Author name: Bhagya

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Alankar अलंकार Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

अलंकार एवं छन्द विवेचना

(क) अलंकार

Alankar 10th Class HBSE Vyakaran प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलंकार शब्द का अर्थ है-आभूषण या गहना। जिस प्रकार स्त्री के सौंदर्य-वृद्धि में आभूषण सहायक होते हैं, उसी प्रकार काव्य में प्रयुक्त होने वाले अलंकार शब्दों एवं अर्थों में चमत्कार उत्पन्न करके काव्य-सौंदर्य में वृद्धि करते हैं; जैसे

“खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा।
किसलय का आँचल डोल रहा।”
साहित्य में अलंकारों का विशेष महत्त्व है। अलंकार प्रयोग से कविता सज-धजकर सुंदर लगती है। अलंकारों का प्रयोग गद्य और पद्य दोनों में होता है। अलंकारों का प्रयोग सहज एवं स्वाभाविक रूप में होना चाहिए। अलंकारों को जान-बूझकर लादना नहीं चाहिए।

Alankar In Hindi Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 2.
अलंकार के कितने भेद होते हैं ? सबका एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
साहित्य में शब्द और अर्थ दोनों का महत्त्व होता है। कहीं शब्द-प्रयोग से तो कहीं अर्थ-प्रयोग के चमत्कार से और कहीं-कहीं दोनों के एक साथ प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है। इस आधार पर अलंकार के तीन भेद माने जाते हैं-
1. शब्दालंकार,
2. अर्थालंकार,
3. उभयालंकार।

1. शब्दालंकार-जहाँ शब्दों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है, वहाँ शब्दालंकार होता है; जैसे.
“चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रही हैं जल-थल में।”

2. अर्थालंकार-जहाँ शब्दों के अर्थों के कारण काव्य में चमत्कार एवं सौंदर्य उत्पन्न हो, वहाँ अर्थालंकार होता है; जैसे
“चरण-कमल बंदौं हरि राई।”

3. उभयालंकार-जिन अलंकारों का चमत्कार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित होता है, उन्हें उभयालंकार कहते हैं; जैसे
“नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोइ।
जेतौ नीचौ है चले, तेतौ ऊँचौ होइ ॥”

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

प्रमुख अलंकार

1. अनुप्रास

अलंकार Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 3.
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है; यथा-
(क) मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
यहाँ ‘मुदित’, ‘महीपति’ तथा ‘मंदिर’ शब्दों में ‘म’ व्यंजन की और ‘सेवक’, ‘सचिव’ तथा ‘सुमंत’ शब्दों में ‘स’ व्यंजन की आवृत्ति है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(ख) भगवान भक्तों की भूरि भीति भगाइए।
यहाँ ‘भगवान’, ‘भक्तों’, ‘भूरि’, ‘भीति’ तथा ‘भगाइए’ में ‘भ’ व्यंजन की आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है।

(ग) कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै बिराजति है।

(घ) जौं खग हौं तो बसेरो करौं मिलि-
कालिंदी कूल कदंब की डारनि।
यहाँ दोनों उदाहरणों में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(ङ) “कंकन किंकन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि ॥”
यहाँ ‘क’ तथा ‘न’ वर्गों की आवृत्ति के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई है, अतः अनुप्रास अलंकार है।

(च) तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
इसमें ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

(छ) बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा ॥
(‘प’ तथा ‘स’ की आवृत्ति है।)

(ज) मैया मैं नहिं माखन खायो।
(‘म’ की आवृत्ति है।)

(झ) सत्य सनेह सील सागर।
(‘स’ की आवृत्ति)

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2. यमक

Alankar Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 4.
यमक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जहाँ किसी शब्द या शब्दांश का एक से अधिक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है; जैसे
(क) कनक कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाइ।
उहिं खायें बौरातु है, इहिं पाएँ बौराई ॥
इस दोहे में ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। एक ‘कनक’ का अर्थ है-सोना और दूसरे ‘कनक’ का अर्थ है-धतूरा। एक ही शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग होने के कारण यहाँ यमक अलंकार है।

(ख) माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ॥
इस दोहे में ‘फेर’ और ‘मनका’ शब्दों का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है। ‘फेर’ का पहला अर्थ है-माला फेरना और दूसरा अर्थ है-भ्रम। इसी प्रकार से ‘मनका’ का अर्थ है-हृदय और माला का दाना। अतः यमक अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

(ग) काली घटा का घमंड घटा।
यहाँ ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है।
घटा = वर्षा काल में आकाश में उमड़ने वाली मेघमाला
घटा = कम हआ।

(घ) कहैं कवि बेनी बेनी व्याल की चुराई लीनी।
इस पंक्ति में ‘बेनी’ शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में आवृत्तिपूर्वक प्रयोग हुआ है। प्रथम ‘बेनी’ शब्द कवि का नाम है और दूसरा ‘बेनी’ (बेणी) चोटी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।

(ङ) गुनी गुनी सब कहे, निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यो कहुँ तरु अरक तें, अरक समानु उदोतु ॥
‘अरक’ शब्द यहाँ भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक बार अरक के पौधे के रूप में तथा दूसरी बार सूर्य के अर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है, अतः यहाँ यमक अलंकार सिद्ध होता है।

(च) ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती है।
यहाँ ‘मंदर’ शब्द के दो अर्थ हैं। पहला अर्थ है-भवन तथा दूसरा अर्थ है-पर्वत, इसलिए यहाँ यमक अलंकार है।

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3. श्लेष

Alankar Class 10th HBSE Vyakaran प्रश्न 5.
श्लेष अलंकार का लक्षण लिखकर उसके उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ एक शब्द के एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ निकलें, उसे श्लेष अलंकार कहते हैं; जैसे-
1. नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोय।
जेते नीचो है चले, तेतो ऊँचो होय ॥
मनुष्य और नल के पानी की समान ही स्थिति है, जितने नीचे होकर चलेंगे, उतने ही ऊँचे होंगे। अंतिम पंक्ति में बताया गया सिद्धांत नर और नल-नीर दोनों पर समान रूप से लागू होता है, अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।

2. मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
यहाँ ‘कलियाँ’ शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है किंतु इसमें अर्थ की भिन्नता है।
(क) खिलने से पूर्व फूल की दशा।
(ख) यौवन पूर्व की अवस्था।

3. रहिमन जो गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय ॥
इस दोहे में ‘बारे’ और ‘बढ़े’ शब्दों में श्लेष अलंकार है।

4. गाधिसून कह हृदय हँसि, मुनिहिं हरेरिय सूझ।
अयमय खाँड न ऊखमय, अजहुँ न बूझ अबूझ ॥

5. मेरी भव-बाधा हरो, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँईं परै, स्यामु हरित-दुति होइ ॥

6. बड़े न हूजे गुननु बिनु, बिरद बड़ाई पाइ।
कहत धतूरे सौं कनकु, गहनौ, गढ्यौ न जाइ ॥

कनकु शब्द के यहाँ दो अर्थ हैं-सोना और धतूरा।

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4. उपमा

Alankar Exercise Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 6.
उपमा अलंकार की परिभाषा देते हुए उसके दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ किसी वस्तु, पदार्थ या व्यक्ति के गुण, रूप, दशा आदि का उत्कर्ष बताने के लिए किसी लोक-प्रचलित या लोक-प्रसिद्ध व्यक्ति से तुलना की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
1. ‘उसका हृदय नवनीत सा कोमल है।’
इस वाक्य में ‘हृदय’ उपमेय ‘नवनीत’ उपमान, ‘कोमल’ साधारण धर्म तथा ‘सा’ उपमावाचक शब्द है।

2. लघु तरण हंसिनी-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर ॥
यहाँ छोटी नौका की तुलना हंसिनी के साथ की गई है। अतः ‘तरण’ उपमेय, ‘हंसिनी’ उपमान, ‘सुंदर’ गुण और ‘सी’ उपमावाचक शब्द चारों अंग हैं।

3. हाय फूल-सी कोमल बच्ची।
हुई राख की थी ढेरी ॥
यहाँ ‘फूल’ उपमान, ‘बच्ची’ उपमेय और ‘कोमल’ साधारण धर्म है। ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।

4. यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
इस पंक्ति में ‘अरविंद से शिशुवृंद’ में साधारण धर्म नहीं है, इसलिए यहाँ लुप्तोपमा अलंकार है।

5. नदियाँ जिनकी यशधारा-सी
बहती हैं अब भी निशि-वासर ॥
यहाँ ‘नदियाँ’ उपमेय, ‘यशधारा’ उपमान, ‘बहना’ साधारण धर्म और ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

6. मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला।
यहाँ हाथी और टीला में उपमान, उपमेय का संबंध है, दोनों में ऊँचाई सामान्य धर्म है। ‘सा’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

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5. रूपक

10th Alankar HBSE Vyakaran प्रश्न 7.
रूपक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ अत्यंत समानता दिखाने के लिए उपमेय और उपमान में अभेद बताया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है; जैसे-
1. चरण कमल बंदौं हरि राई।
उपर्युक्त पंक्ति में ‘चरण’ और ‘कमल’ में अभेद बताया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग है।

2. मैया मैं तो चंद-खिलौना लैहों।
यहाँ भी ‘चंद’ और ‘खिलौना’ में अभेद की स्थापना की गई है।

3. बीती विभावरी जाग री।
अंबर पनघट में डुबो रही।
तारा-घट ऊषा नागरी।
इन पंक्तियों में नागरी में ऊषा का, अंबर में पनघट का और तारों में घट का आरोप हुआ है, अतः रूपक अलंकार है।

4. मेखलाकार पर्वत अपार,
अपने सहस्र दृग सुमन फाड़,
अवलोक रहा था बार-बार,
नीचे जल में निज महाकार।
यहाँ दृग (आँखों) उपमेय पर फूल उपमान का आरोप है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

5. बढ़त बढ़त संपति-सलिलु, मन-सरोजु बढ़ि जाइ।
घटत घटत सु न फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ ॥
इस दोहे में संपत्ति में सलिल का एवं मन में सरोज का आरोप किया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

Class 10th Alankar HBSE Vyakaran प्रश्न 8.
उपमा और रूपक अलंकार का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपमा अलंकार में उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है जबकि ‘रूपक’ में उपमेय में उपमान का आरोप करके दोनों में अभेद स्थापित किया जाता है।
उदाहरण-
पीपर पात सरिस मनं डोला
(उपमा) यहाँ ‘मन’ उपमेय तथा ‘पीपर पात’ उपमान में समानता बताई गई है। अतः उपमा अलंकार है।
उदाहरण-
चरण कमल बंदौं हरि राई।”
(रूपक) यहाँ उपमेय ‘चरण’ में उपमान ‘कमल’ का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

6. उत्प्रेक्षा

Alankar Class 10th Hindi HBSE Vyakaran प्रश्न 9.
उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ समानता के कारण उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाती है; जैसे-
1. सोहत ओ पीतु पटु, स्याम सलौनै गात।
मनौ नीलमणि सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात ॥
यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले रूप तथा उनके पीले वस्त्रों में प्रातःकालीन सूर्य की धूप से सुशोभित नीलमणि पर्वत की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

2. उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा ॥
यहाँ क्रोध से काँपता हुआ अर्जुन का शरीर उपमेय है तथा इसमें सोए हुए सागर को जगाने की संभावना की गई है।

3. लंबा होता ताड़ का वृक्ष जाता।
मानो नभ छूना चाहता वह तुरंत ही ॥
यहाँ ताड़ का वृक्ष उपमेय है जिसमें आकाश को छूने की संभावना की गई है।

4. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गए पंकज नए ॥
यहाँ आँसुओं से पूर्ण उत्तरा के नेत्र उपमेय है जिनमें कमल की पंखुड़ियों पर पड़े हुए ओस के कणों की कल्पना की गई है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

7. मानवीकरण

Alankar Questions Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 10.
मानवीकरण अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे-
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
यहाँ लतिका में मानवीय क्रियाओं का आरोप है, अतः लतिका में मानवीय अलंकार सिद्ध है। मानवीकरण अलंकार के कुछ। अन्य उदाहरण हैं

(i) दिवावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे,

(ii) “मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।”

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

8. अतिशयोक्ति

Alankar Exercise HBSE 10th Class Vyakaran प्रश्न 11.
अतिशयोक्ति अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:

जहाँ किसी बात को लोकसीमा से अधिक बढ़ाकर कहा जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है; जैसेआगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ॥ यहाँ सोचने से पहले ही क्रिया पूरी हो गई जो लोकसीमा का उल्लंघन है। उदाहरण
(i) बालों को खोलकर मत चला करो दिन में
रास्ता भूल जाएगा सूरज।

(ii) हनुमान की पूँछ को लग न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग ॥

परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर:

Alankar In Hindi 10th Class HBSE Vyakaran प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं ? उसके भेद बताइए।
उत्तर-
काव्य के अर्थ और सौंदर्य में चमत्कार उत्पन्न करने वाले (गुण धर्म) साधनों को अलंकार कहते हैं; जैसे स्त्रियाँ अपने सौंदर्य में वृद्धि हेतु गहने या आभूषण धारण करती हैं, वैसे ही कवि भी काव्य के अर्थ में चमत्कार उत्पन्न करने हेतु अलंकारों का प्रयोग करते हैं।
अलंकार के दो भेद हैं-शब्दालंकार और अर्थालंकार।

Alankaar Class 10 HBSE Vyakaran प्रश्न 2.
शब्दालंकार और अर्थालंकार का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शब्दालंकार-शब्दों द्वारा काव्य में चमत्कार उत्पन्न करना शब्दालंकार कहलाता है। अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि शब्दालंकार हैं; जैसे-
“तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।”
अर्थालंकार-जहाँ शब्दों के अर्थों के कारण काव्य में चमत्कार उत्पन्न किया जाता है, वहाँ अर्थालंकार होता है; जैसे,
“उसका हृदय नवनीत-सा कोमल है।”

प्रश्न 3.
उपमा अलंकार की परिभाषा देते हुए उसके अंग बताइए।
उत्तर:
उपमा सादृश्यमूलक अलंकार है। किसी प्रसिद्ध वस्तु की समानता के आधार पर जब किसी वस्तु या व्यक्ति के रूप, गुण, धर्म का वर्णन किया जाए, तो वहाँ उपमा अलंकार होता है; जैसे-
“चंचल अचल-सा नीलांबर।”

उपमा अलंकार के अंग-उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं-
(क) उपमेय: वह वस्तु या व्यक्ति जिसका वर्णन किया जाता है, उपमेय कहलाता है; जैसे ‘चंद्रमा के समान मुख’ में ‘मुख’ उपमेय है।

(ख) उपमान: जिस प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति के साथ उपमेय की समानता बताई जाती है, उसे उपमान कहते हैं; जैसे ‘चंद्रमा के समान मुख’ वाक्य में ‘चंद्रमा’ उपमान है।

(ग) साधारण धर्म: उपमान और उपमेय के बीच पाए जाने वाले समान रूप, गुण आदि को साधारण धर्म कहते हैं; जैसे ‘चंद्रमा’ के समान मुख में ‘सुंदर’ दोनों समान गुण हैं। इसलिए ‘सुंदर’ ही दोनों का समान साधारण धर्म है।

(घ) वाचक शब्द: जिन शब्दों की सहायता से उपमेय और उपमान में समानता प्रकट की जाती है, वे वाचक शब्द कहलाते हैं; उदाहरणार्थ जैसा, जैसी, सा, सी, से, सम, समान, ज्यों आदि। चंद्रमा के समान मुख में ‘समान’ वाचक शब्द है।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

प्रश्न 4.
उपमा और रूपक का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपमा में उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है किंतु रूपक में उपमेय में उपमान का आरोप करके दोनों में अभेद दिखाया जाता है; जैसे उपमा ‘पीपर पात सरिस मन डोला’ इसमें समानता दिखाई गई है।
“चरण कमल बंदौं हरिराई।”
यहाँ उपमेय ‘चरण’ में उपमान ‘कमल’ का आरोप कर दिया गया है, अतः रूपक अलंकार है।

प्रश्न 5.
यमक और श्लेष में क्या अंतर है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यमक में एक शब्द दो बार प्रयुक्त होता है तथा दोनों बार उसका अर्थ भिन्न होता है। उदाहरणतया-वह सोने का हार हार गया।
यहाँ पहले ‘हार’ का अर्थ माला है तो दूसरे का अर्थ ‘परास्त होना’ है। ‘श्लेष’ में एक ही शब्द दो भिन्न-भिन्न अर्थ देता है। उदाहरणतयामैं चाहे मन दे दूँ परंतु तुम कुछ नहीं देते। -यहाँ ‘मन’ के दो अर्थ हैं
(1) हृदय,
(2) चालीस किलो।
अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।

अभ्यासार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण

1. तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
उत्तर:
अनुप्रास

2. मृदु मंद-मंद मंथर मंथर, लघु तरणि हंस-सी सुंदर।
प्रतिघट-कटक कटीले कोते कोटि-कोटि।
उत्तर:
अनुप्रास

3. कालिका-सी किलकि कलेऊ देति काल को।
उत्तर:
अनुप्रास एवं उपमा

4. रावनु रथी बिरथ रघुबीरा।
उत्तर:
रूपक

5. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुस चून ॥
उत्तर:
श्लेष

6. उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भंग ॥
उत्तर:
रूपक

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

7. वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीप शिखा-सी शांत भाव में लीन वह टूटे तरन की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।
उत्तर:
उपमा

8. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमणि शैल पर आतप पर्यो प्रभात ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

9. राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूंद गहि, चाहत चढ़न अकास ॥
उत्तर:
अनुप्रास

10. पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
उत्तर:
अनुप्रास और यमक

11. बढ़त-बढ़त संपति-सलिल, मन सरोज बढ़ जाई।
घटत-घटत सु न फिरि घटे, बरु समूल कुम्हिलाई ॥
उत्तर:
रूपक

12. चारु कपोल लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए।
लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन, मादक मधुहिं पिए ।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा, अनुप्रास एवं रूपक

13. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिल काल बस निज कुल घालकु।
भानु बंस-राकेस-कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू ॥
उत्तर:
अनुप्रास

14. यों तो ताशों के महलों सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या ?
भू काँप उठे तो ढह जाए, बाढ़ आ जाए, बह जाए ॥
उत्तर:
उपमा

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15. या अनुराग चित की, गति समुझै नहिं कोइ।
ज्यौं-ज्यौं बूडै स्याम रंग, त्यौं-त्यौं उज्जलु होइ ॥
उत्तर:
श्लेष

16. मेरे अंतर में आते हो देव, निरंतर,
कर जाते हो व्यथा भार लघु,
बार-बार कर कंज बढ़ाकर।
उत्तर:
रूपक एवं यमक

17. नत-नयन प्रिय-कर्म-रत मन।
उत्तर:
अनुप्रास

18. पी तुम्हारी मुख बात तरंग
आज बौरे भौरे सहकार।
उत्तर:
यमक

19. माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
उत्तर:
यमक

20. मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत बुलाए ॥
उत्तर:
अनुप्रास

21. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

22. मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।
उत्तर:
उपमा

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23. जीवन के रथं पर चढ़कर, सदा मृत्यु-पथ पर बढ़कर।
उत्तर:
रूपक

24. सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार ॥
उत्तर:
यमक

25. चारु चंद्र की चंचल किरणें।
उत्तर:
अनुप्रास

26. चंचल वासना-सी बिछलती नदियां
उत्तर:
उपमा

27. मैंया मैं तो चंद-खिलौना लैहों
उत्तर:
रूपक

28. सुवरन को ढूँढ़त फिरत कवि, व्याभिचारी चोर
उत्तर:
श्लेष

29. मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।
उत्तर:
उपमा

30. संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो।
उत्तर:
अनुप्रास

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31. भजु मन चरण-कमल अविनासी।
उत्तर:
रूपक

32. कियत कालहिं में वन वीथिका,
विविध धेनु विभूषित हो गई।
उत्तर:
अनुप्रास

33. भजन कह्यो तातें, भज्यों ने एकहुँ बार।
दूर भजन जाते कह्यो, सो तू भज्यो गँवार ॥
उत्तर:
यमक

34. कोटि कुलिस सम बचन तुम्हारा।
उत्तर:
उपमा

35. गुरुपद रज मूदु मंजुल अंजन।
उत्तर:
रूपक

36. रघुपति राघव राजा राम।
उत्तर:
अनुप्रास

37. कमल-सा कोमल गात सुहाना।
उत्तर:
उपमा

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38. चरण कमल बंदौं हरि राई।
उत्तर:
रूपक

39. भग्न मगन रत्नाकर में वह राह।
उत्तर:
अनुप्रास

40. तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
उत्तर:
उपमा एवं अनुप्रास

41. विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर।
उत्तर:
अनुप्रास एवं उपमा

42. एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास।
उत्तर:
रूपक

43. वह दीप शिखा-सी शांत भाव में लीन।
उत्तर:
उपमा

44. मखमल के झूल पड़े, हाथी-सा टीला।
उत्तर:
उपमा

45. रती-रती सोभा सब रती के सरीर की।
उत्तर:
यमक

46. यह देखिए, अरविंद-से शिशु कैसे सो रहे।
अलंकार एवं छन्द विवेचना.
उत्तर:
उपमा

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47. सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।
उत्तर:
रूपक

48. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

49. ईस-भजनु सारथी सुजाना।
उत्तर:
रूपक एवं अनुप्रास

50. मिटा मोदु मन भए मलीने।
विधि निधि दीन्ह लेत जनु छीन्हे ।।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा एवं अनुप्रास

51. विज्ञान-यान पर चढ़ी हुई सभ्यता डूबने जाती है।
उत्तर:
रूपक

52. नभ पर चमचम चपला चमकी।
उत्तर:
अनुप्रास

53. माया दीपक नर पतंग भ्रमि-भ्रमि इवै पड़त।
उत्तर:
रूपक

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

54. बालक बोलि बधौं नहिं तोही।
उत्तर:
अनुप्रास

55. राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
उत्तर:
रूपक

56. झुककर मैंने पूछ लिया,
खा गया मानो झटका।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

57. परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाए।
उत्तर:
उपमा

58. आए महंत बसंत।
उत्तर:
रूपक

59. कोई प्यारा कुसुम कुम्हला, भौन में जो पड़ा हो।
उत्तर:
अनुप्रास

60. कितनी करुणा कितने संदेश।
उत्तर:
अनुप्रास

61. नभ मंडल छाया मरुस्थल-सा।
दल बांध अंधड़ आवै चला ॥
उत्तर:
उपमा

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अलंकार

62. आवत-जात कुंज की गलियन रूप-सुधा नित पीजै।
उत्तर:
रूपक

63. कानन कठिन भयंकर बारी।
उत्तर:
अनुप्रास

64. सौरज धीरज तेहि रथ चाका।
उत्तर:
रूपक

65. सुवासित भीगी हवाएँ सदा पावन माँ-सरीखी।
उत्तर:
उपमा

66. कार्तिक की एक हँसमुख सुबह नदी-तट से लौटती गंगा नहाकर।
उत्तर:
मानवीकरण।

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HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Avikari Shabd अविकारी शब्द Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

(ii) अविकारी शब्द

जिन शब्दों जैसे क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक आदि के स्वरूप में किसी भी कारण से परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों को अव्यय भी कहा जाता है।

अव्यय

Avikari Shabd HBSE 10th Class  प्रश्न 1.
अव्यय किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अव्यय वे शब्द हैं जिनमें लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि की दृष्टि से कोई परिवर्तन नहीं होता; जैसे यहाँ, कब और आदि। अव्यय शब्द पाँच प्रकार के होते हैं
(1) क्रियाविशेषण – धीरे-धीरे, बहुत।
(2) संबंधबोधक – के साथ, तक।
(3) समुच्चयबोधक – तथा, एवं, और।।
(4) विस्मयादिबोधक – अरे, हे।
(5) निपात – ही, भी।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

(1) क्रियाविशेषण

अविकारी शब्द HBSE 10th Class  प्रश्न 2.
क्रियाविशेषण अव्यय की परिभाषा देते हुए उसके भेदों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जो अविकारी या अव्यय शब्द क्रिया के साथ जुड़कर उसकी विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे-
(क) राम धीरे-धीरे चलता है।
(ख) मैं बहुत थक गया हूँ।

इन दोनों में धीरे-धीरे’ तथा ‘बहुत’ दोनों अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता बताने के कारण क्रियाविशेषण हैं। क्रियाविशेषण चार प्रकार के होते हैं (1) कालवाचक, (2) स्थानवाचक, (3) परिमाणवाचक तथा (4) रीतिवाचक।
1. कालवाचक क्रियाविशेषण:
जिस क्रियाविशेषण के द्वारा क्रिया के होने या करने के समय का ज्ञान हो, उसे कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं; यथा कल, आज, परसों, जब, तब, सायं आदि। जैसे
उदाहरण-
(क) कृष्ण कल जाएगा।
(ख) मैं अभी-अभी आया हूँ।
(ग) वह प्रतिदिन नृत्य करती है।
(घ) वह कभी देर से नहीं आता।

2. स्थानवाचक क्रियाविशेषण:
जो क्रियाविशेषण क्रिया के होने या न होने के स्थान का बोध कराएँ, स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं; जैसे
(क) राम कहाँ गया?
(ख) ऊषा ऊपर खड़ी है।
(ग) मोहन और सोहन एक-दूसरे के समीप खड़े हैं।
(घ) उधर मत जाओ।
इसी प्रकार, यहाँ, इधर, उधर, बाहर, भीतर, आगे, पीछे, किधर, आमने, सामने, दाएँ, बाएँ, निकट आदि शब्द स्थानवाची क्रियाविशेषण हैं।

3. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण :
जो क्रियाविशेषण क्रिया की मात्रा या उसके परिमाण का बोध कराए, उसे परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे
(क) कम खाओ।
(ख) बहुत मत हँसो।
(ग) राम दूध खूब पीता है।
(घ) उतना पढ़ो जितना ज़रूरी है।
इनके अतिरिक्त, थोड़ा, सर्वथा, कुछ, लगभग, अधिक, कितना, केवल आदि शब्द परिमाणवाचक क्रियाविशेषण हैं।

4. रीतिवाचक क्रियाविशेषण:
जिन शब्दों से क्रिया के होने की रीति अथवा प्रकार का ज्ञान होता है, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे
(क) वह वहाँ भली-भाँति रह रहा है।
(ख) आप कहते जाइए मैं ध्यानपूर्वक सुन रहा हूँ।
(ग) वह पैदल चलता है।
इनके अतिरिक्त, कैसे, ऐसे, वैसे, ज्यों, त्यों, सहसा, सुखपूर्वक, सच, झूठ, तेज़, अवश्य, नहीं, अतएव, वृक्ष, शीघ्र इत्यादि शब्द – रीतिवाचक क्रियाविशेषण हैं।

नोट – जो क्रियाविशेषण काल, स्थान अथवा परिमाणवाचक नहीं हैं, उन सबकी गणना रीतिवाचक में कर ली जाती है। अतः रीतिवाचक क्रियाविशेषण के भी अनेक भेद हैं

1. निश्चयात्मक – अवश्य, सचमुच, वस्तुतः आदि।
2. अनिश्चयात्मक – शायद, प्रायः, अक्सर, कदाचित आदि।
3. कारणात्मक क्योंकि, अतएव आदि।
4. स्वीकारात्मक – सच, हाँ, ठीक आदि।
5. आकस्मिकतात्मक – अचानक, सहसा, एकाएक आदि।
6. निषेधात्मक – न, नहीं, मत, बिल्कुल नहीं आदि।
7. आवृत्त्यात्मक – धड़ाधड़, फटाफट, गटागट, खुल्लमखुल्ला आदि।
8. अवधारक – ही, तो, भर, तक आदि।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

क्रियाविशेषण की रचना

अविकारी शब्द के 10 उदाहरण HBSE प्रश्न 3.
क्रियाविशेषण की रचना-विधि का उल्लेख उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर:
रचना की दृष्टि से क्रियाविशेषण दो प्रकार के होते हैं
(1) मूल क्रियाविशेषण तथा
(2) यौगिक क्रियाविशेषण।

1. मूल क्रियाविशेषण: जो शब्द अपने मूल रूप में अर्थात प्रत्यय के योग के बिना क्रियाविशेषण हैं, उन्हें मूल क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे आज, ठीक, निकट, सच आदि।
2. यौगिक क्रियाविशेषण: जो शब्द दूसरे शब्दों में प्रत्यय लगाने से या समास के कारण क्रियाविशेषण बनते हैं, उन्हें यौगिक क्रियाविशेषण कहते हैं, जैसे एकाएक, धीरे-धीरे, गटागट आदि।

क्रिया-प्रविशेषण

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द प्रश्न 4.
क्रिया-प्रविशेषण किसे कहते हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जो शब्द क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रिया-प्रविशेषण कहते हैं। ये शब्द क्रियाविशेषण से पूर्व प्रयुक्त होते हैं; जैसे
(क) पी०टी० ऊषा बहुत तेज़ दौड़ती है।
(ख) आपने बहुत ही मधुर गीत गाया।
(ग) वे बहुत बीमार हैं, इसलिए आप इससे भी धीरे चलिए।
अतः स्पष्ट है कि इन वाक्यों में बहुत, बहुत ही, इससे भी आदि क्रियाविशेषण-तेज़, मधुर एवं धीरे की विशेषता प्रकट कर रहे हैं। इसलिए इन्हें क्रिया-प्रविशेषण कहा गया है।

(2) संबंधबोधक

प्रश्न 5.
संबंधबोधक अव्यय किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जो अविकारी शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के साथ जुड़कर दूसरे शब्दों से उनका संबंध बताते हैं, वे संबंधबोधक अव्यय कहलाते हैं; जैसे धन के बिना मनुष्य का जीवन नरक है। इस वाक्य में ‘के बिना’ संबंधबोधक है। इसी प्रकार से ओर, पास, सिवाय, की खातिर, के बाहर आदि भी संबंधबोधक हैं; यथा
(क) दोनों कक्षाएँ आमने-सामने हैं।
(ख) चलते हुए दाएं-बाएँ मत देखो।
(ग) विद्या के बिना मनुष्य पशु है।
(घ) राजमहल के ऊपर तोपें लगी हुई हैं।

अन्य संबंधबोधक अव्यय हैं-
1. के कारण, की वजह से, के द्वारा द्वारा, के मारे, के हाथ (से-)।
2. के लिए, के वास्ते, की खातिर, के हेतु, के निमित्त।
3. से लेकर/तक, पर्यंत।
4. के साथ, के संग।
5. के बिना, के बगैर, के अतिरिक्त, के अलावा।
6. की अपेक्षा, की तुलना में, के समान/सदृश, के जैसे।
7. के बदले, की जगह में पर।
8. के विपरीत, के विरुद्ध, के प्रतिकूल, के अनुसार, के अनुकूल।
9. के बाबत, के विषय में।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

(3) समुच्चयबोधक

प्रश्न 6.
समुच्चयबोधक की सोदाहरण परिभाषा दीजिए तथा उसके भेदों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दो शब्दों, वाक्यांशों या वाक्यों को जोड़ने वाले शब्दों को समुच्चयबोधक अव्यय या अविकारी कहते हैं; जैसे मोहन पढ़ता है और सोहन लिखता है। इस वाक्य में ‘और’ शब्द समुच्चबोधक अव्यय है। इसे योजक अव्यय भी कहते हैं।

समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं-
(1) समानाधिकरण समुच्चयबोधक,
(2) व्यधिकरण समुच्चयबोधक।
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय:
जो अव्यय दो समान स्तर के वाक्यों, वाक्यांशों या दो स्वतंत्र शब्दों को मिलाते हैं, उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं; जैसे मोहन पढ़ता है और सोहन लिखता है। इस वाक्य में ‘और’ समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय है। इसके भी आगे चार भेद हैं
(i) संयोजक; यथा-और, तथा, एवं आदि।
(ii) विभाजक; यथा-या, वा, चाहे, नहीं, तो आदि।
(iii) विरोधदर्शक; यथा-लेकिन, परंतु, किंतु आदि।
(iv) परिणामदर्शक; यथा-अतएव, अतः, सो, इस कारण आदि।

2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय:
जो अव्यय शब्द एक या एक से अधिक वाक्यों को प्रधान वाक्यों से जोड़ते हैं, वे व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं; यथा-
राम बुद्धिमान तो है परंतु अनुभवी नहीं है।
उपर्युक्त वाक्य में ‘परंतु’ व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय है। इसके भी आगे चार प्रकार हैं
(i) कारणवाचक; जैसे वह दुखी है क्योंकि वह गरीब है। क्योंकि, जो कि, इसलिए, कि, चूँकि इत्यादि कारणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
(ii) स्वरूपवाचक; जैसे राम ने कहा कि वह घर नहीं जाएगा। मानो, अर्थात, कि, माने, जो कि आदि स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
(iii) उद्देश्यवाचक; जैसे वह परिश्रम करता है ताकि अच्छे अंक प्राप्त कर सकें। कि, जो, ताकि, जिससे, जिसमें आदि उद्देश्यवाचक समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
(iv) संकेतवाचक; जैसे अगर तुम आओगे तो मैं अवश्य चलूँगा। जो… तो, यदि…”तो, अगर”तो, यद्यपि. तथापि, चाहे….. परंतु आदि संकेतवाचक समुच्चयबोधक अव्यय हैं।

(4) विस्मयादिबोधक

प्रश्न 7.
विस्मयादिबोधक अविकारी किसे कहते हैं? सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जो अविकारी शब्द हमारे मन के हर्ष, शोक, घृणा, प्रशंसा, विस्मय आदि भावों को व्यक्त करते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक अविकारी शब्द कहते हैं; जैसे अरे, ओह, हाय, ओफ, हे आदि। इसके अन्य भेद निम्नलिखित हैं-
1. विस्मय – ओह! ओहो! हैं! क्या! ऐं!
2. शोक – आह!, उफ!, हाय!, अह!, त्राहि!, हे राम!
3. हर्ष – वाह!, अहा!, धन्य!, शाबाश!
4. प्रशंसा – शाबाश!, खूब!, बहुत खूब!
5. भय – बाप रे!, हाय!
6. क्रोध – धत!, चुप!, अबे!
7. घृणा और तिरस्कार – छिः, धत!
8. अनुमोदन – ठीक-ठीक, हाँ-हाँ!
9. आशीर्वाद – जय हो!, जियो!
नोट – कभी-कभी संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, अव्यय आदि शब्द भी विस्मयादिबोधक अव्यय के रूप में प्रयुक्त होते हैं; जैसे-
संज्ञा- हे राम! मैं तो उजड़ गई।
हाय राम! यह क्या हो गया।

विशेषण- अच्छा! तो यह बात है।

सर्वनाम- क्या! वह फेल हो गया।
कौन! तुम्हारा भाई आया है।

क्रिया- हट! पागल कहीं का।
जा-जा! तेरे जैसे बहुत देखे हैं।

(5) निपात

प्रश्न 8.
‘निपात’ किसे कहते हैं? हिंदी के प्रमुख निपातों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जो अविकारी शब्द किसी शब्द या पद के बाद जुड़कर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल भर देते हैं, उन्हें निपात कहते हैं। हिंदी में प्रचलित ‘निपात’ निम्नलिखित हैं
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द 1

परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1.
अव्यय शब्द की क्या विशेषता है? पाँच अव्यय शब्द लिखिए।
उत्तर:
अव्यय शब्द की विशेषता यह है कि लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि की दृष्टि से उसके रूप में परिवर्तन नहीं होता। पाँच अव्यय, शब्द-
(1) बहुत,
(2) धीरे,
(3) कल,
(4) तेज़,
(5) और।

प्रश्न 2.
अव्यय के पाँच भेदों का नाम लिखिए और उनके दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अव्यय के पाँच भेद उदाहरण सहित अग्रलिखित हैं

1. क्रियाविशेषण-धीरे-धीरे चलो। – श्याम कल आएगा।
2. संबंधबोधक-वह घर के बाहर है। – झंडा भवन के ऊपर लगा है।
3. समुच्चयबोधक-राम और श्याम आ रहे हैं। – उसने पाठ पढ़ा या नहीं।
4. विस्मयादिबोधक-शाबाश! कमाल कर दिया। – हाय! वह मर गया।
5. निपात-मोहन ही जा रहा है। – राम भी जा रहा है।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

प्रश्न 3.
ऊपर का, पूर्णतः, तक, शायद ही, दिनभर, हफ्ते भर, की ओर, का उचित प्रयोग करते हुए नीचे लिखे वाक्यों के रिक्त स्थानों को भरिए
1. मैं उसकी बात से …………… सहमत हूँ।
2. वह आज …………. यहाँ आए।
3. मकान का ………….. कमरा बंद है।
4. मैं …………… दफ्तर में काम करता हूँ।
5. मोहन महात्मा गाँधी मार्ग …………… रहता है।
6. वह दिल्ली से ………… बाद वापिस आया है।
7. मैं कल देर रात ………….. जागा।
उत्तर:
1. मैं उसकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ।
2. वह आज शायद यहाँ आए।
3. मकान का ऊपर का कमरा बंद है।
4. मैं दिनभर दफ्तर में काम करता हूँ।
5. मोहन महात्मा गाँधी मार्ग की ओर रहता है।
6. वह दिल्ली से हफ्ते भर बाद वापिस आया है।
7. मैं कल रात देर तक जागा।

प्रश्न 4.
कालवाचक, स्थानवाचक, रीतिवाचक और परिमाणवाचक क्रियाविशेषणों का प्रयोग करते हुए दो-दो वाक्य लिखिए।
उत्तर:
कालवाचक क्रियाविशेषण:
(क) वह कल नहीं आया।
(ख) वह अभी चला गया।

स्थानवाचक क्रियाविशेषण
(क) मोहन नीचे आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।
(ख) दोनों सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हैं।

रीतिवाचक क्रियाविशेषण
(क) मेरी बात को ध्यानपूर्वक सुनो।
(ख) धीरे-धीरे मत चलो।

परिमाणवाचक-क्रियाविशेषण
(क) थोड़ा बोलो।
(ख) कम खाओ।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों के रिक्त स्थान में उचित अव्यय शब्दों का प्रयोग कीजिए और यह भी बताइए कि ये अव्यय किस भेद में आते हैं
(1) मैं …………. आगरा जाऊँगा।
(2) हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति …………… गर्व है।
(3) मुझे रेडियो ………… घड़ी चाहिए।
(4) यदि तुम परीक्षा में सफल होना चाहते हो …………. श्रम करो।
(5) बाहर जाने …………. पहले मुझसे मिलना।
(6) ……….. आप मिल गए।
(7) वह जल्दी चला गया …………… ट्रेन पकड़ सके।
(8) ………… तो यह तुम्हारी शरारत है।
(9) तुम बकवास बंद करो …………… मुझे कुछ करना पड़ेगा।
(10) ………… तुमने यह क्या कर डाला?
उत्तर:
(1) मैं कल आगरा जाऊँगा। – (कालवाचक)
(2) हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व है। – (समानाधिकरण समुच्चयबोधक)
(3) मुझे रेडियो और घड़ी चाहिए। – (समानाधिकरण समुच्चयबोधक)
(4) यदि तुम परीक्षा में सफल होना चाहते हो तो श्रम करो। – (व्यधिकरण समुच्चयबोधक)
(5) बाहर जाने से पहले मुझसे मिलना। – (संबंधबोधक)
(6) बहुत अच्छा! आप मिल गए। – (हर्षबोधक)
(7) वह जल्दी चला गया ताकि ट्रेन पकड़ सके। – (व्यधिकरण समुच्चयबोधक)
(8) वाह! तो यह तुम्हारी शरारत है। – (प्रशंसाबोधक)
(9) तुम बकवास बंद करो अन्यथा मुझे कुछ करना पड़ेगा। – (समानाधिकरण समुच्चयबोधक)
(10) हाय! तुमने यह क्या कर डाला। – (शोकबोधक)

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

प्रश्न 6.
नीचे दिए वाक्यों से कौन-सा भाव प्रकट होता है? वाक्यों के सामने लिखिए।
(1) शाबाश! तुमने बहुत अच्छा काम किया।
(2) बाप रे! मैं तो बर्बाद हो गया।
(3) छिः छिः! तुम तो बड़े नीच आदमी हो।
(4) हाय! अब मैं क्या करूँ?
(5) अजी! ले भी लो।
(6) अबे हट! नहीं तो मारूँगा।
(7) बचो! सामने से ट्रक आ रहा है।
(8) वाह! फिल्म देखकर मज़ा आ गया।
उत्तर:
(1) प्रशंसा,
(2) शोक,
(3) घृणा,
(4) शोक/पीड़ा,
(5) संबोधन/आग्रह,
(6) क्रोध,
(7) चेतावनी तथा
(8) हर्ष।

प्रश्न 7.
निपात किसे कहते हैं? ही, भी, तो, तक, मात्र, भर का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर:
जो अव्यय शब्द वाक्य के शब्दों व पदों के बाद लगकर उनके अर्थ में एक विशेष प्रकार का बल उत्पन्न कर देते हैं, उन्हें ‘निपात’ कहते हैं।
निपातों का वाक्यों में प्रयोग-
ही – मोहन ही जा रहा है।
तक – उसने तो देखा तक नहीं।
भी – राम भी लिख रहा है।
मात्र – कहने मात्र से काम नहीं चलेगा।
तो – वह तो कब का चला गया।
भर – वह दिनभर आपकी प्रतीक्षा करती रही।

प्रश्न 8.
संबंधबोधक अव्यय शब्दों से रिक्त स्थान भरिए
(1) सीता ………. दुःख किसी ने नहीं सहा होगा।
(2) गंगा नदी वाराणसी …………. बहती है।
(3) हमें अंत …………… प्रयास करना चाहिए।
(4) घर के ……………. से चारपाई लाओ।
(5) तुम्हारे …………… यह काम आसान है।
उत्तर:
(1) सीता के समान दुःख किसी ने नहीं सहा होगा।
(2) गंगा नदी वाराणसी की ओर बहती है।
(3) हमें अंत तक प्रयास करना चाहिए।
(4) घर के भीतर से चारपाई लाओ।
(5) तुम्हारे लिए यह काम आसान है।

प्रश्न 9.
चार ऐसे शब्द लिखिए जो विशेषण और क्रियाविशेषण दोनों रूपों में प्रयुक्त हो सकते हैं। इनमें वाक्य-प्रयोग द्वारा विशेषण और क्रियाविशेषण का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. अच्छा :
मोहन एक अच्छा विद्यार्थी है। (विशेषण)
मोहन अच्छा लिखता है। (क्रियाविशेषण)

2. मधुर :
तुम्हारी मधुर बातें बहुत प्रिय हैं। (विशेषण)
वह बहुत मधुर गाता है। (क्रियाविशेषण)

3. गंदा :
मोहन गंदा लड़का है। (विशेषण)
मोहन गंदा रहता है। (क्रियाविशेषण)

4. तेज़ :
उसकी चाल बहुत तेज़ है। (विशेषण)
वह तेज़ लिखता है। (क्रियाविशेषण)

उपर्युक्त वाक्यों से यह स्पष्ट है कि विशेषण संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता को प्रकट करते हैं लेकिन क्रियाविशेषण क्रिया की विशेषता बताते हैं।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द

प्रश्न 10.
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त समुच्चयबोधक अव्ययों को छाँटिए और बताइए कि वे समानाधिकरण हैं या व्यधिकरण?
(क) बाग में बालक और बालिकाएँ खेल रही हैं।
(ख) राम गरीब है किंतु ईमानदार है।
(ग) मैंने उससे कुछ लिया नहीं बल्कि कुछ दिया है।
(घ) मैं परीक्षा में नहीं बैठी क्योंकि बीमार थी।
(ङ) जीवन में तुम सुख चाहते हो तो परिश्रम करो।
उत्तर:
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran अविकारी शब्द 2
प्रश्न 11.
क्रियाविशेषण और संबंधबोधक में क्या अंतर है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ कालवाचक एवं स्थानवाचक क्रियाविशेषणों का भी संबंधबोधक के रूप में प्रयोग होता है। यदि उनका प्रयोग क्रिया के साथ शुरु हुआ हो तो उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं तथा यदि वे संज्ञा या सर्वनाम के साथ विभक्ति रूप में प्रयुक्त हों तो उन्हें संबंधबोधक स्वीकार करना चाहिए; यथा-
(क) तुम पहले उठो। (क्रियाविशेषण)
परीक्षा से पहले खूब पढ़ो। (संबंधबोधक)

(ख) पुजारी जी यहाँ आए थे। (क्रियाविशेषण)
मोहन तुम्हारे यहाँ गया था। (संबंधबोधक)

(ग) उसके सामने बैठो।। (क्रियाविशेषण)
उसका घर तुम्हारे स्कूल के सामने है। (संबंधबोधक)

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HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Kriya क्रिया Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

क्रिया

क्रिया HBSE 10th Class Hindi Vyakaran प्रश्न 1.
क्रिया की परिभाषा उदाहरण सहित दीजिए। उत्तर-क्रिया वह शब्द अथवा पद है जिससे किसी कार्य के होने का बोध हो; जैसे
(क) चिड़िया आकाश में उड़ रही है।
(ख) मोहन दौड़ रहा है।
(ग) राम पत्र लिख रहा है।
(घ) बच्चे स्कूल गए।
(ङ) शीला ने गीत गाया।
उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त ‘उड़’, ‘दौड़’ ‘लिख’, ‘गए’ और ‘गाया’ शब्दों से किसी-न-किसी क्रिया के होने का ज्ञान होता है। अतः ये सब क्रिया पद हैं।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

धातु

क्रिया 10th Class Hindi HBSE Vyakaran प्रश्न 2.
धातु किसे कहते हैं? सोदाहरण समझाइए।
उत्तर:
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं; जैसे पढ़ना, लिखना, दौड़ना, पीना, चलना, गाना आदि क्रियाओं में पढ़, लिख, दौड़, पी, चल, गा आदि क्रिया के मूल रूप होने के कारण धातु हैं।

10th Class Hindi HBSE Vyakaran क्रिया प्रश्न 3.
धातु के कितने भेद होते हैं? प्रत्येक का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धातु के मुख्यतः पाँच भेद माने जाते हैं
(क) सामान्य (मूल) धातु।
(ख) व्युत्पन्न धातु।
(ग) नामधातु।
(घ) सम्मिश्रण धातु।
(ङ) अनुकरणात्मक धातु।

1. सामान्य (मूल) धातु:
जो क्रिया धातुएँ भाषा में रूढ़ शब्द के रूप में प्रचलित हो चुकी हैं, वे सामान्य (मूल) धातुएँ कहलाती हैं। ये धातुएँ किसी के योग से नहीं उत्पन्न होतीं। उदाहरणार्थ-सोना, खाना, लिखना, पढ़ना, देखना, खेलना, सुनना, जाना आदि क्रियाओं की धातुएँ सामान्य हैं।

2. व्युत्पन्न धातु:
जो धातुएँ किसी मूल धातु में प्रत्यय लगाकर अथवा मूल धातु को अन्य प्रकार से परिवर्तित करके बनाई जाती हैं, उन्हें व्युत्पन्न धातुएँ कहा जाता है; जैसे-
पीना – पिलवाना
खोलना – खुलवाना
करना – करवाना
सुनना – सुनवाना
देखना – दिखाना
गाना – गवाना

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

धातुओं के व्युत्पन्न रूपों की तालिका देखिए
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 1

उपर्युक्त ‘उड़ना’ एवं ‘उठना’ धातुओं को वाक्यों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उड़ना-
(क) चिड़िया उड़ रही है। (मूल अकर्मक उड़ना)
(ख) श्याम ने चिड़िया को उड़ा दिया। (मूल अकर्मक उड़ना का व्युत्पन्न प्रेरणार्थक रूप)
(ग) मोहन पतंग उड़ा रहा है। (मूल सकर्मक उड़ाना)
(घ) पतंग आकाश में उड़ रही है। (मूल सकर्मक उड़ाना का अकर्मक रूप)

उठना-
(क) बच्चा उठ गया। (मूल अकर्मक उठना)
(ख) माँ बच्चे को उठा रही है। (मूल अकर्मक उठना का व्युत्पन्न प्रेरणार्थक)
(ग) कुली सामान उठा रहा है। (मूल सकर्मक उठाना)
(घ) कुली से सामान नहीं उठ रहा है। (मूल सकर्मक उठाना का व्युत्पन्न अकर्मक)
यहाँ कभी धातु की अकर्मक क्रिया मूल में है और कभी सकर्मक क्रिया।

3. नामधातु-संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्दों में प्रत्यय लगाकर जो क्रिया धातुएँ बनती हैं, उन्हें नामधातु कहते हैं; जैसे-
(i) संज्ञा शब्दों से बात से बतियाना, रंग से रँगना, खर्च से खर्चना, गाँठ से गाँठना, झूठ से झुठलाना।
(ii) सर्वनाम से-अपना से अपनाना।
(iii) विशेषण से गरम से गरमाना, चिकना से चिकनाना, साठ से सठियाना, लँगड़ा से लँगड़ाना आदि।

4. सम्मिश्रण/ मिश्र धातुएँ-संज्ञा, विशेषण और क्रियाविशेषण शब्दों के बाद ‘करना’, ‘होना’ आदि के योग से जो धातुएँ बनती हैं, उन्हें सम्मिश्रण मिश्र धातुएँ कहते हैं; जैसे दर्शन करना, पीछा करना, प्यार करना होना आदि।
कुछ अन्य उदाहरण-
(क) करना – काम करना, पीछा करना, प्यार करना आदि।
(ख) होना – काम होना, दर्शन होना, प्यार होना, तेज़ होना, धीरे होना।
(ग) देना – काम देना, दर्शन देना, राज देना, कष्ट देना, धन्यवाद देना।
(घ) जाना – सो जाना, जीत जाना, रूठ जाना, पी जाना, खा जाना।
(ङ) आना – याद आना, पसंद आना, नींद आना।
(च) खाना – मार खाना, हवा खाना, रिश्वत खाना।
(छ) मारना – झपट्टा मारना, डींग मारना, गोता मारना, मस्ती मारना।
(ज) लेना – खा लेना, पी लेना, सो लेना, काम लेना, भाग लेना।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

5. अनुकरणात्मक धातु-जो धातुएँ ध्वनि के अनुकरण पर बनाई जाती हैं, उन्हें अनुकरणात्मक धातुएँ कहा जाता है; जैसे-
हिनहिन – हिनहिनाना
भनभन – भनभनाना
टनटन – टनटनाना
झनझन – झनझनाना
खटखट – खटखटाना
थरथर – थरथराना

क्रिया के भेद

प्रश्न 4.
क्रिया के कितने भेद हैं? सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिंदी में क्रिया मुख्यतः दो प्रकार की होती है
(1) अकर्मक क्रिया और
(2) सकर्मक क्रिया।

1. अकर्मक क्रिया – अकर्मक क्रिया में कर्म नहीं होता, अतः क्रिया का व्यापार और फल कर्ता में ही पाए जाते हैं; जैसे
(क) मोहन पढ़ता है।
(ख) सोहन सोया है।
उपर्युक्त दोनों वाक्यों में पढ़ता है’ और ‘सोया है’ अकर्मक क्रियाएँ हैं।

2. सकर्मक क्रिया – जिन क्रियाओं का फल कर्म पर पड़ता है, उन्हें सकर्मक क्रियाएँ कहते हैं; यथा
(क) मोहनं पुस्तक पढ़ता है।
(ख) सीता पत्र लिखती है।
इन दोनों वाक्यों में पढ़ने का प्रभाव पुस्तक पर और लिखने का प्रभाव पत्र पर है, अतः ये दोनों सकर्मक क्रियाएँ हैं।

प्रश्न 5.
अकर्मक क्रिया कितने प्रकार की होती है? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अकर्मक क्रिया तीन प्रकार की होती है
1. स्थित्यर्थक अकर्मक क्रिया – यह क्रिया बिना कर्म के पूर्ण अर्थ का बोध कराती है तथा कर्ता की स्थिर दशा का भी ज्ञान कराती है; जैसे-
(क) प्रीत सिंह इस समय जाग रहा है। (जागने की दशा)
(ख) राम हँस रहा है। (हँसने की दशा)

2. गत्यर्थक पूर्ण अकर्मक क्रिया यह क्रिया बिना कर्म के पूर्ण अर्थ का ज्ञान कराती है तथा कर्ता की गत्यात्मक स्थिति का बोध भी कराती है; जैसे-
(क) राजा पत्र लिख रहा है।
(ख) रानी गीत गा रही है।

3. अपूर्ण अकर्मक क्रियाएँ-ये वे अकर्मक क्रियाएँ होती हैं जिनके प्रयोग के समयं अर्थ की पूर्णता के लिए कर्ता से संबंध रखने वाले किसी शब्द विशेष की आवश्यकता पड़ती है। पूरक शब्द के बिना वाक्य अथवा अर्थ अधूरा रहता है; जैसे मैं हूँ।

यह वाक्य कर्ता और क्रिया की दृष्टि से पूर्ण है किंतु अर्थ स्पष्ट नहीं है। अतः इसमें पूरक लगाने की आवश्यकता है; जैसे मैं भूखा हूँ। इस प्रकार, पूरक (भूखा) लगाने से वाक्य एवं उसका अर्थ पूर्ण हो जाता है।

प्रश्न 6.
सकर्मक क्रिया के कितने भेद होते हैं? प्रत्येक का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सकर्मक क्रिया तीन प्रकार की होती है
(1) एककर्मक क्रिया,
(2) द्विकर्मक क्रिया तथा
(3) अपूर्ण सकर्मक क्रिया।।

1. एककर्मक क्रिया – जिस क्रिया में एक कर्म हो, उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे राम पुस्तक पढ़ता है। यहाँ ‘पुस्तक’ एक ही कर्म है।

2. द्विकर्मक क्रिया – जिस क्रिया में दो कर्म हों, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं; यथा राम श्याम को पत्र भेजता है। इस वाक्य में ‘श्याम’ और ‘पत्र’ दोनों कर्म हैं। अतः ‘भेजता है’ द्विकर्मक क्रिया है।
द्विकर्मक क्रिया में जिस कर्म के साथ ‘को’ परसर्ग लगा होता है, वह गौण कर्म होता है लेकिन जिसके साथ ‘को’ परसर्ग नहीं होता, वह मुख्य कर्म होता है। उपर्युक्त वाक्य में ‘श्याम’ गौण और ‘पत्र’ मुख्य कर्म है।

3. अपूर्ण सकर्मक क्रिया-ये वे क्रियाएँ हैं जिनमें कर्म रहते हुए भी कर्म को किसी पूरक शब्द की आवश्यकता होती है अन्यथा अर्थ अपूर्ण रहता है; जैसे-
(क) मोहन सोहन को समझता है।
मोहन सोहन को मूर्ख समझता है।

(ख) वह तुम्हें मानता है।
वह तुम्हें मित्र मानता है।
उपर्युक्त दोनों वाक्यों में ‘मूर्ख’ एवं ‘मित्र’ पूरक शब्द हैं।

अकर्मक से सकर्मक में परिवर्तन (अंतरण)

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

प्रश्न 7.
अकर्मक क्रियाएँ सकर्मक क्रियाओं में कैसे प्रयुक्त होती हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्रियाओं का सकर्मक या अकर्मक होना उनके प्रयोग पर निर्भर करता है। अतः यही कारण है कि कभी अकर्मक क्रियाएँ सकर्मक रूप में और सकर्मक क्रियाएँ अकर्मक रूप में प्रयुक्त होती हैं। इसे ही क्रिया परिवर्तन कहते हैं, जैसे
पढ़ना (सकर्मक) – राम किताब पढ़ रहा है।
पढ़ना (अकर्मक) – राम आठवीं में पढ़ रहा है।
खेलना (अकर्मक) – बच्चे दिन-भर खेलते हैं।
इसके विपरीत, हँसना, लड़ना आदि अकर्मक क्रियाएँ हैं, फिर भी, सजातीय कर्म लगने पर ये सकर्मक रूप में प्रयुक्त होती हैं; जैसे-
(क) अकबर ने अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं।
(ख) वह मस्तानी चाल चल रहा था।

ऐंठना, खुजलाना आदि क्रियाओं के दोनों रूप मिलते हैं; जैसे-
(क) पानी में रस्सी ऐंठती है। (अकर्मक)
(ख) नौकर रस्सी ऐंठ रहा है। (सकर्मक)
(ग) उसका सिर खुजलाता है। (अकर्मक)
(घ) वह अपना सिर खुजलाता है। (सकर्मक)

अकर्मक से सकर्मक क्रिया बनाने के नियम

प्रश्न 8.
अकर्मक से सकर्मक क्रिया बनाने के नियमों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अकर्मक क्रियाओं से सकर्मक क्रियाएँ बनाने के निम्नलिखित नियम हैं

1. दो वर्ण वाली अकर्मक धातुओं के अंतिम ‘अ’ को दीर्घ ‘आ’ करने से सकर्मक क्रियाएँ बन जाती हैं; जैसे-

धातुअकर्मकसकर्मक
जलजलनाजलाना
डरडरनाडराना
उठउठनाउठाना
गिरगिरनागिराना
सुनसुननासुनाना

2. कभी-कभी दो वर्ण वाली धातुओं के प्रथम वर्ण को दीर्घ की मात्रा लगाने से सकर्मक क्रियाएँ बन जाती हैं; जैसे

धातुअकर्मकसकर्मक
कटकटनाकाटना
टलटलनाटालना
मरमरनामारना

3. तीन वर्षों से बनी धातुओं के दूसरे स्वर को दीर्घ करने से भी सकर्मक क्रियाएँ बनाई जा सकती हैं; जैसे-

धातुअकर्मकसकर्मक
निकलनिकलनानिकालना
संभलसंभलनासंभालना
उछलउछलनाउछालना
उखड़उखड़नाउखाड़ना

4. दो वर्ण से बनी धातुओं के आदि ‘इ’, ‘ई’ को ‘ए’ तथा ‘उ’, ‘ऊ’ को ‘ओ’ कर देने पर भी सकर्मक क्रियाओं का निर्माण किया जा सकता है; जैसे

धातुअकर्मकसकर्मक
खुलखुलनाखोलना
फिरफिरनाफेरना
घिरघिरनाघेरना
मुड़मुड़नामोड़ना
दिखदिखनादेखना

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5. कुछ धातुओं के अंतिम ‘ट’ को ‘ड’ करने पर भी सकर्मक क्रियाओं का निर्माण किया जा सकता है; जैसे-

धातुअकर्मकसकर्मक
टूटटूटनातोड़ना
फटफटनाफाड़ना

6. कभी-कभी सकर्मक क्रिया बनाने के लिए अकर्मक क्रिया में भारी परिवर्तन करना पड़ता है; जैसे-

धातुअकर्मकसकर्मक
जाजानाभेजना
पीपीनापिलाना
रोरोनारुलाना
बिकबिकनाबेचना
सोसोनासुलाना

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प्रश्न 9.
अपूर्ण क्रिया किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब किसी वाक्य में व्याकरण की दृष्टि से सभी तत्त्व विद्यमान हों, फिर भी, वह वाक्य पूर्ण अर्थ प्रदान न करे तो उसे अपूर्ण क्रिया कहते हैं; यथा-
(क) सरदार पटेल भारत के थे।
(ख) वह है।
ये दोनों वाक्य व्याकरण की दृष्टि से तो पूर्ण हैं लेकिन अर्थ की दृष्टि से अपूर्ण हैं। इन दोनों वाक्यों की क्रियाएँ अपूर्ण हैं।

अर्थ की दृष्टि से वाक्य तभी पूर्ण होंगे जब इस प्रकार लिखे जाएँगे-
(क) सरदार पटेल भारत के लौह पुरुष थे।
(ख) वह बुद्धिमान है।
उपर्युक्त दोनों वाक्यों में ‘लौह पुरुष’ और ‘बुद्धिमान’ पूरक हैं।

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प्रश्न 10.
पूरक किसे कहते हैं? पूरक के भेदों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपूर्ण क्रिया वाले वाक्यों की पूर्ति के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं, उन्हें पूरक कहा जाता है। पूरक के दो प्रकार हैं
(1) कर्तृपूरक
(2) कर्मपूरक।
1. कर्तृपूरक – अपूर्ण अकर्मक क्रिया की पूर्ति के लिए लगने वाले पूरक को कर्तृपूरक कहते हैं।
2. कर्मपूरक – अपूर्ण सकर्मक क्रिया की पूर्ति के लिए लगने वाले पूरक कर्मपूरक कहलाते हैं।

समापिका तथा असमापिका क्रियाएँ

प्रश्न 11.
समापिका तथा असमापिका क्रियाओं की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
1. समापिका क्रियाएँ – जो क्रियाएँ वाक्य के अंत में लगती हैं, उन्हें समापिका क्रियाएँ कहते हैं; जैसे
(क) गीता खाना खा रही है।
(ख) चिड़िया आकाश में उड़ रही है।
(ग) घोड़ा सड़क पर दौड़ता है।
(घ) राम दूध अवश्य पीएगा।
(ङ) सीताराम अपना काम कर रहा है।
(च) बड़ों का आदर करो।

2. असमापिका क्रियाएँ – असमापिका क्रियाएँ उन्हें कहते हैं जो वाक्य की समाप्ति पर नहीं, अन्यत्र लगती हैं; जैसे-
(क) वृक्ष पर चहचहाती हुई चिड़िया कितनी सुंदर है।
(ख) वह सामने बहता हुआ दरिया सुंदर लग रहा है।
(ग) बड़ों को खड़े होकर प्रणाम करो।
(घ) मोहन ने खाना खाकर हाथ धोए।

संरचना की दृष्टि से क्रिया के भेद

प्रश्न 12.
संरचना की दृष्टि से क्रिया के भेद लिखिए।
उत्तर:
संरचना की दृष्टि से क्रिया के तीन भेद हैं
(1) प्रेरणार्थक क्रिया।
(2) संयुक्त क्रिया।
(3) नामधातु क्रिया।

प्रेरणार्थक क्रियाएँ

प्रश्न 13.
प्रेरणार्थक क्रिया किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जिन क्रियाओं का कार्य कर्ता स्वयं न करके किसी अन्य को प्रेरणा देकर करवाता है, उन्हें प्रेरणार्थक क्रियाएँ कहते हैं; जैसे सीता शीला से पत्र लिखवाती है। इस वाक्य में लिखवाना प्रेरणार्थक क्रिया है। प्रेरणार्थक रचना की भी दो कोटियाँ होती है-
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संयुक्त क्रियाएँ

प्रश्न 14.
संयुक्त क्रियाएँ किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनने वाली क्रिया को संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे
(क) मोहन पढ़ सकता है।
(ख) राम रूठकर चला गया।
इन वाक्यों में पढ़ सकना’ तथा ‘चला गया’ क्रियाओं में दो-दो धातुओं का संयोग है। संयुक्त क्रियाएँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
1. शक्तिबोधक – चल सकता हूँ, हँस सकता है, चल सकेगा।
2. आरंभबोधक – चलने लगा, हँसने लगा, खेलने लगता है।
3. समाप्तिबोधक – चल चुका, पढ़ चुका, खेल चुका।
4. इच्छाबोधक – चलना चाहता हूँ, पढ़ना चाहता हूँ, खेलना चाहेगा।
5. विवशताबोधक – चलना पड़ा, पढ़ना पड़ेगा, खेलना पड़ता है।
6. अनुमतिबोधक – चलने दो, पढ़ने दो, खेलने दो।
7. निरंतरताबोधक – पढ़ता रहता है, हँसता रहता था, खेलता रहेगा।
8. समकालबोधक – चलते-चलते (हँसता है), हँसते-हँसते (खेलता है)।
9. अपूर्णताबोधक – पढ़ रहा है, खेल रहा था।

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नामधातु क्रियाएँ

प्रश्न 15.,
नामधातु क्रियाएँ किसे कहते हैं? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
1. नामधातु क्रियाएँ-मूल धातुओं के अतिरिक्त जब संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों के साथ प्रत्यय लगाकर क्रियापद बनाए जाते हैं, तब उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं; जैसे हाथ से हथियाना, शर्म से शर्माना।
नामधातु क्रियाएँ चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं-

(क) संज्ञा शब्दों से-
रंग से रंगना – बात से बतियाना
खर्च से खर्चना – हाथ से हथियाना
दुःख से दुखना – झूठ से झुठलाना
लाज से लजाना – गाँठ से गाँठना
चक्कर से चकराना – फिल्म से फिल्माना

(ख) सर्वनाम शब्दों से-
अपना से अपनाना – मैं से मिमियाना

(ग) विशेषण से-
गरम से गरमाना – दोहरा से दोहराना
मोटा से मुटाना – साठ से सठियाना

(घ) अनुकरणवाची शब्दों से-
हिनहिन से हिनहिनाना
मिनमिन से मिनमिनाना
खटखट से खटखटाना
थरथर से थरथराना

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क्रिया के अन्य भेद

प्रश्न 16.
क्रिया के निम्नलिखित प्रकारों का वर्णन कीजिए
(1) पूर्वकालिक क्रिया,
(2) तात्कालिक क्रिया,
(3) रंजक क्रिया,
(4) कृदंत क्रिया।
उत्तर:
1. पूर्वकालिक क्रिया-जब कर्ता किसी क्रिया को करने के तुरंत पश्चात् दूसरी क्रिया में प्रवृत्त हो जाता है तो पहली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं, जैसे-
उसने स्नान करके भोजन किया।
इस वाक्य में स्नान करके’ पूर्वकालिक क्रिया है तथा दूसरी क्रिया मुख्य क्रिया कहलाती है। इस क्रिया के कुछ अन्य उदाहरण देखिए
(क) राम ने स्कूल पहुँचकर अध्यापक को प्रणाम किया।
(ख) सीता ने मंदिर जाकर पूजा की।
(ग) कृष्ण दौड़कर स्टेशन पहुंचा।
(घ) वह पुस्तक पढ़कर सो गया।

2. तात्कालिक क्रिया-जब किसी वाक्य में दो क्रियाएँ हों और पहली क्रिया के कारण तुरंत दूसरी क्रिया हो तो पहली क्रिया को तात्कालिक क्रिया कहेंगे; जैसे-
गाड़ी की सीटी सुनते ही राम चल पड़ा।
इसं वाक्य में ‘सुनते ही’ तात्कालिक क्रिया है जिसके होते ही मुख्य क्रिया आरंभ हो गई। धातु के साथ ‘ते ही’ लगाकर तात्कालिक क्रियाओं का निर्माण होता है; यथा
(क) राम भोजन करते ही स्कूल पहुंच गया।
(ख) अध्यापक के जाते ही बच्चों ने शोर मचा दिया।
(ग) घंटी बजते ही विद्यार्थी कक्षाओं में आ गए।
(घ) सीता पत्र लिखते ही सो गई।

3. रंजक क्रियाएँ-जो क्रियाएँ मुख्य क्रियाओं में जुड़कर अपना अर्थ खोकर मुख्य क्रिया में नवीनता और विशेषता उत्पन्न कर देती हैं अर्थात् संयुक्त क्रिया में पहली क्रिया मुख्य तथा बाद में जुड़ने वाली क्रिया रंजक क्रिया कहलाती है; जैसे-
(क) नेवले ने साँप को मार डाला।
(ख) मोहन उठकर खड़ा हो गया।
(ग) सीता गाना गा सकी।
(घ) तुम इधर आ जाओ।
इन वाक्यों में डाला, कर, सक, जा आदि रंजक क्रियाएँ हैं।

4. कृदंत क्रियाएँ:
कृत् प्रत्ययों के योग से बनने वाली क्रियाएँ कृदंत क्रियाएँ कहलाती हैं। हिंदी में ये क्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं-
(क) वर्तमानकालिक कृदंत क्रिया – खाता, पीता, सोता, हँसता आदि।
(ख) भूतकालिक कृदंत क्रिया – खाया, पीया, सोया आदि।
(ग) पूर्वकालिक कृदंत क्रिया – खाकर, पीकर, सोकर, हँसकर आदि।

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कृदंत रूपों की रचना

प्रश्न 17.
रचना की दृष्टि से कृदंत रूपों से क्रियाएँ कैसे बनती हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
क्रिया के कृदंत रूपों की रचना चार प्रकार के प्रत्ययों से होती है
1. अपूर्ण कृदंत – ता, ते, ती; जैसे बहता फूल, बहते पत्ते, बहती नदी।
2. पूर्ण कृदंत – आ, ई, ए; जैसे बैठा सिंह, बैठे बंदर, बैठी हिरणी।
3. क्रियार्थक कृदंत – ना, नी, ने; जैसे पढ़ना है, पढ़नी है, पढ़ने हैं, पढ़ने के लिए।
4. पूर्वकालिक कृदंत + कर – जैसे पढ़कर, खड़े होकर, जागकर आदि।

प्रश्न 18.
शब्द की दृष्टि से क्रिया के कृदंत रूपों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संज्ञा, विशेषण तथा क्रियाविशेषण ही कृदंत शब्द होते हैं; जैसे
1. संज्ञा :
ना : दौड़ना, कूदना, बैठना, टहलना आदि।
ने मिलने, पढ़ने, जगाने, खाने, पहनने आदि।

2. विशेषण :
ता/ती/ते –
चलता हुआ जहाज रुक गया।
चलती गाड़ी पर न चढ़ें।
खिलते फूलों को तोड़ना मना है।

आ/ई/ए –
सूखी कलियाँ अच्छी नहीं लगती।
गिरे हुए पत्तों पर मत चलें।
अच्छा विद्यार्थी सदा समय पर काम करता है।

3. क्रियाविशेषण :
ते-ही – राम भोजन करते ही सो गया।
ते-ते – वह गीत सुनते-सुनते आ गया।
कर – सीता गाना गाकर उठ गई।
ऐ-ऐ – वह बैठे-बैठे थक गया।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

प्रश्न 19.
प्रयोग की दृष्टि से कृदंतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रयोग की दृष्टि से कृदंत छह प्रकार के होते हैं
1. क्रियार्थक कृदंत – भाववाचक संज्ञा के रूप में इसका प्रयोग होता है; जैसे पढ़ना, लिखना। सुबह अवश्य टहलना चाहिए।
2. कर्तृवाचक कृदंत – धातु + ने + वाला/वाली वाले। इस कृदंत रूप से कर्तृवाचक संज्ञा बनती है; जैसे भागने वालों को पकड़ो।
3. वर्तमान-कालिक कृदंत – बहता हुआ (पानी आदि)। ये विशेषण हैं। विशेषण में यह भाव बताते हैं कि क्रिया उस समय हो रही है।
4. भूतकालिक कृदंत – पका (हुआ फल आदि)। ये भी विशेषण हैं। विशेषण में यह भाव बताते हैं कि क्रिया उस समय तक पूरी हो चुकी है।
5. तात्कालिक कृदंत – इन कृदंतों की समाप्ति पर तुरंत मुख्य क्रिया संपन्न हो जाती है। इनका निर्माण ‘ते ही’ के योग से किया जाता है; जैसे आते ही, करते ही, जाते ही आदि।
उदाहरण-
घंटी बजते ही चपरासी आ गया।
6. पूर्वकालिक कृदंत-इनका निर्माण धातु के साथ ‘कर’ के योग से होता है; जैसे पढ़कर, खोकर, सोकर आदि।
(क) मोहन पुस्तक पढ़कर सो गया।
(ख) उसने स्नान करके भोजन किया।

क्रिया की रूप-रचना

प्रश्न 20.
क्रिया की रूप-रचना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
क्रिया भी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के समान विकारी शब्द है। अतः लिंग, वचन एवं पुरुष के कारण इसमें परिवर्तन आ जाता है। इस परिवर्तन को निम्नलिखित रूपावलियों की सहायता से समझा जा सकता है।
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रूपावलियों की रचना

हिंदी में होने वाले क्रियागत परिवर्तनों को 16 रूपावलियों के द्वारा दर्शाया जा सकता है। इन रूपावलियों के मुख्य दो भेद हैं-
1. बिना सहायक क्रिया ‘होना’ के रूप
(i) पुरुषानुसारी – इनमें धातु रूपों के साथ पुरुषानुसारी प्रत्ययों का प्रयोग होता है; जैसे मैं पढूँ, हम पढ़ें, वे पढ़ें आदि। उदाहरण के रूप में रूपावली 1, 3, 4 देखें।
(ii) लिंगानुसारी रूप – इनमें धातु-रूपों के साथ वर्तमान कृदंत अथवा भूत कृदंत वचनों का लिंग के अनुसार प्रयोग होता है; जैसे पढ़ता, पढ़ते, गया, गई आदि। देखिए रूपावली 5 और 6।
(iii) पुरुष लिंगानुसारी रूप – इनमें धातु के वचन, पुरुषानुसारी रूपों के बाद गा, गे, गी आदि प्रत्ययों का लिंगानुपाती प्रयोग होता है; यथा मैं पढूंगा, मैं पढूंगी, हम पढ़ेंगे आदि। उदाहरण के लिए रूपावली 2 देखें।

2. सहायक क्रिया होना’ सहित यहाँ क्रिया ‘होना’ के पूर्व या वर्तमान कृदंत (ता, ते, ती) लगा रूप अथवा भूतकृदंत (आ, ई, ए) रूप लगा होता है। सहायक क्रिया होना’ के पाँच अलग-अलग रूपावली रूप प्रयुक्त होते हैं।
रूपावला वर्ग
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 4

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रुपावली वर्ग-1

संभाव्य भविष्यत काल

पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमैं पर्दै (- ॐ)हम पढ़ें (- एँ)
मध्यम पुरुषतू पढ़े (- ए)तुम पढ़ो (- ओ)
अन्य पुरुषवह पढ़े (- ए)वे पढ़ें (- एं)

उदाहरण-
(क) भगवान आपको सफलता प्रदान करे।
(ख) यदि निपुणता चाहते हो तो अभ्यास करो।

रूपावली वर्ग-2

सामान्य भविष्यत काल

पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमैं पहँगा (-ॐ + गा/गी)हम पढ़ेंगे (- एँ + गे/गी)
मध्यम पुरुषतू पढ़ेगा (- ए + गा/गी)तुम पढ़ोगे (- ओ + गे/गी)
अन्य पुरुषवह पढ़ेगा (- ए + गा/गी)वे पढ़ेंगे (- एँ + गे/गी)

उदाहरण-
(क) ऐसा दृश्य अन्यत्र नहीं मिलेगा।
(ख) तू लिखेगा कि नहीं लिखेगा।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूपावली वर्ग-3

प्रत्यक्ष विधि

पुरुषएकवचनबहुवचन
मध्यम पुरुषतू पढ़ (Φ)तुम पढ़ो (- ओ)
मध्यम पुरुष (आप)आप पढ़िए (- इए-गा)आप पढ़िए (- इए-गा)

उदाहरण-
(क) अब स्टेशन पर चलो, गाड़ी निकल जाएगी।
(ख) अब पढ़िए।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूपावली वर्ग-4

परोक्ष विधि

पुरुषएकवचनबहुवचन
मध्यम पुरुषतू पढ़ना (-ना)तुम पढ़ना (- ना)
मध्यम पुरुष (आप)आप पढ़िए (- इएगा)आप पढ़िए (- इएगा)

उदाहरण-
(क) कल पाठ पढ़कर आना।
(ख) आप अवश्य आइएगा।

रूपावली वर्ग-5

सामान्य संकेतार्थ हेतुहेतुमद् भूत

मैं पढ़ता/तीहम पढ़ते/तीं
तू पढ़ता/तीतुम पढ़ते/तीं
वह पढ़ता/तीवे पढ़ते/तीं

उदाहरण-
(क) यदि मैं शीघ्र आ जाता तो उनसे मिल लेता।
(ख) अगर तुमसे पढ़ लेती तो यह गलती न करती।

रूपावली वर्ग-6

सामान्य भूत

मैं चला/चलीहम चले/चली
तू चला/चलीतुम चले/चली
वह चला/चलीवे चले/चली

उदाहरण-
(क) चोर घर से भाग निकले।
(ख) आप चलें मैं अभी आया।
(ग) आप पढ़ें मैं सुनता हूँ।

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रूपावली वर्ग-7

सामान्य वर्तमान

मैं पढ़ता/ती हूँहम पढ़ते/ती हैं।
तू पढ़ता/ती हैतुम पढ़ते/ती हो
वह पढ़ता/ती हैवे पढ़ते/ती हैं

उदाहरण-
(क) माता जी आप को बुलाती हैं।
(ख) मैं पत्र लिखता हूँ।
(ग) मेरा छोटा भाई आठवीं कक्षा में पढ़ता है।

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रूपावली वर्ग-8

पूर्ण वर्तमान आसन्नभूत

मैं चला/चली हूँहम चले/चली हैं
तू चला/चली हैतुम चले/चली हो
वह चला/चली हैवे चले/चली हैं

उदाहरण-
(क) महर्षि वेदव्यास ने ‘महाभारत’ लिखा है।
(ख) क्या आपने पत्र नहीं लिखा है?
(ग) राम ने खाना खाया है।

रूपावली वर्ग-9

अपूर्ण भूतकाल

मैं पढ़ता/ती था/थीहम पढ़ते/ती थे/थीं
तू पढ़ता/ती था/थीतुम पढ़ते/ती थे/थीं
वह पढ़ता/ती था/थीवे पढ़ते ती थे/थीं

उदाहरण-
(क) पुलिस जो पूछती थी वह बताता जाता था।
(ख) वह पहले बहुत गाता था।

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रूपावली वर्ग-10

पूर्ण भूतकाल

मैं चला/ली था/थीहम चले ली थे/थीं
तू चला/ली था/थीतुम चले/ली थे/थीं
वह चला/ली था/थींवे चले ली थे/थीं

उदाहरण-
(क) आज सवेरे वह आपके यहाँ गया था।
(ख) डॉक्टर के आने से पहले रोगी मर चुका था।

रूपावली वर्ग-11

संभाव्य वर्तमान

मैं पढ़ता/ती होऊँहम पढ़ते/ती हों
तू पढ़ता ती होतुम पढ़ते/ती होओ
वह पढ़ता/ती होवे पढ़ते/ती हों

उदाहरण-
(क) शायद सोहन स्कूल जाता हो।
(ख) मुझे लगा कि कोई हमारी बात न सुनता हो।

रूपावली वर्ग-12

संभाव्य भूतकाल

मैं चला/चली होऊँहम चले/ली हों
तू चला/ली होतुम चले/ली होओ
वह चला/ली होवे चले/ली हों

उदाहरण-
(क) हो सकता है कि किसी ने हमें देख लिया हो।
(ख) शायद वह वहाँ से चला गया हो।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूपावली वर्ग-13

संदिग्ध वर्तमान

मैं पढ़ता/ती होऊँगा/गीहम पढ़ते/ती होंगे/गी
तू पढ़ता/ती होगा/गीतुम पढ़ते/ती होंगे/गी
वह पढ़ता ती होगा/गीवे पढ़ते ती होंगे/गी

उदाहरण-
(क) वे आते ही होंगे।
(ख) वे गीत गाते ही होंगे।

रूपावली वर्ग-14

संदिग्ध वर्तमान

मैं चला ली होऊँगा/गीहम चले/ली होंगे/गी
तू चला/ली होगा/गीतुम चले/ली होंगे/गी
वह चला/ली होगा/गीवे चले ली होंगे/गी

उदाहरण-
(क) उसकी घड़ी नौकर ने कहीं रख दी होगी।
(ख) शायद वे बीमार होंगे।

रूपावली वर्ग-15

अपूर्ण संकेतार्थ

मैं पढ़ता/ती होता/तीहम पढ़ते/ती होते/ती
तू पढ़ता/ती होता/तीतुम पढ़ते/ती होते/ती
वह पढ़ता ती होता/तीवे पढ़ते/ती होते/तीं

उदाहरण-
(क) अगर वह तेज़ चलता होता तो अब तक यहाँ पहुँच गया होता।
(ख) अगर वह पढ़ता होता तो पास हो गया होता।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूपावली वर्ग-16

पूर्ण संकेतार्थ

मैं चला/ली होता/तीहम चले/ली होते/तीं
तू चला/ली होता/तीतुम चले/ली होते ती
वह चला/ली होता/तीवे चले/ली होते/ती

उदाहरण-
(क) यदि वह परिश्रम करता तो पास हो जाता।
(ख) वे चले होते तो पहुँच गए होते।

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

काल

प्रश्न 1.
काल किसे कहते हैं? काल के भेदों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्रिया के करने या होने के समय को काल कहते हैं। काल के तीन भेद होते हैं-
(1) भूतकाल,
(2) वर्तमान काल तथा
(3) भविष्यत काल।

1. भूतकाल: ‘भूत’ का अर्थ है-बीता हुआ। क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि क्रिया का व्यापार पहले समाप्त हो चुका है, वह भूतकाल कहलाता है; जैसे सीता ने खाना पकाया। इस वाक्य से क्रिया के समाप्त होने का बोध होता है। अतः यहाँ भूतकाल क्रिया का प्रयोग हुआ है।।

2. वर्तमान काल: वर्तमान का अर्थ है-उपस्थित अर्थात जिस क्रिया से इस बात की सूचना मिले कि क्रिया का व्यापार अभी भी चल रहा है, समाप्त नहीं हुआ, उसे वर्तमान काल कहते हैं; जैसे मोहन गाता है। शीला पढ़ रही है।

3. भविष्यत काल: भविष्यत का अर्थ है-आने वाला समय। अतः क्रिया के जिस रूप से भविष्य में क्रिया के होने का बोध हो, उसे भविष्यत काल की क्रिया कहते हैं; जैसे सीता कल दिल्ली जाएगी। गा, गे, गी भविष्यत काल के परिचायक चिह्न हैं।

काल-भेद के कारण दोनों लिंगों, दोनों वचनों और तीनों पुरुषों में क्रिया का रूपांतर होता है; जैसे-
(क) लड़का पढ़ता है। (एकवचन, पुल्लिंग, अन्य पुरुष)
(ख) लड़की पढ़ती है। (एकवचन, स्त्रीलिंग, अन्य पुरुष)
(ग) लड़के पढ़ते हैं। (बहुवचन, पुल्लिंग, अन्य पुरुष)
(घ) लड़कियाँ पढ़ती हैं। (बहुवचन, स्त्रीलिंग, अन्य पुरुष)
(ङ) तू पढ़ता है। (एकवचन, पुल्लिंग, मध्यम पुरुष)
(च) मैं पढ़ता हूँ। (एकवचन, पुल्लिंग, उत्तम पुरुष)
(छ) तुम/आप पढ़ते हो। (बहुवचन, पुल्लिंग, मध्यम पुरुष)
(ज) हम पढ़ते हैं। (बहुवचन, पुल्लिंग, उत्तम पुरुष)

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया

रूप-रचना

खेल (खेलना) √धातु

1. भूतकाल
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 5

2. वर्तमान काल
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 6

3. भविष्यत काल
HBSE 10th Class Hindi Vyakaran क्रिया 7

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HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2  बुद्धिर्बलवती सदा

HBSE 10th Class Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Textbook Questions and Answers

Buddhi Bal Bharti Sada HBSE 10th Class प्रश्न  1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) बुद्धिमती केन उपेता पितगृहं प्रति चलिता ?
(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः ?
(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते ?
(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ?
(ङ) बुद्धिमती शृगालं किम् उक्तवती।
उत्तराणि
(क) बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितृगृहं प्रति चलिता।
(ख) व्याघ्रः व्याघ्रमारी काचिदियमिति विचार्य पलायितः ।
(ग) लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते।
(घ) जम्बुक: “भवान् कुत: भयात् पलायितः।” इति वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति।
(ङ) बुद्धिमती शृगालं “रे रे धूर्त ! पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तं विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि,
वदाधुना।” इति उक्तवती।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

बुद्धिर्बलवती सदा प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न  2.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।
(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहृतवती।
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्।
(घ) त्वं मानुषात् बिभेषि।
(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
उत्तराणि-(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) तत्र क: नाम राजपुत्रः वसतिस्म ?
(ख) बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती ?
(ग) कं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत् ?
(घ) त्वं कस्मात् बिभेषि ?
(ङ) पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम् ?

बुद्धिर्बलवती सदा HBSE 10th Class प्रश्न  3.
उदाहरणमनुसृत्य कर्तरि प्रथमा विभक्तेः क्रियायाञ्च ‘क्तवतु’ प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा वाच्यपरिवर्तनं.
कुरुत:
यथा-तया अहं हन्तुम् आरब्धः – सा मां हन्तुम् आरब्धवती।
(क) मया पुस्तकं पठितम्। – …………………………..
(ख) रामेण भोजनं कृतम्। – …………………………..
(ग) सीतया लेखः लिखितः। – …………………………..
(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्। – …………………………..
(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। – …………………………..
उत्तराणि
(क) मया पुस्तकं पठितम्।- अहं पुस्तकं पठितवती।
(ख) रामेण भोजनं कृतम्। – रामः भोजनं कृतवान्।
(ग) सीतया लेख: लिखितः। – सीता लेखं लिखितवती।
(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्। – अश्वः तृणं भुक्तवान्।
(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। – त्वं चित्रं दृष्टवान्।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

Budhirbalavati Sada Solutions HBSE 10th Class प्रश्न  4.
अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमेण संयोजयत:
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालम् आक्षिपन्ती उवाच।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गहं प्रति चलिता।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयं आनयितुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुन: पलायितः।
उत्तरम्-(घटनाक्रमानुसारं वाक्ययोजनम्):
1. (च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृह प्रति चलिता।
2. (घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
3. (ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत।
4. (क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
5. (ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
6. (ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालम् आक्षिपन्ती उवाच।
7. (छ) ‘त्व व्याघ्रत्रयं आनयितुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
8. (ज) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

Sanskrit Class 10 Chapter 2 Shemushi HBSE प्रश्न  5.
सन्धिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत:
(क) पितुर्गृहम् – ……………… + ………………
(ख) एकैकः (ग) – ……………. + ………………
(ग) ……………. – अन्यः + अपि
(घ) ……………. – इति + उक्त्वा
(ङ) ……………. – यत्र + आस्ते
उत्तराणि
(क) पितुर्गृहम् – पितुः + गृहम्
(ख) एकैकः – एक + एकः
(ग) अन्योऽपि – अन्यः + अपि
(घ) इत्युक्त्वा – इति + उक्त्वा
(ङ) यत्रास्ते – यत्र + आस्ते

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

बुद्धिर्बलवती सदा Solutions HBSE 10th Class प्रश्न  6.
(क) अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत:
(क) ददर्श – (दर्शितवान्, दृष्टवान्)
(ख) जगाद – (अकथयत्, अगच्छत्)
(ग) ययौ – (याचितवान्, गतवान्)
(घ) अत्तुम् – (खादितुम्, आविष्कर्तुम्)
(ङ) मुच्यते – (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)
(च) ईक्षते – (पश्यति, इच्छति)
उत्तराणि-पदम् – अर्थः
(क) ददर्श – दृष्टवान्,
(ख) जगाद – अकथयत्,
(ग) ययौ – गतवान्,
(घ) अत्तुम् – खादितुम्,
(ङ) मुच्यते – मुक्तो भवति,
(च) ईक्षते – पश्यति।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

प्रश्न  7.
(ख) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत
(क) वनम् – ………………..
(ख) शृगालः – ………………..
(ग) शीघ्रम् – ………………..
(घ) पत्नी – ………………..
(ङ) गच्छसि – ………………..
उत्तराणि:
पदम् – पर्यायपदम्
(क) वनम् – काननम्
(ख) शृगालः – जम्बुकः
(ग) शीघ्रम् – सत्वरम्
(घ) पत्नी – भार्या
(ङ) गच्छसि – यासि।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

प्रश्न  8.
प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत
(क) चलितः – ………………..
(ख) नष्टः – ………………..
(ग) आवेदितः – ………………..
(घ) दृष्टः – ………………..
(ङ) गतः – ………………..
(च) हतः – ………………..
(छ) पठितः – ………………..
(ज) लब्धः – ………………..
उत्तराणि
(क) चलितः – चल् + क्त
(ख) नष्टः – नश् + क्त
(ग) आवेदितः – आ + विद् + क्त
(घ) दृष्टः – दृश् + क्त
(ङ) गतः – गम् + क्त
(च) हतः – हन् + क्त
(छ) पठितः – पठ् + क्त
(ज) लब्धः लभ् + क्त।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

परियोजनाकार्यम्
बुद्धिमत्याः स्थाने आत्मानं परिकल्प्य तद्भावनां स्वभाषया लिखत।
(बुद्धिमती के स्थान पर अपने आप को रखकर उसकी भावना अपनी भाषा में लिखिए)
उत्तरम्: बुद्धिमती इस कथा की पात्र है। प्राचीन काल में जो कथाएँ लिखी जाती थी, वे उद्देश्यपूर्ण हुआ करती थी। इस कथा का उद्देश्य में केवल इतना ही है कि कठिन से कठिन समय में भी मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए। क्योंकि घबराने पर मनुष्य की बुद्धि विचलित हो जाती है और समस्या का समाधान नहीं निकलता। यह कथा बालकों के मनोरंजन को मुख्य रूप में सामने रखकर तथा इसी बहाने बुद्धिमत्तापूर्ण शिक्षा देने के उद्देश्य से रची गई है। क्योंकि बालकों को वे ही कहानियाँ अधिक पसन्द होती है जिनमें पशु पक्षी भी पात्र हो। इस कहानी का कोमलमती बालकों पर तो सीधा प्रभाव पड़ता है, परन्तु यह व्यावहारिक नहीं है।

यदि बुद्धिमती के स्थान पर मुझे ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता तो मैं बाघ की क्रूरता को देखकर अपनी सुरक्षा के लिए भिन्न प्रकार से कदम उठाता। उदाहरण के लिए

1. हिंसक जानवरों से परिपूर्ण मार्ग तय करने से पहले मैं अपने साथ कोई ऐसा हथियार लेकर चलता जिससे मैं उनका सामना कर सकता।
2. हिंसक जानवर आग से बहुत डरते हैं, मैं मसाल आदि के रूप में तेज आग जलाकर उन्हें भगाने का प्रयास करता।
3. हिंसक जानवर तेज ध्वनि से भी डर जाते हैं तो मैं किसी विस्फोटक को पहले ही साथ लेकर चलता जिसका उपयोग समय पड़ने पर करता। प्रायः भारी भरकम हिंसक जानवर वृक्षों की ऊँचाई पर चढ़ नहीं पाते, इस
तथ्य को समझते हुए मैं किसी वृक्ष पर काफी ऊँचे चढ़कर अपनी जान बचाता।
परन्तु ये सब उपाय करने के लिए बुद्धिमत्ता और साहस की परम आवश्यकता होती है। जिसकी शिक्षा बुद्धिमती के चरित्र से मिलती है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

योग्यताविस्तार:
भाषिकविस्तारः
ददर्श – दृश् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
बिभेषि – ‘भी’ धातु, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
प्रहरन्ती – प्र + ह्र धातु, शतृ प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग।
गम्यताम् – गम् धातु, कर्मवाच्य, लोट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
ययौ – ‘या’ धातु, लिट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
यासि – गच्छसि।

समास
गलबद्धशृगालकः – गले बद्धः शृगालः यस्य सः।
प्रत्युत्पन्नमतिः – प्रत्युत्पन्ना मतिः यस्य सः।
जम्बुककृतोत्साहात् – जम्बुकेन कृत: उत्साहः – जम्बुककृतोत्साहः तस्मात्।
पुत्रद्वयोपेता – पुत्रद्वयेन उपेता।
भयाकुलचित्तः – भयेन आकुल: चित्तम् यस्य सः।
व्याघ्रमारी – व्याघ्रं मारयति इति।
गृहीतकरजीवितः – गृहीतं करे जीवितं येन सः।
भयकरा – भयं करोति या इति।

ग्रन्थ-परिचय:
शुकसप्ततिः के लेखक और उसके काल के विषय में यद्यपि भ्रान्ति बनी हुई है, तथापि इसका काल 1000 ई. से 1400 ई. के मध्य माना जाता है। हेमचन्द्र ने (1088-1172) में शुकसप्ततिः का उल्लेख किया है। चौदहवीं शताब्दी में फारसी भाषा में ‘तूतिनामह’ नाम से अनूदित हुआ था।
शुकसप्ततिः का ढाँचा अत्यन्त सरल और मनोरंजक है। हरिदत्त नामक सेठ का मदनविनोद नामक एक पुत्र था। वह विषयासक्त और कुमार्गगामी था। सेठ को दुःखी देखकर उसके मित्र त्रिविक्रम नामक ब्राह्मण ने अपने घर से नीतिनिपुण शुक और सारिका लेकर उसके घर जाकर कहा-इस सपत्नीक शुक का तुम पुत्र की भाँति पालन करो। इसका संरक्षण करने से तुम्हारा दुःख दूर होगा। हरिदत्त ने मदनविनोद को वह तोता दे दिया। तोते की कहानियों ने मदनविनोद का हृदय परिवर्तन कर दिया और वह अपने व्यवसाय में लग गया।

व्यापार प्रसंग में जब वह देशान्तर गया तब शुक अपनी मनोरंजक कहानियों से उसकी पत्नी का तब तक विनोद करता रहा, जब तक उसका पति वापस नहीं आ गया। संक्षेप में शुकसप्ततिः अत्यधिक मनोरंजक कथाओं का संग्रह है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

हन् (मारना) धातोः रुपम्।
लट्लकारः

एकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
मध्यमपुरुषहन्तिहतःघ्नन्ति
उत्तमपुरुषःहन्सिहथःहथ
प्रथमपुरुषःहन्मिहन्वःहन्मः

लुट्लकारः

मध्यमपुरुषहनिष्यतिहनिष्यतःहनिष्यन्ति
उत्तमपुरुषःहनिष्यसिहनिष्यथ:हनिष्यथ
प्रथमपुरुषःहनिष्यामिहनिष्यावःहनिष्यामः

लङ्लकारः

मध्यमपुरुषअहन्अहताम्अहत
उत्तमपुरुषःअहःअहतम्अहत
प्रथमपुरुषःअहनम्अहन्वअहन्म

लोट्लकारः

मध्यमपुरुषहन्तुहताम्घ्नन्तु
उत्तमपुरुषःजहिहतम्हत
प्रथमपुरुषःहनानिहनावहनाम

विधिलिङ्लकारः

मध्यमपुरुषहन्यात्हन्याताम्हन्युः
उत्तमपुरुषःहन्याःहन्यातम्हन्यात
प्रथमपुरुषःहन्याम्हन्यावहन्याम।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

HBSE 10th Class Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Important Questions and Answers

बुद्धिर्बलवती सदा पठित-अवबोधनम्

1. निर्देश:-अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत
अस्ति देउलाख्यो ग्रामः।
तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गुहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाट्यात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद-“कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।”
इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकलचित्तो नष्टः।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।
अन्योऽपि बुद्धिमाल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥
भयाकुलं व्यानं दृष्ट्रवा कश्चित् धूर्तः।
शृगालः हसन्नाह-“भवान् कुत: भयात् पलायित: ?”

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत:
(i) देउलाख्यः कः अस्ति ?
(ii) राजपुत्रस्य नाम किमस्ति ?
(ii) पितुर्गुहं प्रति का चलिता ?
(iv) कीदृशः व्याघ्रः नष्टः ?
(v) भयाकुलं व्यानं दृष्ट्वा कः हसति ?
उत्तराणि:
(i) ग्रामः।
(ii) राजसिंहः।
(iii) बुद्धिमती।
(iv) भयाकुलचित्तः।
(v) शृगालः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) बुद्धिमती कीदृशे मार्गे व्याघ्नं ददर्श ?
(ii) किं मत्वा व्याघ्रः नष्टः ?
(iii) भामिनी कया व्याघ्रस्य भयात् मुक्ता ?
(iv) बुद्धिमान् निजबुद्ध्या कस्मात् विमुच्यते ?
उत्तराणि:
(i) बुद्धिमती गहनकानने मार्गे व्याघ्र ददर्श।
(ii) व्याघ्रमारी काचिदियम्-इति मत्वा व्याघ्रः नष्टः।
(iii) भामिनी निजबुद्ध्या व्याघ्रस्य भयात् मुक्ता।
(iv) निजबुद्ध्या बुद्धिमान् महतो भयात् विमुच्यते ?

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘पलायितः इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?’
(ii) ‘बुद्धिमान्’ इत्यस्य स्त्रीलिङ्गे पदं किमस्ति ?
(iii) ‘पितुहम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(iv) ‘पितुहम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(v) ‘मार्गे गहनकानने’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) नष्टः।
(ii) बुद्धिमती।
(iii) प्र √ह + ल्यप्।
(iv) पितुः + गृहम्।
(v) मार्गे।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
शब्दार्थाः-भार्या = (पत्नी) पत्नी। पुत्रद्वयोपेता = (पुत्रद्वयेन सहिता) दोनों पुत्रों के साथ। उपेता = (युक्ता) युक्त। गहनम् = (सघनम्) घने। कानने = (वने) जंगल में। ददर्श = (अपश्यत्) देखा। धाष्ट्यात् = (धृष्टभावात्) ढिठाई से। चपेटया = (करप्रहारेण) थप्पड़ से। प्रहृत्य = (चपेटिकां दत्वा) थप्पड़ मारकर। जगाद = (उक्तवती) कहा। एकैकश = (एकम एकं कृत्वा) एक-एक करके। कलहम् = विवादम्) झगड़ा। विभज्य = विभक्त कृत्वा) अलगअलग करके, (बाँटकर)। लक्ष्यते = (अन्विष्यते) देखा जाएगा, ढूँढा जाएगा। व्याघ्रमारी = व्याघ्रं मारयति (हन्ति) इति] बाघ को मारने वाली। नष्टः = (पलायितः) आँखों से ओझल हो गया, भाग गया। [/नश् अदर्शने + क्त ] । निजबुद्ध्या = (स्वमत्या) अपनी बुद्धि से। भामिनी = (भामिनी, रूपवती स्त्री) रूपवती स्त्री। भयाकुलम् = (भयात् आकुलम्) भय से बेचैन।

सन्दर्भ: प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत के प्रसिद्ध कथा ग्रन्थ शुकसप्ततिः से सम्पादित करके हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो-भागः’ में संकलित ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ नामक पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग: राजपुत्र राजसिंह की पत्नी बुद्धिमती अपने दोनों पुत्रों के साथ अपने पिता के घर जाती है। रास्ते में अपनी बुद्धिमत्ता से बाघ को भगाकर भयमुक्त होती है। इसी का वर्णन प्रस्तुत अंश में है।

हिन्दी अनुवाद: देउल नामक ग्राम है। वहाँ राजसिंह नाम का राजपूत रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य से इसकी पत्नी बुद्धिमती दो पुत्रों के साथ पिता के घर की ओर चल पड़ी। मार्ग में घने वन में उसने एक बाघ देखा। वह बाघ को आता हुआ देखकर ढिठाई से दोनों पुत्रो को चाँटों से मारकर बोली-“क्यों अकेले-अकेले बाघ को खाने के लिए झगड़ा कर रहे हो ? यह एक है तो बाँटकर खा लो। बाद में अन्य कोई दूसरा ढूँढा जाएगा।”

ऐसा सुनकर, यह कोई व्याघ्रमारी (बाघ को मारने वाली) है, यह मानकर भय से व्याकुल चित्तवाला बाघ आँखों से ओझल हो गया।

वह रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि के द्वारा बाघ के भय से मुक्त हो गई। संसार में दूसरे बुद्धिमान् लोग भी (इसी प्रकार अपने बुद्धिकौशल के कारण) अत्यधिक भय से छूट जाते हैं।
भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई दुष्ट सियार (गीदड़) हँसता हुआ बोला-“आप भय से कहाँ भागे जाते हैं ?”

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

2. व्याघ्रः- गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः।
शगाल: – व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि ?
व्याघ्रः – प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।
जम्बुक: – स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति।
व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत:
(i) शास्त्रे का श्रूयते ?
(ii) गृहीतकरजीवितः शीघ्रं कः नष्टः ?
(iii) मानुषात् कः बिभेति ?
(iv) व्याघ्रमारी सात्मपुत्रो कया प्रहरन्ती दृष्टा ?
उत्तराणि:
(i) व्याघ्रमारी।
(ii) व्याघ्रः ।
(iii) व्याघ्रः ।
(iv) चपेटया।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) गूढप्रदेशं गन्तुं कः कं कथयति ?
(ii) व्याघ्रमारी कीदृशौ पुत्री प्रहरन्ती दृष्टा ?
(iii) जम्बुकः व्याघ्नं कुत्र गन्तुं कथयति ?
(iv) यदि शृगालः व्याघ्र मुक्त्वा याति तदा किं स्यात् ?
उत्तराणि
(i) गूढप्रदेशं गन्तुं व्याघ्रः शृगालं कथयति।
(ii) व्याघ्रमारी एकैकश: व्याघ्रम् अत्तुं कलहायमानौ पुत्रौ प्रहरन्ती दृष्टा।
(iii) जम्बुक: व्याघ्रं कथयति- ‘यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्’
(iv) यदि शृगालः व्याघ्रं मुक्त्वा याति तदा वेलापि अवेला स्यात् ?

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘शृगालः’ इत्यस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘त्वया अहं हन्तव्यः’ अत्र ‘त्वया’ इति सर्वनाम कस्मै प्रयुक्तम्।
(iii) ‘भक्षयितुम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iv) ‘परोक्षम्’ इत्यस्य किमत्र विलोमपदम् ?
(v) ‘हन्तव्यः’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययौ निर्दिशत ?
उत्तराणि:
(i) जम्बुक: ।
(ii) व्याघ्राय।
(iii) अत्तुम् ।
(iv) प्रत्यक्षम्।
(v) हन् + तव्यत्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
शब्दार्थाः जम्बुकः = (शृगालः) सियार, गीदड़। गूढप्रदेशम् = (गुप्तप्रदेशम् गुप्त प्रदेश में। गृहीतकरजीवितः = (हस्ते प्राणान् नीत्वा) हथेली पर प्राण लेकर। आवेदितम् = (विज्ञापितम्) बताया। प्रत्यक्षम् = (समक्षम्) सामने। सात्मपुत्रौ = (सा आत्मनः पुत्रौ) वह अपने दोनों पुत्रों को। अत्तुम् = (भक्षयितुम्) खाने के लिए।। कलहायमानौ = (कलहं कुर्वन्तौ) झगड़ा करते हुए (दो) को। प्रहरन्ती = (प्रहारं कुर्वन्ती) मारती हुई। ईक्षते = (पश्यति) देखती है। वेला = (समयः) शर्त। अवेला = असामयिक, व्यर्थ।

सन्दर्भ:-पूर्ववत्।
प्रसंग: बुद्धिमती से डरकर भागते हुए व्याघ्र को एक गीदड़ साहस बँधाता है और उसे पुनः उसी स्त्री के पास भेजने के लिए उत्साहित करता है। इसी का वर्णन प्रस्तुत गद्यांश में है।

हिन्दी अनुवाद:
बाघ: जाओ गीदड़! तुम भी किसी गुप्तस्थान पर चले जाओ। क्योंकि व्याघ्रमारी, जो शास्त्र में सुनी जाती है। वह मुझ पर हमला करने लगी परन्तु जान हथेली पर रखकर उसके सामने से शीघ्र ओझल हो गया।

गीदड़: बाघ! तुमने बहुत आश्चर्य की बात कही है कि तुम मनष्य से भी डर गए हो ?

बाघ: वह मेरी आँखों के सामने ही एक-एक करके मुझे खाने के लिए झगड़ते अपने दोनों पुत्रों को चाँटों से पीटती हुई दिखाई पड़ी।

गीदड़: स्वामी ! जहाँ वह दुष्टा है, वहाँ चलो। हे बाघ! यदि तुम्हारे पुनः वहाँ जाने पर वह सामने दिखती है तो तुम मुझे मार देना।

बाघ: गीदड! यदि तम मझको छोड़कर चले गए, तब यह शर्त भी व्यर्थ हो जाएगी।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

3. जम्बुकः- यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथाकृत्वा काननं ययौ। शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम् ? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यगुल्या तर्जयन्त्युवाच
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यम् व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना॥
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयड्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्।
अत एव उच्यतेबुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) व्याघ्रः कं निजगले बद्ध्वा चलेत् ?
(ii) जम्बुककृतोत्साहः कः अस्ति ?
(iii) प्रत्युत्पन्नमतिः का अस्ति ?
(iv) पुरा व्याघ्रत्रयं केन दत्तम् ?
(v) सदा बलवती का कविता ?
उत्तराणि:
(i) शृगालम्।
(ii) व्याघ्रः ।
(iii) बुद्धिमती।
(iv) शृगालेन।
(v) बुद्धिः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्याघ्रः किं कृत्वा काननं ययौ ?
(ii) किं दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती ?
(iii) कीदृशः व्याघ्रः सहसा नष्टः ?
(iv) बुद्धिमती पुनरपि कस्मात् मुक्ता अभवत् ?
उत्तराणि
(i) व्याघ्रः शृगालं निजगले बद्ध्वा काननं ययौ।
(ii) शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्रं दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती।
(iii) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः सहसा नष्टः ।
(iv) बुद्धिमती पुनरपि व्याघ्रजात् भयात् मुक्ता अभवत्।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘वनम्’ इत्यस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘मूढमतिः’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iii) ‘इत्युक्त्वा ‘ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(iv) ‘व्याघ्रमारी भयङ्करा’ अत्र विशेषणपदं किम् ?
(v) ‘बलवती’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
उत्तराणि:
(i) काननम्।
(ii) प्रत्युत्पन्नमतिः ।
(iii) इति + उक्त्वा ।
(iv) भयङ्करा ।
(v) मतुप्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
श्लोकस्य अन्वयः रे रे धूर्त! त्वया मह्यं पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम्। विश्वास्य (अपि) अद्य एकम् आनीय कथं यासि इति अधुना वद। इति उक्त्वा भयङ्करा व्याघ्रमारी तूर्णं धाविता। गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः अपि सहसा नष्टः । तन्वि! सर्वदा सर्वकार्येषु बुद्धिर्बलवती।

शब्दार्थाः निजगले = (स्वग्रीवायाम्) अपने गले में। सत्वरम् = (शीघ्रम्) शीघ्र। काननम् = (वनम्) वन। आक्षिपन्ती = (आक्षेपं कुर्वन्ती) आक्षेप करती हुई, झिड़कती हुई, भर्त्सना करती हुई। तर्जयन्ती = (तर्जनं कुर्वन्ती) धमकाती हुई, डाँटती हुई। पुरा = (पूर्वम्) पहले। विश्वास्य = (समाश्वास्य) विश्वास दिलाकर। तूर्णम् = (शीघ्रम्) जल्दी, शीघ्र। भयडकरा = (भयं करोति इति) भयोत्पादिका। गलबद्ध-शगालकः = (गले बद्धः शृगालः यस्य सः) गले में बँधे हुए शृगालवाला। तन्वि = (कोमलांगी स्त्री) सुन्दर, कोमल अंगोंवाली स्त्री।

संदर्भ:-पूर्ववत्
प्रसंग: जब गीदड़ को अपने गले में बाँधकर बाघ जंगल में पुनः बुद्धिमती स्त्री की ओर जाने लगता है तो बुद्धिमती अपनी वाक् चातुरी से बाघ को पुनः भगा देती है। इसी का वर्णन प्रस्तुत अंश में है।

हिन्दी अनुवाद:
गीदड़: यदि ऐसा है तो मुझको अपने गले में बाँधकर शीघ्र चलो। वह बाघ वैसा करके वन में गया। गीदड़सहित बाघ को फिर आए हुए बाघ को दूर से ही देखकर बुद्धिमती सोचने लगी-गीदड़ द्वारा उकसाए बाघ से छुटकारा कैसा हो ? परन्तु हाजिरजवाब स्त्री ने अंगुली उठाकर गीदड़ को फटकारते हुए कहा अरे धूर्त! पहले तेरे द्वारा मुझे तीन बाघ दिए गए थे। विश्वास दिलाकर भी आज एक को ही लाकर क्यों जा रहे हो, अब बताओ। ऐसा कहकर भयंकर व्याघ्रमारी तेजी से दौड़ी। गले में गीदड़ बँधा बाघ भी अचानक भाग गया। इस प्रकार बुद्धिमती बाघ के भय से दूसरी बार भी मुक्त हो गई। इसलिए ही कहा गया है-हे सुन्दरी ! सदैव सब कार्यों में बुद्धि ही बलवती होती है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

बुद्धिर्बलवती सदा Summary in Hindi

बुद्धिर्बलवती सदा पाठ परिचय:

संस्कृत साहित्य में कथा लेखन की परम्परा अति प्राचीन है। पंचतंत्र और हितोपदेश की कथाएँ आज भी कोमल मति बालकों का उचित मार्ग दर्शन करती हैं। इनका आरम्भिक रूप मौखिक ही था। रात को सोते समय बच्चे अपनी नानीदादी से कथाएँ सुनते थे और उसके बाद ही उनकी आँखों में नींद आती थी। ये कथाएँ मनोरंजन के साथ-साथ उनका नैतिक विकास भी करती थी। बाद में लेखन कला का विकास होने पर इन कथाओं को साहित्यिक रूप दिया गया। ‘शुकसप्ततिः’ ऐसे ही कथा ग्रन्थों में एक महत्त्वपूर्ण कथा संग्रह है।

‘शुकसप्ततिः’ संस्कृत कथा साहित्य की परवर्ती रचना है। भारतीय आख्यान परम्परा में ‘किस्सा तोता मैना’ की कथाएँ प्रसिद्ध हैं। शुकसप्ततिः उन्हीं कथाओं का एक रूपान्तर है। इसमें एक शुक (Parrot) एक अकेली स्त्री का मन बहलाने के लिए रोचक कथाएँ कहता है। ये कथाएँ मनोरंजन होने के साथ-साथ बुद्धि कौशल से परिपूर्ण हैं।

प्रस्तुत पाठ इसी ‘शुकसप्ततिः’ नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक नारी के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है, जो सामने आए हुए शेर को डरा कर भगा देती है। इस कथाग्रन्थ में नीतिनिपुण शुक और सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सद्वृत्ति का विकास कराया गया है।

बुद्धिर्बलवती सदा पाठस्य सारांश:

‘बुद्धिर्बलवती सदा’ यह पाठ संस्कृत के कथा ग्रन्थ ‘शुकसप्ततिः’ से लिया गया है। इस पाठ में नारी के बुद्धि कौशल को दिखाया गया है। देउला नामक ग्राम में राजसिंह नामक एक राजपूत रहता था। उसकी पत्नी बुद्धिमती किसी आवश्यक कार्य से अपने दोनों पुत्रों को साथ लेकर अपने पिता के घर जा रही थी। जंगल का रास्ता था, अचानक एक बाघ दिखाई पड़ा बाघ को देखते ही उसने अपने पुत्रों को पीटते हुए जोर से बोली तुम अकेले-अकेले ही बाघ को खाने के लिए क्यों झगड़ते हो यदि यह एक ही है तो इसे बाँट कर खा लो बाद में कोई दूसरा ढूँढ लेंगे। बुद्धिमती के इन वचनों को सुनकर बाघ डर कर भाग गया और सोचने लगा कि यह कोई बाघमारी है।

भय से व्याकुल बाघ को देखकर रास्ते में एक गीदड़ ने हँसते हुए पूछा कि तुम क्यों दौड़े जा रहे हो ? बाघ ने उत्तर में कहा कि तू भी कहीं जाकर छिप जा। जिसके बारे में सुना जाता है, वह बाघमारी हमें मारने के लिए आ पहुँची है। गीदड़ ने बाघ को विश्वास दिलाया कि मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ और फिर देखना कि वह तुम्हें सामने दिखाई भी नहीं पड़ेगी, यदि ऐसा न हुआ तो तुम मुझे मार देना। विश्वास को दृढ़ करने के लिए गीदड़ ने कहा कि तुम मुझे अपने गले में रस्सी से बाँधकर ले जाओ। बाघ तैयार हो गया। गीदड़ सहित आए हुए बाघ को देखकर बुद्धिमती ने बड़ी चतुराई

और साहस से काम लेते हुए गीदड़ को डाँटते हुए कहा-अरे धूर्त गीदड़ ! तूने पहले तीन बाघ दिए थे और आज एक ही लाकर तू कहाँ जा रहा है ? इतना कहकर बुद्धिमती बड़ी तेजी से उनकी तरफ दौड़ी। बाघ भी यह सुनकर गीदड़ को गले में बाँधे हुए ही वहाँ से दौड़ गया। इस प्रकार बुद्धिमती ने अपनी बुद्धि और साहस के बल पर बाघ से अपनी रक्षा कर ली। अत: ठीक ही कहा है कि सदा सभी कार्यों में बुद्धि बलवती होती है।

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HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

HBSE 10th Class Sanskrit शुचिपर्यावरणम् Textbook Questions and Answers

शुचिपर्यावरणम् पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class Shemushi प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) कविः किमर्थ प्रकृतेः शरणम् इच्छति ?
(ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते ?
(ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति ?
(घ) कविः कुत्र सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति ?
(ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम् ?
(च) अन्तिमे पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति ?
उत्तराणि:
(क) महानगरस्य जीवनं दुर्वहं जातम्, अतः कविः प्रकृतेः शरणम् इच्छति।
(ख) महानगरेषु यानानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः भवन्ति, अतः तत्र संसरणं कठिनं वर्तते।
(ग) अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलं, जलं, भक्ष्यं धरातलं च दूषितम् अस्ति।
(घ) कवि: ग्रामान्ते एकान्ते कान्तारे च सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति। (ङ) स्वस्थजीवनाय प्रदूषणरहित वातावरणे भ्रमणीयम्।
(च) अन्तिमे पद्यांशे कवे: कामना अस्ति यत् निसर्गे पाषाणी सभ्यता समाविष्टा न स्यात्।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

शुचिपर्यावरणम् HBSE 10th Class Shemushi प्रश्न 2.
सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत …………..
(क) प्रकृतिः + ………….. = प्रकृतिरेव
(ख) स्यात् + ……….. + …………. = स्यान्नैव
(ग) ………. + अनन्ताः = हानन्ताः
(घ) बहिः + अन्तः + जगति = …………………
(ङ) ……………… + नगरात् = अस्मान्नगरात्
(च) सम् + चरणम् = ……………
(छ) धूमम् + मुञ्चति
उत्तराणि:
(क) प्रकृतिः + एव = प्रकृतिरेव
(ख) स्यात् +न +एव = स्यान्नैव
(ग) हि + अनन्ताः = ह्यनन्ताः
(घ) बहिः + अन्तः + जगति = बहिरन्तर्जगति
(ङ) अस्मात् + नगरात् = अस्मान्नगरात्
(च) सम् + चरणम् = सञ्चरणम्
(छ) धूमम् + मुञ्चति = धूमं मुञ्चति।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

शुचिपर्यावरणम् पाठ का भावार्थ HBSE 10th Class Shemushi  प्रश्न 3.
अधोलिखितानाम् अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत:
भृशम्, यत्र, तत्र, अत्र, अपि, एव, सदा, बहिः
(क) इदानीं वायुमण्डलं ……………. प्रदूषितमस्ति।
(ख) …………….जीवनं दुर्वहम् अस्ति ।
(ग) प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् ……… लाभदायकं भवति।
(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् … … प्रकृतेः आराधना।
(ङ) ……………समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
(च) भूकम्पित-समये……………गमनमेव उचितं भवति।
(छ) ……….हरीतिमा ………… शुचि-पर्यावरणम्।
उत्तराणि:
(क) इदानीं वायुमण्डलं भृशं प्रदूषितमस्ति।
(ख) अत्र जीवनं दुर्वहम् अस्ति।
(ग) प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति।
(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना।
(ङ) सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
(च) भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति।
(छ) यत्र हरीतिमा तत्र शुचि-पर्यावरणम्।।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

Shuchiparyavaranam HBSE 10th Class Shemushi प्रश्न 4.
उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखित-पदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं/संयोगं कुरुतयथा:
जातम् = जन् + क्त
(क) प्र + कृ + क्तिन् = ……………….
(ख) नि + सृ + क्त + टाप = ……………
(ग) …………………… + क्त = दूषितम्
(घ) …………………… + …………………. = करणीयम्
(ङ) ……………… + यत् = भक्ष्यम्
(च) रम् + …………………… + ……………… = रमणीया
(छ) ……………. + …………………… + ……………… = वरणीया
(ज) पिष् + …………………. = पिष्टाः।
उत्तराणि:
(क) प्र + कृ + क्तिन् = प्रकृतिः
(ख) नि + सृ + क्त + टाप् = निसृता
(ग) दूष् + क्त = दूषितम्
(घ) कृ + अनीयर् = करणीयम्
(ङ) भक्ष् + यत् = भक्ष्यम्
(च) रम् + अनीयर् + टाप = रमणीया
(छ) वृ + अनीयर् + टाप् = वरणीया
(ज) पिष् + क्त = पिष्टाः।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

शुचिपर्यावरणम् Solutions HBSE 10th Class Shemushi प्रश्न 5.
अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत
(क) सलिलम् ……………….
(ख) आम्रम् ……………….
(ग) वनम् ……………….
(घ) शरीरम् ……………….
(ङ) कुटिलम् ……………….
(च) पाषाणम् ……………….
उत्तराणि
(क) सलिलम् – जलम्
(ख) आम्रम् – रसालम्
(ग) वनम् – कान्तारम्
(घ) शरीरम् – तनुः ।
(च) पाषाणम् – प्रस्तरम्।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

प्रश्न 6.
उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि लिखतय:
HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम् img-1
उत्तराणि
HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम् img-2

प्रश्न 7.
रेखाङ्कित-पदमाधुत्य प्रश्ननिर्माणं करुत:
(क) शकटीयानं कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।
(ख) उद्याने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति।
(ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति।
(घ) महानगरेषु वाहनानाम् अनन्ताः पतयः धावन्ति।
(ङ) प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते।
उत्तराणि – (प्रश्ननिर्माणम्)
(क) शकटीयानं कीदृशं धूमं मुञ्चति ?
(ख) उद्याने केषां कलरवं चेतः प्रसादयति ?
(ग) पाषाणीसभ्यतायां के प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति ?
(घ) कुत्र वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति ?
(ङ) कस्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते ?

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

योग्यताविस्तारः

समास – समसनं समासः
समास का शाब्दिक अर्थ होता है-संक्षेप। दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से जो तीसरा नया और संक्षिप्त रूप बनता है, वह समास कहलाता है। समास के मुख्यत: चार भेद हैं

  1. अव्ययीभाव समास
  2. तत्पुरुष
  3. बहुब्रीहि
  4. द्वन्द्व

1. अव्ययीभाव
इस समास में पहला पद अव्यय होता है और वही प्रधान होता है।
यथा – निर्मक्षिकम् मक्षिकाणाम् अभावः ।
यहाँ प्रथमपद निर् है और द्वितीयपद मक्षिकम् है। यहाँ मक्षिका की प्रधानता न होकर मक्षिका का अभाव प्रधान है, अत: यहाँ अव्ययीभाव समास है। कुछ अन्य उदाहरण देखें
(i) उपग्रामम् – ग्रामस्य समीपे – (समीपता की प्रधानता)
(ii) निर्जनम् – जनानाम् अभावः – (अभाव की प्रधानता)
(iii) अनुरथम् – रथस्य पश्चात् – (पश्चात् की प्रधानता)
(iv) प्रतिगृहम् – गृहं गृहं प्रति – (प्रत्येक की प्रधानता)
(v) यथाशक्ति – शक्तिम् अनतिक्रम्य – (सीमा की प्रधानता)
(vi) सचक्रम् – चक्रेण सहितम् – (सहित की प्रधानता)

2. तत्पुरुष:
‘प्रायेण उत्तरपदप्रधान: तत्पुरुषः’ इस समास में प्राय: उत्तरपद की प्रधानता होती है और पूर्व पद उत्तरपद के विशेषण का कार्य करता है। समस्तपद में पूर्वपद की विभक्ति का लोप हो जाता है।

यथा – राजपुरुषः अर्थात् राजा का पुरुष। यहाँ राजा की प्रधानता न होकर पुरुष की प्रधानता है, और राजा शब्द पुरुष के विशेषण का कार्य करता है।
(i) ग्रामगत: – ग्रामं गतः।
(ii) शरणागतः – शरणम् आगतः।
(ii) देशभक्तः – देशस्य भक्तः।
(iv) सिंहभीत: – सिंहात् भीतः।
(v) भयापन्न: – भयम् आपन्नः।
(vi) हरित्रातः – हरिणा त्रातः ।
तत्पुरुष समास के दो भेद हैं-कर्मधारय और द्विगु।

(i) कर्मधारय:
इस समास में एक पद विशेष्य तथा दूसरा पद पहले पद का विशेषण होता है।
यथा:
पीताम्बरम् – पीतं च तत् अम्बरम्।
महापुरुषः – महान् च असौ पुरुषः।
कज्जलमलिनम् – कज्जलम् इव मलिनम्।
नीलकमलम् – नीलं च तत् कमलम्।
मीननयनम् – मीन: इव नयनम्।
मुखकमलम् – कमलम् इव मुखम्।

(ii) द्विगु:
‘संख्यापूर्वो द्विगुः’ इस समास में पहला पद संख्यावाची होती है और समाहार (अर्थात् एकत्रीकरण या समूह) अर्थ की प्रधानता होती है।
यथा-त्रिभुजम् – त्रयाणां भुजानां समाहारः। इसमें पूर्वपद ‘त्रि’ संख्यावाची है।
पञ्चपात्रम् – पञ्चानां पात्राणां समाहारः।
पञ्चवटी – पञ्चानां वटानां समाहारः।
सप्तर्षिः – सप्तानाम् ऋषीणां समाहारः।
चतुर्युगम् – चतुर्णा युगानां समाहारः।

3. बहुब्रीहि-‘अन्यपदप्रधान: बहुब्रीहिः’
इस समास में पूर्व तथा उत्तर पदों की प्रधानता न होकर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है।
यथा –
पीताम्बरः – पीतम् अम्बरम् यस्य सः (विष्णुः)। यहाँ न तो पीतम् शब्द की प्रधानता है और न अम्बरम् शब्द को अपितु पीताम्बरधारी किसी अन्य व्यक्ति (विष्णु) की प्रधानता है।
नीलकण्ठः – नीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः)।
दशाननः – दश आननानि यस्य सः (रावणः)।
अनेककोटिसारः – अनेककोटि: सारः (धनम्) यस्य सः।
विगलितसमृद्धिम् – विगलिता समृद्धिः यस्य तम्।
प्रक्षलितपादम् – प्रक्षालितौ पादौ यस्य तम्।

4. द्वन्द्व:
‘उभयपदप्रधान: द्वन्द्वः’ इस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों की समान रूप से प्रधानता होती है।
पदों के बीच में ‘च’ का प्रयोग विग्रह में होता है।
यथा:
रामलक्ष्मणौ – रामश्च लक्ष्मणश्च।
पितरौ – माता च पिता च।
धर्मार्थकाममोक्षाः – धर्मश्च, अर्थश्च, कामश्च, मोक्षश्च।
वसन्तग्रीष्मशिशिराः – वसन्तश्च ग्रीष्मश्च शिशिरश्च।

कविपरिचय:
प्रो० हरिदत्त शर्मा सम्प्रति इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में संस्कृत में आचार्य हैं। इनके कई संस्कृत काव्य प्रकाशित हो चुके हैं। जैसे-गीतकंदलिका, त्रिपथगा, उत्कलिका, बालगीताली, आक्रन्दनम्, लसल्लतिका इत्यादि। इनकी रचनाओं में समाज की विसंगतियों के प्रति आक्रोश तथा स्वस्थ वातावरण के प्रति दिशानिर्देश के भाव प्राप्त होते हैं।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

भावविस्तारः
पृथिवी, जलं, तेजो वायुराकाशश्चेति पञ्चमहाभूतानि प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि। एतैः तत्त्वैरेव पर्यावरणस्य रचना भवति। आवियते परितः समन्तात् लोकोऽनेनेति पर्यावरणं परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणमस्मभ्यं सर्वविधजीवनसुखं ददाति। अस्माभिः सदैव तथा प्रयतितव्यं यथा जलं स्थलं गगनञ्च निर्मलं स्यात्। पर्यावरणसम्बद्धाः केचन श्लोकाः अधोलिखिताः सन्ति

यथा
पृथिवीं परितो व्याप्य तामाच्छाद्य स्थितं च यत्
जगदाधाररूपेण, पर्यावरणमुच्यते॥
पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश में पाँच महाभूत प्रकृति के मुख्य तत्त्व है। इन्हीं तत्त्वों से ही पर्यावरण की रचना होती है। ‘आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्’ – यह सारा संसार इन तत्त्वों के द्वारा चारों ओर से आवरण कर लिया जाता है, इसीलिए यह पर्यावरण कहलाता है।
शुद्ध एवं प्रदूषण रहित पर्यावरण हमें सब प्रकार का जीवन सुख देता है। हमें भी सदा वैसा ही प्रयत्न करना चाहिए ; जिससे जल, स्थल और आकाश स्वच्छ रहें। पर्यावरण से सम्बन्धित कुछ श्लोक निम्नलिखित हैं. जैसे – पृथिवी को चारों ओर से व्याप्त कर और उसे आच्छादित करके जो स्थित रहता है, संसार का आधार रूप होने से उसे ही ‘पर्यावरण’ कहा जाता है।

प्रदूषणविषये
सृष्टौ स्थितौ विनाशे च नृविज्ञैर्बहुनाशकम्।
पञ्चतत्त्वविरुद्धं यत्साधितं तत्प्रदूषणम्॥

प्रदूषण के विषय में:
सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश प्रक्रिया में बुद्धिमान् मनुष्यों द्वारा जिसे पाँच तत्त्वों के विरुद्ध तथा विनाशकारी जाना गया, उसे ही ‘प्रदूषण’ कहा जाता है।

वायुप्रदूषणविषये:
प्रक्षिप्तो वाहनैधूमः कृष्णो बह्वपकारकः ।
दुष्टै!सायनैर्युक्तो घातकः श्वासरुग्वहः॥

वायु प्रदूषण के विषय में:
वाहनों द्वारा उगल दिया गया काला धुंआ बहुत अपकारी, दूषित (विषैला) रसायनों से युक्त, घातक तथा श्वासजन्य रोगों को उत्पन्न करने वाला होता है।

जलप्रदूषणविषये:
यन्त्रशाला – परित्यक्तैर्नगरे दूषितद्रवैः ।
नदीनदौ समुद्राश्च प्रक्षिप्तैर्दूषणं गताः ॥

जलप्रदूषण के विषय में-नगर में कारखानों द्वारा छोड़े गए तथा डाले गए दूषित द्रव्यों (जलों) से नदी-नाले और समुद्र प्रदूषित हो गए हैं।

प्रदूषण-निवारणाय संरक्षणाय च:
शोधनं रोपणं रक्षा वर्धनं वायुवारिणः ।
वनानां वन्यवस्तूनां भूमेः संरक्षणं वरम्॥
(एते श्लोकाः पर्यावरणकाव्यात् संकलिताः सन्ति।)

प्रदूषण के निवारण और संरक्षण के लिए:
वायु और जल को शुद्ध रखना, वृक्षारोपण करना और रक्षापूर्वक उनकी वृद्धि करना-ये वनों, वन्य वस्तुओं तथा भूमि के संरक्षण के लिए श्रेष्ठ उपाय हैं।
(ये श्लोक पर्यावरण काव्य से संकलित किए गए हैं।)

तत्सम-तद्भव-शब्दानामध्ययनम्:
अधोलिखितानां तत्समशब्दानां तदुद्भूतानां च तद्भवशब्दानां परिचयः करणीयः
(अधोलिखित तत्सम शब्दों और उनसे उत्पन्न तद्भव शब्दों का परिचय करना चाहिए-)
तत्सम – तद्भव
प्रस्तर – पत्थर
वाष्प – भाप
दुर्वह – दूभर
वक्र – बाँका
कज्जल – काजल
चाकचिक्य – चकाचक, चकाचौंध
धूमः – धुआँ
शतम् – सौ (100)
बहिः – बाहर

छन्दः परिचयः
अस्मिन् गीते शुचि पर्यावरणम् इति ध्रुवकं (स्थायी) वर्तते। तदतिरिक्तं सर्वत्र प्रतिपक्ति 26 मात्राः सन्ति। इदं गीतिकाच्छन्दसः रूपमस्ति।

छन्द-परिचय:
इस गीत में ‘शुचिपर्यावरणम्’ यह ध्रुव (स्थायी) स्वर पंक्ति है। इसके अतिरिक्त पूरे गीत में प्रत्येक पङ्क्ति में 26 मात्राएँ हैं। यह ‘गीतिका’ छन्द का स्वरूप है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

HBSE 10th Class Sanskrit शुचिपर्यावरणम् Important Questions and Answers

शुचिपर्यावरणम् पठित-अवबोधनम्

1. निर्देश:-अधोलिखितं पद्यांशं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत
दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।
मनः शोषयत् तनुः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्॥
दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम्। शुचि……. ॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:

(क) एकपदेन उत्तरत
(i) अत्र जीवितं कीदृशं जातम् ?
(ii) पर्यावरणं कीदृशं भवितव्यम् ?
(ii) अनिशं किं चलत् अस्ति ?
(iv) कालायसचक्रं कुत्र भ्रमति ?
(v) दुर्दान्तैः दशनैः किं न स्यात् ?
उत्तराणि:
(i) दुर्वहम्।
(ii) शुचि।
(iii) कालायसचक्रम्।
(iv) महानगरमध्ये।
(v) जनग्रसनम्।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) प्रकृतिरेव शरणं किमर्थमस्ति ?
(ii) कालायसचक्रं कथं भ्रमति ?
(iii) जनग्रसनं केन न स्यात् ?
उत्तराणि:
(i) अत्र जीवितं दुर्वहं जातम्, अतः प्रकृतिरेव शरणम् अस्ति।
(ii) कालायसचक्रम् अनिशं चलत्, मनः शोषयत, तनुः पेषयत् सदा वक्रं भ्रमति।
(iii) अमुना कालायसचक्रेण दुर्दान्तैः दशनैः जनग्रसनं न स्यात्।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘कठिनम्’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘प्रदूषितम्’ इति पदस्य अत्र प्रयुक्तं विपरीतार्थकपदं किम् ?
(iii) ‘दुर्दान्तैर्दशनैः’-अत्र विशेष्यपदं किमस्ति ?
(iv) ‘प्रकृतिरेव’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(v) ‘जातम्’-अत्र प्रकृति-प्रत्ययौ विभजत।
उत्तराणि:
(i) दुर्वहम्।
(ii) शुचि।
(iii) दशनैः।
(iv) प्रकृतिः + एव।
(v) √जन् + क्त।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः अत्र जीवितं दुर्वहं जातम्, प्रकृतिः एव शरणम्। शुचि-पर्यावरणम् (एव शरणम्)। महानगरमध्ये अनिशं चलत् कालायसचक्रं मनः शोषयत्, तनुः पेषयत् सदा वक्रं भ्रमति। अमुना दुर्दान्तैः दशनैः जनग्रसनम् एव न स्यात् (अतः शुचि-पर्यावरणम् एव शरणम्)॥

शब्दार्थाः दुर्वहम् = (दुष्करम्) कठिन, दूभर। जीवितम् = (जीवनम्) जीवन। अनिशम् = (अहर्निशम्) दिनरात। कालायसचक्रम् = (लौहचक्रम्) लोहे का चक्र।शोषयत् = (शुष्कीकुर्वत्) सुखाते हुए। तनुः = (शरीरम्) शरीर। पेषयद् = (पिष्टीकुर्वत्) पीसते हुए। वक्रम् = (कुटिलम्) टेढ़ा। दुर्दान्तः = (भयकरैः) भयानक से। दशनैः = (दन्तैः) दाँतों से। अमुना = (अनेन) इससे।

भावार्थ: इस नगरीय वातावरण में आज जीवन दूभर हो गया है। प्रकृति ही एक मात्र शरण है। शुद्ध-पर्यावरण ही एकमात्र शरण है। महानगरों में दिन-रात चलता हुआ लौह-चक्र (कारखानों और वाहनों के पहिए) मन का शोषण करता हुआ तथा तन को पीसता हुआ निरन्तर टेढ़ी गति से घूम रहा है। कहीं इसके दुर्दान्त दाँतों द्वारा मनुष्यों को खा ही न लिया जाए। (अतः इस मानव-नाश से बचने का एक ही उपाय है-शुद्ध पर्यावरण की शरण)।

व्याख्या: प्रस्तुत पद्यांश में पर्यावरण की भयावहता पर प्रकाश डालते हुए कवि कहता है कि आज नगरीय वातावरण इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि जिसमें जीवन धारण करना दुष्कर हो गया। महानगरों में दिन-रात लौह चक्र चल रहा है। यहाँ लौह चक्र से कवि का तात्पर्य कारखानों की मशीनों के चक्रों, रेलगाड़ियों के चक्रों तथा सभी प्रकार के वाहनों के चक्रों से है।

जो न केवल ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं अपितु इन वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाला गैसीय धुआँ भी वायुमण्डल को दूषित करता है, इसका दुष्प्रभाव मन और शरीर दोनों पर पड़ता है। कवि को यह चिन्ता है कि कहीं इस दूषित वातावरण रूप भयानक दानव के दाँतों से मानव समुदाय कुचल न दिया जाए इसलिए कवि की कामना है कि इस महाविनाश से बचने का उपाय समय रहते ही कर लेना चाहिए अन्यथा बाद में पछताना पड़ेगा और वह उपाय है शुद्ध पर्यावरण वाली प्रकृति की शरण में जाना।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

2. कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्॥
यानानां पड्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम्। शुचि……. ॥2॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) शतशकटीयानं किं मुञ्चति ?
(ii) कज्जलमलिनं किमस्ति ?
(iii) ध्वानं का वितरति ?
(iv) संसरणं कीदृशम् अभवत् ?
(v) अनन्ताः काः सन्ति ?
उत्तराणि:
(i) धूमम्।
(ii) धूमम्।
(iii) वाष्पयानमाला।
(iv) कठिनम्।
(v) पक्तयः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) शतशकटीयानं किं करोति ?
(ii) वाष्पयानमाला कथं संधावति ?
(iii) केषां पतयः अनन्ताः सन्ति।
उत्तराणि
(i) शतशकटीयानं कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।
(ii) वाष्पयानमाला ध्वानं वितरन्ती संधावति।
(iii) यानानां पतयः अनन्ताः सन्ति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘त्यजति’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘धूमम्’ इति पदस्य प्रयुक्तं विशेषणं किम् अस्ति ?
(iii) ‘कोलाहलम्’ इति पदस्य प्रयुक्तं पर्यायपदं किम् अस्ति ?
(iv) ‘सरलम्’ इति पदस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(v) ‘मुञ्चति’ इति क्रियापदस्य प्रयुक्तं कर्तृपदं किमस्ति ?
उत्तराणि:
(i) मुञ्चति।
(ii) कज्जलमलिनम्।
(iii) ध्वानम्।
(iv) कठिनम्।
(v) शतशकटीयानम्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः शतशकटीयानं कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति । वाष्पयानमाला ध्वानं वितरन्ती संधावति। यानानां हि अनन्ताः पतयः (धावन्ति, अतः) संसरणम् (अपि) कठिनं (भवति)। शुचि……….।

शब्दार्थाः जनग्रसनम् = (जनभक्षणम्) मानव विनाश। कज्जलमलिनम् = (कज्जलम् इव मलिनम्) काजल-सा मलिन (काला)।धूमः = (वाष्पः) धुआँ । मुञ्चति = (त्यजति) छोड़ता है। शतशकटीयानम् = (शकटीयानानां शतम्) सैकड़ों मोटर गाड़ियाँ। वाष्पयानमाला = (वाष्पयानानां पंक्तिः) रेलगाड़ी की पंक्ति। वितरन्ती = (ददती) देती हुई। ध्वानम् = (ध्वनिम्) कोलाहाल। संसरणम् = (सञ्चलनम्) चलना।

भावार्थ: सैंकड़ों मोटर गाड़ियाँ काजल जैसा मलिन धुआँ छोड़ रही हैं। रेलगाड़ियाँ शोर करती हुई दौड़ी चली जा रही हैं। वाहनों की अनगिनत पंक्तियाँ सड़कों पर दौड़ रही हैं। जिनके कारण चलना-सरकना भी कठिन हो गया है। अब तो शान्तिमय एवं स्वस्थ जीवन के लिए पवित्र पर्यावरण ही एक मात्र शरण है। – व्याख्या-दूषित पर्यावरण से चिन्तित कवि कहता है कि महानगरीय सुविधा भोगी जीवन शैली में सड़कों को मोटर गाड़ियों का गढ़ बना दिया गया है। रेलगाड़ियों की संख्या दिन प्रतिदिनि बढ़ रही है। इनसे निकलने वाला धुआँ और शोर दोनों ही जनजीवन को त्रस्त कर रहे हैं। सड़क पर वाहन इतनी मात्रा में हो गए कि चलना तो दूर सरकना भी कठिन हो गया है। शायद पैदल चलने वाले का जीवन कोई मानव जीवन न होकर कीट पतंगों का जीवन बन गया, जिसकी कोई परवाह ही नहीं करता। अत: जीवन रक्षा का एक ही उपाय है, शुद्ध पर्यावरण। जिसके लिए हम सबको प्रयत्नशील होना चाहिए।

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3. वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्॥
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहुशुद्धीकरणम्। शुचि…॥3॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:

(क) एकपदेन उत्तरत
(i) भृशं किं दूषितम् ?
(ii) निर्मलं किं न अस्ति ?
(iii) भक्ष्यं कीदृशम् अभवत् ?
(iv) समलं किमस्ति ?
(v) बहु किं करणीयम् ?
उत्तराणि:
(i) वायुमण्डलम्।
(ii) जलम्।
(iii) कुत्सितवस्तुमिश्रितम्।
(iv) धरातलम्।
(v) शुद्धीकरणम्।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) वायुमण्डलं जलं च कीदृशे अभवताम् ?
(ii) जगति किं करणीयम् अस्ति ?
उत्तराणि
(i) वायुमण्डलं भृशं दूषितं जलं च समलम् अभवताम्।
(ii) जगति बहिरन्त: बहुशुद्धिकरणं करणीयम् अस्ति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘अत्यधिकम्’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘समलम्’ इत्यस्य अत्र प्रयुक्तं विलोमपदं किमस्ति ?
(iii) ‘धरातलम्’ इत्यस्य अत्र प्रयुक्तं विशेषणं किम् अस्ति ?
(iv) ‘करणीयम्’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययविभागं कुरुत।
(v) ‘जगति’ अत्र का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
उत्तराणि:
(i) भृशम्।
(ii) निर्मलम्।
(iii) समलम्।
(iv) कृ + अनीयर् ।
(v) सप्तमी विभक्तिः।

हिन्दीभाषया पाठबोधः

अन्वयः वायुमण्डलं भृशं दूषितम्, न हि निर्मलं जलम् । भक्ष्यं कुत्सितवस्तुमिश्रितं, धरातलं समलं (जातम्) । जगति तु बहिः-अन्तः बहुशुद्धीकरणं करणीयम्। शुचि…… ॥

शब्दार्थाः भृशम् = (अत्यधिकम्) बहुत अधिक। निर्मलम् = (अमलम्) स्वच्छ। कुत्सित-वस्तुमिश्रितम् = (कुत्सितैः वस्तुभिः मिश्रितम्, निन्दनीय-पदार्थमिश्रितम्), निन्दनीय वस्तु की मिलावट से युक्त। जगति = (संसारे) संसार में। करणीयम् = (कर्तव्यम्) करना चाहिए, करना उचित है। समलम् = (मलयुक्तम्) गन्दा। धरातलम् = धरती का ऊपरी उपजाऊ भाग।

भावार्थ: यहाँ नगरों में वायुमण्डल अत्यधिक दूषित हो गया है, न ही स्वच्छ जल है। भक्ष्य पदार्थों में निन्दनीय वस्तुओं की मिलावट है। धरातल गंदगी से व्याप्त है। संसार में अब तो बाहर-अंदर बहुत प्रकार के शुद्धीकरण की आवश्यकता है (क्योंकि जीवन के लिए शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र शरण है)।

व्याख्या: दूषित पर्यावरण से व्याकुलचित्त कवि कहता है कि नगरीय वातावरण आज पूरी तरह से दूषित हो चुका है, जिसमें साँस लेना भी कठिन है। दूसरी ओर स्वच्छ पेयजल का संकट खड़ा हो गया है। बाज़ार में मिलने वाली सभी खाने की चीजें मिलावट से भरी हुई हैं। शुद्ध वस्तु पैसा खर्च करके भी नहीं मिल पाती। धरती के कण-कण में प्रदूषण समा गया है, इसलिए कवि आह्वान करता है कि अब तो समस्त संसार के लोगों को वातावरण की शुद्धता के प्रयास में लग जाना चाहिए। घर के बाहर, घर के अन्दर, पृथ्वी आदि पदार्थों के बाहर, उनके अन्दर तथा मनुष्य के बाहर और अन्दर अनेक प्रकार के शुद्धिकरण की आवश्यकता है क्योंकि शुद्ध पर्यावरण ही जीवन का आधार है।

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4. कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम्॥
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि… ॥4॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) कविः नगरात् कुत्र गन्तुम् इच्छति ?
(ii) कविः निर्झर-नदी-पयःपूरं कुत्र द्रष्टुम् इच्छति ?
(iii) क्षणमपि किं स्यात् ?
(iv) एकान्तः कः कथितः ?
उत्तराणि:
(i) बहुदूरम्।
(ii) ग्रामान्ते।
(ii) सञ्चरणम्।
(iv) कान्तारः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) कविः किं नेतुं कथयति ?
(ii) कवि: ग्रामान्ते किं प्रपश्यति ?
(ii) क्षणमपि सञ्चरणं कुत्र स्यात् ?
उत्तराणि
(i) कविः नगरात् बहुदूरं कञ्चित् कालं नेतुं कथयति।
(ii) कविः ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरं प्रपश्यति।
(iii) क्षणमपि सञ्चरणम् एकान्ते कान्तारे स्यात्।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘ग्रामान्ते’-अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(ii) ‘नय’-अत्र कः लकारः प्रयुक्तः ।
(iii) ‘एकान्ते कान्तारे’-अत्र विशेष्यपदं किमस्ति ?
(iv) ‘क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्’-इति वाक्ये ‘मे’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
(v) ‘नय’ इति क्रियापदस्य अत्र प्रयुक्तं कर्मपदं किमस्ति ?
उत्तराणि:
(i) ग्राम + अन्ते।
(ii) लोट्लकारः ।
(iii) कान्तारे।
(iv) कवये।
(v) माम्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः

अन्वयः कञ्चित् कालं माम् अस्मात् नगरात् बहुदूरं नय। ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरं प्रपश्यामि। एकान्ते कान्तारे मे क्षणम् अपि सञ्चरणं स्यात्। शुचि…… ॥

शब्दार्था: प्रपश्यामि = (अवलोकयामि) देखू। ग्रामान्ते = गाँव की सीमा पर। निर्झरः = झरना। जलाशयम् = तालाब। पयःपूरम् = जल से लबालब भरा हुआ। कान्तारे = (वने) जंगल में। सञ्चरणम् = चलना-फिरना, घूमना।

भावार्थ: (कवि नगरीय वातावरण से संत्रस्त है, वह इसे छोड़कर कहीं दूर गाँव और वन में प्रकृति का आनन्द लेना चाहता है।) कवि कहता है कि कुछ समय के लिए मुझे इस नगर से बहुत दूर ले जाओ, जिससे मैं गाँवों की सीमा पर जल से परिपूर्ण झरने, नदी और तालाब को देख सकूँ। एकान्त वन प्रदेश में क्षण भर के लिए मेरा चलना-फिरना हो सके (क्योंकि जीवन के लिए शुद्ध-पर्यावरण ही एकमात्र शरण है)।

व्याख्या: कवि नगरीय वातावरण में रहकर थक चुका है। वह शान्ति और विश्राम पाने के लिए किसी गाँव या वन की शरण में जाना चाहता है। कवि कहता है कि नगरीय वातावरण में मेरा दम घुट रहा है चाहे थोड़े समय के लिए ही परन्तु मुझे इस नगर से बहुत दूर किसी ऐसे स्थान पर ले चलो, जहाँ गाँव की सीमा से जुड़ी हुई नदी, झरने, जल से परिपूरित तालाब मेरे मन को आनन्दित कर सकें। जहाँ के एकान्त वन में क्षण भर के लिए ही सही मुझे स्वतन्त्रता पूर्वक विहरण करने का अवसर प्राप्त हो; क्योंकि शुद्ध पर्यावरण ही मानव समुदाय के जीवन का एकमात्र आधार है।

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5. हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया।
कुसमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया॥
नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम्। शुचि… ॥5॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) ललित-लतानां माला कीदृशी अस्ति ?
(ii) वरणीया का कथिता ?
(iii) का रसालं मिलिता ?
(iv) रुचिरं किम् अस्ति ?
(v) हरिततरूणां का रमणीया ?
उत्तराणि:
(i) रमणीया।
(ii) कुसुमावलिः।
(iii) नवमालिका।
(iv) संगमनम्।
(v) माला।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) केषां माला रमणीया अस्ति ?
(ii) कीदृशी कुसुमावलिः वरणीया स्यात् ?
(iii) रुचिरं संगमनं किमस्ति ?
उत्तराणि
(i) हरिततरूणां ललितलतानां च माला रमणीया अस्ति।
(ii) समीरचालिता कुसुमावलिः वरणीया स्यात्।
(iii) नवमालिका रसालं मिलिता-इति एव रुचिरं संगमनम् अस्ति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘रमणीया’-अत्र प्रकृति-प्रत्यय-विभागं निर्दिशत।
(ii) ‘रुचिरं संगमनम्’ अत्र विशेषणपदं किमस्ति ?
(iii) ‘आम्रवृक्षम्’-इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किमस्ति ?
(iv) ‘कुसुमावलिः’-अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(v) ‘स्यान्मे वरणीया’-अत्र ‘मे’ इति सर्वनाम कस्मै प्रयुक्तम् ?
उत्तराणि:
(i) √रम् + अनीयर् + टाप्।
(ii) रुचिरम्।
(iii) रसालम्।
(iv) कुसुम + अवलिः ।
(v) कवये।

हिन्दीभाषया पाठबोधः

अन्वयः (यत्र वने) हरिततरूणां ललितलतानां (च) रमणीया माला (स्यात्) । समीरचालिता कुसुमावलिः मे वरणीया स्यात्। नवमालिका रसालं मिलिता (स्यात्), (यत्र मम) रुचिरं संगमनं (स्यात्)। शुचि ……. ॥

शब्दार्थाः कान्तारे = (वने) जंगल में। कुसुमावलिः = (कुसुमानां पंक्तिः) फूलों की पंक्ति । समीरचालिता = (वायुचालिता) हवा से चलाई हुई। रसालम् = (आम्रम्) आम। रुचिरम् = (सुन्दरम्) सुन्दर। संगमनम् = (संगमः, सञ्चरणम्, विहरणम्) मेल, विचरण।

भावार्थ: (कवि ऐसे एकान्त वन में विहरण करना चाहता है, जिस वन में) हरे-भरे वृक्षों और सुन्दर लताओं की रमणीय पंक्ति हो। वायु से आन्दोलित की जा रहे पुष्पों का ऐसा समूह हो, जिसका मैं वरण कर सकूँ। ‘नवमालिका’ नामक लता आम के वृक्ष से गले मिल रही हो और मेरा रुचिपूर्ण संगमन हो सके (क्योंकि जीवन के लिए शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र शरण है)।

व्याख्या: नगरीय वातावरण से व्यथित कवि कामना करता है कि मुझे तो किसी ऐसे एकान्त वन में चले जाना चाहिए जहाँ हरे-भरे वृक्ष हों, सुन्दर लताओं की पंक्तियाँ हों, जिन्हें देखते ही मन पुलकित हो जाए। वायु के संग डोलता हुआ ऐसा पुष्प समूह हो जिसे देखते ही उसे छू लेने को मन मचल उठे। ऐसे आमों के वृक्ष हों, जिनसे नवमालिका नामक लता लिपटी हुई हो, मानो कोई प्रेमी-प्रेमिका लिपटकर सुन्दर संगम कर रहे हों। कवि कहता है मुझे भी ऐसा वन मिले जहाँ मैं भी अपनी इच्छानुसार संगमन अर्थात् विहरण कर सकूँ क्योंकि शुद्ध पर्यावरण वाला ऐसा प्राकृतिक वातावरण ही मुझे जीवन दान दे सकता है। .

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6. अयि चल बन्धो ! खगकुलकलरव-गुञ्जितवनदेशम्।
पुर-कलरव-सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्॥
चाकचिक्यजालं नो कुर्याजीवितरसहरणम्। शुचि….॥6॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) कलरवः कस्य अस्ति ?
(ii) वनदेशः केन गुञ्जितः ?
(iii) जनाः केन सम्भ्रमिताः ?
(iv) चाकचिक्यजालं किं न कुर्यात् ?
उत्तराणि:
(i) खगकुलस्य।
(ii) खगकुल-कलरवेण।
(iii) पुर-कलरवेण।
(iv) जीवितरसहरणम्।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) कविः कुत्र गन्तुम् इच्छति ?
(ii) वनदेशः केभ्यः धृतसुखसन्देशः अस्ति ?
(iii) कविः नगरात् कथं गन्तुम् इच्छति ?
उत्तराणि
(i) कविः खगकुलरव-गुञ्जित-वनदेशं गन्तुम् इच्छति।
(ii) वनदेशः पुर-कलरव-सम्भ्रमित-जनेभ्यः धृतसुखसन्देशः अस्ति।
(iii) क्वचित् नगरस्य चाकचिक्यजालं जीवितरसहरणं न कुर्यात्-अतएव कविः नगरात् वनदेशं गन्तुम् इच्छति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘चल’-अत्र कः लकारः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘न’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(iii) ‘नगर-कोलाहलः’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तः शब्दः कोऽस्ति।
(iv) ‘सम्भ्रमितः’ इत्यस्य प्रकृति-प्रत्यय-निर्देशं कुरुत।
(v) ‘कुर्यात्’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किमस्ति ?
उत्तराणि:
(i) लोट्लकारः ।
(ii) नो।
(iii) पुर-कलरवः ।
(iv) सम् + √भ्रम् + क्त।
(v) चाकचिक्यजालम्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः

अन्वयः अयि बन्धो ! पुर-कलरव-सम्भ्रमितजनेभ्यः धृतसुखसंदेशं खगकुल-कलरव-गुञ्जित-वनदेशं चल। (नगरस्य) चाकचिक्यजालं जीवितरसहरणं नो कुर्यात्। शुचि……….. ॥

शब्दार्थाः खगकुलकलरवः = (खगकुलानां कलरवः, पक्षिसमूहध्वनिः) पक्षियों के समूह की ध्वनि। चाकचिक्यजालम् = (कृत्रिमं प्रभावपूर्ण जगत्) चकाचौंध भरी दुनिया। नो = (नहि) नहीं। जीवित-रसहरणम् = (जीवनानन्दविनाशम्) जीवन से आनन्द का हरण। पुर-कलरवः = (नगरे भवः कोलाहलः) नगर में होने वाला कोलाहल।

भावार्थ: (कवि अपने मित्र को पुकारते हुए कहता है-) हे मित्र ! नगरों के शोरगुल से सम्भ्रमित लोगों के लिए जहाँ धारण करने योग्य सुख की झलक मिलती है, ऐसे पक्षिसमूह के कलरव से गुञ्जायमान वन-स्थल की ओर मुझे ले चल। कहीं नगर की चकाचौंध हमारे जीवन के आनन्द का हरण न कर ले (क्योंकि जीवन के लिए शुद्ध पर्यावरण ही एक मात्र शरण है।

व्याख्या: कवि अपने मित्र को पुकारते हुए कहता है कि नगरीय वातावरण के शोरगुल से मानव समुदाय की सोचने
और समझने की शक्ति क्षीण हो गई है। गाँव और वन की ओर लौटने जाने का सन्देश ही सुख प्रदान करने वाला है। ऐसे गाँव और वन जहाँ पक्षियों की चहचाहट से सारा वातावरण गुंजायमान हो रहा हो। हे मित्र ! हमें शीघ्रता से ऐसे सुखमय शुद्ध पवित्र वातावरण वाले वन समूह से व्याप्त स्थान की ओर प्रस्थान कर देना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि नगरीय जीवन की चकाचौंध का यह जाल हमारे जीवन के आनन्द रूपी हिरण का हरण कर ले। इस जीवन नाश से पहले ही हमें शुद्ध पर्यावरण की शरण में चले जाना चाहिए।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

7. प्रस्तरतले लता तरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा॥
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि…..॥7॥ .

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) पिष्टाः के न भवन्तु ?
(ii) पाषाणी-सभ्यता कुत्र समाविष्टा न स्यात् ?
(iii) कविः जीवनं कस्मै कामयते ?
(iv) कविः किं न कामयते ?
(v) सभ्यता कीदृशी कथिता ?
उत्तराणि:
(i) लतातरुगुल्माः ।
(ii) निसर्गे।
(iii) मानवाय।
(iv) जीवन्मरणम्।
(v) पाषाणी।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) लतातरुगुल्माः कुत्र पिष्टाः न भवन्तु ?
(ii) निसर्गे कस्याः समावेशः न स्यात् ?
(iii) कविः किं कामयते ?
उत्तराणि
(i) लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः न भवन्तु।
(ii) निसर्गे पाषाणी-सभ्यतायाः समावेश: न स्यात्।
(iii) कविः मानवाय जीवनं कामयते।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) “शिलातले’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘प्रकृतौ’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किमस्ति ?
(iii) ‘मरणम्’ इति पदस्य विशेषणं किमस्ति ?
(iv) ‘समाविष्टा’-अत्र प्रकृति-प्रत्ययनिर्देशं कुरुत।
(v) ‘जीवनम्’-इति पदस्य अत्र प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) प्रस्तरतले।
(ii) निसर्गे।
(iii) जीवत्।
(iv) सम् + आ + √विश् + क्त + टाप्।
(v) मरणम्।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

हिन्दीभाषया पाठबोधः

अन्वयः लतातरुगुल्मा प्रस्तरतले पिष्टाः नो भवन्तु। निसर्गे पाषाणी सभ्यता समाविष्टा न स्यात्। मानवाय जीवनं कामये न जीवन्मरणं (कामये)। शुचि……….।

शब्दार्था: प्रस्तरतले = (शिलातले) पत्थरों के तल पर। लतातरुगुल्माः = (लताश्च तरवश्च गुल्माश्च) लता, वृक्ष और झाड़ी। पाषाणी = (पर्वतमयी) पथरीली। निसर्गे = (प्रकृत्याम्) प्रकृति में। जीवन्मरणम् = जीते-जी मृत्यु, चलती फिरती लाश।

भावार्थ: लता, वृक्ष और झाड़ियाँ कहीं पत्थरों के नीचे पिस न जाएँ। संसार में कहीं पाषाणी सभ्यता का समावेश न हो जाए। मैं तो मनुष्य के जीवन की कामना करता हूँ, जीते-जी मरण की नहीं (क्योंकि जीवन के लिए शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र शरण है)।

व्याख्या: आज घास-फूस और वनस्पतियों वाली धरती का दर्शन भी दुर्लभ हो गया । कहीं मकान हैं तो कहीं फैक्ट्रियाँ और इनसे जो भाग बच गया उस पर कंकरीट से बनी सड़कें बिछी पड़ी हैं। वृक्ष लता और झाड़ियाँ इस पथरीली सभ्यता के नीचे पिसकर रह गई हैं। प्रकृति में कहीं इस पाषाणप्रिय सभ्यता का समावेश न हो जाए। क्योंकि ऐसी पत्थर

दिल सभ्यता प्रदूषण के नित्य नये अम्बार खड़े करके कोमल प्रकृति को ही नष्ट कर देगी। जिसमें मनुष्य एक चलतीफिरती लाश की तरह होगा। कवि कहता है कि मुझे मृत्यु से कोई भय नहीं है, परन्तु प्रदूषित पर्यावरण के कारण जो जीते-जी मरण की स्थिति बन रही है वह भी मुझे स्वीकार नहीं है। मैं तो मनुष्य समुदाय के लिए जीवन की कामना करता हूँ, जो शुद्ध पर्यावरण में ही संभव है।

शुचिपर्यावरणम् Summary in Hindi

शुचिपर्यावरणम् पाठ परिचय:

मनुष्य के सामने पर्यावरण की सुरक्षा आज सबसे बड़ी समस्या है। महानगरीय जीवन शैली की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दिन-प्रतिदिन कल-कारखाने बढ़ते चले जा रहे हैं। कारखानों की चिमनियों तथा वाहनों से उगलते धुएँ ने समस्त वायुमण्डल दूषित कर दिया है। फ्रिज, एयरकंडीशनर आदि से उत्सृजित घातक गैसों ने प्राणवायु को विषैला बना दिया है। कारखानों से निकलने वाले कचरे तथा एसिड ने नदी, नाले, समुद्र आदि के जल को प्रदूषित कर दिया है। ध्वनिप्रसारक यन्त्रों की प्रयोग-बहुलता, वाहनों तथा कारखानों के भयंकर शोर ने मनुष्य-मन को अशान्त तथा रोगी बना दिया है। घातक कीटनाशकों तथा रसायनों की अधिकता ने अन्न, फल तथा सब्जियों को विषमय कर दिया है। पर्यावरण के प्रहरी वृक्ष-वनों पर निर्दयतापूर्वक कुल्हाड़ी चलाई जा रही है। तापमान बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं। फलतः समुद्रों का जल स्तर बढ़ने से समुद्र तटों के निकटवर्ती क्षेत्र के जलमग्न हो जाने का खतरा बढ़ गया है।

आज न श्वास लेने के लिए शुद्ध प्राणवायु उपलब्ध है, न पीने के लिए शुद्ध जल। मनुष्य, पशु-पक्षी, जल-जन्तुओं सभी का जीवन संकट में पड़ गया है। हम भूल गए हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में ही हमारी सुरक्षा का रहस्य छिपा है। अतः आवश्यकता पर्यावरण-सुरक्षा के प्रति जागरूक होने की है। यही ‘शुचिपर्यावरणम्’ कविता की रचना में कवि का उद्देश्य है।

प्रस्तुत पाठ ‘शुचिपर्यावरणम्’ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यांत्रिक-बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तनमन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं। कवि महानगरीय जीवन से दूर, नदी-निर्झर, वृक्षसमूह, लताकुञ्ज एवं पक्षियों से गुञ्जित वनप्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्यक्त करता है।

शुचिपर्यावरणम् पाठस्य सारांश:

‘शुचिपर्यावरणम्’ पाठ पर्यावरण प्रदूषण पर आधारित है। कवि हरिदत्त शर्मा नगरीय वातावण से व्याकुल है। महानगरों के बीच रात-दिन चलती हुई मशीनों के पहिये मनुष्य के तन को ही नहीं उसके मन को भी पीस रहे हैं। कवि को चिंता है कि मानव जाति कहीं इनका ग्रास न बन जाए। अत: शुद्ध पर्यावरण वाली प्रकृति की शरण में जाना चाहता है।

मोटर, रेलगाड़ियाँ धुआँ छोड़कर और शोर करके प्रदूषण फैला रही हैं। न साँस लेने के लिए शुद्ध वायु है न पीने के लिए शुद्ध जल, खाद्य वस्तुओं में मिलावट की भरमार है। इसीलिए कवि इस वातावरण से खिन्न होकर गाँव और वन में घूम फिर कर जीवन का आनन्द लेना चाहता है। जहाँ जल से परिपूर्ण झरने, नदी-नाले हरे-भरे वृक्ष, सुन्दर लताएँ हों। जहाँ नगर में होने वाले कोलाहल से व्याकुल लोगों के लिए पक्षियों के समूह से गुंजायमान वन प्रदेश सुख का सन्देश दे रहे हैं। जहाँ नगर में पाई जाने वाली चकाचौंध जीवन के आनन्द का विनाश नहीं करती है।

कवि कामना करता है कि कहीं लता, वृक्ष और झाड़ियाँ पत्थर की शिलाओं के नीचे न समा जाए। लगातार सड़कों, भवनों और कारखानों के निर्माण से भूमि पथरीली बनती चली जा रही है। कृषि योग्य भूमि घट रही है। कवि की चिंता है कि प्रकृति में इस पत्थर दिल सभ्यता का स्थायी निवास न हो जाए। कवि कहता है कि यदि ऐसा हो गया तो यह मनुष्य समाज के लिए जीते-जी मरण के तुल्य होगा और मुझे मानव का मरण नहीं अपितु जीवन अपेक्षित है। इसीलिए हमें बढ़-चढ़कर अपने पर्यावरण को प्रदूषण से रहित बनाना चाहिए तथा अधिक से अधिक प्राकृतिक वातावरण में जीने का प्रयास करना चाहिए।

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HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

HBSE 10th Class Sanskrit व्यायामः सर्वदा पथ्यः Textbook Questions and Answers

व्यायामः सर्वदा पथ्यः प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) कीदृशं कर्म व्यायामसंज्ञितम् कथ्यते ?
(ख) व्यायामात् किं किमुपजायते ?
(ग) जरा कस्य सकाशं सहसा न समधिरोहति ?
(घ) कियता बलेन व्यायामः कर्तव्यः ?
(ङ) अर्धबलस्य लक्षणं किम् ?
उत्तराणि
(क) शरीरायाससजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम् कथ्यते।
(ख) व्यायामात् शरीरोपचयः कान्तिः गात्राणां सुविभक्तता दीप्ताग्नित्वम्, अनालस्यं, स्थिरत्वं लाघवं, मजा, श्रम-क्लम-पिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता आरोग्यं च उपजायते।
(ग) जरा व्यायामाभिरतस्य सकाशं सहसा न समधिरोहति।
(घ) अर्धेन बलेन व्यायामः कर्तव्यः।
(ङ) यदा व्यायाम कुर्वतः हृदि स्थानास्थितो वायुः वक्त्रं प्रपद्यते, तद् अर्धबलस्य लक्षणम्।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

Shemushi Sanskrit Class 10 Chapter 3 Solutions HBSE प्रश्न 2.
उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु तृतीयाविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयतयथा – व्यायामः …….. हीनमपि सुदर्शनं करोति (गुण)
व्यायामः गुणैः हीनमपि सुदर्शनं करोति।
(क) ……………… व्यायामः कर्तव्यः। (बलस्यार्ध)
(ख) …………….. सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति। (व्यायाम)
(ग) ……………… विना जीवनं नास्ति। (विद्या)
(घ) सः …………….. खञ्जः अस्ति । (चरण)
(ङ) सूपकारः ……………. भोजनं जिघ्रति। (नासिका)
उत्तराणि
यथा – व्यायामः ……………….. हीनमपि सुदर्शनं करोति (गुण)
व्यायाम: गुणैः हीनमपि सुदर्शनं करोति।
(क) बलस्यार्धेन व्यायामः कर्तव्यः । (बलस्यार्ध)
(ख) व्यायामेन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति। (व्यायाम)
(ग) विद्यया विना जीवनं नास्ति। (विद्या)
(घ) सः चरणेन खञ्जः अस्ति। (चरण)
(ङ) सूपकारः नासिकया भोजनं जिघ्रति। (नासिका)

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

व्यायामः सर्वदा पथ्यः HBSE 10th Class प्रश्न 3.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) शरीरस्य आयासजननं कर्म व्यायामः इति कथ्यते।
(ख) अरयः व्यायामिनं न अर्दयन्ति।
(ग) आत्महितैषिभिः सर्वदा व्यायामः कर्तव्यः ।
(घ) व्यायामं कुर्वतः विरुद्धं भोजनम् अपि परिपच्यते।
(ङ) गात्राणां सुविभक्तता व्यायामेन संभवति।
उत्तराणि-(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) कस्य आयासजननं कर्म व्यायामः इति कथ्यते ?
(ख) के व्यायामिनं न अर्दयन्ति ?
(ग) कैः सर्वदा व्यायामः कर्तव्यः ?
(घ) व्यायाम कुर्वतः कीदृशं भोजनम् अपि परिपच्यते ?
(ङ) केषां सुविभक्तता व्यायामेन संभवति ?

व्यायाम के 10 लाभ In Sanskrit HBSE प्रश्न 4.
निम्नलिखितानाम् अव्ययानाम् रिक्तस्थानेषु प्रयोगं कुरुत
सहसा, अपि, सदृशं, सर्वदा, यदा, सदा, अन्यथा
(क) ……………… व्यायामः कर्तव्यः।
(ख) ………………….. मनुष्यः सम्यक् रूपेण व्यायामं करोति तदा सः …. स्वस्थः तिष्ठति।
(ग) व्यायामेन असुन्दरा: ………………. सुन्दराः भवन्ति।
(घ) व्यायामिनः जनस्य सकाशं वार्धक्यं ……………….. नायाति।
(ङ) व्यायामेन ……….. किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(च) व्यायाम समीक्ष्य एव कर्तव्यम् . ….. व्याधयः आयान्ति।
उत्तराणि
(क) सदा व्यायामः कर्तव्यः।
(ख) यदा मनुष्यः सम्यक्पेण व्यायाम करोति तदा सः सर्वदा स्वस्थः तिष्ठति।
(ग) व्यायामेन असुन्दराः अपि सुन्दराः भवन्ति।
(घ) व्यायामिनः जनस्य सकाशं वार्धक्यं सहसा नायाति।
(ङ) व्यायामेन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(च) व्यायाम समीक्ष्य एव कर्तव्यम् अन्यथा व्याधयः आयान्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

व्यायाम सर्वदा पथ्यः HBSE 10th Class प्रश्न 5.
(क) अधोलिखितेषु तद्धितपदेषु प्रकृति/प्रत्ययं च पृथक् कृत्वा लिखत
HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः img-1
उत्तराणि
HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः img-2.1
HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः img-2

(ख) अधोलिखितकृदन्तपदेषु मूलधातुं प्रत्ययं च पृथक् कृत्वा लिखतमूलशब्दः
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उत्तराणि
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Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 3 HBSE प्रश्न 6.
अधोलिखितेभ्यः पदेभ्यः उपसर्गान् पृथक् कृत्वा लिखत
HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः img-5
उत्तराणि
HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः img-6

Sanskrit Class 10 Chapter 3 Shemushi HBSE प्रश्न 7.
(क) षष्ठ-श्लोकस्य भावमाश्रित्य रिक्तस्थानानि पूरयत
यथा – ……….. समीपे उरगा: न ………… एवमेव व्यायामिनः जनस्य समीपं ……….. न गच्छन्ति। व्यायामः वयोरूपगुणहीनम् अपि जनम् …………. करोति।
उत्तरम्-यथा वैनतेयस्य समीपे उरगाः न गच्छन्ति एवमेव व्यायामिनः जनस्य समीपं व्याधयः न गच्छन्ति। व्यायामः वयोरूपगुणहीनम् अपि जनं सुदर्शनं करोति।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

(ख) उदाहरणमनुसृत्य वाच्यपरिवर्तनं कुरुत
कर्मवाच्यम् कर्तृवाच्यम्
यथा-आत्महितैषिभिः व्यायामः क्रियते आत्महितैषिणः व्यायाम कुर्वन्ति।
(1) बलवता विरुद्धमपि भोजनं पच्यते ……………………………..
(2) जनैः व्यायामेन कान्तिः लभ्यते ……………………………..
(3) मोहनेन पाठः पठ्यते ……………………………..
(4) लतया गीतं गीयते ……………………………..
उत्तराणि
कर्मवाच्यम् कर्तृवाच्यम्
यथा-आत्महितैषिभिः व्यायामः क्रियते – आत्महितैषिण: व्यायाम कुर्वन्ति। .
(1) बलवता विरुद्धमपि भोजनं पच्यते – बलवान् विरुद्धमपि भोजनं पचति।
(2) जनैः व्यायामेन कान्तिः लभ्यते – जनाः व्यायामेन कान्तिं लभन्ते।
(3) मोहनेन पाठः पठ्यते – मोहनः पाठं पठति।
(4) लतया गीतं गीयते । – लता गीतं गायति।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

(ग) ‘व्यायामस्य लाभाः’ इति विषयमधिकृत्य पञ्चवाक्येषु एकम् अनुच्छेदं लिखत।
उत्तरम्
(1) स्वास्थ्यरक्षायाः सर्वोत्तमः उपायः व्यायामः अस्ति।
(2) व्यायामाः बहुविधाः भवन्ति, यथा-धावनम्, कूर्दनम्, तरणम्, मल्लयुद्धम् इत्यादयः।
(3) व्यायामेन शरीरं हृष्टं पुष्टं स्वस्थं बलिष्ठं च भवति।
(4) शरीरस्य सर्वांगीणविकासाय व्यायाम: आवश्यकः भवति।
(5) व्यायामेन शरीरम् एव आरोग्यं न लभते, मनः अपि प्रसन्नं भवति, अतः यथाबलं व्यायामः कर्तव्यः।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

योग्यताविस्तारः
(क) सुश्रुतः आयुर्वेदस्य ‘सुश्रुतसंहिता’ इत्याख्यस्य ग्रन्थस्य रचयिता। अस्मिन् ग्रन्थे शल्यचिकित्सायाः । प्राधान्यमस्ति। सुश्रुतः शल्यशास्त्रज्ञस्य दिवोदासस्य शिष्यः आसीत्। दिवोदासः सुश्रुतं वाराणस्याम् आयुर्वेदम् अपाठयत्। सुश्रुतः दिवोदासस्य उपदेशान् स्वग्रन्थेऽलिखत्
सुश्रुत आयुर्वेद के ‘सुश्रुतसंहिता’ नामक ग्रन्थ के रचयिता हैं। इस ग्रन्थ में शल्यचिकित्सा की प्रधानता है। सुश्रुत शल्य शास्त्र के ज्ञाता दिवोदास के शिष्य थे। दिवोदास ने सुश्रुत को वाराणसी में आयुर्वेद बढ़ाया था। सुश्रुत ने दिवोदास के उपदेशों को अपने ग्रन्थ में लिखा।

(ख) उपब्धासु आयुर्वेदीय-संहितासु ‘सुश्रुतसंहिता’ सर्वश्रेष्ठः शल्यचिकित्साप्रधानो ग्रन्थः। अस्मिन् ग्रन्थे 120 अध्यायेषु क्रमेण सूत्रस्थाने मौलिकसिद्धान्तानां शल्यकर्मोपयोगि-यन्त्रादीनां, निदानस्थाने प्रमुखाणां रोगाणां, शरीरस्थाने शरीरशास्त्रस्य चिकित्सास्थाने शल्यचिकित्सायाः, कल्पस्थाने च विषाणां प्रकरणानि वर्णितानि। अस्य उत्तरतन्त्रे 66 अध्यायाः सन्ति।
उपलब्ध आयुर्वेद की संहिताओं में सुश्रुत संहिता सर्वश्रेष्ठ शल्यचिकित्सा-प्रधान ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में 120 अध्यायों में क्रमशः सूत्र स्थान में मौलिक सिद्धान्तों का शल्य कर्म के लिए उपयोगी यन्त्र आदि का, निदान-स्थान में प्रमुख रोगों का, शरीर-स्थान में शरीर शास्त्र का, चिकित्सा-स्थान में शल्य चिकित्सा का और कल्प-स्थान में विषों के प्रकरण वर्णित हैं। इसके उत्तर तन्त्र में 66 अध्याय है।

(ग) वैनतेयमिवोरगा:-कश्यप ऋषि की दो पत्नियाँ थीं-कट्ठ और विनता। विनता का पुत्र गरुड़ था और कद्रु का पुत्र सर्प। विनता का पुत्र होने के कारण गरुड़ को वैनतेय कहा जाता है। (विनतायाः अयम् वैनतेयः, अण् प्रत्यये कृते)। गरुड़ सर्प से अधिक ताकतवर होता है, भयवश साँप गरुड़ के पास जाने का साहस नहीं करता। यहाँ व्यायाम करने वाले मनुष्य की तुलना गरुड़ से तथा व्याधियों की तुलना साँप से की गई है। जिस प्रकार गरुड़ के समक्ष साँप नहीं जाता। उसी प्रकार व्यायाम करने वाले व्यक्ति के पास रोग नहीं फटकते।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

भाषिकविस्तारः
गुणवाचक शब्दों से भाव अर्थ में ष्यञ् अर्थात् य प्रत्यय लगाकर भाववाची पदों का निर्माण किया जाता है। शब्द के प्रथम स्वर में वृद्धि होती है और अन्तिम अ का लोप होता है।
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थाल्-प्रत्ययः-‘प्रकार’ अर्थ में थाल् प्रत्यय का प्रयोग होता है।
जैसेतेन प्रकारेण – तथा
येन प्रकारेण – यथा
अन्येन प्रकारेण – अन्यथा
सर्व-प्रकारेण – सर्वथा
उभय-प्रकारेण – उभयथा

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

भावविस्तारः
(क) शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्
शरीर ही सर्वप्रथम धर्म-साधन है।

(ख) लाघवं कर्मसामर्थ्य स्थैर्यं क्लेशसहिष्णुता।
दोषक्षयोऽग्निवृद्धिश्च व्यायामादुपजायते॥
स्फूर्ति कार्य करने की सामर्थ्य, दृढ़ निश्चयता (स्थिरता) कष्टों को सहने की क्षमता, दोषों का नाश और (पाचन) अग्नि में वृद्धि व्यायाम से उत्पन्न होती है।

(ग) यथा शरीरस्य रक्षायै उचितं भोजनम् उचितश्च व्यवहारः आवश्यकोऽस्ति तथैव शरीरस्य स्वास्थ्याय व्यायामः अपि आवश्यकः।
जिस प्रकार शरीर की रक्षा के लिए उचित भोजन और उचित व्यवहार आवश्यक है, उसी प्रकार शरीर के स्वास्थ्य के लिए व्यायाम भी आवश्यक है।

(घ) युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु। .
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥

योग आहार-विहार से युक्त, कर्मों में प्रयत्नशीलता से युक्त, स्वप्न तथा जागरण से युक्त मनुष्य के दुःखों का हरण करने वाला होता है।

(ङ) पक्षिणः आकाशे उड्डीयन्ते तेषाम् उड्डयनमेव तेषां व्यायामः। पशवोऽपि इतस्ततः पलायन्ते, पलायनमेव तेषां व्यायामः । शैशवे शिशुः स्वहस्तपादौ चालयति, अयमेव तस्य व्यायामः । वि + आ + यम् धातोः घञ् प्रत्ययात् निष्पन्नः व्यायाम शब्दः विस्तारस्य विकासस्य च वाचकः। यतो हि व्यायामेन अङ्गानां विकासः भवति। अतः सुखपूर्वकं जीवनं यापयितुं मनुष्यैः नित्यं व्यायामः करणीयः।
पक्षी आकाश में उड़ते हैं, उनके उड़ने में ही उनका व्यायाम है। पशु भी इधर-उधर घूमते है, घूमना ही उनका व्यायाम है। बचपन में बालक अपने हाथ-पैर चलाता है, यही ही उसका व्यायाम है। वि + आ + यम् धातु से घञ् प्रत्यय से निष्पन्न व्यायाम शब्द विस्तार और विकास का वाचक है। क्योंकि व्यायाम से अंगों का विकास होता है, अतः सुखपूर्वक जीवन बिताने के लिए मनुष्य को प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

HBSE 10th Class Sanskrit व्यायामः सर्वदा पथ्यः Important Questions and Answers

व्यायामः सर्वदा पथ्यः पठित-अवबोधनम्

1. निर्देशः- अधोलिखितं पद्यांशं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत
शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम्।
तत्कृत्वा तु सुखं देहं विमृद्नीयात् समन्ततः ॥1॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) कीदृशं कर्म व्यायामसंज्ञितम् ?
(ii) देहं समन्ततः किं कुर्यात् ?
(iii) देहं कथं विमदनीयात् ?
(iv) केन आयासजननं कर्म ‘व्यायामः’ इति कथितम् ?
उत्तराणि:
(i) शरीरायासजननम्।
(ii) विमृदुनीयात् ।
(iii) सुखम्।
(iv) शरीरेण।

(ख) पूर्णवाक्येन:
(i) व्यायामसंज्ञितं कर्म किम् अस्ति ?
(ii) व्यायामं कृत्वा किं कुर्यात् ? उत्तराणि
उत्तरत:
(i) व्यायामसंज्ञितं कर्म शरीरायासजननम् अस्ति।
(ii) व्यायामं कृत्वा समन्ततः देहं विमृद्नीयात् ।

(ग) निर्देशानुसारम्:
(i) ‘शरीरम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं पर्यायपदं किम् ?
(ii) ‘कृत्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(iii) ‘दुःखम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किमस्ति ?
(iv) ‘शरीरायासजननम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
उत्तराणि:
(i) देहम्।
(ii) क्त्वा।
(iii) सुखम्।
(iv) शरीर + आयासजननम्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम् (भवति) तत् कृत्वा तु देहं समन्ततः सुख विमृनीयात् ।

शब्दार्थाः- शरीर-आयास-जननम् = शरीर में थकावट पैदा करने वाला। आयासः = (परिश्रमः, प्रयत्नः, प्रयासः, श्रमः) परिश्रम, मेहनत। देहम् = (शरीरम्) शरीर। विमृद्नीयात् = (मर्दयेत्) मालिश करनी चाहिए। समन्ततः = (सर्वतः) सब ओर से।

संदर्भ:- प्रस्तुत पद्यांश आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुत संहिता’ के 24 वें अध्याय से हमारी पाठ्य- पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ में संकलित ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग:- प्रस्तुत पद्यांश में व्यायाम की परिभाषा बताई गई है। –

सरलार्थः- शरीर में थकावट करने वाला अर्थात् परिश्रम वाला कार्य व्यायाम कहलाता है। उस व्यायाम को करके शरीर की सभी ओर से सुखपूर्वक मालिश करनी चाहिए।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

2. भावार्थ:- परिश्रम वाले कार्य को व्यायाम कहते हैं। इसके पश्चात् पूरे शरीर की भली-भाँति मालिश करनी चाहिए।
शरीरोपचयः कान्तित्राणां सुविभक्तता।
दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मजा॥2॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) व्यायामात् कस्य उपचयः भवति ?
(ii) अत्र केषां सुविभक्तता कथिता ?
(iii) व्यायामात् कीदृशं अग्नित्वं जायते ?
(iv) अनालस्यं कस्मात् जायते ?
उत्तराणि-:
(i) शरीरस्य।
(ii) गात्राणाम्।
(iii) दीप्तम्।
(iv) व्यायामात्।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत:
(i) व्यायामात् किम् उपजायते ?
उत्तराणि:
(i) व्यायामात् शरीरोपचयः, कान्तिः, गात्राणां सुविभक्तता, दीप्ताग्नित्वम्, अनालस्यम्, स्थिरत्वम्, लाघवं मजा च उपजायते।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत:
(i) ‘शरीरोपचयः’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(ii) ‘सुविभक्तता’-अत्र प्रकृति-प्रत्ययनिर्देशं कुरुत।
(iii) ‘आलस्यम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iv) ‘स्थायित्वम्’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
उत्तराणि:
(i) शरीर + उपचयः ।
(ii) सु + वि + √भज् + क्त + तल्।
(iii) अनालस्यम्।
(iv) स्थिरत्वम्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- (व्यायामात्) शरीरोपचयः, कान्तिः, गात्राणां सुविभक्तता, दीप्ताग्नित्वम्, अनालस्यं, स्थिरत्वं, लाघवं, मजा (उपजायते)।

शब्दार्थाः- उपचयः = (अभिवृद्धिः) वृद्धि। कान्तिः = (आभा) चमक। गात्रम् = (शरीरम्) शरीर । सुविभक्तता = (शारीरिकं सौष्ठवम्) शारीरिक सौन्दर्य । दीप्ताग्नित्वम् = (जठराग्नेः प्रवर्धनम्) जठराग्नि का प्रदीप्त होना अर्थात् भूख लगना। मृजा = (स्वच्छीकरणम्) स्वच्छ करना।

संदर्भ:-पूर्ववत्।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्यांश में व्यायाम के लाभ वर्णित किए गए हैं।

सरलार्थ:- व्यायाम से शरीर की वृद्धि, चमक, शारीरिक सौन्दर्य, जठराग्नि की वृद्धि, आलस्यहीनता, स्थिरता, फुर्ती और स्वच्छता (उत्पन्न होती है।)

भावार्थ:- व्यायाम करने से शरीर का समुचित विकास होता है, चेहरे पर स्वाभाविक चमक आ जाती है, शरीर सडौल बनता है, पेट में भोजन को पचाने वाली अग्नि प्रदीप्त होने से अच्छी भूख लगती है, आलस्य दूर होता है; शरीर में स्थायित्व, स्फूर्ति तथा स्वच्छता आती है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

3. श्रमक्लमपिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता।
आरोग्यं चापि परमं व्यायामादुपजायते ॥3॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) आरोग्यं कस्मात् उपजायते ?
(ii) कीदृशम् आरोग्यम् उपजायते ?
(iii) व्यायामात् शीतादीनां का उपजायते ?
(iv) श्रमस्य सहिष्णुता कस्मात् उपजायते ?
उत्तराणि-:
(i) व्यायामात्।
(ii) परमम्।
(iii) सहिष्णुता।
(iv) व्यायामात् ।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्यायामात् केषां सहिष्णुता उपजायते ?
(ii) व्यायामात् परमं किम् उपजायते ?
उत्तराणि
(i) व्यायामात् श्रम-क्लम-पिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता उपजायते।
(ii) व्यायामात् परमम् आरोग्यम् उपजायते।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘उष्णम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(ii) ‘सहिष्णुता’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(iii) ‘रोगराहित्यम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iv) ‘व्यायामात्’ अत्र का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
उत्तराणि-:
(i) शीतम्।
(ii) तल्।
(iii) आरोग्यम्।
(iv) पञ्चमी विभक्तिः ।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- व्यायामात् श्रमक्लमपिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता,परमम् आरोग्यं च अपि उपजायते।

शब्दार्था:- क्लमः = (श्रमजनितं शैथिल्यम्) थकान। पिपासा = (पातुम् इच्छा) प्यास। उष्णः = (तापः) गर्मी। सहिष्णुता = (सहत्वं क्षमता) सहन करने की सामर्थ्य।

संदर्भ:- पूर्ववत्। प्रसंगः-प्रस्तुत पद्य में व्यायाम के लाभ बताए गए हैं।

सरलार्थ:- व्यायाम करने से परिश्रम से होने वाली थकान, प्यास, गर्मी-सर्दी आदि को सहन करने का सामर्थ्य और अच्छा स्वास्थ्य भी उत्पन्न होता है।

भावार्थ:- व्यायाम करने से गर्मी-सर्दी, श्रम जन्य थकावट, प्यास आदि को सहन करने की क्षमता बढ़ती है और उत्तम आरोग्य प्राप्त होता है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

4. न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित्स्थौल्यापकर्षणम्।
न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो बलात् ॥4॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) स्थौल्यापकर्षणं किमस्ति ?
(ii) अरयः कं न अर्दयन्ति ?
(ii) अरयः कीदृशं मर्यं न अर्दयन्ति ?
(iv) अरयः कथं न अर्दयन्ति ?
उत्तराणि:
(i) व्यायामः ।
(ii) मर्त्यम्।
(iii) व्यायामिनम्।
(iv) बलात्।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) केन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति ?
(ii) व्यायामिनं मर्यं के न अर्दयन्ति ?
उत्तराणि
(i) व्यायामेन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(ii) व्यायामिनं मर्त्यम् अरयः न अर्दयन्ति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘तुल्यम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘तेन’ इति सर्वनाम कस्मै प्रयुक्तम् ?
(iii) ‘अमर्त्यम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iv) ‘शत्रवः’ इत्यस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(v) ‘अर्दयन्त्यरयः’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
उत्तराणि:
(i) सदृशम्।
(ii) व्यायामाय।
(iii) मर्त्यम्।
(iv) अरयः ।
(v) अर्दयन्ति + अरयः ।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- तेन सदृशं स्थौल्यापकर्षणं च किञ्चित् न अस्ति। अरयः च व्यायामिनं मर्यं बलात् न अर्दयन्ति।

शब्दार्थाः- स्थौल्यम् = (अतिमांसलत्वं, पीनता) मोटापा। अपकर्षणम् = (दूरीकरणम्) दूर करना, कम करना। अर्दयन्ति = (अर्दनं कुर्वन्ति) कुचल डालते हैं। अरयः = (शत्रवः) शत्रुगण। मय॑म् = (मनुष्यम्) व्यक्ति को।

संदर्भ:- पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में व्यायाम के लाभ वर्णित किए गए हैं।

सरलार्थः- उस व्यायाम के समान मोटापे को कम करने वाला और कोई साधन नहीं है। शत्रु भी व्यायाम करने वाले व्यक्ति को बलपूर्वक पीड़ित नहीं करते हैं।

भावार्थः- व्यायाम से शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है, शरीर का थुलथुलापन दूर हो जाता है। व्यायाम करने वाले मनुष्य के हृष्ट-पुष्ट बलि शरीर को देखकर शत्रु भी दुम दबा कर भाग जाते हैं।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

5. न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति।
स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥5॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) व्यायामिनं का न समधिरोहति ?
(ii) व्यायामिनं जरा कथं न आक्रमते ?
(iii) किं स्थिरीभवति ?
(iv) कस्य मांसं स्थिरीभवति ?
उत्तराणि:
(i) जरा।
(ii) सहसा।
(iii) मांसम्।
(iv) व्यायामाभिरतस्य।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्यायामाभिरतस्य मांसं कीदृशं भवति ?
उत्तराणि
(i) व्यायामाभिरतस्य मांसं स्थिरी भवति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘चैनम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(ii) ‘आक्रम्य’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययनिर्देशं कुरुत।
(iii) “एनम्’ इति सर्वनामपदस्य स्थाने संज्ञापदं लिखत।
(iv) ‘अकस्मात्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किमस्ति ?
उत्तराणि:
(i) च + एनम्।
(ii) आ + क्रम् + ल्यप्।
(iii) व्यायामिनम्।
(iv) सहसा।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- जरा च सहसा आक्रम्य एनं न समधिरोहति। व्यायामाभिरतस्य हि मांसं च स्थिरीभवति।

शब्दार्थाः- आक्रम्य = (आक्रमणं कृत्वा) हमला करके। जरा = (वार्धक्यम्) बुढ़ापा। समधिरोहति = (आरूढं भवति) सवार होता है। अभिरतस्य = (संलग्नस्य) तल्लीन होने वाले का।

संदर्भ:- पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में व्यायाम के लाभ बताए गए हैं।

सरलार्थः- व्यायाम करने वाले व्यक्ति पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण कर सवार नहीं होता है। व्यायाम में लगे रहने वाले व्यक्ति का मांस भी पुष्ट हो जाता है।

भावार्थ:- व्यायाम करने से शरीर की मांस, मज्जा आदि सभी धातुएँ परिपुष्ट होने के कारण बुढ़ापा देर से आता है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

6. व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुवर्तितस्य च।
व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगाः वयोरूपगुणैीनमपि कुर्यात्सुदर्शनम् ॥6॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) व्यायमस्विन्नगात्रस्य के न उपसर्पन्ति ?
(ii) काभ्यां उद्वर्तितस्य व्याधयः नोपसर्पन्ति ?
(iii) व्याधयः के इव न उपसर्पन्ति ?
(iv) व्यायामः किं करोति ?
उत्तराणि:
(i) व्याधयः ।
(ii) पद्भ्याम्।
(iii) उरगाः ।
(iv) सुदर्शनम्।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्याधयः कस्य न उपसर्पन्ति ?
(ii) कैः हीनमपि सुदर्शनं कुर्यात् ?
(iii) व्यायामः अत्र व्याधीनां तुलना कैः सह कृता ?
उत्तराणि:
(i) व्याधयः व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्याम् उद्वर्तितस्य च न उपसर्पन्ति ।
(ii) व्यायामः वयोरूपगुणैः हीनमपि सुदर्शनं कुर्यात् ।
(iii) अत्र व्याधीनां तुलना उरगैः सह कृता।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘नोपसर्पन्ति’ अत्र सन्धिविच्छेदं कुरुत।
(ii) ‘सर्पाः’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(iii) ‘वैनतेयमिवोरगाः’-अत्र प्रयुक्तम् अव्ययपदं किम् ?
(iv) ‘सुदर्शनम्’ अत्र कः उपसर्गः प्रयुक्तः ?
(v) ‘गरुडम्’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) न + उपसर्पन्ति ।
(ii) उरगाः ।
(iii) इव।
(iv) सु।
(v) वैनतेयम्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्याम् उद्वर्तितस्य च व्याधयः वैनतेयम् उरगाः इव न उपसर्पन्ति। वयोरूपगुणैः हीनम् अपि सुदर्शनं कुर्यात्।

शब्दार्थाः- स्विन्नगात्रस्य = (स्वेदेन सिक्तस्य शरीरस्य) पसीने से लथपथ शरीर का। पद्भ्याम् उद्वर्तितस्य = (पद्भ्याम् उन्नमितस्य) दोनों पैरों से ऊपर उठने वाले व्यायाम। व्याधयः = (रोगा:) बीमारियाँ। वैनतेयः = (गरुड:) गरुड़। उरगः = (सर्प) साँप।

संदर्भ:- पूवर्वत् प्रसंग:-प्रस्तुत पद्यांश में व्यायाम के लाभ बताए गए हैं।

सरलार्थः- शरीर को पसीने से लथपथ कर देने वाले तथा पैरों को ऊपर उठाने वाले व्यायाम करने वाले व्यक्ति के समीप रोग उसी प्रकार नहीं आते जैसे गरुड़ के समीप साँप नहीं आते हैं। व्यायाम आयु, रूप और अन्य गुणों से हीन व्यक्ति को भी सुन्दर बना देता है।

भावार्थ:- व्यायाम करने से शरीर से पसीना निकलता है। जिससे शरीर के रोमछिद्र पूरी तरह खुल जाते हैं, शरीर पूर्णतया स्वस्थ हो जाता है। जो मनुष्य व्यायाम द्वारा शरीर से पसीना निकालता है और ‘पादोत्तान’ आदि आसन करके अपने रक्तचाप को नियन्त्रित रखता है ; रोग उसके पास नहीं फटकते और शरीर में सौन्दर्य की अभिवृद्धि भी होती है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

7. व्यायाम कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्।
विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥7॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) किं कुर्वत: भोजनं परिपच्यते ?
(ii) भोजनं कथं परिपच्यते ?
(iii) कदा व्यायामं कुर्वत: भोजनं परिपच्यते ?
(iv) व्यायामेन विरुद्धमपि किं परिपच्यते ?
उत्तराणि-:
(i) व्यायामम् ।
(ii) निर्दोषम् ।
(iii) नित्यम् ।
(iv) भोजनम्।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्यायामं कुर्वतः कीदृशं भोजनं निर्दोषं परिपच्यते ?
उत्तराणि
(i) व्यायामं कुर्वतः विरुद्धम्, विदग्धम् अविदग्धं वा अपि भोजनं निर्दोषं परिपच्यते।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘कुर्वतः’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘प्रतिदिनम्’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iii) ‘विदग्धम्’ इति पदस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iv) ‘विरुद्धम्’ इति विशेषणस्य अत्र विशेष्यपदं किम् ?
(v) ‘निर्दोषम्’ इति क्रियाविशेषणस्य क्रियापदं किमत्र प्रयुक्तम् ?
उत्तराणि:
(i) शतृ। कृ + शतृ = कुर्वत् + षष्ठी विभक्तिः एकवचनम्।
(ii) नित्यम्।
(iii) अविदग्धम्।
(iv) भोजनम्।
(v) परिपच्यते।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- नित्यं व्यायामं कुर्वतः विदग्धम् अविदग्धम् वा विरुद्धम् अपि भोजनं निर्दोषं परिपच्यते।

शब्दार्थाः- विरुद्धम् = (प्रतिकूलम्) विपरीत। विदग्धम् = (सुपक्वम्) भली प्रकार पका हुआ। अविदग्धम् = (अपक्वम्, अर्धपक्वम्) आधा पका हुआ, न पका हुआ। निर्दोषम् = दोषरहित। परिपच्यते = (जीर्यते) पच जाता है।

संदर्भ:- पूर्ववत् प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में बताया गया है कि व्यायाम से शरीर की पाचनक्षमता बढ़ जाती है।

सरलार्थ:- नित्य-प्रति व्यायाम करने वाले व्यक्ति को शरीर की प्रकृति के विपरीत,भली-भाँति पका हुआ अथवा न पका हुआ भोजन भी बिना किसी दोष के पच जाता है।

भावार्थ:- व्यायाम से मनुष्य की पाचक अग्नि इतनी तीव्र हो जाती है कि उसे हर प्रकार का भोजन बिना कोई रोग उत्पन्न किए पच जाता है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

8. व्यायामो हि सदा पथ्यो बलिनां स्निग्धभोजिनाम् ।
स च शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः ॥8॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) सदा कः पथ्यः ?
(ii) व्यायामः केषां पथ्यः ?
(iii) शीते व्यायामः कीदृशः स्मृतः ?
(iv) वसन्ते व्यायामः कीदृशः कथितः ?
उत्तराणि:
(i) व्यायामः ।
(ii) बलिनाम्।
(iii) पथ्यतमः।
(iv) पथ्यतमः ।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) कीदृशानां बलिनां व्यायामः सदा पथ्यः ?
(ii) व्यायामः कदा पथ्यतमः स्मृतः ?
उत्तराणि
(i) स्निग्धभोजिनां बलिनां व्यायामः सदा पथ्यः।
(ii) व्यायामः शीते वसन्ते च पथ्यतमः स्मृतः।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘पथ्यतमः’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘स च शीते’ अत्र ‘सः’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
(iii) ‘हितकारी’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iv) ‘स्मृतः’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययौ विभजत।
(v) ‘बलिनां स्निग्धभोजिनाम्’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) तमप् ।
(ii) व्यायामः ।
(iii) पथ्यः ।
(iv) √स्म + क्त।
(v) बलिनाम्।

हिन्दीभाषया पाठबोध:
अन्वयः- हि व्यायामः स्निग्धभोजिनां बलिनां सदा पथ्यः (भवति) सः शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः।

शब्दार्था:- स्निग्धभोजिनाम् = चिकनाई से युक्त भोजन करने वाले। पथ्यः = (अनूकूलः) उचित, स्वास्थ्यकारी। पथ्यतमः = (अनुकूलतमः) सर्वाधिक हितकारी। स्मृतः = (कथितः) कहा गया है।
संदर्भ:-पूर्ववत्
प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में वर्णित किया गया है कि व्यायाम शीत ऋतु तथा वसन्त ऋतु में सर्वाधिक स्वास्थ्य प्रदान करने वाला होता है।
सरलार्थ:-निश्चय ही यह व्यायाम चिकनाईयुक्त भोजन खानेवाले बलवान् व्यक्तियों के लिए सदैव हितकर होता है। परन्तु वही व्यायाम शीत और वसन्त ऋतुओं में सबसे अधिक हितकारी कहा गया है।
भावार्थ:-व्यायाम करने वाले मनुष्य को चिकनाईयुक्त भोजन दूध आदि अवश्य लेना चाहिए, क्योंकि व्यायाम करने से पसीना अधिक आता है, वसा जल जाती है। इसका संतुलन चिकनाईयुक्त भोजन से ही हो पाता है। यद्यपि व्यायाम सभी ऋतुओं में हितकारी होता है, परन्तु शीत और वसन्त ऋतुओं में व्यायाम का लाभ सर्वाधिक होता है।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

9. सर्वेष्वतुष्वहरहः पुम्भिरात्महितैषिभिः।
बलस्यार्धेन कर्त्तव्यो व्यायामो हन्त्यतोऽन्यथा ॥१॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) कीदृशैः पुम्भिः व्यायामः कर्तव्यः ?
(ii) केषु ऋतुषु व्यायामः कर्तव्यः ?
(iii) कस्य अर्धेन व्यायामः कर्तव्यः ?
(iv) अहरहः कः कर्तव्यः ?
उत्तराणि:
(i) आत्महितैषिभिः ।
(ii) सर्वेषु ।
(iii) बलस्य।
(iv) व्यायामः ।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) अहरहः कैः व्यायामः कर्तव्यः ?
(ii) व्यायामः कदा हन्ति ?
(iii) व्यायामः कदा कर्तव्यः ?
उत्तराणि
(i) अहरहः आत्महितैषिभिः पम्भिः व्यायामः कर्तव्यः।
(ii) बलस्यार्धेन व्यायामः कर्तव्यः अतोऽन्यथा व्यायामः हन्ति।
(iii) व्यायामः सर्वेषु ऋतुषु अहरहः कर्तव्यः।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘प्रतिदिनम्’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘कर्तव्यः’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
(iii) ‘कर्तव्यः’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(iv) ‘हन्त्यतोऽन्यथा’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत ?
(v) ‘मनुष्यैः’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) अहरहः ।
(ii) ऋतुषु।
(iii) तव्यत्।
(iv) हन्ति + अतः + अन्यथा।
(v) पुम्भिः ।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः-आत्महितैषिभिः पुम्भिः सर्वेषु ऋतुषु अहरह: बलस्य अर्धेन व्यायामः कर्तव्यः अत: अन्यथा हन्ति।
शब्दार्था:- अहरहः = (प्रतिदिनम्) प्रत्येक दिन। पुम्भिः = (पुरुषैः) पुरुषों के द्वारा। आत्महितैषिभिः = (आत्मनः हितेच्छुकैः) अपना हित चाहने वालों द्वारा।
संदर्भ:-पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत पद्यांश में बताया गया है कि मनुष्य को अपने बल का आधा व्यायाम ही करना उचित है।
सरलार्थः-अपना हित चाहनेवाले मनुष्यों को सब ऋतुओं में प्रतिदिन अपने शरीर-बल का आधा व्यायाम करना चाहिए; इससे भिन्न अर्थात् आधे बल से अधिक व्यायाम करने पर यह व्यायाम हानिकारक होता है।
भावार्थ:-व्यायाम कितना करना चाहिए? इसके उत्तर में सुश्रुत ऋषि का मत है कि मनुष्य का जितना बल हो उससे आधा व्यायाम करना ही हितकारी होता है, अन्यथा व्यायाम मनुष्य को स्वस्थ करने के स्थान पर रोगी बना देता है। कहा भी है-‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’-अति किसी भी विषय में नहीं करनी चाहिए।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

10. हृदिस्थानास्थितो वायुर्यदा वक्त्रं प्रपद्यते।
व्यायाम कुर्वतो जन्तोस्तबलार्धस्य लक्षणम् ॥ 10 ॥ .

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) वायुः कुत्र स्थितः भवति ?
(ii) वायु कं प्रपद्यते ?
(ii) अत्र कस्य लक्षणं कथितम् ?
(iv) अत्र किं कुर्वत: जन्तोः लक्षणं कथितम् ?
उत्तराणि:
(i) हृदि।
(ii) वक्त्रम्।
(iii) बलार्धस्य।
(iv) व्यायामम्।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) कीदृशः वायुः वक्त्रं प्रपद्यते ?
(ii) अत्र बलार्धस्य किं लक्षणं कथितम् ?
उत्तराणि
(i) हृदिस्थानास्थितः वायुः वक्त्रं प्रपद्यते।
(ii) यदा व्यायाम कुर्वतः जन्तोः हृदिस्थानास्थितः वायुः वक्त्रं प्रपद्यते, तत् बलार्धस्य लक्षणं कथितम्।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘मुखम्’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः ?
(ii) ‘व्यायाम कुर्वतो जन्तोः’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
(iii) ‘आस्थितः’ अत्र प्रकृति-प्रत्यय-निर्देशं कुरुत ?
(iv) ‘जन्तोः’ इति पदे का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
(v) ‘परिभाषा’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) वक्त्रम्।
(ii) जन्तोः ।
(iii) आ + √स्था + क्त ।
(iv) षष्ठी विभक्तिः ।
(v) लक्षणम्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः-व्यायामं कुर्वतः जन्तोः हृदिस्थानास्थितः वायुः यदा वक्त्रं प्रपद्यते तद् बलार्धस्य लक्षणम्।
शब्दार्थाः- हृदि = (हृदये) हृदय में। आस्थितः = (विद्यमानः) ठहरा हुआ। वक्त्रम् = (मुखम्) मुख को। प्रपद्यते = (प्राप्नोति) प्राप्त करता है। जन्तोः = (प्राणिनः) व्यक्ति का।
संदर्भः-पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में व्यायाम के प्रसंग में व्यक्ति के अच्छे बल की पहचान बताई गई है।
सरलार्थ:-व्यायाम को करते हुए व्यक्ति के हृदय में उचित स्थान पर स्थित श्वास वायु जब मुख तक पहुँचने लगती है, तब आधे बल का लक्षण होता है।
भावार्थः-व्यायाम करते हुए हृदय में स्थित वायु प्रबलता से मुख में पहुँचने लगती है अर्थात् मनुष्य हाँपने लगता है, इस अवस्था को उस मनुष्य का आधा बल समझना चाहिए।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

11. वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च।
समीक्ष्य कुर्याद् व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात् ॥ 11॥

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) वयोबलशरीराणि समीक्ष्य किं कुर्यात् ?
(ii) देशकालाशनानि किं कृत्वा व्यायाम कुर्यात् ?
(iii) अन्यथा कम् आप्नुयात् ?
(iv) ‘लभेत’ इति स्थाने प्रयुक्तं पदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) व्यायामम्।
(ii) समीक्ष्य।
(iii) रोगम्।
(iv) प्राप्नुयात् ।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) किं समीक्ष्य व्यायामं कुर्यात् ?
(ii) रोगं कदा आप्नुयात् ?
उत्तराणि
(i) वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च समीक्ष्य व्यायाम कुर्यात् ।
(ii) यदि वयोबलादीनि न समीक्ष्य व्यायामं कुर्यात् तदा रोगम् आप्नुयात्।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘सम्यक् विचार्य इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘भोजनम्’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः ?
(iii) ‘अविचार्य’ इत्यस्य प्रयुक्तं विपरीतार्थकपदं किम् ?
(iv) ‘समीक्ष्य’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(v) ‘आयुः’ इत्यस्य कः पर्यायः अत्र प्रयुक्तः ?
उत्तराणि:
(i) समीक्ष्य।
(ii) अशनम्।
(iii) समीक्ष्य।
(iv) ल्यप् ।
(v) वयः।

हिन्दीभाषया पाठबोध:
अन्वयः-वयः बलशरीराणि देश-काल-अशनानि च समीक्ष्य व्यायामं कुर्यात् अन्यथा रोगम् आप्नुयात्।
शब्दार्थाः- देशकालाशनानि = देश और काल के अनुरूप भोजन। अशनानि = (आहाराः/भोजनानि) भोजन। समीक्ष्य = (परीक्ष्य) परीक्षण करके।
संदर्भ:-पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत पद्यांश में बताया गया है कि व्यायाम कितना करना चाहिए।
सरलार्थः- मनुष्य को अपनी आयु, बल, शरीर, स्थान, समय तथा भोजन का सोच-विचार करके व्यायाम करना चाहिए, अन्यथा रोगों को प्राप्त होता है।
भावार्थ:-व्यायाम करते समय कुछ सावधानियाँ आवश्यक हैं। व्यायाम करने वाले मनुष्य को यह ध्यान करना बहुत आवश्यक है कि उसकी आयु क्या है, उसका शरीर बल कितना है, शरीर की प्रकृति कैसी है, व्यायाम वाला स्थान कैसा है, व्यायाम किस समय या किस ऋतु में किया जा रहा है। यदि कोई मनुष्य इन बातों पर ध्यान दिए बिना व्यायाम करेगा तो यह व्यायाम ही उसे रोगी बना देगा।

HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः

व्यायामः सर्वदा पथ्यःSummary in Hindi

व्यायामः सर्वदा पथ्यः पाठ-परिचय

(व्यायाम सदा हितकारी होता है)
‘सुश्रुत संहिता’ आयुर्वेद का अत्यन्त प्राचीन चिकित्सा शास्त्र है। इसकी रचना ईसा पर्व तीसरी शताब्दी में मानी जाती है। सुश्रुत संहिता में मुख्य रूप से शल्य चिकित्सा, विष, चिकित्सा तथा स्वास्थ्य के नियमों का निरुपण किया गया है। सुश्रुत संहिता छः खण्डों में विभाजित है.
(1) सूत्र स्थान (46 अध्याय, (2) निदान स्थान (16 अध्याय), (3) शारीर स्थान (10 अध्याय), (4) चिकित्सा स्थान (40 अध्याय), (5) कल्प स्थान (8 अध्याय), उत्तर तन्त्र (66 अध्याय)। सुश्रुत संहिता के लेखक आचार्य सुश्रुत हैं, जिनकी ख्याति चरक संहिता के रचयिता आचार्य चरक के तुल्य ही है।
प्रस्तुत पाठ ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः’ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’ के चिकित्सा स्थान में वर्णित 24 वें अध्याय से संकलित है। इसमें आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम की परिभाषा बताते हुए उससे होने वाले लाभों की चर्चा की है। शरीर में सुगठन, कान्ति, स्फूर्ति, सहिष्णुता, नीरोगता आदि व्यायाम के प्रमुख लाभ हैं। इनकी प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने शरीर के अनुकूल व्यायाम अवश्य करना चाहिए।

व्यायामः सर्वदा पथ्यः पाठस्य सारांश:
‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः’ यह पाठ चरक मुनि द्वारा रचित चरक संहिता से लिया गया है। इस पाठ में व्यायाम से होने वाले लाभ व्यायाम की मात्रा आदि के बारे में बताया गया है। पाठ का सारांश इस प्रकार है
जिससे शरीर में थकावट पैदा हो उस कर्म को व्यायाम कहते हैं। ऐसा परिश्रम वाला कार्य करके पूरे शरीर का भलीभाँति मर्दन करना चाहिए। व्यायाम से शरीर की वृद्धि, सुडौलता, जठराग्नि का प्रदीप्त होना, आलस्यहीनता, स्फूर्ति तथा मोटापे को दूर करने आदि अनेक लाभ होते हैं। जो व्यक्ति नियमपूर्वक व्यायाम करता है ; उसका शरीर बलिष्ठ होता है और उसे बुढ़ापा भी देर से आता है। उसकी पाचक अग्नि इतनी तेज़ हो जाती है कि उसे पका, अधपका यहाँ तक कि कच्चा भोजन भी बिना किसी दोष के पच जाता है। व्यायाम करने से शरीर से पसीना निकलता है और पसीने के साथ कुछ खनिज भी बाहर निकल जाते हैं। अत: व्यायाम करने वाले व्यक्ति को दूध घी आदि चिकनाईयुक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए । व्यायाम यद्यपि सभी ऋतुओं में लाभकारी होता है परन्तु शीत और वसन्त ऋतु में व्यायाम करना स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम होता है। व्यायाम की मात्रा अपने बल के आधे से अधिक नहीं होनी चाहिए। जब व्यायाम करते हुए फेफड़ों में स्थित वायु बलपूर्वक मुँह के रास्ते बाहर आने लगती है तब समझना चाहिए कि आधा बल हो चुका है। व्यायाम करते समय स्थानीय वातावरण, शरीर के बल, आयु तथा उपलब्ध भोजन का भी ध्यान रखना चाहिए ; अन्यथा व्यायाम स्वास्थ्य देने के स्थान पर शरीर को रोगों का घर बना देता है।

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HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Sandhi संधि Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Vyakaran संधि

संधि

Hindi Vyakaran Sandhi HBSE 10th Class प्रश्न 1.
संधि किसे कहते हैं? इसके कितने भेद हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
संधि का शाब्दिक अर्थ है-मिलना या जुड़ना। निकटवर्ती वर्गों के मेल से होने वाले परिवर्तन को ही संधि कहते हैं अर्थात् जब ध्वनियाँ निकट होने पर आपस में मिल जाती हैं और एक नया रूप धारण कर लेती हैं, तब संधि मानी जाती है; जैसे
विद्या + आलय = विद्यालय
सत् + जन = सज्जन
दुः + जन = दुर्जन
देव + इंद्र = देवेंद्र
रेखा + अंकित = रेखांकित

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

संधि के तीन भेद हैं-
(i) स्वर संधि,
(ii) व्यंजन संधि,
(iii) विसर्ग संधि।

(i) स्वर संधि दो स्वरों के आपस में मेल होने से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं; जैसे-परम + आत्मा = परमात्मा।

स्वर संधि के पाँच उपभेद हैं
1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. वृद्धि संधि
4. यण संधि
5. अयादि संधि।

1. दीर्घ संधि-जब ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आए तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ हो जाते हैं।
अ + अ = आ
मत + अनुसार = मतानुसार
वेद + अंत = वेदांत
परम + अणु = परमाणु
सार + अंश = सारांश
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
स्व + अधीन = स्वाधीन

अ + आ = आ
भोजन + आलय = भोजनालय
हिम + आलय = हिमालय
परम + आत्मा = परमात्मा
दश + आनन = दशानन
रत्न + आकर = रत्नाकर
धन + आदेश = धनादेश

आ + अ = आ
यथा + अर्थ = यथार्थ
रेखा + अंकित = रेखांकित
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
दीक्षा + अंत = दीक्षांत
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी

आ + आ = आ
महा + आत्मा = महात्मा
विद्या + आलय = विद्यालय
महा + आनंद = महानंद
कारा + आवास = कारावास
दया + आनंद = दयानंद
मदिरा + आलय = मदिरालय

इ + इ = ई
रवि + इंद्र = रवींद्र
कवि + इंद्र = कवींद्र
अति + इव = अतीव
कपि + इंद्र = कपींद्र
अभि + इष्ट = अभीष्ट

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

इ + ई = ई
गिरि + ईश = गिरीश
परि + ईक्षा = परीक्षा
कपि + ईश = कपीश
हरि + ईश = हरीश
फणि + ईश्वर = फणीश्वर
मुनि+ ईश्वर = मुनीश्वर

ई + इ = ई
मही + इंद्र = महींद्र
नारी+ इंदु = नारीदु
नदी + इंद्र = नदींद्र
शची+ इंद्र = शचींद्र
नारी + इच्छा = नारीच्छा

ई + ई = ई
रजनी + ईश = रजनीश
नदी + ईश = नदीश
जानकी + ईश = जानकीश
नारी + ईश्वर = नारीश्वर
मही + ईश = महीश
योगी + ईश्वर = योगीश्वर

उ + उ = ऊ
भानु + उदय = भानूदय
सु + उक्ति = सूक्ति
लघु + उत्तर = लघूत्तर
विधु + उदय = विधूदय
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
अनु + उदित = अनूदित

उ + ऊ = ऊ
अंबु + ऊर्मि = अंबूर्मि
सिंधु + ऊर्मि = सिंधूमि
लघु + ऊर्मि = लघूर्मि

ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव = वधूत्सव
भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग

ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊर्जा = भूर्जा
वधू + ऊर्मि = वधूर्मि

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

Sandhi 10th Class HBSE

2. गुण संधि-यदि ‘अ’ और ‘आ’ के आगे ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’, ऋ स्वर आते हैं, तो दोनों के मिलने से क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर’ हो जाते हैं।

अ + इ = ए
देव + इंद्र = देवेंद्र
नर + इंद्र = नरेंद्र
भारत + इंदु = भारतेंदु
स्व + इच्छा = स्वेच्छा
सत्य + इंद्र = सत्येंद्र
गज + इंद्र = गजेंद्र

आ + इ = ए
राजा + इंद्र = राजेंद्र
रमा + इंद्र = रमेंद्र
यथा + इष्ट = यथेष्ट
महा + इंद्र = महेंद्र

अ + ई = ए
गण + ईश = गणेश
नर + ईश = नरेश
राज + ईश = राजेश
कमल + ईश = कमलेश
परम + ईश्वर = परमेश्वर
सुर + ईश = सुरेश

आ + ई = ए
रमा + ईश = रमेश
महा + ईश्वर = महेश्वर
राका + ईश = राकेश
लंका + ईश = लंकेश
महा + ईश = महेश
गंगा + ईश्वर = गंगेश्वर

अ + उ = ओ
वीर + उचित = वीरोचित
सूर्य + उदय = सूर्योदय
वसंत + उत्सव = वसंतोत्सव
भाग्य + उदय = भाग्योदय
पर + उपकार = परोपकार
उत्तर + उत्तर = उत्तरोत्तर

अ + ऊ = ओ
जल + ऊर्मि = जलोमि
भाव + ऊर्मि = भावोर्मि
समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
सागर + ऊर्मि = सागरोर्मि

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + उदधि = महोदधि

आ + ऊ = ओ
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
महा + ऊर्मि = महोर्मि
महा + ऊष्पा = महोष्मा

अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि
राज + ऋषि = राजर्षि
ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
देव + ऋषि = देवर्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि

आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि

उद्यत का संधि HBSE 10th Class

3. वृद्धि संधि-जब ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हो तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ हो जाते हैं और ‘ओ’ या ‘औ’ हो तो ‘औ’ हो जाता है।

अ + ए = ऐ
एक + एक = एकैक
लोक + एषणा = लोकैषणा

अ + ऐ = ऐ
मत + ऐक्य = मतैक्य
परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य
धन + ऐश्वर्य = धनैश्वर्य

आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव
तथा + एव = तथैव/

आ + ऐ = ऐ
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
रमा + ऐश्वर्य = रमैश्वर्य

अ + ओ = औ
परम + ओज = परमौज
दंत + ओष्ठ = दंतौष्ठ
जल + ओघ = जलौघ

अ + औ = औ
वन + औषधि = वनौषधि
परम + औदार्य = परमौदार्य
परम + औषध = परमौषध

आ + ओ = औ
महा + ओजस्वी = महौजस्वी
महा + ओज = महौज
महा + ओघ = महौघ

आ + औ = औ
महा + औषध = महौषध
महा + औदार्य = महौदार्य

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

Sandhi Class 10 HBSE

4. यण संधि-यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आए तो इ/ई का ‘य’, उ/ऊ का ‘व’ और ऋ का ‘र’ हो जाता है।

इ + अ = य
अति + अधिक = अत्यधिक
अति + अंत = अत्यंत
यदि + अपि = यद्यपि
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक

इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि
नदी + आगम = नद्यागम

ई + आ = या
सखी + आगमन = सख्यागमन
अति + उत्तम = अत्युत्तम

इ + उ = यु
उपरि + उक्त = उपर्युक्त
अभि + उदय = अभ्युदय
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
प्रति + ऊष = प्रत्यूष

इ + ऊ = यू
नि + ऊन = न्यून
वि + ऊह = व्यूह

इ + ए = ये
प्रति + एक = प्रत्येक
अधि + एषणा = अध्येषणा

उ + अ = व
सु + अच्छ = स्वच्छ
मनु + अंतर = मन्वंतर
अनु + अय = अन्वय

उ + आ = वा
सु + आगत = स्वागत
मधु + आलय = मध्वालय
गुरु + आदेश = गुवदिश

उ + इ = वि
अनु + इति = अन्विति
अनु + इत = अन्वित

उ + ए = वे
अनु + एषण = अन्वेषण
प्रभु + एषणा = प्रभ्वेषणा

ऊ + आ = वा
वधू + आगमन = वध्वागमन
भू + आदि = भ्वादि

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

ऋ + आ = रा
मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
पितृ + आनुमति = पित्रानुमति
मातृ + आदेश = मात्रादेश

Sandhi Class 10 Hindi HBSE

5. अयादि संधि-जहाँ ए/ऐ, ओ/औ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है, तो इनके स्थान पर क्रमशः ए का अय, ऐ का आय, ओ का अव तथा औ का आव हो जाता है।

ए + अ = अय
ने + अन = नयन
शे + अन = शयन
चे + अन = चयन

ऐ + अ = आय
नै + अक = नायक
गै + अक = गायक

ऐ + इ = आयि
गै + इका = गायिका
नै + इका = नायिका
कै + इक = कायिक

ओ + अ = अव
पो + अन = पवन
भो + अन = भवन
हो + अन = हवन

औ + उ = आवु
भौ + उक = भावुक

औ + अ = आव
पौ + अन = पावन
पौ + अक = पावक

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

(ii) व्यंजन संधि-व्यंजन ध्वनि से परे कोई स्वर या व्यंजन आने से जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं; जैसेजगत् + नाथ =’जगन्नाथ।
व्यंजन संधि के नियम इस प्रकार हैं

1. वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन यदि क, च, ट्, त्, प् वर्ण से परे कोई स्वर या वर्ग का तीसरा-चौथा वर्ण या य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो, तो पहले वर्ण का उसी वर्ण का तीसरा वर्ण हो जाता है।
वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता
वाक् + ईश = वागीश
षट् + आनन = षडानन
दिक् + अंबर = दिगंबर
दिक् + गज = दिग्गज
सत् + गति = सद्गति
सत् + गुण = सद्गुण
सत् + वाणी = सद्वाणी
अप + धि = अब्धि

2. वर्ग के पहले वर्ण का पंचम वर्ण में परिवर्तन यदि वर्ग के पहले वर्ण से परे कोई अनुनासिक अर्थात् ‘न’ या ‘म’ हो, तो पहला वर्ण उसी वर्ग का अनुनासिक वर्ण हो जाता है।
वाक् + मय = वाङ्मय
षट् + मास = षण्मास
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
सत् + मार्ग = सन्मार्ग
चित् + मय = चिन्मय
उत् + मत = उन्मत
सत् + मति = सन्मति
उत् + नायक = उन्नायक
उत् + मेष = उन्मेष
उत् + यत = उद्यत

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

3. ‘त’ सम्बन्धी नियम-
(क) ‘त्’ के बाद यदि ‘ल’ हो तो ‘त’ ‘ल’ में बदल जाता है।
उत् + लेख = उल्लेख
तत् + लीन = तल्लीन
उत् + लास = उल्लास

(ख) ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ज/झ हो, तो त्, द् ‘ज्’ में बदल जाता है।
सत् + जन = सज्जन
उत् + ज्वल = उज्ज्वल
जगत् + जननी = जगज्जननी
विपत् + जाल = विपज्जाल

(ग) “त्’ के बाद यदि ट/ड हो तो ‘त’ ट्/ड् में बदल जाता है।
तत् + टीका = तट्टीका ।
उत् + डयन = उड्डयन
बृहत् + टीका = बृहट्टीका

(घ) ‘त्’ के बाद यदि ‘श्’ हो तो ‘त्’ का ‘च’ और ‘श’ का ‘छ्’ हो जाता है।
उत् + श्वास = उच्छवास
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
तत् + शिव = तच्छिव
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट

‘त्’ के बाद यदि ‘च/छ’ हो तो ‘त्’ का ‘च’ हो जाता है।
उत् + चारण = उच्चारण
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
उत् + चरित = उच्चरित
जगत् + छाया = जगच्छाया

‘त्’ के बाद ‘ह’ हो तो ‘त’ का ‘द’ और ‘ह’ का ‘धू’ हो जाता है।
तत् + हित = तद्धित
उत् + हार = उद्धार
पत् + हति = पद्धति
उत् + हत = उद्धत

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

4. ‘छ’ संबंधी नियम-जब किसी शब्द के अंत में स्वर हो और आगे के शब्द का पहला वर्ण ‘छ’ हो, तो ‘छ’ का ‘छ’ हो जाता है।
अनु + छेद = अनुच्छेद
वि + छेद = विच्छेद
स्व + छंद = स्वच्छंद
परि + छेद = परिच्छेद
आ + छादन = आच्छादन
छत्र + छाया = छत्रच्छाया

5. ‘म’ संबंधी नियम-जब पहले शब्द के अंतिम वर्ण ‘म’ के आगे दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण (य, र, ल, व) या (श, ष, स, ह) या अन्य स्पर्श व्यंजन हो, तो ‘म’ के स्थान पर पंचम वर्ण अथवा अनुस्वार हो जाता है।
सम् + चय = संचय
सम् + योग = संयोग
सम् + हार = संहार
सम् + भव = संभव
सम् + लाप = संलाप
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + स्मरण = संस्मरण
सम् + शोधन = संशोधन
सम् + मति = सम्मति
सम् + बंध = संबंध
सम् + सार = संसार
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + तोष = संतोष
सम् + गम = संगम
सम् + शय = संशय
अहम् + कार = अहंकार

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

6. ‘न’ का ‘ण’ संबंधी नियम-यदि ऋ, र, ष के बाद ‘न’ व्यंजन आता है तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है।
परि + नाम = परिणाम
राम + अयन = रामायण
मर + न = मरण
प्र + मान = प्रमाण
भर + न = भरण

7. ‘स’ का ‘ष’ संबंधी नियम-यदि ‘स’ से पहले ‘अ’, ‘आ’ से भिन्न स्वर हो तो ‘स’ का ‘ष’ हो जाता है।
अभि + सेक = अभिषेक
नि + सेध = निषेध
वि + सम = विषम
सु + सुप्ति = सुषुप्ति

(iii) विसर्ग संधि-विसर्ग के बाद यदि स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं; जैसे
निः + गुण = निर्गुण।

विसर्ग संधि के नियम इस प्रकार हैं-
1. विसर्ग का ‘ओ’ होना विसर्ग से पहले यदि ‘अ’ हो और बाद में ‘अ’ अथवा वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां अक्षर या य, र, ल, व आ जाए तो विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है।
यशः + गान = यशोगान
मनः + भाव = मनोभाव
सरः + ज = सरोज
मनः + विकार = मनोविकार
अधः + गति = अधोगति
निः + आहार = निराहार
रजः + गुण = रजोगुण
मनः + हर = मनोहर
तपः + बल = तपोबल
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
पयः + द = पयोद
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

2. विसर्ग का ‘र’ होना यदि विसर्ग से पहले ‘अ’, ‘आ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और आगे का तीसरा, चौथा, पाँचवां अक्षर या य, र, ल, व अथवा स्वर हो, तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है।
निः + आशा = निराशा
दुः + उपयोग = दुरुपयोग
दुः + लभ = दुर्लभ
आशीः + वाद = आशीर्वाद
निः + धन = निर्धन
दुः + जन = दुर्जन
निः + गुण = निर्गुण
बहिः + मुख = बहिर्मुख
पुनः + जन्म = पुनर्जन्म
निः + यात = निर्यात
दुः + बुद्धि = दुर्बुद्धि
निः + उत्तर = निरुत्तर
निः + भय = निर्भय

3. विसर्ग का ‘श’ होना विसर्ग से पहले यदि कोई स्वर हो और बाद में ‘च’ या ‘छ’ हो तो विसर्ग का ‘श्’ हो जाता है।
निः + चल = निश्चल
निः + छल = निश्छल
निः + चय = निश्चय
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
दुः + शासन = दुश्शासन
निः + चिंत = निश्चित

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

4. विसर्ग का ‘स’ होना-विसर्ग के बाद यदि ‘त’ या ‘स’ हो तो विसर्ग का ‘स्’ हो जाता है।
निः + संतान = निस्संतान
निः + तेज = निस्तेज
दुः + साहस = दुस्साहस
मनः + ताप = मनस्ताप
नमः + ते = नमस्ते
निः + संदेह = निस्संदेह

5. विसर्ग का ‘ष’ होना विसर्ग से पहले इ/उ और बाद में क, खं, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है।
निः + कलंक = निष्कलंक
दुः + कर = दुष्कर
बहिः + कार = बहिष्कार
निः + फल = निष्फल
दुः + प्रकृति = दुष्प्रकृति
चतुः + पाद = चतुष्पाद
निः + पाप = निष्पाप
निः + कपट = निष्कपट

6. विसर्ग का लोप(क) यदि विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है; जैसे
अतः + एव = अतएव

(ख) विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है और स्वर दीर्घ हो जाता है।
निः + रोग = नीरोग
निः + रस = नीरस
निः + रव = नीरव

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

7. विसर्ग यथारूप-यदि विसर्ग के आगे क, प, में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग यथारूप रहता है।
अंतः + करण = अंतःकरण
प्रातः + काल = प्रातःकाल
अधः + पतन = अधःपतन

अभ्यासार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण:
सीमा + अंत = सीमांत
निः + सार = निस्सार
भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व
प्रति + एक = प्रत्येक
दुः + कर्म = दुष्कर्म
नर + इंद्र = नरेंद्र
उत् + चारण = उच्चारण
शाक + आहारी = शाकाहारी
देव + इंद्र = देवेंद्र
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान
वाक् + धारा = वाग्धारा ।
उत् + मत = उन्मत्त
दुः + कृत = दुष्कृत
लोक + एषण = लोकेषण
निः + आश्रय = निराश्रय
सम् + वाद = संवाद
परम + आत्मा = परमात्मा
निः +शेष = निश्शेष

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

स्व + अर्थी = स्वार्थी
तथा + अस्तु = तथास्तु
उत् + गम = उद्गम
निः + आमिष = निरामिष
स्व + आधीन = स्वाधीन
देव + आलय = देवालय
तमः + गुण = तमोगुण
रजनी + ईश = रजनीश
भोजन + आलय = भोजनालय
सत् + जन = सज्जन
सम + रक्षक = संरक्षक
शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी
सम् + सार = संसार
कृष् + न = कृष्ण
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
नमः + आकार = नमस्कार
निर् + मान = निर्माण
सरः + ज = सरोज
मनः + रथ = मनोरथ
परम + ईश्वर = परमेश्वर
मनः + हर = मनोहर
अति + इव = अतीव
महा + इंद्र = महेंद्र
दुः + दशा = दुर्दशा
आयत + आकार = आयताकार
रमा + इंद्र = रमेंद्र
निः + आशा = निराशा

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

पद्य + आत्मक = पद्यात्मक
हित + उपदेश = हितोपदेश
दुः + शासन = दुश्शासन
निः + आकार = निराकार
मानव + उचित = मानवोचित
निः + काम = निष्काम
किम् + चित् = किंचित
जल + ऊर्मि = जलोर्मि
बहिः + कार = बहिष्कार
उत् + हार = उद्धार
गंगा + उदक = गंगोदक
दिन + ईश = दिनेश
तथा + एव = तथैव
देव + ऋषि = देवर्षि
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
विः + छेद = विच्छेद
दया + आनंद = दयानंद
स्व + अर्थ = स्वार्थ
पुरः + हित = पुरोहित
अति + इव = अतीव
सूर्य + अस्त = सूर्यास्त

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

तपः + वन = तपोवन
गिरि + ईश = गिरीश
हरि + ईश = हरीश
मनः + दशा = मनोदशा
कवि + ईश्वर = कवीश्वर
कपी + इंद्र = कपींद्र
निः + मल = निर्मल
नदी + ईश = नदीश
उत् + हरण = उद्धरण
दुः + साहस = दुस्साहस
विधु + उदय = विधूदय
विष् + नु = विष्णु
व्याकर् + अन = व्याकरण
निः + प्राण = निष्प्राण
दुः + परिणाम = दुष्परिणाम
परि + नाम = परिणाम
इति + आदि = इत्यादि
धनुः + धारी = धनुर्धारी
अधः + गति = अधोगति
सु + अल्प = स्वल्प
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
सरः + वर = सरोवर
षट् + मास = षण्मास
अंतः + जातीय = अंतर्जातीय
निः + गुण = निर्गुण

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

वाक् + दान = वाग्दान
तव + ऐश्वर्य = तवैश्वर्य
निः + चल = निश्चल
तत् + अनुसार = तदनुसार
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
निः + कलंक = निष्कलंक
तत् + लीन = तल्लीन
घृत + ओदन = घृतौदन
यशः + गान = यशोगान
सम् + बंध = संबंध
तव + औषधि = तवौषधि
दुः + कर = दुष्कर
अति + अधिक = अत्याधिक
उत् + लेख = उल्लेख
सम् + योग = संयोग
दिक् + अम्बर = दिंगबर

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् उपसर्ग

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Upasarg उपसर्ग Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् उपसर्ग

व्याकरणम् उपसर्ग HBSE 10th Class

परिचय-धातु के आरम्भ में जब प्र आदि शब्द जुड़ते हैं, तब इन्हें ही उपसर्ग कहा जाता है। उपसर्ग जुड़ने पर प्रायः धातुओं के अर्थ बदल जाते हैं, जैसे- गच्छति (जाता है), आ + गच्छति = आगच्छति (आता है)।
संस्कृत में अधोलिखित 22 उपसर्ग होते हैं
प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आ (आङ्), नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि, उप
प्र – प्रकर्षम्, प्रबलम्, प्रभावः, प्रणामः -प्रभवति (समर्थ होता है)
परा – पराभवः, पराजयः, पराक्रमः-पराभवति (अपमान करता है)
अप – अपकारः, अपकृष्टः,-अपहरति (हरण करता है)-अपव्ययः
सम् – संस्कारः, समृद्धिः, संगमः,-संस्करोति (शुद्ध करता है)
अनु – अनुसरणम्, अनुरूपम्,-अनुसरति, सः पितरम् अनुगच्छति (अनुसरति)
अव – अवनतिः, अवरोधः,-अवनयति।
निस् – निष्प्रभावः, निस्तेजः,-निस्सरति (निकलता है)
निर् – निर्बलः,-निर्गच्छति, (निकलता है)
दुस् – दुस्तरः, दुष्प्रभावः, दुष्कर्म,-दुश्चरति (बुरा व्यवहार करता है)
दुर् – दुराचारः, दुर्गतिः, दुर्जेयः,-दुराचरित (बुरा व्यवहार करता है)
वि – विवरणम्, विमलः, विजयः, -विहसति (मन्द-मन्द हँसता है)
आ – आबालम्, आजन्म, आसमुद्रम्,-आगच्छति (आता है)
नि – निगृहीतः, निपातितः, निधनम्,-निवर्तते-(लौटता है)
अधि – अधिकारः, अधिपतिः,-अधिगच्छति (प्राप्त करता है)
अपि – अपिधानम्-अपिहितम्-अपिधेहि (बन्द करो)
अति – अत्यधिकम्-अतिक्रामति (लाँघता है)
सु – स्वागतम्, सुगमः, सुजनः,-सुकरोति (अच्छी प्रकार करता है)
उत् – उत्कर्षः, उद्धारः, उद्धवः,-उद्गच्छति (ऊपर निकलता है)
अभि – अभ्यागतः, अभिमानः, अभिगच्छति-अभ्यस्यते (अभ्यास किया जाता है)
प्रति – प्रतिज्ञा, प्रत्ययः, प्रतिवसति,-प्रतिवदति (जवाब देता है)
परि – परित्यागः, परितोषः, परिभ्राम्यति,-परिभवति (अपमान करता है)
उप – उपवनम्, उपस्थितः,-उपदिशति (उपदेश देता है)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् उपसर्ग

HBSE 10th Class व्याकरणम् उपसर्ग

अभ्यासार्थ प्रश्न
1. स्थूलाक्षरपदेषु प्रयुक्तान् उपसर्गान् पृथक् कृत्वा लिखत
(स्थूलाक्षरपदों में प्रयुक्त उपसर्गों को अलग करके लिखिए-)
(क) अपव्ययं न कुर्यात् आपदर्थे च धनं संरक्षेत्।
(ख) निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः भूकम्पस्य उपद्रवे।
(ग) राजा मुनेः उत्तरं प्रतीक्षितवान्।
(घ) मुनिः प्रयत्नेन रुग्णस्य उपचारे प्रवृत्तः।
(ङ) दुर्जनाः दुष्कर्मणि संलग्नाः सन्ति।
(च) दुष्टेन रावणेन सीता अपहृता, विनाशं च प्राप्तवान्।
(छ) सैनिकाः महारज्जुम् अवलम्ब्य सुदूरात् पर्वतात् अधः अवतरन्ति।
(ज) अभिज्ञानशाकुन्तलस्य एषः अनुवादः अतिप्रशंसनीयः।
(झ) क इदं दुष्करं कुर्यात् ?
(ब) आरक्षी सुपुष्टदेह आसीत्, अभियुक्तः च अतीव कृशकायः।
(ट) सजनाः विजयं पराजयं वा न विचारयन्ति।
(ठ) सुतीव्र वायुः प्रवहति, द्वारम् अपिधेहि।
(ड) परिवारेषु निर्धनता अतिकष्टदा।
(ढ) ज्वाला पर्वतं विदार्य बहिः निष्क्रामति।
(ण) अधिकारिणः निष्पक्षाः भवेयुः न्यायं च परिरक्षेयुः।
उत्तराणि:
(क) अप, आ, सम्।
(ख) नि, वि, उप।
(ग) उत्, प्रति।
(घ) प्र, उप, प्र।
(ङ) दुर्, दुस्, सम्।
(च) दुस्, अप, वि, प्र।
(छ) अव, सु, अव।
(ज) अभि, अनु, अति, प्र।
(झ) दुस् ।
(ब) आ, सु, अभि, अति ।
(ट) सत्, वि, परा, वि।
(ठ) सु, प्र, अपि।
(ड) परि, निर्, अति ।
(ढ) वि, निस्।
(ण) अधि, निस्, परि।

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Pathit Avbodhan पठित-अवबोधनम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

पठित अवबोधनम् HBSE 10th Class

I. अधोलिखितदशप्रश्नानां प्रदत्तविकल्पेषु शुद्धविकल्पं विचित्य उत्तरपुस्तिकायां लिखत
(क) ‘पावकः’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(i) पौ + अक:
(ii) पो + अक:
(iii) पाव + कः
(iv) पा + अकः।
उत्तराणि:
(i) पौ + अक:

(ख) ‘अप + ऊहः’ अत्र सन्धियुक्तपदम्-
(i) अपूहः
(ii) अपोहः
(iii) अपौहः
(iv) अपुहः।
उत्तराणि:
(ii) अपोहः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(ग) ‘अनुरथम्’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) बहुव्रीहिः
(ii) उपपदतत्पुरुषः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः।
उत्तराणि:
(iii) अव्ययीभावः

(घ) ‘स्मृतिविभ्रमः’ इति पदस्य समास-विग्रहः
(i) स्मृतेः विभ्रमः
(ii) स्मृतौ विभ्रमः
(iii) स्मृतो विभ्रमः
(iv) स्मृति विभ्रमः।
उत्तराणि:
(i) स्मृतेः विभ्रमः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(ङ) ‘मूर्खत्वम्’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) ईनि
(iv) क्ता।
उत्तराणि:
(i) त्व

(च) निहन्यन्ते ………… विवशाः प्राणिनः।
(रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) पुरा
(ii) ह्यः
(iii) न
(iv) च।
उत्तराणि:
(iv) च

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(छ) ………. द्वाराणि केवलं छात्राणां गमनागमनकाले एव अनावृतानि भवन्ति।
(i) चत्वारि
(ii) एका
(iii) चतस्रः
(iv) चतुः।
उत्तराणि:
(i) चत्वारि

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(ज) केन सरसः शोभा भवेत् ?
(i) कमलेन
(ii) राजहंसेन
(iii) बकसहस्रेण
(iv) मकरेण।
उत्तराणि:
(ii) राजहंसेन

(झ) केन आहतः पुरुषः आश्रमम् आगतः ?
(i) शस्त्रेण
(ii) शास्त्रेण
(iii) श्रमेण
(iv) दुर्वचनेन।
उत्तराणि:
(i) शस्त्रेण

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(ज) ‘परोपकारे’ अत्र का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
(i) प्रथमा
(ii) सप्तमी
(iii) तृतीया
(iv) चतुर्थी।
उत्तराणि:
(ii) सप्तमी

पठित-अवबोधनम् Sanskrit HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

यथानिर्देशम् उत्तरत
(ट) ‘दीयमानम्’ इति पदस्य प्रकृति-प्रत्ययौ लिखत।
(ठ) ‘समाचारपत्रं कुत्र पठनीयम्’। (अत्र किम् अव्ययपदं प्रयुक्तम्)
(ड) ‘आर्य ! किं मे भयं दर्शयसि ?’ (‘दर्शयसि ‘अत्र कः लकारः प्रयुक्तः?)
(ढ) अधीक्षकेण सर्वकार्यं 3 लिपिकेषु विभक्तं कृतम्। (अङ्कस्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणं लिखत)
(ण) प्रति अनुभागं 56 छात्राः सन्ति।। (अङ्कस्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणं लिखत)
(त) विवशाः प्राणिनः आकाशे पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते। (रेखाङ्कितपदेन प्रश्ननिर्माणं कुरुत)
यथानिर्देशम् उत्तरत:
(ट) दीयमानम् = दा + यक् + शानच
(ठ) ‘कुत्र’ इति अव्ययपदम्।
(ड) ‘दर्शयसि ‘अत्र लट् लकारः प्रयुक्तः ।
(ढ) अधीक्षकेण सर्वकार्यं त्रिषु लिपिकेषु विभक्तं कृतम्।
(ण) प्रति अनुभागं षट्पञ्चाशत् छात्राः सन्ति।
(त) विवशाः प्राणिनः कुत्र पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते?

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

अवबोधनम् HBSE 10th Class

II. अधोलिखितदशप्रश्नानां प्रदत्तविकल्पेषु शुद्धविकल्पं विचित्य उत्तरपुस्तिकायां लिखत
(क) ‘नयनम्’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति.
(i) नय + नम
(ii) नै + अनम्
(iii) ने + अनम्
(iv) नयन + अम्।
उत्तराणि
(iii) ने + अनम्

(ख) ‘इति + अपि’ अत्र सन्धियुक्तं पदम्-
(i) इतिऽपि
(ii) इतिपि
(iii) इतीऽपि
(iv) इत्यपि।
उत्तराणि
(iv) इत्यपि

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(ग) ‘नीलोत्पलम्’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) अव्ययीभावः
(ii) तत्पुरुषः
(iii) कर्मधारयः
(iv) बहुव्रीहिः।
उत्तराणि
(iii) कर्मधारयः

(घ) ‘वृक्षस्य मूलम्’ अत्र समस्तपदम्-
(i) वृक्षस्यमूलम्
(ii) वृक्षमूलम्
(iii) वृक्षेमूलम्
(iv) वृक्षामूलम्।
उत्तराणि
(ii) वृक्षमूलम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(ङ) ‘मूषिका’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) मतुप्
(ii) डीप्
(iii) इनि
(iv) टाप्।
उत्तराणि
(iv) टाप

(च) चन्दनदास ! एष …………… .ते निश्चयः ? (रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) विना
(ii) एव
(iii) इति
(iv) कदा।
उत्तराणि
(ii) एव

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(छ) अस्मिन् उपवने 70 वृक्ष्: सन्ति। (अङ्कस्थाने संस्कृतपदे संख्यावाचकविशेषणं लिखत)
उत्तराणि
अस्मिन् उपवने सप्तति वृक्षाः सन्ति।

(ज) मम …………… नासिका अस्ति। (एक:/एका/एकम्)
उत्तराणि
मम एका नासिका अस्ति।

(झ) ‘अमात्यराक्षसस्य ‘ अत्र का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
(i) प्रथमा
(ii) पञ्चमी
(iii) षष्ठी
(iv) सम्बोधनम्।
उत्तराणि
(ii) षष्ठी

(ञ) सावधान मनसा कः शृणोतु ?
(i) याचकः
(ii) पाचकः
(iii) शिष्यः
(iv) चातकः।
उत्तराणि
(i) चातकः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

यथानिर्देशम् उत्तरत
(ट) ‘पठित्वा’ इति पदस्य प्रकृति-प्रत्ययं लिखत।
(ठ) ‘उपवनं परितः वृक्षाः शोभन्ते’ अत्र किम् अव्ययपदं प्रयुक्तम् ?
(ड) ‘स बसयानं विहाय पदातिरेव प्राचलत्।’ (‘प्राचलत्’अत्र कः लकार:प्रयुक्तः?)
(ढ) अत्र भाषाणाम् अपि 5 विभागाः सन्ति। ‘ (अङ्कस्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणं लिखत)
(ण) प्रतिअनुभागं 55 छात्राः सन्ति।
(त) अम्भोदाः वृष्टिभिः वसुधाम् आर्द्रयन्ति ? (रेखाङ्कितपदेन प्रश्ननिर्माणं कुरुत)
यथानिर्देशम् उत्तरत
(ट) पठित्वा = पठ् + क्त्वा।
(ठ) ‘परितः’ इति अव्ययपदम्।
(ड) ‘प्राचलत्’अत्र लङ् लकार:प्रयुक्तः।
(ढ) अत्र भाषाणाम् अपि पञ्च विभागाः सन्ति।
(ण) प्रति-अनुभागं पञ्चपञ्चाशत् छात्राः सन्ति।
(त) अम्भोदाः वृष्टिभिः काम् आर्द्रयन्ति ?

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

Avbodhan HBSE 10th Class Sanskrit

III. अधोलिखितदशप्रश्नानां प्रदत्तविकल्पेषु शुद्धविकल्पं विचित्य उत्तरपुस्तिकायां लिखत
(क) ‘परीक्षितुम्’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति-
(i) परी + क्षितुम्
(ii) परी + ईक्षितुम्
(iii) परि + ईक्षितुम् ।
(iv) परि + इक्षितुम्।
उत्तराणि:
(iii) परि + ईक्षितुम्

(ख) ‘सु + आगतम्’ अत्र सन्धियुक्तपदम्
(i) सुवागतम्
(ii) स्वागतम्
(ii) सुआगतम्
(iv) सवागतम्।
उत्तराणि:
(ii) स्वागतम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(ग) ‘पीताम्बरः’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) बहुव्रीहिः
(ii) कर्मधारयः
(iii) तत्पुरुषः
(iv) अव्ययीभावः।
उत्तराणि:
(i) बहुव्रीहिः

(घ) ‘यूथपतिः’ इति पदस्य समास-विग्रहः
(i) यूथाणाम् पतिः
(ii) यूथे पतिः
(iii) यूथस्य पतिः
(iv) यूथाय पतिः।
उत्तराणि:
(iii) यूथस्य पतिः

(ङ) ‘नदी’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) ईनि
(ii) डीप
(iii) टाप्
(iv) क्ता।
उत्तराणि:
(ii) डीप

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(च) विजने प्रदेशे पदयात्रा ……………. शुभावहा। (रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) न
(ii) ह्यः
(iii) पुरा
(iv) श्वः।
उत्तराणि:
(i) न

(छ) अत्र …………….. प्रयोगशाला अस्ति। (रिक्तस्थानपूर्तिः उचितसंख्यापदेन)
(i) एकं
(ii) एका
(iii) एकादश
(iv) एकः।
उत्तराणि:
(ii) एका प्रयोगशाला अस्ति।

(ज) निर्धनः जनः परिश्रम्य किम् उपार्जितवान् ?
(i) शान्तिम्
(ii) श्रमम्
(iii) चित्तम्
(iv) वित्तम्।
उत्तराणि:
(iv) वित्तम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(झ) वस्तुतः चौरः कः आसीत् ?
(i) आरक्षी
(ii) निर्धनः
(iii) उद्यमः
(iv) आलस्यम्।
उत्तराणि:
(i) आरक्षी

(ञ) “धिक्’ योगे का विभक्तिः प्रयुज्यते ?
(i) प्रथमा
(ii) द्वितीया
(iii) तृतीया
(iv) पञ्चमी।
उत्तराणि:
(ii) द्वितीया।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

यथानिर्देशम् उत्तरत
(ट) ‘वक्तुम्’ इति पदस्य प्रकृति-प्रत्ययं लिखत।
(ठ) ‘जननीजन्मभूमिश्च स्वर्गाद् अपि गरीयसी’ अत्र किम् अव्ययपदं प्रयुक्तम् ?
(ड) ‘निजकृत्यस्य फलं भुड्क्ष्व।’ (भुक्ष्व’अत्र कः लकारः प्रयुक्तः?)
(ढ) अस्माकम् कार्यालये 85 जनाः सन्ति। (अङ्कस्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणं लिखत)
(ण) विद्यालये 62 शिक्षकाः सन्ति। (अङ्कस्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणं लिखत)
(त) चन्दनदासः अमात्यराक्षसस्य गृहजनं रक्षति । (रेखाङ्कितपदेन प्रश्ननिर्माणं कुरुत)
यथानिर्देशम् उत्तरत
(ट) वक्तुम् = वच् + तुमुन्
(ठ) ‘अपि’ इति अव्ययपदम्।
(ड) ‘भुक्ष्व’अत्र लोट् लकारः प्रयुक्तः।
(ढ) अस्माकम् कार्यालये पञ्चाशीतिः जनाः सन्ति।
(ण) विद्यालये द्विषष्टिः शिक्षकाः सन्ति।
(त) चन्दनदासः कस्य गृहजनं रक्षति ?

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

IV. प्रदत्तप्रश्नानां चतुर्पु वैकल्पिक-उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत –
(i) ‘कश्चित्’ इति पदे क: सन्धिच्छेदः ?
(A) काः + चित्
(B) कश् + चित्
(C) क + चित्
(D) कः + चित्।
उत्तराणि:
(D) कः + चित्।

(ii) ‘सेवयैव’ इति पदे कः सन्धिच्छेदः ?
(A) सेवा + यैव
(B) सेवाया + एव
(C) सेवया + एव
(D) सेवया + इव।
उत्तराणि:
(C) सेवया + एव ।

(iii) ‘तस्य + उपचारे’ इति पदे का सन्धिः ?
(A) तस्यौपचारे
(B) तस्योपचारे
(C) तस्योपचारे
(D) तस्याऔपचारे।
उत्तराणि:
(B)तस्योपचारे ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(iv) ‘राज्ञः पुरुषः’ इति पदे समस्तपदं किम् ?
(A) राजापुरुष
(B) रजापुरुषः
(C) राज्ञपुरुषः
(D) राजपुरुषः।
उत्तराणि:
(D) राजपुरुषः।

(v) ‘प्रति’ उपपद योगे का विभक्ति भवति ?
(A) प्रथमा
(B) द्वितीया
(C) तृतीया
(D) चतुर्थी।
उत्तराणि:
(B)द्वितीया।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(vi) ‘तद्’ पुल्लिंग, तृतीया, एकवचने किं रूपम् ?
(A) तेन्
(B) तेन
(C) तेना
(D) तेनः।
उत्तराणि:
(B) तेन।

(vii) ‘साधु’ प्रथमा, एकवचने किं रूपम् ?
(A) साधूः
(B) साधु
(C) साधुः
(D) सधुः।
उत्तराणि:
(C) साधुः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(viii) ‘जातम्’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(A) तल्
(B) त्व
(C) क्त
(D) त।
उत्तराणि:
(C) क्त।

(ix) ‘मृताः’ इति पदे कः धातुः ?
(A) म्रि
(B) म्री
(C) मृ
(D) म्र।
उत्तराणि:
(C) मृ।

(x) ‘उप + इ + ल्यप्’ इति संयोगे किं रूपम् ?
(A) उपात्य
(B) उपित्य
(C) उपेत्य
(D) उपैत्य।
उत्तराणि:
(C) उपेत्य।

(xi) ईश्वरः ……………. अस्ति। (अव्यपदेन पूरयत)
(A) यथा
(B) तथा
(C) कदा
(D) सर्वत्र।
उत्तराणि:
(D) सर्वत्र ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(xii) त्वम् ………….. पठ। (अव्ययपदेन पूरयत)
(A) च
(B) यथा
(C) सर्वत्र
(D) अपि।
उत्तराणि:
(D) अपि।

(xiii) ‘दोषः’ इत पदे विलोमपदं किम् ?
(A) दोषाः
(B) गुणाः
(C) अदोषाः
(D) गुणः।
उत्तराणि:
(D) गुणः ।

(xiv) ‘आदरः’ इति पदे विलोमपदं किम् ?
(A) आनादरः
(B) नादरः
(C) समादरः
(D) अनादरः।
उत्तराणि:
(D) अनादरः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(xv) ‘त्रयस्त्रिंशत्’ इति पदे का संख्या ?
(A) 43
(B) 30
(C) 33
(D) 63
उत्तराणि:
(C) 33।

(xvi) ‘साक्षी’ पदस्य अर्थः अस्ति
(A) साख
(B) सखी
(C) गवाह
(D) साथी।
उत्तराणि:
(C) गवाह ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

V. प्रदत्तप्रश्नानां चतुर्पु वैकल्पिक-उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(i) ‘तस्योपचारे’ पदे कः सन्धिच्छेदः ?
(A) तस्याः + उपचारे
(B) तस्य + उपचारे
(C) तस्यो + पचारे
(D) तस्य + ऊपचारे।
उत्तराणि:
(B) तस्योपचारे।

(ii) ‘कश्चित्’ पदे कः सन्धिच्छेदः ?
(A) कास् + चित्
(B) कः + चित्
(C) कम् + चित्
(D) कश् + चित्।
उत्तराणि:
(B) कः + चित् ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(iii) ‘सेवया + एव’ पदे का सन्धिः ?
(A) सेवायैव
(B) सेवयैव
(C) सेवयेव.
(D) सवयैव
उत्तराणि:
(B) सेवयैव।

(iv) ‘राजपुरुषः’ इति पदे कः विग्रहः ?
(A) राज्ञा पुरुषः
(B) राज्ञ पुरुषः
(C) राज्ञः पुरुषः
(D) राजः पुरुषः।
उत्तराणि:
(C) राज्ञः पुरुषः ।

(v) ‘विना’ उपपद योगे का विभक्ति ?
(A) प्रथमा
(B) द्वितीया
(C) चतुर्थी
(D) सप्तमी।
उत्तराणि:
(B)द्वितीया।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(vi) ‘तद्’ पुल्लिंग, तृतीया, बहुवचने किं रूपम् ?
(A) तेः
(B) तैः
(C) ताभिः
(D) तै।
उत्तराणि:
(B) तैः ।

(vii) ‘साधु’ शब्दस्य प्रथमा, बहुवचने किं रूपम् ?
(A) साधुवः
(B) साधवः
(C) साधव
(D) सधवः।
उत्तराणि:
(B) साधवः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(viii) ‘जातम्’ इति पदे क: धातुः ?
(A) जा.
(B) ज्ञा
(C) जन
(D) जन्।
उत्तराणि:
(D) जन्।

(ix) ‘मृ + क्त’ इति संयोगे किं रूपम् ?
(A) मृतः
(B) मृत्
(C) मृितः
(D) म्रितः।
उत्तराणि:
(A) मृतः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(x) ‘उपेत्य’ इति पदे कः प्रत्ययः ? ।
(A) यत्
(B) ण्यत्
(C) क्यप्
(D) ल्यप्।
उत्तराणि:
(D) ल्य प् ।

(xi) त्वं ……………… विद्यालयं गच्छसि ? (अव्ययपदेन पूरयत)
(A) कदा
(B) सदा
(C) यथा
(D) तथा।
उत्तराणि:
(A) कदा।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(xii) रामः श्यामः ………….. पठतः। । (अव्ययपदेन पूरयत)
(A) न
(B) च
(C) सदा
(D) कुत्र।
उत्तराणि:
(B) च।

(xiii) ‘दोषः’ पदस्य अर्थः किम् ?
(A) गुण
(B) बगुण
(C) सगुण
(D) अवगुण।
उत्तराणि:
(D) अवगुण।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(xiv) ‘आदरः’ इति पदस्य पर्यायवाची पदं लिखत ।
(A) अनादरः
(B) निरादारः
(C) समानः
(D) सम्मानः।
उत्तराणि:
(D) सम्मानः ।

(xv) ‘त्रयोविंशति’ इति पदे का संख्या ?
(A) 13
(B) 43
(C) 33
(D) 23
उत्तराणि:
(D) 23।

(xvi) ‘उदरे’ इति पदे का विभक्ति ?
(A) तृतीया
(B) पंचमी
(C) षष्ठी
(D) सप्तमी।
उत्तराणि:
(D) सप्तमी।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

VI. प्रदत्तप्रश्नानां चतुषु वैकल्पिक-उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(i) ‘यथेष्टम्’ इति पदे कः सन्धिच्छेदः ?
(A) यथा + इष्टम्
(B) यथा + ईष्टम्
(C) यथा + एष्टम्
(D) यथा + ऐष्टम्।
उत्तराणि:
(A)यथा + इष्टम् ।

(ii) तथा + अन्यानि’ इति पदे का सन्धिः ?
(A) तथायानि
(B) तथान्यानी
(C) तथान्यनि
(D) तथान्यानि।
उत्तराणि:
(D)तथान्यानि ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(iii) ‘कः + चित्’ इति पदे का सन्धिः ?
(A) कश्चित्
(B) कस्चित्
(C) कञ्चित्
(D) काश्चित्।
उत्तराणि:
(A) कश्चित्।

(iv) ‘महान् चासौ राजा’ इति विग्रहे क: समस्तपदः ?
(A) माहाराजः
(B) महाराजः
(C) माहाराजा
(D) महराजा।
उत्तराणि:
(B) महाराजः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(v) ‘धिक्’ इति उपपद योगे का विभक्ति ?
(A) प्रथमा
(B) तृतीया
(C) द्वितीया
(D) चतुर्थी।
उत्तराणि:
(C) द्वितीया।

(vi) ‘तद्’ पुल्लिंग, षष्ठी, बहुवचने किं रूपम् ?
(A) तेसाम्
(B) तेशाम्
(C) तेषाम्
(D) तासाम्
उत्तराणि:
(C) तेषाम्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(vii) ‘गुरु’ शब्दस्य चतुर्थी, एकवचने किं रूपम् ?
(A) गुरवे
(B) गुरुवे
(C) गुरवे
(D) गरवे।
उत्तराणि:
(A) गुरवे।

(viii) ‘जन् + क्त’ इति संयोगे किं रूपम् ?
(A) जानः
(B) जात्
(C) जतः
(D) जातः।
उत्तराणि:
(D) जातः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(ix) ‘मृताः’ इति पदे कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(A) त
(B) क्त्वा
(C) तल्
(D) क्त।
उत्तराणि:
(D) क्त।

(x) ‘उपेत्य’ इति पदे कः उपसर्गः प्रयुक्तः
(A) उपा र
(B) उप्
(C) उप
(D) उपः।
उत्तराणि:
(C) उप।

(xi) ……………………… राजा तथा प्रजा। (अव्ययपदेन पूरचत)
(A) सदा
(B) कदा
(C) यथा
(D) तथा।
उत्तराणि:
(C) यथा।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(xii) ………….. अवकाशः भविष्यति। (अव्ययपदेन पूरयत)
(A) अद्य
(B) ह्यः
(C) अधुना
(D) श्वः।
उत्तराणि:
(D) श्वः ।

(xiii) ‘अनादरः’ इति पदस्य विलोमपदं किम् ?
(A) आदरः
(B) आनादारः
(C) आनदरः
(D) समादरः।
उत्तराणि:
(A) आदरः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(xiv) ‘त्रयोदशः’ इत पदे का संख्या ?
(A) 33
(B) 23
(C) 13
(D) 53.
उत्तराणि:
(C) 13 ।

(v) ‘सुहृद्:’ पदस्य कः अर्थः ?
(A) सुन्दर
(B) सहोदर
(C) संगम
(D) मित्र।
उत्तराणि:
(D) मित्र।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(xvi) ‘राजा’ इति पदस्य पर्यायवाची पदं लिखत।
(A) नरपः
(B) निरपः
(C) निपः
(D) नृपः।
उत्तराणि:
(D) नृपः ।

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Karak Prakaran कारक प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

व्याकरणम् कारक प्रकरणम् HBSE 10th Class

कारक-वाक्य में जिस शब्द का क्रिया शब्द के साथ साक्षात् सम्बन्ध हो वह कारक कहलाता है। वाक्य में क्रिया के साथ संज्ञा या सर्वनाम शब्द का सम्बन्ध कहीं कर्ता के रूप में, कहीं कर्म के रूप में तथा कहीं करण आदि कारक के रूप में होता है।
कारक छ: हैं। इनके लिए निम्नलिखित छ: विभक्तियाँ प्रयुक्त की जाती हैं
कारक – विभक्ति
1. कर्ता – प्रथमा विभक्ति
2. कर्म – द्वितीया विभक्ति
3. करण – तृतीया विभक्ति
4. सम्प्रदान – चतुर्थी विभक्ति
5. अपादान – पञ्चमी विभक्ति
6. अधिकरण – सप्तमी विभक्ति

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

HBSE 10th Class व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

सम्बन्ध को कारक नहीं माना जाता, क्योंकि वाक्य में सम्बन्धवाची शब्द का क्रिया पद के साथ सीधा सम्बन्ध नहीं होता
1. कर्ता
जो स्वयम् ही क्रिया करने में प्रधान हो उसे कर्ता कहते हैं।
कर्तृवाच्य में कर्ता और कर्मवाच्य में कर्म प्रथमा विभक्ति में प्रयुक्त होता है, जैसे
(i) रामो गच्छति।
(ii) घटः क्रियते।

2. कर्म
वह वस्तु या मनुष्य जिस पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है, कर्म कहलाता है। कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे
(i) रामः ग्रामं गच्छति।
(ii) सः पुस्तकं पठति।
उपर्युक्त वाक्यों में (गच्छति) और (पठति) क्रियाओं में व्यापार का प्रभाव ‘ग्राम’ तथा ‘पुस्तक’ पर पड़ता है। अतः इन वाक्यों में कर्म है तथा द्वितीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है।
(i) सब सकर्मक धातुओं के साथ कर्म प्रयुक्त होता है, जैसे
(क) अहं ग्रामं गच्छामि।
(ख) रामः मृगं पश्यति।

(ii) अकर्मक धातुओं के साथ भी कर्म प्रयुक्त होता है। यदि कर्म व्यवधान रहित काल या मार्ग का बोधक हो, जैसे
(क) क्रोशं कुटिला नदी। (नदी एक कोस तक टेढ़ी है।)
(ख) मेघो द्वादशवर्षाणि न ववर्ष। (मेघ बारह वर्ष तक नहीं बरसा।)

(iii) गत्यर्थक धातुओं के साथ स्थानबोधक शब्दों में विकल्प से द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे
(क) सः ग्रामं गच्छति।
(ख) नृपः नगरं गच्छति।

(iv) अधि+शी (सोना, लेटना), अधि + स्था (बैठना, रहना) तथा अधि + आस् (बैठना) धातुओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे
(क) हरिः वैकुण्ठम् अधितिष्ठति। (हरि वैकुण्ठ में रहता है)
(ख) नृपः आसनम् अध्यास्ते। (राजा आसन पर बैठता है।)
उपपद
विभक्ति जब किसी पद विशेष के योग से कोई विभक्ति होती है तो उसे उपपदविभक्ति कहते हैं।
उभयतः, सर्वतः, धिक्, अभितः, परितः, प्रति, अन्तरा, अन्तरेण, अनु, विना, हा–इन शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे
(क) उभयतः (दोनों ओर)-उभयतः कृष्णं गोपाः । (कृष्ण के दोनों ओर गोपियाँ हैं।)
(ख) सर्वतः (सब ओर)-ग्रामं सर्वतः जलं वर्तते।। (गाँव के सब ओर जल है।)
(ग) धिक् (धिक्कार)-धिक् तं देशद्रोहिणम् (उस देशद्रोही को धिक्कार है!)
(घ) अभितः (दोनों ओर)-विद्यालम् अभित: उद्यानानि सन्ति। (विद्यालय के दोनों ओर बाग हैं।)
(ङ) परितः (चारों ओर)-ग्रामं परितः वृक्षाः सन्ति। (गाँव के चारों ओर वृक्ष हैं।)
(च) प्रति (की ओर, पर)-मोहन: ग्राम प्रति गच्छति। (मोहन गाँव की ओर जाता है।)
दीनं प्रति दयां कुरु। (निर्धन पर दया करो।)
(छ) अन्तरा (बीच में)-रामं लक्ष्मणं च अन्तरा सीता विराजते। (राम और लक्ष्मण के बीच सीता विराजमान है।)
(ज) अन्तरेण (बिना, विषय में)-परिश्रमम् अन्तरेण विद्या न लभ्यते। (परिश्रम के बिना विद्या प्राप्त नहीं होती।)
(झ) अनु (पीछे)-यज्ञम् अनु देवः प्रावर्षत्। (यज्ञ के पश्चात् वर्षा हुई।)
(ञ) विना (बगैर)-मां विना तत्र कः गच्छेत् ? (मेरे बिना वहाँ कौन जा सकता है ?)
(ट) हा ! (शोक, अफसोस)-हा ! वेदनिन्दकम् ! (वेद निन्दक के लिए अफसोस है।)

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3. करण
(i) क्रिया की सिद्धि में जो मुख्य साधन हो उसे करण कहते हैं। अन्य शब्दों से जिसकी सहायता के कार्यनिष्पन्न होता है वह करण कहलाता है तथा उसमें तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) सः खड्गेन कृन्तति। (वह तलवार से काटता है।)
(ख) रामः बाणेन बालिं हतवान्। (राम ने बाण से बालि को मारा।)

(ii) यदि शरीर के किसी अंग में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न हो तो विकारवाले अंगसूचक शब्द में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त की जाती है, जैसे
(क) बाल: अक्ष्णा काणोऽस्ति। (बालक आँख से काना है।)
(ख) सेवकः कर्णाभ्याम् बधिरः अस्ति। (सेवक कानों से बहरा है।)

(iii) प्रकृति, जाति, स्वभाव आदि शब्दों में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) देवः प्रकृत्या मधुरः अस्ति। (देव प्रकृति से मधुर है।)
(ख) सः स्वभावेन कटुः अस्ति। (वह स्वभाव से कटु है।)

(iv) अर्थः, लाभः, किं, किं कार्यम्, किं प्रयोजनम्-इस प्रकार के शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है, जैसे
(क) मूर्खेण पुत्रेण क: लाभः ? (मूर्खपुत्र से क्या लाभ ?)
(ख) तव धनेन किं प्रयोजनम्? (तुम्हें धन से क्या प्रयोजन है ?)

(v) लक्षणवाची शब्द (किसी मनुष्य या वस्तु आदि का कोई चिह्न प्रकट करने वाले शब्द) में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) त्वं पुस्तकैः छात्रः लक्ष्यसे। (तुम पुस्तकों से छात्र मालूम होते हो।)
(ख) सः जटाभिः तापसः लक्ष्यते। (वह जटाओं से तपस्वी मालूम होता है।)

(vi) किसी वस्तु के मूल्यवाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है, जैसे
(क) रूप्यकेण क्रीतं पुस्तकम्। (एक रुपए में खरीदी हुई पुस्तक।)
(ख) शतेन क्रीतं धेनुम्। (सौ रुपए में खरीदी हुई गाय।)

(vii) समतावाचक शब्दों जैसे समान, सदृश, तुल्य, सम आदि के योग में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त की जाती है, जैसे
स: पित्रा सम: (समानः, सदृशः, तुल्य: ) वर्तते। (वह पिता के समान है।)

(viii) सहवाचक शब्दों, जैसे-सह, समम्, सार्धम्, साकम् आदि के योग में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त की जाती है, जैसे
सः पित्रा सह (समम्, सार्धम्, साकम्) भ्रमितुम् अगच्छत् । (वह पिता के साथ घूमने गया।)

(ix) हीनतासूचक शब्दों, जैसे-हीन, ऊन, न्यून आदि शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है, जैसे
(क) धर्मेण हीनः पुरुषः म शोभते। (धर्म से रहित मनुष्य शोभा नहीं पाता।)
(ख) इदं सुवर्णम् माषेण न्यूनमस्ति। (यह सोना एक मासा कम है।)

(x) अलम और कृतम् के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे
(क) अलं परिश्रमेण । (परिश्रम मत करो।)
(ख) कृतम् रोदनेन। (रोओ मत।)

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4. सम्प्रदान
(i) कर्ता जिसके लिए किसी वस्तु को देता है या जिसके लिए कोई क्रिया करता है उसे सम्प्रदानकारक कहते हैं उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है, जैसे
नृपः विप्राय धनं ददाति। (राजा ब्राह्मण को धन देता है।)

(ii) रुच्यर्थक धातुओं के योग में चाहने वाले को अथवा जिसको कोई वस्तु अच्छी लगती है उसमें चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) रामाय दुग्धम् रोचते। (राम को दूध अच्छा लगता है।)
(ख) हरये भक्तिः रोचते। (हरि को भक्ति अच्छी लगती है।)

(iii) दा धातु और दानार्थक धातुओं के योग में जिसे वस्तु दी जाए, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है, जैसे
नृपः निर्धनाय धनं ददाति। (राजा निर्धन को धन देता है।)

(iv) क्रुध, द्रुह्, कुप, ईर्घ्य धातुओं के और इनके समानार्थक धातुओं के योग में जिसके प्रति क्रोध, द्रोह तथा ईर्ष्या आदि प्रकट किए जाएँ, उसमें चतुर्थी विभक्ति लगाई जाती है, जैसे
(क) पिता पुत्राय कुप्यति। (पिता पुत्र पर क्रोध करता है।)
(ख) सः मह्यं द्रुह्यति। (वह मुझसे द्रोह करता है।)
(ग) त्वं मह्यम् ईय॑सि। (तुम मुझ से ईर्ष्या करते हो।)

(v) स्पृह् धातु के योग में जिस वस्तु की इच्छा की जाए, उसमें चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) बालः फलेभ्यः स्पृहयति। (बच्चा फलों को चाहता है।)
(ख) सः धनाय स्पृहयति। (वह धन की इच्छा करता है।)

(vi) बलि, हित, सुख, रक्षित-इन शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) ब्राह्मणाय हितम्। (ब्राह्मण का हितकारी।)
(ख) भूतेभ्यः बलिः। (भूतों के लिए बलि।)

(vii) नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम् (समर्थ), वषट्-इन शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) नमो ब्रह्मणे। (ब्राह्मण को नमस्कार।)
(ख) नृपाय स्वस्ति। (राजा का भला हो।)
(ग) अग्नये स्वाहा। (अग्नि के लिए आहुति।)
(घ) पितृभ्य: स्वधा। (पितरों के लिए अन्न।)
(ङ) रामः रावणाय अलम् आसीत्। (राम रावण के लिए पर्याप्त था।)
(च) इन्द्राय वषट्। (इन्द्र के लिए भाग।)

(viii) कुशलम्, स्वागतम् शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
स्वागतं देव्यै। (देवी का स्वागत है।)

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5. अपादान
(i) जिससे किसी वस्तु का वियोग (जुदाई) होना पाया जाए उसे अपादान कारक कहते हैं। इसमें पञ्चमी विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) सः ग्रामादागच्छति। (वह गाँव से आता है।)
(ख) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति। (वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।)

(ii) भय और रक्षार्थक धातुओं के योग में जिससे भय हो या जिससे रक्षा की जाए उसमें पञ्चमी विभक्ति आती है, जैसे
(क) सः सिंहाद् बिभेति। (वह सिंह से डरता है।)
(ख) कुक्कुर: मां चौरेभ्यः रक्षति। (कुत्ता मेरी चोरों से रक्षा करता है।)

(iii) जिससे पढ़ा जाए उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है, जैसे
सः गुरोः अधीते। (वह गुरु से पढ़ता है।)

(iv) रोकना अथवा हटाना अर्थवाली धातुओं के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है, जैसे
कृषक: यवेभ्य: गां वारयति। (किसान यवों से गाय को हटाता है।)

(v) किसी वस्तु के उत्पत्तिस्थान में पञ्चमी विभक्ति आती है। जैसे
हिमालयाद् गंगा प्रभवति। (हिमालय से गंगा की उत्पत्ति होती है।)

(vi) तुलनाबोधक शब्दों के योग में अर्थात् जिसकी अपेक्षा किसी अन्य वस्तु में न्यूनता या उत्कृष्टता बताई जाए उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है, जैसे
(क) सः देवात् बुद्धिमत्तरः। (वह देव से अधिक बुद्धिमान् है।)
(ख) मोहनः सोहनात् मूर्खतरः । (मोहन सोहन से अधिक मूर्ख है।)
(ग) स: रामात् निपुण: अस्ति। (वह राम से निपुण है।)

(vii) घृणा, लजा, विराम, प्रमाद-इन अर्थों वाली धातुओं के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है, जैसे
(क) दुष्टः न पापात् जुगुप्सते। (दुष्ट पाप से घृणा नहीं करता है।)
(ख) वयम् धर्मात् प्रमदामः। (हम धर्म से प्रमाद करते हैं।)

(viii) अन्य (दूसरा), इतर (दूसरा), ऋते (विना), भिन्न तथा रिक्त शब्दों के योग में पञ्चमी विभक्ति आती है, जैसे
(क) देवादन्यः कः इदं कर्तुं शक्ष्यति ? (देव से अन्य इस कार्य को कौन कर सकेगा ?)
(ख) रामादितर: कः तत्र गच्छेत् ? (राम से दूसरा कौन वहाँ जाएगा ?)
(ग) ज्ञानात् ऋते क्व यशः ? (ज्ञान के बिना यश कहाँ ?)

(ix) बहिः (बाहर), प्रभृति (से लेकर), आरभ्य (से लेकर) अनन्तरम् (बाद में)-इन शब्दों के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है, जैसे
(क) नगराद् बहिः एकः सरः अस्ति। (नगर के बाहर एक सरोवर है।)
(ख) बाल्यात् प्रभृति अहम् तत्रैव वसामि। (बचपन से लेकर मैं वहीं रहता हूँ।)
(ग) ततः आरभ्य अहम् असत्यम् न अवदम्। (तब से मैंने झूठ नहीं बोला।)
(घ) अहम् कार्यात् अनन्तरम् द्रक्ष्यामि।। (मैं काम के बाद देखुंगा।)

(x) विना के योग में विकल्प से पञ्चमी, तृतीया और द्वितीया विभक्तियाँ होती हैं, जैसे
परिश्रमात् (परिश्रमं, परिश्रमेण) विना कुतः सफलता ? (परिश्रम के बिना सफलता कहाँ ?)

(xi) दूर और अन्तिके (समीप) शब्दों तथा इनके समानार्थक शब्दों के योग में पञ्चमी तृतीया और द्वितीया विभक्तियाँ होती हैं, जैसे
नगरस्य दूरात् (दूरं, दूरेण) वा उद्यानमस्ति। (नगर से दूर बगीचा है।)

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6. सम्बन्ध
(i) सम्बन्ध को बताने के लिए षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है, जैसे
(क) वृक्षस्य शाखा। (वृक्ष की शाखा।) ।
(ख) राज्ञः पुरुषः । (राजा का पुरुष।)

(ii) वाक्य में हेतु शब्द का प्रयोग होने पर और हेतु अर्थ की प्रतीति होने पर षष्ठी विभक्ति होती है, जैसे
स: अन्नस्य हेतोः, वसति। (वह अन्न के हेतु रहता है।)

(iii) पुरः (सामने), पुरस्तात् ( सामने), अग्रतः (आगे), दक्षिणतः (दक्षिण की ओर), अधः, उपरि आदि शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति आती है, जैसे
(क) गृहस्य पुरः (पुरस्तात्) विद्यालयः अस्ति। (घर के सामने स्कूल है।)
(ख) रामः तस्याग्रतोऽचलत्। (राम उसके आगे चला।)
(ग) ग्रामस्य दक्षिणतः औषधालयः विद्यते। (गाँव के दक्षिण की ओर अस्पताल है।)

(iv) दूर तथा अन्तिक (समीप) शब्दों के योग में और इनके समानार्थक शब्दों के योग में पञ्चमी तथा षष्ठी विभक्ति होती है, जैसे
(क) औषधालयस्य (औषधालयात्) दूरम्। (अस्पताल से दूर।)
(ख) औषधालयस्य (औषधालयात्) निकटम्। (अस्पताल के निकट।)

(v) दो वस्तुओं में भेद बताने के लिए षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त की जाती है, जैसे
तव मम च इयानेव भेदः। (तुम में और मुझ में इतना ही भेद है।)

(vi) तुल्य तथा तुल्यार्थक सम, सदृश आदि शब्दों के योग में षष्ठी तथा तृतीया विभक्ति होती है, जैसे
(क) रामः देवस्य देवेन वा तुल्यः। (राम देव के समान है।)
(ख) लता मातुः (मात्रा) सदृशः अस्ति।) (लता माता के सदृश है।)

(vii) तव्य अनीय तथा य आदि कृत्प्रत्ययान्त शब्दों के योग में षष्ठी और तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
मया (मम) सेव्यो हरिः। (मुझे भगवान् की पूजा करनी चाहिए।)

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7. अधिकरण
(i) किसी वस्तु या क्रिया के आधार को अधिकरण कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जिसमें जिस पर कोई अन्य वस्तु रखी जाए उसे आधार कहते हैं और आधार ही अधिकरण-कारक होता है। इसमें सप्तमी विभक्ति होती है, जैसे
तिलेषु तैलम्। (तिलों में तेल है।)
धर्मे तिष्ठति। (धर्म में ठहरता है)

(ii) जब किसी वस्तु के विषय में इच्छा होती है तब वह इच्छा का विषय होने के कारण आधार माना जाता है। अतः उसमें सप्तमी विभक्ति होती है, जैसे
वृद्धस्य मोक्षे इच्छा अस्ति। (बूढ़े की मोक्ष में इच्छा है।)

(iii) साधु और असाधु शब्दों के योग में, जिसके साथ अच्छा अथवा बुरा व्यवहार हो, उसमें सप्तमी विभक्ति आती है, जैसे
(क) साधुः रामः मातरि। (राम माता से साधुता का व्यवहार करता है।)
(ख) असाधुः सः अध्यापके। (वह अध्यापक से अच्छा व्यवहार नहीं करता।)

(iv) किसी क्रिया के निर्दिष्ट समय को बताने के लिए भी सप्तमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है, जैसे
सः अद्य प्रातःकाले गतः । (वह आज प्रातःकाल गया।)

(v) अतिशयवाचक शब्दों अर्थात् जब बहुत वस्तुओं में से किसी एक का निर्धारण करना (अच्छा, बुरा आदि बताना) हो, तब समूहवाची शब्द में षष्ठी या सप्तमी विभक्ति प्रयुक्त की जाती है, जैसे
नदीषु (नदीनाम्) गङ्गा श्रेष्ठतमा वर्तते। (नदियों में गङ्गा सबसे श्रेष्ठ है।)

(vi) स्निह् ( स्नेह करना), अनु + रङ्ग् ( अनुराग करना), अभि + लष् ( अभिलाषा करना) रम् (मन लगना)इन धातुओं के योग में सप्तमी विभक्ति होती है, जैसे
(क) माता पुत्रे स्निह्यति। (माता पुत्र से स्नेह कस्ती है।)
(ख) अध्यापक: रामे अनुरञ्जयति। (अध्यापक राम से अनुराग करता है।)
(ग) सः वदने अभिलषति। (वह बोलने की अभिलाषा करता है।)
(घ) तस्य मनोऽस्मिन् कार्ये न रमते। (उसका मन इस कार्य में नहीं रमता है।)

(vii) तत्पर, आसक्त (लगा हुआ), निपुण, प्रवीण, पटु, चतुर, धूर्त, शौण्ड आदि शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती है, जैसे
(क) सः अध्ययने तत्परः अस्ति। (वह अध्ययन में लगा हुआ है।)
(ख) सः पठने निपुणः (प्रवीणः, चतुरः) अस्ति। (वह पढ़ने में निपुण है।)

(viii) क्षिप्, मुच, अस्, वृत्, व्यव + ह-इनके योग में सप्तमी विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) रामः रावणे बाणान् क्षिपति। (राम रावण पर बाण फेंकता है।)
(ख) सः मयि बाणान् मुञ्चति।. (वह मुझ पर बाण छोड़ता है।)

(ix) वि + श्वस, प्र + हृ, बन्ध्, लग, श्लिष, सज्ज, ग्रह-इन धातुओं के योग में और इनकी समानार्थक धातुओं के योग में सप्तमी विभक्ति प्रयुक्त होती है, जैसे
(क) अध्यापक: मयि विश्वसिति। (अध्यापक मुझ पर विश्वास करता है।)
(ख) अर्जुनः कर्णे भृशं प्राहरत्। (अर्जुन ने कर्ण पर खूब प्रहार किया।)

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परीक्षा में प्रष्टव्य कारक-विषयक प्रश्न

1. कोष्ठकगतेषु पदेषु द्वितीया-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) अध्यापकः ………. पाठयति। (छात्र)
(ख) ……… अभितः उद्यानानि सन्ति। (विद्यालय)
(ग) मोहनः …….. प्रति गच्छति। (ग्राम)
(घ) पुत्रः ……… ,अनुगच्छति। (पितृ)
(ङ) ………. परितः वृक्षाः सन्ति। (देवालय)
उत्तराणि:
(क) अध्यापक: छात्रान् पाठयति।
(ख) विद्यालयम् अभितः उद्यानानि सन्ति।
(ग) मोहनः ग्राम प्रति गच्छति।
(घ) पुत्रः पितरम् अनुगच्छति।
(ङ) देवालयं परितः वृक्षाः सन्ति।

2. कोष्ठकगतेषु पदेषु तृतीया-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) रामः ……. बालिं हतवान्। (बाण)
(ख) सेवकः ……… बधिरः अस्ति। (कर्ण)
(ग) सः …….. सह भ्रमितुम् अगच्छत्। (पितृ)
(घ) ……… हीनः पुरुषः न शोभते। (धर्म)
(ङ) अलं ……….। (परिश्रम)
उत्तराणि:
(क) रामः बाणेन बालिं हतवान् ।
(ख) सेवक: कर्णाभ्यां बधिरः अस्ति।
(ग) सः पित्रा सह भ्रमितुम् अगच्छत्।
(घ) धर्मेण हीनः पुरुषः न शोभते।
(ङ) अलं परिश्रमेण।

3. कोष्ठकगतेषु पदेषु चतुर्थी-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) राजा …….. धनं ददाति। (विप्र)
(ख) ……… दुग्धम् रोचते। (बालक)
(ग) नमः ……….। (शिव)
(घ) पिता ………. कुप्यति। (पुत्र)
(ङ) ………. स्वाहा। (अग्नि )
उत्तराणि:
(क) राजा विप्राय धनं ददाति।
(ख) बालकाय दुग्धम् रोचते।
(ग) नमः शिवाय।
(घ) पिता पुत्राय कुप्यति।
(ङ) अग्नये स्वाहा।

4. कोष्ठकगतेषु पदेषु पञ्चमी-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) …….. पत्राणि पतन्ति। (वृक्ष)
(ख) सः ……… बिभेति। (सिंह)
(ग) ………. गंगा प्रभवति । (हिमालय)
(घ) ………. बहिः एकः सरः अस्ति। (नगर)
(ङ) दीपाली ………. अधीते। (गुरु)
उत्तराणि:
(क) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
(ख) सः सिंहाद’बिभेति।
(ग) हिमालयाद गंगा प्रभवति।
(घ) नगराद् बहिः एकः सरः अस्ति।
(ङ) दीपाली गुरोः अधीते।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक प्रकरणम्

5. कोष्ठकगतेषु पदेषु षष्ठी-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) ………..शाखायां खगाः तिष्ठन्ति। (वृक्ष)
(ख) ………… पुरः (पुरस्तात्) विद्यालयः अस्ति। (गृह)
(ग) ………. दक्षिणतः औषधालयः विद्यते। (धर्मशाला)
(घ) ………. हस्ते किं पुस्तकं वर्तते ? (युष्मद्)
(ङ) हरीशः …….. हेतोः हिसार-नगरे वसति। (अध्ययन)
उत्तराणि:
(क) वृक्षस्य शाखायां खगाः तिष्ठन्ति।
(ख) गृहस्य पुरः (पुरस्तात्) विद्यालयः अस्ति।
(ग) धर्मशालायाः दक्षिणतः औषधालयः विद्यते।
(घ) तव हस्ते किं पुस्तकं वर्तते ?
(ङ) हरीश: अध्ययनस्य हेतोः हिसार-नगरे वसति।

6. कोष्ठकगतेषु पदेषु सप्तमी-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) अध्यापकः ……… विश्वसिति। (अस्मद्)
(ख) सः …… निपुणः अस्ति। (पठन)
(ग) माता ………. स्निह्यति। (पुत्र)
(घ) ………. गङ्गा श्रेष्ठतमा वर्तते। (नदी)
(ङ) सः …….. तत्परः अस्ति। (अध्ययन)
उत्तराणि:
(क) अध्यापक: मयि विश्वसिति।
(ख) सः पठने निपुणः अस्ति।
(ग) माता पुत्रे स्नियति।
(घ) नदीषु गङ्गा श्रेष्ठतमा वर्तते।
(ङ) सः अध्ययने तत्परः अस्ति।

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पाठ्यपुस्तक से विभक्ति-विषयक प्रश्न

1. कोष्ठकगतेषु पदेषु उचित-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) ……… विभीषिका महाविनाशं जनयति। (भूकम्प)
(ख) राजा ……. प्रश्नत्रयम् अपृच्छत्। (मुनि)
(ग) मुनिः …….. संलग्नः आसीत्।। (स्वकार्य)
(घ) तस्य मृतशरीरं …….. निकषा वर्तते। (राजमार्ग)
(ङ) कीदृशः तृणानाम् ……… सह विरोध: ? (अग्नि)
(च) कः इदं दुष्करं कुर्याद् इदानीं ………. विना? (शिवि)
(छ) ……… परितः पतङ्गाः आपेदिरे। (अम्बरपथ)
(ज) ………. वसति चातकः । (वन)
(झ) ………. कालिदासः श्रेष्ठः । (कवि)
(अ) अलम् ……….। (आशङ्का )
(ट) पिपासितः चातकः ………. याचते। (पुरन्दर)
(ठ) अम्भोदाः ………. वसुधाम् आर्द्रयन्ति। (वृष्टि )
(ड) पुत्रः ……… संलग्नः अभवत्। (अध्ययन)
(ढ) करुणापर: गृही ………. आश्रयं प्रायच्छत् । (तद्)
(ण) जीवनं ……….. विना अतिदारुणं भवति। (विभव)
उत्तराणि:
(क) भूकम्पस्य विभीषिका महाविनाशं जनयति।
(ख) राजा मुनिं प्रश्नत्रयम् अपृच्छत्।
(ग) मुनिः स्वकार्ये संलग्नः आसीत्।
(घ) तस्य मृतशरीरं राजमार्ग निकषा वर्तते।
(ङ) कीदृशः तृणानाम् अग्निना सह विरोधः ?
(च) कः इदं दुष्करं कुर्याद् इदानीं शिविना विना?
(छ) अम्बरपथं परित: पतङ्गाः आपेदिरे।
(ज) वने वसति चातकः।
(झ) कविषु कालिदासः श्रेष्ठः।
(ञ) अलम् आशङ्कया।
(ट) पिपासितः चातक: पुरन्दरं याचते।
(ठ) अम्भोदाः वृष्टिभिः वसुधाम् आर्द्रयन्ति।
(ड) पुत्रः अध्ययने संलग्नः अभवत्।
(ढ) करुणापरः गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्।
(ण) जीवनं विभवं विना अतिदारुणं भवति।

अभ्यासार्थ प्रश्न

1. कोष्ठकगतेषु पदेषु रेखाङ्कितपदानुसारम् उचित-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) पुत्री ……… सह देवालयं गच्छति। (जनक)
(ख) शिशुः …….. बिभेति। (मूषक)
(ग) …….. दुग्धम् रोचते। (अस्मद्)
(घ) …….. कालिदासः श्रेष्ठः। (कवि)
(ङ) पुत्रः ……… स्मरति। (पितृ)
(च) हरिः ……… अधितिष्ठति। (वैकुण्ठ)
(छ) ……… नदी निर्गच्छति। (पर्वत)
(ज) ………. नमः। (गुरु)
(झ) ……….. प्रति दयां कुरु। (दीन)
(ब) अलम् ……….। (कलह)
(ट) राजा ……..धनं यच्छति। (निर्धन)
(ठ) ………. ऋते न जीवनम्। (ज्ञान)
(ड) पिता ……… कुप्यति। (पुत्र)
(ढ) ………. अभितः उद्यानानि सन्ति । (शिवालय)
(ण) आकृत्या सः ………. समः वर्तते। (पितृ)
उत्तराणि:
(क) जनकेन,
(ख) मूषकात्,
(ग) मह्यम्,
(घ)कविषु,
(ङ) पितुः,
(च) वैकुण्ठम्,
(छ) पर्वतात्,
(ज) गुरवे,
(झ) दीनं,
(ब) कलहेन,
(ट) निर्धनाय,
(ठ) ज्ञानात्,
(ड) पुत्राय,
(ढ) शिवालयम्,
(ण) पित्रा।
2. कर्म-कारकस्य अथवा सम्प्रदान-कारकस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
3. करण-कारकस्य अथवा अपादान-कारकस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
4. अधिकरण-कारकस्य अथवा सम्बन्ध-कारकस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
5. ‘प्रति’-योगे का विभक्तिः प्रयुज्यते ?
6. ‘नमः’-योगे का विभक्तिः प्रयुज्यते ?
7. अपादान-कारके का विभक्तिः प्रयुज्यते ?
8. कर्म-कारके का विभक्तिः प्रयुज्यते ?

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् घटिका समयज्ञानम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Gatika Samay Gyan घटिका समयज्ञानम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् घटिका समयज्ञानम्

HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran Gatika Samay Gyan img-1
निर्देश- सवा’ के लिए ‘सपाद’ जोड़ें ; जैसे –7.15 (सपादसप्तवादनम्)
‘साढे’ के लिए ‘सार्ध’ जोड़ें ; जैसे-7.30 (सार्धसप्तवादनम्)
‘पौने’ के लिए ‘पादोन’ जोड़ें; जैसे -6.45 (पादोनसप्तवादनम्)

Samay In Sanskrit HBSE 10th Class

कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण

I. विद्यालयस्य समयसारिण्याम् अधोलिखिते कार्यक्रमे उत्तरपुस्तिकायाम् अड्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयं – लिखत
(i) प्रातः (i) 7.30 वादने प्रार्थना-सभा।
(ii) प्रातः (ii) 10.00 वादने अर्धावकाशः।
(iii) मध्याह्न (iii) 11.45 वादने विविधाः क्रीडाः ।
(iv) मध्याह्न (iv) 1.15 वादने पूर्णावकाशः।
उत्तराणि:
(i) सार्धसप्त-
(ii) दश-
(iii) पादोनद्वादश-
(iv) सपादैक-।

Sanskrit Samay HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् घटिका समयज्ञानम्

II. सभागारे पारितोषिक वितरणस्य अधोलिखिते कार्यक्रमे उत्तरपुस्तिकायाम् अड्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयं लिखत
प्रातः (i) 10.30 वादने मुख्यातिथेः आगमनम्।
प्रातः (ii) 11.00 वादने पारितोषिकवितरणम्।
मध्याह्ने (iii) 12.15 वादने मुख्यातिथेः भाषणम्, सांस्कृतिक कार्यक्रमश्च ।
मध्याह्न (iv) 1.45 प्रीतिभोजनम्।
उत्तराणि:
(i) सार्धदश-
(ii) एकादश-
(ii) सपादद्वादश-
(iv) पादोनद्वि

Sanskrit Samay Gyan HBSE 10th Class

III. दीपावलि-उत्सवस्य अधोलिखिते कार्यक्रमे अड्कानां स्थाने शब्देषु समयं सूचयत। उत्तराणि उत्तरपुस्तिकायां लिखत
(i) सायं (i) ………7.30……….. वादने सामुदायिकभवने आगमनम्।
(ii) सायं (ii) ……..8.00……… वादने कवितापाठः।
(iii) रात्रौ (ii) ………9.15………. वादने प्रीतिभोजनम्।
(iv) रात्रौ (iv) ……….9.45……….. वादने प्रसादवितरणम्, प्रस्थानं च।
उत्तराणि:
(i) सार्धसप्त-
(ii) अष्ट-
(iii) सपादनव-
(iv) पादोननव

VI. विद्यालयस्य समयसारिणीम् उचित-समयवाचकैः पदैः पूरयित्वा लिखत यथा
(i) 7:30 प्रातः – प्रातः …………………. वादने प्रार्थना।
(ii) 10.00 प्रातः – प्रातः ………………. अर्धावकाशः।
(iii) 10.15 प्रातः – प्रातः ……………… वादने पञ्चमः कालांशः ।
(iv) 12.45 मध्याह्न – मध्याह्ने ………………. वादने पूर्णः अवकाशः।
उत्तराणि:
(i) सार्धसप्त-
(ii) दश-
(iii) सपाददश-
(iv) पादोन-एक

Ghatika Samay In Sanskrit HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् घटिका समयज्ञानम्

V. अधोलिखितकार्यक्रमे अड्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयम् उत्तरपुस्तिकां लिखत
प्रातः (i)……………. 9.30……….. वादने प्रार्थना, भक्तिसङ्गीतम्।
प्रातः (ii) ………….. 10.15 ………… वादने मुख्यातिथेः आगमनम्, स्वागतम्।
मध्याह्न (ii) ………….. 11.00 … … वादने प्रतियोगितायाः प्रारम्भः।
मध्याह्न (iv) ……….. 12.45 ………….. वादने निर्णयः।
उत्तराणि:
(i) सार्धनव-
(ii) सपाददश-
(iii) एकादश-
(iv) पदोन-एक/पादैनिक-।

VI. दिल्लीतः प्रस्थिता शताब्दी एक्सप्रेस कदा कुत्र प्राप्नोति इति एतां समयसारिणी समुचितसमयेन पूरयत
(i) शताब्दी एक्सप्रेस प्रात: (6.15) वादने दिल्लीतः भोपालनगरं प्रति गच्छति।
(ii) प्रातः (7.30) आगरानगरं प्राप्नोति।
(iii) प्रातः (10.00) ग्वालियर इति स्थाने भवति।
(iv) (11.45) वादने भोपालनगरं प्राप्नोति।
उत्तरम्:
(i) शताब्दी एक्सप्रेस प्रातः सपादषड्वादने दिल्लीतः भोपालनगरं प्रति गच्छति।
(ii) प्रातः सार्धसप्तवादने आगरानगरं प्राप्नोति।
(iii) प्रातः दशवादने ग्वालियर इति स्थाने भवति ।
(iv) पादोनद्वादशवादने भोपालनगरं प्राप्नोति ।

समय In Sanskrit HBSE 10th Class

VII. विद्यालयस्य सूचनापट्टे परीक्षायाः समयः दत्तः। कतिवादने किं भविष्यति इति संस्कृतेन लिखत
प्रातः 9.45 छात्रा: (i) ……………. परीक्षाकेन्द्रे उपस्थिताः भविष्यन्ति।
प्रातः 10.00 (ii) ……………….. परीक्षाकक्षे प्रविष्टि: उत्तरपुस्तिका-वितरणं च।
प्रात: 10.15 (iii) ……………. पठनार्थं प्रश्नपत्र-वितरणं भविष्यति।
प्रातः 10.30 (iv) ……………….. परीक्षाप्रारब्धा भविष्यति सार्ध-एकवादने च समाप्ता भविष्यति।
उत्तरम्:
प्रातः 9.45 छात्राः (i) पादोनदशवादने परीक्षाकेन्द्रे उपस्थिताः भविष्यन्ति।
प्रात: 10.00 (ii) दशवादने परीक्षाकक्षे प्रविष्टि: उत्तरपुस्तिका-वितरणं च।
प्रात: 10.15 (iii) सपाददशवादने पठनार्थं प्रश्नपत्र-वितरणं भविष्यति।
‘प्रातः 10.30 (iv) सार्धदशवादने परीक्षा प्रारब्धा भविष्यति सार्ध-एकवादने च समाप्ता भविष्यति।

Samay Lekhanam In Sanskrit HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् घटिका समयज्ञानम्

VII. अधोलिखितवाक्येषु अङ्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयं लिखत
(i) प्रातः 9.45 वादने दीपप्रज्वालनम्।।
(ii) प्रातः 10.15 वादने अतिथेः स्वागतम्।
(iii) प्रातः 10.30 वादने नाटकाभिनयः।
(iv) मध्याह्वे 3.00 वादने कार्यक्रमसमाप्तिः।
उत्तरम्
(i) प्रातः पादोनदशवादने दीपप्रज्वालनम्।
(ii) प्रातः सपाददशवादने अतिथेः स्वागतम्।
(iii) प्रातः सार्धदशवादने नाटकाभिनयः ।
(iv) मध्याह्वे त्रिवादने कार्यक्रमसमाप्तिः ।

IX. अधोलिखितायां समयसारिण्यां अङ्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयम् लिखत
विद्यालये वार्षिकोत्सवस्य समयसारिणी
प्रात: (i) 10.00 वादने मुख्यातिथे:. आगमनम्।
प्रातः (ii) 10.30 मुख्यातिथेः स्वागतम्।
प्रातः (iii) 10.45 प्रधानाचार्येण वार्षिक-विवरणपाठः नाट्याभिनयः च।
मध्याह्ने (iv) 12.15 छात्रैः राष्ट्रगानम्।
उत्तरम्:
(i) प्रातः दशवादने वादने मुख्यातिथेः आगमनम्।
प्रातः सार्धदशवादने मुख्यातिथेः स्वागतम्।
प्रातः पादोन-एकादशवादने प्रधानाचार्येण वार्षिक-विवरणपाठः नाट्याभिनयः च।
मध्याह्ने सपादद्वादशवादने छात्रैः राष्ट्रगानम्।

Samay Lekhanam In Sanskrit Class 10 HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् घटिका समयज्ञानम्

x. अधोलिखितकार्यक्रमे अड्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयं लिखत
प्रातः (i) 8.30 वादने प्रार्थना।
प्रातः (ii) 8.45 ध्वजारोहणं, भाषणानि च।
प्रातः (iii) 11.15 जलपानम्।
मध्याह्न (iv) 12.00 भ्रमणाय प्रस्थानम्।
उत्तरम्:
(i) सार्ध-अष्ट/सार्धाष्ट
(ii) पादोन-नव-वादने
(iii) सपाद-एकादशवादने/सपादैकादशवादने
(iv) द्वादशवादने।

Samay In Sanskrit Class 10 HBSE

XI. अधोलिखितसारिणी अकानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयम् लिखत
प्रातः (i) 6.30 वादने ईशवन्दना।
प्रातः (ii) 7.45 वादने उपहाराः।
प्रातः (iii) 8.15 वादने संस्कृतसम्भाषण-अभ्यासः ।
प्रातः (iv) 11.00 वादने वर्तनीसंशोधनम्।
उत्तरम्:
(i) सार्धषड्
(ii) पादोन-अष्ट/पादोनाष्ट
(iii) सपाद-अष्ट/सपादाष्ट
(iv) एकादश

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् घटिका समयज्ञानम्

XII. अधोलिखिते कार्यक्रमे अड्कानां स्थाने संस्कृतपदेषु समयम् उत्तरपुस्तिकायां लिखत
(i) 8.15 प्रातः विद्यालयगमनम्।
(ii) 8.45 प्रातः सामूहिकप्रार्थना।
(iii) 9.00 प्रातः कक्षासु अध्ययनम्।
(iv) 3.30 सायम् अवकाशः।

XIII. दिल्लीतः हरिद्वाराय बसयानं कति कति वादने प्रस्थानं करिष्यति इति एतां समयसारिणी समुचितसमयेन पूरयत
(i) 10:15 AM प्रातः——- वादने।
(ii) 4:00 PM सायम् ——- वादने।
(iii) 8:30 AM प्रातः——– वादने।
(iv) 4:45 PM सायम् ——– वादने।

XIV. आगरातः दिल्ली प्रति रेलयानं कदा कदा प्रस्थानं करोति इति एतां समयसारिणी समुचितसमयेन पूरयत
(i) सायं——- वादने।
(ii) सायं ——- वादने।
(iii) प्रातः——– वादने।
(iv) सायं——— वादने।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् घटिका समयज्ञानम्

xv. अमृतसरतः दिल्ली प्रति वायुयानं कदा प्रस्थानं करिष्यति इति एतां समयसारिणी समुचितसमयेन पूरयत
(i) 2:45 सायं——- वादने।
(ii) 6:15 सायं ——- वादने।
(iii) 8:00 प्रातः ———- वादने।
(iv) 10:30,प्रातः ——– वादने।

XVI. एक्सप्रेस-रेलयानानि दिल्लीतः अमृतसरनगरं प्रति कदा कदा प्रस्थानं करोति इति एतां समयसारिणी समुचितसमयेन पूरयत
(i) प्रातः——- वादने। (10 : 30)
(ii) सायम् ——- वादने। (2 : 15)
(iii) सायम् ————- वादने। (6 : 45)
(iv) प्रातः ——— वादने। (8 : 00)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् घटिका समयज्ञानम्

अभ्यासार्थम्

I. घटिकां दृष्ट्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत, गौरवः कदा किं किं करोति ?
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran Gatika Samay Gyan img-2
(क) गौरवः सायं ……….. वादने क्रीडति।
(ख) सः प्रातः ………… वादने उत्तिष्ठति।
(ग)सः ………… वादने प्रातराशं करोति।
(घ)सः ………… वादने विद्यालयात् आगच्छति।

II. घटिकां दृष्ट्वा लिखत यत् बसयानं कतिवादने गच्छति ?
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran Gatika Samay Gyan img-3

III. घटिकां दृष्ट्वा लिखत अभिनवः कदा किं किम् आचरति
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran Gatika Samay Gyan img-4
(क) सः प्रातः …………. वादने व्यायामं करोति।
(ख) सः ………….. वादने विद्यालयं गच्छति।
(ग) सः …………… वादने गृहम् आगच्छति।
(घ) अभिनवः सायं ……………. वादने उद्याने क्रीडति।

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