Author name: Prasanna

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

HBSE 11th Class Geography महासागरीय जल Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. उस तत्त्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है।
(A) वाष्पीकरण
(B) वर्षण
(C) जलयोजन
(D) संघनन
उत्तर:
(C) जलयोजन

2. महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है।
(A) 2-20 मी०
(B) 20-200 मी०
(C) 200-3,000 मी०
(D) 2,000-20,000 मी०
उत्तर:
(C) 200-3,000 मी०

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

3. निम्नलिखित में से कौन-सी लघु आकृति महासागरों में नहीं पाई जाती है?
(A) समुद्री टीला
(B) महासागरीय गंभीर
(C) प्रवाल द्वीप
(D) निमग्न द्वीप
उत्तर:
(B) महासागरीय गंभीर

4. लवणता को प्रति समुद्री मक (ग्राम) की मात्रा से व्यक्त किया जाता है-
(A) 10 ग्राम
(B) 100 ग्राम
(C) 1,000 ग्राम
(D) 10,000 ग्राम
उत्तर:
(C) 1,000 ग्राम

5. निम्न में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
(A) हिंद महासागर
(B) अटलांटिक महासागर
(C) आर्कटिक महासागर
(D) प्रशांत महासागर
उत्तर:
(C) आर्कटिक महासागर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
हम पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर:
जल पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्रकार के जीवों के लिए आवश्यक घटक है। पृथ्वी के जीव सौभाग्यशाली हैं कि यह एक जलीय ग्रह है। पृथ्वी ही सौरमण्डल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसकी सतह पर 71% जल पाया जाता है। जल की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी को नीला ग्रह या जलीय ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय सीमांत क्या होता है?
उत्तर:
महाद्वीपीय सीमांत प्रत्येक महादेश का विस्तृत किनारा होता है जोकि अपेक्षाकृत छिछले समुद्रों तथा खाड़ियों से घिरा भाग होता है। यह महासागर का सबसे छिछला भाग होता है, जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है। इस सीमा का किनारा बहुत ही खड़े ढाल वाला होता है।

प्रश्न 3.
विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्तों की सूची बनाइये।
उत्तर:
वर्तमान समय में लगभग 57 गर्मों की खोज हो चुकी है जो निम्नलिखित अनुसार हैं-
32 प्रशांत महासागर
19 अटलांटिक महासागर
6 हिंद महासागर

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 4.
ताप-प्रवणता क्या है?
उत्तर:
यह सीमा समुद्री सतह से लगभग 100 से 400 मीटर नीचे प्रारंभ होती है, एवं कई सौ मीटर नीचे तक जाती है। वह सीमा क्षेत्र जहाँ तापमान में तीव्र गिरावट आती है, उसे ताप-प्रवणता (थर्मोक्लाइन) कहा जाता है।

प्रश्न 5.
समुद्र में नीचे जाने पर आप ताप की किन परतों का सामना करेंगे? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
उत्तर:
समुद्र में नीचे जाने पर हमें तीन परतों से गुजरना पड़ता है
1. पहली परत-

  • यह महासागरीय जल की सबसे उपरी परत होती है
  • यह परत 500 मीटर तक मोटी होती है
  • इसका तापमान 20° सेंटीग्रेड से -25° सेंटीग्रेड के बीच होता है।

2. दूसरी परत-

  • इसे तापप्रवणता परत कहा जाता है
  • यह पहली परत के नीचे स्थित होती है
  • ताप प्रवणता की मोटाई -500 से 1000 मीटर तक होती है।

3. तीसरी परत-

  • यह परत बहुत ठंडी होती है
  • यह परत गम्भीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है
  • आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृत्तों में सतही जल का तापमान 0° से० के निकट होता है और इसलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन आता है।

प्रश्न 6.
समुद्री जल की लवणता क्या है?
उत्तर:
सागरीय जल की मात्रा और उसमें घुले हुए लवणों की मात्रा के बीच पाए जाने वाले अनुपात को समुद्री जल की लवणता कहा जाता है। लवणता को प्रति हजार भागों में व्यक्त किया जाता है अर्थात् प्रति 1,000 ग्राम समुद्री जल में कितने ग्राम लवण की मात्रा है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जलीय चक्र के विभिन्न तत्व किस प्रकार अंतर-संबंधित हैं?
उत्तर:
जल एक चक्रीय संसाधन है जिसका प्रयोग एवं पुनः प्रयोग किया जा सकता है। जब समुद्री जल वाष्प बनकर बादल का रूप धारण करता है और वो ही बादल जब वायुमंडलीय अवरोधों से टकराता है तो वर्षा करता है वर्षा का जल प्रवाहित होकर नदी, नालों से होते हुए सागरों में मिल जाता है। फिर सूर्यताप से सागरों के जल वाष्प बन जाते है। इस प्रक्रिया को जल चक्र कहा जाता है। इसी प्रकार जलीय चक्र में एक तत्व दूसरे तत्व से अंतर-संबंधित है।

जलीय चक्र पृथ्वी के जलमंडल में विभिन्न रूपों जैसे-गैस, तरल व ठोस में जल का परिसंचलन है। इसका संबंध महासागरों, वायुमंडल, भूपृष्ठ, स्तल एवं जीवों के बीच सतत् आदान-प्रदान से भी है। पर्यावरण में जल तीनों मण्डलों में तीनों अवस्थाओं (ठोस, तरल तथा गैस) में पाया जाता है। वर्षा होने तथा हिम पिघलने से जल का अधिकतर भाग ढाल के अनुरूप बहकर नदियों के द्वारा समुद्र में चला जाता है। इस जल का कुछ भाग महासागरों, झीलों तथा नदियों से जलवाष्प (Water Vapour) बनकर वायुमण्डल में लौट जाता है व कुछ भाग वनस्पति द्वारा अवशोषित होकर वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration) द्वारा वायुमण्डल में जा मिलता है।

वर्षा और हिम के पिघले जल का शेष भाग रिसकर या टपक-टपककर भूमिगत हो जाता है। वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प संघनित (Condense) होकर बादलों का रूप धारण करते हैं। बादलों से वर्षा होती है और वर्षा का जल नदियों के रास्ते फिर से पहुँच जाता है। झरनों के माध्यम से भूमिगत जल भी कहीं-न-कहीं धरातल पर निकलकर नदियों से होता हुआ समुद्रों में जा पहुँचता है। “अतः महासागरों, वायुमण्डल तथा स्थलमण्डल में परस्पर होने वाला जल का समस्त आदान-प्रदान जलीय-चक्र कहलाता है।” इस जलीय चक्र में जल कभी रुकता नहीं और अपनी अवस्था (State) तथा स्थान बदलता रहता है।

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प्रश्न 2.
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
स्थलमण्डल और वायुमण्डल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारकों की अपेक्षा जलमण्डल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारक अधिक जटिल (Complex) होते हैं। महासागरों पर तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं

1. अक्षाश (Latitude)-भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् और ध्रुवों की ओर तिरछी पड़ती हैं। फलस्वरूप भूमध्यरेखीय क्षेत्र में महासागरीय जल का औसत वार्षिक तापमान अधिक रहता है और ध्रुवों की ओर जाने पर समुद्री जल का तापमान घटता जाता है। उदाहरणतः भूमध्य रेखा पर महासागरीय जल का औसत वार्षिक तापमान 26°C, 20° अक्षांश पर 23°C, 40° अक्षांश पर -14°C तथा 60° अक्षांश पर 1°C रह जाता है। 0°C की समताप रेखा ध्रुवीय क्षेत्रों के चारों ओर टेढ़ा-मेढ़ा वृत्त बनाती है और सर्दियों के मौसम में थोड़ा-सा भूमध्य रेखा की ओर खिसक आती है।

2. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds)-स्थल से जल की ओर बहने वाली प्रचलित पवनें समुद्री जल को तट से परे बहा ले जाती हैं। हटे हुए गर्म जल का स्थान लेने के लिए नीचे से समुद्र का ठण्डा पानी ऊपर आता रहता है। परिणामस्वरूप वहाँ सागरीय का तापमान कम हो जाता है। उदाहरणतः उष्ण कटिबन्ध से पूर्व से आने वाली सन्मार्गी पवनों (Trade Winds) के प्रभाव से महासागरों के पूर्वी तटों पर समुद्री जल का तापमान कम और पश्चिमी तटों पर समुद्री जल का तापमान अपेक्षाकृत अधिक होता है। इसके विपरीत शीतोष्ण कटिबन्ध में पछुवा पवनों (Westerlies) के प्रभाव से महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर समुद्री जल का तापमान कम और पूर्वी तटों पर समुद्री जल का तापमान अपेक्षाकृत अधिक होता है।

3. महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents)-महासागरीय जल के तापमान को वहाँ चलने वाली गर्म अथवा ठण्डी जल धाराएँ भी प्रभावित करती हैं। उदाहरणतः मैक्सिको की खाड़ी से चलने वाली गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream) नामक गर्म जल धारा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के पास तथा उत्तरी-पश्चिमी यूरोप के पास समुद्री जल के तापमान को बढ़ा देती है। इसी कारण नार्वे के तट पर 60° उत्तरी अक्षांश पर भी समुद्री जल जम नहीं पाता। इसके विपरीत लैब्रेडोर की ठण्डी जलधारा के कारण शीत ऋतु में उत्तरी अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी तट पर 50° उत्तर अक्षांश पर ही तापमान हिमांक तक पहुँच जाता है।

4. समीपवर्ती स्थलखण्डों का प्रभाव (Effect ofAdjacent Land Masses) खुले महासागरों के तापमान सारा साल लगभग एक-जैसे रहते हैं, परन्तु पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से स्थल खण्डों से घिरे हुए समुद्रों का तापमान ग्रीष्म ऋतु में अधिक व शीत ऋतु में कम हो जाता है। ऐसे समुद्रों पर निकटवर्ती स्थल खण्डों का प्रभाव पड़ता है जो जल की अपेक्षा शीघ्र गर्म और शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं। उदाहरणतः भूमध्य रेखा पर ग्रीष्म ऋतु में खुले महासागरीय जल का तापमान 26°C होता है जबकि लाल सागर (Red Sea) का तापमान उन्हीं दिनों 30°C तक पहुँचा होता है।

5. लवणता (Salinity)-प्रायः अधिक लवणता वाला महासागरीय जल अधिक ऊष्मा ग्रहण कर लेता है जिससे उसका तापमान भी बढ़ जाता है। इसके विपरीत समुद्र का कम खारा जल कम ऊष्मा ग्रहण करने के कारण अपेक्षाकृत ठण्डा रहता है।

6. प्लावी हिमखण्ड तथा प्लावी हिमशैल (Ice floes and Icebergs)-ध्रुवीय क्षेत्रों से टूटकर आने वाले बहुत अधिक प्लावी हिमखण्ड (Ice floes) और प्लावी हिमशैल (Icebergs) जिन महासागरों में मिलते हैं, वहाँ के जल का तापमान अपेक्षाकृत कम हो जाता है। उत्तरी ध्रुव के पास ग्रीनलैंड से टूटकर आने वाले हिमखण्ड और हिमशैल पर्याप्त दूरी तक अन्धमहासागर के जल का तापमान नीचे कर देते हैं। इसी प्रकार दक्षिणी ध्रुव के पास अंटार्कटिका से टूटकर आने वाले हिमखण्ड व हिमशैल निकटवर्ती दक्षिणी महासागर (Southern Ocean) के जल का तापमान कम कर देते हैं।

7. वर्षा का प्रभाव (Effect of Rain)-जिन समुद्री भागों में वर्षा अधिक होती है, वहाँ सतह (सागर की सतह) का तापक्रम अपेक्षाकृत कम तथा नीचे के जल का तापमान अधिक होता है। भूमध्य रेखीय महासागरों में अधिक वर्षा के कारण ऊपरी सतह का तापक्रम कम तथा नीचे गहराई में तापक्रम अधिक होता है अर्थात् तापक्रम की विलोमता देखने को मिलती है।

महासागरीय जल HBSE 11th Class Geography Notes

→ महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) महाद्वीपीय मग्नतट महासागर का एक ऐसा निमज्जित प्लेटफॉर्म होता है जिस पर महाद्वीपीय उच्चावच स्थित है।

→ जलमग्न केनियन (Submarine Canyons) महासागरीय नितल पर तीव्र ढालों वाली गहरी व संकरी ‘V’ आकार की घाटियों या गॉর্जो को जलमग्न केनियन कहते हैं। जलमग्न कटक (Submarine Ridges) महासागरों की तली पर स्थित सैंकड़ों कि०मी० चौड़ी तथा हज़ारों कि०मी० लम्बी पर्वत श्रेणियों को जलमग्न कटक कहते हैं।

→ गाईऑट (Guyot)-सपाट शीर्ष वाले समुद्री पर्वतों को गाईऑट कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

→ महाद्वीपीय सीमान्त (Continental Margin) यह महाद्वीपों की पर्पटी की अंतः समुद्री सीमा है। इसमें महाद्वीपीय मग्नतट, ढाल और उत्थान शामिल हैं।

→ ग्रांड बैंक्स (Grand Banks)-कनाडा के न्यूफाउंडलैंड द्वीप के दक्षिण-पूर्व में विश्व के सर्वश्रेष्ठ मत्स्य-ग्रहण क्षेत्रों में से एक।

→ अयन वृत्त (Tropics)-कर्क रेखा (23.5° उ०) व मकर रेखा (23.5° द०) को अयन वृत्त कहा जाता है, क्योंकि यहाँ सूर्य का प्रखर प्रकाश पड़ता है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. ट्रिवार्था के वर्गीकरण में वर्षण पर आधारित जलवायु वर्ग का नाम लिखो-
(A) A वर्ग
(B) C वर्ग
(C) B वर्ग
(D) H वर्ग
उत्तर:
(C) B वर्ग

2. अमेजन बेसिन में कौन-सी जलवायु पाई जाती है?
(A) भूमध्यरेखीय
(B) सवाना
(C) ध्रुवीय
(D) मानसूनी
उत्तर:
(A) भूमध्यरेखीय

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

3. विश्व की जलवायु के वर्गीकरण को कितने प्रकारों में बाँटा जा सकता है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(A) 2

4. वे काल्पनिक रेखाएँ जो समुद्रतल के अनुसार समानीत ताप वाले स्थानों को मिलाती हैं-
(A) समदाब रेखाएँ
(B) समताप रेखाएँ
(C) समान रेखाएँ
(D) सम समुद्रतल रेखाएँ
उत्तर:
(B) समताप रेखाएँ

5. वायुमंडल में उपस्थित ग्रीन हाऊस गैसों में सबसे अधिक सांद्रण किस गैस का है?
(A) CO2
(B) CFCs
(C) CHA
(D) NO
उत्तर:
(A) CO2

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

6. उपोष्ण मरुस्थलीय जलवायु दोनों गोलार्डों में कितने अक्षांशों के बीच पाई जाती है?
(A) 5°- 20°
(B) 15°- 30°
(C) 15°- 35°
(D) 30°- 40°
उत्तर:
(B) 15°- 30°

7. भारत में किस प्रकार की जलवायु पाई जाती है?
(A) उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु
(B) उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु
(C) उपोष्ण कटिबन्धीय स्टैपीज
(D) भूमध्य सागरीय जलवायु
उत्तर:
(B) उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
ट्रिवार्था ने विश्व की जलवायु को कितने प्रकारों में विभाजित किया है?
उत्तर:
16 प्रकारों में।

प्रश्न 2.
ट्रिवार्था के जलवायु वर्गीकरण का क्या आधार था?
उत्तर:
तापमान तथा वर्षण।

प्रश्न 3.
ट्रिवार्था ने विश्व की जलवायु को कितने मुख्य भागों में बाँटा?
उत्तर:
छह।

प्रश्न 4.
ट्रिवार्था के वर्गीकरण में वर्षण पर आधारित जलवायु वर्ग का नाम लिखो।
उत्तर:
B वर्ग।

प्रश्न 5.
अमेज़न बेसिन में कौन-सी जलवायु पाई जाती है?
उत्तर:
भूमध्य रेखीय जलवायु।

प्रश्न 6.
टैगा जलवायु में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
शंकुधारी टैगा वन।

प्रश्न 7.
टैगा जलवायु में न्यूनतम तापमान कहाँ नापा गया है?
उत्तर:
वल्यान्सक (-50° सेल्सियस)।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जलवायु वर्गीकरण की पद्धतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
जलवायु का वर्गीकरण तीन वृहद उपागमों द्वारा किया गया है जो निम्नलिखित हैं-

  1. आनुभविक
  2. जननिक और
  3. अनुप्रयुक्त।

प्रश्न 2.
यूनानियों ने संसार को कौन-कौन से ताप कटिबन्धों में विभाजित किया था?
उत्तर:

  1. उष्ण
  2. शीतोष्ण तथा
  3. शीतकटिबन्ध।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 3.
विश्व की जलवायु का वर्गीकरण करने वाले तीन वैज्ञानिकों के नाम बताओ।
उत्तर:
कोपेन, थार्नथ्वेट तथा ट्रिवार्था।

प्रश्न 4.
विश्व के सभी जलवायु वर्गीकरणों को कितने प्रकारों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
दो प्रकारों में-

  1. आनुभविक वर्गीकरण
  2. जननिक वर्गीकरण।

प्रश्न 5.
कोपेन ने अपने वर्गीकरण के लिए जलवायु के किन तत्त्वों को आधार बनाया?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. वर्षा तथा
  3. वर्षा के मौसमी स्वभाव को।

प्रश्न 6.
थानथ्वेट ने अपने वर्गीकरण के लिए जलवायु के किन तत्त्वों को आधार बनाया?
उत्तर:

  1. वर्षण प्रभाविता
  2. तापीय दक्षता
  3. वर्षा का मौसमी वितरण।

प्रश्न 7.
ट्रिवार्था ने सवाना जलवायु तथा भूमध्य सागरीय जलवायु के लिए किन संकेताक्षरों का उपयोग किया है?
उत्तर:
A, C, D, E, H तथा B क्रमशः Aw तथा Cs।

प्रश्न 8.
प्रमुख ग्रीन हाऊस गैसों के नाम बताइए।
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, ओज़ोन व जलवाष्प।

प्रश्न 9.
भूमण्डलीय तापन क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के तापमान का औसत से अधिक होना।

प्रश्न 10.
ट्रिवार्था के जलवायु वर्गीकरण में ताप पर आधारित पाँच वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:
A, C, D, E तथा H वर्ग।

प्रश्न 11.
Aw प्रकार की जलवायु कौन-सी होती है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय सवाना जलवायु।

प्रश्न 12.
Bwh प्रकार की जल न-सी होती है?
उत्तर:
उष्ण तथा उपोष्ण कटिबन्धीय गर्म मरुस्थल।

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प्रश्न 13.
किन्हीं दो उष्ण मरुस्थलों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. सहारा तथा
  2. थार।

प्रश्न 14.
ध्रुवीय जलवायु के कौन से दो प्रकार हैं?
उत्तर:

  1. टुण्ड्रा और
  2. ध्रुवीय हिमाच्छादित जलवायु।

प्रश्न 15.
उष्ण कटिबन्ध में पाई जाने वाली तीन प्रकार की जलवायु का नाम बताओ।
उत्तर:

  1. भूमध्य रेखीय
  2. सवाना
  3. मानसूनी।

प्रश्न 16.
भूमध्य सागरीय प्रदेश में सर्दियों में वर्षा होने का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
पवन पेटियों का खिसकना।

प्रश्न 17.
टैगा जलवायु कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
केवल 50° से 70° उत्तरी अक्षांशों में, दक्षिणी गोलार्द्ध में नहीं।

प्रश्न 18.
टैगा जलवायु में वार्षिक तापान्तर कितना होता है?
उत्तर:
65.5° सेल्सियस तथा इससे ज्यादा वार्षिक तापान्तर कहीं नहीं मिलता।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रीनहाऊस गैसों से आपका क्या अभिप्राय है? ग्रीनहाऊस प्रभाव बढ़ाने वाले प्रमुख तत्त्वों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ग्रीनहाऊस गैसें ऐसी गैसें जो धरती पर एक आवरण बनाकर कम्बल की भाँति काम करती हैं और धरती की ऊष्मा को बाहर जाने से रोकती हैं, ग्रीनहाऊस गैसें कहलाती हैं। ये पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने में सहायक हैं। कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के अतिरिक्त भूमण्डलीय तापन की प्रक्रिया को तेज करने वाले कुछ अन्य तत्त्व निम्नलिखित हैं
1. जलवाष्प तापमान बढ़ने से जल की वाष्पन दर बढ़ जाती है। ज्यादा जलवाष्प तापमान को और ज्यादा बढ़ाते हैं क्योंकि जलवाष्प एक प्राकृतिक ग्रीन हाऊस गैस है।

2. नाइट्रस ऑक्साइड-कृषि में नाइट्रोजन उर्वरकों के प्रयोग, पेड़-पौधों को जलाने, नाइट्रोजन वाले ईंधन को जलाने आदि के कारण वायुमण्डल में नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। इसका प्रत्येक अणु कार्बन डाइ-ऑक्साइड की तुलना में 250 गुना अधिक ताप प्रगृहित करता है।

3. मीथेन गैस-मीथेन गैस सागरों, ताजे जल, खनन कार्य, गैस ड्रिलिंग तथा जैविक पदार्थों के सड़ने से उत्पन्न होती है। पशु व दीमक आदि को भी मीथेन गैस छोड़ने का जिम्मेदार माना गया है।

4. क्लोरो-फ्लोरो कार्बन-ये संश्लेषित यौगिकों का समूह है जो वातानुकूलन व प्रशीतन की मशीनों, आग बुझाने के उपकरणों तथा छिड़काव यन्त्रों में प्रणोदक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

प्रश्न 2.
जलवायु परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के कारणों को दो वर्गों में बाँटा गया है-

  • खगोलीय कारण
  • पार्थिव कारण।

(1) खगोलीय कारणों में सौर कलंक जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है। सौर कलंक सूर्य पर काले धब्बे होते हैं जो एक चक्रीय ढंग से घटते-बढ़ते रहते हैं। मौसम वैज्ञानिक के अनुसार सौर कलंकों की संख्या बढ़ने पर मौसम ठण्डा और आर्द्र हो जाता है और तूफानों की संख्या बढ़ जाती है।

(2) पार्थिव कारणों में ज्वालामुखी क्रिया जलवायु परिवर्तन का एक अन्य प्रमुख कारण है। ज्वालामुखी उभेदन के दौरान वायुमण्डल में बड़ी मात्रा में ऐरोसोल छोड़ दिए जाते हैं। ये ऐरोसोल वायुमण्डल में लम्बे समय तक रहते हैं और पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाले सौर विकिरण को कम करते हैं, जिससे पृथ्वी का औसत तापमान कुछ हद तक कम हो जाता है।

इसके अतिरिक्त ग्रीनहाऊस गैसों का सान्द्रण जलवाय को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इससे पथ्वी का ता

प्रश्न 3.
भूमण्डलीय तापन में मनुष्य की भूमिका पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान युग में बढ़ता भूमण्डलीय तापन संसाधनों के अनियोजित उपयोग और हमारी भोगवादी जीवन शैली की देन है। चूल्हे से धमन भट्टी तक तथा जुगाड़ से रॉकेट तक हुआ तकनीकी विकास, बढ़ता औद्योगीकरण, नगरीकरण, परिवहन तथा कृषि के क्षेत्र में आए क्रान्तिकारी बदलावों, भूमि की जुताई तथा वनों के विनाश जैसी मनुष्य की गतिविधियों ने वायुमण्डल में ग्रीन हाऊस गैसों की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ा दी है। ये गैसें वायुमण्डल में एक कम्बल या काँच घर (Glass House) का कार्य करती हैं, जिसमें गर्मी आ तो जाती है पर आसानी से जाने नहीं पाती।

प्रश्न 4.
भूमण्डलीय तापन के दुष्परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमण्डलीय तापन के प्रमुख दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. विश्व में औसत तापमान बढ़ने से हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमानियाँ पिघलेंगी।
  2. समुद्र का जल-स्तर ऊँचा उठेगा जिससे तटवर्ती प्रदेश व द्वीप जलमग्न हो जाएँगे। करोड़ों लोग शरणार्थी बन जाएँगे।
  3. वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज़ होगी। पृथ्वी का समस्त पारिस्थितिक तन्त्र प्रभावित होगा। शीतोष्ण कटिबन्धों में वर्षा बढ़ेगी और समुद्र से दूर उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा घटेगी।।
  4. आज के ध्रुवीय क्षेत्र पहले की तुलना में अधिक गर्म हो जाएँगे।
  5. जलवायु के दो तत्त्वों तापमान और वर्षा में जब परिवर्तन होगा तो निश्चित रूप से धरातल की वनस्पति का प्रारूप (Patterm) बदलेगा।
  6. हरित गृह प्रभाव के कारण कृषि क्षेत्रों, फसल प्रारूप तथा कृषि प्राकारिकी (Topology) में परिवर्तन होना निश्चित है।

प्रश्न 5.
भूमण्डलीय जलवायविक परिवर्तन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दशाएँ केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर ही नहीं बदलती वरन् ये समय के साथ-साथ भी बदल जाती हैं। अतः जलवायु परिवर्तन से आशय 30-35 वर्षों में या हजारों वर्षों में मिलने वाली जलवायवी भिन्नताओं के अध्ययन से नहीं है। वरन् इसमें लाखों वर्षों से चले आ रहे समय मापकों में होने वाली जलवायु की भिन्नताओं का अध्ययन शामिल किया जाता है।

प्रश्न 6.
जलवायु परिवर्तन के पार्थिव कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के पार्थिव कारक निम्नलिखित हैं-
1. महाद्वीपीय विस्थापन-भू-गर्भिक काल में महाद्वीपों के विखण्डन व विभिन्न दिशाओं में संचलन के कारण विभिन्न भू-खण्डों में जलवायु परिवर्तन हुए हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों के समीप स्थित भू-भागों का भू-मध्य रेखा के निकट आने पर जलवायु परिवर्तन होना एक सामान्य प्रक्रिया है। दक्षिणी भारत में हिमनदों के चिह्नों तथा अंटार्कटिका में कोयले का मिलना इस जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रमाण हैं।

2. पर्वत निर्माण प्रक्रिया यह जलवायु को दो प्रकार से प्रभावित करती है-(a) पर्वतों के उत्थान तथा घिसकर उनके नीचे हो जाने से स्थलाकृतियों की व्यवस्था भंग हो जाती है। इसका प्रभाव पवन प्रवाह, सूर्यातप तथा मौसमी तत्त्वों; जैसे तापमान एवं वर्षा के वितरण पर पड़ता है। (b) पर्वत निर्माण की प्रक्रिया से ज्वालामुखी उद्गार की सम्भावनाएँ प्रबल हो जाती हैं। ज्वालामुखी उद्गार से भारी मात्रा में वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें और जलवाष्प निष्कासित होते हैं। इससे वायुमण्डल की पारदर्शिता (Transparency) प्रभावित होती है, जिसका सीधा प्रभाव प्रवेशी सौर्य विकिरण तथा पार्थिव विकिरण पर पड़ता है। ये सभी प्रक्रियाएँ पृथ्वी के ऊष्मा सन्तुलन (Heat Balance) को भंग कर जलवायु परिवर्तन की भूमिका तैयार करती हैं।

3. मनुष्य के क्रिया-कलाप मनुष्य अपनी विकासात्मक गतिविधियों से हरित-गृह गैसों (कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, ओजोन, जलवाष्प) की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ाता रहता है। वायुमण्डल में इन अवयवों के प्राकृतिक संकेन्द्रण में भिन्नता आने से भूमण्डलीय ऊष्मा सन्तुलन प्रभावित होता है। इससे वायुमण्डल की सामान्य प्रणाली, जिस पर जलवायु भी निर्भर करती है, प्रभावित होती है।

प्रश्न 7.
जलवायु परिवर्तन के खगोलीय कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन से जुड़े खगोलीय कारक तीन तथ्यों पर आधारित हैं-
1. पृथ्वी की कक्षा की उत्केन्द्रीयता (Ecentricity) में परिवर्तन-पृथ्वी की उत्केन्द्रीयता में लगभग 92 हजार वर्षों में परिवर्तन आ जाता है अर्थात् सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिक्रमण पथ की आकृति कभी अण्डाकार तो कभी गोलाकार हो जाती है। उदाहरणतः वर्तमान में पृथ्वी की सूर्य के निकटतम रहने की स्थिति–उपसौर (Perihelion) जनवरी में आती है। यह उपसौर स्थिति 50 हजार वर्ष बाद जुलाई में आने लगेगी। इसका परिणाम यह होगा कि आगामी 50 हजार वर्षों में उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल अधिक गर्म व शीतकाल अधिक ठण्डा हो जाएगा।

2. पृथ्वी की काल्पनिक धुरी के कोण में परिवर्तन सूर्य की परिक्रमा करते समय पृथ्वी की धुरी (Axes) अपने कक्षा-पथ के साथ एक कोण बनाती है। वर्तमान युग में यह कोण 239° का है, लेकिन प्रत्येक 41-42 हजार वर्षों के बाद पृथ्वी की धुरी के कोण में 1.5° का अन्तर आ जाता है। कभी यह झुकाव 22° तो कभी 241/2° हो जाता है। पृथ्वी के झुकाव में परिवर्तन से मौसमी दशाओं व तापमान में तो अन्तर होंगे ही साथ ही भौगोलिक पेटियों की भिन्नताएँ कम या विलुप्त हो जाएँगी।

3. विषुव का पुरस्सरण (Precession)-वर्तमान में चार मौसमी दिवसों की स्थितियाँ इस प्रकार हैं-21 मार्च-बसन्त विषव, 23 सितम्बर-शरद विषुव, 21 जून-कर्क संक्रांति तथा 22 दिसम्बर मकर संक्रांति। प्रत्येक 22 हजार वर्षों में इन स्थितियों में परिवर्तन आता है जिसका सीधा प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।

प्रश्न 8.
जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रमाणों का संक्षिप्त ब्योरा दीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी प्रमाणों को भी निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जा सकता है-
1. भू-वैज्ञानिक अतीत काल में हुए जलवायु परिवर्तन के प्रमाण

  • अवसादी चट्टानों में प्राणियों और वनस्पति के जीवाश्म
  • गहरे महासागरों के अवसादों से प्राप्त प्राणियों और वनस्पति के जीवाश्म
  • वृक्षों के वलय
  • झीलों के अवसाद
  • चट्टानों की प्रकृति
  • हिमनदियों के आकार में परिवर्तन
  • समुद्रों तथा झीलों के जल-स्तर में परिवर्तन
  • भू-आकारों के प्रमाण।

2. ऐतिहासिक काल में हुए जलवायु परिवर्तन के प्रमाण-

  • अभिलेखों में जलवायु परिवर्तन के उल्लेख
  • पुराने पुस्तकालयों में मौसम सम्बन्धी जानकारी
  • फसलों के बोने तथा काटने के मौसम
  • सूखे व बाढ़ से जुड़ी लोक कथाएँ
  • पत्तनों के जल का जम जाना
  • सूखी झीलें, नदियाँ व नहरे
  • पुरानी बस्तियों के खण्डहर
  • लोगों का बड़े पैमाने पर प्रवास
  • लुप्त वन तथा अतीत में वनस्पति का वितरण।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 9.
मनुष्य और जलवायु में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
प्राचीनकाल से ही मनुष्य और वातावरण का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव का रहन-सहन, उसके अधिवास, आर्थिक क्रिया-कलाप आदि पर जलवायु का विशेष प्रभाव पड़ता है। यह प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से मानव के प्रत्येक क्रिया-कलाप को प्रभावित करता है। विश्व के कई क्षेत्रों में मनुष्य की लापरवाही से वनों की कटाई के कारण मृदा अपरदन होता है जिससे अधिकतर अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कुछ शताब्दियों से कोयले और तेल की खपत बढ़ जाने से वायुमण्डल में कार्बन-डाइऑक्साइड में वृद्धि हो गई है जिससे वायुमण्डल का तापमान भी अधिक हो गया है।

प्रश्न 10.
विश्व के मुख्य ताप कटिबन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संसार की जलवायु के वर्गीकरण का संभवतः सबसे पहला प्रयास प्राचीन यूनानियों ने किया था। उन्होंने ताप को आधार मानते हुए संसार को तीन ताप अथवा जलवायु कटिबन्धों में बाँटा था

  • उष्ण कटिबन्ध-यह भूमध्य रेखा के दोनों और 23 1/2° उत्तर तथा 23 1/2° दक्षिण अक्षांशों के मध्य स्थित है। यहाँ सारा वर्ष ऊँचा तापमान रहता है।
  • शीतोष्ण कटिबन्ध-यह कटिबन्ध दोनों गोलार्डों में 23 1/2° उत्तर से 66 1/2° उत्तर तथा 23 1/2° दक्षिण से 66 1/2° दक्षिण अक्षांशों के मध्य स्थित है।
  • शीत कटिबन्ध यह कटिबन्ध उत्तर तथा दक्षिण में 66 1/2° से ध्रुवों तक फैला हुआ है। ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान वर्ष भर कम रहता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जलवायु का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्राकतिक पर्यावरण की रचना वायमण्डल, जलमण्डल, स्थलमण्डल और जैवमण्डल से मिलकर होती है। जलवाय इस प्राकृतिक पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण घटक (Constituent) होता है। जलवायु का प्रभाव मानव की समस्त क्रियाओं पर देखा जा सकता है।
1. मृदा-निर्माण-मूल चट्टान को मृदा में बदलने में जलवायु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मिट्टी का रंग, संरचना, बनावट, उपजाऊपन, कटाव और निक्षालन (Leaching) इत्यादि गुण जलवायु पर निर्भर करते हैं। मृदा ही अन्य कारकों के साथ कृषि की उत्पादकता का स्तर निर्धारित करती है।

2. वनस्पति और प्राणी-वनस्पतियों और प्राणियों का धरातल पर वितरण जलवायु ही करती है। इसी कारण वनस्पति को जलवायु का दर्पण (Mirror of Climate) कहा जाता है। मनुष्य के जीवन की बहुत सारी आवश्यकताएँ वनों और प्राणियों से पूरी होती हैं।

3. कृषि-कृषि, जो मानव और पशुओं के भोजन का आधार तथा अनेक उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्रोत है। केवल अनुकूल जलवायुवी दशाओं में ही की जा सकती है।

4. जनसंख्या का वितरण-प्रतिकूल जलवायु वाले प्रदेशों में जनसंख्या विरल होती है, जबकि अनुकूल जलवायु वाले क्षेत्रों में जनसंख्या का सर्वाधिक सान्द्रण पाया जाता है।

5. आर्थिक उन्नति-जलवायु अपनी विशेषताओं के आधार पर मानव के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, जिसका अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक-आर्थिक उन्नति पर प्रभाव पड़ता है। यूरोप व उत्तरी अमेरिका की शीत व शीतोष्ण जलवायु में व्यक्ति फुर्तीला रहता है, जबकि भूमध्यरेखीय उष्ण व आर्द्र जलवायु में आदमी आलस्यपूर्ण हो जाता है।

6. शारीरिक बनावट-जलवायु के प्रकार शरीर की बनावट व चमड़ी के रंग को प्रभावित करते हैं। मध्य अफ्रीका में रहने वाली जन-जातियों का रंग काला और यूरोप में रहने वाली जन-जातियों का रंग गोरा जलवायु का ही परिणाम है।

7. सभ्यताओं का उदय-निर्बाध जलापूर्ति, उपजाऊ मिट्टी के साथ-साथ अनकल जलवायु ने विश्व में अनेक प्राचीन सभ्यताओं के उदय में भूमिका निभाई है। सामाजिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक उन्नति में सुखद जलवायु का अत्यन्त महत्त्व होता है।

इनके अतिरिक्त सिंचाई, वन प्रबन्धन, भूमि उपयोग, परिवहन, भवन निर्माण तथा अनेकानेक आर्थिक कार्यक्रम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जलवायु द्वारा प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 2.
कोपेन द्वारा प्रस्तुत जलवायु वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध जलवायुवेत्ता डॉ० व्लाडिमीर कोपेन का जलवायु वर्गीकरण अत्यधिक प्रचलित है। उन्होंने 1918 ई० में संसार की जलवायु का वर्गीकरण मूल रूप में प्रस्तुत किया जिसको बाद में उन्होंने संशोधित कर 1936 ई० में उसे अन्तिम रूप दिया। उनका उद्देश्य वर्गीकरण की एक ऐसी विधि विकसित करना था जो जलवायु तत्त्वों का संख्यात्मक आधार पर प्रदेशों का सीमांकन कर सके। उन्होंने तापमान, वर्षा और उनकी मौसमी विशेषताओं को महत्त्वपूर्ण स्थान देकर प्रदेशों का सीमांकन किया। उन्होंने अपना वर्गीकरण प्राकृतिक वनस्पति के वितरण को मद्देनज़र रखते हुए किया। उनका कहना था कि प्राकृतिक वनस्पति वर्षा की मात्रा तथा तापमान से प्रभावित होती है। जैसा कि उन्होंने कहा है, “Natural Vegetation is considered to be the best expression of the totality of the climate.”

कोपेन के वर्गीकरण को निम्नलिखित पाँ वर्गों में बाँटा गया है जिन्हें उन्होंने अंग्रेजी के बड़े अक्षरों के रूप में व्यक्त किया है-

कोपेन का वर्गीकरण
A – आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु1. उष्ण कटिबन्धीय प्रचुर वर्षा वाले क्षेत्र
2. सवाना जलवायु (Af)
3. मानसूनी जलवायु (Aw)
B – शुष्क जलवायु1. मरुस्थलीय जलवायु (BW)
2. स्टेपी जलवायु (BS)
C – आर्द्र शीतोष्ण कटिबन्धीय जलवायु1. भूमध्य सागरीय जलवायु (Cf)
2. चीनी प्रकार की जलवायु (Cs)
3. पश्चिमी यूरोपीय जलवायु (CW)
D – आर्द्र शीतोष्ण जलवायु1. टैगा जलवायु (Df)
2. शीत पूर्वी जलवायु (Dw)
3. महाद्वीपीय जलवायु (Dfb)
E – ध्रुवीय जलवायु
H – उच्च पर्वतीय जलवायु
1. टुण्ड्रा जलवायु (ET)
2. हिमाच्छादित प्रदेश जलवायु (Ef)
हिमाच्छादित उच्च भूमियाँ (H)

A – आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु।
B – शुष्क जलवायु।
C – आर्द्र शीतोष्ण कटिबन्धीय जलवायु [मृदु शीतकाल]।
D – आर्द्र शीतोष्ण जलवायु [कठोर शीतकाल]।
E – ध्रुवीय जलवायु।
इन अक्षरों के अतिरिक्त कुछ अन्य अक्षरों का भी प्रयोग किया गया है जोकि वर्षा की अवधि को प्रदर्शित करते हैं।
f- वर्ष भर वर्षा
s – ग्रीष्मकाल शुष्क
S – अर्द्ध-शुष्क या स्टेपी जलवायु।
W – शुष्क ऋतु।
आधुनिक समय में भी कोपेन का जलवायु वर्गीकरण सर्वमान्य है। जलवायु के मुख्य वर्ग अंग्रेजी के बड़े अक्षरों द्वारा तथा उप-वर्ग छोटे अक्षरों द्वारा दर्शाए गए हैं। यह एक सरल, महत्त्वपूर्ण तथा लाभदायक विधि है। वायुमण्डल परिसंचरण के अनुसार भी यह विधि उचित तथा सही है, परन्तु इस वर्गीकरण में भी कुछ निम्नलिखित त्रुटियाँ हैं जिससे विपक्षीय विचार प्रकट होते हैं

  • यह वर्गीकरण केवल वर्षा की प्रभावशीलता पर आधारित है।
  • इसमें समुद्री धाराओं, पवनों आदि जलवायु तत्वों के प्रभाव को ध्यान में नहीं रखा गया।
  • कोपेन ने जलवायु वर्गीकरण में कृषि जैसे महत्त्वपूर्ण कारक की अवहेलना की है।

प्रश्न 3.
ग्रीन हाऊस प्रभाव क्या होता है? विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
“भू-तल के परावर्तित विकिरण द्वारा वायुमण्डल का अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होना ग्रीन हाऊस प्रभाव कहलाता है।” अत्यधिक ठण्डे देशों में उष्ण कटिबन्धीय पौधों को सुरक्षित रखने अथवा फल या सब्जियाँ उगाने के लिए काँच या पारदर्शी प्लास्टिक की दीवारों वाले घर बनाए जाते हैं। काँच ऊष्मा का अवशोषण तो करता है, लेकिन तापमान को बाहर नहीं जाने देता, जिसमें ठण्डे देशों में भी उच्च ताप प्राप्त कर पौधे जीवित रहते हैं, हरे रहते हैं, इसलिए उन्हें हरित-गृह कहते हैं। हम सभी जानते हैं कि सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली विकिरण ऊर्जा, जिसे हम सूर्यातप (Insolation) कहते हैं, लघु तरंगों (Short-waves) के रूप में होती है। इस प्रवेशी सौर विकिरण से पृथ्वी गर्म होती है, वायुमण्डल तो इस ऊर्जा का केवल 20 प्रतिशत भाग ही अवशोषित कर पाता है।

सरल शब्दों में, सूर्य की किरणों से वायुमण्डल सीधे गर्म नहीं होता, बल्कि पहले पृथ्वी गर्म होती है। जब पृथ्वी को प्राप्त यह ऊष्मा दीर्घ तरंगों (Long waves) के रूप में वापस लौटने लगती है तो वायुमण्डल में उपस्थित कुछ गैसें इसे अवशोषित कर लेती हैं और पृथ्वी का तापमान 15° सेल्सियस तक बनाए रखती हैं। इस प्रकार वायुमण्डल को गर्म करने का मुख्य स्रोत पार्थिव विकिरण (Terrestrial Radiation) है।

वायुमण्डल की इसी गर्मी के कारण धरती पर जीव-जन्तु, पेड़-पौधे इत्यादि जीवित रह सकते हैं। पृथ्वी पर वनस्पतियों तथा प्राणियों के जीने योग्य तापक्रम बनाए रखने की इस प्राकृतिक व्यवस्था को ही ग्रीन हाऊस प्रभाव कहा जाता है। वे सभी गैसें जो इस प्रक्रिया में सहायक होती हैं, ‘ग्रीन हाऊस गैसें’ कहलाती हैं। इनमें प्रमुख स्थान कार्बन-डाइऑक्साइड का है। अन्य प्रमुख गैसें मीथेन व सी०एफ०सी० गैसें तथा जलवाष्प हैं।

प्रश्न 4.
भू-वैज्ञानिक अतीतकाल तथा ऐतिहासिक काल में होने वाले भूमण्डलीय जलवायविक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अभिप्राय (Meaning)-वायुमण्डल स्थिर न रहकर सदा गतिशील रहता है। वायुमण्डल की यह गत्यात्मकता इसके निचले स्तरों में बहुत ज्यादा जटिल है। वायमुण्डलीय विशेषताएँ केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर ही नहीं बदलती वरन् ये समय के साथ-साथ भी बदल जाती हैं। पृथ्वी का भू-गर्भिक इतिहास इस बात का साक्षी है कि अतीत में हर युग की अपनी विशिष्ट जलवायुवी दशाएँ रही हैं। स्पष्ट है कि यहाँ जलवायु परिवर्तन से आशय 30-35 वर्षों में या हजारों वर्षों में मिलने वाली जलवायुवी भिन्नताओं के अध्ययन से नहीं है वरन् इसमें लाखों वर्षों से चले आ रहे समय मापकों में होने वाली जलवायु की भिन्नताओं का अध्ययन शामिल किया जाता है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब से वायुमण्डल बना है तब से जलवायु में परिवर्तन हो रहे हैं, लेकिन ये परिवर्तन स्थायी कभी नहीं रहे। एक परिवर्तन दूसरे परिवर्तन के लिए जगह बनाता आया है।

विश्व में जलवायुवी परिवर्तनों की पड़ताल दो खण्डों में की जा सकती है-

  • भू-वैज्ञानिक अतीत काल (Geological Past Period)
  • ऐतिहासिक काल (Historical Period)।

(A) भू-वैज्ञानिक अतीत काल (Geological Past Period)-
1. अनुमान है कि आज से 425 करोड़ साल पूर्व वायुमण्डल का तापमान 37° सेल्सियस रहा होगा। लगभग 250 करोड़ साल पहले ये तापमान घटकर 25° सेल्सियस हो गया। तापमान घटने का यह सिलसिला जारी रहा और 250 करोड़ से 180 करोड़ वर्ष पहले की अवधि के दौरान हिमयुग आया। हिमयुग के आने का संकेत हमें उस समय की हिमनदियों से बनी स्थलाकृतियों से मिलता है।

2. इसके बाद आने वाले 95 करोड़ वर्षों तक जलवायु उष्ण रही और हिमनदियाँ लुप्त हो गईं।

3. वैज्ञानिक अध्ययन प्रमाणित करते हैं कि कैम्ब्रियन युग (लगभग 60 करोड़ वर्ष पूर्व) से पहले भू-पटल से अधिकांश भागों पर हिम की चादर बिछी हुई थी, जिस कारण भू-पटल पर शीत जलवायु का प्रभुत्व था।

4. ओरडोविशियन कल्प (50 करोड़ वर्ष पहले) तथा सिल्युरियन कल्प (44 करोड़ वर्ष पहले) में जलवायु गर्म रही। यह जलवायु हमारी वर्तमान जलवायु जैसी थी।

5. इसी प्रकार जुरैसिक कल्प (18 करोड़ वर्ष पहले) में पृथ्वी की जलवायु वर्तमान समय की जलवायु की तुलना में अधिक गर्म थी।

6. इयोसीन युग (6 करोड़ वर्ष पहले) शीतोष्ण वनस्पति ध्रुवीय भागों के अधिक निकट थी। इसी प्रकार 60° अक्षांश रेखा पर प्रवालों के अवशेष प्रदर्शित करते हैं कि इयोसीन काल में इन अक्षांशीय क्षेत्रों के महासागरीय जल का तापमान वर्तमान तापमान से 10°F अधिक था।

7. प्लीस्टोसीन अर्थात् अत्यन्त नूतन युग (30 लाख साल पहले) में हिमनदियों का विस्तार हुआ। वर्तमान युग की हिम की टोपियाँ इस समय के हिम के अवशेष हैं।

8. विगत 20 लाख वर्षों में कई ठण्डी और गर्म जलवायु आईं और गईं।

9. उत्तरी गोलार्द्ध में अन्तिम हिमनदन का अन्तिम दौर आज से 18,000 वर्ष पहले अपनी चरम सीमा पर था। उस समय समुद्र तल आज की तुलना में 85 मीटर नीचे था।

(B) ऐतिहासिक काल (Historical Period)
1. अब से 16,000 वर्ष पूर्व हिम ने पिघलना शुरू किया। तापमान ऊँचा और वर्षा पर्याप्त होने लगी। 7,000 से 10,000 साल पहले जलवायु आज की तुलना में गर्म थी। आज जहाँ टुण्ड्रा प्रदेश है, वहाँ उस समय वन उगे हुए थे।

2.  सन् 1450 से 1850 के बीच की अवधि को लघु हिमयुग (Little Ice Age) कहा जाता है। इस युग में आल्पस पर्वतों पर हिमनदियों का विस्तार हुआ।

3. औद्योगिक क्रान्ति (सन 1780) के बाद मानव की बढती गतिविधियों के कारण ग्रीन हाऊस गैसों के सान्द्रण से वायुमण्डल का तापमान बढ़ने लगा है।

एल्सवर्थ हंटिंगटन (E. Huntington) ने अपनी पुस्तक सभ्यता एवं जलवायु (Civilization and Climate) में ऐतिहासिक काल में हुए भूमण्डलीय जलवायु परिवर्तन के तीन सन्दर्भ दिए हैं-

  • उन मरुस्थलीय भागों में जहाँ आज काफिले (Caravans) भी नहीं जा सकते, पुराने नगरों के अवशेष देखने को मिलते हैं।
  • अफ्रीका तथा अमेरिका के ऐसे भागों में नगरों के खण्डहर देखने को मिलते हैं, जहाँ इस समय पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं हैं।
  • आज कई ऐसे क्षेत्रों में कृषि, सिंचाई तथा नहरों के चिह्न देखने को मिलते हैं, जहाँ जल का अभाव है और वर्तमान में अति न्यून वर्षा होती है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के कारकों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  • पार्थिव कारक (Terrestrial Factors)
  • खगोलीय कारक (Astronomical Factors)
  • पार्थिवेत्तर कारक (Extra Terrestrial Factors)।

(A) पार्थिव कारक (Terrestrial Factors)
1. महाद्वीपीय विस्थापन भू-गर्भिक काल में महाद्वीपों के विखण्डन व विभिन्न दिशाओं में संचलन के कारण विभिन्न भू-खण्डों में जलवायु परिवर्तन हुए हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों के समीप भू-भागों का भूमध्य रेखा के निकट आने पर जलवायु परिवर्तन होना एक सामान्य प्रक्रिया है। दक्षिणी भारत में हिमनदों के चिह्नों तथा अंटार्कटिका में कोयले का मिलना इस जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रमाण हैं।

2. पर्वत निर्माण प्रक्रिया-यह जलवायु को दो प्रकार से प्रभावित करती हैं-
(a) पर्वतों के उत्थान तथा घिसकर उनके नीचे हो जाने से स्थलाकृतियों की व्यवस्था भंग हो जाती है। इसका प्रभाव पवन प्रवाह, सूर्यातप तथा मौसमी तत्त्वों; जैसे तापमान एवं वर्षा के वितरण पर पड़ता है।

(b) पर्वत निर्माण की प्रक्रिया से ज्वालामुखी उद्गार की सम्भावनाएँ प्रबल हो जाती हैं। ज्वालामुखी उद्गार से भारी मात्रा में वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें और जलवाष्प निष्कासित होते हैं। इससे वायुमण्डल की पारदर्शिता (Transparency) प्रभावित होती है, जिसका सीधा प्रभाव प्रवेशी सौर विकिरण तथा पार्थिव विकिरण पर पड़ता है। ये सभी प्रक्रियाएँ पृथ्वी के ऊष्मा सन्तुलन (Heat Balance) को भंग कर जलवायु परिवर्तन की भूमिका तैयार करती हैं।

3. मनुष्य के क्रिया-कलाप मनुष्य अपनी विकासात्मक गतिविधियों से हरित-गृह गैसों (कार्बन-डाइऑक्साइड, आज़ोन, जलवाष्प) की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ाता रहता है। वायुमण्डल में इन अवयवों के प्राकृतिक संकेन्द्रण में भिन्नता आने से भूमण्डलीय ऊष्मा सन्तुलन प्रभावित होता है। इससे वायुमण्डल की सामान्य प्रणाली, जिस पर जलवायु भी निर्भर करती है, प्रभावित होती है।

(B) खगोलीय कारक (Astronomical Factors) जलवायु परिवर्तन से जुड़े खगोलीय कारक तीन तथ्यों पर आधारित हैं
1. पृथ्वी की कक्षा की उत्केन्द्रीयता (Ecentricity) में परिवर्तन-पृथ्वी की उत्केन्द्रीयता में लगभग 92 हजार वर्षों में परिवर्तन आ जाता है अर्थात् सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिक्रमण पथ की आकृति कभी अण्डाकार तो कभी गोलाकार हो जाती है। उदाहरणतः वर्तमान में पृथ्वी की सूर्य के निकटतम रहने की स्थिति-उपसौर (Perihelion) जनवरी में आती है। यह उपसौर स्थिति 50 हजार वर्ष बाद जुलाई में आने लगेगी। इसका परिणाम यह होगा कि आगामी 50 वर्षों में उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल अधिक गर्म व शीतकाल अधिक ठण्डा होता जाएगा।

2. पृथ्वी की काल्पनिक धरी के कोण में परिवर्तन सर्य की परिक्रमा करते समय पृथ्वी की धरी (Axes) अपने कक्षा-पथ के साथ कोण बनाती है। वर्तमान युग में यह कोण 23/2° का है, लेकिन प्रत्येक 41-42 हजार वर्षों के बाद पृथ्वी की धुरी के कोण में 1.5° का अन्तर आ जाता है। कभी यह झुकाव 22° तो कभी 24% हो जाता है। पृथ्वी के झुकाव में परिवर्तन से मौसमी दशाओं व तापमान में तो अन्तर होंगे ही, साथ ही भौगोलिक पेटियों की भिन्नताएँ कम या विलुप्त हो जाएँगी।

3. विषुव का पुरस्सरण (Precession) वर्तमान में चार मौसमी दिवसों की स्थितियाँ इस प्रकार हैं-21 मार्च-बसन्त विषुव, 23 सितम्बर-शरद विषुव, 21 जून कर्क संक्रांति तथा 22 दिसम्बर मकर संक्रांति। प्रत्येक 22 हजार वर्षों में इन स्थितियों में परिवर्तन आता है जिसका सीधा प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

(C) पार्थिवेत्तर कारक (Extra Terrestrial Factors) इन कारकों में पृथ्वी पर पहुँचने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा में परिवर्तनों को शामिल किया जाता है
1. सौर विकिरण की प्राप्ति में भिन्नता-पृथ्वी पर ऊर्जा का एकमात्र स्रोत सूर्य है। सूर्य में होने वाली उथल-पुथल से पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा में अन्तर आ जाता है। सूर्यातप की मात्रा में परिवर्तन वायुमण्डल द्वारा सौर विकिरण के अवशोषण की मात्रा में परिवर्तन से भी हो सकता है।

2. सौर कलंक सूर्य के सौर कलंकों (Sun Spots) की संख्या में प्रत्येक 11 वर्षों बाद परिवर्तन आता रहता है। सौर कलंकों की संख्या बढ़ना अधिक उष्ण व तर (Cooler and Wetter) दशाओं से जुड़ा है, जबकि सौर कलंकों की संख्या में कमी, गर्म तथा शुष्क (Warm and Drier) दशाओं से सम्बन्धित होती है। यही नहीं सौर कलंकों की संख्या का प्रभाव सूर्य से निष्कासित होने वाली पराबैंगनी किरणों पर भी पड़ता है। इन्हीं पराबैंगनी किरणों की मात्रा में वायुमण्डल में ओज़ोन गैस की मात्रा निर्धारित होती है। वायुमण्डल में ओज़ोन गैस की मात्रा भू-मण्डल पर ताप सन्तुलन को प्रभावित करती है।

पृथ्वी एक जीवन्त जीव (Living Organism) की भाँति है। इसकी प्रक्रियाएँ (Processes) स्व-नियन्त्रित हैं। पृथ्वी बृहद् स्तर पर जलवायुवी सन्तुलन बनाए रखने में सक्षम है। लेकिन ये प्रक्रियाएँ अत्यन्त जटिल और सूक्ष्म भी हैं। तापमान वृद्धि के रूप में प्रकृति से की गई अनावश्यक छेड़छाड़ दुष्परिणाम ला सकती है।

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HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
“ऑगस्ट्स का शासनकाल रोमन साम्राज्य के इतिहास का एक स्वर्ण काल था” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
ऑगस्ट्स रोमन साम्राज्य का प्रथम सम्राट् था। उसने 27 ई० पूर्व से 14 ई० तक शासन किया। उसने रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता को दूर कर वहाँ शाँति की स्थापना की। उसने अनेक उल्लेखनीय प्रशासनिक, आर्थिक एवं धार्मिक सुधारों को लागू कर रोमन साम्राज्य की नींव को सुदृढ़ किया। उसने रोम में भव्य एवं विशाल भवनों तथा मंदिरों का निर्माण किया। उसके शासनकाल में रोमन साहित्य का भी अद्वितीय विकास हुआ। संक्षेप में ऑगस्ट्स के शासनकाल में रोमन साम्राज्य ने विभिन्न क्षेत्रों में इतनी प्रगति की कि इसे ठीक ही रोमन इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।

डॉक्टर आर्थर ई० आर० बोक ने ठीक कहा है कि, “उसका नाम रोम के अथवा वास्तव में मानव वंश के इतिहास के महान् शासकों में से एक के रूप में सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।” एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के शब्दों में, “उसने रोम को उसके इतिहास का सबसे महत्त्वपूर्ण अध्याय दिया जो कि प्रत्येक दृष्टिकोण से स्वर्ण युग कहलाने योग्य था।”

ऑगस्ट्स ने अपने शासनकाल के दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. रोमन शाँति :
ऑगस्ट्स (वास्तविक नाम ऑक्टेवियन) के सिंहासनारूढ़ के समय (27 ई० पू०) चारों ओर अराजकता का वातावरण था। 44 ई० पू० में रोमन सम्राट् जूलियस सीजर (Julius) की हत्या के कारण रोमन साम्राज्य में गृहयुद्ध भड़क उठा था। सीजर के हत्याकांड में ब्रटस (Brutus) तथा कैसियस (Casius) सम्मिलित थे।

इन हत्यारों को सबक सिखाने के उद्देश्य से ऑक्टेवियन (Octavian) जो कि जूलियस सीजर की बहन का पोता था ने एंटोनी (Antony) तथा लेपीडस (Lepidus) के साथ मिल कर एक त्रिगुट (Triumvirate) स्थापित किया। इस त्रिगुट ने जूलियस सीजर के हत्याकांड में सम्मिलित सभी दोषियों को यमलोक पहुँचा दिया। इसके शीघ्र पश्चात् ही इस त्रिगुट में सत्ता के लिए आपसी फूट पड़ गई।

ऑक्टेवियन ने एंटोनी को 31 ई० पू० में ऐक्टियम के युद्ध (Battle of Actium) में पराजित कर दिया। निस्संदेह यह ऑक्टेवियन की एक शानदार सफलता प्रमाणित हुई। इस युद्ध के पश्चात् रोमन साम्राज्य में शाँति स्थापित हुई।
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2. सैनेट से संबंध :
सैनेट रोमन गणतंत्र के समय रोम की सर्वाधिक प्रभावशाली संस्था थी। इसने अनेक शताब्दियों तक रोम के इतिहास में प्रमुख भूमिका निभाई। ऑगस्ट्स ने केवल रोम के धनी, ईमानदार एवं कर्त्तव्यपरायण लोगों को ही सैनेट में प्रतिनिधित्व दिया। उसने सदैव सैनेट के प्रति सम्मान प्रकट किया।

इसे देखते हुए सैनेट ने स्वेच्छा से सैन्य संचालन, सीमांत प्रदेशों के नियंत्रण, सुरक्षा, युद्ध एवं संधि संबंधी सभी अधिकार ऑगस्ट्स को सौंप दिए। परिणामस्वरूप ऑगस्ट्स ने शासन की इस सर्वोच्च संस्था पर नियंत्रण स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। डोनाल्ड कागन एवं एफ० एम० टर्नर के अनुसार, “यद्यपि ऑगस्ट्स को सभी शक्तियाँ प्राप्त थीं किंतु उसने सदैव सैनेट की प्रतिष्ठा एवं सम्मान का उचित ध्यान रखा।”

3. सैन्य सुधार:
ऑगस्ट्स ने अपने शासनकाल के दौरान रोमन सेना को एक नया स्वरूप प्रदान किया। ऑगस्ट्स से पूर्व रोमन सेना की कुल संख्या 6 लाख थी। रोमन साम्राज्य के विस्तार में उसकी भूमिका प्रमुख थी। ऑगस्ट्स क्योंकि शाँति का समर्थक था इसलिए उसने रोमन सेना की संख्या कम करके 3 लाख कर दी। इसके अतिरिक्त उसने 9 हज़ार प्रेटोरियन गॉर्ड (Praetorian guard) की स्थापना की।

इनका कार्य सम्राट की सुरक्षा करना था। ऑगस्ट्स ने एक स्थायी सेना का गठन किया। इसमें प्रत्येक सैनिक को न्यूनतम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी। इन सैनिकों को नियमित वेतन देने की व्यवस्था की गई। सेवा निवृत्त होने पर सैनिकों को पैंशन दी जाती थी। रोमन सेना के उच्च पदों पर केवल उन्हीं सैनिकों को नियुक्त किया जाता था जो ऑगस्ट्स के प्रति पूर्ण वफ़ादार थे। इन सैन्य सुधारों के कारण ऑगस्ट्स की प्रतिष्ठा में काफी वृद्धि हुई।।

4. प्रांतीय प्रशासन :
ऑगस्ट्स ने प्रांतीय प्रशासन में अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए। उसने केवल ईमानदार लोगों को गवर्नर के पद पर नियुक्त किया। उन्हें प्रांतीय लोगों के कल्याण हेतु कदम उठाने के निर्देश दिए गए। ऑगस्ट्स ने उन सभी अधिकारियों को पदमुक्त कर दिया जो जनता पर अत्याचार करते थे। उसने प्रांतों में फैले भ्रष्टाचार को दूर किया।

उसने प्रांतीय लोगों पर लगे अनेक करों को कम किया। ऑगस्ट्स स्वयं प्राँतों का भ्रमण कर इन सुधारों का जायजा लेता था। संक्षेप में उसके सुधार प्रांतीय जनता के लिए एक वरदान सिद्ध हुए। रोबिन डब्ल्यू० विंकस के अनुसार,”रोमन प्रांतों का शासन निस्संदेह गणतंत्र के अधीन शासन से कहीं बेहतर था।”

5. आर्थिक सुधार:
ऑगस्ट्स के शासनकाल में आर्थिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे।

1. ऑगस्ट्स के शासनकाल में रोमन साम्राज्य में पूर्ण शाँति एवं व्यवस्था कायम रही।

2. उसने यातायात के साधनों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया। इससे साम्राज्य के विभिन्न भागों एवं विदेशों से संपर्क स्थापित करना एवं माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सुगम हो गया।

3. उसने समुद्री डाकुओं का सफाया करने के उद्देश्य से एक स्थायी जल बेड़े का निर्माण करवाया।

4. उसने कृषि एवं उद्योगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अनेक प्रशंसनीय पग उठाए।

5. उसने रोमन साम्राज्य के अनेक देशों के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध स्थापित किए। ऑगस्ट्स के इन आर्थिक सुधारों के चलते रोमन लोग आर्थिक पक्ष से समृद्ध हुए।

6. कला तथा साहित्य को प्रोत्साहन:
ऑगस्ट्स कला तथा साहित्य का महान् प्रेमी था। इसलिए उसके शासनकाल में इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई। उसने रोम में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। इनमें उसके द्वारा बनवाया गया पैंथियन (Pantheon) मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। उसने ईंटों के स्थान पर संगमरमर का प्रयोग करके रोमन भवन निर्माण कला को एक नई दिशा प्रदान की। उसके शासनकाल में रोमन साहित्य ने एक नए शिखर को छुआ। लिवि, वर्जिल, होरेस तथा ओविड
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आदि ने ऑगस्ट्स के शासनकाल को चार चाँद लगा दिए। लिवि (Livy) रोमन साम्राज्य का सबसे महान् इतिहासकार था। वर्जिल (Virgil) ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे महान् कवि था। होरेस तथा ओविड भी प्रसिद्ध कवि थे। बी० के० गोखले के अनुसार, “ऑगस्ट्स ने एक ऐसा प्रशासन दिया जो इतना कुशल था कि इसे आने वाली दो शताब्दियों से अधिक समय तक जारी रखा गया।”

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

प्रश्न 2.
रोमन साम्राज्य के इतिहास में तीसरी शताब्दी में आए संकट के प्रमुख कारण क्या थे? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य के इतिहास में सबसे भयंकर संकट का सामना करना पड़ा। इस संकट के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे

1. 224 ई० में ईरान में एक नया वंश ससानी (Sasanians) सत्ता में आया। इस वंश के शासक शापुर प्रथम (241-272 ई०) के एक प्रसिद्ध शिलालेख में इस बात का दावा किया गया है कि उसने 60,000 रोमन सेना का विनाश करके पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी एंटीओक (Antioch) को अपने अधीन कर लिया है।

2. तीसरी शताब्दी के दौरान जर्मन मूल की अनेक जनजातियों जिनमें एलमन्नाई (Almannai), फ्रैंक (Franks) तथा गोथ (Goth) प्रमुख थे ने अपने लगातार आक्रमणों द्वारा रोमन साम्राज्य को चैन की साँस नहीं लेने दी। यहाँ तक कि रोमवासियों को डेन्यूब (Danube) से आगे का क्षेत्र छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा।

3. तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य की राजनीतिक स्थिति अत्यंत डावाँडोल थी। स्थिति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 47 वर्षों के दौरान 25 सम्राट् सत्तासीन हुए। इन सभी सम्राटों की या तो हत्या की गई या वो गृह-युद्धों में मारे गए।

4. रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता के कारण उद्योग एवं व्यापार चौपट हो गए। रोज़मर्रा की वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगीं। सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से कुछ प्रयास किए किंतु वे विफल रहे।

5. प्रत्येक सम्राट् सेना के सहयोग से सत्ता में आता था। अत: सैनिकों का समर्थन पाने के उद्देश्य से उनकी तनख्वाहों एवं अन्य सुविधाओं में वृद्धि कर दी जाती थी। इससे रोमन अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा।

6. रोमन साम्राज्य पर लगातार होने वाले बर्बर आक्रमणों तथा चोरों एवं डाकुओं आदि ने अपनी लूटमार द्वारा लोगों का जीवन दूभर बना दिया था।

7. रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता का लाभ उठाते हुए अनेक प्रांतों ने स्वतंत्रता के लिए विद्रोह आरंभ कर दिए थे। इससे स्थिति अधिक विस्फोटक हो गई।

8. तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य को भयानक अकालों एवं प्लेगों का सामना करना पड़ा। इसमें लाखों की संख्या में लोगों की मृत्यु हो गई। इससे रोमन साम्राज्य को गहरा आघात लगा। थॉमस एफ० एक्स० नोबल के अनुसार, “तीसरी शताब्दी रोमन साम्राज्य एवं इसके शासकों के लिए अत्यंत कठिनाई का समय था। गृह-युद्धों एवं राजनीतिक हत्याओं का बोलबाला था। साम्राज्य की सीमाओं को सदैव ख़तरा था तथा कभी-कभी इनका उल्लंघन किया गया। अर्थव्यवस्था अव्यवस्थित थी।”

प्रश्न 3.
रोमन साम्राज्य के पतन के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के पतन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. रोमन साम्राज्य की विशालता:
प्राचीनकाल में रोमन साम्राज्य बहुत विशाल था। उस समय रोमन साम्राज्य में रोम, इटली, स्पेन, फ्राँस, यूनान, सिसली, मिस्र, उत्तरी अफ्रीका तथा ब्रिटेन के कुछ हिस्से सम्मिलित थे। उस समय यातायात के साधन अधिक विकसित नहीं थे। अत: इतने विशाल साम्राज्य पर नियंत्रण रखना कोई सहज कार्य न था। इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाकर अनेक प्रांतों के गवर्नर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर देते थे। इससे रोमन साम्राज्य की एकता को गहरा आघात लगा।

2. रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति :
रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति भी रोमन साम्राज्य के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। सभी रोमन शासकों ने साम्राज्यवादी नीति पर बहुत बल दिया। अतः उन्हें एक विशाल सेना का गठन करना पड़ा। इस सेना पर बहुत धन खर्च हुआ। लगातार युद्धों में जन तथा धन की भी अपार क्षति हुई। इससे लोगों में भारी असंतोष फैला। इसके अतिरिक्त रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति ने अनेक देशों को भी अपना कट्टर शत्रु बना लिया। अतः उनकी दुश्मनी रोमन साम्राज्य को ले डूबी।

3. रोमन शासकों की विलासिता:
रोमन शासकों की विलासिता रोमन साम्राज्य के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। कुछ रोमन शासकों को छोड़कर अधिकाँश रोमन शासक विलासप्रिय सिद्ध हुए। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। इन पर वे देश का बहुमूल्य धन पानी की तरह बहा देते थे। रोमन रानियाँ भी अपनी विलासिता पर बहुत धन व्यय करती थीं।

दूसरी ओर रोमन शासकों ने लगातार कम हो रहे खजाने को भरने के लिए लोगों पर भारी कर लगा दिए। इससे लोगों में भारी असंतोष फैला तथा वे ऐसे साम्राज्य के विरुद्ध होते चले गए।

4. उत्तराधिकार कानून का अभाव :
रोमन साम्राज्य के पतन के महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक उत्तराधिकार के कानून का अभाव था। अतः जब किसी शासक की आकस्मिक मृत्यु हो जाती तो यह पता नहीं होता था कि उसका उत्तराधिकारी कौन बनेगा। ऐसे समय में विभिन्न दावेदारों में गृह युद्ध आरंभ हो जाते थे। ये गृह-युद्ध अनेक बार भयंकर रूप धारण कर लेते थे। इन युद्धों के परिणामस्वरूप जन तथा धन की अपार क्षति होती थी।

इससे जहाँ एक ओर रोमन साम्राज्य की शक्ति क्षीण हुई वहीं दूसरी ओर इसने , बाहरी शत्रुओं को रोमन साम्राज्य पर आक्रमण करने का स्वर्ण अवसर प्रदान किया।

5. साम्राज्य का विभाजन :
रोमन शासक डायोक्लीशियन ने प्रशासनिक कुशलता के उद्देश्य से रोमन साम्राज्य को दो भागों-पूर्वी रोमन साम्राज्य एवं पश्चिमी रोमन साम्राज्य में विभाजित कर दिया। उसका यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध हुआ। इससे रोमन साम्राज्य की एकता को गहरा आघात लगा। इससे रोमन साम्राज्य राजनीतिक दृष्टिकोण से दुर्बल हो गया।

इसे देखते हुए बर्बर जनजातियों ने रोमन साम्राज्य पर अपने आक्रमण तीव्र कर दिए। इन आक्रमणों ने रोमन साम्राज्य के पतन का डंका बजा दिया।

6. दुर्बल सेना :
किसी भी साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार में उसकी सेना की प्रमुख भूमिका होती है। कुछ रोमन शासकों ने एक विशाल एवं शक्तिशाली सेना का गठन किया था। किंतु बाद के रोमन शासक अयोग्य एवं निकम्मे सिद्ध हुए। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। अतः उन्होंने रोमन साम्राज्य की सेना की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।

परिणामस्वरूप रोमन सेना कमज़ोर हो गई। इसके अतिरिक्त कुछ रोमन शासकों ने विदेशियों को भी रोमन सेना में भर्ती कर इसे खोखला बना दिया। ऐसे साम्राज्य के पतन को रोका नहीं जा सकता था।

7. आर्थिक पतन :
रोमन साम्राज्य का आर्थिक पतन उसके लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति एवं उनकी विलासिता ने रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था पर घातक प्रहार किया। रोमन साम्राज्य में होने वाले युद्धों एवं विद्रोहों ने यहाँ की अर्थव्यवस्था को अधिक शोचनीय बना दिया। विदेशी आक्रमण भी रोमन अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हुए।

रोमन साम्राज्य में रोजाना वस्तुओं के भाव आसमान छूने लगे। इससे जनसाधारण में भारी असंतोष फैला। परिणामस्वरूप रोमन साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।

बी० के० गोखले के अनुसार,
“आर्थिक नींव की कमजोरी ने साम्राज्य के विनाश में योगदान दिया।

8. विदेशी आक्रमण :
रोमन साम्राज्य के पतन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण विदेशी आक्रमण सिद्ध हुए। 378 ई० में जर्मन मूल के गोथों (Goths) ने एड्रियनोपोल में रोमन सेनाओं को कड़ी पराजय दी। इसने रोमन साम्राज्य के पतन का डंका बजा दिया। 410 ई० में विसिगोथों (Visigoths) ने अपने नेता आलारक (Alaric) के नेतृत्व में रोम को नष्ट कर दिया। इस पराजय से रोमन साम्राज्य के गौरव को गहरा आघात लगा।

428 ई० में जर्मन मूल के सैंडलों (Vandals) ने उत्तरी अफ्रीका पर अधिकार कर लिया। 451 ई० में हूण नेता अटिला (Attila) ने गॉल (Gaul) पर अधिकार कर लिया। 493 ई० में ऑस्ट्रोगोथों (Ostrogoths) ने इटली पर अधिकार कर लिया। 568 ई० में लोंबार्डों (Lombards) ने इटली पर आक्रमण कर वहाँ भारी विनाश किया। निस्संदेह इन विदेशी आक्रमणों ने रोमन साम्राज्य की नींव को डगमगा दिया।

प्रश्न 4.
रोमन साम्राज्य के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं 1. तीन श्रेणियाँ (Three Classes)-रोमन समाज में प्रमुखतः तीन श्रेणियाँ प्रचलित थीं। ये श्रेणियाँ थीं उच्च श्रेणी, मध्यम श्रेणी एवं निम्नतर श्रेणी। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(1) उच्च श्रेणी :
रोमन समाज की उच्च श्रेणी में अभिजात वर्ग के लोग सम्मिलित थे। इनमें प्रमुखतः सैनेटर एवं नाइट सम्मिलित थे। इन्हें सम्मिलित रूप से पैट्रिशियन (Patrisian) कहा जाता था। वे बहुत शक्तिशाली थे। वे रोमन साम्राज्य के समस्त उच्च पदों पर नियुक्त थे। वे काफी धनवान होते थे। वे आलीशान महलों में रहते थे। वे विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। उनकी देख-रेख के लिए बड़ी संख्या में नौकर एवं दास-दासियाँ होते थे।

(2) मध्यम श्रेणी :
इस श्रेणी में नौकरशाही एवं सेना से जुड़े लोग, व्यापारी और किसान सम्मिलित थे। इन्हें सामूहिक रूप से प्लीबियन (Plebeians) के नाम से जाना जाता था। वे भी प्रशासन के महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त थे। उनका जीवन भी सुखमय था। उनकी सेवा के लिए भी अनेक दास-दासियाँ होती थीं।

(3) निम्नतर श्रेणी :
रोमन समाज के अधिकाँश लोग निम्नतर श्रेणी से संबंधित थे। इनमें मज़दूर एवं दास सम्मिलित थे। इन्हें सामूहिक रूप से ह्यमिलिओरिस (Humiliores) कहा जाता था। उनकी दशा बहुत शोचनीय थी। वे गंदी झोंपड़ियों में रहते थे। उन्हें दो वक्त का खाना कभी नसीब नहीं होता था। उनके मालिक उन पर घोर अत्याचार करते थे। वास्तव में उनका जीवन पशुओं से भी बदतर था।

2. परिवार :
परिवार को रोमन समाज की आधारशिला माना जाता था। उस समय एकल परिवार प्रणाली (nuclear family) प्रचलित थी। परिवार में पति, पत्नी, बच्चे एवं दास सम्मिलित होते थे। उस समय परिवार पितृतंत्रात्मक (patriarchal) होते थे। परिवार में पिता परिवार का मुखिया होता था। उसके परिवार के सभी सदस्य उनके अधीन होते थे। वह अपने बच्चों की शिक्षा, उनके कार्यों तथा विवाह आदि का प्रबंध करता था।

परिवार के सभी सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते थे। इसके बावजूद परिवार का मुखिया स्वेच्छाचारी नहीं होता था। जे० एच० बेंटली एवं एच० एफ० जाईगलर के अनुसार, “यद्यपि रोमन पितृतंत्रात्मक परिवारों को कानूनी तौर पर विशाल शक्तियाँ प्राप्त थीं वे कम ही अपने अधीन सदस्यों पर अत्याचारी ढंग से शासन करते थे।”

3. स्त्रियों की स्थिति :
रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति सम्मानजनक थी। वे सार्वजनिक, धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में बढ़-चढ़ कर भाग लेती थीं। संपन्न परिवार की लड़कियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करती थीं। उस समय लड़कियों का विवाह 16 से 23 वर्ष के मध्य किया जाता था। उस समय विवाह बहुत शानो-शौकत से किए जाते थे। उस समय दहेज प्रथा प्रचलित थी। पुत्री को अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार प्राप्त था।

विवाहिता का अपने परिवार पर काफी प्रभाव होता था। वह अपने बच्चों की शिक्षा तथा परिवार के अन्य कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। उस समय तलाक लेना अपेक्षाकृत आसान था। ऐसी सूरत में पति को अपनी नी से प्राप्त दहेज उसके पिता को वापस लौटाना होता था। उस समय रोमन समाज में वेश्यावृत्ति (prostitution) का प्रचलन था।

4. शिक्षा :
रोमन साम्राज्य में शिक्षा का प्रचलन बहुत कम था। पुरुषों में साक्षरता की दर (literacy rate) 20% एवं स्त्रियों में यह दर 10% थी। ग्रामीण क्षेत्रों जहाँ शहरों की अपेक्षा बहुत कम स्कूल थे यह दर इससे भी कम थी। साक्षरता की दर रोमन साम्राज्य के विभिन्न भागों में अलग-अलग थी। पोम्पई (Pompeii) नगर जो 79 ई० में ज्वालामुखी फटने से दफन हो गया था वहाँ काम चलाऊ साक्षरता (Casual literacy) विद्यमान थी।

इसके विपरीत मिस्त्र में बड़ी संख्या में पैपाइरस (Papyri) पाए गए हैं। इनसे हमें पता चलता है कि कुछ व्यक्ति बिल्कुल अनपढ़ थे। किंतु दूसरी ओर सैनिकों, सेना अधिकारियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों में साक्षरता दर बहुत ऊँची थी। ऑगस्ट्स, त्राजान एवं हैड्रियन ने शिक्षा के विकास के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण पग उठाए। एडवर्ड मैक्नल बर्नस के अनुसार, “बुद्धिमानी के तौर पर रोमनों का विकास बहुत धीरे हुआ।”

5. मनोरंजन :
रोमन साम्राज्य के लोग मनोरंजन के बहुत शौकीन थे। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वहाँ एक वर्ष में कम-से-कम 176 दिन कोई न कोई मनोरंजन कार्यक्रम अवश्य होता था। रोमन लोगों को सर्कस देखने एवं नृत्य एवं संगीत का बहुत शौक था। धनी वर्ग के लोग दासों के मध्य होने वाले युद्धों अथवा हिंसक जानवरों एवं दासों के मध्य होने वाले युद्धों को देखने के बहुत शौकीन थे।

इन युद्धों में पराजित होने वाले दास को मौत के घाट उतार दिया जाता था। इन युद्धों को देखने के लिए विशाल अखाड़े बनाए जाते थे जिन्हें कोलोसियम (colosseum) कहा जाता था। इनमें हजारों की संख्या में दर्शक बैठ सकते थे। उस समय नाटकों का भी प्रचलन था। बच्चे अपना मनोरंजन खिलौनों द्वारा करते थे। ये खिलौने मिट्टी, लकडी एवं धातुओं से बने होते थे।

6. सांस्कृतिक विविधता :
रोमन साम्राज्य में व्यापक सांस्कृतिक विविधता पाई जाती थी।

  • उस समय रोमन साम्राज्य में अनेक धार्मिक संप्रदायों एवं देवी-देवताओं की उपासना का प्रचलन था।
  • उस समय रोमन साम्राज्य में अनेक भाषाएँ-कॉप्टिक, प्यूनिक, बरबर, कैल्टिक ऊर्मिनियाई एवं लातीनी प्रचलित थीं।
  • उस समय वेशभूषा की विविध शैलियाँ प्रचलित थीं।
  • उस समय लोग विभिन्न प्रकार का भोजन खाते थे।
  • उस समय सामाजिक संगठनों एवं उनकी बस्तियों के विभिन्न रूपों का प्रचलन था।

प्रश्न 5.
रोमन साम्राज्य के आर्थिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के लोगों के आर्थिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. कृषि:
रोमन साम्राज्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। उस समय ज़मींदारों के पास विशाल जागीरें होती थीं। इस पर वे दासों की सहायता से खेती करते थे। खेतों की गहाई एवं बिजाई का कार्य हलों द्वारा किया जाता था। हलों को बैलों द्वारा जोता जाता था। उस समय फ़सलों के अधिक उत्पादन के लिए खादों का प्रयोग किया जाता था। सिंचाई के साधन भी उन्नत थे।

उस समय गैलिली में गहन् खेती का प्रचलन था। उस समय कैंपेनिया (Campania), सिसली (Sicily), फैय्यूम (Fayum), गैलिली (Galilee), बाइजैक्यिम (Byzacium), दक्षिणी गॉल (Southern Gaul) तथा बाएटिका (Baetica) फ़सलों के भरपूर उत्पादन के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उस समय रोमन साम्राज्य में गेहूँ, जौ, मक्का, जैतून, विभिन्न प्रकार की दालों, सब्जियों एवं फलों का उत्पादन होता था। फलों में सबसे अधिक उत्पादन अंगूर का किया जाता था। उस समय अंगूर की शराब का बहुत प्रचलन था।

2. पशुपालन:
रोमन साम्राज्य के लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। इसका कारण यह था कि उस समय रोमन साम्राज्य के विभिन्न भागों में अनेक उन्नत चरागाहें मौजूद थीं। नुमीडिया (आधुनिक अल्जीरिया) में बड़ी संख्या में भेड़-बकरियाँ पाली जाती थीं। यहाँ ऋतु प्रवास (transhumance) बहुत व्यापक पैमाने पर होता था। यहाँ चरवाहे (pastorals) एवं अर्ध यायावर (semi-nomadic) अपने साथ में अवन (oven) आकार की झोंपड़ियाँ (huts) लिए घूमते रहते थे। इन्हें मैपालिया (mapalia) कहा जाता था।

स्पेन में भी पशुपालन का धंधा काफी विकसित था। यहाँ चरवाहे पहाड़ियों की चोटियों पर बसे गाँवों में रहते थे। इन गाँवों को कैस्टेला (Castella) कहते थे। उस समय रोमन साम्राज्य के विभिन्न भागों के लोग भेड़-बकरियों के अतिरिक्त गाय, बैल, भैंस, घोड़े, सूअर एवं कुत्ते आदि जानवरों को भी पालते थे। इन पशुओं को खेती करने, बोझा ढोने, दूध-दही, मक्खन, माँस एवं ऊन आदि प्राप्त करने के उद्देश्य से पाला जाता था। निस्संदेह पशुपालन की रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।

3. उद्योग (Industry):
रोमन साम्राज्य में विभिन्न उद्योगों ने भी उल्लेखनीय विकास किया था। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, रोमन सम्राटों ने उद्योगों के विकास के लिए विशेष पग उठाए। द्वितीय, रोमन साम्राज्य में विभिन्न प्रकार की धातुएँ–सोना, चाँदी, लोहा एवं टिन आदि भारी मात्रा में उपलब्ध थीं। तीसरा, रोमन साम्राज्य के उद्योगों के विकास में व्यापारिक संघों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उस समय रोमन साम्राज्य में जैतून का तेल (olive oil) निकालने तथा अंगूरी शराब (grape wine) बनाने के उद्योग प्रमुख थे। इनके प्रमुख केंद्र स्पेन, गैलिक प्राँत, उत्तरी अफ्रीका एवं मिस्त्र थे। जैतून का तेल, शराब तथा अन्य तरल पदार्थों की ढुलाई ऐसे मटकों अथवा कंटेनरों द्वारा की जाती थी जिन्हें एम्फ़ोरा (Amphora) कहते थे। रोम में मोंटी टेस्टैकियो (Monte Testaccio) नामक स्थल से इस प्रकार के 5 करोड़ से अधिक कंटेनरों के अवशेष पाए गए हैं। स्पेन में जैतून के तेल निकालने का उद्योग 140-160 ई० के दौरान अपने चरमोत्कर्ष पर था।

4. व्यापार (Trade):
रोमन साम्राज्य का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार काफी उन्नत था। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे-

  • रोमन शासकों ने व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष पग उठाए।
  • ऑगस्ट्स के शासनकाल से लेकर आने वाले काफी समय तक संपूर्ण रोमन साम्राज्य में शांति एवं व्यवस्था बनी रही।
  • यातायात के साधनों का काफी विकास किया गया था। सड़क मार्गों एवं बंदरगाहों द्वारा रोमन साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नगरों को आपस में जोड़ा गया था।
  • सिक्कों के प्रचलन एवं बैंकों की स्थापना ने भी रोमन साम्राज्य के व्यापार के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • उस समय रोमन साम्राज्य की कृषि एवं उद्योग ने अद्वितीय प्रगति की थी।
  • रोमन पुलिस एवं नोसैना द्वारा सड़क मार्गों एवं समुद्री मार्गों की सुरक्षा के लिए व्यापक प्रबंध किए गए थे।

रोमन साम्राज्य का विदेशी व्यापार अनेक यूरोपीय देशों, उत्तरी अफ्रीका, मिस्त्र, चीन, भारत, अरब एवं सीरिया आदि देशों के साथ होता था। रोमन साम्राज्य इन देशों को अंगूर की शराब, चाँदी का सामान, सोना, बहुमूल्य पत्थर, ताँबा एवं टिन आदि का निर्यात करता था। इसके बदले वह इन देशों से सूती एवं रेशमी वस्त्र, श्रृंगार का सामान, हाथी दाँत, गर्म मसाले, संगमरमर एवं कागज आदि का निर्यात करता था। निस्संदेह अनेक शताब्दियों तक रोमन साम्राज्य विश्व के व्यापार का एक प्रमुख केंद्र रहा।

5. श्रमिकों पर नियंत्रण (Controlling Workers)-रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में दासों की उल्लेखनीय भूमिका थी। दासों से प्रतिदिन 16 से 18 घंटे कठोर कार्य लिया जाता था। इसके बावजूद उन्हें न तो कोई वेतन दिया जाता था तथा न ही भरपेट खाना। हाँ उन पर घोर अत्याचार ज़रूर किए जाते थे। पहली शताब्दी में जब रोमन साम्राज्य ने अपनी विस्तार की नीति का लगभग त्याग कर दिया तो दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी। बाध्य होकर दास श्रम का प्रयोग करने वालों को दास प्रजनन (slave breeding) एवं वेतनभोगी मज़दूरों (wage labourers) का सहारा लेना पड़ा।

वेतनभोगी मज़दूर सस्ते पड़ते थे। इसका कारण यह था कि उन्हें आवश्यकता के अनुसार रखा एवं छोड़ा जा सकता था। दूसरी ओर वेतनभोगी मजदूरों के विपरीत दास श्रमिकों को वर्ष भर भोजन देना पड़ता था तथा अन्य खर्चे भी करने पड़ते थे। इससे दास श्रमिकों की लागत बहुत बढ़ जाती थी। दासों एवं मजदूरों पर घोर अत्याचारों के कारण एवं कर्जे के कारण वे भागने के लिए बाध्य हो जाते थे। 398 ई० के एक कानून में कहा गया है कि उस समय श्रमिकों को दागा जाता था ताकि यदि वे भागने का प्रयास करें तो उन्हें पहचाना जा सके।

6. सिक्के (Coins)-रोमन साम्राज्य में 366 ई० पू० में सिक्कों का प्रचलन आरंभ हुआ। ये सिक्के काँसे के बने होते थे। इन सिक्कों के प्रचलन से पूर्व वस्तुओं का लेन-देन वस्तु विनिमय (barter system) के आधार पर चलता था। सिक्कों के प्रचलन से आंतरिक एवं विदेशी व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला। कुछ समय के पश्चात् रोमन साम्राज्य में चाँदी के सिक्कों का प्रचलन आरंभ हुआ।

इस सिक्के को दीनारियस (denarius) कहा जाता था। तीसरी शताब्दी में स्पेन की चाँदी की खानें खत्म हो गई थीं। अतः सरकार के पास चाँदी की धातु का भंडार समाप्त हो गया था। बाध्य होकर रोमन साम्राज्य को अपनी चाँदी की मुद्रा का प्रचलन छोड़ना पड़ा। चौथी शताब्दी में कांस्टैनटाइन ने सोने पर आधारित नई मुद्रा प्रणाली का प्रचलन किया। इसका नाम सॉलिडस (Solidus) रखा गया। यह 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना होता था।

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प्रश्न 6.
रोमन साम्राज्य के लोगों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के लोगों में अनेक देवी-देवताओं की पूजा का प्रचलन था। वे अपने सम्राटों की भी देवता के रूप में उपासना करते थे। वे अनेक अंध-विश्वासों में भी विश्वास रखते थे। ईसाई धर्म का उदय इस काल की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। रोमन लोगों के धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं–

1. रोमन देवते (Roman Deities) रोमन लोग बहुदेववादी (polytheist) थे। वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके कुछ प्रसिद्ध देवी-देवता निम्नलिखित थे

(1) जूपिटर (Jupiter)-जूपिटर रोमन लोगों का सबसे सर्वोच्च देवता था। वह आकाश का बड़ा देवता था। सूर्य, चंद्रमा एवं तारे सभी उसी की आज्ञा का पालन करते थे। वह विश्व की सभी घटनाओं को जानता था। वह पापियों को सज़ा भी देता था।

(2) मॉर्स (Mars)-मॉर्स युद्ध का देवता था। युद्ध में होने वाली पराजय अथवा विजय उसकी कृपा पर निर्भर करती थी।

(3) जूनो (Juno)-जूनो रोमन लोगों की प्रमुख देवी थी। उसे स्त्रियों की देवी समझा जाता था। लोगों का विश्वास था कि जूनो की कृपा होने पर ही स्त्रियाँ गर्भ धारण करती हैं। इस देवी की उपासना सभी घरों में की जाती थी।

(4) मिनर्वा (Minerva)—मिनर्वा को ज्ञान की देवी माना जाता था। उसकी कृपा से मनुष्य का अंधकार दूर होता था तथा वह ज्ञान का प्रकाश प्राप्त करता था।

(5) डायना (Dyana) वह प्रेम की देवी थी।

(6) इसिस (Isis)-इसिस को स्त्रियों एवं परिवार से संबंधित देवी माना जाता था। वह पतियों को अपनी पत्नियों से प्यार करने तथा बच्चों को अपने माता-पिता का सम्मान करने के लिए बाध्य करती थी। इसिस की उपासना पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों द्वारा की जाती थी।

2. उपासना विधि (Method of Worship)-रोमन लोग अपने देवी-देवताओं की स्मृति में भव्य मंदिरों का निर्माण करते थे। इसमें वे विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित करते थे। इनकी उपासना बहुत धूमधाम से की जाती थी। देवी-देवताओं को विभिन्न प्रकार के चढ़ावे चढ़ाए जाते थे। इसके अतिरिक्त पशुओं की बलियाँ भी दी जाती थीं।

उस समय यह माना जाता था कि विधिवत् पूजा करने से देवता प्रसन्न होते हैं तथा मन की इच्छा पूर्ण होती है। नाराज़ होने पर देवता अनिष्ट करते हैं। अतः विधिवत् उपासना के उद्देश्य से बड़ी संख्या में पुरोहितों को नियुक्त किया जाता था। उनका समाज में बहुत सम्मान होता था।

3. सम्राटों की उपासना (Worship of Emperors)-रोमन सम्राट् ऑगस्ट्स ने सम्राटों की उपासना प्रथा को रोमन साम्राज्य में प्रचलित किया। इस प्रथा को प्रचलित करके वह रोमन साम्राज्य की विभिन्न जातियों के लोगों को एकता के सूत्र में बाँधना चाहता था। उसका यह प्रयास सफल प्रमाणित हुआ। अत: उसके उत्तराधिकारियों ने इस प्रथा को जारी रखा। डायोक्लीशियन (Diocletian) ने अपने आप को सूर्य देवता घोषित कर दिया। इन सम्राटों की स्मृति में भी विशाल एवं भव्य मंदिर बनाए जाते थे। यहाँ पुरोहितों द्वारा उनकी विधिवत् उपासना की जाती थी।

4. मिथ धर्म (Mithraism)–उस समय रोमन साम्राज्य में जो धर्म प्रचलित थे उनमें मिथ्र धर्म को भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इस धर्म के लोग मुख्य रूप से सूर्य देवता की उपासना करते थे। स्त्रियों को इस धर्म में प्रवेश की अनुमति नहीं थी।

5. यहूदी धर्म (Judaism)—यहूदी धर्म रोमन साम्राज्य का एक लोकप्रिय धर्म था। इस धर्म का संस्थापक पैगंबर मूसा (Prophet Musa) था। यहूदी एकेश्वरवादी (monolith) थे। वे जेहोवा (Jehova) के अतिरिक्त किसी अन्य की उपासना नहीं करते थे। उनके विचारानुसार जेहोवा ने सृष्टि की रचना की है तथा वह ही इसकी पालना करता है। इस धर्म में मूर्ति पूजा पर प्रतिबंध है। यह धर्म आपसी भाईचारे एवं नैतिकता पर बल देता है। इस धर्म की पवित्र पुस्तक को तोरा (Torah) कहा जाता है। इस धर्म के मंदिर सिनेगोग (synegogue) कहलाते

6. ईसाई धर्म (Christianity)-ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह (Jesus Christ) थे। ईसा मसीह के उपदेश बिल्कुल साधारण थे तथा उनका उद्देश्य मानव जाति का कल्याण करना था। उन्होंने लोगों को आपसी भाईचारे एवं प्रेम का संदेश दिया। वह एक परमात्मा में विश्वास रखते थे। उनका कथन था कि हमें सदैव ग़रीबों एवं असहायों की सहायता करनी चाहिए। वह सदाचार पर बहुत बल देते थे। वह अनैतिक कार्य करने एवं झूठ बोलने के विरुद्ध थे।

वह मूर्ति पूजा के विरुद्ध थे। ईसाइयों की पवित्र पुस्तक बाईबल (Bible) कहलाती है। ईसाई गिरजाघरों (churches) में उपासना करते हैं। कांस्टैनटाइन ने 313 ई० में ईसाई धर्म को राज्य धर्म घोषित कर दिया। इससे ईसाई धर्म को एक नया प्रोत्साहन मिला। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के अनुसार, “रोमन बहुत धार्मिक थे तथा वे प्रथाओं और संस्कारों को बहुत महत्त्व देते थे।”

प्रश्न 7.
रोमन साम्राज्य में प्रचलित दास प्रथा तथा इसके प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दास प्रथा की रोमन समाज में एक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी। वास्तव में यह उनके समाज का एक अभिन्न अंग बन चुका था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ऑगस्टस के शासनकाल में इटली की 75 लाख की जनसंख्या में दासों की संख्या 30 लाख थी। जिस व्यक्ति के पास जितने अधिक दास होते थे समाज में उसे उतना सम्मान दिया जाता था। अतः अमीरों में अधिक-से-अधिक दास रखने की एक होड़ सी लगी रहती थी।

स्थिति इतनी भयावह थी कि साधारण से साधारण नागरिक भी अपने अधीन 7-8 दास रखता था। इनमें से अधिकांश दास युद्ध में बंदी बनाए गए होते थे। रोमन समाज में अवांछित बच्चों को उनके पिताओं द्वारा फेंक दिया जाता था। इन बच्चों को व्यापारियों द्वारा दास बना लिया जाता था। वास्तव में दास प्रथा रोमन समाज के माथे पर एक कलंक समान थी। प्रसिद्ध इतिहासकार डब्ल्यू० आर० ब्रोनलो के अनुसार, “जीवन के सभी पक्षों में दासों एवं जानवरों में एकरूपता थी।”

1. दासों की स्थिति (Position of Slaves)-रोमन समाज में दासों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। गाँवों में रहने वाले दास पशुओं से भी बदतर जीवन व्यतीत करते थे। दासों पर मालिक घोर अत्याचार करते थे। उन्हें जागीरों पर 16 से 18 घंटे प्रतिदिन कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता था। खेतों में काम करते समय दासों को एक दूसरे से जंजीरों से बाँधा जाता था ताकि वे भागने का दुस्साहस न करें। रात के समय उन्हें तहखानों में भेज दिया जाता था। यहाँ न तो कोई स्वास्थ्य का प्रबंध होता था तथा न ही कोई रोशनी का।

घोर मेहनत के बावजूद उन्हें भरपेट खाना भी नसीब नहीं होता था। शहरों में रहने वाले दासों की स्थिति भी अच्छी न थी। वे विभिन्न प्रकार करते थे। उदाहरण के तौर पर वे घरेल नौकर, दकानदारों के सहायक, मज़दर एवं व्यापारियों के एजेंट तौर पर कार्य करते थे। वे विभिन्न प्रकार से अपने मालिकों का मनोरंजन भी करते थे। दासों को किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त नहीं था। वे अपने मालिक की अनुमति के बिना विवाह तक नहीं करवा सकते थे।

वे अपने स्वामी को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते थे। ऐसा प्रयास करने वाले दासों को मौत के घाट उतार दिया जाता था। दासों के साथ किए जाने वाले अपमानजनक व्यवहार के कारण अनेक बार दास सामहिक रूप से विद्रोह कर देते थे।

2. स्त्री दासों की स्थिति (Position of Female Slaves)-रोमन समाज में स्त्री दासों की संख्या भी काफी थी। समाज में उनकी स्थिति भी अच्छी न थी। वे पुरुषों का विभिन्न प्रकार से मनोरंजन करती थीं। पुरुष उन्हें केवल एक विलासिता की वस्तु समझते थे। उनका खुलेआम यौन शोषण किया जाता था। इंकार करने वाली दासी पर घोर अत्याचार किए जाते थे। घर में काम करने वाली दासियों को विभिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते थे। घरेलू कार्यों के अतिरिक्त वे अपनी मालकिनों को तैयार करती थीं। वे अपनी मालकिनों के बच्चों की देखभाल का कार्य भी करती थीं। इनके अतिरिक्त दासियों को घर में आने वाले मेहमानों को भी प्रसन्न रखना पड़ता था।

3. दास बच्चों की स्थिति (Position of Children Slaves)-रोमन समाज में दास बच्चों की स्थिति भी शोचनीय थी। दास बच्चों पर उनके माता-पिता का कोई अधिकार नहीं था। उन पर उनके मालिकों का पूर्ण अधिकार होता था। उस समय दास बच्चों को दहेज में देने की प्रथा भी प्रचलित थी।

दास बच्चों पर भी उनके मालिक घोर अत्याचार करते थे। 5-6 वर्ष के बच्चों को ख़तरनाक कामों पर लगा दिया जाता था। उन्हें भरपेट खाना नहीं दिया था तथा वे अर्धनग्न घूमते रहते थे। वास्तव में दास बच्चों का जीवन भी नरक समान था। इतिहासकार एच० टी० रोवेल के अनुसार, “दासों के बच्चे अपने मालिकों की उसी प्रकार संपत्ति थे जैसे कि बागों के सेब अथवा पशुओं के झुंड।”

4. दास व्यापार (Slave Trade)-रोमन साम्राज्य में दास प्रथा का व्यापक प्रचलन था। अतः दास व्यापार काफी जोरों पर था। युद्ध में बनाए गए सभी बंदियों को दास बना लिया जाता था। उन्हें दास व्यापारियों द्वारा खरीद लिया जाता था। एक दास पुरुष को 18 से 20 पौंड तथा एक दासी को 6 से 8 पौंड तक खरीदा जाता था। सुंदर दिखने वाली दासी की कीमत कुछ अधिक होती थी। क्योंकि उस समय प्रत्येक रोमन नाग अनुसार कुछ न कुछ दास अवश्य रखता था इसलिए प्रत्येक दुकानदार दास अवश्य रखता था। निस्संदेह दास व्यापार काफी लाभप्रद था।

5. दासता से मुक्ति (Manumission)-रोमन साम्राज्य में कुछ दयावान मालिक दास-दासियों की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें दासता से मुक्त कर देते थे। कुछ दास मालिक अपनी मृत्यु से पूर्व दान के रूप में कुछ दासों को मुक्त कर देते थे। कुछ दास अपने मालिकों को दासता से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से कीमत देते थे। यह कीमत सामान्यतः 20 से 25 पौंड होती थी। कभी-कभी यह इससे भी ऊपर होती थी। दासों द्वारा यह धन अपने जीवन काल में थोड़ा-थोड़ा करके एकत्र किया जाता था।

कुछ दास मालिक अपनी दासियों से विवाह करने हेतु उन्हें दासता से मुक्त कर देते थे। यद्यपि दासों को मुक्त कर दिया जाता था किंतु फिर भी उन पर कुछ प्रतिबंध जारी रहते थे। वे रोमन साम्राज्य के उच्च पदों एवं सेना में भर्ती नहीं हो सकते थे। वे अपने मालिक के विरुद्ध अदालत में कोई गवाही नहीं दे सकते थे। मार्क किशलेस्की के अनुसार, “मुक्त दास भी अपने संपूर्ण जीवनकाल में अपने पूर्व मालिक के प्रति बाध्य रहता था।

वे उसका विशेष सम्मान करते थे तथा उसका अदालतों अथवा अन्य संघर्षों के समय विरोध नहीं कर सकते थे। ऐसा करने पर उसे सज़ा के तौर पर पुनः दास बनाया जा सकता था।

6. दास प्रथा के प्रभाव (Effects of Institution of Slavery) दास प्रथा के रोमन साम्राज्य पर गहन प्रभाव पड़े। इस प्रथा के व्यापक प्रचलन के कारण रोमन लोग विलासप्रिय बन गए। दासों पर लगे प्रतिबंधों एवं घोर अत्याचारों के कारण उनमें निराशा फैली। इससे विद्रोहों का जन्म हुआ। ये विद्रोह रोमन साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुए। रोमन लोगों को दासियों का यौन-शोषण करने की खुली छूट थी।

इस कारण लोगों का तीव्रता से नैतिक पतन हुआ। दास प्रथा के कारण रोमन साम्राज्य के छोटे स्वतंत्र किसानों का सर्वनाश हुआ। अतः उन्हें अपनी जमीनें बेचनी पड़ी। दास प्रथा का एक अच्छा प्रभाव यह पड़ा कि यूनानी दासों ने अपने देश की संस्कृति को रोमन साम्राज्य में फैलाया।

क्रम संख्यावर्षघटना
1.509 ई० पू०रोम में गणतंत्र की स्थापना।
2.27 ई० पू०रोम में गणतंत्र का अंत एवं ऑगस्ट्स द्वारा प्रिंसिपेट की स्थापना।
3.27 ई० पू० से 14 ई०रोमन साम्राज्य के प्रथम प्रिंसिपेट ऑगस्ट्स का शासनकाल।
4.14 ई० से 37 ई०ऑगस्ट्स के उत्तराधिकारी टिबेरियस का शासनकाल।
5.54 ई० से 68 ई०रोमन साम्राज्य के सर्वाधिक अत्याचारी शासक नीरो का शासनकाल।
6.64 ई०रोम में भयंकर आग।
7.66 ई०यहूदियों का विद्रोह।
8.69 ई०रोमन साम्राज्य पर चार सम्राटों ने शासन किया।
9.79 ई०विसूवियस ज्वालामुखी के फटने से पोम्पई का दफन। वरिष्ठ प्लिनी की मृत्यु।
10.98 ई० से 117 ई०त्राजान का शासनकाल।
11.113 ई०-117 ई०सम्राट् त्राजान का पार्थियन शासक के विरुद्ध अभियान। राजधानी टेसीफुन पर अधिकार।
12.117 ई० से 138 ई०हैड्रियन का शासनकाल।
13.161 ई० से 180 ई०मार्स्स आरेलियस का शासनकाल, मेडिटेशंस नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना।
14.193 ई० से 211 ई०सेप्टिमियस सेवेरस का शासनकाल।
15.224 ई०ईरान में ससानी वंश की स्थापना।
16.241 ई० से 272 ई०ईरान में शापुर प्रथम का शासन।
17.253 ई० से 268 ई०सम्राट् गैलीनस का शासनकाल।
18.233 ई० से 280 ई०रोमन साम्राज्य पर जर्मन बर्बरों के आक्रमण।
19.284 ई० से 305 ई०डायोक्लीशियन का शासनकाल, रोमन साम्राज्य को दो भागों में विभाजित करना।
20.301 ई०डायोक्लीशियन द्वारा सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें निश्चित करना।
21.309 ई० से 379 ई०ईरान में शापुर द्वितीय का शासनकाल।
22.306 ई० से 337 ई०कांस्टैनटाइन का शासनकाल।
23.313 ई०कांस्टैनटाइन ने ईसाई धर्म को स्वीकार किया।
24.330 ई०कांस्टैनटाइन ने कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित किया।
25.408 ई० से 450 ई०थियोडोसियस द्वितीय का शासनकाल।
26.410 ईoविसिगोथों द्वारा रोम का विध्वंस।
27.428 ई०वैंडलों द्वारा अफ्रीका पर कब्ज़ा।
28.438 ईoथियोडोसियस कोड को जारी करना।
29.493 ई०ऑस्ट्रोगोथों द्वारा इटली में राज्य स्थापित करना।
30.527 ई० से 565 ई०जस्टीनियन का शासनकाल।
31.533 ई०जस्टीनियन कोड को जारी करना।
32.568 ई०लोंबार्डों द्वारा इटली पर आक्रमण।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
ऑगस्ट्स काल को रोमन साम्राज्य का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ?
अथवा
रोमन साम्राज्य के ऑगस्ट्स काल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स की गणना रोमन साम्राज्य के महान् शासकों में की जाती है। उसने रोमन साम्राज्य पर 27 ई० पू० से 14 ई० तक शासन किया। उसके शासनकाल को निम्नलिखित कारणों से रोमन साम्राज्य का स्वर्ण युग कहा जाता है

  • उसने रोमन साम्राज्य में जुलियस सीज़र के पश्चात् फैली अराजकता को दूर कर शांति की स्थापना की।
  • उसने सैनेट जोकि रोमन साम्राज्य की सर्वाधिक शक्तिशाली संस्था थी, के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।
  • उसने रोमन साम्राज्य की सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली सेना का निर्माण किया। इसे आधुनिक शस्त्रों से लैस किया गया।
  • उसने प्रांतीय प्रशासन में अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए।
  • उसने रोमन साम्राज्य को अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया।
  • उसने कला तथा साहित्य के विकास के लिए अनेक कार्य किए।

प्रश्न 2.
ऑगस्ट्स के सैनेट के साथ किस प्रकार के संबंध थे ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स रोमन साम्राज्य का एक महान् शासक था। यद्यपि राज्य की वास्तविक शक्तियाँ उसके हाथ में थीं किंतु उसने कभी भी अपने आपको निरंकुश शासक घोषित नहीं किया। वह अपने आपको केवल प्रिंसेप्स अथवा प्रथम नागरिक कहलाता था। ऐसा सैनेट के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए किया गया था। सैनेट रोमन गणतंत्र के समय रोम की सर्वाधिक प्रभावशाली संस्था थी। इसने अनेक शताब्दियों तक रोम के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। ऑगस्ट्स ने केवल रोम के धनी, ईमानदार एवं कर्त्तव्यपरायण लोगों को ही सैनेट में प्रतिनिधित्व दिया।

उसने सदैव सैनेट के प्रति सम्मान प्रकट किया। इसे देखते हुए सैनेट ने स्वेच्छा से सैन्य संचालन, सीमाँत प्रदेशों के नियंत्रण, सुरक्षा, युद्ध एवं संधि संबंधी सभी अधिकार ऑगस्ट्स को सौंप दिए। ऑगस्ट्स ने कुछ समय के पश्चात् सैनेट के सदस्यों की संख्या 1000 से कम कर के 600 कर दी। इस प्रकार उसने बड़ी चतुराई से सैनेट के अवांछित सदस्यों को हटा दिया। इस प्रकार ऑगस्ट्स ने सैनेट पर नियंत्रण स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।

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प्रश्न 3.
रोमन साम्राज्य में सेना की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में सेना की उल्लेखनीय भूमिका थी। इसे सम्राट् एवं सैनेट के पश्चात् प्रशासन की एक महत्त्वपूर्ण संस्था माना जाता था। रोमन सेना एक व्यावसायिक सेना थी। प्रत्येक सैनिक को कम-से-कम 25 वर्षों तक सेवा करनी पड़ती थी। प्रत्येक सैनिक को नकद वेतन दिया जाता था। चौथी शताब्दी तक इसमें 6 लाख सैनिक थे। सैनिक अधिक वेतन और अच्छी सेवा शर्तों के लिए लगातार आंदोलन करते रहते थे।

कभी-कभी ये आंदोलन सैनिक विद्रोहों का रूप भी ले लेते थे। सैनेट सेना से घृणा करती थी और उससे डरती भी थी। इसका कारण यह था कि सेना हिंसा का स्रोत थी। सम्राटों की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि वे सेना पर कितना नियंत्रण रख पाते थे। जब सेनाएँ विभाजित हो जाती थीं तो इसका परिणाम गृह युद्ध होता था।

प्रश्न 4.
ऑगस्ट्स ने रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए कौन-से कदम उठाए ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स के शासनकाल में आर्थिक क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, ऑगस्ट्स के शासनकाल में रोमन साम्राज्य में पूर्ण शाँति एवं व्यवस्था कायम रही। द्वितीय, उसने यातायात के साधनों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया। इससे साम्राज्य के विभिन्न भागों एवं विदेशों से संपर्क स्थापित करना एवं माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सुगम हो गया।

तीसरा, उसने समुद्री डाकुओं का सफाया करने के उद्देश्य से एक स्थायी जल बेडे का निर्माण करवाया। चौथा. उसने कषि एवं उद्योगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण कदम उठाए। पाँचवां, उसने रोमन साम्राज्य के अनेक देशों के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध स्थापित किए। ऑगस्ट्स के इन आर्थिक सुधारों के चलते जहाँ एक ओर रोमन लोग आर्थिक पक्ष से समृद्ध हुए वहीं दूसरी ओर इससे रोमन साम्राज्य की नींव सुदृढ़ हुई।

प्रश्न 5.
ऑगस्ट्स ने कला तथा साहित्य को किस प्रकार प्रोत्साहित किया ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स कला तथा साहित्य का महान् प्रेमी था। इसलिए उसके शासनकाल में इन क्षेत्रों में अद्वितीय प्रगति हुई। उसने रोम में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। इनमें उसके द्वारा बनवाया गया पैंथियन सर्वाधिक प्रसिद्ध है। उसने ईंटों के स्थान पर संगमरमर का प्रयोग करके रोमन भवन निर्माण कला को एक नई दिशा प्रदान की। उसके शासनकाल में रोमन साहित्य ने उल्लेखनीय विकास किया। लिवि, वर्जिल, होरेस तथा ओविड आदि ने ऑगस्ट्स के शासनकाल को चार चाँद लगा दिए।

लिवि रोमन साम्राज्य का सबसे महान् इतिहासकार था। उसने रोम के इतिहास को 142 जिल्दों में लिखा। वर्जिल ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे महान् कवि था। उसकी सबसे प्रसिद्ध रचना का नाम ईनिड है। यह एक महाकाव्य है। इसमें रोम के संस्थापक ट्रोजन के साहसिक कार्यों का विवरण दिया गया है। होरेस ऑगस्ट्स के शासनकाल का एक अन्य प्रसिद्ध कवि था। उसने अपनी कविताओं में ऑगस्ट्स की बहुत प्रशंसा की है तथा उसे एक देवता माना है। ओविड भी एक महान् कवि था। उसकी कविताओं का मूल विषय प्रेम था।

प्रश्न 6.
नीरो को रोमन साम्राज्य के इतिहास का सबसे क्रूर शासक क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
नीरो रोमन साम्राज्य का सबसे बदनाम शासक था। उसने 54 ई० से 68 ई० तक शासन किया। वह एक अत्यंत अयोग्य एवं क्रूर शासक प्रमाणित हुआ। वह बहुत शंकालु स्वभाव का था। इस कारण उसने राज्य के अनेक उच्च अधिकारियों को मौत के घाट उतार डाला। यहाँ तक कि उसने अपने सौतेले भाई ब्रिटानिक्स, अपने शिक्षक सेनेका, अपनी माँ अग्रीपिना तथा अपनी पत्नी ऑक्टेविया को भी मरवा डाला।

उसने अपनी अय्याशी एवं गलत कार्यों से रोम के खजाने को खाली कर दिया। उसने इसे भरने के उद्देश्य से जनता पर भारी कर लगा दिए। इससे लोगों में भारी रोष फैला। 64 ई० में रोम में एक भयंकर आग लग गई। इस कारण लगभग आधे से अधिक हो गया।

नीरो ने इस आग के लिए ईसाइयों को दोषी ठहराया तथा उन्हें बडी संख्या में मौत के घाट उतार डाला। उसने रोम को पुनः भव्य भवनों से सुसज्जित किया। इससे रोमन अर्थव्यवस्था को एक गहरा आघात लगा। उसके बढ़ते हुए अत्याचारों के कारण गॉल, स्पेन एवं अफ्रीका में विद्रोह भड़क उठे। इस कारण रोमन साम्राज्य की नींव डगमगा गई।

प्रश्न 7.
अगर सम्राट् बाजान भारत पर विजय प्राप्त करने में वास्तव में सफल रहे होते और रोमवासियों का इस देश पर अनेक सदियों तक कब्जा रहा होता, तो आप क्या सोचते हैं कि भारत वर्तमान समय के देश से किस प्रकार भिन्न होता ?
उत्तर:
यदि भारत अनेक सदियों तक रोमवासियों के कब्जे में रहा होता, तो भारत वर्तमान समय के देश से निम्नलिखित दृष्टियों से भिन्न होता

  • भारत में लोकतंत्र के स्थान पर राजतंत्र की स्थापना होती।
  • भारत में सोने के सिक्के प्रचलित होते।
  • ग्रामीण क्षेत्र नगरों के नियंत्रण में होते।
  • ग्रामीण क्षेत्र राज्य के राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत होता।
  • ईसाई धर्म देश का राजधर्म होता।
  • लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन सर्कस, थियेटर के तमाशे तथा जानवरों की लड़ाइयाँ होतीं।
  • देश में दास प्रथा का प्रचलन होता।

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प्रश्न 8.
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य में उत्पन्न संकट के प्रमुख कारण क्या थे ?
अथवा
रोमन साम्राज्य में तीसरी शताब्दी का संकट क्या था ?
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य को अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। इसके लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे

(1) तीसरी शताब्दी के दौरान जर्मन मूल की अनेक जनजातियों जिनमें एलमन्नाई, फ्रैंक तथा गौथ प्रमुख थे, ने अपने लगातार आक्रमणों द्वारा रोमन साम्राज्य की नींव को डगमगा दिया।

(2) तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य की राजनीतिक स्थिति बहुत शोचनीय थी। 47 वर्षों के दौरान 25 शासक सिंहासन पर बैठे। इन सभी शासकों की या तो हत्या की गई या वो गृह-युद्ध में मारे गए।

(3) रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता के कारण कृषि, उद्योग तथा व्यापार को गहरा आघात लगा। अतः दैनिक प्रयोग की सभी वस्तुओं की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि होने लगी। इसे लोग सहन करने को तैयार नहीं थे।

(4) प्रत्येक शासक सेना के सहयोग से सत्ता में आता था। अतः सैनिकों का समर्थन पाने के उद्देश्य से उनकी तनख्वाहों एवं अन्य सुविधाओं में वृद्धि कर दी जाती थी। इससे रोमन अर्थव्यवस्था को एक गहरा धक्का लगा।

(5) रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता का लाभ उठाते हुए अनेक प्रांतों ने स्वतंत्रता के लिए विद्रोह आरंभ कर दिए थे। इससे स्थिति ने विस्फोटक रूप धारण कर लिया।

(6) तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य में अनेक भयानक अकाल पड़े एवं प्लेग फैली। इसमें बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो गई। अतः रोमन साम्राज्य तीव्रता से विघटन की ओर बढ़ने लगा।

प्रश्न 9.
डायोक्लीशियन ने रोमन साम्राज्य के विकास के लिए कौन-से पग उठाए ?
उत्तर:
डायोक्लीशियन ने रोमन साम्राज्य के विकास के लिए निम्नलिखित पग उठाए

(1) डायोक्लीशियन ने सर्वप्रथम सम्राट् के सम्मान में वृद्धि की। उसने अपने आप को सूर्य देवता घोषित किया। उसने दरबार में नए नियमों को प्रचलित किया।

(2) उसने रोमन साम्राज्य पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से 285 ई० में रोमन साम्राज्य को दो भागों में विभाजित किया। पूर्वी साम्राज्य पर उसने स्वयं शासन किया।

(3) उसने निकोमेडिया को पूर्वी रोमन साम्राज्य की नयी राजधानी घोषित किया। उसने पश्चिमी रोमन साम्राज्य का प्रशासन चलाने के लिए मैक्सीमीअन को सम्राट तथा कांस्टैनटीयस को सहायक सम्राट नियुक्त किया।

(4) उसने रोमन साम्राज्य की सुरक्षा के उद्देश्य से सेना को अधिक शक्तिशाली बनाया तथा सीमाओं पर अनेक नए किलों का निर्माण करवाया।

(5) उसने 100 प्रांतों का गठन किया। उसने प्रांतों में शासन करने वाले अधिकारियों की संख्या में वृद्धि कर दी।

(6) उसनें रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए। उसने 301 ई० में एक आदेश द्वारा सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें निश्चित कर दी।

प्रश्न 10.
कांस्टैनटाइन की प्रमुख उपलब्धियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कांस्टैनटाइन की गणना रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध शासकों में की जाती है। उसने 306 ई० से 337 ई० तक शासन किया। उसने अपने शासनकाल के दौरान रोमन साम्राज्य की स्थिति को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक उल्लेखनीय कार्य किए। उसने सर्वप्रथम अपना ध्यान रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था की ओर दिया। उसने रोमन साम्राज्य में तीन शताब्दियों से प्रचलित मौद्रिक प्रणाली में परिवर्तन किया।

उस समय में सभी मुद्राएँ चाँदी से बनी होती थीं। यह चाँदी स्पेन से रोमन साम्राज्य में आती थी। चाँदी की कमी के कारण सरकार के पास इस धातु का भंडार खत्म हो गया। इस स्थिति से निपटने के लिए कांस्टैनटाइन ने 310 ई० में सोने पर आधारित नई मुद्रा चलाई। इसका नाम सॉलिडस रखा गया। यह मुद्रा रोमन साम्राज्य के अंत के पश्चात् भी चलती रही।

कांस्टैनटाइन ने रोमन साम्राज्य में उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया। उसने यातायात के साधनों का विकास किया। उसने रोमन साम्राज्य के विदेशों के साथ व्यापार को भी प्रोत्साहित किया। कांस्टैनटाइन ने रोमन साम्राज्य की सरक्षा के लिए एक शक्तिशाली सेना का गठन किया।

उसकी एक अन्य महत्त्वपर्ण सफलता 313 ई० में ईसाई को रोमन साम्राज्य का राज्य धर्म घोषित करना था। इससे ईसाई धर्म के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। उसके शासनकाल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य 330 ई० में कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित करना था।

प्रश्न 11.
जस्टीनियन पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
जस्टीनियन पूर्वी रोमन साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध सम्राट् था। उसने 527 ई० से 565 ई० तक शासन किया। उसने रोमन साम्राज्य के गौरव को पुनः स्थापित करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। जस्टीनियन ने सर्वप्रथम ईरान के ससानी शासक को पराजित किया। इसके पश्चात् उसने 533 ई० में उत्तरी अफ्रीका के सैंडलों को पराजित कर कार्थेज़ पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् उसने ऑस्ट्रोगोथों को पराजित कर इटली पर अधिकार कर लिया। जस्टीनियन ने प्रशासन को कुशल बनाने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए।

उसने साम्राज्य में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के प्रयास किए। उसने लोक भलाई के अनेक कार्य किए। उसने अनेक भव्य एवं विशाल चर्चों का निर्माण करवाया। इनमें उसके द्वारा कुंस्तुनतुनिया में बनाया गया हागिया सोफ़िया नामक चर्च सर्वाधिक प्रसिद्ध था। उसके शासनकाल में लोग आर्थिक पक्ष से बहुत समृद्ध थे।

इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके शासनकाल में अकेला मित्र प्रतिवर्ष 25 लाख सॉलिडस की राशि करों के रूप में देता था। विश्व इतिहास में जस्टीनियन का नाम 533 ई० में उसके द्वारा जारी किए गए जस्टीनियन कोड के लिए विख्यात है। यह कोड अनेक यूरोपीय देशों के कानूनों की आधारशिला बना।

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प्रश्न 12.
रोमन साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे ?
अथवा
रोमन सभ्यता के पतन के पाँच कारण बताओ।
उत्तर:
(1) रोमन साम्राज्य की विशालता-प्राचीनकाल में रोमन साम्राज्य बहुत विशाल था। उस समय यातायात के साधनों का विकास बहुत कम हुआ था। अतः इतने विशाल साम्राज्य पर नियंत्रण रखना कोई सहज कार्य न था। इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाकर अनेक प्रांतों के गवर्नर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर देते थे। इससे रोमन साम्राज्य की एकता को गहरा आघात लगा।

(2) रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति-रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति भी रोमन साम्राज्य के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। सभी रोमन शासकों ने साम्राज्यवादी नीति पर बहुत बल दिया। अतः उन्हें एक विशाल सेना का गठन करना पड़ा। इस सेना पर धन पानी की तरह बहाया गया। लगातार युद्धों में जन तथा धन की भी अपार क्षति हुई।

(3) रोमन शासकों की विलासिता-रोमन शासकों की विलासिता रोमन साम्राज्य के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। कुछ रोमन शासकों को छोड़कर अधिकाँश रोमन शासक विलासप्रिय सिद्ध हुए। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। रोमन शासकों ने लगातार कम हो रहे खज़ाने को भरने के लिए लोगों पर भारी कर लगा दिए। इससे लोगों में भारी असंतोष फैला तथा वे ऐसे साम्राज्य के विरुद्ध होते चले गए।

(4) उत्तराधिकार कानून का अभाव-रोमन साम्राज्य के पतन के महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक उत्तराधिकार के कानून का अभाव था। अतः जब किसी शासक की आकस्मिक मृत्यु हो जाती तो यह पता नहीं होता था कि उसका उत्तराधिकारी कौन बनेगा। ऐसे समय में विभिन्न दावेदारों में गृह-युद्ध आरंभ हो जाते थे। इन युद्धों के परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर रोमन साम्राज्य की शक्ति क्षीण हुई वहीं दूसरी ओर इसने बाहरी शत्रुओं को रोमन साम्राज्य पर आक्रमण करने का स्वर्ण अवसर प्रदान किया।

(5) दुर्बल सेना—किसी भी साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार में उसकी सेना की प्रमुख भूमिका होती है। कुछ रोमन शासकों ने एक विशाल एवं शक्तिशाली सेना का गठन किया था। किंतु बाद के रोमन शासक अयोग्य एवं निकम्मे सिद्ध हुए थे। उन्होंने रोमन साम्राज्य की सेना की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप रोमन सेना कमजोर हो गई। ऐसे साम्राज्य के पतन को रोका नहीं जा सकता था।

प्रश्न 13.
अध्याय को ध्यानपूर्वक पढ़कर उसमें से रोमन समाज और अर्थव्यवस्था को आपकी दृष्टि में आधुनिक दर्शाने वाले आधारभूत अभिलक्षण चुनिए।
उत्तर:
1. समाज

  • समाज में एकल परिवार का व्यापक प्रचलन था।
  • रोभ की महिलाओं को संपत्ति के स्वामित्व व संचालन के व्यापक कानूनी अधिकार प्राप्त थे।
  • उस समय पत्नी को पूर्ण वैधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। उस समय तलाक देना बेहद सुगम था।
  • उस समय लड़कियों का विवाह 16 से 23 वर्ष के मध्य एवं लड़कों का विवाह 28 से 32 वर्ष के मध्य किया जाता था।

2. अर्थव्यवस्था

  • उस समय के लोग बहुत समृद्ध थे। देश में स्वर्ण मुद्राएँ प्रचलित थीं।
  • रोमन साम्राज्य में बंदरगाहों, खानों एवं उद्योगों की संख्या काफ़ी अधिक थी।
  • उस समय गहन खेती का प्रचलन था।
  • रोमन साम्राज्य का व्यापार काफी विकसित था।
  • उस समय बैंकिंग व्यवस्था तथा धन का व्यापक रूप से प्रचलन था।

प्रश्न 14.
रोमन समाज में स्त्रियों की दशा कैसी थी ?
अथवा
रोमन साम्राज्य में सेंट ऑगस्टीन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति को समूचे रूप से अच्छा कहा जा सकता है। समाज में उनका सम्मान किया जाता था। वे सार्वजनिक, धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में बढ़-चढ़ कर भाग लेती थीं। संपन्न परिवार की लड़कियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करती थीं। उस समय लड़कियों का विवाह 16 से 23 वर्ष के बीच किया जाता था। लड़की का विवाह करना उसके पिता अथवा बड़े भाई का ज़रूरी कर्त्तव्य समझा जाता था। उस समय विवाह बहुत धूमधाम से किए जाते थे। उस समय दहेज प्रथा प्रचलित थी।

पुत्री को अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार प्राप्त था। विवाहिता का अपने परिवार पर काफी प्रभाव होता था। वह अपने बच्चों की शिक्षा तथा परिवार के अन्य कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। उस समय तलाक लेना अपेक्षाकृत आसान था। ऐसी सूरत में पति को अपनी पत्नी से प्राप्त दहेज उसके पिता को वापस लौटाना होता था। उत्तरी अफ्रीका के एक महान् बिशप सेंट ऑगस्टीन ने लिखा है कि उनका पिता अक्सर उनकी माता की पिटाई करता था। इस प्रकार की कुछ अन्य शिकायतों का उसने वर्णन किया है। उस समय रोमन समाज में वेश्यावृत्ति भी प्रचलित थी।

प्रश्न 15.
रोमन साम्राज्य में व्यापक सांस्कृतिक विविधता पाई जाती थी। प्रमाणित कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में व्यापक सांस्कृतिक विविधता निम्नलिखित तथ्यों से प्रमाणित होती है

  • रोमन साम्राज्य में धार्मिक संप्रदायों तथा स्थानीय देवी-देवताओं में भरपूर विविधता थी।
  • उस समय रोमन साम्राज्य में अनेक भाषाएँ-कॉप्टिक, कैल्टिक, प्यूनिक, बरबर, आमिनियाई तथा लातिनी प्रचलित थीं।
  • उस समय वेशभूषा की विविध शैलियाँ अपनाई जाती थीं।
  • उस समय के लोग विभिन्न प्रकार के भोजन खाते थे।
  • उस समय सामाजिक संगठनों के विभिन्न रूप प्रचलित थे।
  • उस समय बस्तियों के भी अनेक रूप प्रचलित थे।

प्रश्न 16.
रोमन साम्राज्य के लोगों के आर्थिक जीवन के संबंध में आप क्या जानते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के आर्थिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं।
(1) उस समय के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। ज़मींदारों के पास विशाल जागीरें होती थीं। वे दासों की सहायता से खेती करते थे। गैलिली गहन् खेती के लिए प्रसिद्ध था। उस समय की प्रमुख फ़सलें गेहूँ, जौ, मक्का एवं जैतून थीं।

(2) रोमन साम्राज्य के लोगों का दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था। उस समय के लोग भेड़-बकरियाँ, गाय, बैल, भैंस, सूअर, घोड़े एवं कुत्ते आदि पालते थे। इन पशुओं को खेती करने, यातायात के लिए , दूध, माँस एवं ऊन आदि प्राप्त करने के लिए पाला जाता था।

(3) उस समय रोमन साम्राज्य का तीसरा प्रमुख व्यवसाय उद्योग था। उस समय जैतून का तेल बनाने एवं अंगूरी शराब बनाने के उद्योग सर्वाधिक प्रसिद्ध थे।

(4) उस समय रोम का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार बहुत उन्नत था। यह व्यापार सड़क एवं समुद्री दोनों मार्गों से होता था। रोमन साम्राज्य शताब्दियों तक विश्व व्यापार का एक प्रसिद्ध केंद्र रहा।

(5) रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में श्रमिकों की प्रमुख भूमिका थी। अधिकाँश श्रमिक दास होते थे। श्रमिकों पर उनके मालिकों द्वारा कठोर नियंत्रण रखा जाता था।

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प्रश्न 17.
रोमन साम्राज्य में व्यापारिक उन्नति के लिए कौन-से कारण उत्तरदायी थे ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार अपनी चरम सीमा पर था। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे-

  • रोमन शासकों ने व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष पग उठाए।
  • ऑगस्ट्स के शासनकाल से लेकर आने वाले काफी समय तक संपूर्ण रोमन साम्राज्य में शांति एवं व्यवस्था बनी रही।
  • यातायात के साधनों का काफी विकास किया गया था। सड़क मार्गों एवं बंदरगाहों द्वारा रोमन साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नगरों को आपस में जोड़ा गया था।
  • सिक्कों के प्रचलन एवं बैंकों की स्थापना ने भी रोमन साम्राज्य के व्यापार के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • उस समय रोमन साम्राज्य की कृषि एवं उद्योग ने अद्वितीय प्रगति की थी।
  • रोमन पुलिस एवं नोसैना द्वारा सड़क मार्गों एवं समुद्री मार्गों की सुरक्षा के लिए व्यापक प्रबंध किए गए थे।

प्रश्न 18.
रोमन साम्राज्य में श्रमिकों पर किस प्रकार नियंत्रण रखा जाता था ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में अधिकाँश श्रम दासों द्वारा किया जाता था। दासों से प्रतिदिन 16 से 18 घंटे कठोर कार्य लिया जाता था। इसके बावजूद उन्हें न तो कोई वेतन दिया जाता था तथा न ही भरपेट खाना। हाँ उन पर घोर अत्याचार ज़रूर किए जाते थे। पहली शताब्दी में जब रोमन साम्राज्य ने अपनी विस्तार की नीति का लगभग त्याग कर दिया तो दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी।

बाध्य होकर दास श्रम का प्रयोग करने वालों को दास प्रजनन एवं वेतनभोगी मज़दूरों का सहारा लेना पड़ा। वेतनभोगी मज़दूर सस्ते पड़ते थे। इसका कारण थह था कि उन्हें आवश्यकता के अनुसार रखा एवं छोडा जा सकता था। दूसरी ओर वेतनभोगी मज़दूरों के विपरीत दास श्रमिकों को वर्ष भर भोजन देना पड़ता था तथा अन्य खर्चे भी करने पड़ते थे।

इससे दास श्रमिकों की लागत बहुत बढ़ जाती थी। दासों एवं मजदूरों पर घोर अत्याचारों के कारण एवं कर्जे के कारण वे भागने के लिए बाध्य हो जाते थे। ग्रामीण ऋणग्रस्तता इतनी व्यापक थी कि 66 ई० के यहूदी विद्रोह के दौरान क्रांतिकारियों ने लोगों का समर्थन प्राप्त करने के लिए साहूकारों के ऋण-पत्रों को नष्ट कर दिया। 398 ई० के एक कानून में कहा गया है कि उस समय श्रमिकों को दागा जाता था ताकि यदि वे भागने का प्रयास करें तो उन्हें पहचाना जा सके।

प्रश्न 19.
यूनान एवं रोमवासियों की पारंपरिक धार्मिक संस्कृति बहुदेववादी थी। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) रोमन लोग बहुदेववादी थे। वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके प्रमुख देवी देवताओं के नाम जपिटर, मॉर्स. जनो, मिनर्वा. डायना एवं इसिस थे।

(2) रोमन लोग आपने देवी-देवताओं की स्मृति में विशाल एवं भव्य मंदिरों का निर्माण करते थे। इसमें वे विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित करते थे। इनकी उपासना बहुत धूमधाम से की जाती थी।

(3) रोमन साम्राज्य के लोग आपने सम्राटों की देवी-देवताओं की तरह उपासना करते थे एवं इन सम्राटों की स्मृति में भी विशाल एवं भव्य मंदिर बनाते थे एवं मूर्तियों की भी स्थापना करते थे।

(4) उस समय रोमन साम्राज्य में जो धर्म प्रचलित थे उनमें मिथ्र धर्म को भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इस धर्म के लोग मुख्य रूप में सूर्य देवता की उपासना करते थे।

(5) यहूदी धर्म रोमन साम्राज्य का एक लोकप्रिय धर्म था। इस धर्म का संस्थापक (पैगंबर मूसा) था। यहूदी एकेश्वरवादी थे। वे जोहोवा के अतिरिक्त किसी अन्य की उपासना नहीं करते थे।

प्रश्न 20.
रोमन साम्राज्य में प्रचलित दास प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
दास प्रथा का रोमन समाज में व्यापक प्रचलन था। ऑगस्ट्स के शासनकाल में कुल 75 लाख की जनसंख्या में 30 लाख दास थे। उस समय अमीर लोग दास रखना अपनी एक शान समझते थे। उस समय युद्धबंदियों को दास बनाया जाता था। कुछ लोग गरीबी के कारण अपने बच्चों को दास के रूप में बेच देते थे। रोमन समाज में स्त्री दासों की संख्या बहुत अधिक थी। पुरुष उन्हें केवल एक विलासिता की वस्तु समझते थे।

दासों के मालिक अपने दासों के साथ अमानुषिक व्यवहार करते थे। अनेक बार दास बाध्य होकर विद्रोह भी कर देते थे। रोमन सम्राटों हैड्रियन, मार्क्स आरेलियस, कांस्टैनटाइन एवं जस्टीनियन ने दास प्रथा का अंत करने के प्रयास किए। दास प्रथा के रोमन साम्राज्य पर दूरगामी प्रभाव पड़े। इस प्रथा के व्यापक प्रचलन के कारण रोमन लोग विलासप्रिय बन गए।

दासों पर लगे प्रतिबंधों एवं घोर अत्याचारों के कारण उनमें आत्म-सम्मान एवं आगे बढ़ने की आशा खत्म हो गई। दासों में फैली निराशा के कारण वे अनेक बार विद्रोह करने के लिए बाध्य हुए। ये विद्रोह रोमन साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुए। रोमन लोगों को दासियों का यौन-शोषण करने की खुली छूट थी। इस कारण लोगों का तीव्रता से नैतिक पतन हुआ।

प्रश्न 21.
रोमन सभ्यता की विश्व को क्या देन है ?
उत्तर:

  • रोमन सभ्यता ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण करके अन्य देशों को विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने का मार्ग दिखाया।
  • इसने विशाल रोमन साम्राज्य में शांति स्थापित करके अन्य देशों को एकता का महत्त्व बताया।
  • इसने विश्व के देशों को सहनशीलता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने राजनीति को सदैव धर्म से अलग रखा।
  • रोम ने विश्व विख्यात कानूनवेत्ता पैदा किए। इनके द्वारा बनाए गए कानूनों ने अन्य देशों के लिए मार्ग दर्शक का कार्य किया।
  • रोमन साम्राज्य ने ईसाई धर्म के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • रोमन साम्राज्य में अनेक विख्यात विद्वान् पैदा हुए। उन्होंने विश्व साहित्य को अमूल्य देन दी।
  • रोमन साम्राज्य ने विश्व को भवन निर्माण कला की नई शैलियों से परिचित करवाया।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रोमन साम्राज्य किन तीन महाद्वीपों में फैला हुआ था ? नाम लिखिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका के महाद्वीपों में फैला हुआ था।

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प्रश्न 2.
रोमन साम्राज्य एवं ईरान के मध्य कौन-सी नदी बहती थी ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य एवं ईरान के मध्य फ़रात (Euphrates) नदी बहती थी।

प्रश्न 3.
किस सागर को रोमन साम्राज्य का हृदय माना जाता था ? यह कहाँ से कहाँ तक फैला हुआ था ?
उत्तर:

  • भूमध्यसागर को रोमन साम्राज्य का हृदय माना जाता था।
  • यह पश्चिम में स्पेन से लेकर पूर्व में सीरिया तक फैला हुआ था।

प्रश्न 4.
रोमन साम्राज्य के काल के दौरान ईरान में किन दो प्रसिद्ध राजवंशों ने शासन किया ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के काल के दौरान ईरान में पार्थियाई (Parthians) तथा ससानी (Sasanians) राजवंशों ने शासन किया।

प्रश्न 5.
रोम में गणतंत्र का प्रचलन कब से कब तक रहा ? उत्तर:रोम में गणतंत्र का प्रचलन 509 ई०पू० से 27 ई०पू० तक रहा। प्रश्न 6. पैपाइरस किसे कहते हैं ?
उत्तर:

  • यह एक सरकंडा जैसा पौधा था जो मिस्त्र में नील नदी के किनारे उत्पन्न होता था।
  • इससे लिखने वाले विद्वानों को पैपाइरोलोजिस्ट कहा जाता था।

प्रश्न 7.
वर्ष वृत्तांत (Annals) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
समकालीन इतिहासकारों द्वारा लिखा गया उस समय का इतिहास वर्ष वृत्तांत कहलाता था। इसे वार्षिक आधार पर लिखा जाता था।

प्रश्न 8.
जुलियस सीज़र कौन था ?
उत्तर:
जुलियस सीज़र रोम का एक महान् शासक था। उसने 49 ई० पू० से 44 ई० पू० तक शासन किया। उसने अपने शासनकाल के दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की। वह एक तानाशाह की तरह शासन करने लगा। अतः 44 ई० पू० में ब्रटस एवं उसके साथियों ने सीज़र की हत्या कर दी।

प्रश्न 9.
प्रिंसिपेट से क्या अभिप्राय है ? इसकी स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:

  • प्रिंसिपेट से अभिप्राय उस राज्य से है जिसकी स्थापना ऑगस्ट्स ने की थी।
  • इसकी स्थापना 27 ई०पू० में की गई थी।

प्रश्न 10.
रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन प्रमुख खिलाड़ी कौन-कौन थे ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन प्रमुख खिलाड़ी सम्राट्, अभिजात वर्ग और सेना थे।

प्रश्न 11.
रोमन साम्राज्य का प्रथम प्रिंसिपेट कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य का प्रथम प्रिंसिपेट ऑगस्ट्स था।
  • उसका शासनकाल 27 ई०पू० से 14 ई० तक था।

प्रश्न 12.
ऑगस्ट्स के शासनकाल की कोई दो प्रमुख उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने रोमन साम्राज्य में शांति की स्थापना की।
  • उसने सैनेट के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए।

प्रश्न 13.
ऑगस्टस के शासनकाल को रोमन साम्राज्य के इतिहास का स्वर्ण यग क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:

  • उसने रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता को दर कर वहाँ शाँति की स्थापना की।
  • उसने रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया।
  • उसने कला तथा साहित्य को प्रोत्साहन दिया।

प्रश्न 14.
ऑगस्ट्स ने रोमन सैनेट में कौन-से दो प्रमुख सुधार किए ?
उत्तर:

  • उसने केवल रोम के धनी, ईमानदार एवं कर्त्तव्यपरायण लोगों को ही सैनेट में प्रतिनिधित्व दिया।
  • उसने सैनेट में अवांछित सदस्यों को हटा दिया।

प्रश्न 15.
ऑगस्ट्स ने रोमन सेना में कौन-से दो प्रमुख सुधार किए ?
उत्तर:

  • उसने एक स्थायी सेना का गठन किया।
  • उसने प्रोटोरियन गॉर्ड की स्थापना की।

प्रश्न 16.
ऑगस्ट्स ने प्रांतीय प्रशासन में कुशलता लाने हेतु कौन-से प्रमुख पग उठाए ?
उत्तर:

  • उसने केवल ईमानदार लोगों को गवर्नर के पद पर नियुक्त किया।
  • उसने प्रांतों में फैले भ्रष्टाचार को दूर किया।
  • उसने जनता पर अत्याचार करने वाले अधिकारियों को हटा दिया।

प्रश्न 17.
ऑगस्ट्स द्वारा किए गए कोई दो उल्लेखनीय आर्थिक सुधार लिखें।
उत्तर:

  • उसने कृषि तथा उद्योगों को प्रोत्साहित किया।
  • उसने अनेक देशों के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध स्थापित किए।

प्रश्न 18.
ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे महान् इतिहासकार कौन था ? उसने रोमन साम्राज्य का इतिहास कितने जिल्दों में लिखा ?
उत्तर:

  • ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे महान् इतिहासकार लिवि था।
  • उसने रोमन साम्राज्य का इतिहास 142 जिल्दों में लिखा।

प्रश्न 19.
ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे प्रसिद्ध कवि एवं उसकी रचना का नाम लिखें।
उत्तर:

  • ऑगस्ट्स के शासनकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि का नाम वर्जिल था।
  • उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम ईनिड (Aenid) था।

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प्रश्न 20.
ऑगस्ट्स का उत्तराधिकारी कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • ऑगस्ट्स का उत्तराधिकारी टिबेरियस था।
  • उसका शासनकाल 14 ई० से लेकर 37 ई० तक था।

प्रश्न 21.
नीरो कौन था? वह क्यों अलोकप्रिय था? अथवा नीरो कौन था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य का सबसे अत्याचारी शासक नीरो था।
  • उसका शासनकाल 54 ई० से लेकर 68 ई० तक था।
  • वह अपने अत्याचारों के कारण प्रजा में अलोकप्रिय था।

प्रश्न 22.
सम्राट् त्राजान ने पार्थियन के शासक के विरुद्ध कब अभियान चलाया ? इस अभियान के दौरान उसने किन क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था ?
उत्तर:

  • सम्राट् त्राजान ने पार्थियन के शासक के विरुद्ध 113 ई० से 117 ई० तक अभियान चलाया।
  • इस अभियान के दौरान उसने आरमीनिया, असीरिया, मेसोपोटामिया तथा पार्थियन राजधानी टेसीफुन पर अधिकार कर लिया था।

प्रश्न 23.
सम्राट् हैड्रियन के कोई दो महत्त्वपूर्ण सुधार बताएँ।
उत्तर:

  • उसने लोक भलाई के अनेक कार्य किए।
  • उसने सैनेट के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए।

प्रश्न 24.
मार्क्स आरेलियस क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • उसने गरीबों एवं दासों की दशा सुधारने के लिए अनेक पग उठाए।
  • उसने पार्थियनों एवं जर्मन बर्बरों द्वारा रोमन साम्राज्य पर किए गए आक्रमणों को पछाड़ दिया।
  • उसने रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध सेनापति कैसियस के विद्रोह का दमन किया।

प्रश्न 25.
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य में आए संकट के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य पर विदेशी बर्बरों के लगातार आक्रमण आरंभ हो गए थे।
  • इस शताब्दी के दौरान गह-यद्धों ने भयंकर रूप धारण कर लिया था। 47 वर्षों में रोमन साम्राज्य में 25 सम्राट् सत्तासीन हुए।।

प्रश्न 26.
सम्राट् डायोक्लीशियन ने रोमन साम्राज्य को छोटा क्यों कर दिया ?
उत्तर:
सम्राट् डायोक्लीशियन ने अनुभव किया कि साम्राज्य के अनेक प्रदेशों का कोई सामरिक अथवा आर्थिक महत्त्व नहीं है। अतः उसने इन प्रदेशों को छोड़ना बेहतर समझा।

प्रश्न 27.
डायोक्लीशियन के शासनकाल की कोई दो महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने रोमन साम्राज्य की सुरक्षा के उद्देश्य से रोमन सेना को अधिक शक्तिशाली बनाया।
  • उसने प्रांतीय प्रशासन की कुशलता के उद्देश्य से प्रांतों की संख्या 100 कर दी।

प्रश्न 28.
कांस्टैनटाइन का नाम रोमन साम्राज्य के इतिहास में क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:

  • उसने सॉलिडस नामक एक नई मुद्रा का प्रचलन किया।
  • उसने 313 ई० में ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का राज्य धर्म घोषित किया।
  • उसने 330 ई० में कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित किया।

प्रश्न 29.
कांस्टैनटाइन के दो प्रमुख आर्थिक सुधार बताएँ।
उत्तर:

  • उसने उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया।
  • उसने सॉलिडस नामक सोने की मुद्रा का प्रचलन किया।

प्रश्न 30.
कांस्टैनटाइन द्वारा चलाई गई नई मुद्रा का नाम क्या था ? यह किस धातु से बनी थी ?
अथवा सॉलिडस क्या था ?
उत्तर:

  • कांस्टैनटाइन द्वारा चलाई गई नई मुद्रा का नाम सॉलिडस था।
  • यह सोने की धातु की बनी थी।

प्रश्न 31.
दीनारियस क्या होता था ?
उत्तर:
दीनारियस रोमन साम्राज्य में प्रचलित चाँदी का सिक्का था। इसमें लगभग 4.5 ग्राम विशुद्ध चाँदी होती थी।

प्रश्न 32.
पूर्वी रोमन साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • पूर्वी रोमन साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक जस्टीनियन था।
  • उसका शासनकाल 527 ई० से 565 ई० तक था।

प्रश्न 33.
जस्टीनियन की प्रसिद्धि के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • उसने साम्राज्य में फैले भ्रष्टाचार को दूर किया।
  • उसने जस्टीनियन कोड का प्रचलन किया।

प्रश्न 34.
रोमन साम्राज्य के पतन के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
रोमन सभ्यता के पतन के दो कारण निम्नलिखित थे :

  • रोमन साम्राज्य के शासकों की साम्राज्यवादी नीति ही उसके लिए विनाशकारी सिद्ध हुई।
  • रोमन शासकों की विलासिता रोमन साम्राज्य की नैया डुबोने में एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई।

प्रश्न 35.
रोमोत्तर राज्य (Post-Roman) किसे कहा जाता था ? किन्हीं दो ऐसे राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर:

  • रोमोत्तर राज्य ऐसे राज्यों को कहा जाता था जिनकी स्थापना जर्मन बर्बरों द्वारा की गई थी।
  • दो ऐसे राज्य थे-स्पेन में विसिगोथों का राज्य एवं गॉल में फ्रैंकों का राज्य।

प्रश्न 36.
रोमन साम्राज्य के सामाजिक जीवन की कोई दो विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • रोमन समाज तीन श्रेणियों में विभाजित था।
  • रोमन समाज में एकल परिवार प्रणाली प्रचलित थी।

प्रश्न 37.
रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति समूचे रूप से अच्छी थी। समाज में उनका सम्मान किया जाता था। वे उत्सवों में बढ़-चढ़ कर भाग लेती थीं। उन्हें शिक्षा एवं संपत्ति का अधिकार प्राप्त था। उस समय लड़कियों का विवाह 16 से 23 वर्ष के मध्य किया जाता था। उस समय समाज में दहेज प्रथा एवं वेश्यावृत्ति का प्रचलन था।

प्रश्न 38.
एकल परिवार से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एकल परिवार से हमारा अभिप्राय एक ऐसे परिवार से है जिसमें पति-पत्नी एवं उनके बच्चे रहते हैं।

प्रश्न 39.
सेंट ऑगस्टीन कौन थे ?
अथवा सेंट ऑगस्टीन कौन था ? उसके किस कथन से स्पष्ट होता है कि उस समय पतियों का अपनी पत्नियों पर पूर्ण अधिकार था ?
उत्तर:

  • सेंट ऑगस्टीन उत्तरी अफ्रीका के एक महान् बिशप थे।
  • उसके इस कथन से-कि उसके पिता द्वारा नियमित रूप से उनकी माता की पिटाई की जाती थी स्पष्ट होता है कि उस समय पतियों का अपनी पत्नियों पर पूर्ण अधिकार था।

प्रश्न 40.
रोमन साम्राज्य में साक्षरता की दर क्या थी ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में साक्षरता की दर विभिन्न भागों में अलग-अलग थी।
  • यह पुरुषों में सामान्यता: 20% एवं स्त्रियों में 10% थी।

प्रश्न 41.
रोमन साम्राज्य का पोम्पई नगर कब ज्वालामुखी के फटने से दफ़न हो गया था ? किन दो उदाहरणों से पता चलता है कि उस समय वहाँ कामचलाऊ साक्षरता का व्यापक प्रचलन था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य का पोम्पई नगर 79 ई० में ज्वालामुखी के फटने से दफ़न हो गया था।
  • पोम्पई नगर की दीवारों पर अंकित विज्ञापनों तथा वहाँ पाए गए अभिरेखणों (Graffiti) से पता चलता है कि उस समय वहाँ कामचलाऊ साक्षरता का व्यापक प्रचलन था।

प्रश्न 42.
निकटवर्ती पूर्व (Near East) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • निकटवर्ती पूर्व से अभिप्राय है भूमध्यसागर के बिल्कुल पूर्व का प्रदेश।
  • इसमें सीरिया, फ़िलिस्तीन, मेसोपोटामिया तथा अरब के क्षेत्र सम्मिलित थे।

प्रश्न 43.
निकटवर्ती पूर्व एवं मिस्त्र में कौन-सी भाषाएँ बोली जाती थीं ?
उत्तर:

  • निकटवर्ती पूर्व में अरामाइक एवं
  • मिस्र में कैल्टिक भाषाएँ बोली जाती थीं।

प्रश्न 44.
उत्तरी अफ्रीका एवं स्पेन में कौन-सी भाषाएँ बोली जाती थीं ?
उत्तर:

  • उत्तरी अफ्रीका में प्यूनिक तथा बरबर भाषाएँ बोली जाती थीं।
  • स्पेन में कैल्टिक भाषा बोली जाती थी।

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प्रश्न 45.
कल्पना कीजिए कि आप रोम की एक गृहिणी हैं जो घर की ज़रूरत की वस्तुओं की खरीददारी की सूची बना रही हैं। अपनी सूची में आप कौन-सी वस्तुएँ शामिल करेंगी ?
उत्तर:
यदि मैं रोम की गृहिणी होती तो मैं घर की ज़रूरत की वस्तुओं की खरीददारी की सूची में ब्रेड, मक्खन, दूध, अंडे, माँस, तेल, फल, सब्जियाँ, विभिन्न प्रकार की दालों, नहाने एवं कपड़े धोने के साबुनों, सौंदर्य प्रसाधन, बच्चों की ज़रूरी वस्तुओं एवं दवाइयाँ आदि को शामिल करती।

प्रश्न 46.
रोमन साम्राज्य के लोगों के आर्थिक जीवन की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
  • उस समय रोमन साम्राज्य के दो प्रमुख उद्योग जैतून का तेल निकालने तथा अंगूरी शराब बनाने के थे।

प्रश्न 47.
रोमन साम्राज्य की कृषि की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • उस समय कृषि दासों की सहायता से की जाती थी।
  • उस समय फ़सलों के अधिक उत्पादन के लिए खादों का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 48.
रोमन साम्राज्य में सबसे अधिक किस फल का उत्पादन होता था ? इसका प्रयोग किस लिए किया जाता था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में सबसे अधिक उत्पादन अंगूर का किया जाता था।
  • इसका प्रयोग शराब बनाने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 49.
रोमन साम्राज्य में सबसे अधिक भेड़-बकरियाँ कहाँ पाली जाती थीं ? यहाँ चरवाहे जिन झोपड़ियों में रहते थे उन्हें क्या कहा जाता था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में सबसे अधिक भेड़-बकरियाँ नुमीडिया में पाली जाती थीं।
  • यहाँ चरवाहे जिन झोपड़ियों में रहते थे उन्हें मैपालिया कहा जाता था।

प्रश्न 50.
रोमन साम्राज्य के किस प्रदेश में पशुपालन का धंधा बहुत विकसित था ? यहाँ चरवाहों के गाँवों को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य के स्पेन प्रदेश में पशुपालन का धंधा बहुत विकसित था।
  • यहाँ चरवाहों के गाँवों को कैस्टेला के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 51.
मैपालिया एवं कैस्टेला से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • मैपालिया अवन आकार की झोंपड़ियाँ थीं जिन्हें चरवाहे इधर-उधर उठा कर घूमते रहते थे।
  • कैस्टेला स्पेन में चरवाहों के गाँवों को कहा जाता था। यह गाँव पहाड़ियों की चोटियों पर बने होते थे।

प्रश्न 52.
एम्फोरा (Amphora) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
एम्फोरा ढुलाई (transportation) के ऐसे मटके अथवा कंटेनर थे जिनमें शराब, जैतून का तेल तथा दूसरे तरल पदार्थ लाए एवं ले जाए जाते थे। रोम में मोंटी टेस्टैकियो नामक स्थल से ऐसे 5 करोड़ से अधिक एम्फोरा प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 53.
ड्रेसल 20 (Dressel 20) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • ड्रेसल 20 उन कंटेनरों को कहा जाता था जिनके द्वारा जैतून के तेल की ढुलाई की जाती थी।
  • इन कंटेनरों के अवशेष भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में अनेक उत्खनन स्थलों पर पाए गए हैं।

प्रश्न 54.
पाँचवीं एवं छठी शताब्दियों के मध्य रोमन साम्राज्य के चार केंद्रों के नाम बताएँ जो जैतून के तेल एवं अंगूरी शराब बनाने के लिए प्रसिद्ध थे।
उत्तर:

  • एगियन
  • दक्षिणी एशिया माइनर
  • सीरिया
  • फिलिस्तीन।

प्रश्न 55.
रोमन साम्राज्य के आंतरिक एवं विदेशी व्यापार के प्रफुल्लित होने के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में काफी समय तक शांति एवं व्यवस्था बनी रही।
  • रोमन साम्राज्य में यातायात के साधन काफी विकसित थे।

प्रश्न 56.
दास प्रजनन से क्या अभिप्राय है ? रोमन साम्राज्य में दास प्रजनन की आवश्यकता क्यों हुई ?
उत्तर:

  • दास प्रजनन से अभिप्राय उस प्रथा से है जिसमें दासों को अधिक-से-अधिक बच्चे उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।
  • प्रथम शताब्दी में रोमन साम्राज्य ने अपनी विस्तार नीति का लगभग त्याग कर दिया था। इसलिए दासों की आपूर्ति (supply) में कमी आ गई।

प्रश्न 57.
रोमन साम्राज्य में सरकारी निर्माण कार्यों में दासों की अपेक्षा वेतनभोगी मज़दूरों का व्यापक प्रयोग क्यों किया जाता था ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में सरकारी निर्माण कार्यों में दासों की अपेक्षा वेतनभोगी मजदूरों का व्यापक प्रयोग इसलिए किया जाता था क्योंकि वेतनभोगी मज़दूर सस्ते पड़ते थे। दूसरी ओर दास श्रमिकों को वर्ष भर खाना देना पड़ता था तथा अन्य खर्च करने पड़ते थे। इसलिए उनकी लागत बहुत बढ़ जाती थी।

प्रश्न 58.
रोमन साम्राज्य में श्रमिकों पर नियंत्रण किस प्रकार रखा जाता था ?
उत्तर:

  • उस समय श्रमिकों को दागा जाता था ताकि यदि वे भागें तो उन्हें पहचाना जा सके।
  • उन्हें जंजीरों द्वारा बाँध कर रखा जाता था।

प्रश्न 59.
रोमन साम्राज्य में प्रचलित दो प्रसिद्ध सिक्के कौन से थे ? ये किस धातु के बने थे ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में प्रचलित दो प्रसिद्ध सिक्के दीनारियस एवं सॉलिडस थे।
  • ये सिक्के क्रमश: चाँदी एवं सोने के बने हुए थे।

प्रश्न 60.
आपको क्या लगता है कि रोमन सरकार ने चाँदी में मुद्रा को ढालना क्यों बंद किया होगा और वह सिक्कों के उत्पादन के लिए कौन-सी धातु का उपयोग करने लगी ?
उत्तर:

  • रोमन सरकार ने चाँदी में मुद्रा को ढालना इसलिए बंद किया क्योंकि स्पेन में चाँदी की खाने खत्म हो गईं। इसलिए रोमन साम्राज्य में चाँदी की कमी हो गई।
  • रोमन सरकार अब सिक्कों के लिए सोने का उपयोग करने लगी।

प्रश्न 61.
यदि आप रोमन साम्राज्य में रहे होते तो कहाँ रहना पसंद करते-नगरों में या ग्रामीण क्षेत्र में ? कारण बताइये।
उत्तर:
यदि मैं रोमन साम्राज्य में रहा होता तो निम्नलिखित कारणों से नगरों में रहना अधिक पसंद करता

  • नगरों में ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध थीं।
  • अकाल के दिनों में नगरों में अनाज की कोई कमी नहीं होती थी।
  • नगरों में ग्रामीण क्षेत्र की अपेक्षा यातायात के साधन अधिक विकसित थे।
  • नगरों में लोगों को उच्च स्तर के मनोरंजन उपलब्ध थे।

प्रश्न 62.
रोमन साम्राज्य के लोगों के धार्मिक जीवन की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य के लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।
  • वे अनेक प्रकार के अंध-विश्वासों में भी विश्वास रखते थे।

प्रश्न 63.
जूपिटर कौन था ?
उत्तर:
जूपिटर रोमन लोगों का सबसे सर्वोच्च देवता था। वह आकाश का देवता था। सूर्य, चंद्रमा एवं तारे सभी उसी की आज्ञा का पालन करते थे। वह विश्व की सभी घटनाओं की जानकारी रखता था। वह पापियों को सज़ा देता था।

प्रश्न 64.
जूनो और मिनर्वा कौन थी ?
उत्तर:

  • जूनो रोमन लोगों की प्रमुख देवी थी। उसे स्त्रियों की देवी समझा जाता था।
  • मिनर्वा रोमन लोगों की ज्ञान की देवी थी।

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प्रश्न 65.
मिथ्र धर्म मुख्य रूप से किसकी उपासना करता है ? यह धर्म सैनिकों में क्यों लोकप्रिय हुआ ?
उत्तर:

  • मिथ्र धर्म मुख्य रूप से सूर्य की उपासना करता है।
  • यह धर्म सैनिकों में इसलिए लोकप्रिय था क्योंकि इसमें शौर्य एवं अनुशासन पर बल दिया गया था।

प्रश्न 66.
यहूदी धर्म का संस्थापक कौन था ? इस धर्म की कोई दो शिक्षाएँ लिखें।
उत्तर:

  • यहूदी धर्म का संस्थापक पैगंबर मूसा था।
  • यह धर्म मूर्ति पूजा के विरुद्ध था।
  • यह धर्म कानून के पालन पर विशेष बल देता है।

प्रश्न 67.
यहूदी धर्म किसकी उपासना करता है ? इस धर्म की पवित्र पुस्तक एवं मंदिर क्या कहलाते हैं ?
उत्तर:

  • यहूदी धर्म जेहोवा की उपासना करता है।
  • इस धर्म की पवित्र पुस्तक तोरा एवं मंदिर सिनेगोग कहलाते हैं।

प्रश्न 68.
ईसाई धर्म का संस्थापक कौन था ? इस धर्म की पवित्र पुस्तक क्या कहलाती है ?
उत्तर:

  • ईसाई धर्म का संस्थापक ईसा मसीह था।
  • इस धर्म की पवित्र पुस्तक बाईबल कहलाती है।

प्रश्न 69.
ईसाई धर्म की कोई दो शिक्षाएँ लिखें।
उत्तर:

  • यह धर्म एक परमात्मा की उपासना में विश्वास रखता है।
  • यह धर्म आपसी भाईचारे का संदेश देता है।

प्रश्न 70.
रोमन दास प्रथा की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • रोमन समाज में जिस व्यक्ति के पास जितने दास होते थे समाज में उसे उतना ऊँचा दर्जा दिया जाता था।
  • दासों के मालिक उन पर घोर अत्याचार करते थे।

प्रश्न 71.
दास प्रथा के रोमन समाज पर पड़े कोई दो प्रभाव बताएँ।
उत्तर:

  • दास प्रथा के व्यापक प्रचलन के कारण उनके मालिक विलासप्रिय हो गए।
  • दासों पर किए जाने वाले घोर अत्याचारों के कारण वे विद्रोह करने के लिए बाध्य हुए। इससे समाज में अराजकता फैली।

प्रश्न 72.
रोमन सभ्यता की विश्व को क्या देन रही है ?
उत्तर:

  • इसने ईसाई धर्म के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • इसने विश्व को भवन निर्माण कला की नई शैलियों से परिचित करवाया।

एक शब्द या एक वाक्य वाले उत्तर

प्रश्न 1.
प्राचीन काल में रोमन साम्राज्य कितने महाद्वीपों में फैला हुआ था ?
उत्तर:
तीन महाद्वीपों में।

प्रश्न 2.
मिस्त्र में नील नदी के किनारे पैदा होने वाला प्रसिद्ध पौधा कौन-सा था ?
उत्तर:
पैपाइरस।

प्रश्न 3.
रोमन साम्राज्य में गणतंत्र की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर:
509 ई० पू० में।

प्रश्न 4.
ऑगस्टस कब सिंहासन पर बैठा था ?
उत्तर:
27 ई० पू० में।

प्रश्न 5.
ऑगस्टस का उत्तराधिकारी कौन था ?
उत्तर:
टिबेरियस।

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प्रश्न 6.
पार्थिया की राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर:
टेसीफुन।

प्रश्न 7.
रोमन साम्राज्य को किस शताब्दी में सबसे भयंकर संकट का सामना करना पड़ा था ?
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में।

प्रश्न 8.
कांस्टैनटाइन द्वारा प्रचलित सोने की मुद्रा का नाम क्या था ?
उत्तर:
सॉलिडस।

प्रश्न 9.
रोमन साम्राज्य के किस शासक ने कुंस्तुनतुनिया को राजधानी बनाया ?
उत्तर:
कांस्टैनटाइन ने।

प्रश्न 10.
रोमन समाज कितनी श्रेणियों में विभाजित था ?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 11.
प्रेटोरियन गार्ड का प्रमुख उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
सम्राट् की सुरक्षा करना।

प्रश्न 12.
ससानी वंश ईरान में कब सत्ता में आया था ?
उत्तर:
224 ई० में।

प्रश्न 13.
रोम में कब भयानक आग लगी थी ?
उत्तर:
64 ई० में।

प्रश्न 14.
रोमन साम्राज्य का कौन-सा नगर 79 ई० में ज्वालामुखी के फटने से नष्ट हो गया था ?
उत्तर:
पोम्पई नगर।

प्रश्न 15.
प्राचीन काल में रोमन साम्राज्य के दो प्रसिद्ध उद्योग कौन-से थे ?
उत्तर:
जैतून का तेल एवं अंगूरी शराब के उद्योग।

प्रश्न 16.
ड्रैसल 20 क्या था ?
उत्तर:
स्पेन में जैतून का तेल ले जाने वाले कंटेनर।

प्रश्न 17.
रोमन साम्राज्य का प्रमुख देवता कौन था ?
उत्तर:
जूपिटर।

प्रश्न 18.
रोम के किस शासक को प्रिंसिपेट कहा जाता था ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स ।

प्रश्न 19.
27 ई० पू० में रोम का प्रथम सम्राट् कौन बना ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स ।

प्रश्न 20.
पार्थियनों की राजधानी का क्या नाम था ?
उत्तर:
टेसीफुन।

प्रश्न 21.
भूमध्यसागर के तटों पर स्थापित दो बड़े शहरों के नाम क्या थे ?
उत्तर:
सिकंदारिया व एंटिऑक।

प्रश्न 22.
ईरान में 225 ई० में कौन-सा आक्रामक वंश उभर कर सामने आया था ?
उत्तर:
ससानी वंश।

प्रश्न 23.
एक दिनारियस (दीनार ) में लगभग कितने ग्राम चाँदी होती थी ?
उत्तर:
4.5 ग्राम।

प्रश्न 24.
रोमन समाज में किस प्रकार की परिवारिक प्रणाली का प्रचलन था ?
उत्तर:
एकल।

प्रश्न 25.
रोमन समाज में उत्तरी अफ्रीका में कौन-सी भाषा बोली जाती थी ?
उत्तर:
प्यूनिक।

प्रश्न 26.
रोमन समाज में स्पेन व उत्तर पश्चिमी में कौन-सी भाषा का प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर:
कैल्टिक।

प्रश्न 27.
रोमन साम्राज्य में तरल पदार्थों की ढुलाई में प्रयोग किए जाने वाले कंटेनरों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
एम्फोरा।

प्रश्न 28.
कांस्टैनटाइन ने ईसाई धर्म कब स्वीकार किया था ?
उत्तर:
313 ई०।

प्रश्न 29. लोंबार्डो द्वारा इटली पर आक्रमण कब किया गया ?
उत्तर:
568 ई०।

रिक्त स्थान भरिए

1. 27 ई० पू० में रोम का प्रथम सम्राट् ……………. बना।
उत्तर:
ऑगस्ट्स
2. ऑगस्ट्स रोम का प्रथम सम्राट् ……………. में बना।
उत्तर:
27 ई० पू०

3. रोम सम्राट् ऑगस्ट्स द्वारा स्थापित राज्य को …………….. कहा जाता था।
उत्तर:
प्रिंसिपेट

4. टिबेरियस …………….. ई० तक रोम का सम्राट रहा।
उत्तर:
14-37

5. पार्थियन की राजधानी का नाम …………….. था।
उत्तर:
टेसीफुन

6. ईरान में ससानी वंश की स्थापना …………… ई० में हुई।
उत्तर:
224

7. रोमन समाज ………. प्रधान समाज था।
उत्तर:
पुरुष

8. स्पेन व उत्तर पश्चिमी में ……………. भाषा बोली जाती थी।
उत्तर:
कैल्टिक

9. रोमन साम्राज्य में तरल पदार्थों की ढुलाई में प्रयोग किए जाने वाले कंटेनरो को ……. …… कहा जाता था।
उत्तर:
एम्फोरा

10. कांस्टैनटाइन द्वारा सोने का सिक्का ……………. ई० में चलाया गया।
उत्तर:
310

11. कुंस्तुनतुनिया नगर की स्थापना …………….. ने की।
उत्तर:
कांस्टैनटाइन

12. …………… में लोंबार्डो द्वारा इटली पर आक्रमण किया गया।
उत्तर:
568 ई०

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. उस साम्राज्य का नाम बताएँ जो तीन महाद्वीपों में फैला हुआ था ?
(क) यूनानी साम्राज्य
(ख) रोमन साम्राज्य
(ग) रूसी साम्राज्य
(घ) ब्रिटिश साम्राज्य।
उत्तर:
(ख) रोमन साम्राज्य

2. निम्नलिखित में से किस सागर को रोमन साम्राज्य का हृदय कहा जाता था ?
(क) भूमध्यसागर
(ख) लाल सागर
(ग) एगियन सागर
(घ) आयोनियन सागर।
उत्तर:
(क) भूमध्यसागर

3. निम्नलिखित में से कौन-सी भाषाएँ रोमन साम्राज्य की प्रशासनिक भाषाएँ थीं ?
(क) लातीनी एवं अंग्रेज़ी
(ख) लातीनी एवं यूनानी
(ग) यूनानी एवं फ्रांसीसी
(घ) रोमन एवं रूसी।
उत्तर:
(ख) लातीनी एवं यूनानी

4. रोमन साम्राज्य में गणतंत्र की स्थापना कब हुई थी ?
(क) 529 ई० पू० में
(ख) 519 ई० पू० में
(ग) 509 ई० पू० में
(घ) 27 ई० पू० में।
उत्तर:
(ग) 509 ई० पू० में

5. रोमन साम्राज्य में गणतंत्र का अंत कब हुआ ?
(क) 37 ई० पू० में
(ख) 27 ई० पू० में
(ग) 17 ई० पू० में
(घ) 27 ई० में।
उत्तर:
(ख) 27 ई० पू० में

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6. रोम का प्रथम सम्राट् कौन था ?
(क) जूलियस सीजर
(ख) ट्राजन
(ग) टाईबेरियस
(घ) ऑगस्ट्स
उत्तर:
(घ) ऑगस्ट्स

7. ऑगस्ट्स कब सिंहासन पर बैठा था ?
(क) 27 ई० पू० में
(ख) 27 ई० में
(ग) 17 ई० पू० में
(घ) 14 ई० में।
उत्तर:
(क) 27 ई० पू० में

8. निम्नलिखित में से कौन रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास का मुख्य खिलाड़ी नहीं था ?
(क) सम्राट
(ख) सेना
(ग) अभिजात वर्ग
(घ) दास।
उत्तर:
(घ) दास।

9. प्रेटोरियन गॉर्ड का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
(क) दुर्ग की सुरक्षा करना
(ख) सम्राट् की सुरक्षा करना
(ग) प्रांतों की सुरक्षा करना
(घ) विदेशों पर आक्रमण करना।
उत्तर:
(ख) सम्राट् की सुरक्षा करना

10. ऑगस्ट्स की मृत्यु कब हुई थी ?
(क) 27 ई० पू० में
(ख) 17 ई० पू० में
(ग) 14 ई० में
(घ) 12 ई० में।
उत्तर:
(ग) 14 ई० में

11. ऑगस्ट्स का उत्तराधिकारी कौन था ?
(क) त्राजान
(ख) टिबेरियस
(ग) गैलीनस
(घ) मार्क्स आरेलियस।
उत्तर:
(ख) टिबेरियस

12. रोमन साम्राज्य का सबसे अत्याचारी शासक कौन था ?
(क) त्राजान
(ख) जूलियस सीज़र
(ग) नीरो
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) नीरो

13. सम्राट् बाजान ने फ़ारस के शासक के विरुद्ध अभियान के दौरान निम्नलिखित में से किस प्रदेश पर अधिकार किया ?
(क) आरमीनिया
(ख) असीरिया
(ग) टेसीफुन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

14. ईरान में ससानी वंश की स्थापना कब हुई ?
(क) 224 ई० में
(ख) 225 ई० में
(ग) 234 ई० में
(घ) 241 ई० में।
उत्तर:
(क) 224 ई० में

15. ईरान के किस शासक ने पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी एंटिओक पर अधिकार कर लिया था ?
(क) शापुर प्रथम ने
(ख) शापुर द्वितीय ने
(ग) अट्टिला ने
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) शापुर प्रथम ने

16. ‘डायोक्लीशियन ने किसे पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी घोषित किया ?
(क) निकोमेडिया
(ख) टेसीफुन
(ग) दासिया
(घ) सिकंदरिया।
उत्तर:
(क) निकोमेडिया

17. किस रोमन सम्राट् ने 301 ई० में रोमन साम्राज्य में सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें निश्चित कर दी थी ?
(क) टिबेरियस
(ख) ऑगस्ट्स
(ग) गैलीनस
(घ) डायोक्लीशियन।
उत्तर:
(घ) डायोक्लीशियन।

18. कांस्टैनटाइन का नाम रोमन साम्राज्य के इतिहास में क्यों प्रसिद्ध है ?
(क) उसने ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का राज्य धर्म घोषित किया
(ख) उसने सॉलिडस नामक एक नई मुद्रा का प्रचलन किया
(ग) उसने कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित किया
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

19. कांस्टैनटाइन द्वारा चलाई गई नई मुद्रा का नाम क्या था ?
(क) फ्रैंक
(ख) सॉलिडस
(ग) रूबल
(घ) रुपया।
उत्तर:
(ख) सॉलिडस

20. कांस्टैनटाइन ने किस धर्म को राज्य धर्म घोषित किया था ?
(क) हिंदू धर्म को
(ख) ईसाई धर्म को
(ग) इस्लाम को
(घ) यहूदी धर्म को।
उत्तर:
(ख) ईसाई धर्म को

21. कांस्टैनटाइन ने किसे रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित किया था ?
(क) निकोमेडिया
(ख) दासिया
(ग) कुंस्तुनतुनिया
(घ) सॉलिडस।
उत्तर:
(ग) कुंस्तुनतुनिया

22. ‘जस्टीनियन कोड’ का प्रचलन कब हुआ ?
(क) 527 ई० में
(ख) 533 ई० में
(ग) 560 ई० में
(घ) 565 ई० में।
उत्तर:
(ख) 533 ई० में

23. रोमन साम्राज्य के पतन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारण उत्तरदायी था ?
(क) रोमन साम्राज्य की विशालता
(ख) दासों पर अत्याचार
(ग) उत्तराधिकार कानून का अभाव
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

24. रोमोत्तर राज्य किसे कहा जाता था ?
(क) ईरानी बर्बरों द्वारा स्थापित राज्य
(ख) मंगोलों द्वारा स्थापित राज्य
(ग) जर्मन बर्बरों द्वारा स्थापित राज्य
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) जर्मन बर्बरों द्वारा स्थापित राज्य

25. किस वर्ष रोमन साम्राज्य पूर्वी और पश्चिमी भागों में विभक्त हुआ था ?
(क) 285 ई०
(ख) 518 ई०
(ग) 565 ई०
(घ) 395 ई०
उत्तर:
(क) 285 ई०

26. निम्नलिखित में से किसने रोमोत्तर राज्य की स्थापना की थी ?
(क) गोथ
(ख) बैंडल
(ग) लोंबार्ड
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

27. बैंडलों ने उत्तरी अफ्रीका पर कब अधिकार किया ?
(क) 410 ई० में
(ख) 428 ई० में
(ग) 451 ई० में
(घ) 493 ई० में।
उत्तर:
(ख) 428 ई० में

28. रोमन समाज कितनी श्रेणियों में विभाजित था ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

29. निम्नलिखित में से कौन रोमन साम्राज्य का प्रसिद्ध इतिहासकार था ?
(क) टैसिटस
(ख) अल्बरुनी
(ग) मार्कोपोलो
(घ) जूलियस सीज़र।
उत्तर:
(क) टैसिटस

30. रोमन समाज में स्त्रियों को निम्नलिखित में से कौन-सा अधिकार प्राप्त था ?
(क) शिक्षा का अधिकार
(ख) संपत्ति का अधिकार
(ग) तलाक का अधिकार
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

31. सेंट ऑगस्टीन (St. Augustine) कहाँ का महान् बिशप था ?
(क) दक्षिणी अफ्रीका
(ख) उत्तरी अफ्रीका
(ग) जर्मनी
(घ) फ्राँस।
उत्तर:
(ख) उत्तरी अफ्रीका

32. रोमन साम्राज्य का पोम्पई नगर कब ज्वालामुखी फटने से दफ़न हो गया था ?
(क) 71 ई० में
(ख) 75 ई० में
(ग) 79 ई० में
(घ) 89 ई० में।
उत्तर:
(ग) 79 ई० में

33. निम्नलिखित में से कहाँ कॉप्टिक भाषा बोली जाती थी ?
(क) उत्तरी अफ्रीका में
(ख) स्पेन में
(ग) मिस्र में
(घ) जर्मनी में।
उत्तर:
(ग) मिस्र में

34. निम्नलिखित में से कौन-सी भाषा स्पेन में बोली जाती थी ?
(क) कॉप्टिक
(ख) बरबर
(ग) कैल्टिक
(घ) जर्मन।
उत्तर:
(ग) कैल्टिक

35. रोमन साम्राज्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
(क) कृषि
(ख) उद्योग
(ग) व्यापार
(घ) पशु-पालन।।
उत्तर:
(क) कृषि

36. रोमन साम्राज्य के किस प्रदेश में बड़ी संख्या में भेड़-बकरियाँ पाली जाती थीं ?
(क) नुमीडिया
(ख) गैलिली
(ग) बाइजैक्यिम
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) नुमीडिया

37. मैपालिया से आपका क्या अभिप्राय है ?
(क) ये अवन आकार की झोंपड़ियाँ थीं
(ख) ये पहाड़ों की चोटियों पर बसे हुए गाँव थे
(ग) ये रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध उद्योग थे
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) ये अवन आकार की झोंपड़ियाँ थीं

38. कैस्टेला किसे कहा जाता था ?
(क) रोमन साम्राज्य के प्रांतों को
(ख) रोमन साम्राज्य के पहाड़ों पर बसे हुए गाँवों को
(ग) रोमन साम्राज्य की प्रमुख फ़सल को
(घ) रोमन साम्राज्य के प्रमुख सिक्के को।
उत्तर:
(ख) रोमन साम्राज्य के पहाड़ों पर बसे हुए गाँवों को

39. रोमन साम्राज्य में जैतून का तेल जिन कंटेनरों में ले जाया जाता था उन्हें कहा जाता था
(क) ड्रेसल 10
(ख) ड्रेसल 20
(ग) एम्फोरा
(घ) मोंटी टेस्टैकियो।
उत्तर:
(ख) ड्रेसल 20

40. निम्नलिखित में से किस देश के साथ रोमन साम्राज्य का व्यापार चलता था ?
(क) उत्तरी अफ्रीका
(ख) मिस्त्र
(ग) सीरिया
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

41. निम्नलिखित में से किस लेखक ने रोमन साम्राज्य के श्रमिकों की दयनीय दशा का वर्णन किया है ?
(क) कोलूमेल्ला
(ख) ऐनस्टैसियस
(ग) गिब्बन
(घ) जे०एम० राबर्टस।
उत्तर:
(क) कोलूमेल्ला

42. रोमन साम्राज्य के किस शासक ने श्रमिकों को ऊँचे वेतन देकर पूर्वी सीमांत क्षेत्र में दारा शहर का निर्माण करवाया ?
(क) ऑगस्ट्स
(ख) कांस्टैनटाइन
(ग) ऐनस्टैसियस
(घ) जस्टीनियन।
उत्तर:
(ग) ऐनस्टैसियस

43. रोमन साम्राज्य में किस शासक ने सोने की मुद्रा का प्रचलन किया ?
(क) कांस्टैनटाइन
(ख) जस्टीनियन
(ग) गैलीनस
(घ) ऑगस्ट्स
उत्तर:
(क) कांस्टैनटाइन

44. रोमन साम्राज्य द्वारा चाँदी की मुद्रा का प्रचलन क्यों बंद किया गया था ?
(क) क्योंकि चाँदी के आभूषणों की माँग बहुत बढ़ गई थी
(ख) क्योंकि चाँदी का विदेशों में निर्यात किया जाने लगा था
(ग) क्योंकि स्पेन में चाँदी की खानें खत्म हो गई थीं
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ग) क्योंकि स्पेन में चाँदी की खानें खत्म हो गई थीं

45. रोमन लोगों का सबसे बड़ा देवता कौन था ?
(क) जूपिटर
(ख) मॉर्स
(ग) जूनो
(घ) मिनर्वा
उत्तर:
(क) जूपिटर

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

46. रोमन लोगों की प्रमुख देवी कौन थी ?
(क) इसिस
(ख) डायना
(ग) जूनो
(घ) मिनर्वा।
उत्तर:
(ग) जूनो

47. निम्नलिखित में से कौन-सा धर्म रोमन सैनिकों में लोकप्रिय था ?
(क) मिथ्र धर्म
(ख) ईसाई धर्म
(ग) यहूदी धर्म
(घ) सिख धर्म।
उत्तर:
(क) मिथ्र धर्म

48. यहूदी धर्म का संस्थापक कौन था ?
(क) पैगंबर मूसा
(ख) हज़रत मुहम्मद
(ग) ईसा मसीह
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) पैगंबर मूसा

49. ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक क्या कहलाती है ?
(क) तोरा
(ख) गीता
(ग) बाईबल
(घ) गुरु ग्रंथ साहिब जी।
उत्तर:
(ग) बाईबल

तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य HBSE 11th Class History Notes

→ प्राचीनकाल में रोमन साम्राज्य तीन महाद्वीपों यूरोप, पश्चिमी एशिया भाव उर्वर अर्द्धचंद्राकार क्षेत्र (Fertile Crescent) तथा उत्तरी अफ्रीका में फैला हुआ था। उस समय इस साम्राज्य में यद्यपि अनेक भाषाएँ बोली जाती थी किंतु प्रशासन द्वारा केवल लातीनी (Latin) एवं यूनानी (Greek) भाषाओं का प्रयोग किया जाता था।

→ रोमन साम्राज्य का अपने पड़ोसी साम्राज्य ईरान के साथ एक दीर्घकालीन संघर्ष चलता रहा था। ईरान में 224 ई० में ससानी राजवंश की स्थापना हुई थी। उस समय रोमन साम्राज्य एवं ईरान के मध्य फ़रात नदी बहा करती थी। रोमन साम्राज्य की उत्तरी सीमा का निर्धारण दो प्रसिद्ध नदियों राइन एवं डेन्यूब द्वारा होता था।

→ इसकी दक्षिणी सीमा का निर्धारण सहारा नामक विशाल रेगिस्तान द्वारा होता था। भूमध्यसागर को रोमन साम्राज्य का हृदय कहा जाता था।

→ रोमन साम्राज्य में गणतंत्र (Republic) की स्थापना 509 ई० पू० में हुई थी। यह 27 ई० पू० तक चला। 27 ई० पू० में जूलियस सीज़र के दत्तक पुत्र ऑक्टेवियन ने जो ऑगस्ट्स के नाम से प्रसिद्ध हुआ सत्ता संभाली। उसके राज्य को प्रिंसिपेट (Principate) कहा जाता था। उसने 14 ई० तक शासन किया। उसके शासनकाल में रोमन साम्राज्य ने सर्वपक्षीय प्रगति की। उसने सैनेट के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए। उसने रोमन सेना को शक्तिशाली बनाया।

→ उसने अनेक प्रशासनिक, आर्थिक, धार्मिक एवं नैतिक सुधार किए। उसके शासनकाल में कला तथा साहित्य के क्षेत्रों में भी अद्वितीय प्रगति हुई। लिवि, वर्जिल, ओविड तथा होरेस जैसे लेखकों ने साहित्य के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया। निस्संदेह ऑगस्ट्स का शासनकाल रोमन साम्राज्य का स्वर्ण काल था।

→ ऑगस्ट्स के पश्चात् टिबेरियस ने 14 से 37 ई० तक शासन किया। वह एक अयोग्य शासक प्रमाणित हुआ। नीरो (54-68 ई०) रोमन साम्राज्य का सबसे अत्याचारी शासक प्रमाणित हुआ। उसने अपने शासनकाल में बड़ी संख्या में लोगों की हत्या करवा दी थी।

→ बाजान (98-117 ई०) रोमन साम्राज्य का एक प्रसिद्ध सम्राट् था। उसने दासिया, अरमीनिया, असीरिया, मेसोपोटामिया तथा पार्थियन राजधानी टेसीफुन पर अधिकार कर रोमन साम्राज्य का विस्तार किया।

→ उसने अनेक प्रशंसनीय सुधार भी लागू किए। उसके पश्चात् तीसरी शताब्दी तक हैड्रियन (117 138 ई०), मार्क्स आरेलियस (161 -180 ई०), सेप्टिमियस सेवेरस (193 -211 ई०) तथा गैलीनस (253-268 ई०) नामक महत्त्वपूर्ण शासकों ने शासन किया।

→ तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य को सबसे भयंकर संकट का सामना करना पड़ा। ससानी वंश के शासक शापुर प्रथम ने पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी एंटिओक पर कब्जा कर लिया था। इस काल में जर्मन मूल की अनेक जातियों ने अपने आक्रमणों के कारण रोमन साम्राज्य को गहरा आघात पहुँचाया। इस समय रोमन साम्राज्य राजनीतिक पक्ष से भी बहुत कमजोर हो चुका था।

→ केवल 47 वर्षों के दौरान वहाँ 25 सम्राट सिंहासन पर बैठे। रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता के कारण वहाँ विद्रोह एवं लूटमार एक सामान्य बात हो गई थी। वहाँ फैले भयानक अकालों एवं प्लेग ने स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया था।

→ सम्राट् डायोक्लीशियन ने अपने शासनकाल (284-305 ई०) के दौरान रोमन साम्राज्य के गौरव को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से अनेक प्रशंसनीय पग उठाए। उसने प्रशासन की कुशलता के उद्देश्य से 285 ई० में रोमन साम्राज्य को दो भागों में विभाजित किया।

→ उसने निकोमेडिया को पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी घोषित किया। कांस्टैनटाइन परवर्ती पुराकाल के सम्राटों में सर्वाधिक प्रसिद्ध था। उसने 306 ई० से 337 ई० तक शासन किया। उसने रोमन साम्राज्य की आर्थिक दशा को सुदृढ़ बनाया।

→ इस उद्देश्य से उसने यातायात के साधनों, उद्योगों एवं विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित किया। उसने सॉलिडस नामक सोने की मुद्रा चलाई। उसने 313 ई० में ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का राज्य धर्म घोषित किया। उसने 330 ई० में कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की राजधानी बनाया।

→ निस्संदेह रोमन साम्राज्य के गौरव को स्थापित करने में उसने उल्लेखनीय योगदान दिया। बाद में अनेक कारणों से रोमन साम्राज्य का पतन हो गया। रोमन समाज तीन श्रेणियों में विभाजित था। प्रथम श्रेणी में अभिजात वर्ग के लोग सम्मिलित थे।

→ वे बहत ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करते थे। मध्य श्रेणी में सैनिक, व्यापारी एवं किसान सम्मिलित थे। वे भी अच्छा जीवन व्यतीत करते थे। रोमन समाज का अधिकाँश वर्ग निम्नतर श्रेणी से संबंधित था। इसमें मज़दूर एवं दास सम्मिलित थे। वे अधिक मेहनत के बावजूद नरक समान जीवन व्यतीत करते थे। उस समय रोमन समाज में एकल परिवार प्रणाली प्रचलित थी। परिवार में पत्र का होना आवश्यक समझा जाता था।

→ उस समय रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी। वे शिक्षित होती थीं। उन्हें संपत्ति का अधिकार प्राप्त था। रोम के लोग आर्थिक पक्ष से एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे। इसका कारण यह था कि उस समय कृषि, उद्योग एवं व्यापार काफी उन्नत थे। उस समय रोम के लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।

→ जूपिटर उनका प्रमुख देवता था। उस समय रोमन लोग अपने सम्राट की उपासना भी करते थे। उस समय रोमन साम्राज्य में मिथ्र धर्म एवं यहूदी धर्म प्रचलित थे। ईसाई धर्म का उत्थान इस काल की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। दास प्रथा का रोमन समाज में व्यापक प्रचलन था।

→ ऑगस्ट्स के शासनकाल में कुल 75 लाख की जनसंख्या में 30 लाख दास थे। उस समय अमीर लोग दास रखना अपनी एक शान समझते थे। उस समय युद्धबंदियों को दास बनाया जाता था। कुछ लोग ग़रीबी के कारण अपने बच्चों को दास के रूप में बेच देते थे।

→ रोमन समाज में स्त्री दासों की संख्या बहुत अधिक थी। पुरुष उन्हें केवल एक विलासिता की वस्तु समझते थे। दासों के मालिक अपने दासों के साथ अमानुषिक व्यवहार करते थे। अनेक बार दास बाध्य होकर विद्रोह भी कर देते थे। रोमन सम्राटों हैड्रियन, मार्क्स आरेलियस, कांस्टैनटाइन एवं जस्टीनियन ने दास प्रथा का अंत करने के प्रयास किए। दास प्रथा के रोमन साम्राज्य पर दूरगामी प्रभाव पड़े। रोमन साम्राज्य के इतिहास की जानकारी के लिए हमारे पास अनेक प्रकार के स्रोत उपलब्ध हैं।

→ इन स्रोतों को तीन वर्गों-पाठ्य सामग्री (texts), दस्तावेज (documents) एवं भौतिक अवशेष (material remains) में विभाजित किया जाता है। पाठ्य स्रोतों में समकालीन व्यक्तियों द्वारा लिखा गया उस काल का इतिहास सम्मिलित था। इसे वर्ष वृत्तांत (Annals) कहा जाता था क्योंकि यह प्रत्येक वर्ष लिखा जाता था। इसके अतिरिक्त इसमें पत्र, व्याख्यान (speeches), प्रवचन (sermons) एवं कानून आदि भी सम्मिलित थे।

→ दस्तावेजी स्रोत मुख्य रूप से पैपाइरस पेड़ के पत्तों पर पाँडुलिपियों के रूप में मिलते हैं। इन्हें लिखने वाले विद्वानों को पैपाइरोलोजिस्ट (papyrologists) अथवा पैपाइरस शास्त्री कहा जाता है। पैपाइरस एक प्रकार का पौधा था जो मिस्र में नील नदी के किनारे बड़ी मात्रा में उपलब्ध था। भौतिक अवशेषों में भवन, स्मारक, सिक्के, बर्तन आदि सम्मिलित हैं।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण Textbook Exercise Questions, and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

HBSE 10th Class Science हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन से समूहों में केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ हैं?
(a) घास, पुष्प तथा चमड़ा
(b) घास, लकड़ी तथा प्लास्टिक
(c) फलों के छिलके, केक एवं नीबू का रस
(d) केक, लकड़ी एवं घास।
उत्तर-(c) एवं (d)।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन आहार श्रृंखला का निर्माण करते हैं?
(a) घास, गेहूँ तथा आम
(b) घास, बकरी तथा मानव
(c) बकरी, गाय तथा हाथी
(d) घास, मछली तथा बकरी
उत्तर-
(b) घास, बकरी तथा मानव।

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन पर्यावरण-मित्र व्यवहार कहलाते हैं?
(a) बाजार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना।
(b) कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना।
(c) माँ द्वारा स्कूटर विद्यालय छोड़ने की बजाय तुम्हारा विद्यालय तक पैदल जाना।
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डाले)?
उत्तर-
एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर देने से पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा। प्रकृति में सभी आहार श्रृंखलाएँ अनेक कड़ियों से मिलकर बनी हैं। इसकी प्रत्येक कड़ी एक पोषी स्तर कहलाती है। यदि आहार श्रृंखला की किसी भी कड़ी (पोषी स्तर) को समाप्त कर दें तो उससे पहले के पोषी स्तर में जीवों की संख्या अत्यधिक बढ़ जाएगी और उसके बाद के पोषी स्तर के लिए भोजन अनुपलब्ध होने के कारण संख्या घट जाएगी। उदाहरण के लिए यदि हम प्रथम पोषी स्तर (हरी घास) को नष्ट कर दें तो इन पर निर्भर करने वाले सभी जीव भूखे मर जाएँगे।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

प्रश्न 5.
क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलगअलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है ?
उत्तर-
नहीं, यदि एक पोषी स्तर के जीवों को नष्ट कर दिया जाए तो पहले तथा बाद के पोषी स्तरों में आने वाले जीवधारी प्रभावित होंगे और पहले तीव्रता से तत्पश्चात् धीमी गति से सभी पोषी स्तर प्रभावित होंगे। किसी भी पोषी स्तर (trophic level) के सभी जीवधारी पारितंत्र में बिना किसी हानि के अथवा क्षति के समाप्त नहीं होते।

प्रश्न 6.
जैविक आवर्धन (Biological Magnification) क्या है ? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैव आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होगा?
उत्तर-
फसलों में अनेक रसायनों जैसे-कीटनाशी, पीड़कनाशी, शाकना ी तथा उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। इनका कुछ भाग मृदा में मिल जाता है जो पौधों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है. जबकि इनका कछ भाग वर्षा जल के साथ घुल कर जलाशयों में चला जाता है। जलीय पौधे इन्हें अवशोषित करते हैं जिससे यह खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं। ये रसायन अजैव निम्नीकरणीय होते हैं जो आहार श्रृंखला के विभिन्न पोषीस्तरों में संचित होते जाते हैं, इस प्रक्रम को जैव आवर्धन कहते हैं। हाँ, विभिन्न पोषी स्तरों में रसायनों की सान्द्रता भिन्न-भिन्न होती है। जैसे-जैसे आहार श्रृंखला की श्रेणी बढ़ती जाती है रसायनों की सांद्रता में भी अधिकता होती रहती है और उसका प्रभाव भी बढ़ता जाता है।

प्रश्न 7.
हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं ? .
उत्तर-
हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों जैसे-प्लास्टिक, चमड़ा, काँच, डी. डी. टी. आदि से युक्त कचरे से अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं-

  • प्लास्टिक जैसे पदार्थों को निगल लेने से शाकाहारी जन्तुओं की मृत्यु हो सकती है।
  • नाले-नालियों में अवरोध उत्पन्न होता है।
  • मृदा प्रदूषण बढ़ता है।
  • जीवधारियों में जैविक आवर्धन होता है।
  • जल एवं वायु प्रदूषण बढ़ता है।
  • पर्यावरण अस्वच्छ होता है।
  • पारिस्थितिक संतुलन में अवरोध उत्पन्न होता है।
  • भूमि की उत्पादकता कम होती है।

प्रश्न 8.
यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय ही, तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-
यदि हमारे द्वारा (उत्पादित) सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो निपटान आसानी से कर दिया जाएगा। जैव निम्नीकरणीय पदार्थ सरलता से सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित कर दिए जाते हैं। अतः इनसे हमारे पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

प्रश्न 9.
ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है ? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं ? (CBSE 2016)
उत्तर-
ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है। यह सूर्य से आने वाले हानिकारक विकिरण को सोख लेती है। यह विकिरण हमारे शरीर में विभिन्न व्याधियों जैसे-कैंसर, त्वचा रोग, आँखों के रोग आदि उत्पन्न कर सकता है। रेफ्रिजरेशन वक्स, एरोसोल, जेट यानों आदि से उत्सर्जित रसायन जैसे-क्लोरोफ्लुओरो कार्बन्स (CFCs) ओजोन परत का क्षरण करते हैं जिससे सूर्य की पराबैगनी किरणों (UV-rays) के पृथ्वी पर आने की सम्भावना बढ़ रही है अतः ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिन्ता का विषय है।

ओजोन परत की क्षति को रोकने के लिए 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) में सर्वसम्मति से यह पारित हुआ कि क्लोरोफ्लुओरो कार्बन का उत्पादन 1986 के स्तर पर सीमित रखा जाए। मांट्रियल प्रोटोकॉल में 1987 में यह पारित हुआ कि 1998 तक इसके प्रयोग में 50% तक की कमी लायी जाए। धीरे-धीरे सभी देश इस समस्या से निपटने के लिए अग्रसर हो रहे हैं।

HBSE 10th Class Science हमारा पर्यावरण InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 292)

प्रश्न 1.
पोषी-स्तर क्या है? एक आहार श्रृंखला का उदाहरण दीजिए तथा इसमें विभिन्न पोषी स्तर बताइए। (RBSE 2016) (नमूना प्रश्न पत्र 2012)
उत्तर-
पोषी-स्तर (Trophic Level) हरे पौधे सौर ऊर्जा की सहायता से अपना भोजन बनाते हैं। इन पौधों को शाकाहारी प्राणियों द्वारा खाया जाता है जिन्हें मांसाहारी प्राणियों द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार से खाद्य के आहार के अनुसार विभिन्न प्राणियों में एक श्रृंखला निर्मित होती जाती है जिसे आहार श्रृंखला कहते है। आहार श्रृंखला की प्रत्येक कड़ी पोषी स्तर कहलाती है। एक आहार श्रृंखला नीचे दी गई है-
घास → कीट → मेंढ़क → सर्प → बाज

उपरोक्त आहार श्रृंखला में पाँच पोषी स्तर हैं –

  • प्रथम पोषी स्तर घास है जो कि स्वयंपोषी है और उत्पादक कहलाती है।
  • द्वितीय पोषी स्तर कीट है जो शाकाहारी है और प्राथमिक उपभोक्ता कहलाता है।
  • तृतीय पोषी स्तर मेंढ़क है जो मांसाहारी है और द्वितीयक उपभोक्ता कहलाता है।
  • चतुर्थ पोषी स्तर सर्प है जो मांसाहारी है और तृतीयक उपभोक्ता कहलाता है।
  • पंचम पोषी स्तर बाज़ है जो मांसाहारी है और चतुर्थ उपभोक्ता कहलाता है।

प्रश्न 2.
पारितंत्र में अपमार्जकों की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
पारितंत्र में अपमार्जकों (scavengers) का प्रमुख स्थान है। जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीव अपमार्जकों का कार्य करते हैं। ये पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं के मृत शरीरों पर आक्रमण कर जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल पदार्थों में बदल देते हैं। इसी प्रकार कचरा जैसे- सब्जियों एवं फलों के छिलके, जन्तुओं के मल-मूत्र, पौधों के सड़े-गले भाग अपमार्जकों द्वारा ही विघटित कर दिए जाते हैं। इस प्रकार पदार्थों के पुनः चक्रण में अपमार्जक सहायता करते हैं और वातावरण को स्वच्छ रखते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 295)

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय होते हैं तथा कुछ अजैव-निम्नीकरणीय ?
उत्तर-
ऐसे अपशिष्ट पदार्थ जो सूक्ष्म जीवधारियों द्वारा अपघटित होकर अपेक्षाकृत सरल एवं अहानिकारक पदार्थों में बदल दिए जाते हैं, जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण के लिए शाक-सब्जियों, फलों आदि के अवशेष तथा मल-मूत्र आदि पदार्थों को सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित कर दिया जाता है। कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो इन सूक्ष्म जीव धारियों द्वारा अपघटित नहीं किये जा सकते हैं। ये लम्बे समय तक प्रकृति में बने रहते हैं। यह पदार्थ अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते हैं जैसे-प्लास्टिक, पॉलीथीन, काँच, डी. डी. टी. आदि।

प्रश्न 2.
ऐसे दो तरीके सुझाइए जिनमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर-
जैव निम्नीकरणीय पदार्थ निम्न प्रकार से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं-

  • जैव निम्नीकरणीय पदार्थों के सूक्ष्म जीवों द्वारा विघटन से मुक्त विषाक्त एवं दुर्गन्धमय गैसें पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं।
  • कार्बनिक जैव निम्नीकरणीय पदार्थों की अधिकता से ऑक्सीजन की कमी हो जाने से सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। इसके फलस्वरूप अपघटन क्रिया प्रभावित होती है और पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।

प्रश्न 3.
ऐसे दो तरीके बताइए जिनमें अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर-
अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ निम्न प्रकार से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं-

  • अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ लम्बे समय तक पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। ये पदार्थ विभिन्न पदार्थों के चक्रण में रुकावट उत्पन्न करते हैं।
  • अनेक कीटनाशक तथा पीड़कनाशक रसायन खाद्य श्रृंखला के माध्यम से जीवधारियों तथा मनुष्य के शरीर में पहुँचकर उसे क्षति पहुचाते हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 296)

प्रश्न 1.
ओजोन क्या है तथा यह किसी पारितंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ? (CBSE 2016)
उत्तर-
ओजोन एक गैस है जिसका अणुसूत्र ‘o,’ है तथा इसका प्रत्येक अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनता है। ओजोन गैस की परत वायुमंडल के समताप मण्डल में पायी जाती है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को रोकती है। अतः पृथ्वी के जीवों को पराबैंगनी किरणों के घातक प्रभाव से बचाती है। पराबैंगनी किरणें ऑक्सीजन अणुओं को विघटित करके स्वतंत्र ऑक्सीजन (Nascent Oxygen; O) परमाणु बनाती हैं। ऑक्सीजन के ये स्वतंत्र परमाणु संयुक्त होकर ओजोन बनाते हैं।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण 1
यदि वायुमण्डल में ओजोन परत नहीं होती तो हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच जाती और मानव सहित विभिन्न जीवधारियों में घातक रोग जैसे कैंसर, आँख के रोग आदि उत्पन्न करती।

प्रश्न 2.
आप कचरा निपटान की समस्या कम करने में क्या योगदान कर सकते हैं ?
उत्तर-
कचरा निपटान की समस्या कम करने में हम निम्नलिखित योगदान कर सकते हैं-

  • हमें जैव निम्नीकरणीय तथा अजैव निम्नीकरणीय कचरे को अलग-अलग कर लेना चाहिए। अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों को पुनः चक्रण हेतु कारखाने भेज देना चाहिए जिससे इन्हें पुनः प्रयोग में लाया जा सके।
  • जैव निम्नीकरणीय पदार्थों का प्रयोग ह्यूमस या खाद बनाने के लिए करना चाहिए जिससे पौधों को उच्च कोटि की खाद उपलब्ध हो सके।

HBSE 10th Class Science हमारा पर्यावरण InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 15.1. (पा. पु. पृ. सं. 289)

प्रश्न 1.
जल जीवशाला बनाते समय हमें किन बातों का ध्यान रखना होगा ?
उत्तर-
मछलियों को तैरने के लिए स्थान, जल, ऑक्सीजन एवं भोजन।

प्रश्न 2.
यदि हम इसमें कुछ पौधे लगा दें तो यह एक स्व निर्वाह तंत्र बन जाएगा। क्या आप सोच सकते हैं कि यह कैसे होता है ?
उत्तर-
पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में 02 निकाल कर जल को स्वच्छ बनाते रहेंगे तथा श्वसन में छोड़ी गई CO2, को भोजन बनाने में काम लेते रहेंगे।

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प्रश्न 3.
क्या हम जल जीवशाला बनाने के उपरान्त इसे ऐसे ही छोड़ सकते हैं ? कभी-कभी इसकी सफाई की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
नहीं, हमें जलजीवशाला की समय-समय पर देख-रेख करनी होगी। इसमें जीवाणु उत्पन्न हो सकते हैं जिन्हें हटाने के लिए कभी-कभी जल भी बदलना होगा।

प्रश्न 4.
क्या हमें इसी प्रकार तालाबों एवं झीलों की सफाई भी करनी चाहिए ? क्यों और क्यों नहीं ?
उत्तर-
तालाबों एवं झीलों की भी यदि सम्भव हो तो सफाई करनी चाहिए, क्योंकि तालाबों एवं झीलों में सुपोषण (eutrophication) की संभावना बनी रहती है।

क्रियाकलाप 15.2. (पा. पु. पृ. सं. 289)

प्रश्न 1.
जल जीवशाला बनाते समय क्या आपने इस बात का ध्यान रखा कि ऐसे जन्तुओं को साथ न रखें जो दूसरों को खा जाएँ।
उत्तर-
माँसाहारी मछलियाँ अन्य मछलियों को खा जाएँगी। कृत्रिम पारितंत्र में वे अपनी वंश वृद्धि भी नहीं कर सकती हैं।

प्रश्न 2.
समूह बनाइए तथा चर्चा करें कि उपर्युक्त समूह एक दूसरे पर निर्भर करते हैं?
उत्तर-
मछलियाँ भोजन खाती हैं। उत्सर्जन करती हैं जिससे जलीय पादपों और काई का पोषण होता है और वे मछलियों का भोजन बनते हैं। इससे वे एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

प्रश्न 3.
जलीय जीवों के नाम उसी क्रम में लिखिए जिसमें एक जीव दूसरे जीव को खाता है तथा एक ही श्रृंखला की स्थापना कीजिए जिसमें कम से कम तीन चरण हों।
उत्तर-
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प्रश्न 4.
क्या आप किसी एक समूह को सबसे अधिक महत्व का मानते हैं? क्यों एवं क्यों नहीं ?
उत्तर-
सभी समूह महत्वपूर्ण हैं परन्तु उत्पादक (पादप) सबसे महत्वपूर्ण हैं। उनके बिना अन्य प्राणियों का जीवन संभव नहीं है।

क्रियाकलाप 15.3. (पा. पु. पृ. स. 292)

प्रश्न 1.
समाचार पत्रों में, तैयार सामग्री अथवा भोज्य पदार्थों में पीड़क एवं रसायनों की मात्रा के विषय में अक्सर ही समाचार छपते रहते हैं। कुछ राज्यों ने इन पदार्थों पर रोक भी लगा दी है। इस प्रकार की रोक के औचित्य पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
पीड़कनाशी जैव आवर्धन द्वारा आहार श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं और अन्ततः मानव में प्रवेश करके अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। विभिन्न प्रकार के शीतल पेय पदार्थों में इनकी उपस्थिति प्रायः समाचार पत्रों में छपती रहती है। अनेक राज्यों ने इनके प्रयोग पर रोक लगा दी है।

प्रश्न 2.
आपके विचार में इन खाद्य पदार्थों में पीड़क नाशियों का स्रोत क्या है ? क्या यह पीड़कनाशी अन्य खाद्य स्त्रोतों के माध्यम से हमारे शरीर में पहुँच सकते हैं ?
उत्तर-
खेत-खलिहानों में फसलों की सुरक्षा की दृष्टि से विभिन्न कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। ये फसल के माध्यम से धान्यों में पहुँच जाते हैं, साथ ही पशुओं द्वारा खाये गये ‘चारे से उनके मांस एव दूध में भी पहुँच जाते हैं। फल, सब्जियाँ, दालों आदि में भी इनकी मात्रा संचित हो जाती है। जब ये वस्तुएँ मानव द्वारा खायी जाती हैं तो मानव के शरीर में वे संचित हो जाते हैं।

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प्रश्न 3.
किन उपायों द्वारा शरीर में इन पीड़कनाशियों की मात्रा कम की जा सकती है ? चर्चा कीजिए।
उत्तर-
फलों एवं सब्जियों को भली भाँति धो लेने से, इन्हें छीलकर इस्तेमाल करने से इन कीटनाशकों से कुछ बचाव किया जा सकता है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त खाद्य पदार्थों के प्रयोग से भी कुछ बचाव हो सकता है।

क्रियाकलाप 15.4. (पा. पु. पृ. सं. 293)

प्रश्न 1.
पुस्तकालय, इंटरनेट अथवा समाचार-पत्रों से पता लगाइए कि वे कौन से रसायन हैं जो ओजोन परत की क्षीणता के लिए उत्तरदायी हैं ?
उत्तर-
क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन, नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा हाइड्रोकार्बन, ओजोन परत की क्षीणता के लिए उत्तरदायी हैं |

प्रश्न 2.
पता लगाइए इन पदार्थों के उत्पादन एवं उत्सर्जन के नियमन संबंधी कानून ओजोन क्षरण कम करने में सफल रहे हैं? क्या पिछले कुछ वर्षों में ओजोन छिद्र के आकार में कुछ परिवर्तन आया है?
उत्तर-
रेफ्रिजरेटर्स, अग्निशामकों, ऐरोसोल आदि से उत्सर्जित क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन के कारण ओजोन क्षरण होता है। मांट्रियल प्रोटोकोल के प्रयासों से पिछले कुछ वर्षों में ओजोन-छिद्र के आकार में कुछ परिवर्तन आया है।

क्रियाकलाप 15.5. (पा. पु. पृ. सं. 294)

प्रश्न 1.
वे कौनसे पदार्थ हैं जो लम्बे समय बाद भी अपरिवर्तित रहते हैं ?
उत्तर-
लंबे समय तक दूध की खाली थैलियाँ, दवा की खाली बोतलें, स्ट्रिप्स, टूटे जूते आदि अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ अपरिवर्तित रहते हैं।

प्रश्न 2.
वे कौन-से पदार्थ हैं जिनके स्वरूप व संरचना में परिवर्तन होता है ?
उत्तर-
संदूषित भोजन, सब्जियों के छिलके, चाय की उपयोग की गयी पत्तियाँ, रद्दी कागज आदि पदार्थों की संरचना में परिवर्तन होते हैं।

प्रश्न 3.
जिन पदार्थों के स्वरूप में समय के साथ परिवर्तन आया है, कौन-से पदार्थ अल्पतम समय में अतिशीघ्र परिवर्तित हुए हैं ?
उत्तर-
सबसे कम समय में सूती कपड़े, सब्जियों के छिलके, संदूषित भोजन और चाय की उपयोग की गई पत्तियों का स्वरूप परिवर्तित हुआ है।

क्रियाकलाप 15.6 (पा. पु. पृ. सं. 294)

प्रश्न 1.
अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कितने समय तक पर्यावरण में इसी रूप में बने रह सकते हैं ?
उत्तर-
जैव और अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों को अपनी संरचना बदलने में अलग-अलग समय लगता है। सूती कपड़ों के चीथड़े प्रायः 1-6 माह, कागज 2-6 माह, फलों व सब्जियों के छिलके 6 माह, ऊनी कपड़े 1-5 वर्ष, लेमिनेटेड डिब्बे 5 वर्ष, चमड़े के जूते 25-40 वर्ष, नाइलॉन/टेरीलीन 30-40 वर्ष, धातुएँ 50 से 100 वर्ष और काँच की बोतलें/बर्तन दस लाख वर्ष में अपनी संरचना बदल लेते हैं। प्लास्टिक का सामान कभी भी विकृत नहीं होता है।

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प्रश्न 2.
आजकल ‘जैव निम्नीकरणीय प्लास्टिक’ उपलब्ध हैं। इन पदार्थों के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए तथा पता लगाइए कि क्या उनसे पर्यावरण को हानि हो सकती है अथवा नहीं।
उत्तर-
गेहूँ, मकई या आलू से प्राप्त स्टार्च की लैक्टिक अम्ल से जीवाणुओं की उपस्थिति में क्रिया से जैव निम्नीकरणीय प्लास्टिक बनाया जा रहा है। इसे पॉलीलैक्टाइड (Polylactide) कहते हैं। इनसे पर्यावरण की हानि नहीं होती।

क्रियाकलाप 15.7. (पा. पु. पृ.सं. 295)

प्रश्न 1.
पता लगाइए कि घरों में उत्पादित कचरे का क्या होता है? क्या किसी स्थान से इसे एकत्र करने का कोई प्रबन्ध है?
उत्तर-
आमतौर पर घरों से उत्पन्न कूड़ा-कर्कट किसी बन्द बाल्टी में एकत्र कर लिया जाता है जिसे स्थानीय निकायों के कर्मचारी किसी बड़े स्थान पर ले जाते हैं।

प्रश्न 2.
पता लगाइए कि स्थानीय निकायों (पंचायत, नगर पालिका, आवास कल्याण समिति ‘RWA’) द्वारा इसका निपटान किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर-
स्थानीय निकाय एकत्र किए गए कचरे को गाड़ियों द्वारा व्यर्थ भूमि के भराव के लिए या खाद बनाने के लिए भेजते हैं।

प्रश्न 3.
क्या वहाँ जैव अपघटित तथा अजैव अपघटित कचरे को अलग-अलग करने की व्यवस्था है?
उत्तर-
हाँ। जैव निम्नीकरणीय कचरे को खाद निर्माण के लिए तथा अजैव निम्नीकरणीय कचरे को पुनः चक्रण हेतु भेज दिया जाता है।

प्रश्न 4.
गणना कीजिए कि एक दिन में घर से कितना कचरा उत्पादित होता है ?
उत्तर-
सामान्यतया एक दिन में घर से 2 से 3 किग्रा कचरा उत्पन्न होता है।

प्रश्न 5.
इसमें से कितना कचरा जैव निम्नीकरणीय है?
उत्तर-
इसका अधिकांश भाग जैव निम्नीकरणीय है।

प्रश्न 6.
गणना कीजिए कि कक्षा में प्रति दिन कितना कचरा उत्पादित होता है ?
उत्तर-
कक्षा में उत्पन्न कचरा प्रायः फटे कागज, धूल, बचे-खुचे खाद्य पदार्थ, पेंसिल की छीलन, चॉक के टुकड़े आदि होता है।

प्रश्न 7.
इसमें कितना कचरा जैव निम्नीकरणीय है और कितना अजैव निम्नीकरणीय है ?
उत्तर-
अधिकांश भाग जैव निम्नीकरणीय होता है।

प्रश्न 8.
इस कचरे से निपटने के कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर-
कचरे को स्कूल में बगीचे में गड्ढा खोदकर दबा देना चाहिए।

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क्रियाकलाप 15.8. (पा. पु. पृ. सं. 295)

प्रश्न 1.
पता लगाइए कि आपके क्षेत्र में मल व्ययन की क्या व्यवस्था है? क्या वहाँ इस बात का प्रबंध है कि स्थानीय जलाशय एवं जल के अन्य स्रोत जल मल से प्रभावित न हों?
उत्तर-
हमारे क्षेत्र में मल व्ययन के लिए भूमिगत सीवरेज की व्यवस्था है। सड़क के एक ओर जलवाही पाइप लाइनें हैं तो दूसरी ओर सीवेज पाइपलाइनें हैं इसलिए पेय जल मल प्रभावित नहीं हो सकता।

प्रश्न 2.
अपने क्षेत्र में पता लगाइए कि स्थानीय उद्योग अपने अपशिष्ट (कूड़े-कचरे एवं तरल अपशिष्ट) के निपटान का क्या प्रबन्ध करते हैं? क्या वहाँ इस बात का प्रबन्धन है जिससे सुनिश्चित हो सके कि इन पदार्थों से भूमि तथा जल का प्रदूषण नहीं होगा।
उत्तर-
गंदे प्रदूषित जल को साफ करके विभिन्न रासायनिक पदार्थों द्वारा उपचारित किया जाता है और नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।

क्रियाकलाप 15.9. (पा. पु. पृ. सं. 296)

प्रश्न 1.
इंटरनेट अथवा पुस्तकालय की सहायता से पता लगाएँ कि इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के निपटान के समय किन खतरनाक वस्तुओं से आपको सुरक्षापूर्वक छुटकारा पाना है। यह पदार्थ पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर-
इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में सीसा, कैडमियम, सिलिकॉन, प्लास्टिक आदि आते हैं जो मृदा को प्रदूषित करते हैं। इसका हमारे स्वास्थ्य तथा अन्य जीवों पर कुप्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 2.
पता लगाइए कि प्लास्टिक का पुनः चक्रण किस प्रकार होता है? क्या प्लास्टिक के पुनः चक्रण का पर्यावरण पर कोई प्रभाव होता है ?
उत्तर-
प्लास्टिक को पिघलाकर खिलौने, मग, कंघे, बाल्टियाँ आदि तैयार किए जाते हैं। पुनः चक्रण के समय प्लास्टिक से अनेक हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं जो वाय को प्रदूषित करती हैं। प्रदूषित वायु से हमारे स्वास्थ्य तथा अन्य जीवों पर बुरा प्रभाव होता है।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

HBSE 11th Class Geography प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. निम्नलिखित में से भारत के किस राज्य में बाढ़ अधिक आती है?
(A) बिहार
(B) पश्चिमी बंगाल
(C) असम
(D) उत्तर प्रदेश
उत्तर:
(A) बिहार

2. उत्तरांचल अब उत्तराखण्ड के किस जिले में मालपा भूस्खलन आपदा घटित हुई थी?
(A) बागेश्वर
(B) चंपावत
(C) अल्मोड़ा
(D) पिथौरागढ़
उत्तर:
(D) पिथौरागढ़

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3. निम्नलिखित में से कौन-से राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?
(A) असम
(B) पश्चिमी बंगाल
(C) केरल
(D) तमिलनाडु
उत्तर:
(D) तमिलनाडु

4. इनमें से किस नदी में मजौली नदीय द्वीप स्थित है?
(A) गंगा
(B) बह्मपुत्र
(C) गोदावरी
(D) सिंधु
उत्तर:
(B) बह्मपुत्र

5. बर्फानी तूफान किस प्रकार की प्राकृतिक आपदा है?
(A) वायुमंडलीय
(B) जलीय
(C) भौमिकी
(D) जीवमंडलीय
उत्तर:
(A) वायुमंडलीय

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
संकट किस दशा में आपदा बन जाता है?
उत्तर:
संकट से हमारा तात्पर्य उन प्राकृतिक तत्त्वों से है जिनमें जान-माल को क्षति पहुँचाने की सम्भाव्यता होती है जैसे नदी के तट पर बसे लोगों के लिए नदी एक संकट है क्योंकि नदी में कभी भी बाढ़ आ सकती है। संकट उस समय आपदा बन जाता है, जब वह अचानक उत्पन्न हो और उससे निपटने के लिए पूर्ण तैयारी भी न हो।

प्रश्न 2.
हिमालय और भारत के उत्तर:पूर्वी क्षेत्रों में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं?
उत्तर:
इसका कारण यह है कि इण्डियन प्लेट उत्तर और उत्तर:पूर्व दिशा में 1 सें०मी० खिसक रही है और यूरेशियन प्लेट से टकराकर ऊर्जा निर्मुक्त करती है जिससे इस क्षेत्र में भूकम्प आते हैं।

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प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय तूफान की उत्पत्ति के लिए कौन-सी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय तूफान की उत्पत्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. महासागरीय तल का तापमान 27°C से अधिक हो ताकि तूफान को अधिक मात्रा में आर्द्रता मिल सके जिससे बहुत बड़ी मात्रा में गुप्त ऊष्मा निर्मुक्त हो।
  2. तीव्र कॉरियालिस बल जो केन्द्र के निम्न वायुदाब को भरने न दे।
  3. क्षोभमंडल में अस्थिरता जिससे स्थानीय स्तर पर निम्न वायुदाब क्षेत्र बनते जाते हैं।

प्रश्न 4.
पूर्वी भारत की बाढ़, पश्चिमी भारत की बाढ़ से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
पूर्वी भारत की नदियों में बाढ़ बार-बार आती है जिसका कारण है वहाँ मानसून की तीव्रता, जबकि पश्चिमी भारत में बाढ़ कभी-कभी आती है। इसके अतिरिक्त पूर्वी भारत में बाढ़ अधिक विनाशकारी होती है जबकि पश्चिमी भारत की बातें कम विनाशकारी होती हैं।

प्रश्न 5.
पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी और मध्य भारत में वर्षा बहुत कम होती है जिसके कारण भूतल पर जल की कमी हो जाती है। पश्चिमी भाग मरुस्थलीय और मध्यवर्ती भाग पठारी लेने के कारण भी सूखे के स्थिति पैदा होती है। अतः कम वर्षा, अत्यधिक वाष्पीकरण और जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से सूखे की स्थिति पैदा होती है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत में भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करें और इस आपदा से निवारण के कुछ उपाय बताएँ।
उत्तर:
भारत में भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है-
1. अत्यधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र-अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलाएँ, अण्डमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर:पूर्वी क्षेत्र, भूकम्प प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव गतिविधियों वाले क्षेत्र अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र के अन्तर्गत रखे गए हैं।

2. अधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र इस क्षेत्र में हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर:पूर्वी भाग (असम को छोड़कर) शामिल किए गए हैं।

3. मध्यम और कम सुभेद्यता वाले क्षेत्र-इसके अन्तर्गत ट्रांस हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में कम वर्षा वाले क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट के व दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र शामिल हैं। जहाँ कभी-कभी भू-स्खलन होता है।

4. अन्य क्षेत्र अन्य क्षेत्रों में राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग को छोड़कर) असम और दक्षिण प्रान्तों के तटीय क्षेत्र भी भू-स्खलन युक्त हैं।

भू-स्खलन निवारण के उपाय-भू-स्खलन निवारण के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग उपाय होने चाहिएँ, जो निम्नलिखित हैं-

  • अधिक भू-स्खलन वाले क्षेत्रों में सड़क और बाँध निर्माण कार्य पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  • स्थानान्तरी कृषि वाले क्षेत्रों में (उत्तर:पूर्वी भाग) सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • जल-बहाव को कम करने के लिए बाँधों का निर्माण किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 2.
सुभेद्यता क्या है? सूखे के आधार पर भारत को प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों में विभाजित करें और इसके निवारण के उपाय बताएँ।
उत्तर:
सुभेद्यता का अर्थ सुभेद्यता किसी व्यक्ति, जन-समूह या क्षेत्र में हानि पहुँचाने का भय है जिससे वह व्यक्ति, जन-समूह या क्षेत्र प्रभावित होता है।

भारत के प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों का विभाजन-भारत को सूखे के आधार पर निम्नलिखित प्राकृतिक आपदा वाले भेद्यता क्षेत्रों में बाँटा गया है-
(1) अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-राजस्थान का अधिकांश भाग विशेषकर अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ 90 मि०मी० से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है।

(2) अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-इसमें राजस्थान का पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आन्ध्र प्रदेश के अन्दरूनी भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखण्ड के दक्षिणी भाग और ओ आते हैं।

(3) मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र इस वर्ग में राजस्थान के पूर्वी भाग, हरियाणा, उत्तर:प्रदेश के दक्षिणी जिले, कोंकण को छोड़कर महाराष्ट्र, झारखण्ड, तमिलनाडु में कोयम्बटूर पठार और आन्तरिक कर्नाटक शामिल हैं।

भारत के शेष भाग में बहुत कम या न के बराबर सूखा पड़ता है।
सूखा निवारण के उपाय-

  • सूखा निवारण के लिए सरकार द्वारा राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अनेक योजनाएँ चलानी चाहिए।
  • भूजल के भंडारों की खोज के लिए सुदूर संवेदन, उपग्रह मानचित्रण तथा भौगोलिक सूचना तंत्र जैसी विविध युक्तियों का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • लोगों के सक्रिय सहयोग से वर्षा के जल संग्रहण के समन्वित कार्यक्रम भी अपनाए जाने चाहिए।
  • जल संग्रह के लिए छोटे बाँधों का निर्माण, वन रोपण तथा सूखारोधी फसलें उगानी चाहिए।

प्रश्न 3.
किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है?
उत्तर:
विकास कार्य निम्नलिखित परिस्थितियों में संकट का कारण बन सकते हैं-

  1. मानव द्वारा ऊँचे बाँधों का निर्माण गम्भीर संकट पैदा कर सकता है। यदि इस प्रकार का बाँध टूट जाए तो निकटवर्ती क्षेत्र डूब सकता है।
  2. पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण कार्य भू-स्खलन का प्रमुख कारण बन सकता है।
  3. बड़े स्तर पर पेड़ों की कटाई से कई प्रकार के संकट पैदा होते हैं। इससे अपरदन क्रिया तेज होती है तथा पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ सकता है।
  4. नगरीकरण तथा औद्योगीकरण की बढ़ती प्रवृत्तियाँ सारे वायुमंडल को प्रदूषित कर रही हैं। उद्योगों से CO2 गैस और CFC का विसर्जन गम्भीर संकट पैदा कर सकता है।
  5. उद्योगों से अर्थव्यवस्था का विकास होता है लेकिन औद्योगिक दुर्घटना कई बार आपदा का रूप ले लेता है; जैसे भोपाल गैस कांड में काफी लोग मारे गए थे।

प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ HBSE 11th Class Geography Notes

→ आपदा (Disaster) जल, स्थल अथवा वायुमंडल में उत्पन्न होने वाली ऐसी घटना या बदलाव जिसके कुप्रभाव से विस्तृत क्षेत्र में जान-माल की हानि और पर्यावरण का अवक्रमण होता है, आपदा कहलाती है।

→ संकट (Hazards) वह वस्तु या हालात जिससे आपदा आ सकती है, संकट कहलाती है।

→ भूकम्प (Earthquake)-पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण जब धरातल का कोई भाग अकस्मात काँप उठता है तो उसे भूकम्प कहते हैं।

→ सुनामी (Tsunami) बंदरगाह पर आने वाली ऊँची लहरें अथवा भूकम्पीय लहरें।

→ भूस्खलन (Landslide)-पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी शिलाओं से लेकर काफी बढ़े भू-भाग के ढलान के नीचे की तरफ सरकने या खिसकने की क्रिया को भूस्खलन कहा जाता है।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

HBSE 10th Class Science उर्जा के स्रोत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गर्म जल प्राप्त करने के लिए हम सौर जल तापक का उपयोग किस दिन नहीं कर सकते?
(a) धूप वाले दिन
(b) बादलों वाले दिन
(c) गरम दिन
(d) पवनों (वायु) वाले दिन।
उत्तर-
(b) बादलों वाले दिन।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन जैव-मात्रा ऊर्जा स्त्रोत का उदाहरण नहीं है?
(a) लकड़ी
(b) गोबर गैस
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) कोयला।
उत्तर-
(c) नाभिकीय ऊर्जा।

प्रश्न 3.
जितने ऊर्जा स्रोत हम उपयोग में लाते हैं, उनमें से अधिकांश सौर ऊर्जा को निरूपित करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा स्रोत अन्ततः सौर ऊर्जा से व्युत्पन्न नहीं है?
(a) भूतापीय ऊर्जा
(b) पवन ऊर्जा
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) जैवमात्रा।
उत्तर-
(c) नाभिकीय ऊर्जा।

प्रश्न 4.
ऊर्जा स्त्रोत के रूप में जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना कीजिए और उनमें अन्तर लिखिए।
उत्तर-
जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना-

जीवाश्मी ईंधनसूर्य
1.यह ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत हैं।यह ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।
2. जीवाश्म ईंधन प्रदूषण फैलाते हैं।सूर्य से प्राप्त ऊर्जा में कोई प्रदूषण नहीं होता।
3. जीवाश्म ईंधन से हमारी सभी ऊर्जाओं की पूर्ति हो सकती है।सौर ऊर्जा से हमारी सभी ऊर्जा सम्बन्धी आवश्य कताओं की पूर्ति सम्भव नहीं है।
4. इससे ऊर्जा प्रत्येक समय, प्रत्येक परिस्थिति में प्राप्त की जा सकती है।बादलों से घिरे आकाश वाले दिन तथा रात्रि में सूर्य से ऊर्जा प्राप्त नहीं की जा सकती।

प्रश्न 5.
जैव मात्रा तथा ऊर्जा स्रोत के रूप में जल विद्युत की तुलना कीजिए और उनमें अन्तर लिखिए।
उत्तर-
जैव मात्रा तथा जल विद्युत की तुलना-

जैव मात्राजल विद्युत
1. जैव मात्रा से ऊर्जा प्राप्त करने के प्रक्रम में प्रदूषण फैलता है।जल विद्युत ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत है।
2. जैव मात्रा द्वारा प्राप्त ऊर्जा को सीमित स्थान में ही प्रयोग किया जा सकता है।जल विद्युत ऊर्जा को लाइनों द्वारा कहीं भी संचरित किया जा सकता है।
3. जैव मात्रा केवल सीमित मात्रा में ही ऊर्जा प्रदान कर सकती है।जल विद्युत ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से ऊर्जा निष्कर्षित करने की सीमाएँ लिखिए
(a) पवनें,
(b) तरंगें,
(c) ज्वार-भाटा।
उत्तर-
(a) पवन ऊर्जा की सीमाएँ-
1. पवन ऊर्जा के निष्कर्षण हेतु पवन ऊर्जा फार्म की स्थापना के लिये बहुत अधिक बड़े स्थान की आवश्यकता होती है।
2. हवा की तेज गति के कारण टूट-फूट और नुकसान की संभावनाएँ अधिक होती हैं।
3. पवन ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए हवा की गति 15 km/h से अधिक होनी चाहिए।

(b) तरंगों से प्राप्त ऊर्जा की सीमाएँ-समुद्र तल पर जल तरंगें तीव्र वेग से चलने वाली समुद्री हवाओं के कारण उत्पन्न होती हैं। केवल कुछ ही स्थानों पर ये तरंगें इतनी शक्तिशाली होती हैं कि उनसे सम्बद्ध ऊर्जा का दोहन किया जा सके।

(c) ज्वार-भाटा ऊर्जा की सीमाएँ-प्रत्येक ज्वार के समय जल का चढ़ाव इतना पर्याप्त नहीं हो पाता है कि उससे विद्युत उत्पन्न की जा सके। इसके अतिरिक्त समुद्र तट का केवल कुछ ही स्थान बाँध बनाने के लिए अच्छा रहता है। इस कारण से ज्वारीय ऊर्जा को विश्वसनीय ऊर्जा स्रोत के रूप में नहीं मान सकते।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 7.
ऊर्जा स्रोतों का वर्गीकरण निम्नलिखित वर्गों में किस आधार पर करेंगे
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय
(b) समाप्य तथा अक्षय क्या (a) तथा (b) के विकल्प समान हैं ?
उत्तर-
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोतयदि कोई ऊर्जा स्रोत एक बार अपनी ऊर्जा दे देने के उपरान्त पुनः ऊर्जा देने की स्थिति में आ सकता है तो ऐसे स्रोतों को नवीकरणीय स्रोतों के वर्ग में रखा जाता है उदाहरण के लिए-जल विद्युत, जैव मात्रा। – यदि कोई ऊर्जा स्रोत अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा दे चुकने के पश्चात् पुनर्जीवित नहीं हो सकता तो ऐसे स्रोत को अनवीकरणीय स्रोतों के वर्ग में रखा जाएगा। उदाहरण के लिएजीवाश्मी ईंधन।

(b) समाप्य तथा अक्षय स्रोत-यदि कोई ऊर्जा स्रोत निश्चित समय तक ऊर्जा प्रदान करने के पश्चात् समाप्त हो जाए तथा उसे पुनः प्राप्त न किया जा सके तो उसे समाप्य ऊर्जा स्रोत माना जाएगा। उदाहरण के लिए जीवाश्मी ईंधन।

यदि किसी ऊर्जा स्रोत को प्रयोग करने के पश्चात् बार-बार फिर से प्राप्त किया जा सकता हो तो उसे अक्षय ऊर्जा स्रोत कहते हैं। पवन ऊर्जा अक्षय ऊर्जा स्रोत है। ऊपर दिए गए विवरणों से स्पष्ट है कि (a) तथा (b) विकल्प एक जैसे हैं।

प्रश्न 8.
ऊर्जा के आदर्श स्त्रोत में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर-

  • पर्याप्त मात्रा में स्त्रोत द्वारा ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता होनी चाहिए।
  • सरलता से प्रयोग करने की सुविधा से संपन्न होना चाहिए।
  • यह पर्यावरण के लिए हितकारी होना चाहिए।
  • ऊर्जा स्रोत ऐसा होना चाहिए जो दीर्घकाल तक नियत दर पर ऊर्जा प्रदान कर सके।
  • यह आर्थिक रूप से सस्ता होना चाहिए।

प्रश्न 9.
सौर कुकर का उपयोग करने के क्या लाभ तथा हानियाँ हैं? क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर कुकरों की सीमित उपयोगिता है ?
उत्तर-
सौर कुकर के लाभ-
1. ईंधन का कोई खर्च नहीं होता तथा इससे प्रदूषण नहीं होता है।
2. इसमें धीमी गति से खाना पकता है इसलिए इसके द्वारा पके भोजन, से पोषक तत्व नष्ट नहीं होते।
3. इसमें निरन्तर देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है।

सौर कुकर से हानियाँ-
1. यह बहुत अधिक तापमान उत्पन्न नहीं कर सकता है।
2. यह रात्रि में, बरसात में तथा बादल वाले दिनों में काम नहीं करते।
3. सौर कुकर से खाना धीमी गति से पकता है, अतः खाना पकाने में बहुत अधिक समय लगता है।
4. यह 100°C -140°C तापमान प्राप्त करने के लिए 2-3 घंटे ले लेता है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहाँ सौर कुकरों का प्रयोग सीमित अवधि में हो पाता है। जिन क्षेत्रों में आकाश में बादल रहते हैं वहाँ यह ठीक से कार्य नहीं कर पाता है वहाँ इनकी सीमित उपयोगिता है।

प्रश्न 10.
ऊर्जा की बढ़ती माँग के पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं ? ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय लिखिए।
उत्तर-
ऊर्जा की माँग जनसंख्या वृद्धि के साथ निरंतर बढ़ती जाती है। ऊर्जा किसी प्रकार की हो उसका पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जीवाश्मी ईंधनों को जलाने पर ये वायु प्रदूषण फैलाते हैं फलस्वरूप पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। नाभिकीय रिऐक्टर से निकलने वाले कचरे द्वारा खतरनाक विकिरण उत्सर्जित होते हैं जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेय हैं।

ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय-
1. घरों में विद्युत के उपकरणों को आवश्यकता होने पर ही प्रयोग में लाया जाना चाहिए।
2. जीवाश्मी ईंधन का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। अलग-अलग वाहनों की बजाय सामूहिक वाहन (सार्वजनिक परिवहन प्रणाली) का प्रयोग करना चाहिए।

HBSE 10th Class Science उर्जा के स्रोत InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 273)

प्रश्न 1.
ऊर्जा का उत्तम स्त्रोत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ऊर्जा का उत्तम स्रोत वह स्रोत है जिसमें निम्नलिखित गुण होते हैं-

  • जिसके प्रति एकांक द्रव्यमान से अधिक ऊर्जा प्राप्त हो सके।
  • जो सरलता से उपलब्ध हो सके।
  • जिसका भण्डारण आसान व परिवहन में आसानी हो।
  • सस्ता हो।

प्रश्न 2.
उत्तम ईंधन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
उत्तम ईंधन के निम्नलिखित गुण होते हैं-

  • ईंधन के जलाने पर प्रति एकांक द्रव्यमान से अधिक ऊष्मा प्राप्त हो सके।
  • जलने पर उससे कम से कम धुआँ उत्पन्न हो। ]
  • आसानी से उपलब्ध हो।

प्रश्न 3.
यदि आप अपने भोजन को गरम करने के लिए किसी भी ऊर्जा-स्रोत का उपयोग कर सकते हैं तो आप किसका उपयोग करेंगे और क्यों?
उत्तर-
हम रसोई गैस या माइक्रोवेव ओवन का प्रयोग करेंगे क्योंकि उपर्युक्त दोनों स्रोत उपयोग में आसान हैं, आर्थिक रूप से सस्ते हैं तथा प्रदूषण भी नहीं फैलाते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 279)

प्रश्न 1.
जीवाश्मी ईधन की क्या हानियाँ हैं ?
उत्तर-
जीवाश्मी ईंधन से निम्नलिखित हानियाँ हैं-

  • पृथ्वी पर जीवाश्मी ईंधन का सीमित भण्डार उपलब्ध है अतः इनका संरक्षण आवश्यक है। .
  • जीवाश्मी ईंधन, जलाए जाने पर प्रदूषण फैलाते हैं।
  • ये अम्ल वर्षा करने में भागीदार होते हैं।

प्रश्न 2.
हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर क्यों ध्यान दे रहे हैं ?
उत्तर-
हमारे जीवन के लिए प्रत्येक कार्य में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। खाना पकाने, बिजली उत्पन्न करने, कल कारखानों को चलाने हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसे हम आजकल अधिकतर पेट्रोलियम पदार्थों से पूरा कर रहे हैं। इनका प्रयोग होने पर इन्हें पुनः उत्पन्न नहीं किया जा सकता इस कारण से इनका संरक्षण आवश्यक है। अतः हमें ऐसे नवीकरणीय स्रोतों की ओर ध्यान देना होगा जो कि आसानी से उपलब्ध हैं और जिनका असीमित तथा व्यापक उपयोग किया जा सकता है।

सौर ऊर्जा एक ऐसा स्रोत है जो विभिन्न माध्यमों से ऊर्जा प्रदान करता है। सौर ऊर्जा का सीधा प्रयोग युगों से किया जा रहा है। हमारी आवश्यकताएँ निरंतर बढ़ने के कारण उन्हें पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग में वृद्धि करनी चाहिए ताकि भविष्य में हमें ऊर्जा संकट का सामना न करना पड़े। नवीकरणीय ऊर्जा से वातावरण का प्रदूषण भी रोका जा सकता है।

प्रश्न 3.
हमारी सुविधा के लिए पवनों तथा जल ऊर्जा के पारंपरिक उपयोग में किस प्रकार सुधार किए गए हैं ?
उत्तर-
प्राचीनकाल में पवन ऊर्जा का उपयोग पालदार नावों को चलाने में एवं पवनचक्की की सहायता से यान्त्रिक कार्य करने के लिए किया जाता था परन्तु अन्य प्रकार की ऊर्जा की तुलना में विद्युत ऊर्जा का उपयोग सबसे अधिक सुविधाजनक है। इसलिए पवन ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाने लगा है। इसके लिए समुद्र तट के समीप के स्थानों में बहुत सी पवन चक्कियाँ एक साथ लगाकर बड़े-बड़े ऊर्जा फार्म स्थापित किये गये हैं जहाँ पर्याप्त विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है। इसी प्रकार जल ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा के रूप में प्रयोग करने के लिए पहाड़ी ढालों पर बाँध बनाकर जल को एकत्रित किया जाता है। एकत्रित जल को जनित्र की टरबाइन पर डालकर विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 285)

प्रश्न 1.
सौर कुकर के लिए कौन सा दर्पण अवतल, उत्तल अथवा समतल सर्वाधिक उपयुक्त होता है ? क्यों ?
उत्तर-
अवतल दर्पण सर्वाधिक उपयुक्त होता है क्योंकि यह अपने ऊपर गिरने वाली सम्पूर्ण सौर ऊर्जा को अपने फोकस पर सूक्ष्म बिन्दु के रूप में केन्द्रित कर देता है।

प्रश्न 2.
महासागरों से प्राप्त हो सकने वाली ऊर्जाओं
उत्तर-

  • ज्वार-भाटा की ऊर्जा का उपयोग करने के लिए बाँध बनाने योग्य स्थान सीमित हैं|
  • तरंग ऊर्जा भी केवल उन्हीं स्थानों पर उपयोग की जा सकती है जहाँ तरंगें पर्याप्त शक्तिशाली हों।
  • महासागरीय तापीय ऊर्जा के दोहन की तकनीक बहुत ही कठिन है।

प्रश्न 3.
भूतापीय ऊर्जा क्या होती है ?
उत्तर-
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में स्थित, पिघली हुई चट्टानें भूगर्भीय हलचल के कारण केन्द्रीय भाग से सतह की ओर विस्थापित हो जाती हैं तथा गर्म क्षेत्रों का निर्माण करती हैं। जब कभी भूगर्भीय जल इस प्रकार के गर्म क्षेत्रों के संपर्क में आता है तो वाष्प में बदल जाता है तथा इस जल वाष्प को पाइपों की सहायता से बाहर लाकर टरबाइन चलाकर विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। पृथ्वी के गर्भ में स्थित उच्च ताप क्षेत्रों से सम्बद्ध ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं।

प्रश्न 4.
नाभिकीय ऊर्जा का क्या महत्व है ?
उत्तर-
अन्य परम्परागत ऊर्जा स्रोत सीमित तथा शीघ्र समाप्त हो जाने वाले हैं जबकि नाभिकीय ऊर्जा बहुत लम्बे समय तक हमारी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है। जीवाश्मी ईंधन से प्राप्त ऊर्जा की तुलना में यूरेनियम के विखण्डन से बहुत अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 285)

प्रश्न 1.
क्या कोई ऊर्जा स्त्रोत प्रदूषण मुक्त हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर-
नहीं, कोई भी ऊर्जा स्रोत पूर्ण रूप से प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकता, चाहे ऊर्जा स्रोत कितना ही विकसित क्यों न हो फिर भी वह पर्यावरण को किसी न किसी प्रकार से नुकसान पहुंचाता ही है। सौर सेल को प्रायः प्रदूषण मुक्त कहते हैं परन्तु इस युक्ति के निर्माण में पर्यावरणीय क्षति होती ही है।

प्रश्न 2.
राकेट ईधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग न किया जाता रहा है ? क्या आप इसे CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन मानते हैं ? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर-
हाइड्रोजन CNG से स्वच्छ ईंधन है क्योंकि यह दहन क्रिया में CO2, को उत्पन्न नहीं करती और न ही इसका अपूर्ण दहन होता है। इसके जलने से केवल जल उत्पन्न होता है। CNG के जलने से CO2, उत्पन्न होती है जो कि ग्रीन हाऊस गैस है और पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 286)

प्रश्न 1.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप नवीकरणीय मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर-
वायु ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा एवं सागरीय ऊर्जा नवीकरणीय स्रोत हैं क्योंकि इनका प्रयोग तब तक किया जा सकता है जब तक हमारे सौर परिवार की समान परिस्थितियाँ बनी रहेंगी।

प्रश्न 2.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप समाप्य मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर-
कोयला तथा पेट्रोलियम, दोनों ऊर्जा के दो समाप्य स्रोत हैं। कोयला तथा पेट्रोलियम, दोनों के पृथ्वी पर उपलब्ध भण्डार सीमित हैं तथा जल्दी ही समाप्त हो जाने वाले हैं तथा इन्हें कभी भी पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता, अतः ये दोनों ऊर्जा के समाप्य स्रोत हैं।

HBSE 10th Class Science उर्जा के स्रोत InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 14.1 (पा. पु. पृ. सं. 272)

प्रश्न 1.
प्रातःकाल सोकर उठने से विद्यालय पहुँचने तक आप जिन ऊर्जाओं का उपयोग करते हैं उनमें से ऊर्जा के किन्हीं चार रूपों की सूची बनाइए।
उत्तर-
हम अग्रलिखित ऊर्जा का उपयोग करते हैं

  • ऊष्मीय ऊर्जा खाना पकाने के लिए।
  • घर को प्रकाशित करने के लिए प्रकाशीय ऊर्जा ।
  • साइकिल चलाने और बैग होने के लिए वेशीय ऊर्जा।
  • मित्रों को बुलाने के लिए ध्वनि ऊर्जा।

प्रश्न 2.
इन विभिन्न रूपों की ऊर्जाओं को हम कहाँ से प्राप्त करते हैं?
उत्तर-
इस विभिन्न रूपों की ऊर्जाओं के स्रोत इस प्रकार हैं-
सौर ऊर्जा – सूर्य
ऊष्मीय ऊर्जा – सूर्य,
LPG पेशीय ऊर्जा – भोजन
प्रकाश ऊर्जा – विद्युत, सूर्य

प्रश्न 3.
क्या हम इन्हें ऊर्जा का स्रोत’ कह सकते हैं ? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर-
सूर्य ऊर्जा का स्रोत है परन्तु अन्य स्रोत ऊर्जा के रूपान्तरण से प्राप्त होते हैं।

क्रियाकलाप 14.2. (पा. पु. पृ. सं. 272)

प्रश्न 1.
उन विविध विकल्पों पर विचार कीजिए जो भोजन पकाने के लिए ईंधन का चयन करते समय हमारे पास होते हैं तथा किसी ईंधन को अच्छे ईंधन की श्रेणी में रखने का प्रयास करते समय आप किन मानदंडों पर विचार करेंगे?
उत्तर-
कोयला, कोक, कैरोसीन, लकड़ी, L.P.G. ईंधन का अच्छा स्रोत होने के कारण इसका कैलोरी मान अधिक होता है। ईंधन प्रदूषण रहित, सस्ता एवं सुलभ होना चाहिए।

प्रश्न 2.
क्या तब आपकी पसंद अलग होती जब आप
(a) वन में जीवन निर्वाह कर रहे होते?
(b) किसी सुदूर पर्वतीय ग्राम अथवा छोटे द्वीप पर जीवन निर्वाह कर रहे होते ?
(c) नई दिल्ली में जीवन निर्वाह करते ?
(d) पाँच शताब्दियों पहले जीवन निर्वाह करते ?
उत्तर-
हाँ प्रत्येक स्थिति में पसंद भिन्न-भिन्न होती।
(a) वन में निर्वाह करते समय ईंधन के रूप में लकड़ी, ऊष्मा और प्रकाश के लिये सूर्य और शारीरिक ऊर्जा के लिए फलों आदि पर निर्भर करना पड़ता ।
(b) किसी पर्वतीय ग्राम अथवा छोटे द्वीप पर भी वन में जीवन निर्वाह के समान ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भर करना पड़ता।
(c) नई दिल्ली में विद्युत चलित उपकरणों एवं पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भर करते।
(d) पाँच शताब्दी पहले जीवन निर्वाह के लिये, सूर्य से प्राप्त ऊर्जा, वनों की लकड़ी आदि पर निर्भर रहते।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 3.
उपर्युक्त प्रत्येक परिस्थिति ईंधन की उपलब्धता की दृष्टि से किस प्रकार भिन्न थी ?
उत्तर-
पहले आबादी कम थी और ऊर्जा के सीमित स्रोत उपलब्ध थे। परन्तु जैसे-जैसे विकास हुआ, औद्योगिक क्रांति आई, आबादी बढ़ी, वैसे-वैस मानव ने ऊर्जा के नए स्रोतों को ढूँढना शुरू किया। आज ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों की उपलब्धता धीरे-धीरे कम हो रही है तथा गैर-परम्परागत स्त्रोतों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

क्रियाकलाप 14.3. (पा. पु. पृ. सं. 274)

प्रश्न-क्या आप देखते हैं?
उत्तर-
इस प्रयोग में हम यह देखते हैं कि भाप द्वारा पंखुड़ियाँ घूमती हैं जिससे वह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करने के लिए डायनेमो के शैफ्ट को घुमाती है जिससे बल्ब जलने लगता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत 1

क्रियाकलाप 14.4. (पा. पु. पृ. सं. 279)

प्रश्न 1.
अपने दादा-दादी अथवा अन्य वयोवृद्धों से पता लगाइए कि वे
(a) अपने विद्यालय कैसे जाते थे ?
(b) अपने बचपन में दैनिक आवश्यकताओं के लिए जल कैसे प्राप्त करते थे ?
(c) मनोरंजन कैसे करते थे ?
उत्तर-
(a) हमारे दादा-दादी अपने विद्यालय पैदल या साइकिल से जाते थे, हम बस या स्कूटर से स्कूल जाते हैं।
(b) वे पानी को कुओं व हैण्डपम्प तथा नदियों से प्राप्त करते थे। हम जल की प्राप्ति नलों से करते हैं। चूँकि ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ गयी है अतः अधिक ऊर्जा उपभुक्त हो रही है।

प्रश्न 2.
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तरों की तुलना इस प्रश्न के उत्तर से कीजिए कि “अब आप इन कार्यों को कैसे करते हैं ?”
उत्तर-
दादा दादी के युग में मनोरंजन के साधन रामलीला, लोक संगीत, रेडियो आदि थे। आधुनिक युग में मनोरंजन के अनेक साधन, जैसे—मल्टीमीडिया, कम्प्यूटर, मोबाइल, इन्टरनेट आदि मौजूद हैं।

प्रश्न 3.
क्या इन उत्तरों में कोई अन्तर है? यदि हाँ तो किस स्थिति में बाह्य स्रोतों से अधिक ऊर्जा उपभुक्त हुई।
उत्तर-
हाँ, इन उत्तरों में काफी अन्तर है। आधुनिक युग में बाह्य स्त्रोतों से अधिक ऊर्जा उपभुक्त हुई है। क्योंकि वाहनों को चलाने, जल प्राप्ति तथा मनोरंजन के लिए ऊर्जा (ईंधन) की आवश्यकता होती है।

क्रियाकलाप 14.5. (पा. पु. पृ. सं. 280)

प्रश्न 1.
दोनों फ्लास्कों को स्पर्श कीजिए। इनमें कौन तप्त है। आप इन दोनों फ्लास्कों के जल के ताप तापमापी द्वारा भी माप सकते हैं।
उत्तर-
वह फ्लास्क जिसे काले रंग से पेंट किया गया है वह तप्त है।

प्रश्न 2.
क्या आप कोई ऐसा उपाय सोच सकते है जिसके द्वारा इस ज्ञान का उपयोग आप अपने दैनिक जीवन में कर सकें।
उत्तर-
इस ज्ञान का उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में निम्न रूपों से कर सकते हैं-

  • खाना बनाने के बर्तन के आधार को काला पेंट करके।
  • जाड़ों में गहरे रंग के कपड़े पहनकर ।
  • पानी गर्म करने में।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

क्रियाकलाप 14.6. (पा. पु. पृ. सं. 281)

प्रश्न 1.
किसी सौर कुकर/अथवा सौर जल तापक की संरचना तथा कार्य प्रणाली का विशेषकर इस दृष्टि से अध्ययन कीजिए कि उसमें ऊष्मारोधन कैसे किया जाता है तथा अधिकतम ऊष्मा अवशोषण कैसे सुनिश्चित करते
उत्तर-
अधिकतम ऊष्मा अवशोषण के लिए काँच के टुकड़े का उपयोग करते हैं। सामान्य सौर कुकर से लगभग 100°C से 120°C का तापमान उत्पन्न हो सकता है। सौर कुकर
और सौर जल तापक का उपयोग रात के समय नहीं किया जा सकता है। इनसे बहुत अधिक तापमान प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
सस्ती सुलभ सामग्री का उपयोग करके किसी सौर कुकर अथवा सौर जल तापक का डिजाइन बनाकर उसकी संरचना प्राप्त करके यह जाँच कीजिए कि आपके इस निकाय में अधिकतम कितना ताप प्राप्त किया जा सकता है।
उत्तर-
सौर सेल, सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। धूप में रखे जाने पर किसी सौर सेल से 0.5 – 1.0 V तक वोल्टता विकसित होती है तथा यह लगभग 0.7 W विद्युत ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं। जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को संयोजित करते हैं तो यह व्यवस्था सौर पैनल कहलाती है जिनसे उपयोग के लिए पर्याप्त विद्युत की प्राप्ति हो जाती है। सौर सेलों का रख-रखाव सस्ता है तथा इन्हें कहीं भी स्थापित किया जा सकता है। सौर सेलों को बनाने के लिए सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है सौर सेलों के उत्पादन की प्रक्रिया बहुत महँगी है, इसे परस्पर संयोजित करके सौर पैनल बनाने में सिल्वर (चाँदी) का उपयोग होता है जिसके कारण इसकी लागत में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 3.
सौर कुकरों अथवा सौर जल तापकों के उपयोग की सीमाओं एवं विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
सौर कुकर-परावर्तक पृष्ठ अथवा श्वेत (सफेद) पृष्ठ की तुलना में काला पृष्ठ अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है। सौर कुकरों में सूर्य की किरणों को फोकसित करने के लिए दर्पणों का उपयोग किया जाता है जिससे इनका ताप . उच्च हो जाता है। सौर कुकरों में काँच की शीट का एक ढक्कन होता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत 2

ट्रैफिक सिग्नलों, परिकलकों तथा बहुत से खिलौनों में सौर सेल लगे होते हैं। अधिक महँगा होने के कारण सौर सेलों का घरेलू उपयोग अभी तक सीमित है।

क्रियाकलाप 14.7. (पा. पु. पृ. सं. 284)

प्रश्न 1.
कक्षा में इस प्रश्न पर चर्चा कीजिए कि महासागरीय तापीय ऊर्जा, पवनों तथा जैव मात्रा की ऊर्जाओं का अंतिम स्त्रोत क्या है ?
उत्तर-
इन सभी ऊर्जाओं का अंतिम स्रोत सूर्य है इसकी ऊर्जा से ही अन्य ऊर्जाओं का रूपांतरण होता है।

प्रश्न 2.
क्या इस संदर्भ में भूतापीय ऊर्जा तथा नाभिकीय ऊर्जा भिन्न है? क्यों ?
उत्तर-
भूतापीय ऊर्जा के लिए भूमिगत लावा से उत्पन्न ऊष्मा आधार है तो नाभिकीय ऊर्जा भारी नाभिक तत्वों के नाभिको के विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा का आधार है।

प्रश्न 3.
आप जल विद्युत ऊर्जा को किस श्रेणी में रखेंगे?
उत्तर-
जल विद्युत एवं तरंग ऊर्जा भी अंततः सूर्य की ऊष्मा द्वारा ही प्राप्त होते हैं।

क्रियाकलाप 14.8. (पा. पु. पृ. सं. 285)

प्रश्न-
1. विविध ऊर्जा स्त्रोतों के विषय में जानकारी एकत्र करके उसके बारे में ज्ञात कीजिए कि उसमें से प्रत्येक पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित करता है।
2. प्रत्येक ऊर्जा स्रोत के लाभ तथा हानियों पर वाद-विवाद कीजिए तथा इस आधार पर ऊर्जा का सर्वोतम स्रोत चुनिए।
उत्तर-
स्रोत द्वारा पर्यावरण का नुकसान नहीं होना चाहिए तथा सर्वोतम स्रोत उसी को माना जाना चाहिए जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो तथा उच्च स्तरीय ऊर्जा सस्ते में प्राप्त हो सके तथा उसका भंडारण संभव हो।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

क्रियाकलाप 14.9. (पा. पु. पृ. सं. 286)
प्रश्न-कक्षा में निम्नलिखित समस्याओं पर वादविवाद कीजिए –
(a) यह कहा जाता है कि अनुमानतः कोयले के भंडार आने वाले दो सौ वर्ष के लिए पर्याप्त हैं। क्या इस प्रकरण में हमें चिंता करने की आवश्यकता है कि हमारे कोयले के भंडार रिक्त होते जा रहे हैं? क्यों अथवा क्यों नहीं?
(b) ऐसा अनुमान है कि सूर्य आगामी 5 करोड़ वर्ष तक जीवित रहेगा। क्या हमें यह चिन्ता करनी चाहिए कि सौर ऊर्जा समाप्त हो रही है? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
(c) वाद-विवाद के आधार पर यह निर्णय लीजिए कि कौन सा ऊर्जा स्रोत (a) समाप्य, (b) अक्षय, (c) नवीकरणीय तथा (d) अनवीकरणीय है। प्रत्येक चयन के लिए अपना तर्क दीजिए।
उत्तर-
अध्यापक/अध्यापिकाओं की सहायता से कक्षा में वाद-विवाद कीजिए।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

HBSE 10th Class Science तत्वों का आवर्त वर्गीकरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आवर्त सारणी में बाईं से दाईं ओर जाने पर, प्रवृत्तियों के बारे में निम्न में से कौन-सा कथन असत्य है?
(a) तत्वों की धात्विक प्रकृति घटती है।
(b) संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाती है।
(c) परमाणु आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं।
(d) इसमें ऑक्साइड अधिक अम्लीय हो जाते हैं।
उत्तर-
(c) परमाणु आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं।

प्रश्न 2.
तत्व X, XCl2, सूत्र वाला एक क्लोराइड बनाता है जो एक ठोस है तथा जिसका गलनांक अधिक है। आवर्त सारणी में यह तत्व सम्भवतः किस समूह के अन्तर्गत होगा?
(a) Na
(b) Mg
(c) Al
(d) Si
उत्तर-
(b) Mg.

प्रश्न 3.
किस तत्व में
(a) दो कोश हैं तथा दोनों इलेक्ट्रॉनों से पूर्ण हैं?
(b) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 2 है?
(c) कुल तीन कोश हैं तथा संयोजकता कोश में चार इलेक्ट्रॉन हैं?
(d) कुल दो कोश हैं तथा संयोजकता कोश में तीन इलेक्ट्रॉन हैं?
(e) दूसरे कोश में पहले कोश से दोगुने इलेक्ट्रॉन हैं?
उत्तर-
(a) नीऑन (Ne)।
(b) मैग्नीशियम (Mg)।
(c) सिलिकॉन (Si)।
(d) बोरॉन (B)।
(e) कार्बन (C)।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

प्रश्न 4.
(a) आवर्त सारणी में बोरॉन के स्तम्भ के सभी तत्वों के कौन-से गुणधर्म समान हैं?
(b) आवर्त सारणी में फ्लुओरीन के स्तम्भ के सभी तत्वों के कौन-से गुणधर्म समान हैं? ।
उत्तर-
(a) बोरॉन की भाँति, आवर्त सारणी के समान स्तम्भ में सभी तत्वों के बाह्यतम कोशों में तीन इलेक्ट्रॉन होते हैं अर्थात् इनकी संयोजकता तीन होती है। सभी विद्युत के सुचालक होते हैं।
(b) फ्लुओरीन की भाँति, आवर्त सारणी के समान स्तम्भ में सभी तत्वों के बाह्यतम कोशों में सात इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा ये हैलोजेन कहलाते हैं। इन सभी की संयोजकता 1 होती है। सभी विद्युत के अचालक और भंगुर होते हैं।

प्रश्न 5.
एक परमाणु का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8,7
(a) इस तत्व की परमाणु संख्या क्या है?
(b) निम्न में किस तत्व के साथ इसकी रासायनिक समानता होगी? (परमाणु संख्या कोष्ठक में दी गई है।)
N(7) F(9) P(15) Ar (18)
उत्तर-
(a) तत्व की परमाणु संख्या 17 है।
(b) यह रासायनिक रूप से F (9) के समान होगा।

प्रश्न 6.
आवर्त सारणी में तीन तत्व A, B, तथा C की स्थिति निम्न प्रकार है –

वर्ग 16वर्ग 17
A
BC

अब बताइए कि –
(a) A धातु है या अधातु।
(b) A की अपेक्षा C अधिक अभिक्रियाशील है या कम।
(c) C का साइज B से बड़ा होगा या छोटा।
(d) तत्व A किस प्रकार के आयन, धनायन या ऋणायन बनाएगा?
उत्तर-
(a) A अधातु है।
(b) A की तुलना में C कम अभिक्रियाशील है।
(c) B की तुलना में C छोटा होगा।
(d) तत्व A ऋणायन बनाएगा।

प्रश्न 7.
नाइट्रोजन (परमाणु-संख्या 7) तथा फॉस्फोरस (परमाणु-संख्या 15) आवर्त सारणी के समूह 15 के तत्व हैं। इन दोनों तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए। इनमें से कौन-सा तत्व अधिक ऋणविद्युती होगा और क्यों?
उत्तर-
नाइट्रोजन (7) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : 2, 5 फॉस्फोरस (15) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : 2, 8, 5-नाइट्रोजन अधिक विद्युत्-ऋणात्मक होगा क्योंकि किसी समूह में ऊपर से नीचे जाने पर विद्युत ऋणात्मकता घटती है।

प्रश्न 8.
तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास का आधुनिक आवर्त सारणी में तत्व की स्थिति से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
किसी तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास आधुनिक आवर्त सारणी में इसकी स्थिति से सम्बन्धित होता है, जिन परमाणुओं के बाह्यतम कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है, उन्हें समान समूह में रखा जाता है! किसी आवर्त में बाएँ से दाएँ चलते समय संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 1 इकाई बढ़ जाती है क्योंकि परमाणु क्रमांक 1 इकाई बढ़ जाता है।

प्रश्न 9.
आधुनिक आवर्त सारणी में कैल्सियम (परमाणु-संख्या 20) के चारों ओर 12, 19, 21 तथा 38 परमाणु-संख्या वाले तत्व स्थित हैं। इनमें से किन तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म कैल्सियम के समान हैं?
उत्तर-
इन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास इस प्रकार हैं –

परमाणु संख्याइलेक्ट्रॉनिक विन्यास
122,8,2
192,8,8,1
20 (कैल्सियम)2,8,8,2
212,8,8,3
382,8, 18, 8,2

हम पाते हैं कि परमाणु संख्या 12 व 38 वाले तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास कैल्सियम से मिलते-जुलते हैं और इसलिए इनके भौतिक व रासायनिक गुणधर्म भी समान होते हैं।

प्रश्न 10.
आधुनिक आवर्त सारणी एवं मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में तत्वों की व्यवस्था की तुलना कीजिए।
उत्तर-
1. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी के समय 63 ज्ञात तत्व थे परन्तु आधुनिक आवर्त सारणी में 114 ज्ञात तत्व
2. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में कुछ तत्वों के लिए स्थान खाली छोड़ दिए गए थे जो कि उस समय ज्ञात नहीं थे परन्तु अब आधुनिक आवर्त सारणी में सभी तत्व भली-भाँति व्यवस्थित हैं।
3. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में कोबाल्ट व निकल तथा टेलुरियम व आयोडीन गलत रखे गये थे, परन्तु आधुनिक आवर्त सारणी में नियमानुसार वे सही क्रम में व्यवस्थित हैं।
4. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी का आधार द्रव्यमान है .. जबकि आधुनिक आवर्त सारणी का आधार परमाणु क्रमांक है। अत: मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में तत्व परमाणु द्रव्यमानों के वृद्धि क्रम में रखे हुए हैं, जबकि आधुनिक सारणी में तत्व परमाणु क्रमांक के वृद्धि क्रम में रखे गए हैं।
5. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में 9 ऊर्ध्वाधर स्तम्भ हैं जिन्हें समूह कहते हैं, जबकि आधुनिक आवर्त सारणी में 18 ऊर्ध्वाधर स्तम्भ हैं जिन्हें समूह कहते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

HBSE 10th Class Science तत्वों का आवर्त वर्गीकरण  InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ.सं.91)

प्रश्न 1.
क्या डॉबेराइनर के त्रिक, न्यूलैंड्स के अष्टक के स्तम्भ में भी पाए जाते हैं ? तुलना करके पता कीजिए।
उत्तर-
हाँ, डॉबेराइनर के त्रिक न्यूलैंड्स के अष्टक के स्तम्भ में भी पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए

  • त्रिक-Li, Na तथा K न्यूलैंड्स अष्टकों के ‘रे’ स्तम्भ में उपस्थित हैं।
  • त्रिक-Ca, Sr तथा Ba न्यूलैंड्स के अष्टक के ‘गा’ स्तम्भ में उपस्थित हैं।

प्रश्न 2.
डॉबेराइनर के वर्गीकरण की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर-
डॉबेराइनर के वर्गीकरण की सीमाओं के रूप में यह वर्गीकरण उस समय ज्ञात तत्वों में से केवल तीन त्रिकों को निर्धारित करने में सफल रहा। अतः यह वर्गीकरण

प्रश्न 3.
न्यूलैंड्स के अष्टक सिद्धान्त की क्या सीमाएँ
उत्तर-
न्यूलैंड्स के अष्टक नियम की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-
1. यह वर्गीकरण केवल कैल्सियम तक ही मान्य हो पाया क्योंकि कैल्सियम के बाद प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व से नहीं मिलता था। .
2. बाद में खोजे गए अनेक तत्व अष्टक नियम के अनुसार इसमें व्यवस्थित न हो सके।
3. इसमें कुछ असमान तत्वों को एक स्तर के अन्तर्गत रखा गया था। उदाहरण के लिए, कोबाल्ट तथा निकल को एक ही स्थान पर रखा गया परन्तु इन्हें फ्लुओरीन, क्लोरीन तथा ब्रोमीन के साथ एक ही स्तम्भ ‘सा’ के अन्तर्गत रखा गया है जबकि कोबाल्ट तथा निकल के गुण फ्लुओरीन, क्लोरीन तथा ब्रोमीन से सर्वथा भिन्न हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 94).

प्रश्न 1.
मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी का उपयोग कर निम्नलिखित तत्वों के ऑक्साइड के सूत्र का अनुमान दीजिए- K,C,Al, Si, Ba
उत्तर –

तत्वऑक्साइडों के सूत्र
K,K2O
CCO2
AlAl2O3
SiSiO2
BaBaO

प्रश्न 2.
गैलियम के अतिरिक्त, अब तक कौन-कौन से तत्वों का पता चला है जिसके लिए मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में खाली स्थान छोड़ दिया था? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
जर्मेनियम (Ge) तथा पोलोनियम (Po) वर्ग IVA के दो तत्व हैं। इन दोनों तत्वों के लिए भी मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में खाली स्थान छोड़ा था। इन तत्वों की बाद में खोज होने पर इनके गुणधर्म मेन्डेलीफ के बताए गुणधर्म से मिलते हैं।

प्रश्न 3.
मेन्डेलीफने अपनी आवर्त सारणी तैयार करने के लिए कौन सा मानदण्ड अपनाया?
उत्तर-
मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में तत्वों को उनके मूल गुणधर्म, परमाणु द्रव्यमान तथा रासायनिक गुणधर्मों में समानता के आधार पर व्यवस्थित किया।

प्रश्न 4.
आपके अनुसार उत्कृष्ट गैसों को अलग समूह में क्यों रखा गया?
उत्तर-
सभी तत्वों में से उत्कृष्ट गैसें, जैसे-हीलियम (He), नीऑन (Ne), आर्गन (Ar), क्रिप्टॉन (Kr) तथा जीनॉन (Xe), सबसे अधिक अक्रियाशील हैं। ये अन्य तत्वों से अभिक्रिया नहीं करते, इसलिए मेन्डेलीफ ने उन्हें अलग वर्ग में रखा जिसे उन्होंने शून्य वर्ग कहा।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 100)

प्रश्न 1.
आधुनिक आवर्त सारणी द्वारा किस प्रकार से मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी की विविध विसंगतियों को दूर किया गया?
उत्तर-
सन् 1913 में हेनरी मोजले ने बताया कि परमाणु का आधारभूत गुण परमाणु क्रमांक है न कि परमाणु भार । इसके द्वारा आधुनिक आवर्त सारणी का निर्माण किया गया तथा इस सारणी द्वारा मेन्डेलीफ की सारणी के निम्न दोषों को दूर किया गया-

  • आधुनिक आवर्त सारणी में सभी समस्थानिकों को एक ही स्थान दिया गया क्योंकि इनके परमाणु क्रमांक एकसमान होते हैं।
  • आर्गन तथा पोटैशियम की परमाणु संख्या क्रमश: 18 एवं 19 है। तत्वों की बढ़ती परमाणु संख्या के आधार पर व्यवस्थित करने पर आर्गन पहले आता है, जबकि उनके परमाणु द्रव्यमान इसके विपरीत हैं। आधुनिक आवर्त सारणी में इस दोष को दूर किया गया है।
  • सभी मृदा तत्वों को एक ही स्थान पर रखा गया है क्योंकि इनकी बाह्यतम कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

प्रश्न 2.
मैग्नीशियम की तरह रासायनिक अभिक्रियाशीलता दिखाने वाले दो तत्वों के नाम लिखिए। आपके चयन का क्या आधार है?
उत्तर-
मैग्नीशियम की तरह रासायनिक अभिक्रिया शीलता दिखाने वाले दो तत्व बेरीलियम तथा कैल्सियम हैं। . आधुनिक आवर्त सारणी के अनुसार, “जिन तत्वों का बाहरी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है उनके गुणधर्म भी समान होते हैं। मैग्नीशियम के बाहरी कोश में 2 इलेक्ट्रॉन हैं अत: वे सभी तत्व जिनके बाहरी कोश में 2 इलेक्ट्रॉन होंगे Mg के समान ही गुणधर्म प्रदर्शित करेंगे।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रकृति वाले तत्वों के नाम बताइए –
(a) तीन तत्व जिनके सबसे बाहरी कोश में एक इलेक्ट्रॉन उपस्थित हो।
(b) दो तत्व जिनके सबसे बाहरी कोश में दो इलेक्ट्रॉन उपस्थित हों।
(c) तीन तत्व जिनका बाहरी कोश पूर्ण हो।
उत्तर-
(a) लीथियम, सोडियम, पोटैशियम।
(b) मैग्नीशियम, कैल्सियम।
(c) हीलियम, नीऑन, आर्गन।

प्रश्न 4.
(a) लीथियम, सोडियम, पोटैशियम ये सभी धातुएँ जल से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करती हैं। क्या इन तत्वों के परमाणुओं में कोई समानता है?
(b) हीलियम एक अक्रियाशील गैस है जबकि नीऑन की अभिक्रियाशीलता अत्यन्त कम है। इनके परमाणुओं में कोई समानता है?
उत्तर-
(a) लीथियम, सोडियम, पोटैशियम समूह से सम्बन्धित हैं। इन सभी तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोश में एक इलेक्ट्रॉन होता है।
(b) हीलियम तथा नीऑन दोनों अक्रिय गैसें हैं तथा इनके बाह्यतम कक्ष पूर्ण हैं।

प्रश्न 5.
आधुनिक आवर्त सारणी में पहले दस तत्वों में कौन-सी धातुएँ हैं?
उत्तर-
पहले दस तत्व हैं-
H. He, Li. Be: B.C, N.O. F तथा Ne इन सभी तत्वों में से धातु हैं – Li तथा Be

प्रश्न 6.
आवर्त सारणी में इनके स्थान के आधार पर इनमें से किस तत्व में सबसे अधिक धात्विक अभिलक्षण की विशेषता है?
Ga Ge As Se Be
उत्तर-
Ga; चूँकि धात्विक गुण बाएँ से दाएँ घटता है। दिए गए तत्वों की आवर्त सारणी में ऐसी स्थिति के अनुसार Ga धातु है, Ge तथा AS उपधातु हैं तथा Se, Be अधातु हैं। स्पष्ट है Ga में धात्विक गण सर्वाधिक है।

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क्रियाकलाप 5.1 (पा. पु. पृ. सं. 94)

प्रश्न-क्षार धातुओं एवं हैलोजेन कुल की समानता को ध्यान में रखते हुए हाइड्रोजन को मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में उचित स्थान पर रखिए। हाइड्रोजन को किस समूह एवं आवर्त में रखना चाहिए?
उत्तर-
मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में हाइड्रोजन को नियत स्थान नहीं दिया जा सकता क्योंकि हाइड्रोजन, ऑक्सीजन एवं सल्फर के साथ एक सूत्र वाले यौगिक बनाती है। दूसरी ओर हाइड्रोजन द्विपरमाणुक अणु के रूप में भी पायी जाती हैं।

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क्रियाकलाप 5.2 (पा. पु. पृ.सं. 94)

प्रश्न –
क्लोरीन के समस्थानिक Cl-35 व Cl-37 के परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न होने के कारण क्या आप उन्हें अलग-अलग रखेंगे? या रासायनिक गुणधर्म समान होने के कारण आप दोनों को एक ही स्थान पर रखेंगे?
उत्तर-
सभी तत्वों के समस्थानिक मेन्डेलीफ के आवर्त नियम के लिए एक चुनौती थी तथा समस्या यह थी कि एक तत्व से दूसरे तत्व की ओर आगे बढ़ने पर परमाणु द्रव्यमान नियमित रूप से नहीं बढ़ते हैं। इसलिए यह अनुमान लगाना कठिन हो गया कि दो तत्वों के बीच कितने तत्व खोजे जा सकते हैं। मेन्डेलीफ के आवर्त नियमानुसार इन्हें इनकी सारणी में स्थान देना चाहिए था परन्तु रासायनिक गुणधर्म के समान होने के कारण ये एक ही स्थान पर रखे जायेंगे। आधुनिक आवर्त सारणी में यह समस्या दूर हो गयी थी क्योंकि इसे परमाणु क्रमांकों के बढ़ते क्रम के आधार पर बनाया गया था।

क्रियाकलाप 5.3 (पा. पु. पृ. सं. 95)

प्रश्न 1.
आधुनिक आवर्त सारणी में कोबाल्ट एवं निकल के स्थान कैसे निर्धारित किए गए हैं?
2. आधुनिक आवर्त सारणी में विभिन्न तत्वों के समस्थानिकों का स्थान कैसे सुनिश्चित किया गया
3. क्या 1.5 परमाणु संख्या वाले किसी तत्व को हाइड्रोजन एवं हीलियम के बीच रखा जा सकता
4. आपके अनुसार आवर्त सारणी में हाइड्रोजन को – कहाँ रखना चाहिए? –
उत्तर-
(1) कोबाल्ट का परमाणु क्रमांक 27 एवं निकिल · का परमाणु क्रमांक 28 है। आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार आवर्त सारणी में तत्वों को बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के क्रम में रखा जाता है। अतः कम परमाणु क्रमांक वाला तत्व कोबाल्ट पहले तथा अधिक परमाणु क्रमांक वाला तत्व निकिल बाद में आएगा। पूर्व में परमाणु भार के आधार पर ये दोनों तत्व गलत क्रम में व्यवस्थित थे क्योंकि कोबाल्ट का परमाणु भार 58.93 तथा निकिल का परमाणु भार 58.71 है।

(2) आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार एक ही तत्व के सभी समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक एक समान होता है – अतः इन्हें एक ही स्थान पर रखा गया है जो कि उचित है। .

(3) 1.5 परमाणु क्रमांक वाला तत्व हाइड्रोजन व हीलियम के बीच स्थित नहीं हो सकता।

(4) हाइड्रोजन परमाणु पहले समूह के तत्वों की तरह एक इलेक्ट्रॉन खोकर तथा सातवें समूह के तत्वों की तरह एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके संयोजन करता है, अतः इसको प्रथम तथा सप्तम समूह में रखना ठीक है।

क्रियाकलाप 5.4 (पा. पु. पृ. सं. 95)

प्रश्न 1.
आधुनिक आवर्त सारणी के समूह –
1. में उपस्थित तत्वों के नाम बताइए।
2. समूह के पहले तीन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
3. इन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में क्या समानता
4. इन तीनों तत्वों में कितने संयोजकता इलेक्ट्रॉन
उत्तर-
1. हाइड्रोजन (H), लीथियम (Li), सोडियम (Na), पोटैशियम (K), रूबीडियम (Rb), कैल्सियम (Ca), फ्रान्शियम (Fr)।
2. प्रथम तीन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास –
हाइड्रोजन (H) =1
लीथियम (Li)=2,1
सोडियम (Na)= 2,8,1 3.
3. इनके सबसे बाहरी कोश में इलेकनों की संख्या समान (प्रत्येक में 1) है। अतः इनके संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या भी समान है।
4. एक संयोजी इलेक्ट्रॉन।

क्रियाकलाप 5.5 (पा. पु. पृ. सं.97)
प्रश्न
1. यदि आप आवर्त सारणी के लम्बे रूप को देखें . तो आपको पता चलेगा कि Li, Be, B, C,N,O, F तथा Ne दूसरे आवर्त के तत्व हैं। इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
2. क्या इन सभी तत्वों के भी संयोजकता इलेक्ट्रॉनों . की संख्या समान है।
3. क्या इनके कोशों की संख्या समान है।
उत्तर-
1.
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 1
2. नहीं, सभी में असमान हैं।
3. हाँ, सभी में समान हैं। ‘

क्रियाकलाप 5.6 (पा. पु. पृ. सं.98)

प्रश्न 1.
किसी तत्व के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से आप उसकी संयोजकता का परिकलन कैसे करेंगे?
2. परमाणु संख्या 12 वाले मैग्नीशियम तथा परमाणु संख्या 16 वाले सल्फर की संयोजकता क्या है?
3. इसी प्रकार पहले 20 तत्वों की संयोजकताएँ ज्ञात कीजिए।
4. आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर संयोजकता किस प्रकार परिवर्तित होती है?
5. समूह में ऊपर से नीचे जाने पर संयोजकता किस – प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर-
1. यदि तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 1, 2, 3 या 4 है तो उन तत्वों की संयोजकताएँ क्रमश: 1, 2, 3 तथा 4 होंगी। ..यदि तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5, 6 या 7 है तो उन तत्वों की संयोजकताएँ क्रमश: 3,2, 1 होंगी। यदि तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 है तो उन तत्वों की संयोजकता शृन्य (0) होगी।
2. मैग्नीशियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 2 है, अतः इसकी संयोजकता 2 है। सल्फर का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 6 है, अत: इसकी संयोजकता 2 है।
3. आवर्त सारणी के प्रथम बीस तत्वों की ‘वयोजकताएँ निम्नलिखित है-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 2
4. आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर संयोजकता पहले 1 से 4 तक बढ़ती है फिर 1 तक घटकर उत्कृष्ट गैस की स्थिति में शून्य हो जाती है।
5. समूह में सभी तत्वों की संयोजकताएँ समान होती है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

क्रियाकलाप 5.7 (पा.पु. पृ.सं.98)

प्रश्न-
आधुनिक आवर्त सारणी का अध्ययन कर दिये गये प्रश्नों का उत्तर देना। दूसरे आवर्त के तत्वों की परमाणु त्रिज्याएँ नीचे दी गई हैं-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 4
1. इन्हें परमाणु त्रिज्या के अवरोही क्रम में व्यवस्थित – कीजिए।
2. क्या ये तत्व अब आवर्त सारणी के आवर्त की – तरह ही व्यवस्थित हैं?
3. किस तत्व का परमाणु सबसे बड़ा एवं किसका . सबसे छोटा है?
4. आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर परमाणु त्रिज्या .. किस प्रकार बदलती है?
उत्तर-
1. अवरोही क्रम
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 5
2. हाँ, ये आवर्त सारणी के आवर्त की भाँति व्यवस्थित
3. लीथियम का परमाणु सबसे बड़ा तथा ऑक्सीजन का सबसे छोटा है। 4. परमाणु त्रिज्या, आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर घटती है।

क्रियाकलाप 5.8 (पा. पु. पृ. सं. 99)

प्रश्न 1.
प्रथम समूह के तत्वों की परमाणु त्रिज्या में परिवर्तन का अध्ययन कीजिए तथा उन्हें आरोही
क्रम में व्यवस्थित कीजिए। प्रथम समूह के तत्व
Na | Li] Rs |Cs | K परमाणु त्रिज्या (pm) | 86 | 152| 244 262|231
2. किस तत्व का परमाणु सबसे छोटा तथा किसका सबसे बड़ा है?
3. समूह में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु आकार में परिवर्तन किस प्रकार होगा?
उत्तर-
1. परमाणु त्रिज्या का आरोही क्रम निम्नवत्
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 6
2. सोडियम (Na) के परमाणु सबसे छोटे तथा सीजियम (Cs) के परमाणु सबसे बड़े हैं।
3. समूह में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु त्रिज्या बढ़ती है। इसका कारण यह है कि नीचे जाने पर एक नया कोश जुड़ जाता है, इससे नाभिक तथा सबसे बाहरी कोश के बीच की दूरी बढ़ जाती है और इस कारण नाभिक का आवेश बढ़ जाने के बाद भी परमाणु का आकार बढ़ जाता है।

क्रियाकलाप 5.9 (पा. पु. पृ.सं. 99)

प्रश्न 1.
तीसरे आवर्त के तत्वों की जाँच कर उन्हें धातु एवं अधातु में वर्गीकृत करें।
2. सारणी के किस ओर धातएं स्थित है?
3. सारणी के किस ओर अधातुएं स्थित हैं?
उत्तर-
1. तीसरे आवर्त में Na. Mg व AI धातुएँ हैं तथा P, S, CIव Ar अधातुएँ हैं।
2. सारणी में तिरछी रेखा के बाईं ओर धातुएँ स्थित हैं।
3. सारणी में तिरछी रेखा के दाईं ओर अधातुएँ स्थित हैं।

क्रियाकलाप 5.10 (पा.पु. पृ. सं. 99)

प्रश्न – समूह में इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति किस प्रकार बदलती है? आवर्त में यह प्रवृत्ति कैसे बदलेगी?
उत्तर-
आवर्त में जैसे-जैसे संयोजकता कोश के इलेक्ट्रॉनों पर क्रिया करने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है, इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति घट जाती है। समूह में नीचे की ओर, संयोजकता इलेक्ट्रॉन पर क्रिया करने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश घटता है। बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से सुगमतापूर्वक निकल जाते हैं, अतः धात्विक अभिलक्षण आवर्त में घटता है तथा समूह में नीचे जाने पर धात्विक अभिलक्षण में वृद्धि होती है। अधातुएँ विद्युत ऋणात्मक होती हैं, उनमें इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके आबन्ध बनाने की प्रवृत्ति होती है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

क्रियाकलाप 5.11 (पा. पु. पृ. सं. 100)

प्रश्न-
आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति कैसे परिवर्तित होती है तथा समूह में ऊपर से नीचे जाने पर इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति कैसे परिवर्तित होगी?
उत्तर-
किसी आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर इलेक्ट्रॉन बन्धुता या इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति बढ़ती है। किसी समूह में ऊपर से नीचे आने पर इलेक्ट्रॉन बन्धुता घटती है।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मेण्डल के एक प्रयोग में लम्बे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्य बैंगनी रंग के थे, परन्तु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लम्बे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी –
(a) TT WW
(b) TT WW
(c) Tt WW
(d) Tt Ww.

प्रश्न 2. समजात अंगों का उदाहरण है –
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते का अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू तथा घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
विकासीय दृष्टि से हमारी किससे अधिक समानता है
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी
(d) जीवाणु।
उत्तर-
1. (c),
2. (d),
3. (a)

प्रश्न 4.
एक अध्ययन से पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त परिस्थिति में नेत्रों का हल्का रंग प्रभावी लक्षण है। अत: यह लक्षण जनकों से भावी पीढ़ी की सन्तानों में स्थानान्तरित हो सकता है। प्रभावी लक्षण उसी अवस्था में अथवा कुछ परिवर्तन के साथ भावी पीढ़ी में चले जाते हैं। इनमें अप्रभावी लक्षण भी उपस्थित होते हैं। ये अप्रभावी लक्षण प्रभावी लक्षणों की अनुपस्थिति में सन्तान में प्रदर्शित हो सकते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

प्रश्न 5.
जैव विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर संबंधित है?
उत्तर-
दो जातियों के बीच जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका सम्बन्ध भी उतना ही निकट का होगा। जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा। उदाहरण के लिए; एक भाई एवं बहिन अति निकट सम्बन्धी हैं। उनसे पहली पीढ़ी में उनके पूर्वज समान थे अर्थात् वे एक ही माता-पिता की सन्तान हैं। लड़की के चचेरे/ममेरे भाई बहिन भी उनसे सम्बन्धित हैं लेकिन उसके अपने भाई से कम निकट का सम्बन्ध है। इसका मुख्य कारण है कि उनके पूर्वज समान हैं, अर्थात् दादा-दादी जो उनसे दो पीढ़ी पहले के हैं, न कि एक पीढ़ी पहले के। अब हम इस बात को भली प्रकार समझ सकते हैं कि जाति/जीवों का वर्गीकरण उनके विकास के सम्बन्धों का प्रतिबन्ध है।

प्रश्न 6.
समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
समजात अंग-ऐसे अंग जो उत्पत्ति एवं मूल रचना में समान होते हैं तथा जिनके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण-घोड़े के अग्रपाद, चमगादड़ एवं पक्षी के पंख, मनुष्य के हाथ आदि। समरूप अंग-ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति तथा मूल रचना भिन्न-भिन्न होती हैं किन्तु कार्य समान होते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं।
उदाहरण-तितली के पंख एवं चमगादड़ के पंख, आदि।

प्रश्न 7.
कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर-
माना कुत्ते की त्वचा का काला रंग (W), भूरे रंग (w) पर प्रभावी लक्षण है। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास 1
अत: F2 पीढ़ी में तीन कुत्ते काले एवं एक कुत्ता भूरा है। यह प्रोजेक्ट दर्शाता है कि काला रंग भूरे पर प्रभावी है।

प्रश्न 8.
विकासीय सम्बन्ध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
जीवाश्म विकास के पक्ष में प्रमाण उपलब्ध कराते हैं। ये किसी जीव के विकास काल की सापेक्ष जानकारी एवं विकास की विलुप्त कड़ियों की भी जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स नामक जीवाश्म में पक्षियों एवं सरीसृपों दोनों के गुण पाये जाते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है। अतः जीवाश्म विकास की कड़ियों को खोलने में सहायक हैं। जीवाश्मों की आयु का निर्धारण चट्टान में पाये जाने वाले रेडियोधर्मी तत्वों और इसके रेडियोधर्मिताविहीन समस्थानिक तत्वों के अनुपात से किया जाता है।

प्रश्न 9.
किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति पदार्थों से हुई है?
उत्तर-
हम जानते हैं कि अनेकों अकार्बनिक पदार्थ तथा कार्बनिक पदार्थ विशिष्ट परिस्थितियों में मिलकर जीन का निर्माण करते हैं जो आनुवंशिकता की इकाई हैं। हाल्डेन तथा मिलर एवं यूरे ने अपने प्रयोग द्वारा प्रयोगशाला में यह सिद्ध कर दिया कि प्रारम्भिक जीव की उत्पत्ति अकार्बनिक पदार्थों से हुई। अकार्बनिक अणुओं से कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेषण हुआ जिसके फलस्वरूप वे सरल कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित हुये तथा अमीनों अम्ल जैसे पदार्थों का निर्माण हुआ जो जीवन का आधार होते हैं।

प्रश्न 10.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर-
लैंगिक जनन की प्रक्रिया में संयुग्मन करने वाले युग्मक (gametes) विभिन्न जनकों से आते हैं। इनके मिलने से युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। युग्मनज से सम्पूर्ण संतति जीव विकसित होता है। युग्मकों का निर्माण डी. एन. ए. के प्रतिकृतिकरण के द्वारा सम्भव होता है और डी. एन. ए. के प्रतिकृति होने के समय इसमें अनेक विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं जो नये जीव में वंशानुगत होती हैं। इसीलिए लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं।

अलैंगिक जनन में उत्पन्न विभिन्नताएँ जीव के जनन द्रव्य में न होकर केवल प्लाज़्मा द्रव्य में होती हैं अतः ये स्थायी नहीं होती हैं। यदि किसी प्रकार की विभिन्नता उत्तम है तो यह जीव के विकास व उत्तरजीविता के अधिक अवसर प्रदान करेगी। यह नयी स्पीशीज के उद्भव का मुख्य कारक है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

प्रश्न 11.
संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर-
सामान्यतया विकसित जीवधारियों की कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों के दो जोड़े होते हैं। इसे 2n से प्रदर्शित करते हैं और ऐसी कोशिकाओं को द्विगुणित कहते हैं। द्विगुणित जनन कोशिकाओं में युग्मक निर्माण के समय अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। इसके फलस्वरूप अगुणित (n) युग्मकों का निर्माण होता है।

संतति निर्माण के समय जनक युग्मक मिलकर द्विगुणित युग्मनज (Zygote) बनाते हैं। युग्मनज से सन्तान का विकास होता है। इसमें एक युग्मक माता (मादा) से तथा दूसरा युग्मक पिता (नर) से आता है। अतः स्पष्ट है कि सन्तान की उत्पत्ति में नर एवं मादा द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की हिस्सेदार होती है तथा ये युग्मक ही आनुवंशिक पदार्थ का वहन करते हैं।

प्रश्न 12.
केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं ? |
उत्तर-
हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि जो विभिन्नताएँ एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी हैं, वे वर्तमान पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्राकृतिक चयन द्वारा अपने अस्तित्व को बनाये रखती हैं। ये विभिन्नताएँ समय व्यतीत होने के साथ-साथ समष्टि की मुख्य विशेषता के रूप में स्थापित हो जाती हैं। जीवधारी इन विभिन्नताओं के कारण स्वयं को वातावरण से अनुकूलित किए रहते हैं। यह जीवधारी सफल होते हैं और अपनी संतति को निरन्तर सृष्टि में बनाये रखते हैं।

HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास  InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 157)

प्रश्न 1.
यदि एक ‘लक्षण-A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण-B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर-
लक्षण-B’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है। यह लक्षण-A’ प्रजनन वाली समष्टि से 50 प्रतिशत अधिक है इसलिए ‘लक्षण-B’ पहले उत्पन्न हुआ होगा।

प्रश्न 2.
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर-
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी जाति (species) की उत्तरजीविता की सम्भावना बढ़ जाती है। जाति की उत्तरजीविता का आधार वातावरण में घटने वाला प्राकृतिक चयन ही होता है। समय के साथ उनमें जो प्रगति की प्रवृत्ति दिखाई देती है उसके साथ उनके शारीरिक अधिकल्प में जटिलता की वृद्धि भी हो जाती है। विभिन्नताएँ जैव विकास का आधार हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 161)

प्रश्न 1.
मेण्डल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
उत्तर-
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के दो विपर्यासी लक्षणों को चुना, जैसे कि मटर के लम्बे पौधे जो लम्बे पौधों को उत्पन्न करते थे तथा बौने पौधे जो बौने पौधों को ही उत्पन्न करते थे। जब मेण्डल ने लम्बे पौधे तथा बौने पौधे के बीच संकरण कराया तो प्रथम संतति (F) में सभी पौधे लम्बे थे। इससे स्पष्ट हो गया कि पौधे के लम्बेपन का लक्षण बौनेपन लक्षण पर प्रभावी हो गया तथा बौनापन अप्रभावी होने के कारण छिपा रह गया।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास 3
जब F1 पीढ़ी के पौधों में मेण्डल ने स्वपरागण होने दिया और इससे प्राप्त बीजों को उगाने पर देखा कि लम्बे और बौने पौधे 3 : 1 के अनुपात में उत्पन्न हुए। इस प्रयोग से ज्ञात हो गया कि लक्षण प्रभावी एवं अप्रभावी होते हैं। उपर्युक्त विवरण के आधार पर ही मेण्डल का प्रथम नियम, प्रभाविता का नियम स्थापित हुआ।

प्रश्न 2.
मेण्डल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं? [CBSE 2015]
उत्तर-
मेण्डल ने अपने प्रयोगों में दो जोड़ी विपर्यासी (contrasting) लक्षणों का चयन किया, जैसे-पीले एवं गोल तथा हरे एवं झुर्शीदार बीज वाले पौधे। जब उन्होंने पीले एवं गोल (RRYY) बीज वाले पौधे का क्रॉस हरे एवं झुर्शीदार (rryy) बीज वाले पौधे के साथ कराया तो प्रथम पुत्री पीढ़ी में सभी पौधे पीले तथा गोल बीज वाले थे। जब F, पीढ़ी के पौधों के बीच उन्होंने स्वपरागण होने दिया तो F, पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे उत्पन्न हुए-

  • पीले एवं गोल बीज वाले,
  • पीले एवं झुरींदार बीज वाले,
  • हरे एवं गोल बीज वाले,
  • हरे एवं झुर्रादार बीज वाले।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास 4
F2 पीढ़ी में उपर्युक्त पौधों का अनुपात 9: 3:3:1 था। इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि बीजों के रंग एवं आकृति की वंशानुगत पीढ़ी एक-दूसरे से प्रभावित नहीं होती। ये लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं। इसे मेण्डल का स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक ‘A’ रुधिर वर्ग वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘0’ है से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग ‘0’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है? यदि आपसे कहा जाए कि कौन-सा विकल्प लक्षण-रुधिर वर्ग ‘A’ अथवा ‘0’ प्रभावी लक्षण है? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिए। .
उत्तर-
‘A’ तथा ‘0’ रुधिर वर्ग में कौन-सा लक्षण प्रभावी है, यह बताने के लिए यह सूचना कि पुत्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है, पर्याप्त नहीं है। रुधिर वर्ग का निर्धारण रुधिर में उपस्थित प्रतिजन (Antigen) तथा प्रतिरक्षी (antibody) की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर किया जाता है। ‘A’ रुधिर वर्ग में ‘A’ प्रतिजन व ‘b’ प्रतिरक्षी पाया जाता है, जबकि ‘O’ रुधिर वर्ग में कोई प्रतिजन नहीं पाया जाता परन्तु ‘a’ एवं ‘b’ दोनों प्रतिरक्षी अवश्य पाए जाते हैं। al, a तथा a° जीन प्रतिजन के लिए उत्तरदायी होते हैं।

a bb क्रमशः a° पर प्रभावी होते हैं।’A’ रुधिर वर्ग वाले पुरुष की जीन संरचना a° a° तथा ‘0’ रुधिर वाली स्त्री की जीन संरचना a° a° होने पर पुत्री पिता से a° तथा माता से a° जीन अर्थात् दोनों सुप्त जीन प्राप्त करने के कारण ‘O’ रुधिर वर्ग वाली होती है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि ‘A’ प्रभावी होगा।

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प्रश्न 4.
मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता
उत्तर-
मानव में उपस्थित लिंग गुणसूत्रों (Sex chromosomes) द्वारा बच्चे के लिंग का निर्धारण किया जाता है

  • पुरुषों में दोनों लिंग गुणसूत्रों में से एक गुणसूत्र X तथा दूसरा गुणसूत्र Y होता है।
  • स्त्री में दोनों लिंग गुणसूत्र समान अर्थात् XX होते
  • पुरुष दो प्रकार के शुक्राणु उत्पन्न करते हैं। आधे शुक्राणु X गुणसूत्रों को तथा आधे शुक्राणु Y गुणसूत्रों को धारण करते हैं।
  • स्त्री में केवल एक अण्डाणु बनता है, जिसमें X गुणसूत्र होता है।
  • जब X गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु (X) में संलयन करता है तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़की (XX) होती है।
  • जब Y गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु (X) से संलयन करता है तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़का (XY) होता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 165)

प्रश्न 1.
वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर-
किसी एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की समष्टि में संख्या निम्नलिखित तरीकों से बढ़ सकती है-
(i) यदि व्यष्टि में विशिष्ट लक्षण पर्यावरण के अनुकूल हो और इसका प्राकृतिक चयन होता रहे तब इस लक्षण वाले जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है। उदाहरणार्थ, लाल शृंग की समष्टि में हरे रंग वाले भृग का उत्पन्न होना। पक्षी हरे रंग के भंगों को पत्तियों के बीच में पहचान नहीं पाते हैं और भंग शिकार होने से बच जाते हैं, जबकि लाल भुंग आसानी से पहचाने जा सकते हैं और पक्षियों के शिकार हो जाते हैं। इस प्रकार हरे रंग के ,गों की संख्या समष्टि में बढ़ जाती है।

(ii) आकस्मिक दुर्घटना के कारण जब किसी समष्टि के अत्यधिक सदस्य समाप्त हो जाते हैं तो जीन पूल (gene pool) सीमित रह जाता है। इससे समष्टि का रूप बदल जाता है। इसे जीनी अपवहन (Genetic Drift) कहते हैं। ऐसा प्रायः महामारियों, परभक्षण, प्रलय आदि के कारण होता है।

प्रश्न 2.
एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतया अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते, क्यों ?
उत्तर-
उपार्जित लक्षणों के प्रभाव केवल कायिक कोशिकाओं पर ही होते हैं अर्थात् इनका समावेशन आनुवंशिक पदार्थ (डी. एन. ए.) में नहीं होता है। आनुवंशिक पदार्थ में होने वाले परिवर्तन ही अगली पीढ़ी में वंशानुगत हो सकते हैं, अतः उपार्जित लक्षण सामान्यतया अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते हैं।

प्रश्न 3.
बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता की दृष्टि से चिन्ता का विषय क्यों है ? ..
उत्तर-
बाघों की संख्या में लगातार हो रही कमी यह दर्शाती है कि बाघ प्राकृतिक चयन में पिछड़ रहे हैं अर्थात् उनमें प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन नहीं हो रहे हैं जो कि समष्टि में इनकी संख्या बढ़ा सके। छोटी समष्टि पर दुर्घटनाओं का प्रभाव अधिक पड़ता है जिससे जीवों की आवृत्ति प्रभावित हो सकती है। अतः बाघों की घटती संख्या चिन्ता का विषय है क्योंकि इनका प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन न कर सकने के कारण बाघों की प्रजाति कभी भी विलुप्त हो सकती है। बाघों के संरक्षण हेतु टाइगर प्रोजेक्ट के अन्तर्गत इन्हें सुरक्षित राष्ट्रीय उद्यानों में रखा गया है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 166)

प्रश्न 1.
वे कौन से कारक हैं, जो नई स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं? [CBSE 2015]
उत्तर-
नई जाति के उद्भव (speciation) में निम्नलिखित कारक सहायक हैं-

  • लैंगिक प्रजनन के फलस्वरूप उत्पन्न परिवर्तन,
  • दो उपसमष्टियों का एक-दूसरे से भौगोलिक पृथक्करण। इसके कारण समष्टियों के सदस्य परस्पर प्रजनन नहीं कर पाते हैं।
  • आनुवंशिक अपवहन।
  • प्राकृतिक चयन।

प्रश्न 2.
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं ?
उत्तर-
जाति उद्भव (speciation) में भौगोलिक पृथक्करण (Geographical isolation) ही प्रमुख कारण है। विशेष रूप से अलैंगिक जनन करने वाले पादपों में एक जीवधारी भौतिक परिस्थितियों में जीवित रहता है परन्तु कुछ जीवधारी यदि निकटवर्ती भौगोलिक पर्यावरण में विस्थापित हो जाते हैं जिनमें विभिन्न भौतिक परिवर्तनीय लक्षण हों तो वे जीवित नहीं रहेंगे। यदि जीवित रह रहे जीवधारियों में अलैंगिक जनन होता है तत्पश्चात् वे अन्य पर्यावरण में विस्थापित होते हैं तो भी भिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवित नहीं रह पाएँगे।

प्रश्न 3.
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर-
नहीं, क्योंकि अलैंगिक जनन के लिए दूसरे जीव की आवश्यकता नहीं है। यह एकल जीव द्वारा ही सम्पन्न होता है। अतः भौगोलिक पृथक्करण का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 171)

प्रश्न 1.
उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज के विकासीय सम्बन्ध निर्धारण के लिए करते हैं?
उत्तर-
लगभग 2000 वर्ष पूर्व जंगली बन्दगोभी को खाद्य पौधे के रूप में उगाया जाने लगा था, यह एक कृत्रिम चयन था न कि प्राकृतिक चयन। इसलिए कुछ किसानों का अनुमान था कि इस गोभी में पत्तियाँ आपस में निकट होनी चाहिए। अतः उन्होंने परस्पर संकरण द्वारा उस बंदगोभी को प्राप्त किया जिसका हम आजकल प्रयोग करते हैं। कुछ किसानों ने पत्तियों को पुष्पों के निकट प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। अतः उन्होंने प्रयास करके इस प्रकार का पौधा प्राप्त किया। इस पौधे को आधुनिक फूलगोभी का नया नाम दिया गया। इस प्रकार बन्दगोभी एवं फूलगोभी दोनों निकट स्पीशीज हैं जो उद्विकास से विकसित स्पीशीज हैं।

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प्रश्न 2.
क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर-
ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना समान होती है किन्तु कार्य भिन्न होते हैं, समजात (homologous) अंग कहलाते हैं। चूँकि तितली एवं चमगादड़ के पंखों के कार्य (उड़ना) तो समान हैं लेकिन उनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना समान नहीं है अतः ये समजात अंग नहीं हैं। ये समवृत्ति अंग है।

प्रश्न 3.
जीवाश्म क्या हैं? वह जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं? [CBSE 2015]
उत्तर-
प्राचीनकाल के जीवों के अवशेष, जो प्राचीन काल में पृथ्वी पर पाये जाते थे, किन्तु अब जीवित नहीं हैं, जीवाश्म कहलाते हैं। ये अवशेष प्राचीन समय में मृत जीवों के सम्पूर्ण, अपूर्ण, अंग या अन्य भाग के अवशेष या उन अंगों के ठोस मिट्टी, शैल तथा चट्टानों पर बने चिन्ह होते हैं जिन्हें पृथ्वी को खोदने से प्राप्त किया गया है।

ये चिन्ह इस बात का प्रतीक हैं कि ये जीव करोड़ों वर्ष पूर्व जीवित थे लेकिन वर्तमान में विलुप्त हो चुके हैं-

  • जीवाश्म उन जीवों के पृथ्वी पर अस्तित्व की पुष्टि करते हैं।
  • इन जीवाश्मों की तुलना वर्तमान काल में उपस्थित समतुल्य जीवों से कर सकते हैं।

इनकी तुलना से अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्तमान में उन जीवाश्मों के जीवित स्थिति के काल के सापेक्ष क्या विशेष परिवर्तन हुए हैं, जो जीवधारियों को जीवित रखने के प्रतिकूल हो गए हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 173)

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई देने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं?
उत्तर-
मानव में आकृति, आकार, रंग-रूप आदि भिन्नता का कारण भौतिक पर्यावरण के कारकों से भौतिक लक्षणों में होने वाले परिवर्तन हैं। उनकी जैविक संरचना के लक्षणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है इसीलिए उनके अंगों में कोई परिवर्तन नहीं आता। परन्तु भौगोलिक परिस्थितियों में परिवर्तनों के कारण उनके आकार, रंग तथा दिखाई देने वाली आकृति में परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं, जबकि वे एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं।

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प्रश्न 2.
विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी आदि में उद्विकास के आधार पर इनके शरीरों में जीवधारियों के वंशों की विविधता के अस्तित्व के लक्षण विद्यमान होते हैं। यद्यपि चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प अन्य की अपेक्षा अधिक विकसित है; लेकिन अन्य जीवाणु, जैसे-मकड़ी, मछली आदि के अभिकल्पों को अविकसित नहीं कहा जा सकता ये शरीर की प्रतिकूलता को अनुकूलता में परिवर्तित कर देते हैं, जैसे-गर्म झरने, गहरे समुद्रों के गर्म स्रोत तथा अन्टार्कटिका में बर्फ आदि में उपस्थित जीवधारियों के लक्षण जो उन्हें उत्तरजीविता के योग्य बनाते हैं। जैव विकास के आधार पर यह इनकी विशेषतायें हैं। अभिकल्प को उत्तम या अधम नहीं कहा जा सकता।

HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 9.1 (पा. पु. पृ. सं. 157)

प्रेक्षण (Observation)-कक्षा में बहुत कम छात्र/छात्राओं की कर्ण पालि जुड़ी हुई है। इसका कारण उनके माता-पिता से प्राप्त वंशानुगत गुण हैं।

क्रियाकलाप 9.2 (पा. पु. पृ. सं. 158)

प्रेक्षण एवं निष्कर्ष (Observation and Result)-हम मेंण्डल के द्वारा किए गए प्रयोग को दोहराकर मटर में भिन्न-भिन्न प्रकार के बीजों के इस संयोजन से इस अनुपात को प्राप्त कर सकते हैं।
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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. जैव-विविधता में शामिल हैं
(A) पेड़-पौधे
(B) अति सूक्ष्म जीवाणु
(C) जीव-जंतु
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. भारत में लगभग कितनी पादप प्रजातियाँ पाई जाती हैं?
(A) लगभग 25,000
(B) लगभग 30,000
(C) लगभग 45,000
(D) लगभग 50,000
उत्तर:
(C) लगभग 45,000

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

3. भारत में कितनी जीव प्रजातियाँ पाई जाती हैं?
(A) लगभग 75,261
(B) लगभग 81,251
(C) लगभग 85,271
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) लगभग 81,251

4. समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को क्या कहते हैं?
(A) समाज
(B) प्रजाति
(C) जीन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) प्रजाति

5. भारत में पाई जाने वाली कुल पक्षी प्रजातियों में से कितने % स्थानिक हैं?
(A) 12%
(B) 14%
(C) 18%
(D) 25%
उत्तर:
(B) 14%

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

6. ‘World Wild Life Fund’ की स्थापना कब की गई?
(A) 1950
(B) 1952
(C) 1955
(D) 1962
उत्तर:
(B) 1952

7. ‘World Wild Life Fund’ -WWF का मुख्यालय है-
(A) न्यूयार्क
(B) लंदन
(C) पेरिस
(D) स्विट्ज़रलैंड
उत्तर:
(D) स्विट्ज़रलैंड

8. 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो में जैव-विविधता के पृथ्वी शिखर सम्मेलन में कितने देशों ने हस्ताक्षर किए?
(A) 152
(B) 154
(C) 156
(D) 158
उत्तर:
(C) 156

9. भारत में कितने जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं?
(A) 12
(B) 14
(C) 16
(D) 18
उत्तर:
(B) 14

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
जैव-विविधता का संरक्षण किसके लिए महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
सभी जीवधारियों के लिए।

प्रश्न 2.
समान. भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को क्या कहते हैं?
उत्तर:
प्रजाति।

प्रश्न 3.
‘World Wild Life Fund’ की स्थापना कब की गई?
उत्तर:
सन् 1962 में।

प्रश्न 4.
‘World Wild Life Fund’ (WWF) का मुख्यालय कहाँ है?
उत्तर:
स्विट्ज़रलैंड में।

प्रश्न 5.
जीवन-निर्माण के लिए एक मूलभूत इकाई बताएँ।
उत्तर:
जीवन-निर्माण के लिए जीन (Gene) एक मूलभूत इकाई है।

प्रश्न 6.
भारत में वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम कब पास हुआ?
उत्तर:
भारत में वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम सन् 1972 में पास हुआ।

प्रश्न 7.
पंजाब में स्थित एक तराई क्षेत्र का नाम बताएँ।
उत्तर:
हरिके तराई क्षेत्र (Wetland)।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 8.
जैव-विविधता विश्व सम्मेलन कब और कहाँ हआ?
उत्तर:
यह 1922 ई० में रियो डी जेनेरो में हुआ।

प्रश्न 9.
जैव-विविधता के संरक्षण का एक उपाय बताएँ।
उत्तर:
जैव-विविधता संरक्षण का एक उपाय कृत्रिम संरक्षण है।

प्रश्न 10.
मानव आनुवांशिक रूप से किस प्रजाति से संबंधित है?
उत्तर:
मानव आनुवांशिक रूप से होमोसेपियन प्रजाति से संबंधित है।

प्रश्न 11.
भारत में तट-रेखा की लम्बाई बताएँ।
उत्तर:
भारत की तट-रेखा लगभग 7500 किलोमीटर लम्बी है।

प्रश्न 12.
किन्हीं दो संकटापन्न प्रजातियों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. रेड पांडा
  2. बाघ

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
टैक्सोनोमी क्या है?
उत्तर:
जीवों के वर्गीकरण के विज्ञान को टैक्सोनोमी कहते हैं।

प्रश्न 2.
तप्त स्थल क्या है?
उत्तर:
संसार के जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता पाई जाती है, उन्हें विविधता के ‘तप्त स्थल’ कहा जाता है।

प्रश्न 3.
आनुवंशिकी क्या है?
उत्तर:
आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी कहते हैं।

प्रश्न 4.
आनुवंशिकता क्या है?
उत्तर:
जीवधारियों की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में विभिन्न लक्षणों के प्रेक्षण या संचरण को आनुवंशिकता कहते हैं।

प्रश्न 5.
प्रजाति का विलुप्त होना क्या है?
उत्तर:
प्रजाति के विलुप्त होने का अभिप्राय है कि उस प्रजाति का अन्तिम सदस्य भी मर गया है।

प्रश्न 6.
भारत के प्राचीनतम राष्ट्रीय उद्यान (National Park) का नाम लिखें। इसकी स्थापना कब की गई थी?
उत्तर:
भारत का प्राचीनतम राष्ट्रीय उद्यान कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (Corbet National Park) है। इसकी स्थापना सन् 1936 में की गई थी।

प्रश्न 7.
जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैव-विविधता को निम्नलिखित तीन स्तरों पर समझा जाता है-

  1. आनुवांशिक जैव-विविधता
  2. प्रजातीय जैव-विविधता
  3. पारितन्त्रीय जैव-विविधता।

प्रश्न 8.
जैव-विविधता संरक्षण के मुख्य उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:

  1. जैव-विविधता का संरक्षण तथा संवर्द्धन।
  2. पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं और जैव भू-रसायन चक्रों को बनाए रखना।
  3. पारितन्त्रों की उत्पादकता एवं प्रजातियों के स्थायी उपयोग को निश्चित करना।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मानव अस्तित्व के लिए जैव-विविधता अति आवश्यक है।’ अपने तर्क देकर स्पष्ट करें।
अथवा
जैव विविधता का संक्षिप्त महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
मानव पर्यावरण एक प्रमुख घटक है। जैव-मण्डल में वह एक उपभोक्ता की भूमिका भी निभाता है। वस्तुतः मानव का अस्तित्व जैव-विविधता पर ही आधारित है, क्योंकि जीवन की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति जैव-विविधता से ही होती है; जैसे खाद्य सामग्री, प्राणदायिनी ऑक्सीजन, ईंधन, जीवन रक्षक दवाइयाँ और जीवनोपयोगी अन्य समान भी उसे वनस्पति और जीव-जन्तुओं से ही प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
मनुष्य को जैव-विविधता से खाद्य पदार्थ किस प्रकार प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
विभिन्न पारितन्त्रों में रहने वाले मानवों की खाद्य आदतें (Food Habits) काफी हद तक उस पारितन्त्र में मिलने वाले खाद्य पदार्थ से बनती हैं। उदाहरण के लिए समुद्रों के समीप रहने वाले लोग समुद्री जीवों (मछली आदि) का भक्षण करते हैं। इसी प्रकार मैदानों में रहने वाले लोग वहाँ पैदा होने वाले अनाजों से अपना भोजन ग्रहण करते हैं। इसी प्रकार वनों में रहने वाले लोग वनों में उपलब्ध फलों तथा पशु-पक्षियों को खाकर अपना पेट भरते हैं। संक्षेप में, कहा जाए तो सभी प्रकार के अनाज, फल, सब्जियाँ, माँस, मसाले, तेल, चाय, कॉफी व अन्य खाद्य पदार्थों की आपूर्ति जीवों व वनस्पतियों से ही होती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 3.
‘प्राणदायिनी ऑक्सीजन का आधार भी जैव-विविधता ही है।’ उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य भोजन व पानी के बगैर तो कुछ समय तक जीवित रह सकता है, परन्तु ऑक्सीजन के बिना तो वह कुछ मिनट भी नहीं जी सकता। वस्तुतः मानव सहित सभी जीवों का अस्तित्व प्राणदायिनी ऑक्सीजन पर निर्भर है। यह प्राणदायिनी ऑक्सीजन हमें वृक्षों से प्राप्त होती है। वृक्षों से जीवों को ऑक्सीजन प्राप्त होती है तथा वृक्ष पर्यावरण से कार्बन-डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं। यदि हम वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई करते हैं तो इसका अवसर पर्यावरण में उपस्थित ऑक्सीजन व अन्य गैसों पर भी पड़ेगा, जिसका असर मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।

प्रश्न 4.
“जैव-विविधता औषधियों के लिए खजाना है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैव-विविधता से हमें अनेक प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं। मनुष्य प्रागैतिहासिक काल से ही जड़ी-बूटियों तथा जीवों का औषधियों के लिए प्रयोग करता रहा है। कहते हैं कि सर्वप्रथम चीन में वनस्पतियों का औषधियों के लिए प्रयोग किया गया। हमारे ऋग्वेद व अन्य वेदों में सैकड़ों जड़ी-बूटियों का उल्लेख है, जो हमें वनस्पतियों से मिलती थीं। चरक संहिता में वनस्पतियों की औषधियों से गम्भीर रोगों के निदान के फार्मूले दिए गए हैं। आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों से विभिन्न औषधियों द्वारा रोगों का निदान किया जाता रहा है। आज भारत और विश्व में अनेक रोगों से सम्बन्धित औषधियाँ वनस्पति जीवों से प्राप्त की जा रही हैं।

प्रश्न 5.
जैव-विविधता के संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
अथवा
जैव-विविधता के संरक्षण के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
मानव सहित पृथ्वी का भविष्य जैव-विविधता पर निर्भर है परन्तु पिछली तीन शताब्दियों से प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया है, इससे जैव-विविधता को खतरा उत्पन्न हो गया है। अतः जैव-विविधता का संरक्षण पर्यावरण और मानव के लिए अत्यधिक जरूरी है। जैव-विविधता के संरक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं–

  • जैव-विविधता का संरक्षण तथा संवर्द्धन।
  • पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं और जैव भू-रसायन चक्रों को बनाए रखना।
  • पारितन्त्रों की उत्पादकता एवं प्रजातियों के स्थायी उपयोग को निश्चित करना।

प्रश्न 6.
खतरे में पड़ चुके जैव-विविधता क्षेत्र का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विश्व की जैव-विविधता विशेष भौगोलिक परिस्थितियों तथा जलवायु के कारण विशेष प्रकार के इकोलोजिकल क्षेत्रों में विभाजित है। परन्तु मानवीय गतिविधियों खासतौर पर औद्योगिक क्रान्ति के बाद जैव-विविधता के अन्धाधुन्ध दोहन से ऐसे क्षेत्र खतरे में पड़ चुके हैं। उदाहरण के लिए भारतीय पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्व क्षेत्र तथा अण्डमान-निकोबार खतरे में पड़ चुके क्षेत्र हैं।

प्रश्न 7.
‘सभी भौतिक तत्त्व सजीवों (Living Organism) को प्रभावित करते हैं। बताइए कैसे?
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र क्रियाशील रहता है अर्थात पारितन्त्र के घटकों में आपस में अन्तक्रिया सदैव चलती रहती है। पारितन्त्र की इस क्रियाशीलता में ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow), पोषक तत्त्वों का चक्र, जीवों की अन्तक्रिया तथा पर्यावरण नियन्त्रण शामिल होता है जो सामूहिक रूप से इस तन्त्र को चलाते हैं। यह सारी क्रिया एक चक्र के रूप में चलती रहती है, जिसे जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) के नाम से जाना जाता है। जैव भू-रासायनिक चक्र में सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत होता है, जो जलवायु व्यवस्था के अनुसार ऊर्जा प्रदान करता है। इन भौतिक तत्त्वों से ही सजीव तत्त्व अपना भोजन बनाते हैं या प्राप्त करते हैं। वस्तुतः प्रकृति के भौतिक तत्त्व सजीवों को जीवन का आधार प्रदान करते हैं।

प्रश्न 8.
आवासों की क्षति का जैव-विविधता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
प्रकृति का वह स्थान जहाँ जीव वास एवं अपना विकास करते हैं, आवास स्थान कहलाता है। कृषि क्षेत्र के विस्तार, औद्योगीकरण तथा अनेक विकास योजनाओं के परिणामस्वरूप आज तेजी से जीवों के आवास स्थल नष्ट हो रहे हैं। जंगल नष्ट होने से हाथी, शेर व अन्य छोटे-मोटे सभी जानवरों की प्रजातियाँ खतरे में पड़ गई हैं। इसी प्रकार जल-प्रदूषण व विकास योजनाओं के कारण नदी, झील व समुद्र के आवास भी नष्ट होते जा रहे हैं। पानी के जीवों की दुनिया भी उजड़ रही है।

प्रश्न 9.
‘प्रदूषण जैव-विविधता के लिए खतरनाक है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण जैव-विविधता के लिए प्रमुख खतरा बन गया है। इससे प्राकृतिक आवासों में बदलाव आने से इकोसिस्टम की कार्य-प्रणाली प्रभावित होती है। नदियों के प्रदूषित होने से नदियों तथा डेल्टा के प्राणियों का अत्यधिक नुकसान हुआ है। इसी प्रकार झीलों, तालाबों, समुद्रों इत्यादि के पानी में भी पीड़क, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और तेल से जलीय जीव खतरे में पड़ रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण से मौसम में परिवर्तन, तापमान में वृद्धि, ओजोन परत में छेद सभी जैव-विविधता के लिए खतरे का कारण बनते जा रहे हैं।

प्रश्न 10.
प्रकृति में सन्तुलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लाखों-करोड़ों वर्षों के अन्तराल में पृथ्वी पर प्राकृतिक व्यवस्था कायम हुई तथा इसमें सन्तुलन बनता चला गया। धरातलीय परिवर्तन, मौसम में परिवर्तन, जीवों की पुरानी प्रजातियाँ विलुप्त हुईं तथा नई प्रजातियाँ आईं। ये सभी घटनाएँ प्राकृतिक थीं-चाहे वे विपदाएँ हों या विकास की घटनाएँ या मौसम में परिवर्तन या प्रजातियों का लुप्त होना या उनका विकास इत्यादि। ये घटनाएँ एक लम्बे अन्तराल में हुआ करती थीं। इसलिए उन्हें पुनः परस्पर सन्तुलित होने, आपसी समन्वय और समायोजन का जैव-विविधता एवं संरक्षण अवसर मिल जाया करता था। एक प्रजाति विलुप्त होती थी तो उसकी जगह नई प्रजाति स्वयं ही पैदा हो जाती थी। इस प्रकार जैव-विविधता व परस्पर उनकी निर्भरता बनी रहती थी। हम कह सकते हैं कि प्राकृतिक कारणों से प्रकृति मूलतः नष्ट नहीं हुआ करती। उसका स्वरूप बदल जाया करता है। मसलन अपने विकास के बाद धरती पर जंगल कभी नष्ट नहीं हुए, हाँ उनका स्वरूप जरूर बदल गया।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जैव-विविधता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैव-विविधता-जैव-विविधता से तात्पर्य पृथ्वी पर (जैवमण्डल में) जीवन की सम्पूर्ण विविधता से है अर्थात् स्थल व जल में सभी प्रकार के सूक्ष्मजीवों (Micro Organisms), वनस्पति जगत (Plants) व जानवरों का जोड़ ही जैव-विविधता है। विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute) द्वारा जैव-विविधता की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया है कि जैव-विविधता विश्व में जीवों की विविधता है, जिसमें आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity) तथा उनके द्वारा बनाया गया समुच्चय शामिल होता है।

यह प्राकृतिक जैव सम्पदा का पर्याय है, जो मानव जीवन व उसके कल्याण में सहायक है। इस अवधारणा में आनुवंशिक प्रजातियों व पारितन्त्रों के बीच पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धता झलकती है। उल्लेखनीय है कि गुणसूत्र (Genes) प्रजातियों के घटक होते हैं तथा प्रजातियाँ पारितन्त्रों की घटक होती हैं। अतः इनमें से किसी भी स्तर में कोई भी परिवर्तन दूसरे को बदल देता है। वस्तुतः प्रजातियाँ जैव-विविधता की अवधारणा का केन्द्र बिन्दु हैं।

रियो डी जेनेरो (1992 ई०) ने जैव-विविधता के विश्व सम्मेलन (Global Convention on Biological Diversity) में जैव-विविधता को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-“Biological diversity is the variability among living organisms from all sources including inter alia, terrestrial, marine and other aquatic. Eco-systems and the ecological complexes of which they are a part, this includes diversity with in species and eco-system.”

‘जैव-विविधता’ अपेक्षाकृत नया शब्द है। यह जैविक विविधता (Biological Diversity) का संक्षिप्त रूप है। ‘जैविक विविधता’ शब्द का प्रयोग 1980 ई० के आसपास एक क्षेत्र में उपस्थित प्रजातियों के सन्दर्भ में ई.ओ. विल्सन (E.O. Wilson) द्वारा किया गया। जबकि ‘जैव-विविधता’ की परिकल्पना में बहुत-सी बातें शामिल हैं। विशेष रूप से प्रजातियाँ व आवासों की हानि, जैविक संस्थाओं का उपयोग, महत्त्व तथा प्रबन्धन विषय इसके अन्तर्गत आते हैं। जैव-विविधता में इसके संरक्षण के लिए तत्काल कार्रवाई को भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वस्तुतः रियो पृथ्वी सम्मेलन में जैव-विविधता की अवधारणा ने जन-साधारण का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

प्रश्न 2.
‘मानव हस्तक्षेप ने प्राकृतिक सन्तुलन में गड़बड़ी पैदा कर दी है।’ कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आज प्रकृति में मानव के हस्तक्षेप के कारण प्राकृतिक सन्तुलन में गड़बड़ी पैदा हो चुकी है। उसके विभिन्न अंगों, घटकों को जोड़ने वाली कड़ियाँ टूट चुकी हैं। निरन्तर जटिल प्रक्रियाओं वाली प्रकृति से कई प्रक्रियाएँ लुप्त हो चुकी हैं। पर्यावरण में बड़ी तेजी से हानिकारक एवं जहरीले पदार्थ फैलते जा रहे हैं, जो प्राकृतिक नहीं बल्कि कृत्रिम प्रक्रियाओं की देन है।

जो प्राकृतिक विनाश पहले लाखों-करोड़ों वर्षों से होता था, अब वह केवल कुछ ही सदियों, यहाँ तक कि मात्र कुछ दशकों में ही हो रहा है। विनाश की अवधि कम हो रही है, उसकी तीव्रता एवं व्यापकता बढ़ती जा रही है। बड़े पैमाने पर प्रकृति का विनाश मूलतः औद्योगिक क्रान्ति से आरम्भ हुआ। जनसंख्या में वृद्धि एवं प्रकृति-दोहन की नित-नई तकनीक ने इस विनाश को असाधारण रूप से बढ़ा दिया है।

इस प्रकार आज मानव-जनित प्रदूषण तथा प्रकृति विनाश कोई स्वाभाविक-प्राकृतिक प्रक्रिया न होकर कृत्रिम सामाजिक प्रक्रिया है। यह विनाश एवं प्रदूषण अब ऐसे बिन्दु पर बड़ी तेजी से पहुँचता जा रहा है, जहाँ से वापस लौटना असम्भव-सा होगा, कुछ अर्थों और क्षेत्रों में वह बिन्दु पहुँच भी चुका है। इसलिए आज जब हम प्रकृति के विनाश और प्रदूषण की बात कर रहे हैं तो मानव-जनित प्रक्रिया की बात कर रहे हैं। प्रकृति एवं पर्यावरण में फैलता प्रदूषण हर प्रकार से जीवों के लिए खतरा बन चुका है। प्राणियों एवं वनस्पतियों की समाप्ति का खतरा पैदा हो गया है।

प्रश्न 3.
जैव-विविधता पर्यावरण को स्वस्थ बनाए रखने में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
जैसा कि हम जानते हैं कि पर्यावरण में मुख्यतः तीन घटक हैं-(1) भौतिक घटक, (2) जैविक घटक व (3) ऊर्जा । भूमि, जल, वायु, मुद्रा, तापमान, वर्षा, आर्द्रता आदि पर्यावरण के भौतिक घटक हैं जबकि पृथ्वी पर उपस्थित पादप व जीव जैव घटक का निर्माण करते हैं। सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा से यह पर्यावरण चलायमान होता है। वस्तुतः ये तीनों घटक आपस में अन्तः सम्बन्धित और परस्पर निर्भर होते हैं। यदि जैविक पयाँवरण (घटक) में कुछ असामान्यता आती है तो उसका प्रतिकूल प्रभाव निश्चित। रूप से पर्यावरण के भौतिक घटकों पर भी पड़ता है। उदाहरण के लिए, वनों की अन्धाधुन्ध कटाई से, जल-चक्र, ऑक्सीजन की मात्रा, मृदा के उपजाऊपन आदि पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

इसी तरह वनों की कटाई से पृथ्वी के तापमान, वर्षा आदि भी प्रभावित होते हैं। वनों की कटाई से जीवों के आवास नष्ट होते हैं तथा प्रजातियाँ समाप्त होती हैं। पर्यावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ जाती हैं। इससे वायुमण्डल, जलमण्डल बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। इसका मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। यह भी उल्लेखनीय है कि मानव सहित सभी जीवों को ऊर्जा पादपों के माध्यम से ही प्राप्त होती है। संक्षेप में, वनस्पति व जीव जगत पर्यावरण का अभिन्न अंग है एवं उसे स्वस्थ बनाए रखने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वस्तुतः इसी पर मानव का अस्तित्व भी निर्भर है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 4.
‘जैव-विविधता असीमित नहीं है।’ टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
जैव-विविधता मानव के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। मानव को भोजन, ऑक्सीजन व जीवन के लिए अन्य उपयोगी सामान जैव-विविधता से ही प्राप्त होता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मानव का अस्तित्व और उसकी समृद्धि पूरी तरह से जैव-विविधता पर निर्भर है। वनस्पति से एक ओर, जहाँ जीवनोपयोगी उपज प्राप्त होती है तो दूसरी ओर, समस्त जैविक व मानवीय विकास के लिए पादप, कल्याणकारी पर्यावरण की रचना करते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से मानवीय हस्तक्षेप के कारण आज. जैव-विविधता संकट में है, क्योंकि मानव ने इसे असीमित समझकर इसका अन्धाधुन्ध उपयोग करना शुरू कर दिया है।

इससे कई प्रजातियाँ आज विश्व-परिदृश्य से लुप्त हो चुकी हैं तथा कुछ लुप्त होने के कगार पर हैं। दूसरे शब्दों में, यदि कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि लाखों करोड़ों वर्षों में पृथ्वी पर पैदा हुआ ‘जीवन’ मौत के कगार पर है। विश्व पर्यावरण आयोग के अनुसार प्राचीनकाल में पृथ्वी पर पौधों व जीवों की कोई पाँच अरब प्रजातियाँ थीं, जो घटते-बढ़ते वर्तमान में कुछ लाख ही रह गई हैं। विश्व संसाधन संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र वनों की कटाई इस प्रकार निर्बाध रूप से जारी रही तो जल्द ही भूमण्डल के 5 से 10 प्रतिशत तक पादप व वन्य जीव विलुप्त हो जाएँगे।

1. वनस्पति प्रजातियों का कम होना-वनों के बड़े पैमाने पर काटे जाने के कारण कुछ वनस्पतियाँ और वृक्ष प्रजातियाँ आज विलुप्त होने के कगार पर हैं। एक अनुमान के मुताबिक वृक्षों की कम-से-कम 20 प्रजातियाँ आज विलोपन के खतरे से जूझ रही हैं।

2. जीवों का कम होना-वनों की कटाई से वन्य जीवों के आवास स्थान नष्ट होते जा रहे हैं। साथ ही प्राणियों के अवैध शिकार व पारितन्त्रों में प्रदूषण के कारण वन्य तथा जलीय जीवों की संख्या कम होती जा रही है। भारत में भी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। उदाहरण के लिए कश्मीरी हिरण, एशियाई शेर, भारतीय गोरखर, सोन चिड़ियाँ, चीता, हिमाचली बटेर, गलाबी सिर वाली बत्तख आदि पश-पक्षी विलुप्त होते जा रहे हैं। प्राकृतिक संग्रहालय, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तिका “वर्ल्ड ऑफ मैमल्स” के आँकड़ों के अनुसार लगभग 44 वन्य जीवों को संकटग्रस्त जीवों की सूची में रखा गया है, जिससे उपरोक्त पशु-पक्षियों के अलावा गगीय डॉल्फिन, लाल पाण्डा, जंगली भैंसा, एशियाई हाथी, सफेद सारस, चिंकारा, अजगर, गेंडा, हिम तेन्दुआ, बाघ, भूरा बारहसिंघा, भूरी बिल्ली आदि मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त सुनहरी बिल्ली, जंगली गधा, ओरंग ऊटान, चिम्पैंजी बबून आदि भी शामिल हैं।

प्रश्न 5.
विभिन्न प्रजातियाँ एक-दूसरे पर किस प्रकार अन्तःनिर्भर हैं? अथवा भोजन शृंखला व खाद्य जाल का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैसा कि हम जानते हैं कि करोड़ों वर्षों के जैविक विकास के दौरान धरती पर विभिन्न पारितन्त्रों का विकास हुआ है। यह पारितन्त्र जीवों की विविधता व ऊर्जा प्रवाह के कारण स्वयं सन्तुलित और गतिमान है। इनमें एक जीव प्रजाति दूसरी प्रजाति पर निर्भर है। यह निर्भरता मुख्यतः उनकी भोजन की जरूरत से विकसित हुई है। सूर्य की ऊर्जा से पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। पौधों से जीव प्रजातियाँ अपना भोजन प्राप्त करती हैं। फिर जीव दूसरे जीवों को खाकर अपना पेट भरते हैं। इस प्रकार यह भोजन श्रृंखला सभी प्रजातियों को एक-दूसरे से जोड़ती है एवं अन्तः निर्भरता का निर्माण करती है। प्रजातियों में इस अन्तः निर्भरता को हम अग्रलिखित आहार श्रृंखलाओं व आहार जाल से भली-भाँति समझ सकते हैं-
1. भोजन शृंखला (Food Chain) जीवों में ऊर्जा का प्रवाह भोजन शृंखला के माध्यम से होता है। जीवों द्वारा ऊर्जायुक्त पदार्थ या भोजन ग्रहण करने की अपनी आदतें एवं आवश्यकताएँ होती हैं। इससे जीवों में पोषण-स्तर का निर्माण होता है। ऊर्जा का भोजन के माध्यम से एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में प्रवेश प्रकृति के नियमों के अनुसार होता है। इससे भोजन श्रृंखला का निर्माण होता है।

यह तो सब जानते हैं कि छोटी मछली को बड़ी मछली खाती है और बड़ी मछली को उससे बड़ी मछली खा जाती है, सार रूप में यही भोजन श्रृंखला है। दूसरे शब्दों में “किसी पारिस्थिति तन्त्र में एक जीवधारी से दूसरे जीवधारी में खाद्य ऊर्जा का प्रवाह ही भोजन श्रृंखला है।” हरे पौधे जमीन पोषित तत्त्वों (Nutrients) तथा सूर्य से प्रकाश प्राप्त कर प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन तैयार करते हैं। यह उनका अपना भोजन होता है। इस रूप में पौधे प्रथम पोषी तथा जैविक जगत् में उत्पादक कहे जाते हैं।

पौधे से ऊर्जा भोजन के माध्यम से आगे बढ़ती है। पौधों पर शाकाहारी जीव निर्भर हैं। इस प्रकार पौधों से ऊर्जा शाकाहारी जीवों में पहुँचती है। शाकाहारी जीवों से ऊर्जा शाकाहारी जीवों को खाने वाले माँसाहारी जीवों में पहुँचती है। अन्त में ऊर्जा सर्वाहारी जीवों में पहुँचती है। सर्वाहारी जीवों से अभिप्राय है, जो पेड़-पौधों से भी भोजन प्राप्त करते हैं तथा साथ ही शाकाहारी तथा माँसाहारी जीवों को भी ग्रहण करते हैं। एक पारिस्थितिक तन्त्र में भोजन शृंखला ऊर्जा के एकल मार्गीय प्रवाह मार्ग को दर्शाती है। कुछ भोजन शृंखलाओं के उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से दर्शाए जा सकते हैं-
पौधे → शाकाहारी → माँसाहारी → सर्वाहारी
पादप → हिरण → शेर
घास → हिरण → मेंढक → सर्प → बाज

2. खाद्य जाल (Food Webs) भोजन श्रृंखला एक जटिल प्रक्रिया है, जो जीवों की खाद्य आदतों के अनुसार चलती है। प्रकृति में यह बहुत ही कम होता है कि खाद्य शृंखलाएँ सीधी ही चलें। एक जीव कई प्रकार से भोजन ग्रहण कर सकता है। यहाँ तक कि एक जीव को अनेक जीवों द्वारा भोजन के रूप में खाया जा सकता है। संक्षेप में, एक पारितन्त्र में भोजन शृंखलाएँ आपस में गुंथी होती हैं, जिससे इन भोजन श्रृंखलाओं का एक जाल बन जाता है। इस प्रकार खाद्य जाल का निर्माण होता है। स्पष्ट है कि भोजन श्रृंखला तथा खाद्य जाल से सभी जीव एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।

प्रश्न 6.
जैव-विविधता के संरक्षण में ‘प्राकृतिक संरक्षण’ का तरीका कितना कारगर है? वर्णन कीजिए। अथवा प्राकृतिक संरक्षण के लाभ व दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक संरक्षण (In-Situ Conservation) की प्रणाली के द्वारा प्रजातियों का संरक्षण उनके प्राकृतिक वातावरण में ही किया जाता है। इस प्रणाली में वातावरण में मौजूद उन कारकों को समाप्त करने का प्रयास किया जाता है, जिसके कारण जीवों को संकट पैदा होता है, बाकी सम्पूर्ण व्यवस्था प्राकृतिक ही होती है। इस विधि के तहत राष्ट्रीय पार्क (National Park), वन्य जीव अभ्यारण्य (Wild Life Sanctuary) एवं जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves) का निर्माण कर प्रजातियों को संरक्षण प्रदान किया जाता है। इस विधि से तराई क्षेत्रों (Wetland), मेंग्रोवस (Mangroves) तथा समुद्रों में प्रवाल भित्ति (Coral Reefs) की पहचान कर संरक्षण प्रदान किया जा रहा है।

प्राकृतिक संरक्षण के लाभ/महत्त्व/उपयोगिता-प्राकृतिक संरक्षण के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • यह संरक्षण प्रणाली सरल एवं सस्ती है। इसमें मानव एक सहायक के रूप में कार्य करता है।
  • इस प्रणाली से एक साथ अनेक जीव-जन्तुओं की प्रजातियों का संरक्षण किया जा सकता है।
  • इस प्रकार संरक्षण से प्राणी न केवल जीवित रहते हैं, अपितु नए प्रकार के जीवों की उत्पत्ति की प्रक्रिया भी जारी रहती है।

प्राकृतिक संरक्षण के दोष-प्राकृतिक संरक्षण के दोष निम्नलिखित हैं-

  • स्वस्थाने या प्राकृतिक संरक्षण में बड़े भू-खण्ड की आवश्यकता होती है।
  • पारितन्त्र की विशाल जैव-विविधता के कारण संरक्षण के पैमानों को निश्चित करने में कठिनाई होती है।
  • इस प्रकार के संरक्षण से वन में रहने वाले मानव समुदाय को स्थानान्तरित करना पड़ता है।
  • ऐसे संरक्षित क्षेत्रों में चोरी छिपे मानव हस्तक्षेप की सम्भावनाएँ बनी रहती हैं जिससे संकटापन्न प्रजातियों को खतरा बना रहता है।फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि प्राकृतिक संरक्षण प्रजातियों के संरक्षण का आदर्श तरीका है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 7.
जैव-विविधता के संरक्षण के किसी एक तरीके का वर्णन कीजिए।
अथवा
जैव विविधता संरक्षण के उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कृत्रिम संरक्षण के लाभ व दोषों को समझाइए।
अथवा
कृत्रिम संरक्षण क्या है? इसके लाभ व दोषों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जैव-विविधता पर मानव सहित सभी जीव-जन्तुओं, वनस्पति तथा अन्ततः हमारी पृथ्वी का भविष्य निर्भर है, परन्तु पिछली दो तीन शताब्दियों से (विशेष तौर पर औद्योगिक क्रान्ति के बाद) प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया है। इससे सभी प्राकृतिक संसाधनों, जिसमें वनस्पति और जीव-जन्तु भी शामिल हैं, को संकटापन्न की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पृथ्वी से अनेक जीव विलुप्त हो चुके हैं तथा विलोपन की प्रक्रिया अत्यधिक तीव्र हो गई है। ऐसी स्थिति में विश्व में जैव-विविधता को बचाने तथा बनाए रखने के प्रयास भी शुरू हो गए हैं।

जैव-विविधता संरक्षण के उद्देश्य-

  • जैव-विविधता का संरक्षण तथा संवर्द्धन।
  • पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं और जैव भू-रसायन चक्रों को बनाए रखना।
  • पारितन्त्रों की उत्पादकता एवं प्रजातियों के स्थायी उपयोग को निश्चित करना।

जैव-विविधता के संरक्षण के तरीके (Methods of Conservation of Biodiversity) वर्तमान में जैव-विविधता को संरक्षित करने के दो तरीके अपनाए जाते हैं

  • कृत्रिम संरक्षण (Ex-Situ Conservation)
  • स्वस्थाने या प्राकृतिक संरक्षण (In-Situ Conservation)।

इनमें से कृत्रिम संरक्षण का संक्षेप में विवरण निम्नलिखित प्रकार से दिया जा सकता है-
कृत्रिम संरक्षण (Ex-Situ Conservation)-इस विधि से विलुप्त हो सकने वाली प्रजातियों (वनस्पति एवं जीव-जन्तु) को नियन्त्रित दशाओं; जैसे बगीचे, नर्सरी, चिड़ियाघर या प्रयोगशाला आदि में रखकर संरक्षण प्रदान किया जाता है अर्थात् विलुप्त होने के खतरे से बचाने के लिए प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास स्थान से हटाकर नियन्त्रित आवास स्थान पर रखा जाता है।

कृत्रिम संरक्षण प्रणाली में चिड़ियाघरों की स्थापना, वनस्पति, बगीचों की स्थापना या ऐक्वेरियम आदि की स्थापना की जाती है। चिड़ियाघरों में स्तनपायी जानवरों, पक्षियों, सरीसृपों आदि को रखा जाता है। वर्तमान में विश्व में चिड़ियाघरों में लगभग 5,00,000 इस प्रकार के विलुप्त हो सकने वाले प्राणियों को संरक्षण प्रदान किया जा रहा है।

कृत्रिम संरक्षण के लाभ (Merits of Ex-Situ Conservation) कृत्रिम संरक्षण के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • संरक्षण स्थल पर जीवों की संख्या कम होने के कारण सभी जीवों का समान रूप से ध्यान रखा जा सकता है तथा उनका संरक्षण सुरक्षित ढंग से किया जा सकता है।
  • इस विधि में भोजन, धन व अन्य संसाधनों का सुनिश्चित तथा उचित उपयोग किया जा सकता है।
  • कभी-कभी संरक्षण प्रक्रिया के बाद जीवों को उनके प्राकृतिक आवासों में छोड़ना सफलतापूर्ण होता है।

कृत्रिम संरक्षण के दोष (Demerits of Ex-Situ Conservation)-प्राकृतिक वातावरण से दूर होने के कारण इस संरक्षण प्रणाली में जीवों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस संरक्षण प्रणाली के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं

  • इस प्रणाली से विलुप्त होने का खतरा झेल रही बहुत कम प्रजातियों को ही संरक्षण प्रदान किया जा सकता है।
  • संरक्षित किए गए प्राणियों की क्षमता में परिवर्तन हो जाता है। वे प्राकृतिक आवासों में रहने की योग्यता खो देते हैं। उदाहरण के लिए शिकारी जीव की शिकार करने की क्षमता में कमी आ जाती है।
  • इस विधि को सुचारु रूप से चलाने के लिए अत्यधिक संसाधनों तथा धन की आवश्यकता होती है।
  • कभी-कभी संरक्षण स्थल पर त्रासदी (आग लगने, भूकम्प, बाढ़ आदि) होने पर बड़े पैमाने पर जानवरों की मृत्यु हो जाती है।

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HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन Important Questions and Answers.

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निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी प्रमुख भौगोलिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

I. मेसोपोटामिया से अभिप्राय

मेसोपोटामिया जिसे आजकल इराक कहा जाता है भौगोलिक विविधता का देश है। मेसोपोटामिया नाम यूनानी भाषा के दो शब्दों मेसोस (Mesos) भाव मध्य तथा पोटैमोस (Potamos) भाव नदी से मिलकर बना है। इस प्रकार मेसोपोटामिया का अर्थ है दो नदियों के बीच का प्रदेश। ये नदियाँ हैं दजला (Tigris) एवं फ़रात (Euphrates) । इन नदियों को यदि मेसोपोटामिया सभ्यता की जीका रेखा कह दिया जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

II. मेसोपोटामिया की भौगोलिक विशेषताएँ

1. दजला एवं फ़रात नदियाँ :
दजला एवं फ़रात नदियों का उद्गम आर्मीनिया के उत्तरी पर्वतों तोरुस (Torus) से होता है। इन पर्वतों की ऊँचाई लगभग 10,000 फुट है। यहाँ लगभग सारा वर्ष बर्फ जमी रहती है। इस क्षेत्र में वर्षा भी भरपूर होती है। दजला 1850 किलोमीटर लंबी है। इसका प्रवाह तीव्र है तथा इसके तट ऊँचे एवं अधिक कटे-फटे हैं।

इसलिए प्राचीनकाल में इस नदी के तटों पर बहुत कम नगरों की स्थापना हुई थी। दूसरी ओर फ़रात नदी ने मेसोपोटामिया के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। यह नदी 2350 किलोमीटर लंबी है। इसका प्रवाह कम तीव्र है। इसके तट कम ऊँचे एवं कम कटे-फटे हैं। इस कारण प्राचीनकाल में मेसोपोटामिया के प्रसिद्ध नगरों की स्थापना इस नदी के तटों पर हई।

2. मैदान :
मेसोपोटामिया के पूर्वोत्तर भाग में ऊँचे-नीचे मैदान हैं। ये मैदान बहुत हरे-भरे हैं। यहाँ अनेक प्रकार के जंगली फल पाए जाते हैं। यहाँ के झरने (streams) बहत स्वच्छ हैं। इन मैदानों में कषि के लिए आवश्यक वर्षा हो जाती है। यहाँ 7000 ई० पू० से 6000 ई० पू० के मध्य खेती आरंभ हो गई थी। मेसोपोटामिया के उत्तर में ऊँची भूमि (upland) है जिसे स्टेपी (steppe) के मैदान कहा जाता है। इन मैदानों में घास बहुत होती है। अतः यह पशुपालन के लिए अच्छा क्षेत्र है।

पूर्व में मेसोपोटामिया की सीमाएँ ईरान से मिली हुई थीं। दज़ला की सहायक नदियाँ (tributaries) ईरान के पहाड़ी क्षेत्रों में जाने का उत्तम साधन हैं। मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। यहाँ सबसे पहले मेसोपोटामिया के नगरों एवं लेखन कला का विकास हुआ। इन रेगिस्तानों में नगरों के विकास का कारण यह था कि दजला एवं फ़रात नदियाँ उत्तरी पर्वतों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती थीं।

इस उपजाऊ मिट्टी के कारण एवं नदियों से सिंचाई के लिए निकाली गई नहरों के कारण यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था। यद्यपि यहाँ फ़सल उपजाने के लिए आवश्यक वर्षा की कुछ कमी रहती थी इसके बावजूद दक्षिणी मेसोपोटामिया में रोमन साम्राज्य सहित सभी प्राचीन सभ्यताओं में से सर्वाधिक फ़सलों का उत्पादन होता था। यहाँ की प्रमुख फ़सलें गेहूँ, जौ, मटर (peas) एवं मसूर (lintel) थीं।

3. कृषि संकट :
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से घिर जाती थी। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, दजला एवं फ़रात नदियों में कभी-कभी भयंकर बाढ़ आ जाती थी। इस कारण फ़सलें नष्ट हो जाती थीं। दूसरा, कई बार पानी की तीव्र गति के कारण ये नदियाँ अपना रास्ता बदल लेती थीं। इससे सिंचाई व्यवस्था चरमरा जाती थी।

मेसोपोटामिया में वर्षा की कमी होती थी। अतः फ़सलें सूख जाती थीं। तीसरा, नदी के ऊपरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग नहरों का प्रवाह अपने खेतों की ओर मोड़ लेते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में बसे हुए गाँवों को खेतों के लिए पानी नहीं मिलता था। चौथा, ऊपरी क्षेत्रों के लोग अपने हिस्से की सरणी में से मिट्टी (silt from their stretch of the channel) नहीं निकालते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में पानी का बहाव रुक जाता था। अत: पानी के लिए गाँववासियों में अनेक बार झगड़े हुआ करते थे।

4. समृद्धि के कारण :
मेसोपोटामिया में पशुपालन का धन्धा काफ़ी विकसित था। मेसोपोटामिया के लोग स्टेपी घास के मैदानों, पूर्वोत्तरी मैदानों एवं पहाड़ों की ढालों पर भेड़-बकरियाँ एवं गाएँ पालते थे। इनसे वे दूध एवं माँस प्राप्त करते थे। नदियों से बड़ी संख्या में मछलियाँ प्राप्त की जाती थीं। मेसोपोटामिया में खजूर (date palm) का भी उत्पादन होता था। इन सबके कारण मेसोपोटामिया के लोग समृद्ध हुए। मेसोपोटामिया की समृद्धि के कारण इसे प्राचीन काल में अनेक विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 2.
नगरीकरण से आपका क्या अभिप्राय है? मेसोपोटामिया में नगरीकरण के प्रमुख कारण क्या थे?
अथवा
मेसोपोटामिया में नगरीकरण के कारणों तथा महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया नगर की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. नगरीकरण से अभिप्राय

नगर किसे कहते हैं इसकी कोई एक परिभाषा देना अत्यंत कठिन है। साधारणतया नगर उसे कहते हैं जिसके अधीन एक विशाल क्षेत्र हो, जहाँ काफी जनसंख्या हो, जहाँ के लोग पक्के मकानों में रहते हों, जहाँ की सड़कें पक्की हों, जहाँ यातायात एवं संचार के साधन विकसित हों, जहाँ लोगों को प्रत्येक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त हों तथा जहाँ लोगों को पूर्ण सुरक्षा प्राप्त हो। विश्व में नगरों का सर्वप्रथम विकास मेसोपोटामिया में हुआ।

यहाँ नगरों का निर्माण 3000 ई० पू० में कांस्य युग में आरंभ हुआ। यहाँ तीन प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ। प्रथम, धार्मिक नगर थे जो मंदिरों के चारों ओर विकसित हुए। दूसरा, व्यापारिक नगर थे जो प्रसिद्ध व्यापारिक मार्गों एवं बंदरगाहों के निकट स्थापित हुए। तीसरा, शाही नगर थे जहाँ राजा, राज परिवार एवं प्रशासनिक अधिकारी रहते थे। ये नगर ऐसे स्थान पर होते थे जहाँ से संपूर्ण साम्राज्य पर नियंत्रण रखा जा सकता था। इन नगरों का विशेष महत्त्व होता था।

II. नगरीकरण के कारण

मेसोपोटामिया में नगरीकरण के विकास के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. अत्यंत उत्पादक खेती:
मेसोपोटामिया में नगरीकरण के विकास में सर्वाधिक उल्लेखनीय योगदान अत्यंत उत्पादक खेती ने दिया। यहाँ की भूमि में प्राकृतिक उर्वरता थी। इससे खेती को बहुत प्रोत्साहन मिला। प्राकृतिक उर्वरता के कारण पशुओं को चारे के लिए कोई कमी नहीं थी। अत: पशुपालन को भी बल मिला। खेती एवं पशुपालन के कारण मानव जीवन स्थायी बन गया क्योंकि उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान पर घूमने की ज़रूरत नहीं थी। इससे नए-नए व्यवसाय आरंभ हो गए। इससे नगरीकरण की प्रक्रिया को बहुत प्रोत्साहन मिला।

2. जल-परिवहन :
नगरीकरण के विकास के लिए कुशल जल-परिवहन का होना अत्यंत आवश्यक है। भारवाही पशुओं तथा बैलगाड़ियों के द्वारा नगरों में अनाज एवं अन्य वस्तुएँ लाना तथा ले जाना बहुत कठिन होता था। इसके तीन कारण थे। प्रथम, इसमें बहुत समय लग जाता था। दूसरा, इस प्रक्रिया में खर्चा बहुत आता था। तीसरा, रास्ते में पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था भी करनी पड़ती थी। नगरीय अर्थव्यवस्था इतना खर्च उठाने के योग्य नहीं होती। दूसरी ओर जल-परिवहन सबसे सस्ता साधन होता था।

3. धातु एवं पत्थर की कमी :
किसी भी नगर के विकास में धातुओं एवं पत्थर की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। धातुओं का प्रयोग विभिन्न प्रकार के औजार, बर्तन एवं आभूषण बनाने के लिए किया जाता है। औज़ारों से पत्थर को तराशा जाता है। बर्तन सभ्य समाज की निशानी हैं। इनका प्रयोग खाद्य वस्तुएँ बनाने, उन्हें खाने एवं संभालने के लिए किया जाता है।

नगरों की स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनने की शौकीन होती हैं। पत्थरों का प्रयोग भवनों, मंदिरों, मूर्तियों एवं पुलों आदि के निर्माण के लिए किया जाता है। मेसोपोटामिया में धातओं एवं पत्थरों की कमी थी। इसके चलते मेसोपोटामिया ने तर्की, ईरान एवं खाडी पार के देशों से ताँबा, टिन. सोना, चाँदी. सीपी एवं विभिन्न प्रकार के पत्थरों का आयात करके इनकी कमी को दर किया।

4. श्रम विभाजन :
श्रम विभाजन को नगरीय विकास का एक प्रमुख कारक माना जाता है। नगरों के लोग आत्मनिर्भर नहीं होते। उन्हें विभिन्न प्रकार की सेवाओं के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा (stone seal) बनाने वाले को पत्थर पर उकेरने के । औजारों (bronze tools) की आवश्यकता होती है। ऐसे औजारों का वह स्वयं निर्माण नहीं करता।

इस प्रकार नगर के लोग अन्य लोगों पर उनकी सेवाओं के लिए अथवा उनके द्वारा उत्पन्न की गई वस्तुओं पर निर्भर करते हैं। संक्षेप में श्रम विभाजन को शहरी जीवन का एक प्रमुख आधार माना जाता है।
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5. मुद्राओं का प्रयोग:
मेसोपोटामिया के नगरों से हमें बड़ी संख्या में मुद्राएँ मिली हैं। ये मुद्राएँ पत्थर की होती थीं तथा इनका आकार बेलनाकार (cylinderical) था। इन्हें अत्यंत कुशल कारीगरों द्वारा उकेरा जाता था। इन मुद्राओं पर कभी-कभी इसके स्वामी का नाम, उसके देवता का नाम तथा उसके रैंक आदि का वर्णन भी किया जाता था।

इन मुद्राओं का प्रयोग व्यापारियों द्वारा अपना सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित भेजने के लिए किया जाता था। इस प्रकार यह मुद्रा उस सामान की प्रामाणिकता का प्रतीक बन जाती थी। यदि यह मुद्रा टूटी हुई पाई जाती तो पता लग जाता कि रास्ते में सामान के साथ छेड़छाड़ की गई है अन्यथा भेजा गया सामान सुरक्षित है। निस्संदेह मुद्राओं के प्रयोग ने नगरीकरण के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

III. नगरीकरण का महत्त्व

मेसोपोटामिया में नगरों के निर्माण ने समाज के विकास में उल्लेखीय भूमिका निभाई। नगरों के निर्माण के कारण लोगों को सुविधाएँ देने के लिए अनेक संस्थाएँ अस्तित्व में आईं। नगरों में सुविधाओं के कारण लोग गाँवों को छोड़कर नगरों में बसने लगे। नगरों में कुशल परिवहन व्यवस्था, शिक्षण संस्थाएँ एवं स्वास्थ्य संबंधी देखभाल केंद्र स्थित थे। नगरों के कारण उद्योगों एवं व्यापार को प्रोत्साहन मिला। नगरों के लोग पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं थे।

उन्हें खाद्यान्न के लिए गाँवों पर निर्भर रहना पड़ता था। इसलिए उनमें आपसी लेन-देन होता रहता था। नगरों में भव्य मदिरों का निर्माण हुआ। मंदिरों के निर्माण के कारण बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। नगरों के निर्माण ने श्रम विभाजन को प्रोत्साहित किया। नगरों के लोग अधिक सुरक्षित महसूस करते थे। नगरों में विभिन्न समुदायों के लोग रहते थे। इससे आपसी एकता एवं विभिन्न संस्कृतियों के विकास को बल मिला।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया के प्रसिद्ध नगरों एवं उनके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया सभ्यता में विभिन्न प्रकार के शहरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल मेसोपोटामिया में नगरीकरण की प्रक्रिया 3000 ई० पू० में आरंभ हुई थी। इस काल के कुछ प्रसिद्ध नगरों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. उरुक :
उरुक मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर था। यह नगर आधुनिक इराक की राजधानी बग़दाद से 250 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर फ़रात (Euphrates) नदी के तट पर स्थित था। इसका उत्थान 3000 ई० पू० में हुआ था। इसकी गणना उस समय विश्व के सबसे विशाल नगरों में की जाती थी। यह उस समय 250 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। 2800 ई० पू० के आस-पास इसका आकार बढ़ कर 400 हैक्टेयर हो गया था।

इस नगर की स्थापना सुमेरिया के प्रसिद्ध शासक एनमर्कर (Enmerkar) ने की थी। उसने इस नगर में प्रसिद्ध इन्नाना देवी (Goddess Inanna) के मंदिर का निर्माण किया था। उरुक के एक अन्य प्रसिद्ध शासक गिल्गेमिश (Gilgamesh) ने इसे अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया था।

उसने इस नगर की सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर एक विशाल दीवार का निर्माण किया था। इस नगर के उत्खनन (excavation) का वास्तविक कार्य जर्मनी के जूलीयस जोर्डन (Julius Jordan) ने 1913 ई० में आरंभ किया। 3000 ई० पू० के आस-पास उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। इसका अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि उस समय के लोगों ने अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग आरंभ कर दिया था।

इसके अतिरिक्त वास्तुविदों (architects) ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया था। इससे भवन निर्माण कला के क्षेत्र में एक नयी क्राँति आई। उस समय बड़ी संख्या में लोग चिकनी मिट्टी के शंकु (clay cones) बनाने एवं पकाने का कार्य करते थे। इन शंकुओं को भिन्न-भिन्न रंगों से रंगा जाता था। इसके पश्चात् इन्हें मंदिरों की दीवारों पर लगाया जाता था।

इससे मंदिरों की सुंदरता बहुत बढ़ जाती थी। उरुक नगर के लोगों ने मूर्तिकला के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की। इसका अनुमान 3000 ई० पू० में उरुक नगर से प्राप्त वार्का शीर्ष (Warka Head) से लगाया जा सकता है। यह एक स्त्री का सिर था। इसे सफ़ेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था। कम्हार के चाक (potter’s wheel) के निर्माण से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इस कारण बड़ी संख्या में एक जैसे बर्तन बनाना सुगम हो गया।

2. उर:
उर मेसोपोटामिया का एक अन्य प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण नगर था। यह बग़दाद से 300 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित था। यह फ़रात नदी से केवल 15 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित था। इस नगर की सबसे पहले खुदाई एक अंग्रेज़ जे० ई० टेलर (J. E. Taylor) द्वारा 1854-55 ई० में की गई। इस नगर की व्यापक स्तर पर खुदाई का कार्य 1920 एवं 1930 के दशक में की गई।

उर नगर की खुदाई से जो निष्कर्ष सामने आता है उससे यह पता चलता है कि इसमें नगर योजना का पालन नहीं किया गया था। इसका कारण यह था कि इस नगर की गलियाँ संकरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी थीं। अतः पहिए वाली गाड़ियों का घरों तक पहुँचना संभव न था। अतः अनाज के बोरों तथा ईंधन के गट्ठों को संभवतः गधों पर लाद कर पहुँचाया जाता था। उर नगर में मोहनजोदड़ो की तरह जल निकासी के लिए गलियों के किनारे नालियाँ नहीं थीं।

ये नालियाँ घरों के भीतरी आँगन में पाई गई हैं। इससे यह सहज अनुमान लगाया जाता है कि घरों की छतों का ढलान भीतर की ओर होता था। अत: वर्षा के पानी का निकास नालियों के माध्यम से आँगन के भीतर बनी हुई हौजों (sumps) में ले जाया जाता था।

ऐसा इसलिए किया गया था ताकि तीव्र वर्षा के कारण घरों के बाहर बनी कच्ची गलियों में कीचड़ न एकत्र हो जाए। नगर की खुदाई से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उस समय के लोग अपने घर का सारा कूड़ा-कचरा बाहर गलियों में फैंक देते थे। इस कारण गलियों की सतहें ऊँची उठ जाती थीं। इस कारण कुछ समय बाद घरों के बरामदों को भी ऊँचा करना पड़ता था ताकि वर्षा के दिनों में बाहर से पानी एवं कूड़ा बह कर घरों के अंदर न आ जाए। उर नगर के घरों की एक अन्य विशेषता यह थी कि कमरों के अंदर रोशनी खिड़कियों से नहीं अपितु दरवाज़ों से होकर आती थी।

ये दरवाज़े आँगन में खुला करते थे। इससे घरों में परिवारों की गोपनीयता (privacy) बनी रहती थी। उस समय घरों के बारे में उर के लोगों में अनेक प्रकार के अंध-विश्वास प्रचलित थे। जैसे यदि घर की दहलीज़ (threshold) ऊँची उठी हुई हो तो धन-दौलत प्राप्त होता है। यदि सामने का दरवाजा किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो वह सौभाग्य प्रदान करता है। किंतु यदि घर का मुख्य दरवाजा बाहर की ओर खुले तो पत्नी अपने पति के लिए एक सिरदर्द बनेगी।

उर नगर की खुदाई से जो हमें सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु मिली है वह थी शाही कब्रिस्तान । यहाँ से 16 राजाओं एवं रानियों की कब्र प्राप्त हुई हैं। इन कब्रों में शवों के साथ सोना, चाँदी एवं बहुमूल्य पत्थरों को दफनाया गया है। इसके अतिरिक्त उनके प्रसिद्ध राजदरबारियों, सैनिकों, संगीतकारों, सेवकों एवं खाने-पीने की वस्तुओं को भी उनके शवों के साथ दफनाया गया था।

इससे अनुमान लगाया जाता है कि उर के लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। साधारण लोगों के शवों को वैसे ही दफ़न कर दिया जाता था। कुछ लोगों के शव घरों के फ़र्शों के नीचे भी दफ़न पाए गए थे।

3. मारी:
मारी प्राचीन मेसोपोटामिया का एक अन्य महत्त्वपूर्ण नगर था। यह नगर 2000 ई० पू० के पश्चात् खूब फला-फूला। मारी में लोग खेती एवं पशुपालन का धंधा करते थे। पशुचारकों को जब अनाज एवं धातु 431 के औज़ारों आदि की आवश्यकता पड़ती थी तो वे अपने पशुओं, माँस एवं चमड़े के बदले इन्हें प्राप्त करते थे। पशुओं के गोबर की खाद फ़सलों के अधिक उत्पादन के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होती थी। यद्यपि किसान एवं गड़रिये एक-दूसरे पर निर्भर थे फिर भी उनमें आपसी लड़ाइयाँ होती रहती थीं।

इन लड़ाइयों के मुख्य कारण ये थे-प्रथम. गडरिये अक्सर अपनी भेड-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हए खेतों में से गज़ार कर ले जाते थे। इससे फ़सलों को बहुत नुकसान पहुँचता था। दूसरा, कई बार ये गड़रिये जो खानाबदोश होते थे, किसानों के गाँवों पर आक्रमण कर उनके माल को लूट ले जाते थे। तीसरा, अनेक बार किसान इन पशुचारकों का रास्ता रोक लेते थे तथा उन्हें अपने पशुओं को जल स्रोतों तक नहीं ले जाने देते थे। गड़रियों के कुछ समूह फ़सल काटने वाले मज़दूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में आते थे। समृद्ध होने पर वे यहीं बस जाते थे।

मारी में अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई तथा आर्मीनियन जाति के लोग रहते थे। मारी के राजा एमोराइट समुदाय से संबंधित थे। उनकी पोशाक वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी। मारी के राजा मेसोपोटामिया के विभिन्न देवी-देवताओं का बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने डैगन (Dagan) देवता की स्मृति में मारी में एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस प्रकार मारी में विभिन्न जातियों एवं समुदायों के मिश्रण से वहाँ एक नई संस्कृति का जन्म हआ।

मारी में क्योंकि विभिन्न जन-जातियों के लोग रहते थे इसलिए वहाँ के राजाओं को सदैव सतर्क रहना पड़ता था। खानाबदोश पशुचारकों की गतिविधियों पर विशेष नज़र रखी जाती थी। मारी के प्रसिद्ध शासक ज़िमरीलिम (Zimrilim) ने वहाँ एक विशाल राजमहल का निर्माण (1810 1760 ई० पू०) करवाया था। यह 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके 260 कमरे थे। यह अपने समय में न केवल अन्य राजमहलों में सबसे विशाल था अपितु यह अत्यंत सुंदर भी था।

इसका निर्माण विभिन्न रंगों के सुंदर पत्थरों से किया गया था। इस राजमहल में लगे भित्ति चित्र (wall paintings) इतने आकर्षक थे कि इसे देखने वाला व्यक्ति चकित रह जाता था। इस राजमहल की भव्यता को अपनी आँखों से देखने सीरिया एवं अलेप्पो (Aleppo) के शासक स्वयं आए थे। मारी नगर व्यापार का एक प्रसिद्ध केंद्र भी था। इसके न केवल मेसोपोटामिया के अन्य नगरों अपितु विदेशों, ती. सीरिया. लेबनान.ईरान आदि देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे।

मारी में आने-जाने वाले जहाजों के सामान की अधिकारियों द्वारा जाँच की जाती थी। वे जहाजों में लदे हुए माल की कीमत का लगभग 10% प्रभार (charge) वसूल करते थे। मारी की कुछ पट्टिकाओं (tablets) में साइप्रस के द्वीप अलाशिया (Alashiya) से आने वाले ताँबे का उल्लेख मिला है। यह द्वीप उन दिनों ताँबे तथा टिन के व्यापार के लिए विशेष रूप से जाना जाता था। मारी के व्यापार ने निस्संदेह इस नगर की समृद्धि में उल्लेखनीय योगदान दिया था।

4. निनवै :
निनवै प्राचीन मेसोपोटामिया के महत्त्वपूर्ण नगरों में से एक था। यह दज़ला नदी के पूर्वी तट पर स्थित था। यह 1800 एकड़ भूमि में फैला हुआ था। इसकी स्थापना 1800 ई० पू० में नीनस (Ninus) ने की थी। असीरियाई शासकों ने निनवै को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया था। सेनाचारिब (Sennacharib) ने अपने शासनकाल (705 ई० पू० से 681 ई० पू०) में निनवै का अद्वितीय विकास किया। उसने यहाँ एक विशाल राजमहल का निर्माण करवाया। यह 210 मीटर लंबा एवं 200 मीटर चौड़ा था। इसमें 80 कमरे थे। इसे अत्यंत सुंदर मूर्तियों एवं चित्रकारी से सुसज्जित किया गया था। इस राजमहल में अनेक फव्वारे एवं उद्यान लगाए गए थे।

इसके अतिरिक्त उसने निनवै में अनेक भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। उसने यातायात के साधनों का विकास किया। उसने कृषि के विकास के लिए अनेक नहरें खुदवाईं। उसने निनवै की सुरक्षा के लिए चारों ओर एक विशाल दीवार का निर्माण करवाया। निनवै के विकास में दूसरा महत्त्वपूर्ण योगदान असुरबनिपाल (Assurbanipal) ने दिया। उसने 668 ई० पू० से 627 ई० पू० तक शासन किया था। उसे भवन निर्माण कला से विशेष प्यार था।

अतः उसने अपने साम्राज्य से अच्छे कारीगरों एवं कलाकारों को निनवै में एकत्र किया। उन्होंने अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण किया। पुराने भवनों एवं मंदिरों की मुरम्मत भी की गई। अनेक उद्यान स्थापित किए गए। इससे निनवै की सुंदरता में एक नया निखार आ गया। उसे साहित्य से विशेष लगाव था। अतः उसकी साहित्य के विकास में बहुत दिलचस्पी थी। उसने निनवै में नाबू (Nabu) के मंदिर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी। इस पुस्तकालय में उसने अनेक प्रसिद्ध लेखकों को बुला कर उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों को रखवाया था।

इस पुस्तकालय में लगभग 1000 मूल ग्रंथ एवं 30,000 पट्टिकाएँ (tablets) थीं। इन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था। इनमें प्रमुख विषय ये थे इतिहास, महाकाव्य, ज्योतिष, दर्शन, विज्ञान एवं कविताएँ। असुरबनिपाल ने स्वयं भी अनेक पट्टिकाएँ लिखीं। असुरबनिपाल के पश्चात् निनवै ने अपना गौरव खो दिया।

5. बेबीलोन :
बेबीलोन दज़ला नदी के उत्तर-पश्चिम में स्थित था। इसकी राजधानी का नाम बेबीलोनिया था। इस नगर ने प्राचीन काल मेसोपोटामिया के इतिहास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस नगर की स्थापना अक्कद (Akkad) के शासक सारगोन (Sargon) ने अपने शासनकाल (2370 ई० पू०-2315 ई० पू०) के दौरान की थी। उसने यहाँ अनेक भवनों का निर्माण करवाया। उसने देवता मर्दुक (Marduk) की स्मृति में एक विशाल मंदिर का निर्माण भी करवाया। हामूराबी के शासनकाल (1780 ई० पू०-1750 ई० पू०) में बेबीलोन ने उल्लेखनीय विकास किया।

बाद में असीरिया के शासक तुकुती निर्ता (Tukuti Ninarta) ने बेबीलोन पर अधिकार कर लिया था। 625 ई० पू० में नैबोपोलास्सर (Nabopolassar) ने बेबीलोनिया को असीरियाई शासन से स्वतंत्र करवा लिया था। इस प्रकार नैबोपोलास्सर ने बेबीलोन में कैल्डियन वंश की स्थापना की। उसके एवं उसके उत्तराधिकारियों के अधीन बेबीलोन में एक गौरवपूर्ण युग का आरंभ हुआ। इसकी गणना विश्व के प्रमुख नगरों में की जाने लगी।

उस समय इसका क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था। इसके चारों ओर एक तिहरी दीवार (triple wall) बनाई गई थी। इसमें अनेक विशाल एवं भव्य राजमहलों एवं मंदिरों का निर्माण किया गया था। एक विशाल ज़िगुरात (Ziggurat) भाव सीढ़ीदार मीनार (stepped tower) बेबीलोन के आकर्षण का मुख्य केंद्र था।

बेबीलोन एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र भी था। इस नगर ने भाषा, साहित्य, विज्ञान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। 331 ई० पू० में सिकंदर ने बेबीलोन पर अधिकार कर लिया था। नैबोनिडस (Nabonidus) स्वतंत्र बेबीलोन का अंतिम शासक था।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया सभ्यता के ‘मारी नगर’ का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया करके प्रश्न नं० 3 के भाग 3 का उत्तर देखें।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों के स्वरूप की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया के शहरी जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शहरी जीवन की शुरुआत 3000 ई० पू० में मेसोपोटामिया में हुई थी। उर, उरुक, मारी, निनवै एवं बेबीलोन आदि मेसोपोटामिया के प्रमुख शहर थे। प्रारंभिक शहरी समाजों के स्वरूप के बारे में हम अग्रलिखित तथ्यों से अनुमान लगा सकते हैं

1. नगर योजना:
मेसोपोटामिया के नगर एक वैज्ञानिक योजना के अनुसार बनाए गए थे। नगरों में मज़बूत भवनों का निर्माण किया जाता था। अत: मकानों की नींव में पकाई हुई ईंटों का प्रयोग किया जाता था। उस समय अधिकतर घर एक मंजिला होते थे। इन घरों में एक खुला आँगन होता था। इस आँगन के चारों ओर कमरे बनाए जाते थे। गर्मी से बचने के लिए धनी लोग अपने घरों के नीचे तहखाने बनाते थे।

मकानों में प्रकाश के लिए खिड़कियों का प्रबंध होता था। उर नगर के लोग परिवारों की गोपनीयता बनाए रखने के लिए खिड़कियाँ नहीं बनाते थे। पानी की निकासी के लिए नालियों का प्रबंध किया जाता था। नगरों में यातायात की आवाजाही के लिए सड़कों का उचित प्रबंध किया जाता था। प्रशासन सड़कों की सफाई की ओर विशेष ध्यान देता था। सड़कों पर रोशनी का भी प्रबंध किया जाता था।

2. प्रमुख वर्ग :
उस समय प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता के भेद का प्रचलन हो चुका था। उस समय समाज में तीन प्रमुख वर्ग प्रचलित थे। प्रथम वर्ग कुलीन लोगों का था। इसमें राजा, राज्य के अधिकारी, उच्च सैनिक अधिकारी, धनी व्यापारी एवं पुरोहित सम्मिलित थे। इस वर्ग को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। इस वर्ग के लोग बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। वे भव्य महलों एवं भवनों में रहते थे। वे बहुमूल्य वस्त्रों को पहनते थे।

वे अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खाते थे। उनकी सेवा में अनेक दास-दासियाँ रहती थीं। दूसरा वर्ग मध्य वर्ग था। इस वर्ग में छोटे व्यापारी, शिल्पी, राज्य के अधिकारी एवं बुद्धिजीवी सम्मिलित थे। इनका जीवन स्तर भी काफी अच्छा था। तीसरा वर्ग समाज का सबसे निम्न वर्ग था। इसमें किसान, मजदूर एवं दास सम्मिलित थे। यह समाज का बहुसंख्यक वर्ग था।

इस वर्ग की स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। उर में मिली शाही कब्रों में राजाओं एवं रानियों के शवों के साथ अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ विशाल मात्रा में मिली हैं। दूसरी ओर साधारण लोगों के शवों के साथ केवल मामूली वस्तुओं को दफनाया जाता था। इससे स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय धन-दौलत का अधिकाँश हिस्सा एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था।

3. परिवार :
परिवार को समाज की आधारशिला माना जाता था। प्राचीन काल में मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार (nuclear family) का प्रचलन अधिक था। इस परिवार में पुरुष, उसकी पत्नी एवं उनके बच्चे सम्मिलित होते थे। पिता परिवार का मुखिया होता था। परिवार के अन्य सदस्यों पर उसका पूर्ण नियंत्रण होता था। अतः परिवार के सभी सदस्य उसके आदेशों का पालन करते थे। उस समय परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था। माता-पिता अपने बच्चों को बेच सकते थे। बच्चों का विवाह माता-पिता की सहमति से होता था। उस समय विवाह बहुत हर्षोल्लास के साथ किए जाते थे।

4. स्त्रियों की स्थिति:
प्रारंभिक शहरी समाज में स्त्रियों की स्थिति काफी अच्छी थी। उन्हें अनेक अधिकार प्राप्त थे। वे पुरुषों के साथ धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में समान रूप से भाग लेती थीं। पति की मृत्यु होने पर वह पति की संपत्ति की संरक्षिका मानी जाती थीं। पत्नी को पती से तलाक लेने एवं पुनः विवाह करने का अधिकार प्राप्त था। वे अपना स्वतंत्र व्यापार कर सकती थीं।

वे अपने पथक दास-दासियाँ रख सकती थीं। वे पुरोहित एवं समाज के अन्य उच्च पदों पर नियुक्त हो सकती थी। उस समय समाज में देवदासी प्रथा प्रचलित थी। उस समय पुरुष एक स्त्री से विवाह करता था किंतु उसे अपनी हैसियत के अनुसार कुछ उप-पत्नियाँ रखने का भी अधिकार प्राप्त था।

5. दासों की स्थिति :
प्रारंभिक शहरी समाजों में दासों की स्थिति सबसे निम्न थी। उस समय दास तीन प्रकार के थे-(i) युद्धबंदी (ii) माता-पिता द्वारा बेचे गये बच्चे एवं (iii) कर्ज न चुका सकने वाले व्यक्ति । दास बनाए गए व्यक्तियों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था। इन दासों को किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त न था। उन्हें अपने स्वामी के आदेशों का पालन करना पड़ता था। ऐसा न करने वाले दास अथवा दासी को कठोर दंड दिए जाते थे। यदि कोई दास भागने का प्रयास करते हुए पकड़ा जाता तो उसे मृत्यु दंड दिया जाता था।

स्वामी जब चाहे किसी दास की सेवा से प्रसन्न होकर उसे मुक्त कर सकता था। कोई भी दास अपने स्वामी को धन देकर अपनी मुक्ति प्राप्त कर सकता था। कोई भी स्वतंत्र नागरिक अपनी दासी को उप-पत्नी बना सकता था। दासी से उत्पन्न संतान को स्वतंत्र मान लिया जाता था।

6. मनोरंजन :
प्रारंभिक शहरी समाजों के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। नृत्य गान उनके जीवन का एक अभिन्न अंग था। मंदिरों में भी संगीत एवं नृत्य-गान के विशेष सम्मेलन होते रहते थे। वे शिकार खेलने, पशु-पक्षियों की लड़ाइयाँ देखने एवं कुश्तियाँ देखने के भी बहुत शौकीन थे। वे शतरंज खेलने में भी बहुत रुचि लेते थे। खिलौने बच्चों के मनोरंजन का मुख्य साधन थे।

प्रश्न 6.
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिरों तथा उनके महत्त्व के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिरों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिरों ने यहाँ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मेसोपोटामिया के लोग अपने देवी-देवताओं की स्मृति में अनेक मंदिरों का निर्माण करते थे। इनमें प्रमुख मंदिर नन्ना (Nanna) जो चंद्र देव था, अनु (Anu) जो सूर्य देव था, एनकी (Enki) जो वायु एवं जल देव था तथा इन्नाना (Inanna) जो प्रेम एवं युद्ध की देवी थी, के लिए बनाए गए थे। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नगर का अपना देवी-देवता होता था जो अपने नगर की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहते थे।

1. आरंभिक मंदिर :
दक्षिणी मेसोपोटामिया में आरंभिक मंदिर छोटे आकार के थे तथा ये कच्ची ईंटों के बने हुए थे। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे इन मंदिरों का महत्त्व बढ़ता गया वैसे-वैसे ये मंदिर विशाल एवं भव्य होते चले गए। इन मंदिरों को पर्वतों के ऊपर बनाया जाता था। उस समय मेसोपोटामिया के लोगों की यह धारणा थी कि देवता पर्वतों में निवास करते हैं। ये मंदिर पक्की ईंटों से बनाए जाते थे।

इन मंदिरों की विशेषता यह थी कि मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ खास अंतरालों के पश्चात् भीतर और बाहर की ओर मुड़ी होती थीं। साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं। इन मंदिरों के आँगन खुले होते थे तथा इनके चारों ओर अनेक कमरे बने होते थे। प्रमुख कमरों में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। कुछ कमरों में मंदिरों के परोहित निवास करते थे। अन्य कमरे मंदिर में आने वाले यात्रियों के लिए थे।

2. मंदिरों के क्रियाकलाप :
दक्षिणी मेसोपोटामिया के समाज में मंदिरों की उल्लेखनीय भूमिका थी। उस समय मंदिरों को बहुत-सी भूमि दान में दी जाती थी। इस भूमि पर खेती की जाती थी एवं पशु पालन किया जाता था। इनके अतिरिक्त इस भूमि पर उद्योगों की स्थापना की जाती थी एवं बाजार स्थापित किए जाते थे। इस कारण मंदिर बहुत धनी हो गए थे।

मेसोपोटामिया के मंदिरों में प्राय: विद्यार्थियों को शिक्षा भी दी जाती थी। शिक्षा का कार्य पुरोहितों द्वारा किया जाता था। अनेक मंदिरों में बड़े-बड़े पुस्तकालय भी स्थापित किए गए थे। मंदिरों द्वारा सामान की खरीद एवं बिक्री भी की जाती थी। मंदिरों द्वारा व्यापारियों को धन सूद पर दिया जाता था। इस कारण मंदिरों ने एक मुख्य शहरी संस्था का रूप धारण कर लिया था।

3. उपासना विधि:
दक्षिणी मेसोपोटामिया के लोग परलोक की अपेक्षा इहलोक की अधिक चिंता करते थे। वे अपने देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए अन्न, दही, खजूर एवं मछली आदि भेंट करते थे। इनके अतिरिक्त वे बैलों, भेड़ों एवं बकरियों आदि की बलियाँ भी देते थे। इन्हें विधिपूर्ण पुरोहितों के सहयोग से देवी-देवताओं को भेंट किया जाता था। उस समय मेसोपोटामिया के लोगों के कर्मकांड न तो अधिक जटिल थे एवं न ही अधिक खर्चीले। इसके बदले उपासक यह आशा करते थे कि उनके जीवन में कभी कष्ट न आएँ।

4. मनोरंजन के केंद्र :
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिर केवल उपासना के केंद्र ही नहीं थे अपितु वे मनोरंजन के केंद्र भी थे। इन मंदिरों में स्थानीय गायक अपनी कला से लोगों का मनोरंज करते थे। इन मंदिरों में समूहगान एवं लोक नृत्य भी हुआ करते थे। यहाँ नगाड़े एवं अन्य संगीत यंत्रों को बजाया जाता था। त्योहारों के अवसरों पर यहाँ बड़ी संख्या में लोग आते थे। वे एक-दूसरे के संपर्क में आते थे तथा उनमें एक नया प्रोत्साहन उत्पन्न होता था।

5. लेखन कला के विकास में योगदान :
दक्षिणी मेसोपोटामिया में लेखन कला के विकास में मंदिरों ने उल्लेखनीय योगदान दिया। लेखन कला के अध्ययन एवं अभ्यास के लिए अनेक मंदिरों में पाठशालाएँ स्थापित की गई थीं। यहाँ विद्यार्थियों को सर्वप्रथम संकेतों की नकल करना सिखाया जाता था। धीरे-धीरे वे कठिन शब्दों को लिखने में समर्थ हो जाते थे। क्योंकि उस समय बहत कम लोग लिपिक का कार्य कर सकते थे इसलिए समाज में इस वर्ग की काफी प्रतिष्ठा थी।

प्रश्न 7.
लेखन पद्धति के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
लेखन पद्धति के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव इतिहास पर लेखन कला का क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
लेखन कला की दुनिया को सबसे बड़ी देन क्या है ?
उत्तर:
I. लेखन कला का विकास

किसी भी देश की सभ्यता के बारे में जानने के लिए हमें उस देश की लिपि एवं भाषा का ज्ञात होना अत्यंत आवश्यक है। प्रारंभिक नगरों की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि लेखन कला का विकास था। इसे सभ्यता के विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पग माना जाता है। मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लिपि की खोज सुमेर में 3200 ई० पू० में हुई। इस लिपि का आरंभ वहाँ के मंदिरों के पुरोहितों ने किया। उस समय मंदिर विभिन्न क्रियाकलापों और व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे। इन मंदिरों की देखभाल पुरोहितों द्वारा स्वतंत्र रूप से की जाती थी।

पुरोहित मंदिरों की आय-व्यय तथा व्यापार का पूर्ण विवरण एक निराले ढंग से रखते थे। वे मिट्टी की पट्टिकाओं पर मंदिरों को मिलने वाले सामानों एवं जानवरों के चित्रों जैसे चिह्न बनाकर उनकी संख्या भी लिखते थे। हमें मेसोपोटामिया के दक्षिणी नगर उरुक के मंदिरों से संबंधित लगभग 5000 सूचियाँ मिली हैं। इनमें बैलों, मछलियों एवं रोटियाँ आदि के चित्र एवं संख्याएँ दी गई हैं। इससे वस्तुओं को स्मरण रखना सुगम हो जाता था। इस प्रकार मेसोपोटामिया में चित्रलिपि (pictographic script) का जन्म हुआ।

मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं (tablets of clay) पर लिखा करते थे। लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करता था। इसके पश्चात् उसे गूंध कर एक ऐसे आकार की पट्टी का रूप दे देता था जिसे वह सुगमता से अपने हाथ में पकड़ सके। इसके बाद वह सरकंडे की तीली की तीखी नोक से उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाकार चिह्न (cuneiform) बना देता था। इसे बाएं से दाएँ लिखा जाता था। इस लिपि का प्रचलन 2600 ई० पू० में हुआ था। 1850 ई० पू० में कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना एवं पढ़ा गया। ये पट्टिकाएँ विभिन्न आकारों की होती थीं। जब इन पट्टिकाओं पर लिखने का कार्य पूर्ण हो जाता था तो इन्हें पहले धूप में सुखाया जाता था तथा फिर आग में पका लिया जाता था।

इस कारण वे पत्थर की तरह कठोर हो जाया करती थीं। इसके तीन लाभ थे। प्रथम, वे पेपिरस (pepirus) की तरह जल्दी नष्ट नहीं होती थीं। दूसरा, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित ले जाया जा सकता था। तीसरा, एक बार लिखे जाने पर इनमें किसी प्रकार का परिवर्तन करना संभव नहीं था। इस लिपि का प्रयोग अब मंदिरों को दान में प्राप्त वस्तुओं का ब्योरा रखने के लिए नहीं अपितु शब्द कोश बनाने, भूमि के हस्तांतरण को कानूनी मान्यता देने तथा राजाओं के कार्यों का वर्णन करने के लिए किया जाने लगा।

मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन (Sumerian) थी। 2400 ई० पू० के आस-पास सुमेरियन भाषा का स्थान अक्कदी (Akkadi) भाषा ने ले लिया। 1400 ई० पू० से धीरे-धीरे अरामाइक (Aramaic) भाषा का प्रचलन आरंभ हुआ। 1000 ई० पू० के पश्चात् अरामाइक भाषा का प्रचलन व्यापक रूप से होने लगा। यद्यपि मेसोपोटामिया में लिपि का प्रचलन हो चुका था किंतु इसके बावजूद यहाँ साक्षरता (literacy) की दर बहुत कम थी।

इसका कारण यह था कि केवल चिह्नों की संख्या 2000 से अधिक थी। इसके अतिरिक्त यह भाषा बहुत पेचीदा थी। अतः इस भाषा को केवल विशेष प्रशिक्षण प्राप्त लोग ही सीख सकते थे। मेसोपोटामिया की लिपि के कारण ही इतिहासकार इस सभ्यता पर विस्तृत प्रकाश डाल सके हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड एल० ग्रीवस का यह कथन ठीक है कि, “सुमेरियनों की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं दीर्घकालीन सफलता उनकी लेखन कला का विकास था।”1

II. लेखन कला की देन

मेसोपोटामिया में लेखन कला के आविष्कार को मानव इतिहास की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता था। यह मानव सभ्यता के विकास में एक मील का पत्थर सिद्ध हुई। लेखन कला के कारण सम्राट के आदेशों, उनके समझौतों तथा कानूनों को दस्तावेज़ों का रूप देना संभव हुआ। मेसोपोटामिया ने विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों-गणित, खगोल विद्या तथा औषधि विज्ञान में आश्चर्यजनक उन्नति की थी। उनके लिखित दस्तावेजों के कारण विश्व को उनके अमूल्य ज्ञान का पता चला।

उनके द्वारा दी गई वर्ग, वर्गमूल, चक्रवृद्धि ब्याज, गुणा तथा भाग, वर्ष का 12 महीनों में विभाजन, 1 महीने का 4 हफ्तों में विभाजन, 1 दिन का 24 घंटों में तथा 1 घंटे का 60 मिनटों में विभाजन, सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण, आकाश में तारों तथा तारामंडल की स्थिति को आज पूरे विश्व में मान्यता दी गई है। लेखन कला के विकास के कारण मेसोपोटामिया में शिक्षा एवं साहित्य के विकास में आशातीत विकास हुआ। निनवै से प्राप्त हुआ एक विशाल पुस्तकालय इसकी पुष्टि करता है। इस कारण लोगों में नव-चेतना का संचार हुआ। संक्षेप में इसने मेसोपोटामिया के समाज पर दूरगामी प्रभाव डाले।

क्रम संख्या

क्रम संख्याकालघटना
1.7000-6000 ई० पू०मेसोपोटामिया में कृषि का आरंभ।
2.3200 ई० पू०मेसोपोटामिया में लेखन कला का विकास।
3.3050 ई० पू०लगश के प्रथम शासक उरनिना का सिंहासन पर बैठना।
4.3000 ई० पू०मेसोपोटामिया में नगरों का उत्थान, उरुक नगर का आरंभ, वार्का शीर्ष का प्राप्त होना।
5.2000-1759 ई० पू०मारी नगर का उत्थान।
6.2800-2370 ई० पू०किश नगर का विकास।
7.2670 ई० पू०मेसनीपद का उर के सिंहासन पर बैठना।
8.2600 ई० पू०कीलाकार लिपि का प्रचलन।
9.2400 ई० पू०सुमेरियन के स्थान पर अक्कदी भाषा का प्रयोग।
10.2200 ई० पू०एलमाइटों द्वारा उर नगर का विनाश।
11.2000 ई० पू०गिल्गेमिश महाकाव्य को 12 पट्टिकाओं पर लिखवाना।
12.1810-1760 ई० पू०ज़िमरीलिम के मारी स्थित राजमहल का निर्माण।
13.2400 ई० पू०सुमेरियन भाषा का प्रचलन बंद होना।
14.1800 ई० पू०नीनस द्वारा निनवै की स्थापना।
15.1780-1750 ई० पू०हामूराबी का शासनकाल।
16.1759 ई० पू०हामूराबी द्वारा मारी नगर का विनाश।
17.1400 ई० पू०अरामाइक भाषा का प्रचलन।
18.705-681 ई० पू०निनवै में सेनाचारिब का शासनकाल।
19.668-627 ई० पू०असुरबनिपाल का शासनकाल।
20.625 ई० पू०नैबोपोलास्सर द्वारा बेबीलोनिया को असीरियाई शासन से स्वतंत्र करवाना।
21.612 ई० पू०नैबोपोलास्सर द्वारा निमरुद नगर का विनाश।
22.1840 ईमेसोपोटामिया में पुरातत्त्वीय खोजों का आरंभ।
23.1845-1851 ई०हेनरी अस्टेन लैयार्ड द्वारा निमरुद नगर का उत्खनन।
24.1850 ईकीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना एवं पढ़ा गया। जुलीयस जोर्डन द्वारा उरुक नगर की खुदाई।
25.1913 ई०सर लियोनार्ड वूले द्वारा उर नगर की खुदाई।
261920-1930 ई。फ्रांसीसियों द्वारा मारी नगर का उत्खनन।
27.1933 ई०नैबोपोलास्सर द्वारा निमरुद नगर का विनाश।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दजला एवं फ़रात नदियों ने मेसोपोटामिया के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैसे ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया से अभिप्राय है दो नदियों के मध्य का प्रदेश। ये नदियाँ हैं दजला एवं फ़रात । इन नदियों को मेसोपोटामिया सभ्यता की जीवन रेखा कहा जाता है। दजला एवं फ़रात नदियों का उद्गम आर्मीनिया के उत्तरी पर्वतों तोरुस से होता है। इन पर्वतों की ऊँचाई लगभग 10,000 फुट है। यहाँ लगभग सारा वर्ष बर्फ जमी रहती है। इस क्षेत्र में वर्षा भी पर्याप्त होती है। दजला 1850 किलोमीटर लंबी है।

इसका प्रवाह तीव्र है तथा इसके तट ऊँचे एवं अधिक कटे-फटे हैं। इसलिए प्राचीनकाल में इस नदी के तटों पर बहुत कम नगरों की स्थापना हुई थी। दूसरी ओर फ़रात नदी ने मेसोपोटामिया के इतिहास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

यह नदी 2350 किलोमीटर लंबी है। इसका प्रवाह कम तीव्र है। इसके तट कम ऊँचे एवं कम कटे-फटे हैं। इस कारण प्राचीनकाल के प्रसिद्ध नगरों की स्थापना इस नदी के तटों पर हुई। दजला एवं फ़रात नदियाँ उत्तरी पर्वतों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती थीं। इस उपजाऊ मिट्टी के कारण एवं नहरों के कारण यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था।

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन के बावजूद कृषि अनेक बार संकट से घिर जाती थी। क्यों ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से घिर जाती थी। इसके अनेक कारण थे। प्रथम, दजला एवं फ़रात नदियों में कभी-कभी भयंकर बाढ़ आ जाती थी। इस कारण फ़सलें नष्ट हो जाती थीं। दूसरा, कई बार पानी की तीव्र गति के कारण ये नदियाँ अपना रास्ता बदल लेती थीं। इससे सिंचाई व्यवस्था चरमरा जाती थी। मेसोपोटामिया में वर्षा की कमी होती थी।

अतः फ़सलें सूख जाती थीं। तीसरा, नदी के ऊपरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग नहरों का प्रवाह अपने खेतों की ओर मोड़ लेते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में बसे हुए गाँवों को खेतों के लिए पानी नहीं मिलता था। चौथा, ऊपरी क्षेत्रों के लोग अपने हिस्से की सरणी में से मिट्टी नहीं निकालते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में पानी का बहाव रुक जाता था। इस कारण पानी के लिए गाँववासियों में अनेक बार झगड़े हुआ करते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 3.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में शहरीकरण के विकास में प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर का बहुमूल्य योगदान था। यहाँ की भूमि में प्राकृतिक उर्वरता थी। इससे खेती को बहुत प्रोत्साहन मिला। प्राकृतिक उर्वरता के कारण पशुओं को चारे के लिए कोई कमी नहीं थी। अत: पशुपालन को भी प्रोत्साहन मिला। पशुओं से न केवल दूध, माँस एवं ऊन प्राप्त किया जाता था अपितु उनसे खेती एवं यातायात का कार्य भी लिया जाता था। खेती एवं पशुपालन के कारण मानव जीवन स्थायी बन गया।

अत: उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान पर घूमने की आवश्यकता नहीं रही। स्थायी जीवन होने के कारण मानव झोंपड़ियाँ बना कर साथ-साथ रहने लगा। इस प्रकार गाँव अस्तित्व में आए। खाद्य उत्पादन के बढ़ने से वस्तु विनिमय की प्रक्रिया आरंभ हो गई। इस कारण नये-नये व्यवसाय आरंभ हो गए। इससे नगरीकरण की प्रक्रिया को बहुत बल मिला।

प्रश्न 4.
नगरीय विकास में श्रम विभाजन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
श्रम विभाजन को नगरीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है। नगरों के लोग आत्मनिर्भर नहीं होते। उन्हें विभिन्न प्रकार की सेवाओं के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा बनाने वाले को पत्थर पर उकेरने के लिए काँसे के औज़ारों की आवश्यकता होती है। ऐसे औजारों का वह स्वयं निर्माण नहीं करता। इसके अतिरिक्त वह मुद्रा बनाने के लिए आवश्यक रंगीन पत्थर के लिए भी अन्य व्यक्तियों पर निर्भर करता है।

वह व्यापार करना भी नहीं जानता। उसकी विशेषज्ञता तो केवल पत्थर उकेरने तक ही सीमित होती है। इस प्रकार नगर के लोग अन्य लोगों पर उनकी सेवाओं के लिए अथवा उनके द्वारा उत्पन्न की गई वस्तुओं पर निर्भर करते हैं। संक्षेप में श्रम विभाजन को शहरी जीवन का एक महत्त्वपूर्ण आधार माना जाता है।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया में मुद्राएँ किस प्रकार बनाई जाती थीं तथा इनका क्या महत्त्व था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के नगरों से हमें बड़ी संख्या में मुद्राएँ मिली हैं। ये मुद्राएँ पत्थर की होती थीं तथा इनका आकार बेलनाकार था। ये बीच में आर-पार छिदी होती थीं। इसमें एक तीली लगायी जाती थी। इसे फिर गीली मिट्टी के ऊपर घुमा कर चित्र बनाए जाते थे। इन्हें अत्यंत कुशल कारीगरों द्वारा उकेरा जाता था। इन मुद्राओं पर कभी-कभी इसके स्वामी का नाम, उसके देवता का नाम तथा उसके रैंक आदि का वर्णन भी किया जाता था।

इन मुद्राओं का प्रयोग व्यापारियों द्वारा अपना सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित भेजने के लिए किया जाता था। ये व्यापारी अपने सामान को एक गठरी में बाँध कर ऊपर गाँठ लगा लेते थे। इस गाँठ पर वह मुद्रा का ठप्पा लगा देते थे। इस प्रकार यह मुद्रा उस सामान की प्रामाणिकता का प्रतीक बन जाती थी। यदि यह मुद्रा टूटी हुई पाई जाती तो पता लग जाता कि रास्ते में सामान के साथ छेड़छाड़ की गई है अन्यथा भेजा गया सामान सुरक्षित है। निस्संदेह मुद्राओं के प्रयोग ने नगरीकरण के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

प्रश्न 6.
3000 ई० पू० में उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया गया। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर:
3000 ई० पू० के आस-पास उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। इसका अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि उस समय के लोगों ने अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग आरंभ कर दिया था। इसके अतिरिक्त वास्तुविदों ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया था। इससे भवन निर्माण कला के क्षेत्र में एक नयी क्राँति आई।

इसका कारण यह था कि उस समय बड़े-बड़े कमरों की छतों के बोझ को संभालने के लिए शहतीर बनाने के लिए उपयुक्त लकड़ी उपलब्ध नहीं थी। बड़ी संख्या में लोग चिकनी मिट्टी के शंकु बनाने एवं पकाने का कार्य करते थे। इन शंकुओं को भिन्न-भिन्न रंगों से रंगा जाता था। इसके पश्चात् इन्हें मंदिरों की दीवारों पर लगाया जाता था।

इससे मंदिरों की सुंदरता बहुत बढ़ जाती थी। उरुक नगर के लोगों ने मूर्तिकला के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की। इसका अनुमान 3000 ई० पू० में उरुक नगर से प्राप्त वार्का शीर्ष से लगाया जा सकता है। यह एक स्त्री का सिर था। इसे सफ़ेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था। इसके सिर के ऊपर एक खाँचा बनाया गया था जिसे शायद आभूषण पहनने के लिए बनाया गया था। कुम्हार के चाक के निर्माण से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इस कारण बड़ी संख्या में एक जैसे बर्तन बनाना सुगम हो गया।

प्रश्न 7.
उर नगर में नगर योजना का पालन नहीं किया गया था। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उर नगर के उत्खनन से जो निष्कर्ष सामने आता है उससे यह ज्ञात होता है कि इसमें नगर योजना का पालन नहीं किया गया था। इस नगर की गलियाँ संकरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी थीं। अतः पहिए वाली गाड़ियों का घरों तक पहुँचना संभव न था। अतः अनाज के बोरों तथा ईंधन के गट्ठों को संभवतः गधों पर लाद कर पहुँचाया जाता था।

उर नगर में मोहनजोदड़ो की तरह जल निकासी के लिए गलियों के किनारे नालियाँ नहीं थीं। ये नालियाँ घरों के भीतरी आँगन में पाई गई हैं। इससे यह सहज अनुमान लगाया जाता है कि घरों की छतों का ढलान भीतर की ओर होता था। अत: वर्षा के पानी का निकास नालियों के माध्यम से आँगन के भीतर बनी हुई हौजों में ले जाया जाता था। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि तीव्र वर्षा के कारण घरों के बाहर बनी कच्ची गलियों में कीचड़ न एकत्र हो जाए।

उर नगर की खुदाई से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उस समय के लोग अपने घर का सारा कूड़ा कचरा बाहर गलियों में फेंक देते थे। इस कारण गलियों की सतहें ऊँची उठ जाती थीं। इस कारण कुछ समय बाद घरों के बरामदों को भी ऊँचा करना पड़ता था ताकि वर्षा के दिनों में बाहर से पानी एवं कूड़ा बह कर घरों के अंदर न आ जाए।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 8.
मारी नगर क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
1) मारी में अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई तथा आर्मीनियन जाति के लोग रहते थे। मारी के राजा एमोराइट समुदाय से संबंधित थे। उनकी पोशाक वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी। मारी के राजा मेसोपोटामिया के विभिन्न देवी-देवताओं का बहुत सम्मान करते थे। इस प्रकार मारी में विभिन्न जातियों एवं समुदायों के मिश्रण से वहाँ एक नई संस्कृति का जन्म हुआ।

2) मारी के प्रसिद्ध शासक ज़िमरीलिम ने वहाँ एक विशाल राजमहल का निर्माण करवाया था। यह 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके 260 कमरे थे। यह अपने समय में न केवल अन्य राजमहलों में सबसे विशाल था अपितु यह अत्यंत सुंदर भी था। इसका निर्माण विभिन्न रंगों के सुंदर पत्थरों से किया गया था।

3) मारी नगर व्यापार का एक प्रसिद्ध केंद्र भी था। इसके न केवल मेसोपोटामिया के अन्य नगरों अपितु विदेशों, तुर्की, सीरिया, लेबनान, ईरान आदि देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे। मारी में आने-जाने वाले जहाजों के सामान की अधिकारियों द्वारा जाँच की जाती थी। वे जहाजों में लदे हुए माल की कीमत का लगभग 10% प्रभार वसूल करते थे।

प्रश्न 9.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए ख़तरा थे ?
उत्तर:
खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए एक ख़तरा थे। इसके निम्नलिखित कारण थे।

  • गड़रिये आमतौर पर अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों में से गुज़ार ले जाते थे। इससे फ़सलों को भारी क्षति पहुँचती थी।
  • कई बार ये गड़रिये जो खानाबदोश होते थे, किसानों के गाँवों पर आक्रमण कर उनके माल को लूट लेते थे। इससे शहरी अर्थव्यवस्था को आघात पहुँचता था।
  • अनेक बार किसान इन पशुचारकों का रास्ता रोक लेते थे तथा उन्हें पशुओं को जल स्रोतों तक नहीं ले जाने देते थे। इस कारण उनमें आपसी झगड़े होते थे।
  • कुछ गड़रिये फ़सल काटने वाले मजदूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में शहर आते थे। समृद्ध होने पर वे वहीं बस जाते थे।
  • खानाबदोश समुदायों के पशुओं के अतिचारण से बहुत-ही उपजाऊ जमीन बंजर हो जाती थी।

प्रश्न 10.
मारी स्थित ज़िमरीलिम के राजमहल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मारी के प्रसिद्ध शासक ज़िमरीलिम ने मारी में एक भव्य राजमहल का निर्माण (1810-1760 ई० पू०) करवाया था। यह 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके 260 कमरे थे। यह अपने समय में न केवल अन्य राजमहलों में सबसे विशाल था अपितु यह अत्यंत सुंदर भी था। इसका निर्माण विभिन्न रंगों के सुंदर पत्थरों से किया गया था। इस राजमहल में लगे भित्ति चित्र बहुत सुंदर एवं सजीव थे।

इस राजमहल की भव्यता को अपनी आँखों से देखने सीरिया एवं अलेप्पो के शासक स्वयं आए थे। यह राजमहल वहाँ के शाही परिवार का निवास स्थान था। यह प्रशासन का मुख्य केंद्र था। यहाँ कीमती धातुओं के आभूषणों का निर्माण भी किया जाता था। इस राजमहल का केवल एक ही द्वार था जो उत्तर की ओर बना हुआ था।

प्रश्न 11.
असुरबनिपाल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
असुरबनिपाल की गणना निनवै के महान् शासकों में की जाती है। उसने 668 ई० पू० से 627 ई० पू० तक शासन किया था। वह महान् भवन निर्माता था। अतः उसने अपने साम्राज्य में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। उसने पुराने भवनों एवं मंदिरों की मुरम्मत भी करवाई। उसने अनेक उद्यान स्थापित किए। इससे निनवै की सुंदरता को चार चाँद लग गए। वह महान् साहित्य प्रेमी भी था।

उसने निनवै में नाबू मंदिर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी। इस पुस्तकालय में उसने अनेक प्रसिद्ध लेखकों को बुला कर उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों को रखवाया था। इस पुस्तकालय में लगभग 1000 मूल ग्रंथ एवं 30,000 पट्टिकाएँ थीं। इन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था। इनमें प्रमुख विषय ये थे-इतिहास, महाकाव्य, ज्योतिष, दर्शन, विज्ञान एवं कविताएँ। असुरबनिपाल ने स्वयं भी अनेक पट्टिकाएँ लिखीं।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया के नगर बेबीलोन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
बेबीलोन दजला नदी के उत्तर-पश्चिम में स्थित था। इसकी राजधानी का नाम बेबीलोनिया था। इस नगर ने प्राचीन काल मेसोपोटामिया के इतिहास में अत्यंत उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। इस नगर की स्थापना अक्कद के शासक सारगोन ने की थी। उसने यहाँ अनेक भवनों का निर्माण करवाया। हामूराबी के शासनकाल में बेबीलोन ने अद्वितीय विकास किया। बाद में असीरिया ने बेबीलोन पर अधिकार कर लिया था। 625 ई० पू० में नैबोपोलास्सर ने बेबीलोनिया को असीरियाई शासन से स्वतंत्र करवा लिया था। उसके एवं उसके उत्तराधिकारियों के अधीन बेबीलोन में एक गौरवपूर्ण युग का आरंभ हुआ।

इसकी गणना विश्व के प्रमुख नगरों में की जाने लगी। इसका क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था। इसके चारों ओर एक तिहरी दीवार बनाई गई थी। इसमें अनेक विशाल एवं भव्य राजमहलों एवं मंदिरों का निर्माण किया गया था। बेबीलोन एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र भी था। इस नगर ने भाषा, साहित्य, विज्ञान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। नगर में एक ज़िगुरात यानी सीढ़ीदार मीनार थी एवं नगर के मुख्य अनुष्ठान केंद्र तक शोभायात्रा के लिए एक विस्तृत मार्ग बना हुआ था।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता का भेद आरंभ हो चुका था। कैसे ?
उत्तर:
उस समय प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता का भेद आरंभ हो चुका था। उस समय समाज में तीन प्रमुख वर्ग प्रचलित थे। प्रथम वर्ग कुलीन लोगों का था। इसमें राजा, राज्य के अधिकारी, उच्च सैनिक अधिकारी, धनी व्यापारी एवं पुरोहित सम्मिलित थे। इस वर्ग को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। इस वर्ग के लोग बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। वे सुंदर महलों एवं भवनों में रहते थे।

वे मूल्यवान वस्त्रों को पहनते थे। वे अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खाते थे। उनकी सेवा में अनेक दास-दासियाँ रहती थीं। दूसरा वर्ग मध्य वर्ग था। इस वर्ग में छोटे व्यापारी, शिल्पी, राज्य के अधिकारी एवं बुद्धिजीवी सम्मिलित थे। इनका जीवन स्तर भी काफी अच्छा था। तीसरा वर्ग समाज का सबसे निम्न वर्ग था। इसमें किसान, मजदूर एवं दास सम्मिलित थे।

यह समाज का बहुसंख्यक वर्ग था। इस वर्ग की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उर में मिली शाही कब्रों में राजाओं एवं रानियों के शवों के साथ अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ जैसे आभूषण, सोने के पात्र, सफेद सीपियाँ और लाजवर्द जड़े हुए लकड़ी के वाद्य यंत्र, सोने के सजावटी खंजर आदि विशाल मात्रा में मिले हैं। दूसरी ओर साधारण लोगों के शवों के साथ केवल मामूली से बर्तनों को दफनाया जाता था। इससे स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय धन-दौलत का अधिकांश हिस्सा एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था।

प्रश्न 14.
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन का होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन का होना निम्नलिखित कारणों से ज़रूरी है
1) शहरी विनिर्माताओं के लिए ईंधन, धातु, विभिन्न प्रकार के पत्थर तथा लकड़ी इत्यादि आवश्यक वस्तुएँ विभिन्न स्थानों से आती हैं। इसके लिए संगठित व्यापार और भंडारण की आवश्यकता होती है।

2) शहरों में अनाज एवं अन्य खाद्य पदार्थ गाँवों से आते हैं। अतः उनके संग्रहण एवं वितरण के लिए व्यवस्था की आवश्यकता होती है।

3) अनेक प्रकार के क्रियाकलापों में तालमेल की ज़रूरत होती है। उदाहरण के लिए मोहरों को बनाने वालों को केवल पत्थर ही नहीं, अपितु उन्हें तराश्ने के लिए औज़ार भी चाहिए।

4) शहरी अर्थव्यवस्था में अपना हिसाब-किताब भी लिखित रूप में रखना होता है।

5) ऐसी प्रणाली में कुछ लोग आदेश देते हैं एवं दूसरे उनका पालन करते हैं।

प्रश्न 15.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे।
उत्तर:
इसमें कोई संदेह नहीं कि मेसोपोटामिया के कुछ मंदिर घर जैसे ही थे। ये मंदिर छोटे आकार के थे तथा ये कच्ची ईंटों के बने हुए थे। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे इन मंदिरों का महत्त्व बढ़ता गया वैसे-वैसे ये मंदिर विशाल एवं भव्य होते चले गए। इन मंदिरों को पर्वतों के ऊपर बनाया जाता था। उस समय मेसोपोटामिया के लोगों की यह धारणा थी कि देवता पर्वतों में निवास करते हैं। ये मंदिर पक्की ईंटों से बनाए जाते थे।

इन मंदिरों की विशेषता यह थी कि मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ खास अंतरालों के पश्चात् भीतर और बाहर की ओर मुड़ी होती थीं। साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं। इन मंदिरों के आँगन खुले होते थे तथा इनके चारों ओर अनेक कमरे बने होते थे। प्रमुख कमरों में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। कुछ कमरों में मंदिरों के पुरोहित निवास करते थे। अन्य कमरे मंदिर में आने वाले यात्रियों के लिए थे।

प्रश्न 16.
गिल्गेमिश के महाकाव्य के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गिल्गेमिश के महाकाव्य को विश्व साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त है। गिलोमिश रुक का एक प्रसिद्ध शासक था जिसने लगभग 2700 ई० पू० वहाँ शासन किया था। उसके महाकाव्य को 2000 ई० पू० में 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था। इस महाकाव्य में गिल्गेमिश के बहादुरी भरे कारनामों एवं मृत्यु की मानव पर विजय का बहुत मर्मस्पर्शी वर्णन किया गया है। गिल्गेमिश उरुक का एक प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली शासक था।

वह एक महान् योद्धा था। उसने अनेक प्रदेशों को अपने अधीन कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली थी। जहाँ एक ओर गिल्गेमिश बहुत बहादुर था वहीं दूसरी ओर वह बहुत अत्याचारी भी था। उसके अत्याचारों से देवताओं ने उसके अत्याचारों से प्रजा को मुक्त करवाने के उद्देश्य से एनकीडू को भेजा। दोनों के मध्य एक लंबा युद्ध हुआ।

इस युद्ध में दोनों अविजित रहे। इस कारण दोनों में मित्रता स्थापित हो गई। इसके पश्चात् गिल्गेमिश एवं एनकीडू ने अपना शेष जीवन मानवता की सेवा करने में व्यतीत किया। कुछ समय के पश्चात् एनकोडू एक सुंदर नर्तकी के प्रेम जाल में फंस गया। इस कारण देवता उससे नाराज़ हो गए एवं दंडस्वरूप उसके प्राण ले लिए। एनकीडू की मृत्यु से गिल्गेमिश को गहरा सदमा लगा। वह स्वयं मृत्यु से भयभीत रहने लगा।

इसलिए उसने अमृत्तव की खोज आरंभ की। वह अनेक कठिनाइयों को झेलता हुआ उतनापिष्टिम से मिला। अंतत: गिल्गेमिश के हाथ निराशा लगी। उसे यह स्पष्ट हो गया कि पृथ्वी पर आने वाले प्रत्येक जीव की मृत्यु निश्चित है। अत: वह इस बात से संतोष कर लेता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र एवं उरुक निवासी जीवित रहेंगे।

प्रश्न 17.
मेसोपोटामिया की लेखन प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करता था। इसके पश्चात् उसे गूंध कर एक ऐसे आकार की पट्टी का रूप दे देता था जिसे वह सुगमता से अपने हाथ में पकड़ सके। इसके बाद वह सरकंडे की तीली की तीखी नोक से उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाकार चिह्न बना देता था। इसे बाएँ से दाएँ लिखा जाता था।

इस लिपि का प्रचलन 2600 ई० पू० में हुआ था। 1850 ई० पू० में कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना एवं पढ़ा गया। ये पट्टिकाएँ विभिन्न आकारों की होती थीं। जब इन पट्टिकाओं पर लिखने का कार्य पूर्ण हो जाता था तो इन्हें पहले धूप में सुखाया जाता था तथा फिर आग में पका लिया जाता था। इस कारण वे पत्थर की तरह कठोर हो जाया करती थीं। इसके तीन लाभ थे।

प्रथम, वे पेपिरस की तरह जल्दी नष्ट नहीं होती थीं। दूसरा, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित ले जाया जा सकता था। तीसरा, एक बार लिखे जाने पर इनमें किसी प्रकार का परिवर्तन करना संभव नहीं था। इस लिपि का प्रयोग अब मंदिरों को दान में प्राप्त वस्तुओं का ब्योरा रखने के लिए नहीं अपितु शब्द कोश बनाने, भूमि के हस्तांतरण को कानूनी मान्यता देने तथा राजाओं के कार्यों का वर्णन करने के लिए किया जाने लगा।

प्रश्न 18.
विश्व को मेसोपोटामिया की क्या देन है?
उत्तर:
विश्व को मेसोपोटामिया ने निम्नलिखित क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान दिया

  • उसकी कालगणना तथा गणित की विद्वत्तापूर्ण परंपरा को आज तार्किक माना जाता है।
  • उसने गुणा और भाग की जो तालिकाएँ, वर्ग तथा वर्ममूल और चक्रवृद्धि ब्याज की जो सारणियाँ दी हैं उन्हें आज सही माना जाता है।
  • उन्होंने 2 के वर्गमूल का जो मान दिया है वह आज के वर्गमूल के मान के बहुत निकट है।
  • उन्होंने एक वर्ष को 12 महीनों, एक महीने को 4 हफ्तों, एक दिन को 24 घंटों तथा एक घंटे को 60 मिनटों में विभाजित किया है। इसे आज पूर्ण विश्व द्वारा अपनाया गया है।
  • उनके द्वारा सूर्य एवं चंद्र ग्रहण, तारों और तारामंडल की स्थिति को आज तार्किक माना जाता है।
  • उन्होंने आधुनिक विश्व को लेखन कला के अवगत करवाया।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के दो शब्दों ‘मेसोस’ तथा ‘पोटैमोस’ से बना है। मेसोस से भाव है मध्य तथा पोटैमोस का अर्थ है नदी। इस प्रकार मेसोपोटामिया से अभिप्राय है दो नदियों के मध्य स्थित प्रदेश।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया का आधुनिक नाम क्या है ? यह किन दो नदियों के मध्य स्थित है ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया का आधुनिक नाम इराक है।
  • यह दजला एवं फ़रात नदियों के मध्य स्थित है।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया के बारे में ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ में क्या लिखा हुआ है ?
उत्तर:
यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया इसलिए महत्त्वपूर्ण था क्योंकि बाईबल के प्रथम भाग ओल्ड टेस्टामेंट में मेसोपोटामिया का उल्लेख अनेक संदर्भो में किया गया है। ओल्ड टेस्टामेंट की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ में ‘शिमार’ का उल्लेख हैं जिसका अर्थ सुमेर ईंटों से बने शहरों की भूमि से हैं।

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदान हैं। यहाँ 7000 ई० पू० से 6000 ई० पू० के मध्य खेती शुरू हो गई थी।
  • मेसोपोटामिया के उत्तर में स्टेपी घास के मैदान हैं। यहाँ पशुपालन का व्यवसाय काफी विकसित हैं।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। इसके बावजूद यहाँ नगरों का विकास क्यों हुआ ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में नगरों का विकास इसलिए हुआ क्योंकि यहाँ दजला एवं फ़रात नदियाँ पहाड़ों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती हैं। अतः यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता है। इसे नगरों के विकास के लिए रीढ़ की हड्डी माना जाता है।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से क्यों घिर जाती थी ? कोई दो कारण बताएँ।
अथवा
मेसोपोटामिया में कृषि संकट के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • दजला एवं फ़रात नदियों में बाढ़ के कारण फ़सलें नष्ट हो जाती थीं।
  • कई बार वर्षा की कमी के कारण फ़सलें सूख जाती थीं।

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया में नगरों का विकास कब आरंभ हुआ ? किन्हीं दो प्रसिद्ध नगरों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में नगरों का विकास 3000 ई०पू० में आरंभ हुआ।
  • मेसोपोटामिया के दो प्रसिद्ध नगरों के नाम उरुक एवं मारी थे।

प्रश्न 8.
मेसोपोटामिया में कितने प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ ? इनके नाम क्या थे ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में तीन प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ।
  • इनके नाम थे-धार्मिक नगर, व्यापारिक नगर एवं शाही नगर।

प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया में नगरीकरण के उत्थान के कोई दो कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • अत्यंत उत्पादक खेती।।
  • जल-परिवहन की कुशल व्यवस्था।

प्रश्न 10.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे ?
उत्तर:

  • प्राकृतिक उर्वरता के कारण कृषि एवं पशुपालन को प्रोत्साहन मिला।
  • खाद्य उत्पादक बन जाने के कारण मनुष्य का जीवन स्थायी बन गया।
  • प्राकृतिक उर्वरता एवं खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ने नए व्यवसायों को आरंभ किया। ]

प्रश्न 11.
श्रम विभाजन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
श्रम विभाजन से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जब व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं रहता। इसे विभिन्न सेवाओं के लिए विभिन्न व्यक्तियों पर आश्रित होना पड़ता है।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया के लोग किन देशों से कौन-सी वस्तुएँ मंगवाते थे ? इन वस्तुओं के बदले वे क्या निर्यात करते थे ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के लोग तुर्की, ईरान एवं खाड़ी पार के देशों से लकड़ी, ताँबा, सोना, चाँदी, टिन एवं पत्थर मँगवाते थे।
  • इन वस्तुओं के बदले वे कपड़ा एवं कृषि उत्पादों का निर्यात करते थे।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया की मुद्राओं की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • ये मुद्राएँ पत्थर की बनी होती थीं।
  • इनका आकार बेलनाकार होता था।

प्रश्न 14.
मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर कौन-सा था ? इसका उत्थान कब हुआ ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर उरुक था।
  • इसका उत्थान 3000 ई० पू० में हुआ था।

प्रश्न 15.
उरुक नगर का संस्थापक कौन था ? इसे किस शासक ने अपनी राजधानी घोषित किया था ?
उत्तर:

  • उरुक नगर का संस्थापक एनमर्कर था।
  • इसे गिल्गेमिश ने अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया था।

प्रश्न 16.
3000 ई० पू० के आसपास उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • उरुक में अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग आरंभ हो गया था।
  • यहाँ के वास्तुविदों ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया था।

प्रश्न 17.
वार्का शीर्ष की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई है ? इसकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • वार्का शीर्ष की मूर्ति उरुक नगर से प्राप्त हुई है।
  • इसे सफेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था।
  • इसके सिर के ऊपर एक खाँचा बनाया गया था।

प्रश्न 18.
उर नगर का संस्थापक कौन था ? इस नगर ने किस राजवंश के अधीन उल्लेखनीय विकास किया ?
उत्तर:

  • उर नगर का संस्थापक मेसनीपद था।
  • इस नगर ने चालदी राजवंश के अधीन उल्लेखनीय विकास किया।

प्रश्न 19.
उर नगर में नियोजन पद्धति का अभाव था। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • इस नगर की गलियाँ संकरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी थीं।
  • जल निकासी के लिए घरों के बाहर नालियों का प्रबंध नहीं था।

प्रश्न 20.
उर नगर की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उर नगर में नियोजन पद्धति का अभाव था।
  • उर नगर के लोगों में कई प्रकार के अंध-विश्वास प्रचलित थे।

प्रश्न 21.
उर नगर में घरों के बारे में प्रचलित कोई दो अंध-विश्वास लिखें।
उत्तर:

  • यदि घर की दहलीज ऊँची उठी हुई हो तो वह धन-दौलत लाती है।
  • यदि घर के सामने का दरवाज़ा किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो वह सौभाग्य प्रदान करता

प्रश्न 22.
उरुक एवं उर नगरों के प्रमुख देवी-देवता का नाम बताएँ।
उत्तर:

  • उरुक नगर की प्रमुख देवी इन्नाना थी।
  • उर नगर का प्रमुख देवता नन्ना था।

प्रश्न 23.
मेसोपोटामिया के किस नगर से हमें एक कब्रिस्तान मिला है ? यहाँ किनकी समाधियाँ पाई गई
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के उर नगर से हमें एक कब्रिस्तान मिला है।
  • यहाँ शाही लोगों एवं साधारण लोगों की समाधियाँ पाई गई हैं।

प्रश्न 24.
मारी नगर की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • मारी शासक एमोराइट वंश से संबंधित थे।
  • मारी लोगों के दो प्रमुख व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन थे।

प्रश्न 25.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए ख़तरा थे ? कोई दो कारण लिखें।
अथवा
क्या खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए ख़तरा थे ?
उत्तर:

  • खानाबदोश पशुचारक अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए गए खेतों से गुज़ार कर ले जाते थे। इससे फ़सलों को क्षति पहुँचती थी।
  • खानाबदोश पशुचारक कई बार आक्रमण कर लोगों का माल लूट लेते थे।

प्रश्न 26.
मारी स्थित ज़िमरीलिम के राजमहल की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • यह 2.4 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था।
  • यह बहत विशाल था तथा इसके 260 कमरे थे।

प्रश्न 27.
लगश की राजधानी का नाम क्या था ? इसके दो प्रसिद्ध शासक कौन-से थे ?
उत्तर:

  • लगश की राजधानी का नाम गिरसू था।
  • इसके दो प्रसिद्ध शासक इनन्नातुम द्वितीय एवं उरुकगिना थे।

प्रश्न 28.
मेसोपोटामिया में जलप्लावन के पश्चात् स्थापित होने वाला प्रथम नगर कौन-सा था ? इसके प्रथम शासक का नाम बताएँ।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में जलप्लावन के पश्चात् स्थापित होने वाला प्रथम नगर किश था।
  • इसके प्रथम शासक का नाम उर्तुंग था।

प्रश्न 29.
असुरबनिपाल क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • उसने अपने साम्राज्य में भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया।
  • उसने नाबू के मंदिर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की।

प्रश्न 30.
बेबीलोन नगर की कोई दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • यह नगर 850 हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैला था।
  • इसमें अनेक विशाल राजमहल एवं मंदिर बने हुए थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 31.
मेसोपोटामिया की नगर योजना की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • उस समय घरों में एक खुला आँगन होता था जिसके चारों ओर कमरे होते थे।
  • नगरों में यातायात की आवाजाही के लिए सड़कों का उचित प्रबंध किया गया था।

प्रश्न 32.
मेसोपोटामिया में धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे से वर्ग में केंद्रित था। इस बात की पुष्टि किस तथ्य से होती है ?
उत्तर:
उर में राजाओं एवं रानियों की कुछ कब्रों में शवों के साथ बहुमूल्य वस्तुएँ दफ़नाई गई थीं जबकि जनसाधारण लोगों के शवों के साथ मामूली सी वस्तुओं को दफनाया गया था। इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि मेसोपोटामिया में धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे से वर्ग में केंद्रित था।

प्रश्न 33.
एकल परिवार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
एकल परिवार से हमारा अभिप्राय ऐसे परिवार से है जिसमें पति, पत्नी एवं उनके बच्चे रहते हैं।

प्रश्न 34.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी अच्छी थी। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • वे पुरुषों के साथ सामाजिक एवं धार्मिक उत्सवों में समान रूप से भाग लेती थीं।
  • उन्हें पति से तलाक लेने तथा पुनः विवाह करने का अधिकार प्राप्त था।

प्रश्न 35.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में दासों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में दासों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उन्हें पशुओं की तरह खरीदा एवं बेचा जा सकता था। उन्हें किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त न था।

प्रश्न 36.
शहरी जीवन शुरू होने पर कौन-कौन सी नयी संस्थाएँ अस्तित्व में आईं ? आपके विचार में कौन सी संस्थाएँ राजा के पहल पर निर्भर थीं ?
उत्तर:

  • शहरी जीवन शुरू होने पर व्यापार, मंदिर, लेखन कला, मूर्ति कला एवं मुद्रा कला नामक संस्थाएँ अस्तित्व में आईं।
  • इनमें व्यापार, मंदिर एवं लेखन कला राजा के पहल पर निर्भर थीं।

प्रश्न 37.
मेसोपोटामिया में युद्ध एवं प्रेम की देवी तथा चंद्र देव कौन था ?
उत्तर:

  • प्राचीनकाल मेसोपोटामिया में युद्ध एवं प्रेम की देवी इन्नाना थी।
  • प्राचीन काल मेसोपोटामिया में चंद्र देव नन्ना था।

प्रश्न 38.
मेसोपोटामिया के लोगों के कोई दो धार्मिक विश्वास बताएँ।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।
  • वे मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 39.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?
उत्तर:

  • पुराने मंदिर घरों की तरह छोटे आकार के थे।
  • ये कच्ची ईंटों के बने होते थे।
  • इन मंदिरों के आँगन घरों की तरह खुले होते थे तथा इनके चारों ओर कमरे बने होते थे।

प्रश्न 40.
प्राचीन काल मेसोपोटामिया के मंदिरों के कोई दो कार्य बताएँ।
उत्तर:

  • मंदिरों द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती थी।
  • मंदिरों की भूमि पर खेती की जाती थी।

प्रश्न 41.
प्राचीन काल मेसोपोटामिया में पुरोहितों के शक्तिशाली होने के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • इस काल में मेसोपोटामिया के मंदिर बहुत धनी थे।
  • पुरोहितों ने लोगों से विभिन्न करों को वसलना आरंभ कर दिया था।

प्रश्न 42.
गिल्गेमिश कौन था ?
उत्तर:
गिल्गेमिश उरुक का एक प्रसिद्ध शासक था। वह 2700 ई० पू० में सिंहासन पर बैठा था। वह एक महान् योद्धा था तथा उसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। उसके महाकाव्य को विश्व साहित्य में एक प्रमुख स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 43.
मेसोपोटामिया की लिपि की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • यह लिपि मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखी जाती थी।
  • इस लिपि को बाएँ से दाएँ लिखा जाता था।

प्रश्न 44.
मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा कौन-सी थी ? 2400 ई० पू० में इसका स्थान किस भाषा ने लिया ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन थी।
  • 2400 ई० पू० में इसका स्थान अक्कदी भाषा ने ले लिया।

प्रश्न 45.
लेखन कला का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:

  • इससे शिक्षा के प्रसार को बल मिला।
  • इससे व्यापार को प्रोत्साहन मिला।
  • इस कारण मंदिरों को दान में प्राप्त वस्तुओं का ब्योरा रखा जाने लगा।

प्रश्न 46.
विश्व को मेसोपोटामिया की क्या देन है?
अथवा
मेसोपोटामिया सभ्यता की विश्व को क्या देन है ?
उत्तर:

  • इसने विश्व को सर्वप्रथम शहर दिए।
  • इसने विश्व को सर्वप्रथम लेखन कला की जानकारी दी।
  • इसने विश्व को सर्वप्रथम कानून संहिता प्रदान की।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन काल में ईराक को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया।

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के किन शब्दों से मिलकर बना है ?
उत्तर:
मेसोस व पोटैमोस।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया में नगरों का विकास कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
3000 ई० पू०।

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया की दो प्रमुख नदियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
दज़ला एवं फ़रात।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया में पुरातत्वीय खोजों का आरंभ कब किया गया था ?
उत्तर:
1840 ई०।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया का प्रसिद्ध फल कौन-सा है ?
उत्तर:
खजूर।

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर कौन-सा था ?
उत्तर:
उरुक।

प्रश्न 8.
बाईबल के किस भाग में मेसोपोटामिया के बारे में उल्लेख किया गया है ?
उत्तर:
ओल्ड टेस्टामेंट।

प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया के उत्तरी भाग में किस प्रकार की घास के मैदान पाए जाते थे ?
उत्तर:
स्टैपी घास।

प्रश्न 10.
मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का तथा कांस्य युग के निर्माण का आरंभ कब हुआ था ?
उत्तर:
3000 ई० पू०

प्रश्न 11.
वार्का शीर्ष क्या था ?
उत्तर:
3000 ई० पू० उरुक नगर में जिस स्त्री का सिर संगमरमर को तराशकर बनाया गया था उसे वार्का शीर्ष कहा जाता था।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया में लेखन कार्य पद्धति का आरंभ कब हुआ था ?
उत्तर:
3200 ई० पू०।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया में कीलाकार लिपि का विकास कब हुआ था ?
उत्तर:
2600 ई० पू०।

प्रश्न 14.
दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे प्राचीन मंदिरों का निर्माण कब किया गया था ?
उत्तर:
5000 ई० पू०।

प्रश्न 15.
चालदी कहाँ का प्रसिद्ध राजवंश था ?
उत्तर:
उर का।

प्रश्न 16.
मारी किस समुदाय के थे ?
उत्तर:
एमोराइट।

प्रश्न 17.
ज़िमरीलियम का राजमहल कहाँ स्थित था ?
उत्तर:
मारी में।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 18.
किश नगर पर शासन करने वाली प्रथम रानी कौन थी ?
उत्तर:
कू-बबा।

प्रश्न 19.
असुरबनिपाल कहाँ का शासक था ?
उत्तर:
निनवै का।

प्रश्न 20.
बेबीलोन की राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर:
बेबीलोनिया।

प्रश्न 21.
बेबीलोनिया का अंतिम राजा कौन था ?
उत्तर:
असुरबनिपाल।

प्रश्न 22.
गिल्गेमिश कौन था ?
उत्तर:
उरुक का एक प्रसिद्ध शासक।

प्रश्न 23.
मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लिपि की खोज कब हुई थी ?
उत्तर:
3200 ई० पू० में।

प्रश्न 24.
मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा कौन-सी थी ?
उत्तर:
सुमेरियन।

प्रश्न 25.
मेसोपोटामिया में अक्कदी भाषा का प्रचलन कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
2400 ई० पू० में।

प्रश्न 26.
सिकंदर ने बेबीलोन को कब विजित किया था ?
उत्तर:
331 ई० पू०।

प्रश्न 27.
मेसोपोटामिया नगर में हौज़ क्या था ?
उत्तर:
घरों के बरामदे में बना छोटा गड्डा जहाँ गंदा पानी एकत्र होता था।

प्रश्न 28.
स्टेल क्या होते हैं ?
उत्तर:
पट्टलेख।

प्रश्न 29.
मेसोपोटामिया समाज में किस प्रकार के परिवार को आदर्श परिवार माना जाता था ?
उत्तर:
एकल परिवार।

प्रश्न 30.
मारी में स्थित जिमरीलिम के राजमहल की क्या मुख्य विशेषता थी ?
उत्तर:
यह प्रशासन व उत्पादन तथा कीमती धातुओं के आभूषणों के निर्माण का मुख्य केंद्र था।

प्रश्न 31.
मेसोपिटामिया की संस्कृति का वर्णन किस महाकाव्य से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
गिल्गेमिश।

प्रश्न 32.
मेसोपोटामिया की खुदाई के समय अलाशिया द्वीप किन वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
ताँबे व टिन।

रिक्त स्थान भरिए

1. मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के दो शब्दों ……………. तथा ……………. से मिलकर बना है।
उत्तर:
मेसोस, पोटैमोस

2. मेसोपोटामिया …………….. तथा …………….. नामक दो नदियों के मध्य स्थित है।
उत्तर:
फ़रात, दजला

3. मेसोपोटामिया में पुरातत्वीय खोजों का आरंभ ……………. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
1840

4. मेसोपोटामिया में …………….. तथा …………….. की खेती की जाती थी।
उत्तर:
जौ, गेहूँ

5. मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का तथा कांस्य युग के निर्माण का आरंभ …………… में हुआ था।
उत्तर:
3000 ई० पू०

6. मेसोपोटामिया में लेखन कार्य का आरंभ ……………. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
3200

7. मेसोपोटामिया में कीलाकार लिपि का विकास …………… ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
2600

8. मेसोपोटामिया की सबसे प्राचीन भाषा सुमेरियन का स्थान …………….. ई० पू० के पश्चात् अक्कदी भाषा ने ले लिया था।
उत्तर:
2400

9. दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पुराने मंदिरों का निर्माण ……………. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
5000

10. उरुक नामक नगर का एक विशाल नगर के रूप में विकास …………….. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
3000

11. मारी नगर ……………. तथा ……………. के निर्माण का मुख्य केंद्र था।
उत्तर:
कीमती धातुओं, आभूषणों

12. गणितीय मूलपाठों की रचना ……….. ई० पू० में की गई थी।
उत्तर:
1800

13. मेसोपोटामिया में असीरियाई राज्य की स्थापना ……………. में हुई थी।
उत्तर:
1100 ई० पू०

14. मेसोपोटामिया में लोहे का प्रयोग ……………. पू० में हुआ था।
उत्तर:
1000 ई०

15. सिकंदर ने बेबीलोन पर ……………. में अधिकार कर लिया था।
उत्तर:
331 ई० पू०

16. बेबीलोनिया का अंतिम राजा …………….. था।
उत्तर:
असुरबनिपाल

17. असुरबनिपाल ने अपनी राजधानी ……………. में एक पुस्तकालय की स्थापना की थी।
उत्तर:
निनवै

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. आधुनिक काल में मेसोपोटामिया को किस नाम से जाना जाता है?
(क) ईरान
(ख) इराक
(ग) कराकोरम
(घ) पीकिंग।
उत्तर:
(ख) इराक

2. मेसोपोटामिया निम्नलिखित में से किन दो नदियों के मध्य स्थित है?
(क) गंगा एवं यमुना
(ख) दजला एवं फ़रात
(ग) ओनोन एवं सेलेंगा
(घ) हवांग हो एवं दज़ला।
उत्तर:
(ख) दजला एवं फ़रात

3. मेसोपोटामिया की सभ्यता क्यों प्रसिद्ध थी?
(क) अपनी समृद्धि के लिए
(ख) अपने शहरी जीवन के लिए
(ग) अपने साहित्य, गणित एवं खगोलविद्या के लिए
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

4. मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से क्यों घिर जाती थी?
(क) दजला एवं फ़रात नदियों में आने वाली बाढ़ के कारण
(ख) वर्षा की कमी हो जाने के कारण
(ग) निचले क्षेत्रों में पानी का अभाव होने के कारण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

5. मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। इसके बावजूद यहाँ नगरों का विकास क्यों हुआ?
(क) क्योंकि यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था
(ख) क्योंकि यहाँ के दृश्य बहुत सुंदर थे
(ग) क्योंकि यहाँ बहुत मज़दूर उपलब्ध थे
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) क्योंकि यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था

6. मेसोपोटामिया में नगरों का निर्माण कब आरंभ हुआ?
(क) 3000 ई० पू० में
(ख) 3200 ई० पू० में
(ग) 4000 ई० पू० में
(घ) 5000 ई० पू० में।
उत्तर:
(क) 3000 ई० पू० में

7. मेसोपोटामिया सभ्यता थी?
(क) काँस्य युगीन
(ख) ताम्र युगीन
(ग) लौह युगीन
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) काँस्य युगीन

8. निम्नलिखित में से कौन-सा मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर था?
(क) उर
(ख) मारी
(ग) उरुक
(घ) लगश।
उत्तर:
(ग) उरुक

9. उरुक नगर का संस्थापक कौन था ?
(क) असुरबनिपाल
(ख) एनमर्कर
(ग) गिल्गेमिश
(घ) सारगोन।
उत्तर:
(ख) एनमर्कर

10. हमें वार्का शीर्ष की मूर्ति मेसोपोटामिया के किस नगर से प्राप्त हुई है?
(क) मारी
(ख) उरुक
(ग) किश
(घ) निनवै।
उत्तर:
(ख) उरुक

11. मारी के राजा किस समुदाय के थे?
(क) अक्कदी
(ख) एमोराइट
(ग) असीरियाई
(घ) आर्मीनियन।
उत्तर:
(ख) एमोराइट

12. मारी नगर के शासकों ने किस देवता की स्मृति में एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था?
(क) डैगन
(ख) नन्ना
(ग) इन्नना
(घ) अनु।
उत्तर:
(क) डैगन

13. मारी नगर के किसानों एवं पशुचारकों में लड़ाई का प्रमुख कारण क्या था?
(क) पशुचारक किसानों की फ़सलों को नष्ट कर देते थे
(ख) पशुचारक किसानों के गाँवों पर आक्रमण कर उन्हें लूट लेते थे
(ग) अनेक बार किसान पशुचारकों को जल स्रोतों तक जाने नहीं देते थे
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

14. साइप्रस का द्वीप अलाशिया (Alashiya) निम्नलिखित में से किस वस्तु के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था?
(क) ताँबा
(ख) लोहा
(ग) सोना
(घ) चाँदी।
उत्तर:
(क) ताँबा

15. जलप्लावन (flood) के पश्चात् स्थापित होने वाला प्रथम नगर कौन-सा था?
(क) लगश
(ख) मारी
(ग) किश
(घ) निनवै।
उत्तर:
(ग) किश

16. लगश का सबसे महान् शासक कौन था?
(क) गुडिया
(ख) उरनिना
(ग) उरुकगिना
(घ) इनन्नातुम द्वितीय।
उत्तर:
(क) गुडिया

17. असुरबनिपाल क्यों प्रसिद्ध था?
(क) उसने एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी
(ख) उसने अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया
(ग) उसने अपनी राजधानी निनवै को अनेक भव्य भवनों से सुसज्जित किया
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

18. मेसोपोटामिया के समाज में कितने प्रमुख वर्ग थे?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

19. उर में मिली शाही कब्रों में निम्नलिखित में से कौन-सी वस्तु प्राप्त हुई है?
(क) आभूषण
(ख) सोने के सजावटी खंजर
(ग) लाजवर्द
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

20. मेसोपोटामिया में धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था। इस बात की पुष्टि किस तथ्य से होती है?
(क) उर में मिली शाही कब्रों से
(ख) ज़िमरीलिम के राजमहल से
(ग) व्यापारी वर्ग से
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) उर में मिली शाही कब्रों से

21. निम्नलिखित में से कौन मेसोपोटामिया की प्रेम एवं युद्ध की देवी थी?
(क) इन्नाना
(ख) नन्ना
(ग) एनकी
(घ) अनु।
उत्तर:
(क) इन्नाना

22. मेसोपोटामिया में चंद्र देवता को किस नाम से पुकारा जाता था?
(क) नन्ना
(ख) अनु
(ग) गिल्गेमिश
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) नन्ना

23.. गिल्गेमिश कौन था?
(क) उर का प्रसिद्ध लेखक
(ख) उरुक का प्रसिद्ध शासक
(ग) अक्कद का प्रमुख अधिकारी
(घ) लगश का महान् शासक।
उत्तर:
(ख) उरुक का प्रसिद्ध शासक

24. मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लिपि की खोज कब हुई?
(क) 3200 ई० पू० में
(ख) 3000 ई० पू० में
(ग) 2800 ई० पू० में
(घ) 2500 ई० पू० में
उत्तर:
(क) 3200 ई० पू० में

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

25. मेसोपोटामिया की ज्ञात सबसे प्राचीन भाषा कौन-सी थी ?
(क) हिब्रू
(ख) अक्कदी
(ग) सुमेरियन
(घ) अरामाइक
उत्तर:
(ग) सुमेरियन

26. 2400 ई० पू० में मेसोपोटामिया में किस भाषा का प्रचलन आरंभ हुआ?
(क) अक्कदी
(ख) अरामाइक
(ग) अंग्रेजी
(घ) फ्रांसीसी।
उत्तर:
(क) अक्कदी

लेखन कला और शहरी जीवन HBSE 11th Class History Notes

→ आधुनिक इराक को प्राचीन काल में मेसोपोटामिया के नाम से जाना जाता था। यहाँ की विविध भौगोलिक विशेषताओं ने यहाँ के इतिहास पर गहन प्रभाव डाला है। मेसोपोटामिया की सभ्यता के विकास में यहाँ की दो नदियों दजला एवं फ़रात ने उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ 3000 ई० प० में मेसोपोटामिया में नगरों का विकास आरंभ हुआ। यहाँ 1840 ई० के दशक में पुरातत्त्वीय खोजों की शुरुआत हुई थी। मेसोपोटामिया में तीन प्रकार के नगर धार्मिक नगर, व्यापारिक नगर एवं शाही नगर अस्तित्व में आए थे। इन नगरों के उत्थान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे।

→ मेसोपोटामिया में जिन नगरों का उत्थान हुआ उनमें उरुक, उर, मारी, किश, लगश, निनवै, निमरुद एवं बेबीलोन बहुत प्रसिद्ध थे। इन नगरों ने मेसोपोटामिया के इतिहास को एक नई दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता का भेद आरंभ हो गया था।

→  उस समय समाज में तीन प्रमुख वर्ग प्रचलित थे। प्रथम वर्ग जो अभिजात वर्ग कहलाता था बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता था। दूसरा वर्ग जो मध्य वर्ग कहलाता था का भी जीवन सुगम था।

→ तीसरा वर्ग जो निम्न वर्ग कहलाता था में समाज का बहुसंख्यक वर्ग सम्मिलित था। इनकी दशा बहुत दयनीय थी। उस समय मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार प्रचलित थे। परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था। उस समय समाज में स्त्रियों का सम्मान किया जाता था। उन्हें अनेक प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। निस्संदेह ऐसे अधिकार आज के देशों के अनेक समाजों में स्त्रियों को प्राप्त नहीं हैं। मेसोपोटामिया के समाज के माथे पर दास प्रथा एक कलंक समान थी। दासों की स्थिति पशुओं से भी बदतर थी।

→ उन्हें अपने स्वामी की आज्ञानुसार काम करना पड़ता था। उस समय के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। मेसोपोटामिया के समाज में मंदिरों की उल्लेखनीय भूमिका थी। ये मंदिर आरंभ में घरों जैसे छोटे आकार एवं कच्ची ईंटों के थे।

→ किंतु धीरे-धीरे ये मंदिर बहुत विशाल एवं भव्य बन गए। ये मंदिर धनी थे तथा उनके क्रियाकलाप बहुत व्यापक थे। अत: इन मंदिरों की देखभाल करने वाले पुरोहित भी बहुत शक्तिशाली हो गए थे। इन मंदिरों ने व्यापार एवं लेखन कला के विकास में प्रशंसनीय भूमिका निभाई।

→ विश्व साहित्य में गिल्गेमिश के महाकाव्य को विशेष स्थान प्राप्त है। इसे 2000 ई० पू० में 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था। गिल्गेमिश उरुक का सबसे प्रसिद्ध शासक था। वह एक महान् एवं बहादुर योद्धा था। दूसरी ओर वह बहुत अत्याचारी था।

→  उसके अत्याचारों से प्रजा को मुक्त करवाने के उद्देश्य से देवताओं ने एनकीडू को भेजा। दोनों के मध्य एक लंबा युद्ध हुआ जिसके अंत में दोनों मित्र बन गए। इसके पश्चात् गिल्गेमिश एवं एनकीडू ने अपना शेष जीवन लोक भलाई कार्यों में लगा दिया। कुछ समय के पश्चात् एनकीडू एक नर्तकी के प्रेम जाल में फंस गया।

→ इस कारण देवताओं ने रुष्ट होकर उसके प्राण ले लिए। एनकीडू जैसे शक्तिशाली वीर की मृत्यु के बारे में सुन कर गिल्गेमिश स्तब्ध रह गया। अत: उसे अपनी मृत्यु का भय सताने लगा। इसलिए उसने अमरत्व की खोज आरंभ की। वह अनेक कठिनाइयों को झेलता हुआ उतनापिष्टिम से मिला।

→ अंततः गिल्गेमिश के हाथ निराशा लगी। उसने यह निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी पर आने वाला प्रत्येक जीव मृत्यु के चक्कर से नहीं बच सकता। वह केवल इस बात से संतोष कर लेता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र एवं उरुक निवासी जीवित रहेंगे।

→ मेसोपोटामिया में 3200 ई० पू० में लेखन कला का विकास आरंभ हुआ। इसके विकास का श्रेय मेसोपोटामिया के मंदिरों को दिया जाता है। इन मंदिरों के पुरोहितों को मंदिर की आय-व्यय का ब्यौरा रखने के लिए लेखन कला की आवश्यकता महसूस हुई। आरंभ में मेसोपोटामिया में चित्रलिपि का उदय हुआ।

→ यह लिपि बहुत कठिन थी। इस लिपि को मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा जाता था। इस पर कोलाकार चिह्न बनाए जाते थे जिसे क्यूनीफार्म कहा जाता था। जब इन पट्टिकाओं पर लेखन कार्य पूरा हो जाता था तो उन्हें धूप में सुखा लिया जाता था। मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन थी। 2400 ई० पू० में अक्कदी ने इस भाषा का स्थान ले लिया। 1400 ई० पू० में अरामाइक भाषा का भी प्रचलन आरंभ हो गया।

→ मेसोपोटामिया लिपि की जटिलता के कारण मेसोपोटामिया में साक्षरता की दर बहुत कम रही। यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया का विशेष महत्त्व रहा है। इसका कारण यह था कि बाईबल के प्रथम भाग ओल्ड टेस्टामेंट में मेसोपोटामिया का उल्लेख अनेक संदर्भो में किया गया है। मेसोपोटामिया सभ्यता की जानकारी हमें अनेक स्रोतों से प्राप्त होती है। इनमें से प्रमुख हैं-भवन, मंदिर, मूर्तियाँ, आभूषण, औज़ार, मुद्राएँ, कब्र एवं लिखित दस्तावेज़।

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HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए.

1. वास्कोडिगामा भारत पहुँचा-
(A) 1857 ई० में
(B) 1498 ई० में
(C) 1492 ई० में
(D) 1600 ई० में
उत्तर:
(B) 1498 ई० में

2. प्लासी की लड़ाई हुई
(A) 1757 ई० में
(B) 1857 ई० में
(C) 1850 ई० में
(D) 1764 ई० में
उत्तर:
(A) 1757 ई० में

3. प्लासी की लड़ाई में हार हुई
(A) नवाब सिराजुद्दौला
(B) नवाब वाजिद अली शाह
(C) अलीवर्दी खाँ
(D) लॉर्ड क्लाइव
उत्तर:
(A) नवाब सिराजद्दौला

4. बक्सर की लड़ाई हुई
(A) 1757 ई० में
(B) 1764 ई० में
(C) 1773 ई० में
(D) 1784 ई० में
उत्तर:
(B) 1764 ई० में

5. इलाहाबाद की संधि कब हुई?
(A) 1757 ई० में
(B) 1773 ई० में
(C) 1765 ई० में
(D) 1764 ई० में
उत्तर:
(C) 1765 ई० में

6. ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार व उड़ीसा की दीवानी का अधिकार कब प्राप्त हुए?
(A) 1765 ई० में
(B) 1773 ई० में
(C) 1784 ई० में
(D) 1800 ई० में
उत्तर:
(A) 1765 ई० में

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

7. भारत में औपनिवेशिक शासन-व्यवस्था की शुरुआत हुई
(A) गोवा से
(B) बंगाल प्रांत से
(C) मद्रास से
(D) बंबई से
उत्तर:
(B) बंगाल प्रांत से

8. बंगाल में ठेकेदारी प्रणाली की शुरुआत की
(A) लॉर्ड क्लाइव ने
(B) वारेन हेस्टिंग्ज़ ने
(C) लॉर्ड कॉनवालिस ने
(D) लॉर्ड डलहौजी ने
उत्तर:
(B) वारेन हेस्टिंग्ज़ ने

9. ब्रिटिश काल में लागू की जाने वाली भू-राजस्व प्रणालियाँ कौन-सी थीं ?
(A) स्थाई बन्दोबस्त
(B) रैयतवाड़ी व्यवस्था
(C) महालवाड़ी प्रणाली
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी

10. कलेक्टर का मुख्य काम था
(A) दंड देना
(B) चुनाव करवाना
(C) कर एकत्र करवाना
(D) धन बाँटना
उत्तर:
(C) कर एकत्र करवाना

11. बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त किसने लागू किया?
(A) लॉर्ड कॉर्नवालिस ने
(B) लॉर्ड डलहौजी ने
(C) लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने
(D) लॉर्ड वेलेज्ली ने
उत्तर:
(A) लॉर्ड कॉर्नवालिस ने

12. बंगाल में स्थायी बंदोबस्त कब लागू किया गया?
(A) 1765 ई० में
(B) 1773 ई० में
(C) 1793 ई० में
(D) 1820 ई० में
उत्तर:
(C) 1793 ई० में

13. स्थायी बन्दोबस्त किसके साथ किया गया?
(A) जमींदारों के साथ
(B) मुजारों के साथ
(C) किसानों के साथ
(D) गाँवों के साथ
उत्तर:
(A) जमींदारों के साथ

14. वसूल किए गए लगान में से ज़र्मींदार को मिलता था-
(A) \(\frac{1}{2}\) भाग
(B) \(\frac{1}{11}\) भाग
(C) \(\frac{10}{11}\) भाग
(D) बिल्कुल भी नहीं
उत्तर:
(B) \(\frac{1}{11}\) भाग

15. वसूल किए गए लगान में से ज़र्मींदार को सरकारी खजाने में जमा करवाना होता था
(A) \(\frac{1}{5}\) भाग
(B) \(\frac{10}{11}\) भाग
(C) \(\frac{1}{11}\) भाग
(D) \(\frac{1}{2}\) भाग
उत्तर:
(B) \(\frac{10}{11}\) भाग

16. बंगाल में जोतदार थे
(A) गाँव के मुखिया
(B) प्रांत के नवाब
(C) भूमि पर काम करने वाले
(D) कर एकत्र करने वाले
उत्तर:
(A) गाँव के मुखिया

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

17. जमींदार का वह अधिकारी जो गाँव से भू-राजस्व इकट्ठा करता था, क्या कहलाता था?
(A) मंडल
(B) अमला
(C) लठियात
(D) साहूकार
उत्तर:
(B) अमला

18. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक्ट पास किया गया
(A) रेग्यूलेटिंग एक्ट
(B) पिट्स इंडिया एक्ट
(C) 1858 ई० का एक्ट
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) रेग्यूलेटिंग एक्ट

19. रेग्यूलेटिंग एक्ट पास किया गया
(A) 1858 ई० में
(B) 1784 ई० में
(C) 1773 ई० में
(D) 1757 ई० में
उत्तर:
(C) 1773 ई० में

20. रेग्यूलेटिंग के दोषों को दूर करने के लिए एक्ट पास किया गया
(A) पिट्स इंडिया एक्ट
(B) रेग्यूलेटिंग एक्ट
(C) चार्टर एक्ट
(D) रोलेट एक्ट
उत्तर:
(A) पिट्स इंडिया एक्ट

21. पिट्स इंडिया एक्ट पास किया गया
(A) 1773 ई० में
(B) 1784 ई० में
(C) 1813 ई० में
(D) 1850 ई० में
उत्तर:
(B) 1784 ई० में

22. मद्रास प्रेसीडेंसी में मुख्यतः कौन-सी भू-राजस्व प्रणाली लागू की गई?
(A) स्थायी बंदोबस्त
(B) ठेकेदारी प्रणाली
(C) महालवाड़ी प्रणाली
(D) रैयतवाड़ी प्रणाली
उत्तर:
(D) रैयतवाड़ी प्रणाली

23. दक्कन में किसान विद्रोह कब हुआ?
(A) 1818 ई० में
(B) 1820 ई० में
(C) 1875 ई० में
(D) 1855 ई० में
उत्तर:
(C) 1875 ई० में

24. मद्रास में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त किसने लागू किया?
(A) लॉर्ड कॉर्नवालिस
(B) थॉमस मुनरो
(C) लॉर्ड विलियम बैंटिंक
(D) लॉर्ड वेलेजली
उत्तर:
(B) थॉमस मुनरो

25. रैयत कौन थे?
(A) किसान
(B) ज़मींदार
(C) साहूकार
(D) जोतदार
उत्तर:
(A) किसान

26. औपनिवेशिक काल में लागू किए जाने वाले भू-राजस्व थे
(A) इस्तमरारी बंदोबस्त
(B) रैयतवाड़ी बंदोबस्त
(C) महालवाड़ी बंदोबस्त
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

27. रैयतवाड़ी बन्दोबस्त को कहाँ लागू किया गया?
(A) बंगाल में
(B) पंजाब में
(C) असम में
(D) मद्रास में
उत्तर:
(D) मद्रास में

28. रैयतवाड़ी बन्दोबस्त कब लागू किया गया?
(A) 1820 ई० में
(B) 1793 ई० में
(C) 1795 ई० में
(D) 1850 ई० में
उत्तर:
(A) 1820 ई० में

29. ब्रिटिश संसद में पाँचवीं रिपोर्ट कब प्रस्तुत की गई?
(A) 1813 ई० में
(B) 1713 ई० में
(C) 1613 ई० में
(D) 1913 ई० में
उत्तर:
(A) 1813 ई० में

30. पहाड़िया लोग कहाँ रहते थे?
(A) कश्मीर की पहाड़ियों में
(B) राजमहल की पहाड़ियों में
(C) मनाली की पहाड़ियों में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) राजमहल की पहाड़ियों में

31. पहाड़िया लोग खेती के लिए क्या प्रयोग करते थे?
(A) हल
(B) कुदाल
(C) नहर
(D) ट्रैक्टर
उत्तर:
(B) कुदाल

32. संथालों ने दामिन-इ-कोह की स्थापना कब की?
(A) 1812 ई० में
(B) 1832 ई० में
(C) 1822 ई० में
(D) 1932 ई० में
उत्तर:
(B) 1832 ई० में

33. संथार्लों का अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कब हुआ?
(A) 1845 ई० में
(B) 1855 ई० में
(C) 1865 ई० में
(D) 1875 ई० में
उत्तर:
(B) 1855 ई० में

34. संथाल किन लोगों को घृणा से ‘दिकू’ कहते थे?
(A) साहूकार
(B) जमींदार
(C) जोतदार
(D) सभी बाहरी लोगों को
उत्तर:
(D) सभी बाहरी लोगों को

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

35. डेविड रिकॉर्डो कौन था?
(A) इंग्लैण्ड का चिकिस्सक
(B) कम्पनी का इंजीनियर
(C) इंग्लैण्ड का अर्थशास्त्री
(D) फ्रांस का समाजशास्त्री
उत्तर:
(C) इंग्लैण्ड का अर्थशास्त्री

36. परितीमन कानून कब पारित किया गया?
(A) 1858 ई० में
(B) 1875 ई० में
(C) 1850 ई० में
(D) 1859 ई० में
उत्तर:
(D) 1859 ई० में

37. अमेरिका में गृह युद्ध कब आरंभ हुआ था?
(A) 1857 ई० में
(B) 1864 ई० में
(C) 1861 ई० में
(D) 1865 ई० में
उत्तर:
(C) 1861 ई० में

38. 1875 ई० का दक्कन विद्योह कहाँ से प्रारंभ हुआ?
(A) सूपा से
(B) हम्पी से
(C) अहमदनगर से
(D) बम्बई से
उत्तर:
(A) सूपा से

39. रैयतवाड़ी प्रणाली में भूमि का मालिक माना गया-
(A) ज़मींदार को
(B) रैयत को
(C) नवाब को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) रैयत को

40. रैयतवाड़ी बंदोबस्त कितने समय के लिए किया?
(A) 30 वर्षों के लिए
(B) 50 वर्षों के लिए
(C) 20 वर्षों के लिए
(D) हमेशा के लिए
उत्तर:
(A) 30 वर्षों के लिए

41. बंबई दक्कन में रैयतवाड़ी बंदोबस्त शुरू किया-
(A) 1793 ई० में
(B) 1818 ई० में
(C) 1773 ई० में
(D) 1784 ई० में
उत्तर:
(B) 1818 ई० में

42. ब्रिटेन में ‘कपास आपूर्ति संघ’ की स्थापना की गई-
(A) 1850 ई० में
(B) 1853 ई० में
(C) 1857 ई० में
(D) 1858 ‘ई० में
उत्तर:
(C) 1857 ई० में

43. मैनचेस्टर कॉटन कंपनी बनी-
(A) 1853 ई० में
(B) 1857 ई० में
(C) 1858 ई० में
(D) 1859 ई० में
उत्तर:
(D) 1859 ई० में

44. अमेरिका का गृह युद्ध समाप्त हुआ-
(A) 1861 ई० में
(B) 1865 ई० में
(C) 1857 ई० में
(D) 1850 ई० में
उत्तर:
(B) 1865 ई० में

45. पहाड़िया लोग खेती करते थे-
(A) स्थायी खेती
(B) झूम खेती
(C) बागों की खेती
(D) मिश्रित खेती
उत्तर:
(B) झूम खेती

46. दामिन-इ-कोह नामक भू-भाग पर बसाया गया-
(A) संथालों को
(B) ज़मींदारों को
(C) पहाड़ियों को
(D) अंग्रेज़ों को
उत्तर:
(A) संथालों को

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
वास्कोडिगामा भारत कब आया?
उत्तर:
वास्कोडिगामा 1498 ई० में भारत पहुंचा।

प्रश्न 2.
प्लासी की लड़ाई कब हुई?
उत्तर:
प्लासी की लड़ाई 1757 ई० में हुई।

प्रश्न 3.
प्लासी की लड़ाई किस-किसके मध्य हुई?
उत्तर:
प्लासी की लड़ाई बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला व अंग्रेजों के बीच लड़ी गई।

प्रश्न 4.
बक्सर का युद्ध कब हुआ?
उत्तर:
बक्सर का युद्ध 1764 ई० में हुआ।

प्रश्न 5.
भारत में औपनिवेशिक शासन-व्यवस्था की शुरुआत किस प्रांत में हुई?
उत्तर:
भारत में बंगाल प्रांत में औपनिवेशिक शासन-व्यवस्था की शुरुआत हुई।

प्रश्न 6.
अंग्रेजों को दीवानी का अधिकार किस संधि से प्राप्त हुआ?
उत्तर:
1765 ई० में इलाहाबाद की संधि से अंग्रेज़ों को दीवानी का अधिकार प्राप्त हुआ।

प्रश्न 7.
दीवानी के अधिकार का क्या अर्थ था?
उत्तर:
दीवानी के अधिकार का अर्थ था-राजस्व वसूली का अधिकार।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 8.
बंगाल में स्थायी बंदोबस्त कब व किसने शुरू किया?
उत्तर:
बंगाल में 1793 ई० में गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने स्थायी बंदोबस्त शुरू किया। इसे ज़मींदारी बंदोबस्त भी कहा जाता है।

प्रश्न 9.
बंगाल में भू-राजस्व की ठेकेदारी प्रणाली किसने लागू की?
उत्तर:
बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने भू-राजस्व की ठेकेदारी प्रणाली शुरू की।

प्रश्न 10.
ठेकेदारी (इजारेदारी) प्रणाली को और अन्य किस नाम से पुकारा गया?
उत्तर:
ठेकेदारी प्रणाली को फार्मिंग प्रणाली (Farming System) भी कहा गया।

प्रश्न 11.
ठेकेदारी प्रणाली का नियंत्रण किसे सौंपा गया?
उत्तर:
ठेकेदारी प्रणाली जिला कलेक्टरों के नियंत्रण में लागू की गई।

प्रश्न 12.
कलेक्टर का मुख्य काम क्या था?
उत्तर:
कलेक्टर का मुख्य काम कर ‘इकट्ठा’ करना था।

प्रश्न 13.
बंगाल में ग्राम-मुखिया को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
बंगाल में ग्राम-मुखिया को जोतदार या मंडल कहा जाता था।

प्रश्न 14.
बंगाल में सरकार ने स्थायी बंदोबस्त किसके साथ किया?
उत्तर:
बंगाल में सरकार ने स्थायी बंदोबस्त बंगाल के छोटे राजाओं एवं ताल्लुकेदारों के साथ किया।

प्रश्न 15. बंगाल में स्थायी बंदोबस्त किसने लागू किया?
उत्तर:
बंगाल के गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने स्थायी बंदोबस्त लागू किया।

प्रश्न 16.
बंगाल में स्थायी बंदोबस्त कब लागू किया गया?
उत्तर:
1793 ई० में बंगाल में स्थायी बंदोबस्त लागू किया गया।

प्रश्न 17.
स्थायी बंदोबस्त (इस्तमरारी प्रथा) कहाँ-कहाँ लागू किया गया?
उत्तर:
बंगाल, बिहार, उड़ीसा, बनारस व उत्तरी कर्नाटक में स्थायी बंदोबस्त लागू किया गया।

प्रश्न 18.
स्थायी बंदोबस्त में बंगाल के छोटे राजाओं और ताल्लुकेदारों को किस रूप में वर्गीकृत किया गया?
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त में छोटे राजाओं व ताल्लुकेदारों को ‘ज़मींदारों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया।

प्रश्न 19.
स्थायी बंदोबस्त की मुख्य विशेषता क्या थी?
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त में ज़मींदारों द्वारा सरकार को दी जाने वाली वार्षिक भूमि कर राशि स्थायी रूप से निश्चित कर दी गई।

प्रश्न 20.
ज़मींदार को वसूल किए गए लगान में से कितना भाग अपने पास रखना होता था?
उत्तर:
ज़मींदार को किसानों से वसूल किए गए लगान में से \(\frac{1}{11}\) भाग अपने पास रखना होता था।

प्रश्न 21. जमींदार को वसूल किए लगान में से कितना भाग सरकारी खजाने में जमा करवाना पड़ता था?
उत्तर:
ज़मींदार को किसानों से वसूल किए गए लगान में से \(\frac{10}{11}\) भाग कंपनी सरकार को देना होता था।

प्रश्न 22.
ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई फरमिंगर रिपोर्ट किस नाम से जानी जाती है?
उत्तर:फरमिंगर रिपोर्ट पाँचवीं रिपोर्ट के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 23.
फरमिंगर रिपोर्ट का संबंध किससे था?
उत्तर:
फरमिंगर रिपोर्ट भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन व क्रियाकलापों के संदर्भ में एक विस्तृत रिपोर्ट थी।

प्रश्न 24.
सूर्यास्त विधि (Sunset Law) से क्या तात्पर्य था?
उत्तर:
सूर्यास्त विधि का तात्पर्य था कि निश्चित तारीख को सूर्य छिपने तक देय राशि भुगतान न कर पाने पर ज़मींदारी नीलाम कर दी जाती थी।

प्रश्न 25.
जोतदार कौन थे?
उत्तर:
बंगाल में ग्राम के मुखियाओं को जोतदार (मंडल) कहा जाता था।

प्रश्न 26.
जमीदार का कर एकत्र करने वाला अधिकारी क्या कहलाता था?
उत्तर:
ज़मींदार का कर एकत्र करने वाला अधिकारी ‘अमला’ कहलाता था।

प्रश्न 27.
बंगाल में बटाईदार को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
बटाईदार को अधियार या बरगादार कहा जाता था।

प्रश्न 28.
शास्त्रीय (क्लासिकल) अर्थशास्त्री एडम स्मिथ की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम बताओ।
उत्तर:
शास्त्रीय अर्थशास्त्रीय एड्म स्मिथ की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम ‘राष्ट्रों की सम्पत्ति’ (Wealth of Nations) थी।

प्रश्न 29.
‘राष्ट्रों की सम्पत्ति’ पुस्तक में किस प्रकार के व्यापार का विरोध किया गया?
उत्तर:
‘राष्ट्रों की सम्पत्ति’ पुस्तक में व्यापारिक एकाधिकार का विरोध किया गया।

प्रश्न 30.
ब्रिटेन से लौटे कंपनी के कर्मचारियों की क्या कहकर खिल्ली उड़ाई जाती थी?
उत्तर:
ब्रिटेन से लौटे कंपनी के कर्मचारियों को ‘नवाब’ कहकर उनकी खिल्ली उड़ाई जाती थी।

प्रश्न 31.
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए कौन-सा एक्ट पास किया गया?
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया पर नियंत्रण के लिए सन् 1773 में ‘रेग्यूलेटिंग एक्ट’ पास किया गया।

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प्रश्न 32.
‘इलाहाबाद की संधि’ कब की गई थी?
उत्तर:
‘इलाहाबाद की संधि’ 12 अगस्त, 1765 को की गई थी।

प्रश्न 33.
रैयत’ शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘रैयत’ शब्द को किसान के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 34.
पहाड़िया लोगों के जीविकापार्जन के साधन क्या थे?
उत्तर:
झूम की खेती, जंगल के उत्पाद व शिकार पहाड़िया लोगों के जीविकापार्जन के साधन थे।

प्रश्न 35.
चार्टर एक्ट पास करने का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
चार्टर एक्ट के माध्यम से कंपनी को बाध्य किया गया कि वह भारत में अपने राजस्व, प्रशासन इत्यादि के संबंध में नियमित रूप से ब्रिटिश सरकार को सूचना प्रदान करे।

प्रश्न 36.
पहाडिया लोगों की खेती का तरीका क्या था?
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे।

प्रश्न 37.
कुछ वर्षों के लिए खाली छोड़ी गई ज़मीन का पहाड़िया लोग किस रूप में प्रयोग करते थे?
उत्तर:
कुछ वर्षों के लिए खाली छोड़ी गई परती भूमि को पहाड़िया लोग पशु चराने के लिए प्रयोग करते थे।

प्रश्न 38.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहाड़िया क्षेत्रों में घुसपैठ क्यों शुरू की?
उत्तर:
संसाधनों का दोहन व प्रशासनिक दृष्टि से कंपनी ने पहाड़िया क्षेत्रों में घुसपैठ शुरू की।

प्रश्न 39. किस ब्रिटिश अधिकारी ने पहाड़िया लोगों से संधि के प्रयास शुरू किए?
उत्तर:
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैंड (Augustus Cleveland) ने पहाड़िया लोगों से संधि के प्रयास शुरू किए।

प्रश्न 40.
रैयतवाड़ी व्यवस्था कब और कहाँ अपनाई गई ?
उत्तर:
रैयतवाड़ी व्यवस्था सन् 1820 में मद्रास प्रेसीडेंसी में अपनाई गई। इस व्यवस्था का जन्मदाता थॉमस मुनरो को माना जाता है। यह व्यवस्था 30 वर्षों के लिए लागू की गई।

प्रश्न 41.
फ्रांसिस बुकानन ने पहाड़िया क्षेत्र की यात्रा कब की?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन ने 1810-11 ई० की सर्दियों में पहाड़िया क्षेत्र की यात्रा की।

प्रश्न 42.
पहाड़िया लोगों की जीवन-शैली का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों की जीवन-शैली का प्रतीक कुदाल था।

प्रश्न 43.
‘दामिन-इ-कोह’ किसे कहा गया?
उत्तर:
‘दामिन-इ-कोह’ उस विस्तृत भू-भाग को कहा गया जो कंपनी सरकार द्वारा संथालों को दिया गया।

प्रश्न 44.
कंपनी सरकार का संथालों के साथ क्या अनुबंध हुआ?
उत्तर:
कंपनी सरकार ने संथाल कृषकों के साथ यह अनुबंध किया कि उन्हें पहले दशक के अंदर प्राप्त भूमि के कम-से-कम दसवें भाग को कृषि योग्य बनाकर खेती करनी थी।

प्रश्न 45.
संथाल लोग दिकू किसे कहते थे?
उत्तर:
सरकारी अधिकारियों, ज़मींदारों व साहूकारों को संथाल दिकू (बाहरी लोग) कहते थे।

प्रश्न 46.
संथाल विद्रोह का मुख्य नेता कौन था?
उत्तर:
संथाल विद्रोह का मुख्य नेता सिधू मांझी था।

प्रश्न 47.
सीदो (सिधू) ने स्वयं को क्या बताया?
उत्तर:
सीदो ने स्वयं को देवी पुरुष और संथालों के भगवान् ‘ठाकुर’ का अवतार घोषित किया।

प्रश्न 48.
सीदो की हत्या कब की गई?
उत्तर:
1855 ई० में सीदो को पकड़कर मार दिया गया।

प्रश्न 49.
दक्कन क्षेत्र किसे कहा गया?
उत्तर:
बंबई व महाराष्ट्र के क्षेत्र को दक्कन कहा गया।

प्रश्न 50.
साहूकार किसे कहा गया?
उत्तर:
साहूकार, उसे कहा गया जो महाजन और व्यापारी दोनों हो, यानी धन उधार भी देता हो तथा व्यापार भी करता हो।

प्रश्न 51.
दक्कन को अंग्रेज़ी राज क्षेत्र में कब मिलाया गया?
उत्तर:
1818 ई० में पेशवा को हराकर दक्कन को अंग्रेजी राज क्षेत्र में मिला लिया गया।

प्रश्न 52.
रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली का जन्मदाता किसे माना जाता है?
उत्तर:
थॉमस मुनरो को रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली का जन्मदाता माना जाता है।

प्रश्न 53.
रैयतवाड़ी प्रणाली किन प्रांतों में लागू की गई?
उत्तर:
रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली को मद्रास प्रेसीडेंसी में लागू किया गया।

प्रश्न 54.
रैयतवाड़ी प्रणाली में बंदोबस्त किसके साथ किया गया?
उत्तर:
रैयतवाड़ी प्रणाली में सीधा किसानों या रैयत से ही बंदोबस्त किया गया।

प्रश्न 55.
रैयतवाड़ी प्रणाली में भूमि का मालिक किसे माना गया?
उत्तर:
रैयतवाड़ी प्रणाली में किसान को कानूनी तौर पर भूमि का मालिक मान लिया गया। जिस पर वह खेती कर रहा था।

प्रश्न 56.
रैयतवाड़ी बंदोबस्त कितने समय के लिए किया गया?
उत्तर:
रैयतवाड़ी बंदोबस्त 30 वर्षों के लिए किया गया।

प्रश्न 57.
बंबई दक्कन में रैयतवाड़ी बंदोबस्त कब शुरु किया गया?
उत्तर:
बंबई दक्कन में 1818 ई० में रैयत बंदोबस्त शुरु किया गया।

प्रश्न 58.
दक्कन में भयंकर अकाल कब पड़ा?
उत्तर:
1832-34 में दक्कन में भयंकर अकाल पड़ा।

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प्रश्न 59.
औद्योगिक युग में सबसे अधिक महत्त्व की वाणिज्यिक फसल कौन-सी थी?
उत्तर:
औद्योगिक युग में सबसे अधिक महत्त्व की वाणिज्यिक फसल कपास थी।

प्रश्न 60.
ब्रिटेन में ‘कपास आपूर्ति संघ’ की स्थापना कब की गई?
उत्तर:
ब्रिटेन में 1857 ई० में ‘क़पास आपूर्ति संघ’ की स्थापना की गई।

प्रश्न 61.
‘मैनचेस्टर कॉटन कंपनी’ कब बनाई गई?
उत्तर:
मैनचेस्टर कॉटन कंपनी’ 1859 ई० में बनाई गई।

प्रश्न 62.
अमेरिका में गृह युद्ध कब शुरु हुआ?
उत्तर:
अमेरिका में सन् 1861 में गृह युद्ध छिड़ गया जो उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका के बीच था।

प्रश्न 63.
अमेरिका का गृह युद्ध कब समाप्त हुआ?
उत्तर:
सन् 1865 में अमेरिका का गृह युद्ध समाप्त हो गया।

प्रश्न 64.
ब्रिटिश सरकार ने परिसीमन कानून कब बनाया?
उत्तर:
1859 ई० में सरकार ने परिसीमन कानून पास किया।

प्रश्न 65.
परिसीमन कानून का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
परिसीमन कानून का मुख्य उद्देश्य ब्याज के संचित होने से रोकना था।

प्रश्न 66.
परिसीमन कानून के अनुसार ऋणपत्रों को कितने समय के लिए मान्य माना गया?
उत्तर:
परिसीमन कानून के अनुसार किसान व ऋणदाता के बीच हस्ताक्षरित ऋण पत्र तीन वर्ष के लिए मान्य माना गया।

प्रश्न 67.
‘दक्कन दंगा आयोग’ ने ब्रिटिश संसद में अपनी रिपोर्ट कब प्रस्तुत की?
उत्तर:
‘दक्कन दंगा आयोग’ ने 1878 ई० में अपनी रिपोर्ट ‘दक्कन दंगा रिपोर्ट’ के नाम से प्रस्तुत की।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ठेकेदारी प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
बंगाल के नए गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स (1772-85) ने भूमि-कर वसूली की ठेकेदारी प्रणाली शुरू की। इसे ‘फार्मिंग प्रणाली’ (Farming System) भी कहा गया है। इसके अंतर्गत उच्चतम बोली लगाने वालों (Bidders) को कर वसूल करने का ठेका दे दिया जाता था। शुरू में ये ठेके पाँच वर्षों के लिए दिए गए, परंतु बाद में वार्षिक ठेके नीलाम किए जाने लगे।

प्रश्न 2.
‘दीवानी’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘दीवानी’ मुगल कालीन प्रशासन में एक महत्त्वपूर्ण पद था। इसका मुख्य कार्य आय-व्यय की व्यवस्था को सुनिश्चित करना था। भू-राजस्व प्रणाली निर्धारण भी दीवान ही करता था। अकबर काल में राजा टोडरमल एक बड़े चतुर, बुद्धिमान दीवान थे।

प्रश्न 3.
स्थायी बंदोबस्त के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सन् 1793 में गवर्नर-जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में भू-राजस्व की एक नई प्रणाली अपनाई जिसे ‘ज़मींदारी प्रथा’ ‘स्थायी बंदोबस्त’ अथवा ‘इस्तमरारी-प्रथा’ कहा गया। यह प्रणाली बंगाल, बिहार, उडीसा तथा बनारस व उत्तरी कर्नाटक में लाग की गई थी।

प्रश्न 4.
स्थायी बंदोबस्त लागू करने के दो कारण बताओ।
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त लागू करने के निम्नलिखित कारण थे

1. व्यापार व राजस्व संबंधी समस्याओं का समाधान (Solution of Problems Relating to Trade and Land Revenue)-कंपनी के अधिकारियों को यह आशा थी कि भू-राजस्व को स्थायी करने से व्यापार तथा राजस्व से संबंधित उन सभी समस्याओं का समाधान निकल आएगा जिनका सामना वे बंगाल विजय के समय से ही करते आ रहे थे।

2. बंगाल की अर्थव्यवस्था में संकट (Crisis in the Bengal Economy)-1770 के दशक से बंगाल की अर्थव्यवस्था अकालों की मार झेल रही थी। कृषि उत्पादन में निरंतर कमी आ रही थी। अर्थव्यवस्था संकट में फँसती जा रही थी और ठेकेदारी प्रणाली में इससे निकलने के लिए कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था।

प्रश्न 5.
स्थायी बंदोबस्त में भू-राजस्व की दर ऊँची रखने के क्या कारण थे?
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त में भू-राजस्व की दर शुरू से ही अपेक्षाकृत काफी ऊँची तय की गई थी। इसके दो कारण थे : पहला भू-राजस्व किसानों के अधिशेष (surplus) को हड़पने का मुख्य स्रोत था। किसानों से प्राप्त यह धन प्रशासन चलाने के साथ-साथ व्यापार करने के लिए भी उपयोगी था। दूसरा, राजस्व की दर स्थायी तौर पर निर्धारित करते समय कंपनी के अधिकारियों ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि आगे चलकर खेती के विस्तार तथा कीमतों में बढ़ोतरी होने से आय में वृद्धि होगी, उसमें कंपनी सरकार अपना दावा कभी नहीं कर सकेगी। अतः भविष्य की भरपाई वे शुरू से ही करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अधिकतम स्तर तक भू-राजस्वों की माँग को निर्धारित किया।

प्रश्न 6.
सूर्यास्त विधि क्या थी?
उत्तर:
सूर्यास्त विधि से तात्पर्य था कि निश्चित तारीख को सूर्य छिपने तक देय राशि का भुगतान न कर पाने पर ज़मींदारियों की नीलामी की जा सकती थी। इसमें राजस्वों की माँग निश्चित थी। फसल हो या न हो या फिर ज़मींदार रैयत से लगान एकत्र कर पाए या ना कर पाए उसे तो निश्चित तिथि तक सरकारी माँग पूरी करनी होती थी।

प्रश्न 7.
औपनिवेशिक शासन-व्यवस्था से पहले बंगाल में ज़मींदारों के पास क्या-क्या अधिकार थे?
उत्तर:
बंगाल में ज़मींदार छोटे राजा थे। उनके पास न्यायिक अधिकार थे और सैन्य टुकड़ियाँ भी। साथ ही उनकी अपनी पुलिस व्यवस्था थी। कंपनी की सरकार ने उनकी यह शक्तियाँ उनसे छीन लीं। उनकी स्वायत्तता को सीमित कर दिया।

प्रश्न 8.
बंगाल में ज़मींदारों की शक्ति सीमित करने के लिए कंपनी सरकार ने क्या किया?
उत्तर:
ज़मींदारों के सैनिक दस्तों को भंग कर दिया गया। साथ ही उनके सीमा शुल्क के अधिकार को भी खत्म कर दिया गया। उनके न्यायालयों को कंपनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर के नियंत्रण में रख दिया गया। स्थानीय पुलिस प्रबंध भी कलेक्टर ने अपने हाथ में ले लिया। इस प्रकार ज़मींदार शक्तिहीन होकर पूर्णतः सरकार की दया पर निर्भर हो गया।

प्रश्न 9.
बंगाल के जोतदारों के शक्तिशाली होने के दो कारण बताओ।
उत्तर:
बंगाल के जोतदारों के शक्तिशाली होने के कारण निम्नलिखित थे

1. विशाल ज़मीनों के मालिक (Became Owner of VastAreas of Land)-जोतदार गाँव में ज़मीनों के वास्तविक मालिक थे। कईयों के पास तो हजारों एकड़ भूमि थी। वे बटाइदारों से खेती करवाते थे।

2. व्यापार व साहूकारी पर नियंत्रण (Control over Trade and Money Landing)-जोतदार केवल भू-स्वामी ही नहीं थे। उनका स्थानीय व्यापार व साहूकारी पर भी नियंत्रण था। वे एक व्यापारी, साहूकार तथा भूमिपति के रूप में अपने क्षेत्र के प्रभावशाली लोग थे।

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प्रश्न 10.
बंगाल में बटाईदारों को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
बंगाल में बटाइदारों को अधियार अथवा बरगादार कहा जाता था। वे जोतदार के खेतों में अपने हल और बैल के साथ काम करते थे। वे फसल का आधा भाग अपने पास और आधा जोतदार को दे देते थे।

प्रश्न 11.
बेनामी खरीददारी क्या थी?
उत्तर:
बंगाल में ज़मींदारों ने अपनी ज़मींदारी की भू-संपदा बचाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हथकंडा बेनामी खरीददारी का अपनाया। इसमें प्रायः जमींदार के अपने ही आदमी नीलाम की गई संपत्तियों को महँगी बोली देकर खरीद लेते थे और फिर देय राशि सरकार को नहीं देते थे।

प्रश्न 12.
इतिहासकार या एक विद्यार्थी को सरकारी रिपोर्ट या दस्तावेजों का अध्ययन करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
इतिहासकार या एक विद्यार्थी को सरकारी रिपोर्ट एवं दस्तावेजों को काफी ध्यान से और सावधानीपूर्वक पढ़ना चाहिए। विशेषतः यह सवाल मस्तिष्क में सदैव रहना चाहिए कि यह किसने एवं किस उद्देश्य के लिए लिखी है। बिना सवाल उठाए तथ्यों को वैसे-के वैसे स्वीकार नहीं कर लिया जाना चाहिए।

प्रश्न 13.
ईस्ट इंडिया कंपनी पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाए?
उत्तर:
भारत में कंपनी शासन पर नियंत्रण एवं उसे रेग्युलेट’ करने के लिए सबसे पहले सन् 1773 में ‘रेग्यूलेटिंग एक्ट’ पास किया गया। फिर 1784 ई० में ‘पिट्स इंडिया एक्ट’ तथा आगे हर बीस वर्ष के बाद ‘चार्टर एक्टस’ पास किए गए। इन अधिनियमों के माध्यम के कंपनी को बाध्य किया गया कि वह भारत में अपने राजस्व, प्रशासन इत्यादि के संबंध में नियमित रूप से ब्रिटिश सरकार को सूचना प्रदान करे।

प्रश्न 14.
पहाडिया लोगों द्वारा मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण के दो कारण बताओ।
उत्तर:
पहाड़िया जनजाति के लोग मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों विशेषतः ज़मींदारों, किसानों व व्यापारियों इत्यादि पर बराबर आक्रमण करते रहते थे। इन आक्रमणों के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

1. अभाव अथवा अकाल (Famine)-प्रायः ये आक्रमण पहाड़िया लोगों द्वारा अभाव अथवा अकाल की परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए किए जाते थे। मैदानी भागों में, जहाँ सिंचाई से खेती होती थी, वहाँ यह लोग खाद्य-सामग्री की लूट-पाट करके ले जाते थे।

2.शक्ति-प्रदर्शन (To Show Power)-उनका एक लक्ष्य शक्ति-प्रदर्शन कर अपनी धाक जमाना भी रहता था। इस शक्ति-प्रदर्शन का लाभ उन्हें आक्रमणों के बाद भी मिलता रहता था।

प्रश्न 15.
पहाड़िया लोगों के प्रति कंपनी अधिकारियों का दृष्टिकोण कैसा था?
उत्तर:
कंपनी अधिकारी पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर और उपद्रवी समझते थे। अतः तब तक उनके इलाकों में शासन करना आसान नहीं था जब तक उन्हें सभ्यता की परिधि में न लाया जाए। ऐसे जनजाति लोगों को सुसभ्य बनाने के लिए वो समझते थे कि उनके क्षेत्रों में कृषि-विस्तार किया जाए।

प्रश्न 16.
संथालों और पहाड़िया लोगों के संघर्ष को क्या नाम दिया जाता है?
उत्तर:
संथालों और पहाड़िया जनजाति के इस संघर्ष को कुदाल और हल का संघर्ष का नाम दिया जाता है। कुदाल पहाड़िया जनजाति की जीवन-शैली का प्रतीक था तो हल संथालों के जीवन का प्रतीक था। पहाड़िया की तुलना में संथालों में स्थायी जीवन की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति अधिक थी।

प्रश्न 17.
दीवानी का अधिकार मिलने पर कंपनी को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
दीवानी का अधिकार मिलने पर कंपनी को निम्नलिखित लाभ हुए

  • दीवानी मिलने पर कंपनी बंगाल में सर्वोच्च शक्ति बन गई।
  • कंपनी की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। उसके व्यापार में भी वृद्धि हुई। सुदृढ़ आर्थिक स्थिति के कारण कंपनी के पास विशाल सेना हो गई।

प्रश्न 18.
विलियम होजेज कौन था?
उत्तर:
विलियम होजेज कैप्टन कुक के साथ प्रशांत महासागर की यात्रा करते हुए भारत आया था। वह भागलपुर के कलेक्टर आगस्टस क्लीवलैंड के जंगल के गाँवों पर भ्रमण पर गया था। इन गाँवों और प्राकृतिक सौंदर्य स्थलों के उसने कई एक्वाटिंट (Aquatint) तैयार किए थे। यह ऐसी तस्वीर होती है जो ताम्रपट्टी में अम्ल (Acid) की सहायता से चित्र के रूप में कटाई करके बनाई जाती है।

प्रश्न 19.
कंपनी अधिकारी ने संथाल जनजाति को राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में बसने का निमंत्रण क्यों दिया ?
उत्तर:
कंपनी अधिकारी कृषि क्षेत्र का विस्तार राजमहल की पहाड़ियों की घाटियों और निचली पहाड़ियों पर करना चाहते थे। पहाड़िया लोग हल को हाथ लगाना ही पाप समझते थे। वह बाज़ार के लिए खेती नहीं करना चाहते थे। ऐसी परिस्थितियों में ही अंग्रेज़ अधिकारियों का परिचय संथाल जनजाति के लोगों से हुआ जो पूरी ताकत के साथ ज़मीन में काम करते थे। उन्हें जंगल काटने में भी कोई हिचक नहीं थी। वे पहाड़िया लोगों की अपेक्षाकृत अग्रणी बाशिंदे थे। कंपनी अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में बसे महालों (गाँवों) में बसने का निमंत्रण दिया।

प्रश्न 20.
राजमहल की पहाड़ियों में संथालों की विजय के क्या कारण थे?
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों में संथालों के आगमन तथा बसाव का पहाड़िया जनजाति के लोगों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। पहाड़िया लोगों ने संथालों का प्रबल प्रतिरोध किया। परन्तु उन्हें संथालों के मुकाबले पराजित होकर पहाड़ियों की तलहटी वाला उपजाऊ क्षेत्र छोड़कर जाना पड़ा। इस संघर्ष में संथालों की विजय हुई क्योंकि कंपनी सरकार के सैन्यबल उन्हें कब्जा दिलवा रहे थे। संथाल जनजाति के लोग शक्तिशाली लड़ाकू थे।

प्रश्न 21.
संथालों के आगमन का पहाड़िया लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
संथालों के आगमन से पहाड़िया लोगों के जीवन-निर्वाह का आधार ही उनसे छिन गया था। जंगल नहीं रहे तो वे शिकार पर्याप्त घास व वन-उत्पादों से वंचित हो गए। ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में झूम की खेती भी संभव नहीं थी। वें बंजर, चट्टानी और शुष्क क्षेत्रों में धकेले जा चुके थे। इस सबके परिणामस्वरूप पहाड़िया लोगों के रहन-सहन पर प्रभाव पड़ा। आगे चलकर वह निर्धनता तथा भुखमरी के शिकार रहे।

प्रश्न 22.
संथाल विद्रोह के दो कारण बताओ।
उत्तर:
संथाल विद्रोह के दो कारण निम्नलिखित थे

  • बंगाल में अपनाई गई स्थायी भू-राजस्व प्रणाली के कारण संथालों की जमीनें धीरे-धीरे उनके हाथों से निकलकर ज़मींदारों और साहूकारों के हाथों में जाने लगीं।
  • सरकारी अधिकारी, पुलिस, थानेदार सभी महाजनों का पक्ष लेते थे। वे स्वयं भी संथालों से बेगार लेते थे। यहाँ तक कि संथाल कृषकों की स्त्रियों की इज्जत भी सुरक्षित नहीं थी। अतः दीकुओं (बाहरी लोगों) के विरुद्ध संथालों का विद्रोह फूट पड़ा।

प्रश्न 23.
विद्रोह के दौरान संथालों ने महाजनों और साहूकारों को निशाना क्यों बनाया?
उत्तर:
संथालों ने महाजनों एवं ज़मींदारों के घरों को जला दिया, उन्होंने जमकर लूटपाट की तथा उन बही-खातों को भी बर्बाद कर दिया जिनके कारण वे गुलाम हो गए थे। चूंकि अंग्रेज़ सरकार महाजनों और ज़मींदारों का पक्ष ले रही थी। अतः संथालों ने सरकारी कार्यालयों, पुलिस कर्मचारियों पर भी हमले किए।

प्रश्न 24.
कंपनी सरकार ने संथाल विद्रोह का दमन कैसे किया?
उत्तर:
कंपनी सरकार ने विद्रोहियों को कुचलने के लिए एक मेजर जनरल के नेतृत्व में 10 टुकड़ियाँ भेजीं। विद्रोही नेताओं को पकड़वाने पर 10 हजार का इनाम रखा गया। सेना ने कत्लेआम मचा दिया। गाँव-के-गाँव जलाकर राख कर दिए।

प्रश्न 25.
बुकानन विवरण की दो विशेषताएँ लिखिए। उत्तर:बुकानन विवरण की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) बुकानन ने अपने विवरण में उन स्थानों को रेखांकित किया जहाँ लोहा, ग्रेनाइट, साल्टपीटर व अबरक इत्यादि खनिजों के भंडार थे। यह सारी जानकारी कंपनी के लिए वाणिज्यिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण थी।

(2) बुकानन मात्र भू-खंडों का वर्णन ही नहीं करता अपितु वह सुझाव भी देता है कि इन्हें किस तरह कृषि-क्षेत्र में बदला जा सकता है। कौन-सी फसलें बोई जा सकती हैं।

प्रश्न 26.
दक्कन विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों ने क्या किया?
उत्तर:
इस विद्रोह के फैलने से ब्रिटिश अधिकारी घबरा गए। विद्रोही गाँवों में पुलिस चौकियाँ बनाई गईं। यहाँ तक कि इस इलाके को सेना के हवाले करना पड़ा। 95 किसानों को गिरफ्तार करके दंडित किया गया। विद्रोह पर नियंत्रण के बाद भी स्थिति पर नज़र रखी गई।

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प्रश्न 27.
दामिन-इ-कोह के निर्माण से संथालों के जीवन में आए दो परिवर्तनों को बताइए।
उत्तर:
दामिन-इ-कोह के निर्माण से संथालों के जीवन में आए दो परिवर्तन इस प्रकार थे

  • दामिन-इ-कोह में संथालों ने खानाबदोश जिंदगी छोड़ दी और स्थायी रूप से बस गए।
  • वे कई प्रकार की वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन करने लगे और साहूकारों तथा व्यापारियों से लेन-देन करने लगे।

प्रश्न 28.
ब्रिटेन में ‘कपास आपूर्ति संघ’ व मैनचेस्टर कॉटन कंपनी की स्थापना के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
1857 ई० में ‘कपास आपूर्ति संघ’ तथा 1859 ई० में मैनचेस्टर कॉटन कंपनी (Menchester Cotton Company) बनाई गई जिसका उद्देश्य दुनिया के प्रत्येक भाग में कपास के उत्पादन को प्रोत्साहित करना था।

प्रश्न 29.
रैयतवाड़ी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रैयतवाड़ी भू-राजस्व व्यवस्था की वह प्रणाली थी जिसके अन्तर्गत रैयत (किसानों) का सरकार से सीधा सम्बन्ध होता था। इस व्यवस्था में बिचौलिये समाप्त कर दिए गए।

प्रश्न 30.
डेविड रिकार्डो कौन था?
उत्तर:
डेविड रिकार्डो 1820 के दशक में इंग्लैण्ड का अर्थशास्त्री था। उसके अनुसार भू-स्वामी को उस समय प्रचलित ‘औसत लगानों’ को प्राप्त करने का हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो वह भू-स्वामी की अधिशेष आय होगी। जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 31.
पहाड़िया लोग मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण क्यों करते रहते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों द्वारा मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण अभाव व अकाल से बचने के लिए, मैदानों में बसे समुदायों पर अपनी शक्ति दिखाने के लिए तथा बाहरी लोगों के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करने के लिए भी किए जाते थे।

प्रश्न 32.
जमींदारों पर नियन्त्रण के उद्देश्य से कम्पनी ने कौन-से कदम उठाए?
उत्तर:
ज़मींदारों की शक्ति पर नियंत्रण रखने के लिए उनकी सैन्य टुकड़ियों को भंग कर दिया गया। ज़मींदारों से पुलिस एवं न्याय व्यवस्था का अधिकार छीन लिया गया तथा उनके द्वारा लिया जाने वाला सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 33.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ महत्त्वपूर्ण क्यों थी?
उत्तर:
1813 में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई फरमिंगर की एक रिपोर्ट है। यह ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ के नाम से जानी गई, यह स्वयं में पहली चार रिपोर्टों से अधिक महत्त्वपूर्ण बन गई क्योंकि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन व क्रियाकलापों के संदर्भ में यह एक विस्तृत रिपोर्ट थी।

प्रश्न 34.
पहाड़िया लोग कौन थे?
उत्तर:
बंगाल में राजमहल की पहाड़ियों के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को ‘पहाड़िया’ के नाम से जाना जाता था। ये लोग सदियों से प्रकृति की गोद में निवास करते आ रहे थे। झूम की खेती, जंगल के उत्पाद तथा शिकार उनके जीविकोपार्जन के साधन थे।

प्रश्न 35.
स्थायी बन्दोबस्त की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
स्थायी बन्दोबस्त की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) यह समझौता बंगाल के राजाओं और ताल्लुकेदारों के साथ कर उन्हें ‘ज़मींदारों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया।
(2) ज़मींदारों द्वारा सरकार को दी जाने वाली वार्षिक भूमि-कर राशि स्थायी रूप से निश्चित कर दी गई। इसीलिए इसे ‘स्थायी बंदोबस्त’ से भी पुकारा गया। .

प्रश्न 36.
स्थायी बन्दोबस्त की दो हानियाँ लिखो।
उत्तर:
स्थायी बन्दोबस्त की दो हानियाँ निम्नलिखित हैं
(1) इस व्यवस्था में, सरकार और रैयत के बीच कोई सीधा संबंध नहीं था। उन्हें ज़मींदारों की दया पर छोड़ दिया गया था। उनके हितों की पूरी तरह उपेक्षा की गई।

(2) इस व्यवस्था में समय-समय पर भूमिकर में वृद्धि का अधिकार सरकार के पास नहीं था। इसलिए शुरू में तो यह व्यवस्था सरकार के लिए लाभकारी रही परंतु बाद में कृषि उत्पादों में हुई वृद्धि के बावजूद भी सरकार अपने भूमि-कर में वृद्धि नहीं कर सकी।

प्रश्न 37.
पहाड़िया लोगों द्वारा अपनाई गई झूम खेती क्या थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोग जंगल में झाड़ियों को काटकर व घास-फूस को जलाकर ज़मीन का एक छोटा-सा टुकड़ा निकाल लेते थे। यह छोटा-सा खेत पर्याप्त उपजाऊ होता था। घास व झाड़ियों के जलने से बनी राख उसे और भी उपजाऊ बना देती थी। कुछ वर्षों तक उसमें खाने के लिए विभिन्न तरह की दालें और ज्वार-बाजरा उगाते और फिर कुछ वर्षों के लिए उसे खाली (परती) छोड़ देते। ताकि यह पुनः उर्वर हो जाए। ऐसी खेती को स्थानांतरित खेती (Shifting Cultivation) अथवा झूम की खेती कहा जाता है।

प्रश्न 38.
संथाल परगना क्यों बनाया गया?
उत्तर:
संथाल विद्रोह को दबाने के बाद अलग संथाल परगना बनाया गया ताकि आक्रोश कम हो सके। इस परगने में भागलपुर और वीरभूम जिलों का 5500 वर्गमील शामिल किया गया। संथाल परगना में कुछ विशेष कानून लागू किए गए जैसे कि यहाँ यूरोपीय मिशनरियों के अतिरिक्त अन्य बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई।

प्रश्न 39.
फ्रांसिस बुकानन कौन था?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था। इसने 1794 से 1815 तक एक चिकित्सक के रूप में बंगाल में कंपनी सरकार में नौकरी की। कुछ वर्ष वह लॉर्ड वेलजली (गवर्नर-जनरल) का शल्य चिकित्सक भी रहा। उसने कलकत्ता में अलीपुर चिड़ियाघर की स्थापना की।

प्रश्न 40.
जंगलों के विनाश के सम्बन्ध में स्थानीय लोगों व बुकानन के दृष्टिकोण में क्या अन्तर था?
उत्तर:
स्थानीय लोग जंगलों के विनाश में अपना हित नहीं देखते थे। उनका दृष्टिकोण जीवनयापन तक सीमित था। जबकि बुकानन का दृष्टिकोण आधुनिक पश्चिमी विचारधारा तथा कंपनी के वाणिज्यिक हितों से प्रेरित था।

प्रश्न 41.
महालवाड़ी प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
महालवाड़ी प्रणाली मुख्यतः संयुक्त प्रांत, आगरा, अवध, मध्य प्रांत तथा पंजाब के कुछ भागों में लागू की गई थी। ब्रिटिश भारत की कुल 30 प्रतिशत भूमि इसके अंतर्गत आती थी। इस बंदोबस्त में महाल अथवा गाँव को इकाई माना गया। भू-राजस्व देने के लिए यह इकाई उत्तरदायी थी। .

प्रश्न 42.
‘पूना सार्वजनिक सभा’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सन् 1873 में मध्यजीवी बुद्धिजीवियों का एक नया संगठन ‘पूना सार्वजनिक सभा’ ने किसानों के मामले में हस्तक्षेप किया। भू-राजस्व दरों पर पुनः विचार करने के लिए एक याचिका दायर की गई। नई भू-राजस्व दरों के विरुद्ध कुनबी कृषकों को जागृत करने के लिए इस संगठन के कार्यकर्ता दक्कन देहात के गाँवों में भी गए।।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बंगाल में स्थायी बंदोबस्त (इस्तमरारी) के दो लाभ बताएँ।।
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त (ज़मींदारी प्रथा) काफी विचार-विमर्श के बाद शुरू की गई थी। इसलिए इससे कुछ अपेक्षित लाभ हुए, जो इस प्रकार हैं
1. सरकार की आय का निश्चित होना-सरकार की वार्षिक आय निश्चित हो गई जिससे प्रशासन व व्यापार दोनों को नियमित करने में लाभ हुआ।

2. धन व समय की बचत-इससे कंपनी सरकार को धन व समय दोनों की बचत हुई। प्रतिवर्ष बंदोबस्त निश्चित करने में धन व समय दोनों ही बर्बाद होते. थे।

3. वफादार वर्ग-स्थायी बंदोबस्त से ज़मींदारों का वर्ग अंग्रेजों की नीतियों से धनी हुआ। अतः यह उनका एक वफादार सहयोगी बनता गया। लेकिन यह बात सभी ज़मींदारों पर लागू नहीं हुई।

4. कंपनी के व्यापार में वृद्धि-स्थायी बंदोबस्त से बंगाल में कंपनी की आय सुनिश्चित हो गई। अब वह अपना ध्यान व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाने में लगा पाई। फलतः इससे उसे व्यापारिक लाभ मिला।

5. ज़मींदारों की समृद्धि-जो ज़मींदार सख्ती के साथ किसानों से लगान वसूलने में सफल हुए, वे समृद्ध होते गए।

प्रश्न 2.
स्थायी बंदोबस्त की हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त के कुछ लाभ कंपनी को मिले। परन्तु यह बंगाल की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं कर सकी। कालांतर में यह कंपनी के लिए भी आर्थिक तौर पर घाटे का सौदा सिद्ध हुई। अतः कुछ विद्वानों ने इस बंदोबस्त की कड़ी आलोचना की है। इसके कुछ निम्नलिखित दुष्परिणाम हुए

1. सरकार को हानि-निःसंदेह इससे सरकार को एक निश्चित वार्षिक आय तो होने लगी। परंतु इस व्यवस्था में समय-समय पर भूमिकर में वृद्धि का अधिकार सरकार के पास नहीं था। इसलिए शुरू में तो यह व्यवस्था सरकार के लिए लाभकारी रही परंतु बाद में सरकार अपने भूमि-कर में वृद्धि नहीं कर सकी।

2. रैयत के हितों की अनदेखी-इस व्यवस्था में, सरकार और रैयत के बीच कोई सीधा संबंध नहीं था। उन्हें ज़मींदारों की दया पर छोड़ दिया गया था। उनके हितों की पूरी तरह उपेक्षा की गई। वे किसान की संपत्ति को बेचकर लगान की पूरी रकम वसूल कर सकते थे। तथापि यह तरीका आसान नहीं था क्योंकि कानूनी प्रक्रिया काफी लंबी थी।

3. कृषि में पिछड़ापन-ज़मींदारी प्रथा से कृषि अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि उसका पिछड़ापन और भी बढ़ता गया। ज़मींदार वर्ग ने कृषि सुधारों में कोई रुचि नहीं दिखाई। दूसरी ओर किसान पर लगान का बोझ बढ़ता गया। उसे चुकाने के लिए वह साहूकारों के चंगुल में फँसता गया। किसान के पास कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ बच ही नहीं पाता था। फलतः कृषि का पिछड़ापन बढ़ता गया।

4. अनुपस्थित ज़मींदार-इस व्यवस्था में नए जमींदार वर्ग का उदय हुआ। यह पहले के ज़मींदारों से कई मायनों में अलग था। इन्होंने उन पुराने ज़मींदारों की ज़मींदारियां खरीद ली थीं जो समय पर लगान वसूल करके सरकार को जमा नहीं करवा सके थे। इन नए ज़मींदारों ने अपनी सहूलियत के लिए किसानों से लगान वसूली का काम आगे अन्य इच्छुक लोगों को ज्यादा धन लेकर पट्टे अथवा ठेके पर दे दिया। इस प्रकार खेतिहर किसान और वास्तविक ज़मींदार के मध्य परजीवी ज़मींदारों की एक लंबी श्रृंखला (चेन) पैदा हो गई। इस लगानजीवी वर्ग का सारा भार अन्ततः किसान पर ही पड़ता था।

5. जमींदारों को हानि-प्रारंभ में स्थायी बंदोबस्त ज़मींदारों के लिए भी काफी हानिप्रद सिद्ध हुआ। बहुत-से ज़मींदार सरकार को निर्धारित भूमि-कर का भुगतान समय पर नहीं कर सके। परिणामस्वरूप उन्हें उनकी ज़मींदारी से वंचित कर दिया गया। समकालीन स्रोतों से ज्ञात होता है कि बर्दवान के राजा (शक्तिशाली ज़मींदार) की ज़मींदारी के अनेक महाल (भू-संपदाएँ) सार्वजनिक तौर पर नीलाम किए गए थे। उस पर राजस्व की एक बड़ी राशि बकाया थी। लेकिन यह कहानी अकेले बर्दवान (अब बर्द्धमान) ” की नहीं थी। 18वीं सदी के अंतिम वर्षों में काफी बड़े स्तर पर ऐसी भू-संपदाओं की नीलामी हुई थी।

प्रश्न 3.
स्थायी बंदोबस्त में ज़मींदार राजस्व राशि के भुगतान में क्यों असमर्थ हुए?
उत्तर:
राजस्व राशि का भुगतान करने में ज़मींदार कई कारणों से असमर्थ रहे। ये कारण सरकार की नीतियों एवं ज़मींदारों की स्थिति से जुड़े हुए थे। संक्षेप में ये कारण इस प्रकार थे

1. राजस्व की ऊँची दर-भू-राजस्व की दर शुरू से ही अपेक्षाकृत काफी ऊँची तय की गई थी क्योंकि राजस्व की दर स्थायी तौर पर निर्धारित करते समय कंपनी के अधिकारियों ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि आगे चलकर खेती के विस्तार तथा कीमतों में बढ़ोत्तरी होने से ज़मींदारों की आय में वृद्धि होगी, लेकिन सरकार अपना दावा उसमें से कभी नहीं कर सकेगी। अतः भविष्य की भरपाई वे शुरू से ही करना चाहते थे। उनकी यह दलील थी कि शुरू-शुरू में यह माँग ज़मींदारों को कुछ अधिक लगेगी परन्तु आगे आने वाले वर्षों में धीरे-धीरे यह सहज हो जाएगी।

2. मंदी में ऊँचा राजस्व-स्थायी बंदोबस्त के लिए राजस्व दर का निर्धारण 1790 के दशक में किया गया। यह मंदी का दशक था। कृषि उत्पादों की कीमतें अपेक्षाकृत कम थीं। ऐसे में रैयत (किसानों) के लिए ऊँची दर का राजस्व चुकाना कठिन था। इस प्रकार ज़मींदार किसानों से राजस्व इकट्ठा नहीं कर पाए और वह सरकार को देय राशि का भुगतान करने में भी असमर्थ रहे।

3. सूर्यास्त विधि-इस व्यवस्था में केवल राजस्वों की दर ही ऊँची नहीं थी वरन वसूली के तरीके भी अत्यंत सख्त थे। इसके लिए सूर्यास्त विधि का अनुसरण किया गया, जिसका तात्पर्य था कि निश्चित तारीख को सूर्य छिपने तक देय राशि का भुगतान न कर पाने पर ज़मींदारियों को नीलाम कर दिया जाए। ध्यान रहे इसमें राजस्वों की माँग निश्चित थी। फसल हो या न हो जमींदार को तो निश्चित तिथि तक सरकारी माँग पूरी करनी होती थी। इसलिए लगान एकत्र न करने वाले बर्बाद हो गए।

4. ज़मींदारों की शक्तियों में कमी-बंगाल में ज़मींदार छोटे राजा थे। उनके पास न्यायिक अधिकार थे और सैन्य टुकड़ियाँ भी थीं। उनकी अपनी पुलिस व्यवस्था थी। कंपनी की सरकार ने उनकी यह शक्तियाँ उनसे छीन लीं। उनकी शक्तियाँ मात्र किसानों से लगान इकट्ठा करने और अपनी ज़मींदारी का प्रबंध करने तक ही सीमित कर दी गईं। उनके सैनिक दस्तों को भंग कर दिया गया।

उनके न्यायालयों को कंपनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर के नियंत्रण में रख दिया गया। स्थानीय पुलिस प्रबंध भी कलेक्टर ने अपने हाथ में ले लिया। इस प्रकार प्रशासन का केंद्र बिंदु ज़मींदार नहीं बल्कि कलेक्टर बनता गया। ज़मींदार शक्तिहीन होकर पूर्णतः सरकार की दया पर निर्भर हो गया। समकालीन सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि किस प्रकार सरकारी माँग पूरी न कर पाने वाले ज़मींदारों को ज़मींदारी से वंचित कर दिया जाता था।

5. ग्राम मुखियाओं का व्यवहार-बंगाल में ग्राम के मुखियाओं को जोतदार अथवा मंडल कहा जाता था। यह काफी सम्पन्न किसान (रैयत) थे। कुछ गरीब किसान भी इनके प्रभाव में होते थे। इस सम्पन्न ग्रामीण वर्ग का ज़मींदारों के प्रति व्यवहार काफी नकारात्मक रहता था। जब ज़मींदार का अधिकारी गाँव में लगान एकत्र करने में असफल रहता और ज़मींदार सरकार को भुगतान न कर पाता तो जोतदारों को बड़ी खुशी होती थी।

अच्छी फसल न होने या फिर सम्पन्न रैयत जान-बूझकर समय पर ज़मींदार को लगान का भुगतान नहीं करते थे। दोनों ही अवसरों पर ज़मींदार मुसीबत में फंसता था। शक्तियाँ सीमित कर दिए जाने के कारण अब वे आसानी से बाकीदारों के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग भी नहीं कर सकते थे। वह बाकीदारों के विरुद्ध न्यायालय में तो जा सकता था। परन्तु न्याय की प्रक्रिया इतनी लंबी थी कि वर्षों चलती रहती थी।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 4.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ क्या थी?
उत्तर:
कंपनी के प्रशासन और बंगाल की स्थिति पर सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई विशेष रिपोर्ट ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ के नाम से जानी गई। क्योंकि इससे पूर्व चार रिपोर्ट इस संदर्भ में पहले भी प्रस्तुत हो चुकी थीं। लेकिन यह स्वयं में पहली चार रिपोर्टों से अधिक महत्त्वपूर्ण बन गई क्योंकि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन व क्रियाकलापों के बारे में यह एक विस्तृत रिपोर्ट थी। इसमें 1002 पृष्ठ थे जिनमें से 800 से अधिक पृष्ठों में परिशिष्ट लगाए गए थे। इन परिशिष्टों में भू-राजस्व से संबंधित आंकड़ों की तालिकाएँ, अधिकारियों की बंगाल व मद्रास में राजस्व व न्यायिक प्रशासन पर लिखी गई टिप्पणियाँ शामिल थीं।

साथ ही जिला कलेक्टरों की अपने अधीन भू-राजस्व व्यवस्था पर रिपोर्ट तथा ज़मींदारों एवं रैयतों के आवेदन पत्रों को सम्मिलित किया गया था। यह साक्ष्य इतिहास लेखन के लिए बहुमूल्य हैं। उल्लेखनीय है कि 1760 से 1800 ई० के बीच चार दशकों में बंगाल के देहात में हुए विभिन्न परिवर्तनों की जानकारी का आधार पाँचवीं रिपोर्ट में शामिल यह तथ्य ही रहे हैं। यह रिपोर्ट हमारे विचारों एवं अवधारणाओं का एक मुख्य आधार रही है।

प्रश्न 5.
ब्रिटिश संसद में ‘पाँचवीं रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के क्या कारण थे?
उत्तर:
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ भारत में कंपनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों पर एक विस्तृत रिपोर्ट थी। ब्रिटिश संसद में ‘पाँचवीं रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कारण थे

1. कंपनी का सत्ता बनना-ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक कंपनी थी। परन्तु वे बक्सर के युद्ध के पश्चात् भारत में एक राजनीतिक सत्ता बन गई। फलस्वरूप उसकी गतिविधियों पर सूक्ष्म नज़र रखी जाने लगी। इंग्लैंड में अनेक राजनीतिक समूहों का मत था कि बंगाल की विजय का लाभ केवल ईस्ट इंडिया कंपनी को नहीं मिलना चाहिए, बल्कि ब्रिटिश राष्ट्र को भी मिलना चाहिए।

2. अन्य व्यापारियों का दबाव-ब्रिटेन के अनेक व्यापारिक समूह कंपनी के व्यापार के एकाधिकार का विरोध कर रहे थे। निजी व्यापार करने वाले ऐसे व्यापारियों की संख्या बढ़ रही थी। वे भी भारत के साथ व्यापार में हिस्सेदारी के इच्छुक थे। वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को एकाधिकार प्रदान करने वाले शाही फरमान को रद्द करवाना चाहते थे। ब्रिटेन के उद्योगपति भी भारत में ब्रिटिश विनिर्माताओं के लिए अवसर देख रहे थे। अतः वे भी भारत के बाजार उनके लिए खुलवाने को उत्सुक थे।

3. कंपनी के भ्रष्टाचार व प्रशासन पर बहस कंपनी के कर्मचारी तथा अधिकारी निजी व्यापार तथा रिश्वतखोरी से बहुत-सा धन लेकर ब्रिटेन लौटते थे। उनकी यह धन संपत्ति अन्य निजी व्यापारियों के मन में ईर्ष्या उत्पन्न करती थी क्योंकि यह व्यापारी भी भारत से शुरू हुई लूट में हिस्सा पाने के इच्छुक थे। कई राजनीतिक समूह ब्रिटिश संसद में भी इस मुद्दे को उठा रहे थे। साथ ही ब्रिटेन के समाचार पत्रों में भी कंपनी अधिकारियों के लोभ व लालच का पर्दाफाश कर रहे थे। इंग्लैंड में कंपनी के बंगाल में अराजक व अव्यवस्थित शासन की सूचनाएँ भी पहुँच रही थी। अतः कंपनी के अधिकारियों में भ्रष्टाचार तथा कुशासन पर इंग्लैंड में बहस छिड़ चुकी थी।

4. कंपनी पर नियंत्रण-स्पष्ट है कि ब्रिटेन में आर्थिक एवं राजनीतिक दबावों के चलते भारत में कंपनी शासन पर नियंत्रण आवश्यक हो गया था। इसके लिए सबसे पहले सन् 1773 में ‘रेग्यूलेटिंग एक्ट’ फिर 1784 में ‘पिट्स इंडिया एक्ट’ तथा आगे और कई एक्ट पास किए गए। इन अधिनियमों के माध्यम से कंपनी को बाध्य किया गया कि वह भारत में अपने राजस्व, प्रशासन इत्यादि के संबंध में नियमित रूप से ब्रिटिश सरकार को सूचना प्रदान करे। साथ ही कंपनी के काम-काज का निरीक्षण करने के लिए कई समितियों का गठन किया गया। ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ भी एक ऐसी ही रिपोर्ट थी जिसे एक प्रवर समिति (Select Committee) द्वारा तैयार किया गया था।

प्रश्न 6.
क्या ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ पूर्णतः निष्पक्ष थी?
अथवा
‘पाँचवी रिपोर्ट’ की आलोचना के कोई दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
पाँचवीं रिपोर्ट साक्ष्यों की दृष्टि से काफी समृद्ध थी, लेकिन पूर्णतः निष्पक्ष नहीं थी। 8वीं सदी के अंतिम दशकों में यह बंगाल में कंपनी सत्ता के बारे में जानकारी का महत्त्वपूर्ण आधार भी रही। इस आधार पर यह समझा जाता रहा कि बड़े स्तर पर बंगाल के परंपरागत ज़मींदार बर्बाद हो गए थे। उनकी ज़मींदारियाँ नीलाम हो गई थीं। इन पर देय राशि का बकाया सदैव बना रहता था। परन्तु ऐसे सारे निष्कर्ष ठीक नहीं थे। शोधकर्ताओं ने ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ के अतिरिक्त समकालीन बंगाल के ज़मींदारों के अभिलेखागारों तथा कलेक्टर कार्यालयों के अन्य अभिलेखों का गहन और सावधानीपूर्वक अध्ययन करके रिपोर्ट के बारे में निम्नलिखित नए निष्कर्ष निकाले

1. पहला–यह रिपोर्ट निष्पक्ष नहीं थी। जो प्रवर समिति के सदस्य इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले थे उनका प्रमुख उद्देश्य कंपनी के कुप्रशासन की आलोचना करना था। राजस्व प्रशासन की कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया।

2. दूसरा-परंपरागत ज़मींदारों की शक्ति का पतन काफी बढ़ा-चढ़ाकर और आंकड़ों के जोड़-तोड़ के साथ पेश किया गया।

3. तीसरा-इसमें ज़मींदारों द्वारा ज़मीनें गँवाने और उनकी बर्बादी का उल्लेख भी अतिशयोक्तिपूर्ण है। ऊपर बताया गया है ज़मींदार नीलामी में अपनी जमीन को बचाने के लिए भी कई तरह के हथकंडे अपनाता था।

प्रश्न 7.
पहाड़िया लोगों के मैदानी लोगों के साथ संबंधों की चर्चा करें।
उत्तर:
पहाड़िया जनजाति के लोग मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों विशेषतः ज़मींदारों, किसानों व व्यापारियों इत्यादि पर बराबर आक्रमण करते रहते थे। मुख्यतः यह संबंध निम्नलिखित तीन बातों पर आधारित थे

1. अभाव अथवा अकाल-प्रायः ये आक्रमण पहाड़िया लोगों द्वारा अभाव अथवा अकाल की परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए किए जाते थे। मैदानी भागों में, जहाँ सिंचाई से खेती होती थी, वहाँ यह लोग खाद्य-सामग्री की लूट-पाट करके ले जाते थे।

2. शक्ति-प्रदर्शन-पहाड़िया जनजाति के लोग जब बाहरी लोगों पर आक्रमण करते थे तो उनमें एक लक्ष्य शक्ति-प्रदर्शन कर अपनी धाक जमाना भी रहता था। इस शक्ति-प्रदर्शन का लाभ उन्हें आक्रमणों के बाद भी मिलता रहता था।

3. राजनीतिक संबंध-इन आक्रमणों का लाभ पहाड़िया मुखियाओं अथवा सरदारों को बाहरी लोगों के साथ राजनीतिक संबंध स्थापना में मिलता था। आक्रमणों से वे मैदानी ज़मींदारों व व्यापारियों में भय उत्पन्न करते थे। भयभीत हुए ज़मींदार बचाव के लिए मुखियाओं को नियमित खिराज़ का भुगतान करते थे। इसी प्रकार व्यापारियों से वह पथ-कर वसूल करते थे। जो व्यापारी उन्हें यह कर देते थे उनकी जान-माल की सुरक्षा का आश्वासन दिया जाता था। इस प्रकार पहाड़िया और मैदानी लोगों के बीच कुछ संघर्ष और कुछ अल्पकालीन शांति-संधियों से संबंध चलते आ रहे थे।

18वीं सदी के अंतिम दशकों से संबंध परिवर्तन-18वीं सदी के अंतिम दशकों में पहाड़िया और मैदानी लोगों के बीच संबंधों में बदलाव आने लगा। इसका मुख्य कारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आर्थिक हित थे। यह पूर्वी बंगाल में अधिक-से-अधिक कृषि क्षेत्र का विस्तार करना चाहती थी। इसके लिए जंगलों को साफ करके कृषि क्षेत्र के विस्तार को प्रोत्साहन दिया। परिणाम यह हुआ कि जमींदारों और जोतदारों ने उन क्षेत्रों पर अधिकार जमा लिया जो पहले पहाड़िया लोगों के पास थे। यह लोग उनके परती खेतों पर कब्जा करके उनमें धान की खेती करने लगे। इसके लिए उन्हें कंपनी सत्ता का समर्थन प्राप्त था।

प्रश्न 8.
कंपनी सरकार ने राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में स्थायी कृषि के विस्तार को प्रोत्साहन क्यों दिया ?
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने निम्नलिखित कारणों से राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में स्थायी कृषि के विस्तार को प्रोत्साहन दिया
1. राजस्व वृद्धि-उस काल में बंगाल की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित थी। इसलिए राजस्व का स्रोत भी कृषि उत्पादन ही था। अतः राजस्व में वृद्धि के लिए उन्होंने कृषि विस्तार पर जोर दिया।

2. कृषि उत्पादों का निर्यात-18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हो रही थी। बड़े-बड़े उद्योग लग रहे थे। इनमें काम करने वाले लोगों के भोजन व अन्य जरूरतों के लिए कृषि उत्पादों की जरूरत थी। इसलिए कंपनी सरकार कृषि क्षेत्र के विस्तार में रुचि ले रही थी।

3. पहाड़िया के प्रति अधिकारियों का दृष्टिकोण-कंपनी के अधिकारी पहाड़िया लोगों को बर्बर और उपद्रवी समझते थे। ऐसे जनजाति लोगों को सभ्य बनाने के लिए वे समझते थे कि उनके क्षेत्रों में कृषि-विस्तार किया जाए। ताकि पहाड़िया लोग कृषि जीवन अपना सकें, जो उनकी दृष्टि में एक सभ्य सामाजिक जीवन था। वास्तविकता यह थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने आर्थिक (संसाधनों का दोहन) और प्रशासनिक दोनों उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए पहाड़िया के क्षेत्रों में घुसपैठ शुरू की।

प्रश्न 9.
अधिकारियों ने पहाड़िया क्षेत्र में संथालों को प्राथमिकता क्यों दी?
उत्तर:
कंपनी अधिकारी कृषि क्षेत्र का विस्तार राजमहल की पहाड़ियों के क्षेत्रों में करना चाहते थे। इसके लिए पहाड़ियों की तुलना में संथाल उन्हें अग्रणी बाशिंदे लगे। इसलिए उन्होंने संथालों को प्राथमिकता दी। उन्होंने पहले ज़मींदारों से इस क्षेत्र में खेती करवाना चाहा परन्तु पहाड़ियों के उपद्रव होने लगे। वे इसके लिए पहाड़िया लोगों को भी स्थायी किसान बनाना चाहते थे। परन्तु इसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली।

क्योंकि पहाड़िया लोग प्रकृति-प्रेमी थे। प्रकृति के प्रति उनका दृष्टिकोण आक्रामक नहीं था। वे जंगलों को बर्बाद करके उस क्षेत्र में हल नहीं चलाना चाहते थे। वे छोटे-छोटे खेतों में कुदाली से ही खुरच कर थोड़ी-बहुत फसल लगाने के अभ्यस्त थे। इस फसल से ही उनका जीवन निर्वाह हो जाता था। वह बाज़ार के लिए खेती नहीं करना चाहते थे। वे हल को हाथ लगाना ही पाप समझते थे।

अतः अंग्रेजों को पहाड़ियों को कृषक बनाने में सफलता नहीं मिली। ऐसी परिस्थितियों में अंग्रेज़ अधिकारियों का परिचय संथाल जनजाति के लोगों से हुआ। यह पूरी ताकत के साथ ज़मीन में काम करते थे। उन्हें जंगल काटने में भी कोई हिचक नहीं थी। वे अपेक्षाकृत अग्रणी बाशिदे थे। कंपनी अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में बसे महालों (गाँवों) में बसने का निमंत्रण दिया। संथालों के गीतों और मिथकों से पता चलता है कि वे तो खेती के लिए ज़मीन की तलाश में ही भटक रहे थे। अतः उन्होंने अधिकारियों के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में उन्हें बड़े स्तर पर जंगल क्षेत्र की ज़मीनें आबंटित की गईं।

प्रश्न 10.
‘दामिन-इ-कोह का सीमांकन’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
दामिन-इ-कोह नाम उस विस्तृत भू-भाग को दिया गया था जो संथालों को दिया गया था। सन् 1832 तक इस पूरे क्षेत्र का नक्शा बनाया गया। इसके चारों ओर खंबे गाड़कर इसकी परिसीमा निर्धारित की गई। इस परिसीमित क्षेत्र को संथाल भूमि घोषित किया गया। संथालों को इसी में रहते हुए हल से खेती करनी थी। उन्हें अपने जनजातीय जीवन को त्यागना था। कंपनी सरकार ने संथाल कृषकों से एक अनुबंध किया था। इसके अनुसार उन्हें पहले दशक के अंदर प्राप्त भूमि के कम-से-कम दसवें भाग को कृषि योग्य बनाकर उसमें खेती करनी थी।

संथालों को यह अनुबंध पसंद आया। सीमांकन के बाद दामिन-इ-कोह में काफी तेजी से संथालों की बस्तियों में वृद्धि हुई। सन् 1851 में मात्र 13 वर्षों में उनके गाँवों की संख्या 40 से बढ़कर 1473 तक पहुँच चुकी थी। इसी अवधि में उनकी जनसंख्या 3000 से 82,000 तक पहुंच गई। इस प्रकार संथालों को मानो उनकी दुनिया ही मिल गई थी। वे अलग सीमांकित क्षेत्र में काफी परिश्रम से जमीन निकालकर कृषि करने लगे।

प्रश्न 11.
संथालों के आगमन का पहाड़िया लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों में संथालों के आगमन का पहाड़िया जनजाति के लोगों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। जब उनके जंगल, खेतों तथा गाँवों पर कब्जा किया जा रहा था तो उन्होंने संथालों का तीव्र विरोध किया। परन्तु वे संथालों के मुकाबले पराजित हो गये। उन्हें पहाड़ियों की तलहटी वाला उपजाऊ क्षेत्र छोड़कर जाना पड़ा। इस संघर्ष में संथालों की विजय का कारण यह भी था कि कंपनी सरकार के सैन्यबल उन्हें कब्जा दिलवा रहे थे।

पहाड़िया लोगों के जीवन-निर्वाह का आधार ही उनसे छिन गया था। जंगल नहीं रहे तो उन्हें शिकार संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनके पशुओं के लिए पर्याप्त घास नहीं रही। वे अन्य वन-उत्पादों से भी वंचित हो गए। ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में झूम की खेती भी संभव नहीं थी क्योंकि वहाँ ज़मीन गीली नहीं रहती थी। उपजाऊ जमीनें अब उनके लिए दुर्लभ हो गईं क्योंकि उन्हें संथाल क्षेत्र में शामिल कर दिया गया था। वे बंजर, चट्टानी और शुष्क क्षेत्रों में धकेले जा चुके थे। इस सबके परिणामस्वरूप पहाड़िया लोगों के रहन-सहन पर प्रभाव पड़ा। आगे चलकर वह निर्धनता तथा भुखमरी के शिकार रहे।

प्रश्न 12.
बुकानन के विवरण की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक कंपनी कर्मचारी था। उसने भारत में 1810-11 में कंपनी के भू-क्षेत्र का सर्वे करके विवरण तैयार किया था। इस विवरण में निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ झलकती हैं

1. खनिजों के बारे में-बुकानन ने अपने विवरण में उन स्थानों को रेखांकित किया. जहाँ लोहा, ग्रेनाइट, साल्टपीटर व अभ्ररक इत्यादि खनिजों के भंडार थे। लोहा व नमक बनाने की स्थानीय पद्धतियों का भी उसने अध्ययन किया। यह सारी जानकारी कंपनी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण थी।

2. कृषि विस्तार के बारे में-बुकानन ने सुझाव दिए कि किस तरह भू-खंडों को कृषि क्षेत्र में बदला जा सकता है। कौन-सी फसलें बोई जा सकती हैं। कीमती इमारती लकड़ी के पेड़ों का जंगल कहाँ है, उसे कैसे काटा जा सकता है। नए पेड़ कौन-से लगाए जा सकते हैं जिनसे कंपनी को लाभ होगा।

3. स्थानीय निवासियों से अलग दृष्टिकोण-इस विवरण में उसका दृष्टिकोण स्थानीय लोगों से भिन्न था। उदाहरण के लिए स्थानीय लोग जंगलों के विनाश में अपना हित नहीं देखते थे। जबकि बुकानन का दृष्टिकोण कंपनी के वाणिज्यिक हितों से प्रेरित था। इसलिए वह वनवासी लोगों की जीवन-शैली का आलोचक था। वह जंगल के भू-भागों को कृषि क्षेत्र में बदलने का पक्षधर था।

प्रश्न 13.
डेविड रिकार्डो का भू-राजस्व सिद्धांत क्या था?
उत्तर:
डेविड रिकार्डो (David Ricardo) एक प्रमुख अर्थशास्त्री थे। 19वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों से उनके आर्थिक सिद्धांत विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के नए अधिकारी इन सिद्धांतों से प्रभावित थे। अतः बंबई प्रांत (दक्कन) में नई राजस्व प्रणाली अपनाते समय उन्होंने रिकाडों के लगान सिद्धांत को भी ध्यान में रखा। इस सिद्धांत के अनुसार एक भू-स्वामी (चाहे किसान हो या फिर जमींदार) को किसी तत्कालिक अवधि में प्रचलित ‘औसत लगान’ (Average Rent) ही मिलना चाहिए। उसके अनुसार लगान एक भूमिपति की फसल पर हुए कुल खर्च को (श्रम तथा बीज, खाद, पानी सभी तरह का) अलग करने के बाद शुद्ध आय (Net Profit) था। इसलिए इस पर सरकार द्वारा कर लगाना वैध माना गया।

इस सिद्धांत के अनुसार ज़मींदारों को एक किरायाजीवी (Rentier) के रूप में देखा गया। ऐसा वर्ग जो अपनी संपत्ति पर मिलने वाले लगान से विलासी जीवन बिताता है। इसे प्रगति विरोधी प्रवृत्ति माना गया क्योंकि ज़मीन से होने वाले अधिशेष का यह उचित उपयोग नहीं था। रिकार्डो का विचार था कि इस आय पर कर लगाकर उस धन से सरकार स्वयं कृषि विकास को प्रोत्साहन दे। अर्थात् यह उपयोगितावादी विचारधारा (Utilitarianism) के अंतर्गत उत्पन्न एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत था। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन में हो रहे औद्योगिकीकरण के लिए भारत में कृषि विकास महत्त्वपूर्ण होता जा रहा था।

प्रश्न 14.
रैयतवाड़ी प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
रैयतवाड़ी बंदोबस्त सीधा रैयत (किसानों) से ही किया गया था। सरकार और किसान के बीच कोई बिचौलिया ज़मींदार नहीं था। किसान को कानूनी तौर पर उस भूमि का मालिक मान लिया गया था जिस पर वह खेती कर रहा था। ज़मीन की उपजाऊ शक्ति के अनुरूप सरकार का हिस्सा तय किया गया। यह बंदोबस्त 30 वर्षों के लिए किया गया था। इस अवधि के बाद सरकार पुनः ‘एसैसमेंट’ के द्वारा इसे बढ़ा सकती थी।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इसमें ज़मींदारों की भूमिका तो नहीं थी, फिर भी व्यवहार में किसानों को इससे कोई लाभ नहीं पहुँचा। क्योंकि इसमें ज़मींदार का स्थान स्वयं सरकार ने ले लिया था अर्थात् सरकार ही ज़मींदार बन गई थी। किसान को अपनी उपज का लगभग आधा भाग कर के रूप में सरकार को देना पड़ता था। इतना भूमिकर (Revenue) नहीं लगान (Rent) ही होता है। इस अर्थ में तो सरकार ही भूमि की वास्तविक स्वामी थी। जिसे बाद में सरकार ने स्वयं भी स्वीकार कर लिया था।

प्रश्न 15.
अमेरिकी गृह-युद्ध का भारत के कृषि उत्पादकों पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
अमेरिकी गृह-युद्ध का भारत के कपास उत्पादकों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
औद्योगिक युग में वाणिज्यिक फसलों में सबसे अधिक महत्त्व कपास का था। ब्रिटेन के वस्त्र उद्योगों के लिए इसे अधिकतर अमेरिका से मँगवाया जाता था। ब्रिटेन में आयात की जाने वाली कुल कपास का लगभग 3/4 भाग यहीं से आता था। वस्त्र निर्माताओं के लिए यह एक चिंता का विषय भी था। यदि कभी अमेरिका से आपूर्ति बंद हो गई तो क्या होगा। इसलिए 1857 ई० में कपास आपूर्ति संघ तथा 1859 ई० में मानचेस्टर कॉटन कंपनी बनाई गई। इनका उद्देश्य दुनिया के प्रत्येक भाग में कपास के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रयास करना था। इस उद्देश्य के लिए भारत को विशेषतौर पर रेखांकित किया गया।

अब तक भारत इंग्लैंड का उपनिवेश बन चुका था। इसके कुछ भागों में कपास के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु मौजूद थी। उदाहरण के लिए दक्कन की काली मिट्टी और पंजाब के कुछ भाग में कपास पैदा होती थी। इसके साथ-साथ यहाँ सस्ता श्रम भी था। अतः किसी भी स्थिति में अमेरिका से कपास आपूर्ति बंद होने पर भारत से आपूर्ति की जा सकती थी।

अमेरिका में गृह युद्ध-अमेरिका में सन् 1861 में गृह युद्ध छिड़ गया। इससे ब्रिटेन की कपास आपूर्ति को अचानक आघात पहुँचा। ब्रिटेन के वस्त्र उद्योगों में तहलका मच गया। 1862 ई० में अमेरिका से मात्र 55000 गाँठों का आयात हुआ। जबकि 1861 ई० में 20 लाख कपास की गाँठों का आयात हुआ था। इस स्थिति में भारत से ब्रिटेन को कपास निर्यात के लिए सरकारी आदेश दिया गया।

कपास सौदागरों की तो मानों चाँदी ही हो गई। बंबई दक्कन के जिलों में उन्होंने कपास उत्पादन का आँकलन किया। किसानों को अधिक कपास उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया। कपास निर्यातकों ने शहरी साहूकारों को पेशगी राशियाँ दी ताकि वे ये राशियाँ ग्रामीण ऋणदाताओं को उपलब्ध करवा सकें और वे आगे किसानों की आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें उधार दे सकें।

ऋण समस्या का समाधान-अब किसानों के लिए ऋण की समस्या नहीं थी। साहूकार भी अपनी उधर राशि की वापसी के लिए आश्वस्त था। दक्कन के ग्रामीण क्षेत्रों में इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। किसानों को लंबी अवधि के ऋण प्राप्त हुए। कपास उगाई जाने वाली प्रत्येक एकड़ भूमि पर सौ रुपये तक की पेशगी राशि किसानों को दी गई। चार साल के अंदर ही कपास पैदा करने वाली ज़मीन दोगुणी हो गई। 1862 ई० तक स्थिति यह थी कि इंग्लैंड में आयात होने वाले कुल कपास आयात का 90% भाग भारत से जा रहा था। बंबई में दक्कन में कपास उत्पादक क्षेत्रों में इससे समृद्धि आई। यद्यपि इस समृद्धि का लाभ मुख्य तौर पर धनी किसानों को ही हुआ।

प्रश्न 16.
परिसीमन कानून (1859) क्या था?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने रैयत की शिकायतों पर विचार करते हुए 1859 ई० में एक परिसीमन कानून पास किया। जिसका उद्देश्य ब्याज के संचित होने से रोकना था। इसलिए इसमें प्रावधान किया गया कि किसान व ऋणदाता के बीच हस्ताक्षरित ऋणपत्र तीन वर्ष के लिए ही मान्य होगा। यह रैयत को साहूकार के शिकंजे से निकालने का प्रयास था। परन्तु इस कानून का व्यवहार में लाभ रैयत को नहीं, बल्कि साहूकार को होने लगा। क्योंकि ऋण लेना किसान की मजबूरी थी। इसलिए तीन साल के बाद जब वह साहूकार से आगे उधार की माँग करता था तो साहूकार किसान से नए ऋण अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाता था।

इसमें वह पिछले तीन साल का ब्याज जोड़कर मूलधन में शामिल कर देता था और फिर इस पर नए सिरे से ब्याज शुरू हो जाता था। इस प्रकार साहूकार ने बड़ी चालाकी से इस नए कानून का दुरुपयोग अपने हित के लिए करना शुरू कर दिया। इस प्रक्रिया की जानकारी भी रैयत ने ‘दक्कन दंगा आयोग’ को दी। ‘दक्कन दंगा आयोग’ में किसानों ने दर्ज अपनी शिकायतों में जबरन वसूली से संबंधित अन्याय को भी दर्ज करवाया।

प्रश्न 17.
दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1857 के जन-विद्रोह की यादें अभी पुरानी नहीं पड़ी थीं। इसलिए कोई भी कृषक-विद्रोह ब्रिटिश सरकार को खतरे की घंटी जान पड़ता था। दक्कन में हुए कृषक विद्रोह (1875) को बंबई सरकार ने सफलतापूर्वक कुचल दिया था। यद्यपि शांति स्थापित करने में उसे कई महीने लगे। बंबई सरकार में प्रारंभ में तो 1875 के इस कृषक विद्रोह को इतनी गंभीरता से नहीं लिया। परन्तु जब तत्कालिक भारत सरकार (ब्रिटिश) ने दबाव डाला तो इसके लिए एक जाँच आयोग बैठाया गया। इसे ‘दक्कन दंगा आयोग’ नाम दिया गया। 1878 में ब्रिटिश संसद से प्रस्तुत इसकी रिपोर्ट को ‘दक्कन दंगा रिपोर्ट’ कहा गया। यह रिपोर्ट काफी जाँच-पड़ताल के बाद तैयार की गई थी। इसमें मुख्यतः निम्नलिखित सूचनाएँ जुटाई गईं

  • दंगाग्रस्त जिलों में किसानों, साहूकारों तथा चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए;
  • फसल मूल्यों, मूलधन तथा ब्याज से संबंधित आँकड़े जुटाए गए;
  • भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की राजस्व दरों का अध्ययन किया गया;
  • प्रशासन की भूमिका तथा जिला कलेक्टरों द्वारा भेजी गई रिपोर्टों को संकलित किया गया।

अतः यह रिपोर्ट दक्कन विद्रोह को समझने के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

प्रश्न 18.
इतिहास-लेखन में इतिहासकार सरकारी अभिलेखों का उपयोग किस प्रकार करते हैं?
उत्तर:
इतिहास लेखन के लिए स्रोत आवश्यक हैं। कानून संबंधी रिपोर्ट, दंगा आयोगों की रिपोर्ट तथा अन्य सभी तरह की सरकारी रिपोर्ट इतिहासकार के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत होते हैं। अंग्रेजी राज व्यवस्था के काल की ये रिपोर्ट इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि इस काल में ‘फाइल कल्चर’ आ चुका था। संविदाओं और अनुबंधों का महत्त्व बढ़ गया था। सरकारी अभिलेखों के बारे में यह बात महत्त्वपूर्ण है कि ये स्वयं में इतिहास नहीं होते। ये इतिहास के पुनर्निर्माण के स्रोत होते हैं। इसलिए इनका उपयोग करते समय इतिहासकार अग्रलिखित बातों को ध्यान में रखते हैं

(1) वे सरकारी रिपोर्टों का अध्ययन अत्यधिक सावधानीपूर्वक करते हैं। विशेषतः इस बात को देखते हैं कि कोई रिपोर्ट किन परिस्थितियों में और क्यों तैयार की गई है। तैयार करने वाले की सोच क्या रही होगी।

(2) सरकारी रिपोर्टों का तुलनात्मक अध्ययन जरूरी होता है अर्थात् किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इन रिपोर्टों से प्राप्त साक्ष्यों को गैर-सरकारी विवरणों, समाचार-पत्रों, संबंधित मामले की ‘कोर्ट’ में दर्ज याचिकाओं व न्यायाधीशों के निर्णयों इत्यादि के ‘साथ मिलान कर लेना चाहिए।

प्रश्न 19.
बेनामी खरीददारी पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
ज़मींदारों ने अपनी ज़मींदारी की भू-संपदा बचाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हथकंडा बेनामी खरीददारी को अपनाया। इसमें प्रायः ज़मींदार के अपने ही आदमी नीलाम की गई संपत्तियों को महँगी बोली देकर खरीद लेते थे और फिर देय राशि सरकार को नहीं देते थे। ऐसे बेनामी सौदों का विस्तृत विवरण बर्दवान के राजा की ज़मींदारी के मिलते हैं। इस राजा ने सबसे पहले तो अपनी ज़मींदारी का कुछ भाग अपनी माता के नाम कर दिया था क्योंकि कंपनी ने यह घोषित कर रखा था कि स्त्रियों की संपत्ति । नहीं छीनी जाएगी। दूसरा जान-बूझकर भू-राजस्व सरकार के खजाने में जमा नहीं करवाया। फलतः बकाया राशि में वृद्धि होती रही।

अन्ततः नीलामी की नौबत आ गई तो राजा ने अपने ही कुछ आदमियों को बोली के लिए खड़ा कर दिया। उन्होंने सबसे अधिक बोली देकर संपत्ति को खरीद लिया और फिर खरीद की राशि सरकार को देने से मना कर दिया। सरकार को पुनः उस ज़मीन की नीलामी करनी पड़ी और इस बार ज़मींदार के दूसरे एजेंटों ने वैसा ही किया और सरकार को फिर राशि जमा नहीं करवाई। यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती रही जब तक सरकार और बोली लगाने वाले दोनों ने हार नहीं मान ली।

बोली लगाने वाले नीलामी के समय आना ही छोड़ गए। अन्ततः सरकार को यह संपदा कम कीमत पर पुनः उसी राजा (बर्दवान के ज़मींदार) को ही देनी पड़ी। लेकिन यह तरीका केवल बर्दवान के ज़मींदार ने ही नहीं अपनाया था। बेनामी खरीददारों के सहारे अपनी भू-संपदा दचाने वाले और भी ज़मींदार थे। उल्लेखनीय है कि 1790 के दशक में बंगाल में 12 बड़ी ज़मींदारियाँ थीं। स्थायी बंदोबस्त लागू होने के पहले 8 वर्षों (1793-1801) में इनमें से उत्तरी बंगाल की बर्दवान सहित 4 ज़मींदारियों की बहुत-सी सम्पत्ति नीलाम हुई। लेकिन जितने सौदे हुए, उनमें से 85 प्रतिशत असली थे। सरकार को कुल मिलाकर इनसे 30 लाख की प्राप्ति हुई।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 20.
अनुपस्थित ज़मींदार व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत नए ज़मींदार वर्ग का उदय हुआ। यह पहले के ज़मींदारों से कई मायनों में अलग था। नए ज़मींदारों में बहुत से लोग शहरी धनिक वर्ग से थे। इन्होंने उन पुराने ज़मींदारों की ज़मींदारियाँ खरीद ली थीं जो समय पर लगान वसूल करके सरकार को जमा नहीं करवा सके थे। प्रो० बिपिन चन्द्र के अनुसार, “1815 ई० तक बंगाल की लगभग आधी भू-संपत्ति पुराने ज़मींदारों के हाथ से निकलकर सौदागरों तथा अन्य धनी वर्गों के पास जा चुकी थी।”

इन नए ज़मींदारों ने अपनी सहूलियत के लिए किसानों से लगान वसूली का काम आगे अन्य इच्छुक लोगों को ज्यादा धन लेकर पट्टे अथवा ठेके पर दे दिया। इस प्रकार खेतिहर किसान और वास्तविक जमींदार के मध्य परजीवी जमींदारों की एक लंबी श्रृंखला (चेन) पैदा हो गई। यह श्रृंखला बंगाल में कई बार तो 50 तक पहुँच गई थी। इस लगानजीवी वर्ग का सारा भार अन्ततः किसान पर ही पड़ता था।

प्रश्न 21.
‘स्थायी बंदोबस्त के कारण बंगाल के जोतदारों की शक्ति में वृद्धि हुई।’ स्पष्ट करें।
उत्तर:
जोतदार बंगाल के गाँवों में संपन्न किसानों के समूह थे। गाँव के मुखिया भी इन्हीं में से होते थे। 18वीं सदी के अंत में ज्यों-ज्यों परंपरागत ज़मींदार स्थायी बंदोबस्त के कारण संकटग्रस्त हुए, त्यों-त्यों इन संपन्न किसानों को शक्तिशाली होने का अवसर मिलता गया।

आर्थिक व सामाजिक दोनों स्तरों में यह गाँवों में प्रभावशाली वर्ग था। कुछ गरीब किसान भी इनके प्रभाव में होते थे। इस सम्पन्न ग्रामीण वर्ग का ज़मींदारों के प्रति व्यवहार काफी नकारात्मक रहता था। जब ज़मींदार का अधिकारी, जिसे सामान्यतः ‘अमला’ कहा जाता था, गाँव में लगान एकत्र करने में असफल रहता और ज़मींदार सरकार को भुगतान न कर पाता तो जोतदारों को बड़ी खुशी होती थी। सम्पन्न रैयत जान-बूझकर भी समय पर ज़मींदार को लगान का भुगतान नहीं करते थे।

ज़मींदार की इस स्थिति के लिए मुख्य तौर पर स्थायी बंदोबस्त उत्तरदायी था। इसमें राजस्व की ऊँची दर तय की गई थी। जमींदार को निश्चित समय पर राजस्व सरकारी खजाने में जमा करवाना होता था। इसके लिए सूर्यास्त विधि कानून लागू किया गया था।

साथ ही ज़मींदारों की शक्तियाँ उनसे छीन ली गईं। उनकी स्वायत्तता को सीमित कर दिया गया। उनकी शक्तियाँ मात्र किसानों से लगान इकट्ठा करने और अपनी ज़मींदारी का प्रबंध करने तक ही सीमित कर दी गईं। वास्तव में अंग्रेज़ सरकार ज़मींदारों को महत्त्व तो दे रही थी लेकिन साथ ही वह इन्हें अपने पूर्ण नियंत्रण में रखना चाहती थी। परिणामस्वरूप उनके सैनिक दस्तों को भंग कर दिया गया।

उनके न्यायालयों को कंपनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर के नियंत्रण में रख दिया गया। स्थानीय पुलिस प्रबंध भी कलेक्टर ने अपने हाथ में ले लिया। अब वे बाकीदारों के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग भी नहीं कर सकते थे। वह बाकीदारों के विरुद्ध न्यायालय में तो जा सकता था परन्तु न्याय की प्रक्रिया इतनी लंबी थी कि वर्षों चलती रहती थी। इसका अहसास इस तथ्य से किया जा सकता है कि अकेले बर्दवान जिले में ही सन् 1798 में 30,000 से अधिक मुकद्दमें बकायेदारों के विरुद्ध लंबित थे।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बंगाल में स्थायी बंदोबस्त लागू करने के क्या कारण थे? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
लॉर्ड कॉर्नवालिस ने निम्नलिखित कारणों से स्थायी बंदोबस्त (इस्तमरारी प्रणाली) को लागू किया

1. बंगाल की अर्थव्यवस्था में संकट-1770 के दशक से बंगाल की अर्थव्यवस्था अकालों की मार झेल रही थी। कृषि उत्पादन में निरंतर कमी आ रही थी। अर्थव्यवस्था संकट में फँसती जा रही थी और ठेकेदारी प्रणाली में इससे निकलने के लिए कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था।

2. कृषि में निवेश को प्रोत्साहन अधिकारी वर्ग यह सोच रहा था कि कृषि में निजी रुचि और निवेश के प्रोत्साहन से खेती, व्यापार और राज्य के राजस्व संसाधनों को विकसित किया जा सकता है।

3. कंपनी सरकार की नियमित आय-कंपनी सरकार अपनी वार्षिक आय को सुनिश्चित करना चाहती थी ताकि प्रशासन व व्यापार की व्यवस्था को वार्षिक बजट बनाकर व्यवस्थित किया जा सके।

4. उद्यमकर्ताओं को लाभ-इससे यह भी उम्मीद थी कि राज्य (कंपनी सरकार) के साथ-साथ उद्यमकर्ता (भूमि व साधनों का मालिक) को भी पर्याप्त लाभ होगा। राज्य की आय नियमित हो जाएगी और वह उद्यमकर्ता से और अधिक माँग नहीं करेगी तो उसका लाभ भी सुनिश्चित होगा।

5. वसूली सुविधाजनक-ज़मींदारी बंदोबस्त लागू करने के पीछे एक व्यावहारिक कारण यह भी था कि रैयत की बजाय ज़मींदारों से कर वसूलना सुविधाजनक था। इसके लिए कम अधिकारियों व कर्मचारियों से भी व्यवस्था की जा सकती थी।

6. वफादार वर्ग-अधिकारियों को यह कारियों को यह उम्मीद थी कि सरकार की नीतियों से पोषित और प्रोत्साहित छोटे (Yeomen Farmers) व बड़े शक्तिशाली ज़मींदारों का वर्ग, सरकार के प्रति वफादार रहेगा।

विशेषताएँ-स्थायी बंदोबस्त (इस्तमरारी) की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

(1) यह समझौता बंगाल के राजाओं और ताल्लुकेदारों के साथ कर उन्हें ‘ज़मींदारों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया।

(2) ज़मींदारों द्वारा सरकार को दी जाने वाली वार्षिक भूमि-कर राशि स्थायी रूप से निश्चित कर दी गई। इसीलिए इसे ‘स्थायी बंदोबस्त’ से भी पुकारा गया।

(3) ये ज़मींदार अपनी ज़मींदारी अथवा ‘इस्टेट’ के तब तक पूर्ण तौर पर मालिक थे जब तक वे सरकार को निर्धारित भूमि-कर नियमित रूप से अदा करते रहते थे। उनका यह अधिकार वंशानुगत तौर पर स्वीकार कर लिया गया।

(4) निर्धारित भूमि-कर राशि का समय पर भुगतान न किए जाने पर सरकार उनकी ज़मींदारी अथवा उसका कुछ भाग नीलाम कर सकती थी और इससे वह लगान की वसूली कर सकती थी।

(5) ज़मींदार अपनी ज़मींदारी का मालिक तो था परन्तु व्यवहार में वह गाँव में भू-स्वामी नहीं था बल्कि राजस्व-संग्राहक (समाहत्ता) मात्र था। उसे किसानों से वसूल किए गए लगान में से \(\frac { 1 }{ 11 }\) भाग अपने पास रखना होता था और शेष \(\frac { 10 }{ 11 }\) भाग कंपनी सरकार को देना होता था।
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(6) एक ज़मींदारी में बहुत-से गाँव और कभी-कभी तो 400 गाँव तक होते थे। कुल मिलाकर यह ज़मींदारी की एक ‘राजस्व-संपदा’ (Revenue Estate) थी, जिस पर कंपनी सरकार कर निश्चित करती थी।

(7) अलग-अलग गाँवों पर कर निर्धारण व उसे एकत्र करने का कार्य ज़मींदार का था।

(8) इस व्यवस्था में सरकार का रैयत (किसानों) से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था। उसका संबंध ज़मींदारों से था।

प्रश्न 2.
सन् 1875 के दक्कन विद्रोह का वर्णन करें। यहाँ के किसान साहूकार के कर्जदार क्यों होते जा रहे थे?
उत्तर:
यह विद्रोह 12 मई, 1875 को महाराष्ट्र के एक बड़े गाँव सूपा (Supe) से शुरू हुआ। यह गाँव जिला पूना (अब पुणे) में पड़ता था। दो महीनों के अंदर यह विद्रोह पूना और अहमदनगर के दूसरे बहुत-से गाँवों में फैल गया। उत्तर से दक्षिण के बीच लगभग 6500 वर्गकिलोमीटर का क्षेत्र इसकी चपेट में आ गया। हर जगह गुजराती और मारवाड़ी महाजनों और साहूकारों पर आक्रमण हुए। उन्हें ‘बाहरी’ और अधिक अत्याचारी समझा गया।

सूपा में व्यापारी और साहूकार रहते थे। यहीं सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्र के कुनबे किसान एकत्र हुए और उन्होंने साहूकारों से उनके ऋण-पत्र (debt bonds) और बही-खाते (Account books) छीन लिए और उन्हें जला दिया। जिन साहूकारों ने बही-खाते और ऋण-पत्र देने का विरोध किया, उन्हें मारा-पीटा गया। उनके घरों को भी जला दिया गया। इसके अलावा अनाज की दुकानें लूट ली गईं। आश्चर्य की बात यह थी कि सूपा के अतिरिक्त दूसरे गाँवों व कस्बों में भी किसानों की यही प्रतिक्रिया सामने आई। इससे साहूकार भयभीत हो गए। वे अपना गाँव छोड़कर भाग गए। यहाँ तक कि वे अपनी संपत्ति और धन भी पीछे छोड़ गए।

स्पष्ट है कि यह मात्र ‘अनाज के लिए दंगा’ (Grain Riots) नहीं था। किसानों का निशाना साफ तौर पर ‘कानूनी दस्तावेज’ अर्थात् बहीखाते और ऋण पत्र थे। इस विद्रोह के फैलने से ब्रिटिश अधिकारी भी घबराए। विशेषतः उन्हें 1857 की जनक्रांति की याद ताजा हो आई। विद्रोही गाँवों में पुलिस चौकियाँ बनाई गईं। यहाँ तक कि इस इलाके को सेना के हवाले करना पड़ा। 95 किसानों को गिरफ्तार करके दंडित किया गया।

विद्रोह पर नियंत्रण के बाद भी स्थिति पर नज़र रखी गई। उस समय के समाचार पत्रों की रिपोर्ट से पता चलता है कि किसान योजना बनाकर अपनी कार्यवाही करते थे ताकि अधिकारियों की पकड़ में न आए। क्योंकि किसान अवसर मिलते ही साहूकार के घरों पर हमला बोल देते थे। वास्तव में अंग्रेज़ों की नीतियों के चलते साहूकारों और कृषकों के मध्य परंपरागत संबंध समाप्त हो गए। बदली हुई परिस्थितियों में साहूकार ग्रामीण क्षेत्रों में एक शोषक तत्त्व बनकर उभरा।

ऋणग्रस्तता के कारण-दक्कन में किसान कर्ज के बोझ तले दबता चला गया। सन् 1840 तक स्थिति यह पैदा हो गई थी किसान फसल का खर्च पूरा करने तथा दैनिक उपयोग की वस्तुओं के लिए भी साहूकार से ऊँची दर पर कर्ज़ के लिए विवश हो गया, जो वापिस करना आसान नहीं था। कर्ज़ बढ़ने के कारण किसान की स्थिति खराब होती गई। वह साहूकार पर निर्भर होता गया। संक्षेप में किसान के ऋणग्रस्त होने के निम्नलिखित कारण थे

1. ऊँची भू-राजस्व दर-सन् 1818 में बंबई दक्कन में पहला रैयत से बंदोबस्त किया गया। इसमें राजस्व की माँग इतनी अधिक थी कि लोग अनेक स्थानों पर अपने गाँव छोड़कर भाग गए। वे अपेक्षाकृत बंजर और कम उपजाऊ भूमि पर जाकर खेती करने लगे। वर्षा न होने पर अकाल पड़ जाता और बिना फसल के भूमिकर चुकाना संभव नहीं था। फसल हो या न हो यह कर तो सरकार को चुकाना ही होता था।

2. राजस्व वसूली में सख्ती-कर एकत्रित करवाने वाले जिला कलेक्टरों की किसानों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी। उनकी फसलें बेचकर राजस्व वसूल किया जाता था। यहाँ तक कि गाँव पर सामूहिक तौर पर जुर्माना भी कर दिया जाता था। प्रायः कलेक्टर अपने जिले का सारा भूमि-कर एकत्रित करके बड़े अधिकारियों के समक्ष अपनी कार्यकुशलता का परिचय देता था। इसके लिए उसकी नीति सदैव कठोर रहती थी। अतः मुसीबत के दिनों में भूमि-कर चुकाने के लिए किसानों को साहूकार की शरण में जाना पड़ा।

3. कृषि-उत्पाद मूल्यों में गिरावट-1830 के आस-पास तक रैयतवाड़ी प्रथा बंबई दक्कन में शुरू हुई जिसमें भूमि-कर की माँग काफी ऊँची थी। इसी दशक में ही मंदी का दौर आ गया जो लगभग 1845 तक चला। फसलों की कीमतों में भारी गिरावट आ गई। यह किसान के लिए बड़ी समस्या के रूप में आया। इसलिए वह कर्ज लेने के लिए विवश हुआ।

4. 1832-34 का अकाल-इस अकाल में लगभग एक-तिहाई पशु धन दक्कन में खत्म हो गया। यहाँ तक कि 50 प्रतिशत मानव जनसंख्या मौत का ग्रास बन गई। जो किसान इस अकाल से किसी तरह जीवित बच गए थे, उन्हें बीज खरीदने, बैल खरीदने, राजस्व चुकाने तथा जीविका चलाने के लिए ऋण लेना ही पड़ा।

सन् 1840 के बाद स्थिति में कुछ परिवर्तन आया। राजस्व की माँग में कुछ कमी की गई। मंदी का दौर भी खत्म हुआ। धीरे-धीरे कृषि उत्पादों की कीमतें बढ़ने लगी, तो किसानों ने नए खेत निकालकर खेती में अधिक रुचि ली। परन्तु इसके लिए भी किसानों को बीज व बैलों की जरूरत थी। अतः साहूकार से ऋण उसे इन परिस्थितियों में भी लेना पड़ा।

प्रश्न 3.
दक्कन में किसान विद्रोह के क्या कारण थे? इसमें किसानों ने साहूकारों के बहीखाते क्यों जला डाले?
उत्तर:
दक्कन मुख्यतः बंबई और महाराष्ट्र के क्षेत्र को कहा गया है। बंबई दक्कन में किसानों ने साहूकारों तथा अनाज के व्यापारियों के खिलाफ़ अनेक विद्रोह किए। इनमें से 1875 का विद्रोह सबसे भयंकर था। यह विद्रोह महाराष्ट्र के एक बड़े गाँव सूपा (Supe) से शुरु हुआ। दो महीनों के अंदर यह विद्रोह पूना और अहमदनगर के दूसरे बहुत-से गाँवों में फैल गया। 100 कि०मी० पूर्व से पश्चिम तथा 65 कि०मी० उत्तर से दक्षिण के बीच लगभग 6500 वर्गकिलोमीटर का क्षेत्र इसकी चपेट में आ गया। हर जगह गुजराती और मारवाड़ी महाजनों और साहूकारों पर आक्रमण हुए। दक्कन के इन किसान विद्रोहों के निम्नलिखित कारण थे

1. रैयतवाड़ी प्रणाली-इस प्रणाली में किसानों को उस भूमि का मालिक माना गया था जिन पर वे खेती करते आ रहे थे। इसमें ज़मींदार तो नहीं थे परंतु सरकार फसल का लगभग आधा भाग किसानों से वसूलती थी। इस प्रणाली में भू-राजस्व की दर भी बहुत ऊँची थी।

2. किसान का ऋणग्रस्त होना-सरकार का लगान किसान पूरा नहीं कर पाता था। इसलिए उसे साहूकार से उधार लेना पड़ता था। कई बार तो उसे दैनिक उपयोग की वस्तुओं के लिए भी ऋण लेना पड़ता था जो उसके लिए वापिस करना आसान नहीं था।

अमेरिका के गृह-युद्ध (1861-65) के दिनों में कपास की माँग में अचानक उछाल आया। कपास के मूल्य में जबरदस्त वृद्धि हुई। इस स्थिति में साहूकार व्यापारियों ने किसानों को खूब अग्रिम धनराशि दी। लेकिन ज्योंहि युद्ध समाप्त हुआ ‘ऋण का यह स्रोत सूख गया’ । युद्ध के बाद कपास के निर्यात में गिरावट आ गई। कपास की माँग खत्म हो गई। किसानों को ऋण मिलना बन्द हो गया और पहले दिए हुए ऋण को लौटाने के लिए दबाव बढ़ गया। 1870 ई० के आस-पास यह स्थिति किसान विद्रोहों के लिए काफी हद तक उत्तरदायी कही जा सकती है।

3. अन्याय का अनुभव-जब साहूकारों ने उधार देने से मना किया तो किसानों को बहुत गुस्सा आया। क्योंकि परंपरागत ग्रामीण व्यवस्था में न तो अधिक ब्याज लिया जाता था और न ही मुसीबत के समय उधार से मनाही की जाती थी। किसान विशेषतः इस बात पर अधिक नाराज़ थे कि साहूकार वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनके हालात पर रहम नहीं खा रहा है। सन् 1874 में साहूकारों ने भू-राजस्व चुकाने के लिए किसानों को उधार देने से स्पष्ट इंकार कर दिया था। वे सरकार के इस कानून को नहीं मान रहे थे कि चल-सम्पत्ति की नीलामी से यदि उधार की राशि पूरी न हो तभी साहूकार जमीन की नीलामी करवाएँ। अब उधार न मिलने से मामला और भी जटिल हो गया और किसान विद्रोही हो उठे।

बही-खातों का जलना-दक्कन विद्रोह तथा देश के अन्य भागों में भी किसानों ने विद्रोहों में बही-खातों को निशाना बनाया। वास्तव में ऋण-प्राप्ति और उसकी वापसी दोनों ही दक्कन के किसानों के लिए एक जटिल प्रक्रिया थी। परंपरागत साहूकारी कारोबार में कानूनी दस्तावेजों का इतना झंझट नहीं था। जुबान अथवा वायदा ही पर्याप्त था। क्योंकि किसी सौदे के लिए परस्पर सामाजिक दबाव रहता था। ब्रिटिश अधिकारी वर्ग बिना विधिसम्मत अनुबंधों के सौदों को संदेह की दृष्टि से देखते थे। विवाद छिड़ने की स्थिति में न्यायालयों में भी ऐसे बंधपत्रों, संविदाओं और दस्तावेजों का ही महत्त्व होता था, जिनमें शर्ते साफ-साफ हस्ताक्षरित होती थीं।

जुबानी लेन-देन कानून के दायरे में कोई महत्त्व नहीं रखता था जबकि परंपरागत प्रणाली में गाँव की पंचायत महत्त्व देती थी। कर्ज़ से डूबे किसान को जब और उधार की जरूरत पड़ती तो केवल एक ही तरीके से यह संभव हो पाता कि वह ज़मीन, गाड़ी, हल-बैल ऋण दाता को दे दे। फिर भी जीवन के लिए तो उसे कुछ-न-कुछ साधन चाहिए थे। अतः वह इन साधनों को साहूकार से किराए पर लेता था। जो वास्तव में उसके अपने ही होते थे। अब उसे अपने ही साधनों का किराया साहूकार को देना होता था। अपनी विवशता के कारण उसे भाडापत्र अथवा किराया नामा में स्पष्ट करना होता कि यह पशु, बैलगाड़ी उसके अपने नहीं हैं।

उसने इन्हें किराए पर लिया है और इसके लिए वह इनका निश्चित किराया प्रदान करेगा। स्पष्ट है कि यह दस्तावेज न्यायालय में साहूकार का पक्ष ही सुदृढ़ करता था। गगजिन अनुबंधों पर वह हस्ताक्षर करता था या अंगूठा लगाता था उनमें क्या लिखा है, वह नहीं जानता था। उधार लेने के लिए हस्ताक्षर जरूरी थे। इसके बिना उन्हें कहीं कर्ज नहीं मिल सकता था। हस्ताक्षरित दस्तावेज़ कोर्ट में प्रायः साहूकार के ही पक्ष में जाता था।

अतः इस नई व्यवस्था के कारण किसान बंधपत्रों और दस्तावेजों को अपनी दुःख-तकलीफों का मुख्य कारण मानने लगा। वह तो लिखे हुए शब्दों से डरने लगा। यही वह कारण था कि जब भी कृषक विद्रोह होता था तभी किसान दस्तावेजों को जलाते थे। बहीखाते व ऋण अनुबंध पत्र, उनका पहला निशाना होता था। उसने साहूकार का घर बाद में जलाया, पहले दस्तावेजों को फूंका।

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