Author name: Prasanna

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions

पृष्ठ 2 (प्रयास कीजिए)

प्रश्न 1.
पूर्णांकों को निरूपित करने वाली एक संख्या रेखा नीचे दी गई है:
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions 1
-3 एवं -2 को क्रमश: E और F से अंकित किया गया है। B, D, H, J, M एवं 0 द्वारा कौनसे पूर्णांक अंकित किए जाएंगे?
हल :
हम जानते हैं कि संख्या रेखा पर शून्य के दायीं ओर धन पूर्णांक तथा बायीं ओर ऋण पूर्णांक होते हैं।
चूंकि दी गई संख्या रेखा पर E तथा F पर – 3 तथा – 2 दिया गया है। अतः इस संख्या रेखा पर E के – 3 से बायीं ओर प्रत्येक इकाई पर ऋणात्मक 1 जोड़ते हुए निम्नानुसार -4, -5, -6 तथा – 7 अंकित करेंगे। इसी प्रकार F के -2 से दायीं ओर प्रत्येक इकाई पर धनात्मक 1 जोड़ते हुए निम्नानुसार – 1, 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6 तथा 7 अंकित करेंगे।
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions 2
इस प्रकार स्पष्ट है कि B. D, H, J, M एवं 0 द्वारा क्रमश : – 6, – 4, 0, 2, 5 एवं 7 पूर्णांक अंकित किए जाएंगे।

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions

प्रश्न 2.
पूर्णांकों 7, – 5, 4, 0 एवं – 4 को आरोही क्रम में क्रमबद्ध कीजिए और अपने उत्तर की जाँच करने के लिए इन्हें एक संख्या रेखा पर अंकित कीजिए।
हल :
पूर्णाकों 7, – 5, 4, 0 तथा – 4 का आरोही क्रम हैं :
– 5, – 4, 0, 4 और 7
इन संख्याओं को संख्या रेखा पर प्रदर्शित करने के लिए संख्या रेखा बनाई तथा इसके मध्य में एक बिन्दु 0 लिया। जैसा निम्न आकृति में दिया है। अब समान दूरी पर 0 के बायीं व दायीं ओर, 0 से आरम्भ करते हुए बिन्दु लिये और 0 से 4 इकाई दायीं ओर 4 प्राप्त किया और उससे 3 इकाई दायीं ओर 7 प्राप्त किया।
फिर 0 से प्रारम्भ कर बायीं ओर 4 इकाई पर – 4 प्राप्त किया तथा वहाँ से 1 इकाई बायीं ओर – 5 प्राप्त किया।
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इस प्रकार से प्राप्त पूर्णांक आरोही क्रम में हैं।

पृष्ठ 4

प्रश्न 1.
अपनी पिछली कक्षा में हमने संख्याओं के साथ विभिन्न प्रकार के प्रतिरूप (पैटर्न) ज्ञात किए हैं। क्या आप निम्नलिखित में से प्रत्येक के लिए एक पैटर्न ज्ञात कर सकते हैं? यदि हाँ, तो इनको पूरा कीजिए।
(a) 7, 3, -1, -5, __, __, __ .
(b) -2, -4, -6, -8, __, __, __ .
(c) 15, 10, 5, 0, __, __, __ .
(d) – 11, -8, -5, -2, __, __, __ .
हल :
(a) स्पष्टतः 7 – 4 = 3, 3 – 4 = – 1, -1 – 4 = – 5
अतः उससे आगे की संख्याएँ – 5, – 4 = -9, – 9 – 4 = -13 तथा – 13 – 4 = – 17 होंगी।
इस प्रकार पैटर्न होगा : 7, 3, -1, – 5, – 9, – 13, – 17

(b) स्पष्टतः, इसमें हमें ज्ञात हैं – 2 – 2 = – 4, – 4 – 2 = – 6, – 6 – 2 = – 8। अतः अगली संख्याएँ – 8 – 2 = -10, -10 – 2 = -12 तथा -12 – 2 = -14 होंगी। इस प्रकार पैटर्न होगा : -2, -4, -6, -8, -10, -12, -14

(c) स्पष्टतः, 15 – 5 = 10, 10 – 5 = 5, 5 – 5 = 0 | अत:, अगली संख्याएँ 0 – 5 = – 5, -5 – 5 = -10 और -10 – 5 = -15 होंगी।
इस प्रकार पैटर्न होगा : 15, 10, 5, 0, -5, -10, -15

(d) स्पष्टतः, -11 + 3 = -8, -8 + 3 = -5, -5 + 3 = -2
अतः अगली संख्याएँ -2 + 3 = 1, 1 + 3 = 4 और 4 + 3 = 7 होंगी।
इस प्रकार पैटर्न होगा : -11, -8, -5, -2, 1, 4,7

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पृष्ठ 9

प्रश्न 1.
एक ऐसा पूर्णांक युग्म लिखिए जिसके योग से हमें निम्नलिखित प्राप्त होता है :
(a) एक ऋणात्मक पूर्णांक
(b) शून्य
(c) दोनों पूर्णांकों से छोटा एक पूर्णांक
(d) दोनों पूर्णांकों में से केवल किसी एक से छोटा पूर्णांक
(e) दोनों पूर्णांकों से बड़ा एक पूर्णांक।
हल :
(a) -3 + (-4) = -3 – 4 = -7 (एक ऋणात्मक पूर्णांक)
(b) -10 + 10 = 0 (शून्य)
(c) -5 + (-3)= – 5 – 3 = -8 (यह दोनों पूर्णाकों से छोटा है)
(d) 9+ (-4)= 9 – 4 = 5(केवल 9 से छोटा पूर्णांक)
(e) 5 + 3 = 8 (दोनों पूर्णांकों से बड़ा पूर्णांक)

प्रश्न 2.
एक ऐसा पूर्णांक युग्म लिखिए जिसके अन्तर से हमें निम्नलिखित प्राप्त होता है :
(a) एक ऋणात्मक पूर्णांक
(b) शून्य
(c) दोनों पूर्णांकों से छोटा एक पूर्णाक
(d) दोनों पूर्णांकों में से केवल किसी एक से बड़ा पूर्णांक
(e) दोनों पूर्णांकों से बड़ा एक पूर्णांक
हल :
(a) -8 तथा 5
(-8) – (5) = – 8 – 5 = -13 (एक ऋणात्मक पूर्णांक)
(b) 4 तथा 4
4 – 4 = 0 (शून्य)
(c) 9 तथा 7
9 – 7 = 2 (दोनों पूर्णांकों से छोटा एक पूर्णांक)
(d) 6 तथा 2
6 – 2 = 4 (दोनों पूर्णांकों में से केवल किसी एक से बड़ा पूर्णांक)
(e) 3 तथा – 7
3 – (-7) = 3 + 7 = 10 (दोनों पूर्णांकों से बड़ा एक पूर्णाक)

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पृष्ठ 10

प्रश्न 1.
संख्या रेखा का उपयोग करते हुए, ज्ञात कीजिए :
(i) 4 × (-8)
(i) 8 × (-2)
(iii) 3 × (-7)
(iv) 10 × (-1)
हल :
(i) 4 × (-8) = (-8) + (-8) + (-8) + (-8)
इसको हम संख्या रेखा पर निम्न प्रकार से प्रदर्शित कर सकते हैं:
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इसलिए, 4 × (-8) = -32

(ii) 8 × (-2) = (-2) + (-2) + (-2) + (-2) + (-2) + (-2) + (-2) + (-2)
इसे हम निम्न प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं :
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इसलिए, 8 × (-2) = -16

(iii) 3 × (-7) = (-7) + (-7) + (-7)
इसे हम संख्या रेखा पर निम्न प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions 6
इसलिए, 3 × (-7) = -21

(iv) 10 × (-1) = (-1) + (-1) + (-1) + (-1) + (-1) + (-1)+ (-1) + (-1) + (-1) + (-1)
इसे हम संख्या रेखा पर निम्न प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं :
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions 7
इसलिए, 10 × (-1) = -10

पृष्ठ 11

प्रश्न 1.
ज्ञात कीजिए :
(i) 6 × (-19)
(ii) 12 × (-32)
(iii) 7 × (-22)
हल :
(i) 6 × (-19) = – (6 × 19) = -114
(ii) 12 × (-32) = – (12 × 32) = -384
(iii) 7 × (-22) = – (7 × 22) = -154

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पृष्ठ 12

प्रश्न 1.
ज्ञात कीजिए:
(a) 15 × (-16)
(b) 21 × (-32)
(c) (-42) × 12
(d) -55 × 15
हल :
(a) 15 × (-16) = – (15 × 16) = -240
(b) 21 × (-32) = – (21 × 32) = -672
(c) (-42) × 12 = – (42 × 12)= -504
(d) -55 × 15 = – (55 × 15) = -825

प्रश्न 2.
जाँच कीजिए कि क्या
(a) 25 × (-21) = (-25) × 21 है?
(b) (-23) × 20 = 23 × (-20) है?
इस प्रकार के पाँच और उदाहरण लिखिए।
हल :
(a) बायाँ भाग = 25 × (-21)
= – (25 × 21) = -525
दायाँ भाग = (-25) × 21
= – (25 × 21) = -525
अत: बायाँ भाग = दायाँ भाग

(b) बायाँ भाग = (-23) × 20
= – (23 × 20) = -460
दायाँ भाग = 23 × (-20)
= – (23× 20) = -460
अतः, बायाँ भाग = दायाँ भाग
इस प्रकार के पाँच उदाहरण निम्न हैं :
(i) 25 × (-17) = (-25) × 17 = – (25 × 17)
(ii) 52 × (-24)= (-52) × 24 = – (52 × 24)
(iii) 9× (-11) = (-9) × 11 = – (9× 11)
(iv) 45 × (-22) = (-45) × 22 = – (45 × 22)
(v) 65 × (-26) = (-65) × 26 = -(65 × 26)

पृष्ठ 13 – I

प्रश्न 1.
(i) (-5) × 4, से शुरू करते हुए, (-5) × (-6) ज्ञात कीजिए।
(ii) (-6) × 3 से शुरू करते हुए, (-6) × (-7) ज्ञात कीजिए।
हल :
(i) (-5) × 4 = -20
(-5) × 3 – 15 = -20 + 5
(-5) × 2 = -10 = -15 + 5
(-5) × 1 = – 5 = -10 + 5
(-5) × 0= 0 = -5 + 5
(-5) × (-1) = 5 = 0 + 5
(-5) × (-2) = 10 = 5 + 5
(-5) × (-3) = 15 = 10 + 5
(-5) × (-4) = 20 = 15 + 5
(-5) × (-5) = 25 = 20 + 5
(-5) × (-6) = 30 = 25 + 5

(ii) (6) × 3 = – 18
(6) × 2 = -12 = -18 + 6
(-6) × 1 = -6 = -12 + 6
(-6) × 0 = 0 = -6 + 6
(-6) × (-1) = 6 = 0 + 6
(-6) × (-2) = 12 = 6 + 6
(-6) × (-3) = 18 = 12 + 6
(-6) × (-4) = 24 = 18 + 6
(-6) × (-5) = 30 = 24 + 6
(-6) × (-6) = 36 = 30 + 6
(-6) × (-7) = 42 = 36 +6

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पृष्ठ 13 – II

प्रश्न 2.
ज्ञात कीजिए : (-31) × (-100), (-25) × (-72), (-83) × (-28)
हल :
(i) (-31) × (-100)= 31 × 100 = 3100
HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions 8

सोचिए, चर्चा कीजिए एवं लिखिए (पृष्ठ 15-16)

प्रश्न 1.
गुणनफल (-9) × (-5) × (-6) × (-3) धनात्मक है, जबकि गुणनफल (-9) × (-5) × 6 × (-3) ऋणात्मक है। क्यों?
हल :
(-9) × (-5) × (-6) × (-3) में ऋणात्मक पूर्णांकों की संख्या सम है। अतः इनका गुणनफल धन संख्या (पूर्णांक) होगा तथा (-9) × (-5) × 6 × (-3) में ऋणात्मक पूर्णांक विषम संख्या में है। अत: इनका गुणनफल ऋणात्मक पूर्णाक होगा।

प्रश्न 2.
गुणनफल का चिह्न क्या होगा, यदि हम निम्नलिखित को एक साथ गुणा करते हैं?
(a) आठ ऋणात्मक पूर्णांक एवं तीन धनात्मक पूर्णांक
(b) पाँच ऋणात्मक पूर्णांक और चार धनात्मक | पूर्णांक
(c) (-1) को बारह बार
(d) (-1) को 2m बार, जहाँ m एक प्राकृत संख्या
हल :
(a) क्योंकि 8 एक सम संख्या है। अत: 8 ऋणात्मक पूर्णांक तथा 3 धनात्मक पूर्णाक का गुणनफल धनात्मक राशि ही होगी।
(b) क्योंकि 5 एक विषम संख्या है। अत: 5 ऋणात्मक तथा 4 धनात्मक पूर्णाकों का गुणनफल ऋणात्मक होगा।
(c) क्योंकि 12 सम संख्या है। अतः (-1) का 12 बार गुणनफल धनात्मक होगा।
(d) क्योंकि 2m राशि सम संख्या है। अत: (-1) 2m बार गुणा करने पर गुणनफल धनात्मक प्राप्त होगा।

पृष्ठ 19 – I

प्रश्न 1.
क्या 10 × [(6) + (-2)] = 10 × 6 + 10 × (-2) है?
(ii) क्या (-15) × [(-7) + (-1)] = (-15) × (-7) + (-15) × (-1) है?
हल :
(i) हमें ज्ञात है : 10 × [(6) + (-2)] = 10 × [6 – 2]
= 10 × 4 = 40
तथा 10 × 6 + 10 × (-2) = 60 – 20 = 40
∴ 10 × [(6) + (-2)] = 10 × 6 + 10 × (-2)

(ii) हमें ज्ञात है : (-15) × [(-7) + (-1)] = (-15) × (-8) = 120
तथा (-15) × (-7) + (-15) × (-1) = 105 + 15 = 120
∴ (-15) × [(-7) + (-1)] = (-15) × (-7) + (-15) × (-1)

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पृष्ठ 19 – II

प्रश्न 2.
(i) क्या 10 × [6 – (-2)] = 10 × 6 – 10 × (-2) है?
(ii) क्या (-15) × [(-7) – (-1)] = (-15) × (-7) – (-15) × (-1) है?
हल :
(i) हमें ज्ञात है : 10 × [6-(-2)] = 10 × [6+2] = 10 × 8 = 80
तथा 10 × 6 – 10 × (-2) = 60 – (-20)
= 60 + 20 = 80
अत: 10 × [6 – (-2)] = 10 × 6 – 10 × (-2)

(ii) हमें ज्ञात है : (-15) × [(-7) – (-1)] = (-15) × (-7 + 1)
= (-15) × (-6) = 90
और – 15 × (- 7) – (-15) × (-1)
= 105 – 15 = 90
अतः (-15) × [(-7)- (-1)]
= (-15) × (-7) – (-15) × (-1)

पृष्ठ 20

प्रश्न 1.
वितरण गुण का उपयोग करते हुए (-49) × 18; (-25) × (-31); 70 × (-19) + (-1) × 70 के मान ज्ञात कीजिए।
हल :
(-49) × 18
= (-49) × (20 – 2)
= (-49) × 20 – (-49) × 2
= – 980 + 98 = – 882

(-25) × (-31)
= (-25) × [(-30) + (-1)]
= (-25) × (-30) + (-25) × (-1)
= 750 + 25 = 775

70 × (-19) + (-1) × 70
= 70 × (-19) + 70 × (-1)
= 70 × [(-19) + (-1)]
= 70 × (-20) = – 1400

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions

पृष्ठ 23

प्रश्न 1.
ज्ञात कीजिए:
(a) (-100) ÷ 5
(b) (-81) ÷ 9
(c) (-75) ÷ 5
(d) (-32) ÷ 2
हल :
(a) (-100) ÷ 5 = -20
(b) (-81) ÷ 9 = -9
(c) (-75) ÷ 5 = -15
(d) (-32) ÷ 2 = -16

पृष्ठ 24 – I

प्रश्न 1.
ज्ञात कीजिए:
(a) 125 ÷ (-25)
(b) 80 ÷ (-5)
(c) 64 ÷ (-16)
हल :
(a) 125 ÷ (-25) = – 5
(b) 80 ÷ (-5) = – 16
(c) 64 ÷ (-16) = – 4

पृष्ठ 24 – II

प्रश्न 2.
ज्ञात कीजिए :
(a) (-36) ÷ (-4)
(b) -201) ÷ (-3)
(c) (-325) ÷ (-13)
हल :
(a) (-36) ÷ (-4)
= 36 ÷ 4
= 9

(b) (-201) ÷ (-3)
= 201 ÷ 3
= 67

(c) (-325) ÷ (-13)
= 325 ÷ 13
= 25

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक InText Questions

पृष्ठ 25

प्रश्न 1.
क्या किसी भी पूर्णांक a के लिए
(i) 1 ÷ a = 1 है?
(ii) a ÷ (-1) = – a है?
a के विभिन्न मानों के लिए इनकी जाँच कीजिए।
हल :
(i) माना a = 4
∴ 1 ÷ a = 1 ÷ 4 = \(\frac {1}{4}\) ≠ 1
अत: 1 ÷ a = 1 असत्य है।

(ii) माना a = 8
∴ a ÷ (-1) = 8 ÷ (-1) = -8
अत: a ÷ (-1) = -a सत्य है।

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HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1.4

Haryana State Board HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1.4

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से प्रत्येक का मान ज्ञात कीजिए:
(a) (-30) ÷ 10
(b) 50 ÷ (-5)
(c) (-36) ÷ (-9)
(d) (-49) ÷ (49)
(e) 13 ÷ [(-2) + 1]
(f) 0 ÷ (-12)
(g) (-31) ÷ (-30) + (-1)]
(h) [(-36) ÷ 12] ÷ 3
(i) [(-6) + 5] ÷ (-2) + 1]
हल :
(a) (-30) ÷ 10 = – 3
(b) 50 ÷ (-5) = – 10
(c) (-36) ÷ (-9) = 36 ÷ 9 = 4
(d) (-49) ÷ (49) = – 1
(e) 13 ÷ [(-2) + 1] = 13 ÷ (-2 + 1)
= 13 ÷ (-1) = – 13
(f) 0 ÷ (-12) = 0
(g) (-31) ÷ [(-30) + (-1)]
= (-31) ÷ (-31) = 1
(h) [(-36) ÷ 12] ÷ 3 = (-3) ÷ 3 = -1
(i) [(-6) + 5] ÷ [(-2) + 1]
= (-6 + 5) ÷ (-2 + 1)
= (-1) ÷ (-1) = 1

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प्रश्न 2.
a, b और c के निम्नलिखित मानों में से प्रत्येक के लिए, a ÷ (b + c) ≠ (a ÷ b) + (a ÷ c) को सत्यापित कीजिए
(a) a = 12, b = -4, c = 2
(b) a = (-10), b = 1, c = 1
हल :
(a) a ÷ (b + c)
= 12 ÷ [(-4) + 2]
= 12 ÷ (-4 + 2)
= 12 ÷ (-2) = – 6
तथा (a ÷ b) + (a ÷ c)
= [12 ÷ (-4)] + [12 ÷ 2]
= – 3 + 6 = 3
अत: a ÷ (b + c) ≠ (a ÷ b) + (a ÷ c)

(b) a ÷ (b + c)
= (-10) ÷ (1 + 1)
= (-10) ÷ 2 = – 5
तथा (a ÷ b) + (a ÷ c)
= [(-10) ÷ 1] + [(-10) ÷ 1]
= (-10) + (-10) = – 20
∴ a ÷ (b + c) ≠ (a ÷ b) + (a ÷ c)

प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
हल :
(a) 369 ÷ 1 = 369
(b) (-75) ÷ 75 = – 1
(c) (-206) ÷ (-206) = 1
(d) – 87 ÷ (-1) = 87
(e) (-87) ÷ 1 = – 87
(f) (-48) ÷ 48 = – 1
(g) 20 ÷ (-10) = – 2
(h) (-12) ÷ (4) = -3

प्रश्न 4.
पाँच ऐसे पूर्णांक युग्म (a, b) लिखिए, ताकि a ÷ b = – 3 हो। ऐसा एक युग्म (6, – 2) है, क्योंकि 6 ÷ (-2) = (-3) है।
हल :
5 पूर्णांक युग्म (a, b) जहाँ, a ÷ b = – 3 है, इस प्रकार हैं:
(-9, 3), (9, -3), (12, -4), (-12, 4) तथा (15, -5)
नोट – इस प्रकार के और पूर्णांक युग्म भी प्राप्त किए जा सकते हैं।

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प्रश्न 5.
दोपहर 12 बजे तापमान शून्य से 10°C ऊपर था। यदि यह आधी रात तक 2°C प्रति घण्टे की दर से कम होता है, तो किस समय तापमान शून्य से 8°C नीचे होगा? आधी रात को तापमान क्या होगा?
हल :
तापमान में अन्तर (+ 10)°C तथा (-8)°C = [10 – (-8)]°C = (10 + 8)°C = 18°C
इसलिए, तापमान में कुल कमी = 18°C
प्रत्येक 1 घण्टे में तापमान में गिरावट = 2°C
∴ तापमान शून्य से 10°C ऊपर से 8°C नीचे तक जाने के लिए समय घण्टों में
\(\frac {कुल कमी}{1 घण्टे में तापान्तर}\) = \(\frac {18}{2}\) = 9
अतः 9 बजे रात्रि को तापमान शून्य से 8°C नीचे होगा। उत्तर
आधी रात को तापमान = दोपहर 12 बजे तापमान – (2 × 12)°C
= 10°C – (2 × 12)°C .
= 10°C – 24°C = – 14°C उत्तर

प्रश्न 6.
एक कक्षा टेस्ट में, प्रत्येक सही उत्तर के लिए (+ 3) अंक दिए जाते हैं और प्रत्येक गलत उत्तर के लिए (-2) अंक दिए जाते हैं और किसी प्रश्न को हल करने का प्रयत्न नहीं करने पर कोई अंक नहीं दिया जाता है।
(i) राधिका ने 20 अंक प्राप्त किए। यदि उसके 12 उत्तर सही पाए जाते हैं तो उसने कितने प्रश्नों का उत्तर गलत दिया है?
(ii) मोहिनी टेस्ट में (-5) अंक प्राप्त करती है, जबकि उसके 7 उत्तर सही पाए जाते हैं। उसने कितने प्रश्नों का उत्तर गलत दिया है?
हल :
(i) राधिका के सही 12 प्रश्नों के (+3) के हिसाब से कुल अंक = 3 × 12 = 36 अंक
राधिका ने प्राप्त किए = 20
∴ अंक कटे (गलत प्रश्नों के लिए)
= 20 – 36 = – 16
1 गलत प्रश्न के उत्तर के लिए अंक = – 2
∴ गलत प्रश्नों की संख्या
= (-16) ÷ (-2) = 8 उत्तर

(ii) मोहिनी के सही 7 प्रश्नों के (+3) के हिसाब से कुल अंक = 3 × 7 = 21
मोहिनी ने प्राप्त किए = – 5
1 गलत प्रश्न के लिए अंक = (-2)
∴ मोहिनी के गलत प्रश्नों के अंक कटे
= – 5 – 21 = – 26
∴ मोहिनी के गलत प्रश्नों की संख्या
= (-26) ÷ (-2) = 13 उत्तर

HBSE 7th Class Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1.4

प्रश्न 7.
एक उत्थापक किसी खान कूपक में 6m प्रति मिनट की दर से नीचे जाता है। यदि नीचे जाना भूमि तल से 10 m ऊपर से शुरू होता है, तो – 350 m पहुंचने में कितना समय लगेगा?
हल :
दो बिन्दुओं की स्थिति में ऊँचाइयों का अन्तर
= 10 m – (- 350 m) = 360 m
नीचे उतरने की दर = 6 m प्रति मिनट
∴ समय लगा = (360 ÷ 6) मिनट
= 60 मिनट = 1 घण्टा

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HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Exercise 4.3

प्रश्न 1.
यदि निम्नलिखित द्विघात समीकरणों के मूलों का अस्तित्व हो तो इन्हें पूर्ण वर्ग बनाने की विधि द्वारा ज्ञात कीजिए-
(i) 2x2 – 7x + 3 = 0
(ii) 2x2 + x – 4= 0
(iii) 4x2 + 4√3 x + 3 = 0
(iv) 2x2 + x + 4= 0
हल:
(i) यहाँ पर,
2x2 – 7x + 3 = 0
a = 2, b = -7, c = 3
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (-7)2 – 4(2)(3)
= 49 -24 = 25 > 0
∵ मूलों का अस्तित्व है।
अब 2x2 – 7x + 3 = 0
दोनों ओर 2 से भाग करने पर
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 1
अतः दी गई द्विघात समीकरण के अभीष्ट मूल = 3 व \(\frac{1}{2}\) उत्तर

(ii) यहाँ पर,
2x2 + x – 4 = 0 .
a = 2, b = 1,c = -4
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (1)2 – 4(2)(-4)
= 1 + 32 = 33 > 0
∴ मूलों का अस्तित्व है।
अब 2x2 +x-4 = 0
दोनों ओर 2 से भाग करने पर,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 2
अतः दी गई द्विघात समीकरण के अभीष्ट मूल = \(\frac{\sqrt{33}-1}{4}\) व \(\frac{-(\sqrt{33}+1)}{4}\)

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3

(iii) यहाँ पर,
4x2 + 4√3x + 3 = 0
a = 4, b = 4√3,c = 3
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (4√3)2-4(4)(3)
= 48 – 48 = 0
∴ मूलों का अस्तित्व है।
4x2 +4√3x + 3 = 0
(2x)2 + 2 x 2x x √3 + (√3)2 = 0
(2x + √3 )2 = 0
2x + √3 = 0 और 2x + √3 = 0
x = \(\) और x = \(\)
अतः दी गई समीकरण के अभीष्ट मूल =

(iv) यहाँ पर,
2x2 + x + 4 = 0
a = 2, b = 1,c = 4
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (1)2 – 4(2)(4)
= 1 – 32 = -31 <0
∴ मूलों का अस्तित्व नहीं है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित द्विघात समीकरणों के मूल, द्विघाती सूत्र का उपयोग करके ज्ञात कीजिए-
(i) 2x2 – 7x + 3 = 0
(ii) 2x2 + x – 4 = 0
(iii) 4x2 + 4√3x + 3 = 0
हल:
(i) यहाँ पर,
2x√ – 7x + 3 = 0
a= 2, b =-7,c = 3
द्विघाती सूत्र का उपयोग करके हम पाते हैं-
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 3
अतः दी गई द्विघात समीकरण के मूल = 3 व = \(\frac{1}{2}\)

(ii) यहाँ पर,
2x2 + x – 4 = 0
a = 2, b = 1,c = -4
द्विघाती सूत्र का उपयोग करके हम पाते हैं-
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 4

(iii) यहाँ पर,
4x2 + 4√3 x + 3 = 0
a = 4, b = 4√3,c = 3
द्विघाती सूत्र का उपयोग करके हम पाते हैं,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 5

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3

प्रश्न 3.
निम्नलिखित समीकरणों के मूल ज्ञात कीजिए-
(i) x – \(\frac{1}{x}\) = 3 x ≠ 0
(ii) \(\frac{1}{x+4}-\frac{1}{x-7}=\frac{11}{30}\) x ≠ -4, 7
हल:
(i) यहाँ पर, x – \(\frac{1}{x}\) = 3
x2 – 1 = 3x (दोनों ओर x से गुणा करने पर)
x2 – 3x – 1 = 0
a = 1, b = -3,c = -1
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (-3)2 – 4(1)(-1)
= 9 + 4 = 13>0
∴ दी गई समीकरण के मूल वास्तविक हैं।
अब द्विघाती सूत्र के उपयोग से,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 6

(ii) यहाँ पर, \(\frac{1}{x+4}-\frac{1}{x-7}=\frac{1i}{30}\)
30(x -7)-30(x + 4) = 11(x + 4)(x-7)
(दोनों ओर 30(x + 4)(x – 7) से गुणा करने पर)
30x – 210 – 30x – 120 = 11(x2 – 3x – 28)
-330 = 11(x2 – 3x – 28)
x2 – 3x – 28 = -30
x2 – 3x + 2 = 0
a = 1, b = -3, c = 2
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (-3)2 – 4(1)(2)
= 9 – 8 = 1 > 0
∴ दी गई समीकरण के मूल वास्तविक हैं।
अब द्विघाती सूत्र के उपयोग से,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 7
अतः दी गई समीकरण के अभीष्ट मूल = 2 व 1

प्रश्न 4.
3 वर्ष पूर्व रहमान की आयु (वर्षों में) का व्युत्क्रम और अब से 5 वर्ष पश्चात् आयु के व्युत्क्रम का योग उसकी वर्तमान आयु ज्ञात कीजिए।
हल :
माना
रहमान की वर्तमान आयु = x वर्ष
तो 3 वर्ष पूर्व रहमान की आयु = (x – 3) वर्ष
तो 5 वर्ष पश्चात् रहमान की आयु = (x + 5) वर्ष
प्रश्नानुसार,
\(\frac{1}{x-3}+\frac{1}{x+5}=\frac{1}{3}\)
3(x + 5) + 3(x – 3) = (x-3)(x +5)
(दोनों ओर 3(x – 3)(x + 5) से गुणा करने पर)
3x + 15 + 3x-9 = x2 – 3x + 5x – 15
6x + 6 = x2 + 2x – 15
x2 + 2x – 6x – 15 – 6 = 0
x2 – 4x – 21 = 0
a = 1, b = -4,c = -21
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (-4)2 – 4(1)(-21)
= 16 + 84 = 100 >0
∵ दी गई समीकरण के मूल वास्तविक हैं।
अब द्विघाती सूत्र के उपयोग से,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 8
परंतु x =-3 असंभव है, क्योंकि आयु ऋणात्मक नहीं हो सकती,
अतः रहमान की वर्तमान आयु = 7 वर्ष

प्रश्न 5.
एक क्लास टेस्ट में शेफाली के गणित और अंग्रेजी में प्राप्त किए गए अंकों का योग 30 है। यदि उसको गणित में 2 अंक अधिक और अंग्रेजी में 3 अंक कम मिले होते, तो उनके अंकों का गुणनफल 210 होता। उसके द्वारा दोनों विषयों में प्राप्त किए अंक ज्ञात कीजिए।
हल:
माना क्लास टेस्ट में शेफाली द्वारा गणित में प्राप्त अंक = x
तो क्लास टेस्ट में शेफाली द्वारा अंग्रेजी में प्राप्त अंक = (30 -x)
प्रश्नानुसार,
(x + 2)(30 – x – 3) = 210
(x + 2)(27 – x) = 210
27x – x2 + 54 – 2x – 210 = 0
-x2 + 25x – 156 = 0
x2 – 25x + 156 = 0 (दोनों ओर -1 से गुणा करने पर)
x2 – 13x – 12x + 156 = 0
x(x – 13)- 12(x – 13) = 0
(x – 13)(x – 12) = 0
x – 13 = 0 या x – 12 = 0
x = 13 या x = 12
अतः शेफाली द्वारा गणित में प्राप्त अंक 13 तो अंग्रेजी में प्राप्त अंक = 30 – 13 = 17
तथा शेफाली द्वारा गणित में प्राप्त अंक 12 तो अंग्रेजी में प्राप्त अंक == 30 – 12 = 18

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3

प्रश्न 6.
एक आयताकार खेत का विकर्ण उसकी छोटी भुजा से 60 मी० अधिक लंबा है। यदि बड़ी भुजा छोटी भुजा से 30 मी० अधिक हो, तो खेत की भुजाएँ ज्ञात कीजिए।
हल :
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3 9
माना आयताकार खेत की छोटी भुजा = x मी०
तो आयताकार खेत की बड़ी भुजा = (x + 30) मी०
आयताकार खेत का विकर्ण = (x + 60) मी०
हम जानते हैं कि किसी आयताकार खेत के लिए,
x2 + (x + 30)2 = (x + 60)2
x2 + x2 + 60x + 900 = x2 + 120x + 3600
2x2 – x2 + 60x – 120x + 900 – 3600 = 0
x2 – 60x – 2700 = 0
x2 – 90x + 30x – 2700 = 0
x(x – 90) + 30(x – 90) = 0
(x – 90)(x + 30) = 0
x – 90 = 0 या x + 30 = 0
x = 90 या x = -30
परंतु x = -30 असंभव है, क्योंकि भुजाएँ ऋणात्मक नहीं हो सकती।
अतः आयताकार खेत की छोटी भुजा = 90 मी०
तथा आयताकार खेत की बड़ी भुजा = 90 + 30 = 120 मी०

प्रश्न 7.
दो संख्याओं के वर्गों का अंतर 180 है। छोटी संख्या का वर्ग बड़ी संख्या का आठ गुना है। दोनों संख्याएँ ज्ञात कीजिए।
हल:
माना छोटी संख्या = x
तथा बड़ी संख्या = y
प्रश्नानुसार,
x2 = 8y …..(1)
(y)2 – (x)2 = 180 ……(ii)
समीकरण (i) व (ii) से प्राप्त होता है,
y2 – 8y – 180 = 0
y2 – 18y + 10y – 180 = 0
y(y – 18) + 10(y – 18) = 0
(y – 18)(y + 10) = 0
y – 18 = 0 या y + 10 = 0
y = 18 या y = -10
परंतु y = -10 असंभव है, क्योंकि समीकरण (i) अनुसार किसी संख्या का वर्ग ऋणात्मक नहीं हो सकता।
y = 18
y का मान समीकरण (i) में रखने पर,
x2 = 8 x 18 = 144
x = ±12
अतः अभीष्ट संख्याएँ = 18 व 12 अथवा 18 व -12

प्रश्न 8.
एक रेलगाड़ी एक समान चाल से 360km की दूरी तय करती है। यदि यह चाल 5km/h अधिक होती, तो वह उसी यात्रा में 1 घंटा कम समय लेती। रेलगाड़ी की चाल ज्ञात कीजिए।
हल :
माना रेलगाड़ी की सामान्य चाल = x km/h
रेलगाड़ी द्वारा चली गई कुल दूरी = 360km
रेलगाड़ी द्वारा सामान्य चाल से 360km दूरी तय करने में लिया गया समय = \(\frac{360}{x} \mathrm{~h}\)
रेलगाड़ी द्वारा बढ़ी चाल से 360km दूरी तय करने में लिया गया समय = \(\frac{360}{x+5} \mathrm{~h}\)
प्रश्नानुसार,
\(\frac{360}{x}-\frac{360}{x+5}\) = 1
360(x + 5) – 360x = x(x + 5) (दोनों ओर x(x + 5) से गुणा करने पर)
360x + 1800 – 360x = x2 + 5x
x2 + 5x – 1800 = 0
x2 + 45x – 40x – 1800 = 0
x(x + 45) – 40(x + 45) = 0
(x + 45)(x – 40) = 0
x+ 45 = 0 या x – 40 = 0
x = -45 या x = 40
परंतु x = – 45 असंभव है, क्योंकि चाल ऋणात्मक नहीं हो सकती,
अतः रेलगाड़ी की सामान्य चाल = 40km/h

प्रश्न 9.
दो पानी के नल एक-साथ एक हौज को 9\(\frac{3}{8}\) घंटों में भर सकते हैं। बड़े व्यास वाला नल हौज को भरने में, कम व्यास वाले नल से 10 घंटे कम समय लेता है। प्रत्येक द्वारा अलग से हौज को भरने के समय ज्ञात कीजिए।
हल :
माना कम व्यास वाला नल दिए गए हौज को भर सकता है = x घंटे में
तो अधिक व्यास वाला नल दिए गए हौज को भर सकता है = (x – 10) घंटे में
कम व्यास वाले नल का \(\frac{75}{8}\) घंटे का काम = \(\frac{75}{8 x}\)
अधिक व्यास वाले नल का \(\frac{75}{8}\) घंटे का काम = \(\frac{75}{8(x-10)}\)
प्रश्नानुसार,
\(\frac{75}{8 x}+\frac{75}{8(x-10)}\) = 1
(दोनों ओर 8x(x-10) से गुणा करने पर)
75(x – 10) + 75x = 8x(x – 10) .
75x – 750 + 75x = 8x2 – 80x
8x2 – 80x – 150x + 750 = 0
8x2 – 230x + 750 = 0
8x2 – 200x -30x + 750 = 0
8x(x – 25) – 30(x – 25) = 0
(x – 25)(8x – 30) = 0
x – 25 = 0 या 8x – 30 = 0
x = 25 या x = \(\frac{30}{8}=\frac{15}{4}\)
परंतु x = \(\frac{15}{4}\) असंभव है, क्योंकि इससे अधिक व्यास वाला समय ऋणात्मक हो जाएगा।
अतः कम व्यास वाला नल दिए गए हौज को भर सकता है = 25 घंटों में
और अधिक व्यास वाला नल दिए गए हौज को भर सकता है = (25 – 10) घंटों में = 15 घंटों में

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.3

प्रश्न 10.
मैसूर और बैंगलोर के बीच के 132km यात्रा करने में एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी, सवारी गाड़ी से 1 घंटा समय कम लेती है (मध्य के स्टेशनों पर ठहरने का समय ध्यान में न लिया जाए)। यदि एक्सप्रेस रेलगाड़ी की औसत चाल, सवारी गाड़ी की औसत चाल से 11km/h अधिक हो, तो दोनों रेलगाड़ियों की औसत चाल ज्ञात कीजिए।
हल :
माना सवारी गाड़ी की औसत चाल = x km/h
तो एक्सप्रेस रेलगाड़ी की औसत चाल = (x + 11)km/h
सवारी गाड़ी द्वारा 132km दूरी तय करने में लिया गया समय = \(\frac{132}{x}\)h
एक्सप्रेस रेलगाड़ी द्वारा 132km दूरी तय करने में लिया गया समय = \(\frac{132}{x+11} \mathrm{~h}\)
प्रश्नानुसार,
\(\frac{132}{x}-\frac{132}{x+11}\) = 1
132(x + 11)- 132x = x(x + 11) (दोनों ओर x(x + 11) से गुणा करने पर)
132x + 1452 – 132x = x2 + 11x
x2 + 11x- 1452 = 0
x2 + 44x – 33x – 1452 = 0
x(x + 44)-33(x + 44) = 0
(x + 44)(x – 33) = 0
x + 44 = 0 या x – 33 = 0
x = -44 या x = 33
परंतु x = -44 असंभव है, क्योंकि चाल ऋणात्मक नहीं हो सकती।
अतः सवारी गाड़ी की औसत चाल = 33km/h
तथा एक्सप्रेस रेलगाड़ी की औसत चाल = (33 + 11) = 44km/h

प्रश्न 11.
दो वर्गों के क्षेत्रफलों का योग 468m है। यदि उनके परिमापों का अंतर 24m हो, तो दोनों वर्गों की भुजाएँ ज्ञात कीजिए।
हल:
माना पहले वर्ग की भुजा = x मी० व दूसरे वर्ग की भुजा =y मी०
तो पहले वर्ग का परिमाप = 4x मी० व दूसरे वर्ग का परिमाप = 4y मी०
तथा पहले वर्ग का क्षेत्रफल = x2 वर्ग मी० व दूसरे वर्ग का क्षेत्रफल = y2 वर्ग मी०
प्रश्नानुसार,
4x – 4y = 24
x – y = 6
x = 6 +y
x2 + y2 = 468
समीकरण (i) के (x) का मान समीकरण (ii) में रखने पर,
(6 + y)2 + y2 = 468
⇒ 36 + y2 + 12y + y2 – 468 = 0
⇒ 2y2 + 12y – 432 = 0
⇒ y2 + 6y – 216 = 0
⇒ y2 + 18y – 12y – 216 = 0
⇒ y(y + 18) – 12(y + 18) = 0
⇒ (y + 18)(y – 12) = 0
⇒ y + 18 = 0 या y- 12 = 0
⇒ y = -18 या y = 12
परंतु y = -18 असंभव है, क्योंकि भुजा ऋणात्मक नहीं हो सकती।
∴ y = 12 ⇒ x = 6 + 12 = 18
अतः पहले वर्ग की भुजा = 18 मी०
दूसरे वर्ग की भुजा = 12 मी०

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HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.4

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Exercise 4.4

प्रश्न 1.
निम्नलिखित द्विघात समीकरणों के मूलों की प्रकृति ज्ञात कीजिए। यदि मूलों का अस्तित्व हो तो उन्हें ज्ञात कीजिए
(i) 2x2 – 3x + 5 = 0
(ii) 3x2 – 4√3x + 4 = 0
(iii) 2x2 – 6x + 3 = 0
हल :
(i) यहाँ पर,
2x2 – 3x + 5 = 0
a = 2, b = – 3,c = 5
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (-3)2 – 4(2)(5)
= 9 – 40 =-31 <0.
अतः दिए गए द्विघात समीकरण के वास्तविक मूलों का अस्तित्व नहीं है।

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.4

(ii) यहाँ पर,
3x2– 4√3x + 4 = 0
a = 3, b = -4√3,c = 4
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (-4√3)2-4(3)(4)
= 48 – 48 = 0
अतः दिए गए द्विघात समीकरण के दो बराबर वास्तविक मूल हैं।
अब द्विघाती सूत्र के उपयोग से,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.4 1
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.4 2

(iii) यहाँ पर,
2x2 – 6x + 3 = 0.
a = 2, b = -6, c = 3
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (-6)2 – 4(2)(3)
= 36 – 24 = 12 > 0
अतः दिए गए द्विघात समीकरण के दो भिन्न वास्तविक मूल हैं। अब द्विघाती सूत्र की सहायता से,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.4 3

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रत्येक द्विघात समीकरण में k का ऐसा मान ज्ञात कीजिए कि उसके दो बराबर मूल हों।
(i) 2x2 + kx + 3 = 0
(ii) ke(x – 2) + 6 = 0
हल :
(i) यहाँ पर,
2x2 + kx + 3 = 0
a = 2, b = k, c = 3
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (k)2 – 4(2)(3)
= K2 – 24
हम जानते हैं कि द्विघात समीकरण के दो बराबर वास्तविक मूलों के लिए आवश्यक है कि,
b2 – 4ac = 0
K2 – 24 = 0
k2 = 24
k = \(\pm \sqrt{24}=\pm \sqrt{2 \times 2 \times 6}\)
= \(\pm 2 \sqrt{6}\)
अतः k = ±2√6 के लिए दिए गए द्विघात समीकरण के दो बराबर मूल होंगे।

(ii) यहाँ पर,
kx(x – 2) + 6 = 0
kx2 – 2 kx + 6 = 0
a = k, b = -2k, c = 6
विविक्तकर = b2 – 4ac = 0
= (-2k)2 – 4(k)(6) = 0
= 4k2 – 24k
हम जानते हैं कि द्विघात समीकरण के दो बराबर वास्तविक मूलों के लिए आवश्यक है कि,
b2 – 4ac = 0
4k2 – 24k = 0
4k(k – 6) = 0
4k = 0 या k – 6 = 0
k= 0 या k = 6
परंतु k = 0 असंभव है।
अतः k = 6 के लिए दिए गए द्विघात समीकरण के दो बराबर मूल होंगे।

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.4

प्रश्न 3.
क्या एक ऐसी आम की बगिया बनाना संभव है जिसकी लंबाई, चौड़ाई से दुगुनी हो और उसका क्षेत्रफल 800m- हो? यदि है, तो उसकी लंबाई और चौड़ाई ज्ञात कीजिए।
हल:
माना आम की बगिया की चौड़ाई = x मी०
तो आम की बगिया की लंबाई = 2x मी०
अतः आम की बगिया का क्षेत्रफल = लंबाई x चौड़ाई
= 2x x x वर्ग मी०
= 2x2 वर्ग मी०
प्रश्नानुसार,
2x2 = 800
x2 = 400
x = \(\sqrt{400}\) = ± 20
परंतु x = -20 असंभव है क्योंकि भुजाएँ ऋणात्मक नहीं होती।
अतः आम की बगिया की लंबाई = 2 x 20 = 40 मी०
उत्तर तथा आम की बगिया की चौड़ाई = 20 मी०

प्रश्न 4.
क्या निम्न स्थिति संभव है? यदि है तो उनकी वर्तमान आयु ज्ञात कीजिए। दो मित्रों की आयु का योग 20 वर्ष है। चार वर्ष पूर्व उनकी आयु (वर्षों में) का गुणनफल 48 था।
हल :
माना एक मित्र की वर्तमान आयु = x वर्ष ।
तो दूसरे मित्र की वर्तमान आयु = (20 -x) वर्ष
प्रश्नानुसार,
(x – 4)(20 – x – 4) = 48
(x – 4)(16 – x) = 48
16x – x2 – 64 + 4x = 48 -x2 + 20x -64-48 = 0
-x2 + 20x – 112 = 0
x2 – 20x + 112 = 0 (दोनों ओर -1 से गुणा करने पर)
a = 1, b = -20,c = 112
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (-20)2 – 4(1)(112)
= 400 – 448 = -48 <0
इस द्विघात समीकरण के मूल वास्तविक नहीं है,
अतः दी गई स्थिति संभव नहीं है।

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.4

प्रश्न 5.
क्या परिमाप 80m तथा क्षेत्रफल 400m- के एक पार्क को बनाना संभव है? यदि है, तो उसकी लंबाई और चौड़ाई ज्ञात कीजिए।
हल :
यहाँ पर
पार्क का परिमाप = 80 मी०
तो पार्क का अर्धपरिमाप = 80/2 = 40 मी०
माना पार्क की लंबाई = x मी०
तो पार्क की चौड़ाई = (40-x) मी०
पार्क का क्षेत्रफल = 400 मी०2
x(40-x) = 400
40x-x2 = 400
x2 – 40x + 400 = 0
a = 1, b = -40, c = 400
विविक्तकर = b2 – 4ac
= (40)2 – 4(1)(400)
= 1600-1600 = 0
इस द्विघात समीकरण के दो बराबर वास्तविक मूल संभव हैं।
अतः दी गई स्थिति संभव है।
अब द्विघाती सूत्र के उपयोग से
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 4 द्विघात समीकरण Ex 4.4 4
= 20 व 20
अतः पार्क की लंबाई = 20 मी०
तथा पार्क की चौड़ाई = 40 – 20 = 20 मी०

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत बड़ी होती है। प्रत्येक क्रेता या विक्रेता कुल बिक्री का बहुत ही छोटा भाग खरीदता अथवा बेचता है।

2. समरूप वस्तु पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में सभी फर्मे एक प्रकार की वस्तु का ही उत्पादन करती हैं। सभी विक्रेताओं द्वारा बेची गई वस्तुएँ, गुण, आकार व रंग-रूप से एक-समान होती हैं।

3. पूर्ण स्वतंत्रता पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार के अंतर्गत किसी भी फर्म को उद्योग में प्रवेश करने तथा उसे छोड़कर बाहर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। जब उद्योग में लाभ हो रहे हों, तो नई फर्मे उद्योग में प्रवेश कर सकती हैं और जब हानि की अवस्था हो, तो कुछ फर्मे उद्योग छोड़कर जा सकती हैं।

4. एक-समान कीमत–पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में सभी फर्मे मूल्य स्वीकारक होती हैं। अतः समग्र बाज़ार में उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत ही प्रचलित रहती है। एक क्रेता या विक्रेता कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।

5. पूर्ण ज्ञान-पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाज़ार का पूर्ण ज्ञान होता है।

6. विक्रय लागत का अभाव-पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तुएँ समरूप होती हैं, इसलिए एक फर्म को वस्तु के प्रचार, विज्ञापन आदि पर व्यय करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में बिक्री और परिवहन लागतें शून्य होती हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 2.
एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा का गुणनफल है। अर्थात्
फर्म की कुल संप्राप्ति = बिक्री की मात्रा – बाज़ार कीमत
अथवा
TR = q x p
यहाँ TR = कुल संप्राप्ति, q = बिक्री की मात्रा तथा p = कीमत।

प्रश्न 3.
कीमत रेखा क्या है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 1
कीमत रेखा से अभिप्राय पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में एक फर्म के माँग वक्र से है जो x-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा होती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र में PD रेखा वस्तु की माँग रेखा है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि OP कीमत पर माँग की मात्रा OQ या OQ1 कुछ भी हो सकती है। अन्य शब्दों में, पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म Q Q1 की औसत व सीमांत संप्राप्ति वक्र OX-अक्ष के समानांतर होती है।

प्रश्न 4.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होता है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरता है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा इसलिए होता है क्योंकि बाज़ार कीमत स्थिर होती है अर्थात् कुल संप्राप्ति समान दर से बढ़ती है। कुल संप्राप्ति वक्र उद्गम से होकर इसलिए गुजरता है क्योंकि शून्य बिक्री की मात्रा पर कुल संप्राप्ति भी शून्य होती है और बाद में AR = P स्थिर रहने के कारण कुल संप्राप्ति में वृद्धि समान दर पर होती है।
जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 2

प्रश्न 5.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति सदैव बराबर होती है क्योंकि बेची गई प्रत्येक इकाई के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 3

प्रश्न 6.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं क्योंकि बेची गई हर अतिरिक्त इकाई की कीमत एक-समान होती है।
अर्थात्
सीमांत संप्राप्ति = औसत संप्राप्ति = कीमत

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्ते हैं?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की शर्ते निम्नलिखित हैं-

  • बाज़ार कीमत (p) = अल्पकालीन सीमांत लागत।
  • अल्पकालीन दीर्घकालीन सीमांत लागत घट नहीं रही है।
  • बाज़ार कीमत ≥ औसत परिवर्ती लागत अथवा दीर्घकालीन औसत लागत।

प्रश्न 8.
क्या प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता है, यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है। यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम है, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उसके निर्गत का स्तर सकारात्मकं हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है कि फर्म का उद्देश्य हानि को न्यूनतम करना भी होता है। यदि बाजार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है तो उत्पादन व बिक्री से हानि अधिक होगी। इसलिए उत्पादन बंद करना अधिक लाभदायक होगा। यदि बाजार कीमत सीमांत लागत से कम, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उत्पादन जारी रखने पर फर्म को हानि कम होगी। एक फर्म का अधिकतम लाभ तभी होगा जब बाज़ार कीमत (p) सीमांत लागत (MC) के बराबर होगी।

प्रश्न 9.
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 4
एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है यदि सीमांत लागत घट रही हो। अधिकतम लाभ की आवश्यक शर्त यह है कि बाज़ार कीमत (p) सीमांत लागत (MC) से अधिक हो या बराबर हो। इस प्रकार बाज़ार कीमत के MC से कम होने पर लाभ नहीं होगा। यदि एक फर्म बाज़ार कीमत की तुलना में घटती हुई सीमांत लागत पर उत्पादन करती है तो फर्म को लाभ होगा. परंत अधिकतम लाभ नहीं होगा। अधिकतम लाभ के लिए यह आवश्यक है कि बाज़ार कीमत (p) और सीमांत लागत (MC) बराबर हो। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में फर्म की सीमांत लागतं E1 और E के बीच बाज़ार कीमत से कम है जो लाभ की स्थिति दर्शाता है, परंतु फर्म को अधिकतम लाभ E बिंदु पर प्राप्त होगा।

प्रश्न 10.
क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 5
अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी, क्योंकि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। यदि फर्म ऐसी स्थिति में उत्पादन बंद कर देती है, तो उसकी हानि स्थिर लागत के बराबर होगी। यदि फर्म उत्पादन जारी रखती है, तो उसकी हानि स्थिर लागत और कीमत पर औसत परिवर्ती लागत के आधिक्य के योग के बराबर होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में औसत परिवर्ती लागत की तुलना में कीमत कम है फिर भी फर्म उत्पादन करेगी क्योंकि B बिंदु पर उसकी हानि स्थिर लागत के बराबर है। अन्य किसी बिंदु पर फर्म की हानि A, B, E, P से अधिक होगी।

प्रश्न 11.
क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है तो दीर्घकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी। यदि एक फर्म इस स्तर पर उत्पादन करती है तो उसकी कुल लागत कुल संप्राप्ति से अधिक होगी, जिसके फलस्वरूप फर्म को हानि उठानी पड़ेगी। इसलिए दीर्घकाल में फर्म की कीमत औसत लागत के बराबर या अधिक होनी चाहिए। दीर्घकाल में एक फर्म बाज़ार छोड़कर जा सकती है। अतः वह हानि उठाना पसंद नहीं करेगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 12.
अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होती है?
उत्तर:
अल्पकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

अल्पकालीन पूर्ति वक्र-हम जानते हैं कि अल्पकाल में AVC की भरपाई होनी अनिवार्य है अन्यथा उत्पादन बंद हो जाएगा। हम यह भी जानते हैं कि अल्पकाल में कीमत, सीमांत लागत के बराबर होती है। इसलिए SMC वक्र ही फर्म का पूर्ति वक्र होता है। तथापि SMC वक्र का केवल उठता हुआ भाग ही पूर्ति वक्र होता है, इसका सारा भाग नहीं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 6
SMC के बढ़ते हुए भाग का केवल वही हिस्सा किसी फर्म का पूर्ति वक्र है जो AVC के ऊपर स्थित है। इसलिए जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में मोटी रेखा द्वारा दिखाया गया है। SMC, E बिंदु के पहले से ही बढ़ना शुरू कर देती है, परंतु पूर्ति वक्र केवल बिंदु E, AVC का न्यूनतम बिंदु से आरंभ होता है। यदि यह बिंदु F से आरंभ हो, तो SMC का FE हिस्सा पूर्ति वक्र का हिस्सा नहीं हो सकता, क्योंकि यह AVC से कम है।

प्रश्न 13.
दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
दीर्घकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत का स्तर शून्य होता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 7
दीर्घकालीन पूर्ति वक्र दीर्घकालीन पूर्ति वक्र, अल्पकालीन पूर्ति वक्र से अलग होता है। दीर्घकाल में कोई स्थिर लागतें नहीं होती। इसलिए सारी लागत परिवर्ती है तथा इसकी भरपाई होनी अनिवार्य है। यदि कीमत LAC की भरपाई नहीं करती, उत्पादन बंद हो जाएगा। इसलिए पूर्ति वक्र LMC का वह हिस्सा है जो LAC के न्यूनतम स्तर से ऊपर है। जैसाकि रेखाचित्र में दिखाया गया है, LMC का मोटा हिस्सा दीर्घकालीन पूर्ति वक्र है।

प्रश्न 14.
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 8
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को प्रभावित करती है। यदि प्रौद्योगिकी में सुधार होता है तो उन्हीं पूर्ववत संसाधनों से अधिक इकाइयों का उत्पादन संभव हो जाता है। फलस्वरूप उत्पादन लागत में कमी आती है और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। आरंभ में OP कीमत पर पूर्ति PE है, प्रौद्योगिकी प्रगति के बाद समान कीमत पर पूर्ति बढ़कर PE, हो जाती है। प्रौद्योगिकीय प्रगति से वस्तु की पूर्ति में वृद्धि के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • कंप्यूटरों के प्रयोग से लागत में कमी आना।
  • स्वचालित मशीनों से वस्तु का अधिक उत्पादन।

प्रश्न 15.
इकाई कर लगाने से एक फर्म का पूर्ति वक्र किस प्रकार प्रभावित होता है?
उत्तर:
इकाई कर लगने से वस्तु की प्रति इकाई (औसत) व सीमांत लागत में भी वृद्धि होती है। फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। आरंभ में OP कीमत पर उत्पादक PE मात्रा की पूर्ति करने को तैयार था। इकाई कर के लगने के पश्चात् वह प्रचलित कीमत पर केवल PE1 मात्रा की पूर्ति ही करता है। पूर्ति वक्र अब S1S1 से पीछे को खिसककर SMS बन जाता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 9

प्रश्न 16.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
सामान्यतया वस्तु की पूर्ति और लागत में ऋणात्मक संबंध होता है। आगतों (Inputs) की कीमत में वृद्धि (जैसे कच्चे माल की कीमत में वृद्धि, श्रमिकों। की मजदूरी में वृद्धि) से वस्तु की लागत में वृद्धि होने के फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति। कम हो जाएगी और पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। रेखाचित्र में SS प्रारंभिक पूर्ति वक्र है। आगत में वृद्धि होने पर यह बाईं ओर खिसककर S1S1 हो जाता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 10

प्रश्न 17.
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाज़ार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति में वृद्धि होगी क्योंकि बाज़ार पूर्ति बाज़ार में पाई जाने वाली फर्मों द्वारा की गई पूर्ति का योगफल है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 11
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS है, जिस पर OP कीमत पर OQ1 पूर्ति है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है जिससे उसी कीमत OP पर पूर्ति बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 18.
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर:
पूर्ति की कीमत लोच का अर्थ-अन्य बातें समान रहते हुए, वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु की पूर्ति की मात्रा में जिस दर से परिवर्तन होता है, उसे पूर्ति की कीमत लोच कहते हैं।
पूर्ति की कीमत लोच को मापने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-
1.प्रतिशत विधि-प्रतिशत विधि के अंतर्गत पूर्ति की कीमत लोच को मापने के लिए पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन को कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से भाग दिया जाता है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 12
इस विधि को हम एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं। माना कि आम की कीमत 10 रु० प्रति किलोग्राम है और इस कीमत पर आम की 600 किलोग्राम है। यदि आम की कीमत बढ़कर 12 रु० प्रति किलोग्राम हो जाती है तो आम की पूर्ति बढ़कर 800 किलोग्राम हो जाती है। इस उदाहरण में आम की पूर्ति की कीमत लोच होगी।
आम की पूर्ति की कीमत लोच = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
इस उदाहरण में, P0 = 10, Ap = 2, q0 = 600, ∆q = 200
= \(\frac{200}{2} \times \frac{10}{600}\)
= 1.67
अर्थात् es >1 है। अतः पूर्ति अधिक लोचदार है।

2. ज्यामितीय विधि-ज्यामितीय विधि के अंतर्गत पूर्ति की कीमत लोच की गणना पूर्ति वक्र को उद्गम बिंदु (Point of origin) अर्थात् अक्ष केंद्र की ओर विस्तार करके किया जाता है। पूर्ति वक्र को अक्ष केंद्र.से विस्तार करने पर निम्नलिखित स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं

  • यदि पूर्ति वक्र y-अक्ष को पार कर x-अक्ष के ऋणात्मक पक्ष पर पहुँचता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक से अधिक होगा।
  • यदि पूर्ति वक्र x-अक्ष के धनात्मक अंश पर पहुँचता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक से कम होगा।
  • यदि पूर्ति वक्र अक्ष केंद्र को स्पर्श करता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक के बराबर होगा।

ज्यामितीय विधि को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 13

  • वस्तु-A की पूर्ति वक्र इकाई से कम लोचदार है अर्थात् e < 1
  • वस्तु-B की पूर्ति वक्र इकाई के बराबर है अर्थात् e = 1
  • वस्तु-C की पूर्ति वक्र इकाई से अधिक लोचदार है अर्थात् es > 1

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 19.
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमांत संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई बाज़ार कीमत 10 रु० है।

बेची गई मात्राकुल संप्राप्तिसीमांत संप्राप्तिऔसत संप्राप्ति
0
1
2
3
5
6

हल:
(i) कुल संप्राप्ति = बेची गई मात्रा x प्रति इकाई कीमत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 14
प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 15

प्रश्न 20.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाज़ार कीमत भी निर्धारित कीजिए।

बेची गई मात्राकुल संप्राप्ति (र०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
005
157
21010
31512
52015
62523
73033

हल:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 16
प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 17

प्रश्न 21.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रु० दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।

उत्पादनकुल लागत (इकाई) रु०
0 5
115
222
327
431
538
649
763
881
9101
10123

हल:

उत्पादनकीमत (रु०)कुल संप्राप्ति (रु०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
01005-5
1101015-5
2102022-2
3103027+3
4104031+9
5105038+12
6106049+11
7107063+7
8108081-1
91090101-11
1010100123-23

प्रयोग किए गए सूत्र

  • कुल संप्राप्ति = उत्पादन x कीमत
  • लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत।

प्रश्न 22.
दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है। SS1, कालम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कालम SS2 में फर्म-2 की पूर्ति सारणी है। बाज़ार पूर्ति अनुसूची सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँ
000
100
210
3– 11
422
533
644

हल:

कीमतSS1
इकाइयाँ
SS2
इकाइयाँ
MSS
(इकाइयाँ)
0000
1000
2100
3– 112
4224
5336
6448

नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) (इकाइयाँ) = SS1 (इकाइयाँ) + SS2 (इकाइयाँ)

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 23.
दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका में कालम SS1 तथा कालम SS2 क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँ
000
100
200
310
420.5
531
641.5
752
862.5

हल:

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँMSS(इकाइयाँ)
0000
1000
2000
3101
420.52.5
5314
641.55.5
7527
862.58.5

नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) = SS1 (किलो) + SS2 (किलो)

प्रश्न 24.
एक बाज़ार में 3 समरूपी फर्मे हैं। निम्नलिखित तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)
00
10
22
34
46
58
610
712
814

हल:
चूँकि तीनों फ समरूप हैं, हम बाज़ार पूर्ति अनुसूची को फर्म-1 की अनुसूची को 3 से गुणा करके प्राप्त कर सकते हैं।

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)MSS(इकाई)
000
100
226
3412
4618
5824
61030
71236
81442

वैकल्पिक विधि-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 18
नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) = SS1 + SS2 + SS3

प्रश्न 25.
10 रु० प्रति इकाई बाज़ार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रु० है। बाज़ार कीमत बढ़कर 15 रु० हो जाती है और अब फर्म को 150 रु० की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
हल:
कुल संप्राप्ति = 50 रु०
वस्तु की पुरानी कीमत = 10 रु०
वस्तु की बेची गई पुरानी इकाइयाँ = \(\frac{50}{10}\) = 5 इकाइयाँ
वस्तु की नई कीमत = 15 रु०
वस्तु की कुल संप्राप्ति = 150 रु०
वस्तु की बेची गई नई इकाइयाँ = \(\frac{150}{15}\) = 10 इकाइयाँ
पूर्ति की कीमत लोच (es) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
= p0 = 10, ∆p = 15 – 10 = 5, q0 = 5, ∆q = 10 – 5 = 5
= \(\frac{5}{5} \times \frac{10}{5}\)
= \(\frac{50}{25}\)
= 2 उत्तर

प्रश्न 26.
एक वस्तु की बाज़ार कीमत 5 रु० से बदलकर 20 रु० हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरंभिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
हल:
पूर्व कीमत (p0) = 5 रु०
वर्तमान कीमत (p1) = 20 रु०
कीमत में परिवर्तन (Ap) = 20 – 5 = 15 रु०
पूर्ति में परिवर्तन (Aq) = 15 इकाइयाँ
पूर्ति की कीमत लोच (e) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
0.5 = \(\frac{15}{q^{0}} \times \frac{5}{15}\)
0.5 = \(\frac{75}{15 q^{0}}\)
0.5 = \(\frac{5}{q^{0}}\)
q0 = 10
इस प्रकार, पुरानी पूर्ति (q0) = 10
नई पूर्ति (q1) = 10 + 15 = 25
फर्म का आरंभिक निर्गत स्तर = 10
फर्म का अंतिम निर्गत स्तर = 25 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 27.
10 रु० बाज़ार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाज़ार कीमत बढ़कर 30 रु० हो जाती है। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
हल:
p0 = 10 रु०
q0 = 4 इकाइयाँ
p1 = 30 रु०
पूर्ति की कीमत लोच (es) = 1.25
125 = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{30-10} \times \frac{10}{4}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{20} \times \frac{10}{4}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{8}\)
∆q = 10
पूर्ति की नई मात्रा = पूर्ति की पुरानी मात्रा + पूर्ति में परिवर्तन
= 4+ 10 = 14 इकाइयाँ उत्तर

पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत HBSE 12th Class Economics Notes

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धा-पूर्ण प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) उस बाज़ार को कहते हैं जिसमें असंख्य क्रेता तथा समरूप वस्तु के असंख्य विक्रेता होते हैं और वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है। बाज़ार में केवल एक ही कीमत प्रचलित होती है और सभी फर्मों को अपनी वस्तु इसी प्रचलित कीमत पर बेचनी होती है।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म कीमत-स्वीकारक होती है। * फर्म की कुल संप्राप्ति (आगम), फर्म की कुल निर्गत बाज़ार कीमत का गुणनफल होती है।
TR = P.Q.
अथवा
उत्पादन की सभी इकाइयों के MR को जोड़कर भी TR प्राप्त हो जाता है। अतः
TR = ∑MR

→ औसत संप्राप्ति (आगम) औसत संप्राप्ति से अभिप्राय है उत्पादक को प्रति इकाई उत्पादन बेच कर प्राप्त होने वाली मौद्रिक राशि।
AR = \(\frac { TR }{ Q }\)

→ कीमत-स्वीकारक फर्म की औसत संप्राप्ति (AR) बाज़ार कीमत के बराबर होती है।

→ सीमांत संप्राप्ति-सीमांत संप्राप्ति (MR) से अभिप्राय है किसी वस्तु की एक इकाई अधिक बेचने से कुल संप्राप्ति (आगम) में होने वाला परिवर्तन।
MR = \(\frac { ∆TR }{ ∆Q }\); TRn – TR-1

→ कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमांत संप्राप्ति बाज़ार कीमत के बराबर होती है।

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म की माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होती है। यह बाज़ार कीमत पर एक सीधी समस्तरीय रेखा होती है।

→ औसत संप्राप्ति वक्र फर्म की माँग वक्र है-AR वक्र फर्म के माँग वक्र को प्रदर्शित करता है, क्योंकि AR को Y-अक्ष पर और उत्पादन/बिक्री को X-अक्ष पर दिखाया जाता है। हम जानते हैं कि AR = कीमत, अतएव AR वक्र वस्तु की कीमत (Y-अक्ष पर) और वस्तु की बिक्री या माँग (X-अक्ष पर) के बीच संबंध को प्रकट करता है।

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धा में AR वक्र पड़ी सीधी रेखा और AR तथा MR बराबर होती है-यह इसलिए क्योंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म कीमत स्वीकारक (Price-Taker) होती है, जिसका अर्थ है कि फर्म के उत्पादन के समस्त स्तरों के लिए AR समान होती है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा की अवस्था में दी हुई कीमत पर फर्म वस्तु की जितनी भी मात्रा चाहे बेच सकती है।

→ फर्म का लाभ, कुल आगम जो वह अर्जित करती है तथा कुल लागत जो वह उठाती है, इनके बीच का अंतर होता है।
π (लाभ) = कुल आगम – कुल लागत

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

→ यदि अल्पकाल में किसी फर्म के लाभ का अधिकतमीकरण निर्गत के किसी धनात्मक स्तर पर होता है, तो उस निर्गत स्तर पर तीन शर्ते पूरी होनी चाहिए
(i) p = अल्पकालीन सीमांत लागत
(ii) अल्पकालीन सीमांत लागत घट नहीं रही है
(iii) p > औसत परिवर्ती लागत

→ किसी फर्म अल्पकालीन पूर्ति वक्र, अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत तथा उससे ऊपर उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

→ किसी फर्म का दीर्घकालीन पूर्ति वक्र, दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन सीमांत लागत तथा – उससे ऊपर, उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन सीमांत लागत से कम, सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

→ प्रौद्योगिकीय प्रगति से फर्म का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ आगतों की कीमतों में वृद्धि (कमी) से फर्म का पूर्ति वक्र बायीं (दाहिनी) ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ प्रति इकाई कर लगाने से फर्म का पूर्ति वक्र बायीं ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति वक्र दाहिनी ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ बाज़ार पूर्ति वक्र सभी व्यक्तिगत फर्मों के पूर्ति वक्रों के समस्तरीय योग द्वारा प्राप्त होता है।

→ वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच वस्तु की बाज़ार कीमत में एक प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन है।

→ पर्ति की कीमत लोच (es) = HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 19

→ लाभ-अलाभ-किसी फर्म का समविच्छेद बिंदु (Break Even Point) तब होता है जब TR = TC (कुल संप्राप्ति (आगम) = कुल लागत)। इस स्थिति में उत्पादक के लाभ तथा हानि दोनों शून्य होते हैं। पूर्ति वक्र के जिस बिंदु पर एक फर्म साधारण लाभ अर्जित करती है, वह फर्म का लाभ-अलाभ बिंदु कहलाता है। अतः न्यूनतम औसत लागत का वह बिंदु जिस पर पूर्ति वक्र LRAC (अल्पकाल में SRAC) को काटता है फर्म का लाभ-अलाभ बिंदु कहलाता है। दीर्घकाल में एक फर्म को इस बिंदु को अवश्य प्राप्त करना चाहिए।

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाई की उपयोगिता को क्या कहते हैं?
(A) कुल उपयोगिता
(B) सीमांत उपयोगिता
(C) प्रारंभिक उपयोगिता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सीमांत उपयोगिता

2. सीमांत उपयोगिता से आशय है-
(A) कुल उपयोगिता-औसत उपयोगिता
(B) एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में हुई वृद्धि की मात्रा
(C) कुल उपयोगिता-कुल वस्तुओं की मात्रा
(D) पहली इकाई से प्राप्त उपयोगिता
उत्तर:
(B) एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में हुई वृद्धि की मात्रा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

3. सीमांत उपयोगिता वक्र की आकृति होती है-
(A) X. अक्ष के समानांतर
(B) Y- अक्ष के समानांतर
(C) ऋणात्मक ढाल वाली
(D) धनात्मक ढाल वाली
उत्तर:
(C) ऋणात्मक ढाल वाली

4. कुल उपयोगिता अधिकतम होती है जब-
(A) सीमांत उपयोगिता शून्य होती है
(B) सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होती है
(C) सीमांत उपयोगिता धनात्मक होती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सीमांत उपयोगिता शून्य होती है

5. जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की उत्तरोतर इकाई का उपभोग करता है, तो-
(A) सीमांत उपयोगिता बढ़ती जाती है
(B) सीमांत उपयोगिता घटती जाती है
(C) कुल उपयोगिता बढ़ती जाती है।
(D) कुल उपयोगिता घटती जाती है
उत्तर:
(B) सीमांत उपयोगिता घटती जाती है

6. एक उपभोक्ता का संतुलन उस बिंदु पर होता है जहाँ पर-
(A) सीमांत उपयोगिता = कीमत
(B) सीमांत उपयोगिता > कीमत
(C) सीमांत उपयोगिता < कीमत
(D) कुल उपयोगिता = कीमत
उत्तर:
(A) सीमांत उपयोगिता = कीमत

7. सीमांत उपयोगिता धनात्मक होने पर कुल उपयोगिता-
(A) घटती है
(B) बढ़ती है।
(C) ऋणात्मक होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) बढ़ती है

8. कुल उपयोगिता घटनी कब प्रारंभ होती है?
(A) सीमांत उपयोगिता के धनात्मक होने पर
(B) सीमांत उपयोगिता के ऋणात्मक होने पर
(C) सीमांत उपयोगिता के शून्य होने पर
(D) सीमांत उपयोगिता की संतुष्टि होने पर
उत्तर:
(B) सीमांत उपयोगिता के ऋणात्मक होने पर

9. यदि उपभोक्ता अपनी आय को X और Y पर व्यय करता है, तो उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होगी जब-
(A) MUX = MUY
(B) MUX > MUY
(C) MUX ÷ MUY
(D) MUX + MUY
उत्तर:
(A) MUX = MUY

10. सीमांत उपयोगिता हो सकती है-
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) शून्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

11. उपयोगिता विश्लेषण के संदर्भ में, दो वस्तुओं के लिए उपभोक्ता संतुलन की शर्त है-
(A) \(\frac{M U_{x}}{P_{x}}=\frac{M U_{y}}{P_{y}}=M U_{m}\)
(B) \(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{x}}}{\mathrm{P}_{\mathrm{x}}}=\mathrm{MU}_{\mathrm{m}}\)
(C) \(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{x}}}{\mathrm{MU}_{\mathrm{m}}}\)
(D) \(\frac{M U_{x}}{P_{x}}+\frac{M U_{y}}{P_{y}}=M U_{m}\)
उत्तर:
(A) \(\frac{M U_{x}}{P_{x}}=\frac{M U_{y}}{P_{y}}=M U_{m}\)

12. उपभोग की इकाइयाँ 1 व 2 हैं तथा कुल उपयोगिता 10 व 18 हैं, सीमांत उपयोगिता क्या होगी?
(A) 6
(B) 8
(C) 9
(D) 12
उत्तर:
(B) 8

13. सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होने पर कुल उपयोगिता
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) शून्य होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटती है

14. कुल उपयोगिता से सीमांत उपयोगिता का आकलन किया जाता है
(A) MU = TU
(B) MU x TU
(C) MU = \(\frac{\Delta \mathrm{TU}}{\Delta \mathrm{X}}\)
(D) MU ÷ TU
उत्तर:
(C) MU = \(\frac{\Delta \mathrm{TU}}{\Delta \mathrm{X}}\)

15. अनधिमान/तटस्थता वक्र प्रदर्शित करता है
(A) दो वस्तुओं के ऐसे बंडल जिन्हें उपभोक्ता खरीद सकता है
(B) दो वस्तुओं के ऐसे बंडल जिन्हें उपभोक्ता पसंद करता है
(C) दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडल (संयोग) जिन पर संतुष्टि समान होती है
(D) उपभोक्ता का संतुलन
उत्तर:
(C) दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडल (संयोग) जिन पर संतुष्टि समान होती है

16. अनधिमान (तटस्थता) वक्र
(A) बायें से दायें एवं नीचे की ओर मुड़ता है
(B) दायें से बायें एवं ऊपर की ओर मुड़ता है
(C) दायें से बायें किंतु X-अक्ष के समानांतर होता है
(D) नीचे से ऊपर की ओर किन्तु Y. अक्ष के समानांतर होता है
उत्तर:
(A) बायें से दायें एवं नीचे की ओर मुड़ता है

17. अनधिमान वक्र-
(A) मूल बिंदु से नतोदर होते हैं
(B) मूल बिंदु से उन्नतोदर होते हैं
(C) एक सीधी रेखा की भांति होते हैं
(D) कोई निश्चित आकृति नहीं होती
उत्तर:
(B) मूल बिंदु से उन्नतोदर होते हैं

18. अनधिमान वक्र प्रत्येक बिंदु पर-
(A) घटती हुई संतुष्टि बताता है
(B) समान संतुष्टि बताता है
(C) असमान संतुष्टि बताता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) समान संतुष्टि बताता है

19. अनधिमान वक्र प्राथमिकता विश्लेषण पर आधारित है जिसका दृष्टिकोण
(A) क्रमवाचक है
(B) संख्यात्मक है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) क्रमवाचक है

20. दायीं ओर का अनधिमान वक्र संतुष्टि के
(A) समान स्तर को बताता है
(B) ऊँचे स्तर को बताता है
(C) निम्न स्तर को बताता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऊँचे स्तर को बताता है

21. एक उपभोक्ता जब अनधिमान वक्र पर दायें नीचे की ओर चलता है, तो X वस्तु की सीमांत प्रतिस्थापन दर Y वस्तु के लिए
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) समान रहती है
(D) उपर्युक्त कोई भी नहीं
उत्तर:
(A) घटती है

22. कुछ घटिया वस्तुओं (Inferior Goods) की कीमत गिराने पर प्रायः उनकी माँग बढ़ने के बजाय घटती है, इसका कारण है-
(A) माँग का नियम
(B) गिफ्फन का विरोधाभास
(C) आय प्रभाव
(D) प्रतिस्थापन प्रभाव
उत्तर:
(B) गिफ्फन का विरोधाभास

23. वस्तु की कीमत तथा उसकी माँग के बीच विपरीत संबंध का कारण है-
(A) सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम
(B) आय प्रभाव
(C) प्रतिस्थापन प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. माँग का नियम बताता है-
(A) माँग, कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है
(B) कीमत, माँग से विपरीत रूप से संबंधित होती है
(C) कीमत, पूर्ति से विपरीत रूप से संबंधित होती है
(D) पूर्ति, कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है
उत्तर:
(A) माँग, कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है

25. माँग में विस्तार एवं संकुचन में-
(A) माँग वक्र में परिवर्तन हो जाता है
(B) माँग वक्र में स्थान परिवर्तन हो जाता है
(C) माँग वक्र ऊपर की ओर स्थानांतरित हो जाता है
(D) माँग वक्र नीचे की ओर स्थानांतरित हो जाता है
उत्तर:
(B) माँग वक्र में स्थान परिवर्तन हो जाता है

26. आय एवं माँग के बीच सामान्यतया-
(A) विपरीत संबंध होता है
(B) सीधा संबंध होता है
(C) कोई संबंध नहीं होता है
(D) उपर्युक्त तीनों कथन गलत हैं
उत्तर:
(B) सीधा संबंध होता है

27. निम्नलिखित में से कौन-सा माँग वक्र के नीचे की ओर झुके होने का कारण है?
(A) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम
(B) आय प्रभाव
(C) प्रतिस्थापन प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

28. गिफ्फन के विरोधाभास (Giffen’s Paradox) से अभिप्राय है-
(A) माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक होना
(B) माँग वक्र का ढाल धनात्मक होना
(C) माँग वक्र का OX-अक्ष के समानांतर होना
(D) माँग वक्र का OY-अक्ष के समानांतर होना
उत्तर:
(B) माँग वक्र का ढाल धनात्मक होना

29. निम्नलिखित में से कौन-सा माँग के नियम का अपवाद नहीं है?
(A) प्रतिष्ठासूचक वस्तु
(B) गिफ्फन पदार्थ
(C) अज्ञानता
(D) सामान्य वस्तु
उत्तर:
(D) सामान्य वस्तु

30. निम्नकोटि की वस्तुओं से क्या अभिप्राय है?
(A) कीमत बढ़ने पर माँग कम होती है।
(B) कीमत कम होने पर माँग कम होती है
(C) कीमत में परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता
(D) कीमत कम होने से माँग बढ़ती है
उत्तर:
(B) कीमत कम होने पर माँग कम होती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

31. कीमत में कमी होने से माँग के बढ़ने को कहा जाता है
(A) माँग का विस्तार
(B) माँग का संकुचन
(C) माँग में वृद्धि
(D) माँग में कमी
उत्तर:
(A) माँग का विस्तार

32. पूरक वस्तु की कीमत में कमी होने पर वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) माँग बढ़ेगी
(B) माँग घटेगी
(C) माँग वही रहेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) माँग बढ़ेगी

33. माँग में वृद्धि की स्थिति में-
(A) माँग वक्र में नीचे बाईं ओर खिसकाव होता है
(B) माँग वक्र में ऊपर दाईं ओर खिसकाव होता है
(C) माँग वक्र पर नीचे की ओर चलन होता है
(D) माँग वक्र पर ऊपर की ओर चलन होता है
उत्तर:
(B) माँग वक्र में ऊपर दाईं ओर खिसकाव होता है

34. बाज़ार माँग व्यक्त करती है-
(A) बहुत-से व्यक्तियों की माँग को
(B) सभी व्यक्तियों की माँग को
(C) दो व्यक्तियों की माँग को
(D) एक व्यक्ति की माँग को
उत्तर:
(B) सभी व्यक्तियों की माँग को

35. माँग का नियम संबंध व्यक्त करता है-
(A) माँग और कीमत में
(B) माँग और आय में
(C) माँग और अन्य वस्तुओं की कीमत में
(D) माँग और व्यय राशि में
उत्तर:
(A) माँग और कीमत में

36. किन वस्तुओं की माँग आय के साथ प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होती है?
(A) अनिवार्य वस्तुओं की।
(B) निकृष्ट वस्तुओं की
(C) विलासिता की वस्तुओं की
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अनिवार्य वस्तुओं की

37. माँग वक्र के ऋणात्मक ढलान का कारण है-
(A) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम
(B) आय प्रभाव
(C) प्रतिस्थापन प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम

38. माँग में परिवर्तन किससे होता है?
(A) उपभोक्ता की आय से
(B) संबंध अथवा अन्य वस्तुओं की कीमत से
(C) अभिरुचियों एवं कीमत संभावना से
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

39. माँगी गई मात्रा में परिवर्तन का कारण है-
(A) वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन
(B) आय में परिवर्तन
(C) जनसंख्या में परिवर्तन
(D) अन्य वस्तु की कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(A) वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन

40. किन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू होता है?
(A) गिफ्फन वस्तुओं पर
(B) सामान्य वस्तुओं पर
(C) स्थानापन्न वस्तुओं पर
(D) प्रतिष्ठासूचक वस्तुओं पर
उत्तर:
(B) सामान्य वस्तुओं पर

41. सामान्य वस्तुओं के माँग वक्र का ढलान कैसा होता है?
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) स्थिर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऋणात्मक

42. यदि आय वृद्धि के परिणामस्वरूप X वस्तु की माँग बढ़ जाती है, तो वस्तु का स्वरूप बताइए
(A) घटिया वस्तु
(B) सामान्य वस्तु
(C) स्थानापन्न वस्तु
(D) पूरक वस्तु
उत्तर:
(B) सामान्य वस्तु

43. माँग में कमी का कारण है
(A) स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी
(B) पूरक वस्तु की कीमत में कमी
(C) उपभोक्ता की आय में वृद्धि
(D) निकट भविष्य में कीमत में वृद्धि की संभावना
उत्तर:
(A) स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी

44. यदि x वस्तु की कीमत में वृद्धि के कारण Y वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है, तो इन वस्तुओं के बीच किस प्रकार का संबंध है?
(A) स्थानापन्न वस्तुओं का
(B) पूरक वस्तुओं का
(C) सामान्य वस्तुओं का
(D) घटिया वस्तुओं का
उत्तर:
(A) स्थानापन्न वस्तुओं का

45. गिफ्फन वस्तु के लिए माँग वक्र का ढलान कैसा होता है?
(A) सामान्य
(B) ऋणात्मक
(C) धनात्मक
(D) स्थिर
उत्तर:
(C) धनात्मक

46. माँग की कीमत लोच से अभिप्राय है-
(A) कीमत में परिवर्तन के कारण माँग में परिवर्तन
(B) माँग में परिवर्तन
(C) वास्तविक आय में परिवर्तन
(D) कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(A) कीमत में परिवर्तन के कारण माँग में परिवर्तन

47. एक ऐसा माँग वक्र जो X-अक्ष के समानांतर होता है। यह किस प्रकार की लोच प्रदर्शित करता है?
(A) अनंत
(B) इकाई से कम
(C) शून्य
(D) बेलोचदार माँग
उत्तर:
(A) अनंत

48. कीमत लोच गुणांक की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
(A) \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
(B) \(\frac{\Delta p}{\Delta q} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
(C) \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{q^{0}}{p^{0}}\)
(D) \(\frac{\Delta p}{\Delta q} \times \frac{p^{0}}{p^{0}}\)
उत्तर:
(A) \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)

49. यदि कीमत में कमी के परिणामस्वरूप माँग में परिवर्तन न हो तो लोच गुणांक निम्नलिखित होगा
(A) शून्य
(B) अनंत
(C) इकाई के बराबर
(D) इकाई से अधिक
उत्तर:
(A) शून्य

50. निम्नलिखित सूत्र में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 1
रिक्त-स्थान में लिखा जाएगा-
(A) माँग में परिवर्तन
(B) मूल कीमत
(C) माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
(D) मूल माँग
उत्तर:
(C) माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन

51. यदि माँग में प्रतिशत परिवर्तन कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से कम हो तो माँग की लोच ……………. होगी।
(A) इकाई
(B) इकाई से अधिक
(C) इकाई से कम
(D) शून्य
उत्तर:
(C) इकाई से कम

52. माँग की लोच प्रदर्शित करती है-
(A) माँगी गई मात्रा में परिवर्तन
(B) माँगी गई मात्रा में परिवर्तन की दर
(C) कीमत में परिवर्तन
(D) आय में परिवर्तन
उत्तर:
(B) माँगी गई मात्रा में परिवर्तन की दर

53. माँग की कीमत लोच की श्रेणियाँ कितनी होती हैं?
(A) सात
(B) पाँच
(C) बारह
(D) दो
उत्तर:
(B) पाँच

54. माँग की मूल्य लोच से अभिप्राय है
(A) कीमत तथा माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
(B) कीमत तथा आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
(C) कीमत तथा संबंधित वस्तु की माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
(D) कीमत के बढ़ने से माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
उत्तर:
(A) कीमत तथा माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात

55. जो वस्तुएँ बहुत सस्ती तथा महँगी होती हैं, उनकी माँग होती है-
(A) लोचदार
(B) पूर्ण लोचदार
(C) पूर्ण बेलोचदार
(D) बेलोचदार
उत्तर:
(D) बेलोचदार

56. ‘कार तथा पेट्रोल की माँग’ कहलाती है-
(A) पूरक
(B) स्थानापन्न
(C) इकाई
(D) शून्य
उत्तर:
(A) पूरक

57. जब वस्तु की 50 रुपए प्रति इकाई कीमत पर माँग 1,000 इकाइयाँ हैं तथा 30 रुपए कीमत पर माँग बढ़कर 4,000 इकाइयाँ हो जाती हैं, तो आनुपातिक विधि द्वारा माँग की मूल्य सापेक्षता होगी-
(A) 7.5 (> 1)
(B) 1/2 (< 1)
(C) 0 (शून्य)
(D) 1 (= 1)
उत्तर:
(A) 7.5 (> 1)

58. नीचे एक रेखाचित्र दिखाया गया है, जिसमें माँग वक्र AB बिंदु विधि द्वारा माँग की मूल्य सापेक्षता की मात्राएँ लिखी गई हैं, इनमें से कौन-सी गलत है?
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 2
(A) C
(B) D
(C) E
(D) B
उत्तर:
(B) D

59. संलग्न रेखाचित्र व्यक्त करता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 3
(A) कम लोचदार माँग
(B) अधिक लोचदार माँग
(C) पूर्णतया लोचदार माँग
(D) इकाई लोचदार माँग
उत्तर:
(C) पूर्णतया लोचदार माँग

60. एक सरल माँग वक्र के मध्य-बिंदु पर माँग की लोच होगी-
(A) 2
(B) 1/2
(C) 1
(D) 4
उत्तर:
(C) 1

61. जब माँग वक्र OY-अक्ष के समानांतर होता है, तो इससे प्रकट होता है-
(A) माँग की इकाई लोच
(B) पूर्णतया लोचदार माँग
(C) पूर्णतया बेलोचदार माँग
(D) अपेक्षाकृत अधिक लोचदार माँग
उत्तर:
(C) पूर्णतया बेलोचदार माँग

62. पूर्णतया बेलोचदार माँग वक्र पर माँग की कीमत लोच क्या होगी?
(A) अनंत
(B) इकाई
(C) शून्य
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) शून्य

63. माँग की कीमत लोच मापने की कौन-सी विधि है?
(A) प्रतिशत विधि
(B) कुल व्यय विधि
(C) ज्यामितीय विधि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

64. निम्नलिखित में से कौन-सी जोड़ी प्रतिस्थापन वस्तुओं का उदाहरण है?
(A) कार और पेट्रोल
(B) कॉफी और दूध
(C) लिम्का, पेप्सी कोला
(D) ये सभी
उत्तर:
(C) लिम्का, पेप्सी कोला

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. तटस्थता वक्र मूल बिंदु की ओर ……………. होता है। (नतोदर/उन्नतोदर)
उत्तर:
उन्नतोदर

2. सीमांत उपयोगिता वक्र की आकृति …….. ढाल वाली होती है। (ऋणात्मक/धनात्मक)
उत्तर:
ऋणात्मक

3. कुल उपयोगिता अधिकतम होती है, जब सीमांत उपयोगिता ………… होती है। (धनात्मक/शून्य)
उत्तर:
शून्य

4. जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाई का उपभोग करता है, तो ……… घटती जाती है। (कुल उपयोगिता/सीमांत उपयोगिता)
उत्तर:
सीमांत उपयोगिता

5. किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाई की उपयोगिता को …………….. कहते हैं। (कुल उपयोगिता/सीमांत उपयोगिता)
उत्तर:
सीमांत उपयोगिता

6. तटस्थता वक्र तकनीक का प्रतिपादन …………. द्वारा किया गया। (हिक्स/मार्शल)
उत्तर:
हिक्स

7. बजट रेखा को …………….. रेखा कहा जाता है। (लागत कीमत)
उत्तर:
कीमत

8. आय एवं माँग के बीच सामान्यतया ………… संबंध होता है। (विपरीत/सीधा)
उत्तर:
सीधा

9. जब सीमांत उपयोगिता (MU) घट रही होती है, तब कुल उपयोगिता…… दर से बढ़ती है। (घटती हुई/बढ़ती हुई)
उत्तर:
घटती हुई

10. जब माँग वक्र Ox-अक्ष के समानान्तर होती है, तब माँग की लोच ………… होती है। (शून्य/अनन्त)
उत्तर:
अनन्त

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. किसी वस्तु की मात्रा और उसके तुष्टिगुण में सीधा संबंध होता है।
  2. किसी वस्तु की जितनी अधिक मात्रा हमारे पास होती है उतनी ही हम उसकी कम मात्रा प्राप्त करना चाहते हैं।
  3. माँग के विस्तार में चलन एक माँग वक्र से दूसरे माँग वक्र पर होता है।
  4. माँगी गई मात्रा में परिवर्तन और माँग में परिवर्तन एक नहीं होता।
  5. माँग की कीमत लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
  6. जब माँग पूर्णतया लोचदार होती है तो लोच का गुणांक शून्य होता है।
  7. जब कीमत के कम होने पर कुल व्यय बढ़ता है तो माँग की लोच इकाई से अधिक कहलाती है।
  8. घटती सीमांत उपयोगिता का नियम मुद्रा पर लागू नहीं होता।
  9. घटती सीमांत उपयोगिता का नियम प्रगतिशील कर-प्रणाली का आधार है।
  10. बजट रेखा को सम-उत्पाद रेखा भी कहते हैं।
  11. तटस्थता वक्र पर उपयोगिता समान रहती है।
  12. उपयोगिता विचारधारा को गणनावाचक विचारधारा (Cardinal Approach) भी कहते हैं।
  13. तटस्थता वक्र वह वक्र है जिसके विभिन्न बिंदु अधिकतम सन्तुष्टि व्यक्त करते हैं।
  14. गिफ्फन वस्तु माँग के नियम का अपवाद है।
  15. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि माँग में वृद्धि का कारण होती है।
  16. हमें अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त होती है जब कुल उपयोगिता बराबर होती है।
  17. गणनावाचक तुष्टिगुण विश्लेषण का संबंध घटते सीमांत तुष्टिगुण से है।
  18. दो तटस्थता वक्र एक-दूसरे को काट सकते हैं।
  19. किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग करने से यदि कुल उपयोगिता स्थिर रहती है तो सीमांत उपयोगिता शून्य होगी।
  20. गिफ्फन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू होता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. सही
  6. गलत
  7. सही
  8. गलत
  9. सही
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. गलत
  14. सही
  15. सही
  16. गलत
  17. सही
  18. गलत
  19. सही
  20. गलत।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
माँग का नियम क्या है?
उत्तर:
अन्य बातें समान रहने पर, माँग का नियम, वस्तु की कीमत और उसकी माँग में विपरीत संबंध बताता है।

प्रश्न 2.
माँग वक्र पर चलने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग वक्र पर चलने का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता की माँग में होने वाले परिवर्तनों को उसी माँग वक्र पर दिखाया जाता है।

प्रश्न 3.
माँग वक्र के खिसकने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग वक्र के खिसकने का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता की माँग में होने वाले परिवर्तनों को दूसरे माँग वक्र पर दिखाया जाता है।

प्रश्न 4.
माँग की मूल्य लोच से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग की मात्रा में होने वाले परिवर्तन के माप को माँग की मूल्य लोच कहते हैं।

‘प्रश्न 5.
माँग के विस्तार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग के विस्तार का अर्थ माँग में होने वाली उस बढ़ोतरी से है, जो उस वस्तु की कीमत में कमी के फलस्वरूप होती है।

प्रश्न 6.
माँग का अर्थ बताइए।
उत्तर:
माँग वस्तु की वह मात्रा है जिसे विशेष कीमत व विशेष समय में क्रेता खरीदने को तैयार होता है।

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत मॉग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यक्तिगत माँग से अभिप्राय वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक व्यक्ति विशेष द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं से है।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता का संतुलन क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता का संतुलन वह स्थिति है जहाँ एक उपभोक्ता को एक दी हुई निश्चित आय और वस्तुओं की दी हुई कीमत परं अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है और जहाँ से वह हटना नहीं चाहता।

प्रश्न 9.
बजट रेखा क्या है?
उत्तर:
बजट रेखा वह रेखा है जो दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडलों को दिखाती है, जिन्हें उपभोक्ता दी हई कीमतों और दी हुई आय पर खरीद सकता है।

प्रश्न 10.
एक बजट सेट कब परिवर्तित होता है?
उत्तर:

  • जब दो वस्तुओं में से किसी एक या दोनों वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन होता है।
  • जब उपभोक्ता की आय में परिवर्तन हो।

प्रश्न 11.
बजट रेखा की प्रवणता (ढाल) क्या मापती है?
उत्तर:
बजट रेखा की प्रवणता (ढाल) उस दर को मापती है जिस पर उपभोक्ता X-वस्तु के बदले Y-वस्तु खरीदता है, जबकि वह अपनी पूरी आय व्यय कर देता है।

प्रश्न 12.
कुल उपयोगिता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
वस्तु की कुल इकाइयों के उपभोग से प्राप्त सीमांत उपयोगिताओं के योग को कुल उपयोगिता कहते हैं। सूत्र के रूप में-
कुल उपयोगिता = सीमांत उपयोगिताओं का जोड़

प्रश्न 13.
सीमांत उपयोगिता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता को सीमांत उपयोगिता कहते हैं। वैकल्पिक रूप में इसे ऐसे भी परिभाषित कर सकते हैं-वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में होने वाली वृद्धि को सीमांत उपयोगिता कहते हैं। सूत्र के रूप में-
सीमांत उपयोगिता = अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 14.
सीमांत उपयोगिता से कुल उपयोगिता का आकलन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
कुल उपयोगिता = सीमांत उपयोगिताओं का जोड़ अर्थात्
TU = ∑ MU. 378121
TU = MU1 + MU2 + MU3 + ……….. + MUn

प्रश्न 15.
किसी वस्तु की कीमत में 7% कमी के कारण उसकी माँग में 3.5% वृद्धि हो गई, उस वस्तु की माँग की लोच के बारे में आप किस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे?
उत्तर:
मांग की लोच (eD)= IMGG
अतः वस्तु की माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 16.
ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम क्या है?
उत्तर:
ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम, “अन्य बातें स्थिर रहने पर जैसे-जैसे किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग किया जाता है, वैसे-वैसे उनसे प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है।”

प्रश्न 17.
तटस्थता (अनधिमान) वक्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
तटस्थता वक्र से अभिप्राय उस वक्र से है जो दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों को प्रदर्शित करते हैं, जो बराबर संतुष्टि प्रदान करते हैं और जिनके बीच उपभोक्ता चयन करते समय तटस्थ रहता है।

प्रश्न 18.
तटस्थता वक्र की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • तटस्थता वक्र सदैव मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होता है।
  • इसका ढलान ऋणात्मक होता है।

प्रश्न 19.
एकदिष्ट अधिमान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एकदिष्ट अधिमान का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों में से उस बंडल को अधिमान देता है, जिसमें इन वस्तुओं में से कम-से-कम एक वस्तु की अधिक मात्रा हो और दूसरे बंडल की तुलना में दूसरी वस्तु की मात्रा भी कम न हो।

प्रश्न 20.
स्थानापन्न वस्तु से क्या अभिप्राय है? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी स्थानापन्न वस्तु की माँग भी बढ़ जाती है और कीमत कम होने पर स्थानापन्न वस्तु की माँग घट जाती है। उदाहरण के लिए, चाय और कॉफी, कार और स्कूटर, कोका कोला और लिम्का आदि स्थानापन्न वस्तुएँ हैं।

प्रश्न 21.
प्रतिस्थापन की सीमांत दर (MRS) क्या है?
उत्तर:
प्रतिस्थापन की सीमांत दर ‘Y’ वस्तु की वह मात्रा है जिसे उपभोक्ता ‘X’ वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई पाने के लिए छोड़ने को तैयार है। संक्षेप में,
MRS = (-) \(\frac { ∆Y }{ ∆Y }\)
प्रतिस्थापन की सीमांत दर (MRS) की प्रवृत्ति सदैव ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 22.
निम्न कोटि या घटिया वस्तुएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
निम्नस्तरीय या निम्न कोटि वस्तुएँ (Inferior Goods) ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनके लिए माँग उपभोक्ता की आय के विपरीत दिशा में जाती है। उपभोक्ता की आय बढ़ने पर इनकी माँग घटती है और आय घटने पर इनकी माँग बढ़ती है। उदाहरण के लिए, मोटे अनाज, मोटा कपड़ा, घटिया मार्क वाली वस्तुएँ, टोंड दूध आदि।

प्रश्न 23.
माँग फलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
माँग फलन किसी वस्तु की माँग और उसको निर्धारित करने वाले विभिन्न कारकों के बीच संबंध को व्यक्त करने का गणितीय रूप है। दूसरे शब्दों में, माँग फलन से अभिप्राय है कि किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा किन-किन कारकों का फल है अर्थात किन-किन तत्त्वों पर निर्भर करती है।

प्रश्न 24.
बजट रेखा की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. बजट रेखा एक उपभोक्ता द्वारा दो वस्तुओं की दी हुई कीमतों पर और उपभोक्ता की निश्चित आय पर दोनों वस्तुओं के ऐसे बंडलों या संयोगों को दर्शाता है, जिन्हें उपभोक्ता खरीद सकता है।
  2. बजट रेखा को कीमत रेखा भी कहा जाता है। यह बाएँ से दाएँ झुकती हुई एक सीधी रेखा होती है। वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन या उपभोक्ता की आय में परिवर्तन से कीमत रेखा की स्थिति अथवा ढाल बदलती है।।

प्रश्न 25.
“यदि वस्तु की कीमत बढ़ती है तो परिवार को उस पर व्यय बढ़ाना ही पड़ेगा।” पक्ष या विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
वस्तु की कीमत बढ़ने पर परिवार का वस्तु पर व्यय बढ़ भी सकता है और कम भी हो सकता है। व्यय उस स्थिति में बढ़ेगा, जब वस्तु की eD < 1 हो, लेकिन जब वस्तु की eD > 1 हो तो वस्तु की कीमत बढ़ने के फलस्वरूप परिवार का व्यय कम होगा। अतः वस्तु की कीमत बढ़ने के फलस्वरूप परिवार का व्यय आवश्यक रूप से नहीं बढ़ेगा।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उपयोगिता क्या है? इसकी मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
उपयोगिता का अर्थ-किसी वस्तु या सेवा में मानव-आवश्यकता को संतुष्ट करने की शक्ति को उपयोगिता कहते हैं। अन्य शब्दों में, पदार्थ का वह गुण जिससे किसी मानवीय आवश्यकता की संतुष्टि होती है, अर्थशास्त्र में उपयोगिता कहलाती है; जैसे रोटी में भूख मिटाने का गुण, पानी में प्यास बुझाने का गुण एवं अध्यापक में पढ़ाने का गुण उपयोगिता कहलाते हैं अर्थात् वस्तु या सेवा की आवश्यकतापूरक शक्ति को उपयोगिता कहते हैं।

उपयोगिता की विशेषताएँ-उपयोगिता की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • उपयोगिता व्यक्तिगत है अर्थात् व्यक्ति द्वारा अनुभव किया जाने वाला संतुष्टि गुण है।
  • वस्तु की उपयोगिता उपभोग की तीव्रता पर निर्भर करती है; जैसे प्यासे व्यक्ति के लिए पानी की उपयोगिता बहुत अधिक है, जबकि प्यास-रहित व्यक्ति के लिए पानी की उपयोगिता न के बराबर है।
  • उपयोगिता हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है।

प्रश्न 2.
उपभोक्ता संतुलन का क्या अर्थ है? एक वस्तु की स्थिति में इसकी शर्त बताइए।
उत्तर:
उपभोक्ता संतुलन का अर्थ-उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जहाँ उपभोक्ता को अपनी निश्चित आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो और वह उपभोग के इस तरीके में कोई परिवर्तन नहीं लाना चाहता हो।

एक वस्तु की स्थिति में उपभोक्ता संतुलन की शर्त-उपयोगिता विश्लेषण के अनुसार एक ही वस्तु की स्थिति में एक उपभोक्ता उस समय संतुलन पर होगा, जब वस्तु की सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान और वस्तु की कीमत में समानता हो। अन्य शब्दों में, उपभोक्ता की संतुलन स्थिति में उसकी कुल उपयोगिता का मौद्रिक मान और कुल व्यय का अंतर अधिकतम होना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित शर्त पूरी होनी चाहिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 4

प्रश्न 3.
तालिका की सहायता से माँग के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा वस्तु की माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत अर्थात् ऋणात्मक संबंध (Inverse or Negative Relationship) को व्यक्त करता है। माँग के नियम के अनुसार यदि अन्य बातें समान रहें तो नीची कीमत पर वस्तु की माँग अधिक होगी और ऊँची कीमत पर वस्तु की माँग कम होगी। इसे हम निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

सेबों की कीमत (रु०) मेंसेबों की माँग (कि०ग्रा०) में
15200
14300
13500
12800
111200

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि जब सेबों की कीमत 15 रुपए प्रति किलोग्राम है, तो बाज़ार में सेबों की माँग 200 किलोग्राम है। यदि सेबों की कीमत घटकर 14 रुपए प्रति किलोग्राम हो जाती है, तो बाज़ार में सेबों की माँग 300 किलोग्राम हो जाती है।

प्रश्न 4.
माँग के कोई तीन निर्धारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग के तीन निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु की कीमत-साधारणतया ‘अन्य बातें समान रहने पर’ वस्तु की कम कीमत पर अधिक माँग तथा अधिक कीमत पर कम माँग की जाती है।

2. संबंधित वस्तुओं की कीमतें-एक वस्तु विशेष की माँग अन्य संबंधित वस्तुओं की कीमतों पर भी निर्भर करती है। संबंधित वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं-(1) पूरक वस्तुएँ तथा (2) स्थानापन्न या प्रतियोगी वस्तुएँ। पूरक वस्तुएँ वे हैं, जिनकी माँग एक साथ की जाती है; जैसे पेट्रोल तथा कार की माँग। इनका संबंध इस प्रकार का होता है कि एक की कीमत में वृद्धि से दूसरे की माँग कम हो जाती है तथा एक की कीमत में कमी होने से दूसरे की माँग बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, यदि कारों की कीमत कम हो जाती है तो पेट्रोल की माँग बढ़ जाती है। स्थानापन्न या प्रतियोगी वस्तुएँ वे हैं, जो कि एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जा सकती हैं; जैसे चाय के स्थान पर कॉफी। ऐसी दशा में यदि एक वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो इसकी प्रतियोगी वस्तु की माँग बढ़ जाती है।

3. उपभोक्ताओं की रुचि तथा प्राथमिकताएँ-उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन, आदत (Taste, Fashion and Habits) आदि का माँग पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जिन वस्तुओं के लिए उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ जाती है उनकी माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत रुचि कम होने पर माँग कम हो जाती है। यदि लोग चाय की अपेक्षा कॉफी पसंद करने लगते हैं तो कॉफी की माँग बढ़ जाएगी और चाय की माँग कम हो जाएगी। इसी प्रकार फैशन में परिवर्तन होने पर पुराने डिज़ाइन वाले कपड़ों की माँग कम हो जाती है और नए डिज़ाइन वाले कपड़ों की मांग बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.
माँग के संकुचन तथा माँग में कमी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग के संकुचन तथा माँग में कमी में अंतर निम्नलिखित हैं

माँग का संकुचनमाँग में कमी
1. यह वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होने के कारण होता है।1. यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों/कारकों; जैसे उपभोक्ता की आय में कमी, स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत में कमी, पूरक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि तथा प्राथमिकता में कमी आदि के कारण होती है।
2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह एक ही माँग वक्र के नीचे वाले बिंदु से ऊपर वाले बिंदु की ओर संचलन द्वारा प्रकट होता है।2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह माँग वक्र के पीछे या बाईं ओर खिसकाव द्वारा प्रकट होती है।

प्रश्न 6.
माँग के विस्तार तथा माँग में वृद्धि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग के विस्तार तथा माँग में वृद्धि में अंतर निम्नलिखित हैं-

माँग का विस्तारमाँग में वृद्धि
1. यह केवल वस्तुं की अपनी कीमत में कमी होने के कारण होता है।1. यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों/कारकों; जैसे कि उपभोक्ता की आय में वृद्धि, स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत में वृद्धि, पूरक वस्तुओं की कीमत में कमी तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि तथा प्राथमिकता में वृद्धि आदि के कारण होती है।
2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह माँग वक्र के दाईं या आगे की ओर खिसकाव द्वारा व्यक्त होती है।2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह एक माँग वक्र के ऊपर के बिंदु से नीचे के बिंदु की ओर संचलन द्वारा व्यक्त होता है।

प्रश्न 7.
माँग के विस्तार तथा संकुचन और माँग में वृद्धि तथा कमी में अंतर बताइए।
उत्तर:
माँग के विस्तार तथा संकुचन और माँग में वृद्धि तथा कमी में अंतर निम्नलिखित हैं-

माँग का विस्तार तथा संकुचनमाँग में वृद्धि तथा कमी
1. कीमत में परिवर्तन के कारण होता है।1. कीमत की अपेक्षा अन्य तत्त्वों; जैसे आय, फैशन, रीति-रिवाज, मौसम, जनसंख्या आदि में परिवर्तन के कारण होती है।
2. इसे ‘माँगी गई मात्रा में परिवर्तन’ कहते हैं।2. इसे ‘माँग में परिवर्तन’ कहते हैं।
3. चलन एक ही माँग वक्र पर होता है।3. माँग वक्र में खिसकाव होता है अर्थात चलन भिन्न माँग वक्र पर होता है।

प्रश्न 8.
माँग में वृद्धि के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर:
माँग में वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. उपभोक्ता की आय में वृद्धि
  2. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि
  3. पूरक वस्तु की कीमत में कमी
  4. वस्तु के लिए उपभोक्ता की पसंद तथा प्राथमिकता में वृद्धि
  5. क्रेताओं की संख्या में वृद्धि
  6. भविष्य में कीमत वृद्धि की संभावना
  7. भविष्य में उपभोक्ता की आय बढ़ने की संभावना।

प्रश्न 9.
“माँग वक्र जितना चपटा होगा, माँग की लोच उतनी ही अधिक होगी।” समझाइए।
उत्तर:
जब माँग वक्र एक ही बिंदु से निकल रही हो, तब माँग वक्र जितना चपटा होगा, माँग की लोच उतनी ही अधिक होगी। इस स्थिति को संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 4a
रेखाचित्र में एक ही बिंदु P से निकल रही माँग वक्र D2 चपटी है इसलिए माँग वक्र D1 की तुलना में अधिक लोचदार है। यह इसलिए होता है कि यदि वस्तु की कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है, तब माँग वक्र D1 शून्य (Zero) से OQ1 तक माँग की मात्रा में वृद्धि को दर्शाता है। जबकि माँग वक्र D2 शून्य से OQ2 माँग की मात्रा में वृद्धि को दर्शाता है। इसका अभिप्राय यह है कि कीमत में दिए हुए परिवर्तन के कारण D1 की तुलना में D2 में परिवर्तन D2 माँग की मात्रा अधिक है। अतः माँग वक्र D2 माँग वक्र D1 की तुलना में अधिक लोचदार है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 10.
सीमांत उपयोगिता ह्रासमान नियम को तालिका व रेखाचित्र द्वारा संक्षेप में समझाएँ।
उत्तर:
सीमांत उपयोगिता हासमान नियम के अनुसार जैसे-जैसे किसी व्यक्ति द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तु की इकाइयों में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। इसे निम्नांकित तालिका एवं रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है-
तालिका : सीमांत उपयोगिता हासमान नियम

उपभोग की गईकुल उपयोगिता
(TU)
सीमांत उपयोगिता
(MU)
188
2146
3184
4202
5200
618-2

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 5
रेखाचित्र में ox-अक्ष पर वस्तु की इकाइयों को तथा 0Y-अक्ष पर उपयोगिता को दर्शाया गया है। MU वक्र सीमांत उपयोगिता को प्रकट करता है। यह वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुका है। इसका तात्पर्य यह है कि अगली इकाई की सीमांत उपयोगिता (MU) घटती जाती है।।

प्रश्न 11.
अनधिमान मानचित्र से क्या अभिप्राय है? रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
संतुष्टि के विभिन्न स्तरों को व्यक्त करने वाले अनधिमान वक्रों के समूह को अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र कहते हैं। प्रत्येक अनधिमान वक्र विभिन्न संतुष्टि स्तर को दर्शाता है। इस प्रकार यह अनधिमान वक्रों का एक ऐसा परिवार है जो उपभोक्ता की दो वस्तुओं की संतुष्टि की पूर्ण तस्वीर पेश करता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 5a
संलग्न रेखाचित्र में दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों (संयोगों) की सहायता से तीन अनधिमान वक्र IC1, IC2, IC3 बनाए गए हैं। तीनों अनधिमान वक्रों को संयुक्त रूप से एक-साथ दर्शाने वाला रेखाचित्र अनधिमान मानचित्र कहलाएगा। इस संबंध में ध्यान देने योग्य बात यह है कि सबसे ऊँचा अनधिमान वक्र (जैसे कि रेखाचित्र में वक्र IC3) सर्वाधिक संतुष्टि का स्तर दर्शाता है, जबकि सबसे नीचा अनधिमान वक्र (जैसेकि रेखाचित्र में वक्र IC1) सबसे कम संतुष्टि स्तर को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में, अनधिमान वक्र उद्गम बिंदु O से जैसे-जैसे दूर होता जाएगा वैसे-वैसे उनका संतुष्टि स्तर बढ़ता जाएगा क्योंकि ऊँचे वक्र पर वस्तु-X और वस्तु-Y की इकाइयों का उपभोग अधिक हो रहा है।

प्रश्न 12.
किसी वस्तु की आवश्यकता और माँग के बीच अंतर बताइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की आवश्यकता से अभिप्राय यह होता है कि एक व्यक्ति उस वस्तु को प्राप्त करने का इच्छुक है। वस्तु की आवश्यकता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उस व्यक्ति के पास उस वस्तु को खरीदने के लिए क्रय-शक्ति भी हो। एक वस्तु की माँग से अभिप्राय यह है कि एक व्यक्ति उस वस्तु को प्राप्त करने का इच्छुक है, जिसे खरीदने के लिए उसके पास पर्याप्त क्रय-शक्ति है तथा खरीदने के लिए वह क्रय-शक्ति का त्याग करने के लिए तैयार है। इस प्रकार वस्तु की आवश्यकता माँग को जन्म देती है, परंतु आवश्यकता वस्तु की माँग नहीं बनाती।
वस्तु की माँग = वस्तु की आवश्यकता + व्यक्ति के पास समुचित क्रय-शक्ति होना + क्रय-शक्ति के त्याग की तत्परता

प्रश्न 13.
माँग वक्र का स्थानांतरण या माँग वक्र का खिसकाव या माँग में परिवर्तन क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
माँग वक्र के खिसकाव से अभिप्राय है कि माँग वक्र प्रारंभिक माँग वक्र के ऊपर या नीचे खिसक जाती है। इस प्रकार का परिवर्तन तब आता है जब कीमत के अतिरिक्त अन्य कारकों; जैसे आय, फैशन आदि में परिवर्तन होने से माँग कम या अधिक हो जाती है। इसे माँग के स्तर में होने वाला परिवर्तन कहा जाता है। इन तत्त्वों में परिवर्तन आने से माँग के घटने को माँग में कमी तथा माँग के बढ़ने को माँग में वृद्धि कहा जाता है।

प्रश्न 14.
एक वस्तु के माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने के कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
एक वस्तु के माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने के तीन कारण निम्नलिखित हैं-
1. आय में वृद्धि-जब किसी उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है, तो उसकी क्रय-शक्ति पहले की तुलना में अधिक हो जाती है। फलस्वरूप वह बाज़ार में अधिक मात्रा में वस्तु की माँग करेगा। इस प्रकार घटिया वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का माँग वक्र भी दाईं ओर खिसक जाता है।

2. रुचि और प्राथमिकता-जब उपभोक्ताओं की रुचि और प्राथमिकताओं में परिवर्तन किसी वस्तु के पक्ष में होता है, तो उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है, जिसके कारण माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाता है।

3. संबंधित वस्तुओं की कीमतें-यदि एक वस्तु की प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तो उस वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। यदि एक पूरक वस्तु की कीमत में गिरावट होती है, तो भी उस वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 15.
रेखाचित्रों की सहायता से माँग का संकुचन तथा माँग में कमी को समझाइए।
उत्तर:
माँग का संकुचन-जब कीमत में वृद्धि के कारण वस्तु की माँग में गिरावट आती है, तो इसे माँग का संकुचन कहते हैं। माँग के संकुचन में उसी माँग वक्र पर नीचे से ऊपर की ओर संचलन होता है; जैसे कि संलग्न रेखाचित्र (i) में दश कि जब वस्तु की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की माँग OQ से कम होकर OQ1 रह जाती है। अतः QQ1 वस्तु की माँग में संकुचन है।

माँग में कमी-जब वस्तु की कीमत में वृद्धि के अतिरिक्त अन्य कारणों से वस्तु की माँग में गिरावट होती है, तो इसे माँग , में कमी कहते हैं। माँग में कमी से माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है; जैसे कि संलग्न रेखाचित्र (ii) में दर्शाया गया है माँग में कमी को संलग्न रेखाचित्र (ii) द्वारा स्पष्ट किया गया है। रेखाचित्र में, हम देखते हैं कि माँग वक्र बाईं ओर खिसककर D1D1 हो गया है अर्थात् माँग OQ से घटकर OQ1 हो गई है। अतः QQ1 माँग में कमी है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 6

प्रश्न 16.
एक वस्तु के माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने के कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
एक वस्तु के माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने के तीन कारण निम्नलिखित हैं
1. आय में कमी-जब किसी उपभोक्ता की आय में कमी होती है, तो उसकी क्रय-शक्ति पहले की तुलना में कम हो जाती है। फलस्वरूप वह बाज़ार में कम मात्रा में वस्तु की माँग करेगा। इस प्रकार घटिया वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का माँग वक्र भी बाईं ओर खिसक जाता है।

2. रुचि और प्राथमिकता-जब उपभोक्ताओं की रुचि और प्राथमिकताओं में परिवर्तन किसी वस्तु के विरोध में होता है, तो उस वस्तु की माँग घट जाती है, जिसके कारण माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

3. संबंधित वस्तुओं की कीमतें यदि एक स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी होती है, तो उस वस्तु का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। यदि एक पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तो भी उस वस्तु का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 17.
यदि दो माँग वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, तो कटाव (प्रतिच्छेदन) बिंदु पर किस वक्र की लोच अधिक होगी?
उत्तर:
जब दो माँग वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, तो कटाव बिंदु पर कम ढाल वाले माँग वक्र की लोचशीलता अधिक होगी। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा समझा जा सकता है। रेखाचित्र में DD तथा D1D1 दो माँग वक्र हैं और ये C बिंदु पर काट रहे हैं। इस बिंदु के अनुरूप कीमत P0 और दोनों वक्रों पर माँग की मात्रा Q0 है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 7
जब कीमत बढ़कर P1 हो जाती है तो कम ढाल वाले माँग वक्र DD पर माँग की मात्रा में गिरावट Q0Q2 के बराबर आती है जबकि अधिक ढाल वाले माँग वक्र D1D1 पर गिरावट Q0Q0 है। अतः दोनों माँग वक्रों के लिए कीमत में प्रतिशत वृद्धि तो समान है, परंतु माँग की मात्रा में गिरावट कम ढाल वाले माँग वक्र पर अधिक है। स्पष्ट है कि कम ढाल वाले माँग वक्र के प्रतिच्छेदन (कटाव) बिंदु पर लोचशीलता अधिक होती है।

प्रश्न 18.
नीचे ढालू सीधी माँग-वक्र पर कीमत लोच Y-अक्ष पर (∞) से आरंभ होकर X-अक्ष पर शून्य (0) हो जाती है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
माँग की लोच को मापने का सूत्र है- \(e_{\mathrm{D}}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 8
नीचे दाईं ओर ढालू माँग वक्र का ढाल (Slope) \(\frac { ∆p }{ ∆q }\) के समान है और यह सारी माँग वक्र पर एक समान रहता है। इसका ये भी अर्थ है कि ढाल का उल्टा (Reciprocal of the Slope) अर्थात् \(\frac { ∆q }{ ∆p }\) भी समान रहेगा। इसलिए, माँग की लोच \(\frac { p }{ q }\) में परिवर्तन को में परिवर्तन के आधार पर जाना जा सकता है। जैसा कि रेखाचित्र में दर्शाया गया है, जहाँ DD रेखा Y-अक्ष पर मिलती है वहाँ माँग (q) शून्य है, इसलिए \(\frac { p }{ q }\)(∞) के समान है। इसके विपरीत जहाँ DD रेखा X-अक्ष पर मिलती है, वहाँ कीमत शून्य (0) है, इसलिए \(\frac { p }{ q }\) शून्य (0) के समान है।

प्रश्न 19.
अनधिमान वक्र के ऊपर तथा नीचे स्थित बिंदु क्या स्पष्ट करते हैं?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 9
अनधिमान वक्र के ऊपर तथा नीचे स्थित बिंदु अनधिमान वक्र के ऊपर के बिंदु उन बंडलों को दर्शाते हैं, जिन्हें अनधिमान वक्र पर स्थित बिंदुओं द्वारा प्रदर्शित बंडलों की अपेक्षा अधिमानता (Preference) दी गई है। अनधिमान वक्र पर स्थित बिंदओं द्वारा प्रदर्शित बंडलों को अनधिमान वक्र के नीचे स्थित बिंदओं द्वारा प्रदर्शित बंडलों की तलना में अधिमानता दी जाती है।

प्रश्न 20.
एक तालिका की सहायता से एक व्यक्ति की माँग और बाज़ार माँग के बीच भेद कीजिए।
उत्तर:
एक व्यक्ति की माँग अर्थात् व्यक्तिगत माँग से अभिप्राय वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक व्यक्ति विशेष द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं से है, जबकि बाज़ार माँग से अभिप्राय एक वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बाज़ार के सभी व्यक्तिगत उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं से है। इस प्रकार सभी व्यक्तियों की माँग का जोड़ बाज़ार माँग है। इसे हम निम्नलिखित तालिका द्वारा व्यक्त कर सकते हैं-
तालिका

आइसक्रीम की कीमत (रु०)अजय की माँगरोहित की माँगगौरव की माँगबाज़ार की माँग
170150130350
260100100260
3506080190
4403070140
5301060100
620005070

प्रश्न 21.
माँग का नियम बताइए और इसकी मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा वस्तु की माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत संबंध (Inverse Relationship) को व्यक्त करता है। माँग का नियम बतलाता है कि यदि ‘अन्य बातें समान रहें’ तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग घट जाती है और वस्तु की कीमत घटने पर उसकी माँग बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तु की कीमत और माँग में विपरीत अर्थात् ऋणात्मक संबंध होता है।

मान्यताएँ माँग के नियम की परिभाषा में ‘अन्य बातें समान रहें’ वाक्यांश का प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ यह है कि माँग का नियम कुछ मान्यताओं पर आधारित है; जैसे-

  • उपभोक्ताओं की आय में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं अर्थात् रुचि, फैशन तथा आदत आदि में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • वस्तु की निकट भविष्य में कीमत परिवर्तन की संभावना नहीं होती।
  • संबंधित वस्तुओं जैसे स्थानापन्न तथा पूरक वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • वस्तु सामान्य (Normal Goods) होनी चाहिए।

प्रश्न 22.
एक माँग वक्र की सहायता से माँग के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा वस्तु की माँगी गई मात्रा के बीच के संबंध को प्रदर्शित करता है। माँग के नियम के अनुसार, यदि अन्य बातें समान रहें, तो नीची कीमत पर वस्तु की माँग अधिक होगी और ऊँची कीमत पर वस्तु की माँग कम होगी। इस प्रकार माँग का नियम वस्तु की कीमत और माँग में विपरीत अथवा ऋणात्मक संबंध व्यक्त करता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 10
इस चित्र में वस्तु की OP कीमत पर वस्तु की माँग OQ है। जब कीमत घटकर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की माँग बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 23.
माँग वक्र दाहिनी ओर ढलवाँ क्यों होता है?
उत्तर:
माँग वक्र दाहिनी ओर ढलवाँ होता है जो वस्तु की कीमत और वस्तु की माँग के ऋणात्मक संबंध को प्रदर्शित करता है। माँग वक्र के दाहिनी ओर ढलवाँ होने का मुख्य कारण ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम है। ह्रासमान सीमांत उपयोगिता के अनुसार जैसे-जैसे व्यक्ति एक वस्तु की इकाइयों का उपभोग करता है, वैसे-वैसे उसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। एक उपभोक्ता वस्तु की उतनी ही इकाइयाँ खरीदेगा जितनी इकाइयाँ खरीदने पर उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान तथा वस्तु की कीमत बराबर हो। परिणामस्वरूप उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा तभी खरीदेगा, जब उसकी कीमत कम होकर सीमांत उपयोगिता के बराबर हो जाए। चूँकि सीमांत उपयोगिता वक्र भी दाहिनी ओर ढलवाँ होता है और माँग वक्र भी दाहिनी ओर ढलवाँ होता है।

प्रश्न 24.
माँग के नियम के अपवाद. बताइए।
उत्तर:

  1. माँग का नियम गिफ्फन वस्तुओं पर लागू नहीं होता। गिफ्फन वस्तुएँ निकृष्ट वस्तुएँ होती हैं; जैसे मोटा अनाज, मोटा कपड़ा, डालडा घी, इमली आदि।
  2. माँग का नियम जीवनोपयोगी वस्तुओं (रोटी, नमक) आदि पर लागू नहीं होता।
  3. माँग का नियम उस समय लागू नहीं होगा जब उपभोक्ताओं को भविष्य में कीमत बढ़ने या घटने की आशंका हो।
  4. माँग का नियम दिखावे और प्रतिष्ठा वाली वस्तुओं पर लागू नहीं होता।

प्रश्न 25.
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव बताइए।
उत्तर:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्त की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव की निम्नलिखित स्थितियाँ हो सकती हैं
(1) अनिवार्य वस्तुएँ वे हैं जो मानव जीवन के लिए अति आवश्यक हैं; जैसे भोजन, वस्त्र, मकान आदि। आय में वृद्धि होने पर कुछ समय तक तो इनकी माँग बढ़ेगी और उसके पश्चात् स्थिर हो जाएगी।

(2) आरामदायक और विलासिताओं में उन वस्तुओं को शामिल किया जाता है जो हमारे जीवन को आनंदमय बनाती हैं। आय में वृद्धि होने के साथ ऐसी वस्तुओं की माँग बढ़ती है।

(3) निकृष्ट अथवा घटिया वस्तुएँ वे हैं जिनको उपभोग के क्रम में सबसे निम्न स्थान मिलता है; जैसे मोटा कपड़ा, मोटा अनाज आदि । उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर निकृष्ट वस्तुओं की माँग में कमी आएगी, क्योंकि वह इन वस्तुओं का प्रतिस्थापन उत्कृष्ट वस्तुओं से करना चाहेगा।

प्रश्न 26.
संबंधित वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन का वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है? समझाइए।
उत्तर:
एक परिवार द्वारा एक वस्तु की माँग व अन्य वस्तुओं की कीमतों के बीच संबंधों को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की स्थानापन्न हैं, तो अन्य वस्तु की कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को कम करती है। उदाहरण के लिए, कॉफी की कीमत में कमी चाय की माँग को अपनी ओर आकर्षित कर चाय की माँग को कम कर देगी। इसी प्रकार कॉफी की कीमत में बढ़ोत्तरी से चाय की माँग में बढ़ोत्तरी होगी।

(2) यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की पूरक हैं, तो अन्य वस्तुओं की कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को आकर्षित करती है। उदाहरण के लिए, पेन की कीमत में कमी के कारण उसकी माँग और साथ ही साथ स्याही की मांग भी बढ़ जाएगी।

(3) यदि वस्तुएँ असंबंधित हैं, तो अन्य वस्तुओं की कीमत में गिरावट या बढ़ोत्तरी परिवार की वस्तु विशेष की माँग को प्रभावित नहीं कर पाती। उदाहरण के लिए, कपड़ों की कीमत में कमी से बॉल पेनों की माँग अप्रभावित रहेगी।

प्रश्न 27.
कॉफी की कीमत में वृद्धि का चाय की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कॉफी और चाय स्थानापन्न (Substitute) वस्तुएँ हैं। कॉफी की कीमत में वृद्धि से कॉफी की माँग चाय की ओर जाने की प्रवृत्ति को जन्म देगी, जिसके कारण चाय की माँग में वृद्धि होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 11
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब कॉफी की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो चाय की माँग जाती है, तो चाय की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो गई। इस प्रकार कॉफी की कीमत और चाय की माँग में धनात्मक संबंध होता है।

प्रश्न 28.
चाय की कीमत में वृद्धि का चीनी की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 12
चाय और चीनी पूरक (Complementary) वस्तुएँ हैं। चाय की कीमत में वृद्धि से चाय की माँग कम हो जाएगी। फलस्वरूप चाय की माँग में कमी से चीनी की मांग भी कम हो जाएगी, क्योंकि चाय और चीनी दोनों पूरक वस्तुएँ हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। – रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब चाय की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है, तो चीनी की माँग OQ से घटकर OQ1 रह जाती है। इस प्रकार चाय की कीमत और पूरक वस्तु चीनी की माँग में ऋणात्मक संबंध होता है।

प्रश्न 29.
सामान्य वस्तुओं और घटिया वस्तुओं के अर्थ समझाइए।
उत्तर:
सामान्य वस्तुओं अथवा श्रेष्ठ वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनकी माँग और उपभोक्ता की आय में सीधा संबंध होता है। घटिया (निकृष्ट) वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनकी माँग और उपभोक्ता की आय में विपरीत संबंध होता है। सामान्य वस्तुओं तथा घटिया वस्तुओं के आय माँग वक्र निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 13
आय में वृद्धि से सामान्य और अच्छी वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है, लेकिन घटिया वस्तुओं की माँग में कमी होती है। घटिया वस्तु का आय-माँग वक्र नीचे दायीं ओर ढाल वाला होता है, जबकि सामान्य/श्रेष्ठ वस्तु का आय-माँग वक्र बाएं से दाएं ऊपर की ओर ढाल वाला होता है।

प्रश्न 30.
मान लीजिए कि वस्तु A वस्तु Bकी स्थानापन्न है। Bकी कीमत में वृद्धि का Aकी माँग वक्र पर क्या प्रभाव B की कीमत में वृद्धि होगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 14
वस्तु A, वस्तु B की स्थानापन्न है जिसका अर्थ यह है कि वस्तु A और B दोनों एक ही प्रकार की आवश्यकता की संतुष्टि करते हैं अर्थात् वस्तु A को वस्तु B के स्थान पर D(नई माँग वक्र वस्तु A) प्रयोग में लाया जा सकता है। जब वस्तु B की कीमत में वृद्धि होती है, तो वह वस्तु A की तुलना में महँगी हो जाती है। उपभोक्ता वस्त B के स्थान पर वस्त A की ओर आकर्षित A की माँग होंगे। परिणामस्वरूप वस्तु B की कीमत में वृद्धि से वस्तु A का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाएगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र वृद्धि द्वारा दिखा सकते हैं।

प्रश्न 31.
वस्तु A तथा वस्तु B के उपभोग में पूरकता है। A की कीमत में वृद्धि का B के माँग वक्र पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 15
वस्तु A तथा वस्तु B पूरक वस्तुएँ हैं जिसका अर्थ यह है कि वस्तु A और वस्तु B दोनों का उपभोग साथ-साथ किया जाता है। जब वस्तु A की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु A की माँग में कमी होना स्वाभाविक है। वस्तु A की माँग में कमी से वस्तु B की मांग भी हो जाएगी। परिणामस्वरूप वस्तु B का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 32.
रेखाचित्र की सहायता से माँग के विस्तार को समझाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 16
माँग का विस्तार-किसी वस्तु की कीमत में कमी होने से यदि वस्तु की माँग पहले से अधिक हो जाती है, तो इसे माँग का विस्तार कहते हैं। माँग के विस्तार की स्थिति में उपभोक्ता उसी माँग वक्र पर ऊपर से नीचे दायीं ओर संचलन करता है, जैसे कि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है कि जब वस्तु की कीमत OP से घटकर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। QQ1 माँग का विस्तार है।

प्रश्न 33.
माँग में कमी के कारण बताइए।
उत्तर:
माँग में कमी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. उपभोक्ता की आय में कमी
  2. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी
  3. पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि
  4. वस्तु के लिए उपभोक्ता की पसंद व प्राथमिकता में कमी
  5. क्रेताओं की संख्या में कमी
  6. भविष्य में कीमत के कम होने की संभावना
  7. भविष्य में उपभोक्ता की आय कम होने की संभावना।

प्रश्न 34.
एक वक्रीय माँग वक्र के किन्हीं दो बिंदुओं पर माँग की लोच की गणना करके दर्शाएँ।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 17a
संलग्न रेखाचित्र में DD एक वक्रीय माँग वक्र है। यदि हम वक्रीय माँग वक्र पर स्थित किसी बिंदु पर माँग की लोच ज्ञात करते हैं, तो उस बिंदु को स्पर्श करती हुई एक स्पर्श रेखा (Tangent line) खींचेंगे। अब माँग की लोच निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके आसानी से निकाली जा सकती है
सूत्र के रूप में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 17
स्पर्श रेखा का ऊपरी भाग रेखाचित्र में DD एक वक्रीय माँग वक्र है, जिस पर दो बिंदु P और P1 स्थित हैं।
अब हम इन बिंदुओं को स्पर्श करती हुई दो सीधी रेखाएँ AB व A1B1 खींचते हैं। AB स्पर्श रेखा माँग वक्र DD पर स्थित P बिंदु को स्पर्श करती है, जबकि A1B1 रेखा P1 बिंदु को स्पर्श करती है। अब रेखा के निचले भाग को ऊपरी भाग से (\(\frac { PB }{ PA }\)) विभाजित करने पर P1 बिंदु पर माँग की लोच इकाई से अधिक प्राप्त होगी। इसी प्रकार P, बिंदु पर भी माँग की लोच ज्ञात की जा सकती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बजट रेखा की अवधारणा समझाइए। किन परिस्थितियों में बजट रेखा खिसक जाती है? रेखाचित्रों का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
बजट रेखा का अर्थ-बजट रेखा दो वस्तुओं के उन सभी बंडलों या संयोगों (Combinations) को दर्शाती है जिन्हें उपभोक्ता निश्चित आय और कीमतों पर अपनी समस्त आय से खरीद सकता है। दूसरे शब्दों में, बजट रेखा एक उपभोक्ता द्वारा दी हुई कीमतों और आय के आधार पर दो वस्तुओं पर व्यय की सभी संभावनाएँ दर्शाती है। इस प्रकार बजट रेखा उन संभावनाओं को प्रकट करती है जिन्हें एक उपभोक्ता अपनी दी हुई आय से खरीद सकता है। बजट रेखा का समीकरण निम्नलिखित है
P1x1 + P2 x2 = M
उदाहरण-उदाहरण के लिए, मान लो एक उपभोक्ता की आय (या बजट) 40 रु० है जिसे वह संतरों और सेबों के उपभोग पर व्यय करना चाहता है, जबकि सेब और संतरे की प्रति इकाई कीमत 10 रु० है। दी हुई आय और
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 18
कीमतों के आधार पर उपभोक्ता दो वस्तुओं के निम्नलिखित पाँच बंडलों या संयोगों को खरीद सकता है (0, 4), (1,3), (2, 2), (3, 1), (4,0) जिन पर व्यय, उसकी आय (40 रु०) के बराबर है।

जब ऐसे सभी बंडलों या संयोगों को ग्राफ पर अंकित कर जो बिंदु प्राप्त होते हैं उनको मिलाने से बजट रेखा निकल आती है; जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। उपभोक्ता बजट रेखा सीमा पर या इसके भीतर ही खरीद सकता है बाहर नहीं क्योंकि बजट रेखा उपभोक्ता के बजट (आय) से नियन्त्रित होती है। उपभोक्ता की आय या वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर बजट रेखा का ढाल (Slope) या स्थिति बदल .. जाती है। ध्यान से देखें तो उक्त संयोजनों में सेबों की इकाइयाँ घटाकर ही संतरों की इकाइयाँ बढ़ाई गई हैं। इसे हम रेखाचित्र में । संतरों को X-अक्ष पर और सेबों को Y-अक्ष पर मापकर दिखा सकते हैं। दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों/संयोगों के प्रतीक A, B, C, D, E बिंदुओं को मिलाने से एक सरल रेखा बन गई है जिसे बजट रेखा कहते हैं। ध्यान रहे बजट रेखा को कीमत रेखा (Price Line) या आय रेखा भी कहा जाता है।

बजट रेखा में खिसकाव-बजट रेखा में खिसकाव निम्नलिखित दो कारकों पर निर्भर करता है-

  • उपभोक्ता की आय
  • दोनों वस्तुओं की कीमतें।

जब उपर्युक्त दोनों कारकों अथवा उनमें से किसी एक कारक में कोई परिवर्तन होता है, तो बजट रेखा खिसक जाती है। उपभोक्ता की आय में कमी होने पर बजट रेखा बाईं ओर और उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर बजट रेखा दाईं ओर खिसक जाती है। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।

जब उपभोक्ता की आय स्थिर है लेकिन X-वस्तु की कीमत में गिरावट आती है, तो बजट रेखा में परिवर्तन होगा क्योंकि. अब उपभोक्ता X-वस्तु की अधिक इकाइयाँ खरीद सकेगा। इसी प्रकार यदि X-वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तो बजट रेखा .. में परिवर्तन होगा क्योंकि अब उपभोक्ता X-वस्तु की कम इकाइयाँ खरीद सकेगा। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 19

प्रश्न 2.
यह समझाइए कि उपभोक्ता संतुलन वहीं क्यों होता है जहाँ उसकी किसी वस्तु से प्राप्त सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान वस्तु की बाज़ार कीमत के समान है?
अथवा
एक ही वस्तु की स्थिति में, उपयोगिता तालिका (अनुसूची) की सहायता से उपभोक्ता के संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता के संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जहाँ उपभोक्ता को अपनी दी हुई आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो। उपयोगिता विश्लेषण के अनुसार, एक ही वस्तु की स्थिति में एक उपभोक्ता उस समय संतुलन की स्थिति में होगा जब सीमांत उपयोगिता (Marginal Utility – MU) का मौद्रिक मान और वस्तु की कीमत में समानता होगी। उपभोक्ता के संतुलन की स्थिति में उसकी कुल उपयोगिता का मौद्रिक मान और कुल व्यय का अंतर अधिकतम होना चाहिए। इसके लिए अग्रलिखित शर्त पूरी होनी चाहिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 20
एक रुपए की सीमांत उपयोगिता और वस्तु की कीमत को स्थिर तथा दिया हुआ मान लिया जाता है, लेकिन वस्तु की सीमांत उपयोगिता घटती हुई होती है। उपभोक्ता संतुलन की स्थिति में उनकी कुल उपयोगिता का मौद्रिक मान और कुल व्यय का अंतर अधिकतम होना चाहिए। यदि वस्तु की कीमत गिरती है, तो उपभोक्ता को प्राप्त उपयोगिता अधिक होगी और उपभोक्ता उस समय तक उपभोग करता रहेगा जब तक कि सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान वस्तु की कीमत के बराबर न हो।

उपभोक्ता के संतुलन को एक उदाहरण द्वारा भी समझाया जा सकता है। एक शीतल पेय की बोतल की कीमत 5 रुपए है – और 1 रुपए की सीमांत उपयोगिता 4 है। मोहिनी एक उपभोक्ता है जिसकी उपयोगिता तालिका निम्नलिखित है-

शीतल पेय की बोतलसीमांत उपयोगिता
160
240
320
410
500
610

मोहिनी तीसरी बोतल पर संतुलन की स्थिति में है और वह चौथी बोतल का उपयोग नहीं करेगी। तीसरी बोतल पर उपर्युक्त शर्त पूरी होती है। इस प्रकार,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 21

प्रश्न 3.
माँग की कीमत लोच से आप क्या समझते हैं? माँग की कीमत लोच की विभिन्न श्रेणियों की चित्र सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच का अर्थ-अन्य बातें समान रहते हुए, वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु की माँग की मात्रा में जिस अनुपात या दर से परिवर्तन होता है, उसे माँग की कीमत लोच कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 22
संक्षेप में, कीमत में परिवर्तन के प्रति माँग की प्रतिक्रिया का माप माँग की लोच कहलाती है। माँग की लोच के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि माँग की लोच सदैव ऋणात्मक होती है क्योंकि कीमत और माँग में विपरीत संबंध पाया जाता है। किंतु इसके लिए व्यवहार में ऋणात्मक चिह्न (-) का प्रयोग नहीं किया जाता।
माँग की कीमत लोच की श्रेणियाँ माँग की कीमत लोच की मुख्य रूप से निम्नलिखित पाँच श्रेणियाँ हैं-
1. पूर्णतया लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन हुए बिना अथवा नाममात्र का परिवर्तन होने पर उस वस्तु की माँग में बहुत अधिक परिवर्तन हो जाए, तो वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e = ∞ कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र OX-अक्ष के समानांतर होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि DD माँग वक्र पर OP कीमत में परिवर्तन हुए बिना कभी माँग बढ़कर OQ1 और कभी घटकर OQ2 हो जाती है। इस प्रकार की स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता (Perfect Competition) में देखने को मिलती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 24
2. पूर्णतया बेलोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर उसकी माँगी जाने वाली मात्रा में कोई परिवर्तन न हो, तो वस्तु की माँग पूर्णतया बेलोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e= 0 कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र OY-अक्ष के समानांतर होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि, DD माँग वक्र पर जब कीमत OP से बढ़कर OP1 या घटकर OP2 हो जाती है, तो माँग OQ ही रहती है। ऐसी स्थिति व्यवहार में बहुत कम देखने को मिलती है, हाँ यदि किसी वस्तु की माँग अत्यधिक आवश्यक हो; जैसे किसी विशेष दुर्लभ दवाई (Rare Medicine) की माँग अथवा किसी अत्यधिक व्यसनी की किसी अवांछनीय पदार्थ जैसे अफीम (Opium) आदि की माँग के लिए माँग वक्र उदग्र (Vertical) हो सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 25
3. इकाई लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की माँग में ठीक उसी अनुपात में परिवर्तन होता है जिस अनुपात में वस्तु की कीमत में परिवर्तन हुआ है, तो उसे वस्तु की इकाई लोचदार माँग कहा जाता है। यदि किसी वस्तु की कीमत में 25% परिवर्तन होने पर उसकी माँग में भी 25% परिवर्तन आता है, तो उसे इकाई लोचदार माँग कहा जाएगा। गणित की भाषा में इसे e = 1 कहा जाता है। इस स्थिति में माँग वक्र 45° का कोण बनाता हुआ होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि कीमत में होने वाला परिवर्तन PP1, माँग में होने वाले परिवर्तन QO1 के बराबर है अर्थात् ∆ P = ∆Q।
कीमत
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 26
माँग में % परिवर्तन = कीमत में % परिवर्तन
साधारणतया सुविधाओं (Comforts) के संदर्भ में माँग आनुपातिक लोचदार होती है।

4. अधिक लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में थोड़ा परिवर्तन होने से वस्तु की माँग में अधिक परिवर्तन होता है, तो उस वस्तु की माँग अधिक लोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e > 1 कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र अर्थ लेटी (Semi-Horizontal) अवस्था में होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि कीमत में होने वाला परिवर्तन PP, थोड़ा है तथा माँग में होने वाला परिवर्तन QQ. अधिक है अर्थात् ∆P < ∆ Q। माँग में % परिवर्तन > कीमत में % परिवर्तन
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 27
साधारणतया विलासिताओं (Luxuries) के संदर्भ में माँग अधिक लोचदार होती है।

5. कम लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में अधिक परिवर्तन आने से वस्तु की माँग में थोड़ा परिवर्तन होता है, तो उस वस्तु की माँग कम लोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e < 1 कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र अर्ध-उदग्र (Semi-Vertical) सा होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि कीमत में होने वाला परिवर्तन PP1 अधिक है जबकि माँग में होने वाला परिवर्तन QQ1 कम है अर्थात् ∆P > ∆Q1
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 28
माँग में % परिवर्तन < कीमत में %
परिवर्तन – साधारणतया अनिवार्यताओं (Necessaries) के संबंध में माँग कम लोचदार होती है।

प्रश्न 4.
माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक माग निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु की प्रकृति-किसी वस्तु की माँग की लोच अधिक होगी या कम, यह वस्तु विशेष की प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि वस्तु अनिवार्य है; जैसे गेहूँ, तो उसकी कीमत में बहुत अधिक परिवर्तन आने से भी माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता। अतः अनिवार्य वस्तु की माँग कम लोचदार होती है। इसके विपरीत, विलासिता की वस्तुओं; जैसे एयरकंडीशन की माँग प्रायः अधिक लोचदार होती है। जैसे ही विलासिता की वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन होता है, उनकी माँग में कीमत में परिवर्तन के अनुपात से अधिक परिवर्तन होता है।

2. स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धता-किसी वस्तु की यदि स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध हैं, तो उसकी माँग अधिक लोचदार होगी। उदाहरण के लिए, यदि ब्रुक बांड चाय की कीमत बढ़ जाती है, तो उपभोक्ता लिप्टन चाय का प्रयोग करना आरंभ कर देंगे तथा ब्रुक बांड चाय की माँग में काफी कमी आ जाएगी। दूसरी ओर, यदि एक वस्तु की स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध नहीं है; जैसे कि नमक, तो इसकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होगी।

3. वस्तु के कई उपयोग-यदि किसी वस्तु का एक ही उपयोग संभव हो तो उसकी कीमत में परिवर्तन होने से उसकी माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होगा। अतः इसकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होगी। दूसरी ओर, जिस वस्तु के कई उपयोग हैं; जैसे बिजली का उपयोग रोशनी के लिए, कमरा गर्म करने के लिए और भोजन पकाने के लिए किया जाता है, तो ऐसी वस्तु की कीमत के बढ़ने से माँग काफी कम हो जाती है तथा कीमत कम होने से माँग बढ़ जाती है। अतः इसकी माँग अधिक लोचदार मानी जाएगी।

4. उपभोग का स्थगित होना-यदि किसी वस्तु के उपभोग को कुछ समय के लिए स्थगित किया जाए तो उसकी माँग अधिक लोचदार होगी। गर्म कपड़े, टेलीविज़न, जूते आदि अनेक वस्तुओं के उपभोग को कुछ समय के लिए स्थगित करना संभव होता है। इन वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने से इनकी माँग कम हो जाएगी क्योंकि उपभोक्ता कुछ समय के लिए इन वस्तुओं को नहीं खरीदेगा। फलस्वरूप इनकी माँग लोचदार होगी, लेकिन अनिवार्य वस्तुओं; जैसे अनाज, नमक, दवाइयाँ इत्यादि का उपभोग कुछ समय के लिए स्थगित करना संभव नहीं होता। अतः इनकी माँग बेलोचदार होती है।

5. कीमतें-किसी वस्तु की माँग की लोच उस वस्तु की कीमत द्वारा भी प्रभावित होती है, जिन वस्तुओं की कीमतें बहुत अधिक या बहुत कम होती हैं; जैसे डायमंड तथा माचिस । इनकी माँग सामान्यतः बेलोचदार या कम लोचदार होती है। इन वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन आने से इनकी माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता। सामान्य कीमत वाली वस्तुओं; जैसे बिजली का पंखा आदि की माँग लोचदार होती है क्योंकि इनकी कीमत में होने वाले परिवर्तनों का माँग पर अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव पड़ता है।

6. वस्तु पर व्यय की जाने वाली आय का अनुपात-माँग की लोच इस बात से भी प्रभावित होती है कि उपभोक्ता अपनी कुल आय का कितना भाग वस्तु पर व्यय करता है। जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता की आय का बहुत थोड़ा भाग व्यय होता है; जैसे माचिस, ब्लेड, साबुन आदि, तो इनकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होती है। इसका कारण यह है कि इन वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन आने से उपभोक्ता द्वारा व्यय किए जाने वाले अनुपात में परिवर्तन नहीं आता और वस्तुओं की मांग भी कम नहीं होती। इसके विपरीत, जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता अपनी आय का अधिक भाग व्यय करता है; जैसे मकान का किराया, कपड़ों पर व्यय आदि, तो उनकी माँग अधिक लोचदार होती है।

7. आदतें माँग की लोच उपभोक्ता की आदतों पर भी निर्भर करती है। जिन वस्तुओं के उपभोग की उपभोक्ता को आदत पड़ जाती है; जैसे पान, सिगरेट, चाय इत्यादि तो इनकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होती है क्योंकि आदत संबंधी वस्तुओं की कीमत में कितनी भी वृद्धि होने पर माँग में कोई विशेष कमी नहीं आती।

8. समयावधि-माँग की लोच पर समयावधि का भी प्रभाव पड़ता है। अल्पकाल में वस्तु की माँग प्रायः कम लोचदार होती है, जबकि दीर्घकाल में माँग अधिक लोचदार होती है। इसका कारण यह है कि दीर्घकाल में वस्तु की माँग को कीमत के अनुरूप ढालने का काफी समय मिल जाता है, जबकि अल्पकाल में समय इतना कम होता है कि वस्तु की माँग को कीमतों के अनुरूप नहीं ढाला जा सकता।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 5.
एक वस्तु की माँग संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तनों से कैसे प्रभावित होती है? रेखाचित्रों की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
एक वस्तु की माँग और संबंधित वस्तुओं की कीमतों के संबंध को हम निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं-
1. स्थानापन्न अथवा प्रतियोगी वस्तुएँ-यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की स्थानापन्न हैं तो अन्य वस्तु की कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को कम करती है। उदाहरण के लिए, कॉफी की कीमत में कमी चाय की माँग को अपनी ओर आकर्षित कर चाय की माँग को कम कर देगी। इसी प्रकार कॉफी की कीमत में बढ़ोतरी से चाय की मांग में भी बढ़ोतरी होगी।

इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं- रेखाचित्र में दर्शाया गया है कि जब कॉफी की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तो चाय की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो गई। इस प्रकार कॉफी की कीमत और चाय की माँग में धनात्मक संबंध होता है।।
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2. पूरक वस्तुएँ यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की पूरक हैं तो अन्य वस्तुओं की | कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को आकर्षित करती है। उदाहरण के लिए, कार की कीमत में कमी के कारण उसकी माँग और साथ-ही-साथ पेट्रोल की माँग भी बढ़ जाएगी। इसी प्रकार चाय की कीमत में वृद्धि के कारण चाय की माँग में कमी से चीनी की माँग भी कम हो जाएगी, क्योंकि चाय और चीनी दोनों पूरक वस्तुएँ हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्रों स्पष्ट कर सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 30
रेखाचित्र (i) से स्पष्ट है कि जब कार की कीमत OP से घटकर OP1 हो जाती है, तो पेट्रोल की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। इसी प्रकार रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट है कि जब चाय की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है, तो चीनी की माँग OQ से घटकर OQ1 हो जाती है। इस प्रकार चाय की कीमत और चीनी की माँग में ऋणात्मक संबंध है।

प्रश्न 6.
उदाहरण की सहायता से माँग की कीमत लोच को मापने की कुल व्यय विधि बताइए।
उत्तर:
कुल व्यय विधि के अनुसार, माँग की लोच का माप वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु पर किए गए कुल व्यय में होने वाले परिवर्तन के आधार पर किया जाता है। कुल व्यय की गणना वस्तु की कीमत को उसकी माँग की मात्रा से गुणा करके की जाती है अर्थात् TE = P x D । कुल व्यय विधि के अनुसार, माँग की लोच को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
1. इकाई से अधिक लोच-यदि कीमत के घटने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय बढ़ जाए और कीमत के बढ़ने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय घट जाए, तो माँग की लोच इकाई से अधिक होती है। सांकेतिक रूप में
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 31

2. इकाई के बराबर लोच-यदि वस्तु की कीमत घटने अथवा बढ़ने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय स्थिर रहता है, तो माँग की लोच इकाई के बराबर होती है। सांकेतिक रूप में
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3. इकाई से कम लोच यदि वस्तु की कीमत के घटने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय घट जाए और कीमत के बढ़ने से कुल व्यय बढ़ जाए तो माँग की लोच इकाई से कम होती है। सांकेतिक रूप में
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कुल व्यय विधि को निम्नलिखित तालिका द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है
तालिका
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तालिका में स्पष्ट किया गया है कि जब कीमत 10 रुपए प्रति इकाई है तो वस्तु पर कुल व्यय 10 रुपए किया जाता है, परंतु जब कीमत कम होकर 9 रुपए हो जाती है तो इस वस्तु पर कुल व्यय बढ़कर 18 रुपए तथा जब कीमत 8 रुपए हो जाती है तो – कुल व्यय 24 रुपए हो जाता है। अतः माँग की कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) इकाई से अधिक है। जब कीमत 6 रुपए प्रति इकाई से कम होकर 5 रुपए हो जाती है तो कुल व्यय 30 रुपए ही रहता है। अतः माँग की.

कुल व्यय वक्र कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) इकाई के बराबर है। जब कीमत 4 रुपए से 3 रुपए तथा 3 रुपए से 2 रुपए हो जाती है, तो कुल व्यय 28 रुपए से कम होकर 24 रुपए तथा फिर 18 रुपए हो जाता है। अतः माँग की कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) इकाई से कम है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 35
कल व्यय विधि को रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र में OX-अक्ष पर कुल व्यय तथा OY-अक्ष पर कीमत मापी गई है। ABCD कुल व्यय रेखा है। इसका AB भाग इकाई से अधिक कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) को प्रकट करता है, क्योंकि इस स्थिति में कीमत के कम होने से कुल व्यय बढ़ता है। कुल व्यय रेखा का BC भाग इकाई लोचदार माँग को व्यक्त करता है, कुल व्यय क्योंकि कीमत परिवर्तन से कुल व्यय में कोई परिवर्तन नहीं होता। CD भाग इकाई से कम लोचदार माँग को व्यक्त करता है, क्योंकि इस अवस्था में कीमत के कम होने से कुल व्यय भी कम हो जाता है।

प्रश्न 7.
अनधिमान वक्र की सहायता से उपभोक्ता के इष्टतम चयन को समझाइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
अथवा
अनधिमान/तटस्थता वक्र की सहायता से उपभोक्ता तटस्थता की इष्टतम या संतुलन स्थिति को समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता संतुलन की अवस्था को तब प्राप्त करता है, जब वह दी हुई आय और वस्तुओं की दी हुई कीमतों पर अपनी संतुष्टि को अधिकतम करता है। यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण बात दो वस्तुओं के उस संयोग (Combination) का चयन करना है जो उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करता है। इसके लिए तीन जानकारियाँ जरूरी हैं-(i) उपभोक्ता की आय, (ii) वस्तुओं की कीमतें (इन दोनों सूचनाओं का प्रतिनिधित्व बजट रेखा करती है) और (iii) अधिमान सारणी (Preference Schedule) जिसे अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र दर्शाता है। उपभोक्ता का संतुलन उस बिंदु पर होता है जहाँ बजट रेखा उच्चतम प्राप्य (Highest attainable) अनधिमान (तटस्थता) वक्र को स्पर्श करती है अर्थात् स्पर्श रेखा (Tangent) बन जाती है। इस बिंदु पर अनधिमान (तटस्थता) वक्र का ढाल (Slope) बजट रेखा के ढाल के बराबर होता है।

संलग्न अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र (Indifference Map) में हम बजट रेखा (कीमत रेखा) M खींचते हैं। उपभोक्ता का लक्ष्य अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र में सबसे ऊँचा वह बंडल (संयोग) (Combination) उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करना है जो बजट रेखा के अंतर्गत संभव हो। वह केवल उस बिंदु प संतुलन प्राप्त करेगा जो बजट रेखा और सर्वोच्च प्राप्य अनधिमान (तटस्थता) वक्र में साझा (Common) बिंदु हो। दूसरे शब्दों में, जिस बिंदु पर बजट रेखा ऊँचे-से-ऊँचे अनधिमान (तटस्थता) वक्र को स्पर्श करती है वही संतुलन बिंदु होगा। रेखाचित्र में बिंदु P संतुलन बिंदु है जहाँ बजट रेखा M उच्चतम प्राप्य (Attainable) वक्र IC2 को स्पर्श करती है। अनधिमान (तटस्थता) वक्र IC3 पर स्थित बंडल (संयोग) बजट रेखा की सीमा से बाहर (ऊपर) होने के कारण अप्राप्य है, जबकि IC1 वक्र पर बंडल (संयोग) वक्र IC2 के बंडल (संयोग) से निश्चित रूप से घटिया है। अतः आदर्शतम या इष्टतम (Optimum) बंडल (संयोग) उस बिंदु पर स्थित है जिस पर बजट रेखा अनधिमान (तटस्थता) वक्र IC2 को स्पर्श (Tangent) करती है। यहाँ वह बिंदु P है।
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संक्षेप में, उपभोक्ता संतुलन की दो शर्ते हैं-
(i) बजट रेखा को अनधिमान (तटस्थता) वक्र पर स्पर्श रेखा (Tangent) होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, अनधिमान (तटस्थता) वक्र का ढाल = बजट रेखा का ढाल।
(ii) संतुलन बिंदु (यहाँ बिंदु P) पर अनधिमान (तटस्थता) वक्र उद्गम (Origin) बिंदु O की ओर उन्नतोदर (Convex) होना चाहिए अर्थात् सीमांत प्रतिस्थापन दर (Marginal Rate of Substitution) घटती हुई होनी चाहिए।

प्रश्न 8.
माँग वक्र क्या है? माँग वक्र का ढलान किन परिस्थितियों में धनात्मक होता है?
अथवा
माँग के नियमों के अपवादों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
माँग वक्र-माँग वक्र एक ऐसा वक्र होता है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर माँगी जाने वाली विभिन्न मात्राएँ दर्शाता है। कई विशेष परिस्थितियों में माँग का नियम लागू नहीं होता अर्थात् कीमत और माँग में विपरीत संबंध देखने को नहीं मिलता। इन परिस्थितियों में कीमत बढ़ने पर माँग बढ़ती है और कीमत कम होने पर माँग कम हो जाती है। माँग के नियम के अपवाद की स्थिति में माँग वक्र का ढाल दाईं ओर ऊपर उठता हुआ होता है। जैसा कि संलग्न चित्र में दिखाया गया है।
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माँग के नियम के अपवाद अथवा माँग वक्र के धनात्मक ढलान के कारण-माँग के नियम के कुछ महत्त्वपूर्ण अपवाद अथवा सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
1. अनिवार्य वस्तुएँ -बेन्हम (Benham) के अनुसार जीवन की अनिवार्य वस्तुओं; जैसे गेहूँ, चावल, दालें, घी, आटा, नमक, चीनी, तेल, साबुन आदि पर यह नियम लागू नहीं होता। आटे की कीमत चाहे अधिक हो या कम, फिर भी उपभोक्ता उसकी माँग पहले जितनी ही करता है।

2. वस्तुओं की दुर्लभता का डर-बेन्हम (Benham) के अनुसार जब किसी वस्तु की आने वाले समय में (आपात्कालीन स्थिति; जैसे युद्ध, अकाल आदि) के कारण कमी (Scarcity) हो जाने का डर हो, तो वर्तमान में उसकी कीमत बढ़ने पर भी उसकी माँग बढ़ती जाती है; जैसे भारत में मिट्टी का तेल, डीजल, सीमेंट, रासायनिक खाद, कोयला आदि वस्तुओं की दुर्लभता का डर प्रत्येक समय बना रहता है। यदि इन वस्तुओं की कीमत बढ़ जाए, तो भी इनकी माँग बढ़ जाती है।

3. गिफ्फन वस्तुएँ सर रॉबर्ट गिफ्फन (Sir Robert Giffen) के अनुसार गिफ्फन वस्तुओं (Giffen Goods) पर माँग का नियम लागू नहीं होता। गिफ्फन वस्तुओं की कीमतें बढ़ने पर उनकी अधिक माँग और कीमत गिरने पर उनकी कम माँग की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज की कीमतें कम हो जाती हैं तो आवश्यक नहीं कि उ अधिक मात्रा खरीदें। कीमत कम होने से उपभोक्ता की वास्तविक आय बढ़ जाती है, जिसका वह उत्तम अनाज-गेहूँ, चावल, आदि खरीदने में उपयोग करता है, जिससे मोटे अनाज की माँग कम हो जाएगी। इस प्रकार घटिया वस्तुओं पर यह नियम लागू नहीं होता।

भी घटिया वस्तुएँ माँग के नियम का अपवाद नहीं हैं अर्थात सभी घटिया वस्तुएँ गिफ्फन वस्तएँ नहीं हैं। वे सभी वस्तुएँ घटिया होती हैं जिनका आय प्रभाव ऋणात्मक होता है अर्थात् आय में परिवर्तन होने से जिनकी माँग में विपरीत दिशा में परिवर्तन होता है। परंतु माँग का नियम केवल उन घटिया वस्तुओं पर लागू नहीं होता जिनका धनात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव, ऋणात्मक आय-प्रभाव से कम है। जिन घटिया वस्तुओं का ऋणात्मक आय प्रभाव धनात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव से कम है, उन पर माँग का नियम लागू होता है।

4. उपभोक्ता की अज्ञानता-उपभोक्ता की अज्ञानता के कारण भी यह नियम लागू नहीं होता। कभी-कभी उपभोक्ता अज्ञानता के कारण यह सोचता है कि महँगी वस्तुएँ श्रेष्ठ और सस्ती वस्तुएँ निम्नकोटि की होती हैं। ऐसी स्थिति में वे कीमतें बढ़ने पर ही वस्तु की अधिक माँग करते हैं; जैसे क्रीम, पाउडर, लिपस्टिक आदि कॉस्मेटिक्स की बिक्री ऊँची कीमत के आधार पर होती है। सस्ती कीमत पर उपभोक्ता इन्हें घटिया समझकर नहीं खरीदता, परंतु महँगी कीमतों पर वह इन्हें बढ़िया समझकर खरीद लेता है।

5. प्रतिष्ठासूचक वस्तुएँ यह नियम मिथ्या आकर्षण (Snob Appeal) वाली वस्तुओं पर भी लागू नहीं होता। कुछ वस्तुएँ; जैसे आयातित कार, बहुमूल्य हीरे-जवाहरात, कीमती कालीन इत्यादि ऐसी होती हैं जो केवल दिखावे के लिए प्रयोग की जाती हैं और जिन्हें धनी व्यक्ति केवल मान-सम्मान पाने के लिए अपने पास रखना चाहते हैं। जैसे-जैसे इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जाती हैं, उनकी माँग घटने के स्थान पर अधिक हो जाती है।

प्रश्न 9.
माँग वक्र क्या है? माँग वक्र का ढलान नीचे की ओर क्यों झुका होता है?
अथवा
माँग का नियम क्या है? यह नियम क्यों लागू होता है?
उत्तर:
माँग का नियम अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण नियम है। माँग का नियम कीमत तथा माँग में विपरीत संबंध (Inverse Relationship) व्यक्त करता है। माँग का नियम बतलाता है कि यदि ‘अन्य बातें समान रहें’ तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग घट जाती है और वस्तु की कीमत घटने पर उसकी माँग बढ़ जाती है। सांकेतिक रूप में माँग का नियम स्पष्ट करता है कि
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माँग के नियम को निम्नलिखित समीकरण द्वारा भी व्यक्त किया जा सकता है
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इसे ऐसे भी पढ़ा जाता है कि X वस्तु की माँग X वस्तु की कीमत का फलन है जबकि संबंधित वस्तुओं की कीमत (P1), उपभोक्ता की आय (Y) तथा रुचि (T) आदि स्थिर रहते हैं अर्थात् किसी वस्तु की कीमत और माँग में विपरीत फलनात्मक संबंध (Inverse Functional Relationship) पाया जाता है। वस्तु की कीमत में कमी होने पर वस्तु की अधिक मात्रा और वस्तु की कीमत बढ़ने पर वस्तु की कम मात्रा खरीदी जाती है।

माँग के नियम को निम्नांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
तालिका

चीनी की कीमत
प्रति किलो
(र० में)
चीनी की माँग
(किलो में)
50100
40120
30150
20200
10300

रेखाचित्र-माँग के नियम को संलग्न रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।

रेखाचित्र में DD वस्तु का बाज़ार माँग वक्र है जो तालिका में दिए गए आँकड़ों के आधार पर खींचा गया है। DD माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुक रहा है, जो यह स्पष्ट करता है कि वस्तु की कम कीमत पर अधिक माँग और अधिक कीमत पर कम माँग की जाती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 40
माँग वक्र माँग वक्र एक ऐसा वक्र होता है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर माँगी जाने वाली विभिन्न मात्राएँ दर्शाता है।

माँग के नियम के लागू होने के कारण अथवा माँग वक्र के दाईं ओर झुकने के कारण-माँग के नियम के लागू होने अथवा माँग वक्र के माँग (किलोग्राम में) दाईं ओर नीचे झुकने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
1.हासमान सीमांत उपयोगिता का नियम-इस नियम के अनुसार जैसे-जैसे किसी व्यक्ति के पास एक विशेष वस्तु का स्टॉक बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है, क्योंकि u = f (s)। उपयोगिता (u) स्टॉक (s) का फलन होती है। एक उपभोक्ता वस्तु की उतनी इकाइयाँ खरीदता है जितनी इकाइयाँ खरीदने से उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता तथा कीमत बराबर हो जाए। परिणामस्वरूप उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा तभी खरीदेगा जब उसकी कीमत कम होकर सीमांत उपयोगिता के बराबर हो जाए। इसलिए कम कीमत पर अधिक माँग और अधिक कीमत पर कम माँग की जाती है।

2. आय प्रभाव आय प्रभाव के कारण भी माँग का नियम लागू होता है। एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन का उपभोक्ता की वास्तविक आय (Real Income) पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे आय प्रभाव कहते हैं। जब वस्तु की कीमत गिरती है, तो उपभोक्ता की वास्तविक आय (अर्थात् मौद्रिक आय की क्रय-शक्ति) बढ़ती है क्योंकि अब उपभोक्ता को पहले जितनी वस्तु की मात्रा खरीदने के लिए कम खर्च करना पड़ता है और इसी बची हुई राशि से उसके लिए अधिक मात्रा खरीदना संभव हो जाता है। अतः कीमत के गिरने से आय प्रभाव द्वारा वस्तु की माँग बढ़ेगी और कीमत के बढ़ने से आय प्रभाव द्वारा वस्तु की माँग गिरेगी।

3. स्थानापन्न प्रभाव-स्थानापन्न प्रभाव का संबंध दो वस्तुओं की सापेक्षिक कीमतों (Relative Prices) में परिवर्तन का वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव से है; जैसे चाय और कॉफी में से किसी एक वस्तु जैसे कॉफी की कीमत बढ़ जाने पर, जो लोग कॉफी के स्थान पर चाय की जितनी अधिक मात्रा खरीदेंगे, उसे प्रतिस्थानापन्न प्रभाव कहते हैं। जब दो संबंधित वस्तुओं की कीमत में ऐसा परिवर्तन होता है कि एक वस्तु सस्ती और दूसरी महँगी होती है, तो उपभोक्ता सस्ती वस्तु को महँगी वस्तु के लिए प्रतिस्थापित करेगा क्योंकि सस्ती वस्तु महँगी वस्तु की तुलना में अधिक मूल्य आकर्षक (Price Attractive) हो जाती है। परिणामस्वरूप जिस वस्तु की कीमत गिरती है, उसकी माँग बढ़ जाती है। अतः स्थानापन्न प्रभाव के कारण कम कीमत वाली वस्तु की अधिक माँग और अधिक कीमत वाली वस्तु की कम माँग की जाती है।

4. विभिन्न प्रयोग कुछ वस्तुओं के विभिन्न प्रयोग होते हैं। ऐसी वस्तु की कीमत गिरने से उसकी माँग अधिक होगी। उदाहरण के लिए, यदि बिजली की कीमत प्रति यूनिट गिर जाए तो लोग बिजली को अनेक प्रयोगों; जैसे प्रैस करने, कपड़े धोने की मशीन चलाने, पानी गर्म करने, हीटर जलाने इत्यादि में प्रयुक्त करेंगे। इससे बिजली की माँग बढ़ेगी। यदि बिजली महँगी हो तो लोग केवल रोशनी करने और पंखा चलाने में ही बिजली का प्रयोग करेंगे। इससे बिजली की माँग घटेगी। अतः विभिन्न प्रयोगों वाली । वस्तुओं की कीमत गिरने पर अधिक माँग और कीमत बढ़ने पर कम माँग की जाती है।

5. बाज़ार में नए उपभोक्ताओं का प्रवेश-किसी वस्तु की कीमत कम होने पर कई नए उपभोक्ता, जो पहले उस वस्तु को नहीं खरीद रहे थे, खरीदने लगते हैं और वस्तु की माँग बढ़ जाती है। मान लीजिए जब अंगूर रु० 50 प्रति किलो होता है तो केवल कुछ धनी व्यक्ति ही अंगूर खरीदेंगे और अंगूर की माँग कम होगी। यदि अंगूर की कीमत कम होकर रु० 10 प्रति किलो हो जाती है, तो कुछ नए उपभोक्ता भी अंगूर की माँग करने लगते हैं और अंगूर की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत, वस्तु की कीमत बढ़ने पर पुराने उपभोक्ता भी उसे खरीदना बंद कर देते हैं और वस्तु की माँग कम हो जाती है।

प्रश्न 10.
माँग की कीमत लोच के माप की प्रतिशत विधि अथवा आनुपातिक विधि को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
इस विधि के द्वारा माँग की लोच का माप वस्तु की माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन को वस्तु की कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन से भाग देकर किया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 41
यदि प्रतिशत परिवर्तन के स्थान पर आनुपातिक परिवर्तन ले लिए जाए तो भी माँग की कीमत लोच को मापा जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 42
[यहाँ q0 = वस्तु की आरंभिक माँग, q1 = वस्तु की नई माँग, p0 = वस्तु की आरंभिक कीमत, p1 = वस्तु की नई कीमत, ∆q = q1 – q0 (माँग में परिवर्तन), ∆p = p1 – p0 (कीमत में परिवर्तन) ∆ = डेल्टा (परिवर्तन का चिह्न)]
or eD = \(\frac{\Delta q}{q^{0}} \div \frac{\Delta p}{p^{0}}=\frac{\Delta q}{q^{0}} \times \frac{p^{0}}{\Delta p}\)
or eD = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
प्रतिशत और आनुपातिक विधियाँ दोनों एक हैं। यह निम्नलिखित विश्लेषण से स्पष्ट है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 43
इस प्रकार इस विधि के अनुसार, माँग की लोच को मापने का सूत्र है- eD = \(\frac{\mathrm{p}^{0}}{\mathrm{q}^{0}} \times \frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}}\)

उदाहरण 

मान लीजिए चीनी की कीमत 10 रुपए प्रति किलोग्राम है, तो चीनी की माँग 100 किलोग्राम है। यदि चीनी की कीमत बढ़कर 11 रुपए प्रति किलोग्राम हो जाती है, तो माँग घटकर 80 किलोग्राम रह जाती है। इस उदाहरण में माँग की कीमत लोच … क्या है?
हल:

चीनी की कीमत माँग
(प्रति किलोग्राम)।
माँग
(किलोग्राम में)
10 रु०100
11 रु०80

(यहाँ, p0 = 10, p1 = 11, ∆p = 11 – 10 = 1
q0 = 100, q1 = 80, ∆q = 80 – 100 = – 20)
eD = \(\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{\mathrm{p}^{0}}{\mathrm{q}^{0}}=\frac{-20}{1} \times \frac{10}{100}\)
इस उदाहरण में माँग की लोचशीलता -2 है, (-) ऋणात्मक चिह्न हम छोड़ देते हैं। यह केवल कीमत और माँग में विपरीत संबंध का प्रतीक है। अतः माँग की लोच इकाई से अधिक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 11.
माँग की कीमत लोच के माप की ज्यामितीक विधि समझाइए।
अथवा
माँग की मूल्य लोच के माप की बिंदु विधि को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बिंदु लोच विधि अथवा ज्यामितीक विधि-माँग की लोच को मापने की बिंदु विधि को रेखा गणितीय विधि (Geometrical Method) भी कहा जाता है। जब किसी वस्तु की कीमत एवं माँग में बहुत सूक्ष्म परिवर्तन हो तो ऐसी स्थिति में माँग वक्र के किसी एक विशेष बिंदु पर माँग की लोच ज्ञात की जाती है। इस विधि के अनुसार माँग वक्र पर स्थित किसी बिंदु पर माँग की लोच का माप निम्नलिखित सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जाता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 44
यदि Lower Sector > Upper Sector हो तो e > 1 होगी।
यदि Lower Sector < Upper Sector हो तो e < 1 होगी।
यदि Lower Sector = Upper Sector हो तो e = 1 होगी।

इस सूत्र के द्वारा माँग की कीमत लोच का माप निम्न स्पष्ट है- संलग्न चित्र में AB एक सीधी रेखा है। इस माँग वक्र के P बिंदु पर माँग की लोच =\(\frac { PB }{ PA }\) होगी। यहाँ चूंकि PB = PA है इसलिए माँग की लोच इकाई के बराबर अर्थात् e = 1 है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 45
बिंदु विधि की सहायता से माँग वक्र के विभिन्न बिंदुओं पर माँग की लोच को मापा जा सकता है। जैसा कि चित्र से स्पष्ट है।

चित्र में AB माँग वक्र की लंबाई मान लो 4″ है। माँग वक्र पर तीन बिंदु N, M, L एक-दूसरे से एक-एक इंच की दूरी पर हैं। अतः

M बिंदु पर माँग की लोच = \(\frac{\mathrm{MB}}{\mathrm{MA}}=\frac{2^{\prime \prime}}{2^{\prime \prime}}\) अर्थात् e = 1 होगी।

N बिंदु पर माँग की लोच = \(\frac{\mathrm{NB}}{\mathrm{NA}}=\frac{3^{\prime \prime}}{1^{\prime \prime}}\) अर्थात् e > 1 होगी।

L बिंदु पर माँग की लोच = \(\frac{\mathrm{LB}}{\mathrm{LA}}=\frac{1^{\prime \prime}}{3^{\prime \prime}}\) अर्थात् e < 1 होगी।

बिंदु A पर माँग का निचला हिस्सा AB होगा तथा ऊपर का शून्य होगा, इसलिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 46
e = \(\frac{\mathrm{AB}}{0}=\frac{4^{\prime \prime}}{0}\)
अर्थात् e = ∞ (अनंत होगी)।
B बिंदु पर निचला हिस्सा शून्य है तथा ऊपर का हिस्सा AB है। इसलिए e = \(\frac{0}{\mathrm{AB}}=\frac{0}{4^{\prime \prime}}\) अर्थात् e = 0 होगी।
संक्षेप में, सीधी माँग वक्र के मध्य-बिंदु पर माँग की कीमत लोच इकाई के बराबर होगी। मध्य-बिंदु के बाईं ओर के बिंदुओं पर यह इकाई से अधिक होगी, जबकि उसके दाईं ओर स्थित बिंदुओं पर कीमत लोच इकाई से कम होगी। जिस बिंदु पर माँग वक्र OX-अक्ष को स्पर्श करता है, उस बिंदु पर कीमत लोच शून्य होगी, जबकि माँग वक्र के OY-अक्ष पर स्पर्शीय बिंदु पर कीमत लोच अनंत होगी।
संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी उपभोक्ता की कुल उपयोगिता सूची निम्नांकित तालिका में दिखाई जा रही है। उसकी सीमांत उपयोगिता सची की रचना करें।

उपभोग की इकाइयाँ012345
कुल उपयोगिता (TU)01025384855

हल:

उपभोग की इकाइयाँकुल उपयोगिता (TU)सीमांत उपयोगिता (MU)
000
11010 – 0 = 10
22525 – 10 = 15
33838 – 25 = 13
44848 – 38 = 10
55555 – 48 = 7

प्रश्न 2.
निम्नांकित तालिका में एक उपभोक्ता की सीमांत उपयोगिता सूची दी गई है। यदि शून्य उपभोग की दशा में कुल उपयोगिता भी शून्य हो तो उसकी कुल उपयोगिता सूची की रचना करें।

उपभोग की इकाइयाँ123456
सीमांत उपयोगिता (MU)7108630

हल:

उपभोग की इकाइयाँसीमांत उपयोगिता (MU)कुल उपयोगिता (TU)
000
177
2107 + 10 = 17
3817 + 8 = 25
4625 + 6 = 31
5331 + 3 = 34
6034 + 0 = 34

प्रश्न 3.
निम्नांकित तालिका को पूरा करें-

उपयुक्त इकाइयाँसीमांत उपयोगिता (MU)कुल उपयोगिता (TU)
15050
290?
3?30
4140?
5150?

हल:
कुल उपयोगिता (TU) : 50, 90, 120, 140, 150
सीमांत उपयोगिता (MU) : 50, 40, 30, 20, 10

प्रश्न 4.
निम्नांकित तालिका को पूरा करें-

उपयुक्त इकाइयाँकुल उपयोगिता (TU)सीमांत उपयोगिता (MU)
19
2
36
427
52
627

हल:
कुल उपयोगिता (TU) : 9, 16, 27, 27, 29, 27
सीमांत उपयोगिता (MU) : 9, 7, 6, 5, 2, -2

प्रश्न 5.
नीचे एक उपभोक्ता की वस्तु-X के लिए उपयोगिता तालिका दी हुई है। वस्तु-X की कीमत 6 रु० है। अपनी संतुष्टि को अधिकतम करने के लिए वह कितनी इकाइयों का उपभोग करेगा? (यह मान लीजिए कि उपयोगिता यूटिल्स में मापी जाती है और 1 यूटिल = 1 रु०) अपने उत्तर के लिए कारण दें।

उपयुक्त इकाइयाँकुल उपयोगिता
(यूटिल्स)
सीमांत उपयोगिता
(यूटिल्स)
11010
2188
3257
4316
5343
6340

हल:
उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करता है जब-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 47
उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए 4 इकाइयाँ खरीदेगा।

प्रश्न 6.
एक आइसक्रीम 20 रु० की बेची जाती है। रोहन जिसे आइसक्रीम पसंद है, 7 आइसक्रीम का उपभोग कर चुका है। उसके 1 रु० की सीमांत उपयोगिता 7 है। क्या वह आइसक्रीम का और उपभोग करेगा या उपभोग बंद कर देगा ?
हल:
एक उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करता है जब
\(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{X}}}{\mathrm{P}_{\mathrm{X}}}=\mathrm{MU}_{\mathrm{M}}\)
अथवा
\(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{X}}}{\mathrm{MU}_{\mathrm{M}}}=\mathrm{P}_{\mathrm{X}}\)
यदि रोहन के लिए 1 रु० मूल्य की संतुष्टि 7 है तो वह 7वीं आइसक्रीम के उपभोग से 140 (=20 x 7) इकाइयों के बराबर संतुष्टि प्राप्त करेगा। अन्यथा वह आइसक्रीम नहीं खरीदेगा। मान लीजिए कि आइसक्रीम की 7वीं इकाई से रोहन को 140 इकाइयों की संतुष्टि प्राप्त होती है तब-
\(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{X}}}{\mathrm{MU}_{\mathrm{M}}}=\mathrm{P}_{\mathrm{X}}=\frac{140}{7}=20\)
जो यह दर्शाता है कि संतुलन प्राप्त हो चुका है। अतः रोहन को और आइसक्रीम का उपभोग नहीं करना चाहिए। परंतु यदि MUx > 140, तो वह और अधिक आइसक्रीम का उपभोग करेगा तथा आइसक्रीम का उपभोग तब बंद करेगा जब MUx = 140।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित व्यक्ति-A की कुल उपयोगिता तालिका है
(यह मान लो कि शून्य इकाइयों के उपभोग की कुल उपयोगिता शून्य है)

उपभोग की इकाइयाँकुल उपयोगिता (TU)
1150
2280
3380
4430
5430
6370

(i) सीमांत उपयोगिता तालिका ज्ञात करें।
(ii) व्यक्ति-A का उपभोग स्तर ज्ञात करें जिस पर वह पूर्ण संतुष्टि/तृप्ति बिंदु पर पहुँचता है।
(iii) क्या इस स्थिति में व्यक्ति-A के लिए 6वीं इकाई का उपभोग उचित है।।
उत्तर:
(i) सीमांत उपयोगिता : 150, 130, 100, 50, 0, -60।

(ii) वस्तु की 5वीं इकाई के उपभोग पर व्यक्ति-A पूर्ण संतुष्टि/तृप्ति बिंदु पर पहुँचता है, चूंकि यहाँ पर सीमांत उपयोगिता शून्य है और कुल उपयोगिता अधिकतम है।

(iii) व्यक्ति-A 6वीं इकाई का उपभोग नहीं करेगा, चूँकि व्यक्ति-A को 6वीं इकाई से ऋणात्मक सीमांत उपयोगिता प्राप्त होती है।

प्रश्न 8.
मान लीजिए एक शीतल पेय की बोतल की कीमत 5 रु० है और 1 रु० की सीमांत उपयोगिता 4 है। निधि एक उपभोक्ता है, जिसकी उपयोगिता तालिका निम्नलिखित है-

शीतल पेय की बोतलसीमांत उपयोगिता (MU)
160
240
320
410
50
6-10

बताइए की निधि शीतल पेय की कौन-सी बोतल पर संतुलन अवस्था में होगी?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 48

प्रश्न 9.
मान लो वस्तु Y की कीमत (P) 10 रुपये प्रति इकाई है। यह भी मान लो कि मुद्रा की सीमांत उपयोगिता (MUM) 8 है (और स्थिर है)। उपभोक्ता की निम्नलिखित सीमांत उपयोगिता तालिका का प्रयोग करते हुए उपभोक्ता के उपभोग का संतुलन स्तर तथा वस्तु Y पर होने वाला कुल व्यय ज्ञात करें।

उपभोग की इकाइयाँसीमांत उपयोगिता (MU)
1170
2130
3110
480
530
60

हल:
उपभोक्ता संतुलन की शर्त है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 49
(i) यहाँ उपभोग का संतुलन स्तर, वस्तु Y की 4 इकाइयाँ हैं-
\(\frac { 80 }{ 10 }\) = 8 अथवा \(\frac { 80 }{ 8 }\) = 10

(ii) वस्तु Y पर कुल व्यय 10×4 = 40 रुपए होगा।

प्रश्न 10.
एक उपभोक्ता के पास वस्तु X तथा वस्तु Y पर खर्च करने के लिए 200 रु० हैं। x की कीमत 10 रु० तथा Yकी कीमत 20 रु० है। दी हुई आय से x तथा Y के खरीदे जाने वाले संभावित संयोगों का ग्राफ बनाइए।
हल:
(0, 10), (2,9), (4,8), (6, 7), (8,6), (10,5), (12, 4), (14,3), (16, 2), (18, 1),(20,0)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 11.
मान लीजिए कि उपभोक्ता दो ऐसी वस्तुओं का उपभोग करना चाहता है जो केवल पूर्णांक इकाइयों में उपलब्ध हैं। दोनों वस्तुओं की कीमत 10 रु० के बराबर है तथा उपभोक्ता की आय 40 रु० है।
(i) वे सभी बंडल लिखिए जो उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं।
(ii) जो बंडल उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं उनमें से वे बंडल कौन-से हैं जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रु० व्यय हो जाएँगे?
हल:
(i) जो बंडल उपभोक्ता खरीद सकता है, वे हैं-(0, 0), (0, 1), (0, 2), (0, 3), (0, 4), (1, 0), (1, 1), (1, 2), (1,3), (2,0), (2, 1), (2, 2) (3,0), (3, 1) तथा (4,0)।
(ii) वे बंडल जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रु० व्यय होंगे, वे हैं-(0,4), (1,3), (2, 2), (3, 1), (4,0)।

प्रश्न 12.
मान लीजिए बाज़ार में अनार फल के लिए चार उपभोक्ता हैं। वे हैं-A, B, C, और D । अनार फल के लिए उनके माँग वक्र निम्नलिखित तालिका में दिए गए हैं। बाज़ार माँग वक्र बनाइए।

कीमत (रु०‘A’ द्वारा माँगी गई मात्रा‘B’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘C’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘D’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

1167158
2116126
37594
44462
52330
61200

हल:

कीमत (रु०‘A’ द्वारा माँगी
गई मात्रा
‘B’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘C’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘D’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

बाज़ार

माँग

116715846
211612635
3759425
4446216
5233008
6120003

चारों उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई मात्रा को जोड़कर हम बाज़ार माँग का निर्माण करते हैं और विभिन्न कीमतों पर बाज़ार माँग को चित्र में DM वक्र द्वारा दर्शाया जा सकता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 50

प्रश्न 13.
मान लीजिए कि एक बाज़ार विशेष में तीन उपभोक्ता हैं- X, Y और Z। उनकी माँग अनुसूची निम्नलिखित तालिका में दी गई है

कीमत (रु०)‘x’ द्वारा मांगी गई मात्रा‘y’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘Z’ द्वारा माँगी गई मात्रा
1605524
2504013
340255
430100
52000

(a) बाज़ार माँग अनुसूची बनाइए तथा बाज़ार माँग वक्र खींचिए।
(b) मान लीजिए, ‘Y’ बाज़ार से हट जाता है तब बाज़ार अनुसूची बनाइए।
(c) मान लीजिए, ‘Y’ बाज़ार में टिका रहता है और अन्य व्यक्ति ‘K’ बाज़ार में प्रवेश करता है, जिसके द्वारा माँगी गई मात्रा किसी विशेष कीमत पर ‘x’ की आधी है। नया बाज़ार माँग वक्र बनाइए।
हल:
(a)

कीमत (रु०)‘x’ द्वारा मांगी गई मात्रा‘y’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘Z’ द्वारा माँगी गई मात्राबाज़ार माँग
1605524139
2504013103
34025570
43010040
5200020

बाज़ार माँग वक्र (Market Demand Curve)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 51

(b) जब ‘Y’ इस बाज़ार को छोड़ जाता है तो नयी बाज़ार अनुसूची निम्नलिखित होगी

कीमत (रु०)‘x’ की माँग‘Z’ की माँगबाजार माँग
1602484
2501363
340545
430030
520020

(c) जब नया ग्राहक ‘K’ बाज़ार में आता है तो नई बाजार अनुसूची निम्नलिखित होगी-

कीमत (रु०)‘X’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘y’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘Z’ द्वारा माँगी गई मात्रा‘K’ द्वारा माँगी गई मात्राबाज़ार माँग
160552430169
250401325128
3402552090
4301001555
520001030

नया बाज़ार मांग वक्र (New Market Demand Curve)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 52

प्रश्न 14.
चॉकलेट के लिए मोहिनी के माँग वक्र को निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है। कीमत 5 रु०, 8 रु० तथा 10 रु० पर चॉकलेट की माँगी गई मात्रा का निर्धारण करें।
हल:
माँग वक्र DD के अनुसार कीमत तथा मात्रा के संयोग निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 53
10 रु० पर 2 इकाइयाँ
9 रु० पर 4 इकाइयाँ
8 रु० पर 6 इकाइयाँ
7 रु० पर 8 इकाइयाँ
6 रु० पर 10 इकाइयाँ
5 रु० पर 12
इकाइयाँ इस प्रकार कीमत 5 रु०, 8 रु०, 10 रु० पर चॉकलेट की माँगी गई मात्रा क्रमशः 12, 6 एवं 2 इकाइयाँ है।

प्रश्न 15.
यदि मूल्य 2 रुपए प्रति इकाई से 3 रुपए हो जाए और माँगी गई मात्रा 300 इकाइयाँ प्रति सप्ताह से कम होकर 270 इकाइयाँ हो जाए तो माँग की कीमत लोच क्या होगी?
हल:
माँग की लोच(eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
यहाँ p0 = 2 ∆p = 3 – 2 = 1
q0 = 300 ∆q = 300 – 270 = 30
∴ = \(\frac{30}{1} \times \frac{2}{300}\) = \(\frac { 60 }{ 300 }\) = 0.2
इस उदाहरण में माँग की लोच 0.2 या इकाई से कम (eD < 1) या कम लोचदार है।

प्रश्न 16.
कीमत में 40% की वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप माँग 70 इकाइयों से घटकर 35 इकाइयाँ रह जाती है, माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 54
\(\frac{\frac{35}{70} \times 100}{40}\) = \(\frac { 50 }{ 40 }\) = 1.25
इस उदाहरण में माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक (eD > 1) है।

प्रश्न 17.
एक उपभोक्ता उस वस्तु की 10 इकाइयाँ क्रय करता है जब उसकी कीमत 5 रु० प्रति इकाई थी। जब उस वस्तु की कीमत 4 रु० प्रति इकाई हो गई तो उसने उस वस्तु की 12 इकाइयाँ खरीदीं। उस वस्तु की उस कीमत पर माँग की लोचक्या है ?
हल:
माँग की लोच (eD) = \((-) \frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
P0 = 5, p1 = 4, ∆p = 4 – 5 = -1
q0 = 10, q1 = 12, ∆q = 12 – 10 = 2
eD = (-) \(\frac { 5 }{ 10 }\) × \(\frac { 2 }{ -1 }\) = 1 (इकाई)
माँग की लोच इकाई है।

प्रश्न 18.
एकं वस्तु की कीमत 4 रु० प्रति इकाई होने पर एक उपभोक्ता उस वस्तु की 50 इकाइयाँ क्रय करता है। कीमत 25 प्रतिशत गिर जाने पर माँग बढ़कर 100 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
प्रारंभिक कीमत (p0) = 4 रु०
कीमत में कमी = 4 × \(\frac { 25 }{ 100 }\) = 1 रु०
नई कीमत (p1) = 4 रु० – 1 रु० = 3 रु०
कीमत में परिवर्तन (∆p) = p1 – p0 = 3 रु० – 4 रु० = -1 रु०
प्रारंभिक माँग (q0) = 50, नई माँग (q1) = 100,
माँग में परिवर्तन (∆q) = q1 – q0
= 100 – 50 = 50
माँग की लोच (eD) = (-) \(\frac { p^0 }{ q^0 }\) × \(\frac { ∆q }{ ∆p }\) = (-) \(\frac { 4 }{ 50 }\) × \(\frac { 50 }{ -1 }\) = \(\frac { 4 }{ 1 }\) = 4
माँग की लोच = 4 (इकाई से अधिक)

प्रश्न 19.
कीमत 18 रुपए प्रति इकाई से घटकर 12 रुपए प्रति इकाई रह जाती है जिसके कारण माँग 30 इकाइयों से बढ़कर 45 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
p0 = 18, ∆p = 6, q0 = 30, ∆q = 15
eD = \(\frac{15}{6} \times \frac{18}{30}=\frac{3}{2}\) = 1.5
माँग की लोच इकाई से अधिक है।

प्रश्न 20.
कीमत में 5 रुपए प्रति इकाई की वृद्धि होने से कीमत बढ़कर 20 रुपए प्रति इकाई हो गई जिसके फलस्वरूप माँग में 12 इकाइयों की कमी हुई और घटकर 52 इकाइयाँ हो गई। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
p0 = 15, ∆p = 5, q0 = 64, ∆q = 12
∴ \(\frac{12}{5} \times \frac{15}{64}=\frac{9}{16}\) = 0.562
माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 21.
एक वस्तु की कीमत 10 प्रतिशत गिर जाने से इसकी माँग 100 इकाइयों से बढ़कर 120 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 10%
माँग में प्रतिशत परिवर्तन = (\(\frac { 120-100 }{ 100 }\) × 100)
= \(\frac { 20 }{ 100 }\) × 100 = 20%
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 55
माँग की लोच = 2 (इकाई से अधिक)

प्रश्न 22.
यदि किसी वस्तु की कीमत 10 रु० से घटकर 8 रु० हो जाती है, परिणामस्वरूप इसकी माँग 80 इकाई से बढ़कर 100 इकाई हो जाती है। कुल व्यय विधि के आधार पर इसकी कीमत माँग लोच के बारे में क्या कह सकते हैं?
हल:

कीमतमाँगकुल व्यय
10 रु०80800 रु०
8 रु०100800 रु०

क्योंकि कुल व्यय में कोई परिवर्तन नहीं आया, इसलिए माँग की लोच इकाई है।

प्रश्न 23.
एक उपभोक्ता किसी वस्तु पर 80 रु० व्यय करता है, जब उसकी कीमत 1 रु० प्रति इकाई है तथा 96 रु० व्यय करता है, जब उसकी कीमत 2 रु० प्रति इकाई है। वस्तु की माँग की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:

कीमत (रु०)कुल व्यय (रु०)माँग की लोच
180
296इकाई से कम

चूँकि कीमत के बढ़ने से कुल व्यय बढ़ जाता है, इसलिए माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 24.
एक वस्तु की कीमत 5% गिर जाने के कारण उसकी माँग में 12% की वृद्धि हो जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए और बताइए कि माँग लोचदार है या बेलोचदार।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 56

माँग की लोच इकाई से अधिक 2.4 है अर्थात् माँग लोचदार है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 25.
एक वस्तु की कीमत 10 रु० प्रति इकाई से बढ़कर 12 रु० प्रति इकाई हो गई। परिणामस्वरूप उसकी माँग 120 इकाइयों से घटकर 100 इकाइयाँ रह जाती है। माँग की कीमत लोच निकालिए।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
p0 = 10, p1 = 12, ∆p = 12 – 10 = 2
q0 = 120, q1 = 100, ∆q = 120 – 100 = 20
माँग की लोच (eD) = \(\frac{10}{120} \times \frac{20}{64}=\frac{5}{6}\)
माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 26.
निम्नलिखित तालिका में तीन वस्तुओं की कीमतें और उन पर कुल व्यय के आँकड़े दिए गए हैं। कुल व्यय विधि के अनुसार उनकी कीमत माँग की लोच ज्ञात कीजिए।

कीमत प्रति किलोग्राम (रुपयों में)कुल व्यय (रुपयों में)
वस्तु ‘अ’वस्तु ‘ब’वस्तु ‘स’
4121212
6121014
812816

हल:
(i) वस्तु ‘अ’ की कीमत में वृद्धि होने पर कुल व्यय अपरिवर्तित रहता है, इसलिए माँग की लोच इकाई के समान है।
(ii) वस्तु ‘ब’ की कीमत में वृद्धि होने से कुल व्यय में कमी होती है, इसलिए माँग की लोच इकाई से अधिक है।
(iii) वस्तु ‘स’ की कीमत में वृद्धि होने से कुल व्यय में वृद्धि होती है, इसलिए माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 27.
वस्तु X और Y की माँग सारणियाँ नीचे दी गई हैं। कुल व्यय विधि के अनुसार X और Y वस्तुओं की माँग की लोच ज्ञात कीजिए।

वस्तु Xवस्तु Y
कीमतमात्राकीमतमात्रा
100 रु०1000200 रु०1000
102 रु०900198 रु०1010

दिए गए उदाहरण में माँग की लोच के अनुमान के लिए कुल व्यय को ज्ञात कीजिए।
हल:

कीमत (रु०)मात्राकुल व्यय (रु०)माँग लोच
वस्तु X 1001000100000इकाई से अधिक
10290091800
वस्तु Y 2001000200000इकाई से कम
1981010199980

प्रश्न 28.
एक वस्तु की कीमत 4 रु० से बढ़कर 5 रु० हो जाती है। परिणामस्वरूप, उसकी माँग 50 इकाइयों से घटकर 40 इकाइयाँ रह जाती है। प्रतिशत विधि द्वारा माँग की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 57
= 20/25 = 0.8 अर्थात् बेलोचदार माँग

प्रश्न 29.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर माँग की लोच ज्ञात कीजिए-

कीमत (रु०)वस्तु की माँग (किलोग्राम)
1020
2015

हल:
इसमें प्रतिशत विधि का प्रयोग करते हुए माँग की मूल्य सापेक्षता निम्नलिखित प्रकार से ज्ञात की जा सकती है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 58

[यहाँ माँग की लोच इकाई से कम है अर्थात् eD < 1]

प्रश्न 30.
नीचे दी गई सूचना से (i) कुल व्यय विधि तथा (ii) प्रतिशत विधि का प्रयोग करते हुए माँग की लोच ज्ञात करें-

कीमत (रुपए)कुल व्यय (रुपए)
101000
81200

हल:
(i) कुल व्यय विधि-इस विधि के अनुसार, यहाँ माँग की लोच इकाई से अधिक है, क्योंकि कीमत में कमी होने पर कुल व्यय में वृद्धि हुई है अर्थात् कीमत एवं कुल व्यय में विपरीत संबंध पाया जाता है। अतः यहाँ eD > 1 है।

(ii) प्रतिशत विधि-यहाँ हमें सर्वप्रथम कुल व्यय को कीमत से भाग देकर माँगी गई मात्रा ज्ञात करनी होगी-

कीमत (रु०) (p)माँगी गई मात्रा q = TE/Pकुल व्यय (रु०) TE
101001000
81501200

eD = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}=\frac{50}{2} \times \frac{10}{100}\) = 2.5
[ep = 2.5 अर्थात् eD > 1 है।]

प्रश्न 31.
माँग की कीमत लोच 2 है। कीमत में प्रतिशत परिवर्तन 5% रहा है। माँग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन का आकलन करें।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 59
माँग की मात्रा में % परिवर्तन = कीमत लोच गुणांक × कीमत में % परिवर्तन
= 2 × 5 = 10
अतः माँग की मात्रा में % परिवर्तन = 10 है।

प्रश्न 32.
माँग की कीमत लोच 0.5 है। माँग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन 4 है। कीमत में प्रतिशत परिवर्तन क्या होगा?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 60
अतः कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 8% है।

प्रश्न 33.
जब मूंगफली के पैकटों की कीमत में 5% की वृद्धि होती है तो मूंगफली के पैकटों की माँग में 8% की कमी होती है। मूंगफली के पैकटों की माँग की लोच क्या है?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 61
माँग की लोच इकाई से अधिक है अर्थात् (eD > 1).

प्रश्न 34.
जब एक पदार्थ की कीमत में 7% की कमी होती है, तो इस पदार्थ पर किए जाने वाले कुल व्यय में 3.5% की वृद्धि होती है। हम इस पदार्थ की माँग की लोच के संबंध में क्या कहेंगे?
हल:
जैसा कि यहाँ पर कीमत एवं कुल व्यय में विपरीत संबंध पाया जाता है, तो वस्तु की माँग की लोच इकाई से अधिक होगी।
P ↓17% कुल व्यय ↑ 3.5%
∴ eD > 1 अर्थात् माँग की लोच इकाई से अधिक है।

प्रश्न 35.
फूलगोभी की बाज़ार कीमत 8% बढ़ती है तथा एक परिवार द्वारा फूलगोभी पर किए जाने वाले कुल व्यय में भी 8% वृद्धि होती है। हम इस परिवार की फूलगोभी की माँग की लोच के बारे में क्या कहेंगे?
हल:
फूलगोभी की कीमत के बढ़ने के फलस्वरूप परिवार का कुल व्यय भी बढ़ा है, अतः यहाँ माँग की लोच इकाई से कम होगी (अर्थात् e < 1)। क्योंकि यहाँ कीमत वृद्धि और कुल व्यय वृद्धि में सीधा संबंध पाया जाता है।

प्रश्न 36.
एक दांतों का डॉक्टर दांतों की सफाई के लिए 300 रुपए लेता था और वह प्रतिमास 30,000 रुपए की आय प्राप्त करता था। उसने पिछले महीने से दांतों की सफाई का रेट 350 रुपए कर दिया है। परिणामस्वरूप अब दांतों की सफाई के लिए कुछ कम ग्राहक आने लगे हैं। लेकिन अब उसकी कुल आय 33,250 रुपए है। इस उदाहरण से हम डॉक्टर की दांतों की सफाई सेवा की माँग की लोच के बारे में क्या निष्कर्ष निकालेंगे?
हल:

दांत सेवा की कीमत (रुपए)ग्राहकों का कुल व्यय (रुपए)ग्राहकों की संख्या TE/P
30030,000100
35033,25095

यद्यपि ग्राहकों की संख्या में (100 से 95) कमी आई है, लेकिन डॉक्टर की फीस बढ़ने पर ग्राहकों के कुल व्यय में (30,000 से 33250 रु० की) वृद्धि हो जाती है। इसलिए, चूँकि हमारे उदाहरण में कीमत में वृद्धि से कुल व्यय में वृद्धि हुई है, अतः यहाँ माँग की लोचशीलता इकाई से कम है।

प्रश्न 37.
मान लो, शुरु में 10 रु० कीमत पर किसी वस्तु की 1000 इकाइयाँ बिक रही थीं। कीमत 14 रु० होने पर उपभोक्ता केवल 500 इकाइयाँ खरीद रहे हैं। माँग की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
p0 = 10 रुपए
p1 = 14 रुपए

q0 = 1000 इकाइयाँ
q1 = 500 इकाइयाँ

∆p = p1 – p0
= 14–10 = 4 रुपए

∆q = q1 – q0 इकाइयाँ
= 500 – 1000 = – 500
\(\frac{-500}{4} \times \frac{10}{1000}=\frac{-5000}{4000}=\frac{-5}{4}=-1.25\)
ऋणात्मक चिह्न (-) छोड़ देने पर माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होगी।

प्रश्न 38.
एक वस्तु की कीमत में 10% की वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप इसकी माँग 4% गिर जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए। माँग लोचदार है या बेलोचदार?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 62
अर्थात् माँग कम लोचदार है।

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HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.1

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Exercise 2.1

प्रश्न 1.
किसी बहुपद p(x) के लिए, y = p(x) का ग्राफ नीचे आकृति में दिया है। प्रत्येक स्थिति में, p(x) के शून्यकों की संख्या ज्ञात कीजिए।
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.1 1
हल :
(i) शून्यकों की संख्या शून्य है अर्थात् कोई शून्यक नहीं है क्योंकि ग्राफ x-अक्ष को किसी भी बिंदु पर प्रतिच्छेद नहीं करता।
(ii) शून्यकों की संख्या 1 है, क्योंकि ग्राफ x-अक्ष को केवल एक बिंदु पर प्रतिच्छेद करता है।
(iii) शून्यकों की संख्या 3 है, क्योंकि ग्राफ x-अक्ष को तीन बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करता है।
(iv) शून्यकों की संख्या 2 है, क्योंकि ग्राफ x-अक्ष को दो बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करता है।
(v) शून्यकों की संख्या 4 है, क्योंकि ग्राफ x-अक्ष को चार बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करता है।
(vi) शून्यकों की संख्या 3 है, क्योंकि ग्राफ x-अक्ष को तीन बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करता है।

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HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Exercise 1.4

प्रश्न 1.
बिना लंबी विभाजन प्रक्रिया किए बताइए कि निम्नलिखित परिमेय संख्याओं के दशमलव प्रसार सांत हैं या असांत आवर्ती हैं-
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 1 1
हल :
हम जानते हैं कि जिस परिमेय संख्या के हर को 2n 5m के रूप में लिखा जा सकता है, जहाँ n और m ऋणेतर पूर्णांक हों तो उस संख्या का दशमलव प्रसार सांत होता है अन्यथा असांत आवर्ती होता है।
(i) यहाँ पर,
\(\frac{13}{3125}=\frac{13}{5 \times 5 \times 5 \times 5 \times 5}=\frac{13}{5^{5}}\)
क्योंकि हर में केवल 5m है।
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 1
अतः परिमेय संख्या \(\frac{13}{3125}\) का दशमलव प्रसार सांत होगा।

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4

(ii) यहाँ पर,
\(\frac{17}{8}=\frac{17}{2 \times 2 \times 2}=\frac{17}{2^{3}}\)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 2
क्योंकि हर में केवल 2n है।
अतः परिमेय संख्या \(\frac{17}{8}\) का दशमलव प्रसार सांत होगा।

(iii) यहाँ पर,
\(\frac{64}{455}=\frac{64}{5 \times 7 \times 13}\)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 3
क्योंकि हर में 5m के अतिरिक्त 7 व 13 भी है।
अतः परिमेय संख्या \(\frac{64}{455}\) का दशमलव प्रसार असांत आवर्ती होगा।

(iv) यहाँ पर,
\(\frac{15}{1600}=\frac{15}{2 \times 2 \times 2 \times 2 \times 2 \times 2 \times 5 \times 5}=\frac{15}{2^{6} 5^{2}}\)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 4
क्योंकि हर में केवल 2n5m है।
अतः परिमेय संख्या \(\frac{15}{1600}\) का दशमलव प्रसार सांत होगा।

(v) यहाँ पर,
\(\frac{29}{343}=\frac{29}{7 \times 7 \times 7}=\frac{29}{7^{3}}\)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 5
क्योंकि हर 2n5m नहीं है बल्कि 7l है।
अतः परिमेय संख्या \(\frac{29}{343}\) का दशमलव प्रसार असांत आवर्ती होगा।

(vi) यहाँ पर, \(\frac{23}{2^{3} 5^{2}}\) क्योंकि हर में केवल 2n5m है।
अतः परिमेय संख्या \(\frac{23}{2^{3} 5^{2}}\) का दशमलव प्रसार सांत होगा।

(vii) यहाँ पर, \(\frac{129}{2^{2} 5^{7} 7^{5}}\) क्योंकि हर के अभाज्य गुणनखंडों में 2n5m के अतिरिक्त 7 भी है।
अतः परिमेय संख्या \(\frac{129}{2^{2} 5^{7} 7^{5}}\) का दशमलव प्रसार असांत आवर्ती होगा।

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4

(viii) यहाँ पर,
\(\frac{6}{15}=\frac{6}{3 \times 5}=\frac{2}{5}\)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 6
क्योंकि हर के अभाज्य गुणनखंड में केवल 5m है।
अतः परिमेय संख्या \(\frac{6}{15}\) का दशमलव प्रसार सांत होगा।

(ix) यहाँ पर,
\(\frac{35}{50}=\frac{5 \times 7}{2 \times 5 \times 5}=\frac{7}{2^{1} \times 5^{1}}\)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 7
क्योंकि हर के अभाज्य गुणनखंडों में केवल 2 व 5 हैं।
अतः परिमेय संख्या \(\frac{35}{50}\) का दशमलव प्रसार सांत होगा।

(x) यहाँ पर,
\(\frac{77}{210}=\frac{7 \times 11}{2 \times 3 \times 5 \times 7}=\frac{11}{2^{1} \times 3^{1} \times 5^{1}}\)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 8
क्योंकि हर के अभाज्य गुणनखंडों में 2n5m के अतिरिक्त 3 भी है।
अतः परिमेय संख्या \(\frac{77}{210}=\frac{7 \times 11}{2 \times 3 \times 5 \times 7}=\frac{11}{2^{1} \times 3^{1} \times 5^{1}}\) का दशमलव प्रसार असांत आवर्ती होगा।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित परिमेय संख्याओं के दशमलव प्रसारों को लिखिए
(i) \(\frac{13}{3125}\)
(ii) \(\frac{17}{8}\)
(iii) \(\frac{15}{1600}\)
(iv) \(\frac{23}{2^{3} 5^{2}}\)
(v) \(\frac{6}{15}\)
(vi) \(\frac{35}{50}\)
हल :
(i) यहाँ पर,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 9

(ii) यहाँ पर,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 10

(iii) यहाँ पर,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 11

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4

(iv) यहाँ पर,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 12

(v) यहाँ पर,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 13

(vi) यहाँ पर,
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4 14

प्रश्न 3.
कुछ वास्तविक संख्याओं के दशमलव प्रसार नीचे दर्शाए गए हैं। प्रत्येक स्थिति के लिए निर्धारित कीजिए कि यह संख्या परिमेय संख्या है या नहीं। यदि यह परिमेय संख्या है और \(\frac{p}{q}\) के रूप की है तो के अभाज्य गुणनखंडों के बारे में आप क्या कह सकते हैं?
(i) 43.123456789
(ii) 0.120120012000120000……………
(iii) 43.\(\overline{123456789}\)
हल :
(i) यहाँ पर दी गई संख्या = 43.123456789
क्योंकि दी गई संख्या एक सात दशमलव संख्या है। इसलिए यह \(\frac{p}{q}\) के रूप की परिमेय संख्या होगी, जिसमें 4 के अभाज्य गुणनखंड 2 या 5 या दोनों होंगे।

(ii) यहाँ पर दी गई संख्या = 0.120120012000120000…..
क्योंकि दी गई संख्या एक असांत आवर्ती दशमलव संख्या है। इसलिए यह एक अपरिमेय संख्या होगी।

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.4

(iii) यहाँ पर दी गई संख्या = 43.\(\overline{123456789}\)
क्योंकि दी गई संख्या एक असांत आवर्ती तथा दोहराई जाने वाली दशमलव प्रसार संख्या है। इसलिए यह \(\frac{p}{q}\) के रूप की परिमेय संख्या होगी, जिसमें q के अभाज्य गुणनखंड 2 या 5 के अतिरिक्त एक और गुणनखंड होगा।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

HBSE 12th Class Hindi सिल्वर बैंडिग Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर:
यशोधर बाबू और उनकी पत्नी दोनों ही आधुनिक सोच से दूर हैं, परंतु यशोधर बाबू की पत्नी अपने बच्चों का पक्ष लेते-लेते आधुनिक बन गई है। जब वह विवाह के बाद ससुराल में आई थी, तो उस समय यशोधर बाबू का परिवार संयुक्त परिवार था। घर में ताऊ जी एवं ताई जी की चलती थी। इसलिए उनकी पत्नी के मन में एक बहुत बड़ा दुख था। वह समझती थी कि उसे आचार-विचार के बंधनों में रखा जाता है। मानो वह जवान न होकर बूढ़ी औरत हो। जो नियम बुढ़िया ताई पर लागू होते थे, वे सभी उस पर भी लागू होते थे। इसलिए वह अपनी अतप्त इच्छाओं को पूरा करना चाहती है। इसलिए वह अपने पति से कहती है कि-“तुम्हारी ये बाबा आदम के जमाने की बातें, मेरे बच्चे नहीं मानते तो इसमें उनका कोई कसूर नहीं। मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूंगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग-ढकोसला हो नहीं सकता-साफ बात।” ।

इसलिए यशोधर बाबू की पत्नी इस उम्र में भी बिना बाँह का ब्लाऊज पहनती है। होंठों पर लाली लगाती है और सिल्वर वैडिंग में खुलकर भाग लेती है। परंतु यशोधर बाबू एक परंपरावादी व्यक्ति हैं। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को चाय पान के लिए तीस रुपये तो दे देते हैं परंतु वे आयोजन में भाग नहीं लेते। वे पूजा के लिए मंदिर जाते हैं। सुख-दुख में संयुक्त परिवार के लोगों से मिलना चाहते हैं। परंतु किसी अच्छे मकान में रहने के लिए नहीं जाते। यहाँ तक कि वे डी०डी०ए० का फ़्लैट लेने का भी प्रयास नहीं करते। जब उनके लड़के घर पर उनकी सिल्वर वैडिंग का आयोजन करते हैं, तो वे उससे भी बचने की कोशिश करते हैं। वे अपने आदर्श किशनदा के संस्कारों का ही अनुसरण करते हैं। परिणाम यह होता है कि वे परिस्थितियों के आगे झुक तो जाते हैं, परंतु उनका मन पुरानी परंपराओं से ही चिपका हुआ है। वे नए जमाने की सुविधाओं; जैसे गैस, फ्रिज आदि को अच्छा नहीं समझते। फिर भी वे सोचते हैं कि ये चीजें हैसियत बढाने वाली हैं। सच्चाई तो यह है कि वे समय के साथ ढल नहीं पाते और बार-बार किशनदा के संस्कारों को याद कर उठते हैं।

प्रश्न 2.
पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं?
उत्तर:
‘जो हुआ होगा’ वाक्य का पाठ में अनेक बार प्रयोग हुआ है। पहली बार इसका तब प्रयोग होता है, जब यशोधर बाबू ने किशनदा के किसी जाति भाई से उनकी मृत्यु का कारण पूछा था। उत्तर में उसने कहा था ‘जो हआ होगा’ अर्थात पता नहीं क्या हुआ और किस कारण से उनकी मृत्यु हुई। किशनदा ने विवाह नहीं किया था। इसलिए उनके बच्चे नहीं थे। इसलिए जाति भाई उनके प्रति उदासीन थे। उन्होंने यह आवश्यक नहीं समझा कि किशनदा की मृत्यु के कारणों का पता लगाया जाए। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मानव के लिए विवाह संस्कार आवश्यक है। बाल-बच्चों से ही वृद्धावस्था में सुरक्षा हो सकती है। यदि किशनदा की संतान होती, तो उनके रिश्तेदार उनकी मृत्यु के कारणों की जानकारी रखते और उनके प्रति इतने उदासीन न होते।

किशनदा ने भी इस वाक्य का प्रयोग किया है। अपनों से मिली उपेक्षा के लिए, वे इस वाक्य का प्रयोग करते हैं। किशनदा भी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं, गृहस्थ हों, ब्रह्मचारी हों, अमीर हों, गरीब हों, मरते ‘जो हुआ होगा’ से ही हैं। हाँ-हाँ, शुरू में और आखिर में, सब अकेले ही होते हैं। अपना कोई नहीं ठहरा दुनिया में, बस अपना नियम अपना हुआ। यहाँ इस वाक्य का अर्थ अन्य संदर्भ में देखा जा सकता है अर्थात् किसी-न-किसी कारण से ही सबकी मृत्यु होती है। पाठ के आखिर में जब बच्चे यशोधर बाबू पर व्यंग्य करते हैं, तो उनको यह निश्चय हो गया कि किशनदा की मृत्यु ‘जो हुआ होगा’ से ही हुई होगी। भाव यह है कि बच्चे जब अपने माता-पिता की उपेक्षा करने लगते हैं, तो उनके प्राण जल्दी निकल जाते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

प्रश्न 3.
‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है?
उत्तर:
‘समहाउ इंप्रापर’ यशोधर बाबू का तकिया कलाम है। जिसका अर्थ यह है कि फिर भी यह अनुचित है। इस पाठ में एक दर्जन से अधिक बार इस वाक्यांश का प्रयोग हुआ है। इससे यशोधर बाबू का व्यक्तित्व झलकता है। वस्तुतः वे सिद्धांत प्रिय व्यक्ति हैं। जब उन्हें कोई बात अनुचित लगती है, तब उनके मुख से यह वाक्य निकल पड़ता है। उदाहरण के रूप में सर्वप्रथम ‘सिल्वर वैडिंग’ के लिए, वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को तीस रुपये चाय पान के लिए देते हैं, परंतु इसे ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते हैं। यही नहीं, वे अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलना भी ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते हैं।

अन्यत्र उन्होंने अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने, डी०डी०ए० के फ्लैट के लिए पैसे न चुकाने, अपनी वृद्धा पत्नी द्वारा आधुनिका का स्वरूप धारण करने, बेटे द्वारा अपने पिता को वेतन न देने, संपन्नता में सगे-संबंधियों की उपेक्षा करने, बेटी द्वारा विवाह का निर्णय न लेने आदि को भी ‘समहाउ इंप्रापर’ कहा है। इसी प्रकार जब उसकी बेटी जींस तथा सैंडो ड्रैस पहनती है, घर में गैस, फ्रिज लाया जाता है। सिल्वर वैडिंग पर भव्य पार्टी दी जाती है। छोटा साला ओछापन दिखाता है और केक काटा जाता है, तब भी वे इसी वाक्यांश का प्रयोग करते हैं। वस्तुतः यशोधर बाबू किशनदा से प्रभावित होने के कारण सिद्धांतों पर चलने वाले व्यक्ति हैं। यही नहीं, वे भारतीय मूल्यों और मान्यताओं में विश्वास रखते हैं। लगभग ऐसे ही विचार आजकल के बुजुर्गों के हैं।

वाक्यांश कहानी के मूल कथ्य से जुड़ा हुआ है। लेखक यह दिखाना चाहता है कि आज पुरानी और नई पीढ़ी में एक खाई उत्पन्न हो चुकी है। प्रत्येक पुरानी पीढ़ी नवीन परिवर्तनों को अनुचित मानती है। इस नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण ही उनके बच्चे तथा परिजन उनकी उपेक्षा करने लगते हैं, परंतु उनकी पत्नियाँ नए ज़माने के साथ स्वयं को अनुकूल बना लेती हैं। यही कारण है कि ‘समहाउ इंप्रापर’ एक प्रश्न चिह्न बनकर रह गया है। लेखक इस पाठ द्वारा यह कहना चाहता है कि यदि वृद्ध लोगों को अपने बच्चों के साथ सम्मानपूर्वक जीना है तो उन्हें नए परिवर्तनों को स्वीकार करना पड़ेगा, अन्यथा उनकी हालत यशोधर बाबू जैसी हो जाएगी।

प्रश्न 4.
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे?
उत्तर:
यशोधर बाबू का जीवन किशनदा और उनके सिद्धांतों से प्रभावित रहा है। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति जो व्यवहार करते थे, वह किशनदा के ही समान था। भारतीय मूल्यों में आस्था, सादी जीवन-प्रणाली तथा धन-दौलत के प्रति अनासक्ति आदि प्रवृत्तियाँ किशनदा से ही प्रभावित हैं। हर आदमी जीवन में किसी-न-किसी से प्रेरणा अवश्य प्राप्त करता है। मेरे जीवन को प्रेरणा देने वाली मेरी अपनी माँ है। वे आज महाविद्यालय की एक सफल प्राध्यापिका हैं। उन्होंने प्रत्येक क की थी। इसके साथ-साथ वे बहुपठित एवं बहुश्रुत भी हैं। अपने विषय में प्रवीण होने के साथ-साथ उन्होंने अन्य विषयों का भी गहन अध्ययन किया है।

वे निरंतर मुझे पढ़ने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहती हैं। परंतु मेरी माता जी का रहन-सहन बड़ा सादा और सरल है। वे बाहरी ताम-झाम में विश्वास नहीं करतीं। फलस्वरूप मैं आरंभ से ही पढ़ने-लिखने में ठीक हूँ। दसवीं की परीक्षा में मैंने नगर में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए थे। यही नहीं, मैं विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेता हूँ और अपने गुरुजनों का हमेशा आदर करता हूँ। मैं उच्च शिक्षा प्राप्त करके किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद प्राप्त करना चाहता हूँ। यदि ईश्वर की कृपा रही और मेरी माँ की मुझे नियमित प्रेरणा मिलती रही, तो मैं निश्चय से ही इस लक्ष्य को प्राप्त करूँगा।

प्रश्न 5.
वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं?
उत्तर:
आधुनिक युग में संयुक्त परिवार प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है। भले ही यशोधर बाबू अपने ताऊ और ताई के साथ रहे हों। परंतु आज भौतिकवादी युग के कारण लोगों की आकांक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं। प्रायः परिवार छोटे बनते जा रहे हैं। बेटा अपनी आय को स्वयं खर्चना चाहता है और अपनी पत्नी के साथ अलग रहना चाहता है। इधर पत्नी भी अपने पति की सलाह को नहीं मानती। बच्चे भी अपने कैरियर के बारे में माँ-बाप की सलाह को नहीं मानते हैं। इधर बेटियाँ भड़कीले वस्त्र पहनकर अपने मित्रों के साथ घूमना चाहती हैं। उनके पहनावे को देखकर माँ-बाप और बड़े बुजुर्गों को शर्म आती है। प्रत्येक लड़की अपने विवाह का निर्णय स्वयं लेना चाहती है। फलस्वरूप घर में गृहस्वामी की उपेक्षा की जाती है। इस प्रकार पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच एक दरार उत्पन्न हो गई है।

परंतु सामंजस्य के द्वारा हम इस समस्या का हल निकाल सकते हैं। पुराने लोगों को थोड़ा आधुनिक बनना पड़ेगा और नए लोगों को थोड़ा पुराना। हमारे मूल्य आज भी हमारी धरोहर हैं, उनमें बहुत-सी ऐसी बातें हैं जो हमारे समाज के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं। घर की साग-सब्जी, दूध, राशन आदि लाने में घर के सभी लोगों को सहयोग करना होगा। यदि आज के बच्चे आधुनिक युग की सुख-सुविधाओं को पाना चाहते हैं तो उन्हें यशोधर बाबू जैसे पिता को अपमानित नहीं करना चाहिए। पत्नी का भी कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने पति की सलाह को मानती हुई अपनी संतान की देखभाल करे, बल्कि वह एक माँ के रूप में अपने पति और बच्चों के बीच सेतु का काम कर सकती है। इसके साथ-साथ यशोधर बाबू के समान अधिक परंपरावादी बनना भी अच्छा नहीं है।

इधर घर की बेटियों और नारियों का यह कर्त्तव्य बनता है कि वे शालीनता का ध्यान रखते हुए वस्त्र धारण करें। अधिक मॉड बनने के दुष्परिणाम तो हम हर रोज़ देखते ही रहते हैं। इस कहानी में यशोधर बाबू ने तीस रुपये देकर, घर में गैस एवं फ्रिज के प्रति नरम रुख रखकर, केक काटकर तथा मेहमानों का स्वागत करके सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। घर के अन्य लोगों का भी कर्त्तव्य बनता है कि वे यशोधर बाबू जैसे गृहस्वामियों की भावनाओं को समझें। दोनों पक्षों में सामंजस्य स्थापित करने से ही आधुनिक युग को सफल बनाया जा सकता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे/कहेंगी और क्यों? (क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य (ख) पीढ़ी का अंतराल (ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
उत्तर:
इस कहानी में मानवीय मूल्यों को हाशिए पर धकेले जाते हुए ही दिखाया गया है। उदाहरण के रूप में यशोधर बाबू के बच्चे, भाईचारा एवं रिश्तेदारी का ध्यान नहीं रखते और न ही बुजुर्गों का उचित सम्मान करते हैं। इस कहानी में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी देखा जा सकता है। यशोधर बाबू के बच्चे तो आधुनिक बनना ही चाहते हैं, परंतु उनकी पत्नी भी आधुनिका बनी हुई है, और वह अपने पति को आधुनिक रंग-ढंग में देखना चाहती है।

परंतु यदि गहराई से इस कहानी का अध्ययन किया जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कहानी की मूल संवेदना पीढ़ी का अंतराल है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्र हैं। वे भारतीय संस्कृति को मानते हैं। पूजा-पाठ करते हैं। रामलीला देखने जाते हैं। रिश्तेदारी को निभाने का प्रयास करते हैं और सादा तथा सरल जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, परंतु उनके बच्चे तथा पत्नी आधुनिक रंग-ढंग में ढल गए हैं। इस कहानी का कथानक इसी द्वंद्व पर टिका हुआ है। पीढ़ी-अंतराल के कारण जो कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं, उसका शिकार यशोधर बाबू बनते हैं। वे अपने-आप में किशनदा से प्रभावित होने के कारण पुरानी व्यवस्था को अपनाते हैं।

यही नहीं, वह पुरानी परंपराओं को सही तथा नई परंपराओं को ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते हैं। इसीलिए सर्वत्र उपेक्षा होती है। घर के बच्चे उनकी वेशभूषा, चाल-ढाल, आचार-विचार आदि का विरोध करते हैं। उनका विचार है कि उनके पिता की सादगी वस्तुतः फटीचरी है। यही नहीं, उनके विचारानुसार रिश्तेदारी निभाना घाटे का सौदा है। धीरे-धीरे यशोधर बाबू उपेक्षित होते चले जाते हैं। बच्चे उनके लिए नया गाउन इसलिए लाते हैं कि ताकि वे फटा हुआ पुलओवर पहनकर समाज में उनकी बेइज्जती न कराएं। बच्चों को अपने मान-सम्मान की तो चिंता है, परंतु वे अपने पिता की मनःस्थिति को नहीं समझ पाते। अतः पीढ़ी अंतराल की समस्या ही इस कहानी की मुख्य समस्या है।

प्रश्न 7.
अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तर:
आज का युग वैज्ञानिक युग है। प्रतिदिन नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। प्रायः अधिकांश आविष्कार मानव को सुख-सुविधाएँ देने में अत्यधिक सहायक हैं। जहाँ तक हमारे देश का प्रश्न है, यहाँ पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिक प्रगति हुई है। आज प्रत्येक घर में बिजली के पंखे, ए०सी०, रसोई गैस के चूल्हे, टेलीफोन, इंटरनेट आदि अनेक ऐसी वस्तुएँ हैं जो लोगों के जीवन को सुविधाजनक बना रही हैं। लेकिन हमारे बड़े-बूढ़े अभी तक पुरानी बातों को याद कर उठते हैं।

वे प्रायः कहते रहते हैं कि चूल्हे की रोटी का कोई मुकाबला नहीं है। इसी प्रकार उनका कहना है कि फ्रिज के कारण हम बासी भोजन करते हैं, टी०वी० अश्लीलता फैला रहा है और मोबाइल का अधिक प्रयोग लड़के-लड़कियों को बिगाड़ रहा है। इसी प्रकार इंटरनेट के प्रयोग के कारण युवक-युवतियाँ अश्लील फिल्में देखते हैं और वे चरित्रहीन बन रहे हैं। यद्यपि सच्चाई है कि बुजुर्गों के विचार पुराने हो सकते हैं, परंतु आधुनिक सुविधाओं का अधिक प्रयोग हमारी जीवन-शैली को जटिल बनाता जा रहा है, परंतु सुविधाओं की ऐसी आँधी बुजुर्गों के रोकने पर रुकने वाली नहीं है।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए
(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।
(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की ज़रूरत है।
(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नयी पीढ़ी द्वारा उनके विचारों का अपनाना ही उचित है।
उत्तर:
ऊपर जो तीन कथन दिए गए हैं, उनमें से दूसरा कथन ही मुझे उचित लगता है। यशोधर बाबू एक द्वंद्व ग्रस्त व्यक्ति हैं। कभी नया उन्हें अपनी ओर खींचता है, परंतु पुराना उन्हें छोड़ नहीं पाता। वे स्वयं यह निर्णय नहीं कर पाते कि उन्हें नवीन मूल्यों को अपनाना चाहिए अथवा पुराने मूल्यों से चिपका रहना चाहिए। इसलिए हमें उनके बारे में सहानुभूतिपूर्वक सोचना चाहिए। मेरे दादा जी प्रायः नई वस्तुओं की आलोचना करते रहते हैं। एक बार हमने घर पर ए०सी० लगवाया। दादा जी ने इस सुविधा की न केवल आलोचना की, बल्कि इसका विरोध भी किया। यहाँ तक की उन्होंने मेरे पिता जी को डाँटते हुए कहा कि तुम आधुनिक चीज़ों पर पैसा खराब करते रहते हो, परंतु अगले दिन वे ए०सी० की ठंडी हवा में काफी देर तक सोते रहे। जब मैंने उन्हें चाय के लिए गाया तो वे मुझे कहने लगे–“बेटे ए०सी० पर खर्चा तो बहुत आ गया, परंतु इसकी ठंडी हवा बहुत सुख देती है। मैं तो गहरी नींद में सो गया था।”

इस प्रकार हम देखते हैं कि यशोधर बाबू का द्वंद्व स्वाभाविक है। वे पिछड़े हुए ग्रामीण क्षेत्र से महानगर में आए हैं। अभी तक उनके मन पर ग्रामीण अंचल का प्रभाव बना पड़ा है, परंतु उनके बच्चे दिल्ली महानगर में जन्मे एवं पले हैं। वे आधुनिक परिवेश से अत्यधिक प्रभावित हैं। वे अपने घर में सब प्रकार की आधुनिक सुविधाएँ चाहते हैं। ये नयापन यशोधर बाबू को भी यदा-कदा आकर्षित करता है। उदाहरण के रूप में गैस तथा फ्रिज के बारे में उनकी सोच अथवा भूषण से हाथ मिलाना, अतिथियों को अंग्रेज़ी में अपना परिचय देना आदि नएपन के सूचक हैं। ऐसी स्थिति में यशोधर बाबू के प्रति सहानुभूति का व्यवहार करना उचित होगा। यदि यशोधर बाबू के परिवार के लोग उन्हें पहले से ही सिल्वर वैडिंग की सूचना दे देते तो वे समय पर घर आते और अतिथियों का भरपूर स्वागत करते। इसके साथ-साथ हमें यह भी देखना चाहिए कि घर के बड़े बुजुर्गों के साथ सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करना चाहिए। उनकी उपेक्षा कभी नहीं की जानी चाहिए।

HBSE 12th Class Hindi सिल्वर बैंडिग Important Questions and Answers

बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू की चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भले ही यशोधर बाबू ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के प्रमुख पात्र हैं, परंतु वे एक परंपरावादी व्यक्ति होने के कारण आधुनिक परिवेश में मिसफिट दिखाई देते हैं। वे किशनदा के आदर्श व्यक्तित्व से कुछ प्रभावित हैं। वे पुराने संस्कारों को छोड़ नहीं पाते और नए परिवेश को ग्रहण करके उसकी आलोचना करते हैं। उनके व्यक्तित्व की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(क) कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्ति-यशोधर बाब एक कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति हैं। वे प्रतिदिन समय पर कार्यालय जाते हैं और दिन-भर मेहनत से काम करते हैं। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को ईमानदारी से काम करने की प्रेरणा देते हैं तथा प्रतिदिन का काम पूरा करके ही लौटते हैं।

(ख) एक संस्कारवान व्यक्ति-किशनदा से प्रभावित होने के कारण यशोधर बाबू प्रतिदिन मंदिर जाकर प्रवचन सुनते हैं और सुबह-शाम घर पर पूजा करते हैं। यही नहीं, वे अपने घर पर ‘जन्यो-पुन्यू’ तथा रामलीला शिक्षा का काम भी समाज-सेवा के रूप में करते हैं। यही नहीं, वे यह भी चाहते हैं कि सगे-संबंधियों की सुख-दुख में सहायता करनी चाहिए। वे सरल वेशभूषा पहनते हैं और समय पर घूमने जाते हैं और सुबह जल्दी उठ जाते हैं।

(ग) सफल गहस्थी-उनको हम एक सफल गहस्थी कह सकते हैं। वे प्रतिदिन घर का राशन और साग-सब्जी खरीदकर लाते हैं तथा बच्चों का मन देखकर साइकिल छोड़कर पैदल जाते हैं। अनाथ होते हुए भी उन्होंने संयुक्त परिवार परंपरा को निभाया।

(घ) आधुनिकता के आलोचक-यशोधर बाबू आधुनिकता के नाम पर मनमानी करना, कम कपड़े पहनना, नए उपकरणों का प्रयोग करना यह सब पसंद नहीं करते हैं। विवाह की रजत जयंती मनाने को एक अनावश्यक खर्च मानते हैं। इसी प्रकार वे अपनी बेटी और पत्नी द्वारा आधुनिक कपड़ों को अपनाने का भी विरोध करते हैं। वस्तुतः किशनदा से अत्यधिक प्रभावित होने के बाद वे नवीन मूल्यों को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते। फिर भी यशोधर बाबू ने पिता के कर्त्तव्य को अच्छी तरह निभाया। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और उन्हें मानवीय मूल्यों तथा समाज संस्कृति से यथासंभव जोड़ने का प्रयास किया। लेकिन उनके बच्चे नए ज़माने से अत्यधिक प्रभावित हुए।

प्रश्न 2.
किशनदा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस कहानी में किशनदा के चरित्र का वर्णन पृष्ठभूमि के रूप में किया गया है। इस कहानी के प्रत्येक संदर्भ में वे हस्तक्षेप करते दिखाई देते हैं। भले ही उनकी मृत्यु हो चुकी है, परंतु वे अपने मानस पुत्र यशोधर बाबू के रूप में अब भी जिंदा हैं। यशोधर बाबू के व्यक्तित्व पर उनका गहरा प्रभाव है। वे हर समय उनकी विशेषताएँ याद करते रहते हैं।

किशनदा एक सरल हृदय व्यक्ति हैं जो कुमाऊँ क्षेत्र से दिल्ली आकर सरकारी नौकरी करते हैं। उन्होंने कई पहाड़ी युवकों को अपने यहाँ शरण देकर उन्हें नौकरी प्राप्त करने में सहायता की। वे आजीवन कुँवारे रहे। यशोधर बाबू को उन्होंने न केवल नौकरी दिलवाने में सहायता की, बल्कि अनेक बार उन पर अपनी जेब से पैसे भी खर्च किए। किशनदा एक संस्कारवान तथा ग्रामीण संस्कृति से जुड़े व्यक्ति हैं।

यशोधर बाबू के व्यक्तित्व का निर्माण करने में उनका अत्यधिक सहयोग रहा। उन्होंने ही यशोधर बाबू को सुबह सैर पर जाने, सवेरे-शाम पूजा-पाठ करने, रामलीला वालों को एक कमरे की सुविधा देने तथा पहाड़ी क्षेत्रों की परंपराओं का निर्वाह करने की आदत डाल दी। यही कारण है कि यशोधर बाबू किशनदा की मृत्यु के बाद भी उनके द्वारा बताए गए संस्कारों का पालन करते रहे।

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प्रश्न 3.
यशोधर बाबू की पत्नी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
यशोधर बाबू की पत्नी मुख्यतः पुराने संस्कारों वाली होते हुए भी किन कारणों से आधुनिका बन गई?
उत्तर:
यशोधर बाबू की पत्नी एक सामान्य भारतीय नारी है। वह पहले पुराने संस्कारों को मानती थी, परंतु बदलते वक्त के साथ-साथ उसने अपने-आपको भी बदल दिया। इसका कारण यह है कि वह समय की गति को अच्छी प्रकार से जानती है।

उसका विवाह एक अनचाहे संयुक्त परिवार में हुआ। घर के बड़ों की शर्म के कारण वह न तो मन चाहा ओढ़-पहन सकी और न ही खा सकी। वह स्वच्छंद होकर जीवन को जीना चाहती थी। परंतु संयुक्त परिवार में होने के कारण ऐसा नहीं कर पाई। इसलिए एक स्थल पर वह अपने पति को कहती भी है-“किशनदा तो थे ही जन्म के बूढ़े, तुम्हें क्या सुर लगा कि जो उनका बुढ़ापा खुद ओढ़ने लगे हो?” वह आधुनिक रंग-ढंग से जीना चाहती थी। इसलिए अधेड़ अवस्था में आते ही उसने होंठों पर लाली तथा बालों में खिज़ाब लगाना आरंभ कर दिया। उसने अपनी बेटी पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई तथा उसे जींस तथा टॉप पहनने की खुली छूट दी।

यही नहीं, वह एक ऐसी नारी है जो आधुनिक सुविधाओं की दीवानी है। अपने पति के प्रति उसके मन में कोई सहानुभूति नहीं है। उसका मानना है कि उसका पति समय से पहले बूढ़ा हो गया है। इसलिए वह पूर्णतः आधुनिकता के रंग में रंगे बच्चों का साथ देने लगती है।

प्रश्न 4.
किशनदा का बुढ़ापा सुख से क्यों नहीं बीता? संक्षेप में उत्तर दीजिए।
उत्तर:
किशनदा ने आजीवन विवाह नहीं किया और वे सदैव समाज सेवा करते रहे। उनके साथियों ने दिल्ली की पॉश कॉलोनियों में ज़मीन लेकर अपने मकान बनवाए, लेकिन उन्होंने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। सेवानिवृत्त होने तक तो वे सरकारी क्वार्टर में रहे, बाद में कुछ समय के लिए किराए के क्वार्टर में भी रहे। अन्ततः वे अपने गाँव लौट गए। वहीं कुछ समय बाद उनका देहांत हो गया। यह किसी को नहीं पता कि उनकी मृत्यु कैसे हुई। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गाँव में उनकी कोई सेवा गा। इस कहानी के आधार पर कहा जा सकता है कि किशनदा एकाकी और बेघर रहते हुए सबकी सेवा करते रहे। परंतु उन्होंने अपने भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचा।

प्रश्न 5.
यशोधर बाबू का अपने बच्चों के प्रति कैसा व्यवहार था? ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू लोकतंत्रीय मूल्यों पर विश्वास करते थे। उन्होंने अपने बच्चों पर कोई बात थोपने का प्रयास नहीं किया। उनका कहना था कि बच्चे उनके कहे को पत्थर की लकीर न माने। उन्होंने अपने बच्चों को अपनी इच्छानुसार काम करने की आज़ादी दी। उनका मानना था कि आज के बच्चों को अधिक ज्ञान है, लेकिन अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता। उनकी केवल यही छोटी-सी इच्छा थी कि बच्चे कुछ भी करने से पहले उनसे पूछ लें, भले ही हम यशोधर बाबू को एक परंपरावादी पात्र कहें, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को हमेशा स्वतंत्र जीवन जीने दिया।

प्रश्न 6.
‘सिल्वर वैडिंग’ पार्टी में यशोधर बाबू का व्यवहार क्या आपको उचित लगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ पार्टी में यशोधर बाबू का व्यवहार बड़ा ही विचित्र था। उन्होंने इस पार्टी को इंप्रापर कहा। क्योंकि उनका मानना था कि यह सब अंग्रेज़ों के चोंचले हैं। यही नहीं, उन्होंने पत्नी तथा बेटी के कपड़ों पर भी प्रश्न चिह्न लगाया। उन्होंने यह सोचकर केक नहीं खाया कि इसमें अंडा होता है। हालांकि वे पहले मांसाहारी रह चुके थे। उन्होंने लड्ड भी इसलिए नहीं खाया, क्योंकि उन्होंने शाम की पूजा नहीं की। वे शाम की पूजा में अधिक देर तक इसलिए बैठे रहे, ताकि मेहमान वहाँ से चले जाएँ। यशोधर बाबू की अधिकांश हरकतें अनुचित ही लगती हैं। यदि वे परिवार के साथ थोड़ा-बहुत समझौता करके चलते तो शायद यह अधिक अच्छा होता।

प्रश्न 7.
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
यशोधर बाबू किशनदा के मानस-पुत्र हैं। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
इस कहानी को पढ़ने से यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि यशोधर बाबू का जीवन किशनदा से अत्यधिक प्रभावित रहा है। वे दिल्ली में आकर किशनदा की छत्र-छाया में रहने लगे थे। इसलिए उनके आदर्शों का अनुकरण करते हुए वे ऑफिस के कर्मचारियों के साथ वैसा ही व्यवहार करते थे जैसा किशनदा करते थे। वे किशनदा के समान मंदिर जाते थे और घंटा भर बैठकर प्रवचन सुनते थे। किशनदा ने जीवन भर यदि मकान नहीं बनाया तो यशोधर बाबू ने भी डी०डी०ए० फ्लैट के पैसे जमा नहीं करवाए। उन्होंने किशनदा के इस वाक्य को हमेशा याद रखा कि मूर्ख घर बनाते हैं और बुद्धिमान उसमें रहते हैं। किशनदा के समान वे जन्यो-पुन्यूं, रामलीला आदि के धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते रहें। सही अर्थों में यशोधर बाबू किशनदा के सकते हैं। संध्या-पूजा करते समय उन्हें भगवान के स्थान पर किशनदा के ही दर्शन होते हैं। वस्तुतः यशोधर बाबू ने शुरू से ही किशनदा को अपना गुरु, माता-पिता और मार्गदर्शक माना तथा जीवन भर उनके आदर्शों का अनुकरण करते रहे।

प्रश्न 8.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के कथ्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ मनोहर श्याम जोशी की एक उल्लेखनीय लंबी कहानी है। इसका अपना भाषिक अंदाज है। लेखक यहाँ पर यह कहना चाहता है कि आधुनिकता की ओर अग्रसर होता हमारा समाज नवीन उपलब्धियों को समेट लेना चाहता है, परंतु हमारे मानवीय मूल्य नष्ट होते जा रहे हैं।

यशोधर बाबू के जीवन में ‘जो हुआ होगा’ तथा ‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांशों का अधिक महत्त्व है। पहले में तो यथा स्थिति वाद की सोच है, दूसरे में अनिर्णय की स्थिति। यहाँ लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि आधुनिकता के कारण जो बदलाव आ रहा है, उसे बड़े-बुजुर्ग लोग स्वीकार करने में द्वंद्व ग्रस्त दिखाई देते हैं। लगभग यही स्थिति यशोधर बाबू की है जो अ तरक्की से खुश होते हैं और इसे ‘समहाउ इंप्रापर’ भी कहते हैं। लेखक यशोधर बाबू बुजुर्ग लोगों के द्वंद्व को रेखांकित करना चाहता है।

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प्रश्न 9.
‘यशोधर बाबू सहज, सरल तथा सादगीपूर्ण जीवन के पक्षधर हैं।’ सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
किशनदा के आदर्शों से प्रभावित होने के कारण यशोधर बाबू सहज, सरल तथा सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। उनके मन में आधुनिक साधनों और उपकरणों के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं है। ऑफिस जाते समय वे साइकिल का प्रयोग करते हैं और फटा हुआ पुलओवर पहनकर दूध लेने जाते हैं। ऐसा करने से उन्हें कोई दुविधा नहीं होती। वे दहेज़ में मिली घड़ी से ही काम चला लेते हैं और अपने सरकारी क्वार्टर को छोड़कर किसी आलीशान मकान में नहीं जाना चाहते। यही कारण है कि उन्होंने डी०डी०ए० फ़्लैट के लिए पैसे नहीं भरे। वे अपनी वर्तमान परिस्थिति से पूर्णतया संतुष्ट हैं। वे अपने बेटों के काम-काज में अधिक हस्तक्षेप नहीं करते।

प्रश्न 10.
यशोधर बाबू सामाजिक और पारिवारिक जीवन-शैली जीना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विवाह के बाद यशोधर बाबू संयुक्त परिवार में रहते थे। दूसरा, किशनदा ने उनकी जीवन-शैली को अत्यधिक प्रभावित किया था। इसलिए वह न केवल अपने परिवार के लोगों से, बल्कि अन्य रिश्तेदारों से भी मिलना-जुलना चाहते हैं। वे हर माह अपनी बहन के पास कुछ पैसे भेजते रहते हैं। वे अपने बीमार जीजा का पता करने के लिए अहमदाबाद जाना चाहते हैं। उनकी यह भी इच्छा है कि उनके बच्चे सभी रिश्तेदारों का मान करें। रिश्तेदारों से जुड़ने में उन्हें विशेष प्रसन्नता प्राप्त होती है। परंतु उनकी पत्नी तथा बच्चे इसे एक मूर्खतापूर्ण कार्य कहते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि उनकी पत्नी तथा बच्चे हर बात में उनकी सलाह लें और अपनी कमाई लाकर पिता के हाथों में रखें। इससे स्पष्ट होता है कि यशोधर बाबू की अपने परिवार के प्रति गहरी आसक्ति है।

प्रश्न 11.
यशोधर बाबू का व्यवहार आपको कैसा लगा? ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू भले ही नए ज़माने के व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन वे ज़माने की चाल को अवश्य पहचानते हैं। वे सरल और सादी जिंदगी जीना चाहते हैं। साथ ही अधेड़ आयु होने के कारण उनमें शिथिलता आ चुकी है, परंतु फिर भी वे मजबूर होकर नए परिवर्तन को अपना लेते हैं। ऐसा करने से उनके पुराने संस्कार ट जाते हैं। नई चीज को अपनाने में वे हमेशा सं परंतु वे उसका विरोध भी नहीं करते हैं। कारण यह है कि उनकी आयु अब ढल चुकी है। हमारे विचार में यशोधर बाबू जैसे व्यक्ति से थोड़े-बहुत परिवर्तन की ही आशा की जा सकती है।

प्रश्न 12.
यशोधर बाबू अपने ही घर में बेचारे तथा असहाय बन चुके हैं। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
इसमें दो मत नहीं हैं कि यशोधर बाबू अपने घर में ही बेचारे, मजबूर और असहाय-से लगते हैं। उनके बच्चे उनका कहना नहीं मानते। वे न तो अपने पिता का सम्मान करते हैं, न ही उनसे कोई सलाह लेते हैं और न ही उनसे अधिक बात करते हैं। घर के सभी लोग उन्हें उपेक्षा तथा तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं। मजबूर होकर वे साइकिल चलाना छोड़ देते हैं। फ्रिज और गैस को अपना लेते हैं। उपहार में मिले गाउन को पहन लेते हैं। अब उनमें बच्चों का विरोध करने की शक्ति नहीं रही। उनकी अपनी बेटी उनका अपमान करती है और उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर बच्चों के साथ मिल जाती है। ऐसा लगता है कि वे अपने बच्चों से हार चुके हैं। यही कारण है कि उनके मन में ‘जो हुआ होगा’ वाक्यांश बार-बार उभरकर आता है।

प्रश्न 13.
एक सैक्शन आफिसर के रूप में यशोधर बाबू का दफ्तर में कैसा व्यवहार था?
उत्तर:
यशोधर बाबू एक सरकारी कार्यालय में सैक्शन आफिसर हैं वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर पूरा नियंत्रण रखते हैं। वे समय पर कार्यालय पहुँचते हैं और साढ़े पाँच बजे तक वहाँ कार्य करते हैं। मजबूर होकर अन्य कर्मचारियों को भी साढ़े पाँच बजे तक बैठना पड़ता है। अधीनस्थ कर्मचारियों से वे प्रायः सख्ती से निपटते हैं। परंतु आफिस से प्रस्थान करते समय वे एकाध चुटीली बात कहकर माहौल के तनाव को कम कर देते हैं। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से थोड़ी-बहुत दूरी बनाए रखते हैं और उनके साथ अधिक घुलते-मिलते नहीं हैं। यही कारण है कि वे अपनी सिल्वर वैडिंग पार्टी के लिए तीस रुपये तो देते हैं, लेकिन उसमें शामिल नहीं होते। जब चड्डा उनके साथ बदतमीज़ी का व्यवहार करता है तो वे उसकी बात को मज़ाक में उड़ा देते हैं। इससे यह पता चलता है कि वे एक व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं।

प्रश्न 14.
यशोधर बाबू अपनी भाषा में कार्यालयी मुहावरों का प्रयोग करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू की भाषा पर दफ़्तर की भाषा का अत्यधिक प्रभाव है। वे प्रायः बोलते समय सरकारी दफ्तरों में बोली जाने वाली अंग्रेजी भाषा के वाक्यांशों का प्रयोग करते हैं। इस पाठ से दो-एक उदाहरण देखिए-
(i) आप लोग चाय पीजिए’ दैट’. तो ‘आई ड नाट माइंड’ लेकिन जो हमारे लोगों में ‘कस्टम’ नहीं है, उस पर ‘इनसिस्ट’ करना दैट’ मैं ‘समहाउ इंप्रॉपर फाइंड करता हूँ।

(ii) “मुझे तो वे ‘समहाउ इंप्रापर’ ही मालूम होते हैं। ‘एनीवे’ मैं तुम्हें ऐसा करने से रोक नहीं रहा। देयरफोर तुम लोगों को भी मेरे जीने के ढंग पर कोई एतराज नहीं होना चाहिए।”

प्रश्न 15.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में चड्डा का यशोधर बाबू के प्रति कैसा व्यवहार है और क्यों?
उत्तर:
चड्ढा यशोधर बाबू का अधीनस्थ कर्मचारी है। वह असिस्टेंट ग्रेड की परीक्षा पास करके नया-नया कर्मचारी नियुक्त हुआ है। उसमें अपनी योग्यता का घमंड है और वह हर बात में यशोधर बाबू को नीचा दिखाना चाहता है। वह यशोधर बाबू की पुरानी घड़ी को चूनेदानी अथवा बाबा आदम के ज़माने की घड़ी बताता है। वह यशोधर बाबू को डिजीटल घड़ी खरीदने के लिए कहता है। जब यशोधर बाबू अपना हाथ उससे मिलाने के लिए आगे बढ़ाते हैं तो वह उनका अपमान कर देता है। यही नहीं, यशोधर बाबू की सिल्वर वैडिंग की पार्टी के लिए उनसे तीस रुपये ले लेता है। इससे पता चलता है कि उसमें न तो गरिमा है, और न ही अपने से बड़ों की इज्जत करने की सभ्यता है। उसमें धृष्टता देखी जा सकती है।

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प्रश्न 16.
यशोधर बाबू के बच्चों का उज्ज्वल पक्ष कौन-सा है?
उत्तर:
यशोधर बाबू के बच्चे बड़े प्रतिभाशाली और मेहनती हैं। वे अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर आगे बढ़े हैं। बड़ा लड़का एक विज्ञापन कंपनी में पंद्रह सौ रुपये पर काम कर रहा है। दूसरा लड़का एलाइड सर्विसेज़ में चुना गया है। लेकिन वह और अच्छी नौकरी पाने के लिए दोबारा पढ़ रहा है। तीसरा लड़का स्कॉलरशिप लेकर पढ़ने के लिए अमरीका गया है। उनकी बेटी डॉक्टरी अमरीका जाना चाहती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सभी बच्चे उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हैं। वे अपने घर में गैस, फ्रिज, सोफा, कालीन आदि सुविधाएँ जुटाना चाहते हैं।

प्रश्न 17.
यशोधर बाबू के बच्चों का पक्ष मलिन कौन-सा है?
उत्तर:
भले ही यशोधर बाबू के बच्चे बड़े ही प्रतिभाशाली और मेहनती हैं। लेकिन उनका व्यवहार अधिक अच्छा नहीं है। वे न तो पिता का मान करते हैं, न रिश्तेदारी का और न ही धर्म और समाज का। बल्कि वे बात-बात पर अपने पिता का अपमान करते हैं। वे पिता की सलाह लिए बिना ही उनकी सिल्वर वैडिंग की पार्टी का आयोजन कर देते हैं। साथ ही वे चाहते हैं कि उनके पिता हर बात में उनका सहयोग करें। भूषण अच्छी नौकरी पाकर भी घर में कुछ नहीं देता। वह हमेशा अपने घर में अपने पैसों की धौंस जमाता रहता है। वह पिता को अपमानित करते हुए कहता है कि वह घर में कोई नौकर रख लें, जिसका वेतन वह स्वयं देगा।

उपहार के रूप में एक गाउन देकर वह कहता है कि उनके पिता फटा हुआ गाउन पहनकर दूध लेने न जाएँ। इसी प्रकार उनकी लड़की स्वयं बेढंगे कपड़े पहनती है और पिता द्वारा टोकने पर उसे झिड़क देती है। यही नहीं, बच्चों के मन में अपने रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों के प्रति भी कोई लगाव नहीं है। बुआ को पैसे भेजने के बारे में वे आनाकानी करते हैं और धर्म तथा समाज के कामों में भाग नहीं लेते। उनमें न तो अच्छे संस्कार हैं और न ही मानव मूल्य। उनके मन में केवल पद, प्रतिष्ठा और पैसे का ही मोह है।

प्रश्न 18.
यशोधर बाबू की पत्नी अपने पति से प्रतिकूल व्यवहार क्यों करती है?
उत्तर:
आरंभ में यशोधर बाबू की पत्नी को संयुक्त परिवार के बंधन में रहना पड़ा था। वह न तो जीवन के सुखों को भोग सकी और न ही जीवन का आनंद ले सकी। यशोधर बाबू ने अपनी बूढ़ी ताई के समान उसे भी अच्छा खाने-पहनने को नहीं दिया। वह अपने यौवन को खुलकर नहीं भोग पाई। इसलिए वह अपने पति के परंपरावादी विचारों का विरोध करती है। उसे इस बात का दुख है कि उसका पति बूढ़ों जैसी बातें करने लग गया है। एक स्थल पर वह उसे कहती भी है कि ‘तुम शुरू में तो ऐसे नहीं थे, शादी के बाद मैंने तुम्हें देख जो क्या नहीं रखा है! हफ्ते में दो-दो सिनेमा देखते थे। गज़ल गाते थे गज़ल! इस प्रकार हम देखते हैं कि यशोधर की पत्नी आधुनिक सुख-सुविधाओं को भोगना चाहती है और यशोधर पुराने मूल्यों से चिपका हुआ है। अतः वह अपने पति का विरोध करती है।

प्रश्न 19.
‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के यशोधर बाबू समय के साथ ढल सकने में असफल रहते हैं, ऐसा क्यों?
उत्तर:
यशोधर बाबू आजीवन किशनदा के आदर्शों का अनुसरण करते रहे। वे अपने परिवार को भी उन्हीं संस्कारों में ढालना चाहते थे, परंतु वे सच्चाई को भूल गए कि अब ज़माना बदल गया है। उनकी पत्नी तथा बच्चे नए ज़माने के अनुसार चलना चाहते यशोधर बाबू अपने पुराने संस्कारों तथा प्रौढावस्था के कारण नए जमाने का स्वागत नहीं करते। उन्हें लगता है कि आधनिक पहनावा पश्चिमी रंग-ढंग से प्रभावित है। इसलिए वे समय के साथ ढल सकने में असमर्थ रहते हैं।

प्रश्न 20.
‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है।
उत्तर:
यशोधर बाबू की पत्नी अपने यौवनकालीन जीवन से असंतुष्ट रही है। उसे संयुक्त परिवार के बंधनों में रहना पड़ा था। वह न तो मनमर्जी का खा सकी थी और न पहन सकी थी। उसका कोई शौक पूरा नहीं हुआ था। इसलिए जब उसके बच्चे नए ज़माने की ओर अग्रसर होते हैं तो वह भी उनके सुर में सुर मिलाना शुरू कर देती है। वह अपने सफेद बालों में खिज़ाब लगाती है। होंठों पर लाली लगाती है और ऊँची एड़ी के सैंडिल पहनती है। इस प्रकार वह समय के अनुसार ढल जाती है। यहाँ तक कि घर के सभी बच्चे भी उसका साथ देते हैं।

प्रश्न 21.
क्या पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी की मूल संवेदना कहा जा सकता है। तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
निश्चय से इस कहानी में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को चित्रित किया गया है। लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि पश्चिमी सभ्यता का अंधा अनुकरण करने के कारण हम भारतवासी अपनी संस्कृति को त्याग चुके हैं। हमारे लिए रिश्तेदारी, परंपरा, भारतीय वेशभूषा तथा तीज-त्योहार का कोई मूल्य नहीं है। यही नहीं, मंदिर जाना या संध्या वंदना करना आदि भी हम पसंद नहीं करते। इसके स्थान पर हम सिल्वर वैडिंग पार्टी करना, केक काटना, जींस और टॉप पहनना आदि उचित मानते हैं, परंतु यशोधर बाबू अभी भी भारतीय संस्कृति का पक्ष लेते हैं और पाश्चात्य परंपरा का विरोध करते हैं। प्रस्तुत कहानी में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से उत्पन्न संघर्ष को दर्शाया गया है। अतः यह भी कहानी की मूल संवेदना हो सकती है।

प्रश्न 22.
क्या पीढ़ी के अंतराल को सिल्वर वैडिंग की मूल संवेदना कहा जा सकता है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
वस्तुतः पीढ़ी का अंतराल ही इस कहानी की मूल संवेदना है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके बच्चे नई पीढ़ी का। यशोधर बाब परानी परंपराओं का निर्वाह करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि होली, रामलीला, रिश्तेदारी आदि को निभाया जाए। वे सादा और सरल जीवन जीना चाहते हैं और बच्चों से यह चाहते हैं कि वे भी अपने बड़ों का सम्मान करें।

इसके विपरीत नई पीढ़ी भौतिकता को महत्त्व देती है। वह रिश्तेदारी की अपेक्षा आर्थिक विकास को श्रेयस्कर कर मानती है। उनके लिए पुराने संस्कार और परंपराएँ व्यर्थ हैं। यहाँ तक कि नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को भी अपने रंग-ढंग में ढालना चाहती है। अतः सिल्वर वैडिंग में इन दो पीढ़ियों के संघर्ष का सजीव वर्णन किया गया है।

प्रश्न 23.
सिल्वर वैडिंग के कथानायक यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है-इस कथन के पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
किसी भी दृष्टि से यशोधर बाबू का व्यक्तित्व आदर्श नहीं है। वे भले ही पुराने संस्कारों एवं परंपराओं से चिपके हुए तो उनकी पत्नी उनकी बात सुनती है और न ही उनके बच्चे। यहाँ तक कि वे अपने घर-परिवार, दफ्तर तथा समाज में अकेले पड़ जाते हैं। वे किशनदा के आदर्शों पर चलना चाहते हैं और नए युग के तौर-तरीकों को अपनाने में पूर्णतया असमर्थ रहते हैं। वस्तुतः उनका आचरण और व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली नहीं है कि वे अपने बच्चों में अपनी सोच को भर सकें। वे समय से पिछड़ चुके हैं और प्राचीन तथा नवीन में सामंजस्य नहीं बैठा सके। यदि वे ऐसा करने में सफल होते तो फिर यशोधर बाबू एक आदर्श कथानायक कहलाते।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

प्रश्न 24.
यशोधर बाबू की वाहन से सम्बद्ध विचारधारा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू सदा ही दिखावे की दुनिया से दूर रहे और सहज जीवन जीने के पक्षधर रहे। वाहन के प्रति भी उनका यही दृष्टिकोण रहा है। यशोधर बाबू सवारी पर अधिक खर्च नहीं करते थे। जहाँ तक हो सकता था, वे पैदल चलना पसन्द करते थे। वे अपने क्वार्टर गोल मार्केट से सेक्रेट्रिएट तक पैदल ही आते-जाते थे। वे साग-सब्जी लेने भी पैदल ही जाते थे। आरम्भ में वे कार्यालय में साइकिल पर जाते थे, किन्तु अब उनके बच्चे युवा हो गए थे। उन्हें लगता था कि साइकिल तो चपरासी भी चलाते हैं। बच्चे चाहते थे कि उनके पिता जी अब स्कूटर ले लें। किन्तु उनका मानना था कि स्कूटर तो एक बेहूदा सवारी है और कार जब अफोर्ड नहीं कर सकते, तब उसकी बात सोचना ही क्यों?

प्रश्न 25.
यशोधर पंत के स्वभाव को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू सहज, सरल तथा सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। उनके मन में आधुनिक साधनों और उपकरणों के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं है। ऑफिस जाते समय वे साइकिल का प्रयोग करते हैं और फटा हुआ पुलओवर पहनकर दूध लेने जाते हैं। ऐसा करने से उन्हें कोई दुविधा नहीं होती। वे दहेज़ में मिली घड़ी से ही काम चला लेते हैं और अपने सरकारी क्वार्टर को छोड़कर किसी आलीशान मकान में नहीं जाना चाहते। यही कारण है कि उन्होंने डी०डी०ए० फ़्लैट के लिए पैसे नहीं भरे। वे अपनी वर्तमान परिस्थिति से पूर्णतया संतुष्ट हैं। वे अपने बेटों के कामकाज में अधिक हस्तक्षेप नहीं करते।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूषण बुआ को पैसे भेजने से मना क्यों करता है?
उत्तर:
यशोधर के अतिरिक्त घर के किसी सदस्य का अपने रिश्तेदारों से कोई लगाव नहीं है। विशेषकर भूषण यह समझता है कि बुआ उसके पिता की बहन है। इसलिए उसे पैसे भेजना उसका दायित्व नहीं है। वह इसे अनावश्यक संबंध मानता है।

प्रश्न 2.
यशोधर बाबू अपने घर देर से क्यों आते हैं?
उत्तर:
घर का कोई भी सदस्य यशोधर बाबू का आदर-मान नहीं करता, बल्कि सभी उनकी उपेक्षा एवं तिरस्कार करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर उनका अपनी पत्नी से मतभेद हो जाता है। इसलिए जितना हो सकता है, वे घर से दूर ही रहते हैं।

प्रश्न 3.
यशोधर बाबू को अपने बड़े बेटे की बड़ी नौकरी पसंद क्यों नहीं थी?
उत्तर:
भले ही यशोधर सेक्शन आफिसर थे, लेकिन वे भी डेढ़ हज़ार के मासिक वेतन तक नहीं पहुँच पाए थे। उनके बेटे को छोटी आयु में ही इतना बड़ा वेतन मिल रहा था। वे सोचते थे कि इसमें कोई-न-कोई गड़बड़ अवश्य है। वे बेटे की नौकरी के रहस्य को नहीं समझ पाए। इसलिए उनको अपने बड़े बेटे की बड़ी नौकरी पसंद नहीं थी।

प्रश्न 4.
उपहार में मिले यशोधर के ड्रेसिंग गाउन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू की सिल्वर वैडिंग के अवसर पर घर पर परिवार के सदस्यों ने एक पार्टी का आयोजन किया था। बच्चों ने उन्हें अनेक उपहार दिए थे। उनके एक बेटे ने उन्हें ड्रेसिंग गाउन उपहार में दिया था। यशोधर बाबू ने कभी गाउन का प्रयोग नहीं किया था, किन्तु उपहार में दिए गए गाउन को स्वीकार करना पड़ा। उन्होंने उसे अपने कमीज-पाजा पर पहन लिया था।

प्रश्न 5.
किशनदा की मृत्यु का कारण क्या रहा होगा?
उत्तर:
किशनदा रिटायर होकर दिल्ली छोड़कर अपने गाँव चले गए। वहाँ भी उन्हें उपेक्षा और तिरस्कार प्राप्त हुआ। वृद्धावस्था में उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। इस कारण शायद उनकी मृत्यु शीघ्र हो गई होगी।

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प्रश्न 6.
यशोधर ने किशनदा को अपने घर पर आश्रय क्यों नहीं दिया?
उत्तर:
यशोधर बाबू का क्वार्टर बहुत छोटा था। उसमें केवल दो कमरे थे, जिसमें तीन परिवार रहते थे। इसलिए यशोधर बाबू किशनदा को अपने घर आश्रय नहीं दे पाए।

प्रश्न 7.
यशोधर बाबू ने आजीवन अपना मकान क्यों नहीं बनाया?
उत्तर:
किशनदा से प्रभावित होने के कारण यशोधर बाबू भी मानते थे कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं और सयाने उनमें रहते हैं। वे आजीवन सरकारी क्वार्टर में रहे। फिर उन्हें यह भी उम्मीद थी कि जब उनका बेटा सरकारी नौकरी पर लग जाएगा तो उनके रिटायर होने के बाद यह क्वार्टर उन्हें फिर से मिल जाएगा। इस कारण यशोधर बाबू ने आजीवन अपना मकान नहीं बनाया।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू का प्रवचन में मन क्यों नहीं लगा?
उत्तर:
पहली बात तो यह है कि यशोधर अधिक धार्मिक तथा कर्मकांडी नहीं है। वे केवल किशनदा के कहने पर प्रवचन सुनने के लिए जाते हैं। दूसरा, घर से मिली उपेक्षा और तिरस्कार उनको चैन से जीने नहीं देती। धार्मिक प्रवचन सुनकर भी उनके मन की बेचैनी दूर नहीं होती। इसलिए यशोधर बाबू का प्रवचन में मन नहीं लगा।

प्रश्न 9.
यशोधर बाबू की सामाजिकता को उनकी पत्नी और बच्चे पसंद क्यों नहीं करते?
उत्तर:
यशोधर की पत्नी तथा बच्चे नहीं चाहते थे कि ‘जन्यो पुन्यूं की परंपरा का निर्वाह करने के लिए लोगों को घर पर बुलाया जाए और रामलीला की तैयारी के लिए घर का एक कमरा दिया जाए। इससे एक तो धन भी खर्च होता है तथा दूसरा समय भी नष्ट होता है। इन परंपराओं में बच्चों का कोई विश्वास नहीं था।

प्रश्न 10.
यशोधर बाबू को ऐसा क्यों लगा कि उनके क्वार्टर पर अब उनके बेटे का अधिकार हो गया है?
उत्तर:
यशोधर बाबू ने अनुभव किया कि उनका बेटा उनके क्वार्टर में मन माना परिवर्तन कर रहा है। वह घर के लिए पर्दे, कालीन, सोफा, डबल बेड और टी०वी० ले आया। फिर उसने यह भी निर्देश जारी कर दिया कि उसके टी०वी० को कोई हाथ न लगाए। इन बातों से यशोधर बाबू को यह महसूस हुआ कि उसके बेटे ने उसके ही क्वार्टर पर अधिकार जमा लिया है।

प्रश्न 11.
यशोधर बाबू गिरीश को बिगडैल क्यों कहते हैं?
उत्तर:
गिरीश यशोधर का साला है। वह महत्त्वाकांक्षी होने के साथ येन-केन-प्रकारेण उन्नति प्राप्त करने में विश्वास करता है। वह लड़कों को शार्ट-कट द्वारा तरक्की प्राप्त करने के उपाय बताता रहता है। यह सब यशोधर बाबू के सिद्धांतों के विरुद्ध है। अतः वे उसे बिगडैल कहते हैं।

प्रश्न 12.
यशोधर बाबू और उनकी पत्नी की ड्रेस के बारे में अलग-अलग राय क्यों है?
उत्तर:
यशोधर बाबू किशनदा से प्रभावित होने के कारण एक परंपरावादी व्यक्ति हैं। वे सरल और साधारण वेशभूषा पहनने में विश्वास करते हैं, लेकिन उनकी पत्नी नए ज़माने से प्रभावित होने के कारण बालों में खिज़ाब लगाती है, ऊँची एड़ी के सैंडल पहनती है और होंठों पर लाली लगाती है। वह अपनी बेटी को भी जींस, पतलून तथा बिना बाँह का ब्लाऊज पहनाती है।

प्रश्न 13.
किशनदा ने यशोधर बाबू की सहायता किस प्रकार से की?
उत्तर:
यशोधर. बाबू रेम्जे स्कूल अल्मोड़ा से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके नौकरी की तलाश में दिल्ली आए थे। उस समय उनकी आयु नौकरी के लायक नहीं थी। ऐसी दशा में किशनदा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। यही नहीं, किशनदा ने यशोधर बाबू को पचास रुपये उधार भी दिए ताकि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके और गाँव पैसा भिजवा सके। बाद में किशनदा ने अपने ही ऑफिस में नौकरी दिलवाई और दफ्तरी जीवन में भी मार्ग-दर्शन किया।

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प्रश्न 14.
यशोधर बाबू ने अपनी सिल्वर वैडिंग पर केक क्यों नहीं खाया?
उत्तर:
भले ही यशोधर बाबू पहले यदा कदा माँस खा लेते थे। लेकिन इस समय वे पूर्णतया निरामिष भोजी थे। उन्होंने यह सोचकर केक नहीं खाया कि उसमें अंडा होता है। दूसरा वे विलायती परंपरा को भी नहीं निभाना चाहते थे।

प्रश्न 15.
घर बनाने के विषय में यशोधर बाबू के दृष्टिकोण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू घर बनाने के विषय में ‘मूरख लोग मकान बनाते हैं और सयाने उनमें रहते हैं’ कहावत से सहमत है। उसका मत है कि जब तक सरकारी नौकरी में है तो सरकारी क्वार्टर। फिर बच्चों में से किसी की सरकारी नौकरी लग गई तो उसे सरकारी क्वार्टर मिल जाएगा। उसमें रह लेंगे। यशोधर बाबू ने कभी भी मकान बनाने के विषय में गम्भीरता से सोचा ही नहीं था।

प्रश्न 16.
किशनदा और यशोधर पंत की मित्रता की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
किशनदा और यशोधर पंत की मित्रता ही नहीं थी, अपितु दोनों में गहरा सम्बन्ध भी था। यशोधर पंत को किशनदा का मानस पुत्र कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। किशनदा और यशोधर बाबू दोनों अच्छे मित्र थे। दोनों एक-दूसरे के काम आते थे अर्थात् एक-दूसरे का सहयोग करके अपनी अच्छी मित्रता का प्रमाण भी देते थे। किशनदा का यशोधर पंत के व्यक्तित्व निर्माण में अत्यधिक सहयोग रहा है। यशोधर पंत को किशनदा की मृत्यु के समाचार से बहुत शौक हुआ था। इन सब तथ्यों से पता चलता है कि दोनों में गहन मित्रता थी।

प्रश्न 17.
क्या यशोधर बाबू द्वारा बैठक में गमछा पहनकर आना उचित कहा जा सकता है?
उत्तर:
यशोधर बाबू का यह कार्य सर्वथा अनुचित कहा जाएगा। भारतीय अथवा विलायती दोनों परंपराओं की दृष्टि से इसे हम उचित नहीं कह सकते।

प्रश्न 18.
यशोधर बाब की बेटी की आधुनिकता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू की बेटी परम्परागत जीवन जीना पसन्द नहीं करती थी। वह हमेशा जींस और बगैर बाँह का टॉप पहने रहती है। वह अपने पिता की 25वीं वर्षगाँठ के समय इसी ड्रैस में मेहमानों को विदाई देती है। यशोधर बाबू भी उसे कई बार ऐसी ड्रैस न पहनने के लिए कह चुके थे। किन्तु उस पर उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ। यशोधर बाबू की पत्नी बेटी का पक्ष लेती है वह स्वयं भी आधुनिक बनने व दिखने के पक्ष में है। किन्तु यशोधर बाबू को उनकी बात पसन्द नहीं थी।

सिल्वर बैंडिग Summary in Hindi

सिल्वर बैंडिग लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री मनोहर श्याम जोशी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री मनोहर श्याम जोशी का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-श्री मनोहर श्याम जोशी का जन्म 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में हुआ। वे हिंदी साहित्य में एक कथाकार, व्यंग्यकार, संपादक, पत्रकार तथा दूरदर्शन धारावाहिक लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने विज्ञान में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने ‘दिनमान’ पत्रिका के सहायक संपादक के रूप में साहित्य जगत् में प्रवेश किया। बाद में वे ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ पत्रिका का संपादन करने लगे। सन् 1984 में उन्होंने दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले ‘हम लोग’ धारावाहिक का लेखन किया। आम लोगों में यह धारावाहिक अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। उनके द्वारा लिखित पटकथाओं पर ‘बुनियाद’, ‘हमराही’, ‘कक्का जी कहिन’, ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ आदि लोकप्रिय धारावाहिक बने। सन् 2006 में इस साहित्यकार का निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं

  • कहानी-संग्रह-‘कुरू कुरू स्वाहा’, ‘कसम’, ‘हरिया’, ‘हरक्यूलीज़ की हैरानी’, ‘हमजाद’, ‘क्याप’ आदि।
  • व्यंग्य-संग्रह ‘एक दुर्लभ व्यक्तित्व’, ‘कैसे किस्सागो’, ‘मंदिर घाट की पौड़ियाँ’, ‘ट-टा प्रोफेसर षष्ठी वल्लभ पंत’, ‘नेताजी कहिन’, ‘इस देश का यारो क्या कहना’ आदि।
  • साक्षात्कार-संग्रह ‘बातों बातों में’, ‘इक्कीसवीं सदी’।
  • संस्मरण-संग्रह-‘लखनऊ मेरा लखनऊ’, ‘पश्चिमी जर्मनी पर एक उड़ती नज़र’।
  • दूरदर्शन धारावाहिक ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’। सन् 2005 में ‘क्याप’ के लिए उनको ‘साहित्य अकादमी’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-मनोहर श्याम जोशी एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने असंख्य कहानियाँ, संस्मरण, व्यंग्य लेख, साक्षात्कार तथा दूरदर्शन के लिए धारावाहिक लिखे। वे मूलतः आधुनिक युग बोध के साहित्यकार थे। उन्होंने आज की पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा नैतिक समस्याओं पर अपने मौलिक विचार व्यक्त किए। ‘हम लोग’ तथा ‘बुनियाद’ जैसे धारावाहिकों में उन्होंने समाज की नब्ज़ को पकड़ने का सफल प्रयास किया है। उदाहरण के रूप में ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में लेखक ने पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच उत्पन्न खाई की ओर संकेत किया है जिसके फलस्वरूप आज संयुक्त परिवार टूटकर बिखर रहे हैं। अपने व्यंग्यात्मक लेखों में उन्होंने आज के राजनीतिज्ञों, तथाकथित साहित्यकारों एवं सामाजिक नेताओं पर करारे व्यंग्य किए हैं। उनकी कुछ कहानियाँ सामाजिक समस्याओं का उद्घाटन करती हैं और पाठकों को बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं। उनकी अधिकांश रचनाएँ शिक्षा जगत् के लिए काफी उपयोगी हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

4. भाषा-शैली-मनोहर श्याम जोशी ने प्रायः साहित्यिक हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है, जिसमें अंग्रेज़ी तथा उर्दू शब्दों का मिश्रण खुलकर देखा जा सकता है। कहीं-कहीं तो वे अंग्रेजी भाषा के पूरे वाक्य का ही प्रयोग कर देते हैं। वस्तुतः उनकी भाषा पात्रानुकूल तथा प्रसंगानुकूल कही जा सकती है। आवश्यकतानुसार वे पंजाबी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग कर लेते हैं। ‘दिनमान’ तथा ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ पत्रिकाओं में उन्होंने पूर्णतया साहित्यिक हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है।

इसके साथ-साथ उनकी शैली साहित्यिक विधा के अनुसार बदल जाती है। व्यंग्य लेखों में उनका व्यंग्य बड़ा ही तीखा और चुभने वाला है। इस पाठ से उनकी भाषा-शैली का एक उदाहरण देखिए “अपनी सिल्वर वैडिंग की यह भव्य पार्टी भी यशोधर बाबू को समहाउ इंप्रापर ही लगी तथापि उन्हें इस बात से संतोष हुआ कि जिस अनाथ यशोधर बाबू के जन्मदिन पर कभी लह नहीं आए, जिसने अपना विवाह भी कोऑपरेटिव से दो-चार हज़ार कर्जा निकालकर किया बगैर किसी खास धूमधाम के, उसके विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर केक, चार तरह की मिठाई, चार तरह की नमकीन, फल, कोल्डड्रिंक्स, चाय सब कुछ मौजूद है।”

सिल्वर बैंडिग पाठ का सार

प्रश्न-
श्री मनोहर श्याम जोशी द्वारा रचित ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
सिल्वर वैडिंग’ पाठ के रचयिता श्री मनोहर श्याम जोशी हैं। इसमें लेखक ने यशोधर पंत की 25वीं वर्षगाँठ का सजीव वर्णन किया है। यशोधर बाबू अपने विभाग के सेक्शन आफिसर के पद पर नियुक्त थे। वे अपने कार्यालय में एक निश्चित समय तक काम करते थे। दिनभर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार प्रायः रूखा था। लेकिन अपने गुरु कृष्णानंद (किशनदा) की परंपरा का अनुसरण करते हुए वे प्रायः सांयकाल को दफ्तर से जाते समय अपने कर्मचारियों के साथ हल्का-फुलका मज़ाक भी कर लेते थे। कभी-कभी वे अपने अधीनस्थ असिस्टेंट ग्रेड के लिपिक चड्डा की धृष्टता की भी अनदेखी कर देते थे।

एक बार यशोधर बाबू को अपने पूर्ववर्ती अधिकारी किशनदा की याद आ गई। वे उनके साथ बिताए हुए कुछ क्षणों की याद में डूब से गए। चड्ढा द्वारा पुनः बोलने पर उनके मुख से अचानक निकल पड़ा “नाव लैट मी सी, आई वॉज़ मैरिड ऑन सिक्स्थ फरवरी नाइंटिन फोर्टी सेवन।” आफिस के एक अन्य बाबू ने तत्काल हिसाब लगाकर कहा-“मैनी हैप्पी रिटर्नुस आफ द डे सर! आज तो आपका सिल्वर वैडिंग है। शादी को पूरा पच्चीस साल हो गया।” परंतु यशोधर बाबू सिल्वर वैडिंग को गोरे साहबों का चोंचला मानते थे। इधर चड्डा तथा मेनन ने चाय-मट्ठी तथा लड्डु की माँग प्रस्तुत की। यशोधर बाबू ने इसे ‘समहाउ इंप्रॉपर’ कहकर दस रुपये दे दिए। सारे सेक्शन के कहने पर भी वे इस दावत में शामिल नहीं हुए। हाँ, उन्होंने दस-दस के दो नोट और अवश्य दे दिए।

यशोधर बाबू ‘बॉय सर्विस से उन्नति प्राप्त करके सेक्शन ऑफिसर बने। किशनदा हमेशा उनके आदर्श बने रहे। वे उनके पूर्ववर्ती अधिकारी थे। इसलिए वे हमेशा उन्हीं का अनुकरण करते रहे और तरक्की करते हुए सेक्शन ऑफिसर बन गए। यशोधर बाबू किशनदा के समान सिद्धांतों के पक्के हैं। ऑफिस से छुट्टी मिलने के बाद हर रोज़ बिड़ला मंदिर जाते, प्रवचन सुनते और स्वयं ध्यान भी लगाते। वहाँ से निकलकर वे पहाड़गंज से साग-सब्जी खरीद कर लाते थे। इसी समय में वे लोगों से मिल-जुल लेते थे। वे पैदल घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आते थे। यद्यपि ऑफिस से पाँच बजे छुट्टी मिल जाती थी, परंतु वे रात के आठ बजे ही घर पहुँचते थे। आज जब यशोधर बाबू बिड़ला मंदिर जा रहे थे, तो उन्होंने तीन बैडरूम वाले उस क्वार्टर को देखा, जिसमें किशनदा रहते थे। अब वह क्वार्टर नहीं रहा था। वहाँ पर एक छह मंजिला मकान खड़ा था। एक मंज़िल के क्वार्टर को तोड़कर छह मंजिला मकान बनाना यशोधर बाबू को अच्छा नहीं लगा।

भले ही उन्हें पद के अनुसार एंड्रयूज़गंज, लक्ष्मीबाई नगर, पंडारा रोड पर डी-2 टाइप का अच्छा क्वार्टर मिल रहा था। परंतु उन्होंने स्वीकार नहीं किया। जब उनका अपना क्वार्टर तोड़ा जाने लगा तब उन्होंने बचे क्वार्टरों में से एक क्वार्टर अपने नाम अलाट करवा लिया। इसका कारण यह था कि वे किशनदा की यादों को मन में लिए वहीं रहना चाहते थे। किशनदा को याद करते-करते वे मन-ही-मन सोचने लगे। अच्छा तो यह होता कि वह भी किशनदा के समान शादी न करता और जीवन भर समाज की सेवा करता।

फिर उन्हें याद आया कि किशनदा का बढ़ापा ठीक से व्य हुआ। जब सेवानिवृत्त होने के बाद किशनदा को क्वार्टर खाली करना पड़ा, तो किसी ने भी उन्हें आश्रय नहीं दिया। स्वयं यशोधर बाबू उन्हें अपने यहाँ रहने के लिए नहीं कह पाए। क्योंकि उस समय उनका विवाह हो गया था और उनके दो कमरों वाले क्वार्टर में तीन परिवार रह रहे थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहे। किंतु मजबूर होकर वे अपने गाँव लौट गए और साल भर बाद स्वर्ग सिधार गए। यशोधर बाबू ने किशनदा से जो कुछ सीखा था, वह सब यशोधर बाबू को याद था।

यशोधर बाबू को याद आया कि हर रोज़ भ्रमण करने के बाद लौटते समय किशनदा अपने इस मानस पुत्र यशोधर बाबू के घर आते थे। किशनदा ने उन्हें जल्दी उठना सिखाया था। किशनदा ने ‘अरली टू बैड एंड अरली टू राइज मेक्स ए मैन हैल्दी एंड वाइज़!’ का मंत्र यशोधर बाबू को दिया था। इसलिए वे भी जल्दी उठने और सैर करने जाने लगे। आज भी यशोधर बाबू उस दृश्य को नहीं भूला पाते, जब किशनदा कुरते-पजामे में सैर को निकलते थे।

वे कुर्ते-पजामे के ऊपर ऊनी गाऊन पहनते थे, सिर पर गोल विलायती टोपी और पाँव में देसी खड़ाऊँ तथा छड़ी हाथ में लेकर चलते थे। यही कारण है कि जब तक किशनदा दिल्ली में रहे, तब तक यशोधर बाबू उनके शिष्य बने रहे। उन्होंने अपने बीवी-बच्चों की नाराज़गी की परवाह नहीं की। किशनदा से उन्होंने यह सीखा कि अपने घर पर होली गवाई जाए, जनेऊ बदलने के लिए कुमाऊँ वासियों को घर पर बुलाया जाए और रामलीला वालों को क्वार्टर का एक कमरा दिया जाए।

सिद्धांतों का पालन करने वाले यशोधर बाबू की पिछले कुछ वर्षों से अपनी पत्नी तथा बच्चों से छोटी-छोटी बात पर तकरार होती रहती थी। इसलिए शायद वे घर जल्दी लौटकर नहीं आते। उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि उनकी पत्नी आधुनिक नारी बने। यह उनके मूल संस्कारों के विरुद्ध था। जबकि यशोधर बाबू की पत्नी अपने बच्चों का साथ देते हुए ‘मॉड’ बन गई थी। यशोधर बाबू को इस बात का दुख है कि संयुक्त परिवार में रहते हुए उसकी पत्नी ने उसका साथ नहीं दिया। कारण यह था कि यशोधर बाबू परंपरावादी थे और उनके बच्चे आधुनिकवादी थे। पत्नी पुरानी परंपराओं को ढकोसला मानती थी और बच्चों का साथ देती थी। अपनी पत्नी के शृंगार को देखकर मज़ाक करते हुए कहते थे-शानयल बुढ़िया, चटाई का लहँगा, बूढ़ी मुँह मुँहासे, लोग करें तमासे’।

जब उनका बड़ा बेटा एक विज्ञापन संस्था में डेढ़ हज़ार रुपये मासिक का कर्मचारी बन गया, तो उन्हें ऐसा लगा कि उनके साधारण पत्र को असाधारण वेतन वाली नौकरी मिल गई है। उन्हें इस बात का भी दुख था कि उनका मंझला पुत्र ‘एलाइड सर्विसेज़’ में नहीं गया और बेटी विवाह के लिए तैयार न हुई, परंतु उन्हें अपने बच्चों की बातें उचित भी लगीं। उदाहरण के रूप में डी०डी०ए० के फ्लैट में पैसा न भरना, उन्होंने अपनी भूल ही मानी। उनके बच्चे बात-बात पर तर्क देते थे। उन्होंने यह भी सोचा कि पुश्तैनी घर में जाकर मरम्मत की जिम्मेवारी लेने से बेकार का झगड़ा लेना पड़ेगा। वे हमेशा किशनदा की बात को याद रखते थे कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं। उनका सोचना था जब तक सरकारी नौकरी है, तब तक क्वार्टर है। बाद में गाँव का पुश्तैनी घर है। उनका यह विचार भी था कि उनके रिटायर होने से पहले उनके बेटे को सरकारी नौकरी मिल जाएगी और यह सरकारी क्वार्टर उन्हीं के पास रहेगा।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

आज प्रवचन सुनने में यशोधर बाबू का मन नहीं लगा। वे मन से न धार्मिक हैं, न कर्मकांडी। वे तो केवल अपने आदर्श किशनदा की परंपरा का पालन कर रहे थे। जैसे उनकी उम्र ढलने लगी तो वे किशनदा के समान मंदिर जाने लगे। गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तकें पढ़ने लगे और संध्या वंदना करने लगे, परंतु उनका मन कहीं टिकता नहीं था। कभी-कभी यह भी सोचते कि उन्हें आसक्ति को छोड़कर परलोक के बारे में सोचना चाहिए। अचानक प्रवचन में जनार्दन शब्द सुनकर उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद आ गई। उनकी तबीयत बहुत खराब थी और उनका हाल-चाल जानने के लिए उन्हें अहमदाबाद जाना होगा। परंतु उनके बीवी और बच्चे इसका विरोध करेंगे, जबकि यशोधर बाबू सुख अथवा दुख में सगे-संबंधियों के यहाँ जाना आवश्यक समझते थे। वस्तुतः यशोधर बाबू की पत्नी को उनका परंपरावादी होना बिल्कुल पसंद नहीं था।

उसका कहना था कि उसके पति ने स्वयं कुछ नहीं देखा। माँ के मरने के बाद यशोधर बाबू को अपनी विधवा बुआ के पास रहना पड़ा, जिसका लंबा-चौड़ा परिवार नहीं था। जब मैट्रिक करके दिल्ली पहुंचे तो किशनदा की छत्रछाया में रहने लगे। किशनदा के पास केवल गवई लोगों का ज्ञान था। जबकि यशोधर बाबू की पत्नी बगैर बाँह का ब्लाऊज पहनती थी, रसोई से बाहर दाल-भात खाती थी और ऊँची हील की सैंडल पहनती थी। यशोधर बाबू इसे ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते थे। यशोधर बाबू चाहते थे कि समाज उन्हें एक आदरणीय बुजुर्ग समझे, बच्चे उनका आदर करें और उनसे सलाह लें। उनका यह भी विचार था कि बच्चे उनकी हर बात को पत्थर की लकीर न समझें, परंतु वे मनमानी तो न करें। वे चाहते थे कि बच्चे उनसे कहें कि बब्बा अब दूध लाना, सब्जी लाना, दालें लाना, राशन लाना, दवा लाना, कोयला लाना आदि सब काम छोड़ दें। उनकी यह इच्छा थी कि उनका बेटा वेतन लाकर उन्हीं को दे। लेकिन घर का कोई सदस्य उनकी इच्छाओं की ओर ध्यान नहीं देता था।

यशोधर बाबू टूटी-फूटी सड़कों से गुजरते हुए हाथ में सब्जी का झोला लटकाए जब घर पहुँचते हैं तो उनकी दशा द्वारका से लौटे सुदामा की तरह प्रतीत हो रही थी। घर के बाहर नेम प्लेट पर उनका अपना ही नाम वाई.डी. पंत लिखा है, परंतु उन्हें लगता ही नहीं कि यह घर उनका है। उनके क्वार्टर के बाहर एक कार, कुछ स्कूटर और मोटर-साइकिलें खड़ी थीं। लोग एक-दूसरे को विदा ले-दे रहे थे। उनके घर के बाहर गुब्बारे और कागज़ से बनी रंगीन झालरें और रंग-बिरंगी रोशनियों वाली लाइटें लगी हुई थीं। उनके बड़े बेटे भूषण को कार में बैठा व्यक्ति हाथ मिलाकर कह रहा था-“गिव माई वार्म रिगार्ड्स टू योर फादर।” यशोधर बाबू को यह सब देखकर कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि बाहर क्या हो रहा है? यशोधर बाबू ने देखा कि उसकी पत्नी एवं बेटी कुछ मेहमानों को विदा कर रही हैं।

लड़की ने जींस और बगैर बाँह का टॉप पहना हआ था और पत्नी ने बालों में खिजाब और होंठों पर लाली लगा रखी थी। यशोधर बाबू को यह सब ‘समहाउ इंप्रापर’ लगा। जब वे घर पहुँचे तो बड़े बेटे ने झिड़कते हुए कहा-“बब्बा, आप भी हद करते हैं। “सिल्वर वैडिंग के दिन साढ़े आठ बजे घर पहुंच रहे हैं। अभी तक मेरे बॉस आपकी राह देख रहे थे।” इस पर यशोधर बाबू ने कहा कि-“हम लोगों के यहाँ सिल्वर वैडिंग कब से होने लगी है।” तब यशोधर बाबू के भांजे चंद्रदत्त तिवारी ने कहा कि जब से आपका बेटा डेढ़ हज़ार रुपये महीना कमाने लगा है।

यशोधर बाबू को सिल्वर वैडिंग का आयोजन ठीक नहीं लगा, जिसमें केक, चार तरह की मिठाई, चार तरह की नमकीन, फल, कोल्डड्रिंक्स, चाय आदि सर्व की जा रही थी। उनको इस बात का दुख है कि आफिस जाते समय उन्हें किसी बात की सूचना नहीं दी गई थी। यही कारण है कि उनके पुत्र भूषण ने अपने मित्रों तथा सहयोगियों से अपने पिता का परिचय करवाया तो उन्होंने केवल बैंक्यू कहकर सबका जवाब दिया। आखिर बच्चों ने केक काटने का आग्रह किया। बेटी के आग्रह पर उन्होंने केक तो काटा पर साथ यह भी कहा “समहाउ आई डोंट लाइक आल दिस।” वे केक खाने को भी राजी नहीं हुए, क्योंकि उसमें अंडा होता है। उन्होंने अन्य सब लोगों को खाने के लिए कहा और खुद पूजा करने चले गए।

आज यशोधर बाबू ने संध्याकालीन पूजा में अधिक समय लगाया। वे चाहते थे कि अधिकांश मेहमान चले जाएँ, तो वे अपनी पूजा को समाप्त करेंगे। पूजा करते समय उन्हें किशनदा दिखाई दिए। यशोधर बाबू ने उनसे पूछा कि ‘जो हुआ होगा’ से आप कैसे मर गए। किशनदा ने उत्तर दिया-“भाऊ सभी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं।” शुरू और आखिर में सब अकेले ही होते हैं। वे चाहते थे कि काश किशनदा उनका आज भी मार्ग दर्शन करते। इसी बीच यशोधर बाबू की पत्नी ने आकर उन्हें डाँटा, तो वे आसन से खड़े हो गए।

सब रिश्तेदारों के जाने की बात मालूम होने पर यशोधर बाबू गमछा पहने ही बैठक में आ गए। यह देखकर उनकी बेटी क्रोधित हो उठी। तब यशोधर बाबू ने उसकी जींस पर व्यंग्य किया। अन्ततः यशोधर बाबू को प्रेजेंट खोलने के लिए कहा गया परंतु उन्होंने बच्चों से कहा कि तुम ही इसे खोलो और इसका इस्तेमाल करो। इस पर उनके बेटे भूषण ने प्रेजेंट को खोला और कहा कि यह ऊनी ड्रेसिंग गाउन है, मैं आपके लिए लाया हूँ। जब आप सवेरे दूध लेने जाएँ तो फटे हुए पुलोवर के स्थान पर इसे पहनकर जाएँ। उनकी बेटी कुर्ता-पजामा ले आई, तब यशोधर बाबू ने कुर्ता-पजामा पहन कर गाउन धारण कर लिया। परंतु यह निर्णय करना बड़ा कठिन है कि भूषण द्वारा कही गई दूध लाने की बात उन्हें चुभी या गाउन पहनकर उन्हें किशनदा बनना पसंद आया। परंतु इतना निश्चित था कि यशोधर बाबू की आँखें नम हो गईं।

कठिन शब्दों के अर्थ

सिल्वर वैडिंग = विवाह की रजत जयंती जो कि विवाह के पच्चीस वर्ष बाद मनाई जाती है। निगाह = दृष्टि। सुस्त = धीमी। मातहत = अधीन। जूनियर = अधीन काम करने वाला। शुष्क = रूखा। निराकरण = समाधान । छोकरा = लड़का। पतलून = पैंट। बदतमीज़ी = अभद्र व्यवहार। चूनेदानी = पान खानों वालों द्वारा चूना रखने का बर्तन । धृष्टता = अशिष्टता। करेक्ट = सही। बाबा आदम का ज़माना = पुराना समय। नहले पर दहला = जैसे को तैसा, जवाब देना। दाद = प्रशंसा। वक्ता = बोलने वाले। ठठाकर = ज़ोर से हँसते हुए। ठीक-ठिकाना = सही व्यवस्था। चोंचले = बनावटी व्यवहार। इनसिस्ट = आग्रह। चुग्गे भर = पेट भरने योग्य । जुगाड़ = अस्थायी व्यवस्था। नगण्य = महत्त्वहीन। सेक्रेट्रिएट = सचिवालय। नागवार = अनुचित।

निहायत = सर्वथा, एकदम। बेहूदा = अनुचित। अफोर्ड करना = सहन करना। इसरार = आग्रह। गप्प-गप्पाष्टक = बेकार की बातें। प्रवचन = धार्मिक व्याख्यान। रीत = प्रणाली। सिद्धांत के धनी = विचारों के पक्के। फिकरा = वाक्यांश। वजह = कारण । मदद = सहायता। पेंच = कारण। स्कॉलरशिप = छात्रवृत्ति। वर = विवाह के योग्य युवक। तरक्की = उन्नति। खुशहाली = संपन्नता। उपेक्षा = तिरस्कार का भाव। दिलासा देना = सांत्वना देना। तरफदारी करना = पक्ष लेना। मातृसुलभ = माताओं की स्वाभाविक मनोदशाएँ। मॉड = आधुनिक। गज़ब = आश्चर्यजनक। ताई = पिता के बड़े भाई की पत्नी। ढोंग-ढकोसला = आडंबरपूर्ण व्यवहार। अनदेखा करना = ध्यान न करना।

कुल = वंश। परंपरा = मान्यताएँ। निःश्वास = लंबी साँस । डेडीकेट = समर्पित। रिटायर = सेवानिवृत्त। विरासत = उत्तराधिकार। उपकृत = जिस पर उपकार किया गया है। प्रस्ताव = पेशकश। बिरादर = जाति भाई। किस्म = तरह। खुराफात = विघ्न डालने वाले काम। सर = सिर। दुनियादारी = सांसारिकता। पुश्तैनी = पैतृक। बिरादरी = जाति। बाध्य करना = मजबूर करना। कर्मकांडी = पूजा-पाठ करने वाला। राजपाट = राजसिंहासन। बाट = पगडंडी। जनार्दन = ईश्वर। तबीयत खराब होना = अस्वस्थ होना। एकतरफा लगाव = एक तरफ की आसक्ति। गम = दुख। गवाई = गाँव के। निभ = निर्वाह करना। बुजुर्गियत = वृद्धावस्था का बड़प्पन । बुढ़याकाल = वृद्धावस्था। एनीवे = किसी तरह। प्रवचन = भाषण। इरादा = निश्चय । लहजा = ढंग, तरीका। हाज़िरी = उपस्थिति।

भाऊ = बच्चा। अनुरोध = आग्रह। पट्टशिष्य = प्रिय शिष्य। निष्ठा = विश्वास, आस्था। जन्यो पुन्यूं = जनेऊ परिवर्तित करने वाली पूर्णिमा। कुमाउँनियों = कुमायूँ क्षेत्र के निवासियों। सख्त नापसंद = अत्यधिक अप्रिय लगना। बदतर = बुरी हालत। दुराग्रह = अनुचित हठ। बुजुर्ग = वृद्ध व्यक्ति। हरगिज़ = बिल्कुल। एक्सपीरिएंस = अनुभव। सबस्टीट्यूट = विकल्प। कुहराम = कोलाहल । नुक्ताचीनी = आलोचना। कारपेट = फर्श की दरी। कारोबार = धंधा। चौपट = नष्ट होना। कई मर्तबा = अनेक बार। इंप्रापर = अनुचित। तरफदारी करना = पक्ष लेना। खिजाब = सफेद बालों को काला करने वाला द्रव्य । एल.डी.सी. = लोअर डिवीजन क्लर्क। कदम = डग। माह = मासिक। नए दौर = नया युग। मिसाल = उदाहरण। भव्य = सुंदर। चचेरा भाई = चाचे का पुत्र। संपन्न = धनवान। हरचंद = बहुत अधिक। जताना = बताना, परिचित कराना। अनमनी = उदासी से भरा हुआ। आखिर = अंत। रवैया = व्यवहार। आमादा = तैयार। खिलाफ = विरुद्ध । लिमिट = सीमा। प्रेजेंट = तोहफा। इस्तेमाल = प्रयोग।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

HBSE 12th Class Hindi श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?
उत्तर:
लेखक जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का एक रूप इसलिए नहीं मानता क्योंकि यह विभाजन स्वाभाविक नहीं है। पुनः यह मानव की रुचि पर भी आधारित नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें व्यक्ति की क्षमता और योग्यता की उपेक्षा की जाती है। यह माता-पिता के सामाजिक स्तर को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती है। जन्म से पूर्व ही मनुष्य के लिए श्रम विभाजन करना पूर्णतया अनुचित है। जाति-प्रथा आदमी को आजीवन एक ही व्यवसाय से जोड़ देती है जोकि सर्वथा अनुचित है। जाति-प्रथा के कारण मनुष्य को उचित तथा अनुचित किसी भी व्यवसाय को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। यहाँ तक कि यदि मनुष्य को भूखा मरना पड़ा तो भी वह अपना पेशा नहीं बदल सकता। यह स्थिति समाज के लिए बड़ी भयावह है।

प्रश्न 2.
जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?
उत्तर:
जाति-प्रथा किसी भी आदमी को अपनी रुचि के अनुसार पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती। उसे केवल पैतृक पेशा ही अपनाना पड़ता है। वह किसी अन्य पेशे को नहीं अपना सकता। भले ही वह उस पेशे में पारंगत क्यों न हो। आज उद्योग-धंधों की प्रक्रिया और तकनीक में लगातार विकास हो रहा है, जिससे कभी-कभी भयानक परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को पेशा बदलने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यदि मनुष्य को पेशा न बदलने दिया जाए तो वह बेरोज़गारी और भुखमरी का शिकार हो जाएगा।

आज भले ही समाज में भयंकर जाति-प्रथा है, लेकिन उसके बाद भी कोई ऐसी मजबूरी नहीं है कि वह अपने पैतृक व्यवसाय को छोड़कर नए पेशे को न अपना सके। आज जो लोग पैतृक व्यवसाय से जुड़े हैं वे अपनी इच्छा से जुड़े हुए हैं अथवा किसी अन्य व्यवसाय में योग्यता की कमी के कारण पैतृक व्यवसाय को अपनाए हुए हैं।

प्रश्न 3.
लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है?
उत्तर:
लेखक का कहना है कि ‘दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कह सकते। दासता की एक अन्य स्थिति यह भी है जिसके अनुसार कुछ लोगों को अन्य लोगों द्वारा निर्धारित किए गए व्यवहार और कर्तव्यों का पाल होना पड़ता है। कानूनी पराधीनता न होने पर भी समाज में इस प्रकार की दासता देखी जा सकती है। उदाहरण के रूप में जाति-प्रथा के समान समाज में ऐसे लोगों का वर्ग भी संभव है जिन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी पेशे को अपनाना पड़ सकता है। उदाहरण के रूप में सफाई करने वाले कर्मचारी इसी प्रकार के कहे जा सकते हैं।

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प्रश्न 4.
शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?
उत्तर:
डॉ० आंबेडकर यह जानते हैं कि शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि से लोगों में असमानता हो सकती है, परंतु फिर भी वे क्षमता के व्यवहार्य सिद्धांत को अपनाने की सलाह देते हैं। इस संदर्भ में लेखक का यह तर्क है कि यदि हमारा समाज अपने सदस्यों का अधिकतम प्रयोग प्राप्त करना चाहता है, तो इसे समाज के सभी लोगों को आरंभ से ही समान अवसर और समान व्यवहार प्रदान करना होगा। विशेषकर हमारे राजनेताओं को सब लोगों के साथ एक-समान व्यवहार करना चाहिए। समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास करने का उचित अवसर मिलना चाहिए। लेखक का यह भी तर्क है कि जन्म लेना या सामाजिक परंपरा प्राप्त करना व्यक्ति के अपने वश में नहीं है। अतः इस आधार पर किसी के व्यवसाय का निर्णय करना उचित नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 5.
सही में आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है; जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर:
इस बात को लेकर हम लेखक से पूरी तरह सहमत हैं। कारण यह है कछ लोग किसी उच्च वंश में उत्पन्न होने के फलस्वरूप उत्तम व्यवहार के अधिकारी बन जाते हैं। यदि हम गहराई से विचार करें तो पता चलेगा कि इसमें उनका कोई अपना योगदान नहीं है। सामाजिक परिवेश व्यक्ति को सम्मान प्रदान कर सकता है लेकिन उस व्यक्ति के सामर्थ्य का मूल्यांकन नहीं कर सकता है। मनुष्य के कार्यों तथा उसके प्रयत्नों के फलस्वरूप ही उसकी महानता का निर्णय होना चाहिए और आदमी के प्रयत्नों की सही जाँच तब हो सकती है जब सभी को समान अवसर प्राप्त हों। उदाहरण के रूप में गाँव के विद्यालयों तथा सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों का पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के साथ मुकाबला नहीं किया जा सकता। अतः समय की माँग यह है कि जातिवाद का उन्मूलन किया जाए और सभी को समान भौतिक स्थितियाँ और सुविधाएँ प्रदान की जाएँ। तब उनमें जो श्रेष्ठ व्यक्ति सिद्ध होता है, वही उत्तम व्यवहार का अधिकारी हो सकता है।

प्रश्न 6.
आदर्श समाज के तीन तत्त्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे/समझेंगी।
उत्तर:
आदर्श समाज के तीसरे तत्त्व (भ्रातृता) भाईचारे पर विचार करते समय लेखक ने अलग से स्त्रियों का उल्लेख नहीं किया, परंतु लेखक ने समाज की बात कही है और स्त्रियाँ समाज से अलग नहीं होतीं, बल्कि स्त्री और पुरुष दोनों के मिलने से समाज बनता है। अतः यह कहना कि आदर्श समाज में स्त्रियों को सम्मिलित किया गया है अथवा नहीं; यह सोचना ही व्यर्थ है। समाज में स्त्रियाँ स्वतः सम्मिलित हैं। भ्रातृता भले ही संस्कृतनिष्ठ शब्द है परंतु यह अधिक प्रचलित नहीं है। अतः यदि इसके स्थान पर भाईचारा शब्द का प्रयोग होता तो वह उचित होता।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
आंबेडकर ने जाति-प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है, उस संदर्भ में शेखर जोशी की कहानी ‘गलता लोहा’ पर पुनर्विचार कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से इस कहानी को स्वयं पढ़ें और विचार करें।

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प्रश्न 2.
‘कार्य कुशलता’ पर जाति-प्रथा का प्रभाव विषय पर समूह में चर्चा कीजिए। चर्चा के दौरान उभरने वाले बिंदुओं को लिपिबद्ध कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से इस कहानी को स्वयं पढ़ें और विचार करें।

इन्हें भी जानें

आंबेडकर की पुस्तक जातिभेद का उच्छेद और इस विषय में गांधी जी के साथ उनके संवाद की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

हिंद स्वराज नामक पुस्तक में गांधी जी ने कैसे आदर्श समाज की कल्पना की है, उसे भी पढ़ें।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

HBSE 12th Class Hindi श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने जाति-प्रथा की किन-किन बुराइयों का वर्णन किया है?
उत्तर:
जाति-प्रथा द्वारा किया गया श्रम विभाजन स्वाभाविक नहीं है क्योंकि यह श्रमिकों में भेद उत्पन्न करती है और उनमें ऊँच-नीच की भावना पैदा करती है। पुनः जाति-प्रथा पर आधारित श्रम विभाजन श्रमिकों की रुचि के अनुसार नहीं होता। जाति-प्रथा के फलस्वरूप श्रम विभाजन माँ के गर्भ में ही तय हो जाता है। जन्म लेने के बाद व्यक्ति की रुचि और क्षमता की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। यही नहीं, जाति-प्रथा मनुष्य को हमेशा के लिए एक ही व्यवसाय से जोड़ देती है। यदि विपरीत परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाएँ तो भी व्यक्ति अपना व्यवसाय नहीं छोड़ सकता जिससे उसे भूखों मरना पड़ सकता है। जाति-प्रथा के कारण कुछ काम घृणित माने गए हैं, जो लोग मजबूरी में इन कार्यों को करते हैं उन्हें लोग हीन समझते हैं।

प्रश्न 2.
आदर्श समाज के बारे में लेखक ने क्या विचार व्यक्त किए हैं?
उत्तर:
लेखक जिस आदर्श समाज की बात करता है वह स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित होगा। लेखक का कहना है कि आदर्श समाज में जो परिवर्तन होगा उसका लाभ सभी को होगा किसी एक को नहीं। इस प्रकार के समाज में अनेक प्रकार के हितों में सभी लोगों की भागीदारी होगी। यही नहीं, सभी लोग समाज के कल्याण के लिए जागरूक रहेंगे। ऐसी स्थिति में सामाजिक जीवन में सबको निरंतर संपर्क के अनेक साधन और अवसर प्राप्त होंगे। समाज में भाईचारा इस प्रकार का होगा जैसे दूध और पानी का मिश्रण होता है। अतः आदर्श समाज समाज के सभी लोगों के लिए उपयोगी होगा।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र से लेखक का क्या आशय है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक का विचार है कि लोगों में जो दूध-पानी के मिश्रण के समान भाईचारा विकसित होगा वही तो लोकतंत्र है। इसमें समाज के सभी लोगों में स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की भावना विकसित होगी। लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है, बल्कि लोकतंत्र सामूहिक जीवन-चर्या की एक नीति है। समाज के सम्मिलित अनुभवों का आदान-प्रदान ही लोकतंत्र है। इस प्रकार के लोकतंत्र की स्थापना होने से लोगों को अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव उत्पन्न होगा।

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प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार मनुष्य की क्षमता किन बातों पर निर्भर करती है?
उत्तर:
लेखक का कहना है कि मनुष्यों की क्षमता शारीरिक वंश-परंपरा, सामाजिक उत्तराधिकार और मनुष्य के अपने प्रयत्नों पर निर्भर करती है। शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार जन्मजात होते हैं। ये दोनों मनुष्य के वश में नहीं हैं। अतः इनके आधार पर किसी का वर्ग और कार्य निश्चित नहीं किया जाना चाहिए और न ही जन्म के कारण किसी को श्रेष्ठ या निम्न मानना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य के प्रयत्न उसके अपने वश में हैं। अतः सभी मनुष्यों को प्रयत्न करने के समान अवसर दिए जाने चाहिएँ। प्रयत्न करने पर जो मनुष्य उत्तम है, उसे उत्तम ही कहेंगे।

प्रश्न 5.
जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोज़गारी और भुखमरी का एक कारण कैसे रही है? भीमराव आंबेडकर के विचारों के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति-प्रथा भारतीय समाज के लिए एक कलंक है। यह हमेशा बेरोज़गारी और भुखमरी का कारण बनती रही है। जब समाज किसी व्यक्ति को जाति के आधार पर एक विशेष पेशे से जोड़ देता है और यदि वह पेशा उस आद अथवा अपर्याप्त होता है तो उसके समक्ष भुखमरी की स्थिति उपस्थित हो जाती है। जाति-प्रथा उस व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती अथवा उसे पेशा बदलने की स्वतंत्रता नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में उसके सामने भूखों मरने के सिवाय और कोई चारा नहीं होता। भारतीय समाज हमेशा व्यक्ति को पैतृक पेशा अपनाने को मजबूर करता है। भले ही वह उसे पेशे में प्रवीण हो अथवा नहीं। पेशा बदलने की अनुमति न देना बेरोज़गारी का प्रमुख कारण बनता है। परंतु स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद इस स्थिति में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। जाति-प्रथा के बावजूद आज व्यक्ति को अपना पेशा चुनने अथवा बदलने का पूरा अधिकार है। सरकार द्वारा लागू की गई आरक्षण नीति से भी इस स्थिति में काफी परिवर्तन आया है।

प्रश्न 6.
‘जाति-प्रथा’ के आधार पर श्रम विभाजन को स्वाभाविक क्यों नहीं माना गया?
उत्तर:
जाति-प्रथा श्रम का जो विभाजन करती है वह मनुष्य की रुचियों तथा उसकी क्षमताओं पर आधारित नहीं होता, बल्कि यह विभाजन जन्म और जाति के आधार पर किया जाता है। जाति-प्रथा द्वारा किया गया श्रम विभाजन अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें व्यक्ति बंधनों में जकड़ लिया जाता है। सही श्रम विभाजन वही हो सकता है जिसमें मानव की रुचियों और क्षमताओं का ध्यान रखा जाए। रोज़गार के उचित अवसर सभी को प्राप्त होने चाहिएँ । दुःख की बात तो यह है कि जाति-प्रथा के आधार पर किया गया श्रम विभाजन ऊँच-नीच और छोटे-बड़े के भेदभाव को उत्पन्न करता है। यह विभाजन पूर्णतया अस्वाभाविक है।

प्रश्न 7.
जाति-प्रथा आर्थिक विकास के लिए किस प्रकार हानिकारक है?
उत्तर:
आर्थिक विकास के लिए यह जरूरी है कि लोगों को उनकी रुचि, क्षमता तथा योग्यता के अनुसार पेशा अपनाने और श्रम करने की स्वतंत्रता हो, बल्कि सभी को समान अवसर भी मिलने चाहिएँ। जाति-प्रथा सबको समान अवसर देने से रोकती है। वह व्यक्ति की अपनी रुचि, क्षमता और इच्छा की ओर कोई ध्यान नहीं देती। जो लोग जन्मजात पेशे को अपनाने के लिए मजबूर किए जाते हैं वे न चाहते हुए मजबूर होकर काम करते हैं। पेशे में न उनका दिल लगता है, न दिमाग। वे अपनी शक्तियों और क्षमताओं का समुचित प्रयोग नहीं कर पाते जिससे आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।

प्रश्न 8.
आंबेडकर ने किसके लिए दासता शब्द का प्रयोग किया है और क्यों?
उत्तर:
आंबेडकर ने जाति-प्रथा के आधार पर पेशा अपनाने की परंपरा को ‘दासता’ की संज्ञा दी है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मनुष्य इस परंपरा के कारण अपनी इच्छानुसार पेशा नहीं चुन सकता। उसे वही काम करना पड़ता है जो जन्म से उसके लिए निर्धारित कर दिया जाता है। उसकी अपनी इच्छा की परवाह नहीं की जाती। जाति-प्रथा के कारण समाज उसके लिए जो काम निर्धारित कर लेता है, आजीवन उसे वही काम करना पड़ता है। भले ही उसमें उसकी अपनी रुचि हो या न हो। ऐसा जीवन ‘दासता’ नहीं तो और क्या कहा जाएगा।

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प्रश्न 9.
जन्मजात धंधों में लगे हुए लोग कार्यकुशल क्यों नहीं बन पाते?
उत्तर:
जिन लोगों को जाति-प्रथा के कारण जन्मजात धंधों को अपनाना पड़ता है, उनमें कभी भी कार्य-कुशलता नहीं आ पाती। उस कार्य में उनकी रुचि नहीं होती लेकिन फिर भी उन्हें मजबूर होकर वह काम करना पड़ता है। यही नहीं, ऐसा व्यक्ति दुर्भावना से ग्रस्त हो जाता है। वह काम करने की बजाय टाल-मटोल की नीति को अपनाता है। जाति-प्रथा द्वारा निर्धारित काम में उसका दिल और दिमाग नहीं लगता, जिसके फलस्वरूप वह अपनी क्षमता की अपेक्षा बहुत कम काम करता है।

प्रश्न 10.
लेखक ने किस आधार पर असमान व्यवहार को उचित माना और क्यों?
उत्तर:
लेखक का कहना है कि असमान प्रयत्न के आधार पर असमान व्यवहार उचित है। कहने का भाव यह है कि यदि कोई आदमी अपनी इच्छा से बहुत थोड़ा प्रयत्न करता है और ठीक से काम नहीं करता तो उसे कम सम्मान मिलना चाहिए। जो व्यक्ति अधिक प्रयत्न करता है उसे अधिक सम्मान मिलना चाहिए। इस प्रकार से व्यक्ति को प्रोत्साहित करना या दंडित करना सर्वथा उचित है। ऐसा करने से मनुष्य अपनी क्षमताओं का विकास कर सकेगा और अयोग्य लोगों को योग्य स्थानों पर काम करने को नहीं मिलेगा।

प्रश्न 11.
लेखक ने आदर्श समाज के बारे में क्या कहा है?
अथवा
आदर्श समाज की कल्पना का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
लेखक आदर्श समाज की चर्चा करते हुए कहता है कि उसका आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता और भ्रातृता पर आधारित होगा। यह किसी प्रकार से भी गलत नहीं है। भाईचारे में किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती। आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता अवश्य होनी चाहिए कि समाज में किया गया कोई भी परिवर्तन सर्वत्र व्याप्त हो जाए। ऐसे समाज में सार्वजनिक हितों में सबकी भागीदारी होनी चाहिए। सामाजिक जीवन में निरंतर संपर्क के अनेक साधन और अवसर सभी को प्राप्त होने चाहिएँ। लेखक इस तुलना दूध और पानी के मिश्रण से करता है। इसी को लोकतंत्र कहा जाता है। लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है, बल्कि सामूहिक जीवन-चर्या की एक नीति है जिसमें सभी को अनुभवों का आदान-प्रदान करने का अवसर प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
लेखक ने समता को काल्पनिक वस्तु क्यों माना है? फिर भी वह समता क्यों चाहता है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार लोगों के बीच में समता प्राकृतिक नहीं है। उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही सामाजिक स्तर से अपने प्रयत्नों के कारण असमान होता है। सभी एक-समान नहीं हो सकते। अतः पूर्ण समता एक काल्पनिक वस्तु है। फिर भी लेखक का कहना है कि समाज के सभी लोगों को पढ़ने-लिखने और फलने-फूलने के बराबर अवसर मिलने चाहिएँ। किसी प्रकार का भेदभाव मानव के विकास में बाधा का काम करता है और उसकी कार्य-कुशलता को हानि पहुँचाता है। भले ही समाज विविध प्रकार का है और विशाल भी है, लेकिन फिर भी सभी मनुष्य समान होने चाहिएँ। तभी हमारा समाज वर्गहीन, जातिहीन और श्रेणीहीन होगा।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ के लेखक का नाम क्या है?
(A) डॉ० भीमराव आंबेडकर
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(C) विष्णु खरे
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(A) डॉ० भीमराव आंबेडकर

2. डॉ० भीमराव आंबेडकर का जन्म कब हुआ?
(A) 14 अप्रैल, 1890 को
(B) 12 अप्रैल, 1891 को
(C) 14 अप्रैल, 1891 को
(D) 14 अप्रैल, 1881 को
उत्तर:
(C) 14 अप्रैल, 1891 को

3. भीमराव आंबेडकर का जन्म कहाँ पर हुआ?
(A) महू में
(B) मेद्या में
(C) बहू में
(D) भाण्डू में
उत्तर:
(A) महू में

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4. महू किस राज्य में स्थित है?
(A) उत्तरप्रदेश में
(B) राजस्थान में
(C) हरियाणा में
(D) मध्यप्रदेश में
उत्तर:
(D) मध्यप्रदेश में

5. डॉ० भीमराव का जन्म किस परिवार में हुआ?
(A) ब्राह्मण परिवार में
(B) क्षत्रिय परिवार में
(C) अस्पृश्य परिवार में
(D) वैश्य परिवार में
उत्तर:
(C) अस्पृश्य परिवार में

6. डॉ० भीमराव ने आरंभिक शिक्षा कहाँ प्राप्त की?
(A) पाकिस्तान में
(B) भारत में
(C) श्रीलंका में
(D) जापान में
उत्तर:
(B) भारत में

7. उच्चतर शिक्षा के लिए सर्वप्रथम वे कहाँ गए?
(A) न्यूयार्क में
(B) लंदन में
(C) पेरिस में
(D) हांगकांग में
उत्तर:
(A) न्यूयार्क

8. न्यूयॉर्क के बाद भीमराव ने कहाँ पर उच्च शिक्षा प्राप्त की?
(A) वाशिंगटन में
(B) दिल्ली में
(C) मुंबई में
(D) लंदन में
उत्तर:
(D) लंदन में

9. किन विश्वविद्यालयों ने डॉ. आंबेडकर को विधि, अर्थशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान में डिग्रियाँ प्रदान की?
(A) पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय ने
(B) कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इक्नॉमिक्स ने
(C) कोलकाता विश्वविद्यालय और मुंबई विश्वविद्यालय ने
(D) इलाहाबाद विश्वविद्यालय और मेरठ विश्वविद्यालय ने
उत्तर:
(B) कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इक्नॉमिक्स ने

10. किस समाज से डॉ० आंबेडकर का मोह भंग हो गया?
(A) हिंदू समाज से
(B) ब्राह्मण समाज से
(C) जैन समाज से
(D) वैश्य समाज से
उत्तर:
(A) हिंदू समाज से

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11. डॉ० आंबेडकर कब बौद्ध धर्म के मतानुयायी बने?
(A) 12 अक्तूबर, 1952 को
(B) 14 अक्तूबर, 1956 को
(C) 12 अक्तूबर, 1955 को
(D) 16 अक्तूबर, 1957 को
उत्तर:
(B) 14 अक्तूबर, 1956 को

12. डॉ. आंबेडकर के साथ और कितने लोग बौद्ध धर्म के मतानुयायी बने?
(A) 2 लाख
(B) 3 लाख
(C) 5 लाख
(D) 7 लाख
उत्तर:
(C) 5 लाख

13. डॉ. आंबेडकर किस महान कवि से प्रभावित हुए थे?
(A) गुरुनानक देव से
(B) कबीरदास से
(C) रविदास से
(D) धर्मदास से
उत्तर:
(B) कबीरदास से

14. डॉ० भीमराव आंबेडकर का देहांत कब हुआ?
(A) 6 दिसंबर, 1956 को
(B) 5 दिसंबर, 1955 को
(C) 12 दिसंबर, 1956 को
(D) 6 दिसंबर, 1951 को
उत्तर:
(A) 6 दिसंबर, 1956 को

15. डॉ० भीमराव आंबेडकर ने किसके निर्माण में योगदान दिया?
(A) हिंदू समाज
(B) दलित समाज
(C) भारतीय संविधान
(D) भारतीय समाज
उत्तर:
(C) भारतीय संविधान

16. भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय ने बाबा साहेब आंबेडकर के संपूर्ण वाङ्मय को कितने खंडों में विभाजित किया है?
(A) 22
(B) 23
(C) 24
(D) 21
उत्तर:
(D) 21

17. बाबा भीमराव की रचना ‘जेनेसिस एंड डवेलपमेंट’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1927 में
(B) सन् 1928 में
(C) सन् 1917 में
(D) सन् 1930 में
उत्तर:
(C) सन् 1917 में

18. ‘द अनटचेबल्स, हू आर दे? का प्रकाशन किस वर्ष में हुआ?
(A) सन् 1945 में
(B) सन् 1946 में
(C) सन् 1947 में
(D) सन् 1948 में
उत्तर:
(D) सन् 1948 में

19. बाबा भीमराव आंबेडकर द्वारा रचित ‘बुद्धा एंड हिज़ धम्मा’ कब प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1957 में
(B) सन् 1958 में
(C) सन् 1959 में
(D) सन् 1960 में
उत्तर:
(A) सन् 1957 में

20. ‘हू आर द शूद्राज़’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1947 में
(B) सन् 1946 में
(C) सन् 1950 में
(D) सन् 1951 में
उत्तर:
(B) सन् 1946 में

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21. ‘थॉट्स ऑन लिंग्युस्टिक स्टेट्स’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1950 में
(B) सन् 1951 में
(C) सन् 1955 में
(D) सन् 1960 में
उत्तर:
(C) सन् 1955 में

22. बाबा भीमराव आंबेडकर द्वारा रचित ‘द प्रॉबल्म ऑफ़ द रुपी’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1919 में
(B) सन् 1920 में
(C) सन् 1922 में
(D) सन् 1923 में
उत्तर:
(D) सन् 1923 में

23. ‘द राइज़ एंड फॉल ऑफ द हिंदू वीमैन’ कब प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1965 में
(B) सन् 1960 में
(C) सन् 1921 में
(D) सन् 1930 में
उत्तर:
(A) सन् 1965 में

24. ‘एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट’ कब प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1930 में
(B) सन् 1936 में
(C) सन् 1920 में
(D) सन् 1940 में
उत्तर:
(B) सन् 1936 में

25. डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित ‘लेबर एंड पार्लियामेंट्री डैमोक्रेसी’ किस वर्ष प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1941 में
(B) सन् 1942 में
(C) सन् 1943 में
(D) सन् 1950 में
उत्तर:
(C) सन् 1943 में

26. सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान को लेखक ने क्या कहा है?
(A) स्वतंत्रता
(B) तानाशाही
(C) दासता
(D) लोकतंत्र
उत्तर:
(D) लोकतंत्र

27. जाति-प्रथा व्यक्ति को जीवन भर के लिए किससे बाँध देती है?
(A) एक ही व्यवसाय से
(B) अनेक व्यवसायों से
(C) व्यवसाय बदलने से
(D) व्यवसाय छोड़ने से
उत्तर:
(A) एक ही व्यवसाय से

28. लेखक ने भारतीय समाज में बेरोज़गारी और भुखमरी का क्या कारण बताया है?
(A) गरीबी
(B) पूँजीवाद
(C) जाति-प्रथा
(D) सांप्रदायिकता
उत्तर:
(C) जाति-प्रथा

29. आंबेडकर ने दूध और पानी के मिश्रण की तुलना किससे की है?
(A) स्वतंत्रता से
(B) समता से
(C) भाईचारे से
(D) सम्पन्नता से
उत्तर:
(C) भाईचारे से

30. लेखक ने काल्पनिक जगत की वस्तु किसे कहा है?
(A) राजनीति को
(B) सिद्धांत को
(C) समता को
(D) जातिवाद को
उत्तर:
(C) समता को

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31. लेखक के अनुसार हिन्दू धर्म की जाति-प्रथा व्यक्ति को कौन-सा पेशा चुनने की अनुमति देती है?
(A) पैतृक पेशा
(B) स्वतंत्र पेशा
(C) कर्मानुसार
(D) कार्य-कुशलता के अनुसार
उत्तर:
(A) पैतृक पेशा

32. कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए मजबूर करना क्या कहलाता है?
(A) स्वतंत्रता
(B) आज्ञा पालन
(C) दासता
(D) गरीबी
उत्तर:
(C) दासता

33. कौन-सा धर्म व्यक्ति को जाति-प्रथा के अनुसार पैतृक-काम अपनाने को मजबूर करता है?
(A) हिन्दू
(B) मुस्लिम
(C) सिक्ख
(D) ईसाई
उत्तर:
(A) हिन्दू

34. स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता पर आधारित समाज को आंबेडकर ने कैसा समाज कहा है?
(A) अच्छा
(B) महत्त्वपूर्ण
(C) आदर्श
(D) स्वीकार्य
उत्तर:
(C) आदर्श

35. लेखक के अनुसार इस युग में किसके पोषकों की कमी नहीं है?
(A) श्रमवाद
(B) जातिवाद
(C) धर्मवाद
(D) राजनीति
उत्तर:
(B) जातिवाद

36. माता-पिता के आधार पर श्रम विभाजन करना किसकी देन है?
(A) धर्म की
(B) समाज की
(C) जाति-प्रथा की
(D) बेरोज़गारी की
उत्तर:
(C) जाति-प्रथा की

37. आदर्श समाज की विशेषता है
(A) विघटन
(B) अलगाव
(C) गतिशीलता
(D) विद्वेष
उत्तर:
(C) गतिशीलता

38. इस युग में ‘जातिवाद’ क्या है ?
(A) गुण
(B) विडम्बना
(C) श्रेष्ठ व्यवस्था
(D) ईश-विधान
उत्तर:
(B) विडम्बना

39. बाबा साहेब आंबेडकर ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है?
(A) स्वतंत्र समाज की
(B) समान समाज की
(C) आदर्श समाज की
(D) गतिशील समाज की
उत्तर:
(C) आदर्श समाज की

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40. लेखक ने भाईचारे के वास्तविक रूप को किसके मिश्रण की भाँति बताया है?
(A) आटा-नमक
(B) दूध-पानी
(C) दूध-घी
(D) घी-शक्कर
उत्तर:
(B) दूध-पानी

41. लेखक के अनुसार दासता का संबंध किससे नहीं है?
(A) समाज से
(B) कानून से
(C) शिक्षा से
(D) धन से
उत्तर:
(B) कानून से

42. किस क्रांति में ‘समता’ शब्द का नारा लगाया गया था?
(A) रूसी क्रांति में
(B) फ्रांसीसी क्रांति में
(C) जर्मन क्रांति में
(D) जापानी क्रांति में
उत्तर:
(B) फ्रांसीसी क्रांति में

43. बाबा साहेब के अनुसार किसके आधार पर समानता अनुचित है?
(A) वंश-परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा के
(B) रोज़गार और धन के
(C) जाति और धर्म के
(D) धर्म और शिक्षा के
उत्तर:
(A) वंश-परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा के

44. जाति-प्रथा के पोषक लोग किन जातियों से संबंधित हैं?
(A) छोटी जातियों से
(B) उच्च जातियों से
(C) राजनेताओं से
(D) धार्मिक नेताओं से
उत्तर:
(B) उच्च जातियों से

45. आर्थिक विकास के लिए जाति-प्रथा का परिणाम कैसा है?
(A) हानिकारक
(B) लाभकारी
(C) उपयोगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) हानिकारक

46. श्रम के परंपरागत तरीकों में किस कारण से परिवर्तन हो रहा है?
(A) शिक्षा के कारण
(B) गरीबी के कारण
(C) बेरोज़गारी के कारण
(D) आधुनिक तकनीक के कारण
उत्तर:
(D) आधुनिक तकनीक के कारण

47. पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में किसका प्रमुख एवं प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है?
(A) मजदूरी का
(B) बेरोजगारी का
(C) असमानता का
(D) छुआछूत का
उत्तर:
(B) बेरोजगारी का

48. आधुनिक युग में विडम्बना की बात क्या है?
(A) साम्यवाद
(B) जातिवाद
(C) अद्वैतवाद
(D) प्रयोगवाद
उत्तर:
(B) जातिवाद

49. लेखक के अनुसार किस पहलू से जाति-प्रथा हानिकारक प्रथा है?
(A) राजनैतिक
(B) धार्मिक
(C) सामाजिक
(D) आर्थिक
उत्तर:
(D) आर्थिक

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50. जाति-प्रथा मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणा-रुचि व आत्म-शक्ति को दबाकर उसे क्या बना देती है?
(A) निष्क्रिय
(B) सक्रिय
(C) कर्मशील
(D) गतिशील
उत्तर:
(A) निष्क्रिय

51. आधुनिक सभ्य समाज कार्य-कुशलता के लिए किसे आवश्यक मानता है?
(A) जाति-प्रथा
(B) शिक्षा
(C) श्रम-विभाजन
(D) प्रोत्साहन
उत्तर:
(C) श्रम-विभाजन

52. फ्रांसीसी क्रांति के नारे में कौन-सा शब्द विवाद का विषय रहा है?
(A) राजतंत्र
(B) समता
(C) स्वतंत्रता
(D) श्रम-विभाजन
उत्तर:
(B) समता

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] यह विडंबना की ही बात है, कि इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है, कि आधुनिक सभ्य समाज ‘कार्य-कुशलता’ के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है और चूँकि जाति-प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। इस तर्क के संबंध में पहली बात तो यही आपत्तिजनक है, कि जाति-प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन का भी रूप लिए हुए है। श्रम विभाजन, निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परंत किसी भी सभ्य समाज में श्रम विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती। भारत की जाति-प्रथा की एक और विशेषता यह है कि यह श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता [पृष्ठ-153]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से उद्धृत है। इसके लेखक,भारतीय संविधान के निर्माता ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। इस गद्यांश में लेखक यह कहना चाहता है कि जाति-प्रथा को श्रम विभाजन से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि हमारे लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आधुनिक युग में लोग जातिवाद का समर्थन करते हैं। जातिवाद का समर्थन करने वाले इसके लिए अनेक आधारों को खोजने की कोशिश करते हैं। उनके द्वारा जातिवाद का समर्थन करने का एक आधार यह बताया जाता है कि आज हमारा समाज सभ्य हो चुका है और कार्य-कुशलता के लिए श्रम का विभाजन नितांत आवश्यक है। जहाँ तक जाति-प्रथा का प्रश्न है यह श्रम विभाजन का ही एक अन्य रूप है। अतः जाति-प्रथा में कोई बुराई नज़र नहीं आती। भाव यह है कि जाति-प्रथा का समर्थन करने वाले लोग जाति-प्रथा को श्रम विभाजन से जोड़ने का प्रयास करते हैं। परंतु लेखक ने उनके इस मत के बारे में अनेक विपत्तियाँ उठाई हैं।

उनका कहना है कि जाति-प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन का रूप ले चुकी है। जहाँ तक श्रम विभाजन का प्रश्न है यह सभ्य समाज के लिए नितांत आवश्यक है परंतु संसार के किसी भी सभ्य समाज में श्रम के विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों के भिन्न-भिन्न वर्गों में बनावटी विभाजन नहीं करती। हमारे लिए दुःख की बात है कि जाति-प्रथा को हम श्रम विभाजन का आधार मान चुके हैं। यह समाज के लिए घातक है। भारत में प्रचलित जाति-प्रथा की एक अन्य विशेषता यह है कि यह न केवल श्रमिकों का अस्वाभाविक रूप से विभाजन करती है, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे के मुकाबले में ऊँचा और नीचा घोषित कर देती है। परंतु ऊँच-नीच की यह प्रथा संसार के किसी भी समाज में प्रचलित नहीं है। केवल हमारे देश में ही श्रमिकों को विभिन्न वर्गों में बाँटकर ऊँच-नीच की खाई पैदा कर दी जाती है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि हमारे देश में जाति-प्रथा को ही श्रम विभाजन का आधार माना गया है जो कि सर्वथा अनुचित है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने किस बात को विडंबना कहा है?
(ग) किस कारण से लोग जातिवाद का समर्थन करते हैं?
(घ) श्रम विभाजन का क्या अर्थ है?
(ङ) क्या जाति-प्रथा एक बुराई है?
(च) भारत में ऐसी कौन-सी व्यवस्था है जो दूसरे देशों से अलग है?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम–‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’, लेखक का नाम-बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ।

(ख) लेखक ने इस बात को विडंबना कहा है कि आज के वैज्ञानिक युग में हमारे देश में जातिवाद का समर्थन करने वालों की कमी नहीं है। वे लोग कार्य-कुशलता के लिए जाति-प्रथा को आवश्यक मानते हैं।

(ग) लोगों का विचार है कि कार्य-कुशलता के लिए जातिवाद आवश्यक है। उनका कहना है कि जातियाँ कर्म के आधार पर बनाई गई हैं और ये कर्म का विभाजन करती हैं। अतः श्रम विभाजन के लिए जाति-प्रथा आवश्यक है।

(घ) श्रम विभाजन का अर्थ है-मानव के लिए उपयोगी कामों का वर्गीकरण करना अर्थात प्रत्येक काम को कशलता से करने के लिए काम-धंधों का विभाजन करना । जैसे कोई खेती करता है, मजदूरी करता है, कोई फैक्ट्री चलाता है, कोई चिकित्सा करता है।

(ङ) निश्चय ही जाति-प्रथा एक बुराई है क्योंकि यह श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन करती है। जाति-प्रथा मानव को जन्म से ही किसी व्यवसाय से जोड़ देती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि मानव अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार काम नहीं कर पाता। यह इसलिए भी बुराई है क्योंकि इससे समाज में ऊँच-नीच का भेद-भाव उत्पन्न हो जाता है।

(च) जन्म के आधार पर काम-धंधा तय करना, केवल भारत में ही प्रचलित है। यह व्यवस्था ऊँच-नीच को जन्म देती है। भारत के अतिरिक्त यह पूरे संसार में कहीं भी प्रचलित नहीं है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

[2] जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व एकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो, तो इसके लिए भूखों मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति-प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है। [पृष्ठ-153-154]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। यहाँ लेखक स्पष्ट करता है कि जाति-प्रथा मानव को जीवन भर के लिए एक ही पेशे से बाँध देती है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि जाति-प्रथा मनुष्य के पेशे का दोषपूर्ण निर्धारण पहले से ही निश्चित कर देती है और वह आजीवन उस पेशे से बँध जाता है। भले ही वह पेशा उसके लिए उचित न हो, पर्याप्त न हो। यह भी संभव है कि वह व्यक्ति उस पेशे के कारण भूखा मर जाए। आज के युग में यह स्थिति अकसर देखी जाती है। कारण यह है कि देश में उद्योग-धंधों और तकनीक का या तो लगातार विकास होता रहता है अथवा कभी उसमें अचानक बदलाव आ जाता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य को मजबूर होकर अपना पेशा बदलना पड़ता है। इसके विपरीत हालातों में भी मनुष्य को अपना व्यवसाय बदलने की आज़ादी न हो तो उसके पास भूखा मरने की बजाय कोई अन्य रास्ता नहीं रह जाता। हिंदू धर्म में जाति-प्रथा का बोल-बाला है। किसी भी आदमी को ऐसा पेशा चुनने की आजादी नहीं दी जाती जो उसे पिता से प्राप्त न हुआ हो। भले ही वह उस पेशे में कितना भी प्रवीण क्यों न हो फिर भी वह उस पेशे को नहीं अपना सकता। जब जाति-प्रथा व्यक्ति को पेशा बदलने की आज्ञा नहीं देती तो भारत में बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही। अतः जाति-प्रथा भारत में बढ़ती बेरोज़गारी का एक प्रमुख कारण है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने जाति-प्रथा की आलोचना इसलिए की है क्योंकि वह व्यक्ति को एक पेशे से बाँध देती है।
  2. जाति-प्रथा बेरोज़गारी फैलाने का एक प्रमुख कारण है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जाति-प्रथा में लेखक को क्या दोष दिखाई देता है?
(ख) मानव को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता कब और क्यों पड़ती है?
(ग) पेशा बदलने की आज़ादी न मिलने के क्या परिणाम होते हैं?
(घ) कौन-सा धर्म मनुष्य को पैतृक पेशे के अतिरिक्त अन्य किसी पेशे को चुनने की आज़ादी नहीं देता?
(ङ) जाति-प्रथा बेरोजगारी का प्रमुख कारण कैसे है?
उत्तर:
(क) जाति-प्रथा में लेखक को अनेक दोष दिखाई देते हैं। पहली बात यह है कि जाति-प्रथा जन्म से मनुष्य के पेशे को निर्धारित कर देती है और वह जीवन-भर उस पेशे से बँध जाता है। यदि पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त हो तो मनुष्य भूखा भी मर सकता है।

(ख) जब उद्योग-धंधों की प्रक्रिया या तकनीक में अचानक परिवर्तन आ जाए या उसका विकास अवरुद्ध हो जाए तो मनुष्य को अपना पेशा बदलना पड़ सकता है।

(ग) यदि मनुष्य को पेशा बदलने की आज़ादी न हो और उसके पेशे की माँग में कमी आ जाए तो उसे भूखा मरना पड़ सकता है।

(घ) हिंदू धर्म की जाति-प्रथा किसी मनुष्य को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती जो उसका पैतृक पेशा न हो। यह व्यवस्था सर्वथा अनुचित है।

(ङ) भारत में जाति-प्रथा मनुष्य को पेशा परिवर्तन की अनुमति नहीं देती। अतः यह जाति-प्रथा बेरोज़गारी को बढ़ावा देती है और यह बेरोज़गारी का प्रमुख कारण भी है।

[3] श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जाति-प्रथा गंभीर दोषों से युक्त है। जाति-प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं रहता। मनुष्य की व्यक्तिगत भावना तथा व्यक्तिगत रुचि का इसमें कोई स्थान अथवा महत्त्व नहीं रहता। ‘पूर्व लेख’ ही इसका आधार है। इस आधार पर हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न इतनी बड़ी समस्या नहीं जितनी यह कि बहुत से लोग ‘निर्धारित’ कार्य को ‘अरुचि’ के साथ केवल विवशतावश करते हैं। ऐसी स्थिति स्वभावतः मनुष्य को दुर्भावना से ग्रस्त रहकर टालू काम करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसी स्थिति में जहाँ काम करने वालों का न दिल लगता हो न दिमाग, कोई कुशलता कैसे प्राप्त की जा सकती है। [पृष्ठ-154]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से अवतरित है। इसके लेखक भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। यहाँ लेखक स्पष्ट करता है कि श्रम विभाजन की दृष्टि से जाति-प्रथा में अनेक दोष देखे जा सकते हैं क्योंकि जाति-प्रथा के द्वारा बनाया गया श्रम विभाजन मनुष्य की इच्छा व रुचि को नहीं देखता।

व्याख्या-लेखक पुनः कहता है कि जहाँ तक श्रम विभाजन का प्रश्न है, इसकी दृष्टि से भी जाति-प्रथा में अनेक गंभीर दोष देखे जा सकते हैं। जाति-प्रथा जो श्रम का विभाजन करती है, उसमें मनुष्य की इच्छा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। मनुष्य के अपने निजी विचार क्या हैं; उसकी अपनी रुचि किस काम में है? इसके बारे में जाति-प्रथा में किया गया श्रम विभाजन कुछ नहीं करता। भाव यह है कि मनुष्य की व्यक्तिगत भावनाओं और रुचियों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता, बल्कि जाति-प्रथा पूर्व जन्म य में लिखे हए को अधिक महत्त्व देती है। लेखक पनः कहता है कि आज हमारे देश में उद्योगों में गरीबी और शोषण इतनी गंभीर समस्या नहीं है जितनी कि अनेक लोगों को मजबूर होकर ऐसे काम करने पड़ते हैं जिनमें उनकी रुचि नहीं है और ये काम समाज द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

इन हालातों में मनुष्य में बुरी भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। वह या तो टाल-मटोल करता है या बहुत कम काम,करता है। इन हालातों में काम करने वालों का न तो उस काम में दिल लगता है और न ही वे दिमाग लगाकर काम करते हैं। अतः वे अपने काम में प्रवीणता प्राप्त नहीं कर सकते। इसमें दो मत नहीं हो सकते कि जाति-प्रथा आर्थिक दृष्टि से समाज के लिए घातक है। कारण यह है कि जाति-प्रथा मनुष्य की स्वाभाविक बढ़ावा देने वाली रुचि और अंदर की शक्ति को दबा देती है और मानव अस्वाभाविक नियमों में बँध जाता है और वह बेकार हो जाता है। अतः जाति-प्रथा समाज के लिए सबसे बड़ी हानिकारक प्रथा है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने श्रम विभाजन की दृष्टि से जाति-प्रथा को दोषयुक्त घोषित किया है। क्योंकि जाति-प्रथा मनुष्य की व्यक्तिगत भावना और व्यक्तिगत रुचि को कोई महत्त्व नहीं देती।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लेखक ने श्रम विभाजन की दृष्टि से जाति-प्रथा को दोषपूर्ण क्यों माना है?
(ख) पूर्व लेख के आधार पर श्रम विभाजन का तात्पर्य क्या है?
(ग) लेखक के अनुसार श्रम के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या कौन-सी है?
(घ) कार्य निर्धारित होने के दुष्परिणाम क्या हैं?
(ङ) कार्य-कुशलता कैसे बढ़ायी जा सकती है?
(च) क्या आर्थिक दृष्टि से जाति-प्रथा हानिकारक है?
उत्तर:
(क) श्रम विभाजन की दृष्टि से जाति-प्रथा निश्चय से दोषपूर्ण है। पहली बात तो यह है कि मनुष्य की इच्छा और रुचि को न देखकर पूर्व लेख के आधार पर उसके पेशे को निर्धारित करती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि मनुष्य इस काम में कोई रुचि नहीं लेता और काम को अनावश्यक बोझ समझता है।

(ख) पूर्व लेख के आधार पर श्रम विभाजन का अभिप्राय है कि जन्म के आधार पर मनुष्य के पेशे का निर्णय करना अर्थात् यह सोचना कि मनुष्य को पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर ही प्रतिफल मिलना चाहिए।

(ग) श्रम के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों को अपनी इच्छा व रुचि के अनुसार काम नहीं दिया जाता। उन्हें मजबूर होकर वह काम करना पड़ता है जो वे नहीं करना चाहते। इससे काम की उत्पादक शक्ति घट जाती है।

(घ) कार्य निर्धारित होने का सबसे बुरा परिणाम यह होता है कि श्रमिक काम में रुचि नहीं लेता। वह काम को बोझ समझता है इसलिए काम के प्रति उसके मन में दुर्भावना उत्पन्न हो जाती है। वह टाल-मटोल की नीति को अपनाता है तथा दिल-दिमाग से उस काम को नहीं करता।

(ङ) कार्य-कुशलता को बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक मनुष्य को उसकी रुचि के अनुसार काम दिया जाए बल्कि उसे अपनी इच्छा से व्यवसाय ढूँढने का मौका दिया जाए।

(च) आर्थिक दृष्टि से जाति-प्रथा अत्यधिक हानिकारक है। इस प्रथा के फलस्वरूप लोगों को पैतृक काम-धंधा करना पड़ता है जिसमें उनकी रुचि नहीं होती। वे दिल और दिमाग से उस काम को नहीं करते, जिससे न तो कार्य में कुशलता आ सकती है और न ही उत्पादकता बढ़ सकती है।

[4] मेरा आदर्श-समाज स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता पर आधारित होगा। क्या यह ठीक नहीं है, भ्रातृता अर्थात भाईचारे में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? किसी भी आदर्श-समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे तक संचारित हो सके। ऐसे समाज के बहुविधि हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। तात्पर्य यह है कि दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का यही वास्तविक रूप है और इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र है। क्योंकि लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति ही नहीं है, लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। इनमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो। [पृष्ठ-154-155]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से उद्धृत है। इसके लेखक भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। इस लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। इस गद्यांश में लेखक ने आदर्श समाज की चर्चा की है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि मेरा आदर्श समाज ऐसा होगा जिसमें स्वतंत्रता, समानता और आपसी भाई-चारा होगा। लेखक का विचार है कि भाई-चारे में किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यह कुछ सीमा तक उचित भी है। आदर्श समाज में इतनी अधिक गतिशीलता होनी चाहिए ताकि उसमें आवश्यक परिवर्तन समाज के एक किनारे से दूसरे किनारे तक व्याप्त हो सके अर्थात् गतिशीलता से ही समाज में परिवर्तन आता है। इस प्रकार के आदर्श समाज के अनेक प्रकार के लाभों में सबको योगदान देना चाहिए। सभी को उन लाभों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में बिना किसी बाधा के आपसी संबंध होने चाहिएँ।

इसके लिए सभी को साधन और अवसर प्राप्त होने चाहिएँ। भाव यह है कि भाईचारा दूध और पानी की तरह होना चाहिए। सच्चा भाईचारा ऐसा ही होता है। इसे हम लोकतंत्र भी कहते हैं। लेखक का कहना है कि लोकतंत्र शासन की एक व्यवस्था नहीं है, बल्कि लोकतंत्र सामाजिक जीवन जीने की एक पद्धति है और समाज के सभी अनुभवों के आदान-प्रदान का तरीका है। परंतु इसमें यह भी जरूरी है कि इसमें लोगों की अपने मित्रों के प्रति श्रद्धा और आदर की भावना भी उत्पन्न हो। नहीं तो भाईचारा सफल नहीं हो पाएगा और न ही लोकतंत्र।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने आदर्श समाज की व्याख्या करते हुए भाईचारे की भावना को विकसित करने पर बल दिया है।
  2. लेखक ने लोकतंत्र पर समुचित प्रकाश डाला है।
  3. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लेखक ने किस समाज को आदर्श समाज माना है?
(ख) लेखक ने समाज में किस प्रकार के भाईचारे का समर्थन किया है?
(ग) लेखक ने लोकतंत्र की क्या परिभाषा बताई है?
(घ) समाज में किस प्रकार की गतिशीलता की बात की गई है?
(ङ) गतिशीलता, अबाध संपर्क तथा दूध-पानी के मिश्रण में कौन-सी समानता है?
उत्तर:
(क) लेखक ने उस समाज को आदर्श माना है जिसमें स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा हो। उसमें इस प्रकार की गतिशीलता होनी चाहिए कि सभी आवश्यक परिवर्तन संपूर्ण समाज में व्याप्त हो जाएँ।

(ख) लेखक समाज में इस प्रकार का भाईचारा चाहता है जिसमें लोगों के बीच बिना बाधा के संपर्क हो। उस भाईचारे में न तो कोई बंधन हो, न जड़ता और न ही रूढ़िवादिता, बल्कि गतिशीलता होनी चाहिए। जैसे दूध और पानी मिलकर एक हो जाते हैं वैसे लोगों को मिलकर एक हो जाना चाहिए।

(ग) लेखक भाईचारे का दूसरा नाम लोकतंत्र को मानता है। उसका विचार है कि लोकतंत्र केवल शासन पद्धति नहीं है, बल्कि सामूहिक जीवन जीने का ढंग है। सच्चा लोकतंत्र वही है जिसमें लोग परस्पर अनुभवों का आदान-प्रदान करते हैं और दूसरे का उचित सम्मान करते हैं।

(घ) लेखक ने समाज में गतिशीलता का मत यह लिया है कि लोगों में परस्पर निर्बाध संपर्क हो, सहभागिता हो और सबकी रक्षा करने की जागरूकता हो। लोग दूध-पानी के समान मिले हुए हों और एक-दूसरे के प्रति श्रद्धा तथा सम्मान का भाव रखते हों।

(ङ) गतिशीलता, अबाध संपर्क तथा दूध-पानी के मिश्रण में सबसे बड़ी समानता यह है कि लोगों में उदारतापूर्वक मेल-मिलाप हो। जिस प्रकार दूध और पानी मिलकर एक हो जाते हैं उसी प्रकार लोग जाति-पाँति के बंधनों को त्यागकर गतिशील रहते हुए परस्पर संपर्क करें और एक-दूसरे का सम्मान करें।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

[5] जाति-प्रथा के पोषक, जीवन, शारीरिक-सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो स्वीकार कर लेंगे, परंतु मनुष्य के सक्षम एवं प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए जल्दी तैयार नहीं होंगे, क्योंकि इस प्रकार की स्वतंत्रता का अर्थ होगा अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता किसी को नहीं है, तो उसका अर्थ उसे ‘दासता’ में जकड़कर रखना होगा, क्योंकि ‘दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता। ‘दासता’ में वह स्थिति भी सम्मिलित है जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है। उदाहरणार्थ, जाति-प्रथा की तरह ऐसे वर्ग होना संभव है, जहाँ कुछ लोगों की अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे अपनाने पड़ते हैं। [पृष्ठ-155]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से अवतरित है। इसके लेखक भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता, बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। यहाँ लेखक कहता है कि जाति-प्रथा के पोषक जीवन, शारीरिक सुरक्षा और संपत्ति के अधिकार को तो स्वीकार कर लेंगे, परंतु मानव की स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं करेंगे।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि जो लोग जाति-प्रथा का समर्थन करते हैं, वे जीवन की शारीरिक-सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लेंगे। इस प्रवृत्ति के प्रति उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन मानव के समर्थ तथा प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए वे आसानी से तैयार नहीं होंगे अर्थात् जाति-प्रथा के पोषक यह कदापि नहीं मानेंगे कि प्रत्येक व्यक्ति को मानव समझकर उसे स्वतंत्रता का प्रभावशाली प्रयोग करने दिया जाए। कारण यह है कि इस प्रकार की स्वतंत्रता का मतलब यह है कि अपना व्यवसाय चुनने की आजादी किसी को नहीं है, बल्कि इसका मतलब है समाज के छोटे वर्ग को गुलामी में जकड़कर रखना।

लेखक का कथन है कि केवल कानूनी पराधीनता को दासता नहीं कहा जा सकता । दासता में वो स्थिति भी शामिल है जिसमें कुछ लोगों को अन्य लोगों के द्वारा निश्चित किए गए व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। भाव यह है कि समाज का उच्च वर्ग निम्न वर्ग के लिए व्यवहार को निर्धारित करने और कुछ कार्यों का पालन करने के लिए मजबूर करे तो यह भी दासता ही कही जाएगी। समाज में इस प्रकार की स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी समाज में उपलब्ध हो सकती है।।

उदाहरण के रूप में जाति-प्रथा के समाज में लोगों का ऐसा वर्ग भी हो सकता है जिन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने दासता अर्थात गुलामी की विभिन्न स्थितियों का गंभीर विवेचन किया है और जाति-प्रथा का खंडन – किया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जाति-प्रथा का पोषण करने वाले क्या स्वीकार करते हैं और क्या अस्वीकार करते हैं?
(ख) दासता का क्या अर्थ है?
(ग) कानूनी पराधीनता न होने पर भी लोगों को इच्छा के विरुद्ध पेशे क्यों अपनाने पड़ते हैं?
(घ) जाति-प्रथा का पोषण करने वाले लोग किस स्वतंत्रता का विरोध करते हैं और क्यों?
उत्तर:
(क) जाति-प्रथा का पोषण करने वाले लोग शारीरिक सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो स्वीकार कर लेते हैं, परंतु मनुष्य के सक्षम और प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं करते।

(ख) कुछ लोगों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए मजबूर करना ही दासता कहलाता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि जाति-प्रथा के आधार पर जो कर्त्तव्य लोगों के निर्धारित किए जाते हैं वे दासता के ही लक्षण हैं।

(ग) जाति-प्रथा के कारण समाज में कुछ ऐसे वर्ग भी हैं जिन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे अपनाने पड़ते हैं, परंतु यह कानूनी पराधीनता न होकर भी सामाजिक पराधीनता तो अवश्य है। उदाहरण के रूप में सफाई कर्मचारियों को सफाई का काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें कोई और काम नहीं दिया जाता।

(घ) जाति-प्रथा का पोषण करने वाले लोग मानव को पेशा (व्यवसाय) चुनने की स्वतंत्रता देने के विरुद्ध हैं। विशेषकर उच्च जाति के लोग इसका निरंतर विरोध करते रहते हैं। वे स्वयं तो ऊँचे कार्य करना चाहते हैं और समाज में श्रेष्ठ कहलाना चाहते हैं, परंतु छोटी जातियों को ऊपर उठने का अवसर प्रदान नहीं करते।

[6] ‘समता’ का औचित्य यहीं पर समाप्त नहीं होता। इसका और भी आधार उपलब्ध है। एक राजनीतिज्ञ पुरुष का बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है। अपनी जनता से व्यवहार करते समय, राजनीतिज्ञ के पास न तो इतना समय होता है न प्रत्येक के विषय में इतनी जानकारी ही होती है, जिससे वह सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं तथा क्षमताओं के आधार पर वांछित व्यवहार अलग-अलग कर सके। वैसे भी आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार भिन्न व्यवहार कितना भी आवश्यक तथा औचित्यपूर्ण क्यों न हो, ‘मानवता’ के दृष्टिकोण से समाज दो वर्गों व श्रेणियों में नहीं बाँटा जा सकता। ऐसी स्थिति में, राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है, कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए। राजनीतिज्ञ यह व्यवहार इसलिए नहीं करता कि सब लोग समान होते, बल्कि इसलिए कि वर्गीकरण एवं श्रेणीकरण संभव होता। [पृष्ठ-156]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ में से उद्धृत है। इसके लेखक भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव आंबेडकर हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जाति-प्रथा जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को स्वतंत्रता, समता, बंधुता से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। यहाँ लेखक ने समता के औचित्य पर समुचित प्रकाश डाला है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि समता का औचित्य बहुत व्यापक है। यह यहीं पर समाप्त नहीं हो जाता। इसके अन्य आधार भी देखे जा सकते हैं। एक राजनेता को असंख्य लोगों से मिलना पड़ता है। अपने हलके के लोगों से मिलते समय, व्यवहार करते समय.उसके पास इतना अधिक समय नहीं होता कि वह प्रत्येक व्यक्ति के विषय की जानकारी प्राप्त करे। न ही वह सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं और क्षमताओं को जान सकता है और न ही सबके साथ अलग-अलग आवश्यक व्यवहार कर सकता है। यदि गहराई से देखा जाए तो लोगों की आवश्यकताओं और क्षमताओं को आधार बनाकर भिन्न-भिन्न व्यवहार करना उचित नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा करने से हम मानवता की दृष्टि से समाज को दो वर्गों तथा श्रेणियों में विभक्त कर देंगे जोकि किसी भी प्रकार से सही नहीं कहा जा सकता।

ऐसी स्थिति में राजनेता को अपने व्यवहार में एक ऐसे सिद्धांत को अपनाना होता है जो सबके लिए उपयोगी और व्यवहार्य हो और वह सिद्धांत यही है कि एक क्षेत्र के सभी लोगों के साथ एक-सा व्यवहार किया जाए। राजनेता यह व्यवहार इसलिए नहीं करता कि सभी लोग समान होते हैं, बल्कि इसलिए करता है कि उसके लिए लोगों का वर्गीकरण तथा श्रेणीकरण संभव होता है। लेखक के कहने का भाव यह है कि राजनेता को अपने सभी मतदाताओं के साथ एक-सा व्यवहार करना चाहिए, उसे किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने समता के औचित्य पर विशेष बल दिया है।
  2. लेखक ने सिद्धांत और व्यवहार को व्यवहार्य कहा है।
  3. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) समता के कौन-से औचित्य पर बल दिया गया है?
(ख) राजनीतिज्ञ को सबके साथ समान व्यवहार क्यों करना पड़ता है?
(ग) लेखक ने किस सिद्धांत और व्यवहार को व्यवहार्य कहा है?
(घ) राजनीतिज्ञ सब मनुष्यों के साथ एक समान व्यवहार क्यों नहीं कर पाता?
उत्तर:
(क) समता के औचित्य पर बल देने से लेखक का अभिप्राय यह है कि असंख्य लोगों की अलग-अलग आवश्यकताओं को जानकर उनके साथ अलग-अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता। अतः मनुष्य को सबके साथ एक-समान व्यवहार करना चाहिए।

(ख) राजनीतिज्ञ को सबके साथ इसलिए समान व्यवहार करना पड़ता है क्योंकि उसका संपर्क असंख्य लोगों के साथ होता है। उसके लिए सबकी क्षमताओं और आवश्यकताओं को जान पाना संभव नहीं है। इसलिए उसे मजबूर होकर सबके साथ एक-जैसा व्यवहार करना पड़ता है।

(ग) सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार को ही लेखक ने व्यवहार्य कहा है क्योंकि इस सिद्धांत के द्वारा वह सबके साथ एक जैसा व्यवहार कर सकता है।

(घ) राजनीतिज्ञ सबके साथ एक-समान व्यवहार इसलिए नहीं कर पाता क्योंकि सभी लोग समान नहीं होते, बल्कि उनमें वर्गीकरण और श्रेणीकरण की संभावना बनी रहती है।

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Summary in Hindi

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज लेखिका-परिचय

प्रश्न-
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-डॉ० भीमराव का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्यप्रदेश के महू ज़िले में हुआ। आरंभिक शिक्षा उन्होंने भारत में प्राप्त की। क्योंकि उनका जन्म एक गरीब अस्पृश्य परिवार में हुआ था, इसलिए उन्हें आजीवन हिंदू धर्म की वर्ण-व्यवस्था तथा भारतीय समाज की जाति व्यवस्था के विरुद्ध लंबा संघर्ष करना पड़ा। बड़ौदा नरेश के प्रोत्साहन पर वे पहले उच्चतर शिक्षा के लिए न्यूयार्क गए। बाद में लंदन चले गए। उन्होंने वैदिक साहित्य को अनुवाद के माध्यम से पढ़ा और सामाजिक क्षेत्र में मौलिक कार्य किया। परिणामस्वरूप वे एक इतिहास-मीमांसक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् तथा धर्म-दर्शन के व्याख्याता बनकर उभरे। कुछ समय तक उन्होंने अपने देश में वकालत की और अछूतों, स्त्रियों तथा मजदूरों को मानवीय अधिकार तथा सम्मान दिलाने के लिए लंबा संघर्ष किया। स्वयं दलित होने के कारण उन्हें सामाजिक समता पाने के लिए भी लंबा संघर्ष करना पड़ा। भारत लौटकर उन्होंने कुछ पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया। आंबेडकर ने कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही विधि, अर्थशास्त्र व राजनीति विज्ञान में अपने अध्ययन और अनुसंधान के कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इक्नॉमिक्स से अनेक डिग्रियाँ भी प्राप्त की।

डॉ० आंबेडकर ने अपने चिंतन तथा रचनात्मकता के लिए बुद्ध एवं कबीर से प्रेरणा प्राप्त की। जातिवाद से संघर्ष करते हुए उनका हिंदू समाज से मोह-भंग हो गया। अतः 14 अक्तूबर, 1956 को अपने पाँच लाख अनुयायियों के साथ वे बौद्ध धर्म के मतानुयायी बन गए। वे भारतीय संविधान के निर्माता थे। यही कारण है कि उनको ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 6 दिसंबर, 1956 को दिल्ली में इस महान समाजशास्त्री का देहांत हो गया।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

2. प्रमुख रचनाएँ-‘दें कास्ट्स इन इंडिया’, ‘देयर मेकेनिज्म’, ‘जेनेसिस एंड डेवलपमेंट’ (1917, प्रथम प्रकाशित कृति), ‘द अनटचेबल्स’, ‘हू आर दे?’ (1948), ‘हू आर द शूद्राज़’ (1946), ‘बुद्धा एंड हिज़ धम्मा’ (1957), ‘थाट्स ऑन लिंग्युस्टिक स्टेट्स’ (1955), ‘द प्रॉब्लम ऑफ़ द रुपी’ (1923), ‘द एबोलुशन ऑफ़ प्रोविंशियल फायनांस इन ब्रिटिश इंडिया’ (पीएच.डी. की थीसिस, 1916), ‘द राइज़ एंड फॉल ऑफ़ द हिंदू वीमैन’ (1965), ‘एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट’ (1936), ‘लेबर एंड पार्लियामेंट्री डैमोक्रेसी’ (1943), ‘बुद्धिज्म एंड कम्युनिज्म’ (1956), (पुस्तकें व भाषण) ‘मूक नायक’, ‘बहिष्कृत भारत’, ‘जनता’ (पत्रिका-संपादन), हिंदी में उनका संपूर्ण वाङ्मय भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय से बाबा साहब आंबेडकर संपूर्ण वाङ्मय नाम से 21 खंडों में प्रकाशित हो चुका है।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-डॉ० भीमराव आंबेडकर लोकतंत्रीय शासन-व्यवस्था के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अपने साहित्य के द्वारा भारतीय समाज में व्याप्त जाति-प्रथा तथा छुआछूत का उन्मूलन करने का भरसक प्रयास किया। यही नहीं, उन्होंने जाति-प्रथा का विरोध करते हुए समाज में व्याप्त शोषण का भी विरोध किया। अछूतों के प्रति उनके मन में अत्यधिक सहानुभूति की भावना थी। वे आजीवन समाज के निचले तबके के लोगों के हक के लिए संघर्ष करते रहे।

महात्मा बुद्ध, संत कबीर और ज्योतिबा फुले ने उनकी विचारधारा को अत्यधिक प्रभावित किया। वस्तुतः वे इस प्रकार के लोकतंत्र की स्थापना करना चाहते थे जिसमें न तो जाति-पाँति का भेदभाव हो और न ही कोई छोटा-बड़ा हो, बल्कि सभी समान हों। यही कारण है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में समकालीन समाज की विसंगतियों, विडंबनाओं, छुआछूत, जाति-प्रथा का यथार्थ वर्णन किया। प्रस्तुत निबंध ‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ उनकी निबंध-कला का श्रेष्ठ उदाहरण है जिसमें उन्होंने जाति-प्रथा जैसे विषय को स्वतंत्रता, समता और भाईचारे से जोड़कर देखने का प्रयास किया है।

4. भाषा-शैली-डॉ० आंबेडकर ने अंग्रेज़ी तथा हिंदी दोनों भाषाओं में उच्चकोटि के साहित्य का निर्माण किया है। जहाँ तक हिंदी भाषा का प्रश्न है उसमें उन्होंने तत्सम एवं तद्भव शब्दों के अतिरिक्त उर्दू, फारसी तथा अंग्रेज़ी के शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है। उनकी भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य है। जहाँ कहीं वे गंभीर विषय का वर्णन करते हैं, वहाँ उनकी भाषा भी गंभीर बन जाती है। शब्द-चयन एवं वाक्य-विन्यास पूर्णतया भावानुकूल तथा प्रसंगानुकूल है। उन्होंने प्रायः विचारात्मक, वर्णनात्मक, चित्रात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। जहाँ कहीं वे सामाजिक विसंगतियों का खंडन करते हैं, वहाँ उनका व्यंग्य तीखा और चुभने वाला बन गया है।

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज पाठ का सार

प्रश्न-
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर द्वारा रचित ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ नामक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ जातिवाद के आधार पर की जाने वाली असमानता का वर्णन है। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर अनेक तर्क देकर इस जातिवाद का विरोध करते हैं। आधुनिक युग में भी अनेक लोग जातिवाद का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि कार्य-कुशलता के आधार पर श्रम-विभाजन जरूरी है। परंतु दुःख इस बात का है कि जातिवाद श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन भी करता है जो कि लेखक को स्वीकार्य नहीं है। किसी भी सभ्य समाज में श्रम-विभाजन तो होना चाहिए, परंतु भारत में जाति-प्रथा का प्रचलन श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन करता है और वर्गभेद के कारण लोगों को ऊँच-नीच घोषित करता है। यदि हम जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का कारण मान लें तो भी यह मानव की रुचि पर आधारित नहीं है। एक विकसित और सक्षम समाज को व्यक्तियों को अपनी-अपनी रुचि के अनुसार व्यवसाय चुनने के योग्य बनाना चाहिए परंतु हमारे समाज में ऐसा नहीं हो रहा। लोग आज भी जाति-प्रथा में विश्वास रखते हैं और जाति के आधार पर मनुष्य को माता-पिता के सामाजिक स्तर पर पेशा अपनाने के लिए मजबूर करते हैं जो कि गलत है।

बसे बडा दोष यह है कि यह लोगों को एक पेशे से जोड देती है। इसके कारण यदि किसी उद्योग-धंधे में तकनीकी विकास के कारण परिवर्तन हो जाता है तो लोगों को भूखा मरना पड़ता है समाज में पेशा न बदलने के कारण बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न होती है। जाति-प्रथा के आधार पर जो श्रम-विभाजन किया जाता है, वह स्वेच्छा पर निर्भर नहीं होता। न ही इसमें व्यक्ति की रुचि को देखा जाता है, बल्कि माता-पिता के सामाजिक स्तर और पूर्व लेख को महत्त्व दिया जाता है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि लोगों को मजबूर होकर वे काम करने पड़ते हैं जिनमें उनकी रुचि नहीं होती। ऐसे लोगों में टालू मानसिकता उत्पन्न हो जाती है। जो काम उनकी रुचि के अनुसार नहीं होता उसमें उनका दिल-दिमाग नहीं लगता। इसलिए हम कह सकते हैं कि जाति-प्रथा मनुष्य की प्रेरणा, रुचि को दबाती है और उन्हें निष्क्रिय बनाती है।

बाबा साहेब एक आदर्श समाज की कल्पना करते हैं। वे ऐसा समाज विकसित करना चाहते हैं जिसमें स्वतंत्रता, समता तथा भ्रातृभाव हो। भ्रातभाव में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। हमारा समाज गतिशील होना चाहिए ताकि वांछित परिवर्तन समाज में तत्काल व्याप्त हो जाएँ। इस प्रकार के समाज में सभी लोगों का सभी कार्यों में समभाग होना चाहिए। ऐसा होने पर सब सबके प्रति सजग होंगे और सबको सामाजिक साधन और अवसर प्राप्त होंगे। लेखक का कहना है कि भाईचारा दूध और पानी की तरह मिला होना चाहिए। इसी को वे लोकतंत्र का नाम देते हैं। उनका विचार है कि लोकतंत्र शासन की पद्धति नहीं है, बल्कि सामूहिक जीवनचर्या और अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम ही लोकतंत्र है। इसमें अपने साथी मनुष्यों के प्रति सम्मान तथा श्रद्धा की भावना होनी चाहिए।

यह आदान-प्रदान जीवन और शारीरिक सुरक्षा का विरोध नहीं करता। हम संपत्ति अर्जित कर सकते हैं, आजीविका के लिए औजार बना सकते हैं तथा घर के लिए जरूरी सामान रख सकते हैं। इस अधिकार पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। दुःख इस बात का है कि मानव को सुखी बनाने के लिए प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के अधिकार के लिए सभी लोग तैयार नहीं होते। क्योंकि इसी के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता मिल जाती है। यदि यह स्वतंत्रता नहीं मिलती तो मनुष्य अभावों के कारण दास बन जाता है। दासता का संबंध कानून से नहीं है। यदि मनुष्य को दूसरों द्वारा निर्धारित व्यवहार तथा कर्तव्यों का पालन करना पड़े तो वह भी दासता कही जाएगी। जाति-प्रथा का सबसे बड़ा दोष यह है कि मनुष्य को अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशा अपनाना पड़ता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

फ्रांसीसी क्रांति में ‘समता’ शब्द का नारा लगाया गया था। परंतु यह शब्द काफी विवादास्पद रहा है। जो लोग समता की आलोचना करते हैं कि सभी मनुष्य एक-समान नहीं होते भले ही यह एक सच्चाई है, परंतु यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। समता भले ही असंभव सिद्धांत है, लेकिन यह एक नियामक सिद्धांत भी है। मनुष्य की क्षमता शारीरिक वंश-परंपरा, सामाजिक उत्तराधिकार तथा मनुष्य के अपने प्रयत्नों पर निर्भर है। इन तीनों दृष्टियों से मनुष्य समान नहीं होते। यदि ऐसी स्थिति है तो भी समाज को ऐसे लोगों के साथ असमान व्यवहार नहीं करना चाहिए, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता विकसित करने के लिए नए प्रयास करने चाहिएँ।

बाबा साहेब का यह भी कहना है कि वंश-परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर असमानता अनुचित है। यदि यह असमानता की जाएगी तो उसमें केवल सुविधाभोगी लोगों को ही लाभ पहुँचेगा। ‘प्रयत्न’ मानव के अपने वश में हैं। परंतु वंश-परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा उसके हाथ में नहीं है। इसलिए वंश-परम्परा और सामाजिक उत्तराधिकार के नाम पर असमान व्यवहार करना सरासर गलत है। अन्य शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि समाज के सभी सदस्यों को अपनी-अपनी योग्यतानुसार अवसर प्राप्त होने चाहिएँ और समान अवसरों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। जहाँ तक राजनेताओं का प्रश्न है, उनका वास्ता अनेक लोगों से पड़ता है, परंत उनके पास इतना समय नहीं होता कि वे सबके बारे में जानकारी प्राप्त करें तथा आवश्यकताओं और क्षमताओं को जानें। राजनेताओं के लिए यह व्यवहार्य सिद्धांत उपयोगी है कि वे मानवता का पालन करते हुए समाज को दो वर्गों और श्रेणियों में विभाजित न करें। उन्हें सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए, परंतु व्यवहार में ऐसा हो नहीं पाता। राजनीतिज्ञों को सबके साथ एक-सा व्यवहार इसलिए करना चाहिए क्योंकि वर्गीकरण तथा श्रेणीकरण करने में न केवल उनकी व्यक्तिगत हानि है, बल्कि समाज की भी हानि है। भले ही समता एक काल्पनिक वस्तु है फिर भी राजनीतिज्ञ को सभी परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए समता का पालन करना चाहिए। यह व्यावहारिक भी है और उसके व्यवहार की एकमात्र कसौटी भी है।

कठिन शब्दों के अर्थ

श्रम-विभाजन = मानवकृत कामों के लिए अलग-अलग श्रेणियाँ बनाना। विडंबना = दुर्भाग्य । पोषक = पुष्ट करने वाला। अस्वाभाविक = कृत्रिम (बनावटी)। श्रमिक = मज़दूर। समर्थन = सहमति। करार देना = घोषित करना। सक्षम = समर्थ । पेशा = धंधा। अनुपयुक्त = जो उचित नहीं है। प्रतिकूल = विपरीत। दूषित = दोषपूर्ण। प्रशिक्षण = शिक्षण देना। निर्विवाद = बिना किसी विवाद के। निजी = अपना। स्तर = श्रेणी (अवस्था)। निर्धारित करना = तय करना। निष्क्रिय = क्रियाहीन । प्रक्रिया = पद्धति। अकस्मात = अचानक। अनुमति = सहमति। पैतक = पिता से प्राप्त। प्रत्यक्ष = आँखों के समक्ष । स्वेच्छा = अपनी इच्छा से। पूर्वलेख = जन्म से पहले भाग में लिखा हुआ। उत्पीड़न = शोषण। दुर्भावना = बुरी भावना। प्रेरणा = रुचि (बढ़ावा देने वाली रुचि)। खेदजनक = दुखदायी। नीरस गाथा = उबाने वाली कथा या प्रसंग। भ्रातृता = भाईचारा। छोर = किनारा । गतिशीलता = आगे बढ़ने की प्रवृत्ति । बहुविध = अनेक प्रकार का। हित = स्वार्थ। सजग = सचेत। अबाध = बिना किसी बाधा के। पद्धति = तरीका। जीवनचर्या = जीवन जीने की पद्धति । गमनागमन = आना-जाना। स्वाधीनता = स्वतंत्रता। जीविकोपार्जन = जीवन के साधन जुटाना। समक्ष = सामने। पराधीनता = गुलामी। तथ्य = सच्चाई। नियामक सिद्धांत = दिशा देने वाला विचार। उत्तराधिकार = पूर्वजों से मिला अधिकार। ज्ञानार्जन = ज्ञान प्राप्त करना। निःसंदेह = बिना शक के। बाजी मार लेना = विजय प्राप्त करना। उत्तम = श्रेष्ठ । कुल = परिवार । ख्याति = प्रसिद्धि । पैतृक संपदा = पिता से प्राप्त संपत्ति। व्यावसायिक प्रतिष्ठा = व्यवसाय सम्बन्धी सम्मान। निष्पक्ष निर्णय = बिना पक्षपात के फैसला। तकाज़ा = आवश्यकता। व्यवहार्य = व्यावहारिक। वर्गीकरण = वर्गों में विभक्त करना। कसौटी = जाँच का आधार।

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HBSE 12th Class Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

प्रश्न 1.
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की खूबियाँ और खामियाँ बताइए।
उत्तर:
जनसंचार माध्यमों का हमारे जीवन से गहरा संबंध होता है, परंतु प्रत्येक व्यक्ति की रुचि अलग होती है। किसी को समाचारपत्र पढ़ना अच्छा लगता है, किसी को दूरदर्शन देखना अथवा किसी को रेडियो सुनना अच्छा लगता है। कुछ लोग इंटरनेट से चैटिंग करना पसंद करते हैं। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक जनसंचार माध्यम की कुछ खूबियाँ हैं। जो व्यक्ति समाचारपत्र पढ़कर संतुष्ट होता है, उसे रेडियो या दूरदर्शन में कुछ कमियाँ नज़र आएँगी। इसी प्रकार जो व्यक्ति दूरदर्शन देखने का आदी है, उसे समाचारपत्र व्यर्थ प्रतीत होगा। इतना निश्चित है कि हमें समाचारपत्र को पढ़कर एक अलग प्रकार की संतुष्टि प्राप्त होती है। समाचारपत्र के समाचार हमें सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। इसका प्रभाव स्थायी होता है। परंतु रेडियो तथा दूरदर्शन के समाचारों का प्रभाव अस्थायी होता है। दूसरा दूरदर्शन में विज्ञापन इतना अधिक होता है कि दर्शक तंग आकर चैनल बदल लेता है। तीसरा दूरदर्शन या रेडियो पर समाचारों का व्यापक भंडार नहीं होता। इसके विपरीत इंटरनेट पर सूचनाओं तथा समाचारों का विशाल भंडार होता है। एक बटन दबाने मात्र से सूचनाओं का विशाल भंडार हमारे सामने प्रस्तुत हो जाता है। अतः यह कहना उचित होगा कि प्रत्येक जनसंचार माध्यमं की यदि अपनी कुछ विशेषताएँ हैं, तो कुछ त्रुटियाँ भी हैं।

प्रश्न 2.
जनसंचार माध्यमों में प्रिंट माध्यम पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रिंट माध्यम को हिंदी में छपाई वाले माध्यम अर्थात् मुद्रित माध्यम कहा जाता है। यह जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सर्वाधिक प्राचीन है। वस्तुतः आधुनिक युग में ही मुद्रण का आविष्कार हुआ। यूँ तो मुद्रण का प्राचीनतम इतिहास चीन से संबंधित है, परंतु आधुनिक युग में जर्मनी के जोनिस गुटेनबर्ग ने इसका आविष्कार किया। छापाखाना अर्थात् प्रेस के आविष्कार से जनसंचार के माध्यमों को विशेष लाभ प्राप्त हुआ। यूरोप में जब पुनर्जागरण काल के रेनेसाँ का आरंभ हुआ, तो उस समय छापेखाने ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में स्थापित हुआ। वस्तुतः तत्कालीन मिशनरियों ने धर्म-प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए इसकी स्थापना की थी। धीरे-धीरे मद्रण की इस प्रक्रिया में काफी बदलाव आया। आगे चलकर तथा लेजर प्रिंटिंग ने तकनीक में गुणात्मक परिवर्तन कर दिया, जिससे मुद्रित माध्यमों का व्यापक विस्तार हु मुद्रित माध्यमों के अंतर्गत समाचारपत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि समाहित की जाती हैं।

हमारे जीवन में इनका विशेष महत्त्व है। मुद्रित माध्यम की प्रमुख विशेषता यह है कि उसमें छपे शब्द स्थायी होते हैं, जिन्हें हम आराम से पढ़ सकते हैं। यदि कोई बात हमारी समझ में नहीं आती तो उसे हम दोबारा भी पढ़ सकते हैं। समाचारपत्र अथवा पत्रिका पढ़ते समय हम उसके किसी भी पृष्ठ को पढ़ सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि समाचारपत्र के पहले पृष्ठ को ही पहले पढ़ा जाए। पुनः मुद्रित माध्यमों में समाचारपत्र अथवा पुस्तक को लंबे समय तक सुरक्षित भी रख सकते हैं। इन माध्यमों में लिखित भाषा का विस्तार होता है और ये लिखित सामग्री लोगों तक अधिकाधिक पहुँचाई जा सकती हैं। चिंतन, विचार-विमर्श तथा विश्लेषण के लिए मुद्रित माध्यम सर्वाधिक उपयोगी है।।

पढ़े-लिखे लोगों के लिए मुद्रित माध्यम अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं, परंतु अनपढ़ लोगों के लिए इनका कोई उपयोग नहीं है। मुद्रित माध्यम के लेखकों के भाषा ज्ञान तथा उनकी शैक्षिक योग्यता को ध्यान में रखकर ही सामग्री लिखनी पड़ती है। परंतु ये माध्यम दूरदर्शन, तथा इंटरनेट, रेडियो आदि की तरह तत्काल घटी घटनाओं को दोबारा प्रस्तुत नहीं कर सकते। समाचारपत्र चौबीस घंटे के बाद पाठकों के पास पहुँचता है। इसी प्रकार साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार छपती है और मासिक पत्रिका महीने में एक बार छपती है। यदि हम समाचारपत्र के समाचारों की तुलना रेडियो अथवा दूरदर्शन के समाचारों के साथ करें, तो ये समाचार बासी कहे जाएंगे। इसलिए मुद्रित माध्यमों के लेखकों तथा पत्रकारों को प्रकाशन की सीमा को ध्यान में रखकर ही सामग्री तैयार करनी पड़ती है।

मुद्रित माध्यम में जो भी सामग्री छापी जाती है, उसमें सभी प्रकार की गलतियों तथा अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक होता है। जो भी आलेख, समाचारपत्र में छापा जाता है, वह व्याकरण तथा वर्तनी की दृष्टि से पूर्णतया शुद्ध होना चाहिए। इस बात की कोशिश की जाती है कि समाचारपत्र अथवा पत्रिका में कोई भाषागत अशुद्धियाँ न हों।

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प्रश्न 3.
प्रिंट माध्यमों (मुद्रित माध्यमों) में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
प्रिंट माध्यमों में ध्यान रखने योग्य बातें निम्नलिखित हैं-

  1. प्रिंट माध्यम लेखन की भाषा-शैली की ओर पूरा ध्यान रखना चाहिए। भाषा के व्याकरण, वर्तनी का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
  2. पाठकों के अनुसार ही ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिसे पाठक आसानी से समझ सकें।
  3. प्रिंट माध्यमों के लेखन और प्रकाशन के मध्य गलतियों एवं अशुद्धियों का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
  4. लेखन में समय-सीमा का भी ध्यान रखना चाहिए।
  5. लेखन में सहज प्रवाहमयता के लिए तारतम्यता बनाए रखना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
मुद्रित माध्यम में रेडियो समाचार का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें ध्वनि, स्वर तथा शब्दों के मेल से श्रोताओं तक समाचार पहुँचाया जाता है। रेडियो-पत्रकारों का कर्त्तव्य बनता है कि वे अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखें। कारण यह है कि समाचारपत्र के पाठक अपनी पसंद और इच्छा से कहीं से भी समाचार पढ़ सकते हैं, परंतु रेडियो के श्रोताओं के पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती। वे समाचारपत्र के समान रेडियो समाचार बुलेटिन को कहीं से भी नहीं सुन सकते। इसलिए उन्हें तो हमेशा बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतज़ार करना पड़ता है। यही नहीं, उन्हें आरंभ से अंत तक एक के बाद एक समाचार सुनना होता है। इस काल में न तो वे कहीं आ-जा सकते हैं और न ही किसी कठिन शब्द का अर्थ समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग कर सकते हैं। यदि वे कठिन शब्द का अर्थ जानने के लिए शब्दकोश का प्रयोग करने लगें तो बुलेटिन आगे चला जाएगा।

इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि रेडियो में समाचारपत्र की तरह पीछे लौटकर बुलेटिन सुनने की व्यवस्था नहीं है। यदि श्रोताओं को रेडियो के बुलेटिन में कुछ अरुचिकर या भ्रामक लगेगा, तो वे रेडियो के उस चैनल को तत्काल बंद कर देंगे। रेडियो एक यम है। अतः रेडियो समाचार बुलेटिन पत्र का ढाँचा एवं शैली इसी के अनुसार तैयार किया जाता है। रेडियो के समान टेलीविज़न भी एक एकरेखीय माध्यम है, परंतु उसमें शब्दों तथा ध्वनि की तुलना में दृश्यों या तस्वीरों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। जहाँ रेडियो में शब्द और आवाज़ का विशेष महत्त्व होता है, वहाँ दूरदर्शन में शब्द दृश्यों के साथ सहयोगी बनकर चलते हैं।

प्रश्न 5.
रेडियो समाचार की संरचना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रेडियो के लिए समाचार लिखना एक विशेष प्रकार की कला है। यह समाचार पत्रों के समाचार लिखने की विधि से सर्वथा अलग है। इसका कारण है कि दोनों माध्यमों की प्रकृति अलग-अलग है। अतः रेडियो के लिए समाचार लिखते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रेडियो का प्रयोग शिक्षित अथवा अशिक्षित सभी प्रकार के लोग करते हैं। दूसरा रेडियो केवल श्रव्यता पर आधारित है और समाज के सभी वर्गों के लोग इसका अधिकाधिक प्रयोग करते हैं। समाचार लेखन में उल्टा पिरामिड-शैली का प्रयोग किया जाता है। नब्बे प्रतिशत खबरें या कहानियाँ इसी शैली में लिखी जाती हैं।

उलटा पिरामिड-शैली में समाचार को तीन भागों में बाँटा जाता है-इंट्रो, बॉडी तथा समापन। इंट्रो को लीड भी कहते हैं। हिंदी में इसे मुखड़ा कहा जाता है। इसमें खबर के मूल तत्त्व को एक-दो पक्तियों में बता दिया जाता है। यह समाचार का महत्त्वपूर्ण भाग माना गया है। इसके बाद बॉडी में समाचार का विस्तृत ब्यौरा क्रमानुसार दिया जाता है। यद्यपि इस शैली में समापन जैसा कोई तत्त्व नहीं होता तथापि इसमें प्रासंगिक तथ्य तथा सूचनाएँ भी दी जाती हैं। उलटा पिरामिड-शैली में समापन होता ही नहीं। यदि समय और स्थान की कमी हो जाए, तो अंतिम पैराग्राफ या पंक्तियों को काटकर समाचार छोटा कर दिया जाता है। इस प्रकार समाचार समाप्त कर दिया जाता है।

रेडियो समाचार के इंट्रो का एक उदाहरण देखिए-

  1. लोकसभा के बाहर विरोधी पार्टियों द्वारा महँगाई के लिए प्रदर्शन। एक दिन के लिए संसद का सत्र स्थगित।
  2. प्रधानमंत्री ने बुधवार को अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की। पाकिस्तान द्वारा चलाए जा रहे उग्रवाद के प्रति प्रधानमंत्री ने चिंता जताई।
  3. वित्तमंत्री द्वारा डीज़ल तथा पेट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि की घोषणा। लोगों में मूल्य वृद्धि के विरुद्ध असंतोष।
  4. हरियाणा के हिसार जिले में एक बस और ट्रक के बीच हुई दुर्घटना में आठ लोगों की मौत हो गईं। मृतकों में तीन महिलाएँ, तीन बच्चे तथा दो पुरुष शामिल हैं।

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प्रश्न 6.
रेडियो के लिए समाचार लेखन की बुनियादी बातें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
रेडियो के लिए समाचार लिखते समय कुछ बातों की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। रेडियो एक ऐसा जनसंचार माध्यम है जो केवल श्रव्यता पर आधारित है। दूसरा यह माध्यम समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए उपयोगी है। पढ़े-लिखे और अनपढ़ दोनों रेडियो के समाचार सुन सकते हैं।
(क) साफ-सुथरी और टाइप्ड-कॉपी-रेडियो समाचार को वाचक एवं वाचिका दोनों ही पढ़ते हैं। उनके लिए समाचार की ऐसी कॉपी तैयार करनी चाहिए, ताकि उन्हें पढ़ने में कोई कठिनाई न हो। यदि समाचार कॉपी साफ-सुथरी टाइप्ड नहीं होगी, तो वाचक एवं वाचिका पढ़ते समय कुछ गलतियाँ कर सकते हैं। इससे या तो श्रोताओं का ध्यान भ्रमित हो जाएगा या उनका ध्यान बँट जाएगा। इसके लिए निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक है
(i) प्रसारण के लिए तैयार की जाने वाली समाचार कॉपी को ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।

(ii) कॉपी के दोनों ओर पर्याप्त हाशिया छोडा जाना चाहिए। एक पंक्ति में अधिक-से-अधिक 12 या 13 शब्द होने चाहिएँ। पंक्ति के अंत में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए। पृष्ठ के अंत में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए। समाचार की कॉपी में कठिन शब्दों तथा संक्षिप्त अक्षरों और अंकों से बचना चाहिए। एक से दस तक के अंक शब्दों में लिखे जाएँ और ग्यारह से नौ सौ निन्यानवे तक के अंक अंकों में लिखे जाएँ, परंतु इनसे बड़ी संख्या शब्दों में ही लिखी जानी चाहिए; जैसे तीन लाख अठारह हजार आठ सौ बीस (318820)।

(iii) समाचार लिखने वाले व्यक्ति को % या $ जैसे संकेतों का प्रयोग न करके प्रतिशत या डॉलर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

(iv) दशमलव को उसके नज़दीकी पूर्णांक में लिखना चाहिए।

(v) खेलों का स्कोर तथा मुद्रास्फीति संबंधी आंकड़े सही लिखे जाने चाहिएँ।

(vi) यथासंभव रेडियो समाचारों में आंकड़ों तथा संख्याओं का प्रयोग कम-से-कम होना चाहिए।

(vii) रेडियो समाचार कभी भी संख्या से आरंभ नहीं होना चाहिए।

समाचारपत्र अथवा पत्रिका के प्रकाशन के लिए संपादक के लिए एक संपादकीय विभाग होता है। ये सभी इस बात का ध्यान रखते हैं कि प्रकाशन के लिए जो भी सामग्री भेजी जा रही है, उसमें गलतियाँ या अशुद्धियाँ न हों। एक निर्दोष पत्र अथवा पत्रिका ही पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। “इस साल चावल का उत्पादन पिछले वर्ष के 60 लाख टन से घटकर 50 लाख टन हो गया है।” इस वाक्य के स्थान पर हमें यह वाक्य लिखना चाहिए। “इस साल चावल का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में सोलह फीसदी घटकर पचास लाख टन रह गया है।”

(ख) डेडलाइन, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग-रेडियो में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं होती, बल्कि वह समाचार में ही गुंथी होती है। रेडियो समाचार में समय-संदर्भ का विशेष ध्यान रखा जाता है। समाचार पत्र दिन में एक बार प्रकाशित होकर लोगों के पास पहुँचता है, परंतु रेडियो पर समाचार चौबीस घंटे चलते रहते हैं। इसलिए श्रोता के लिए समय का फ्रेम हमेशा आज होता है। इसलिए रेडियो समाचार में आज, आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार …… बैठक कल होगी या कल हुई बैठक में …………. शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

रेडियो समाचारों में संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। अच्छा तो यही होगा कि संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग न ही किया जाए। केवल लोकप्रिय संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग ही किया जाए तो अच्छा है; जैसे यूएनओ, यूनिसेफ, सार्क, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, डब्ल्यूटीओ आदि शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
जनसंचार माध्यम में टेलीविज़न के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आधुनिक युग में रेडियो के अतिरिक्त टेलीविज़न भी हमारे जीवन का अंग बन चुका है। यह देखने और सुनने का मा यम है। इसके लिए समाचार या स्क्रिप्ट लिखते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि लिखित सामग्री परदे पर दिखाई जाने वाली सामग्री के सर्वथा अनुकूल हो। टेलीविज़न की स्क्रिप्ट प्रिंट माध्यम तथा रेडियो माध्यम से अलग प्रकार की होती है। टेलीविज़न की स्क्रिप्ट में कम-से-कम शब्दों का प्रयोग करते हुए अधिक-से-अधिक खबर दिखानी होती है।

अतः टेलीविज़न के लिए खबरें लिखने की मूलभूत शर्त यह है कि लेखन दृश्य के साथ मेल खाए। कैमरे द्वारा लिए गए शॉट्स (दृश्य) को आधार बनाकर ही खबर लिखी जाती है। उदाहरण के रूप में, यदि शॉट्स वन प्रदेश के हैं, तो हम वन प्रदेश की ही खबर देंगे, गाँव या नगर की नहीं। इसी प्रकार यदि किसी फैक्ट्री में आग लगी हुई है, तो उससे संबंधित समाचार लिखेंगे, पानी की बाढ़ का नहीं। अखबार के लिए इस खबर का इंट्रो इस प्रकार होगा

“दिल्ली के ओखला इंडस्ट्रियल क्षेत्र की एक फैक्ट्री में आज सवेरे आग लगने से चार मजदूर घायल हो गए और लाखों की संपत्ति जल कर राख हो गई। आग के कारणों का पता लगाया जा रहा है।”

परंतु दूरदर्शन पर इस खबर का आरंभ कुछ अलग प्रकार का होगा। टेलीविज़न पर खबर दो तरह से प्रस्तुत की जाती है। इसका प्रारंभिक हिस्सा मुख्य समाचार होता है। दृश्य के बिना इसे न्यूज़ रीडर या एंकर पढ़ता है। दूसरे हिस्से में एंकर के स्थान पर से संबंधित दृश्य भी दिखाए जाते हैं। इस प्रकार टेलीविजन की खबर दो भागों में विभक्त होती है। टेलीविजन दिल्ली की एक फैक्ट्री में लगी आग की प्रारंभिक खबर को एंकर इस प्रकार से पढ़ सकता है।

आग की लपटें सवेरे सात बजे दिखाई दी। शीघ्र ही आग सारी फैक्ट्री में फैल गई….।
वस्तुतः दूरदर्शन के लिए खबरें लिखने के अनेक तरीके हो सकते हैं। यही कारण है कि टेलीविज़न पर खबरें पेश करने के तरीकों में निरंतर बदलाव होता रहता है। इस बात को हम टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाली खबरों को देख और सुनकर समझ सकते हैं, लेकिन इतना निश्चित है कि दूरदर्शन की खबरों का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 8.
टी०वी० खबरों के विभिन्न चरण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
दूरदर्शन चैनल पर समाचार देने का मूल आधार वही है जो प्रिंट मीडिया अथवा रेडियो में होता है। यह आधार है सबसे पहले सूचना देना। परंतु दूरदर्शन पर ये सूचनाएँ अनेक चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये हैं

  1. फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़
  2. ड्राई-एंकर
  3. फ़ोन-इन
  4. एंकर-विजुअल
  5. एंकर-बाइट
  6. लाइव
  7. एंकर-पैकेज

(1) फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़-फ्लैश अथवा ब्रेकिंग न्यूज़ वह बड़ी खबर होती है जो दर्शकों तक तत्काल पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महत्त्वपूर्ण खबर दी जाती है।

(2) ड्राई-एंकर-इसमें एंकर समाचारों के बारे में दर्शकों को यह बताता है कि कहाँ, कब, कैसे और क्या हुआ। जब तक समाचार के दृश्य स्टूडियों में नहीं पहँचते, तब तक एंकर संवाददाता से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।

(3) फोन-इन-ड्राई-एंकर के बाद फोन-इन द्वारा विस्तृत समाचार दर्शकों तक पहुँचाए जाते हैं। इसमें एंकर संवाददाता फोन के माध्यम से सूचनाएँ एकत्रित करता है और दर्शकों तक पहुँचाता है। संवाददाता घटना वाले स्थान पर विद्यमान रहता है और वहीं से एंकर को सूचनाएँ मिलती रहती हैं।

(4) एंकर-विजुअल-जब घटना से संबंधित दृश्य प्राप्त हो जाते हैं, तब उन दृश्यों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है एंकर उसे पढ़कर दर्शकों को सुनाता है। इस खबर का आरंभ पहले सूचना से होता है और बाद में घटनाओं से संबंधित दृश्य भी दिखाए जाते हैं।

(5) एंकर-बाइट-बाइट का अर्थ है-कथन। टेलीविज़न मीडिया में बाइट का विशेष महत्त्व होता है। टी०वी० की किसी खबर को पुष्ट करने के लिए घटना के दृश्य दिखाए जाते हैं और प्रत्यक्षदर्शियों अथवा संबंधित व्यक्तियों के कथन दिखाए व सुनाए जाते हैं। इससे खबर की प्रामाणिकता सिद्ध हो जाती है।

(6) लाइव-लाइव का अर्थ है-किसी समाचार या घटना का घटनास्थल से सीधा प्रसारण करना। लगभग सभी टी०वी० चैनलों की यह कोशिश होती है कि घटनास्थल से घटना के दृश्य तत्काल दर्शकों तक पहुँचाए जाएँ। इसके लिए घटनास्थल पर संवाददाता तथा कैमरामैन ओ०बी० वैन का प्रयोग करके घटना को सीधे दर्शकों को दिखाते व बताते हैं। उदाहरण के रूप में, क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी के मैच लाइव ही दिखाए जाते हैं।

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(7) एंकर-पैकेज-एंकर-पैकेज द्वारा समाचार को संपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, उनसे जुड़े लोगों के कथन तथा ग्राफिक द्वारा सूचनाएँ दी जाती हैं।
उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर टेलीविज़न लेखन तैयार किया जाता है और आवश्यकतानुसार वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। इसमें इस प्रकार के दृश्यों का प्रयोग किया जाता है जो एक दृश्य को दूसरे दृश्य से जोड़ सके, ताकि निहित अर्थ दर्शकों तक पहुँच सके।

टी०वी० पर खबर लिखने की प्रायः एक प्राचीनतम शैली है। इसमें प्रथम वाक्य दृश्य के वर्णन से आरंभ होता है। जैसे पार्लियामैंट स्टेट में महंगाई के विरुद्ध विशाल जनसमूह का जमावड़ा अथवा दिल्ली की सड़कों पर लंबे-लंबे जाम इस प्रकार के समाचार दृश्य के अनुसार होते हैं, परंतु इनमें शब्दों की भूमिका व्यर्थ सी लगती है, क्योंकि दर्शक जिसे अपनी आँखों से देख रहा है, इसलिए उसे भाषा के द्वारा दोहराना नहीं चाहिए। एक कल्पनाशील संवाददाता उन दृश्यों को सार्थकता प्रदान कर सकता है; जैसे दिल्ली के पार्लियामैंट स्टेट में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हो गए हैं। चुनाव रैलियों के समान इनको लाया नहीं गया, बल्कि ये महँगाई से तंग आकर अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं। टी०वी० में दृश्य और श्रव्य दोनों का एक साथ प्रयोग किया जाता है। प्रायः कथन अथवा बाइट का प्रयोग खबर को सफल बनाने के लिए किया जाता है। इसलिए खबर लिखते समय दो प्रकार की आवाज़ों को ध्यान में रखना आवश्यक है-एक तो बाइट अथवा कथन की आवाज़ और दूसरी दृश्य की आवाज़ । प्रायः टी०वी० की खबर बाइटस के आसपास ही तैयार की जाती है। परंतु यह कार्य बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए।

प्रश्न 9.
रेडियो और टेलीविज़न के समाचारों की भाषा और शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रेडियो और टेलीविज़न का संबंध देश के प्रत्येक वर्ग से है। इनके श्रोता और दर्शक सुशिक्षित अर्ध-शिक्षित और अनपढ़ लोग भी होते हैं। यदि महानगरों के उच्च वर्ग तथा मध्यम वर्ग के लोग इनको देखते और सुनते हैं तो किसान लोग और मज़दूर भी रेडियो और टी०वी० सुनते और देखते हैं। इसलिए रेडियो और टेलीविज़न की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सबको आसानी से समझ आ जाए, परंतु साथ ही भाषा के स्तर तथा गरिमा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रायः यह कोशिश करनी चाहिए कि सामान्य बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया जाए, ताकि वह श्रोताओं को समझ में आ सके। रेडियो, टेलीविज़न में प्रयुक्त होने वाली भाषा तथा शैली की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(i) भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए।

(ii) वाक्य छोटे-छोटे, सीधे तथा स्पष्ट लिखे जाने चाहिए।

(iii) भाषा में प्रवाहमयता एवं लयात्मकता भी होनी चाहिए।

(iv) तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। इनके स्थान पर और, लेकिन, या, आदि शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

(v) इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग न किया जाए जो संदेहयुक्त हों।

(vi) समाचारपत्रों में जिन शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग किया जाता है, रेडियो, टी०वी० में उनका प्रयोग नहीं किया जाता। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित तथा क्रमांक इत्यादि शब्द।

(vii) गैर जरूरी विशेषणों, सामासिक, तत्सम शब्दों तथा अतिरंजित उपमाओं का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे भाषा बोझिल हो जाती है।

(viii) मुहावरों का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए, परंतु इनका प्रयोग आवश्यकतानुसार तथा स्वाभाविक होना चाहिए।

(ix) एक वाक्य में एक ही बात कहीं जानी चाहिए।

(x) शिथिल वाक्यों से बचना चाहिए।

(xi) भाषा में प्रयुक्त वाक्यों से यह न लगे कि कुछ छूटता या टूटता हुआ है।

(xii) प्रायः प्रचलित एवं सहज शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

(xiii) उदाहरण के रूप में क्रय-विक्रय के स्थान पर खरीद-बिक्री, स्थानांतरण की जगह तबादला तथा पंक्ति की जगह कतार आदि शब्दों का प्रयोग होना चाहिए।

प्रश्न 10.
जनसंचार माध्यमों में इंटरनेट की भूमिका और महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इंटरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता तथा साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता भी कहा जाता है। नई पीढ़ी में यह पत्रकारिता काफी लोकप्रिय हो चुकी है। जो लोग इंटरनेट का प्रयोग करने के आदी हो चुके हैं, उन्हें अब कागज़ पर छपे समाचार बासी लगते हैं। वे घंटे-घंटे बाद स्वयं को अपडेट करते रहते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारत में कंप्यूटर साक्षरता की दर बड़ी तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष 50 से 55 प्रतिशत इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या बढ़ जाती है। क्योंकि यह एक ऐसा जनसंचार माध्यम है, जिसमें हम विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक की खबरें पढ़ सकते हैं। यही नहीं, हम संपूर्ण संसार की चर्चाओं तथा परिचर्चाओं में भाग ले सकते हैं और समाचारपत्रों की फाइलों की जाँच-पड़ताल कर सकते हैं।

परंतु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इंटरनेट केवल एक औज़ार है, जिसके द्वारा हम सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं, अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं, मनोरंजन प्राप्त करने के साथ-साथ व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों का आदान-प्रदान भी कर सकते हैं। परंतु यह अश्लीलता, दुष्प्रचार तथा गंदगी फैलाने का भी माध्यम है।

इंटरनेट पर पत्रकारिता के दो रूप देखे जा सकते हैं। एक तो इंटरनेट को औज़ार के रूप में प्रयोग करके खबरों का संप्रेषण करना और दूसरा संवाददाता अपनी खबर को दूसरे स्थान तक ई-मेल द्वारा भेज सकता है तथा समाचारों का संकलन भी कर सकता है। वह इंटरनेट का प्रयोग खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण के लिए भी कर सकता है। शोध कार्य के लिए इंटरनेट अत्यधिक उपयोगी है। पहले किसी समाचार की बैकग्राउंडर तैयार करने के लिए अखबारों की फाइलों को खोजना पड़ता था, परंतु अब चंद मिनटों में ही इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल में से समाचार की पृष्ठभूमि आसानी से खोजी जा सकती है। एक समय था जब टेलीप्रिंटर पर एक मिनट में 80 शब्द एक स्थान-से-दूसरे स्थान पर भेजे जाते थे, परंतु आज एक सेकेंड में 56 किलोबाइट अर्थात् 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।

प्रश्न 11.
इंटरनेट पत्रकारिता के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इसके इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इंटरनेट पर समाचारपत्र को प्रकाशित करना तथा समाचारों का आदान-प्रदान करना ही इंटरनेट पत्रकारिता कहलाती है। हम इंटरनेट पर किसी भी रूप में समाचारों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फीचरों, झलकियों तथा डायरियों द्वारा विभिन्न समस्याओं को जान सकते हैं तथा अपना मत व्यक्त कर सकते हैं। इसे ही हम इंटरनेट पत्रकारिता कहते हैं। आज लगभग सभी प्रमुख समाचारपत्र इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कुछ प्रकाशन संस्थानों तथा निजी कंपनियों ने स्वयं को इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ा हुआ है। इंटरनेट एक जनसंचार माध्यम है। अतः इसकी पत्रकारिता की विधि थोड़ी अलग प्रकार की है।

इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास अधिक लंबा नहीं है। आज विश्वस्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है। प्रथम दौर 1982 से 1992 तक चला। दूसरा दौर 1993 से 2001 तक चला। इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर सन् 2002 से आरंभ होकर अब तक सक्रिय है। प्रथम चरण में यह स्वयं प्रयोग के धरातल पर काम कर रहा था। अतः बड़े-बड़े प्रकाशन समूह यह प्रतीक्षा कर रहे थे कि किस प्रकार अखबारों की उपस्थिति को ‘सुपर इंफॉर्मेशन’ हाइवे’ पर दर्ज करवाया जा सके। उस समय अमेरिका ऑनलाइन जैसी बहुचर्चित कंपनियाँ आगे आईं। परंतु इंटरनेट पत्रकारिता का आरंभ तो सन् 1983 से 2002 तक के मध्यकाल में ही हुआ। इस काल में तकनीक की दृष्टि से इंटरनेट में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ।

नई वेब भाषा एचटीएमएल (हाइपर टेक्स्ट मार्डअप लैंग्वेज) सामने आई। इंटरनेट ई-मेल का प्रयोग होने लगा। इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेट स्केप नाम के ब्राउजर ने न केवल इंटरनेट को सुविधाजनक बनाया, बल्कि इसकी गति को भी तीव्र कर दिया। शीघ्र ही न्यूज़ मीडिया के नाम पर डॉटकॉम कंपनियाँ अस्तित्व में आ गईं। इंटरनेट और डॉटकॉम की बहुत चर्चा होने लगी। लोगों को लगने लगा कि वे रातों-रात अमीर बन जाएँगे। फलतः तीव्र गति से कंपनियाँ अस्तित्व में आईं और तीव्र गति से ही बंद हो गईं। सन् 1996 से 2002 के मध्यकाल में अमेरिका के पाँच लाख लोग डॉटकॉम नौकरियों से हाथ धो बैठें। वस्तुतः डॉटकॉम कंपनियों के बंद होने का कारण था, पर्याप्त आर्थिक आधार की कमी तथा विषय-सामग्री का अभाव। परंतु बड़े-बड़े प्रकाशन समूह मैदान में डटे रहे। जनसंचार के क्षेत्र में परिस्थितियाँ प्रतिकूल हों या अनुकूल सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में इंटरनेट की भूमिका हमेशा बनी रहेगी। लगता है कि आज पत्रकारिता का तीसरा चरण काफ़ी सुदृढ़ है।

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प्रश्न 12.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता विषय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में दूसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिता सक्रिय है। हमारे देश में इंटरनेट पत्रकारिता का प्रथम दौर सन् 1993 से शुरू हुआ और दूसरा दौर सन् 2003 से। इंटरनेट पत्रकारिता के प्रथम दौर में जहाँ विश्व में अनेक प्रयोग हुए, वहीं हमारे यहाँ भी अनेक प्रयोग हुए। डॉटकॉम तूफान के समान आया, लेकिन बुलबुले के समान फूट गया। केवल वही टिक पाए जो मीडिया उद्योग से पहले अस्तित्व में थे। आज इंटरनेट पत्रकारिता में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, हिंदू’ ‘ट्रिब्यून’ ‘पॉयनियर’, ‘स्टेट्समैन’, ‘एनडीटी०वी०’, ‘आईबीएन’, ‘ज़ी न्यूज़’, ‘आजतक’, ‘आउटलुक’ आदि साइटें ही सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। परंतु ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’ ‘इंडियाइंफोलाइन’ तथा ‘सीफी’ जैसी कुछ साइटें सही अर्थों में काम कर रही हैं। रीडिफ भारत की प्रथम साइट है जो गंभीरतापूर्वक इंटरनेट पत्रकारिता का काम करने में संलग्न है। ‘तहलका डॉटकॉम’ ने ही वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता का काम करने का श्रेय प्राप्त किया है।

प्रश्न 13.
हिंदी नेट संसार पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ से आरंभ हुई। इंदौर के ‘नयी दुनिया समूह’ ने हिंदी का संपूर्ण पोर्टल आरंभ किया। इसके बाद हिंदी के कुछ समाचारपत्रों ने अपने-अपने पोर्टल शुरू किए। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नयी दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’, ‘राजस्थान पत्रिका’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ आदि के वेब संस्करण आरंभ हो चुके हैं। ‘प्रभासाक्षी’ नाम का अखबार केवल इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। पत्रकारिता की दृष्टि से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट केवल ‘बीबीसी’ की है, क्योंकि यह साइट इंटरनेट के मानदंडों के अनुसार काम कर रही है। शुरू-शुरू में वेब साइट बड़े उत्साह के साथ आरंभ हुई थी, लेकिन अब स्टाफ तथा अपडेटिंग में कटौती के फलस्वरूप इंटरनेट पत्रकारिता में वह ताज़गी नहीं रही।

हिंदी वेबजगत में ‘अनुभूति’, ‘अभिव्यक्ति’, ‘हिंदी नेस्ट’ तथा ‘सराय’ आदि साहित्यिक पत्रिकाएँ सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। इसके साथ-साथ भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय, विभाग, सार्वजनिक उपक्रम तथा बैंकों ने भी अपने-अपने हिंदी अनुभाग आरंभ कर दिए हैं। आशा है कि भविष्य में इनके द्वारा तैयार किया गया डाटाबेस ऑनलाइन पत्रकारिता को बढ़ावा देगा परंतु इतना निश्चित है कि हिंदी की वेब पत्रकारिता का पूर्णतया विकास नहीं हो पाया है। हिंदी के फौंट की समस्याएँ सबसे बड़ी बाधा है। दूसरा हमारे पास कोई एक ‘की-बोर्ड’, नहीं है। डायनमिक फौंट प्राप्त न होने के कारण हिंदी की अधिकांश साइटें खुल ही नहीं पातीं, काम करना तो दूर की बात है। जब तक हिंदी के बेलगाम फौंट पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया जाता और ‘की-बोर्ड’ का मानवीकरण नहीं होता, तब तक यह समस्या ज्यों-की-त्यों बनी रहेगी।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिए गए हैं। सटीक विकल्प पर (√) का निशान लगाइए
(क) इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय है क्योंकि
(i) इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है। ( )
(ii) इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं। ( )
(iii) इससे खबरों की पुष्टि तत्काल होती है। ( )
(iv) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। ( )
उत्तर:
(iv) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। ( )

(ख) टी०वी० पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्त्वपूर्ण है
(i) विजुअल
(ii) नेट
(iii) बाइट
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी

(ग) रेडियो समाचार की भाषा ऐसी हो
(i) जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो
(ii) जो समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके
(iii) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो
(iv) जिसमें सामासिक और तत्सम शब्दों की बहुलता हो
उत्तर:
(iii) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो

प्रश्न 2.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों-प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट से जुड़ी पाँच-पाँच खूबियों और खामियों को लिखते हए एक तालिका तैयार करें।
उत्तर:
जनसंचार प्रिंट

खूबियाँखामियाँ
(1) छपे हुए शब्द स्थाई होते हैं।(1) ये शब्द अनपढ़ लोगों के लिए बेकार हैं। केवल पढ़े-लिखे लोगों के काम आते हैं।
(2) इन्हें हम धीरे-धीरे आराम से पढ़ सकते हैं।(2) समाचारों की समय सीमा होती है।
(3) पढ़ते-पढ़ते हम चिंतन, विचार तथा विश्लेषण भी कर सकते हैं।(3) स्पेस का ध्यान रखना पड़ता है।
(4) बार-बार पढ़कर समझ सकते हैं।(4) अशुद्धियों को ठीक करना पड़ता है।
(5) इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं।(5) तत्काल घटित घटनाओं को प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

रेडियो

(1) यह केवल श्रव्य माध्यम है।(1) पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं होती।
(2) अनपढ़ भी सुन सकते हैं।(2) कठिन शब्द समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
(3) यह उल्टा पिरामिड-शैली में होता है।(3) प्रसारण समय के लिए इंतज़ार करना पड़ता है।
(4) भ्रामक और अरुचिकर कार्यक्रम बंद किएजा सकते हैं।(4) यह एक रेखीय माध्यम है।
(5) शब्दों के साथ-साथ संगीत का प्रयोग किया जा सकता है।(5) टी०वी० की तुलना में कम आकर्षक है।

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टी०वी०

(1) यह दृश्य के साथ श्रव्य साधन भी है। अधिक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।(1) कई बार छोटी-सी बात को उछालकर प्रस्तुत किया जाता है।
(2) अधिक सटीक तथा प्रामाणिक समाचार दिखाए जा सकते हैं।(2) व्यावसायिकता के परिवेश के कारण निष्पक्षता का अभाव होता है।
(3) ब्रेकिंग न्यूज़ तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जा सकती है।(3) किसी की भी छवि बिगाड़ी जा सकती है।
(4) कम शब्दों का प्रयोग करके अधिक दृश्य दिखाए जा सकते हैं।(4) कठिन शब्दों को समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
(5) लाइव दिखाने और सुनाने की व्यवस्था भी है।(5) अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है।

इंटरनेट

(1) इससे मनोरंजन तथा ज्ञान की वृद्धि होती है।(1) अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है।
(2) चौबीसों घंटे समाचार तथा सूचनाएँ प्राप्त होती रहती हैं।(2) दुष्प्रचार का माध्यम है।
(3) सर्वाधिक तीव्र माध्यम है।(3) महंगा माध्यम है।
(4) पूरे-का-पूरा अखबार इंटरनेट पर उपलब्ध कराया जा सकता है।(4) छोटे बच्चों को खेल-कूद से दूर करने वाला माध्यम।
(5) कोई भी पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है।(5) आम लोगों के लिए दुष्प्राप्य माध्यम।
(6) रिपोर्ट का सत्यापन और पुष्टिकरण उपलब्ध है।(6) आम आदमी इसका प्रयोग नहीं कर सकता। निरक्षर लोगों के लिए यह अप्राप्य है।

प्रश्न 3.
इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंटरनेट शिक्षित वर्ग में काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसका प्रमुख कारण यही है कि इंटरनेट पत्रकारिता से तत्काल सूचनाएँ उपलब्ध हो जाती हैं। लेकिन इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं जो समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं।

  • यह कच्ची बुद्धि के युवक-युवतियों में अश्लीलता, नग्नता तथा अनैतिकता फैला रहा है।
  • युवा वर्ग के संस्कार विकृत हो रहे हैं।
  • अपराध तथा उग्रवादी इसकी सहायता से संसार भर में आतंक फैला रहे हैं। विशेषकर, भारत में होने वाली आतंकवादी घटना के पीछे इंटरनेट का बहुत बड़ा हाथ है।
  • इंटरनेट के द्वारा काले धन का लेन-देन आसान हो गया है। पुस्तकीय ज्ञान की चोरी सहज हो गई है।

प्रश्न 4.
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सशक्त माध्यम कौन-सा है? पक्ष-विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से टी०वी० अधिक सशक्त माध्यम है। इसके पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित बातें कही जा सकती हैं
टी०वी०

पक्षविपक्ष
1. यह दृश्य के साथ श्रव्य साधन भी है।1. कई बार छोटी-सी बात को उछालकर प्रस्तुत किया जाता है।
2. अधिक सटीक तथा प्रामाणिक समाचार दिखाए जा सकते हैं।2. व्यावसायिकता के परिवेश के कारण निष्पक्षता का अभाव होता है।
3. ब्रेकिंग न्यूज़ तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जा सकती है।3. किसी की भी छवि बिगाड़ी जा सकती है।
4. कम शब्दों का प्रयोग करके अधिक दृश्य दिखाए जा सकते हैं।4. कठिन शब्दों को समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
5. लाइव दिखाने और सुनाने की व्यवस्था भी है।5. अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है।
6. छोटे बच्चों के लिए हानिकारक है।

प्रश्न 5.
नीचे दिए गए चित्रों को ध्यान से देखें और इनके आधार पर टी०वी० के लिए तीन अर्थपूर्ण संक्षिप्त स्क्रिप्ट लिखें।
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उत्तर:
1. पर्वतीय क्षेत्रों में प्रदूषण-दूर पर्वतों की चोटियाँ बर्फ से ढकी हुई हैं। तलहटी में एक विशाल झील है, जहाँ प्रतिवर्ष असंख्य सैलानी नौका-विहार के लिए आते हैं। वे इस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाते हैं, परंतु ऐसा लगता है कि उन्हें पर्यावरण की कोई चिंता नहीं है। झील की स्वच्छता की ओर वे तनिक भी ध्यान नहीं देते। यही कारण है कि झील के पानी में कागज़ के टुकड़े, पॉलीथीन तथा खाने के टुकड़े तैरते हुए नज़र आ रहे हैं। हम लोग यह भी नहीं सोचते कि हमें पर्यटन स्थलों को स्वच्छ तथा साफ-सुथरा रखना चाहिए। यदि पर्वतीय क्षेत्रों का पर्यावरण स्वच्छ रहेगा तो पुनः नौका विहार का आनंद प्राप्त कर सकेंगे।

2. जल का अपव्यय-हमें इस सच्चाई को समझना चाहिए कि जल ही जीवन है। परंतु जल की कमी चारों ओर महसूस की जा रही है। महानगर हो चाहे गाँव, सर्वत्र पानी की कमी अनुभव की जा रही है। भले ही सरकार इस समस्या की ओर ध्यान दे रही है, लेकिन नागरिकों का भी कर्त्तव्य बनता है कि पानी की बर्बादी को रोका जाए। अकसर देखने में आता है कि घंटों तक नलों से पानी निकलता रहता है और हम नल को बंद नहीं करते। पानी के इस अपव्यय को रोकना नितान्त आवश्यक है। प्रत्येक भारतीय को पानी के अपव्यय की ओर ध्यान देना चाहिए।

3. छोटे बच्चे भारी बस्ते-ये छोटे-छोटे बच्चे बस्तों के भारी बोझ तले दबे जा रहे हैं। जब भी हमारी नजर स्कूल की ओर जाती है तो इस प्रकार के दृश्य दिखाई देते हैं। क्या कभी हमने सोचा है कि यह आयु तो हँसने-खेलने तथा खाने-पीने की है, परंतु ये बेचारे अपने शरीर के वज़न से अधिक पुस्तकों से भरे बैग को पीठ पर लादे हुए स्कूल में प्रवेश करते हैं। संसार के विकसित देशों के बच्चों की पढ़ाई खिलौनों, गाने, नाचने तथा खेलने कूदने से आरंभ होती है। लेकिन हमारे देश में शुरू में ही बच्चों को पुस्तकों तथा कॉपियों का बोझ उठाना पड़ता है। इससे उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। शिक्षाशास्त्रियों तथा अभिभावकों को मिलकर इन भारी बस्तों को हल्का करने में सहयोग देना चाहिए। सरकार का शिक्षा विभाग भी इसे अनदेखा नहीं कर सकता।

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