Class 12

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Upapad Vibhakti उपपद विभक्ति Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

उपपद विभक्ति ज्ञान

कर्ता, कर्म, करण आदि कारकों से प्रथमा, द्वितीया, तृतीया आदि विभक्तियों का निर्देश पहले बताया गया है। संस्कृत में कुछ ऐसे अव्यय एवं निपात हैं, जिनके योग से विशेष विभक्ति का प्रयोग होता है। भाव यह है कि उसमें साधारण विभक्ति न होकर विशेष विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। उन शब्दों को ‘उपपद’ कहते हैं और उसमें निर्दिष्ट होने वाली विभक्ति को ‘उपपद विभक्ति’ कहते हैं। जैसे ‘रामः ग्रामे वसति’ यहाँ गाँव में अधिकरण कारक होने से सप्तमी विभक्ति है, किन्तु यदि यहाँ वस्’ धातु से पूर्व ‘उप’ का प्रयोग किया जाए, तो पद में सप्तमी विभक्ति न हो कर द्वितीया विभक्ति हो जाती है. रामः ग्रामम् उपवसति। यहां कुछ प्रमुख उप पद विभक्तियों का विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है।

प्रथमा उपपद विभक्ति

‘इति’ शब्द के साथ प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे –
(क) ‘संस्कृत भाषा देवभाषा’ इति कथयन्ति।
(ख) दशरथस्य ज्येष्ठपुत्रः राम इति नामधेयः आसीत्।
(ग) अमुं नारदः इति अबोधि। (उनको नारद ऐसा जाना)।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

द्वितीया उपपद विभक्ति

सूत्र (i) अधिशीस्थासां कर्म – अधि उपसर्ग से युक्त शीङ् स्था और आस् धातु का आधार कर्मकारक होता है। यथा –
हरिः वैकुण्ठम् अधिशेते (हरि वैकुण्ठ में सोते हैं)।
हरिः वैकुण्ठम् अधितिष्ठति (हरि वैकुण्ठ में रहते हैं)।
हरिः वैकुण्ठम् अध्यास्ते (हरि वैकुण्ठ में बैठते हैं)।

सूत्र (ii) अभिनिविशश्च-अभि + नि-पूर्वक विश् धातु का भी आधार कर्म होता है। यथा – स अभिनिविशते सन्मार्गम् (वह अच्छे मार्ग में प्रवेश करता है।)
सूत्र (iii) उपान्वध्याड्वसः – उप, अनु, अधि और आङ् उपसर्ग से युक्त वसु धातु का आधार कर्मकारक होता है। यथा –

हरि वैकुण्ठम् उपवसति (हरि वैकुण्ठ में रहते हैं)।
हरि वैकुण्ठम् उपवसति (अनुवसति हरि वैकुण्ठ में रहते हैं)।
हरि वैकुण्ठम् उपवसति (अधिवसति हरि वैकुण्ठ में रहते हैं) ।
हरि वैकुण्ठम् उपवसति (आवसति हरि वैकुण्ठ में रहते हैं)।

यदि ‘उप + वस्’ का उपवास करना अर्थ हो तो आधार कर्म नहीं अधिकरण होता है और अधिकरण में सप्तमी होती है। यथा-तपस्वी वने उपवसति (तपस्वी वन में उपवास करता है)। गाँधी कारायाम् उपावसत् (गाँधी जी ने जेल में उपवास किया था)।

सूत्र (iv) गतिबुद्धिप्रत्यवसानार्थशब्दकर्माकर्मकाणामणि कर्ता स णौ – निम्न धातुओं के अण्यन्त कर्ता ण्यन्त में कर्मकारक बन जाते हैं –

(i) गत्यर्थक धातु – माता पुत्रं गृहं गमयति (माता पुत्र को घर भेजती है)।
(ii) बुद्धयर्थक धातु – गुरुः शिष्यं धर्मं बोधयति (गुरु शिष्य को धर्म बतलाता है)।
(iii) प्रत्यवसानार्थक (भक्षणार्थक) धातु – माता पुत्रम् ओदनम् आशयति (माता पुत्र को भात खिलाती है)।
(iv) शब्दकर्मक धातु – गुरुः छात्रं वेदम् अध्यापयति (गुरु छात्र को वेद पढ़ाते हैं)।
(v) अकर्मक धातु – माता शिशुं शाययति (माता शिशु को सुलाती है)।

सूत्र (v) कर्मज्ञप्रवचनीयुक्ते द्वितीया – जो उपसर्ग कर्मप्रवचनीयसंज्ञक होते हैं, उनके योग में द्वितीया विभक्ति होती है। यथा-जपम् अनु प्रावर्षत् मेघः (जप करने के बाद मेघ बरसा)। जप के कारण वर्षा हुई।
रामम् अनुगतः लक्ष्मणः वनम् (राम के पीछे लक्ष्मण वन गये)। राम के कारण लक्ष्मण वन गये।

सूत्र (vi) कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे (अत्यन्तसंयोगे द्वितीया) – अत्यन्त संयोग में काल और मार्ग के वाचक शब्दों में द्वितीया होती है। यथा – स मासम् अधीते वेदम् (वह महीना भर वेद पढ़ता है)। पुरा द्वादशवर्षाणि व्याकरणं पठन्ति स्म (पहले लगातार बारह साल तक व्याकरण पढ़ते थे)। क्रोशं कुटिला नदी वर्तते (लगातार कोस भर नदी टेढ़ी है)।

क्रिया की पूर्णता में तृतीया होती है (अपवर्गे तृतीया) – मासेन वेदम् अध्यैत (महीने भर में वेद पढ़ लिया)। क्रोशेन श्लोकान् अस्मरत् (कोस भर में श्लोकों को याद कर लिया)।

सूत्र (vii)
उभसर्वतसोः कार्या धिगुपर्यादिषु त्रिषु।
द्वितीयानेडितान्तेषु ततोऽन्यत्रापि दृश्यते।

निम्नलिखित शब्दों के योग में द्वितीया होती है –
(i) उभयत: – प्रयागम् उभयत: नद्यौ स्तः (प्रयाग के दोनों ओर दो नदियाँ हैं)।
(ii) सर्वतः – विद्यालयं सर्वतः वृक्षाः सन्ति (विद्यालय के सब ओर पेड़ हैं)।
(ii) धिक् – धिक् तं पापकारिणम् (उस पापकारी को धिक्कार है)।
(iv) उपर्यपरि – मेघम् उपर्युपरि विमानं गतम् (मेघ के ऊपर-ऊपर हवाई जहाज गया)
(v) अध्यधि – वनम् अध्यधि मार्ग: गतः (वन के बीचोबीच राह गयी है)
(vi) अधोऽधः – मेघम् अधोऽधः गच्छति विमानम् (मेघ के नीचे-नीचे हवाई जहाज जाता है।
सूत्र (viii) अभितः-परितः समया-निकषा-हा-प्रति-योगेऽपि-अभितः आदि के योग में भी द्वितीया होती है।

यथा –
(i) अभित: – विद्यालयम् अभितः वृक्षाः सन्ति (विद्यालय के सब ओर पेड़ हैं)।
(ii) परितः – विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति (विद्यालय के चारों ओर पेड़ हैं)।
(iii) समया – नगरं समया पर्वतः वर्तते। (शहर के पास पहाड़ है।)
(iv) निकषा – नगरं निकषा पर्वतः वर्तते (शहर के पास पहाड़ है।)
(v) हा – हा नास्तिकम् (नास्तिक पर अफसोस है)।
(vi) प्रति – दीनं प्रति कुरु दयाम् (गरीब पर दया करो)।
सत्र (ix) अन्तरा अन्तरेण यक्त – अन्तरा और अन्तरेण के योग में द्वितीया होती है। यथा-त्वां मां च अन्तरा विष्णुः (तेरे और मेरे बीच में विष्णु है)। अन्तरेण ज्ञानं न सुखम् (बिना ज्ञान के सुख नहीं मिलता)।
सूत्र (x) क्रियाविशेषणे द्वितीया – क्रियाविशेषण में द्वितीया होती है। वैसे क्रिया विशेषण अव्यय होते हैं, किन्तु अन्य शब्द भी जब क्रियाविशेषण के समान प्रयुक्त होते हैं तो वे भी अव्यय कम बन जाते हैं किन्तु उनमें द्वितीया विभक्ति लगती है और शब्द नपुंसकलिङ्ग में होते हैं। ये सभी क्रियाविशेषण सदा एक ही रूप में रहते हैं। यथा –
मन्दधी: सुखं स्वपिति (मूर्ख मौज से सोता है)।
मधुरं गायति सा बाला (वह लड़की मधुर गाती है)।
अधिकं शब्दायतेऽ? घटः (आधा भरा घड़ा अधिक शोर करता है)।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

तृतीया उपपद विभक्ति

कारक में तृतीया विभक्ति होती है।
सूत्र (i) गम्यमानाऽपि क्रिया कारकविभक्तौ प्रयोजिका – क्रिया यदि स्पष्टतः न कही भी गई हो किन्तु उसका भाव प्रतीत होता हो तो भी कारकों की विभक्तियाँ हो जाया करती हैं। यथा-अलं महीपाल ! तव श्रमेण (हे राजन् ! बस कीजिए, आपके परिश्रम से कुछ होना-जाना नहीं है)। यहाँ तव श्रमेण’ के बाद ‘न किञ्चित् साध्यम्’ यह बात बिना कहे भी समझ में आ जाती है, अत: ‘साध्य’ के साधन ‘श्रम’ में करण-कारक की तृतीया लगी है।

सूत्र (ii) प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानम् – प्रकृति आदि शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
प्रकृत्या चारु: अयं बालक: (यह लड़का स्वभाव से सुन्दर है)।
गोत्रेण गार्ग्य: अयं ब्राह्मणः (यह ब्राह्मण गोत्र से गार्य है)।
नाम्ना यज्ञदत्तः अयं छात्रः (यह छात्र नाम से यत्रदत्त है)।
अहं वर्णेन ब्राह्मणः (मैं वर्ण से ब्राह्मण हूँ)।
मम सुखेन याति कालः (सुख से मेरा समय बीतता है)।

सूत्र (ii) अपवर्गे तृतीया – अपवर्ग में – क्रिया की सिद्धि में कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में अत्यन्तसंयोग रहने पर तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
स मासेन  अधीतवान् (उसने महीने-भर में व्याकरण पढ़ लिया)। अयं चतुर्भि: वर्षेः गृहं निर्मितवान् (इसने
चार वर्षों में घर बना लिया)। योजनेन भवान् कथां समाप्तवान् (आपने योजन-भर में कथा समाप्त की)।
सूत्र (iv) सहयुक्तेऽप्रधाने (सहार्थे तृतीया)-‘सह’ के अर्थ वाले शब्दों के योग में अप्रधान में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –

पुत्रेण सह आगतः पिता (पुत्र के साथ पिता आया)।
छात्रेण समं गतः गुरु: (छात्र के साथ गुरुजी गये)।

गुरुणा सार्धम् एकासने न आसीत् (गुरु के साथ एक आसन पर कोई न बैठे)। मया साकं तिष्ठ (मेरे साथ ठहरो)।

सूत्र (v) येनाङ्गविकार: – जिस अंग के विकृत होने से अंगी में विकार ज्ञात हो उस अंग के वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –

अक्ष्णा काणः सः (वह आँख से काना है)।
कर्णेन बधिरः त्वम् (तुम कान से बहरे हो)।
अयं पादेन खञ्जः (यह पैर से लंगड़ा है)।

सूत्र (vi) इत्थंभूतलक्षणे – जिस चिह्न के कारण कोई व्यक्ति किसी विशेष प्रकार का लगता हो, उस चिह्न के वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
अयं जटाभिः तापसः प्रतीयते (यह जटाओं से तपस्वी लगता है।)
सः पुस्तकेन छात्रः (वह पुस्तक से छात्र है)।

सूत्र (vii) हेतौ (हेतो तृतीया) – हेतु में अर्थात् किसी भी कार्य के कारण या प्रयोजन तृतीया होती है। यथा –
दण्डेन घटः भवति (दण्ड से घड़ा होता है)।
श्रमेण धनं भवति (श्रम से धन होता है)।
पुण्येन सुखं मिलति (पुण्य से सुख मिलता है)।
विद्यया बुद्धिः वर्धते (विद्या से बुद्धि बढ़ती है)।
अध्ययनेन वसति (अध्ययन के निमित्त रहता है)।

सूत्र (viii) ऊन-वारण-प्रयोजनार्थश्च – ऊनार्थक, वारणार्थक और प्रयोजनार्थक शब्दों के योग में तृतीया होती है। यथा –
(क) ऊनार्थक-एकेन ऊनं शतम् (एक कम सौ)।
धनेन हीनः सः (वह धन से हीन है)।
गर्वेण शून्यः भव (गर्व से शून्य होओ)।
क्रोधेन रहितः सुखी भवति (क्रोध से रहित सुखी होता है)।

(ख) वारणार्थक – अलं विवादेन (विवाद न करो)।
अलं कलहेन (कलह मत करो)।

(ग) प्रयोजनार्थक – धनेन किं प्रयोजनम् (धन से क्या मतलब) ?
नास्ति मम सेवकेन प्रयोजनम् (मुझे सेवक से प्रयोजन नहीं है)।
कोऽर्थः पुत्रेण (पुत्र से क्या लाभ) ?

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

चतुर्थी उपपद विभक्ति

सूत्र (i) दाने चतुर्थी – जिसे कोई वस्तु दी जाए, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा-विप्राय गां ददाति।
सूत्र (ii) अशिष्टव्यवहारे दाणः प्रयोगे चतुर्थ्यर्थे तृतीया-अशिष्ट-व्यवहार के लिए दाण् धातु के प्रयोग में चतुर्थी के अर्थ में तृतीया होती है। यथा –
दास्या संयच्छते कामुकः (कामी पुरुष दासी को देता है)। शिष्ट-व्यवहार में-भार्यायै संयच्छति (पत्नी को देता है)।
सूत्र (ii) रुच्यर्थानां प्रीयमाण:-‘रुचना’ अर्थ वाले धातुओं के योग में जिसे कोई वस्तु रुचती है वह सम्प्रदानकारक होता है। उस सम्प्रदान में चतुर्थी होती है। यथा –
हरये रोचते भक्तिः (हरि को भक्ति अच्छी लगती है)।
मह्यं रोचते संस्कृतम् (मुझे संस्कृत अच्छी लगती है)।
सूत्र (iv) धारेरुत्तमर्ण:-धारि धातु के योग में उत्तमर्ण (साहूकार) में सम्प्रदानकारक होता है। उसमें चतुर्थी होती है। यथा – देवदत्ताय शतं धारयति सः (वह देवदत्त के लिए सौ रुपए धारता है)।
सूत्र (v) स्पृहेरीप्सतः-स्पृह धातु के योग में ईप्सित (अभीष्ट वस्तु) सम्प्रदान होता है। यथा पुष्पेभ्य स्पृह्यति मालाकारः (माली फूलों को चाहता है)। अहं संस्कृतस्य प्रचाराय स्पृह्यामि (मैं संस्कृत का प्रचार चाहता हूँ)।
सूत्र (vi) क्रुद्रुहेासूयार्थानां यं प्रति कोप:-क्रुध्, द्रुह, ईर्ष्या और असूया अर्थ वाले धातुओं के योग में जिसके प्रति क्रोध आदि भाव होते हैं वह सम्प्रदानकारक होता है। यथा –
कृष्णाय क्रुध्यति कंसः (कंस कृष्ण पर क्रोध करता है)। कृष्णाय द्रुह्यति कंसः (कंस कृष्ण से द्रोह करता है)। कृष्णाय ईय॑ति कंसः (कंस कृष्ण से ईर्ष्या करता है)। कृष्णाय असूयति कंसः (कंस कृष्ण से असूया करता है)।
सूत्र (vii) क्रुधद्रुहोरुपसृष्टयोः कर्म-क्रुध और द्रुह्य धातु यदि उपसर्ग से युक्त हों, उसके प्रति क्रोध हो वह कर्मकारक होता है। कर्म में द्वितीया होती है। यथा –
कृष्णम् अभिक्रुध्यति कंसः (कंस कृष्ण पर क्रोध करता है)। कृष्णम् अभिद्रुह्यति कंसः (कंस कृष्ण से विद्रोह करता है)।
सूत्र (vii) तादर्थ्य चतुर्थी वाच्या-जिस प्रयोजन के लिए कोई क्रिया की जाती है, कोई वस्तु होती है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा –
मुक्तये हरि भजति (मुक्ति के लिए हरि को भजता है)। भवति काव्यं यशसे (काव्यं यश के लिए होता है)। कुण्डलाय सुवर्णम् (कुण्डल के लिए सोना है)। मोदकाय क्रन्दति बाल: (बच्चा लड्डू के लिए रोता है)।
सूत्र (ix) नमः स्वस्ति-स्वाहा-स्वधालं-वषड्योगाच्च-नमः, स्वस्ति आदि शब्दों के चतुर्थी होती है। यथा नमः-तस्मै श्रीगुरवे नमः (उस श्रीगुरु को नमः है)। स्वस्ति-अस्तु स्वस्ति प्रजाभ्यः (प्रजा का कल्याण हो।) स्वाहा-अग्नये स्वाहा (अग्नि को स्वाहा है)। स्वधा-पितृभ्यः स्वधा (पितरों को समर्पित है)। अलम्-अलं मल्लो मल्लाय (यह पहलवान उस पहलवान के लिए काफी) निषेध में तृतीया-अलं विवादेन। वषड्-वषड् इन्द्राय (इन्द्र को अर्पित है)।
सूत्र (x) उपपदविभक्तेः कारकविभक्तिर्बलीयसी – उपपदविभक्ति से कारक विभक्ति बलवती होती है। इसलिए कारक विभक्ति उपपदविभक्ति को रोकती है।
नमस्करोति देवान् भक्तः (भक्त देवों को नमस्कार करता है)। इस वाक्य में कर्मणि द्वितीया से कर्मकारक में होने वाली द्वितीया विभक्ति नमः, स्वस्ति से होने वाली उपपदविभक्ति चतुर्थी को रोक देती है।
सूत्र (xi) निम्नलिखित शब्दों के योग में भी चतुर्थी विभक्ति होती है –

(i) हितम्-भवतु लोकाय हितम् (लोक के लिए कल्याण हो)।
(ii) सुखम्-अस्तु लोकाय हितम् (लोक के लिए सुख हो)।
(iii) स्वागतम्-स्वागतं रामाय (राम के लिए स्वागत है)।
(iv) कुशलम्-तुभ्यं भूयात् कुशलम् (तेरा कुशल हो)। आदि।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

पञ्चमी उपपद विभक्ति

सूत्र (i) जुगुप्सा – विराम-प्रमादार्थानामुपसंख्यानम्-जुगुप्सा (घृणा), विराम और प्रमाद (लापरवाही) अर्थ वाले धातुओं के योग,में पञ्चमी विभक्ति होती है जैसे –
पापात् जुगुप्सते (पाप से घृणा करता है)।
अधर्मात् विरमति (अधर्म से विरत होता है)।
धर्मात् प्रमाद्यति (धर्म से प्रमाद करता है)।
सूत्र (ii) भीत्रार्थानां भयहेतुः – भय और त्राण अर्थ वाले धातुओं के योग में अपादान कारक होता है यथा-व्याघ्रात् बिभेति (बाघ से डरता है) सात् त्रायते (साँप से बचता है)।
सूत्र (iii) पराजेरसोढः – परा उपसर्गपूर्वक जि धातु के योग में असोढ (जो सहने योग्य न हो, जेता) अपादानकारक होता है। यथा-रामात् रावणः पराजयते (राम से रावण हारता है)।
सूत्र (vi) आख्यातोपयोगे – उपयोग (नियमपूर्वक साथ रहकर विद्या पढ़ने) से आख्याता राम पढ़ाने वाला) अपादानकारक होता है। यथा-आचार्यात् अधीते रामः (आचार्य से राम पढ़ता है)।
सूत्र (v) जनिकर्तुः प्रकृतिः – जन् धातु के कर्ताकारक की प्रकृति अपादान कारक होती है। यथा-ब्राह्मणः प्रजाः प्रजायन्ते (ब्रह्मा से प्रजा उत्पन्न होती है)। क्रोधाद् भवति संमोहः (क्रोध से मोह उत्पन्न होता है)।
सूत्र (vi) भुवः प्रभवः – भू धातु ने कर्ता का प्रभव (उत्पत्ति-स्थान) अपादानकारक होता है। यथा-हिमवतः गङ्गा प्रभवति। (हिमवान् से गङ्गा प्रकट होती है।) लोभात् क्रोधः प्रभवति (लोभ से क्रोध प्रकट होता है)।
सूत्र (vii) पञ्चमी विभक्तेः – विभाग करने में, किसी को अच्छा-बुरा धनी-गरीब आदि बताने में इससे भेद बताया जाये उसमें पंचमी होती है। यथा –
माथुराः पाटलिपुत्रकेभ्यः आढ्यतराः (मथुरा के लोग पटनावालों से अधिक धनी हैं)। रामः श्यामात् सुन्दरतरः (राम श्याम से अधिक सुन्दर है)। मौनात् सत्यं विशिष्यते (चुप रहने से सत्य बोलना अच्छा है)। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी (माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बड़ी है)। धनाद् विद्या गरीयसी (धन से विद्या बड़ी है)।
सूत्र (viii) अन्यारादितरर्तेदिक्शब्दाञ्चूत्तपदाजाहि युक्त – अन्य आदि शब्दों के योग में पंचमी होती है।

यथा –
(i) अन्य: – रामचन्द्रात् अन्य: बलरामः आसीत् (रामचन्द्र से दूसरे (भिन्न) थे बलराम)।
(ii) आरात् – आरात् वनाद् ग्रामः (वन से गाँव निकट है)। देहली आरात् पाटलिपुत्रात् (दिल्ली पटना से निकट है)।
(iii) इतर, भिन्न, अतिरिक्त आदि –
श्रीहर्षात् इतरः (भिन्नः, अतिरिक्तः वा) आसीत् श्रीहर्षवर्धनः(श्रीहर्ष से भिन्न था श्रीहर्षवर्धन)।
(iv) ऋते – ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः (ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती)।
(v) दिक्शब्द – बिहारात् पूर्वः असमः (बिहार से पूरब है आसाम)। चैत्रात् पूर्वः फाल्गुनः (चैत से पहले फाल्गुन पड़ता है)।
(vi) अञ्चुत्तरपद – प्राक् सोमः भौमात् (मंगल से पहले है सोमवार)।
(vii) आच् (प्रत्यय) – दक्षिणा ग्रामात् पाठशाला (गाँव से दक्षिण ओर पाठशाला है)।
(viii) आहि (,,) – दक्षिणाहि भारतात् समुद्रः (समुद्र भारत के दक्षिण ओर है)।
सूत्र (ix) प्रभृत्यादियोगे पंचमी – प्रभृति आदि शब्दों के योग में पंचमी होती विभक्ति है। यथा –
(i) प्रभृति – शैशवात् प्रभृति (वचपन से आज तक)।
(ii) आरभ्य – ज्येष्ठात् आरभ्य (बड़े से लेकर)।
(iii) बहिः – सः ग्रामाद् बहिष्कार्यः (वह गाँव से बाहर करने योग्य है)।
(iv) अनन्तरम् – अध्ययनात् अनन्तरं ग्रामं गतः (पढ़ने के बाद गाँव चला गया)।
(v) परम् – अस्मात् परं किं जातम् (इसके बाद क्या हुआ)।
(vi) ऊर्ध्वम् – को जानीते क्षणाद् ऊर्ध्व किं भावि (कौन जानता है कि क्षणभर के बाद क्या होगा?

सूत्र (x) पृथग-विना-नानाभिस्तृतीयान्यतरस्याम्-पृथक, विना और नाना शब्दों के योग में द्वितीया, तृतीया और पंचमी विभक्तियाँ होती हैं। यथा –
(i) पृथक्-आत्मानम् पृथक् (आत्मना पृथक् अथवा आत्मनः पृथक्) नास्ति परमात्मा (आत्मा से अलग परमात्मा नहीं है)।
(ii) विना-धर्म विना (धर्मेण विना अथवा धर्मात् विना) सुखं न मिलति (धर्म के बिना सुख नहीं मिलता)।
(iii) नाना-नाना नारी निष्फला लोकयात्रा (नारी के बिना लोक-जीवन व्यर्थ है)।
नाना फलैः फलति कल्पलतेव विद्या (विद्या कल्पलता के समान अनेक फल देती है)।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

षष्ठी उपपद विभक्ति
(सम्बन्ध)

सूत्र (i) षष्ठी शेषे – प्रथमा से सप्तमी तक ही कही गई सभी विभक्तियों से शेष अर्थ में अर्थात् सम्बन्ध में (क्योंकि सम्बन्ध में कोई विभक्ति नहीं बताई गई है)। षष्ठी विभक्ति होती है। यथा-राज्ञः पुरुषः (राजा का पुरुष)। पितुः पुत्रः (पिता का पुत्र) । स्वामिनः भृत्यः (मालिक का नौकर)। वसिष्ठस्य पत्नी (वसिष्ठ की पत्नी)।
कूपस्य जलम् (कुएँ का पानी)। तस्य धनम् (उसका धन)।

सूत्र (ii) षष्ठी हेतु-प्रयोगे हेतु शब्द के प्रयोग में कारण या प्रयोजन और हेतु, दोनों में षष्ठी होती है। यथा –
कस्य हेतोः वसति (किसलिए रहता है)?
अध्ययनस्य हेतोः वसति (पढ़ने के लिए रहता है)।
अल्पस्य हेतोः बहु न त्यज (थोड़े के लिए बहुत मत छोड़ो)।

सूत्र (iii) अधीगर्थदयेशां कर्मणि-अधीगर्त (अधि + इक् + अर्थ, अधिपूर्वक, ‘इक्’ धातु के अर्थ वाले अर्थात् स्मरण अर्थ वाले) धातु, दय, और ईश् धातु के कर्मकारक में षष्ठी विभक्ति होती है। यथा –
मातुः स्मरति कृष्णः (माता को कृष्णजी याद करते हैं)।
दीनानां दयते रामः (राम गरीबों पर दया करते हैं)।
गात्राणामनीशोऽस्मि संवृत्तः (मैं अङ्गों से असमर्थ हो गया हूँ-अंग मेरे वश में नहीं हैं)।

सूत्र (iv) कर्तृकर्मणोः कृति-कृदन्त शब्दों के योग में अनुक्त कर्ता और कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है। यथा ईश्वरः जगतः कर्ता (ईश्वर जगत् का कर्ता है)। शाकुन्तलम् कालिदासस्य कृतिः (शाकुन्तल कालिदास की कृति है)। अहम् पुस्तकस्य पाठकः (मैं पुस्तक को पढ़ने वाला हूँ)।

सूत्र (v) तुल्यार्थरतुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम् (तुल्यार्थे तृतीया षष्ठी च)-तुला और उपमा शब्दों को छोड़कर सभी तुल्यार्थक शब्दों के योग में तृतीया और षष्ठी विभक्तियाँ होती हैं। यथा –
आसीद् भरतः रामेण समः (भरत राम के समान थे)।
आसीद् भरतः रामस्य समः (भरत राम के समान थे)।
धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः (धर्म से हीन लोग पशुओं के जैसे हैं)।
धर्मेण हीनाः पशूनां समानाः (धर्म से हीन लोग पशुओं के जैसे हैं)।

सूत्र (vi) यतश्च निर्धारणम् (निर्धारणे षष्ठी सप्तमी च)-समुदाय से किसी की पृथक् विशिष्टता आने में जिससे वह विशिष्ट हो उसमें षष्ठी और सप्तमी विभक्तियाँ होती हैं। यथा –
नृणां विप्रः श्रेष्ठः (नरों में विप्र श्रेष्ठ है)।
नृषु विप्रः श्रेष्ठः (नरों में विप्र श्रेष्ठ है)।
गवां कृष्णा बहुक्षीरा (गायों में काली गाय विशेष दूधवाली है)।
गोषु कृष्णा बहुक्षीरा (गायों में काली गाय विशेष दूधवाली है)।
कवीनां कालिदासः श्रेष्ठः (कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है)।
कविषु कालिदासः श्रेष्ठः। (कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है)

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

सप्तमी उपपद विभक्ति
(अधिकरणकारक)

सूत्र (i) सप्तम्यधिकरणे च – अधिकरणकारक में और दूर तथा अन्तिक अर्थवाले शब्दों में सप्तमी विभक्ति होती है। यथा –
(i) अधिकरण-वने वसति सिंहः (शेर वन में रहता है)।
(ii) दूरार्थक-ग्रामस्य दूरे नदी (गाँव से दूर है नदी)।
(iii) अन्तिकार्थक-ग्रामस्य अन्तिके विपणिः (गाँव के पास बाज़ार है)।
सूत्र (ii) अधिकरणे सप्तमी – अधिकरणकारक में सप्तमी होती है। यथा-सिंह: वने वसति (सिंह वन में रहता है)।

सूत्र (iii) आधारोऽधिकरणम् – कर्ता या कर्म कारक के द्वारा क्रिया का आधार अधिकरणकारक होता है। उस अधिकरण में सप्तमी होती है। आधार तीन प्रकार का होता है।
(क) औपश्लेपिक (ऊपर से आधार), यथा-कटे आस्ते मुनिः (मुनि चटाई पर बैठता है)।
(ख) अभिव्यापक (भीतर से आधार), यथा-पात्रे वर्तते जलम् (जल पात्र में है)।
(ग) वैषयिक (विषय के आधार, , यथा-मोक्षं इच्छास्ति (मोक्ष में मेरी चाह है)।

सूत्र (iv) साध्वसाधुप्रयोगे च-साधु और असाधु शब्दों के प्रयोग में सप्तमी होती है। यथा –
साधुः कृष्णो मातरि (कृष्णजी माता के लिए अच्छे थे)।
असाधुः कृष्णो मातुले (कृष्णजी मामा (कंस) के लिए बुरे थे)।

सूत्र (v) निमित्तात् कर्मयोगे – जिस निमित्त के लिए कर्मकारक से युक्त क्रिया की जाती है, उसमें सप्तमी होती है। यथा –
चर्मणि द्वीपिनं हन्ति (चाम के लिए चीते को मारता है)।
दन्तयोः हन्ति कुञ्जरम् (दाँतो के लिए हाथी को मारता है)।
केशेषु चमरी हन्ति (केशों के लिए चमरी (चँवरी गाय) को मारता है।
सीम्नि पुष्कलक: हतः (अण्डकोष के लिए कस्तूरीमृग मारा गया)।

सूत्र (vi) यस्य च भावे भावलक्षणम् (भावे सप्तमी) – जिसकी क्रिया से दूसरी क्रिया जाती जाय, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है। यथा –
गोषु दुह्यमानासु गतः (वह गौवों को दुहते समय गया)।
अस्तंगते सूर्ये छात्राः गताः (सूर्य के डूब जाने पर छात्र गए)।
रामे वनं गते-मृतो दशरथ: (राम के वन जाने पर दशरथ मर गए)।

सूत्र (vii) षष्ठी चानादरे (अनादरे षष्ठी-सप्तम्यौ) – जिसकी क्रिया से दूसरी क्रिया जानी जाय और वहाँ अनादर का भाव हो तो उसमें षष्ठी और सप्तमी विभक्तियाँ होती हैं। यथा-रुदतः पुत्रस्य पिता वनं गतः (रोते पुत्र का अनादर कर पिता वन चला गया)। अथवा-रुदति पुत्रे पिता वनं गतः।

पितरि निवारयति अपि पुत्रः त्यक्तवान् अध्ययनम्, पितुः निवारयतः अपि पुत्रः त्यक्तवान् अध्ययनम् (पिता के मना करते रहने पर भी पुत्र ने पढ़ना छोड़ दिया)।

सूत्र (viii) आयुक्त कुशलाभ्यां चासेवायाम् आयुक्त (काम में संलग्न) तथा कुशल शब्द के योग में षष्ठी और सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे –
(i) छात्रः पठने आयुक्तः (संलग्नः)
(ii) भक्तः हरिपूजने आसक्तः।
(iii) छात्रः अध्ययने कुशलः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

अभ्यासार्थम् :

निर्देश: – अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतेषु शब्देषु उपपदविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत –

1. उपार्जितानां वित्तं ….. ….. बिना सफलं न भवति। (दानभोग)
2. तस्मै …………….. व्ययार्थं रत्नचतुष्टयं दास्यामि। (राजन्)
3. त्वम् एतेषां रत्नानां मध्ये यत् ……………… रोचते तद् गृहाण। (युष्मद्)
4. दृढसङ्कल्पोऽयम् अश्वारोही …………….. न विरमति। (स्वकार्य)
5. श्रीनायारः स्वराज्यं ……………… प्रति गमनाय इच्छां न प्रकटितवान्। (केरल)
6. तस्य ……………. सह कश्चित् सम्पर्कः अस्ति। (राज्य)
7. न स्वल्पमपि ……………. बिभ्यति। (पापाचार)
8. …………… मुखेन कथमेतत् कथयितुं शक्नुमः। (अस्मद्)
उत्तराणि :
1. दानभोगैः
2. राजे
3. तुभ्यं
4. स्वकार्यात्
5. केरलं
6. राज्येन
7. पापाचारेभ्यः
8. वयं।

बोर्ड की परीक्षा में पूछे गए प्रश्न –

प्रश्न I.
कर्ताकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् :
कर्ता कारक – क्रिया का प्रधानभूत कारक कर्ता कहलाता है अर्थात् जो क्रिया के सम्पादन में प्रधान होता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता का अर्थ है-करने वाला। वाक्य में क्रिया को करने में जो स्वतन्त्र होता है, वह कर्ता होता है। कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।
उदाहरण – देवदत्तः पठति। यहाँ पढ़ने की क्रिया का प्रधानभूत । स्वतन्त्र कारक देवदत्त है, अतः वह कर्ता है।

प्रश्न II.
करणकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
करणकारक – वाक्य में कर्ता अपने कार्य की सिद्धि के लिए जिसकी सबसे अधिक सहायता लेता है, उसे करणकारक कहते हैं। करणकारक में तृतीया विभक्ति होती है।
उदाहरण – गौरवः कलमेन लिखति। यहाँ गौरव कर्ता है, कलम करण है और लिखति क्रिया है। गौरव लिखने के लिए कलम की सबसे अधिक सहायता लेता है, अतः कलम करणकारक है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

प्रश्न III.
अपादानकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
अपादानकारक – अलग होने में स्थिर या अचल कारक को अपादान कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जब दो वस्तुओं का अलगाव हो, तब जो वस्तु अपने स्थान पर स्थिर रहती है, उसी को अपादान कहते हैं। अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
उदाहरण –
(i) गौरवः ग्रामात् आयाति (गौरवः गांव से आता है)-यहाँ गांव अपने स्थान पर स्थिर रहता है। अतः वह अपादान कारक है।
(ii) धावतः अश्वात् बालकः पतति (दौड़ते हुए घौड़े से बालक गिरता है)-यहाँ पतन क्रिया में अश्व स्थिर है, अतः अपादान कारक है।

प्रश्न IV.
सम्प्रदानकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
सम्प्रदानकारक – दान के कर्म द्वारा कर्ता जिसे सन्तुष्ट करना चाहता है, वह पदार्थ सम्प्रदान कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि दान क्रिया जिसके लिए होती है, उसे सम्प्रदान कहते हैं। सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है।
उदाहरण – विप्राय गां ददाति (ब्राह्मण को गाय देता है)-यहाँ गोदान रूपी कर्म के द्वारा कर्ता विप्र से सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है अतः विप्र सम्प्रदान कारक है।

प्रश्न V.
कर्मकारकस्य परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् :
कर्मकारक – कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा जिसे विशेष रूप से प्राप्त करना चाहता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।
उदाहरण –
दिनेश: ग्रामं गच्छति। (दिनेश गाँव जाता है) – यहाँ कर्ता दिनेश जाने की क्रिया द्वारा ग्राम को प्राप्त करना चाहता है इसीलिए वाक्य में ग्राम कर्म है।
हरीशः फलं खादति। (हरीश फल खाता है) – यहाँ कर्ता हरीश खाने की क्रिया द्वारा फल को प्राप्त करना चाहता है इसीलिए वाक्य में फल कर्म है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् उपपद विभक्ति

प्रश्न VI.
अधिकरण-कारकस्य परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् :
अधिकरण-कारक- वाक्य में क्रिया या कर्म के आधार को अधिकरण कारक कहा जाता है। यह आधार तीन प्रकार का होता है – 1. औपश्लेषिक, 2. वैषयिक, 3. अभिव्यापक।
अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है।

उदाहरण –
आसने तिष्ठति। (आसन पर बैठता है) – यहाँ बैठने की क्रिया का आधार आसन है इसीलिए वाक्य में आसन अधिकरण है। यह औपश्लेषिक (भौतिक संयोग वाला) आधार है। मोक्षे इच्छा अस्ति। (मोक्ष में इच्छा है) – यहाँ क्रिया का आधार मोक्ष है इसीलिए वाक्य में मोक्ष अधिकरण है। यह वैषयिक (बौद्धिक संयोग वाला) आधार है।
तिलेषु तैलम्। (तिलों में तेल है।) – यहाँ तेल का आधार तिल है इसीलिए वाक्य में तिलअधिकरण है। तेल पूरे तिल में व्यापक है इसीलिए यह अभिव्यापक आधार है।

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Karak-Parichayah कारक-परिचयः Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

कारक ज्ञान :

क्रिया के सम्पादन में जिन शब्दों का प्रयोग होता है वे कारक कहलाते हैं। “क्रिया जनकं” अथवा क्रियां करोति इति कारकम्। इसी प्रकार ‘क्रियान्वयि कारकम्’ अर्थात् क्रिया के साथ जिसका सीधा सम्बन्ध हो उसे कारक कहते हैं। जिसका क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं हो वे कारक नहीं माने जाते। संस्कृत में कारक छः हैं कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण। इन छ: कारकों का क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध रहता है जैसे-‘राजा ने हरिद्वार’ में यश पाने के लिए अपने हाथ से रुपये ब्राह्मणों को दान दिए। इस वाक्य में दान क्रिया को सम्पादन करने में जिन शब्दों का प्रयोग हुआ है वे सभी कारक हैं।

1. यहाँ दान (क्रिया) करने वाला राजा है – अतः राजा कारक हुआ।
2. दान का स्थान हरिद्वार है – अतः हरिद्वार कारक हुआ।
3. दान लेने वाला ब्राह्मण है – अतः ब्राह्मण कारक हुआ।
4. क्रिया हाथ से हुई – अतः हाथ कारक हुआ
5. रुपए दिए गए – अतः रुपए कारक हुआ।
6. दान का प्रयोजन यश प्राप्ति है – अत: यश कारक हुआ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

इस प्रकार क्रिया को पूरा करने में छ: सम्बन्ध स्थापित होते हैं जिन्हें कारक कहा जाता है और उन्हीं कारकों के चिहनों (प्रत्यय) को विभक्ति कहते हैं। जैसे –

  1. कर्ता कारक – प्रथमा विभक्ति-ने अर्थ में।
  2. कर्म कारक – द्वितीया विभक्ति-को अर्थ में।
  3. करण कारक – तृतीया विभक्ति-से, के, द्वारा अर्थ में। (with)
  4. सम्प्रदान कारक – चतुर्थी विभक्ति-के, लिए अर्थ में।
  5. अपादान कारक – पंचमी विभक्ति-से (अलग होना अर्थ में) (From)
  6. अधिकरण – सप्तमी विभक्ति में, पर, अर्थ में।

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जिसका क्रिया के निर्माण में कोई सम्बन्ध नहीं है, वह कारक नहीं होता।

उपर्युक्त सूची में सम्बन्ध कारक अर्थात् षष्ठी विभक्ति को कारक नहीं माना गया है क्योंकि उसका क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध नहीं होता। जैसे-‘राज्ञः पुरुषः गच्छति।’ इस वाक्य में राजा का जाना क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं है। राजा के होने या न होने से क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यहाँ ‘राजा’ सम्बन्ध कारक नहीं माना जा सकता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी षष्ठी को कारक नहीं माना जाता है। परन्तु, सम्बन्ध अर्थ को बताने वाली षष्ठी विभक्ति का, के, की, के अतिरिक्त कुछ विशेष अर्थों (संख्या आदि) में भी प्रयुक्त होती है। अतः उसे दिखाने के लिए षष्ठी विभक्ति का भी कारक प्रकरण में विवेचन किया जाता है।

कारक और उपपद विभक्ति में भेद इस प्रकार जिस शब्द का क्रिया के साथ सम्बन्ध प्रकट होता है उसे कारक विभक्ति कहते हैं और क्रिया से भिन्न नमः, स्वस्ति, सह, विना इत्यादि कुछ अव्यय शब्दों एवं पद विशेष के योग में जो विभक्ति होती है उसे उपपद विभक्ति कहते हैं। जैसे-‘रामः पुस्तकं पठति’ कारक विभक्ति है और ‘सीता रामेण सह गच्छति’ में ‘रामेण’ उपपद विभक्ति है क्योंकि रामेण में ततीया गमन क्रिया के कारण नहीं हई किन्त ‘सह’ के कारण हई है।

जहाँ कारक विभक्ति और उपपद विभक्ति दोनों की उपस्थिति हो वहाँ कारक विभक्ति ही होती है। जैसे ‘देवं नमस्करोति’ में नम: के योग में चतुर्थी उपपद विभक्ति भी प्रयुक्त है और नमस्करण क्रिया के योग में द्वितीया कारक विभक्ति भी प्रयुक्त है। किन्तु चतुर्थी के स्थान पर नियमानुसार द्वितीया ही होगी।

प्रथमा विभक्ति :

सूत्र-प्रादिपदिकार्थ-लिंग-परिमाण-वचनमात्रे प्रथमा

अर्थ – प्रातिपादिकार्थ (व्यक्ति और जाति-Crude form) मात्र में, लिंग (स्त्रीलिंग, पुंल्लिंग-नपुंसकलिंग) मात्र में, परिणाम (वचन) मात्र में, और वचन (संख्या) (एकत्व-द्वित्व-बहुत्व) मात्र में प्रथमा विभक्ति होती है।

उदाहरण –
(क) प्रातिपदिकार्थ मात्र में उच्चैः, नीचैः, कृष्णः, श्रीः, ज्ञानम्।
(ख) लिंग मात्र में – तट: (पुंल्लिंग), तटी (स्त्रीलिंग), तटम् (नपुंसकलिंग)।
(ग) परिणाम मात्र में – द्रोणः ब्रीहिः। द्रोण-वजन जितना नपा-तुला हुआ धान। यहाँ द्रोण-किसी, आदि परिणाम का सूचक है।
(घ) वचन मात्र में – एक: (एकवचन), द्वौ (द्विवचन), बहवः (बहुवचन)।
सूचना – कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग वास्तव में प्रातिपदिकार्थ मात्र में होता है। जैसे-रामः पाठं पठति।
इसी प्रकार कर्तवाच्य के कर्म में भी प्रथमा विभक्ति का प्रयोग प्रातिपादक का अर्थमात्र कहने में होता है। जैसे-रामेण पाठः पठ्यते।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

प्रथमा विभक्ति-सम्बोधन

सूत्र-सम्बोधने च

अर्थ – सम्बोधन अर्थ में भी प्रथमा विभक्ति होती है।
उदाहरण – हे राम ! हे नदि ! हे ज्ञान ! यहां सम्बोधन अर्थ में ‘राम’ से प्रथमा विभक्ति हुई है।

द्वितीया विभक्ति-कर्मकारक

सूत्र-कर्तुरीप्सिततमं कर्म

अर्थ – किसी वाक्य में प्रयोग किए गए पदार्थों में जिसमें कर्ता सबसे अधिक चाहता है, उसे कर्म कहते हैं अर्थात् कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा विशेष रूप से जिसे प्राप्त करना चाहता है, उसे कर्म कहते हैं।

उदाहरण – देवदत्तः पयसा ओदनं खादति, देवदत्त दूध से भात खाता है, इस वाक्य में भात की तरह यद्यपि दूध भी कर्ता को प्रिय है, परन्तु कर्त्ता खादन क्रिया द्वारा भात (ओदन) को विशेष रूप में प्राप्त करना चाहता है, अत: ओदन अत्यन्त इष्ट होने से कर्म हुआ, दूध नहीं।

सूत्र-कर्मणि द्वितीया

अर्थ – अनुक्त कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। (कर्तृवाच्य में कर्म अनुक्त होता है, और कर्मवाच्य में उक्त।) कर्तृवाच्य में ही कर्म में द्वितीया होती है। उक्त (अभिहित) कर्म में तो प्रथमा होती है।

उदाहरण – कर्तृवाच्य कर्म (अनुक्त कर्म) में द्वितीया-हरिं भजति।
भजन क्रिया का कर्म हरि है अतः उसमें द्वितीया हुई है।
कर्मवाच्य कर्म में प्रथमा – हरिः सेव्यते, लक्ष्म्या हरिः सेवितः। यहाँ कर्म के अनुसार प्रत्यय (क्रिया) होने से कर्म उक्त है अत: यहाँ हरि में द्वितीया न होकर प्रथमा विभक्ति हुई है।

अन्य उदाहरण –

  1. छात्रः विद्यालयं गच्छति।
  2. क्षुधातः भोजनं भुंक्ते।
  3. परीक्षार्थी पुस्तकं पठति।
  4. अहं पत्रम् लिखामि।
  5. भक्तः भक्तिं लभते।
  6. पाचकः तण्डुलं पचति।
  7. भृत्यः भारं वहति।

नोट – उपर्युक्त उदाहरणों में स्थूलाक्षर कर्म हैं।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

सूत्र-अकथितं च

अर्थ – जिस कारक की अपादान, सम्प्रदान, करण या अधिकरण आदि विवक्षा न करना चाहे, उसका कर्म संज्ञा हो जाती है। भाव यह है कि अपादान आदि कारकों के स्थान पर उनकी विवक्षा न होने पर कर्मकारक का प्रयोग होता है। किन्तु यह नियम निम्नलिखित सोलह धातुओं या उनकी समानार्थक धातुओं में ही सम्भव है –

उदाहरण – क्रम से नीचे दिए जा रहे हैं –

1. गां दोग्धि पयः (गाय से दूध दुहता है) यहाँ गाय अपादान कारक (गोः) है, किन्तु उसकी विवक्षा न होने पर गाय में पंचमी न होकर द्वितीया हुई है।
2. बलिम् याचते वसुधाम् (बलि से पृथ्वी मांगता है)-यहाँ बलि अपादान कारक (बलेः) है, किन्तु उसकी अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
3. तण्डुलान् ओदनं (क्षीरम्) पचति (चावलों से भात पकाता है)-यहाँ ताण्डुल करण कारक (ताण्डुलैः) है, उसकी अविवक्षा होने पर उसमें द्वितीया विभक्ति हुई है।
4. गर्गान् शतं दण्डयति (गर्गों को सौ रुपए जुर्माना करता है)-यहाँ गर्गान् अपादान कारक (गर्गेभ्यः) है, अविवक्षा होने पर, कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
5. व्रजं अवरुणद्वि गाम् (व्रज (बाड़े) में गाय को रोकता है)-यहाँ व्रज अधिकरण कारक (व्रज) है, अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई।
6. माणवकं (बालकम्) पन्थानं पृच्छति (लड़के से मार्ग पूछता है)-यहाँ ‘माणवक’ करण-कारक (माणवकेन) है, उसकी अविवक्षा हों पर कर्म संज्ञा होकर, द्वितीया विभक्ति हुई है।
7. वृक्षम् अवचिनोति (चिनोति) फलानि (वृक्ष से फलों को चुनता है)-यहाँ वृक्ष अपादान कारक (वृक्षात्) है, अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हई है।
8. माणवकं (बालकम्) धर्मं ब्रूते (लड़के के लिए धर्म कहता है)-यहाँ माणवक सम्प्रदान कारक (माणवकाय) है। उसकी अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
9. माणवकं धर्म शास्ति (लड़के के लिए धर्म की शिक्षा देता है)-यहाँ माणवक सम्प्रदान कारक (माणवकाय) कारक है, उसके अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
10. शतं जयति देवदत्तम् (देवदत्त से सौ रुपए जीतता है)-यहाँ देवदत्त अपादान कारक (देवदत्तात्) है, उसकी अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
11. सुधां क्षीरनिधिं मनाति (अमृत के लिए समुद्र को मथता है)-यहाँ सुधा सम्प्रदान कारक (सुधायै) है, किन्तु उसकी अविवक्षा होने पर कर्म संज्ञा होकर द्वितीया विभक्ति हुई है।
12. देवदत्तं शतं मुष्णाति (देवदत्त से सौ रुपए चुराता है)-यहाँ देवदत्त अपादान कारक (देवदत्तात्) है, किन्तु उसकी अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
13. ग्रामं अजां नयति (गाँव में बकरी को ले जाता है)-यहाँ ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) है किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
14. ग्रामं अजां हरति (गाँव में बकरी को हर कर ले जा रहा है)-यहाँ ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) है, किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
15. ग्रामं अजां कर्षति (गाँव में बकरी को खींचता है)-यहाँ ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) हैं, किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
16. ग्रामं अजां वहति (ग्राम अधिकरण कारक (ग्रामे) हैं, किन्तु अविवक्षा होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

समानार्थक धातुओं के उदाहरण –

1. बलिं भिक्षते वसुधाम् (बलि से पृथ्वी माँगता है) – यहाँ याच धातु की समानार्थक भिक्ष् धातु है। अतः बलि में अपादान की विवक्षा न होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
2. माणवकं धर्मं भाषते (लड़के के लिए धर्म कहता है) – यहाँ ब्रू धातु की समानार्थक भाष् धातु है। अत: माणवक में अपादान की विवक्षा न होने पर द्वितीया विभक्ति हुई है।
3. माणवकं धर्मं अभिधत्ते (लड़के के लिए धर्म कहता है) – यहाँ ‘ब्रू’ की समानार्थक अभि + धा धातु है। अतः माणवक में अपादान की विवक्षा न होने से द्वितीया विभक्ति हुई है।
4. माणवकं धर्मं वक्ति – (लड़के के लिए धर्म कहता है) – यहाँ ‘ब्रू’ धातु की समानार्थक ‘वच्’ धातु है। अत: माणवक में सम्प्रदान कारक की विवक्षा न होने के कारण द्वितीया विभक्ति हुई है।

कर्ता कारक
सूत्र-स्वतन्त्रः कर्ता

अर्थ – क्रिया का प्रधान भूत कारक कर्ता कहलाता है अर्थात् जो क्रिया के सम्प्रदान में प्रधान होता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता का अर्थ है करने वाला। वाक्य में क्रिया को करने में जो स्वतन्त्र होता है वह कर्ता होता है। कर्तवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।

उदाहरण – देवदत्तः गच्छति, यहाँ जाता है, क्रिया का प्रधान भूत कारक देवदत्त है, अत: वह कर्ता है।

तृतीया विभक्ति-करणकारक

सूत्र-साधकतमं करणम्

अर्थ – अपने कार्य को सिद्धि में कर्ता जिसकी सबसे अधिक सहायता लेता है, उसे करण कारक कहते हैं।
उदाहरण – रामेण बाणेन हतो बालि:-(राम ने बाण से बालि को मारा)। इस वाक्य में हनन क्रिया में बाण अत्यन्त सहायक होने से करण कारक है।

सूत्र-कर्तृकरणयोस्तृतीया

अर्थ – अनुक्त कर्ता (कर्मवाच्य और भाववाच्य में कर्ता अनुक्त होता है) तथा करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है।
उदाहरण – ‘रामेण बाणेन हतो बालिः’ (राम ने बाण से बाली को मारा)-इस वाक्य में करण ‘बाण’ में तृतीया विभक्ति हुई है। कर्मवाच्य में होने से यहाँ कर्ता ‘राम’ अनुक्त है, अत: राम में भी तृतीया विभक्ति हुई है।

अन्य उदाहरण –
सः स्व हस्तेन लिखति
दना भोजनं कुरु।
अहं यानेन ग्रामम् अगच्छम्।
रामः बाणेन रावणं हतवान्।
नोट – मोटे काले पदों में करण (साधन) होने से तृतीया विभक्ति हुई है।

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चतुर्थी विभक्ति-सम्प्रदान कारक

सूत्र-कर्मणा यमभि प्रैतिस सम्प्रदानम्

अर्थ – दान के कर्म द्वारा कर्ता जिसे सन्तुष्ट करना चाहता है, वह पदार्थ सम्प्रदान कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि दान क्रिया जिसके लिए होती है, उसे सम्प्रदान कहते हैं।

उदाहरण – विप्राय गां ददाति (ब्राह्मण को गाय देता है)-यहाँ गोदान कर्म के द्वारा कर्त्ता विप्र से सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है, अतः ‘विप्र’ सम्प्रदान कारक है।

सूत्र-चतुर्थी सम्प्रदाने

अर्थ – सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है।

उदाहरण – विप्राय गां ददाति (ब्राह्मण को गाय देता है) यहाँ ‘विप्र’ के सम्प्रदान संज्ञक होने के कारण उसमें चतुर्थी विभक्ति हुई है।
इसी प्रकार-माता पुत्राय भोजनं ददाति।
गुरुः शिष्येभ्यः विद्यां प्रयच्छति।
‘के लिये’ अर्थ में भी चतुर्थी का प्रयोग होता है, जैसे –

1. स पूजनाय मन्दिरं गच्छति।
2. बालकाः पठनाय अत्र आगच्छन्ति।
3. लेखनी लेखनाय भवति।

सूत्र-नमः स्वस्ति-स्वाहा-स्वधाऽलं-वषड्योगाच्च

अर्थ – नमः स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम् (पर्याप्त, समर्थ) और वषट् (देवताओं को आहुति देना)-इन छ: अव्ययों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। ‘अलम् यहाँ पर्याप्त, समर्थ अर्थ का सूचक है।’ अतः अलम् अर्थ वाचक-प्रभुः समर्थः, शक्तः-इन पदों का भी अलम् में ग्रहण होता है और उस समर्थ वाचक शब्दों के योग में भी चतुर्थी होती है।

उदाहरण –

  1. हरये नमः (हरि को नमस्कार) – यहाँ हरि में नमः के योग में चतुर्थी विभक्ति हुई है।
  2. प्रजाभ्यः स्वस्ति (प्रजा का कल्याण हो) – यहाँ प्रजा में चतुर्थी है।
  3. अग्नये स्वाहा (अग्नि में आहुति है) – यहाँ अग्नि में चतुर्थी है।
  4. पितृभ्यः स्वधा (पितरों को आहुति है) – यहाँ पितृ में चतुर्थी है।
  5. दैत्येभ्यः हरि अलम् (हरि दैत्यों के लिए काफी है) – यहाँ दैत्य में चतुर्थी हुई है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

अन्य उदाहरण –

(i) दैत्येभ्यः हरिः प्रभुः (दैत्यों के लिए हरि समर्थ है)।
(i) दैत्येभ्यः हरिः समर्थः (दैत्यों के लिए हरि समर्थ है)।
(ii) दैत्येभ्यः हरिः शक्तः (दैत्यों के लिए हरि समर्थ है)। यहाँ दैत्य में चतुर्थी विभक्ति हुई है। नोट-यहाँ अलम का अर्थ काफी है, निषेध नहीं।

5. इन्द्राय वषट् – (इन्द्र के लिए आहुति)-यहाँ इन्द्र में चतुर्थी हुई है। वषट् का प्रयोग वेद में ही मिलता है, लोक में नहीं।

पञ्चमी विभक्ति-अपादानकारक

सूत्र-ध्रुवमपायेऽपादानम्

अर्थ – अलग होने में स्थिर या अचल कारक को अपादान कहते हैं। तात्पर्य यह है कि दो वस्तुओं का अलगाव हो, तब जो वस्तु अपने स्थान से अलग नहीं होती, उसी को अपादान कहते हैं।

उदाहरण –
(i) ग्रामात् आयाति (गाँव से वह आता है) – यहाँ गाँव अपने ही स्थान पर स्थिर रहता है। अतः वह अपादान कारक है।
(ii) धावतः अश्वात् पतति-(दौड़ते हुए घोड़े से वह गिरता है)-यहाँ पतन क्रिया में अश्व स्थिर है अतः अपादान संज्ञक है।

नोट – दौड़ता हुआ भी घोड़ा पतन क्रिया स्थिर में रहता है अर्थात् सवार गिरता है घोड़ा नहीं, अतः अश्व के अपादान कारक बनने में कोई बाधा नहीं।

सूत्र-अपादाने पंचमी

अर्थ-अपादान में पंचमी विभक्ति होती है।
उदाहरण –

1. ग्रामात् आयाति (गाँव से आता है) – यहाँ ग्राम में अपादान संज्ञक होने से पंचमी विभक्ति हुई है।
2. धावतः अश्वात् पतति (दौड़ते हुए घोड़े से वह गिरता है) – यहाँ अश्व में अपादान संज्ञा होने से पंचमी विभक्ति हुई है। धावतः अश्व का विशेषण है, अतः उसमें भी पंचमी हुई है।
3. वृक्षात् पत्रं पतति (वृक्ष से पत्ता गिरता है) – यहाँ वृक्ष में अपादान होने से पंचमी विभक्ति हुई है।

षष्ठी विभक्ति

सूत्र-षष्ठी शेषे

अर्थ – प्रतिपादिकार्थ, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण इन सम्बन्धों को छोड़ कर शेष-अर्थात् स्वामी-सेवक, जन्य-जनक तथा कार्य-कारण आदि अन्य सम्बन्धों में षष्ठी विभक्ति होती है।

इसके अतिरिक्त कर्म, करण आदि कारकों की सम्बन्ध क्रिया से अन्वय (सम्बन्ध) मात्र विवक्षा की षष्ठी विभक्ति होती है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

उदाहरण –

1. राज्ञः पुरुषः (राजा का आदमी)। यहाँ स्वामी-सेवक सम्बन्ध होने से राजन् में षष्ठी विभक्ति हुई है।
2. बालकस्य माता (बालक की मां)-यहाँ जन्य-जनक भाव होने से बालक में षष्ठी हुई है।
3. मृत्तिकायाः घटः (मिट्टी का घड़ा)-यहाँ कार्य-कारण सम्बन्ध होने से मृत्तिका में षष्ठी विभक्ति हुई है।
4. सतां गतम् (सत्पुरुष सम्बन्धि गमन)-यहाँ कर्ता ‘सत्’ की सम्बन्ध मात्र विवक्षा होने से उसमें षष्ठी विभक्ति हुई है।
5. सर्पिषो जानीते-(घी के सम्बन्ध से प्रवृत्त होता है) (सर्पिष: सम्बन्धित उपायेन प्रवर्तते) यहाँ भी सम्बन्ध मात्र की विवक्षा में करण कारण ‘सर्पिष्’ में षष्ठी विभक्ति हुई है।
6. मातुः स्मरति (माता सम्बन्धी स्मरण करता है)-हाँ सम्बन्ध को विवक्षा में कर्म कारक ‘मातृ’ में षष्ठी विभक्ति है।
7. एधः उदकस्य उपस्कुरुते (लकड़ी जल-सम्बन्धी गुणों को धारण करती है)-यहाँ कर्म कारक “दक” में सम्बन्ध विवक्षा के कारण षष्ठी विभक्ति हुई है।
8. भजे शंभोश्चरणयोः (शम्भू के चरणों के विषय (सम्बन्ध में) भेजता हूँ)-यहाँ सम्बन्ध मात्र की विवक्षा होने से कर्मकारक चरण में षष्ठी विभक्ति हुई है।
इसी प्रकार-सतां चरितम् (सज्जनों का चरित्र)।

रामस्य भ्राता लक्ष्मणः अस्ति।
यहां रेखांकित में षष्ठी सम्बन्ध के कारण षष्ठी विभक्ति हुई है।
टिप्पणी (i) शेष – शेष का अर्थ है कर्म करण आदि की अविवक्षा।
(ii) सम्बन्ध–सम्बन्ध का अर्थ है क्रिया से अन्वय (सम्बन्ध)।

सप्तमी विभक्ति-अधिकरण कारक

सूत्र-आधारोऽधिकरणम्

अर्थ – कर्ता और कर्म के द्वारा किसी भी क्रिया के आधार कारक को अधिकरण कहते हैं। जिसमें क्रिया रहती है, उसे आधार कहते हैं। यह आधार तीन प्रकार का होता है –
औपश्लेषिक, वैषयिक तथा अभिव्यापक।

उदाहरण –

1. औपश्लेषिक आधार – जिसके साथ आधेय का भौतिक संयोग (संश्लेष) होता है, उसे औपश्लेषिक आधार कहते हैं।
जैसे – (i) कटे आस्ते – (चटाई पर है) – यहाँ चटाई (कट) से बैठने वाले का प्रत्यक्ष भौतिक मेल है। अतः ‘कट’ औपश्लेषिक आधार है।
(ii) स्थाल्यां पचति – (पतीली में पकाता है) – यहाँ ओदन कर्म (आधेय) का पतीली (स्थली) से भौतिक संयोग है, अतः स्थाली औपश्लेषिक आधार है।

2. वैषयिक आधार – जिसके साथ आधेय का बौद्धिक संयोग (सम्बन्ध) रहता है, वह वैषयिक आधार कहलाता है।
जैसे – मोक्षे इच्छा अस्ति – मोक्ष के विषय में इच्छा है) – यहाँ मोक्ष वैषयिक आधार है, क्योंकि यह इच्छा का विषय है। जैसे –

3. अभिव्यापक आधार – जिसके साथ आधेय का व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध हो उसे अभिव्यापक आधार कहते हैं। जैसे
(i) तिलेषु तैलम्-(तिलों में तेल है) – यहाँ ‘तिल’ अभिव्यापक आधार है, क्योंकि उसके सभी अवयवों में तेल व्याप्त है उसके किसी एक हिस्से में नहीं।
(ii) सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति (विराजते) – (सब में आत्मा है)-यहाँ ‘सर्व अभिव्यापक आधार क्योंकि आत्मा का सब में सर्वात्मना संयोग है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् कारक-परिचयः

सूत्र-सप्तम्यधिकरणे च

अर्थ – अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है और दूर तथा अन्तिक (पास) अर्थवाचक शब्दों से भी सप्तमी विभक्ति होती है।

उदाहरण –

  1. कटे अस्ति (चटाई पर है) – यहाँ अधिकरण कट में सप्तमी है।
  2. स्थाल्यां पचति (पतीली में पकाता है) – यहाँ अधिकरण स्थाली में सप्तमी है।
  3. मोक्षे इच्छा अस्ति (मोक्ष में इच्छा है) – यहाँ अधिकरण मोक्ष में सप्तमी हुई है।
  4. तिलेषु तैलम्-(तिलों में तेल है) – यहाँ अधिकरण तिल में सप्तमी है।
  5. सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति (सब में आत्मा है) – यहाँ अधिकरण ‘सर्व’ में सप्तमी विभक्ति है।
  6. वनस्य दूरे (वन से दूर) – यहाँ दूर अर्थवाची दूर शब्द में सप्तमी विभक्ति है।
  7. वनस्य अन्तिके (वन के पास) – यहाँ पास अर्थवाची अन्तिक शब्द में सप्तमी विभक्ति हुई है।

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Pratyayah प्रत्ययाः Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

तद्धित प्रत्यय, प्रातिपदिकों के अन्त में जोड़े जाते हैं। तद्धित प्रत्यय लग जाने से ये शब्द संज्ञा या विशेषण बन जाते हैं।

I. मतुप् प्रत्यय

मतुप् प्रत्यय ‘अस्य अस्ति’ (इसका है), ‘अस्मिन् अस्ति’ (इसमें है) इन दो अर्थों में प्रयोग किया जाता है। इन्हीं अर्थों में कुछ और भी प्रत्यय विशेषण बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

मतुप् प्रत्यय का वत् शेष रहता है। अकारान्त शब्दों को छोड़कर शेष शब्दों में वत् का मत् बन जाता है। मतुप् – प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिङ्गों में रहते हैं। इनके शब्द रूप पुंल्लिङ्ग में बलवत्’ शब्द की तरह नपुंसकलिङ्ग में ‘जगत्’ शब्द की तरह तथा स्त्रीलिङ्ग में ‘नदी’ शब्द की तरह बनते हैं।

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

II. ‘इन्’ प्रत्यय

‘णिनि’ प्रत्यय का ‘इन्’ शेष रहता है। इन्’ प्रत्यय स्वार्थ (वाला अर्थ) में जोड़कर विशेषण शब्द बनाए जाते हैं। णिनि
(इन्) प्रत्यय के कुछ प्रमुख उदाहरण –

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इनके रूप पुंल्लिग में ‘शशिन्’ की तरह, स्त्रीलिंग में ‘नदी’ की तरह तथा नपुंसकलिंग में वारि’ शब्द की तरह
चलते हैं।

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III. तल, त्व प्रत्यय

ये प्रत्यय संज्ञा, विशेषण या अव्यय निर्माण करने के लिए लगाए जाते हैं। त्व प्रत्ययान्त शब्द सदैव नपुंसकलिङ्ग और भाववाचक होता है।

‘तल’ प्रत्यय भी भाव अर्थ में लगाया जाता है। ‘तल’ प्रत्यय लगाने से शब्द के साथ ‘ता’ लग जाता है। तल् प्रत्ययान्त शब्द सदैव स्त्रीलिङ्ग होता है।

“त्व’ तथा ‘तल्’ (ता) प्रत्ययान्त शब्दों के कुछ प्रमुख उदाहरण –

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IV. इक (ठ) प्रत्यय

‘ठक्’ तथा ‘ठब्’ प्रत्यय को ‘इक’ आदेश हो जाता है। ‘इक’ प्रत्यय लगाकर ‘वाला अर्थ’ में निम्न प्रकार से कुछ विशेषण शब्द बनाए जाते हैं –

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

कृदन्त प्रत्यय

परिभाषा – कृदन्त प्रत्यय धातुओं के अन्त में जुड़ते हैं। इन प्रत्ययों को जोड़ने से नाम और अव्यय बनते हैं।
सूचना-प्रायः सभी धातुरूपों के अन्त में उन धातुओं के कृदन्त रूप भी दिए गए हैं, वहाँ देख सकते हैं।

शत-शानच् प्रत्ययान्तशब्द

शतृ-प्रत्ययान्त शब्द बनाने के लिए धातुओं से परे ‘अत्’, लगाया जाता है-शतृ > अत्। ‘शानच्’ प्रत्यय का ‘आन’ या ‘मान’ बन जाता है। परस्मैपदी धातुओं के परे ‘अत्’ लगाया जाता है। आत्मनेपदी धातुओं के परे भ्वादिगण, दिवादिगण, तुदादिगण और चुरादिगण में ‘मान’ तथा शेष गणों में आन’ लगता है।
कुछ धातुओं के शत-शानच्-प्रत्ययान्त रूप नीचे दिए जाते हैं –

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क्त तथा क्तवतु प्रत्ययों के नियम

नियम 1. क्त प्रत्यय किसी भी धातु से लगाया जा सकता है। इस प्रत्यय के (क) का लोप हो जाता है और फिर धातु के (इ), (उ) और (ऋ) गुण नहीं होता है, जैसे –

जितः, भूतः, कृतः, श्रुतः, स्मृतः आदि।

नियम 2. क्तवतु प्रत्यय कर्तवाच्य में प्रयुक्त होता है और कर्ता में प्रथमा विभक्ति और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। क्तवतु प्रत्ययान्त शब्द में वचन तथा विभक्ति आदि कर्ता के अनुसार होंगे, जैसे –

रामः ग्रामं गतवान्।

नियम 3. गत्यर्थक, अकर्मक और किसी उपसर्ग से युक्त स्था, जन्, वस, आस्, सह तथा जृ धातुओं से कर्ता के अर्थ में क्त प्रत्यय होता है, जैसे –

(i) गङ्गां गतः।
(ii) राममनुजातः।

नियम 4. सेट् धातुओं में क्त प्रत्यय करने पर धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘इ’ आ जाता है। जैसे –
ईक्ष् + इ + त = ईक्षितः। पठ् + इ + त = पठितः।
सेव् + इ + त = सेवितः। कुप् + इ + त = कुपितः।

नियम 5. यज्, प्रच्छ, सृज, इन धातुओं से त प्रत्यय परे होने पर इनके अन्तिम वर्ण कोष तथा यज् एवं प्रच्छ को सम्प्रसारण हो जाता है, अर्थात् ‘व’ को ‘इ’ तथा ‘र’ को ‘ऋ’ हो जाता है। फिर ‘त् ‘ को ‘ट्’ होता है, जैसे –

यज् + तः = इष्टः।
प्रच्छ् + तः = पृष्टः।
सृज् + तः = सृष्टः।

नियम 6. शुष धातु से परे ‘त’ को ‘क’ हो जाता है, जैसे –

शुष् + त = शुष्कः।

नियम 7. पच् धातु से परे क्त = ‘त’ प्रत्यय होने पर ‘त’ का ‘व’ हो जाता है, जैसे –

पच् + क्त = पक्वः।

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नियम 8. दा (देने) धातु को क्त प्रत्यय परे होने पर ‘दत्’ हो जाता है, जैसे –

दा + त = दत्तः।

नियम 9. धातु के अन्तिम श् को ‘ष्’ हो जाता है और ‘ष्’ से परे (त्) को (ट्) हो जाता है, जैसे –

नश् + त = नष्टः।
दृश् + त = दृष्टः।
स्पृश् + त = स्पृष्टः।

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नियम 10. जिन अनिट् धातुओं के अन्त में ‘द्’ होता है उनसे आगे आने वाले क्त प्रत्यय के ‘त्’ को ‘न्’ तथा
धातु के ‘द्’ को भी न् हो जाता है, जैसे –

छिद् = तः = छिन्नः।
खिद् + तः = खिन्नः।
भिद् + तः = भिन्नः। .
तुद् + तः = तुन्नः।

नियम 11. धातु के अन्त के न् को म् तथा धातु के बीच में आने वाले अनुस्वार आदि का लोप हो जाता है, जैसे

गम् + तः = गतः।
रम् + तः = रतः।
हन् + तः = हतः।
तन् + तः = ततः।
मन् + तः = मतः।
नम् + तः = नतः।

अपवाद-जन् धातु के ‘न्’ को ‘अ’ हो जाता ह-जन् + क्त = जातः। श्रम, भ्रम, क्षम, दम्, वम्, शम्, क्रम, कम् धातुओं की उपधा को दीर्घ हो जाता है, जैसे-श्रान्तः, भ्रान्तः, दान्तः, वान्तः, शान्तः, क्रान्तः इत्यादि।

नियम 12. चुरादिगण की धातुओं से आगे (इत) लगाकर क्तान्त रूप बन जाता है, जैसे –

चुर् + इत = चोरितः।
कथ् + इत = कथितः।
गण् + इत = गणितः।
निन्द् + इत = निन्दितः।

नियम 13. निम्नलिखित धातुओं में सम्प्रसारण अर्थात् ‘य’ को ‘इ’ तथा ‘र’ को ‘ऋ’ होता है, जैसे –
वद् + त – उक्तः।
वस् + त = उषितम्।
वप् + त = उप्तः।
वद् + त = उदितः।
वह + न = ऊढः।
यज् + त = इष्टः।
हवे + त = हूतः।
प्रच्छ् + त = पृष्टः।
व्यध् + त = विद्धः।
ग्रह + त = गृहीतः।
स्वप् + त = सुप्तः।
ब्रू (वच्) + क्त = उक्तः।

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मुख्य-मुख्य धातुओं के क्त तथा क्तवत् प्रत्ययों के रूप –
(पुंल्लिङ्ग प्रथमा विभक्ति एकवचन में)

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क्त्वा-प्रत्ययान्त

वाक्य में दो क्रियाओं के होने पर जो क्रिया पहले समाप्त हो जाती है उसे बताने वाली धातु से क्त्वा प्रत्यय जोड़ा जाता है।

नियम – क्त्वा प्रत्यय के परे होने पर रूपसिद्धि के लिए वही नियम लागू होते हैं, जो क्त प्रत्यय के होने पर होते हैं। क्त्वा-प्रत्ययान्त शब्द अव्ययी होते हैं, जैसे –

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विशेष – यदि धातु से पूर्व उपसर्ग हो तो क्त्वा के स्थान पर ‘य’ (ल्यप) लगता है, जैसे –

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तुमुन्-प्रत्ययान्त

जब कोई कार्य अन्य (भविष्यत्) अर्थ के लिए किया जाए तो धातु से परे ‘तुमुन्’ प्रत्यय आता है। ‘तुमुन्’ का ‘तुम्’ शेष रह जाता है। जैसे –

पठ् + तुमुन् = पठितुम्-पढ़ने के लिए।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

ध्यान रहे तुम् प्रत्यय के परे होने पर पूर्व इ, ई, उ, ऊ, ऋ तथा उपधा के इ, उ तथा ऋ को गुण हो जाता है, जैसे –

जि + तुम् = जेतुम्, कृ + तुम् = कर्तुम्
नी + तुम् = नेतुम्, वृध् + तुम् = वर्धितुम्
पठ् + तुमुन् = पठितुम्
भुज् + तुम् = भोक्तुम्

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तव्यत्, अनीयर् तथा यत्

विधिकृदन्त शब्द धातु से परे तव्यत्, अनीयर् और यत् लगाने से बनते हैं। ‘तव्यत्’ का तव्य, ‘अनीयर्’ का अनीय तथा ‘यत्’ का य शेष रहता है।

नियम 1. तव्यत् तथा अनीयर् प्रत्यय के परे होने पर धातु के अन्तिम स्वर को गुण होता है; अर्थात् इ/ई, को ‘ए’, उ/ ऊ को ‘ओ’ और ‘ऋ’ को ‘अर’ हो जाता है ; जैसे –
जि + तव्यत् = जेतव्यः।
नी + तव्यत् = नेतव्यः।
स्तु + तव्यत् = स्तोतव्यः।
हु + तव्यत् = होतव्यः।

नियम 2. तव्यत् तथा अनीयर् प्रत्यय सकर्मक धातुओं से कर्म में होते हैं और वाक्य में अर्थ की उपेक्षा करने पर भाव में भी हो जाते हैं। अकर्मक धातुओं से भाव में ही यह प्रत्यय होता है।

नियम 3. अनीयर् (अनीय) प्रत्यय के परे होने पर ‘इ’ का आगम नहीं होता, प्रत्युत इ, उ को गुण करके क्रमशः, ‘अय’. ‘अव’ आदेश कर देते हैं ; जैसे –

श्रि + अनीयर् = श्रे + अनीयर् = श्रयणीयः।
भू + अनीयर् = भो + अनीयर् = भवनीयः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम 4. कर्म में प्रत्यय करने पर कर्ता में तृतीया और कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है और क्रिया कर्म के अनुसार होती है ; जैसे –

तेन ग्रामः गन्तव्यः।

नियम 5. भाव में प्रत्यय करने पर कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है और तव्य प्रत्ययान्त शब्द में नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन होता है ; जैसे –

तेन गन्तव्यम्। तेन कर्तव्यम्। तेन स्मरणीयम्।

नियम 6. अजन्त धातुओं से यत् ‘य’ प्रत्यय होता है। यत् प्रत्यय होने पर अजन्त धातुओं के (ई) तथा (उ) को गुण हो जाते हैं। जैसे –

चि + यत् = चेयम।
जि + यत् = जेयम्।
नी + यत् = नेयम्।
श्रु + यत् = श्रव्यम्।

नियम 7. यत् प्रत्यय के परे होने पर आकारान्त धातु के ‘आ’ को ‘ए’ हो जाता है ; जैसे –

पा + य = पेयम्।
स्था + य = स्थेयम्।
चि + य = चेयम्।
जि + य = जेयम्।

मुख्य-मुख्य धातुओं के तव्यत्, अनीयर् और यत् प्रत्ययान्त शब्द नीचे दिए गए हैं –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 13

स्त्रीप्रत्यय

पुँल्लिग शब्दों के स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए जो प्रत्यय जोड़े जाते हैं, उन प्रत्ययों को स्त्री प्रत्यय’ कहते हैं। संस्कृत व्याकरण के अनुसार इस प्रकार के चार प्रत्यय हैं –

(1) आ, (2) ई, (3) ऊ, (4) ति।

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नियम 1. अकारान्त पुंल्लिग शब्दों के स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए प्रायः उनके आगे ‘आ’ लगाया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 14
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 15

नियम 2. जिन अकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों के अन्त में अक’ होता है उनके स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए अन्त में ‘इका’ जोड़ा जाता है। जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 16

नियम 3. कई पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ‘ई’ प्रत्यय लगाया जाता है और शब्द के अन्त में ‘अ’ का लोप हो जाता है। जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 17

नियम 4. ऋकारान्त, इन्नन्त तथा ईयस् एवं मत् वत् प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए उनके आगे ‘ई’ प्रत्यय जोड़ दिया जाता है। जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 18

नियम 5. शतृ प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए भ्वादि, दिवादि और चुरादिगण की धातुओं से तथा णिजन्त धातुओं से शतृ प्रत्यय करने पर ‘ई’ प्रत्यय लगाकर ‘त्’ से पहले ‘न्’ जोड़ दिया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 19

नियम 6. यदि तुदादिगण तथा अदादिगण की धातुओं से शतृप्रत्यय करने पर स्त्रीलिङ्ग बनाना हो तो ‘ई’ प्रत्यय करके ‘त्’ से पहले विकल्प से ‘न्’ लगाया जाता है ; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 20

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम 7. जातिवाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ‘ई’ प्रत्यय जोड़ा जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 21

अपवाद – जिन अकारान्त जातिवाचक पुंल्लिङ्ग शब्दों के अन्त में ‘य’ होता है, उनके स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ‘आ’ प्रत्यय जोड़ा जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 22

नियम 8. गुणवाचक उकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए उनके अन्त में ‘ई’ प्रत्यय लगाया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 23

नियम 9. इन्द्र, वरुण, भव, शर्व, रुद्र, हिम, अरण्य, मृड, यव, यवन, मातुल, आचार्य-इन शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए इनके अन्त में ‘आनी’ प्रत्यय लगाया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 24

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

सूचना – (क) हिम तथा अरण्य शब्दों से महत्त्व अर्थ में भी ‘आनी’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। (ख) मातुल और उपाध्याय-इन शब्दों से ‘ई’ प्रत्यय करने पर विकल्प से आन् आगम हो जाता है। अत: इन शब्दों के दो-दो रूप बनते हैं। जैसे-मातुल = मातुलानी, मातुली। उपाध्याय = उपाध्यायानी, उपाध्यायी।

नियम 10. ‘युवन्’ शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए ‘ति’ प्रत्यय लगाया जाता है ; जैसे –
युवन्      युवतिः

नियम 11. उकारान्त मनुष्यवाचक शब्दों में ऊ प्रत्ययं लगाया जाता है; जैसे –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 25

कुछ प्रष्टव्य शब्दों के स्त्रीप्रत्ययान्त रूप

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 26
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 27

पाठ्यपुस्तक से उदाहरण –

  • त्यक्तेन = त्यज् + क्त
  • आवृताः = आ + वृञ् + क्त
  • प्रेत्य = प्र + इ + ल्यप्
  • तिष्ठत् = स्था + शतृ
  • धावतः = धाव् + शतृ
  • तीर्वा = तृ + क्त्वा
  • जवीयः = जव + ईयसुन्
  • कुर्वन् = कृ + शतृ
  • ततः = तत् + तसिल
  • अर्घ्यम् = अर्घ + यत्
  • श्रुतम् = श्रु + क्त
  • अर्चयित्वा = अर्च् + णिच् + क्त्वा
  • आप्तम् = आप् + क्त
  • तृप्तम् = तृप् + क्त
  • अर्हतः = अर्ह + शतृ
  • निशम्य = नि + शम् + ल्यप्
  • आहर्तुम् = आ + हृ + तुमुन्
  • उक्त्वा = वच् + क्त्वा
  • प्रदेयम् = प्र + दा + यत्
  • निषिध्य = नि + सिध् + ल्यप्
  • वर्णी = वर्ण + इन्
  • विज्ञापितः =  वि + ज्ञप् + णिच् + क्त
  • आवेदितः = आ + विद् + क्त
  • अनवाप्य = नञ् + अव + आप् + ल्यप्
  • गतः = गम् + क्तः
  • अर्थी = अर्थ + इन्
  • मृण्मयम् = मृत् + मयट्
  • अवशिष्टः = अव + शास् + क्त
  • प्रस्तुतम् = प्र + स्तु + क्त
  • लब्धम् = लभ् + क्त
  • अवेक्ष्य = अव + ईक्ष् + ल्यप्।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

पाठ्यपुस्तक से उदाहरण –

1. प्रकृति प्रत्ययं च योजयित्वा पदरचनां कुरुत –
त्यज् + क्तः; कृ + शत; तत् + तसिल
उत्तरम् :
(क) त्यज् + क्त = त्यक्तः
(ख) कृ + शतृ = बु
(ग) तत् + तसिल = ततः

2. प्रकृतिप्रत्ययविभागः क्रियताम्
प्रेत्य, तीर्खा, धावतः, तिष्ठत्, जवीयः
उत्तरम् :
(क) प्रेत्य = प्र + √इ + ल्यप्
(ख) तीर्वा = √तु + क्त्वा
(ग) धावत: = √धाव् + शतृ (नपुंसकलिङ्गम्, षष्ठी-एकवचनम्)
(घ) तिष्ठत् = √स्था + शतृ (नपुंसकलिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(ङ) जवीयः = जव + ईयसुन् > ईयस् (नपुंसकलिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)

II. प्रकृतिप्रत्ययविभागः क्रियताम् –
(क) अर्थी
(ख) मृण्मयम्
(ग) शासितुः
(घ) अवशिष्टः
(ङ) उक्त्वा
(च) प्रस्तुतम्
(छ) उक्तः
(ज) अवाप्य
(झ) लब्धम्
(ब) अवेक्ष्य।
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 28

III. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम्
उत्तरसहितम् –

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 29

IV. अधोलिखितशब्देषु प्रकृतिप्रत्ययानां विभागः करणीयम् –
यथा – राजितम् = राज् + क्त
उत्तरसहितम् –
(क) दैष्टिकताम् = दैष्टिक + तल्
(ख) कुर्वाणः = √कृ + शानच् (आत्मनेपदे)
(ग) पटुता = पटु + तल्
(घ) सिद्धम् = √सिध् + क्त
(ङ) विमृश्य = वि √मृश् + ल्यप्

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

V. प्रकृतिप्रत्ययविभागः क्रियताम् –
उपक्रान्तवान्, विधाय, गत्वा, गृहीत्वा, स्थितः, व्यतिक्रम्य, दातव्यम्।
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 30

VI. अधोलिखितानां पदानां प्रकृतिप्रत्ययविभागं प्रदर्शयत –
प्रयुक्तः, उत्थितः, उत्प्लुत्य, रुतैः, उपत्यकातः, उत्थितः, ग्रस्यमानः।
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 31

VII. अधोलिखितेषु पदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत –
समाप्य, जातम्, त्यक्त्वा, धृत्वा, पठन्, संपोष्य
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 32

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

VIII. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम् –
निकृष्टतमा, उपगम्य, प्रवर्तमाना, अतिक्रान्तम्, व्याख्याय, कथयन्तु, उपघ्नन्ति, आक्रीडनम्।
उत्तरम् :
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 33
HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः 34

IX. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम् –
उत्तरसहितम् –

(क) निर्मुच्य = निर् + (मुच् + क्त्वा > ल्यप्
(ख) आदाय = आ + √दा + क्त्वा > ल्यप्
(ग) प्रविष्टः = प्र + √विश् + क्त (पुंल्लिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(घ) आगत्य = आ + √गम् + क्त्वा > ल्यप्
(ङ) परिज्ञातम् = परि + √ज्ञा + क्त (नपुंसकलिङ्गम् प्रथमा-एकवचनम्)

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. एक खुली अर्थव्यवस्था में समग्र (समस्त) माँग के निम्नलिखित में से कौन-से घटक हैं?
(A) निजी उपभोग व्यय
(B) निजी निवेश व्यय
(C) सरकारी व्यय + उपभोग व्यय
(D) निजी उपभोग व्यय +निजी निवेश व्यय + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात
उत्तर:
(D) निजी उपभोग व्यय +निजी निवेश व्यय + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात

2. AS और AD तथा S और I में एक-साथ संतुलन तब आता है जब-
(A) AS = AD
(B) S = I
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) कोई भी बराबर नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

3. समग्र पूर्ति के कौन-से घटक हैं?
(A) उपभोग
(B) बचत
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

4. उपभोग फलन फलनात्मक संबंध है-
(A) आय एवं बचत का
(B) आय एवं उपभोग का
(C) उपभोग एवं बचत का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) आय एवं उपभोग का

5. उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ है
(A) उपभोक्ता का उत्कृष्ट उपभोग की ओर झुकाव होना
(B) आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग तथा आय का अनुपात
(C) आय का स्तर जिस पर उपभोग व्यय आय के बराबर है
(D) आय की अतिरिक्त दर जो उपभोग पर व्यय की जाएगी
उत्तर:
(B) आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग तथा आय का अनुपात

6. समग्र माँग व्यक्त करती है-
(A) संभावित कुल प्राप्तियाँ
(B) संभावित कुल व्यय
(C) न्यूनतम प्राप्तियाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संभावित कुल व्यय

7. समग्र माँग कीमत व्यक्त करती है-
(A) संभावित प्राप्तियाँ
(B) न्यूनतम प्राप्तियाँ
(C) कुल लागतें
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) संभावित प्राप्तियाँ

8. समग्र पूर्ति कीमत व्यक्त करती है-
(A) संभावित प्राप्तियाँ
(B) कुल लागतें
(C) न्यूनतम प्राप्तियाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) न्यूनतम प्राप्तियाँ

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9. केज के अनुसार समस्त माँग बराबर है-
(A) C + S
(B) C + I
(C) C + I + G
(D) C + I + G + X – M
उत्तर:
(B) C + I

10. एक अर्थव्यवस्था में शून्य आय स्तर पर
(A) C = 0
(B) C = \(\overline{\mathrm{C}}\)
(C) S = 0
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) C = \(\overline{\mathrm{C}}\)

11. आय के एक न्यूनतम स्तर से आय का स्तर कम होने पर बचत होती है-
(A) ऋणात्मक
(B) शून्य
(C) धनात्मक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ऋणात्मक

12. स्वायत्त उपभोग (Autonomous Consumption) अर्थात् जीवित रहने के लिए न्यूनतम उपभोग का संकेतक है-
(A) C
(B) C
(C) I
(D) A
उत्तर:
(B) C

13. कुल स्वायत्त व्यय का प्रतीक है-
(A) A = C + I
(B) A = C + I
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) A = C + I

14. ‘I’ संकेतक है-
(A) प्रत्याशित (नियोजित) निवेश का
(B) यथार्थ निवेश का
(C) स्वायत्त निवेश का
(D) इनमें से किसी का नहीं
उत्तर:
(C) स्वायत्त निवेश का

15. स्वायत्त निवेश का प्रतीक (चिह) है-
(A) A
(B) C
(C) I
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) I

16. सही सूत्र चुनिए-
(A) APC = \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)
(B) MPC = \(\frac { C }{ Y }\)
(C) K = \(\frac { 1 }{ 1-APS }\)
(D) K = \(\frac { 1 }{ MPS }\)
उत्तर:
(D) K = \(\frac { 1 }{ MPS }\)

17. प्रभावी माँग अथवा प्रभावपूर्ण माँग एक ऐसी स्थिति है, जिसमें-
(A) AD = AS
(B) AD > AS
(C) AD < AS
(D) AD = 0
उत्तर:
(A) AD = AS

18. प्रभावपूर्ण माँग की स्थिति दिखती है-
(A) पूर्ण रोज़गार में
(B) अल्परोज़गार में
(C) पूर्ण रोज़गार से अधिक में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

19. उपभोग फलन का समीकरण है-
(A) C = f (Y)
(B) C = f (S)
(C) C = f (R.I.)
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) C = f (Y)

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20. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) आय में प्रत्येक वृद्धि के साथ उपभोग बढ़ता है
(B) उपभोग सदैव धनात्मक होता है (आय के शून्य स्तर पर भी)
(C) आय में वृद्धि से उपभोग कम अनुपात से बढ़ता है।
(D) उपर्युक्त तीनों सही हैं।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त तीनों सही हैं

21. APC बराबर होती है-
(A) \(\frac { Y }{ C }\)
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\)
(C) \(\frac { C }{ Y }\)
(D) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)
उत्तर:
(D) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)

22. MPC बराबर है-
(A) \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\)
(B) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)
(C) \(\frac { C }{ Y }\)
(D) \(\frac { Y }{ C }\)
उत्तर:
(B) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)

23. यदि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.5 हो तो आय में 100 रुपए की वृद्धि होने पर उपभोग व्यय क्या होगी?
(A) 40 रुपए
(B) 50 रुपए
(C) 60 रुपए
(D) 70 रुपए
उत्तर:
(B) 50 रुपए

24. बचत प्रवृत्ति का अर्थ है-
(A) आय के विभिन्न स्तरों पर बचत तथा आय का अनुपात
(B) आय का स्तर जिस पर बचत आय के बराबर हो
(C) आय की अतिरिक्त दर जिसकी बचत की जाए
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) आय के विभिन्न स्तरों पर बचत तथा आय का अनुपात

25. APS बराबर होती है-
(A) \(\frac { Y }{ S }\)
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆S }\)
(C) \(\frac { S }{ Y }\)
(D) \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
उत्तर:
(C) \(\frac { S }{ Y }\)

26. MPS बराबर होती है-
(A) \(\frac { ∆Y }{ ∆S }\)
(B) \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
(C) \(\frac { S }{ Y }\)
(D) \(\frac { Y }{ S }\)
उत्तर:
(B) \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)

27. यदि MPS 0.6 है तो आय में 100 रुपए की वृद्धि होने पर बचत क्या होगी?
(A) 40 रुपए
(B) 50 रुपए
(C) 60 रुपए
(D) 70 रुपए
उत्तर:
(C) 60 रुपए

28. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) APC + APS = 1
(B) MPC + MPS = 1
(C) (A) व (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) व (B) दोनों

29. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) MPC + MPS = 0
(B) MPC + MPS = 1
(C) MPC+ MPS > 1
(D) MPS + MPS < 1
उत्तर:
(B) MPC + MPS = 1

30. निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) APC + APS = 1
(B) APC = 1 – APS
(C) APS = 1 – APC
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

31. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) MPC = 1 – MPS
(B) MPS = 1 – MPC
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई भी सत्य नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

32. यदि MPC 40% है, तो MPS होगी-
(A) 70%
(B) 60%
(C) 50%
(D) 40%
उत्तर:
(B) 60%

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33. निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प गलत है?
(A) AS वक्र 45° पर बनी सीधी रेखा होती है
(B) MPC का मूल्य शून्य व इकाई के बीच रहता है
(C) समस्तर बिंदु से पहले उपभोग आय से अधिक रहता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(D) इनमें से कोई नहीं

34. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(A) अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की अवस्था में किसी भी प्रकार की बेरोज़गारी संभव नहीं है
(B) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई से अधिक हो सकता है
(C) समता बिंदु आय स्तर पर औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई के बराबर होता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) समता बिंदु आय स्तर पर औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई के बराबर होता है

35. निवेश गुणक का संबंध होता है-
(A) स्वतंत्र निवेश में परिवर्तन के कारण आय में परिवर्तन
(B) आय में परिवर्तन के कारण स्वतंत्र निवेश में परिवर्तन
(C) आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन
(D) प्रेरित निवेश में परिवर्तन के कारण आय में परिवर्तन
उत्तर:
(A) स्वतंत्र निवेश में परिवर्तन के कारण आय में परिवर्तन

36. गुणक =
(A) \(\frac { ∆Y }{ ∆S }\)
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)
(C) \(\frac { ∆I }{ ∆Y }\)
(D) \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\)
उत्तर:
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)

37. निवेश गुणक से अभिप्राय है-
(A) K = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)
(B) K = \(\frac { ∆I }{ ∆Y }\)
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) K = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)

38. निवेश गुणक कौन-से सूत्र द्वारा निर्धारित होता है?
(A) \(\frac { 1 }{ MPC }\)
(B) \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
(C) \(\frac{1}{1+\mathrm{MPC}}\)
(D) \(\frac{1}{1+\mathrm{MPS}}\)
उत्तर:
(B) \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)

39. यदि MPC = \(\frac { 1 }{ 2 }\) है, तो गुणक होगा
(A) 3
(B) 4
(C) 1
(D) 2
उत्तर:
(D) 2

40. यदि MPS = \(\frac { 1 }{ 4 }\) है, तो गुणक का मूल्य होगा
(A) 4
(B) 5
(C) 2
उत्तर:
(A) 4

41. यदि MPC = 0.8 है, तो गुणक (K) का मूल्य होगा-
(A) 1
(B) 2
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(D)5

42. यदि MPC =.80 है, तो निवेश में 100 रुपए की वृद्धि होने से आय में वृद्धि होगी-
(A) 400 रुपए
(B) 300 रुपए
(C) 500 रुपए
(D) 200 रुपए
उत्तर:
(C) 500 रुपए

43. यदि MPC = 0.5 है, तो गुणक (K) क्या होगा?
(A) 1
(B) 8
(C) 2
(D) 5
उत्तर:
(C) 2

44. यदि गुणक का मूल्य 10 है, तो उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति होगी-
(A) 0.8
(B) 0.6
(C) 0.9
(D) 0.5
उत्तर:
(C) 0.9

45. यदि MPC(\(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)) = 1 हो, तो गुणक होगा-
(A) शून्य
(B) 1
(C) 2
(D) ∞ (अनंत)
उत्तर:
(D) ∞ (अनंत)

46. यदि MPC = 0 हो, तो गुणक का मूल्य होगा-
(A) शून्य
(B) 1
(C) 2
(D) ∞ (अनंत)
उत्तर:
(B) 1

47. जब गुणक का आकार 1 है, तो MPC होगी-
(A) 1
(B) \(\frac { 1 }{ 2 }\)
(C) शून्य
(D) 3
उत्तर:
(C) शून्य

48. गुणक का MPC के साथ-
(A) विपरीत संबंध होता है
(B) सीधा संबंध होता है
(C) आनुपातिक संबंध होता है
(D) कोई संबंध नहीं होता है
उत्तर:
(B) सीधा संबंध होता है

49. यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति 0.2 है, तो गुणक का मान होगा-
(A) 2.0
(B) 1.25
(C) 4.0
(D) 5.0
उत्तर:
(D) 5.0

50. यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति 0.4 है, तो गुणक का मूल्य होगा-
(A) 6
(B) 2
(C) 4
(D) 2.5
उत्तर:
(D) 2.5

51. यदि \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\) = 1 तब गुणक होगा
(A) शून्य
(B) ∞
(C) 1
(D) 2
उत्तर:
(B) ∞ (अनंत)

52. चूँकि AS = C + S तथा AD = C + I, इसलिए संतुलन वहाँ स्थापित होता है जहाँ C + S = C + I या वहाँ स्थापित होता है जहाँ-
(A) S = I
(B) S > I
(C) S < I
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(A) S = I

53. न्यून (अभावी) माँग वह स्थिति है जिसमें समग्र माँग अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से-
(A) अधिक होती है
(B) कम होती है
(C) बराबर होती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कम होती है

54. न्यून माँग की स्थिति में आय, उत्पाद तथा रोजगार का स्तर होगा-
(A) निम्नतम
(B) अधिकतम
(C) शून्य
(D) ऋणात्मक
उत्तर:
(A) निम्नतम

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55. न्यून माँग को प्रायः किससे संबोधित किया जाता है?
(A) अवस्फीतिक अंतराल
(B) स्फीतिक अंतराल
(C) आय-व्यय अंतराल
(D) बचत-उपभोग अंतराल
उत्तर:
(A) अवस्फीतिक अंतराल

56. न्यून माँग का प्रभाव होता है-
(A) कीमतों में कमी
(B) रोज़गार में कमी
(C) उत्पादन में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

57. निम्नलिखित में से कौन-सा न्यून माँग अथवा अवस्फीतिक अंतराल का कारण नहीं है?
(A) निजी उपभोग व्यय में कमी
(B) निवेश व्यय में कमी
(C) आयातों में कमी
(D) करों में वृद्धि
उत्तर:
(C) आयातों में कमी

58. निम्नलिखित में से न्यून माँग के परिणाम होते हैं-
(A) कीमत स्तर में निरंतर गिरावट
(B) लाभ घटने लगते हैं।
(C) निवेश निरुत्साहित होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

59. अधिमाँग वह स्थिति है जिसमें समग्र माँग अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से होती है-
(A) अधिक
(B) कम
(C) बराबर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिक

60. अधिमाँग =
(A) ADE + ADF
(B) ADE – ADF
(C) ADE ÷ ADF
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ADE – ADF

61. अधिमाँग की स्थिति में निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) AD > AS
(B) AD < AS
(C) AD = AS
(D) AD x AS
उत्तर:
(A) AD > AS

62. स्फीतिक अंतराल निम्नलिखित में से किसका माप है?
(A) न्यून माँग
(B) अधिमाँग
(C) उपभोग प्रवृत्ति का
(D) निवेश प्रवृत्ति का
उत्तर:
(B) अधिमाँग

63. निम्नलिखित में से कौन-सा अधिमाँग (स्फीतिक अंतराल) का कारण है?
(A) कर की दर में वृद्धि
(B) निवेश में कमी
(C) सरकारी व्यय में कमी
(D) आयातों में कमी
उत्तर:
(D) आयातों में कमी

64. अधिमाँग का निम्नलिखित में से कौन-सा परिणाम है?
(A) कीमत स्तर में निरंतर वृद्धि होती है
(B) उत्पादन को अधिक बढ़ाया नहीं जा सकता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

65. अधिमाँग का कारण होता है-
(A) उपभोग माँग में वृद्धि
(B) निवेश माँग में वृद्धि
(C) निर्यात माँग में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

66. अधिमाँग का प्रभाव होता है-
(A) कीमत में वृद्धि
(B) उत्पादन में कमी
(C) रोज़गार में कमी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) कीमत में वृद्धि

67. अभावी माँग को ठीक करने का राजकोषीय उपाय हैं-
(A) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि व करों की कमी
(B) सार्वजनिक ऋणों में कमी
(C) घाटे की वित्त व्यवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

68. अवस्फीतिक अंतराल को ठीक करने का उपाय हैं-
(A) सार्वजनिक व्यय में कमी
(B) करों में कमी
(C) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) करों में कमी

69. अत्यधिक माँग को ठीक करने का उपाय हैं-
(A) घाटे की वित्त व्यवस्था।
(B) करों में कमी
(C) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
(D) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
उत्तर:
(D) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

70. स्फीतिक अंतराल को ठीक करने का उपाय हैं-
(A) सार्वजनिक व्यय में कमी
(B) करों में कमी
(C) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

71. अभावी माँग को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) बैंक दर में कमी
(B) CRR में कमी
(C) SLR में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

72. अवस्फीतिक अंतराल को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों की केंद्रीय बैंक द्वारा खरीद
(B) साख की राशनिंग खत्म करके
(C) ऋण की सीमांत आवश्यकता में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

73. अत्यधिक माँग को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) बैंक दर में कमी
(B) CRR में कमी
(C) SLR में कमी
(D) खुले बाज़ार में केंद्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का विक्रय
उत्तर:
(D) खुले बाज़ार में केंद्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का विक्रय

74. स्फीतिक अंतराल को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) बैंक दर में वृद्धि
(B) CRR में कमी
(C) SLR में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) बैंक दर में वृद्धि

75. स्फीतिक अंतराल को कम करने का उपाय है-
(A) कर तथा ऋण द्वारा लोगों की व्यय योग्य
(B) पूर्ति में वृद्धि करना आय कम करना
(C) (A) व (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पूर्ति में वृद्धि करना

76. विस्फीतिक अंतराल को ठीक करने का उपाय है-
(A) करों में कमी तथा व्यय में वृद्धि।
(B) साख-प्रवाह में वृद्धि
(C) निर्यातों में आधिक्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. एक खुली अर्थव्यवस्था में समग्र माँग के घटक, निजी उपभोग व्यय, निजी निवेश आय, सरकारी व्यय तथा …………………. है। (शुद्ध निर्यात/उपभोग व्यय)
उत्तर:
शुद्ध निर्यात

2. आय एवं ……………. का संबंध उपभोग फलन होता है। (बचत/उपभोग)
उत्तर:
उपभोग

3. आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग तथा आय के अनुपात को …………………. कहते हैं। (उपभोग प्रवृत्ति/बचत प्रवृत्ति)
उत्तर:
उपभोग प्रवृत्ति

4. समग्र माँग …………………. व्यक्त करती है। (संभावित कुल प्राप्तियाँ/संभावित कुल व्यय)
उत्तर:
संभावित कुल व्यय

5. समग्र माँग कीमत ………………….. व्यक्त करती है। (संभावित प्राप्तियाँ न्यूनतम प्राप्तियाँ)
उत्तर:
बचत

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

6. गुणक का मूल्य = ……………………. \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} / \frac{1}{\mathrm{MPC}}\)
उत्तर:
\(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)

7. आय के एक न्यूनतम स्तर से आय का स्तर कम होने पर ………………… बचत होती है। (धनात्मक/ऋणात्मक)
उत्तर:
ऋणात्मक

8. माँग आधिक्य के कारण कीमत ………………… है। (बढ़ती/घटती)
उत्तर:
बढ़ती

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. केज का रोजगार सिद्धान्त खुली अर्थव्यवस्था में लागू होता है।
  2. ऐच्छिक बेरोजगारी पूर्ण रोजगार की अवस्था में भी हो सकती है।
  3. न्यून माँग की स्थिति में आय, उत्पाद तथा रोज़गार का स्तर निम्नतम होगा।
  4. किसी पुरानी कम्पनी के शेयर खरीदना वास्तविक निवेश है।
  5. यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति शून्य है तो गुणक का मूल्य 1 होगा।
  6. स्वचालित निवेश ब्याज की दर पर निर्भर करता है।
  7. MPC शून्य से अधिक और इकाई से कम होती है।
  8. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति सदैव धनात्मक होती है।
  9. आय के एक न्यूनतम स्तर से आय का स्तर कम होने पर बचत ऋणात्मक होती है।
  10. परम्परावादी रोज़गार सिद्धान्त के अनुसार बचत आय का फलन है।
  11. आय में वृद्धि से उपभोग कम अनुपात से बढ़ता है।
  12. ‘से’ का बाज़ार नियम परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त का मुख्य आधार है।
  13. जे० बी० से के अनुसार, “पूर्ति स्वयं अपनी माँग का निर्माण करती है।”
  14. गुणक का मूल्य = 1-MPS
  15. सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) तथा सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का योग एक होता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. सही
  6. गलत
  7. सही
  8. सही
  9. सही
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. सही
  14. गलत
  15. गलत।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के किन्हीं दो परिवर्तों (Variables) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय के दो मुख्य परिवर्त हैं:

  • उपभोग तथा
  • निवेश।

प्रश्न 2.
प्रत्याशित (नियोजित या इच्छित) उपभोग क्या है? यह किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
प्रत्याशित अथवा नियोजित उपभोग से अभिप्राय योजनागत (इच्छित) उपभोग के मूल्य से है। यह सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) पर निर्भर करता है।

प्रश्न 3.
प्रत्याशित (नियोजित) निवेश क्या है? यह किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
प्रत्याशित निवेश से अभिप्राय योजनागत (इच्छित) निवेश के मूल्य से है। यह बाज़ार ब्याज की दर पर निर्भर करता है।

प्रश्न 4.
प्रस्तावित (प्रयोजित) और यथार्थ (वास्तविक) निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में फर्मों और नियोजकों द्वारा आरंभ में जितना निवेश करने की योजना होती है, उसे प्रस्तावित निवेश कहते हैं। दी हुई अवधि में वास्तव में जितना निवेश किया जाता है, उसे यथार्थ निवेश कहते हैं।

प्रश्न 5.
प्रत्याशित (Ex-ante) बचत और यथार्थ (Ex-post) बचत में भेद का आधार क्या है?
उत्तर:
दोनों में भेद का आधार प्रक्रिया शुरू होने से पहले प्रस्तावित स्थिति और प्रक्रिया समाप्ति के बाद वास्तविक स्थिति है। अर्थव्यवस्था में सब गृहस्थों द्वारा एक अवधि में जितना बचाने की योजना बनाई जाती है, उसे प्रत्याशित बचत कहते हैं। इसके विपरीत, अर्थव्यवस्था में दी हुई अवधि के अंत में जितना हम वास्तव में बचा पाते हैं, उसे यथार्थ बचत कहते हैं।

प्रश्न 6.
समीकरण C = C + bY के घटक बताइए।
उत्तर:
C उपभोग फलन का प्रतीक है, \(\overline{\mathrm{C}}\) स्वायत्त उपभोग (Autonomous Consumption) को दर्शाता है, b सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का प्रतीक है और Y आय (राष्ट्रीय आय) का प्रतीक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 7.
समग्र पूर्ति (AS) किसे कहते हैं? समग्र पूर्ति के दो घटक बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में दी हुई अवधि में वस्तुओं और सेवाओं के कुल उत्पादन को समग्र पूर्ति कहते हैं। मौद्रिक रूप में राष्ट्रीय आय, समग्र पूर्ति का प्रतीक है।
समग्र पूर्ति के दो घटक हैं-

  • उपभोग
  • बचत।

समग्र पूति = उपभोग + बचत।

प्रश्न 8.
समग्र पूर्ति (AS) की प्रतिष्ठित (Classical) अवधारणा, केज की AS अवधारणा से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
प्रतिष्ठित अवधारणा के अनुसार समग्र पूर्ति, कीमतों के प्रति पूर्णतया बेलोचदार रहती है, जबकि केज़ के अनुसार समग्र पूर्ति, कीमतों के प्रति पूर्णतया लोचदार रहती है।

प्रश्न 9.
बचत प्रवृत्ति क्या होती है?
उत्तर:
बचत प्रवृत्ति अथवा बचत फलन से अभिप्राय बचत और आय के बीच संबंध बताने वाली प्रवृत्ति से है। अन्य शब्दों में, आय और बचत के बीच फलनात्मक संबंध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं।

प्रश्न 10.
औसत बचत प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
औसत बचत प्रवृत्ति से अभिप्राय आय (Y) के साथ बचत (S) के अनुपात को बताने वाली दर से है। सूत्र के रूप में
APS = \(\frac { S }{ Y }\)

प्रश्न 11.
सीमांत बचत प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
सीमांत बचत प्रवृत्ति से अभिप्राय बचत में परिवर्तन (∆S) और आय में परिवर्तन (∆Y) के अनुपात से है। सूत्र के रूप में-
MPS = \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
यहाँ, ∆S = बचत में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।

प्रश्न 12.
मितव्ययिता (बचत) का विरोधाभास (Paradox of Saving) क्या है?
उत्तर:
मितव्ययिता का विरोधाभास वह सिद्धांत है जिसके अनुसार जब लोग अधिक मितव्ययी हो जाते हैं तो वे समस्त रूप से बचत कम करते हैं या पूर्ववत करते हैं क्योंकि अधिक बचत = कम माँग = उपभोग में कमी = आय में कमी = बचत में कमी।

प्रश्न 13.
औसत बचत प्रवृत्ति का औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या संबंध है?
उत्तर:
औसत बचत प्रवृत्ति + औसत उपभोग प्रवृत्ति = 1, अर्थात् औसत बचत प्रवृत्ति के अधिक होने पर औसत उपभोग प्रवृत्ति कम होगी।

प्रश्न 14.
निवेश को समझ पाने में किन तत्त्वों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है?
उत्तर:

  • निवेश से आगम
  • ब्याज की दर
  • भविष्य में लाभ की अपेक्षाएँ।

प्रश्न 15.
निवेश माँग फलन क्या होता है?
उत्तर:
निवेश माँग फलन से हमारा अभिप्राय निवेश माँग और ब्याज की दर के संबंध से है।

प्रश्न 16.
जिस अर्थव्यवस्था में प्रत्याशित निवेश प्रत्याशित बचत से अधिक हो, उसमें कुल आय पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जिस अर्थव्यवस्था में प्रत्याशित निवेश प्रत्याशित बचत से अधिक हो, उसमें कुल आय में वृद्धि होती है।

प्रश्न 17.
संतुलन आय में बचत और निवेश का क्या संबंध होता है?
उत्तर:
संतुलन आय में प्रत्याशित बचत और प्रत्याशित निवेश दोनों बराबर होते हैं अर्थात् प्रत्याशित बचत = प्रत्याशित निवेश।

प्रश्न 18.
निवेश गुणक की धारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
निवेश गुणक से अभिप्राय उस सिद्धांत से है जिसके अनुसार, निवेश में प्रारंभिक परिवर्तन से अर्थव्यवस्था की आय में गुणज परिवर्तन होता है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 1

प्रश्न 19.
संतुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलन का शाब्दिक अर्थ है, दो विपरीत स्थितियों के बीच साम्य या बराबरी। यहाँ इससे अभिप्राय समग्र माँग और . समग्र पूर्ति के विशेष कीमत पर बराबर-बराबर होने से है।

प्रश्न 20.
उत्पादन का स्तर क्या है?
उत्तर:
उत्पादन का वह स्तर, जिस पर उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं की मात्रा, माँगी गई मात्रा के बराबर हो, उत्पादन का संतुलन स्तर कहलाता है।

प्रश्न 21.
ऐच्छिक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऐच्छिक बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें कार्य के लिए योग्य व्यक्ति अपनी इच्छा से कार्य नहीं करते यद्यपि अर्थव्यवस्था में उनके लिए उपयुक्त कार्य उपलब्ध होता है।

प्रश्न 22.
अनैच्छिक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अनैच्छिक बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें कार्य के लिए इच्छुक और योग्य व्यक्तियों को रोज़गार प्राप्त न हो।

प्रश्न 23.
प्रभावी माँग का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
प्रभावी माँग का सिद्धांत यह बताता है कि समस्त निर्गत (उत्पादन) का निर्धारण केवल समस्त माँग के मूल्यों द्वारा होता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 24.
पूर्ण रोज़गार संतुलन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पूर्ण रोज़गार संतुलन अर्थव्यवस्था में संतुलन की वह अवस्था होती है जहाँ उसके सभी संसाधनों का पूरा प्रयोग हो रहा हो।

प्रश्न 25.
अपूर्ण रोज़गार संतुलन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अपूर्ण रोज़गार संतुलन अर्थव्यवस्था के संतुलन की वह अवस्था होती है जहाँ उसके सभी संसाधनों का पूरा प्रयोग नहीं हो रहा हो अर्थात् कुछ संसाधन अप्रयुक्त रहते हैं। यह स्थिति समस्त माँग का समस्त पूर्ति से कम होने पर उत्पन्न होती है।

प्रश्न 26.
क्या बेरोज़गारी की स्थिति में एक अर्थव्यवस्था में संतुलन अवस्था संभव है?
उत्तर:
हाँ, बेरोज़गारी की स्थिति में एक अर्थव्यवस्था में संतुलन अवस्था संभव है क्योंकि संतुलन वहाँ स्थापित होता है जहाँ समग्र माँग (AD), समग्र पूर्ति (AS) के बराबर होती है। लेकिन संतुलन अवस्था पूर्ण रोज़गार की स्थिति में ही हो, यह जरूरी नहीं होता। संतुलन स्थिति अपूर्ण रोज़गार अवस्था पर भी हो सकती है।

प्रश्न 27.
केज़ सिद्धांत के अनुसार अपूर्ण रोज़गार स्तर का उपचार किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
समग्र माँग में वृद्धि द्वारा अपूर्ण रोज़गार स्तर का उपचार किया जा सकता है।

प्रश्न 28.
माँग का अभाव क्या होता है?
उत्तर:
जब समग्र माँग पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन से कम रह जाती है, तो उसे माँग का अभाव कहते हैं।

प्रश्न 29.
माँग आधिक्य क्या होता है?
उत्तर:
जब समग्र माँग, पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन से अधिक होती है, तो उसे माँग आधिक्य कहते हैं।

प्रश्न 30.
मुद्रास्फीतिक अंतराल की अवधारणा बताइए।
उत्तर:
यदि आय का संतुलन स्तर पूर्ण रोज़गार के स्तर के बाद निर्धारित होता है तो वह मुद्रास्फीतिक अंतराल की स्थिति होती है।

प्रश्न 31.
अवस्फीतिक अंतराल की अवधारणा बताइए।
उत्तर:
यदि कुल माँग पूर्ण रोज़गार के स्तर से कम होती है तो वह अवस्फीतिक अंतराल की स्थिति होती है।

प्रश्न 32.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी देश के केंद्रीय बैंक की उस नीति से है जिसका उपयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा तथा साख की पूर्ति के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

प्रश्न 33.
बैंक दर से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बैंक दर से हमारा अभिप्राय उस दर से है जिस पर केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंक को वित्तीय सुविधाएँ अर्थात् ऋण प्रदान करता है।

प्रश्न 34.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की व्यय तथा कर नीति से है; जिसका उपयोग अर्थव्यवस्था में कुल माँग के संतुलन को ठीक करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 35.
नकद रिज़र्व अनुपात (CRR) और साविधिक तरल अनुपात (SLR) में भेद कीजिए।
उत्तर:
नकद रिज़र्व अनुपात (CRR)-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी जमा राशियों का एक न्यूनतम अनुपात कानूनी त पर केंद्रीय बैंक के पास जमा करना होता है, उसे नकद रिजर्व अनपात (CRR) कहते हैं।

साविधिक तरल अनुपात (SLR)-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात अपने पास तरल संपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों) के रूप में रखना कानूनन अनिवार्य होता है, उसे साविधिक तरल अनुपात (SLR) कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक काल्पनिक उपभोग तालिका की सहायता से उपभोग फलन की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
केज के अनुसार, “उपभोग और आय के बीच के संबंध को उपभोग की प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं।” उपभोग फलन आय और उपभोग के पारस्परिक संबंध को दर्शाता है। उपभोग फलन हमें बताता है कि आय का कौन-सा भाग उपभोग वस्तुओं की माँग पर व्यय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, Consumption = f (Y).

प्रो० केज़ के अनुसार, “जैसे-जैसे किसी परिवार की आय बढ़ती जाती है, उसका उपभोग व्यय भी बढ़ता जाता है, परंतु उपभोग उस दर से नहीं बढ़ता, जिस दर से आय बढ़ती है।” दूसरे शब्दों में, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, बचत भी बढ़ती है और फलस्वरूप उपभोग व्यय भी कम होता जाता है। हम उपभोग फलन को निम्नलिखित काल्पनिक तालिका के रूप में दिखा सकते हैं
उपभोग फलन तालिका

राष्ट्रीय आय
(करोड़ रुपए)
उपभाग
(करोड़ रुपए)
030
100100
200170
300240
400310
500380
600450

प्रश्न 2.
उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति क्या है? अर्थव्यवस्था में आय स्तर को यह कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
आय में वृद्धि का वह भाग जो उपभोग पर व्यय किया जाता है, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहलाता है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति एक अर्थव्यवस्था के उपभोग फलन को प्रदर्शित करती है। उपभोग कुल माँग का एक संघटक है। राष्ट्रीय आय का स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ कुल माँग और कुल पूर्ति बराबर हों। अगर कुल माँग कम है तो राष्ट्रीय आय का स्तर भी कम होगा। इसके अतिरिक्त, अर्थव्यवस्था में गुणक का मूल्य सीमांत उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक का मूल्य भी उतना ही अधिक होगा।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 3.
बचत की परिभाषा दीजिए। एक बचत अनुसूची बनाइए तथा उस पर आधारित वक्र खींचिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में बचत, आय का वह भाग है जिसका उपभोग नहीं किया जाता। इस प्रकार बचत, आय और उपभोग का अंतर है अर्थात आय में से उपभोग घटाकर बचत प्राप्त की जा सकती है। सूत्र के रूप में,
बचत = आय – उपभोग
काल्पनिक बचत अनुसूची और इस पर आधारित रेखाचित्र निम्नलिखित प्रकार से बना सकते हैं-
काल्पनिक उपभोग और बचत अनुसूची
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 3

राष्ट्रीय आय (Y)उपभोग (C)बचत (S)
06-6
1013-3
20200
30273
40346
50419
604812
705515

उपर्युक्त अनुसूची के आधार पर हम संलग्न रेखाचित्र में बचत वक्र खींच सकते हैं।

प्रश्न 4.
‘निवेश गुणक’ की अवधारणा से क्या अभिप्राय है? सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और निवेश गुणक के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निवेश गुणक की अवधारणा से अभिप्राय उस सिद्धांत से है जिसके अनुसार निवेश में प्रारंभिक परिवर्तन से अर्थव्यवस्था की आय में गुणज परिवर्तन होता है। दूसरे शब्दों में, (निवेश) गुणक आय में होने वाले परिवर्तन तथा निवेश में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 4
गुणक का प्रत्यक्ष संबंध सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक उतना ही अधिक होगा।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 5
हम एक उदाहरण द्वारा गुणक की प्रक्रिया समझा सकते हैं। मान लीजिए कि एक अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) 80% अर्थात् 0.8 है और नवीन निवेश 100 करोड़ रुपए है। निवेश में वृद्धि होने के फलस्वरूप अतिरिक्त वस्तुओं की माँग में वृद्धि होगी जिसकी पूर्ति के लिए उत्पादक अतिरिक्त उत्पादन क्षमता को बढ़ाएँगे। यह निवेश जिन लोगों की आय बनेगी, वे उसका 80% व्यय करेंगे। यह क्रम उस समय तक चलता रहेगा जब तक कि निवेश की पूरी राशि समाप्त नहीं हो जाती।

इस प्रकार 100 करोड़ रुपए के अतिरिक्त निवेश से अर्थव्यवस्था में 500 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय उत्पन्न होगी। इस प्रकार सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के 0.8 पर गुणक 5 है। इसे हम इस प्रकार निकाल सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 6

प्रश्न 5.
समग्र माँग के कोई तीन संघटक बताइए।
उत्तर:
समग्र माँग के तीन संघटक निम्नलिखित हैं-
1. पारिवारिक उपभोगिक माँग-पारिवारिक उपभोगिक माँग का स्तर सबसे पहले परिवार की प्रबंध आय पर निर्भर करता है। उपभोग और आय के बीच संबंध को उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं।

2. निवेश माँग-निवेश का अर्थ पूँजी की नई संपत्ति बनाने पर होने वाले खर्च से है। किसी अर्थव्यवस्था में निवेश दो कारकों पर निर्भर करता है। (क) ब्याज की दर (ri) तथा (ख) निवेश की सीमांत कुशलता (MEI)।

3. सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-सरकार की यह माँग सार्वजनिक आवश्यकताओं; जैसे सड़कें, स्कूल, स्वास्थ्य, सिंचाई, बिजली आदि के लिए हो सकती है।

प्रश्न 6.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति में अंतर बताइए। इनमें से किसका मूल्य एक से अधिक हो सकता है और कब?
उत्तर:
औसत उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय उस दर से है जो आय के साथ उपभोग के अनुपात को बताती है। इस प्रकार
औसत उपभोग प्रवृत्ति = \(\frac { उपभोग }{ आय }\)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय उस दर से है जो उपभोग में परिवर्तन और आय में परिवर्तन का अनुपात बताती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 7
आय में परिवर्तन औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य एक से अधिक हो सकता है। यह उस समय हो सकता है जब निम्न आय स्तर पर लोगों का उपभोग उनकी आय से अधिक हो।

प्रश्न 7.
समष्टि अर्थशास्त्र में समग्र माँग और समग्र पूर्ति से क्या अभिप्राय है? जब ये दोनों बराबर हों तो क्या पूर्ण रोज़गार की स्थिति होगी?
उत्तर:
समग्र माँग से अभिप्राय किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए गए कुल व्यय के जोड़ से है। दूसरे शब्दों में, समग्र माँग से अभिप्राय उपभोग तथा निवेश पर किए गए कुल व्यय के जोड़ से है। इस प्रकार,
समग्र माँग = उपभोग + निवेश
समग्र पूर्ति से अभिप्राय किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य से है। दूसरे शब्दों में, समग्र पूर्ति से अभिप्राय उपभोग तथा बचत के जोड़ से है। इस प्रकार,
समग्र पूर्ति = उपभोग + बचत
एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का संतुलन उस बिंदु पर होगा जहाँ समग्र माँग और समग्र पूर्ति बराबर होते हैं। संतुलन की इस स्थिति पर पूर्ण रोज़गार का होना आवश्यक नहीं है। संतुलन की यह
स्थिति पूर्ण रोज़गार के स्तर से पहले अथवा बाद में भी हो सकती है जिसके कारण अर्थव्यवस्था में अधिमाँग अथवा अभावी माँग की स्थिति हो जाती है।

प्रश्न 8.
एक सीधी पंक्ति का उपभोग वक्र खींचिए। प्रक्रिया समझाते हुए उसका एक बचत वक्र खींचिए। निम्नलिखित को रेखाचित्र पर दिखाइए
(i) आय का वह स्तर जिस पर उपभोग औसत प्रवृत्ति इकाई (1) के बराबर है।
(ii) आय का वह स्तर जिस पर औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक है।
उत्तर:
संलग्न रेखाचित्र उपभोग वक्र और बचत वक्र को दर्शाता है-
संलग्न रेखाचित्र में, CC उपभोग वक्र है और OY आय वक्र है। यह एक तथ्य है जो कि बचत आय और उपभोग का अंतर है। जब आय शून्य है तो उपभोग OC के बराबर है और बचत – OA होगी। इसी प्रकार -A बचत वक्र का प्रारंभिक बिंदु होगा। E बिंदु पर आय और उपभोग एक बराबर हैं और बचत शून्य है। इस प्रकार बचत वक्र का एक बिंदु B भी होगा। -A और B बिंदु को मिलाते हुए जो वक्र खींची जाएगी वह बचत वक्र होगी। इस प्रकार -AS बचत वक्र होगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 8
बचत वक्र पर OB आय स्तर पर औसत उपभोग प्रवृत्ति एक के बराबर है। -AS बचत वक्र पर OY आय स्तर पर औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक है।

प्रश्न 9.
एक अर्थव्यवस्था के लिए सीधी रेखा बचत वक्र एक रेखाचित्र पर खींचिए। इसके आधार पर उपभोग वक्र बनाइए और इसके बनाने की विधि बताइए। उपभोग वक्र पर एक ऐसा बिंदु दर्शाइए जिस पर औसत उपभोग प्रवृत्ति 1 के बराबर हो।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में बचत, आय का वह भाग है जिसका उपभोग नहीं किया जाता। इस प्रकार बचत, आय और उपभोग का अंतर है अर्थात् आय में से उपभोग घटाकर बचत प्राप्त की जा सकती है।
सूत्र के रूप में,
बचंत = आय – उपभोग
आय वक्र उद्गम पर 45° का कोण बनाता है। आय वक्र और बचत वक्र की दूरी से उपभोग को मापा जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि जब बचत ऋणात्मक है तो उपभोग वक्र 45° वक्र के ऊपर होगा। जहाँ उपभोग वक्र और आय वक्र एक-दूसरे को काटते हैं तो आय और उपभोग वहाँ बराबर होंगे और बचत शून्य होगी। 1 के बराबर होगी। संलग्न रेखाचित्र में बचत वक्र, आय वक्र और उपभोग वक्र दर्शाए गए हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 9
संलग्न रेखाचित्र में SS1 बचत वक्र है और OY आय वक्र है जो 45° कोण वक्र है। चूँकि OS उद्गम पर ऋणात्मक बचत प्रदर्शित करती बचत है, उपभोग वक्र का उद्गम C बिंदु होगा क्योंकि OC = OS, A1 बिंदु पर बचत शून्य है। C और A1 बिंदुओं को जोड़ते हुए CC1 उपभोग वक्र खींचा जा सकता है।

A1 बिंदु पर औसत उपभोग प्रवृत्ति 1 के बराबर होगी क्योंकि इस बिंदु पर आय और उपभोग बराबर होते हैं।

प्रश्न 10.
उपभोग + निवेश (C+I) वक्र की सहायता से आय के संतुलन स्तर की व्याख्या कीजिए। यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक हो तो किस प्रकार के समायोजन इन दोनों को बराबर कर देंगे?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था को संतुलन की स्थिति में लाने के लिए क्या परिवर्तन होंगे, यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक हो?
अथवा
उपभोग + निवेश (C + I) दृष्टिकोण द्वारा आय के संतुलन स्तर का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
उपभोग + निवेश वक्र का तात्पर्य समग्र अथवा कुल माँग वक्र से है। एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का संतुलन वहाँ निर्धारित होता है जहाँ कुल माँग कुल पूर्ति के बराबर हो। अगर कुल माँग कुल पूर्ति से कम है तो राष्ट्रीय उत्पादन और आय में कमी होने की प्रवृत्ति पाई जाएगी। अगर कुल माँग कुल पूर्ति से अधिक है तो राष्ट्रीय आय और उत्पादन में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाएगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 10
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि राष्ट्रीय आय का संतुलन बिंदु E है और इस संतुलन बिंदु पर राष्ट्रीय आय OY होगी।

यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक है तो इसका अर्थ यह हुआ कि परिवार इतना उपभोग नहीं कर रहे हैं जितना उन्हें करना चाहिए, क्योंकि अधिक बचत से उपभोग कम होता है। कम उपभोग का परिणाम यह होगा कि विक्रेताओं के पास बिना बिके माल का स्टॉक राष्ट्रीय आय एकत्रित होने लगेगा, क्योंकि माँग पूर्ति की तुलना में कम है। बिना बिके माल के स्टॉक में वृद्धि से उत्पादक उत्पादन (तथा रोज़गार) में कमी करेंगे। यह प्रक्रिया उस समय तक चलती रहेगी जब तक कि नियोजित बचत नियोजित निवेश के बराबर नहीं हो जाती।

प्रश्न 11.
बचत और निवेश वक्रों की सहायता से आय के संतुलन स्तर की व्याख्या कीजिए। यदि बचत नियोजित निवेश से अधिक हो तो किस प्रकार के परिवर्तन इन दोनों में समानता लाएँगे?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था को संतुलन की स्थिति में लाने के लिए क्या परिवर्तन होंगे, यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से कम हो,
अथवा
बचत-निवेश दृष्टिकोण द्वारा आय के संतुलन स्तर का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ बचत और निवेश बराबर होते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।
संलग्न रेखाचित्र में SS बचत वक्र है और II निवेश वक्र है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को A बिंदु पर काटते हैं। A बिंदु पर राष्ट्रीय आय का संतुलन है जहाँ राष्ट्रीय आय OY होगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 11
यदि बचत नियोजित निवेश से अधिक है तो इसका यह प्रभाव होगा कि परिवार उपभोग पर कम व्यय कर रहे हैं और उनकी बचत निवेश से अधिक होगी। इसके फलस्वरूप व्यापारियों के पास वस्तुओं का बिना बिका हुआ स्टॉक जमा हो जाएगा। इस राष्ट्रीय आय + स्टॉक को कम करने के लिए विभिन्न फर्मे अपने उत्पादन में कमी करेंगी; जिससे रोज़गार में भी कमी आएगी। यह प्रक्रिया उस समय तक चलती रहेगी जब तक कि बचत और नियोजित निवेश बराबर नहीं हो जाते।

प्रश्न 12.
बचत और निवेश सदैव बराबर होते हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
बचत और निवेश दोनों ही दो प्रकार के होते हैं-

  • नियोजित
  • वास्तविक।

वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश हमेशा बराबर होते हैं, लेकिन ऐच्छिक बचत और ऐच्छिक निवेश केवल तभी बराबर होंगे जब अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय संतुलन की स्थिति में होगी क्योंकि संतुलन स्थिति में कोई भी अनैच्छिक या अनियोजित निवेश नहीं होता। बचत और निवेश की समानता को इस प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है-
Y = C + S
और Y = C + I
अतः S = I

प्रश्न 13.
समझाइए कि किस प्रकार समग्र माँग और समग्र पूर्ति पूर्ण रोज़गार स्तर से कम स्तर पर संतुलन में हो सकते हैं।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का संतुलन उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ समग्र माँग (C+ I) समग्र पूर्ति (C+S) के बराबर हो। लेकिन इस स्थिति का पूर्ण रोज़गार स्तर पर होना आवश्यक नहीं है। राष्ट्रीय आय का संतुलन पूर्ण रोज़गार स्तर से कम स्तर पर भी हो सकता है। ऐसा उस समय संभव है जब समग्र माँग समग्र पूर्ति से कम हो। इस स्थिति को अभावी माँग या अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 12
संलग्न रेखाचित्रं में हम देखते हैं कि समग्र माँग और समग्र पूर्ति राष्ट्रीय आय पूर्ण रोज़गार स्तर से कम स्तर पर संतुलन में हो सकते हैं।

प्रश्न 14.
स्फीतिक अंतराल व अवस्फीतिक अंतराल के बीच भेद कीजिए।
उत्तर:
यदि आय का संतुलन पूर्ण रोज़गार स्तर के बाद निर्धारित होता है तो कुल माँग और कुल पूर्ति के बीच के अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं। सूत्र के रूप में-
स्फीतिक अंतराल = नियोजित कुल व्यय – संतुलन स्तर का व्यय
यदि आय का संतुलन पूर्ण रोज़गार स्तर से पहले निर्धारित होता है तो कुल माँग और कुल पूर्ति के बीच के अंतर को अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। सूत्र के रूप में-
अवस्फीतिक अंतराल = संतुलन स्तर का व्यय – नियोजित कुल व्यय
स्फीतिक अंतराल के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में अधिमाँग की स्थिति पाई जाती है अर्थात् कुल माँग कुल पूर्ति से अधिक होती है जिससे कीमतें बढ़ने लगती हैं। इसके विपरीत, अवस्फीतिक अंतराल के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में अभावी माँग की स्थिति पाई जाती है अर्थात् कुल पूर्ति कुल माँग से अधिक होती है जिससे कीमतें घटने लगती हैं।

प्रश्न 15.
अवस्फीतिक अंतराल अथवा अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के चार मौद्रिक नीति के उपाय बताइए।
उत्तर:
अवस्फीतिक अंतराल अथवा अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के मौद्रिक नीति के चार उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. बैंक दर-अभावी माँग में केंद्रीय बैंक, बैंक दर में कमी करेगा जिससे व्यावसायिक बैंकों की ब्याज दर कम हो जाएगी और बैंक उद्यमियों को सस्ती दर पर ऋण दे सकेंगे।
  2. खुली बाज़ार प्रक्रिया-इस उपाय के अंतर्गत केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों से सरकारी प्रतिभूतियाँ बड़े पैमाने पर क्रय करता है, इससे व्यावसायिक बैंकों की ऋण देय क्षमता बढ़ जाती है।
  3. सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में कमी करेगा जिससे बैंकों की ऋण देय क्षमता अधिक हो जाएगी।
  4. सीमांत अनिवार्यताओं में परिवर्तन-केंद्रीय बैंक सदस्यं बैंकों को यह आदेश देगा कि वे अपनी सीमांत अनिवार्यता कम कर दें, इससे लोगों को अधिक ऋण लेने में सुविधा होगी।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 16.
अवस्फीतिक अंतराल या अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के चार राजकोषीय उपाय बताइए।
उत्तर:
अवस्फीति अंतराल अथवा अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति के निम्नलिखित चार उपाय अपनाए जा सकते हैं-
1. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि-अभावी माँग को दूर करने के लिए सरकार को सावजनिक व्यय में वृद्धि करनी होगी ताकि मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाए। सरकार सड़कें बनाने, विद्युतीकरण, जन-स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर अधिक व्यय कर सकती है।

2. करों में कमी देश में लोगों के पास क्रय-शक्ति बढ़ाने के लिए सरकार कर की दरों में कमी कर सकती है जिससे लोग अधिक मात्रा में क्रय करें और माँग में वृद्धि हो।

3. सार्वजनिक ऋणों में कमी-सरकार को लोगों के पास क्रय-शक्ति बढ़ाने के लिए सार्वजनिक ऋणों में कमी करनी चाहिए ताकि लोगों की क्रय-शक्ति अधिक हो और कुल माँग में वृद्धि हो।

4. घाटे की वित्त व्यवस्था सरकार को घाटे का बजट बनाना चाहिए और नए नोट छापकर दीर्घकालीन परियोजनाओं पर व्यय करना चाहिए।

प्रश्न 17.
ऐसे किन्हीं दो उपायों का वर्णन करें जिनके द्वारा एक केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीतिक अंतराल को कम करने का प्रयत्न कर सकता हैं।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीतिक अंतराल को निम्नलिखित उपायों द्वारा कम करने का प्रयत्न कर सकता है-
1. सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन कानून के अंतर्गत सभी व्यावसायिक बैंकों को अपनी माँग जमा दायित्व का न्यूनतम प्रतिशत केंद्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में जमा रखना होता है। इस अनुपात को बढ़ाकर व्यावसायिक बैंकों के नकदी के साधनों को कम किया जा सकता है और बैंकों को अपनी ऋण को कम करने के लिए मजबूर कि

2. कटौती की दर में परिवर्तन केंद्रीय बैंक जैसेकि ऋण थोक के व्यापारी जिस पर व्यावसायिक बैंकों जैसेकि परचून में ऋण का व्यापार करने वालों को उधार देते हैं, उसे कटौती दर या बैंक दर कहते हैं। सदस्य बैंक दो प्रकार से केंद्रीय बैंक से ऋण ले सकते हैं आरक्षित प्रोमिसरी नोट (आई.ओ.यू.) देकर या ड्राफ्ट, हुंडियाँ या ग्राहकों के आरक्षित प्रोमिसरी नोट की पुनः कटौती करके। व्यावसायिक बैंकों को ऋण की आवश्यकता अपने घटते हुए रिज़र्व को पूरा करने के लिए करनी पड़ती है। कटौती की दर बढ़ाकर केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों द्वारा ऋण की लागत को सीधे से तथा ब्याज की दर और ऋण की स्थिति को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित ‘ कर सकता है।

प्रश्न 18.
उपभोग फलन या प्रवृत्ति को बढ़ाने के कोई चार उपाय बताएँ।
उत्तर:
उपभोग फलन या प्रवृत्ति को बढ़ाने के कोई चार उपाय निम्नलिखित हैं-
1. आय का पुनर्वितरण-उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय आय का पुनर्वितरण निर्धन लोगों के पक्ष में होना चाहिए। मोग प्रवत्ति धनी वर्ग की उपभोग प्रवत्ति से अधिक होती है, इसलिए यदि आय का पनर्वितरण निर्धन लोगों के पक्ष में किया जाए अर्थात् अमीरों की कुछ आय गरीबों को प्राप्त होने लगे तो स्वाभाविक है कि उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाएगी।

2. सामाजिक सुरक्षा-लोगों को सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएँ प्रदान करने से भी उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाया जा सकता है। जब सरकार लोगों को बेरोज़गारी भत्ते, पेंशन तथा स्वास्थ्य सुविधाएँ इत्यादि प्रदान करती है तो लोगों में असुरक्षा का भय समाप्त हो जाता है। फलस्वरूप लोगों की बचत करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है तथा उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है।।

3. साख सुविधाएँ साख सुविधाओं के उपलब्ध होने पर लोग अधिक मात्रा में कार, स्कूटर, टेलीविज़न, फ्रिज आदि खरीदेंगे। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होगी।

4. नगरीकरण-ग्रामीण लोगों में नगरीकरण की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करके उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाया जा सकता है। यह देखने में आया है कि शहरों में रहने वाले लोगों की उपभोग प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की उपभोग प्रवृत्ति से अधिक होती है। अतः यदि नगरीकरण द्वारा ग्रामीण जनता के कुछ भाग- को नगरों में बसाने का प्रयत्न किया जाए तो उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

प्रश्न 19.
निवेश को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार कारकों या तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
निवेश को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. विदेशी व्यापार-किसी देश के विदेशी व्यापार का भी निवेश पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि देश में विदेशी व्यापार के विस्तार की सम्भावना बढ़ जाती है, तो निवेश पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा निवेश में वृद्धि होती है। इसके विपरीत विदेशी व्यापार की मात्रा के कम हो जाने का निवेश की मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है अर्थात् निवेश कम मात्रा में किया जाता है।

2. राजनीतिक वातावरण-यदि देश का राजनीतिक वातावरण शान्तिपूर्ण है तथा देश में आन्तरिक व बाहरी शान्ति एवं स्थिरता है तो इसका निवेश पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा निवेश में वृद्धि होती है। इसके विपरीत यदि देश में अशान्ति और अस्थिरता का वातावरण है, कानून व्यवस्था ठीक नहीं है, विदेशी आक्रमण का भय बना हुआ है तो इसका निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा निवेश कम हो जाता है।

3. व्यावसायिक आशाएँ-निवेश प्रेरणा व्यावसायिक आशाओं पर भी निर्भर करती है। यदि निवेशकर्ता भविष्य के सम्बन्ध में आशावादी (Optimistic) होंगे तो निवेश में वृद्धि होगी। इसके विपरीत यदि निवेशकर्ता निराशावादी (Pessimistic) होंगे तो निवेश की मात्रा कम होगी।

4. पूँजी का वर्तमान स्टॉक-किसी अर्थव्यवस्था में पूँजी के वर्तमान स्टॉक का भी निवेश पर प्रभाव पड़ता है। यदि पूँजीगत वस्तुओं का स्टॉक बहुत अधिक है तो अतिरिक्त निवेश नहीं किया जाएगा। यदि वर्तमान पूँजीगत स्टॉक को पूर्ण रूप से प्रयोग कर लिया गया है, परन्तु माँग में लगातार वृद्धि हो रही है, तो नए निवेश की सम्भावना अधिक होगी।

प्रश्न 20.
प्रेरित निवेश तथा स्वायत्त/स्वतंत्र निवेश में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रेरित निवेश तथा स्वायत्त निवेश में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

प्रेरित निवेशस्वायत्त निवेश
1. यह निवेश आय प्रेरित होता है।1. यह निवेश आय प्रेरित नहीं होता।
2. इस निवेश का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है।2. इस निवेश का मुख्य उद्देश्य अधिकतम सामाजिक कल्याण होता है।
3. प्रेरित निवेश प्रायः निजी क्षेत्र में किया जाता है, इसे निजी निवेश भी कहते हैं।3. स्वायत्त निवेश प्रायः सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार द्वारा किया जाता है, इसे सार्वजनिक निवेश भी कहते हैं।
4. प्रेरित निवेश का स्तर केवल लाभप्रदता की मात्रा से प्रभावित होता है।4. स्वायत्त निवेश का स्तर राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य कारणों से प्रभावित होता है।

प्रश्न 21.
निजी निवेश तथा सार्वजनिक निवेश में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निजी निवेश-निजी निवेश से अभिप्राय उस निवेश से है जो निजी व्यक्ति लाभ कमाने के उद्देश्य से करते हैं। इस प्रकार का निवेश केज के अनुसार मुख्यतः दो तत्त्वों पर निर्भर करता है (i) पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MEC) तथा (ii) ब्याज की दर (Rate of Interest)। यदि पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MEC) ब्याज की दर (r) से अधिक है अर्थात् (MEC>r), तो निजी निवेश अधिक किया जाएगा। इसके विपरीत, यदि MEC, ब्याज की दर से कम है अर्थात् (MEC <r) तो निजी निवेश नहीं किया जाएगा। इस प्रकार का निवेश, प्रेरित निवेश (Induced Investment) होता है।

सार्वजनिक निवेश सार्वजनिक निवेश वह निवेश है जो देश की केन्द्रीय, प्रान्तीय या स्थानीय सरकारों के द्वारा किया जाता है। यह निवेश लोगों के कल्याण, देश की सुरक्षा तथा आर्थिक विकास के लिए किया जाता है। यह निवेश लाभ के उद्देश्य से नहीं किया जाता। अतः यह लाभ-सापेक्ष (Profit Elastic) नहीं होता। यह निवेश साधारणतया स्वतंत्र निवेश होता है। स्कूलों, कॉलेजों, रेलों, सड़कों, अस्पतालों, नहरों तथा बाँधों आदि पर किया जाने वाला निवेश इसी श्रेणी में आता है।

प्रश्न 22.
रेखाचित्र की सहायता से अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति से, समग्र माँग जितनी कम होती है, उसे अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। यह समग्र माँग में पूर्ण रोजगार कमी का माप है। इसे वैकल्पिक रूप में, इस प्रकार परिभाषित कर संतुलन बिंदु सकते हैं। “अवस्फीतिक अंतराल, वास्तविक समग्र माँग और पूर्ण रोज़गार संतुलन के लिए वांछनीय समग्र माँग का अंतर होता है। यह वास्तविक समग्र माँग के अभाव का माप है।” इसे संलग्न रेखाचित्र में EB के रूप में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 13
रेखाचित्र में E पूर्ण रोज़गार संतुलन बिंदु है जहाँ समग्र माँग EM, पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति OM के बराबर है। मान लीजिए नई माँग BM उत्पादन स्तर के बराबर है जो पूर्ण रोज़गार संतुलन स्तर के उत्पादन EM(OM) से कम है। दोनों में अंतर EB(EM – BM) अवस्फीतिक अंतराल है। इस प्रकार EB अवस्फीतिक अंतराल और अभावी माँग का माप है। ध्यान रहे अभावी माँग मंदी और बेरोजगारी की स्थिति पैदा करती है।

प्रश्न 23.
क्या एक अर्थव्यवस्था अल्प रोज स्थिति में हो सकती है? समझाइए।
उत्तर:
आय व रोज़गार का संतुलन स्तर उस बिंदु पर होता है जहाँ कुल माँग और कुल पूर्ति बराबर होती है। संतुलन स्तर के पूर्ण रोजगार स्तर पर निर्धारण में कुल माँग महत्त्वपूर्ण घटक है। कुल माँग उपभोग और वास्तविक स्तर पर निवेश का योग है। संतुलन स्तर पूर्ण रोज़गार स्तर से कम हो सकता है जहाँ अल्प रोज़गार होता है। अल्प रोज़गार संतुलन की स्थिति उस समय उत्पन्न होती है, जब अभावी माँग अर्थात् अवस्फीतिक अंतराल हो। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 14
संलग्न रेखाचित्र में F पूर्ण रोज़गार स्तर है जहाँ राष्ट्रीय आय OYf होनी चाहिए, परंतु अभावी माँग के कारण आय का वास्तविक राष्ट्रीय आय  संतुलन स्तर E पर है जहाँ राष्ट्रीय आय OY है। पूर्ण रोज़गार संतुलन पर पहुँचने के लिए निवेश व्यय में FG की वृद्धि करनी होगी।

प्रश्न 24.
राजकोषीय नीति तथा मौद्रिक नीति में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय नीति तथा मौद्रिक नीति में निम्नलिखित अंतर हैं-

राजकोषीय नीतिमौद्रिक नीति
1. इस नीति का संबंध सार्वजनिक आय, व्यय, ऋण एवं बजट से होता है।1. इस नीति का संबंध मुद्रा की पूर्ति तथा साख की उपलब्धता एवं लागत से होता है।
2. इसका निर्धारण प्रायः वित्त मंत्रालय करता है।2. इसका निर्धारण केंद्रीय बैंक करता है।
3. इस नीति का अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।3. इसका प्रमुख रूप से उत्पादक क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है।
4. इस नीति के मुख्य संघटक कर, सार्वजनिक व्यय, ऋण, घाटे की वित्त व्यवस्था आदि हैं।4. इस नीति के मुख्य संघटक बैंक दर, खुली बाज़ार प्रक्रियाएँ, तरलता अनुपात आदि हैं।

प्रश्न 25.
‘से’ के बाजार नियम की कोई पाँच मान्यताएँ बताएँ।
उत्तर:
‘से’ के बाज़ार नियम की पाँच मान्यताएँ निम्नलिखित हैं
1. पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता बाज़ार में पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था पाई जाती है जिसमें माँग तथा पूर्ति की शक्तियों के द्वारा सन्तुलन स्थापित होता है।

2. लोचशील कीमतें, मज़दूरी तथा ब्याज-कीमतें, मज़दूरी तथा ब्याज पूर्णतया लोचशील हैं। यदि माँग पूर्ति से कम है तो कीमतें कम हो जाएँगी जिससे माँग तथा पूर्ति में फिर से सन्तुलन आ जाएगा। यदि देश में बेरोज़गारी है तो मज़दूरी कम हो जाएगी जिससे रोज़गार बढ़ जाएगा। इसी प्रकार, यदि निवेश तथा बचत में असन्तुलन है तो ब्याज की दर में परिवर्तन होने से निवेश तथा बचत में समानता आ जाएगी।

3. मुद्रा केवल विनिमय का माध्यम है-मुद्रा केवल एक आवरण (Veil) है जिसका अर्थ है कि मुद्रा द्वारा केवल वस्तुओं का लेन-देन ही होता है। मुद्रा धन के संचय के लिए नहीं होती।

4. धन-संचय का न होना-लोग जो कुछ कमाते हैं, वह समस्त मुद्रा व्यय कर दी जाती है अर्थात् किसी प्रकार का संचय (Hoarding) नहीं किया जाता। मुद्रा को या तो उपभोग पदार्थों पर खर्च कर दिया जाता है या पूँजी पदार्थों पर। यही कारण है कि बचत तथा निवेश एक-समान हो जाते हैं।

5. राज्य के तटस्थ होने की नीति-आर्थिक क्षेत्र में राज्य की ओर से किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। अर्थव्यवस्था में माँग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा स्वयं ही संतुलन (Automatic Adjustment) स्थापित हो जाता है।

प्रश्न 26.
उपभोग फलन को तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति की धारणा को निम्नलिखित तालिका की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है दी गई तालिका से स्पष्ट होता है कि आरम्भ में जब आय शून्य है तो लोगों का उपभोग 10 करोड़ रुपए है। लोग यह उपभोग व्यय पिछली बचतों (Past Savings) के द्वारा या उधार लेकर करते हैं। जब आय बढ़कर 100 करोड़ रुपए हो जाती है, तो उपभोग व्यय भी बढ़कर 100 करोड़ रुपए हो जाता है। यहाँ बचत शुन्य होती है और जब आय बढ़कर क्रमशः 200, रुपए हो जाती है तो उपभोग व्यय बढ़कर क्रमशः 190, 280, 370 व 460 करोड़ रुपए हो जाता है। तालिका से यह भी स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे आय बढ़ रही है, उपभोग व्यय तथा बचत भी बढ़ रहे हैं, परन्तु उपभोग व्यय में होने वाली वृद्धि आय में होने वाली वृद्धि की तुलना में कम होती है।

आयउपशायबचत
010-10
1001000
200190+10
300280+20
400370+30
500460+40

रेखाचित्र-उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति की धारणा को संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है चित्र में OX-अक्ष पर आय तथा OY-अक्ष पर उपभोग और बचत को दर्शाया गया है। चित्र में 45° वाली Y = C + S रेखा आय तथा उपभोग + बचत की समानता को प्रकट करती है। चित्र में CC रेखा उपभोग वक्र है। चित्र से स्पष्ट है कि जब आय शून्य है तो उपभोग व्यय OC है। आय के OY तक बढ़ जाने से उपभोग व्यय आय के समान है तथा इस बिन्दु पर बचत शून्य है।

OY के बाद आय में वृद्धि से उपभोग व्यय अवश्य बढ़ता है, परन्तु उपभोग व्यय में वृद्धि आय में वृद्धि से कम होती है। चित्र में SS वक्र बचत रेखा है जो कि यह स्पष्ट करती है कि शून्य आय के स्तर पर बचत ऋणात्मक है। आय के OY स्तर पर बचत शून्य है तथा इसके बाद आय के बढ़ने पर बचत बढ़ती जाती है; जैसे आय के OY1 स्तर पर उपभोग C1Y1 है और बचत S1 C1 है। इस प्रकार CC उपभोग वक्र की ढलान से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे आय में वृद्धि आय होती है, उपभोग व्यय भी बढ़ता है, परन्तु उपभोग व्यय में वृद्धि आय की तुलना में कम दर से होती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 15

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति को परिभाषित कीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
अथवा
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है? उपभोग फलन के मुख्य लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोग फलन/उपभोग प्रकृति का अर्थ एवं परिभाषाएँ-उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति एक ऐसी तालिका है जो आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को व्यक्त करती है अर्थात् उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय के बीच कार्यात्मक सम्बन्ध (Functional Relationship) व्यक्त करती है। इससे यह पता चलता है कि आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग व्यय के कौन-कौन से स्तर हैं।

उपभोग (Consumption) और उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) में अन्तर होता है। उपभोग का अर्थ यह है कि किसी देश की समस्त आय में से कल कितना उपभोग पर खर्च किया जाता है। मान लीजिए कि एक देश की राष्ट्रीय आय 100 करोड़ रुपए है और इसमें से 80 करोड़ रुपए वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने पर खर्च कर दिए जाते हैं तो 80 करोड़ रुपए उपभोग कहलाएगा, जबकि उपभोग प्रवृत्ति एक ऐसी अनुसूची है जो यह स्पष्ट करती है कि आय के बदलने के साथ-साथ उपभोग कैसे बदलता है?

यदि उपभोग को अक्षर ‘C’ द्वारा और आय को अक्षर ‘Y’ द्वारा दर्शाया जाए तो उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कुल उपयोग व्यय तथा कुल राष्ट्रीय आय में फलनात्मक सम्बन्ध को व्यक्त करती है। समीकरण के रूप में,
c = f(Y)
इसे पढ़ सकते हैं कि उपभोग (C), आय (Y) का फलन है। समीकरण में (1) उपभोग तथा आय के कार्यात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है और चूँकि उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति भी राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय के फलनात्मक सम्बन्ध को व्यक्त करती है। इसलिए हम (f) को ही उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) कह सकते हैं। यदि हमें लोगों की उपभोग प्रवृत्ति का पता लग जाए तो हमें ज्ञात हो जाता है कि एक दी हुई आय में से देशवासी उपभोग पर कितना व्यय करेंगे। संक्षेप में, उपभोग प्रवृत्ति, उपभोग तथा आय के फलनात्मक सम्बन्ध को प्रकट करती है।
1. डिलर्ड के अनुसार, “आय के विभिन्न स्तरों पर, उपभोग की विभिन्न मात्राओं को प्रकट करने वाली अनुसूची को उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है।”

2. लिप्सी के अनुसार, “उपभोग फलन उपभोग व्यय और आय के सम्बन्ध में वक्तव्य से अधिक कुछ भी नहीं है।”

3. पीटरसन के अनुसार, “उपभोग फलन की परिभाषा एक अनुसूची के रूप में दी जा सकती है जो कि विभिन्न आय-स्तरों पर उपभोग पदार्थों और सेवाओं पर किए गए व्यय की मात्रा को बताती है।” ।

उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति की विशेषताएँ-उपभोग प्रवृत्ति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. उपभोग प्रवृत्ति अल्पकाल में स्थिर रहती है चूँकि उपभोग प्रवृत्ति एक मनोवैज्ञानिक धारणा (Psychological Concept) है, इस पर कई भावगत तत्त्वों (Subjective Factors); जैसे मनुष्यों की आदतों, रुचि, फैशन आदि का प्रभाव पड़ता है। अल्पकाल में ये तत्त्व स्थिर रहते हैं। इसलिए अल्पकाल में उपभोग प्रवृत्ति भी स्थिर रहती है।

2. गरीब वर्ग की उपभोग प्रवृत्ति, अमीर वर्ग की उपभोग प्रवृत्ति से अधिक होती है इसका कारण यह है कि निर्धन लोगों की आय कम होने के कारण कुछ आवश्यकताएँ असन्तुष्ट रहती हैं और जब आय बढ़ती है तो वे तुरन्त ही अपनी असन्तुष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय कर देते हैं। इसके विपरीत अमीर लोगों की आवश्यकताएँ पहले ही तृप्त होती हैं। अतः जब धनी लोगों की आय बढ़ती है तो वह उपभोग पर खर्च न होकर बचत का रूप धारण कर लेती है।

3. अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन उपभोग फलन-अल्पकाल में उपभोग व्यय स्वतन्त्र उपभोग (Autonomous Consumption) प्रकार का होता है। स्वतन्त्र उपभोग से अभिप्राय, उस न्यूनतम उपभोग व्यय से है जो एक व्यक्ति को अवश्य करना पड़ता है, चाहे उसकी आर्य शून्य ही क्यों न हो। जबकि दीर्घकालीन उपभोग व्यय स्वतन्त्र उपभोग नहीं होता। इसका कारण यह है कि दीर्घकाल में कोई भी व्यक्ति बिना आय के खर्च नहीं कर सकता।

4. आय और रोजगार उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करते हैं-आय और रोज़गार का उपभोग प्रवृत्ति से सीधा सम्बन्ध है। उपभोग प्रवृत्ति के बढ़ने पर कुल उपभोग व्यय में वृद्धि होती है, फलस्वरूप आय तथा रोज़गार में वृद्धि होती है। इसी प्रकार, उपभोग प्रवृत्ति के कम होने से कुल उपभोग व्यय में कमी होने के कारण आय और रोज़गार में कमी आती है। अतः देश में रोज़गार या राष्ट्रीय आय को बढ़ाने के लिए ऐसे कदम उठाए जाने चाहिएँ जिनसे देश में उपभोग प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिले।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 2.
निवेश गणक की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। निवेश की प्रक्रिया या कार्यशीलता को तालिका की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
निवेश गुणक की अवधारणा हम जानते हैं कि निवेश से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है जिससे रोज़गार, उत्पादन व आय का स्तर बढ़ जाता है अर्थात् निवेश में परिवर्तन, आय में परिवर्तन लाता है। आय में यह परिवर्तन, निवेश में परिवर्तन का कई गुना (या गुणक) होता है। अतः अर्थव्यवस्था में जितनी मात्रा में निवेश बढ़ाया जाता है, राष्ट्रीय आय में उससे कई गुना वृद्धि हो जाती है। चूंकि आय में होने वाला परिवर्तन, निवेश परिवर्तन का कई गुना होता है, इसलिए इसे निवेश गुणक कहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि दी हुई अवधि में निवेश राशि 100 करोड़ रुपए बढ़ाने से कुल आय 500 करोड़ रुपए बढ़ जाती है तो निवेश गुणक 500/100 = 5 होगा। निवेश में वृद्धि के फलस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि के अनुपात को निवेश गुणक कहते हैं। सूत्र के रूप में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 16
संक्षेप में, गुणक (K) से अभिप्राय निवेश में परिवर्तन (AI) और आय में परिवर्तन (AY) के अनुपात से है।

निवेश गुणक की प्रक्रिया निवेश व्यय बढ़ाने से आय में कई गुना बढ़ने की प्रक्रिया इस प्रकार है। हम जानते हैं कि एक व्यक्ति का व्यय, दूसरे व्यक्ति की आय बन जाती है। इसी प्रकार दूसरे व्यक्ति का व्यय, तीसरे व्यक्ति की आय होती है और तीसरे व्यक्ति का व्यय, चौथे व्यक्ति की आय होती है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में उपभोग व्यय और आय की एक ह्रासमान (Dwindling Chain of Consumption and Income) श्रृंखला बनती चली जाती है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक उपभोग शून्य नहीं हो जाता। इस प्रक्रिया के अंत में आय का जोड़ करने पर कुल आय, आरंभिक निवेश की कई गुना हो जाती है। ध्यान रहे, एक व्यक्ति का व्यय, उसकी आय और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) पर निर्भर करता है। अब एक उदाहरण से इसे स्पष्ट करते हैं

मान लीजिए कि सरकार 100 करोड़ रुपए, निवेश करके खाद का एक कारखाना स्थापित करती है। इसका पहला प्रभाव यह होगा कि कारखाने में लगे श्रमिकों की आय 100 करोड़ रुपए बढ़ जाएगी। यदि उनकी सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) 1/2 या 50% है तो वे 50 करोड़ (100 का 1/2) नई उपभोग वस्तुओं पर खर्च करेंगे। यह इस कथा का अंत नहीं है। अब इन वस्तुओं के उत्पादकों की आय 50 करोड़ रुपए (कारकों के व्यय के बराबर) बढ़ जाएगी और वे 25 करोड़ रुपए (50 का 1/2) उपभोग प खर्च करेंगे। इस प्रकार यह श्रृंखला बढ़ती जाएगी जिसमें प्रत्येक दौर (Round), पिछले दौर का 1/2 होगा। आय में वृद्धि तब समाप्त हो जाएगी, जब आय में परिवर्तन (AI), बचत में परिवर्तन (AS) के बराबर हो जाएगा अर्थात् ∆I = ∆S.

निवेश-गुणक की प्रक्रिया को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है। यह इस मान्यता पर आधारित है कि निवेश में आरंभिक वृद्धि 10 करोड़ रुपए है और MPC = 50% या 1/2 है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 17
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि पहले दौर में आय में वृद्धि 10 करोड़ रुपए की होगी, क्योंकि इसी दौर में सरकार ने 10 करोड़ रुपए का निवेश किया है। दूसरे दौर में आय में वृद्धि 5 करोड़ रुपए की होगी, क्योंकि लोगों की सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 1/2 है। इसलिए लोग अपनी बढ़ी हुई आय का 50% खर्च करेंगे तथा 50% बचाकर रखेंगे। इस प्रकार, प्रत्येक दौर में आय में वृद्धि होती जाएगी। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक कि अंततः कुल आय में होने वाली वृद्धि 20 करोड़ रुपए के बराबर नहीं हो जाती। इस क्रिया को हम आय सृजन का चलचित्र (Motion Picture of Income Propogation) कहते हैं।

तालिका के स्तंभों का जोड़ करने के लिए G.P. Series (Geometrical Progression Series) के सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे कि-
GP. Series का सूत्र है- S = \(\frac { a }{ 1-r }\)
यहाँ, S = Sum total (कुल जोड़), a = First item of the column तथा r = Rate of change or MPC
आय वाले स्तंभ का जोड़ =\(\frac { 10 }{ 1-1/2 }\) = \(\frac { 10 }{ 1/2 }\) = 20
उपभोग वाले स्तंभ का जोड़ = \(\frac { 5 }{ 1-1/2 }\) = \(\frac { 5 }{ 1/2 }\) = 10
बचत वाले स्तंभ का जोड़ =\(\frac { 5 }{ 1-1/2 }\) = \(\frac { 5 }{ 1/2 }\) = 10
स्पष्ट है कि 10 करोड़ रुपए का आरंभिक निवेश करने से जब MPC = 1/2 हो तो गुणक का मूल्य 2 होगा और आय में वृद्धि निवेश की दो गुना अर्थात् 20 करोड़ रुपए होगी। इस प्रकार गुणक (K) = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\) = \(\frac { 20 }{ 10 }\) = 2

प्रश्न 3.
आय व रोज़गार के प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांत और केज़ के सिद्धांत में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आय व रोज़गार के प्रतिष्ठित सिद्धांत और केज के सिद्धांत में अंतर निम्नलिखित हैं-

प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांतकेज्ज का सिद्धांत
1. आय व रोज़गार का साम्य (संतुलन) स्तर, सदा पूर्ण रोज़गार के स्तर पर निर्धारित होता है। पूर्ण रोज़गार की मान्यता इस सिद्धांत में सर्वव्याप्त है।1. आय व रोज़गार का साम्य स्तर, उस स्तर पर निर्धारित होता है जहाँ AD = AS परंतु आवश्यक नहीं कि यह साम्य, पूर्ण रोज़गार पर ही हो, क्योंकि यह इससे कम या अधिक पर भी हो सकता है।
2. पूर्ण रोज़गार संतुलन एक सामान्य (Normal) स्थिति है। दीर्घकाल में पूर्ण रोज़गार से कम की स्थिति संभव नहीं है।2. ‘पूर्ण रोज़गार से कम पर संतुलन’ एक सामान्य स्थिति है जबकि पूर्ण रोज़गार संतुलन एक आदर्श और असाधारण अवस्था है।
3. यह सिद्धांत इस विश्वास पर आधारित है कि ‘पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न करती है।’ फलस्वरूप समस्त उत्पादन के बिक जाने से अति-उत्पादन (Overproduction) और बेरोज़गारी असंभव है।3. पूर्ति स्वतः अपनी माँग उत्पन्न नहीं करती जिससे अति-उत्पादन और बेरोज़गारी की स्थिति पैदा हो जाती है। इसके विपरीत ‘माँग, पूर्ति को सृजित करती है।’
4. अल्पकालिक या अस्थाई बेरोज़गारी की दशा में मज़दूरी दर घटाने से रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है।4. प्रभावी या समग्र माँग (AD) बढ़ाकर ही रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है।
5. ब्याज दर में परिवर्तन से बचत और निवेश में संतुलन स्थापित होंता है।5. आय स्तर में परिवर्तन से बचत और निवेश में संतुलन स्थापित होता है।
6. कीमत, मज़दूरी और ब्याज दर की लोचदार (Elastic) प्रणाली से अर्थव्यवस्था स्वयं ही पूर्ण रोज़गार संतुलन लाती है।6. एकाधिकार और ट्रेड यूनियनों के होते हुए कीमत, मज़दूरी और ब्याज दर में लोच या परिवर्तनशीलता नहीं रहती।
7. समग्र पूर्ति (AS), कीमतों के प्रति पूर्णतया बेलोचदार होती है।7. समग्र पूर्ति (AS), कीमतों के प्रति पूर्णतया लोचदार होती है।
8. सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं, क्योंकि माँग और पूर्ति की स्वतंत्र शक्तियों द्वारा संतुलन स्वतः ही स्थापित हो जाता है।8. AD और AS में संतुलन लाने व पूर्ण रोज़गार को संभव बनाने के लिए संरकारी हस्तक्षेप जरूरी है।
9. यह सिद्धांत दीर्घकाल में लागू होता है।9. यह सिद्धांत अल्पकाल में लागू होता है।

प्रश्न 4.
आय व रोज़गार का प्रतिष्ठित/परंपरावादी (Classical) सिद्धांत तथा केञ्ज (Keynes) के सिद्धांत का संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
‘आय के निर्धारण’ से अभिप्राय देश में ‘आय और रोज़गार के संतुलन स्तर के निर्धारण’ से है। हम व्यष्टि अर्थशास्त्र में उत्पादक (फम) के संतुलन के विषय का अध्ययन करते हैं कि उत्पादक का संतुलन, उत्पादन के उस स्तर पर होता है जिस स्तर पर उत्पादक को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। इसी प्रकार समष्टि अर्थशास्त्र में हम देश की आय और रोज़गार के संतुलन स्तर का अध्ययन करते हैं जोकि राष्ट्रीय आय (उत्पादन) का उच्चतम स्तर प्राप्त करने का प्रयास करता है, जब समस्त साधनों का पूर्ण उपयोग (अर्थात् पूर्ण रोज़गार संतुलन की स्थिति में) किया जाता है। इस विषय में दो सिद्धांत-प्रतिष्ठित (या परंपरावादी) सिद्धांत और केज़ का सिद्धांत प्रसिद्ध हैं। दोनों सिद्धांतों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

ध्यान रहे, समष्टि अर्थशास्त्र में यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि समग्र माँग और समग्र पूर्ति दोनों मिलकर उत्पादन का स्तर, पूर्ण रोज़गार का स्तर और सामान्य कीमत-स्तर निर्धारित करते हैं।
(क) आय व रोज़गार का प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांत-प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने आय व रोज़गार से संबंधित कोई सिद्धांत अलग से नहीं दिया, बल्कि व्यक्तिगत इकाइयों के अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों को समस्त अर्थव्यवस्था की आय व रोजगार के निर्धारण में लागू किया। प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांत की मुख्य बातें इस प्रकार हैं

अर्थव्यवस्था सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति में रहती है यदि संसाधनों के पूर्ण रोज़गार में अस्थाई रूप से कभी कमी आ भी जाए, तो यह अल्पकालिक होती है, क्योंकि मजदूरी-दर में कमी आने से श्रम की माँग बढ़ जाती है जिससे बेरोज़गारों को शीघ्र ही रोज़गार मिल जाता है। अतः दीर्घकाल में बेरोज़गारी स्वतः समाप्त हो जाती है। परंपरावादियों का यह विश्वास कि समग्र पूर्ति सदा पूर्ण रोज़गार वाली होगी, निम्न दो मान्यताओं-‘से’ का बाज़ार नियम और कीमत-मजदूरी की लोचशीलता पर आधारित है जिनका विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

(i) ‘से’ (Say) का बाजार नियम-उपर्युक्त मत फ्रांसीसी अर्थशास्त्री, जे.बी. ‘से’ के इस बाज़ार नियम पर आधारित है कि “पर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा करती है” अर्थात उत्पादन की प्रत्येक क्रिया से आय सजित होती है और आय से माँग उत्पन्न होती है जिससे समस्त उत्पादन बिक जाते हैं। फलस्वरूप अति-उत्पादन व बेरोज़गारी की संभावना समाप्त हो जाती है। इस प्रकार . प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री अर्थव्यवस्था की स्वचालिता (Automatic Functioning) में विश्वास रखते थे और सरकार के हस्तक्षेप का विरोध करते थे।

(ii) लोचशील कीमत, मजदूरी और ब्याज दर-इनके कारण अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार संतुलन की अवस्था स्वतः स्थापित हो जाती है, जैसे-

  • कीमतों में लचीलेपन के कारण माँग और पूर्ति की शक्तियों में संतुलन हो जाता है।
  • मज़दूरी-दर में लचीलापन, पूर्ण रोज़गार संतुलन स्थापित करता है।
  • ब्याज-दर में लचीलापन, बचत और निवेश में समानता बनाए रखता है। लचीलेपन से अभिप्राय है स्वतंत्रतापूर्वक घटने-बढ़ने का गुण। ऐसी स्थिति में सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि माँग और पूर्ति की स्वतंत्र आर्थिक शक्तियाँ स्वयं ही अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार संतुलन की अवस्था ला देती हैं।

(ख) आय व रोजगार का केज (Keynes) का सिद्धांत – सन 1929-33 में अमेरिका और यूरोप के पश्चिमी देशों में महामंदी की स्थिति ने परंपरावादी (प्रतिष्ठित) अर्थशास्त्रियों के इस मत को चूर-चूर कर दिया कि अर्थव्यवस्था सदा पूर्ण रोज़गार की स्थिति में रहती है। यहाँ ‘से’ का बाज़ार नियम (पूर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा करती है) फेल हो गया और किसी अन्य सिद्धांत की जरूरत अनुभव होने लगी जो यह बताए कि अमेरिका जैसे विकसित देशों को भी बेरोज़गारी का सामना क्यों करना पड़ा?

इस पृष्ठभूमि में सन् 1936 में इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे०एम०केज ने अपनी पुस्तक “रोज़गार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत” (General Theory of Employment, Interest and Money) प्रकाशित की जो 20वीं शताब्दी की अर्थशास्त्र की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानी जाती है। इसके साथ ही एक नया अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र या केज का अर्थशास्त्र विकसित हुआ। यह शास्त्र मुख्य रूप से बताता है कि किसी देश में आय व रोज़गार के संतुलन (साम्य) स्तर का निर्धारण कैसे होता है। केज ने बेरोज़गारी का मुख्य कारण प्रभावी माँग की कमी बतलाया। केज के सिद्धांत की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं
(i) यह आवश्यक नहीं कि आय और रोज़गार का संतुलन स्तर, पूर्ण रोज़गार पर हो, क्योंकि यह इससे कम या अधिक पर भी हो सकता है, बल्कि पूर्ण रोज़गार से कम पर संतुलन, एक सामान्य अवस्था है।

(ii) माँग, पूर्ति को सृजित करती है न कि पूर्ति माँग को। विकसित देशों को भी महामंदी का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि उनके माल के लिए प्रभावी माँग कम थी।

(iii) उत्पादन, आय और रोज़गार का स्तर, वस्तुओं व सेवाओं की समग्र (समस्त) माँग पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर करता है। यदि समग्र माँग में वृद्धि होती है तो बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए संसाधनों के कुशलतम प्रयोग या अधिक रोजगार से उत्पादन व आय का स्तर भी बढ़ जाएगा।

विस्तृत रूप में केज के सिद्धांत का सार है-समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध मुख्य रूप से आय, रोज़गार और उत्पादन स्तर के निर्धारण में है। ध्यान रहे, यद्यपि समष्टि अर्थशास्त्र में यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि समग्र माँग और समग्र पूर्ति दोनों मिलकर उत्पादन, रोज़गार और कीमत स्तर निर्धारित करते हैं, फिर भी केज द्वारा रचित इस ढाँचे में यह स्तर मुख्य रूप से समग्र माँग द्वारा ही निर्धारित होता है क्योंकि समग्र पूर्ति, कीमत के प्रति पूर्ण लोचशील होती है अर्थात फर्मे चालू कीमतों पर किसी भी मात्रा तक पूर्ति करने को तैयार होती हैं। यदि समग्र माँग बढ़ती है तो उत्पादन, आय व रोजगार का स्तर भी बढ़ता है। यदि समग्र माँग घटती है तो उत्पादन, आय व रोज़गार का स्तर भी गिरता है।

प्रश्न 5.
समग्र (समस्त) माँग किसे कहते हैं? समग्र माँग के विभिन्न संघटक क्या हैं?
उत्तर:
समग्र माँग का अर्थ-समग्र माँग से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल माँग से है। चूँकि इसे समाज के कुल व्यय द्वारा मापा जाता है, इसलिए समग्र माँग का अर्थ मुद्रा की वह राशि है जिसे समस्त क्रेता (गृहस्थ, फर्मे और सरकार) अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के क्रय पर दी हुई अवधि में, खर्च करने को तैयार हैं। इस प्रकार समग्र माँग अर्थव्यवस्था के समग्र व्यय का पर्यायवाची है। इसमें उपभोग व्यय और निवेश व्यय दोनों शामिल होते हैं।

यहाँ माँग को प्रभावी माँग के अर्थ में लिया गया है। यदि अर्थव्यवस्था के उत्पादन की खरीद पर समाज पहले से अधिक खर्च करने का इरादा करता है तो यह समग्र माँग में वृद्धि दर्शाता है। इसके विपरीत, यदि समाज उपलब्ध वस्तुओं व सेवाओं पर पहले से कम खर्च करने का निर्णय लेता है तो यह समग्र माँग में गिरावट प्रकट करता है। संक्षेप में, समग्र माँग से अभिप्राय वह राशि है जो अर्थव्यवस्था के उत्पादन पर समस्त क्रेता (गृहस्थ, फर्म, सरकार) खर्च करने को तैयार हैं।

समग्र माँग के संघटक-वस्तुओं व सेवाओं की माँग गृहस्थों, फर्मों, सरकार तथा विदेशियों द्वारा की जाती है। इसलिए समग्र माँग (AD) के घटक भी यही होते हैं; जैसे-

  • निजी उपभोग माँग (C)
  • निजी निवेश माँग (I)
  • सरकार द्वारा वस्तुओं व सेवाओं की माँग (G) और शुद्ध निर्यात (X – M)।
  • इसे निम्नलिखित समीकरण के रूप में स्पष्ट किया गया है-
    AD = C + I + G + (X – M)

1. निजी (या गृहस्थ) उपभोग माँग-निजी उपभोग माँग से अभिप्राय उन वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है जिन्हें किसी समय विशेष पर गृहस्थ खरीदने के इच्छुक और सक्षम होते हैं। गृहस्थ या परिवार अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने व जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए अनेक प्रकार की वस्तुओं व सेवाओं की माँग करते हैं; जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, चीनी, पुस्तकें, जूते, स्कूटर, कार, टी.वी., फर्नीचर और शिक्षा व मनोरंजन सेवाएँ आदि। इसे निजी उपभोग माँग कहते हैं। गृहस्थ उपभोग माँग का स्तर, प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं की प्रयोज्य आय (वैयक्तिक आय–वैयक्तिक कर) पर निर्भर करता है। उपभोग (C) आय (Y) का फलन है अर्थात् C = f (Y)। यदि आय बढ़ती है तो उपभोग व्यय भी बढ़ता है पर कितना? यह उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।

केञ्ज ने इसी आधार पर उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम (Psychological Law of Consumption) की रचना की। इस नियम के अनुसार, “जैसे-जैसे आय बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे लोग अपना उपभोग भी बढ़ा देते हैं परंतु उपभोग में यह वृद्धि, आय की वृद्धि से कम रहती है।” कारण यह है कि जब आय बढ़ती है तो उपभोक्ताओं की अधिक-से-अधिक आवश्यकताएँ पूरी होती जाती हैं। फलस्वरूप, समस्त आय वृद्धि को शेष बची आवश्यकताओं पर खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती।

2. निजी निवेश माँग-इसमें निजी फर्मों द्वारा पूँजीगत परिसंपत्तियों; जैसे मशीनों, औज़ारों, इमारतों आदि के निर्माण पर खर्च शामिल होता है। निवेश माँग दो मुख्य तत्त्वों पर निर्भर करती है-
(i) निवेश की सीमांत कुशलता (MEI) अर्थात् निवेश से आगम में कितनी वृद्धि होती है।

(ii) ब्याज की दर अर्थात् लागत। जब तक संभावित लाभ (या आगम) की दर, ब्याज की दर से अधिक है अर्थात् MEI, ब्याज की दर से ऊँचा है तब तक निजी उद्यमियों को अधिक निवेश करने की प्रेरणा मिलती रहेगी।

(iii) इन दो तत्त्वों के अतिरिक्त एक तीसरा तत्त्व अपेक्षाएँ भी अपना महत्त्व रखती हैं अर्थात् भविष्य में लाभ की अपेक्षाएँ कैसी होगी। संक्षेप में निवेश के तीन निर्धारक तत्त्व हैं-निवेश से आय, निवेश की लागत अर्थात् ब्याज दर और भविष्य में लाभ की अपेक्षाएँ।

निवेश माँग को प्रभावित करने वाले तीन तत्त्वों में से ‘ब्याज की दर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। अतः निवेश माँग और ब्याज की दर के बीच संबंध को निवेश माँग फलन कहते हैं। ध्यान रहे ब्याज दर और निवेश माँग के बीच विपरीत संबंध होता है।

3. सरकार द्वारा वस्तुओं व सेवाओं की माँग-सरकार उपभोक्ता भी है और उत्पादक भी। इसलिए सरकार उपभोग व निवेश दोनों की माँग करती है। उत्पादक के नाते सरकार सड़कें, पुल, इमारतें, रेलों आदि के निर्माण के लिए वस्तुओं व सेवाओं की माँग करती है जिनका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता, बल्कि लोक कल्याण व समाज की सामूहिक जरूरतों को पूरा करना होता है। इसी प्रकार सरकार को तब उपभोक्ता माना जाता है जब जनता, सरकार द्वारा उपलब्ध शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, शांति व्यवस्था व सुरक्षा संबंधी सुविधाओं का उपभोग करती है। दूसरे शब्दों में, लोगों की सामूहिक उपभोग माँग पूरी करने के लिए सरकार समाज की ओर से इनकी खरीद करती है। ध्यान रहे, जहाँ निजी निवेश लाभ से प्रेरित होने के कारण प्रेरित निवेश कहलाता है, वहीं सार्वजनिक (या सरकारी) निवेश समाज हित में होने के कारण स्वायत्त निवेश कहलाता है।

4. शुद्ध निर्यात-यद्यपि दी हुई अवधि में निर्यात और आयात का अंतर शुद्ध निर्यात कहलाता है, परंतु समग्र माँग के संद में शुद्ध निर्यात हमारे माल के लिए विदेशी माँग को दर्शाता है। विदेशी माँग को प्रभावित करने वाले अनेक तत्त्व होते हैं; जैसे व्यापार की शर्ते, निर्यातक व आयातक देशों की व्यापार नीतियाँ, विदेशी विनिमय दर, भुगतान संतुलन की स्थिति आदि।

ध्यान रहे कि आय व रोज़गार के विश्लेषण को सरल व सुविधाजनक बनाने के लिए केज़ ने दो क्षेत्रीय (गृहस्थ और फमें) अर्थव्यवस्था की कल्पना की है जिसमें समग्र माँग को उपर्युक्त चार घटकों की बजाय दो मुख्य संघटकों-उपभोग माँग (व्यय) और निवेश माँग (व्यय) के योग के रूप में प्रकट किया है। सूत्र के रूप में
AD = C + I
समग्र माँग (AD) वक्र जिसमें AD समग्र माँग को, C उपभोग माँग को और I निवेश माँग को दर्शाते हैं। समग्र माँग वक्र को, उपभोग माँग वक्र और निवेश माँग वक्र के ऊर्ध्व (vertical) योग के रूप में संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र से निम्नलिखित मुख्य बातें स्पष्ट होती हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 18
(i) AD वक्र धनात्मक ढाल वाला है जो यह बताता है कि आय बढ़ने पर समग्र माँग (व्यय). बढ़ जाती है।

(ii) AD वक्र अपने मूल बिंदु 0 से आरंभ नहीं होता जो यह दर्शाता है कि आय शून्य होने पर भी, न्यूनतम उपभोग (रखाचित्र में OR के बराबर) निवेश जरूरी करना पड़ता है।

(iii) निवेश वक्र, X-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा इसलिए है, क्योंकि केज के अनुसार अल्पकाल में निवेश का स्तर वही (स्थिर) रहता है चाहे आय का स्तर कुछ भी हो।

AD का आय स्तर पर प्रभाव – यदि देश में बेरोज़गारी की अवस्था है तो समग्र माँग (AD) बढ़ने पर उत्पादन में वृद्धि होगी और फलस्वरूप आय स्तर में भी वृद्धि होगी। इसी प्रकार AD में कमी आने पर आय स्तर में भी कमी आएगी परंतु यदि अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति है तो AD बढ़ने पर भी उत्पादन में वृद्धि संभव नहीं होगी, क्योंकि पहले ही सभी संसाधनों के प्रयोग से यथासंभव उत्पादन हो रहा है तब आय स्तर में वृद्धि नहीं होगी। हाँ, ऐसी अवस्था में कीमतें अवश्य बढ़ेगी।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 6.
समग्र (समस्त) पूर्ति की संकल्पना स्पष्ट कीजिए। समग्र पूर्ति के संघटक बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल पूर्ति को विस्तृत रूप में समग्र पूर्ति कहते हैं। दी हुई अवधि में एक अर्थव्यवस्था द्वारा जितनी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, उनके मौद्रिक मूल्य को समग्र पूर्ति कहते हैं। यदि हम गहराई से देखें तो पाएँगे कि राष्ट्रीय आय ही समग्र पूर्ति का प्रतीक है। हम जानते हैं कि देश में अंतिम उत्पादन का मूल्य ही उत्पादन के साधनों में समग्र पूर्ति (AS) वक्र लगान, मजदूरी, ब्याज और लाभ के रूप में बाँट दिया जाता है। उत्पादकों की दृष्टि से यह वस्तुएँ व सेवाएँ उत्पादन करने की लागतें हैं जो उत्पादकों को इनके विक्रय से जरूर मिलनी चाहिए अन्यथा वे उत्पादन नहीं करेंगे। यद्यपि उद्यमी के लिए ये साधन भुगतान लागतें हैं, परंतु साधनों के लिए वही साधन आय है। देश की संपूर्ण साधन आय का योग राष्ट्रीय आय (या साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद) कहलाती है। अतः राष्ट्रीय आय ही समग्र पूर्ति को प्रकट करती है। दूसरे शब्दों में, समग्र पूर्ति का मूल्य, राष्ट्रीय उत्पाद के मूल्य (राष्ट्रीय आय) के बराबर होता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 19
राष्ट्रीय आय का बड़ा भाग उपभोग पर खर्च किया जाता है और शेष भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, बचत कहलाता है। अतः समग्र पूर्ति के दो मुख्य घटक उपभोग और बचत हैं। सूत्र के रूप में-
AS = C + S
जिसमें AS = समग्र पूर्ति, C = उपभोग, S = बचत को प्रकट करते हैं। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखाया गया है।
ध्यान रहे, समग्र पूर्ति वक्र सदा 45° पर बनी रेखा द्वारा दिखाया जाता है, क्योंकि इस रेखा पर प्रत्येक बिंदु की X-अक्ष और Y-अक्ष से दूरी बराबर होती है जिससे संतुलन बिंदु पहचानना आसान होता है। 45° पर यह वक्र इस मान्यता पर आधारित है कि AS (राष्ट्रीय आय) और AD (कुल व्यय) बराबर होते हैं, क्योंकि उत्पादकों को विक्रय से प्राप्त आगम, उनकी लागत (राष्ट्रीय आय) के बराबर अवश्य होना चाहिए। अतः 45° रेखा पर समग्र पूर्ति, राष्ट्रीय आय और कुल व्यय बराबर होते हैं।

प्रश्न 7.
समग्र पूर्ति की प्रतिष्ठित तथा केजीयन अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
समग्र पूर्ति (AS) की प्रतिष्ठित व केजीयन अवधारणा-अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल पूर्ति को समग्र पूर्ति कहते हैं परंतु ‘कीमत और समग्र पूर्ति वक्र पूर्ति में संबंध’ के बारे में प्रतिष्ठित अवधारणा और केज़ की अवधारणा अलग-अलग हैं, जैसाकि नीचे स्पष्ट किया गया है।
1. प्रतिष्ठित विचारधारा-इसके अनुसार ‘समग्र पूर्ति कीमतों के स्तर से पूर्णतः बेलोच रहती है। दूसरे शब्दों में, कीमत स्तर में उतार-चढ़ाव का समग्र पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फलस्वरूप प्रतिष्ठित समग्र पूर्ति वक्र, Y-अक्ष के समानांतर एक लंबवत रेखा होती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। यह वक्र कीमत के संदर्भ में पूर्णतया बेलोचदार होता है। रेखाचित्र में वक्र AS समग्र पूर्ति वक्र है और OQ पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर को दर्शाता है। समग्र पूर्ति वक्र AS का Y-अक्ष के समानांतर होना यह प्रकट करता है कि कीमत स्तर में परिवर्तनों का समग्र पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं होता।
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2. केजीयन विचारधारा केजीयन विचारधारा के अनुसार, ‘समग्र पूर्ति, कीमत के प्रति पूर्णतया लोचदार (Perfectly elastic) होती है। दूसरे शब्दों में, सभी फर्मे चालू कीमतों पर वस्तु की कितनी ही मात्रा उत्पादन करने को तब तक तैयार रहती है जब तक पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त नहीं हो जाती। फलस्वरूप केजीय समग्र पूर्ति वक्र, पूर्णतया रोज़गार की स्थिति प्राप्त होने से पहले पूर्ण लोचदार होता है, परंतु पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर पर पहुँचकर समग्र पूर्ति वक्र कीमत के संदर्भ में पूर्ण बेलोचदार हो जाता है क्योंकि सब संसाधनों का पहले ही पूर्ण प्रयोग होने के कारण उत्पादन बढ़ाना संभव नहीं होता। इसे संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है जिसमें पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर OQ पर समग्र पूर्ति वक्र AS पूर्णतया बेलोचदार है।
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प्रश्न 8.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए-
(क) औसत उपभोग प्रवत्ति (APC) क्या है? क्या APC का मल्य एक से अधिक हो सकता है?
(ख) सीमांत उपभोग प्रवत्ति (MPC) क्या है? MPC की विशेषताएँ बताइए।
(ग) APC और MPC में अंतर बताइए। इनमें से किसका मूल्य एक (इकाई) से अधिक हो सकता है और कब?
उत्तर:
(क) औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)-समग्र उपभोग और समग्र आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) कहते हैं। यह कुल आय का वह भाग (अनुपात) है जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। समग्र उपभोग (C) को समग्र आय (Y) से भाग करके APC ज्ञात किया जाता है। समीकरण के रूप में
APC = C/Y
उदाहरण के लिए, यदि एक अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय या समग्र आय 100 करोड़ रुपए है और समग्र उपभोग 90 करोड़ रुपए है तो औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) = \(\frac { C }{ Y }\) = \(\frac { 90 }{ 100 }\) = 0.9 या 90%

औसत उपभोग प्रवृत्ति की उपरोक्त मात्रा यह दर्शाती है कि अर्थव्यवस्था अपनी कुल आय का $90 \%$ उपभोग पर खर्च कर रही है, परंतु यदि समग्र आय बहुत कम है, जैसे 1000 करोड़ रुपए है और समग्र उपभोग व्यय 1200 करोड़ रुपए है तो APC = 1200 / 1000 = 1.2 । अतः हम कह सकते हैं कि APC का मूल्य तब 1 से अधिक होता है जब आय का स्तर कम होने पर, उपभोग व्यय, आय से बढ़ जाता है तब बचत ऋणात्मक (-) होती है अर्थात् वह अवबचत (Dissaving) की स्थिति होती है।

(ख) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग है, जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। उपभोग में परिवर्तन (∆C) को आय में परिवर्तन (∆Y) से भाग करके MPC को ज्ञात किया जाता है। समीकरण के रूप में,
MPC = ∆C/∆Y
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय ‘अतिरिक्त उपभोग करने की तत्परता (प्रवृत्ति) से है।’ यह अतिरिक्त आय के उस भाग को, जो उपभोग पर खर्च किया जाता है, दर्शाता है। उदाहरण के लिए, यदि आय 50 करोड़ रुपए बढ़ जाती है और फलस्वरूप उपभोग व्यय 30 करोड़ रुपए बढ़ जाता है, तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{30}{50}=\frac{3}{5}\) = 0.6 या 60%
इससे यह पता चलता है कि आय में 100 रुपए की वृद्धि से उपभोग में 60 रुपए की वृद्धि हुई है।

MPC की विशेषताएँ – आय बढ़ने से उपभोग व्यय भी बढ़ता है (MPC > 0), लेकिन आय में सारी वृद्धि को उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता (MPC <1),

अतः

  • MPC का मूल्य सदा धनात्मक अर्थात् शून्य से अधिक होता है. (MPC >0)।
  • MPC का मूल्य 1 से कम होता है (MPC <1), क्योंकि अतिरिक्त उपभोग (∆C) अतिरिक्त आय (∆Y) से कम होता है। संक्षेप में, MPC का मूल्य शून्य और 1 के बीच रहता है।

MPC का आय के स्तर पर प्रभाव केज्ज़ के अनुसार, ‘माँग पूर्ति को सृजित करती है। इस प्रकार ऊँची सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) उत्पादन के स्तर (पूर्ति) और आय के स्तर को बढ़ाएगी जबकि निम्न सीमांत उपभोग प्रवृत्ति आय के स्तर को नीचे लाएगी।

(ग) APC और MPC में अंतर-
(i) समग्र उपभोग व्यय (C) को समग्र आय (Y) से भाग देने पर औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में, APC = C/Y, जबकि उपभोग में परिवर्तन (AC) को आय में परिवर्तन (AY) से भाग देने पर सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में, MPC = ∆C/∆Y।

(ii) APC और MPC में से APC का मूल्य एक (इकाई) से अधिक तभी हो सकता है जब उपभोग व्यय आय से अधिक हो जाता है। इसका कारण यह है कि उपभोग का न्यूनतम स्तर बनाए रखना होता है, चाहे आय शून्य हो।

(iii) जब आय में वृद्धि होती है तो APC और MPC दोनों में भी कमी होती है परंतु MPC में गिरावट अधिक होती है।

प्रश्न 9.
बचत प्रवृत्ति या बचत फलन किसे कहते हैं? आय और बचत में संबंध बताइए।
उत्तर:
आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, बचत कहलाता है। दूसरे शब्दों में, आय में से उपभोग व्यय घटाने पर जो कुछ शेष बचता है, उसे बचत कहते हैं। सूत्र के रूप में
बचत = आय – उपभोग
बचत प्रवृत्ति का अर्थ-आय और बचत में फलनात्मक संबंध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं। बचत फलन, बचत और आय की एक सूची होती है जो आय के विभिन्न स्तरों पर बचत की मात्रा व्यक्त करती है। बचत आय पर निर्भर करती है अर्थात् बचत (S), आय (Y) का फलन (1) है। सूत्र के रूप में-
S = f (Y)
यह दी हुई आय के स्तर पर गृहस्थों द्वारा बचत करने की तत्परता (प्रवृत्ति) दर्शाती है। इस प्रकार बचत फलन, उपभोग फलन का उप-सिद्धांत है।

आय और बचत में संबंध-
(i) दोनों में प्रत्यक्ष संबंध होता है अर्थात् आय बढ़ने पर बचत भी बढ़ जाती है, परंतु बचत में वृद्धि की दर आय में वृद्धि की दर से अधिक होती है। इसका अर्थ यह है कि आय बढ़ने पर उस आय में से बचत का अनुपात बढ़ता जाता है और उपभोग पर खर्च का अनुपात घटता जाता है।

(ii) आय का स्तर कम होने पर बचत ऋणात्मक (-) होती है। ऐसा उपभोग का आय से अधिक होने के कारण होता है। उदाहरण के लिए, यदि आय 5,000 रुपए है और उपभोग व्यय 6,000 रुपए है तो बचत-1000 रुपए (5000-6000) होगी अर्थात् अवबचत (dissaving) होगी। स्पष्ट है यहाँ औसत बचत प्रवृत्ति, ऋणात्मक है अर्थात्
APS = S/Y = \(\frac { -1000 }{ 5000 }\) = – 0.2
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संलग्न रेखाचित्र में बचत फलन दर्शाती है जो आय और बचत के स्तर (या मात्रा) में संबंध प्रकट करती है। बचत फलन रेखा SS, आय रेखा ox को बिंदु B पर काटती है जिसे समता बिंदु कहते हैं, क्योंकि इस बिंदु पर बचत शून्य होती है (उपभोग, आय के बराबर है)। समता बिंदु के बाईं ओर बचत ऋणात्मक (-) है अर्थात् उपभोग आय से अधिक है जबकि समता बिंदु के दाईं ओर बचत धनात्मक (+) है अर्थात् उपभोग व्यय आय से कम है। छायादार क्षेत्र अवबचत (Dissaving) का प्रतीक है जो स्वायत्त समता बिंदु उपभोग के बराबर है जैसाकि रेखाचित्र में द्वारा दर्शाया गया है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) नियोजित बचत व नियोजित निवेश।
(ख) वास्तविक बचत व वास्तविक निवेश।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में एक्स-एन्टे (Ex-ante)अथवा नियोजित और एक्स-पोस्ट (Ex-post) अर्थात् वास्तविक शब्दावली का निवेश और उत्पाद के संदर्भ में किया जाता है। दोनों में अंतर केवल इतना है कि एक कार्य शुरू होने के पहले की प्रस्तावित स्थिति बताता है और दूसरा कार्य समाप्ति के बाद की वास्तविक स्थिति प्रकट करता है।

(क) नियोजित बचत व नियोजित निवेश – अर्थव्यवस्था में सब गृहस्थों द्वारा एक दी हुई अवधि में जितनी बचाने की योजना आरंभ में बनाई जाती है उसे नियोजित या इच्छित (Intended) बचत कहते हैं। इसी प्रकार अर्थव्यवस्था में फर्म या उद्यमी जितना निवेश करने की शुरू में योजना बनाते हैं उसे प्रत्याशित या नियोजित या इच्छित निवेश कहते हैं। विचार करने वाली बात यह है कि अर्थव्यवस्था में आय का संतुलन स्तर वहाँ होता है जहाँ नियोजित बचत नियोजित निवेश के बराबर होती है, परंतु ऐसा विरला या कदाचित (Rarely) ही होता है क्योंकि बचत करने वाले और निवेश करने वाले भिन्न-भिन्न लोग होते हैं और उनके उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इसलिए यह जरूरी नहीं कि बचतकर्ता जितना बचाने की योजना बनाते हैं, निवेशकर्ता उतना ही निवेश करने ‘ की योजना बनाएँ।

बचत और निवेश में अंतर के प्रभाव-इन दोनों में अंतर के राष्ट्रीय आय पर प्रभाव इस प्रकार हैं-
(i) जब नियोजित बचत. नियोजित निवेश से अधिक होती है तो यह उपभोग व्यय में गिरावट दर्शाता है। जिसके कारण समग्र माँग, समग्र पूर्ति से कम हो जाती है। फलस्वरूप कुछ वस्तुएँ अन-बिकी रह जाती हैं। फर्मों का अन-बिका माल जमा होने से फर्मे श्रमिकों की संख्या और उत्पाद को घटा देती हैं। फलस्वरूप राष्ट्रीय उत्पादन (आय) में कमी आती है। आय में कमी आने से बचत भी घटती जाती है जब तक कि नियोजित बचत, नियोजित निवेश के बराबर नहीं हो जाती। इसी समता बिंदु पर अर्थव्यवस्था संतुलन अवस्था में पहुँच जाती है।

(ii) जब नियोजित बचत, नियोजित निवेश से कम होती है तो समग्र माँग समग्र पूर्ति से अधिक होती है। उत्पादकों का वर्तमान स्टॉक बिक जाएगा और बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए वे उत्पादन बढ़ाएँगे। फलस्वरूप जब राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो बचत भी बढ़ती जाती है जब तक कि यह निवेश के बराबर नहीं हो जाती। यहीं पर राष्ट्रीय आय का साम्य (संतुलन) स्तर निर्धारित होता है। संक्षेप में, राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर ही नियोजित बचत और नियोजित निवेश दोनों बराबर होते हैं।

(ख) वास्तविक बचत व वास्तविक निवेश-अर्थव्यवस्था में दी हुई अवधि के अंत में जितना हम वास्तव में बचा पाते हैं या आय में से उपभोग व्यय घटाने पर जो कुछ शेष बच जाता है उसे वास्तविक बचत कहते हैं। इसी प्रकार अर्थव्यवस्था में जितना हम वास्तव में निवेश करते हैं या पूँजी के भंडार में जितनी वास्तविक वृद्धि होती है, उसे वास्तविक निवेश कहते हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि नियोजित बचत व नियोजित निवेश विरले ही बराबर होते हैं, परंतु वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश सदा बराबर होते हैं।

इसका कारण वास्तविक निवेश में अनियोजित निवेश का शामिल होना है जो न चाहने पर भी शामिल हो जाता है; जैसे राष्ट्रीय उत्पादन में उपभोग और नियोजित निवेश के बराबर वस्तुएँ खरीदने के बाद यदि कुछ वस्तुएँ बच जाती हैं और स्टॉक में वृद्धि हो जाती है तो इसे अनियोजित निवेश कहते हैं। वास्तविक निवेश = नियोजित निवेश + अनियोजित निवेश। इस प्रकार वास्तविक निवेश में नियोजित निवेश और अनियोजित निवेश शामिल होने से यह वास्तविक बचत के बराबर हो जाता है।

स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर नियोजित निवेश और नियोजित बचत बराबर होने के कारण अनियोजित बचत शून्य होगी। बचत के नियोजित निवेश से अधिक होने पर इस अंतर के बराबर अनियोजित निवेश धनात्मक होगा। बचत के नियोजित निवेश से कम होने पर इस अंतर के बराबर पिछला स्टॉक कम हो जाएगा अर्थात् अनियोजित निवेश ऋणात्मक होगा।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) प्रेरित निवेश (Induced Investment) व स्वायत्त निवेश (Autonomous Investment)।
(ख) निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (Marginal Efficiency of Investment)।
उत्तर:
(क) प्रेरित निवेश व स्वायत्त निवेश-
(i) प्रेरित निवेश, वह निवेश है जो लाभ की भावना से प्रेरित होकर किया जाता है, जैसे निजी क्षेत्र में निवेश मुख्य रूप से प्रेरित निवेश होता है। समष्टिगत दृष्टि से विचार किया जाए तो प्रेरित निवेश राष्ट्रीय आय से संबंधित है क्योंकि जब आय बढ़ती है तो वस्तुओं व सेवाओं की माँग भी बढ़ती है जिसे पूरा करने के लिए निवेश में वृद्धि की जाती है। अतः प्रेरित निवेश आय सापेक्ष होता है अर्थात् इसका राष्ट्रीय आय से सीधा संबंध होता है। फलस्वरूप प्रेरित निवेश वक्र, बाएँ से दाएँ ऊपर की ओर (पूर्ति वक्र की भाँति) बढ़ता जाता है अर्थात् आय बढ़ने पर निवेश बढ़ता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 23

(ii) स्वायत्त या स्वचालित निवेश का आय के स्तर से कोई संबंध आय नहीं होता अर्थात् यह आय-निरपेक्ष होता है। इस पर आय, लाभ, ब्याज की दर में परिवर्तनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसे प्रभावित करने वाले दूसरे बाहरी तत्त्व होते हैं; जैसे तकनीकी विकास, नए संसाधनों की खोज व आविष्कार, जनसंख्या में वृद्धि आदि। ऐसे निवेश प्रायः सार्वजनिक हित के लिए सरकार द्वारा किए जाते हैं। चूँकि स्वायत्त निवेश का आय के स्तर से कोई संबंध नहीं होता अर्थात् आय के प्रत्येक स्तर पर निवेश स्वायत निवेश वक्र की राशि उतनी ही (स्थिर) रहती है, इसलिए स्वायत्त निवेश का वक्र X-अक्षांश के समानांतर रहता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 24

(ख) निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (MEI)- हम जानते हैं कि निजी निवेश माँग, MEI और ब्याज की दर पर निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में, निवेश (I) वास्तव में ब्याज दर (r:) और निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (MEI) का फलन () है। समीकरण के रूप में
I = f(ri, MEI)
पूँजी की एक अतिरिक्त इकाई निवेश करने से संभावित प्रतिफल (या लाभ) की दर को निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (MEI) कहते हैं। निवेशकर्ता तभी निवेश करेगा जब निवेश की एक अतिरिक्त इकाई लगाने से प्राप्त होने वाला संभावित लाभ,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 25
उसके द्वारा अदा की जाने वाली ब्याज दर से अधिक होगा। उदाहरण के लिए, यदि निवेश से संभावित लाभ दर (या MEI) 16% है और उधार लिए गए ऋण पर ब्याज दर 12% है तो निवेशकर्ता तब तक निवेश बढ़ाता जाएगा जब तक MEI ब्याज दर के बराबर नहीं हो जाता। ध्यान रहे, अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे निवेश की अधिक मात्रा लगाई जाती है, वैसे-वैसे MEI घटता जाता है अर्थात् निवेश की मात्रा और MEI में विपरीत संबंध होता है, जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। अतः हम कह सकते हैं कि ब्याज दर कम होने पर पूँजी की अधिक मात्रा निवेश की जाएगी।

प्रश्न 12.
अंतिम वस्तुओं की नियोजित माँग (Ex-ante Demand) क्या है? इसके (नियोजित उपभोग और निवेश के) माप निवेश (लाख रु०) या निर्धारक कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अंतिम वस्तुओं की नियोजित माँग-सरकार व विदेशी क्षेत्र रहित अर्थव्यवस्था में अंतिम वस्तुओं की माँग (AD) ऐसी वस्तुओं पर कुल नियोजित उपभोग व्यय (C) और नियोजित निवेश व्यय (I) का योग होती है। सांकेतिक रूप में
AD = C + I
उपभोग फलन को समीकरण C = C + bY द्वारा प्रकट किया जाता है जिसमें C = उपभोग फलन, C = स्वायत्त उपभोग अर्थात् जीवित रहने के लिए न्यूनतम उपभोग, b = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और Y= आय का स्तर । संक्षेप में, MPC आय में परिवर्तन (∆Y) के फलस्वरूप उपभोग में परिवर्तन (∆C) का अनुपात (∆C/∆Y) है।

नियोजित निवेश व्यय के संदर्भ में समग्र माँग का स्तर निर्धारित करने के लिए सर मान लेते हैं कि अल्पकाल में ब्याज दर और कीमत स्थिर रहती है और फर्म हर वर्ष उसी मात्रा में निवेश करने की योजना बनाती है अर्थात I = I जिसमें 1 स्वायत्त निवेश को प्रकट करता है। साथ ही हम यह भी मान लेते हैं कि इस (स्थिर) कीमत पर समग्र पूर्ति केवल समग्र माँग द्वारा निर्धारित होती है। इसे प्रभावी माँग (Effective Demand) के सिद्धांत की संज्ञा दी जाती है।
(ध्यान रहे, उत्पादन का संतुलन स्तर वह स्तर है जिस पर उत्पादित की गई मात्रा माँगी गई मात्रा के बराबर हो।)
समीकरण, AD = C+ I में C और I के मूल्य भरकर इसे सरल बनाते हैं।
AD = C +I
AD = \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY+ \(\overline{\mathrm{I}}\) (क्योंकि C = \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY और I = \(\overline{\mathrm{I}}\))
जब अंतिम वस्तुओं का बाज़ार में संतुलन होता है अर्थात् माँगी गई मात्रा (AD) = पूर्ति की मात्रा (Y) हो तो हम समीकरण को इस प्रकार भी लिख सकते हैं-
Y = AD
Y = \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY+ \(\overline{\mathrm{I}}\) (जिसमें Y अंतिम वस्तुओं की नियोजित पूर्ति है)
= \(\overline{\mathrm{C}}\) + \(\overline{\mathrm{I}}\) + bY
Y = \(\overline{\mathrm{A}}\) + bY (\(\overline{\mathrm{A}}\) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + \(\overline{\mathrm{I}}\) कुल स्वायत्त व्यय का प्रतीक है)

संतुलन पर अंतिम वस्तुओं की नियोजित पूर्ति = अंतिम वस्तुओं की नियोजित माँग
विचार करने वाली बात यह है कि नियोजित पूर्ति और नियोजित माँग सदा बराबर नहीं होते, क्योंकि बचत करने वाले और निवेश करने वाले भिन्न-भिन्न लोग होते हैं। केवल संतुलन की स्थिति में ये बराबर होते हैं। यदि नियोजित पूर्ति (उत्पादन), नियोजित माँग से अधिक है तो अन-बिके माल के स्टॉक में अनियोजित वृद्धि होगी। फलस्वरूप उत्पादक अपना उत्पादन तब तक घटाते जाएँगे जब तक समग्र माँग और समग्र पूर्ति (उत्पादन) में संतुलन न हो जाए। इसके विपरीत, यदि उत्पादन, समग्र माँग से कम है तो उत्पादक अपने माल का स्टॉक (Inventories) तब तक बेचते जाएँगे जंब तक समग्र माँग और समग्र पूर्ति में संतुलन पुनः स्थापित नहीं हो जाता।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए-
(क) अनैच्छिक बेरोज़गारी (Involuntary Unemployment) की अवधारणा तथा ऐच्छिक बेरोज़गारी और अनैच्छिक बेरोज़गारी में अंतर।
(ख) पूर्ण रोज़गार (Full Employment) की अवधारणा।
उत्तर:
(क) अनैच्छिक बेरोज़गारी की अवधारणा अनैच्छिक बेरोज़गारी से अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें काम करने के इच्छुक व योग्य लोग प्रचलित मजदूरी दर पर काम करना चाहते हैं, परंतु फिर भी काम नहीं मिलता है। ऐसे लोग शारीरिक व मानसिक रूप से काम करने के योग्य भी हैं और काम करने को तैयार भी हैं परंतु बेरोज़गार हैं। इस प्रकार की बेरोज़गारी को अनैच्छिक बेरोज़गारी कहते हैं क्योंकि यह बेरोज़गारी उनकी इच्छा के खिलाफ (विरुद्ध) है। पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र माँग में कमी के कारण, अनैच्छिक बेरोज़गारी की समस्या पैदा होती है। स्पष्ट है जब तक अनैच्छिक बेरोज़गारी विद्यमान रहेगी तब तक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति नहीं हो पाएगी अर्थात् अर्थव्यवस्था अल्प-रोज़गार की स्थिति में रहेगी।

ऐच्छिक बेरोज़गारी और अनैच्छिक बेरोज़गारी में अंतर-अनैच्छिक बेरोज़गारी, ऐच्छिक बेरोज़गारी से भिन्न होती है। ऐच्छिक बेरोज़गारी देश की श्रम शक्ति के उस भाग या उन लोगों की ओर संकेत करती है जो काम उपलब्ध होने के बावजूद काम करने को तैयार नहीं हैं अर्थात् वे अपनी इच्छा से बेरोज़गार हैं। यह वास्तव में बेरोज़गारी की समस्या नहीं है। इसलिए ऐसे लोगों को देश की श्रम-शक्ति में शामिल नहीं किया जाता है। इसके विपरीत, अनैच्छिक बेरोज़गारी वह स्थिति है जब लोग मज़दूरी की चालू दर पर काम करने को तैयार हैं, परंतु फिर भी काम नहीं मिलता।

(ख) पूर्ण रोज़गार की अवधारणा पूर्ण रोजगार से अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें प्रत्येक शारीरिक व मानसिक दृष्टि से योग्य व्यक्ति को, जो मज़दूरी की प्रचलित दर पर काम करने को तैयार है, काम मिलता है। दूसरे शब्दों में, यह अर्थव्यवस्था की वह स्थिति है जिसमें अनैच्छिक बेरोज़गारी नहीं है। पूर्ण रोज़गार की स्थिति में समस्त संसाधनों का सर्वोत्तम प्रयोग होता है। संसार में प्रत्येक अर्थव्यवस्था अपने समस्त संसाधनों का पूर्ण व कुशलतम प्रयोग कर पूर्ण रोज़गार चाहती है, परंतु व्यवहार में पूर्ण रोज़गार का अर्थ देश की श्रम शक्ति के पूर्ण रोज़गार से लिया जाता है।

ध्यान रहे, पूर्ण रोज़गार की अवस्था में ऐच्छिक बेरोज़गारी, संघर्षी बेरोज़गारी (Frictional Unemployment) व संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structural Unemployment) विद्यमान रह सकती हैं। एक बात निश्चित है कि पूर्ण रोज़गार का अर्थ यह नहीं है कि एक भी श्रमिक बेरोज़गार न हो क्योंकि नई व बेहतर नौकरी की खोज में अथवा उत्पादन की तकनीक व विधियों में परिवर्तन से संबंधित कुछ बे रोज़गारी (जैसे 3% तक) अत्याज्य (Unavoidable) है, अर्थात् कुछ बेरोज़गारी सदा ही रहती है। केज़ पूर्ण रोज़गार को अलग दृष्टि से देखता है। केज़ के अनुसार, “जब समग्र माँग में वृद्धि होने पर उत्पादन और रोज़गार के स्तर में वृद्धि नहीं होती, तो वह पूर्ण रोज़गार की स्थिति होती है।”

परंपरावादी और केज़ के विचार-यद्यपि परंपरावादी अर्थशास्त्री और केज दोनों पूर्ण रोज़गार को ‘अनैच्छिक बेरोज़गारी का अभाव’ मानते हैं फिर भी दोनों के विचारों में भिन्नता पाई जाती है। परंपरावादी मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में सदा पूर्ण रोज़गार की स्थिति पाई जाती है जबकि केज के मतानुसार अर्थव्यवस्था में प्रायः पूर्ण रोज़गार से कम की स्थिति पाई जाती है।

प्रश्न 14.
(क) आय के संतुलन स्तर (Equilibrium level of Income) से आप क्या समझते हैं?
(ख) पूर्ण रोज़गार एवं अल्प रोज़गार संतुलन की अवधारणा, रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
(क) आय के संतुलन स्तर का अर्थ-आय का संतुलन स्तर आय का वह स्तर है जहाँ समग्र माँग, उत्पादन के स्तर (समग्र पूर्ति) के बराबर होती है। संतुलन बिंदु पर समस्त वस्तुओं और सेवाओं का कुल उत्पादन, उन वस्तुओं और सेवाओं की कुल माँग के बराबर होता है। इसीलिए आय के संतुलन स्तर को उत्पादन का संतुलन स्तर भी कहा जाता है। आय के संतुलन स्तर पर इसे बढ़ाने या घटाने की प्रवृत्ति नहीं रहती। स्मरण रहे, अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल माँग को समग्र माँग कहते हैं जबकि वस्तुओं और सेवाओं की कुल पर्ति को समग्र पर्ति कहते हैं।

समग्र पूर्ति और समग्र माँग में संतुलन का अर्थ मात्र इन दोनों का बराबर होना है चाहे रोजगार का स्तर कैसा भी हो। इस संतुलन का अर्थव्यवस्था के संसाधनों के पूर्ण या अपूर्ण प्रयोग से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। अतः यह आवश्यक नहीं है कि आय का संतुलन स्तर, सदा पूर्ण रोज़गार स्तर पर हो। यह पूर्ण रोज़गार स्तर से कम पर भी हो सकता है अर्थात् अल्प रोज़गार स्तर भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में, आय के संतुलन स्तर पर बेरोज़गारी हो सकती है।

(ख) रोज़गार का संतुलन स्तर-संतुलन स्तर वाली समग्र पूर्ति से जुड़े रोज़गार स्तर को रोज़गार का संतुलन स्तर कहते हैं। यह दो प्रकार का हो सकता है-पूर्ण रोज़गार संतुलन तथा अपूर्ण (अल्प) रोज़गार संतुलन जैसाकि स्पष्ट किया गया है।

पूर्ण रोज़गार संतुलन-पूर्ण रोज़गार संतुलन अर्थव्यवस्था के संतुलन की वह अवस्था है जहाँ अर्थव्यवस्था के सभी संसाधनों का पूरा उपयोग हो रहा हो अर्थात समस्त संसाधन अपनी चरम सीमा तक प्रयुक्त हो रहे हों।। तब कोई संसाधन बेकार नहीं होता। अनैच्छिक बेकारी समाप्त हो जाती है। पूर्ण रोज़गार समग्र माँग न तो अधिक है और न ही कम है बल्कि पूर्ण रोज़गार वाले संतुलन बिंदु उत्पादन (समग्र पूर्ति) के बराबर है। संक्षेप में जब समग्र माँग, ‘पूर्ण रोज़गार वाली समग्र पूर्ति’ के बराबर हो तो उसे पूर्ण रोज़गार संतुलन की संज्ञा दी जाती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 26

पूर्ण रोज़गार संतुलन वाली अवस्था अग्रांकित रेखाचित्र में दर्शाई गई है। अल्प रोज़गार रेखाचित्र में 45° वाली AS रेखा समग्र पूर्ति को और AD रेखा समग्र माँग को संतुलन बिंदु प्रदर्शित करती है। दोनों रेखाएँ एक-दूसरे को बिंदु E पर काटती हैं। यह पूर्ण रोज़गार संतुलन | बिंदु है क्योंकि बिंदु E45° रेखा पर होने के कारण समग्र उत्पादन (आय)या (AS)+ माँग EM, समग्र पूर्ति OM के बराबर है। अर्थव्यवस्था OMके उत्पादन स्तर पर, पूर्ण रोज़गार संतुलन की अवस्था में है क्योंकि इस पर उन सब लोगों को जो प्रचलित मज़दूरी दर पर काम करने को तैयार हैं, रोज़गार मिला हुआ है।

नोट-प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के मत में समग्र पूर्ति, सदा पूर्ण रोज़गार स्तर पर होती है। चूंकि यह पूर्णतया कीमत-बेलोचदार होती है इसलिए प्रतिष्ठित समग्र पूर्ति वक्र पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर पर Y-अक्ष के समानांतर एक लंबवत रेखा होती है। इसलिए प्रतिष्ठित पूर्ण रोज़गार संतुलन उस बिंदु पर होगा जहाँ समग्र माँग वक्र, इस लंबवत समग्र पूर्ति वक्र को काटता है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए-
(क) अत्यधिक (अधि) माँग (Excess Demand) का अर्थ बताइए।
(ख) स्फीतिक अंतराल (Inflationary Gap) का अर्थ रेखाचित्र की सहायता से बताइए।
उत्तर:
(क) अत्यधिक माँग का अर्थ-जब समग्र माँग, ‘पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन (पूर्ति) से अधिक हो तो उसे अत्यधिक माँग (या अतिरेक माँग या अधिमाँग) कहते हैं। यह स्फीतिक अंतराल को जन्म देती है। इसे हम एक काल्पनिक उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं। सुविधा के लिए मान लीजिए, एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था अपने समस्त उपलब्ध संसाधनों के पूर्ण प्रयोग से 5000 क्विंटल गेहूँ पैदा कर सकती है। यह अर्थव्यवस्था की ‘पूर्ण रोज़गार वाली पूर्ति’ होगी। यदि गेहूँ की कुल माँग 6000 क्विंटल हो तो इस माँग को अत्यधिक माँग मानी जाएगा क्योंकि यह ‘पूर्ण रोज़गार देने वाली पूर्ति’ (5000 क्विंटल) से अधिक है। दोनों के अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं।

(ख) स्फीतिक अंतराल–पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति से जब समग्र माँग अधिक होती है तो दोनों के अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं। दूसरे शब्दों में, यह समग्र माँग के आधिक्य का माप है। इसे वैकल्पिक अत्यधिक माँग रूप में, इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं। “स्फीतिक अंतराल, वास्तविक समग्र माँग और पूर्ण रोज़गार संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक समग्र माँग के बीच का अंतर होता है। यह वास्तविक समग्र स्फीतिक अंतराल माँग के आधिक्य का माप है।” स्फीतिक अंतराल को संलग्न रेखाचित्र में EB के रूप में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 27
रेखाचित्र में E पूर्ण रोज़गार संतुलन बिंदु है जहाँ समग्र माँग EM, समग्र पूर्ति OM के बराबर है। मान लीजिए, नई माँग BM उत्पादन स्तर के बराबर है जो पूर्ण रोज़गार संतुलन स्तर के उत्पादन EM(OM) से अधिक है। दोनों में अंतर EB(BM – EM) स्फीतिक अंतराल है। यह अत्यधिक माँग का माप है। अत्यधिक माँग की अवस्था में, रोज़गार और उत्पादन में वृद्धि नहीं हो सकती क्योंकि पहले ही समस्त संसाधनों के पूर्ण उपयोग से अधिकतम उत्पादन किया जा रहा है। फलस्वरूप अत्यधिक माँग का प्रभाव मुद्रास्फीतिक व कीमत स्तर में वृद्धि के रूप में होता है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए-
(क) अभावी (न्यून) माँग (Deficient Demand) का अर्थ समझाइए।
(ख) रेखाचित्र की सहायता से अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
(क) अभावी माँग का अर्थ-अभावी माँग से अभिप्राय उस समग्र माँग से है जो ‘पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन (पूर्ति) से कम होती है। यह इस बात का बोध कराती है कि देश के समस्त संसाधनों के पूर्ण उपयोग से जितना उत्पादन होता है उसे खपाने के लिए माँग कम है। इसे एक काल्पनिक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए कि एक अर्थव्यवस्था अपने समस्त संसाधन पूर्ण रूप से जुटाकर केवल 5000 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन करती है। यह उसकी ‘पूर्ण रोज़गार स्तर का उत्पादन (पूर्ति) है, क्योंकि इसमें अनैच्छिक बेरोज़गारी नहीं है। यदि देश में गेहूँ के लिए समग्र (या कुल) माँग 4000 क्विंटल हो तो इसे अभावी या न्यून माँग कहेंगे, क्योंकि यह माँग पूर्ण रोज़गार वाली समग्र पूर्ति (5000 क्विंटल) से 1000 क्विंटल कम है। माँग और पूर्ति में यह अंतर ‘अवस्फीतिक अंतराल’ की स्थिति दर्शाता है। माँग कम होने से कुछ संसाधन बेकार हो जाएँगे अर्थात् बेरोज़गारी की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

(ख) अवस्फीतिक अंतराल-पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति से, समग्र माँग जितनी कम होती है, उसे अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। यह समग्र माँग में कमी का माप है। इसे वैकल्पिक रूप में, इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं, “अवस्फीतिक अंतराल, वास्तविक पूर्ण रोजगार समग्र माँग और पूर्ण रोज़गार संतुलन के लिए वांछनीय समग्र माँग का संतुलन बिंदु अंतर होता है। यह वास्तविक समग्र माँग के अभाव का माप है।” इसे संलग्न रेखाचित्र में EB के रूप में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 28
रेखाचित्र में E पूर्ण रोज़गार संतुलन बिंदु है जहाँ समग्र माँग EM, पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति OM के बराबर है। मान लीजिए नई माँग BM उत्पादन स्तर के बराबर है जो पूर्ण रोज़गार संतुलन स्तर के उत्पादन EM(OM) से कम है। दोनों में अंतर EB(EM-BM) अवस्फीतिक अंतराल है। इस प्रकार EB अवस्फीतिक MM अंतराल और अभावी माँग का माप है। ध्यान रहे अभावी माँग मंदी राष्ट्रीय आय (समग्र पूर्ति), और बेरोज़गारी की स्थिति पैदा करती है।

प्रश्न 17.
अधिमाँग (Excess Demand) की स्थिति को ठीक करने के राजकोषीय उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिमाँग को ठीक करने के उपाय-अधिमाँग जो ‘पूर्ण रोज़गार वाली पूर्ति’ से अधिक होती है, कीमतों में वृद्धि लाती है। मुद्रास्फीति (कीमतों में निरंतर वृद्धि), पूर्ति में वृद्धि हुए बिना माँग में वृद्धि के कारण पैदा होती है। मुद्रास्फीति संपत्ति में विषमताएँ लाती है, बँधी आय के लोगों का जीवन दूभर करती है जिससे लोगों का सरकार व नैतिकता से विश्वास उठ जाता है। अतः हमें समग्र माँग को स्फीतिक अंतराल की मात्रा के बराबर घटाना होगा। यहाँ हम सरकारी क्षेत्र को शामिल करते हैं जिससे अर्थव्यवस्था तीन-क्षेत्रीय हो जाएगी और समग्र माँग-गृहस्थों, फर्मों और सरकार की माँग का योग हो जाएगी। सरकार को शामिल करने का कारण यह है कि सरकार करों और सार्वजनिक व्यय के माध्यम से समग्र माँग को घटाने-बढ़ाने में बहुत प्रभावित होती है। अतः यदि अर्थव्यवस्था ने ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास करना’ (Growth with Social Justice) है तो अधिमाँग की स्थिति को ठीक करने के प्रभावी उपाय अपनाने होंगे। इसे ठीक करने के राजकोषीय उपाय निम्नलिखित हैं

राजकोषीय नीति/बजट घाटों में कमी – सरकार की आय-व्यय नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं और बजट इस नीति का सार होता है। राजकोषीय नीति के दो पक्ष-व्यय नीति और आय नीति होते हैं। वर्ष के बजट में जब व्यय, आय से अधिक दिखाया जाता है तो इसे घाटे का बजट कहते हैं और जब आय, व्यय से अधिक दिखाई जाती है तो इसे बचत का बजट कहते हैं।

1. व्यय नीति-अधिमाँग की स्थिति में सरकार को सार्वजनिक खर्चे कम करके बजट घाटों में कमी लानी चाहिए; जैसे सड़कों, इमारतों, ग्रामीण विद्युतीकरण, सिंचाई, निर्माण कार्यों पर यदि सरकार खर्च कम कर देती है तो इससे लोगों की आय कम होगी और फलस्वरूप उनकी वस्तुओं के लिए माँग गिरेगी। अतः अधिमाँग की स्थिति में ‘बचत का बजट’ अपनाना चाहिए।

2. आय नीति-राजकोषीय नीति का दूसरा पक्ष आय नीति है। चूँकि सरकार की आय का प्रमुख भाग करों से आता है, इसलिए आय नीति को सरकार की कर नीति भी कहते हैं। मुद्रास्फीति के दौरान सरकार को न केवल नए कर लगाने चाहिए, बल्कि करों की दर भी बढ़ानी चाहिए, विशेष रूप से अमीर लोगों पर। इससे लोगों के पास खरीदने की शक्ति कम होगी और उनकी प्रभावी माँग गिर जाएगी। इस तरह कर बढ़ाकर बजट घाटे में कमी लाई जा सकती है।

3. सरकार द्वारा लिए जाने वाले सार्वजनिक ऋण को बढ़ाना चाहिए ताकि मुद्रास्फीति को रोका जा सके।

4. घाटे की वित्त व्यवस्था (नोट छापना) में कमी करनी चाहिए। फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति कम होगी जिससे बढ़ती कीमतों को नियंत्रित किया जा सकेगा।

संख्यात्मक प्रश्न

APC, MPC,APS और MPS पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि प्रयोज्य आय 1,000 रुपए हो और उपभोग व्यय 700 रुपए हो, तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात (APS) कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 29

प्रश्न 2.
यदि प्रयोज्य आय 500 रुपए हो और बचत 100 रुपए हो, तो औसत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 30

प्रश्न 3.
यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है, तो औसत बचत प्रवृत्ति क्या होगी?
हल:
औसत उपभोग प्रवृत्ति + औसत बचत प्रवृत्ति = 1
0.75 + औसत बचत प्रवृत्ति = 1
औसत बचत प्रवृत्ति = 1 – 0.75 = 0.25 उत्तर

प्रश्न 4.
यदि औसत बचत प्रवृत्ति 0.6 है, तो औसत उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी?
हल:
औसत उपभोग प्रवृत्ति + औसत बचत प्रवृत्ति = 1
औसत उपभोग प्रवृत्ति + 0.6 = 1
औसत उपभोग प्रवृत्ति = 1-0.6 = 0.4 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति 1 है, तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कितनी होगी?
हल:
सीमांत बचत प्रवृत्ति + सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1
चूंकि 1 + सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 इसलिए
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – 1 = 0 (शून्य) उत्तर

प्रश्न 6.
जिस अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है उसमें सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) कितनी है?
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति + सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1
सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 – 0.8 = 0.2 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 7.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य क्या होगा जब सीमांत बचत प्रवृत्ति शून्य हो?
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति + सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – सीमांत बचत प्रवृत्ति
= 1 – 0
= 1 उत्तर

प्रश्न 8.
जब प्रयोज्य आय 1,000 रुपए से बढ़कर 1,100 रुपए हो जाती है, तो बचत में 30 रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 31

प्रश्न 9.
देश में कुल आय 1000 करोड़ रुपए है तथा उपभोग 750 करोड़ है। जब आय बढ़कर 1500 करोड़ रुपए हो जाती है तो उपभोग 1150 करोड़ हो जाता है। औसत उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति बताइए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 32

प्रश्न 10.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आयसीमांत उपभोग प्रवृत्तिबचतऔसत बचत प्रवृत्ति (APS)
0-90
1000.6
2000.6
3000.6

हल:

आयसीमांत उपभोग प्रवृत्तिउपभोगबचतऔसत बचत प्रवृत्ति (APS)
090-90
1000.6150-50-0.5
2000.6210-10-0.05
3000.6270300.1

प्रयोग किए गए सूत्र-

  • उपभोग में परिवर्तन = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति x आय में परिवर्तन
  • वर्तमान आय स्तर पर उपभोग = पूर्ववत्त उपभोग + उपभोग में परिवर्तन
  • औसत बचत प्रवृत्ति = \(\frac { बचत }{ आय }\)

प्रश्न 11.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आयसीमांत उपभोग प्रवृति (MPC)बचतऔसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
00.75-30
1000.75
2000.75

हल:

आयसीमांत उपभोग प्रवृति (MPC)बचतऔसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
00.75-30
1000.75-51.05
2000.75200.90
3000.75450.85

प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) औसत उपभोग प्रवृत्ति = \(\frac { उपभाग }{ आय }\)

(ii) बचत = आय – उपभोग

(iii) शून्य आय पर उपभोग = – बचत

(iv) उपभोग में परिवर्तन = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति x आय में परिवर्तन

(v) 0 आय पर उपभोग = 30
100 आय पर उपभोग = 30 + 75 = 105
200 आय पर उपभोग = 105 + 75 = 180
300 आय पर उपभोग = 180 + 75 = 255

प्रश्न 12.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय का स्तर
(रुपए)
उपभोग व्यय
(रुपए)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
सीमांत बचत प्रतृत्ति
(MPS)
400240
500320
600395
700465

हल:
प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 33
वैकल्पिक रूप से-
सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 – सीमांत उपभोग प्रवृत्ति

आय का स्तर (रुपए)उपभोग व्यय (रुपए)सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC)सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)
400240
5003200.800.20
6003950.750.25
7004650.700.30

प्रश्न 13.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय (रुपए)उपभोग व्यय (रुपए)सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
015
5050
10085
150120

हल:

आय (रुपए)उपभोग व्यय (रुपए)सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
015
50500.31.0
100850.30.85
1501200.30.80

प्रयोग किए गए सूत्र
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 34

प्रश्न 14.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय (रुपए)
(Y)
उपभोग व्यय (रुपए)
(C)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
सीमांत बचत प्रदृत्ति
(MPS)
1000900
12001060
14001210
16001350

हल:

आय (रुपए)
(Y)
उपभोग व्यय (रुपए)
(C)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC) (∆C/∆Y)
सीमांत बचत प्रदृत्ति
(MPS)(∆S/∆Y)
1000900
12001060160 / 200 = 0.840 / 200 = 0.2
14001210150 / 200 = 0.7550 / 200 = 0.25
16001350140 / 200 = 0.760 / 200 = 0.3

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 15.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय (रुपए)
(Y)
उपभोग व्यय (रुपए)
(C)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC))
औसत उपभोग प्रवृत्ति
(APC)
20001900
30002700
40003400
50004000

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 35

प्रश्न 16.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-6
20-3
400
603

हल:

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-6
20-30.850.15
4000.85
6030.850.05

प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 36

प्रश्न 17.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय(Y)बचत(S)सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-12
20-6
400
606

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 37

प्रश्न 18.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-20
50-10
1000
15030
20060

हल:

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-20
50-100.81.2
10000.81
150300.40.8
200600.40.7

प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 38

प्रश्न 19.
नीचे आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग की मात्राएँ दी गई हैं। APC, MPC, APS तथा MPS ज्ञात कीजिए।

आय (करोड़ रुपए)
Y
उपभोग (रुपए)

C

10090
200170
300240
400300
500350
600390
700420

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 39

निवेश गुणक पर आधारित अंकमूलक प्रश्न

प्रश्न 1.
निवेश में 1,000 रुपए की वृद्धि से कुल राष्ट्रीय आय में 5,000 रुपए की वृद्धि होती है। गुणक का मूल्य क्या है?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 40

प्रश्न 2.
यदि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य \(\frac { 4 }{ 5 }\) हो, तो गुणक (K) का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 41

प्रश्न 3.
यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति का मूल्य 0.25 हो, तो गुणक का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 42

प्रश्न 4.
यदि MPC 0.50 है, तो गुणक का मूल्य निकालिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.50}=\frac{1}{0.50}=\frac{1}{50}=\frac{100}{50}\) = 2 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि MPS 0.1 है, तो गुणक के मूल्य का परिकलन कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.1}=\frac{1}{1 / 10}\) = 10

प्रश्न 6.
एक अर्थव्यवस्था में आय का स्तर 2000 करोड़ रुपए है और MPC 0.75 है। यदि निवेश 200 करोड़ रुपए बढ़ता है तो आय में कुल वृद्धि निकालिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}\) = 4
आय में कुल वृद्धि = 200 x 4 = 800 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में MPC 0.75 है। यदि निवेश व्यय 500 करोड़ रुपए बढ़ा दिया जाए तो आय और उपभोग व्यय में होने वाली कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}\) = 4
आय में कुल वृद्धि = निवेश में वृद्धि – K = 500 x 4 = 2000 करोड़ रुपए
उपभोग व्यय में वृद्धि = 2000 का 0.75 = 2000 का 3/4 = 1500 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित परिस्थितियों में आय में परिवर्तन की गणना कीजिए जब-
(i) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 0.8 हो।
(ii) निवेश में परिवर्तन = 1,000 रुपए हो।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 43

प्रश्न 9.
यदि गुणक का मूल्य 5 है, तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य परिकलित कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 44

प्रश्न 10.
निवेश में 20 करोड़ रुपए की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में 100 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 45

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में 120 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई। गुणक (K) का मूल्य 4 है। MPC का मूल्य निकालिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 4 = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) 4 – 4 MPC = 1
MPC = 4 – 1 = 3
MPC = 3/4 = 0.75

प्रश्न 12.
निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में 1,000 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{1000}{200}\) = 5
K = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 5 = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 5-5 MPC = 1 या
5MPC = 5 – 1 = 4 MPC = 4/5 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 13.
एक अर्थव्यवस्था में सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 है और निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपए होती है। राष्ट्रीय आय में होने वाली कुल वृद्धि परिकलित कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{1 / 5}=1 \times \frac{5}{1}\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 5 x 100 = 500 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 14.
निवेश में 125 रुपए की वृद्धि राष्ट्रीय आय में 500 करोड़ रुपए की वृद्धि लाती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का परिकलन कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{500}{125}\) = 4
K = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 4 = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 4 – 4 MPC = 1
4 MPC = 4 – 1 = 3 या MPC = 3/4 = 0.75 उत्तर

प्रश्न 15.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि, निवेश में वृद्धि से 3 गुना अधिक होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का परिकलन कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 46
MPC = 3 – 1 = 2 या MPC = 2/3 = 0.67 उत्तर

प्रश्न 16.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में 400 करोड़ रुपए की वृद्धि की जाती है और MPC 0.8 है। आय और बचत में होने वाली कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{1 / 5}\) = 5
आय में कुल वृद्धि = 400 x 5 = 2000 करोड़ रुपए
बचत में कुल वृद्धि = 2000 का 0.2 = 400 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 17.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में 700 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। MPC 0.9 है। आय और उपभोग व्यय में होने वाली कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-M P C}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{0.1}\) = 10
आय में कुल वृद्धि = 700 x 10 = 7000 करोड़ रुपए
उपभोग व्यय में कुल वृद्धि = 7000 का 0.9 = 7000 x 9/10 = 6300 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 18.
यदि MPC 0.9 हो और निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपए हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{0.1}=\frac{1}{1 / 10}=\) = 10
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 100 x 10 = 1000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 19.
एक अर्थव्यवस्था में जब भी आय में वृद्धि होती है तो आय में वृद्धि का 75% उपभोग पर व्यय किया जाता है। अब मान लीजिए उसी अर्थव्यवस्था में निवेश में 750 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। निम्नलिखित ज्ञात कीजिए-) आय में परिवर्तन, (ii) बचत में परिवर्तन।
हल:
आय में वृद्धि का 75% उपभोग पर व्यय करने का अर्थ है MPC = 75%
(i) K = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) = \(\frac { 1 }{ 1-75/100}\) = \(\frac { 1 }{ 1-3/4 }\) = \(\frac { 1 }{ 1/4 }\) = 4
K = \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\) अथवा 4 = \(\frac { ∆Y }{ 750 }\) Y∆ = 4 x 750 = 3,000 करोड़ रुपए
आय में परिवर्तन = 3000 करोड़ रुपए

(ii) MPS = 1 – MPC = 1 – 75% = 25%
बचत में परिवर्तन = आय में परिवर्तन का 25%
3000 का 25% = 750 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 20.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश 1,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 1,200 करोड़ रुपए हो जाता है और इसके फलस्वरूप कुल आय में 800 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है, तो सीमांत बचत प्रवृत्ति परिकलित कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 47

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि इस अर्थव्यवस्था में निवेश में 300 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है, तो इसका कुल आय पर क्या प्रभाव होगा?
हल:
कुल आय में वृद्धि = निवेश में वृद्धि x गुणक
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 48
अतः कुल आय में वृद्धि = 300 x 4 = 1,200 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 22.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में 1,000 रुपए की वृद्धि से आय में 10,000 रुपए की वृद्धि होती है। गणना कीजिए
(अ) निवेश गुणक
(ब) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 49

प्रश्न 23.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप कुल आय में वृद्धि 1,000 करोड़ रुपए होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का परिकलन कीजिए।
हल:
कुल आय में वृद्धि = निवेश में वृद्धि x गुणक
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 50
5 – 5 सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1
5 सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 5 – 1 = 4
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = \(\frac { 4 }{ 5 }\) = 0.8 उत्तर

प्रश्न 24.
निवेश में 1,500 करोड़ की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में 7,500 करोड़ की वृद्धि होती है। निवेश गुणक (K), सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) का परिकलन कीजिए।
हल:

  1. निवेश गुणक (K) = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{7,500}{1,500}\) = 5
  2. K = \(\frac { 1 }{ MPS }\) या MPS = \(\frac { 1 }{ K }\) = \(\frac { 1 }{ 5 }\) = 0.2
  3. MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था में आय का स्तर 2,000 करोड़ रुपए है और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है तो आय में होने वाली कुल वृद्धि की गणना कीजिए।
हल:
आय में होने वाली वृद्धि = निवेश में वृद्धि x गुणक
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 51
इसलिए, आय में होने वाली वृद्धि= 200 x 4 = 800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 26.
निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में 1,000 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
निवेश में वृद्धि = 200 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 1,000 करोड़ रुपए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 52
सीमांत बचत प्रवृत्ति = \(\frac { 1 }{ 5 }\) = 0.2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

आय के संतुलन स्तर पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था में C = 500 + 0.9Y और I = 1000 है। (जहाँ C = उपभोग, Y = आय, I = निवेश है।) निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-(i) आय का संतुलन स्तर (ii) आय के संतुलन स्तर पर उपभोग व्यय।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 500+ 0.9Y + 1000
Y – 0.9Y = 500 + 1000
0.1Y = 1500
Y = 1500 x 10 = 15000 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 500 + 0.9Y
= 500 + 9/10 x 15000
= 500 + 13500
= 14000 (यह संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 2.
एक अर्थव्यवस्था में C = 300 + 0.5Y और I = 600 है। (जहाँ C = उपभोग, Y = आय, I = निवेश है।) निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-(i) आय का संतुलन स्तर (ii) आय के संतुलन स्तर पर उपभोग व्यय।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 300+ 0.5Y +600
Y – 0.5Y = 900
1/2Y = 900
Y = 900 x 2 = 1800 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 300 + 0.5Y
= 300 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 1800
= 300 + 900 = 1200 (यह संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 3.
जब स्वायत्त (Autonomous) निवेश और उपभोग व्यय (A) 50 करोड़ रुपए हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय का स्तर 4000 करोड़ रुपए हो तो प्रत्याशित (Ex-ante) समग्र माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं, कारण भी बताएँ।
हल:
MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8
AD = C + I (Ex-ante समग्र माँग)
= \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY + \(\overline{\mathrm{I}}\) = \(\overline{\mathrm{A}}\) + bY (क्योंकि \(\overline{\mathrm{A}}\) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + \(\overline{\mathrm{I}}\))
= 50 + (0.8 x 4000)
= 50 + 3200 करोड़ रुपए
= 3250 करोड़ रुपए
AS (Y) = 4000 करोड़ रुपए (Ex-ante समग्र पूर्ति दी गई है)
चूँकि समग्र माँग (अर्थात् 3250 करोड़), समग्र पूर्ति (अर्थात् 4000 करोड़) के बराबर नहीं है, इसलिए अर्थव्यवस्था संतुलन में नहीं है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 4.
यदि उपभोग फलन C = 100 + 0.75Y (जहाँ C = उपभोग व्यय तथा Y = राष्ट्रीय आय) और निवेश व्यय 1000 रुपए हो तो ज्ञात कीजिए-(i) राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर, (ii) संतुलन स्तर पर उपभोग व्यय।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 100 + 0.75Y + 1000
Y – 0.75Y = 100 + 1000 = 1100
25Y = 1100 अथवा 1/4Y = 1100
Y = 1100 x 4 = 4400 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 100 + 0.75Y (दिया है)
= 100 + \(\frac { 3 }{ 4 }\) x 4400
= 100 + 3300 = 3400 (यह आय के संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 5.
एक अर्थव्यवस्था में C = 600 + 0.5Y और Y = 1200 है। (जहाँ C = उपभोग, Y = आय और I = निवेश) निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-(i) आय का संतुलन स्तर, (ii) संतुलन पर उपभोग।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 600 + 0.5Y + 1200
Y – 0.5Y = 1800
1/2Y = 1800
Y = 1800 x 2 = 3600 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 600 + 0.5Y
= 600 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 3600
= 600+ 1800 = 2400 (यह संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 6.
एक अर्थव्यवस्था में उपभोग फलन दिया हुआ है- C = 100 + 0.5Y
एक संख्यात्मक उदाहरण की सहायता से यह दिखाइए कि इस अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे आय बढ़ती है, औसत उपभोग प्रवृत्ति में कमी आएगी।
हल:
उपभोग फलन,
C = 100 + 0.5Y
100 रुपए के आय स्तर पर उपभोग (C)
= 100 + (0.5 x 100)
= 100 + 50 = 150 रुपए
इसी प्रकार विभिन्न आय स्तरों पर उपभोग निकाले जा सकते हैं और निम्नलिखित सारणी बनाई जा सकती है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 53
उपर्युक्त सारणी को देखने से पता चलता है कि जैसे-जैसे आय बढ़ती है, औसत उपभोग प्रवृत्ति में कमी आती है।

प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में बचत फलन दिया हुआ है- S = – 200 + 0.25Y
अर्थव्यवस्था उस समय संतुलन में होती है जब आय 2,000 के बराबर है। निम्नलिखित की गणना कीजिए-
(क) आय के संतुलन स्तर पर निवेश व्यय
(ख) स्वायत्त उपभोग
(ग) निवेश गुणक।
हल:
(क) आय के संतुलन स्तर पर नियोजित बचत और नियोजित निवेश बराबर होते हैं। संतुलन स्तर पर बचत की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-
S = – 200 + 0.25Y
S = – 200 + 0.25 x 2000
= – 200 + 500 = 300
इस प्रकार आय के संतुलन स्तर पर निवेश व्यय = 300

(ख) स्वायत्त उपभोग से अभिप्राय उपभोग की उस राशि से है जो शून्य आय पर भी उपभोग में व्यय किया जाता है।
स्वायत्त उपभोग = शून्य आय पर ऋणात्मक बचत
= 200

(ग) निवेश गुणक (K) = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) = \(\frac { 1 }{ MPS }\)
बचत फलन के अनुसार MPS = 0.25
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\)
निवेश गुणक = 4

प्रश्न 8.
एक अर्थव्यवस्था के बारे में दी गई निम्नलिखित सूचना से (i) उसकी राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर और (ii) राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर बचत का परिकलन कीजिए।
उपभोग फलन : C = 200 + 0.9Y (जहाँ C = उपभोग व्यय तथा Y = राष्ट्रीय आय) निवेश व्यय : I = 3,000
हल:
(i) राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर उस स्थिति में होगा जहाँ बचत और निवेश व्यय बराबर हो।
निवेश व्यय = 3,000
वांछित बचत = 3,000
बचत = आय – उपभोग
= Y – [200 + 0.9Y]
3000 की बचत का समीकरण इस प्रकार होगा,
Y – [200 + 0.9Y] = 3000
Y – 200 – 0.9Y = 3000
Y – 0.9Y = 3000 + 200
0.1Y = 3200
Y = 32000
इस प्रकार राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर 32000 होगा।

(ii) राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर
उपभोग व्यय = आय – बचत
= 32000 – 3000
= 29000

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. सार्वजनिक वस्तुओं की विशेषता है-
(A) ये अप्रतिस्पर्धी होती हैं
(B) ये अवर्ण्य होती हैं
(C) इनके उपभोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. निम्नलिखित में से सरकारी बजट के संबंध में कौन-सा कथन सही है?
(A) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की अनुमानित आय तथा व्यय का ब्यौरा है
(B) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की वास्तविक आय तथा व्यय का ब्यौरा है
(C) इसमें बीते वर्ष की उपलब्धियों तथा कमियों के संबंध में कोई चर्चा नहीं होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की अनुमानित आय तथा व्यय का ब्यौरा है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

3. बजट में-
(A) पिछले वर्ष की आय का विवरण होता है
(B) चालू वर्ष की आय-व्यय की संशोधित स्थिति होती है
(C) आगामी वर्ष की आय-व्यय के अनुमान होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) आगामी वर्ष की आय-व्यय के अनुमान होते हैं

4. सरकारी बजट के निम्नलिखित में से कौन-से उद्देश्य हैं?
(A) आय और संपत्ति का पुनः वितरण
(B) आर्थिक स्थिरता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) सार्वजनिक उद्यमों को निजी क्षेत्र को सौंपना
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

5. राजस्व प्राप्तियाँ वे प्राप्तियाँ हैं जिनसे सरकार की-
(A) परिसंपत्तियों में कोई कमी नहीं होती
(B) परिसंपत्तियों में कमी होती है
(C) कोई देयता उत्पन्न नहीं होती
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

6. निम्नलिखित में से कौन-सी करेत्तर प्राप्ति (Non-tax Receipts) है?
(A) उपहार कर
(B) बिक्री कर
(C) उपहार और अनुदान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) उपहार और अनुदान

7. कर एक
(A) ऐच्छिक भुगतान है
(B) अनिवार्य भुगतान है
(C) एक कानूनी भुगतान नहीं है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) अनिवार्य भुगतान है

8. जब किसी कर का करापात तथा कराघात एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो उसे कहते हैं-
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) प्रत्यक्ष कर

9. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर का उदाहरण है?
(A) मनोरंजन कर
(B) उत्पादन कर
(C) आय कर
(D) सेवा कर
उत्तर:
(C) आय कर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

10. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण है?
(A) उत्पादन कर
(B) सेवा कर
(C) मनोरंजन कर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

11. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर का उदाहरण नहीं है?
(A) निगम कर
(B) संपत्ति कर
(C) सेवा कर
(D) आय कर
उत्तर:
(C) सेवा कर

12. निम्नलिखित में से प्रत्यक्ष कर का उदाहरण कौन-सा है?
(A) आयात-निर्यात कर
(B) उत्पादन कर
(C) बिक्री कर
(D) आय कर
उत्तर:
(D) आय कर

13. निम्नलिखित में से अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण कौन-सा है?
(A) आय कर
(B) निगम कर
(C) मृत्यु कर
(D) आयात-निर्यात कर
उत्तर:
(D) आयात-निर्यात कर

14. कारकों के आबंटन की दृष्टि से अच्छे होते हैं-
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अप्रत्यक्ष कर

15. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर नहीं है?
(A) सीमा शुल्क
(B) निगम कर
(C) केंद्रीय उत्पाद शुल्क
(D) व्यापार कर
उत्तर:
(B) निगम कर

16. कर की दर के अनुसार एक आनुपातिक कर प्रणाली क्या है?
(A) कर की दर समान रहे
(B) प्रत्येक को समान कर राशि चुकानी पड़े
(C) कर की दर में कमी हो
(D) कर की दर में वृद्धि हो
उत्तर:
(A) कर की दर समान रहे

17. प्रगतिशील कर पद्धति में-
(A) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत कम होता रहता है
(B) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है
(C) आय कम हो या अधिक कर का प्रतिशत समान रहता है
(D) निर्धनों पर कर का भार अधिक पड़ता है
उत्तर:
(B) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है

18. प्रगतिशील कर का उद्देश्य होता है-
(A) त्याग का समान बंटवारा
(B) कर में वृद्धि
(C) हानिप्रद उपभोग पर प्रतिबंध
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) त्याग का समान बंटवारा

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19. प्रतिगामी कर वह कर है जो
(A) व्यक्ति की आय बढ़ने पर बढ़ता प्रतिशत लेता है
(B) व्यक्ति की आय बढ़ने पर घटता प्रतिशत लेता है
(C) व्यक्ति की आय का सापेक्षिक रूप में निम्न प्रतिशत होता है
(D) व्यक्ति की आय का स्थिर प्रतिशत लेता है
उत्तर:
(B) व्यक्ति की आय बढ़ने पर घटता प्रतिशत लेता है

20. आय के असमान वितरण को कम किया जा सकता है-
(A) प्रगतिशील कर प्रणाली द्वारा
(B) आनुपातिक कर प्रणाली द्वारा
(C) प्रतिगामी कर प्रणाली द्वारा
(D) अवरोही कर प्रणाली द्वारा
उत्तर:
(A) प्रगतिशील कर प्रणाली द्वारा

21. सरकार की गैर-कर आय का मुख्य स्रोत कौन-सा है?
(A) फीस
(B) लाइसेंस तथा परमिट
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) आय कर पर सरचार्ज
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

22. पूँजीगत प्राप्तियाँ वे मौद्रिक प्राप्तियाँ हैं जिनसे सरकार की-
(A) देयता उत्पन्न होती है
(B) देयता उत्पन्न नहीं होती
(C) परिसंपत्तियाँ बढ़ती हैं।
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) देयता उत्पन्न होती है

23. निम्नलिखित में से सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ कौन-सी हैं?
(A) ऋणों की वसूली
(B) उधार तथा अन्य देयताएँ
(C) विनिवेश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. निम्नलिखित में से कौन-सी पूँजीगत प्राप्ति है?
(A) कर राजस्व
(B) सरकारी निवेश से प्राप्त आय
(C) फीस व जुर्माने से प्राप्त राशि
(D) उधार ली गई राशि
उत्तर:
(D) उधार ली गई राशि

25. निम्नलिखित में से कौन-सी गैर-राजस्व प्राप्ति नहीं है?
(A) फीस
(B) उपहार कर
(C) जुर्माना
(D) अनुदान
उत्तर:
(B) उपहार कर

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26. विनिवेश से अभिप्राय है-
(A) वर्तमान निवेश को कम करना
(B) वर्तमान निवेश को शून्य करना
(C) लोगों के पास चलन मुद्रा + बैंकों के पास माँग जमाएँ
(D) सरकार की परिसंपत्तियों को बढ़ाना
उत्तर:
(A) वर्तमान निवेश को कम करना

27. राजस्व व्यय वह व्यय है जिसके फलस्वरूप-
(A) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण होता है
(B) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता
(C) सरकार की देयता में कमी होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता

28. पूँजीगत व्यय सरकार की वे अनुमानित व्यय हैं जो सरकार की-
(A) परिसंपत्ति में वृद्धि करते हैं
(B) देयता को कम करते हैं
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) देयता को बढ़ाते हैं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

29. निम्नलिखित में कौन-सा गैर-विकासात्मक (विकासेत्तर) व्यय है?
(A) देश की सुरक्षा पर व्यय
(B) नहरों के निर्माण पर व्यय
(C) वृद्धावस्था पेंशन
(D) बेरोज़गारी भत्ता
उत्तर:
(B) नहरों के निर्माण पर व्यय

30. निम्नलिखित में से कौन-सा विकास व्यय नहीं है?
(A) ब्याज के भुगतान पर व्यय
(B) शिक्षा और चिकित्सा पर व्यय
(C) बिजली उत्पादन पर व्यय
(D) सड़क निर्माण पर व्यय
उत्तर:
(A) ब्याज के भुगतान पर व्यय

31. शिक्षा, प्रशिक्षण, जनस्वास्थ्य आदि पर व्यय कहलाता है-
(A) पूँजीगत निर्माण
(B) मानव पूँजीगत
(C) तकनीकी प्रगति
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) मानव पूँजीगत

32. बजट घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का बजट व्यय सरकार की बजट प्राप्तियों से-
(A) कम होता है
(B) अधिक होता है।
(C) बराबर होता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अधिक होता है

33. राजस्व घाटे के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) इसका संबंध राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों से है
(B) इसका संबंध पूँजीगत प्राप्तियों और पूँजीगत व्यय से है
(C) यह राजस्व व्यय की राजस्व प्राप्तियों पर अधिकता है
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

34. राजकोषीय घाटा =
(A) बजट व्यय – उधार को छोड़कर बजट प्राप्तियाँ
(B) कुल व्यय > उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियाँ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कुल व्यय > उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियाँ

35. राजकोषीय घाटे के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य सही है?
(A) इससे मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है
(B) इससे विदेशों पर निर्भरता बढ़ती है
(C) इससे ऋणों में वृद्धि होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

36. प्राथमिक घाटा =
(A) राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
(B) राजकोषीय घाटा + ब्याज भुगतान
(C) राजकोषीय घाटा ब्याज भुगतान
(D) राजकोषीय घाटा x ब्याज भुगतान
उत्तर:
(A) राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान

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37. सरकार की कुल आय तथा कुल व्यय का अंतर कहलाता है-
(A) बजटीय घाटा
(B) राजकोषीय घाटा
(C) मौद्रिक घाटा
(D) राजस्व घाटा
उत्तर:
(A) बजटीय घाटा

38. राजस्व घाटे की तुलना में राजकोषीय घाटे का आकार हमेशा होगा?
(A) बड़ा
(B) छोटा
(C) एक जैसा
(D) अनियत
उत्तर:
(A) बड़ा

39. राजस्व घाटे में सरकार की किस आय को शामिल किया जाता है?
(A) कर स्रोत को
(B) गैर-कर स्रोत को
(C) (A) और (B) दोनों को
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों को

40. राजकोषीय घाटे में से ब्याज की अदायगियाँ घटा देने पर प्राप्त होने वाला घाटा कहलाता है-
(A) बजटीय घाटा
(B) प्राथमिक घाटा
(C) राजस्व घाटा
(D) मौद्रिक घाटा
उत्तर:
(B) प्राथमिक घाटा

41. राजस्व प्राप्ति + पूँजीगत प्राप्ति – गैर-आयोजन व्यय + आयोजन व्यय-पर गणना किसे प्रदर्शित करती है?
(A) बजटीय घाटा को
(B) प्राथमिक घाटा को
(C) राजस्व घाटा को
(D) राजकोषीय घाटा को
उत्तर:
(A) बजटीय घाटा को

42. सरकार का राजकोषीय घाटा बराबर होता है
(A) चालू आय – चालू व्यय
(B) कुल आय – कुल व्यय
(C) पूँजीगत प्राप्तियाँ – पूँजीगत भुगतान
(D) चालू आय – (चालू व्यय + पूँजीगत व्यय)
उत्तर:
(D) चालू आय – (चालू व्यय + पूँजीगत व्यय)

43. राजस्व घाटा (Revenue Deficit) बजटीय घाटे से कम होगा यदि-
(A) पूँजीगत खाते में घाटा हो
(B) पूँजीगत खाता संतुलित हो
(C) पूँजीगत खाते में बचत (Surplus) हो
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) पूँजीगत खाते में बचत हो

44. निम्नलिखित में से सही है
(A) बजट घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व आय
(B) बजट घाटा = कुल व्यय – कुल आय
(C) बजट घाटा = चालू व्यय – चालू आय
(D) बजट घाटा = सकल राजस्व व्यय – सकल राजस्व आय
उत्तर:
(B) बजट घाटा = कुल व्यय – कुल आय

45. यदि सरकार द्वारा दिया गया ब्याज प्राथमिक घाटे में जोड़ दिया जाए तो यह बराबर होगा-
(A) राजस्व घाटे के
(B) बजट घाटे के
(C) मौद्रिक घाटे के
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) राजस्व घाटे के

46. एक बजट में राजस्व = व्यय हो तो उसे कहते हैं-
(A) घाटे का बजट
(B) संतुलित बजट
(C) बचत का बजट
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संतुलित बजट।

47. सरकारी व्यय उसकी आय से अधिक होने की स्थिति को क्या कहते हैं?
(A) संतुलित बजट
(B) बचत का बजट
(C) घाटे का बजट
(D) स्फीतिक बजट
उत्तर:
(C) घाटे का बजट

48. निम्नलिखित में से कौन-सा असंत त बजट है?
(A) बचत का बजट
(B) घाटे का बजट
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

49. घाटे का बजेट वह बजट है जिसमें
(A) सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय (B) सरकार की अनुमानित आय > सरकार का अनुमानित व्यय
(C) सरकार की अनुमानित आय = सरकार का अनुमानित व्यय
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय

50. बजट के घाटे को निम्नलिखित में से किस उपाय द्वारा दूर किया जा सकता है?
(A) मुद्रा का विस्तार
(B) जनता से उधार लेना
(C) विनिवेश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

51. राजकोषीय घाटे में से ब्याज अदायगियाँ घटाने पर क्या प्राप्त होता है?
(A) बजटीय घाटा
(B) राजस्व घाटा
(C) प्राथमिक घाटा
(D) कुल उधार
उत्तर:
(C) प्राथमिक घाटा

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52. बजटीय घाटे की वित्तीय व्यवस्था की जाती है
(A) केंद्रीय बैंक से उधार लेकर
(B) ऋणों द्वारा
(C) बचतों द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

53. राजकोषीय घाटे की वित्तीय व्यवस्था होती है-
(A) केंद्रीय बैंक से उधार लेकर
(B) घरेलू ऋण उगाही द्वारा
(C) विदेशी ऋणों द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. बजट 1 अप्रैल से ………………. तक की अवधि के वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का वार्षिक ब्यौरा होता है। (आगामी 31 मार्च/आगामी 30 अप्रैल)
उत्तर:
आगामी 31 मार्च

2. राजस्व प्राप्तियों से सरकार की परिसंपत्तियों में ……………… (कोई कमी नहीं होती/कमी होती है)
उत्तर:
कोई कमी नहीं होती

3. कर एक ……………… भुगतान है। (ऐच्छिक/अनिवार्य)
उत्तर:
अनिवार्य

4. जब किसी कर का कराधान तथा करापात एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो उसे ……………… कहते हैं। (प्रत्यक्ष कर/अप्रत्यक्ष कर)
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर

5. प्रगतिशील कर का वास्तविक भार ………….. पर अधिक पड़ता है। (अमीरों/गरीबों)
उत्तर:
गरीबों

6. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय राजस्व प्राप्तियाँ ……………… (पूँजीगत व्यय/ पूँजीगत प्राप्तियाँ)
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियाँ

7. ……………… = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ < अनुमानित सरकारी व्यय। (घाटे का बजट/संतुलित बजट)
उत्तर:
घाटे का बजट

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. आय कर एक अप्रत्यक्ष कर है।
  2. सरकारी बजट प्रति मास पेश किया जाता है।
  3. भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से अगले वर्ष के 31 मार्च की अवधि तक होता है।
  4. केन्द्रीय उत्पादन शुल्क अप्रत्यक्ष कर है।
  5. सार्वजनिक ऋण वह ऋण है जो सरकार केवल जनता से लेती है
  6. राजस्व घाटे का सम्बन्ध राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों से है।
  7. अप्रत्यक्ष करों में कराघात व करापात एक ही व्यक्ति पर होता है।
  8. कर एक अनिवार्य भुगतान नहीं है।
  9. संपत्ति कर एवं उपहार कर प्रत्यक्ष कर हैं।
  10. राजस्व, सार्वजनिक वित्त तथा राज्य वित्त पर्यायवाची हैं।
  11. निजी वित्त और सार्वजनिक वित्त में कोई मूलभूत अन्तर नहीं होता।
  12. सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है।
  13. कर सदा उपभोग में कमी लाते हैं।
  14. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि सदा मुद्रास्फीति लाती है।
  15. प्रगतिशील कर पद्धति में आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. सही
  10. सही
  11. गलत
  12. सही
  13. सही
  14. गलत
  15. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निजी वस्तु से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
निजी वस्तु से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जो एक व्यक्ति द्वारा निजी तौर पर उपभोग में लाई जाती है। उदाहरण के लिए-

  • कपड़े
  • कार।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक वस्तु से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तु से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जिसका उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। उदाहरण के लिए-

  • सड़कें
  • पुलिस सुरक्षा।

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प्रश्न 3.
मुफ्तखोरी (Free-Rider) की समस्या से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुफ्तखोरी की समस्या से अभिप्राय यह है कि सार्वजनिक वस्तुओं का शुल्क एकत्रित करना या तो बहुत कठिन या असंभव होता है इसलिए इन्हें मुफ्त ही प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 4.
सार्वजनिक प्रावधान का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सार्वजनिक प्रावधान का तात्पर्य यह है कि सार्वजनिक वस्तुओं का वित्त प्रबंधन बजट के माध्यम से मुफ्त में उपलब्ध होता है।

प्रश्न 5.
सरकार के नियतन फलन (Allocation Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के नियतन फलन से अभिप्राय लोगों को वे वस्तुएँ उपलब्ध करवाना है जिन्हें कीमत तंत्र द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6.
सरकार के वितरण फलन (Distribution Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के वितरण फलन से अभिप्राय लोगों को अंतरण भुगतान करके अथवा लोगों से कर एकत्रित करके लोगों की वैयक्तिक प्रयोज्य आय प्रभावित करना है।

प्रश्न 7.
सरकार के स्थिरीकरण फलन (Stablisation Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के स्थिरीकरण फलन से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में होने वाले उच्चावचनों को नियंत्रित करना है।

प्रश्न 8.
सरकारी बजट क्या होता है?
उत्तर:
सरकारी बजट 1 अप्रैल से आगामी 31 मार्च तक की अवधि के वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का वार्षिक ब्यौरा होता है।

प्रश्न 9.
भारत में वित्तीय वर्ष से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत में वित्तीय वर्ष से अभिप्राय किसी वर्ष के 1 अप्रैल से दूसरे वर्ष के 31 मार्च की अवधि से है।

प्रश्न 10.
बजट को किस प्रकार विभाजित किया जाता है?
उत्तर:
बजट को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • राजस्व बजट
  • पूँजीगत बजट।

प्रश्न 11.
राजस्व बजट (Revenue Budget) क्या है?
उत्तर:
राजस्व बजट से अभिप्राय सरकार की अनुमानित राजस्व प्राप्तियों और अनुमानित राजस्व भुगतानों के विवरण से है।

प्रश्न 12.
पूँजीगत बजट (Capital Budget) क्या है?
उत्तर:
पूँजीगत बजट से अभिप्राय सरकार की अनुमानित पूँजीगत प्राप्तियों और अनुमानित पूँजीगत भुगतानों के विवरण से है।

प्रश्न 13.
राजस्व की मदों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजस्व मदें, वे मौद्रिक मदें हैं जो सरकार के लिए कोई देयता उत्पन्न नहीं करती तथा परिसंपत्तियों में कोई कमी उत्पन्न नहीं करतीं।

प्रश्न 14.
राजस्व प्राप्तियों (Revenue Receipts) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों से अभिप्राय उन प्राप्तियों से है जो दायित्वों में वृद्धि नहीं करती और जिनकी प्रकृति प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाली होती है। राजस्व प्राप्तियों के दो उदाहरण हैं-

  • आय कर
  • लाइसेंस फीस।

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प्रश्न 15.
पूँजीगत प्राप्तियों (Capital Receipts) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियों से अभिप्राय उन प्राप्तियों से है जो दायित्वों में वृद्धि करती हैं और जिनकी प्रकृति आकस्मिक होती है। पूँजीगत प्राप्तियों के दो उदाहरण हैं-

  • सार्वजनिक ऋण
  • अनुदान।

प्रश्न 16.
राजस्व अथवा आगम व्यय (Revenue Expenditure) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजस्व अथवा आगम व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कोई कमी आती है। राजस्व व्यय के दो उदाहरण हैं-

  • कानून व्यवस्था पर व्यय
  • वेतन।

प्रश्न 17.
पूँजीगत व्यय (Capital Revenue) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप भौतिक तथा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा जिनके फलस्वरूप दायित्वों में कमी आती है। पूँजीगत व्यय के दो उदाहरण हैं-

  • भवन निर्माण
  • सड़कों का विकास।

प्रश्न 18.
कर राजस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कर राजस्व से अभिप्राय सरकार द्वारा लगाए गए सभी करों और शुल्कों से एकत्रित की गई राशियों से है।

प्रश्न 19.
गैर-कर राजस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गैर-कर राजस्व से अभिप्राय सरकार द्वारा लगाए गए करों से एकत्रित की गई राशियों के अलावा प्राप्त की गई राशियों से है। यह करों के अतिरिक्त राजस्व के अन्य स्रोतों; जैसे लाभ, ब्याज प्राप्तियाँ, लाभांश आदि का जोड़ होता है।

प्रश्न 20.
कर क्या है?
उत्तर:
कर एक व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा सरकार को बिना किसी लाभ की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला अनिवार्य भुगतान है।

प्रश्न 21.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर से अभिप्राय उस कर से है जिसके भार को अन्य व्यक्तियों पर डाला नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए, (i) आय कर, (ii) संपत्ति कर।

प्रश्न 22.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर से अभिप्राय उस कर से है जिसके भार को अंशतः या पूर्णतया अन्य व्यक्तियों पर डाला जा सकता है। उदाहरण के लिए-

  • बिक्री कर
  • उत्पादन शुल्क।

प्रश्न 23.
मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) कर क्या होता है?
उत्तर:
उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर लगाए जाने वाले कर को मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) कर (Value Added Tax-VAT) कहा जाता है।

प्रश्न 24.
प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर क्या हैं? अथवा प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रगतिशील कर वह कर है जिसका भार निर्धन व्यक्तियों की तुलना में धनी व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है। प्रतिगामी कर वह कर है जिसका वास्तविक भार निर्धन व्यक्तियों पर अधिक तथा धनी व्यक्तियों पर कम पड़ता है।

प्रश्न 25.
आनुपातिक कर क्या है?
उत्तर:
आनुपातिक कर वह कर है जिसमें कर की दर समान रहती है। आय के बढ़ने या घटने पर भी इसकी दर में परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 26.
गैर-योजना व्यय क्या होता है?
उत्तर:
गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। यह व्यय सरकारी प्रशासन और सामान्य गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने पर किया जाता है। चालू पंचवर्षीय योजना से संबंधित व्यय को छोड़कर अन्य सब व्यय, गैर-योजना व्यय कहलाते हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 27.
विकासात्मक व्यय (Development Expenditure) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिन्हें सरकार द्वारा देश की आर्थिक तथा सामाजिक विकास संबंधी योजनाओं के अंतर्गत व्यय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, विकासात्मक व्यय का प्रत्यक्ष संबंध देश के आर्थिक विकास से होता है।

प्रश्न 28.
गैर-विकासात्मक व्यय (Non-Development Expenditure) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गैर-विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसे सरकार सामान्य सामाजिक सेवाओं व प्रशासन, पुलिस आदि पर करती है।

प्रश्न 29.
संतुलित बजट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलित बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय दोनों बराबर होते हैं।

प्रश्न 30.
सरकारी बजट में राजस्व घाटे से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकारी बजट में राजस्व घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का कुल राजस्व व्यय कुल राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है।

प्रश्न 31.
घाटे के बजट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
घाटे के बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय उससे अनुमानित व्यय से कम होती है। इस प्रकार,
घाटे का बजट = अनुमानित व्यय > अनुमानित आय

प्रश्न 32.
प्राथमिक घाटे (Primary Deficit) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे में से पुराने ऋणों पर ब्याज घटाने पर जो घाटा प्राप्त होता है, उसे प्राथमिक घाटा कहते हैं।

प्रश्न 33.
राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) की सुरक्षित सीमा क्या है?
उत्तर:
राजकोषीय घाटे की सुरक्षित सीमा तब तक मानी जाती है जब तक उसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। राजकोषीय घाटे की सुरक्षित सीमा सकल घरेलू उत्पाद के 5% के बराबर मानी जाती है।

प्रश्न 34.
ब्याज का भुगतान एक राजस्व व्यय क्यों है?
उत्तर:
ब्याज का भुगतान एक राजस्व व्यय है क्योंकि ब्याज की अदायगी से न तो कोई दायित्वों में वृद्धि होती है और न ही संपत्तियों में कोई कमी होती है।

प्रश्न 35.
आभ्यांतरिक स्थिरक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आभ्यांतरिक स्थिरक से अभिप्राय यह है कि निश्चित व्यय और कर नियमों के अंतर्गत जब आर्थिक दशाएँ बदतर स्थिति को प्राप्त होती है तो व्यय में स्वतः बढ़ोत्तरी हो जाती है अथवा करों में स्वतः कमी हो जाती है जिससे अर्थव्यवस्था स्वतः स्थिर दशा को प्राप्त करती है।

प्रश्न 36.
सरकारी व्यय गुणक निकालने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)

प्रश्न 37.
रिकॉर्डो समतुल्यता क्या है?
उत्तर:
रिकॉर्डों समतुल्यता वह सिद्धांत है जिसमें उपभोक्ता अग्रदर्शी होते हैं और आशा करते हैं कि सरकार आज जो ऋण ग्रहण करती है, भविष्य में उसके पुनर्भुगतान के लिए करों में वृद्धि होगी जिससे अर्थव्यवस्था पर वैसा ही प्रभाव होगा जैसाकि कर में वृद्धि से आज होता है।

प्रश्न 38.
कर गुणक की गणना का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
कर गुणक की गणना = \(\frac { -c }{ 1-c }\)

प्रश्न 39.
आनुपातिक कर गुणक का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
आनुपातिक कर गुणक = \(\frac{1}{(1-c)(1-t)}\)

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तुओं की परिभाषा दीजिए। सार्वजनिक वस्तुएँ निजी वस्तुओं से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है, जिनका उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। सार्वजनिक वस्तुओं और निजी वस्तुओं में निम्नलिखित अंतर हैं-
(i) निजी वस्तुओं का लाभ केवल एक ही उपभोक्ता तक सीमित होता है, जबकि सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ सभी लोगों तक उपलब्ध होता है। किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग करने से वंचित नहीं किया जा सकता। इससे मुफ्तखोरी की समस्या उत्पन्न होती है।

(ii) निजी वस्तुओं की कुछ-न-कुछ कीमत होती है, जबकि सार्वजनिक वस्तुओं की कोई कीमत नहीं होती। ये सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त उपलब्ध करवाई जाती है। सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है।

प्रश्न 2.
सरकारी बजट (राजकोषीय नीति) के कार्य बताइए।
उत्तर:
सरकारी बजट (राजकोषीय नीति) के निम्नलिखित कार्य होते हैं-
(i) नियतन कार्य (आबंटन कार्य)-सरकारी बजट के मुख्य कार्य लोगों को सार्वजनिक वस्तुएँ; जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, सड़कें, सरकारी प्रशासन आदि उपलब्ध करवाना है।

(ii) वितरण कार्य-सरकारी बजट आय के वितरण को न्यायपूर्ण बनाता है, ताकि आय की असमानताओं को दूर किया जा सके। स्थिरीकरण कार्य-सरकारी बजट अर्थव्यवस्था में उच्चावचों के प्रभाव को समाप्त करता है, ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रह सके।

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प्रश्न 3.
कर की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
कर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. कर एक अनिवार्य भुगतान है।
  2. कर एक कानूनी भुगतान है।
  3. कर से प्राप्त आय जन-कल्याण हेतु खर्च की जाती है।
  4. कर देना प्रत्येक व्यक्ति का निजी उत्तरदायित्व है।

प्रश्न 4.
बजटीय नीति या बजट के मुख्य उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बजटीय नीति या बजट के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. संसाधनों का पुनः आबंटन-बजट का मुख्य उद्देश्य सरकार द्वारा सामाजिक संसाधनों को घोषित कर सामाजिक और आर्थिक हितों के अनुरूप पुनः आबंटित करना है।

2. आय संपत्ति का पुनः वितरण-सरकारी बजट द्वारा क्षेत्रीय तथा व्यक्तिगत असमानताओं को कम करना है। सार्वजनिक व्यय द्वारा पिछड़े क्षेत्रों का विकास किया जाता है तथा निर्धन वर्ग को मुफ्त या रियायती दरों पर सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।

3. स्थिरीकरण बजट का उद्देश्य व्यापार चक्रों की संभावनाओं को समाप्त करके अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करना है।

4. सामाजिक कल्याण में वृद्धि-बजट द्वारा सामाजिक कल्याण में वृद्धि का प्रयास किया जाता है। बजट द्वारा सार्वजनिक उद्यमों के उत्तम प्रबंधन की व्यवस्था की जाती है।

प्रश्न 5.
बजट समाज को किन तीन स्तरों पर प्रभावित करता है?
उत्तर:
बजट समाज को निम्नलिखित तीन स्तरों पर प्रभावित करता है-
1. वित्तीय अनुशासन-बजट समग्र स्तर पर वित्तीय अनुशासन लागू करता है। वित्तीय अनुशासन का अर्थ राजस्व के स्तर का पूर्व निर्धारण कर व्यय पर अंकुश रखना है।

2. संसाधनों का आवंटन-सामान्यतया संसाधनों का आबंटन बाज़ार में कीमत प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। जब बाज़ार संसाधनों के कुशलतम आबंटन में असफल रहता है तो बजट द्वारा संसाधनों के कुशलतम आबंटन का प्रयास किया जाता है। बजट सामाजिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर संसाधनों का आबंटन करता है।

3. लक्ष्यों की प्राप्ति-बजट विभिन्न कार्यक्रमों और सेवाओं को प्रदान किए जाने का प्रभावी एवं कुशल माध्यम है। बजट के द्वारा सरकार अपने लक्ष्यों को न्यूनतम आर्थिक व सामाजिक लागत पर प्राप्त करने का प्रयास करती है।

प्रश्न 6.
एक अच्छी कर संरचना की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
एक अच्छी कर संरचना की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. उत्पादकता एक अच्छी कर संरचना में सभी प्रकार के कर होने चाहिएँ, ताकि सरकार को नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में आय प्राप्त होती रहे।

2. लोच-एक अच्छी कर संरचना में लोचशीलता का गुण होना चाहिए जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ कर आगम में भी वृद्धि होती रहे।

3. न्यायसंगत कर प्रणाली को न्यायसंगत होना चाहिए अर्थात् कर प्रणाली के अंतर्गत निर्धन वर्ग की तुलना में धनी वर्ग पर कर का भार अधिक होना चाहिए।

4. प्रशासनिक व्यवहार्यता-कर के एकत्रीकरण के लिए समय, प्रयास और लागत आवश्यक होते हैं। इसलिए कर प्रणाली को सरल और मितव्ययी होना चाहिए। कर अपवचन की संभावनाएँ न्यूनतम होनी चाहिएँ। कर प्रणाली करदाताओं के लिए सुविधाजनक होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारप्रत्यक्ष करअप्रत्यक्ष कर
(i) अंतिम भारप्रत्यक्ष कर का अंतिम भार उसी व्यक्ति को सहन करना पड़ता है जिस पर इसे लगाया जाता है।अप्रत्यक्ष कर कां अंतिम भार उस व्यक्ति को नहीं सहन करना पड़ता जिस पर इसे लगाया जाता है।
(ii) करों का टालनाप्रत्यक्ष कर के भार को टाला नहीं जा सकता।अप्रत्यक्ष कर के भार को टाला जा सकता है।
(iii) प्रकृतिप्रत्यक्ष कर प्रायः प्रगतिशील होते हैं अर्थात् आय बढ़ने पर इनका भार बढ़ता है।अप्रत्यक्ष कर प्रतिगामी होते हैं। इनका भार गरीबों पर अधिक पड़ता है।

प्रश्न 8.
राजस्व प्राप्तियों एवं पूँजीगत प्राप्तियों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों और पूँजीगत प्राप्तियों में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारराजस्व प्राप्तियाँपूँजीगत प्राप्तियाँ
(i) प्रकृतिराजस्व प्राप्तियाँ प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाली होती हैं।पूँजीगत प्राप्तियों की प्रकृति आकस्मिक होती हैं।
(ii) उद्देश्यइसका उद्देश्य नियमित व्ययों को पूरा करना है।इसका उद्देश्य दायित्व का निर्माण करना अथवा संपत्तियों में कमी करना है।
(iii) संघटकइसमें कर और गैर-कर दोनों प्राप्तियाँ सम्मिलित हैं।इसमें केवल गैर-कर प्राप्तियाँ सम्मिलित होती हैं।
(iv) उदाहरणआय करलोगों से ऋण

प्रश्न 9.
पूँजीगत व्यय और राजस्व व्यय का क्या अर्थ है? प्रत्येक के उदाहरण दीजिए।
अथवा
सरकारी व्यय को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत करने का क्या आधार है? प्रत्येक के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि क्या इस व्यय के फलस्वरूप भौतिक अथवा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा दायित्वों की कमी होती है। राजस्व व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कमी आती है। इन व्ययों की प्रकृति प्रतिवर्ष किए जाने की होती है। इसके विपरीत, पूँजीगत व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा दायित्वों में कमी आती है।

राजस्व व्यय के उदाहरण

  • कानून व्यवस्था पर व्यय
  • वेतन, पेंशन आदि।

पूँजीगत व्यय के उदाहरण

  • भवन निर्माण
  • सड़कों का निर्माण।

प्रश्न 10.
योजना व्यय और गैर-योजना व्यय का क्या अर्थ है? अथवा सरकारी व्यय को योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत करने का क्या आधार है? प्रत्येक के उदाहरण दें।
उत्तर:
सरकारी व्यय को योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि क्या इसका संबंध देश के आर्थिक विकास की योजनाओं से है। योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिसका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से है। योजना व्यय का संबंध देश के योजनात्मक विकास संबंधी कार्यक्रमों से होता है। उदाहरण के लिए, सिंचाई परियोजनाओं तथा विद्युत परियोजनाओं पर किया जाने वाला व्यय। गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। इसमें ब्याज का भुगतान, रियायतें, पुलिस, प्रशासन आदि पर किए गए व्यय सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 11.
कारण बताते हुए निम्नलिखित को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत कीजिए
(i) आर्थिक सहायता
(ii) राज्य सरकारों को दिया गया अनुदान
(iii) ऋणों की अदायगी
(iv) पाठशाला भवनों का निर्माण।
उत्तर:
(i) आर्थिक सहायता राजस्व व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कमी आती है। आर्थिक सहायता अल्पकालीन और बार-बार होने वाला व्यय है और इसकी आवृत्ति अधिक होती है।

(ii) राज्य सरकारों को दिया गया अनुदान राजस्व व्यय है क्योंकि इसके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही इसके दायित्वों में कमी आती है।

(iii) ऋणों की अदायगी पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप दायित्वों में कमी आती है।

(iv) पाठशाला भवनों का निर्माण पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप संपत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 12.
करों को प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में किस आधार पर वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर:
करों को प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि अमुक कर के भार को दूसरे व्यक्ति पर टाला जा सकता है या नहीं। यदि कर का भार दूसरे व्यक्ति पर नहीं टाला जा सकता तो वह प्रत्यक्ष कर कहलाता है; जैसे आय कर, लाभ (निगम) कर, उत्पादन शुल्क, संपत्ति कर आदि। इसके विपरीत, यदि कर का भार दूसरे व्यक्ति पर टाला जा सकता है तो वह, अप्रत्यक्ष कर कहलाता है; जैसे बिक्री कर जिसे दुकानदार पहले सरकार को अदा करता है और फिर दुकानदार अपने ग्राहक से कीमत में मिलाकर बिक्री कर वसूल करता है। इसी प्रकार अप्रत्यक्ष कर के अन्य उदाहरण हैं; जैसे मनोरंजन कर, उत्पादन शुल्क, सीमा शुल्क आदि।

प्रश्न 13.
सार्वजनिक ऋण तथा कर में अंतर बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण तथा कर में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारकरसार्वजनिक ऋण
(i) प्रकृतिकर सरकार की आय का निर्माण स्रोत है।सार्वजनिक ऋण विशेष परिस्थितियों में लिया जाता है।
(ii) मात्राकर से एक सीमित मात्रा में ही धन एकत्रित किया जाता है।सार्वजनिक ऋण से बहुत अधिक मात्रा में धन एकत्रित किया जा सकता है।
(iii) भार एवं लाभकर का भार एवं लाभ वर्तमान पीढ़ी को प्राप्त होता है।सार्वजनिक ऋणों का भार व लाभ भावी पीढ़ी को प्राप्त होता है।
(iv) वापसी का दायित्वकरों से प्राप्त रकम को वापिस नहीं करना पड़ता।सार्वजनिक ऋणों को सरकार को वापिस करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
राजस्व घाटे का क्या अर्थ है? इससे क्या समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
राजस्व घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का राजस्व व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थव्यवस्था में कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। राजस्व घाटे का अर्थ है कि सरकार को अपने नियमित राजस्व व्यय के लिए अपनी बचत को प्रयोग करना पड़ेगा। राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए सरकार को ऋण लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है, जिससे सरकार के समक्ष ऋण के भुगतान तथा ऋणों पर ब्याज के भुगतान की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसके अतिरिक्त अधिक राजस्व घाटा सरकार को अनावश्यक व्यय करने की सुविधा देता है। राजस्व घाटे से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने लगती है जिससे देश की आर्थिक प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 15.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में अंतर बताइए।
उत्तर:
(i) जब सरकार का राजस्व व्यय (योजना व्यय), राजस्व प्राप्तियों (कर राजस्व + गैर-कर राजस्व) की तुलना में अधिक होता है तो उसे राजस्व घाटा कहते हैं। राजस्व घाटा सरकार की अवबचतें (Dissavings) को दर्शाता है क्योंकि इस घाटे को सरकार अपनी पूँजीगत प्राप्तियों से उधार लेकर या अपनी परिसंपत्तियाँ बेचकर पूरा करती है।

(ii) जब बज व्यय (योजना व्यय + गैर-योजना व्यय), उधार रहित कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियों + पूँजीगत प्राप्तियों) से अधिक होता है तो इसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। गहराई से देखें तो राजकोषीय घाटा वास्तव में उधार के बराबर होता है। यह बजट को पूरा करने के लिए सरकार की उधार पर निर्भरता की मात्रा को दर्शाता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 16.
संतुलन आय पर एकमुश्त करों में परिवर्तन का प्रभाव बताइए।
उत्तर:
एकमुश्त करों में परिवर्तन का संतुलन आय पर पड़ने वाला प्रभाव कर गुणक पर निर्भर करता है, जिसे हम निम्नलिखित प्रकार से निकाल सकते हैं-
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 1
इस प्रकार संतुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तन होगा
∆Y = कर गुणक x ∆T
= \(\frac { -c }{ 1-c }\)∆T
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
संलग्न रेखाचित्र में E संतुलन बिंदु है जहाँ OY संतुलन आय है। जब कर में कमी होती है तो वैयक्तिक प्रयोज्य आय बढ़ जाती है और समस्त माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट हो जाता है। परिणामस्वरूप नया संतुलन बिंदु E’ हो जाता है और सतुलन आय बढ़कर OY’ हो जाती है।

प्रश्न 17.
क्या संतुलित बजट भारत के लिए लाभकारी है? समझाइए।
उत्तर:
यद्यपि परंपरावादी अर्थशास्त्री सदा संतुलित बजट के पक्षधर रहे हैं परंतु केज व आधुनिक अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं हैं। संतुलित बजट वह होता है जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियाँ, अनुमानित व्यय के बराबर होती हैं। दूसरे शब्दों में, करों से प्राप्त राशि, व्यय राशि के बराबर होती है। यद्यपि संतुलित बजट आर्थिक स्थायित्व (Financial Stability) लाता है और सरकार को फिजूलखर्ची से बचाता है परंतु यह आर्थिक विकास की प्रक्रिया को अवरुद्ध भी करता है। भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ बेरोज़गारी और गरीबी व्याप्त है, सरकार को व्यय बढ़ाना चाहिए ताकि रोज़गार के अधिक-से-अधिक अवसर उत्पन्न हों और अधिक उत्पादन से बेरोज़गारी दूर करने में सहायता मिले। इसलिए भारत के लिए इस समय घाटे का बजट (अनुमानित व्यय > अनुमानित प्राप्तियाँ) अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।

प्रश्न 18.
संतुलन आय पर सरकारी व्यय में परिवर्तन के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय समस्त माँग का एक भाग है। इस प्रकार सरकारी व्यय संतुलन आय को प्रभावित करता है। आय पर होने वाला प्रभाव सरकारी व्यय गुणक पर निर्भर करता है जिसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 2
संतुलन आय में परिवर्तन को निम्नलिखित सूत्र से निकाल सकते हैं राष्ट्रीय आय में परिवर्तन (∆Y) = ∆G x गुणक
= \(\frac { 1 }{ 1-c }\)∆G
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि संतुलन आय OY है। सरकारी व्यय में वृद्धि होने से संतुलन आय OY से बढ़कर OY’ हो जाती है।

प्रश्न 19.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है? घाटे के बजट के लाभ बताइए।
उत्तर:
घाटे के बजट का अर्थ-घाटे के बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय उससे अनुमानित व्यय से कम होती है। इस प्रकार,
घाटे का बजट = अनुमानित व्यय > अनुमानित आय

घाटे के बजट के लाभ-घाटे के बजट के निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. घाटे के बजट द्वारा महामंदी और बेरोज़गारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  2. अल्पविकसित देशों को घाटे के बजट से अतिरिक्त संसाधन प्राप्त होते हैं जिससे आर्थिक विकास में सहायता प्राप्त होती है।
  3. घाटे के बजट से सरकार सामाजिक कल्याण की गतिविधियाँ संचालित कर सकती है।

प्रश्न 20.
सार्वजनिक व्यय क्या है? इसके मुख्य उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय का अर्थ-सार्वजनिक व्यय (Government Expenditure) से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है।

सार्वजनिक व्यय के उद्देश्य-सार्वजनिक व्यय के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. लोगों की सामूहिक आवश्यकताओं को पूरा करना
  2. सरकारी प्रशासन को सुचारू रूप से चलाना
  3. लोगों के आर्थिक व सामाजिक कल्याण हेतु हस्तांतरण भुगतान से वृद्धि लाना
  4. पूँजीगत संपत्तियों व आधारित ढाँचे (Infrastructure) का निर्माण करना
  5. अर्थव्यवस्था में व्याप्त मंदी को नियंत्रित करना
  6. आर्थिक विकास की गति बढ़ाना
  7. क्षेत्रीय विकास में असमानता दूर करना आदि।

प्रश्न 21.
वस्तु एवं सेवा कर (GST) से आप क्या समझते हैं? पुरानी कर व्यवस्था के मुकाबले GST व्यवस्था कितनी श्रेष्ठ है? इसकी श्रेणियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वस्तु एवं सेवा कर का अर्थ-वस्तु एवं सेवा कर, देश में सबसे बड़ा कर सुधार है जो 30 जून/1 जुलाई, 2017 की अर्धरात्रि को संसद द्वारा देश में लागू किया गया। यह कर उत्पाद को सेवा प्रदायकों से सीधे ही वस्तुओं एवं सेवाओं की पूर्ति पर लगाया जाता है। यह कर पूरे भारत में एक ही प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं पर एक ही दर से लागू होता है।

पुरानी कर व्यवस्था के मुकाबले GST व्यवस्था श्रेष्ठ अनेकों मध्यवर्ती वस्तुएँ/सेवाएँ, जो GST लगने से पहले अर्थव्यवस्था में उत्पादन कर रही थीं, उनके प्रत्येक स्तर पर वर्धित मूल्य पर एवं वस्तु सेवा के कुल मूल्य पर बिना किसी आगत कर जमा (ITC) के कर लगाए जाते थे जिसमें कुल मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं/सेवाओं पर दिया गया कर सम्मिलित था। इससे करों का सोपानन हो जाता था। GST पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर लिया जाता है। यह प्रभावी रूप से पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर एक मूल्य वर्जित कर है। हमारी तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के लिए यह पूरे देश में कराधार में समता और मूल्य संवर्धित करके सिद्धांतों को सभी वस्तुओं और सेवाओं पर स्थापित करता है।

इसने केन्द्र/राज्य/केन्द्रशासित प्रदेशों के द्वारा लगाए गए विभिन्न प्रकार के करों/उपकरों को प्रतिस्थापित कर दिया है। केन्द्र द्वारा लगाए गए कुछ कर केन्द्रीय उत्पादन कर, सेवाकर, केन्द्रीय बिक्री कर और कृषि कल्याण कर, स्वच्छ भारत कर उपकर थे।

GST की शुरुआत में पैट्रोलियम पदार्थों को बाहर रखा गया था, लेकिन समय बीतने के साथ इन्हें भी GST में समाहित कर दिया। मानव उपयोग के लिए मादक पेयों पर राज्य सरकारें वस्तु और सेवा कर लगाती रहेगी।

श्रेणियाँ-GST की श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं-
1. SGST-SGST का पूर्ण रूप State Goods and Services Tax है जिसका अर्थ राज्य माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) का वह भाग होता है जो राज्य सरकार को मिलता है। इस कर को वसूलने के लिए भिन्न राज्यों ने अपने यहाँ SGST Act पारित किए हैं। यह उन्हीं सौदों पर लगता है जो उस राज्य के भीतर होते हैं।

2. CGST-CGST का पूर्ण रूप Central Goods and Services Tax है जिसका अर्थ केन्द्र माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) का वह भाग होता है जो केन्द्र सरकार को मिलता है।

3. UTGST- UTGST का पूर्ण रूप Union Territory Goods and Services Tax है जिसका अर्थ केन्द्रशासित प्रदेश का माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए GST का वह भाग होता है जो केंद्रशासित प्रदेश को मिलता है।

4. IGST-IGST का पूर्ण रूप Integrated Goods and Services Tax है जिसका अर्थ समेकित या एकीकृत माल एवं सेवा कर होता है। किसी माल की पूर्ति पर IGST तब लगाया जाता है जब वह माल किसी अन्य राज्य में भेजा जाता है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सरकारी बजट को परिभाषित कीजिए। बजट के घटक (Components) भी बताइए।
उत्तर:
बजट का अर्थ “बजट आगामी वित्तीय वर्ष में सरकार की अनमानित आय और अनमानित व्यय का मदवार विवरण होता है।” दूसरे शब्दों में, इसमें विभिन्न शीर्षकों (Head) के अंतर्गत होने वाला प्रत्याशित व्यय और व्यय के लिए साधन जुटाने के प्रस्तावित स्रोतों का ब्यौरा होता है। इस प्रकार बजट के दो भाग होते हैं-प्राप्तियाँ और व्यय। भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शरू होकर अगले वर्ष 31 मार्च को समाप्त होता है।

बजट की परिभाषाएँ:
1. प्रो० जॉनसन के अनुसार, “सरकार का बजट आगामी अवधि, जो कि आमतौर पर एक वर्ष होती है, के दौरान सरकार की अनुमानित आय और व्यय का ब्यौरा है।”

2. प्रो० रिचर्ड गुड के अनुसार, “एक सरकारी बजट सरकार के व्यय और आय संबंधी एक वित्तीय योजना है।” इस प्रकार बजट में सम्मिलित तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • यह सरकार की प्राप्तियों और व्यय के अनुमानों का विवरण होता है।
  • बजट अनुमानों की अवधि सामान्यतया एक वर्ष होती है।
  • व्यय की मदें और आय के स्रोत सरकार की नीतियों और लक्ष्यों के अनुरूप रखे जाते हैं।
  • बजट लागू करने से पहले इसे संसद अथवा विधानसभा द्वारा पास करवाना आवश्यक होता है।

बजट के घटक बजट को दो भागों-राजस्व बजट और पूँजीगत बजट में बाँटा जाता है। राजस्व बजट में सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ और इनके द्वारा पूरे किए गए खर्चों का विवरण होता है। राजस्व प्राप्तियों में दोनों राजस्व कर और गैर-राजस्व प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं। पूँजीगत बजट में सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों और भुगतानों का विवरण होता है। पुनः बजट प्राप्तियों और बजट खर्चों को राजस्व और पूँजी के संदर्भ में विभक्त किया जाता है जैसाकि आगे दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 3

प्रश्न 2.
बजट से क्या अभिप्राय है? इसके उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
बजट एक वित्तीय वर्ष, जो 1 अप्रैल से अगले वर्ष के 31 मार्च तक चलता है, की अवधि में सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और अनुमानित व्यय का ब्यौरा होता है। दूसरे शब्दों में, इसमें विभिन्न शीर्षकों (Heads) के अंतर्गत होने वाला प्रत्याशित (Expected) व्यय और व्यय के लिए साधन जुटाने के प्रस्तावित स्रोतों (Proposed Sources of Financing Expenditure) का ब्यौरा होता है। इस प्रकार बजट के दो भाग होते हैं-प्राप्तियाँ (Receipts) और व्यय (Expenditure)।

बजट के उद्देश्य सरकारी बजट सरकार की अनुमानित प्राप्तियों अथवा आय और व्ययों का एक सांख्यिकीय ब्यौरा मात्र नहीं है। यह सरकार की नीतियों और उद्देश्यों का विवरण है। बजट के कुछ मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. आर्थिक विकास-सभी देशों का मुख्य उद्देश्य अपना-अपना आर्थिक विकास करना होता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बजटीय नीति का प्रयोग किया जाता है। एक देश की विकास दर उसकी बचत और निवेश की दरों पर निर्भर करती है। इस दृष्टि से बचत की भूमिका बजट और निवेश में वृद्धि के लिए आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करने की रहनी चाहिए।

2. संसाधनों का उचित आबंटन-निजी उद्यमी सदा यही चाहेंगे कि संसाधनों का आबंटन उत्पादन के उन क्षेत्रों में किया जाए जहाँ ऊँचे लाभ मिलने की आशा हो। परंतु यह भी संभव है कि उत्पादन के कुछ क्षेत्रों द्वारा सामाजिक कल्याण में कोई वृद्धि न हो। अतः सरकार अपनी बजटीय नीति में संसाधनों के आबंटन को इस प्रकार से प्रकट करती है जिससे अधिकतम लाभ और सामाजिक कल्याण के मध्य संतुलन स्थापित किया जा सके।

3. आर्थिक स्थिरता आर्थिक स्थिरता लाना भी सरकारी बजट का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है। अर्थव्यवस्था में तेजी और मंदी के चक्र निरंतर चलते रहते हैं। सरकार अर्थव्यवस्था को इन व्यापार चक्रों से सुरक्षित रखने के लिए सदा ही वचनबद्ध होती है। बजट सरकार के हाथों में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है जिसके द्वारा सरकार अवस्फीतिक और मुद्रा स्फीतिक की स्थितियों का मुकाबला करती है। ऐसा करके सरकार आर्थिक स्थिरता की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करती है।

4. आर्थिक समानता-प्रत्येक अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमताएँ पाई जाती हैं परंतु एक सीमा से अधिक आर्थिक विषमताएँ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से अवांछनीय मानी जाती हैं। अतः आर्थिक विषमताओं में कमी लाने का महत्त्वपूर्ण उपकरण बजटीय नीति अथवा बजट है। अमीरों और गरीबों के बीच आय और धन की विषमता को कम करने के लिए कर (Tax) और सार्वजनिक व्यय के उपायों को अपनाया जा सकता है।

5. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंध-सरकार की बजट संबंधी नीति से ही यह प्रकट होता है कि वह किस प्रकार सार्वजनिक उद्यमों के माध्यम से विकास की गति को तेज करने के लिए उत्सुक है। अक्सर सार्वजनिक उद्यमों को उन क्षेत्रों में लगाने का प्रयत्न किया जाता जहाँ प्राकृतिक एकाधिकार पाया जाता है। प्राकृतिक एकाधिकार से अभिप्राय उस स्थिति से होता है जहाँ विशाल स्तर पर उत्पादन की बचतें मिलती हैं और कोई एक अकेली फर्म निम्न औसत लागत पर उत्पादन कर सकती है।

6. रोज़गार का सृजन-रोज़गार का सृजन भी सरकार की बजट संबंधी नीति का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है। इस दृष्टि से आवश्यक है कि सरकार श्रम गहन तकनीक और सड़क, बाँध, नहरें व पुल निर्माण जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करे और विशिष्ट रोज़गार कार्यक्रमों को अपनाए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3.
बजट (सरकारी) व्यय किसे कहते हैं? इसके मुख्य घटकों या अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय का अर्थ-सरकारी व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों (Heads) के अंतर्गत किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है।

बजट व्यय के घटक बजट व्यय भी दो प्रकार का होता है-
(i) राजस्व व्यय

(ii) पूँजीगत व्यय, परंतु सरकारी व्यय के संदर्भ में नोट करने वाली बात यह है कि समस्त सरकारी व्यय को पहले

  • योजना व्यय और
  • गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत किया जाता है और फिर उन्हें राजस्व व्यय तथा पूँजीगत व्यय में बाँटा जाता है। जैसे निम्नलिखित चार्ट में घटकों सहित दिखाया गया है।

मोटे रूप में व्यय को तीन प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं-
(a) योजना और गैर-योजना व्यय
(b) राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय
(c) विकासात्मक और गैर-विकासात्मक व्यय।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 4

प्रश्न 4.
राजस्व प्राप्तियों के घटकों व स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों के घटक-सरकार की राजस्व प्राप्तियों (अथवा आय) को दो भागों में बाँटा जाता है (i) करों से प्राप्त राजस्व और (ii) गैर-करों से प्राप्त राजस्व। कर राजस्व से अभिप्राय सभी प्रकार के करों से प्राप्त राजस्व (आय) से है। उदाहरण के लिए, आय कर, निगम कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क आदि। गैर-कर राजस्व से अभिप्राय कर-भिन्न राजस्व के स्रोतों (जैसे ब्याज प्राप्तियाँ, लाभ, लाभांश आदि) से है। राजस्व प्राप्तियों के स्रोत या घटक निम्नलिखित हैं
1. कर राजस्व-यह सरकार द्वारा लगाए गए सभी करों और शुल्कों से प्राप्त राशियों का योग होता है। कर, सरकारी राजस्व का मुख्य स्रोत है। कर एक कानूनी अनिवार्य भुगतान (Legal Compulsory Payment) है जो सरकार द्वारा व्यक्तियों व कंपनियों की आय व लाभ पर लगाया जाता है। बदले में मिलने वाली सरकारी सेवा का इससे कोई संबंध नहीं होता। इसी प्रकार सरकार वस्तुओं के उत्पादन पर, बिक्री पर, आयात-नि ति पर तथा धन व उपहार आदि पर कर लगाती है। करों से प्राप्त आय की सामूहिक आवश्यकताएँ (जैसे सड़के, पुल, पार्क, स्कूल, अस्पताल, कानून व्यवस्था, सुरक्षा आदि) पूरी करने व सार्वजनिक हित में व्यय करती है।

कर अदा न करने पर सरकार उचित सजा देती है। करदाता सरकार से बदले में कुछ माँग नहीं सकता। जैसे कोई अमीर व्यक्ति विद्यालय चलाने हेतु सरकार द्वारा लगाए गए कर को देने से इस आधार पर मना नहीं कर सकता कि उसकी कोई संतान नहीं है। केंद्रीय (या संघ) सरकार विभिन्न प्रकार के करों से राजस्व एकत्रित करती है; जैसे आय कर, निगम कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क, व्यय कर, धन कर, ब्याज कर, उपहार कर आदि। विभिन्न प्रकार के कर लगाने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • सरकारी राजस्व बढ़ाना
  • आय व संपत्ति में विषमता कम करना
  • स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपभोग नियंत्रित करना
  • विदेशी व्यापार को व्यवस्थित करना
  • देश के संसाधनों को सुरक्षित रखना
  • विकास कार्यों और प्रशासन चलाने के लिए आवश्यक धन जुटाना।

कर कई प्रकार के होते हैं; जैसे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर, प्रगतिशील व आनुपातिक कर आदि।

2. गैर-कर राजस्व-यह कर भी सरकार की आय (राजस्व) का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इसमें सरकारी उद्यमों द्वारा बेची गई वस्तुओं व सरकारी विभागों द्वारा प्रदत्त सेवाओं से प्राप्त आय शामिल की जाती है। गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue) के मुख्य स्रोत या घटक निम्नलिखित हैं
(i) ब्याज प्राप्तियाँ-केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्रों, स्थानीय सरकारों, निजी उद्यमों व लोगों को दिए गए ऋण पर बड़ी मात्रा में ब्याज प्राप्त होता है। यह सरकार को गैर-कर आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

(ii) लाभ और लाभांश-गत कुछ वर्षों से सरकार ने आय का एक अन्य स्रोत विकसित किया है। सरकार ने सार्वजनिक उद्यम (Public Enterprises) स्थापित किए हैं जो निजी उद्यमों की भाँति वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन करते हैं और बिक्री से लाभ अर्जित करते हैं; जैसे राष्ट्रीयकृत बैंक, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय बीमा निगम (LIC), STC, MMTC, BHEL इत्यादि। इसी प्रकार सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र में उद्यमों के किए गए निवेश से लाभांश भी प्राप्त होता है।

(iii) फीस और जर्माना सरकार को विभिन्न प्रकार की फीस वसल करने से भी कछ आय होती है; जैसे स्कल में पढ़ाई की फीस, अस्पताल में कार्ड बनवाने की फीस, भूमि की रजिस्ट्री करवाने की फीस, पासपोर्ट बनवाने की फीस, कोर्ट फीस, स्कूटर कार चलाने हेतु लाइसेंस बनवाने की फीस आदि। इन्हें प्रशासकीय राजस्व (Administrative Revenue) कहते हैं क्योंकि यह प्रशासकीय कार्यों से प्राप्त होती है। इसी प्रकार कानून तोड़ने वालों से जुर्माने के रूप में भी सरकार को आय प्राप्त होती है।

(iv) विशेष आकलन-जब सरकार किसी विशेष क्षेत्र में सड़कें, नालियाँ व पार्क बनवाती है या सीवरेज व्यवस्था उपलब्ध करवाती है तो इसके फलस्वरूप आस-पास स्थित मकानों की कीमतें व किराए बढ़ जाते हैं जो मकान मालिकों की मेहनत का परिणाम नहीं है। इसलिए सरकार ऐसे मकान मालिकों से उनकी संपत्ति को पहुँचने वाले लाभ का विशेष आकलन करके सुधारों पर किए गए व्यय का कुछ भाग वसूल करती है। इसे विशेष आकलन (Special Assessment) कहते हैं जो सरकार की आय का एक स्रोत बन जाता है।

(v) विदेशी सहायता अनुदान-सरकार को विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे WHO, UNESCO आदि) से अनुदान, उपहार, भेंट और योगदान के रूप में वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। यह भी गैर-कर राजस्व का एक स्रोत है।

3. पूँजीगत प्राप्तियों के स्रोत-यह पहले भी बताया जा चुका है कि सरकार की वे प्राप्तियाँ जो (i) देनदारियाँ पैदा करती हैं या (ii) जो परिसंपत्तियाँ कम कर देती हैं पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं। सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं
(i) आंतरिक व विदेशी ऋण-सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए (a) खुले बाज़ार से, (b) भारतीय रिज़र्व बैंक से, (c) विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे विश्व बैंक, एशियन विकास बैंक) से कर्ज लेती है। उधार से एकत्रित की गई धनराशि पूँजीगत प्राप्ति मानी जाती है, क्योंकि इसमें सरकार की देनदारी बढ़ती है।

(ii) ऋणों व अग्रिमों की वसूली केंद्र सरकार द्वारा (a) राज्य सरकारों व केंद्र-शासित प्रदेशों, (b) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और (c) विदेशी सरकारों को जो ऋण व अग्रिम, भूतकाल में दिए गए थे, उनकी वसूली, पूँजीगत प्राप्ति का अंग है क्योंकि इससे वित्तीय परिसंपत्ति कम होती है।

(iii) विनिवेश-सरकार विनिवेश के माध्यम से भी धन इकट्ठा करती है। विनिवेश (Disinvestment) का अर्थ है सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुने हुए उद्यमों के शेयर्ज (Shares) पूर्ण रूप या आंशिक रूप से बेचना। इसके फलस्वरूप सरकार की परिसंपत्तियों में कमी आ जाती है। कभी-कभी विनिवेश को निजीकरण (Privatisation) भी कहा जाता है क्योंकि इससे सरकारी उद्यमों का स्वामित्व, निजी क्षेत्र को स्थानांतरित हो जाता है।

(iv) लघु बचतें इसमें छोटी-छोटी बचतें; जैसे डाकघर बचत खातों में जमा सामान्य भविष्य निधि (GPF) में जमा, राष्ट्रीय बचत योजना (NSS) में जमा, किसान विकास पत्रों के रूप में जमा राशियाँ शामिल की जाती हैं।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक (सरकारी) व्यय का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
1. राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय-वे सभी व्यय जो पूँजी का निर्माण करते हैं अथवा दायित्वों में कमी करते हैं पूँजीगत व्यय की श्रेणी में वर्गीकृत किए जाते हैं। वे सभी व्यय जो न तो संपत्तियों का निर्माण करते हैं और न ही दायित्वों में कमी करते हैं राजस्व व्यय की श्रेणी में वर्गीकृत किए जाते हैं।

पूँजीगत व्यय के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • स्कूल के भवन का निर्माण।
  • सड़कों का निर्माण।

राजस्व व्यय के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • वेतन।
  • ब्याज का भुगतान।

2. विकासात्मक और गैर-विकासात्मक व्यय विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसका संबंध देश के आर्थिक विकास से होता है। विकासात्मक व्यय के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • शिक्षा
  • चिकित्सा
  • उद्योग
  • कृषि
  • यातायात
  • बिजली।

गैर-विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसका संबंध सरकारी प्रशासन तथा कल्याणकारी कार्यक्रमों से है। गैर-विकासात्मक व्यय के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • कानून व्यवस्था
  • वेतन
  • वृद्धावस्था पेंशन
  • ऋण पर ब्याज।

3. योजना व्यय और गैर-योजना व्यय-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से है। योजना व्यय का संबंध देश के योजनात्मक विकास संबंधी कार्यक्रमों से होता है। उदाहरण के लिए, सिंचाई परियोजनाओं तथा विद्युत परियोजनाओं पर किया जाने वाला व्यय। गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक
विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। इसमें ब्याज का भुगतान, रियायतें, पुलिस प्रशासन आदि पर किए गए व्यय सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए। (क) विकासात्मक व्यय और गैर-विकासात्मक व्यय। (ख) योजना व्यय और गैर-योजना व्यय।
उत्तर:
(क) विकासात्मक व्यय और गैर-विकासात्मक व्यय में अंतर-जब किसी व्यय से वस्तुओं व सेवाओं के प्रवाह में प्रत्यक्ष वृद्धि होती है तो यह विकासात्मक व्यय है अन्यथा गैर-विकासात्मक व्यय होता है।
1. विकासात्मक व्यय ऐसे कार्यों पर व्यय जिनका देश के आर्थिक व सामाजिक विकास से प्रत्यक्ष संबंध होता है, विकासात्मक व्यय कहलाता है; जैसे कृषि, औद्योगिक विकास, शिक्षा, चिकित्सा, ग्रामीण विकास, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि से संबंधित क्रियाओं पर व्यय, विकासात्मक व्यय कहलाता है।

2. गैर-विकासात्मक व्यय-सरकार का आवश्यक सामान्य सेवाओं पर व्यय, गैर-विकासात्मक व्यय कहलाता है। उदाहरण के लिए, प्रशासन, कानून व्यवस्था, पुलिस, जेल, न्यायाधीशों, कर वसूली आदि पर व्यय गैर-विकासात्मक व्यय कहलाता है। यद्यपि ऐसा व्यय राष्ट्रीय उत्पाद में प्रत्यक्ष योगदान नहीं देता फिर भी आर्थिक विकास की गति देने में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देता है। इस दृष्टि से गैर-विकासात्मक व्यय, विकास प्रक्रिया का एक आवश्यक भाग है।

(ख) योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में अंतर
1. योजना व्यय इससे अभिप्राय उस अनुमानित व्यय से है जिसे चालू पंचवर्षीय योजना में शामिल परियोजनाओं और कार्यक्रमों (projects and programmes) के लागू करने पर व्यय करने का प्रावधान बजट में किया गया हो। बजट में ऐसे व्ययों का प्रावधान, ‘योजना व्यय’ कहलाता है। इसमें तात्कालिक विकास और निवेश मदें शामिल होती हैं; जैसे

  • सड़कों व पुलों का निर्माण
  • विद्युत उत्पादन
  • सिंचाई व ग्रामीण विकास
  • विज्ञान, टेक्नॉलोजी तथा पर्यावरण आदि।

इसका प्रयोग अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित केंद्रीय योजना के वित्तीयन (financing) पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों की योजनाओं हेतु केंद्र सरकार द्वारा दी गई सहायता भी योजना व्यय में शामिल की जाती है। योजना व्यय को राजस्व व्यय और पूँजी व्यय में बाँटा जाता है।

2. गैर-योजना व्यय चालू पंचवर्षीय योजना से संबंधित व्यय को छोड़कर सरकार के अन्य सब व्यय, गैर-योजना व्यय कहलाते हैं। ये व्यय मुख्यतः सरकारी प्रशासन व सामान्य गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने पर किए जाते हैं। ऐसे व्यय प्रत्येक सरकार के लिए आवश्यक होते हैं, चाहे योजना हो या न हो। उदाहरण के लिए, कोई भी सरकार लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने तथा विदेशी आक्रमण से देश को बचाने जैसे अपने बुनियादी कर्तव्यों से बच नहीं सकती। अतः इसके लिए सरकार को पुलिस, न्यायाधीशों, सेना आदि पर व्यय करना पड़ता है। इसी प्रकार सरकार को सरकारी विभागों को सामान्य रूप से चलाने तथा आर्थिक व सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने पर व्यय करने पड़ते हैं।

प्रश्न 7.
संतुलित बजट क्या है? इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
संतुलित बजट (Balanced Budget)-संतुलित बजट वह बजट होता है जिसमें सरकार की अनुमानित आय (राजस्व प्राप्तियाँ अथवा आय + पूँजीगत प्राप्तियाँ अथवा आय) के बराबर होती हैं। अर्थात्
संतुलित बजट : अनुमानित आय = अनुमानित व्यय

संतुलित बजट के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Balanced Budget)-

  • सरकार की फिजूलखर्ची पर प्रभावी रूप से रोक लगाने की दृष्टि से संतुलित बजट को उपयोगी माना जाता है।
  • संतुलित बजट के द्वारा अर्थव्यवस्था में आने वाले आर्थिक उतार-चढ़ावों से बचा जा सकता है।
  • मंदी को दूर करने के लिए घाटे का बजट बनाना आवश्यक नहीं है।

संतुलित बजट के विपक्ष में तर्क (Arguments against Balanced Budget)

  • ऐसी स्थितियाँ हो सकती हैं जिनमें अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने में केवल घाटे का बजट ही सहायक हो सकता है।
  • केज के अनुसार, कई बार तो संतुलन बनाने के लिए अपनाए गए बजटीय उपाय ही आगे चलकर बजटीय घाटे का कारण बन जाते हैं।
  • इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि संतुलित बजट सरकार के द्वारा वित्तीय अनुशासन और कुशल वित्तीय प्रशासन लाने वाला सिद्ध हो।
  • पहले से ही यह नियम बनाकर चलना कि बजट हमेशा संतुलित रहना चाहिए, सरकार की स्वतंत्रता छीन लेता है और सरकार उचित राजकोषीय नीति का प्रयोग नहीं कर पाती।

प्रश्न 8.
संतुलित बजट, बचत बजट और घाटे के बजट का विवरण दीजिए।
उत्तर:
बजट की तीन श्रेणियाँ होती हैं संतुलित बजट, बचत बजट और घाटे का बजट। प्रत्येक का विवरण इस प्रकार से है
1. संतुलित बजट-सरकार का वह बजट जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियाँ (राजस्व व पूँजी) सरकार के अनुमानित व्यय के बराबर दिखाई गई हों, संतुलित बजट कहलाता है।
उदाहरण के लिए, सरलता के लिए मान लीजिए कि सरकार के राजस्व (आय) का एकमात्र स्रोत एकमुश्त कर है। यदि कर राजस्व, सरकारी व्यय के बराबर है तो यह संतुलित बजट कहलाएगा।
सांकेतिक रूप में संतुलित बजट वह है जिसमें
संतुलित बजट : अनुमानित प्राप्तियाँ = अनुमानित व्यय
परंपरावादी (Classical) अर्थशास्त्री सदा संतुलित बजट के पक्षधर रहे हैं परंतु केञ्ज व आधुनिक अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं रहे। उनके मत में संतुलित बजट के कुल व्यय (सरकारी तथा निजी व्यय), पूर्ण रोज़गार की अवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक व्यय से कम रहता है। इसलिए सरकार ने इस अंतराल को भरने के लिए अपना व्यय बढ़ाना चाहिए अर्थात् घाटे का बजट अपनाना चाहिए।

असंतुलित बजट वह बजट है जिसमें सरकार का अनुमानित व्यय, सरकार की अनुमानित प्राप्तियों से कम या अधिक दिखाया गया हो। असंतुलित बजट के दो रूप हो सकते हैं-सरकारी व्यय या तो सरकारी प्राप्तियों से अधिक है या कम है।

2. बचत (आधिक्यपूर्ण) बजट-जब बजट में सरकार की प्राप्तियाँ सरकार के खर्चों से अधिक दिखाई जाती हैं तो उस बजट को बचत का बजट,कहते हैं। दूसरे शब्दों में, बचत बजट उस स्थिति का प्रतीक है जब सरकार का राजस्व, सरकार के व्यय से अधिक होता है। सांकेतिक रूप में
बचत बजट = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ > अनुमानित सरकारी व्यय
आधिक्यपूर्ण (बचत) बजट दर्शाता है कि सरकार अधिक मुद्रा उगाह रही है और आर्थिक प्रणाली में उससे कम मुद्रा डाल रही है। फलस्वरूप समग्र माँग (Aggregate Demand) गिरने लगती है जिससे कीमत स्तर भी गिरने लगता है। अतः मंदी या अवस्फीतिक (Deflation) की स्थिति में, बचत बजट से बचना चाहिए (अर्थात् घाटे का बजट अपनाना चाहिए)। हाँ तेजी व स्फीतिकारी (Inflationary) स्थिति में बचत का बजट लाभकारी व उचित माना जाता है।

3. घाटे का बजट-जब बजट में सरकारी व्यय, सरकारी प्राप्तियों से अधिक दिखाया जाता है तो उस बजट को घाटे का बजट कहते हैं। दूसरे शब्दों में, घाटे के बजट में सरकारी व्यय, सरकार की आय से अधिक होता है। सांकेतिक रूप में
घाटे का बजट = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ < अनुमानित सरकारी व्यय
विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए घाटे के बजट के दो विशेष लाभ हैं-

  • यह आर्थिक संवृद्धि की गति को बढ़ाता है और
  • यह लोगों के कल्याणकारी कार्यक्रम को लागू करने में सहायक है।

साथ ही घाटे के बजट के दोष भी हैं; जैसे-

  • यह सरकार की अनावश्यक और फिजूलखर्ची को बढ़ाता है और
  • इससे वित्तीय और राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होने का डर बना रहता है।

संक्षेप में, तेजी (निरंतर बढती हुई कीमतों की स्थिति में बचत वाला बजट और मंदी (कीमतों और रोजगार स्थिति में घाटे वाला बजट अपनाना चाहिए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
बजटीय घाटा किसे कहते हैं? इसे कैसे पूरा किया जाता है?
उत्तर:
बजटीय घाटा-बजटीय घाटे से अभिप्राय सरकार के कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजी व्यय) को कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + पूँजी प्राप्तियाँ) से अधिक होने से है। दूसरे शब्दों में जब सरकार की चालू राजस्व प्राप्तियों और निवल पूँजी प्राप्तियों का जोड़, कुल व्यय से कम रह जाता है तो उसे बजटीय घाटा (या कुल बजट घाटा) कहते हैं। सांकेतिक रूप में
बजटीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी वर्ष के लिए केंद्रीय बजट में कुल व्यय 90,000 करोड़ रुपए और कुल प्राप्तियाँ 80,000 करोड़ रुपए दिखाई गई है। ऐसी स्थिति में बजटीय घाटा 10,000 (90,000-80,000) करोड़ रुपए होगा क्योंकि कुल प्राप्तियाँ कुल व्यय से 10,000 करोड़ रुपए कम रह गई हैं।

बजट घाटे को कैसे पूरा किया जाता है?
(1) घाटे की वित्त व्यवस्था-बजट घाटे को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार अपने ट्रेजरी बिल (Treasury Bill) जारी करके बदले में भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार ले लेती है। दूसरे शब्दों में, सरकार अपने कुल खर्चे और कुल प्राप्तियों के अंतर को पाटने की वित्त-व्यवस्था, रिज़र्व बैंक से उधार लेकर करती है और रिज़र्व बैंक इसके लिए नए करेंसी नोट छापता है। इसे तकनीकी भाषा में घाटे की वित्त-व्यवस्था (Deficit Financing) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, घाटे की । वित्त-व्यवस्था से अभिप्राय बजटीय घाटे को नए करेंसी नोट छापकर पूरा करने से है। फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति (Supply) में वृद्धि होने से कीमतें लगातार बढ़ने लगती हैं और यह स्फीतिकारी स्थिति कई अन्य समस्याओं को जन्म देती उपाय (नए करेंसी नोट छापने) का तभी प्रयोग करना चाहिए जब उसके पास कोई अन्य विकल्प न हो।

(2) ऋण लेना-बजट घाटे को घरेलू बाज़ार व विदेशों से ऋण लेकर भी पूरा किया जा सकता है। बजट के घाटे से संबंधित तीन अवधारणाएँ हैं-राजस्व घाटा, राजकोषीय घाटा और प्राथमिक घाटा।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 5

घाटा सांकेतिक रूप में[-

  1. राजस्व घाटा = कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
  2. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – उधार के बिना कुल प्राप्तियाँ
  3. प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – व्याज अदायगियाँ

प्रश्न 10.
राजस्व घाटा किसे कहते हैं? इसके प्रभाव तथा इसको दूर करने के उपाय बताएँ।
उत्तर:
राजस्व घाटा-राजस्व घाटे से अभिप्राय सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ (कर राजस्व + गैर-कर राजस्व) की तुलना में राजस्व व्यय (योजना राजस्व + गैर-योजना राजस्व व्यय) के अधिक होने से है। संक्षेप में, सरकार जब प्राप्त किए गए राजस्व से अधिक व्यय करती है तो उसे राजस्व घाटा सहन करना पड़ता है। ध्यान रहे, राजस्व घाटे में केवल वे मदें शामिल की जाती हैं जो सरकार की चालू (Current) राजस्व आय और व्यय को प्रभावित करती है। सांकेतिक रूप में-
राजस्व घाटा = कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
राजस्व घाटे को पूँजीगत प्राप्तियों से अर्थात् उधार लेकर या परिसंपत्ति के विक्रय से पूरा किया जाता है। राजकोषीय घाटा स्थिर (या उतना) रहने पर, अधिक राजस्व घाटा, कम राजस्व घाटे की तुलना में बदतर (Worse) होगा क्योंकि इससे भविष्य में पुनर्भुगतान (Repayment) का भार बढ़ जाएगा जबकि इतनी राशि निवेश करने से लाभ सृजित होगा।

प्रभाव-
(i) राजस्व घाटा सरकार की अवबचतों (Dissavings) को दर्शाते हैं क्योंकि इस घाटे को सरकार अपनी पूँजी प्राप्तियों से उधार लेकर या अपनी परिसंपत्तियाँ बेचकर पूरा करती है।

(ii) चूँकि सरकार अपने आधिक्य उपभोग व्यय को मुख्यतः पूँजी खाते से उधार लेकर पूरा करती है। इसलिए स्फीतिकारी स्थिति उत्पन्न होने का भय बना रहता है।

(iii) राजस्व घाटे को पूरा करने हेतु लिए गए ऋण से कर्ज का भार और अधिक बढ़ जाएगा क्योंकि ऋण की राशि और उस पर ब्याज वापस करना होगा। फलस्वरूप भविष्य में राजस्व घाटा और बढ़ाता जाएगा और यह कुचक्र का रूप धारण कर लेगा।

उपाय-

  1. सरकार अमीर लोगों पर लगे करों की दर बढ़ाए और नए कर लगाएँ।
  2. सरकार को खर्चे कम करने चाहिएँ और अनावश्यक खर्चों से बचना चाहिए।

प्रश्न 11.
राजकोषीय घाटा क्या है? इसके प्रभाव तथा इसको दूर करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटा-राजकोषीय घाटे का अर्थ है सरकार के कुल व्यय (योजना व्यय + गैर-योजना व्यय) का उधार रहित कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + उधार बिना पूँजी प्राप्तियाँ) से अधिक हो जाना। सांकेतिक रूप में-
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – उधार के बिना कुल प्राप्तियाँ
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ-उधार रहित पूँजी प्राप्तियाँ

वास्तव में राजकोषीय घाटा उधार के बराबर होता है।
राजकोषीय घाटे के संबंध में नोट करने वाली बात यह है कि इसमें उधार (Borrowing), जो पूँजी प्राप्तियों का एक घटक है, को शामिल नहीं किया जाता है।

प्रभाव – राजकोषीय घाटा सरकार की उधार संबंधी जरूरतों को प्रकट करता है। यह बजट व्यय को पूरा करने के लिए सरकार की उधार पर निर्भरता की मात्रा को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि राजकोषीय घाटे की संपूर्ण राशि व्यय पूरा करने के लिए उपलब्ध नहीं होती क्योंकि इसका एक भाग ब्याज अदा करने में लग जाता है। पुनः जैसे-जैसे सरकार द्वारा लिए गए ऋण की मात्रा बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे भविष्य में ब्याज सहित ऋण वापस करने की सरकार की देनदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं जिसके फलस्वरूप राजकोषीय घाटा और भी बढ़ता जाता है। अंत में यह एक कुचक्र का रूप धारण कर लेता है। अतः सरकार को राजकोषीय घाटा यथासंभव न्यूनतम रखना चाहिए।

उपाय – जब सार्वजनिक व्यय और राजस्व व्यय में कटौती करने पर भी राजकोषीय घाटा दूर नहीं होता तो इसे निम्नलिखित दो उपायों ऋण और मौद्रिक प्रसार-से दूर करना चाहिए।
1. उधार-आंतरिक और विदेशी स्रोतों से उधार लेकर घाटे को पूरा करना चाहिए।

2. घाटे की वित्त-व्यवस्था (अर्थात् नए करेंसी नोट छापना)-राजकोषीय घाटे को रिज़र्व बैंक से उधार लेकर पूरा किया जा सकता है जो सरकारी प्रतिभूतियों (Securities) के बदले में नए करेंसी नोट छापकर सरकार को उधार देता है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि घाटे की वित्त-व्यवस्था से मुद्रास्फीति तथा अन्य कई समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। अतः इसका यथासंभव कम-से-कम सहारा लेना चाहिए।

संख्यात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बजट घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) कुल व्यय1,00,000
(ii) कुल प्राप्तियाँ92,000

हल:
बजट घाटा = कुल व्यय > कुल आय
Budget Deficit = Total Expenditure >Total Receipts
or
Budget Deficit = TE (RE + CE) > TR (RR + CR)
बजट घाटा = 1,00,000 > 92,000 करोड़ रुपए
= 8000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से बजट घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) राजस्व व्यय60,000
(ii) पूँजीगत व्यय30,000
(iii) राजस्व प्राप्तियाँ50,000
(iv) पूँजीगत प्राप्तियाँ25,000

हल:
बजट घाटा = TE (RE + CE) > TR (RR + CR)
= 60,000 + 30,000 > 50,000 + 25,000 करोड़ रुपए
= 90,000 > 75000 करोड़ रुपए
= 15,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से राजस्व घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) राज प्राप्तियाँ80,000
(ii) राजस्व व्यय90,000

हल:
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ (जब राजस्व व्यय > राजस्व प्राप्तियाँ)
(Revenue Deficit) = (RE) – (RR) जब RE > RR
= 90,000 – 80,000 करोड़ रुपए
= 10,000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से राजकोषीय घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) कुल व्यय75,000
(ii) राजस्व प्राप्तियाँ60,000
(iii) गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ5,000

हल:
राजकोषीय घाटा = बजट व्यय या कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – ऋण छोड़कर बजट प्राप्तियाँ या कुल प्राप्तियाँ (राजस्व प्राप्तियाँ + ऋण छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ) जब कुल व्यय > ऋण छोड़कर कुल प्राप्तियाँ
= 75,000 – (60,000 + 5000) करोड़ रुपए
= 75,000 – 65,000 करोड़ रुपए
= 10,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 5.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करें-

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) राजकोषीय घाटा10,000
(ii) सरकार द्वारा ब्याज का भुगतान600

हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
PD = FD – IP
= 10,000 – 600 करोड़ रुपए
= 9400 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 6.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 20,000 करोड़ रुपए है और व्याज भुगतान 8,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 20,000 + 8,000 करोड़ रुपए
= 28,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 7.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 20,000 करोड़ रुपए है और ब्याज भुगतान 7,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 20,000 + 7,000 करोड़ रुपए
= 27,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 8.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 60,000 करोड़ रुपए है और ऋण की वसूली 80,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = राजस्व घाटा – ऋण की वसूली
= 60,000 – 80,000 करोड़ रुपए
= (-)20,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 9.
एक सरकारी बजट 5,600 करोड़ रुपए का प्राथमिक घाटा दिखाता है। ब्याज भुगतान पर राजस्व व्यय 599 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा ज्ञात करें।
हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
5,600 करोड़ रुपए = राजकोषीय घाटा – 599 करोड़ रुपए
राजकोषीय घाटा = 5,600 करोड़ रुपए + 599 करोड़ रुपए = 6,199
= 6,199 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 10.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 60,000 करोड़ रुपए है और उधार 80,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = उधार और अन्य दायित्व = 80,000 करोड़ रुपए

प्रश्न 11.
एक सरकारी बजट में 4,400 करोड़ रुपए का प्राथमिक घाटा है। व्याज भुगतान पर राजस्व व्यय 400 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 4,400 + 400
= 4,800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 12.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 10,000 करोड़ रुपए है और ब्याज भुगतान 8,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल : राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 10,000 + 8,000
= 18,000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 13.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 50,000 करोड़ रुपए है और उधार 75,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = उधार = 75,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 14.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 500 करोड़ रुपए है तथा ब्याज का भुगतान 200 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज का भुगतान
500 करोड़ रुपए = राजकोषीय घाटा – 200 करोड़ रुपए
राजकोषीय घाटा = 500 करोड़ रुपए + 200 करोड़ रुपए
= 700 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 15.
सरकार के बजट में कुल व्यय 1500 करोड़ रुपए है। राजस्व आय 1100 करोड़ रुपए है तथा गैर-ऋण पूँजी आय 300 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा बताइए।
हल:
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ (ऋण के अतिरिक्त)
= 1500 करोड़ रुपए – (1100 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए)
= 1500 करोड़ रुपए – 1400 करोड़ रुपए
= 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 16.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। राष्ट्रीय आय में क्या वृद्धि होगी यदि
(a) सरकारी व्यय में 1000 रुपए की वृद्धि होती है?
(b) कर में 1000 रुपए की कटौती होती है?
हल:
(a) सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-c}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}\) = 5
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 5 × 1000
= 5,000 रुपए
वैकल्पिक रूप से,
राष्ट्रीय आय में वृद्धि =\(\frac{1}{1-c}\) ∆G = \(\frac{1}{1-0.8}\) × 1000 = \(\frac{1}{0.2}\) × 1000
= 5,000 रुपए

(b) कर गुणक = \(\frac{-c}{1-c}\) = \(\frac{0.8}{1-0.8}\) = \(\frac{0.8}{0.2}\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 4 × 1000
= 4,000 रुपए
वैकल्पिक रूप से,
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = \(\frac{-c}{1-c}\) ∆T = \(\frac{0.8}{1-0.8}\) × 1000
= 4,000 रुपए

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु-विनिमय प्रणाली क्या है? इसकी क्या कमियाँ हैं?
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली का अर्थ मुद्रा का आविष्कार होने से पूर्व, वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन प्रत्यक्ष रूप से विनिमय के आधार पर होता था। इसे ही वस्तु-विनिमय प्रणाली कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, वस्तु-विनिमय प्रणाली से अभिप्राय वस्तुओं के ऐसे व्यापार से है जहाँ बिना मुद्रा के प्रत्यक्ष रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ लेन-देन किया जाता है। वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के बदले वस्तुएँ खरीदी जाती हैं। उदाहरणार्थ, गेहूँ के बदले कपड़ा प्राप्त करना, घोड़ों का विनिमय मकान से करना आदि। इसी प्रकार, एक अध्यापक को उसकी सेवाओं का भुगतान गेहूँ अथवा चावल के रूप में किया जा सकता है। ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें लेन-देन वस्तुओं के माध्यम से संपन्न होते हैं, वस्तु-विनिमय अर्थव्यवस्था (Barter Economy) अथवा C-C Economy कहलाती है।

वस्तु-विनिमय की कमियाँ-वस्तु-विनिमय की निम्नलिखित कमियाँ हैं-
1. मूल्य के सामान्य मापदंड का अभाव-वस्तु-विनिमय प्रणाली में ऐसी सामान्य इकाई का अभाव होता है, जिसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का माप किया जा सके जैसे एक मीटर कपड़े के बदले में कितना अनाज देना चाहिए या एक मकान के बदले कितनी जमीन का टुकड़ा आता है या एक जोड़ी जूते के बदले कितना घी-दूध देना चाहिए, यह जानना चाहे असंभव न हो, परंतु
कठिन अवश्य है।

2. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव-वस्तु का वस्तु के साथ विनिमय तभी संभव हो सकता है जब दो ऐसे व्यक्ति परस्पर विनिमय करें जिन्हें एक-दूसरे की आवश्यकता हो; जैसे एक व्यक्ति के पास भैंस है और उसे चने चाहिएँ तो उसे ऐसा व्यक्ति चाहिए जिसके पास चने हों। इस प्रकार दोहरे संयोग की समस्या उत्पन्न होती है।

3. वस्तु की अविभाज्यता-जो वस्तुएँ अविभाज्य होती हैं, उनकी विनिमय दर का निर्धारण करना विनिमय प्रणाली के अंतर्गत एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर देता है; जैसे एक भैंस तथा कुत्तों का विनिमय करने में कठिनाई उपस्थित होती है।

4. संचय की समस्या-वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत वस्तुओं का संग्रह करके रखने की समस्या उत्पन्न होती है; जैसे अनाज, फल, सब्जियाँ आदि का संग्रह करके रखने की समस्या सामने आती है।

5. भविष्य में भुगतान करने की समस्या-वर्तमान में उधार ली गई वस्तुओं के भुगतान के संबंध में समस्या उत्पन्न हो सकती है। भुगतान की जाने वाली वस्तु की किस्म को लेकर विवाद उत्पन्न हो सकता है। ब्याज का भुगतान करने की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 2.
मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं? मुद्रा किस प्रकार वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती है?
उत्तर:
मुद्रा के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  • विनिमय का माध्यम।
  • मूल्य का मापक।
  • स्थगित भुगतान का आधार।
  • मूल्य संचय।

मुद्रा निम्नलिखित प्रकार से वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती है-
1. विनिमय का माध्यम मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में विनिमय सौदों को दो भागों क्रय और विक्रय में विभाजित करती है। मुद्रा का यह कार्य आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई को दूर करता है। लोग अपनी वस्तुओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं और बेचने से प्राप्त रकम से अन्य वस्तुओं व सेवाओं का क्रय करते हैं।

2. मूल्य मापक-मुद्रा एक सामान्य मूल्य मापक के रूप में काम करती है जिसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य व्यक्त किए जाते हैं। मुद्रा में व्यक्त कीमतों के आधार पर दो वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों की तुलना करना सरल हो जाता है। इस प्रकार मुद्रा विनिमय के सामान्य मापक के अभाव की समस्या हल कर देती है।

3. स्थगित भुगतान का मानक-चूँकि मुद्रा को निश्चित एवं मानकित इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है और सामान्यतः मुद्रा का मूल्य समय के साथ स्थिर रहता है। मुद्रा स्थगित भुगतान का मानक होती है। इस प्रकार मुद्रा ने वस्तु-विनिमय की उधार के लेन-देन की कठिनाई दूर करके भविष्य में भुगतान किए जाने वाले सौदों को संभव बना दिया है।

4. मूल्य के भंडार के रूप में जब मुद्रा को मूल्य की इकाई और भुगतान का माध्यम मान लिया जाता है तो मुद्रा सहज ही मूल्य के भंडार का कार्य करने लगती है। यद्यपि संपत्तियों को मुद्रा के अतिरिक्त किसी भी रूप में संचित किया जा सकता है, परंतु मुद्रा संपत्ति (क्रय-शक्ति) को संचय करने का सबसे किफायती व सुविधाजनक तरीका है। इस प्रकार मुद्रा ने मूल्य संचय के रूप में वस्तु-विनिमय के मूल्य संचय की कठिनाई दूर कर दी है।

प्रश्न 3.
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर:
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग (Transaction Demand for Money) से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में संव्यवहारों को पूरा करने के लिए मुद्रा की माँग से है।
सूत्र के रूप में, मुद्रा की संव्यवहार माँग \(\left(\mathrm{M}_{\mathrm{T}}^{d}\right)\) = k.T
यहाँ, k = धनात्मक अंश
T = एक इकाई समयावधि में संव्यवहारों का कुल मौद्रिक मूल्य (Total Value of Transactions Over Unit Period)
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग और किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य में घनिष्ठ संबंध है। यदि अर्थव्यवस्था में किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य अधिक है तो मुद्रा की माँग भी अधिक होगी।

प्रश्न 4.
मान लीजिए कि एक बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रुपए के वादे का वहन करता है, तत्काल कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है। यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है, तो बंधपत्र की कीमत क्या होगी?
हल:
माना बंधपत्र की कीमत = A
ब्याज की दर = 5%
समय = 2 वर्ष
पहले वर्ष का ब्याज = (\(\frac{\mathrm{A} \times 5}{100}\)) = \(\frac { 5A }{ 100 }\)
दूसरे वर्ष के लिए बंधपत्र की कीमत = A + \(\frac { 5A }{ 100 }\)
= A + \(\frac { 5A }{ 100 }\)
= A + \(\frac { A }{ 20 }\)
= \(\frac { 21A }{ 20 }\)
दूसरे वर्ष का ब्याज = \(\frac{\frac{21 \mathrm{~A}}{20} \times 5}{100}\)
= \(\frac{21 \mathrm{~A}}{20} \times \frac{1}{20}=\frac{21 \mathrm{~A}}{400}\)
कुल ब्याज = \(\frac{5 \mathrm{~A}}{100}+\frac{21 \mathrm{~A}}{400}\)
= \(\frac{20 \mathrm{~A}+21 \mathrm{~A}}{400}=\frac{41 \mathrm{~A}}{400}\)
चूँकि, = \(\frac { 41A }{ 400 }\) = 500
A = \(\frac{500 \times 400}{41}\)
= 4,878
अतः बंधपत्र की कीमत = 4,878 रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 5.
मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध क्यों होता है?
उत्तर:
मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध होता है। इसका अर्थ यह है कि अधिक ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग कम होगी और कम ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग अधिक होगी। यदि ब्याज दर अधिक है तो लोग बंधपत्र अधिक खरीदेंगे और कम मुद्रा रखना चाहेंगे। यदि ब्याज दर कम है तो लोग बंधपत्र में निवेश कम अथवा नहीं करेंगे और अपने पास अधिक मुद्रा रखेंगे।

प्रश्न 6.
तरलता पाश क्या है?
उत्तर:
मुद्रा की सट्टे की माँग ब्याज की दर का ऋणात्मक फलन होती है। ब्याज की दर जितनी ऊँची होती है मुद्रा की सट्टे की माँग उतनी ही कम होगी, क्योंकि बहुत ऊँची ब्याज की दर पर लोग अपनी समस्त मुद्रा राशि आय अर्जित करने वाले बंधपत्र में परिवर्तित कर देते हैं। इसी प्रकार ब्याज की दर के घटने पर लोग बंधपत्र में निवेश कम करेंगे। ब्याज की दर मुद्रा अधिशेष की अवसर लागत अथवा कीमत है। यदि ब्याज की दर पहले से ही काफी निम्न है तो इस दर पर सट्टे की माँग पूर्णतया लोचदार बन जाती है क्योंकि लोग यह अनुभव करते हैं कि ब्याज की दर और नीचे नहीं गिरेगी। इस स्थिति में बंधपत्रों में मुद्रा निवेश करना अनाकर्षक और जोखिमपूर्ण हो जाता है। इस स्थिति को तरलता पाश (Liquidity Trap) कहते हैं। तरलता पाश को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग 1
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि ORH ऊँची ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग शून्य है क्योंकि हर व्यक्ति बंधपत्रों में निवेश करना चाहेगा। जैसे-जैसे ब्याज दर कम होती जाती है, मुद्रा की सट्टा माँग बढ़ती जाएगी। जब ब्याज दर ORm पर निम्नतम होती है तो मुद्रा का सट्टा माँग वक्र एक सीधी रेखा बन जाता है और मुद्रा की सट्टा माँग अनंत (∞) अर्थात् पूर्ण लोचदार हो जाती है। जैसे संलग्न रेखाचित्र में माँग वक्र बिंदु L के बाद X-अक्ष के समानांतर हो जाता है। रेखांचित्र में LT तरलता पाश की स्थिति है।

प्रश्न 7.
भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषाएँ क्या हैं?
उत्तर:
मुद्रा पूर्ति से अभिप्राय किसी समय बिंदु पर सभी प्रकार की मुद्राओं (कागज़ी मुद्रा, सिक्के, बैंक जमा) के उपलब्ध स्टॉक से है। भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषाएँ निम्नलिखित चार रूपों में प्रकाशित करता है जिनके नाम क्रमशः M1, M2, M3 और M4 हैं। ये सभी निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किए जा सकते हैं
(i) M1 – M1 मुद्रा पूर्ति मापन का यह सबसे संकुचित दृष्टिकोण है। इस मत के अनुसार मुद्रा पूर्ति की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है
M1 = C + DD + OD
जहाँ, C = जनता के पास धारित करेंसी।
DD = बैंकों के पास निवल माँग जमाएँ।
OD = भारतीय रिज़र्व बैंक के पास संगृहीत समस्त जमाएँ।।

(ii) M2 – M2 को भी मुद्रा पूर्ति मापन का संकुचित मत माना जाता है। इस मत के अनुसार मुद्रा पूर्ति की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है
M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ।

(iii) M3 – M3 मुद्रा पूर्ति का सबसे अधिक प्रयोग होने वाला मापक है। M3 को समाज के समग्र मौद्रिक संसाधनों का नाम दिया जाता है। इसकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है-
M3 = M1 + बैंकों के पास जमा निवल सावधि जमाएँ।

(iv) M4 – M1 को सर्वाधिक विस्तृत मुद्रा (Broad Money) का माप माना जाता है। इसकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है-
M4 = M1 + डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ। (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों (NSCs) को छोड़कर) उपरोक्त रचनाएँ स्पष्ट दर्शाती हैं कि M1 और M2 संकुचित मुद्रा (Narrow Money) के माप हैं। जबकि M3 और M4 विस्तृत मुद्रा (Broad Money) के माप हैं। इनमें M3 के पूर्ति के माप के रूप में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। इसी को समाज के समग्र मौद्रिक संसाधनों (Aggregate Monetary Resources) का नाम दिया जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा पूर्ति .के उपरोक्त चार मानों का तरलता के स्तर (Degree of Utility) के आधार पर भी वर्गीकृत करता है। M4 सर्वाधिक तरल है जबकि M4 सबसे कम तरल है। तरलता का अर्थ है किसी परिसंपत्ति को (मूल्य में घाटा उठाए बिना) तुरंत नकदी में बदलने की क्षमता।

प्रश्न 8.
वैधानिक पत्र क्या है? कागज़ी मुद्रा क्या है?
उत्तर:
वैधानिक पत्र अथवा वैधानिक मुद्रा (Legal Tender) से अभिप्राय उस मुद्रा से है जिसे विधि (कानून) का समर्थन प्राप्त है और कोई भी व्यक्ति इसे अस्वीकार नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, भारतवर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए 100 रुपए के नोटों को लेने से कोई व्यक्ति मना नहीं कर सकता और अगर कोई ऐसा करता है तो वह दंड का भागी होगा।

प्रादिष्ट मुद्रा (Fiat Money) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी करेंसी नोट और सिक्कों को कहते हैं। इसका सोने और चाँदी के सिक्कों की तरह कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता और यह सरकार के आदेश पर प्रचलित होती है। इस मुद्रा को आवेश मुद्रा के नाम से भी जाना जाता है; जैसे भारत में मौद्रिक प्राधिकरण (Monetory Authority) द्वारा जारी कागज़ी मुद्रा।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 9.
उच्च शक्तिशाली मुद्रा क्या है?
उत्तर:
उच्च शक्तिशाली मुद्रा (High Powered Money) से अभिप्राय देश के मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा निर्गमित की गई मुद्रा से है। इसे मौद्रिक आधार के नाम से भी जाना जाता है। उच्च शक्तिशाली मुद्रा में करेंसी तथा व्यावसायिक बैंक और भारत सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक में रखी गई जमाएँ आती हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्गमित किए गए करेंसी नोट को उसके सामने प्रस्तुत करने पर उसे अंकित मूल्य की राशि के बराबर भुगतान करना पड़ता है।

प्रश्न 10.
व्यावसायिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक के कार्य निम्नलिखित हैं-
1. जमाओं की स्वीकृति-व्यावसायिक बैंक व्यक्तियों, व्यावसायिक फर्मों और अन्य संस्थाओं से निम्नलिखित रूपों में जमाएँ स्वीकार करते हैं

  • चालू जमा खाता
  • बचत जमा खाता
  • सावधि जमा।

2. ऋण देना-व्यावसायिक बैंक सामान्यतया निम्नलिखित रूपों में ऋण प्रदान करते हैं-

  • नकद साख
  • माँग उधार
  • अल्पावधि ऋण
  • अधिविकर्ष (ओवरड्राफ्ट)
  • हुंडियों (बिलों) की कटौती।

3. जमा राशियों का निवेश-व्यावसायिक बैंक अपने पास संगृहीत धनराशियों का सरकारी व अनुमोदित प्रतिभूतियों में भी निवेश करते हैं।

4. एजेंसी कार्य-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित एजेंसी कार्य भी करता है-

  • नकद कोषों का हस्तांतरण।
  • नकद संग्रहण।
  • ग्राहकों की ओर से अंशपत्रों व अन्य प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय।
  • ग्राहकों की ओर से अंशपत्रों पर लाभांश और ऋणपत्रों पर ब्याज वसूलना।
  • ग्राहकों के निर्देश पर उनके भुगतान करना।
  • वसीयतों (Wills) के न्यासी (Executor) एवं प्रबंधकर्ता (Trustee) का दायित्व निभाना।
  • ग्राहकों को आय कर से संबंधित परामर्श देना।
  • ग्राहकों की ओर से माल के आवागमन (Transportation) संबंधित प्रलेखों की व्यवस्था करना।

5. अन्य कार्य-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित कार्य भी करता है

  • विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय।
  • पर्यटक तथा उपहार चैक जारी करना।
  • कीमती वस्तुओं को लॉकरों में संभालकर रखना।
  • प्रतिभूतियों की बिक्री की व्यवस्था करना।

प्रश्न 11.
मुद्रा गुणक क्या है? इसका मूल्य आप कैसे निर्धारित करेंगे? मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में किन अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है?
उत्तर:
मुद्रा गुणक (Money Multiplier) से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में मुद्रा के स्टॉक और शक्तिशाली मुद्रा के स्टॉक के अनुपात से है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निर्धारित किया जाता है
मुद्रा गुणक = \(\frac { M }{ H }\)
यहाँ, M= मुद्रा का स्टॉक
H = शक्तिशाली मुद्रा
चूँकि मुद्रा का स्टॉक सामान्यतया शक्तिशाली मुद्रा के मूल्य से अधिक होता है, इसलिए मुद्रा गुणक का मूल्य 1 से अधिक होता है।
मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में निम्नलिखित अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है-
1. करेंसी जमा अनुपात करेंसी जमा अनुपात का सूत्र निम्नलिखित है-
करेंसी जमा अनुपात = \(\frac { CU }{ DD }\)
यहाँ, CU = लोगों के पास रखी हुई करेंसी
DD = व्यावसायिक बैंक की कोष्ठ नकदी

2. रिज़र्व जमा अनुपात-रिज़र्व जमा अनुपात का सूत्र निम्नलिखित है-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग 2

प्रश्न 12.
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के कौन-कौन से उपकरण हैं? बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिजर्व बैंक किस प्रकार मद्रा की पर्ति को स्थिर करता है?
उत्तर:
भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण निम्नलिखित हैं-
1. सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन कानून के अंतर्गत सभी व्यावसायिक बैंकों को अपने माँग जमा दायित्व का एक न्यूनतम प्रतिशत भारतीय रिज़र्व बैंक के पास नकदी के रूप में जमा रखना होता है। इस अनुपात में वृद्धि करके बैंकों के नकदी साधनों को कम किया जा सकता है और बैंकों को अपने ऋण को कम करने पर मजबूर किया जा सकता है।

2. बैंक दर या कटौती दर में परिवर्तन भारतीय रिज़र्व बैंक (जैसे थोक ऋण के व्यापारी) जिस दर पर व्यावसायिक बैंकों (जैसे परचून में ऋण का व्यापार करने वालों) को उधार देते हैं, उसे कटौती दर या बैंक दर कहते हैं। सदस्य बैंक दो प्रकार से भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण ले सकते हैं आरक्षित प्रोमिसरी नोट (I.O.U) देकर या ड्राफ्ट, हुंडियाँ तथा ग्राहकों के आरक्षित प्रोमिसरी नोटों की पुनः कटौती करके। बैंकों को ऋण की आवश्यकता अपने घटते हुए रिज़र्व को पूरा करने के लिए होती है। कटौती की दर बढ़ाकर भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकों द्वारा ऋण की लागत को प्रत्यक्ष रूप से तथा ब्याज की दर और ऋण की स्थिति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है।

3. खली बाजार प्रक्रिया-खली बाजार प्रक्रिया से अभिप्राय भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय से है। इन प्रक्रियाओं से नकदी आरक्षण की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है और अंततः कुल लागत तथा ऋण की उपलब्धता पर भी प्रभाव पड़ता है। सरकारी प्रतिभूतियों के बेचने से बैंकों के पास नकदी रिज़र्व प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही तरीकों से कम हो जाती है जिससे जमाराशि भी कई गुना कम हो जाती है।

4. बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा पूर्ति का स्थिरीकरण-बाह्य आघातों (Exogeneous Shocks) के विरुद्ध भारतीय रिज़र्व बैंक स्थिरीकरण के द्वारा मुद्रा की पूर्ति को स्थिर करता है। स्थिरीकरण से अभिप्राय भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विदेशी विनिमय अंतःप्रवाह में वृद्धि के विरुद्ध मुद्रा की पूर्ति को स्थाई रखने के लिए किए गए हस्तक्षेप से है। स्थिरीकरण के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक विदेशी विनिमय की मात्रा के बराबर की मात्रा में सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री खुले बाज़ार में करता है जिससे अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा पूर्ति अपरिवर्तित रहती है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 13.
क्या आप ऐसा मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही ‘मुद्रा का निर्माण करते’ हैं?
उत्तर:
हाँ, हम ऐसा मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही मुद्रा का निर्माण करते हैं। व्यावसायिक बैंकों का महत्त्वपूर्ण कार्य जमाओं के रूप में नकदी को स्वीकार करना है और अपने ग्राहकों को ऋण देना है। जब एक बैंक ऋण प्रदान करता है तो बैंक ऋणी को नकदी नहीं देता, बल्कि उनके खाते में उनके लिए दावे (Claims) और निक्षेप (Advance) उत्पन्न कर देता है। इस प्रकार एक बैंक अपनी जमा राशि की तुलना में कई गुना अधिक साख निर्माण करता है। व्यावसायिक बैंक सरकारी बंधपत्रों और प्रतिभूतियों के क्रय में निवेश करके भी मुद्रा निर्माण करता है।

प्रश्न 14.
भारतीय रिज़र्व बैंक की किस भूमिका को अंतिम ऋणदाता कहा जाता है?
उत्तर:
अंतिम ऋणदाता (Lender of the Last Resort) से अभिप्राय उस स्थिति से होता है जब व्यावसायिक बैंक को अन्य किसी स्रोत से ऋण प्राप्त नहीं होता, तो ऐसे समय में भारतीय रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बिलों की पुनःकटौती करके अथवा प्रतिभूतियों की जमानत पर ऋण प्रदान करता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यावसायिक बैंक को अपने ग्राहकों की नकद मुद्रा की माँग के भुगतान के लिए कभी-कभी अधिक मात्रा में मुद्रा की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में जब व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों की माँग की पूर्ति अपने साधनों से नहीं कर पाते तो वे भारतीय रिज़र्व बैंक से सहायता की माँग करते हैं तथा भारतीय रिजर्व बैंक अंतिम ऋणदाता के रूप में अनिवार्य रूप से उनकी सहायता करता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा व्यावसायिक बैंकों को इस प्रकार की साख देने के लाभ इस प्रकार हैं

  • व्यावसायिक बैंक थोड़े से ही नकद कोषों के आधार पर अपना व्यवसाय चला सकते हैं।
  • संकटकाल में व्यावसायिक बैंकों को आर्थिक सहायता उपलब्ध हो जाने पर बैंक संकट का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सकते हैं।
  • व्यावसायिक बैंक उद्योग और व्यापार की वित्त संबंधी महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  • इससे भारतीय रिज़र्व बैंक को देश की बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करने का अच्छा अवसर मिल जाता है। भारत में
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) केंद्रीय बैंक के रूप में अंतिम ऋणदाता की भूमिका निभाता है।

मुद्रा और बैंकिंग HBSE 12th Class Economics Notes

→ वस्तु विनिमय प्रणाली-जब एक वस्तु का लेन-देन प्रत्यक्ष रूप में दूसरी वस्तु से होता है, तो उसे वस्तु विनिमय कहते हैं। दूसरे शब्दों में, वस्तु विनिमय प्रणाली उस प्रणाली को कहा जाता है जिसमें वस्तु का लेन-देन (विनिमय) वस्तु से या वस्तु का वस्तु से व्यापार किया जाता है। जो अर्थव्यवस्था वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित होती है उसे वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था (Commodity for Commodity Economy) कहा जाता है।

→ वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ-

  • आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव
  • विनिमय की समान इकाई का अभाव
  • भावी भुगतान के मान का अभाव
  • मूल्य के संचय का अभाव।

→ मुद्रा के कार्य-

  • यह एक विनिमय का माध्यम है
  • मुद्रा मूल्य का माप है
  • यह स्थगित भुगतानों का माप है
  • यह मूल्य का संचय है
  • भावी भुगतान का मान है
  • यह मूल्य के हस्तांतरण आदि का कार्य भी करती है।

→ भारतीय मौद्रिक प्रणाली-भारतीय मौद्रिक प्रणाली, पत्र मुद्रा मान पर आधारित है।

→ करेंसी का जारी करना भारत में जारी करेंसी न्यूनतम सुरक्षित प्रणाली पर आधारित है। भारत में जारी करेंसी अपरिवर्तनशील (Inconvertible) है। निर्गमन अधिकारी इसे सोने या चाँदी में परिवर्तित नहीं करेगा।

→ मुद्रा की माँग केज के अनुसार मुद्रा की माँग से अभिप्राय लोगों द्वारा मुद्रा को अपने पास तरल (नकदी) के रूप में रखने की इच्छा से है। इसे ही उन्होंने तरलता अधिमान कहा है।

→ मुद्रा की पूर्ति मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक अवधारणा है। किसी समय बिंदु पर जनता के पास उपलब्ध मुद्रा का स्टॉक ही मुद्रा की पूर्ति कहलाता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

→ मुद्रा की पूर्ति के माप-M1, M2, M3 तथा M4। भारत में RBI के अनुसार मुद्रा की पूर्ति के चार मापक हैं
M1 = जनता के पास करेंसी + माँग जमाएँ + रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ।
M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में जमा राशियाँ
M3 = M1 + व्यावसायिक बैंकों की निवल सावधि जमाएँ
M4 = M3 + डाकघर बचत संगठनों की कुल जमा राशियाँ

  • M1 मुद्रा पूर्ति का बहुत तरल किंतु बहुत कम विस्तृत मापक है।
  • M2 को मुद्रा पूर्ति के माप के रूप में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।
  • M4 मुद्रा पूर्ति का बहुत विस्तृत किंतु सबसे कम तरल मापक है।

→ बैंक का अर्थ बैंक ऐसी संस्था है जो लाभ प्राप्त करने के लिए मुद्रा व साख में लेन-देन करती है।

→ व्यावसायिक बैंक ये ऐसी वित्तीय संस्थाएँ हैं जो लोगों से जमाएँ स्वीकार करने तथा उन्हें ऋण देने का कार्य करती हैं।

→ व्यावसायिक बैंकों के प्राथमिक कार्य-

  • जमा स्वीकार करना
  • ऋण प्रदान करना
  • साख निर्माण।

→ व्यावसायिक बैंकों के गौण कार्य-

  • बैंकों के एजेंसी कार्य
  • बैंकों की सामान्य उपयोगिता संबंधी सेवाएँ।

→ साख निर्माण-बैंकों द्वारा उनकी प्राथमिक जमाओं के आधार पर गौण जमाओं के विस्तार को साख निर्माण कहते हैं। बैंक अपनी प्राथमिक जमा से अधिक रुपया उधार देकर साख का निर्माण करते हैं।

→ केंद्रीय बैंक केंद्रीय बैंक एक देश की समस्त बैंकिंग प्रणाली का सिरमौर बैंक है। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) भारत का केंद्रीय बैंक है।

→ केंद्रीय बैंक के कार्य-

  • नोट जारी करने का एकाधिकार
  • सरकार का बैंकर
  • बैंकों का बैंक
  • अंतिम ऋणदाता
  • देश के विदेशी मुद्रा कोषों का संरक्षक
  • साख नियंत्रण
  • समाशोधन गृह का कार्य
  • आँकड़े इकट्ठे करना।

→ मौद्रिक नीति-मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी देश के केंद्रीय बैंक की उस नीति से है जिसका उपभोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा तथा साख की पूर्ति के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

→ भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण-RBI की मौद्रिक नीति के उपकरण हैं-

  • खुली बाज़ार कार्रवाई
  • बैंक दर नीति
  • आरक्षित आवश्यकताओं में अंतर तथा
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बाह्य आघातों के विरुद्ध स्थिरीकरण।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए, क्यों? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से यह अनुभव किया जाता है कि सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए
(i) सार्वजनिक वस्तुओं का उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। सार्वजनिक वस्तुएँ अप्रतिस्पर्धी (Non-rivalrous) होती हैं अर्थात् एक व्यक्ति दूसरे की संतुष्टि में कमी किए बगैर अपनी संतुष्टि में वृद्धि कर सकता है। सार्वजनिक वस्तुएँ अवर्ण्य (Non-excludable) होती हैं अर्थात् किसी को इन वस्तुओं का लाभ उठाने से वर्जित करने का कोई संभव तरीका नहीं है। इसे ही मुफ्तखोरी की समस्या कहा जाता है।

(ii) सार्वजनिक वस्तुओं के उपयोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है, जबकि निजी उद्यम आमतौर पर ऐसी वस्तुओं को उपलब्ध नहीं कराते हैं।

प्रश्न 2.
राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में भेद कीजिए।
उत्तर:
सरकारी बजट में राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय के बीच निम्नलिखित भेद हैं-

  1. राजस्व व्यय अल्पकालीन और बार-बार होने वाले व्यय हैं जबकि पूँजीगत व्यय दीर्घकालीन तथा आकस्मिक होने वाले व्यय हैं।
  2. राजस्व व्ययों की आवृत्ति अधिक होती है जबकि पूँजीगत व्ययों की आवृत्ति बहुत कम होती है।
  3. राजस्व व्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता और न ही ये व्यय दायित्वों में कमी करते हैं। पूँजीगत व्ययों से या तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है या दायित्वों में कमी आती है।

राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) के उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. सुरक्षा पर व्यय
  2. कानून व्यवस्था पर व्यय
  3. स्वास्थ्य पर व्यय।

पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure) के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  1. गैर-आवासीय इमारतों पर व्यय
  2. वैज्ञानिक अनुसंधान संगठनों पर व्यय
  3. सड़कों एवं पुलों पर व्यय।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3.
राजकोषीय घाटा से सरकार को ऋण-ग्रहण की आवश्यकता होती है, समझाइए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) से अभिप्राय उस घाटे से है जिसमें सरकार का कुल बजट व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियों के जोड़ से अधिक होता है। अर्थात्

राजकोषीय घाटा = कुल बजट (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय + सरकार द्वारा दिए गए शुद्ध ऋण) – राजस्व प्राप्तियाँ-गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ

इस प्रकार राजकोषीय घाटे में ऋण सम्मिलित नहीं होता। राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार के पास ऋण ग्रहण के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता। सरकार के पास ऋण ग्रहण के निम्नलिखित तीन स्रोत होते हैं-

  • लोगों से ऋण
  • केंद्रीय बैंक से ऋण
  • विदेशों से ऋण।

इस प्रकार,
राजकोषीय घाटा = सरकार का ऋणभार।

प्रश्न 4.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में संबंध बताइए।
उत्तर:
राजस्व घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का राजस्व व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थात
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय (चालू व्यय) – राजस्व प्राप्तियाँ (कर प्राप्तियाँ – गैर-कर प्राप्तियाँ)
राजकोषीय घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) उसकी राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थात्
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – राजस्व प्राप्तियाँ – गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ
राजकोषीय घाटा एक विस्तृत तथ्य है जबकि राजस्व घाटा एक संकुचित तथ्य है और यह राजकोषीय घाटा में सम्मिलित है।

प्रश्न 5.
मान लीजिए कि एक विशेष अर्थव्यवस्था में निवेश 200 के बराबर है, सरकार के क्रय की मात्रा 150 है, निवल कर (अर्थात् एकमुश्त कर से अंतरण को घटाने पर) 100 है और उपभोग C = 100 + 0.75 Y दिया हुआ है, तो (a) संतुलन आय का स्तर क्या है? (b) सरकारी व्यय गुणक और कर गुणक के मानों की गणना करें। (c) यदि सरकार के व्यय में 200 की बढ़ोत्तरी होती है, तो संतुलन आय में क्या परिवर्तन होगा?
हल:
उपभोग = C = 100 + 0.75Y
यहाँ पर,
\(\overline{\mathrm{C}}\) = 100
c = 0.75
निवल कर (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R) = 100
निवेश (I) = 260
सरकार का क्रय (G) = 150
(a) संतुलन आय का स्तर (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c[Y – (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R)] + I + G
= 100 + 0.75 [Y – 100] + 200 + 150
= 100 + 0.75Y – 75 + 350
= 0.75Y + 375
Y – 0.75Y = 375
0.25Y = 375
Y = \(\frac{375 \times 100}{25}\)
संतुलन आय स्तर = 1,500 उत्तर

(b) सरकारी व्यय गुणक =\(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.75 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\) = 4
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1 – c }\)
= \(\frac { -0.75 }{ 1 – 0.75 }\)
= \(\frac { -0.75 }{ 0.25 }\)
= – 3 उत्तर

(c) संतुलन आय में परिवर्तन (∆Y) = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)∆G
= सरकारी व्यय गुणक – सरकारी व्यय में परिवर्तन
= 4 x 200 = 800
यदि सरकारी व्यय में 200 की बढ़ोत्तरी होती है तो संतुलन आय में 800 की बढ़ोत्तरी होगी। उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 6.
एक ऐसी अर्थव्यवस्था पर विचार कीजिए, जिसमें निम्नलिखित फलन हैं-
C = 20 + 0.80Y, I = 30, G = 50, TR = 100
(a) आय का संतुलन.स्तर और मॉडल में स्वायत्त व्यय गुणक ज्ञात कीजिए।
(b) यदि सरकार के व्यय में 30 की वृद्धि होती है, तो संतुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(c) यदि एकमुश्त कर 30 जोड़ दिया जाए, जिससे सरकार के क्रय में बढ़ोत्तरी का भुगतान किया जा सके, तो संतुलन आय में किस प्रकार का परिवर्तन होगा?
हल:
उपभोग (C) = 20 + 0.80Y
यहाँ पर,
\(\overline{\mathrm{C}}\) = 20
c = 0.80
निवेश (I) = 30
सरकारी व्यय (G) = 50
अंतरण (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R) = 100
(a) आय का संतुलन स्तर (Y) = C + c[Y- (T – TR )] + I + G
Y = 20 + 0.80 [Y – (-100)] + 30 + 50
= 20 + 0.80 [Y + 100] + 80
= 20 + 0.08Y + 80 + 80
= 0.80Y + 180
Y – 0.80 = 180
0.20Y = 180
Y = 900
आय का संतुलन स्तर = 900
स्वायत्त व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.20 }\)
= 5 उत्तर

(b) संतुलन आय में वृद्धि (∆Y) = व्यय गुणक x व्यय में वृद्धि
= 5 x 30 = 150 उत्तर

(c) कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
= \(\frac { -0.80 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { -0.80 }{ 0.20 }\)
= – 4
संतुलन आय में परिवर्तन = कर गुणक x कर में वृद्धि
= – 4 x 30
= – 120
संतुलन आय में कमी = 120 उत्तर

प्रश्न 7.
उपर्युक्त प्रश्न में अंतरण में 10% की वृद्धि और एकमुश्त करों में 10% की वृद्धि का निर्गत पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना करें। दोनों प्रभावों की तुलना करें।
हल:
अंतरण गुणक = \(\frac { c }{ 1-c }\)
= \(\frac { 0.80 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { 0.80 }{ 0.20 }\) = 4
अंतरण में वृद्धि = 10%
निर्गत में अंतरण के कारण वृद्धि
= अंतरण गुणक x अंतरण में वृद्धि
= 4 x 10% = 40%
एकमुश्त कर में वृद्धि = 10%
निर्गत में एकमुश्त कर में वृद्धि के कारण कमी
= 4 x 10% = 40% उत्तर
अंतरण में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी और एकमुश्त कर में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में कमी होगी। चूँकि अंतरण व कर में वृद्धि की मात्रा व गुणक एक बराबर हैं, अतः दोनों का मिश्रित प्रभाव शून्य होगा।

प्रश्न 8.
हम मान लेते हैं कि C = 70 + 0.70YD, 1 = 90, G = 100, T = 0.10Y (a) संतुलन आय ज्ञात कीजिए। (b) संतुलन आय पर कर राजस्व क्या है? क्या सरकार का बजट संतुलित बजट है?
हल:
(a) C = 70 + 0.70YD
यहाँ पर, \(\overline{\mathrm{C}}\) = 70
c = 0.70
I = 90 G = 100
T = 0.10Y
संतुलन आय (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c[Y – (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R)] + I + G
Y = 70+ 0.70[Y – (0.10Y)] + 90 + 100
Y = 70+ 0.70[Y – 0.10Y] + 190
Y = 260 + 0.70Y – 0.07Y
Y = 260 + 0.63Y
Y – 0.63Y = 260
0.37Y = 260
Y = 703 (लगभग)
संतुलन आय = 703 उत्तर

(b) T = 0.10Y
T = 0.10 x 703
T = 70.3
कर राजस्व = 70.3
चूँकि सरकार द्वारा अर्जित कर राजस्व 70.3 है और सरकार द्वारा किया व्यय 100 है, इसलिए सरकार का बजट संतुलित नहीं है। संतुलित बजट के लिए यह आवश्यक है कि सरकारी व्यय और कर राजस्व दोनों ही एक-दूसरे के बराबर हों।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
मान लीजिए कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है और आनुपातिक आय कर 20 प्रतिशत है। संतुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तनों को ज्ञात करें
(a) सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि
(b) अंतरण में 20 की कमी।
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.75
आनुपातिक आय कर (t) = 20%
सरकारी व्यय गुणक =\(\frac{1}{(1-c)(1-t)}\)
= \(\frac{1}{(1-0.75)(1-0.20)}\)
\(\frac{1}{0.25 \times 0.80}\) = 5
अंतरण गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.75 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\)
= 4
(a) सरकार के क्रय में वृद्धि = 20
संतुलन आय में वृद्धि = 20 x 5 = 100 उत्तर

(b) अंतरण में कमी = 20
संतुलन आय में कमी = 20 x 4 = 80 उत्तर
अतः दोनों का मिश्रित प्रभाव = संतुलन आय में 20 की वृद्धि

प्रश्न 10.
निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह कहना सही है कि निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा होता है।
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1 – c }\)
‘इसका कारण यह है कि सरकारी व्यय में वृद्धि राष्ट्रीय आय को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है जबकि कर गुणक राष्ट्रीय आय को प्रयोज्य आय के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

प्रश्न 11.
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में क्या संबंध है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में घनिष्ठ संबंध है। सरकारी घाटा प्रवाह अवधारणा है, लेकिन सरकारी घाटा ऋण के स्टॉक में वृद्धि करता है। यदि सरकार वर्ष प्रतिवर्ष ऋण ग्रहण करती है तो ब्याज के दायित्व में वृद्धि से बजट घाटे में भी वृद्धि करती है। इस प्रकार बजट घाटा ऋण का कारण और प्रभाव दोनों हैं।

प्रश्न 12.
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण हमेशा बोझ नहीं बनता, लेकिन निम्नलिखित परिस्थितियों में सार्वजनिक ऋण बोझ बन जाता है-

  1. सार्वजनिक ऋण का भार भावी पीढ़ी पर पड़ता है।
  2. विदेशियों से लिए गए ऋण के बदले में ब्याज की अदायगी के अनुरूप वस्तुएँ विदेश भेजनी पड़ती हैं।
  3. देश में कुल माँग में वृद्धि होती है जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 13.
क्या राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी है?
उत्तर:
राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी नहीं होता। यदि राजकोषीय घाटे के फलस्वरूप माँग में वृद्धि और निर्गत में वृद्धि होती है तो राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी नहीं होता। यदि राजकोषीय घाटे के मूल्य से कम अर्थव्यवस्था में निर्गत होता है तो राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी होता है।

प्रश्न 14.
घाटे में कटौती के विषय पर विमर्श कीजिए।
उत्तर:
घाटे में कटौती करने के बारे में दोनों प्रकार के तर्क दिए जाते हैं। घाटे में कटौती करना निम्नलिखित परिस्थितियों में उचित नहीं माना जाता

  • घाटे से महामंदी और बेरोज़गारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  • घाटे से अल्पविकसित देशों को अतिरिक्त संसाधन प्राप्त होते हैं जिससे आर्थिक विकास में सहायता मिलती है।
  • घाटे से सरकार सामाजिक कल्याण की गतिविधियाँ संचालित कर सकती है।

घाटे में कटौती करना निम्नलिखित परिस्थितियों में उचित माना जाता है-

  • घाटे के बजट से सरकार को ऋण लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है जिससे सरकार के समक्ष ऋण के भुगतान की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  • घाटे के बजट से मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि होती है जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
  • घाटे का बजट सरकार को अनावश्यक व्यय करने की सुविधा देता है।

घाटे में कटौती निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-

  • करों में वृद्धि
  • सार्वजनिक व्यय में कमी
  • विनिवेश।

सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था HBSE 12th Class Economics Notes

→ बजट-बजट एक वित्तीय वर्ष, जो 1 अप्रैल से अगले 31 मार्च तक चलता है, की अवधि में सरकार की अनुमानित प्राप्तियों (आय) और अनुमानित व्यय का ब्यौरा होता है।

→ बजट के संघटक बजट के दो मुख्य संघटक हैं-

  • बजट प्राप्तियाँ तथा
  • बजट व्यय।

→ बजट प्राप्तियाँ बज़ट प्राप्तियों से अभिप्राय उस मौद्रिक आय से है जो कि सरकार को आने वाले वित्तीय वर्ष में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने का अनुमान है। इसमें दो प्रकार की प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं

  • राजस्व प्राप्तियाँ
  • पूँजीगत प्राप्तियाँ।

→ राजस्व प्राप्तियाँ-राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वह प्राप्ति अथवा आय है जिसमें सरकार की कोई देनदारियाँ नहीं होती और न ही सरकार की परिसंपत्तियों में कोई कमी होती है। इसमें दो प्रकार की प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं

  • कर राजस्व प्राप्तियाँ
  • गैर-कर राजस्व प्राप्तियाँ।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

→ पूँजीगत प्राप्तियाँ-पूँजीगत प्राप्तियों में सरकार की वह आय आती है जो या तो देनदारियाँ पैदा करती है या सरकार की परिसंपत्तियों में कमी करती है। इनका विभाजन तीन भागों में किया गया है

  • ऋणों की वसूली
  • उधार तथा अन्य देयताएँ
  • अन्य प्राप्तियाँ।

→ कर-कर एक ऐसा भगतान है जोकि लोगों द्वारा सरकार को किया जाता है। इसके बदले में किसी सेवा-प्राप्ति की आशा – नहीं की जा सकती।

→ कर के प्रकार कर तीन प्रकार के होते हैं

  • प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर
  • मूल्यवृद्धि कर तथा वजन अनुसार कर
  • प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर।

→ प्रत्यक्ष कर वह कर, जिसका अंतिम भार उसी व्यक्ति को उठाना पड़ता है जो इसका भुगतान करता है। इसके उदाहरण हैं-आयकर, व्यवसाय कर, संपत्ति कर, उपहार कर आदि।

→ अप्रत्यक्ष कर वह कर जिसका प्रारंभिक भार एक व्यक्ति पर पड़ता है, परंतु उस भार को वह दूसरों पर टालने में सफल हो जाता है। इसके उदाहरण हैं-बिक्री कर, उत्पादन कर, सीमा शुल्क आदि।

→ बजट व्यय बजट व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा आने वाले वित्तीय वर्ष में विभिन्न मदों पर किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है। इसमें दो प्रकार के व्यय शामिल किए जाते हैं-

  • राजस्व व्यय
  • पूँजीगत व्यय।

→ राजस्व व्यय-राजस्व व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में किए जाने वाले उस अनुमानित व्यय से है जिसके फलस्वरूप न तो सरकार की परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही देनदारियों में कमी होती है।

→ पूँजीगत व्यय-पूँजीगत व्यय सरकार का वह खर्च है जो या तो सरकार के लिए परिसंपत्तियाँ पैदा करता है या सरकारी देनदारियाँ कम करता है।

→ बजट के प्रकार बजट तीन प्रकार का होता है-

  • संतुलित बजट
  • बचत का बजट
  • घाटे का बजट।

→ संतुलित बजट-संतुलित बजट = कुल व्यय = कुल प्राप्तियाँ।

→ बचत का बजट-बचत का बजट = कुल व्यय < कुल प्राप्तियाँ। → घाटे का बजट-घाटे का बजट = कुल व्यय > कुल प्राप्तियाँ।

→ बजट घाटा-बजट घाटे का अर्थ उस स्थिति से है जिसमें सरकार का बजट व्यय सरकार की बजट प्राप्तियों से अधिक होता है। बजट घाटा तीन प्रकार का होता है-

  • राजस्व घाटा
  • राजकोषीय घाटा
  • प्राथमिक घाटा।

→ राजस्व घाटा-राजस्व घाटा = राजस्व व्यय > राजस्व प्राप्तियाँ।

→ राजकोषीय घाटा-राजकोषीय घाटा = कुल व्यय > (राजस्व प्राप्तियाँ + गैर ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ)

→ प्राथमिक घाटा-प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज की अदायगी।

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HBSE 12th Class Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम लघूत्तरात्मक एवं बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions अभिव्यक्ति और माध्यम लघूत्तरात्मक एवं बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम लघूत्तरात्मक एवं बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जनसंचार पत्रकारिता का माध्यम क्या है?
उत्तर:
रेडियो, टेलीविजन एवं समाचार-पत्र जनसंचार पत्रकारिता का माध्यम है।

प्रश्न 2.
सर्वाधिक खर्चीला जनसंचार माध्यम कौन-सा है?
उत्तर:
इंटरनेट सर्वाधिक खर्चीला जनसंचार माध्यम है।

प्रश्न 3.
मुद्रण का आरंभ किस देश में हुआ?
उत्तर:
मुद्रण का आरंभ चीन में हुआ।

प्रश्न 4.
वर्तमान छापेखाने का आविष्कार किसने किया?
उत्तर:
वर्तमान छापेखाने का आविष्कार गुटेनबर्ग ने किया।

HBSE 12th Class Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम लघूत्तरात्मक एवं बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
कथावस्तु किसे कहते हैं?
उत्तर:
घटनाओं के मेल को कथावस्तु कहते हैं।

प्रश्न 6.
‘राजस्थान पत्रिका’ किस भाषा का समाचार-पत्र है?
उत्तर:
हिन्दी।

प्रश्न 7.
आमतौर पर रेडियो नाटक की अवधि कितनी होती है?
उत्तर:
30-40 मिनट।

प्रश्न 8.
समाचार लेखन में किस शैली का प्रयोग करते हैं?
उत्तर:
समाचार लेखन में उल्टा पिरामिड शैली का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 9.
जनमत को प्रतिबिम्बित करने वाला स्तंभ कौन-सा है?
उत्तर:
जनमत को प्रतिबिम्बित करने वाला स्तंभ संपादक के नाम पत्र है।

HBSE 12th Class Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम लघूत्तरात्मक एवं बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 10.
कारोबार और व्यापार से संबंधित खबर का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर:
कारोबार और व्यापार से संबंधित खबर का सम्बन्ध आर्थिक क्षेत्र है।

प्रश्न 11.
टेलीविजन किस प्रकार का माध्यम है?
उत्तर
दृश्य एवं श्रव्य।

प्रश्न 12.
मुद्रण माध्यम के अंतर्गत कौन-कौन से माध्यम आते हैं?
उत्तर:
मुद्रण माध्यम के अंतर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि आते हैं।

प्रश्न 13.
ड्राई एंकर क्या है?
उत्तर:
ड्राई एंकर वह होता है जो समाचार के दृश्य दिखाई देने तक दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारी के आधार पर समाचार से संबंधित सूचना देता है।

प्रश्न 14.
लाइव से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी समाचार का घटनास्थल से दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण लाइव कहलाता है।

प्रश्न 15.
रेडियो कैसा जनसंचार माध्यम है? इसमें किसका मेल होता है?
उत्तर:
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें ध्वनि, स्वर और शब्दों का मेल होता है। प्रश्न 16. इंटरनेट पत्रकारिता क्या है? उत्तर:इंटरनेट पर समाचार-पत्रों को प्रकाशित करना तथा समाचारों का आदान-प्रदान करना इंटरनेट पत्रकारिता कहलाता है।

प्रश्न 17.
भारत में इंटरनेट का आरंभ कब हुआ था? इसका दूसरा दौर कब आरंभ हुआ था?
उत्तर:
भारत में इंटरनेट का आरंभ सन् 1993 में हुआ था और सन् 2003 में इसका दूसरा दौर आरंभ हुआ था।

प्रश्न 18.
अंशकालिक पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
अंशकालिक पत्रकार किसी भी समाचार संगठन द्वारा निश्चित किए गए मानदेय पर काम करता है।

प्रश्न 19.
उलटा पिरामिड शैली क्या है?
उत्तर:
उलटा पिरामिड शैली में सबसे पहले महत्त्वपूर्ण तथ्य तथा जानकारियाँ दी जाती हैं। तत्पश्चात् कम महत्त्वपूर्ण बातें देकर समाप्त कर दिया जाता है। इसकी आकृति उलटे पिरामिड जैसी होने के कारण इसे उलटा पिरामिड शैली कहते हैं।

प्रश्न 20.
पूर्णकालिक पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी समाचार-संगठन में काम करने वाला नियमित वेतनभोगी कर्मचारी को पूर्णकालिक पत्रकार कहते हैं।

HBSE 12th Class Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम लघूत्तरात्मक एवं बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 21.
समाचार लेखन के कितने ककार हैं? उनके नाम लिखें।
उत्तर:
समाचार लेखन के छः ककार हैं। ये हैं क्या, कौन, कब, कहाँ, कैसे और क्यों।

प्रश्न 22.
विशेष रिपोर्ट किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहन छानबीन और विश्लेषण को विशेष रिपोर्ट कहते हैं।

प्रश्न 23.
संपादकीय किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह लेख जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचार-पत्र की अपनी राय प्रकट होती है, संपादकीय कहलाता है।

प्रश्न 24.
विशेष लेखन क्या है? ।
उत्तर:
किसी विशेष विषय पर सामान्य लेखन से हटकर लिखा गया लेख विशेष लेखन कहलाता है।

प्रश्न 25.
बीट रिपोर्टिंग क्या होती है?
उत्तर:
जो संवाददाता केवल अपने क्षेत्र विशेष से संबंधित रिपोर्टों को भेजता है, वह बीट रिपोर्टिंग कहलाती है।

प्रश्न 26.
भारत में पहला छापाखाना कब और कहाँ खुला था?
उत्तर:
भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 ई० में गोआ में खुला था।

प्रश्न 27.
समाचार लेखन की सबसे लोकप्रिय और उपयोगी शैली का नाम लिखिए।
उत्तर:
उलटा पिरामिड शैली।

प्रश्न 28.
रेडियो में कौन-सी सुविधा नहीं होती?
उत्तर:
रेडियो में समाचार-पत्र की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं होती।

HBSE 12th Class Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम लघूत्तरात्मक एवं बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 29.
आजकल टेलीप्रिंटर पर एक सेकेंड में कितने शब्द भेजे जा सकते हैं?
उत्तर:
आजकल टेलीप्रिंटर पर एक सेकेंड में 56 किलोबाइट अर्थात् लगभग 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।

प्रश्न 30.
उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग कब से आरंभ हुआ था?
उत्तर:
उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग उन्नीसवीं सदी के मध्य से आरंभ हुआ था।

प्रश्न 31.
समाचार-पत्रों में छपने वाले फीचरों की शब्द-संख्या कितनी होती है?
उत्तर:
समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में छपने वाले फीचरों की शब्द-संख्या 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक होती है।

प्रश्न 32.
पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 33.
जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम कौन-सा है?
उत्तर:
जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम मुद्रित माध्यम है।

प्रश्न 34.
स्तंभ लेखन क्या है?
उत्तर:
स्तंभ लेखन विचारपरक लेखन होता है। स्तंभकार समसामयिक विषयों पर नियमित रूप से अपने समाचार-पत्र के लिए लिखते हैं।

प्रश्न 35.
इंटरव्यू के लिए हिन्दी शब्द क्या है?
उत्तर:
साक्षात्कार।

प्रश्न 36.
नाटक किस प्रकार की विधा है?
उत्तर:
रंगमंचीय।

प्रश्न 37.
ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना सन् 1930 में हुई।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. क्रिकेट मैच का प्रसारण किस प्रकार का है?
(A) फोन इन
(B) एंकर पैकेज
(C) सीधा प्रसारण
(D) एंकर बाइट
उत्तर:
(C) सीधा प्रसारण

2. हिन्दी में नेट पत्रकारिता किसके साथ आरंभ हुई?
(A) वैब दुनिया के साथ
(B) दैनिक जागरण के साथ
(C) दैनिक भास्कर के साथ
(D) राजस्थान पत्रिका के साथ
उत्तर:
(A) वैब दुनिया के साथ

3. समाचार लेखन की श्रेष्ठ शैली कौन-सी है?
(A) सीधा पिरामिड शैली
(B) उल्टा पिरामिड शैली
(C) व्याख्या शैली
(D) विवेचनात्मक शैली
उत्तर:
(B) उल्टा पिरामिड शैली

4. फीचर की कौन-सी विशेषता है?
(A) सृजनात्मक
(B) सुव्यवस्थित
(C) आत्मनिष्ठ
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर:
(D) उपर्युक्त तीनों

5. फीचर की कौन-सी विशेषता है?
(A) सृजनात्मक
(B) सुव्यवस्थित
(C) आत्मनिष्ठ
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर:
(D) उपर्युक्त तीनों

HBSE 12th Class Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम लघूत्तरात्मक एवं बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

6. कविता का जन्म किस परंपरा के रूप में हुआ था?
(A) वाचिक रूप में
(B) लिखित रूप में
(C) यांत्रिक रूप में
(D) उपर्युक्त तीनों रूपों में
उत्तर:
(A) वाचिक रूप में

7. एक शब्द में कितने अर्थ छिपे रहते हैं?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) अनेक
उत्तर:
(D) अनेक

8. लिखित रूप में नाटक कितने आयामों में होता है?
(A) द्विआयामी
(B) बहुआयामी
(C) एकआयामी
(D) त्रिआयामी
उत्तर:
(C) एकआयामी

9. प्रतिशोध का सशक्त माध्यम है?
(A) रंगमंच
(B) कहानी
(C) कविता
(D) फिल्म
उत्तर:
(A) रंगमंच

10. अस्वीकार की स्थिति किस विधा में बराबर नहीं होती?
(A) उपन्यास में
(B) कविता में
(C) नाटक में
(D) संस्मरण में
उत्तर:
(C) नाटक में

11. अकसर बच्चे किससे कहानियाँ सुनते रहते हैं?
(A) माँ से
(B) नानी-दादी से
(C) मित्रों से
(D) पिता से
उत्तर:
(B) नानी-दादी से

HBSE 12th Class Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम लघूत्तरात्मक एवं बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

12. कहानी का केंद्रीय बिंदु क्या है?
(A) कथानक
(B) देशकाल
(C) पात्रों का चरित्र-चित्रण
(D) संवाद
उत्तर:
(A) कथानक

13. कहानी का दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व कौन-सा है?
(A) कथानक
(B) देशकाल
(C) भाषा-शैली
(D) पात्रों का चरित्र-चित्रण
उत्तर:
(D) पात्रों का चरित्र-चित्रण

14. नाटक में कैसे पात्र होने चाहिएँ?
(A) सजीव
(B) निर्जीव
(C) कठपुतली
(D) रूढ़
उत्तर:
(A) सजीव

15. नाटक में कैसे पात्र होने चाहिएँ?
(A) सजीव
(B) निर्जीव
(C) कठपुतली
(D) रूढ़
उत्तर:
(A) सजीव

16. ‘मोहनदास’ कहानी के लेखक का क्या नाम है?
(A) प्रेमचंद
(B) निबंध
(C) यशपाल
(D) रेखाचित्र
उत्तर:
(B) उदय प्रकाश

17. श्रव्य नाटक किसे कहते हैं?
(A) नाटक को
(B) कहानी को
(C) दूरदर्शन के सीरियल को
(D) रेडियो नाटक को
उत्तर:
(D) रेडियो नाटक को

18. ‘आषाढ़ का एक दिन’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी
(B) निबंध
(C) नाटक
(D) रेखाचित्र
उत्तर:
(C) नाटक

19. रटंत का क्या अर्थ है?
(A) रट्टा लगाकर याद करना
(B) सोच-समझकर पढ़ना
(C) शिक्षक से प्रेरणा लेना
(D) माता-पिता से पूछकर लिखना
उत्तर:
(A) रट्टा लगाकर याद करना

20. रटंत प्रवृत्ति कैसी है?
(A) घातक
(B) लाभकारी
(C) सहायक
(D) मौलिक
उत्तर:
(A) घातक

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने विकास के स्तर को मापने के लिए किस एक आकांक्षा को आधार नहीं बनाया?
(A) दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन
(B) शिक्षित एवं ज्ञानवान होना
(C) समृद्ध एवं धनाढ्य होना
(D) उत्तम जीवन के लिए सभी संसाधनों का होना
उत्तर:
(C) समृद्ध एवं धनाढ्य होना

2. विकास का तात्पर्य है-
(A) व्यक्ति की शिक्षा में सुधार
(B) संपत्ति में वृद्धि
(C) जीवन की गुणवत्ता
(D) शारीरिक बल में वृद्धि
उत्तर:
(C) जीवन की गुणवत्ता

3. मानव विकास को जिस पैमाने पर मापा जाता है, उसका मान कितना होता है?
(A) 0-10
(B) 0-1
(C) 1-100
(D) A से Z
उत्तर:
(B) 0-1

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

4. मानव विकास के मध्यम वर्ग का पैमाना कितना माना जाता है?
(A) 0.6 से 0.7
(B) 0.5 से 0.65
(C) 0.5 से 0.8
(D) 0.550 से 0.700
उत्तर:
(D) 0.550 से 0.700

5. मानव विकास सूचकांक के सबसे निचले पायदान पर कौन-सा देश बैठा है?
(A) बुरूंडी
(B) केन्या
(C) सियरालियोन
(D) नाइजीरिया
उत्तर:
(D) नाइजीरिया

6. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक मानव विकास में उन्नति नहीं करता?
(A) पौष्टिक भोजन की उपलब्धता
(B) कल्याणकारी योजनाएँ
(C) महिला सशक्तीकरण
(D) युद्ध एवं अराजकता
उत्तर:
(D) युद्ध एवं अराजकता

7. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक मानव विकास का ह्रास नहीं करता?
(A) एड्स की बीमारी
(B) लगातार सूखा एवं अकाल
(C) उच्च प्रौद्योगिकी
(D) आर्थिक विकास की जड़ता
उत्तर:
(C) उच्च प्रौद्योगिकी

8. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम कब से मानव विकास प्रतिवेदन प्रकाशित कर रहा है?
(A) सन् 1988 से
(B) सन् 1990 से
(C) सन् 1992 से
(D) सन् 1999 से
उत्तर:
(B) सन् 1990 से

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

9. विश्व का कौन-सा एकमात्र देश है जिसने सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता को देश की प्रगति का अधिकारिक माप घोषित किया है?
(A) श्रीलंका
(B) भूटान
(C) नेपाल
(D) अमेरिका
उत्तर:
(B) भूटान

10. डॉ० महबूब-उल-हक कहाँ के अर्थशास्त्री थे?
(A) भारत के
(B) पाकिस्तान के
(C) इंग्लैण्ड के
(D) अफगानिस्तान के
उत्तर:
(B) पाकिस्तान के

11. मानव गरीबी सूचकांक और मानव विकास सूचकांक किसके द्वारा प्रयुक्त किए जाते हैं?
(A) UNDP द्वारा
(B) UNICEF GRT
(C) UNESCO ART
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) UNDP द्वारा

12. मानव विकास मापन का सूचकांक है-
(A) मानव विकास सूचकांक
(B) मानव गरीबी सूचकांक
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) व (B) दोनों

13. निम्नलिखित में से कौन-सी प्रक्रिया जीवन-पर्यंत चलती है?
(A) वृद्धि
(B) विकास
(C) स्वास्थ्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) विकास

14. किस प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने विकास का मुख्य ध्येय स्वतंत्रता में वृद्धि के रूप में देखा है?
(A) अभिजीत बनर्जी
(B) डॉ० महबूब-उल-हक
(C) प्रो० अमर्त्य सेन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) प्रो० अमर्त्य सेन

15. मानव विकास का स्तंभ नहीं है-
(A) समता
(B) सशक्तीकरण
(C) स्वतंत्रता
(D) सतत् पोषणीयता
उत्तर:
(C) स्वतंत्रता

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
मानव विकास सूचकांक का अधिकतम संभावित मान लिखें।
उत्तर:
1.

प्रश्न 2.
मानव विकास सूचकांक का प्रतिपादन कब किया गया?
उत्तर:
मानव विकास सूचकांक का प्रतिपादन सन् 1990 में किया गया।

प्रश्न 3.
भारत के किस राज्य में सबसे अधिक मानव विकास सूचकांक है?
उत्तर:
केरल में।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

प्रश्न 4.
मानव विकास की अवधारणा किस विद्वान की देन है?
उत्तर:
डॉ० महबूब-उल-हक की।

प्रश्न 5.
मानव विकास को जिस पैमाने पर मापा जाता है, उसका मान कितना होता है?
अथवा
मानव विकास सूचकांक का स्कोर क्या है?
उत्तर:
0-1।

प्रश्न 6.
मानव विकास के अति उच्च वर्ग का पैमाना कितना होता है?
उत्तर:
अति उच्च वर्ग का पैमाना 0.800 से ऊपर।

प्रश्न 7.
मानव विकास रिपोर्ट किसके द्वारा दी जाती है?
अथवा
विश्व मानव विकास रिपोर्ट का प्रकाशन करने वाली संस्था का नाम लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)।

प्रश्न 8.
कौन-सा कारक मानव विकास का ह्रास नहीं करता?
उत्तर:
उच्च प्रौद्योगिकी।

प्रश्न 9.
मानव विकास सूचकांक सर्वाधिक विश्वसनीय माप क्यों नहीं है?
उत्तर:
क्योंकि यह बिना आय वाला माप है।

प्रश्न 10.
मानव विकास सूचकांक की गणना में भारत किस श्रेणी में आता है?
उत्तर:
मध्यम श्रेणी में।

प्रश्न 11.
मानव विकास सूचकांक को कितने सूचकों से प्रदर्शित किया जाता है?
उत्तर:
मानव विकास सूचकांक को तीन सूचकों से प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 12.
मानव विकास सूचकांक के सर्वोच्च पायदान पर कौन-सा देश है?
उत्तर:
नार्वे।

प्रश्न 13.
HDI का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
Human Development Index.

प्रश्न 14.
GNH का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
Gross National Happiness.

प्रश्न 15.
HPI का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
Human Poverty Index.

प्रश्न 16.
UNDP का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
United Nations Development Programme.

प्रश्न 17.
किस देश ने सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता की अवधारणा प्रस्तुत की?
उत्तर:
भूटान ने।

प्रश्न 18.
मानव विकास के कितने स्तंभ हैं?
उत्तर:
मानव विकास के चार स्तंभ हैं।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

प्रश्न 19.
मानव विकास के सबसे निचले पायदान पर कौन-सा देश है?
उत्तर:
नाइजीरिया।

प्रश्न 20.
किन देशों का स्कोर 0.550 से 0.700 के बीच होता है?
उत्तर:
मध्यम सूचकांक वाले देशों का।

प्रश्न 21.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम कब से मानव विकास रिपोर्ट (प्रतिवेदन) प्रकाशित कर रहा है?
उत्तर:
वर्ष 1990 से।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुणवत्ता में हुए सकारात्मक परिवर्तन को विकास कहते हैं।

प्रश्न 2.
मानव विकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
सन् 1990 की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार मानव विकास को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, “मानव विकास मनुष्य की आकांक्षाओं एवं उन्हें उपलब्ध जीवन-यापन की सुविधाओं के स्तर को विकसित करने की प्रक्रिया है।”

प्रश्न 3.
मानव विकास का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
मानव विकास का मूल उद्देश्य ऐसी परिस्थितियों को उत्पन्न करना है जिनमें लोग सार्थक जीवन जी सकें।

प्रश्न 4.
1990 की रिपोर्ट के अनुसार मानव विकास के तीन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष कौन-से हैं?
अथवा
मानव विकास के सूचक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन या स्वास्थ्य
  2. शिक्षा व ज्ञान का प्रसार
  3. संसाधनों तक पहुँच।

प्रश्न 5.
दक्षिण-पूर्वी एशिया के दो अर्थशास्त्रियों के नाम लिखें जिन्होंने मानव विकास की अवधारणा सर्वप्रथम प्रस्तुत की।
उत्तर:
डॉ० महबूब-उल-हक एवं डॉ० अमर्त्य सेन।

प्रश्न 6.
मानव विकास के उपागम कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. आय उपागम
  2. कल्याण उपागम
  3. क्षमता उपागम
  4. न्यूनतम आवश्यकता उपागम।

प्रश्न 7.
सशक्तीकरण (Empowerment) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सशक्तीकरण का अर्थ है कि लोगों में अपने विकल्प चुनने की ताकत पैदा की जाए। यह ताकत बढ़ती हुई स्वतंत्रता, क्षमता और उत्पादकता से आती है। सुशासन और लोकोन्मुखी नीतियों से लोगों को सशक्त किया जा सकता है। मानव विकास के लिए जरूरी है कि सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों और विशेष रूप से महिलाओं का सशक्तीकरण हो।

प्रश्न 8.
मानव गरीबी सूचकांक क्या है?
उत्तर:
मानव गरीबी सूचकांक मानव विकास से संबंधित है जो मानव विकास में कमियों को दर्शाता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

प्रश्न 9.
मानव विकास सूचकांक के चार वर्ग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. अति उच्च वर्ग 0.800 से ऊपर
  2. उच्च वर्ग 0.701 से 0.799 के बीच
  3. मध्यम वर्ग 0.550 से 0.700 के बीच तथा
  4. निम्न वर्ग 0.549 से नीचे।

प्रश्न 10.
कल्याण उपागम क्या है?
उत्तर:
कल्याण उपागम के अनुसार सरकार द्वारा लोगों के कल्याणकारी कार्यक्रमों; जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और सुख-साधनों पर अधिक खर्च करके मानव विकास के स्तरों को बढ़ा सकती है। यह उपागम मनुष्य को सभी विकासात्मक गतिविधियों के केंद्र के रूप में देखता है।

प्रश्न 11.
विकासहीन वृद्धि से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी निश्चित अवधि में किसी नगर की जनसंख्या 5 लाख से 10 लाख हो जाती है तो कहा जाता है कि नगर की वृद्धि हुई। लेकिन यदि उस नगर में आवास, पेय जल, ऊर्जा, परिवहन, शिक्षा, चिकित्सा और सुरक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएँ पहले जैसी रहती हैं और उनमें कोई बेहतरी नहीं होती तो इसे विकासहीन वृद्धि माना जाएगा।

प्रश्न 12.
सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (GNH) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रसन्नता की कीमत पर भौतिक प्रगति नहीं की जा सकती। सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता हमें विकास के आध्यात्मिक, भौतिकता एवं गुणात्मक पक्षों को सोचने के लिए प्रोत्साहित करती है। भूटान विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जिसने सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता को देश की प्रगति का अधिकारिक माप घोषित किया है।

प्रश्न 13.
अति उच्च सूचकांक वाले किन्हीं चार देशों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. नार्वे
  2. ऑस्ट्रेलिया
  3. स्विट्ज़रलैंड
  4. जर्मनी।

प्रश्न 14.
मध्यम सूचकांक वाले किन्हीं चार देशों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. मलेशिया
  2. बहामस
  3. कुवैत
  4. बेलारूस।

प्रश्न 15.
निम्न सूचकांक वाले किन्हीं चार देशों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. माली
  2. नाइजीरिया
  3. मोजांबिक
  4. बरूंडी।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

प्रश्न 16.
मानव विकास सूचकांक क्या है?
उत्तर:
मानव विकास सूचकांक (HDI) मानव विकास में प्राप्तियों का मापन करता है। यह स्वास्थ्य, शिक्षा एवं संसाधनों में निष्पादन के आधार पर देशों का क्रम तैयार करता है। यह क्रम 0 से 1 के बीच के स्कोर/अंक पर आधारित है। यह प्रदर्शित करता है कि मानव विकास के प्रमुख क्षेत्रों में क्या उपलब्धि हुई है।

प्रश्न 17.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा प्रयुक्त मानव विकास मापन के दो महत्त्वपूर्ण सूचकांक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रयुक्त मानव विकास मापन के दो महत्त्वपूर्ण सूचकांक हैं-

  1. मानव विकास सूचकांक (Human Development Index)
  2. मानव गरीबी सूचकांक (Human Poverty Index)।

प्रश्न 18.
मानव विकास सूचकांक तथा मानव गरीबी सूचकांक में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
मानव विकास सूचकांक तथा मानव गरीबी सूचकांक में निम्नलिखित अंतर हैं-

मानव विकास सूचकांकमानव गरीबी सूचकांक
1. मानव विकास सूचकांक मानव विकास में उपलब्धियों को मापता है।1. मानव गरीबी सूचकांक मानव विकास में कमियों को मापता है।
2. यह वितरण के बारे में कुछ नहीं कहता।2. यह शिक्षा, स्वास्थ्य एवं संसाधनों के वितरण के स्तर को मापता है।
3. यह एक आय उपाय है।3. यह एक गैर-आय उपाय है।

प्रश्न 19.
सार्थक जीवन की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
सार्थक जीवन केवल दीर्घ नहीं होता। जीवन का कोई उद्देश्य होना भी आवश्यक है। लोग स्वस्थ हों, अपने विवेक व बुद्धि का विकास कर सकते हों, वे समाज में प्रतिभागिता करें और वे अपने उद्देश्यों को पूरा करने में स्वतंत्र हों।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विकास और वृद्धि में अंतर बताइए।
उत्तर:
विकास और वृद्धि दोनों समय के संदर्भ में परिवर्तन को दर्शाते हैं। अंतर बस इतना है कि वृद्धि में परिवर्तन मात्रात्मक होता है। वृद्धि हमेशा मूल्य निरपेक्ष होती है। यदि मात्रा बढ़ जाए तो यह धनात्मक कहलाती है और यदि हास को इंगित करे तो यह ऋणात्मक कहलाती है। इसके विपरीत विकास में परिवर्तन गुणात्मक होता है। विकास तभी संभव है जब वर्तमान दशाओं में वृद्धि हो अर्थात् विकास उस समय होता है जब वृद्धि सकारात्मक हो।

प्रश्न 2.
मानव विकास अवधारणा के अन्तर्गत सतत् पोषणीयता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सतत् पोषणीयता अथवा निर्वहन का मतलब है कि लोगों को विकास करने के अवसर लगातार मिलते रहें। सतत् पोषणीय मानव विकास तभी होगा जब प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिलें। अतः यह जरूरी है कि हम पर्यावरणीय, वित्तीय और मानव संसाधनों का आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रखते हुए सुविचारित उपयोग करें। यदि हम इन बहुमूल्य संसाधनों का अंधा-धुंध प्रयोग अथवा दुरुपयोग करेंगे तो भावी पीढ़ियों के विकल्प कम हो जाएंगे।

प्रश्न 3.
मानव विकास के हास के कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मानव विकास के ह्रास के कारक निम्नलिखित हैं-

  1. एड्स जैसी बीमारियों के प्रसार से जीवन-प्रत्याशा में कमी होना।
  2. लगातार सूखा व अकाल पड़ना।
  3. आर्थिक विकास की जड़ता।
  4. युद्ध और अराजकता।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 4 मानव विकास

प्रश्न 4.
मानव विकास की अवधारणा में दक्षिण एशियाई अर्थशास्त्रियों का क्या योगदान रहा?
अथवा
मानव विकास की संकल्पना के विकास में डॉ० अमर्त्य सेन के योगदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव विकास की संकल्पना के विकास में डॉ० महबूब-उल-हक के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन पाकिस्तानी अर्थशास्त्री डॉ० महबूब-उल-हक ने किया था। उन्होंने मानव विकास की कल्पना एक ऐसे विकास के रूप में की जिसका संबंध लोगों के विकल्पों (Choices) में बढ़ोतरी से है ताकि वे आत्म-सम्मान के साथ दीर्घ जीवन जी सकें। डॉ० अमर्त्य सेन ने भी विकास का मुख्य ध्येय स्वतंत्रता में वृद्धि अथवा परतंत्रता में कमी के रूप में देखा। स्वतंत्रताओं में वृद्धि विकास का प्रभावशाली उपाय है। ये दोनों अर्थशास्त्री लोगों को विकास पर होने वाली किसी भी चर्चा की केन्द्र में लाने में सफल हुए। उन्होंने कहा कि विकल्प स्थिर नहीं हैं बल्कि आवश्यकताओं और हालातों के मुताबिक परिवर्तनशील हैं।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा परिभाषित मानव विकास की संकल्पना का उल्लेख कीजिए और इसे मापने की विधियाँ बताइए।
अथवा
मानव विकास की संकल्पना को परिभाषित कीजिए। इसके मापने के आधारों का वर्णन करें।
अथवा
मानव विकास की संकल्पना की विवेचना कीजिए।
अथवा
मानव विकास का विचार किन संकल्पनाओं पर आश्रित है? वर्णन करें।
उत्तर:
प्रकृति के संसाधनों का उपयोग तब तक पूर्णतया से नहीं किया जा सकता, जब तक मनुष्य की क्षमताओं का विकास नहीं किया जाता। केवल धन के द्वारा मानव विकास संभव नहीं है। विकास का लक्ष्य लोगों का कल्याण होना चाहिए। आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास जन-कल्याण के प्रमुख आधार हैं।

संयुक्त राष्ट्र विकास (UNDP) के अनुसार, “विकास केवल लोगों की आय तथा पूँजी की ही वृद्धि नहीं बल्कि यह मानव की कार्यप्रणाली तथा क्षमताओं में वृद्धि की प्रक्रिया है। मानव विकास लोगों की आकांक्षाओं और उन्हें उपलब्ध जीवन-यापन की सुविधाओं के स्तर को विकसित करने की प्रक्रिया है।”
मानव विकास संकल्पना की विधियाँ/आधार-UNDP के मानव विकास को मापने के लिए तीन महत्त्वपूर्ण आकांक्षाओं को आधार माना है, जो निम्नलिखित हैं
1. दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन-मनुष्य के जीवन-काल को जन्म के समय संभावित आयु या जीवन-प्रत्याशा से मापा जाता है। उच्च जीवन प्रत्याशा उच्च जीवन स्तर का और निम्न जीवन प्रत्याशा निम्न जीवन स्तर का अभिलक्षण है। विकासशील देशों की जीवन प्रत्याशा 40-65 वर्ष पाई जाती है जबकि विकसित देशों में यह 60-75 वर्ष पाई जाती है।

2. शिक्षित एवं ज्ञानवान होना-शिक्षा और विकास का घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिक्षा मनुष्य को विवेकशील बनाकर उसमें आत्मविश्वास जगाती है। विकसित देशों में उच्च साक्षरता दर पाई जाती है जबकि विकासशील देशों में निम्न या मध्यम साक्षरता दर पाई जाती है।

3. संसाधनों की उपलब्धता आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता भी उत्तम जीवन स्तर का आधार माना जाता है। जीवन स्तर को प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में भी व्यक्त किया जाता है।
इस प्रकार मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन किया गया और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा मानव विकास को इस प्रकार परिभाषित किया गया। “लोगों के विकल्पों के परिवर्द्धन की प्रक्रिया और जन-कल्याण के स्तर को ऊंचा उठाना ही मानव विकास है।”

स्त्री, पुरुष और बच्चे विकास की प्रक्रिया के केंद्र-बिंदु होने चाहिएँ। “विकास लोगों के लिए हो, न कि लोग विकास के लिए।” प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की अपेक्षा प्रति व्यक्ति सुविधाएँ बढ़ाने पर बल दिया जाना चाहिए। राष्ट्र की वास्तविक संपदा लोग हैं। इसलिए विकास का मुख्य लक्ष्य मानव-जीवन की समृद्धि होना चाहिए।

प्रश्न 6.
मानव विकास सूचकांक के अनुसार विश्व के उच्च सूचकांक वाले देशों का वर्गीकरण करें।
उत्तर:
उच्च मानव विकास सूचकांक वाले 59 देश हैं। इनका सूचकांक 0.800 से ऊपर है। सर्वोच्च सूचकांक वाले देश क्रमशः हैं नार्वे, आइसलैंड, ऑस्ट्रेलिया, लग्जमबर्ग, कनाडा, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, आयरलैंड, बेल्जियम, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि।

इन देशों में सामाजिक खंड में बहुत निवेश हुआ है। लोगों और सुशासन में उच्चतर निवेश ने इस वर्ग के देशों को अन्य देशों से अलग कर दिया है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराना सरकार की महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता है। इन देशों में उच्च स्तरीय औद्योगिकीकरण पाया जाता है। उच्च मानव स्कोर वाले देश यूरोप में अवस्थित हैं फिर भी गैर-यूरोपीय देशों की संख्या आश्चर्यचकित करने वाली है उन्होंने भी इस सूची में अपना स्थान बनाया है।

प्रश्न 7.
मानव विकास सूचकांक के अनुसार विश्व के मध्यम सूचकांक वाले देशों का वर्गीकरण करें।
उत्तर:
मध्यम सूचकांक वाले देश 39 हैं जिनका स्कोर 0.550 से 0.700 के बीच है। मध्यम मूल्य सूचकांक वाले देश हैं बहामस, कुवैत, भारत, मकदूनिया, एंटीगुआ और बारबाडोस, मलेशिया, रोमानिया, मॉरीशस, ग्रेनेडा, बेलारूस आदि।

इनमें से अधिकांश देशों का विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की अवधि में हुआ है। इस वर्ग के कुछ देश पूर्वकालीन उपनिवेश थे। अन्य अनेक देशों का विकास 1990 ई० में तत्कालीन सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् हुआ है। इनमें से अनेक देश लोकोन्मुखी नीतियों को अपनाकर स्था सामाजिक भेदभाव को दूर करके अपने मानव विकास स्कोर में सुधार कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश देशों में उच्चतर मानव विकास के स्कोर वाले देशों की तुलना में सामाजिक विविधता अधिक पाई जाती है।

प्रश्न 8.
मानव विकास सूचकांक के अनुसार विश्व के निम्न सूचकांक वाले देशों का वर्गीकरण करें।
उत्तर:
निम्न सूचकांक वाले देशों की संख्या 38 है जिनका मानव विकास सूचकांक का स्कोर 0.549 से नीचे है। निम्नतम मूल्य सूचकांक वाले देश हैं नाइजीरिया, सियरा लियोन, बुस्कीनो फासो, माली, चाड, गिनी बिसाऊ, मध्य अफ्रीकन गणराज्य, इथोपिया, बरूंडी, मोजांबिक आदि।

इनमें से अधिकांश देश छोटे हैं जो राजनीतिक उपद्रव, गृहयुद्ध के रूप में सामाजिक स्थिरता, अकाल अथवा बीमारियों की अधिक घटनाओं के दौर से गुजर रहे हैं। इन देशों में सुशासन, सुरक्षा तथा कल्याणकारी योजनाओं में सरकारी निवेश की तत्काल आवश्यकता है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव विकास अवधारणा के चार स्तंभ कौन-से हैं? स्पष्ट करें।
अथवा
मानव विकास अवधारणा के कौन-कौन से स्तंभ हैं? विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर:
मानव विकास का ध्येय लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना है। यह संसाधनों के उपयोग के लिए मनुष्यों के काम करने के तरीकों तथा क्षमताओं में उन्नयन की प्रक्रिया है। मानव विकास की सारी सोच चार स्तंभों पर टिकी हुई है। ये हैं-
1. समता (Equity) – समता का आशय ऐसी व्यवस्था करने से है जिससे प्रत्येक व्यक्ति की उपलब्ध संसाधनों तक समान पहुँच हो सके। लोगों को उपलब्ध अवसर धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म-स्थान तथा आय के भेदभाव के विचार के बिना समान होने चाहिएँ। भारत के संविधान में अनुच्छेद 14-18 के अंतर्गत लोगों को समानता के मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं। इसके बावजूद भी लगभग प्रत्येक समाज में भेदभाव की घटनाएँ कभी-न-कभी देखने को मिलती रहती हैं।

2. सतत् पोषणीयता (Sustainability) – यहाँ सतत् पोषणीयता अथवा निर्वहन का मतलब है कि लोगों को विकास करने के अवसर लगातार मिलते रहें। सतत् पोषणीय मानव विकास तभी होगा जब प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिलें। अतः यह जरूरी है कि हम पर्यावरणीय, वित्तीय और मानव संसाधनों का आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रखते हुए सुविचारित उपयोग करें। यदि हम इन बहुमूल्य संसाधनों का अंधाधुंध प्रयोग अथवा दुरुपयोग करेंगे तो भावी पीढ़ियों के विकल्प कम हो जाएँगे।

3. उत्पादकता (Productivity) – यहाँ उत्पादकता से तात्पर्य मानव श्रम उत्पादकता से है। मनुष्यों के काम करने के तरीकों को बेहतर बनाकर तथा उनमें क्षमताओं का निर्माण करके उत्पादकता में निरंतर वृद्धि की जा सकती है। स्वस्थ शरीर से युक्त हुनरमंद लोग ही किसी राष्ट्र का वास्तविक धन होते हैं। अतः लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराने एवं उनके ज्ञान को बढ़ाने के प्रयासों से ही लोगों की कार्य क्षमता बढ़ेगी।

4. सशक्तीकरण (Empowerment) इसका अर्थ है कि लोगों में अपने विकल्प चुनने की ताकत पैदा की जाए। यह ताकत बढ़ती हुई स्वतंत्रता, क्षमता और उत्पादकता से आती है। सुशासन और लोकोन्मुखी नीतियों से लोगों को सशक्त किया जा सकता है। मानव विकास के लिए जरूरी है कि सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों और विशेष रूप से महिलाओं का सशक्तीकरण हो।

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प्रश्न 2.
मानव विकास के चार प्रमुख उपागमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव विकास को देखने और समझने के अनेक ढंग अथवा उपागम हैं जिनमें चार महत्त्वपूर्ण हैं-
1. आय उपागम (Income Approach) यह मानव विकास के अध्ययन के सबसे पुराने उपागमों में से एक है जिसमें आमदनी के बढ़ने को विकास का होना माना जाता है। इस उपागम में यह माना जाता है कि आय का स्तर किसी व्यक्ति द्वारा भोगी जा रही स्वतंत्रता के स्तर को परिलक्षित करता है। आय के स्तर के ऊँचा या नीचा होने पर मानव विकास का स्तर भी उसी अनुरूप ऊँचा या नीचा होता है।

2. कल्याण उपागम (Welfare Approach)-इस उपागम के अनुसार सरकार द्वारा लोगों के कल्याणकारी कार्यक्रमों; जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और सुख-साधनों पर अधिक खर्च करके मानव विकास के स्तरों को, बढ़ा सकती है। यह उपागम मनुष्य को सभी विकासात्मक गतिविधियों के केंद्र के रूप में देखता है। लोग विकास के प्रतिभागी नहीं हैं, अपितु वे केवल निष्क्रिय लाभार्थी हैं।

3. आधारभूत/न्यूनतम आवश्यकता उपागम (Basic/Minimum Needs Approach)-मूल रूप से यह उपागम अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O.) की देन है जिसमें मानव विकास के लिए जरूरी छः न्यूनतम आवश्यकताओं की पहचान की गई है। वे हैं-

  • स्वास्थ्य
  • शिक्षा
  • भोजन
  • जलापूर्ति
  • स्वच्छता और
  • आवास।

इस उपागम में परिभाषित वर्गों की मूलभूत आवश्यकताओं पर तो बल दिया गया है, किंतु मानव विकल्पों की ओर ध्यान नहीं दिया गया।

4. क्षमता उपागम (Capability Approach)-इस उपागम का समर्थन प्रो० अमर्त्य सेन ने किया है। इसके अनुसार क्षमताओं को विकसित किए बिना मनुष्य संसाधनों तक नहीं पहुँच सकता। क्षमताओं का निर्माण ही मानव विकास की कुंजी है।

प्रश्न 3.
मानव विकास की अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ रुचिकर हैं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानव विकास की अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ रुचिकर हैं। प्रायः मानव विकास में बड़े देशों की अपेक्षा छोटे देशों का कार्य अच्छा रहा है। इसी तरह मानव विकास में अपेक्षाकृत गरीब राष्ट्रों का कोटि-क्रम अमीर पड़ोसियों से उच्च रहा है। उदाहरण के लिए श्रीलंका, त्रिनिदाद, टोबैगो का मानव विकास सूचकांक भारत के मानव विकास सूचकांक से ऊँचा है। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति आय कम होते हुए भी मानव विकास में केरल का प्रदर्शन पंजाब और गुजरात से बेहतर है। मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों को चार समूहों में बाँटा जा सकता है

मानव विकास के स्तरमानव विकास सूचकांक के स्कोर/अंकदेशों की संख्या
अति उच्च0.800 से ऊपर– 59
उच्च0.701 से 0.799 के मध्य53
मध्यम0.550 से 0.700 के मध्य39
निम्न0.549 से नीचे38

मानव विकास की अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ कुछ अत्यंत रुचिकर परिणाम दर्शाती हैं। प्रायः लोग मानव विकास के निम्न स्तर के लिए लोगों की संस्कृति को दोष देते हैं। मानव विकास के उच्च स्तरों वाले देश सामाजिक क्षेत्रों में अधिक निवेश करते हैं और ये राजनीतिक दृष्टिकोण से स्थिर होते हैं। दूसरी ओर, निम्न स्तरों वाले देश प्रतिरक्षा पर अधिक खर्च करते हैं।

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अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. निम्नलिखित में से कौन-सा विकास का सर्वोत्तम वर्णन करता है?
(A) आकार में वृद्धि
(B) गुण में धनात्मक परिवर्तन
(C) आकार में स्थिरता
(D) गुण में साधारण परिवर्तन
उत्तर:
(B) गुण में धनात्मक परिवर्तन

2. मानव विकास की अवधारणा निम्नलिखित में से किस विद्वान की देन है?
(A) प्रो० अमर्त्य सेन
(B) डॉ० महबूब-उल-हक
(C) एलन सी० सेम्पुल
(D) रैटजेल
उत्तर:
(B) डॉ० महबूब-उल-हक

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3. निम्नलिखित में कौन-सा देश उच्च मानव विकास वाला नहीं है?
(A) नार्वे
(B) अर्जेंटाइनों
(C) जापान
(D) मिस्र
उत्तर:
(D) मिस्र

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
मानव विकास के तीन मूलभूत क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
मानव विकास के तीन मूलभूत क्षेत्र हैं जिनके आधार पर विभिन्न देशों का उच्च कोटि-क्रम तैयार किया जाता है। ये मूलभूत क्षेत्र हैं-

  1. स्वास्थ्य
  2. शिक्षा
  3. संसाधनों तक पहुँच।

प्रश्न 2.
मानव विकास के चार प्रमुख घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मानव विकास के चार प्रमुख घटक अथवा स्तंभ हैं-

  1. समता
  2. सतत् पोषणीयता
  3. उत्पादकता
  4. सशक्तीकरण।

मानव विकास का विचार इन्हीं चार संकल्पनाओं/घटकों पर आधारित है।

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प्रश्न 3.
मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
प्रत्येक देश अपने मूलभूत क्षेत्रों स्वास्थ्य, शिक्षा तथा संसाधनों तक पहुँच के अंतर्गत हुई प्रगति के आधार पर 0 से 1 के बीच अंक अर्जित करते हैं। यह अंक 1 के जितना पास होगा, मानव विकास का स्तर उतना ही अधिक होगा। मानव विकास प्रतिवेदन 2018 के अनुसार 59 देशों का स्कोर 0.800 से ऊपर है जो अति उच्च वर्ग में आते हैं। 53 देशों का स्कोर 0.701 से 0.799 के बीच उच्च वर्ग में, 39 देशों का स्कोर 0.550 से 0.700 के बीच मध्यम वर्ग तथा 38 देशों का स्कोर 0.549 से नीचे है जो निम्न वर्ग में रखे गए हैं। इस प्रकार मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

मानव विकास का स्तरमानव विकास सूचकांक के अंकदेशों की संख्या
अति उच्च0.800 से ऊपर59
उच्च0.701 से 0.799 के मध्य53
मध्यम0.550 से 0.700 के मध्य39
निम्न0.549 से नीचे38

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
मानव विकास शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन सन् 1990 में पाकिस्तानी अर्थशास्त्री डॉ० महबूब-उल-हक ने किया था। उन्होंने मानव विकास की कल्पना एक ऐसे विकास के रूप में की जिसका संबंध लोगों के विकल्पों में बढ़ोतरी से है, ताकि वे आत्म-सम्मान के साथ दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन जी सकें। सन् 1990 की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार मानव विकास को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है, “मानव विकास मनुष्य की आकांक्षाओं एवं उन्हें उपलब्ध जीवनयापन की सुविधाओं के स्तर को विकसित करने की प्रक्रिया है।” अतः मानव विकास के तीन महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं (i) स्वास्थ्य, (ii) शिक्षा का प्रसार, (iii) संसाधनों तक पहुँच।

भारत के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं नोबल पुरस्कार विजेता डॉ० अमर्त्य सेन ने विकास का मुख्य उद्देश्य लोगों की स्वतंत्रता में वृद्धि को बताया है। इन सभी अवधारणाओं में सभी प्रकार के विकास का केंद्र-बिंदु मनुष्य है। अतः विकास का मूल उद्देश्य ऐसी परिस्थितियों को उत्पन्न करना है जिनमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकें।

सार्थक जीवन केवल दीर्घ नहीं होता बल्कि उसका कोई उद्देश्य होना भी जरूरी होता है। इसका अर्थ है-लोग स्वस्थ व तंदुरुस्त रहें और अपने विवेक व बुद्धि का विकास कर सकें। वे समाज में प्रतिभागिता करें और अपने उद्देश्यों को पूरा करने में स्वतंत्र हों। यही जीवन की सार्थकता है। इस अवधारणा से पहले अनेक दशकों तक मानव-विकास के स्तर को केवल आर्थिक वृद्धि के संदर्भ में मापा जाता था अर्थात जिस देश की अर्थव्यवस्था जितनी बड़ी होती थी उसे उतना ही विकसित माना जाता था। चाहे उस विकास से लोगों के जीवन में कोई परिवर्तन हुआ हो। विकास की नई अवधारणा ने इस पूर्व प्रचलित विचारधारा पर पुनः विचार करने पर मजबूर किया है।

प्रश्न 2.
मानव विकास अवधारणा के अंतर्गत समता और सतत् पोषणीयता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समता (Equity) – समता का आशय ऐसी व्यवस्था करने से है कि प्रत्येक व्यक्ति की उपलब्ध संसाधनों तक समान पहुँच हो सके। लोगों को उपलब्ध अवसर धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म-स्थान तथा आय के भेदभाव के विचार के बिना समान होने चाहिएँ। भारत के संविधान में अनुच्छेद 14-18 के अंतर्गत लोगों को समानता के मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं। इसके बावजूद भी प्रत्येक समाज में भेदभाव की घटनाएँ कभी-न-कभी देखने को मिलती रहती हैं।

सतत पोषणीयता (Sustainability) – यहाँ सतत पोषणीयता अथवा निर्वहन का मतलब है कि लोगों को विकास करने के अवसर लगातार मिलते रहें। सतत पोषणीय मानव विकास तभी होगा जब प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिलें। अतः यह जरूरी है कि हम पर्यावरणीय, वित्तीय और मानव संसाधनों का आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रखते हुए सुविचारित उपयोग करें। यदि हम इन बहुमूल्य संसाधनों का अंधा-धुंध प्रयोग अथवा दुरुपयोग करेंगे तो भावी पीढ़ियों के विकल्प कम हो जाएंगे।

मानव विकास HBSE 12th Class Geography Notes

→ सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) : एक देश की सीमाओं में उत्पादित समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं का मुद्रा में मूल्य। इसमें विदेशों से अर्जित आय को शामिल नहीं किया जाता।

→ सकल राष्ट्रीय आय (Gross National Income) : देश का सकल घरेलू उत्पाद तथा विश्व के अन्य देशों में उत्पादन संसाधनों से अर्जित निबल आय का योग।

→ विकास का पारंपरिक अर्थ (Traditional Meaning of Development) : विकास परिवर्तन की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें संसाधनों के दोहन से लोगों की गुणवत्ता में सुधार हो सके। विकास की अवधारणा समय और स्थान के साथ बदलती रहती है। प्रति व्यक्ति आय, ऊर्जा उपभोग तथा पोषण स्तर आदि विकास को मापने के कुछ तरीके हैं।

→ वृद्धि (Growth) : वृद्धि मात्रात्मक एवं मूल्य निरपेक्ष है। इसका चिह्न धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है।

→ विकास (Development) : विकास का अर्थ गुणात्मक परिवर्तन से है, जो मूल्य सापेक्ष होता है। विकास की प्रक्रिया जीवन-पर्यंत निरंतर चलती है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 4 मानव विकास

→ मानव विकास (Human Development) : मानव विकास मनुष्य की आकांक्षाओं एवं उन्हें उपलब्ध जीवन-यापन की सुविधाओं के स्तर को विकसित करने की प्रक्रिया है।

→ मानव विकास के सूचक (Indicators of Human Development):

  • जीवन प्रत्याशा
  • साक्षरता एवं
  • प्रति व्यक्ति आय।

→ मानव विकास के चार स्तंभ (Four Pillars of Human Development):

  • समता
  • सतत् पोषणीयता
  • उत्पादकता
  • सशक्तीकरण।

→ मानव विकास के उपागम (Approaches of Human Development):

  • आय उपागम
  • कल्याण
  • आधारभूत आवश्यकता उपागम
  • क्षमता उपागम।

→ मानव विकास सूचकांक (Human Development Index-HDI) : यह मानव विकास में प्राप्तियों का मापन करता है। यह प्रदर्शित करता है कि मानव विकास के प्रमुख क्षेत्रों में क्या उपलब्धियाँ हुई हैं।

→ मानव गरीबी सूचकांक (Human Poverty Index) : यह मानव विकास सूचकांक से संबंधित है, जो मानव विकास में कमियों को दर्शाता है।

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(A) खुली अर्थव्यवस्था में विश्व के अन्य राष्ट्रों से आयात-निर्यात होता है
(B) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ खुली अर्थव्यवस्थाएँ हैं
(C) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं
(D) खुली अर्थव्यवस्था में अन्य राष्ट्रों के साथ वित्तीय परिसंपत्तियों में भी व्यापार होता है
उत्तर:
(C) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं

2. भुगतान शेष से अभिप्राय है
(A) निर्यात तथा आयात के दृश्य मदों में अंतर
(B) निर्यात तथा आयात के अदृश्य मदों में अंतर
(C) स्वर्ण के बाहरी तथा आंतरिक प्रवाह में अंतरं
(D) एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा
उत्तर:
(D) एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा

3. व्यापार शेष से अभिप्राय है
(A) वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर
(B) सेवाओं के निर्यात तथा आयात में अंतर
(C) पूँजी के निर्यात तथा आयात में अंतर
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(A) वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर

4. भुगतान शेष में शामिल होते हैं-
(A) दृश्य मदें
(B) अदृश्य मदें
(C) पूँजी हस्तांतरण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

5. व्यापार शेष में निम्नलिखित में से किसको शामिल नहीं किया जाता?
(A) सेवाओं के आयात-निर्यात को
(B) देशों के बीच ब्याज तथा लाभांश के भुगतान को
(C) पर्यटकों द्वारा व्यय को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. भुगतान शेष के चालू खाते में निम्नलिखित में से कौन-से सौदे रिकॉर्ड किए जाते हैं?
(A) वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात और निर्यात
(B) एक देश से दूसरे देश को एक-पक्षीय हस्तांतरण
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

7. भुगतान शेष के एक-पक्षीय हस्तांतरण-
(A) एक देश से दूसरे देश को एक-तरफा किए जाते हैं.
(B) इनका व्यावसायिक लेन-देन से कोई संबंध नहीं होता
(C) इनमें प्राप्तियों के बदले में कोई भुगतान नहीं किए जाते; जैसे-उपहार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. भुगतान शेष के पूँजी खाते की मुख्य मदें निम्नलिखित में से कौन-सी हैं?
(A) विदेशी निवेश
(B) ऋण
(C) बैंकिंग पूँजी लेन-देन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

9. वे सभी पूँजीगत सौदे जिनके कारण विदेशी विनिमय का प्रवाह देश से बाहर को जाता है, उन्हें भुगतान शेष के पूँजी खाते में किन मदों में लिखा जाता है?
(A) धनात्मक मदों में
(B) ऋणात्मक मदों में
(C) शून्य मदों में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऋणात्मक मदों में

10. निर्यात-आयात के मूल्य के अंतर को कहते हैं-
(A) व्यापार शेष
(B) भुगतान शेष
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यापार शेष

11. केवल दृश्य मदों को शामिल किया जाता है-
(A) व्यापार शेष में
(B) भुगतान शेष में
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यापार शेष में

12. व्यापार शेष
(A) भुगतान शेष + शुद्ध अदृश्य मदें
(B) भुगतान शेष – शुद्ध अदृश्य मदें
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) भुगतान शेष – शुद्ध अदृश्य मदें

13. स्वायत्त (Autonomous) मदें उन सौदों से संबंधित होती हैं जिनका-
(A) निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर किया जाता है
(B) संबंध भुगतान शेष की स्थिति से नहीं होता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

14. समायोजक (Accommodating) मदें भुगतान शेष के खाते की वे मदें हैं जिनका
(A) निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता
(B) संबंध देश के भुगतान शेष की धनात्मक अथवा ऋणात्मक स्थिति से होता है
(C) उद्देश्य भुगतान शेष की समानता स्थापित कराना होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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15. भुगतान शेष सदैव होता है
(A) प्रतिकूल
(B) संतुलित
(C) अनुकूल
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संतुलित

16. व्यापार शेष की तुलना में भुगतान शेष है
(A) अधिक व्यापक
(B) कम व्यापक
(C) व्यापक भी तथा नहीं भी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अधिक व्यापक

17. भुगतान शेष के असंतुलन से अभिप्राय है-
(A) बचत वाला भुगतान शेष
(B) घाटे वाला भुगतान शेष
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

18. भुगतान शेष का घाटे वाला असंतुलन तब होता है जब-
(A) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) है
(B) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष धनात्मक (+) है
(C) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष बराबर (=) है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं ।
उत्तर:
(A) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) है

19. ब्रेटन वुड्स व्यवस्था किस वर्ष से प्रारंभ हुई?
(A) 1944 से
(B) 1960 से
(C) 1994 से
(D) 1947 से
उत्तर:
(A) 1944 से

20. यदि व्यापार शेष (-) 600 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है तो आयात का मूल्य होगा
(A) -1,300 करोड़ रुपए
(B) 300 करोड़ रुपए
(C) 1,100 करोड़ रुपए
(D) 1,200 करोड़ रुपए
उत्तर:
(C) 1,100 करोड़ रुपए

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21. विनिमय दर से अभिप्राय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में एक करेंसी की अन्य करेंसियों के रूप में-
(A) कीमत से है
(B) विनिमय के अनुपात से है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) वस्तु विनिमय से है
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

22. वर्तमान में विनिमय दरों के किस रूप को अपनाया जाता है?
(A) स्थिर विनिमय दरों के
(B) नम्य (लोचशील) विनिमय दरों के
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) नम्य (लोचशील) विनिमय दरों के

23. स्थिर विनिमय प्रणाली के अंतर्गत विनिमय दर का निर्धारण करेंसी की एक इकाई में निहित निम्नलिखित में से किसके आधार पर किया जाता है?
(A) चाँदी की मात्रा
(B) सोने की मात्रा
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सोने की मात्रा

24. टकसाली दर से अभिप्राय है-
(A) समान क्रय-शक्ति
(B) दो करेंसियों में स्वर्ण का भार
(C) विदेशी करेंसी की माँग तथा पूर्ति
(D) दो देशों में कीमत स्तर
उत्तर:
(B) दो करेंसियों में स्वर्ण का भार

25. विनिमय दर की समंजनीय प्रणाली (या ब्रेटन वुडस प्रणाली) के अनुसार-
(A) विभिन्न करेंसियों को एक करेंसी (अमेरिकी डॉलर) के साथ संबंधित कर दिया गया
(B) अमेरिकी डॉलर का एक निश्चित कीमत पर स्वर्ण मूल्य निर्धारित कर दिया गया
(C) दो करेंसियों के बीच समता उनमें पाई जाने वाली स्वर्ण की मात्रा द्वारा निर्धारित की जाती थी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

26. वर्तमान समय में एक देश की मुद्रा की विभिन्न देशों की मुद्राओं के बीच विनिमय दर-
(A) एक ही होगी
(B) अलग-अलग होगी.
(C) निश्चित होगी
(D) अनिश्चित होगी
उत्तर:
(B) अलग-अलग होगी

27. निम्नलिखित में से स्थिर विनिमय प्रणाली का कौन-सा लाभ नहीं है?
(A) अस्थिरता
(B) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा
(C) स्थिरता
(D) समष्टिगत नीतियों में समन्वय
उत्तर:
(A) अस्थिरता

28. स्थिर विनिमय प्रणाली का निम्नलिखित में से कौन-सा दोष नहीं है?
(A) विशाल अंतर्राष्ट्रीय निधि की आवश्यकता
(B) पूँजी का असीमित आवागमन
(C) जोखिम पूँजी का निरुत्साहित होना
(D) साधनों के आबंटन में कठोरता
उत्तर:
(B) पूँजी का असीमित आवागमन

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29. नम्य(लोचशील) वह दर है जिसका निर्धारण-
(A) मुद्रा में निहित सोने की मात्रा द्वारा होता है
(B) विभिन्न मुद्राओं की पूर्ति तथा माँग द्वारा होता है
(C) एक करेंसी के टकसाली मूल्य द्वारा होता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) विभिन्न मुद्राओं की पूर्ति तथा माँग द्वारा होता है

30. जिस विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की माँग उसकी पूर्ति के बराबर हो जाए तो उसे कहते हैं-
(A) विनिमय की समानता दर
(B) विनिमय की असंतुलन दर
(C) संतुलन दर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) संतुलन दर

31. विदेशी विनिमय की माँग निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिए की जाती है?
(A) अंतर्राष्ट्रीय ऋणों का भुगतान करने के लिए
(B) शेष विश्व में निवेश करने के लिए
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

32. विदेशी मुद्रा की माँग तथा विनिमय दर में क्या संबंध पाया जाता है?
(A) विपरीत
(B) प्रत्यक्ष
(C) कोई संबंध नहीं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) विपरीत

33. विदेशी विनिमय की पूर्ति तथा विनिमय दर में क्या संबंध पाया जाता है?
(A) विपरीत
(B) प्रत्यक्ष
(C) बहुत निकट
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) प्रत्यक्ष

34. नम्य विनिमय दर प्रणाली का निम्नलिखित में से कौन-सा दोष नहीं है?
(A) अस्थिरता
(B) समष्टिगत नीतियों के समन्वय में कठिनाई
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता

35. विदेशी विनिमय बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें संसार के विभिन्न देशों की राष्ट्रीय करेंसियों को-
(A) बेचा जाता है
(B) खरीदा जाता है
(C) बेचा अथवा खरीदा जाता है
(D) विनिमय नहीं होता
उत्तर:
(C) बेचा अथवा खरीदा जाता है।

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36. हाजिर (चालू) बाज़ार का अर्थ उस बाज़ार से है जिसमें-
(A) केवल चालू या हाजिर लेन-देन किया जाता है
(B) किसी भविष्य में किसी तिथि पर लेन-देन किया है
(C) तात्कालिक विनिमय दर का निर्धारण होता है
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

37. वर्तमान समय में विनिमय दर का निर्धारण होता है-
(A) IMF ART
(B) IBRD द्वारा
(C) WTO GRI
(D) विदेशी मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा
उत्तर:
(D) विदेशी मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा

38. विनिमय दर का निर्धारण होता है-
(A) विदेशी मुद्रा की माँग से
(B) विदेशी तथा देशी मुद्रा की माँग से
(C) विदेशी तथा देशी मुद्रा की माँग व पूर्ति से
(D) विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति से
उत्तर:
(D) विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति से

39. स्वतंत्र विनिमय बाज़ार में जब पूर्ति यथास्थिर रहते हुए विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तो विनिमय दर में ……………. होती है और जब माँग यथास्थिर रहे परंतु पूर्ति बढ़ जाए तो विनिमय दर में …………. हो जाती है।
(A) कमी, शून्य
(B) वृद्धि, कमी
(C) वृद्धि, शून्य
(D) वृद्धि, वृद्धि
उत्तर:
(B) वृद्धि, कमी

40. नम्य (लोचपूर्ण) विनिमय प्रणाली में विनिमय दर निर्धारित होती है-
(A) देश के मौद्रिक प्राधिकरण (Authority) द्वारा
(B) स्वर्ण कीमत द्वारा
(C) विदेशी विनिमय बाज़ार की माँग-पूर्ति शक्ति द्वारा
(D) विनिमय मूल्यांतर द्वारा
उत्तर:
(C) विदेशी विनिमय बाज़ार की माँग-पूर्ति शक्ति द्वारा

41. देश में मुद्रास्फीति बढ़ने पर विनिमय दर-
(A) देश के विपक्ष में हो जाती है
(B) देश के पक्ष में हो जाती है
(C) अप्रभावित रहती है।
(D) उपर्युक्त सभी दशाएँ संभव हैं
उत्तर:
(A) देश के विपक्ष में हो जाती है

42. नम्य विनिमय दर प्रणाली में इंग्लैंड के पौंड की अमेरिका में माँग बढ़ती है, तब-
(A) डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होगा
(B) पौंड का मूल्यह्रास होगा
(C) डॉलर की मूल्यवृद्धि (Appreciation) होगी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होगा

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43. विनिमय दर यदि 3 डॉलर = 1 पौंड से बदल कर 2 डॉलर = 1 पौंड हो जाती हे तब इसका अर्थ है-
(A) डॉलर का मूल्यह्रास
(B) डॉलर की मूल्यवृद्धि
(C) पौंड की मूल्यवृद्धि
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) डॉलर की मूल्यवृद्धि

44. यदि किसी देश में किसी समय स्टोरियों द्वारा विदेशी मुद्रा को अधिक मात्रा में खरीदा जाता है, तब उस देश में विनिमय दर-
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) स्थिर बनी रहती है
(D) उपर्युक्त सभी असत्य
उत्तर:
(B) बढ़ती है

45. देश में विस्तारवादी मौद्रिक नीति देश में विनिमय दर को-
(A) घटाती है
(B) बढ़ाती है
(C) अप्रभावित रखती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटाती है

46. नम्य (लोचपूर्ण) विनिमय दर के लिए कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(A) विनिमय दर परिवर्तनशील होती है
(B) इस दर पर सरकार का नियंत्रण रहता है
(C) इसमें माँग और पूर्ति की शक्तियों के फलस्वरूप परिवर्तन होता है
(D) उपर्युक्त सभी सत्य
उत्तर:
(B) इस दर पर सरकार का नियंत्रण रहता है

47. विनिमय दर का निर्धारण माँग व पूर्ति से होता है, इस संदर्भ में किसी देश के अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में माँग किससे निर्धारित होती है? (A) उस देश के आयात से
(B) उस देश द्वारा लिए गए ऋणों से
(C) उस देश के निर्यातों से
(D) उस देश की राष्ट्रीय आय से
उत्तर:
(C) उस देश के निर्यातों से

48. नम्य (लोचदार) विनिमय दर नीति-
(A) माँग के नियम पर आधारित है
(B) पूर्ति के नियम पर आधारित है
(C) (A) और (B) दोनों पर आधारित है
(D) उपर्युक्त में से किसी पर भी आधारित नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों पर आधारित है।

49. स्वर्णमान में विनिमय दर का निर्धारण किया जाता था-
(A) टकसाली समता सिद्धांत द्वारा
(B) क्रय-शक्ति समता सिद्धांत द्वारा
(C) (A) और (B) दोनों द्वारा
(D) उपर्युक्त में से किसी के द्वारा नहीं
उत्तर:
(A) टकसाली समता सिद्धांत द्वारा

50. वर्तमान में विनिमय दर का निर्धारण टकसाली समता सिद्धांत द्वारा महत्त्वहीन हो गया है क्योंकि-
(A) वर्तमान में किसी भी देश ने स्वर्णमान नहीं अपना रखा है
(B) वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्वर्ण आयात-निर्यात पर प्रतिबंध लगे हुए हैं
(C) वर्तमान में सभी देशों ने अपरिवर्तनीय पत्र मुद्रामान अपना रखा है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

51. स्वर्णमान वाले देशों की मुद्राओं की विनिमय दरों के उच्चावचन की सीमाएँ निर्धारित होती हैं-
(A) उनके स्वर्ण के मूल्यों के बीच
(B) स्वर्ण निर्यात तथा आयात मूल्यों के बीच
(C) रजत तथा स्वर्ण की मात्रा पर
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) स्वर्ण निर्यात तथा आयात मूल्यों के बीच

52. क्रय-शक्ति समता सिद्धांत के अनुसार विनिमय दर किस देश के पक्ष में होगी यदि पाँच वर्ष में A देश का सूचकांक 150 और B देश का सूचकांक 200 हो जाए।
(A) ‘A’ देश के
(B) ‘B’ देश के
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से किसी के नहीं
उत्तर:
(A) ‘A’ देश के

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53. विनिमय दर को निम्नलिखित प्रक्रिया द्वारा बाज़ार के सभी भागों में समान बनाया जा सकता है-
(A) सट्टे (Specutation) द्वारा
(B) विनिमय की मध्यस्थता (Arbitrage) द्वारा
(C) विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा
(D) ब्याज मध्यस्थता द्वारा
उत्तर:
(C) विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा

54. हाजिर दर (Spot Rate) एवं अग्रिम दर (Forward Rate) के बीच निम्न में से कौन-सी क्रिया होती है?
(A) सट्टा
(B) द्वैद्य रक्षण
(C) मध्यस्थता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

55. वायदा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें-
(A) भविष्य में पूरा होने वाला लेन-देन का कारोबार होता है
(B) यह भविष्य की विनिमय दर को परिभाषित करता है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

56. यदि 50 रुपए 2 डॉलर खरीदने के लिए आवश्यक हैं तो विनिमय दर है-
(A) 50 रुपए = 2 डॉलर
(B) 25 रुपए = 1 डॉलर
(C) 20 रुपए = 1 डॉलर
(D) 100 रुपए = 4 डॉलर
उत्तर:
(B) 25 रुपए = 1 डॉलर

57. नम्य (Flexible) विनिमय दर व्यवस्था का लाभ है-
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव
(B) विदेशी मुद्राओं को रिज़र्व रखने की जरूरत नहीं
(C) अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

58. स्थिर विनिमय दर व्यवस्था का लाभ है-
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव
(B) विदेशी मुद्राओं को रिज़र्व रखने की जरूरत नहीं
(C) अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा ………………….. कहलाता है। (भुगतान शेष/व्यापार शेष)
उत्तर:
भुगतान शेष

2. वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर ………………… कहलाता है। (भुगतान शेष/व्यापार शेष)
उत्तर:
व्यापार शेष

3. भुगतान शेष सदैव होता है। (असंतुलित/संतुलित)
उत्तर:
संतुलित

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4. व्यापार शेष की तुलना में भुगतान शेष ………………… होता है। (अधिक व्यापक/कम व्यापक)
उत्तर:
अधिक व्यापक

5. यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में लेन-देन दैनिक प्रकृति का है तो वह ………………… बाज़ार कहलाता है। (हाजिर/कारक)
उत्तर:
हाजिर

6. नम्य विनिमय दर में विनिमय दर का निर्धारण ………………….. माँग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। (बाज़ार/कारक)
उत्तर:
बाज़ार

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. नम्य विनिमय दर पर सरकार का नियंत्रण होता है।
  2. व्यापार-शेष और भुगतान-शेष में अंतर पाया जाता है।
  3. भुगतान-शेष एक आर्थिक बैरोमीटर है जिसकी सहायता से किसी देश की अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है।
  4. व्यापार-शेष को दृश्य वस्तुओं का सन्तुलन भी कहा जाता है।
  5. भुगतान-शेष व्यापार-शेष से विस्तृत धारणा है।
  6. वास्तविक विनिमय दर, स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर होती है।
  7. किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष क्षमता का माप, वास्तविक प्रभावी विनिमय दर कहलाती है।
  8. विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं।
  9. स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय की दर सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
  10. सेयर्स के अनुसार मुद्राओं के आपसी मूल्यों को विदेशी विनिमय दर कहते हैं।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. सही
  10. सही

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक बंद अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:
एक बंद अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसका अन्य देशों के साथ कोई आर्थिक संबंध नहीं होता।

प्रश्न 2.
एक खुली अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसके अन्य देशों के साथ आर्थिक संबंध होते हैं।

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प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था के खुलेपन की मात्रा को कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद में कुल विदेशी व्यापार के अनुपात के रूप में एक अर्थव्यवस्था के खुलेपन की मात्रा को मापा जाता है।

प्रश्न 4.
भुगतान शेष (BOP) क्या है?
उत्तर:
भुगतान शेष (Balance of Payment) देश के शेष विश्व से आर्थिक लेन-देन के फलस्वरूप समस्त अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों और प्राप्तियों का अंतर है।

प्रश्न 5.
व्यापार शेष का क्या अर्थ है?
उत्तर:
व्यापार शेष से अभिप्राय किसी देश के केवल वस्तुओं या दृश्य मदों के आयात और निर्यात के अंतर से है।

प्रश्न 6.
भुगतान शेष (अदायगी संतुलन) खाते का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भुगतान शेष (अदायगी संतुलन) खाते से अभिप्राय शेष विश्व के साथ किसी दिए हुए वित्तीय वर्ष में आर्थिक लेन-देनों के व्यवस्थित रिकॉर्ड से है।

प्रश्न 7.
भुगतान शेष के चालू व पूँजी खातों के मुख्य घटक बताएँ।
उत्तर:
भुगतान शेष के चालू खाते के घटक हैं-(i) वस्तुओं का आयात-निर्यात, (ii) सेवाओं का आयात-निर्यात और (ii) एक-पक्षीय हस्तांतरण।
भुगतान शेष के पूँजी खाते के घटक हैं-(i) निजी लेन-देन, (ii) सरकारी लेन-देन, (iii) प्रत्यक्ष निवेश और (iv) पत्राधार निवेश।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष के पूँजी खाते का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भुगतान शेष का पूँजी खाता वह खाता है जिसमें एक देश के निवासियों द्वारा शेष विश्व से पूँजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों के आदान-प्रदानों का लेखा किया जाता है।

प्रश्न 9.
एक देश के भुगतान शेष खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
एक देश के भुगतान शेष खाते में एक देश के अन्य देशों के साथ किए गए वस्तुओं, सेवाओं और परिसंपत्तियों के लेन-देन दर्ज किए जाते हैं।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष में घाटे (Deficit) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भुगतान शेष में घाटे से अभिप्राय यह है कि समस्त प्राप्तियों और भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) होता है।

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प्रश्न 11.
भुगतान शेष में आधिक्य (Surplus) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भुगतान शेष में आधिक्य से अभिप्राय यह है कि सभी प्राप्तियों और भुगतानों का शुद्ध शेष धनात्मक (+) होता है।

प्रश्न 12.
समायोजक (Accommodating) और स्वायत्त (स्वप्रेरित) (Autonomous) मदों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समायोजक मदों का अभिप्राय उन लेन-देनों से है जो भुगतान शेष (BOP) में किन्हीं अन्य गतिवधियों के कारण करने जरूरी हो जाते हैं; जैसे सरकार द्वारा वित्तीयन।

स्वायत्त (स्वप्रेरित) मदों से अभिप्राय उन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देनों (Transactions) से है जो अधिकतम लाभ कमाने जैसे उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं।

प्रश्न 13.
विदेशी मुद्रा बाज़ार क्या है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को परस्पर बेचा व खरीदा जाता है।

प्रश्न 14.
विनिमय बाज़ार में संतुलन कहाँ होगा?
उत्तर:
विनिमय बाज़ार में संतुलन वहाँ होगा जहाँ विदेशी मुद्रा का माँग वक्र विदेशी मुद्रा के पूर्ति वक्र को काटता है।

प्रश्न 15.
विदेशी मुद्रा की माँग के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. विदेशों में उपहार भेजने के लिए
  2. विदेशों से वस्तुओं और सेवाओं का क्रय।

प्रश्न 16.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. निर्यात
  2. विदेशी निवेश।

प्रश्न 17.
विनिमय की दर में वृद्धि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विनिमय की दर में वृद्धि का अर्थ यह है कि विदेशी मुद्रा की एक इकाई के लिए अपने देश की पहले से अधिक मुद्रा देनी होगी।

प्रश्न 18.
आंतरिक मुद्रा के मूल्यहास से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आंतरिक मुद्रा के मूल्यह्रास से अभिप्राय देशीय मुद्रा इकाइयों में विदेशी मुद्राओं की कीमत में वृद्धि से है। दूसरे शब्दों में, आंतरिक मुद्रा के ह्रास से अभिप्राय देश की मुद्रा के मूल्य में कमी से है।।

प्रश्न 19.
मुद्रा अधिमूल्यन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुद्रा अधिमूल्यन से अभिप्राय देशी मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत में कमी से है।

प्रश्न 20.
एक देश में विनिमय दर की कौन-सी दो व्यवस्थाएँ हो सकती हैं?
उत्तर:

  1. स्थिर विनिमय दर व्यवस्था
  2. नम्य (लोचदार) विनिमय दर व्यवस्था।

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प्रश्न 21.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें सभी विनिमय (लेन-देन) सरकार द्वारा घोषित की गई दर पर होते हैं। इस विनिमय दर में बहुत मामूली उतार-चढ़ाव मान्य होते हैं।

प्रश्न 22.
समंजनीय सीमाबंध व्यवस्था (Adjustable Peg System) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समंजनीय सीमाबंध व्यवस्था से अभिप्राय एक देश द्वारा अपनी मुद्रा की विनिमय दर को किसी अन्य देश की मुद्रा की इकाइयों में नियत करने से है। इस नियत दर में किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही परिवर्तन किया जाता है।

प्रश्न 23.
नम्य (Flexible) विनिमय दर व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नम्य विनिमय दर व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा बाज़ार में माँग और आपूर्ति द्वारा होता है। इस व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता। इसे लचीली विनिमय दर भी कहते है।

प्रश्न 24.
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें प्रत्येक सदस्य देश को उसकी घोषित विनिमय दर से 10% तक उतार-चढ़ाव करने की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 25.
प्रबंधित तिरती व्यवस्था (Managed Floating System) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रबंधित तिरती व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें मौद्रिक अधिकारी ऐच्छिक आधार पर विनिमय दर निर्धारण में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

प्रश्न 26.
विदेशी मुद्रा का हाजिर बाज़ार (Spot Market) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा के हाजिर बाज़ार से अभिप्राय उस मुद्रा बाज़ार से है जिसमें तुरंत होने वाले लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा की दर निर्धारित की जाती है।

प्रश्न 27.
विदेशी मुद्रा का वायदा बाज़ार (Forward Market) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा के वायदा बाज़ार से अभिप्राय उस मुद्रा बाज़ार से है जिसमें भविष्य में किसी तिथि पर होने वाले लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा की दर निर्धारित की जाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में एक खुली अर्थव्यवस्था के क्या लाभ हैं? अथवा ‘एक खुली अर्थव्यवस्था में चयन की अधिक स्वतंत्रता होती है।’ समझाइए।
उत्तर:
यह कहना उचित है कि एक बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में एक खुली अर्थव्यवस्था में लोगों को चयन की अधिक स्वतंत्रता होती है, जिसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-(i) उपभोक्ताओं और फर्मों को घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं के बीच चयन का अवसर मिलता है, (i) निवेशकों को घरेलू व विदेशी परिसंपत्तियों के बीच चयन का अवसर मिलता है, (iii) फर्मों को उत्पादन के स्थान का चयन करने और श्रमिकों को कहाँ काम देने, यह चयन की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 2.
भुगतान शेष लेखांकन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
भुगतान शेष खाते में सभी लेन-देन को दोहरी लेखा प्रणाली के आधार पर लिखा जाता है। प्रत्येक लेन-देन को दो प्रविष्टियों के रूप में लिखा जाता है- एक पक्ष ‘नाम’ और दूसरा पक्ष ‘जमा’। इन दोनों प्रविष्टियों का आकार समान होता है, जिसके कारण ‘जमा’ पक्ष की प्रविष्टियों का योगफल सदा ‘नाम’ पक्ष की प्रविष्टियों के योग के बराबर रहता है। उदाहरण के लिए, जब किसी अन्य देश से भुगतान प्राप्त होता है तो यह क्रेडिट सौदा है और जब किसी अन्य देश को भुगतान किया जाता है तो यह डेबिट सौदा है। भुगतान शेष खाते के लेन-देन को हम निम्नलिखित पाँच प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं-

  • वस्तुएँ और सेवाएँ खाता
  • एक-पक्षीय हस्तांतरण खाता
  • दीर्घकालिक पूँजी खाता|
  • अल्पकालिक निजी पूँजी खाता
  • अल्पकालिक सरकारी पूँजी खाता।

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प्रश्न 3.
पूँजी खाते के संघटकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूँजी खाते के संघटक निम्नलिखित हैं-

  1. निजी लेन-देन-इस लेन-देन से व्यक्तियों, व्यवसायों और गैर-सरकारी निकायों द्वारा निजी रूप से धारित परिसंपत्तियाँ और दायित्व प्रभावित होते हैं।
  2. सरकारी लेन-देन सरकारी लेन-देन सरकार और उसकी संस्थाओं की परिसंपत्तियों और दायित्वों को प्रभावित करते हैं।
  3. प्रत्यक्ष निवेश-प्रत्यक्ष निवेश किसी परिसंपत्ति को खरीदकर उस पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है।
  4. पत्राधार निवेश-पत्राधार निवेश (Perfect Investment) परिसंपत्तियों के क्रेता को उन पर नियंत्रण प्रदान नहीं करता। सरकार को विदेशी बैंकों द्वारा ऋण दिया जाना इस वर्ग में आता है।

प्रश्न 4.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है? भुगतान शेष, व्यापार शेष से किस प्रकार विस्तृत अवधारणा है? अथवा व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष का अर्थ-मोटे रूप में, भुगतान शेष एक लेखा वर्ष में एक देश के समस्त अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों और प्राप्तियों का अंतर है। भुगतान शेष लेखा एक देश का अन्य देशों के साथ एक वर्ष में किए गए समस्त आर्थिक सौदों का एक क्रमबद्ध लेखा है। इसमें दृश्य मदें (वस्तुएँ), अदृश्य मदें (गैर-साधन सेवाएँ) एक-पक्षीय हस्तांतरण और पूँजीगत लेन-देन शामिल होते हैं। भौतिक वस्तुओं (जैसे मशीनरी, चाय) का आयात-निर्यात दृश्य मदें हैं, क्योंकि वे दिखाई देती हैं जबकि सेवाएँ (जैसे जहाज़रानी, बीमा आदि) अदृश्य मदें हैं, क्योंकि वे राष्ट्रीय सीमा को पार करते दिखाई नहीं देती हैं। पुनः भुगतान शेष खाता दोहरी लेखांकन प्रणाली के अनुसार लिखा जाता है जिससे भुगतान और प्राप्तियाँ सदा बराबर रहती हैं। दूसरे शब्दों में, भुगतान शेष, तकनीकी दृष्टि से सदा संतुलन में रहता है।

व्यापार शेष और भुगतान शेष में अंतर-भुगतान शेष, व्यापार शेष की तुलना में एक व्यापक व विस्तृत अवधारणा है क्योंकि व्यापार शेष, भुगतान शेष के चार घटकों में से केवल एक घटक (दृश्य मदों के आयात-निर्यात का अंतर) है। यह दोनों के बीच अंतर से स्पष्ट है

व्यापार शेषभुगतान शेष
1. व्यापार शेष में केवल दृश्य मदें (वस्तुएँ) शामिल होती हैं।1. भुगतान शेष में दृश्य मदें (वस्तुएँ) और अदृश्य मदें (सेवाएँ) दोनों शामिल होती हैं।
2. इसमें पूँजीगत लेन-देन शामिल नहीं होते।2. इसमें पूँजीगत लेन-देन शामिल होते हैं।
3. यह भुगतान शेष के चालू खाते का एक भाग है।3. यह संपूर्ण चालू खाते और पूँजी खाते का भाग है।
4. यह अनुकूल, प्रतिकूल या संतुलित हो सकता है।4. यह लेखांकन दृष्टि से सदा संतुलित रहता है।
5. इसके घाटे को भुगतान शेष की मदों से पूरा किया जा सकता है।5. इसके घाटे को व्यापार शेष द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 5.
स्थिर विनिमय दर के किन्हीं चार लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर के लाभ निम्नलिखित हैं:
(i) स्थिर विनिमय दर विदेशी व्यापार को सविधाजनक बनाती है क्योंकि उनसे व्यापार में आने वाली वस्तुओं की कीमतों का सही अनुमान लगाया जा सकता है।

(ii) स्थिर विनिमय दर व्यवस्था में कोई अनिश्चितता नहीं होती और न ही कोई जोखिम होता है। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर व्यवस्थित तथा अबाध रूप से दीर्घकालीन पूँजी प्रवाहों को प्रोत्साहन देती है।

(iii) स्थिर विनिमय दर प्रणाली एक प्रतिबंध का काम करती है और सरकार पर यह अनुशासन लगाती है कि वे देश के भीतर उत्तरदायित्वपूर्ण वित्तीय नीतियों का पालन करे।

(iv) स्थिर विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत सट्टेबाजी समाप्त हो जाती है क्योंकि सट्टेबाजी का विनिमय दर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 6.
व्यापार शेष (Balance of Trade) और चालू खाता शेष (Balance of CurrentAccount) में भेद कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष केवल दृश्य मदों (वस्तुओं) के निर्यात मूल्य और आयात मूल्य का अंतर है। दूसरे शब्दों में, व्यापार शेष में केवल दृश्य मदों को शामिल किया जाता है। इसके विपरीत चालू खाता शेष में दृश्य मदें, अदृश्य मदें (सेवाएँ) और एक-पक्षीय हस्तांतरण के आयात-निर्यात का ब्यौरा दिया होता है। इस प्रकार व्यापार शेष, चालू खाता शेष का एक भाग है। स्पष्टतः व्यापार शेष की तुलना में ‘चालू खाता शेष’ एक विस्तृत अवधारणा है।

प्रश्न 7.
विदेशी मुद्रा दर का क्या अर्थ है? तीन कारण दीजिए कि क्यों लोग विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहते हैं?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश की मुद्रा को अन्य देश की मुद्रा की इकाइयों में बदला जा सकता है। निम्नलिखित कारणों के लिए लोग विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहते हैं-

  • अन्य देशों से वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करने के लिए
  • विदेशों को उपहार भेजने के लिए
  • किसी अन्य देश में वित्तीय परिसंपत्तियाँ खरीदने के लिए
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यमान को लेकर व्यावसायिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष तथा राष्ट्रीय आय लेखों के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष अंतर्राष्ट्रीय प्राप्तियों और भुगतानों से संबंधित होता है। इसलिए भुगतान शेष राष्ट्रीय आय को प्रभावित करते हैं। एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर समस्त व्यय में घरेलू क्षेत्र के उपभोक्ताओं, निवेशकों तथा सरकार के व्यय के साथ ही विदेशियों द्वारा उक्त देश से आयात पर व्यय को जोड़ा जाता है। अर्थात्
Y = C + I + G + X
इस प्रकार सृजित आय का प्रयोग उपभोग, बचत और कर भुगतान में होता है। विदेशों से आयात पर व्यय (M) भी इसी में से किया जाता है। अर्थात्
Y = C + S + T + M
राष्ट्रीय आय लेखांकन सिद्धांत के अनुसार सृजित आय का मान प्रयोग की गई आय के समान होगा। अर्थात्
Y = C+ I + G + x
= C + S + T + M
I + G + x = S + T + M
इनमें I, G, X आय के चक्रीय प्रवाह में भरण (Injections) हैं और S, T, M क्षरण (Leakages) हैं। इसलिए संतुलन में प्रयोजित भरणों (Planned Injections) का योग, प्रायोजित क्षरणों (Planned Leakages) के योग के बराबर होगा। यही राष्ट्रीय आय और भुगतान शेष में संबंध है।

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प्रश्न 9.
विदेशी मुद्रा दर क्या है? विदेशी मुद्रा की कीमत कम होने से इसकी माँग क्यों बढ़ती है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा से विनिमय किया जाता है। विदेशी मुद्रा की माँग के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं

  • अन्य देशों से वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करने के लिए।
  • विदेशों को उपहार भेजने के लिए।
  • किसी अन्य देश में वित्तीय परिसंपत्तियाँ खरीदने के लिए।
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यमान को लेकर व्यावसायिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।

विदेशी मुद्रा बाज़ार में भी माँग का नियम लागू होता है और विदेशी मुद्रा का माँग वक्र ऊपर से नीचे दाईं ओर गिरता हुआ होता है। जब विदेशी मुद्रा की कीमत कम होती है तो विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ती है।

प्रश्न 10.
विदेशी विनिमय बाज़ार से क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य कार्य लिखें।
उत्तर:
विदेशी विनिमय बाज़ार से अभिप्राय उस बाज़ार से है जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को परस्पर बेचा व खरीदा जाता है। विदेशी विनिमय बाज़ार निम्नलिखित तीन कार्य करता है

  • हस्तांतरण कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार देशों के बीच क्रय-शक्ति का हस्तांतरण करता है।
  • साख कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार विदेशी व्यापार के लिए साख स्रोत का प्रावधान करता है।
  • जोखिम पूर्वोपाय कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार विदेशी विनिमय जोखिम से बचाव करता है।

प्रश्न 11.
विदेशी विनिमय की बाज़ार दर का निर्धारण कैसे होता है? एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
विदेशी विनिमय की बाज़ार दर का निर्धारण मुद्रा बाज़ार में संतुलन द्वारा होता है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ विदेशी मुद्रा का माँग वक्र और मुद्रा का पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हों। विदेशी मुद्रा का माँग वक्र ऊपर से नीचे दाईं ओर गिरता हुआ होता है, जबकि विदेशी मुद्रा का पूर्ति वक्र नीचे से ऊपर दाईं ओर उठता हुआ होता है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन को संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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संलग्न रेखाचित्र में माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति । हैं जहाँ संतुलन विनिमय दर OP है और संतुलन विदेशी मुद्रा की मात्रा OQ है।

प्रश्न 12.
स्थिर विनिमय और नम्य विनिमय दरों में भेद समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से है जिसमें सभी विनिमय (लेन-देन) सरकार या मौद्रिक अधिकारी द्वारा घोषित की गई दरों पर होते हैं। नम्य विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से है जो विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर में मौद्रिक अधिकारी का हस्तक्षेप आवश्यक है, जबकि नम्य विनिमय दर की दशा में मौद्रिक अधिकारी का हस्तक्षेप नहीं होता। पूर्ण रूप से स्थिर विनिमय दर को अव्यावहारिक माना जाता है, इसलिए यह प्रचलित नहीं है। सामान्यतया नम्य विनिमय दर को ही व्यावहारिक माना जाता है।

प्रश्न 13.
नम्य विनिमय दर प्रणाली के किन्हीं चार लाभों (गुणों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नम्य विनिमय दर प्रणाली के लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. नम्य विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्राओं के भंडार बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होती।
  2. यह व्यापार तथा पूँजी के आवागमन के प्रति अवरोधों की समाप्ति में सहायक है।
  3. यह संसाधनों का कुशलतम आबंटन करती है जिससे अर्थव्यवस्था की कशलता में वृद्धि होती है।
  4. नम्य विनिमय दर की व्यवस्था सरल है। विनिमय दर अपने आप स्वतंत्र रूप से बदलती रहती है तथा माँग और पूर्ति में समानता लाती है।

प्रश्न 14.
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था (प्रणाली) और नम्य विनिमय दर व्यवस्था का मिश्रण है। विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य देशों को यह छूट होती है कि वह अपनी घोषित विनिमय दर से 10 प्रतिशत तक उतार-चढ़ाव कर सकता है। इस छूट का मुख्य उद्देश्य भुगतानों में आसानी से समायोजन करना है। उदाहरण के लिए, यदि किसी देश को भुगतान शेष के घाटों का सामना करना पड़ रहा है तो वह 10 प्रतिशत तक अपनी मुद्रा की दर कम करके इस समस्या से निपट सकता है।

प्रश्न 15.
चलित सीमाबंध व्यवस्था को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
चलित सीमाबंध व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था और नम्य विनिमय दर व्यवस्था का मिश्रण है। चलित सीमाबंध व्यवस्था के अनुसार विभिन्न करेंसियों की विनिमय दर में लघु सीमा तक किंतु समय-समय पर नियमित रूप से परिवर्तन की छूट होती है। चलित सीमाबंध के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य देश को यह छूट होती है कि वह अपनी घोषित विनिमय दर से केवल एक प्रतिशत तक ही उतार-चढ़ाव कर सकता है। वास्तव में यह लघु समायोजन है, किंतु इसे समय-समय पर दोहराया जा सकता है। समायोजन का आकार तथा बारंबारता इस बात पर निर्भर करते हैं कि समायोजन करने वाले देश के पास विदेशी मुद्रा के भंडार कितने हैं।

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प्रश्न 16.
समायोजक (Accommodating) मदों और स्वप्रेरित (Autonomous) मदों की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते से संबंधित मदों के लिए अर्थशास्त्री विभिन्न शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे-स्वायत्त (स्वप्रेरित), समायोजक, रेखा के ऊपर, रेखा के नीचे आदि। इनकी संक्षिप्त जानकारी नीचे दी गई है।

स्वायत्त या स्वप्रेरित मदें-भुगतान शेष में प्रयोग किए गए स्वायत्त अथवा स्वप्रेरित (Autonomous items) शब्द से अभिप्राय उन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देनों (Transactions) से है जो अधिकतम लाभ कमाने जैसे आर्थिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं। ऐसे सौदे (लेन-देन), देश के भुगतान शेष की स्थिति की परवाह किए बिना होते हैं। इन्हीं को ही भुगतान शेष खाते में रेखा से ऊपर मदें’ (above the line items) कहा जाता है।

प्रश्न 17.
भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के आर्थिक कारण बताइए।
उत्तर:
भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के आर्थिक कारण निम्नलिखित हैं-

  1. निर्यात और आयात में असंतुलन का पैदा होना।
  2. बड़े पैमाने पर विकास व्यय जिसके लिए भारी आयात करने पड़ते हैं।
  3. ऊँची घरेलू कीमतों के कारण आयात में वृद्धि होना।
  4. चक्रीय उतार-चढ़ाव (Cyclical Fluctuations) अर्थात् सामान्य व्यवसाय में तेजी व मंदी का चक्र।
  5. पूर्ति के नए स्रोतों का विकास।
  6. नए व बेहतर स्थानापन्न उत्पाद का उभरना।
  7. उत्पादन लागतों में वृद्धि आदि।

प्रश्न 18.
गंदी तरणशीलता तिरती (Dirty Floating) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह अवधारणा विनिमय दर की प्रबंधित तरणशीलता तिरती व्यवस्था से संबंधित है। ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है जब नियमों और अधिनियमों की परवाह किए बिना प्रबंधित तरणशीलता व्यवस्था को लागू किया जाता है। एक देश जब विनिमय दर को किसी अन्य देश के हित के विरूद्ध कम या अधिक करता है तब इस प्रकार के व्यवहार को गंदी तरणशीलता/तिरती व्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 19.
प्रबंधित तिरती व्यवस्था (Managed Floating System) की व्यवस्था का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधित तिरती व्यवस्था स्थिर और नम्य विनिमय दरों का मिश्रण है। प्रबंधित तिरती व्यवस्था में मौद्रिक अधिकारी ऐच्छिक आधार पर विनिमय दर के निर्धारण में हस्तक्षेप करते हैं लेकिन इसमें हस्तक्षेप के लिए आधिकारिक रूप से नियम और मार्गदर्शक सत्रों की घोषणा होती है। परंत मौद्रिक अधिकारी कोई विनिमय दर नियत नहीं करते और न ही विनिमय दर के उतार-चढ़ाव की कोई समय-सीमा निर्धारित की जाती है। जब भी मौद्रिक अधिकारी को हस्तक्षेप की आवश्यकता अनुभव होती है वे उपयुक्त कदम उठा सकते हैं।

प्रश्न 20.
विस्तृत सीमापट्टी चलित सीमाबंध कैसे एक-दूसरे से भिन्न हैं?
उत्तर:
दोनों व्यवस्थाएँ विनिमय दर में समायोजन की अनुमति देती हैं। चलित सीमाबंध की तुलना में विस्तृत सीमापट्टी में अधिक समायोजन (Wider adjustments) किया जा सकता है। अन्य शब्दों में, विस्तृत सीमापट्टी की तुलना में चलित सीमाबंध एक संकुचित सीमापट्टी (Narrow Bond) है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘भुगतान शेष खाते’ (Balance of Payment Accounts) का क्या अर्थ है? एक उदाहरण द्वारा BOP खाते की संरचना समझाइए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते का अर्थ-भुगतान शेष खाता किसी देश के निवासियों और शेष विश्ववासियों के बीच नियत अवधि में हुए सारे आर्थिक लेन-देनों का व्यवस्थित रिकॉर्ड होता है। यह दोहरी लेखा पद्धति (Double Entry System) के आधार पर तैयार किया जाता है। लेखांकन की दृष्टि से भुगतान शेष, सदा संतुलन में रहता है क्योंकि भुगतान शेष लेखा, दोहरी लेखा पद्धति में प्रस्तुत किया जाता है जिसके अनुसार प्राप्ति पक्ष, सदैव भुगतान पक्ष के बराबर रहता है।

दोहरी लेखा प्रणाली-समस्त अंतर्राष्ट्रीय सौदों (लेन-देनों को ‘दोहरी लेखा प्रणाली’ के आधार पर भगतान शेष खाते में रिकॉर्ड किया जाता है। प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय सौदा, बराबर मूल्य की लेनदारी (Credit) और देनदारी (Debit) की प्रविष्टि (Entry) दिखाता है। समस्त अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक लेन-देन, इन तीन प्रवाहों के कारण उत्पन्न होते हैं-(i) वस्तुओं के प्रवाह, (ii) सेवाओं व अन्य अदृश्य मदों के प्रवाह और (iii) पूँजी के प्रवाह। भुगतान शेष लेखा के यही मुख्य घटक हैं। भुगतान शेष खाते के दो पक्ष-लेनदारी पक्ष और देनदारी पक्ष होते हैं। लेखे के लेनदारी पक्ष में वे मदें शामिल की जाती हैं जिनसे विदेशी मुद्रा के रूप में भुगतान प्राप्त होता. है और प्राप्त भुगतान की राशि दिखाई जाती है, इन्हें लेनदारी मदें कहते हैं। देनदारी पक्ष में यह लेखा उन मदों और मदों की राशि को दर्शाता है जिनका विदेशी मुद्रा के रूप में विदेशियों को भुगतान किया जाता है। इन्हें देनदारी मदें कहते हैं।

एक देश के भुगतान शेष का एक काल्पनिक सरल उदाहरण निम्नलिखित तालिका में दिखाया गया है। इसका बायाँ भाग वे सभी स्रोत दिखाता है जिनसे कोई देश विदेशी करेंसी प्राप्त करता है जबकि दायाँ भाग शेष विश्व को भुगतान की गई विदेशी करेंसी का ब्यौरा देता है।
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प्रतिकूल, अनुकूल व संतुलित भुगतान शेष जब देनदारियाँ (भुगतान), लेनदारियों (प्राप्तियों) से अधिक हो जाती हैं तो इसे प्रतिकूल (या घाटे का) भुगतान संतुलन (शेष) कहते हैं। जब देनदारियाँ, लेनदारियों से कम होती हैं तो इसे अनुकूल (या बचत का) भुगतान शेष (संतुलन) कहते हैं। देनदारियाँ और लेनदारियाँ बराबर होने पर भुगतान शेष संतुलित कहलाता है।

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प्रश्न 2.
भुगतान शेष (संतुलन) खाते की दृश्य एवं अदृश्य मदों का अर्थ बताते हुए भुगतान शेष खाते के संघटकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते की दृश्य और अदृश्य मदें भुगतान शेष (संतुलन) खाते की दृश्य मदों से अभिप्राय भौतिक वस्तुओं से है जो राष्ट्रीय सीमा को पार (Cross) करती देखी जाती हैं। दृश्य मदों (Visible Items) के उदाहरण हैं-मशीनरी, चाय, चावल, वस्त्रों का आयात-निर्यात जिन्हें आँखों से देखा जा सकता है। भुगतान शेष खाते में दृश्य मदों के आयात-निर्यात के शेष को ‘दृश्य व्यापार का शेष’ कहा जाता है। भुगतान शेष की अदृश्य मदें वे मदें हैं जिन्हें राष्ट्रीय सीमा (National Border) पार करते नहीं देखा जाता है। सब प्रकार की सेवाएँ; जैसे जहाज़रानी, बैंकिंग, पर्यटन, सॉफ्टवेयर तथा एक-पक्षीय हस्तांतरण अदृश्य मदें हैं। अदृश्य मदों (Invisible Items) के आयात-निर्यात के शेष (Balance) को ‘अदृश्य व्यापार का शेष’ कहा जाता है।

भुगतान शेष खाते के संघटक-भुगतान शेष खाते के प्रमुख संघटक निम्नलिखित हैं-
1. वस्तओं का निर्यात व आयात (दृश्य मदें) विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका वस्तुओं का निर्यात है। विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं का आना-जाना खुले रूप में होता है और सीमा शुल्क अधिकारी इन्हें देखकर प्रमाणित कर सकते हैं। ये दृश्य मदें (Visible Items) कहलाती हैं। ऐसी सभी मदें देश का दृश्य व्यापार (Visible Trade) दर्शाती हैं।

2. सेवाओं का निर्यात व आयात (अदृश्य मदें) इसमें गैर-साधन आय; (जैसे-जहाज़रानी, बैंकिंग, बीमा, पर्यटन, सॉफ्टवेयर सेवाओं से आय और साधन आय; जैसे ब्याज, लाभांश, लाभ के रूप में विदेशों में हमारी परिसंपत्तियों से आय आदि मदें शामिल की जाती हैं। ध्यान रहे, ब्याज, लाभांश और लाभ जो एक देश के नागरिक विदेशों में निवेश करने पर कमाते हैं, निवेश आय है जिसे साधन आय माना जाता है। ये अदृश्य मदें हैं जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते दिखाई नहीं देती हैं। ऐसी सभी मदें देश का अदृश्य व्यापार (Invisible Trade) दर्शाती हैं।

3. एक-पक्षीय हस्तांतरण या अप्रतिदत्त हस्तांतरण-इसमें वे मदें शामिल की जाती हैं जिनके बदले में प्राप्त करने वाले को कुछ भी नहीं देना पड़ता; जैसे उपहार, प्रेषणाएँ, अनुदान क्षतिपूर्ति आदि। इसमें निजी और सरकारी दोनों प्रकार के हस्तांतरण शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, विदेशों से प्राप्त उपहार, अनिवासियों (Emigrants) द्वारा अपने रिश्तेदारों को भेजी गई प्रेषणाएँ और युद्ध में पराजित देश द्वारा क्षतिपूर्ति आदि की प्राप्तियाँ। (नोट-भारत में एक-पक्षीय हस्तांतरणों को अदृश्य व्यापार में शामिल किया जाता है।)

4. पूँजीगत प्राप्तियाँ व भुगतान-इसमें निजी व सरकारी ऋण, सोने के स्टॉक व विदेशी मुद्रा के भंडार में परिवर्तन, परिसंपत्तियों का क्रय-विक्रय, पूँजीगत अनुदान आदि जैसी मदें शामिल की जाती हैं। ऐसे अंतर्राष्ट्रीय सौदे एक देश की शेष विश्व से देनदारियों और परिसंपत्तियों (Liabilities and Assets) को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, एक देश की सरकार, दूसरे देश की सरकार से ऋण लेती है, एक फर्म विदेश में शेयर्स का निर्गमन करती है या एक बैंक विदेश में ऋण शुरू करता है या एक देश के नागरिक विदेश में भूमि, मकान, प्लांट, आदि के रूप में संपत्तियों का क्रय-विक्रय करते हैं-ये सब पूँजीगत प्राप्तियों और भुगतान के रूप हैं।

प्रश्न 3.
भगतान शेष में असंतलन के कारण और उसे दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष में असंतुलन के कारण अनेक कारणों से भुगतान शेष में घाटा (Deficit) या आधिक्य (Surplus) के रूप में असंतुलन पैदा हो जाता है। ध्यान रहे, इस घाटे या आधिक्य का संबंध मुख्यतः भुगतान शेष के चालू खाते से होता है। इन साधनों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा गया है
1. आर्थिक साधन-

  • निर्यात और आयात में असंतुलन का पैदा होना
  • बड़े पैमाने पर विकास व्यय जिसके लिए भारी आयात करने पड़ते हैं
  • ऊँची घरेलू कीमतों के कारण आयात में वृद्धि होना
  • चक्रीय उतार-चढ़ाव (Cyclical Fluctuations) अर्थात् सामान्य व्यवसाय में तेजी व मंदी का चक्र
  • पूर्ति के नए स्रोतों का विकास
  • नए व बेहतर स्थानापन्न उत्पाद का उभरना
  • उत्पादन लागतों में वृद्धि आदि।

2. राजनीतिक साधन अनुभव बताता है कि देश में राजनीतिक अस्थिरता और दंगों से-

  • देश से बड़े पैमाने पर पूँजी का पलायन होता है
  • विदेशी निवेश रुक जाता है और
  • नए घरेलू उद्योगों की स्थापना धीमी पड़ जाती है।

3. सामाजिक कारण-

  • लोगों के फैशन, अभिरुचियों और प्राथमिकताओं के कारण आयात-निर्यात प्रभावित होते हैं जिससे भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है
  • गरीब व पिछड़े देशों में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने से निर्यात घट जाते हैं और आयात बढ़ जाते हैं जिससे भुगतान शेष में असंतुलन पैदा हो जाता है।

भुगतान शेष में असंतुलन दूर करने के उपाय-भुगतान शेष में असंतुलन दूर करने के उपाय निम्नलिखित है-
1. निर्यात बढ़ाना-उद्यमियों और निर्यातकों को भारी आर्थिक सहायता, अनुदान व रियायतें देकर निर्यात संवर्धन (Promote) करना चाहिए और आयात यथासंभव सीमित करना चाहिए।

2. आयात प्रतिस्थापन-आयात की जाने वाली वस्तुओं का स्थान लेने वाली अर्थात् प्रतिस्थापित वस्तुएँ देश के अंदर निर्मित करनी चाहिएँ जिससे आयात कम हो सके।

3. घरेलू करेंसी का अवमूल्यन-जब घरेलू मुद्रा का विदेशी मुद्रा में मूल्य घटाया जाता है तो विदेशियों के लिए हमारी घरेलू वस्तुएँ सस्ती हो जाती हैं जिससे निर्यात में वृद्धि होती है। ध्यान रहे, घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन सरकार द्वारा होता है जब देश में स्थिर विनिमय दर की व्यवस्था लागू हो।

4. विनिमय नियंत्रण-सरकार द्वारा सब निर्यातकों (Exporters) को विदेशी मुद्रा (विनिमय) केंद्रीय बैंक में समर्पण (Surrender) करने के आदेश देकर विदेशी विनिमय पर नियंत्रण करना चाहिए। केवल लाइसेंस प्राप्त आयातकों (Importers) को राशन के रूप में विदेशी विनिमय देनी चाहिए।

5. निरंतर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करना तेजी या बढ़ती कीमतों से निर्यात कम होता है और आयात बढ़ता है। इसलिए सरकार को न केवल कीमतों में वृद्धि की प्रवृत्ति रोकनी चाहिए, बल्कि कीमतें गिराने के उपाय भी करने चाहिए।

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प्रश्न 4.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था क्या है? इसके गुण-दोषों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था इस व्यवस्था में देश की सरकार अपनी मद्रा की विनिमय दर को सोने के रूप में या किसी दसरी करेंसी के रूप में घोषित करती है। चूंकि इस दर को लगभग स्थिर रखा जाता है, इसलिए इसे स्थिर विनिमय दर कहते हैं। इस दर में बहुत मामूली अंतर ही मान्य होता है। यह प्रणाली 1880-1914 तक लागू स्वर्णमान व्यवस्था (Gold Standard System) में अपनाई गई थी जिसके अंतर्गत प्रत्येक देश अपनी मुद्रा का मूल्य सोने के निश्चित भार के रूप में घोषित करता था।

इन घोषित मूल्यों के आधार पर विभिन्न मुद्राओं (करेंसियों) का आपस में विनिमय दर तय हो जाता था, इसे विनिमय की टकसाल मान समता दर (Mint Parity . Value of Exchange) कहा जाता था। उदाहरण के लिए, यदि एक रुपए के बदले शुद्ध सोने के 20 ग्राम मिलते हैं तथा एक अमेरिकी डॉलर के बदले 100 ग्राम मिलते हैं तो एक डॉलर 100/20 = 5 रुपए का है। ऐसी स्थिति में एक डॉलर = 5 रुपए की विनिमय दर निश्चित हो जाएगी।

स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के गुण-स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं-

  • इससे विनिमय दर में स्थायित्व (Stability) आता है जो विदेशी व्यापार को बढ़ावा देता है।
  • अंतर्निर्भर विश्व अर्थव्यवस्था में, देशों की समष्टि स्तर की आर्थिक नीतियों में यह समन्वय लाने में सहायता करती है।
  • यह प्रणाली सदस्य देशों में गंभीर आर्थिक उथल-पुथल से बचाती है क्योंकि विनिमय दर स्थिर रहती है।
  • यह विश्व व्यापार को बढ़ाने में सहायता करती है, क्योंकि इससे अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता नहीं रहती।

स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के दोष-स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के दोष निम्नलिखित हैं-
1. मुद्रा अवमूल्यन का भय-जब माँग अधिक होती है तो केंद्रीय बैंक, स्थिर विनिमय दर बनाए रखने के लिए अपने रिज़र्व का इस्तेमाल करता है, परंतु जब सुरक्षित रखा रिज़र्व भी समाप्त हो जाए और माँग आधिक्य जारी रहे तो सरकार को मजबूर होकर घरेलू मुद्रा के मान में ह्रास करना पड़ता है। यदि सट्टेबाजों ने इसकी माँग और बढ़ा दी तो घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन करना पड़ जाएगा। यही इसका सबसे बड़ा दोष है।

2. कारकों (साधनों) के आबंटन में कठोरता-इस प्रणाली के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में विशेष रूप से कारकों के आबंटन में कठोरता (Rigidity) आती है।

3. पूँजी का सीमित आवागमन-स्थिर विनिमय दर को बनाए रखने हेतु बहुत अधिक अंतर्राष्ट्रीय निधि की मदद की जरूरत पड़ती है, इस कारण पूँजी का विभिन्न देशों में आवागमन बहुत सीमित (Restricted) हो जाता है।

प्रश्न 5.
नम्य (लचीली) विनिमय दर प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नम्य (लचीली) विनिमय दर व्यवस्था-नम्य (लचीली) विनिमय दर वह दर है जो विदेशी मुद्रा बाज़ार में किसी देश की मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। विदेशी करेंसी की माँग और पूर्ति में परिवर्तन के अनुसार यह दर बदलती रहती है। इस व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप बिलकुल नहीं होता। सामान्य रूप से केंद्रीय बैंक भी दखल नहीं देता। नम्य विनिमय दर एक प्रकार से स्थिर विनिमय दर के बिलकुल विपरीत दूसरे सिरे पर है क्योंकि यह विदेशी मुद्रा बाज़ार में माँग और पूर्ति में उतार-चढ़ाव के फलस्वरूप निरंतर बदलती रहती है। इसीलिए इस दर को नम्य या लचीली विनिमय दर कहते हैं। जैसे समाचार-पत्रों में हम डॉलर और रुपयों में हर रोज़ बदलती हुई विनिमय दर पढ़ते हैं।

नम्य विनिमय दर व्यवस्था के गुण-नम्य विनिमय दर व्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं-

  • भुगतान शेष में असंतुलन स्वतः दूर हो जाता है।
  • केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्राओं के भंडार (Reserve) रखने की जरूरत नहीं रहती। अतः भंडार रखने व प्राप्त करने की लागत से बचा जा सकता है।
  • यह व्यापार और पूँजी के आवागमन में आने वाली रुकावटों को दूर करने में सहायक है।
  • इससे अर्थव्यवस्था में संसाधनों का सर्वोत्तम आबंटन होता है जिससे कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
  • इस प्रणाली में जोखिम पूँजी को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
  • इस प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय निधि की मदद की आवश्यकता नहीं होती।

नम्य विनिमय दर व्यवस्था के दोष-नम्य विनिमय दर व्यवस्था के दोष निम्नलिखित हैं-

  • यह सट्टेबाजी को बढ़ावा देती है जिससे विनिमय दर में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं।
  • विनिमय दर में बार-बार उतार-चढ़ाव से विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश में रुकावट आती है।
  • भुगतान शेष घाटा पूरा करने के लिए मद्रा अवमूल्यन से कीमतों में निरंतर वृद्धि (मद्रास्फीति) होने लगती है।
  • यह प्रणाली समष्टिगत नीतियों में समन्वय स्थापित करने में कठिनाई उत्पन्न कर देती है।
  • इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 6.
विदेशी विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है? एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
स्वतंत्र मुद्रा बाज़ार में, संतुलन (साम्य) विनिमय दर उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ विदेशी विनिमय की माँग, विदेशी विनिमय की पूर्ति के बराबर हो जाए अर्थात् संतुलन विनिमय दर का निर्धारण विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन द्वारा होता है। वस्तुतः जिस प्रकार किसी वस्तु की कीमत उसकी माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है उसी प्रकार नम्य विदेशी विनिमय दर भी विदेशी मुद्रा (करेंसी) की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। मान लीजिए, दो देश भारत और अमेरिका की करेंसी अर्थात् रुपया और डॉलर की विनिमय दर निर्धारित होनी है। इस समय भारत और अमेरिका दोनों में चलायमान विनिमय दर (Floating Exchange Rate) व्यवस्था है। इसलिए प्रत्येक देश की करेंसी का, दूसरी करेंसी के रूप में मूल्य, दोनों करेंसियों की माँग और पूर्ति पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में संतुलन विनिमय दर के निर्धारण की चर्चा निम्नलिखित तीन भागों माँग, पूर्ति तथा संतुलन-शीर्षकों के अंतर्गत की गई है

(क) विदेशी विनिमय (मुद्रा) की माँग (जैसे अमेरिकी डॉलर)-विदेशी मुद्रा की माँग निम्नलिखित कार्यों के लिए की जाती है

  • विदेशों से वस्तुएँ व सेवाएँ खरीदने (आयात करने) के लिए
  • विदेशों में उपहार भेजने के लिए
  • विदेश में वित्तीय परिसंपत्तियों (अर्थात् बॉण्ड व शेयर) खरीदने के लिए
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यों पर सट्टेबाजी के लिए
  • विदेशों में जाने वाले पर्यटकों की विदेशी विनिमय की माँग पूरी करने के लिए।

विदेशी विनिमय की दर और विदेशी विनिमय की माँग में संबंध-दोनों में विपरीत संबंध (Inverse Relations) हैं अर्थात् कीमत घटने पर माँग बढ़ जाती है और कीमत बढ़ने (महँगा होने) पर विदेशी विनिमय की माँग कम हो जाती है। मान लीजिए विदेशी विनिमय अमेरिकी डॉलर की कीमत 1 डॉलर = 45 रुपए गिरकर 1 डॉलर = 40 रुपए हो गई है। इसका अर्थ यह है कि अमेरिकी वस्तुएँ भारत के लोगों के लिए सस्ती हो गई हैं क्योंकि 1 डॉलर मूल्य की अमेरिकी वस्तुएँ खरीदने के लिए उन्हें 45 रुपए देने की बजाय 40 रुपए देने होंगे।

फलस्वरूप भारत, अमेरिका से अधिक माल आयात करने लगेगा जिसके लिए अमेरिकी डॉलर की माँग भारत में बढ़ जाएगी। अतः स्पष्ट है कि विदेशी विनिमय की दर (कीमत) गिरने पर (जैसे 1 डॉलर की कीमत 45 रुपए से गिरकर 40 रुपए होने पर), विदेशी विनिमय (यहाँ डॉलर) की माँग बढ़ जाती है। इसी प्रकार विदेशी विनिमय की दर बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जाती है। इसी कारण विदेशी मुद्रा का माँग वक्र का आकार बाएँ से दाएँ ऋणात्मक ढाल वाला होता है। संक्षेप में, विदेशी विनिमय दर गिरने पर विदेशी मुद्रा की माँग इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि तब विदेशी वस्तुएँ देशीय लोगों के लिए तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती हैं।

(ख) विदेशी विनिमय की पूर्ति (जैसे अमेरिकी डॉलर)-किसी देश (जैसे भारत) में विदेशी विनिमय निम्नलिखित स्रोतों से आती है

  • विदेशियों द्वारा उस देश (जैसे भारत) की वस्तुओं व सेवाओं की खरीद अर्थात् भारत द्वारा निर्यात
  • विदेशी निगमों द्वारा उस देश (भारत) में निवेश
  • विदेशी पर्यटकों का उस देश (भारत) में भ्रमण
  • मुद्रा के व्यापारियों और सट्टेबाजों की गतिविधियाँ
  • विदेश में रहने वालों (भारतीयों) द्वारा प्रेषणाएँ।

विदेशी विनिमय की दर (कीमत) और विदेशी विनिमय की पूर्ति में संबंध दोनों में प्रत्यक्ष संबंध (Direct Relation) हैं अर्थात् कीमत बढ़ने पर विदेशी विनिमय की पूर्ति बढ़ जाती है। मान लीजिए कि विदेशी विनिमय अमेरिकी डॉलर की भारतीय मुद्रा में कीमत 1 डॉलर = 65 रुपए से बढ़कर 1 डॉलर = 67 रुपए हो गई है। इसका अर्थ है कि भारतीय वस्तुएँ अमेरिका के लिए सस्ती हो गई हैं क्योंकि अब 1 डॉलर से 65 रुपए की बजाय 67 रुपए की भारतीय वस्तुएँ अर्थात् अधिक वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं। फलस्वरूप अमेरिका, भारत से अधिक आयात करने लगेगा जिससे विदेशी विनिमय अर्थात् अमेरिकी डॉलर की पूर्ति भारत में बढ़ जाएगी।

अतः स्पष्ट है कि विदेशी विनिमय की दर (कीमत) बढ़ने से उसकी पूर्ति बढ़ जाती है। इसी प्रकार विदेशी विनिमय दर कम होने पर (जैसे 1 डॉलर की कीमत 65 रुपए से गिरकर 63 रुपए होने पर) विदेशी विनिमय की पूर्ति कम हो जाती है। इसीलिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति वक्र का आकार दाईं ओर ऊपर की तरफ ढाल वाला होता है। संक्षेप में, विदेशी विनिमय दर बढ़ने पर विदेशी मुद्रा की पूर्ति इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि तब देशी वस्तुएँ विदेशियों के लिए तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती हैं।

(ग) विनिमय बाज़ार में संतुलन-संतुलन विनिमय दर, उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ विदेशी विनिमय की माँग और विदेशी विनिमय की पूर्ति आपस में बराबर हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन (Intersection) से संतुलन दर और संतुलन मात्रा का निर्धारण हो जाता है। इसे संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। उपर्युक्त उदाहरण के संदर्भ में डॉलर की रुपयों में कीमत को Y-अक्ष पर दर्शाया गया है जबकि डॉलर की माँग और पूर्ति को X-अक्ष पर दर्शाया गया है। इस रेखाचित्र में माँग वक्र नीचे की ओर ढालू है जो यह दर्शाता है कि ऊँची विनिमय दर होने पर विदेशी विनिमय (डॉलर) की माँग कम होती है। पूर्ति वक्र ऊपर की ओर उठता हुआ वक्र है जो इस बात का प्रतीक है कि
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विदेशी मुद्रा बाजार में संतुलन विनिमय दर बढ़ने पर विदेशी विनिमय (डॉलर) की पूर्ति बढ़ती जाती है। दोनों वक्र एक-दूसरे को बिंदु E पर प्रतिच्छेदित करते हैं जिसका यह अर्थ है कि OR (QE) विनिमय दर पर माँग और पूर्ति की मात्रा बराबर है (क्योंकि दोनों OQ के बराबर हैं)। अतः संतुलन विनिमय दर OR है और संतुलन विनिमय मात्रा OQ है।

विनिमय दर में परिवर्तन होने पर अमेरिकी डॉलर के लिए भारत की माँग बढ़ने पर माँग वक्र DD ऊपर खिसक कर वक्र D’D’ हो जाएगा। फलस्वरूप विनिमय पर (डॉलर की रुपयों में कीमत) OR से बढ़कर OR, हो जाएगी। इसका अर्थ होगा भारत को प्रत्येक अमेरिकी डॉलर के लिए पहले से अधिक रुपए देने होंगे। इसी को भारतीय रुपए के मान में हास (Depreciation of Indian Currency) कहा जाता है।

इसी प्रकार अमेरिकी डॉलरों की पूर्ति में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र SS नीचे खिसककर S’S’ हो जाएंगा। फलस्वरूप रुपयों में डॉलर की कीमत गिर जाएगी। यह भारतीय रुपए का अधिमूल्यन (Appreciation of Indian Currency) होगा क्योंकि तब एक डॉलर खरीदने के लिए कम रुपए देने होंगे।

प्रश्न 7.
विदेशी विनिमय बाज़ार में हाजिर बाज़ार (Spot Market) और वायदा बाज़ार (Forward Market) के बारे में आप क्या जानते हैं? .
उत्तर:
हाजिर बाज़ार-यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में लेन-देन दैनिक प्रकृति का है तो उसे हाजिर या चालू (Current) बाज़ार कहते हैं। विदेशी मुद्रा के हाजिर बाज़ार में लागू हो रही विनिमय दर को हाजिर दर (Spot Rate) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, हाजिर दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर विदेशी करेंसी तत्काल उपलब्ध होती है। उदाहरण के लिए, यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में किसी समय बिंदु पर एक अमेरिकी डॉलर 65 रुपए में खरीदा जा सकता है तो यह विदेशी मुद्रा (डॉलर) की हाजिर दर होगी। निस्संदेह तुरंत होने वाले सौदों में विदेशी मुद्रा की हाजिर (या तात्कालिक) दर बहुत उपयोगी होती है परंतु हाजिर दर की मात्रा क्या है इसे जानना भी जरूरी होता है।

वायदा बाज़ार-यह विदेशी मुद्रा का वह बाज़ार है जिसमें विदेशी करेंसी के क्रय-विक्रय का सौदा वर्तमान में हो जाता है, परंतु करेंसी की देयता (Delivery) भविष्य में तयशुदा किसी तिथि पर होती है। दूसरे शब्दों में, भविष्य में विदेशी मुद्रा की देयता का बाज़ार, वायदा बाज़ार कहलाता है। हम जानते हैं कि अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन (या सौदे) उसी दिन पूरे नहीं हो जाते, बल्कि जिस दिन सौदों के प्रपत्रों पर हस्ताक्षर होते हैं उसके कई दिनों बाद वह लेन-देन पूरा होता है। ऐसी स्थिति में भविष्य में होने वाली संभावित विनिमय दर की ओर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। विनिमय की वह दर जो भविष्य की किसी तिथि पर विदेशी मुद्रा के लेन-देन पर लागू होती है, वायदा दर (Forward Rate) कहलाती है। इस प्रकार वायदा दर वह दर है जिस पर भविष्य में विदेशी करेंसी के क्रय-विक्रय का सौदा होता है।

भविष्य में सौदा करने के दो उद्देश्य होते हैं-

  • विनिमय दर के बदलने से संभावित जोखिम को कम करना। इसे जोखिम का पूर्वोपाय (Hedging) कहते हैं।
  • सौदे से लाभ कमाना। इसे सट्टेबाजी कहते हैं। स्पष्ट है कि वायदा बाज़ार में वे व्यापारी होते हैं जिन्हें भविष्य में किसी दिन को विदेशी मुद्रा की आवश्यकता (माँग) होगी अथवा उसकी पूर्ति करनी होगी।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) मुद्रा का अधिमूल्यन (Appreciation) और मुद्रा का मूल्यहास (Depreciation)।
(ख) (O NEER, (ii) REER और (iii) RER को परिभाषित कीजिए।
(ग) चलित सीमाबंध (Crawling Peg) व प्रबंधित तरणशीलता (Managed Floating)।
उत्तर:
(क) मुद्रा का अधिमूल्यन और मुद्रा का मूल्यहास:
1. मुद्रा का अधिमूल्यन-मुद्रा (करेंसी) के अधिमूल्यन से अभिप्राय, अन्य विदेशी करेंसी के मूल्य में कमी से है। दूसरे शब्दों में, मुद्रा अधिमूल्यन तब होता है जब घरेलू मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत कम हो जाए अर्थात विदेशी मुद्रा के रूप में घरेलू मुद्रा का मूल्य बढ़ जाए। उदाहरण के लिए, यदि भारतीय रुपए की अमेरिकी डॉलर में कीमत 65 रुपए से 64 रुपए हो जाए तो इसे भारतीय करेंसी (रुपया) का अधिमूल्यन कहा जाएगा, क्योंकि एक डॉलर खरीदने के लिए कम (65 रुपए की बजाय 64 रुपए) रुपए देने पड़ेंगे अर्थात् रुपए की क्रय-शक्ति बढ़ गई है। यह भारतीय मुद्रा के प्रबल होने का प्रतीक है। तुलन में, हम यह भी कह सकते हैं कि जब भारतीय रुपए का अमेरिकी डॉलर के रूप में अधिमूल्यन (Appreciation) होता है तो अमेरिकी डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होता है।

2. मुद्रा का मूल्यहास-मुद्रा (करेंसी) के मूल्यह्रास से अभिप्राय, दूसरी विदेशी करेंसी के मूल्य में वृद्धि से है। दूसरे शब्दों में, का मूल्यह्रास उस समय होता है जब घरेलू मद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत में वृद्धि हो जाए उदाहरण के लिए, यदि भारतीय रुपए की अमेरिकी डॉलर में कीमत 65 रुपए से 66 रुपए हो जाए तो यह भारतीय करेंसी (रुपए) का मूल्यह्रास माना जाएगा क्योंकि एक डॉलर खरीदने के लिए अब अधिक रुपए (65 रुपए की बजाए 66 रुपए) देने पड़ेंगे। यह भारतीय रुपए,के दुर्बल होने का प्रतीक है। स्पष्ट है नम्य विनिमय दर व्यवस्था में किसी करेंसी का विनिमय मूल्य, उसकी माँग व पूर्ति में बार-बार परिवर्तन के आधार पर घटता बढ़ता रहता है।

(ख) NEER, REER, RER की परिभाषाएँ:
1. मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर (Nominal Effective Exchange Rate-NEER)-किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति या क्षमता का मान (माप), प्रभावी विनिमय दर कहलाता है। चूंकि कीमतों में परिवर्तन के प्रभावों को हम समाप्त नहीं करते, इसलिए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर (NEER) कहते हैं।

2. वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (Real Effective Exchange Rate-REER)-यह ऐसी प्रभावी विनिमय दर है जो मौद्रिक दर की बजाय वास्तविक विनिमय दरों पर आधारित होती है।

3. वास्तविक विनिमय दर (Real Exchange Rate-RER) यह स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर होती है। पुनः यह कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रभाव से मुफ्त (स्वतंत्र) होती है।

(ग) चलित सीमाबंध और प्रबंधित तरणशीलता:
1. चलित (परिवर्तनशील) सीमाबंध-यह स्थिर विनिमय दर और नम्य विनिमय दर के बीच का एक समझौता है। चलित सीमाबंध व्यवस्था के अनुसार देश अपनी करेंसी का समता मान (Parity Value) नियत करता है और इसके इर्द-गिर्द थोड़ा उतार-चढ़ाव (जैसे समता मान से ± 1%) की इजाजत देता है।

2. प्रबंधित तरणशीलता-यह स्थिर विनिमय दर और नम्य (लचीली) विनिमय दर के प्रबंध की अंतिम संकर प्रजाति या मिश्रण है जो सरकार द्वारा प्रबंधित या नियंत्रित होती है। इसे प्रबंधित तरणशीलता कहते हैं, परंतु यह नियत दर समय-समय पर जरूरत के अनुसार मौद्रिक अधिकारी द्वारा संशोधित की जाती है।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जब व्यापार शेष 400 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 300 करोड़ रुपए का है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
400 करोड़ रुपए = 300 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 300 करोड़ रुपए – 400 करोड़ रुपए
अतः
आयात का मूल्य = (-) 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 2.
जब व्यापार शेष 500 करोड़ रुपए है और आयात का मूल्य 300 करोड़ रुपए है, तो निर्यात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
500 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य – 300 करोड़ रुपए
500 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य
800 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य
अतः निर्यात का मूल्य = 800 करोड़ रुपए उत्तर

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प्रश्न 3.
जब व्यापार शेष (-) 400 करोड़ रुपए हो और निर्यातों का मूल्य 300 करोड़ रुपए हो, तो आयातों के मूल्य की गणना कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = (-) 400 करोड़ रुपए
निर्यातों का मूल्य = 300 करोड़ रुपए
आयातों का मूल्य = 300 + 400
अतः आयातों का मूल्य = 700 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 4.
व्यापार शेष (-) 300 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
(-) 300 करोड़ रुपए = 500 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 500 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए
अतः आयात का मूल्य = 800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 5.
जब व्यापार शेष में घाटा 800 करोड़ रुपए का है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
– 800 करोड़ रुपए = 500 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 500 करोड़ रुपए + 800 करोड़ रुपए
अतः आयात का मूल्य = 1300 करोड़ रुपए उत्तर

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