Class 11

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 6 वायव फोटो का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. पहली बार वायव फोटो खींचने के लिए वायुयान का प्रयोग कब हुआ?
(A) सन् 1902 में
(B) सन् 1905 में
(C) सन् 1907 में
(D) सन् 1909 में
उत्तर:
(D) सन् 1909 में

2. भारत में वायव फोटो चित्र का सर्वप्रथम उपयोग कब हुआ?
(A) सन् 1908 में
(B) सन् 1912 में
(C) सन् 1915 में
(D) सन् 1916 में
उत्तर:
(D) सन् 1916 में

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

3. मापनी के आधार पर वायव फोटो को कितने प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है?
(A) तीन
(B) चार
(C) पाँच
(D) छः
उत्तर:
(A) तीन

4. वायव फोटोग्राफी की कितनी विधियाँ हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

5. भारत में कितनी उड्डयन एजेंसी ही सरकारी अनुमति से वायव फोटो ले सकती हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(B) तीन

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
फोटोग्राममिति किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वायव फोटो चित्रों से धरातलीय एवं अन्य सूचनाओं के मापन और चित्रण की कला और विज्ञान को फोटोग्राममिति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में वायव फोटो चित्र का सर्वप्रथम उपयोग किसने किया था?
उत्तर;
मेजर सी.पी. गुंडुर (1916) ने।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय सुदूर संवेदी संस्था कहाँ स्थित है?
उत्तर:
हैदराबाद में।

प्रश्न 4.
‘नत फोटोग्राफ’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऊर्ध्वाधर अक्ष से प्रकाशीय अक्ष में 3° से अधिक विचलन वाले फोटोग्राफ को ‘नत फोटोग्राफ’ कहा जाता है।

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प्रश्न 5.
ऊर्ध्वाधर अक्ष किसे कहते हैं?
उत्तर:
कैमरा लैंस केन्द्र से धरातलीय तल पर बने लंब को ऊर्ध्वाधर अक्ष कहा जाता है।

प्रश्न 6.
बृहत मापनी फोटोग्राफ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब एक वायव फोटो की मापनी 1:15,000 तथा इससे बड़ी होती है, तो इस प्रकार को फोटोग्राफ के बृहत मापनी फोटोग्राफ कहते हैं।

प्रश्न 7.
वायव फोटो चित्रों में दर्ज भौतिक तथा मानवीय लक्षणों की पहचान किस आधार पर की जा सकती है?
उत्तर:
आभा एवं आकृति के आधार पर।

प्रश्न 8.
विश्व का पहला फोटोग्राफिक सर्वेक्षण कब और किसने किया था?
उत्तर:
विश्व का पहला फोटोग्राफिक सर्वेक्षण सन् 1840 में फ्राँस के ल्यूसिडा (Laussedat) ने किया था।

प्रश्न 9.
उपग्रह द्वारा इमेजरी प्राप्त करने का प्रचलन कब से शुरू हुआ?
उत्तर:
1970 के दशक से।

प्रश्न 10.
स्टीरियोस्कोप कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
दो प्रकार का-

  1. लैंस स्टीरियोस्कोप
  2. दर्पण स्टीरियोस्कोप।

प्रश्न 11.
वाय फोटो चित्रों में स्वच्छ जल कैसा दिखाई देता है?
उत्तर:
काला या धूसर।

प्रश्न 12.
वायु फोटो चित्रों में रेतीले इलाके का रंग कैसा दिखाई देता है?
उत्तर:
सफेद।

प्रश्न 13.
वायव फोटो का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वायुयान में लगे कैमरे द्वारा वायुमण्डल से खींची गई फोटो को वायव फोटो कहा जाता है। वायव फोटो भू-तल का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है जिसकी सहायता से स्थलाकृतिक मानचित्रों को बनाने में सहायता मिलती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायव फोटो के महत्त्वपूर्ण उपयोग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वायव फोटो के उपयोग निम्नलिखित हैं-

  1. वायव फोटो हमें बड़े क्षेत्रों का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है जिनसे पृथ्वी की सतह की स्थलाकृतियों को उनके स्थानिक सन्दर्भ में देखा जा सकता है।
  2. वायव फोटो का उपयोग ऐतिहासिक अवलोकन में किया जाता है।
  3. वायव फोटो से पृथ्वी के धरातलीय दृश्यों का त्रिविम स्वरूप प्राप्त किया जा सकता है।
  4. वायुयान की ऊँचाई के आधार पर विभिन्न मापनियों पर आधारित वायुफोटो चित्रों को प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
वायव फोटो के लक्षणों की पहचान किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
वायव फोटो की व्याख्या करने के लिए निम्नलिखित आधारों का सहारा लेना पड़ता है-
1. आभा (Tone) सामान्यतः वायु फोटो में ब्लैक एण्ड व्हाइट चित्र लिए जाते हैं जिनमें धूसर रंग की अनेक आभाएँ होती हैं जो धरातल द्वारा परावर्तित प्रकाश की मात्रा पर निर्भर करती है। धरातल के जिस भाग से प्रकाश का अधिक परावर्तन होता है, वायु फोटो में उस भाग की आभा हल्की होगी और पृथ्वी का जो भाग प्रकाश का कम परावर्तन करेगा उस भाग की आभा वायु फोटो पर गहरी होगी। उदाहरणस्वरूप स्वच्छ जल धूसर या काला दिखाई देगा जबकि सड़कों और रेल मार्गों की आभा हल्की होती है।

2. आकृति (Shape)-सामान्यतः प्राकृतिक लक्षण अनियमित आकार के होते हैं तथा मानवीय लक्षणों का आकार नियमित होता है; जैसे नदियों, तालाबों, पर्वतों तथा मरुस्थलों की आकृति अनियमित होती है जबकि मानवकृत भवन, खेत, सड़कें, रेलें आदि नियमित आकार प्रदर्शित करते हैं।

3. आकार (Size) धरातलीय लक्षणों की पहचान उनके आकार से भी की जा सकती है। उदाहरणतया नहर पतली व सीधी दिखाई देती है तथा नदी बड़ी व टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई देती है।

4. त्रिविमीय प्रतिरूप (Stereoscopic Pattern)-अतिव्यापन वाले दो वायव फोटो की सहायता से त्रिविमीय स्वरूप देखकर प्रदर्शित तथ्यों की पहचान आसानी से की जा सकती है।

प्रश्न 3.
फोटोग्राफिक सर्वेक्षण का संक्षिप्त इतिहास बनाते हुए वायु फोटो के उपयोगों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विश्व का पहला फोटोग्राफिक सर्वेक्षण सन् 1840 में फ्रांस के ल्यूसिडा (Laussedat) ने किया था। वायु फोटोग्राफी का वास्तविक विकास द्वितीय विश्व युद्ध में आरम्भ हुआ। आजकल तो वायु फोटो का उपयोग स्थलाकृतिक सर्वेक्षण (Tapographical Survey), भू-विज्ञान (Geology), जल विज्ञान (Hydrology), वानिकी (Forestry), पुरातत्व विज्ञान (Archeology), मृदा अपरदन के नियन्त्रण, यातायात नियन्त्रण तथा अनेक प्रकार के खोज कार्यों में किया जाने लगा है।

प्रश्न 4.
वायु फोटोग्राफी के तेजी से उभरने के कारण और उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
वायु फोटोग्राफी के तेजी से उभरने के प्रमुख कारण और उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. इनकी सहायता से अगम्य (Inaccessible) क्षेत्रों का चित्रण बहुत ही आसान हो गया है।
  2. जो सर्वेक्षण साधारण विधियों द्वारा कई-कई महीनों में तैयार होता था, वायु फोटो द्वारा वह अत्यन्त थोड़े समय में तैयार हो जाता है और वह भी बिना किसी त्रुटि के।
  3. यद्यपि इस विधि का प्रारम्भिक व्यय अधिक है किन्तु अन्ततः इसका कुल व्यय साधारण विधियों की अपेक्षा कम ही पड़ता है।

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प्रश्न 5.
उपग्रहीय इमेजरी क्या होती है? इन चित्रों से किस प्रकार की सहायता मिलती है?
उत्तर:
अन्तरिक्ष में उच्च तकनीक से युक्त संवेदनशील उपकरणों से सुसज्जित उपग्रहों को स्थापित करके उनके द्वारा लिए गए चित्रों को उपग्रहीय इमेजरी कहा जाता है। इन चित्रों से दूर संवेदन में सहायता मिलती है। दूर संवेदन के लिए उपग्रह द्वारा इमेजरी प्राप्त करने का प्रचलन 1970 के दशक में आरम्भ हुआ।

प्रश्न 6.
उपग्रहीय इमेजरी वायु फोटोग्राफी से क्यों बेहतर है?
उत्तर:
उपग्रहीय इमेजरी वायु फोटोग्राफी से निम्नलिखित कारणों से बेहतर है-

  1. उपग्रह इमेजरी से अपेक्षाकृत विस्तृत क्षेत्रों के भौतिक तथा मानवीय तत्त्वों का अवलोकन किया जा सकता है।
  2. सार अवलोकन (Synoptic Coverage) के लिए उपग्रह द्वारा इमेजरी वायु फोटो की अपेक्षा अधिक सार्थक एवं कारगर है।
  3. उपग्रह द्वारा चित्रण और उनकी पुनरावृत्ति (Repetition) अत्यन्त शीघ्र होती है। इसमें क्षण भर में उतनी जानकारी प्राप्त हो जाती है जितनी रूढ़ चित्रण (Conventional Contact Prints) द्वारा कई घण्टों तक प्राप्त नहीं हो सकती द्वारा इतनी जानकारी जुटाने में अनेक वर्ष लग सकते हैं।
  4. यदि उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थिति हो तो इसमें सम्पूर्ण पृथ्वी का भी चित्रण किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
लैंस स्टीरियोस्कोप पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
लैंस स्टीरियोस्कोप-यह एक साधारण-सा उपकरण होता है जिसमें दो जुड़वा टाँगों वाले स्टैण्ड पर एक फ्रेम फिट किया गया होता है। इस क्षैतिज फ्रेम पर निश्चित दूरी के अन्तर पर दो लैंस लगे होते हैं। इन लैंसों के एकदम निकट आँख रखकर स्टीरियोस्कोप के नीचे रखे गए अतिव्यापित (Overlapped) फोटो चित्रों का अध्ययन किया जा सकता है। वायु फोटो के अतिव्यापन का एक तरीका होता है। सबसे पहले मेज पर स्टीरियोस्कोप के नीचे एक फोटो चित्र रखा जाता है। इसके ऊपर दूसरा फोटो चित्र इस प्रकार रखा जाता है कि उनके अतिव्यापित भाग ठीक एक-दूसरे के ऊपर आ जाएँ। अब ऊपर वाले वायु फोटो को दायीं ओर 5 सें०मी० सरकाइए। ऐसा करते समय ध्यान रहे कि निचले वायु फोटो के सन्दर्भ में ऊपरी वायु फोटो का अनुस्थान बिगड़ न जाए। ऐसी स्थिति में जब हम स्टीरियोस्कोप में से देखेंगे तो हमें अतिव्यापित फोटो चित्रों में धरातल का त्रि-विस्तारीय (Three Dimensional) स्वरूप दिखाई देगा।

प्रश्न 8.
सार सर्वेक्षण अथवा अवलोकन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इस सर्वेक्षण में केवल अपेक्षित विषय के बारे में सूचनाएँ एवं चित्र इकट्ठे किए जाते हैं न कि समस्त क्षेत्र के। उदाहरणतया यदि हम भारत के पूर्वी एवं पश्चिमी तटों पर स्थिति लैगून झीलों का सर्वेक्षण करते हैं, सम्पूर्ण तटीय प्रदेश का नहीं, तो इसे सार सर्वेक्षण कहा जाएगा।

प्रश्न 9.
मानचित्र तथा वायव फोटों में अन्तर बताइए।
उत्तर:
मानचित्र तथा वायव फोटो में अन्तर निम्नलिखित है-

मानचित्र फोटोवायव फोटो
1. इनकी रचना लम्बकोणीय प्रक्षेप पर होती है।1. इनकी रचना केन्द्रीय प्रक्षेप पर होती है।
2. इसमें मापनी एक समान होती है।2. इसमें मापनी एकसमान नहीं होती है।
3. अगम्य तथा अवास्य क्षेत्रों में मानचित्र बनाना अत्यधिक कठिन है।3. वायव फोटो अगम्य तथा अवास्य क्षेत्रों के लिए भी उपयोगी है।
4. इसमें दिकमान शुद्ध होता है।4. इसमें दिक्मान अशुद्ध होता है।
5. मानचित्र पर धरातल के लक्षण अदृश्य होते हैं।5. वायव फोटो में धरातलीय लक्षणों को पहचाना जा सकता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायव फोटो के प्रकारों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायव फोटो का वर्गीकरण-वायव फ़ोटो का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया जा सकता है; जैसे कैमरा अक्ष, मापनी, व्याप्ति क्षेत्र के कोणीय विस्तार एवं उसमें उपयोग में लाई फिल्म के आधार पर किया जाता है। लेकिन वायव फोटो का प्रचलित वर्गीकरण, कैमरा अक्ष की स्थिति और मापनी के आधार पर किया जाता है।
1. कैमरा अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो के प्रकार कैमरा अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ
  • अल्प तिर्यक फोटोग्राफ
  • अति तिर्यक फोटोग्राफ।

(1) ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ (Vertical Photograph)-वायव फोटो को खींचते समय कैमरा लैंस के केंद्र से दो विशिष्ट अक्षों की रचना होती है

  • धरातलीय तल की ओर
  • फोटो के तल की ओर।

कैमरा लैंस केंद्र से धरातलीय तल पर बने लंब को ऊर्ध्वाधर अक्ष (Vertical Axis) कहा जाता है, जबकि लैंस के केंद्र से .. फ़ोटो की सतह पर बनी साहुल रेखा को फोटोग्राफी ऑप्टीकल अक्ष (Optical Axis) कहा जाता है। जब फोटो की सतह को धरातलीय सतह के ऊपर, उसके समांतर रखा जाता है, तब दोनों अक्ष एक-दूसरे से मिल जाते हैं। इस प्रकार, प्राप्त फोटो को ऊर्ध्वाधर वायव फोटो कहते हैं (चित्र 7.1)। यद्यपि, दोनों सतहों के बीच समांतरता प्राप्त करना काफ़ी कठिन होता है, क्योंकि वायुयान पृथ्वी की वक्रीय सतह (Curved surface) पर गति करता है। इसलिए फोटोग्राफ के अक्ष ऊर्ध्वाधर अक्ष से विचल
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(Deviate) हो जाते हैं। यदि इस प्रकार का विचलन धनात्मक या ऋणात्मक 3° के भीतर होता है, तो लगभग ऊर्ध्वाधर वायव फ़ोटो प्राप्त होते हैं। ऊर्ध्वाधर अक्ष से प्रकाशीय अक्ष में 3° से अधिक विचलन वाले फोटोग्राफ को नत फोटोग्राफ कहा जाता है।

(2) अल्प तिर्यक फोटोग्राफ (Low Oblique Photograph)-ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरा अक्ष में 150 से 30° के अभिकल्पित विचलन (Designed Deviation) के साथ लिए गए वायव फ़ोटो को अल्प तिर्यक फ़ोटोग्राफ़ कहा जाता है (चित्र 7.2)। इस प्रकार के फोटोग्राफ का उपयोग प्रायः प्रारंभिक सर्वेक्षणों में होता है।
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(3) अति तिर्यक फोटोग्राफ़ (High Oblique Photography)-ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरे की धुरी को लगभग 60° झुकाने पर एक अति तिर्यक फोटोग्राफ प्राप्त होता है (चित्र 7.3)। इस प्रकार की फ़ोटोग्राफी भी प्रारंभिक सर्वेक्षण में उपयोगी होती है।
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2. मापनी के आधार पर वायव फोटो के प्रकार मापनी के आधार पर वायव फ़ोटो को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(1) बृहत मापनी फोटोग्राफ (Large Scale Photograph)-जब एक वायव फोटो की मापनी 1:15,000 तथा इससे बड़ी होती है, तो इस प्रकार को फोटोग्राफ के बृहत मापनी फ़ोटोग्राफ़ कहते हैं (चित्र 7.4)।
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(2) मध्यम मापनी फोटोग्राफ (Medium Scale Photograph)-ऐसे वायव फोटो की मापनी 1:15,000 से 1:30,000 के बीच होती है (चित्र 7.5)।
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(3) लघु मापनी फोटोग्राफ़ (Small Scale Photograph)-1:30,000 से लघु मापक वाले फ़ोटोग्राफ़ को लघु मापनी फोटोग्राफ़ कहा जाता है (चित्र 7.6)।
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प्रश्न 2.
वायव फोटो में लक्षणों की पहचान किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
वायव फ़ोटो पर प्रदर्शित तथ्यों के बारे में विवरण नहीं दिया गया होता और न ही उन पर किसी संकेत या रूढ़ चिह्न का प्रयोग किया जाता है। वायु फ़ोटो में वृत्तों एवं पट्टियों पर कुछ प्रारंभिक सूचनाएँ अंकित होती हैं, जिनसे कुछ सामान्य प्रारंभिक जानकारी ही प्राप्त हो पाती है। अतः वायु फोटो चित्रों पर प्रदर्शित तथ्यों का विश्लेषण करने के लिए निम्नलिखित चीज़ों की आवश्यकता होती है-

  • जिस क्षेत्र के वायव फोटो का विश्लेषण करना है, वहां का मानचित्र और स्थलाकृतिक मानचित्र होना चाहिए ताकि बिंबों (Images) को पहचाना जा सके।
  • वायव चित्र में दिखाए गए क्षेत्र की भौतिक एवं मानवीय विशेषताओं की जानकारी विश्लेषणकर्ता को होनी चाहिए।

किसी क्षेत्र के वायु फोटो चित्रों में दर्ज भौतिक तथा मानवीय लक्षणों की पहचान आभा एवं आकृति के आधार पर की जा सकती है।
1. आभा (Tone)-यूं तो आजकल रंगीन हवाई चित्रों का चलन हो गया है किंतु सामान्यतया वायु फोटोग्राफ़ी में ब्लैक एंड व्हाइट चित्र ही लिए जाते हैं। ब्लैक एंड व्हाइट वायु चित्रों में धूसर रंग की अनेक आभाएं होती हैं जो धरातल द्वारा परावर्तित (Reflected) प्रकाश की मात्रा पर निर्भर करती हैं।

धरातल के जिस भाग से प्रकाश का परावर्तन ज्यादा होता है, वायु फ़ोटो में उस भाग की आभा हल्की (Light) होती है। इसके विपरीत धरती का जो भाग प्रकाश का कम मात्रा में परावर्तन करता है उस भाग की वायु फ़ोटो पर आभा गहरी होती है। अतः स्पष्ट है कि वायु फोटो चित्र पर भिन्न-भिन्न गहराई की आभाएं पाई जाती हैं। इन आभाओं के गहरेपन के आधार पर ही विभिन्न लक्षणों की पहचान की जा सकती है। देखिए कुछ उदाहरण-

  • स्वच्छ जल ऊर्ध्वाधर फ़ोटो (Vertical Photo) में घूसर या काला दिखाई देता है।
  • रेतीले इलाके का रंग सफेद दिखाई देता है।
  • गंदला जल हल्का भूरा दिखाई पड़ता है।
  • नमी वाली भूमि शुष्क भूमि की अपेक्षा गहरे रंग की प्रतीत होती है।
  • खेतों की आभा का गहरापन फसलों की लंबाई पर निर्भर करता है।
  • गेहूं की पकी हुई फसल हल्के रंग की आभा देती है।
  • हरियाली गहरे भूरे से काले रंग के बीच की आभा होती है।
  • सड़कों की आभा रेलमार्गों की आभा से हल्की होती है।

2. आकृति (Shape)-वस्तुओं के आकार की पहचान कर पाना वायु फ़ोटो चित्रों के अध्ययन में सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। आमतौर पर प्राकृतिक लक्षणों की अनियमित(Irregular) तथा मानवीय लक्षणों की आकृति नियमित होती है। उदाहरणतया नदियों, नालों, वनों, तालाबों, झीलों, मरुस्थलों, पर्वतों तथा तट रेखाओं आदि प्राकृतिक लक्षणों की आकृति अनियमित होती है जबकि मानवकृत वस्तुओं; जैसे भवन, खेत, सड़कें, नहरें, खेल के मैदान आदि नियमित आकार के होते हैं लेकिन इसके अपवाद भी हो सकते हैं। उदाहरणतः युद्ध की स्थिति में बैरकों, बंकरों, वाहनों, युद्ध सामग्रियों तथा जवानों को अनियमित रूप दे दिया जाता है जिसे छद्मावरण(Camouflage) कहते हैं ताकि वायुयान में बैठे शत्रु को सैनिक ठिकानों का आभास न हो सके।

3. आकार (Size)-तथ्यों के सापेक्षिक आकार से भी उनकी पहचान की जा सकती है। उदाहरणतः नहर पतली व सीधी दिखाई देती है जबकि नदी अपेक्षाकृत बड़ी और टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई देती है। इसी प्रकार कारखाने लंबाकार व आवासीय भवन अपेक्षाकृत छोटे होते हैं।

4. गठन (Texture)-परती एवं बंजर भूमि सपाट व कहीं-कहीं धब्बों ये युक्त भूरे रंग की होती है। कृषि क्षेत्र की पहचान खेतों के आकार, मेढ़ तथा नहरों की स्थिति से की जा सकती है।

5. साहचर्य (Association)-तथ्यों के आस-पास स्थित अन्य तथ्यों से उनके संबंध के आधार पर भी तथ्यों की पहचान की जा सकती है। उदाहरणतः मानव अधिवास के क्षेत्र में सड़कें, गलियां एवं बाहर की ओर कृषि क्षेत्र मिलेगा। कृषि क्षेत्र में नहरों के होने की संभावना हो सकती है। पर्वतीय क्षेत्रों, वनों व नदियों और झीलों में भी साहचर्य पाया जाता है।

6. त्रिविमीय प्रतिरूप (Stereoscopic Pattern)-अतिव्यापन (Overlapping) वाले दो वायव फ़ोटो की सहायता से त्रिविमीय स्वरूप देखकर प्रदर्शित तथ्यों की पहचान आसानी से की जा सकती है। यह एक महत्त्वपूर्ण पान जाताना स का जा सकती है। यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है, जिससे विवरणों की पहचान और विश्लेषण किया जा सकता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

वायव फोटो का परिचय HBSE 11th Class Geography Notes

→ वायव फोटो (Air Photo) वायुयान अथवा हैलीकॉप्टर में लगे कैमरे द्वारा वायुमण्डल से खींची गई फोटो को वायव फोटो कहा जाता है।

→ फोटोग्राममिति (Photogrammetry)-वायव फोटो चित्रों से धरातलीय एवं अन्य सूचनाओं के मापन और चित्रण की कला और विज्ञान को फोटोग्राममिति कहा जाता है।

→ प्रतिबिंब निर्वचन (Imagery Interpretation) यह वस्तुओं के स्वरूपों को पहचानने तथा उनके सापेक्षिक महत्त्व से निर्णय लेने की प्रक्रिया है।

→ लम्बकोणीय प्रक्षेप (Orthogonal Projection) यह समान्तर प्रक्षेप की विशेष स्थिति है जिसमें मानचित्र, धरातल एवं लम्बकोणीय प्रक्षेप होते हैं।

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HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी अमरीका की भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए मूल निवासियों के जीवन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. भौगोलिक विशेषताएँ
उत्तरी अमरीका का महाद्वीप उत्तर ध्रुवीय (Arctic Circle) से लेकर कर्क रेखा (Tropic of Cancer) तक एवं प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) से लेकर अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) तक फैला हुआ है। इसके पश्चिमी क्षेत्र में अरिज़ोना (Arizona) एवं नेवाडा (Nevada) के मरुस्थल (desert) हैं। यहाँ ही सिएरा नेवाडा (Sierra Nevada) पर्वत स्थित है।

पूर्व में विशाल मैदान, झीलें एवं मिसीसिपी (Mississippi), ओहियो (Ohio). तथा अप्पालाचियाँ (Appalachian) पर्वतों की घाटियाँ (valleys) स्थित हैं। इसके दक्षिण में मैक्सिको स्थित है। कनाडा के 40 प्रतिशत प्रदेश में वन हैं। उत्तरी अमरीका के अनेक क्षेत्र तेल, गैस एवं विभिन्न प्रकार के खनिजों से भरपूर हैं। यहाँ की प्रमुख फ़सलें गेहूँ, मकई एवं फल हैं। यहाँ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्योग मछली उद्योग है।

II. मूल निवासी
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों एवं उनकी जीवन-शैली की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. मानव का आगमन:
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उत्तरी अमरीका के सबसे प्रथम निवासी 30,000 वर्ष पूर्व एशिया से बेरिंग स्ट्रेट्स (Bering Straits) के रास्ते से आए। लगभग 10,000 वर्ष पूर्व वे दक्षिण दिशा की ओर बढ़े। उत्तरी अमरीका में हमें जो सबसे प्राचीन मानवकृति (artefact) मिली है वह 11,000 वर्ष पुरानी है। यह एक तीर की नोक (an arrow point) थी। उत्तरी अमरीका में लगभग 5,000 वर्ष पूर्व जलवायु में स्थिरता आई। इसके परिणामस्वरूप यहाँ की जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई।

2. जीवन-शैली:
(1) रहन-सहन एवं भोजन (Living and Diet): यूरोपवासियों के आगमन से पूर्व उत्तरी अमरीका के मूल निवासी नदी घाटी (river valley) के साथ-साथ गाँवों में समूह (group) बनाकर रहते थे। वे मकई तथा विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन करते थे। वे मछली एवं माँस का अधिक प्रयोग करते थे। वे प्रायः माँस की तलाश में लंबी यात्राएँ करते थे। उन्हें मुख्य रूप से जंगली भैंसों जिन्हें बाइसन (bison) कहते थे की तलाश रहती थी। परंतु वे उतने ही जानवरों को मारते थे जितने की उन्हें भोजन के लिए आवश्यकता होती थी।

(2) अर्थव्यवस्था:
उत्तरी अमरीका की अर्थव्यवस्था मुख्यतः एक जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था (subsistence economy) थी। वहाँ के मूल निवासी केवल उतना ही उत्पादन करते थे जो कि उनके निर्वाह के लिए आवश्यक होता था। इस कारण खेती से किसी प्रकार का अधिशेष (surplus) नहीं बचता था। इसके चलते वे केंद्रीय एवं दक्षिणी अमरीका की तरह किसी साम्राज्य की स्थापना करने में विफल रहे। उन्हें जमीन पर व्यक्तिगत मलकियत (ownership) की कोई चिंता नहीं थी क्योंकि वे उससे प्राप्त होने वाले भोजन एवं आश्रय से संतुष्ट थे। इसलिए भूमि को लेकर कबीलों में बहुत कम झगड़े होते थे।

(3) उपहारों का आदान-प्रदान:
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की यह परंपरा थी कि वे आपस में मिलजुल कर रहते थे एवं उनके संबंध मैत्रीपूर्ण होते थे। वे आपस में बस्तुओं को खरीदते एवं बेचते नहीं थे अपितु उपहारों का आदान-प्रदान करते थे। कबीलों में आपसी समझौता होने पर वे एक विशेष प्रकार की वेमपुम बेल्ट (Wampum belt) का आदान-प्रदान (exchange) करते थे। यह बेल्ट रंगीन सीपियों (coloured shells) को आपस में सिलकर तैयार की जाती थी।

(4) भाषा एवं ज्ञान:
उत्तरी अमरीका के मूल निवासी अनेक भाषाएँ बोलते थे यद्यपि वे लिखी नहीं जाती थीं। उन्हें अनेक बातों का ज्ञान था। वे जानते थे कि समय की गति चक्रिय है (Time moved in cycles)। वे जलवायु एवं प्रकृति को पढ़े-लिखे लोगों की तरह समझते थे। प्रत्येक कबीले के पास अपने इतिहास के बारे में पूरी जानकारी होती थी। यह जानकारी मौखिक रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती थी। वे कुशल कारीगर भी थे। वे उत्तम प्रकार का वस्त्र बुनना जानते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

प्रश्न 2.
यूरोपीय एवं मूल निवासियों की पारस्परिक धारणाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यह जानना इतिहास का एक रोचक विषय है कि यूरोपीय जो अपने-आप को सभ्य कहते थे, की मूल निवासियों के बारे में क्या धारणाएँ थीं। दूसरी ओर उत्तरी अमरीका के मूल निवासी इन पूँजीपतियों के बारे में क्या सोचते थे।

1. ज्याँ जैक रूसो के विचार:
वह फ्राँस का एक प्रसिद्ध क था। उसके विचारानुसार मूल निवासी प्रशंसा के पात्र थे क्योंकि वे सभ्यता के कारण आई बुराइयों से अछूते थे। इसके लिए रूसो ने उनके लिए उदात्त, उत्तम जंगली (the noble savage) पद (term) का प्रयोग किया है। उसे मूल निवासियों से मिलने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था।

2. विलियम वड्सवर्थ के विचार:
वह इंग्लैंड का एक महान् कवि था। वह भी उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों से नहीं मिला था। वह मूल निवासियों के संबंध में लिखता है कि, “वे जंगलों में रहते हैं, जहाँ कल्पना शक्ति के पास उन्हें भाव संपन्न करने, उन्हें ऊँचा उठाने या परिष्कृत करने के अवसर बहुत कम हैं।” इससे अभिप्राय यह है कि प्रकृति के समीप रहने वालों की कल्पना शक्ति एवं भावना बहुत सीमित होती है।

3. वाशिंगटन इरविंग के विचार:
वह अमरीका के एक प्रसिद्ध लेखक थे। वह उत्तरी अमरीका में रहने वाले मूल निवासियों से स्वयं मिले थे। उनका कथन था कि जिन इंडियनस की असली जिंदगी को देखने का मुझे मौका मिला वे कविताओं में वर्णित अपने रूप से काफी भिन्न हैं। वे गोरे लोगों की नीयत पर भरोसा नहीं करते। जब वे गोरे लोगों के साथ रहते हैं तो बहुत कम बोलते हैं क्योंकि उन्हें नकी भाषा समझ नहीं आती।

जब मूल निवासी आपस में एकत्र होते हैं तो वे गोरों की खूब नकल उतार कर अपना मनोरंजन करते हैं। दूसरी ओर यरोपीय यह समझते हैं कि मल निवासी उनका इसलिए सम्मान करते हैं क्योंकि उन्होंने इंडियन्स को अपनी भव्यता एवं गरिमा से प्रभावित किया है। इरविंग ने इस बात पर दुःख प्रकट किया है कि यूरोपीय लोग स्थानीय लोगों से जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं।

4. थॉमस जैफ़र्सन के विचार:
वह संयुक्त राज्य अमरीका के तीसरे राष्ट्रपति थे। उन्होंने उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के संबंध में एक आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उनका कथन था कि हमने इस अभागी नस्ल (मूल निवासियों) को सभ्य बनाने के बहुत प्रयास किए किंतु वे सभ्य नहीं बन पाए। इससे उनके उन्मूलन का औचित्य सिद्ध होता है।

5. यूरोपियनों के बारे में मूल निवासियों की धारणा:
काफी समय तक मूल निवासियों की यूरोपियों के बारे में क्या धारणा थी के बारे में हम कोई जानकारी प्राप्त नहीं कर सके। किंतु हाल ही में मूल निवासियों की लोक कथाओं एवं संस्कृति के अध्ययन से इस संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। इन लोक कथाओं में गोरे लोगों का मज़ाक उड़ाया गया था तथा उन्हें लालची एवं मूर्ख दर्शाया गया था।

6. व्यापार संबंधी धारणा:
यूरोपियों एवं मूल निवासियों में चीज़ों के लेन-देन को लेकर विभिन्न धारणा थी। मूल निवासी चीजों का आदान-प्रदान दोस्ती में दिए गए उपहारों का रूप समझते थें। दूसरी ओर यूरोपीय व्यापारी मछली एवं रोएंदार खाल को व्यापारिक माल समझते थे। इसे बेचकर वे अधिक-से-अधिक धन कमाना चाहते थे।

मूल निवासियों को यह समझ नहीं आता था कि यूरोपीय व्यापारी उनके सामान के बदले कभी तो बहुत सारा सामान दे देते थे तथा कभी बहुत कम। वस्तुत: उन्हें बाज़ार के बारे में तनिक भी ज्ञान नहीं था। यूरोपीय लोग रोएँदार खाल को प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में उदबिलावों (beavers मार रहे थे। इस मूल निवासी काफी परेशान थे। उन्हें यह भय था कि ये जानवर उनसे इस विध्वंस का बदला लेंगे।

7. जंगल एवं खेती से संबंधित धारणा:
यूरोपवासी उत्तरी अमरीका में लोहे के औजारों से जंगलों की सफ़ाई कर रहे थे। इसका उद्देश्य जंगलों को साफ़ कर वहाँ खेती करना था। यहाँ वे मकई व अन्य फ़सलों का उत्पादन करना चाहते थे। दूसरी ओर मूल निवासियों को यूरोपियों द्वारा की जा रही जंगलों की सफ़ाई अजीब लगती थी। वे केवल अपनी आवश्यकता के लिए फ़सलें उगाते थे।

ये लोग फ़सलों का उत्पादन बिक्री अथवा मुनाफे के लिए नहीं करते थे। वे जंगलों को अपनी शक्ति का स्रोत समझते थे। अतः वे उन्हें काटना एक पाप समझते थे। इस प्रकार जंगलों एवं खेती के प्रति यूरोपियों एवं मूल निवासियों की धारणा एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थी।

प्रश्न 3.
अमरीका में यूरोपियों द्वारा मूल निवासियों की बेदखली का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमरीका में यूरोपियों द्वारा मूल निवासियों की बेदखली एक अत्यंत करुणामयी कहानी प्रस्तुत करती है। इससे स्पष्ट होता है कि किस प्रकार यूरोपियों ने धोखे से मूल निवासियों को उनकी जमीनों से बेदखल किया एवं उनके लिए घोर कष्टों के द्वार खोल दिए।

1. बेदखली के ढंग:
यूरोपवासियों के अमरीका में बढ़ते हुए कदमों के साथ ही इन क्षेत्रों से मूल निवासियों को बेदखल किया जाने लगा। इसके लिए यूरोपियों ने अनेक ढंग अपनाए।

  • वे मूल निवासियों को उन स्थानों से हटने के लिए प्रेरित करते थे।
  • वे मूल निवासियों द्वारा पीछे न हटने की दशा में उन्हें धमकाते थे।
  • वे मूल निवासियों से बहुत कम मूल्य पर जमीन खरीद लेते थे तथा फिर उन्हें वहाँ से पीछे हटने के लिए बाध्य कर देते थे।
  • वे मूल निवासियों से धोखे से अधिक भूमि हड़प लेते थे तथा मूल निवासियों को वहाँ से हटा दिया जाता था।

2. चिरोकियों के प्रति अन्याय:
मूल निवासियों की बेदखली करते समय उनके साथ बहुत अन्याय किया जाता था। उन्हें किसी प्रकार के कानूनी एवं नागरिक अधिकार नहीं दिए जाते थे। इसका एक उदाहरण जॉर्जिया जो कि संयुक्त राज्य अमरीका का एक राज्य है, के चिरोकी कबीले की बेदखली में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि चिरोकी समुदाय के लोग अंग्रेजी सीखने एवं यूरोपवासियों की जीवन शैली को समझने का सबसे अधिक प्रयास कर रहे थे।

इसके बावजूद उन्हें सभी प्रकार के नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया था। इस संबंध में 1832 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल (John Marshall) ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया। इस फैसले में कहा गया कि चिरोकी कबीला एक विशिष्ट समुदाय है और उसके स्वत्वाधिकार वाले प्रदेश में जॉर्जिया का कानून लागू नहीं होता। परंतु तत्कालीन राष्ट्रपति एंड्रिड जैकसन (Andrew Jackson) ने इस फैसले को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

उसने चिरोकियों को उनके प्रदेश से बेदखल करने के लिए एक सेना भेज दी। अतः 15000 चिरोकियों को महान् अमरीका मरुस्थल की ओर हटने के लिए बाध्य किया गया। इनमें से लगभग एक चौथायी लोग रास्ते में ही मर गए। अत: उनका यह सफर आँसुओं की राह (Trail of Tears) के नाम से जाना गया।

3. बेदखली का औचित्य:
यूरोपीय लोग स्थानीय लोगों को उनके मूल निवास से बेदखल करने को उचित ठहराते हैं। उनका कथन था कि मूल निवासी ज़मीन का ठीक प्रयोग करना नहीं जानते। इसलिए भूमि पर उनका अधिकार नहीं रहना चाहिए। वे यह कह कर भी मूल निवासियों की आलोचना करते हैं कि वे बहत आलसी थे। इसलिए वे बाज़ार के लिए उत्पादन करने में अपनी शिल्पकला (craft skills) का प्रयोग नहीं करते।

यह भी कहा गया कि वे अंग्रेज़ी नहीं सीखते एवं ढंग के वस्त्र नहीं पहनते। अत: मूल निवासी मर-खप जाने के ही योग्य हैं। उनकी बेदखली के बाद जमीनों को खेती के लिए साफ़ किया गया और जंगली भैंसों को मार दिया गया। निस्संदेह यह एक विस्फोटक स्थिति का संकेत था।

4. रिज़र्वेशंस:
यूरोपियों ने मूल निवासियों को पश्चिम की ओर धकेल दिया था। यहाँ उन्हें स्थायी तौर पर बसने के लिए अपनी ज़मीन दे दी गई थी। किंतु यदि कहीं से सोना अथवा तेल होने का पता चलता तो मूल निवासियों को उस क्षेत्र को फौरन छोड़ जाने के लिए बाध्य होना पड़ता था। उन्हें कई बार ऐसे क्षेत्रों में भेज दिया जाता था जहाँ पहले ही कबीलों की संख्या अधिक होती थी।

इसलिए उनमें आपसी लड़ाइयाँ हो जाती थीं। इस प्रकार मूल निवासी कुछ छोटे प्रदेशों में सीमित कर दिए गए थे। इन्हें रिज़र्वेशंस कहा जाता था। यह प्राय: ऐसी भूमि होती थी जिसके साथ उनका पहले से कोई संबंध नहीं होता था।

5. मूल निवासियों का प्रतिरोध:
यूरोपीय बार-बार मूल निवासियों को अपनी ज़मीन छोड़ने के लिए बाध्य करते थे। ऐसा नहीं था कि मूल निवासियों ने अपनी जमीनें बिना किसी संघर्ष के छोड़ दी हों। संयुक्त राज्य अमरीका की सेना को 1865 ई० से 1890 ई० के दौरान मूल निवासियों के अनेक विद्रोहों का दमन करना पड़ा था। इसी प्रकार कनाडा में 1869 ई० से 1885 ई० के दौरान मेटिसों (Metis) ने विद्रोहों का झंडा बुलंद कर रखा था। बाद में उनका दमन कर दिया गया था।

प्रश्न 4.
गोल्ड रश से आपका क्या अभिप्राय है? इसका संयुक्त राज्य अमरीका के उद्योगों एवं खेती के आधुनिकीकरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
दक्षिणी अमरीका की भाँति उत्तरी अमरीका के बारे में यह आशा की जाती थी कि वहाँ सोने के भंडार हैं। 1849 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलीफ़ोर्निया (California) राज्य में सोने के कुछ चिन्ह प्राप्त हुए। यह समाचार जंगल में आग की तरह फैल गया। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में यूरोपीय अपना-अपना भाग्य आजमाने कैलीफोर्निया की ओर चल पड़े। उन्हें यह आशा थी कि वहाँ से प्राप्त सोना उनकी तकदीर को पलक झपकते ही बदल देगा। इसने गोल्ड रश को जन्म दिया।

1. उद्योगों का विकास:
गोल्ड रश की घटना के दूरगामी प्रभाव पड़े। सर्वप्रथम संपूर्ण संयुक्त राज्य अमरीका में रेलवे लाइन बिछाने का काम आरंभ हुआ। इस कार्य के लिए हज़ारों चीनी श्रमिकों को लगाया गया। 1870 ई० तक बड़े पैमाने पर रेलवे का निर्माण कर लिया गया। 1885 ई० में कनाडा में रेलवे का निर्माण पूरा किया गया।

स्कॉटलैंड से आने वाले एक अप्रवासी एंड्रिउ कार्नेगी (Andrew Carnegie) का कथन था कि, “पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकत था कि, “पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकते हैं नया गणराज्य किसी एक्सप्रेस की गति से दौड़ रहा है।” रेलवे निर्माण के साथ-साथ रेलवे के अन्य साज-सामान बनाने के कारखाने भी लगाए गए। इससे कारखानों की संख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई। उस समय उद्योगों के दो प्रमुख उद्देश्य थे-

  • विकसित रेलवे का साज-सामान बनाना ताकि दूर-दूर के स्थानों को तीव्र परिवहन द्वारा जोड़ा जा सके।
  • ऐसे यंत्रों का उत्पादन करना जिनसे बड़े पैमाने पर खेती की जा सके। इससे उद्योगों को एक नया प्रोत्साहन मिला। परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमरीका 1860 ई० से 1890 ई० के दौरान एक शक्तिशाली औद्योगिक देश के रूप में उभर कर सामने आया।

2. खेती का आधुनिकीकरण (Modernization of Agriculture)-इस समय संयुक्त राज्य अमरीका में ‘बड़े पैमाने पर ऐसे यंत्रों का विकास हो चुका था जिससे खेती को एक नया प्रोत्साहन मिला। खेती के लिए बहुत
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 10 iMG 1
से जंगल साफ़ कर दिए गए। इससे खेती का विस्तार हुआ। 1890 ई० तक संयुक्त राज्य अमरीका में जंगली भैंसों का पूरी तरह उन्मूलन कर दिया गया था। इस कारण शिकार वाली जीवनचर्या भी समाप्त हो गई।

प्रश्न 5.
ऑस्ट्रेलिया के विकास के बारे में आप क्या जानते हैं ? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के विकास का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. मानव का आगमन:
ऑस्ट्रेलिया में मानव के आगमन का इतिहास बहुत प्राचीन एवं लंबा है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है यहाँ आदिमानव 40,000 वर्ष पहले पहुँचा था। ऐसा विचार है कि ये लोग ऑस्ट्रेलिया में न्यू गिनी (New Guinea) के रास्ते पहुँचे थे। दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की परंपरा के अनुसार वे कहीं बाहर से नहीं आए थे। वे सदैव से यहीं रहते थे। इन्हें ऐबॉरिजिनीज (aborigines) कहा जाता है।

2. मूल निवासियों की स्थिति:
18वीं शताब्दी में यूरोपियों के ऑस्ट्रेलिया आगमन से पूर्व यहाँ मूल निवासियों के लगभग 350 से 750 तक समुदाय थे। प्रत्येक समुदाय की अपनी अलग भाषा थी। इनमें से 200 भाषाएँ आज तक भी बोली जाती हैं। स्थानीय लोगों का एक विशाल समूह उत्तर में रहता है। इसे टॉरस स्ट्रेट टापूवासी (Torres Strait Islanders) कहते हैं। इनके लिए ऐबॉरिजिनी शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता। क्योंकि ऐसा मानना है कि वे कहीं ओर से आए हैं तथा वे एक भिन्न नस्ल से संबंधित हैं।

3. ऑस्ट्रेलिया की खोज:
1606 ई० में एक साहसी डच यात्री विलेम जांस (Willem Jansz) ऑस्ट्रेलिया पहुँचने में सफल रहा। 1642 ई० में एक अन्य डच नाविक ए० जे० तास्मान (A. J. Tasman) ऑस्ट्रेलिया के एक टापू पर पहुँचने में सफल हुआ। उसने इस टापू का नाम तस्मानिया रखा। इसी वर्ष उसने न्यूजीलैंड की भी खोज की। इस खोज के बावजूद काफी समय तक ऑस्ट्रेलिया में किसी उपनिवेश को स्थापित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

1770 ई० में इंग्लैंड का प्रसिद्ध नाविक जेम्स कुक (James Cook) एक छोटे से टापू बॉटनी बे (Botany Bay) पहुँचने में सफल हुआ। उसने इस टापू का नाम न्यू साउथ वेल्स (New South Wales) रखा। यहाँ रहते हए जेम्स कुक ने एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानचित्र तैयार किया। इसमें उसने 180 स्थानों के नाम दिए थे। यह मानचित्र आने वाले नाविकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ। 1788 ई० में यहाँ ब्रिटेन की प्रथम बस्ती सिडनी (Sydney) की स्थापना हुई। यहाँ ब्रिटेन के अपराधियों को देश निकाले का दंड देकर भेजा जाता था।

4. मूल निवासियों के प्रति रवैया:
दक्षिणी अमरीका एवं उत्तरी अमरीका के समान ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों ने यूरोपवासियों का बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। वे यूरोपवासियों की यथासंभव सहायता करते थे। इस संबंध में हमें अनेक यात्रियों के ब्योरे उपलब्ध हैं। इस कारण आरंभ में यूरोपवासियों एवं मूल निवासियों के आपसी संबंध मित्रतापूर्ण रहे। 1779 ई० में ब्रिटेन के नाविक जेम्स कुक की हवाई में किसी आदिवासी ने हत्या कर दी। इस कारण यूरोपवासी भड़क उठे।

उन्होंने इस घटना के पश्चात् आदिवासियों के विरुद्ध कठोर रवैया अपनाया। इससे दोनों समुदायों के संबंधों में कटुता आ गई। यूरोपवासियों ने धीरे-धीरे खेती के लिए जंगलों का सफाया कर दिया। उन्होंने मूल निवासियों को अपने क्षेत्रों से पीछे हटने के लिए भी बाध्य कर दिया।

5. आर्थिक विकास:
ऑस्ट्रेलिया में यूरोपीय उपनिवेशों की स्थापना के साथ ही उसके आर्थिक विकास का क्रम आरंभ हुआ। यहाँ मैरिनो भेड़ों के पालन के लिए विशाल भेड़ फार्मों की स्थापना की गई। कृषि के विकास के लिए जंगलों की सफाई की गई। यहाँ गेहूँ के उत्पादन में बहुत वृद्धि की गई। मदिरा बनाने हेतु अंगूर के विशाल बाग लगाए गए। ऑस्ट्रेलिया में खनन उद्योगों की स्थापना की गई। इससे ऑस्ट्रेलिया की समृद्धि का आधार तैयार हुआ।

6. चीनी अप्रवासी:
आरंभ में ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास में मूल निवासियों से काम लिया गया। उनसे खेतों एवं खानों में कठिन परिस्थितियों में कार्य करवाया जाता था। अत: उनमें एवं दासों में कोई विशेष अंतर नहीं रह गया था। बाद में सस्ता श्रम प्राप्त करने के उद्देश्य से चीनी अप्रवासियों का सहारा लिया गया। शीघ्र ही उनकी संख्या में तीव्र वृद्धि हो गई।

इससे ऑस्ट्रेलिया की गोरी सरकार घबरा गई। उसे यह ख़तरा था कि इससे गोरे लोग एशिया के काले लोगों पर अधिक निर्भर होते जाएँगे। अत: उसने 1974 ई० तक गैर-गोरों को ऑस्ट्रेलिया से बाहर रखने की नीति अपनाई। इस वर्ष एशियाई अप्रवासियों को प्रवेश की अनुमति दी गई।

7. राजधानी की स्थापना:
1911 ई० में ऑस्ट्रेलिया की राजधानी बनाने का निर्णय किया गया। इसके लिए वूलव्हीटगोल्ड (Woolwheatgold) के नाम का सुझाव दिया गया। पर अंततः इसका नाम कैनबरा (Canberra) रखा गया। यह एक स्थानीय शब्द कैमबरा (Kamberra) से बना है जिसका अर्थ है सभा स्थल।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

प्रश्न 6.
20वीं शताब्दी में ऑस्ट्रेलिया में आई बदलाव की लहर का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
20वीं शताब्दी में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति बदलाव की लहर को देखा गया। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. डब्ल्यू ० ई० एच० स्टैनर का योगदान:
काफी समय तक यूरोपवासियों ने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों और उनकी संस्कृति को समझने का कोई प्रयास नहीं किया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वे मूल निवासियों के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखते थे। इसके चलते उन्होंने अपनी पुस्तकों में केवल ऑस्ट्रेलिया में आकर बसने वाले यूरोपियों की उपलब्धियों का ही वर्णन किया है।

इनमें यह दिखाने का प्रयास किया गया कि वहाँ के मल निवासियों की न तो कोई परंपरा है एवं न ही कोई इतिहास। 1968 ई० में एक मानवशास्त्री डब्ल्यू. ई० एच० स्टैनर ने दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस नामक प्रसिद्ध पुस्तक का प्रकाशन किया। इस पुस्तक से यूरोपवासियों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृति को समझने की चाहत उत्पन्न हुई। निस्संदेह यह एक प्रशंसनीय कदम था।

2. हेनरी रेनॉल्डस का योगदान :
हेनरी रेनॉल्डस एक महान् लेखक था। उसकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना का नाम व्हाई वरंट वी टोल्ड (Why Weren’t We Told) था। इस पुस्तक में उसने ऑस्ट्रेलिया के इतिहास लेखन के परंपरागत ढंग की कटु आलोचना की है। यूरोपवासी कैप्टन कुक की खोज से ही ऑस्ट्रेलिया के इतिहास का आरंभ करते हैं।

हेनरी रेनॉल्डस का कथन था कि हमें ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की सभ्यता एवं संस्कृति पर भी प्रकाश डालना चाहिए। इससे यूरोपवासियों के मन में मूल निवासियों के इतिहास को जानने की एक नई प्रेरणा उत्पन्न हुई।

3. मूल निवासियों की संस्कृति का अध्ययन:
यूरोपवासियों द्वारा मूल निवासियों की संस्कति का अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालयों में विशेष विभागों की स्थापना हई। मल निवासियों की कला को कला दीर्घाओं (art galleries) में स्थान दिया जाने लगा। स्थानीय संस्कृति को समझने के लिए संग्रहालयों (museums) की स्थापना की गई। मूल निवासियों ने भी अपने इतिहास को लिखना आरंभ किया।

निस्संदेह यह एक प्रशंसनीय प्रयास था। 1974 ई० में ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने बहुसंस्कृतिवाद (multiculturalism) की नीति को अपनाया। इसके द्वारा मूल निवासियों, यूरोप तथा एशिया के अप्रवासियों की संस्कृतियों के प्रति बराबर सम्मान प्रकट किया गया। वास्तव में इसने एक नए युग का श्रीगणेश किया।

4. ज्यूडिथ राइट का योगदान:
ज्यूडिथ राइट ऑस्ट्रेलिया की एक महान् कवित्री थी। उसने मूल निवासियों के अधिकारों संबंधी एक ज़ोरदार अभियान चलाया। उसका कथन था कि गोरों एवं मूल निवासियों को अलग-अलग रखने से आने वाली नस्लों के लिए एक भारी ख़तरा उत्पन्न हो सकता है। इस संबंध में उसने अनेक प्रभावशाली कविताएँ लिखीं। इनका लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा।

5. टेरा न्यूलिअस नीति का अंत:
1970 ई० के दशक में संयुक्त राष्ट्र संघ एवं दूसरी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में मानवाधिकार पर बल दिया जाने लगा था। इससे ऑस्ट्रेलिया के लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न हुई। उन्हें यह अहसास हुआ कि यूरोपीय लोगों ने भूमि अधिग्रहण (takeover of land) को औपचारिक (formal) बनाने के उद्देश्य से कोई समझौता नहीं किया है।

इसका कारण यह था कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार सदैव भमि को टेरा न्युलिअस कहती आई थी। इससे अभिप्राय ऐसी भमि थी जो किसी की भी नहीं है। 1992 ई० में ऑस्ट्रेलिया के हाईकोर्ट ने टेरा न्यूलिअस नीति को अवैध घोषित कर दिया। इस फैसले में 1770 ई० के पहले से ज़मीन पर मूल निवासियों के दावों को मान्यता दे दी गई।

6. मिश्रित रक्त वाले बच्चों की नीति में परिवर्तन:
ऑस्ट्रेलिया की एक अन्य गंभीर समस्या मिश्रित रक्त वाले बच्चों की थी। ये बच्चे यूरोपवासियों एवं मूल निवासियों के मध्य अवैध संबंधों के कारण उत्पन्न हुए थे। इन बच्चों को किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं दिया गया था। उनकी यंत्रणा का एक लंबा इतिहास था। गोरे एवं रंग-बिरंगे बच्चों को अलग-अलग करके उनके साथ एक घोर अन्याय किया जाता था।

इस कारण सरकार ने 1999 ई० में ऑस्ट्रेलिया में 1820 ई० से 1970 ई० के बीच गुम हुए बच्चों के लिए माफी माँगी। उसने 26 मई को राष्ट्रीय क्षमायाचना दिवस मनाने की घोषणा की। निस्संदेह यह मूल निवासियों की एक महान् विजय थी।

कालक्रम

क्रम संख्यावर्षघटना
1.1497 ई०जॉन कैबोट का न्यूफाऊँडलैंड पहुँचना।
2.1507 ई०अमेरिगो डे वेसपुकी की ट्रैवेल्स प्रकाशित हुई।
3.1534 ई०जैक कार्टियर सेंट लॉरेंस पहुँचा।
4.1606 ई०डच यात्री विलेम जांस का ऑस्ट्रेलिया पहुँचना।
5.1607 ई०ब्रिटिशों ने वर्जीनिया को अपना उपनिवेश बनाया।
6.1642 ई०डच नाविक ए० जे० तास्मान का ऑस्ट्रेलिया पहुँचना।
7.1770 ई०ब्रिटेन के नाविक जेम्स कुक का ऑस्ट्रेलिया पहुँचना।
8.1783 ई०ब्रिटेन ने संयुक्त राज्य अमरीका को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी।
9.1788 ई०ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया के सिडनी नामक स्थान में अपनी प्रथम बस्ती स्थापित की।
10.1803 ई०संयुक्त राज्य अमरीका ने फ्राँस से लुइसियाना को खरीदा।
11.1849 ई०अमरीकी गोल्ड रश।
12.1865 ई०संयुक्त राज्य अमरीका में दास प्रथा का अंत।
13.1867 ई०संयुक्त राज्य अमरीका ने अलास्का को खरीदा।
14.1892 ई०अमरीकी फ्रंटियर का अंत।
15.1869-1885 ई०कनाडा में मेटिसों का विद्रोह।
16.1911 ई०कैनबरा को ऑस्ट्रेलिया की राजधानी बनाना।
17.1934 ई०इंडियन रीऑर्गेनाइज़ेशन एक्ट का पारित होना।
19.1954 ई०डिक्लेरेशन ऑफ इंडियन राइट्स।
20.1968 ई०डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर द्वारा दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस का प्रकाशन।
21.1974 ई०ऑस्ट्रेलिया की सरकार द्वारा बहुसंस्कृतिवाद की नीति को अपनाना।
22.1982 ई०संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा मूल निवासियों के अधिकारों को मान्यता देना।
23.1992 ई०ऑस्ट्रेलिया द्वारा टेरा न्यूलिअस नीति को त्यागना।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की जीवन शैली की प्रमुख विशेषताएँ लिखो।
उत्तर:
(1) रहन-सहन एवं भोजन-यूरोपवासियों के आगमन से पूर्व उत्तरी अमरीका के मूल निवासी नदी घाटी के साथ-साथ गाँवों में समूह बनाकर रहते थे। वे मकई तथा विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन करते थे। वे मछली एवं माँस का अधिक प्रयोग करते थे। वे प्रायः माँस की तलाश में लंबी यात्राएँ करते थे। उन्हें मुख्य जिन्हें बाइसन कहते थे कि तलाश रहती थी। परंत वे उतने ही जानवरों को मारते थे कि जितने की उन्हें भोजन के लिए आवश्यकता होती थी।

(2) अर्थव्यवस्था-उत्तरी अमरीका की अर्थव्यवस्था मुख्यतः एक जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था थी। वहाँ के मूल निवासी केवल उतना ही उत्पादन करते थे जो कि उनके निर्वाह के लिए आवश्यक होता था। उन्हें जमीन पर व्यक्तिगत मलकियत की कोई चिंता नहीं थी क्योंकि वे उससे प्राप्त होने वाले भोजन एवं आश्रय से संतुष्ट थे।

(3) उपहारों का आदान-प्रदान-उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की यह परंपरा थी कि वे आपस में मिलजुल कर रहते थे एवं उनके संबंध मैत्रीपूर्ण होते थे। वे आपस में वस्तुओं को खरीदते एवं बेचते नहीं थे अपितु उपहारों का आदान-प्रदान करते थे। कबीलों में आपसी समझौता होने पर वे एक विशेष प्रकार की वेमपुम बेल्ट का आदान-प्रदान करते थे।

(4) भाषा एवं ज्ञान-उत्तरी अमरीका के मूल निवासी अनेक भाषाएँ बोलते थे यद्यपि वे लिखी नहीं जाती थीं। उन्हें अनेक बातों का ज्ञान था। वे जानते थे कि समय की गति चक्रिय है। वे जलवायु एवं प्रकृति को पढ़े-लिखे लोगों की तरह समझते थे। प्रत्येक कबीले के पास अपने इतिहास के बारे में पूरी जानकारी होती थी। यह जानकारी मौखिक रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती थी। वे कुशल कारीगर भी थे। वे उत्तम प्रकार का वस्त्र बुनना जानते थे।

प्रश्न 2.
यूरोपीय व्यापारियों ने उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के साथ किस प्रकारं वस्तुओं का आदान-प्रदान किया ?
उत्तर:
यूरोपीय व्यापारियों को उत्तरी अमरीका पहुँचने पर यह ज्ञात हुआ कि स्थानीय लोग मिसीसिपी नदी के किनारे आपस में अपनी वस्तुओं के आदान-प्रदान के लिए नियमित रूप से जमा होते हैं। यहाँ उन हस्तशिल्पों अथवा खाद्य-पदार्थों का आदान-प्रदान होता था जो अन्य प्रदेशों में उपलब्ध नहीं होते थे। यूरोपीय व्यापारी भी अपने व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस आदान-प्रदान में सम्मिलित होने लगे। वे मूल निवासियों को कंबल, लोहे के बर्तन, बंदूकें एवं शराब देते थे।

कंबल शीत को रोकने के लिए उपयोगी सिद्ध हुए। लोहे के बर्तन मिट्टी के बर्तनों की अपेक्षा कहीं अधिक उपयोगी थे। बंदूकें जानवरों को मारने के लिए तीर-कमानों की अपेक्षा अधिक उत्तम सिद्ध हुईं। उत्तरी अमरीका के लोग यूरोपियों के आगमन से पूर्व शराब से परिचित नहीं थे। वे शीघ्र ही शराब के आदी हो गए। उनकी यह आदत यूरोपीय व्यापारियों के लिए अच्छी प्रमाणित हुई। इस कारण यूरोपीय व्यापारी मूल निवासियों पर अपनी शर्ते थोपने में सफल हुए। यूरोपियनों ने मूल निवासियों से तंबाकू की आदत ग्रहण की।

प्रश्न 3.
वाशिंगटन इरविंग कौन था ? उसने उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के बारे में क्या लिखा है ?
उत्तर:
वह अमरीका के एक प्रसिद्ध लेखक थे। वह उत्तरी अमरीका में रहने वाले मूल निवासियों से स्वयं मिले थे। उनका कथन था कि जिन इंडियन्स की असली जिंदगी को देखने का मुझे मौका मिला वे कविताओं में वर्णित अपने रूप से काफी भिन्न हैं। वे गोरे लोगों की नीयत पर भरोसा नहीं करते। जब वे गोरे लोगों के साथ रहते हैं तो बहुत कम बोलते हैं क्योंकि उन्हें उनकी भाषा समझ नहीं आती।

जब मूल निवासी आपस में एकत्र होते हैं तो वे गोरों की खूब नकल उतार कर अपना मनोरंजन करते हैं। दूसरी ओर यूरोपीय यह समझते हैं कि मूल निवासी उनका इसलिए सम्मान करते हैं क्योंकि उन्होंने इंडियन्स को अपनी भव्यता एवं गरिमा से प्रभावित किया है। इरविंग ने इस बात पर दुःख प्रकट किया है कि यूरोपीय लोग स्थानीय लोगों से जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

प्रश्न 4.
यूरोपियों एवं मूल निवासियों में व्यापार संबंधी क्या धारणा थी ?
उत्तर:
युरोपियों एवं मूल निवासियों में चीजों के लेन-देन को लेकर विभिन्न धारणा थी। मल निवासी चीज़ों का आदान-प्रदान दोस्ती में दिए गए उपहारों का रूप समझते थे। दूसरी ओर यूरोपीय व्यापारी मछली एवं रोएँदार खाल को व्यापारिक माल समझते थे। इसे बेचकर वे अधिक-से-अधिक धन कमाना चाहते थे।

मूल निवासियों को यह समझ नहीं आता था कि यूरोपीय व्यापारी उनके सामान के बदले कभी तो बहुत सारा सामान दे देते थे तथा कभी बहुत कम। वस्तुतः उन्हें बाज़ार के बारे में तनिक भी ज्ञान नहीं था। यूरोपीय लोग रोएँदार खाल को प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में उदबिलावों को मार रहे थे। इससे मूल निवासी काफी परेशान थे। उन्हें यह भय था कि ये जानवर उनसे इस विध्वंस का बदला लेंगे।

प्रश्न 5.
उत्तरी अमरीका में दास प्रथा का अंत कैसे हुआ ? संक्षेप में उत्तर दीजिए।
अथवा
संयुक्त राज्य अमरीका में दास प्रथा के प्रचलन के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसका अंत किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमरीका में यूरोपियों के आगमन के पश्चात् दास प्रथा का प्रचलन बहुत बढ़ गया। इसका कारण यह था कि यूरोपियों ने दक्षिणी राज्यों में कपास एवं गन्ने की खेती आरंभ कर दी थी। यह कार्य दासों द्वारा करवाया जाता था। यहाँ के बाग़ान मालिकों ने बड़ी संख्या में अफ्रीका से दास खरीदने आरंभ किए। इन दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था।

अत: संयुक्त राज्य अमरीका के उत्तरी राज्यों जहाँ की अर्थव्यवस्था बागानों पर आधारित नहीं थी, में दास प्रथा को समाप्त करने के स्वर उठने लगे। दक्षिणी राज्य किसी भी कीमत पर दास प्रथा का अंत नहीं चाहते थे। अत: 1861 ई० से लेकर 1865 ई० तक दास प्रथा के प्रश्न को लेकर उत्तरी राज्यों एवं दक्षिणी राज्यों में एक भयंकर गृहयुद्ध हुआ। इस गृहयुद्ध में उत्तरी राज्यों को विजय प्राप्त हुई। अतः 1865 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका में दास प्रथा का अंत कर दिया गया। इस प्रथा के अंत में अमरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई।।

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य अमरीका में यूरोपवासियों ने मूल निवासियों को बेदखल करने के लिए कौन-से ढंग अपनाए ?
उत्तर:
जैसे-जैसे संयुक्त राज्य अमरीका में यूरोपवासियों की बस्तियों का विस्तार हुआ इन क्षेत्रों से मूल निवासियों को बेदखल कर दिया गया। इसके लिए यूरोपियों ने अनेक ढंग अपनाए।

  • वे मूल निवासियों को उन स्थानों से हटने से लिए प्रेरित करते थे।
  • वे मूल निवासियों द्वारा पीछे न हटने की दशा में उन्हें धमकाते थे।
  • वे मूल निवासियों से बहुत कम मूल्य पर जमीन खरीद लेते थे तथा फिर उन्हें वहाँ से पीछे हटने के लिए मजबूर कर देते थे।
  • वे मूल निवासियों से धोखे से अधिक भूमि हड़प लेते थे तथा मूल निवासियों को वहाँ से हटा दिया जाता था।

प्रश्न 7.
चिरोकी कौन थे ? यूरोपवासियों का उनके प्रति क्या व्यवहार था ?
उत्तर:
मूल निवासियों की बेदखली करते समय उनके साथ किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं की जाती थी। उन्हें किसी प्रकार के कानूनी एवं नागरिक अधिकार नहीं दिए जाते थे। इसका एक उदाहरण जॉर्जिया जो कि संयुक्त राज्य अमरीका का एक राज्य है के चिरोकी कबीले की बेदखली में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि चिरोकी समुदाय के लोग अंग्रेजी सीखने एवं यूरोपवासियों की जीवन शैली को समझने का सबसे अधिक प्रयास कर रहे थे।

इसके बावजूद उन्हें सभी प्रकार के नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया था। इस संबंध में 1832 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया। इस फैसले में कहा गया कि चिरोकी कबीला एक विशिष्ट समुदाय है और उसके स्वत्वाधिकार वाले प्रदेशों में जॉर्जिया का कानून लागू नहीं होता। परंतु तत्कालीन राष्ट्रपति एंड्रिउ जैकसन ने इस फैसले को स्वीकार करने से इंकार कर दिया।

उसने चिरोकियों को उनके प्रदेश से बेदखल करने के लिए एक सेना भेज दी। अत: 15000 चिरोकियों को महान् अमरीका मरुस्थल की ओर हटने के लिए बाध्य किया गया। इनमें से लगभग एक चौथायी लोग रास्ते में ही मर गए। अतः उनका यह सफर आँसुओं की राह के नाम से जाना गया।

प्रश्न 8.
‘गोल्ड रश’ क्या था ?
अथवा
गोल्ड रश से आपका क्या अभिप्राय है ? इससे संयुक्त राज्य अमरीका पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
दक्षिणी अमरीका की भाँति उत्तरी अमरीका के बारे में यह आशा की जाती थी कि वहाँ सोने के भंडार हैं। 1849 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलीफ़ोर्निया राज्य में सोने के कुछ चिन्ह प्राप्त हुए। यह समाचार जंगल में आग की तरह फैल गया। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में यूरोपीय अपना-अपना भाग्य आजमाने कैलीफोर्निया की ओर चल पड़े।

उन्हें यह आशा थी कि वहाँ से प्राप्त सोना उनकी तकदीर को पलक झपकते ही बदल देगा। इसने गोल्ड रश को जन्म दिया। गोल्ड रश की घटना के दूरगामी प्रभाव पड़े। सर्वप्रथम संपूर्ण संयुक्त राज्य अमरीका में रेलवे लाइन बिछाने का काम आरंभ हुआ। इस कार्य के लिए हज़ारों चीनी श्रमिकों को लगाया गया। 1870 ई० तक बड़े पैमाने पर रेलवे का निर्माण किया गया।

रेलवे निर्माण के साथ-साथ रेलवे के अन्य साज-सामान बनाने के कारखाने भी लगाए गए। इससे कारखानों की संख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई। इस समय संयुक्त राज्य अमरीका में बड़े पैमाने पर ऐसे यंत्रों का विकास हो चुका था जिससे खेती को एक नया प्रोत्साहन मिला खेती के लिए बहुत से जंगल साफ़ कर दिए गए। इससे खेती का विस्तार हुआ।

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प्रश्न 9.
आप किस प्रकार कह सकते हैं कि 20वीं शताब्दी में संयुक्त राज्य अमरीका में मूल निवासियों के संबंध में बदलाव की लहर आई ?
उत्तर:
(1) सर्वेक्षण-1928 ई० में मूल निवासियों की समस्याओं को जानने के लिए लेवाइस मेरिअम की अध्यक्षता में एक सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ। इसे दि प्रॉब्लम ऑफ़ इंडियन एडमिनिस्ट्रेशन का नाम दिया गया। इसमें रिज़र्वेशंस में रह रहे मूल निवासियों की स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी सुविधाओं की कमी का बड़ा ही करुणामयी चित्र प्रस्तुत किया गया है।

(2) इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1934 ई०-1930 ई० के दशक के आते-आते गोरे अमरीकियों के मन में मूल निवासियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हुई। अब तक मूल निवासियों को नागरिकता के.सभी लाभों से वंचित रखा गया था। 1934 ई० में इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट पारित किया गया। इस एक्ट के अधीन रिज़र्वेशंस में रहने वाले मूल निवासियों को ज़मीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार प्रदान किया गया।

(3) डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइट्स 1954 ई०-1954 ई० में अनेक मूल निवासियों ने डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइट्स नामक दस्तावेज़ तैयार किया। इसमें कहा गया कि वे संयुक्त राज्य अमरीका की नागरिकता को इस शर्त पर स्वीकार करेंगे कि उनके रिज़र्वेशंस वापिस नहीं लिए जाएँगे तथा न ही उनकी परंपराओं में किसी प्रकार का हस्तक्षेप किया जाएगा।

(4) मूल निवासियों द्वारा अधिकारों की माँग-1969 ई० में जब अमरीका की सरकार ने यह घोषणा की कि वह आदिवासी अधिकारों को मान्यता नहीं देगी तो मूल निवासियों ने इसका धरना, प्रदर्शनों एवं वाद-विवाद द्वारा डटकर विरोध किया। अत: बाध्य होकर 1982 ई० में सरकार ने उनके अधिकारों को स्वीकृति प्रदान कर दी।

प्रश्न 10.
आप उन्नीसवीं सदी में संयुक्त राज्य अमरीका में अंग्रेजी के उपयोग के अतिरिक्त अंग्रेजों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में कौन-सी विशेषताएँ देखते हैं ?
उत्तर:
यूरोपियों के संयुक्त राज्य अमरीका में जाकर बसने के कारण वहाँ अंग्रेज़ी का उपयोग काफी बढ़ गया। इसके अतिरिक्त वहाँ अंग्रेजों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

(1) ज़मीन के प्रति यूरोपीय लोगों का दृष्टिकोण मूल निवासियों से अलग था। ब्रिटेन एवं फ्राँस से आए कुछ प्रवासी ऐसे थे जो अपने पिता का बड़ा पुत्र होने के कारण पिता की संपत्ति के उत्तराधिकरी नहीं बन सकते थे। इसलिए वे अमरीका में भू-स्वामी बनना चाहते थे।

(2) जर्मनी, स्वीडन और इटली जैसे देशों से ऐसे अप्रवासी आए जिनकी ज़मीनें बड़े किसानों के हाथों में चली गई थीं। वे ऐसी ज़मीन चाहते थे जिसे वे अपना कह सकें।

(3) पोलैंड से आए लोगों को चरगाहों में काम करना अच्छा लगता था। इसमें उन्हें काफ़ी लाभ भी प्राप्त हुआ।

(4) अमरीका में बहुत कम कीमत पर बड़ी संपत्तियाँ खरीद पाना आसान था। अत: अंग्रेजों ने बड़े-बड़े भूखंड खरीद लिए।

(5) यूरोपियों ने अपने हितों के लिए मूल निवासियों को बेदखल किया। वे मूल निवासियों की बेदखली को गलत नहीं मानते थे।

प्रश्न 11.
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों का यूरोपवासियों के प्रति क्या रवैया था ?
उत्तर:
यूरोपवासियों के आगमन पर ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों ने उनका बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। वे यूरोपवासियों की यथासंभव सहायता करते थे। मूल निवासियों के दोस्ताना व्यवहार के बारे में हमें अनेक यात्रियों के ब्यौरे उपलब्ध हैं। इससे स्पष्ट है कि आरंभ में यूरोपवासियों एवं मूल निवासियों के आपसी संबंध मित्रतापूर्ण रहे। 1779 ई० में ब्रिटेन के नाविक कैप्टन जेम्स कुक की हवाई में किसी आदिवासी ने हत्या कर दी। इस कारण यूरोपवासी तिलमिला उठे।

उन्होंने इस घटना के लिए मूल निवासियों को उत्तरदायी ठहराया। अतः उन्होंने मूल निवासियों को सबक सिखाने का निर्णय लिया। इसके चलते उन्होंने मूल निवासियों के विरुद्ध कठोर रवैया अपनाया। इससे दोनों समुदायों के संबंधों में कटुता आ गई। यूरोपवासियों ने धीरे-धीरे खेती के लिए जंगलों का सफ़ाया कर दिया। उन्होंने मूल निवासियों को अपने क्षेत्रों से पीछे हटने के लिए भी बाध्य किया।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नेटिव’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नेटिव अथवा मूल निवासी से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो अपने वर्तमान निवास स्थान पर ही पैदा हुआ हो। 20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में यह शब्द यूरोपीय लोगों द्वारा अपने उपनिवेशों में रहने वाले मूल निवासियों के लिए प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 2.
‘सेटलर’ शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सेटलर शब्द से अभिप्राय किसी स्थान पर बाहर से आकर बसे लोगों से है। इस शब्द का प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में डचों के लिए, आयरलैंड, न्यूज़ीलैंड तथा ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश लोगों के लिए और अमरीका में यूरोपीय लोगों के लिए किया जाता था।

प्रश्न 3.
उत्तरी अमरीका की कोई दो भौगोलिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उत्तरी अमरीका उत्तरी ध्रुवीय वृत्त से लेकर कर्क रेखा तक फैला हुआ है।
  • इसके पश्चिम में अरिज़ोना एवं नेवाडा की मरुभूमि है।

प्रश्न 4.
उत्तरी अमरीका की जलवायु में कब स्थिरता आई? इसका क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:

  • उत्तरी अमरीका की जलवायु में 5000 वर्ष पूर्व स्थिरता आई।
  • इसके परिणामस्वरूप यहाँ की जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई।

प्रश्न 5.
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की जीवन शैली की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • वे नदी घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बना कर रहते थे।
  • वे उतनी ही वस्तुओं का उत्पादन करते थे जो कि उनके निर्वाह के लिए आवश्यक थीं।

प्रश्न 6.
वेमपुम बेल्ट क्या थी ?
उत्तर:
वेमपुम बेल्ट रंगीन सीपियों को आपस में सिलकर बनाई जाती थी। यह बेल्ट कबीलों में आपसी समझौते के पश्चात् सम्मान के तौर पर आदान-प्रदान की जाती थी।

प्रश्न 7.
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों को किन बातों का ज्ञान था ?
उत्तर:

  • वे जानते थे कि समय की गति चक्रीय है।
  • वे अपने इतिहास के बारे में पूरी जानकारी रखते थे।

प्रश्न 8.
यूरोपीय एवं मूल निवासियों में किन वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था ?
उत्तर:

  • यूरोपीय केवल लोहे के बर्तन, बंदूकें एवं शराब मूल निवासियों को देते थे।
  • मूल निवासी यूरोपियों को मछली एवं रोएँदार खाल देते थे।

प्रश्न 9.
यूरोपीय लोगों को उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों पर किस बात ने अपनी शर्ते थोपने में सक्षम बनाया ?
उत्तर:
उत्तरी अमरीका के मूल निवासी शराब से परिचित नहीं थे। परंतु यूरोपियों ने उन्हें शराब देकर शराब पीने की आदत डाल दी। इस कारण शराब उनकी कमज़ोरी बन गई। उनकी इसी कमज़ोरी के कारण यूरोपीय लोगों को उन पर अपनी शर्ते थोपने के सक्षम बनाया।

प्रश्न 10.
यूरोप के लोगों को अमरीका के मूल निवासी असभ्य क्यों प्रतीत हुए ?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में यूरोपीय लोग तीन मापदंडों-साक्षरता, संगठित धर्म और शहरीपन के आधार पर विश्वास करते थे। इस दृष्टिकोण से उन्हें अमरीका के मूल निवासी असभ्य प्रतीत हुए।

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प्रश्न 11.
वाशिंगटन इरविंग ने अमरीका के मूल निवासियों के संबंध में क्या विचार प्रकट किए ?
उत्तर:

  • वे कविताओं में वर्णित अपने रूप से काफी भिन्न हैं।
  • वे गोरे लोगों की नीयत पर भरोसा नहीं करते हैं।
  • वे गोरे लोगों की नकल कर अपना मनोरंजन करते हैं।

प्रश्न 12.
यूरोपियों एवं अमरीका के मूल निवासियों में व्यापार संबंधी धारणा में प्रमुख अंतर क्या था ?
उत्तर:

  • यूरोपीय व्यापारी मछली एवं फर को व्यापारिक माल समझते थे। वे इसे बेचकर अधिक मुनाफा कमाना चाहते थे।
  • अमरीका के मूल निवासी चीज़ों के आदान-प्रदान को दोस्ती में दिए गए उपहार समझते थे।

प्रश्न 13.
अमरीकियों के लिए ‘फ्रंटियर’ के क्या मायने थे ?
उत्तर:
यूरोपियों द्वारा जीती गई एवं खरीदी गई भूमि के कारण विस्तार होता रहता था। इस कारण अमरीका की पश्चिमी सीमा पीछे खिसकती रहती थी। इस कारण अमरीका के मूल निवासियों को भी पीछे हटने के लिए बाध्य होना पड़ता था। वे राज्य की जिस सीमा तक पहुँच जाते थे उसे फ्रंटियर कहा जाता था।

प्रश्न 14.
19वीं शताब्दी में ब्रिटेन एवं फ्रांस के लोग अमरीका क्यों आए ?
उत्तर:
ब्रिटेन एवं फ्रांस में यह परंपरा थी कि केवल बड़े पुत्र को ही संपत्ति का अधिकार मिलता था। छोटे पुत्र संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे। अतः ऐसे लोग संपत्ति की तलाश में 19वीं शताब्दी में अमरीका में आए।

प्रश्न 15.
यूरोपियों ने संयुक्त राज्य अमरीका में खेती के विकास के लिए कौन-से दो पग उठाए ?
उत्तर:

  • उन्होंने यहाँ जंगलों की सफाई की।
  • उन्होंने 1873 ई० में खेतों के चारों ओर कंटीली तारें लगा दी ताकि फ़सलों को जानवरों द्वारा सुरक्षित रखा जा सके।

प्रश्न 16.
दक्षिणी एवं उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के बीच के फर्कों से संबंधित किसी भी बिंदु पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी अमरीका के लोग बड़े पैमाने पर खेती करते थे जबकि उत्तरी अमरीका के लोग ऐसा नहीं करते थे। इसके चलते उत्तरी अमरीका के लोग दक्षिणी अमरीका के लोगों की तरह किसी विशाल साम्राज्य का गठन नहीं कर सके।

प्रश्न 17.
यूरोपवासियों ने संयुक्त राज्य अमरीका में मूल निवासियों को बेदखल करने के कौन-से ढंग अपनाए ?
उत्तर:

  • उन्हें अपने मूल स्थान से पीछे हटने के लिए प्रेरित किया जाता अथवा धमकाया जाता था।
  • मूल निवासियों की जमीनों को बहुत कम मूल्य पर खरीदा जाता था।
  • मूल निवासियों की जमीनों पर यूरोपवासियों ने धोखे से कब्जा कर लिया।

प्रश्न 18.
चिरोकी कौन थे ? उनके साथ क्या अन्याय किया जा रहा था ?
उत्तर:

  • रोकी संयुक्त राज्य अमरीका के जॉर्जिया नामक राज्य का एक कबीला था।
  • उन्हें अंग्रेजों की जीवन शैली सीखने के बावजूद सभी प्रकार के नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया था।

प्रश्न 19.
यूरोपीय किस आधार पर संयुक्त राज्य अमरीका के मूल निवासियों की बेदखली को उचित ठहराते हैं ?
उत्तर:

  • वे बहुत आलसी थे। इसलिए वे बाज़ार के लिए उत्पादन करने में अपनी शिल्पकला का प्रयोग नहीं करते हैं।
  • वे अंग्रेज़ी नहीं सीखते एवं न ही ढंग के वस्त्र पहनते हैं।
  • वे ज़मीन का अधिकतम प्रयोग करना नहीं जानते हैं।

प्रश्न 20.
रिज़र्वेशंस से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
उत्तरी अमरीका में मूल निवासियों को छोटे-छोटे प्रदेशों में सीमित कर दिया गया था। यह प्रायः ऐसी ज़मीन होती थी जिनके साथ उनका पहले कोई नाता नहीं होता था। इन ज़मीनों को रिज़र्वेशंस कहा जाता था।

प्रश्न 21.
‘गोल्ड रश’ से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
उत्तरी अमरीका में ‘गोल्ड रश’ क्या था ?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को इस बात की आशा थी कि उत्तरी अमरीका में भी सोने के भंडार हैं। 1849 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलिफ़ोर्निया में सोने के कुछ चिन्ह मिले। इस कारण यूरोपियों में अमरीका पहुँचने की आपाधापी फैल गयी। इसे गोल्ड रश का नाम दिया गया।

प्रश्न 22.
गोल्ड रश संयुक्त राज्य अमरीका के लिए किस प्रकार एक वरदान सिद्ध हुआ ?
उत्तर:

  • संपूर्ण संयुक्त राज्य अमरीका में रेलवे लाइनों का निर्माण किया गया।
  • इस कार्य के लिए हजारों श्रमिकों को रोजगार मिला।
  • इससे उद्योगों को एक नया प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 23.
उत्तरी अमरीका में उद्योगों के विकास के कौन-से दो प्रमुख उद्देश्य थे ?
उत्तर:

  • रेलवे के लिए साज-सामान बनाना ताकि दूर-दूर के स्थानों को उसके द्वारा जोड़ा जा सके।
  • ऐसे यंत्रों का निर्माण करना जिनसे बड़े पैमाने पर खेती की जा सके।

प्रश्न 24.
संयुक्त राज्य अमरीका में जंगली भैंसों को किस नाम से जाना जाता था ? उनका कब तक पूरा सफ़ाया कर दिया गया ?
उत्तर:

  • संयुक्त राज्य अमरीका में जंगली भैंसों को बाइसन के नाम से जाना जाता था।
  • उनका 1890 ई० तक पूरी तरह उन्मूलन कर दिया गया।

प्रश्न 25.
संयुक्त राज्य अमरीका ने इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट कब पारित किया ? इसका उद्देश्य क्या था ?
अथवा
1934 ई० का इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट क्या था ?
उत्तर:

  • संयुक्त राज्य अमरीका ने इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1934 ई० में पारित किया।
  • इसका उद्देश्य रिज़र्वेशंस में रहने वाले मूल निवासियों को जमीन खरीदने एवं ऋण लेने का अधिकार प्रदान करना था।

प्रश्न 26.
डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइटस नामक दस्तावेज़ कब तैयार किया गया था ? इसका महत्त्व क्या था ?
उत्तर:

  • डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइटस नामक दस्तावेज़ 1954 ई० में तैयार किया गया था।
  • इसमें मूल निवासियों द्वारा यह कहा गया था कि वे संयुक्त राज्य अमरीका की नागरिकता को इस शर्त पर स्वीकार करेंगे कि उनके न तो रिज़र्वेशंस वापस लिए जाएँगे तथा न ही उनकी परंपराओं में हस्तक्षेप किया जाएगा।

प्रश्न 27.
टॉरस स्ट्रेट टापूवासी कौन थे ?
उत्तर:
टॉरस स्ट्रेट टापूवासी ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में रहने वाला एक विशाल समूह है। उनके लिए ऐबॉरिजिनी शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वे कहीं और से आए थे एवं उनकी नस्ल भी अलग है।

प्रश्न 28.
कैप्टन कुक कौन था ?
उत्तर:

  • वह इंग्लैंड का नाविक था।
  • वह 1770 ई० में ऑस्ट्रेलिया के टापू बॉटनी बे पहुंचा था।

प्रश्न 29.
ऑस्ट्रेलिया पहुँचने वाला प्रथम यात्री कौन था ? वह किस देश से संबंधित था ? वह ऑस्ट्रेलिया कब पहुँचा था ?
उत्तर:

  • ऑस्ट्रेलिया पहुँचने वाला प्रथम यात्री विलेम जांस था।
  • वह डच (हालैंड) देश से संबंधित था।
  • वह 1606 ई० में ऑस्ट्रेलिया पहुंचा था।

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प्रश्न 30.
1770 ई० में इंग्लैंड का कौन-सा नाविक ऑस्ट्रेलिया के किस टापू में पहुँचा था ? उसका क्या नाम रखा गया ?
उत्तर:

  • 1770 ई० में इंग्लैंड का नाविक जेम्स कुक ऑस्ट्रेलिया के टापू बॉटनी बे पहुंचा था।
  • इस टापू का नाम न्यू साउथ वेल्स रखा गया।

प्रश्न 31.
ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटेन ने अपनी प्रथम बस्ती कहाँ तथा कब स्थापित की ? इसका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटेन ने अपनी प्रथम बस्ती 1788 ई० में सिडनी में स्थापित की।
  • यहाँ ब्रिटेन के अपराधियों को देश निकाले का दंड देकर भेजा जाता था।

प्रश्न 32.
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति ब्रिटिशों का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति ब्रिटिशों का आरंभ में मैत्रीपूर्ण दृष्टिकोण था। मूल निवासी ब्रिटिशों की यथा संभव सहायता करते थे। 1779 ई० में ब्रिटिश नाविक की हवाई में किसी आदिवासी द्वारा हत्या कर दिए जाने के कारण उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन आ गया एवं उनके प्रति कठोर रवैया अपनाया।

प्रश्न 33.
यूरोपवासियों ने ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास के लिए कौन-से महत्त्वपूर्ण पग उठाए ?
उत्तर:

  • यहाँ भेड़ों के पालन के लिए विशाल फार्म बनाए गए।
  • यहाँ कृषि के विकास के लिए जंगलों की सफाई की गई।
  • यहाँ मदिरा बनाने हेतु अंगूर के विशाल बाग लगाए गए।

प्रश्न 34.
चीनी अप्रवासियों के प्रति ऑस्ट्रेलिया ने क्या नीति अपनाई ?
उत्तर:
1974 ई० तक ऑस्ट्रेलिया ने चीनी अप्रवासियों के प्रति कड़ी नीति अपनाई। उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए थे। 1974 ई० में उन्हें ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश की अनुमति दे दी गई।

प्रश्न 35.
किसे तथा कब ऑस्ट्रेलिया की राजधानी बनाया गया ?
उत्तर:
कैनबरा को ऑस्ट्रेलिया की राजधानी 1911 ई० में बनाया गया।

प्रश्न 36.
इतिहास की किताबों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शामिल क्यों नहीं किया गया था ?
उत्तर:
इतिहास की किताबों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को इसलिए शामिल नहीं किया गया था क्योंकि यूरोपवासी उनके प्रति शत्रुता की भावना रखते थे। उन्होंने अपनी किताबों पर यह दिखाने का प्रयास किया कि वहाँ के मूल निवासियों की न तो कोई परंपरा है एवं न ही कोई इतिहास।

प्रश्न 37.
डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर ने कब तथा किस पुस्तक की रचना की ? इसका विषय क्या था ?
उत्तर:

  • डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर ने 1968 ई० में दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस नामक पुस्तक की रचना की।
  • इसका विषय यूरोपवासियों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृति को जानने के लिए जागृति उत्पन्न करना था।

प्रश्न 38.
बहुसंस्कृतिवाद नीति से आपका क्या अभिप्राय है ? ऑस्ट्रेलिया ने इस नीति को कब अपनाया ?
उत्तर:

  • बहुसंस्कृतिवाद की नीति से अभिप्राय ऐसी नीति से है जिसमें मूल निवासियों, यूरोप एवं एशिया के अप्रवासियों की संस्कृति को बराबर का सम्मान दिया जाता था।
  • ऑस्ट्रेलिया ने इस नीति को 1974 ई० में अपनाया।

प्रश्न 39.
टेरा न्यूलिअस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:

  • टेरा न्यूलिअस नीति से अभिप्राय ऐसी भूमि से था जो किसी की भी नहीं है।
  • ऑस्ट्रेलिया ने इस नीति का अंत 1992 ई० में किया था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
कनाडा के कितने प्रतिशत क्षेत्र में वन हैं ?
उत्तर:
40 प्रतिशत।

प्रश्न 2.
कनाडा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्योग कौन-सा है ?
उत्तर:
मछली उद्योग।

प्रश्न 3.
उत्तरी अमरीका के सबसे प्रथम निवासी किस रास्ते से आए थे ?
उत्तर:
बेरिंग स्ट्रेट्स।

प्रश्न 4.
उत्तरी अमरीका के जंगली भैंसों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
बाइसन।

प्रश्न 5.
क्या उत्तरी अमरीका के मूल निवासी ज़मीन पर अपनी व्यक्तिगत मलकियत जताते थे ?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 6.
उत्तरी अमरीका में कबीलों में आपसी समझौता होने पर वे किसका आदान-प्रदान करते थे ?
उत्तर:
वेमपुम बेल्ट का।

प्रश्न 7.
जॉन कैबोट न्यूफाऊँडलैंड कब पहुँचा ?
उत्तर:
1497 ई० में।

प्रश्न 8.
अंग्रेजों ने वर्जीनिया को अपना उपनिवेश कब बनाया ?
उत्तर:
1607 ई० में।

प्रश्न 9.
विलियम वड्सवर्थ कौन था ?
उत्तर:
इंग्लैंड का एक महान् कवि।

प्रश्न 10.
अमरीका के किस राष्ट्रपति ने उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के उन्मूलन को सही बताया ?
उत्तर:
थॉमस जैफ़र्सन ने।

प्रश्न 11.
उत्तरी अमरीका में रोएँदार खाल प्राप्त करने के लिए यूरोपीय किस जानवर को बड़ी संख्या में मार रहे थे ?
उत्तर:
उदबिलाव को।

प्रश्न 12.
ब्रिटेन ने अमरीका में कितने उपनिवेशों की स्थापना की थी ?
उत्तर:
13.

प्रश्न 13.
अमरीका के उपनिवेशों ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्ति की घोषणा कब की ?
उत्तर:
1776 ई० में।

प्रश्न 14.
संयुक्त राज्य अमरीका ने फ्रांस से लुइसियाना को कब खरीदा था ?
उत्तर:
1803 ई० में।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

प्रश्न 15.
संयुक्त राज्य अमरीका ने 1867 ई० में अलास्का को किस से खरीदा था ?
उत्तर:
रूस से।

प्रश्न 16.
अमरीकी फ्रंटियर का अंत कब हुआ ?
उत्तर:
1892 ई० में।

प्रश्न 17.
अमरीका में खेती के लिए कंटीले तारों का प्रयोग कब शुरू हुआ ?
उत्तर:
1873 ई० में।

प्रश्न 18.
अमरीका में दास प्रथा के अंत के लिए किसने उल्लेखनीय भूमिका निभाई ?
उत्तर:
अब्राहम लिंकन ने।

प्रश्न 19.
चिरोकी कहाँ के निवासी थे ?
उत्तर:
जॉर्जिया के।

प्रश्न 20.
चिरोकियों का उन्मूलन का सफर किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
आँसुओं की राह।

प्रश्न 21.
कनाडा में किन्होंने 1869 ई० से 1885 ई० के दौरान विद्रोह का झंडा बुलंद किया ?
उत्तर:
मेटिसों ने।

प्रश्न 22.
गोल्ड रश कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
1849 ई० में।

प्रश्न 23.
कनाडा में रेलवे का निर्माण कब पूरा हुआ ?
उत्तर:
1885 ई० में।

प्रश्न 24.
1928 ई० में किसकी अध्यक्षता में मूल निवासियों की समस्याओं को जानने के लिए एक सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ ?
उत्तर:
लेवाइस मेरिअम।

प्रश्न 25.
इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट कब पारित हुआ था ?
उत्तर:
1934 ई० में।

प्रश्न 26.
अमरीकी मूल निवासियों के अधिकारों को सरकार द्वारा कब स्वीकृति दी गई ?
उत्तर:
1982 ई० में।

प्रश्न 27.
ऑस्ट्रेलिया में आदिमानव कब पहुँचा ?
उत्तर:
40,000 वर्ष पहले।

प्रश्न 28.
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
ऐबॉरिजिनीज।

प्रश्न 29.
कौन-सा डच यात्री 1606 ई० में सर्वप्रथम ऑस्ट्रेलिया पहुँचा ?
उत्तर:
विलेम जांस।

प्रश्न 30.
किस वर्ष डच यात्री ए० जे० तास्मान ऑस्ट्रेलिया पहुँचा ?
उत्तर:
1642 ई० में।

प्रश्न 31.
जेम्स कुक बॉटनी बे कब पहुँचा था ?
उत्तर:
1770 ई० में।

प्रश्न 32.
जेम्स कुक ने बॉटनी बे का नाम क्या रखा ?
उत्तर:
न्यू साउथ वेल्स।

प्रश्न 33.
ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया में अपनी प्रथम बस्ती कहाँ स्थापित की ?
उत्तर:
सिडनी में।

प्रश्न 34.
किस घटना के चलते यूरोपवासियों एवं ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के संबंधों में बिगाड़ आ गया ?
उत्तर:
जेम्स कुक की हत्या के कारण।

प्रश्न 35.
ऑस्ट्रेलिया में बड़ी संख्या में किन भेड़ों को पाला जाता था ?
उत्तर:
मैरिनो भेड़।

प्रश्न 36.
किस वर्ष तक गैर-गोरों को ऑस्ट्रेलिया से बाहर रखने की नीति अपनाई गई ?
उत्तर:
1974 ई० तक।

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प्रश्न 37.
1911 ई० में किसे ऑस्ट्रेलिया की राजधानी घोषित किया गया ?
उत्तर:
कैनबरा।

प्रश्न 38.
दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस का लेखक कौन था ?
उत्तर:
डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर।

प्रश्न 39.
हेनरी रेनॉल्डस की प्रसिद्ध रचना का नाम क्या था ?
उत्तर:
व्हाई वरंट वी टोल्ड।

प्रश्न 40.
ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने बहु-संस्कृतिवाद की नीति को कब अपनाया ?
उत्तर:
1974 ई० में।

प्रश्न 41.
ऑस्ट्रेलिया ने टेरा न्यूलिअस नीति के अंत की घोषणा कब की ?
उत्तर:
1992 ई० में।

रिक्त स्थान भरिए

1. उत्तरी अमेरिका के सबसे प्रथम निवासी . …………….. वर्ष पूर्व एशिया से आए थे।
उत्तर:
30,000

2. उत्तरी अमेरिका के सबसे प्रथम निवासी ………………. के मार्ग से आए।
उत्तर:
बेरिंग स्ट्रेट्स

3. उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी जिन जंगली भैंसों का शिकार करते थे उन्हें ………………. कहते थे।
उत्तर:
बाइसन

4. अंग्रेजों ने प्लाइमाउथ की खोज ……………….. में की।
उत्तर:
1620 ई०

5. अमेरिका द्वारा कंटीली तारों की खोज ………………. में की गई।
उत्तर:
1873

6. संयुक्त राज अमेरिका में ……………….. ई० में दास प्रथा का अंत किया गया।
उत्तर:
1865

7. संयुक्त राज अमेरिका में दास प्रथा का अंत ………………. के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप हुआ।
उत्तर:
अब्राहम लिंकन

8. 1849 ई० में संयुक्त राज्य अमेरिका के ……………….. राज्य में सोने के कुछ चिह्न प्राप्त हुए थे।
उत्तर:
कैलीफोर्निया

9. आस्ट्रेलिया की खोज ………………. ने की थी।
उत्तर:
विलेम जांस

10. आस्ट्रेलिया की खोज ………………. ई० में की गई थी।
उत्तर:
1606

11. 1788 ई० में ब्रिटेन में स्थापित हुई प्रथम बस्ती का नाम ……………….. था।
उत्तर:
सिडनी

12. ऑस्ट्रेलिया में ……………….. नामक भेड़ों को अत्यधिक पाला जाता था।
उत्तर:
मैरिनो

13. 1911 ई० में ऑस्ट्रेलिया की राजधानी ……………….. को बनाया गया।
उत्तर:
कैनबरा

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14. कैनबरा को ऑस्ट्रेलिया की राजधानी ……………….. ई० में बनाया गया।
उत्तर:
1911

15. ……………….. में ऑस्ट्रेलिया द्वारा टेरा न्यूलिअस नीति का त्याग कर दिया गया।
उत्तर:
1992 ई०

16. ‘दि ग्रेट आस्ट्रेलियन साइलेंस’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना ……………. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
डब्ल्यू. ई० एच० स्टैनर

17. ‘व्हाई वरंट वी टोल्ड’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना ………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
हेनरी रेनॉल्डस

18. आस्ट्रेलिया में ‘राष्ट्रीय क्षमा याचना दिवस’ मनाने की घोषणा ……… . में की गई।
उत्तर:
1999 ई०

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. उत्तरी अमरीका के पश्चिम क्षेत्र में कौन-सा मरुस्थल स्थित है ?
(क) मिसीसिपी
(ख) अरिज़ोना
(ग) ओहियो
(घ) अप्पालाचियाँ।
उत्तर:
(ख) अरिज़ोना

2. कनाडा के कितने प्रतिशत क्षेत्र में वन हैं ?
(क) 20%
(ख) 30%
(ग) 40%
(घ) 50%.
उत्तर:
(ग) 40%

3. निम्नलिखित में से कौन-सी फ़सल उत्तरी अमरीका की प्रमुख फ़सल नहीं है ?
(क) कपास
(ख) मकई
(ग) गेहूँ
(घ) फल।
उत्तर:
(क) कपास

4. उत्तरी अमरीका में जलवायु में स्थिरता कब आई ?
(क) एक हजार वर्ष पूर्व
(ख) दो हज़ार वर्ष पूर्व
(ग) तीन हजार वर्ष पूर्व ।
(घ) पाँच हजार वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(घ) पाँच हजार वर्ष पूर्व।

5. उत्तरी अमरीका के लोग किसके माँस का अधिक प्रयोग करते थे ?
(क) बाइसन
(ख) लामा
(ग) अल्पाका
(घ) भेड़।
उत्तर:
(क) बाइसन

6. उत्तरी अमरीका के कबीले आपसी समझौता होने पर किस वस्तु का आदान-प्रदान करते थे ?
(क) वेमपुम बेल्ट का
(ख) चमड़े की बेल्ट का
(ग) फलों का
(घ) फूलों का।
उत्तर:
(क) वेमपुम बेल्ट का

7. एंड्रिउ जैक्सन किस देश के राष्ट्रपति थे
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) फ्राँस
(घ) अमेरिका।
उत्तर:
(घ) अमेरिका।

8. अमरीका स्वतंत्र देश कब बना ?
(क) 1776 ई० में
(ख) 1779 ई० में
(ग) 1786 ई० में
(घ) 1789 ई० में।
उत्तर:
(क) 1776 ई० में

9. रूसो किस देश का निवासी था ?
(क) अमरीका
(ख) इंग्लैंड
(ग) फ्राँस
(घ) चीन।
उत्तर:
(ग) फ्राँस

10. अमरीकी फ्रंटीयर का अंत किस वर्ष हुआ ?
(क) 1803 ई० में
(ख) 1852 ई० में
(ग) 1892 ई० में
(घ) 1902 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1892 ई० में

11. किस शताब्दी में यूरोपीय लोग संयुक्त राज्य अमरीका में आकर बसने लगे थे ?
(क) 15वीं शताब्दी में
(ख) 17वीं शताब्दी में
(ग) 18वीं शताब्दी में
(घ) 19वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(घ) 19वीं शताब्दी में।

12. संयुक्त राज्य अमरीका में दास प्रथा का अंत कब हुआ ?
(क) 1861 ई० में
(ख) 1865 ई० में
(ग) 1867 ई० में
(घ) 1875 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1865 ई० में

13. संयुक्त राज्य अमरीका से मूल निवासियों की बेदखली के लिए यूरोपवासियों ने कौन-सा ढंग अपनाया ?
(क) उन्हें हटने के लिए प्रेरित किया गया
(ख) उन्हें हटने के लिए धमकाया गया
(ग) उन्होंने मूल निवासियों के साथ धोखा किया
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

14. चिरोकी कहाँ के निवासी थे ?
(क) कुज़को के
(ख) जॉर्जिया के
(ग) अलास्का के
(घ) लुइसियाना के।
उत्तर:
(ख) जॉर्जिया के

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

15. किनके सफर की तुलना ‘आँसुओं की राह’ से की गई ?
(क) मार्को पोलो की
(ख) चिरोकियों की
(ग) मेटिसों की
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) चिरोकियों की

16. कनाडा कब स्वयत राज्यों का एक संघ बना ?
(क) 1837 ई० में
(ख) 1847 ई० में
(ग) 1857 ई० में
(घ) 1867 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1867 ई० में।

17. ‘कनाडा-इंडियस एक्ट’ कब. पास हुआ था ?
(क) 1717 ई० में
(ख) 1749 ई० में
(ग) 1856 ई० में
(घ) 1876 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1876 ई० में।

18. ये शब्द किसने कहे, “पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकते हैं नया गणराज्य किसी एक्सप्रैस की गति से दौड़ रहा है।”
(क) जॉन मार्शल ने
(ख) एंड्रिउ जैकसन ने
(ग) एंड्रिउ कार्नेगी ने
(घ) थॉमस जैफ़सन ने।
उत्तर:
(ग) एंड्रिउ कार्नेगी ने

19. इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट कब पास हुआ ?
(क) 1930 ई० में
(ख) 1934 ई० में
(ग) 1936 ई० में
(घ) 1940 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1934 ई० में

20. 1934 ई० के इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट के अधीन उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों को कौन-सा अधिकार दिया गया ?
(क) वोट डालने का
(ख) संपत्ति खरीदने के
(ग) राष्ट्रपति पद के चुनाव का
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) संपत्ति खरीदने के

21. डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइट्स एक्ट कब पारित किया गया ?
(क) 1924 ई० में
(ख) 1934 ई० में
(ग) 1954 ई० में
(घ) 1982 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1954 ई० में

22. ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी जिस प्रदेश में रहते थे, वह कहलाता था
(क) टॉरस स्ट्रेट टापूवासी
(ख) बेरिंग स्ट्रेट्स टापूवासी
(ग) क्यूबेक टापूवासी
(घ) वर्जीनिया टापूवासी।
उत्तर:
(क) टॉरस स्ट्रेट टापूवासी

23. ऑस्ट्रेलिया की खोज किसने की ?
(क) कोलंबस ने
(ख) ए० जे० तास्मान ने
(ग) विलेम जांस ने
(घ) फ्रांसीसिको पिज़ारो ने।
उत्तर:
(ग) विलेम जांस ने

24. जेम्स कुक किस देश का प्रसिद्ध नाविक था ?
(क) ऑस्ट्रेलिया का
(ख) इंग्लैंड का
(ग) पुर्तगाल का
(घ) डच का।
उत्तर:
(ख) इंग्लैंड का

25. आयरलैंड किस देश का उपनिवेश था ?
(क) अमेरिका
(ख) फ्राँस
(ग) इंग्लैंड
(घ) जर्मनी।
उत्तर:
(ग) इंग्लैंड

26. इंग्लैंड ने अपनी प्रथम बस्ती ऑस्ट्रेलिया में कहाँ स्थापित की थी ?
(क) बॉटनी बे में
(ख) न्यू साउथ वेल्स में
(ग) सिडनी में
(घ) तस्मानिया में।
उत्तर:
(ग) सिडनी में

27. ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कहाँ है ?
(क) सिडनी
(ख) कैनबरा
(ग) मेलबोर्न
(घ) डरबन।
उत्तर:
(ख) कैनबरा

28. ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा कब बनाई गई ?
(क) 1880 में
(ख) 1899 में
(ग) 1903 में
(घ) 1911 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1911 ई० में।

29. डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम क्या था ?
(क) व्हाई वरंट वी टोल्ड
(ख) दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस
(ग) ऑन प्लेजर
(घ) दि रिवल्यूशनिबस।
उत्तर:
(ख) दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस

30. ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने बहु-संस्कृतिवाद की नीति को कब अपनाया ?
(क) 1968 ई० में
(ख) 1970 ई० में
(ग) 1972 ई० में
(घ) 1974 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1974 ई० में।

31. ज्यूडिथ राइट कौन थी ?
(क) ऑस्ट्रेलिया की लेखिका
(ख) फ्रांस की लेखिका
(ग) पुर्तगाल की विद्वान्
(घ) ब्रिटेन की कलाकार।
उत्तर:
(क) ऑस्ट्रेलिया की लेखिका

32. इंग्लैंड ने अपनी प्रथम बस्ती ऑस्ट्रेलिया में कहाँ स्थापित की थी ?
(क) बॉटनी बे में
(ख) न्यू साउथ वेल्स में
(ग) सिडनी में
(घ) तस्मानिया में।
उत्तर:
(ग) सिडनी में

33. ‘हमें बताया क्यों नहीं गया’ का लेखक कौन है ?
(क) कैप्टन कुक
(ख) हेनरी रेनॉल्डस
(ग) एडम स्मिथ
(घ) टेकुमेस।
उत्तर:
(ख) हेनरी रेनॉल्डस

34. ऑस्ट्रेलिया में टेरा न्यूलिअस नीति का अंत कब किया गया ?
(क) 1972 ई० में
(ख) 1982 ई० में
(ग) 1992 ई० में
(घ) 1999 ई० में ।
उत्तर:
(ग) 1992 ई० में

35. ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रीय क्षमायाचना दिवस कब मनाया जाता है ?
(क) 5 मार्च को
(ख) 26 मई को
(ग) 20 अगस्त को
(घ) 19 नवंबर को।
उत्तर:
(ख) 26 मई को

मूल निवासियों का विस्थापन HBSE 11th Class History Notes

→ 17वीं एवं 18वीं शताब्दियों में हालैंड, इंग्लैंड एवं फ्राँस ने उत्तरी अमरीका एवं ऑस्ट्रेलिया में अपने उपनिवेश स्थापित किए। जिस समय ये यूरोपीय वहाँ पहुँचे तो वहाँ के मूल निवासी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बहुत गर्मजोशी से इन यूरोपियों का स्वागत किया। ये मूल निवासी बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे।

→ वे ज़मीन पर अपनी मलकियत का दावा नहीं करते थे। वे उतनी ही फ़सलों का उत्पादन करते जितनी उनके जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक होती थीं। वे प्रमुखतः मछली एवं माँस खाते थे। वे वस्तुओं के किए गए आदान-प्रदान को दोस्ती में दिए गए उपहार समझते थे। दूसरी ओर यूरोपीय व्यापार के उद्देश्य से एवं सोना प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ पहुँचे थे।

→ आरंभ में उन्होंने मूल निवासियों के आगे दोस्ती का हाथ बढ़ाया। मूल निवासी उनके वास्तविक उद्देश्य को भांपने में विफल रहे। धीरे-धीरे जब यूरोपियों की शक्ति में वृद्धि हो गई तो उनका वास्तविक चेहरा मूल निवासियों के सामने आया। इन यूरोपियों ने मूल निवासियों पर अनेक जुल्म किए।

→ उन्हें सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित कर दिया गया। यहाँ तक कि उन्हें अपनी ज़मीनें छोडने के लिए भी बाध्य किया गया। इस प्रकार मल निवासी दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए। मूल निवासियों ने अपने अधिकारों को पाने के लिए अनेक बार विद्रोह किए किंतु उनका दमन कर दिया गया।

→ 20वीं शताब्दी में यूरोपवासियों में मूल निवासियों के प्रति एक नई चेतना उत्पन्न हुई। अतः उत्तरी अमरीका एवं ऑस्ट्रेलिया की सरकारों ने मूल निवासियों की संस्कृति एवं अधिकारों को मान्यता प्रदान की। निस्संदेह यह मूल निवासियों की एक महान् विजय थी।

→ किंतु यह दुःख की बात है कि इस समय तक मूल निवासियों की जनसंख्या बहुत कम रह गई है। वे शहरों में बहुत कम नज़र आते हैं। यहाँ तक कि ये लोग यह भी भूल चुके हैं कि कभी इन देशों के अधिकाँश हिस्से उनके अधीन थे।

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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. अन्तर्राष्ट्रीय श्रृंखला के स्थलाकृतिक मानचित्रों की संख्या कितनी है?
(A) 2,222
(B) 1,822
(C) 2,144
(D) 2,488
उत्तर:
(A) 2,222

2. सर्वे ऑफ इण्डिया का स्थापना वर्ष है-
(A) सन् 1744
(B) सन् 1755
(C) सन् 1764
(D) सन् 1767
उत्तर:
(D) सन् 1767

3. सर्वे ऑफ इण्डिया का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है?
(A) देहरादून में
(B) कोलकाता में
(C) मुम्बई में
(D) इलाहाबाद में
उत्तर:
(A) देहरादून में

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

4. कृषिकृत भूमि उपयोग को प्रदर्शित करने के लिए किस रंग का प्रयोग किया जाता है?
(A) पीला
(B) हल्का हरा
(C) भूरा
(D) लाल
उत्तर:
(A) पीला

5. मानचित्र पर उच्चावच प्रदर्शित करने की प्रचलित विधि है-
(A) हैश्यूर
(B) पहाड़ी छायाकरण
(C) समोच्च रेखाएँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थलाकृतिक मानचित्र क्या होते हैं?
उत्तर:
स्थलाकृतिक मानचित्र वृहत् पैमाने पर बने बहु-उद्देशीय मानचित्र होते हैं जिन पर प्राकृतिक व सांस्कृतिक लक्षणों के विवरण को देखा जा सकता है।

प्रश्न 2.
अन्तर्राष्ट्रीय श्रृंखला के मानचित्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस श्रृंखला के मानचित्रों को 1:1000000 अथवा 1:250000 के मापक पर बनाया जाता है। इनका विस्तार 4° अक्षांश तथा 6° देशान्तर होता है। इन मानचित्रों को वन-टू-वन मिलियन शीट भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
स्थलाकृतिक मानचित्रों पर कौन-कौन से विवरण अंकित होते हैं?
उत्तर:
इन मानचित्रों पर भौतिक और सांस्कृतिक विवरण दिखाए जाते हैं; जैसे उच्चावच, अपवाह तन्त्र, जलीय स्वरूप, प्राकृतिक वनस्पति, बस्तियाँ (गाँव, नगर), मार्ग, सड़कें, रेलमार्ग, भवन, स्मारक, संचार-साधन, सीमाएँ, पूजा-स्थल इत्यादि।

प्रश्न 4.
स्थलाकृतिक मानचित्रों पर भौतिक तथा सांस्कृतिक लक्षणों को किस तरीके (विधि) से दिखाया जाता है?
उत्तर:
रूढ़ चिह्नों द्वारा।

प्रश्न 5.
रूढ़ चिह्न क्या होते हैं?
उत्तर:
वे संकेत व प्रतीक जिनके माध्यम से मानचित्रों पर विभिन्न लक्षण प्रदर्शित किए जाते हैं, रूढ़ चिह्न कहलाते हैं।

प्रश्न 6.
स्थलाकृतिक मानचित्रों पर कौन-से प्रमुख भौगोलिक लक्षण नहीं दिखाए जाते हैं?
उत्तर:
जलवायु, तापमान, वर्षा, मिट्टी के प्रकार, चट्टानें, भू-गर्भ, फसलों के अन्तर्गत भूमि, जनसंख्या इत्यादि तत्त्व स्थलाकृतिक मानचित्रों पर नहीं दिखाए जाते।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

प्रश्न 7.
स्थलाकृतिक मानचित्रों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यह सर्वेक्षण के समय की भू-तल की आकृति को हू बहू मानचित्र पर उतार देता है। अतः इसका उपयोग क्षेत्रीय विकास (Regional Development) के लिए खूब किया जाता है।

प्रश्न 8.
सर्वे ऑफ इण्डिया की स्थापना कब हुई थी? इसका मुख्य कार्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
इस विभाग की स्थापना सन् 1767 में हुई थी। इसका मुख्य कार्यालय देहरादून में है।

प्रश्न 9.
अन्तर्राष्ट्रीय शृंखला के मानचित्रों की कुल संख्या कितनी है?
उत्तर:
2,2221

प्रश्न 10.
अन्तर्राष्ट्रीय श्रृंखला के मानचित्रों का मापक क्या होता है?
उत्तर:
1:1,000,000; इन्हें एक मिलियन मानचित्र कहते हैं।

प्रश्न 11.
भारत एवं निकटवर्ती देशों की श्रृंखला से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ये 4° दक्षिण से 40° उत्तर अक्षांश तथा 44° पूर्व से 104° पूर्व देशान्तर के बीच स्थित क्षेत्र के 106 मानचित्र हैं। इनका मापक 1:1,000,000 (मिलियन) है। इनका विस्तार 4° अक्षांश x 4° देशांतर है।

प्रश्न 12.
स्थलाकृतिक मानचित्र किस मापक पर बना होता है?
उत्तर:
वृहत् मापक पर।

प्रश्न 13.
स्थलाकृतिक मानचित्र किस विभाग द्वारा बनाए जाते हैं?
उत्तर:
भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा।

प्रश्न 14.
भारतीय सर्वेक्षण विभाग का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
देहरादून (उत्तराखंड)।

प्रश्न 15.
भारत के स्थलाकृतिक मानचित्रों की सूची संख्या बताओ।
उत्तर:
40 से 92 तक।

प्रश्न 16.
रूढ़ चिह्नों को मापक के अनुसार क्यों नहीं बनाया जाता?
उत्तर:
मापक के अनुसार बनाने पर अधिकतर लक्षण बहुत छोटे हो जाते हैं।

प्रश्न 17.
स्थलाकृतिक मानचित्रों में किसी क्षेत्र के ढाल का अनुमान कैसे लगता है?
उत्तर:
नदियों की प्रकट दिशा तथा समोच्च रेखाओं से।

प्रश्न 18.
मौसमी नदियों को किस रंग द्वारा प्रदर्शित किया जाता है?
उत्तर:
काले रंग से।

प्रश्न 19.
सड़कों तथा रेलमार्गों के साथ-साथ मिलने वाली बस्तियों का प्रतिरूप कैसा होता है?
उत्तर:
रेखीय प्रतिरूप।

प्रश्न 20.
भू-पत्रकों पर बस्तियों को किस रंग द्वारा दिखाया जाता है?
उत्तर:
लाल रंग से।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थलाकृतिक मानचित्र क्या होता है?
उत्तर:
स्थलाकृतिक मानचित्र समतल और भूगणितीय सर्वेक्षणों पर आधारित ऐसे बहु-उद्देशीय मानचित्र होते हैं जिन्हें वृहत् मापक (Large Scale) पर बनाया जाता है। इन पर प्राकृतिक व सांस्कृतिक विवरण देखे जा सकते हैं; जैसे धरातल, जल-प्रवाह, वनस्पति, गाँव, नगर, सड़कें, नहरें, रेल लाइनें, पूजा स्थल इत्यादि विस्तारपूर्वक रूढ़ चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
स्थलाकृतिक मानचित्रों की उपयोगिता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यदि भू-तल पर वितरित विभिन्न भौतिक एवं सांस्कृतिक स्वरूपों में पाए जाने वाले अंतर्संबन्धों (Inter-relationships) का विश्लेषण और व्याख्या करनी हो तो स्थलाकृतिक मानचित्रों से बढ़िया और कोई साधन नहीं है। भौगोलिक अध्ययन के अतिरिक्त ये मानचित्र सैनिक गतिविधियों, प्रशासन, नियोजन, शोध, यात्रा तथा अन्वेषण के लिए भी उपयोगी होते हैं। रक्षा विशेषज्ञों का ऐसा कहना है कि युद्ध की सफलता सेना अधिकारियों द्वारा उस क्षेत्र के स्थलाकृतिक मानचित्रों के गहन अध्ययन पर निर्भर करती है क्योंकि ये मानचित्र भूमि के चप्पे-चप्पे की जानकारी देते हैं। इससे सम्भावित आक्रमण और सुरक्षित स्थानों का अन्दाजा हो जाता है।

प्रश्न 3.
भारत और निकटवर्ती देशों की मानचित्र शृंखला का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत और निकटवर्ती देशों के मानचित्र निम्नलिखित प्रणालियों में तैयार किए गए हैं-
1. एक मिलियन शीट या डिग्री शीट-इस शृंखला के मानचित्रों को 1:1,000,000 के मापक पर बनाया जाता है तथा इनका विस्तार 4° अक्षांश तथा 4° देशान्तर होता है।

2. चौथाई इंच प्रति मील शृंखला-इनका मापक \(\frac { 1 }{ 4 }\) इंच : 1 मील अथवा 1″ : 4 मील या 1:253440 होता है। इसलिए इनको चौथाई इंच शीट या डिग्री शीट भी कहा जाता है। इनका विस्तार 1° अक्षांश से 1° देशान्तर होता है।

3. आधा इंच प्रति मील श्रृंखला-इनका मापक 1/2″ : 1 मील या 1″ : 2 मील या 1:126720 होता है। इनका अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार आधा डिग्री या 30′ होता है।

4. एक इंच प्रति मील शृंखला-इन मानचित्रों का मापक 1 इंच : 1 मील अथवा 1:63360 होता है तथा इनका अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार 15′ होता है।

5. 1:25,000 मापक की शृंखला-इन्हें चौथाई डिग्री शीट वाले मानचित्र भी कहा जाता है। इनका मापक 1:50,000 होता है। इनका अक्षांशीय विस्तार 5′ तथा देशान्तरीय विस्तार 7V’ होता है।

प्रश्न 4.
उच्चावच को प्रदर्शित करने की विधियों के नाम बताइए।
उत्तर:
मानचित्र पर भू-तल के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों का चित्रण भूगोल का एक अभिन्न अंग है। धरातल पर कहीं पर्वत, पठार, समतल मैदान तथा घाटियाँ हैं। अतः धरातलीय उच्चावच को प्रदर्शित करना भूगोलवेत्ता का महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसको प्रदर्शित करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-

  • हैश्यूर (Hachures)
  • स्थानिक ऊँचाइयाँ, तल चिह्न एवं त्रिकोणमितीय स्टेशन (Spot Heights, Bench Marks and Trigonometrical Stations)
  • पहाड़ी छायाकरण (Hill Shading)
  • स्तर वर्ण (Layer Tints)
  • भू-आकृति चिह्न (Physiographic Symbols)
  • समोच्च रेखाएँ (Contours)
  • खंडित रेखाएँ (Form lines)
  • मिश्रित विधियाँ (Mixed Methods) आदि।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

प्रश्न 5.
समोच्च रेखाओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समोच्च रेखाएँ वे कल्पित रेखाएँ हैं जो समुद्र-तल से ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाती है। (A Contour is an imaginary line which joins place of equal altitude above the sea level.) अतः 200 मीटर वाली समोच्च रेखा का तात्पर्य इस समोच्च रेखा से है जो समुद्र की सतह से 200 मीटर वाले स्थानों को मिलाकर खींची जाती है। इन्हें एक निश्चित अन्तराल पर खींचा जाता है।

प्रश्न 6.
समोच्च रेखाओं की क्या विशेषताएँ (लक्षण) हैं?
उत्तर:
समोच्च रेखाओं की निम्नलिखित विशेषताएँ (लक्षण) हैं-

  • समोच्च रेखाएँ मानचित्र में वक्राकार होती हैं।
  • ये समुद्र-तल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाती हैं।
  • ये रेखाएँ तो मिल जाती हैं परन्तु एक-दूसरे को काटती नहीं हैं। ये रेखाएँ जल-प्रपात के स्थान पर मिल जाती हैं, केवल प्रलम्बी भृगु (Over hanging clif) की समोच्च रेखाएँ एक-दूसरे को काटती हैं।
  • किसी स्थान का उच्चावच इन रेखाओं की सहायता से किया जाता है।
  • ये निश्चित उर्ध्वाकार अन्तराल पर खींची जाती हैं। इनके द्वारा दो स्थानों के बीच ऊँचाई का स्पष्ट एवं सही ज्ञान हो जाता है।
  • जब समोच्च रेखाएँ पास-पास हों तो ढाल तीव्र तथा जब इनकी आपसी दूरी अधिक हो तो ढाल मन्द होती है।

प्रश्न 7.
समोच्च रेखाओं के गुण और दोष क्या हैं?
उत्तर:
गुण समोच्च रेखाओं के गुण निम्नलिखित हैं-

  • इस विधि द्वारा विभिन्न भू-आकृतियाँ सरलता से दिखाई जा सकती हैं।
  • इस उच्चावच को दर्शाने की सर्वोत्तम विधि है।
  • समोच्च रेखाओं द्वारा किसी भी क्षेत्र की ऊँचाई तथा ढाल ज्ञात की जा सकती है।
  • यह एक शुद्ध विधि है।

दोष समोच्च रेखाओं के दोष निम्नलिखित हैं-

  • ऊर्ध्वाधर अन्तराल अधिक होने पर छोटी-छोटी भू-आकृतियों को इस विधि द्वारा मानचित्र पर नहीं दर्शाया जा सकता।
  • इस विधि द्वारा पर्वतीय तथा मैदानी क्षेत्रों को साथ-साथ दिखाने में कठिनाई होती है।

प्रश्न 8.
ऊर्ध्वाधर अन्तराल किसे कहते हैं?
उत्तर:
किन्हीं दो समोच्च रेखाओं के मध्य ऊँचाई का जो अन्तर होता है, उसे ऊर्ध्वाधर अन्तराल कहते हैं। (Vertical interval is the difference of height between any two successive contours.) इसे संक्षेप में V.I. कहते हैं। यह हमेशा स्थिर रहता है तथा इसे मीटर तथा फुट में दिखाया जाता है। मानचित्र पर समोच्च रेखाएँ भूरे रंग से 20, 50, 100 तथा 200 मीटर अथवा फुट के अन्तर पर खींची जाती हैं।

प्रश्न 9.
क्षैतिज तुल्यमान किसे कहते हैं?
उत्तर:
दो समोच्च रेखाओं के बीच क्षैतिज दूरी को क्षैतिज तुल्यमान कहते हैं। (Horizontal equivalent is the horizontal distance between any two successive contours.) इसे H.E. से पुकारा जाता है। यह ढाल के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। यदि ढाल अधिक है तो समोच्च रेखाओं के मध्य की दूरी कम होगी और यदि ढाल कम है तो इनके बीच की दूरी अधिक होगी। पर्वतीय क्षेत्रों की समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं। इसलिए ऐसे क्षेत्रों की समोच्च रेखाओं का क्षैतिज तुल्यमान कम तथा मैदानी क्षेत्रों में यह अधिक होता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परिच्छेदिका किसे कहते हैं? परिच्छेदिका खींचने की सचित्र व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परिच्छेदिका अथवा अनुप्रस्थ काट (Profile or Cross-Section)-“समोच्च रेखा मानचित्र पर किसी दी गई पार्श्व रेखा के सहारे भू-तल की बाहरी रूपरेखा को परिच्छेदिका कहते हैं।” इसे अनुप्रस्थ काट अथवा पार्श्व चित्र भी कहते हैं। परिच्छेदिका समझ सकते हैं। मान लीजिए धरातल पर किसी स्थलरूप को एक सरल रेखा के सहारे खड़े तल में ऊपर से नीचे काटकर उसके एक भाग को हटा दिया जाए तो बचे हुए भाग का ऊपरी किनारा या सीमा रेखा उस स्थल की परिच्छेदिका को प्रकट करेगा। जिस सरल रेखा के सहारे स्थलरूप को काटा गया है वह उस परिच्छेदिका की काट-रेखा (Line of Section) कहलाती है। काट-रेखा के बारे में उल्लेखनीय है कि इसे सरल रेखा के रूप में सीधा या तिरछा किसी भी दिशा में खींचा जा सकता है।

परिच्छेदिका खींचना – मान लो एक समोच्च रेखा मानचित्र में AB, CD, EF तथा GH चार समोच्च रेखाएं दी हुई हैं। (चित्र 6.1) तथा AB रेखा के साथ इसकी परिच्छेदिका खींचनी है।

  • सर्वप्रथम A तथा B बिंदुओं को मिलाते हुए एक सरल रेखा इस प्रकार खींचो कि वह समोच्च रेखाओं को C, D, E, F, G तथा H बिंदुओं पर काटे।
  • मानचित्र के नीचे एक अन्य रेखा A B लो जिसकी लंबाई AB रेखा के बराबर हो। यह रेखा परिच्छेदिका की आधार रेखा होगी।
    A तथा B बिंदुओं से नीचे की ओर AA’ तथा BB’ दो लंब गिराओ।
  • इन लंबवत रेखाओं के सहारे आधार रेखा से ऊपर की ओर समान दूरी पर किसी मापनी के अनुसार 200, 300, 400, 500 व 600 मीटर की ऊंचाई दिखाने वाली रेखाएं खींचो जो A B के समानांतर हों। ये रेखाएं ऊर्ध्वाधर अंतराल V.I. को प्रकट करती हैं।
  • अब A व B,C व D, E व F तथा G व H से AA’ व BB’, CC’ व DD’, EE’ व FF’ तथा GG’ व HH क्रमशः 200, 300, 400 तथा 500 मीटर वाली रेखाओं पर लंब गिराओ।
  • A, C, E’,G’, H’, F’, D’ तथा B’ को मिलाने वाली वक्र रेखा परिच्छेदिका का निर्माण करेगी।

परिच्छेदिका खींचते समय क्षैतिज मापक (Horizontal Scale) की तुलना में ऊर्ध्वाधर मापक (Vertical Scale) का 5 से 10 गुना तक परिवर्धन कर लिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि परिच्छेदिका द्वारा ढाल और भू-आकृति की रूपरेखा स्पष्ट और प्रभावशाली ढंग से उभरकर सामने आए।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित भू-आकृतियों को समोच्च रेखाओं द्वारा प्रदर्शित करो तथा इनकी परिच्छेदिका भी खींचो :
(1) समढाल (Uniform Slope)
(2) नतोदर ढाल (Concave Slope)
(3) उन्नतोदर ढाल (Convex Slope)
(4) सीढ़ीनुमा ढाल (Terraced Slope)
(5) विषम ढाल (Undulating Slope)।
उत्तर:
1. समढाल (Uniform Slope)-जिन प्रदेशों में ढाल में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता, ढाल सभी जगह एक जैसा
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 2
ही रहता है अथवा ढाल में शनैःशनैः परिवर्तन आता है, उसे समढाल (Uniform Slope) कहते हैं। इसमें समोच्च रेखाओं के बीच की दूरी बराबर रहती है। (चित्र 6.2)

2. नतोदर ढाल (Concave Slope) पर्वतीय क्षेत्रों में शिखर के तीव्र ढाल तथा गिरीपद क्षेत्र में मन्द ढाल होते हैं। इसलिए शिखर के पास समोच्च रेखाएँ पास-पास तथा गिरीपद के निकट ये दूर-दूर होती हैं। (चित्र 6.3)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 3
3. उन्नतोदर ढाल (Convex Slope)-इसमें ढाल का क्रम नतोदर के ठीक विपरीत होता है। शिखर के निकट ढाल मन्द तथा गिरीपद के निकट तीव्र ढाल होता है। शिखर के निकट समोच्च रेखाएँ दूर-दूर तथा गिरीपद के निकट ये रेखाएँ पास-पास होती हैं। (चित्र 6.4)

4. सीढ़ीनुमा ढाल (Terraced Slope)-इसमें समोच्च रेखाएँ जोड़ों में होती हैं। इसमें कहीं पर ढाल समतल तथा कहीं सीढ़ीनुमा या सोपानी होता है। इसलिए इसमें दो रेखाएँ एक युग्म के रूप में पास-पास होती हैं। (चित्र 6.5)

5. विषम ढाल (Undulating Slope)-इसे तरंगित ढाल भी कहते हैं। इसमें ढाल कहीं तीव्र तथा कहीं मन्द होता है, कहीं पर ढाल नतोदर तथा कहीं उन्नतोदर होता है। एक लहर या तरंग की भाँति विषम ढाल असमान होता है, उसे विषम ढाल कहते हैं। (चित्र 6.6)

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

प्रश्न 3.
समोच्च रेखाओं द्वारा निम्नलिखित भू-आकृतियों का प्रदर्शन करें।
(1) पठार (Plateau)
(2) शंक्वाकार पहाड़ी (Conical Hill)
(3) कटक (Ridge)
(4) स्कन्ध (Spur)
(5) V-आकार की घाटी (V-Shaped Valley)
(6) जलप्रपात (Waterfall)
(7) समुद्री भृगु (Sea Cliff)।
उत्तर:
1. पठार (Plateau)-पठार भू-तल का एक मेजनुमा भू-भाग है, जिसके पार्श्व खड़े ढाल वाले होते हैं। इसीलिए किनारों पर समोच्च रेखाएँ पास-पास तथा मध्यवर्ती भाग समतल होने के कारण नहीं पाई जाती हैं। (चित्र 6.7)

2. शंक्वाकार पहाड़ी (Conical Hill)-यह एक पहाड़ी भू-आकृति है, जिसमें चारों ओर ढाल प्रायः एक समान होता है। समोच्च रेखाएँ समान दूरी पर होती हैं। पहाड़ी त्रिभुजाकार शिखर संकरे तथा आधार चौड़े होते हैं। (चित्र 6.8)

3. कटक (Ridge)-एक ऊँची पहाड़ी जो श्रृंखला के रूप में लम्बाई में विस्तृत हो कटक कहलाती है। यह प्रायः संकरी होती है। इनको प्रायः अण्डाकार समोच्च रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है। इसके किनारों के ढाल तीव्र होते हैं तथा दीर्घवृत्तों वाली समोच्च रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। (चित्र 6.9)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 4
4. स्कन्ध (Spur) उच्च प्रदेशों में निम्न प्रदेशों की ओर एक जिह्वा की भाँति निकली स्थलाकृति को स्कन्ध कहते हैं। इसकी समोच्च रेखाएँ अंग्रेजी के अक्षर V की तरह होती हैं। (चित्र 6.10)

5. V-आकार की घाटी (V-Shaped Valley)-यह नदी द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में बनने वाली महत्त्वपूर्ण स्थलाकृति है, इससे प्रदर्शित समोच्च रेखाओं का आकार V की तरह होता है तथा बाहर से अन्दर को उनका मान कम होता जाता है। नदी की तलहटी के कटाव के कारण घाटी निरन्तर गहरी होती चली जाती है तथा पार्श्व खड़े रहते हैं। (चित्र 6.11)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 5

6. जलप्रपात (Waterfall)-जलप्रपात भी नदी के अपरदन के कारण नदी द्वारा प्रारम्भिक अवस्था में बनने वाली आकर्षक स्थलाकृति है। जब नदी के अपरदन द्वारा कोमल चट्टान कटकर निम्न हो जाती है तो जलप्रपात का निर्माण होता है। जहाँ पर पानी गिरता है वहाँ दो या दो से अधिक समोच्च रेखाएँ आकर मिल जाती हैं क्योंकि ढाल लगभग 90° के आस-पास होता है। (चित्र 6.12)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 6

7. समुद्री भृगु (Sea Cliff)-सागरीय तट के खड़े ढाल वाली चट्टान, जो मुख्य रूप से किसी सागर तट में ऊर्ध्वाधर दिशा में होती है, को भृगु कहते हैं। इसमें कम ऊँचाई दिखाने वाली समोच्च रेखाएँ मिली होती हैं। ये खड़े ढाल को प्रदर्शित करती हैं। उच्च भूमि की समोच्च रेखाएँ दूर-दूर होती हैं। ये मन्द ढाल दर्शाती हैं। (चित्र 6.13)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 7

प्रश्न 4.
भारत में प्रकाशित होने वाले स्थलाकृतिक मानचित्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में प्रकाशित स्थलाकृतिक मानचित्र-
1. अन्तर्राष्ट्रीय शृंखला (International Series)-इस श्रृंखला के मानचित्र 1:1,000,000 मापक पर बनाए गए हैं। 60° उत्तरी व 60° दक्षिणी अक्षांशों के बीच स्थित क्षेत्रों के प्रत्येक मानचित्र का विस्तार 4° अक्षांश तथा 6° देशान्तर है। इस श्रृंखला में पूरे विश्व के 2,222 मानचित्र बनने हैं। इन मानचित्रों को 1/IM या one-to-one million sheets भी कहा जाता है। इनमें ऊँचाई मीटरों में दर्शायी जाती है। यह शृंखला अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के अन्तर्गत बनाई गई है।

2. भारत एवं निकटवर्ती देशों की श्रृंखला (India and Adjacent Countries Series) इस श्रृंखला के मानचित्रों का मापक भी 1:1,000,000 है, परन्तु इसमें प्रत्येक मानचित्र का विस्तार 4° अक्षांश तथा 4° देशान्तर है। इनकी संख्या 1 से 106 तक है जिनके अन्तर्गत भारतीय उपमहाद्वीप के अतिरिक्त ईरान, अफगानिस्तान, म्याँमार, तिब्बत व चीन के कुछ भाग शामिल होते हैं। भारतीय क्षेत्र के मानचित्रों की संख्या 38 है जो क्रम संख्या 40 से 92 के बीच पाए जाते हैं।

इन संख्याओं को सूचक संख्याएँ (Index Number) कहा जाता है। वर्तमान में इस श्रृंखला का प्रकाशन बन्द हो चुका है। इसके बावजूद भी यह श्रृंखला भारत में छपने वाली अन्य सभी शृंखलाओं का आधार है। इस शृंखला के प्रत्येक मानचित्र को 4 डिग्री शीट या एक मिलियन शीट कहते हैं।

3. चौथाई इंच प्रति मील शृंखला (Quarter Inch or Degree Sheets)- 4°x4° शीट जब किसी 4°x 4° शीट अर्थात् एक मिलियन शीट (जैसे 55 या 57 या 73 कोई 24° भी जो भारत व निकटवर्ती देशों की श्रृंखला में आती है) को 16 बराबर स्थलाकृतिक मानचित्रों में बाँटेंगे तो प्रत्येक मानचित्र 1° अक्षांश x1° देशान्तर द्वारा घेरे हुए क्षेत्र को दिखाएगा। अतः ऐसी प्रत्येक शीट को डिग्री शीट या चौथाई इंच शीट कहा जाता है।

इनका मापक \(\frac { 1 }{ 4 }\) इंच : 1 मील अथवा 1 इंच : 4 मील अर्थात् 1:253,440 होता है। (63,360 x 4 = 253,440)। इन मानचित्रों में समोच्च रेखाओं का अन्तराल 250 फुट होता है। इन डिग्री शीटों का अंकन करने के लिए अंग्रेजी A के P से 16 है। तक अक्षरों का प्रयोग किया जाता है; जैसे 55A, 55B, 55C तथा 55D आदि 76° (चित्र 6.14)।
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इन मानचित्रों का नवीन संस्करण मीट्रिक प्रणाली में छापा गया है जिनका मापक 1:250,000 तथा समोच्च रेखाओं का अन्तराल 100 मीटर होता है।

4. आधा इंच प्रति मील श्रृंखला (Half Inch or Half Degree Sheets) जब किसी चौथाई इंच शीट या डिग्री शीट को चार बराबर भागों में बाँटेगें तो इनमें से प्रत्येक आधा डिग्री शीट होगी अर्थात् अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार आधा डिग्री या 30 होगा। इसका मापक \(\frac { 1″ }{ 2 }\) : 1 मील या 1″ : 2 मील अर्थात् 1:126,720 होता है। (63,360 x 2 = 126,720)। इन पत्रकों में समोच्च रेखाओं का अन्तराल 100 फुट होता है। इन चार भागों में प्रत्येक को उसकी दिशानुसार अंकित किया जाता है; जैसे 55\(\frac { P }{ MW }\), 55\(\frac { P }{ NE }\)इत्यादि (चित्र 6.15)। मेट्रिक प्रणाली के अन्तर्गत इन मानचित्रों का मापक 1 : 100,000 रखा गया है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 9
इन मानचित्रों का प्रकाशन अब बन्द हो गया है।

5. एक इंच प्रति मील शृंखला (One Inch or Quarter Degree Sheets)-जब किसी चौथाई इंच या डिग्री शीट (जैसे 55P) को 16 बराबर भागों में बाँटते हैं तो प्रत्येक मानचित्र का 45° अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार 15′ होगा। इन 16 मानचित्रों को 1 से 16 तक संख्याओं द्वारा 30 अंकित किया जाता है; जैसे 55 P/1, 55 P/2, 55 P/3 …… 55 P/16 इत्यादि। इन मानचित्रों का मापक 1 इंच : 1 मील अथवा 1:63,360 तथा समोच्च रेखाओं का अन्तराल 50 फुट होता है। मौद्रिक प्रणाली में बने इस श्रृंखला के नए मानचित्रों का मापक 1:50,000 तथा समोच्च -0761530 4577 रेखाओं का अन्तराल 20 मीटर होता है। (चित्र 6.16)
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6. 1 : 25,000 मापक की श्रृंखला (Series of 1:25000 scale)- स्थलाकृतिक मानचित्रों की यह एक नई श्रृंखला है जिसमें एक इंच या चौथाई डिग्री शीट या 1 : 50,000 मापक वाली शीट (जैसे 55 P/7) को छः बराबर भागों में बाँटा जाता है।
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इसका प्रत्येक भाग 5′ अक्षांशीय तथा 7 – देशान्तीय विस्तार वाला होता है। इन 6 मानचित्रों पर क्रमशः 1, 2, 3, 4, 5 व 6 इस प्रकार लिखा जाता है-55 P/7/1, 55 P/7/2, 55 P/7/6 इत्यादि। इन मानचित्रों को 1:25,000 मानचित्र भी कहा जाता है (चित्र 6.17)।
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रूढ़ चिहन एवं प्रतीक [Conventional Signs and Symbols]
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स्थलाकृतिक मानचित्र HBSE 11th Class Geography Notes

→ स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Maps) यह एक दीर्घमापक पर बनाया गया बहुउद्देशीय मानचित्र है।

→ रूढ़ चिहन (Conventional Signs)-स्थलाकृतिक मानचित्रों पर विभिन्न भौतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों को जिन सर्वमान्य और परम्परागत चिह्नों, संकेतों व प्रतीकों की सहायता से प्रदर्शित किया जाता है, उन्हें रूढ़ चिह्न कहते हैं। समोच्च रेखाएँ (Contours)-समोच्च रेखाएँ वे कल्पित रेखाएँ हैं जो माध्य समुद्र-तल से समान ऊँचाई वाले समीपस्थ स्थानों को मिलाती हैं।

→ ऊर्ध्वाधर अन्तराल (Vertical Interval) किन्हीं दो उत्तरोत्तर समोच्च रेखाओं के बीच लम्बवत् ऊँचाई के अंतर को ऊर्ध्वाधर अन्तराल कहा जाता है।

→ क्षैतिज तुल्यमान (Horizontal Equivalent)-किन्हीं दो उत्तरोत्तर समोच्च रेखाओं के बीच क्षैतिज दूरी को क्षतिज तुल्यमान कहा जाता है।

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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. मानचित्र प्रक्षेप, जो कि विश्व के मानचित्र के लिए न्यूनतम उपयोगी है।
(A) मर्केटर
(B) बेलनी
(C) शंकु
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) बेलनी

2. एक मानचित्र प्रक्षेप, जो न समक्षेत्र हो एवं न ही शुद्ध आकार वाला हो तथा जिसकी दिशा भी शुद्ध नहीं होती है।
(A) शंकु
(B) ध्रुवीय शिराबिंदु
(C) मर्केटर
(D) बेलनी
उत्तर:
(A) शंकु

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

3. एक मानचित्र प्रक्षेप, जिसमें दिशा एवं आकृति शुद्ध होती है, लेकिन ध्रुवों की ओर यह बहुत अधिक विकृत हो जाती है।
(A) बेलनाकार समक्षेत्र
(B) मर्केटर
(C) शंकु
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) मर्केटर

4. जब प्रकाश के स्रोत को ग्लोब के मध्य रखा जाता है, तब प्राप्त प्रक्षेप को कहते हैं-
(A) लंबकोणीय
(B) त्रिविम
(C) नोमॉनिक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) नोमॉनिक

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रक्षेप (Projection) का शाब्दिक अर्थ क्या होता है? उदाहरण देकर समझाएं।
उत्तर:
किसी पारदर्शी (Transparent) कागज़ या फिल्म पर अंकित चित्र, शब्दों या सूत्रों को प्रकाश की सहायता से कुछ दूरी पर स्थित दीवार या पर्दे पर प्रदर्शित करने की क्रिया को प्रक्षेप कहा जाता है। उदाहरणतः सिनेमा के पर्दे पर आने वाले चित्र या शब्द किसी फिल्म पर अंकित होते हैं, जिन्हें Projector की सहायता से पर्दे पर प्रक्षेपित किया जाता है।

प्रश्न 2.
मानचित्र प्रक्षेप को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रकाश अथवा गणितीय विधियों द्वारा ग्लोब की अक्षांश व देशांतर रेखाओं के जाल का कागज़ या किसी समतल सतह पर प्रदर्शन मानचित्र प्रक्षेप कहलाता है।

प्रश्न 3.
प्रक्षेप बनाना क्यों जरूरी होता है?
उत्तर:
ग्लोब से मानचित्र बनाने के लिए कागज़ पर अक्षांश-देशांतर रेखाओं के जाल अर्थात् प्रक्षेप की ज़रूरत पड़ती है।

प्रश्न 4.
विकासनीय और अविकासनीय पृष्ठ क्या होते हैं?
उत्तर:
ऐसे तत्त्व (Surfaces) जिन्हें फैलाकर समतल किया जा सकता है, विकासनीय पृष्ठ या तल कहलाते हैं; जैसे बेलन तथा शंकु। अविकासनीय पृष्ठ वे होते हैं, जिन्हें काटकर समतल रूप में नहीं फैलाया जा सकता, जैसे गोला (Sphere)।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

प्रश्न 5.
“ग्लोब को सर्वगुण संपन्न कहते हैं किंतु मानचित्र को नहीं।” ऐसा क्यों?
उत्तर:
ग्लोब पृथ्वी को शुद्ध रूप से प्रदर्शित करता है, इसलिए सर्वगुण संपन्न माना जाता है। मानचित्र पर पृथ्वी के क्षेत्र, आकार, दिशा और दूरी जैसी विशेषताएं शुद्ध नहीं रह पातीं। इसलिए मानचित्र त्रुटिपूर्ण होता है।

प्रश्न 6.
अक्षांश और अक्षांश रेखाओं में क्या फर्क है?
उत्तर:
किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण की ओर कोणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते हैं। समान अक्षांश वाले स्थानों को मिलाने वाली कल्पित रेखा को अक्षांश रेखा कहते हैं।

प्रश्न 7.
देशांतर और देशांतर रेखा में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
किसी स्थान की प्रधान देशांतर रेखा से पूर्व या पश्चिम की ओर कोणात्मक दूरी को उस स्थान का देशांतर कहते हैं। समान देशांतर वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा या अर्धवृत्त को देशांतर रेखा कहते हैं।

प्रश्न 8.
प्रधान देशांतर रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
लंदन में स्थित ग्रीनिच रॉयल वेधशाला से होकर जाने वाली देशांतर रेखा को 0° देशांतर या प्रधान देशांतर रेखा या प्रधान मध्याह्न रेखा कहा जाता है।

प्रश्न 9.
भारत में किस देशांतर रेखा को मानक देशांतर रेखा कहा जाता है?
उत्तर:
82 1/2° पूर्वी देशांतर।

प्रश्न 10.
गणों के अनुसार प्रक्षेप कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:

  1. शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप
  2. शुद्ध आकृति प्रक्षेप
  3. शुद्ध दिशा प्रक्षेप
  4. शुद्ध दूरी प्रक्षेप।

प्रश्न 11.
रचना विधि के अनुसार प्रक्षेप कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:

  1. बेलनाकार प्रक्षेप
  2. शंक्वाकार प्रक्षेप
  3. शिरोबिंदु प्रक्षेप
  4. रूढ़ प्रक्षेप।

प्रश्न 12.
मापक के अनुसार ग्लोब का अर्धव्यास (r) कैसे निकाला जाता है?
उत्तर:
ग्लोब का अर्धव्यास (r) = प्रदर्शक भिन्न x पृथ्वी का वास्तविक अर्धव्यास।

प्रश्न 13.
इंचों और सेंटीमीटरों में पृथ्वी का वास्तविक अर्धव्यास बताओ।
उत्तर:
इंचों में लगभग 250,000,000 इंच तथा सेंटीमीटरों में 640,000,000 सें०मी०।

प्रश्न 14.
बेलनाकार प्रक्षेप में दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी कैसे ज्ञात करते हैं?
उत्तर:
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 1

प्रश्न 15.
बेलनाकार प्रक्षेप पर किन क्षेत्रों को सही ढंग से दिखाया जा सकता है?
उत्तर:
भूमध्यरेखीय क्षेत्रों को।

प्रश्न 16.
शंक्वाकार प्रक्षेपों में मानक अक्षांश (Standard Parallel) क्या होता है?
उत्तर:
ग्लोब की वह अक्षांश रेखा जिसे कागज़ से बने खोखले शंकु का भीतरी तल स्पर्श करता है, मानक अक्षांश कहलाता है।

प्रश्न 17.
एक मानक अक्षांश वाला शंक्वाकार प्रक्षेप किस क्षेत्र को दिखाने के लिए बढ़िया होता है?
उत्तर:
शीतोष्ण कटिबंधों के कम अक्षांशीय विस्तार तथा अधिक देशांतरीय विस्तार वाले क्षेत्रों के लिए।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

प्रश्न 18.
मर्केटर प्रक्षेप का दूसरा नाम बताइए।
उत्तर:
बेलनाकार समरूप या शुद्ध आकृति प्रक्षेप।

प्रश्न 19.
मर्केटर प्रक्षेप के दो प्रमुख गुण बताइए।
उत्तर:

  1. शुद्ध आकृति (Orthomorphic)
  2. शुद्ध दिशा (True Direction)।

प्रश्न 20.
मर्केटर प्रक्षेप के दो अवगुण (दोष/कमियाँ/सीमाएँ) बताइए।
उत्तर:

  1. ध्रुवों की ओर अक्षांशीय मापक बढ़ने से क्षेत्रफल बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
  2. इस पर ध्रुवों पर प्रदर्शन नहीं हो सकता।

प्रश्न 21.
लोक्सोड्रोम या एकदिश नौपथ क्या होता है?
उत्तर:
मर्केटर प्रक्षेप पर स्थिर दिक्मान की रेखा (Line of Constant Bearing) को एकदिश नौपथ कहा जाता है।

प्रश्न 22.
मर्केटर प्रक्षेप पर बृहत वृत का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
भूमध्य रेखा तथा समस्त देशांतर रेखाओं पर बृहत वृत सरल रेखाओं के रूप में होते हैं, जबकि अन्य बृहत वृत वक्राकार होते हैं, जिनके वक्र ध्रुवों की ओर होते हैं।

प्रश्न 23.
मर्केटर प्रक्षेप पर लोक्सोड्रोम का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
सरल रेखा।

प्रश्न 24.
मानक अक्षांश की क्या विशेषता होती है?
उत्तर:
मानक अक्षांश पर मापक शुद्ध होता है।

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा करो-

  1. मानचित्रों में पृथ्वी की गोलाकार आकृति प्रदर्शित करने से पहले ………. रेखाओं का जाल बनाना ज़रूरी होता है।
  2. ……….. पृष्ठ वे होते हैं जिन्हें फैलाकर समतल किया जा सकता है।
  3. ग्लोब एक ……….. पृष्ठ है।
  4. प्रधान मध्याह्न रेखा से पूर्व में ……….. देशांतर रेखाएं और पश्चिम में ……….. देशांतर रेखाएं होती हैं।
  5. ……….. स्थान से गुज़रने वाली देशांतर रेखा प्रधान देशांतर रेखा कहलाती है।
  6. सबसे बड़ी अक्षांश रेखा ……….. होती है।
  7. वह अक्षांश रेखा जिसे कागज़ के खोखले शंकु का भीतरी तल स्पर्श करता है ………. कहलाती है।
  8. सागरीय धाराओं को ……….. प्रक्षेप द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
  9. पूर्व-पश्चिम दिशा में संकरी पट्टी में फैले क्षेत्रों के लिए ……….. प्रक्षेप उपयुक्त होता है।

उत्तर:

  1. अक्षांश व देशांतर
  2. विकासनीय
  3. अविकासनीय
  4. 180, 180
  5. ग्रीनिच
  6. भूमध्य रेखा
  7. मानक अक्षांश
    मर्केटर
  8. एक मानक वाला साधारण शंक्वाकार।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र प्रक्षेप क्या है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मानचित्र प्रक्षेप का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मानचित्र प्रक्षेप को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र प्रक्षेप का अर्थ (Meaning of Map Projection) ग्लोब, पृथ्वी का सबसे अच्छा प्रतिरूप है। यह त्रिविम है। ग्लोब के इसी गुण के कारण महाद्वीपों एवं महासागरों के सही आकार एवं प्रकार को इस पर दिखाया जाता है। यह दिशा एवं दूरी की भी सही-सही जानकारी प्रदान करता है। ग्लोब अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं के द्वारा विभिन्न खंडों में विभाजित होता है। क्षैतिज रेखाएं अक्षांश के समांतरों एवं ऊर्ध्वाधर रेखाएं देशांतर के याम्योत्तरों को दर्शाती हैं। इस जाल को रेखा जाल (Graticule) के नाम से भी जाना जाता है। यह जाल मानचित्रों को बनाने में सहायक होता है। अतः गोलाकार पृष्ठ से अक्षांशों एवं देशांतरों के जाल के समतल सतह पर स्थानांतरण करना मानचित्र प्रक्षेप कहलाता है।

ग्लोब पर देशांतर अर्द्धवृत्त एवं अक्षांश पूर्णवृत्त होते हैं। जब उन्हें समतल सतह पर स्थानांतरित किया जाता है, तब वे सीधी या वक्र प्रतिच्छेदी रेखाएं बनाते हैं। इतना समझ लेने के बाद अब हम मानचित्र प्रक्षेप की परिभाषा दे सकते हैं “गोलाकार पृथ्वी अथवा उसके किसी बड़े भाग का मानचित्र बनाने के लिए प्रकाश अथवा किसी ज्यामितीय विधि के द्वारा कागज़ या किसी समतल सतह पर खींचे गए ग्लोब की अक्षांश-देशांतर रेखाओं का जाल (Graticule) मानचित्र-प्रक्षेप कहलाता है।”

प्रश्न 2.
मानचित्र प्रक्षेप की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ग्लोब के प्रयोग में अनेक दिक्कतें हैं जैसे ग्लोब पर छोटे स्थानों का विस्तृत विवरण नहीं दिखाया जा सकता। इसी प्रकार, ग्लोब पर यदि दो प्राकृतिक प्रदेशों की तुलना करनी हो तो यह काम कठिन हो जाता है। इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि समतल पृष्ठ पर बड़ी मापनी के मानचित्र बनाकर भू-आकारों का सही-सही चित्रण किया जाए।

अब, प्रश्न यह उठता है कि अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं को समतल सतह पर कैसे स्थानांतरित किया जाए। यदि हम एक समतल पृष्ठ को ग्लोब पर चिपकाए, तो यह एक बड़े भाग पर बिना विकृति के सतह के अनुरूप नहीं बैठेगा। ग्लोब के केंद्र से प्रकाश डालने पर प्रक्षेपित छायांकन, ग्लोब पर कागज के स्पर्श बिंदु या स्पर्श रेखा से दूर विकृत हो जाएगा। स्पर्श बिंदु या स्पर्श रेखा से बढ़ती दूरी के साथ-साथ विकृति में वृद्धि हो जाती है। यही कारण है कि मानचित्र पर क्षेत्र (Area), आकार (Shape), दिशा (Direction) और दूरी (Distance) जैसी सभी विशेषताएं उस तरह शुद्ध नहीं रह पातीं जिस तरह वे ग्लोब पर होती हैं। इसका कारण यह है कि ग्लोब एक विकासनीय पृष्ठ नहीं है।

प्रश्न 3.
विकासनीय और अविकासनीय पृष्ठ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ पृष्ठ या तल (Surfaces) ऐसे होते हैं जिन्हें हम फैलाकर समतल नहीं कर सकते और न ही उनके गिर्द बिना मोड़ अथवा बल (Fold) के कागज़ लपेटा जा सकता है। ऐसे पृष्ठों को अविकासनीय पृष्ठ या तल कहते हैं। गोला-(Sphere) एक ऐसा ही तल है (चित्र 5.1 और 5.2)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 2

प्रश्न 4.
मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्व निम्नलिखित हैं
1. पृथ्वी का छोटा रूप-प्रक्षेप को पृथ्वी के मॉडल के रूप में छोटी मापनी की सहायता से कागज की समतल सतह पर उतारा जाता है। यह मॉडल लगभग गोलाभ होना चाहिए, जिसमें ध्रुव का व्यास विषुवतीय व्यास से छोटा हो।

2. अक्षांश के समांतर-ये ग्लोब के चारों ओर स्थित वे वृत्त हैं, जो विषुवत वृत के समांतर एवं ध्रुवों से समान दूरी पर स्थित होते हैं। प्रत्येक समांतर इसकी सतह पर स्थित होता है, जो कि पृथ्वी की धुरी से समकोण बनाती है। अक्षांश रेखाएं एक समान लंबाई की नहीं होती हैं। इनका विस्तार ध्रुव पर बिंदु से लेकर विषुवत वृत्त पर ग्लोबीय परिधि तक होता है। इनका सीमांकन 0° से 90° उत्तरी एवं 0° से 90° दक्षिणी अक्षांशों में किया जाता है।

3. देशांतर के याम्योत्तर-ये अर्द्धवृत्त होते हैं, जो कि उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर, एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक खींचे जाते हैं। दो विपरीत देशांतर अर्धवृत्त एक वृत्त का निर्माण करते हैं, जो ग्लोब की परिधि होती है। प्रत्येक देशांतर रेखा अपनी सतह पर स्थित होती है, लेकिन ये सभी ग्लोब की धुरी के साथ एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं। यद्यपि वास्तव में कोई मध्य देशांतर रेखा नहीं होती, लेकिन सुविधा के लिए ग्रिनिच की देशांतर रेखा को मध्य देशांतर रेखा माना गया है जिसका मान 0° देशांतर रखा गया है। अन्य सभी देशांतरों के निर्धारण में इससे संदर्भ देशांतर (Reference Longitude) का काम लिया जाता है।

4. ग्लोब के गुण मानचित्र प्रक्षेप बनाने में, ग्लोब की सतह के निम्नलिखित मूल गुणों को कुछ विधियों के द्वारा संरक्षित रखा जाता है

  • किसी क्षेत्र के दिए गए बिंदुओं के बीच की दूरी
  • प्रदेश की आकृति
  • प्रदेश के आकार या क्षेत्रफल का सही माप
  • प्रदेश के किसी एक बिंदु से दूसरे बिंदु की दिशा।

प्रश्न 5.
आधारभूत अक्षांश-देशांतर कौन-से होते हैं?
उत्तर:
आधारभूत अक्षांश-देशांतरों पर मापक शुद्ध होता है। विभिन्न प्रक्षेपों में आधारभूत अक्षांश-देशांतर अलग-अलग होते हैं। उदाहरणतः बेलनाकार प्रक्षेप में भूमध्य रेखा तथा प्रधान मध्याह्न रेखा आधारभूत होते हैं जबकि शंक्वाकार प्रक्षेपों में मानक अक्षांश रेखा (Standard Parallel) तथा केंद्रीय देशांतर रेखा (Central Meridian)आधारभूत अक्षांश-देशांतर रेखाएं होती हैं। इसी प्रकार शिरोबिंदु प्रक्षेपों में ध्रुव तथा 0° देशांतर रेखा आधारभूत होते हैं।

चरण-2. ग्लोब का अर्धव्यास (r) ज्ञात करने के बाद उन आधारभूत अक्षांश-देशांतरों को बनाइए जिन पर सारा प्रक्षेप निर्भर करता है।

चरण-3. अन्य अक्षांश-देशांतरों की रचना करके प्रक्षेप पूरा कीजिए।

चरण-4. ड्राईंग शीट पर प्रक्षेप के ऊपर शीर्षक, नीचे मापक तथा यथास्थान अक्षांश-देशांतरों का अंतराल लिखिए। अंततः इस रचना को प्राध्यापक महोदय को दिखाइए।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र प्रक्षेप क्या है? इसका वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
मानचित्र प्रक्षेप के अर्थ को समझाते हुए इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए। अथवा मानचित्र प्रक्षेप के प्रकारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।।
उत्तर:
मानचित्र प्रक्षेप का अर्थ (Meaning of Map Projection) ग्लोब, पृथ्वी का सबसे अच्छा प्रतिरूप है। यह त्रिविम है। ग्लोब के इसी गुण के कारण महाद्वीपों एवं महासागरों के सही आकार एवं प्रकार को इस पर दिखाया जाता है। यह दिशा एवं दूरी की भी सही-सही जानकारी प्रदान करता है। ग्लोब अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं के द्वारा विभिन्न खंडों में विभाजित होता है। क्षैतिज रेखाएं अक्षांश के समांतरों एवं ऊर्ध्वाधर रेखाएं देशांतर के याम्योत्तरों को दर्शाती हैं। इस जाल को रेखा जाल (Graticule) के नाम से भी जाना जाता है। यह जाल मानचित्रों को बनाने में सहायक होता है। अतः गोलाकार पृष्ठ से अक्षांशों एवं देशांतरों के जाल के समतल सतह पर स्थानांतरण करना मानचित्र प्रक्षेप कहलाता है।

ग्लोब पर देशांतर अर्द्धवृत्त एवं अक्षांश पूर्णवृत्त होते हैं। जब उन्हें समतल सतह पर स्थानांतरित किया जाता है, तब वे सीधी या वक्र प्रतिच्छेदी रेखाएं बनाते हैं। इतना समझ लेने के बाद अब हम मानचित्र प्रक्षेप की परिभाषा दे सकते हैं
“गोलाकार पृथ्वी अथवा उसके किसी बड़े भाग का मानचित्र बनाने के लिए प्रकाश अथवा किसी ज्यामितीय विधि के द्वारा कागज़ या किसी समतल सतह पर खींचे गए ग्लोब की अक्षांश-देशांतर रेखाओं का जाल (Graticule) मानचित्र-प्रक्षेप कहलाता है।”

मानचित्र प्रक्षेपों का वर्गीकरण (Classification of Map Projections)-मानचित्र प्रक्षेपों का वर्गीकरण दो आधारों पर किया जाता है

  • प्रक्षेप के गुणों के आधार पर।
  • प्रक्षेप की रचना विधि के आधार पर।

(1) गुणों के आधार पर प्रक्षेपों का वर्गीकरण क्षेत्र, आकृति, दिशा और दूरी जैसे लक्षणों का शुद्ध प्रदर्शन केवल ग्लोब पर ही संभव है। अभी तक ऐसा कोई प्रक्षेप नहीं बन पाया जो इन सभी गुणों को एक साथ शुद्ध रूप से प्रदर्शित कर सके। यही कारण है कि कोई भी मानचित्र पृथ्वी के सभी भागों को शुद्धता के साथ नहीं दिखा सकता। ऐसी दशा में हम उन प्रक्षेपों की रचना करते हैं जो कम-से-कम एक या दो गुणों का सही प्रदर्शन कर सकते हों। अतः गुणों या लक्षणों के आधार पर प्रक्षेप अग्रलिखित चार प्रकार के होते हैं-

1. शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप (Equal Area or Homolographic Projections) इस वर्ग के प्रक्षेपों में विभिन्न क्षेत्रों के क्षेत्रफल को शुद्ध रूप से प्रदर्शित किया जाता है चाहे इसके लिए वास्तविक लंबाई या चौड़ाई को कम या ज्यादा क्यों न करना पड़े। क्षेत्रफल को सही रखने के प्रयत्न में आकृति और दिशा जैसे गुणों की उपेक्षा हो जाती है। इन समक्षेत्र प्रक्षेपों का उपयोग विभिन्न प्रकार के वितरण मानचित्रों को बनाने के लिए किया जाता है।

2. शुद्ध आकृति प्रक्षेप (True Shape or Orthomorphic Projections)-इन प्रक्षेपों में ग्लोब के विभिन्न भागों की आकृति को शुद्ध रूप में प्रदर्शित किया जाता है। वास्तव में बड़े भू-भागों की आकृति को शुद्ध रख पाना संभव नहीं होता। इन प्रक्षेपों में केवल छोटे भू-भागों या किसी एक भू-भाग की आकृति का अनुरक्षण (Preservation) हो जाता है। अतः शुद्ध आकृति का लक्षण कुछ भ्रांतिपूर्ण है। प्रक्षेप पर शुद्ध आकृति या यथाकृति के गुण को विकसित करने के लिए निम्नलिखित दो दशाओं का होना अनिवार्य है

  • अक्षांश और देशांतर रेखाएं समकोण पर काटती हों।
  • प्रक्षेप के किसी भी बिंदु पर प्रत्येक दिशा में मापक समान रहे अर्थात् यदि अक्षांशीय मापक में वृद्धि हो तो देशांतरीय मापक में भी उसी अनुपात में वृद्धि हो। इन प्रक्षेपों पर राजनीतिक मानचित्रों की रचना की जाती है।

3. शुद्ध दिशा प्रक्षेप या खमध्य या दिगंश प्रक्षेप (True Bearing or Azimuthal Projections)-शुद्ध दिशा से अभिप्राय है कि मानचित्र पर किन्हीं दो स्थानों को मिलाने वाली सरल रेखा की वही दिशा होती है जो ग्लोब पर उन बिंदुओं को मिलाने वाले बृहत वृत्त (Great Circle) की होती है। शुद्ध दिशा प्रक्षेपों पर सर्वत्र और सभी ओर दिक्पात शुद्ध पाया जाता है। ऐसे प्रक्षेपों का प्रयोग जलमार्गों, पवनों और धाराओं की दिशा दिखाने वाले मानचित्रों को बनाने में किया जाता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 3

4. शुद्ध पैमाना या समदूरस्थ प्रक्षेप (True Scale or Equidistant Projections) ये ऐसे प्रक्षेप होते हैं जिन पर विभिन्न के बीच की दूरी ग्लोब पर उन्हीं बिंदुओं के बीच की दूरी के समान होती है। वास्तव में प्रक्षेप के हर स्थान पर पैमाने को शुद्ध रख पाना असंभव होता है। पैमाना या तो सभी अक्षांश रेखाओं पर शुद्ध रह सकता है या सभी देशांतर रेखाओं पर शुद्ध रह सकता है अथवा कुछ अक्षांश रेखाओं तथा कुछ देशांतर रेखाओं पर पैमाना शुद्ध रह सकता है।

(2) रचनाविधि के आधार पर प्रक्षेपों का वर्गीकरण-रचना विधि के आधार पर मानचित्र प्रक्षेप निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-
1. बेलनाकार प्रक्षेप (Cylindrical Projections)- जिन प्रक्षेपों की रचना बेलनाकार आकृति से विकसित करके की जाती है उन्हें बेलनाकार प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों में यह माना जाता है कि बेलन के आकार में मुड़ा हुआ कोई कागज़ पारदर्शक ग्लोब को भूमध्य रेखा पर स्पर्श करता हुआ लिपटा है और ग्लोब के अंदर एक विद्युत बल्ब प्रकाशित है। ग्लोब की अक्षांश-देशांतर रेखाएं कागज़ पर प्रतिबिंबित हो रही हैं। अब यदि रेखा जाल के प्रतिबिंबों को पैन या पैंसिल से अंकित करके उस कागज़ को फैला दें तो हमें अक्षांश-देशांतर का एक आयताकार जाल प्राप्त होगा जिसे बेलनाकार प्रक्षेप कहा जाता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 4
वास्तव में ये प्रक्षेप ज्यामितीय विधि द्वारा बनाए जाते हैं। प्रकाश द्वारा प्रक्षेपण तो ज्यामितीय विधियों को केवल आधार प्रदान करता शंकु करता है (चित्र 5.3)। बेलनाकार प्रक्षेप भूमध्यरेखीय क्षेत्रों के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं, यद्यपि इन पर सारी पृथ्वी का मानचित्र बनाया जाता है।

2. शंक्वाकार प्रक्षेप (Conical Projections)-जिन प्रक्षेपों की रचना शंकु की आकृति से विकसित की जाती है, उन्हें शंक्वाकार प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों में यह माना जाता है कि शंकु के आकार शंकु सतह को समतल करने पर प्रक्षेपण बिंदु परिणामी रेखा जाल में मुड़ा हुआ एक कागज़ पारदर्शक ग्लोब जिसके अंदर एक बल्ब जल रहा है, पर इस प्रकार रखा हुआ है कि शंकु का शीर्ष किसी ध्रुव के ऊपर स्थित है। इस अवस्था में शंकु का भीतरी तल ग्लोब की किसी-न-किसी अक्षांश रेखा को स्पर्श करेगा जिसे प्रधान या मानक या प्रामाणिक अक्षांश रेखा (Standard Meridian) कहा जाता है।

बल्ब के प्रकाश से प्रसारित किरणों द्वारा शंकु के भीतरी तल पर अक्षांश-देशांतर रेखाओं का प्रतिबिंब बनेगा। इस प्रतिबिंब को शंकु पर अंकित करके यदि उसे आधार से ऊपर तक काटकर फैला दिया जाए तो शंकु एक वृत्तांश का रूप धारण कर लेगा। यही शंक्वाकार प्रक्षेप कहलाता है (चित्र 5.4)। इन प्रक्षेपों पर पूरी पृथ्वी का मानचित्र नहीं बनाया जा सकता। ये केवल शीतोष्ण कटिबंधों के लिए उपयुक्त होते हैं। शंक्वाकार प्रक्षेप भी ज्यामितीय ढंग से बनाए जाते हैं।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 5

3. शिरोबिंदु प्रक्षेप (Zenithal Projections) इन प्रक्षेपों की रचना करते समय यह मान लिया जाता है कि एक समतल कागज़ पारदर्शी ग्लोब के किसी विशेष बिंदु पर स्पर्श करता हुआ रखा जाता है यह स्पर्श बिंदु भूमध्य रेखा या कोई ध्रुव या इन दोनों के बीच स्थित हो सकता है (पिन 5.5)। बल्ब अथवा प्रकाश पुंज ग्लोब के भीतर या बाहर कहीं भी हो सकता है। प्रकाश द्वारा प्रतिबिंबित अक्षांश-देशांतर रेखाओं के जाल को कागज़ पर अंकित कर लिया जाता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 6
ऐसी दशा में अक्षांश रेखाएं वृत्ताकार और देशांतर रेखाएं सीधी होती हैं। शिरोबिंदु या खमध्य प्रक्षेपों पर केवल गोला? मा प्रक्षेपण बिंदु के मानचित्र बनाए जा सकते हैं, पूरी पृथ्वी के नहीं (चित्र 5.6)।

4. रूढ़ या परिवर्तित प्रक्षेप (Conventional or Modi fied Projections) ये वे प्रक्षेप होते हैं जिन्हें मूल प्रक्षेपों का रूपांतरण करके किसी खास उद्देश्य के लिए उपयुक्त बना लिया जाता है। इनकी रचना में किसी विकासनीय पृष्ठ का प्रयोग नहीं ध्रुव पर ग्लोब को स्पर्श करता तल समतल सतह पर परिणामी जाल किया जाता बल्कि गणितीय सूत्रों की सहायता ली जाती है। इसलिए इन्हें गणितीय प्रक्षेप भी कहते हैं। इन प्रक्षेपों से ‘प्रक्षेप’ शब्द का अर्थ प्रकट नहीं होता। मॉलवीड प्रक्षेप व सिनुसाइलड : प्रक्षेप इत्यादि ऐसे ही प्रक्षेप हैं।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 7

प्रश्न 2.
मानचित्र प्रक्षेपों की रचना के चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र प्रक्षेपों की रचना के चार चरण (Four Steps in the Drawing of Map Projections) चरण-1. दिए हुए मापक के अनुसार ग्लोब कर अर्धव्यास (त्रिज्या) निकालिए।
अर्धव्यास (r) = प्रदर्शक भिन्न – पृथ्वी का वास्तविक अर्धव्यास, पृथ्वी का वास्तविक अर्धव्यास लगभग 6,400 कि०मी० या 640,000,000 सें०मी० है अथवा लगभग 3,960 मील या 250,000,00 इंच हैं।
आइए! अब हम दो बार सें०मी० में व दो बार इंचों में ग्लोब के अर्धव्यास को निकालने का अभ्यास करें-
उदाहरण 1.
मापक \(\frac { 1 }{ 320,000,000 }\) हो तो ग्लोब का r (अर्धव्यास) ज्ञात करो।
हल:
(1) इंचों में r = \(\frac { 1 }{ 320,000,000 }\) x 250,000,000
= 0.78 इंच

(2) सें०मी० में r = \(\frac { 1 }{ 320,000,000 }\) x 640,000,000
उत्तर:
= 2 सें०मी०

उदाहरण 2.
\(\frac { 1 }{ 200,000,000 }\) प्रदर्शक भिन्न पर ग्लोब का r ज्ञात करो।
हल:
(1) इंचों में r = \(\frac { 1 }{ 200,000,000 }\) x 250,000,000
= 1.25 इंच

(2) सें०मी० में r = \(\frac { 1 }{ 200,000,000 }\) x 640,000,000
उत्तर:
= 3.2 सें०मी०

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

प्रश्न 3.
बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप क्या है? इसके लक्षणों (विशेषताओं) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप (Cylindrical Equal Area Projection)-जैसा कि इस प्रक्षेप के नाम से ही स्पष्ट होता है कि इस प्रक्षेप में क्षेत्रफल शुद्ध रहता है। सभी अक्षांश रेखाओं की लंबाई भूमध्य रेखा के बराबर होती है अर्थात् ध्रुवों की ओर उनका मापक बढ़ता जाता है। अतः अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी (अर्थात देशांतर रेखाओं का मापक) इस प्रकार समायोजित कर दी जाती है कि प्रक्षेप पर किन्हीं दो अक्षांश रेखाओं के बीच की पट्टी का क्षेत्रफल ग्लोब पर उन्हीं दो अक्षांश रेखाओं के बीच की पट्टी के क्षेत्रफल के समान हो जाए। इस प्रकार पूरे प्रक्षेप पर सम-क्षेत्रफल का गुण परिरक्षित हो जाता है।

इस प्रक्षेप को सर्वप्रथम जोहान्न हेनरिच लैंबर्ट (Johann Henrich Lambert) नामक मानचित्रकार ने सन 1722 में बनाया था। इसलिए इस प्रक्षेप को लैंबर्ट का बेलनाकार समक्षेत्र प्रक्षेप भी कहते हैं।

बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप के लक्षण-इस प्रक्षेप की प्रमुख विशेषताएं एवं लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. अक्षांश रेखाओं का आकार-इस प्रक्षेप में सभी अक्षांश रेखाएं सरल व सीधी होती हैं जो भूमध्य रेखा के समानांतर व इसके समान लंबी होती हैं। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए अक्षांश रेखाओं के बीच की अपनी दूरी उत्तरोत्तर कम होती जाती है।

2. देशांतर रेखाओं का आकार सभी देशांतर रेखाएं सरल रेखाएं होती हैं। ये भूमध्य रेखा के लंबवत, एक-दूसरे के समानांतर तथा परस्पर समान दूरी पर अंकित होती हैं।

3. अक्षांश तथा देशांतर रेखाओं के बीच प्रतिच्छेदन इस प्रक्षेप में अक्षांश तथा देशांतर रेखाएं परस्पर समकोण पर काटती हैं।

4. अक्षांश रेखाओं का मापक-भूमध्य रेखा पर मापक शुद्ध होता है जबकि बाकी अक्षांश रेखाओं पर मापक अशुद्ध होता है। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए मापक में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है। इस प्रक्षेप पर 60° की अक्षांश रेखा पर मापक ग्लोब की अपेक्षा दुगुना हो जाता है और ध्रुवों पर यह वृद्धि अनंत हो जाती है। इसका कारण यह है कि इस प्रक्षेप पर सभी अक्षांश रेखाएं भूमध्य रेखा के बराबर लंबी होती हैं, जबकि ग्लोब पर ये भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए छोटी होती चली जाती हैं।

5. देशांतर रेखाओं का मापक-इस प्रक्षेप में, सम-क्षेत्रफल के गुण को परिरक्षित करने हेतु किसी स्थान विशेष पर देशांतर रेखाओं का मापक उसी अनुपात में कम कर दिया जाता है। जिस अनुपात में वहां अक्षांश रेखाओं के मापक में वृद्धि होती है। यही कारण है कि इस प्रक्षेप पर अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर उत्तरोत्तर कम होती चली जाती है।

6. विशेष गुण-बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप का यह एक विशेष गुण है कि इस प्रक्षेप पर किन्हीं दो अक्षांश रेखाओं के बीच की पट्टी का क्षेत्रफल ग्लोब पर उन्हीं दो अंक्षाश रेखाओं के बीच के पट्टी के क्षेत्रफल के बराबर होता है।

7. उपयोग-सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप होने के कारण इस प्रक्षेप का प्रयोग प्रायः संसार का राजनीतिक मानचित्र तथा वितरण मानचित्र बनाने के लिए किया जाता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र ठीक प्रकार से प्रदर्शित किए जा सकने के कारण इस प्रक्षेप का प्रयोग मुख्यतः उष्ण-कटिबंधीय उपजों; जैसे रबड़, चावल, नारियल, कहवा, कोको, गर्म मसाले, कपास, गन्ना, केला तथा मूंगफली इत्यादि के विश्व-वितरण को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

8. सीमाएं ध्रुवीय क्षेत्रों में अक्षांश रेखाओं के मापक में बहुत अधिक विवर्धन तथा देशांतर रेखाओं के मापक में बहुत अधिक लघुकरण के कारण इन क्षेत्रों में स्थित देश पूर्व-पश्चिम दिशा में बहुत अधिक खिंच जाते हैं और उत्तर:दक्षिण दिशा में बहुत संकुचित हो जाते हैं। फलस्वरूप ध्रुवीय क्षेत्रों में देशों की आकृतियों में अधिकाधिक विकृति आ जाती है, परंतु उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में देशों की आकृति में विकृति नगण्य होती है। अतः इस प्रक्षेप का प्रयोग ध्रुवीय क्षेत्रों के लिए नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4.
समस्त ग्लोब के लिए एक ऐसे बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप की रचना करो, जिसका मापक 1:320,000,000 हो। अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं का अंतराल क्रमशः 15° और 30° हो।
उत्तर:
रचना विधि-दिए गए मापक के अनुसार-
(1) जनक ग्लोब का अर्धव्यास (r)
\(\frac{1}{320,000,000} \times 640,000,000\) = 2 सें०मी०

(2) भूमध्य रेखा की लंबाई = 2πr
= 2 x \(\frac { 22 }{ 7 }\) = 12.6 से०मी०

(3) 30° के अंतराल पर दो देशांतर रेखाओं के बीच की दरी = \(\frac { 12.6×30° }{ 360° }\) = 1.05 सें०मी०
ग्लोब को प्रदर्शित करने के लिए 2 सें०मी० अर्धव्यास का एक वृत्त खींचिए। कल्पना कीजिए की EOE’ तथा POP’ क्रमशः भूमध्यरेखीय और ध्रुवीय व्यास हैं। 0 केंद्र पर 15° के अंतराल पर कोण बनाइए और 15°, 30°, 45°, 60°, 75° और 90° की अक्षांश रेखाएं बनाइए। कल्पना कीजिए कि ये कोण वृत्त की परिधि को उत्तर में a, b, c, d, e तथा p पर और दक्षिण में a’, b’, c’, d’, e’ तथा p’ बिंदुओं पर काटते हैं। EOE’ रेखा को Q बिंदु तक बढ़ाइए जिससे EQ रेखा भूमध्य रेखा की वास्तविक लंबाई अर्थात् 12.6 सें०मी० के बराबर हो। अब a, b, c,d,e तथा P बिंदुओं से और a’, b’, c’, d’, e’ तथा P बिंदुओं से भी भूमध्य रेखा के समानांतर सरल रेखाएं खींचिए। ये सभी रेखाएं 15° के अंतराल पर अक्षांश रेखाओं को प्रकट करती हैं।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 8
अब 1.05 सें०मी० परकार खोलकर EQ रेखा को 12 समान भागों में बांटिए। इन बिंदुओं से देशांतर रेखाएं खींचिए जो भूमध्य रेखा को समकोण (90°) पर काटे। RM इस प्रक्षेप की मध्य देशांतर होगी। इस प्रकार यह विश्व के मानचित्र के लिए बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप का रेखा जाल बन जाएगा (चित्र 5.7)।

प्रश्न 5.
1 : 300,000,000 मापनी पर संसार का मानचित्र बनाने के लिए मर्केटर प्रक्षेप की रचना कीजिए। प्रक्षेप में अंतराल 20° है।
उत्तर:
रचना विधि:
चरण-1.
सर्वप्रथम ग्लोब का अर्धव्यास या त्रिज्या (r) ज्ञात करें। ग्लोब का अर्धव्यास (r)
= \(\frac{1}{300,000,000} \times 640,000,000\)

चरण-2.
ग्लोब पर भूमध्य रेखा की लंबाई ज्ञात करें (2πr)
= 2 x \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 2.1 = 13.2 सें०मी०

चरण-3.
अब भूमध्य रेखा पर 20° देशांतरीय अंतराल के अनुसार दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी ज्ञात करें
= \(\frac { 22×r×20 }{ 360 }\)
= \(\frac { 13.2×20 }{ 360 }\)

Mecrator’s Projection:
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 9

चरण-4.
चित्र 5.8 के अनुसार कागज़ के बीचों-बीच 13.2 सें०मी० लंबी रेखा खींचिए। परकार में 0.73 सें०मी० की दूरी लेकर इस रेखा पर 17 निशान लगा दीजिए। इस प्रकार यह रेखा 18 भागों में विभक्त हो जाएगी। इन चिह्नों पर लंब डाल दीजिए। ये लंब देशांतर रेखाओं को प्रकट करेंगे।

चरण-5.
दिए हुए अंतराल के अनुसार प्रक्षेप 20°, 40°, 60° में व 80° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांश बनेंगे। इन अक्षांश रेखाओं की भूमध्य रेखा से दूरी को निम्नलिखित तालिका से ज्ञात करें।

अक्षांशभूमध्य रेखा से दूरी (सें०मी०)
20°0.356 x r = 0.356 x 2.1 = 0.75
40°0.763 x r = 0.763 x 2.1 = 1.6
60°1.317 x r = 1.317 x 2.1 = 2.76
80°2.437 x r = 2.437 x 2.1 = 5.1

अब इन दूरियों में से प्रत्येक को पहले A की ओर, फिर A से नीचे की ओर काटिए।

उदाहरणतया 13.2 सें०मी० की आधार रेखा AB भूमध्य रेखा को प्रकट करती है। इस रेखा के उत्तर व दक्षिण में 0.75 सें०मी० के चिह्न लगा दीजिए तथा इन चिह्नों में से होती हुई भूमध्य रेखा के समांतर रेखाएं खींच दीजिए। ये रेखाएं 10° उ० व 10° द० अक्षांशों को प्रकट करेंगी। इसी प्रकार 1.6 सें०मी०, 2.76 सें०मी० तथा 5.1 सें०मी० की दूरियां लेकर A से उत्तर व दक्षिण की ओर चिह्न लगाइए तथा भूमध्य रेखा के समांतर रेखाएं खींच दीजिए। ये रेखाएं क्रमशः 40°, 60° व 80° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों को प्रकट करेंगी।

चरण-6.
चित्र के अनुसार रेखा जाल के बाहर अक्षांशों व देशांतर रेखाओं के मान लिख दीजिए। इन मानों के साथ उत्तर, दक्षिण, पूर्व व पश्चिम (N,S,E,W) लिखना न भूलें।

प्रश्न 6.
मर्केटर प्रक्षेप की विशेषताएँ, उपयोग तथा सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मर्केटर प्रक्षेप की विशेषताएँ (Characteristics of Mercator’s Projection)-मर्केटर प्रक्षेप की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. अक्षांश रेखाओं का आकार प्रक्षेप में सभी अक्षांश रेखाएं सरल रेखाएं हैं, जो भूमध्य रेखा के समांतर खींची गई हैं तथा समान लंबाई वाली हैं।

2. देशांतर रेखाओं का आकार देशांतर रेखाएं भी सरल रेखाएं हैं जो भूमध्य रेखा पर समान दूरी पर खींची गई समांतर रेखाएं हैं। सभी देशांतर रेखाओं की लंबाई समान है इस प्रक्षेप पर ध्रुव प्रदर्शित नहीं किए जा सकते।

3. अक्षांश तथा देशांतर रेखाओं का प्रतिच्छेदन-अक्षांश व देशांतर रेखाएं एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।

4. अक्षांश रेखाओं का मापक इस प्रक्षेप में भूमध्य रेखा पर तो मापक शुद्ध होता है, किंतु भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए अन्य अक्षांश रेखाओं का मापक निरंतर बढ़ता जाता है। इसका कारण यह है कि मर्केटर प्रक्षेप पर सभी अक्षांश रेखाएं भूमध्य रेखा के बराबर खींची जाती हैं, जबकि ग्लोब पर ये ध्रुवों की ओर छोटी होती जाती हैं। उदाहरणतः ग्लोब पर 60° उ० व द० अक्षांश रेखा भूमध्य रेखा से आधी होती है, जबकि इस प्रक्षेप में वह भूमध्य रेखा के बराबर होती है। अतः इस प्रक्षेप पर 60° अक्षांश रेखा पर मापक ग्लोब की तुलना में दुगुना हो जाता है। इसी प्रकार 75%° अक्षांश रेखा पर मापक ग्लोब की तुलना में गुना हो जाता है। ध्रुवों पर तो यह मापक अनंत गुना बड़ा हो जाता है।

देशांतर रेखाओं का मापक भूमध्य रेखा पर तो देशांतर रेखाओं का मापक भी लगभग शुद्ध होता है, किंतु शुद्ध दिशा और शुद्ध आकृति के गुणों को बचाए रखने के लिए इस प्रक्षेप पर देशांतर रेखाओं के मापक को भी ध्रुवों की ओर उ दिया जाता है।

उपयोग (Utility)-संसार में वायुमार्ग, समुद्री मार्ग, महासागरीय धाराओं, पवनों के परिसंचरण, अपवाह, समताप तथा समदाब रेखाएं दिखाने के लिए इस प्रक्षेप पर बने मानचित्रों का प्रयोग किया जाता है।

मर्केटर प्रक्षेप की सीमाएं (Limitations of Mercator’s Projection)-

  • इस प्रक्षेप में उच्च अक्षांशों में क्षेत्रफल बहुत ही ज्यादा बढ़ जाता है। इसी कारण ग्रीनलैंड दक्षिणी अमेरिका के बराबर दिखता है। वास्तव में दक्षिणी अमेरिका ग्रीनलैंड से 9 गुना बड़ा है।
  • ग्लोब पर एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग एक-दूसरे के काफी निकट हैं, जबकि इस प्रक्षेप में वे दूर-दूर दिखाई देते हैं।
  • मर्केटर प्रक्षेप गोल पृथ्वी की भ्रामक तस्वीर प्रस्तुत करता है, क्योंकि इस पर ध्रुव नहीं दिखाए जा सकते।

प्रश्न 7.
मर्केटर प्रक्षेप पर रंब लाइन तथा बृहत वृत्त की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मर्केटर प्रक्षेप पर रंब लाइन तथा बृहत वृत्त (Loxodrome and Great Circles on Mercator’s Projection) मर्केटर प्रक्षेप में सभी देशांतर रेखाएं आपस में समांतर होती हैं, इसलिए इस प्रक्षेप पर खींची गई कोई भी सरल रेखा सभी देशांतर रेखाओं के साथ एक समान कोण बनाती है। इसके अतिरिक्त इस प्रक्षेप पर अक्षांश व देशांतर रेखाओं का मापक भी समान होता है। अतः इस प्रक्षेप पर किन्हीं दो स्थानों को जोड़ने वाली कोई भी सीधी रेखा एक स्थिर दिक्मान रेखा (A Line of Constant Blaring) होती है। चित्र 5.9 में AB रेखा ऐसी ही एक स्थिर दिक्मान रेखा है जो सभी देशांतर रेखाओं के साथ 35° का कोण बनाती है। इसी प्रकार इस चित्र में अन्य सरल रेखाएं भी स्थिर दिक्मान कहलाती हैं। ऐसी रेखाओं को एकदिश नौपथ अथवा रंब लाइन अथवा लोक्सोड्रोम (Loxodrome) कहा जाता है। लोक्सोड्रोम मूलतः यूनानी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है ‘तिरछा चलते हुए’ वास्तव में ग्लोब पर लोक्सोड्रोम वक्राकार रेखाएँ होती है जो इस प्रक्षेप पर सीधी दर्शाई जाती हैं।

बेलनाकार प्रक्षेपों में केवल मर्केटर प्रक्षेप पर ही दो स्थानों के बीच दिक्मान ग्लोब के अनुसार शुद्ध होता है। (नीचे दिया गया बॉक्स देखें) मर्केटर प्रक्षेप का यही गुण नाविकों के लिए वरदान सिद्ध हुआ।

नाविकों की First Choice था मर्केटर प्रक्षेप:

  • शुद्ध दिशा प्रक्षेप होने के कारण नाविकों के लिए गंतव्य स्थान की सही-सही दिशा मानचित्र पर ज्ञात कर अपने जहाज को निश्चित दिशा में स्थापित करना सरल हो गया।
  • इस प्रक्षेप का सही उपयोग वायुयान चालकों के लिए भी था।
  • इस प्रक्षेप पर 50° अक्षांश के बाद आकृतियां बहुत बड़ी दिखाई देती हैं। अतः इस प्रक्षेप पर ब्रिटेन साम्राज्य अपने वास्तविक विस्तार से कई गुना बड़ा दिखाई देता था। यह तथ्य एक राष्ट्र और नस्ल विशेष के श्रेष्ठ और बहुत बड़ा दिखाने के अहम की पुष्टि करता था।
  • ध्रुवीय प्रदेशों के वायु एवं जल यातायात के लिए भी शिरोबिंदु ध्रुव प्रक्षेप तथा मर्केटर प्रक्षेप समान रूप से उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
    HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 10

नाविकों को अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने के लिए अपने जहाज को एक स्थिर दिक्मान रेखा पर चलाना होता है। इसके बाद जहाज बिना दिशा बदले निश्चित मार्ग पर चलता रहता है। याद रहे कि मर्केटर प्रक्षेप पर स्थिर दिक्मान रेखा आरंभिक बिंदु (Starting Point) तथा गंतव्य स्थान (Destination) के बीच सीधी रेखा खींचकर प्राप्त की जा सकती है।।

नौ संचालन के दौरान मर्केटर प्रक्षेप के प्रयोग करने से एक कठिनाई आती है, जिसे नाविक दूर करते चलते हैं। समय और ईंधन बचाने के लिए नाविक छोटे से छोटा रूट पकड़ते हैं, जिसके लिए उन्हें बृहत वृत्त मार्ग अपनाना होता है।

परंतु ग्लोब पर भूमध्य रेखा और देशांतर रेखाएं ही ऐसे बृहत वृत हैं, जो सरल रेखाओं द्वारा दर्शाए जाते हैं। बाकी सभी बृहत वृत वक्राकार होते हैं। इनकी वक्रता ध्रुवों की ओर होती है। अन्य शब्दों में ये बृहत वृत उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर की ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण की ओर झुके हुए होते हैं। उल्लेखनीय है कि मर्केटर प्रक्षेप पर न्यूनतम दूरी वाले बृहत वृत वक्राकार होते हैं, जबकि अधिक दूरी वाले एकदिश नौपथ (Loxodromes) सीधी रेखाओं द्वारा दर्शाए जाते हैं।

अतः साफ है कि कोई बृहत वृत मार्ग भूमध्य रेखा अथवा किसी देशांतर रेखा का भाग नहीं है तो वह वक्र होगा। इस वक्र के साथ-साथ जहाज चलाने के लिए नाविक को जहाज की दिशा जल्दी-जल्दी बदलनी पड़ती है जो बहुत मुश्किल काम है। इस मुश्किल को आसान करने के लिए बृहत वृत को छोटे-छोटे खंडों में बांट दिया जाता है और इन खंडों के विभाजन बिंदुओं को सीधी रेखा द्वारा मिला दिया जाता है। ऐसी प्रत्येक सीधी रेखा स्वयं एकदिश नौपथ (Loxodrome) या रंब लाइन बन जाती हैं।

इन खंडित रंब रेखाओं के सहारे नौसंचालन करते समय नाविक जहाज को केवल तभी मोड़ते हैं जहां दो रंब रेखाएं आपस में मिलती है। ऐसी ही खंडित रंब रेखाओं को चित्र 5.10 में दर्शाया गया है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 11

प्रश्न 8.
एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के लक्षण, गुण, अवगुण एवं उपयोग को समझाइए।
उत्तर:
1. एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के लक्षण (Properties)

  • सभी अक्षांश रेखाएं संकेंद्रीय वृत्तों की चापें हैं जो आपस में समान दूरी पर स्थित हैं। ये चापें देशांतर रेखाओं के मिलन बिंदु को केंद्र मानकर खींची गई हैं।
  • ध्रुव भी एक चाप द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
  • प्रत्येक अक्षांश रेखा पर देशांतर रेखाओं की परस्पर दूरी समान होती है।
  • देशांतर रेखाएं शंकु के शीर्ष से प्रसारित होने वाली सरल रेखाएं होती हैं।

2. एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के गुण (Merits)-

  • मानक अक्षांश रेखा पर मापक शुद्ध होता है। इससे दोनों ओर की अन्य अक्षांश रेखाओं पर मापक शुद्ध नहीं रहता।
  • सभी देशांतर रेखाएं ग्लोब की दूरी के अनुसार विभाजित की जाती हैं, अतः सभी देशांतरों पर मापक शुद्ध रहता है।

3. एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के अवगण (Demerits)-

  • मानक अक्षांश से दूरी बढ़ने के साथ-साथ प्रदेशों की आकति और क्षेत्रफल में अशुद्धि आने लगती है, क्योंकि इसमें केवल मानक अक्षांश पर ही मापक शुद्ध रहता है।
  • इस प्रक्षेप में ध्रुव को भी चाप द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, अतः यह प्रक्षेप पृथ्वी की सतह को शुद्ध रूप में प्रकट नहीं करता।

4. एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के उपयोग (Uses)-मानक अक्षांश के दोनों ओर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली संकरी पट्टी के प्रदर्शन के लिए यह प्रक्षेप श्रेष्ठ है। अतः उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, सड़कों, रेल-मार्गों, नदी घाटियों को प्रदर्शित करने के लिए यह एक उपयोगी प्रक्षेप है। ट्रांस-कैनेडियन रेलवे (Trans-Canadian Rly.), कैनेडियन-पैसेफिक रेलवे (Canadian-Pacific Rly.), कनाडा-संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय सीमा, भारत में नर्मदा और तापी नदी घाटियों को इस प्रक्षेप पर सही ढंग से दिखाया जा सकता है।

मानचित्र प्रक्षेप HBSE 11th Class Geography Notes

→ बृहत वृत्त-यह दो बिंदुओं के बीच की लघुत्तम दूरी को दर्शाता है, जिसका उपयोग प्रायः वायु परिवहन एवं नौसंचालन में किया जाता है।

→ यथाकृतिक प्रक्षेप-वह प्रक्षेप जिसमें धरातल के किसी क्षेत्र की यथार्थ आकृति बनाए रखी जाती है।

→ लेक्सोड्रोम या रंब रेखा यह मर्केटर प्रक्षेप पर खींची गई सीधी रेखा है, जो स्थिर दिक्मान वाले दो बिंदुओं को जोड़ती है। नौसंचालन के दौरान दिशा निर्धारण में यह अत्यंत सहायक होती है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

→ ग्रिड (जाल)-किसी स्थान की सही स्थिति बताने और जानने के लिए मानचित्र पर खींची गई अक्षांश और देशांतर – रेखाओं का जाल। इन रेखाओं पर अक्षांशों और देशांतरों के मान अंकित होते हैं।

→ विकासनीय सतह ऐसी सतह जिसे बिना फटे समतल रूप में फैलाया जा सकता है, विकासनीय सतह कहलाती है।

→ अविकासनीय सतह ऐसी सतह जिसे बिना फाड़े समतल रूप में नहीं फैलाया जा सकता है।

→ केंद्रीय मध्याह्न रेखा (Central Meridian) रेखा जाल के मध्य की रेखा को केंद्रीय मध्याह्न रेखा या केंद्रीय देशांतर कहते हैं। इस पर चिह्न लगाकर निश्चित दूरी पर अक्षांश रेखाएं खींची जाती हैं।

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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. यदि सिंगापुर (103.5° पूर्व) में प्रातः के 10 बजे हों तो मोम्बासा (39° पूर्व) पर स्थानीय समय क्या होगा?
(A) 5.42 प्रातः
(B) 6.40 प्रातः
(C) 4.52 प्रातः
(D) 5.22 प्रातः
उत्तर:
(A) 5.42 प्रातः

2. एक गोले में होते हैं-
(A) 360°
(B) 320°
(C) 180°
(D) 90°
उत्तर:
(A) 360°

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

3. भूमध्य रेखा की अक्षांश रेखा है-
(A) 0°
(B) 90°
(C) 180°
(D) 360°
उत्तर:
(A) 0°

4. अक्षांश रेखाओं की संख्या कितनी है?
(A) 90
(B) 180
(C) 360
(D) 190
उत्तर:
(B) 180

5. देशान्तर रेखाओं की संख्या कितनी है?
(A) 90
(B) 180
(C) 360
(D) 480
उत्तर:
(C) 360

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भौगोलिक निर्देशांक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भौगोलिक निर्देशांक, अक्षांश तथा देशांतर रेखाओं का ग्लोब पर बना वह रेखा जाल होता है जिससे हम विभिन्न स्थानों की स्थितियां निश्चित करते हैं।

प्रश्न 2.
अक्षांश तथा अक्षांश रेखा में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण की ओर पृथ्वी के केंद्र पर बनने वाली कोणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते हैं। ग्लोब पर समान अक्षांश वाले बिंदुओं को प्रकट करने वाले काल्पनिक वृत्तों को अक्षांश अथवा अक्षांश रेखाएं कहते हैं।

प्रश्न 3.
देशांतर तथा देशांतर रेखा में क्या भेद होता है?
उत्तर:
किसी स्थान की प्रधान देशांतर रेखा (0° देशांतर) से पूर्व या पश्चिम दिशा में कोणात्मक दूरी को उस स्थान का देशांतर कहते हैं। ग्लोब पर समान देशांतर वाले बिंदुओं को प्रकट करने वाले काल्पनिक अर्धवृत्तों को देशांतर रेखाएं कहा जाता है।

प्रश्न 4.
बृहत वृत्त (Great Circle) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी गोले को उसके केंद्र से गुजरने वाले तल (plane) से काटा जाए तो कटा हुआ तल उस गोले का सबसे बड़े आकार (size) का होगा। यह वृत्त ‘बृहत वृत्त’ कहलाता है।

प्रश्न 5.
बृहत वृत्त मार्ग (Great Circle Route) क्या होता है व इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यात्रा का वह मार्ग जो बृहत वृत्त का अनुसरण (Follow) करता हो, बृहत वृत्त मार्ग कहलाता है। यदि मार्ग में कोई बाधा न हो तो ग्रेट सर्कल रूट का अनुसरण करने वाला वायुमार्ग या समुद्री मार्ग सबसे छोटा होता है जो ईंधन व समय की बचत करता है। इसका कारण यह है कि किसी महान वृत्त की चाप दो दूर बिंदुओं के बीच न्यूनतम दूरी दर्शाती है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

प्रश्न 6.
प्रधान मध्याहून रेखा (Prime Meridian) किसे कहते हैं?
उत्तर:
ग्रीनविच रॉयल प्रेक्षणशाला से होकर गुजरने वाली 0° देशांतर रेखा को प्रधान मध्याह्न रेखा कहते हैं।

प्रश्न 7.
देशांतर तथा समय में क्या संबंध है?
उत्तर:
पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है। अतः 24 घंटे में पृथ्वी की समस्त 360 देशांतर रेखाएं एक-एक करके सूर्य के सामने से होकर गुजरती हैं। इस प्रकार पृथ्वी एक घंटे में \(\frac { 360° }{ 24 }\) = 15° घूम जाती है। एक देशांतर को सूर्य के सामने से गुजरने में \(\frac { 60 }{ 5 }\) = 4 मिनट का समय लगता है।

प्रश्न 8.
स्थानीय समय (Local Time) क्या होता है?
उत्तर:
किसी स्थान पर मध्याह्न सूर्य के समय को दोपहर 12.00 बजे मानकर निर्धारित किया गया समय स्थानीय समय कहलाता है।

प्रश्न 9.
मानक या प्रामाणिक समय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी देश या समय कटिबंध के बीच से गुजरने वाली देशांतर रेखा के स्थानीय समय को मानक समय कहा जाता है।

प्रश्न 10.
समय कटिबंध (Time Zone) क्या होता है?
उत्तर:
समय कटिबंध संसार का ऐसा क्षेत्र है जहां घड़ियां एक जैसा समय दर्शाती हैं।

प्रश्न 11.
GMT या ग्रीनविच माध्य समय क्या होता है?
उत्तर:
सारे विश्व में समय की समरूपता बनाए रखने के लिए 0° देशांतर के समय को सब देश अपनाते हैं तो इस समय को GMT कहते हैं।

प्रश्न 12.
किसी देश का प्रामाणिक देशांतर 71° के गुणज पर क्यों लिया जाता है?
उत्तर:
प्रत्येक 71/2° का देशांतर 30 मिनट या आधे घंटे (7.5 x 4 = 30) का अंतर दर्शाता है। समय में आधे घंटे का गुणी समय की गणना को सरल व सुविधाजनक बनाता है।

प्रश्न 13.
अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा 180° देशांतर के लगभग अनुरूप वह काल्पनिक रेखा है जिसे पार करने पर दिशा के अनुसार एक दिन बढ़ाया या घटाया जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अक्षांश रेखाएँ क्या हैं? इनकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
अक्षांश रेखाएं (Lines of Latitudes) ग्लोब पर समान अक्षांश वाले बिंदुओं को मिलाने वाले काल्पनिक वृत्तों को अक्षांश वृत्त अथवा अक्षांश रेखाएं अथवा अक्षांश समांतर (Parallel of Latitudes) कहा जाता है।

अक्षांश रेखाओं की प्रमुख विशेषताएं (लक्षण) निम्नलिखित हैं-

  • अक्षांश रेखाएं एक-दूसरे के समानांतर और आपस में समान दूरी पर होती हैं।
  • ध्रुवों के अक्षांश वृत्त केवल बिंदुओं के रूप में होते हैं।
  • शेष सभी अक्षांश रेखाएं एक पूर्ण वृत्त के रूप में होती हैं। इसलिए इन्हें अक्षांश वृत्त कहा जाता है।
  • भूमध्य रेखा बृहत वृत्त (Great Circle) होती है, जबकि शेष सभी अक्षांश रेखाएं लघु वृत्त होती हैं।
  • अक्षांश रेखाएं यथार्थ पूर्व-पश्चिम (True east-west direction) रेखाओं के रूप में होती हैं।
  • भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण की ओर अक्षांश रेखाओं की लंबाई उत्तरोत्तर कम होती जाती है। 60° उत्तर व 60° दक्षिण की अक्षांश रेखाओं की लंबाई भूमध्य रेखा की लंबाई की आधी होती है।

प्रश्न 2.
भूमध्य रेखा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पृथ्वी का घूर्णन पृथ्वी के कल्पित अक्ष का संकेत देता है। इस अक्ष का ध्रुव तारे (Pole Star) का सीध वाला सिरा उत्तरी ध्रुव और दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव कहलाता है। दोनों ध्रुवों के बीचों-बीच पृथ्वी के इर्द-गिर्द (Around) मान लिए गए कल्पित वृत्त को भूमध्य रेखा कहा जाता है। यह सबसे बड़ा अक्षांशीय वृत्त है जो पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्डों में बांटता है। भूमध्य रेखा 0° अक्षांश रेखा है। अन्य अक्षांशों की गणना यहीं से होती है।

प्रश्न 3.
देशान्तर रेखाएँ क्या हैं? इनकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
देशांतर रेखाएं (Lines of Longitude)-ग्लोब पर समान देशांतर वाले बिंदुओं को प्रकट करने वाले काल्पनिक अर्धवृत्तों को देशांतर रेखाएं (Lines of Longitude) कहा जाता है। देशांतर रेखाओं की प्रमुख विशेषताएं (लक्षण) निम्नलिखित हैं-

  • देशांतर रेखाएं दोनों ध्रुवों को मिलाते हुए अर्धवृत्त (Semi circles) बनाती हैं।
  • सभी देशांतरों के सिरे उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों पर मिलते हैं।
  • एक वृत्त में 360° होती हैं, अतः 1° के अंतराल पर कुल 360 देशांतर रेखाएं खींची जा सकती हैं।
  • इनमें से 180 देशांतर रेखाएं प्रधान मध्याह्न रेखा के पूर्व में व 180 देशांतर रेखाएं प्रधान मध्याह्न रेखा के पश्चिम में स्थित होती हैं (चित्र 4.1)।
  • 180° पूर्वी तथा पश्चिमी देशांतर रेखा एक ही है जो प्रधान मध्याह्न के विपरीत दिशा में होती है।
  • भूमध्य रेखा पर दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी सबसे अधिक होती है जो ध्रुवों पर घटकर शून्य हो जाती है।
    HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 1

प्रश्न 4.
अक्षांश तथा देशांतर रेखाओं में अन्तर बताइए।
उत्तर:
अक्षांश तथा देशांतर में अंतर:

अक्षांश (Latitude)देशांतर (Longitude)
1. अक्षांश किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर अथवा दक्षिण की ओर पृथ्वी के केंद्र पर बनने वाली कोणात्मक दूरी है।1. देशांतर किसी स्थान की प्रधान मध्याह्न रेखा से पूर्व अथवा पश्चिम में बनने वाली कोणात्मक दूरी है।
2. अक्षांश का माप भूमध्य रेखा (0°) से होता है।2. देशांतर का माप प्रधान मध्याह्न रेखा (0°) से होता है।
3. अक्षांश 90° उत्तर तथा 90° दक्षिण तक अर्थात् कुल 180 होते हैं।3. देशांतर 180° पूर्व तथा 180° पश्चिम तक अर्थात् कुल 360 होते हैं।
4. सभी अक्षांश विषुवत वृत्त के समांतर होते हैं।4. देशांतर के सभी याम्योत्तर ध्रुवों पर मिलते हैं।
5. ग्लोब पर अक्षांश समांतर वृत्त के समान प्रतीत होते हैं।5. सभी याम्योत्तर वृत्त के समान प्रतीत होते हैं, जो ध्रुवों से गुजरते हैं।
6. दो अक्षांशों के बीच की दूरी लगभग 111 किलोमीटर होती है।6. देशांतरों के बीच की दूरी विषुवत वृत्त पर अधिकतम (111.3 किलोमीटर) तथा ध्रुवों पर न्यूनतम (0 किलोमीटर) होती है। मध्य में अर्थात् 45° अक्षांश पर यह 79 किलोमीटर होती है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

प्रश्न 5.
अक्षांश व देशान्तर रेखाओं की उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
अक्षांश व देशांतर रेखाओं की उपयोगिता निम्नलिखित है-

  • पृथ्वी या ग्लोब पर किसी भी स्थान की अवस्थिति का सही-सही निर्धारण किया जा सकता है।
  • गोलाकार पृथ्वी या उसके भू-भाग का समतल मानचित्र बनाया जा सकता है।
  • अक्षांश भूमध्य रेखा से दूरी और वहां के तापमान का संकेत करते हैं, क्योंकि 1° अक्षांश पृथ्वी के 111 कि०मी० की दूरी के समान होता है।
  • देशांतर से स्थानीय समय (Local Time) का पता चलता है।

प्रश्न 6.
स्थानीय समय क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब कोई देशांतर रेखा सूर्य के ठीक सामने आती है तो सूर्य सिर के ऊपर दिखाई देता है। उस देशांतर रेखा पर स्थित सभी स्थानों पर मध्याह्न होता है और परछाइयों की लंबाई सबसे कम होती है। इस समय यदि घड़ियों में दोपहर के 12 बजा लिए जाएं तो इसे स्थानीय समय कहेंगे। अतः किसी स्थान पर मध्याह्न सूर्य के समय को दोपहर 12 बजे मानकर निर्धारित किया गया समय स्थानीय समय कहलाता है।

प्रश्न 7.
स्थानीय समय तथा प्रामाणिक समय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय समय तथा प्रामाणिक समय में अंतर

स्थानीय समय (Local Time)प्रामाणिक समय (Standard Time)
1. स्थानीय समय प्रत्येक स्थान के देशांतर के अनुसार होता है।1. प्रामाणिक समय किसी देश या समय कटिबंध के केंद्रीय देशांतर के अनुसार होता है।
2. प्रत्येक स्थान पर स्थानीय समय भिन्न-भिन्न होता है।2. किसी देश या समय कटिबंध के सभी स्थानों पर प्रामाणिक समय एक होता है।

प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कितनी जगह से टेढ़ी है और क्यों?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा तीन जगह से टेढ़ी है क्योंकि-

  • बेरिंग जलडमरू (Bering Strait) पर इस रेखा को पूर्व में घुमाने पर साइबेरिया का समस्त पूर्वी भाग एक तिथि रख सकता है, परंतु थोड़े से पूर्वी छोर पर तिथि अलग होती है।
  • दूसरा मोड़ एल्यूशियन द्वीप को अलास्का प्रायद्वीप वाला समय रखने की सुविधा देता है।
  • तीसरा व अंतिम मोड़ भूमध्य रेखा के दक्षिण में है ताकि एल्लिस, गिलबर्ट, फिजी व टोंगा द्वीप-समूहों को न्यूजीलैंड की तिथि के अनुरूप रखा जा सके।

ध्यान दें कि अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा में टेढ़ापन या तो 7 1/2° देशांतर तक है या फिर सीधा 150 देशांतर तक।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Line)-अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा 180° देशांतर रेखा के लगभग अनुरूप वह काल्पनिक रेखा है जिसे पार करने पर दिशा के अनुसार एक दिन बढ़ाया या घटाया जाता है।

24 घंटों में पृथ्वी अपने अक्ष पर एक घूर्णन पूरा करती है। इससे प्रति देशांतर 4 मिनट का अंतर पड़ जाता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व को घूमती है। अतः यदि हम पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करें तो हमें अपनी घड़ी प्रति 15° देशांतर पर 1 घंटा आगे व पूर्व से पश्चिम की ओर यात्रा करने पर 1 घंटा पीछे करनी पड़ेगी। अतः ग्रिनिच (ग्रीनविच) से चलकर 180° पूर्व तक पहुंचते-पहुंचते समय 12 घंटे आगे हो जाएगा, जबकि ग्रीनविच से चलकर 180° पश्चिम तक पहुंचते-पहुंचते समय 12 घंटे पीछे हो जाएगा।

इस प्रकार 0° देशांतर रेखा के मुकाबले 180° देशांतर रेखा पर 24 घंटे अथवा 1 दिन का फ़र्क पड़ जाता है। उदाहरणतः यदि ग्रीनविच प्रातः (0° देशांतर) पर रविवार 11 फरवरी, 2002 को प्रातः 6 बजे का समय है तो 180° पूर्व देशांतर पर पहुंचने वाले व्यक्ति को समय \(\frac { 180×4 }{ 60 }\) = 12 घंटे आगे मिलेगा अर्थात् वहाँ रविवार 11 फरवरी (उसी दिन) के सायं के 6 बजे होंगे। दूसरी ओर ग्रीनविच से पश्चिम की ओर यात्रा करने वाले व्यक्ति को 180° पश्चिम देशांतर पर समय 12 घंटे पीछे मिलेगा, अर्थात् वहाँ उसे रविवार 10 फरवरी सायं के 6 बजे मिलेंगे (चित्र 4.2)।

संसार की यात्रा में इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा निश्चित कर दी गई है जो 180° देशांतर रेखा की स्थिति में कुछ हेर-फेर करके मानी गई है।

अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा अपनी संपूर्ण लंबाई में जल प्रदेश (प्रशांत महासागर) से ही गुज़रती है (चित्र 4.2)। जो जहाज़ एक तिथि रेखा को पश्चिम की ओर से पार करता है वह तिथि रेखा को पार करते ही एक दिन छोड़ देता है और जो जहाज़ इसे पूर्व की ओर से पार करता है वह एक ही दिन को दोबारा गिनता है। ऐसा करने से यात्रा में तिथि की गड़बड़ी दूर हो जाएगी।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 2

उदाहरणतः यदि पश्चिम की ओर से आता हुआ जहाज़ अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को रविवार 11 फरवरी को पार करता है तो वह अपने रिकॉर्ड में इस दिन को दो बार दर्ज करेगा-रविवार 11 फरवरी I व रविवार 11 फरवरी II । इस प्रकार पश्चिम से पूर्व की ओर जाने वाले जहाज़ के लिए सप्ताह 8 दिनों का होगा। दूसरी ओर यदि पूर्व की ओर से आता हुआ जहाज़ इस तिथि रेखा को रविवार 11 फरवरी को पार करता है तो वह अगला दिन, अर्थात्सोमवार 12 फरवरी को छोड़ देगा और अपने रिकॉर्ड में दूसरा दिन मंगलवार 13 फरवरी दर्ज कर लेगा। इस प्रकार पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाले जहाज़ के लिए सप्ताह केवल 6 दिनों का होगा।

प्रश्न 2.
यदि ग्रीनविच पर दिन के 2 बजे हों तो भारत में मानक समय क्या होगा? (भारत का मानक समय इलाहाबाद 827° पूर्वार्द्ध से मापा जाता है।) इलाहाबाद का देशांतर 82%° पूर्व तथा ग्रीनविच का देशांतर 0° है।
उत्तर:
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 82 1/2°
82 1/2° = \(\frac { 165° }{ 2 }\)
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
यदि देशांतर में अंतर \(\frac { 165° }{ 2 }\) है तो समय में अंतर
= \(\frac { 165×4 }{ 2 }\) = 330 मिनट या 5 घंटे 30 मिनट
क्योंकि इलाहाबाद ग्रीनविच के पूर्व में स्थित है, इसलिए वहां का समय ग्रीनविच के समय से आगे होगा।
अतः जब ग्रीनविच पर दिन के 2 बजे होंगे तो इलाहाबाद (समस्त भारत) में सायं के 2 + 5:30 = 7:30 बजे होंगे।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 3

प्रश्न 3.
न्यूयॉर्क (74°W) पर स्थानीय समय क्या होगा जब ग्रीनविच पर दोपहर के 12 बजे हों?
उत्तर:
न्यूयॉर्क का देशांतर = 74° W
ग्रीनविच का देशांतर = 0°
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 74° – 0° = 74°
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
यदि देशांतर में अंतर 74° है तो समय में अंतर = 74 x 4 = 296 अर्थात् 4 घंटे 56 मिनट
क्योंकि न्यूयार्क ग्रीनविच के पश्चिम में स्थित है, इसलिए वहां का समय ग्रीनविच के समय से पीछे होगा।
अतः जब ग्रीनविच पर दोपहर 12 बजे होंगे तो न्यूयार्क पर स्थानीय समय 12 – 4 घंटे 56 मिनट = 7 बजकर 4 मिनट

प्रश्न 4.
चेन्नई (मद्रास) (80°E) पर क्या स्थानीय समय होगा जब बोस्टन (71°W) में 15 मार्च सायं के 10 बजे हों?
उत्तर:
बोस्टन का देशांतर = 71° W
चेन्नई का देशांतर = 80° E
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर
= 71° + 80° = 151°
(जब दोनों दिशाएं विपरीत हों तो देशांतरों के जमा होने पर अंतर निकलता है।)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 4
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
यदि देशांतर में अंतर 151° है तो समय में अंतर = 151 x 4 = 604 मिनट
अर्थात् 10 घंटे 4 मिनट
क्योंकि चेन्नई बोस्टन के पूर्व में स्थित है, इसलिए वहां का स्थानीय समय बोस्टन के समय से आगे होगा।
बोस्टन में 15 मार्च वाले दिन, रात के 10 बजे हैं अर्थात् बोस्टन में 15 मार्च के दिन का सूर्योदय हुए 12 + 10 = 22 घंटे हो चुके हैं।
क्योंकि चेन्नई बोस्टन के पूर्व में है इसलिए चेन्नई का समय ज्ञात करने के लिए हमें दोनों स्थानों के समय के अंतर को बोस्टन के समय में जमा करना पड़ेगा।
अतः चेन्नई का समय = बोस्टन का समय + समयांतर = 22.00 + 10.4 = 32.4
हम जानते हैं कि 24 घंटों के बाद अगला दिन शुरू हो जाता है अतः चेन्नई के कुल समय में से 24 घंटे घटा दीजिए अर्थात्
= 32.4-24 = 8.4।
इसका अर्थ यह है कि जब बोस्टन में 15 मार्च के दिन, रात के 10 बजे होंगे उस समय चेन्नई में दिन पहले ही पूरा हो चुका होगा और वहां अगले दिन 16 मार्च प्रातः 8 बजकर 4 मिनट हुए होंगे।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

प्रश्न 5.
एक स्थान ‘A’ पर स्थानीय समय के अनुसार प्रातः के 10.00 बजे हैं तथा दूसरे स्थान ‘B’ पर उसी दिन सायं के 5.00 बजे हैं। यदि ‘A’ का देशांतर 40°E हो तो ‘B’ का देशांतर क्या होगा?
उत्तर:
घंटे  मिनट
A स्थान का समय = 10 : 00
B स्थान का समय = 17 : 00 (12+ 5)
समय में अंतर = 7 : 00 घंटे
अर्थात् 7 x 60 = 420 मिनट
यदि 4 मिनट के अंतर पर देशांतर का अंतर 1° है
तो 420 मिनट के अंतर पर देशांतर का अंतर
= \(\frac { 420 }{ 4 }\) = 105 देशांतर होगा
क्योंकि B स्थान का समय अधिक है इसलिए ‘B’ ‘A’ स्थान के पूर्व में स्थित होगा।
A का देशांतर = 40°E
B का देशांतर = 40° + 105° = 145° E
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प्रश्न 6.
टोकियो का देशांतर 138° 45′ पूर्व है और अहमदाबाद का देशांतर 72°45′ पूर्व है। टोकियो का समय ज्ञात कीजिए, जबकि अहमदाबाद में प्रातः के 9 बजे हों।
उत्तर:
टोकियो का देशांतर = 138° 45′ पूर्व
अहमदाबाद का देशांतर = 72° 45′ पूर्व
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 138° 45′ – 72° 45′
66° 00′
1° देशांतर के अंतर पर समय का अंतर = 4 मिनट
66 देशांतर के अंतर पर समय का अंतर = 66 x 4 = 264
मिनट अर्थात् 264 ÷ 60 = 4 घंटे 24 मिनट
क्योंकि टोकियो अहमदाबाद के पूर्व में है इसलिए टोकियो का समय अहमदाबाद के समय से आगे होगा।
टोकियो का समय ज्ञात करने के लिए हमें दोनों स्थानों के समय के अंतर को अहमदाबाद के समय में जोड़ना होगा। अतः टोकियो का समय होगा 9:00 + 4:24 = 13:24 अर्थात् दोपहर 1 बजकर 24 मिनट।
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प्रश्न 7.
हांगकांग (114° पूर्व) पर समय ज्ञात कीजिए जब मांट्रियल (74° पश्चिम) पर मंगलवार सायं के 10 बजे हों।
उत्तर:
हांगकांग का देशांतर = 114° पूर्व
मांट्रियल का देशांतर = 74° पश्चिम
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 114° + 74° = 188°
(जब दोनों दिशाएं विपरीत हों तो देशांतरों के जमा होने पर अंतर निकलता है)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 7
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर यदि देशांतर में अंतर 188° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
= 188 x 4 = 752 मिनट अर्थात् 12 घंटे 32 मिनट
क्योंकि हांगकांग मांट्रियल के पूर्व में स्थित है, इसलिए वहां का स्थानीय समय मांट्रियल के समय से आगे होगा।
मांट्रियल में रात के 10 बजे हैं अर्थात् मांट्रियल में सूर्योदय हुए 12 + 10 = 22 घंटे हो चुके हैं।
क्योंकि हांगकांग मांट्रियल के पूर्व में स्थित है, इसलिए हांगकांग का समय ज्ञात करने के लिए हमें दोनों स्थानों के समय के अंतर को मांट्रियल के समय में जोड़ना होगा।
अतः हांगकांग का समय = मांट्रियल का समय + समयांतर = 22:00 + 12:32 = 34:32.
हम जानते हैं कि 24 घंटों के बाद अगला दिन शुरू हो जाता है। अतः हांगकांग के कुल समय में से 24 घंटों घटा दीजिए अर्थात् 34:32-24 = 10:32
इसका अर्थ यह हुआ कि जब मांट्रियल में मंगलवार रात के 10 बजे होंगे उस समय हांगकांग में अगले दिन बुधवार को दिन के 10:32 बजे होंगे।

प्रश्न 8.
भारत के पश्चिम में स्थित भुज का देशांतर 69° पूर्व है तथा भारत के पूर्व में स्थित तेजपुर का देशांतर 93° पूर्व है। भुज का स्थानीय समय ज्ञात करो, जबकि तेजपुर में दोपहर के 12 बजे हों।
उत्तर:
तेजपुर का देशांतर = 93° पूर्व
भुज का देशांतर = 69° पूर्व
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 93° – 69° = 24°
1° देशांतर के अंतर पर समय का अंतर = 4 मिनट
24° देशांतर के अंतर पर समय का अंतर
= 24 x 4=96 मिनट अर्थात् 1 घंटा 36 मिनट
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 8
क्योंकि भुज तेजपुर के पश्चिम में है, इसलिए भुज का स्थानीय समय तेजपुर के स्थानीय समय से पीछे होगा। अतः भुज का समय = 12:00 – 1:36 = 10 बजकर 24 मिनट दिन के।

प्रश्न 9.
एशियाई रूस के पूर्व में स्थित व्लाडिवॉस्टक का देशांतर 132° पूर्व है तथा यूरोपीय रूस के पश्चिम में स्थित सेंट पीटर्सबर्ग का देशांतर 30° पूर्व है। यदि व्लाडिवॉस्टक में 10 मार्च रविवार प्रातः के 4 बजे हैं तो सेंट पीटर्सबर्ग में स्थानीय समय क्या होगा?
उत्तर:
व्लाडिवॉस्टक का देशांतर = 132° पूर्व
सेंट पीटर्सबर्ग का देशांतर = 30° पूर्व
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 132° – 30° = 102°
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
यदि देशांतर में अंतर 102° है तो समय में अंतर
= 102 x 4 =408 मिनट अर्थात
= 6 घंटे 48 मिनट।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 9
क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग व्लाडिवॉस्टक के पश्चिम में है अतः सेंट पीटर्सबर्ग का स्थानीय समय व्लाडिवॉस्टक के स्थानीय समय से पीछे होगा।
अतः सेंट पीटर्सबर्ग का समय ज्ञात करने के लिए हमें व्लाडिवॉस्टक के समय से 6 घंटे 48 मिनट पीछे जाना होगा अर्थात 4a.m. – 6:48 = 9 बजकर 12 मिनट रात के दिनांक 9 मार्च शनिवार।

अक्षांश, देशान्तर और समय HBSE 11th Class Geography Notes

→ अक्षांश (Latitude)-किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण की ओर पृथ्वी के केन्द्र पर बनने वाली कोणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते हैं।

→ देशान्तर (Longitude)-किसी स्थान की प्रधान देशान्तर रेखा (0° देशान्तर) से पूर्व या पश्चिम दिशा में कोणात्मक दूरी को उस स्थान का देशान्तर कहते हैं।

→ प्रधान मध्याह्न रेखा (Prime Meridian) एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौते में लंदन के समीप ग्रीनविच वेधशाला से गुजरने वाली देशान्तर रेखा को प्रधान देशान्तर रेखा या प्रधान मध्याह्न रेखा कहा जाता है।

→ कर्क रेखा (Tropic of Capricorn)-भूमध्य रेखा से 2372° उत्तर अक्षांश रेखा को कर्क रेखा कहते हैं।

→ अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Line) अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा 180° देशान्तर रेखा के लगभग अनुरूप वह काल्पनिक रेखा है जिसे पार करने पर दिशा के अनुसार एक दिन बढ़ाया या घटाया जाता है।

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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 2 मानचित्र मापनी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन-सी विधि मापनी की सार्वत्रिक विधि है?
(A) साधारण प्रकथन
(B) निरूपक भिन्न
(C) आलेखी विधि
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) निरूपक भिन्न

2. मानचित्र की दूरी को मापनी में किस रूप में जाना जाता है?
(A) अंश
(B) हर
(C) मापनी का प्रकथन
(D) निरूपक भिन्न
उत्तर:
(B) हर

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

3. मापनी में ‘अंश’ व्यक्त करता है-
(A) धरातल की दूरी
(B) मानचित्र की दूरी
(C) दोनों दूरियां
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) धरातल की दूरी

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मापक किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानचित्र पर प्रदर्शित किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की दूरी तथा पृथ्वी पर उन्हीं दो बिंदुओं के बीच की वास्तविक दूरी के अनुपात को मापक कहते हैं।

प्रश्न 2.
मापक की हमें क्यों जरूरत पड़ती है?
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र के बराबर आकार का मानचित्र नहीं बनाया जा सकता। यद्यपि क्षेत्र के अनुपात में कुछ छोटा मानचित्र बनाया जा सकता है। इसके लिए मापक जरूरी है। दूसरे मानचित्र पर दूरियों को मापने और विभिन्न स्थानों की सापेक्षित स्थिति ज्ञात करने के लिए भी हमें मापक की जरूरत पड़ती है।

प्रश्न 3.
मानचित्र पर मापक को कितने तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है?
उत्तर:
तीन विधियों से-

  1. कथनात्मक मापक
  2. प्रदर्शक भिन्न (R.E.) और
  3. रैखिक मापक।

प्रश्न 4.
प्रदर्शक भिन्न (R.F.) क्या होती है?
उत्तर:
यह मापक प्रदर्शित करने वाली भिन्न होती है जिसके बाईं ओर की संख्या अंश तथा दाईं ओर की संख्या हर कहलाती है। अंश (Numerator) का मान (Value) सदा 1 होता है जो मानचित्र की दूरी को दिखाता है और हर (Denominator) धरातल की दूरी को दिखाता है। इन दोनों की इकाई सदा एक-जैसी होती है।

प्रश्न 5.
R.F. को किस मापन-प्रणाली द्वारा व्यक्त किया जाता है?
उत्तर:
प्रदर्शक भिन्न या R.E. की कोई मापन-प्रणाली नहीं होती। यह तो केवल भिन्न (Fraction) के द्वारा व्यक्त होता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

प्रश्न 6.
प्रदर्शक भिन्न को मापक व्यक्त करने की अन्य विधियों से बेहतर क्यों माना जाता है?
अथवा
प्रदर्शक भिन्न को अंतर्राष्ट्रीय मापक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
R.F. किसी भी मापन-प्रणाली से जुड़ा हुआ नहीं होता। अतः हर देश में इसका प्रयोग हो सकता है, इसलिए यह एक बेहतर विधि है।

प्रश्न 7.
विकर्ण मापक का क्या लाभ है?
उत्तर:
विकर्ण मापक से मानचित्र की छोटी-से-छोटी दूरी भी सरलता से मापी जा सकती है, क्योंकि इस मापक के द्वारा 1 सें०मी० या 1 इंच का 100वां हिस्सा भी दिखाया जा सकता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मापक क्या है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मापक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मापक की परिभाषा एवं अर्थ (Definition and Meaning of Scale)-पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग का मानचित्र बनाने से पहले हम तय करते हैं कि मानचित्र की कितनी दूरी से धरातल की कितनी दूरी दिखाई जानी है। इस प्रकार हम मानचित्र की दूरी और धरातल की दूरी के बीच एक संबंध स्थापित करते हैं। यही संबंध मापक को जन्म देता है। मापक वह अनुपात है जिसमें धरातल पर मापी गई दूरियों को छोटा करके मानचित्र में प्रदर्शित किया जाता है। सरल शब्दों में, “मानचित्र पर किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की सीधी दूरी तथा पृथ्वी पर उन्हीं दो बिंदुओं के बीच की वास्तविक सीधी दूरी के अनुपात को मापक कहते हैं।” (Scale is the ratio between a distance measured on a map and the corresponding distance on the Earth.) इसे निम्नलिखित सूत्र में भी व्यक्त किया जा सकता है-
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 1
उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए एक मानचित्र पर A तथा B कोई दो बिंदु हैं, जिनके बीच की दूरी 1 सें०मी० तथा धरातल पर इन्हीं दो बिंदुओं के बीच की दूरी 5 किलोमीटर है; तो उस मानचित्र का मापक 1 सें०मी० : 5 कि०मी० होगा।

प्रश्न 2.
मापक की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मापक की आवश्यकता (Necessity of Scale)-
(1) हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी के धरातल के आकार के बराबर मानचित्र नहीं बनाया जा सकता। अगर बन भी जाए तो वह निरर्थक होगा। प्रदर्शित.किए जाने वाले क्षेत्र की तुलना में मानचित्र का काफी छोटा होना ही उसकी उपयोगिता और सार्थकता को दर्शाता है। मानचित्र आवश्यकतानुसार आकार वाला होना चाहिए। यह कार्य केवल मापक द्वारा ही हो सकता है।

(2) मापक के अभाव में मानचित्र पर विभिन्न स्थानों की सापेक्षित स्थिति (Relative Position) नहीं दिखाई जा सकती। जो मानचित्र मापक के अनुसार न बना हो वह केवल एक कच्चा रेखाचित्र (Rough Sketch) होता है।

प्रश्न 3.
मापक की विभिन्न पद्धतियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मापक की पद्धतियाँ (Methods of Measurement)-मापक की दो पद्धतियाँ हैं-
1. मेट्रिक प्रणाली इस प्रणाली के अंतर्गत धरातल पर किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की क्षैतिज दूरी को मापने के लिए किलोमीटर, मीटर एवं सेंटीमीटर इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। मेट्रिक प्रणाली का उपयोग भारत तथा विश्व के अन्य अनेक देशों में किया जाता है।

2. अंग्रेज़ी प्रणाली-इस दूसरी पद्धति में मील, फल्ग, गज व फुट आदि इकाइयों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रणाली का उपयोग संयुक्त राज्य अमेरिका एवं इंग्लैंड दोनों देशों में किया जाता है। रेखीय दूरियों को मापने व प्रदर्शित करने के लिए 1957 से पूर्व इस पद्धति का प्रयोग भारत में भी किया जाता था।
मापक की पद्धतियाँ:
मापक की मेट्रिक प्रणाली

  • 1 कि०मी० = 1,000 मीटर
  • 1 मीटर = 100 सें०मी०
  • 1 सें०मी० = 10 मिलीमीटर

मापक की अंग्रेज़ी प्रणाली

  • 1 मील = 8 फर्लांग
  • 1 फर्लांग = 220 यरर्ड
  • 1 यार्ड = 3 फुट
  • 1 फुट = 12 इंच

प्रश्न 4.
एक मानचित्र का कथनात्मक मापक 5 सें०मी० : 1 कि०मी० है। उसका प्रदर्शक भिन्न (R.F.) ज्ञात करें।
क्रिया:
पग 1.
धरातल की दूरी को सें०मी० में परिवर्तित कीजिए, क्योंकि मानचित्र पर दूरी सें०मी० में है। 1 कि०मी० = 1,00,000 सें०मी०।।
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 2
R.F = \(\frac{5}{1,00,000}=\frac{1}{20,000}\) (अंश सदैव 1 ही रहता है।)
उत्तर:
R.F. = 1:20,000

प्रश्न 5.
एक मानचित्र का कथनात्मक मापक 1 सें०मी० : 250 मीटर है। उसका प्रदर्शक भिन्न (R.E.) ज्ञात कीजिए। क्रिया : पग 1. धरातल की दूरी को सें०मी० में बदलिए क्योंकि मानचित्र की दूरी सें०मी० में है। 250 मीटर = 100 x 250 = 25,000 सें०मी०
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 2
R.F. = \(\frac { 1 }{ 25,000 }\) (अंश सदैव 1 ही रहता है।)
उत्तर:
R.E. = 1:25,000

प्रश्न 6.
एक मानचित्र का कथनात्मक मापक 3.5 सें०मी० : 7 कि०मी० है। उसका प्रदर्शक भिन्न (R.F.) . ज्ञात करें।
क्रिया : पग 1. धरातल की दूरी को सें०मी० में बदलिए, क्योंकि मानचित्र की दूरी सें०मी० में है।
7 कि०मी० = 7 x 1,00,000 सें०मी०
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 2
R.E = \(\frac{3.5}{7,00,000}=\frac{1}{2,00,000}\) (अंश सदैव 1 रहता है)
उत्तर:
R.F. = 1:2,00,000

प्रश्न 7.
1 इंच : 8 मील वाले कथनात्मक मापक को प्रदर्शक भिन्न (R.F.) में परिवर्तित कीजिए। क्रिया : पग 1. धरातल की दूरी को इंचों में बदलिए क्योंकि मानचित्र की दूरी इंचों में है।
8 मील = 8 x 63,360 = 5,06,880 इंच
(1 मील = 63,360 इंच)
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 1a

R.E. = \(\frac{1}{5,06,880}\) (अंश सदैव 1 ही रहता है।)
उत्तर:
R.E. = 1:5,06,880

प्रश्न 8.
एक मानचित्र पर प्रदर्शक भिन्न \(\frac{1}{3,00,000}\) दिया गया है। इसे कि०मी० में दिखाने के लिए कथनात्मक मापक बनाइए।
क्रिया : पग 1. R.F. \(\frac{1}{3,00,000}\) ; इसे मीट्रिक प्रणाली में पढ़िए।
1 सें०मी० : 3,00,000 सें०मी०
पग 2. धरातल की दूरी को कि०मी० में बदलिए।
1 सें०मी० = \(\frac{1}{1,000}\) कि०मी०
3,00,000 सें०मी० = \(\frac{3,00,000}{1,00,000}\) = 3 कि०मी०
उत्तर:
कथनात्मक मापक 1 सें०मी० : 3 कि०मी०।

प्रश्न 9.
यदि प्रदर्शक भिन्न 1:2,53,440 हो तो मील दिखाने के लिए उसे कथनात्मक मापक में परिवर्तित कीजिए।
क्रिया : पग 1. R.F. = \(\frac{1}{2,53,440}\) को ब्रिटिश प्रणाली में पढ़िए।
1 इंच : 2,53,440 इंच।
पग 2. धरातल की दूरी को मीलों में बदलिए।
1 इंच = \(\frac{1}{63,360}\) माल
2,53,440 इंच = \(\frac{2,53,440}{63,360}\)= 4 मील
उत्तर:
कथनात्मक मापक 1 इंच : 4 मील।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

प्रश्न 10.
यदि प्रदर्शक भिन्न 1:10,00,000 हो तो मील दिखाने के लिए इसे कथनात्मक मापक में परिवर्तित कीजिए। क्रिया : पग 1. R.F. \(\frac{1}{10,00,000}\) को ब्रिटिश प्रणाली में पढ़िए।
1 इंच : 10,00,000 इंच
पग 2. धरातल की दूरी को मीलों में बदलिए।
1 इंच : \(\frac{1}{63,360}\) मील
10,00,000 इंच : \(\frac{10,00,000}{63,360}\) = 15.78 मील
उत्तर:
कथनात्मक मापक 1 इंच : 15.78 मील।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र पर मापक को प्रदर्शित करने वाली विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानचित्र पर मापक प्रदर्शित करने वाली विधियों के गुण-दोषों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र पर मापक को प्रदर्शित करने की विधियां (Methods of Expressing Scale on a Map)-मानचित्र पर मापक को निम्नलिखित तीन विधियों द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

  • कथनात्मक मापक (Statement of Scale)
  • प्रदर्शक भिन्न (Representative Fraction)
  • रैखिक मापक (Linear Scale)

1. कथनात्मक मापक (Statement of Scale) इस विधि में किसी मानचित्र पर उसके मापक को शब्दों में लिख दिया जाता है; जैसे 1 सेंटीमीटर : 2 किलोमीटर। इसका अर्थ यह हुआ कि मानचित्र पर 1 सेंटीमीटर की दूरी धरातल की 2 किलोमीटर की दूरी को प्रदर्शित कर रही है। कथनात्मक मापक में बाएं हाथ की ओर वाली संख्या सदैव मानचित्र पर दूरी को दिखाती है। इस विधि के अन्य नाम विवरणात्मक मापक तथा शाब्दिक विवेचन विधि भी हैं।

गुण-

  • यह एक सरल विधि है जिसे एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है।
  • मापक प्रदर्शित करने की इस विधि में कम समय लगता है और किसी विशेष कुशलता की भी आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • इस विधि से हमें दूरियों का ठीक-ठीक ज्ञान हो जाता है।

दोष-

  • कथनात्मक मापक को पढ़कर केवल वे लोग मानचित्र पर दूरियों की गणना कर सकते हैं, जो उस माप-प्रणाली से परिचित होंगे।
  • इस विधि द्वारा सीधे मानचित्र पर दूरियां नहीं मापी जा सकतीं।
  • जिन मानचित्रों में मापक शब्दों में व्यक्त किया गया होता है, उनका मूल आकार से भिन्न आकार में मुद्रित करना संभव नहीं होता, क्योंकि इससे उनका मापक अशुद्ध हो जाएगा।

2. प्रदर्शक भिन्न (Representative Fraction)-इस विधि में मापक को एक भिन्न द्वारा प्रदर्शित किया जाता है; जैसे \(\frac{1}{10,00,000}\)। इसका अंश (Numerator) सदा एक (1) होता है जो मानचित्र पर दूरी को दर्शाता है। इस भिन्न का हर (Denominator) धरातल पर दूरी को दर्शाता है। मानचित्र का मापक बदलने पर अंश वही रहता है, लेकिन हर बदल जाता है।
अन्य शब्दों में-
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 3
इस विधि की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें अंश और हर एक ही इकाई (Unit) में व्यक्त किए जाते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में मानचित्र का मापक 1 : 1,00,000 या 1/1,00,000 है तो इसका अर्थ यह हुआ कि मानचित्र पर दूरी की 1 इकाई धरातल पर 1,00,000 उन्हीं इकाइयों की दूरी को प्रदर्शित करती है। यदि मानचित्र पर यह इकाई 1 सें०मी० है तो धरातल पर यह 1,00,000 सें०मी० दूरी को प्रदर्शित करेगी।

गुण-
(1) इस विधि में किसी मापन-प्रणाली (Measurement System) का प्रयोग नहीं होता, केवल भिन्न का प्रयोग होता है। इसलिए मापक दिखाने की इस विधि का प्रयोग किसी भी देश की मापक प्रणाली के अनुसार किया जा सकता है। मान लो एक मानचित्र पर प्रदर्शक भिन्न = \(\frac{1}{10,00,000}\) लिखा हुआ है तो इसका अभिप्राय अलग-अलग मापन प्रणालियों में अलग-अलग होगा; जैसे-

देश/प्रणालीमानचित्र पर दूरीधरातल की दूरी
भारत व फ्रांस, जहां मेट्रिक प्रणाली है।1 सें०मी०1,00,000 सें०मी०
ब्रिटेन, जहां ब्रिटिश प्रणाली है।1 इंच1,00,000 इंच
रूस1 वर्स्ट1,00,000 वसर्ट्रूस
चीन1 चांग1,00,000 चांग

फर्क मामूली है, किंतु महत्त्वपूर्ण है

यह अनुपात (Ratio) हैयह भिन्न (Fraction) है
1: 50,000\(\frac { 1 }{ 50,000 }\)

संपरिवर्तनीयता (Convertibility) की इसी विशेषता के कारण ही इस R.F. विधि को अंतर्राष्ट्रीय मापक (International Scale) और प्राकृतिक मापक (Natural Scale) कहा जाता है।

(2) यह एक अत्यंत लोकप्रिय विधि है जिसका बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है।

दोष-

  • इस विधि में किसी मापन-प्रणाली का प्रयोग न करके केवल भिन्न का प्रयोग किया जाता है, जिससे सीधे ही दूरियों का अनुमान नहीं लग सकता।
  • फोटोग्राफी द्वारा मानचित्र को छोटा अथवा बड़ा करने पर इसका प्रदर्शक भिन्न बदल जाता है, यद्यपि संख्या वही लिखी रहती है।
    यह विधि एक साधारण व्यक्ति की समझ से बाहर है।

3. रैखिक मापक (Linear Scale)-इस विधि में मानचित्र की दूरी को एक सरल रेखा द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जिसका अनुपात धरातल की दूरी से होता है। सुविधा के अनुसार इस रेखा को प्राथमिक (Primary) तथा गौण (Secondary) भागों में बांटा जाता है।

गुण-
(1) इस विधि से दूरियों को मापना सरल हो जाता है।

(2) इस विधि का सबसे बड़ा गुण यह है कि यदि मानचित्र को फोटोग्राफी द्वारा बड़ा या छोटा किया जाए तो मानचित्र पर छपा रैखिक मापक भी उसी अनुपात में बड़ा या छोटा हो जाता है। अतः मापक बड़े या छोटे किए गए मानचित्र के लिए शुद्ध रहता है। यह गुण कथनात्मक मापक और प्रदर्शक भिन्न (R.F.) विधियों में नहीं है जिस कारण मूल मानचित्र से भिन्न मापक पर बने मानचित्र में ये दो विधियां उपयुक्त नहीं होती।

दोष-

  • इस विधि का प्रयोग भी तभी हो सकता है जब हम उस मापन-प्रणाली से परिचित हों जिसका प्रयोग मापक बनाने के लिए किया गया है।
  • इस मापक को बनाने में समय भी लगता है और कुशलता की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
रैखिक मापक की रचना को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
रैखिक मापक की रचना (Drawing of Linear Scale)-रैखिक मापक की रचना करने से पहले हमें एक सरल रेखा को समान भागों में बांटने के तरीके आने चाहिएं क्योंकि इसके बिना शुद्ध रैखिक मापक की रचना नहीं हो सकती। इसके लिए दो विधियां हैं
प्रथम विधि : मान लीजिए AB कोई दी हुई सरल रेखा है जिसे 6 समान भागों में विभाजित करना है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 4

  • A सिरे पर न्यूनकोण (Acute angle) बनाती हुई एक रेखा AC खींचो।
  • अब परकार में कोई भी दूरी भर कर AC रेखा में समान अंतर पर.छः बिंदु D, E, F, G H और I अंकित करो।
  • बिंदु IB को सरल रेखा द्वारा मिलाओ।
  • अब D, E, F, G और 4 बिंदुओं से IB रेखा के समानांतर रेखाएं खींचो।

इस प्रकार AB रेखा 6 समान भागों में बंट जाएगी (चित्र 2.1)।
दूसरी विधि : मान लीजिए AB कोई दी हुई रेखा है जिसे पाँच समान भागों में विभाजित करना है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 5

  • रेखा के दोनों सिरों A और B पर विपरीत दिशाओं में दो समान न्यूनकोण (लंबकोण भी ले सकते हैं) खींचो।
  • अब परकार में कोई भी दूरी भर कर बिंदु A से पांच बिंदु C, D, E, F और G अंकित करो।
  • इसी प्रकार B बिंदु से भी उतनी ही दूरी पर पांच बिंदु C’, D’, E, F व G’ अंकित करो।
  • अब A को G’ से, C को F से, D को E’ से, E को D’ से, F को C’ से तथा G को B से मिला दीजिए।

इस प्रकार AB रेखा के पांच समान भाग बन जाएंगे।

रैखिक मापक की रचना (Drawing of Linear Scale)-जब कथनात्मक मापक अथवा प्रदर्शक भिन्न दिया हुआ है तो हम प्लेन मापक बना सकते हैं। रैखिक मापक की रचना करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए
(1) प्रायोगिक-पुस्तिका (Practical File) में बनाई जाने वाली मापनी (Scale) की लंबाई 12 से 20 सें० मी० या 5 से 8 इंच के बीच ठीक मानी जाती है। वैसे मानचित्र के आकार के अनुसार किसी भी लंबाई की छोटी या बड़ी मापनी बनाई जा सकती है।

(2) मापक द्वारा प्रदर्शित धरातलीय दूरी सदा पूर्णांक संख्या में होनी चाहिए। पूर्णांक संख्या वह संख्या होती है जो 2, 5, 10, 15, 20, 50, 100 अथवा किसी भी अन्य संख्या से पूर्णतः विभाजित हो जाए और उसमें शेष (Remainder) न बचे।

(3) मापक को पहले सुविधानुसार मुख्य भागों (Primary Divisions) में बांटा जाता है। याद रहे प्रत्येक मुख्य भाग भी पूर्णांक संख्या को दर्शाता है।

(4) फिर बाईं ओर के पहले मुख्य भाग को सुविधानुसार गौण भागों (Secondary Divisions) में बांटा जाता है। इनसे मानचित्र पर छोटी दूरियां मापी जाती हैं।

(5) शून्य सदा बाईं ओर के पहले मुख्य भाग को छोड़कर अंकित किया जाता है।

(6) इस शून्य से दाईं ओर (Right Side) मुख्य भागों द्वारा दिखाई गई इकाई तथा बाईं ओर (Left side) गौण भागों द्वारा दिखाई गई इकाई अंकित की जाती है।

(7) वैसे तो विश्वविख्यात कंपनियों द्वारा बने मानचित्रों व एटलसों में मापक की तीन विधियों में से केवल एक विधि का प्रयोग होता है। विद्यार्थी क्योंकि अभी सीखने की अवस्था में हैं तो उन्हें रैखिक मापक के साथ कथनात्मक मापक या R.F. या दोनों ही लिखने चाहिएं।

प्रश्न 3.
1:2,50,000 प्रदर्शक भिन्न वाले मानचित्र के लिए एक रैखिक मापक बनाओ जिससे एक किलोमीटर की दूरी भी मापी जा सके।
क्रिया : प्रदर्शक भिन्न 1:2,50,000
पग 1.
12 सें०मी० रेखा को मुख्य तथा गौण भागों में विभक्त कीजिए।
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पग 2.
फिर इस प्रकार मापक को पूरा कीजिए।
PLAIN SCALE
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अर्थात् मानचित्र का 1 सें०मी० धरातल के 2,50,000 सें०मी० को प्रदर्शित करता है।
अथवा 1 सें०मी० = 2.5 कि०मी०
(क्योंकि 1,00,000 सें० मी० = 1 कि०मी०)
मान लो हम रैखिक मापक की लंबाई 12 सें० मी० रखना चाहते हैं। इस प्रकार इस लंबाई का मापक 12 x 2.5 = 30 कि०मी० की दूरी को प्रदर्शित करेगा। यह दूरी एक पूर्णांक संख्या है और मापक बनाने के लिए सुविधाजनक भी है। अब एक सरल रेखा 12 सें० मी० लंबी लो और इसे सिखलाई गई विधि से 6 समान भागों में बांटो। इसमें प्रत्येक मुख्य भाग 5 कि०मी०

दूरी को दिखाएगा। बाईं ओर के पहले मुख्य भाग को 5 गौण भागों में बांटो। प्रत्येक गौण भाग 1 कि०मी० को प्रदर्शित करेगा। इसकी दाईं तथा बाईं ओर कि०मी० लिखकर नीचे R.F.लिखो। इसे अंकित और सुसज्जित करके इसका शीर्षक लिखो (चित्र 2.3)।

विद्यार्थी ध्यान दें कि रैखिक मापक का डिज़ाइन जरूरी नहीं कि वैसा हो जैसा ऊपर बताया गया है। इसी R.F. से बने रैखिक मापक को नीचे दिए गए डिजाइनों से भी बनाया जा सकता है। आपने किस प्रकार का रैखिक मापक बनाना है, इसका निर्देश अपने प्राध्यापक महोदय से लें।
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प्रश्न 4.
एक मानचित्र का प्रदर्शक भिन्न 1 : 6,33,600 है। इस मानचित्र के लिए एक रैखिक मापक बनाइए जिसमें दो कि०मी० तक की दूरी पढ़ी जा सके।
क्रिया : इस प्रश्न में दूरियां कि०मी० में पूछी गई हैं अतः प्रदर्शन भिन्न का कथनात्मक मापक में परिवर्तन भी मेट्रिक प्रणाली में किया जाएगा।
प्रदर्शक भिन्न 1 : 6,33,600
∴ 1 सें०मी० : 6,33,600 सें०मी०
अथवा 1 सें०मी० : \(\frac { 6,33,600 }{ 1,00,000 }\) = 6.336 कि०मी० (क्योंकि 1,00,000 सें०मी० = 1 कि०मी०)
हम पढ़ चुके हैं कि रैखिक मापक की लंबाई 12 से 20 सें०मी० के बीच होनी चाहिए। यदि हम 12 सें०मी० लंबा मापक लेते हैं तो यह प्रदर्शित करेगा :
6.336 x 12 = 76.032 कि०मी०
परंतु 76.032 एक पूर्णांक संख्या नहीं है। इसकी निकटतम पूर्णांक संख्या 80 है। अब 80 कि०मी० को दर्शाने वाली रेखा की लंबाई ज्ञात करनी होगी।
क्योंकि 6.336 कि०मी० = 1 सें०मी०
1 कि०मी० = \(\frac { 1 }{ 6.336 }\) सेंमी०
80 कि०मी० = \(\frac { 1×80 }{ 6.336 }\) = 12.62 सें०मी०
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प्रश्न 5.
किलोमीटर प्रदर्शित करने के लिए एक रैखिक मापक बनाओ जबकि मानचित्र का प्रदर्शक भिन्न 1:20,00,000 . है।
क्रिया: क्योंकि दूरियां कि०मी० में पूछी गई हैं अतः प्रदर्शक भिन्न का कथनात्मक मापक में परिवर्तन भी मेट्रिक प्रणाली में किया जाएगा।
R.F. = 1 : 20,00,000
∴ 1 सें०मी० : 20,00,000 से०मी०
अथवा 1 सेंमी \(\frac { 20,00,000 }{ 1,00,000 }\) = 20 कि०मी० (क्योंकि 1,00,000 सें०मी० = 1 कि०मी०)
यदि हम मापक की लंबाई 15 सेंमी० लेते हैं तो यह 15 x 20 = 300 कि०मी० की दूरी दिखाएगा। अब एक सरल रेखा 15 सें०मी० लो उसके पांच बराबर भाग करो। प्रत्येक मुख्य भाग 60 कि०मी० को प्रदर्शित करेगा। बाईं ओर के प्रथम मुख्य भाग को 6 गौण भागों में बांटो जिसमें प्रत्येक गौण भाग 10 कि०मी० की दूरी दिखाएगा। इसके नीचे प्रदर्शक भिन्न लिख दो (चित्र 2.5)।
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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

प्रश्न 6.
एक मानचित्र का प्रदर्शक भिन्न 1 : 63,360 है। इसके द्वारा एक ऐसा रैखिक मापक बनाओ जिस पर मील और फर्लाग पढ़े जा सकें।
क्रिया: इसमें दूरियां मीलों और फल्गों में पूरी की गई हैं। अतः प्रदर्शक भिन्न का कथनात्मक मापक भी ब्रिटिश प्रणाली में किया जाएगा।
R.F. 1 : 63,360
∴ 1 इंच : 63,360 इंच
अथवा 1 इंच = \(\frac { 63,360 }{ 63,360 }\) = 1 मा
(क्योंकि 63,360 इंच = 1 मील)
हम पढ़ चुके हैं कि रैखिक मापक की लंबाई 5 से 8 इंच के बीच होनी चाहिए। मान लीजिए हम मापक की लंबाई 6 इंच लेते हैं।
6 इंच प्रदर्शित करेंगे 1 x 6 = 6 मील को।
अब 6″ लंबी रेखा लो, उसके 6 बराबर भाग करो। प्रत्येक मुख्य भाग 1 मील को प्रदर्शित करेगा। बाईं ओर के पहले मुख्य भाग के 4 बराबर गौण भाग करो। प्रत्येक गौण भाग 2 फर्लाग को दिखाएगा (क्योंकि 1 मील में 8 फलाँग होते हैं)। इसके नीचे R.F. लिख दो (चित्र 2.6)।
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मानचित्र मापनी HBSE 11th Class Geography Notes

→ अंश (Numerator)-भिन्न में रेखा के ऊपर स्थित अंक को अंश कहते हैं। उदाहरण के लिए 1:50,000 के भिन्न में 1 अंश है।

→ निरूपक भिन्न-मानचित्र अथवा प्लान की मापनी को प्रदर्शित करने की एक ऐसी विधि, जिसमें मानचित्र या प्लान पर दिखाई गई दूरी तथा धरातल की वास्तविक दूरी के बीच के अनुपात को भिन्न के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है

→ हर (Denominator)-भिन्न में रेखा के नीचे स्थित अंक को हर कहते हैं। उदाहरण के लिए, 1:50,000 के भिन्न में 50,000 हर है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. भारत में सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र पर पाई जाने वाली मिट्टी है
(A) काली मिट्टी
(B) जलोढ़ मिट्टी
(C) लैटेराइट मिट्टी
(D) मरुस्थलीय मिट्टी
उत्तर:
(B) जलोढ़ मिट्टी

2. निम्नलिखित में से किस मिट्टी का अन्य नाम रेगड़ है?
(A) वनीय मिट्टी का
(B) जलोढ़ मिट्टी का
(C) लैटेराइट मिट्टी का
(D) काली मिट्टी का
उत्तर:
(B) जलोढ़ मिट्टी का

3. गंगा के मैदान का उपजाऊपन किस कारण से बना हुआ है?
(A) लगातार सिंचाई
(B) प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा नई मिट्टी का जमाव
(C) मानसूनी वर्षा
(D) ऊसर भूमि का सुधार
उत्तर:
(B) प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा नई मिट्टी का जमाव

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

4. भारत में जलोढ़ मिट्टी का विस्तार कितना है?
(A) 22%
(B) 35%
(C) 44%
(D) 55%
उत्तर:
(C) 44%

5. काली मिट्टी की रचना हुई है
(A) समुद्री लहरों की निक्षेपण क्रिया द्वारा
(B) कांप की मिट्टी के निक्षेपण द्वारा
(C) पैठिक लावा के जमने से
(D) लोएस के जमाव से
उत्तर:
(C) पैठिक लावा के जमने से

6. काली मिट्टी के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(A) इसमें नमी को धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है।
(B) सूखने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं।
(C) गन्ना, तम्बाकू, गेहूं, तिलहन व कपास के लिए यह मिट्टी श्रेष्ठ सिद्ध हुई है।
(D) काली मिट्टी प्रवाहित मिट्टियों का आदर्श उदाहरण है।
उत्तर:
(D) काली मिट्टी प्रवाहित मिट्टियों का आदर्श उदाहरण है।

7. निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही नहीं है ?
(A) काली मिट्टी : महाराष्ट्र
(B) कांप मिट्टी : उत्तर प्रदेश
(C) लैटेराइट मिट्टी : पंजाब
(D) लाल और पीली मिट्टी : तमिलनाडु
उत्तर:
(C) लैटेराइट मिट्टी : पंजाब

8. दक्कन के पठार पर किस मिट्टी का विस्तार सबसे ज्यादा है?
(A) काली मिट्टी
(B) कांप मिट्टी
(C) लैटेराइट मिट्टी
(D) जलोढ़ मिट्टी
उत्तर:
(A) काली मिट्टी

9. काली मिट्टी किस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) कपास
(D) बाजरा
उत्तर:
(C) कपास

10. मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया कहलाती है
(A) निक्षालन
(B) मृदा-जनन
(C) मृदा अपरदन
(D) मृदा संरक्षण
उत्तर:
(B) मृदा-जनन

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

11. राजस्थान में मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारक कौन-सा है?
(A) तटीय
(B) अवनालिका
(C) परत
(D) पवन
उत्तर:
(D) पवन

12. चरागाहों और झाड़ीनुमा वनों के लिए कौन-सी मिट्टी अनुकूल मानी जाती है?
(A) जलोढ़
(B) लैटेराइट
(C) काली
(D) पर्वतीय
उत्तर:
(B) लैटेराइट

13. मिट्टी का विकास कितनी अवस्थाओं में होता है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(B) 3

14. लाल मिट्टी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) लोहे के यौगिकों की उपस्थिति के कारण इसका रंग लाल होता है
(B) यह मिट्टी शुष्क कृषि के लिए अधिक उपयुक्त है
(C) यह अधिकांशतः तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है
(D) यह तलछटी चट्टानों के टूटने से बनी है
उत्तर:
(D) यह तलछटी चट्टानों के टूटने से बनी है

15. पीट मिट्टी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) यह मिट्टी राजस्थान, गजरात व हरियाणा में पाई जाती है
(B) इसका निर्माण आर्द्र दशाओं में होता है
(C) इसमें लोहांश और जीवांश की मात्रा अधिक पाई जाती है
(D) वर्षा ऋतु में अधिकांशतः पीट मिट्टी जल में डूब जाती है
उत्तर:
(A) यह मिट्टी राजस्थान, गजरात व हरियाणा में पाई जाती है

16. लैटेराइट मिट्टी के संबंध में कौन-सी बात असत्य है?
(A) इसका निर्माण निक्षालन एवं केशिका क्रिया द्वारा होता है
(B) यह मिट्टी अम्लीय प्रकार की होने के कारण कम उपजाऊ है
(C) इसका निर्माण कम वर्षा और ठंडे इलाकों में होता है
(D) यह मिट्टी कंकरीली और छिद्रयुक्त होती है
उत्तर:
(C) इसका निर्माण कम वर्षा और ठंडे इलाकों में होता है

17. लैटेराइट मिट्टी का सबसे ज्यादा उपयोग किस कार्य में किया जाता है?
(A) कृषि में
(B) चरागाहों में
(C) झाड़ीनुमा वनों में
(D) भवन-निर्माण में
उत्तर:
(D) भवन-निर्माण में

18. ‘बेट’ भूमि कहा जाता है
(A) तराई क्षेत्र में पाई जाने वाली नालों व नालियों से कटी-फटी भूमि को
(B) उभरे हुए मिट्टी के दरों को
(C) जलोढ़ की बिछी मिट्टी की नई उपजाऊ चौरस परत को
(D) चंबल क्षेत्र में पाई जाने वाली क्षत-विक्षत भूमि को
उत्तर:
(C) जलोढ़ की बिछी मिट्टी की नई उपजाऊ चौरस परत को

19. भारत में मृदा अपरदन का सबसे प्रमुख कारण है?
(A) वनों का बड़ी मात्रा में विदोहन
(B) वायु द्वारा मिट्टी का अपवाहन
(C) सरिता अपरदन
(D) जलवायविक दशाएँ
उत्तर:
(A) वनों का बड़ी मात्रा में विदोहन

20. भारत में मृदा की ऊपरी परत के हास का प्रमुख कारण है-
(A) वायु अपरदन
(B) अत्याधिक निक्षालन
(C) जल अपरदन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) जल अपरदन

21. देश में हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि निम्नलिखित में से किस कारण से लवणीय हो रही है?
(A) जिप्सम का बढ़ता प्रयोग
(B) अतिचारण
(C) अति सिंचाई
(D) रासायनिक खादों का उपयोग
उत्तर:
(C) अति सिंचाई

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
मृदा को मूल पदार्थ अथवा पैतृक पदार्थ कहाँ से प्राप्त होता है?
उत्तर:
चट्टानों से।

प्रश्न 2.
भारत में किस मिट्टी का विस्तार सबसे अधिक क्षेत्रफल पर है?
अथवा
भारत में उत्तरी मैदान में किस मिट्टी का विस्तार अधिक है?
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी का।

प्रश्न 3.
दक्कन के पठार पर किस मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार पाया जाता है?
उत्तर:
काली मिट्टी।

प्रश्न 4.
काली मिट्टी किस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है?
उत्तर:
कपास एवं गन्ना।

प्रश्न 5.
लाल मिट्टी के लाल रंग का क्या कारण है?
उत्तर:
लोहांश की अधिक मात्रा।

प्रश्न 6.
राजस्थान में मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारक कौन-सा है?
उत्तर:
पवन।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 7.
चरागाहों और झाड़ीनुमा वनों के लिए कौन-सी मिट्टी अनुकूल मानी जाती है?
उत्तर:
लैटेराइट मिट्टी।

प्रश्न 8.
कौन-सी मिट्टी खेती के लिए अच्छी नहीं मानी जाती?
उत्तर:
पीली मिटी।

प्रश्न 9.
बांगर मिट्टी को किस अन्य नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पुरातन काँप मिट्टी।

प्रश्न 10.
लाल या पीले रंग वाली मिट्टी का नाम बताइए।
उत्तर:
लैटेराइट।

प्रश्न 11.
काली मिट्टी पाए जाने वाले किसी एक राज्य का नाम बताएँ।
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 12.
नदियों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जो मृदा मिलती है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
नूतन काँप मिट्टी।

प्रश्न 13.
मरुस्थलीय मिट्टी को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
बलुई मिट्टी।

प्रश्न 14.
वायु अपरदन सबसे अधिक कहाँ होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय भागों में।

प्रश्न 15.
खड़ी ढाल वाले क्षेत्रों में मृदा अपरदन रोकने के लिए कौन-सी विधि अपनाई जाती है?
उत्तर:
समोच्चरेखीय जुताई।

प्रश्न 16.
पहाड़ों और पठारों पर मिट्टी की परत पतली क्यों होती है?
उत्तर:
क्योंकि ढाल एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण वहाँ मिट्टी टिक नहीं पाती।

प्रश्न 17.
जलोढ़ मिट्टियों का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अपरदित पदार्थों के निक्षेपण से।

प्रश्न 18.
जलोढ़ मिट्टी में कुएँ, नलकूप व नहरें खोदना आसान क्यों होता है?
उत्तर:
मिट्टी के मुलायम होने के कारण।

प्रश्न 19.
मरुस्थलीय मिट्टी में लहलहाती फसलें कैसे उगाई जा सकती हैं?
उत्तर:
सिंचाई की सुविधाएँ देकर।

प्रश्न 20.
पर्वतीय मिट्टी चाय के लिए उपयोगी क्यों मानी जाती है?
उत्तर:
पर्वतीय मिट्टी तेज़ाबी होती है जो चाय में ‘फ्लेवर’ पैदा करती है।

प्रश्न 21.
वृक्षारोपण मृदा के संरक्षण में कैसे सहायता करते हैं?
उत्तर:
वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बांध देती हैं।

प्रश्न 29.
मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया में प्राकृतिक वनस्पति की क्या भूमिका होती है?
उत्तर:
मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया का गहरा सम्बन्ध वनस्पति की वृद्धि और पौधों में पलने वाले सूक्ष्म जीवों से होता है। वनस्पति और जीवों के सड़े-गले अंश जीवांश (ह्यूमस) के रूप में मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसी कारण वन्य प्रदेशों में अधिक उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार मृदा या मिट्टी तथा वनस्पति के प्रकारों में रोचक (Interesting) सम्बन्ध पाया जाता है।

प्रश्न 30.
काली मिट्टी का निर्माण कैसे हुआ है? यह भारत में कहाँ-कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
निर्माण आधुनिक मान्यता के अनुसार, काली मिट्टी ज्वालामुखी विस्फोट से बनी दरारों से निकले पैठिक लावा (Basic Lava) के जमाव से बनी है।
विस्तार-यह मिट्टी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात तथा तमिलनाडु के लगभग 5 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी के बाद देश में काली मिट्टी का विस्तार सबसे बड़े क्षेत्र पर है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मृदा का हमारे लिए क्या महत्त्व है?
अथवा
मृदा की विशेषताएँ किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं? किन्हीं दो उदाहरणों से इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मृदा या मिट्टी एक अत्यन्त मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन है। मिट्टी के निर्माणकारी विभिन्न घटकों का संयोजन मिट्टी के उपजाऊपन को निर्धारित करता है। अधिक उपजाऊ और गहरी मिट्टी में कृषि अर्थव्यवस्था समृद्ध तथा अधिक जनसंख्या के पोषण में समर्थ होती है। इसके विपरीत, कम गहरी व कम उपजाऊ मिट्टी में कृषि का विकास कम होता है जिससे वहाँ जनसंख्या का घनत्व और लोगों का जीवन-स्तर दोनों ही निम्न होते हैं। सघन जनसंख्या वाले पश्चिम बंगाल के डेल्टाई प्रदेश एवं केरल के तटीय मैदान दोनों में समृद्ध जलोढ़ मिट्टी के कारण उन्नतशील कृषि पाई जाती है जबकि तेलंगाना की कम गहरी व मोटे कणों वाली मिट्टी और राजस्थान की रेत उन्नत कृषि को आधार प्रदान नहीं कर पाई।

प्रश्न 2.
भूमि का ढाल अथवा उच्चावच मिट्टी की निर्माण प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
भूमि का ढाल मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया को कई प्रकार से प्रभावित करता है-
(1) तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह की गति तेज़ होती है जिससे मिट्टी के निर्माण की बजाय उसका अपरदन होने लगता है। निम्न उच्चावच वाले क्षेत्रों में मिट्टी का निक्षेपण अधिक होता है जिससे मिट्टी की परत गहरी या मोटी हो जाती है।

(2) ढाल की प्रवणता मिट्टी के उपजाऊपन को भी निर्धारित करती है। यही कारण है कि मैदानों के डेल्टा क्षेत्र और नदी बेसिन में मिट्टी गहरी और उपजाऊ होती है जबकि पठारों में अधिक उच्चावच के कारण मिट्टी कम गहरी होती है।

प्रश्न 3.
मिट्टी के निर्माण के सक्रिय एवं निष्क्रिय कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा निर्माण के पाँच कारकों में से दो सक्रिय व तीन निष्क्रिय कारक होते हैं-
(1) सक्रिय कारक (Active Factors) मृदा निर्माण में जलवायु और जैविक पदार्थ सक्रिय कारक माने जाते हैं क्योंकि इनकी क्रियाशीलता के कारण ही चट्टानों का अपघटन (Decomposition) होता है और कुछ नए जैव-अजैव यौगिक (Compounds) तैयार होते हैं।

(2) निष्क्रिय कारक (Passive Factors)-जो कारक मिट्टी निर्माण की प्रक्रिया में स्वयं पहल नहीं करते, निष्क्रिय कारक कहलाते हैं। वे हैं-जनक पदार्थ, स्थलाकृति और विकास की अवधि।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 4.
जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह मिट्टी हल्के भूरे व पीले रंग की होती है।
  • अधिकतर स्थानों पर यह भारी दोमट व अन्य स्थानों पर यह बलुही और चिकनी होती है।
  • भिन्न-भिन्न प्रदेशों में जलोढ़ मिट्टी की गहराई अलग-अलग होती है।
  • इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस व वनस्पति अंश (ह्यूमस) की कमी होती है, परन्तु पोटाश और चूरा पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी अत्यन्त उपजाऊ होती है।
  • यह प्रवाहित (Transported) मिट्टी है जिसमें जन्म से जमाव तक के लम्बे चट्टानी मार्ग में अनेक रासायनिक तत्त्व आ मिलते हैं।
  • मुलायम होने के कारण इस मिट्टी में कुएँ, नलकूप व नहरें खोदना आसान और कम खर्चीला होता है।
  • जलोढ़ मिट्टी में गहन कृषि (Intensive Farming) की जाती है; जैसे चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास, तिलहन, दालें, तम्बाकू व हरी सब्ज़ियाँ इस मिट्टी में बहुतायत से उगाई जाती हैं।

प्रश्न 5.
जलोढ़ मिट्टियों के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संरचना और उपजाऊपन के आधार पर जलोढ़ मिट्टियों के तीन उप-विभाग हैं-
1. खादर मिट्टियाँ–नदी तट के समीप नवीन कछारी मिट्टी से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं। नदियों की बाढ़ के कारण यहाँ प्रतिवर्ष जलोढ़क की नई परत बिछ जाने के कारण यह मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। इसे ‘बेट’ भूमि भी कहा जाता है।

2. बाँगर मिट्टियाँ-पुराने जलोढ़ निक्षेप से बने ऊँचे प्रदेश को बाँगर कहते हैं। यहाँ बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता। बाँगर में मृतिका का अंश अधिक पाया जाता है। इसमें कैल्शियम संग्रथनों अर्थात् कंकड़ों की भरमार होती है। इसे ‘धाया’ भी कहते हैं।

3. न्यूनतम जलोढ़ मिट्टियाँ यह नदियों के डेल्टाओं में पाई जाने वाली दलदली, नमकीन और अत्यन्त उपजाऊ मिट्टियाँ होती हैं। इनके कण अत्यन्त बारीक होते हैं। इनमें ह्यूमस, पोटाश, चूना, मैग्नीशियम व फॉस्फोरस अधिक मात्रा में मिलते हैं।

प्रश्न 6.
भारत के उत्तरी मैदान तथा प्रायद्वीपीय पठार की मिट्टियों में मूलभूत अन्तर क्या है?
उत्तर:
भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाने वाली मिट्टी का निर्माण नदियों की निक्षेपण-क्रिया से हुआ है। यहाँ की मिट्टी हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार दोनों से ही निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लाई गई है। इसमें महीन कणों वाली मृत्तिका पाई जाती है। इस मिट्टी का अपनी मूल चट्टानों से सम्बन्ध नहीं रहता। ऐसी मिट्टियों को प्रवाहित मिट्टियाँ कहा जाता है। इसके विपरीत, दक्षिणी पठार की मिट्टियों का अपनी मूल चट्टानों से गहरा सम्बन्ध है क्योंकि ये अपने निर्माण-स्थल से बहुत अधिक दूर प्रवाहित नहीं हुईं। ऐसी मिट्टियाँ स्थायी मिट्टियाँ (Permanent Soils) कहलाती हैं। ये प्रायः मोटे कणों वाली और कम उपजाऊ होती हैं।

प्रश्न 7.
काली मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
विशेषताएँ-

  1. रंग की गहराई के आधार पर काली मिट्टी के तीन प्रकार होते हैं-(a) छिछली काली मिट्टी, (b) मध्यम काली मिट्टी तथा (c) गहरी काली मिट्टी।।
  2. यह अपने ही स्थान पर बनकर पड़ी रहने वाली स्थायी मिट्टी है।
  3. इस मिट्टी में चूना, लोहा, मैग्नीशियम, कैल्शियम कार्बोनेट, एल्यूमीनियम व पोटाश अधिक पाया जाता है, परन्तु इसमें जीवित पदार्थों, फॉस्फोरस और नाइट्रोजन की मात्रा कम पाई जाती है।
  4. लोहांश की मात्रा अधिक होने के कारण इस मिट्टी का रंग काला होता है।
  5. उच्च स्थलों पर पाई जाने वाली मिट्टी का उपजाऊपन निम्न स्थलों व घाटियों की काली मिट्टी की अपेक्षा कम होता है।
  6. काली मिट्टी में कणों की बनावट घनी और महीन होती है जिससे इसमें नमी धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है। इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है।
  7. जल के अधिक देर तक ठहर सकने के गुण के कारण यह मिट्टी शुष्क कृषि के लिए श्रेष्ठ है।
  8. इस मिट्टी का प्रमुख दोष यह है कि ग्रीष्म ऋतु में सूख जाने पर इसकी ऊपरी परत में दरारें पड़ जाती हैं। वर्षा ऋतु में यह मिट्टी चिपचिपी हो जाती है। दोनों दशाओं में इसमें हल चलाना कठिन हो जाता है। अतः पहली बारिश के बाद इस मिट्टी की जुताई ज़रूरी है।
  9. कपास के उत्पादन के लिए यह मिट्टी अत्यन्त उपयोगी है। अतः इसे काली कपास वाली मिट्टी भी कहते हैं। गन्ना, तम्बाकू, गेहूँ व तिलहन के लिए यह मिट्टी श्रेष्ठ सिद्ध हुई है।

प्रश्न 8.
ढाल पर मृदा अपरदन रोकने की दो प्रमुख विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
ढाल पर मृदा अपरदन रोकने की दो प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. वृक्षारोपण-वृक्षारोपण मृदा-संरक्षण का सबसे सशक्त उपाय है। जिन क्षेत्रों में वनों का अभाव है वहाँ वर्षा के जल से मिट्टी के कटाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों में लगाए गए वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बाँध देती हैं व वृक्ष तेज़ हवाओं के कारण होने वाली मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं। साथ ही वृक्षों के अनियोजित कटाव को भी रोकना होगा। यदि विकास कार्यों हेतु वृक्ष काटने भी पढ़ें तो आस-पास नये वृक्ष लगाना भी आवश्यक है।

2. कृषि प्रणाली में सुधार भारत के कई स्थानों में की जाने वाले दोषपूर्ण कृषि प्रणाली में सुधार लाकर भी मिट्टी का संरक्षण किया जा सकता है। इसमें फसलों का चक्रण, सीढ़ीदार कृषि व ढलानों पर जल का वेग रोकने के लिए समोच्च रेखीय जुताई करना प्रमुख है। खेतों की मेड़बन्दी करना व उर्वरता बढ़ाने हेतु कृषि-भूमि को कुछ समय के लिए परती (Fallow) छोड़ना भी भूमि-संरक्षण के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 9.
मृदा अपरदन भारतीय कृषि का निर्दयी शत्रु क्यों माना जाता है? मृदा अपरदन की हानियाँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
मृदा भारत के करोड़ों लोगों व करोड़ों पशुओं के भोजन का आधार है। भारत में मृदा अपरदन ने भयंकर रूप धारण कर रखा है। इसलिए इसे भारतीय कृषि का निर्दयी शत्रु माना जाता है। मृदा-अपरदन से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं

  • भीषण तथा आकस्मिक बाढ़ों का प्रकोप।
  • सूखे (Drought) की लम्बी अवधि जिससे फसलों को नुकसान होता है।
  • कुओं व ट्यूबवलों, नलकूपों का जल-स्तर (चोवा) नीचे चला जाता है व सिंचाई में बाधा पहुँचती है।
  • बालू के जमाव से नदियों, नहरों व बन्दरगाहों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।
  • उपजाऊ भूमि के नष्ट होने से कृषि की उत्पादकता कम होती है।
  • अवनालिका अपरदन से कृषि-योग्य भूमि में कमी आती है।

प्रश्न 10.
मृदा की उर्वरा-शक्ति को विकसित करने के लिए कौन-कौन से उपाय करने चाहिएँ?
उत्तर:
कृषि भूमि पर निरन्तर खेती करने से मिट्टी की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है। उर्वरा-शक्ति को बनाए रखने के लिए . निम्नलिखित उपाय करने चाहिएँ-
1. भूमि को परती छोड़ना (Fallow Land) कृषि की जमीन को लगातार जोतने की बजाय उसे एक दो वर्षों के लिए परती छोड़ देनी चाहिए। परती छोड़ने से वायु, वनस्पति (घास), कीड़े-मकौड़े आदि ऐसी जमीन पर उर्वरा-शक्ति बढ़ाते हैं।

2. फसलों का हेर-फेर (Rotation of Crops)-खेत में फसलों को बदल-बदलकर बोना चाहिए। विभिन्न पौधे मिट्टी से विभिन्न प्रकार के पोषक तत्त्व खींचते हैं और कछ तत्त्व छोडते हैं। अतः फसलों के हेर-फेर से मिट्टी में लगातार एक प्रकार के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते, बल्कि दूसरी फसलों से उनकी पूर्ति हो जाती है।

3. गहरी जुताई (Deep Ploughing) कृषि-भूमि को काफी गहराई तक जोतना चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी के खनिज तत्त्वों का मिट्टी में पूरी तरह मिलान हो जाता है।

4. रासायनिक खादों का प्रयोग (Use of Chemical Fertilizers)-मिट्टी में समय-समय पर रासायनिक खाद तथा जैविक उर्वरक आदि का प्रयोग करते रहना चाहिए।

प्रश्न 11.
किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में मृदा की विशेषताएँ किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं? इसकी व्याख्या करने के लिए दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
भू-पटल पर पाए जाने वाले असंगठित शैल चूर्ण की पर्त, जो पौधों को उगने तथा बढ़ने के लिए जीवांश तथा खनिजांश प्रदान करती है, उसे मृदा कहते हैं। यह एक बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा है। इस पर अनेक मानवीय क्रियाएँ निर्भर करती हैं। मिट्टी कृषि, पशु-पालन तथा वनस्पति जीवन का आधार है। बहुत-से देशों की अर्थव्यवस्था मिट्टी के उपजाऊपन पर निर्भर करती है। विश्व के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य अपने भोजन के लिए मृदा की उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करते हैं। जिन क्षेत्रों की भूमि अनुपजाऊ होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व तथा लोगों का जीवन-स्तर निम्न होता है।

उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल का डेल्टाई क्षेत्र और केरल तट अति उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी से निर्मित हैं। इसलिए ये क्षेत्र सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व के प्रदेश हैं तथा यहाँ उन्नत कृषि की जाती है। इसके विपरीत तेलंगाना में मोटे कणों की मिट्टी पाई जाती है और राजस्थान में रेतीली मिट्टी मिलती है। यह मिट्टी कृषि के योग्य नहीं है। इसलिए उन क्षेत्रों में जनसंख्या विरल है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मृदा-निर्माण करने वाले विभिन्न घटकों या कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा-निर्माण करने वाले मुख्य घटक या कारक निम्नलिखित हैं-
1. जनक-सामग्री अथवा मूल पदार्थ-मिट्टी का निर्माण करने वाले जनक पदार्थों की प्राप्ति चट्टानों से होती है। चट्टानों के अपरदन और अपक्षय से बने चूर्ण से ही मिट्टी का निर्माण होता है। भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाने वाली मिट्टी का निर्माण नदियों की निक्षेपण-क्रिया से हुआ है। इस मिट्टी का अपनी मूल चट्टानों से सम्बन्ध नहीं रहता। ऐसी मिट्टियों को प्रवाहित मिट्टियाँ कहा जाता है। इसके विपरीत, दक्षिणी पठार की मिट्टियों का अपनी मूल चट्टानों से गहरा सम्बन्ध है क्योंकि ये अपने निर्माण-स्थल से बहुत अधिक दूर प्रवाहित नहीं हुईं। ऐसी मिट्टियाँ स्थायी मिट्टियाँ कहलाती हैं।

2. उच्चावच-तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह की गति तेज़ होती है जिसके कारण मिट्टी के निर्माण की बजाय उसका अपरदन होने लगता है। निम्न उच्चावच वाले क्षेत्रों में मिट्टी का निक्षेपण अधिक होता है जिससे मिट्टी की परत गहरी या मोटी हो जाती है। ढाल की प्रवणता मिट्टी के उपजाऊपन को भी निर्धारित करती है। यही कारण है कि मैदानों के डेल्टा क्षेत्र और नदी बेसिन में मिट्टी गहरी और उपजाऊ होती है जबकि पठारों में अधिक उच्चावच के कारण मिट्टी कम गहरी होती है।

3. जलवायु-भारत में तापमान और वर्षा में पाए जाने वाले विशाल प्रादेशिक अन्तर के कारण विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का जन्म हुआ है। उष्ण और आर्द्र प्रदेशों की मिट्टियाँ मोटाई और उपजाऊपन में शीतल एवं शुष्क प्रदेशों की मिट्टियों से काफी भिन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त, मिट्टी में जल रिसने की मात्रा और सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति भी, जो मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं, जलवायु द्वारा नियन्त्रित होती है।

4. प्राकृतिक वनस्पति-मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया का गहरा सम्बन्ध वनस्पति की वृद्धि और पौधों में पलने वाले सूक्ष्म जीवों से होता है। वनस्पति और जीवों के सड़े-गले अंश जीवाश्म (ह्यूमस) के रूप में मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसी कारण वन्य प्रदेशों में अधिक उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार मृदा या मिट्टी तथा वनस्पति के प्रकारों में रोचक सम्बन्ध पाया जाता है।

5. विकास की अवधि अथवा समय-मिट्टी का निर्माण एक धीमी किन्तु सतत् प्रक्रिया है। ऐसा मानना है कि दो सेण्टीमीटर मोटी मिट्टी की विकसित परत को बनाने में प्रकृति को लगभग दो शताब्दियाँ लग जाती हैं। मिट्टी का विकास तीन अवस्थाओं में होता है-

  • युवा अवस्था
  • प्रौढ़ अवस्था व
  • जीर्ण अवस्था।

अतः कहा जा सकता है कि मिट्टी ठोस, तरल व गैसीय पदार्थों का मिश्रण है जो चट्टानों के अपक्षय, जलवायु, पौधों व अनन्त जीवाणुओं के बीच होने वाली अन्तःक्रिया का परिणाम है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 2.
भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मृदा क्या है? मृदा के प्रकार बताइए और जलोढ़ मृदा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मृदा-भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत जो पौधों को उगने व बढ़ने के लिए जीवांश और खनिजांश प्रदान करती है मृदा कहलाती है। मिट्टियों के गुण, रंग व बनावट के आधार पर भारत में निम्नलिखित प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं-

  • काली मिट्टी
  • लैटेराइट मिट्टी
  • पर्वतीय मिट्टी
  • मरुस्थलीय मिट्टी
  • लाल और पीली मिट्टी
  • जलोढ़ मिट्टी
  • खारी खड़िया मिट्टी
  • दलदली मिट्टी।

1. काली मिट्टी (Black Soil) काली मिट्टी में महीन कण वाली मृत्तिका अधिक होती है। इस कारण इसमें पानी के रिसने की सम्भावना नहीं होती। यह मिट्टी कठोर प्रकार की होती है। यह ज्वालामुखी के लावा से बनती है। यह काले रंग की बारीक कणों वाली होती है। इसे रेगर (Ragur) के नाम से भी जाना जाता है। यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है। इसमें अधिक जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती। यह मिट्टी अधिक मात्रा में नमी ग्रहण कर सकती है। इसमें चूना, पोटाश, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। यह मिट्टी दक्षिणी राजस्थान, पश्चिमी आन्ध्र प्रदेश तथा पश्चिमी मध्य प्रदेश में अधिक मात्रा में पाई जाती है। कपास की खेती के लिए यह मिट्टी बहुत उपजाऊ है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ 1

2. लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)-इस प्रकार की मिट्टी उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पाई जाती है। भारी वर्षा के कारण इसमें चूना व सिलिका घुल जाते हैं और एल्युमीनियम की मात्रा अधिक हो जाती है। चूने के अभाव के कारण यह मृदा अम्लीय होती है। पठारों और पहाड़ियों पर इस मिट्टी का निर्माण अधिक होता है। इस मिट्टी का रंग लौह-ऑक्साइड तत्त्व के कारण लाल होता है। ओडिशा के पूर्वी घाट क्षेत्र में यह मिट्टी अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है। इस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा नमी क्षेत्र को छोड़कर बहुत कम पाई जाती है। ऊँचे भागों की लेटेराइट मिट्टी अनुपजाऊ होती है। यह नाइट्रोजन, चूना, फास्फोरस तथा मैग्नीशियम की मात्रा कम होने के कारण कम उपजाऊ है। मिट्टी में घास, झाड़ियाँ बहुत उगती हैं। यह मिट्टी छोटा नागपुर. का पठार, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा तथा असम में पाई जाती है।

3. पर्वतीय मिट्टी (Mountaineous Soil)-मैदान की अपेक्षा पर्वतीय मिट्टियों में अधिक विभिन्नताएँ होती हैं। पर्वतों की मिट्टियाँ आग्नेय चट्टानों तथा इनके पदार्थों के विघटन होने के कारण बनी हैं। पर्वतों की मिट्टियाँ ऊँचाई के अनुरूप अलग-अलग पाई जाती हैं। इनके तल की मिट्टियाँ क्षितिजीय वितरण के लिए होती हैं। ऊँचे पर्वत की मिट्टियाँ ऊपरी ढाँचे से युक्त होती हैं। निचले भागों में अपेक्षाकृत पूर्ण निर्मित व समान रूप से वितरित मिट्टियाँ पाई जाती हैं। धरातल व ढालों के प्रभाव के कारण इसकी गहराई में अन्तर मिलता है।

ये मिट्टियाँ लम्बे समय तक कृषि के उपयोग में लाई जाती हैं। पर्याप्त नमी के कारण विभिन्न खनिजों का जमाव, फास्फोरस, जिप्सम, चूना आदि की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टियों का निर्माण प्रतिवर्ष होता रहता है।

4. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil) भारत की मरुस्थलीय मिट्टी में अनुसन्धान ‘भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्’ कर रही है। इसने हाल ही में राजस्थान के मरुस्थल के बारे में जानकारी उपलब्ध की है। ये मिट्टियाँ मूल रूप से गंगा सिन्ध मैदान का भाग हैं। ये मिट्टियाँ उच्च तापमान व शुष्कता से निर्मित होती हैं। इसका रंग काला, लाल, भूरा व स्लेटी होता है। ये एक प्रकार की स्थानान्तरित कछारी मिट्टियाँ हैं। इनमें उर्वरा शक्ति बहुत कम होती है। इसमें क्षारीय तत्त्व, जैवकीय तत्त्व, नाइट्रोजन व ह्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है। इसकी रन्ध्रता से पानी का अधिक तेजी से रिसाव होता है। पैतृक पदार्थों से विघटित होकर ये मिट्टियाँ खिट के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं।

5. लाल मिट्टी (Red Soil)-लाल मिट्टी भारत के दक्षिण पठार के मुख्य ट्रेप (Trap) के बाहरी भागों तक पाई जाती है। पूर्वी तथा पश्चिम घाटों के ढाल, हजारीबाग तथा छोटा नागपुर पठार, दामोदर की घाटी तथा अरावली पर्वत श्रेणी इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। इसकी बनावट बलुई व दोमट कणों की है। यह उपोष्ण प्रदेशों में कम, विक्षलित वर्षा वाले वनों में गहरे लाल रंग के रूप में पाई जाती है। ये मिट्टियाँ अधिक मोटी व उपजाऊ होती हैं। ये मिट्टियाँ ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तरी मध्य आन्ध्र प्रदेश तथा पूर्वी केरल राज्यों में विस्तृत रूप से फैली होती हैं। लाल दानेदार मिट्टी कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश में पाई जाती है। यह मिट्टी कम उर्वरा शक्ति वाली होती है। इसकी भौतिक संरचना रेगर प्रकार की होती है।

6. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) यह भारत के उत्तरी मैदान की प्रमुख मिट्टी है। उत्तरी भारत की नदियों द्वारा बिछाई गई मिट्टी भारतीय पठार में पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं, नर्मदा, ताप्ती की निचली घाटियों व गुजरात में पाई जाती है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश की मात्रा कम पाई जाती है। यहाँ की पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बाँगर कहा जाता है। इस मिट्टी में चूना बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा बिछाई गई मिट्टी में चूने की मात्रा पूर्ण रूप से पाई जाती है। यह मिट्टी शुष्क छ स्थानों पर खारी मिट्टी के बड़े टुकड़े सोडियम, कैल्शियम, पोटाशियम तथा मैग्नीशियम के जमा होने से बनती है। इस मिट्टी में रेह अथव कल्लर भी पाई जाती है। इस मिट्टी पर जुताई बड़ी आसानी से हो जाती है। इसमें खाद मिलाकर सिंचाई करने के बाद वर्ष में कई फसलें प्राप्त की जा सकती हैं। इस भाग में वर्षा के असमान वितरण के कारण कई तत्त्वों की न्यूनाधिकता पाई जाती है। यह मिट्टी अपनी उपजाऊ शक्ति के कारण भारतीय कृषि में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।

7. खारी खड़िया मिट्टियाँ (Brakish Soil)-खारी लवण-युक्त मिट्टियाँ शुष्क मरुस्थल में पाई जाती हैं। इस मिट्टी वाले स्थानों पर लवण धरातल पर विक्षालन की बजाय निचली परतों में एकत्रित हो जाते हैं और धीरे-धीरे मिट्टी को लवण-युक्त बना देते हैं। इसकी ऊपरी सतह पर नमक की परत जमा हो जाती है। यह नमक की परत उपजाऊ शक्ति को कम कर देती है। इसमें सोडियम, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम की अधिक मात्रा पाई जाती है। यह मिट्टी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र में पाई जाती है।
मृदाएँ

8. दलदली मिट्टी (Marshy Soil)-दलदली और पीट मिट्टियाँ, जहाँ बहुत गहरा कीचड़ होता है, वहाँ पाई जाती हैं। उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र क्षेत्र जहाँ अपर्याप्त जल प्रवाह होता है, वहाँ दलदली मिट्टियाँ विकसित होती हैं। ये अत्यधिक अम्लीय अपरिष्कृत विनिष्ट वनस्पतिक पदार्थ उत्पन्न करती हैं। ये बाढ़ के मैदानों पर निर्मित होती हैं, जो विभिन्न अवधियों में जलमग्न हो जाती हैं और कीचड़ तथा तलछट के निक्षेपों से युक्त हो जाती हैं। यह मिट्टी केरल, ओडिशा, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तरी बिहार, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 3.
मृदा अपरदन से आपका क्या तात्पर्य है? इसके प्रकार तथा कारण बताएँ।
अथवा
मृदा अपरदन क्या है? इसके प्रकारों तथा कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मृदा अपरदन (Soil Erosion)-प्रकृति की विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा मिट्टियों के ह्रास को मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा अपरदन जल तथा वायु के परिणामस्वरूप होता है। विभिन्न साधन, जो किसी-न-किसी रूप में सक्रिय रहते हैं, धरातल को निरन्तर काटते-छाँटते रहते हैं, इनमें बहता हुआ जल, हवा, हिमानी आदि प्रमुख प्राकृतिक साधन हैं। मिट्टियों के अपरदन में मानवीय क्रियाकलाप का भी योगदान कम नहीं है। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के तकनीकी साधन अपनाकर मिट्टी के कटाव को बढ़ावा देता है। वर्तमान समय में भूमि के अधिकतम उपयोग, अधिकतम रासायनिक क्रियाओं व खाद का उपयोग अव्यवस्थित कृषि पद्धति आदि करने से मिट्टी का कटाव अधिक हो रहा है।

मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion)-मृदा अपरदन मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-

  • जलीय अपरदन (Fluvial Erosion)
  • वायुद अपरदन (Acolian Erosion)
  • समुद्री अपरदन (Marine Erosion)

1. जलीय अपरदन (Fluvial Erosion)-जल के विभिन्न रूप प्रभावित जल, एकत्रित जल, नदी पोखरों, झरनों, हिमानी द्वारा मिट्टी का कटाव को जलीय अपरदन कहते हैं। इसमें मिट्टियाँ अपनी मूलचट्टानों को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाकर जमा हो जाती हैं। बहते हुए जल द्वारा वहाँ अपरदन कई रूप में होता है
(1) अवनलिका अपरदन (Gully Erosion)-प्रथम अवस्था में मिट्टियाँ इस प्रकार का अपरदन पहाड़ी दुर्गम क्षेत्रों के तंग मार्ग में मिट्टी के कटाव करती हैं। इसमें कटाव लम्बवत रूप से होता है तथा घाटी गहरी होती जाती है।

(2) चद्दर अपरदन (Sheet Erosion)-इस प्रकार का अपरदन नदियों के लिए तलीय भाग के पानी द्वारा होता है। इसमें अपरदन परतों के रूप में होता है, इसलिए इसे चद्दर अपरदन कहते हैं।

(3) सरिता अपरदन (River Erosion)-जब नदी अपनी वृद्ध अवस्था में छोटी-छोटी जल धाराओं में बँट जाती है और मिट्टी की ऊपरी परत (महीन व चिकने कणयुक्त) को काट देती है, तो उसे सरिता अपरदन कहा जाता है।

(4) नदी तटीय कटाव (Riparian Erosion) यह अपरदन नदियों के तेज प्रवाह के कारण होता है। इसमें नदियाँ तटीय भागों को अधिक अपरदित करती हैं। इसका निर्माण नदी की सर्पाकार अवस्था में भी मिलता है।

(5) छपछपाना कटाव (Splash Erosion)-जब वर्षा रुक-रुककर होती है, तो इस क्रिया से मिट्टी ढीली हो जाती है, जो बाद में पानी के साथ बह जाती है। इसे छपछपाना कटाव कहते हैं।

2. वायुद अपरदन (Acolian Erosion)-वायु अपनी प्राकृतिक शक्ति द्वारा मैदानी तथा मरुस्थलों की मिट्टी को अपने साथ उड़ा ले जाती है और उसे दूसरे स्थान पर निक्षेपण कर देती है। हवा द्वारा मिट्टियों का अपरदन व निक्षेपण विस्तृत भागों में होता है। मरुस्थलों में इस प्रकार का अपरदन व निक्षेपण कई कि०मी० तक होता रहता है। इसमें वायु का वेग तेज होता है। जिन क्षेत्रों में अव्यवस्थित कृषि होती है और भूमि बारम्बार जोत से ढीली हो जाती है, उसे वायु अपने साथ उड़ा ले जाती है। इस प्रकार का अपरदन उपजाऊ भाग की मिट्टियाँ उड़ाकर उसे अनुपजाऊ बना देता है। मिट्टियों की निक्षेपण क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार की मरुस्थलीय स्थलाकृतियाँ बनती व बिगड़ती रहती हैं। जिन भागों पर ये मिट्टियाँ बिछा दी जाती हैं, वहाँ मिट्टी की पतली परत का निर्माण हो जाता है, जो बहुत उपजाऊ होती है, लेकिन पानी के अभाव के कारण अनुपजाऊ हो जाती है।

3. समुद्री अपरदन (Marine Erosion)-नदियों व झीलों आदि की लहरों द्वारा समुद्र के तटवर्ती भागों का अपरदन होता है। ये लहरें धीरे-धीरे तटीय भागों को अपरदित करना शुरू कर देती हैं और वहाँ अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण कर देती हैं। ये लहरें दलदल का भी निर्माण करती हैं, जिससे खारी मिट्टियों का निर्माण होता है। लहरें तटीय भागों पर गहरी नालियों का निर्माण कर देती हैं तथा उपजाऊ भूमि को अनुपयुक्त बना देती हैं। ज्वार-भाटा भी तटीय कटावों में सहयोगी होता है।

इस प्रकार पानी की क्रियाओं द्वारा या हवाओं द्वारा निरन्तर मिट्टियों का कटाव होता रहता है। मिट्टी अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion) मृदा अपरदन के निम्नलिखित कारण हैं-
1. वर्षा की भिन्नता (Variability of Rainfall) अलग-अलग क्षेत्रों में वर्षा के वितरण में भिन्नता पाई जाती है। जहाँ पर कम वर्षा होती है, वहाँ मिट्टी शुष्क होकर अपरदित होने लगती है। कहीं-कहीं पर पानी से दरारें व मिट्टी भुरभुरी होकर बिखर जाती है। अतः वर्षा का असमान वितरण भी मिट्टी कटाव में सहायक होता है।

2. निरन्तर कृषि (Regular Cultivation)-लगातार कई वर्षों तक एक ही क्षेत्र पर कृषि करने से मिट्टियों का कटाव होता है। इसकी उपजाऊ शक्ति धीरे-धीरे कम होती जाती है और मिट्टी में रासायनिक तत्त्वों की कमी आ जाती है। स्थानान्तर कृषि से वनों का नाश होता है, इसके द्वारा भी काफी मात्रा में मिट्टी अपरदन होता है।

3. जंगलों की कटाई (Deforestation)-वर्तमान समय में जनसंख्या के विस्फोट के कारण वनों की निरन्तर कटाई से वन धीरे-धीरे कम हो रहे हैं और ताप व वर्षा की दशाओं पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं, जिसका प्रभाव वनस्पति के विकास व वृद्धि पर पड़ता है। इस प्रकार धीरे-धीरे वन उजड़ जाते हैं और मृदा अपरदन बढ़ता जाता है।

4. नदियाँ (Rivers)-बहती हुई नदियाँ अपने रास्ते से मिट्टी बहाकर ले जाती हैं और रास्ते में अनेक खड्डों का निर्माण कर देती हैं। कई बार नदियाँ अपना रास्ता बदल देती हैं और नए तरीके से अपने मार्ग का निर्माण कर देती हैं। इस निर्माण क्रिया में भी मृदा अपरदन होता रहता है। बाढ़ के समय मृदा अपरदन काफी मात्रा में होता है।

5. हवाएँ (Airs) मरुस्थलीय भागों में वायु द्वारा मृदा अपरदन तीव्र गति से होता है। वायु अपने साथ मिट्टी को उड़ाकर ले जाती है और दूसरे स्थान पर उसका निक्षेपण कर देती है। वायु की तीव्रता के अनुसार मृदा अपरदन कम या ज्यादा होता है।

6. अनियन्त्रित पशुचारण (Uncontrolled Pastroalis) पशुचारण से पेड़-पौधों का विनाश होता है। पशु घास को जड़ सहित खींच लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूमि-क्षरण प्रारम्भ हो जाता है। पशुओं के चलने-फिरने से भी मिट्टी ढीली पड़ जाती है। इस प्रकार पशुओं के अनियमित चराने से मृदा अपरदन होता है।

7. कृषि के गलत तरीके (Faulty Methods ofCultivation)-आधुनिक समय में विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति के कारण के अनेक विकसित तरीकों की खोज हो चुकी है। मानव अधिक फसल के लिए इन तरीकों का गलत प्रयोग करता है। इस कारण भी मृदा अपरदन होता है। खेतों को बारम्बार जोतना या आवश्यकता न होने पर जोतना, अनियन्त्रित सिंचाई, अधिक कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करना आदि से मिट्टियाँ अपना गुण खो देती हैं और इनका विघटन प्रारम्भ हो जाता है।

8. वनस्पति का विनाश (Destruction of Vegetation) प्राकृतिक वातावरण में धीरे-धीरे परिवर्तन से ताप में भिन्नता तथा इन क्षेत्रों की मिट्टियों के निर्माण में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। इस परिवर्तन के कारण पौधों व वनस्पति पर विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। वनस्पति नष्ट होनी शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे शुष्कता भी बढ़ती जाती है। वनस्पति आवरण के कम होने के कारण ताप की तीव्रता अधिक होती जाती है और मिट्टियों का क्षरण प्रारम्भ हो जाता है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. भारत का कितना क्षेत्रफल वनों के अंतर्गत आता है?
(A) 12.50%
(B) 15.49%
(C) 19.39%
(D) 33.25%
उत्तर:
(C) 19.39%

2. भारत में कुल कितने जीवमंडल निचय हैं?
(A) 9
(B) 12
(C) 14
(D) 16
उत्तर:
(C) 14

3. भारत में एक सींग वाले गैंडे कहाँ मिलते हैं?
(A) ओडिशा (उड़ीसा) में
(B) मध्य प्रदेश में
(C) असम में
(D) गुजरात में
उत्तर:
(C) असम में

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

4. भारत के सबसे बड़े क्षेत्र में किन वनों का फैलाव है?
(A) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों का
(B) कंटीले वनों का
(C) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों का
(D) डेल्टाई वनों का
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों का

5. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों के वृक्ष हैं
(A) सागोन
(B) साल
(C) नीम
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. मैंग्रोव वन किन क्षेत्रों में पाए जाते हैं?
(A) डेल्टाई क्षेत्रों में
(B) पर्वतीय क्षेत्रों में
(C) मैदानी क्षेत्रों में
(D) मरुस्थलीय क्षेत्रों में
उत्तर:
(A) डेल्टाई क्षेत्रों में

7. कंटीली झाड़ियाँ किन क्षेत्रों में पाई जाती हैं?
(A) डेल्टाई क्षेत्रों में
(B) पर्वतीय क्षेत्रों में
(C) मैदानी क्षेत्रों में
(D) मरुस्थलीय क्षेत्रों में
उत्तर:
(D) मरुस्थलीय क्षेत्रों में

8. सुंदरवन जीव मंडल निचय किस राज्य में स्थापित है?
(A) पश्चिमी बंगाल में
(B) उत्तराखंड में
(C) मध्य प्रदेश में
(D) उत्तर प्रदेश में
उत्तर:
(A) पश्चिमी बंगाल में

9. भारत में पाई जाने वाली वनस्पति में बोरियल वनस्पति का अनुपात कितना है?
(A) 20%
(B) 30%
(C) 35%
(D) 40%
उत्तर:
(D) 40%

10. उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन क्षेत्रों में वर्षा की कितनी मात्रा पाई जाती है?
(A) 75 cm से कम
(B) 100 cm
(C) 150 cm
(D) 200 cm से अधिक
उत्तर:
(D) 200 cm से अधिक

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

11. भारत में बाघ विकास कार्यक्रम परियोजना की शुरुआत की गई
(A) सन् 1973 में
(B) सन् 1974 में
(C) सन् 1975 में
(D) सन् 1976 में
उत्तर:
(A) सन् 1973 में

12. गिर वन किस प्राणी की शरणस्थली है?
(A) मोर
(B) हाथी
(C) शेर
(D) बाघ
उत्तर:
(C) शेर

13. भारत का राष्ट्रीय पशु है-
(A) मोर
(B) हाथी
(C) शेर
(D) बाघ
उत्तर:
(D) बाघ

14. भारत का राष्ट्रीय पक्षी है
(A) मोर
(B) हाथी
(C) शेर
(D) बाघ
उत्तर:
(A) मोर

15. भारतीय वन्य जीवमंडल का गठन कब किया गया-
(A) सन् 1952 में
(B) सन् 1965 में
(C) सन् 1972 में
(D) सन् 1999 में
उत्तर:
(A) सन् 1952 में

16. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम बनाया गया-
(A) सन् 1952 में
(B) सन् 1965 में
(C) सन् 1972 में
(D) सन् 1999 में
उत्तर:
(C) सन् 1972 में

17. हरा सोना कहा जाता है-
(A) कोयले को
(B) वृक्षों को
(C) पर्वतों को
(D) सागर को
उत्तर:
(B) वृक्षों को

18. महोगिनी उदाहरण है
(A) डेल्टाई वन का
(B) मरुस्थलीय वन का
(C) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन का
(D) उष्णकटिबंधीय शुष्क वन का
उत्तर:
(C) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन का

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
नंदा देवी जीवमंडल निचय किस प्रांत में स्थित है?
उत्तर:
उत्तराखंड।

प्रश्न 2.
भारत में वन्य प्राणी अधिनियम कब पारित हुआ?
उत्तर:
सन् 1972 में।

प्रश्न 3.
भारतीय वन्य जीवमंडल का गठन कब किया गया?
उत्तर:
1952 में।

प्रश्न 4.
भारत में देशज अथवा स्थापित अथवा मौलिक वनस्पति कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय क्षेत्र के अधिकांश भागों में।

प्रश्न 5.
भारत में चीनी-तिब्बती क्षेत्र से आने वाली वनस्पति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
बोरियल वनस्पति।

प्रश्न 6.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों से प्राप्त हुई वनस्पति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
पुराउष्ण कटिबन्धीय जात।

प्रश्न 7.
बाघ परियोजना कब आरंभ की गई?
उत्तर:
1973 में।

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प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन हमेशा हरे क्यों दिखाई पड़ते हैं?
उत्तर:
विभिन्न जातियों के वृक्षों के पत्ते गिरने का समय अलग-अलग होने के कारण।

प्रश्न 9.
उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती अथवा मानसूनी वन किन जलवायविक दशाओं में उगते हैं?
उत्तर:
वार्षिक वर्षा 100 से 200 सें०मी० तथा सारा वर्ष ऊँचा (24°C) तापमान।

प्रश्न 10.
भारत में पाई जाने वाली वनस्पति में बोरियल वनस्पति का अनुपात कितना है?
उत्तर:
40 प्रतिशत।

प्रश्न 11.
हिमालय में वनस्पति के प्रकार को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला कारक कौन-सा है?
उत्तर:
ऊँचाई।

प्रश्न 12.
प्राकृतिक वनस्पति का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति का दूसरा नाम अक्षत वनस्पति है।

प्रश्न 13.
वनस्पति जगत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वनस्पति जगत का अर्थ किसी विशेष क्षेत्र में किसी समय में पौधों की उत्पत्ति से है।

प्रश्न 14.
मरुस्थल में किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?
उत्तर:
मरुस्थल में कांटेदार झाड़ियाँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 15.
पर्वत की ढलानों पर किस प्रकार के वन पाए जाते हैं?
उत्तर:
पर्वत की ढलानों पर शंकुधारी वन पाए जाते हैं।

प्रश्न 16.
पर्वतीय वन कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश, उत्तराँचल तथा जम्मू और कश्मीर।

प्रश्न 17.
एक सींग वाले गैंडे कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
असम तथा पश्चिमी बंगाल के दलदल वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 18.
भारत में सबसे बड़े क्षेत्र पर कौन-से वन फैले हैं?
उत्तर:
भारत में सबसे बड़े क्षेत्र पर उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन फैले हैं।

प्रश्न 19.
खजूर तथा नागफनी किस प्रकार के वनों की वनस्पति है?
उत्तर:
खजूर तथा नागफनी कंटीले वनों की वनस्पति है।

प्रश्न 20.
सिमलीपाल जीव मंडल निचय कौन-से राज्य में स्थित है?
उत्तर:
ओडिशा में।

प्रश्न 21.
भारत में हाथी कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारत में हाथी असम, कर्नाटक तथा केरल में पाए जाते हैं।

प्रश्न 22.
भारत में जंगली गधे कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
भारत में जंगली गधे कच्छ के रन में मिलते हैं।

प्रश्न 23.
भारत में याक कहाँ पाए जाते है?
उत्तर:
भारत में याक लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों पर पाए जाते हैं।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत का कितना क्षेत्रफल वनों के अन्तर्गत आता है?
उत्तर:
19.39 प्रतिशत अथवा 637.3 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
वन किन भौगोलिक कारकों की देन होते हैं?
उत्तर:
जलवायु (धूप एवं वर्षा), समुद्र तल से ऊँचाई तथा भू-गर्भिक संरचना।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों के कुछ प्रमुख वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर:
ताड़, महोगनी, रबड़, बाँस, बेंत तथा आबनूस।

प्रश्न 4.
डेल्टाई वनों के अन्य नाम बताइए।
उत्तर:
दलदली वन, ज्वारीय वन, मैंग्रोव वन।

प्रश्न 5.
डेल्टाई वनों के कुछ प्रमुख वृक्षों के नाम बताइए।
उत्तर:
ताज, ताड़, बेंत, नारियल, रोज़ोफरोश, सोनेरिटा व फीनिक्स इत्यादि।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह वनस्पति जो बिना मनुष्य की सहायता के किसी प्रदेश में अपने-आप उग आती है।

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प्रश्न 7.
औषधि देने वाले पाँच पौधों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • नीम
  • तुलसी
  • आंवला
  • सर्प गंधा
  • जामुन।

प्रश्न 8.
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों के तीन वृक्षों के नाम लिखें।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों के तीन वृक्षों के नाम महोगनी, रोजवुड और रबड़ है।

प्रश्न 9.
देशज वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह वनस्पति जो मूलरूप से भारतीय हो, उसे देशज वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 10.
विदेशज वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो वनस्पति विदेशों से भारत में आई है, उसे विदेशज वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 11.
हिमरेखा के पास वनस्पति के विकास की दशाएँ कैसी होती हैं?
उत्तर:
भारी ठण्ड के कारण वृक्षों में गाँठे पड़ जाती हैं और उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है।

प्रश्न 12.
वृक्षों को ‘हरा सोना’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
उनके आर्थिक, औद्योगिक एवं पर्यावरणीय महत्त्व के कारण।

प्रश्न 13.
पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक वातावरण एवं उसमें रहने वाले जीव आपस में घुल-मिलकर रहते हैं। इसी व्यवस्था को पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं। मनुष्य भी इस पारिस्थितिक तंत्र का अभिन्न अंग है।

प्रश्न 14.
भारत के चार ‘जीवमण्डल निचय’ के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नीलगिरी जीवमण्डल निचय
  2. मानस जीवमण्डल निचय
  3. सुंदरवन जीवमण्डल निचय
  4. नंदा देवी जीवमण्डल निचय।।

प्रश्न 15.
भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन तत्त्वों द्वारा निर्धारित होता है?
उत्तर:

  1. धरातल
  2. मृदा
  3. तापमान
  4. वर्षण
  5. सूर्य का प्रकाश।

प्रश्न 16.
कोई दो वन्य प्राणियों के नाम बताइए जो कि उष्ण कटिबंधीय वर्षा और पर्वतीय वनस्पति में मिलते हैं?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन-हाथी और बंदर
  2. पर्वतीय वन बारहसिंगा और याक।

प्रश्न 17.
संकटमयी जातियों तथा दुर्लभ जातियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. संकटमयी जातियाँ इस श्रेणी में वे जातियाँ आती हैं जो चारों ओर से खतरों से घिरी हुई हैं, उनके विलुप्त होने की पूरी सम्भावना है।उनकी संख्या बहुत थोड़ी रह गई है और उनका आवास भी काफी नष्ट हो चुका है।

2. दुर्लभ जातियाँ ये वे जातियाँ हैं जो संख्या में बहुत कम हैं और कुछ ही आवासों में जीवित हैं। उनके जीवन को तुरन्त कोई खतरा नहीं है, किन्तु उनके नष्ट होने की पूरी सम्भावना है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संकटापन्न जीवों के संरक्षण के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं? संकटापन्न जातियों के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में संकटापन्न जातियों के संरक्षण के लिए विशेष उपाय किए जा रहे हैं। इसके लिए वन्य प्राणियों की गणना की जाती है तथा उन जीवों की नवीनतम स्थिति और प्रवृत्ति का अनुमान लगाया जाता है। बाघ संरक्षण के लिए टाइगर प्रोजैक्ट योजना चलाई गई है जिसमें बाघों के आवास को बचाया जाता है तथा उनकी संख्या के स्तर को बनाए रखा जाता है। संकटापन्न जातियाँ-बाघ, गैण्डा, समुद्री गाय।

प्रश्न 2.
वन्य-जीवन के महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1. आर्थिक महत्त्व-वन्य-जीवन से हमें अनेक उत्पादों की प्राप्ति होती है। अनेक जानवरों का उपयोग खेती, परिवहन तथा बोझा ढोने में किया जाता है।

2. पारिस्थितिक तन्त्र का नियमन वन्य-जीवन (पौधे और प्राणी) अपनी संख्या सन्तुलित तो रखते ही हैं, बल्कि खाद्य-शृंखला तथा प्राकृतिक चक्रों को भी नियमित करते हैं।

3. जीन बैंक के रूप में वन्य-जीवन में कुछ बहुत उपयोगी जीन होते हैं। फसलों की उत्तम जातियाँ उत्पन्न करने के लिए वैज्ञानिकों को उत्तम जीन वाले पौधों की ज़रूरत होती है। इसी प्रकार रोग-प्रतिरोधी पौधे उत्पन्न करने के लिए भी उत्तम जीनों की आवश्यकता होती है।

4. अनुसन्धान-पौधे तथा जन्तु बायो मेडिकल अनुसन्धान के अभिन्न अंग हैं।

5. मनोरंजनात्मक महत्त्व प्राणियों के व्यवहार को प्राकृतिक वातावरण में देखना अच्छा लगता है। पक्षी शरणस्थल तथा बड़े-बड़े एक्वेरियम मनुष्य का मन मोह लेते हैं। इससे मनुष्य का मनोरंजन होता है तथा पर्यटन का भी विकास होता है।

प्रश्न 3.
वन्य-जीव (संरक्षण) अधिनियम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन् 1972 में वन्य-जीव (संरक्षण) अधिनियम बनाया गया जिसके अन्तर्गत-

  1. वन्य जीवन को वैधानिक संरक्षण
  2. वन्य प्राणियों के शिकार पर प्रतिबन्ध
  3. चोरी से शिकार करने वालों को कठोर दण्ड का प्रावधान
  4. शेर, बाघ, गेंडे व हाथियों के शिकार को दण्डनीय अपराध घोषित करना
  5. दुर्लभ व समाप्त हो रही प्रजातियों के व्यापार पर रोक (शाहतूश की शालों के व्यापार पर रोक)
  6. वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए समिति गठित करना जैसे प्रावधान किए गए।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 4.
वनस्पति जात और वनस्पति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वनस्पति जात और वनस्पति में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वनस्पति ज्ञातवनस्पति
1. किसी विशिष्ट प्रदेश अथवा युग के पेड़-पौधों की विभिन्न जातियाँ, जिन्हें एक वर्ग में रखा जा सकता है, ‘बनस्पति जात’ कहलाती हैं।1. किसी विशिष्ट पर्यावरण में पनपने वाले पेड़-पौधों की विभिन्न जातियों के समूह को ‘वनस्पति’ कहते हैं।
2. पर्यावरण में भिन्नता के कारण पेड़-पौधों की विभिन्न जातियाँ उगती और बढ़ती हैं।2. एक जैसे पर्यावरण में पाये जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधे एक दूसरे के साहचर्य में पनपते हैं।
3. परस्पर मिलती-जुलती पेड़-पौधों की विभिन्न जातियों को एक वर्ग में रखा जाता है और उस वर्ग का एक विशेष नाम होता है; जैसे भारत में पाए जाने वाले चीनी-तिब्बती क्षेत्र से प्राप्त पेड़-पौधों की जातियों के वर्ग को बोरियल कहते हैं।3. वनस्पति एक प्रदेश में विविध दृश्यावली प्रस्तुत करती है, जैसे-घास-भूमि, वनस्थली व झाड़ियाँ इत्यादि।

प्रश्न 5.
“मैंग्रोव वन सम्पन्न पारिस्थितिक तन्त्र हैं।” संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मैंग्रोव अपने आप में समृद्ध और सम्पन्न पारिस्थितिक तन्त्र (Eco-system) हैं। अत्यधिक नमी, पर्याप्त धूप, गले-सड़े जैव पदार्थों से प्राप्त पोषक तत्त्व, नदियों के बहते जल से प्राप्त खनिजांश की बहुतायत के कारण ये वन जीवन के अनेक रूपों के पैदा होने, फलने व बढ़ने की अनकल प्राकृतिक दशाएँ प्रदान करते हैं। घने पत्तों (Foliage) की छाय में उलझी हुई मज़बूत जड़ों की सुरक्षा के कारण ये वृक्ष असंख्य जीव-जन्तुओं, कीड़े-मकौड़ों, मछलियों, झींगों व अन्य जलीय जीवों के विकास, विशेष रूप से उनके प्रजनन काल में आश्रय-स्थली का काम करते हैं। ज्वारीय जल के संचरण के समय ये वृक्ष अपनी जड़ों के जाल से मुलायम कीचड़ को रोककर मिट्टी के पोषक तत्त्वों को कार्य समुद्र में न जाने देकर मृदा-संरक्षण में अनूठी भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 6.
चिड़ियाघर (Z00) तथा राष्ट्रीय उद्यान (National Park) में अंतर बताइए।
उत्तर:
चिड़ियाघर-चिड़ियाघर वह स्थान है, जहाँ पर जंगली पशु तथा पक्षी रखे जाते हैं। इन्हें पिंजरों में बंद रखा जाता है और नियमित समय पर भोजन दिया जाता है। राष्ट्रीय उद्यान-इसमें वनस्पति तथा पशु-पक्षियों को संरक्षित रखा जाता है। इसमें वन्य-प्राणियों को प्राकृतिक वातावरण में जीवन-निर्वाह करने दिया जाता है। इसमें पशु-पक्षी अपने भोजन की व्यवस्था उन्हीं सीमाओं में स्वयं करते हैं, जहाँ उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 7.
वनस्पति और वन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वनस्पति और वन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वनस्पतिवन
1. किसी विशिष्ट पर्यावरण में पनपने वाले पेड़-पौधों की विभिन्न जातियों के समूह को ‘वनस्पति’ कहते हैं।1. पेड़-पौधों से ढके हुए विशाल प्रदेश को ‘बन’ कहा जाता है।
2. एक जैसे पर्यावरण में पाए जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधे एक दूसरे के साहचर्य में पनपते हैं।2. वन से तात्पर्य परस्पर निकट उगने वाले पेड़ों से है।
3. बनस्पति एक प्रदेश में विविध दृश्यावली प्रस्तुत करती है, जैसे-घास-भूमि, वनस्थली व झाड़ियाँ इत्यादि।3. वन सामान्यतः एक ही प्रकार के पेड़ों की दृश्यावली प्रस्तुत करते हैं; जैसे-पर्णपाती वन, शंकु-धारी वन, सदाबहार वन इत्यादि।

प्रश्न 8.
घास और झाड़ियों में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
घास और झाड़ियों में निम्नलिखित अन्तर हैं-

घासझाड़ियाँ
1. यह आर्द्र उष्ण कटिबन्ध तथा मानसून प्रदेशों में उगती है।1. ये मरुस्थलीय क्षेत्रों में उगती हैं।
2. यह पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग होती है।2. आर्थिक दृष्टि से इनका कोई विशेष महत्त्व नहीं होता।
3. घास के मैदान कृषि की दृष्टि से उपजाऊ होते हैं।3. झाड़ियों वाले मरुस्थलीय क्षेत्रों में कृषि सम्भव नहीं है।
4. यह हरी-भरी होती है।4. ये प्रायः कांटेदार होती हैं।
5. इसकी ऊँचाई कुछ सें०मी० से लेकर कुछ मीटरों तक होती है।5. इनकी ऊँचाई प्रायः मीटरों में मापी जा सकती है।

प्रश्न 9.
सदाबहार तथा डेल्टाई वन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
सदाबहार तथा डेल्टाई वन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

सदाबहार वनडेल्टाई वन
1. ये बन पश्चिमी तटीय मैदान, असम, मेघालय, नगालैण्ड, मणिपुर तथा पश्चिमी बंगाल में पाए जाते हैं।1. ये बन गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृण्गा तथा कावेरी आदि नदियों के डेल्टा प्रदेशों में पाए जाते हैं।
2. ये अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं।2. ये उपजाऊ डेल्टाई मिट्टी के प्रदेशों में पाए जाते हैं।
3. इन वनों में ताड़, महोगनी तथा सिनकोना वृक्ष अधिक मिलते हैं।3. इनमें सुन्दरी, नारियल तथा मैंग्रोव वृक्ष अधिक हैं।
4. इन वनों में उपयोगी वृक्ष कम होते हैं।4. ये वन उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 10.
वनों का आर्थिक महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारत के वनों के आर्थिक महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-
1. वन्नों की मुख्य उपजें-वनों से ईंधन तथा इमारती लकडी प्राप्त होती है। इन वनों में साल, सागवान तथा देवदार की लकडी इमारतों के काम के लिए महत्त्वपूर्ण समझी जाती है।

2. वनों की सामान्य उपजें वनों से अनेक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। वृक्षों की छाल से चमड़ा रंगने का काम लिया जाता है। चंदन की लकड़ी से सुगंधित तेल प्राप्त होता है। वनों से अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं। कुनैन तथा रबड़ जैसी उपयोगी वस्तुएँ भी वनों से प्राप्त होती हैं।

3. माँस, खाल तथा सींगों की प्राप्ति-वन प्रदेश शिकार के लिए उत्तम स्थान होते हैं, जहाँ शिकारी लोग शिकार करने जाते हैं। इनमें माँस, खाल, सींग इत्यादि वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।

4. वनों पर निर्भर उद्योग-वन संबंधी उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था के अंग हैं। भारतीय वनों पर आधारित मुख्य उद्योग; जैसे रेशम के कीड़े पालना, कागज़ उद्योग, लाख इकट्ठा करना, दियासलाई उद्योग, नारियल संबंधी उद्योग, प्लाईवुड उद्योग, रेयान उद्योग, खेल का सामान बनाना, फर्नीचर बनाना तथा औषधि आदि हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति (वनों) का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [B.S.E.H. March, 2017]
अथवा
भारत के मानचित्र पर पाँच प्रकार के वनों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में मुख्यतः पाँच प्रकार के वन पाए जाते हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन-ये वन पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों, अंडमान और निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप समूहों, असम के ऊपरी भागों और तमिलनाडु के तट तक सीमित हैं। ये उन क्षेत्रों में भली-भाँति विकसित हैं जहाँ 200 सें०मी० से अधिक वर्षा के साथ कुछ समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है। क्योंकि ये क्षेत्र साल भर गर्म और आर्द्र रहते हैं, इसीलिए यहाँ हर प्रकार की वनस्पति-झाड़ियाँ, वृक्ष व लताएँ उगती हैं और वनों में इनकी विभिन्न ऊँचाइयों से कई स्तर देखने को मिलते हैं। वृक्षों में पतझड़ होने का कोई निश्चित समय नहीं होता। अतः ये वन साल भर हरे-भरे लगते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले व्यापारिक महत्त्व के कुछ वृक्ष आबनूस (एबोनी), महोगनी, रोजवुड, रबड़ और सिंकोना हैं।

2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन-ये वन भारत में सबसे अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं। इन वनों को मानसूनी वन भी कहते हैं और ये उन क्षेत्रों में विस्तृत हैं जहाँ 70 सें०मी० से 200 सें०मी० तक वर्षा होती है। इन वनों के वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छः से आठ सप्ताह के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।

देश के पूर्वी भागों, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद प्रदेशों, पश्चिमी ओडिशा (उड़ीसा), छत्तीसगढ़, झारखंड तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों तक ये वन पाए जाते हैं। सागोन इन वनों की अधिक प्रमुख वृक्ष प्रजाति है। वर्ब, अर्जुन, साल, शीशम, बांस, रवैर, कुसुम, चंदन, तथा शहतूत के वृक्ष व्यापारिक महत्त्व वाले हैं।

3. कंटीले वन तथा झाड़ियाँ-जिन क्षेत्रों में वर्षा 70 सेंमी० से भी कम होती है, वहाँ प्राकृतिक वनस्पति में कंटीले वन और झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है जिनमें छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा हरियाणा के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं। अकासिया, खजूर (पाम), यूफोरबिया तथा नागफनी (कैक्टाई) यहाँ के पौधों की मुख्य प्रजातियाँ हैं।

4. पर्वतीय वन-
(i) आई शीतोष्ण कटिबंधीय वन-ये वन 1000 मी० से 2000 मी० तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन वनों में चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट वृक्ष पाए जाते हैं।

(ii) शंकुधारी वन-ये वन 1500 मी० से 3000 मी० की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। चीड़, देवदार, सिल्वर-फर, स्यूस, सीडर इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष हैं।

(ii) शीतोष्ण कटिबंधीय वन एवं घास के मैदान ये वन और घास के मैदान 3000 मी० से 3600 मी० की ऊँचाई तक के प्रदेशों में पाए जाते हैं।

(iv) अल्पाइन वन-3600 मी० से अधिक ऊंचाई पर इस प्रकार के वन पाए जाते हैं। सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं।

5. मैंग्रोव वन-यह वनस्पति तटवर्तीय क्षेत्रों, जहाँ ज्वार-भाटा आते हैं, की महत्त्वपूर्ण वनस्पति है। मिट्टी एवं बालू रित) इन तटों पर एकत्रित हो जाती है। मैंग्रोव एक प्रकार की ऐसी वनस्पति है जिसमें पौधों की जड़ें पानी में डूबी रहती हैं। ये वन ब्रह्मपुत्र, गंगा, गोदावरी, महानदी, कावेरी तथा कृष्णा नदियों के डेल्टा प्रदेशों में पाए जाते हैं। सुंदरवन इस प्रकार के वनों का प्रमुख उदाहरण है। इस वन में सुंदरी नामक वृक्ष पाया जाता है। इसलिए इस वन को सुंदरवन के नाम से जाना जाता है। यह वन गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टा प्रदेश में स्थित है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 1

प्रश्न 2.
भारतीय वन्य जीवों की विविधता पर भौगोलिक टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, जलवायु के प्रकारों तथा विविध स्थलाकृतियों के कारण भारत में बड़ी संख्या में नाना प्रकार के वन्य-जीव पाए जाते हैं। अब तक विश्व में ज्ञात जीव-जन्तुओं की एक-तिहाई प्रजातियाँ भारत में विद्यमान हैं।
1. स्तनपायी जीव (Mammals) भारत के स्तनपायी जीवों में हाथी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हाथी मुख्यतः केरल, कर्नाटक तथा असम में पाया जाता है। यह उष्ण व आर्द्र जलवायु का जीव है। इसके अतिरिक्त गोर (Indian Bison) भारतीय भैंस, नील गाय, ऊँट, चौ सिंगा, भारतीय जंगली गधा, काला हिरण तथा एक सींग वाला गैंडा इत्यादि अन्य महत्त्वपूर्ण स्तनपायी जीव हैं जो भारत में पाए जाते हैं। हिरण की यहाँ अनेक जातियाँ पाई जाती हैं; जैसे कस्तूरी मृग, हांगुल, दलदली हिरण, चीतल, शामिन तथा पिसूरी।

2. माँसाहारी जीव (Carnivores)-माँसाहारी जीवों में एशियाई सिंह (Asiatic Lion), बाघ (चीता), तेंदुआ, लमचीता या बदली तेंदुआ, साह (Showleopard) तथा छोटी बिल्लियाँ प्रमुख हैं। शेर (सिंह) मुख्यतः गुजरात के गिर (Gir) वन क्षेत्र में पाया जाता है। संसार में अफ्रीका के बाहर पाया जाने वाला यह एकमात्र स्थान है जहाँ शेर पाए जाते हैं। अपनी शान (Majesty) और शक्ति (Power) के लिए प्रसिद्ध बाघ (Tiger) को राष्ट्रीय पशु होने का गौरव हासिल है। दुनिया में पाई जाने वाली बाघ की आठ प्रजातियों में बंगाल के सुन्दरवन क्षेत्र में पाया जाने वाला ‘बंगाल टाइगर’ की बात ही कुछ और है।

3. बन्दर (Monkeys)-भारत में बन्दर की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें लंगूर प्रमुख है। भारत का एकमात्र कपिहुलक गिब्बन उत्तरी-पूर्वी भारत के वर्षा वनों (Rain Forests) में पाया जाता है। शेर जैसी पूँछ वाला बन्दर जिसके चेहरे पर बालों का एक घेरा होता है, दक्षिण भारत में पाया जाता है।

4. हिमालय के जीव-जन्तु (Himalayan Wild Life)-हिमालय में वास करने वाले प्राणियों में जंगली भेड़, पहाड़ी बकरी, बड़े सींगों वाली पहाड़ी बकरी (Ibeso), मार खोर, छबूंदर, तापिर, साह तथा छोटा पांडा उल्लेखनीय हैं।

5. पक्षी (Birds) भारत में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं। मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है। अन्य पक्षी तीतर, कोयल, बटेर, बत्तख, तोते, कबूतर, सारस, धनेश, शकरखोरा, बैया, चकोर तथा दर्जी पक्षी इत्यादि हैं।

6. अन्य प्राणी भारत में अनेक प्रकार के सरीसृप व उभयचर पाए जाते हैं। जलचरों में मछलियाँ, कछुए, मगरमच्छ व घड़ियाल प्रमुख हैं। घड़ियाल केवल भारत में पाए जाते हैं। गिरगिट, अनेक प्रकार की छिपकलियाँ, जहरीले नाग, अत्यन्त विषैले करेल तथा विषहीन धामिन जैसे साँप, भारत के वन्य-जीवन की विविधता को बढ़ाते हैं। बिना रीढ़ वाले प्राणियों में एक कोशिका वाले प्रोटोजोआ से लेकर कंटक देही प्राणी तक शामिल हैं। कीड़े, मकौड़ों व मोलस्क के भी यहाँ अनेक प्रकार पाए जाते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 3.
वन्य जीव संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर क्या कदम उठाए गए हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वन्य प्राणियों के बचाव की परिपाटी बहुत प्राचीन है। पंचतन्त्र और जंगल बुक इत्यादि की कहानियाँ हमारे । वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् देश में वन्य जीवन संरक्षण के लिए अनेक प्रभावी कदम उठाए गए-
(1) सन् 1952 में भारतीय वन्य जीवमण्डल (Indian Board for Wild Life-IBWL) का गठन किया गया।

(2) सन् 1972 में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम बनाया गया जिसके अन्तर्गत-
(i) वन्य जीवन को वैधानिक संरक्षण

(ii) वन्य प्राणियों के शिकार पर प्रतिबन्ध

(iii) चोरी से शिकार करने वालों को कठोर दण्ड का प्रावधान

(iv) शेर, बाघ, गेंडे व हाथियों के शिकार को दण्डनीय अपराध घोषित करना

(v) दुर्लभ व समाप्त हो रही प्रजातियों के व्यापार पर रोक (शाहतूश की शालों के व्यापार पर रोक)

(vi) वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए समिति गठित करना जैसे प्रावधान किए गए। इस अधिनियम को 1991 में पूर्णतया संशोधित कर दिया गया जिसके अन्तर्गत कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें कुछ पौधों की प्रजातियों को बचाने तथा संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण का प्रावधान है।

(vii) सन् 1980 में वन (संरक्षण) विधेयक द्वारा केन्द्रीय शासन की अनुमति के बिना किसी भी जंगल का किसी भी कार्य के लिए विनाश वर्जित किया गया।

(viii) अत्यधिक संकटापन्न जातियों के पुनर्वास के लिए विशेष परियोजनाएँ चलाई गईं; जैसे बाघ परियोजना, हिमचीता परियोजना, गेंडा परियोजना, लाल पांडा परियोजना, घड़ियाल प्रजनन तथा पुनर्वास परियोजना, गिर शेर शरण स्थल परियोजना, कस्तूरी मृग परियोजना, हंगुल परियोजना, मणिपुर थामिन परियोजना इत्यादि। लखनऊ के निकट कुकरैल के जंगल में बारहसिंघों, जंगली कुत्तों तथा लोमड़ी आदि के लिए पुनर्वास केन्द्र स्थापित किया गया है।

इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य भारत में इन प्राणियों की जनसंख्या का स्तर बनाए रखना है जिससे वैज्ञानिक, सौन्दर्यात्मक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्य बनाए रखे जा सकें। इससे प्राकृतिक धरोहर को भी संरक्षण मिलेगा। भारत में ‘वन्य जीवन’ की सुरक्षा के लिए जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं। देश में लगभग 103 नेशनल पार्क और 535 वन्य प्राणी अभयवन हैं।

प्रश्न 4.
वनों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ क्या हैं?
उत्तर:
प्रत्यक्ष लाभ-वनों के प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं-

  • वनों से ईंधन के लिए लकड़ी प्राप्त होती है।
  • वनों से हमें इमारती तथा फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी मिलती है।
  • वनों से भेड़-बकरियाँ पाली जाती हैं।
  • वनों से बहुत-से लोगों को रोजगार मिलता है; जैसे लकड़ी काटना, चीरना तथा ढोना आदि।
  • वनों से अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं।
  • वनों से सरकार को भी आय होती है।
  • वनों से बहुत-सी उपयोगी वस्तुएँ; जैसे गोंद, सुपारी, तारपीन का तेल, लाख तथा मोम आदि प्राप्त होती हैं।
  • अनेक प्रकार के उद्योग-धंधे; जैसे खेल का सामान, कागज़ बनाने का सामान, रेयान कपड़ा, प्लाईवुड आदि वनों पर आधारित हैं।

अप्रत्यक्ष लाभ-वनों के अप्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं-

  • वन वर्षा लाने में सहायक होते हैं।
  • वन पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं।
  • वन बाढ़ की भयंकरता को कम करते हैं।
  • वन प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाते हैं।
  • वन भूमि कटाव को रोकने में सहायक होते हैं।
  • वन भूमि की उर्वरता को बनाए रखने में सहायक होते हैं।
  • वन कहीं-कहीं पर दो देशों की प्राकृतिक सीमा भी बनाते हैं; जैसे भारत और बर्मा की सीमा।

प्रश्न 5.
प्रमुख जीव-मण्डल निचय के नामों को भारत के मानचित्र में दर्शाएँ।
अथवा
भारत के मानचित्र पर पाँच प्रकार के जीवमंडल निचय प्रदर्शित करें।
उत्तर:
प्रमुख जीव-मण्डल निचय के नाम निम्नलिखित तालिका में स्पष्ट किए गए हैं-

कम सेंजीव-मण्डल निचय का नामस्थिति (प्रदेश/राज्य)
1.नीलगिरीबायनाद, नगरह्नेल, बांदीपुर, मुदुमलार्इ, निलंबूर, सायलेंट वैली और सिरुवली पहाड़ियाँ (तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक)।
2.नंदा देवीचमोली, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जिलों के भाग (उत्तराखंड)।
3.मानसकोकराझार, बोगाई गांव, बरपेटा, नलबाड़ी कामरूप व दारांग जिलों के हिस्से (असम) ।
4.सुंदरवनगंगा-व्रह्मपुत्र नदी तंत्र का डेल्टा व इसका हिस्सा (पश्चिम बंगाल)।
5.नोकरेकगारो पहाड़ियों का हिस्सा (मेघालय)।
6.मन्नार की खाड़ीभारत और श्रीलंका के बीच स्थित मन्नार की खाड़ी का भारतीय हिस्सा (तमिलनाह)।
7.ग्रेट निकोबारअंडमान-निकोबार के सुदूर दक्षिणी द्वीप (अंडमान निकोबार द्वीप समूह)।
8.कच्छगुजरात राज्य के कच्छ, राजकोट, सुरेन्द्रनगर और पाटन ज़िलों के भाग।
9.कोल्ड डेज़र्टहिमाचल प्रदेश में स्थित पिनवैली राष्ट्रीय पार्क और आस-पास के क्षेत्र, चंद्रताल, सारचू और किब्यर वन्यजीव अभयारण्य।
10.अचनकमर-अमरकटंकमध्य प्रदेश में अनुपुर और दिन दोरी जिलों के भाग और छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले का भाग।
11.सिमिलीपालमयूरभंज जिले के भाग (ओडिशा)।
12.डिन्नू-साईकोवाडित्रूगढ़ और तिनसुकिया जिलों के भाग (असम)।
13.दिहांग-देबांगअरुणाचल प्रदेश में सियांग और देबांग जिलों के भाग।
14.कंचनजंचाउत्तर और पश्चिम सिक्किम के भाग।
15.पंचमड़ीबेनूल, होशंगाबाद और छिंदवाड़ा जिलों के भाग (मध्य प्रदेश)।
16.अगस्त्यमलाईकेरल में अगस्त्यथीमलाई पहाड़ियाँ।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 11th Class Geography मृदाएँ Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. मृदा का सर्वाधिक व्यापक और सर्वाधिक उपजाऊ प्रकार कौन-सा है?
(A) जलोढ़ मृदा
(B) काली मृदा
(C) लैटेराइट मृदा
(D) वन मृदा
उत्तर:
(A) जलोढ़ मृदा

2. रेगर मृदा का दूसरा नाम है।
(A) लवण मृदा
(B) शुष्क मृदा
(C) काली मृदा
(D) लैटेराइट मृदा
उत्तर:
(C) काली मृदा

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ

3. भारत में मृदा के ऊपरी पर्त हास का मुख्य कारण है।
(A) वायु अपरदन
(B) अत्यधिक निक्षालन
(C) जल अपरदन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) जल अपरदन

4. भारत के सिंचित क्षेत्रों में कृषि निम्नलिखित में से किस कारण से लवणीय हो रही है?
(A) जिप्सम की बढ़ोतरी
(B) अति सिंचाई
(C) अति चारण
(D) रासायनिक खादों का उपयोग
उत्तर:
(B) अति सिंचाई

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
मृदा क्या है?
उत्तर:
अमेरिकी मिट्टी विशेषज्ञ डॉ० बैनेट के अनुसार, “मिट्टी भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत है जो मूल चट्टानों अथवा वनस्पति के योग (ह्यूमस) से बनती है।” सरल शब्दों में, भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत, जो पौधों को उगने व बढ़ने के लिए जीवांश और खनिजांश प्रदान करती है, मृदा या मिट्टी कहलाती है।

अतः कहा जा सकता है कि मिट्टी ठोस, तरल व गैसीय पदार्थों का मिश्रण है जो चट्टानों के अपक्षय, जलवायु, पौधों व अनन्त जीवाणुओं के बीच होने वाली अन्तःक्रिया (Interaction) का परिणाम है।

प्रश्न 2.
मृदा-निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
मृदा-निर्माण विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। इनके संयोग से मृदा आवरण में विभिन्नता उत्पन्न होती है। मृदा निर्माण के मुख्य उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं-

  • मूल पदार्थ।
  • उच्चावच।
  • जलवायु।
  • प्राकृतिक वनस्पति।

प्रश्न 3.
मृदा परिच्छेदिका के तीन संस्तरों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मृदा परिच्छेदिका के तीन संस्तर निम्नलिखित प्रकार के हैं-

  • ‘क’ संस्तर यह मिट्टी की सबसे ऊपरी परत है जिसे Top Soil कहा जाता है। इस भाग में पौधों की वृद्धि के लिए जैव पदार्थ, खनिज पदार्थ तथा पोषक तत्त्व पाए जाते हैं।
  • ‘ख’ संस्तर-यह बीच का संस्तर होता है जिसमें नीचे व ऊपर दोनों के पदार्थ प्राप्त होते हैं। इसमें कुछ जैव पदार्थ तथा खनिज पदार्थों का अपक्षय पाया जाता है।
  • ‘ग’ संस्तर-यह मिट्टी के बनने की पहली अवस्था को प्रदर्शित करता है जिसमें अपक्षय द्वारा निर्मित मूल चट्टानी पदार्थ होता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 4.
मृदा अवकर्षण क्या होता है?
उत्तर:
मृदा की उर्वरता के ह्रास को मृदा अवकर्षण (Soil Degradation) कहते हैं। भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण है। इससे मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है और मृदा की गहराई कम हो जाती है।

प्रश्न 5.
खादर और बांगर में क्या अंतर है?
उत्तर:
खादर और बांगर में निम्नलिखित अंतर है-

खादरबांगर
1. वह क्षेत्र जहाँ नवीन जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, खादर कहलाता है।1. वह क्षेत्र जहाँ प्राचीन जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, बांगर कहलाता है।
2. खादर क्षेत्र में प्रतिवर्ष बाढ़ आती है तथा नई जलोढ़ मिट्टी का निर्माण होता है।2. बांगर क्षेत्र में वर्तमान में बाढ़ नहीं आती। निरंतर जलोढ़ के जमाव के कारण वहाँ चबूतरा-सा बन जाता है, जो बाढ़ के मैदान से ऊँचा होता है।
3. खादर क्षेत्र बांगर की अपेक्षा अधिक उपजाऊ होता है।3. बांगर क्षेत्र कम उपजाऊ होता है। इसमें प्रतिवर्ष नई उपजाऊ मिट्टी नहीं आती।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
काली मृदाएँ किन्हें कहते हैं? इनके निर्माण तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
काली मृदा या मिट्टी (Black Soil)-यह मिट्टी या मृदा काले रंग के बारीक कणों वाली होती है। इसमें महीन कण वाली मृत्तिका अधिक होती है। इस मिट्टी को ‘रेगर’ और कपास वाली काली मिट्टी भी कहा जाता है। काली मृदाएँ मृण्मय, गहरी व अपारगम्य होती हैं। इस प्रकार की मृदाओं का निर्माण ज्वालामुखी के लावा, लौहमय नीस और शिष्ट चट्टानों से होता है।

काली मृदा या मिट्टी की विशेषताएँ (Features of Black Soil) काली मृदा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह मिट्टी कपास के लिए उपयुक्त होती है।
  • इसमें नमी ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है।
  • इसमें सूखने पर दरारें पड़ जाती हैं।
  • इसमें अधिक जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती।
  • इसमें चूना, पोटाश, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है।
  • गीली होने पर यह फूल जाती है तथा सूखने पर सिकुड़ जाती है।
  • इनमें मृदा के कण इकट्ठे हो सकते हैं।
  • इस मृदा का रंग गाढ़े काले और स्लेटी रंग के बीच की विभिन्न आभाओं का होता है।

प्रश्न 2.
मृदा संरक्षण क्या होता है? मृदा संरक्षण के कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर:
मिट्टी का संरक्षण (Preservation of Soil) भू-संरक्षण के अन्तर्गत भूमि-कटाव पर रोक या बचाव कृषि वैज्ञानिकों के लिए मुख्य समस्या बनती जा रही है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में मिट्टियों की उचित व्यवस्था बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए भारत में मिट्टियों को अपरदित होने से रोकने के लिए वैज्ञानिक यान्त्रिक व जैवीय पद्धति अपना रहे हैं। भारत में केन्द्रीय मरुस्थल शोध संस्थान’ (Central Aridzone Research Institute, Jodhpur (Rajasthan) के अन्तर्गत वैज्ञानिक मृदा अपरदन को रोकने के प्रयास में कार्य कर रहे हैं।

मृदा संरक्षण के उपाय (Measures of Preservation of Soil)-मृदा संरक्षण के उपाय निम्नलिखित हैं-
1. यान्त्रिक पद्धति (Instrumental Method) इस पद्धति के अन्तर्गत निम्नलिखित तरीकों से भूमि कटाव को रोका जा सकता है-
(1) समोच्च बन्द (Contour Bonding)-विभिन्न ऊँचाई वाली समोच्च रेखाओं के आधार पर ढालों के सहारे दीवारें बाँध दी जाती हैं, जिससे मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। इसमें दीवार बनाकर अन्दर का भाग मिट्टी से भर दिया जाता है। ढलानी भागों पर इस विधि को अपनाकर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(2) बाँध बनाना (Construction of Dam)-वर्षा के पानी को रोकने के लिए बाँध बना देते हैं, जिसके कारण मृदा अपरदन कम होने के साथ-साथ पानी का बहु-उपयोग भी होता है। इस विधि से जल के वेग में कमी आती है और मृदा अपरदन रुक जाता है। पहाड़ी भागों पर नदियों के सहारे कुछ नदियों पर बाँध बना देने चाहिएँ, जिससे पानी की गति अवरुद्ध हो जाती है तथा मृदा अपरदन कम होता है।

(3) प्रवाह नलियाँ (Drainage Channels)-बाँधों के अतिरिक्त पानी प्रवाह पर नियन्त्रित करके मिट्टी का अपरदन होने से बचाया जा सकता है। इन बाँधों द्वारा रोका हुआ पानी नहरों के द्वारा छोड़ा जाता है।

2. जैवीय पद्धति (Biological Method) इस पद्धति के अन्तर्गत जैवीय प्रक्रियाओं को नियमित करके मिट्टियों के कटाव को रोका जा सकता है। मिट्टी की भौतिक संरचना जैवीय प्रक्रियाओं का परिश्रम होती है। इन प्रक्रियाओं में विपरीत परिवर्तन मिट्टी का विघटन करता है, इसलिए ऐसी प्रक्रियाओं को रोककर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(1) वृक्षारोपण (Tree Planting)-इसके अन्तर्गत नए क्षेत्रों में वृक्षों को लगाना चाहिए। नए सिरे से वनस्पति का विकास कर जलवायु की अनुकूलता पैदा की जा सकती है। जिन प्रदेशों में मृदा अपरदन की समस्या गम्भीर हो गई है, वहाँ पर नए पेड़ लगाने चाहिएँ। हमें वनों के अन्धा-धुन्ध कटाव को रोकना चाहिए। वनों से मिट्टियों का जल संगठन बढ़ जाता है और नई वनस्पति के विकास में सहायक है। अतः वृक्षारोपण द्वारा मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। वन विकास के अन्तर्गत जंगलों का आरक्षण किया जाता है। वनों को आग से बचाना चाहिए। वृक्षों को गिरने से बचाना चाहिए। उजड़े वनों के क्षेत्रों में पुनः वन लगाने चाहिएँ।

(2) पशुचारण पर प्रतिबन्ध (Restriction on Grazing)-पशुचारण के लिए खेतों से अलग चरागाहों की व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि खाली खेतों में पशु अपने खुरों से मिट्टी को ढीला कर देते हैं। विस्तृत ढाल के मैदान में भी पशुचारण सीमित करना चाहिए।

(3) मिट्टी को बाँधने वाले पौधे (Soil Binders)-मिट्टी को बाँधने के लिए कुछ विशेष प्रकार की झाड़ियाँ; जैसे मुर्या (Murya), सनडोन (Sundon), सेकरम (Sacharum) तथा स्पान्टेनियम (Spontenium) होती हैं, जिनके लगाने से मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(4) विन्ड ब्रेकर रक्षक पेटी (Wind Breakers) हवा की गति को कम करने की विधि को विन्ड ब्रेकर (Wind Breaker) कहते हैं। हवा के मार्ग में ऐसे अवरोधक खड़े किए जाएँ, जिससे हवा की गति कम हो जाए। इसके लिए दीवार के रूप में कुछ रक्षक-क्षेत्र तैयार किए जाते हैं। इस विधि को अपनाकर मृदा अपरदन रोका जा सकता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 3.
आप यह कैसे जानेंगे कि कोई मृदा उर्वर है या नहीं? प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरता और मानवकृत उर्वरता में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उर्वरता मृदा का विशेष गुण है। ऐसी मृदा जिसमें नमी और जीवांश उपलब्ध होते हैं, उर्वर होती है। महीन कणों वाली लाल और पीली मृदाएँ सामान्यतः उर्वर होती हैं। उर्वर मृदा का पता मृदा में खेती की पैदावार से चलता है। जिस मृदा में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तत्त्वों के होते हुए बिना किसी मानवीय प्रयास के अच्छी खेती या कृषि पैदा होती है, उस मृदा को उर्वर मृदा माना जाता है। इसके विपरीत मोटे कणों वाली उच्च मृदाओं को अनुर्वर मृदाएँ कहते हैं अर्थात् जिस मृदा में पैदावार नहीं होती, वह अनुर्वर मृदा कहलाती है। इसमें सामान्यतः नाइट्रोजन, फॉस्फोरस की कमी होती है।

प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरता और मानवकृत उर्वरता में अंतर

प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरतामानवकृत उर्वरता
1. प्राकृतिक रूप से मृदा की उर्वरता पोषक तत्त्चों की उपस्थिति पर निर्भर करती है।1. मानवकृत उर्वरता में मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी को मानव निर्मित रसायनों की सहायता से दूर किया जाता है।
2. इसमें मृदा की उत्पादकता विभिन्न प्राकृतिक एवं भौतिक गुणों पर निर्भर करती है। इसमें बिना किसी रासायनिक उपचार के अच्छी कृषि पैदावार प्राप्त की जाती है।2. इसमें मृदा की उत्पादकता मानव निर्मित रसायनों; नाइट्रोजन, गंधक, पोटाश और श्रम पर निर्भर करती है। इसमें रासायनिक उपचार के माध्यम से कृषि पैदावार प्राप्त की जाती है।
3. इसमें मृदा की उर्वरता बनाने के लिए प्राकृतिक तरीकों को अपनाया जाता है।3. इसमें वैज्ञानिक तरीकों का अधिक प्रयोग किया जाता है।
4. इसमें रासायनिक खांद या कम्पोस्ट खाद डालने की आवश्यकता नहीं होती।4. इसमें रासायनिक खाद या कम्पोस्ट खाद डालने की आवश्यकता होती है।
5. प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरता स्थायी होती है।5. मानवकृत उर्वरता अस्थायी होती है। इसमें बदलाव होता रहता है।

मृदाएँ HBSE 11th Class Geography Notes

→ मृदा (Soil) भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत, जो पौधों को उगने व बढ़ने के लिए जीवांश, खनिजांश व नमी प्रदान करती है, मृदा या मिट्टी कहलाती है।

→ मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)-मृदा संस्तरों को दिखाने वाला चित्र मृदा परिच्छेदिका कहलाता है।

→ मृदा अवक्रमण (Soil Degradation) मृदा अवक्रमण का अभिप्राय मृदा की उर्वरता से है।

→ मृदा अपरदन (Soil Erosion)-जल तथा वायु के प्रभाव से मृदा की ऊपरी परत का बह जाना या उड़ जाना, मृदा अपरदन कहलाता है।

→ ह्यूमस (Humus) मृदा में पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं व वनस्पति का सड़ा-गला अंश जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है।

→ मृदा-जनन (Pedogenesis)-मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया मृदा-जनन है।

→ pH मूल्य (pH Value) यह मृदा की अम्लीयता और क्षारीयता के निर्धारण का एक माप होता है।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

HBSE 11th Class Geography प्राकृतिक वनस्पति Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. चंदन वन किस तरह के वन के उदाहरण हैं?
(A) सदाबहार वन
(B) डेल्टाई वन
(C) पर्णपाती वन
(D) काँटेदार वन
उत्तर:
(C) पर्णपाती वन

2. प्रोजेक्ट टाइगर निम्नलिखित में से किस उद्देश्य से शुरू किया गया है?
(A) बाघ मारने के लिए
(B) बाघ को शिकार से बचाने के लिए
(C) बाघ को चिड़ियाघर में डालने के लिए
(D) बाघ पर फिल्म बनाने के लिए
उत्तर:
(B) बाघ को शिकार से बचाने के लिए

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

3. नंदा देवी जीव मंडल निचय निम्नलिखित में से किस प्रांत में स्थित है?
(A) बिहार
(B) उत्तराखण्ड
(C) उत्तर प्रदेश
(D) ओडिशा
उत्तर:
(B) उत्तराखण्ड

4. निम्नलिखित में से भारत के कितने जीव मंडल निचय यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त हैं?
(A) एक
(B) दस
(C) दो
(D) चार
उत्तर:
(D) चार

5. वन नीति के अनुसार वर्तमान में निम्नलिखित में से कितना प्रतिशत क्षेत्र, वनों के अधीन होना चाहिए?
(A) 33%
(B) 55%
(C) 44%
(D) 22%
उत्तर:
(A) 33%

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति क्या है? जलवायु की किन परिस्थितियों में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन उगते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति-किसी स्थान पर मनुष्य के हस्तक्षेप के बिना अपने-आप प्राकृतिक रूप से उगने वाली वनस्पति; जैसे घास, झाड़ियाँ, वृक्ष आदि को प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं। सदाबहार वन उष्ण कटिबन्धीय जलवायु में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सें०मी० से अधिक होती है तथा औसत वार्षिक तापमान 22° सेल्सियस से अधिक रहता है।

प्रश्न 2.
जलवायु की कौन-सी परिस्थितियाँ सदाबहार वन उगने के लिए अनुकूल हैं?
उत्तर:
सदाबहार वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ उष्ण आर्द्र जलवायु पाई जाती है। सदाबहार वनों के लिए औसत वार्षिक वर्षा 200 सें०मी० से अधिक तथा वार्षिक तापमान 22°C होना चाहिए।

प्रश्न 3.
सामाजिक वानिकी से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सामाजिक वानिकी पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों का प्रबन्ध और सुरक्षा तथा ऊसर भूमि पर वनारोपण करना सामाजिक वानिकी कहलाता है। राष्ट्रीय कृषि उद्योग ने सामाजिक वानिकी को तीन वर्गों में बाँटा है-

  • शहरी वानिकी
  • ग्रामीण वानिकी और
  • फार्म वानिकी।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 4.
जीव मण्डल निचय को परिभाषित करें। वन क्षेत्र और वन आवरण में क्या अंतर है?
उत्तर:
जीव मण्डल निचय या आरक्षित क्षेत्र एक विशेष प्रकार के भौमिक और पारिस्थितिक तन्त्र हैं जिन्हें यूनेस्को के मानव और जीव मण्डल प्रोग्राम के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त है। इसमें पशुओं के संरक्षण के साथ-साथ पौधों का भी संरक्षण किया जाता है। वन क्षेत्र और वन आवरण में अन्तर-वन क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जो वन भूमि के लिए निश्चित है तथा वन आवरण वास्तव में वह क्षेत्र होता है जो वनों से ढका हुआ है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
वन संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
भारत में वनों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय वन नीति बनाई गई है जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं-

  • देश के 33 प्रतिशत भू-भाग पर वन लगाना जो राष्ट्रीय स्तर से 6 प्रतिशत अधिक है।
  • पर्यावरण सन्तुलन बनाए रखना तथा पारिस्थितिक असन्तुलित क्षेत्रों में वन लगाना।
  • देश की प्राकृतिक धरोहर, जैव-विविधता तथा आनुवंशिक मूल का संरक्षण।
  • मृदा अपरदन तथा मरुस्थलीकरण को रोकना तथा बाढ़ व सूखे आदि पर नियन्त्रण रखना।
  • निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी एवं वन-रोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार करना।
  • पेड़ लगाने को बढ़ावा देना, पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए जन-आन्दोलन चलाना।

प्रश्न 2.
वन और वन्य जीवन संरक्षण में लोगों की भागीदारी कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
मनुष्य का वन और वन्य प्राणियों से बड़ा गहरा सम्बन्ध रहा है। वन और वन्य जीवन हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक व सामाजिक लाभ पहुंचाते हैं। वन और वन्य जीवन के संरक्षण के लिए मनुष्य की भागीदारी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। औद्योगिक और तकनीकी विकास के कारण ही वन और वन्य जीवों की संख्या में कमी आ रही है। बहुत से वन्य प्राणियों की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। अतः यह आवश्यक है कि मनुष्य ऐसा विकास करे जिससे वन और वन्य प्राणियों का संरक्षण हो सके। वनों के हित के लिए आन्दोलन चलाए जाएँ तथा जन-जागरूकता लाई जाए। इसी प्रकार वन्य जीवन की सुरक्षा के लिए भी संकटापन्न जातियों को संरक्षण प्रदान किया जाए। इस दिशा में मनुष्य की सहभागिता निम्नलिखित प्रकार से प्रभावी हो सकती है

  • वनों को कम-से-कम साफ किया जाना चाहिए, ताकि वन्य जीवों के आवास नष्ट न हों।
  • चारे, ईंधन और इमारती लकड़ी के लिए वनों से पेड़ नहीं काटने चाहिएँ।
  • व्यापारिक महत्त्व के लिए जंगली जानवरों का शिकार नहीं किया जाना चाहिए।

प्राकृतिक वनस्पति HBSE 11th Class Geography Notes

→ प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation) प्राकृतिक वनस्पति उन पेड़-पौधों को कहते हैं जो लम्बे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगते हैं।

→ हरा सोना (Green Gold) वृक्षों को हरा सोना कहते हैं।

→ सामाजिक वानिकी (Social Forestry) पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों का प्रबन्ध और सुरक्षा तथा ऊसर भूमि पर वृक्षारोपण करना सामाजिक वानिकी कहलाता है।

→ वन्य जीवन (Wild Life)-प्राकृतिक आवास में रहने वाले सभी जीव सामूहिक रूप से वन्य जीवन कहलाते हैं।

→ जीवमण्डल निचय (Biosphere Reserves) यह एक विशेष प्रकार का भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तंत्र है।

→ जीवमण्डल संरक्षित क्षेत्र ऐसा क्षेत्र जिसमें पौधों व प्राणियों को उनका प्राकृतिक आवास प्रदान किया जाता है।

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HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में प्रचलित तीन वर्ग कौन-से थे? इनकी प्रमुख विशेषताएँ क्या थी?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज तीन वर्गों में बँटा हुआ था। प्रथम वर्ग में पादरी, दूसरे वर्ग में कुलीन एवं तीसरे वर्ग में किसान सम्मिलित थे। प्रथम दो वर्गों में बहुत कम लोग सम्मिलित थे। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। समाज की अधिकाँश जनसंख्या तीसरे वर्ग से संबंधित थी। उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें अपने गुज़ारे के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। इन तीनों वर्गों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. पादरी वर्ग (The Clergy):
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में पादरी प्रथम वर्ग में सम्मिलित थे। इस वर्ग में पोप, आर्कबिशप एवं बिशप सम्मिलित थे। यह वर्ग बहुत शक्तिशाली एवं प्रभावशाली था। इसका चर्च पर पूर्ण नियंत्रण था। चर्च के अधीन विशाल भूमि होती थी, जिससे उसे बहुत आमदनी होती थी। लोगों द्वारा दिया जाने वाला दान भी चर्च की आय का एक प्रमुख स्रोत था।

इनके अतिरिक्त चर्च किसानों पर टीथ (tithe) नामक कर लगाता था। यह किसानों की कुल उपज का दसवाँ भाग होता था। चर्च की इस विशाल आय के चलते पादरी वर्ग बहुत धनी हो गया था। इस वर्ग का यूरोप के शासकों पर भी बहुत प्रभाव था। ये शासक पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं रखते थे। कुलीन वर्ग भी पादरी वर्ग का बहुत सम्मान करता था।

पादरी वर्ग को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे राज्य को किसी प्रकार का कोई कर नहीं देते थे। वे विशाल एवं भव्य महलों में रहते थे। यद्यपि वे लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने का उपदेश देते थे किन्तु वे स्वयं विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। वे चर्च की संपत्ति का दुरुपयोग करने से नहीं हिचकिचाते थे। लोगों को धर्मोपदेश देने का कार्य निम्न वर्ग के पादरी करते थे।

2. कुलीन वर्ग (The Nobility):
कुलीन वर्ग दूसरे वर्ग में सम्मिलित था। यूरोपीय समाज में इस वर्ग की विशेष भूमिका थी। केवल कुलीन वर्ग के लोगों को ही प्रशासन, चर्च एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था। उन्हें अनेक प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे। उनके पास विशाल जागीरें होती थीं। कुलीन इन जागीरों पर एक छोटे राजे के समान शासन करते थे।

वे अपने न्यायालय लगाते थे तथा मुकद्दमों का निर्णय देते थे। वे अपने अधीन सेना रखते थे। उन्हें सिक्के जारी करने का भी अधिकार प्राप्त था पर कर लगाने का भी अधिकार था। वे कृषकों से बेगार लेते थे। उनके पशु किसानों की खेती उजाड़ देते थे, किंतु इन पशुओं को रोकने का साहस उनमें नहीं था। कुलीन अपने क्षेत्र में आने वाले माल पर चुंगी लिया करते थे।

कलीन वर्ग बहत धनवान था। राज्य की अधिकाँश संपत्ति उनके अधिकार में थी। वे विशाल महलों में रहते थे। वे बहुत विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। उनकी सेवा में बड़ी संख्या में नौकर-नौकरानियाँ होती थीं। संक्षेप में कुलीन वर्ग की यूरोपीय समाज में उल्लेखनीय भूमिका थी। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० ई० स्वैन के अनुसार, “उच्च श्रेणी (कुलीन वर्ग) को अधिकाँश विशेषाधिकार प्राप्त थे तथा उसके पास अधिकाँश दौलत थी।

3. किसान (The Peasants):
किसान यूरोपीय समाज के तीसरे वर्ग से संबंधित थे। तीसरे वर्ग की गणना यूरोपीय समाज के सबसे निम्न वर्ग में की जाती थी। यूरोपीय समाज की कुल जनसंख्या का 85% से 90% भाग किसान थे। उस समय समाज में दो प्रकार के किसान थे। ये थे स्वतंत्र किसान एवं कृषकदास। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(क) स्वतंत्र किसान (Free Peasants):
यूरोपीय समाज में स्वतंत्र किसानों की संख्या बहुत कम थी। यद्यपि वे अपनी भूमि सामंतों से प्राप्त करते थे किंतु वे इस पर अपनी इच्छानुसार खेती करते थे। सामंत इन किसानों से बेगार नहीं लेते थे। उन पर कृषकदासों की तरह प्रतिबंध नहीं लगे हुए थे। वे केवल निश्चित मात्रा में सामंतों को भूमि कर प्रदान करते थे।

(ख) कृषकदास (Serfs):
यूरोपीय समाज की अधिकाँश जनसंख्या कृषकदास से संबंधित थी। कृषकदासों का जीवन नरक के समान था। उनके प्रमुख कर्त्तव्य ये थे-

(1) वर्ष में कम-से-कम 40 दिन सामंत (लॉर्ड) की सेना में कार्य करना।

(2) उसे एवं उसके परिवार के सदस्यों को सप्ताह में तीन अथवा उससे कुछ अधिक दिन सामंत की जागीर पर जा कर काम करना पड़ता था। इस श्रम से होने वाले उत्पादन को श्रम अधिशेष (labour rent) कहा जाता था।

(3) वह मेनर में स्थित सड़कों, पुलों तथा चर्च आदि की मुरम्मत करता था।

(4) वह खेतों के आस-पास बाड़ बनाता था।

(5) वह जलाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र करता था।

(6) वह अपने सामंत के लिए पानी भरता था, अन्न पीसता था तथा दुर्ग की मरम्मत करता था।

कृषकदास जानवरों से भी बदतर जीवन व्यतीत करते थे। 16 से 18 घंटे रोजाना कड़ी मेहनत करने के बावजूद उन्हें दो समय भरपेट खाना नसीब नहीं होता था। वे गंदी झोंपड़ियों में निवास करते थे। इन झोंपड़ियों में रोशनी का एवं गंदे पानी की निकासी का कोई प्रबंध नहीं था। वर्षा के दिनों में इन झोंपड़ियों में पानी भर जाता था। इससे बीमारियाँ फैलने का सदैव ख़तरा बना रहता था।

जब किसी वर्ष किसी कारण फ़सलें बर्बाद हो जाती थीं तो कृषकदासों की स्थिति पहले की अपेक्षा अधिक दयनीय हो जाती थी। ऐसे अवसरों पर वे बड़ी संख्या में मृत्यु का ग्रास बन जाते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० चौधरी के अनुसार, “किसानों की दशा संतोषजनक से कहीं दूर थी। किसानों पर उनकी पारिवारिक जिम्मेवारी बहुत अधिक थी तथा उनकी मांगों एवं स्रोतों में नियमित तौर पर बहुत अंतर था।”

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोप में किसानों की स्थिति का वर्णन करें। B.S.E.H. (Mar. 2016)
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में किसानों की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 1 के भाग 3 का उत्तर देखें।

प्रश्न 3.
सामंतवादी व्यवस्था में दूसरे वर्ग (अभिजात वर्ग) की स्थिति व महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया करके प्रश्न नं० 1 का भाग 2 का उत्तर देखें।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 4.
सामंतवाद से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
सामंतवाद ने मध्यकालीन यूरोप के समाज एवं अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव डाले। यूरोप में इस संस्था का उदय 9वीं शताब्दी में हुआ था। 14वीं शताब्दी तक इसका फ्राँस, जर्मनी, इंग्लैंड एवं इटली आदि देशों पर व्यापक प्रभाव रहा।

I. सामंतवाद से अभिप्राय

सामंतवाद को मध्ययुगीन यूरोपीय सभ्यता का आधार स्तंभ कहा जाता है। यह जर्मन शब्द फ़्यूड (Feud) से बना है। इससे अभिप्राय है भूमि का एक टुकड़ा अथवा जागीर। इस प्रकार सामंतवाद का संबंध भूमि अथवा जागीर से है। सामंतवाद को समझना कोई सरल कार्य नहीं है। इसका कारण यह है कि सामंतवाद के विभिन्न देशों में लक्षणता में भिन्नता थी। प्रसिद्ध इतिहासकार डब्ल्यू० टी० हेन्स के अनुसार, “सामंतवाद वह प्रथा थी जिसमें लॉर्ड अपने अधीन सामंतों को सैनिक सेवा एवं व्यक्तिगत वफ़ादारी के बदले भूमि अनुदान में देता था।”

वास्तव में सामंतवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें राजा अपने अधीन बड़े सामंतों को उनकी सैनिक एवं राजनीतिक सेवाओं के बदले बड़ी-बड़ी जागीरें देता था। ये बड़े सामंत आगे छोटे सामंतों को उनकी सेवाओं के बदले छोटी जागीरें बाँटते थे। इस प्रकार सामंतवादी व्यवस्था पूरी तरह भूमि के स्वामित्व तथा भूमि वितरण पर आधारित थी।

II. सामंतवाद की विशेषताएँ

सामंतवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

1. राजा (The King):
सैद्धांतिक रूप में राजा समस्त भूमि का स्वामी होता था। सामंती अधिक्रम (hierarchy) में राजा का स्थान सर्वोच्च था। मध्यकाल में राजा के पास न तो स्थायी सेना होती थी एवं न ही उसके पास आय
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 6 iMG 1
के पर्याप्त साधन होते थे। इसलिए राजा के लिए दूर के क्षेत्रों पर नियंत्रण रखना एवं अपने राज्य की सुरक्षा करना कठिन था। इसलिए उसने अपनी भूमि का एक बहुत बड़ा भाग अपने अधीन बड़े-बड़े सामंतों में बाँट दिया। इन सामंतों को लॉर्ड कहा जाता था। ये लॉर्ड राजा के प्रति वफादार रहने की सौगंध खाते थे। वे राजा को सैनिक एवं राजनीतिक सेवाएँ प्रदान करते थे।

ये लॉर्ड अपनी कुछ भूमि को छोटे सामंतों में बाँट देते थे। इसी प्रकार ये छोटे सामंत अपनी कुछ भूमि को नाइटों में बाँटते थे। इस प्रकार सामंतवादी व्यवस्था में राजा सबसे ऊपर एवं नाइट सबसे नीचे होता था।

2. सामंत (The Feudal Lords):
सामंत (लॉर्ड) अपनी जागीर के अंदर सर्वशक्तिशाली होता था। उसके अधीन एक सेना होती थी। वह इस सेना में बढ़ोत्तरी कर सकता था। वह बाहरी शत्रुओं से अपने अधीन सामंतों की रक्षा करता था। वह अपना न्यायालय भी लगाता था। वह अपनी जागीर में रहने वाले लोगों के मुकद्दमों का निर्णय देता था। उसके निर्णयों को अंतिम माना जाता था। किसी में भी उसके निर्णयों के विरुद्ध अपील करने का साहस नहीं होता था। वह अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकता था।

यदि उसके अधीन कोई सामंत अपनी सेवाओं में असफल रहता तो वह उसकी जागीर छीन सकता था। कभी-कभी लॉर्ड इतने शक्तिशाली हो जाते थे कि वे राजा की परवाह नहीं करते थे। सामंत को अनेक कर्तव्यों का पालन करना पड़ता था। उसे समय-समय पर अपने स्वामी के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। दरबार में वह अपने स्वामी को विभिन्न मामलों में सलाह देता था।

वह अपने स्वामी को आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता भेजता था। उसे स्वयं युद्ध की स्थिति में 40 दिन सैनिक सेवा करनी पड़ती थी। उसे अपने स्वामी के दुर्ग की रक्षा के लिए भी प्रबंध करना पड़ता था।

3. मेनर (Manor):
लॉर्ड का आवास क्षेत्र मेनर कहलाता था। इसका आकार एक जैसा नहीं होता था। इसमें कुछ गाँवों से लेकर अनेक गाँव सम्मिलित होते थे। प्रत्येक मेनर में एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर सामंत का दुर्ग होता था। यह दुर्ग जितना विशाल होता था उससे उस लॉर्ड की शक्ति का आंकलन किया जाता था। इस दुर्ग की सुरक्षा के लिए चारों ओर एक चौड़ी खाई होती थी।

इसे सदैव पानी से भर कर रखा जाता था। प्रत्येक मेनर में एक चर्च, एक कारखाना एवं कृषकदासों की अनेक झोंपड़ियाँ होती थीं। मेनर में एक विशाल कृषि फार्म होता था।

इसमें सभी आवश्यक फ़सलों का उत्पादन किया जाता था। मेनर की चरागाह पर पशु चरते थे। मेनरों में विस्तृत वन होते थे। इन वनों में लॉर्ड शिकार करते थे। गाँव वाले यहाँ से जलाने के लिए लकड़ी प्राप्त करते थे। मेनर में प्रतिदिन के उपयोग के लिए लगभग सभी वस्तुएँ उपलब्ध होती थीं। इसके बावजूद मेनर कभी आत्मनिर्भर नहीं होते थे।

इसका कारण यह था कि कुलीन वर्ग के लिए विलासिता की वस्तुएँ, आभूषण एवं हथियार आदि तथा नमक एवं धातु के बर्तन बाहर से मंगवाने पड़ते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० ई० स्वैन के शब्दों में, “मेनर व्यवस्था ने आरंभिक मध्यकाल की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों पर प्रभुत्व स्थापित किया।

4. नाइट (The Knights):
नाइट का यूरोपीय समाज में विशेष सम्मान किया जाता था। 9वीं शताब्दी यूरोप में निरंतर युद्ध चलते रहते थे। इसलिए साम्राज्य की सुरक्षा के लिए एक स्थायी सेना की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को नाइट नामक एक नए वर्ग ने पूर्ण किया। नाइट अपने लॉर्ड से उसी प्रकार संबंधित थे जिस प्रकार लॉर्ड राजा के साथ संबंधित था।

लॉर्ड अपनी विस्तृत जागीर का कुछ भाग नाइट को देता था। इसे फ़ीफ़ (Fief) कहा जाता था। इसका आकार सामान्य तौर पर 1000 एकड़ से 2000 एकड़ के मध्य होता था। कुछ फ़ीफें 5000 एकड़ तक बंड़ी होती थीं। इसे उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता था। प्रत्येक फ़ीफ़ में नाइट के लिए घर, चर्च, पनचक्की (watermill), मदिरा संपीडक (wine press) एवं किसानों के लिए झोंपडियाँ आदि की व्यवस्था होती थी।

नाइट को अपनी फ़ीफ़ में व्यापक अधिकार प्राप्त थे। फ़ीफ़ की सुरक्षा का प्रमुख उत्तरदायित्व नाइट पर था। उसके अधीन एक सेना होती थी। नाइट अपना अधिकाँश समय अपनी सेना के साथ गुजारते थे। वे अपने सैनिकों को प्रशिक्षण देते थे। वे अपनी सेना में अनुशासन पर विशेष बल देते थे। उनकी सेना की सफलता पर लॉर्ड की सफलता निर्भर करती थी क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर लॉर्ड उनकी सेना का प्रयोग करता था।

प्रसन्न होने पर लॉर्ड उनकी फ़ीफ़ में बढौत्तरी कर देता था। नाइट अपने अधीन फ़ीफ़ में कर एकत्र करता था एवं लोगों के मकद्दमों निर्णय देता था। फ़ीफ़ को जोतने का कार्य कृषकों द्वारा किया जाता था। नाइट फ़ीफ़ के बदले अपने लॉर्ड को युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था। वह उसे एक निश्चित धनराशि भी देता था।

गायक नाइट की वीरता की कहानियाँ लोगों को गीतों के रूप में सुना कर उनका मनोरंजन करते थे। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद के पतन के साथ ही नाइट वर्ग का भी पतन हो गया।

5. कृषकदास (Seris):
यूरोपीय समाज की अधिकाँश जनसंख्या कृषकदास से संबंधित थी। उनका जीवन जानवरों से भी बदतर था। वे अपने लॉर्ड अथवा नाइट की जागीर पर जा कर काम करते थे। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने लॉर्ड की आज्ञा के अनुसार अनेक अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। इन कार्यों के लिए उन्हें किसी प्रकार का कोई वेतन नहीं मिलता था।

उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगे हुए थे। वे लॉर्ड की अनुमति के बिना उसकी जागीर छोड़ कर नहीं जा सकते थे। सामंत उन पर घोर अत्याचार करते थे। इसके बावजूद वे सामंतों के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं कर सकते थे। कड़ी मेहनत के बावजूद वे अक्सर भूखे ही रहते थे। उनकी रहने की झोंपड़ियाँ गंदी होती थीं। वे नाममात्र के ही वस्त्र पहनते थे। संक्षेप में उनका जीवन नरक के समान था।

प्रश्न 5.
सामंतवाद के पतन के प्रमुख कारण क्या थे?
अथवा
सामंतवाद के पतन के मुख्य कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामंत प्रथा के पतन के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे

1. लोगों की दयनीय स्थिति (Pitiable Condition of the People):
सामंतवाद के अधीन लोगों एवं विशेष तौर पर कृषकों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। लोग सामंतों के घोर अत्याचारों के कारण बेहद दु:खी थे। वे सामंत के विरुद्ध किसी से कोई शिकायत नहीं कर सकते थे। दूसरी ओर सामंत अपने न्यायालय लगाते थे। इन न्यायालयों में सामंत अपनी इच्छानुसार लोगों के मुकद्दमों का निर्णय देता था।

इन निर्णयों को अंतिम माना जाता था। सामंत लोगों को अनेक प्रकार के कर देने के लिए बाध्य करते थे। उसके मेनर के लोग सामंत की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकते थे। घोर परिश्रम के बाद लोगों को दो समय भरपेट खाना नसीब नहीं होता था। संक्षेप में लोगों में सामंतों के प्रति बढ़ता हुआ आक्रोश उनके पतन का एक प्रमुख कारण सिद्ध हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर हंस राज का यह कहना ठीक है कि, “सामंतवाद का पतन मुख्यतः इसलिए हुआ क्योंकि इसमें लोगों की भलाई की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया था।’

2. धर्मयुद्धों का प्रभाव (Impact of the Crusades):
11वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य यूरोप के ईसाइयों एवं मध्य एशिया के मुसलमानों के बीच जेरुसलम (Jerusalem) को लेकर युद्ध लड़े गए। ये युद्ध इतिहास में धर्मयुद्धों (crusades) के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन धर्मयुद्धों में पोप (Pope) की अपील पर बड़ी संख्या में सामंत अपने सैनिकों समेत सम्मिलित हुए। इन धर्मयुद्धों में जो काफी लंबे समय तक चले में बड़ी संख्या में सामंत एवं उनके सैनिक मारे गए। इससे उनकी शक्ति को गहरा आघात लगा। राजाओं ने इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाया तथा उन्होंने सुगमता से बचे हुए सामंतों का दमन कर दिया। इस प्रकार धर्मयुद्ध सामंतों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुए।

3. कृषकों के विद्रोह (Peasants’ Revolts):
14वीं शताब्दी यूरोप में हुए कृषकों के विद्रोहों ने सामंतवादी प्रथा के पतन में प्रमुख भूमिका निभाई। 1347 ई० से 1350 ई० के दौरान यूरोप में भयानक ब्यूबोनिक प्लेग फैली। इसे ‘काली मौत’ (black death) के नाम से जाना जाता है। इसके चलते यूरोप की जनसंख्या का एक बड़ा भाग मृत्यु का ग्रास बन गया।

इसमें अधिकाँश संख्या कृषकों की थी। अतः बचे हुए कृषक अधिक मज़दूरी की मांग करने लगे। किंतु सामंतों ने उनकी इस उचित माँग को स्वीकार न किया। वे कृषकों का पहले की तरह शोषण करते रहे। अत: बाध्य होकर यूरोप में अनेक स्थानों पर कृषकों ने सामंतों के विरुद्ध विद्रोह का झंडा गाड़ दिया।

इन विद्रोहों में 1358 ई० में फ्रांस के किसानों द्वारा किया गया विद्रोह जिसे जैकरी (jacquerie) विद्रोह कहा जाता था एवं 1381 ई० में इंग्लैंड के विद्रोह उल्लेखनीय हैं। यद्यपि इन विद्रोहों का दमन कर दिया गया था किंतु इन विद्रोहों के कारण किसानों में एक नवचेतना का संचार हुआ।

4. राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान (Rise of Nation States):
सामंतवाद के उदय के कारण राज्य की वास्तविक शक्ति सामंतों के हाथों में आ गई थी। सामंतों को अनेक अधिकार प्राप्त थे। उनके अधीन एक विशाल सेना भी होती थी। सामंतों के सहयोग के बिना राजा कुछ नहीं कर सकता था। धीरे-धीरे परिस्थितियों में बदलाव आया।

15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ में अनेक राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हुई। इन राज्यों के शासक काफी शक्तिशाली थे। उन्होंने अपने अधीन एक शक्तिशाली एवं आधुनिक सेना का गठन किया था। इस सेना को तोपों एवं बारूद से लैस किया गया। दूसरी ओर सामंतों के अधीन जो सेना थी उसकी लड़ाई के ढंग एवं हथियार परंपरागत थे। अत: नए शासकों को सामंतों की शक्ति कुचलने में किसी विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा।

5. मध्य श्रेणी का उत्थान (Rise of the Middle Class):
15वीं एवं 16वीं शताब्दी यूरोप में मध्य श्रेणी का उत्थान सामंतवादी व्यवस्था के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। मध्य श्रेणी में व्यापारी, उद्योगपति एवं पूंजीपति सम्मिलित थे। इस काल में यूरोप में व्यापार के क्षेत्र में तीव्रता से प्रगति हो रही थी। इस कारण समाज में मध्य श्रेणी को विशेष सम्मान प्राप्त हुआ।

इस श्रेणी ने सामंतों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का अंत करने के लिए शासकों से सहयोग किया। शासक पहले ही सामंतों के कारण बहुत परेशान थे। अतः उन्होंने मध्य श्रेणी के लोगों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त करना आरंभ कर दिया। मध्य श्रेणी द्वारा दिए गए आर्थिक सहयोग के कारण ही शासक अपनी स्थायी एवं शक्तिशाली सेना का गठन कर सके। इससे सामंतों की शक्ति को एक गहरा आघात लगा।

6. मुद्रा का प्रचलन (Circulation of Money):
सामंतवादी काल में वस्तु-विनिमय (barter system) की प्रथा प्रचलित थी। मध्य युग में मुद्रा का प्रचलन आरंभ हुआ। यह कदम यूरोपीय अर्थव्यवस्था के लिए एक क्रांतिकारी परिवर्तन सिद्ध हुआ। अब प्रत्येक वस्तु मुद्रा के माध्यम से खरीदी जाने लगी। मुद्रा के प्रचलन से लोगों को सामंतों के जुल्मों से छुटकारा मिला।

इसका कारण यह था कि पहले वे अपनी लगभग सभी आवश्यकताओं के लिए सामंतों पर निर्भर थे। मुद्रा के प्रचलन से वे कहीं से भी वस्तु खरीद सकते थे। इसके अतिरिक्त मुद्रा के प्रचलन के कारण राजाओं के लिए अब स्थायी सेना रखना संभव हुआ।

7. नगरों का उत्थान (Rise of Towns):
15वीं शताब्दी में यूरोप में नगरों का उत्थान सामंतवाद के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। इस काल में जो नए नगर बने उनमें वेनिस, जेनेवा, फ्लोरेंस, पेरिस, लंदन, फ्रैंकफर्ट, एम्स्टर्डम एवं मीलान आदि के नाम उल्लेखनीय थे। ये नगर शीघ्र ही व्यापार एवं उद्योग के केंद्र बन गए। इन नगरों में रहने वाले लोगों को स्वतंत्रता प्राप्त थी।

इसलिए बहुत से कृषकदास (serfs) सामंतों के अत्याचारों से बचने के लिए नगरों में आ बसे। इन नगरों में उन्हें व्यवसाय के अच्छे अवसर प्राप्त थे। इसके अतिरिक्त गाँवों के अनेक लोग नगरों में इसलिए आ कर बस गए क्योंकि वहाँ बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध थीं। इस प्रकार नगरों के उत्थान से सामंतवाद को गहरा आघात लगा।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 6.
सामंतवाद से आप क्या समझते हैं ? इसके पतन के क्या कारण थे?
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं0 4 का भाग I एवं प्रश्न नं. 5 का उत्तर देखें।

प्रश्न 7.
“मध्यकाल यूरोप में चर्च एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
यूरोप में चर्च और समाज के संबंधों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मध्यकालीन पश्चिमी यूरोप के समाज पर जिस संस्था ने सर्वाधिक प्रभाव डाला वह चर्च थी। वास्तव में चर्च का जन्म से लेकर कब्र तक लोगों के जीवन पर पूर्ण नियंत्रण था। इसके अपने नियम एवं न्यायालय थे। इन नियमों का उल्लंघन करने का साहस कोई नहीं करता था। यहाँ तक कि राजे भी इन नियमों का पालन करने में अपनी भलाई समझते थे। यदि कोई व्यक्ति इन नियमों का उल्लंघन करता तो चर्च द्वारा उसे दंडित किया जाता था। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० ई० स्वैन का यह कथन ठीक है कि, “हमारे लिए यह कल्पना करना कठिन है कि मध्य युग में चर्च का प्रभाव कितना व्यापक था।”

1. चर्च के कार्य (Functions of the Church): मध्यकाल में चर्च अनेक प्रकार के कार्य करता था।

  • इसने सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाजों संबंधी अनेक नियम बनाए थे जिनका पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक था।
  • चर्च की देखभाल के लिए अनेक अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी।
  • चर्च में धर्मोपदेश दिए जाते थे तथा सामूहिक प्रार्थना की जाती थी।
  • यहाँ विद्यार्थियों को शिक्षा भी दी जाती थी।
  • इसके द्वारा रोगियों, गरीबों, विधवाओं एवं अनाथों की देखभाल की जाती थी।
  • यहाँ विवाह की रस्में पूर्ण की जाती थीं।
  • यहाँ वसीयतों एवं उत्तराधिकार के मामलों की सुनवाई की जाती थी।
  • यहाँ धर्मविद्रोहियों के विरुद्ध मुकद्दमे चलाए जाते थे एवं उन्हें दंडित किया जाता था।
  • यह कृषकों से उनकी उपज का दसवाँ भाग कर के रूप में एकत्रित करता था। इस कर को टीथ (tithe) कहते थे।
  • यह श्रद्धालुओं से दान भी एकत्रित करता था। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० डी० हेज़न ने ठीक लिखा है कि, “इस प्रकार चर्च राज्य के भीतर एक राज्य था जो कि अनेक ऐसे कार्यों को करता था जो कि अधिकाँशतः आधुनिक समाज के सिविल अधिकारियों द्वारा किए जाते हैं।”

2. चर्च का संगठन (Organization of the Church):
चर्च में अनेक प्रकार के अधिकारी कार्य करते थे। इन अधिकारियों का समाज में बहत सम्मान किया जाता था। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे राज्य को किसी प्रकार का कर नहीं देते थे। उन्हें सैनिक सेवा से भी मुक्त रखा जाता था। उनके प्रमुख कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(1) पोय (Pope)-पोप चर्च का सर्वोच्च अधिकारी था। वह रोम में निवास करता था। मध्यकाल में उसे शक्तियाँ प्राप्त थीं। उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। वह चर्च से संबंधित सभी प्रकार के नियमों को बनाता था। वह चर्च की समस्त गतिविधियों पर अपना नियंत्रण रखता था। उसका अपना न्यायालय था जहाँ वह विवाह, तलाक, वसीयत एवं उत्तराधिकार से संबंधित मुकद्दमों के निर्णय देता था। उसके निर्णयों को अंतिम माना जाता था।

वह यूरोपीय शासकों को पदच्युत करने की भी क्षमता रखता था। वह चर्च से संबंधित विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति भी करता था। कोई भी यहाँ तक कि शासक भी पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करता था। संक्षेप में पोप की शक्तियाँ असीम थीं। प्रसिद्ध लेखकों डॉक्टर एफ० सी० कौल एवं डॉक्टर एच० जी० वारेन के अनुसार, “पोप निरंकुश शासक की तरह सर्वोच्च था तथा जिसके निर्णयों के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती थी।”

(2) आर्कबिशप (Archbishop):
पोप के बाद दूसरा स्थान आर्कबिशप का था। वह प्रांतीय बिशपों पर अपना नियंत्रण रखता था तथा उनके कार्यों की देखभाल करता था। उसका अपना न्यायालय होता था यहाँ वह बिशपों के निर्णयों के विरुद्ध की गई अपीलों को सुनता था। वह बिशपों की नियुक्ति भी करता था।

(3) बिशप (Bishop):
बिशप चर्च का एक महत्त्वपूर्ण अधिकारी होता था। प्रांत के सभी चर्च उसके अधीन होते थे। उनका अपना एक न्यायालय होता था। यहाँ वे चर्च से संबंधित विभिन्न मुकद्दमों की सुनवाई करते थे। वह पादरियों की नियुक्ति भी करते थे। ।

(4) पादरी (Priest):
मध्यकाल में चर्च में पादरी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी। वह रविवार के दिन चर्च में आने वाले लोगों को धर्मोपदेश सनाता था। वह लोगों की दःख-तकलीफों को सनता था। वह लोगों के सखी जीवन के लिए सामूहिक प्रार्थनाएँ करता था। वह जन्म, विवाह एवं मृत्यु से संबंधित सभी प्रकार के संस्कारों को संपन्न करवाता था। वह पोप से प्राप्त सभी आदेशों का पालन करवाता था। पादरियों के लिए कुछ विशेष योग्यताएँ निर्धारित की गई थीं। पादरी विवाह नहीं करवा सकते थे। कृषकदास, अपंग व्यक्ति एवं स्त्रियाँ पादरी नहीं बन सकती थीं।

3. मठवाद (Monasticism):
मध्यकाल में लोगों पर चर्च का प्रभाव स्थापित करने में मठवाद ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उस समय कुछ ऐसे धार्मिक व्यक्ति थे जो एकांत का जीवन पसंद करते थे। अत: वे आबादी से दूर जिन भवनों में रहते थे उन्हें मठ (monasteries) अथवा ऐबी (abbeys) कहते थे। इनमें रहने वाले भिक्षुओं को मंक (monk) एवं भिक्षुणियों को नन (nun) कहा जाता था। कुछ मठों को छोड़ कर अधिकाँश मठों में भिक्षु एवं भिक्षुणियाँ अलग-अलग रहती थीं।

उन्हें अत्यंत कठोर नियमों का पालन करना पड़ता था। उन्हें पवित्रता का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। वे विवाह नहीं करवा सकते थे। उन्हें संपत्ति रखने का कोई अधिकार नहीं था। वे ईश्वर अराधना में अपना जीवन व्यतीत करते थे। वे प्रसिद्ध पाँडुलिपियों की प्रतिलिपियाँ तैयार करते थे। वे लोगों को शिक्षा देने का कार्य करते थे। वे लोगों को उपदेश देते थे तथा उन्हें पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देते थे।

वे रोगियों की सेवा करते थे। वे मठ में आने वाले यात्रियों की देखभाल करते थे। वे मठ को दान दी गई भूमि पर कृषि एवं पशुपालन का कार्य करते थे।

जे० एच० बेंटली एवं एच० एफ० जाईगलर के शब्दों में,
“क्योंकि मठवासियों द्वारा समाज में विभिन्न भूमिकाएं निभाई जाती थीं इसलिए वे ईसाई धर्म के प्रचार में शक्तिशाली कार्यकर्ता सिद्ध हुए।

(क) सेंट बेनेडिक्ट (St. Benedict):
मध्यकाल यूरोप में जिन मठों की स्थापना हुई उनमें 529 ई० इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट (St. Benedict) सर्वाधिक प्रसिद्ध था। इसकी स्थापना इटली के महान् सेंट बेनेडिक्ट (480-547 ई०) ने की थी। उसने बेनेडिक्टीन (Benedictine) मठों में रहने वाले भिक्षुओं के लिए एक हस्तलिखित पुस्तक लिखी। इसके 73 अध्याय थे। इसमें भिक्षुओं के मार्गदर्शन के लिए नियमों का वर्णन किया गया था। प्रमुख नियम ये थे-

  • प्रत्येक मठवासी विवाह नहीं करवा सकता था।
  • वे अपने पास संपत्ति नहीं रख सकते थे।
  • उन्हें मठ के प्रधान ऐबट (abbot) की आज्ञा का पालन करना पड़ता था।
  • उन्हें बोलने की आज्ञा कभी-कभी ही दी जानी चाहिए।
  • प्रत्येक भिक्षु-भिक्षुणी को कुछ समय रोज़ाना शारीरिक श्रम करना चाहिए।
  • प्रत्येक मठवासी को अपना अधिकाँश समय अध्ययन में व्यतीत करना चाहिए।
  • प्रत्येक मठवासी को पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  • प्रत्येक मठवासी को एक निश्चित समय में खाना खाना चाहिए एवं सोना चाहिए।
  • प्रत्येक मठवासी को जनसाधारण को शिक्षा देनी चाहिए एवं रोगियों की सेवा करनी चाहिए।
  • प्रत्येक मठ इस प्रकार बनाना चाहिए कि आवश्यकता की समस्त वस्तुएँ-जल, चक्की, उद्यान, कार्यशाला सभी उसकी सीमा के अंदर हों। इन नियमों का पालन सदियों तक किया जाता रहा।

(ख) क्लूनी (Cluny):
मध्यकाल यूरोप में स्थापित होने वाला दूसरा प्रसिद्ध मठ क्लूनी थां। इसकी स्थापना 910 ई० में विलियम प्रथम ने फ्राँस में बरगंडी (Burgundi) नामक स्थान में की थी। इस मठ की स्थापना का कारण यह था कि मठों में भ्रष्टाचार एवं चरित्रहीनता का बोलबाला हो गया था। अतः इनमें सुधारों की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी।

अतः क्लूनी मठ द्वारा सेंट बेनेडिक्ट के नियमों का कड़ाई से पालन पर बल दिया गया। इसने कछ नए नियम भी बनाए। शीघ्र ही क्लनी मठ बहत लोकप्रिय हो गया। इस मठ को लोकप्रिय बनाने में आबेस हिल्डेगार्ड (Abbess Hildegard) ने उल्लेखनीय योगदान दिया। वह बहुत प्रतिभाशाली थी। उसके प्रचार कार्य एवं लेखन ने लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव डाला।

उसने जर्मनी, फ्राँस तथा स्विट्जरलैंड में अथक प्रचार किया। उसने स्त्रियों की दशा सुधारने में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार आर० टी० मैथ्यू के अनुसार, “हिल्डेगार्ड बहुत प्रतिभाशाली थी एवं उसने एक उत्तम देन दी। उसने विशेषतः उस समय के प्रचलित विश्वास का खंडन किया कि स्त्रियों को पढ़ाना एवं लिखाना ख़तरनाक है।”

(ग) फ्रायर (Friars):
13वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में भिक्षुओं (monks) नए समूह का उत्थान हुआ। ये भिक्षु फ्रायर कहलाते थे। वे मठों में रहने की अपेक्षा बाहर भ्रमण करते थे। वे ईसा मसीह (Jesus Christ) के संदेश को लोगों तक पहुँचाते थे। वे जनसाधारण की भाषा में प्रचार करते थे। उन्होंने चर्च के गौरव को स्थापित करने एवं लोगों में एक नई जागृति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। फ्रायर लोगों द्वारा दिए गए दान से अपनी जीविका चलाते थे। वे दो संघों (orders) में विभाजित थे।

इनके नाम थे फ्राँसिस्कन (Franciscan) एवं डोमिनिकन (Dominican)। फ्राँसिस्कन संघ की स्थापना असीसी (Assisi) के संत फ्रांसिस (St. Francis) ने की थी। उनकी गणना मध्य युग के श्रेष्ठ व्यक्तियों में की जाती थी। उन्होंने गरीबों, अनाथों एवं बीमारों की सेवा करने का संदेश दिया। उन्होंने शिष्टता के नियमों का पालन करने, शिक्षा के प्रसार एवं श्रम के महत्त्व पर विशेष बल दिया।

उन्होंने जर्मनी, फ्राँस, हंगरी, स्पेन एवं सुदूरपूर्व (Near East) की यात्रा कर लोगों को उपदेश दिया। उनके जादुई व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग उनके शिष्य बने। डोमिनिकन संघ के संस्थापक स्पेन (Spain) के संत डोमिनीक (St. Dominic) थे। उन्होंने जनभाषा में अपना किया।

उन्होंने पाखंडी लोगों की कटु आलोचना की। उन्होंने पुजारी वर्ग में फैली अज्ञानता को दूर करने का बीड़ा उठाया। उनके शिष्य बहुत विद्वान थे। वे विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र एवं धर्मशास्त्र पढ़ाने का कार्य करते थे। इस संघ का प्रभाव फ्रांसिस्कन संघ जितना व्यापक नहीं था। 14वीं शताब्दी में मठवाद का महत्त्व कुछ कम हो गया था। इसके दो प्रमुख कारण थे।

प्रथम, मठ में भ्रष्टाचार फैल गया था। दूसरा, भिक्षु, भिक्षुणी एवं फ्रायर ने अब विलासिता का जीवन व्यतीत करना आरंभ कर दिया था। इंग्लैंड के दो प्रमुख कवियों लैंग्लैंड (Langland) ने अपनी कविता पियर्स प्लाउमैन (Piers Plowman) तथा जेफ्री चॉसर

4. चर्च के प्रभाव (Effects of Church):
मध्य युग में चर्च का यूरोपीय समाज पर जितना व्यापक प्रभाव था उतना प्रभाव किसी अन्य संस्था का नहीं था। इसने लोगों को आपसी भाईचारे एवं प्रेम का संदेश दिया। इसने गरीबों एवं अनाथों को आश्रय प्रदान किया। इसने रोगियों की देखभाल के लिए अनेक अस्पताल बनवाए। इसने शिक्षा के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।

चर्च एवं मठों के द्वारा लोगों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती थी। अनेक चर्च अधिकारी विश्वविद्यालयों में अध्यापन का कार्य भी करते थे। इससे लोगों में एक नव जागृति का संचार हुआ। आबेस हिल्डेगार्ड ने स्त्रियों की दशा का उत्थान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

चर्च ने लोगों को युद्ध की अपेक्षा शांति का पाठ पढ़ाया। संक्षेप में चर्च के यूरोपीय समाज पर दूरगामी एवं व्यापक प्रभाव पड़े। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर बी० वी० राव के अनुसार,”किसी भी अन्य संस्था ने मध्यकालीन यूरोप के लोगों को इतना प्रभावित नहीं किया जितना कि ईसाई चर्च ने।

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प्रश्न 8.
मध्यकाल में मठवाद के विकास के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं0 7 के भाग 3 का उत्तर देखें।

प्रश्न 9.
मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान के कारणों, विशेषताओं एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् यूरोप के अधिकाँश नगर लोप हो चुके थे। इसका कारण यह था कि रोमन साम्राज्य पर आक्रमण करने वाले बर्बर आक्रमणकारियों ने रोमन साम्राज्य के अनेक नगरों का विनाश कर दिया था। 11वीं शताब्दी से परिस्थितियों में परिवर्तन आना आरंभ हुआ। इससे मध्यकालीन यूरोप में अनेक नगरों का उत्थान हुआ। यद्यपि ये नगर आधुनिक नगरों की तुलना में भव्य एवं विशाल नहीं थे किंतु उन्होंने उस समय के समाज को काफी सीमा तक प्रभावित किया। बी० के० गोखले के अनुसार, “मध्यकालीन नगरों ने यूरोपीय संस्कृति एवं सभ्यता को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।”

I. नगरों के उत्थान के कारण

मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. कृषि का विकास (Development of Agriculture):
रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् यूरोप में अराजकता का बोलबाला था। इससे कृषि एवं व्यापार को गहरा आघात लगा। अर्थव्यवस्था के तबाह हो जाने से बड़ी संख्या में नगर उजड़ गए थे। धीरे-धीरे परिस्थिति में परिवर्तन आया। इससे कृषि के विकास को बल मिला। फ़सलों के अधिक उत्पादन के कारण कृषक धनी हुए।

इन धनी किसानों को अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न को बेचने तथा अपने लिए एवं कृषि के लिए आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए एक बिक्री केंद्र की आवश्यकता हुई। शीघ्र ही बिक्री केंद्रों में दुकानों, घरों, सड़कों एवं चर्चों का निर्माण हुआ। इससे नगरों के विकास की आधारशिला तैयार हुई।

2. व्यापार का विकास (Development of Trade):
11वीं शताब्दी में यूरोप एवं पश्चिम एशिया के मध्य अनेक नए व्यापारिक मार्गों का विकास आरंभ हुआ। इससे व्यापार को एक नई दिशा मिली। इटली, जर्मनी, इंग्लैंड, पुर्तगाल एवं बेल्जियम के व्यापारियों ने मुस्लिम एवं अफ्रीका के व्यापारियों के साथ संबंध स्थापित किए। व्यापार में आई इस तीव्रता ने नगरों के विकास को एक नया प्रोत्साहन दिया।

3. धर्मयुद्ध (Crusades):
धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य 1096 ई० से 1272 ई० के मध्य लड़े गए थे। इन धर्मयुद्धों का वास्तविक उद्देश्य ईसाइयों द्वारा अपनी पवित्र भूमि जेरुसलम (Jerusalem) को मुसलमानों के अधिकार से स्वतंत्र करवाना था। इन धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई। वे भव्य, मुस्लिम नगरों को देखकर चकित रह गए।

इन धर्मयुद्धों के कारण पश्चिम एवं पूर्व के मध्य व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला। इसका कारण यह था कि यूरोपीय देशों में रेशम, मलमल, गरम मसालों एवं विलासिता की वस्तुओं की माँग बहुत बढ़ गई थी। इससे व्यापारी धनी हुए जिससे नगरों के विकास को बल मिला।।

4. नगरों की स्वतंत्रता (Freedom of Towns):
मध्यकाल में यह कहावत प्रचलित थी-नगर की हवा बनाती है। (town air makes free.) अनेक कृषकदास (serfs) जो स्वतंत्र होने की इच्छा रखते थे तथा जो अपने सामंत द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों से दुःखी थे नगरों में जाकर छिप जाते थे। यदि कोई कृषकदास अपने सामंत की नजरों से एक वर्ष तथा एक दिन तक छिपे रहने में सफल हो जाता तो उसे स्वतंत्र कर दिया जाता था।

वह नगर में रहने वाले विभिन्न विचारों वाले लोगों से मिलता था। यहाँ उसे अपनी स्थिति में सुधार करने के अनेक अवसर प्राप्त थे। वह किसी भी व्यवसाय को अपना सकता था। यहाँ वह कोई भी विलास सामग्री खरीद सकता था। कृषकदास रहते हुए वह इस संबंध में स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था। संक्षेप में नगरों के स्वतंत्र जीवन ने नगरों के विकास में बहुमूल्य योगदान दिया।

एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार मार्क किशलेस्की का यह कहना ठीक है कि, “अनेक कृषक जो अपने सामान्य जीवन से निराश थे के लिए नगर एक पनाहगाह थे।”

II. नगरों की विशेषताएँ

मध्यकाल यूरोप में अनेक नए नगरों का उत्थान हुआ। इन नगरों में प्रमुख थे वेनिस (Venice), फ्लोरेंस (Florence), मिलान (Milan), जेनेवा (Genoa), नेपल्स (Naples), लंदन (London), क्लोन (Cologne), प्रेग (Prague), वियाना (Vienna), बार्सिलोना (Barcelona), रोम (Rome), आग्स्बर्ग (Augusburg) आदि। इन नगरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. आधारभूत सुविधाओं की कमी (Lack of Basic Amenities):
मध्यकालीन यूरोप में यद्यपि अनेक नगरों का उत्थान हुआ था किंतु ये प्राचीन काल अथवा आधुनिक काल में बने नगरों की तरह भव्य एवं विशाल नहीं थे। यहाँ तक कि इन नगरों में आधारभूत सुविधाओं की बहुत कमी थी।

ये नगर बिना किसी योजना के बनाए जाते थे। जहाँ कहीं जगह मिलती वहीं मकान बना दिए जाते थे। ये मकान लकड़ी के बने हुए होते थे तथा एक दूसरे से सटे हुए होते थे। अत: आग लग जाने की सूरत में संपूर्ण नगर के नष्ट होने का ख़तरा रहता था। नगरों की गलियाँ बहुत तंग होती थीं। सड़कें कम चौड़ी एवं कच्ची होती थीं।

लोगों को पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं था। घरों से जल निकासी (drainage) का कोई प्रबंध नहीं था। लोग घरों का कूड़ा-कर्कट बाहर गलियों फेंक देते थे। इस कारण अक्सर महामारियाँ फैल जाती थीं एवं बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का ग्रास हो जाते थे। इन कारणों के चलते नगरों में रहने वाले लोगों की संख्या बहुत कम थी।

2. सुरक्षा व्यवस्था (Defence Arrangements) :
मध्यकाल यूरोप को यदि युद्धों एवं आक्रमणों का काल कह दिया जाए तो इसमें कोई अतिकथनी नहीं होगी। इस अराजकता का चोरों एवं लुटेरों ने खूब फायदा उठाया। नगरों की सुरक्षा व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। इस उद्देश्य से नगरों के चारों ओर एक विशाल दीवार बनाई जाती थी। इस विशाल दीवार के अतिरिक्त नगर की सुरक्षा के लिए नगर के चारों ओर एक विशाल खाई बनाई जाती थी। इस खाई को सदैव पानी से भरा रखा जाता था। इसका उद्देश्य यह था कि कोई भी आक्रमणकारी सुगमता से नगर पर आक्रमण न कर सके।

3. श्रेणियों की भूमिका (Role of Guilds):
मध्यकालीन नगरों में रहने वाले अधिकाँश लोग व्यापारी थे। प्रत्येक शिल्प अथवा उद्योग ने व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अपनी-अपनी श्रेणियाँ संगठित कर ली थीं। ये श्रेणियाँ उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य एवं बिक्री पर नियंत्रण रखती थीं। प्रत्येक श्रेणी का अपना एक प्रधान नियुक्त किया जाता था।

श्रेणी के नियमों का उल्लंघन करने वालों, घटिया माल का उत्पादन करने वालों एवं ग्राहकों से निर्धारित मूल्यों से अधिक वसूल करने वालों के विरुद्ध श्रेणी सख्त कदम उठाती थी। श्रेणी अपने अधीन कार्य करने वाले कारीगरों एवं शिल्पकारों के कल्याण के लिए बहुत कार्य करती थी। यह बीमारी, दुर्घटना एवं वृद्धावस्था के समय अपने सदस्यों को आर्थिक सहायता देती थी। यह विधवाओं एवं अनाथ बच्चों की भी देखभाल करती थी। यह अपने सदस्यों के लिए मनोरंजन की भी व्यवस्था करती थी।

4. कथील नगर (Cathedral Towns):
12वीं शताब्दी में फ्रांस में कथीड्रल कहे जाने वाले विशाल चर्चों का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। शीघ्र ही यूरोप के अन्य देशों में भी कथीलों का निर्माण शुरू हुआ। इनके निर्माण के लिए धनी लोगों द्वारा दान दिया जाता था। सामान्यजन अपने श्रम द्वारा एवं अन्य वस्तुओं द्वारा इनके निर्माण में सहयोग देते थे। कथील बहुत विशाल एवं भव्य होते थे।

इन्हें पत्थर से बनाया जाता था। इनके निर्माण में काफी समय लगता था। अतः कथीड्रल के आस-पास अनेक प्रकार के लोग बस गए। उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बाज़ार भी स्थापित हो गए। इस प्रकार कथीलों ने नगरों का रूप धारण कर लिया। कथीलों का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि पादरी की आवाज, भिक्षुओं के गीत, लोगों की प्रार्थना की घंटियाँ दूर-दूर तक सुनाई पड़ें। कथील की खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच (stained glass) का प्रयोग किया जाता था।

III. नगरों का महत्त्व

मध्यकाल में नगरों ने यूरोपीय सभ्यता एवं संस्कृति पर गहन प्रभाव डाला। नगरों की उल्लेखनीय भूमिका के संबंध में हम निम्नलिखित तथ्यों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं

1. राजनीतिक क्षेत्र में देन (Contribution in the Political Field):
13वीं शताब्दी तक यूरोप के अनेक नगर बहुत समृद्ध हो गए थे। उन्होंने देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। समृद्ध नगर निवासी

1. उन्होंने राजा को स्थायी सेना के गठन में भी सहयोग दिया। इस कारण राजाओं की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। वे पहले की अपेक्षा शक्तिशाली हो गए। इससे सामंतों की शक्ति को गहरा आघात लगा। राजाओं ने अमीरों द्वारा दिए जाने वाले समर्थन के बदले उन्हें संसद में बैठने की अनमति दी। इन अमीरों ने शासन संबंधी सरकारी नीति को काफी सीमा तक प्रभावित किया। राजा ने कुछ अमीरों को नगर पर शासन करने के अधिकार पत्र भी दिए।

2. आर्थिक क्षेत्र में देन (Contribution in the Economic Field):
मध्यकालीन नगरों ने आर्थिक क्षेत्र में निस्संदेह उल्लेखनीय योगदान दिया। नगरों द्वारा अनेक ऐसी वस्तुओं का उत्पादन किया जाता था जो समाज के लिए आवश्यक थीं। व्यापारी अपने फालतू माल का विदेशों में निर्यात करते थे तथा वे आवश्यक माल का आयात भी करते थे। इससे नगरों की समृद्धि में वृद्धि हुई।

नगरों में लोगों की सुविधा के लिए अक्सर मेलों का आयोजन किया जाता था। इन मेलों में देशी एवं विदेशी प्रत्येक प्रकार का माल मिलता था। नगरों में व्यापार के कुशल संचालन के लिए श्रेणियों (guilds) का गठन किया गया था। ये श्रेणियाँ व्यापार के अतिरिक्त नगर शासन को भी प्रभावित करती थीं।

3. सामाजिक क्षेत्र में देन (Contribution in the Social Field):
मध्यकालीन नगरों ने यूरोप के सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। ये नगर सामंतों के प्रभाव से मुक्त थे। अतः यहाँ रहने वाले लोग अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यवसाय को अपना सकते थे अथवा अपनी मेहनत से किसी भी पद पर पहुँच सकते थे। वे विवाह करवाने के लिए स्वतंत्र थे।

वे जब चाहे कोई भी संपत्ति खरीद सकते थे अथवा उसे बेच सकते थे। नगरों में धन के एकत्र होने से लोगों के सामाजिक जीवन में भी परिवर्तन हुआ। धनी लोगों ने अपने लिए विशाल घर बना लिए थे। वे विलासिता का जीवन व्यतीत करने लगे थे। नगरों के उत्थान से यूरोप के समाज में दो नए वर्ग– श्रमिक वर्ग एवं मध्य वर्ग अस्तित्व में आए। मध्य वर्ग ने यूरोप के समाज को एक नई दिशा देने में प्रशंसनीय योगदान दिया।

4. सांस्कृतिक क्षेत्र में देन (Contribution in the Cultural Field):
नगरों के उत्थान के परिणामस्वरूप यूरोप ने सांस्कृतिक क्षेत्र में अद्वितीय प्रगति की। नगरों के धनी लोगों ने नगरों के सौंदर्य को बढ़ाने के उद्देश्य से अनेक उद्यान लगवाए। उन्होंने सड़क मार्गों एवं यातायात के साधनों का विकास किया। उन्होंने भवन निर्माण कला, चित्रकला एवं साहित्य को प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरूप इन सभी क्षेत्रों में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। वास्तव में इसने यूरोप में पुनर्जागरण की आधारशिला रखी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 10.
मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मध्यकालीन यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी में आए मूलभूत परिवर्तनों को लिखिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में अनेक ऐसे परिवर्तन आए जिन्होंने सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों पर गहन प्रभाव डाला। इन परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. पर्यावरण (Environment):
5वीं शताब्दी से लेकर 10वीं शताब्दी तक यूरोप का अधिकाँश भाग विशाल जंगलों से घिरा हुआ था। इन जंगलों के कारण कृषि योग्य भूमि बहुत कम रह गई थी। अनेक कृषकदास अपने सामंतों के अत्याचारों से बचने के लिए जंगलों में जाकर शरण ले लेते थे। इस काल के दौरान संपूर्ण यूरोप जबरदस्त शीत लहर की चपेट में था।

इस शीत लहर के चलते फ़सलों की उपज का काल बहुत कम अवधि का रह गया था। इससे फ़सलों के उत्पादन में बहुत कमी आ गई। 11वीं शताब्दी में यूरोप के वातावरण में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव आया। अब तापमान में वृद्धि होने लगी।

इससे फ़सलों के लिए आवश्यक तापमान उपलब्ध हो गया। इससे फ़सलों के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई। तापमान में वृद्धि के कारण यूरोप के अनेक भागों के वन क्षेत्रों में काफी कमी आई। परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

2. भूमि का उपयोग (Land Use):
प्रारंभिक मध्यकाल यूरोप में प्रचलित कृषि तकनीक बहुत पुरानी किस्म की थी। इसके बावजूद लॉर्ड अपनी आय को बढ़ाने का प्रयास करते रहते थे। यद्यपि कृषि के उत्पादन को बढ़ाना संभव नहीं था इसलिए कृषकों को मेनरों की जागीर (manorial estate) की समस्त भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए बाध्य किया जाता था।

इसके लिए उन्हें निर्धारित समय से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता था। कृषक क्योंकि अपने लॉर्ड के अत्याचारों का खुल कर सामना नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध का सहारा लिया। वे अपने खेतों पर अधिक समय काम करने लगे और उपज का अधिकाँश भाग अपने पास रखने लगे। चरागाहों एवं वन भूमि के लिए भी कृषकों और लॉर्डों के मध्य विवाद आरंभ हो गए। इसका कारण यह था कि लॉर्ड इस भूमि को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझते थे जबकि कृषक इसे संपूर्ण समुदाय से संबंधित समझते थे।

3. नयी कृषि प्रौद्योगिकी (New Agricultural Technology):
11वीं शताब्दी तक यूरोप में नयी कृषि प्रौद्योगिकी के प्रमाण मिलते हैं। अब लकड़ी से बने हलों के स्थान पर लोहे के हलों का प्रयोग किया जाने लगा। ये हल भारी नोक वाले होते थे। इससे भूमि को अधिक गहरा खोदना संभव हुआ। अब साँचेदार पटरों (mould boards) का उपयोग किया जाने लगा।

इनके द्वारा उपरि मृदा को सुगमता से पलटा जा सकता था। अब हल को गले के स्थान पर बैलों के कंधों से बाँधा जाने लगा। इस तकनीकी परिवर्तन से बैलों की एक बड़ी परेशानी दूर हुई। इसके अतिरिक्त उन्हें पहले की अपेक्षा कहीं अधिक शक्ति मिल गई। घोड़ों के खुरों पर अब लोहे की नाल लगाने का प्रचलन आरंभ हो गया। इससे उनके खुर अब सुरक्षित हो गए।

मध्यकालीन यूरोप में भूमि के उपयोग के तरीकों में परिवर्तन आया। कृषि के लिए पहले दो खेतों वाली व्यवस्था (two-field system) प्रचलित थी। इसके स्थान पर अब तीन खेतों वाली व्यवस्था का प्रयोग होने लगा। इस व्यवस्था के अधीन कृषक अपने खेतों को तीन भागों में बाँटते थे। एक भाग में शरद ऋतु में गेहूँ अथवा राई (rye) बो सकते थे।

दूसरे भाग में बसंत ऋतु में मटर (peas), सेम (beans) तथा मसूर (lentils) की खेती की जाती थी। इनका प्रयोग मनुष्यों द्वारा किया जाता था। घोड़ों के उपयोग के लिए जौ (oats) एवं बाजरे (barley) का उत्पादन किया जाता था। तीसरे खेत को खाली रखा जाता था। इसका प्रयोग चरागाह के लिए किया जाता था। इस प्रकार वे प्रत्येक वर्ष खेतों का प्रयोग बदल-बदल कर करने लगे। इससे फ़सलों के उत्पादन में हैरानीजनक वृद्धि हुई।

फ़सलों के उत्पादन में वृद्धि के महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आए। भोजन की उपलब्धता अब पहले की अपेक्षा दुगुनी हो गई। मटर, सेम एवं मसूर आदि के प्रयोग से अब लोगों को पहले की अपेक्षा कहीं अधिक मात्रा में प्रोटीन मिलने लगा। जौ एवं बाजरा अब पशुओं के लिए एक अच्छा चारे का स्रोत बन गया। इससे वे अधिक ताकतवर बने। इस कारण वे अब अधिक कार्य करने योग्य हो गए।

कृषि के विकास के कारण यूरोप में जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि होने लगी। अत: लोगों द्वारा आवास की माँग बढ़ जाने के कारण कृषि अधीन क्षेत्र कम होने लगा। कृषि में हुए विकास के परिणामस्वरूप सामंतवाद पर गहरा प्रभाव पड़ा। व्यक्तिगत संबंध जो कि सामंतवाद की प्रमुख आधारशिला थे कमज़ोर पड़ने लगे।

प्रश्न 11.
किन कारणों के चलते यूरोपीय समाज को 14वीं शताब्दी में संकट का सामना करना पड़ा ?
अथवा
चौदहवीं सदी की शुरुआत तक यूरोप का आर्थिक विकास धीमा पड़ गया। क्यों ?
उत्तर:
14वीं शताब्दी में यूरोप में आए संकट के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

1. पर्यावरण में परिवर्तन (Change in Environment):
13वीं शताब्दी के अंत में उत्तरी यूरोप के पर्यावरण में पुनः परिवर्तन आया। इस कारण गर्मी का स्थान शीत ऋतु ने ले लिया। गर्मी का मौसम बहुत छोटा रह गया। इस कारण भूमि की उत्पादन क्षमता बहुत कम हो गई। इससे घोर खाद्य संकट उत्पन्न हो गया। भयंकर तूफानों एवं सागरीय बाढ़ों ने भी कृषि अधीन काफी भूमि को नष्ट कर दिया। इसने स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया।

इसके अतिरिक्त भू-संरक्षण (soil conservation) के अभाव के कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति बहुत कम हो गई थी। दूसरी ओर जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण उपलब्ध संसाधन बहुत कम पड़ गए। इससे अकालों का जन्म हुआ।

1315 ई० और 1317 ई० के दौरान यूरोप में भयंकर अकाल पड़े। इस कारण बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो गई। चरागाहों की कमी के कारण पशुओं को पर्याप्त चारा उपलब्ध न हो सका। परिणामस्वरूप 1320 ई० के दशक में बड़ी संख्या में पशु मारे गए।

2. चाँदी की कमी (Shortage of Silver):
14वीं शताब्दी में ऑस्ट्रिया एवं सर्बिया में चाँदी की कमी आ गई। इन दोनों देशों में विश्व की सर्वाधिक चाँदी की खानें थीं। यहाँ से अन्य यूरोपीय देशों को चाँदी का निर्यात किया जाता था। उस समय अधिकाँश यूरोपीय देशों में चाँदी की मुद्रा का प्रचलन था। अत: इस धातु की कमी के कारण यूरोपीय व्यापार को जबरदस्त आघात लगा। इसका कारण यह था कि चाँदी के अभाव में मिश्रित धातु की मुद्रा का प्रचलन किया गया। इसे व्यापारी स्वीकार करने को तैयार न थे।

3. ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague):
14वीं शताब्दी में यूरोप में ब्यूबोनिक प्लेग ने भयंकर रूप धारण कर लिया था। यह एक संक्रामक बीमारी (contagious disease) थी जो चूहों से फैलती थी। इसे काली मौत (black death) कहा जाता था। इसका कारण यह था कि यह बीमारी जिस व्यक्ति को लगती थी उसका रंग काला पड जाता था।

इस बीमारी के प्रथम लक्षण 1347 ई० में सिसली (Sicily) में देखने को मिले। यहाँ एशिया से व्यापार के लिए आए जलपोतों के साथ चूहे भी आ गए थे। इससे वहाँ प्लेग फैल गई। शीघ्र ही यह 1348 ई० से 1350 ई० के दौरान यूरोप के अनेक देशों में फैल गई। यह बीमारी जिसे लग जाती थी उसकी मृत्यु निश्चित थी।

परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का ग्रास बन गए। इस कारण यूरोप की जनसंख्या जो 1300 ई० में 730 लाख थी कम होकर 1400 ई० में 450 लाख रह गई। प्लेग के कारण व्यापक पैमाने पर सामाजिक विस्थापन हुआ। आर्थिक मंदी ने स्थिति को अधिक गंभीर बना दिया। इस कारण विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा।

जनसंख्या में कमी के कारण मजदूरों की उपलब्धता बहुत कम हो गई। इस कारण मजदूरों की माँग बहुत बढ़ गई। इसके चलते मज़दूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई। दूसरी ओर मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि संबंधी मूल्यों में गिरावट के कारण लॉर्डों (सामंतों) की आय बहुत कम हो गई। इसके चलते उन्होंने मजदूरी संबंधी कृषकों से किए समझौतों का पालन करना बंद कर दिया।

इस कारण कृषकों एवं लॉर्डों के मध्य तनाव उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप अनेक स्थानों पर कृषक विद्रोह करने के लिए बाध्य हो गए। इनमें से 1323 ई० में फलैंडर्स (Flanders), 1358 ई० में फ्राँस एवं 1381 ई० में इंग्लैंड में हुए विद्रोह प्रमुख थे। यद्यपि इन विद्रोहों का दमन कर दिया गया था किंतु इन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि कृषकों के साथ अब क्रूर व्यवहार नहीं किया जा सकता। प्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड एल० ग्रीवस का यह कहना ठीक है कि, “प्लेग के सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव बहुत प्रभावशाली थे।”

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के कारणों एवं सफलताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय राज्यों की विशेषताओं एवं सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। बाद में इन राज्यों का पतन क्यों हुआ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों (Nation States) का गठन हुआ। इसने आधुनिक युग का श्रीगणेश किया। राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के कारणों, विशेषताओं एवं सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन अग्रलिखित अनुसार हैं

I. राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के कारण

16वीं शताब्दी के आरंभ तक यूरोप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन एवं पुर्तगाल आदि में राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान हुआ। राष्ट्रीय राज्यों से अभिप्राय ऐसे राज्यों से था जिसके नागरिक अपने आपको एक राष्ट्र से संबंधित समझते थे। उनकी अपनी भाषा एवं साहित्य होता था। उनका अपने राष्ट्र के साथ विशेष प्यार होता था। वे अपने राष्ट्र के हितों के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार रहते थे। राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. सामंतवाद का पतन (Decline of Feudalism):
16वीं शताब्दी के आरंभ में सामंतवाद का पतन राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ। मध्यकाल सामंत बहुत शक्तिशाली थे। उनकी अपनी सेना होती थी। यहाँ तक कि राजा भी उनके प्रभावाधीन थे। लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियों में बदलाव आया।

सामंतों के घोर अत्याचारों के कारण लोग उनके विरुद्ध हो गए। धर्मयुद्धों में भाग लेने के कारण बड़ी संख्या में सामंत मारे गए। इनसे उनकी शक्ति को गहरा आघात लगा। सामंतों के पतन ने राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान की आधारशिला तैयार की। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० जे० एच० हेज़ के अनुसार, “16वीं शताब्दी तक सामंतवाद का पतन हो रहा था एवं सामंत इस स्थिति में नहीं रहे कि वे शाही निरंकुशता का विरोध कर सकें।”

2. चर्च का प्रभाव (Influence of the Church):
मध्यकाल में चर्च का यूरोप के शासकों एवं लोगों पर गहन प्रभाव था। इसे असीम शक्तियाँ प्राप्त थीं। कोई भी व्यक्ति अथवा शासक चर्च की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं रखता था। क्योंकि चर्च के पास अपार संपत्ति थी इसलिए यह शीघ्र ही भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया। 16वीं शताब्दी के आरंभ तक यूरोप के लोगों का दृष्टिकोण विशाल हो गया था।

अतः वे चर्च में फैले भ्रष्टाचार को सहन करने के लिए तैयार नहीं थे। धर्मयुद्धों के दौरान पोप ने यूरोपीय देशों को नेतृत्व प्रदान किया था। इन युद्धों में अंततः यूरोपीयों को पराजय का सामना करना पड़ा। इससे चर्च के सम्मान को गहरा आघात लगा। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के लिए स्वर्ण अवसर प्राप्त हुआ।

3. धर्मयुद्ध (The Crusades):
धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य 11वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के दौरान लड़े गए। इन धर्मयुद्धों में बड़ी संख्या में सामंत मारे गए थे। इससे उनकी शक्ति को गहरा आघात लगा। चर्च के इन युद्धों के दौरान यूरोपीय शासकों को पूर्वी देशों में प्रचलित शासन व्यवस्था की जानकारी प्राप्त हई।

वे यहाँ प्रचलित निरंकश राजतंत्र (absolute monarchy) से बहत प्रभावित हए। अतः उन्होंने इस को यूरोपीय देशों में लागू करने का निर्णय किया। यूरोप में फैली अराजकता को दूर करने के उद्देश्य से लोगों ने इस दिशा में शासकों को पूर्ण सहयोग दिया। निस्संदेह यह कदम यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुआ।

4. मध्य वर्ग का उत्थान (The Rise of the Middle Class):
मध्य वर्ग के उत्थान ने राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस वर्ग के लोग धनी एवं व्यापारी थे। उन्होंने अपने व्यापार एवं वाणिज्य के प्रोत्साहन एवं सुरक्षा हेतु निरंकुश राजतंत्र की स्थापना में बड़ा सक्रिय सहयोग दिया। उन्होंने सामंतों के घोर अत्याचारों से बचने एवं अराजकता के वातावरण को दूर करने के लिए निरंकुश राजाओं के हाथ मज़बूत करने का निर्णय किया।

क्योंकि उस समय संसद् में कुलीन वर्ग का बोलबाला था इसलिए मध्य वर्ग यह कामना करता था कि इस पर राजा की सर्वोच्चता स्थापित हो। इस उद्देश्य से मध्य वर्ग ने राजा को नियमित कर देने का वचन दिया।

इन करों के कारण राजा अपनी एक शक्तिशाली सेना का गठन कर सका। इस सेना के चलते राजा अपने राज्य के सामंतों का दमन कर सका। निस्संदेह मध्य वर्ग का उत्थान युरोपीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण मोड सिद्ध हआ। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० जे० एच० हेज़ के अनुसार, “मध्य वर्ग का उत्थान एवं इसका राजाओं के साथ समझौता शायद मध्य काल से आधुनिक काल के बीच के परिवर्तन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता थी।”

5. शक्तिशाली शासकों का उत्थान (Rise of Powerful Rulers):
यह सौभाग्य ही था कि 15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में अनेक शक्तिशाली शासकों का उत्थान हुआ। इनमें फ्राँस का लुई ग्यारहवाँ (Louis XI), इंग्लैंड का हेनरी सातवाँ (Henery VII), स्पेन के फर्जीनेंड (Ferdinand) एवं ईसाबेला (Isabella) तथा ऑस्ट्रिया के मैक्समिलन (Maximilian) के नाम उल्लेखनीय हैं।

इन शासकों ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया। इस सेना को बंदूकों एवं बड़ी तोपों से लैस किया गया। इस सेना के सहयोग से इन शासकों ने सामंतों की शक्ति का सुगमता से दमन किया। इसका कारण यह था कि सामंतों की सेना कमज़ोर थी। ये सैनिक अपने तीर एवं तलवारों के साथ तोपों का मुकाबला न कर सके।

6. विद्वानों के लेख (Writings of the Scholars):
15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ यूरोप में अनेक ऐसे विद्वान हुए जिन्होंने अपने लेखों द्वारा राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें इटली के लेखक मैक्यिावेली (Machiavelli), फ्रांसीसी लेखक बोदिन (Bodin) एवं इंग्लैंड के लेखक थॉमस हॉब्स (Thomas Hobbes) के नाम उल्लेखनीय हैं। मैक्यिावेली का ग्रंथ दि प्रिंस (The Prince) 1513 ई० में प्रकाशित हुआ।

इस ग्रंथ ने शीघ्र ही संपूर्ण यूरोप में धूम मचा दी। इस ग्रंथ में लेखक ने निरंकुश राजतंत्र की खूब प्रशंसा की तथा इस प्रणाली को अन्य सभी प्रकार की प्रणालियों से उत्तम बताया। इसका कथन था कि केवल राजा ही अपने राज्य के हितों के बारे में बेहतर जानता है। इसलिए उसे सदैव लोगों द्वारा समर्थन दिया जाना चाहिए। इन ग्रंथों का लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा तथा वे राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना के समर्थन में आगे आए।

II. राष्ट्रीय राज्यों की विशेषताएँ

राष्ट्रीय राज्यों की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है-

(1) ऐसा विश्वास किया जाता था कि उनका अपना राज्य सर्वोच्च है तथा किसी अन्य राज्य को उनके राज्य की प्रभुसत्ता एवं क्षेत्रीय अखंडता (territorial integrity) को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

(2) ऐसे राज्य में राजा ही सर्वोच्च होता है। वह ही कानून का निर्माण करता है एवं उसकी व्याख्या करता है। उसके निर्णयों को अंतिम समझा जाता है। किसी भी व्यक्ति को उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं होता। वास्तव में राजा की इच्छा को ही कानून समझा जाता है।

(3) ऐसे राज्यों में राजी ही राज्य की सुरक्षा एवं उसके विस्तार के लिए उत्तरदायी होता है। इसलिए उन्होंने अपने अधीन एक शक्तिशाली सेना का गठन किया। इस सेना को आधुनिक शस्त्रों से लैस किया जाता था।

(4) ऐसे राज्यों में व्यक्तियों को सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित रखा जाता है।

(5) ऐसे राज्य राजनीतिक तौर पर स्वतंत्र होते हैं। इसके अतिरिक्त वे आर्थिक तौर पर आत्म-निर्भर (self-sufficient) होते हैं।

(6) ऐसे राज्यों में राजा को लोगों पर कर लगाने का अधिकार होता है। लोगों का यह कर्त्तव्य होता है कि वे इन करों की अदायगी समय पर करें।

(7) ऐसे राज्यों द्वारा सदैव विदेशों में अपने उपनिवेश (colonies) स्थापित करने के प्रयास किए जाते हैं।

III. राष्ट्रीय राज्यों की सफलताएँ

राष्ट्रीय राज्यों को अनेक सफलताएँ प्राप्त करने का श्रेय प्राप्त है।

  • उन्होंने सामंतों की शक्ति का दमन कर लोगों को उनके अत्याचारों से मुक्त किया।
  • उन्होंने अपने राज्यों में फैली अराजकता को दूर कर शाँति की स्थापना की।
  • उन्होंने लोगों को अपने शासकों का सम्मान करने एवं उन्हें पूर्ण सहयोग देने का सबक सिखाया।
  • उन्होंने लोगों में एक नई राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। इसके यूरोप के भावी इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़े।
  • उन्होंने अपने-अपने राज्यों की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से उल्लेखनीय पग उठाए। इससे देश की कृषि एवं उद्योगों को प्रोत्साहन मिला।
  • उन्होंने अपने राज्य की भाषा एवं साहित्य के विकास के लिए बहुमूल्य योगदान दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० जे० एच० हेज़ के शब्दों में, “16वीं शताब्दी में राष्ट्रीय राजतंत्र के उत्थान के साथ यूरोपीय लोगों में राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय देशभक्ति उत्पन्न हुई।”

IV. राष्ट्रीय राज्यों के पतन के कारण

16वीं शताब्दी में यद्यपि यूरोप में अनेक राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हुई थी किंतु अनेक कारणों से बाद में इनका पतन हो गया। इन कारणों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

(1) आरंभ में राष्ट्रीय राज्यों के शासकों ने सामंतों का दमन कर आंतरिक शांति की स्थापना की। इससे उन्हें लोगों का पूर्ण सहयोग मिला। बाद में ये शासक अपने राज्यों के विस्तार के लिए दूसरे राज्यों के साथ लंबे युद्धों में उलझ गए। इस कारण पुनः अराजकता फैली। अत: लोग ऐसे राज्यों का अंत चाहने लगे।

(2) राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना के समय वहाँ के शासकों ने अनेक लोकप्रिय कार्य किए। इससे लोग बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें लंबे समय के पश्चात् अत्याचारी सामंतों से छुटकारा प्राप्त हुआ। सत्ता हाथ में आने के पश्चात् अनेक राष्ट्रीय शासक अपने कर्तव्यों को भूल गए। उन्होंने लोगों पर अनेक अनुचित कानून लाद दिए। अतः लोग ऐसे शासकों के विरुद्ध हो गए।

(3) राष्ट्रीय राज्यों के अनेक शासक सत्ता एवं धन हाथ आते ही विलासप्रिय हो गए। उन्होंने अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करना आरंभ कर दिया। ऐसे राज्यों का अंत निश्चित था।

(4) 1776 ई० में अमरीका की क्राँति एवं 1789 ई० में फ्रांसीसी क्राँति ने राष्ट्रीय राज्यों को एक गहरा आघात पहुँचाया।

क्रम संख्यावर्षघटना
1.529 ई०इटली में सेंट बेनेडिक्ट मठ की स्थापना।
2.768-814 ई०फ्राँस के शासक शॉर्लमेन का शासनकाल।
3.910 ई०बरगंडी में क्लूनी मठ की स्थापना।
4.1066 ई॰नारमंडी के विलियम द्वारा इंग्लैंड पर अधिकार।
5.1100 ई०फ्राँस में कथीड्रलों का निर्माण।
6.1315-1317 ई०यूरोप में भयंकर अकाल।
7.1323 ई०कृषकों का फलैंडर्स में विद्रोह।
8.1347-1350 ई०यूरोप में ब्यूबोनिक प्लेग का फैलना।
9.1358 ई०कृषकों का फ्राँस में विद्रोह।
10.1381 ई०कृषकों का इंग्लैंड में विद्रोह।
11.1337-1453 ई०इंग्लैंड एवं फ्राँस के मध्य सौ वर्षीय युद्ध।
12.1455-1485 ई०इंग्लैंड एवं फ्राँस के मध्य गुलाबों का युद्ध।
13.1461-1483 ई०फ्राँस में लुई ग्यारहवें का शासनकाल।
14.1469 ई०आरागान के युवराज फर्डीनेंड एवं कास्तील की राजकुमारी ईसाबेला का विवाह।
15.1485 ई०इंग्लैंड में हेनरी सप्तम द्वारा ट्यूडर वंश की स्थापना।
16.1485-1509 ई०इंग्लैंड के शासक हेनरी सप्तम का शासनकाल।
17.1492 ई०स्पेन का ग्रेनाडा पर अधिकार।
18.1494 ई०पुर्तगाल के शासक की स्पेन के साथ टार्डींसिलास की संधि।
19.1603 ई०जेम्स प्रथम द्वारा इंग्लैंड में स्टुअर्ट वंश की स्थापना।
20.1603-1625 ई०इंग्लैंड के शासक जेम्स प्रथम का शासनकाल।
21.1614 ई०फ्राँस के शासक लुई तेरहवें द्वारा एस्टेट्स जनरल को भंग करना।
22.1625-1649 ई०इंग्लैंड के शासक चार्ल्स प्रथम का शासनकाल।
23.1642-1649 ई०इंग्लैंड में गृहयुद्ध।
24.1789 ई०प्राँस की क्राँति।
25.1848 ई०जर्मनी की क्राँति।
26.1917 ई०रूस की क्राँति।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में प्रचलित तीन वर्ग कौन-से थे ? समाज पर इनके प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज तीन वर्गों-पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग एवं किसान वर्ग में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान पादरी वर्ग को प्राप्त था। पादरियों को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि समझा जाता था। इसलिए समाज द्वारा उनका विशेष सम्मान किया जाता था। यहाँ तक कि राजा भी उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करते थे। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।

वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे। कृषकदास, अपाहिज व्यक्ति एवं स्त्रियाँ पादरी नहीं बन सकती थीं। कुलीन वर्ग को समाज में दूसरा स्थान प्राप्त था। इस वर्ग के लोग प्रशासन, चर्च एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें भी अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे भव्य महलों में रहते थे एवं विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे।

किसान यूरोपीय समाज के सबसे निम्न वर्ग में सम्मिलित थे। यूरोप की अधिकाँश जनसंख्या इस वर्ग से संबंधित थी। इनमें स्वतंत्र किसानों की संख्या बहुत कम थी। अधिकाँश किसान कृषकदास थे। उन्हें अपने गुज़ारे के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। वास्तव में उनका जीवन नरक के समान था।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में पादरी वर्ग की क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में पादरी प्रथम वर्ग में सम्मिलित थे। इस वर्ग में पोप, आर्कबिशप एवं बिशप सम्मिलित थे। यह वर्ग बहुत शक्तिशाली एवं प्रभावशाली था। इसका कारण यह था कि उनका चर्च पर पूर्ण नियंत्रण था। चर्च के अधीन विशाल भूमि होती थी, जिससे उसे बहुत आमदनी होती थी। लोगों द्वारा दिया जाने वाला दान भी चर्च की आय का एक प्रमुख स्त्रोत था।

इनके अतिरिक्त चर्च किसानों पर टीथ नामक कर लगाता था। चर्च की इस विशाल आय के चलते पादरी वर्ग बहुत धनी हो गया था। इस वर्ग का यूरोप के शासकों पर भी बहत प्रभाव था। ये शासक पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं रखते थे। कलीन वर्ग भी पादरी वर्ग का बहुत सम्मान करता था। पादरी वर्ग को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।

वे राज्य को किसी प्रकार का कोई कर नहीं देते थे। वे विशाल एवं भव्य महलों में रहते थे। यद्यपि वे लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने का उपदेश देते थे किंतु वे स्वयं विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। दूसरी ओर लोगों को धर्मोपदेश देने का कार्य निम्न वर्ग के पादरी करते थे। उनके वेतन कम थे। उनकी दशा शोचनीय थी। पादरी वर्ग में यह असमानता वास्तव में इस वर्ग के माथे पर एक कलंक समान थी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 3.
मध्यकालीन समाज में कुलीन वर्ग की क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
कुलीन वर्ग दूसरे वर्ग में सम्मिलित था। यूरोपीय समाज में इस वर्ग की विशेष भूमिका थी। केवल कुलीन वर्ग के लोगों को ही प्रशासन, चर्च एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था। उन्हें अनेक प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे। उनके पास विशाल जागीरें होती थीं। कुलीन इन जागीरों पर एक छोटे राजे के समान शासन करते थे।

वे अपने न्यायालय लगाते थे तथा मुकद्दमों का निर्णय देते थे। वे अपने अधीन सेना रखते थे। उन्हें सिक्के जारी करने का भी अधिकार प्राप्त था। उन्हें लोगों पर कर लगाने का भी अधिकार था। वे कृषकों से बेगार लेते थे। उनके पशु किसानों की खेती उजाड़ देते थे, किंतु इन पशुओं को रोकने का साहस उनमें नहीं था। कुलीन अपने क्षेत्र में आने वाले माल पर चुंगी लिया करते थे। कुलीन वर्ग बहुत धनवान् था। राज्य की अधिकाँश संपत्ति उनके अधिकार में थी। वे विशाल महलों में रहते थे। वे बहुत विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे।

प्रश्न 4.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषकदासों के लिए कौन-से कर्त्तव्य निश्चित किए गए थे ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषक दासों के लिए निम्नलिखित कर्तव्य निश्चित किए गए थे

  • वर्ष में कम-से-कम 40 दिन सामंत (लॉर्ड) की सेना में कार्य करना।
  • उसे एवं उसके परिवार के सदस्यों को सप्ताह में तीन अथवा उससे कुछ अधिक दिन सामंत की जागीर पर जा कर काम करना पड़ता था। इस श्रम से होने वाले उत्पादन को श्रम अधिशेष कहा जाता था।
  • वह मेनर में स्थित सड़कों, पुलों तथा चर्च आदि की मुरम्मत करता था।
  • वह खेतों के आस-पास बाड़ बनाता था।
  • वह जलाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र करता था।
  • वह अपने सामंत के लिए पानी भरता था, अन्न पीसता था तथा दुर्ग की मुरम्मत करता था।
  • वह अपने स्वामी को शत्रु द्वारा बंदी बनाए जाने पर उसे धन देकर छुड़ाता था।
  • वह राजा को टैली नामक कर भी देता था। इस कर की कोई निश्चित दर नहीं थी। यह राजा की इच्छा पर निर्भर करता था।
  • कृषकदास की स्त्रियाँ एवं बच्चे सूत कातने, वस्त्र बुनने, मोमबत्ती बनाने एवं मदिरा के लिए अंगूरों का रस निकालने का काम करते थे।

प्रश्न 5.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में प्रचलित सामंतवादी प्रथा पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
सामंतवाद मध्यकालीन पश्चिमी यूरोप की एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी। इसमें राजा अपने बड़े सामंतों एवं बड़े सामंत अपने छोटे सामंतों में जागीरों का बंटवारा करते थे। ऐसा कुछ शर्तों के अधीन किया जाता था। रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् पश्चिमी यूरोप में फैली अराजकता एवं केंद्रीय सरकारों के कमजोर होने के कारण राजाओं के लिए सामंतों का सहयोग लेना आवश्यक हो गया था।

सामंतवाद का प्रसार यूरोप के अनेक देशों में हुआ। इनमें फ्राँस, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली एवं स्पेन के नाम उल्लेखनीय थे। सामंतवाद के यूरोपीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े। इसने यूरोपीय समाज में कानून व्यवस्था लागू करने, कुशल प्रशासन देने, निरंकुश राजतंत्र पर नियंत्रण लगाने एवं कला एवं साहित्य को प्रोत्साहन देने में प्रशंसनीय भूमिका निभाई।

सामंतवादी व्यवस्था ने दूसरी ओर शासकों को कमज़ोर किया। इसने किसानों का घोर शोषण किया। इसने युद्धों को प्रोत्साहित किया। यह राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक बड़ी बाधा सिद्ध हुई। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद का अनेक कारणों के चलते पतन हो गया।

प्रश्न 6.
मेनर से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
लॉर्ड का आवास क्षेत्र मेनर कहलाता था। इसका आकार एक जैसा नहीं होता था। इसमें थोड़े से गाँवों से लेकर अनेक गाँव सम्मिलित होते थे। प्रत्येक मेनर में एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर सामंत का दुर्ग होता था। यह दुर्ग जितना विशाल होता था उससे उस लॉर्ड की शक्ति का आंकलन किया जाता था। इस दुर्ग की सुरक्षा के लिए चारों ओर एक चौड़ी खाई होती थी।

इसे सदैव पानी से भर कर रखा जाता था। प्रत्येक मेनर में एक चर्च, एक कारखाना एवं कृषकदासों की अनेक झोंपड़ियाँ होती थीं। मेनर में एक विशाल कृषि फार्म होता था। इसमें सभी आवश्यक फ़सलों का उत्पादन किया जाता था। मेनर की चरागाह पर पशु चरते थे। मेनरों में विस्तृत वन होते थे। इन वनों में लॉर्ड शिकार करते थे। गाँव वाले यहाँ से जलाने के लिए लकड़ी प्राप्त करते थे।

मेनर में प्रतिदिन के उपयोग के लिए लगभग सभी वस्तुएँ उपलब्ध होती थीं। इसके बावजूद मेनर कभी आत्मनिर्भर नहीं होते थे। इसका कारण यह था कि कुलीन वर्ग के लिए विलासिता की वस्तुएँ, आभूषण एवं हथियार आदि तथा नमक एवं धातु के बर्तन बाहर से मंगवाने पड़ते थे। इसके बावजूद मेनर सामंती व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी।

प्रश्न 7.
नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ ?
उत्तर:
नाइट का यूरोपीय समाज में विशेष सम्मान किया जाता था। 9वीं शताब्दी यूरोप में निरंतर युद्ध चलते रहते थे। इसलिए साम्राज्य की सरक्षा के लिए एक स्थायी सेना की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को नाइट नामक एक नए वर्ग ने पूर्ण किया। नाइट अपने लॉर्ड से उसी प्रकार संबंधित थे जिस प्रकार लॉर्ड राजा के साथ संबंधित था।

लॉर्ड अपनी विस्तृत जागीर का कुछ भाग नाइट को देता था। इसे फ़ीफ़ कहा जाता था। इसका आकार सामान्य तौर पर 1000 एकड़ से 2000 एकड़ के मध्य होता था। प्रत्येक फ़ीफ़ में नाइट के लिए घर, चर्च, पनचक्की, मदिरा संपीडक एवं किसानों के लिए झोंपड़ियाँ आदि की व्यवस्था होती थी। नाइट को अपनी फीफ़ में व्यापक अधिकार प्राप्त थे।

फ़ीफ़ की सुरक्षा का प्रमुख उत्तरदायित्व नाइट पर था। उसके अधीन एक सेना होती थी। नाइट अपना अधिकाँश समय अपनी सेना के साथ गुजारते थे। वे अपने सैनिकों को प्रशिक्षण देते थे। वे बनावटी लड़ाइयों द्वारा अपने रणकौशल का अभ्यास करते थे। वे अपनी सेना में अनुशासन पर विशेष बल देते थे। उनकी सेना की सफलता पर लॉर्ड की सफलता निर्भर करती थी क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर लॉर्ड उनकी सेना का प्रयोग करता था।

प्रसन्न होने पर लॉर्ड उनकी फ़ीफ़ में बढ़ोत्तरी कर देता था। गायक नाइट की वीरता की कहानियाँ लोगों को गीतों के रूप में सुना कर उनका मनोरंजन भी करते थे। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद के पतन के साथ ही नाइट वर्ग का भी पतन हो गया।

प्रश्न 8.
सामंतवाद के प्रमुख गुण बताएँ।
उत्तर:
(1) कुशल प्रशासन-सामंतों ने मध्यकाल यूरोप में कुशल शासन व्यवस्था स्थापित की। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने यूरोप में फैली अराजकता को दूर करने में सफलता प्राप्त की। सामंतों ने राजा को सेना तैयार करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। इसके अतिरिक्त सामंत अपने अधीन जागीर में राजा के एक अधिकारी के रूप में भी कार्य करते थे। वे अपनी जागीर में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उत्तरदायी थे। वे अपने न्यायालय भी लगाते थे तथा लोगों के झगड़ों का निर्णय भी देते थे।

(2) निरंकुश राजतंत्र पर अंकुश-सामंतवाद की स्थापना से पूर्व यूरोप के शासक निरंकुश थे। उनकी शक्तियाँ असीम थीं। वे प्रशासन की ओर कम ध्यान देते थे। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। अतः लोगों के कष्टों को सुनने वाला कोई न था। इन परिस्थितियों में सामंत आगे आए। उन्होंने निरंकुश शासकों एवं उन्हें जनता की भलाई करने के लिए बाध्य किया। निस्संदेह यह सामंतवाद की एक महान उपलब्धि थी।

(3) शूरवीरता को प्रोत्साहन-सामंतवाद में शूरवीरता के विकास पर विशेष बल दिया जाता था। सभी सामंत बहुत बहादुर होते थे। वे सदैव अपना रणकौशल दिखाने के लिए तैयार होते थे। वे रणक्षेत्र में विजय प्राप्त करने अथवा वीरगति को प्राप्त करने को बहुत गौरवशाली समझते थे। अतः सामंतवादी काल में बहादुरी दिखाने वाले सामंतों का समाज द्वारा विशेष सम्मान किया जाता था।

(4) कला तथा साहित्य को योगदान-सामंतवाद ने कला तथा साहित्य को बहुमूल्य योगदान दिया। सामंतों ने गोथिक शैली में दुर्गों एवं भवनों का निर्माण किया। उनके द्वारा बनवाए गए भवन अपनी सुंदरता एवं भव्यता के लिए विख्यात थे। उन्होंने चित्रकला को भी प्रोत्साहित किया। अत: इस काल में चित्रकला ने उल्लेखनीय विकास किया। इनके अतिरिक्त इस काल में साहित्य ने भी खूब प्रगति की।

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प्रश्न 9.
सामंतवाद के मुख्य दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) कमज़ोर शासक-सामंत प्रथा के अधीन शासक केवल नाममात्र के ही शासक रह गए थे। राज्य की वास्तविक शक्ति सामंतों के हाथों में आ गई थी। उनके अधीन एक विशाल सेना होती थी। वे ही अपने अधीन जागीर में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उत्तरदायी थे। वे अपने न्यायालय लगाते थे तथा लोगों के मुकद्दमों का निर्णय देते थे। राजा अपने सभी कार्यों के लिए सामंतों की सहायता पर निर्भर करता था।

(2) किसानों का शोषण-सामंत प्रथा किसानों के लिए एक अभिशाप सिद्ध हुई। इस प्रथा के अधीन किसानों का घोर शोषण किया गया। किसानों को सामंत के खेतों में काम करने के लिए बाध्य किया जाता था। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने सामंत के कई प्रकार के अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। इन कार्यों के लिए उन्हें कुछ नहीं दिया जाता था।

(3) युद्धों को प्रोत्साहन-सामंत प्रथा ने मध्यकालीन यूरोप में अराजकता फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाई। इसका कारण यह था कि वे अपने स्वार्थी हितों की पूर्ति के लिए आपसी युद्धों में उलझ जाते थे। सभी सामंतों के अधीन एक विशाल सेना होती थी। इसलिए उन पर नियंत्रण पाना बहुत कठिन होता था। सामंत अवसर देखकर राजा के विरुद्ध विद्रोह करने से भी नहीं चूकते थे। अराजकता के इस वातावरण में न केवल लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा अपितु इससे संबंधित देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी आघात पहँचता था।

(4) राष्ट्रीय एकता में बाधा-सामंत प्रथा राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक बड़ी बाधा सिद्ध हई। इसका कारण यह था कि लोग अपने सामंत से जुड़े हुए थे। अतः वे अपने सामंत के प्रति अधिक वफ़ादार थे। वे अपने राजा से कोसों दूर थे। इसका कारण यह था कि उस समय लोगों में राष्ट्रीय चेतना न के बराबर थी। उनकी दुनिया तो उनके मेनर तक ही सीमित थी। मेनर के बाहर की घटनाओं का उन्हें कुछ लेना-देना नहीं था। निस्संदेह इसके हानिकारक परिणाम निकले।

प्रश्न 10.
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
(1) फ्रांस के सर्फ-फ्रांस के सर्फ का जीवन जानवरों से भी बदतर था। वे अपने लॉर्ड अथवा नाइट की जागीर पर काम करते थे। इस कार्य के लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता था। उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगे हुए थे। वे लॉर्ड की अनुमति के बिना उसकी जागीर को नहीं छोड़ सकते थे। सामंत उन पर घोर अत्याचार करते थे। इसके बावजूद वे सामंतों के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं कर सकते थे।

(2) रोम के दास-रोम के दासों का जीवन भी नरक समान था। अमीरों के पास इन दासों की भरमार होती थी। अधिकाँश दास युद्धबंदी होते थे। अवांछित बच्चों को भी दास बनाया जाता था। दासों के मालिक उन पर घोर अत्याचार करते थे। उनमें जागीरों पर 16 से 18 घंटे प्रतिदिन कार्य लिया जाता था। दासों को एक-दूसरे से जंजीरों से बाँध कर रखा जाता था, ताकि वे भागने का दुस्साहस न करें। स्त्री दासों का यौन शोषण किया जाता था।

प्रश्न 11.
सामंतवाद के पतन के प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर:
(1) धर्मयुद्धों का प्रभाव-11वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य यूरोप के ईसाइयों एवं मध्य एशिया के मुसलमानों के बीच जेरुसलम को लेकर युद्ध लड़े गए। ये युद्ध इतिहास में धर्मयुद्धों के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन धर्मयुद्धों में पोप की अपील पर बड़ी संख्या में सामंत अपने सैनिकों समेत सम्मिलित हुए। इन धर्मयुद्धों में जो काफी लंबे समय तक चले में बड़ी संख्या में सामंत एवं उनके सैनिक मारे गए। इससे उनकी शक्ति को गहरा आघात लगा। राजाओं ने इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाया तथा उन्होंने सुगमता से बचे हुए सामंतों का दमन कर दिया। इस प्रकार धर्मयुद्ध सामंतों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुए।

(2) राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान-सामंतवाद के उदय के कारण राज्य की वास्तविक शक्ति सामंतों के हाथों में आ गई थी। सामंतों को अनेक अधिकार प्राप्त थे। उनके अधीन एक विशाल सेना भी होती थी। सामंतों के सहयोग के बिना राजा कुछ नहीं कर सकता था। 15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ में अनेक राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हुई।

इन राज्यों के शासक काफी शक्तिशाली थे। उन्होंने अपने अधीन एक शक्तिशाली एवं आधुनिक सेना का गठन किया था। अत: नए शासकों को सामंतों की शक्ति कुचलने में किसी विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा।

(3) मध्य श्रेणी का उत्थान-15वीं एवं 16वीं शताब्दी यूरोप में मध्य श्रेणी का उत्थान सामंतवादी व्यवस्था के लिए विनाशकारी सिद्ध हआ। मध्य श्रेणी में व्यापारी, उद्योगपति एवं पंजीपति सम्मिलित थे। इस काल में यरोप में व्यापार के क्षेत्र में तीव्रता से प्रगति हो रही थी। इस कारण समाज में मध्य श्रेणी को विशेष सम्मान प्राप्त हुआ। इस श्रेणी ने सामंतों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का अंत करने के लिए शासकों से सहयोग किया।

शासक पहले ही सामंतों के कारण बहुत परेशान थे। अतः उन्होंने मध्य श्रेणी के लोगों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त करना आरंभ कर दिया। मध्य श्रेणी द्वारा दिए गए आर्थिक सहयोग के कारण ही शासक अपनी स्थायी एवं शक्तिशाली सेना का गठन कर सके। इससे सामंतों की शक्ति को एक गहरा आघात लगा।

प्रश्न 12.
मध्यकालीन मठों का क्या कार्य था ?
उत्तर:
मध्यकालीन मठों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित थे

  • मठों द्वारा लोगों को उपदेश देने का कार्य किया जाता था।
  • उनके द्वारा प्रसिद्ध पांडुलिपियों को तैयार करवाया जाता था।
  • वे लोगों को शिक्षा दने का कार्य करते थे।
  • वे लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देते थे।
  • वे रोगियों की सेवा करते थे।
  • वे मठ में आने वाले यात्रियों की देखभाल करते थे।
  • वे मठ को दान में दी गई भूमि पर कृषि एवं पशुपालन का कार्य करते थे।
  • मठ के नियमों की उल्लंघना करने वाले को कठोर दंड दिए जाते थे।

प्रश्न 13.
मध्यकालीन यूरोप में चर्च के कार्य क्या थे ?
उत्तर:
मध्यकाल में चर्च अनेक प्रकार के कार्य करता था।

  • इसने सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाजों संबंधी अनेक नियम बनाए थे जिनका पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक था।
  • चर्च की देखभाल के लिए अनेक अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी।
  • चर्च में धर्मोपदेश दिए जाते थे तथा सामूहिक प्रार्थना की जाती थी।
  • यहाँ विद्यार्थियों को शिक्षा भी दी जाती थी।
  • इसके द्वारा रोगियों, गरीबों, विधवाओं एवं अनाथों की देखभाल की जाती थी।
  • यहाँ विवाह की रस्में पूर्ण की जाती थीं।
  • यहाँ वसीयतों एवं उत्तराधिकार के मामलों की सुनवाई की जाती थी।
  • यहाँ धर्म विद्रोहियों के विरुद्ध मुकद्दमे चलाए जाते थे एवं उन्हें दंडित किया जाता था।
  • चर्च कृषकों से उनकी उपज का दसवाँ भाग कर के रूप में एकत्रित करता था। इस कर को टीथ (tithe) कहते थे।
  • चर्च श्रद्धालुओं से दान भी एकत्रित करता था।

प्रश्न 14.
पोप कौन था ? मध्यकालीन युग में उसकी क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
पोप चर्च का सर्वोच्च अधिकारी था। वह रोम में निवास करता था। मध्यकाल में उसके हाथों में अनेक शक्तियाँ थीं। उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। वह चर्च से संबंधित सभी प्रकार के नियमों को बनाता था। वह चर्च की समस्त गतिविधियों पर अपना नियंत्रण रखता था। उसका अपना न्यायालय था जहाँ वह विवाह, तलाक, वसीयत एवं उत्तराधिकार से संबंधित मुकद्दमों के निर्णय देता था।

उसके निर्णयों को अंतिम माना जाता था। वह यूरोपीय शासकों को पदच्युत करने की भी क्षमता रखता था। वह किसी भी सिविल कानून को जो उसकी नज़र में अनुचित हो, को रद्द कर सकता था। वह चर्च से संबंधित विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति भी करता था। कोई भी यहाँ तक कि शासक भी पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करता था। संक्षेप में पोप की शक्तियाँ असीम थीं।

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प्रश्न 15.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज पर चर्च के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:
मध्य युग में चर्च का यूरोपीय समाज पर जितना व्यापक प्रभाव था उतना प्रभाव किसी अन्य संस्था का नहीं था। इसने लोगों को आपसी भाईचारे एवं प्रेम का संदेश दिया। इसने गरीबों एवं अनाथों को आश्रय प्रदान किया।

इसने रोगियों की देखभाल के लिए अनेक अस्पताल बनवाए। इसने शिक्षा के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया। चर्च एवं मठों के द्वारा लोगों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती थी। अनेक चर्च अधिकारी विश्वविद्यालयों में अध्यापन का कार्य भी करते थे। इससे लोगों में एक नव जागृति का संचार हुआ। चर्च ने असभ्य बर्बरों को ईसाई धर्म में सम्मिलित कर उन्हें सभ्य बनाया।

चर्च ने लोगों को युद्ध की अपेक्षा शांति का पाठ पढ़ाया। कोई भी शासक चर्च के आदेशों की उल्लंघना करने का साहस नहीं कर सकता था। 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म दिन को क्रिसमस एवं ईसा के शूलारोपण तथा उसके पुनर्जीवित होने को ईस्टर ने त्योहारों का रूप धारण कर लिया था। इन पवित्र दिनों में संपूर्ण यूरोप में छुट्टियाँ होती थीं।

अतः लोग मिल-जुल कर इनका आनंद लेते थे। इससे लोगों में एकता की भावना को बल मिला। संक्षेप में चर्च के यूरोपीय समाज पर दूरगामी एवं व्यापक प्रभाव पड़े।

प्रश्न 16.
मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
(1) कृषि का विकास-मध्यकाल यूरोप में कृषि के विकास को बल मिला। फ़सलों के अधिक उत्पादन के कारण कृषक धनी हुए। इन धनी किसानों को अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न को बेचने तथा अपने लिए एवं कृषि के लिए आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए एक बिक्री केंद्र की आवश्यकता हुई। शीघ्र ही बिक्री केंद्रों में दुकानों, घरों, सड़कों एवं चर्चों का निर्माण हुआ। इससे नगरों के विकास की आधारशिला तैयार हुई।

(2) व्यापार का विकास-11वीं शताब्दी में यूरोप एवं पश्चिम एशिया के मध्य अनेक नए व्यापारिक मार्गों का विकास आरंभ हुआ। इससे व्यापार को एक नई दिशा मिली। इटली, जर्मनी, इंग्लैंड, पुर्तगाल एवं बेल्जियम के व्यापारियों ने मुस्लिम एवं अफ्रीका के व्यापारियों के साथ संबंध स्थापित किए। व्यापार में आई इस तीव्रता ने नगरों के विकास को एक नया प्रोत्साहन दिया।

(3) धर्मयुद्ध-धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य 1096 ई० से 1272 ई० के मध्य लड़े गए थे। इन धर्मयुद्धों का वास्तविक उद्देश्य ईसाइयों द्वारा अपनी पवित्र भूमि जेरुसलम को मुसलमानों के आधिपत्य से मुक्त करवाना था। इन धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई। वे भव्य मुस्लिम नगरों को देखकर चकित रह गए। इन धर्मयुद्धों के कारण पश्चिम एवं पूर्व के मध्य व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला। इससे व्यापारी धनी हुए जिससे नगरों के विकास को बल मिला।

प्रश्न 17.
कथील नगरों से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
12वीं शताब्दी में फ्रांस में कथील कहे जाने वाले विशाल चर्चों का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। शीघ्र ही यूरोप के अन्य देशों में भी कथीलों का निर्माण शुरू हुआ। इनका निर्माण मठों की देख-रेख में होता था। इनके निर्माण के लिए धनी लोगों द्वारा दान दिया जाता था। सामान्यजन अपने श्रम द्वारा एवं अन्य वस्तुओं द्वारा इनके निर्माण में सहयोग देते थे।

कथील बहुत विशाल एवं भव्य होते थे। इन्हें पत्थर से बनाया जाता था। इनके निर्माण में काफी समय लगता था। अत: कथीड्रल के आस-पास अनेक प्रकार के लोग बस गए। उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बाज़ार भी स्थापित हो गए। इस प्रकार कथीलों ने नगरों का रूप धारण कर लिया। कथीलों के भवन अत्यंत मनोरम थे।

इनका निर्माण इस प्रकार किया गया था कि पादरी की आवाज़, भिक्षुओं के गीत, लोगों की प्रार्थना की घंटियाँ दूर-दूर तक सुनाई पड़ें। कथीड्रल की खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग किया जाता था।

इस कारण दिन के समय सूर्य की पर्याप्त रोशनी अंदर आ सकती थी। रात्रि के समय जब कथीड्रल में मोमबत्तियाँ जलाई जाती थीं तो खिड़कियों के शीशों पर बने ईसा मसीह के जीवन से संबंधित चित्रों को स्पष्ट देखा जा सकता था। निस्संदेह नगरों के विकास में कथीलों की उल्लेखनीय भूमिका थी।

प्रश्न 18.
किन कारणों से 14वीं शताब्दी यूरोप में संकट उत्पन्न हुआ ?
उत्तर:
(1) पर्यावरण में परिवर्तन-13वीं शताब्दी के अंत में उत्तरी यूरोप के पर्यावरण में पुन: परिवर्तन आया। इस कारण गर्मी का स्थान शीत ऋतु ने ले लिया। गर्मी का मौसम बहुत छोटा रह गया। इस कारण भूमि की उत्पादन क्षमता बहुत कम हो गई। इससे घोर खाद्य संकट उत्पन्न हो गया। भयंकर तूफानों एवं सागरीय बाढ़ों ने भी कृषि अधीन काफी भूमि को नष्ट कर दिया। इसने स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया। .

(2) चाँदी की कमी-14वीं शताब्दी में ऑस्ट्रिया एवं सर्बिया में चाँदी की कमी आ गई। इन दोनों देशों में विश्व की सर्वाधिक चाँदी की खानें थीं। यहाँ से अन्य यूरोपीय देशों को चाँदी का निर्यात किया जाता था। उस समय अधिकाँश यूरोपीय देशों में चाँदी की मुद्रा का प्रचलन था। अतः इस धातु की कमी के कारण यूरोपीय व्यापार को ज़बरदस्त आघात लगा। इसका कारण यह था कि चाँदी के अभाव में मिश्रित धातु की मुद्रा का प्रचलन किया गया। इसे व्यापारी स्वीकार करने को तैयार न थे।

(3) ब्यूबोनिक प्लेग-प्लेग के कारण व्यापक पैमाने पर सामाजिक विस्थापन हुआ। आर्थिक मंदी ने स्थिति को अधिक गंभीर बना दिया। इस कारण विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा। जनसंख्या में कमी के कारण मजदूरों की उपलब्धता बहुत कम हो गई। इस कारण मजदूरों की माँग बहुत बढ़ गई। इसके चलते मज़दूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई।

दूसरी ओर मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि संबंधी मूल्यों में गिरावट के कारण लॉर्डों (सामंतों) की आय बहुत कम हो गई। इसके चलते उन्होंने मजदूरी संबंधी कृषकों से किए समझौतों का पालन बंद कर दिया। इस कारण कृषकों एवं लॉर्डों के मध्य तनाव उत्पन्न हो गया।

प्रश्न 19.
मध्य वर्ग के उत्थान ने यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर:
मध्य वर्ग के उत्थान ने राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस वर्ग के लोग धनी एवं व्यापारी थे। उन्होंने अपने व्यापार एवं वाणिज्य के प्रोत्साहन एवं सुरक्षा हेतु निरंकुश राजतंत्र की स्थापना में बड़ा सक्रिय सहयोग दिया। उन्होंने सामंतों के घोर अत्याचारों से बचने एवं अराजकता के वातावरण को दूर करने के लिए निरंकुश राजाओं के हाथ मज़बूत करने का निर्णय किया।

क्योंकि उस समय संसद् में कुलीन वर्ग का बोलबाला था। इसलिए मध्य वर्ग यह कामना करता था कि इस पर राजा की सर्वोच्चता स्थापित हो। इस उद्देश्य से मध्य वर्ग ने राजा को नियमित कर देने का वचन दिया। इन करों के कारण राजा अपनी एक शक्तिशाली सेना का गठन कर सका। इस सेना के चलते राजा अपने राज्य के सामंतों का दमन कर सका।

इसके अतिरिक्त मध्य वर्ग ने राजा को अनेक मेहनती अधिकारी प्रदान किए। इन अधिकारियों के सहयोग से राजा अपनी प्रजा को कुशल शासन प्रदान कर सका। निस्संदेह मध्य वर्ग का उत्थान यूरोपीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।

प्रश्न 20.
राष्ट्रीय राज्य की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
राष्ट्रीय राज्यों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है-

(1) ऐसा विश्वास किया जाता था कि उनका अपना राज्य सर्वोच्च है तथा किसी अन्य राज्य को उनके राज्य की प्रभुसत्ता एवं क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

(2) ऐसे राज्य में राजा ही सर्वोच्च होता है। वह ही कानून का निर्माण करता है एवं उसकी व्याख्या करता है। उसके निर्णयों को अंतिम समझा जाता है। किसी भी व्यक्ति को उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं होता। वास्तव में जो राजा को अच्छा लगता है उसे ही कानून समझा जाता है।

(3) ऐसे राज्यों में राजा ही राज्य की सुरक्षा एवं उसके विस्तार के लिए उत्तरदायी होता है। इसलिए उन्होंने अपने अधीन एक शक्तिशाली सेना का गठन किया। इस सेना को आधुनिक शस्त्रों से लैस किया जाता था।

(4) ऐसे राज्यों में व्यक्तियों को सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित रखा जाता है।

(5) ऐसे राज्य राजनीतिक तौर पर स्वतंत्र होते हैं। इसके अतिरिक्त वे आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होते हैं।

(6) ऐसे राज्यों में राजा को लोगों पर कर लगाने का अधिकार होता है। लोगों का यह कर्त्तव्य होता है कि वे इन करों की अदायगी समय पर करें।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मध्यकाल किसे कहते हैं ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • 5वीं शताब्दी ई० से लेकर 15वीं शताब्दी के आरंभ के काल को मध्यकाल कहा जाता है।
  • इस काल के दौरान बड़े-बड़े साम्राज्यों का पतन हो गया तथा छोटे-छोटे राज्य अस्तित्व में आए।
  • यह काल अशांति एवं अव्यवस्था का काल था।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के तीन वर्ग कौन-से थे ? ये समाज की किस श्रेणी में सम्मिलित थे ?
उत्तर:

  • मध्यकालीन यूरोपीय समाज के तीन वर्ग पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग एवं किसान थे।
  • पादरी वर्ग समाज की प्रथम श्रेणी में, कुलीन वर्ग द्वितीय श्रेणी में एवं किसान तीसरी श्रेणी में सम्मिलित थे।

प्रश्न 3.
पादरी वर्ग को यूरोपीय समाज में क्यों महत्त्वपूर्ण माना जाता था ?
उत्तर:

  • इस वर्ग का चर्च पर पूर्ण नियंत्रण था।
  • शासक भी पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करते थे।
  • इस वर्ग को समाज में अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।

प्रश्न 4.
‘टीथ’ से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
टीथ एक प्रकार का कर था। इसे चर्च द्वारा किसानों से लिया जाता था। यह किसानों की कुल उपज का दसवां भाग होता था। यह चर्च की आय का एक प्रमुख स्रोत था।

प्रश्न 5.
चर्च की आय के दो प्रमुख स्रोत कौन-से थे ?
उत्तर:

  • किसानों से प्राप्त किया जाने वाला टीथ नामक कर।
  • धनी लोगों द्वारा अपने कल्याण तथा मरणोपरांत अपने रिश्तेदारों के कल्याण के लिए दिया जाने वाला दान।

प्रश्न 6.
मध्यकालीन यूरोप में कुलीन वर्ग को कौन-से विशेषाधिकार प्राप्त थे ? कोई दो बताएँ।
उत्तर:

  • वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे।
  • वे अपने अधीन सेना रखते थे।

प्रश्न 7.
कृषकदासों के कोई दो कर्त्तव्य बताएँ।
उत्तर:

  • वे राजा को टैली नामक कर देते थे।
  • उन्हें वर्ष में कम-से-कम 40 दिन सामंत की सेना में कार्य करना पड़ता था।

प्रश्न 8.
कृषकदासों पर लगे कोई दो प्रतिबंध लिखें।
उत्तर:

  • वे सामंत की अनुमति के बिना उसकी जागीर नहीं छोड़ सकते थे।
  • वे अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह सामंत की अनुमति के बिना नहीं कर सकते थे।

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प्रश्न 9.
सामंतवाद से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
आर्थिक संदर्भ में सामंतवाद को समझाइए।
उत्तर:
सामंतवाद जर्मन भाषा के शब्द फ़्यूड से बना है। इससे अभिप्राय है, भूमि का एक टुकड़ा अथवा जागीर। इस प्रकार सामंतवाद का संबंध भूमि अथवा जागीर से है। इस व्यवस्था में राजा को समस्त भूमि का स्वामी समझा जाता था। वह कुछ शर्तों के साथ अपने बड़े सामंतों में भूमि बाँटता था। ये सामंत इसी प्रकार आगे अपने अधीन छोटे सामंतों को भूमि बाँटते थे। संपूर्ण व्यवस्था भूमि के स्वामित्व एवं वितरण पर निर्भर करती थी।

प्रश्न 10.
सामंतवाद के उदय के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् केंद्रीय शक्ति बहुत कमज़ोर हो गई थी।
  • विदेशी आक्रमणों के कारण पश्चिमी यूरोप में अराजकता का बोलबाला था।

प्रश्न 11.
शॉर्लमेन कौन था ?
उत्तर:
शॉर्लमेन फ्रांस का एक प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली शासक था। उसने 768 ई० से 814 ई० तक शासन किया। उसने फ्रांस में सामंतवादी व्यवस्था लागू की। उसने फ्रांस में उल्लेखनीय सुधार किए। उसे पोप लियो तृतीय ने 800 ई० में पवित्र रोमन सम्राट् की उपाधि से सम्मानित किया था।

प्रश्न 12.
फ्रांस के प्रारंभिक सामंती समाज के दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • सामंतों को अपनी जागीरों पर व्यापक न्यायिक एवं अन्य अधिकार प्राप्त थे।
  • कृषक सामंतों को श्रम सेवा प्रदान करते थे।

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प्रश्न 13.
विलियम कौन था ?
उत्तर:
वह फ्रांस के एक प्रांत नारमंडी का ड्यूक था। उसने 1066 ई० में इंग्लैंड के सैक्सन शासक हैरलड को हैस्टिंग्ज़ की लड़ाई में पराजित कर इंग्लैंड पर अधिकार कर लिया था। इस महत्त्वपूर्ण विजय के पश्चात् उसने इंग्लैंड में सामंतवादी व्यवस्था को लागू किया।

प्रश्न 14.
सामंतवादी व्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • राजा समस्त भूमि का स्वामी होता था। वह इसे कुछ शर्तों के आधार पर बड़े सामंतों में बाँटता था।
  • सामंत अपनी जागीर में सर्वशक्तिशाली होते थे। उन्हें असीम शक्तियाँ प्राप्त थीं।

प्रश्न 15.
मेनर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मेनर लॉर्ड का आवास क्षेत्र होता था। इसका आकार एक जैसा नहीं होता था। इसमें प्रतिदिन के उपयोग की प्रत्येक वस्तु मिलती थी। यहाँ लॉर्ड का दुर्ग, कृषि फार्म, कारखाने, चर्च, वन एवं कृषकों की झोंपड़ियाँ होती थीं। कोई भी व्यक्ति लॉर्ड की अनुमति के बिना मेनर को छोड़कर नहीं जा सकता था।

प्रश्न 16.
नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ ?
उत्तर:
9वीं शताब्दी यूरोप में स्थानीय युद्ध एक सामान्य बात थी। इन युद्धों के लिए कुशल घुड़सवारों की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए नाइट एक अलग वर्ग बने। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद के पतन के साथ ही नाइट का पतन हुआ।

प्रश्न 17.
फ़ीफ़ क्या थी ?
उत्तर:
लॉर्ड द्वारा नाइट को जो जागीर दी जाती थी उसे फ़ीफ़ कहते थे। यह 1000 से 2000 एकड़ में फैली होती थी। फ़ीफ़ में नाइट के लिए घर, चर्च और उस पर निर्भर व्यक्तियों के लिए व्यवस्था होती थी। फ़ीफ़ को कृषक जोतते थे। इसकी रक्षा का भार नाइट पर होता था।

प्रश्न 18.
नाइट के कोई दो कर्त्तव्य बताएँ।
उत्तर:

  • वह अपने लॉर्ड को युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था।
  • वह अपने लॉर्ड को एक निश्चित धनराशि देता था।

प्रश्न 19.
सामंतवाद के कोई दो गुण बताएँ।
उत्तर:

  • इसने कानून एवं व्यवस्था की स्थापना की।
  • इसने निरंकुश राजतंत्र पर अंकुश लगाया।

प्रश्न 20.
सामंतवाद की कोई दो हानियाँ लिखें।
उत्तर:

  • इसने शासकों को कमजोर बनाया।
  • इसने युद्धों को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 21.
सामंतवाद के पतन के लिए उत्तरदायी कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • कृषकों के विद्रोह।
  • राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान।

प्रश्न 22.
मध्यकाल में चर्च के प्रमुख कार्य क्या थे ?
उत्तर:

  • इसने सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाजों संबंधी अनेक नियम बनाए।
  • यहाँ विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती थी।
  • यहाँ गरीबों, अनाथों, रोगियों एवं विधवाओं की देखभाल की जाती थी।

प्रश्न 23.
पोप कौन था ?
उत्तर:
पोप चर्च का सर्वोच्च अधिकारी था। उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। वह चर्च से संबंधित सभी प्रकार के नियमों को बनाता था। वह चर्च की समस्त गतिविधियों पर नियंत्रण रखता था। वह चर्च से संबंधित विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति भी करता था।

प्रश्न 24.
पादरी के प्रमुख कार्य क्या थे ?
उत्तर:

  • वह लोगों के सुखी जीवन के लिए चर्च में सामूहिक प्रार्थनाएँ करता था।
  • वह पोप से प्राप्त सभी आदेशों को लागू करवाता था।
  • वह जन्म, विवाह एवं मृत्यु से संबंधित सभी प्रकार के संस्कारों को संपन्न करवाता था।

प्रश्न 25.
मध्यकालीन मठों के क्या कार्य थे ?
उत्तर:

  • मठों द्वारा लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने पर बल दिया जाता था।
  • मठों द्वारा लोगों को शिक्षा दी जाती थी।
  • मठों द्वारा रोगियों की सेवा की जाती थी एवं यात्रियों की देखभाल की जाती थी।

प्रश्न 26.
सेंट बेनेडिक्ट की स्थापना कब और कहाँ हुई थी ?
उत्तर:
सेंट बेनेडिक्ट की स्थापना 529 ई० में इटली में हुई थी।

प्रश्न 27.
सेंट बेनेडिक्ट के भिक्षुओं के लिए बनाए गए कोई दो नियम लिखें।
उत्तर:

  • प्रत्येक मठवासी विवाह नहीं करवा सकता था।
  • उन्हें मठ के प्रधान ऐबट की आज्ञा का पालन करना पड़ता था।

प्रश्न 28.
क्लूनी मठ की स्थापना कब, कहाँ एवं किसने की थी ?
उत्तर:
क्लूनी मठ की स्थापना 910 ई० में फ्रांस में बरगंडी नामक स्थान पर विलियम प्रथम ने की थी।

प्रश्न 29.
आबेस हिल्डेगार्ड कौन थी ?
उत्तर:
आबेस हिल्डेगार्ड जर्मनी की एक प्रतिभाशाली भिक्षुणी थी। उसने क्लूनी मठ के विकास के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया। उसने चर्च की प्रार्थनाओं के लिए 77 सामुदायिक गायन लिखे। उसके प्रचार कार्य एवं लेखन ने लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव डाला।

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प्रश्न 30.
फ्रायर कौन थे ?
उत्तर:
13वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में भिक्षुओं के एक नए समूह का उत्थान हुआ जिसे फ्रायर कहा जाता था। वे मठों में रहने की अपेक्षा बाहर भ्रमण करते थे। वे ईसा मसीह के संदेश को जनता तक पहुँचाते थे। वे जनसाधारण की भाषा में प्रचार करते थे। उन्होंने चर्च के गौरव को स्थापित करने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

प्रश्न 31.
संत फ्राँसिस कौन थे ?
उत्तर:
संत फ्रांसिस असीसी के एक प्रसिद्ध संत थे। उन्होंने फ्रांसिस्कन संघ की स्थापना की थी। उन्होंने गरीबों, अनाथों एवं बीमारों की सेवा करने का संदेश दिया। उन्होंने शिष्टता के नियमों का पालन करने, शिक्षा का प्रचार करने एवं श्रम के महत्त्व पर विशेष बल दिया। उनका संघ बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रश्न 32.
संत डोमिनीक कौन थे ?
उत्तर:
संत डोमिनीक स्पेन के एक प्रसिद्ध संत थे। उन्होंने डोमिनिकन संघ की स्थापना की। उन्होंने जन-भाषा में अपना प्रचार किया। उन्होंने पाखंडी लोगों की कटु आलोचना की। उन्होंने पुजारी वर्ग में फैली अज्ञानता को दूर करने का निर्णय किया। उनके शिष्य बहुत विद्वान् थे। उन्होंने लोगों में एक नई जागृति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

प्रश्न 33.
14वीं शताब्दी में मठवाद के महत्त्व के कम होने के दो प्रमुख कारण लिखें।
उत्तर:

  • मठों में भ्रष्टाचार बहुत फैल गया था।
  • भिक्षु-भिक्षुणियों ने अब विलासिता का जीवन व्यतीत करना आरंभ कर दिया था।

प्रश्न 34.
मध्यकाल में चर्च के यूरोपीय समाज पर क्या प्रमुख प्रभाव पड़े ?
उत्तर:

  • इसने लोगों को आपसी भाईचारे एवं प्रेम का संदेश दिया।
  • इसने गरीबों एवं अनाथों को आश्रय प्रदान किया।
  • इसने शिक्षा के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।

प्रश्न 35.
मध्यकालीन यूरोपीय नगरों की कोई दो विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:

  • इनमें आधारभूत सुविधाओं की कमी होती थी।
  • इन नगरों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध किया जाता था।

प्रश्न 36.
मध्यकालीन यूरोप में स्थापित श्रेणियों के कोई दो कार्य लिखें।
उत्तर:

  • श्रेणी द्वारा वस्तुओं के मूल्य निर्धारित किए जाते थे।
  • श्रेणी द्वारा व्यापार संबंधी नियम बनाए जाते थे।

प्रश्न 37.
कथीड्रल क्या थे ?
उत्तर:
12वीं शताब्दी में फ्रांस में विशाल चर्चों का निर्माण आरंभ हुआ। इन्हें कथीड्रल कहा जाता था। इनके निर्माण के लिए धनी लोगों द्वारा दान दिया जाता था। इनका निर्माण मठों की देख-रेख में होता था। इन्हें पत्थरों से बनाया जाता था। इनकी खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 38.
मध्यकालीन यूरोपीय नगरों का महत्त्व क्या था ?
उत्तर:

  • नगरों के उत्थान के कारण राजे शक्तिशाली हुए।
  • नगरों में लोग स्वतंत्र जीवन व्यतीत करते थे।
  • नगरों में व्यापार के कुशल संचालन के लिए श्रेणियों का गठन किया गया।

प्रश्न 39.
मध्यकालीन यूरोप के सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने वाले दो महत्त्वपूर्ण कारक कौन-से थे ?
उत्तर:

  • पर्यावरण में परिवर्तन।
  • नई कृषि प्रौद्योगिकी।

प्रश्न 40.
11वीं शताब्दी में यूरोप के वातावरण में हुए परिवर्तन के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:

  • इस कारण तापमान में वृद्धि हो गई।
  • इस कारण फ़सलों के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई।
  • तापमान में वद्धि के कारण यरोप के अनेक भागों के वन क्षेत्रों में कमी आई।

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प्रश्न 41.
11वीं शताब्दी में यूरोप में नई कृषि प्रौद्योगिकी के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:

  • अब लोहे के हलों का प्रयोग आरंभ हुआ।
  • अब कृषि के लिए तीन खेतों वाली व्यवस्था का प्रचलन आरंभ हुआ।

प्रश्न 42.
मध्यकाल में फ़सलों के उत्पादन में वृद्धि के कारण कौन-से दो महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आए ?
उत्तर:

  • भोजन की उपलब्धता अब पहले की अपेक्षा दुगुनी हो गई।
  • पशुओं के लिए अब अच्छे चारे की उपलब्धता हो गई।

प्रश्न 43.
जनसंख्या के स्तर में होने वाले लंबी अवधि के परिवर्तन ने किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया ?
उत्तर:

  • अच्छे आहार से जीवन अवधि लंबी हो गई।
  • लोगों द्वारा आवास की माँग बढ़ जाने के कारण कृषि अधीन क्षेत्र कम होने लगा।
  • इससे नगरों के उत्थान में सहायता मिली।

प्रश्न 44.
13वीं शताब्दी में नई कृषि प्रौद्योगिकी के कारण कौन-से दो प्रमुख लाभ हुए ?
उत्तर:

  • नई कृषि प्रौद्योगिकी के कारण किसानों को कम श्रम की आवश्यकता होती थी।
  • किसानों को अब अन्य गतिविधियों के लिए अवसर प्राप्त हुआ।

प्रश्न 45.
कृषि में हुए विकास के परिणामस्वरूप सामंतवाद पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:

  • इससे व्यक्तिगत संबंधों को गहरा आघात लगा।
  • अब कृषक अपनी फ़सल को नकदी के रूप में बेचने लगे।
  • इससे बाजारों के विकास को प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 46.
14वीं शताब्दी यूरोप में आए संकट के कौन-से दो प्रमुख कारण उत्तरदायी थे ?
उत्तर:

  • पर्यावरण में परिवर्तन।
  • चाँदी की कमी।

प्रश्न 47.
13वीं शताब्दी में उत्तरी यूरोप में आए पर्यावरण परिवर्तन के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:

  • अब गर्मी का स्थान शीत ऋतु ने ले लिया।
  • गर्मी का मौसम छोटा होने से भूमि की उत्पादन क्षमता बहुत कम हो गई।
  • इससे अकालों का दौर आरंभ हो गया।

प्रश्न 48.
14वीं शताब्दी में किन दो देशों में चाँदी की कमी आई? इसका मुख्य प्रभाव क्या पड़ा ?
उत्तर:

  • 14वीं शताब्दी में ऑस्ट्रिया एवं सर्बिया में चाँदी की कमी आ गई।
  • इस कारण व्यापार को जबरदस्त आघात पहुँचा।

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प्रश्न 49.
14वीं शताब्दी में किस बीमारी को काली मौत कहा जाता था ? यह यूरोप में कब फैली ?
उत्तर:

  • 14वीं शताब्दी में ब्यूबोनिक प्लेग को काली मौत कहा जाता था।
  • यह यूरोप में 1347 ई० से 1350 ई० के मध्य फैली।

प्रश्न 50.
14वीं शताब्दी में यूरोप के किसानों ने विद्रोह क्यों किए ?
उत्तर:
14वीं शताब्दी में यूरोप के किसानों ने इसलिए विद्रोह किए क्योंकि सामंतों ने किसानों से किए मजदूरी संबंधी समझौतों का पालन बंद कर दिया था।

प्रश्न 51.
16वीं शताब्दी में राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के प्रमुख कारण लिखें।
उत्तर:

  • सामंतवाद का पतन।
  • मध्य वर्ग का उत्थान।
  • चर्च का प्रभाव।

प्रश्न 52.
मैक्यिावेली के प्रसिद्ध ग्रंथ का नाम क्या था ? यह कब प्रकाशित हुआ ?
उत्तर:

  • मैक्यिावेली के प्रसिद्ध ग्रंथ का नाम ‘दि प्रिंस’ था।
  • इसका प्रकाशन 1513 ई० में हुआ था।

प्रश्न 53.
राष्ट्रीय राज्यों की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उनका अपना राज्य सर्वोच्च है।
  • राजा को असीम शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 54.
इंग्लैंड में ट्यूडर वंश की स्थापना किसने तथा कब की ?
उत्तर:
इंग्लैंड में ट्यूडर वंश की स्थापना हेनरी सप्तम ने 1485 ई० में की।

प्रश्न 55.
गुलाबों का युद्ध कब तथा किसके मध्य चला ?
उत्तर:
गुलाबों का युद्ध 1455 ई० से 1485 ई० के मध्य इंग्लैंड एवं फ्रांस के मध्य चला।

प्रश्न 56.
सौ वर्षीय युद्ध कब तथा किन दो देशों के मध्य हुआ ?
उत्तर:
सौ वर्षीय युद्ध 1337 ई० से लेकर 1453 ई० तक इंग्लैंड एवं फ्रांस के मध्य चला।

प्रश्न 57.
लुई ग्यारहवाँ कहाँ का शासक था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • लुई ग्यारहवाँ फ्रांस का शासक था।
  • उसने 1461 ई० से 1483 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 58.
लुई ग्यारहवें की कोई दो सफलताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने सामंतों की शक्ति का दमन किया।
  • उसने चर्च पर अंकुश लगाया।

प्रश्न 59.
राष्ट्रीय राज्यों की कोई दो सफलताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उन्होंने सामंतों की शक्ति का दमन कर लोगों को उनके अत्याचारों से मुक्त किया।
  • उन्होंने लोगों में एक नई राष्ट्रीय चेतना का संचार किया।

प्रश्न 60.
राष्ट्रीय राज्यों के पतन के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय राज्यों के शासक अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करने लगे।
  • राष्ट्रीय राज्यों के शासकों ने अनेक अनुचित कानून लागू किए। इस कारण लोग उनके विरुद्ध हो गए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कितने वर्ग प्रचलित थे ?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के प्रथम वर्ग में कौन सम्मिलित था ?
उत्तर:
पादरी।

प्रश्न 3.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के द्वितीय वर्ग में कौन सम्मिलित था ?
उत्तर:
कुलीन वर्ग।

प्रश्न 4.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के तृतीय वर्ग में कौन सम्मिलित था ?
उत्तर:
कृषक वर्ग।

प्रश्न 5.
टीथ क्या होता था ?
उत्तर:
टीथ किसानों द्वारा चर्च को दिया जाने वाला कर था।

प्रश्न 6.
मध्यकाल में क्या प्रत्येक व्यक्ति पादरी बन सकता था ?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 7.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में किन्हें विशेषाधिकार प्राप्त थे ?
उत्तर:
पादरी एवं कुलीन वर्ग को।

प्रश्न 8.
किस वर्ग के लोगों को प्रशासन एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था ?
उत्तर:
कुलीन वर्ग के।

प्रश्न 9.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज की अधिकाँश जनसंख्या किस वर्ग से संबंधित थी ?
उत्तर:
तृतीय वर्ग से।

प्रश्न 10.
राजा कृषकों पर कौन-सा कर लगाता था ?
उत्तर:
टैली।

प्रश्न 11.
कृषकदास को अपने सामंत की सेना में वर्ष में कम-से-कम कितने दिन कार्य करना पड़ता था ?
उत्तर:
40 दिन।

प्रश्न 12.
कृषकदास किस प्रकार का जीवन व्यतीत करते थे ?
उत्तर:
दयनीय।

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प्रश्न 13.
यूरोप में सामंतवादी व्यवस्था का उदय कब हुआ ?
उत्तर:
9वीं शताब्दी में।

प्रश्न 14.
फ़यूड शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जागीर।

प्रश्न 15.
किसी एक यूरोपीय देश का नाम बताएँ जहाँ मध्यकाल में सामंतवाद का प्रसार हुआ था ?
उत्तर:
फ्राँस।

प्रश्न 16.
फ्रांस के उस महान् विद्वान् का नाम बताएँ जिसने सामंतवादी व्यवस्था पर विस्तृत प्रकाश डाला है ?
उत्तर:
मार्क ब्लॉक।

प्रश्न 17.
जर्मनी की किस जनजाति ने 486 ई० में गॉल पर अधिकार कर लिया था ?
उत्तर:
फ्रैंक।

प्रश्न 18.
शॉर्लमेन फ्रांस का शासक कब बना ?
उत्तर:
768 ई० में।

प्रश्न 19.
पोप ने शॉर्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट् की उपाधि से कब सम्मानित किया.था ?
उत्तर:
800 ई० में।

प्रश्न 20.
इंग्लैंड में सामंतवाद का प्रसार कब हुआ ?
उत्तर:
11वीं शताब्दी में।

प्रश्न 21.
हैस्टिग्ज की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर:
1066 ई० में।

प्रश्न 22.
इंग्लैंड का नाम किसका रूपांतरण है ?
उत्तर:
एंजिललैंड का।

प्रश्न 23.
सामंतवादी व्यवस्था में मेनर क्या होता था ?
उत्तर:
लॉर्ड का आवास क्षेत्र।

प्रश्न 24.
सामंत द्वारा नाइट को दिए जाने वाला भूमि का टुकड़ा क्या कहलाता था ?
उत्तर:
फ़ीफ़।

प्रश्न 25.
नाइट का पतन कब हुआ ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में।

प्रश्न 26.
सामंतों ने किस शैली में दुर्गों एवं भवनों का निर्माण किया ?
उत्तर:
गोथिक।

प्रश्न 27.
क्या धर्मयुद्ध सामंतवादी व्यवस्था के लिए विनाशकारी सिद्ध हुए ?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 28.
पोप कौन था ?
उत्तर:
चर्च का सर्वोच्च अधिकारी।

प्रश्न 29.
पोप कहाँ निवास करता था ?
उत्तर:
रोम में।

प्रश्न 30.
प्रांतीय बिशपों पर नियंत्रण कौन रखता था ?
उत्तर:
आर्क बिशप।

प्रश्न 31.
मठ का प्रधान कौन होता था ?
उत्तर:
ऐबट

प्रश्न 32.
मठों में कौन रहता था ?
उत्तर:
भिक्षु।

प्रश्न 33.
भिक्षुणियों को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
नन।

प्रश्न 34.
मठों को किस अन्य नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
ऐबी।

प्रश्न 35.
इटली में सेंट बेनेडिक्ट नामक मठ की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
529 ई० में।

प्रश्न 36.
910 ई० में बरगंडी में किस प्रसिद्ध मठ की स्थापना की गई थी ?
उत्तर:
क्लूनी।

प्रश्न 37.
आबेस हिल्डेगार्ड कौन थी ?
उत्तर:
जर्मनी की एक प्रसिद्ध नन।

प्रश्न 38.
उन भिक्षुओं को क्या कहा जाता था जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देते थे ?
उत्तर:
फ्रायर।

प्रश्न 39.
फ्रायर किन दो संघों में विभाजित थे ?
उत्तर:
फ्राँसिस्कन एवं डोमिनिकन।

प्रश्न 40.
फ्रांसिस्कन संघ का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
संत फ्राँसिस।

प्रश्न 41.
डोमिनिकन संघ का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
संत डोमिनीक।

प्रश्न 42.
इंग्लैंड के किन दो प्रसिद्ध कवियों ने मठवासियों के जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला है ?
उत्तर:
लैंग्लैंड एवं जेफ्री चॉसर।

प्रश्न 43.
विश्व में 25 दिसंबर क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
ईसा मसीह के जन्म के कारण।

प्रश्न 44.
मध्यकाल यूरोप में उदय होने वाले किन्हीं दो प्रसिद्ध नगरों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  • रोम
  • वेनिस।

प्रश्न 45.
कथील नगरों का निर्माण कहाँ शुरू हुआ ?
उत्तर:
फ्राँस में।

प्रश्न 46.
कथीड्रल की खिड़कियों में किस काँच का प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर:
अभिरंजित।

प्रश्न 47.
किस सदी से यूरोप के तापमान में वृद्धि होती चली गई ?
उत्तर:
11वीं सदी से।

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प्रश्न 48.
किस सदी तक विभिन्न कृषि प्रौद्योगिकियों में बदलाव के प्रमाण मिलते हैं ?
उत्तर:
11वीं सदी तक।

प्रश्न 49.
कोई एक उदाहरण दें जिससे कृषि प्रौद्योगिकी में बदलाव के प्रमाण मिलते हैं ?
उत्तर:
लोहे की भारी नोक वाले हलों का प्रयोग।

प्रश्न 50.
मध्यकालीन यूरोप में कितने खेतों वाली व्यवस्था का प्रयोग आरंभ हुआ ?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 51.
14वीं शताब्दी में यूरोप में आए घोर संकट का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर:
पर्यावरण में परिवर्तन।

प्रश्न 52.
मध्यकाल में यूरोप में सबसे भयंकर अकाल कब पड़े ?
उत्तर:
1315 से 1317 ई० के मध्य।

प्रश्न 53.
‘काली मौत’ किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
प्लेग को।

प्रश्न 54.
यूरोप में सर्वप्रथम प्लेग कब फैली ?
उत्तर:
1347 ई० में।

प्रश्न 55.
फ्रांस में कृषकों ने कब विद्रोह किया ?
उत्तर:
1358 ई० में।

प्रश्न 56.
यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों का गठन कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी के अंत में।

प्रश्न 57.
लुई ग्यारहवाँ कहाँ का शासक था ?
उत्तर:
फ्राँस का।

प्रश्न 58.
ऑस्ट्रिया का प्रसिद्ध निरंकुश शासक कौन था ?
उत्तर:
मैक्समिलन।

प्रश्न 59.
हेनरी सातवाँ कहाँ का शासक था ?
उत्तर:
इंग्लैंड का।

प्रश्न 60.
इंग्लैंड में ट्यूडर राजवंश की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1485 ई० में।

प्रश्न 61.
जेम्स प्रथम इंग्लैंड का शासक कब बना ?
उत्तर:
1603 ई० में।

प्रश्न 62.
चार्ल्स प्रथम को फाँसी कब दी गई ?
उत्तर:
1649 ई० में।

प्रश्न 63.
सौ वर्षीय युद्ध किन दो देशों के मध्य लड़ा गया था ?
उत्तर:
फ्राँस तथा इंग्लैंड।

प्रश्न 64.
लुई तेरहवें ने एस्टेट्स जनरल को कब भंग किया ?
उत्तर:
1614 ई० में।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 65.
पुर्तगाल एवं स्पेन के मध्य टार्डीसिलास की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1494 ई० में।

रिक्त स्थान भरिए

1. सामंतवाद जर्मन भाषा के शब्द ……………… से बना है।
उत्तर:
फ्यूड

2. फ्रांस में 768 ई० से 814 ई० तक ……………… ने शासन किया।
उत्तर:
शॉर्लमेन

3. फ्रांस के समाज के मुख्यतः तीन वर्ग पादरी, अभिजात तथा ……………… वर्ग थे।
उत्तर:
कृषक

4. लॉर्ड का आवास क्षेत्र ………………. कहलाता था।
उत्तर:
मेनर

5. फ्रांस की कुशल अश्वसेना को ……………….. कहा जाता था।
उत्तर:
नाइट

6. फ्रांस में लॉर्ड द्वारा नाइट को दी जाने वाली भूमि को ……………… कहते थे।
उत्तर:
फ़ीफ़

7. चर्च द्वारा कृषकों से लिए जाने वाले कर के अधिकार को ……………….. कहा जाता था।
उत्तर:
टीथ

8. पादरियों के निवास स्थान को ……………… कहा जाता था।
उत्तर:
मोनेस्ट्री

9. आर्थिक संस्था का आधार
उत्तर:
गिल्ड

10. फ्रांस में कृषकों का विद्रोह ……………….. ई० में चला।
उत्तर:
1381

11. फ्रांस एवं इंग्लैंड के मध्य ………………. युद्ध 1337 ई० से 1453 ई० तक चला।
उत्तर:
सौ वर्षीय

12. इंग्लैंड में हेनरी सप्तम द्वारा 1485 ई० में ……………….. वंश की स्थापना की गई।
उत्तर:
ट्यूडर

13. ……………. ई० में पुर्तगाल की स्पेन के साथ टार्डीसिलास की संधि हुई।
उत्तर:
1494

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. मध्यकालीन यूरोपीय समाज कितने वर्गों में विभाजित था ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

2. मध्यकालीन यूरोपीय समाज में किस वर्ग को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था ?
(क) कुलीन वर्ग
(ख) अध्यापक वर्ग
(ग) कृषक वर्ग
(घ) पादरी वर्ग।
उत्तर:
(घ) पादरी वर्ग।

3. चर्च किसानों पर जो कर लगाता था वह क्या कहलाता था ?
(क) फ़ीफ़
(ख) टीथ
(ग) ऐबी
(घ) टैली।
उत्तर:
(ख) टीथ

4. मध्यकालीन यरोपीय समाज की अधिकाँश जनसंख्या किस वर्ग से संबंधित थी ?
(क) कृषक वर्ग
(ख) कुलीन वर्ग
(ग) पादरी वर्ग
(घ) व्यापारी वर्ग।
उत्तर:
(क) कृषक वर्ग

5. कृषकदासों पर निम्नलिखित में से कौन-सा प्रतिबंध लगा हुआ था ?
(क) वे सामंत की अनुमति के बिना उसकी जागीर को नहीं छोड़ सकते थे।
(ख) वे अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह सामंत की अनुमति के बिना नहीं कर सकते थे।
(ग) वे अपने स्वामी के अत्याचारी होने पर उसके विरुद्ध कोई अपील नहीं सकते थे।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

6. फ़्यूड किस भाषा का शब्द है ?
(क) जर्मन
(ख) फ्रैंच
(ग) अंग्रेजी
(घ) फ़ारसी।
उत्तर:
(क) जर्मन

7. शॉर्लमेन किस देश का शासक था ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) इंग्लैंड
(घ) फ्राँस।
उत्तर:
(घ) फ्राँस।

8. निम्नलिखित में से किस देश में सामंतवाद का सर्वप्रथम उदय हुआ ?
(क) फ्राँस
(ख) जर्मनी
(ग) ऑस्ट्रिया
(घ) स्पेन।
उत्तर:
(क) फ्राँस

9. लॉर्ड का आवास क्षेत्र क्या कहलाता था ?
(क) फ़ीफ़
(ख) नाइट
(ग) मेनर
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) मेनर

10. लॉर्ड अपनी जागीर में से नाइट को जो भाग देता था वह क्या कहलाता था ?
(क) फ़ीफ़
(ख) टैली
(ग) टीथ
(घ) मेनर।
उत्तर:
(क) फ़ीफ़

11. सामंतवाद का पतन किस सदी में हुआ ?
(क) 12वीं सदी में
(ख) 13वीं सदी में
(ग) 14वीं सदी में
(घ) 15वीं सदी में।
उत्तर:
(घ) 15वीं सदी में।

12. सामंतवाद के पतन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारण उत्तरदायी था ?
(क) धर्मयुद्धों का प्रभाव
(ख) राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान
(ग) मुद्रा का प्रचलन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

13. निम्नलिखित में से किसे यूरोप में ‘काली मौत’ के नाम से जाना जाता था ?
(क) हैजा को
(ख) प्लेग को
(ग) कैंसर को
(घ) एड्स को।
उत्तर:
(ख) प्लेग को

14. मध्यकाल में निम्नलिखित में से कौन-सा चर्च का कार्य था ?
(क) सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाजों संबंधी नियम बनाना
(ख) विद्यार्थियों को शिक्षा देना
(ग) धर्म विद्रोहियों के विरुद्ध मुकद्दमे चलाना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

15. चर्च का सर्वोच्च अधिकारी कौन था ?
(क) पादरी
(ख) बिशप
(ग) पोप
(घ) आर्क बिशप।
उत्तर:
(ग) पोप

16. कैथोलिक चर्च का मुखिया कौन होता था ?
(क) पोप
(ख) पादरी
(ग) कृषक
(घ) राजा।
उत्तर:
(क) पोप

17. पोप का निवास स्थान कहाँ था ?
(क) पेरिस
(ख) रोम
(ग) लंदन
(घ) जेनेवा।
उत्तर:
(ख) रोम

18. मध्यकाल यूरोप में भिक्षुओं के निवास स्थान क्या कहलाते थे ?
(क) मेनर
(ख) ऐबी
(ग) फ़ीफ़
(घ) जागीर।
उत्तर:
(ख) ऐबी

19. मठ का प्रधान क्या कहलाता था ?
(क) पादरी
(ख) पोप
(ग) आर्क बिशप
(घ) ऐबट।
उत्तर:
(घ) ऐबट।

20. बरगंडी में स्थापित प्रसिद्ध मठ कौन-सा था ?
(क) बेनेडिक्टीन
(ख) क्लूनी
(ग) ऐबी
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) क्लूनी

21. फ्रायर कौन थे ?
(क) चर्च अधिकारी
(ख) प्रांतीय अधिकारी
(ग) मेनर अधिकारी
(घ) भिक्षु।
उत्तर:
(घ) भिक्षु।

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22. क्लूनी मठ को लोकप्रिय बनाने में किसने उल्लेखनीय योगदान दिया ?
(क) आबेस हिल्डेगार्ड
(ख) सेंट बेनेडिक्ट
(ग) संत फ्राँसिस
(घ) संत डोमिनीक।
उत्तर:
(क) आबेस हिल्डेगार्ड

23. ‘पियर्स प्लाउमैन’ का लेखक कौन था ?
(क) जेफ्री चॉसर
(ख) लैंग्लैंड
(ग) आबेस हिल्डेगार्ड
(घ) शॉर्लमेन।
उत्तर:
(ख) लैंग्लैंड

24. ईसा मसीह का जन्म दिन किस दिन मनाया जाता है ?
(क) 15 दिसंबर को
(ख) 20 दिसंबर को
(ग) 25 दिसंबर को
(घ) 1 जनवरी को।
उत्तर:
(ग) 25 दिसंबर को

25. मध्यकालीन यूरोप में नगरों के विकास में किसने योगदान दिया ?
(क) कृषि का विकास
(ख) व्यापार का विकास
(ग) धर्मयुद्ध
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

26. कथील नगरों का निर्माण किस देश में आरंभ हुआ ?
(क) इंग्लैंड
(ख) फ्राँस
(ग) ऑस्ट्रेलिया
(घ) इटली।
उत्तर:
(ख) फ्राँस

27. नगरों में व्यापार के कुशल संचालन के लिए निम्नलिखित में से किसका गठन किया गया ?
(क) मठों का
(ख) मेनर का
(ग) श्रेणी का
(घ) कथीलों का।
उत्तर:
(ग) श्रेणी का

28. 11वीं शताब्दी में निम्नलिखित में से किस कारक ने सामाजिक-आर्थिक संबंधों को प्रभावित किया ?
(क) पर्यावरण के परिवर्तन ने
(ख) कृषि के लिए नई भूमि के उपयोग ने
(ग) नई कृषि प्रौद्योगिकी ने
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

29. 11वीं शताब्दी में कृषि प्रौद्योगिकी में कौन-सा परिवर्तन आया ?
(क) लकड़ी के स्थान पर लोहे के हलों का प्रयोग
(ख) साँचेदार पटरों का प्रयोग
(ग) घोड़े के खुरों पर अब लोहे के नाल लगायी जाने लगी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

30. 14वीं शताब्दी में यूरोप में आए घोर संकट का प्रमुख कारण क्या था ?
(क) पर्यावरण में परिवर्तन
(ख) प्लेग का फैलना
(ग) चाँदी की कमी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

31. ‘काली मौत’ के प्रथम लक्षण यूरोप में कब देखने को मिले थे ?
(क) 1347 ई० में
(ख) 1348 ई० में
(ग) 1350 ई० में
(घ) 1357 ई० में।
उत्तर:
(क) 1347 ई० में

32. यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान कब हुआ ?
(क) 14वीं शताब्दी में
(ख) 15वीं शताब्दी में
(ग) 16वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(ख) 15वीं शताब्दी में

33. निम्नलिखित में से किस देश में राष्ट्रीय राज्यों का सर्वप्रथम उत्थान हुआ ?
(क) फ्राँस
(ख) स्पेन
(ग) इंग्लैंड
(घ) पुर्तगाल।
उत्तर:
(ग) इंग्लैंड

तीन वर्ग HBSE 11th Class History Notes

→ 9वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोप का समाज तीन वर्गों-पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग एवं किसान वर्ग में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान पादरी वर्ग को प्राप्त था। पादरियों को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि समझा जाता था।

→ इसलिए समाज द्वारा उनका विशेष सम्मान किया जाता था। यहाँ तक कि राजा भी उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करते थे। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे। कृषकदास, अपाहिज व्यक्ति एवं स्त्रियाँ पादरी नहीं बन सकती थीं। कुलीन वर्ग को समाज में दूसरा स्थान प्राप्त था।

→ इस वर्ग के लोग प्रशासन, चर्च एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें भी अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे भव्य महलों में रहते थे एवं विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। किसान यरोपीय समाज के सबसे निम्न वर्ग में सम्मिलित थे। यूरोप की अधिकाँश जनसंख्या इस वर्ग से संबंधित थी।

→ इनमें स्वतंत्र किसानों की संख्या बहुत कम थी। अधिकांश किसान कृषकदास थे। उन्हें अपने गुजारे के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। वास उनका जीवन नरक के समान था।

→ सामंतवाद मध्यकालीन पश्चिमी यूरोप की एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी। इसमें राजा अपने बड़े सामंतों एवं बड़े सामंत अपने छोटे सामंतों में जागीरों का बँटवारा करते थे। ऐसा कुछ शर्तों के अधीन किया जाता था।

→ रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् पश्चिमी यूरोप में फैली अराजकता एवं केंद्रीय सरकारों के कमजोर होने के कारण राजाओं के लिए सामंतों का सहयोग लेना आवश्यक हो गया था। सामंतवाद का प्रसार यूरोप के अनेक देशों में हुआ।

→ इनमें फ्राँस, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली एवं स्पेन के नाम उल्लेखनीय थे। सामंतवाद के यूरोपीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े। इसने यूरोपीय समाज में कानून व्यवस्था लागू करने, कुशल प्रशासन देने, निरंकुश राजतंत्र पर नियंत्रण लगाने एवं कला एवं साहित्य को प्रोत्साहन देने में प्रशंसनीय भूमिका निभाई।

→ सामंतवादी व्यवस्था ने दूसरी ओर शासकों को कमज़ोर किया, किसानों का घोर शोषण किया, युद्धों को प्रोत्साहित किया एवं राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक प्रमुख बाधा सिद्ध हुई। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद का अनेक कारणों के चलते पतन हो गया।

→ मध्यकाल में पश्चिमी यूरोप में चर्च भी एक शक्तिशाली संस्था थी। इसका समाज पर गहन प्रभाव था। वास्तव में चर्च द्वारा ही सभी प्रकार के सामाजिक एवं धार्मिक नियम बनाए जाते थे। पोप चर्च का सर्वोच्च अधिकारी होता था। वह रोम में निवास करता था।

→ चर्च के अन्य अधिकारी-आर्कबिशप, बिशप एवं पादरी आदि पोप के निर्देशों के अनुसार कार्य करते थे। चर्च के विकास में मठवाद ने प्रशंसनीय योगदान दिया। मठ में रहने वाले भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए अनेक नियम बनाए गए थे, जिनका पालन करना आवश्यक था।

→ वे लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने, शिक्षा प्राप्त करने एवं गरीबों एवं रोगियों की सेवा करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। 529 ई० में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट एवं 910 ई० में बरगंडी में स्थापित क्लूनी मठ विशेष रूप से उल्लेखनीय थे।

→ क्लूनी मठ की स्थापना विलियम प्रथम ने की थी। इस मठ को लोकप्रिय बनाने में जर्मनी की भिक्षुणी आबेस हिल्डेगार्ड ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 13वीं शताब्दी में फ्रायर नामक भिक्षुओं का उत्थान हुआ।

→ वे मठों में रहने की अपेक्षा बाहर भ्रमण कर लोगों को ईसा मसीह के संदेश से अवगत करवाते थे। फ्रायर दो संघों फ्रांसिस्कन एवं डोमिनिकन में विभाजित थे। मध्यकाल में चर्च ने लोगों में एक नई जागति उत्पन्न करने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ मध्यकाल यरोप में नगरों का विकास एक महान उपलब्धि थी। इसका कारण यह था कि रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् यूरोप के अनेक नगर बर्बर आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिए गए थे। नगरों के उत्थान में कृषि एवं व्यापार के विकास, धर्मयुद्धों के प्रभाव एवं नगरों की स्वतंत्रता ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

→ इस काल में जिन नगरों का उत्थान हुआ उनमें महत्त्वपूर्ण वेनिस, मिलान, वियाना, प्रेग, रोम, लंदन, नेपल्स एवं जेनेवा आदि थे। इन नगरों की सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। इसका कारण यह था कि उस समय युद्ध एक साधारण बात थी।

→ इन नगरों में आधारभूत सुविधाओं की कमी थी। मध्यकालीन नगर व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे। व्यापार को प्रोत्साहित करने में श्रेणियों की प्रमुख भूमिका थी। 1100 ई० के पश्चात् फ्राँस में कथील नगरों का निर्माण हुआ। शीघ्र ही ऐसे नगर यूरोप के अन्य शहरों में भी बनाए जाने लगे।

→ इन नगरों में पत्थर के विशाल चर्च बनाए जाते थे। चर्च में खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग किया जाता था। मध्यकालीन नगरों ने यूरोपीय सभ्यता एवं संस्कृति पर दूरगामी प्रभाव डाले।

→ 16वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान को यूरोप के इतिहास में एक युगांतरकारी घटना माना जाता है। इस काल में सामंतवाद के पतन, चर्च के प्रभाव, धर्मयुद्धों के कारण, मध्यवर्ग के उत्थान, शक्तिशाली शासकों के उदय एवं विद्वानों के लेखों के कारण राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में सहायता मिली।

→ राष्ट्रीय राज्य वे राज्य होते हैं जिसमें राजा सर्वोच्च होता है एवं उसकी शक्तियाँ असीम होती हैं। किसी भी व्यक्ति को उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं होता।

→ इंग्लैंड में राष्ट्रीय राज्य स्थापित करने में हेनरी सप्तम, जेम्स प्रथम एवं चार्ल्स प्रथम ने, फ्रांस में लुई ग्यारहवें ने, स्पेन में फर्डीनेंड एवं ईसाबेला ने एवं पुर्तगाल में राजकुमार हेनरी ने उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ इन राष्ट्रीय राज्यों ने अनेक उल्लेखनीय सफलताएँ प्राप्त की। बाद में अनेक कारणों से इन राष्ट्रीय राज्यों का पतन हो गया।

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