल के तल का विस्तार।

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प्रश्न 6.
वाष्पीकरण में क्या होता है?
उत्तर:
जल द्रव अवस्था से गैस (जलवाष्प) में बदल जाता है।

प्रश्न 7.
संघनन या द्रवीकरण क्या है?
उत्तर:
जल की गैसीय अवस्था से तरलावस्था या ठोसावस्था में बदलने की प्रक्रिया द्रवीकरण कहलाती है।

प्रश्न 8.
ओसांक क्या होता है?
उत्तर:
वह तापमान जिस पर वायु अपने में विद्यमान जलवाष्प से संतृप्त हो जाती है।

प्रश्न 9.
संघनन कितने तापमान पर होता है?
उत्तर:
संघनन तब होता है जब वायु का ताप ओसांक या ओसांक से नीचे गिर जाता है।

प्रश्न 10.
आर्द्रताग्राही कण या संघनन केन्द्र क्या होते हैं?
उत्तर:
वायु में विद्यमान ठोस कण जिनके चारों ओर संघनन की प्रक्रिया आरम्भ होती है।

प्रश्न 11.
आर्द्रताग्राही कण कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:
समुद्री नमक के कण, धूएँ की कालिख के कण व धूलकण इत्यादि।

प्रश्न 12.
तापमान ओसांक से नीचे किन दो कारणों से गिरता है?
उत्तर:

  1. वायु के ठण्डा होने से
  2. वायु की सापेक्ष आर्द्रता बढ़ने पर।

प्रश्न 13.
अभिवहन कोहरा कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
सागरीय किनारों व झीलों के तटों पर।

प्रश्न 14.
वाताग्री कोहरा कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
वायुराशियों को अलग करने वाले वातानों पर।

प्रश्न 15.
4 बजे वाली वर्षा कौन-सी होती है और कहाँ होती है?
उत्तर:
संवहनीय वर्षा; यह भूमध्य रेखीय प्रदेशों में होती है।

प्रश्न 16.
भारत में स्थित किसी एक वृष्टिछाया प्रदेश का नाम बताएँ।
उत्तर:
दक्कन पठार जो पश्चिमी घाट का वृष्टिछाया प्रदेश है।

प्रश्न 17.
सर्दियों में उत्तर-पश्चिमी भारत में होने वाली वर्षा किस प्रकार की वर्षा होती है?
उत्तर:
सर्दियों में उत्तर-पश्चिमी भारत में होने वाली चक्रवातीय वर्षा होती है।

प्रश्न 18.
कौन-सा प्राकृतिक प्रदेश अधिकतर सर्दियों में वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
भूमध्य सागरीय प्रदेश अधिकतर सर्दियों में वर्षा प्राप्त करता है।

प्रश्न 19.
ऊर्ध्वपातन क्या होता है?
उत्तर:
बिना तरलावस्था में आए वाष्प का हिम में बदलना या हिम का वाष्प में बदलना ऊर्ध्वपातन कहलाता है।

प्रश्न 20.
गुप्त ऊष्मा क्या होती है?
उत्तर:
वस्तु की अवस्था (State) बदलने पर ऊष्मा का खर्च होना या मुक्त होना गुप्त ऊष्मा कहलाता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में वस्तु के तापमान में कोई अन्तर नहीं होता।

प्रश्न 21.
वाष्पोत्सर्जन क्या होता है?
उत्तर:
भूमि तथा वनस्पति से होने वाला वाष्पन। इसमें जलाशयों (नदी, झील, तालाब), मिट्टियों, शैलों के पृष्ठों और पौधों से वाष्प के रूप में नमी की क्षति भी सम्मिलित है।

प्रश्न 22.
ऊँचे बादलों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:

  1. पक्षाभ
  2. पक्षाभ कपासी।

प्रश्न 23.
मध्य बादलों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:

  1. स्तरी मध्य
  2. कपासी मध्य।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

प्रश्न 24.
कम ऊँचाई वाले बादलों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:

  1. स्तरी वर्षा मेघ
  2. कपासी वर्षा मेघ

प्रश्न 25.
वर्षण के कौन-कौन-से रूप होते हैं?
उत्तर:
हिमपात, सहिम वर्षा, ओला वृष्टि और वर्षा।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्द्रता किसे कहते हैं?
अथवा
वायुमण्डलीय आर्द्रता क्या होती है? यह कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
आर्द्रता का अर्थ-वायुमण्डल में गैस रूप में उपस्थित अदृश्य जलवाष्प की मात्रा को वायुमण्डल की आर्द्रता कहा जाता है। वायुमण्डल में जलवाष्प बहुत ही कम अनुपात में (शून्य से 4 प्रतिशत तक) होता है। जलवाष्प वाष्पीकरण क्रिया द्वारा महासागरों, सागरों, नदियों तथा झीलों आदि से प्राप्त होता है। स्थान और समय की दृष्टि से जलवाष्प की मात्रा सदा एक-जैसी नहीं रहती बल्कि बदलती रहती है।

वायुमण्डलीय आर्द्रता के प्रकार-वायुमण्डलीय आर्द्रता तीन प्रकार की होती है-

  • निरपेक्ष आर्द्रता
  • विशिष्ट आर्द्रता तथा
  • सापेक्ष आर्द्रता।

प्रश्न 2.
आर्द्रता अथवा जलवाष्प का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
1. वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा द्रवण और वर्षण के सभी रूपों का स्रोत है। वर्षा, हिमपात, कोहरा व बादल जैसी मौसमी घटनाएँ जलवाष्प के कारण ही सम्भव होती हैं।

2. जलवाष्प सूर्य से आने वाली ऊष्मा (Incoming Solar Radiation) व पृथ्वी के विकिरण द्वारा निकलने वाली ऊष्मा का कुछ अंश अवशोषित करके पृथ्वी पर ताप की दशाओं को नियन्त्रित करता है।

3. जलवाष्प का वायुमण्डल में लम्बवत् वितरण एवं मात्रा गुप्त ऊष्मा की मात्रा को निर्धारित करते हैं जो तूफानों और विक्षोभों के विकास में मदद करती है।

4. वायुमण्डल में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा मौसम के अनुसार मानव शरीर के ठण्डा होने की दर को प्रभावित करती है। जल का वाष्पन प्राकृतिक जलीय चक्र (Hydrologic Cycle) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

प्रश्न 3.
प्राकृतिक जलीय चक्र में जलवाष्प की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी पर जल का प्राथमिक स्रोत महासागर हैं। वायुमण्डल को अपने जलवाष्प का अधिकांश भाग पृथ्वी के तीन-चौथाई भाग पर व्याप्त महासागरों, झीलों, नदियों, हिम क्षेत्रों व हिमनदों से प्राप्त होता है। इन स्रोतों के अतिरिक्त गिरती हुई वर्षा की बूंदों तथा नम भूमियों (Swamps and Wet Lands) से वाष्पीकरण द्वारा, पेड़-पौधों की पत्तियों से बाष्पोत्सर्जन द्वारा तथा जीव-जन्तुओं द्वारा साँस लेने की क्रिया से उत्पन्न जलवाष्प वायुमण्डल में जा मिलता है। जलवाष्प संघनित होकर बादलों का रूप धारण करते हैं। पवनों द्वारा बादलों के रूप में यह आर्द्रता एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरित होती है।

अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर संघनित जलवाष्प वर्षा और हिम के रूप में भू-पृष्ठ पर गिरता है जो वृष्टि संयोग से महासागरों पर होती है उसका तो एक चक्र तभी पूरा हो जाता है और दूसरा आरम्भ भी हो जाता है। जो वर्षा स्थलखण्डों पर होती है उसका चक्र कुछ देर से पूरा होता है। ऐसे जल का कुछ भाग मिट्टी सोख लेती है व कुछ भाग पौधे अवशोषित कर लेते हैं जिसे वे बाद में वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा वायुमण्डल में छोड़ देते हैं।

शेष जल भूमिगत जल और धरातलीय प्रवाह के रूप में अन्ततः महासागरों में पुनः पहुँच जाता है और जलीय चक्र का फिर से हिस्सा बन जाता है। इस प्रकार भूमण्डलीय ताप सन्तुलन की तरह जलीय चक्र के माध्यम से प्रकृति में भूमण्डलीय जल सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 4.
वाष्पीकरण क्या है? वाष्पीकरण की मात्रा और दर किन कारकों पर निर्भर करती है?
उत्तर:
वाष्पीकरण-जल के तरलावस्था अथवा ठोसावस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं। वाष्पीकरण की दर तथा मात्रा निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है

  • तापमान भूतल पर तापमान (Temperature) के बढ़ने से वाष्पीकरण की क्रिया तेजी से होती है तथा तापमान के घटने से इस क्रिया की दर में कमी आ जाती है।
  • शुष्कता-शुष्क (Aridity) वायु में जलवाष्प अधिक मात्रा में समा सकते हैं, परन्तु आर्द्र वायु की जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता कम होती है।
  • वायु परिसंचरण-चलती वायु में वाष्पीकरण अधिक मात्रा में होता है।
  • जल के स्रोत-महासागरों तथा सागरों पर महाद्वीपों की तुलना में बहुत अधिक वाष्पीकरण होता है।

प्रश्न 5.
संघनन क्या है और यह कब और कैसे होता है? अथवा संघनन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा संघनन की प्रक्रिया को नियन्त्रित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संघनन-जल के गैसीय अवस्था से तरलावस्था या ठोसावस्था में बदलने की प्रक्रिया को संघनन या द्रवीकरण कहते हैं। जैसे-जैसे आर्द्र हवा ठण्डी होने लगती है, वैसे-वैसे उसकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता भी घटती जाती है। एक समय ऐसा आता है जिसमें एक विशेष ताप पर वह वायु संतृप्त हो जाती है, जिस तापमान पर वायु अपने में विद्यमान जलवाष्प से संतृप्त हो जाती है, उस तापमान को ओसांक (Dew Point) कहा जाता है। ओसांक पर वायु की सापेक्ष आर्द्रता 100 प्रतिशत होती है। संघनन तब होता है जब वायु का ताप ओसांक से भी नीचे गिर जाता है।

ऐसा दो कारणों से हो सकता है-

  • वायु के ठण्डा होने से
  • वायु की सापेक्ष आर्द्रता बढ़ने पर।

उपर्युक्त दोनों घटनाएँ नीचे दी गई चार परिस्थितियों में से किसी-न-किसी एक के साथ जुड़कर सम्भव होती हैं-

  • जब वायु का तापमान घटकर ओसांक तक पहुँच जाए किन्तु उसका आयतन वही रहे।
  • जब वायु का आयतन ऊष्मा की मात्रा बढ़ाए बिना ही बढ़ जाए।
  • जब वायु की आर्द्रता धारण करने की क्षमता, तापमान और वायु के आयतन के संयुक्त रूप से घटने के कारण घट जाए और वायु में उपस्थित आर्द्रता की मात्रा से भी कम हो जाए।
  • जब वाष्पीकरण द्वारा वायु में आर्द्रता की अतिरिक्त मात्रा मिल जाए। जलवाष्प के संघनन की सबसे अनुकूल स्थिति तापमान के घटने से उत्पन्न होती है।

प्रश्न 6.
ओस किसे कहते हैं?
अथवा
ओस कैसे बनती है?
उत्तर:
ओस-जाड़े की रातों में जब आकाश स्वच्छ होता है तो तीव्र भौमिक विकिरण से धरातल ठण्डा हो जाता है। ठण्डे धरातल पर ठहरी वायुमण्डल की आर्द्र निचली परतें भी ठण्डी होने लगती हैं। धीरे-धीरे यह वायु ओसांक तक ठण्डी हो जाती है। इससे वायु में विद्यमान जलवाष्प संघनित हो जाता है और नन्हीं-नन्हीं बूंदों के रूप में घास व पौधों की पत्तियों पर जमा हो जाता है। वाष्प से बनी जल की इन बूंदों को ओस कहते हैं।

प्रश्न 7.
ओस पड़ने के लिए किन-किन दशाओं का होना आवश्यक है?
उत्तर:
ओस पड़ने के लिए निम्नलिखित दशाओं का होना आवश्यक है-

  1. रातें ठण्डी और लम्बी हों, ताकि भूतल से देर तक विकिरण हो और भूतल पर ठहरी वायु ठण्डी होकर ओसांक तक पहुँचे।
  2. आकाश मेघ-विहीन हो, ताकि भू-तल से होने वाली ऊष्मा का विकिरण निर्बाध गति से सम्पन्न हो सके। तभी भूतल और उसके सम्पर्क में आई हवा ठण्डी हो पाएगी।
  3. वायु शान्त हो, ताकि वह ठण्डे भूतल पर अधिक देर तक ठहरकर स्वयं भी ठण्डी हो जाए। इससे ओसांक जल्दी प्राप्त होगा।
  4. वायु में सापेक्ष आर्द्रता का प्रतिशत ऊँचा हो, ताकि थोड़ा-सा तापमान गिरते ही वायु संतृप्त (Saturate) हो जाए।
  5. ओसांक हिमांक से ऊपर हो, ताकि जलवाष्प जल के बिन्दुओं में परिवर्तित हो जाएँ। यदि ओसांक हिमांक (0°C) से नीचे गिर जाएगा तो वाष्प के जम जाने से पाला पड़ेगा, ओस नहीं।

प्रश्न 8.
कोहरा और कुहासा (धुंध) कैसे बनते हैं?
उत्तर:
कोहरा और कुहासा (Fog and Mist) वास्तव में बादल होते हैं जो पृथ्वी के धरातल के पास बनते हैं। जब भू-तल के निकट वायु के ठण्डा होने से वायु की सापेक्ष आर्द्रता 100 प्रतिशत से बढ़ जाए तो वाष्प-कण संघनित होकर जल के अति सूक्ष्म कणों या हिमकणों में परिवर्तित होकर हवा की निचली परतों में लटके हुए ठोस कणों के चारों ओर एकत्रित हो जाते हैं। इससे जाता है और दृश्यता कम हो जाती है। कोहरे और कुहासे में केवल दृश्यता के विस्तार का अन्तर है। कोहरा घना होता है जिसमें एक किलोमीटर से परे दिखाई नहीं पड़ता। सघन कोहरे (Thick Fog) में तो 200 मीटर तक देख पाना कठिन होता है। कुहासा (धुन्ध) कुछ हल्का होता है जिसमें एक से दो किलोमीटर तक की चीजें दिखाई देती हैं।

प्रश्न 9.
मेघ कैसे बनते हैं? औसत ऊँचाई के आधार पर मेघों के तीन प्रकार बताइए।
उत्तर:
मेघों का बनना-मेघ काफ़ी ऊँचाई पर वायु में लटके हुए ठोस कणों पर संघनित हुए जल बिन्दुकों या हिमकणों के विशाल समूह होते हैं। मेघ ऊपर उठती हुई गर्म व आर्द्र वायुराशियों के रुद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा ठण्डे होने पर उसके तापमान के ओसांक से नीचे गिरने से बनते हैं। इस दृष्टि से मेघ वायुमण्डल की ऊँचाइयों पर बनने वाला कोहरा माना जा सकता है। अतः मेघों का निर्माण वायु में उपस्थित महीन धूलकणों के केन्द्रकों के चारों ओर जलवाष्प के संघनित होने से होता है।

औसत ऊँचाई के आधार पर मेघों के प्रकार-औसत ऊँचाई के आधार पर मेघों के तीन प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. निचले मेघ इनकी ऊँचाई भूतल से 2,000 मीटर होती है। निचले मेघ निम्नलिखित तरह के होते हैं-

  • स्तरीय कपासी मेघ
  • स्तरी मेघ
  • कपासी मेघ
  • वर्षा स्तरी मेघ
  • वर्षा कपासी मेघ आदि।

2. मध्यम ऊँचाई वाले मेघ-इनकी ऊँचाई भू-तल से 2,000 मीटर से 6,000 मीटर तक होती है। मध्यम ऊँचाई वाले मेघ निम्नलिखित तरह के होते हैं-

  • मध्य स्तरी मेघ
  • मध्यम कपासी मेघ आदि।

3. ऊँचे मेघ–इनकी ऊँचाई भू-तल से 6,000 मीटर से 12,000 मीटर तक होती है। ऊँचे मेघ निम्नलिखित तरह के होते हैं-

  • पक्षाभ मेघ
  • पक्षाभ स्तरी मेघ
  • पक्षाभ कपासी मेघ आदि।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

प्रश्न 10.
संवहनीय वर्षा कैसे होती है?
उत्तर:
भूतल के गर्म हो जाने पर उसके सम्पर्क में आने वाली वायु भी गर्म हो जाती है। वायु गर्म होकर फैलती है और हल्की हो जाती है। हल्की होकर वायु ऊपर की ओर उठती है। इससे संवहनी धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ऊपर जाकर वायु ठण्डी हो जाती है और उसमें अधिक जलवाष्प का संघनन होने लगता है। बादलों की गर्जन व बिजली की चमक के साथ मूसलाधार वर्षा होती है। भूमध्य रेखीय प्रदेशों में होने वाली वर्षा इसी प्रकार की संवहनीय वर्षा होती है।

प्रश्न 11.
पर्वत-कृत वर्षा कैसे होती है?
उत्तर:
आर्द्रता से भरी हुई गर्म पवनें जब किसी पर्वत या पठार के सहारे ऊपर उठती हैं तो वे ठण्डी हो जाती हैं। वायु के संतृप्त होने पर जलवाष्प का संघनन व बाद में वर्षा होने लगती है। इस प्रकार की वर्षा को पर्वतकृत वर्षा कहते हैं। भारत में अधिकतर वर्षा इसी प्रकार की होती है।

प्रश्न 12.
चक्रवाती अथवा वाताग्री वर्षा कैसे होती है?
उत्तर:
ऐसी वर्षा चक्रवातों के कारण होती है। शीतोष्ण कटिबन्धों में जब भिन्न-भिन्न तापों व आर्द्रता वाली वायुराशियाँ टकराती हैं तो ठण्डी वायुराशि गर्म वायुराशि को ऊपर की ओर धकेल देती है। इसके परिणामस्वरूप वायु में भीषण उथल-पुथल और तूफानी दशाएँ उत्पन्न हो जाती हैं और वातानों पर वर्षा होने लगती है। इस प्रकार की वर्षा को वाताग्री अथवा चक्रवाती वर्षा कहते हैं।

प्रश्न 13.
विशिष्ट आर्द्रता (Specific Humidity) क्या होती है? इसका प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
विशिष्ट आर्द्रता वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं। इसे ग्राम प्रति किलोग्राम द्वारा व्यक्त किया जाता है। आता को व्यक्त करने का यह कुछ बेहतर तरीका है क्योंकि इस पर तापमान और वायुदाब के परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। विशिष्ट आर्द्रता का प्रयोग किसी विशाल वायुराशि के आर्द्रता सम्बन्धी लक्षणों का वर्णन करने के लिए किया जाता है; जैसे

  • सर्दियों में आर्कटिक प्रदेशों में अत्यधिक ठण्डी, शुष्क वायु की विशिष्ट आर्द्रता 0.2 ग्राम प्रति किलोग्राम होती है।
  • भूमध्यरेखीय खण्ड में अत्यधिक उष्ण एवं आर्द्र वायु की विशिष्ट आर्द्रता 18 ग्राम प्रति किलोग्राम होती है।

प्रश्न 14.
विश्व में वर्षा के वार्षिक वितरण के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
सम्पूर्ण विश्व में वर्षा समान रूप से नहीं होती। विश्व के कई मरुस्थली क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ वर्षा बहुत कम होती है। दूसरी ओर भारत में मौसिनराम (चेरापूंजी के निकट), मेघालय में लगभग 1140 सें०मी० औसत वार्षिक वर्षा होती है। वर्षा की दृष्टि से विश्व को निम्नलिखित भागों में बाँट सकते हैं-
1. विषुवतीय अत्यधिक वर्षा वाली पेटियाँ यहाँ औसत वर्षा 200 सें०मी० से अधिक है। यह क्षेत्र भूमध्य रेखा से 1° अक्षांश उत्तर और दक्षिण के मध्य स्थित है। यहाँ प्रतिदिन दोपहर के बाद वर्षा होती है।

2. उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश-इन प्रदेशों में महाद्वीपों के पूर्वी क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा होती है, परन्त पश्चिमी क्षेत्रों में वर्षा 25 सें०मी० से कम होती है। इसलिए उष्ण कटिबन्ध के पश्चिम में मरुस्थल पाए जाते हैं।

3. शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश इन क्षेत्रों में चक्रवाती वर्षा होती है। यहाँ औसत वर्षा 100 सें०मी० से 125 सें०मी० तक होती है।

4. शीत कटिबन्धीय प्रदेश-यहाँ वर्षा हिमपात के रूप में होती है। यहाँ वर्षा 25 सें०मी० से कम होती है।

प्रश्न 15.
हिमपात तथा सहिम वृष्टि किसे कहते हैं?
उत्तर:
हिमपात-जब वायुमण्डल में जलवाष्प संघनन की प्रक्रिया द्वारा वायु का तापक्रम हिमांक बिन्दु से नीचे चला जाता है तो ऐसी स्थिति में वृष्टि ठोस रूप में होती है, जिसे हिमपात (Snowfall) कहते हैं। षट्कोण के आकार के बर्फ के टुकड़े रुई के समान धरातल पर गिरते हैं तो इन्हें हिमलव या हिमतूल (Snow Flakes) कहते हैं। इनका निर्माण हिम क्रिस्टलों के जुड़ने से होता है।

सहिम वृष्टि या कारकापात-जमाव बिन्दु के तापमान के साथ जब वायु की एक परत सतह के नजदीक आधी जमी हुई परत पर गिरती है तब सहिम वृष्टि (Sleet) होती है। दूसरे शब्दों में इस प्रकार की वर्षा में जल की बूंदें और हिमकण साथ-साथ बरसती हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायु की आर्द्रता से क्या अभिप्राय है? निरपेक्ष और सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वायु की आर्द्रता (Humidity of Wind) वायु में उपस्थित जलवाष्प को वायु की आर्द्रता कहते हैं। वायु में आर्द्रता वाष्पीकरण द्वारा प्राप्त होती है। समुद्रों, झीलों, नदियों, तालाबों तथा अन्य जलाशयों से सदा जल का वाष्पीकरण होता रहता है। वाष्पीकरण द्वारा जितना भी जल वाष्पीय अवस्था में वायुमण्डल में प्रवेश करता है वह वायुमण्डल में आर्द्रता उत्पन्न करता है। वायुमण्डल में औसत आर्द्रता 2% होती है यद्यपि यह लगभग शून्य से 4% तक पायी जा सकती है।

वायु की जलवाष्प को शोषित करने की एक निश्चित सीमा होती है। यह सीमा तापमान के बढ़ने पर बढ़ जाती है। किसी निश्चित तापमान पर एक घन मीटर वायु कितने जलवाष्प की मात्रा का शोषण कर सकती है उसे वायु की वाष्प शोषण करने की क्षमता कहते हैं। जब वायु अपनी पूरी क्षमता जितना जलवाष्प अपने अन्दर शोषित कर ले तो वह संतृप्त वायु (Saturated Air) कहलाती है। इससे अधिक जलवाष्प की उपस्थिति में संघनन (Condensation) होना आरम्भ हो जाता है। एक घन मीटर वायु द्वारा विभिन्न तापमानों पर अधिकतम जलवाष्प को सम्भालने की क्षमता को निम्नलिखित तालिका से ज्ञात किया जा सकता है-

निरपेक्ष आर्द्रतातापमानसापेक्ष आर्द्रता
10 ग्रा० प्रति घन मीटर15°15%
10 ग्रा० प्रति घन मीटर10°62.5%
16. ग्रा० प्रति घन मीटर15°80%

1. निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity)-वायु के किसी आयतन में निश्चित समय पर उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे प्रायः ग्रेन प्रति घन फुट अथवा ग्राम प्रति घन मीटर में प्रकट किया जाता है। उदाहरणतः यदि किसी समय एक घन मीटर में 15 ग्राम जलवाष्प है तो निरपेक्ष आर्द्रता 15 ग्राम प्रति घन मीटर होगी। यह वाष्पीकरण की मात्रा पर निर्भर टर होगी। यह वाष्पीकरण की मात्रा पर निर्भर करती है। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर निरपेक्ष आर्द्रता घटती जाती है। इसी प्रकार समुद्र से दूरी बढ़ने पर भी निरपेक्ष आर्द्रता घटती है।

2. सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity)-किसी निश्चित तापमान पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी तापमान पर उसी वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जलवाष्प की मात्रा के अनुपात को सापेक्ष (आपेक्षिक) आर्द्रता (Relative Humidity) कहते हैं। इसको प्रतिशत में प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 2.
संघनन किसे कहते हैं? संघनन के विभिन्न रूपों के नाम बताते हुए किसी एक का वर्णन करें। अथवा बादल के विभिन्न रूपों का वर्णन करें।
उत्तर:
संघनन का अर्थ (Meaning of Condensation)-जिस क्रिया द्वारा वायु में उपस्थित जलवाष्प गैस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित होता है, उसे संघनन कहते हैं। (Change of water vapour into water is called condensation)। वाय होने से जलवाष्प की शोषण करने की क्षमता कम हो जाती है। अतः तापमान कम हो जाने पर वायु में पहले से ही उपस्थित जलवाष्प की मात्रा से वायु संतृप्त हो जाती है। जिस तापमान पर वायु संतृप्त हो जाती है उसे ओसांक (Dew Point) कहते हैं। वायुमण्डल में सूक्ष्म धूल के कण, धुआँ तथा समुद्री नमक के महीन कण संघनन के केन्द्र होते हैं इन्हें संघनन केन्द्रक कहा जाता है। इन्हीं के द्वारा संघनन की प्रक्रिया होती है। संघनन की प्रक्रिया के लिए निम्नलिखित तत्त्व उत्तरदायी हैं

  • जब तापमान में कमी आ जाती है तो वह ओसांक बिन्दु तक पहुँच जाता है।
  • जब वायु की आर्द्रता धारण करने की क्षमता घटकर विद्यमान आर्द्रता की मात्रा से कम हो जाए।
  • जब वाष्पीकरण द्वारा वायु में आता की मात्रा में अतिरिक्त वृद्धि हो जाए।

संघनन के रूप (Forms of Condensation)-संघनन द्वारा निम्नलिखित स्वरूप विकसित होते हैं-

  • ओस
  • तुषार या पाला
  • कुहासा एवं कोहरा
  • बादल या मेघ

बादल या मेघ (Clouds)-वायुमण्डल में ऊँचाई पर जलकणों या हिमकणों के जमाव एवं संघनन को बादल कहते हैं। मेघों का निर्माण वायु के ऊपर उठने वाली वायु के ठण्डा होने से होता है। मेघ कोहरे का बड़ा रूप है जो वायुमण्डल में वायु के रुद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा उसका तापमान ओसांक बिन्दु से नीचे आने से बनते हैं। बादलों की आकृति उनकी निर्माण प्रक्रिया पर आधारित है, लेकिन उनकी ऊँचाई, आकृति, रंग, घनत्व तथा प्रकाश के परावर्तन के आधार पर बादलों को निम्नलिखित चार रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. पक्षाभ बादल (Cirrus Clouds) इस प्रकार के बादल आकाश में सबसे अधिक ऊँचाई पर रेशों की भाँति दिखाई देते हैं। ये सफेद रुई के समान बिखरे होते हैं। इनमें से सूर्य की किरणें आसानी से पार हो जाती हैं। जब ये बादल आकाश में झुण्ड के रूप में एकत्रित हो जाते हैं तो चक्रवात के आने की सम्भावना होती है।

2. कपासी बादल (Cumulus Clouds) कपास के ढेर के समान फैले हुए बादलों को कपासी बादल कहते हैं। कभी-कभी ये बादल लहरदार आकृति में भी देखने को मिलते हैं। इनकी ऊँचाई भी पक्षाभ बादलों के समान अधिक होती है। ये चपटे आधार वाले होते हैं।

3. स्तरी बादल (Startus Clouds)-दो विपरीत स्वभाव वाली पवनों के आपस में मिलने से इस प्रकार के बादलों का निर्माण होता है। ये आकाश में चादर की भाँति 2 कि०मी० की ऊँचाई तक फैले होते हैं। इनका निर्माण शीतोष्ण कटिबन्ध में शीत ऋतु में होता है।

4. वर्षा बादल (Nimbus Clouds) ये काले तथा घने रूप में कम ऊँचाई पर फैले होते हैं। इनसे पर्याप्त वर्षा होती है और वर्षा से पूर्व घने रूप में ये काली छटा के रूप में आकाश में फैल जाते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

प्रश्न 3.
वर्षा के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्षा के तीन प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

  • संवहनीय वर्षा
  • पर्वतीय वर्षा
  • चक्रवातीय वर्षा।

1. संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall) धरातल पर सूर्यातप के कारण वायु गर्म एवं हल्की होकर वायुमण्डल में उठती है और ऊपर जाकर फैलती है। फैलने से वायु के ठण्डी होने से उसका संघनन आरम्भ हो जाता है जिसके फलस्वरूप वर्षा होती है, इसे संवहनीय वर्षा कहते हैं। वायु के गर्म होकर ऊपर उठने से वायुमण्डल में संवहनीय धाराएँ चलने लगती हैं, इसलिए इसे संवहनीय वर्षा कहते हैं। विषुवतीय प्रदेशों में प्रतिदिन सुबह के समय धरातल गर्म होने से हवाएँ गर्म एवं हल्की होकर ऊपर उठती हैं, जिससे संवहनिक धाराएँ चला करती हैं और प्रतिदिन दोपहर बाद वर्षा होती है। भूमध्य रेखीय प्रदेशों में तापक्रम एवं आर्द्रता की अधिकता के कारण प्रत्येक दिन इस प्रकार की वर्षा होती है।

2 पर्वत-कृत वर्षा अथवा पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall) जब गर्म वायु किसी समुद्री भाग के ऊपर से गुजरती है तो उसकी आर्द्रता ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है और वह पर्याप्त आर्द्रता के साथ आगे बढ़ती है। जब उसके मार्ग में कोई पर्वत श्रेणी अथवा पर्वत चोटी आ जाती है, तो वह गर्म तथा आर्द्र हवा पर्वत के सहारे ऊपर चढ़ती है और ऊँचाई पर संघनन के कारण पर्वताभिमुखी ढाल पर (Windward Slope) पर्याप्त वर्षा करती है, लेकिन जैसे-जैसे ये हवाएँ पर्वत शिखर को पार करके पवनविमुखी ढाल की ओर उतरती हैं तो उनकी आर्द्रता समाप्त हो जाती है और ये शुष्क हो जाती हैं, इसलिए वर्षा नहीं करतीं। अतः दूसरी ओर का ढाल (पवनविमुखी) (Leeward Slope) वृष्टि छाया प्रदेश में आ जाता है। अरब सागर से वाष्प भरी हवाएँ मुम्बई में अधिक वर्षा करती हैं, लेकिन महाबलेश्वर पर्वत को पार करने के बाद उनकी आर्द्रता कम हो जाती है, इसलिए पुणे में मुम्बई की अपेक्षा बहुत कम वर्षा होती है।

3. चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic Rainfall)-दो विपरीत स्वभाव वाली वायुराशियों के अभिसरण (Convergence) के कारण चक्रवाती वर्षा होती है। मध्य अक्षांशों (शीतोष्ण कटिबन्धों) में जब उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों से गर्म एवं आर्द्र हवाएँ और ध्रुवीय क्षेत्रों की ठण्डी एवं भारी हवाएँ आती हैं तो गर्म तथा उष्ण हवाएँ हल्की होने के कारण शीतल एवं भारी हवाओं के ऊपर चली जाती हैं तथा वायुमण्डल में ऊँचाई पर जाने से संघनन द्वारा वर्षा करती हैं, उसे चक्रवातीय वर्षा कहते हैं। शीत ऋतु में उत्तरी-पश्चिमी भारत में इस प्रकार की वर्षा होती है।

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

HBSE 12th Class History औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभालकर क्यों रखे जाते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में प्रत्येक कार्यालय के अपने ‘रिकॉर्डस रूम’ थे जिनमें रिकॉर्डस को सुरक्षित रखा जाता था। इसके निम्नलिखित कारण थे

(1) भारत में ब्रिटिश सत्ता मुख्यतया आँकड़ों और जानकारियों के संग्रह पर आधारित थी। उसका लक्ष्य भारत के संसाधनों को निरंतर दोहन करते हुए मुनाफा बटोरना था। इसके लिए वह अपने राजनीतिक नियंत्रण को सुदृढ़ रखना चाहती थी। ये दोनों काम बिना पर्याप्त जानकारियों के संभव नहीं थे।

(2) आंकड़ों का सर्वाधिक महत्त्व उनके लिए वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए था। कंपनी सरकार द्वारा वस्तुओं, संसाधनों व व्यापार की संभावनाओं संबंधी आकलन व ब्यौरे तैयार करवाए जाते थे। कंपनी कार्यालयों में आयात-निर्यात संबंधी विवरण रखे जाते थे।

(3) शहरों की प्रशासनिक व्यवस्था की दृष्टि से शहरी जनसंख्या के उतार-चढ़ाव की जानकारी महत्त्वपूर्ण थी। उदाहरण के लिए, सड़क निर्माण, यातायात तथा साफ-सफाई इत्यादि के बारे में निर्णय लेने के लिए विविध जानकारियाँ आवश्यक थीं। अतः सांख्यिकी आँकड़े एकत्रित कर उन्हें सरकारी रिपोर्टों में प्रकाशित किया जाता था।

प्रश्न 2.
औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणना संबंधी आंकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं?
उत्तर:
जनगणना के आँकड़े शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इनमें लोगों के व्यवसायों की जानकारी तथा उनके लिंग, आयु व जाति संबंधी सूचनाएँ मिलती हैं। ये जानकारियाँ आर्थिक और सामाजिक स्थिति को समझने के लिए काफी उपयोगी हैं। ध्यान रहे कई बार आँकड़ों के इस भारी-भरकम भंडार से सटीकता का भ्रम हो सकता है।

यह जानकारी बिल्कुल सटीक नहीं होती। इन आँकड़ों के पीछे भी संभावित पूर्वाग्रह हो सकते हैं। जैसे कि बहुत-से लोग अपने परिवार की महिलाओं की जानकारी छुपा लेते थे। ऐसे लोगों को किसी श्रेणी विशेष में रखना मुश्किल हो जाता था। वे दो तरह के काम करते थे। उदाहरण के लिए जो खेती भी करता हो और व्यापारी भी हो। ऐसे लोगों को सुविधानुसार ही किसी श्रेणी में रख लिया जाता था।

अपनी इन सीमाओं के बावजूद भी शहरीकरण के रुझानों को समझने में पहले के शहरों की तुलना में ये आँकड़े अधिक महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं। उदाहरण के लिए 1900 से 1940 तक की जनगणनाओं से पता चलता है कि इस अवधि में कुल आबादी का 13 प्रतिशत से भी कम हिस्सा शहरों में रहता था। स्पष्ट है कि औपनिवेशिक काल में शहरीकरण अत्यधिक धीमा और लगभग स्थिर जैसा ही रहा।

प्रश्न 3.
“व्हाइट” और “ब्लैक” टाउन शब्दों का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
‘व्हाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन शब्द नगर संरचना में नस्ली भेदभाव का प्रतीक थे। अंग्रेज़ गोरे लोग दुर्गों के अंदर बनी बस्तियों में रहते थे, जबकि भारतीय व्यापारी, कारीगर और मज़दूर इन किलों से बाहर बनी अलग बस्तियों में रहते थे। दुर्ग के भीतर रहने का आधार रंग और धर्म था। अलग रहने की यह नीति शुरू से ही अपनाई गई थी। अंग्रेज़ों और भारतीयों के लिए अलग-अलग मकान (क्वार्टस) बनाए गए थे।

सरकारी रिकॉर्डस में भारतीयों की बस्ती को ‘ब्लैक टाउन’ (काला शहर) तथा अंग्रेज़ों की बस्ती को ‘व्हाइट टाउन’ यानी गोरा शहर बताया गया है। इस प्रकार नए शहरों की संरचना में नस्ल आधारित भेदभाव शुरू से ही दिखता है। यह उस समय और भी तीखा हो गया जब अंग्रेज़ों का राजनीतिक नियंत्रण स्थापित हो गया। ‘व्हाइट टाउन’ प्रशासकीय और न्यायिक व्यवस्था का केंद्र भी था।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

प्रश्न 4.
प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया?
उत्तर:
18वीं सदी से पहले ही बहुत-से भारतीय व्यापारी यूरोपीय कंपनियों के सहायक के तौर पर काम करते आ रहे थे। उनमें से बहुत सारे दुभाषिए थे, यानि अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषा जानते थे। वे अंग्रेज़ों और भारतीयों के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाते थे। साथ में ये एजेंट या व्यापारी का काम भी करते थे। वे निर्यात होने वाली वस्तुओं के संग्रह में सहायक थे। इन सहायक व्यापारिक गतिविधियों में काम करते हुए कुछ भारतीय व्यापारियों ने काफी धन एकत्रित कर लिया था। 19वीं सदी के मध्य से तो

इन धनी व्यापारियों में से कुछ उद्यमी बनने लगे थे, अर्थात् उन्होंने उद्योग लगाने शुरू किए। उदाहरण के लिए, 1853 ई० में बंबई के कावसजी नाना ने भारतीय पूँजी से पहली कपड़ा मिल लगाई, लेकिन इन उभरते हुए भारतीय उद्योगपतियों को सरकार की पक्षपातपूर्ण नीति से काफी बाधा पहुँची। यह वर्ग अपनी हैसियत को ऊँचा दिखाने के लिए पश्चिमी जीवन-शैली का अनुसरण करने लगा। यह विभिन्न त्योहारों के अवसरों पर रंगीन दावतों का आयोजन करने लगा ताकि अपने स्वामी अंग्रेज़ों को प्रभावित कर सकें। यह अपने देशवासियों को भी अपनी हैसियत का परिचय करवाना चाहता था। इस उद्देश्य से इस वर्ग के लोगों ने बड़े-बड़े मंदिरों का निर्माण करवाया।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्त्व किस हद तक घुल-मिल गए थे? [2017, 2019 (Set-D)]
उत्तर:
मद्रास शहर का विकास अंग्रेज़ शासकों की जरूरतों और सुविधाओं के अनुरूप किया गया था। ‘व्हाइट टाउन’ तो था ही गोरे लोगों के लिए। ‘ब्लैक टाउन’ में भारतीय रहते थे। शहर के इस भाग में बहुत-से लोग नौकरी, व्यवसाय और मजदूरी के लिए आकर बसते रहे। इस प्रकार लंबे समय तक शहर में रहते रहे और ग्रामीण और शहरी तत्त्वों का मिश्रण होता रहा। उदाहरण के लिए

  1. ‘वेल्लार’ एक स्थानीय ग्रामीण जाति थी। कंपनी की नौकरियाँ पाने वालों में ये लोग अग्रणी रहे। इन्होंने मद्रास में नए अवसरों का काफी लाभ उठाया।
  2. तेलुगू कोमाटी समुदाय ने मद्रास में व्यावसायिक सफलता प्राप्त की। धीरे-धीरे इन्होंने अनाज के व्यापार पर नियंत्रण कर लिया।
  3. पेरियार और वन्नियार समुदाय शहर में मजदूरी का कार्य करने लगे थे।

धीरे-धीरे ऐसे बहुत-से समुदायों की बस्तियाँ मद्रास शहर का भाग बन गईं। साथ ही बहुत-से गाँवों को मिलाने के कारण मद्रास शहर दूर-दूर तक फैल गया। आस-पास के गाँव नए उप-शहरों में बदल गए। इस प्रकार शहर फैलता चला गया और मद्रास एक अर्ध-ग्रामीण शहर जैसा हो गया।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ?
उत्तर:
18वीं सदी के शहर नए (New) थे। 16वीं व 17वीं सदी के शहरों की तुलना में इन शहरों की भौतिक संरचना और सामाजिक जीवन भिन्न था। ये अंग्रेज़ों की वाणिज्यिक संस्कृति को प्रदर्शित कर रहे थे। नए शहरों में मद्रास, कलकत्ता और बम्बई सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थे। इनका विकास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों के चलते बंदरगाहों और संग्रह केंद्रों के रूप में हुआ। 18वीं सदी के अंत तक पहुँचते-पहुँचते ये बड़े नगरों के तौर पर उभर चुके थे। इनमें आकर बसने वाले अधिकांश भारतीय अंग्रेज़ों की वाणिज्यिक गतिविधियों में सहायक के तौर पर काम करने वाले थे। अंग्रेज़ों ने अपने ‘कारखाने’ यानी वाणिज्यिक कार्यालय इन शहरों में स्थापित किए हुए थे।

इनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इनकी किलेबंदी करवाई। मद्रास में फोर्ट सेंट जॉर्ज, कलकत्ता में फोर्ट विलियम और इसी प्रकार बम्बई में भी दुर्ग बनवाया गया। इन किलों में वाणिज्यिक कार्यालय थे तथा ब्रिटिश लोगों के रहने के लिए निवास थे। सरकारी रिकॉर्डस में भारतीयों की बस्ती को ‘ब्लैक टाउन’ (काला शहर) तथा अंग्रेज़ों की बस्ती को ‘व्हाइट टाउन’ यानी गोरा शहर बताया गया है। इस प्रकार नए शहरों की संरचना में नस्ल आधारित भेदभाव शरू से ही दिखाई पडता है।

प्रश्न 7.
औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान कौन से थे? उनके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
नए शहर अंग्रेज़ शासकों की वाणिज्यिक संस्कृति को प्रतिबिंबित करते थे। कहने का अभिप्राय यह है कि जो नए सार्वजनिक स्थान विकसित हुए वो मुख्यतया नए शासकों की जरूरत के अनुरूप थे। मुख्य नए सार्वजनिक स्थान व उनके उद्देश्य इस प्रकार हैं

  1. नदी और समुद्र के किनारे गोदियों (Docks) व घाटों का विकास हुआ। इनका उद्देश्य ब्रिटिश व्यापारिक गतिविधियों का विस्तार करना था।
  2. ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों के लिए वाणिज्यिक कार्यालय और गोदाम बनाए।
  3. व्यापार से जुड़ी अन्य संस्थाओं में यातायात डिपो व बैंकिंग संस्थानों का विकास हुआ। जहाजरानी उद्योग के लिए बीमा एजेंसियाँ बनीं।
  4. प्रशासकीय कार्यालयों की स्थापना हुई। कलकत्ता में ‘राइटर्स बिल्डिंग’ इसका एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।

पुस्तक के प्रश्न

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्स सँभालकर क्यों रखे जाते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में प्रत्येक कार्यालय के अपने रिकॉर्डस रूम’ थे जिनमें रिकॉर्डस को सुरक्षित रखा जाता था। इसके निम्नलिखित कारण थे

(1) भारत में ब्रिटिश सत्ता मुख्यतया आँकड़ों और जानकारियों के संग्रह पर आधारित थी। उसका लक्ष्य भारत के संसाधनों को निरंतर दोहन करते हुए मुनाफा बटोरना था। इसके लिए वह अपने राजनीतिक नियंत्रण को सुदृढ़ रखना चाहती थी। ये दोनों काम बिना पर्याप्त जानकारियों के संभव नहीं थे।

(2) आंकड़ों का सर्वाधिक महत्त्व उनके लिए वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए था। कंपनी सरकार द्वारा वस्तुओं, संसाधनों व व्यापार की संभावनाओं संबंधी आकलन व ब्यौरे तैयार करवाए जाते थे। कंपनी कार्यालयों में आयात-निर्यात संबंधी विवरण रखे जाते थे।

(3) शहरों की प्रशासनिक व्यवस्था की दृष्टि से शहरी जनसंख्या के उतार-चढ़ाव की जानकारी महत्त्वपूर्ण थी। उदाहरण के लिए, सड़क निर्माण, यातायात तथा साफ-सफाई इत्यादि के बारे में निर्णय लेने के लिए विविध जानकारियाँ आवश्यक थीं। अतः सांख्यिकी आँकड़े एकत्रित कर उन्हें सरकारी रिपोर्टों में प्रकाशित किया जाता था।

प्रश्न 2.
औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणना संबंधी आंकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं?
उत्तर:
जनगणना के आँकड़े शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इनमें लोगों के व्यवसायों की जानकारी तथा उनके लिंग, आयु व जाति संबंधी सूचनाएँ मिलती हैं। ये जानकारियाँ आर्थिक और सामाजिक स्थिति को समझने के लिए काफी उपयोगी हैं। ध्यान रहे कई बार आँकड़ों के इस भारी-भरकम भंडार से सटीकता का भ्रम हो सकता है। यह जानकारी बिल्कुल सटीक नहीं होती।

इन आँकड़ों के पीछे भी संभावित पूर्वाग्रह हो सकते हैं। जैसे कि बहुत-से लोग अपने परिवार की महिलाओं की जानकारी छुपा लेते थे। ऐसे लोगों को किसी श्रेणी विशेष में रखना मुश्किल हो जाता था। वे दो तरह के काम करते थे। उदाहरण के लिए जो खेती भी करता हो और व्यापारी भी हो। ऐसे लोगों को सुविधानुसार ही किसी श्रेणी में रख लिया जाता था।

अपनी इन सीमाओं के बावजूद भी शहरीकरण के रुझानों को समझने में पहले के शहरों की तुलना में ये आँकड़े अधिक महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं। उदाहरण के लिए 1900 से 1940 तक की जनगणनाओं से पता चलता है कि इस अवधि में कुल आबादी का 13 प्रतिशत से भी कम हिस्सा शहरों में रहता था। स्पष्ट है कि औपनिवेशिक काल में शहरीकरण अत्यधिक धीमा और लगभग स्थिर जैसा ही रहा।

प्रश्न 3.
“व्हाइट” और “ब्लैक” टाउन शब्दों का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
‘व्हाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन शब्द नगर संरचना में नस्ली भेदभाव का प्रतीक थे। अंग्रेज़ गोरे लोग दुर्गों के अंदर बनी बस्तियों में रहते थे, जबकि भारतीय व्यापारी, कारीगर और मज़दूर इन किलों से बाहर बनी अलग बस्तियों में रहते थे। दुर्ग के भीतर रहने का आधार रंग और धर्म था। अलग रहने की यह नीति शुरू से ही अपनाई गई थी। अंग्रेज़ों और भारतीयों के लिए अलग-अलग मकान (क्वार्टस) बनाए गए थे। सरकारी रिकॉर्डस में भारतीयों की बस्ती को ‘ब्लैक टाउन’ (काला शहर) तथा अंग्रेज़ों की बस्ती को ‘व्हाइट टाउन’ यानी गोरा शहर बताया गया है। इस प्रकार नए शहरों की संरचना में नस्ल आधारित भेदभाव शुरू से ही दिखता है। यह उस समय और भी तीखा हो गया जब अंग्रेज़ों का राजनीतिक नियंत्रण स्थापित हो गया। ‘व्हाइट टाउन’ प्रशासकीय और न्यायिक व्यवस्था का केंद्र भी था।

प्रश्न 4.
प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया?
उत्तर:
18वीं सदी से पहले ही बहुत-से भारतीय व्यापारी यूरोपीय कंपनियों के सहायक के तौर पर काम करते आ रहे थे। उनमें से बहुत सारे दुभाषिए थे, यानि अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषा जानते थे। वे अंग्रेज़ों और भारतीयों के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाते थे। साथ में ये एजेंट या व्यापारी का काम भी करते थे। वे निर्यात होने वाली वस्तुओं के संग्रह में सहायक थे। इन सहायक व्यापारिक गतिविधियों में काम करते हुए कुछ भारतीय व्यापारियों ने काफी धन एकत्रित कर लिया था।

19वीं सदी के मध्य से तो इन धनी व्यापारियों में से कुछ उद्यमी बनने लगे थे, अर्थात् उन्होंने उद्योग लगाने शुरू किए। उदाहरण के लिए, 1853 ई० में बंबई के कावसजी नाना ने भारतीय पूँजी से पहली कपड़ा मिल लगाई, लेकिन इन उभरते हुए भारतीय उद्योगपतियों को सरकार की पक्षपातपूर्ण नीति से काफी बाधा पहुंची।

यह वर्ग अपनी हैसियत को ऊँचा दिखाने के लिए पश्चिमी जीवन-शैली का अनुसरण करने लगा। यह विभिन्न त्योहारों के अवसरों पर रंगीन दावतों का आयोजन करने लगा ताकि अपने स्वामी अंग्रेजों को प्रभावित कर सकें। यह अपने देशवासियों को भी अपनी हैसियत का परिचय करवाना चाहता था। इस उद्देश्य से इस वर्ग के लोगों ने बड़े-बड़े मंदिरों का निर्माण करवाया।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्त्व किस हद तक घुल-मिल गए थे?
उत्तर:
मद्रास शहर का विकास अंग्रेज़ शासकों की जरूरतों और सुविधाओं के अनुरूप किया गया था। ‘व्हाइट टाउन’ तो था ही गोरे लोगों के लिए। ‘ब्लैक टाउन’ में भारतीय रहते थे। शहर के इस भाग में बहुत-से लोग नौकरी, व्यवसाय और मजदूरी के लिए आकर बसते रहे। इस प्रकार लंबे समय तक शहर में रहते रहे और ग्रामीण और शहरी तत्त्वों का मिश्रण होता रहा। उदाहरण के लिए
(1) ‘वेल्लार’ एक स्थानीय ग्रामीण जाति थी। कंपनी की नौकरियाँ पाने वालों में ये लोग अग्रणी रहे। इन्होंने मद्रास में नए अवसरों का काफी लाभ उठाया।

(2) तेलुगू कोमाटी समुदाय ने मद्रास में व्यावसायिक सफलता प्राप्त की। धीरे-धीरे इन्होंने अनाज के व्यापार पर नियंत्रण कर लिया।

(3) पेरियार और वन्नियार समुदाय शहर में मजदूरी का कार्य करने लगे थे। धीरे-धीरे ऐसे बहुत-से समुदायों की बस्तियाँ मद्रास शहर का भाग बन गईं। साथ ही बहुत-से गाँवों को मिलाने के कारण मद्रास शहर दूर-दूर तक फैल गया। आस-पास के गाँव नए उप-शहरों में बदल गए। इस प्रकार शहर फैलता चला गया और मद्रास एक अर्ध-ग्रामीण शहर जैसा हो गया।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ?
उत्तर:
18वीं सदी के शहर नए (New) थे। 16वीं व 17वीं सदी के शहरों की तुलना में इन शहरों की भौतिक संरचना और सामाजिक जीवन भिन्न था। ये अंग्रेज़ों की वाणिज्यिक संस्कृति को प्रदर्शित कर रहे थे। नए शहरों में मद्रास, कलकत्ता और बम्बई सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थे। इनका विकास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों के चलते बंदरगाहों और संग्रह केंद्रों के रूप में हुआ।

18वीं सदी के अंत तक पहुँचते-पहुँचते ये बड़े नगरों के तौर पर उभर चुके थे। इनमें आकर बसने वाले अधिकांश भारतीय अंग्रेजों की वाणिज्यिक गतिविधियों में सहायक के तौर पर काम करने वाले थे। अंग्रेज़ों ने अपने ‘कारखाने’ यानी वाणिज्यिक कार्यालय इन शहरों में स्थापित किए हुए थे।

इनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इनकी किलेबंदी करवाई। मद्रास में फोर्ट सेंट जॉर्ज, कलकत्ता में फोर्ट विलियम और इसी प्रकार बम्बई में भी दुर्ग बनवाया गया। इन किलों में वाणिज्यिक कार्यालय थे तथा ब्रिटिश लोगों के रहने के लिए निवास थे। सरकारी रिकॉर्डस में भारतीयों की बस्ती को ‘ब्लैक टाउन’ (काला शहर) तथा अंग्रेज़ों की बस्ती को ‘व्हाइट टाउन’ यानी गोरा शहर बताया गया है। इस प्रकार नए शहरों की संरचना में नस्ल आधारित भेदभाव शुरू से ही दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 7.
औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान कौन से थे? उनके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
नए शहर अंग्रेज़ शासकों की वाणिज्यिक संस्कृति को प्रतिबिंबित करते थे। कहने का अभिप्राय यह है कि जो नए सार्वजनिक स्थान विकसित हुए वो मुख्यतया नए शासकों की जरूरत के अनुरूप थे।
मुख्य नए सार्वजनिक स्थान व उनके उद्देश्य इस प्रकार हैं

  • नदी और समुद्र के किनारे गोदियों (Docks) व घाटों का विकास हुआ। इनका उद्देश्य ब्रिटिश व्यापारिक गतिविधियों का विस्तार करना था।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों के लिए वाणिज्यिक कार्यालय और गोदाम बनाए।
  • व्यापार से जुड़ी अन्य संस्थाओं में यातायात डिपो व बैंकिंग संस्थानों का विकास हुआ। जहाजरानी उद्योग के लिए बीमा एजेंसियाँ बनीं।
  • प्रशासकीय कार्यालयों की स्थापना हुई। कलकत्ता में ‘राइटर्स बिल्डिंग’ इसका एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
  • पाश्चात्य शिक्षा के लिए अंग्रेज़ी-शिक्षण संस्थान खोले गए। ईसाई लोगों के लिए एंग्लिकन चर्च बनाए गए।
  • रेलवे के विस्तार के साथ बड़े-बड़े रेलवे-जंक्शन बनाए गए।
  • 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में बड़े शहरों में नगर निगम तथा अन्य शहरों में नगरपालिकाओं का गठन किया गया। इनका उद्देश्य शहर में सफाई, जल-आपूर्ति तथा चिकित्सा इत्यादि का प्रबंध करना था।

प्रश्न 8.
उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ कौन सी थीं?
उत्तर:
19वीं सदी के प्रारंभ से ही नगर-नियोजन की चिंता अंग्रेज़ प्रशासकों को सताने लगी थी। 1857 ई० के विद्रोह के बाद यह चिंता और भी गहरा गई। हैजा और प्लेग जैसी महामारियों के फैलने से वे और भी चिंतित हो उठे थे। सबसे पहले इस ओर ध्यान लॉर्ड वेलेज्ली ने दिया। 1803 में उसका प्रशासकीय आदेश ‘जन-स्वास्थ्य’ व नगर नियोजन में एक प्रमुख विचार बन गया था। प्रश्न यह उठता है कि आखिर क्यों उन्होंने नगर को व्यवस्थित करने पर जोर दिया? जबकि काफी समय तक उन्होंने शहर में भारतीयों की बस्तियों में सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं दिया था। अंग्रेज़ अधिकारियों की नगर को नियोजित करने के पीछे निम्नलिखित चिंताएँ थीं

1. प्रशासकीय नियंत्रण उन्होंने यह महसूस किया कि शहरी जीवन के सभी आयामों पर नियंत्रण के लिए स्थायी व सार्वजनिक नियम बनाना जरूरी है। साथ ही सड़कों व इमारतों के निर्माण के लिए मानक नियमों का होना भी जरूरी है।

2. सुरक्षा-किलों के बाहर उन्होंने विशेषतौर पर खुला मैदान रखा ताकि आक्रमण होने की स्थिति में सीधी गोलीबारी की जा सके। कलकत्ता के किले के बाहर ऐसे मैदान आज भी मौजूद हैं।

3. सुरक्षित आश्रयस्थल-सन् 1857 के विद्रोह के बाद औपनिवेशिक शहरों के नियोजन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। आतंकित अधिकारी वर्ग ने भविष्य में विद्रोह की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए ‘देशियों’ यानी भारतीयों से अलग ‘सिविल लाइंस’ में रहने की नीति अपनाई।

4. स्वास्थ्य की चिंता–प्लेग व हैजा जैसी महामारियों के प्रसार के डर से नगर-नियोजन की जरूरत और भी महत्त्वपूर्ण होती गई। वे इस बात से परेशान हो उठे कि भीड़-भाड़ वाली भारतीय बस्तियों में गंदगी व दूषित पानी से बीमारियाँ फैल रही हैं। इस विचार से इन बस्तियों में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ गया।

5. सत्ता की ताकत का प्रदर्शन-व्यवस्थित नगरों के माध्यम से अंग्रेज़ अपनी साम्राज्यवादी ताकत का प्रदर्शन करना चाहते थे। इसलिए विशेषतौर पर पहले उन्होंने कलकत्ता, बंबई और मद्रास को नियोजित राजधानियाँ बनाया। फिर दिल्ली को ‘नई दिल्ली’ के रूप में विकसित किया।

प्रश्न 9.
नए शहरों में सामाजिक संबंध किस हद तक बदल गए?
उत्तर:
नए शहरों का सामाजिक संबंध पहले के शहरों से बहुत कुछ अलग था। इसमें जिन्दगी की गति बहुत तेज़ थी। नए सामाजिक वर्ग व संबंध उभर चुके थे। मुख्य परिवर्तन इस प्रकार थे

(1) नए शहर मध्य वर्ग के केन्द्र बन चुके थे। इस वर्ग में शिक्षक, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, क्लर्क तथा अकाउंटेंट्स इत्यादि थे। यह वर्ग एक नया सामाजिक समूह था जिसके लिए पुरानी पहचान अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं रही थी। इन नए शहरों में पुराने शहरों वाला परस्पर मिलने-जुलने का अहसास खत्म हो चुका था, लेकिन साथ ही मिलने-जुलने के नए स्थल; जैसे कि सार्वजनिक पार्क, टाउन हॉल, रंगशाला और 20वीं सदी में सिनेमा हॉल इत्यादि बन चुके थे।

(2) नए शहरों में नए अर्थतंत्र के विकास से औरतों के लिए नए अवसर उत्पन्न हुए। फलतः सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ने लगी। वे घरों में नौकरानी, फैक्टरी में मजदूर, शिक्षिका, रंग-कर्मी तथा फिल्मों में कार्य करती हुई दिखाई देने लगीं। उल्लेखनीय है कि सार्वजनिक स्थानों पर कामकाज करने वाली महिलाओं को लंबे समय तक सम्मानित दृष्टि से नहीं देखा गया, क्योंकि रूढ़िवादी विचारों के लोग पुरानी परम्पराओं और व्यवस्था को बनाए रखने का समर्थन कर रहे थे। वे परिवर्तन के विरोधी थे।

(3) कामगार लोगों के लिए शहरी जीवन एक संघर्ष था। ये लोग इन नए शहरों की तड़क-भड़क से आकर्षित होकर या रोजी-रोटी की तलाश में आए। शहर में इनकी नौकरी स्थायी नहीं थी। वेतन कम था और खर्चे ज्यादा थे। इसलिए इनके परिवार गाँवों में रहते थे।

इस प्रकार कामगार लोगों का जीवन गरीबी से पीड़ित था। वे गाँव की संस्कृति से वंचित हो गए थे। शहरों में इन्होंने भी एक हद तक ‘एक शहरी संस्कृति’ रच ली थी। वे धार्मिक त्योहारों, मेलों, स्वांगों तथा तमाशों इत्यादि में भाग लेते थे। ऐसे अवसरों पर वे अपने यूरोपीय और भारतीय स्वामियों का मज़ाक उड़ाते थे।

परियोजना कार्य

प्रश्न 10.
पता लगाइए कि आपके कस्बे या गाँव में स्थानीय प्रशासन कौन-सी सेवाएँ प्रदान करता है। क्या जलापूर्ति, आवास, यातायात और स्वास्थ्य एवं स्वच्छता आदि सेवाएँ भी उनके हिस्से में आती हैं? इन सेवाओं के लिए संसाधनों की व्यवस्था कैसे की जाती है? नीतियाँ कैसे बनाई जाती हैं? क्या शहरी मज़दूरों या ग्रामीण इलाकों के खेतिहर मजदूरों के पास नीति-निर्धारण में हस्तक्षेप का अधिकार होता है? क्या उनसे राय ली जाती है? अपने निष्कर्षों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
संकेत

1. कस्बे, शहर और गाँव के प्रशासन को स्थानीय प्रशासन कहा जाता है।

2. स्थानीय प्रशासन, जलापूर्ति, आवास, यातायात, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता आदि बहुत-सी सेवाओं के लिए उत्तरदायी होता है-अब आपने देखना है कि व्यवहार में स्थिति क्या है? क्या स्वच्छता, सड़क व जलापूर्ति संतोषजनक हैं, बहुत ही बेहतर है या फिर असंतोषजनक।

3. शहर व गाँव से निकलने वाले कचरे व कूड़ा-करकट के लिए क्या व्यवस्था की गई है? खुले में फैंका जाता है, दबाया जाता है, जलाया जाता है या फिर कोई ‘प्लाट’ लगाकर खाद व अन्य उपयोगी वस्तुओं में बदला जाता है। पता लगाएँ।

4. इन सभी सुविधाओं के लिए धन की व्यवस्था कहाँ से होती है, अर्थात् प्रत्यक्ष कर कितना लगाया जाता है और राज्य व केंद्रीय सरकार से कितना अनुदान प्राप्त होता है। क्या विश्व बैंक भी इसमें सहायता कर रहा है-पता लगाएँ। यदि कर रहा है तो क्यों?

5. स्थानीय गरीब लोगों (मजदूर, खेत, मजदूर इत्यादि) का नीति निर्धारण में योगदान इस बात से पता लगाएँ कि गाँव या कस्बे के निकाय के लिए चुनाव होता है या नहीं। दूसरा अधिकारी वर्ग उनकी बात सुनता है या नहीं।

6. उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए अपने प्राध्यापक के निर्देशन में रिपोर्ट तैयार करें।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

प्रश्न 11.
अपने शहर या गाँव में पाँच तरह की इमारतों को चुनिए। प्रत्येक के बारे में पता लगाइए कि उन्हें कब बनाया गया, उनको बनाने का फैसला क्यों लिया गया, उनके लिए संसाधनों की व्यवस्था कैसे की गई, उनके निर्माण का जिम्मा किसने उठाया और उनके निर्माण में कितना समय लगा। उन इमारतों के स्थापत्य या वास्तु शैली संबंधी आयामों का वर्णन करिए और औपनिवेशिक स्थापत्य से उनकी समानताओं या भिन्नताओं को चिह्नित कीजिए।
उत्तर:
हर शहर व गाँव में सार्वजनिक भवन होते हैं जैसे कि, स्कूल, महाविद्यालय, पंचायतघर, शहर में टाउन हाल, नगरपालिका, अस्पताल, लाइब्रेरी इत्यादि।

  1. इनको बनाने में पंचायत, नगर निगम/पालिका यानी स्थानीय निकायों की भूमिका की जांच करें। सामान्य लोगों की राय किस प्रकार ऐसे निर्णयों का हिस्सा बनती है?
  2. धन के लिए क्या स्थानीय कर लगाया गया या राज्य व केंद्र में ‘ग्रांट’ मिली।
  3. इनमें ‘वास्तुशैली’ अथवा स्थापत्य शैली कौन-सी अपनाई गई है। सत्ता की झलक किस रूप में मिलती है-देखें। कौन-सी संस्कृति झलकती है।
  4. औपनिवेशिक स्थापत्य से यदि तुलना करोगे तो आप पाओगे कि नए स्थापत्य में स्वतंत्र भारत की झलक है।
  5. इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अपने प्राध्यापक के निर्देशन में रिपोर्ट तैयार करें।

औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य HBSE 12th Class History Notes

→ शहरीकरण-शहर का भौतिक व सांस्कृतिक विकास अर्थात शहरी संस्थाओं (प्रशासनिक व शैक्षणिक) का विकास; मध्य वर्ग का विकास; भौतिक संरचना का विस्तार व विकास; नए शहरी तत्त्वों विशेषतः आधुनिक दृष्टिकोण का विकास।

→ कस्बा-मुगलकालीन भारत में एक छोटा ‘ग्रामीण शहर’ जो सामान्यतया किसी विशिष्ट व्यक्ति का केंद्र होता था।

→ गंज-मुगलकालीन कस्बों में एक स्थायी छोटे बाजार को गंज कहा जाता था।

→ पेठ व पुरम-पेठ एक तमिल शब्द है जिसका अर्थ होता है बस्ती, जबकि पुरम शब्द गाँव के लिए प्रयोग किया जाता है।

→ बस्ती बस्ती (बंगला व हिंदी) का अर्थ मूल रूप में मोहल्ला अथवा बसावट हुआ करता था। परंतु अंग्रेज़ों ने इसका अर्थ संकुचित कर दिया तथा इसे गरीबों की कच्ची झोंपड़ियों के लिए प्रयोग करने लगे। 19वीं सदी में गंदी-झोंपड़ पट्टी को बस्ती कहा जाने लगा।

→ बंगलो (Bunglow)-अंग्रेज़ी भाषा का यह शब्द बंगाल के ‘बंगला’ शब्द से निकला है जो एक परंपरागत फँस की झोंपड़ी होती थी। अंग्रेज़ अधिकारियों ने अपने रहने के बड़े-बड़े घरों को बंगलों नाम देकर इसका अर्थ ही बदल दिया।

→ ढलवाँ छतें -ढलवाँ छतें (Pitched Roofs) स्लोपदार छतों को कहा गया। 20वीं सदी के शुरु से ही बंगलों में ढलवाँ छतों का चलन कम होने लगा था तथापि मकानों की सामान्य योजना में कोई बदलाव नहीं आया था।

→ सिविल लाइंस -पुराने शहर के साथ लगते खेत एवं चरागाह को साफ करके विकसित किए गए शहरी क्षेत्र को ‘सिविल लाइंस’ का नाम दिया गया। इनमें सुनियोजित तरीके से बड़े-बड़े बगीचे, बंगले, चर्च, सैनिक बैरकें और परेड मैदान आदि होते थे।

→ औद्योगिकीकरण यह शब्द औद्योगिक क्रांति की उस प्रक्रिया के लिए उपयोग में लाया गया है जिसमें विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार हुए, जिनमें लोहा, स्टील, कोयला एवं वस्त्र आदि सभी उद्योगों का स्वरूप बदल गया। वाष्प ऊर्जा – औद्योगिक क्रांति का मुख्य आधार थी। यह सबसे पहले इंग्लैंड (लगभग 1750 से 1850 के बीच) में हुई।

→ भारत में औपनिवेशिकरण के फलस्वरूप शहरों और उनके चरित्र में परिवर्तन हुए। नए शहरों का उदय हुआ। इनमें पश्चिम तट पर बम्बई व पूर्वी तट पर मद्रास और कलकत्ता तीन प्रमुख बन्दरगाह नगर विकसित हुए। ये तीनों कभी मछुआरों और दस्तकारों के गाँव मात्र थे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे 18वीं सदी के अंत तक भारत के सबसे बड़े शहर बन गए।

यहाँ इन तीनों शहरों का गहन अध्ययन किया गया है। औपनिवेशिक और वाणिज्यिक संस्कृति का प्रभुत्व नगरों की बसावट और इनके स्थापत्य में स्पष्ट तौर पर दिखाई दिया। इस दौरान बनी इमारतों में कई तरह की स्थापत्य शैलियाँ अपनाई गईं। नगर नियोजन और स्थापत्य शैलियों का अध्ययन करके औपनिवेशिक शहरों को समझने का प्रयास किया गया है।

→औपनिवेशिक शहर मुगलकालीन शहरों से बहुत भिन्न थे। 16वीं-17वीं सदी के मुगलकालीन शहरों की श्रेणी में कस्बे सबसे छोटे थे। इन्हें ‘ग्रामीण शहर’ भी कहा जाता था। एक छोटे शहर के रूप में ही ये गाँव से अलग होते थे। मुगल काल में कस्बा सामान्यतया किसी स्थानीय विशिष्ट व्यक्ति का केंद्र होता था। इसमें एक छोटा स्थायी बाज़ार होता था, जिसे गंज कहते थे। यह बाजार विशिष्ट परिवारों एवं सेना के लिए कपड़ा, फल, सब्जी तथा दूध इत्यादि सामग्री उपलब्ध करवाता था।

→ कस्बे की मुख्य विशेषता जनसंख्या नहीं थी बल्कि उसकी विशिष्ट आर्थिक व सांस्कृतिक गतिविधियाँ थीं। ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लोगों का जीवन-निर्वाह मुख्यतः कृषि, पशुपालन और वनोत्पादों पर निर्भर था। ग्रामीणों की आवश्यकताओं के अनुरूप गाँवों में साधारण स्तर की दस्तकारी थी।

→ दूसरी ओर, शहरी लोगों के आजीविका के साधन अलग थे। उनकी जीवन-शैली गाँव से अलग थी। शहरों में मुख्य तौर पर शासक, प्रशासक तथा शिल्पकार व व्यापारी रहते थे। शहरी शिल्पकार किसी विशिष्ट कला में निपुण होते थे, क्योंकि वे प्रायः अपनी शिल्पकला से संपन्न और सत्ताधारी वर्गों की जरूरतों को पूरा करते थे। शहर में रहने वाले सभी लोगों के लिए खाद्यान्न सदैव गाँव से ही आता था। अन्य कृषि-उत्पाद व जरूरत के लिए वन-उत्पाद भी उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों से ही प्राप्त होते थे। शहरों की एक अलग पहचान उनके भव्य भवन, स्थापत्य और उनकी किलेबंदी भी था।
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18वीं सदी में भारत के बहुत-से पुराने शहरों का महत्त्व कम हो गया। साथ ही कई नए शहरों का भी उदय हुआ। राजनीतिक विकेंद्रीकरण के परिणामस्वरूप लखनऊ, हैदराबाद श्रीरंगापट्टम, पूना (आधुनिक पुणे), नागपुर, बड़ौदा और तंजौर (तंजावुर) जैसी क्षेत्रीय राजधानियों का महत्त्व बढ़ गया। अतः इस राजनीतिक विकेंद्रीकरण के कारण दिल्ली, लाहौर व आगरा इत्यादि मुगल सत्ता के प्रमुख नगर केंद्रों से व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार, साहित्यकार, कलाकार, इत्यादि काम और संरक्षण की तलाश में इन नए नगरों की ओर पलायन करने लगे।

→ यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों ने मुगल काल के दौरान ही भारत के विभिन्न स्थानों पर अपनी बस्तियाँ स्थापित कर ली थीं। उदाहरण के लिए 1510 में पुर्तगालियों ने पणजी में, 1605 में डचों ने मछलीपट्नम में, 1639 में अंग्रेज़ों ने मद्रास में तथा 1673 में फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी (आजकल पुद्दचेरी) में शुरू में व्यापारिक कार्यालय (इन्हें कारखाने कहा जाता था) बनाए। इन ‘कारखानों’ के आस-पास धीरे-धीरे बस्तियों का आकार विस्तृत होने लगा। इस प्रकार शहर वाणिज्यवाद तथा पूँजीवाद परिभाषित होने लगे।

→ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के राजनीतिक नियंत्रण स्थापित होने के उपरान्त इन शहरों का पतन शुरु हो गया। नई आर्थिक राजधानियों के रूप में मद्रास, कलकत्ता व बम्बई जैसे औपनिवेशिक बंदरगाह शहरों का उदय तेजी से होने लगा। सन् 1800 के आस-पास तक यह जनसंख्या की दृष्टि से यह सबसे बड़े शहर बन गए। इसका कारण था कि ये औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के केंद्र भी बन चुके थे। इनमें नए भवन नई स्थापत्य-कला के साथ स्थापित किए गए। बहुत-से नए संस्थानों का विकास हुआ। इस प्रकार ये शहर आजीविका की तलाश में आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए।

→ सन् 1900 से लेकर 1940 तक भारत की कुल जनसंख्या के मात्र 13 प्रतिशत लोग ही शहरों में रहते थे। औपनिवेशिक काल में शहरीकरण अत्यधिक धीमा और लगभग स्थिर जैसा ही रहा। यदि पूर्व-ब्रिटिशकाल से तुलना की जाए तो शहरों में आजीविका कमाने वाले लोगों की संख्या बढ़ने की बजाय कम हुई। अंग्रेज़ों के राजनीतिक नियंत्रण के फलस्वरूप और आर्थिक नीतियों के चलते कलकत्ता, बम्बई और मद्रास जैसे नए शहरों का उदय तो हुआ, लेकिन ये ऐसे शहर नहीं बन पाए जिससे भारत की समूची अर्थव्यवस्था में शहरीकरण को लाभ मिले। वस्तुतः अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों व गतिविधियों के कारण उन शहरों
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का भी पतन हो गया जो अपने किसी विशिष्ट उत्पादों के लिए प्रसिद्ध थे। उदाहरण के लिए ढाका, मुर्शिदाबाद, सोनारगांव इत्यादि वस्त्र उत्पादक केंद्र बर्बाद होते गए।

रेलवे नेटवर्क के इस विस्तार से भारत में बहुत-से शहरों की कायापलट हुई। खाद्यान्न तथा कपास व जूट इत्यादि रेलवे स्टेशन आयातित वस्तुओं के वितरण तथा कच्चे माल के संग्रह केंद्र बन गए। इसके परिणामस्वरूप नदियों के किनारे बसे तथा पुराने मार्गों पर पड़ने वाले उन शहरों का महत्त्व कम होता गया जो पहले कच्चे माल के संग्रह केंद्र थे। रेलवे विस्तार के साथ रेलवे कॉलोनियाँ बसाई गईं। लोको (रलवे वर्कशॉप) स्थापित हुए। इन गतिविधियों से भी कई नए रेलवे शहर; जैसे कि बरेली, जमालपुर, वाल्टेयर आदि अस्तित्व में आए।

→ औपनिवेशिक शहर अपने नाम और स्थान से ही नए (New) नहीं थे, अपितु अपने स्वरूप से भी नए थे। ये अंग्रेज़ों की वाणिज्यिक संस्कृति को प्रतिबिम्बित कर रहे थे। ये आधुनिक औद्योगिक शहर नहीं बन पाए बल्कि औपनिवेशिक शहरों के तौर पर ही विकसित हुए। इनका विकास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों के चलते उपयोगी बंदरगाहों और संग्रह केंद्रों के रूप में हुआ।

→ अंग्रेज़ों ने अपनी ‘व्यापारिक बस्तियों’ व ‘कारखानों’ की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इनकी किलेबंदी करवाई। मद्रास में फोर्ट सेंट जॉर्ज, कलकत्ता में फोर्ट विलियम और इसी प्रकार बम्बई में भी दुर्ग बनवाया गया। इन किलों में वाणिज्यिक कार्यालय थे तथा ब्रिटिश लोगों के रहने के लिए निवास थे। अंग्रेज़ों और भारतीयों के लिए अलग-अलग मकान (क्वार्टस) बनाए गए थे।

→ सरकारी रिकॉर्डस में भारतीयों की बस्ती को ‘ब्लैक टाउन’ (काला शहर) तथा अंग्रेज़ों की बस्ती को ‘व्हाइट टाउन’ यानी गोरा शहर बताया गया है। इस प्रकार नए शहरों की संरचना में नस्ल आधारित भेदभाव शुरु से ही परिलक्षित हुआ। इन शहरों में आधुनिक औद्योगिक विकास के अंकुर तो फूटने लगे, लेकिन यह विकास बहुत ही धीमा और सीमित रहा। इसका कारण पक्षपातपूर्ण संरक्षणवादी नीतियाँ थीं। इन नीतियों ने औद्योगिक विकास को एक सीमा से आगे नहीं बढ़ने दिया। फैक्ट्री उत्पादन शहरी अर्थव्यवस्था का आधार नहीं बन सका। वास्तव में कलकत्ता, बम्बई व मद्रास जैसे विशाल शहर मैनचेस्टर या लंकाशायर ब्रिटिश औद्योगिक शहरों की तरह औद्योगिक नगर नहीं बन सके। ये औद्योगिक नगरों की अपेक्षा सेवा-क्षेत्र अधिक थे।

→ औपनिवेशिक वाणिज्यिक संस्कृति प्रतिबिम्बित हुई। राजनीतिक सत्ता और संरक्षण ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों के हाथों में आने से नई शहरी संस्कृति उत्पन्न हुई। नए संस्थानों का उदय हुआ। नदी अथवा समुद्र के किनारे गोदियों (Docks) व घाटों का विकास होने लगा। व्यापार से जुड़ी अन्य संस्थाओं का उदय हुआ जैसे कि जहाज़रानी उद्योग के लिए बीमा एजेंसियाँ बनीं तथा यातायात डिपो व बैंकिंग संस्थानों की स्थापना हुई।

→ कंपनी के प्रमुख प्रशासकीय कार्यालयों की स्थापना अपने आप में ब्रिटिश प्रशासन में नौकरशाही के बढ़ते हुए प्रभाव का सूचक था। औपनिवेशिक शहरों में शासक वर्ग तथा संपन्न यूरोपियन व्यापारी वर्ग के निजी महलनुमा मकान बने। उनके लिए पृथक क्लब, रेसकोर्स तथा रंगमंच इत्यादि भी स्थापित किए गए। ये जहाँ विदेशी अभिजात वर्ग की रुचियों को अभिव्यक्त कर रहे थे वहीं इनसे भेदभाव और प्रभुत्व भी स्पष्ट दिखाई दे रहा था।

→ एक नया भारतीय संभ्रांत वर्ग भी इन शहरों में उत्पन्न हो चुका था। यह वर्ग अपनी हैसियत को ऊँचा दिखाने के लिए पाश्चात्य जीवन-शैली का अनुसरण करने लगा। दूसरी ओर, इन शहरों में काफी बड़ी संख्या में कामगार एवं गरीब लोग रहते थे। यह खानसामा, पालकीवाहक, गाड़ीवान तथा चौकीदारों के रूप में संभ्रांत भारतीय एवं यूरोपीय लोगों को अपनी सेवाएँ उपलब्ध करवाते थे। इसके अतिरिक्त ये औद्योगिक मजदूरों के रूप में या फिर पोर्टर, निर्माण एवं गोदी मजदूरों के तौर पर कार्य करते थे। इन लोगों की स्थिति अच्छी नहीं थी। ये लोग शहर के विभिन्न भागों में घास-फूस की कच्ची झोंपड़ियों में रहते थे।

→ लम्बे समय तक उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य और सफाई जैसे मुद्दों की ओर अंग्रेजों ने कभी ध्यान नहीं दिया। उन्होंने गोरी बस्तियों को ही साफ और सुंदर बनाने पर बल दिया था। लेकिन महामारियों के मंडराते खतरों से उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आने लगा। हैजा, प्लेग, चेचक जैसी महामारियों में लाखों लोग मर रहे थे। इससे प्रशासकों को यह खतरा सताने लगा कि ये बीमारियाँ उनके क्षेत्रों में भी फैल सकती हैं। इसलिए उनके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा सफाई के लिए कुछ कदम उठाने जरूरी हो गए।

→ पर्वतीय शहर भी नए औपनिवेशिक विशेष शहरों के तौर पर विकसित हुए। शुरू में ये सैनिक छावनियाँ बनीं, फिर अधिकारियों के आवास-स्थल और अन्ततः पर्वतीय पर्यटन स्थलों के तौर पर विकसित हुए। इन शहरों में शिमला, माउंट आबू, दार्जीलिंग व नैनीताल इत्यादि थे।

→ धीरे-धीरे ये पर्वतीय शहर एक तरह से सेनिटोरियम (Sanitoriums) बन गए अर्थात् ऐसे स्थान बन गए जहाँ सैनिकों को आराम व चिकित्सा के लिए भेजा जाने लगा। पहाड़ी शहरों की जलवायु स्वास्थ्यवर्द्धक थी। पहाड़ों की मृदु और ठण्डी जलवायु अंग्रेज़ व यूरोपीय अधिकारियों को लुभाती थी। यही कारण था कि गर्मियों के दिनों में अंग्रेज़ अपनी राजधानी शिमला बनाते थे। इन्होंने अपने निजी और सार्वजनिक भवन यूरोपीय शैली में बनवाए।

→ इन घरों में रहते हुए उन्हें यूरोप में अपनी निवास बस्तियों की अनुभूति होती थी। पर्वतीय शहरों पर अंग्रेज़ी-शिक्षण संस्थान तथा एंग्लिकन चर्च स्थापित किए गए। स्पष्ट है कि पर्वतीय शहरों में गोरे लोगों को पश्चिमी सांस्कृतिक जीवन जीने का अवसर मिला।

→ धीरे-धीरे इन पर्वतीय शहरों को रेलवे नेटवर्क से जोड़ दिया गया और महाराजा, नवाब, व्यापारी तथा अन्य मध्यवर्गीय लोग भी इन पर्वतीय शहरों पर पर्यटन के लिए जाने लगे। इन संभ्रांत लोगों को ऐसे स्थलों पर काफी संतोष की अनुभूति होती थी। पर्वतीय स्थल केवल पर्यटन की दृष्टि से ही अंग्रेज़ों के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं थे, बल्कि उनकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़े महत्त्वपूर्ण थे।

→ नए शहरों का सामाजिक जीवन पहले के शहरों से अलग था। ये मध्य वर्ग के केन्द्र थे। इस वर्ग में शिक्षक, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, क्लर्क तथा अकाउंटेंट्स इत्यादि थे। इन नए शहरों में मिलने-जुलने के नए स्थल; जैसे कि सार्वजनिक पार्क, टाउन हॉल, रंगशाला और 20वीं सदी में सिनेमा हॉल इत्यादि बन चुके थे। ये स्थल मध्यवर्गीय लोगों के जीवन का हिस्सा बनने लगे। यह मध्य वर्ग अपनी नई पहचान और नई भूमिकाओं के साथ अस्तित्व में आया। नए शहरों में औरतों के लिए नए अवसर उत्पन्न हुए। फलतः सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ने लगी।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ परंतु सार्वजनिक स्थानों पर कामकाज करने वाली महिलाओं को सम्मानित दृष्टि से नहीं देखा जाता था। स्पष्ट है कि सामाजिक बदलाव सहज रूप से नहीं हो रहे थे। रूढ़िवादी विचारों के लोग पुरानी परम्पराओं और व्यवस्था को बनाए रखने का पुरजोर समर्थन कर रहे थे। दूसरी ओर, कामगार लोगों के लिए शहरी जीवन एक संघर्ष था। फिर भी इन लोगों ने अपनी ‘एक अलग जीवंत शहरी संस्कृति’ रच ली थी। वे धार्मिक त्योहारों, मेलों, स्वांगों तथा तमाशों इत्यादि में भाग लेते थे। ऐसे अवसरों पर वे अपने यूरोपीय और भारतीय स्वामियों पर प्रायः कटाक्ष और व्यंग्य करते हुए उनका मज़ाक उड़ाते थे।

→ विकसित होते मद्रास शहर में अंग्रेज़ों और भारतीयों के बीच पृथक्करण (Segregation) स्पष्ट दिखाई देता है। यह पृथक्करण शहर की बनावट और दोनों समुदायों की हैसियत (Position) में साफ-साफ झलकता है। फोर्ट सेंट जॉर्ज में अधिकतर यूरोपीय लोग रहते थे। इसीलिए यह क्षेत्र व्हाइट किले के भीतर रहने का आधार रंग और धर्म था। भारतीयों को इस क्षेत्र में रहने की अनुमति नहीं थी। व्हाइट टाउन प्रशासकीय और न्यायिक व्यवस्था का केन्द्र भी था।

→ व्हाइट टाउन से बिल्कुल अलग ब्लैक टाउन बसाया गया। कलकत्ता-नगर नियोजन में ‘विकास’ सम्बन्धी विचारधारा झलक रही थी और साथ ही इसका अर्थ राज्य द्वारा लोगों के जीवन और शहरी क्षेत्र पर अपनी सत्ता को स्थापित करना था। इसमें फोर्ट विलियम का नया किला तथा सुरक्षा के लिए मैदान रखा गया। उल्लेखनीय है कि कलकत्ता कस्बे का विकास तीन गाँवों-(सुतानाती, कोलकाता व गोविन्दपुर) को मिलाकर हुआ था।

→ कलकत्ता की नगर योजना में लॉर्ड वेलेज़्ली ने उल्लेखनीय योगदान दिया। कलकत्ता अब ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी था। इस सन्दर्भ में, 1803 ई० का वेलेज़्ली का प्रशासकीय आदेश महत्त्वपूर्ण है। वेलेज़्ली के इस सरकारी आदेश के बाद ‘जन स्वास्थ्य’ नगर नियोजन में प्रमुख विचार बन गया। शहरों में सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा और भविष्य की नगर-नियोजन की परियोजनाओं में ‘जन स्वास्थ्य’ का विशेष ध्यान रखा गया।

→ ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के साथ ही अंग्रेज़ों का झुकाव इस ओर बढ़ता गया कि कलकत्ता, बम्बई और मद्रास को शानदार शाही राजधानियों के रूप में बनाया जाए। इन शहरों की भव्यता से ही साम्राज्यवादी ताकत सत्ता झलकती थी। नगर नियोजन में उन सभी खूबियों को प्रतिबिंबित होना था जिसका प्रतिनिधित्व होने का दावा अंग्रेज़ करते थे। ये मुख्य खूबियाँ थीं- तर्क-संगत क्रम व्यवस्था, (Rational Ordrain), सटीक क्रियान्वयन (Meticulous Execution) और पश्चिमी सौन्दर्यात्मक आदर्श (Western Aesthetic Ideas)। वस्तुतः साफ-सफाई नियोजन और सुन्दरता, औपनिवेशिक शहर के आवश्यक तत्त्व बन गए।

→ कलकत्ता, बम्बई और मद्रास जैसे बड़े शहरों में न्यूक्लासिकल तथा नव-गॉथिक शैलियों में अंग्रेज़ों ने भवन बनवाए। ये पाश्चात्य स्थापत्य शैलियाँ थीं। फिर बहुत-से धनी भारतीयों ने इन पश्चिमी शैलियों को भारतीय शैलियों में मिलाकर मिश्रित स्थापत्य शैली का विकास किया। इसे इण्डोसारासेनिक शैली कहा गया है। उल्लेखनीय है कि इन स्थापत्य शैलियों के माध्यम से भी राजनीतिक और सांस्कृतिक टकरावों को समझा जा सकता है।

काल-रेखा

1500-1700 ई०पणजी में पुर्तगाली (1510); मछलीपट्टनम में डच (1605); मद्रास (1639), बंबई (1661) और कलकत्ता (1690) में अंग्रेज़ तथा पांडिचेरी (1673) में फ्रांसीसी ठिकानों की स्थापना।
1600-1623 ई०ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के सूरत, भड़ीच, अहमदाबाद, आगरा और मछलीपट्टनम में ‘कारखाने’ (कार्यालय व गोदाम) थे।
1622 ई०बंबई उस समय एक छोटा-सा द्वीप था। यह अनेक वर्षों तक पुर्तगालियों के अधिकार में रहा। 1622 ई० में ब्रिटेन के सम्राट चार्ल्स द्वितीय को पुर्तगाली राजकुमारी से विवाह के समय दहेज में दिया गया था।
1668 ई०बंबई (मुंबई) की किलाबंदी की गई।
1698 ई०अंग्रेज़ों द्वारा कलकत्ता (आधुनिक) की नींव रखी गई।
1772-1785 ईवारेन हेस्टिंग्स का शासनकाल।
1757 ई०प्लासी के युद्ध में अंग्रेज़ों की विजय।
1773 ई०कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना।
1798-1805 ई०लॉर्ड वेलेज़्ली का भारत में गवर्नर-जनरल के रूप में कार्यकाल।
1803 ई०कलकत्ता नगर सुधार पर वेलेज़्ली का मिनट्स लिखना।
1817 ई०कलकत्ता नगर नियोजन के लिए लॉटरी कमेटी का गठन।
1818 ई०दक्कन पर अंग्रेज़ों की विजय व बम्बई को नए प्रांत की राजधानी।
1853 ई०पहली रेलवे लाइन, बम्बई से ठाणे।
1857 ई०बम्बई, कलकत्ता व मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना।
1870 का दशकनगर-पालिकाओं में निर्वाचित भारतीयों को शामिल करना।
1881 ई०मद्रास हॉर्बर के निर्माण का काम पूरा होना।
1896 ई०बम्बई के वाटसंस होटल में पहली बार फिल्म दिखाना।
1896 ई०प्लेग महामारी का फैलना।
1911 ईoकलकत्ता के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाया जाना।
1911 ई०‘गेट वे ऑफ़ इण्डिया’ बनाया गया।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

HBSE 11th Class Geography सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्न में से किस अक्षांश पर 21 जून की दोपहर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं?
(A) विषुवत् वृत्त पर
(B) 23.5° उ०
(C) 66.5° द०
(D) 66.5° उ०
उत्तर:
(B) 23.5° उ०

2. निम्न में से किन शहरों में दिन ज्यादा लंबा होता है?
(A) तिरुवनंतपुरम
(B) हैदराबाद
(C) चंडीगढ़
(D) नागपुर
उत्तर:
(A) तिरुवनंतपुरम

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

3. निम्नलिखित में से किस प्रक्रिया द्वारा वायुमंडल मुख्यतः गर्म होता है?
(A) लघु तरंगदैर्ध्य वाले सौर विकिरण से
(B) लंबी तरंगदैर्ध्य वाले स्थलीय विकिरण से
(C) परावर्तित सौर विकिरण से
(D) प्रकीर्णित सौर विकिरण से
उत्तर:
(B) लंबी तरंगदैर्ध्य वाले स्थलीय विकिरण से

4. निम्न पदों को उसके उचित विवरण के साथ मिलाएँ।

1. सूर्यातप(अ) सबसे कोष्ण और सबसे शीत महीनों के मध्य तापमान का अंतर
2. एल्बिडो(ब) समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखा
3. समताप रेखा(स) आनेवाला सौर विकिरण
4. वार्षिक तापांतर(द) किसी वस्तु के द्वारा परावर्तित दृश्य प्रकाश का प्रतिशत

उत्तर:
1. (स)
2. (द)
3. (ब)
4. (अ)

5. पृथ्वी के विषुवत् वृत्तीय क्षेत्रों की अपेक्षा उत्तरी गोलार्ध के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों का तापमान अधिकतम होता है, इसका मुख्य कारण है-
(A) विषवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में कम बादल होते हैं।
(B) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के दिनों की लंबाई विषुवतीय क्षेत्रों से ज्यादा होती है।
(C) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ‘ग्रीन हाऊस प्रभाव’ विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा होता है।
(D) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा महासागरीय क्षेत्र के ज्यादा करीब है।
उत्तर:
(B) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के दिनों की लंबाई विषुवतीय क्षेत्रों से ज्यादा होती है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर तापमान का असमान वितरण किस प्रकार जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है?
उत्तर:
तापमान जलवायु और मौसम का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। तापमान का वायुमण्डल के दाब से सीधा सम्बन्ध है। यदि तापमान कम होगा तो वायुदाब अधिक होगा और यदि तापमान अधिक होगा तो वायुदाब कम होगा। वायुदाब किसी स्थान के मौसम और जलवायु को प्रभावित करता है। अतः पृथ्वी पर तापमान का असमान वितरण जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है।

प्रश्न 2.
वे कौन से कारक हैं, जो पृथ्वी पर तापमान के वितरण को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

  1. स्थल व जल-जलीय भागों की अपेक्षा स्थलीय भागों में सूर्य का ताप अधिक देखने को मिलता है।
  2. ऊँचाई-165 मी० की ऊँचाई पर 1° सेंटीग्रेड तापमान घटता है। इसलिए पर्वतीय भागों में मैदानी भागों से कम तापमान मिलता है।
  3. अक्षांश-अप्रैल से जून तक उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्यातप अधिक रहता है तथा सितंबर से मार्च में विषुवत् रेखा पर सूर्यातप क्रम होता है।

प्रश्न 3.
भारत में मई में तापमान सर्वाधिक होता है, लेकिन उत्तर अयनांत के बाद तापमान अधिकतम नहीं होता। क्यों?
उत्तर:
भारत में मई में दिन की लम्बाई अधिक होने से सूर्यातप अधिक प्राप्त होता है लेकिन उत्तर अयनान्त के बाद सूर्य की किरणें तिरछी होना आरम्भ करती है जिससे तापमान अधिकतम नहीं हो पाता।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 4.
साइबेरिया के मैदान में वार्षिक तापांतर सर्वाधिक होता है। क्यों?
उत्तर:
साइबेरिया उत्तरी गोलार्द्ध के स्थलीय भाग का अत्यधिक ठण्डा प्रदेश है। सर्दियों में वहाँ सबसे ठण्डे महीने का तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है जबकि गर्मियों में कोष्ण महासागरीय धाराएँ बहती हैं, इससे सबसे गर्म महीने का औसत तापमान काफी बढ़ जाता है। इसलिए साइबेरिया में वार्षिक तापान्तर सर्वाधिक होता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
अक्षांश और पृथ्वी के अक्ष का झुकाव किस प्रकार पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होने वाली विकिरण की मात्रा को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
सूर्य की किरणें 0° अक्षांश या विषुवत् रेखा पर सालों भर लंबवत् पड़ती हैं। 0° अक्षांश से 2372° उत्तरी और 23% दक्षिणी अक्षांशों के बीच सूर्य ऊपर-नीचे होता रहता है। 21 मार्च से 21 जून तक सूर्य उत्तरायन होता है, कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लंबवत् होती हैं तथा उस वक्त ग्रीष्म ऋतु होती है तथा मकर रेखा पर शीत ऋतु होती है। 23 सितंबर से 22 दिसंबर तक सूर्य दक्षिणायन होता है तथा मकर पर सूर्य की किरणें लंबवत् पड़ती हैं तथा उस वक्त कर्क रेखा पर शीत ऋतु होती है।

कर्क रेखा के उत्तर में तथा मकर रेखा के दक्षिण में जैसे-जैसे हम बढ़ते हैं, वहाँ का तापमान घटता जाता है। इसी कारण 66° उत्तरी अक्षांश तथा 66° दक्षिण अक्षांश के ऊपरी भाग में शीत कटिबंध पाया जाता है जहाँ वर्ष-भर निम्न ता है तथा बर्फ जमी रहती है। इसका मख्य कारण है कि यहाँ सर्य की किरणें तिरछी पडती हैं जो विकिरण की मात्रा को प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 2.
उन प्रक्रियाओं की व्याख्या करें जिनके द्वारा पृथ्वी तथा इसका वायुमंडल ऊष्मा संतुलन बनाए रखते हैं।
उत्तर:
पृथ्वी पर सूर्यातप का असमान वितरण है। सूर्य पृथ्वी को गर्म करता है और पृथ्वी वायुमंडल को गर्म करती है। परिणामस्वरूप पृथ्वी न तो अधिक समय के लिए गर्म होती है और न ही अधिक ठंडी। अतः हम यह पाते हैं कि पृथ्वी के अलग-अलग भागों में प्राप्त ताप की मात्रा समान नहीं होती।

इसी भिन्नता के कारण वायुमंडल के दाब में भिन्नता होती है एवं इसी कारण पवनों के द्वारा ताप का स्थानांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में अधिक गर्मी पड़ने के कारण वहाँ की वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है और उस स्थान को भरने के लिए उपोष्ण कटिबंध से हवाएँ उष्ण कटिबंध की ओर चलती हैं, जिससे उष्ण कटिबंध के तापमान में ज्यादा वृद्धि नहीं हो पाती।

इसी तरह से उपोष्ण कटिबंध क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंध से हवाएँ चलकर इन क्षेत्रों के तापमान में संतुलन बनाती हैं। इसी तरह वायुमंडल एक क्षेत्र के तापमान को ज्यादा बढ़ने नहीं देता तथा शीत कटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म महासागरीय धाराएँ चलती हैं। ये धाराएँ इन क्षेत्रों के तापमान को बढ़ा देती हैं। उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में ठंडी धाराएँ चलती हैं और उन क्षेत्रों के तापमान को कम कर देती हैं। इसी तरह पृथ्वी की महासागरीय धाराएँ और वायुमंडल संतुलन में बने रहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 3.
जनवरी में पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के बीच तापमान के विश्वव्यापी वितरण की तुलना करें।
उत्तर:
उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल की अधिकता है और तापमान स्थलीय भागों में कम रहता है। इसलिए समताप रेखाएँ जैसे ही स्थलों से महासागरों में पहुँचती हैं तो भूमध्य रेखा की ओर मुड़ जाती हैं क्योंकि सागरीय भागों में तापमान अपेक्षाकृत अधिक रहता है। अतः उत्तरी गोलार्द्ध में ताप प्रवणता अधिक रहती है (समताप रेखाओं के बीच की दूरी कम रहती है) दक्षिणी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ महासागरीय प्रभाव के कारण दूर-दूर रहती हैं और महाद्वीपों से गुजरते समय दक्षिणी ध्रुव की ओर मुड़ जाती हैं। समताप रेखाएँ उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में अधिक नियमित होती हैं।

जनवरी में उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी और दक्षिणी गोलार्द्ध ग्रीष्म ऋतु होती है जिसका मुख्य कारण सूर्य का दक्षिणायन में होता है। जिस कारण सूर्य की किरणें दक्षिणी गोलार्द्ध में लंबवत् पड़ती है। जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं।

विषुवत रेखा के समीपवर्ती क्षेत्रों में तापमान 27° सेंटीग्रेड तथा कर्क रेखा पर 15° सेंटीग्रेड और शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में तापमान 10° सेंटीग्रेड होता है। उदाहरण के लिए साइबेरिया के वोयान्सक में -32 सेंटीग्रेड, दक्षिणी गोलार्द्ध में आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण अफ्रीकी देशों और दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के अर्जेन्टाइना में जनवरी में तापमान औसतन 30° सेंटीग्रेड होता है।

दक्षिणी भाग जैसे चिली और अर्जेन्टाइना में तापमान 15 से 20° सेंटीग्रेड होता है। इस तरह से जनवरी में उत्तरी गोलार्द्ध में कम तापमान और दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिक तापमान देखने को मिलता है।

सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान HBSE 11th Class Geography Notes

→ सौर विकिरण (Solar Radiation)-सूर्य ऊष्मा को अंतरिक्ष में चारों तरफ निरन्तर प्रसारित करता रहता है। सूर्य द्वारा ऊष्मा की प्रसारण क्रिया को सौर विकिरण कहा जाता है।

→ कैलोरी (Calorie)-समुद्रतल पर उपस्थित वायुदाब की दशा में एक ग्राम जल का तापमान 1° सेल्सियस बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊर्जा को कैलोरी कहा जाता है।

→ एल्बिडो (Albedo)-किसी पदार्थ की परिवर्तनशीलता या परावर्तन गुणांक। इसे दशमलव या प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

→ संचालन (Conduction) आण्विक सक्रियता के द्वारा पदार्थ के माध्यम से ऊष्मा का संचार संचालन कहलाता है।

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HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. अन्तिम मुगल बादशाह था
(A) औरंगजेब
(B) शाहजहाँ
(C) बहादुरशाह जफर
(D) जहांगीर
उत्तर:
(C) बहादुरशाह जफ़र

2. कानपुर में विद्रोहियों का नेता था
(A) शाहमल
(B) बिरजिस कद्र
(C) नाना साहिब
(D) बहादुरशाह जफ़र
उत्तर:
(C) नाना साहिब

3. वाजिद अलीशाह नवाब था
(A) दिल्ली का
(B) अवध का
(C) हैदराबाद का
(D) बंगाल का
उत्तर:
(B) अवध का

4. पेशवा बाजीराव द्वितीय का दत्तक पुत्र था
(A) नाना साहिब
(B) तात्या टोपे
(C) कुंवर सिंह
(D) रावतुला राम
उत्तर:
(A) नाना साहिब

5. बिहार में विद्रोहियों का नेता था
(A) कुंवर सिंह
(B) बख्त खाँ
(C) नाना साहिब
(D) तात्या टोपे
उत्तर:
(A) कुंवर सिंह

6. लॉर्ड डलहौजी ने धार्मिक अयोग्यता अधिनियम पारित किया
(A) 1850 ई० में
(B) 1853 ई० में
(C) 1857 ई० में
(D) 1861 ई० में
उत्तर:
(A) 1850 ई० में

7. लॉर्ड केनिंग ने सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम पारित किया
(A) 1850 ई० में
(B) 1853 ई० में
(C) 1856 ई० में
(D) 1857 ई० में
उत्तर:
(C) 1856 ई० में

8. ‘ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा। ये शब्द लॉर्ड डलहौजी ने किस रियासत के बारे में कहे?
(A) दिल्ली
(B) अवध
(C) बंगाल
(D) मद्रास
उत्तर:
(B) अवध

9. अवध का अन्तिम नवाब था
(A) शुजाउद्दौला
(B) सिराजुद्दौला
(C) वाजिद अली शाह
(D) बख्त खां
उत्तर:
(C) वाजिद अली शाह

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

10. अवध का अधिग्रहण किया गया
(A) 1850 ई० में
(B) 1853 ई० में
(C) 1856 ई० में
(D) 1861 ई० में
उत्तर:
(C) 1856 ई० में

11. अवध में विद्रोह की शुरूआत हुई
(A) 10 मई, 1857 को
(B) 4 जून, 1857 को
(C) 8 अप्रैल, 1857 को
(D) 17 जून, 1857 को
उत्तर:
(B) 4 जून, 1857 को

12. अवध का औपचारिक अधिग्रहण के बाद वहाँ भू-राजस्व बन्दोबस्त लागू किया गया
(A) स्थायी बन्दोबस्त
(B) एकमुश्त बन्दोबस्त
(C) ठेकेदारी बन्दोबस्त
(D) महालवाड़ी बन्दोबस्त
उत्तर:
(B) एकमुश्त बन्दोबस्त

13. सिंहभूम में कोल आदिवासियों का नेता था
(A) गोनू
(B) बिरसा मुंडा
(C) सिधू मांझी
(D) बिरजिस कद्र
उत्तर:
(A) गोनू

14. मंगल पाण्डे को फाँसी हुई
(A) 8 अप्रैल, 1857 को
(B) 10 मई, 1857 को
(C) 31 मई, 1857 को
(D) 30 जून, 1858 को
उत्तर:
(A) 8 अप्रैल, 1857 को

15. मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को बन्दी बनाकर भेजा गया
(A) कलकत्ता
(B) रंगून
(C) बम्बई
(D) लंदन
उत्तर:
(B) रंगून

16. अवध के नवाब वाजिद अली शाह को अपदस्थ करके भेजा गया
(A) रंगून
(B) लंदन
(C) मद्रास
(D) कलकत्ता
उत्तर:
(D) कलकत्ता

17. लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था?
(A) तात्या टोपे
(B) लक्ष्मीबाई
(C) बेगम हजरत महल
(D) नाना साहिब
उत्तर:
(C) बेगम हजरत महल

18. 1857 ई० के विद्रोह का सबसे अधिक व्यापक रूप था
(A) पंजाब में
(B) दिल्ली में
(C) बंगाल में
(D) अवध में
उत्तर:
(D) अवध में

19. विद्रोह के बाद अंग्रेज़ों ने अवध पर पुनः अधिकार किया
(A) जून, 1857 में
(B) मार्च, 1858 में
(C) सितम्बर, 1858 में
(D) जनवरी, 1858 में
उत्तर:
(B) मार्च, 1858 में

20. विद्रोह के बाद अंग्रेज़ों ने दिल्ली पर नियन्त्रण स्थापित किया
(A) 4 जून, 1857 को
(B) 17 जून, 1857 को
(C) 20 सितम्बर, 1857 को
(D) 8 अप्रैल, 1858 को
उत्तर:
(C) 20 सितम्बर, 1857 को

21. तात्या टोपे को फांसी हुई
(A) 4 जून, 1857 को
(B) 18 अप्रैल, 1859 को
(C) 10 मई, 1859 को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) 18 अप्रैल, 1859 को

22. आज़मगढ़ घोषणा की गई
(A) 15 मई, 1857 को
(B) 15 जून, 1857 को
(C) 15 जुलाई, 1857 को
(D) 25 अगस्त, 1857 को
उत्तर:
(D) 25 अगस्त, 1857 को.

23. विद्रोही क्या चाहते थे?
(A) अंग्रेजी राज का अन्त
(B) हिन्दू व मुसलमानों में एकता
(C) वैकल्पिक सत्ता की तलाश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. विद्रोह के दमन के लिए अंग्रेज़ों ने क्या कदम उठाए?
(A) विद्रोहियों पर अमानवीय अत्याचार किए
(B) वफादार शासकों व जमींदारों को भारी इनाम दिए
(C) सारे उत्तरी भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

25. ‘द क्लिमेंसी ऑफ केनिंग’ चित्र ब्रिटेन की पंच नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ
(A) 1854 ई० में
(B) 1856 ई० में
(C) 1857 ई० में
(D) 1858 ई० में
उत्तर:
(D) 1858 ई० में

26. ‘इन मेमोरियम’ चित्र जोजेफ नोएल पेटन ने बनाया
(A) 1857 ई० में
(B) 1858 ई० में
(C) 1859 ई० में
(D) 1860 ई० में
उत्तर:
(C) 1859 ई० में 27. सती प्रथा को अवैध घोषित किया गया
(A) 1820 ई० में
(B) 1824 ई० में
(C) 1825 ई० में
(D) 1829 ई० में
उत्तर:
(D) 1829 ई० में

28. ‘उत्तराधिकार कानून पास किया गया
(A) 1850 ई० में
(B) 1853 ई० में
(C) 1857 ई० में
(D) 1859 ई० में
उत्तर:
(A) 1850 ई० में

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

29. 1857 ई० के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल था
(A) लॉर्ड रिपन
(B) लॉर्ड केनिंग
(C) लॉर्ड डलहौजी
(D) लॉर्ड वेलेजली
उत्तर:
(B) लॉर्ड केनिंग

30. 1857 ई० के विद्रोह का तत्कालीन कारण था
(A) अवध का विलय
(B) झांसी का विलय
(C) चर्बी वाले कारतूस
(D) उत्तराधिकार कानून
उत्तर:
(C) चर्बी वाले कारतूस

31. झांसी का अंग्रेजी राज्य में विलय किया गया
(A) 1850 ई० में
(B) 1853 ई० में
(C) 1854 ई० में
(D) 1857 ई० में
उत्तर:
(C) 1854 ई० में

32. अवध का विलय किस गवर्नर जनरल ने किया?
(A) लॉर्ड डलहौजी
(B) लॉर्ड वेलेजली
(C) लॉर्ड केनिंग
(D) लॉर्ड रिपन
उत्तर:
(A) लॉर्ड डलहौजी

33. अवध में एकमुश्त बन्दोबस्त लागू किया गया
(A) 1850 ई० में
(B) 1853 ई० में
(C) 1856 ई० में
(D) 1857 ई० में
उत्तर:
(C) 1856 ई० में

34. लखनऊ में विद्रोहियों ने अवध के किस चीफ कमीश्नर को मौत के घाट उतार दिया?
(A) जनरल नील
(B) हैनरी लॉरेंस
(C) कोलिन कैम्पबेल
(D) जनरल हैवलॉक
उत्तर:
(B) हैनरी लॉरेंस

35. ‘बाग डंका शाह’ के नाम से प्रसिद्ध था
(A) शाहमल
(B) नाना साहिब
(C) कुंवर सिंह
(D) मौलवी अहमदुल्ला शाह
उत्तर:
(D) मौलवी अहमदुल्ला शाह

36. विद्रोह को कुचलने में देशी रियासतों ने अंग्रेज़ों का साथ दिया
(A) पटियाला
(B) ग्वालियर
(C) हैदराबाद
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

37. भारत का प्रथम शहीद कौन था?
(A) नाना साहिब
(B) मंगल पांडे
(C) बहादुरशाह
(D) रानी लक्ष्मीबाई
उत्तर:
(B) मंगल पांडे

38. अंग्रेज़ों ने कुशासन की आड़ में किस राज्य को अधिकार में लिया था?
(A) झांसी
(B) सतारा
(C) अवध
(D) हैदराबाद
उत्तर:
(C) अवध

39. ‘फिरंगी’ शब्द किस भाषा का है?
(A) फारसी
(B) अरबी
(C) उर्दू
(D) संस्कृत
उत्तर:
(A) फारसी

40. ब्रिटिश ईस्ट-इण्डिया कंपनी के अधीन सेवारत भारतीय सैनिकों का पहला सैनिक विद्रोह कहाँ हुआ?
(A) मेरठ
(B) बैरकपुर
(C) पटना
(D) वेल्लोर
उत्तर:
(D) वेल्लोर

41. 1857 ई० के विद्रोह के लिए लॉर्ड डलहौजी का वह कौन-सा प्रशासकीय कदम था जो सर्वाधिक उत्तरदायी सिद्ध हुआ ?
(A) भारत में रेलवे. डाक और तार व्यवस्था का प्रचलन
(B) कुशासन के नाम पर देशी राज्यों का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय
(C) लैप्स की नीति का अंधाधुंध क्रियान्वयन
(D) भारतीय शासकों की पेंशन को बन्द या कम कर देना।
उत्तर:
(C) लैप्स की नीति का अंधाधुंध क्रियान्वयन

42. 1857 ई० का विद्रोह ‘एक राष्ट्रीय विद्रोह’ था न कि ‘एक सैनिक विद्रोह’ यह शब्द किस अंग्रेज़ सांसद और राजनीतिज्ञ “के हैं?
(A) लॉर्ड केनिंग
(B) लॉर्ड डलहौजी
(C) लॉर्ड डिजरायली
(D) लॉर्ड एलनबरो
उत्तर:
(C) लॉर्ड डिजरायली

43.1857 ई० के विद्रोह का आरम्भ कब हुआ?
(A) लखनऊ
(B) मेरठ
(C) बैरकपुर
(D) कानपुर
उत्तर:
(B) मेरठ

44. अंग्रेज़ों ने विद्रोह के किस मुख्य केंद्र पर सबसे पहले पुनर्धिकार किया?
(A) कानपुर
(B) दिल्ली
(C) लखनऊ
(D) झाँसी
उत्तर:
(B) दिल्ली

45. दिल्ली में विद्रोही सेना का सेनानायक कौन था?
(A) अजीमुल्ला
(B) खान बहादुर खाँ
(C) बाबा कुँवर सिंह
(D) जनरल बख्त खाँ
उत्तर:
(A) अजीमुल्ला

46. 1857 ई० के विद्रोह का कौन-सा नेता बचकर नेपाल भाग गया और बाद में उसकी गतिविधियों का कभी पता नहीं चल पाया?
(A) नाना साहिब
(B) खान बहादुर खाँ
(C) बेगम हज़रत अली
(D) तात्या टोपे
उत्तर:
(A) नाना साहिब

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
दिल्ली में विद्रोहियों को किसने रोकने का प्रयास किया?
उत्तर:
कर्नल रिप्ले ने विद्रोहियों को आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास किया।

प्रश्न 2.
सिपाही जब लाल किले पर पहुंचे तो बहादुरशाह जफर क्या कर रहे थे?
उत्तर:
बहादुरशाह जफर प्रातःकालीन नमाज पढ़कर और सहरी खाकर उठे थे।

प्रश्न 3.
सिपाहियों ने बहादुरशाह जफर से क्या अनुरोध किया?
उत्तर:
सिपाहियों ने बहादुरशाह जफ़र से नेतृत्व के लिए अनुरोध किया।

प्रश्न 4.
सिपाहियों के अनुरोध पर बहादुरशाह जफर ने क्या किया?
उत्तर:
सिपाहियों के अनुरोध पर बहादुरशाह जफ़र ने स्वयं को भारत का बादशाह घोषित करके विद्रोह का नेता घोषित कर दिया।

प्रश्न 5.
बहादुरशाह जफर द्वारा नेतृत्व स्वीकार करने पर विद्रोह का स्वरूप कैसा हो गया?
उत्तर:
बहादुरशाह के नेतृत्व स्वीकार करने पर यह विद्रोह केवल सिपाहियों का विद्रोह नहीं रहा, बल्कि विदेशी सत्ता के विरुद्ध राजनीतिक विद्रोह बन गया।

प्रश्न 6.
बहादुरशाह जफर ने देश के हिन्दुओं व मुसलमानों से क्या अपील की?
उत्तर:
बहादुरशाह जफर ने सारे देश के हिन्दुओं व मुसलमानों को देश व धर्म के लिए लड़ने का आह्वान किया।

प्रश्न 7.
कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व नाना साहिब ने किया।

प्रश्न 8.
नाना साहिब को अन्य किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
नाना साहिब को धोंधू पंत के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 9.
इलाहाबाद में विद्रोहियों का नेता कौन था?
उत्तर:
मौलवी लियाकत खाँ, जो पेशे से एक अध्यापक व वहाबी नेता थे, ने विद्रोह का नेतृत्व व प्रशासन की कमान संभाली।

प्रश्न 10.
बिहार में विद्रोह का नेतृत्व किसके हाथ में था?
उत्तर:
जगदीशपुर के ज़मींदार कुंवरसिंह व कुछ अन्य स्थानीय ज़मींदारों ने बिहार में विद्रोह का नेतृत्व सँभाला।

प्रश्न 11.
ग्वालियर व झाँसी में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
ग्वालियर व झाँसी में विद्रोह का नेतृत्व झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और तांत्या टोपे ने किया।

प्रश्न 12.
विद्रोह में सिंधिया राजा की क्या भूमिका थी?
उत्तर:
सिंधिया राजा ने विद्रोहियों को कुचलने में अंग्रेज़ों का साथ दिया।

प्रश्न 13.
बंगाल की बैरकपुर छावनी में बगावत का आह्वान किसने किया?
उत्तर:
29 मार्च, 1857 को परेड के समय बंगाल की बैरकपुर छावनी में मंगल पाण्डे ने बगावत का आह्वान किया।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

प्रश्न 14.
मंगल पाण्डे को फांसी पर कब लटकाया गया?
उत्तर:
8 अप्रैल, 1857 को मंगल पाण्डे को फांसी पर लटकाया गया।

प्रश्न 15.
लैप्स का सिद्धान्त किस गवर्नर जनरल ने प्रतिपादित किया?
उत्तर:
लॉर्ड डलहौजी ने लैप्स के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

प्रश्न 16.
लैप्स के सिद्धान्त द्वारा कौन-कौन से राज्यों का विलय किया गया?
उत्तर:
सतारा, नागपुर, झाँसी तथा उदयपुर राज्यों का लैप्स के सिद्धान्त से अंग्रेज़ी राज्य में विलय किया गया।

प्रश्न 17.
मंगल पाण्डे कौन था?
उत्तर:
मंगल पाण्डे 34वीं नेटिव इन्फ्रेंट्री में एक सैनिक था।

प्रश्न 18.
अंग्रेजों ने बहादुरशाह जफर को बन्दी बनाकर कहाँ भेजा?
उत्तर:
बहादुरशाह जफ़र को बन्दी बनाकर रंगून भेजा गया।

प्रश्न 19.
बहादुरशाह जफर की मृत्यु कब हुई?
उत्तर:
रंगून में 1862 में बहादुरशाह जफर की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 20.
रानी लक्ष्मीबाई को वीरगति कब व कहाँ प्राप्त हुई?
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई को 17 जून, 1858 को ग्वालियर में वीरगति प्राप्त हुई।

प्रश्न 21.
नाना साहिब ने कानपुर पर अधिकार कब किया?
उत्तर:
नाना साहिब ने कानपुर पर 26 जून, 1857 को अधिकार किया।

प्रश्न 22.
‘द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ नामक चित्र कब तथा किसने बनाया?
उत्तर:
‘द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ नामक चित्र टॉमस जोन्स बार्कर द्वारा 1859 में बनाया गया।

प्रश्न 23.
‘द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ चित्र में क्या दर्शाया गया है?
उत्तर:
‘द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ चित्र में यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि संकट की घड़ी का अन्त हो चुका है।

प्रश्न 24.
‘इन मेमोरियम’ चित्र कब व किसने बनाया?
उत्तर:
‘इन मेमोरियम’ चित्र जोजेफ नोएल पेटन द्वारा 1859 ई० में बनाया गया।

प्रश्न 25.
‘इन मेमोरियम’ चित्र में क्या दिखाया गया है?
उत्तर:
‘इन मेमोरियम’ चित्र में अंग्रेज़ औरतें व बच्चे एक-दूसरे से लिपटे दिखाई दे रहे हैं। वे असहाय प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 26.
‘द क्लिमेंसी ऑफ केनिंग’ नामक चित्र कब प्रकाशित हुआ?
उत्तर:
‘द क्लिमेंसी ऑफ केनिंग’ नामक चित्र 24 अक्तूबर, 1857 को ब्रिटिश पत्रिका ‘पंच’ में प्रकाशित हुआ।

प्रश्न 27.
‘द क्लिमेंसी ऑफ केनिंग’ में क्या दिखाने का प्रयास किया गया है?
उत्तर:
‘द क्लिमेंसी ऑफ केनिंग’ चित्र में केनिंग को दयालु दिखाने का प्रयास किया गया है।

प्रश्न 28.
शाह मल कहाँ का रहने वाला था?
उत्तर:
शाह मल उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगना का रहने वाला था।

प्रश्न 29.
1857 के विद्रोह के समय अवध का चीफ कमिश्नर कौन था?
उत्तर:
1857 के विद्रोह के समय अवध का चीफ कमिश्नर हैनरी लॉरैस था।

प्रश्न 30.
बंगाल आर्मी की पौधशाला किसे कहा गया?
उत्तर:
अवध को बंगाल आर्मी की पौधशाला कहा गया।

प्रश्न 31.
धार्मिक अयोग्यता अधिनियम कब पारित किया गया?
उत्तर:
धार्मिक अयोग्यता अधिनियम 1850 में पारित किया गया।

प्रश्न 32.
1857 ई० के विद्रोह के समय वहाँ का नवाब कौन था?
उत्तर:
अवध विलय के समय नवाब वाजिद अली शाह वहाँ का नवाब था।

प्रश्न 33.
आज़मगढ़ घोषणा कब की गई?
उत्तर:
25 अगस्त, 1857 को आज़मगढ़ घोषणा की गई।

प्रश्न 34.
झाँसी को अंग्रेज़ी साम्राज्य में कब मिलाया गया?
उत्तर:
लैप्स के सिद्धान्त के अनुसार 1854 में झाँसी को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाया गया।

प्रश्न 35.
1857 ई० के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था?
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह के समय केनिंग भारत का गवर्नर जनरल था।

प्रश्न 36.
अवध में लोगों ने अपना नेता किसे घोषित किया?
उत्तर:
अवध के अपदस्थ नवाब के बेटे बिरजिस कद्र को लोगों ने अपना नेता घोषित किया।

प्रश्न 37.
कारतूस वाली अफवाह के अतिरिक्त और कौन-सी अफवाह उड़ रही थी?
उत्तर:
कारतूस वाली अफवाह के अतिरिक्त आटे में हड्डियों के चूरे की मिलावट एक अन्य अफवाह थी।

प्रश्न 38.
अवध में विद्रोह कब प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
4 जून, 1857 को अवध में विद्रोह प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 39.
अवध के नवाब वाजिद अली शाह को अपदस्थ करके कहाँ भेजा गया?
उत्तर:
अवध के नवाब वाजिद अली शाह को अपदस्थ करके कलकत्ता भेज दिया गया।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

प्रश्न 40.
दिल्ली में विद्रोहियों का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
दिल्ली में विद्रोहियों का नेतृत्व बख्त खाँ ने किया।

प्रश्न 41.
विद्रोहियों ने विद्रोह को शुरू करने का क्या तरीका अपनाया?
उत्तर:
सिपाहियों ने विद्रोह शुरू करने का संकेत प्रायः शाम को तोप का गोला दाग कर या बिगुल बजाकर किया।

प्रश्न 42.
बरेली में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
बरेली में रूहेला सरदार खान बहादुर खाँ ने विद्रोहियों का नेतृत्व किया।

प्रश्न 43.
दिल्ली में प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए विद्रोहियों ने क्या किया?
उत्तर:
दिल्ली में प्रशासन चलाने के लिए एक प्रशासनिक कौंसिल बनाई गई। इसके कुल 10 सदस्य थे।

प्रश्न 44.
पानीपत में विद्रोहियों का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
बु-अली शाह कलंदर मस्जिद के मौलवी ने पानीपत में विद्रोहियों का नेतृत्व किया।

प्रश्न 45.
विद्रोह की शुरूआत किस अफवाह से हुई?
उत्तर:
विद्रोह की शुरूआत चर्बी वाले कारतूसों की अफवाह से हुई।

प्रश्न 46.
सामान्य सेवा अधिनियम किस गवर्नर-जनरल के काल में पारित हुआ?
उत्तर:
सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम 1856 ई० में गवर्नर-जनरल लॉर्ड केनिंग के काल में पास किया गया।

प्रश्न 47.
लॉर्ड डलहौजी ने लैप्स की नीति के तहत कौन-कौन से राज्य हड़पे?
उत्तर:
सतारा, संभलपुर, जैतपुर, उदयपुर, नागपुर तथा झांसी राज्य डलहौजी ने ‘राज्य हड़पने की नीति’ के तहत हड़पे।

प्रश्न 48.
अवध का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में कैसे किया गया?
उत्तर:
अवध पर ‘कुशासन’ का आरोप लगाकर उसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया।

प्रश्न 49.
“यह गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” लॉर्ड डलहौजी ने यह शब्द किस राज्य के बारे में कहे?
उत्तर:
यह शब्द अवध राज्य के बारे में कहे गए।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मेरठ छावनी में विद्रोह कब शुरू हुआ?
उत्तर:
10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में विद्रोह शुरू हुआ। भारतीय पैदल सेना के सिपाहियों ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया। कोर्ट मार्शल हुआ और 85 भारतीय सिपाहियों को 8 से लेकर 10 वर्ष तक की कठोर सज़ा दी गई।

प्रश्न 2.
देशी नरेशों के नाम पत्र में बहादुरशाह जफर ने क्या इच्छा प्रकट की?
उत्तर:
देशी नरेशों के नाम पत्र लिखते हुए बहादुरशाह जफ़र ने कहा मेरी यह हार्दिक इच्छा है कि जिस तरीके से भी हो और जिस कीमत पर हो सके फिरंगियों को हिन्दुस्तान से बाहर निकाल दिया जाए। मेरी यह तीव्र इच्छा है कि तमाम हिन्दुस्तान आज़ाद हो जाए। अंग्रेज़ों को निकाल दिए जाने के बाद अपने निजी लाभ के लिए हिन्दुस्तान पर हुकूमत करने की मुझ में जरा भी ख्वाहिश नहीं है। यदि आप सब देशी नरेश दुश्मन को निकालने की गरज से अपनी-अपनी तलवार खींचने के लिए तैयार हों तो मैं अपनी तमाम राजसी शक्तियाँ (Royal Powers) और अधिकार देशी नरेशों के किसी चुने हुए संघ को सौंपने के लिए राजी हूँ।

प्रश्न 3.
बहादुरशाह जफर ने देश के हिंदुओं और मुसलमानों से क्या अपील की?
उत्तर:
बहादुरशाह जफर ने सारे देश के हिंदुओं और मुसलमानों के नाम एक अपील जारी की। इसमें सभी से देश व धर्म के लिए लड़ने का आह्वान किया गया। बहादुर शाह ने राजपूताना व दिल्ली के आस-पास के देशी शासकों को भी विद्रोह में शामिल होने के लिए पत्र लिखे। विद्रोहियों ने सभी जगह बहादुर शाह को अपना नेता मान लिया। कानपुर में मराठा सरदार नाना साहिब स्वयं को बहादुरशाह का पेशवा घोषित करके उसका प्रशासन चलाने लगा।

प्रश्न 4.
मध्य भारत में विद्रोह के प्रसार के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मध्य भारत के झाँसी, ग्वालियर, इंदौर, सागर तथा भरतपुर आदि क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव रहा। मुख्यतः यहाँ विद्रोह का नेतृत्व झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने किया। राजस्थान और मध्य प्रदेश के अधिकतर देशी राजा अंग्रेज़ों की वफादारी निभाते रहे। उदाहरण के लिए ग्वालियर के अधिकांश सैनिकों और लोगों ने विद्रोह में भाग लिया, परंतु सिंधिया राजा ने विद्रोहियों को कुचलने के लिए अंग्रेजों का साथ दिया।

प्रश्न 5.
विद्रोही सिपाही मेरठ से दिल्ली क्यों पहुँचे?
उत्तर:
विद्रोही जानते थे कि नेतृत्व व संगठन के बिना अंग्रेजों से लोहा नहीं लिया जा सकता था। यह बात सही है कि विद्रोह के दौरान छावनियों में सैनिकों ने अपने स्तर पर भी कुछ निर्णय लिए थे। फिर भी सिपाही जानते थे कि सफलता के लिए राजनीतिक नेतृत्व जरूरी है। इसीलिए सिपाही मेरठ में विद्रोह के तुरंत बाद दिल्ली पहुंचे। वहाँ उन्होंने बहादुर शाह को अपना नेता बनाया।

प्रश्न 6.
कानपुर में नाना साहिब की अंग्रेज़ों से नाराजगी का क्या कारण था?
उत्तर:
कानपुर में नाना साहिब अपने अपमान से सख्त नाराज थे। क्योंकि उनसे ‘पेशवा’ की पदवी छीन ली गई थी, साथ ही 8 लाख रुपये वार्षिक पेंशन भी अंग्रेज़ों ने बंद कर दी थी।

प्रश्न 7.
शासक व ज़मींदार विद्रोह में भाग क्यों ले रहे थे?
उत्तर:
मुख्यतः अपदस्थ शासक और उजड़े हुए ज़मींदार विद्रोह में भाग ले रहे थे, क्योंकि शासक तो पुनः अपनी राजशाही स्थापित करना चाहते थे और ज़मींदार अपनी जमीनों के लिए लड़ रहे थे।

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प्रश्न 8.
1857 ई० के विद्रोह के कोई दो प्रशासनिक कारण बताओ।
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह के प्रशासनिक कारण निम्नलिखित थे

  1. लैप्स के सिद्धान्त के द्वारा झांसी, सतारा, नागपुर आदि रियासतों को अंग्रेजी राज में मिलाना तथा कुशासन का आरोप लगाकर अवध जैसे राज्य को हड़पना।
  2. देशी राजाओं पर सहायक सन्धि थोपना तथा नई भू-राजस्व प्रणालियाँ लागू करना व जटिल कानून व्यवस्था बनाना।

प्रश्न 9.
अवध का विद्रोह इतना व्यापक क्यों था? दो कारण बताओ।
उत्तर:

  1. अवध के नवाब को हटाए जाने पर लोगों में असन्तोष था।
  2. अंग्रेज़ों की भारतीय सेना में अवध के सैनिकों की संख्या अधिक थी। वे अवध की घटनाओं से दुःखी थे।
  3. अवध को अंग्रेज़ी राज्य में मिलाए जाने के कारण वहाँ के दरबारी व कर्मचारी वर्ग बेरोज़गार हो गए। उनमें अंग्रेजों के विरुद्ध भारी रोष था।

प्रश्न 10.
सहायक सन्धि ने देशी राजाओं को किस प्रकार पंगु बना दिया? ।
उत्तर:
सहायक सन्धि की शर्तों के अनुसार देशी राजाओं को सैनिक शक्ति से वंचित कर दिया गया। कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए देशी राजा को अंग्रेज़ों पर निर्भर रहना पड़ता था। अंग्रेजों के परामर्श के बिना वह शासक किसी दूसरे शासक के साथ युद्ध या सन्धि नहीं कर सकता था।

प्रश्न 11.
अवध में अंग्रेज़ों की रुचि बढ़ने के क्या कारण थे?
उत्तर:
अवध की उपजाऊ जमीन को अंग्रेज़ नील व कपास की खेती के लिए प्रयोग करना चाहते थे तथा अवध को उत्तरी भारत का एक बड़े बाजार के रूप में विकसित करना चाहते थे।

प्रश्न 12.
1857 ई० के विद्रोह के कोई दो सैनिक कारण बताओ।
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह के दो सैनिक कारण निम्नलिखित हैं

  1. सिपाहियों के वेतन और भत्ते बहुत कम थे। एक घुड़सवार सेना के सिपाही को 27 रुपए और पैदल सेना के सिपाही को मात्र 7 रुपए मिलते थे। वर्दी और भोजन का खर्च निकालकर मुश्किल से उसके पास एक या दो रुपए बच पाते थे।
  2. सेना में गोरे व काले के आधार पर भेदभाव आम बात थी। गोरे सैनिकों के अधिकार व सुविधाएँ भारतीय सैनिकों की तुलना में कहीं अधिक थीं। वेतन और भत्तों में भी भेदभाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों की पदोन्नति के अवसर लगभग न के बराबर थे।

प्रश्न 13.
1857 ई० के विद्रोह के कोई दो सामाजिक कारण बताओ।
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह के सामाजिक कारण निम्नलिखित हैं

1. सामाजिक सुधार कानून-गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक (1828-35) ने समाज की कुरीतियों को दूर करने के लिए कानून बनाने की दिशा में पहलकदमी की। सती प्रथा, बाल-विवाह, कन्या-वध इत्यादि को रोकने के लिए कानून बनाए गए। 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पास करके विधवाओं के विवाह को कानूनी मान्यता दी गई।
निःसंदेह ये कदम प्रगतिशील तथा भारतीयों के हित में थे। परंतु रूढ़िवादी भारतीयों ने इन सुधारों को सामाजिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप समझा।

2. पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार-1835 ई० में लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को भारत में लाग किया। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त नवयुवकों में पाश्चात्य संस्कृति की ओर झुकाव बढ़ रहा था। नव-शिक्षित वर्ग पश्चिमी रहन-सहन और भाषा को अपनाकर गर्व अनुभव करने लगा था। वह अन्य भारतीयों से स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगा। इससे स्वाभाविक रूप से यह विश्वास होने लगा कि अंग्रेज़ हमारे धर्म को नष्ट करना चाहते हैं, हमारे बच्चों को ईसाई बनाना चाहते हैं।

प्रश्न 14.
बहादुरशाह जफर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
बहादुरशाह जफ़र मुगलों का अन्तिम शासक था। वह 1837 ई० में सिंहासन पर बैठा। 1857 ई० के विद्रोह के समय विद्रोहियों ने उसे सम्राट घोषित करके अपना नेता घोषित किया। विद्रोहियों का साथ देने के कारण उसे कैद करके रंगून भेज दिया गया। 1862 ई० में वहीं उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 15.
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन का चरित्र विदेशी था।’ स्पष्ट करें।
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का चरित्र विदेशी था। इसे तलवार के बल पर स्थापित किया गया था। इस सत्ता के संचालक हज़ारों मील दूर लंदन में बैठे थे। वहीं भारत के लिए शासन संबंधी नीतियाँ व कानून बनाए जाते थे, जिन्हें लागू करने वाले अंग्रेज़ प्रशासनिक अधिकारी अपने जातीय अभिमान से ग्रस्त थे। वे भारतीयों को हीन समझते थे और उनसे मिलने-जुलने में अपनी तौहीन समझते थे।

प्रश्न 16.
कम्पनी की न्याय व्यवस्था भी असंतोष का कारण थी, कैसे?
उत्तर:
कंपनी द्वारा स्थापित नई न्याय-व्यवस्था भी भारतीयों में असंतोष का एक कारण रही। ‘कानून के सम्मुख समानता’ के सिद्धांत पर आधारित बताई गई इस व्यवस्था में तीन मुख्य दोष थे-अनुचित देरी, न्याय मिलने में अनिश्चितता और अत्यधिक व्यय। इन दोषों के कारण यह नया कानूनी तंत्र अमीर वर्ग के हाथ में गरीब आदमी के शोषण का एक हथियार बन गया था।

प्रश्न 17.
मौलवी अहमदुल्ला शाह कौन था?
उत्तर:
फैज़ाबाद के मौलवी अहमदुल्ला शाह ने 1857 ई० के विद्रोह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने लोगों को अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। अनेक मुसलमान उन्हें पैगम्बर मानते थे। उनके साथ हजारों लोग जुड़ गए थे। 1857 ई० में उन्हें अंग्रेज़ विरोधी प्रचार के कारण जेल में बन्द कर दिया गया। चिनहाट के संघर्ष में उन्होंने हैनरी लॉरेंस को पराजित किया।

प्रश्न 18.
अवध अधिग्रहण से ताल्लुकदारों के सम्मान व सत्ता को क्षति पहुँची, कैसे?
उत्तर:
अंग्रेजी राज से ताल्लुकदारों की सत्ता व सम्मान को भी जबरदस्त क्षति हुई। ताल्लुकदार अवध क्षेत्र में वैसे ही छोटे राजा थे जैसे बंगाल में ज़मींदार थे। वे छोटे महलनुमा घरों में रहते थे। अपनी-अपनी जागीर में सत्ता व जमीन पर उनका पिछली कई सदियों से नियंत्रण था। ताल्लुकदार नवाब की संप्रभुत्ता (Sovereignty) को स्वीकार करते हुए पर्याप्त स्वायत्तता (Autonomy) रखते थे। इनके अपने दुर्ग व सेना थी। 1856 में अवध का अधिग्रहण करते ही इन ताल्लुकदारों की सेनाएँ भंग कर दी गईं और दुर्ग भी ध्वस्त कर दिए गए।

प्रश्न 19.
किसानों में असंतोष के क्या कारण थे?
उत्तर:
अंग्रेज़ी राज से संपूर्ण ग्रामीण समाज व्यवस्था भंग हो गई। अंग्रेज़ों की भू-राजस्व व्यवस्था में कोई लचीलापन नहीं था। न तो लगान तय करते वक्त और न ही वसूली में। मुसीबत के समय भी सरकार किसानों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं रखती थी।

प्रश्न 20.
1857 ई० के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की भूमिका किस हद तक उत्तरदायी थी?
उत्तर:
1857 ई० के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की भूमिका निम्नलिखित कारणों से उत्तरदायी थी

  1. भारत में बढ़ते हुए ईसाई धर्म के प्रसार को खतरा माना जा रहा था।
  2. सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम (1856) के अनुसार किसी भी भारतीय सैनिक को समुद्र पार भेजा जा सकता था। हिन्दू लोग इसे धर्म भ्रष्ट होना समझते थे।
  3. 1856 ई० में सैनिकों को नई एनफील्ड राइफल दी गई। इसमें डालने वाले कारतूसों की सील को मुँह से खोलना पड़ता था। सैनिकों ने इसमें चर्बी लगी समझा और इसे धर्म भ्रष्ट करने का षड्यन्त्र बताया।

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प्रश्न 21.
किसान व सैनिकों में क्या संबंध थे?
उत्तर:
किसान और सैनिक परस्पर गहन रूप से जुड़े हुए थे। सेना का गठन गाँवों के किसानों तथा ज़मींदारों में से ही किया गया था। बल्कि अवध को तो “बंगाल आर्मी की पौधशाला” (“Nursery of the Bengal Army”) कहा जाता था। यह सैनिक अपने गांव-परिवार से जुड़े हुए थे। हर सैनिक किसी किसान का बेटा, भाई या पिता था। एक भाई खेत में हल जोत रहा था तो दूसरे ने वर्दी पहन ली थी अर्थात वह भी वर्दीधारी ‘किसान’ ही था। वह भी गाँव में किए जा रहे अंग्रेज़ अधिकारियों के जुल्म से दुखी होता था।

प्रश्न 22.
यूरोपीय अधिकारी सैनिकों के साथ कैसा व्यवहार करते थे?
उत्तर:
यूरोपीय अधिकारियों में नस्ली भेदभाव अधिक था। भारतीय सिपाहियों को वे गाली-गलौच व शारीरिक हिंसा पहुँचाने में कोई परहेज नहीं करते थे। उनके लिए सैनिकों की भावनाओं की कोई कद्र नहीं थी। ऐसी स्थिति में दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ जाने से संदेह की भावना पैदा होना स्वाभाविक था। डर एवं संदेह बढ जाने से अफवाहों की भमिका बढ़ जाती है।

प्रश्न 23.
आजमगढ़ घोषणा में व्यापारियों के विषय में क्या कहा गया?
उत्तर:
षड्यंत्रकारी ब्रिटिश सरकार ने नील, कपड़े, जहाज व्यवसाय जैसी सभी बेहतरीन एवं मूल्यवान वस्तुओं के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया है। व्यापारियों को दो कौड़ी के आदमी की शिकायत पर गिरफ्तार किया जा सकता है। बादशाही सरकार स्थापित होने पर इन सभी फरेबी तौर-तरीकों को समाप्त कर दिया जाएगा। जल व थल दोनों मार्गों से होने वाला सारा व्यापार भारतीय व्यापारियों के लिए खोल दिया जाएगा। इसलिए प्रत्येक व्यापारी का यह उत्तरदायित्व है कि वह इस संघर्ष में भाग ले।

प्रश्न 24.
आजमगढ़ घोषणा में सरकारी कर्मचारियों के बारे में क्या कहा गया?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत प्रशासनिक एवं सैनिक सेवाओं में भर्ती होने वाले भारतीय लोगों को सम्मान नहीं मिलता। उनका वेतन कम होता है और उनके पास कोई शक्ति नहीं होती। प्रशासनिक और सैनिक में प्रतिष्ठा और धन वाले सारे पद केवल गोरों को ही दिए जाते हैं। इसलिए ब्रिटिश सेवा में कार्यरत सभी भारतीयों को अपने धर्म और हितों की ओर ध्यान देना चाहिए तथा अंग्रेजों के प्रति अपनी वफादारी को त्यागकर बादशाही सरकार का साथ देना चाहिए।

प्रश्न 25.
आजमगढ़ घोषणा में पंडितों, फकीरों एवं अन्य ज्ञानी व्यक्तियों के विषय में क्या कहा गया?
उत्तर:
पंडित और फ़कीर क्रमशः हिंदू और मुस्लिम धर्मों के संरक्षक हैं। यूरोपीय इन दोनों धर्मों के शत्रु हैं। जैसाकि सब जानते हैं अब धर्म के कारण ही अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष छिड़ा हुआ है, इसलिए फ़कीरों और पंडितों का कर्त्तव्य है कि “वो मेरे पास आएँ और इस पवित्र संघर्ष में अपना योगदान दें।”

प्रश्न 26.
‘द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ चित्र में क्या दिखाया गया है?
उत्तर:
टॉमस जोन्स बार्कर के चित्र ‘द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ में कोलिन कैम्पबैल के पहुंचने पर खुशी झलक रही है। मध्य में कैम्पबैल के साथ अभिनन्दन की मुद्रा में औट्रम व हैवलॉक दिखाई दे रहे हैं। घटना-क्षण लखनऊ का है। उनके सामने थोड़ी दूरी पर शव और घायल पड़े हैं जो विद्रोहियों की पराजय और मार-काट के साक्षी हैं। नायकों के पास ही घोड़े काफी शांत मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं जो इस बात का प्रतीक हैं कि संकट समाप्त हो चुका है।

प्रश्न 27.
हेनरी हार्डिंग के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हेनरी हार्डिंग ने सेना के साजो-सामान के आधुनिकीकरण का प्रयास किया। उसने सेना में एनफील्ड राइफल का इस्तेमाल शुरू किया जिनमें चिकने कारतूस प्रयोग होते थे और सिपाही उनमें चर्बी लगी होने की अफवाह के कारण विद्रोही हो गए।

प्रश्न 28.
कुँवर सिंह कौन था? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
कुँवर सिंह बिहार में जगदीशपुर की आरा रियासत का ज़मींदार था। वह लोगों में राजा के नाम से विख्यात था। कुँवर सिंह ने आजमगढ़ व बनारस में अंग्रेज़ी फौज को पराजित किया। उसने छापामार युद्ध पद्धति से अंग्रेज़ों से लोहा लिया। अप्रैल, 1858 में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 29.
नाना साहिब कौन थे? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
नाना साहिब अन्तिम पेशवा बाजीराव द्वितीय का दत्तक पुत्र था। पेशवा की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों ने नाना साहिब को पेशवा नहीं माना और न ही उसे पेंशन दी। 1857 ई० के विद्रोह में विद्रोहियों के आग्रह से वे विद्रोह में शामिल हो गए। कानपुर में उन्होंने सेनापति नील और हेवलॉक को पराजित करके किले पर पुनः अधिकार कर लिया, लेकिन कोलिन कैम्पबेल की सेना के आने बाद नाना साहिब को पुनः पराजित कर दिया गया। वे भागकर नेपाल चले गए। प्रशंसकों ने इसे भी उनकी बहादुरी बताया।

प्रश्न 30.
तात्या टोपे कौन था? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
तात्या टोपे नाना साहिब की सेना का एक बहादुर व विश्वसनीय सेनापति था। उसने कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध गुरिल्ला नीति अपनाकर उनकी नाक में दम कर दिया। उसने अंग्रेज़ जनरल बिन्द्रहैम को परास्त किया। उसने रानी लक्ष्मीबाई का पूर्ण निष्ठा के साथ सहयोग दिया। 1858 ई० में अंग्रेजों ने तात्या टोपे को फाँसी दे दी।

प्रश्न 31.
रानी लक्ष्मीबाई के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई झाँसी के राजा गंगाधर राव की पत्नी थी। राजा की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों ने उनके दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया और लैप्स के सिद्धान्त के अनुसार झाँसी को अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला लिया। 1857 ई० के विद्रोह में स्वयं रानी ने अंग्रेज़ी सेनाओं से टक्कर ली। नाना साहिब के विश्वसनीय सेनापति तात्या टोपे और अफगान सरदारों की मदद से उन्होंने ग्वालियर पर पुनः अधिकार कर लिया। कालपी के स्थान पर अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए वह वीरगति को प्राप्त हई। उसकी वीरता हमेशा आजादी के दीवानों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रही।

प्रश्न 32.
शाह मल कौन था? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
शाह मल उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगने के जाट परिवार से सम्बन्ध रखते थे। बड़ौत में 84 गाँवों की ज़मींदारी थी। जमीन उपजाऊ थी। लेकिन ऊँची लगान दर के कारण जमीन महाजनों व व्यापारियों के हाथों में जा रही थी। शाहमल ने किसानों को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित किया। व्यापारियों व महाजनों के घर लूटे। बही-खाते जलाए, पुल व सड़कें तोड़ीं। शाह मल ने एक अंग्रेज़ अधिकारी के बंगले पर कब्जा करके उसे अपना कार्यालय बनाया और उसे न्याय भवन का नाम दिया। जहाँ वह लोगों के विवादों का निपटारा करने लगा। जुलाई, 1858 में शाह मल अंग्रेजों के साथ हुई एक लड़ाई में मारा गया।

प्रश्न 33.
विद्रोह को राजनीतिक वैधता कैसे मिली?
उत्तर:
बहादुशाह जफर ने स्वयं को भारत का बादशाह घोषित करके विद्रोह का नेता घोषित कर दिया। इससे सिपाहियों के विद्रोह को राजनीतिक वैधता मिल गई। एक सुप्रसिद्ध इतिहासकार के शब्दों में इससे विद्रोह को ‘एक सकारात्मक राजनीतिक अर्थ” (A positive political meaning’) मिल गया।

प्रश्न 34.
1857 का विद्रोह किस अफवाह से शुरू हुआ?
उत्तर:
1857 ई० के शुरू में ही भारतीय सिपाहियों में एक अफवाह थी कि नए दिए गए कारतूसों में गाय व सूअर की चर्बी लगी हुई है। इन्हीं ‘चर्बी वाले कारतूसों’ ने इन सिपाहियों को अपने दीन-धर्म की रक्षा के लिए एकजुट कर दिया था। उल्लेखनीय है कि यह कारतूस नई ‘एनफील्ड राइफल’ के लिए विशेषतौर पर तैयार किए गए थे।

प्रश्न 35.
‘सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम क्या था?
उत्तर:
1856 ई० में गवर्नर-जनरल लॉर्ड केनिंग के शासन काल में ‘सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम’ पास किया गया। इसके अनुसार भर्ती के समय ही प्रत्येक सैनिक को यह लिखित रूप में स्वीकार करना होता था कि जहाँ भी (भारत या भारत के बाहर) सरकार उसे युद्ध के लिए भेजेगी, वह जाएगा। इससे सैनिकों में भी असंतोष पैदा हुआ।

प्रश्न 36.
‘लेक्स लोसी एक्ट’ (Lex Loci Act, 1850) क्या था?
उत्तर:
1850 ई० में सरकार ने एक उत्तराधिकार कानून (Lex Loci Act, 1850) पास किया। इस कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अन्य धर्म ग्रहण कर ले तो भी वह पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी रह सकता था। अब यदि कोई ईसाई धर्म ग्रहण करता था तो उसे पैतृक संपत्ति में से मिलने वाले हिस्से से वंचित नहीं किया जा सकता था।

प्रश्न 37.
महालवाड़ी भूमि कर प्रणाली विद्रोह के लिए क्यों उत्तरदायी थी?
उत्तर:
भूमि-कर की महालवाड़ी व्यवस्था में समय-समय पर भूमि-कर में वृद्धि करने का प्रावधान था। साथ ही भूमि-कर अदा करने का उत्तरदायित्व सामूहिक रूप से सारे गांव (महाल) पर था। कर की बढ़ौतरी व उसे न अदा कर पाने पर सारा गांव-ज़मींदार व किसान प्रभावित होते थे और सभी पर सरकारी जुल्म बरपता था। यही कारण है कि गांव-के-गांव विद्रोही हो गए थे।

प्रश्न 38.
लैप्स की नीति क्या थी?
उत्तर:
जिन राज्यों के नरेशों की अपनी निजी संतान (पुत्र) नहीं थी और गोद लिए हुए पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से कंपनी ने स्पष्ट इंकार कर दिया था। झांसी व सतारा इत्यादि राज्यों में यह नीति विद्रोह को हवा देने में एक बड़ा कारण रही। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र के राज अधिकार के लिए संघर्ष में उतरी थी।

प्रश्न 39.
‘यह गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।’ यह शब्द किसने क्यों कहे थे?
उत्तर:
1851 में ही लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध के बारे में कहा था कि “यह गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा” (“A cherry that will drop into our mouth one day”) डलहौज़ी उग्र साम्राज्यवादी नीति का पोषक था। उसने नैतिकता को दाव पर रखते हुए, देशी नरेशों के अस्तित्व को मिटाने तथा उनके राज क्षेत्रों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने का निर्णय कर लिया था।

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प्रश्न 40.
एकमुश्त बन्दोबस्त का ताल्लुकदारों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1856 ई० में अधिग्रहण के बाद एकमुश्त बंदोबस्त (Summary Settlement of 1856) नाम से भू-राजस्व व्यवस्था लागू की गई, जो इस मान्यता पर आधारित थी कि ताल्लुकदार जमीन के वास्तविक मालिक नहीं हैं। वे भू-राजस्व एकत्रित करने वाले बिचौलिये ही रहे हैं, जो किसानों से कर वसूल करके नवाब को देते थे। उन्होंने ज़मीन पर कब्जा धोखाधड़ी व शक्ति के बल पर किया हुआ है। इस मान्यता के आधार पर ज़मीनों की जाँच की गई और ताल्लुकदारों की ज़मीनें उनसे लेकर किसानों को दी जाने लगीं और उन्हें मालिक घोषित किया गया।

प्रश्न 41.
‘इन मेमोरियम’ चित्र में कैसी भावनाओं को चित्रांकित किया गया है?
उत्तर:
1859 में जोसेफ नोएल पेटन (Joseph Noel Paton) का चित्र ‘इन मेमोरियम’ यानी ‘स्मृति में प्रकाशित हआ। इसमें अंग्रेज़ औरतें और बच्चे लाचार और मासूम स्थिति में परस्पर लिपटे हुए हैं। चित्र में भीषण हिंसा नहीं है फिर भी उस तरफ एक विशेष खामोशी संकेत कर रही है जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है, जिसमें मृत्यु और बेइज्जती कुछ भी हो सकता है। दर्शक के मन में बेचैनी और क्रोध की भावना चित्र को निहारने से सहज रूप में उभरती है।

प्रश्न 42.
‘जस्टिस’ नामक चित्र के नीचे पंक्ति में क्या लिखा गया है?
उत्तर:
12 सितंबर, 1857 को पन्च नामक एक पत्रिका में ‘जस्टिस’ नामक प्रकाशित हुए एक चित्र में एक ब्रिटिश स्त्री को हाथ में तलवार और ढाल लिए आक्रामक मुद्रा में दिखाया गया है। प्रतिशोध से तड़पती हुई वह विद्रोहियों को कुचल रही हैं। भारतीय स्त्री-बच्चे डर से दुबके हुए हैं।
चित्र के नीचे एक पंक्ति में लिखा गया है कि “कानपुर में हुए भीषण जन-संहार के समाचार ने समूचे ब्रिटेन में बदले की गहरी इच्छा और भयानक अपमान के भाव को उत्पन्न कर दिया है।”

प्रश्न 43.
‘द क्लिमेंसी ऑफ केनिंग” कॉर्टून में किस चीज को दिखाया गया है?
उत्तर:
24 अक्तूबर, 1857 को पन्च नामक पत्रिका में प्रकाशित एक कॉर्टून (‘The Clemency of Canning’) में कैंनिग को एक सैनिक को क्षमा करते हुए दिखाया गया है। इसमें एक साथ कई भाव प्रकट होते हैं। भारतीय सिपाही को बौना और फटी पैंट में अपमानजनक स्थिति में दिखाया गया है। वहीं अभी भी उसकी तलवार से खून टपक रहा है यानी उसमें बर्बरता कायम है। फिर भी केनिंग एक दयावान बुजुर्ग (उपहास पात्र) के रूप में उसके सिर पर हाथ रखकर उसे क्षमा कर रहा है।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 के विद्रोह की शुरूआत व प्रसार में अफवाहों व भविष्यवाणियों पर प्रकाश डालिए? लोग इन पर क्यों विश्वास कर रहे थे?
उत्तर:
‘चर्बी वाले कारतूस’ तथा कुछ अन्य अफवाहों व भविष्यवाणियों से विद्रोह की शुरूआत व प्रसार हुआ। लेकिन अ तभी फैलती हैं जब उन अफवाहों में लोगों के मन में गहरे बैठे भय और संदेह की आवाज़ सुनाई देती है। अतः भय और संदेह पैदा करने वाली परिस्थितियों में ही किसी ऐसी घटना के दूसरे कारण छिपे होते हैं।
अफवाहें व भविष्यवाणियाँ-1857 का विद्रोह मुख्यतः चर्बी वाले कारतूसों की अफवाह को लेकर शुरू हुआ। लेकिन अन्य कई और अफवाहों का भी इसमें योगदान था :

1. ‘चर्बी वाले कारतूस’ (Greased Cartridges)-1857 ई० का विद्रोह मुख्यतः चर्बी वाले कारतूसों की अफवाह को लेकर शुरू हुआ। 1857 ई० के शुरू में ही भारतीय सिपाहियों में एक अफ़वाह थी कि नए दिए गए कारतूसों में गाय व सूअर की चर्बी लगी हुई है। इन्हीं ‘चर्बी वाले कारतूसों ने इन सिपाहियों को अपने दीन-धर्म की रक्षा के लिए एकजुट कर दिया था। गाय हिंदुओं के लिए पूजनीय थी तो सूअर से मुसलमान घृणा करते थे। अतः दोनों धर्मों के सैनिकों ने इसे अंग्रेज़ों का धर्म भ्रष्ट करने का षड़यंत्र समझा। इन कारतूसों के प्रति सिपाहियों की नाराजगी को भांपते हुए ब्रिटिश अधिकारियों ने सिपाहियों को लाख समझाने का प्रयत्न किया परंतु किसी ने इस पर विश्वास नहीं किया। इसने सिपाहियों में अत्यंत रोष उत्पन्न कर दिया था।

2. अन्य अफवाहें व भविष्यवाणियाँ-अन्य अफ़वाहों में से एक थी आटे में हड्डियों के चूरे की मिलावट । इसे लोग अंग्रेज़ों के एक बड़े षड्यंत्र के रूप में देख रहे थे। उन्हें यह लग रहा था कि हिंदू और मुसलमान सभी भारतीयों के धर्म भ्रष्ट करने के एक षड्यंत्र के तहत ही आटे में गाय व सूअर की हड्डियों का चूरा मिलाया गया है। लोगों ने बाजार के आटे को हाथ तक लगाने से मना कर दिया। अधिकारी वर्ग के समझाने-बुझाने के प्रयास भी कोई काम नहीं आए। बल्कि रेल व तार जैसी व्यवस्था के बारे में यही भ्रांति एवं अफवाह थी कि यह भी ईसाई बनाने का एक षड्यंत्र ही है। इसी बीच ‘फूल और चपाती’ बाँटने की रिपोर्ट आ रही थीं और साथ ही यह भविष्यवाणी भी जोर पकड़ रही थी कि अंग्रेजी राज भारत में अपनी स्थापना के सौ वर्ष बाद समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 2.
सहायक संधि प्रणाली की विशेषताएँ लिखो।
उत्तर:
लॉर्ड वेलेजली ने 1798 ई० में भारत में सहायक संधि प्रणाली को अपनाया। इसकी प्रमुख शर्ते इस प्रकार थीं

  • देशी शासक को अपने दरबार में एक अंग्रेज़ रेजीडेंट रखना होता था और इसके परामर्शनुसार ही शासन का संचालन करना था।
  • देशी शासक को अपने राज्य में एक अंग्रेज़ी सहायक सेना को रखना होता था और इस सहायक सेना का व्यय देशी शासक को ही करना था।
  • देशी शासक अंग्रेजों के परामर्श के बिना किसी दूसरे शासक के साथ युद्ध अथवा संधि नहीं कर सकता था।
  • देशी शासक अंग्रेज़ों के अतिरिक्त किसी अन्य यूरोपीय जाति के व्यक्ति को राज्य में नौकरी पर नहीं रख सकता था।
  • देशी शासक को राज्य में सहायक सेना रखने के बदले में एक निश्चित धनराशि कंपनी को देनी होती थी। धनराशि न देने की स्थिति में देशी शासक को अपने राज्य का कुछ भू-भाग अंग्रेजों को देना होता था।

प्रश्न 3.
अंग्रेजों द्वारा अपनाई गई न्याय व्यवस्था विद्रोह के लिए कैसे उत्तरदायी थी?
उत्तर:
ब्रिटिश कंपनी द्वारा स्थापित नई न्याय व्यवस्था भी भारतीयों में असंतोष का एक कारण रही। ‘कानून के सम्मुख समानता’ के सिद्धांत पर आधारित बताई गई इस व्यवस्था में तीन मुख्य दोष थे-अनुचित देरी, न्याय मिलने में अनिश्चितता और अत्यधिक व्यय। इन दोषों के कारण यह नया कानूनी तंत्र गरीब आदमी के शोषण का अमीर वर्ग के हाथ में एक हथियार बन गया अभियोग वर्षों तक चलता रहता था। कोर्ट फीस और वकीलों के खर्चे किसी आम आदमी के बस की बात नहीं थी। इसके अलावा न्यायालयों में भ्रष्टाचार का बोलबाला था। अमीर व चालाक आदमी झूठे गवाह बनाकर भी अभियोग का निर्णय अपने पक्ष में करवाने में सफल हो जाते थे।

उल्लेखनीय है कि विद्रोह से पहले के वर्षों में अंग्रेजों द्वारा स्थापित नई भूमिकर व्यवस्था तथा भूमि के स्वामित्व को लेकर ग्रामीण वर्गों में कई तरह के अंतर्विरोध उभर आए थे। इसके लिए उन्हें अदालतों के दरवाजे खटखटाने पड़ रहे थे। लेकिन गरीब किसान को न्याय नहीं मिल रहा था। उसकी जमीन महाजनों के हाथों में जा रही थी। अवध में तो किसान, ज़मींदार एवं ताल्लुकदार सभी भूमि के स्वामित्व को लेकर परेशान थे। धड़ाधड़ एक-दूसरे के विरुद्ध मुकद्दमें दायर कर रहे थे। इस प्रवृत्ति पर टिप्पणी करते हुए सादिक-उल-अखबार नामक एक समाचार-पत्र ने लिखा, “वे अपना धन व्यर्थ गंवा रहे हैं और सरकार के खजाने को भर रहे हैं।” वास्तव में, इन परिस्थितियों में यह न्याय-व्यवस्था भी विद्रोह के कारणों में से एक थी।

प्रश्न 4.
विद्रोह की असफलता के कोई पाँच कारण बताएँ।
उत्तर:
विद्रोह की असफलता के कारण निम्नलिखित थे
1. केनिंग की कूटनीति और साम्राज्य बनाए रखने का दृढ़ संकल्प-अंग्रेज़ अधिकारियों की रणनीति और उनके दृढ़ संकल्प की विद्रोह के दमन में विशेष भूमिका रही।

2. संगठन व योजना का अभाव-विद्रोहियों के पास संगठन और योजना का अभाव था। 31 मई की योजना के भी पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। यदि थी भी तो कार्यान्वित नहीं हो पाई।

3. अस्त्र-शस्त्रों की कमी-उनके पास केवल वो ही गोला-बारूद व बंदूकें थीं जो उन्होंने ब्रिटिश शस्त्रागारों से लूटे थे। नए हथियारों की आपूर्ति ज्यादा संभव नहीं थी।

4. यातायात व संचार-साधनों पर अंग्रेजों का नियंत्रण-विशेषतः रेल व तार व्यवस्था पर अंग्रेजों का पूर्ण नियंत्रण था।जिनके बारे में एक अंग्रेज़ लेखक ने लिखा था-रेल व तार व्यवस्था ने 1857 ई० की क्रांति में हमारे लिए हजारों मनुष्यों का काम किया।

5. सभी सैनिकों का विद्रोह में शामिल होना-अंग्रेज़ फौज में लगभग आधे भारतीय सिपाही तो विद्रोही हो गए थे, लेकिन शेष सिपाहियों ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेज़ों का पूरा-पूरा साथ दिया।

6. अंग्रेज़ों को देशी शासकों का सहयोग–अधिकांश देशी नरेशों (हैदराबाद, ग्वालियर, पटियाला, नाभा, जींद, कपूरथला, बड़ौदा तथा राजपूताना के अधिकार शासक इत्यादि) विद्रोह के दमन कार्य में अंग्रेज़ों की सहायता की।

7. सीमित जन-समर्थन-उत्तर:भारत के काफी क्षेत्रों में सैनिक विद्रोहियों को व्यापक जन-समर्थन मिला। फिर भी पंजाब, पूर्वी बंगाल, राजस्थान व गुजरात इत्यादि क्षेत्रों में विद्रोह न के बराबर था। दक्षिणी भारत इससे लगभग अछूता रहा। शिक्षित मध्य वर्ग की सहानुभूति भी अंग्रेज़ों के साथ थी।

प्रश्न 5.
1857 ई० के विद्रोह के प्रमुख आर्थिक कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह के प्रमुख आर्थिक कारण निम्नलिखित हैं

1. भारत का आर्थिक शोषण भारत में अंग्रेज़ों की व्यवस्था शोषणकारी थी। अपनी राजनीतिक सत्ता का दुरुपयोग करते हुए अंग्रेजों ने कृषकों से अधिकाधिक लगान वसूल किया। कारीगरों को कोड़ियों के भाव अपना माल बेचने के लिए विवश किया। इस प्रकार भारतीय कारीगरों व किसानों की दुनिया देखते-ही-देखते उजड़ गई। बेरोजगारी, बदहाली और भुखमरी छा गई। इसी ने किसान, कारीगर और जन-सामान्य को विद्रोही बना दिया था।

2. महालवाड़ी भूमि-कर व्यवस्था-भूमि-कर की महालवाड़ी व्यवस्था को इरफान हबीब ने इस विद्रोह के लिए मुख्य तौर पर दोषी बताया है। इस व्यवस्था में समय-समय पर भूमि-कर में वृद्धि करने का प्रावधान था। साथ ही भूमि-कर अदा करने का उत्तरदायित्व सामूहिक रूप से सारे गांव (महाल) पर था। कर न अदा कर पाने पर सारा गांव प्रभावित होता था। यही कारण है कि गांव-के-गांव विद्रोही हो गए थे।

3. भूमि-कर की सख्ती से उगाही-ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी अधिक-से-अधिक भूमि-कर वसूलना चाहती थी। अकाल और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय भी भारतीय किसान को अंग्रेजी हुकूमत कोई रियायत नहीं देती थी। सख्ती से डंडे के बल पर पैसा वसूला जाता था। भारतीय किसान भुखमरी की स्थिति में था। कर अदा करने के लिए वह कर्ज-पर-कर्ज लेता था। वास्तव में यही वह जुल्म था जिससे किसान विद्रोही हो गए थे।

4. बेरोजगारी और भुखमरी कंपनी शासन की शोषणकारी नीतियों से जन-सामान्य निरंतर गरीब होता रहा। कई स्थानों पर भुखमरी की स्थिति थी। सर सैयद अहमद खाँ लिखते हैं, “कुछ लोग इतने गरीब थे कि वे एक-एक आने अथवा एक-एक सेर आटे के लिए प्रसन्नतापूर्वक विद्रोहियों के साथ मिल गए।”

प्रश्न 6.
1857 के जनविद्रोह के पूर्व के कुछ वर्षों में अंग्रेज़ अधिकारियों और भारतीय सिपाहियों के बीच सम्बन्ध किस प्रकार बदल गए?
उत्तर:
1857 के जनविद्रोह से पहले, लगभग 15 वर्षों में अधिकारियों और सैनिकों (सिपाहियों) के बीच परस्पर सम्बन्धों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन उभरे। यह परिवर्तन भी सेना में आक्रोश का एक बड़ा कारण था। 1820 तक के दशक में गोरे अधिकारियों व भारतीय सिपाहियों के बीच संबंधों में काफी मित्रतापूर्ण भाव था। अधिकारी सिपाहियों के साथ तलवारबाज़ी, मल्ल-युद्ध इत्यादि खेलों में भाग लेते थे। इकट्ठे शिकार पर जाते थे। वे भारतीय रीति-रिवाज व संस्कृति में भी रुचि लेते थे और भारतीय भाषाओं से परिचय रखते थे। उनमें अभिभावक का स्नेह और अधिकारी का रौब दोनों था।

परंतु 1840 के बाद आए नए अधिकारियों में ये सब बातें नहीं थीं। उनमें नस्ली भेदभाव अधिक था। भारतीय सिपाहियों को वे गाली-गलौच व शारीरिक हिंसा पहुँचाने में कोई परहेज नहीं करते थे। उनके लिए सैनिकों की भावनाओं की कोई कद्र नहीं थी। ऐसी स्थिति में दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ जाने से संदेह की भावना का पैदा होना स्वाभाविक था। डर एवं संदेह बढ़ जाने से अफवाहों की भूमिका बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
1857 के विद्रोह को कुचलने के लिए किस प्रकार के कानूनों का सहारा लिया गया?
उत्तर:
1857 के विद्रोह को कुचलने के लिए प्रत्येक ‘गोरे व्यक्ति’ को सर्वोच्च न्यायिक अधिकार प्रदान किए गए। इसके लिए कई कानून पारित किए गए। मई और जून (1857) में समस्त उत्तर भारत में मार्शल लॉ लगाया गया। साथ ही विद्रोह को कुचले जाने वाली सैनिक टुकड़ियों के अधिकारियों को विशेष अधिकार दिए गए। एक सामान्य अंग्रेज़ को भी उन भारतीयों पर मुकद्दमा चलाने व सजा देने का अधिकार था, जिन पर विद्रोह में शामिल होने का शक था। सामान्य कानूनी प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया। इसके अभाव में केवल मृत्यु दंड ही सजा हो सकती थी। अतः यह स्पष्ट कर दिया था कि विद्रोह की केवल एक ही सजा है सजा-ए-मौत।

प्रश्न 8.
1857 ई० के विद्रोह के परिणाम बताएँ।
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह के परिणाम भारतीयों तथा अंग्रेज़ों दोनों के लिए काफी महत्त्वपूर्ण थे। अंग्रेज़ इसके बाद सजग हो गए। जबकि भारतीयों में यह राष्ट्रवाद के लिए एक प्रेरक तत्त्व बन गया। इस विद्रोह के संक्षेप में निम्नलिखित परिणाम निकले

1. प्रशासनिक ढांचे में परिवर्तन-1858 में ब्रिटिश संसद में एक एक्ट पारित करके भारत में कंपनी शासन को समाप्त कर दिया। भारत पर नियंत्रण के लिए लंदन में गृह-विभाग (भारत सचिव तथा उसकी 15 सदस्यीय परिषद्) बनाया गया। भारत में गवर्नर-जनरल (मुख्य प्रशासक) को भारतीय रियासतों के लिए वायसराय (प्रतिनिधि) कहा जाने लगा।

2. उच्च वर्गों के प्रति नई नीति-भारतीय नरेशों को अंग्रेजों ने पर्णतः अधीन रखते हए जनता के आंदोलनों के विरोध में ही नीति जागीरदारों और जमींदारों के साथ अपनाई गई। अतः 1858 के बाद यह भारतीय उच्च वर्ग ब्रिटिश सत्ता का आधार स्तंभ हो गया।

3. फूट डालो और राज करो की नीति-जन संघर्षों के विरुद्ध यह नीति ब्रिटिश प्रशासकों की एक मुख्य शस्त्र बन गई, सैनिकों में भी यही नीति अपनाई गई। हिंदू-मुसलमानों में फूट डलवाने का प्रयास विद्रोह के दौरान और भविष्य में जारी रहा। यह नीति भारत के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हुई।

4. समाज-सुधारों के परित्याग की नीति-विद्रोह से पूर्व के कुछ दशकों में ‘समाज-सुधार’ की नीति (उदाहरण के लिए उन्होंने सती-प्रथा, कन्या-वध, बाल-विवाह आदि को अवैध घोषित किया, विधवा विवाह को कानूनी मान्यता दी) को इसके बाद पूर्णतः त्याग दिया गया।

5. राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरणा-1857 का विद्रोह आजादी के दीवानों के लिए एक प्रमुख प्रेरणा स्रोत बना।

प्रश्न 9.
“अफवाहें तभी फैलती हैं जब उनसे लोगों में भय और संदेह की अनुगूंज सुनाई दे।” स्पष्ट करें।
उत्तर:
1857 के विद्रोह के शुरू होने तथा उसके घटनाक्रम को निर्धारित करने में अफवाहों की बहुत बड़ी भूमिका थी। उदाहरण के लिए चर्बी लगे कारतूसों की बात या आटे में हड्डियों के चूरे की मिलावट पर सैनिकों सहित लोगों ने मन से विश्वास किया। इन अफवाहों के बारे में अधिकारियों ने अपने स्पष्टीकरण दिए और समझाने-बुझाने का प्रयास भी किया। लेकिन किसी ने विश्वास नहीं किया। इसका कारण था अफवाहों के पीछे का सच, जिसमें लोगों के मन में गहरे बैठे डर और संदेह की गूंज सुनाई देती है। ब्रिटिश नीतियों ने लोगों के मन में गहरे डर को जन्म दिया। उदाहरण के लिए कुछ नीतियों को देखें-

(1) भारतीय हिन्दू सैनिकों को दूसरे देशों (अफगानिस्तान, मिस्र, तिब्बत, बर्मा आदि) में लड़ने के लिए भेजा जाता था। ये सैनिक मुख्यतः उच्च जातियों से थे और बाहर जाने में अपने धर्म की क्षति समझते थे। जब उन्होंने विरोध किया तो कानून बनाकर उन्हें मजबूर किया गया। इससे यह विश्वास हआ कि सरकार उनके धर्म को नष्ट करना चाहती है।

(2) सामाजिक सुधार कानूनों और पाश्चात्य शिक्षा प्रसार से भी यही प्रकट हो रहा था कि अंग्रेज़ ईसाई धर्म का प्रसार करने के लिए यह सब कुछ कर रहे हैं।

(3) ईसाई मिशनरियों को स्कूलों, छावनियों एवं जेलों सभी जगह अपने धर्म प्रचार की खुली छूट दी गई थी। वास्तव में यहीं अंग्रेजों की नीतियाँ व गतिविधियाँ थीं जो अफवाहों के माध्यम से गूंज रही थीं।

प्रश्न 10.
विद्रोहियों के प्रति अंग्रेज़ों ने दहशत का प्रदर्शन किस प्रकार किया?
उत्तर:
विद्रोह को सख्ती से कुचल दिया गया था, लेकिन इसके उपरान्त ‘दहशत के प्रदर्शन’ की नीति अपनाई गई। इसका उद्देश्य था कि भारतीय भविष्य में विद्रोह को स्मरण करते ही काँप उठे और वे पुनः विद्रोह करने की कभी न सोच सकें। इसलिए यह प्रदर्शन दो स्तरों पर किया गया

1. ब्रिटेन में प्रदर्शन-ब्रिटिश समाचार पत्र-पत्रिकाओं में भी अत्यधिक लोमहर्षक शब्दों में विद्रोह से संबंधित विवरण व कहानियाँ प्रकाशित की गईं। विशेषतः विद्रोहियों की हिंसात्मक कार्रवाइयों को भड़काऊ एवं ‘बर्बर’ रूप में प्रस्तुत किया गया, जिनको पढ़कर ब्रिटेन के आम लोगों में प्रतिशोध व ‘सबक सिखाने की मांग’ उठी। फलतः विद्रोहियों को कुचलने वाले, घरों व गांवों को जलाने वाले उन लोगों की दृष्टि में नायक बनकर उभरे। इंग्लैण्ड में कितने ही चित्र, रेखाचित्र, पोस्टर, कार्टून आदि बने और प्रकाशित हुए जिनसे प्रतिशोध की भावना को प्रोत्साहन मिला।

2. भारत में प्रदर्शन-इंग्लैण्ड में तो प्रतिशोध (बदला) के लिए मांग उठ रही थी तो भारत में दिल दहला देने वाली मार-काट और पाश्विक अत्याचार किए गए। प्रतिशोध के लिए सार्वजनिक दंड की नीति अपनाई गई। गांव के बाहर पेड़ों पर सरे आम फांसी दी गई। विद्रोही सिपाहियों को तोप के गोलों से उड़ाया गया। इसका उद्देश्य सैनिकों और आम लोगों को सबक सिखाना था।

प्रश्न 11.
दिल्ली पर अंग्रेज़ों के पुनः नियन्त्रण को संक्षेप में बताएँ।
उत्तर:
लॉर्ड केनिंग ने शुरू से ही दिल्ली पर पुनः अधिकार करने की रणनीति अपनाई। क्योंकि वह जानता था कि दिल्ली को विद्रोहियों से छीन लेने से उनकी कमर टूट जाएगी। इसके लिए 8 जून को अंबाला की ओर से आगे बढ़कर अंग्रेज़ी सेना ने दिल्ली को घेर लिया और अंतिम आक्रमण के लिए पंजाब से आने वाली एक दूसरी सैनिक टुकड़ी का इंतजार करने लगी। विद्रोही सिपाहियों ने मिर्जा मुगल तथा बख्त खाँ के नेतृत्व में अंग्रेज़ी सेना पर कई धावे बोले, परंतु कोई जोरदार बड़ा आक्रमण नहीं कर पाए, क्योंकि सिपाहियों में अनुशासन व समन्वय का अभाव था। खजाना खाली था।

सिपाहियों को वेतन देने के लिए भी धन नहीं था। दिल्ली में विद्रोहियों में सर्वाधिक प्रभावशाली सैनिक नेता बख्त खाँ था। नजफगढ़ में उसकी सेना अंग्रेजों से हार गई जो विद्रोहियों के लिए गहरा आघात था। इसी बीच सितंबर के आरंभ तक जॉन निकलसन के नेतृत्व में पंजाब से एक बड़ी सैनिक टुकड़ी पहुँचने से अंग्रेज़ी सेना की शक्ति में और भी वृद्धि हो गई। अंत में पाँच दिन के घमासान संघर्ष के बाद 20 सितंबर, 1857 ई० को अंग्रेज़ी सेना ने विजयी होकर दिल्ली में प्रवेश किया, परंतु निकलसन इस लड़ाई में मारा गया। दिल्ली पर पुनः अधिकार करते ही अंग्रेज़ी सेना ने दिल्लीवासियों पर असीम अत्याचार किए।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

प्रश्न 12.
कला व साहित्य ने 1857 के घटनाक्रम को जीवित रखने में योगदान दिया। झांसी की रानी के उदाहरण से स्पष्ट करें।
उत्तर:
साहित्य तथा चित्रों में विद्रोह के नेताओं को ऐसे नायकों के रूप में प्रस्तुत किया है जिन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों के विरुद्ध हथियार उठाये। उन्हें महान देशभक्त माना गया। देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में वे हमेशा प्रेरणा स्रोत बने रहे। अनेक चित्रों व साहित्य में रानी लक्ष्मीबाई की छवि को एक मर्दाना योद्धा के रूप में स्थापित किया गया है। उसे सैनिक वेशभूषा में घोड़े पर सवार, एक हाथ में तलवार व एक हाथ में लगाम थामे युद्ध के मैदान में जाते हुए दिखाया गया है। इससे रानी लक्ष्मीबाई की छवि एक वीरांगना के रूप में उभरकर सामने आई। सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियाँ और अधिक जोश भर देती हैं, “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।”

प्रश्न 13.
1857 ई० के विद्रोह ने भारतीय राजनीति पर दीर्घकालीन प्रभाव डालें। समीक्षा कीजिए।
अथवा
1857 ई० के विद्रोह की विरासत की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 ई० का विद्रोह असफल रहा लेकिन भारतीय राजनीति पर इसके दीर्घकालीन प्रभाव पड़े। वास्तव में ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति के लिए भारतीय जनता का यह पहला शक्तिशाली विद्रोह था जिसमें हिन्दुओं व मुसलमानों ने सारे भेद भुलाकर समान रूप से भाग लिया। भारतीय जनता के मन पर इसने अमिट छाप छोड़ी।

आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास का आधार तैयार करने में इस विद्रोह की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में 1857 के नायक हमेशा प्रेरणा स्रोत बने रहे। वीरों की गाथाएं घर-घर गाई जाने लगीं। उनके नाम जन-शक्ति का प्रतीक बनें और आज भी उन्हें स्मरण किया जाता है। पूरे देश में इस विद्रोह के 150 वर्ष पूरे होने पर स्थानीय से राष्ट्रीय स्तर तक के कार्यक्रम आयोजित किए गए।

प्रश्न 14.
1857 ई० के विद्रोह के दौरान हिन्दुओं तथा मुसलमानों के बीच एकता के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह में हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। दोनों समुदायों की एकता सैनिकों, जनता और नेताओं सभी में देखी गई। बहादुरशाह जफ़र को सभी हिंदुओं और मुसलमानों ने अपना नेता माना। हिंदुओं की भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसलिए कई स्थानों पर गो हत्या पर प्रतिबन्ध लगाया गया। स्वयं बादशाह बहादशाह जफ़र की ओर से की गई घोषणा में मुहम्मद व महावीर दोनों की दुहाई देते हुए संघर्ष में शामिल होने की अपील की गई।

ब्रिटिश अधिकारियों ने इस एकता को तोड़ने के भरसक प्रयास किए। उदाहरण के लिए बरेली में विद्रोह के नेता खान बहादुर के विरुद्ध हिन्दू प्रजा को भड़काने के लिए वहाँ के अधिकारी जैम्स औट्रम द्वारा दिया गया धन का लालच भी कोई काम नहीं आया।

प्रश्न 15.
मौलवी अहमदुल्ला शाह पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
मौलवी अहमदुल्ला शाह नेताओं में ऐसा ही एक नाम है जिन्हें लोग पैगंबर मानने लगे थे। सन् 1856 में उन्हें अंग्रेज विरोधी प्रचार करते हुए गांव-गांव जाते देखा गया था। उनके साथ हजारों लोग जुड़ गए थे। वे एक पालकी में बैठकर चलते थे। पालकी के आगे-आगे ढोल और पीछे उनके हजारों समर्थक चलते थे। 1857 में उन्हें फैजाबाद की जेल में बंद कर दिया गया। रिहा होने पर 22वीं नेटिव इन्फेंट्री के विद्रोही सिपाहियों ने उन्हें अपना नेता मान लिया। वे बहादुर व ताकतवर थे। साथ ही उनकी ‘पैगंबर’ होने की छवि ने उन्हें लोगों का विश्वास जीतने में सहायता की।

बहुत सारे लोगों का विश्वास था कि उन्हें कोई हरा नहीं सकता। उनके पास ईश्वरीय शक्तियाँ हैं। चिनहाट के संघर्ष में उन्होंने हेनरी लारेंस को पराजित किया। मौलवी अहमदुल्ला का वास्तविक नाम सैयद अहमदखान (जियाऊद्दीन) था। वह सूफी संत सैयद फरकान अली का शिष्य था। इसी संत ने उसे अहमदुल्ला शाह का नाम दिया था। उसके विचार जेहादी बनते गए और वह अंग्रेज़ विरोधी प्रचारक बन गया।

प्रश्न 16.
विद्रोहियों के नेता के रूप में राव तुलाराम के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
राव तुलाराम ने रेवाड़ी क्षेत्र में विद्रोहियों को उल्लेखनीय नेतृत्व प्रदान किया। यह इसी क्षेत्र की एक छोटी रियासत के मालिक थे। इनका जन्म 1825 ई० में रामपुरा (रवाड़ी) के स्थान पर हुआ। 1839 ई० में पिता की मृत्यु के बाद इन्होंने रियासत को सँभाला। वह इस बात से नाराज थे कि अंग्रेजों ने अपनी नीति से इस रियासत को एक इस्तमरारी जागीर में बदल दिया अर्थात् ऐसी रियासत जिसमें सत्ता के अधिकार सीमित कर दिए गए हों, केवल भू-राजस्व एकत्र करने का अधिकार छोड़ा गया हो। राव तुलाराम ने 16 नवम्बर, 1857 को नारनौल के स्थान पर अंग्रेज़ों से जमकर लड़ाई की। इसमें हारने के बाद वे राजस्थान के कई राजाओं से सहायता माँगने के लिए गए। फिर सहायता के लिए ईरान व अफगानिस्तान गए। उन्होंने रूस के जार से भी सम्पर्क स्थापित किया। 23 सितंबर, 1863 में काबुल में 38 वर्ष की उम्र में इनका देहान्त हो गया।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 के प्रमुख राजनीतिक कारणों पर संक्षेप में प्रकाश डालें।
उत्तर:
1857 के विद्रोह के लिए उत्तरदायी प्रमुख राजनीतिक कारण इस प्रकार थे

1. विस्तार की नीति-ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में साम्राज्य स्थापित करने के लिए भारतीय राज्यों को पराजित करके उन्हें सहायक संधि स्वीकार करने के लिए विवश किया। सहायक संधि भारतीय नरेशों को गुलाम बनाने का एक तरीका था। इसे स्वीकार करने वाले देशी राज्य की सैन्य-शक्ति को समाप्त कर दिया जाता था। फिर धीरे-धीरे उसका राज्य-क्षेत्र कंपनी के राज्य में मिलाया जाने लगता था। लेकिन 19वीं शताब्दी के मध्य पहुँचते-पहुँचते इन ‘अधीन’ भारतीय नरेशों को यह भय लगने लगा कि अंग्रेज़ धीरे-धीरे उनके राज्यों का अस्तित्व ही मिटा देंगे। क्योंकि अंग्रेज़ उग्र विस्तार की नीति अपना चुके थे।

2. राज्य हड़पने की नीति-लॉर्ड डलहौजी ने सात भारतीय राज्यों का विलय राज्य हड़पने की नीति के अंतर्गत कर लिया था अर्थात् इन राज्यों के नरेशों की अपनी निजी संतान (पुत्र) नहीं थी और गोद लिए हुए पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से कंपनी ने स्पष्ट इंकार कर दिया था। झांसी व सतारा में यह नीति विद्रोह का एक बड़ा कारण रही। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र के राज अधिकार के लिए संघर्ष में उतरी थी।

3. पेंशन व उपाधियों की समाप्ति-कर्नाटक व तंजौर के शासक तथा पेशवा बाजीराव द्वितीय के गोद लिए हुए पुत्र नाना साहिब (धोंधू पंत) की पेंशन व उपाधि दोनों छीन लिए थे। पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु (1852 ई०) के पश्चात् नाना साहिब को न तो ‘पेशवा’ स्वीकार किया गया और न ही उसे 8 लाख रुपए वार्षिक पेंशन प्रदान की गई। नाना साहिब इस असहनीय अपमान से सख्त नाराज़ हुए। इसी नाराज़गी के कारण उन्होंने विद्रोह में भाग लिया तथा सिपाहियों व जन-विद्रोहियों का अदम्य साहस के साथ नेतृत्व किया।

4. बहादुर शाह जफर के प्रति अनादर भाव-मुगल साम्राज्य का सूर्यास्त तो बहुत पहले ही हो चुका था। उसके पास न तो सैन्य शक्ति थी और न ही राज्य। फिर भी भारत के लोगों के मन में उनके प्रति सहानुभूति व आदर-सम्मान दोनों ही था। कंपनी के प्रशासक तब तक मुगल सम्राट के प्रति सम्मान करने का दिखावा करते रहे, जब तक उन्होंने भारत में अपनी स्थिति को मजबूत न कर लिया।

लॉर्ड डलहौजी ने मुगल बादशाह बहादुर शाह की उपाधि को समाप्त करके उसे राजमहल व किले से वंचित करने का सुझाव दिया था। लॉर्ड केनिंग ने यह सुनिश्चित कर दिया था कि बहादुर शाह की मृत्यु के पश्चात् मुगल बादशाह का पद समाप्त कर दिया जाएगा। इसके उत्तराधिकारी को महल व किले में रहने का अधिकार नहीं होगा। सम्राट् के प्रति यह दुर्व्यवहार बहुत-से लोगों के असंतोष का कारण बना।

5. विदेशी सत्ता कंपनी के शासन का चरित्र विदेशी था। इसे तलवार के बल पर स्थापित किया गया था। इस सत्ता के संचालक हज़ारों मील दूर लंदन में बैठे थे। वहीं भारत के लिए शासन संबंधी नीतियाँ व कानून बनाए जाते थे, जिन्हें लागू करने वाले अंग्रेज़ प्रशासनिक अधिकारी अपने जातीय अभिमान से ग्रस्त थे। वे भारतीयों को हीन समझते थे और उनसे मिलने-जुलने में अपनी तौहीन समझते थे।

ब्रिटिश सत्ता का भारत में लक्ष्य जन-कल्याण कभी नहीं रहा। इसका लक्ष्य इंग्लैंड के आर्थिक हितों को लाभ पहुंचाने में निहित था। स्पष्ट है कि इन राजनीतिक कारणों का भी जन-विद्रोह के विस्तार में योगदान रहा है।

प्रश्न 2.
विद्रोहियों के दृष्टिकोण पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखें।
अथवा
विद्रोही क्या चाहते थे? स्पष्ट करें।
उत्तर:
पर्याप्त स्रोतों के अभाव में विद्रोहियों के दृष्टिकोण को समझना इतना सरल नहीं है। वैसे तो इस विद्रोह से संबंधित दस्तावेजों की कमी नहीं है। परन्तु यह सब सरकारी रिकॉर्डस हैं। इनसे अंग्रेज़ अधिकारियों की सोच का तो पता चलता है लेकिन विद्रोहियों का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं होता।

अंग्रेज़ इसमें विजेता थे और विजेताओं का अपना ही दृष्टिकोण होता है। हारने वालों का दृष्टिकोण तो वैसे भी उनके द्वारा दबा दिया जाता है। 19वीं सदी के मध्य में हुए इस विद्रोह में भाग लेने वाले अधिकांश लोग अनपढ़ थे। जो कोई पढ़े-लिखे भी थे, उन्हें भी, जिस तरीके से विद्रोह को कुचला गया उसके चलते, कोई ब्यान दर्ज करवाने का अवसर नहीं मिला। फिर भी विद्रोहियों . द्वारा जारी की गई कुछ घोषणाएँ व इश्तहार मिलते हैं, जिनसे हमें विद्रोहियों के दृष्टिकोण की कुछ झलक मिलती है।

1. एकता की सोच-विद्रोही भारत के सभी सामाजिक समुदायों में एकता (Unity) चाहते थे। विशेषतौर पर हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया गया। उनकी घोषणाओं में जाति व धर्म का भेद किए बिना विदेशी राज़ के विरुद्ध समाज के सभी समुदायों का आह्वान किया गया। अंग्रेज़ी राज से पहले मुगल काल में हिंदू-मुसलमानों के बीच रही सहअस्तित्व की भावना का उल्लेख किया गया। बादशाह बहादुरशाह जफर की ओर से की गई घोषणा में मुहम्मद और महावीर दोनों की दुहाई देते हुए संघर्ष में शामिल होने की अपील की गई।

बरेली में विद्रोह के नेता खानबहादुर के विरुद्ध हिंदू प्रजा को भड़काने के लिए अंग्रेज़ अधिकारी जेम्स औट्रम (James Outram) द्वारा दिया गया धन का लालच भी कोई काम नहीं आया था। अंततः हारकर उसे 50,000 रुपये वापस ख़जाने में जमा करवाने पड़े जो इस उद्देश्य के लिए निकाले गए थे। इसी प्रकार दिल्ली में बकरीद के अवसर पर भी सांप्रदायिक तनाव पैदा करवाने की असफल कोशिश की गई थी।

2. विदेशी सत्ता को समाप्त करने की कोशिश-विद्रोहियों की घोषणाओं में ब्रिटिश राज के विरुद्ध सभी भारतीय सामाजिक होने का आह्वान किया गया। ब्रिटिश राज को एक विदेशी शासन के रूप में शोषणकारी माना गया। इससे संबंधित प्रत्येक चीज़ को पूर्ण तौर पर खारिज किया जा रहा था। अंग्रेजी सत्ता को निरंकुश के साथ-साथ षड़यं के लिए अंग्रेजी राज में कंपनी व्यापार तबाही का मुख्य कारण था। जबकि छोटे-बड़े भूस्वामियों के लिए अंग्रेज़ों द्वारा लागू भू-राजस्व व्यवस्था बर्बादी का कारण थी। अतः व्यापार की नई व्यवस्था तथा भू-राजस्व व्यवस्था को निशाना बनाया गया। अंग्रेज़ी व्यवस्था के कारण जो जीवन-शैली प्रभावित हुई उसे भी उन्होंने इंगित किया। वे पुरानी व्यवस्था को पुनः स्थापित करना चाहते थे।

धर्म, सम्मान व रोजगार के लिए लड़ने का आह्वान किया गया। इस लड़ाई को एक ‘व्यापक सार्वजनिक भलाई’ घोषित किया गया। विद्रोहियों की घोषणाओं में सर्वाधिक डर इसी बात को लेकर अभिव्यक्त हुआ कि अंग्रेज़ हमारी संस्कृति को नष्ट करना चाहते हैं। वे हमारी जाति व धर्म को भ्रष्ट करके अंततः हमें ईसाई बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस डर और संदेह के कारण अफवाहें जोर पकड़ने लगीं। लोग इनमें विश्वास करने लगे।

3. अन्य उत्पीड़कों के विरुद्ध विद्रोह के दौरान विद्रोहियों के व्यवहार से कुछ एक ऐसा भी लगता है कि वे अंग्रेजी राज़ के साथ-साथ अन्य उत्पीड़कों के भी विरुद्ध थे। वे उन्हें भी नष्ट करना चाहते थे। उदाहरण के लिए उन्होंने सूदखोरों के बही-खाते जला दिये और उनके घरों में तोड़-फोड़ व आगजनी की। शहरी संभ्रांत लोगों को जानबूझ कर अपमानित भी किया। वे उन्हें अंग्रेजों के वफादार और उत्पीड़क मानते थे।

4. विकल्प की तलाश-निःसंदेह अंग्रेजी राज व्यवस्था को विद्रोही उखाड़ फेंकना चाहते थे। इसे उखाड़ने के बाद उनके पास भविष्य की नई राजनीतिक व्यवस्था की योजना नहीं थी। इसलिए वे पुरानी व्यवस्था को ही विकल्प के रूप में देख रहे थे। वे देशी राजा-रजवाड़ा शाही ही पुनः स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे। वे 18वीं सदी की पूर्व ब्रिटिश दुनिया को ही दोबारा स्थापित देखना चाहते थे। इसलिए पुराने ढर्रे पर दरबार और दरबारी नियुक्तियाँ की गईं। आदेश जारी किए गए। भू-राजस्व वसूली और सैनिकों के वेतन भुगतान का प्रबंध किया गया। अंग्रेज़ों से लड़ने की योजना बनाने तथा सेना की कमान श्रृंखला निश्चित करने में भी प्रेरणा स्रोत 18वीं सदी का मुगल जगत ही था।

प्रश्न 3.
सन् 1857 के विद्रोह के लिए उत्तरदायी धार्मिक कारणों का संक्षिप्त में वर्णन करें।
उत्तर:
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक कारणों की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण थी। कई तरह की अफवाहें इस विद्रोह के शुरू होने और इसके फैलने से जुड़ी हुई थीं। इन अफवाहों के विश्वास के पीछे भी धार्मिक भावनाएं थीं। सैनिक और सामान्य लोग सभी इनसे आहत थे। 19वीं सदी के दूसरे दशक से कम्पनी सरकार ने भारतीय समाज को ‘सुधारने के लिए कई कानून बनाए और साथ ही ईसाई प्रचारकों को ईसाई धर्म प्रचार की छूट दी। इनसे विद्रोह की भावनाएं उत्पन्न हुईं। संक्षेप में हम इस संदर्भ में धार्मिक विश्वासों की भूमिका को इस प्रकार रेखांकित कर सकते हैं

1. सामाजिक सुधार कानून-गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक (1828-35) ने सती प्रथा, बाल-विवाह, कन्या-वध इत्यादि को रोकने के लिए कानून बनाए। 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पास किया। इन कानूनों का रूढ़िवादी भारतीयों ने विरोध किया क्योंकि वे इन्हें सामाजिक और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप बता रहे थे। चूंकि ये एक विदेशी सत्ता द्वारा बनाए गए कानून थे। इसलिए भी लोगों के मन में संदेह पैदा होना स्वाभाविक था।

2. पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार-अंग्रेज़ी शिक्षण संस्थाओं में ईसाई धर्म व पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार धड़ल्ले से किया जा रहा था। नव-शिक्षित वर्ग पश्चिमी रहन-सहन और भाषा को अपनाकर गर्व अनुभव करने लगा था। इससे स्वाभाविक रूप से यह विश्वास होने लगा कि अंग्रेज़ हमारे धर्म को नष्ट करना चाहते हैं और वे हमारे बच्चों को ईसाई बनाना चाहते हैं।

3. ईसाई धर्म का प्रचार-धर्म के मामले में तो भारतीय भयभीत हो गए थे। लोगों में यह डर बैठ गया था कि अंग्रेज़ उन्हें ईसाई बनाना चाहते हैं। मिशनरियों द्वारा स्कूलों में धड़ल्ले से धर्म-प्रचार किया जाता था। जेलों में भी पादरी कैदियों में ईसाई धर्म का प्रचार करते थे। सेना में सरकार की ओर से पादरी नियुक्त किए जाने लगे जो धर्म-प्रचार करते थे। धर्म परिवर्तन करने वाले भारतीय सिपाहियों को पदोन्नति का प्रलोभन दिया जाता था।

4. उत्तराधिकार कानून-1850 ई० में सरकार ने एक उत्तराधिकार कानून (Lex Loci Act, 1850) पास करके लोगों की शंका को विश्वास में बदल दिया था। इस कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अन्य धर्म ग्रहण कर ले तो भी वह पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी रह सकता था। अब यदि कोई ईसाई धर्म ग्रहण करता था तो उसे पैतृक संपत्ति में से मिलने वाले हिस्से से वंचित नहीं किया जा सकता था।

5. सामान्य सेवा अधिनियम-1856 ई० में अंग्रेजों ने ‘सामान्य सेवा भती अधिनियम’ पास किया। इसके अनुसार भर्ती के समय ही प्रत्येक सैनिक को यह लिखित रूप में स्वीकार करना होता था कि जहाँ भी (भारत या भारत के बाहर) सरकार उसे युद्ध के लिए भेजेगी, वह जाएगा। इससे सैनिकों में भी असंतोष हुआ क्योंकि वे (अधिकांश उच्च जाति के हिन्दू सैनिक) समझते थे कि वे समुद्र पार जाने से उनकी जाति और धर्म दोनों नष्ट हो जाएंगे।

6. ‘चर्बी वाले कारतूस’ व अन्य अफवाहें-1857 ई० के शुरू में ही भारतीय सिपाहियों में एक अफवाह थी कि नए दिए गए कारतूसों में गाय व सूअर की चर्बी लगी हुई है। इन्हीं ‘चर्बी वाले कारतूसों’ ने इन सिपाहियों को अपने दीन-धर्म की रक्षा के लिए एकजुट कर दिया था। गाय हिंदुओं के लिए पूजनीय थी तो सूअर से मुसलमान घृणा करते थे। अतः दोनों धर्मों के सैनिकों ने इसे अंग्रेज़ों का धर्म भ्रष्ट करने का षड्यंत्र समझा।

अन्य कई तरह की अफवाहों में से एक थी आटे में हड्डियों के चूरे की मिलावट। इसे लोग अंग्रेजों के एक बड़े षड्यंत्र के रूप में देख रहे थे। उन्हें यह लग रहा था कि हिंदू और मुसलमान सभी भारतीयों के धर्म भ्रष्ट करने के एक षड्यंत्र के तहत ही आटे में गाय व सूअर की हड्डियों का चूरा मिलाया गया है। लोगों ने बाजार के आटे को हाथ तक लगाने से मना कर दिया। अधिकारी वर्ग के समझाने-बुझाने के प्रयास भी कोई काम नहीं आए। स्पष्ट है कि 1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में बहुत-से धार्मिक विश्वासों की भूमिका रही है, क्योंकि अंग्रेजों की नीतियों से यह विश्वास आहत हो रहे थे।

प्रश्न 4.
जन विद्रोह के प्रसार का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
विद्रोह 10 मई को मेरठ से शुरू हुआ। 11 मई को बहादुरशाह जफर ने स्वयं को विद्रोह का नेता घोषित करके समर्थन दे दिया। 12 और 13 मई को उत्तर भारत में शांति नज़र आई। लेकिन दिल्ली में विद्रोहियों के कब्जे और बहादुर शाह के नेतृत्व की सूचना जहाँ-जहाँ पहुंचती गई, वहाँ-वहाँ उत्तर भारत में विद्रोह तेज होता गया। एक महीने के भीतर ही उत्तर भारत की सैन्य छावनियों, शहर व. देहात में बड़े स्तर पर विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। भारत में अंग्रेज़ी सेना में लगभग 2 लाख 32 हजार भारतीय सैनिक थे। इनमें से लगभग आधे. इसमें कूद पड़े। विद्रोह शुरू करने का तरीका (Pattern) लगभग सभी जगह एक जैसा ही था।

सिपाहियों ने विद्रोह शुरू होने का संकेत प्रायः शाम को तोप का गोला दाग कर या फिर बिगुल बजाकर दिया। फिर जेल, सरकारी खजाने, टेलीग्राफ दफ्तर, रिकॉर्ड रूम, अंग्रेज़ों के बंगलों सहित तमाम सरकारी भवनों पर हमले किए गए। रिकॉर्ड रूम जलाए गए।

‘मारो फिरंगियों को’ नारों के साथ हिंदी, उर्दू व फारसी में अपीलें जारी की गईं। बड़े स्तर पर गोरे लोगों पर आक्रमण हुए। हिंदुओं और मुसलमानों ने एकजुट होकर विद्रोह में आह्वान किया। लोग अंग्रेजी शासन के प्रति नफरत से भरे हुए थे। वे लाठी, दरांती, तलवार, भाला तथा देशी बंदूकों जैसे अपने परंपरागत हथियारों के साथ विद्रोह में कूद पड़े। इनमें किसान, कारीगर, दकानदार व नौकरी पेशा तथा धर्माचार्य इत्यादि सभी लोग शामिल थे। सिपाहियों का यह विद्रोह एक व्यापक ‘जन-विद्रोह’ बन गया।

  • क्षेत्रीय विस्तार-सामाजिक व क्षेत्रीय दोनों तरह से निम्नलिखित क्षेत्र इसकी चपेट में आए

1. उत्तर प्रदेश-इस प्रदेश में लगभग समस्त गांवों, कस्बों और शहरों में यह फैल गया था। जून के पहले सप्ताह तक बरेली, लखनऊ, अलीगढ़, कानपुर, इलाहाबाद, आगरा, मेरठ, बनारस जैसे बड़े-बड़े नगर स्वतंत्र हो चुके थे। विद्रोहियों ने इन पर अधिकार जमा लिया था। बरेली में रूहेला सरदार खान बहादुर खाँ, कानपुर में नाना साहिब (धोंधू पंत) तथा इलाहाबाद में पेशे से एक अध्यापक व वहाबी नेता मौलवी लियाकत खाँ ने प्रशासन की कमान संभाल ली। लखनऊ में अवध के नवाबों के राजवंश ने सत्ता संभाल ली थी परंतु यहाँ विद्रोह का असली नेता अहमदुल्ला शाह था।

2. बिहार में विद्रोह-बिहार में पटना, दानापुर, शाहबाद तथा छोटा नागपुर में काफी बड़े स्तर पर जन-विद्रोह के रूप में फूटा। यहाँ नेतृत्व जगदीशपुर के ज़मींदार कुंवर सिंह व कुछ अन्य स्थानीय ज़मींदारों ने किया।

3. मध्य भारत में विद्रोह-मध्य-भारत के झाँसी, ग्वालियर, इंदौर, सागर तथा भरतपर आदि क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव रहा। मख्यतः यहाँ विद्रोह का नेतृत्व झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने किया। राजस्थान और मध्य प्रदेश के अधिकतर देशी राजा अंग्रेज़ों के वफादार बने रहे। परंतु कई स्थानों पर जनता और सेना अपने शासकों का साथ छोड़कर विद्रोही हो गई थी। उदाहरण के लिए ग्वालियर के सैनिकों और लोगों ने विद्रोह में भाग लिया, परंतु सिंधिया राजा ने विद्रोहियों को कुचलने के लिए अंग्रेज़ों का साथ दिया।

4. पंजाब व हरियाणा में विद्रोह-पंजाब में तो अंग्रेज़ों के विरुद्ध जेहलम, स्यालकोट आदि इलाकों में कुछ छिट-पुट घटनाएँ ही हुईं, लेकिन हरियाणा के हांसी, हिसार, रोहतक, रिवाड़ी और दिल्ली के साथ लगते मेवात क्षेत्र में बड़े स्तर पर लोगों ने हथियार उठाए। रिवाड़ी में राव तुला राम व उसके चचेरे भाई राव कृष्ण गोपाल ने इसका नेतृत्व किया। झज्जर में अब्दुल रहमान खाँ, मेवात में सरदार अली हसन खाँ तथा बल्लभगढ़ में राव नाहर सिंह और फर्रुखनगर के नवाब फौजदार खाँ विद्रोहियों के नेता थे।

यह विद्रोह मुख्यतः उत्तर भारत में ही था लेकिन कुछ छुट-पुट घटनाएँ दक्षिण व पूर्वी भारत में भी घटीं। पूर्व में दूर-दराज के क्षेत्र आसाम में भी इस विद्रोह की हवा पहुंची।
इस प्रकार यह उत्तर भारत में एक व्यापक विद्रोह था। बहुत-से अंग्रेज़ अधिकारियों में इससे घबराहट फैल गई थी। उन्हें लगने लगा था कि भारत उनके हाथ से निकल रहा है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

प्रश्न 5.
अवध में विद्रोह की व्यापकता के कारण स्पष्ट करें।
अथवा
अवध में विद्रोह अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक ‘लोक प्रतिरोध’ में कैसे बदल गया? स्पष्ट करें।
उत्तर:
अन्य स्थानों की अपेक्षा अंग्रेजों के विरुद्ध लोक-प्रतिरोध अवध में अधिक था। लोग फिरंगी राज के आने से अत्यधिक आहत थे। उन्हें लग रहा था कि उनकी दुनिया लुट गई है। वह सब कुछ बिखर गया है, जिन्हें वे प्यार करते थे। अंग्रेजी राज की नीतियों ने किसानों, दस्तकारों, सिपाहियों, ताल्लुकदारों और राजकुमारों को परस्पर जोड़ दिया था। फलस्वरूप यह एक लोक-प्रतिरोध बनकर उभरा।

1. अवध का विलय-अवध का विलय 1856 में विद्रोह फूटने से लगभग एक वर्ष पहले ‘कुशासन’ का आरोप लगाते हुए किया गया था। इसे लोगों ने न्यायसंगत नहीं माना। बल्कि वे इसे अंग्रेज़ों का एक विश्वासघात पूर्ण कदम मान रहे थे। अवध को ब्रिटिश राज में मिलाने की इच्छा काफी पहले से बन चुकी थी। 1851 में ही लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध के बारे में कहा था कि “यह गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा” उसकी दिलचस्पी अवध की उपजाऊ जमीन को हड़पने में भी थी।

यह जमीन नील और कपास की खेती के लिए उपयुक्त थी। अवध के विलय से एक भावनात्मक उथल-पुथल शुरू हो गई। लोगों में नवाब व उसके परिवार से गहरी सहानुभूति थी। वे उन्हें दिल से चाहते थे। जब नवाब लखनऊ से विदा ले रहे थे तो बहुत सारे लोग उनके पीछे विला

2. उच्च वर्गों के हितों को हानि-देशी रियासतों के पतन के बाद परंपरागत दरबारी कुलीन उच्च वर्ग भी बर्बाद हो गया। राजा-नवाबों की ओर से इन परिवारों के सदस्यों को विशेषाधिकार प्राप्त थे। जन-सामान्य में यह प्रतिष्ठित लोग थे। देशी राज्यों के विलय के बाद इनकी सुख-सुविधा, विशेषाधिकार व प्रतिष्ठा सब खत्म हो गई। इससे असंतोष पनपा और वे विद्रोहियों के सहयोगी बन गए।

3. आश्रित वर्गों को हानि-देशी राज्यों के विलय से सेना व सामान्य वर्ग के लोगों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा। हज़ारों सैनिक बेरोज़गार हो गए। कुछ तो रोजी-रोटी को मोहताज़ हो गए थे। अवध की सेना में से 45,000 सिपाहियों को मामूली पेंशन देकर बर्खास्त कर दिया गया था। मात्र 1000 को ब्रिटिश सेना में रखा गया और वे भी कंपनी की नौकरी से खुश नहीं थे। दरबार व उसकी संस्कृति खत्म होने के साथ ही कवि, कारीगर, बावर्ची, संगीतकार, नर्तक, सरकारी कर्मचारी व अन्य बहुत सारे लोगों की आजीविका समाप्त हो गई।

4. ताल्लुकदारों को क्षति-ताल्लुकदार अवध क्षेत्र में वैसे ही छोटे राजा थे जैसे बंगाल में ज़मींदार थे। वे छोटे महलनुमा घरों इनके अपने दुर्ग व सेना थी। 1856 में अवध का अधिग्रहण करते ही इन ताल्लुकदारों की सेनाएँ भंग कर दी गईं और दुर्ग भी ध्वस्त कर दिए गए।

जिनके पास ज़मीन के कागज-पत्र ठीक नहीं थे, उनकी ज़मीनें छीन ली गई थीं। लगभग 21,000 ताल्लुकदारों से ज़मीनें छीन ली गईं। सबसे बुरी मार दक्षिणी अवध के ताल्लुकदारों पर पड़ी। कुछ तो रोज़ी-रोटी को मोहताज़ हो गए थे। उनका सामाजिक सम्मान, स्थिति सब चली गई। ऐसी स्थिति में इन. जागीरदारों ने विद्रोहियों का साथ दिया।

5. किसानों में असंतोष-विद्रोह में बहुत बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया। इससे अंग्रेज़ अधिकारी काफी परेशान हुए थे। उन्हें यह आशा थी कि जिन किसानों को हमने ज़मीन का मालिक घोषित किया है वे तो अंग्रेज़ समर्थक रहेंगे ही। परंतु ऐसा नहीं हुआ।

ब्रिटिश व्यवस्था की अपेक्षा वे ताल्लुकदारी को ही बेहतर मान रहे थे। ज़मींदार बुरे वक्त में उनकी सहायता भी करता था। लोगों की दृष्टि में इन ताल्लुकदारों की छवि दयालु अभिभावकों की थी। तीज-त्योहारों पर भी उन्हें कर्जा अथवा मदद मिल जाती थी, फसल खराब होने पर भी उनकी दया-दृष्टि किसानों पर रहती थी। मुसीबत के समय यह नई सरकार कोई सहानुभूति की भावना कृषकों से नहीं रखती थी।

किसान ये जान चुके थे कि अवध में भू-राजस्व की दर का आकलन बहुत बढ़ा-चढ़ा कर किया गया है। कुछ स्थानों पर तो भू-राजस्व की माँग में 30 से 70% तक की वृद्धि हुई थी। इस राजस्व व्यवस्था से सरकार के राजस्व में तो वृद्धि हुई लेकिन किसानों का शोषण कम होने की बजाय बढ़ गया। वस्तुतः इन्हीं कारणों से किसानों ने विदेशी सत्ता के विरुद्ध शस्त्र उठाए।

6. किसान व सेना में संबंध-अवध में किसान और सैनिक परस्पर गहन रूप से जुड़े हुए थे। सेना का गठन गांवों के किसानों तथा ज़मींदारों में से ही किया गया था। बल्कि अवध को तो “बंगाल आर्मी की पौधशाला” (“Nursery of the Bengal Army”) कहा जाता था। यह सैनिक अपने गांव-परिवार से जुड़े हुए थे। हर सैनिक किसी किसान का बेटा, भाई या पिता था। एक भाई खेत में हल जोत रहा था तो दूसरे ने वर्दी पहन ली थी।

वह भी गांव में किए जा रहे अंग्रेज़ अधिकारियों के जुल्म से दुखी होता था। स्वाभाविक तौर पर उसमें भी इससे आक्रोश पैदा होता था। भूमि-कर की बढ़ी दरों व कठोरता से उसकी उगाही से किसान त्राही-त्राही कर रहा था। यहीं से अधिकांश सैनिक भर्ती किए हुए थे। नए भू-राजस्व कानूनों से जहाँ किसान, जमींदार ताल्लुकदार सभी पीड़ित थे वहीं सैनिक भी कम दुखी नहीं थे। स्पष्ट हैं कि इन सभी कारणों के संयोजन से ही अवध में विद्रोह एक जबरदस्त लोक-प्रतिरोध का रूप धारण कर गया।

प्रश्न 6.
1857 की घटना के बारे में प्रचलित दो मुख्य विचारधाराओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
अथवा
1857 की घटना ‘प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम’ था या मात्र एक ‘सैनिक विद्रोह’ था? स्पष्ट करें।
उत्तर:
1857 की घटना की प्रकृति को लेकर इतिहासकारों में काफी मतभेद रहा है। भारतीय देशभक्तों ने आजादी की लड़ाई लड़ते हुए इसे ‘प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम’ की संज्ञा दी, जबकि दूसरी ओर अंग्रेज़ अधिकारियों और लेखकों ने इसे शुद्ध रूप में एक ‘सैनिक विद्रोह’ बताया। आजकल इतिहासकार इसे ‘जन-विद्रोह’ अथवा ‘1857 का आंदोलन’ के नाम से पुकारते हैं। यहाँ हम इन्हीं दो विचारों के तर्कों पर विचार करेंगे कि यह सैनिक विद्रोह था अथवा प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम।

1. सैनिक विद्रोह-अंग्रेज लेखक सर जॉन लारेंस तथा जॉन सीले इत्यादि ने 1857 की घटना को एक सैनिक विद्रोह बताया है। सीले का विचार है कि “यह देशभक्ति की भावना से रहित स्वार्थपूर्ण सैनिक विद्रोह था।” इस विचार के पक्ष में इन लेखकों ने निम्नलिखित तर्क दिए हैं

  • विद्रोह की शुरूआत मेरठ सैनिक छावनी से हुई और इसका प्रभाव क्षेत्र मुख्यतः सैनिकों में था। विशेषतः उत्तर भारत की छावनियों में ही रहा।
  • कुछ स्वार्थी लोगों को छोड़कर आम लोगों ने सैनिकों का साथ नहीं दिया।
  • विद्रोहियों में देश प्रेम , की भावना नहीं थी।
  • सैनिक वेतन, भत्ते व अन्य कुछ छोटी-मोटी समस्याओं से नाराज थे। साथ ही उनकी धार्मिक भावनाओं को ध्यान में न रखने के कारण वे भड़क उठे।
  • सभी जगह विद्रोह पहले सैनिकों ने शुरू किया और बाद में वे शासक उनके साथ मिल गए जिनकी सत्ता छीन ली गई थी।
    अतः इन तर्कों के आधार पर पश्चिमी लेखकों का मत है कि 1857 की घटना एक सैनिक विद्रोह’ से अधिक कुछ नहीं था।

2. प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम-इस मत के समर्थकों में वीर सावरकर, अशोक मेहता, पट्टाभि सीतारमैय्या तथा इतिहासकार ईश्वरीप्रसाद सरीखे महानुभाव हैं। उल्लेखनीय है कि सन् 1909 में वीर सावरकर की पुस्तक ‘1857 का भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम’ आजादी के दीवानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई थी। इन लेखकों के मुख्य तर्क इस प्रकार हैं

1. विद्रोही देश भक्ति से प्रेरित थे। वे स्वधर्म और स्वराज के लिए लड़े।,

2. विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए यह एक सामूहिक प्रयास था। इसमें हिन्दू, मुसलमान और विभिन्न जातियों के लोगों ने मिलकर संघर्ष किया और बलिदान दिया।
धर्बी वाले कारतूसों’ ने तो मात्र चिंगारी का काम किया। वास्तव में यह ब्रिटिश नीतियों से पैदा हुए दीर्घकालीन असंतोष का परिणाम था। यदि ये ‘कारतूस’ न भी होते तो भी यह मुक्ति का आंदोलन तो चलना ही था। यद्यपि उपरोक्त तर्कों के आधार पर इसे आजादी की पहली लड़ाई बताया गया। तथापि कुछ इतिहासकारों ने इस विचार को भी उचित नहीं माना है। उदाहरण के लिए आर०सी० मजूमदार ने लिखा है, “तथाकथित राष्ट्रीय मुक्ति-संग्राम न तो पहला था, न राष्ट्रीय था और न ही मुक्ति का संग्राम था।”

निष्कर्ष-उपरोक्त दोनों मत अपनी-अपनी दृष्टि का परिणाम हैं। अंग्रेज़ लेखक कभी यह मानने को तैयार नहीं थे कि ब्रिटिश सरकार की नीतियों के कारण यह संग्राम पैदा हुआ। वे अपनी छोटी-मोटी गलतियों; जैसे कि कारतूसों का मामला आदि से ही इसे जोड़कर देखते थे। दूसरी ओर ‘पहला स्वतन्त्रता संग्राम’ बताने वाले लेखक देशभक्ति की भावना से प्रेरित थे और यही भावना पैदा करना चाहते थे। इसलिए उस जमाने में राष्ट्रीय विचारधारा के अभाव में भी उन्होंने इसे राष्ट्रीय आंदोलन बताया। इसकी सबसे बड़ी कमी थी कि विद्रोहियों के सामने भविष्य की स्पष्ट योजना नहीं थी। वे पुरानी व्यवस्था को पुनः स्थापित करने की सोच रहे थे।

प्रश्न 7.
1857 ई० के विद्रोह में भारतीय सैनिक क्यों शामिल हुए?
उत्तर:
1857 ई० के विद्रोह में भारतीय सैनिकों के शामिल होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

(1) सिपाहियों के वेतन और भत्ते बहुत कम थे। एक घुड़सवार सेना के सिपाही को 27 रुपए और पैदल सेना के सिपाही को मात्र 7 रुपए मिलते थे। वर्दी और भोजन का खर्च निकालकर मुश्किल से उनके पास एक या दो रुपए बच पाते थे।

(2) सेना में गोरे व काले के आधार पर भेदभाव आम बात थी। गोरे सैनिकों के अधिकार व सुविधाएँ भारतीय सैनिकों की तुलना में कहीं अधिक थीं। वेतन और भत्तों में भेदभाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों के पदोन्नति के अवसर लगभग न के बराबर थे।

(3) सिपाहियों को अपनी जाति तथा धर्म के खोने का भय सता रहा था। सिपाहियों के धर्म और जाति से सम्बन्धित चिह्न पहनने पर रोक लगा दी गई थी। सैनिकों के लिए विदेश में कुछ समय काम करना अनिवार्य कर दिया गया था।

(4) 1857 ई० का विद्रोह मुख्यतः चर्बी वाले कारतूसों की अफवाह को लेकर शुरू हुआ। 1857 ई० के शुरू में ही भारतीय सिपाहियों में एक अफवाह थी कि नए दिए गए कारतूसों में गाय व सूअर की चर्बी लगी हुई है। इन्हीं ‘चर्बी वाले कारतूसों’ ने इन सिपाहियों को अपने दीन-धर्म की रक्षा के लिए एकजुट कर दिया था। अतः दोनों धर्मों के सैनिकों ने इसे अंग्रेजों का धर्म भ्रष्ट करने का षड्यंत्र समझा। इन कारतूसों के प्रति सिपाहियों की नाराज़गी को भांपते हुए ब्रिटिश अधिकारियों ने सिपाहियों को लाख समझाने का प्रयत्न किया परंतु किसी ने इस पर विश्वास नहीं किया। इसने सिपाहियों में अत्यंत रोष उत्पन्न कर दिया था।

(5) सिपाहियों को अपने देशवासियों तथा गाँव के लोगों से बहुत प्रेम था। अतः बहुत-से स्थानों पर सिपाही गाँव की जनता का साथ देने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए।

(6) अंग्रेज अधिकारी भारतीय सैनिकों से दुर्व्यवहार किया करते थे। वे उन्हें अंग्रेज सिपाहियों की तुलना में हीन समझते थे। वे भारतीय सिपाहियों के रहन-सहन तथा उनकी परम्पराओं का मजाक उड़ाते थे। इसी कारण भारतीय सैनिकों में रोष बढ़ने लगा और वे 1857 ई० में हुए विद्रोह में शामिल हो गए।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. दहन के लिए आवश्यक वह कौन-सी गैस है जिसे औद्योगिक सभ्यता का आधार कहा जाता है?
(A) ओज़ोन
(B) नाइट्रोजन
(C) ऑक्सीजन
(D) आर्गन
उत्तर:
(C) ऑक्सीजन

2. रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन ऐसी कौन-सी गैस है जिसके अभाव में मनुष्य व जीव-जंतुओं के ऊतक जलकर नष्ट हो जाते हैं?
(A) हीलियम
(B) क्रिप्टान
(C) हाइड्रोजन
(D) नाइट्रोजन
उत्तर:
(D) नाइट्रोजन

3. वह कौन-सी गैस है जिससे मिलकर पौधे स्टार्च व शर्कराओं का निर्माण करते हैं?
(A) जीनोन
(B) नियोन
(C) कार्बन-डाईऑक्साइड
(D) ओज़ोन
उत्तर:
(C) कार्बन-डाईऑक्साइड

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

4. उस गैस का नाम बताइए जो चूने की चट्टानों पर कार्ट स्थलाकृति की रचना करती है और ग्रीन हाऊस प्रभाव उत्पन्न करती है।
(A) ऑक्सीजन
(B) कार्बन-डाईऑक्साइड
(C) नाइट्रोजन
(D) हाइड्रोजन
उत्तर:
(B) कार्बन-डाईऑक्साइड

5. पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेने वाली ओजोन गैस वायुमंडल में किस ऊंचाई पर मिलती है?
(A) 80 कि०मी० पर
(B) 50 से 100 कि०मी० तक
(C) 10 से 50 कि०मी० तक
(D) 8 से 16 कि०मी० तक
उत्तर:
(C) 10 से 50 कि०मी० तक

6. वायुमंडल में कार्बन-डाईऑक्साइड किस ऊंचाई तक पाई जाती है?
(A) 50 कि०मी०
(B) 90 कि०मी०
(C) 120 कि०मी०
(D) 30 कि०मी०
उत्तर:
(B) 90 कि०मी०

7. वायुमंडल का कौन-सा घटक इंद्रधनुष और प्रभामण्डल जैसे मनभावन दृश्य विकसित करने में भूमिका निभाता है?
(A) कण
(B) गैस
(C) उल्कापात
(D) जलवाष्प
उत्तर:
(D) जलवाष्प

8. अधिकांश मौसमी घटनाएँ किस मण्डल में घटित होती हैं?
(A) क्षोभमण्डल
(B) समतापमण्डल
(C) आयनमण्डल
(D) ओज़ोन मण्डल
उत्तर:
(A) क्षोभमण्डल

9. वायुमंडल की किस परत को “मौसमी परिवर्तनों की छत” कहा जाता है?
(A) समतापमण्डल
(B) समताप सीमा
(C) मध्यमण्डल सीमा
(D) क्षोभसीमा
उत्तर:
(D) क्षोभसीमा

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

10. वायुमंडल की कौन-सी परत पृथ्वी की ओर से भेजी गई रेडियो तरंगों को परावर्तित करके पुनः पृथ्वी पर भेज देती है?
(A) तापमण्डल
(B) समतापमण्डल
(C) मध्यमण्डल
(D) क्षोभमण्डल
उत्तर:
(A) तापमण्डल

11. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(A) पृथ्वी की ओर आ रहे उल्कापिंड समतापमण्डल में जलकर नष्ट हो जाते हैं।
(B) मध्यमण्डल सीमा को ‘मुक्त मेघों की जननी’ कहा जाता है।
(C) समतापमण्डल में उड़ते जेट विमान से छूटती सफेद पूंछ वास्तव में इंजन से निकली नमी होती है।
(D) वायुमंडल गतिशील, लचीला, संपीड्य और प्रसारणीय है।
उत्तर:
(B) मध्यमण्डल सीमा को ‘मुक्त मेघों की जननी’ कहा जाता है।

12. निम्नलिखित में से कौन-सी गैस वायुमण्डल में सबसे कम मात्रा में मौजूद है?
(A) ऑक्सीजन
(B) कार्बन-डाइऑक्साइड
(C) नाइट्रोजन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कार्बन-डाइऑक्साइड

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
वायुमंडल की सबसे निचली परत में कौन सी गैस पाई जाती है?
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड।

प्रश्न 2.
वह कौन-सी गैस है जिसके बिना आग नहीं जलाई जा सकती?
उत्तर:
ऑक्सीजन।

प्रश्न 3.
कौन-सी गैस पौधों व वनस्पति का भोजन बनाने में काम आती है?
उत्तर:
नाइट्रोजन।

प्रश्न 4.
वायुमंडल की कौन-सी गैस पराबैंगनी विकिरण को सोख लेती है?
उत्तर:
ओज़ोन।

प्रश्न 5.
मानव तथा धरातलीय जीवों के लिए कौन-सी परत सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
क्षोभमण्डल।

प्रश्न 6.
क्षोभमण्डल की ध्रुवों तथा भूमध्यरेखा पर ऊँचाई क्रमशः कितनी है?
उत्तर:
8 कि०मी० व 18 कि०मी०।

प्रश्न 7.
वायुमंडल की कौन-सी परत द्वारा रेडियो तरंगों का पृथ्वी की ओर परावर्तन होता है?
उत्तर:
आयनमण्डल द्वारा।

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प्रश्न 8.
जेट विमानों के उड़ान की आदर्श स्थिति किस मण्डल में है?
उत्तर:
समतापमण्डल में।

प्रश्न 9.
ऊँचाई के साथ तापमान किस मण्डल में बढ़ता है?
उत्तर:
समतापमण्डल में।

प्रश्न 10.
क्षोभमण्डल को समतापमण्डल से अलग करने वाली पतली परत का नाम बताइए।
उत्तर:
क्षोभ सीमा।

प्रश्न 11.
ध्रुवीय प्रकाश के दर्शन वायुमंडल की किस परत में होते हैं?
उत्तर:
आयनमण्डल में।

प्रश्न 12.
वायुमंडल की सबसे निचली परत का नाम बताएँ।
उत्तर:
क्षोभमण्डल।

प्रश्न 13.
वायुमंडल की किस परत में मौसमी दशाएँ अथवा वायुमंडलीय विघ्न पाए जाते हैं?
उत्तर:
क्षोभमण्डल में।

प्रश्न 14.
वायुमंडल की किस परत में तापमान स्थिर रहता है?
उत्तर:
समतापमण्डल में।

प्रश्न 15.
कौन-सी गैस ‘काँच घर का प्रभाव’ उत्पन्न करती है?
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड।

प्रश्न 16.
वायुमंडल पृथ्वी के साथ किस शक्ति के कारण से टिका हुआ है?
उत्तर:
पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण।

प्रश्न 17.
आधुनिक खोजों के अनुसार वायुमंडल की ऊँचाई कितनी है?
उत्तर:
32,000 कि०मी० से अधिक।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित में से प्रत्येक के लिए पारिभाषिक शब्द लिखिए-

  1. समतापमण्डल को क्षोभमण्डल से अलग करने वाली परत।
  2. वायुमंडल का वह संस्तर जिसमें वायुयानों को उड़ाने के लिए आदर्श दशाएँ मौजूद हैं।
  3. वायुमंडल का वह संस्तर जो पृथ्वी से प्रेषित रेडियो तरंगों को परावर्तित करके पुनः पृथ्वी के धरातल पर वापस भेज देता है।
  4. हवा का वह विस्तृत आवरण जो पृथ्वी को चारों ओर से पूर्णतः ढके हुए हैं।
  5. वायुमंडल का वह संस्तर जो समतापमण्डल और आयनमण्डल के बीच स्थित है।
  6. वायुमंडल का सबसे ऊपरी संस्तर।

उत्तर:

  1. क्षोभ सीमा
  2. समतापमण्डल
  3. आयनमण्डल
  4. वायुमंडल
  5. मध्यमण्डल
  6. बाह्यमण्डल।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुमंडल किन तत्त्वों से बना हुआ है?
उत्तर:
अनेक गैसों, जलवाष्प तथा कुछ सूक्ष्म ठोस कणों से।

प्रश्न 2.
जीवन के लिए कौन-सी गैसें महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
मनुष्य और जानवरों के लिए ऑक्सीजन तथा पेड़-पौधों के लिए कार्बन-डाइऑक्साइड।

प्रश्न 3.
वायुमंडल की प्रमुख परतों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. क्षोभमण्डल
  2. समतापमण्डल
  3. मध्यमण्डल
  4. आयनमण्डल तथा
  5. बाह्यमण्डल।

प्रश्न 4.
क्षोभमण्डल में तापमान की सामान्य ह्रास दर कितनी है?
उत्तर:
165 मीटर के लिए 1° सेल्सियस या 1 कि०मी० के लिए 6.4° सेल्सियस।

प्रश्न 5.
वायुमंडल में नाइट्रोजन व ऑक्सीजन गैसों का कितना-कितना प्रतिशत है?
उत्तर:
क्रमशः 78 प्रतिशत व 21 प्रतिशत।

प्रश्न 6.
वायुमंडल का हमारे लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायुमंडल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन सम्भव हुआ है।

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प्रश्न 7.
ओज़ोन गैस का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यह गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है।

प्रश्न 8.
ओजोन परत के छिलने या कम होने के दो कारण बताओ।
उत्तर:

  1. कार्बन-डाइऑक्साइड गैस का अधिक औद्योगिक उपयोग।
  2. वनों की अत्यधिक कटाई।

प्रश्न 9.
ओज़ोन परत धरातल से कितनी ऊँचाई पर स्थित है?
उत्तर:
10 से 50 कि०मी० की ऊँचाई पर।

प्रश्न 10.
आयतन के हिसाब से वायुमंडल में वाष्प की कितनी मात्रा पाई जाती है?
उत्तर:
अति ठण्डे व अति शुष्क क्षेत्रों में हवा के आयतन के एक प्रतिशत तक तथा भूमध्य रेखा के पास उष्ण व आर्द्र क्षेत्रों में हवा के आयतन के 4 प्रतिशत तक।

प्रश्न 11.
मौसम के प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
तापमान, वर्षा, पवनों की दिशा, पवनों की गति, आर्द्रता व मेघ इत्यादि।

प्रश्न 12.
जलवाष्प के मुख्य स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वाष्पीकरण तथा पेड़-पौधों व मिट्टी से वाष्पोत्सर्जन।

प्रश्न 13.
जलवाष्पों के मुख्य कार्य कौन-से होते हैं?
उत्तर:
वाष्प ही संघनित होकर ओस, कुहासा, कोहरा तथा बादल बनाते हैं।

प्रश्न 14.
धूलकणों का वायुमंडल में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ये ताप का अवशोषण करते हैं तथा धुंध, धूम कोहरा व बादल बनाते हैं।

प्रश्न 15.
ऐरोसोल क्या होता है?
उत्तर:
वायुमंडल में धूल, पराग व नमक आदि के ठोस कणों को ऐरोसोल कहा जाता है।

प्रश्न 16.
क्षोभमण्डल की ऊँचाई भूमध्य रेखा पर अधिक क्यों होती है?
उत्तर:
ध्रुवों पर क्षोभमण्डल की ऊँचाई 8 किलोमीटर और भूमध्य रेखा पर 18 किलोमीटर है। भूमध्य रेखा पर क्षोभमण्डल की अधिक ऊँचाई का कारण यह है कि वहाँ पर चलने वाली तेज़ संवहन धाराएँ ऊष्मा को धरातल से अधिक ऊँचाई पर ले जाती हैं। यही कारण है कि जाड़े की अपेक्षा गर्मी में क्षोभमण्डल की ऊँचाई बढ़ जाती है।

प्रश्न 17.
विषममण्डल (Heterosphere) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विषममण्डल एक परतदार उष्ण मण्डल है जो मध्यमण्डल से ऊपर स्थित है। इस मण्डल में तापमान तेज़ी से बढ़ता है। यहाँ 350 कि०मी० की ऊँचाई पर तापमान 900° सेल्सियस तक पहुँच जाता है।

प्रश्न 18.
पृथ्वी का अंग न होते हुए भी वायुमंडल पृथ्वी से क्यों जुड़ा हुआ है?
उत्तर:
वायुमंडल का अधिकतर भाग भू-पृष्ठ से केवल 32 कि०मी० की ऊँचाई तक सीमित है। पृथ्वी का अंग न होते हुए भी वायुमंडल- पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी से जुड़ा हुआ है।

प्रश्न 19.
वायुमंडल की सक्रिय व निष्क्रिय गैसें कौन-सी हैं?
उत्तर:
वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन-डाइऑक्साइड तथा ओज़ोन गैसें सक्रिय गैसें हैं, परन्तु कुछ गैसें अत्यन्त कम मात्रा में मिलती हैं और रासायनिक प्रतिक्रियाओं में शामिल नहीं होतीं। ऐसी निष्क्रिय गैसों में जेलोन, क्रिप्टॉन, नियॉन तथा आर्गन इत्यादि आती हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुमंडल की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वायुमंडल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. वायुमंडल की वायु एक रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन पदार्थ है।
  2. वायुमंडल को हम देख नहीं सकते। वर्षा, ओले, तूफ़ान, बादल, तड़ित व धुंध जैसी घटनाओं से हम इसकी उपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं।
  3. नवीनतम खोजों के अनुसार वायुमंडल 32,000 कि०मी० से भी अधिक ऊँचाई तक फैला हुआ है। कभी इसकी ऊँचाई केवल 800 कि०मी० मानी जाती थी।
  4. वास्तव में वायुमंडल की कोई ऐसी ऊपरी सीमा तय नहीं हो सकी जो इसे अन्तरिक्ष (Universe) से अलग करती हो।
  5. भू-तल के निकट वायु सघन (Dense) होती है जो ऊँचाई बढ़ने के साथ उत्तरोत्तर विरल (Rare) और हल्की होती जाती है।
  6. यह पता ही नहीं चल पाता कि कहाँ वायुमंडल समाप्त होकर अन्तरिक्ष में विलीन हो गया।

प्रश्न 2.
वायुमंडल किन-किन तत्त्वों से मिलकर बना है? उन तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा लिखिए।
उत्तर:
वायुमंडल विभिन्न गैसों का एक मिश्रण है जिसमें ठोस तथा तरल पदार्थों के कण असमान मात्रा में तैरते रहते हैं। शुद्ध शुष्क वायु में नाइट्रोजन 78.08%, ऑक्सीजन 20.95%, कार्बन-डाइऑक्साइड 0.036% और हाइड्रोजन 0.01% तथा ओज़ोन इत्यादि गैसें होती हैं। वायुमंडल में गैसों के अतिरिक्त जलकण तथा धूलकण होते हैं। वायु का संघटन विभिन्न स्थानों तथा विभिन्न समयों में भिन्न होता है। विश्व की जलवायु तथा मौसमी दशाएँ इसी पर आधारित होती हैं।

शुद्ध शुष्क वायु निम्नलिखित तत्त्वों से बनी होती है:

वायु में विभिन्न गैसों की प्रतिशत मात्रा (आयतन)
नाइट्रोजन (N2)78%
ऑक्सीजन (O2)21%
आर्गन (Ar)0.93%
कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2)0.03%
अन्य0.04%

प्रश्न 3.
वायुमंडल में ऑक्सीजन व कार्बन-डाइऑक्साइड के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऑक्सीजन का महत्त्व-

  • यह एक जीवनदायिनी गैस है। मनुष्य और जानवर श्वसन में ऑक्सीजन को ही ग्रहण करते हैं।
  • ऑक्सीजन दहन के लिए आवश्यक है। इसके बिना आग नहीं जलाई जा सकती। इस प्रकार ऑक्सीजन ऊर्जा का प्रमुख साधन व औद्योगिक सभ्यता का आधार है।
  • शैलों के रासायनिक अपक्षय में सहयोग देकर ऑक्सीजन अनेक भू-आकारों की उत्पत्ति का कारण बनती है।

कार्बन-डाइऑक्साइड का महत्त्व-

  • जीवित रहने के लिए पौधे कार्बन-डाइऑक्साइड पर निर्भर करते हैं।
  • हरे पौधे वायुमंडल की कार्बन-डाइऑक्साइड से मिलकर स्टार्च व शर्कराओं का निर्माण करते हैं।
  • यह गैस प्रवेशी सौर विकिरण को तो पथ्वी तल तक आने देती है किन्त पथ्वी से विकिरित होने वाली लम्बी तरंगों को बाहर जाने से रोकती है। इससे पृथ्वी के निकट वायुमंडल का निचला भाग गर्म रहता है। इस प्रकार कार्बन-डाइऑक्साइड ‘काँच घर का प्रभाव’ उत्पन्न करती है।
  • औद्योगिक क्रान्ति के बाद जैव ईंधन (लकड़ी, कोयला, पेट्रोल व गैस) के अधिक जलने से वायुमंडल में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा 10 प्रतिशत बढ़ी है जिससे भू-मण्डलीय ऊष्मा में वृद्धि हुई है।
  • वर्षा जल में घुलकर कार्बन-डाइऑक्साइड तनु अम्ल बनाती है और चूने की चट्टानों पर ‘कार्ट स्थलाकृति’ की रचना करती है।

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प्रश्न 4.
वायुमंडल में धूलकणों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायुमंडल में उपस्थित धूल के कण निम्नलिखित रूप से महत्त्वपूर्ण हैं-

  1. धूलकण सौर ताप के कुछ भाग को सोख लेते हैं तथा कुछ भाग को परावर्तित कर देते हैं जिससे वायुमंडल का तापमान अधिक नहीं बढ़ता।
  2. वायुमंडल में उपस्थित धूलकण आर्द्रताग्राही केन्द्र का कार्य करते हैं। इनके चारों ओर ही जलवाष्प केन्द्रित होते हैं जिससे कोहरा तथा बादल आदि का निर्माण होता है और वर्षा होती है।
  3. धूलकणों के कारण वायुमंडल की दर्शन क्षमता कम होती है।
  4. धूलकणों के कारण ही सूर्योदय, सूर्यास्त तथा इन्द्रधनुष आदि रंग-बिरंगे दृश्यों का निर्माण होता है।

प्रश्न 5.
वायुमंडल में नाइट्रोजन व ओज़ोन गैस का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नाइट्रोजन का महत्त्व-

  • नाइट्रोजन वायु में उपस्थित ऑक्सीजन के प्रभाव को कम करती है। यदि वायुमंडल में नाइट्रोजन न होती तो वस्तुएँ इतनी तेज़ी से जलती कि उस पर नियन्त्रण करना कठिन होता।
  • नाइट्रोजन के अभाव में मनुष्य तथा जीव-जन्तुओं के शरीर के ऊतक भी जलकर नष्ट हो जाते हैं।
  • मिट्टी में नाइट्रोजन की उपस्थिति प्रोटीनों का निर्माण करती है जो पौधों और वनस्पति का भोजन बनते हैं।
  • नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण ही वायुदाब, पवनों की गति तथा प्रकाश के परावर्तन का आभास होता है।

ओज़ोन गैस का महत्त्व ओजोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है जिससे स्थलमण्डल एक उपयुक्त सीमा से अधिक गर्म नहीं हो पाता। इस प्रकार यह गैस एक छलनी (Filter) का कार्य करती है जिसकी अनुपस्थिति में सब कुछ जलकर समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 6.
वायुमंडल में जलवाष्प के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वाष्प ही संघनित होकर ओस, कुहासा, कोहरा तथा बादलों का सृजन करते हैं। धरती पर वर्षा और हिमपात भी इन्हीं के कारण होता है। वायुमंडल में जलवाष्प की उपस्थिति के कारण ही इन्द्रधनुष तथा प्रभा-मण्डल जैसे मनभावन दृश्य विकसित होते हैं।

वाष्प की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्रिया उसकी पारदर्शिता पर आधारित होती है। इसी पारदर्शिता के कारण लघु तरंगों के रूप में सूर्य की ऊष्मा धरती पर पहुँच सकती है किन्तु लम्बी तरंगों के रूप में विकिरित ऊष्मा वायुमंडल को चीरकर बाहर नहीं जा पाती। अतः वायुमंडल में वाष्पों की उपस्थिति के कारण पृथ्वी गर्म रह पाती है। इस प्रकार वाष्प विशाल कम्बल की भाँति कार्य करते हैं। वाष्प या जल के अन्य रूपों द्वारा छोड़ी गई गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) अनेक मौसमी दशाओं को जन्म देती है।

प्रश्न 7.
वायुमंडल में पाए जाने वाले ठोस कण और आकस्मिक रचक कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:
गैस तथा वाष्प के अतिरिक्त वायु में कुछ सूक्ष्म ठोस कण भी पाए जाते हैं जिनमें धूलकण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये कण सौर विकिरण का कुछ अंश अवशोषित कर लेते हैं साथ ही सूर्य की किरणों का परावर्तन (Reflection) और प्रकीर्णन (Scattering) भी करते हैं। इसी के परिणामस्वरूप हमें आकाश नीला दिखाई पड़ता है। किरणों के प्रकीर्णन के कारण ही सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आकाश में लाल और नारंगी रंग की छटाएँ बनती हैं। इन्हीं धूल कणों के कारण ही धुंध (Haze) व धूमकोहरा (Smog = Smoke + Fog) बनता है।

वायुमंडल में कुछ आकस्मिक रचक (Accidental Component) और अपद्रव्य (Impurities) भी शामिल होती हैं। इनमें धुएँ की कालिख (soot), ज्वालामुखी राख, उल्कापात के कण, समुद्री झाग के बुलबुलों के टूटने से मुक्त हुए ठोस लवण, जीवाणु, बीजाणु तथा पशुशालाओं के पास की वायु में अमोनिया के अंश इत्यादि पदार्थ आते हैं।

प्रश्न 8.
गुप्त ऊष्मा क्या होती है तथा मौसम पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
“गुप्त ऊष्मा प्रचण्ड मौसमी दशाओं का इंजन कहलाती है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
केवल जल में निराली विशेषता होती है कि वह तापमान के अनुसार गैस, तरल व ठोस अवस्था में बदल सकता है। जल जब एक अवस्था से दूसरी अवस्था में बदलता है तो यह या तो ऊष्मा छोड़ता है या ग्रहण करता है। इसके बिना जल की अवस्था बदल नहीं सकती। इस ऊष्मा को गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) कहते हैं। वाष्पन (Evaporation) की प्रक्रिया में जलवाष्प ऊष्मा को ग्रहण करते हैं जबकि संघनन की प्रक्रिया में ऊष्मा का त्याग होता है। प्रायः त्यागी गई ऊष्मा, ग्रहण की गई ऊष्मा के लगभग समान होती है। पवनें गुप्त ऊष्मा का स्थानान्तरण करती हैं। जब गुप्त ऊष्मा अत्यधिक मात्रा में निकलती है तो वायु में असन्तुलन की दशाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। फलस्वरूप बिजली की कड़क, बादलों का गरजना, उष्ण-कटिबन्धीय चक्रवात और तड़ित-झंझावात जैसी प्रचण्ड घटनाएँ घटित होती हैं।

प्रश्न 9.
मनुष्य के लिए वायुमंडल का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायुमंडल मनुष्य के लिए निम्नलिखित प्रकार से महत्त्वपूर्ण है-

  1. वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन गैस मानव-जीवन का आधार है।
  2. पेड़-पौधों का जीवन वायुमंडल की कार्बन-डाइऑक्साइड पर निर्भर करता है।
  3. वायुमंडल सूर्यातप को अवशोषित करके एक काँच घर (Glass House) का कार्य करता है।
  4. वायुमंडल में उपस्थित धूलकण वर्षा का आधार बनते हैं।
  5. वायुमंडल का विभिन्न खाद्यान्नों, मौसम, जलवायु तथा वायुमार्गों पर भी प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 10.
क्षोभमण्डल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भू-तल के सम्पर्क में क्षोभमण्डल वायुमंडल की सबसे निचली परत है जिसका घनत्व सर्वाधिक है। ध्रुवों पर इस परत की ऊँचाई 8 किलोमीटर और भूमध्य रेखा पर 18 किलोमीटर है। भूमध्य रेखा पर क्षोभमण्डल की अधिक ऊँचाई का कारण यह है कि वहाँ पर चलने वाली तेज़ संवहन धाराएँ ऊष्मा को धरातल से अधिक ऊँचाई पर ले जाती हैं। यही कारण है कि जाड़े की अपेक्षा गर्मी में क्षोभमण्डल की ऊँचाई बढ़ जाती है। संवहन धाराओं की अधिक सक्रियता के कारण इस परत को प्रायः संवहन क्षेत्र भी कहते हैं। इस मण्डल में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सेल्सियस तापमान गिर जाता है। ऊँचाई बढ़ने पर तापमान गिरने की इस दर को सामान्य हास दर कहा जाता है। मानव व अन्य धरातलीय जीवों के लिए यह परत सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। ऋतु व मौसम सम्बन्धी लगभग सभी घटनाएँ; जैसे बादल, वर्षा, भूकम्प आदि जो मानव-जीवन को प्रभावित करती हैं, इसी परत में घटित होती हैं। क्षोभमण्डल में ही भारी गैसों, जलवाष्प, धूलकणों, अशुद्धियों व आकस्मिक रचकों की अधिकतम मात्रा पाई जाती है।

क्षोभमण्डल की ऊपरी सीमा को क्षोभ सीमा (Tropopause) कहते हैं। यह क्षोभमण्डल व समतापमण्डल को अलग करती है। लगभग 11/2 से 2 किलोमीटर मोटी इस परत में ऊँचाई के साथ तापमान गिरना बन्द हो जाता है। इस भाग में हवाएँ व संवहनी धाराएँ भी चलना बन्द हो जाती हैं।

प्रश्न 11.
क्षोभ सीमा क्या है?
उत्तर:
भू-तल से ऊपर की ओर जाते हुए तापमान असमान दर से परिवर्तित होता है। 15 कि०मी० की ऊँचाई तक तापमान के घटने की दर धीमी होती है। 80 कि०मी० तक तापमान में परिवर्तन नहीं होता, परन्तु 80 कि०मी० के पश्चात् तापमान में तेज़ी से वृद्धि होती है। क्षोभमण्डल से ऊपर समतापमण्डल आरम्भ हो जाता है। समतापमण्डल तथा क्षोभमण्डल को अलग करने वाला संक्रमण क्षेत्र क्षोभ सीमा कहलाता है।

प्रश्न 12.
क्षोभ सीमा पर ध्रुवों की अपेक्षा विषुवत् रेखा के ऊपर न्यूनतम तापमान क्यों पाया जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी पर न्यूनतम तापमान ध्रुवीय क्षेत्रों में मिलता है, परन्तु वायुमंडल में क्षोभ सीमा पर न्यूनतम तापमान विषुवत् रेखा पर मिलता है। विषुवत् रेखा पर क्षोभ सीमा में न्यूनतम तापमान -80° सेल्सियस तथा ध्रुवों पर -45° सेल्सियस पाया जाता है। इसका प्रमुख कारण क्षोभ सीमा की ऊँचाई है। विषुवत रेखा पर इसकी ऊँचाई 18 कि०मी० तथा ध्रुवों पर केवल 8 कि०मी० होती है। वायुमंडल में भू-तल से ऊपर की ओर जाते हुए प्रति 165 मी० पर तापमान 1° सेल्सियस कम होता है। भूमध्य रेखा से क्षोभ सीमा की ऊँचाई अधिक होने के कारण वहाँ तापमान न्यूनतम होता है।

प्रश्न 13.
वायुमंडलीय प्रक्रम क्या होते हैं तथा उनका जलवायु के तत्त्वों से क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
वायुमंडलीय प्रक्रमों का अर्थ वायुमंडल में होने वाली उन घटनाओं से है जो दीर्घकाल तक वायुमंडल और पृथ्वी के बीच ताप और आर्द्रता के विनिमय होने के फलस्वरूप घटित होती हैं। भूमण्डलीय पवन-प्रवाह, वाष्पन, द्रवण, ऊष्मा का संचरण एवं विकिरण, जलीय चक्र इत्यादि वायुमंडलीय प्रक्रम हैं जो जैवमण्डल को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। वायुमंडल के सभी प्रक्रम कुछ जलवायवीय तत्त्वों पर निर्भर करते हैं; जैसे तापमान, वायुदाब, आर्द्रता, वायु की दिशा एवं गति तथा जलवायु परिवर्तन आदि।

प्रश्न 14.
आयनमण्डल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आयनमण्डल-मध्यमण्डल सीमा से परे स्थित आयनमण्डल 80 से 400 किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत है। इस परत में विद्यमान गैस के कण विद्युत् आवेशित होते हैं। इन विद्युत् आवेशित कणों को आयन कहा जाता है। ये आयन विस्मयकारी विद्युतीय और चुम्बकीय घटनाओं का कारण बनते हैं। इसी परत में ब्रह्माण्ड किरणों का परिलक्षण होता है। आयनमण्डल पृथ्वी की ओर से भेजी गई रेडियो-तरंगों को परावर्तित करके पुनः पृथ्वी पर भेज देता है। इसी मण्डल से उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) तथा दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Australis) के दर्शन होते हैं।

प्रश्न 15.
जलवायु के मुख्य नियन्त्रक कौन-कौन से हैं?
अथवा
किसी स्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
किसी स्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक हैं-

  1. अक्षांश
  2. समुद्र तल से ऊँचाई
  3. जल व स्थल का वितरण
  4. वायुदाब
  5. प्रचलित पवनें
  6. सागरीय धाराएँ
  7. स्थलीय अवरोध।

प्रश्न 16.
ओज़ोन पर टिप्पणी लिखिए। यह परत क्यों छिज रही है? परत के पतला होने के सम्भावित नुकसान बताइए।
उत्तर:
ओजोन परत-ओज़ोन गैस ऑक्सीजन का ही एक विशिष्ट रूप है जो समतापमण्डल में 20 से 50 कि०मी० की ऊँचाई , में पाई जाती है। ओज़ोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों (Ultra-Violet Rays) के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है जिससे स्थलमण्डल एक उपयुक्त सीमा से अधिक गर्म नहीं हो पाता। इस प्रकार यह गैस एक छलनी (Filter) का कार्य करती है जिसकी अनुपस्थिति में सब कुछ जलकर समाप्त हो जाता है। कार्बन-डाइऑक्साइड, अन्य रसायनों तथा अणु शक्ति के परीक्षणों से ओज़ोन की मात्रा घट रही है। सन् 1980 में अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन परत में एक सुराख देखा गया था। इस सुराख से पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच सकती हैं जिससे त्वचा का कैंसर व अन्धापन बढ़ सकता है।

प्रश्न 17.
कौन-सी गैस अल्प मात्रा में होते हुए भी वायुमंडलीय प्रतिक्रियाओं के लिए महत्त्वपूर्ण मानी जाती है?
उत्तर:
वायुमंडल में 0.03 प्रतिशत होते हुए भी कार्बन-डाइऑक्साइड अनेक वायुमंडलीय प्रतिक्रियाओं में शामिल होती है। यह गैस ऊष्मा का अवशोषण करती है जिससे निचला वायुमंडल प्रवेशी सौर विकिरण तथा पार्थिव विकिरण द्वारा गर्म हो पाता है। प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान हरे पौधे वायुमंडल से कार्बन-डाइऑक्साइड का प्रयोग करते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

प्रश्न 18.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ स्पष्ट कीजिए-
(1) संघनन
(2) इन्द्रधनुष
(3) प्रभामण्डल
(4) धूम कोहरा
(5) प्रकीर्णन
(6) उल्काएँ
(7) मौसम और जलवायु में अंतर
(8) ध्रुवीय प्रकाश
(9) इंटरनेट।
उत्तर:
(1) संघनन-उस ताप को जिस पर वायु अपने में विद्यमान जलवाष्प से संतृप्त हो जाती है, ओसांक (dew point) कहते हैं। वायु का ताप ओसांक से नीचे गिरने पर उसमें विद्यमान जल-वाष्प द्रव जल में बदल जाता है जो ओस या कुहासे के रूप में प्रकट होता है। जलवाष्प के द्रव जल में परिणित होने की घटना संघनन कहलाती है।

(2) इन्द्रधनुष बहुरंजित प्रकाश की एक चाप, जो वर्षा की बूंदों द्वारा सूर्य की किरणों के आन्तरिक अपवर्तन तथा परावर्तन द्वारा निर्मित होती है।

(3) प्रभामण्डल-सूर्य अथवा चन्द्रमा के चारों ओर एक प्रकाश-वलय जो उस समय बनता है जब आकाश में पक्षाभ-स्तरी मेघ की एक महीन परत छायी रहती है। जब सौर प्रभामण्डल बन जाता है, तब वह सूर्य को चमक के कारण दिखाई नहीं देता, परन्तु गहरे रंग के शीशे से आसानी से देखा जा सकता है।

(4) धूम कोहरा अत्यधिक धुएँ से भरा कोहरा धूम कोहरा (Smog) कहलाता है, जो सामान्य रूप से औद्योगिक तथा घने बसे नगरीय क्षेत्रों में पाया जाता है। अंग्रेजी भाषा के इस शब्द की रचना दो शब्दों स्मोक व फॉग (Smoke + Fog) को मिलाकर की गई है।

(5) प्रकीर्णन-लघु तरंगी सौर विकिरण का वायुमंडल के धूलकण व जलवाष्पों से टकराकर टूटना।

(6) उल्काएँ उल्काएँ पत्थर व लोहे के पिण्ड हैं जो अन्तरिक्ष में तेज गति से घमते रहते हैं। कभी-कभी उल्काएँ वायमंडल में खिंच आती हैं और वायु के साथ घर्षण से उत्पन्न ऊष्मा से जल उठती हैं। ऐसी अवस्था में आकाश में प्रकाश की रेखा भी खिंचकर लुप्त हो उठती है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे एक तारा टूटकर गिर रहा हो। इस घटना को उल्कापात कहते हैं। उल्काओं की उत्पत्ति का कुछ नहीं पता।

(7) मौसम और जलवायु में अन्तर-मौसम किसी स्थान की दिए हुए समय में वायुमंडलीय दशाओं; जैसे तापमान, आर्द्रता, वायु इत्यादि का वर्णन है। उदाहरण, आज सुबह ठण्ड थी, दोपहर को बादल छाए थे व शाम का मौसम सुहावना था इत्यादि। लेकिन 35 वर्षों तक पाई जाने वाली मौसमी दशाओं की औसत होती है। उदाहरणतः, राजस्थान की जलवायु शुष्क व पश्चिम बंगाल की आई है या इण्डोनेशिया की जलवायु उष्ण एवं आर्द्र है।

(8) ध्रुवीय प्रकाश-आयनमण्डल में विद्युत्-चुम्बकीय घटना (Electromagnetic Phenomenon) का एक प्रकाशमय प्रभाव, जो उच्च अक्षांशों में रात के समय पृथ्वी से 100 किलोमीटर की ऊँचाई पर लाल, हरे व सफेद चापो के रूप में दिखाई पड़ता है, ध्रुवीय प्रकाश कहलाता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में यह प्रकाश दक्षिण ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Australis) व उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) के नाम से जाना जाता है।

(9) इंटरनेट (Internet)-एक ऐसी विद्युतीय व्यवस्था जिसमें सूचना के महामार्ग (Information Superhighway) पर बैठे लाखों, करोड़ों लोगों द्वारा आपस में जुड़े हुए कम्प्यूटरों द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर जीवन के लिए वायुमंडल के महत्त्व को स्पष्ट करें।
अथवा
“वायुमंडल की उपस्थिति ने ही पृथ्वी को सौरमण्डल में विलक्षणता प्रदान की है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण रूपी समग्र इकाई के चार प्रमुख अंगों यथा वायुमंडल, स्थलमण्डल, जलमण्डल और जैवमण्डल में वायुमंडल सबसे महत्त्वपूर्ण और गतिशील अंग है। सच तो यह है कि वायुमंडल की उपस्थिति ने ही पृथ्वी को सौरमण्डल में विलक्षणता प्रदान की है।

पृथ्वी पर जीवन के लिए वायुमंडल का महत्त्व-
1. जीवन का अनिवार्य तत्त्व-जल, थल और नभ में रहने वाला कोई भी प्राणी वायु के बिना जीवित नहीं रह सकता। वायु जीवन का मूलाधार है। मनुष्य और जानवरों के लिए ऑक्सीजन तथा पौधों के लिए कार्बन-डाइऑक्साइड वायुमंडल से ही प्राप्त होती है। पृथ्वी पर वायुमंडल की उपस्थिति ही इसे अन्य ग्रहों की अपेक्षा श्रेष्ठता प्रदान करती है।

2. ताप-सन्तुलन-गैसों का आवरण एक विशाल चंदोवे या कम्बल की भाँति कार्य करता हुआ सूर्य से आने वाली सम्पूर्ण ऊष्मा को पृथ्वी पर आने से रोकता है और रात्रि के समय पृथ्वी से विकिरित होने वाली ऊष्मा को अन्तरिक्ष में जाने से रोकता है। इस प्रकार वायुमंडल पृथ्वी पर 35° सेल्सियस का औसत तापमान बनाए रखता है। यदि वायुमंडल न होता तो पृथ्वी पर दिन का तापमान 100° सेल्सियस व रात का तापमान -200° सेल्सियस तक पहुँच जाता। ऐसी असहनीय दशाओं में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

3. मौसम तथा जलवायु-वायुमंडल के असमान गर्म होने की विशेषता के कारण ही वायु का क्षैतिज प्रवाह उच्च दाब से न्यून दाब की ओर होता है। इसी से वायुमंडल में मौसम सम्बन्धी सभी घटनाएँ घटती हैं; जैसे वाष्पीकरण, धुंध, कोहरा, बादल, वर्षा, हिमपात व आंधियाँ इत्यादि। इस प्रकार जल का ठोस, द्रव और गैस तीनों रूपों में, तीनों ही मण्डलों का संचरण होता है।

4. हानिकारक विकिरण से बचाव-वायुमंडल में उपस्थित ओज़ोन गैस सूर्य से आने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करके जीव-जगत को अनेक बीमारियों से बचाती है।

5. उल्काओं से रक्षा-अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर गिरती हुई उल्काएँ वायु के सम्पर्क में आकर घर्षण (Friction) पैदा करती हैं और इससे उत्पन्न हुई ऊष्मा में पूरी तरह से या कुछ भाग में जलकर राख बन जाती हैं। इससे उनकी पृथ्वी पर ‘मारक शक्ति’ कम हो जाती है।

6. रेडियो-तरंगें-रेडियो तरंगें आयनमण्डल से टकराकर वापस धरती पर लौट आती हैं। इससे दूर-संचार सम्भव हो पाता है। . आज दूरदर्शन, रेडियो, इंटरनेट, ई० मेल व ई० कॉमर्स जैसी सुविधाएँ इसी से सम्भव हो पाई हैं।

7. वायमार्ग-वायमंडल तीव्र वेग से चलने वाले वायुयानों व जेट विमानों को उड़ान सम्भव बनाता है।

8. जैविक विविधता-पृथ्वी पर जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को जन्म देने में वायुमंडलीय कारक ही प्रमुख हैं, जिनके कारण धरातल पर जैविक विविधता पाई जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

प्रश्न 2.
“वैज्ञानिक व तकनीकी विकास के साथ-साथ मानव की वायुमंडलीय प्रक्रमों के प्रेक्षण की क्षमता बढ़ती जाती है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जैसे-जैसे आधुनिक और विकसित यन्त्रों और विधियों द्वारा वायुमंडलीय घटनाओं का प्रेक्षण तथा अभिलेखन तीव्र और आसान होने लगा वैसे-वैसे प्राप्त आँकड़ों की सहायता से मौसम सूचक मानचित्र बनाए जाने लगे। इन मौसम सूचक मानचित्रों की सहायता से विभिन्न समय और स्थानों के मौसम की तुलना सम्भव होने लगी। विश्व का पहला अधिकृत मौसम सम्बन्धी मानचित्र सन् 1686 में बना जिसे ब्रिटेन के नक्षत्र-विज्ञानी एडमण्ड हैले ने बनाया था। इससे उत्साहित होकर अनेक विकसित देशों ने मौसम-सूचक मानचित्रों और मौसम का पूर्वानुमान प्रकाशित करना आरम्भ किया। भारत में मौसम विज्ञान सम्बन्धी सेवा सन् 1864 में आरम्भ हुई। वर्तमान में हमारे देश में 350 से अधिक मौसम-प्रेक्षणशालाएँ हैं जो मौसम सम्बन्धी तत्त्वों की जानकारी व आँकड़े पुणे स्थित मौसम विभाग के मुख्यालय को भेजती हैं। सन् 1951 में स्विट्ज़रलैण्ड के जेनेवा नगर में विश्व मौसम विज्ञान सस्थान की स्थापना की गई। यह संस्थान संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशिष्ट अभिकरण है जिसके माध्यम से विश्व के लगभग सभी देश मौसम-सम्बन्धी सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।

ऊपरी वायुमंडल की छानबीन-17वीं शताब्दी तक वायुमंडल के बारे में वैज्ञानिकों का ज्ञान केवल पृथ्वी के निकट स्थित वायु की परतों तक सीमित था। 18वीं शताब्दी के आरम्भ में वायुमंडल की ऊपरी परतों का तापमान ज्ञात करने के लिए अनेक उपकरणों से सुसज्जित मानव-सहित गुब्बारों को उड़ाया गया। सन् 1804 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुज़ाक एक गुब्बारे के माध्यम से आकाश में 7 किलोमीटर की ऊँचाई तक उड़ा और पाया कि ऊँचाई पर वायु का रासायनिक संघटन एक जैसा ही रहता है। सन् 1904 में मारकोनी द्वारा रेडियो के आविष्कार से वायुमंडल का और अधिक ऊँचाई पर अध्ययन सम्भव हुआ। इसके बाद क्षोभमण्डल और समतापमण्डल की निचली परतों की जानकारी के लिए मानव-रहित गुब्बारों की सहायता ली जाने लगी।

रेडियो संचरण का प्रयोग करने वाले गुब्बारों का प्रयोग 30 किलोमीटर से अधिक ऊँचाई पर नहीं किया जा सकता था। परिणामस्वरूप 1940 के दशक में वैज्ञानिकों ने वायुमंडल की और अधिक ऊपरी परतों का अध्ययन करने के लिए वायुयानों, जेट विमानों, रॉकेटों व राडारों का प्रयोग आरम्भ कर दिया। सन् 1950 के बाद स्वचालित मौसम केन्द्रों की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई।

1960 के दशक में वायुमंडलीय प्रक्रमों के प्रेक्षण हेतु कृत्रिम उपग्रहों व इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों का सहारा लिया गया। अनेक देशों ने अन्तरिक्ष में विशेष मौसम उपग्रह छोड़े। सन् 1960 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा छोड़े गए मौसम उपग्रह ने 700 किलोमीटर की ऊँचाई से बादलों और वायुमंडलीय दशाओं के चित्र भेजे। आजकल मौसम उपग्रहों का उपयोग सभी देशों के लिए आसान हो गया है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने मुम्बई में अपना एक केन्द्र स्थापित किया है जो रोज़ाना INSAT 2E के माध्यम से बादलों के चित्र व प्रक्रमित आँकड़े प्राप्त करता है। मौसम सम्बन्धी इन्हीं सूचनाओं और पूर्वानुमानों को हम दूरदर्शन और समाचार पत्रों में देखते हैं।

आधुनिक युग में सुपर कम्प्यूटर और संवेदनशील उपग्रहों के प्रयोग ने हमारी वायुमंडलीय प्रक्रमों के प्रेक्षण की क्षमता को पहल से बेहतर किया है। आज हम पर्याप्त शुद्धता तक मौसम का पूर्वानुमान लगा सकते हैं किन्तु फिर भी इस दिशा में काफी कुछ करना शेष है।

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 11 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 11 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 11 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

HBSE 12th Class History औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व सँभालने के लिए पुराने शासकों से क्या आग्रह किया ?
उत्तर:
बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों (सैनिकों) ने नेतृत्व संभालने के लिए पुराने अपदस्थ शासकों से आग्रह किया कि वे विद्रोह को नेतृत्व प्रदान करें। क्योंकि वे जानते थे कि नेतृत्व व संगठन के बिना अंग्रेजों से लोहा नहीं लिया जा सकता। यह बात सही है कि सिपाही जानते थे कि सफलता के लिए राजनीतिक नेतृत्व जरूरी है। इसीलिए सिपाही मेरठ में विद्रोह के तुरंत बाद दिल्ली पहुंचे। वहाँ उन्होंने बहादुर शाह को अपना नेता बनाया।

वह वृद्ध था। बादशाह तो नाममात्र का ही था। स्वाभाविक तौर पर वह विद्रोह की खबर से बेचैन और भयभीत हुआ। यद्यपि अंग्रेजों की नीतियों से वह त्रस्त तो था ही फिर भी विद्रोह के लिए तैयार वह तभी हुआ जब कुछ सैनिक शाही शिष्टाचार की अवहेलना करते हुए दरबार तक आ चुके थे। सिपाहियों से घिरे बादशाह के पास उनकी बात मानने के लिए और कोई चारा नहीं था। अन्य स्थानों पर भी पहले सिपाहियों ने विद्रोह किया और फिर नवाबों और राजाओं को नेतृत्व करने के लिए विवश किया।

प्रश्न 2.
उन साक्ष्यों के बारे में चर्चा कीजिए जिनसे पता चलता है कि विद्रोही योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम कर रहे थे?
उत्तर:
इस बात के कुछ प्रमाण मिलते हैं कि सिपाही विद्रोह को योजनाबद्ध एवं समन्वित तरीके से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। विभिन्न छावनियों में विद्रोही सिपाहियों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान था। ‘चर्बी वाले कारतूसों’ की बात सभी छावनियों में पहुँच गई थी। बहरमपुर से शुरू होकर बैरकपुर और फिर अंबाला और मेरठ में विद्रोह की चिंगारियाँ भड़कीं। इसका अर्थ है कि सूचनाएँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच रही थीं।

सिपाही बगावत के मनसूबे गढ़ रहे थे। इसका एक और उदाहरण यह है कि जब मई की शुरुआत में सातवीं अवध इर्रेग्युलर कैवेलरी (7th Awadh Irregular Cavalry) ने नए कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया तो उन्होंने 48वीं नेटिव इन्फेंट्री को लिखा : “हमने अपने धर्म की रक्षा के लिए यह फैसला लिया है और 48वीं नेटिव इन्फेंट्री के आदेश की प्रतीक्षा है।”

सिपाहियों की बैठकों के भी कुछ सुराग मिलते हैं। हालांकि बैठक में वे कैसी योजनाएँ बनाते थे, उसके प्रमाण नहीं हैं। फिर भी कुछ अंदाजें लगाए जाते हैं कि इन सिपाहियों का दुःख-दर्द एक-जैसा था। अधिकांश उच्च-जाति के थे और उनकी जीवन-शैली भी मिलती-जुलती थी। स्वाभाविक है कि वे अपने भविष्य के बारे में ही निर्णय लेते होंगे। चार्ल्स बॉल (Charles Ball) उन शुरुआती इतिहासकारों में से है जिसने 1857 की घटना पर लिखा है।

इसने भी उन सैन्य पंचायतों का उल्लेख किया है जो कानपुर सिपाही लाइन में रात को होती थी। जिनमें मिलिट्री पुलिस के कप्तान ‘कैप्टेन हियर्से’ की हत्या के लिए 41वीं नेटिव इन्फेंट्री के विद्रोही सैनिकों ने उन भारतीय सिपाहियों पर दबाव डाला, जो उस कप्तान की सुरक्षा के लिए तैनात थे।

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प्रश्न 3.
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी? [2017 (Set-A, D)]
उत्तर:
1857 के घटनाक्रम के निर्धारण में धार्मिक विश्वासों की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण थी। विभिन्न तरीकों से सैनिकों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई थीं। सामान्य लोग भी अंग्रेज़ी सरकार को संदेह की दृष्टि से देख रहे थे। उन्हें यह लग रहा था कि सरकार अंग्रेज़ी शिक्षा और पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार-प्रसार करके भारत में ईसाइयत को बढ़ावा दे रही है।

उनका संदेह गलत भी नहीं था क्योंकि अधिकारी वर्ग ईसाई पादरियों को धर्म प्रचार की छूट और प्रोत्साहन दे रहे थे। सैनिकों और स्कूलों में धर्म परिवर्तन के लिए प्रलोभन भी दिया जा रहा था। 1850 में बने उत्तराधिकार कानून से यह संदेह विश्वास में बदल गया। इसमें धर्म बदलने वाले को पैतृक सम्पत्ति प्राप्ति का अधिकार दिया गया था।

सैनिकों को विदेशों में जाकर लड़ने के लिए भी विवश किया जाता था, जिसे वे गलत मानते थे। इसमें वे अपना धर्म भ्रष्ट मानते थे। अन्ततः इन सभी परिस्थितियों के अन्तर्गत ‘चर्बी वाले कारतूस’ तथा कुछ अन्य अफवाहों, जैसे कि ‘आटे में हड्डियों के चूरे की मिलावट इत्यादि के चलते इस विद्रोह का घटनाक्रम निर्धारित हुआ। अफवाहें तभी विश्वासों में बदल रही थीं क्योंकि उनमें संदेह की अनुगूंज थी।

प्रश्न 4.
विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए क्या तरीके अपनाए गए?
उत्तर:
विद्रोहियों की सोच में सभी भारतीय सामाजिक समुदायों में एकता आवश्यक थी। विशेषतौर पर हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया गया। उनकी घोषणाओं में निम्नलिखित बातों पर जोर दिया गया-

  1. जाति व धर्म का भेद किए बिना विदेशी राज के विरुद्ध समाज के सभी समुदायों का आह्वान किया गया।
  2. अंग्रेज़ी राज से पहले मुगल काल में हिंदू-मुसलमानों के बीच रही सहअस्तित्व की भावना का बखान भी किया गया।
  3. लाभ की दृष्टि से इस युद्ध को दोनों समुदायों के लिए एक-समान बताया।
  4. बादशाह बहादुर शाह की ओर से की गई घोषणा में मुहम्मद और महावीर दोनों की दुहाई देते हुए संघर्ष में शामिल होने की अपील की गई।
  5. विद्रोह के लिए समर्थन जुटाने के लिए तीन भाषाओं हिंदी, उर्दू और फारसी में अपीलें जारी की गईं।

प्रश्न 5.
अंग्रेज़ों ने विद्रोह को कुचलने के लिए क्या कदम उठाए?
उत्तर:
विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेज़ों ने निम्नलिखित कदम उठाए
(1) गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग ने कम्पनी सरकार के समस्त ब्रिटिश साधनों को संगठित करके विद्रोह को कुचलने के लिए एक समुचित योजना बनाई।

(2) मई और जून (1857) में समस्त उत्तर भारत में मार्शल लॉ लगाया गया। साथ ही विद्रोह को कुचले जाने वाली सैनिक टुकड़ियों के अधिकारियों को विशेष अधिकार दिए गए।

(3) एक सामान्य अंग्रेज़ को भी उन भारतीयों पर मुकद्दमा चलाने व सजा देने का अधिकार था, जिन पर विद्रोह में शामिल होने का शक था। सामान्य कानूनी प्रक्रिया के अभाव में केवल मृत्यु दंड ही सजा हो सकती थी।

(4) सबसे पहले दिल्ली पर पुनः अधिकार की रणनीति अपनाई गई। केनिंग जानता था कि दिल्ली के पतन से विद्रोहियों की कमर टूट जाएगी। साथ ही देशी शासकों और ज़मींदारों का समर्थन पाने के लिए उन्हें लालच दिया गया।

(5) हिंदू-मुसलमानों में सांप्रदायिक तनाव भड़काकर विद्रोह को कमजोर करने का प्रयास किया गया। लेकिन इसमें उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
अवध में विद्रोह इतना व्यापक क्यों था? किसान, ताल्लुकदार और ज़मींदार उसमें क्यों शामिल हुए?
उत्तर:
अवध में विद्रोह अपेक्षाकृत सबसे व्यापक था। इस प्रांत में आठ डिविजन थे उन सभी में विद्रोह हुआ। यहाँ किसान व दस्तकार से लेकर ताल्लुकदार और नवाबी परिवार के सदस्यों सहित सभी लोगों ने इसमें भाग लिया। हरेक गांव से लोग विद्रोह में शामिल हुए। यहाँ विदेशी शासन के विरुद्ध यह विद्रोह लोक-प्रतिरोध का रूप धारण कर चुका था। लोग फिरंगी राज के आने से अत्यधिक आहत थे। उन्हें लग रहा था कि उनकी दुनिया लुट गई है; वो सब कुछ बिखर गया है, जिन्हें वो प्यार करते थे। वस्तुतः इसमें विभिन्न प्रकार की पीड़ाओं (A chain of grievances) ने किसानों, सिपाहियों, ताल्लुकदारों और खजकुमारों को परस्पर जोड़ दिया था। संक्षेप में, विद्रोह की व्यापकता के निम्नलिखित कारण थे

1. अवध का विलय-अवध का विलय 1856 में विद्रोह फूटने से लगभग एक वर्ष पहले हुआ था। इसे ‘कुशासन’ का आरोप लगाते हुए ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया था। लेकिन अवधवासियों ने इसे न्यायसंगत नहीं माना। बल्कि वे इसे डलहौज़ी का विश्वासघात मान रहे थे। 1851 में ही लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध के बारे में कहा था कि “यह गिलास फल (cherry) एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” डलहौज़ी एक उग्र साम्राज्यवादी था।

वस्तुतः उसकी दिलचस्पी अवध की उपजाऊ जमीन को हड़पने में भी थी। अतः कुशासन तो एक बहाना था। अवधवासी यह जानते थे कि अपदस्थ नवाब वाजिद अली शाह बहुत लोकप्रिय था। लोगों की नवाब व उसके परिवार से गहरी सहानुभूति थी। जब उसे कलकत्ता से निष्कासित किया गया तो बहुत-से लोग उनके पीछे विलाप करते हुए गए।

2. ताल्लुकदारों का अपमान-ताल्लुकदारों ने विद्रोह में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उनकी सत्ता व सम्मान को अंग्रेजी राज से जबरदस्त क्षति हुई थी। ताल्लुकदार अवध क्षेत्र में वैसे ही छोटे राजा थे जैसे बंगाल में ज़मींदार। वे छोटे महलनुमा घरों में रहते थे। अपनी-अपनी जागीर में सत्ता व जमीन पर उनका नियंत्रण था। 1856 में अवध का अधिग्रहण करते ही इन ताल्लुकदारों की सेनाएँ भंग कर दी गईं और दुर्ग भी ध्वस्त कर दिए गए।

3. भूमि छीनने की नीति-आर्थिक दृष्टि से अवध के ताल्लुकदारों की हैसियत व सत्ता को क्षति भूमि छीनने की नीति से पहुँची। 1856 ई० में अधिग्रहण के तुरंत बाद एक मुश्त बंदोबस्त (Summary Settlement of 1856) नाम से भू-राजस्व व्यवस्था लागू की गई, जो इस मान्यता पर आधारित थी कि ताल्लुकदार जमीन के वास्तविक मालिक नहीं हैं। उन्होंने जमीन पर कब्जा धोखाधड़ी व शक्ति के बल पर किया हुआ है। इस मान्यता के आधार पर ज़मीनों की जाँच की गई। ताल्लुकदारों की जमीनें उनसे लेकर किसानों को दी जाने लगीं। पहले अवध के 67% गाँव ताल्लुकदारों के पास थे और इस ब्रिटिश नीति से यह संख्या घटकर मात्र 38% रह गई।

4. किसानों में असंतोष-विद्रोह में बहुत बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया। इससे अंग्रेज़ अधिकारी काफी परेशान हुए थे, क्योंकि किसानों ने अंग्रेज़ों का साथ देने की बजाय अपने पूर्व मालिकों (ताल्लुकदारों) का साथ दिया। जबकि अंग्रेजों ने उन्हें ज़मीनें भी दी थीं। इसके कई कारण थे जैसे कि अंग्रेजी राज से एक संपूर्ण ग्रामीण समाज व्यवस्था भंग हो गई थी। यदि कभी ज़मींदार किसानों से बेगार या धन वसूलता था तो बुरे वक्त में वह उनकी सहायता भी करता था। ताल्लुकदारों की छवि दयालु अभिभावकों की थी।

तीज-त्योहारों पर भी उन्हें कर्जा अथवा मदद मिल जाती थी, फसल खराब होने पर भी उनकी दया दृष्टि किसानों पर रहती थी। लेकिन अंग्रेज़ी राज की नई भू-राजस्व व्यवस्था में कोई लचीलापन नहीं था, न ही उसके निर्धारण में और न ही वसूली में। मुसीबत के समय यह नई सरकार कृषकों से कोई सहानुभूति की भावना नहीं रखती थी। संक्षेप में कहा जा सकता है कि अवध में विद्रोह विभिन्न सामाजिक समूहों का एक सामूहिक कृत्य था। किसान, ज़मींदार व ताल्लुकदारों ने इसमें बड़े स्तर पर सिपाहियों का साथ दिया क्योंकि अंग्रेजों के खिलाफ इन सबका दुःख-दर्द एक हो गया था।

प्रश्न 7.
विद्रोही क्या चाहते थे? विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में कितना फर्क था?
उत्तर:
विद्रोही नेताओं की घोषणाओं, सिपाहियों की कुछ अर्जियों तथा नेताओं के कुछ पत्रों से हमें विद्रोहियों की सोच के बारे में कुछ जानकारी मिलती है, जो इस प्रकार है

(1) वे अंग्रेज़ी सत्ता को उत्पीड़क, निरंकुश और षड्यंत्रकारी मान रहे थे। इसलिए उन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध सभी भारतीय सामाजिक समूहों को एकजुट होने का आह्वान किया। वे इस राज से सम्बन्धित प्रत्येक चीज को खारिज कर रहे थे।

(2) विद्रोहियों की घोषणाओं से ऐसा लगता है कि वे भारत के सभी सामाजिक समूहों में एकता चाहते थे। विशेष तौर पर उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। लाभ की दृष्टि से युद्ध को दोनों समुदायों के लिए एक-समान बताया। बहादुरशाह जफ़र की घोषणा में मुहम्मद और महावीर दोनों की दुहाई के साथ संघर्ष में भाग लेने की अपील की गई।

(3) वे वैकल्पिक सत्ता के रूप में अंग्रेज़ों का राज समाप्त करके 18वीं सदी से पहले की मुगलकालीन व्यवस्था की ओर ही वापिस लौटना चाहते थे।

विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में अंतर-उपरोक्त बातों से यह अर्थ नहीं निकालना चाहिए कि सभी विद्रोहियों की सोच बिल्कुल एक जैसी थी। वास्तव में अलग-अलग सामाजिक समूहों की दृष्टि में अंतर था, उदाहरण के लिए

(1) सैनिक चाहते थे कि उन्हें पर्याप्त वेतन, पदोन्नति तथा अन्य सुविधाएं यूरोपीय सिपाहियों की तरह ही प्राप्त हों। वे अपने आत्म-सम्मान व भावनाओं की भी रक्षा चाहते थे। वे अंग्रेजों की विदेशी सत्ता को खत्म करके अपने पुराने शासकों की सत्ता की पुनः स्थापना चाहते थे।

(2) अपदस्थ शासक विद्रोह के नेता थे। परन्तु इनमें से अधिकांश अपनी रजवाड़ा शाही को ही पुनः स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे। इसलिए उन्होंने पुराने ढर्रे पर ही दरबार लगाए और दरबारी नियुक्तियाँ कीं।

(3) ताल्लुकदार अथवा ज़मींदार अपनी जमींदारियों और सामाजिक हैसियत के लिए संघर्ष में कूदे थे। वे अपनी जमीनों को पुनः प्राप्त करना चाहते थे जो अंग्रेज़ों ने उनसे छीनकर किसानों को दे दी थीं।

(4) किसान अंग्रेज़ों की भू-राजस्व व्यवस्था से परेशान था। इसमें कोई लचीलापन नहीं था। राजस्व का निर्धारण बहुत ऊँची दर पर किया जाता था और उसकी वसूली ‘डण्डे’ के साथ की जाती थी। फसल खराब होने पर भी सरकार की ओर से कोई दयाभाव नहीं था। इसी कारण वह साहकारी के चंगल में फँसता था। यही कारण था कि अंग्रेजी राज के साथ-साथ वह अन्य उत्पीडकों को भी खत्म करना चाहता था। उदाहरण के लिए उन्होंने कई स्थानों पर सूदखोरों के बहीखाते जला दिए और उनके घरों में तोड़-फोड़ की।

उपरोक्त समूहों के अतिरिक्त दस्तकार भी अंग्रेज़ों की नीतियों से बर्बाद हुए। वे भी विद्रोहियों के साथ आ गए थे। बहुत-से रूढ़िवादी विचारों के लोग सामाजिक व धार्मिक कारणों से भी अंग्रेज़ी व्यवस्था को खत्म करना चाहते थे।

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प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से क्या पता चलता है? इतिहासकार इन चित्रों का किस तरह विश्लेषण करते हैं?
उत्तर:
चित्र भी इतिहास लिखने के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत होते हैं। 1857 के विद्रोह से सम्बन्धित कुछ चित्र, पेंसिल से बने रेखाचित्र, उत्कीर्ण चित्र (Etchings), पोस्टर, कार्टून इत्यादि उपलब्ध हैं। कुछ चित्रों और कार्टूनों के बाजार-प्रिंट भी मिलते हैं। किसी घटना की छवि बनाने में ऐसे चित्रों की विशेष भूमिका होती है। चित्र विचारों और भावनाओं के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं को भी व्यक्त करते हैं। 1857 के चित्रों के विश्लेषण से पता चलता है कि जो चित्र इंग्लैण्ड में बने उन्होंने ब्रिटिश जनता में अलग छवि बनाई।

इनसे वहाँ के लोग उत्तेजित हुए और उन्होंने विद्रोहियों को निर्दयतापूर्वक कुचल डालने की मांग की। दूसरी ओर भारत में छपने वाले चित्रों, संबंधित फिल्मों तथा कला व साहित्य के अन्य रूपों में उन्हीं विद्रोहियों की अलग छवि को जन्म दिया। इस छवि ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन को पोषित किया। इंग्लैण्ड और भारत में चित्रों से बनने वाली छवियों को हम निम्नलिखित कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं

A. अंग्रेज़ों द्वारा बनाए गए चित्र-इन चित्रों को देखकर विविध भावनाएँ और प्रतिक्रियाएँ पैदा होती हैं।

(1) टॉमस जोन्स बार्कर द्वारा 1859 में बनाए गए चित्र ‘द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ में अंग्रेज़ नायकों (कैम्पबेल, औट्रम व हैवलॉक) की छवि उभरती है। इन नायकों ने लखनऊ में विद्रोहियों को खदेड़कर अंग्रेज़ों को सुरक्षित बचा लिया था।
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(2) बहुत-से समकालीन चित्रों ने ब्रिटिश नागरिकों में प्रतिशोध की भावना को बढ़ावा मिला। उदाहरण के लिए जोसेफ़ नोएल पेटन का चित्र ‘इन मेमोरियम’ (स्मृति में) को देखने से दर्शक के मन में बेचैनी और क्रोध की भावना सहज रूप से उभरती है। दूसरी ओर ‘मिस व्हीलर’ का तमंचा वाले चित्र से ‘सम्मान की रक्षा का संघर्ष’ नज़र आता है।
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(3) दमन और प्रतिशोध की भावना को बढ़ावा देने वाले बहुत-से चित्र मिलते हैं। 1857 के पन्च नामक पत्र में ‘जस्टिस’ नामक चित्र में एक गौरी महिला को बदले की भावना से तड़पते हुए दिखाया गया है। विद्रोहियों को तोप से उड़ाते हुए बहुत-से चित्र बनाए गए हैं। इन चित्रों को देखकर ब्रिटेन के आम नागरिक प्रतिशोध को उचित ठहराने लगे। केनिंग की ‘दयाभाव’ का मजाक उड़ाने लगे। ‘द क्लिमेंसी ऑफ केनिंग’ ऐसा ही एक कार्टून है।
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B. भारतीयों द्वारा बनाए गए चित्र-यदि हम भारत में 1857 में जुड़ी फिल्मों और चित्रों को देखते हैं तो हमारे मन में अलग प्रतिक्रिया होती है। रानी लक्ष्मीबाई का नाम लेते ही मन में वीरता, अन्याय और विदेशी शासन के विरुद्ध संघर्ष की साकार प्रतिमा की छवि बनती है। ऐसी छवि बनाने में गीतों, कविताओं, फिल्मों एवं चित्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। लक्ष्मीबाई के चित्र प्रायः घोड़े पर सवार हाथ में तलवार लिए वीरांगना के बनाए गए।

प्रश्न 9.
एक चित्र और एक लिखित पाठ को चुनकर किन्हीं दो स्रोतों की पड़ताल कीजिए और इस बारे में चर्चा कीजिए कि उनसे विजेताओं और पराजितों के दृष्टिकोण के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
हम पाठ्यपुस्तक में दिए गए चित्रों में से चित्र को लेते हैं। इस चित्र में विजेताओं का दृष्टिकोण झलकता है। इसमें विद्रोहियों को दानवों तथा अंग्रेज़ औरत को वीरांगना के रूप में दर्शाया गया है। चित्र का शीर्षक ‘मिस व्हीलर’ है। उसे कानपुर में हाथ में तमंचा लिए हुए अपनी इज्जत की रक्षा करती हुई दृढ़तापूर्वक खड़ी दिखाया गया है। अकेली औरत पर किस तरह से विद्रोही तलवारों और बंदूकों से आक्रमण कर रहे हैं; जैसे वे मानव नहीं दानव हों।

चित्र में धरती पर बाइबल पड़ी है जो इस संघर्ष को ‘ईसाइयत की रक्षा के संघर्ष के रूप में व्यक्त करती है। यह चित्र उस हत्याकांड पर आधारित है जब विद्रोहियों ने नाना साहिब के न चाहते हुए भी अंग्रेज़ औरतों और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया था, लेकिन यह हत्याकांड तब हुआ जब विद्रोहियों ने बनारस में अंग्रेजों द्वारा किए गए हत्याकाण्डों का समाचार सुना। वे अपने प्रतिशोध को रोक नहीं पाए।

(अन्तिम भेंट में हनवंत सिंह ने उस अंग्रेज़ अफसर से कहा था, “साहिब, आपके मुल्क के लोग हमारे देश में आए और उन्होंने हमारे राजाओं को खदेड़ दिया। आप अधिकारियों को भेजकर जिले-जिले में जागीरों के स्वामित्व की जाँच करवाते हैं। एक ही झटके में आपने मेरे पूर्वजों की जमीन मुझसे छीन ली।

मैं चुप रहा। फिर अचानक आपका बुरा समय प्रारंभ हो गया। यहाँ के लोग आपके विरुद्ध उठ खड़े हुए। तब आप मेरे पास आए, जिसे आपने बरबाद कर दिया था। मैंने आपकी जान बचाई है। किंतु, अब मैं अपने सिपाहियों को लेकर लखनऊ जा रहा हूँ ताकि आपको देश से खदेड़ सऊँ।” पाठयपस्तक में स्रोत नं0 4) स्पष्ट है कि विजेताओं के दृष्टिकोण से बने चित्र में पराजितों के दृष्टिकोण के लिए कोई स्थान नहीं था।

अब हम Box में दिए गए स्रोत को लेंगे। यह एक लिखित रिपोर्ट का भाग है। इसमें ताल्लुकदारों यानी पराजितों के दृष्टिकोण का पता चलता है। विवरण में काला कांकर के राजा हनवंत सिंह की उस अंग्रेज़ अधिकारी से बातचीत के अंश हैं जो 1857 में जान बचाने के लिए हनवंत सिंह के पास शरण लेता है। हनवंत सिंह उसकी जान बचाता है और साथ ही अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए लखनऊ जाकर लड़ने का निश्चय भी दोहराता है। इस विवरण को पढ़कर हमारे मन में विद्रोहियों की छवि वह नहीं उभरती जो

‘मिस व्हीलर’ नामक चित्र में उभरती है। यहाँ ताल्लुकदार हनवंत सिंह एक विद्रोही नेता है जो एक ओर शरण में आए एक अंग्रेज़ की जान बचाता है तो दूसरी ओर अपने सिपाहियों को लेकर युद्ध क्षेत्र में उतरता है। यहाँ विद्रोही बर्बर, नृशंस और दानव नहीं हैं। वे एक ‘वीर इंसान’ हैं।

परियोजना कार्य

प्रश्न 10.
1857 के विद्रोही नेताओं में से किसी एक की जीवनी पढ़ें। देखिए कि उसे लिखने के लिए जीवनीकार ने किन स्रोतों का उपयोग किया है? क्या उनमें सरकारी रिपोर्टों, अखबारी खबरों, क्षेत्रीय भाषाओं की कहानियों, चित्रों और किसी अन्य चीज़ का इस्तेमाल किया गया है? क्या सभी स्रोत एक ही बात कहते हैं या उनके बीच फर्क दिखाई देते हैं? अपने निष्कर्षों पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी पुस्तकालय से या इंटरनेट पर विद्रोही नेताओं जैसे कि बहादुरशाह जफर, महारानी लक्ष्मीबाई, तांत्या तोपे, कुंवर सिंह, राव तुलाराम इत्यादि प्रमुख नेताओं की जीवनी पढ़ें। पढ़ते समय विद्यार्थी यह विवरण तैयार करें कि लेखक ने किन स्रोतों के आधार पर पुस्तक लिखी है। सरकारी रिपोर्टों का उपयोग कितना है, देशी भाषा, स्थानीय कोई भी भाषा या अंग्रेज़ी समाचार-पत्र, पत्रिकाओं से कितने और कैसे तथ्य लिए गए हैं। पेंटिंग, मूर्ति, कार्टून, गीत, रागनी इत्यादि का कितना प्रयोग है। लेखक किस दृष्टि से लिख रहा है। वह कितना निष्पक्ष है। इसमें यह भी नोट करें कि इन सम्बन्धित साक्ष्यों में आपस में कितना अंतर है। सारी सूचनाओं के आधार पर अपने प्राध्यापक के निर्देशन में एक रिपोर्ट तैयार करें।

प्रश्न 11.
1857 पर बनी कोई फिल्म देखिए और लिखिए कि उसमें विद्रोह को किस तरह दर्शाया गया है। उसमें अंग्रेज़ों, विद्रोहियों और अंग्रेज़ों के भारतीय वफादारों को किस तरह दिखाया गया है? फिल्म किसानों, नगरवासियों, आदिवासियों, जमीदारों और ताल्लकदारों के बारे में क्या कहती है? फिल्म किस तरह की प्रतिक्रिया को जन्म देना चाहती है?
उत्तर:
1857 के विद्रोह पर कई फिल्में बनी हैं। परन्तु उनमें सर्वाधिक चर्चित ‘मंगल पांडे’ है जिसमें आमिर खान ने छाप छोड़ने वाली भूमिका निभाई है। इस फिल्म को देखा जा सकता है। इसमें भारतीय सिपाहियों की दिनचर्या, असंतोष, धर्म के प्रति उनमें संवेदनशीलता, जातीय सम्बन्धों की झलक, भारत के विभिन्न समूहों (किसान, आदिवासी, जमींदार, ताल्लुकदार) आदि की स्थिति इत्यादि को फिल्माया गया है।

फिल्म देखकर मन पर क्या प्रतिक्रिया होती है। इस पर विचार करें। उदाहरण के लिए फिल्म में जिस प्रकार ‘चर्बी वाले कारतूस’ बनाते दिखाया गया है, इस पर विचार करें कि क्या यह ‘ऐतिहासिक सत्य है या कल्पनात्मक अभिव्यक्ति। यदि यह कल्पनात्मक अभिव्यक्ति है तो दर्शक पर क्या प्रभाव डालती है। फिर हम जान पाएँगे कि छवियाँ कैसे निर्मित होती हैं।

औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य HBSE 12th Class History Notes

→ फिरंगी-फिरंगी फारसी भाषा का शब्द है जो सम्भवतः फ्रैंक (जिससे फ्रांस नाम पड़ा है) से निकला है। हिंदी और उर्दू में पश्चिमी लोगों का मजाक उड़ाने के लिए कभी-कभी इसका प्रयोग अपमानजनक दृष्टि से भी किया जाता था।

→ रेजीडेंट-ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासनकाल में गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि को रेजीडेंट कहा जाता था। उसे ऐसे राज्यों में नियुक्त किया जाता था जो अंग्रेजों के प्रत्यक्ष शासन में नहीं था, लेकिन आश्रित राज्य होता था।

→ सहरी-रोजे (रमजान महीने के व्रत) के दिनों में सूरज निकलने से पहले का भोजन।

→ गवर्नर-जनरल-भारत में ब्रिटिश सरकार का मुख्य प्रशासक’ गवर्नर-जनरल कहलाता था।

→ वायसराय-1858 के बाद गवर्नर-जनरल को भारतीय रियासतों के लिए वायसराय कहा जाने लगा। वायसराय का अर्थ था ‘प्रतिनिधि’ यानी इंग्लैण्ड के ‘ताज’ का प्रतिनिधि।

→ बादशाह-मुगल शासक बादशाह कहलाते थे। इसका मौलिक शब्द है ‘पादशाह’ जिसका अर्थ है-‘शाहों का शाह’ पादशाह चगती तुर्की का शब्द है। फारसी में यह बादशाह बन गया।

→ बैरक-सैनिकों का सैनिक छावनी में निवास स्थान।

→ छावनी सेना का स्टेशन जिसमें बड़ी संख्या में सैनिक टुकड़ियाँ रहती थीं।

→ इस अध्याय में हम 1857 के जन-विद्रोह का अध्ययन करेंगे। सबसे अधिक गहन विद्रोह अवध क्षेत्र में हुआ। इसलिए इस क्षेत्र में हुए विद्रोह की गहन छान-बीन करेंगे। साथ ही इसके सामान्य कारणों को भी पढ़ेंगे। विद्रोही क्या सोचते थे और कैसे वे अपनी योजनाएँ बनाते थे; उनके नेता कैसे थे इत्यादि पहलुओं पर भी चर्चा करेंगे। दमन और फिर अंततः इस विद्रोह की छवियाँ (चित्रों, रेखाचित्रों व कार्टून इत्यादि के माध्यम से) कैसे निर्मित हुई, इस पर भी विचार करेंगे।

→ 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में विद्रोह शुरू हुआ। सिपाहियों ने ‘चर्बी वाले कारतूसों’ का प्रयोग करने से इंकार कर दिया। 85 भारतीय सिपाहियों को 8 से लेकर 10 वर्ष तक की कठोर सज़ा दी गई। उसी दिन दोपहर तक अन्य सैनिकों ने भी बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। शीघ्र ही यह समाचार मेरठ शहर और आस-पास के देहात में भी फैल गया और कुछ लोग भी सिपाहियों से आ मिले।

→ 11 मई को सूर्योदय से पूर्व ही मेरठ के लगभग दो हजार जाँबाज़ सिपाही दिल्ली में प्रवेश कर चुके थे। उन्होंने कर्नल रिप्ले सहित कई अंग्रेज़ों की हत्या कर दी। फिर सिपाही लालकिले पहुँचे। उन्होंने बहादुर शाह जफ़र से नेतृत्व के लिए अनुरोध किया। वह कहने मात्र के लिए ही बादशाह था। वास्तव में वह एक बूढ़ा, शक्तिहीन, अंग्रेजों का पेंशनर था। उसने संकोच और अनिच्छा के साथ सिपाहियों के आग्रह को स्वीकार कर लिया। उसने स्वयं को विद्रोह का नेता घोषित कर दिया। इससे सिपाहियों के विद्रोह को राजनीतिक वैधता मिल गई।

→ सैनिकों के विद्रोह को देखकर जनसामान्य भी कुछ भयरहित हो गए। लोग अंग्रेज़ी शासन के प्रति नफरत से भरे हुए थे। वे लाठी, दरांती, तलवार, भाला तथा देशी बंदूकों जैसे अपने परंपरागत हथियारों के साथ विद्रोह में कूद पड़े। इनमें किसान, कारीगर, दुकानदार व नौकरी पेशा तथा धर्माचार्य इत्यादि सभी लोग शामिल थे। आम लोगों के आक्रोश की अभिव्यक्ति स्थानीय शासकों के खिलाफ भी हुई। बरेली, कानपुर व लखनऊ जैसे बड़े शहरों में अमीरों व साहूकारों पर भी हमले हुए।

→ लोगों ने इन्हें उत्पीड़क और अंग्रेज़ों का पिठू माना। इसके अतिरिक्त विद्रोह-क्षेत्रों में किसानों ने भू-राजस्व देने से मना कर दिया था। सिपाहियों का यह विद्रोह एक व्यापक ‘जन-विद्रोह’ बन गया। एक अनुमान के अनुसार, इसके दौरान अवध में डेढ़ लाख और बिहार में एक लाख नागरिक शहीद हुए थे।
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यह एक व्यापक विद्रोह था। जून के पहले सप्ताह तक बरेली, लखनऊ, अलीगढ़, कानपुर, इलाहाबाद, आगरा, मेरठ, बनारस जैसे बड़े-बड़े नगर स्वतंत्र हो चुके थे। यह गाँवों और कस्बों में फैल चुका था। हरियाणा व मध्य भारत में भी यह जबरदस्त विद्रोह था।

→ विभिन्न छावनियों के बीच विद्रोही सिपाहियों में भी तालमेल के कुछ सुराग मिलते हैं। इनके बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान था। ‘चर्बी वाले कारतूसों’ की बात सभी छावनियों में पहुंच गई थी। ‘धर्म की रक्षा’ को लेकर चिंता और आक्रोश भी सभी जगह था। सिपाही बगावत के मनसूबे गढ़ रहे थे। इसका एक और उदाहरण यह है कि जब मई की शुरूआत में सातवीं अवध इरेग्युलर कैवेलरी (7th Awadh Irregular Cavalry) ने नए कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया तो उन्होंने 48वीं नेटिव इन्फेंट्री को लिखा : “हमने अपने धर्म की रक्षा के लिए यह फैसला लिया है और 48वीं नेटिव इन्फेंट्री के हुक्म का इंतजार कर

→ सिपाहियों की बैठकों के भी कुछ सुराग मिलते हैं। हालांकि बैठकों में वो कैसी योजनाएँ बनाते थे, उसके प्रमाण नहीं हैं। फिर भी कुछ अंदाजे लगाए जाते हैं कि इन सिपाहियों का दुःख-दर्द एक-जैसा था। अधिकांश उच्च-जाति से थे और उनकी जीवन-शैली भी मिलती-जुलती थी। स्वाभाविक है कि वे अपने भविष्य के बारे में ही निर्णय लेते होंगे। इनके नेता मुख्यतः अपदस्थ शासक और ज़मींदार थे। विभिन्न स्थानों पर इसके स्थानीय नेता भी उभर आए थे। इनमें से कुछ तो किसान नेता थे।

→ यह विद्रोह कुछ अफवाहों और भविष्यवाणियों से भड़का था। लेकिन अफवाहें तभी फैलती हैं जब उनमें लोगों के मन में गहरे बैठे भय और संदेह की अनुगूंज सुनाई देती है। इन अफ़वाहों में लोग विश्वास इसलिए कर रहे थे क्योंकि इनके पीछे बहुत-से ठोस कारण थे। ये कारण सैनिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक थे। लोग अंग्रेज़ों की नई व्यवस्था को भारतीय दमनकारी, परायी और हृदयहीन मान रहे थे। उनकी परंपरागत दुनिया उजड़ रही थी जिससे वे परेशान हुए। अतः इन बहुत-से कारणों के समायोजन से लोग विद्रोही बने।

→ अवध प्रांत में आठ डिविजन थे, उन सभी में विद्रोह हुआ। यहाँ किसान व दस्तकार से लेकर ताल्लुकदार और नवाबी परिवार के सदस्यों सहित सभी वर्गों के लोगों ने वीरतापूर्वक संघर्ष किया। हरेक गाँव से लोग विद्रोह में शामिल हुए। ताल्लुकदारों ने उन सभी गाँवों पर पुनः अपना अधिकार कर लिया जो अवध विलय से पहले उनके पास थे। किसान अपने परंपरागत मालिकों (ताल्लुकदारों) के साथ मिलकर लड़ाई में शामिल हुए। अवध की राजधानी लखनऊ विद्रोह का केंद्र-बिंदु बनी। फिरंगी राज के चिहनों को मिटा दिया गया। टेलीग्राफ लाइनों को तहस-नहस कर दिया गया। यहाँ घटनाओं का क्रम कुछ इस तरह चला। 4 जून, 1857 को विद्रोह प्रारंभ हुआ। विद्रोहियों ने ब्रिटिश रैजीडेंसी को घेर लिया।

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1 जुलाई को अवध का चीफ कमीश्नर हैनरी लारेंस (Henery Lawrence) लड़ता हुआ मारा गया। 1858 के शुरू में विद्रोहियों की संख्या लखनऊ शहर में लगभग 2 लाख की थी। यहाँ संघर्ष सबसे लंबा चला। अन्य स्थानों की अपेक्षा विदेशी शासन के विरुद्ध लोक-प्रतिरोध (Popular Resistance) अवध में अधिक था। अवध के विलय से एक भावनात्मक उथल-पुथल शुरू हो गई। एक अन्य अखबार ने लिखा : “देह (शरीर) से जान जा चुकी थी। शहर की काया बेजान थी….। कोई सड़क, कोई बाज़ार और कोई घर ऐसा न था जहाँ से जान-ए आलम से बिछुड़ने पर विलाप का शोर न गूंज रहा हो।” लोगों के दुःख और असंतोष की अभिव्यक्ति लोकगीतों में भी हुई।

→ संक्षेप में कहा जा सकता है कि अवध में भारी विद्रोह देहात व शहरी लोगों, सिपाहियों तथा ताल्लुकदारों का एक सामूहिक कृत्य (Collective Act) था। बहुत-से सैनिक कारणों से तो सैनिक ग्रस्त थे ही वे अपने परिवार व गाँव के दुःख-दर्द से भी आहत थे।
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→ विद्रोहियों की घोषणाओं में ब्रिटिश राज के विरुद्ध सभी भारतीय सामाजिक समूहों को एकजुट होने का आह्वान किया गया। ब्रिटिश राज को एक विदेशी शासन के रूप में सर्वाधिक उत्पीड़क व शोषणकारी माना गया। इसलिए इससे संबंधित प्रत्येक चीज़ को पूर्ण तौर पर खारिज किया जा रहा था। अंग्रेजी सत्ता को उत्पीड़क एवं निरंकुश के साथ

→ साथ ही, धर्म, सम्मान व रोजगार के लिए लड़ने का आह्वान किया गया। इस लड़ाई को एक ‘व्यापक सार्वजनिक भलाई’ घोषित किया। विद्रोह के दौरान विद्रोहियों ने सूदखोरों के बही-खाते भी जला दिये थे और उनके घरों में तोड़-फोड़ व आगजनी की थी। शहरी संभ्रांत लोगों को जान बूझकर अपमानित भी किया। वे उन्हें अंग्रेज़ों के वफादार और उत्पीड़क मानते थे।

→ विद्रोही भारत के सभी सामाजिक समुदायों में एकता चाहते थे। विशेषतौर पर हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया गया। उनकी घोषणाओं में जाति व धर्म का भेद किए बिना विदेशी राज के विरुद्ध समाज के सभी समुदायों का आह्वान किया गया। अंग्रेज़ी राज से पहले मुगल काल में हिंदू-मुसलमानों के बीच रही सहअस्तित्व की भावना का उल्लेख भी किया गया। लाभ की दृष्टि से इस युद्ध को दोनों समुदायों के लिए एक समान बताया।

→ ध्यान रहे विद्रोह के चलते ब्रिटिश अधिकारियों ने हिंदू और मुसलमानों में धर्म के आधार पर फूट डलवाने का भरसक प्रयास किए थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी। उदाहरण के लिए बरेली में विद्रोह के नेता खानबहादुर के विरुद्ध हिंदू प्रजा को भड़काने के लिए अंग्रेज़ अधिकारी जेम्स औट्रम (James Outram) द्वारा दिया गया धन का लालच भी कोई काम नहीं आया था। अंततः हारकर उसे 50,000 रुपये वापस ख़जाने में जमा करवाने पड़े जो इस उद्देश्य के लिए निकाले गए थे।

→ विद्रोह का दमन करने के लिए मई और जून (1857) में समस्त उत्तर भारत में मार्शल लॉ लगाया गया। साथ ही विद्रोह को कुचले जाने वाली सैनिक टुकड़ियों के अधिकारियों को विशेष अधिकार दिए गए। एक सामान्य अंग्रेज़ को भी उन भारतीयों पर मुकद्दमा चलाने व सजा देने का अधिकार था, जिन पर विद्रोह में शामिल होने का शक था। सामान्य कानूनी प्रक्रिया के अभाव में केवल मृत्यु दंड ही सजा हो सकती थी।

→ साथ ही सबसे पहले दिल्ली पर पुनः अधिकार की रणनीति अपनाई गई। केनिंग जानता जन-विद्रोह और राज (1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान) था कि दिल्ली के पतन से विद्रोहियों की कमर टूट जाएगी। हिंदू-मुसलमानों में सांप्रदायिक तनाव भड़काकर विद्रोह को कमजोर करने का प्रयास भी किया गया। लेकिन इसमें उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी।

→ इस अध्याय के अंतिम भाग में उन छवियों को समझने का प्रयास किया गया है जो अंग्रेज़ों व भारतीयों में निर्मित हुईं। इन छवियों में शामिल हैं-विद्रोह से संबंधित अनेक चित्र, पेंसिल निर्मित रेखाचित्र, उत्कीर्ण चित्र (Etchings), पोस्टर, के उपलब्ध बाजार-प्रिंट इत्यादि। साथ में हम जान पाएंगे कि इतिहासकार ऐसे स्रोतों का कैसे उपयोग करते हैं।

समय-रेखा

1.1801 ई०वेलेजली द्वारा अवध में सहायक संधि लागू की गई
2.13 फरवरी, 1856अवध का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय
3.10 मई, 1857मेरठ में सैनिकों द्वारा विद्रोह
4.11 मई, 1857विद्रोही सेना का मेरठ से दिल्ली पहुँचना
5.12 मई , 1857बहादुर शाह ज़फर द्वारा विद्रोहियों का नेतृत्व स्वीकार करना
6.30 मई, 1857लखनऊ में विद्रोह
7.4 जून, 1857अवध में सेना में विद्रोह
8.10 जून, 1857सतारा में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध व्रिदोह
9.30 जून, 1857चिनहाट के युद्ध में अंग्रेज़ों की हार
10.जुलाई, 1858युद्ध में शाह मल की मृत्यु
11.20 सितंबर, 1857ब्रिटिश सेना का विजयी होकर दिल्ली में प्रवेश
12.25 सितंबर, 1857ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियाँ हैवलॉक व ऑट्रम के नेतृत्व में लखनऊ पहुँचीं रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई
13.17 जून, 1858वेलेजली द्वारा अवध में सहायक संधि लागू की गई

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