Class 10

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Sandhi संधि Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Vyakaran संधि

संधि

Hindi Vyakaran Sandhi HBSE 10th Class प्रश्न 1.
संधि किसे कहते हैं? इसके कितने भेद हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
संधि का शाब्दिक अर्थ है-मिलना या जुड़ना। निकटवर्ती वर्गों के मेल से होने वाले परिवर्तन को ही संधि कहते हैं अर्थात् जब ध्वनियाँ निकट होने पर आपस में मिल जाती हैं और एक नया रूप धारण कर लेती हैं, तब संधि मानी जाती है; जैसे
विद्या + आलय = विद्यालय
सत् + जन = सज्जन
दुः + जन = दुर्जन
देव + इंद्र = देवेंद्र
रेखा + अंकित = रेखांकित

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

संधि के तीन भेद हैं-
(i) स्वर संधि,
(ii) व्यंजन संधि,
(iii) विसर्ग संधि।

(i) स्वर संधि दो स्वरों के आपस में मेल होने से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं; जैसे-परम + आत्मा = परमात्मा।

स्वर संधि के पाँच उपभेद हैं
1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. वृद्धि संधि
4. यण संधि
5. अयादि संधि।

1. दीर्घ संधि-जब ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आए तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ हो जाते हैं।
अ + अ = आ
मत + अनुसार = मतानुसार
वेद + अंत = वेदांत
परम + अणु = परमाणु
सार + अंश = सारांश
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
स्व + अधीन = स्वाधीन

अ + आ = आ
भोजन + आलय = भोजनालय
हिम + आलय = हिमालय
परम + आत्मा = परमात्मा
दश + आनन = दशानन
रत्न + आकर = रत्नाकर
धन + आदेश = धनादेश

आ + अ = आ
यथा + अर्थ = यथार्थ
रेखा + अंकित = रेखांकित
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
दीक्षा + अंत = दीक्षांत
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी

आ + आ = आ
महा + आत्मा = महात्मा
विद्या + आलय = विद्यालय
महा + आनंद = महानंद
कारा + आवास = कारावास
दया + आनंद = दयानंद
मदिरा + आलय = मदिरालय

इ + इ = ई
रवि + इंद्र = रवींद्र
कवि + इंद्र = कवींद्र
अति + इव = अतीव
कपि + इंद्र = कपींद्र
अभि + इष्ट = अभीष्ट

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

इ + ई = ई
गिरि + ईश = गिरीश
परि + ईक्षा = परीक्षा
कपि + ईश = कपीश
हरि + ईश = हरीश
फणि + ईश्वर = फणीश्वर
मुनि+ ईश्वर = मुनीश्वर

ई + इ = ई
मही + इंद्र = महींद्र
नारी+ इंदु = नारीदु
नदी + इंद्र = नदींद्र
शची+ इंद्र = शचींद्र
नारी + इच्छा = नारीच्छा

ई + ई = ई
रजनी + ईश = रजनीश
नदी + ईश = नदीश
जानकी + ईश = जानकीश
नारी + ईश्वर = नारीश्वर
मही + ईश = महीश
योगी + ईश्वर = योगीश्वर

उ + उ = ऊ
भानु + उदय = भानूदय
सु + उक्ति = सूक्ति
लघु + उत्तर = लघूत्तर
विधु + उदय = विधूदय
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
अनु + उदित = अनूदित

उ + ऊ = ऊ
अंबु + ऊर्मि = अंबूर्मि
सिंधु + ऊर्मि = सिंधूमि
लघु + ऊर्मि = लघूर्मि

ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव = वधूत्सव
भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग

ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊर्जा = भूर्जा
वधू + ऊर्मि = वधूर्मि

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

Sandhi 10th Class HBSE

2. गुण संधि-यदि ‘अ’ और ‘आ’ के आगे ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’, ऋ स्वर आते हैं, तो दोनों के मिलने से क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर’ हो जाते हैं।

अ + इ = ए
देव + इंद्र = देवेंद्र
नर + इंद्र = नरेंद्र
भारत + इंदु = भारतेंदु
स्व + इच्छा = स्वेच्छा
सत्य + इंद्र = सत्येंद्र
गज + इंद्र = गजेंद्र

आ + इ = ए
राजा + इंद्र = राजेंद्र
रमा + इंद्र = रमेंद्र
यथा + इष्ट = यथेष्ट
महा + इंद्र = महेंद्र

अ + ई = ए
गण + ईश = गणेश
नर + ईश = नरेश
राज + ईश = राजेश
कमल + ईश = कमलेश
परम + ईश्वर = परमेश्वर
सुर + ईश = सुरेश

आ + ई = ए
रमा + ईश = रमेश
महा + ईश्वर = महेश्वर
राका + ईश = राकेश
लंका + ईश = लंकेश
महा + ईश = महेश
गंगा + ईश्वर = गंगेश्वर

अ + उ = ओ
वीर + उचित = वीरोचित
सूर्य + उदय = सूर्योदय
वसंत + उत्सव = वसंतोत्सव
भाग्य + उदय = भाग्योदय
पर + उपकार = परोपकार
उत्तर + उत्तर = उत्तरोत्तर

अ + ऊ = ओ
जल + ऊर्मि = जलोमि
भाव + ऊर्मि = भावोर्मि
समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
सागर + ऊर्मि = सागरोर्मि

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + उदधि = महोदधि

आ + ऊ = ओ
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
महा + ऊर्मि = महोर्मि
महा + ऊष्पा = महोष्मा

अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि
राज + ऋषि = राजर्षि
ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
देव + ऋषि = देवर्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि

आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि

उद्यत का संधि HBSE 10th Class

3. वृद्धि संधि-जब ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हो तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ हो जाते हैं और ‘ओ’ या ‘औ’ हो तो ‘औ’ हो जाता है।

अ + ए = ऐ
एक + एक = एकैक
लोक + एषणा = लोकैषणा

अ + ऐ = ऐ
मत + ऐक्य = मतैक्य
परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य
धन + ऐश्वर्य = धनैश्वर्य

आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव
तथा + एव = तथैव/

आ + ऐ = ऐ
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
रमा + ऐश्वर्य = रमैश्वर्य

अ + ओ = औ
परम + ओज = परमौज
दंत + ओष्ठ = दंतौष्ठ
जल + ओघ = जलौघ

अ + औ = औ
वन + औषधि = वनौषधि
परम + औदार्य = परमौदार्य
परम + औषध = परमौषध

आ + ओ = औ
महा + ओजस्वी = महौजस्वी
महा + ओज = महौज
महा + ओघ = महौघ

आ + औ = औ
महा + औषध = महौषध
महा + औदार्य = महौदार्य

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

Sandhi Class 10 HBSE

4. यण संधि-यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आए तो इ/ई का ‘य’, उ/ऊ का ‘व’ और ऋ का ‘र’ हो जाता है।

इ + अ = य
अति + अधिक = अत्यधिक
अति + अंत = अत्यंत
यदि + अपि = यद्यपि
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक

इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि
नदी + आगम = नद्यागम

ई + आ = या
सखी + आगमन = सख्यागमन
अति + उत्तम = अत्युत्तम

इ + उ = यु
उपरि + उक्त = उपर्युक्त
अभि + उदय = अभ्युदय
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
प्रति + ऊष = प्रत्यूष

इ + ऊ = यू
नि + ऊन = न्यून
वि + ऊह = व्यूह

इ + ए = ये
प्रति + एक = प्रत्येक
अधि + एषणा = अध्येषणा

उ + अ = व
सु + अच्छ = स्वच्छ
मनु + अंतर = मन्वंतर
अनु + अय = अन्वय

उ + आ = वा
सु + आगत = स्वागत
मधु + आलय = मध्वालय
गुरु + आदेश = गुवदिश

उ + इ = वि
अनु + इति = अन्विति
अनु + इत = अन्वित

उ + ए = वे
अनु + एषण = अन्वेषण
प्रभु + एषणा = प्रभ्वेषणा

ऊ + आ = वा
वधू + आगमन = वध्वागमन
भू + आदि = भ्वादि

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

ऋ + आ = रा
मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
पितृ + आनुमति = पित्रानुमति
मातृ + आदेश = मात्रादेश

Sandhi Class 10 Hindi HBSE

5. अयादि संधि-जहाँ ए/ऐ, ओ/औ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है, तो इनके स्थान पर क्रमशः ए का अय, ऐ का आय, ओ का अव तथा औ का आव हो जाता है।

ए + अ = अय
ने + अन = नयन
शे + अन = शयन
चे + अन = चयन

ऐ + अ = आय
नै + अक = नायक
गै + अक = गायक

ऐ + इ = आयि
गै + इका = गायिका
नै + इका = नायिका
कै + इक = कायिक

ओ + अ = अव
पो + अन = पवन
भो + अन = भवन
हो + अन = हवन

औ + उ = आवु
भौ + उक = भावुक

औ + अ = आव
पौ + अन = पावन
पौ + अक = पावक

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

(ii) व्यंजन संधि-व्यंजन ध्वनि से परे कोई स्वर या व्यंजन आने से जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं; जैसेजगत् + नाथ =’जगन्नाथ।
व्यंजन संधि के नियम इस प्रकार हैं

1. वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन यदि क, च, ट्, त्, प् वर्ण से परे कोई स्वर या वर्ग का तीसरा-चौथा वर्ण या य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो, तो पहले वर्ण का उसी वर्ण का तीसरा वर्ण हो जाता है।
वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता
वाक् + ईश = वागीश
षट् + आनन = षडानन
दिक् + अंबर = दिगंबर
दिक् + गज = दिग्गज
सत् + गति = सद्गति
सत् + गुण = सद्गुण
सत् + वाणी = सद्वाणी
अप + धि = अब्धि

2. वर्ग के पहले वर्ण का पंचम वर्ण में परिवर्तन यदि वर्ग के पहले वर्ण से परे कोई अनुनासिक अर्थात् ‘न’ या ‘म’ हो, तो पहला वर्ण उसी वर्ग का अनुनासिक वर्ण हो जाता है।
वाक् + मय = वाङ्मय
षट् + मास = षण्मास
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
सत् + मार्ग = सन्मार्ग
चित् + मय = चिन्मय
उत् + मत = उन्मत
सत् + मति = सन्मति
उत् + नायक = उन्नायक
उत् + मेष = उन्मेष
उत् + यत = उद्यत

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

3. ‘त’ सम्बन्धी नियम-
(क) ‘त्’ के बाद यदि ‘ल’ हो तो ‘त’ ‘ल’ में बदल जाता है।
उत् + लेख = उल्लेख
तत् + लीन = तल्लीन
उत् + लास = उल्लास

(ख) ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ज/झ हो, तो त्, द् ‘ज्’ में बदल जाता है।
सत् + जन = सज्जन
उत् + ज्वल = उज्ज्वल
जगत् + जननी = जगज्जननी
विपत् + जाल = विपज्जाल

(ग) “त्’ के बाद यदि ट/ड हो तो ‘त’ ट्/ड् में बदल जाता है।
तत् + टीका = तट्टीका ।
उत् + डयन = उड्डयन
बृहत् + टीका = बृहट्टीका

(घ) ‘त्’ के बाद यदि ‘श्’ हो तो ‘त्’ का ‘च’ और ‘श’ का ‘छ्’ हो जाता है।
उत् + श्वास = उच्छवास
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
तत् + शिव = तच्छिव
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट

‘त्’ के बाद यदि ‘च/छ’ हो तो ‘त्’ का ‘च’ हो जाता है।
उत् + चारण = उच्चारण
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
उत् + चरित = उच्चरित
जगत् + छाया = जगच्छाया

‘त्’ के बाद ‘ह’ हो तो ‘त’ का ‘द’ और ‘ह’ का ‘धू’ हो जाता है।
तत् + हित = तद्धित
उत् + हार = उद्धार
पत् + हति = पद्धति
उत् + हत = उद्धत

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

4. ‘छ’ संबंधी नियम-जब किसी शब्द के अंत में स्वर हो और आगे के शब्द का पहला वर्ण ‘छ’ हो, तो ‘छ’ का ‘छ’ हो जाता है।
अनु + छेद = अनुच्छेद
वि + छेद = विच्छेद
स्व + छंद = स्वच्छंद
परि + छेद = परिच्छेद
आ + छादन = आच्छादन
छत्र + छाया = छत्रच्छाया

5. ‘म’ संबंधी नियम-जब पहले शब्द के अंतिम वर्ण ‘म’ के आगे दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण (य, र, ल, व) या (श, ष, स, ह) या अन्य स्पर्श व्यंजन हो, तो ‘म’ के स्थान पर पंचम वर्ण अथवा अनुस्वार हो जाता है।
सम् + चय = संचय
सम् + योग = संयोग
सम् + हार = संहार
सम् + भव = संभव
सम् + लाप = संलाप
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + स्मरण = संस्मरण
सम् + शोधन = संशोधन
सम् + मति = सम्मति
सम् + बंध = संबंध
सम् + सार = संसार
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + तोष = संतोष
सम् + गम = संगम
सम् + शय = संशय
अहम् + कार = अहंकार

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

6. ‘न’ का ‘ण’ संबंधी नियम-यदि ऋ, र, ष के बाद ‘न’ व्यंजन आता है तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है।
परि + नाम = परिणाम
राम + अयन = रामायण
मर + न = मरण
प्र + मान = प्रमाण
भर + न = भरण

7. ‘स’ का ‘ष’ संबंधी नियम-यदि ‘स’ से पहले ‘अ’, ‘आ’ से भिन्न स्वर हो तो ‘स’ का ‘ष’ हो जाता है।
अभि + सेक = अभिषेक
नि + सेध = निषेध
वि + सम = विषम
सु + सुप्ति = सुषुप्ति

(iii) विसर्ग संधि-विसर्ग के बाद यदि स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं; जैसे
निः + गुण = निर्गुण।

विसर्ग संधि के नियम इस प्रकार हैं-
1. विसर्ग का ‘ओ’ होना विसर्ग से पहले यदि ‘अ’ हो और बाद में ‘अ’ अथवा वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां अक्षर या य, र, ल, व आ जाए तो विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है।
यशः + गान = यशोगान
मनः + भाव = मनोभाव
सरः + ज = सरोज
मनः + विकार = मनोविकार
अधः + गति = अधोगति
निः + आहार = निराहार
रजः + गुण = रजोगुण
मनः + हर = मनोहर
तपः + बल = तपोबल
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
पयः + द = पयोद
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

2. विसर्ग का ‘र’ होना यदि विसर्ग से पहले ‘अ’, ‘आ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और आगे का तीसरा, चौथा, पाँचवां अक्षर या य, र, ल, व अथवा स्वर हो, तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है।
निः + आशा = निराशा
दुः + उपयोग = दुरुपयोग
दुः + लभ = दुर्लभ
आशीः + वाद = आशीर्वाद
निः + धन = निर्धन
दुः + जन = दुर्जन
निः + गुण = निर्गुण
बहिः + मुख = बहिर्मुख
पुनः + जन्म = पुनर्जन्म
निः + यात = निर्यात
दुः + बुद्धि = दुर्बुद्धि
निः + उत्तर = निरुत्तर
निः + भय = निर्भय

3. विसर्ग का ‘श’ होना विसर्ग से पहले यदि कोई स्वर हो और बाद में ‘च’ या ‘छ’ हो तो विसर्ग का ‘श्’ हो जाता है।
निः + चल = निश्चल
निः + छल = निश्छल
निः + चय = निश्चय
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
दुः + शासन = दुश्शासन
निः + चिंत = निश्चित

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

4. विसर्ग का ‘स’ होना-विसर्ग के बाद यदि ‘त’ या ‘स’ हो तो विसर्ग का ‘स्’ हो जाता है।
निः + संतान = निस्संतान
निः + तेज = निस्तेज
दुः + साहस = दुस्साहस
मनः + ताप = मनस्ताप
नमः + ते = नमस्ते
निः + संदेह = निस्संदेह

5. विसर्ग का ‘ष’ होना विसर्ग से पहले इ/उ और बाद में क, खं, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है।
निः + कलंक = निष्कलंक
दुः + कर = दुष्कर
बहिः + कार = बहिष्कार
निः + फल = निष्फल
दुः + प्रकृति = दुष्प्रकृति
चतुः + पाद = चतुष्पाद
निः + पाप = निष्पाप
निः + कपट = निष्कपट

6. विसर्ग का लोप(क) यदि विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है; जैसे
अतः + एव = अतएव

(ख) विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है और स्वर दीर्घ हो जाता है।
निः + रोग = नीरोग
निः + रस = नीरस
निः + रव = नीरव

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

7. विसर्ग यथारूप-यदि विसर्ग के आगे क, प, में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग यथारूप रहता है।
अंतः + करण = अंतःकरण
प्रातः + काल = प्रातःकाल
अधः + पतन = अधःपतन

अभ्यासार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण:
सीमा + अंत = सीमांत
निः + सार = निस्सार
भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व
प्रति + एक = प्रत्येक
दुः + कर्म = दुष्कर्म
नर + इंद्र = नरेंद्र
उत् + चारण = उच्चारण
शाक + आहारी = शाकाहारी
देव + इंद्र = देवेंद्र
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान
वाक् + धारा = वाग्धारा ।
उत् + मत = उन्मत्त
दुः + कृत = दुष्कृत
लोक + एषण = लोकेषण
निः + आश्रय = निराश्रय
सम् + वाद = संवाद
परम + आत्मा = परमात्मा
निः +शेष = निश्शेष

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

स्व + अर्थी = स्वार्थी
तथा + अस्तु = तथास्तु
उत् + गम = उद्गम
निः + आमिष = निरामिष
स्व + आधीन = स्वाधीन
देव + आलय = देवालय
तमः + गुण = तमोगुण
रजनी + ईश = रजनीश
भोजन + आलय = भोजनालय
सत् + जन = सज्जन
सम + रक्षक = संरक्षक
शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी
सम् + सार = संसार
कृष् + न = कृष्ण
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
नमः + आकार = नमस्कार
निर् + मान = निर्माण
सरः + ज = सरोज
मनः + रथ = मनोरथ
परम + ईश्वर = परमेश्वर
मनः + हर = मनोहर
अति + इव = अतीव
महा + इंद्र = महेंद्र
दुः + दशा = दुर्दशा
आयत + आकार = आयताकार
रमा + इंद्र = रमेंद्र
निः + आशा = निराशा

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

पद्य + आत्मक = पद्यात्मक
हित + उपदेश = हितोपदेश
दुः + शासन = दुश्शासन
निः + आकार = निराकार
मानव + उचित = मानवोचित
निः + काम = निष्काम
किम् + चित् = किंचित
जल + ऊर्मि = जलोर्मि
बहिः + कार = बहिष्कार
उत् + हार = उद्धार
गंगा + उदक = गंगोदक
दिन + ईश = दिनेश
तथा + एव = तथैव
देव + ऋषि = देवर्षि
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
विः + छेद = विच्छेद
दया + आनंद = दयानंद
स्व + अर्थ = स्वार्थ
पुरः + हित = पुरोहित
अति + इव = अतीव
सूर्य + अस्त = सूर्यास्त

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

तपः + वन = तपोवन
गिरि + ईश = गिरीश
हरि + ईश = हरीश
मनः + दशा = मनोदशा
कवि + ईश्वर = कवीश्वर
कपी + इंद्र = कपींद्र
निः + मल = निर्मल
नदी + ईश = नदीश
उत् + हरण = उद्धरण
दुः + साहस = दुस्साहस
विधु + उदय = विधूदय
विष् + नु = विष्णु
व्याकर् + अन = व्याकरण
निः + प्राण = निष्प्राण
दुः + परिणाम = दुष्परिणाम
परि + नाम = परिणाम
इति + आदि = इत्यादि
धनुः + धारी = धनुर्धारी
अधः + गति = अधोगति
सु + अल्प = स्वल्प
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
सरः + वर = सरोवर
षट् + मास = षण्मास
अंतः + जातीय = अंतर्जातीय
निः + गुण = निर्गुण

HBSE 10th Class Hindi Vyakaran संधि

वाक् + दान = वाग्दान
तव + ऐश्वर्य = तवैश्वर्य
निः + चल = निश्चल
तत् + अनुसार = तदनुसार
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
निः + कलंक = निष्कलंक
तत् + लीन = तल्लीन
घृत + ओदन = घृतौदन
यशः + गान = यशोगान
सम् + बंध = संबंध
तव + औषधि = तवौषधि
दुः + कर = दुष्कर
अति + अधिक = अत्याधिक
उत् + लेख = उल्लेख
सम् + योग = संयोग
दिक् + अम्बर = दिंगबर

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

HBSE 10th Class Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers

Class 10 Kshitij Chapter 12 Question Answer HBSE प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर-
लेखक ने जब रेल के डिब्बे में प्रवेश किया तो उन्होंने देखा कि वहाँ पहले से एक सज्जन विराजमान हैं। वे सीट पर पालथी मारे बैठे हुए थे। उनके सामने एक तौलिए पर खीरे रखे हुए थे। उन्होंने लेखक की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। उसको देखते ही उनके चेहरे पर ऐसे भाव व्यक्त हुए कि जैसे लेखक का वहाँ आना उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे लेखक ने वहाँ आकर उनके चिंतन में बाधा डाल दी हो। वे कुछ परेशान-से दिखाई दिए। अपनी इसी दशा में वे कभी खिड़की के बाहर देखते तो कभी सामने रखे खीरों की ओर। उनकी असुविधा और असंतोष वाली स्थिति से ही लेखक ने अनुभव कर लिया था, कि वे उससे बातचीत करने को उत्सुक नहीं थे।

पाठ 12 लखनवी अंदाज के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, ‘नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर-
नवाबों की दूसरों पर अपना प्रभाव डालने की प्रवृत्ति होती है। उसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े, वे करते हैं। इसलिए वे सामान्य समाज के तौर-तरीकों को नकारते हैं तथा नए-नए तरीके ढूँढते हैं जिनसे अपनी अमीरी को दर्शाया जा सके। नवाब साहब अकेले में बैठकर खीरे जैसी साधारण वस्तु को खाने की तैयारी में थे। किंतु उसी वक्त लेखक वहाँ आ टपका। उसे देखकर उनके मन में नवाबी स्वभाव उभर आया और उन्हें अपनी नवाबगिरी दिखाने का अवसर मिल गया। उन्होंने दुनिया के तौर-तरीकों से हटकर खीरे काटे, नमक-मिर्च लगाया, उन्हें सूंघा और खिड़की में से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा केवल सामने वाले पर अपने नवाबी स्वभाव का रौब जमाने के लिए किया।

Kshitij Class 10 Chapter 12 Question Answer HBSE प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर-
यशपाल का यह विचार अपने-आप में अधूरा-सा प्रतीत होता है। इसलिए हम इससे पूर्णतः सहमत नहीं हैं कि बिना विचारों, घटनाओं या पात्रों के कहानी लिखना संभव है। कहानी में कोई-न-कोई विचार, घटना अथवा पात्र अवश्य ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में विद्यमान रहता है। उदाहरणार्थ पठित कहानी ‘लखनवी अंदाज़’ को लिया जा सकता है। इस कहानी के लिखने के पीछे लेखक का प्रमुख उद्देश्य लखनऊ के पतनशील नवाबी वर्ग पर करारा व्यंग्य करना है। इसी विचार पर कहानी का पूरा ताना-बाना बुना गया है। इस कहानी में घटनाओं की अपेक्षा विचारों की प्रधानता है। घटना के रूप में रेलयात्रा, यात्री के रूप लखनवी नवाबों जैसा दिखने वाला सज्जन और उनके पतन को दिखाना है। अतः यह कहना उचित नहीं कि बिना विचार, घटना व पात्रों के कहानी बन सकती है।

Class 10 Ch 12 Hindi Shitish Question Answer HBSE प्रश्न 4.
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में आदि से अंत तक नवाब की अकड़ या नवाब होने के अहंकार का ही उल्लेख किया गया है। वह अपने सामने की सीट पर बैठे हुए सहयात्री से बोलना भी पसंद नहीं करता। उसके सामने खीरा खाना अपनी तौहीन समझता है। वह खीरे खाने की अपेक्षा उन्हें सूंघकर चलती हुई गाड़ी की खिड़की से बाहर फेंक देता है। वह खीरों की सुगंध से ही स्वयं के संतुष्ट होने का नाटक करता है, क्योंकि खाने की वस्तु को खाकर ही संतुष्टि प्राप्त हो सकती है, सूंघकर नहीं। अतः इस पाठ का शीर्षक ‘नवाबी तहज़ीब’ हो सकता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

रचना और अभिव्यक्ति-

लखनवी अंदाज पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
नवाब साहब ने अचानक घूमकर लेखक को आदाब-अर्ज़ किया। फिर उन्होंने तौलिए पर रखे दो ताज़े खीरे उठाए। उनको धोया, पोंछा। फिर उन्होंने लेखक से कहा, क्या आप खीरा खाना पसंद करेंगे। लेखक के मना करने पर वे खीरे को छीलकर और काटकर तौलिए पर रखने लगे। बड़े इत्मीनान से खीरे को काट चुकने के बाद उन्होंने उन कटे हुए खीरों पर नमक और मिर्च का पाउडर छिड़का। फिर बड़े इत्मीनान से एक-फाँक को उठाकर सूंघा एवं उसके स्वाद के आनंद को अनुभव किया। फिर एक-एक फाँक को वे सूंघते जाते और उसे खिड़की से बाहर फेंकते जाते।
(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं? उत्तर-यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

Lakhnavi Andaaz Question Answer HBSE 10th Class प्रश्न 6.
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

Lakhnavi Andaaz Summary HBSE 10th Class प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
निश्चित रूप से सनक का सकारात्मक रूप हो सकता है। जितने भी बड़े-बड़े कार्य या अनुसंधान हुए हैं, वे सनकी व्यक्तियों द्वारा ही किए गए हैं। हम कुछ वैज्ञानिकों के उदाहरण ले सकते हैं। वे सनक के कारण ही रात-दिन अपने कार्य में इतने डूबे रहते हैं कि उन्हें अपने आस-पास की गतिविधियों का भी बोध नहीं रहता है। ऐसे लोग बड़े-से-बड़े जोखिम को उठाने से भी नहीं डरते। विश्व में जितनी भी बड़ी-बड़ी खोजें हुई हैं, वे सनकी वैज्ञानिकों की देन हैं। अतः स्पष्ट है कि सनक का सकारात्मक रूप भी होता है।

भाषा-अध्ययन-

लखनवी अंदाज प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए-
(क) एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर-
(क) बैठे थे – अकर्मक।
(ख) दिखाया – सकर्मक।
(ग) बैठे- अकर्मक।
कल्पना करना – अकर्मक।
है – अकर्मक।
(घ) काटना – सकर्मक।
खरीदे होंगे – सकर्मक।
(ङ) काटा – सकर्मक।
गोदकर – सकर्मक।
निकाला – सकर्मक।
(च) देखा – अकर्मक (प्रयोग)।
(छ) लेट गए – अकर्मक।
थककर – अकर्मक।
(ज) निकाला – सकर्मक।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

पाठेतर सक्रियता

‘किबला शौक फरमाएँ,’ ‘आदाब-अर्ज…शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

‘खीरा… मेदे पर बोझ डाल देता है। क्या वास्तव में खीरा अपच करता है? किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी’ ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढकर पढ़िए और संभव हो तो फिल्म भी देखिए।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

HBSE 10th Class Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

Lakhnavi Andaaz Class 10 Solutions HBSE प्रश्न 1.
नवाब साहब ने लेखक के गाड़ी में चढ़ने पर कोई उत्साह क्यों नहीं दिखाया?
उत्तर-
नवाब साहब पर अभी तक सामंती प्रभाव था। वे अपने आपको विशिष्ट व्यक्ति समझते थे। यदि वे लेखक के गाड़ी में चढ़ने पर उत्साह दिखाते तो उनका सम्मान कम हो जाता, उनकी शान-ए-शौकत में बट्टा लग सकता था। उनको यह सहन नहीं था कि शहर का कोई सफेदपोश उनको मँझले दर्जे में सफर करते देखे।

प्रश्न 2.
लेखक को नवाब साहब का अचानक भाव परिवर्तन कैसा लगा?
उत्तर-
लेखक को नवाब साहब का अचानक भाव परिवर्तन अच्छा नहीं लगा। वह शराफत का भ्रम बनाए रखने के लिए ही लेखक को खीरा खाने के लिए कह रहे थे। उनके इस व्यवहार में दिखावा ही झलक रहा था।

प्रश्न 3.
लेखक और नवाब दोनों ने सेकंड क्लास में यात्रा क्यों की? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पाठ में इस विषय में स्पष्ट रूप में कुछ नहीं कहा गया कि नवाब ने ऐसा क्यों किया। अनुमान लगाया जा सकता है कि नवाबों की आर्थिक दशा अच्छी नहीं रह गई थी। अब नवाब कहने मात्र के रह गए थे। इसलिए पैसे बचाने के लिए उसने सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा की होगी।
लेखक ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने नई कहानी के संबंध में कुछ चिंतन-मनन करने या सोचने के लिए तथा खिड़की में से कुछ प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए सेकंड क्लास की यात्रा थी। दोनों का विश्वास था कि डिब्बा खाली होगा।

प्रश्न 4.
नवाब ने अपनी नवाबी का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर-
नवाब ने खीरों को पहले पानी से धोया फिर उन्हें तौलिए से पोंछा फिर जेब से चाकू निकालकर उनके सिरे काटे और छीलकर उनकी फाँकें काट-काटकर तौलिए पर रखीं और उन पर नमक-मिर्च का मिश्रण छिड़का। फिर लेखक को भी खीरे खाने का निमंत्रण दिया। अन्त में एक-एक फाँक को खाने की अपेक्षा सूंघ-सूंघ कर खिड़की से बाहर फेंकने लगा। उसने ऐसा दिखावा किया कि उसे सुगंध से ही बहुत तृप्ति मिली थी।

प्रश्न 5.
लेखक को नवाब साहब का न बोलना और बोलना दोनों ही बुरे लगे, क्यों?
उत्तर-
लेखक ने जब रेल के डिब्बे में प्रवेश किया तो नवाब अपनी सीट पर बैठा रहा। उसने लेखक की ओर देखना भी गवारा न किया। लेखक को नवाब साहब की यह अकड़ बुरी लगी। इसी प्रकार नवाब ने जब लेखक को खीरे खाने का निमंत्रण दिया तो लेखक को बुरा लगा क्योंकि उसे ऐसा अनुभव हुआ कि वह ऐसा करके अपना प्रभाव उस पर जमा रहा है। वह नहीं चाहता कि नवाब उस पर अपनी झूठी शान-ए-शौकत का प्रभाव छोड़े। लेखक को ऐसा नवाबों के प्रति अपनी पूर्व-धारणा के कारण भी लगा होगा।

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विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यह पाठ एक महत्त्वपूर्ण संदेश की अभिव्यक्ति करता है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने बताया है कि हर रचना के पीछे कोई-न-कोई विचार या चिंतन अवश्य रहता है। उस विचार या चिंतन को रचना में प्रस्तुत करने के लिए लेखक को एक निश्चित प्रक्रिया में से गुज़रना पड़ता है। इस रचना का प्रमुख संदेश दिखावा पसंद लोगों की जीवन शैली को दिखाना है। लेखक को रेल के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। वह खीरे खाने की तैयारी में था, किंतु डिब्बे में लेखक के आ जाने से लेखक के सामने खीरे खाने में उसे संकोच होता है। इसलिए वह खीरे खाने की तैयारी विशेष ढंग से करता है किंतु उन्हें खाने की अपेक्षा सँघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है तथा तृप्ति अनुभव करने का दिखावा करता है। अतः नवाब के इस व्यवहार से पता चलता है कि जो लोग जिस कार्य को एकांत में छुपकर करते हैं, उसे दूसरों के सामने करने में अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। यहाँ उनके चोरी आहार की तुष्टि होती है। इसमें वास्तविकता कुछ भी नहीं है, मात्र दिखावा है।

प्रश्न 7.
लेखक ने नवाब की असुविधा व संकोच को कैसे अनुभव किया?
उत्तर-
लेखक रेल के जिस डिब्बे में चढ़ा, वहाँ पहले से ही एक सज्जन पालथी मारे बैठा था। उनके डिब्बे में प्रवेश करने पर पहले से ही उपस्थित व्यक्ति ने लेखक को दुआ-सलाम कुछ भी नहीं कहा, अपितु वह उससे नज़रें बचाने का प्रयास करता रहा। लेखक ने उसकी इसी असुविधा और संकोच से अनुमान लगाया कि वह नहीं चाहता था कि कोई उसे वहाँ बैठे हुए देखे कि नवाब होते हुए सेकंड क्लास में यात्रा कर रहा है। उसके सामने रखे हुए खीरों से तो उनका संकोच और भी बढ़ गया था जिसे सही देखा जा सकता था। उन खीरों को लेखक के सामने खाने में भी उसे संकोच हो रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करना और खीरे खाना उसकी असुविधा और संकोच का कारण बन रहे थे जिसे लेखक ने सहज ही अनुभव कर लिया था।

प्रश्न 8.
‘लखनवी अंदाज’ पाठ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लखनवी अंदाज’ पाठ में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो जीवन की शान-बान का दिखावा करते हैं। वे जीवन की सहजता व स्वाभाविकता को स्वीकार करने से इन्कार करते हैं। लेखक ने दिखाया है कि खीरा एक साधारण वस्तु है तथा आम लोग उसका सेवन करते हैं किन्तु वह लखनवी नवाब उसे खाने में अपनी तौहीन समझता है। उसे सूंघकर चलती गाड़ी से नीचे फैंक देता है। वे इसी में अपनी महानता समझते हैं। ऐसे लोग सेकंड क्लास में यात्रा करना भी अपना बड़प्पन समझते हैं। इस प्रकार लेखक ने तथाकथित नवाबों के दिखावटी जीवन पर करारा व्यंग्य किया है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर-
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ के लेखक का नाम यशपाल है।

प्रश्न 2.
‘नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश पालथी मारे बैठे थे’-‘सफेदपोश’ का अर्थ क्या है?
उत्तर-
“सफेदपोश’ का अर्थ भद्रपुरुष है।

प्रश्न 3.
लेखक ने खीरा खाने से क्यों इंकार कर दिया था?
उत्तर-
आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया था।

प्रश्न 4.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर क्यों फेंक दिया था?
उत्तर-
खानदानी रईसों का अंदाज दिखाने के लिए नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया था।

प्रश्न 5.
लेखक की पुरानी आदत क्या थी?
उत्तर-
अकेले में तरह-तरह की कल्पनाएँ करना लेखक की पुरानी आदत थी।

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प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार नवाबों की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर-
लेखक के अनुसार अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझना नवाबों की प्रमुख विशेषता है।

प्रश्न 7.
‘खीरे की पनियाती फाँके देखकर पानी मुँह में जरूर आ रहा था’ यहाँ ‘पनियाती’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘पनियाती’ शब्द का अर्थ है रसीली।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक ने ‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ में किस पर कटाक्ष/व्यंग्य किया है?
(A) कृषक वर्ग पर
(B) पतनशील सामंती वर्ग पर
(C) मध्य वर्ग पर
(D) निम्न मध्य वर्ग पर
उत्तर-
(B) पतनशील सामंती वर्ग पर

प्रश्न 2.
ट्रेन के सेकंड क्लास डिब्बे में एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के कैसे सज्जन पालथी मारे बैठे थे?
(A) सफेदपोश
(B) नवाब
(C) लम्बी दाड़ी वाले
(D) पठानी पोशाक वाले
उत्तर-
(A) सफेदपोश

प्रश्न 3.
‘नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश पालथी मारे बैठे थे’-‘सफेदपोश’ का अर्थ है-
(A) सफेद कपड़े पहने व्यक्ति
(B) सफेद दाढ़ी वाला व्यक्ति
(C) नवाब
(D) भद्रपुरुष
उत्तर-
(D) भद्रपुरुष

प्रश्न 4.
सफेदपोश सज्जन ने तौलिए पर कौन-सी वस्तु रखी हुई थी?
(A) आम
(B) तरबूज
(C) खीरे
(D) नींबू
उत्तर-
(C) खीरे

प्रश्न 5.
‘आँखें चुराना’ मुहावरे का अर्थ है-
(A) आँखों की चोरी करना
(B) आँखें न रहना
(C) नज़रें बचाना
(D) आँखों को छुपा देना
उत्तर-
(C) नज़रें बचाना

प्रश्न 6.
लेखक की दृष्टि में ‘खीरा’ किस वर्ग का प्रतीक है?
(A) मामूली लोगों के वर्ग का
(B) उच्च वर्ग का
(C) सामंती वर्ग का
(D) मध्यवर्ग का
उत्तर-
(A) मामूली लोगों के वर्ग का

प्रश्न 7.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को किस प्रकार देखा था?
(A) नवाबी
(B) खोई-खोई
(C) लालची
(D) सतृष्ण
उत्तर-
(D) सतृष्ण

प्रश्न 8.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर क्यों फेंक दिया था?
(A) कड़वी होने के कारण
(B) खराब होने के कारण
(C) खानदानी रईसों का अंदाज दिखाने के लिए
(D) मूर्खता के कारण
उत्तर-
(C) खानदानी रईसों का अंदाज दिखाने के लिए

प्रश्न 9.
“खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।” ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) डॉक्टर ने
(B) कथानायक ने
(C) तीसरे मुसाफिर ने
(D) नवाब साहब ने
उत्तर-
(D) नवाब साहब ने

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प्रश्न 10.
‘ज्ञान-चक्षु खुलना’ का अर्थ है-
(A) आँखें खुलना
(B) ज्ञान के द्वार खुलना
(C) ज्ञान होना
(D) ज्ञान की नदी बहना
उत्तर-
(C) ज्ञान होना

प्रश्न 11.
गाड़ी के डिब्बे में कौन बैठा था?
(A) टिकट निरीक्षक
(B) जेबकतरा
(C) नवाबी नस्ल का व्यक्ति
(D) स्वयं लेखक
उत्तर-
(C) नवाबी नस्ल का व्यक्ति

प्रश्न 12.
लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या था?
(A) डिब्बा खाली नहीं था
(B) डिब्बा भरा हुआ था
(C) डिब्बा साफ नहीं था
(D) डिब्बा छोटा था
उत्तर-
(A) डिब्बा खाली नहीं था

प्रश्न 13.
नवाब साहब ने पलकें क्यों मूंद ली थीं?
(A) आनंदित होने के दिखावे के कारण
(B) अपने-आपको श्रेष्ठ दिखाने के लिए
(C) लेखक को हीन समझने के कारण
(D) अपनी संतुष्टि प्रकट करने के कारण
उत्तर-
(A) आनंदित होने के दिखावे के कारण।

प्रश्न 14.
नवाब साहब ने खीरे का स्वाद कैसे प्राप्त किया?
(A) खाकर
(B) सूंघकर
(C) देखकर
(D) दूसरों से सुनकर
उत्तर-
(B) सूंघकर

प्रश्न 15.
‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील’ यहाँ ‘सकील’ शब्द का अर्थ है-
(A) आसानी से न पचने वाला
(B) सुपाच्य
(C) रसीला
(D) कोमल
उत्तर-
(A) आसानी से न पचने वाला

प्रश्न 16.
‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली से फूंकार रही थी’-यहाँ ‘मुफस्सिल’ का अर्थ है-
(A) यात्रियों
(B) केन्द्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान
(C) वातानुकूलित
(D) लम्बी दूरी
उत्तर-
(B) केन्द्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान

प्रश्न 17.
यशपाल ने खीरे को क्या माना है?
(A) अपदार्थ वस्तु
(B) बहुमूल्य फल
(C) दुर्लभ फल
(D) अमर फल
उत्तर-
(A) अपदार्थ वस्तु

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प्रश्न 18.
लखनऊ के खीरे की विशेषता थी
(A) आलम
(B) लज़ीज़
(C) बालम
(D) देसी
उत्तर-
(B) लज़ीज़

प्रश्न 19.
नवाब साहब रेलगाड़ी में किस श्रेणी में सफर कर रहे थे?
(A) प्रथम श्रेणी
(B) वातानुकूलित
(C) तृतीय श्रेणी
(D) द्वितीय श्रेणी
उत्तर-
(D) द्वितीय श्रेणी

लखनवी अंदाज़ गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।
नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। हमने भी उनके सामने की बर्थ पर बैठकर आत्मसम्मान में आँखें चुरा ली।
[पृष्ठ 78]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक क्या सोचकर सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा था?
(ग) लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या था?
(घ) गाड़ी के डिब्बे में कौन और कैसे बैठा था?
(ङ) लेखक ने पहले से बैठे सज्जन के विषय में क्या कल्पना की?
(च) लेखक और पहले से बैठे सज्जन ने एक-दूसरे से कैसा व्यवहार किया?
(छ) ‘लखनऊ की नवाबी नस्ल के सफेदपोश सज्जन’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
(ज) पहले बैठे सज्जन के सामने क्या रखा हुआ था?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़। लेखक का नाम यशपाल।

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(ख) लेखक यह सोचकर सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा था कि यह डिब्बा बिल्कुल खाली होगा। उसमें कोई यात्री नहीं होगा। वह वहाँ बैठकर अपनी इच्छानुसार बाहर के दृश्य देख सकेगा और चिंतन-मनन कर सकेगा।

(ग) लेखक के अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा बिल्कुल खाली नहीं था. अथवा डिब्बे का वातावरण बिल्कुल निर्जन नहीं था क्योंकि उसमें पहले से ही एक नवाबी स्वभाव वाला व्यक्ति बैठा हुआ था। इसलिए लेखक के लिए वहाँ बैठकर नई कहानी के विषय में सोचना संभव न हो सका।

(घ) गाड़ी के डिब्बे की बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल का एक सफेदपोश सज्ज़न बड़ी सुविधा से पालथी मारकर बैठा हुआ था।

(ङ) लेखक जब गाड़ी में आया तो उसने वहाँ एक लखनवी नवाबी किस्म के व्यक्ति को अकेले बैठे देखा। उसे देखकर लेखक ने कल्पना की कि हो सकता है कि यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हो या फिर खीरे जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हो।

(च) लेखक और पहले से बैठे व्यक्ति ने एक-दूसरे के प्रति अनजान, बेगानेपन और अवांछितों जैसा व्यवहार किया। मानो दोनों एक-दूसरे को अपने रास्ते में बाधा समझ रहे हों। पहले नवाबी स्वभाव वाले व्यक्ति ने लेखक की ओर से मुँह फेरा तो फिर उसने भी आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु उसकी ओर से ध्यान हटा लिया। इस प्रकार दोनों का एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार नहीं रहा।

(छ) प्रस्तुत वाक्य के माध्यम को लेखक ने नवाबी स्वभाव वाले की विचित्रता को अभिव्यक्त किया है। वे स्वयं को बहुत ही नाजुक-मिज़ाज एवं सलीकेदार मनुष्य समझते हैं और दूसरों को हीन भाव से देखते हैं। उनकी ये विशेषताएँ कुछ अधिक बढ़ी-चढ़ी हुई होती हैं। वे अपने-आपको वास्तविकता से अधिक दिखाने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों की इस विचित्रता को दिखाने के लिए ‘नस्ल’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। मानो ये इंसान की नस्ल के न होकर अन्य किसी प्रजाति के लोग हों।

(ज) पहले बैठे हुए सज्जन के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे हुए थे।

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित पाठ ‘लखनवी अंदाज’ में से लिया गया है। इसके रचयिता श्री यशपाल हैं। इस पाठ में लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग के दिखावे की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। यह वर्ग दिखावटी शैली का आदी है तथा वास्तविकता से बेखबर रहता है।

आशय/व्याख्या-लेखक को पास के स्टेशन तक की यात्रा करनी थी। इसलिए वह टिकट खरीदकर सेंकड क्लास के एक छोटे से डिब्बे में दौड़कर चढ़ गया। लेखक का अनुमान था कि डिब्बा खाली होगा, किंतु ऐसा नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल का व्यक्ति बड़े आराम से बैठा हुआ था। उसने अपने सामने दो कच्चे खीरे तौलिए पर रखे हुए थे। लेखक के एकाएक डिब्बे में आ जाने से उस भद्रपुरुष की आँखों में एकांत चिंतन में बाधा का असंतोष स्पष्ट देखा जा सकता था। लेखक का अनुमान था कि शायद यह व्यक्ति भी कहानी लिखने की सूझ की चिंता में हो अथवा खीरे जैसी सस्ती वस्तु का शौक करते हुए देखे जाने के संकोच में हो। नवाब साहब ने लेखक की संगति करने की इच्छा व्यक्त नहीं की। लेखक ने भी आत्मसम्मान की रक्षा हेतु उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। कहने का भाव है कि दोनों ने एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया।

(2) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे।… अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ? । – [पृष्ठ 78]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक की पुरानी आदत क्या और क्यों है?
(ग) लेखक ने नवाब के बारे में क्या सोचा?
(घ) लेखक नवाबों के विषय में किस धारणा से ग्रस्त है?
(ङ) यद्यपि लेखक ने भी सेकंड क्लास में यात्रा की फिर भी उसने नवाबों के चरित्र में कमियाँ निकाली, ऐसा क्यों?
(च) नवाब साहब खीरे क्यों नहीं खा रहे थे?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़। लेखक का नाम यशपाल।

(ख) लेखक की पुरानी आदत थी कि जब वह अकेला होता तो तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगता था। लेखक होने के कारण वह कल्पना के आधार पर अपनी रचनाओं का निर्माण करता था। खाली समय में वह यही सोचता रहता था कि कौन-सी रचना लिखी जाए और उसका रूप-आकार कैसा होगा।

(ग) लेखक ने जब गाड़ी के डिब्बे में प्रवेश किया तो वहाँ नवाब साहब को देखकर सोचा होगा कि शायद ये इस डिब्बे में अकेले यात्रा करना चाहते होंगे। उन्होंने अंदाज़ा लगाया होगा कि सेकंड क्लास का डिब्बा खाली होगा। इसलिए उन्होंने किराया बचाने के लिए भी सेकंड क्लास का टिकट खरीदा होगा। किंतु अब वे नहीं चाहते कि कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में यात्रा करते हुए देखे। वे इसे अपनी तौहीन समझते होंगे।

(घ) लेखक के मन में नवाबों के विषय में धारणा बन चुकी थीं कि ये नवाब अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं और सदा अपनी आन-शान के विषय में बढ़ा-चढ़ाकर बातें करने में लगे रहते हैं। वे स्वयं को ऊँचे दर्जे के प्राणी मानते हैं और ऊँचे दर्जे में यात्रा करके अपने आप को ऊँचे सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं। यदि कभी सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करते देख लिए जाएँ तो अपनी तौहीन समझने लगते हैं। इसलिए ऐसे अवसर पर वे नज़रें चुराते फिरते हैं।

(ङ) निश्चय ही लेखक स्वयं सेकंड क्लास के दर्जे में यात्रा करता है और इसी दर्जे में नवाब को बैठे देखकर उसमें कमियाँ निकालता है। वह अपने विषय में कहता है कि उसने एकांत में बैठकर नई कहानी के विषय में चिंतन करने हेतु ही ऐसा किया। यद्यपि नवाब ने भी किसी ऐसे ही कारण से मँझोले दर्जे में यात्रा करने का निश्चय किया होगा। किंतु लेखक की धारणा बन चुकी है कि नवाब हमेशा ही अपनी शान बघारते रहते हैं। अतः लेखक पूर्व धारणा से ग्रस्त होने के कारण ऐसा कहता है।

(च) लेखक के अनुसार नवाब साहब ने अकेले में सफर करने के लिए, खीरे खाने के लिए खरीदे होंगे। किंतु अब खीरे इसलिए नहीं खा रहे होंगे कि कोई सफेदपोश व्यक्ति उन्हें खीरे जैसी सामान्य वस्तु खाते देख रहा है। इससे उनकी तौहीन होगी।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘लखनवी अंदाज़’ नामक पाठ से अवतरित है। इस पाठ के रचयिता श्री यशपाल हैं। इस पाठ में उन्होंने जहाँ एक ओर सामंती वर्ग के दिखावे की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है वहीं दूसरी ओर लेखकों की कल्पनाशीलता को भी उजागर किया है।

आशय/व्याख्या इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि लेखक कल्पनाशील एवं एकांतप्रिय होते हैं। वे आसपास के जीवन को गहराई से देखते हैं तथा मानव-मनोविज्ञान में भी रुचि रखते हैं। लेखक सामने बैठे नवाब साहब की असुविधा एवं संकोच के कारण का अनुमान लगाने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले में यात्रा करने के विचार से ही सेकंड क्लास की टिकट खरीदी हो क्योंकि आम लोग सेकंड क्लास में सफर नहीं करते। अब उन्हें यह बात भी अच्छी नहीं लगी होगी कि नगर का शिक्षित व्यक्ति उन्हें मध्य श्रेणी के दर्जे में सफर करते देखे। लेखक का अनुमान है कि उसने समय काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे, किंतु अब उन्हें किसी शिक्षित व्यक्ति के सामने खीरे खाने में संकोच हो रहा हो। कहने का भाव है कि नवाब साहब अपने-आपको अमीर व्यक्ति दिखाने का प्रयास कर रहे थे, जबकि वास्तव में वे थे नहीं। खीरा एक अति साधारण फल है। लेखक के सामने खीरा खाने से नवाब साहब की हेठी होती थी। इसलिए वह खीरे को कैसे खा सकता था।

(3) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सँघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का बूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए। [पृष्ठ 79-80]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों की ओर किस प्रकार देखा?
(ग) नवाब साहब ने खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ साँस क्यों लिया?
(घ) नवाब साहब ने अपनी पलकें क्यों मूंद लीं?
(ङ) नवाब साहब खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर क्यों फेंकने लगे?
(च) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों का स्वाद कैसे प्राप्त किया?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़। लेखक का नाम यशपाल।

(ख) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों की ओर सतृष्ण नज़रों से देखा मानो वह खीरा खाने के लिए बहुत ही उतावले हों।

(ग) नवाब साहब ने खिड़की से बाहर देखकर दीर्घ साँस इसलिए भरी थी क्योंकि वे चाहकर भी खीरा नहीं खा पा रहे थे। यही कारण था कि उन्हें खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकना पड़ा था। उनकी लंबी साँस ही उनकी खीरे को खाने की चाह को भी व्यक्त कर रही थी।

(घ) नवाब साहब खीरे के स्वाद के आनंद में डूबे हुए थे, उनकी खुशबू से आनंदित होकर उन्होंने अपनी आँखें मूंद ली थीं।

(ङ) नवाब साहब खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर यह दर्शाना चाहते थे कि वे अब भी वही पुराने नवाब हैं। उनके शौक शाही हैं। उनमें किसी प्रकार का अंतर नहीं आया है।

(च) नवाब साहब ने खीरे की कटी हुई फाँक को उठाया, अपनी ललचाई हुई दृष्टि से उन्हें अपने होंठों तक ले आए। इसके बाद फाँक को भली-भाँति सूंघा। उन्हें ऐसा करने से बहुत आनंद प्राप्त हुआ। सूंघने के पश्चात् उन्हें खिड़की के बाहर फेंक दिया।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं श्री यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य पाठ ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इस पाठ में लेखक ने सामंती वर्ग की दिखावा करने की आदत का व्यंग्यपूर्ण उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि नवाब साहब किस प्रकार अपनी नवाबी शान, खानदानी तहज़ीब, लखनवी अंदाज और नज़ाकत प्रकट करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने आम व्यक्ति की तरह खीरा नहीं खाया, अपितु उसे सूंघ कर ही पेट भर लिया।

आशय/व्याख्या-लेखक कहता है कि नवाब साहब ने बहुत ललचाई हुई आँखों से नमक-मिर्च लगी हुई खीरे की चमकती हुई फाँकों को देखा। उन्होंने खिड़की की ओर देखकर एक लंबी साँस ली। इस प्रकार खीरे को देखकर लंबी साँस भरना नवाब साहब की विवशता को दर्शाता है। उन्होंने फाँक को हाथ में उठाया और सूंघा। स्वाद के आनंद का दिखावा करने के लिए पलकें बंद कर ली, किंतु मुँह में भर आए पानी का यूंट उनके गले से उतर गया। कहने का भाव है कि भले ही नवाब साहब खीरा न खाने का ढोंग कर रहे थे, किंतु वास्तविकता तो यह थी कि खीरे को देखकर उसे खाने के लिए उनका मन ललचा रहा था। तब नवाब साहब ने खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस प्रकार नवाब साहब ने सभी फाँकों को नाक के पास ले जाकर केवल सूंघकर उसका रसास्वादन करके उन्हें खिड़की से बाहर फेंक दिया। कहने का भाव है कि नवाब साहब को फाँकों को इसलिए फैंकना पड़ा था क्योंकि वे चाहकर भी दूसरे व्यक्ति के सामने खीरे जैसी साधारण वस्तु नहीं खाना चाहते थे। उनके द्वारा ली गई लंबी साँस ही उनकी खीरा खाने की चाह को व्यक्त कर रही थी।

(4) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफासत और नज़ाकत!
हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है?
नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’ । [पृष्ठ 80]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) नवाब साहब क्यों थककर लेट गए थे?
(ग) नवाब साहब ने खीरा खाने की तैयारी कैसे की?
(घ) नवाब साहब की जीवन शैली देखकर लेखक ने क्या सोचा?
(ङ) लेखक को नवाब साहब की किस बात पर सिर खम करना पड़ा?
(च) नवाब साहब डकार लेकर क्या दिखाना चाहते थे?
(छ) नवाब साहब ने खीरा न खाने का क्या कारण बताया?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग बताकर उसके आशय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़।
लेखक का नाम-यशपाल।

(ख) नवाब साहब को खीरे खाने की तैयारी में खीरे को धोने, साफ करने, सिरे काटकर मलने, छीलने, फाँके काटने, नमकमिर्च छिड़कने आदि कार्य करने और चाहकर भी उन्हें खा नहीं पाने के कारण थक गए थे।

(ग) नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से पानी का लोटा निकालकर खीरों को खिड़की के बाहर धोया और तौलिए से साफ किया। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिरों को काटा
और उन्हें गोदकर झाग निकाला। खीरों को सावधानी से छीला और फिर उनकी एक-एक फाँक काटते गए और तौलिए पर सजाते गए। तत्पश्चात् उन पर नमक-मिर्च छिड़का। अब खीरे खाने हेतु तैयार थे।

(घ) नवाब साहब की जीवन-शैली देखकर लेखक ने मन-ही-मन सोचा कि केवल स्वाद और सुगंध की कल्पना से उनका पेट कैसे भरता होगा? जब खीरा सूंघकर फेंक दिया तो पेट की तीव्र भूख कैसे शांत होगी। ऐसा करने से भूख का शांत होना तो असंभव ही है।

(ङ) लेखक को नवाब साहब द्वारा खीरे के प्रयोग की विधि पर अपना सिर झुकाना पड़ा था। वे किस प्रकार अपनी खानदानी शिष्टता, स्वच्छता तथा कोमलता का दिखावा करते हुए खीरे का रसास्वादन मात्र सूंघकर करते हैं। केवल अपनी शान-बान बघारने के लिए वे ऐसा क्यों करते हैं? वे सहज जीवन में शर्म अनुभव क्यों करते हैं।

(च) नवाब साहब ने डकार लेकर यह बताना चाहा है कि उनका पेट सुगंध और कल्पना से ही भर गया है। साथ ही यह भी दिखाना चाहते हैं कि वे ऊँचे, श्रेष्ठ और सूक्ष्म स्वादप्रिय व्यक्ति हैं।

(छ) नवाब साहब ने खीरा न खाने का कारण बताते हुए कहा कि खीरा होता तो बहुत ही स्वादिष्ट है, किंतु वह आसानी से पचता नहीं। इससे मेदे पर बोझा पड़ता है। इसलिए वे खीरा नहीं खाते।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित पाठ ‘लखनवी अंदाज’ से उद्धृत है। इस पाठ के रचयिता श्री यशपाल हैं। इस गद्यांश में लेखक ने नवाबों के खीरा खाने की शैली अथवा केवल सूंघकर या कल्पना से पेट भरने के दिखावे पर कटाक्ष किया है। यहाँ लेखक ने नवाब द्वारा खीरा न खाने के बहाने को भी उजागर किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि नवाब साहब खीरे खाने की तैयारी और उसके प्रयोग से थककर लेट गए। लेखक को सम्मान में सिर झुकाना पड़ा कि यह है उनकी पारिवारिक शिष्टता, स्वच्छता और नाजुक मिज़ाजी अर्थात् कोमलता। कहने का भाव है कि नवाब साहब ने खीरा काटने व खाने में अपनी नवाबी शान-शौकतं को बड़ी सफाई से दिखाया। लेखक बताता है कि वह भली-भाँति देख रहा था कि खीरे को प्रयोग करने के इस ढंग को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, बढ़िया अथवा अमूर्त ढंग अवश्य कहा जा सकता है, किंतु क्या खीरा खाने के ऐसे ढंग से पेट की तृप्ति भी हो सकती है अर्थात् क्या खीरा सूंघने मात्र से पेट भर सकता है। लेखक को नवाब साहब द्वारा ली गई डकार का शब्द सुनाई दिया। इससे अनुमान लगाया जा सकता था कि वास्तव में ही नवाब साहब का पेट भर गया होगा। नवाब साहब ने डकार लेने के बाद लेखक की ओर देखकर कहा कि यह खीरा भी स्वादिष्ट होता है, किंतु होता बहुत भारी है। अभागा मेदे पर बोझ डाल देता है, अर्थात् जल्दी से हज़्म नहीं होता। कहने का भाव है कि नवाब साहब ने डकार मारने से यह सिद्ध करना चाहा है कि बड़े लोग साधारण तरीके से नहीं खाते। उनके अपने ही अंदाज होते हैं।

लखनवी अंदाज़ Summary in Hindi

लखनवी अंदाज़ लेखक-परिचय

प्रश्न-
यशपाल का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-यशपाल हिंदी के प्रमुख कहानीकारों में से एक हैं। इनका जन्म 3 दिसंबर, सन् 1903 को पंजाब के फीरोज़पुर छावनी में हुआ था। सन् 1921 में फीरोज़पुर जिले से मैट्रिक परीक्षा में प्रथम आकर उन्होंने अपनी कुशाग्र प्रतिभा का परिचय दिया। सन् 1921 में ही इन्होंने स्वदेशी आंदोलन में सहपाठी लाजपतराय के साथ जमकर भाग लिया। इन्हें सरकार की ओर से प्रथम आने पर छात्रवृत्ति भी मिली। परंतु न केवल इन्होंने उस छात्रवृत्ति को ठुकरा दिया, बल्कि सरकारी कॉलेज में नाम लिखवाना भी मंजूर नहीं किया। शीघ्र ही यशपाल काँग्रेस से उदासीन हो गए। इन्होंने पंजाब के राष्ट्रीय नेता लाला लाजपतराय द्वारा स्थापित लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला ले लिया। यहाँ से प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु के संपर्क में आए।

कॉलेज के विद्यार्थी जीवन में ही ये क्रांतिकारी बन गए। भगतसिंह द्वारा सार्जेंट सांडर्स को गोली मारना, दिल्ली असेम्बली पर बम फेंकना तथा लाहौर में बम फैक्टरी पकड़े जाना आदि इन सभी षड्यंत्रों में उनका भी हाथ था। बाद में समाजवादी प्रजातंत्र सेना के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद के इलाहाबाद में, अंग्रेजों की गोली का शिकार हो जाने पर ये इस सेना के कमांडर नियुक्त हुए। 23 फरवरी, 1932 को अंग्रेजों से लड़ते हुए ये गिरफ्तार हो गए। इन्हें चौदह वर्ष की सज़ा हो गई। जेल में ही इन्होंने विश्व की अनेक भाषाओं; जैसे फ्रेंच, इटालियन, बांग्ला आदि का अध्ययन किया। जेल में ही इन्होंने अपनी प्रारंभिक कहानियाँ लिखीं। सन 1936 में जेल में ही इनका विवाह प्रकाशवती कपूर से हुआ। इनकी तरह वे भी क्रांतिकारी दल की सदस्या थीं। उनका झुकाव मार्क्सवादी चिंतन की ओर अधिक हुआ। उनकी कहानी ‘मक्रील’ के द्वारा उन्हें बहुत यश मिला। उनकी यह कहानी ‘भ्रमर’ नामक पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी। उन्होंने हिंदी साहित्य की सेवा साहित्यकार और प्रकाशक दोनों रूपों में की। 26 दिसंबर, 1976 को उनकी मृत्यु हो गई।

2. प्रमुख रचनाएँ-यशपाल ने अनेक रचनाओं का निर्माण किया, उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं- ..

  • कहानी संग्रह-‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वो दुनिया’, ‘तर्क का तूफान’, ‘ज्ञानदान’, ‘अभिशप्त’, ‘फूलों का कुर्ता’, ‘धर्म-युद्ध’, ‘उत्तराधिकारी’, ‘चित्र का शीर्षक’, ‘तुमने क्यों कहा था कि मैं सुंदर हूँ’, ‘उत्तमी की माँ’, ‘ओ भैरवी’, ‘सच बोलने की भूल’, ‘खच्चर और आदमी’, ‘भूख के तीन दिन’, ‘लैंप शेड’ ।
  • उपन्यास ‘दादा कॉमरेड’, ‘देशद्रोही’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कॉमरेड’, ‘मनुष्य के रूप’, ‘अमिता’, ‘झूठा सच’, ‘बारह घंटे’, ‘अप्सरा का श्राप’, ‘क्यों फँसे’, ‘मेरी तेरी उसकी बात’।
  • व्यंग्य लेख-चक्कर क्लब’ ।
  • संस्मरण-‘सिंहावलोकन’।
  • विचारात्मक निबंध ‘मार्क्सवाद’, ‘न्याय का संघर्ष’, ‘गाँधीवाद की शव परीक्षा’, ‘बात-बात में बात’, ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी’, ‘रामराज्य की कथा’, ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’।

3. भाषा-शैली-भाषा के बारे में यशपाल जी का बड़ा ही उदार दृष्टिकोण रहा है। उन्होंने उर्दू, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों से कभी परहेज़ नहीं किया। ‘लखनवी अंदाज’ कहानी में जहाँ एक ओर संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है, वहाँ दूसरी ओर उर्दू एवं सामान्य बोलचाल के शब्दों का भी प्रयोग है। इस कहानी की भाषा स्थान, काल तथा चरित्र की प्रकृति के अनुसार गठित हुई है। इसका कारण यह है कि उन्हें न तो संस्कृत के शब्दों से अधिक प्रेम था और न ही अंग्रेज़ी, उर्दू शब्दों से परहेज़। वे भाषा को अभिव्यक्ति का साधन मानते थे। अतः उन्होंने इस कहानी में भाषा का सरल, सहज एवं स्वाभाविक रूप में प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ संवादात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया है।

कुल मिलाकर लेखक ने सीधी-सादी और सामान्य हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है। प्रस्तुत कहानी में उर्दू मिश्रित हिंदी का प्रयोग किया गया है।

लखनवी अंदाज़ कहानी का सार

प्रश्न-
लखनवी अंदाज़’ शीर्षक कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक कहानी एक व्यंग्य रचना है। इसमें लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग पर व्यंग्य किया है। जो. वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन-शैली का आदी है। आज के युग में भी समाज पर पलने वाली संस्कृति के लोगों को देखा जा सकता है। कहानी का सार इस प्रकार है-

लेखक को पास के स्टेशन तक ही यात्रा करनी थी। यद्यपि सेकंड क्लास में पैसे अधिक लगते थे। फिर भी सोचा कि नई कहानी के बारे में सोचने का और खिड़की से बाहर दृश्य देखने का अवसर भी मिल जाएगा। लेखक यही सोचकर सेकंड क्लास का टिकट लेकर रेल के डिब्बे में जा बैठा। वहाँ पहले से ही एक सज्जन बैठे थे। उनका पहनावा लखनवी नवाबों जैसा था। वे सीट पर पालथी मारकर बैठे हुए थे। उनके सामने तौलिए पर दो ताज़ा-चिकने खीरे रखे हुए थे। लेखक के आने से उन्हें कुछ विघ्न अनुभव हुआ, किंतु लेखक ने इसकी ओर विशेष ध्यान नहीं दिया।

लेखक नवाब के विषय में अनुमान लगाने लगा कि उसे लेखक का आना अच्छा क्यों नहीं लगा होगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे खाने के लिए पूछा। किंतु लेखक ने इंकार कर दिया। नवाब ने दो खीरों को धोया, तौलिए से साफ किया। खीरों को चाकू से सिरों से काटकर उनके झाग निकाले और बहुत सलीके के साथ छीलकर काटा और उन पर नमक-मिर्च छिड़का। नवाब साहब का मुख देखकर ऐसा लगता था कि खीरे की फाँकें देखकर उनके मुँह में पानी आ रहा है। खीरे की सजावट को देखकर लेखक की खीरे खाने की इच्छा हो रही थी, किंतु लेखक एक बार इंकार कर चुका था, इसलिए अब नवाब द्वारा पुनः पूछे जाने पर आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु इंकार करना पड़ा।

नवाब साहब भी खीरे की फाँकों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। उन्होंने खीरे की एक-एक फाँक उठाई, उन्हें सूंघा और खिड़की के बाहर फेंक दिया। बाद में नवाब ने लेखक की ओर देखा ऐसा लग रहा था जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का एक अनोखा ढंग है।

लेखक मन-ही-मन सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा? इतने में नवाब साहब जोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब बोले कि खीरा खाने में बहुत अच्छा लगता है, किंतु अपच होने के कारण मेदे पर भारी पड़ता है। लेखक ने सोचा कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है तो बिना घटना, पात्र और विचार के नई कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-78) मुफस्सिल = केंद्रीय स्थान। पैसेंजर ट्रेन = यात्री गाड़ी। उतावली = जल्दी में। फूंकार करना = तेज़ आवाज़ करना। दाम = कीमत। अनुमान = अंदाज़ा। प्रतिकूल = उल्टा। निर्जन = एकांत, खाली। बर्थ = रेल के डिब्बे में बैठने की सीट। सफेदपोश = भला व्यक्ति। नवाबी नस्ल = नवाबों के स्वभाव वाला। सुविधा = आराम। सहसा = अचानक। चिंतन = विचार करना। विघ्न = बाधा। असंतोष = संतोष न होना। अपदार्थ वस्तु = तुच्छ वस्तु। आँखें चुराना = नज़रें बचाना। असुविधा = जहाँ सुविधा न हो। किफायत = बचत। संगति = साथ। संकोच = शर्म। गवारा न होना = सहन न होना। वक्त काटना = समय व्यतीत करना। गौर करना = ध्यान देना। आदाब-अर्जु = स्वागत या अभिवादन की एक विधि। शौक फरमाना = आनंद लेना। भाँप लेना = जान लेना, समझ लेना। गुमान = भ्रम। हरकत = गति, कार्य। लथेड़ लेना = सम्मिलित करना। किबला = सम्मानपूर्ण संबोधन।

(पृष्ठ-79) गोदकर = चुभाकर। एहतियात = सावधानी। हाज़िर = उपस्थित। करीने से = अच्छे ढंग से। सुर्जी = लाली। बुरकना = छिड़कना। स्फुरण = हिलना। भाव-भंगिमा = चेहरे पर उभरे हुए भाव। रईस = अमीर। असलियत = वास्तविकता। प्लावित होना = भर आना। पनियाती = रस से युक्त। मुँह में पानी आना = ललचाना। महसूस होना = अनुभव होना। मेदा = पाचन शक्ति। सतृष्ण = प्यास। दीर्घ निश्वास = लंबी साँस । पलकें मूंदना = आँखें बंद करना।

(पृष्ठ-80) रसास्वादन = रस का स्वाद लेना। गर्व = अभिमान। गुलाबी आँखें = अभिमान से भरी नज़रें। तसलीम = सम्मान। सूक्ष्म = बारीक। नफीस = बढ़िया। एब्स्ट्रैक्ट = अमूर्त, जिसका स्थूल आकार न हो। नज़ाकत = कोमलता। उदर = पेट। नामुराद = अभागा। ज्ञान चक्षु = ज्ञान रूपी नेत्र। सकील = भारी।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

HBSE 10th Class Hindi संगतकार Textbook Questions and Answers

संगतकार कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है?
उत्तर-
संगतकार के माध्यम से कवि ऐसे लोगों की ओर संकेत करना चाह रहा है जिनका किसी कार्य के करने में योगदान तो पूरा रहता है किंतु उनका नाम कोई नहीं जानता। सारा श्रेय मुखिया को ही जाता है। कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि समाज में हर व्यक्ति का अपना-अपना महत्त्व है। जिस प्रकार कोई टीम केवल कैप्टन के प्रयास से नहीं जीतती, अपितु हर खिलाड़ी के प्रयास से जीतती है। अतः जीत का श्रेय हर खिलाड़ी को मिलना चाहिए।

संगतकार HBSE 10th Class प्रश्न 2.
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
उत्तर-
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा नाटक, फिल्म, विभिन्न खेलों की टीम, राजनीति आदि अनेक क्षेत्रों में दिखलाई पड़ते हैं। वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रमुख वैज्ञानिक के साथ अनेक दूसरे वैज्ञानिक भी काम करते हैं। किंतु किसी महत्त्वपूर्ण खोज का श्रेय मुख्य वैज्ञानिक को दिया जाता है। कहने का अभिप्राय है कि काम तो अनेक लोग करते हैं, किंतु सफलता का श्रेय मुख्य व्यक्ति को ही दिया जाता है।

Sangatkar Class 10 Vyakhya HBSE प्रश्न 3.
संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?
उत्तर-
संगतकार अनेक प्रकार से मुख्य गायक-गायिकाओं की सहायता करते हैं, जैसे वे अपनी आवाज़ और गूंज को मुख्य गायक की आवाज़ और गूंज से मिलाकर उसे बल प्रदान करते हैं। वे मुख्य गायक द्वारा कहीं गहरे में चले जाने पर या आवाज़ को लंबी खींचने पर उनकी स्थायी पंक्ति अर्थात् गीत की टेक को पकड़े रखते हैं और गीत को बेसुरा नहीं होने देते। वे मुख्य गायक को मूल स्वर पर लौटा लाने का काम भी करते हैं। जब मुख्य गायक की आवाज़ थककर बिखरने व टूटने लगती है तो उस समय भी संगतकार उसे शक्ति प्रदान करते हैं। उसे अकेला नहीं पड़ने देते।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

संगतकार कविता की व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर-
देखिए काव्यांश ‘3’ का अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न ‘ग’ भाग।

संगतकार प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 5.
किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
समाज में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाते हैं। हम किसी भी विद्यालय के प्रधानाध्यापक या मुख्याध्यापकों का उदाहरण ले सकते हैं। विद्यालय को विकास के पथ पर ले जाने की सफलता का श्रेय प्रधानाचार्य को मिलता है जबकि उसमें अध्यापकों एवं अन्य कर्मचारियों का सहयोग भी रहता है। अकेला प्रधानाचार्य कुछ नहीं कर सकता। इसी प्रकार संसार के बड़े-बड़े सफल लोगों के उदाहरण भी दिए जा सकते हैं, जैसे-बिल गेट्स, अंबानी, लक्ष्मी मित्तल को देख लीजिए। इसकी सफलता के पीछे मैनेजमैंट से जुड़े लोगों की पूरी टीम है। ये लोग दिन-रात परिश्रम करते हैं। अकेले व्यक्ति के प्रयास से इतनी सफलता नहीं मिलती। अतः स्पष्ट है कि किसी भी महान् व्यक्ति की सफलता में अनेक लोगों का योगदान रहता है। कहा भी गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

Sangatkar Vyakhya HBSE 10th Class प्रश्न 6.
कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
संगतकार की प्रमुख भूमिका यही है कि वह मुख्य गायक का पूरा सहयोग करता है। जब भी उसका स्वर टूटने लगता है तो संगतकार उनकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर उन्हें बल देता है, श्रोताओं को इसका पता ही नहीं चलता। यदि मुख्य गायक बिना संगतकार के गीत गा रहा है तो उसका स्वर बीच-बीच में बिखरता रहेगा। संगतकार ही उसके स्वर को बिखरने से बचाता है। यही संगतकार की विशिष्ट भूमिका है।

Sangatkar Prashn Uttar HBSE 10th Class प्रश्न 7.
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं? ‘
उत्तर-
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं, तब उसके सहयोगी उसे अपना पूर्ण योगदान या सहयोग देकर सँभालते हैं। उसे मानसिक तौर पर सहारा देने हेतु अपनी सहानुभूति भी देते हैं। उसके साथ रहते हुए बार-बार उसकी योग्यताओं का अहसास करवाते रहते हैं ताकि वह पहले से अधिक परिश्रम कर सके। . वे अपनी सारी शक्ति उसके लिए लगा देते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

संगतकार की व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुंच पाए
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
उत्तर-
(क) ऐसी स्थिति में आरंभ में तो थोड़ी चिंता होगी कि सहयोगी कलाकार के बिना काम करना कठिन होगा। किंतु समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना अति आवश्यक है तो मन में यह निश्चित करके अपना गीत व नृत्य अवश्य करूँगा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

(ख) ऐसी स्थिति को सँभालने के लिए सहयोगी कलाकारों से संपर्क करके उन्हें बुलाने का प्रयास करूंगा। उनसे संपर्क न होने की स्थिति में किसी नये संगतकार को बुलाने की कोशिश करूँगा। कुछ क्षणों के लिए नये सहयोगी कलाकारों के साथ अभ्यास करूँगा ताकि हमारी उनसे ताल-मेल ठीक बैठ जाए। यदि ऐसा न हो सका तो कार्यक्रम को स्थगित कर दूंगा तथा कार्यक्रम कि अन्य तिथि की घोषणा कर दूंगा।

Sangatkar Ke Prashn Uttar HBSE 10th Class प्रश्न 9.
आपके विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका पर एक अनुच्छेद लिखिए। .
उत्तर-
विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में जितना महत्त्व मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले का है, उतना ही महत्त्व मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों का भी है। मंच पर उद्घोषणा करने वाले सहयोगी के समान ही अन्य सहयोगी कलाकारों का भी महत्त्व है। जिस प्रकार अच्छी नींव पर मजबूत भवन खड़ा हो सकता है। वैसे ही अच्छे एवं कुशल सहयोगी कलाकारों के बल पर ही कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम सफल होता है। संगीत व नृत्य के कार्यक्रम तो मंच के पीछे के सहयोगी कलाकारों के बिना होना संभव ही नहीं है। संगतकार नृत्य एवं संगीत के कार्यक्रमों की जान होते हैं। वे कार्यक्रम को जीवंतता प्रदान करते हैं। प्रकाश की अनुकूल व्यवस्था मंच के पीछे काम करने वाले ही करते हैं। प्रकाश की व्यवस्था का नाटक की प्रस्तुति में तो अत्यधिक महत्त्व रहता है। इसी प्रकार मंच की साज-सज्जा का दर्शक के मन पर सर्वप्रथम प्रभाव पड़ता है। साज-सज्जा का प्रभाव सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति पर पड़ता है। इसलिए मंच साज-सज्जा करने वाले सहायकों का महत्त्व भी उल्लेखनीय है। ध्वनि व्यवस्था का भी अपना ही महत्त्व है। ध्वनि की उचित व्यवस्था के अभाव में कार्यक्रम संभव नहीं है। किसी नृत्य की प्रस्तुति में मंच के पीछे गायन या वाद्य ध्वनि प्रस्तुत करने वाले कलाकारों की भूमिका का अत्यधिक महत्त्व है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक समारोह की प्रस्तुति में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 10.
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर नहीं पहुँच पाते होंगे?
उत्तर-
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले प्रतिभावान लोग मुख्य कलाकार नहीं बन पाते। इसका मुख्य कारण है कि वे मुख्य गायक या कलाकार के सहायक के रूप में आते हैं। यदि वे आजीवन तबला, हारमोनियम आदि वाद्ययंत्र ही बजाते रहें तो मुख्य गायक या कलाकार नहीं बन सकते। यदि वे स्वतंत्र रूप से अपनी प्रतिभा दिखाएँ तो वे मुख्य कलाकार बन सकते हैं। भले ही वे अपना तबला या हारमोनियम के बजाने की कला का प्रदर्शन करें। हाँ, यदि दूसरों के सहायक बनकर काम करेंगे तो उन्हें मुख्य कलाकार बनने का अवसर नहीं मिलेगा।

यदि संगतकार प्रतिभावान है तो वह शीघ्र ही अपनी कला में इतनी प्रसिद्धि प्राप्त कर लेगा कि उसे मुख्य कलाकार के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। प्रायः देखने में आया है कि संगतकार द्वितीय श्रेणी की प्रतिभा वाले होते हैं। इसलिए वे सदा मुख्य कलाकार के सहायक के रूप में बने रहते हैं। इसमें संदेह नहीं कि संगतकार हमेशा ही मंच के पीछे रहते हैं, इसलिए वे प्रतिभा संपन्न होकर भी श्रेष्ठ स्थान प्राप्त नहीं कर सकते।

पाठेतर सक्रियता

आप फिल्में तो देखते ही होंगे। अपनी पसंद की किसी एक फिल्म के आधार पर लिखिए कि उस फिल्म की सफलता में अभिनय करने वाले कलाकारों के अतिरिक्त और किन-किन लोगों का योगदान रहा?
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध गायिका की गीत प्रस्तुति का आयोजन है।
(क) इस संबंध पर सूचना पट के लिए एक नोटिस तैयार कीजिए।
(ख) गायिका व उसके संगतकारों का परिचय देने के लिए आलेख (स्क्रिप्ट) तैयार कीजिए।
उत्तर-
(क) नोटिस
विद्यालय के सांस्कृतिक क्लब द्वारा एक गीतों भरी संध्या का आयोजन विद्यालय के सांस्कृतिक भवन में दिनांक 5.5.20….. को सायं पाँच बजे किया जा रहा है। देशभर में ही नहीं अपितु संसार भर में सुप्रसिद्ध गायिका मुनिश्वरी देवी और मनोज देव अपने-अपने मधुर स्वरों में गंगा बहाने आ रहे हैं। आप अपने माता-पिता के साथ इस आयोजन में सादर आमंत्रित हैं। आप समय पर पहुँचकर अपना-अपना स्थान ग्रहण करें।

रामपाल
अध्यक्ष
विद्यालय सांस्कृतिक क्लब

(ख) स्वरों की मल्लिका मुनिश्वरी देवी देशभर में अपनी मधुर आवाज़ के लिए प्रसिद्ध हैं। इनका नाम गीत-संगीत की दुनिया में बड़े आदर से लिया जाता है। इन्होंने अनेक फिल्मों के लिए गीत गाए हैं। बाल गीतों और भजनों के क्षेत्र में भी इन्होंने अपनी मधुर ध्वनि का सिक्का जमाया हुआ है। इनके साथ संगतकारों की पूरी टीम है। इस सभा में हारमोनियम पर पवन कुमार, तबला पर मुनीश, सारंगी पर उदय शर्मा, बाँसुरी पर अजीज तथा मृदंग पर गुरविन्द्र पाल साथ देंगे।

यह भी जानें

सरगम संगीत के लिए सात स्वर तय किए गए हैं। वे हैं-षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन्हीं नामों के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।
सप्तक-सप्तक का अर्थ है सात का समूह। सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा। लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। यदि साधारण ध्वनि है तो उसे ‘मध्य सप्तक’ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक’ कहेंगे तथा यदि ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं।

HBSE 10th Class Hindi संगतकार Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मुख्य गायक एवं संगतकार के संबंधों पर सार रूप में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मुख्य गायक और संगतकार का संबंध प्राचीनकाल से चला आ रहा है। मुख्य गायक और संगतकार का संबंध चोलीदामन का संबंध है। मुख्य गायक को संगतकारों के सहयोग के बिना प्रसिद्धि नहीं मिल सकती तथा मुख्य गायक के बिना संगतकारों की कला महत्त्वहीन ही रहती है। संगतकार मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर सदा से उसे बल प्रदान करता आया है। वह मुख्य कलाकार या गायक की आवाज़ के मुकाबले में अपनी आवाज़ को कमज़ोर व धीमा रखता आया है।

प्रश्न 2.
गायन के क्षेत्र में प्रयोग होने वाले ‘स्थायी’ एवं ‘अंतरा’ शब्दों का अर्थ समझाइए।
उत्तर-
स्थायी-गायन के क्षेत्र में ‘स्थायी’ का अर्थ गीत की मुख्य पंक्ति या टेक है जिसे बार-बार दोहराया जाता है।।
अंतरा-‘अंतरा’ गीत की टेक की पंक्ति के अतिरिक्त दूसरी पंक्तियों को कहते हैं। गीत में एक से अधिक चरण या अंतरे होते हैं। हर अंतरे के पश्चात् स्थायी अर्थात् टेक की पंक्तियाँ होती हैं।

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प्रश्न 3.
सरगम किसे कहते हैं?
उत्तर-
‘सरगम’ संगीत के क्षेत्र में सात स्वरों के समूह को सरगम कहते हैं। संगीत के सात स्वर हैं-षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम्, धैवत और निषाद। इन्हीं नामों के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।

प्रश्न 4.
सप्तक किसे कहते हैं? उसके कितने भेद होते हैं?
उत्तर-
संगीत के क्षेत्र में सप्तक का अत्यधिक महत्त्व है। सप्तक का अर्थ है-सात का समूह । सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा। लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। यदि साधारण ध्वनि से है तो उसे ‘मध्य सप्तक’ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक’ कहेंगे तथा ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
‘संगतकार’ कविता का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘संगतकार’ शीर्षक कविता में कवि का लक्ष्य मुख्य कलाकार के सहयोगी कलाकारों की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें सम्मान प्रदान करना है। ठीक इसी प्रकार समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भूमिका रूप में रहते हुए समाज के विकास में योगदान देने वाले लोगों को भी सम्मान देने की भावना को बढ़ावा देना है। संगतकार भले ही मुख्य कलाकार के सहायक हैं तथा उसके पीछे-पीछे चलते हैं। उसकी आवाज़ और गूंज में अपनी आवाज़ और गूंज मिलाकर उसे शक्ति व बल प्रदान करते हैं। उसे गीत के मुख्य स्वर से विचलित नहीं होने देते। उनके बिना मुख्य गायक सफल नहीं हो सकता। इसी प्रकार समाज में सामान्य लोगों के सहयोग के बिना शासक भी सफल नहीं हो सकता। अतः कविता का परम लक्ष्य संगतकारों के महत्त्व को उजागर करना है।

प्रश्न 6.
‘संगतकार’ शब्द यहाँ प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इस शब्द के माध्यम से लेखक ने क्या स्पष्ट किया?
उत्तर-
‘संगतकार’ मुख्य कलाकार के सहायक को कहा जाता है। वह अपनी शक्ति को मुख्य कलाकार का बल बना देता है। वह अपनी संपूर्ण शक्ति का प्रयोग मुख्य कलाकार को आगे बढ़ाने में करता है। वह स्वयं पीछे रहकर उसे आगे बढ़ाता है। इस प्रतीक के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि जीवन के हर क्षेत्र में सहायकों का कार्य महत्त्वपूर्ण होता है। वे कभी स्वयं ऊपर नहीं आ पाते। उनका समाज में उतना ही योगदान है जितना कि मुख्य कलाकारों का। यह सब कुछ जानते हुए भी वे अपने नेता को ही आगे बढ़ाते हैं। अतः उनके इस निःस्वार्थ भाव से किए गए त्याग को उजागर करना ही कविता का परम लक्ष्य है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री मंगलेश डबराल का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
श्री मंगलेश डबराल का जन्म सन् 1948 में हुआ था।

प्रश्न 2.
कवि ने अपने काव्य में किसका पक्ष लिया है?
उत्तर-
कवि ने अपने काव्य में उपेक्षितों का पक्ष लिया है।

प्रश्न 3.
अंतरा किसे कहते हैं?
उत्तर-
स्थायी टेक को छोड़कर गीत के शेष भाग को अंतरा कहते हैं।

प्रश्न 4.
‘संगतकार’ कविता में स्थायी किसे कहा गया है?
उत्तर-
‘संगतकार’ कविता में गीत की मुख्य टेक को स्थायी कहा गया है।

प्रश्न 5.
संगतकार मुख्य गायक को ढाँढस कब बँधाता है?
उत्तर-
जब उसका राग गिरने लगता है, तब संगतकार मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता है।

प्रश्न 6.
संगतकार की मुख्य भूमिका क्या होती है?
उत्तर-
मुख्य गायक के स्वर को शक्ति देना संगतकार की मुख्य भूमिका होती है।

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प्रश्न 7.
‘संगतकार’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
मुख्य गायक के सहायक गायक को संगतकार कहा है।

प्रश्न 8.
‘मनुष्यता’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘मनुष्यता’ का अर्थ है-भलाई की भावना।

प्रश्न 9.
कवि ने संगतकार की कौन-सी महानता की ओर संकेत किया है?
उत्तर-
कवि ने संगतकार की मुख्य गायक के स्वर को उठाने के लिए अपने स्वर को नीचे रखने वाली महानता की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 10.
‘संगतकार’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री मंगलेश डबराल।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्री मंगलेश डबराल किस प्रदेश के रहने वाले हैं?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) उत्तराखंड
(C) हरियाणा
(D) पंजाब
उत्तर-
(B) उत्तराखंड

प्रश्न 2.
संगतकार की आवाज कैसी कही गई है?
(A) भारी
(B) ऊँची
(C) अति मधुर
(D) कमजोर
उत्तर-
(A) भारी

प्रश्न 3.
मुख्य गायक का गला किसमें बैठता है?
(A) शीत में
(B) तारसप्तक में
(C) रोग में
(D) प्रीतिभोज में
उत्तर-
(B) तारसप्तक में

प्रश्न 4.
‘संगतकार’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) मंगलेश डबराल
(B) ऋतुराज
(C) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(D) जयशंकर प्रसाद
उत्तर-
(A) मंगलेश डबराल

प्रश्न 5.
संगतकार शब्द का प्रतीकार्थ है-
(A) सहयोगी
(B) संग चलने वाला
(C) भजन सुनने वाला
(D) उपदेश-श्रोता
उत्तर-
(A) सहयोगी

प्रश्न 6.
‘संगतकार’ कौन-सी रचना है-
(A) उपन्यास
(B) नाटक
(C) कविता
(D) निबन्ध
उत्तर-
(C) कविता

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प्रश्न 7.
किसकी आवाज़ को कमजोर एवं काँपती हुई बताया गया है?
(A) मुख्य गायक की
(B) संगतकार की
(C) श्रोता की
(D) गीत-लेखक की
उत्तर-
(B) संगतकार की

प्रश्न 8.
संगतकार का क्या काम है?
(A) मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाना
(B) मुख्य गायक की प्रशंसा करना।
(C) मुख्य गायक का गीत सुनना
(D) मुख्य गायक की कमियाँ निकालना
उत्तर-
(A) मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाना

प्रश्न 9.
प्रस्तुत कविता में स्थायी या टेक को छोड़कर गीत के चरण को क्या कहा है?
(A) तान
(B) तार सप्तक
(C) अंतरा
(D) सरगम
उत्तर-
(C) अंतरा

प्रश्न 10.
नौसिखिया किसे कहते हैं?
(A) जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो
(B) नौ बातें जानने वाला
(C) नई शिक्षा
(D) नया काम सिखाने वाला
उत्तर-
(A) जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो

प्रश्न 11.
‘मुख्य गायक की गरज में’ यहाँ गरज का अर्थ है
(A) गर्जन
(B) गड़गड़ाहट
(C) ऊँची गंभीर आवाज़
(D) ऊंची गंभीर आवाज़
उत्तर-
(D) ऊँची गंभीर आवाज़

प्रश्न 12.
‘स्थायी’ किसे कहा गया है?
(A) स्थान को
(B) स्थिर को
(C) गीत की मुख्य टेक को
(D) गीत के शेष भाग को
उत्तर-
(C) गीत की मुख्य टेक को

प्रश्न 13.
‘अनहद’ का कविता के संदर्भ में क्या अर्थ है?
(A) सीमाहीन
(B) असीम
(C) अनंत
(D) असीम मस्ती
उत्तर-
(D) असीम मस्ती

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प्रश्न 14.
‘तारसप्तक’ किसे कहा गया है?
(A) सरगम के ऊँचे स्वर को
(B) पक्के राग को
(C) मध्य स्वर में गाए गए राग को
(D) अति धीमे स्वर को
उत्तर-
(A) सरगम के ऊँचे स्वर को

प्रश्न 15.
किस कारण से मुख्य गायक की आवाज़ साथ नहीं देती?
(A) थक जाने के कारण
(B) स्वर ताल उखड़ने के कारण
(C) गला बैठ जाने के कारण
(D) सांस फूल जाने के कारण
उत्तर-
(C) गला बैठ जाने के कारण

प्रश्न 16.
मुख्य गायक को यह अहसास कौन दिलाता है कि वह अकेला नहीं है?
(A) श्रोतागण
(B) वाद्यतंत्र को बजाने वाले
(C) गीत लेखक
(D) संगतकार
उत्तर-
(D) संगतकार

प्रश्न 17.
मुख्य गायक का स्वर किसमें खो जाता है?
(A) मध्यम अंतरे की तान में
(B) अंतरे की जटिल तान में
(C) अंतरे की तान में
(D) अंतरे की सरल तान में
उत्तर-
(B) अंतरे की जटिल तान में

प्रश्न 18.
संगतकार के धीमे स्वर में क्या निहित रहती है?
(A) प्रेरणा
(B) मनुष्यता
(C) विफलता
(D) पीड़ा
उत्तर-
(B) मनुष्यता

प्रश्न 19.
मुख्य गायक के साथ स्वर साधने वाला है
(A) सितारवादक
(B) तबलावादक
(C) सह-गायिका
(D) संगतकार
उत्तर-
(D) संगतकार

प्रश्न 20.
‘सरगम’ का अर्थ है
(A) ज्ञान
(B) सरककर चलना
(C) स्वर-बोध
(D) सरोवर
उत्तर-
(C) स्वर-बोध

प्रश्न 21.
मुख्य गायक के भारी स्वर का उपमान क्या है?
(A) चट्टान
(B) समुद्र
(C) स्वर-बोध
(D) झील
उत्तर-
(A) चट्टान

संगतकार पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज़ में
वह अपनी गूंज मिलाता आया है प्राचीन काल से [पृष्ठ 54]

शब्दार्थ-संगतकार = मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या कोई वाद्य बजाने वाला। मुख्य गायक = प्रधान गायक। शिष्य = चेला। गरज़ = ऊँची गंभीर आवाज़। गूंज = स्वर। प्राचीन काल = पुराना समय।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) मुख्य गायक की आवाज़ का साथ कौन देती है?
(ङ) संगतकार का स्वर कैसा है?
(च) संगतकार का काम क्या है?
(छ) मुख्य गायक की आवाज़ की प्रमुख विशेषता क्या है?
(ज) इस काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(झ) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल। कविता का नाम-संगतकार।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘संगतकार’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। कवि ने इस कविता में मुख्य गायक के साथ गाने वाले संगतकार की भूमिका का वर्णन करते हुए उसके महत्त्व को प्रतिपादित किया है। संगतकार के बिना मुख्य गायक अधूरा-सा लगता है।

(ग) कवि का कथन है कि जब गायक मंडली का मुख्य गायक अपनी चट्टान जैसी भारी-भरकम आवाज़ में गाता था तो उसका संगतकार सदा उसका साथ देता था। संगतकार की आवाज़ बहुत सुंदर, कमज़ोर और काँपती हुई सी थी। वह संगतकार ऐसा लगता था मानो मुख्य गायक का छोटा भाई हो या उसका कोई शिष्य हो या फिर कोई दूर का संबंधी हो जो पैदल चलकर उसके पास संगीत सीखने आता है। कहने का भाव है कि संगतकार मुख्य गायक से छोटा एवं महत्त्वहीन-सा लगता था। ऐसा उसके व्यवहार से जान पड़ता था। यह संगतकार आज से नहीं प्राचीन काल से मुख्य गायक की गरज में अपना स्वर मिलाता आया है।

(घ) मुख्य गायक की भारी-भरकम आवाज़ का साथ संगतकार की आवाज़ देती है।

(ङ) संगतकार का स्वर सुंदर, कमज़ोर और काँपता हुआ था।

(च) संगतकार का काम है-मुख्य गायक की गरजदार आवाज में अपनी मधुर-सी गूंज मिलाना। इस प्रकार मुख्य गायक की आवाज को और अधिक बल देकर उसे ऊपर उठाना। .

(छ) मुख्य गायक की आवाज भारी-भरकम होती हुई भी कड़क और गरजदार है। उसमें चट्टान जैसा भारीपन है।

(ज) मुख्य गायक गाकर अपनी गायन कला का प्रदर्शन करता है। किंतु संगतकार उसकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाता ही नहीं, अपितु वह मुख्य गायक के स्वर और दिशा को भी संभालता है। उसे स्वरों से दूर भटकने से रोकता है। इस प्रकार कवि ने इस पद्यांश में संगतकार के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।

(झ)

  • कवि ने संगीतकार व गायक के साथ-साथ संगतकार के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
  • खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  • सामान्य बोलचाल के शब्दों का सार्थक एवं सटीक प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।
  • उपमा एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

(ञ) कविवर डबराल शब्दों को नए अर्थ देने के लिए माहिर हैं। भाषा सरल एवं सहज है। उनकी भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता पारदर्शिता है। सम्पूर्ण पद्यांश में प्रयुक्त भाषा प्रसादगुण सम्पन्न है।

[2] गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँधकर चला जाता
है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था। [पृष्ठ 54]

शब्दार्थ-अंतरा = स्थायी टेक को छोड़कर गीत का शेष चरण। जटिल तान = कठिन आलाप। सरगम = संगीत के सात स्वरों को उठाना। लाँघकर = पार करके। अनहद = असीम, बहुत दूर, बहुत ऊँचा। स्थायी = गीत की मुख्य टेक, लय। समेटना = इकट्ठा करना। नौसिखिया = जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘अंतरे की जटिल तानों के जंगल’ से क्या तात्पर्य है?
(ङ) ‘सरगम को लाँघने’ का अर्थ स्पष्ट करें।
(च) ‘अनहद’ का कविता के संदर्भ में क्या अर्थ है?
(छ) संगतकार मुख्य गायक को नौसिखिया की स्थिति कैसे याद दिलाता है?
(ज) स्थायी को संभालने का क्या अभिप्राय है?
(झ) इस पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल।
कविता का नाम-संगतकार।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक :क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘संगतकार’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। इसमें मुख्य गायक के साथ-साथ सम्मान से वंचित सहायकों की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। भले ही लोग उनका नाम तक लेते हों, किंतु सच्चाई यह है कि मुख्य गायक की सफलता इनके सहयोग पर ही निर्भर करती है।

(ग) कवि कहता है कि मुख्य गायक जब स्वर को लंबा खींचकर अंतरे की कठिन तानों के जंगल में खो जाता है अर्थात् मुख्य गायक जब गीत की मुख्य पंक्ति को गाने के पश्चात् गीत की अन्य पंक्तियों को गाने लगता है तो वह टेढ़े-मेढ़े स्वरों में उलझ जाता है और मुख्य स्वर से भटक जाता है। वह अपने निश्चित स्वरों की सीमा को लाँघकर गहरी संगीत-साधना में लीन हो जाता है, असीम-सी मस्ती में डूब जाता है। तब संगतकार ही गीत की मुख्य टेक के स्वर को अलापता रहता है तथा उसे सँभाले रखता है। इस प्रकार वह मुख्य गायक को मूल स्वर में लौटा लाता है। ऐसा लगता है कि मानो वह मुख्य गायक के पीछे छूटे हुए सामान को सँभालने में लगा हो। मानो वह मुख्य गायक को उसके बचपन की याद दिला रहा हो। जब वह नया-नया संगीत सीख रहा था तथा अकसर मूल स्वर को भूल जाता था, तब उसने संगीत में निपुणता प्राप्त नहीं की थी।

(घ) अंतरे की जटिल तानों के जंगल से तात्पर्य है कि गीत की मुख्य टेक के अतिरिक्त गीत के चरण की अन्य पंक्तियाँ, जिनके स्वर बहुत कठिन एवं अधिक होते हैं।

(ङ) सरगम को लाँघने का अर्थ है-गीत की मुख्य लय या स्वर की सीमा को भूलकर और अधिक कठिन आलापों में खो जाना और मुख्य स्वर से अधिक ऊँचा स्वर उठाना।

(च) ‘अनहद’ का शाब्दिक अर्थ है-असीम, सीमाहीन, अनंत। ‘अनहद’ का आध्यात्मिक अर्थ है-आध्यात्मिक मस्ती। कविता के संदर्भ में इसका अर्थ है- असीम मस्ती।

(छ) कभी-कभी मुख्य गायक गीत गाने में इतना डूब जाता है कि गीत के लय व स्वर को भूल जाता है अथवा जटिल तानों में खो जाता है। इससे गीत की मुख्य तान में आघात पहुँचता है। संगतकार उसे वापस मूल स्वर में लौटा लाता है। यही स्थिति किसी नए-नए गीत सीखने वाले की होती है, जो गीत गाते-गाते मुख्य स्वर को भूल जाता है, उस्ताद उसे फिर मुख्य स्वर में लाता है। संगतकार मुख्य गायक को गीत के स्वर में लौटा लाता है। ऐसी स्थिति बचपन में मुख्य गायक की होती थी। इस प्रकार संगतकार मुख्य गायक को उसके बचपन में ले जाता है।

(ज) स्थायी को संभालने का तात्पर्य है किसी गीत की मुख्य पंक्ति या टेक के मुख्य स्वर को गाते रहना। उसकी टेक को बिखरने न देना। उसकी गति, लय आदि को कम या अधिक न होने देना।

(झ) कवि ने मुख्य गायक के सहायक की भूमिका को अत्यंत मनोरम शब्दों में व्यक्त किया है। मुख्य गायक जब कोई गीत गाता है तो संगतकार उसमें केवल अपनी आवाज़ को ही नहीं मिलाता, अपितु गीत के स्वर को सँभालता भी है। वह उसे स्वरों से दूर भटकने से भी रोकता है तथा उसे सही दिशा में ले जाता है।

(ञ)

  • कवि ने संगतकार की भूमिका के महत्त्व को अत्यंत कलात्मकतापूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान की है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति के कारण कवि का कथन अत्यंत सरल एवं सहज बन पड़ा है।
  • भाषा में बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  • अतुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।
  • रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ट) प्रस्तुत पद्यांश में सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। कवि ने लययुक्त भाषा का सफल प्रयोग किया है। कविता का प्रमुख विषय गायक व संगतकार से सम्बन्धित है इसलिए विषय से सम्बन्धित शब्दों का सफल प्रयोग किया गया है। सजगता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता है।

[3] तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है।
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए। [पृष्ठ 54-55]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

शब्दार्थ-तारसप्तक = सरगम के ऊँचे स्वर। प्रेरणा = आगे बढ़ने की इच्छा-शक्ति। उत्साह अस्त होता हुआ = हौंसला कम होता हुआ। राख जैसा = बुझता हुआ, कम होता हुआ। ढाढ़स बंधाना = सांत्वना देना, तसल्ली देना। राग = ताल, लय-स्वर। हिचक = संकोच। विफलता = असफलता। मनुष्यता = मानवता, भलाई की भावना।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) तारसप्तक से क्या तात्पर्य है?
(ङ) किस कारण से गायक की आवाज़ साथ नहीं देती?
(च) मुख्य गायक को कौन धीरज बँधाता है और कैसे?
(छ) किसकी आवाज़ में हिचक सुनाई पड़ती है और क्यों?
(ज) संगतकार अपने स्वर को ऊँचा क्यों नहीं उठने देता?
(झ) कवि ने किसे मानवता माना है?
(ञ) इस पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल। कविता का नाम-संगतकार।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश श्री मंगलेश डबराल द्वारा रचित सुप्रसिद्ध कविता ‘संगतकार’ से उद्धृत है। इसमें कवि ने मुख्य गायक के साथ-साथ उसके सहायक के कार्य के महत्त्व को भी उजागर किया है। संगतकार मुख्य गायक के महत्त्व को बढ़ाने में अपनी योग्यता एवं शक्ति को लगा देता है। कवि ने उसकी इसी मनुष्यता को उजागर किया है।

(ग) कवि कहता है कि तारसप्तक को गाते हुए जब उतार-चढ़ाव के कारण मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, तो उसकी आवाज़ भी उसका साथ नहीं देती। गाते-गाते उसकी साँस भी उखड़ने लगती है। उसके मंद पड़ते उत्साह को संगतकार ही अपनी आवाज़ का सहारा देकर उसे उबारता है। वह उसे सांत्वना देता है और उसका धैर्य बँधाता है वह कहता है कि तुम अकेले नहीं हो अपितु में भी तुम्हारे साथ हूँ। जिस राग को वह गा रहा है, उसे कोई और भी फिर से गा सकता है अर्थात् संगतकार मुख्य गायक के गाए हुए राग को उसके पीछे-पीछे दोहराकर बता देना चाहता है कि कोई भी उसे गा सकता है। इससे मुख्य गायक का हौसला बढ़ता है।
कवि कहता है कि संगति करने वाले गायक की आवाज़ में एक संकोच स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है कि वह अपने स्वर को उस्ताद के स्वर से नीचे ही रखता है। इसको उसकी कमज़ोरी न समझकर उसकी मनुष्यता या मानवता ही समझना चाहिए।

(घ) ऊँचे स्वर में गाए गए सरगम को तार सप्तक कहते हैं।

(ङ) ऊँचे स्वर में गाते रहने के कारण मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, आवाज़ डूबने लगती है। गाने की इच्छा भी नहीं होती। इससे गायक की आवाज़ उसका साथ छोड़ देती है।

(च) मुख्य गायक को संगतकार धीरज बँधाता है। वह उसके पीछे-पीछे लगातार गाता रहता है। वह उसके डूबते स्वर को सँभाले रहता है।

(छ) मुख्य गायक संगतकार की आवाज़ में हिचक साफ सुनाई देती है क्योंकि वह जान-बूझकर मुख्य गायक की आवाज़ की भाँति खुलकर नहीं गाना चाहता ताकि मुख्य गायक का स्वर उभरकर आ सके।

(ज) संगतकार अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा इसलिए नहीं उठाता क्योंकि यह उसका धर्म है। वह मुख्य गायक के स्वर को ऊँचाई और शक्ति देने की भूमिका निभाता है। मुख्य गायक के स्वर से ऊँचे स्वर में गाना उसके लक्ष्य के विरुद्ध है।

(झ) कवि संगतकार द्वारा अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से कम रखना ही उसकी मनुष्यता मानता है। अपने-आपको पीछे या भूमिका में रखते हुए दूसरों के महत्त्व को बढ़ावा देना ही सच्ची मानवता है।

(ञ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने संगतकार के माध्यम से बताया है कि मुख्य गायक के सहायक गायक भी महानता में सम्मिलित हैं। वे मुख्य गायक को ऊँचा उठाने की कोशिश में अपने स्वर को और अपने-आपको कुछ नीचा रखते हैं। कवि के अनुसार उनका यह त्याग ही उनकी महानता का संकेत है।

(ट)

  • भाषा गद्यात्मक किंतु लययुक्त है।
  • भाषा सुगम, सरल एवं सुव्यवस्थित है।
  • उत्साह अस्त होना, राख जैसा कुछ गिरना आदि प्रतीकात्मक प्रयोग दृष्टव्य हैं।
  • अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  • छंद युक्त कविता है।

(ठ) कविवर डबराल ने प्रस्तुत काव्यांश में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। कवि ने मुख्य गायक व संगतकार के अन्तः सम्बन्धों को व्यक्त करने हेतु विषयानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। भाषा पारदर्शी और व्यावहारिक है। प्रवाहमयता एवं लयबद्धता भाषा प्रयोग की मुख्य विशेषता है।

संगतकार Summary in Hindi

संगतकार कवि-परिचय

प्रश्न-
मंगलेश डबराल का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-मंगलेश डबराल आधुनिक हिंदी कवि एवं पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) के काफलपानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई थी। दिल्ली आकर ये पत्रकारिता से जुड़ गए थे। श्री डबराल जी ने हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास आदि पत्र-पत्रिकाओं में काम किया। तत्पश्चात् ये भारत भवन, भोपाल से प्रकाशित होने वाले पत्र पूर्वग्रह में सहायक संपादक के पद पर नियुक्त हुए। इन्होंने इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित होने वाले अमृत प्रभात में भी काम किया। सन् 1983 में जनसत्ता में साहित्यिक संपादक के पद को सँभाला था। श्री डबराल ने कुछ समय के लिए सहारा समय का भी संपादन किया है। आजकल डबराल जी नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़कर ‘काम कर रहे हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

2. प्रमुख रचनाएँ-अब तक डबराल जी के चार काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’ । इनकी रचनाओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, पोल्स्की, बल्गारी आदि भाषाओं में भी अनुवाद हो चुके हैं। काव्य के अतिरिक्त साहित्य सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति से संबंधित विषयों पर भी इनकी गद्य रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के कारण इन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। श्री डबराल कवि के रूप में ही अधिक प्रतिष्ठित हुए हैं तथा अच्छे अनुवादक के रूप में भी इन्होंने नाम कमाया है।

3. काव्यगत विशेषताएँ-श्री मंगलेश डबराल के काव्य में सामंती बोध एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का विरोध किया गया है। वे यह विरोध अथवा प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, अपितु प्रतिपक्ष में सुंदर सपना रचकर करते हैं। वे वंचितों का पक्ष लेकर काव्य रचना करते हैं। इनकी कविताओं में अनुभूति एवं रागात्मकता विद्यमान है। श्री डबराल जहाँ पुरानी परंपराओं का विरोध करते हैं, वहाँ नए जीवन-मूल्यों का पक्षधर बनकर सामने आते हैं। इनका सौंदर्य बोध अत्यंत सूक्ष्म है। सजग भाषा की सृष्टि इनकी कविताओं के कलापक्ष की प्रमुख विशेषता है।।

4. भाषा-शैली-इन्होंने शब्दों का प्रयोग नए अर्थों में किया है। छंद विधान को भी इन्होंने परंपरागत रूप में स्वीकार नहीं किया, किंतु कविता में लय के बंधन का निर्वाह सफलतापूर्वक किया है। इन्होंने काव्य में नई-नई कल्पनाओं का सृजन किया है। बिंब-विधान भी नवीनता लिए हुए हैं। नए-नए प्रतीकों के प्रति इनका मोह छुपा हुआ नहीं है। भाषा पारदर्शी और सुंदर है।

संगतकार कविता का सार

प्रश्न-
‘संगतकार’ शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘संगतकार’ कविता में कवि ने मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका पर प्रकाश डाला है। कवि ने बताया है कि दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियाँ; यथा-नाटक, फिल्म, संगीत नृत्य के बारे में तो यह बिल्कुल सही है। किंतु समाज और इतिहास में भी हम ऐसे अनेक उदाहरण देख सकते हैं। नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रस्तुत कविता में कवि ने यही संदेश दिया है कि हर व्यक्ति की अपनी-अपनी भूमिका होती है, अपना-अपना महत्त्व होता है। उनका सामने न आना उनकी कमज़ोरी नहीं, अपितु मानवीयता है। युगों से संगतकार अपनी आवाज़ को मुख्य गायक से मिलाते आए हैं। जब मुख्य गायक अंतरे की जटिल तान में खो जाता है या अपने सरगम को लाँघ जाता है, तब संगतकार ही स्थायी पंक्ति को संभालकर आगे बढ़ाता है। ऐसा करके वह मुख्य गायक के गिरते हुए स्वर को ढाँढस बँधाता है। कभी-कभी उसे यह भी अहसास दिलाता है कि वह अकेला नहीं है, उसका साथ देने वाला है। जो राग पहले गाया जा चुका है, उसे फिर से गाया जा सकता है। वह सक्षम होते हुए भी मुख्य गायक के समान अपने स्वर को ऊँचा उठाने का प्रयास नहीं करता। इसे उसकी असफलता नहीं समझनी चाहिए। यह उसकी मानवीयता है, वह ऐसा करके मुख्य गायक के प्रति अपना सम्मान प्रकट करता है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

HBSE 10th Class Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Questions and Answers

यह दंतुरित मुसकान कविता की व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 1.
‘बच्चे की दंतुरित मुसकान’ का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [H.B.S.E. 2018, 2019 (Set-A)]
उत्तर-
बच्चे की दंतरित मुसकान को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है। उसके निराश और उदास मन में पुनः स्फूर्ति आ जाती है। उसे ऐसा लगता है मानों उसकी झोपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों। मानों उसके मन में स्नेह की धारा प्रवाहित हो गई हो या फिर बबूल व बाँस के वृक्ष से मानों शेफालिका के फूल झड़ने लगे हों। कहने का भाव है कि कवि का मन बच्चे की दंतुरित मुसकान से अत्यधिक प्रभावित हुआ था।

यह दंतुरित मुसकान कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर-
बच्चे की मुसकान निश्छल एवं स्वाभाविक होती है। उसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता, किंतु बड़े व्यक्ति की मुसकान में छल-कपट व दिखावा हो सकता है। उसे न चाहते हुए भी मुसकाना पड़ता है। बड़ों की मुसकान उनके मन की स्वाभाविक गति न होकर लोक व्यवहार का अंग भी हो सकती है।

यह दंतुरित मुस्कान के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर-
कवि ने बच्चे की मुसकान को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है(क) बच्चे की मुसकान से मृतक भी प्राणवान् हो जाता है। (ख) बच्चे की मुसकान ऐसी लगती है मानों झोंपड़ी में कमल का फूल खिल गया हो। (ग) बच्चे की मुसकान से मानों चट्टानों ने पिघलकर जलधारा का रूप धारण कर लिया हो। (घ) मानों बाँस व बबूल के वृक्षों से शेफालिका के फूल झड़ने लगे हों।

Ch 6 Hindi Class 10 Kshitij Explanation HBSE प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
उत्तर-
(क) कवि को ऐसा लगा कि उस छोटे बच्चे की मुसकान तो ईश्वरीय वरदान के समान थी। वह धूल-धूसरित अंग-प्रत्यंगों वाला तो जैसे तालाब में खिले कमल के समान मोहक और मनोरम था जो उसकी झोंपड़ी में आकर बस गया था।
(ख) नन्हें बालक का रूप ऐसा मनोरम था कि चाहे कोई कितना भी निर्मम क्यों न हो, उसे देख मन-ही-मन प्रसन्नता से भर . उठता था। चाहे बाँस के समान हो या बबूल के समान, पर उसकी सुंदरता से प्रभावित हो वह उसकी ओर देख मुसकराने के लिए विवश हो जाता था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

रचना और अभिव्यक्ति

Yaha Danturit Muskan Question Answer HBSE 10th Class प्रश्न 5.
मुसकान और क्रोध दो भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर-
मुसकान और क्रोध दोनों ही मानव मन में उत्पन्न होने वाले भाव हैं। मुसकान एक सुखद भाव है, जबकि क्रोध एक मनोविकार है जिसका उत्पन्न होना अधिकतर हानिकारक होता है। मुसकान सुखद है। इससे हँसी-खुशी का वातावरण बनता है। आपस में प्रेम भाव का संचार होता है। समाज में मेल-जोल बढ़ता है। इसके विपरीत क्रोध उन सबको कष्ट पहुंचाता है जो क्रोध करने वाले व्यक्ति के समीप होते हैं। क्रोध में लिए गए, निर्णय का परिणाम कभी लाभदायक नहीं होता। मुसकान से हर व्यक्ति के हृदय को जीता जा सकता है, किंतु क्रोध से सदा शत्रुता बढ़ती है।

Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6 Vyakhya HBSE प्रश्न 6.
दंतरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
इस कविता को पढ़कर अनुमान लगाया जा सकता है कि बच्चे की आयु 7 और 9 मास के बीच रही होगी, क्योंकि इसी आयु में ही बच्चों के दूध के दाँत निकलने आरंभ होते हैं। इसी आयु में बच्चा अपने माता-पिता को भी पहचानने लगता है।

यह दंतुरित मुसकान कविता का सारांश HBSE 10th Class प्रश्न 7.
बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
कवि कई मास के पश्चात् घर लौटने पर बच्चे से मिला। बच्चा उन्हें देखकर मुसकाने लगता है। बच्चे की नए-नए दाँतों वाली मुसकान को देखकर कवि का मन प्रसन्नता से खिल उठा। नन्हें बच्चे की भोली-सी मुसकान को देखकर उसके निराश जीवन में मानो प्राण आ गए। कवि को लगा कि कमल का सुंदर फूल उनकी झोंपड़ी में उग आया हो। उसके बूढ़े व नीरस शरीर को ऐसा प्रतीत हुआ मानो बबूल के पेड़ पर शेफालिका के फूल खिल गए हों। आरंभ में बालक कवि को अजनबी की भाँति देखता रहा किंतु बच्चे की माँ ने दोनों के बीच माध्यम बनकर दोनों का परिचय कराया। बच्चा कवि को तिरछी नज़रों से देखकर मुँह फेरने लगा। किंतु माँ के द्वारा परिचय करवाने पर दोनों में स्नेह बढ़ने लगा। बच्चा मुस्करा पड़ा और उसके नए-नए उगे हुए दो दाँत दिखाई देने लगे। .

पाठेतर सक्रियता

आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव . को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

एन०सी०ई०आर०टी० द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फिल्म देखिए।
उत्तर-
विद्यार्थी विद्यालय की ओर से फिल्म मँगवाकर देख सकते हैं।

फसल

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर-
कवि के अनुसार, फसल मनुष्य और प्रकृति के सम्मिलित प्रयासों का परिणाम है। फसल अनेक नदियों के जल का जादू, करोड़ों लोगों के हाथों के स्पर्श अथवा परिश्रम की गरिमा तथा भूरी, काली व संदली मिट्टी का गुण धर्म है। फसल सूर्य की किरणों का रूपांतरण भी है, जिसे हवा नचाती व लहराती है।

प्रश्न 2.
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्त्वों की बात कही गई है वे आवश्यक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
कवि के अनुसार फसल के लिए आवश्यक तत्त्व हैं-मिट्टी, खाद, पानी, सूर्य की किरणें और हवा।

प्रश्न 3.
फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर-
कवि बताना चाहता है कि फसल पैदा करने के लिए घर के सभी व्यक्तियों को परिश्रम करना पड़ता है। किसान का पूरा परिवार फसल को पैदा करने में जुटा रहता है। फसल से अनेक लोगों का पेट पलता है। यह एक नहीं अनेक हाथों की महिमा है। अतः स्पष्ट है कि कवि ने किसान के परिश्रम के. महत्त्व को प्रतिपादित करने का सफल प्रयास किया है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर-कवि ने स्पष्ट किया है कि ये फसलें और कुछ नहीं सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। फसलों की हरियाली सूरज की किरणों के प्रभाव के कारण आती है तथा सूर्य की गर्मी से ही फसलें पकती हैं। फसलों को बढ़ाने में हवा की थिरकन का भी भरपूर योगदान है। मानों हवा सिमट-सिकुड़कर फसलों में समा जाती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है।
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर-
(क) मिट्टी के गुण-धर्म से तात्पर्य उसकी उपजाऊ शक्ति से है जो उसमें मिले विभिन्न तत्त्वों के कारण होती है। उन तत्त्वों के कारण ही मिट्टी विभिन्न रंगों को प्राप्त करती है। मिट्टी के तत्त्व ही फसल को उगाने व विकसित करने में सहायक होते हैं।
(ख) वर्तमान जीवन-शैली मिट्टी को प्रदूषित कर रही है। उसके सहज-स्वाभाविक गुणों को नष्ट कर रहे हैं। आज रासायनिक पदार्थों के अधिक प्रयोग से मिट्टी के स्वाभाविक गुणों में परिवर्तन आ रहा है। तरह-तरह के कीटनाशक व खरपतवार नाशक मिट्टी को हानि पहुंचाते हैं। इनके प्रयोग से भले ही हमें फसल अधिक मिलती हो किंतु इनके दूरगामी परिणाम बहुत ही हानिकारक हैं।
(ग) यदि मिट्टी अपना मूल गुण-धर्म और स्वभाव छोड़ देगी तो जीवन का स्वरूप विकृत हो जाएगा अर्थात् मिट्टी में फसल नहीं उग सकेगी। शायद जीवन तो नष्ट न हो किंतु वह विद्रूप अवश्य हो जाएगा।
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हम बहुत कुछ कर सकते हैं। सबसे पहली बात हम सचेत हों। हम मिट्टी के . . गुण-धर्म को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में जानें। इससे हम स्वयमेव जागरूक हो जाएँगे। हम स्वयं जागकर अन्य लोगों को जगाने का कार्य भी कर सकते हैं तथा मिट्टी को पहुँचने वाली हानि को रोक सकते हैं।

पाठेतर सक्रियता

इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के माध्यमों द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर-
सेवा में,
संपादक महोदय,
दैनिक ट्रिब्यून,
चंडीगढ़।

विषय : सुदृढ़ कृषि व्यवस्था हेतु कुछ सुझाव।
आदरणीय महोदय,

मैं आपके सुप्रसिद्ध समाचार-पत्र के माध्यम से सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था पर कुछ सुझाव कृषकों तक पहुँचाना चाहता हूँ जो किसान व उनके खेतों के लिए निश्चित रूप से लाभदायक सिद्ध होंगे। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। कृषि व किसानों के हित में सोचना हम सबका नैतिक कर्त्तव्य है।

कृषि व्यवस्था को समुचित बनाने हेतु हमें कृषि करने योग्य भूमि पर समय पर फसल की बिजाई कर देनी चाहिए। कृषि करने के परंपरागत तरीकों के स्थान पर नई-नई कृषि पद्धतियों व विधियों को निःसंकोच अपनाना चाहिए। फसल की बिजाई करने से पहले हमें अपने खेत की मिट्टी की जाँच अवश्य करवा लेनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि उसमें कौन-सी फसल उगानी चाहिए जिससे अच्छी-से-अच्छी फसल हो सके। यदि हमारे खेत की मिट्टी में किसी तत्त्व की कमी हो तो हमें उसे दूर कर लेना चाहिए। हमें श्रेष्ठ श्रेणी के बीजों का प्रयोग करना चाहिए। उन्नत किस्म के बीजों को हमें सरकारी एजेंसी से ही प्राप्त करना चाहिए। हमें फसलों को बदल-बदलकर बोना चाहिए। एक ही प्रकार की फसल बोने से जमीन की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। खरपतवार नाश करने वाली और कीटनाशकों का प्रयोग एक निश्चित सीमा तक रहकर करना चाहिए। सारा खेत समतल होना चाहिए और उसकी सिंचाई भी एक बार में ही करनी चाहिए। गोबर की खाद का प्रयोग भी बीच-बीच में करते रहना चाहिए। इससे पृथ्वी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और फसल भी अच्छी होती है।
आशा है कि आप अपने सुप्रसिद्ध समाचार-पत्र में इन सुझावों को प्रकाशित करके मुझे अनुगृहीत करेंगे।

भवदीय
अविनाश कुमार

फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्व क्यों नहीं दिया जाता है? इसके बारे में . कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी अपने अध्यापक व अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

HBSE 10th Class Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में शिशु के भोलेपन एवं सौंदर्य को व्यक्त किया गया है-सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
‘यह दंतुरित मुसकान’ नामक कविता में कवि ने शिशु के भोलेपन का वर्णन किया है। शिश कवि को अपरिचित की भाँति देखता है। उसे पहचानने के प्रयास से उसकी ओर निरंतर देखता रहता है। इसी प्रकार शिशु की मनमोहक छवि को देखकर कवि भी प्रभावित हुए बिना न रह सका। बालक के नए-नए उगे हुए दो दाँतों को देखकर कवि उनकी प्रशंसा किए बिना न रह सका। नन्हा शिशु जब हँसता है तो उसके नए-नए दो दाँत अत्यंत सुंदर लगते हैं। उसकी हँसी की सुंदरता में ऐसा प्रभाव है कि उन्हें देखकर पत्थर दिल व्यक्ति भी पिघल जाता है। इस प्रकार कवि ने नन्हें बच्चे के भोलेपन एवं सौंदर्य का उल्लेख किया गया है।

प्रश्न 2.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में बाँस और बबूल किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर-
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने नन्हें बालक की हँसी के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि उसकी हँसी का प्रभाव ऐसा है कि जिसे देखकर बाँस और बबूल के वृक्षों से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। यहाँ बाँस और बबूल का प्रयोग बुरे व्यक्तियों के लिए किया गया है। कहने का तात्पर्य है कि समाज के बुरे-से-बुरे लोग भी नन्हें बच्चे की हँसी को देखकर हँसने लगते हैं। उनके मन में भी बच्चे के प्रति अच्छी भावना जागृत हो जाती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 3.
शिशु किसी अनजान व्यक्ति को एकटक क्यों देखने लगता है?
उत्तर-
जब शिशु किसी अनजान व्यक्ति से मिलता है तो उसे पहचानने का प्रयास करता है। इसीलिए वह उसकी ओर एकटक देखता रहता है। मानों वह उसके मन के भावों को पढ़ने का प्रयास करता है। कभी-कभी ऐसा भी अनुभव होता है कि वह अजनबी व्यक्ति को देखते-देखते थक-सा गया है।

प्रश्न 4.
‘फसल’ नामक कविता में कवि ने फसल उगाने के संबंध में मिट्टी की किस विशेषता का उल्लेख किया है?
उत्तर-
‘फसल’ नामक कविता में कवि ने मिट्टी या धरती के उन गुणों का उल्लेख किया है जिसके कारण वह फसल उगाने में सहायक होती है। कवि के अनुसार मिट्टी ‘भूरी’, ‘काली’, ‘संदली’ आदि कई प्रकार की होती है। विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। मिट्टी में मिले तत्त्वों के कारण ही मिट्टी के गुण अलग-अलग होते हैं। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति के कारण ही फसलें उगाई जाती हैं। यदि मिट्टी में यह शक्ति न होती तो फसलों के उगने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थीं।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
‘यह दंतुरित मुसकान’ क्या-क्या कर सकती है?
उत्तर-
कवि के अनुसार ‘दंतुरित मुसकान’ में बहुत कुछ करने की क्षमता है। दंतुरित मुसकान कठोर-से-कठोर हृदय वाले व्यक्ति के मन में कोमलता का संचार कर सकती है। ‘दंतुरित मुसकान’ निराश एवं उदास लोगों के हृदयों में प्रसन्नता एवं खुशी के भाव उत्पन्न कर सकती है। जो व्यक्ति इस संसार से विमुख हो चुका है जब वह नन्हें शिशु की निश्छल हँसी को देखेगा तो वह मुसकराए बिना नहीं रह सकेगा। दंतुरित मुसकान का प्रभाव इतना अधिक है कि वह मृतक में भी प्राण फूंक सकती है। कहने का तात्पर्य है कि ‘दंतुरित मुसकान’ अत्यधिक प्रभावशाली है। ..

प्रश्न 6.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि का उद्देश्य छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान के प्रभाव का चित्रण करना है। छोटे बच्चे के मुख में उगे हुए नए-नए दाँतों वाली हँसी को देखकर कवि के मन में जो भाव उमड़ते हैं, उन्हें कवि ने विभिन्न बिंबों की योजना के द्वारा व्यक्त किया है जो कविता का प्रमुख लक्ष्य है। कवि का यह मानना है कि बच्चे की इस निश्छल हँसी में जीवन का संदेश छिपा हुआ है। इस दंतुरित मुसकान की सुंदरता का प्रभाव ऐसा है कि उसे देखकर कठोर-से-कठोर हृदय भी पिघल जाता है। दंतुरित मुसकान की सुंदरता को उस समय चार चाँद लग जाते हैं जब उसके साथ बच्चे की नज़रों का बाँकपन भी जुड़ जाता है। अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत कविता का लक्ष्य नन्हें बच्चे की निश्छल एवं मनमोहक हँसी के प्रभाव का उल्लेख करना है।

प्रश्न 7.
कवि ने ‘फसल’ के द्वारा किन-किन में आपसी सहयोग का भाव अभिव्यक्त किया है? .
उत्तर-
कवि ने ‘फसल’ कविता के माध्यम से फसल के उगाने में मनुष्य के शारीरिक बल और परिश्रम तथा प्रकृति में निहित अथाह ऊर्जा के पारस्परिक सहयोग के भाव को अभिव्यक्त किया है। कवि के अनुसार जब मनुष्य का परिश्रम और प्रकृति का सहयोग आपस में मिल जाते हैं तो फसलें उत्पन्न होती हैं। अकेली मानवीय परिश्रम की शक्ति या अकेली प्राकृतिक शक्ति कुछ नहीं कर सकती। इनके सहयोग में ही महान शक्ति छिपी हुई है। इसी सहयोग की शक्ति को प्रस्तुत कविता में अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास किया गया है।

प्रश्न 8.
‘फसल’ शीर्षक कविता के प्रतिपाय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता का प्रमुख प्रतिपाद्य किसानों के परिश्रम के साथ-साथ प्राकृतिक तत्त्वों के प्रभाव का सम्मान करना है। कवि ने स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिन फसलों से उत्पन्न अन्न को हम खाते हैं उसके लिए किसी एक व्यक्ति, नदी या प्राकृतिक तत्त्व को श्रेय नहीं दिया जा सकता, अपितु सभी नदियों के जल, सब खेतों की विविध प्रकार की मिट्टियों के गुणों, सूर्य की गर्मी, वायु और किसानों के श्रम के सामूहिक सहयोग से ही फसलें उगाई जाती हैं। अतः इन सब पर सबका सहज अधिकार होना चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री नागार्जुन का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
श्री नागार्जुन का जन्म सन् 1911 में हुआ था।

प्रश्न 2.
‘पाषाण पिघलने’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
पाषाण पिघलने’ से तात्पर्य है कठोर हृदय में दया उत्पन्न होना।

प्रश्न 3.
‘फसल’, कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
‘फसल’, कविता के रचयिता नागार्जुन हैं।

प्रश्न 4.
‘दंतरित मुसकान’ कविता में कवि के ध्यानाकर्षण का केन्द्र कौन है?
उत्तर-
दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि के ध्यानाकर्षण का केन्द्र उसका नन्हा बालक है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 5.
किसके कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा बताई गई है?
उत्तर-
किसान के कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा बताई गई है।

प्रश्न 6.
कवि ने किसे हाथों के स्पर्श की महिमा कहा है?
उत्तर-
कवि ने फसल को हाथों के स्पर्श की महिमा कहा है।

प्रश्न 7.
यह दंतुरित मुसकान’ कविता में तालाब छोड़कर जलजात कहाँ खिलने की बात कही है?
उत्तर-
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में तालाब छोड़कर जलजात कवि की झोंपड़ी में खिलने की बात कही है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्री नागार्जुन किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) पंजाब
(C) उत्तर प्रदेश
(D) बिहार
उत्तर-
(D) बिहार

प्रश्न 2.
श्री नागार्जुन का वास्तविक नाम क्या था?
(A) रामचंद्र
(B) मेघनाद
(C) वैद्यनाथ मिश्र
(D) रामनरेश मिश्र
उत्तर-
(C) वैद्यनाथ मिश्र

प्रश्न 3.
कवि ने श्रीलंका में जाकर कौन-सा धर्म अपना लिया था?
(A) हिंदू
(B) मुस्लिम
(C) सिक्ख
(D) बौद्ध
उत्तर-
(D) बौद्ध

प्रश्न 4.
श्री नागार्जुन का देहांत कब हुआ था?
(A) सन् 1998 में
(B) सन् 1996 में
(C) सन् 1995 में
(D) सन् 1994 में
उत्तर-
(A) सन् 1998 में

प्रश्न 5.
नागार्जुन कृत कविता का नाम है
(A) संगतकार
(B) कन्यादान
(C) फसल
(D) उत्साह
उत्तर-
(C) फसल

प्रश्न 6.
‘दंतुरित मुसकान’ में कवि के ध्यानाकर्षण का केन्द्र है-
(A) शेर का बच्चा
(B) खरगोश का बच्चा
(C) कवि का नन्हा बच्चा
(D) छोटा बच्चा
उत्तर-
(C) कवि का नन्हा बच्चा

प्रश्न 7.
बच्चे की दंतुरित मुसकान किसमें भी जान डाल देगी?
(A) रोगी में
(B) पक्षी में
(C) कमजोर में .
(D) मृतक में
उत्तर-
(D) मृतक में

प्रश्न 8.
कवि की झोपड़ी में क्या खिल रहे थे?
(A) जलजात
(B) गेंदा
(C) गुलाब
(D) जूही
उत्तर-
(A) जलजात

प्रश्न 9.
‘चिर प्रवासी मैं इतर’ वाक्यांश में ‘चिर प्रवासी’ कौन है?
(A) कवि
(B) पुत्र
(C) माता
(D) श्रोता
उत्तर-
(A) कवि

प्रश्न 10.
किसके प्राणों का स्पर्श पाकर कठिन पाषाण पिघल गया होगा?
(A) कवि के
(B) माता के
(C) बच्चे के
(D) पिता के
उत्तर-
(C) बच्चे के

प्रश्न 11.
दही, घी, शहद, जल और दूध का योग, जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है, उसे ‘यह दंतुरित मुसकान’
कविता में कहा है-
(A) प्रसाद
(B) मधुपर्क
(C) इत्र
(D) गव्य
उत्तर-
(B) मधुपर्क

प्रश्न 12.
‘अनिमेष देखना’ का अर्थ है-
(A) रुक-रुक कर देखना
(B) कभी-कभी देखना
(C) लगातार देखना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(C) लगातार देखना

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प्रश्न 13.
मधुपर्क किसकी उँगलियाँ करती हैं?
(A) पिता की
(B) माँ की
(C) कवि की
(D) भाई की
उत्तर-
(B) माँ की

प्रश्न 14.
छोटे बच्चे के स्पर्श-मात्र से कौन-से फूल झड़ने लगे थे?
(A) शेफालिका
(B) कमल
(C) गुलाब
(D) चंपा
उत्तर-
(A) शेफालिका

प्रश्न 15.
कठिन पाषाण पिघलकर क्या बन गया होगा?
(A) जल
(B) सुंदरता
(C) नदी
(D) झरना
उत्तर-
(A) जल

प्रश्न 16.
प्रस्तुत कविता में किसकी आँखें चार होने की बात कही है?
(A) माँ और बच्चे की
(B) कवि और बच्चे की
(C) कवि और बच्चे की माँ की
(D) कवि और पाठक की
उत्तर-
(B) कवि और बच्चे की

प्रश्न 17.
‘कवि ने फसल को कितनी नदियों का जादू कहा है?
(A) एक
(B) दो
(C) ढेर सारी
(D) अनेक
उत्तर-
(C) ढेर सारी

प्रश्न 18.
‘फसल’ में किसकी प्रधानता है?
(A) आत्मा की
(B) परमात्मा की
(C) प्रकृति की
(D) माया की
उत्तर-
(C) प्रकृति की

प्रश्न 19.
फसल के लिए जादू का काम कौन करता है?
(A) नदियों का पानी.
(B) तालाब का पानी
(C) वर्षा का पानी
(D) गड्ढे का पानी
उत्तर-
(A) नदियों का पानी

प्रश्न 20.
फसल कितने हाथों के स्पर्श की गरिमा होती है?
(A) करोड़ों
(B) दर्जनों
(C) हज़ारों
(D) सैकड़ों
उत्तर-
(A) करोड़ों

प्रश्न 21.
फसल किसके स्पर्श की महिमा है?
(A) मिट्टी की
(B) हवा की
(C) जल की
(D) हाथों की
उत्तर-
(D) हाथों की

प्रश्न 22.
फसल कविता की भाषा की विशिष्टता है
(A) बोलचाल की
(B) भाव प्रधान
(C) व्यंग्यात्मक
(D) ओज गुण संपन्न
उत्तर-
(A) बोलचाल की

प्रश्न 23.
फसल को किसका सिमटा हुआ संकोच कहा गया है?
(A) नदियों के पानी का
(B) हवा की थिरकन का
(C) सूरज की किरणों का
(D) उपर्युक्त सभी का
उत्तर-
(B) हवा की थिरकन का

प्रश्न 24.
फसल किसका रूपांतरण है?
(A) वायु का
(B) वर्षा की बूंदों का
(C) सूर्य की किरणों का
(D) किसान की सोच का
उत्तर-
(C) सूर्य की किरणों का

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यह दंतुरहित मुस्कान और फसल पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…
छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल? [पृष्ठ 39-40]

शब्दार्थ-दंतुरित = बच्चों के नए-नए दाँत। मृतक = मरा हुआ। जान डाल देना = जीवित कर देना। धूलि-धूसर = धूल में सना हुआ। गात = शरीर। जलजात = कमल का फूल। परस = स्पर्श । कठिन पाषाण = कठोर पत्थर।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘दंतुरित मुसकान’ किसकी है?
(ङ) बच्चे का शरीर किससे सना हुआ है?
(च) कवि की झोंपड़ी में नन्हा बच्चा किस रूप में है?
(छ) मृतक में जान डालने का सामर्थ्य किसमें है? मृतक में जान डालने का क्या अभिप्राय है?
(ज) धूल से सने बच्चे को देखकर कवि को क्या अनुभव हुआ?
(झ) “पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(अ) शेफालिका के फल क्यों और किससे झरने लगे?
(ट) ‘बाँस और बबूल’ किसको कहा गया है?
(3) प्रस्तुत पयांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) प्रस्तुत पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम यह दंतुरित मुसकान।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘यह दंतुरित मुसकान’ नामक कविता में से · ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री नागार्जुन हैं। इस कविता में उन्होंने छोटे बच्चे के प्रति अपने भावों को विविध बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है। जब कवि ने अपने छोटे-से बच्चे के मुसकराते हुए मुख में दो दाँत देखे तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। कवि ने उन भावों को ही इन शब्दों में व्यक्त किया है।

(ग) कवि अपने छोटे-से मुस्कुराते हुए बच्चे को देखकर कहता है कि तुम्हारी मुसकान इतनी मनमोहक है कि वह मुर्दे में भी जान डाल देती है अर्थात् यदि कोई जीवन से निराश हुआ व्यक्ति भी तुम्हारी इस भोली-सी हँसी को देख ले तो वह भी प्रसन्न हो उठेगा। मैं जब तुम्हारे इस धूल से सने हुए शरीर को देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि कमल का जो फूल तालाब के जल में खिलता है वह मानों तालाब के जल को छोड़कर मेरी झोंपड़ी में खिल गया है। कवि के कहने का भाव है कि धूल में सना हुआ यह नन्हा-सा बालक कमल के फूल के समान कोमल एवं सुंदर है।

कवि पुनः कहता है कि हे शिशु! तुम ऐसे प्राणवान एवं सुंदर हो कि तुम्हें छूकर ही ये कठोर चट्टानें पिघलकर जल की धारा बनकर बहने लगी हैं। कवि के कहने का अभिप्राय है कि बच्चे की मधुर एवं निश्छल हँसी को देखकर कठोर एवं निर्दयी व्यक्ति का हृदय भी द्रवित हो जाता है। इस शिशु के सामने चाहे बाँस का पेड़ हो अथवा बबूल का वृक्ष, शेफालिका के फूल बरसाने लगता है। कहने का भाव है कि बच्चे की मुसकान के सामने बुरे-से-बुरा व्यक्ति भी सरस बन जाता है। एक क्षण के लिए वह भी अपनी बुराई त्यागकर मुसकाने लगता है।

(घ) दंतुरित मुसकान उस छोटे बच्चे की है जिसके मुख में अभी-अभी दो नए दाँत उगे हों। (ङ) बच्चे का शरीर धूल मिट्टी से सना हुआ है। (च) कवि की झोपड़ी में नन्हा बच्चा कमल के समान सुंदर एवं कोमल फूल के रूप में है।

(छ) नए-नए दाँत निकालने वाले नन्हें बच्चे की हँसी में मृतक में जान डालने की शक्ति व सामर्थ्य होता है। मृतक में जान डालने का अभिप्राय है-निराश और उदास व्यक्ति के मन में प्रसन्नता को उत्पन्न करना।

(ज) धूल से सने बच्चे को देखकर कवि को ऐसा अनुभव हुआ मानो उसकी झोंपड़ी में कमल का फूल खिल उठा हो। कहने का भाव है कि बच्चे की सुकोमलता को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है।

(झ) कवि ने नन्हें से बच्चे की पावन हँसी को देखकर कल्पना की है कि छोटे बच्चे की हँसी में इतना आकर्षण होता है कि पत्थर की भाँति कठोर हृदय वाले व्यक्ति के मन में भी बच्चे की इस हँसी को देखकर सहज एवं सरस भाव उत्पन्न हो जाते हैं। वह उसे देखकर अपनी कठोरता व निर्दयता को कुछ क्षणों के लिए त्याग देता है।

(ञ) नन्हें शिशु के स्पर्श से बाँस व काँटेदार वृक्ष बबूल के समान बुरे व्यक्ति के मन में शेफालिका के फूल के समान सरस एवं सुंदर भाव उत्पन्न हो जाते हैं।

(ट) कवि ने यहाँ बाँस व बबूल नीरस, रूखे, निर्दयी एवं कठोर स्वभाव वाले पुरुष को कहा है।

(ठ) प्रस्तुत पद में कवि की बच्चे के प्रति अत्यंत कोमल एवं सरस भावों की कलात्मक अभिव्यक्ति हुई है। कवि अपने बच्चे के मुसकाने पर उसके मुख में उत्पन्न दो नए-नए उगे हुए दाँतों को देखकर अत्यंत प्रसन्न हो उठता है। पिता के अपने नन्हें से बच्चे के प्रति अत्यंत कोमल भावों का मनोरम वर्णन किया गया है। बच्चे की मधुर, निश्छल एवं पावन हँसी के प्रभाव का अत्यंत सजीव चित्रण भी देखते ही बनता है। कवि को अनुभव होता है कि बच्चे की कोमल हँसी में अपार सुंदरता एवं प्रभाव छुपा हुआ है।

(ड)

  • कवि ने अपने कोमल भावों को कल्पना के सहयोग से अत्यंत मधुर वाणी में व्यक्त किया है। .
  • तद्भव एवं तत्सम शब्दावली के मिश्रित प्रयोग से भाषा अत्यंत रोचक एवं व्यावहारिक बन पड़ी है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।
  • प्रतीकों एवं बिंबों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  • प्रश्न, अनुप्रास एवं अतिशयोक्ति अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
  • अतुकांत छंद है।

(ढ) प्रस्तुत काव्यांश में कविवर नागर्जुन ने शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। यहाँ भाषा के बोल-चाल रूप का प्रयोग किया गया है। जनवादी कवि होने के कारण ही भाषा में ग्रामीण एवं देशज शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दों के कारण भाषा अत्यन्त रोचक एवं व्यावहारिक बन पड़ी है।

[2] तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान [पृष्ठ 40]

शब्दार्थ-अनिमेष = निरंतर देखना, बिना पलक झपकाए देखना। परिचित = जाने-पहचाने। माध्यम = साधन।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवितांश का प्रसंग लिखें।
(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि ‘तुम मुझे पाए नहीं पहचान’ ?
(ङ) कवि नन्हें बालक को क्यों नहीं पहचान पाया?
(च) कवि बालक की मधुर मुसकान किसके माध्यम से देख सका?
(छ) नन्हा बालक कवि की ओर एकटक क्यों देख रहा था?
(ज) इस काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(झ) उपर्युक्त पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इन काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम यह दंतरित मुसकान।

(ख) प्रस्तुत कवितांश श्री नागार्जुन द्वारा रचित सुप्रसिद्ध कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से लिया गया है। कवि जब कई मास के पश्चात् घर लौटता है तो उनकी दृष्टि अपने छोटे बच्चे की निश्छल मसकान पर पड़ती है। कवि उस मुसकान से अत्यंत प्रभावित होता है। कवि के मन में वात्सल्य भाव जागृत होते हैं, जिनका वर्णन इन पंक्तियों में किया गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

(ग) कवि अपने नन्हें बालक को देखकर उससे पूछता है कि क्या तुम मुझे पहचान गए हो? क्या तुम मुझे इस प्रकार एकटक देखते ही रहोगे। क्या तुम इस प्रकार मेरी ओर निरंतर देखते हुए थक गए हो? क्या मैं तुम्हारी ओर से अपना मुँह फेर लूँ अर्थात् वह बच्चे की ओर न देखे। कवि पुनः कहता है कि क्या हुआ कि यदि वह मुझे पहली बार न पहचान सका। कहने का तात्पर्य है कि वह अभी बहुत छोटा है किंतु बहुत भोला और सुंदर है।
कवि पुनः कहता है कि हे सुंदर दाँतों वाले मेरे बच्चे! यदि तुम्हारी माँ मेरे और तुम्हारे बीच माध्यम न बनी होती तो मैं कभी भी तुम्हारे सुंदर कोमल रूप और तुम्हारी मधुर मुसकान को देख न पाता। कवि के कहने का भाव है कि संतान और पिता के बीच संबंध जोड़ने का माध्यम माँ ही होती है। यदि वह बच्चे की माँ होती है तो पिता की पत्नी भी होती है।

(घ) नन्हा बच्चा अनजान व्यक्ति को सामने पाकर उसे टकटकी लगाकर देखने लगा। बच्चे की आँखों में उत्सुकता और अजनबीपन का भाव था। इसलिए कवि ने बच्चे के इस अनोखे भाव को देखकर ये शब्द कहे थे।

(ङ) कवि लंबे समय के पश्चात् घर लौटा था। बच्चे का जन्म उसकी अनुपस्थिति में हुआ होगा और कवि ने पहली बार बच्चे को देखा होगा इसलिए कवि बच्चे को पहचान नहीं पाया था।

(च) कवि शिशु की मधुर मुसकान शिशु की माँ के माध्यम से ही देख पाया था। जब तक बच्चा कवि के लिए अनजान था तब तक मौन एवं स्थिर बना रहा, किंतु जब उसकी माँ ने बच्चे का कवि से परिचय करवाया तभी वह मुसकाने लगा।

(छ) नन्हें बालक ने कवि को पहली बार देखा था। वह कवि को पहचानने का प्रयास कर रहा था। कवि कई मास के पश्चात् घर लौटा था। इसलिए बच्चा उसे अजनबी समझकर उसे पहचानने का प्रयास कर रहा था।

(ज) कवि अपनी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भली-भाँति नहीं कर पाया था। इसलिए कवि के मन का अपराध बोध व्यक्त हो रहा है। दूसरी ओर, बालक की मधुर एवं निश्छल मुसकान के प्रभाव का भी सजीव चित्रण हुआ है।

(झ)

  • प्रस्तुत कवितांश में कवि ने अपने भावों का उल्लेख अत्यंत सरल भाषा में किया है।
  • भाषा सरल, सहज, आडंबरहीन एवं भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
  • संबोधन शैली के कारण विषय रोचक बन पड़ा है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ तद्भव एवं देशज शब्दों का भी सार्थक प्रयोग किया गया है।

(ञ) इन काव्य पंक्तियों में कवि ने सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। कविवर नागार्जुन ने अपने छोटे बच्चे की मधुर एवं पावन मुसकान को प्रभावशाली भाषा में अभिव्यक्त किया है। ग्राम्यभाषा अथवा लोकभाषा के शब्दों के प्रयोग के कारण भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है। छोटे-छोटे शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में लयात्मकता का समावेश हुआ है।

[3] धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रह संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही है मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान! [पृष्ठ 40]

शब्दार्थ-धन्य = सम्मान के योग्य, भाग्यशाली। चिर प्रवासी = देर तक घर से बाहर दूर देश में रहने वाला। इतर = अन्य, दूसरा। संपर्क = संबंध। मधुपर्क = दही, घी, शहद, जल और दूध का मिश्रण, जिसे पंचामृत कहा जाता है, आत्मीयता से परिपूर्ण वात्सल्य। कनखी मार = तिरछी नज़रों से। आँखें चार होना = प्रेम होना, नज़रें मिलना। छविमान = सुंदर।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम बताइए।
(ख) प्रस्तुत कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किसे और क्यों धन्य कहा है?
(ङ) कवि ने अपने आपको चिर प्रवासी क्यों कहा है?
(च) मधुपर्क से क्या अभिप्राय है? मधुपर्क का सांकेतिक अर्थ क्या है?
(छ) कविता में किस-किसकी आँखें चार हुई हैं?
(ज) कवि को क्या छविमान लगती है?
(झ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम यह दंतुरित मुसकान।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘यह दंतरित मुसकान’ से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता नागार्जुन हैं। इस कविता में कवि ने एक नन्हें बालक की मधुर मुसकान के प्रति उत्पन्न भावों को सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की है। कवि लंबे समय के पश्चात् घर लौटता है। उसने अपने बच्चे के मुँह में उगे हुए नए-नए दाँतों की चमक से शोभायमान मुसकान को देखा था। इससे उसे असीम खुशी प्राप्त हुई थी।

(ग) कवि शिशु को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम सौभाग्यशाली हो और तुम्हारी माँ भी अत्यंत सौभाग्यशाली है। मैं तुम दोनों के प्रति आभारी हूँ। मैं तो बहुत लंबे समय से घर से बाहर रहा हूँ इसलिए मैं तो बाहर वाला व कोई दूसरा हूँ। मेरे प्रिय बच्चे मैं तो तुम्हारे लिए किसी अतिथि की भाँति हूँ। तुम्हारे लिए मेरा कोई संबंध नहीं रहा। तुम्हारे लिए तो मैं अनजान-सा ही हूँ। मेरी लंबे समय की अनुपस्थिति में तुम्हारी माँ ही आत्मीयतापूर्ण तुम्हारा पालन-पोषण करती रही है। तुम्हें अपनी स्नेह देती रही। वह तुम्हें पंचामृत चटाकर तुम्हारा पोषण करती रही। तुम मेरी ओर बड़ी हैरानी से कनखियों में से देख रहे थे। जब भी अचानक तुम्हारी और मेरी नज़रें मिल जाती थीं तो मुझे तुम्हारे चमकते हुए दातों से युक्त मुसकान दिखाई दे जाती है। वास्तव में, मुझे तुम्हारी दुधिया दाँतों से सजी हुई मुसकान बहुत ही सुंदर लगती है। मैं तुम्हारी इस निश्छल मुसकान पर मुग्ध हूँ।

(घ) कवि ने अपनी पत्नी और बेटे को धन्य कहा है क्योंकि उनके कारण उसे अपार प्रसन्नता प्राप्त हुई थी। वह स्वयं को भी धन्य मानने के योग्य बना था।

(ङ) कवि ने अपने-आपको चिर प्रवासी इसलिए कहा है कि क्योंकि वह अधिकतर घर से बाहर ही रहता था और इस समय भी वह कई महीनों के पश्चात् घर आया था।

(च) मधुपर्क दूध, दही, घी, शहद और जल के मिश्रण को कहते हैं। यहाँ मधुपर्क का सांकेतिक अर्थ है-माँ की आत्मीयता भरा वात्सल्य।

(छ) कविता में कवि और नन्हें शिशु की आँखें चार हुई हैं अर्थात् कवि की ओर शिशु टकटकी लगाए देखता रहा। शिशु कवि को देखकर मुसकराने लगता है।

(ज) कवि को शिशु की नए-नए दाँतों वाली मधुर मुसकान छविमान लगती है जिससे देखकर कवि का हृदय गद्गद् हो उठता है।

(झ) प्रस्तुत पद्यांश में माँ और बच्चे के आत्मीय संबंध की महिमा का उल्लेख किया गया है। नए-नए उगे हुए दाँतों वाले नन्हें बच्चे की मुसकान, उसकी तिरछी नज़रों से देखना और प्रेम व्यक्त करना आदि भावों का मनोरम चित्रण किया गया है।

(ञ)

  • कवि ने नन्हें शिशु की मधुर मुसकान से संबंधी भावों को अत्यंत सजीवतापूर्वक व्यक्त किया है।
  • भाषा मुहावरेदार है। ‘आँखें चार होना’ मुहावरे का सफल प्रयोग देखते ही बनता है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सार्थक प्रयोग हुआ है।
  • तुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।
  • अनुप्रास अलंकार का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग है।

(ट) प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि ने सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। ‘आँख चार होना’ आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा में सारगर्भिता एवं रोचकता का समावेश हुआ है। संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव तथा देशज शब्दों के प्रयोग से भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है। अलंकारों के सफल प्रयोग से भाषा को अलंकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है।

फसल

कविता का सार

प्रश्न-
‘फसल’ नामक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
‘फसल’ शब्द के सुनते ही लहलहाती फसल का चित्र आँखों के सामने आ जाता है। प्रस्तुत कविता ‘फसल’ में कवि ने बताया है कि फसल को उत्पन्न करने में विभिन्न तत्त्वों का योगदान रहता है। उनके अनुसार फसल उगाने में नदियों के पानी का, अनेक मनुष्य के हाथों की मेहनत का तथा खेतों की उपजाऊ मिट्टी का योगदान रहता है। इनके अतिरिक्त फसलों को उत्पन्न करने में , सूरज की किरणों और हवा का भी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। साथ ही कवि ने स्पष्ट किया है कि प्रकृति और मनुष्य के सहयोग से ही सृजन संभव है। आज के उपभोक्तावादी संस्कृति के युग में कवि ने कृषि-संस्कृति का जोरदार शब्दों में समर्थन किया है।

पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म : [पृष्ठ 40-41]

शब्दार्थ-पानी का जादू = पानी का प्रभाव। कोटि = करोड़ों। स्पर्श = छूना। गरिमा = गौरव।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘एक के नहीं, दो के नहीं’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(ङ) ‘कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(च) ‘मिट्टी का गुण धर्म’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(छ) इस पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ज) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(झ) प्रस्तुत काव्यांश के भाषा वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम-फसल।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘फसल’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता नागार्जुन हैं। इस कविता में कवि ने बताया है कि फसल उत्पन्न करने के लिए मनुष्य एवं प्रकृति एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।
(ग) कवि कहता है कि फसल उत्पन्न करने के लिए अनेक नदियों के पानी का अपना जादू जैसा प्रभाव दिखाई देता है अर्थात् नदियों से प्राप्त पानी से ही फसलें उगाई जाती हैं। पानी से उगकर फसलें बड़ी होती हैं। फसल को उगाने के लिए करोड़ों व्यक्तियों का सहयोग होता है अर्थात् फसल उगाने के लिए करोड़ों लोग काम करते हैं। यह करोड़ों लोगों के परिश्रम का फल होता है। इसमें अनेक खेतों की उपजाऊ मिट्टी के गुणों का योगदान भी होता है। इसके पीछे मिट्टी के गुण धर्म भी छिपे रहते हैं।

(घ) कवि के इस कथन का तात्पर्य है कि फसल उगाने के लिए अनेक नदियों के जल का सहयोग रहता है। इसी प्रकार एक दो व्यक्तियों के सहयोग से नहीं, अपितु अनेकानेक लोगों की मेहनत से फसल उगाई जाती है। इसी तरह अनगिनत खेतों का भी योगदान रहता है। .

(ङ) इस पंक्ति का भाव है कि फसल उगाने में देश के करोड़ों किसान अपने हाथ से काम करते हैं। फसल उगाने में करोड़ों किसानों के श्रम का गौरव सम्मिलित है।

(च) ‘मिट्टी का गुण धर्म’ का तात्पर्य है कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति व विशेषताएँ। हमारे देश में कई प्रकार की मिट्टी पाई जाती है तथा हर प्रकार की मिट्टी की विशेषताएँ व गुण अलग-अलग होते हैं। इसलिए मिट्टी के इन्हीं गुणों के कारण यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलें होती हैं।

(छ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने फसल उगाने अथवा कृषि के क्षेत्र में किए जाने वाले श्रम के महत्त्व को उजागर किया है। कवि ने देश की विभिन्न नदियों, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, वातावरण एवं मानव श्रम से संबंधित अपने भावों को सशक्त भाषा में अभिव्यक्त किया है।

(ज)

  • प्रस्तुत कविता में कवि ने फसलें उगाने वाली सभी शक्तियों व साधनों का काव्यात्मक उल्लेख किया है।
  • ‘एक नहीं दो नहीं’ की आवृत्ति के कारण, जहाँ कविता की भाषा में प्रवाह का संचार हुआ है वहाँ भाव को सर्वव्यापकता भी मिली है।
  • ‘पानी का जादू’ प्रयोग से पानी के महत्त्व व गुणों की ओर संकेत किया गया है।
  • पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास अलंकारों का सहज एवं सफल प्रयोग किया गया है।
  • भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
  • तत्सम, तद्भव एवं देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

(झ)

प्रस्तुत काव्यांश में कविवर नागार्जुन ने सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। छोटे-छोटे शब्दों के सफल प्रयोग से जहाँ विषय को रोचकतापूर्ण भाषा में स्पष्ट किया है, वहीं भाषा भी प्रभावशाली बन पड़ी है। आदि से अन्त तक भाषा का प्रवाह बना हुआ है। शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में लयात्मकता का समावेश हुआ है।

[2] फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का! [पृष्ठ 41]

शब्दार्थ-महिमा = यश। संदली = एक विशेष प्रकार की मिट्टी। रूपांतर = बदला हुआ रूप। संकोच = सिमटा हुआ रूप। थिरकन = नाचना, लहराना।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसका वर्णन किया है?
(ङ) ‘हाथों के स्पर्श की महिमा’ किसे कहा है और क्यों?
(च) फसलों को सूर्य की किरणों का रूपांतर कहना कहाँ तक उचित है?
(छ) मिट्टी के लिए ‘संदली’ शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है?
(ज) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(झ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम-फसल।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘फसल’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री नागार्जुन हैं। उन्होंने बताया है कि फसल उगाना मनुष्य और प्रकृति का सम्मिलित प्रयास है।

(ग) कवि प्रश्न करता है कि आखिर फसल क्या है? कवि अपने आप इस प्रश्न का उत्तर देता हुआ कहता है कि ये फसलें और कुछ नहीं हैं, वे तो नदियों के पानी से सिंचकर पुष्ट हुई हैं। इन फसलों पर नदियों के जल का जादू जैसा प्रभाव होता है। किसानों के हाथों का स्पर्श और श्रम पाकर फसलें खूब फलती-फूलती हैं। कवि के कहने का भाव है कि फसलों को उगाने और उनके फलने-फूलने में नदियों का पानी और किसानों की मेहनत ही काम करती है। किसानों की मेहनत से ही फसलें फली-फूली हैं। ये फसलें विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगती हैं। कहीं काली व भूरी मिट्टी है तो कहीं संदली मिट्टी है। हर प्रकार की मिट्टी में अपना-अपना गुण होता है, उसी के अनुसार उनमें फसलें उगाई जाती हैं। कहने का भाव है कि मालिटी के गुण, स्वभाव और विशेषताएँ भी छिपी रहती हैं। ये फसलें सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। सूत्र को किरणों की गर्मी से ही फसलें पकती हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि फसलें सूर्य की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। ऐसा लगता है कि हवाओं की थिरकन सिमटकर इन फसलों में समा गई है अर्थात् हवा के चलने पर खेतों में खड़ी फसलें लहलहाने लगती हैं। कहने का तात्पर्य है कि फसलों को उगाने में हवाओं का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।

(घ) इस पद्यांश में कवि ने फसलों पर विचार करते हुए उनके उगाने में पानी, किसान के परिश्रम, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, सूर्य की गर्मी और हवाओं की भूमिका का वर्णन किया है।

(ङ) ‘हाथों के स्पर्श की महिमा’ किसान के द्वारा किए गए परिश्रम के महत्त्व को कहा गया है। किसान दिन-रात परिश्रम करता है, तब कहीं जाकर फसलें उगती हैं। बिना परिश्रम के फसलें नहीं उगाई जा सकतीं। अतः किसान की मेहनत के महत्त्व को उजागर करने के लिए ये शब्द कहे गए हैं।

(च) फसलें सूर्य की किरणों का रूपांतर अर्थात् बदला हुआ रूप हैं। सूर्य की किरणों की गर्मी से फसलें पकती हैं। अतः इन्हें सूर्य की किरणों का रूपांतर कहना उचित है।

(छ) संदली का अर्थ है-चंदन। ऐसी मिट्टी जिसमें सौंधी-सौंधी-सी गंध आती हो। ऐसी मिट्टी फसल उगाने के लिए अत्यंत उपयुक्त होती है। कवि ने मिट्टी की इसी विशेषता को प्रकट करने के लिए ‘संदली’ शब्द का प्रयोग किया है।

(ज) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने फसलों को उगाने वाले सभी तत्त्वों के प्रभाव और उनके महत्त्व को सफलतापूर्वक अभिव्यंजित किया है। कवि ने किसान के परिश्रम, पानी के महत्त्व, सूर्य की गर्मी के प्रभाव, हवाओं की भूमिका आदि का फसलों के संदर्भ में उल्लेख किया है।

(झ)

  • कवि ने सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग करके विषय को अत्यंत ग्रहणीय बनाया है।
  • ‘पानी का जादू’ आदि लाक्षणिक प्रयोग देखते ही बनते हैं।
  • प्रश्नोत्तर शैली के प्रयोग से विषय रोचक बन पड़ा है।
  • संस्कृत के शब्दों के साथ तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया गया है।
  • तुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।

(ञ) श्री नागार्जुन ने इन काव्य पंक्तियों में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। छोटे-छोटे वाक्यों का सफल प्रयोग किया गया है। तद्भव व तत्सम शब्दावली का प्रयोग विषयानुकूल किया गया है। प्रवाहमयता, रोचकता तथा भावाभिव्यक्ति की क्षमता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषताएँ हैं।

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Summary in Hindi

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर नागार्जुन का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं और भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-सुप्रसिद्ध जनवादी कवि नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था। आपका जन्म बिहार प्रदेश के दरभंगा जिले के सतलखा नामक गाँव में सन् 1911 में हुआ। अल्पायु में ही इनकी माँ का देहांत हो गया। एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में इनका लालन-पालन हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत विद्यालय में हुई। सन् 1936 में श्रीलंका में जाकर इन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली। राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के कारण अनेक बार उनको जेल भी जाना पड़ा। संस्कृत, पाली, प्राकृत तथा हिंदी सभी भाषाओं का इन्होंने गहरा अध्ययन किया। बाल्यावस्था में कष्टों और पीड़ाओं को भोगने के कारण इनके काव्य में पीड़ा का अधिक महत्त्व है। वैसे ये स्वभाव से फक्कड़, मस्तमौला तथा अपने मित्रों में नागा बाबा के नाम से जाने जाते हैं। सन् 1998 में उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-1) काव्य–’युगधारा’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘सतरंगे पंखों वाली’, ‘प्यासी परछाई’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘हजार-हजार बाँहों वाली’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘खून और शोले’, ‘चना जोर गर्म’ तथा ‘भस्मांकुर’ (खंडकाव्य)।
(ii) उपन्यास-‘वरुण के बेटे’, ‘हीरक जयंती’, ‘बलचनमा रतिनाथ की चाची’, ‘नई पौध’, ‘कुंभीपाक और उग्रतारा’ । __ आपने दीपक (हिंदी मासिक) तथा विश्वबंधु (साप्ताहिक) का संपादन भी किया। मैथिली में रचित काव्य रचना पर इनको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला है।

3. काव्यगत विशेषताएँ-नागार्जुन एक जनवादी कवि हैं, अतः इनका काव्य मानव-जीवन से संबद्ध है। इनका काव्य वैविध्यपूर्ण है। इनकी कुछ कविताओं में मानव मन की रागात्मक अनुभूति का सुंदर वर्णन हुआ है। कुछ रचनाओं में इन्होंने सामाजिक विषमताओं तथा राजनीतिक विद्रूपताओं पर व्यंग्य किया है। इस प्रकार प्रगतिवादी विचारधारा के साथ-साथ प्रेम और सौंदर्य का चित्रण भी इनके काव्य में हुआ है। अन्यत्र ये प्रकृति वर्णन में भी रुचि लेते हुए दिखाई देते हैं। इनके समूचे काव्य में देश-प्रेम की भावना विद्यमान है। पुनः नागार्जुन ने वर्तमान व्यवस्था के प्रति आक्रोश प्रकट करते हुए समाज की रूढ़ियों और जड़ परंपराओं पर भी प्रहार किया है।

4. भाषा-शैली-नागार्जुन की भाषा खड़ी बोली है, लेकिन इन्होंने खड़ी बोली के बोलचाल रूप को ही अपनाया है। जनवादी कवि होने के कारण इनकी भाषा में ग्रामीण और देशज शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। कुछ स्थलों पर अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। इन्होंने अपनी कविताओं में शृंगार, वीर तथा करुण तीनों रसों को समाविष्ट किया है, इससे भाषा में भी सरलता, कोमलता तथा कठोरता आ गई है। जहाँ आक्रोश तथा व्यंग्यात्मकता का पुट है, वहाँ अलंकारों का बहुत कम प्रयोग हुआ है। शब्द की तीनों शक्तियों-अभिधा, लक्षणा तथा व्यंजना का सार्थक प्रयोग हुआ है। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। कुछ स्थलों पर प्रतीक विधान तथा बिंब योजना भी देखी जा सकती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल कविता का सार

प्रश्न-
‘यह दंतुरित मुसकान’ नामक कविता का सार लिखें।
उत्तर-
“यह दंतुरित मुसकान’ नागार्जुन की प्रमुख कविता है। इसमें उन्होंने छोटे बच्चे की अत्यंत आकर्षक मुसकान को देखकर मन में उमड़े हुए भावों को विविध बिंबों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। कवि के मतानुसार इस सुंदरता में जीवन का संदेश है। बच्चे की उस मधुर मुसकान के सामने कठोर-से-कठोर हृदय भी पिघल जाता है। उसकी मुसकान में अद्भुत शक्ति है जो किसी मृतक में भी नया जीवन फूंक सकती है। धूल मिट्टी में सना हुआ बच्चा तो ऐसा लगता है मानो वह कमल का कोमल फूल है जो तालाब का जल त्यागकर उसकी झोंपड़ी में खिल उठा हो। उसे छूकर तो पत्थर भी जल बन जाता है। उसे छूकर शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। छोटा-सा शिशु कवि को पहचान नहीं सका। इसलिए वह उसकी ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है। कवि मानता है कि वह उस मोहिनी सूरत वाले बालक और उसके सुंदर दाँतों को उसकी माँ के कारण ही देख सका था। वह माँ धन्य है और बालक की मधुर मुसकान भी धन्य है। वह इधर-उधर घूमने वाले प्रवासी के समान था। इसलिए उसकी पहचान नन्हें बच्चे के साथ नहीं हो सकी थी। जब वह कनखियों से कवि की ओर देखता तो उसकी छोटे-छोटे दाँतों से सजी मुसकान कवि का मन मोह लेती थी।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

HBSE 10th Class Hindi बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers

पाठ 11 बालगोबिन भगत प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? .
उत्तर-
बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी करने वाले गृहस्थ थे, किंतु उनका संपूर्ण व्यवहार साधुओं जैसा था। सर्वप्रथम तो हम कह सकते हैं कि उनका जीवन उनके ईश्वर (साहब) के प्रति अर्पित था। उनमें किसी प्रकार का अहम् भाव नहीं था। वे अपने-आपको ईश्वर का बंदा मानते थे। वे अपनी कमाई पर सर्वप्रथम ईश्वर का अधिकार मानते थे। इसलिए वे अपने खेत में उत्पन्न होने वाली फसल को सर्वप्रथम कबीरपंथी मठ में ले जाते थे। वहाँ से उन्हें जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता था, उससे वे अपना गुजारा करते थे। वे तो अपने जीवन को ही प्रभु की देन मानते थे। वे सदैव सुख-दुःख में समभाव रहते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और न ही किसी से धोखे का व्यवहार करते थे। वे तन-मन से प्रभु के गुणों का गान करते रहते थे। इन सब बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी साधु कहलाते थे।

बालगोबिन भगत के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर-
भगत की पुत्रवधू बहुत समझदार युवती थी। पुत्र की मृत्यु के बाद भगत के घर में एकमात्र उनकी पुत्रवधू ही थी जो उनकी देखभाल कर सकती थी। वह सोचती थी कि यदि मैं भी यहाँ से चली गई तो कौन इनकी देखभाल करेगा? बुढ़ापे में कौन इनकी सेवा करेगा? बीमार होने पर कौन इनकी दवा-पानी करेगा? कौन इनको भोजन देगा? इन सब बातों के कारण ही वह भगत को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी।

बालगोबिन भगत पाठ का सार HBSE 10th Class प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस प्रकार व्यक्त की?
उत्तर-
बालगोबिन भगत का पुत्र उनकी एकमात्र संतान थी। वह कुछ सुस्त और बोदा-सा था। भगत उसे बहुत प्यार करते थे। किंतु अब वह बीमार रहने लगा और भगत द्वारा बचाने के प्रयास करने पर भी वह मर गया। भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर दूसरों की भाँति शोक नहीं मनाया। उनका मत था कि उनके बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। आज एक विरहिणी अपने प्रियतम के पास चली गई है। उसके मिलन का दुःख कैसा, उसके मिलन की तो खुशी मनाई जानी चाहिए। उन्होंने अपने बेटे के शव को फूलों से सजाया और उसके सामने आसन जमाकर प्रभु भजन गाने लगे। उसके सिराहने दीप जलाकर रख दिया था। जब उनकी पुत्रवधू रोने लगी तो उन्होंने उसे भी खुशी मनाने के लिए कहा था।

बालगोबिन भगत पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत की आयु लगभग साठ वर्ष की रही होगी। वे मँझोले कद वाले गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे। उनके बाल सफेद थे। उनके चेहरे पर उनके सफेद बाल चमचमाते रहते थे। माथे पर चंदन का लेप रहता था। कपड़ों के नाम पर कमर पर एक लंगोटी
और एक कबीरपंथी टोपी रहती थी। सर्द ऋतु आने पर वे काले रंग की कमली धारण करते थे। उनके गले में तुलसी की जड़ों से बनी एक बेडौल माला पड़ी रहती थी। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उनमें एक सच्चे साधु-संन्यासियों के सभी गुण थे। वे कबीर के पदों को अपनी मधुर आवाज़ में गाते रहते थे। वे सदा कबीर के द्वारा बताए गए आदर्शों पर चलते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कभी किसी से धोखा नहीं करते थे। वे सबसे सदा खरा-खरा व्यवहार करते थे। वे सदा सत्य बोलते थे तथा कभी किसी से व्यर्थ का झगड़ा नहीं करते थे। दूसरों की वस्तुओं को कभी लेते या छूते तक नहीं थे। ईश्वर में पूर्ण रूप से उनकी आस्था थी। वे सदैव समभाव रहते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

Bal Govind Bhagat Class 10th Hindi HBSE प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए थी क्योंकि वे अपने दैनिक जीवन में भी नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। वे प्रातः बहुत जल्दी उठते और गाँव से लगभग दो मील दूर नदी पर जाकर स्नान करते थे। वापसी पर पोखर के ऊँचे स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाते हुए कबीर के पदों का गान करते थे। वे गर्मी-सर्दी की चिंता किए बिना प्रतिदिन ऐसा करते थे। वे बिना पूछे किसी की वस्तु को छूते नहीं थे, यहाँ तक कि किसी के खेत में कभी शौच भी न करते थे। इस प्रकार अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में नियमों का ऐसा दृढ़ता से पालन करना लोगों के अचरज का कारण था।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास से अत्यधिक प्रभावित थे। यहाँ तक कि उन्हें ‘साहब’ कहते थे। इसलिए वे कबीर के प्रभु भक्ति संबंधी पदों का तल्लीनतापूर्ण गायन करते थे। उनके स्वर प्रभु की सच्ची पुकार थी। उनके गीतों का स्वर हृदय से निकला हुआ स्वर था। उनके गीतों को सुनने वाला हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता था। औरतें और बच्चे तो उनके गीतों को गुनगुनाने लग जाते थे। खेतों में काम करने वाले किसानों व मजदूरों के हाथ और पाँव एक विशेष लय में चलने लगते थे। उनके संगीत का हर दिल पर एक विशेष प्रभाव पड़ता था। जब भगत भजन गाता था तो चारों ओर एक मधुर वातावरण छा जाता था। गर्मी-सर्दी आदि हर मौसम में उनकी मधुर ध्वनि की लहरियाँ सुनी जा सकती थीं।।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–
पाठ के आधार पर कहा जा सकता है कि निश्चित रूप से बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। इस बात को प्रमाणित करने के लिए पाठ के कुछ मार्मिक प्रसंग इस प्रकार हैं
पुत्र की मृत्यु पर विलाप न करके उसके शव के सामने आसन जमाकर तल्लीनता से गीत गाना। पुत्र की चिता को अग्नि स्वयं या किसी अन्य पुरुष से दिलवाने की अपेक्षा अपनी पुत्रवधू से दिलवाना। इसके साथ-साथ पुत्रवधू को उसके भाई के साथ वापस भेज देना ताकि वह पुनः विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत कर सके। एक गृहस्थ होते हुए भी वे सच्चे साधु का जीवन व्यतीत करते थे।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए। .
उत्तर-
आषाढ़ के महीने में वर्षा होने पर चारों ओर खेतों में धान की फसल की ज्यों ही रोपाई आरंभ होती तो बालगोबिन भगत के भगवद् भक्ति के गीतों की स्वर लहरियाँ भी चारों ओर के वातावरण को संगीतमय बना देती थीं। ऐसा लगता था कि उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत की सीढ़ियों पर चढ़ाकर मानो स्वर्ग की ओर भेज रहा हो। खेलते हुए बच्चे झूम उठते थे, मेंड़ पर खड़ी औरतें गुनगुनाने लगती थीं, हलवाहों के पैर ताल के साथ उठने लगते थे और रोपनी करने वालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थीं। चाहे मूसलाधार वर्षा हो, चाहे तेज़ गर्मी या जाड़ों की कड़कती सुबह, उनके संगीत को कोई भी मौसम प्रभावित नहीं कर पाता था। गर्मियों की उमस भरी संध्या में उनके घर में आँगन में खंजड़ी-करताल की भरमार हो जाती थी। एक निश्चित ताल और निश्चित गति से जब उनका स्वर ऊपर उठता था तो उनकी प्रेमी-मंडली के मन भी ऊपर उठते जाते थे और फिर धीरे-धीरे सभी बालगोबिन के साथ नृत्यशील हो उठते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास के अनन्य उपासक एवं श्रद्धालु थे। उनकी यह श्रद्धा व उपासना विभिन्न रूपों में व्यक्त हुई है-
कबीरदास ईश्वर में आस्था रखते थे। इसलिए बालगोबिन भगत कबीरदास की इस भावना से अत्यंत प्रभावित हुए और उनके बताए हुए जीवन आदर्शों पर चलने लगे थे। जैसे कबीरदास ने गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए प्रभु भक्ति की, वैसे ही बालगोबिन भगत भी गृहस्थ जीवन में रहते हुए सदा प्रभु-भजन में लीन रहते थे। कबीर जीवन में दिखावे व पाखंड से दूर रहे, सामाजिक परंपराओं और अंधविश्वास का खंडन किया। बालगोबिन भगत ने पुत्रवधू के हाथ से पति की चिता को आग दिलवाकर और उसे स्वयं पुनर्विवाह के लिए प्रेरित करके कबीरदास के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है। वे कबीर की भाँति सदा सत्य आचरण का पालन करते रहते थे।
कबीर की भाँति उन्होंने भी नर-नारी को समान माना और संसार व शरीर को नश्वर और आत्मा को अमर माना। वे कबीर की भाँति मन को ईश्वर भक्ति में लगाने की प्रेरणा देते थे।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर-
भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के अनेक कारण थे, यथा-कबीर समाज में प्रचलित रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे भगवान् के निराकार रूप को मानते थे जिसमें मनुष्य के अंत समय में आत्मा से परमात्मा का मिलन होता . है। वे गृहस्थी होते हुए भी व्यवहार से साधु थे। इसी प्रकार कबीर जीवन और जीवन की वस्तुओं में ईश्वर की कृपा मानते थे। बालगोबिन भगत कबीर के जीवन की इन विशेषताओं के कारण ही उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखते होंगे।

प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर-
गाँव में किसानों की संख्या अधिक होती है। उनका मुख्य धंधा खेती होता है। ज्येष्ठ की तपती गर्मी के पश्चात् आषाढ़ मास में बादल उमड़कर वर्षा करने के लिए आ जाते हैं। इससे किसानों के हृदयों में प्रसन्नता का भाव भर जाता है। वर्षा की रिमझिम आरंभ हो जाती है। किसान धान की रोपाई का काम आरंभ कर देते हैं। गाँव के लोग खेतों में काम पर लग जाते हैं। बच्चे भी गीली मिट्टी में लिथड़कर भरपूर आनंद उठाते हैं। औरतें भी खेतों के काम करने के लिए निकल पड़ती हैं। अतः आषाढ़ के आते ही गाँव के सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में उल्लास भर जाता है।

प्रश्न 12.
“ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर-
साधु की पहचान उसके पहनावे से नहीं की जा सकती। आज के युग में लाखों की संख्या में साधु का पहनावा पहनकर लोग पेट-पूजा करने में जुटे हुए हैं। क्या उन सबको साधु मान लिया जाए, वास्तव में साधु की पहचान तो उसके व्यवहार एवं विचारों से ही की जानी चाहिए। साधु व्यक्ति की पहचान हम निम्नलिखित आधारों पर कर सकते हैं

(क) ईश्वर में आस्था होनी चाहिए और उसका जीवन प्रभु के प्रति समर्पित होना चाहिए।
(ख) सच्चे साधु का सरल स्वभाव होना नितांत आवश्यक है। यदि वह चंचल स्वभाव वाला है तो उसका व्यवहार भी वैसा ही होगा।
(ग) मधुर वाणी सच्चे साधु की अन्य प्रमुख पहचान है। कबीरदास ने भी मीठी वाणी की प्रशंसा की है। जो व्यक्ति सामाजिक बुराइयों का खंडन करता है और उनसे बचकर रहता है तथा उनके प्रति समाज के लोगों को सचेत करता है, वही सच्चा साधु कहलाता है।
ये सभी विशेषताएँ जिस व्यक्ति के जीवन में हों वह भले ही गृहस्थी क्यों न हो, फिर भी सच्चा साधु कहलाता है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे ?
उत्तर-
मोह और प्रेम दो भिन्न भाव हैं। बालगोबिन भगत का एक ही बेटा था जो दिमाग से सुस्त था। भगत जी ने उसका पालनपोषण बहुत प्यार एवं ध्यानपूर्वक किया। भगत का मत है कि ऐसे बच्चों को सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक प्यार की आवश्यकता होती है। भगत ने उसका विवाह भी बड़े चाव से किया। जब उसके बेटे की मृत्यु हो गई तब भगत ने बेटे के मोह में पड़कर उसकी मृत्यु का शोक नहीं किया। यहाँ तक कि उसकी पत्नी को भी शोक नहीं मनाने दिया। उसने जान लिया था कि शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है जो शरीर के नष्ट हो जाने पर परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार उसे अपने बेटे से प्रेम तो था, किंतु मोह नहीं।

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भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर-
(1) जब जब वह सामने आता
जब जब-कालवाची क्रियाविशेषण
सामने स्थानवाचक क्रियाविशेषण

(2) कपड़े बिल्कुल कम पहनते
बिल्कुल कम परिमाणवाची क्रियाविशेषण

(3) थोड़ी देर पहले मूसलाधार वर्षा हुई।
मूसलाधार–परिमाणवाची क्रियाविशेषण।

(4) न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते।
खामखाह रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(5) वे दिन-दिन. छीजने लगे।
दिन-दिन-कालवाची क्रियाविशेषण।

(6) जो सदा-सर्वदा सुनने को मिलते।
सदा-सर्वदा कालवाची क्रियाविशेषण।

(7) धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा।
धीरे-धीरे-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(8) मैं कभी-कभी सोचता हूँ।
कभी-कभी-कालवाचक क्रियाविशेषण।

(9) इधर पतोहू रो-रोकर कहती।।
रो-रोकर-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(10) उस दिन संध्या में गीत गाए।
संध्या में कालवाचक क्रियाविशेषण

पाठेतर सक्रियता

पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फोटो का संग्रह कर एक अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

पाठ में आषाढ़, भादो, माघ आदि में विक्रम संवत कलैंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कलैंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रातःकाल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर-
मैं रामपुर नगर का रहने वाला छात्र हूँ। यहाँ का वातावरण पाठ में दिखाए सांस्कृतिक वातावरण से नितांत भिन्न है। नगर में पक्की, चौड़ी सड़कें हैं। बड़े-बड़े कारखाने हैं जिनकी चिमनियों से धुआँ निकलता रहता है। वाहनों की ध्वनियाँ होती रहती हैं। सब लोग अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। गाड़ियों की भरमार है। वर्षा आने न आने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। गर्मी से बचने के लिए वर्षा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती क्योंकि यहाँ कूलर व ए०सी० जैसे आधुनिक साधन उपलब्ध हैं। यहाँ लोग रात को देर तक जागते हैं और प्रातःकाल में देर से उठने के आदी हो चुके हैं। यहाँ गाँवों की अपेक्षा प्रदूषण अत्यधिक है।

यह भी जानें-

प्रभातियाँ मुख्य रूप से बच्चों को जगाने के लिए गाई जाती हैं। प्रभाती में सूर्योदय से कुछ समय पूर्व से लेकर कुछ समय बाद तक का वर्णन होता है। प्रभातियों का भावक्षेत्र व्यापक और यथार्थ के अधिक निकट होता है। प्रभातियों या जागरण गीतों में केवल सुकोमल भावनाएँ ही नहीं वरन् वीरता, साहस और उत्साह की बातें भी कही जाती हैं। कुछ कवियों ने प्रभातियों में राष्ट्रीय चेतना और विकास की भावना पिरोने का प्रयास किया है।

श्री शंभूदयाल सक्सेना द्वारा रचित एक प्रभाती
पलकें, खोलो, रैन सिरानी।
बाबा चले खेत को हल ले सखियाँ भरती पानी ॥
बहुएँ घर-घर छाछ बिलोतीं गातीं गीत मथानी।
चरखे के संग गुन-गुन करती सूत कातती नानी ॥
मंगल गाती चील चिरैया आस्मान फहरानी।
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी ॥
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी।।
आलस छोड़ो, उठो न सुखदे! मैं तब मोल बिकानी।।
पलकें खोलो हे कल्याणी।।

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HBSE 10th Class Hindi बालगोबिन भगत Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बालगोबिन भगत किस संत को ‘साहब’ कहते थे और उन पर उसका कितना प्रभाव था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत संत कबीर को ‘साहब’ कहते थे अर्थात् उन्हें अपना स्वामी या ईश्वर समझते थे। उनके जीवन पर कबीरदास का गहरा प्रभाव था। कबीरदास अत्यंत निर्भीक तथा दो टूक बात कहने वाले संत थे। कबीरदास की भाँति बालगोबिन भगत भी सदा सत्य बोलने का पालन करते रहे और सबके साथ खरी-खरी बातें करते थे। वे अपने खेत की फसल को सबसे पहले कबीर पंथी मठ में ले जाकर उनके प्रति अर्पित करते थे। वे वहाँ से मिले शेष अनाज को प्रसाद समझकर स्वीकार करते थे। अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत कबीरदास के प्रति गहन आस्था रखते थे।

प्रश्न 2.
लेखक बालगोबिन भगत की किन बातों से प्रभावित था?
उत्तर-
लेखक बालगोबिन भगत की ईश्वरं भक्ति से अत्यधिक प्रभावित था। उनकी ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना से तो लेखक अत्यधिक प्रभावित था। इसके अतिरिक्त उनके मधुर गायन का प्रभाव भी लेखक पर देखा जा सकता है। जब वे अपनी मधुर ध्वनि में गाते थे तो अन्य लोग भी अपना काम छोड़कर उनकी मधुर संगीत लहरी को सुनने में तल्लीन हो जाते थे।

प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत बहुत सवेरे जाग जाते थे। वे गंगा-स्नान करने के पश्चात् किसी स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाकर प्रभु-भजन गाते थे। उसके पश्चात् वे अपने पशुओं का काम करते और स्वयं भोजन करके खेत में काम करने निकल पड़ते। संध्या होने पर वे घर लौट आते थे।

प्रश्न 4.
आपकी दृष्टि में बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष कब होता है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही बालगोबिन भगत एक अच्छे संगीतकार व गायक थे। किंतु उनकी संगीत साधना का चरमोत्कर्ष तब देखने को मिलता है जब अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे पहले की भाँति तल्लीनता से गाते रहे थे। उनका विश्वास था कि मृत्यु के पश्चात् आत्मा परमात्मा के पास चली जाती है। इससे बढ़कर खुशी का अवसर और क्या हो सकता है। यह समय रोने या शोक मनाने का नहीं, अपितु उत्सव मनाने का है।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत अपनी पुत्रवधू का पुनः विवाह क्यों करना चाहते थे? इसके पीछे उनकी कौन-सी भावना के दर्शन होते हैं?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू अभी जवान थी। उसका सारा जीवन उसके सामने पड़ा था। वे नहीं चाहते थे कि वह अपना सारा जीवन विधवा बनकर काटे। उनका यह भी मानना था कि वह अभी जवान है और उसकी आयु अभी वासनाओं पर नियंत्रण करने की नहीं है, वह पुनः विवाह करके लोगों द्वारा दिए जाने वाले तानों में भी बच सकती है। बालगोबिन भगत समाज की रूढ़िवादिता में विश्वास नहीं रखते थे और समाज की वस्तु-स्थिति को भी भली-भाँति समझते थे। इसलिए यह निर्णय उनकी दूरदर्शिता को व्यक्त करता है।

प्रश्न 6.
कार्तिक मास से फाल्गुन मास तक बालगोबिन भगत का प्रमुख कार्य क्या होता था? ।
उत्तर-
कार्तिक मास के आरंभ होते ही बालगोबिन भगत का प्रभाती गायन आरंभ हो जाता था। उनकी प्रभाती फाल्गुन मास तक निरंतर चलती थी। वे बहुत सवेरे उठते दो मील दूर गंगा-स्नान करते और वापसी में गाँव के पोखर पर बैठकर अपनी बँजड़ी बजाते हुए प्रभु-भजन गाते रहते थे। वे इतनी तल्लीनता से गाते थे कि अपने आस-पास के वातावरण को भी भूल जाते थे। वे माघ की सर्दी में इतनी उत्तेजना से गाते थे कि उन्हें पसीना आ जाता था जबकि सुनने वाले ठंड से काँप रहे होते थे।

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत की मृत्यु पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर–
बालगोबिन भगत हर वर्ष गंगा-स्नान के लिए जाते थे, किंतु अब वे अत्यधिक बूढ़े हो गए थे। उनका शरीर भी कमज़ोर पड़ चुका था। किंतु वे अपने नियम पर अङिग रहे और गंगा स्नान के लिए पहले की भाँति ही गए। वे मार्ग मे कुछ नहीं खाते थे। इस वर्ष जब वे गंगा-स्नान से लौटे तो उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरने लगा किंतु वे अपने जीवन के नेम-व्रत पालन पर अङिग रहे। वे दोनों समय स्नान ध्यान व गायन करते तथा खेतीबाड़ी की देखभाल भी करते। लोग उन्हें आराम करने की सलाह देते तो हँसकर टाल देते। एक दिन वे गीत गाकर सोए तो उनके प्राण पखेरू उड़ गए। उनके साँसों की माला टूटकर बिखर गई। लोगों को पता चला कि बालगोबिन भगत नहीं रहे। अतः उनकी मृत्यु स्वाभाविक मृत्यु थी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन ईश्वर के भगत हैं। वे पाठ के मुख्य पात्र हैं। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
वे गृहस्थ होते हुए भी एक साधु जैसा जीवन व्यतीत करते थे। उनकी आयु साठ वर्ष के लगभग थी। वे एक धोती ही पहनते थे और सिर पर कबीर कनफटी टोपी धारण करते थे। सर्दी आने पर काला कंबल ओढ़ लेते थे। उनके माथे पर चंदन का टीका लगा रहता था।
बालगोबिन भगत अन्य ग्रामीण लोगों की भाँति खेतीबाड़ी का काम करते थे। वे खेत में काम करते हुए भी प्रभु-भजन में लीन रहते थे। बालगोबिन भगत मधुर स्वर में प्रभु-भजन गाया करते थे। वे कबीर के पद गाते थे। उनके संगीत का जादू ऐसा था कि जो भी उसे सुनता, उसमें लीन हो जाता था।

बालगोबिन भगत अत्यंत संतोषी व्यक्ति थे। उनकी इच्छाएँ अत्यंत सीमित थीं। वे सबके साथ खरा एवं सच्चा व्यवहार करते थे। उनके मन में ईश्वर के प्रति अगाध आस्था थी। सांसारिक मोह उन्हें छू भी नहीं सकता था। वे शरीर को नश्वर और आत्मा को परमात्मा का अंश मानते थे। मृत्यु उनके लिए मोक्ष प्राप्ति का साधन थी। वे उसे एक उत्सव के रूप में मानते थे।
सामाजिक रूढ़ियों में उनका विश्वास नहीं था। उसकी दृष्टि में नर-नारी सब समान थे। वे विधवा-विवाह के पक्ष में थे।
अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत एक सच्चे साधु थे।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 9.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश/मूलभाव दिया है।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ के माध्यम से लेखक ने संदेश दिया है कि ईश्वर की भक्त करने के लिए मनुष्य को समाज छोड़कर जंगलों में आने की आवश्यकता नहीं है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी प्रभु-भक्ति की जा सकती है। बालगोबिन भगत का जीवन इसका प्रमाण है। वह साधारण गृहस्थी है। वह खेतीबाड़ी का काम करता है, और सदा सच बोलता है। वह दूसरों से कभी कपटपूर्ण व्यवहार नहीं करता। जो कुछ भी वह कमाता है, उसे ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण करता है। सांसारिक मोह के बंधन से मुक्त है। वह सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं करता। सुख-दुःख में सदैव प्रभु गुणगान करता रहता है। अतः स्पष्ट है कि लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन के माध्यम से महान संदेश दिया है कि प्रभु-भक्ति गृहस्थ जीवन में भी संभव है।

प्रश्न 10.
लेखक ने मनुष्य की श्रेष्ठता के कौन-से प्रमुख आधार बताए हैं? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पठित पाठ में लेखक ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य की श्रेष्ठतां उसके बाह्य दिखावे व पहनावे पर नहीं, अपितु उसके गुणों पर आधारित होती है। पाठ में बालगोबिन तेली जाति से संबंधित था। तेली जात को समाज नीची जाति समझता है। स्वयं लेखक भी ऐसा ही समझता था और बालगोबिन के सामने सिर झुकाना अपना अपमान समझता था किंतु बालगोबिन की प्रभु-भक्ति की भावना ने लेखक का हृदय जीत लिया और लेखक उसका सम्मान करने लगा था। न केवल लेखक ही, बल्कि सारा गाँव उसका सम्मान करता था।

प्रश्न 11.
“पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है-” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–
प्रस्तुत पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है। लेखक ने बताया है कि मनुष्य जन्म या जाति के आधार पर बड़ा नहीं होता, मनुष्य तो अपने शुभ कर्मों व गुणों के आधार पर बड़ा होता है। लेखक स्वयं ब्राह्मण जाति से संबंधित था और ब्राह्मणत्व के नशे में चूर रहता था। वह छोटी जाति के लोगों का आदर नहीं करता था। वह तेली जाति के लोगों को हीन समझता था। किंतु लेखक को बड़े होने पर यह बात समझ आई कि व्यक्ति की महानता जाति या जन्म के आधार पर नहीं होती, अपितु व्यक्ति के कर्मों और गुणों के आधार पर होती है। इसलिए लेखक ने जाति-प्रथा को समाज विरोधी समझकर उस पर करारा व्यंग्य किया है।

प्रश्न 12.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ में लेखक के मृत्यु संबंधी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में मृत्यु को दुःख या शोक का कारण न बताकर उत्सव व प्रसन्नता का कारण बताया गया है। बालगोबिन भगत अपने बेटे की मृत्यु पर जरा भी दुःखी नहीं हुए और न अपनी पुत्रवधू को रोने दिया। वे मृत्यु को आत्मा का परमात्मा से मिलन का साधन मानते हैं। इसलिए मृत्यु को उत्सव की भाँति समझना चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ साहित्य रेखाचित्र विधा के अंतर्गत आता है।

प्रश्न 2.
बालगोबिन की टोपी कैसी थी?
उत्तर-
बालगोबिन की टोपी कबीरपंथियों जैसी थी।

प्रश्न 3.
लेखक बालगोबिन भगत की किस विशेषता पर अत्यधिक मुग्ध था?
उत्तर-
लेखक बालगोबिन भगत के मधुर के गान पर अत्यधिक मुग्ध था।

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत के कितने बेटे थे?
उत्तर-
एक बेटा था।

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प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत आत्मा और परमात्मा के बीच कौन-सा संबंध मानते थे?
उत्तर-
बालगोबिन भगत आत्मा और परमात्मा के बीच प्रेमी-प्रेमिका का संबंध मानते थे।

प्रश्न 6.
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील क्या थी?
उत्तर-
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील पतोहू का पुनर्विवाह करवाना था।

प्रश्न 7.
लेखक ने बालगोबिन भगत की आयु कितनी बताई है?
उत्तर-
साठ वर्ष से अधिक।

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत ने पुत्र की मृत्यु के उपरांत पतोहू को रोने के बदले क्या करने को कहा?
उत्तर-
बालगोबिन भगत ने पुत्र की मृत्यु के उपरांत पतोहू को रोने के बदले उत्सव मनाने को कहा।

प्रश्न 9.
घर की पूरी प्रबंधिका बनकर बालगोबिन भगत को किसने दुनियादारी से मुक्त कर दिया था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू ने।

प्रश्न 10.
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु का क्या कारण था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु का कारण बीमारी था।

प्रश्न 11.
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष किस दिन देखा गया?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जब अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे तल्लीनता से गाते रहे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) यशपाल
(B) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(C) रामवृक्ष बेनीपुरी
(D) स्वयं प्रकाश
उत्तर-
(C) रामवृक्ष बेनीपुरी

प्रश्न 2.
बालगोबिन भगत की आयु कितनी थी?
(A) 50 वर्ष
(B) 60 वर्ष से अधिक
(C) 70 वर्ष
(D) 80 वर्ष
उत्तर-
(B) 60 वर्ष से अधिक

प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत किसके आदर्शों पर चलते थे?
(A) तुलसीदास के
(B) कबीर के
(C) सूरदास के
(D) नानक के
उत्तर-
(B) कबीर के

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत कैसे कद के व्यक्ति थे
(A) लम्बे
(B) छोटे
(C) मंझोले
(D) सामान्य
उत्तर-
(C) मंझोले

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प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत अपनी फसल को पहले कहाँ ले जाते थे?
(A) मंदिर में
(B) गुरुद्वारे में
(C) मस्जिद में
(D) कबीरपंथी मठ में
उत्तर-
(D) कबीरपंथी मठ में

प्रश्न 6.
लेखक ने “रोपनी’ किसे कहा है?
(A) रोपण को
(B) धान की रोपाई को
(C) धान की कटाई को
(D) धान की खेती को
उत्तर-
(B) धान की रोपाई को

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत खेत में क्या करते हैं?
(A) केवल गीत गाते हैं .
(B) खेत की मेंड़ पर बैठते हैं
(C) धान के पौधे लगाते हैं
(D) उपदेश देते हैं
उत्तर-
(C) धान के पौधे लगाते हैं

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत का रंग कैसा था
(A) साँवला
(B) काला
(C) गेहुंआ
(D) गोरा चिट्टा
उत्तर-
(D) गोरा चिट्टा

प्रश्न 9.
बालगोबिन भगत के गीतों में कौन-सा भाव व्यक्त होता था?
(A) शृंगार का भाव
(B) विरह का भाव
(C) ईश्वर भक्ति का भाव
(D) वैराग्य का भाव
उत्तर-
(C) ईश्वर भक्ति का भाव ।

प्रश्न 10.
‘तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग ज़रा!’ इस पंक्ति में मुसाफिर किसे कहा गया है?
(A) यात्री को
(B) मनुष्य को
(C) पथिक को
(D) बालक को
उत्तर-
(B) मनुष्य को

प्रश्न 11.
कार्तिक मास आने पर बालगोबिन भगत क्या करने लगते थे?
(A) प्रभातफेरी शुरू करने लगते
(B) गंगा-स्नान करने लगते
(C) भजन करने लगते
(D) सत्संग करने लगते
उत्तर-
(A) प्रभातफेरी शुरू करने लगते

प्रश्न 12.
बालगोबिन भगत के संगीत को लेखक ने क्या कहा है?
(A) उपदेश
(B) लहर
(C) जादू
(D) शहनाई
उत्तर-
(C) जादू

प्रश्न 13.
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील क्या थी?
(A) पतोहू का पुनर्विवाह करवाना
(B) पतोहू को शिक्षा दिलवाना
(C) पतोहू को घर से निकालना
(D) पतोहू से घृणा करना
उत्तर-
(A) पतोहू का पुनर्विवाह करवाना

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प्रश्न 14.
बालगोबिन भगत की मृत्यु का क्या कारण था?
(A) दुर्घटना
(B) बीमारी
(C) भूख
(D) बेटे की मृत्यु की चिंता
उत्तर-
(B) बीमारी

प्रश्न 15.
बाल गोबिन भगत की प्रभातियाँ कब तक चलती थीं-
(A) फागुन तक
(B) कार्तिक तक
(C) बैशाख तक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(A) फागुन तक

प्रश्न 16.
बालगोबिन भगत गंगा स्नान करने किस साधन से जाते थे?
(A) मोटरगाड़ी से
(B) रेलगाड़ी से
(C) बैलगाड़ी से
(D) पैदल
उत्तर-
(D) पैदल

प्रश्न 17.
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु पर अंतिम संस्कार में आग किससे दिलाई गई?
(A) स्वयं बालगोबिन भगत से
(B) पतोहू से
(C) रिश्तेदार से
(D) पतोहू के भाई से
उत्तर-
(B) पतोहू से

प्रश्न 18.
बालगोबिन भगत के घर से गंगा नदी कितनी कोस दूर थी?
(A) 10
(B) 30
(C) 50
(D) 80
उत्तर-
(B) 30

प्रश्न 19.
बालगोबिन भगत के कितने बेटे थे?
(A) तीन
(B) चार
(C) दो ।
(D) एक
उत्तर-
(D) एक

प्रश्न 20.
बालगोबिन भगत कौन-सा वाद्य यंत्र बजाते थे?
(A) बाँसुरी
(B) तानपूरा
(C) सितार
(D) बँजड़ी
उत्तर-
(D) बँजड़ी

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

बालगोबिन भगत गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे। नहीं, बिलकुल गृहस्थ! उनकी गृहिणी की तो मुझे याद नहीं, उनके बेटे और पतोहू को तो मैंने देखा था। थोड़ी खेतीबारी भी थी, एक अच्छा साफ-सुथरा मकान भी था।
किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज़ ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुज़र चलाते! [पृष्ठ 70]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ऊपर की तस्वीर के अनुसार बालगोबिन कैसे लगते थे?
(ग) क्या बालगोबिन एक गृहस्थ थे? स्पष्ट कीजिए।
(घ) बालगोबिन किसको साहब मानते थे?
(ङ) बालगोबिन गृहस्थ होते हुए भी साधु थे-कैसे?
(च) बालगोबिन का दूसरों के प्रति व्यवहार कैसा था?
(छ) मठ बालगोबिन की फसलों का क्या करता था?
(ज) इस गद्यांश का मूलभाव क्या है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) ऊपर की तस्वीर के अनुसार बालगोबिन एक साधु लगते थे। उनकी आयु साठ वर्ष के लगभग होगी। वे रंग-रूप में अत्यधिक गोरे थे। उनके सिर और दाढ़ी के बाल सफेद हो चुके थे। उनका कद मँझोला था। वे प्रायः एक लंगोटी में रहते थे। सिर पर कबीरपंथियों के समान कनफटी टोपी धारण करते थे। सर्दी आने पर काला कंबल ओढ़ते थे। उनके माथे पर चंदन का लेप रहता था और गले में तुलसी की माला रहती थी।

(ग) बालगोबिन भगत वास्तव में ही गृहस्थ थे। वे देखने में भले ही संन्यासी लगते हों, किंतु एक सच्चे गृहस्थी के सारे कर्तव्यों का पालन करते थे। उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी किंतु उनका बेटा और बहू उनके साथ रहते थे। वे दूसरों से सदा ही सद्व्यवहार करते थे। वे दूसरों से कोई भी वस्तु माँगने से या उधार लेने से बचते थे। यहाँ तक कि वे किसी दूसरे के खेत में शौच तक न जाते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

(घ) बालगोबिन संत कबीर को अपना ‘साहब’ अर्थात् स्वामी मानते थे।

(ङ) बालगोबिन भगत गृहस्थी थे और एक सच्चे गृहस्थी की भाँति व्यवहार करते थे। किंतु उनका व्यवहार साधु-संन्यासियों जैसा था। उन्हें ईश्वर (साहब) में पूर्ण विश्वास था। उन्हें संसार की किसी भी वस्तु से मोह नहीं था। वे सबसे सच्चा और खरा व्यवहार करते थे। उनकी बातों में जरा भी संदेह नहीं होता था। अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं गया था।

(च) बालगोबिन का दूसरों के प्रति अत्यंत उचित व्यवहार था। वे कभी किसी से झूठ नहीं बोलते थे और न ही किसी प्रकार का धोखा करते थे। किसी से उधार माँगकर कभी किसी को तंग नहीं करते थे। कभी किसी बात पर दूसरों से झगड़ा नहीं करते थे।

(छ) कबीरपंथी मठ का सेवक बालगोबिन की फसल में से कुछ अंश अपने पास रख लेता था और शेष उन्हें प्रसाद के रूप में लौटा देता था। इस अनाज को लेकर बालगोबिन घर आ जाता था और उसी से घर का गुजारा चलाता था।

(ज) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया है। वे कभी किसी से झूठ, लोभ व क्रोधयुक्त व्यवहार नहीं करते थे। वे पूर्णरूप से ईश्वर में विश्वास रखते थे। वे अपनी नेक कमाई को पहले भगवान के प्रति अर्पित करते थे और फिर भोग करते थे। उनके भोग में त्याग की भावना सदैव बनी रहती थी। कहने का भाव है कि यदि हम भी बालगोबिन के इन गुणों को अपना लें तो हमारा भी कल्याण हो जाएगा।

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से लिया गया है। इस पाठ में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन और आदर्शों पर प्रकाश डाला है।

आशय/व्याख्या-बालगोबिन भगत की बनाई गई तस्वीर से वे एक साधु लगते थे, किंतु वास्तव में वे एक गृहस्थी थे। उनकी पत्नी की तो लेखक को याद नहीं है, किंतु उनके बेटे और बेटे की पत्नी को अवश्य देखा था। वे थोड़ा-बहुत खेतीबाड़ी (कृषि) का काम भी करते थे। उनका एक साफ-सुथरा मकान भी था। बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी के साथ-साथ पारिवारिक काम भी करते थे। इन सबके होते हुए भी वे भगत एवं साधु-संन्यासी थे। उनमें साधु-संन्यासियों वाले सभी गुण थे। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उन्हीं के आदर्शों पर चलते थे और कभी झूठ नहीं बोलते थे। वे दूसरों के साथ सच्चा एवं खरा व्यवहार करते थे। किसी के साथ बिना बात के झगड़ा भी नहीं करते थे। दूसरों की वस्तुओं को स्पर्श तक नहीं करते थे। बिना पूछे कभी किसी की वस्तु का प्रयोग भी नहीं करते थे। उनके ऐसे व्यवहार को देखकर लोग हैरान रह जाते थे। वे दूसरों के खेत में शौच भी नहीं जाते थे। वे अपनी हर वस्तु को ईश्वर की वस्तु मानते थे। उनके खेत में जो अनाज उत्पन्न होता, उसे अपने सिर पर उठाकर साहब के दरबार में ले जाते थे। दरबार कबीरपंथी मठ था। वहाँ से जो अनाज उन्हें प्रसाद रूप में मिलता था, उसे घर लाते और उसी में गुजारा करते थे।

(2) आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अँगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करने वालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू! [पृष्ठ 71]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने किस अवसर का वर्णन किया है?
(ग) बालगोबिन भगत क्या कर रहे थे?
(घ) बालगोबिन भगत के संगीत का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ङ) बालगोबिन भगत के संगीत को जादू क्यों कहा गया?
(च) बच्चे और महिलाएँ क्या कर रहे थे?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली रिमझिम वर्षा का वर्णन किया है। इस अवसर पर गाँव में किसान धान की फसल रोपने का काम करते हैं। आकाश बादलों से घिरा हुआ था तथा पुरवाई हवाएँ चल रही थीं।

(ग) बालगोबिन भगत अपने खेत में धान के रोपने का काम कर रहे थे। वे हर पौधे को पंक्ति में लगा रहे थे।

(घ) बालगोबिन भगत धान के रोपन के साथ-साथ मधुर कंठ से गीत गा रहे थे। उनके गीत का वहाँ उपस्थित लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे मंत्रमुग्ध हो गए तथा गीत की ताल पर क्रम से काम करने लगे।

(ङ) भगत जी के संगीत को जादू इसलिए कहा गया है क्योंकि उसका सभी के हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था। उसे सुनकर बच्चे मस्त हो जाते तथा स्त्रियाँ उसके साथ-साथ गुनगुनाने लगती थीं। किसानों के पैरों में तो मानो लय-सी आ जाती थी। धान रोपते हुए किसानों की अँगुलियाँ क्रम से चलने लगती थीं।

(च) बच्चे उछल-उछलकर मौसम का आनंद उठा रहे थे और गीली मिट्टी में लिथड़कर खुश हो रहे थे। औरतें किसानों के लिए नाश्ता भोजन लेकर खेतों की मेंड़ों पर बैठी थीं।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने वर्षा ऋतु के प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण किया है। आषाढ़ के महीने में सभी किसान अपने-अपने खेतों में धान रोपने के काम में जुट जाते हैं। लेखक बालगोबिन भगत की मस्ती, तल्लीनता और उसकी संगीत-कला की जादुई मिठास का वर्णन करना चाहता है। वह किसान भी है और संगीतकार भी।

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(ज) प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली वर्षा और बालगोबिन भगत द्वारा धान रोपने का वर्णन किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक कहता है कि आसमान पर बादल छाए हुए थे, धूप कहीं भी दिखाई नहीं देती थी। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। ऐसे मनभावन समय में एक मधुर स्वर की झंकार कानों में सुनाई पड़ रही थी। वहाँ के लोगों को इस मधुर स्वर व उसके गाने वाले के विषय में पूछना नहीं पड़ता। बालगोबिन भगत जिनका समूचा शरीर कीचड़ से लथपथ है, अपने खेत में धान की फसल का आरोपण कर रहे हैं। उनके हाथों की अगुलियाँ जहाँ धान के एक-एक पौधे को पंक्ति में बैठा रही हैं, वहीं उनके कंठ से निकला एक-एक शब्द संगीत की सीढ़ियों से चढ़कर स्वर्ग की ओर जा रहा है। उनके मधुर स्वर को सुनकर बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं। स्त्रियाँ उन शब्दों को अपने स्वर में गुनगुनाने लगती हैं। हल चलाने वालों के पैर उसके शब्दों की ताल के अनुसार ही उठने लगते हैं। खेत में धान के पौधों को रोपने वाले लोगों की अंगुलियाँ भी उनके संगीतमय स्वर के अनुकूल ही काम करने लगती हैं। बालगोबिन भगत के संगीत का प्रभाव आस-पास के लोगों पर जादू-सा काम करता है।

(3) भादो की वह अँधेरी अधरतिया। अभी, थोड़ी ही देर पहले मुसलधार वर्षा खत्म हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प .. में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर्र बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती। उनकी बँजड़ी डिमक-डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं-“गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना!” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है, वह अकेली है, चमक उठती है, चिहक उठती है। उसी भरे-बादलों वाले भादो की आधी रात में उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है! तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा! [पृष्ठ 71]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) भादो की रात का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
(ग) भगत जी के गीतों में कौन-सा भाव व्यक्त होता था?
(घ) ‘तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग ज़रा’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ङ) जब सारा संसार सो रहा था तब कौन जाग रहा था?
(च) प्रस्तुत गद्यांश में बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता उभरकर सामने आती है?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) लेखक ने भादो की रात का वर्णन करते हुए कहा है कि भादो की रात अत्यधिक अँधेरी थी। आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। वर्षा होने वाली थी। बादल गरज रहे थे और बिजली कड़क रही थी। झाड़ियों से झिल्ली की झंकार सुनाई दे रही थी। मेंढकों के टर्राने की ध्वनि भी सुनाई पड़ रही थी। ऐसे वातावरण को बालगोबिन का गीत और भी मधुर बना रहा था।

(ग) बालगोबिन भगत के गीत ईश्वर-भक्ति की भावना से भरे होते थे। उनमें परमात्मा से बिछुड़ने की पीड़ा और भूले हुओं को जगाने के भाव भरे होते थे।

(घ) इस पंक्ति में कवि ने मनुष्य को विषय-वासनाओं से सावधान रहते हुए जीवन व्यतीत करने की चेतावनी दी है। कवि कहता है, हे मानव! तेरे जीवन का हर क्षण नष्ट हो रहा है। जीवन रूपी गठरी को पंच विकार रूपी चोर चुराने में लगे हुए हैं। अतः समय रहते तू सावधान हो जा और प्रभु का भजन कर जिससे तुझे मोक्ष प्राप्त हो सकेगा।

(ङ) जब सारा संसार खामोशी में सो रहा था तब बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा था अर्थात् उस समय बालगोबिन जागकर प्रभु-भजन कर रहे थे।

(च) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व के विषय में बताया है कि वे एक सच्चे भगत थे। उनका जीवन साधु-संन्यासियों जैसा त्यागशील एवं मोह रहित था। वे गृहस्थी होते हुए भी सच्चे साधु थे। उनकी ईश्वर में गहन आस्था थी। वे रात को जाग-जागकर प्रभु-भक्ति के गीत गाते थे। उसे प्रभु को भूले हुए लोगों को प्रभु की याद दिलाना बहुत अच्छा लगता था।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में से संकलित एवं श्री रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से अवतरित है। इस पाठ में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन के गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि भादो की अंधेरी रातों में बालगोबिन भगत जाग-जाग कर ईश्वर-भक्ति के गीत गाते थे। वे अपने गीतों के माध्यम से लोगों को ईश्वर-भक्ति की याद दिलाते थे।

आशय/व्याख्या-लेखक ने भादो की रात का वर्णन करते हुए कहा है कि भादो की अंधेरी रात थी। आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। अभी-अभी वर्षा समाप्त हुई थी। बादल गरज रहे थे। बिजली कड़क रही थी। झिल्ली की झंकार और मेंढकों के टर्राने की ध्वनि सुनाई दे रही थी, किंतु ये सब मिलकर भी बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सके। उनकी बँजड़ी धीरे-धीरे, डिमक-डिमक कर बज रही थी और वे मधुर ध्वनि में गा रहे थे ‘गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया चिहुँक उठे ना” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है कि वह अकेली है। वह चमक उठती है। कहने का भाव है कि आत्मा और परमात्मा सदा साथ-साथ रहते हैं। उस बादलों से भरी हुई भादो की आधी रात को उनका यह मधुर गीत अँधेरे में एकाएक ऐसे कौंध जाता है जैसे अँधेरी रात में बादलों में बिजली चमक उठती है। जब सारा संसार एकांत में सोया होता है, तब बालगोबिन भगत का संगीत निरंतर जाग रहा होता है
और लोगों को भी जगा रहा होता है। वे कहते हैं, “तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा।” अर्थात् हे मनुष्य! तेरा जीवन प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। जीवन रूपी गठरी को पंच विकार रूपी चोर चुराने में लगे हुए हैं। इसलिए तुझे सावधान रहना चाहिए।

(4) बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किंतु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज़्यादा नज़र रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील मिली थी। घर की पूरी प्रबंधिका बनकर भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त कर दिया था उसने। उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुरसत! किंतु मौत तो अपनी ओर सबका ध्यान खींचकर ही रहती है। हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया। कुतूहलवश उनके घर गया। देखकर दंग रह गया। बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपते रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है। और, उसके सामने ज़मीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं! वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। [पृष्ठ 72-73]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) जिस दिन बालगोबिन का बेटा मरा, उस दिन क्या देखा गया? ।
(ग) लेखक ने बेटे की मृत्यु पर गायन को संगीत-साधना का चरमोत्कर्ष क्यों कहा है?
(घ) बालगोबिन भगत अपने बेटे को किस कारण अधिक प्यार करते थे?
(ङ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू कैसी थी?
(च) लेखक में किस बात का कुतूहल था?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार आपको बालगोबिन के जीवन की कौन-सी विशेषता प्रभावित करती है?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) जिस दिन बालगोबिन का बेटा मरा, उस दिन उनके संगीत का चरमोत्कर्ष देखा गया। उस दिन एक सच्चे संगीतकार की साधना की सफलता भी देखी गई थी।

(ग) लेखक के अनुसार साधना वही है जब व्यक्ति अपनी सुध-बुध खोकर परमात्मा की भक्ति में लीन हो जाए और उसको किसी प्रकार का दुःख प्रभावित न कर सके। इकलौते बेटे की मृत्यु से बढ़कर और कोई दुःख नहीं हो सकता। जो व्यक्ति अपने बेटे की मृत्यु पर भी भजन गा सकता है, उसके लिए उससे बढ़कर संगीत साधना और क्या हो सकती है।

(घ) बालगोबिन भगत अपने पुत्र से बहुत प्यार करते थे। उनका वह पुत्र बहुत ही कमज़ोर और सुस्त था। उनका मानना था कि ऐसे बच्चों को प्यार की अधिक ज़रूरत होती है। इसलिए वे अपने पुत्र को अधिक प्यार करते थे।

(ङ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू बहुत ही सुंदर एवं सुशील युवती थी। वह घर के काम-काज में निपुण थी तथा एक अच्छी प्रबंधिका भी थी। उसके इस प्रबंधन के गुण के कारण ही बालगोबिन जी गृहस्थ जीवन से मुक्त हो पाए थे।

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(च) लेखक को इस बात को लेकर कुतूहल था कि उसका इकलौता बेटा मर गया है तथा उसका शव अभी घर में ही पड़ा हुआ है। ऐसे में वह कैसे गा सकता है? उसे तो शोक मनाना चाहिए था किंतु लेखक ने देखा कि वह पुत्र की लाश के पास ही आसन जमाकर गाए जा रहा था।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार, बालगोबिन भगत की सच्ची भक्ति, तल्लीनता, धैर्य और संगीत की मस्ती हमें अत्यधिक प्रभावित करती है। उनके हृदय में प्रभु के प्रति अडिग विश्वास था जो सबके हृदय को प्रभावित किए बिना नहीं रहता।

(ज) प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इन पंक्तियों में उन्होंने बालगोबिन भगत के बेटे की मृत्यु की घटना का वर्णन किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि जिस दिन बालगोबिन भगत का बेटा मरा था, उस दिन उनकी संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष अर्थात् चरम सीमा देखी गई थी। एक सफल एवं सच्चे संगीतकार की सफलता देखी गई थी। बालगोबिन का इकलौता बेटा कुछ सुस्त एवं कमजोर था। इसी कारण बालगोबिन उसका अधिक ध्यान रखते थे। बालगोबिन का मत था कि ऐसे व्यक्तियों पर हमें अधिक ध्यान देना चाहिए और दूसरों की अपेक्षा उन्हें प्यार भी अधिक करना चाहिए। वे देखभाल और प्यार के ज्यादा हकदार होते हैं। उन्होंने बहुत-ही सीधे ढंग से अपने बेटे का विवाह करवाया था। उसकी पत्नी बहुत सुशील एवं विनम्र स्वभाव वाली थी। उसने घर का सारा काम-काज संभाल लिया था, जिससे बालगोबिन भगत ने दुनियादारी से छुटकारा पा लिया था। बालगोबिन का बेटा बीमार पड़ गया, परंतु काम-काज की व्यस्तता से किसको फुर्सत जो बीमार का हाल जानें, किंतु मृत्यु तो सबका ध्यान अपनी ओर दिला देती है और एक दिन उसकी मौत हो गई। उसकी मौत का समाचार सारे गाँव को मिल गया। लेखक भी उसके घर गया। यह देखकर हैरान था कि बालगोबिन ने अपने बेटे के शव को आंगन में एक चटाई पर लिटाकर सफेद कपड़े से ढक रखा था। उस पर कुछ फूल और तुलसी के पत्ते बिखेर दिए थे। उसके सिराहने एक दीप जलाया हुआ था। वे उसके सामने बैठकर गीत गा रहे थे। उनके गीत का स्वर पहले जैसा ही था और उतनी ही तल्लीनता भी थी। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत की ईश्वर-भक्ति और गीत की तल्लीनता को बेटे की मौत जैसा आघात भी नहीं डिगा सका था।

(5) बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू
के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहतीमैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए। लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा-यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती? [पृष्ठ 73]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बालगोबिन की दृष्टि में स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं है-स्पष्ट कीजिए।
(ग) बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं रखते, पठित गद्यांश के आधार पर सिद्ध कीजिए।
(घ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू उनके पास क्यों रहना चाहती थी?
(ङ) बालगोबिन भगत ने अपनी पुत्रवधू को वापस भेजने के लिए किस युक्ति से काम लिया?
(च) भगत जी की पुत्रवधू की क्या इच्छा थी?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश में बालगोबिन भगत के चरित्र की किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग बताते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) बालगोबिन भगत उदार एवं प्रगतिशील विचारों वाले व्यक्ति हैं। उनकी दृष्टि में स्त्री-पुरुष बराबर हैं। हमारे समाज में प्राचीनकाल से माना जाता है कि मृतक को आग लगाने का अधिकार पुत्र या किसी पुरुष को है। स्त्री इस कार्य को नहीं कर सकती। नारी को तो श्मशान भूमि में जाने तक की अनुमति नहीं है। किंतु बालगोबिन भगत ने इन मान्यताओं को नहीं माना और अपने बेटे की चिता को अपनी पुत्रवधू से आग दिलवाई थी। इससे पता चलता है कि बालगोबिन भगत की दृष्टि में नर-नारी सब एक समान हैं।

(ग) निश्चय ही बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों को नहीं मानते। उन्होंने अपनी पुत्रवधू से अपने बेटे की चिता को आग दिलवाकर सदियों से चली आ रही परंपरा को सहज ही तोड़ डाला। ऐसी हिम्मत किसी-किसी व्यक्ति में ही होती है। इससे पता चलता है कि भगत जी सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं रखते थे।

(घ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू पति की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत के पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन बनाने व गृहस्थी के अन्य कार्य करने के लिए ही उनके पास रहना चाहती थी।

(ङ) जब बालगोबिन भगत ने अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ जाने के लिए कहा तो वह जिद्द करने लगी कि वह उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाएगी। आजीवन उनकी सेवा करती रहेगी। किंतु बालगोबिन भी अपने इरादे के पक्के थे। उन्होंने कहा यदि
यहाँ रहना चाहती है तो रह, किंतु मैं यह घर छोड़कर अन्यत्र चला जाऊँगा। भगत जी की यह धमकी सुनकर उनकी पुत्रवधू अपने मायके जाने के लिए तैयार हो गई थी।

(च) भगत जी की पुत्रवधू उनके पास रहकर उनके बुढ़ापे का सहारा बनना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन बनाना चाहती थी और उनकी सेवा करना चाहती थी।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर हम कह सकते हैं कि बालगोबिन भगत एक उदार हृदय और सुलझे हुए व्यक्ति थे। वे अपने निजी स्वार्थ के लिए दूसरों के जीवन में किसी प्रकार की बाधा नहीं बनना चाहते थे। यही कारण है कि वह अपनी चिंता किए बिना अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ भेज देते हैं ताकि वह पुनः विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत कर सके। बालगोबिन भगत दृढ़ विचारों वाले व्यक्ति थे। वे जिस काम को करने का निश्चय कर लेते, उसे पूर्ण करके छोड़ते थे।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ में लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी ने बालगोबिन भगत के जीवन का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में बालगोबिन भगत के विषय में बताया गया है कि वे स्त्री-पुरुष में कोई अन्तर नहीं समझते थे और न ही सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास करते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

आशय/व्याख्या-लेखक ने बताया है कि बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की चिता को आग स्वयं न देकर उसकी पत्नी से ही दिलवाई थी। समाज में ऐसा नहीं होता था। चिता को आग हमेशा से पुरुष ही देते आए थे। ज्यों ही श्राद्ध का समय पूरा हुआ पतोहू के भाई को बुलाकर उसे उसके साथ भेज दिया तथा यह आदेश भी दे दिया कि इसका दूसरा विवाह अवश्य कर देना। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत विधवा विवाह के पक्ष में थे, किंतु बालगोबिन की पतोहू जिद्द करने लगी कि वह उनके साथ रहकर उनकी सेवा करेगी। यदि मैं चली जाऊँगी तो इस बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा। यदि बीमार पड़ गए तो कौन आपको पानी देगा। मैं आपके पैर पड़ती हूँ आप मुझे अपने से अलग मत कीजिए, किंतु बालगोबिन भगत का निर्णय अटल था। उन्होंने कहा कि यदि तू इस घर से नहीं जाएगी तो मैं यह घर छोड़कर चला जाऊँगा। यह उनका आखिरी तर्क था। इस तर्क के सामने पतोहू की एक न चली। उसे अपने भाई के साथ जाना पड़ा। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत दृढ़ निश्चयी और उदार दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे।

बालगोबिन भगत Summary in Hindi

बालगोबिन भगत लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी के सुप्रसिद्ध निबंधकार हैं। इनका जन्म सन् 1899 को बिहार प्रदेश के मुजफ्फरपुर जिले के छोटे से गाँव बेनीपुर में हुआ था। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया था। इनका पालन-पोषण इनके ननिहाल में हुआ। इन्होंने बड़ी कठिनाई से मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की थी। श्री बेनीपुरी जी सन् 1920 में महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने स्वाध्याय के बल पर हिंदी ज्ञान में निपुणता प्राप्त की तथा अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाओं का भी गंभीर अध्ययन किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय श्री बेनीपुरी जी दस बार जेल गए। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् सन् 1957 में आप बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। बेनीपुरी जी ने लगभग 15 वर्ष की आयु में पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू किया तथा पत्रकारिता को जीवनयापन के साधन के रूप में अपना लिया। इन्होंने समय-समय पर ‘किसान मित्र’, ‘तरुण भारत’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘जनवाणी’, ‘नई धारा’, ‘कर्मवीर’ आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया है। इनका निधन सन् 1968 में हुआ था।

2. प्रमुख रचनाएँ श्री बेनीपुरी जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-

  • उपन्यास-‘कैदी की पत्नी’ और ‘पतितों के देश में’।
  • कहानी-संग्रह ‘चिता के फूल’।
  • नाटक तथा एकांकी-‘अंबपाली’, ‘संघमित्रा’, ‘सीता की माँ’, ‘नेत्रदान’, ‘तथागत’, ‘विजेता’, ‘राम- राज्य’ तथा ‘गाँव का देवता’।
  • रेखाचित्र-‘माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ और गुलाब’, ‘मन और विजेता’।
  • निबंध तथा संस्मरण-‘जंजीरें और दीवारें’, ‘मुझे याद है’, ‘मेरी डायरी’, ‘नयी नारी’, ‘मशाल’।
  • यात्रा-वृत्तांत-‘मेरे तीर्थ’, ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’, ‘पैरों में पंख बाँधकर’।
  • जीवनी-‘कार्ल मार्क्स’, ‘जयप्रकाश नारायण’।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाओं में प्रमुख रूप से स्वाधीनता की चेतना, मनुष्यता की चिंता और इतिहास की युगानुरूप व्याख्या है। वे निष्ठावान भारतीय संस्कृति के पुजारी भी हैं। इनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। इनके साहित्य में गहन अनुभूतियों और उच्च कल्पनाओं का सुंदर मिश्रण है। इनकी रचनाओं में जहाँ जीवन से संबंधित ज्वलंत समस्याओं को उठाया गया है, वहाँ उनके समाधानों की ओर संकेत भी किए गए हैं। सार रूप में कहा जा सकता है कि रामवृक्ष बेनीपुरी जी का साहित्य उच्चकोटि का साहित्य है, जिससे मानवता के विकास की प्रेरणा मिलती है।

4. भाषा-शैली-श्री रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य की भाषा सरल, सहज, रोचक एवं ओजस्वी है। अलंकृत एवं भावनापूर्ण शैली के कारण हिंदी गद्य-साहित्य में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव, देशज, उर्दू-फारसी व अंग्रेज़ी के शब्दों का अत्यंत सटीक एवं सार्थक प्रयोग किया है। इन्होंने लोक प्रचलित मुहावरों व लोकोक्तियों का भी सफल प्रयोग किया है।

बालगोबिन भगत पाठ का सार

प्रश्न-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ एक रेखाचित्र है। लेखक ने इसमें एक ऐसे विलक्षण चरित्र का वर्णन किया है जो मानवता, संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। लेखक की मान्यता है कि वेशभूषा व बाह्य दिखावे से कोई संन्यासी नहीं होता। संन्यास का आधार तो जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं। पाठ का सार इस प्रकार है

बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे वर्ण के व्यक्ति थे। उनकी आयु साठ से ऊपर की थी। उनके सिर के बाल और दाढ़ी सफेद थे। वे शरीर पर कपड़ों के नाम पर केवल एक लंगोटी बाँधते थे और सिर पर कबीर टोपी पहनते थे और सर्दी के मौसम में काली कमली ओढ़ लेते थे। वे माथे पर चंदन और गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। वे संन्यासी नहीं, गृहस्थ थे और थोड़ी बहुत खेतीबाड़ी भी करते थे। वे गृहस्थ होते हुए भी साधु की परिभाषा में खरे उतरते थे। वे कबीर के विचारों से बहुत प्रभावित थे। वे सदा सत्य बोलते और सद्व्यवहार करते थे। वे किसी से व्यर्थ में झगड़ा मोल नहीं लेते थे। वे बिना पूछे किसी वस्तु को नहीं छूते थे। उनके लिए कबीर ‘साहब’ थे और उनका सब कुछ ‘साहब’ का था। उनके खेत में जो फसल उत्पन्न होती थी, उसे वे सबसे पहले साहब के दरबार में ले जाते थे। वह उनके घर से चार कोस दूर था।

बालगोबिन भगत एक अच्छे गायक भी थे। उनका मधुर गान सदा सुनाई पड़ता था। वे कबीर के पदों को गाते रहते थे। आषाढ़ आते ही खेतों में धान की रोपाई शुरू हो जाती थी। पूरा गाँव, अर्थात् आदमी, औरतें और बच्चे खेतों में दिखाई देते थे। खेतों में रोपाई करते समय हर किसी के कानों में गाने का स्वर गूंजता रहता था। उनके संगीत से सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था। सभी लोग एक ताल में एक क्रम में काम करने लगते थे। वे भादों की अंधेरी रातों में पिया के प्यार के गीत गाते थे। उनके अनुसार पिया के साथ होते हुए भी प्रियतमा अपने-आपको अकेली समझती है और बिजली की चमक से चौंक उठती है। जब सारा संसार सो रहा होता था, उस समय बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। बालगोबिन कार्तिक से फागुन तक प्रभाती गाया करते थे। वे सुबह अंधेरे में उठकर, दो मील चलकर नदी स्नान करते थे। वापसी में गाँव के बाहर पोखरे पर वे अपनी खजड़ी लेकर बैठ जाते और गीत गाने लगते थे। लेखक को देर तक सोने की आदत थी, परंतु एक दिन उसकी आँख जल्दी खुल गई। वे माघ के दिन थे। लेखक को बालगोबिन का संगीत गाँव के बाहर पोखर पर ले गया। वे अपने संगीत में बहुत मस्त थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं लेकिन लेखक ठंड के मारे काँप रहा था। गर्मियों में उमसभरी शाम को वे अपने गीतों से शीतल कर देते थे। उनके गीत लोगों के मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। वे भी बालगोबिन की तरह मस्ती में नाचने लगते थे। उनके घर का आँगन संगीत-भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था।

बालगोबिन की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष उस दिन देखने को मिला जिस दिन उनके बेटे की मृत्यु हुई थी। उनका एक ही बेटा था जो कुछ सुस्त रहता था। वे उसे अत्यधिक प्रेम करते थे और उसका ध्यान भी रखते थे। वह उनका इकलौता बेटा था। उसकी शादी भी उन्होंने बड़ी साध से करवाई थी। उनकी पुत्रवधू गृह प्रबंध में अत्यंत कुशल थी। उसने आते ही घर का सारा काम-काज संभाल लिया था। लेखक बालगोबिन भगत के उस कार्य से हैरान रह गया था। उन्होंने अपने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढक रखा था। उसके सिर की ओर चिराग जला रखा था। वे अपनी पुत्रवधू को भी उत्सव मनाने के लिए कहते हैं, क्योंकि उनका मानना था कि उसकी आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। भला इससे बढ़कर आनंद की क्या बात हो सकती है? यह उनका विश्वास बोल रहा था। वह विश्वास जो मृत्यु पर विजयी होता आया है। उन्होंने अपनी पतोहू से ही बेटे की चिता में अग्नि दिलवाई थी। बालगोबिन ने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर कहा था कि इसे यहाँ से ले जाओ और इसका विवाह कर दो। किंतु वह वहाँ रहकर बालगोबिन भगत की सेवा करना चाहती थी। लेकिन बालगोबिन का कहना था कि वह अभी जवान है और उसका अपनी इंद्रियों पर काबू रखना मुश्किल है। किंतु वह आग्रह कर रही थी कि मुझे अपने चरणों में ही रहने दो। भगत भी अपने निर्णय पर अटल थे। उन्होंने कहा कि यदि तू यहाँ रहेगी तो मुझे घर छोड़कर जाना पड़ेगा।

बालगोबिन भगत की मौत वैसे ही हुई जैसी वह चाहते थे। वे हर वर्ष गंगा-स्नान तथा संत-समागम के लिए जाते थे। वे घर से खाकर चलते थे और घर पर ही आकर खाते थे। उन्हें गंगा-स्नान के लिए आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे गृहस्थी थे, इसलिए किसी से भीख भी नहीं माँग सकते थे। इस बार जब गंगा-स्नान करके लौटे तो खाने-पीने के बाद भी उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ। तेज़ बुखार में भी उनके नेम-व्रत वैसे ही चलते रहे। लोगों ने नहाने-धोने व काम करने से मना किया और आराम करने के लिए कहा। उस संध्या को भी गीत गाए। ऐसा लगता था कि उसके जीवन का धागा टूट गया हो। मानो माला का एक-एक मनका बिखर गया हो। भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना, जाकर देखा तो पता चला कि बालगोबिन नहीं रहे। वहाँ सिर्फ उनका पिंजर ही पड़ा था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

कठिन शब्दों के अर्थ-

(पृष्ठ-70) मँझोले = न अधिक लंबे न छोटे। गोरे-चिट्टे = बहुत गोरे। जटाजूट = लंबे बाल। कबीरपंथी = कबीर के पंथ को मानने वाले। कनफटी. = ऐसी टोपी जिस पर कान के स्थान पर जगह कटी रहती थी। कमली = कंबल। मस्तक = माथा।
रामानंदी = रामानंद द्वारा प्रचलित। चंदन = माथे पर किया जाने वाला लेप। बेडौल = अनगढ़। गृहस्थ = विवाहित आदमी। गृहिणी = पत्नी। पतोहू = बेटे की पत्नी। खरा उतरना = सही सिद्ध होना। खरा व्यवहार रखना = सच्चा व्यवहार करना। दो-टूक बात करना = साफ-साफ बात कहना। संकोच करना = शरमाना, बचना। झगड़ा मोल लेना = जान-बूझकर लड़ाई करना। व्यवहार में लाना = प्रयोग करना। कुतूहल = जिज्ञासा, जानने की उत्सुकता। साहब = भगवान। दरबार = मंदिर, घर। प्रसाद = बाँट में मिलने वाला पदार्थ। मुग्ध = प्रसन्न, खुश। सर्वदा = हमेशा। सजीव = जीवित। रिमझिम = हल्की-हल्की बारिश। समूचा = सारा। रोपनी = धान के पौधे को खेत में रोपना। कलेवा = नाश्ता। मेंड़ = खेत का ऊँचा किनारा।

(पृष्ठ-71) पुरवाई = पूर्व दिशा से बहने वाली हवा। स्वर-तरंग = स्वर की लहर। झंकार = बजती हुई आवाज़। पंक्तिबद्ध = पंक्ति में बाँधे हुए। जीने = सीढ़ी। हलवाहों = किसान। ताल = संगीत। क्रम = सिलसिला। अधरतिया = आधी रात। मुसलधार वर्षा = तेज वर्षा। झिल्ली की झंकार = गहरी काली रातों में झाड़ियों से उठने वाला झींगुरों का स्वर। दादुर = मेंढक। खैजड़ी = डपली के आकार का उससे कुछ छोटा वाद्य-यंत्र। सखिया = सखी। चिहुँक = खुशी से चिल्ला पड़ना। कौंध उठना = चमक उठना। निस्तब्धता = सन्नाटा। प्रभाती = प्रातःकाल गाया जाने वाला गीत।

(पृष्ठ-72) पोखरे = छोटा तालाब। भिंडे = ऊँची उठी जगह। टेरना = ऊँची आवाज़ में बोलना। दाँत किटकिटानेवाली = ठंड के कारण दाँतों को कैंपाने वाली। लोही लगना = सुबह की लाली। कुहासा = कोहरा। रहस्य = छिपी हुई बात। आवृत = ढका हुआ। कुश = एक प्रकार की लंबी घास। ताँता लगना = लगातार निकलना। सुरूर = नशा। उत्तेजित = जोश से भड़का हुआ। श्रमबिंदु = पसीने की बूंदें। उमस = घुटन। करताल = तालियाँ। भरमार = अधिकता। तिहराती = तीसरी बार कहती। हावी होना = भारी पड़ना। नृत्यशील = नाचने को होना। ओतप्रोत = भरा हुआ। चरम उत्कर्ष = सबसे अधिक ऊँचाई। बोदा = कमज़ोर। निगरानी = देखभाल। साध = इच्छा, कामना। सुभग = सुंदर। सुशील = भले व्यवहार वाली। प्रबंधिका = प्रबंध करने वाली। निवृत्त = आज़ाद, मुक्त, अलग। कुतूहलवश = जानने की इच्छा के कारण। दंग = हैरान। चिराग = दीपक।

(पृष्ठ-73) तल्लीनता = पूरे मन से। उत्सव मनाना = त्योहार के समान खुशी मनाना। क्रिया-कर्म = मृत्यु के बाद निभाई जाने वाली रस्में। तूल करना = महत्त्व देना। आग दिलाना = मुर्दे को आग लगाना। श्राद्ध = मृत्यु के बाद पितरों की शांति के लिए किया गया क्रिया-कर्म। निर्णय = फैसला। अटल = जिसे टाला न जा सके। दलील = तर्क। आस्था = विश्वास। संत-समागम = संतों के साथ संगति करना। लोक-दर्शन = संतों के दर्शन। संबल = सहारा। भिक्षा = भीख। उपवास = भूखे रहना, व्रत रखना। टेक = आदत, नियम। तबीयत = स्वास्थ्य। नेम-व्रत = नियम-व्रत आदि। जून = समय। छीजन = कमज़ोर होना। तागा टूटना = जीवन की साँसें पूरी होना। पंजर = शरीर।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

HBSE 10th Class Hindi छाया मत छूना Textbook Questions and Answers

छाया मत छूना व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर-
यथार्थ का पूजन करके अर्थात यथार्थ को स्वीकार करके ही मानव जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। मनुष्य को वास्तविकता का सामना करना ही पड़ता है। हर मनुष्य अपनी परिस्थितियों में जीता है और उनके अनुसार जीवन को ढालता है। भूली-बिसरी यादों के सहारे जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। इसलिए कवि ने कठिन यथार्थ की पूजा करने के लिए कहा है।

छाया मत छूना प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट करेंप्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर-
मनुष्य प्रभुता एवं सुख-सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए जीवन-भर दौड़ता रहता है, परंतु उसकी यह दौड़ निरर्थक सिद्ध . होती है क्योंकि सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं। सुख के बाद दुःख आता ही है।

छाया मत छूना कविता की व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?
उत्तर-
कविता में ‘छाया’ शब्द अतीत की यादों के लिए प्रयुक्त हुआ है जो अब वास्तविकता से दूर हो गई हैं। इसलिए अतीत की स्मृतियों रूपी छायाएँ अनुभव करने में भले ही मधुर प्रतीत होती हों, किंतु वर्तमान की वास्तविकता नहीं हो सकती। पुरानी यादों या छाया से चिपके रहने वाला मनुष्य अपने वर्तमान को सुधार नहीं सकता और न ही भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है। इसलिए कवि ने छाया को छूने से मना किया है।

Class 10 Kshitij Chapter 7 Question Answer HBSE प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ।
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर-
गिरिजाकुमार माथुर छायावादी काव्य से प्रभावित हैं, इसलिए उन्होंने प्रस्तुत कविता में विविध विशेषण शब्दों का प्रयोग करके विषय-वर्णन में रोचकता उत्पन्न की है। आलोच्य कविता में अनेक विशेषण शब्द प्रयुक्त हुए हैं, उनमें से प्रमुख विशेषण निम्नांकित हैं

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(क) दूना दुख-दूना शब्द दुःख की गहराई को व्यक्त करता है।
(ख) सुरंग सुधियाँ यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ग) छवियों की चित्र-गंध-सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता को व्यक्त किया गया है।
(घ) तन-सुगंध-सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता है।
(ङ) शरण-बिंब-जीवन में आधार बनने की विशेषता को व्यक्त किया गया है।
(च) यथार्थ कठिन-जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता दिखाई गई है।
(छ) दुविधा-हत साहस-साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ज) शरद्-रात-रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
(झ) रस-वसंत-वसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।

छाया मत छूना HBSE 10th Class प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर-
‘मृगतृष्णा’ शब्द का साधारण अर्थ है-भ्रम या धोखा। गर्मी के मौसम में रेगिस्तान के रेत पर पड़ती हुई सूर्य की किरणों की चमक में जल का भ्रम या धोखा हो जाता है और प्यासा मृग धोखे के कारण इसे जल समझ लेता है और इसे प्राप्त करने के लिए इसके पीछे दौड़ता है, किंतु कविता में इसका प्रयोग सुख-सुविधाओं के लिए हुआ है। व्यक्ति प्रभुता एवं सुखसुविधाओं की प्राप्ति हेतु दिन-रात उनके पीछे भागता है, किंतु उसकी यह दौड़ अंतहीन है और एक दिन वह थककर गिर जाता है। इसलिए कविता में संदेश दिया गया है कि मनुष्य को मृगतृष्णा की भावना से बचकर रहना चाहिए।

Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7 HBSE  प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर-
उपरोक्त भाव निम्नलिखित पंक्ति में झलकता है’जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’।

छाया मत छूना के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस कविता में दुःख का कारण अतीत की सुखद यादों को बताया गया है। मनुष्य के जीवन में जब थोड़ा-सा भी दुःख आता है तो वह अपने वर्तमान जीवन की तुलना अतीत से करने लगता है। अतीत की मधुर स्मृतियाँ उसके मानस-पटल पर अंकित हो जाती हैं। इससे उसकी कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसा करके वह अपने दुःखों पर विजय नहीं पाता, बल्कि उसका साहस भी मंद पड़ जाता है और दुःख बढ़ जाते हैं जो उसके आगे बढ़ने के रास्ते में बाधा बन जाते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

छाया मत छूना का भावार्थ HBSE 10th Class प्रश्न 8.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’, से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन । की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र इसे स्वयं करें।

प्रश्न 9.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर? कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर-
निश्चय ही उचित समय पर प्राप्त उपलब्धियाँ अच्छी लगती हैं, जैसे गर्मी बीत जाने पर ए.सी. किस काम का? फसलें सूख जाने पर वर्षा किस काम की? इसी प्रकार रोगी के दम तोड़ देने के पश्चात् डॉक्टर का पहुँचना व्यर्थ होता है। ये सब उदाहरण देखकर लगता है कि समय बीत जाने के बाद यदि उपलब्धियाँ प्राप्त हुईं तो किस काम की। अतः हम समय पर प्राप्त उपलब्धियों के महत्त्व के पक्ष में हैं।

पाठेतर सक्रियता

आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफर करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं अपने अनुभव लिखें।

कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

यह भी जानें
प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome का हिंदी अनुवाद ‘होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।

HBSE 10th Class Hindi छाया मत छूना Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘छाया मत छूना’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
बीते हुए सुखी जीवन की स्मृति को कवि ने छाया कहा है। इसलिए कवि का कथन है कि बीते हुए सुखी जीवन की घड़ियों को स्मरण करने से कुछ प्राप्त नहीं होगा, बल्कि वर्तमान जीवन और दुःखी होगा तथा भविष्य भी भ्रम में पड़ जाएगा। यही कारण है कि कवि ने छाया अर्थात् अतीत के सुखी जीवन की यादों को भूलना ही हितकर बताया है।

प्रश्न 2.
कविता में कवि किसकी और क्यों पूजा करने पर बल देता है?
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने बताया है कि अतीत के सुखी जीवन की यादों से चिपटे रहकर तथा भविष्य की आकांक्षाओं में खोए रहने से मानव-जीवन कभी सुखी नहीं हो सकता। बीते दिनों की सुखद यादें हमें कुछ देर के लिए तो मधुर लग सकती हैं, किंतु अंत में उनसे कुछ लाभ नहीं हो सकता। उनमें डूबे रहने से वर्तमान जीवन दुःखी बन जाता है। भविष्य की आकांक्षाओं से मनुष्य दुविधा में फँस जाता है। वह निर्णय नहीं ले सकता कि उसे क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए। इसलिए कवि ने वर्तमान के कठोर यथार्थ को पूजने का आग्रह किया है।

प्रश्न 3.
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।’ जीवन से उदाहरण देकर इस तथ्य की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयत्न किया है कि सुख-दुःख जीवन में बराबर आते रहते हैं। जिस प्रकार दिन के बाद रात का आना निश्चित होता है, उसी प्रकार मानव-जीवन में आए सुख का अंत होना भी निश्चित है। मानव-जीवन सुख-दुःख का एक अनोखा क्रम है। मानव-जीवन में प्रायः देखा जाता है कि आज हम उत्सव मनाने में मग्न हैं तो कल शोकाकुल हैं। आज विवाह है तो कल मांग का सिंदूर मिट जाता है। आज कोई व्यक्ति सफलता की खुशियाँ मना रहा है तो कल वही व्यक्ति असफलता पर भी रोता दिखाई देता है। अतः कवि ने ठीक ही कहा है कि हर चांदनी रात में एक अंधेरी रात छिपी रहती है अर्थात् सुख और दुःख जीवन में निरंतर आते रहते हैं।

प्रश्न 4.
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने मानव-जीवन के दुःखों का क्या कारण बताया है?
उत्तर-
कवि कहता है कि व्यक्ति का अतीत की बातों की याद में दिन-रात खोए रहने से तथा प्रेम की असफलताओं पर पश्चात्ताप करते रहने से वर्तमान जीवन दुःखद बन जाता है। अतीत की यादों से चिपके रहने वाला व्यक्ति सदा दुःखी रहता है। वर्तमान की वास्तविकताओं को भुलाकर भविष्य की कल्पनाओं में डूबे रहना भी व्यक्ति के जीवन को दुःखी बना देता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्ति की व्याख्या कीजिएप्रभुता की शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है।
उत्तर-
प्रभुत्व की प्राप्ति की शरण का बिंब एक मृगतृष्णा के समान धोखा है, मिथ्या है। जिस प्रकार रेगिस्तान में चमकती रेत को देखकर मृग को पानी होने का भ्रम हो जाता है तथा उसे प्राप्त करने के लिए भागता है किंतु अंत में कुछ भी हाथ न लगने के कारण निराश हो जाता है, उसी प्रकार प्रभुत्व प्राप्ति की शरण भी मृगतृष्णा के समान एक धोखा है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘छाया मत छूना’ कविता का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. 2017 (Set-B), Sample Paper,.2019]
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि का उद्देश्य यह उजागर करना है कि अतीत की सुखद यादों में निरंतर खोए रहना उचित नहीं है क्योंकि इससे वर्तमान जीवन दुखद और भविष्य अनिश्चित बन जाता है। जीवन की कठोर वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर जीने में ही मानव की भलाई है। कवि ने यह भी बताया है कि भविष्य की आकांक्षाओं में जीने से भी मानव-जीवन दुःखी बनता है। अतः कवि का स्पष्ट मत है कि वर्तमान जीवन के आधार पर जीना ही उचित है।

प्रश्न 7.
‘छाया मत छूना’ में कवि की आशावादी और यथार्थवादी भावनाओं की एक साथ अभिव्यक्ति हुई है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही कविवर गिरिजाकुमार माथुर की इस कविता में आशावादी चेतना के दर्शन होते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने अतीत के दुःखों व असफलताओं को याद करने की अपेक्षा अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने का प्रयास करना चाहिए
“जो न मिला भूल उसे, कर तू भविष्य वरण।”

इसी प्रकार कविवर माथुर अतीत की सुखद यादों व कल्पनाओं को तथा अवास्तविकताओं को त्यागकर जीवन में यथार्थ को स्वीकार करते हुए जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
“जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन”।

प्रश्न 8.
‘दुविधा-हत साहस है दिखाता पंथ नहीं’ पंक्ति कवि की किस विचारधारा की ओर संकेत करती है?
उत्तर-
इस पंक्ति में कवि की जीवन के प्रति यथार्थ एवं स्पष्ट विचारधारा व्यक्त हुई है। कवि ने बताया है कि जब मनुष्य का मन दुविधाओं से ग्रस्त रहता है, तब उसे आगे बढ़ने का कोई उचित मार्ग नहीं सूझता। उसका साहस भी नष्ट होने लगता है। जीवन में वह किसी एक निर्णय पर नहीं पहुँच सकता। इसलिए कवि ने स्पष्ट किया है कि हमें अपने मन में किसी भी प्रकार की दुविधा को स्थान नहीं देना चाहिए। हमारी जीवन-शैली दुविधा रहित होनी चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में हुआ था।

प्रश्न 2.
गिरिजाकुमार माथुर का निधन कब हुआ था?
गिरिजाकुमार माथुर का निधन सन् 1994 में हुआ था?

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
‘छाया’ शब्द का प्रयोग मधुर स्मृतियों के लिए किया गया है।

प्रश्न 4.
चाँदनी रात को देखकर कवि को क्या याद आता है?
उत्तर-
चाँदनी रात को देखकर कवि को प्रियतमा के केशों में गूंथे हुए फूलों की याद आती है।

प्रश्न 5.
किसके तन की सुगंध की यादें शेष रह गई हैं?
उत्तर-
कवि की पत्नी के तन की सुगंध की यादें शेष रह गई हैं।

प्रश्न 6.
‘छाया मत छूना’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री गिरिजाकुमार माथुर।

प्रश्न 7.
‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने किस ओर संकेत किया है?
उत्तर-
‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने दुख रूपी रात की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 8.
कवि को पंथ दिखाई क्यों नहीं देता?
उत्तर-
कवि को दुविधाग्रस्त होने के कारण पंथ दिखाई नहीं देता।

प्रश्न 9.
‘छाया मत छूना’ कविता में जो न मिला उसे भूलकर किसका वरण करने की बात कही है?
उत्तर-
कवि ने जो नहीं मिला उसे भूलकर भविष्य को वरण करने को कहा है।

प्रश्न 10.
‘रस-बसंत’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
रस-बसंत’ का अभिप्राय सुखमय जीवन है।

प्रश्न 11.
कवि के अनुसार छाया को छूने से क्या होता है?
उत्तर-
कवि के अनुसार छाया को छूने से दुख की प्राप्ति होती है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गिरिजाकुमार माथुर किस प्रदेश के रहने वाले थे?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) हरियाणा
(C) मध्य प्रदेश
(D) पंजाब
उत्तर-
(C) मध्य प्रदेश

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 2.
गिरिजाकुमार माथुर कृत कविता का नाम है
(A) छाया मत छूना
(B) फसल
(C) संगतकार .
(D) कन्यादान
उत्तर-
(A) छाया मत छूना

प्रश्न 3.
कवि ने किसे छुने से मना किया है?
(A) छाया को
(B) बादल को
(C) आग को
(D) पानी को
उत्तर-
(A) छाया को

प्रश्न 4.
कवि के अनुसार छाया को छूने से क्या होता है?
(A) सुख की प्राप्ति
(B) दुख की प्राप्ति
(C) धन की प्राप्ति
(D) भोजन की प्राप्ति
उत्तर-
(B) दुख की प्राप्ति

प्रश्न 5.
‘यामिनी’ का क्या अर्थ है?
(A) सर्पनी
(B) अंधेरी रात
(C) प्रातःकाल
(D) चाँदनी रात
उत्तर-
(D) चाँदनी रात

प्रश्न 6.
‘यश है या न वैभव है मान है न सरमाया’, यहाँ ‘सरमाया’ का अर्थ है
(A) शर्म आना
(B) शर्म न करना
(C) परिश्रम
(D) पूँजी
उत्तर-
(D) पूँजी

प्रश्न 7.
दुविधा की अधिकता के कारण कवि को क्या दिखाई नहीं देता?
(A) लक्ष्य
(B) सहायक
(C) पंथ
(D) साथी
उत्तर-
(C) पंथ

प्रश्न 8.
‘भरमाया’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) भटका हुआ
(B) भ्रमित होना
(C) सुधरा हुआ
(D) दौड़ता हुआ
उत्तर-
(A) भटका हुआ

प्रश्न 9.
पूज्य कठिन यथार्थ क्या है?
(A) पलायन
(B) कल्पना
(C) उपदेश
(D) चुनौती स्वीकारना
उत्तर-
(D) चुनौती स्वीकारना

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प्रश्न 10.
‘मृगतृष्णा’ का अर्थ है
(A) मृग की प्यास
(B) मृग की दौड़
(C) छलावा
(D) दिखावा
उत्तर-
(C) छलावा

प्रश्न 11.
‘चन्द्रिका’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ के लिए किया गया है?
(A) सुख के दिनों के लिए
(B) दुख के दिनों के लिए
(C) आलस्य के अर्थ में
(D) मस्ती के दिनों के लिए
उत्तर-
(A) सुख के दिनों के लिए

प्रश्न 12.
कवि ने मानव को किसका ‘पूजन’ करने के लिए कहा है?
(A) भगवान का
(B) धन का
(C) यथार्थ का
(D) भविष्य का
उत्तर-
(C) यथार्थ का

प्रश्न 13.
क्या होते हुए भी दुविधा से ग्रस्त रहते हैं?
(A) धन
(B) साहस
(C) पराक्रम
(D). यौवन
उत्तर-
(B) साहस

प्रश्न 14.
प्रस्तुत कविता में हर चंद्रिका में क्या छिपी होने की बात कही है?
(A) चाँदनी
(B) ज्योत्स्ना
(C) काली रात
(D) खुशी
उत्तर-
(C) काली रात

प्रश्न 15.
जीवन में सुहावनी चीजें क्या हैं?
(A) वैभव
(B) सुरंग सुधियाँ
(C) कर्म
(D) अमीरी
उत्तर-
(B) सुरंग सुधियाँ

प्रश्न 16.
‘कुंतल’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) रेशमी वस्त्र
(B) फूल
(C) लम्बे केश .
(D) कंचुकी
उत्तर-
(C) लम्बे केश

प्रश्न 17.
‘छवियों की चित्र गंध’ किस प्रकार की है?
(A) आकर्षक
(B) आनंददायक
(C) मनभावनी
(D) सुहावनी
उत्तर-
(C) मनभावनी

प्रश्न 18.
प्रस्तुत कविता में किसका वरण करने की बात की गई है?
(A) जो न मिला हो
(B) भविष्य का
(C) ईश्वर का
(D) खुशियों का
उत्तर-
(B) भविष्य का

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प्रश्न 19.
पथ न दिखने पर साहस कैसा होता है?
(A) अपार
(B) आनन्दमय
(C) दुविधा-हत
(D) अकथनीय
उत्तर-
(C) दुविधा-हत

छाया मत छूना पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना। [पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-छाया मत छूना = अतीत को याद न करना। सुरंग = रंग-बिरंगी। सुधियाँ = यादें, स्मृतियाँ। छवियों की चित्र-गंध = सौंदर्य की स्मृति, चित्र की स्मृति के साथ उसके आसपास की गंध का अनुभव होना। यामिनी = चाँदनी रात। कुंतल = केश। छुअन = स्पर्श। छाया = भ्रम।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) जीवन में सुधियाँ कैसी हैं?
(ङ) कवि छाया को छूने से मना क्यों कर रहा है?
(च) छाया को छूने का क्या परिणाम होगा और कैसे?
(छ) ‘छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ज) चाँदनी रात को देखकर कवि को किसकी स्मृति आती है और क्यों?
(झ) ‘बीत गई यामिनी’ में कवि का कौन-सा भाव मुखरित हुआ है?
(अ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘छाया मत छूना’ से उद्धृत है। प्रस्तुत कविता में कवि ने बीते हुए सुखी जीवन की स्मृतियों को त्यागकर वर्तमान जीवन को सुखी बनाने की प्रेरणा दी है। इन पंक्तियों में कवि ने अतीत के प्रेम और सुख की यादें सुखद होने पर भी वर्तमान को दुखद बनाने वाली बताया है।

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(ग) कवि अपने मन को संबोधित करते हुए कहता है कि हे मन! अतीत की यादों को मत छूना क्योंकि उन्हें स्मरण करके वर्तमान जीवन दुःखी होता है तथा भविष्य भ्रामक कल्पनाओं में उलझ जाता है। अतीत के प्रेम और प्रिय की रंग-बिरंगी सुहावनी अनेक स्मृतियाँ होती हैं। इन यादों में बीते हुए क्षणों के चित्र उभरकर एक सुहावनी सुगंध की मादकता मन में भर देते हैं। अतः प्रिय के तन की सुगंध की स्मृतियों में ही सारी रात बीत जाती है। प्रिय के केशों में लगे फूलों की याद चाँदनी के समान मन रूपी आसमान पर छाई रहती है। प्रिय के तन का स्पर्श, जो भुलाया नहीं जा सकता, वह पुनः बीते क्षणों को जीवंत कर देता है। अतः हे मन! अतीत की यादों को मत छूना वरन् वर्तमान और भविष्य दोनों दुखद बन जाएँगे।

(घ) जीवन में सुधियाँ रंग-बिरंगी, सुहावनी तथा मन को भाने वाली हैं।

(ङ) कवि के अनुसार छाया को छूने अर्थात् अतीत की यादों में जीने का परिणाम अच्छा नहीं होता अथवा अतीत की यादों में जीने का परिणाम दुखद होता है। हम पुराने दिनों के बीत जाने पर उन्हें याद करके दुःखी होते हैं। इसका हमारे वर्तमान जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए कवि छाया को छूने से मना करता है।

(च) छाया को छूने का अर्थात् अतीत की मधुर स्मृतियों को मन में संजोये रखने का परिणाम अच्छा नहीं होता। यदि हम अपने अतीत में ही जीते रहेंगे तो हमारा वर्तमान और भविष्य दोनों अच्छे नहीं बन सकेंगे। इसलिए छाया को छूते रहने से जीवन अभावग्रस्त एवं दुःखी होता है।

(छ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने बताया है कि जब हम पुरानी यादों में जीते हैं अर्थात् बीते हुए समय को याद करते हैं तो हमारे सामने न केवल बीती हुई मीठी यादों के दृश्य ही आते हैं अपितु उन क्षणों की सुगंध भी तरोताजा हो जाती है। वे हमें सजीव-सी प्रतीत होती हैं।

(ज) चाँदनी रात को देखकर कवि को अपनी प्रियतमा के केशों में गूंथे हुए फूलों की स्मृति आती है क्योंकि उन्हें चाँदनी को देखकर अपने बीते हुए प्रेम के सुहावने दिनों की याद आती है।

(झ) ‘बीत गई यामिनी’ में पुरानी यादों में रात बीतने की पीड़ा व्यक्त हुई है। कवि के कहने का तात्पर्य है कि पुरानी यादों की स्मृतियों में पूरा जीवन ही समाप्त हो जाता है, किंतु यादें फिर भी बनी रहती हैं। किंतु उनसे वर्तमान जीवन के लिए कुछ ठोस प्राप्त नहीं हो सकता।

(ञ) इस कवितांश में कवि ने मानव मन की उस स्थिति का मनोरम वर्णन किया है जो उसे अतीत से जोड़े रखती है। कवि ने पुरानी यादों से उत्पन्न निराशा को गहरा करने की मनोभावना का उल्लेख किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि पुरानी यादों से मधुरता कम और निराशा अधिक उत्पन्न होती है तथा निराशा का हमारे वर्तमान पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(ट)

  • कवि ने मानव मन की गहराइयों को अत्यंत सशक्त एवं समर्थ भाषा में उजागर किया है।
  • संपूर्ण काव्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  • मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
  • संस्कृत के शब्दों की अधिकता है।
  • तुकांतता के कारण विषय प्रभावशाली बन पड़ा है।
  • कोमलकांत शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है।

(ठ) गिरिजाकुमार माथुर भाषा के मर्मज्ञ विद्वान थे। उन्होंने अपनी कविताओं में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। प्रयुक्त काव्यांश में सरल एवं सामान्य बोलचाल की हिन्दुस्तानी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है। तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग विषयानुकूल है। सम्पूर्ण पद में प्रसाद गुण संयुक्त भाषा का प्रयोग हुआ है।

[2] यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना। [पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-यश = सम्मान। वैभव = सुख-साधन, धन-दौलत। सरमाया = पूँजी, धन। भरमाया = भटका। प्रभुता का शरण-बिंब = बड़प्पन का अहसास। मृगतृष्णा = छलावा, धोखा। रात कृष्णा = काली रात, दुखद समय। यथार्थ = सत्य। पूजन = पूजा करना, अर्चना करना।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट करें।
(ग) इस काव्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) दुःख क्यों दुगुना होने लगता है?
(ङ) ‘भरमाया’ में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए।
(च) ‘मृगतृष्णा’ क्या है और इसका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(छ) ‘चंद्रिका’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है?
(ज) ‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने किसकी ओर संकेत किया है?
(झ) यथार्थ को कठिन क्यों कहा गया है?
(ञ) इस काव्यांश के भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(ट) इस पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।

(ख) ये पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखित कविता ‘छाया मत छूना’ में से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अतीत के साथ चिपके रहने का विरोध किया है। उन्होंने बताया है कि अतीत की यादें चाहे कितनी भी मधुर क्यों न हों, किंतु दुःख की घड़ी में ये और भी अधिक दुखद. बन जाती हैं।

(ग) कवि का कथन है कि बीती सुखद एवं प्रेम की घड़ियों की स्मृतियों के पीछे दौड़ने से मान, यश, ऐश्वर्य आदि कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। अतीत की सुखद स्मृतियों के पीछे भागने से कुछ मिलने की अपेक्षा और भ्रम में पड़ सकते हैं। किसी प्रकार की प्रभुता की छाया अर्थात् अधिकार पाने का विचार भी एक धोखा ही है। यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि हर चाँदनी रात में एक काली रात भी छिपी रहती है अर्थात् हर सुख के साथ दुःख तथा मिलन के साथ जुदाई जुड़ी रहती है। अतीत को भूलकर वर्तमान जीवन का जो कटु सत्य है उसी को स्वीकार करना चाहिए अर्थात् उसी की पूजा करनी चाहिए। बीते समय की यादों के पीछे भागना तो दुख को बुलावा देने जैसा है।

(घ) मनुष्य जब दुःख के समय में बीते हुए जीवन के सुखों को याद करने लगता है तो वर्तमान जीवन के दुःख दुगुने लगने लगते हैं।

(ङ) ‘भरमाया’ का शाब्दिक अर्थ है-भटका हुआ। कवि ने इस शब्द के माध्यम से बताया है कि सुख-संपत्ति के साधनों या सुखों को प्राप्त करने के लिए मनुष्य जितनी अधिक भाग-दौड़ करता है, वह उतना ही अधिक भ्रम में पड़ता है। उसकी परेशानियाँ या कठिनाइयाँ कम होने की अपेक्षा बढ़ती ही जाती हैं। . (च) ‘मृगतृष्णा’ एक धोखा है। जो न होकर भी होने का आभास देता है, वही मृगतृष्णा है। जीवन में प्रभुता पाने को कवि ने धोखा बताया है। इसी धोखे को या प्रभुता की चमक-दमक को कवि ने मृगतृष्णा की संज्ञा दी है। इसका जीवन पर विपरीत प्रभाव पाता है जिससे वह इधर-उधर रहता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(छ) ‘चंद्रिका’ शब्द का साधारण अर्थ है-चाँदनी। किंतु कवि ने यहाँ उसका प्रयोग सुखों को व्यक्त करने के लिए किया है। हर मनुष्य अपने जीवन में सुखों रूपी चाँदनी को प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है।

(ज) ‘कृष्णा’ का प्रयोग सायास किया गया है। कृष्णा शब्द दुःख रूपी अमावस्या का बोध कराने हेतु प्रयुक्त किया गया है। कवि ने बताया है कि हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है। जीवन में दुःखों का आना-जाना तो लगा ही रहता है। इसलिए उनके विषय में सोचकर मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए।

(झ) यथार्थ जीवन का कटु सत्य होता है, जिसे हर व्यक्ति को सहन करना पड़ता है। इससे मुख मोड़कर जीवन नहीं जिया जा सकता। कठोर परिश्रम करना और जीवन को सुखी बनाने का प्रयास इससे संबंधित है।

(ञ) कवि ने स्पष्ट किया है कि दुःख की घड़ियों में बीते हुए समय के सुखों को याद करने से दुःख घटने की अपेक्षा बढ़ता है। इसी प्रकार कवि ने बताया है कि मनुष्य धन-दौलत व सुखों की प्राप्ति के लिए जितना इनके पीछे भागता है, वह उतना ही भ्रमित होता जाता है। यह एक मृगतृष्णा है। हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है जिसे मनुष्य को भूलना नहीं चाहिए। मनुष्य को जीवन के यथार्थ को ही मन में रखना चाहिए।

(ट)

  • प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जीवन से संबंधित सुख-दुःख की भावना को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यक्त किया है।
  • खड़ी बोली के साहित्यिक रूप का सफल प्रयोग किया गया है।
  • सुप्रसिद्ध तत्सम शब्दों का सार्थकता पूर्ण प्रयोग देखते ही बनता है।
  • अनुप्रास, रूपक आदि अलंकारों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
  • तुकांत छंद है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।

(ठ) दिए गए काव्यांश में कविवर माथुर ने सरल, सहज एवं सामान्य बोलचाल की भाषा का सफल प्रयोग किया है। कवि ने सरमाया, पूजन, भरमाया, दूना आदि तद्भव शब्दों के साथ-साथ शरण-बिम्ब, मृगतृष्णा, चंद्रिका, वैभव आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग भी विषयानुकूल किया है। कवि ने ग्रामीण अंचल के शब्दों का सफल प्रयोग करके भाषा को अधिक व्यावहारिक बनाया है।

[3] दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।[पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-दुविधा-हत साहस = साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना। पंथ = रास्ता। देह = शरीर । अंत नहीं = सीमा नहीं। शरद-रात = सर्दी की रात। भविष्य वरण = आने वाले समय को धारण करना।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘दुविधा-हत साहस’ से क्या अभिप्राय है?
(ङ) “पंथ’ में निहित भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(च) हर प्रकार के सुख-सुविधाओं की प्राप्ति पर भी मनुष्य को किसके अंत का पता नहीं चलता?
(छ) रस बसंत से क्या तात्पर्य है?
(ज) कवि ने इन पंक्तियों में क्या संदेश दिया है?
(झ) ‘न चाँद खिला’ का क्या अभिप्राय है?
(ञ) इस पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘छाया मत छूना’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार माथुर हैं। इस कवितांश में कवि ने मनुष्य को सचेत करते हुए कहा है कि अतीत के सुखों की बातों में डूबा रहना उचित नहीं है। इससे जीवन में दुःखों की छाया बढ़ती है। मनुष्य को वर्तमान में रहते हुए परिश्रम करके अपने भविष्य को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।

(ग) कवि कहता है कि तुम्हारा साहस मन की दुविधाओं के कारण नष्ट होता जा रहा है। कल क्या होगा, क्या नहीं, सफलता मिलेगी या नहीं, आदि दुविधाओं के कारण तुम्हारा साहस नष्ट हो रहा है। तुम्हें आगे बढ़ने के लिए दुविधा के कारण ही कोई निश्चित मार्ग दिखाई नहीं देता। शरीर सुखी होने पर भी मन में असीम दुःख हैं। हर प्रकार की सुख-सुविधा होने पर भी तुम मन से प्रसन्न नहीं हो। तुम्हें इस बात का भी दुःख है कि शरद् की रात आने पर भी आकाश में चाँद नहीं खिला। कहने का अभिप्राय है कि हर प्रकार के सुख की प्राप्ति के पश्चात् भी तुम्हारा मन प्रसन्न नहीं हुआ। यदि बसंत ऋतु के समाप्त होने पर फूल खिलें तो उनका क्या लाभ? यह ठीक है कि तुम्हें समय पर सफलता नहीं मिली। फिर तुम्हें इन असफलताओं को भूलकर अपने भविष्य को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को अतीत व कल्पनाओं में जीने की अपेक्षा वर्तमान में जीने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए यह तुम्हारे लिए हितकर सिद्ध होगा।

(घ) ‘दुविधा-हत साहस’ से अभिप्राय है-सफलता-असफलता, शुभ-अशुभ तथा गलत-ठीक के भ्रम में पड़ने पर मन में साहस का न जग पाना।

(ङ) ‘पंथ’ से तात्पर्य जीवन के उन उद्देश्यों से है जिन्हें हम दुविधाग्रस्त होने के कारण प्राप्त नहीं कर सके।

(च) मनुष्य को हर प्रकार की सुख-सुविधाओं के प्राप्त होने पर भी मन में व्याप्त दुःखों के अंत का पता नहीं अर्थात् मनुष्य के जीवन में दुःख तो आते ही रहते हैं।

(छ) रस बसंत से कवि का तात्पर्य सुखमय जीवन से है। दूसरे शब्दों में, रस बसंत जीवन के यौवन व उचित अवसर का प्रतीक है।

(ज) कवि ने इन पंक्तियों में संदेश दिया है कि जीवन में हमें जो कुछ नहीं मिला, उसे भूल जाओ। वर्तमान के यथार्थ को स्वीकार करो और भविष्य को सुधारने का प्रयास करो। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हमें जीवन में सफलता प्राप्त नहीं हो सकेगी।

(झ) ‘न चाँद खिला’ का अभिप्राय सुखों का प्राप्त न होना है। कवि ने यहाँ चाँद का प्रतीकात्मक प्रयोग किया है जिसका अर्थ सुख है। समय पर सुखों की प्राप्ति न होने पर मन प्रसन्न नहीं होता।

(ञ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने बताया है कि जब मन में दुविधाएँ बनी हुई हों तो मनुष्य साहसी होते हुए भी साहसपूर्ण कार्य नहीं कर सकता। मन की दुविधाओं से केवल साहस ही नष्ट नहीं होता, अपितु मनुष्य अपने भले-बुरे, लाभ-हानि को भी नहीं पहचान सकता। इसलिए कवि ने मन में दुविधा को न रखने की प्रेरणा दी है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(ट)

  • कवि ने इन पंक्तियों में सहज भाषा का प्रयोग करते हुए गंभीर भावों को अभिव्यंजित किया है।
  • सुप्रसिद्ध तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • स्वरमैत्री के प्रयोग के कारण काव्यांश में लय एवं संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।
  • अनुप्रास, प्रश्न एवं रूपक अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

(ठ) उपर्युक्त काव्यांश में कविवर माथुर ने अत्यन्त सरल, सामान्य एवं सहज भाषा का भावानुकूल प्रयोग किया है। कवि ने दो अलग-अलग विरोधी भावों को एक-साथ चित्रित किया है जिससे विषय की रोचकता के साथ-साथ भाषा में भी सौंदर्य का समावेश हुआ है। वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग किया है। भाषा प्रसाद गुण सम्पन्न है।

सूरदास के पद Summary in Hindi

छाया मत छूना कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर गिरिजाकुमार माथुर का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं और भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में मध्य प्रदेश के गुना नामक स्थान पर हुआ। प्रारंभिक शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने एम०ए० अंग्रेज़ी व एल०एल०बी० की उपाधि लखनऊ से प्राप्त की।
आरंभ में इन्होंने कुछ समय तक वकालत की। तत्पश्चात् आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत हुए। नौकरी के साथ-साथ गिरिजाकुमार माथुर जी निरंतर साहित्य-साधना भी करते रहे। इन्होंने अनेक रचनाओं का निर्माण करके माँ भारती के आँचल को भर दिया। उनका निधन सन् 1994 में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’ (काव्य-संग्रह); ‘जन्म कैद’ (नाटक); ‘नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ’ (आलोचना)।

3. काव्यगत विशेषताएँ-गिरिजाकुमार माथुर रुमानी भाव-बोध के कवि हैं। इस क्षेत्र में उनको खूब सफलता मिली थी। यद्यपि उनकी आरंभिक रचनाओं में छायावादी प्रवृत्तियाँ दिखलाई पड़ती हैं, किंतु बाद में माथुर जी प्रगतिवाद से जुड़कर लिखने लगे थे। माथुर जी मानव मन की गहराइयों को छूने की अद्भुत क्षमता रखते थे। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण सदा यथार्थवादी रहा है। वे जीवन की निराशाओं से हार मानकर बैठने वाले नहीं थे, अपितु वे उन्हें नए-नए रूपों में ढालने के पक्ष में थे।
गिरिजाकुमार माथुर विषय की मौलिकता के पक्षधर थे, साथ ही शिल्प की विलक्षणता को अनदेखा नहीं करना चाहते थे। वे विषय को अधिक स्पष्ट एवं सजीव रूप में प्रस्तुत करने के लिए वातावरण के रंग भी भरने के पक्ष में थे। .

4. भाषा-शैली-गिरिजाकुमार माथुर मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता संभव कर सके। इनकी रुमानी कविताओं की भाषा सहज, सरल, सरस तथा सामान्य बोलचाल की हिंदुस्तानी भाषा है। परंतु क्लासिकल कविताओं में इन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। लेकिन स्थानीय बोली और ग्रामीण आँचल के शब्दों के प्रति इनका विशेष मोह है। ऐसे स्थलों पर वे वातावरण निर्माण के लिए स्थानीय शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार से उन्होंने बिंबों और प्रतीकों का खुलकर प्रयोग किया है। विशेषकर रंग, दृश्य, प्राण तथा प्रकृति बिंबों की प्रमुखता है। इसके अतिरिक्त माथुर साहब ने अभिधात्मक, क्लासिकल और वर्णनात्मक सभी प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया है। मुक्त छंद के प्रति इनका विशेष आग्रह है।

छाया मत छूना कविता का सार

प्रश्न-
‘छाया मत छूना’ नामक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने अपने मन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे मन! तू कभी भी बीते हुए सुख के समय की यादों के पीछे मत दौड़ना। ऐसा करने से दुःख कम होने की अपेक्षा दुगुना ही होगा। सुख स्मृतियों के पीछे भागना मन को भटकन में डालना है। मानव धन-दौलत, आदर-मान जितना प्राप्त करना चाहता है, उतना ही वह दुविधा में जकड़ा जाता है। कवि का कहना है कि प्रत्येक चाँदनी से युक्त रात के पीछे अंधकारपूर्ण रात छिपी रहती है। अतः जीवन के यथार्थ को समक्ष रखकर जीवन-यापन करना चाहिए। कवि का मत है कि दुविधा युक्त मानव कभी भी जीवन का सही मार्ग नहीं चुन सकता। भौतिक पदार्थों के पर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर लेने पर भी यदि मानव की इच्छाएँ फलीभूत होती हैं तो भले ही उसे शारीरिक सुख अनुभव हो, किंतु मानसिक पीड़ा फिर भी बनी रहेगी। कवि पुनः कहता है कि हे मानव! जिस वस्तु को तू प्राप्त नहीं कर सकता, उसे भूलकर अपने भविष्य का मार्ग निर्धारित कर। अतीत की घटनाओं को याद करके उन पर पश्चात्ताप करने से कोई लाभ नहीं होता। भाव यह है कि अतीत से जुड़े रहना केवल मूर्खता है। इससे वर्तमान और भविष्य दोनों दुखद बनते हैं।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

HBSE 10th Class Hindi नेताजी का चश्मा Textbook Questions and Answers

नेताजी का चश्मा गद्यांश HBSE 10th Class प्रश्न 1.
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
उत्तर-
निश्चय ही चश्मे वाला कभी सेनानी नहीं रहा। वह भले ही गरीब एवं अपाहिज था, किंतु उसके मन में देशभक्ति की असीम भावना थी। वह देशभक्त सुभाषचंद्र बोस का सम्मान करता था। वह सुभाष की बिना चश्मे की मूर्ति को देखकर दुःखी हो उठा था। इसलिए उसने सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगा दिया था। उसकी इस देशभक्ति की भावना को देखकर ही उसे सुभाषचंद्र बोस का साथी होने का तथा उनकी सेना का कैप्टन होने का सम्मान दिया था। भले ही उसका यह नाम लोगों ने व्यंग्य में रखा हो। किंतु वास्तविकता यह थी कि वह इस नाम के योग्य भी था।

Netaji Ka Chashma Gadyansh HBSE 10th Class प्रश्न 2.
हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ति पर सरकडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?
उत्तर-
(क) हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे क्योंकि वे चौराहे पर लगी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति को बिना चश्मे के देख नहीं सकते थे। जब से कैप्टन की मृत्यु हुई थी, तब से किसी ने भी नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाया था। इसीलिए जब हालदार साहब कस्बे से गुज़रने लगे तो उन्होंने ड्राइवर से चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना कर दिया था।

(ख) हालदार साहब जब चौराहे से गुज़रे तो नेताजी की मूर्ति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब के मन में यह आशा जगी कि आज के बच्चे ही कल को देश के निर्माण में सहायक होंगे और अब उन्हें कभी भी चौराहे पर नेताजी की बिना चश्मे की मूर्ति नहीं देखनी पड़ेगी।

(ग) कैप्टन की मृत्यु के पश्चात् उन्हें ऐसा लगा था कि अब नेताजी की आँखों पर चश्मा लगाने वाला कोई नहीं बचा। किंतु जब उन्होंने नेताजी की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का बना हुआ चश्मा देखा तो वे भावुक हो उठे कि देश में अभी भी देशभक्ति जीवित है, मरी नहीं। सुभाषचंद्र बोस जैसे नेताओं का आदर करने वाले लोग देश में अभी भी हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

Netaji Ka Chashma Summary HBSE 10th Class प्रश्न 3.
आशय स्पष्ट कीजिए-
“बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।”
उत्तर-
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने देश के भविष्य के प्रति चिंता व्यक्त की है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि जिस कौम व देश के लोग अपने महान देशभक्तों के त्याग का आदर करने की अपेक्षा उसकी हँसी उड़ाते हों तथा अपना स्वार्थ पूरा करने के अवसर की ताक में रहते हों, उस देश का क्या होगा। ऐसे देश की स्वतंत्रता ही खतरे में पड़ जाएगी।

Netaji Ka Chashma Class 10 Solutions HBSE प्रश्न 4.
पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
पानवाला सदा पान चबाता रहता था। वह स्वयं भी चलती-फिरती पान की दुकान-सा प्रतीत होता था क्योंकि उसके मुँह में सदा ही पान ह्सा रहता था। वह पान के कारण कुछ बोल नहीं सकता था। यदि कोई उससे बात करता तो बोलने से पहले उसे दो-बार तो थूकना पड़ता था। उसकी बढ़ी हुई तोंद घड़े के समान लगती थी। वह जब हँसता था तो उसकी तोंद बराबर हिलती रहती थी। वह रसिक स्वभाव वाला व्यक्ति था। उसकी बातों में व्यंग्य रहता था। दूसरों की हँसी उड़ाने में उसे खूब मज़ा आता था। वह सदा अपने स्वार्थ पर निगाह रखता था। वह बातों का धनी था।

Class 10th Netaji Ka Chashma HBSE 10th Class प्रश्न 5.
“वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है पागल!” कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर-
कैप्टन के प्रति पानवाले की यह टिप्पणी उसकी संकीर्ण मानसिकता को व्यक्त करती है। इस टिप्पणी से पता चलता है कि उसके मन में देशभक्तों व उनका आदर करने वालों के प्रति जरा भी सम्मान की भावना नहीं है। उसे कैप्टन पर व्यंग्य करने की अपेक्षा उसके प्रति आदर भाव व्यक्त करना चाहिए था और सहानुभूतिपूर्ण उसका परिचय देना चाहिए था। जो व्यक्ति नेताजी जैसे महान् देश-भक्तों की प्रतिमा में कोई कमी नहीं देख सकता ऐसे व्यक्ति की शारीरिक कमियों की तरफ ध्यान न देकर उसकी भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। अतः पानवाले की यह टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर सकेत करते हैं-
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को निहारते।
(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला-साहब! कैप्टन मर गया।
(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।
उत्तर-
(क) यह वाक्य हालदार साहब की देश-भक्ति की भावना को व्यक्त करता है। हालदार साहब जब चौराहे से गुज़रते तो वहाँ कुछ क्षणों के लिए रुककर सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की ओर आदर भाव से देखते थे। उनके मन में नेताजी के प्रति आदरभाव था। वे बार-बार मूर्ति को चश्मा पहनाने वाले के बारे में पूछते थे। इस बात से पता चलता है कि हालदार साहब एक देशभक्त थे।

(ख) इस वाक्य से पता चलता है कि पानवाला एक संवेदनशील व्यक्ति था। भले ही वह कैप्टन पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करता हो किंतु उसकी मृत्यु का उसे बेहद दुःख था। उसे कैप्टन की मृत्यु के पश्चात् ही उसके जीवन के महत्त्व का पता चला था। उसे ऐसा अनुभव हुआ कि वह महान् देश-प्रेमी था। इसलिए वह अब उस पर कोई व्यंग्यात्मक टिप्पणी भी नहीं करता था।

(ग) कैप्टन को नेताजी की बिना चश्मे वाली प्रतिमा बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। इसलिए वह उसे बार-बार चश्मा पहनाता था। इससे उसकी देश-भक्ति की भावना उजागर होती है।

प्रश्न 7.
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक उनके मानस पटल पर उसका कौन-सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर-
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक वे सोचते थे कि कैप्टन प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला इंसान है। उनके मन में एक गठीले बदन के पुरुष की छवि अंकित थी, जिसकी बड़ी-बड़ी मूंछे थीं। उसकी चाल में फौजियों जैसी मज़बूती और ठहराव था। चेहरे पर तेज़ था। उसका पूरा व्यक्तित्व ऐसा था जिसे देखकर दूसरा व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। इस तरह हालदार साहब के दिल और दिमाग पर एक फौजी की तस्वीर अंकित थी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

प्रश्न 8.
कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी न किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?
(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों?
(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिएँ?
उत्तर-
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने का उद्देश्य यह रहता है कि लोग महान् देशभक्तों के त्याग और देश-भक्ति की भावना को हमेशा याद रखें तथा उनके जीवन से देश-भक्ति की प्रेरणा लें। साथ ही आने वाली पीढ़ियों को भी महान् देशभक्तों का परिचय मिल सके।

(ख) हम अपने इलाके के चौराहे पर उस महान् देशभक्त की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे जिन्होंने अपना जीवन देश के प्रति अर्पित कर दिया है।

(ग) देशभक्तों की मूर्ति के प्रति हमारा पावन कर्त्तव्य है कि हम उसके रख-रखाव का पूरा ध्यान रखें। उसके आस-पास सफाई रखें। उसकी सुरक्षा करें तथा उसके प्रति सम्मान का भाव भी रखें।

प्रश्न 9.
सीमा पर तैनात फौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे-सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि। अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए।
उत्तर-
हमारे जीवन-जगत से जुड़े हुए अनेक ऐसे कार्य हैं, जिनसे किसी-न-किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट होता है। बिजली का उचित ढंग से प्रयोग ही बिजली की बचत है। इस बची हुई बिजली का प्रयोग कल-कारखानों में हो सकता है, जिससे देश का विकास होगा। इसी प्रकार पीने के पानी का सदुपयोग करने से पानी की बचत होती है। पानी की एक-एक बूंद कीमती है। पानी का दूसरा अर्थ है-जीवन। पानी के नल को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। पानी के प्रयोग के बाद नल बंद कर देना चाहिए। ऐसे कार्यों से हमारा देश-प्रेम प्रकट होता है। इसी प्रकार पेट्रोल का उचित प्रयोग करने के लिए हमें निजी वाहनों के प्रयोग की अपेक्षा सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए। इससे जहाँ धन की बचत होगी, वहीं ईंधन की बचत भी होगी, यही ईंधन राष्ट्रीय विकास के कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि हमारे जीवन में अनेक ऐसे कार्य हैं जिनको अमल में लाकर हम देश-प्रेम का परिचय दे सकते हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
उत्तर–
मान लीजिए, कोई ग्राहक आ गया। उसे चौड़े फ्रेम वाला चश्मा चाहिए। कैप्टन कहाँ से लाता। इसलिए ग्राहक को मूर्ति वाला चश्मा दे दिया। मूर्ति पर दूसरा लगा दिया।

प्रश्न 11.
‘भई खूब! क्या आइडिया है।’ इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर-
एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों का प्रयोग किए जाने से भाषा रोचक, व्यावहारिक एवं प्रभावशाली बनती है। जब दूसरी भाषा के शब्द बहुत प्रचलित हो जाते हैं तो उनका प्रयोग अपनी भाषा में किया जाता है। उपरोक्त वाक्य में उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों के एक साथ प्रयोग से भाषा का रूप ही नया बन गया है। यहाँ ‘खूब’, ‘आइडिया’ ऐसे शब्द हैं जिनके प्रयोग से भाषा का रूप ही नया नहीं बना, अपितु उसमें लचीलापन भी देखने को मिलता है।

भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए-
(क) नगरपालिका थी तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
(ग) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुज़रते रहे।
उत्तर-
(क) भी = बाज़ार जा रहे हो तो मेरे लिए भी पुस्तक लेते आना।
(ख) ही = ज्ञान ही मानव को मोक्ष दिलाता है।
(ग) यानी = यानी खाना तो था परंतु स्वादिष्ट नहीं था।
(घ) भी = क्या कहा! तुम भी फेल हो गए हो।
(ङ) तक = पिछले दो सालों से उसने मुझे चिट्ठी तक नहीं लिखी।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए-
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ बता दिया था।
(घ) ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देश-भक्ति का सम्मान किया।
उत्तर-
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले द्वारा नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर द्वारा ज़ोर से ब्रेक मारे गए।
(ङ) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देश-भक्ति का सम्मान किया गया।

प्रश्न 14.
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिएजैसे-अब चलते हैं। -अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
उत्तर-
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
(ख) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।

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पाठेतर सक्रियता

लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया।
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं, लिखिए।
उत्तर-
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के मन में उत्साह का भाव आया होगा। वह मूर्ति बनाने के सामान को एकत्रित करने में जुट गया होगा। उसे लगा होगा कि नगर के सभी लोग उसकी बनाई हुई मूर्ति को देखेंगे। उसे लोगों से अपनी प्रशंसा सुनने को मिलेगी।

(ख) हमें अपने क्षेत्र के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार व अन्य कलाकारों के कार्य की सराहना करके उनके काम को प्रोत्साहन दे सकते हैं। हम शिल्पकारों की बनाई हुई वस्तुओं को खरीद सकते हैं। विभिन्न अवसरों पर संगीत का आयोजन किया जा सकता है। उनका गीत-संगीत सुनकर उनकी तारीफ करनी चाहिए ताकि उनका उत्साह बढ़े। उन्हें समय-समय पर सम्मानित भी करना चाहिए।

आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी हैं। उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएँ, प्रशासन को इस संदर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए।

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
क.ख.ग. विद्यालय,
नई दिल्ली।
विषय : चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों के लिए प्रबंध।
श्री मानजी,

मैं आपका ध्यान अपने विद्यालय के कुछ चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों की समस्याओं की ओर दिलाना चाहता हूँ। हमारे कुछ विद्यार्थी साथी विकलांग हैं। वे भली-भाँति चल नहीं सकते। उनसे सीढ़ियों पर नहीं चढ़ा जा सकता। सीढ़ियों के साथ-साथ रैम्प बना दिया जाए तो वे आसानी से कक्षा में आ जा सकेंगे। कुछ विद्यार्थी अंधे हैं। उनके लिए पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं। उनके लिए ब्रेल लिपि की पुस्तकें मँगवाई जाएँ तो बहुत अच्छा होगा। ऐसे लोगों की सहायता करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य भी है। आशा है कि आप चुनौतीपूर्ण छात्रों की समस्याओं की ओर अवश्य ध्यान देंगे।

सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
मदनलाल
कक्षा दशम ‘ख’
अनुक्रमांक 05
दिनांक 15.05.20…..

कैप्टन फेरी लगाता था।
फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी ज़रूरतों को आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार कीजिए।
उत्तर-
फेरीवाले समाज के जीवन का अभिन्न अंग हैं। फेरीवाले प्राचीनकाल से हमारे समाज के परंपरागत व्यापार में योगदान देते आए हैं। हमारी जिंदगी को सरल एवं आसान बनाने में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। किंतु व्यापार वर्ग में इन्हें नीचा दर्जा दिया जाता है और रेहड़ी वाला कहकर संबोधित किया जाता है। फेरीवालों की वजह से हमारा बहुत समय बच जाता है। हम इस समय को अपने अन्य उपयोगी कार्यों में लगा लेते हैं। फेरीवाले जहाँ समाज के जीवन को सुखद बनाते हैं, वहीं उनको अपने जीवन की समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। उनके पास अधिक धन नहीं होता, इसलिए वे अपनी फेरी के लिए उपयुक्त साधन नहीं अपना सकते। सब्जी मंडी कई कॉलोनियों से बहुत दूर होती हैं। उन्हें अपनी रेहड़ी पर सब्जी लादकर प्रतिदिन कई मील पैदल चलना पड़ता है। इसी प्रकार कई फेरीवाले अपने सामान की गठरी को सिर पर उठाए घूमते हैं। सरकार को चाहिए कि इनके लिए सस्ते दामों पर वाहन उपलब्ध करवाए ताकि उनकी पैदल घूमने की समस्या दूर हो सके। गाँवों व नगरों सभी के लिए फेरीवाले माल पहुँचाते हैं। अतः हमें इनके प्रति सहानुभूति व आदर का भाव रखना चाहिए।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक प्रोजेक्ट बनाइए। उत्तर-विद्यार्थी स्वयं करें।।
अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवाए हैं? हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

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नीचे दिए गए निबंध का अंश पढ़िए और समझिए कि गद्य की विविध विधाओं में एक ही भाव को अलग-अलग प्रकार से कैसे व्यक्त किया जा सकता है-
उत्तर-
देश-प्रेम

देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देश-प्रेम यदि वास्तव में अंतःकरण का कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवास या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा, वह सबको चाहभरी दृष्टि से देखेगा; वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा। जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी आँख भर नहीं देखते कि आम प्रणय-सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे यदि बस बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर देश-प्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके दुख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो, यह कैसे समझे? उनसे कोसों दूर बैठे-बैठे, पड़े-पड़े या खड़े-खड़े तुम विलायती बोली में ‘अर्थशास्त्र’ की दुहाई दिया करो, पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो। प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर भी मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।

हिसाब-किताब से देश की दशा का ज्ञान-मात्र हो सकता है। हित-चिंतन और हित-साधन की प्रवृत्ति कोरे ज्ञान से भिन्न है। वह मन के वेग या भाव पर अवलंबित है, उसका संबंध लोभ या प्रेम से है, जिसके बिना अन्य पक्ष में आवश्यक त्याग का उत्साह हो नहीं सकता।

HBSE 10th Class Hindi नेताजी का चश्मा Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1:
पठित कहानी के आधार पर कस्बे की स्थिति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित कहानी में बताया गया है कि वह कस्बा अधिक बड़ा नहीं था। इसलिए उसे नगर नहीं कहा जा सकता। वहाँ कुछ ही मकान पक्के हैं। एक छोटा-सा बाज़ार है, जिसमें दैनिक जीवन की आवश्यकता की लगभग सभी वस्तुएँ मिल जाती हैं।
यहाँ दो विद्यालय हैं-एक लड़कों के लिए, दूसरा लड़कियों के लिए। दो खुले सिनेमाघर हैं। थोड़ा हटकर एक सीमेंट का कारखाना भी है। एक छोटी-सी नगरपालिका है। कस्बे के बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति स्थापित की गई है।

प्रश्न 2.
हालदार साहब की कैप्टन के प्रति कैसी भावना थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कहानी में दिखाया गया है कि हालदार साहब के मन में कैप्टन के प्रति अत्यंत आदर की भावना थी। नगरपालिका द्वारा लगाई गई सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर चश्मा नहीं बनाया गया था। चश्मे के बिना नेताजी की मूर्ति अधूरी थी। कैप्टन उस कमी को अपने पास से चश्मा लगाकर पूरी करता है। हालदार साहब कैप्टन की इस देश-भक्ति की भावना के प्रति नतमस्तक थे।

प्रश्न 3.
हालदार साहब और कैप्टन की भावनाओं के अंतर को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हालदार साहब जब नेताजी की मूर्ति पर असली का चश्मा लगा हुआ देखते हैं तो वे हैरान रह जाते हैं कि ऐसा किसी ने क्यों किया होगा। पूछने पर पता चला कि ऐसा किसी कैप्टन ने किया और तब उसकी कल्पना किसी तगड़े फौजी अफसर के रूप में करने लगे, किंतु जब उसे देखा तो हैरान रह गए कि वह लँगड़ा और गरीब होते हुए भी देशभक्त है। हालदार साहब का देश-प्रेम शब्दों तक सीमित है, जबकि कैप्टन की देश-भक्ति की भावना में व्यावहारिकता अधिक है। वह बार-बार नेताजी का चश्मा बदल देता है। क्योंकि चश्मे के बिना उसे नेताजी की मूर्ति अधूरी लगती है। जबकि हालदार साहब यह सोचकर कि कैप्टन के मरने के पश्चात् नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के होगी वे उधर न देखने का निर्णय कर लेते हैं। परंतु उन्होंने कोई चश्मा खरीदकर नेताजी की मूर्ति को नहीं लगाया।

प्रश्न 4.
नेताजी का चश्मा क्यों नहीं बन पाया?
उत्तर-
संगमरमर की मूर्ति में टाँक कर चश्मा बनाना मुश्किल कार्य था। स्कूल का ड्राइंग मास्टर कोई पेशेवर मूर्ति बनाने वाला __ नहीं था, इसलिए उससे चश्मा नहीं बन पाया।

प्रश्न 5.
चश्मे वाले का नेताजी की आँखों पर चश्मे का फ्रेम लगाना किस बात को दर्शाता है?
उत्तर-
चश्मे वाला भले ही गरीब व्यक्ति था, परंतु उसके हृदय में देश-प्रेम की भावना थी। बिना चश्मे के मूर्ति अधूरी लगती थी। अतः उसने मूर्ति की आँखों पर चश्मा लगा दिया।

प्रश्न 6.
हालदार साहब के कौतूहल का क्या कारण था?
उत्तर-
हालदार साहब जब भी वहाँ से गुज़रते थे, नेताजी का चश्मा बदला होता था। वे जानना चाहते थे कि आखिर नेताजी का चश्मा क्यों बदल जाता है।

प्रश्न 7.
नेताजी की मूर्ति के चश्मे के बदलने का क्या कारण था?
उत्तर-
वास्तव में नेताजी की संगमरमर की मूर्ति पर चश्मा नहीं बनाया गया था। इसलिए कैप्टन को यह बात बुरी लगी और उसने उस पर असली चश्मा लगा दिया था। किंतु किसी ग्राहक को यदि वह चश्मा पसंद आ जाता तो चश्मा लगाने वाला कैप्टन उस चश्मे को ग्राहक को दे देता था और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता था। इस प्रकार नेताजी की मूर्ति पर चश्मे बदले जाते थे।

प्रश्न 8.
कहानी के आधार पर पानवाले के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कहानी में दिखाया गया है कि पानवाला एक बातूनी व्यक्ति है। वह अत्यधिक मोटा है। बात करते समय व हँसते समय उसकी तोंद हिलती रहती है। उसकी बातों में व्यंग्य व हँसी के साथ यथार्थ भी रहता है। कहीं-कहीं देशभक्तों के प्रति अनादर भाव की बात भी कह देता है। किंतु इतना कुछ होते हुए भी वह संवेदनशील व्यक्ति है। कैप्टन की मृत्यु का उसे गहरा दुःख है। कैप्टन के मरने पर उसकी देश-भक्ति का अहसास होता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 9.
‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ में लेखक ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
‘नेताजी का चश्मा’ श्री स्वयं प्रकाश की सुप्रसिद्ध कहानी है। इसमें उन्होंने देश-भक्ति की भावना पर प्रकाश डाला है। उनका मत है कि देश-भक्ति व्यक्त करने के लिए फौजी होना अनिवार्य नहीं है। इसी प्रकार यह भी आवश्यक नहीं है कि देशभक्त शारीरिक व आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो। कहानी में कैप्टन एक विकलांग एवं गरीब व्यक्ति है। उसके मन में देश-भक्ति की भावना है। वह नेताजी की अधूरी मूर्ति को देखकर बेचैन हो जाता है और गरीब होते हुए भी उसको चश्मा लगा देता है। अपने देश के महापुरुषों व देशभक्तों के सम्मान के लिए यदि कोई थोड़ा-सा त्याग भी करता है तो वह देशभक्त है। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी का यही संदेश है कि हमें अपने देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना रखनी चाहिए। यह कार्य हम अपने गाँव या कस्बे में रहकर भी कर सकते हैं।

प्रश्न 10.
नेताजी की मूर्ति को देखकर क्या याद आने लगता है और क्यों?
उत्तर-
नेताजी की मूर्ति कस्बे के बाज़ार के मुख्य चौराहे पर स्थापित की गई थी। लोग जब भी नेताजी की मूर्ति को देखते तो उन्हें नेताजी का आजादी प्राप्ति के दिनों वाला जोश और उत्साह याद आ जाता है। लोगों को नेताजी के नारे याद आ जाते हैं जिससे लोगों के मन में देश-प्रेम की भावना जागृत हो जाती है, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ तथा ‘दिल्ली चलो’ । नेताजी की मूर्ति को देखकर देश-निर्माण की भावना उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 11.
देश-प्रेम किसे कहते हैं और देश-प्रेम किस तरह से व्यक्त होता है- प्रस्तुत कहानी के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
देश-प्रेम एक मानसिक भावना है। यह साथ रहने से उत्पन्न होने वाला प्रेम है। जहाँ हम पैदा हुए, बड़े हुए, वर्षों से रहते आए, उस स्थान, वहाँ की चीजों, लोगों, गली-मुहल्ले के प्रति जो लगाव होता है, वैसा ही देश के प्रति लगाव होना, देश-प्रेम कहलाता है। कहानी में दिखाया गया है कि देश-प्रेम को व्यक्त करने के लिए बड़े-बड़े नारे लगाने की आवश्यकता नहीं तथा न ही फौजी बनने की जरूरत है। देश-प्रेम तो छोटी-छोटी बातों से प्रकट हो सकता है। हम अपने देश की हर कमी को पूरा करके तथा देशभक्तों के प्रति आदर-भाव दिखाकर देश-प्रेम व्यक्त कर सकते हैं। कहानी के पात्र कैप्टन ने नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर ही देश-प्रेम व्यक्त किया है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर-
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के लेखक का नाम स्वयं प्रकाश है।

प्रश्न 2.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा किसने बनाई थी?
उत्तर-
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा स्कूल के ड्राइंग मास्टर ने बनाई थी।

प्रश्न 3.
हालदार साहब कस्बे में क्यों रुकते थे?
उत्तर-
हालदार साहब कस्बे में पान खाने के लिए रुकते थे।

प्रश्न 4.
‘मूर्ति बनाकर पटक देने का क्या भाव है?
उत्तर-
‘मूर्ति बनाकर पटक देने’ का भाव मूर्ति समय पर बनाना है।

प्रश्न 5.
‘तुम मुझे खून दो’ नेताजी का यह नारा हमें क्या प्रेरणा देता है?
उत्तर-
‘तुम मुझे खून दो’ नेताजी का यह नारा हमें देश के लिए बलिदान देने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 6.
हालदार साहब पहले मायूस क्यों हुए थे?
उत्तर-
मूर्ति पर चश्मा न होने के कारण हालदार साहब पहले मायूस हुए थे।

प्रश्न 7.
चश्मेवाले (कैप्टन) के मन में देशभक्तों के प्रति कैसी भावना थी?
उत्तर-
चश्मेवाले (कैप्टन) के मन में देशभक्तों के प्रति आदर की भावना थी।

प्रश्न 8.
नेताजी की मूर्ति पर बार-बार चश्मा कौन बदल रहा था?
उत्तर-
कैप्टन चश्मे वाला।

प्रश्न 9.
हालदार साहब क्या देखकर दुखी हुए थे?
उत्तर-
हालदार साहब देश भक्तों के प्रति अनादर भाव रखने वालों को देखकर दुखी हुए थे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हालदार साहब कस्बे में क्यों रुकते थे?
(A) आराम करने के लिए
(B) पान खाने के लिए
(C) किसी से मिलने के लिए
(D) कंपनी के काम के लिए
उत्तर-
(B) पान खाने के लिए

प्रश्न 2.
नेताजी की प्रतिमा किसने बनाई थी?
(A) ड्राइवर ने
(B) पान वाले ने
(C) थानेदार ने
(D) ड्राइंग मास्टर ने
उत्तर-
(D) ड्राइंग मास्टर ने

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प्रश्न 3.
नेता जी की प्रतिमा बनाने वाले मास्टर का क्या नाम था?
(A) मोतीलाल
(B) किशनलाल
(C) प्रेमपाल
(D) सोहनलाल
उत्तर-
(A) मोतीलाल

प्रश्न 4.
नेता जी की मूर्ति वाले कस्बे से हालदार साहब कब गुजरते थे-
(A) हर सप्ताह
(B) हर पन्द्रहवें दिन
(C) हर माह
(D) हर रोज
उत्तर-
(B) हर पन्द्रहवें दिन

प्रश्न 5.
सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा किस वस्तु की बनी थी?
(A) लोहे की
(B) संगमरमर की
(C) मिट्टी की
(D) काँसे की
उत्तर-
(B) संगमरमर की

प्रश्न 6.
नेता जी की मूर्ति के नीचे लिखा हुआ मूर्तिकार का नाम क्या था?
(A) ड्राइंग मास्टर
(B) मोतीलाल
(C) हालदार
(D) स्वयं प्रकाश
उत्तर-
(B) मोतीलाल

प्रश्न 7.
मूर्ति की ऊँचाई कितनी थी?
(A) दो फुट
(B) चार फुट
(C) छह फुट
(D) आठ फुट
उत्तर-
(A) दो फुट

प्रश्न 8.
सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा में क्या कमी रह गई थी? .
(A) टोपी नहीं थी
(B) चश्मा नहीं था
(C) प्रतिमा की ऊँचाई कम थी
(D) रंग उचित नहीं था
उत्तर-
(B) चश्मा नहीं था

प्रश्न 9.
सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा पर चश्मा किसने लगाया था?
(A) मोतीलाल ने
(B) हालदार साहब ने
(C) कैप्टन चश्मेवाले ने
(D) पानवाले ने
उत्तर-
(C) कैप्टन चश्मेवाले ने

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प्रश्न 10.
कहानी के अंत में नेता जी की मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब की हालत क्या हुई?
(A) आँखें भर आईं
(B) उछल पड़े
(C) हैरान रह गए
(D) होठ फड़कने लगे
उत्तर-
(A) आँखें भर आईं

प्रश्न 11.
पानवाले के उदास होने का क्या कारण था?
(A) मूर्ति पर चश्मा न होना
(B) कैप्टन चश्मेवाले की मृत्यु
(C) सच्चे देशभक्तों की कमी
(D) बिक्री न होना
उत्तर-
(B) कैप्टन चश्मेवाले की मृत्यु

प्रश्न 12.
हालदार साहब किसे देखकर आवाक रह गए थे?
(A) मूर्ति को
(B) चश्मे को
(C) कस्बे को
(D) चश्मेवाले कैप्टन को
उत्तर-
(D) चश्मेवाले कैप्टन को

प्रश्न 13.
मूर्ति पर सरकडे का चश्मा देखकर हालदार साहब कैसे खड़े हो गए?
(A) झुककर
(B) अटेंशन हो गए
(C) हतप्रभ
(D) हाथ जोड़कर
उत्तर-
(B) अटेंशन हो गए

प्रश्न 14.
हालदार साहब ने नेता जी की प्रतिमा के चश्मे के बदलते रहने के बारे में किससे पूछा?
(A) ड्राइवर से
(B) चाय वाले से
(C) पानवाले से
(D) सब्जी वाले से
उत्तर-
(C) पानवाले से

प्रश्न 15.
प्रस्तुत पाठ में कैप्टन कौन है?
(A) हालदार साहब
(B) चाय वाला
(C) पानवाला
(D) चश्मे वाला
उत्तर-
(D) चश्मे वाला

प्रश्न 16.
‘नेताजी का चश्मा’ नामक कहानी में देशभक्तों का अनादर करने वाले पात्र कौन हैं?
(A) हालदार
(B) चाय वाला
(C) कैप्टन
(D) पानवाला
उत्तर-
(D) पानवाला

प्रश्न 17.
‘नेताजी का चश्मा’ शीर्षक पाठ का मूल भाव क्या है?
(A) देश भक्ति
(B) सामाजिक भाव
(C) राजनीतिक जागृति
(D) मूर्ति कला की प्रशंसा
उत्तर-
(A) देश भक्ति

प्रश्न 18.
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में पानवाला कैसा आदमी था?
(A) मोटा
(B) काला
(C) खुशमिज़ाज
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 19.
हालदार साहब को हर बार कस्बे से गुज़रते समय किस बात की आदत पड़ गई थी?
(A) चौराहे पर रुकना
(B) पान खाना
(C) मूर्ति को ध्यान से देखना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 20.
‘वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है पागल!’ ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) पानवाले ने
(B) हालदार ने
(C) ड्राइवर ने
(D) नगरपालिका के अध्यक्ष ने
उत्तर-
(A) पानवाले ने

प्रश्न 21.
नेता जी की मूर्ति टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कितनी ऊँची बताई गई है?
(A) चार फुट
(B) दो फुट
(C) पाँच फुट
(D) तीन फुट
उत्तर-
(B) दो फुट

प्रश्न 22.
देशभक्ति की भावना किस पर निर्भर करती है?
(A) धन पर
(B) बल पर
(C) शान पर
(D) मन पर
उत्तर-
(D) मन पर

नेताजी का चश्मा गद्यांशों  के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज़्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी-पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा, और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मान लीजिए मोतीलाल जी-को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने भर में मूर्ति बनाकर ‘पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे। [पृष्ठ 60]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) वह पूरी बात कौन-सी है जिसका पता नहीं है?
(ग) मूर्ति-निर्माण में नगरपालिका को देर क्यों लगी होगी?
(घ) स्थानीय कलाकार से मूर्ति बनवाने का क्या कारण रहा होगा?
(ङ) मोतीलाल कौन था और उसे क्या काम दिया गया था?
(च) ‘मूर्ति बनाकर पटक देने से क्या तात्पर्य है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

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(ख) कस्बे के मुख्य बाजार के प्रमुख चौराहे पर नगरपालिका द्वारा नेताजी की प्रतिमा बनवाई जानी थी। इसे कैसे और कहाँ से बनवाया जाए, इस बात का पूरा पता नहीं था।

(ग) लेखक का अनुमान है कि नगरपालिका को मूर्ति-निर्माण के कार्य में देर इसलिए लगी होगी कि उन्हें मूर्ति-निर्माण करने वाले अच्छे कलाकारों का पता नहीं होगा। जानकारी मिलने पर धन की कमी बाधा बन गई होगी। काफी समय सोच-विचार और कार्यालय की कार्रवाई में नष्ट हो गया होगा।

(घ) स्थानीय कलाकार से मूर्ति बनवाने के मुख्य दो ही कारण रहे होंगे-प्रथम धन की कमी और कार्यालयी कार्रवाई में देर लगने का कारण-समय का अभाव। इन्हीं कारणों से नेताजी की प्रतिमा स्थानीय कलाकार से बनवाई होगी।

(ङ) मोतीलाल स्थानीय हाई स्कूल में ड्राइंग टीचर थे। उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा बनाने का कार्य दिया गया था। .. (च) ‘मूर्ति बनाकर पटक देने’ से तात्पर्य है कि नगरपालिका द्वारा कस्बे के मुख्य बाजार के चौराहे पर सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की स्थापना करनी थी। इसलिए यह कार्य स्थानीय स्कूल के ड्राइंग मास्टर को दिया गया था। उसने उन्हें विश्वास दिलवाया होगा कि वे एक मास में ही मूर्ति को तैयार कर देंगे।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री स्वयं प्रकाश हैं। इस पाठ में लेखक ने देश के करोड़ों नागरिकों द्वारा देश के निर्माण में दिए गए योगदान का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में कस्बे में सुभाषचंद्र बोस (नेता जी) की बनाई गई संगमरमर की प्रतिमा के विषय में बताया गया है।

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि नगरपालिका के किसी उत्साही प्रशासनिक अधिकारी द्वारा नेताजी की प्रतिमा बनवाई गई होगी। वह कैसे लगी या कैसे बनवाई गई, इसके विषय में पूरी जानकारी तो नहीं है। किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि देश के सफल मूर्तिकारों की जानकारी न होने से अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं ज्यादा होने के कारण काफी समय तक विचार-विमर्श होता रहा होगा अर्थात् जितना धन प्राप्त था मूर्ति पर उससे अधिक धन खर्च होने के कारण बहुत-समय सोच-विचार और चिट्ठी-पत्री लिखने में ही बहुत नष्ट हो गया था। बोर्ड के शासन का समय भी समाप्त होने वाला होगा। इसलिए समय और धन दोनों को ध्यान में रखकर किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय लिया गया होगा अर्थात् किसी स्थानीय मूर्तिकार से नेताजी की मूर्ति बनवाने का निश्चय किया गया होगा। अंत में कस्बे के हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर, जिनका नाम मोतीलाल जी होगा, को ही नेताजी की संगमरमर की बनाने का काम दिया गया होगा, जिसने एक मास तक मूर्ति बनाने का विश्वास दिलाया होगा। इस प्रकार नेता जी की मूर्ति बनाने की घटना का यह छोटा-सा अंश ही आपको बताया गया है।

(2) जैसाकि कहा जा चुका है, मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची। जिसे कहते हैं बस्ट। और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन । फौजी वर्दी में। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो…’ वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था। [पृष्ठ 60]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) मूर्ति किसकी थी और कैसी थी?
(ग) मूर्ति को देखते क्या याद आने लगता है?
(घ) मूर्ति में नेताजी की वर्दी कैसी थी?
(ङ) ‘कमसिन और मासूम’ से क्या तात्पर्य है?
(च) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

(ख) मूर्ति नेताजी सुभाषचंद्र बोस की थी। संगमरमर की बनी यह मूर्ति सुंदर थी। यह कमसिन और मासूम लगती थी।

(ग) मूर्ति को देखते ही नेताजी के ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो’ आदि नारे याद आने लगते थे।

(घ) मूर्ति में नेताजी की फौजी वर्दी थी।।

(ङ) कमसिन का अर्थ है-सुंदर तथा मासूम का अर्थ है-भोलापन।

(च) प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं श्री स्वयं प्रकाश द्वारा रचित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने नेता जी की संगमरमर से बनी मूर्ति की सुंदरता और उनके जीवन के विषय में बताया है। .

आशय/व्याख्या-लेखक ने नेता जी की मूर्ति और उसके प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि मूर्ति संगमरमर की बनी हुई थी। यह मूर्ति टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक लगभग दो फुट ऊँची थी। ऐसी मूर्ति को बस्ट कहते हैं। नेता जी की संगमरमर से बनी यह मूर्ति अत्यंत सुंदर थी। नेता जी मूर्ति के रूप में बहुत अच्छे लग रहे थे। नेता जी कुछ भोले, साधारण स्वभाव वाले तथा सुंदर दिखाई दे रहे थे। नेता जी का चित्र फौजी वर्दी में बनाया गया था। उनकी मूर्ति को देखते ही उनके प्रसिद्ध नारे ‘दिल्ली चलो’, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ आदि याद आने लगते थे। इस दृष्टि से नेता जी की मूर्ति बनाने का यह प्रयास प्रशंसा के योग्य था। कहने का भाव है कि नेता जी की मूर्ति अत्यंत सुंदर एवं प्रभावशाली थी।

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(3) केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुज़रे और चौराहे पर पान खाने रुके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुसकान फैल गई। [पृष्ठ 60-61]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) कौन-सा प्रयास सफल एवं सराहनीय रहा?
(ग) मूर्ति में कौन-सी कमी थी और वह क्यों खटकती थी?
(घ) मूर्ति को कैसा चश्मा पहना दिया गया था?
(ङ) हालदार साहब के चेहरे पर कौतुकभरी मुस्कान क्यों फैल गई?
(च) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

(ख) नगर के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की स्थापना का प्रयास अत्यंत सफल एवं सराहनीय था क्योंकि मूर्ति संगमरमर की बनी हुई थी और सुंदर भी थी।

(ग) नेताजी की मूर्ति में उनकी आँखों पर संगमरमर का चश्मा नहीं बना हुआ था। मूर्ति में यही सबसे बड़ी कमी थी। उसके स्थान पर साधारण फ्रेम का चश्मा पहना दिया गया था। वह संगमरमर की मूर्ति से अलग लगता था। इसलिए यह बात देखने वालों को खटकती थी।

(घ) मूर्ति को काले रंग का चौड़े फ्रेम वाला चश्मा पहना दिया गया था।

(ङ) हालदार साहब ने जब पहली बार चौराहे पर स्थापित नेताजी की मूर्ति को देखा तो लक्षित किया कि इनकी मूर्ति पर । संगमरमर का चश्मा न होकर असली का चश्मा था। यही बात उनकी कौतुकभरी मुस्कान का कारण थी।

(च) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री स्वयं प्रकाश हैं। इस पाठ में उन्होंने देश की स्वतंत्रता और विकास में योगदान देने वाले लोगों को देशभक्त कहकर उनका सम्मान किया है।

आशय/व्याख्या-इन पंक्तियों में बताया गया है कि हालदार साहब को नेता जी की संगमरमर से बनी मूर्ति बहुत ही पसंद आई, किंतु उन्हें इस मूर्ति में एक चीज की कमी भी दिखाई दी जो देखने में अच्छी नहीं लगती थी। वह कमी थी कि नेता जी की आँखों पर चश्मा नहीं था। चश्मा तो था, किंतु मूर्ति के साथ के संगमरमर का नहीं था। मूर्ति को एक सामान्य और वास्तविक चश्मे का चौड़ा और काला फ्रेम पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे में आए और चौराहे पर पान खाने के लिए रुके तब उन्होंने मूर्ति को वास्तविक चश्मा पहनाए जाने की ओर संकेत किया था। इस चश्मे के फ्रेम को देखकर वे आश्चर्यभरी हँसी हँसे थे। कहने का भाव है कि हालदार साहब को मूर्ति तो बहुत पसंद थी, किंतु उन्हें मूर्ति पर संगमरमर के चश्मे की अपेक्षा वास्तविक चश्मे का फ्रेम देखकर हैरानी हुई थी।

(4) हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक रह गए। एक बेहद बूढा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टंगे बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं! फेरी लगाता है! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। पूछना चाहते थे, इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यही इसका वास्तविक नाम है? लेकिन पानवाले ने साफ बता दिया था कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं। ड्राइवर भी बेचैन हो रहा था। काम भी था। हालदार साहब जीप में बैठकर चले गए। [पृष्ठ 62-63]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हालदार साहब को क्या अच्छा नहीं लगा?
(ग) हालदार साहब किस बात से हैरान रह गए थे?
(घ) चश्मेवाला कौन था? उसके जीवन की दो विशेषताएँ लिखिए।
(ङ) हालदार साहब किसे देखकर और क्यों चक्कर में पड़ गए?
(च) हालदार साहब को चश्मे वाले के विषय में अधिक जानकारी क्यों नहीं मिल सकी?
(छ) इस गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

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(ख) हालदार साहब को पानवाले द्वारा देशभक्तों का मज़ाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा था। पानवाला चश्मे वाले की देशभक्ति का सम्मान करने की अपेक्षा उसको पागल व लँगड़ा कहता है। हालदार को यही बात चुभ गई थी।

(ग) हालदार साहब को बताया गया था कि नेताजी की मूर्ति पर चश्मा किसी कैप्टन ने लगाया था। उन्होंने कल्पना की होगी कि वह कोई स्वस्थ एवं लंबा फौजी जवान होगा। उसका चश्मों का अच्छा बड़ा कारोबार होगा। किंतु उसने देखा कि जिसका नाम कैप्टन बताया गया था वह एक मरियल और लँगड़ा व्यक्ति था। उसके सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगा हुआ था। उसके एक हाथ में छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में लंबा बाँस था जिस पर चश्मे लटके हुए थे। वह घूम-घूमकर चश्मे बेचता था। यह देखकर हालदार साहब हैरान रह गए थे।

(घ) चश्मे वाला साधारण व्यक्तित्व वाला गरीब व्यक्ति था। उसके मन में देशभक्तों के प्रति आदर की भावना थी। वह गली-गली में घूमकर चश्मे बेचकर गुजारा करता था।

(ङ) हालदार साहब चश्मे वाले (कैप्टन) को देखकर चक्कर में पड़ गए क्योंकि उन्होंने सोचा था कि कैप्टन कोई बहुत तगड़ा या मज़बूत व्यक्ति होगा। किंतु वह एक मरियल-सा बूढ़ा और लँगड़ा व्यक्ति था। वे सोचने लगे कि उसे कैप्टन क्यों कहते हैं, यह उनकी समझ से बाहर था।

(च) हालदार साहब चश्मे वाले को देख चुके थे। वे ऐसे देशभक्त व्यक्ति के विषय में अधिक जानकारी चाहते थे। पानवाले ने उसकी अधिक जानकारी नहीं दी और दूसरा उनके ड्राइवर को भी जल्दी थी। इसलिए हालदार साहब वहाँ अधिक देर तक न रुक सके और न ही किसी अन्य व्यक्ति से कैप्टन के विषय में जानकारी हासिल कर सके।

(छ) इस गद्यांश में लेखक ने बताया है कि देशभक्ति की भावना का होना या न होना मन की स्थिति व भावना पर निर्भर है। कैप्टन गरीब एवं अपाहिज है, किंतु वह देशभक्त है। पानवाला स्वस्थ एवं अच्छा कमाता है, पर उसके मन में देशभक्ति की भावना नहीं है। अपितु वह देशभक्तों का मज़ाक उड़ाता है।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री स्वयं प्रकाश हैं। इस गद्यांश में बताया गया है कि देशभक्ति की भावना का होना या न होना मनुष्य की मनोदशा पर निर्भर करता है।

आशय/व्याख्या-कैप्टन गरीब एवं अपाहिज है, किंतु देशभक्त है। यद्यपि पानवाला स्वस्थ है, तथापि देशभक्त नहीं है। हालदार साहब जब पान खाने के लिए कस्बे के चौराहे पर रूके तो उन्होंने पानवाले से कैप्टन के विषय में पूछा तो उसने कैप्टन के लिए बूढ़ा, कमज़ोर, मरियल लंगड़ा, पागल आदि शब्दों का प्रयोग किया और उसका मज़ाक उड़ाया। किंतु हालदार साहब को किसी देशभक्त का इस प्रकार मज़ाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने मुड़कर देखा तो हैरान रह गए कि एक बहुत ही कमज़ोर बूढ़ा, लंगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे हुए बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था तथा अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। उसके पास अपनी दुकान भी नहीं है। वह तो चश्मे बेचने के लिए फेरी लगाता है। हालदार साहब यह सब देखकर हैरान थे। वे जानना चाहते थे कि फिर इस व्यक्ति को कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यह इसका वास्तविक नाम है, किंतु पानवाले ने उसके विषय में और अधिक बात करना मना कर दिया। उधर ड्राइवर भी बेचैन था और हालदार साहब को काम भी था। अतः वे जीप में बैठकर चले गए। इस प्रकार हालदार साहब को कैप्टन के विषय में अधिक जानकारी नहीं मिल सकी, किंतु यह निश्चित है कि हालदार साहब को देशभक्तों का मज़ाक उड़ाने वाले लोग पसंद नहीं हैं।

(5) बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। दुखी हो गए। पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गुजरे। कस्बे में घुसने से पहले ही खयाल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आँखों . पर चश्मा नहीं होगा।…….. क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया।….. और कैप्टन मर गया। सोचा, आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएँगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे।

लेकिन आदत से मजबूर आँखें चौराहा आते ही मूर्ति की तरफ उठ गईं। कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे। रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते-न-रुकते हालदार साहब जीप से कूदकर तेज़-तेज़ कदमों से मूर्ति की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए।

मूर्ति की आँखों पर सरकडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं।
हालदार साहब भावुक हैं। इतनी-सी बात पर उनकी आँखें भर आईं। [पृष्ठ 63-64]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हालदार साहब क्या सोचकर दुःखी हो गए?
(ग) कैप्टन की मृत्यु का हालदार साहब पर क्या प्रभाव पड़ा?
(घ) हालदार साहब ने ऐसा क्यों सोचा कि सुभाष की प्रतिमा पर चश्मा नहीं होगा?
(ङ) हालदार साहब ने ड्राइवर को क्या आदेश दिया और क्यों?
(च) हालदार साहब ने जीप से उतरकर क्या और क्यों किया?
(छ) हालदार साहब भावक क्यों हो गए थे?
(ज) इस गद्यांश का संदेश क्या है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

(ख) हालदार साहब के मन में देश के प्रति अथाह प्रेम है। देश पर जीवन बलिदान करने वाले देशभक्तों के प्रति भी उनके मन में आदर भाव है। जो लोग देशभक्तों को आदर देने की अपेक्षा उन पर हँसते हैं और अपना स्वार्थ पूरा करने के अवसर की ताक में रहते हैं, उनके व्यवहार को देखकर वह दुःखी होते हैं।

(ग) कैप्टन की मृत्यु का हालदार साहब को बहुत दुःख हुआ। वे अब चौराहे पर पान खाने के लिए भी नहीं रुकना चाहते थे ।

(घ) मास्टर साहब चश्मा बनाना भूल गए थे और जो सज्जन सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति को चश्मा पहनाता था, वह मर चुका था। इसीलिए हालदार साहब इस नतीजे पर पहुंचे थे कि सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं होगा।

(ङ) हालदार साहब ने ड्राइवर को आदेश दिया था कि वह बाजार के चौराहे पर जीप न रोके। क्योंकि वे सुभाष की मूर्ति को बिना चश्मे के देखना नहीं चाहते थे। इसलिए अधिक काम होने का बहाना बना दिया था।

(च) हालदार साहब ने एकाएक जीप रोकने का आदेश दिया और शीघ्रता से जीप से उतरकर तेज गति से चलकर नेताजी की मूर्ति के सामने गए और वहाँ सावधान की स्थिति में खड़े हो गए। उन्होंने नेताजी के प्रति आदर व सम्मान व्यक्त किया।

(छ) हालदार साहब ने देखा कि सुभाष की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। यह देखकर उनका मन भावुक हो उठा कि अभी भी देशभक्ति जीवित है। सुभाषचंद्र बोस जैसे महान् देशभक्तों का आदर करने वाले लोग अभी भी शेष हैं।

(ज) इस गद्यांश के माध्यम से लेखक ने जहाँ मानव मनोविज्ञान का सूक्ष्म विश्लेषण किया है, वहाँ यह सिद्ध किया है कि संसार में अधिकांश लोग पानवाले जैसे स्वार्थी हैं। किंतु कुछ थोड़े-से लोग कैप्टन व हालदार जैसे भी हैं जिनके मन में देशभक्ति का जज्बा है और देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना है। हमें दूसरी प्रकार के लोगों की भाँति व्यक्तिगत स्वार्थ त्यागकर देशभक्त बनना चाहिए।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री स्वयं प्रकाश जी हैं। इस गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि देश में पान बेचने वाले जैसे लोग भी हैं तो कैप्टन और हालदार जैसे देशभक्तों की भी कमी नहीं है।

आशय/व्याख्या-लेखक ने बताया कि हालदार साहब बार-बार इस बात पर सोचते हैं कि उस कौम का क्या होगा जो अपने देश के लिए अपना जीवन, घर-गृहस्थी, पूरी जवानी आदि सब कुछ न्यौछावर करने वालों का मज़ाक उड़ाती है। इतना ही नहीं, अपने आप को चंद पैसों के लिए बेचने के अवसर ढूँढती है। हालदार साहब ऐसा सोचकर बहुत दुखी हो गए थे। हालदार साहब पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे में से गुजरे। कस्बे में प्रवेश करने से पहले उन्हें ख्याल आया कि कस्बे के बीच में सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति तो निश्चित रूप से लगी हुई होगी, किंतु मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं होगा। क्योंकि मूर्तिकार (मास्टर) चश्मा बनाना भूल गया था और मूर्ति को चश्मा पहनाने वाला कैप्टन मर चुका था। हालदार साहब ने मन-ही-मन निश्चय किया कि आज वह मूर्ति के पास वाली पान की दुकान पर पान खाने नहीं रुकेंगे। यहाँ तक कि मूर्ति की तरफ आँख उठाकर देखेंगे भी नहीं। इसलिए ड्राइवर को कह दिया कि आज वे चौराहे पर नहीं रुकेंगे।

पान कहीं आगे जाकर खा लेंगे। वैसे भी आज काम अधिक है। किंतु ज्यों ही हालदार साहब की जीप चौराहे पर पहुँची, उनकी आँखें चौराहे पर लगी मूर्ति की ओर अपने-आप उठ गईं। उन्होंने कुछ ऐसा देखा कि तुंरत ही ड्राइवर को उन्होंने जीप रोकने के लिए कहा। जीप तेज गति से जा रही थी। ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे। आसपास के सभी लोग जीप को देखने लगे। इससे पहले कि जीप रुकती हालदार साहब जीप से कूदे और तेज गति से मूर्ति की ओर चल दिए। नेता जी की मूर्ति के सामने जाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो गए। उन्होंने देखा कि मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का बना चश्मा लगा हुआ था जिस प्रकार बच्चे चश्मा बना लेते हैं। हालदार साहब भावुक हो उठे। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। कहने का भाव है कि हालदार साहब सोचने लगे कि लोगों में अभी देश भक्ति का भाव बचा हुआ है।

नेताजी का चश्मा Summary in Hindi

नेताजी का चश्मा लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री स्वयं प्रकाश का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-स्वयं प्रकाश जी हिंदी के प्रमुख कहानीकार हैं। उन्हें कहानी लेखन में अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। उनका जन्म सन् 1947 में इंदौर में हुआ। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की। उनका बचपन राजस्थान में बीता था और नौकरी भी उन्हें राजस्थान में स्थित एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में ही मिली। उनके जीवन का अधिकांश समय राजस्थान में ही व्यतीत हुआ। अब वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के पश्चात् भोपाल में स्थायी रूप से रह रहे हैं। आजकल वे ‘वसुधा’ नामक पत्रिका के संपादन मंडल से जुड़े हुए हैं।

2. प्रमुख रचनाएँ-कहा जा चुका है कि स्वयं प्रकाश का नाम कहानी के क्षेत्र में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उनके तेरह कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें से प्रमुख कहानी-संग्रह इस प्रकार हैं___’सूरज कब निकलेगा’, ‘आएँगे अच्छे दिन भी’, ‘आदमी जात का आदमी’ तथा ‘संधान’।
उपन्यास-बीच में विनय’ तथा ‘ईंधन’।
प्रमुख पुरस्कार-उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पहल सम्मान, बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री स्वयं प्रकाश की कहानियों एवं उपन्यासों में मध्यवर्ग के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इसलिए विद्वान् उन्हें मध्यवर्गीय जीवन-शैली के महान् चितेरे कहते हैं। उनकी कहानियों में कस्बों की जीवन-शैली का बोध बड़ी कुशलता एवं कलात्मकता से अभिव्यक्त हुआ है। वे देशभक्ति की नारेबाजी के विरुद्ध हैं। वे मनुष्य के आचरण में ही देशभक्ति देखना चाहते हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में जातिगत भेदभाव का जोरदार शब्दों में खंडन किया है। उनकी दृष्टि में सब मनुष्य समान हैं। वे सामाजिक विकास के मार्ग में आने वाली हर बुराई, रूढ़ि व अंधविश्वास को जड़ से उखाड़कर फेंक देना चाहते हैं।

4. भाषा-शैली-स्वयं प्रकाश की कहानियों की भाषा सरल, सहज एवं पात्रानुकूल है। उन्होंने लोक-प्रचलित तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया है। उन्होंने विषय को गहराई से समझने का प्रयास किया है। उन्होंने वर्णनात्मक एवं संवादात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया है। रोचक किस्सागोई शैली में रचित उनकी कहानियाँ हिंदी की वाचक परंपरा को समृद्ध करती हैं।

नेताजी का चश्मा पाठ का सार

प्रश्न-
‘नेताजी का चश्मा’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
लेखक कहता है कि हालदार साहब कंपनी के काम से उस कस्बे में से गुज़रा करते थे। कस्बा छोटा ही था। पक्के मकान बहुत कम थे। वहाँ एक छोटा-सा बाजार भी था। कस्बे में एक नगरपालिका भी थी। नगरपालिका ने नगर के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगवा दी होगी। मूर्ति को देखकर लगता है कि यह किसी स्थानीय मूर्तिकार से बनवाई गई होगी। शायद कस्बे के स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल ने इस मूर्ति को बहुत कम समय में बना दिया होगा। नेताजी की यह मूर्ति टोपी से लेकर कोट के दूसरे बटन तक थी। दो फुट ऊँची यह मूर्ति बहुत सुंदर लग रही थी। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो’ का नारा याद आने लगता था।

हालदार साहब को यह बात बहुत खटकती थी कि नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था अर्थात् संगमरमर का नहीं था। उसके स्थान पर किसी ने एक सचमुच का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया था।

हालदार साहब को वहाँ से गुज़रते समय लोगों का यह प्रयास बहुत अच्छा लगा था। दूसरी बार जब हालदार साहब वहाँ से गुज़रें तो उन्हें मूर्ति का चश्मा बदला हुआ लगा। पहले मोटे फ्रेम वाले चकोर चश्मे के स्थान पर अब तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा था। तीसरी बार हालदार साहब वहाँ से गुज़रे तो प्रतिमा के चश्मे को देखकर हैरान रह गए। उन्होंने सोचा कि यह विचार तो बहुत ही अच्छा है कि यदि मूर्ति के कपड़े नहीं बदले जा सकते तो चश्मा तो आसानी से बदला जा सकता है।

हालदार साहब के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि चश्मा बदलने का रहस्य क्या हो सकता है? चश्मे को बार-बार कौन बदलता है? उन्होंने अपनी जीप रुकवाकर चौराहे पर बैठे पानवाले से पूछा कि नेताजी की मूर्ति का चश्मा कौन बदलता है? पानवाले ने बताया कि यह फ्रेम कैप्टन चश्मेवाला बदलता है। यदि मूर्ति पर लगा चश्मा किसी ग्राहक को पसंद आ जाए तो वह चश्मा ग्राहक को देकर उसके स्थान पर दूसरा फ्रेम लगा देता है। किंतु वह नेताजी की मूर्ति को बिना चश्मे के नहीं देख सकता। जब पानवाले से पूछा कि मूर्ति का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया तो उसने बताया। क्योंकि मूर्ति बनाने वाला ड्राइंग मास्टर चश्मा बनाना भूल गया था। उनका अनुमान सही निकला। क्योंकि यह मूर्ति किसी स्थानीय कलाकार द्वारा बनवाई गई होगी और वह चश्मा बनाना भूल गया होगा अथवा चश्मा बनाने में असफल रहा होगा।

हालदार साहब के मन की जिज्ञासा पूर्णतः शांत नहीं हुई थी। उसने पानवाले से फिर पूछा कि यह चश्मे वाला नेताजी का साथी था या आज़ाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही था? पान वाला हँसता हुआ बोला-वह तो लँगड़ा है, वह फौज में क्या जाएगा? वो देखो, वो आ रहा है। उसका कहीं फोटो-वोटो छपवा दो। पानवाले की यह मजाक भरी बात हालदार साहब को अच्छी नहीं लगी। किसी देशभक्त की हँसी उड़ाना अच्छी बात नहीं है। हालदार साहब ने देखा कि एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए हुआ आ रहा था। उसके एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे बहुत-से चश्मे थे। वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था। हालदार साहब पूछना चाहते थे कि उसका नाम कैप्टन कैसे पड़ा? किंतु यह जानने की किसी को फुर्सत नहीं थी। उस दिन के बाद कई वर्षों तक हालदार साहब आते-जाते नेताजी की मूर्ति पर विभिन्न प्रकार के चश्मे देखते रहे। बिना चश्मे के मूर्ति उन्होंने नहीं देखी।

कुछ समय पश्चात् हालदार साहब वहाँ से गुज़रे तो देखा कि मूर्ति के चेहरे पर चश्मा नहीं था। पूछने पर पता चला कि कैप्टन की मृत्यु हो चुकी थी। यह सुनकर हालदार साहब निराश हो गए और जीप में बैठकर चले गए। वे जीप में बैठकर सोचने लगे कि इस देश का क्या होगा जहाँ के लोग देशभक्तों की बलिदानियों का मज़ाक करते हैं और स्वयं बिकने को तैयार रहते हैं।

कुछ समय पश्चात् हालदार साहब जब बाजार से गुजरे तो उन्होंने निश्चय किया था कि वे नेताजी की बिना चश्मे वाली प्रतिमा की ओर नहीं देखेंगे। किंतु चौराहा आने पर वे रुके बिना न रह सके। उन्होंने देखा कि नेताजी की प्रतिमा पर सरकंडे का चश्मा रखा हुआ था। हालदार साहब की आँखें नम हो गईं। वे भावुक हो उठे।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-60) हालदार = हवलदार। कस्वा = छोटा-सा नगर। ओपन एयर सिनेमाघर = बिना छत का सिनेमाघर। प्रतिमा = मूर्ति। प्रशासनिक = प्रशासन संबंधी। लागत अनुमान = किसी वस्तु के बनाने में खर्च का अंदाजा। उपलब्ध बजट = खर्च करने के लिए जितना धन पास में हो। ऊहापोह = दुविधा। शासनावधि = शासन करने का समय। निर्णय = फैसला। मासूम = भोलापन। संगमरमर = सफेद पत्थर। सराहनीय = प्रशंसा करने योग्य। प्रयास = कोशिश। कसर होना = कमी होना। खटकना = बुरा लगना।

(पृष्ठ-61) लक्षित किया = ध्यान दिया। कौतुकभरी = हैरान कर देने वाली। आइडिया = विचार। निष्कर्ष = परिणाम। चौकोर = चार किनारों वाला। खुशमिज़ाज़ = प्रसन्न स्वभाव वाला। तोंद = पेट। थिरकी = हिली। बत्तीसी = खुले दाँत । दुर्दमनीय = जिसे दबाना कठिन हो। चेंज = बदलना। गिराक = ग्राहक। फ्रेम = चौखट। बिठा दिया = लगा दिया। आहत = दुःखी। असुविधा = परेशानी। फिट करना = लगा देना। दरकार होना = इच्छा होना।

(पृष्ठ-62) ओरिजिनल = मूल, असली। चकित = हैरान। पीक = पान की थूक। द्रवित = पिघलना। वाकई = सचमुच। विचित्र = अद्भुत। ख्याल = विचार। नतमस्तक = सिर झुकाना। भूतपूर्व = पुराना। अवाक् = हैरान। फेरी लगाना = घूम-घूमकर सामान बेचना। चक्कर में पड़ना = हैरान होना।

(पृष्ठ-63) उदास = निराश, दुखी। चुकाकर = देकर। प्रफुल्लता = खुशी। होम = बलिदान करना। बिकने के मौके = अपना स्वार्थ पूरा करने का अवसर।

(पृष्ठ-64) हृदयस्थली = बीच का मुख्य स्थान। प्रतिष्ठापित = स्थापित करना। अटेंशन = सावधान की अवस्था में। आँख भर आना = आँसू बहना। भावुक होना = कोमल भावनाओं से हृदय भर जाना।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

HBSE 10th Class Hindi कन्यादान Textbook Questions and Answers

Class 10 Hindi Chapter 8 HBSE प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर-
माँ के इन शब्दों में लाक्षणिकता विद्यमान है। लड़की होने का तात्पर्य है कि उसमें कोमलता, सुंदरता, शालीनता, सहनशीलता, ममता, माधुर्य आदि स्वाभाविक गुण होते हैं। उसके इन गुणों के कारण ही परिवार बनते हैं और समाज का विकास होता है। माँ के कथन के अनुसार इन गुणों का होना आवश्यक है। किंतु साथ ही माँ का यह कहना लड़की जैसी दिखाई मत देना का तात्पर्य है कि उसमें सामाजिक स्थितियों अथवा अन्याय या शोषण का विरोध करने का साहस भी होना अनिवार्य है। उसमें सचेतता, सजगता आदि गुण भी होने चाहिएँ। उसे डरपोक नहीं होना चाहिए। जहाँ उसके मन में कोमलता, माधुर्य तथा ममता के भाव हैं, वहाँ उसमें अन्याय, शोषण आदि का विरोध करने का साहस भी होना चाहिए।

कन्यादान HBSE 10th Class प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर-
(क) इन पंक्तियों में कवि ने समाज में विवाहित नारी की दशा की ओर संकेत किया है। आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बंधनों की आग बहुओं को बहुत तेजी से निगलती जा रही है। आज वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से अच्छी, सुंदर पढ़ी-लिखी व नौकरी करने वाली कन्या ही नहीं चाहते हैं, अपितु इन सबके साथ-साथ बहुत-सा दहेज भी चाहते हैं। यदि वह दहेज नहीं लाती तो उसके शेष गुण नगण्य हो जाते हैं तथा दहेज न मिलने पर बहू के साथ बुरा व्यवहार किया जाता हैं। उसे हर प्रकार से तंग किया जाता है। इतना ही नहीं, लोभ के चंगुल में फँसकर बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर आग में जलकर मरने के लिए विवश कर देते हैं। कवि ने नारी जीवन के इसी यथार्थ की ओर संकेत किया है। नारी की यह दशा अत्यंत शोचनीय एवं दयनीय है। कवि ने नारी को इस दशा के प्रति सचेत भी किया है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि वह भी अनेक अन्य बहुओं की भाँति आग में अपना जीवन न खो दे। उसे किसी अवस्था में कमजोर नहीं बनना चाहिए। उसे कष्ट पहुँचाने वालों या शोषण करने की कोशिश करने वालों के सामने झुकना नहीं चाहिए। कोमलता नारी का गुण है, किंतु आज की परिस्थितियों से उसे मजबूत बनकर रहने का पाठ अवश्य पढ़ लेना चाहिए, ताकि वह किसी भी विकटतम स्थिति का सामना कर सके।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

कन्यादान पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 3.
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की – कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-
लड़कियाँ सरल स्वभाव की होती हैं। वे छल-कपटपूर्ण व्यवहार को नहीं जानती अर्थात् उनका व्यवहार अति सरल एवं सहज होता है। वे समाज के अनुभव से भी अनभिज्ञ होती हैं। समाज में आज जो कुछ हो रहा है, उसके प्रति उन्हें सचेत करना ही लेखक का परम लक्ष्य है।

प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर-
माँ को अपनी बेटी सच्ची सहेली की भाँति लगती है, क्योंकि वह उसके हर सुख-दुःख की साथी होती है। माँ बेटी के साथ हर प्रकार की बात कर लेती है। बेटी माँ को अच्छी सलाह देती है और हर काम में उसका हाथ बँटाती है। इसलिए बेटी माँ की एकमात्र पूँजी है जो विवाह के पश्चात् अपनी ससुराल चली जाएगी और माँ उसके बाद अकेली पड़ जाएगी।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर-
माँ ने बेटी को सीख देते हुए कहा कि उसे कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर नहीं रीझना चाहिए। क्योंकि वह उसकी कमज़ोरी बन जाएगी और दूसरे उसका लाभ उठाएँगे।
माँ ने उसे यह भी शिक्षा दी कि उसे घर के सब काम करने चाहिएँ, दूसरों को सहयोग भी देना चाहिए, किंतु अत्याचार सहन नहीं करना चाहिए।
माँ ने बेटी को समझाते हुए कहा कि वस्त्रों व आभूषणों के बदले में अपनी स्वतंत्रता का गला नहीं घोंटना चाहिए। अपने व्यक्तित्व की पहचान सदा बनाकर रखनी चाहिए। कभी भी अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट नहीं करना चाहिए जिससे कि लोग उसका गलत ढंग से लाभ उठाएँ।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर-
कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग अनुचित प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि जैसे कन्या कोई वस्तु हो और उसे दान में दिया जा रहा है। मानो कन्या बेजान हो, उसकी अपनी कोई इच्छा न हो। जैसे किसी वस्तु को दान देने के पश्चात् दान करने वाले से उसका कोई संबंध नहीं रहता। कन्यादान करने के पश्चात् मानो माता-पिता का कन्या के साथ कोई संबंध न रह गया हो। वह पराई हो गई हो। इस दृष्टि से कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग उचित नहीं है।

‘दान’ शब्द का एक दूसरा पक्ष भी है। किसी वस्तु को दान करने वाला व्यक्ति किसी सुपात्र को वस्तु का दान करके अपने-आप को धन्य समझने लगता है। ठीक इसी प्रकार किसी सुयोग्य युवक के साथ विवाह के समय माता-पिता अपनी बेटी का कन्यादान करके अपने आपको धन्य समझते हैं। यहाँ इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि कन्यादान के समय कन्या की सहमति होना नितांत आवश्यक है, क्योंकि आज स्थिति बदल चुकी है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

प्रश्न 2.
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटूंगी नहीं
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूंगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाज़े खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
‘भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूंगी नहीं।
उत्तर-
‘कन्यादान’ और ‘मैं लौटूंगी नहीं दोनों कविताओं के केंद्र में नारी है। इसलिए दोनों कविताओं का एक सीमा तक संबंध अवश्य है। किंतु दोनों कविताओं में दृष्टिकोण अलग-अलग हैं। ‘कन्यादान’ कविता में भोली-भाली कन्या के जीवन का वर्णन किया गया है, जो अबोध है, जो वस्त्रों, गहनों, सौंदर्य आदि के मोह के बंधनों में बंधी हुई है। वह अपने शोषण के कारणों से भी अनजान है। किंतु ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता में उस नारी जीवन का वर्णन किया गया है जो जागरूक हो चुकी है। वह जानती है कि सोने के गहने उसके लिए गुलामी की जंजीरों के समान हैं। उसने अपने लक्ष्य व उसकी दिशा को समझ लिया है। अतः स्पष्ट है कि ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता की कन्या ‘कन्यादान’ कविता की कन्या का जागरूक रूप है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

HBSE 10th Class Hindi कन्यादान Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘कन्यादान’ कविता में कौन किसको सीख देता है और क्यों?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती है क्योंकि विवाह से पूर्व कन्या को व्यावहारिक जीवन का बोध नहीं होता। माँ अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों को अपनी बेटी को शिक्षा के रूप में बताती है ताकि उसका भावी जीवन सुखी एवं सुरक्षित बना रह सके। माँ बेटी को परंपरागत संस्कारों से मुक्त होकर स्वतंत्र जीवन जीने का व्यावहारिक ज्ञान देती है ताकि उसे कोई कष्ट न पहुँचा सके तथा उसका शोषण न कर सके।

प्रश्न 2.
समाज में नई बहुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? .
उत्तर-
भारतीय समाज में प्रायः नई बहुओं को सजी-धजी सौंदर्य की गुड़िया समझकर उनसे अच्छा व्यवहार किया जाता है। उसे नए-नए वस्त्र व गहने दिए जाते हैं। लोग उसके नए वस्त्रों, गहनों व रूप-सौंदर्य की प्रशंसा करते हैं। किंतु कुछ लोग दहेज का सामान कम लाने पर या अच्छा सामान न लाने पर व्यंग्य भी करते हैं। दहेज कम लाने पर उसे तंग भी किया जाता है। कभी-कभी तो उसे जलकर मरने पर मजबूर किया जाता है।

प्रश्न 3.
कवि ने स्त्री के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान क्यों कहा है?
उत्तर-
कवि के अनुसार स्त्रियाँ गहनों पर मुग्ध होकर उसी प्रकार भ्रमित हो जाती हैं जिस प्रकार शब्दों के प्रयोग के द्वारा लोगों को भ्रमित किया जाता है। स्त्रियाँ गहनों के प्रति इतनी अधिक आकृष्ट होती हैं कि उनकी प्राप्ति के लिए वे अपनी स्वतंत्रता को भी दाँव पर लगा देती हैं। पुरुष वर्ग उनकी इस कमज़ोरी का फायदा उठाकर मनमानी करता है। इसलिए कवि ने स्त्रियों के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान कहा है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 4.
‘कन्यादान’ नामक कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में माँ की शिक्षा के माध्यम से नारी-जागृति की भावना को उजागर किया गया है। कवि का मुख्य उद्देश्य नारी को उसके बंधन की बेड़ियों और उनके कारणों को समझाना है। कवि का मत है कि नारी का सौंदर्य, प्रशंसा, वस्त्र, गहने आदि उसको गुलाम बनाने के नए-नए ढंग हैं। नारी इन्हीं बंधनों-के-बंधन में फँसकर अपना व्यक्तित्व ही भूल जाती है। कभी-कभी उसे पुरुषों के द्वारा जलकर मरने के लिए विवश किया जाता है या फिर उसे जलाकर मार दिया जाता है। कवि ने संदेश दिया है कि यदि नारी अपनी कोमलता, सरलता और भोलेपन के प्रति सचेत हो जाए और अपने शोषण के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने की थोड़ी-सी हिम्मत अपने में पैदा कर ले तो वह शक्तिशाली बन सकती है।

प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को किस प्रकार का जीवन जीने की शिक्षा दी है?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने कन्यादान के समय अर्थात् विवाह के समय जो परंपरागत बात बताई जाती है, उनसे हट कर शिक्षा दी है। उसे बताया गया है कि वह केवल अपने शारीरिक सौंदर्य व वस्त्रों, आभूषणों की प्राप्ति आदि की ओर ही ध्यान मत दे। उसे चाहिए कि वह सामाजिक परिवर्तन को खुली आँखों से देखे तथा अपने भीतर हिम्मत और साहस उत्पन्न करे ताकि वह अपने प्रति होने वाले अपमान या अन्याय का विरोध कर सके। उसे अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा। यह सजगता ही उसके जीवन में एक नई दिशा दिखाएगी। इसी से उसका जीवन सुखी बन सकेगा।

प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ शीर्षक कविता के आधार पर माँ के जीवन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने माँ के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि वह एक सजग एवं अनुभवशील नारी है। उसने उन्हें अपने जीवन में आने वाले सुख-दुःख को भोगा है और उन्हें प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत भी किया है। वह एक संवेदनशील नारी है। उसने जीवन में जिन सुखों व दुःखों को भोगा है, उनके कारणों को समझा भी है। वह नहीं चाहती थी कि जिन दुःखों को उसने भोगा है, उन्हीं दुःखों को उसकी बेटी भी भोगे। इसलिए एक माँ अपने कर्तव्य का पालन करती हुई अपनी बेटी को जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रति सचेत करती है।

प्रश्न 7.
‘कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?
उत्तर-
कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में विवाहिता नारी के दुःख को प्रामाणिक कहा है। क्योंकि आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बन्धनों की आग बहुओं को तेजी से निगलती जा रही है। लोग लोभ के कारण इतने अन्धे हो चुके हैं कि बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर खुद-कुशी करने के लिए विवश कर देते हैं।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कविवर ऋतुराज का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
कविवर ऋतुराज का जन्म सन् 1940 में हुआ था।

प्रश्न 2.
कविवर ऋतुराज ने अपनी कविताओं में किस वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है?
उत्तर-
कविवर ऋतुराज ने अपनी कविताओं में शोषित वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है।

प्रश्न 3.
‘कन्यादान’ कविता में लड़की को किसकी पाठिका कहा गया है?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में लड़की को धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा गया है।

प्रश्न 4.
कवि ने किसे धुंधले प्रकाश की पाठिका बताया है?
उत्तर-
कवि ने बेटी को धुंधले प्रकाश की पाठिका बताया है।

प्रश्न 5.
नारियों के लिए किसे बंधन बताया गया है?
उत्तर-
नारियों के लिए वस्त्रों एवं आभूषणों को बंधन बताया गया है।

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प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री ऋतुराज।

प्रश्न 7.
‘लड़की जैसी दिखाई न देना’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
‘लड़की जैसी दिखाई न देना’ का तात्पर्य कमजोर मत बनना है।

प्रश्न 8.
‘शाब्दिक भ्रम’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘शाब्दिक भ्रम’ से अभिप्राय है अवास्तविक को वास्तविक दिखाना।

प्रश्न 9.
‘कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को कैसा बताया है?
उत्तर-
कवि ने वस्त्र और आभूषणों को नारी के लिए मोह के बन्धन बताया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर ऋतुराज का जन्म कब हुआ था?
(A) सन् 1940 में
(B) सन् 1945 में
(C) सन् 1950 में
(D) सन् 1952 में
उत्तर-
(A) सन् 1940 में

प्रश्न 2.
श्री ऋतुराज किस प्रदेश के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) पंजाब
(C) राजस्थान
(D) उत्तर प्रदेश
उत्तर-
(C) राजस्थान

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प्रश्न 3.
कविवर ऋतुराज ने किस विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) संस्कृत
(B) अंग्रेज़ी
(C) इतिहास
(D) हिंदी
उत्तर-
(B) अंग्रेज़ी

प्रश्न 4.
कविवर ऋतुराज का व्यवसाय क्या था?
(A) व्यापार
(B) कृषि
(C) अध्यापन
(D) ठेकेदारी
उत्तर-
(C) अध्यापन

प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) नागार्जुन
(D) ऋतुराज
उत्तर-
(D) ऋतुराज

प्रश्न 6.
कविवर ऋतराज ने अपनी कविताओं में किस वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है?
(A) शोषित वर्ग
(B) अमीर वर्ग
(C) अध्यापक वर्ग
(D) उच्च वर्ग
उत्तर-
(A) शोषित वर्ग

प्रश्न 7.
प्रस्तुत कविता में प्रामाणिक किसे कहा गया है?
(A) सुख
(B) दुःख
(C) आनन्द
(D) स्मृति
उत्तर-
(B) दुःख

प्रश्न 8.
माँ की अंतिम पूँजी किसे कहा गया है?
(A) बेटी को
(B) सास को
(C) बेटे को
(D) बहन को
उत्तर-
(A) बेटी को

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प्रश्न 9.
माँ ने अपनी बेटी को किस रूप में देखा?
(A) विदुषी
(B) महिषी
(C) उपदेशिका
(D) पाठिका
उत्तर-
(D) पाठिका

प्रश्न 10.
‘कन्यादान’ कविता में कवि ने किसको धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है?
(A) पत्नी को
(B) माँ को
(C) बेटी को
(D) बहन को
उत्तर-
(C) बेटी को

प्रश्न 11.
माँ ने किसे देखकर न रीझने का आदेश दिया है?
(A) वस्त्रों को
(B) धन को
(C) चेहरे को
(D) गहनों को
उत्तर-
(C) चेहरे को

प्रश्न 12.
आग का प्रयोग किस कार्य के लिए बताया गया है?
(A) रोटियाँ सेंकने के लिए
(B) स्वयं जलने के लिए
(C) दूसरों को जलाने के लिए
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(A) रोटियाँ सेंकने के लिए

प्रश्न 13.
भारतीय समाज में ‘लड़की का दान’ का अर्थ है
(A) लड़की का दान
(B) लड़की की शिक्षा
(C) लड़की का जन्म
(D) लड़की का विवाह
उत्तर-
(D) लड़की का विवाह

प्रश्न 14.
बेटी का स्वभाव था
(A) चतुर
(B) कठोर
(C) भोला-भोला
(D) प्रवीण
उत्तर-
(C) भोला-भोला

प्रश्न 15.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है’ वाक्य का प्रतीकार्थ है
(A) आग सही जलाना
(B) रोटी न जलाना
(C) रोटी कच्ची न रखना
(D) यथोचित प्रयोग
उत्तर-
(D) यथोचित प्रयोग

कन्यादान पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सख का आभास तो होता था।
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की [पृष्ठ 50]

शब्दार्थ-प्रामाणिक = वास्तविक, सच्चा। सयानी = समझदार। आभास = अनुभव, महसूस। बाँचना = पढ़ना।। धुंधले = अस्पष्ट। लयबद्ध = लय में बँधी हुई।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?
(ङ) माँ की अंतिम पूँजी कौन और कैसे है?
(च) “दुख बाँचने का आशय स्पष्ट कीजिए।
(छ) कवि ने किसे और क्यों धुंधले प्रकाश की पाठिंका कहा है?
(ज) इस पद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(झ) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) प्रस्तुत पद में निहित शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-ऋतुराज। . कविता का नाम कन्यादान।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘कन्यादान’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री ऋतुराज हैं। इस कविता में कवि ने वर्तमान युग में बदलते हुए जीवन-मूल्यों का उल्लेख किया है। माँ अपनी बेटी के लिए केवल भावुकता को ही महत्त्वपूर्ण नहीं मानती, अपितु अपने संचित अनुभवों की पीड़ा का पाठ भी उसे पढ़ाना देना चाहती है। वह उसे भावी जीवन के यथार्थ के विषय में भी बताती है।

(ग) कवि कहता है कि माँ ने अपने जीवन में जिन दुःखों को सहन किया था, उन्हें अपनी बेटी को कन्यादान के समय बताना और समझाना अति आवश्यक था। यह एक सत्य है। कहने का भाव है कि आज के युग में बेटी के विवाह के समय कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उसे जीवन के उन अनुभवों से भी अवगत करा देना उचित होगा जिनको माँ ने अपने जीवन में भोगा था ताकि बेटी अपना जीवन समुचित रूप से जी सके। माँ के लिए बेटी ही तो अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सब सुख-दुःख वह बेटी के साथ बाँटती थी। भले ही वह बेटी का विवाह कर रही थी, किंतु उसकी दृष्टि में बेटी अब भी अधिक समझदार नहीं थी। उसके पास सांसारिक जीवन के अनुभव नहीं थे। वह अत्यंत सरल एवं भोले स्वभाव वाली थी। वह दुःखों की उपस्थिति को अनुभव तो करती थी, किंतु उसे उन्हें पढ़ना नहीं आता था। ऐसा लगता था कि उसे धुंधले प्रकाश में जीवन रूपी कविता की कुछ तुकों व लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ना ही आता था, किंतु उसके अर्थ उसकी समझ में नहीं आते थे। कवि के कहने का भाव है कि कन्या भले ही विवाह के योग्य हो जाती है किंतु उसे उन्हें दुनियादारी की ऊँच-नीच व व्यवहार अभी पूरी तरह समझ में नहीं आते। उसमें इस समय इतनी योग्यता नहीं आ पाती कि वह दुनियावी भेदभाव को समझ सके। इसलिए माँ के द्वारा बेटी को समझाना उचित ही नहीं, नितांत आवश्यक भी है।

(घ) कवि ने माँ के दुःखों को प्रामाणिक कहा है क्योंकि उसने अपने जीवन में उन्हें भोगा एवं अनुभव किया है।

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(ङ) बेटी ही माँ की अंतिम पूँजी है क्योंकि वह अपने जीवन के हर सुख-दुःख को उसी के साथ बाँटती है। बेटी ही माँ के सबसे अधिक निकट होती है। वह उसके सुख-दुःख की सच्ची साथी है।

(च) ‘दुःख बाँचना’ का साधारण अर्थ दुःखों को पढ़ना है। यहाँ दुःख बाँचना का अभिप्राय है-जीवन में आने वाले दुःखों की समझ रखना अर्थात् दुःखों को गहराई से समझना व जानना है।

(छ) कवि ने बेटी को धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है क्योंकि वह अभी जीवन में आने वाले सुख-दुःख को थोड़ा-बहुत अनुभव तो करती है, किंतु उनको गहराई से समझना व उनके कारणों पर विचार करना उसे नहीं आता। इसलिए उसे धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा गया है जोकि उचित है।

(ज) प्रस्तुत पद्यांश का मूल भाव बदलते जीवन-मूल्यों के समय परंपरागत विचारों में भी बदलाव की आवश्यकता को व्यक्त करना है। आज बेटी को कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं अपितु माँ को चाहिए कि वे अपने जीवन के अनुभवों से भी उसे अवगत कराए ताकि वह अपना वैवाहिक जीवन भली-भाँति व्यतीत कर सके।

(झ) कवि ने कन्या की विवाहपूर्व स्थिति का अत्यंत सूक्ष्मता एवं भावनात्मकतापूर्ण वर्णन किया है। कन्या की चिंता में घुलती माँ की मनोदशा का अत्यंत सजीव चित्र अंकित किया गया है।

(ञ)

  • प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अर्थ-लय का सुंदर मिश्रण किया है जिससे काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
  • भाषा, सरल एवं सहज होते हुए भी भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
  • तत्सम शब्दावली का भावानुकूल प्रयोग द्रष्टव्य है।
  • अंतिम पूँजी में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  • ‘दुःख बाँचना’ लाक्षणिक प्रयोग है।
  • ‘धुंधला प्रकाश’, ‘तुक’, ‘समलय पंक्तियाँ’ आदि प्रतीकात्मक प्रयोग हैं।

(ट) कविवर ऋतुराज भाषा के मर्मज्ञ विद्वान हैं। वे भाषा के महत्व को भली-भांति समझते हैं। अतः उन्होंने इस पद्यांश में सरल एवं सहज भाषा के सफल प्रयोग द्वारा विषय को रोचकतापूर्ण अभिव्यक्त किया है। व्यावहारिकता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। भाषा पूर्णतः लोक-जीवन से जुड़ी हुई है।

[2] माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना। [पृष्ठ 50]

शब्दार्थ-रीझना = प्रसन्न होना। रोटियाँ सेंकना = रोटियाँ पकाना। आभूषण = गहने। भ्रम = धोखा।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) माँ ने आग का क्या प्रयोग बताया और क्यों?
(ङ) वस्त्रों एवं आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन क्यों बताया गया है?
(च) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की जैसी दिखाई मत देना?
(छ) माँ ने बेटी को अपने चेहरे पर रीझने के लिए क्यों मना किया है?
(ज) ‘शाब्दिक भ्रम’ का क्या तात्पर्य है?
(झ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत पद्यावतरण में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-ऋतुराज। कविता का नाम-कन्यादान।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘कन्यादान’ नामक कविता से उद्धृत हैं। इनमें कविवर ऋतुराज ने एक माँ के द्वारा विदाई के समय पुत्री को दी जाने वाली शिक्षा का उल्लेख किया है। अकसर नारियों को कोमल, कमज़ोर और असहाय बताया जाता है। माँ अपनी बेटी को इस भ्रम को तोड़कर जीवन जीने की शिक्षा देती है।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती हुई कहती है कि तुम कभी अपने चेहरे को पानी में देखकर अपनी सुंदरता पर प्रसन्न मत होना। कवि के कहने का भाव है कि कभी-कभी उनकी सुंदरता ही उनके लिए बंधन बन जाती है। दहेज के कारण लोग लड़कियों को जला देते हैं। इस भय के कारण माँ बेटी को समझाती है कि आग रोटी पकाने के लिए होती है, स्वयं जलने के लिए नहीं। किसी भी ऐसी घटना से सदा सचेत रहना। देखा गया है कि लड़कियाँ ससुराल वालों के जुल्म सहती रहती हैं और कुछ बोलती भी नहीं। यदि समय रहते उसका विरोध किया जाए तो ऐसी घटना से बचा जा सकता है। अकसर नारी की कोमलता को उसकी कमज़ोरी मान लिया जाता है। नारी को अच्छे वस्त्रों और आभूषणों तक सीमित कर दिया जाता है। नारी के लिए नए-नए आदर्शों की व्याख्या की जाती है। उसे क्या करना है, क्या नहीं करना है आदि। ऐसी बातें या आदर्श उसके बंधन बन जाते हैं। इसीलिए उसकी माँ कहती है कि लड़कियों की तरह रहना, किंतु लड़कियों की तरह दिखाई मत देना। कहने का भाव है कि हर बात को सिर झुकाकर स्वीकार करना, किसी बात का विरोध न करना आदि। लड़कियों के गुणों से ऊपर उठकर अपनी बात को दृढ़ता से औरों के सामने रखना जिससे लोग स्त्री को अबला समझकर उस पर अत्याचार करने की हिम्मत न करें।

(घ) माँ ने अपनी बेटी की विदाई के समय उसे शिक्षा देते हुए बताया है कि आग रोटियाँ सेंकने के लिए है अर्थात आग का प्रयोग भोजन बनाने के लिए होता है, स्वयं जलने के लिए नहीं। दुल्हनों को आग में जलाकर मारने की घटनाएँ प्रतिदिन सुनने को मिलती हैं। अतः माँ ने बेटी को सावधान करते हुए ऐसा कहा है।

(ङ) स्त्री को लोग सौंदर्य की वस्तु समझते हैं। वह अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनकर और भी सुंदर लगती है। इस भावना को स्त्रियाँ भी समझती हैं। इसलिए वे सुंदर वस्त्रों और आभूषणों के प्रति मोह रखती हैं। अतः कवि ने वस्त्रों और आभूषणों को नारी जीवन के लिए बंधन कहा है।

(च) कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि ससुराल वाले लड़की को कमज़ोर समझकर उस पर तरह-तरह के अत्याचार करते हैं और वह उनको सहती रहती है। वह किसी भी तरह का प्रतिवाद नहीं करती। किंतु उसे ऐसा नहीं होने देना चाहिए। उसे अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए। उसे चुप नहीं रहना चाहिए।

(छ) माँ ने बेटी को चेहरे पर रीझने के लिए इसलिए मना किया क्योंकि प्रायः स्त्रियाँ अपनी सुंदरता पर रीझकर हर बंधन को निभा लेती हैं। वे ससुराल वालों की प्रशंसा पाकर उनके हर अत्याचार व अन्याय को भी सहन कर लेती हैं और अपने शोषण का विरोध नहीं करतीं।

(ज) ‘शाब्दिक भ्रम’ का तात्पर्य है कि शब्दों के द्वारा किसी अवास्तविक वस्तु को वास्तविक बताना। किसी वस्तु का शब्दों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करना। इसकी समानता बहू को मिलने वाले सुंदर कपड़ों और आभूषणों से की गई है। ये भी बहू के मन में भ्रम पैदा करते हैं कि उसके ससुराल वाले उससे सचमुच प्यार करते हैं। कहने का भाव है कि माँ अपनी बेटी को ऐसे शाब्दिक भ्रमों से सावधान रहने के लिए कहती है।

(झ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने उन सब बातों व सामाजिक बंधनों के रहस्य को व्यक्त किया है जिनके कारण स्त्री को गुलाम बनाया जाता है। कवि ने नारी की सुंदरता, वस्त्र और आभूषणों के प्रति मोह, झूठी प्रशंसा, आदर्शों की व्याख्या आदि को नारी जीवन की गुलामी के कारण बताया है। इस भाव को अत्यंत कुशलता से अभिव्यक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त लड़कपन का होना भी कभी-कभी स्त्री के शोषण का कारण बन सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि नारी इन बातों का ध्यान रखते हुए अपना जीवन स्वतंत्रतापूर्वक व्यतीत कर सकती है।

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(ञ)

  • कवि ने नारी को सामाजिक बंधनों से मुक्त रहने के लिए सुझाव दिए हैं।
  • भाषा सांकेतिक है। पानी में झाँकना, लड़की होना, रोटियाँ सेंकना, जलने के लिए नहीं आदि प्रयोग इसके उदाहरण हैं। जो सांकेतिक होते हुए भी अपने में गूढ़ अर्थ समेटे हुए हैं।
  • वाक्य-रचना अत्यंत सरल है।
  • मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
  • लाक्षणिकता का प्रयोग हुआ है।

(ट) कविवर ऋतुराज भाषा के मर्म को समझते हैं। उन्होंने उपर्युक्त पद्यांश में सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा का सफल प्रयोग किया है। ‘रोटियाँ सेकना’ ‘आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह’ आदि भाषिक प्रयोग अत्यन्त सार्थक एवं सटीक बन पड़े हैं। प्रवाहमयता एवं रोचकता भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। इस काव्यांश की भाषा में तद्भव शब्दों का सफल प्रयोग किया गया है।

कन्यादान Summary in Hindi

कन्यादान कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर ऋतुराज का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-ऋतुराज का आधुनिक हिंदी कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका जन्म सन् 1940 में भरतपुर (राजस्थान) में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम०ए० अंग्रेजी की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् उन्होंने अध्यापन का कार्य आरंभ किया। आजकल श्री ऋतुराज सेवानिवृत्त होकर साहित्य-सृजन में लगे हुए हैं।

2. प्रमुख रचनाएँ-कविवर ऋतुराज के अब तक आठ काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं’एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत-निरत’, ‘लीला मुखारविंद’ आदि।
पुरस्कार-कवि श्री ऋतुराज सोमदत्त परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से भी सम्मानित हो चुके हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-ऋतुराज के काव्यों के अध्ययन से पता चलता है कि वे शोषितों, पीड़ितों व उपेक्षितों के कवि हैं। उन्होंने उन लोगों के जीवन पर लेखनी चलाई है जिन्हें समाज ने हाशिए पर खड़ा किया हुआ है अथवा जिन्हें उपेक्षित समझा जाता है। वे अपने काव्य में कल्पना की अपेक्षा यथार्थ को अपनाते हैं। उनका मत है कि आज काव्य को कल्पना की उड़ान भरने की अपेक्षा यथार्थ को आधार बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। कवि ने अत्यंत सहज भाव से अन्याय, दमन, शोषण और रूढ़िग्रस्त जर्जरित संस्कारों का विरोध किया है। कहीं-कहीं उनके विद्रोह की भावना अत्यंत तीखी होकर उभरी है। उन्होंने आज के मानव के संघर्ष को काव्य में स्थान देकर एवं उसको प्रतिष्ठित करके संघर्ष व परिश्रम के प्रति विश्वास व्यक्त किया है। उन्होंने बड़ी-बड़ी दार्शनिक बातें कहने की अपेक्षा दैनिक जीवन के अनुभवों का यथार्थ के धरातल पर जाकर सजीव चित्रण किया है। उन्होंने परंपरा से हटकर नए जीवन-मूल्यों की स्थापना करने का प्रयास किया है। उनकी कविता में कल्पना नहीं, अपितु यथार्थ के दर्शन होते हैं; यथा
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना,
X X X
बंधन हैं स्त्री जीवन के।

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4. भाषा-शैली-कविवर ऋतुराज भाषा के मर्म को समझते हैं। इसलिए उन्होंने जीवन को यथार्थ के धरातल पर चित्रित करने के लिए सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा को माध्यम बनाया है। उनकी भाषा पूर्णतः लोक-जीवन से जुड़ी हुई है। उनकी काव्य भाषा में तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग हुआ है।

कन्यादान कविता का सार

प्रश्न-
‘कन्यादान’ नामक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘कन्यादान’ ऋतुराज की सुप्रसिद्ध रचना है। इस कविता में माँ बेटी को स्त्री के परंपरागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर शिक्षा व सीख देती है। कवि का मत है कि समाज-व्यवस्था में स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं, वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन ही होते हैं। ‘कोमलता’ के गौरव में कमजोरी का उपहास छुपा हुआ है। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार है।

बेटी माँ के सबसे निकट होती है। उसके सुख-दुःख की साथी होती है। इसीलिए माँ के लिए बेटी उसकी अंतिम पूँजी है। प्रस्तुत कविता कोरी कल्पना पर आधारित नहीं है और न ही इसमें भावुकता को आधार बनाया गया है। यह कविता माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। प्रस्तुत कविता में कवि की स्त्री जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता अभिव्यक्त हुई है।

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् उपसर्ग

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Upasarg उपसर्ग Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् उपसर्ग

व्याकरणम् उपसर्ग HBSE 10th Class

परिचय-धातु के आरम्भ में जब प्र आदि शब्द जुड़ते हैं, तब इन्हें ही उपसर्ग कहा जाता है। उपसर्ग जुड़ने पर प्रायः धातुओं के अर्थ बदल जाते हैं, जैसे- गच्छति (जाता है), आ + गच्छति = आगच्छति (आता है)।
संस्कृत में अधोलिखित 22 उपसर्ग होते हैं
प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आ (आङ्), नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि, उप
प्र – प्रकर्षम्, प्रबलम्, प्रभावः, प्रणामः -प्रभवति (समर्थ होता है)
परा – पराभवः, पराजयः, पराक्रमः-पराभवति (अपमान करता है)
अप – अपकारः, अपकृष्टः,-अपहरति (हरण करता है)-अपव्ययः
सम् – संस्कारः, समृद्धिः, संगमः,-संस्करोति (शुद्ध करता है)
अनु – अनुसरणम्, अनुरूपम्,-अनुसरति, सः पितरम् अनुगच्छति (अनुसरति)
अव – अवनतिः, अवरोधः,-अवनयति।
निस् – निष्प्रभावः, निस्तेजः,-निस्सरति (निकलता है)
निर् – निर्बलः,-निर्गच्छति, (निकलता है)
दुस् – दुस्तरः, दुष्प्रभावः, दुष्कर्म,-दुश्चरति (बुरा व्यवहार करता है)
दुर् – दुराचारः, दुर्गतिः, दुर्जेयः,-दुराचरित (बुरा व्यवहार करता है)
वि – विवरणम्, विमलः, विजयः, -विहसति (मन्द-मन्द हँसता है)
आ – आबालम्, आजन्म, आसमुद्रम्,-आगच्छति (आता है)
नि – निगृहीतः, निपातितः, निधनम्,-निवर्तते-(लौटता है)
अधि – अधिकारः, अधिपतिः,-अधिगच्छति (प्राप्त करता है)
अपि – अपिधानम्-अपिहितम्-अपिधेहि (बन्द करो)
अति – अत्यधिकम्-अतिक्रामति (लाँघता है)
सु – स्वागतम्, सुगमः, सुजनः,-सुकरोति (अच्छी प्रकार करता है)
उत् – उत्कर्षः, उद्धारः, उद्धवः,-उद्गच्छति (ऊपर निकलता है)
अभि – अभ्यागतः, अभिमानः, अभिगच्छति-अभ्यस्यते (अभ्यास किया जाता है)
प्रति – प्रतिज्ञा, प्रत्ययः, प्रतिवसति,-प्रतिवदति (जवाब देता है)
परि – परित्यागः, परितोषः, परिभ्राम्यति,-परिभवति (अपमान करता है)
उप – उपवनम्, उपस्थितः,-उपदिशति (उपदेश देता है)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् उपसर्ग

HBSE 10th Class व्याकरणम् उपसर्ग

अभ्यासार्थ प्रश्न
1. स्थूलाक्षरपदेषु प्रयुक्तान् उपसर्गान् पृथक् कृत्वा लिखत
(स्थूलाक्षरपदों में प्रयुक्त उपसर्गों को अलग करके लिखिए-)
(क) अपव्ययं न कुर्यात् आपदर्थे च धनं संरक्षेत्।
(ख) निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः भूकम्पस्य उपद्रवे।
(ग) राजा मुनेः उत्तरं प्रतीक्षितवान्।
(घ) मुनिः प्रयत्नेन रुग्णस्य उपचारे प्रवृत्तः।
(ङ) दुर्जनाः दुष्कर्मणि संलग्नाः सन्ति।
(च) दुष्टेन रावणेन सीता अपहृता, विनाशं च प्राप्तवान्।
(छ) सैनिकाः महारज्जुम् अवलम्ब्य सुदूरात् पर्वतात् अधः अवतरन्ति।
(ज) अभिज्ञानशाकुन्तलस्य एषः अनुवादः अतिप्रशंसनीयः।
(झ) क इदं दुष्करं कुर्यात् ?
(ब) आरक्षी सुपुष्टदेह आसीत्, अभियुक्तः च अतीव कृशकायः।
(ट) सजनाः विजयं पराजयं वा न विचारयन्ति।
(ठ) सुतीव्र वायुः प्रवहति, द्वारम् अपिधेहि।
(ड) परिवारेषु निर्धनता अतिकष्टदा।
(ढ) ज्वाला पर्वतं विदार्य बहिः निष्क्रामति।
(ण) अधिकारिणः निष्पक्षाः भवेयुः न्यायं च परिरक्षेयुः।
उत्तराणि:
(क) अप, आ, सम्।
(ख) नि, वि, उप।
(ग) उत्, प्रति।
(घ) प्र, उप, प्र।
(ङ) दुर्, दुस्, सम्।
(च) दुस्, अप, वि, प्र।
(छ) अव, सु, अव।
(ज) अभि, अनु, अति, प्र।
(झ) दुस् ।
(ब) आ, सु, अभि, अति ।
(ट) सत्, वि, परा, वि।
(ठ) सु, प्र, अपि।
(ड) परि, निर्, अति ।
(ढ) वि, निस्।
(ण) अधि, निस्, परि।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

HBSE 10th Class Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers

आत्मकथ्य’ कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर-
कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है क्योंकि उसका जीवन साधारण-सा रहा है। उसमें कुछ भी ऐसा महत्त्वपूर्ण नहीं है जिसे पढ़कर लोगों को सुख व आनंद प्राप्त हो सके। फिर उसके जीवन में दुःख और अभावों की भरमार रही है जिन्हें कवि दूसरों से बाँटना नहीं चाहता। उसके मन में किसी के प्रति अनुरक्ति की भावना थी, उसे भी कवि किसी को बाँटना नहीं चाहता। कवि द्वारा आत्मकथा न लिखने के ये ही कारण रहे हैं।

Class 10 Hindi Chapter Atmakatha Question Answer HBSE प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में, ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर-
कवि द्वारा यह कहना कि ‘अभी समय भी नहीं है’ के दो प्रमुख कारण रहे होंगे-प्रथम, उसने अभी तक कोई महान् कार्य नहीं किया कि उसके बारे में आत्मकथा लिखकर संसार भर को बताया जाए। दूसरा प्रमुख कारण यह हो सकता है कि कवि शांत चित्त है। उसके जीवन में व्यथा-ही-व्यथा है। उन्हें सुनाकर फिर से अपने मन को अशांत क्यों किया जाए।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

आत्मकथ्य कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
जिस प्रकार एक पथिक को यात्रा पूरी करने के लिए मार्ग में पाथेय की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार अपनी लंबी एवं दुःखों से भरी जीवन-यात्रा में कवि ने अपने जीवन की सुखद एवं मधुर स्मृतियों को मन में संजोया है ताकि उनके सहारे वे आगे के पथ में पाथेय का काम करती रहें अर्थात् आने वाला जीवन उन मधुर यादों के सहारे व्यतीत हो सके। .

आत्मकथ्य कक्षा 10 प्रश्न उत्तर HBSE प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर-
(क) कवि ने इन पंक्तियों में स्पष्ट किया है कि उसने जिस सुख का सपना देखा था वह सुख कभी नहीं मिला। उसकी पत्नी या प्रेमिका भी उसके आलिंगन में आते-आते रह गई। वह मुस्कराकर उसकी ओर बढ़ी, किंतु कवि के आलिंगन में न आ सकी। वह उसकी पहुँच से सदा के लिए दूर चली गई। कहने का भाव यह है कि कवि को दांपत्य सुख कभी प्राप्त न हो सका।
(ख) कवि ने अपनी प्रिया की सुंदरता का उल्लेख करते हुए कहा है कि उसके गाल लाल एवं मस्ती भरे थे। ऐसा लगता है कि प्रेममयी भोर की बेला भी अपनी लालिमा उसके मतवाले गालों से लिया करती थी। कवि के कहने का भाव है कि उसकी प्रिया के मुख की सुंदरता प्रातःकालीन लालिमा से अधिक सुंदर थी।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? .
उत्तर-
इस कथन के माध्यम से कवि ने स्पष्ट किया है कि निज प्रेम के मधुर प्रसंगों को सबके सामने प्रकट नहीं किया जाता। मधुर चाँदनी रात में बिताए गए मधुर क्षण कवि को उज्ज्वल गाथा के समान लगते हैं। ऐसी उज्ज्वल गाथा अत्यंत निजी संपत्ति होती है। अतः ऐसे क्षणों को आत्मकथा में लिखकर अपना मजाक बनवाना है। अतः आत्मकथा में उनका लिखना आवश्यक नहीं।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
आत्मकथ्य एक छायावादी कविता है। इसमें कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है अर्थात् इसमें संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया है; जैसे- …
“उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।” कवि ने इस कविता की भाषा में प्रकृति के विभिन्न उपमानों का प्रयोग किया है, जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया है। मधुप, पत्तियाँ, नीलिमा, चाँदनी रात आदि इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त मधुप, रीति गागर आदि प्रतीकों का भी प्रयोग किया गया है। संपूर्ण कविता की भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है। अन्त्यानुप्रास अलंकार के सफल प्रयोग से भाषा में लय बनी रहती है; यथा-

“उसकी स्मृति पाथेय बनी है, थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? ॥”

स्वर मैत्री के कारण भी भाषा संगीतात्मक बन पड़ी है। चित्रात्मकता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता है। कवि ने इसके द्वारा पाठक के मन पर शब्दचित्र अंकित किए हैं जिससे पाठक के मन पर कविता का प्रभाव देर तक बना रहता है।

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने बताया है कि उसने जो सुख का स्वप्न देखा था, वह उसे प्राप्त नहीं कर पाया था। वह स्वप्न अधूरा ही रह गया था। किंतु उस स्वप्न की स्मृति उसके मन की गहराइयों में बसी हुई है। कवि के हृदय में अपनी प्रिया की स्मृति बसी हुई है। कवि के लिए सुख के वे दिन भुलाए नहीं भूलते। उसकी प्यार भरी वे चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे स्मृतियाँ उनके लिए महत्त्वपूर्ण संबल थीं। उसके जीवन में एक अपूर्व आनंद का संचार करती थीं। प्रिया की हँसी का स्रोत तो उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था। कवि उस स्वप्न को प्राप्त नहीं कर पाया। ज्यों हि कवि ने उसे प्राप्त करने के लिए बाँहें फैलायी तो आँख खुल गई और स्वप्न अपना न हो सका। इस प्रकार कवि ने इस कविता में सुख के स्वप्न को मधुर स्मृतियों के रूप में प्रस्तुत किया है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
इस कविता के माध्यम से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद अत्यंत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अंतर्मुखी होते हुए भी यथार्थवादी थे। वे सत्यवादी थे और सच कहने में विश्वास रखते थे। विनम्रता उनके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता थी। वे अपने-आपको एक साधारण व्यक्ति की भाँति समझते थे। इसलिए उन्होंने कहा है
‘तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।’ उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनके जीवन में ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसका वर्णन वे आत्मकथा में लिखें।
वे बीती बातों को कुरेदने के पक्ष में नहीं हैं। वे नहीं चाहते थे कि विगत जीवन की दुःखद घटनाओं को पुनः याद करके दुःखी हों। वे दिखावे व प्रदर्शन के पक्ष में नहीं थे। वे यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने वाले व्यक्ति थे। वे अपने सुख-दुःख के क्षणों को स्वयं ही समभाव से झेलने व बिताने के पक्ष में थे।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर-
हम महान् व्यक्तियों की आत्मकथाएँ पढ़ना चाहेंगे क्योंकि उनकी आत्मकथाओं में उनके जीवन की सफलता के रहस्यों का पता चलता है। उनकी आत्मकथाओं को पढ़कर हम भी उनका अनुसरण करते हुए जीवन में सफल बनने का प्रयास करेंगे। महान् व्यक्तियों की आत्मकथा सदा दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होती है। .

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

पाठेतर सक्रियता

  • किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा कीजिए।
  • बिना ईमानदारी और साहस के .आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर-
इन प्रश्नों के उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

यह भी जानें

प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन् 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन् 1986 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।
बनारसीदास जैन कृत अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। इसकी रचना सन् 1641 में हुई और यह पद्यात्मक है।

आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।
-कवि बच्चन की आत्म-परिचय
कविता का अंश

HBSE 10th Class Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की सोद्देश्य रचना है। इस कविता में उन्होंने अपने जीवन के विषय में संकेत रूप में वह सब कुछ कह दिया है जो बहुत लंबी-चौड़ी आत्मकथा में भी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने अपनी इस कविता में उन लोगों को उत्तर दिया है जो लोग उनको आत्मकथा लिखने का आग्रह कर रहे थे। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में आत्मकथा लिखने योग्य महान् उपलब्धियाँ नहीं हैं। उनका जीवन तो दुःखों व अभावों से भरा पड़ा है। इसलिए अभावों व दुःखों की घटनाओं को दोहराने से मनुष्य सदा दुःखी ही होता रहता है। उनके जीवन के कुछ मधुर एवं प्रसन्नता के पल भी रहे हैं जो उनके जीवन की निजी निधि हैं। उन्हें वे सबके सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। अतः स्पष्ट है कि प्रसाद जी ने अपनी इस कविता में अपने विषय में कुछ न कहकर भी सब कुछ कह दिया है। यही इस कविता का लक्ष्य है। .

प्रश्न 2.
कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को उद्घाटित नहीं करना चाहता और क्यों?
उत्तर-
कवि अपने जीवन में किसी के प्रति किए प्रेमभाव के प्रसंग को लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया ही नहीं अपितु उसने तो सुख का सपना ही देखा था, भला उसे दूसरों के सामने क्या प्रकट करे। वह प्रेम तो उसके लिए भावी जीवन जीने के लिए प्रेरणा बना रहता है अथवा जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 3.
कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथाएँ क्यों नहीं गाना चाहता? .
उत्तर-
कवि मधुर चाँदनी रातों में किए गए मधुर प्रेम की कहानियों को निजी दौलत समझता है। वह उनके विषय में लोगों से कुछ नहीं कहना चाहता। उन मधुर स्मृतियों पर केवल कवि का अधिकार है। वह अपनी उन मधुर यादों के सहारे अपना शेष जीवन जी लेना चाहता है। यही कारण है कि कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथा को नहीं गाना चाहता।

प्रश्न 4.
‘भोली आत्मकथा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
कवि ने ‘भोली आत्मकथा’ के माध्यम से यह समझाने का सफल प्रयास किया है कि उसका जीवन अत्यंत सरल एवं सीधा सादा है। उसने अपना सारा जीवन एक साधारण व्यक्ति की भाँति व्यतीत किया है। उसके जीवन में कहीं किसी प्रकार का छलकपट नहीं है। उनके जीवन में संतुष्टि तो है, किंतु किसी को प्रेरणा देने की क्षमता बहुत कम है।

प्रश्न 5.
पठित कविता के आधार पर कवि की प्रिया के रूप-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित कविता के अध्ययन से पता चलता है कि कवि को अपनी प्रिया से मिलने के बहुत कम क्षण प्राप्त हुए थे। कवि ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनकी प्रिया के गाल लाल और मस्ती भरे थे। ऐसा लगता था मानो प्रातःकाल की लालिमा कवि की प्रिया के गालों की लालिमा से उधार ली हुई है। कहने का तात्पर्य है कि कवि की प्रिया के चेहरे की लालिमा प्रातःकाल की लालिमा से भी अधिक सुंदर है।

सदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. March, 2019 (Set-A, D), 2020 (Set-D)]
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि के जीवन के रहस्यों का आभास मिलता है। कवि स्वयं को एक सामान्य व्यक्ति बताता है। यह उनके व्यक्तित्व की उदारता है। कवि के अनुसार उसका जीवन दुर्बलताओं, अभावों व दुःखों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण बहुत कम आए हैं। कवि ने मधुर सपने देखे किंतु वे पूरा होने से पहले ही मिट गए थे। उसका जीवन अत्यंत सरल एवं साधारण रहा है। कवि ने स्पष्ट किया है कि उसके जीवन में कुछ महान् नहीं है जिसे वह आत्मकथा में लिखकर लोगों के सामने प्रस्तुत करे। उसका जीवन तो अभावों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण भी आए हैं जिन्हें वह किसी दूसरे के सामने प्रकट नहीं करना चाहता। कवि अपनी बातें बताने की अपेक्षा दूसरों की कहानी सुनना अच्छा समझता है।

प्रश्न 7.
“आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के आधार पर बताएँ कि प्रसाद जी का जीवन कैसा रहा?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद का जीवन सरल, सहज एवं विनम्रता से युक्त था। वे दिखावे में जरा भी विश्वास नहीं रखते थे। इस आत्मकथा को लिखकर वे अपनी प्रशंसा के पक्ष में नहीं थे। पठित कविता से पता चलता है कि उनके जीवन में दुःखों एवं अभावों का पक्ष ही भारी रहा। सुख के क्षण बहुत कम थे। इसलिए वे बीते दुःखद जीवन को दोहराना नहीं चाहते थे। उनके जीवन में जो मधुर क्षण थे, उन्हें वे अपनी निजी संपत्ति समझकर दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। इसलिए उन्होंने बताया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ नहीं था जिसे पढ़कर लोग सुख व आनंद अनुभव कर सकें।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 8.
कवि अपनी आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को क्यों ठुकरा देता है?
उत्तर-
कवि का मत है कि आत्मकथा तो महान् लोग ही लिखा करते हैं क्योंकि उनके जीवन की महान् उपलब्धियों को पढ़ने . व सुनने से लोगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती है। किंतु कवि कहता है कि उसके जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसे लिखकर बताया जाए। उसके जीवन में अभाव-ही-अभाव हैं जिन्हें सुनकर किसी को प्रसन्नता नहीं मिल सकती। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा है कि उनके मन में दुःख की स्मृतियाँ थककर सो गई हैं। उन्हें जगाने का अभी उचित समय नहीं है। उन्हें जगाने से मन को पीड़ा ही पहुँचेगी। इसलिए कवि आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को ठुकरा देता है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के कवि जयशंकर प्रसाद हैं।

प्रश्न 2.
कवि ने ‘गंभीर अनंत नीलिमा’ में क्या होने की बात कही है?
उत्तर-
कवि ने ‘गंभीर अनंत नीलिमा’ में असंख्य जीवन-इतिहास होने की बात कही है।

प्रश्न 3.
‘आत्मकथ्य’ कविता में किसकी सीवन को उधेड़कर देखने की बात कही है?
उत्तर-
कवि जयशंकर प्रसाद के जीवन की।

प्रश्न 4.
‘मेरा रस ले अपनी भरने वाले’ में रस का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
इसमें रस का प्रयोग काव्य-रस के लिए किया गया है।

प्रश्न 5.
‘खिल-खिला कर हँसते होने वाली बातें’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर-
‘खिल-खिला कर हँसते होने वाली बातें’ खुशियों से युक्त बात को कहा गया है।

प्रश्न 6.
कवि ने ‘मधुप’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है?
उत्तर-
कवि ने ‘मधुप’ शब्द का प्रयोग मन रूपी भौरे के लिए किया है।

प्रश्न 7.
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि सुख का स्वप्न देखकर जाग गया था।

प्रश्न 8.
‘गागर रीती’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
‘गागर रीती’ से कवि का तात्पर्य है-सुखों से खाली जीवन।

प्रश्न 9.
‘आत्मकथ्य’ कविता में किसकी उज्ज्वल गाथा गाने की बात कही गई है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में मधुर चाँदनी रातों में बिताए गए मधुर क्षणों की उज्ज्वल गाथा गाने की बात कही गई है।

प्रश्न 10.
कवि किसके अरुण-कपोलों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
कवि पत्नी के अरुण-कपोलों की ओर संकेत करता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने ‘आत्मकथ्य’ कविता में संसार को क्या कहा है?
(A) शाश्वत
(B) धनी
(C) नश्वर
(D) सनातन
उत्तर-
(C) नश्वर

प्रश्न 2.
कवि ने ‘मधुप’ किसे कहा है?
(A) मन को
(B) भौंरा को
(C) धन को
(D) आकाश को
उत्तर-
(A) मन को

प्रश्न 3.
‘असंख्य जीवन-इतिहास’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(A) जीवन का वर्णन
(B) आत्मकथा
(C) जीवनी
(D) मानव मन में उत्पन्न विचार
उत्तर-
(D) मानव मन में उत्पन्न विचार

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 4.
कवि ने भावहीन मन को क्या कहा है?
(A) छिछला
(B) कथा
(C) रीतीगागर
(D) शून्य
उत्तर-
(C) रीतीगागर

प्रश्न 5.
कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(A) उसके जीवन में सुख-ही-सुख थे
(B) उसके जीवन में केवल दुर्बलताएँ थीं
(C) उसके जीवन में गरीबी थी
(D) उसका जीवन आदर्श था
उत्तर-
(B) उसके जीवन में केवल दुर्बलताएँ थीं ।

प्रश्न 6.
कवि ने ‘मधुर चाँदनी रात’ किसे कहा है?
(A) अपने जीवन की मीठी यादों को
(B) सुहावनी चाँदनी रात को
(C) आनंददायक रात को
(D) जीवन की खुशी को
उत्तर-
(A) अपने जीवन की मीठी यादों को

प्रश्न 7.
कवि किन्हें खाली करने वाले बताता है?
(A) आत्मकथा लिखवाने वाले मित्रों को
(B) पाठकों को
(C) प्रकाश को
(D) राजनेताओं को
उत्तर-
(B) पाठकों को

प्रश्न 8.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ मधुर चाँदनी रातों की’-इस पंक्ति में कवि ने क्या बताया है?
(A) निज प्रेम प्रसंगों को सबको नहीं बताया जाता
(B) जीवन गाथा को नहीं गाया जाता
(C) चाँदनी रात में गाते नहीं
(D) चाँदनी रात मधुर होती है
उत्तर-
(A) निज प्रेम प्रसंगों को सबको नहीं बताया जाता

प्रश्न 9.
कवि के द्वारा अपनी आत्मकथा न लिखने का क्या कारण है?
(A) उसे आत्मकथा लिखनी नहीं आती
(B) वह अपने जीवन के रहस्य दूसरों को नहीं बताना चाहता
(C) उसका आत्मकथा में विश्वास नहीं
(D) वह आत्मकथा में झूठ नहीं बोलना चाहता
उत्तर-
(B) वह अपने जीवन के रहस्य दूसरों को नहीं बताना चाहता

प्रश्न 10.
कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
(A) धन का
(B) पारिवारिक जीवन का
(C) स्मृतियों का
(D) सुख का
उत्तर-
(D) सुख का

प्रश्न 11.
कवि के आलिंगन में आते-आते कौन मुस्कुराकर भाग गया?
(A) सुख
(B) दुख
(C) दुर्बलता
(D) व्यथा
उत्तर-
(A) सुख

प्रश्न 12.
कवि ने किसकी उज्ज्वल गाथा गाने में असमर्थता व्यक्त की है?
(A) मधुर चाँदनी रातों की
(B) कथा की
(C) मधुमाया की
(D) पथिक की पंथा की
उत्तर-
(A) मधुर चाँदनी रातों की

प्रश्न 13.
कवि के लिए किसकी स्मृति ‘पाथेय’ बन जाती है?
(A) माता की
(B) पिता की
(C) बच्चों की
(D) पत्नी की
उत्तर-
(D) पत्नी की

प्रश्न 14.
‘सीवन उधेड़ना’ का अर्थ है
(A) सीवन खोलना
(B) टाँके तोड़ना
(C) जीवन के रहस्य जानना
(D) सिलाई काटना
उत्तर-
(C) जीवन के रहस्य जानना

प्रश्न 15.
‘सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की’ यहाँ कंथा का अर्थ है-
(A) कथा
(B) कविता
(C) चद्दर
(D) गुदड़ी
उत्तर-
(D) गुदड़ी

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प्रश्न 16.
‘आत्मकथ्य’ कविता में गुन-गुनाकर अपनी कहानी कौन कहता है?
(A) कवि
(B) मधुप
(C) कोकिल
(D) खिलते फूल
उत्तर-
(B) मधुप

प्रश्न 17.
प्रस्तुत कविता में ‘अनंत नीलिमा’ से क्या तात्पर्य है?
(A) नीला आकाश
(B) नीला गगन
(C) अंतहीन विस्तार .
(D) नीला कमल
उत्तर-
(C) अंतहीन विस्तार

प्रश्न 18.
कवि ने अपनी आत्मकथा को कैसी बताया है?
(A) महान
(B) प्रभावशाली
(C) भोली
(D) चंचल
उत्तर-
(C) भोली

प्रश्न 19.
कवि किसे याद करके दुःखी था?
(A) अपने बचपन को
(B) अपने वर्तमान को
(C) अपने दुःख भरे अतीत को
(D) पारिवारिक जीवन को
उत्तर-
(C) अपने दुःख भरे अतीत को

प्रश्न 20.
अभी थककर मौन रूप में क्या सोई हुई है?
(A) व्यथा
(B) कथा
(C) शांति
(D) भ्रांति
उत्तर-
(A) व्यथा

आत्मकथ्य पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।
[पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-मधुप = भौंरा (मन रूपी भौंरा)। घनी = अधिक। अनंत-नीलिमा = अंतहीन विस्तार। असंख्य = जिसकी गिनती न की जा सके। जीवन-इतिहास = जीवन की कहानी। व्यंग्य-मलिन = खराब ढंग से निंदा करना। उपहास = मजाक। दुर्बलता = कमजोरी। गागर = घड़ा। रीती = खाली।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) ‘मधुप’ किसे कहा है और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

(ङ) पत्तियों का मुरझाना किसे स्पष्ट करता है?
(च) ‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ से क्या तात्पर्य है?
(छ) कवि अपनी बीती दुर्बलताओं को क्यों नहीं बताना चाहता है?
(ज) कवि की कहानी जानकर उनको कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वालों को क्या लगा?
(झ) ‘गागर रीती’ से क्या अभिप्राय है?
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य/काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से उद्धृत इस काव्यांश में बताया गया है कि उनके जीवन में आत्मकथा में लिखने योग्य कुछ विशेष नहीं है। उनका मत है कि उनके जीवन में ऐसी सुंदर घटनाएँ या उपलब्धियाँ नहीं हैं जिन्हें सुनकर या पढ़कर पाठक सुख या आनंद प्राप्त कर सकें।

(ग) कवि कहता है कि उसका मन रूपी यह भ्रमर गुन-गुनाकर कह रहा है कि अपनी ऐसी कौन-सी कहानी है जिसे लिखकर दूसरों को बताया जाए। मेरे जीवन की अनेक पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं अर्थात् मैंने जीवन में अनेक दुःखद घटनाएँ देखी हैं, जीवन में अनेक निराशाओं का सामना किया है। मैंने अपने सपनों को मरते देखा है। इस विशाल एवं गहन नीले आकाश पर असंख्य लोगों ने अपने जीवन के इतिहास लिखे हैं। उन्हें पाकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वे स्वयं अपनी बुराइयाँ करके अपने ही जीवन पर कटाक्ष कर रहे हों और अपना ही मजाक उड़ा रहे हों। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं कि ऐसा जान लेने पर भी तुम मुझसे चाहते हो कि मैं अपने जीवन कि कमजोरियाँ बता दूं। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें मेरे जीवन की खाली गागर देखकर सुख मिलेगा। कवि के कहने का भाव है कि मेरे जीवन में दुःखों व अभावों के अतिरिक्त कुछ नहीं है जिसे मैं दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

(घ) कवि ने मधुप मन को कहा है। ‘मधुप’ का यहाँ प्रतीकात्मक प्रयोग है। मन भौरे के समान इधर-उधर उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है।

(ङ) पत्तियों का मुरझाना मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के दुःखों व संकटों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते हैं।

(च) अनंत-नीलिमा जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में न जाने कौन-कौन से भाव अनुभव करता रहता है। वे भाव सुख व दुःख दोनों से संबंधित होते हैं। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न विभिन्न विचार हैं जो विभिन्न घटनाओं के घटित होने के कारण बनते हैं।

(छ) कवि जानता है कि सच्चा आत्मकथा लेखक अपने जीवन की घटनाओं का सच्चा उल्लेख करता है। जीवन में झाँकने पर कवि को अपनी कमजोरियाँ-ही-कमजोरियाँ दिखाई देती हैं। इसलिए कवि जान-बूझकर अपनी दुर्बलताओं को सबके सामने व्यक्त करके अपना मज़ाक नहीं करवाना चाहता। इसलिए कवि अपनी दुर्बलताओं को व्यक्त नहीं करना चाहता।

(ज) कवि की कहानी जानकर कवि को उनकी कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वाले लोगों को लगा कि कवि अपनी आत्मकथा में कुछ ऐसा लिखेगा जिसे पढ़कर उन्हें सुख या आनंद प्राप्त होगा, किंतु कवि ने ऐसा कुछ नहीं लिखा जिसे पढ़कर उन्हें सुख की अनुभूति हुई हो।

(झ) ‘गागर रीती’ से तात्पर्य है कि कवि का जीवन सुख और सुविधाओं से रहित है। उसमें अभाव-ही-अभाव है। अतः ‘गागर रीति’ का प्रयोग प्रतीकात्मक और लाक्षणिक है।

(ञ) कवि ने इस पद्यांश में अत्यंत मार्मिक शब्दों में अपने जीवन के दुःखों, पीड़ाओं और अभावों की व्यथा भरी कहानी की ओर संकेत किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि किसी की भी दुःख भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं हो सकती। कवि ने जीवन के सत्य को सरल एवं सच्चे मन से कहा है।

(ट)

  • इन पंक्तियों में कवि ने अत्यंत कलात्मकतापूर्ण अपने मन के भावों को अभिव्यंजित किया है।
  • लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
  • तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, प्रश्न और रूपक अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
  • करुण रस है।

(ठ) जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिन्दी भाषा का प्रयोग किया गया है। प्रसाद जी छायावादी कवि हैं। उन्होंने भाषा को रोचक एवं आकर्षक बनाने हेतु तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी सार्थक प्रयोग किया है। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य, प्रसाद आदि तीनों गुण हैं। अनेक स्थलों पर चित्रात्मक भाषा का भी प्रयोग किया गया है। उनकी छंद-योजना, स्वर और लय की मिठास से परिपूर्ण है। भाषा भाव को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है।

[2] किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की। [पृष्ठ 28].

शब्दार्थ-विडंबना = उपहास का विषय, निराशा। प्रवंचना = धोखा। उज्ज्वल = पवित्र, सुख से भरी हुई।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश के प्रसंग को स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) प्रस्तुत काठ्यांश के भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(ङ) कवि किसका रस लेने की बात कहता है?
(च) कवि ने ‘खाली करने वाले’ किसे और क्यों कहा है?
(छ) कवि ने किस बात को विडंबना कहा है और क्यों?
(ज) कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(झ) कवि किन उज्ज्वल गाथाओं की बात कहता है?
(ञ) खिलखिलाकर हँसने वाली बातों का क्या अभिप्राय है?
(ट) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। . कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वे अपनी आत्मकथा में लिखें और पाठक उसे पढ़कर सुख या प्रसन्नता अनुभव कर सकें। कवि ने अति यथार्थ रूप में अपने सरल व सहज विचारों को व्यक्त किया है।

(ग) कवि ने प्रस्तुत पद्यावतरण में बताया है कि जो लोग उनके जीवन की दुःखपूर्ण कथा को सुनना चाहते थे, वे यह न समझने लगें कि वही उनके जीवन रूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब पहले अपने-आपको समझें। वे उनके भावों रूपी रस को लेकर अपने-आपको भरने वाले थे। हे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का ही विषय था कि मैं उन पर व्यंग्य । कर रहा था, उनकी हँसी उड़ा रहा था।

कवि पुनः कहता है कि वह आत्मकथा के नाम पर अपनी व औरों की बातें जग-जाहिर नहीं करना चाहता। उसके जीवन में तो पूर्णतः निराशा और पीड़ा की कालिमा ही नहीं है अपितु उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी यादें भी हैं। उन मधुर एवं उज्ज्वल गाथाओं का वर्णन कैसे करूँ? वह अपने जीवन की मधुर एवं उज्ज्वल स्मृतियों में सबको भागीदार नहीं बनाना चाहता, वह उन्हें सबके सामने क्यों अभिव्यक्त करे। जब कभी वह अपनों के साथ खिल-खिलाकर हँसा था अथवा मधुर-मधुर बातों के सुख में डूबा हुआ था और उसका हृदय आनंद से भर उठा था। उन मीठी स्मृतियों को वह दूसरों को क्यों बताए।

(घ) इस पद्यांश में कवि ने स्पष्ट किया है कि आत्मकथा में जीवन की घटनाओं का सच्चा एवं यथार्थ वर्णन किया जाता है। उसके जीवन में सुख कम और दुःख अधिक हैं। वह अपने और दूसरों के दुःखों को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। इसी प्रकार कवि अपनी और दूसरों की भूलों को व्यक्त करके हँसी का पात्र नहीं बनना चाहता।

(ङ) कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है। उसके साहित्यिक मित्र ही उसके रस को लेने की बात करते हैं। कवि ने बताया है कि उसके आस-पास भँवरे की भाँति मंडराने वाले मित्र लोग उनके काव्य रस को चूसकर अपने-आपको उन्नत बनाना चाहते हैं।

(च) कवि ने अपने उन मित्रों को ही ‘खाली करने वाले’ बताया है जिन्होंने उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहा था। कवि के निजी अनुभव बहुत कटु रहे हैं। हो सकता है कि उनके मित्रों ने ही उनकी खुशी में बाधा डाली हो। इस प्रकार उनके जीवन को खुशियों से वंचित कर दिया हो।

(छ) कवि अपने जीवन में दुःखों व कष्टों के लिए किसी को दोष नहीं देना चाहता। वह स्वभाव से अत्यंत सरल था। यदि वह अपनी सरलता को कष्टों का कारण मानता है तो यह उसके लिए विडंबना ही होगी। कवि अपनी सरलता के कारण प्रसन्न है यदि उसे अपनी सरलता के कारण कष्ट या दुःख सहन करने पड़ते हैं तो वह इसका बुरा नहीं मानता।

(ज) कवि आत्मकथा इसलिए नहीं लिखना चाहता क्योंकि आत्मकथा में जीवन संबंधी घटनाओं, विचारों आदि का सच्चाई पूर्ण वर्णन करना पड़ता है। इसलिए कवि अपने जीवन की सरलता को लोगों की हँसी का कारण नहीं बनाना चाहता। वह अपनी भूलों और दूसरों के छलकपट को जग-ज़ाहिर नहीं करना चाहता। कवि अपने प्रेम के सुखपूर्ण क्षणों को भी दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। ये ऐसी बातें है जिनके कारण कवि अपनी आत्मकथा लिखकर इन्हें लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

(झ) कवि ने अपने जीवन के प्रेम के क्षणों और मधुर स्मृतियों को जीवन की उज्ज्वल गाथाओं की संज्ञा दी है। प्रेम के वे क्षण जो कवि ने खिल-खिलाती हुई रातों में बिताए थे वे आज उसे अपने जीवन की उज्ज्वल गाथाएँ-सी प्रतीत होती हैं।

(ञ) खिल-खिलाकर हँसने वाली बातों का अभिप्राय है-प्रेम के अत्यंत मधुर क्षण जो उन्होंने अपनी प्रिया के साथ बिताए थे।

(ट)

  • प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपने जीवन की उन बातों को अत्यंत विनम्रता एवं यथार्थपूर्वक व्यक्त किया है जो उनके व्यक्तिगत प्रेम व सुख से संबंधित थीं। साथ ही उन लोगों के विषय में भी लिखा है जो उनसे आत्मकथा लिखवाना चाहते थे।
  • कवि ने अपनी सरलता का मानवीकरण किया है जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया है।
  • तत्सम शब्दों का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • संकेत-शैली का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  • स्वर मैत्री के कारण भाषा लयात्मक बनी हुई है।

(ठ) भाषा प्रसादगुण संपन्न है। उसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है। भाषा पूर्णतः भावानुकूल है। भाषा में भावों की अभिव्यक्ति करने की पूर्ण क्षमता है।

[3] मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? [पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-स्वप्न = सपना। आलिंगन में = बाँहों में। मुसक्या = मुस्कराकर, हँसकर। अरुण-कपोल = लाल गाल। मतवाली = हँसी से भरी हुई। अनुरागिनी = प्रेम में लीन। उषा = प्रातः। निज = अपना। सुहाग = सुगंध, इत्र। मधुमाया = मधुर मोहकता। पाथेय = रास्ते का भोजन। पथिक = यात्री। पंथा = रास्ता। सीवन = सिया हुआ। उधेड़कर = फाड़कर। कंथा = गुदड़ी, अंतर्मन।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
(ङ) कौन और कैसे भाग गया?
(च) कवि की प्रेमिका के कपोल कैसे थे?

(छ) कवि ने किसको पाथेय माना है?
(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का क्या तात्पर्य है?
(झ) कवि ने भोर को कैसा बताया है?
(ञ) ‘कथा’ से क्या अभिप्राय है?
(ट) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। . . कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धत है। इस कविता के रचयिता छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने अपने जीवन की दुःखभरी कहानी को कभी किसी को न बताने का निश्चय किया था। उन्हें ऐसा लगता था कि उनके जीवन में कुछ भी सुखद नहीं था जिसे सुनकर या पढ़कर कोई सुखी हो सके। उसके जीवन में कष्ट और अभाव ही थे जिन्हें वह किसी को बताना नहीं चाहता था।

(ग) कवि ने बताया है कि उसको जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। उसने स्वप्न में भी जिस सुख को देखा था, नींद से जागने पर उसे वह सुख प्राप्त नहीं हो सका। वह सुख देने वाला स्वप्न भी उसकी बाँहों में आते-आते मुस्कराकर भाग गया अर्थात् कवि को कभी स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं हुआ। सपने में जो सुख का आधार बना था वह अपार सुंदर और मोहक था। उसकी लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हुई थी। कवि के कहने का तात्पर्य है कि. उसकी गालों में प्रातःकालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी डगर पर चलते हुए, थके हुए कवि रूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही सहारा बनी। उसकी यादें ही थके हुए पथिक की थकान कम करने में सहायक बनी थीं। कवि नहीं चाहता कि उसके जीवन की मधुर यादों के विषय में कोई दूसरा जाने। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित कर रहे थे कि क्या आप मेरी अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उसमें छिपे हुए उसके रहस्यों को देखना चाहते हो? कवि के कहने का तात्पर्य है कि वह अपने जीवन के रहस्यों को अपने तक ही सीमित रखना चाहता है उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

(घ) कवि उस स्वप्न को देखकर जाग गया जिसके सुख को वह प्राप्त नहीं कर सका।

(ङ) वह कवि की पत्नी अथवा प्रेमिका हो सकती है जो कवि के आलिंगन में आते-आते उसे छोड़कर चली गई। कवि ने तीन बार विवाह किया। एक के बाद एक पत्नी चल बसी। कवि उन्हीं पत्नियों को याद कर रहा है जिन्हें वह ठीक से अपना भी न सका कि वे सदा के लिए उससे दूर चली गईं। .

(च) कवि की प्रेमिका के कपोल ऐसे लाल-लाल व मतवाले थे कि स्वयं ऊषा की लालिमा भी उनसे लालिमा उधार लेती थी।

(छ) कवि ने अपने जीवन के उन सुखद क्षणों को पाथेय माना है जो स्वप्न की भाँति उसके जीवन में आए और क्षण भर में ही मिट गए।

(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का तात्पर्य जीवन की परतों को खोलना है जिन पर समय के साथ गर्द जम चुकी थी, जिनमें व्यथा के अतिरिक्त और कुछ बहुत कम था।

(झ) कवि ने भोर को प्रेम एवं लालिमा से युक्त बताया है।

(ञ) ‘कथा’ का शाब्दिक अर्थ गुदड़ी है जिसे कवि ने अपने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है।

(ट) कवि ने इस पद्यांश में बताया है कि उसका जीवन सदा दुःखों से घिरा रहा है। कवि के हृदय में निश्चय ही कोई टीस छिपी हुई है जिसको वह प्रकट नहीं करना चाहता। कवि ने अपने जीवन में सुख को स्वप्न की भाँति बताया है। सुख की उन स्मृतियों को ही अपने जीवन रूपी पथ में सहारा बताया है। कवि ने इन सब भावों को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यंजित किया है।

(ठ)

  • कवि ने अपने जीवन के गोपनीय सुखद क्षणों का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है।
  • संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • प्रतीकों एवं बिंबों का प्रयोग किया गया है।
  • अनुप्रास, मानवीकरण, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • वियोग शृंगार है।

(ड) प्रस्तुत काव्य में कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है। विभिन्न प्राकृतिक उपमानों के प्रयोग से भाषा एवं वर्ण्य विषय में रोचकता का विकास हुआ है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

[4] छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा। [पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-कथाएँ = कहानियाँ । मौन = चुप । भोली आत्मकथा = सीधी-सादी जीवन कहानी। मौन व्यथा = वह पीड़ा जिसको कभी व्यक्त नहीं किया गया।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
(ङ) कवि के जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ क्यों नहीं थीं?
(च) कवि को क्या अच्छा लगता था?
(छ) कवि ने अपनी जीवन-कहानी को कैसा बताया है?
(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा किस स्थिति में थी?
(झ) इस कवितांश में निहित भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) इस पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में कवि ने कहा है कि उसके जीवन में दुःख का पलड़ा भारी रहा है। कवि अपने जीवन के सुख की स्मृतियों को आधार बनाकर जीना चाहता है। किंतु कवि अपनी आत्मकथा लिखकर अपने दुःख रूपी जख्मों को पुनः हरा नहीं करना चाहता।

(ग) कवि अपने उन मित्रों, जो उससे आत्मकथा लिखने का आग्रह करते थे, को संबोधित करता हुआ कहता है कि यदि मेरे जीवन की परतों को खोलकर देखोगे तो तुम्हें उसमें कोई बड़ी कहानी नहीं मिलेगी। मेरा छोटा-सा जीवन है। मेरे लिए यही उचित है कि मैं औरों की कथाएँ सुनता रहूँ तथा अपनी व्यथा न ही कहूँ तो अच्छा है। मेरी आत्मकथा सुनकर भला तुम्हें क्या मिलेगा। मेरी कथा सुनने का अभी समय नहीं है। मेरी मौन व्यथा अभी मेरे मन में सोई पड़ी है। इसलिए उसे न ही जगाओ तो अच्छा है।

(घ) कवि ने अपने जीवन को अत्यंत छोटा माना है। इसमें कोई बड़ी कथा नहीं है।

(ङ) कवि का जीवन अत्यंत लघु जीवन है। कवि स्वभाव से अत्यंत विनम्र तथा साहित्य-सेवी है। इसलिए सरल, सहज एवं विनम्र होने के कारण उनके जीवन में बड़ी-बड़ी व्यथाएँ या बड़ी कथाएँ बनाने वाली घटनाएँ भी नहीं घटीं।

(च) कवि को मौन रहकर दूसरों की आत्म-कथाएँ अथवा कथाएँ सुनना अच्छा लगता है।

(छ) कवि ने अपने जीवन की कथा को अत्यंत सरल, सीधी-सादी और भोली माना है।

(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा सुसुप्त (सोई हुई) रूप में थी।

(झ) कवि अपनी जीवन कथा को दूसरों के सामने व्यक्त करने योग्य नहीं समझता क्योंकि उनके विचार से उनके जीवन में ऐसा कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं जो दूसरों को अच्छा लगे। इसलिए कवि चाहता है कि मौन रहकर दूसरों की जीवनकथा सुनना ही उसके लिए उचित है। उसके जीवन में तो व्यथा-ही-व्यथा है। अतः उन्हें कवि अपने मन में छुपाए रखना चाहता है। इन भावों को कवि ने अत्यंत कलात्मक ढंग से व्यक्त किया है।.

(ञ)

  • कवि ने अपने मन के गहन भावों को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है।
  • कवि ने तत्सम प्रधान शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया है।
  • शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • स्वर मैत्री के सार्थक एवं सफल प्रयोग के कारण लयात्मकता बनी हुई है।
  • प्रश्न, रूपक, मानवीकरण, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ट) इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है इसलिए कहीं-कहीं भाषा में जटिलता का समावेश हो गया है। स्वर मैत्री के कारण भाषा में सौंदर्य-वृद्धि हुई है। चित्रात्मक भाषा के प्रयोग से विषय रोचक बन पड़ा है।

आत्मकथ्य Summary in Hindi

आत्मकथ्य कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय छायावाद के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रतिष्ठित वैश्य कुल में सन् 1889 में हुआ था। उनका कुल ‘सुँघनी साहू’ के नाम से विख्यात था। उनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। किशोरावस्था में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। यक्ष्मा रोग का शिकार होकर सन् 1937 में वे 48 वर्ष की आयु में ही इस संसार से विदा हो गए। प्रसाद जी ने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे भारतीय साहित्य और संस्कृति के पुजारी थे तथा राष्ट्र-प्रेम ‘ की भावना उनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। शैव दर्शन से प्रभावित होने के कारण वे नियतिवादी भी थे।

2. प्रमुख रचनाएँ-जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं(क) काव्य-ग्रंथ ‘लहर’, ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘कानन कुसुम’, ‘प्रेम पथिक’, ‘महाराणा का महत्त्व’, ‘करुणालय’, ‘चित्राधार’, ‘कामायनी’ । (ख) उपन्यास-‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (अपूर्ण)। (ग) कहानी-संग्रह ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ और ‘इंद्रजाल’ (कुल 69 कहानियाँ)। (घ) निबंध-संग्रह ‘काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
(ङ) नाटक-‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘अजातशत्रु’, ‘एक घुट’, ‘कल्याणी’, ‘परिचय’, ‘विशाख’, ‘कामना’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’ .. और ‘चंद्रगुप्त’।

3. काव्यगत विशेषताएँ-प्रसाद जी एक प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। वे छायावाद के प्रवर्तक तथा सर्वश्रेष्ठ कवि थे। अतीत के प्रति उनका मोह था, लेकिन वर्तमान के प्रति भी वे जागरूक थे। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं
(i)प्रेम तथा सौंदर्य का वर्णन-प्रसाद जी के काव्य का मुख्य तत्त्व प्रेमानुभूति एवं सौंदर्यानुभूति है। प्रेमानुभूति की दिशा मानव, प्रकृति और ईश्वर तक फैली हुई है। इसी प्रकार से प्रसाद जी ने मानव, प्रकृति और ईश्वर तीनों के सौंदर्य का आकर्षक चित्रण किया है। उनकी सौंदर्य-चेतना परिष्कृत, उदात्त एवं सूक्ष्म है।

(ii) वेदना की अभिव्यक्ति–प्रसाद जी के काव्य में ऐसे अनेक स्थल हैं जो पाठक के हृदय को छू लेते हैं। उनका ‘आँसू’ काव्य कवि के हृदय की वेदना को व्यक्त करता है। इसी प्रकार से ‘लहर’ काव्य-ग्रंथ की ‘प्रलय की छाया’ कविता भी मार्मिक है। ‘कामायनी’ में भी इस प्रकार के स्थलों की कमी नहीं है जो पाठक के हृदय को आत्मविभोर न कर देते हों।

(iii) प्रकृति-वर्णन-प्रसाद जी के काव्य में अनेक स्थलों पर प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है। ‘लहर’ की अनेक कविताएँ प्रकृति-वर्णन से संबंधित हैं। प्राकृतिक पदार्थों पर मानवीय भावों का आरोप करना उनके प्रकृति-चित्रण की अनूठी विशेषता है; जैसे-
बीती विभावरी जाग री,
अंबर पनघट में डुबो रही,
तारा घट उषा-नागरी।
छायावादी काव्य होने के नाते यहाँ पर प्रकृति का मानवीकरण देखने योग्य है। उषा को नायिका के रूप में वर्णित किए जाने से यहाँ प्रकृति का मानवीकरण हुआ है। उन्होंने प्रकृति-वर्णन के अनेक रूपों में से आलंबन, उद्दीपन, दूती, उपदेशिका, रहस्यात्मक, पृष्ठभूमि, मानवीकरण आदि रूपों को चुना है।

(iv) रहस्य भावना-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद सर्वात्मवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं। वे अज्ञात सत्ता के प्रेम-निरूपण में अधिक तल्लीन रहे हैं। उनकी इस प्रवृत्ति को रहस्यवाद की संज्ञा दी जाती है। कवि बार-बार प्रश्न करता है कि वह अज्ञात सत्ता कौन है और क्या है? प्रसाद जी के काव्य में रहस्य-भावना का सुष्ठु रूप देखने को मिलता है। रहस्यसाधक कवि प्रकृति के अनंत सौंदर्य को देखकर उस विराट् सत्ता के प्रति जिज्ञासा प्रकट करता है। तदंतर अपनी प्रिया का अधिकाधिक परिचय प्राप्त करने के लिए आतुरता व्यक्त करता है, उसके विरह में तड़पता है और प्रियतमा के परिचय की अनुभूति का ‘गूंगे के गुड़’ की भाँति आस्वादन करता है। प्रसाद जी के काव्य में रहस्य भावना का रूप निम्नलिखित उदाहरण में देखा जा सकता है
हे अनंत रमणीय! कौन हो तुम? यह मैं कैसे कह सकता। कैसे हो, क्या हो? इसका तो
भार विचार न सह सकता ॥

(v) नारी भावना-छायावादी कवि होने के कारण प्रसाद जी ने नारी को अशरीरी सौंदर्य प्रदान करके उसे लोक की मानवी न बनाकर परलोक की ऐसी काल्पनिक देवी बना दिया जिसमें प्रेम, सौंदर्य, यौवन और उच्च भावनाएँ हैं, लेकिन ऐसे गुण मृत्युलोक की नारी में देखने को नहीं मिलते। ‘कामायनी’ की श्रद्धा इसी प्रकार की नारी है। वह काल्पनिक जगत् की अशरीरी सौंदर्यसंपन्न अलौकिक देवी है जो नित्य छवि से दीप्त है, विश्व की करुण-कामना मूर्ति है और कानन-कुसुम अंचल में मंद पवन से प्रेरित सौरभ की साकार प्रतिमा है। प्रसाद जी की यह नारी भावना छायावादी काव्य के सर्वथा अनुकूल है लेकिन यह नारी भावना आधुनिक युगबोध से मेल नहीं खाती।

(vi) नवीन जीवन-दर्शन-कविवर प्रसाद शैव दर्शन के अनुयायी थे। अतः उनके दार्शनिक विचारों पर शैव दर्शन का स्पष्ट प्रभाव है। वे कामायनी के माध्यम से समरसता और आनंदवाद की स्थापना करना चाहते हैं। उनकी रचनाओं, विशेषकर, ‘कामायनी’ में दार्शनिकता और कवित्व का सुंदर समन्वय हुआ है। वे समरसताजन्य आनंदवाद को ही जीवन का परम लक्ष्य स्वीकार करते हैं। ‘कामायनी’ की यात्रा ‘चिंता’ सर्ग से प्रारंभ होकर ‘आनंद’ सर्ग में ही समाप्त होती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

(vii) राष्ट्रीय भावना-प्रसाद सांस्कृतिक और दार्शनिक चेतना के कवि हैं। यह सांस्कृतिक चेतना उनके राष्ट्रीय भावों की प्रेरक है। उनके नाटकों में कवि का देशानुराग अथवा राष्ट्र-प्रेम अधिक मुखरित हुआ है। उनकी काव्य-रचनाओं में यह राष्ट्र-प्रेम संस्कृति प्रेम के रूप में संकेतित हुआ है। ।
कवि ने अतीत के संदर्भ में वर्तमान का भी चित्रण किया है। ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’ आदि नाटकों में भी इसी दृष्टिकोण को व्यक्त किया गया है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का निम्नलिखित गीत कवि की राष्ट्रीय भावना को स्पष्ट करता है-

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरु शिखा मनोहर,
छिटका जीवन-हरियाली पर मंगल कुमकुम सारा।

(viii) मानवतावादी दृष्टिकोण-मानवतावाद छायावादी कवियों की उल्लेखनीय प्रवृत्ति है। अनेक स्थलों पर कवि राष्ट्रीयता की भाव-भूमि से ऊपर उठकर मानव-कल्याण की चर्चा करता हुआ दिखाई देता है। प्रसाद जी के काव्य में शाश्वत मानवीय भावों और मानवतावाद को प्रचुर बल मिला है। ‘कामायनी’ में कवि ने मनु, श्रद्धा और इड़ा के प्रतीकों के माध्यम से मानवता के विकास की कहानी कही है और इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान के समन्वय पर बल दिया है। समष्टि के लिए व्यक्ति का उत्सर्ग ‘कामायनी’ का संदेश है। श्रद्धा इस बात पर बल देती हुई कहती है

औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ।

‘आनंद’ सर्ग में कवि ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की चर्चा करके विश्व-बंधुत्व की भावना का संदेश दिया है। कवि बार-बार मानव-प्रेम पर बल देता है और मानवतावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है।

4. भाषा-शैली–प्रसाद जी ने प्रबंध और गीति इन दो काव्य-रूपों को ही अपनाया है। प्रेम पथिक’ और ‘महाराणा का महत्त्व’ दोनों उनकी प्रबंधात्मक रचनाएँ हैं। ‘कामायनी’ उनका प्रसिद्ध महाकाव्य है। ‘लहर’, ‘झरना’ और ‘आँसू’ गीतिकाव्य हैं। उनके काव्य में भावात्मकता, संगीतात्मकता, आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, कोमलकांत पदावली आदि सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। प्रसाद जी की भाषा साहित्यिक हिंदी है। फिर भी इसे संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान हिंदी भाषा कहना अधिक उचित होगा। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य और प्रसाद तीनों गुण विद्यमान हैं। उनकी भाषा प्रवाहपूर्ण, प्रांजल, संगीतात्मक और भावानुकूल है। उनकी भाषा की प्रथम विशेषता है लाक्षणिकता। लाक्षणिक प्रयोगों में कवि ने विरोधाभास, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय, प्रतीक आदि उपकरणों के प्रयोग से भाषा में सौंदर्य उत्पन्न कर दिया है। उनकी भाषा की दूसरी विशेषता है- प्रतीकात्मकता। कवि ने प्रकृति के विभिन्न उपादानों को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया है। उनके सभी प्रतीक प्रभावपूर्ण हैं। कवि ने कुछ स्थलों पर चित्रात्मकता और ध्वन्यात्मकता का भी सफल प्रयोग किया है। .

प्रसाद जी की अलंकार योजना उच्चकोटि की है। शब्दालंकारों की अपेक्षा अर्थालंकारों में उनकी दृष्टि अधिक रमी है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, अर्थान्तरन्यास आदि प्रसाद जी के प्रिय अलंकार हैं। प्रसाद जी की छंद योजना स्वर और लय की मिठास से अणुप्राणित है। कुछ स्थलों पर कवि ने अतुकांत और मुक्तक छंदों का भी प्रयोग किया है। इस प्रकार भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से उनका काव्य उच्चकोटि का है।

आत्मकथ्य कविता का सार

प्रश्न-
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की महत्त्वपूर्ण छायावादी कविता है। यह सन् 1932 में ‘हंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कवि के मित्रों ने उन्हें आत्मकथा लिखने के लिए आग्रह किया। उसी आग्रह के उत्तर में प्रसाद जी ने यह कविता लिखी थी।

इस कविता में कवि ने बताया है कि यह संपूर्ण संसार नश्वर है। हर जीवन एक दिन मुरझाई पत्ती-सा झड़कर गिर जाता है। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवनों के इतिहास रचे जाते हैं, किंतु ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर किसी को सुख मिला है। मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ तथा अभावग्रस्त है। इस दुनिया में मानव स्वार्थ से पूर्ण जीवन जीते हैं। इस संसार में लोग दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी जीवन जीने की इच्छा रखते हैं। यही जीवन की विडंबना है।

कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी सुनाने का इच्छुक नहीं है। कवि के पास दूसरों को सुनाने के लिए जीवन की मीठी व मधुर यादें भी नहीं हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मधुर बातें दिखाई नहीं देतीं। उसके जीवन में अधूरे सुख थे जो जीवन के आधे मार्ग में ही समाप्त हो गए। उसका जीवन तो थके हुए यात्री के समान है जिसमें कहीं भी सुख नहीं है। उनके जीवन में जो दुःख से पूर्ण यादें हैं, उन्हें भला कोई क्यों सुनना चाहेगा। उसके इस लघु जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ भी नहीं हैं जिन्हें वह दूसरों को सुना सके। अतः कवि इस आत्मकथ्य के नाम पर चुप रहना ही उचित समझता है। उसे अपनी आत्मकथा अत्यंत सरल एवं साधारण प्रतीत होती है। उसके हृदय की पीड़ाएँ मौन रूप में सोई हुई हैं जिन्हें वह जगाना उचित नहीं समझता। कवि नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने। वह अपने जीवन के कष्टों को स्वयं ही जीना चाहता है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

HBSE 10th Class Hindi उत्साह और अट नहीं रही Textbook Questions and Answers

1. उत्साह

उत्साह और अट नहीं रही प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर-
निश्चय ही बादल अपने जल से इस पृथ्वी के प्राणियों की प्यास बुझाता है और उन्हें प्रसन्न करता है। यही बादल विध्वंस और विप्लव भी मचा सकता है। कवि बादल को गरजने के लिए इसलिए कहता है ताकि सोई हुई आत्माएँ जाग जाएँ तथा उनके मन में क्रांति का संचार हो सके। क्रांति व परिवर्तन से ही नए युग का निर्माण हो सकता है। इसलिए कवि बादल को बरसने की अपेक्षा ‘गरजने’ के लिए कहता है।

उत्साह अट नहीं रही है प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता एक आह्वान गीत है जिसमें कवि ने उत्साहपूर्वक विधि से प्रगतिवादी स्वर को मुखरित किया है। कवि बादल से गरजने के लिए कहता है। ‘गरजन’ बादल की शक्ति को व्यक्त करता है। इसलिए कवि बादल का गरज-गरजकर नई प्रेरणा देने के लिए आह्वान करता है। अतः कवि ने बादल के इस विशेष गुण के आधार पर इस कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रखा है जो अत्यंत उचित एवं सार्थक है।

Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
कविता में बादल कवि की कल्पना शक्ति और क्रांति की भावना की ओर संकेत करता है। बादल एक ओर पीड़ित लोगों की आशाओं और कामनाओं को पूरा करने वाला है तो दूसरी ओर जन-जन के मन में उत्साह और संघर्ष के भाव भरने वाला भी है।

Chapter 5 Hindi Class 10 Kshitij उत्साह और अट नहीं रही प्रश्न 4.
शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर-
कविता में निम्नलिखित शब्दों में नाद-सौंदर्य मौजूद है
घेर घेर घोर गगन।
ललित ललित।
काले धुंघराले।
बाल कल्पना के-से पाले।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र इसे स्वयं करें।

पाठेतर सक्रियता:

बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से बादल संबंधी कविताओं का संकलन करें।

2. अट नहीं रही है

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर-
अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाने की धारणा कविता की निम्नांकित पंक्तियों से व्यक्त होती है
आमा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
x x x x
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,

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प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
उत्तर-
फागुन मास का प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत आकर्षक है। चारों ओर हरियाली छा गई है। वृक्ष हरे-भरे पत्तों और रंग-बिरंगे फूलों से लद गए हैं। पूरा वातावरण मधुर एवं सुगंधित बन गया है। फागुन का यह सौंदर्य प्रकृति में समा नहीं रहा है अर्थात् पूरा वातावरण सौंदर्य से परिपूर्ण है। इसलिए कवि फागुन मास के ऐसे अद्भुत सौंदर्य में पूर्णतः तल्लीन हो गया है और वह अपनी आँख ऐसे सौंदर्य से हटाना नहीं चाहता।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है? अथवा प्रस्तुत कविता के आधार पर प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कवि ने प्रकृति की शोभा को वैभवशाली बताया है क्योंकि उसमें सुंदरता रूपी विविध प्रकार की निधियाँ समाहित हैं। कवि ने बताया है कि फागुन मास में वन, उपवन, बाग, बगीचे आदि सभी स्थानों पर, पेड़ों पर हरे-भरे पत्ते लद गए हैं तथा उन पर तरह-तरह के फूल भी खिल गए हैं जिससे संपूर्ण वातावरण आकर्षक बन गया है। चारों ओर फूलों की सुगंध व्याप्त है। फूलों से लदे हुए पेड़ ऐसे लग रहे हैं मानों उन्होंने अपने गले में सुगंधित फूलों से बनी मालाएँ पहन ली हों।

प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
उत्तर-
फागुन का महीना बसंत ऋतु में आता है। इस मास के आने पर सभी पेड़-पौधों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनके स्थान पर नए पत्ते उग आते हैं। सर्दी की ऋतु समाप्त हो जाती है। मौसम अत्यंत आकर्षक बन जाता है। खेतों में दूर-दूर तक फैली । हुई पीली-पीली सरसों ऐसी लगती है कि मानों धरती पीली चादर ओढ़कर सज गई हो। सभी बाग-बगीचों में खड़े पेड़ भी फूलों से लद जाते हैं। वातावरण पूर्णतः सुगंधित एवं सुहावना बन जाता है पक्षियों की मधुर ध्वनियाँ सुनाई देने लगती हैं। मानव-जीवन में भी स्फूर्ति का संचार होने लगता है। सभी प्राणियों में नया उत्साह भर जाता है। इसलिए फागुन मास अन्य ऋतुओं से भिन्न होता है।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
निराला जी छायावाद के प्रमुख कवि थे। उनकी इन कविताओं में छायावादी काव्य की सभी प्रमुख विशेषताएँ एक साथ देखने को मिलती हैं। उनकी भाषा में मधुर शब्दावली की योजना, संगीतात्मकता, लाक्षणिकता, चित्रात्मकता तथा प्रकृति का मानवीकरण बेजोड़ है। भावपक्ष की भाँति ही उनके काव्य का कलापक्ष भी अत्यंत समृद्ध है। शिल्प के क्षेत्र में उनका विद्रोही रूप भी देखने को मिलता है। उन्होंने छंदमुक्त काव्य-शैली का प्रयोग किया है। अतः स्पष्ट है किं विषय-वस्तु के साथ-साथ निराला जी ने काव्य के शिल्प पक्ष में नवीनता का समावेश किया है। बादल निराला जी को बहुत प्रिय रहा है इसलिए नहीं कि वह सुंदर है बल्कि इसलिए भी कि वह शक्ति का प्रतीक है। ‘उत्साह’ कविता में ललित कल्पना और क्रांति का स्वर समांतर बना हुआ है। ‘अट नहीं रहा है। शीर्षक कविता में देशज शब्दों का प्रयोग भी देखते ही बनता है। निराला जी लघु-लघु शब्दों का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि भाषा की प्रवाहमयता देखते ही बनती है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

पाठेतर सक्रियता

फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर-
यह परीक्षोपयोगी नहीं है।
इस कविता में भी निराला फागुन के सौंदर्य में डूब गए हैं। उनमें फागुन की आभा रच गई है, ऐसी आभा जिसे न शब्दों से अलग किया जा सकता है, न फागुन से।
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर,
सभी बंधन छूटे हैं।
फागुन के रंग राग,
बाग-वन फाग मचा है,
भर गये मोती के झाग,
जनों के मन लूटे हैं। ,
माथे अबीर से लाल,
गाल सेंदुर के देखे,
आँखें हुई हैं गुलाल,
गेरू के ढेले कूटे हैं।

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HBSE 10th Class Hindi उत्साह और अट नहीं रही Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘उत्साह’ कविता के आधार पर बादल की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में कवि ने बादल के मंगलमय रूप को चित्रित किया है। साथ ही बादल के सौंदर्य को भी उजागर किया है। बादल को कवि ने ‘ललित ललित काले बादल’ कहकर उसकी सुंदरता की ओर संकेत किया है। बादल को ‘बाल कल्पना के-से पाले’ बताकर बादल की कोमलता एवं माधुर्य पर प्रकाश डाला है। बादल को बिजली की सुंदरता को हृदय में धारण करने वाला, हृदय में वज्र छुपाने वाला बताकर उसके शक्तिशाली रूप को उजागर किया है। ‘तप्त धरा को जल से फिर शीतल कर दो’ के माध्यम से बादल के मंगलमय रूप को प्रदर्शित किया है। इसी प्रकार ‘उत्साह’ कविता में बादल को नव-जीवन देने वाला बताया गया। है, क्योंकि उसके जल से ही प्राणी मात्र के जीवन में नया उत्साह व सुख मिलता है।

प्रश्न 2.
‘उत्साह’ नामक कविता में ‘नवजीवन वाले’ किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में ‘नवजीवन वाले’ विशेषण का प्रयोग बादल और कवि दोनों के लिए किया गया है। बादल को नवजीवन वाले इसलिए कहा गया है क्योंकि वह अपने जल से मुरझाई हुई-सी धरती को पुनः हरा-भरा करके उसमें नव-जीवन का संचार कर देता है। इसी प्रकार कवि भी अपनी कविता के माध्यम से सोई हुई मानवता को जगाकर उसमें नए-नए विचारों का संचार करता है और नव-जीवन का संदेश देता है।

प्रश्न 3.
फागुन के मदमाते वातावरण का मानव-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
फागुन मास मदभरा मास माना जाता है क्योंकि इस मास में चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य छा जाता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। फूलों की सुगंध से वातावरण सुगंधित बन जाता है। सर्दी की ऋतु के पश्चात् बसंत का आगमन हो जाता है। इस सारे वातावरण का मानव-जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मानव-मन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो जाता है। उसका मन उत्साह से भर जाता है। वह आकाश में उड़ने की उमंग भरने लगता है। वह प्राकृतिक सौंदर्य को देखने में इतना तल्लीन हो जाता है कि अपनी दृष्टि उससे हटाना नहीं चाहता। फागुन मास के आते ही लोग मस्ती से भर उठते हैं और फागुन के गीत गाने लगते हैं। चारों ओर उत्साह का अद्भुत वातावरण बन जाता है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 4.
‘उत्साह’ कविता के केंद्रीय भाव का उल्लेख कीजिए। अथवा
‘उत्साह’ कविता के मूल उद्देश्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में कविवर निराला ने बादल को उत्साह के प्रतीक के रूप में चित्रित किया है। कवि बादल से अनुरोध करता है कि वह सारे आकाश में छा जाए और खूब वर्षा करे ताकि तपती हुई धरती को शीतलता मिल सके। वह किसी संघर्षशील कवि के समान सबके जीवन में उत्साह भर दे। वह अपनी गर्जन से सोई हुई मानवता को जगा दे। उसमें नया जोश व उत्साह भर दे। जब सारी धरा पर लोग व्याकुल व अनमने हों तो बादल जल की धारा बनकर सबको शीतलता प्रदान करें।

प्रश्न 5.
‘अट नहीं रही है’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता में कवि ने छायावादी शैली में प्रकृति की मनोरम छटा का उल्लेख किया है। कवि ने बताया है कि फागुन मास की शोभा अपने आप में समा नहीं रही है। इसलिए वह अनंत शोभा-सी लगती है। हर तरफ हरियाली छाई हुई है। फूलों की सुगंध वातावरण में मिलकर वातावरण को मधुर बना रही है। संपूर्ण प्राकृतिक दृश्य अत्यंत आकर्षक बने हुए हैं। कवि का मन इन सुंदर दृश्यों में इतना तल्लीन है कि वह एक क्षण के लिए भी अपनी आँखों को उनसे हटाना नहीं चाहता।

प्रश्न 6.
‘उत्साह’ कविता में कवि और बादल में क्या समानता दिखाई देती है?
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में बादल एक ओर पीड़ित लोगों की आशाओं और कामनाओं को पूरा करने वाला है तो दूसरी ओर जन-जन के मन में उत्साह और संघर्ष के भाव भरने वाला है। ठीक इसी प्रकार कवि भी दुःखी लोगों के प्रति सहानुभूति रखता है और शोषण के विरुद्ध क्रांति की भावना के विकास के लिए प्रेरित करता है। बादल गरजता है तो कवि कविता के माध्यम से जन-जन को ललकारता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसकी आभा अट नहीं रही है?
उत्तर-
फागुन की आभा अट नहीं रही है।

प्रश्न 2.
निराला जी का निधन कब हुआ?
उत्तर-
निराला जी का निधन सन् 1961 में हुआ।

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प्रश्न 3.
कवि बादलों के माध्यम से मानव को क्या प्रदान करना चाहता है?
उत्तर-
कवि बादलों के माध्यम से मानव को जीवन की नई-नई प्रेरणाएँ प्रदान करना चाहता है।

प्रश्न 4.
निराला जी का प्रतिकार किसके प्रति व्यक्त हुआ है?
उत्तर-
निराला जी का प्रतिकार शोषक वर्ग के प्रति व्यक्त हुआ है।

प्रश्न 5.
‘तप्त धरा’ का सांकेतिक अर्थ क्या है?
उत्तर-
‘तप्त धरा’ का सांकेतिक अर्थ सांसारिक दुखों से पीड़ित पृथ्वी है।

प्रश्न 6.
फागुन मास के आते ही वृक्ष कैसे लगने लगते हैं?
उत्तर-
फागुन मास के आते ही वृक्ष हरे-भरे लगने लगते हैं।

प्रश्न 7.
कवि की आँख कहाँ से नहीं हट रही है?
उत्तर-
कवि की आँख प्राकृतिक सुंदरता से नहीं हट रही है।

प्रश्न 8.
‘अट नहीं रही है’ कविता में किस मास का वर्णन किया गया है?
उत्तर-
‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन मास का वर्णन किया गया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘निराला’ जी मूलतः किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) पंजाब
(B) उत्तर प्रदेश
(C) हरियाणा
(D) मध्य प्रदेश
उत्तर-
(B) उत्तर प्रदेश

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प्रश्न 2.
निराला की आरंभिक शिक्षा कहाँ हुई?
(A) बनारस में
(B) लखनऊ में
(C) महिषादल में
(D) कोलकाता में
उत्तर-
(C) महिषादल में

प्रश्न 3.
निराला जी के जीवन में सबसे बड़ा दुख क्या था?
(A) गरीब होना
(B) बीमार पड़ना
(C) समाज द्वारा ठुकराया जाना
(D) पत्नी तथा बेटा-बेटी की मृत्यु
उत्तर-
(D) पत्नी तथा बेटा-बेटी की मृत्यु

प्रश्न 4.
निराला जी ने सबसे पहले किस छंद का प्रयोग किया था?
(A) सवैया
(B) दोहा
(C) चौपाई
(D) मुक्त
उत्तर-
(D) मुक्त

प्रश्न 5.
‘उत्साह’ किस प्रकार का गीत है?
(A) प्रेम
(B) विरह
(C) आह्वान
(D) उत्साह
उत्तर-
(C) आह्वान

प्रश्न 6.
‘उत्साह’ कविता में कवि ने किसका आह्वान किया है?
(A) बादल का
(B) पवन का
(C) सूर्य का
(D) वर्षा का
उत्तर-
(A) बादल का

प्रश्न 7.
“उत्साह’ नामक कविता में बादलों में क्या छिपा हुआ है?
(A) गर्जन
(B) वज्र
(C) जल
(D) कालापन
उत्तर-
(B) वज्र

प्रश्न 8.
‘उत्साह’ कविता में किस दिशा से अनंत के घन आने की बात की गई है?
(A) पश्चिम
(B) अज्ञात
(C) पूर्व
(D) ज्ञात
उत्तर-
(B) अज्ञात

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प्रश्न 9.
कवि ने बादल को किसके प्रतीक के रूप में चित्रित किया है?
(A) संदेशवाहक
(B) सैनिक
(C) क्रांतिकारी पुरुष
(D) स्वार्थी व्यक्ति
उत्तर-
(C) क्रांतिकारी पुरुष

प्रश्न 10.
कवि ने बादलों को किसकी कल्पना के समान बताया?
(A) बालकों की
(B) कवि की
(C) सैनिक की
(D) व्यापारी की
उत्तर-
(A) बालकों की

प्रश्न 11.
‘विश्व के निदाघ के सकल जन’, यहाँ सकल का अर्थ है-
(A) सुंदर
(B) सब
(C) अच्छे
(D) दुष्ट
उत्तर-
(B) सब

प्रश्न 12.
वज्र किसके हृदय में छिपा रहता है?
(A) बादल
(B) पवन
(C) सूर्य
(D) आकाश
उत्तर-
(A) बादल

प्रश्न 13.
प्रस्तुत कविता में बादल से किसको शीतल करने की बात कही गई है?
(A) विकल जन
(B) तप्त धरा
(C) विद्युत
(D) जीवन
उत्तर-
(A) विकल जन ।

प्रश्न 14.
विश्व के जन क्यों व्याकुल एवं परेशान थे?
(A) भूख के कारण
(B) बीमारी के कारण
(C) प्रियजनों से दूर जाने के कारण
(D) भयंकर गर्मी के कारण
उत्तर-
(D) भयंकर गर्मी के कारण

प्रश्न 15.
कवि ने बादलों के हृदय में कैसी छवि बताई है?
(A) सुनहरी
(B) काली
(C) सफेद
(D) विद्युत
उत्तर-
(D) विद्युत

प्रश्न 16.
पत्तों से लदी डाल पर कौन-कौन से रंगों की छटा बिखरी हुई है?
(A) हरी, पीली
(B) लाल, पीली
(C) हरी, लाल
(D) पीली, भूरी
उत्तर-
(C) हरी, लाल

प्रश्न 17.
‘अट नहीं रही है’ कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) तुलसीदास
(C) महादेवी वर्मा
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर-
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

प्रश्न 18.
‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि ने किस मास की मादकता का वर्णन किया है?
(A) फागुन मास की
(B) कार्तिक मास की
(C) सावन मास की
(D) आषाढ़ मास की
उत्तर-
(A) फागुन मास की

प्रश्न 19.
किसकी आभा ‘अट’ नहीं रही है?
(A) धूप
(B) फागुन
(C) बसंत
(D) हवा
उत्तर-
(B) फागुन

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 20.
कवि के अनुसार घर-घर में क्या भर जाता है?
(A) धुआँ
(B) जल
(C) फागुन मास की शोभा
(D) वर्षा का पानी
उत्तर-
(C) फागुन मास की शोभा

प्रश्न 21.
‘अट नहीं रही है’ नामक कविता में पाट-पाट पर क्या बिखरी है?
(A) उज्ज्वलता
(B) शोभा-श्री
(C) सुगंध
(D) हरीतिमा
उत्तर-
(B) शोभा-श्री

प्रश्न 22.
‘अट’ शब्द से तात्पर्य है
(A) नष्ट
(B) अटकना
(C) प्रविष्ट
(D) अटना
उत्तर-
(C) प्रविष्ट

प्रश्न 23.
‘अट नहीं रही है’ नामक कविता में हटाने पर भी क्या नहीं हट रही है?
(A) आभा
(B) रोशनी
(C) जाला
(D) आँख
उत्तर-
(D) आँख

प्रश्न 24.
‘मंद-गंध-पुष्प-माल’ का धारक किसे कहा गया है?
(A) चैत्र
(B) बैसाख
(C) जेठ
(D) फागुन
उत्तर-
(D) फागुन

प्रश्न 25.
फागुन मास में कौन-सी ऋतु होती है?
(A) वर्षा
(B) बसंत
(C) ग्रीष्म
(D) सर्दी
उत्तर-
(B) बसंत

उत्साह और अट नहीं रही पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] बादल, गरजो:
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले धुंघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो
बादल, गरजो! [पृष्ठ 33]

शब्दार्थ-घोर = भयंकर। धाराधर = जल की धारा धारण करने वाले। ललित = सुंदर। विद्युत-छबि = बिजली के समान सुंदरता। उर = हृदय। वन = कठोर, भीषण। नूतन = नई।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने बादल का गरजने के लिए आह्वान क्यों किया है?
(ङ) यहाँ बादलों को किसके प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है?
(च) बादल किसकी कल्पना के समय पाले गए हैं?
(छ) बादल मानव-जीवन और कवि को क्या प्रदान करते हैं?
(ज) कवि बादलों से बरसकर क्या करने को कहता है?
(झ) ‘वज्र छिपा’ में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट कीजिए।
(अ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। कविता का नाम-उत्साह।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘उत्साह’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। कवि ने उत्साह एवं शक्ति के प्रतीक बादलों का आह्वान किया है कि वे पीड़ित, दुःखी एवं प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। कवि ने बादलों को अंधविश्वास के अंकुर के विध्वंसक एवं क्रांति की चेतना को जागृत करने वाला कहा है।

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(ग) कवि ने क्रांति के प्रतीक बादल को संबोधित करते हुए कहा है कि हे बादल! तुम खूब गरजो। तुम सारे आकाश को घेरकर खूब बरसो। घनघोर वर्षा करो। हे बादल! तुम बहुत ही सुंदर हो। तुम्हारा रूप घने काले और धुंघराले बालों के समान है। तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले हुए हो। तुम अपने हृदय में बिजली की शोभा रखे हुए हो। तुम नई सृष्टि की रचना करने वाले हो। तुम अपने जल द्वारा नया जीवन देने वाले हो। तुम्हारे भीतर वज्र की शक्ति विद्यमान् है। हे बादल! तुम इस संसार को नई-नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने वाले हो। हे बादल! तुम खूब गरजो और सबमें एक बार फिर नया जीवन भर दो।

(घ) कवि ने बादलों का आह्वान गरजने के लिए इसलिए किया है क्योंकि कवि वातावरण में जोश और क्रांति की भावना भर देना चाहता है। बादल की गर्जन को सुनकर सबमें जोश भर जाता है।

(ङ) यहाँ बादलों को क्राँति उत्पन्न करने वाले साहसी व उत्साही वीर पुरुष के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है।

(च) बादल नन्हें अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गए हैं। वे अत्यंत सुंदर एवं कोमल हैं।

(छ) बादल मानव-जीवन और कवि को नई-नई प्रेरणाएँ प्रदान करते हैं। (ज) कवि बादलों को जल बरसाकर प्राणियों को सुख प्रदान करने के लिए कहते हैं। .

(झ) ‘वज्र छिपा’ का तात्पर्य है कि बादलों के भीतर बिजली की कड़क छिपी हुई है। दूसरे शब्दों में, कवि के हृदय में भी उथल-पुथल करने वाली क्रांति की भावना छिपी हुई है।

(ञ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्यासे और पीड़ित लोगों के हृदय की पीड़ा को दूर करके उनकी कामनाओं को पूरा करने . का आह्वान किया है। कवि को बादलों की गर्जन प्रिय है क्योंकि उसमें शक्ति की भावना समाहित है। कवि समाज में क्रांति लाना . चाहता है ताकि समाज में व्याप्त रूढ़िबद्ध परंपराएँ समाप्त हो जाएँ और समाज विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सके।

(ट)

  • प्रस्तुत पद में कवि ने ओजस्वी वाणी में क्रांति के स्वर को मुखरित किया है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • लघु शब्दों की आवृत्ति के कारण जहाँ भाव प्रभावशाली बन पड़े हैं, वहीं कविता में प्रवाह का समावेश भी हुआ है।
  • संबोधन शैली का प्रयोग किया गया है।
  • ‘ललित ललित काले धुंघराले’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘घेर-घेर, ललित-ललित’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  • ‘बाल कल्पना के-से पाले’ में उपमा अलंकार है।
  • ‘बादल गरजो’ में मानवीकरण अलंकार है।

(ठ) कविवर ‘निराला’ ने अपने काव्य में तत्सम प्रधान भाषा का प्रयोग किया है। इस पद्यांश में भी उन्होंने तत्सम प्रधान और ओजस्वी भाषा का प्रयोग किया है। लघु शब्दों की आवृत्ति से भाषा में गति एवं एक लय का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण संपन्न है।

[2] विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो
बादल, गरजो! [पृष्ठ 33]

शब्दार्थ-विकल = बेचैन। उन्मन = अनमना। निदाघ = तपती गर्मी। सकल = सारा। जन = मनुष्य। अज्ञात = अनजान। अनंत = असीम अज्ञान। घन = बादल। तप्त = तपी हुई। धरा = पृथ्वी।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि बादल से क्या प्रार्थना करता है?
(ङ) पृथ्वी पर लोग क्यों बेचैन हो रहे थे?
(च) ‘निदाघ’ किसके प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है?
(छ) बादल कहाँ से आकर आकाश में छा जाते हैं? ।
(ज) ‘तप्त धरा’ का शाब्दिक व सांकेतिक अर्थ लिखिए।
(झ) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’।
कविता का नाम-उत्साह।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘उत्साह’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इस कविता में कवि ने बादलों का दुःख से पीड़ित मानवता को सुख प्रदान करने के लिए आह्वान किया है।

(ग) कवि कहता है कि चारों ओर व्याकुलता और बेचैनी थी। सब लोग परेशान थे तथा सबके मन अनमने व उचाट हो रहे थे। विश्व के सभी लोग भीषण गर्मी से दुःखी एवं पीड़ित थे। तब न जाने किस अज्ञात दिशा से बादल आकाश में छा गए। कवि बादलों को संबोधित करता हुआ कहता है कि हे बादलो! तुम खूब बरसो और गर्मी से पीड़ित लोगों को शीतलता प्रदान करो। खूब बरसो और जन-जन को ठंडक पहुँचाओ। हे बादल! तुम खूब गरजो।

(घ) कवि बादल से प्रार्थना करता है कि वे गर्मी से तपी हुई धरती पर खूब जल बरसाओ और उसे शीतलता प्रदान करो।

(ङ) संपूर्ण पृथ्वी के लोग कष्टों व दुःखों रूपी गर्मी के कारण बेचैन व व्याकुल थे।

(च) कवि ने ‘निदाघ’ अर्थात् भीषण गर्मी का प्रयोग संसार के कष्टों के प्रतीकार्य किया है।

(छ) बादल न जाने असीम आकाश के किस कोने से आकर चारों ओर छाया की भाँति छा जाते हैं।

(ज) ‘तप्त धरा’ का शाब्दिक अर्थ है-गर्मी से तपती हुई धरती तथा इसका सांकेतिक अर्थ है-सांसारिक दुःखों से पीड़ित मानव-जीवन।

(झ) प्रस्तुत कविता में कवि ने बादलों का मानवता को सुख देने के लिए आह्वान किया है। इस धरती पर सांसारिक कष्टों व पीड़ाओं से पीड़ित मनुष्य को सुख प्रदान करके उसे शांति व शीतलता प्रदान करनी चाहिए। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गर्मी से तपती हुई धरती को बादल वर्षा करके ठंडक प्रदान करते हैं। .

(ञ)

  • कवि ने बादलों का मानवीकरण करके विषय को रोचक बना दिया है।
  • भाषा सरल एवं सहज है।
  • ‘अनंत’ के दो अर्थ हैं-ईश्वर और आकाश। इसलिए श्लेष अलंकार है।
  • नाद-सौंदर्य विद्यमान है।
  • ओजगुण सर्वत्र देखा जा सकता है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक बन पड़ी है।

(ट) संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग किया गया है। छोटे-छोटे शब्दों के सार्थक प्रयोग से भाषा में प्रवाह बना हुआ है। संबोधन शैली के प्रयोग से कविता में रोचकता का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण संपन्न है।

[3] अट नहीं रही है
आमा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल
पाट पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है। [पृष्ठ 34]

शब्दार्थ-अट = समाना, प्रविष्ट करना। आभा = सुंदरता। नभ = आकाश। उर = हृदय। मंद-गंध = धीमी-धीमी सुगंध। पुष्प-माल = फूलों की माला। पाट-पाट = जगह-जगह। शोभा-श्री = सुंदरता से परिपूर्ण। पट = न समाना।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किस मास की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है?
(ङ) घर-घर में क्या भर जाता है और क्यों?
(च) कौन किसको उड़ने के लिए प्रेरित करता है?
(छ) कवि की आँख किससे नहीं हटती और क्यों?
(ज) वृक्षों पर किस प्रकार के पत्ते लद गए हैं?
(झ) बन में क्या पट नहीं रही है?
(अ) फागुन के कारण वन-उपवन कैसे लग रहे हैं?
(ट) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पयांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। कविता का नाम-अट नहीं रही है।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘अट नहीं रही है’ नामक कविता से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने फागुन मास की प्राकृतिक छटा का मनोरम चित्रण किया है। कवि ने अपने अनंत प्रिय को संबोधित करते हुए कहा है कि यह सब तुम्हारी शोभा का प्रकाश है जो समा नहीं रहा है।

(ग) कवि कहता है कि फागुन की सुंदरता व चमक कहीं भी समा नहीं रही है। प्रकृति का तन इस फागुनी सुंदरता से जगमगा रहा है। तुम पता नहीं कहाँ से साँस लेते हो और अपनी साँसों की सुगंध से घर भर देते हो अर्थात् कवि को हर जगह अपने प्रिय की साँसों की सुगंध अनुभव होती है। वे तुम्ही हो जो मन को ऊँची कल्पनाओं में उड़ने की प्रेरणा प्रदान करते हो। चारों ओर तुम्हारे सौंदर्य की आभा ही चमक रही है। मैं चाहकर भी इस सौंदर्य से आँख नहीं हटा सकता। कवि का मन प्राकृतिक सौंदर्य से बंधकर रह जाता है।
कवि पुनः कहता है कि फागुन मास में वन एवं उपवन के वृक्ष हरे-भरे, नए-नए पत्तों से लद गए हैं। इन वृक्षों पर विभिन्न रंगों के फूल खिले हुए हैं। कहीं कंठों में मंद सुगंधित पुष्पमालाएँ पड़ गई हैं। हे प्रिय! तुमने तो इस प्रकृति में इस सौंदर्य रूपी वैभव को इस प्रकार भर दिया है कि यह इस प्रकृति में समा नहीं रहा है।

(घ) कवि ने फागुन मास की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।

(ङ) घर-घर में फागुन मास की शोभा और मस्ती भर जाती है। चारों ओर सुंदरता एवं मधुरता का वातावरण बन जाता है। .

(च) फागुन मास पक्षियों को उड़ने की प्रेरणा देता है अर्थात् फागुन मास के आते ही पक्षियों के जीवन में भी क्रियाशीलता अधिक . तीव्रता से उत्पन्न हो जाती है। फागुन मास में मनुष्यों के मनों में भी ताज़गी भर जाती है और वे भी क्रियाशील हो उठते हैं।

(छ) कवि की आँख प्राकृतिक छटा से नहीं हटती क्योंकि कवि को फागुन मास की प्राकृतिक छटा देखना अत्यंत प्रिय लगता है। (ज) फागुन मास के आते ही वृक्षों पर हरे-भरे व लाल-लाल पत्ते लद जाते हैं।

(झ) वन में प्राकृतिक छटा पट (समा) नहीं रही है।

(ञ) फागुन मास के कारण वन-उपवन सब महक उठे हैं। पेड़ों पर हरे-भरे व नए-नए पत्ते लद जाते हैं तथा तरह-तरह के फूल खिल जाते हैं। फूलों से लदे पेड़ ऐसे लगते हैं मानों उन्होंने फूलों से बनी हुई मालाएँ पहन रखी हों। वन-उपवनों में फागुन मास की छटा पट नहीं रही है।

(ट) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने फागुन मास के अपूर्व एवं असीम सौंदर्य का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। कवि के अनुसार प्रकृति की अनंत सुंदरता व शोभा का कोई छोर नहीं है अर्थात् उसे सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता। फागुन मास में प्रकृति का सौंदर्य ऐसा बन जाता है जो बरबस लोक लोचनों को बाँध लेता है।

(ठ)

  • भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
  • अट, सट, पट, पाट आदि लघु-लघु शब्दों के सार्थक प्रयोग से भाषा में प्रवाहमयता बनी हुई है।
  • देशज शब्दों का अत्यंत सुंदर प्रयोग देखते ही बनता है।
  • भाषा माधुर्यगुण संपन्न है।
  • कोमलकांत पदावली है।
  • यमक, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, रूपक, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ड) ‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता में कवि ने शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। लघु शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में जहाँ प्रवाह बना रहता है वहीं लय भी उत्पन्न हुई है, इन काव्य-पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की अन्य विशेषता यह है कि इसमें देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है तथा विशेष वातावरण का निर्माण भी हुआ है।

उत्साह और अट नहीं रही Summary in Hindi

उत्साह और अट नहीं रही कवि-परिचय

प्रश्न-
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का आधुनिक हिंदी कवियों में सर्वश्रेष्ठ स्थान है। वे वास्तव में ही ‘निराला’ थे। निराला जी ने आधुनिक हिंदी काव्य को एक नई दिशा प्रदान की है। उनका जन्म बंगाल के महिषादल नामक रियासत में मेदिनीपुर नामक स्थान पर सन् 1899 में हुआ था। उनके पिता इस राज्य में एक प्रतिष्ठित पद पर कार्य करते थे। उनका बचपन यहीं व्यतीत हुआ। निराला जी की आरंभिक शिक्षा महिषादल में ही संपन्न हुई। संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन उन्होंने घर पर ही किया। दर्शन और संगीत में भी उनकी गहरी रुचि थी। निराला जी का जीवन आरंभ से अंत तक संघर्षों से परिपूर्ण रहा। शैशवावस्था में ही उनकी माता जी का देहांत हो गया। विवाह के कुछ वर्ष पश्चात उनकी पत्नी चल बसी। तत्पश्चात पिता, चाचा तथा चचेरे भाई भी चल बसे। पुत्री सरोज की मृत्यु से उनका हृदय विदीर्ण हो गया। इस प्रकार, संघर्षों से जूझते-जूझते सन् 1961 में निराला जी की जीवन-लीला समाप्त हो गई। निराला जी जीवन के संघर्षों से जूझते हुए भी निरंतर साहित्य सृजन में लगे रहे।

2. प्रमुख रचनाएँ-निराला जी महान साहित्यकार थे। उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
काव्य-‘अनामिका’, ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘तुलसीदास’, ‘अणिमा’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘बेला’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’, ‘गीतागूंज’, ‘नए पत्ते’ ‘जूही की कली’ आदि।
उपन्यास-‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’ ‘चमेली’ आदि।
कहानी-संग्रह ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीवी’ आदि।
रेखाचित्र-‘कुल्ली भाट’, ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ आदि।
जीवनी-साहित्य-‘महाराणा प्रताप’, ‘प्रह्लाद’, ‘ध्रुव’, ‘शकुंतला’, ‘भीष्म’ आदि।
आलोचना और निबंध-‘पद्म-प्रबंध’, ‘प्रबंध-प्रतिमा’, ‘प्रबंध-परिचय’ आदि।

3. काव्यगत विशेषताएँ-निराला जी के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) मानवतावादी दृष्टिकोण-महाकवि निराला जी के मन में दीन-दुखियों के प्रति अत्यधिक सहानुभूति थी। संसार में व्याप्त अव्यवस्था तथा सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को देखकर निराला जी बहुत दुःखी होते थे। उनकी ‘भिक्षुक’ और ‘वह तोड़ती पत्थर’ नामक कविताएँ उनके मानवतावादी विचारों को प्रकट करती हैं।
(ii) राष्ट्रीयता-निराला जी अपने युग के एक सचेत कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में अपने युग में व्याप्त राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को बड़ी यथार्थता से चित्रित किया। उन्होंने तत्कालीन कुप्रथाओं पर जमकर प्रहार किए। उनके साहित्य से एक स्वस्थ समाज बनाने की प्रेरणा मिलती है। अतः कहा जा सकता है कि निराला जी सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय भावना के कवि थे।
(iii) प्रगतिवादी चेतना-निराला जी ने अपने काव्य में एक ओर दीन-दुखियों के जीवन का मार्मिक चित्रण किया तो दूसरी ओर शोषकों के प्रति आक्रोश से भरी आवाज़ बुलंद की

, “अबे सुन बे गुलाब, भूल मत जो पाई खुशबू, रंगो-आब,
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट, डाल पर इतराता है कैपिटलिस्ट।”

(iv) रहस्यवादी दृष्टिकोण-निराला जी के रहस्यवाद का मूल आधार वेदांत है। वे आत्मा और परमात्मा के प्रणय संबंधों पर बल देते हैं। उनके रहस्यवाद में भावना और चिंतन का सुंदर समन्वय है। निराला जी के रहस्यवाद में व्यावहारिकता अधिक है। उनके रहस्यवादी दर्शन के निष्कर्ष शक्ति, करुणा, सेवा, त्याग आदि हैं।

(v) प्रकृति-चित्रण-अन्य छायावादी कवियों की ही भाँति निराला जी ने भी प्रकृति के विविध रूपों को बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित किया है। उनके प्रकृति-चित्रण में प्रकृति के भयानक और मनोरम, दोनों ही रूपों के दर्शन होते हैं। उन्होंने भावनाओं को उद्दीप्त करने वाले प्राकृतिक रूप को अधिक चित्रित किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

(vi) प्रेम और श्रृंगार का वर्णन-निराला जी के आरंभिक काव्य में प्रेम और शृंगार का खूब वर्णन हुआ है लेकिन उनके शृंगार-वर्णन में ऐंद्रियता का अभाव है। ‘जूही की कली’ आदि कविताओं में तो शृंगार स्थूल है लेकिन अन्य कविताओं में यह पावन एवं उदात्त है। उनका प्रेम निरूपण लौकिक होने के साथ-साथ अलौकिक भी है। ऐसे स्थलों पर निराला रहस्यवादी कवि प्रतीत होने लगते हैं। ‘तुम और मैं’, ‘यमुना के प्रति’, ‘कौन तम के पार रे कह!’ आदि कविताओं में उनकी रहस्यवादी भावना व्यक्त हुई है।

4. भाषा-शैली-कविवर निराला ने अपने काव्य में तत्सम प्रधान शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने कोमलकांत पदावली के प्रयोग से अपनी काव्य-भाषा को खूब सजाया है। निराला जी अपने सूक्ष्म प्रतीकों, लाक्षणिक पदावली तथा नवीन उपमानों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके काव्य में संगीतात्मकता के सभी अनिवार्य तत्त्व उपलब्ध हैं।

निराला जी ने अपने काव्य में शब्दालंकार एवं अर्थालंकार, दोनों का सफल प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, उपमा, रूपक, यमक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग देखते ही बनता है।
निराला जी का संपूर्ण काव्य मुक्त छंद में रचित है। मुक्त छंद उनकी काव्य को बहुत बड़ी देन है। अतः स्पष्ट है कि निराला जी का काव्य भाव तथा भाषा दोनों दृष्टियों से अत्यंत सक्षम एवं संपन्न है। निश्चय ही वे आधुनिक हिंदी साहित्य के महान एवं निराले कवि थे।

उत्साह और अट नहीं रही कविता का सार

1. उत्साह

प्रश्न-
‘उत्साह’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
“उत्साह’ शीर्षक कविता में कवि ने समाज में नई चेतना और सामाजिक परिवर्तन के लिए आह्वान किया है। कवि ने जीवन को व्यापक एवं समग्र दृष्टि से देखते हुए अपने मन की कल्पना और क्रांति की चेतना को समानांतर रूप से ध्यान में रखा है। कवि बादलों को गरज-गरजकर बरसने की बात कहता है। सुंदर और काले बादल बालकों की कल्पना के समान हैं। वे नई सृष्टि की रचना करते हैं। उनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। कवि बादलों का आह्वान करता है कि वे पानी बरसाकर तप्त धरती की तपन दूर करके उसे शीतलता प्रदान करें।

2. अट नहीं रही है।

प्रश्न-
‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने फागुन के महीने की प्राकृतिक सौंदर्य से उत्पन्न मादकता का वर्णन किया है। कवि फागुन की सर्वव्यापक सुंदरता को कई संदर्भो में देखता है। कवि का मत है कि जब व्यक्ति के मन में प्रसन्नता हो तो उस समय उसे सारी प्रकृति में सुंदरता फूटती नज़र आती है। हर तरफ से सुगंध अनुभव होती है। मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ फूट पड़ती हैं। वनों के सभी पेड़ नए-नए पत्तों से लद जाते हैं। तरह-तरह के सुगंधित फूल भी खिल जाते हैं। सारे वन में प्राकृतिक छटा का दृश्य अत्यंत मनमोहक बन पड़ा है।

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