Author name: Prasanna

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Notes.

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

→ दिक्सूचक एक छोटा चुम्बक होता है जो सदा उत्तर व दक्षिण दिशाओं की ओर संकेत करता है।

→ उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव (North pole and South pole)–दिक्सूचक का जो सिरा उत्तर की ओर संकेत करता है . उसे उत्तरी ध्रुव तथा जो सिरा दक्षिण की ओर संकेत करता है उसे दक्षिणी ध्रुव कहते हैं।

→ ध्रुव (Pole)-चुम्बकों के सजातीय ध्रुवों में परस्पर प्रतिकर्षण एवं विजातीय ध्रुवों में परस्पर आकर्षण होता है।

→ चुम्बकीय बल (Magnetic force)—किसी चुम्बक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र होता है जिसमें उस चुम्बक के बल का संसूचन किया जा सकता है। |

→ चुम्बकीय क्षेत्र रेखायें (Magnetic field lines) किसी चुम्बकीय क्षेत्र के निरूपण के लिए चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं का उपयोग किया जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र के किसी बिन्दु पर क्षेत्र की दिशा उस बिन्दु पर रखे उत्तर ध्रुव । की गति की दिशा द्वारा दिखाई जाती है। चुम्बकीय क्षेत्र के प्रबल होने पर ये रेखाएँ निकट होती हैं।

→ चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic field)-चुम्बकीय क्षेत्र एक ऐसी राशि है जिसमें परिमाण और दिशा दोनों होते हैं।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

→ चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ बंद वक्र होती हैं तथा एक-दूसरे को कभी भी प्रतिच्छेदित नहीं करती।

→ किसी धात्विक चालक में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।

→ किसी विद्युत धारावाही धातु के तार से एक चुम्बकीय क्षेत्र संबद्ध होता है। तार के चारों ओर क्षेत्र रेखाएँ अनेक संकेन्द्री वृत्तों के रूप में होती हैं, जिनकी दिशा दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।

→ परिनालिका (Solenoid)-पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।

→ परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ समान्तर सरल रेखाओं की तरह होती हैं। किसी परिनालिका के भीतर सभी बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र समान होता है।

→ विद्युत चुम्बक (Electromagnet) विद्युत चुम्बक में नर्म लौह क्रोड होता है जिसके चारों ओर विद्युतरोधी ताँबे के तार की कुंडली लिपटी रहती है।

→ कोई विद्युत धारावाही चालक चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर बल का अनुभव करता है। यदि चुम्बकीय क्षेत्र तथा विद्युत धारा की दिशाएँ परस्पर लम्बवत् हैं तो इस दशा में चालक पर आरोपित बल की दिशा इन दोनों के लम्बवत् होती है, जिसे फ्लेमिंग के वामहस्त नियम से प्राप्त किया जाता है।

→ विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, विद्युत मापक यंत्र का सम्बन्ध विद्युत धारावाही तथा चुंबकीय क्षेत्र से है।

→ विद्युत मोटर एक ऐसी युक्ति है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपान्तरित करती है।

→ विद्युत मोटरों का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रिजरेटरों, वाशिंग मशीनों, कम्प्यूटर आदि में किया जाता है।

→ दिक्परिवर्तक (Commutator)-विद्युत मोटर में विद्युतरोधी तार की एक आयताकार कुंडली किसी चुम्बकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच रखी जाती है। वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है, उसे दिक्परिवर्तक कहते हैं।

→ विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)-वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण एक ऐसी परिघटना है जिसमें किसी कुंडली में जो किसी ऐसे क्षेत्र में स्थित है जहाँ समय के साथ चुम्बकीय क्षेत्र परिवर्तित होता है, एक प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

→ चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन किसी चुम्बक तथा उसके पास स्थित किसी कुंडली के बीच आपेक्षिक गति के कारण हो सकता है। यदि कुंडली किसी विद्युत धारावाही चालक के निकट रखी है तब कुंडली से संबद्ध चुम्बकीय क्षेत्र या तो चालक से प्रवाहित विद्युत धारा में अन्तर के कारण हो सकता है अथवा चालक तथा कुंडली के बीच आपेक्षिक गति के कारण हो सकता है। प्रेरित विद्युत धारा की दिशा फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त नियम द्वारा प्राप्त की जाती है।

→ जब कुंडली की गति की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् होती है तब कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा अधिकतम होती है।

→ विद्युत जनरेटर (Electric generator)-विद्युत उत्पन्न करने की युक्ति को विद्युत धारा जनित्र (ac जनित्र) कहते हैं।। 1

→ दिष्ट धारा प्राप्त करने के लिए विभक्त वलय प्रकार के दिक्परिवर्तक का उपयोग किया जाता है।

→ दिष्ट धारा (dc) सदा एक ही दिशा में प्रवाहित होती है लेकिन प्रत्यावर्ती धारा (ac) एक निश्चित काल अंतराल के बाद अपनी दिशा उत्क्रमित करती रहती है।

→ हमारे देश में प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 50 ह है।

→ हम अपने घरों में प्रत्यावर्ती विद्युत शक्ति 220 V पर प्राप्त करते हैं। आपूर्ति का एक तार लाल विद्युत रोधन युक्त होता है जिसे विद्युन्मय तार (धनात्मक तार) कहते हैं। दूसरे पर काला विद्युत रोधन होता है जिसे उदासीन तार (ऋणात्मक तार) कहते हैं। इन दोनों तारों के बीच 220 V का विभवांतर होता है। तीसरा तार भूसंपर्क तार (अर्थ वॉयर) होता है जिस पर हरा विद्युत रोधन होता है।

→ अतिभारण (Over loading)-जब विद्युन्मय और उदासीन तार सीधे सम्पर्क में आते हैं तो अतिभारण हो सकता है।।

→ भूसंपर्कण एक सुरक्षा उपाय है जो यह सुनिश्चित करता है कि साधित्र के धात्विक आवरण में यदि कोई विद्युत धारा का कोई भी क्षरण होता है तो उस साधित्र का उपयोग करते समय व्यक्ति को झटका न लगे।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

→ विद्युत फ्यूज (Electric fuse) विद्युत फ्यूज सभी घरेलू परिपथों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह अतिभारण के कारण होने वाली हानि से बचाता है। !

→ फ्यूजों में होने वाला तापन फ्यूज को पिघला देता है जिससे विद्युत परिपथ टूट जाता है।

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.4

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Exercise 1.4

Question 1.
Visualise 3.765 on the number line, using successive magnification.
Solution :
For visualizing the representation of 3.765 on the number line, we observe that 3-765 is located between 3 and 4. We divide it into 10 equal parts and mark each point of divisions as shown in the figure 1.12. In the next step, we lo ate 3.765 between 3.7 and 3.8.

To get more accurate visualization of the representation, we divide this portion of the number line into 10 equal parts and use a magnifying glass to visualize that 3.765 lies between 3.76 and 377. To visualize 3.765 more accurately, we divide again the portion between 3.76 and 3.77 into ten equal parts and visualize the representation of 3.765 as shown in the figure.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.4 - 1

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.4

Question 2.
Visualise \(4 \cdot \overline{26}\) on the number line, upto 4 decimal places.
Solution:
We have,
\(4 \cdot \overline{26}\) = 4.2626. For visualizing the representation of \(4 \cdot \overline{26}\) on the number line, we observe that \(4 \cdot \overline{26}\) is located between 4 and 5. We divide it into 10 equal parts and mark each point of divisions as shown in the figure 1.13. In the next step, we locate \(4 \cdot \overline{26}\) between 4.2 and 4.3.

To get more accurate visualization of the representation, we divide this portion of the number line into 10 equal parts and use a magnifying glass to visualize that \(4 \cdot \overline{26}\) lies between 4.26 and 4.27. To visualize \(4 \cdot \overline{26}\) more accurately, we again divide this portion between 4.26 and 4.27 into 10 equal parts and use a magnifying glass to visualize that \(4 \cdot \overline{26}\) between 4.262 and 4.263.

Now visualize \(4 \cdot \overline{26}\) still more accurately, we divide this portion between 4.262 and 4.263 into 10 equal parts and visualize the representation of \(4 \cdot \overline{26}\) as shown in the figure.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.4 - 2

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

HBSE 12th Class Sociology परियोजना कार्य के लिए सुझाव Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निरीक्षण विधि की विशेषताएं बताएं।
(A) वैज्ञानिक सूक्षमता संभव है
(B) अपने आप निरीक्षण करना
(C) विश्वास योग्य
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 2.
निरीक्षण के कितने प्रकार हैं?
(A) दो
(B) पाँच
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर:
पाँच।

प्रश्न 3.
सहभागी निरीक्षण में वैज्ञानिक किसका भाग बन जाता है?
(A) समूह का
(B) समाज का
(C) घर का
(D) देश का।
उत्तर:
समूह का।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 4.
किस निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता कई प्रकार से समूह का अंग बनता है?
(A) सहभागी
(B) असहभागी
(C) अर्ध-सहभागी
(D) अनियंत्रित।
उत्तर:
सहभागी।

प्रश्न 5.
किस निरीक्षण में वैज्ञानिक तटस्थ भाव से निरीक्षण करता है?
(A) सहभागी
(B) असहभागी
(C) अर्ध-सहभागी
(D) अनियंत्रित।
उत्तर:
असहभागी।

प्रश्न 6.
किस प्रकार के निरीक्षण में वैज्ञानिक समूह की कुछ गतिविधियों में भाग लेता है?
(A) सहभागी
(B) असहभागी
(C) अर्ध-सहभागी
(D) अनियंत्रित।
उत्तर:
अर्ध-सहभागी।

प्रश्न 7.
जब वैज्ञानिक स्वाभाविक रूप में तथा स्वाभाविक स्थान पर निरीक्षण करते हैं तो उसे क्या कहते हैं?
(A) अनियंत्रित निरीक्षण
(B) नियंत्रित निरीक्षण
(C) सहभागी निरीक्षण
(D) अर्ध-सहभागी निरीक्षण।
उत्तर:
अनियंत्रित निरीक्षण।

प्रश्न 8.
नियंत्रण कितने प्रकार का होता है?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर:
दो।

प्रश्न 9.
निरीक्षण विधि का गुण बताएं।
(A) विश्वासयोग्य
(B) आसान
(C) सर्वव्यापक
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 10.
साक्षात्कार का क्या अर्थ है?
(A) घटना से संबंधित व्यक्ति से औपचारिक वार्तालाप
(B) व्यक्ति से मिलना
(C) a+b
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
घटना से संबंधित व्यक्ति से औपचारिक वार्तालाप।

प्रश्न 11.
यह शब्द किसके हैं, “साक्षात्कार एक ऐसी क्रमबद्ध विधि है जिसके द्वारा व्यक्ति करीब-करीब अपनी कल्पना की मदद से अपेक्षाकृत अपरिचित के जीवन में प्रवेश करता है।”
(A) गुड तथा हॉट
(B) बोगार्डस
(C) पी० वी० यंग
(D) मोज़र।
उत्तर:
पी० वी० यंग।।

प्रश्न 12.
साक्षात्कार के कितने प्रकार होते हैं?
(A) दो
(B) चार
(C) आठ
(D) पाँच।
उत्तर:
चार।

प्रश्न 13.
इनमें से साक्षात्कार विधि का गुण बताएं।
(A) ज्यादा समय
(B) ग़लत रिपोर्ट
(C) मनोवैज्ञानिक अध्ययन
(D) अच्छे साक्षात्कारों को न मिलना।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक अध्ययन।

प्रश्न 14.
Interview Guide किस प्रकार का प्रलेख है?
(A) मौखिक
(B) निबंधात्मक
(C) लघूत्तरात्मक
(D) लिखित।
उत्तर:
लिखित।

प्रश्न 15.
साक्षात्कार की तैयारी का सबसे पहला चरण क्या है?
(A) साक्षात्कार प्रदर्शिका का निर्माण
(B) समस्या का ज्ञान
(C) साक्षी का चुनाव
(D) पता नहीं।
उत्तर:
समस्या का ज्ञान।

प्रश्न 16.
साक्षात्कार की सीमा बताओ।
(A) उच्चकोटि की चतुरता न होना
(B) व्यक्तियों का झूठ बोलना
(C) साक्षी को साक्षात्कार के लिए राजी करना
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 17.
साक्षात्कार विधि का गुण बताएं।
(A) सबसे लचीली विधि
(B) भावात्मक स्थितियों का अध्ययन
(C) अधिक उपयोगी
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 18.
आँकड़ों तथा द्वितीयक स्त्रोत कौन-से हैं?
(A) सरकारी तथा गैर-सरकारी
(B) निजी तथा व्यक्तिगत
(C) सरकारी तथा अर्ध-सरकारी
(D) पता नहीं।
उत्तर:
सरकारी तथा गैर-सरकारी।

प्रश्न 19.
‘साक्षात्कार’ किस स्तर पर किया जाता है?
(A) व्यक्तिगत
(B) सार्वजनिक
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) व (B) दोनों।

प्रश्न 20.
परियोजना कार्य किस पर आधारित होता है?
(A) गुणात्मक तथ्य पर
(B) परिमाणात्मक तथ्य पर
(C) उपरोक्त दोनों पर
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
उपरोक्त दोनों पर।

प्रश्न 21.
शोध कार्य के लिए हम छात्रों से सीधे प्रश्न किस पद्धति के तहत पूछ सकते हैं?
(A) प्रेक्षण
(B) सर्वेक्षण
(C) साक्षात्कार
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
साक्षात्कार।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परियोजना कार्य के लिए किस विधि का अनुसरण किया जाता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य के लिए सामाजिक सर्वेक्षण विधि का अनुसरण किया जाता है।

प्रश्न 2.
परियोजना कार्य विधि के मुख्य समर्थक तथा जन्मदाता कौन हैं?
उत्तर:
परियोजना कार्य विधि के मुख्य समर्थक तथा जन्मदाता किलपैट्रिक (W.H. Kilpatric) को माना जाता है।

प्रश्न 3.
परियोजना कार्य का क्या अर्थ है?
अथवा
परियोजना कार्य क्या है?
अथवा
परियोजना का अर्थ बताएं।
उत्तर:
परियोजना कार्य एक नया अनुभव तथा ज्ञान प्राप्त करने का एक समस्यामूलक ढंग है तथा यह योजना की कार्य प्रणाली से संबंधित है।

प्रश्न 4.
परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना होता है।

प्रश्न 5.
परियोजना कार्य विधि में रिपोर्ट कौन तैयार करता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य विधि में रिपोर्ट विद्यार्थी द्वारा लिखी जाती है।

प्रश्न 6.
परियोजना कार्य के कितने स्तर होते हैं?
उत्तर:
परियोजना कार्य के चार स्तर होते हैं।

प्रश्न 7.
परियोजना कार्य का पहला स्तर कौन-सा होता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य का पहला स्तर परियोजना कार्य का आयोजन होता है।

प्रश्न 8.
परियोजना कार्य का अंतिम स्तर कौन-सा होता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य का अंतिम स्तर तथ्यों का प्रदर्शन होता है तथा रिपोर्ट लिखना होता है।

प्रश्न 9.
नियोजन क्या होता है?
उत्तर:
जब व्यक्ति अपने किसी लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करते समय अपने साधनों की व्यवस्था तैयार करता है तो उसे नियोजन कहते हैं।

प्रश्न 10.
नियोजन के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
नियोजन के दो प्रकार हैं-सामाजिक नियोजन तथा आर्थिक नियोजन।

प्रश्न 11.
अवलोकन पद्धति क्या है?
अथवा
प्रेक्षण का अर्थ बताएं।
अथवा
प्रेक्षण क्या है?
उत्तर:
जब हम किसी घटना को अपनी आँखों से देखते हैं तथा उसका विश्लेषण करते हैं तो उसे अवलोकन कहते हैं।

प्रश्न 12.
अपनी आँखों का प्रयोग करने वाली विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
घटना का विश्लेषण करने के लिए अपनी आँखों का प्रयोग करने वाली विधि को अवलोकन अथवा प्रेक्षण कहते हैं।

प्रश्न 13.
सहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब अनुसंधानकर्ता समूह का सदस्य बनकर निरीक्षण करता है तो उसे सहभागी निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 14.
अर्धसहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब निरीक्षणकर्ता समूह की कुछ क्रियाओं में भाग लेता है तथा बाकी का अनुसंधानकर्ता के तौर पर निरीक्षण करता है तो उसे अर्ध सहभागी निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 15.
अनियंत्रित निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब अनुसंधानकर्ता स्वयं घटनास्थल पर जाकर घटना का उसके वास्तविक हालातों में निरीक्षण करता है तो उसे अनियंत्रित निरीक्षण कहते हैं। .

प्रश्न 16.
नियंत्रित निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब घटना को कृत्रिम रूप में दोबारा घटित करके या अपने आपको नियंत्रण में रखकर अवलोकन किया जाए तो उसे नियंत्रित निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 17.
सामूहिक निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब एक ही सामाजिक घटना का अवलोकन एक से अधिक अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किया जाता है तथा अलग-अलग रिपोर्ट तैयार की जाती है तो उसे सामूहिक निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 18.
सहभागी निरीक्षण का एक गुण बताओ।
अथवा
प्रेक्षण पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इस निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले वर्ग के काफ़ी समीप आ जाता है जिससे ज्यादा सूक्ष्म अध्ययन का अवसर मिलता है।

प्रश्न 19.
सहभागी निरीक्षण का एक दोष बताओ।
उत्तर:
इसमें अनुसंधान को वैज्ञानिक के साथ-साथ समूह का सदस्य बनना पड़ता है जिससे दोनों में संतुलन रखना कठिन होता है।

प्रश्न 20.
असहभागी निरीक्षण का एक गुण बताओ।
उत्तर:
अनुसंधानकर्ता पूर्णतया वैज्ञानिक बनकर निरीक्षण करता है जिससे निरीक्षण में निष्पक्षता आ जाती है।

प्रश्न 21.
असहभागी निरीक्षण का एक दोष बताओ।
उत्तर:
पूर्णतया अलग होकर निरीक्षण करने से समूह की प्रत्येक चीज़ का निरीक्षण नहीं हो सकता जिससे सदस्यों – में बनावटीपन आ जाता है।

प्रश्न 22.
नियंत्रण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
नियंत्रण दो प्रकार का होता है-घटना पर नियंत्रण तथा निरीक्षण कार्य पर नियंत्रण।

प्रश्न 23.
सबसे पहले सहभागी निरीक्षण शब्द का प्रयोग किसने किया था?
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण शब्द का प्रयोग सबसे पहले Lindeman ने 1924 में अपनी पुस्तक Social Discovery में किया था चाहे विधि के रूप में इसका प्रयोग बहुत पहले ही हो चुका था।

प्रश्न 24.
निरीक्षण विधि की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. निरीक्षण विधि एक ऐसी विधि है जिसमें व्यक्ति अपनी ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करके सूचना इकट्ठी करता है।
  2. निरीक्षण विधि एक प्रत्यक्ष अध्ययन की विधि है जिसमें निरीक्षणकर्ता स्वयं ही अपनी आँखों का प्रयोग करके सूचना एकत्रित करता है।

प्रश्न 25.
सर्वेक्षण किसे कहते हैं?
अथवा
सर्वेक्षण पद्धति क्या है?
उत्तर:
सर्वेक्षण का अर्थ ऐसी अनुसंधान प्रणाली से है जिसमें अनुसंधानकर्ता घटनास्थल पर जाकर घटना का वैज्ञानिक निरीक्षण करता है तथा उस घटना के संबंध में खोज करता है।

प्रश्न 26.
सर्वेक्षण विधि का सबसे बड़ा लाभ क्या है?
अथवा
सर्वेक्षण पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इसमें अनुसंधानकर्ता घटना के प्रत्यक्ष संपर्क में रहता है जिससे निष्कर्षों में वैषयिकता (Objectivity) आ जाती है।

प्रश्न 27.
क्या सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान एक ही है?
उत्तर:
जी नहीं। यह दोनों एक नहीं है। सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान की केवल एक विधि है।

प्रश्न 28.
सामाजिक सर्वेक्षण के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण के चार प्रकार होते हैं।

प्रश्न 29.
सामाजिक सर्वेक्षण का क्या महत्त्व है?
अथवा
सर्वेक्षण प्रणाली का मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण से हमें व्यावहारिक सूचना प्राप्त हो जाती है तथा घटना का अच्छे ढंग से वर्णन हो जाता है।

प्रश्न 30.
सामाजिक सर्वेक्षण किस चीज़ पर जोर देता है?
उत्तर:
सा जिक सर्वेक्षण में विस्तृत अध्ययन पर बल दिया जाता है तथा समस्या के बारे में हरेक प्रकार की सूचना इकट्ठी की जाती है।

प्रश्न 31.
क्या एक अनुसंधानकर्ता सर्वेक्षण विधि का प्रयोग कर सकता है?
उत्तर:
जी नहीं, इस विधि में कई व्यक्तियों को मिल कर कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 32.
सामाजिक सर्वेक्षण में किन चीज़ों का अध्ययन हो सकता है?
उत्तर:
मोज़र के अनुसार सर्वेक्षण में सामाजिक घटनाओं, सामाजिक दशाओं, संबंधों अथवा व्यवहार इत्यादि का अध्ययन हो सकता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 33.
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षण के कितने विभाग दिए हैं?
उत्तर:
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षणों के चार विभाग दिए हैं।

प्रश्न 34.
नियमित सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
नियमित सर्वेक्षण वह सर्वेक्षण होते हैं जो लगातार तथा समय-समय पर होते रहते हैं।

प्रश्न 35.
विशिष्ट सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
इस प्रकार के सर्वेक्षण समस्या प्रधान होते हैं जो किसी विशेष उपकल्पना के आधार पर होते हैं।

प्रश्न 36.
सर्वेक्षण का शाब्दिक अर्थ बताएं।
उत्तर:
शब्द सर्वेक्षण अंग्रेजी भाषा के शब्द Survey का हिंदी रूपांतर है। शब्द स्वयं Sur अथवा Sor तथा Veeir अथवा Veoir से मिलकर बना है। Sur का अर्थ है ऊपर तथा Veeir का अर्थ है देखना। इस तरह शब्द Survey का शाब्दिक अर्थ है किसी घटना को ऊपर से देखना अथवा बाहर से अवलोकन करना है।

प्रश्न 37.
सामान्य तथा विशिष्ट सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
सामान्य सर्वेक्षण वह होते हैं जिसमें सर्वेक्षण का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता, बल्कि इसे किसी घटना के संबंध में सूचना इकट्ठी करने के लिए प्रयोग किया जाता है। विशिष्ट सर्वेक्षण किसी विशेष घटना का सर्वेक्षण ता है तथा घटना से संबंधित लोगों से संपर्क किया जाता है और निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 38.
साक्षात्कार क्या है?
उत्तर:
साक्षात्कार में किसी घटना के प्रत्यक्षदर्शी से प्रभावपूर्ण तथा औपचारिक वार्तालाप और विचार-विमर्श होता है।

प्रश्न 39.
साक्षात्कार के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार में चार प्रकार होते हैं।

प्रश्न 40.
साक्षात्कार प्रदर्शिका का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
साक्षात्कार प्रदर्शिका एक डायरी होती है जिसकी सहायता से साक्षात्कार एक निश्चित दिशा में आगे बढ़ता है तथा स्मरण शक्ति पर अधिक जोर नहीं देना पड़ता।

प्रश्न 41.
साक्षात्कार प्रदर्शिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार प्रदर्शिका एक लिखित प्रलेख होती है जिसमें साक्षात्कार की योजना का संक्षिप्त वर्णन होता है।

प्रश्न 42.
साक्षियों का चुनाव कैसे किया जाता है?
उत्तर:
साक्षियों का चुनाव निर्देशन प्रणाली अथवा सैंपल प्रणाली की मदद से किया जाता है।

प्रश्न 43.
साक्षात्कार में सबसे पहला कार्य क्या होता है?
उत्तर:
साक्षात्कार का सबसे पहला कार्य साक्षी से संपर्क स्थापित करना होता है।

प्रश्न 44.
अन्वेषक प्रश्न क्या होते हैं?
उत्तर:
जब साक्षी अनजाने में या जान-बूझकर किसी महत्त्वपूर्ण पक्ष को छोड़ देता है तो उस पक्ष को याद दिलाने के लिए पूछे गए अन्वेषक प्रश्न होते हैं।

प्रश्न 45.
साक्षात्कार का निर्देशन कौन करता है?
उत्तर:
साक्षात्कार का निर्देशन साक्षात्कारकर्ता करता है।

प्रश्न 46.
साक्षात्कार विधि की एक सीमा बताओ।
उत्तर:
इस विधि में हमें साक्षी पर पूर्णतया निर्भर रहना पड़ता है तथा वह झूठ भी बोल सकता है।

प्रश्न 47.
साक्षात्कार विधि में साक्षात्कारकर्ता के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
इस विधि में साक्षात्कारकर्ता के लिए चतुर होना बहुत आवश्यक है क्योंकि उसे अपने मतलब की जानकारी निकालना आना चाहिए।

प्रश्न 48.
फील्डवर्क क्या होता है?
उत्तर:
फील्डवर्क क्षेत्र में जाकर लोगों के बीच रहकर उनके बारे में जानकारी प्राप्त करने की विधि है। इसमें अध्ययनकर्ता समूह के बीच जाकर रहता है, उस समूह का हिस्सा बनकर उनके बारे में जानकारी प्राप्त करता है तथा फिर अंत में निष्कर्ष निकालता है। इस प्रकार फील्डवर्क क्षेत्र में जाकर कार्य करने की एक विधि है।

प्रश्न 49.
मानव विज्ञान को सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में सबसे बड़ा योगदान किसका था?
उत्तर:
मानव विज्ञान को सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में सबसे बड़ा योगदान फील्डवर्क का था।

प्रश्न 50.
शुरू के मानवशास्त्री किस चीज़ के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते थे?
उत्तर:
शुरू के मानवशास्त्री प्राचीन संस्कृतियों के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते थे।

प्रश्न 51.
शुरू के मानवशास्त्री कहां से प्राचीन संस्कृतियों का ज्ञान इकट्ठा करते थे?
उत्तर:
शुरू के मानवशास्त्री लिखी हुई किताबों अथवा यात्रियों, मिशनरियों या साम्राज्यवादी प्रशासकों की लिखी रिपोर्टों से प्राचीन संस्कृतियों का ज्ञान इकट्ठा करते थे।

प्रश्न 52.
1920 के बाद किस चीज़ को सामाजिक मानवविज्ञान की ट्रेनिंग का अभिन्न अंग माना जाने लगा?
उत्तर:
1920 के बाद सहभागी निरीक्षण अथवा फील्डवर्क को सामाजिक मानव विज्ञान की ट्रेनिंग का अभिन्न अंग माना जाने लगा।

प्रश्न 53.
किसने फील्डवर्क को सामाजिक मानव विज्ञान में एक महत्त्वपूर्ण विधि के रूप में स्थापित किया?
उत्तर:
मैलिनोवस्की ने फील्डवर्क को सामाजिक मानव विज्ञान में एक महत्त्वपूर्ण विधि के रूप में स्थापित किया।

प्रश्न 54.
Geneology क्या होती है?
उत्तर:
Geneology उस समुदाय की जनसंख्या की संरचना के बारे में जानकारी होती है जिसका कि अध्ययन करना होता है।

प्रश्न 55.
मानवशास्त्री फील्डवर्क को कहाँ से शुरू करते हैं?
उत्तर:
मानवशास्त्री फील्डवर्क को समुदाय की जनसंख्या के बारे में जानकारी लेने से शुरू करते हैं।

प्रश्न 56.
समाजशास्त्री कहाँ पर जाकर फील्डवर्क कहते हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्री समुदाय में रहकर ही फील्डवर्क करते हैं।

प्रश्न 57.
मानवशास्त्री कहाँ पर जाकर फील्डवर्क करते हैं?
उत्तर:
मानवशास्त्री दूर जाकर कहीं जंगलों, पहाड़ों, दुर्गम क्षेत्रों में रह रहे कबीलों, आदिवासियों में जाकर फील्डवर्क करते हैं।

प्रश्न 58.
भारतीय समाजशास्त्रियों ने अधिकतर फील्डवर्क कहाँ किया है?
उत्तर:
अधिकतर भारतीय समाजशास्त्रियों ने गाँवों में जाकर, लोगों के बीच रहकर फील्डवर्क किया है तथा उनके बारे में जानकारी प्राप्त की है।

प्रश्न 59.
सर्वेक्षण में उत्तरदाता कौन होता है?
उत्तर:
जिस व्यक्ति का नाम सैंपल विधि से चुना जाता है वह उत्तरदाता होता है।

प्रश्न 60.
परियोजना कार्य में तथ्यों का संकलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब उत्तरदाता से सूचना एकत्र की जाती है तो इसे तथ्यों का संकलन कहा जाता है।

प्रश्न 61.
सर्वेक्षण कार्य को शीघ्रता से निपटाने के लिए आप क्या करेंगे?
उत्तर:
सर्वेक्षण कार्य को शीघ्रता से निपटाने के लिए या तो सैंपल को छोटा रखेंगे या फिर अधिक संख्या में लोगों को सूचना एकत्र करने के लिए लगाएंगे।

प्रश्न 62.
सर्वेक्षण क्षेत्र में जाकर किया जाता है। सत्य या असत्य।
उत्तर:
सर्वेक्षण क्षेत्र में जाकर किया जाता है-सत्य।

प्रश्न 63.
साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति को ………………… कहते हैं।
उत्तर:
साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति को साक्षात्कारकर्ता कहते हैं

प्रश्न 64.
परियोजना कार्य एक सैद्धांतिक कार्य है। सत्य या असत्य।
उत्तर:
परियोजना कार्य एक सैद्धांतिक काय है-सत्य।

प्रश्न 65.
वह व्यक्ति जो साक्षात्कार देता है, उसे ………………….. कहा जाता है।
उत्तर:
वह व्यक्ति जो साक्षात्कार देता है, उसे साक्षी कहते हैं।

प्रश्न 66.
साक्षात्कार पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इस पद्धति से प्रभावशाली डाटा एकत्र हो जाता है।

प्रश्न 67.
प्रेक्षण पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इससे अनुसंधानकर्ता स्वयं अपनी आँखों से घटना को देखकर आँकड़े एकत्रित करता है जिसमें गलती को गुंजाइश नहीं रहती।

प्रश्न 68.
साक्षात्कार विधि की एक कमज़ोरी बताइए।
उत्तर:
इसमें हमें सूचनादाता के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है जोकि झूठ भी बोल सकता है।

प्रश्न 69.
शोध विषय पर कार्य करने के लिए एक निर्धारित प्रश्न चुन लेने के बाद अगला कदम उपयुक्त पद्धति का चयन करना है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

प्रश्न 70.
साक्षात्कार और सर्वेक्षण में एक भिन्नता लिखिए।
उत्तर:
साक्षात्कार एक व्यक्ति या कुछेक व्यक्तियों का होता है जबकि सर्वेक्षण में बहुत से लोगों की राय के बारे में पूछा जाता है।

प्रश्न 71.
सर्वेक्षण प्रणाली में हम काफ़ी बड़ी संख्या में लोगों के विचार जान सकते हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

प्रश्न 72.
किस पद्धति में एक साथ ज्यादा लोगों को शामिल नहीं किया जा सकता?
उत्तर:
साक्षात्कार पद्धति में।

प्रश्न 73.
वह कौन-सी शोध पद्धति है, जिसके तहत हम किसी छात्र से सीधे प्रश्न पूछ सकते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार पद्धति।

प्रश्न 74.
वह कौन-सी प्रणाली है जिसमें 1000, 2000 या इससे भी अधिक संख्या में लोगों से प्रश्न पूछे जाते?
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि।

प्रश्न 75.
परियोजना कार्य का एक गुण बताइए।
उत्तर:
इस विधि द्वारा निकाले गए परिणाम वास्तविक होते हैं।

प्रश्न 76.
वार्तालाप के द्वारा सूचनाएँ एकत्र करना क्या कहलाता है?
उत्तर:
साक्षात्कार।

प्रश्न 77.
बड़े पैमाने पर अध्ययन करने के लिए कौन-सी पदधति का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रोजेक्ट कार्य विधि या परियोजना कार्य विधि के चार उद्देश्य बताओ।
उत्तर:

  1. विद्यार्थियों को उनके विकास करने में अवसर प्रदान करना।
  2. विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान (Practical Knowledge) देना।
  3. विद्यार्थियों को समाज की समस्याओं तथा लोगों की मानसिकता के बारे में ज्ञान देना।
  4. विद्यार्थियों का समाज तथा उसके सदस्यों से संपर्क स्थापित करवाना।

प्रश्न 2.
परियोजना कार्य विधि के कितने तथा कौन-से चरण हैं?
उत्तर:

  1. परियोजना कार्य का आयोजन।
  2. तथ्यों अथवा सामग्री का संकलन।
  3. तथ्यों का विश्लेषण तथा निर्वाचन।
  4. तथ्यों का प्रदर्शन।

प्रश्न 3.
परियोजना कार्य विधि की रिपोर्ट तैयार करते समय कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:

  1. रिपोर्ट लिखने वाली भाषा सरल होनी चाहिए ताकि सभी को समझ आ सके।
  2. तथ्यों को तार्किक ढंग से पेश करना तथा विचारों की सरलता होनी चाहिए।
  3. तकनीकी शब्दों की स्पष्ट तथा सरल परिभाषा दी जानी चाहिए।
  4. तथ्यों को दोबारा नहीं लिखना चाहिए।
  5. आवश्यक शीर्षक, उपशीर्षक तथा आवश्यकता के अनुसार पाद टिप्पणियां भी देनी चाहिए।

प्रश्न 4.
परियोजना कार्य विधि के चार गुण बताओ।
अथवा
परियोजना कार्य के कोई दो गुण बताइए।
उत्तर:

  1. इससे विद्यार्थियों को आत्म विकास करने का अवसर प्राप्त होता है।
  2. सभी कार्यकर्ताओं या विद्यार्थियों को विकास के समान अवसर प्राप्त होते हैं।
  3. इससे कार्यकर्ताओं में सामाजिक भावना का विकास होता है।
  4. इससे कार्यकर्ताओं के सामाजिक संपर्क बढ़ते हैं।
  5. इस विधि द्वारा निकाले परिणाम वास्तविक होते हैं।

प्रश्न 5.
परियोजना कार्य के दोष बताओ।
अथवा
परियोजना कार्य के दो प्रमुख दोष बताइए।
उत्तर:

  1. इसमें ज्यादा धन की खपत होती है अर्थात् यह एक खर्चीली विधि है।
  2. हमें उचित परियोजना कार्य को ढूंढ़ने में कठिनाई होती है।
  3. इससे क्रमबद्ध अध्ययन नहीं हो सकता।
  4. इस विधि में समय बहुत ज्यादा लगता है।
  5. यह विधि स्कूलों की स्थिति के अनुसार नहीं होती।

प्रश्न 6.
निरीक्षण विधि क्या होती है?
उत्तर:
अनुसंधान के लिए वैसे तो कई विधियां प्रचलित हैं जैसे कि प्रश्नावली, साक्षात्कार इत्यादि परंतु निरीक्षण विधि सबसे प्रचलित विधि है। जब अनुसंधानकर्ता किसी सामाजिक घटना या समूह का स्वयं अपनी आँखों में अवलोकन करता है तथा संबंधित आंकड़े इकट्ठे करता है तो उस विधि को निरीक्षण विधि का नाम दिया जाता है। इसका अर्थ है कि अपनी आँखों से किए गए अवलोकन को निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 7.
निरीक्षण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
निरीक्षण दो प्रकार का होता है-

  1. सहभागी निरीक्षण
  2. असहभागी निरीक्षण
  3. अर्धसहभागी निरीक्षण।
  4. अनियंत्रित निरीक्षण
  5. नियंत्रित निरीक्षण।

प्रश्न 8.
सहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता समूह में एक अजनबी की तरह न रहकर उसका एक अंग बनकर रहता है। यह ज़रूरी नहीं है कि वह समूह की सभी क्रियाओं में भाग ले, परंतु वह समूह में एक निरीक्षणकर्ता की हैसियत से नहीं रहता है। इस तरह वह समूह का सदस्य बन कर रहता है तथा समूह की संपूर्ण नहीं तो ज्यादातर क्रियाओं में भाग लेकर उनका निरीक्षण करता है तथा संबंधित आंकड़े इकट्ठे करता है। इससे ज्यादा सच्चे आंकड़े इकट्ठे करने में मदद मिलती है।

प्रश्न 9.
सहभागी निरीक्षण के गुण बताओ।
उत्तर:

  1. इस प्रकार के निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले वर्ग के काफ़ी समीप आ जाता है। इस तरह उसे ज्यादा सूक्ष्म अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है।
  2. सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता को समूह में अलग-अलग व्यवहारों, आपसी संबंधों तथा रिवाजों को अच्छी तरह समझने की शक्ति प्राप्त होती है।
  3. जब लोगों को पता चलता है कि उनका निरीक्षण किया जा रहा है तो उनके व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है जिससे सही सूचना प्राप्त नहीं होती है। समूह का सदस्य बन जाने से बनावटीपन खत्म हो जाता है तथा सच्ची सूचना प्राप्त होती है।

प्रश्न 10.
सहभागी निरीक्षण के दोष बताओ।
उत्तर:

  1. जब निरीक्षक का भावात्मक एकीकरण हो जाता है तो निरीक्षण की स्थूलता खत्म हो जाती है। वह अपने आपको समूह का सदस्य समझने लग जाता है जिससे उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण खत्म हो जाता है।
  2. कई बार क्रियाओं के साथ नज़दीकी भी बाधक सिद्ध होती है। जब अनेक क्रियाओं से नज़दीकी परिचय हो जाता है तो हम उनमें से बहत को आम मानकर बिना निरीक्षण किए ही छोड़ देते हैं।
  3. कई बार लोग अपरिचित व्यक्ति के सामने या तो ज्यादा खुलकर व्यवहार करते हैं या फिर बिल्कुल ही नहीं करते हैं। इससे भी निरीक्षण में कठिनाई आ जाती है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 11.
असहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक की भांति तटस्थ भाव से निरीक्षण करता है तो उसे असहभागी निरीक्षण कहते हैं। इस तरह के अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता की स्थिति पूर्णतया निरीक्षक की होती है। वह समूह की क्रियाओं से अलग रह कर उनका निरीक्षण करता है। वह चाहे स्थान तथा व्यक्ति रूप से समूह में रहता है परंतु सामाजिक दृष्टि से उस समूह का अंग नहीं बन जाता तथा उससे अलग भी रहता है। वह स्वयं उनसे खेलने नहीं लग जाता बल्कि दूर रहकर निरीक्षण करता है तथा आंकड़े इकट्ठे करता है।

प्रश्न 12.
अर्धसहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
सामाजिक समूह के निरीक्षण में असहभागी निरीक्षण संभव नहीं है। ऐसी स्थिति की कल्पना काफ़ी कठिन होती है जब अनुसंधानकर्ता हर समय मौजूद रहता है परंतु समूह की क्रियाओं में भाग न लेता हो। साथ ही पूर्ण सहभागी निरीक्षण भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित नहीं होता। इसलिए विद्वानों ने एक बीच की स्थिति की कल्पना की है जिसमें अनुसंधानकर्ता कुछ साधारण कार्यों में ही भाग लेता है परंतु ज्यादातर वह तटस्थ भाव से समूह का अध्ययन करता है। इस तरह वह समूह का सदस्य भी बन जाता है तथा एक वैज्ञानिक भी रहता है। यदि उचित रीति पालन किया जाए तो इस प्रणाली में सहभागी तथा असहभागी दोनों ही प्रणालियों के लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

प्रश्न 13.
अनियंत्रित निरीक्षण क्या हो सकता है?
उत्तर:
जब हम किसी घटना को उसके स्वाभाविक रूप में और स्वाभाविक स्थान पर निरीक्षण करते हैं तो उसे अनियंत्रित निरीक्षण कहते हैं। इस प्रकार के निरीक्षण में घटना या निरीक्षणकर्ता पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं रहता। यह निरीक्षण प्रणाली का शुरुआती रूप है। विज्ञान के आरंभिक काल में वैज्ञानिकों ने स्वाभाविक रूप से घटनाओं का निरीक्षण करके ही नतीजे निकाले। इस तरह जब घटना को स्वाभाविक स्थल पर निरीक्षण किया जाए तो अनियंत्रित निरीक्षण कहा जाता है।

प्रश्न 14.
नियंत्रित निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
समाज विज्ञान में प्रगति के साथ अब इसकी विधियों में भी सुधार हो गया है। अब निरीक्षण नियंत्रित भी हो सकता है। नियंत्रण दो प्रकार का होता है-घटना पर नियंत्रण तथा निरीक्षण कार्य पर नियंत्रण। जब घटना कृत्रिम रूप से घटित की जाती है तथा उसका अध्ययन किया जाता है तो उसे घटना पर नियंत्रण कहते हैं। कई बार घटना कृत्रिम रूप से घटित नहीं हो सकती तो निरीक्षणकर्ता अपने आप पर नियंत्रण रखकर निरीक्षण कर सकता है ताकि निरीक्षण सही तरीके से हो सके। इसके लिए निरीक्षण की योजना बनाकर, यंत्रों का प्रयोग करके गलतियों को दूर किया जाता है।

प्रश्न 15.
अंतिम तथा आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
कुछ सर्वेक्षणों में बार-बार सूचना इकट्ठी नहीं करनी पड़ती। एक बार इकट्ठी की गई सूचना के आधार पर निष्कर्ष निकाल दिए जाते हैं तथा सर्वेक्षण खत्म हो जाते हैं। उसे अंतिम सर्वेक्षण कहते हैं। आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण में सूचना बार-बार एकत्र की जाती है तथा उस बार-बार एकत्र की की गई सूचना के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। यह प्रायोगिक विधि में प्रयोग होते हैं।

प्रश्न 16.
सर्वेक्षण की प्रक्रिया के कितने भाग होते हैं?
उत्तर:
इसके 8 भाग होते हैं जो इस प्रकार हैं-

  • सर्वेक्षण का उद्देश्य
  • सूचना प्राप्त करने के स्रोत का निर्धारण करना
  • सर्वेक्षण के प्रकार, इकाइयों इत्यादि का निर्धारण करना
  • प्रश्नावली तथा अनुसूची का निर्माण करना
  • इकट्ठी की गई सामग्री का संपादन करना
  • इकट्ठी की गई सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण करना
  • सूचना का विश्लेषण करना
  • सूचना का निर्वाचन करना तथा अंतिम रिपोर्ट तैयार करना।

प्रश्न 17.
सर्वेक्षण विधि क्या होती है?
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि को सामाजिक अनुसंधानों में एक विशेष विधि के तौर पर प्रयोग किया जाता है। सर्वेक्षण से अर्थ ऐसी अनुसंधान प्रणाली से है जिसमें अनुसंधानकर्ता घटना के घटनास्थल पर जाकर किसी विशेष घटना का वैज्ञानिक तरीके से निरीक्षण करता है तथा उस घटना के संबंध में खोज करता है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता घटना के प्रत्यक्ष संपर्क में आता है तथा उसके निष्कर्षों में ज्यादा वैषयिकता रहती है।

प्रश्न 18.
सर्वेक्षण विधि की दो परिभाषाएं दें।
उत्तर:
मोज़र (Moser) के अनुसार, “समाजशास्त्री के लिए सर्वेक्षण क्षेत्र का अनुसंधान करने, अध्ययन के विषय से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संबंधित आंकड़े एकत्र करने का ऐसा अति उपयोगी साधन है जिससे समस्या पर प्रकाश पड़ सके।” मोर्स (Morse) के अनुसार, “संक्षेप में सर्वेक्षण किसी प्रस्तुत सामाजिक परिस्थिति, समस्या अथवा जनसंख्या के विशिष्ट उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा क्रमबद्ध रूप में की गई विवेचना की विधि मात्र है।”

प्रश्न 19.
सर्वेक्षण विधि के कौन-से उद्देश्य होते हैं?
उत्तर:

  • सर्वेक्षण विधि में व्यक्ति घटना के संपर्क में प्रत्यक्ष रूप से आता है जिससे उसे व्यावहारिक सूचना प्राप्त हो जाती है।
  • इस विधि के प्रयोग से समाज में बने पहले सिद्धांतों की परीक्षा भी हो जाती है।
  • इस विधि से पहले से बनाई हुई उपकल्पना की परीक्षा भी हो जाती है।
  • इस विधि की मद से सामाजिक घटना का वर्णन आसानी से हो जाता है क्योंकि अनुसंधानकर्ता घटना में प्रत्यक्ष संपर्क में आता है तथा घटना के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करता है।

प्रश्न 20.
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षणों के कितने विभाग दिए हैं?
उत्तर:
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षणों के चार विभाग दिए हैं-

  • जनसंख्यात्मक विशेषताएं
  • सामाजिक पर्यावरण
  • सामाजिक क्रियाएं
  • विचार तथा प्रवृत्तियां।

प्रश्न 21.
सर्वेक्षण प्रणाली के गुण बताओ।
उत्तर:

  • सर्वेक्षण विधि में अनुसंधानकर्ता घटना के सीधे संपर्क में आ जाता है तथा उसे उस घटना से संबंधित सभी चीजों, व्यक्तियों का ज्ञान हो जाता है।
  • इस विधि में कोई व्यक्तिगत ग़लती आने की संभावना नहीं होती क्योंकि जो कुछ भी वह प्रत्यक्ष रूप से देखता है उसको ही नोट करता है तथा अपनी तरफ से कुछ नहीं जोड़ता है।
  • सर्वेक्षण विधि वैज्ञानिक विधि के बहुत ज्यादा नज़दीक है क्योंकि इसमें उसे घटना को उसके स्वाभाविक स्थल पर जाकर निरीक्षण करना पड़ता है।

प्रश्न 22.
सर्वेक्षण विधि की सीमाएं बताओ।
उत्तर:

  • इसके लिए घटना का आंखों के सामने घटित होना आवश्यक है, परंतु आमतौर पर सामाजिक घटनाएं इस प्रकार का मौका नहीं देती हैं।
  • इसके द्वारा संपूर्ण समाज का निरीक्षण संभव नहीं है। हम समाज के सिर्फ एक भाग का ही अवलोकन कर सकते हैं।
  • सर्वेक्षण आमतौर पर असंबंधित तथा बिखरे हुए होते हैं। उनसे उस समय तक किसी सिद्धांत का निर्माण नहीं हो सकता जब तक उन्हें किसी निश्चित योजना के अनुसार न किया गया हो।

प्रश्न 23.
सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में तीन अंतर बताओ।
उत्तर:

  • सामाजिक सर्वेक्षण विशेष व्यक्तियों, समस्याओं तथा हालातों से संबंधित होते हैं, अनुसंधान सामान्य तथा अमूर्त समस्याओं से संबंधित होते हैं।
  • सामाजिक सर्वेक्षणों का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में सुधार करके उसे उन्नति के मार्ग पर चलाना होता है परंतु सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य मनुष्य के ज्ञान में बढ़ोत्तरी करना तथा अनुसंधान के तरीकों में सुधार करना होता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षणों के निष्कर्षों से सामाजिक सुधार करने के तरीके पता किए जा सकते हैं, परंतु सामाजिक अनुसंधान से पुराने सिद्धांतों को सुधारा जाता है या नए सिद्धांतों का निर्माण होता है।

प्रश्न 24.
साक्षात्कार विधि क्या होती है?
उत्तर:
साक्षात्कार का अर्थ उन व्यक्तियों से है जो प्रभावपूर्ण तथा औपचारिक वार्तालाप एवं विचार-विमर्श करने से होता है जो किसी विशेष घटना से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होता है। यह वार्तालाप तथा विचार-विमर्श किसी विशेष उद्देश्य के लिए होता है। परंतु वह पूर्व नियोजित होता है तथा किसी निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित होता है। विचार विमर्श एक अच्छे वातावरण में होता है। जिसमें साक्षी अपने दिल की बात खुलकर करता है।

प्रश्न 25.
साक्षात्कार के दो उद्देश्य बताएं।
उत्तर:

  • साक्षात्कार का पहला उद्देश्य संबंधित व्यक्ति से सूचना प्राप्त करना होता है जो किसी और साधन से प्राप्त न की जा सके। इसके लिए साक्षात्कारकर्ता एक विषय चुन लेता है तथा साक्षी उसके बारे में वर्णन करता है।
  • साक्षात्कार का दूसरा उद्देश्य इस बात का पता करना है कि कोई विशेष व्यक्ति किसी विशेष परिस्थिति में किस प्रकार का व्यवहार करता है। इसके लिए साक्षात्कार के समय साक्षी के हाव-भाव हार का भी ध्यान रखता है।

प्रश्न 26.
साक्षात्कार के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार के चार प्रकार होते हैं-

  • नियंत्रित साक्षात्कार
  • अनियंत्रित साक्षात्कार
  • केंद्रित साक्षात्कार
  • आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार।

प्रश्न 27.
नियंत्रित साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार में अनुसूची का प्रयोग किया जाता है। इसमें शुरू से लेकर अंत तक सभी क्रियाएं निश्चित होती हैं तथा साक्षात्कारकर्ता पूर्व नियोजित क्रम के अनुसार चलता है। अनुसूची में प्रश्न दिए होते हैं तथा साक्षात्कारकर्ता उनको पूछता है तथा जानकारी प्राप्त करता है। वह उत्तरों को नोट कर लेता है। इस प्रकार का साक्षात्कार आम तौर पर प्रश्न उत्तर के रूप में होता है। इसे निर्देशित या नियोजित साक्षात्कार भी कहा जाता है।

प्रश्न 28.
अनियंत्रित साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार में निश्चित प्रश्न नहीं होते बल्कि साक्षी को एक विषय दे दिया जाता है तथा उसे विषय के बारे में बोलने को कहा जाता है। साक्षी उस विषय के बारे में सभी घटनाओं प्रतिक्रियाओं को एक कहानी के रूप में वर्णन करता है। यह नियंत्रित नहीं होता बल्कि साक्षी खुल कर अपने दिल की बात करता है। यह एक स्वतंत्र वार्तालाप के रूप में होता है। साक्षात्कार अंत में उस घटना के बारे में कोई प्रश्न पूछ सकता है। इसको मुक्त स्वतंत्र या कहानी टाइप साक्षात्कार कहते हैं।

प्रश्न 29.
केंद्रित टाइप साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार को किसी फिल्म या रेडियो के प्रोग्राम के प्रभाव को जानने के लिए किया जाता है। इससे यह ज़रूरी है कि साक्षी अनुसंधान के विषय की निश्चित परिस्थिति से संबंध रख चुका हो। साक्षी उस घटना से संबंधित भावनाओं, विचारों इत्यादि आदि का वर्णन करता है। यह भी एक स्वतंत्र वर्णन के रूप में होता है तथा साक्षी घटना का वर्णन करने के लिए स्वतंत्र होता है। यह एक स्वतंत्र साक्षात्कार के समान होता है।

प्रश्न 30.
आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार को उस समय प्रयोग किया जाता है जब किसी सामाजिक अथवा मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा पड़ने वाले क्रमिक प्रभाव का अध्ययन करना होता है। इसके लिए सिर्फ एक बार ही साक्षात्कार करने से काम नहीं चलता बल्कि बार-बार साक्षात्कार लिया जाता है ताकि समय बीतने के साथ उस प्रक्रिया के पड़ने वाले प्रभाव को जाना जा सके। प्रभाव ज्यादा समय में पड़ता है इसलिए साक्षात्कार कुछ समय बाद फिर साक्षात्कार लिया जाता है। जैसे किसी गांव में सड़क बनाने के गांव पर क्या प्रभाव पड़े। इस तरह बार-बार साक्षात्कार लेने को आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार कहते हैं।

प्रश्न 31.
साक्षात्कार प्रदर्शिका क्या होती है?
उत्तर:
साक्षात्कार प्रदर्शिका एक लिखित प्रलेख होता है जिसमें साक्षात्कार की योजना का संक्षिप्त वर्णन होता है। इसमें साक्षात्कार की विधि, संबंधित विषय तथा विशेष परिस्थितियों के लिए ज़रूरी निर्देश दिए होते हैं। इसमें विभिन्न इकाइयों की परिभाषाएं तथा अर्थ भी दिए होते हैं ताकि इकाइयों को समझने में विभिन्नता न आए। इस तरह साक्षात्कार प्रदर्शिका में साक्षात्कार से संबंधित दिशा निर्देश तथा विषय से संबंधित ज्ञान होता है ताकि साक्षात्कार करते समय साक्षात्कारकर्ता कहीं भटक न जाए।

प्रश्न 32.
साक्षात्कार प्रदर्शिका का क्या महत्त्व है?
अथवा
साक्षात्कार का मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. साक्षात्कार प्रदर्शिका के होने से संबंधित समस्या के किसी पहलू के छूट जाने की संभावना नहीं होती जोकि वर्णन विधि में हो सकती है।
  2. इसकी मदद से साक्षात्कारकर्ता को अपने दिमाग पर जोर नहीं देना पड़ता क्योंकि सारा कुछ ही लिखा हुआ होता है। इसके न होने से कोई महत्त्वपूर्ण पहलू छूट भी सकता है।
  3. इसकी मदद से अलग-अलग लोगों द्वारा साक्षात्कार करने में एकरूपता रहती है तथा प्राप्त सूचना की तुलना की जा सकती है।

प्रश्न 33.
साक्षात्कार विधि के तीन गुण बताएं।
उत्तर:

  1. यह विधि उन घटनाओं का अध्ययन करने में भी सक्षम है जो प्रत्यक्ष अवलोकन के अयोग्य हैं तथा जिनके बारे में साक्षी के अलावा किसी और को पता नहीं है।
  2. यह विधि अमूर्त स्थितियों जैसे विचार, भावनाओं और प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए बहुत बढ़िया है क्योंकि सभी तथ्यों का प्रत्यक्ष अवलोकन नहीं हो सकता।
  3. इस विधि की मदद से भूतकाल में हुई घटनाओं तथा उनके प्रभावों का अध्ययन भी हो सकता है क्योंकि बहुत-सी घटनाएं ऐसी होती हैं जो दोबारा नहीं हो सकतीं।
  4. यह अनुसंधान की सबसे लचीली विधि है क्योंकि इसमें साक्षात्कारकर्ता अपनी मर्जी से विधि में हेर-फेर कर सकता है जिसका कोई नुकसान भी नहीं होता है।

प्रश्न 34.
साक्षात्कार विधि की तीन सीमाएं बताएं।
उत्तर:

  1. सबसे पहली सीमा इस विधि में यह होती है कि साक्षी को साक्षात्कार के लिए राजी करना बहुत मुश्किल होता है। अगर वह राज़ी न हुआ तो अनुसंधान ही नहीं हो पाएगा।
  2. इसमें साक्षात्कारकर्ता का चतुर होना बहुत ज़रूरी है ताकि अपने मतलब की जानकारी निकाली जा सके। अगर वह चतुर न हुआ तो वह साक्षी द्वारा बोले गए झूठ को पकड़ नहीं पाएगा तथा अनुसंधान में ग़लती पैदा हो जाएगी।
  3. यह विधि भावनाओं से काफी ज्यादा प्रभावित होती है क्योंकि इसमें बताया गया वर्णन प्रमाणित नहीं हो सकता तथा लोग अपनी मर्जी से घटना का वर्णन करते हैं। यह एक तरफा भी हो सकता है।
  4. इस प्रकार के वर्णन से वर्गीकरण तथा समीकरण में भी कठिनाई आती है।

प्रश्न 35.
सामाजिक मानवशास्त्री कहां से फील्ड फर्क की शुरुआत करते हैं?
अथवा
सहभागी प्रेक्षण के दौरान समाजशास्त्री और नृजातिविज्ञानी क्या कार्य करते हैं?
उत्तर:
मानवशास्त्री अथवा अध्ययनकर्ता फील्ड फर्क की शुरुआत करते हैं। उस समुदाय की जनसंख्या के बारे में जानने से जिसका कि वह अध्ययन करने जा रहे हैं। वह उस समुदाय में रहने वाले लोगों की एक लंबी चौड़ी लिस्ट बनाते हैं, उनके लिंग, उम्र, परिवार इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। फिर उनके घरों के बारे में भी जानकारी प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 36.
Geneology क्या होती है?
उत्तर:
Geneology एक विस्तृत परिवार के वृक्ष का चित्र होता है जिस में पीढ़ी-दर-पीढ़ी पारिवारिक रिश्तों की जानकारी होती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि Geneology किसी विस्तृत परिवार का वृक्ष समान चित्र होता है जिससे हमें उस परिवार के रक्त संबंधों की जानकारी प्राप्त होती है। इसमें ∆ से मर्द को तथा O से स्त्री को दर्शाता जाता है। उदाहरण के तौर पर
HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव 1

प्रश्न 37.
Geneology का मानवशास्त्री के लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर:
Geneology का मानवशास्त्री के लिए बहुत महत्त्व है। इसके चित्र से अध्ययनकर्ता को परिवार के बारे में, उसकी जनसंख्या के बारे में, परिवार में पाए जाने वाले रिश्तों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। अगर उसमें परिवार के सदस्यों की तस्वीरें हों तो उन सबके बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त हो जाती है तथा उस परिवार के बारे में जानकारी प्राप्त करने में आसानी होती है।

प्रश्न 38.
जानकारी देने वाला या Informant या Principal Informant या Native Informant कौन होता है?
उत्तर:
Informant वह व्यक्ति होता है जो अध्ययनकर्ता को उस क्षेत्र, समुदाय के बारे में हरेक प्रकार की जानकारी देता है जिसका कि अध्ययन करना है। Informent मानव शास्त्री के अध्यापक के रूप में कार्य करता है तथा पूरे फील्डवर्क में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उसे native informant भी कहते हैं तथा उसे समुद’ के बारे में प्रत्येक प्रकार की जानकारी होती है।

प्रश्न 39.
समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र में फील्डवर्क में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. समाजशास्त्र में अध्ययनकर्ता को अपना समूह छोड़कर नहीं जाना पड़ता बल्कि वह समूह में रहकर ही फील्डवर्क करता है परंतु मानवशास्त्री अपने समुदाय से दूर किसी दुर्गम क्षेत्र में जाकर फील्डवर्क करता है।
  2. समाजशास्त्री हरेक प्रकार के समुदाय में जाकर फील्डवर्क करता है परंतु मानवशास्त्री सिर्फ प्राचीन संस्कृतियों वाले समूहों में जाकर फील्डवर्क करता है।
  3. समाजशास्त्री को उन समुदायों में जाकर रहने की ज़रूरत नहीं होती बल्कि अध्ययन होने वाले समूहों के साथ अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की ज़रूरत होती है परंतु मानवशास्त्री को उन समुदायों में जाकर रहना पड़ता है।

प्रश्न 40.
समाजशास्त्र में फील्डवर्क में क्या मुश्किलें आती हैं?
उत्तर:

  1. समाजशास्त्री को अपने समुदाय में रह कर ही फील्डवर्क करना पड़ता है तथा उसके समुदाय के व्यक्ति पढ़े-लिखे होते हैं। उनमें से कुछ व्यक्ति उसके अनुसंधान कार्य ही रिपोर्ट पढ़ सकते हैं जिससे फील्डवर्क में बाधा आ सकती है।
  2. जब लोगों को पता चलेगा कि उनके बीच रह कर ही कोई उ का ही निरीक्षण कर रहा है तो उनके व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है जिससे फील्डवर्क में मुस्किलें आ सकती हैं।
  3. जब व्यक्ति अपने ही समुदाय का निरीक्षण करता है तो लोगों को उसके कार्य के बारे में पता होता है। इस पता होने के कारण निरीक्षण में अभिनति आ सकती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परियोजना कार्य विधि अथवा प्रोजैक्ट कार्य से क्या अभिप्राय है? परिभाषाओं सहित स्पष्ट करो।
अथवा
परियोजना कार्य की कोई एक परिभाषा दीजिए।
अथवा
परियोजना कार्य का संक्षिप्त वर्णन करें।
अथवा
परियोजना कार्य क्या है?
अथवा
परियोजना कार्य की सविस्तार सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
परियोजना कार्य पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
समाज शास्त्र में होने वाले अनुसंधानों में तथ्यों को इकट्ठा करने के लिए बहुत सारी विधियों का प्रयोग किया जाता है तथा उन तथ्यों के आधार पर कई निष्कर्ष निकाले जाते हैं। समाज शास्त्र की नज़र से इसलिए परियोजना कार्य की धारणा बहुत महत्त्वपूर्ण तथा विस्तृत है। इस परियोजना कार्य के अंतर्गत किसी भी सामाजिक समस्या की प्रकृति को जानने के लिए अध्ययनकर्ता स्वयं ही संबंधित क्षेत्र में जाता है तथा वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करके तथ्यों को एकत्र करता है।

तथ्यों को इकट्ठा करने के बाद तथ्यों का एक निश्चित क्रम में निरीक्षण, वर्गीकरण तथा परीक्षण किया जाता है ताकि निष्कर्ष निकाले जा सकें। इसके लिए सामाजिक सर्वेक्षण विधि के अनुसार कार्य किया जाता है जोकि सामाजिक विज्ञानों में अध्ययन करने की एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है। इस विधि में वैज्ञानिकता के आधार पर सामाजिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। परियोजना कार्य में हमें उपयोगी तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है। इसका आखिरी उद्देश्य भी उपयोगितावादी होता है।

किलपैट्रिक (W.H. Kilpatric) को इस विधि का जन्मदाता माना जाता है। परियोजना को योजना अथवा प्रोजैक्ट भी कहा जाता है जो कि वास्तविक सामाजिक परिवेश में नया ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त करने का एक ढंग है। इसका मुख्य लक्ष्य व्यावहारिक स्तर पर ज्ञान प्राप्त करना है। परियोजना कार्य, दो शब्दों ‘परियोजना’ तथा ‘कार्य’ से मिलकर बना है। ‘परियोजना’ का अर्थ है ‘योजना’ तथा कार्य का अर्थ है कार्य प्रणाली अथवा विधि है। इस तरह परियोजना कार्य का शाब्दिक अर्थ है योजना की कार्य प्रणाली। किलपैट्रिक (Kilpatric) के अनुसार, “परियोजना वह सहृदय उद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है।”

प्रो० स्टीवेन्सन (Prof. Stevanson) के अनुसार, “परियोजना एक समस्यामूलक कार्य है, जो अपनी स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्णता प्राप्त करना है।” बेलार्ड (Ballard) के अनुसार, “परियोजना वास्तविक जीवन का एक भाग है जिसका प्रयोग विद्यालय में किया जाता है।”

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि परियोजना कार्य ज्ञान प्राप्त करने का एक ढंग है जिससे व्यक्ति को व्यावहारिक ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त होता है। इसमें अध्ययनकर्ता किसी सामाजिक समस्या को लेता है तथा उसका सर्वेक्षण करता है। इस सर्वेक्षण के बीच तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है तथा उन तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इसमें अंत में कार्यकर्ताओं द्वारा अध्ययनकर्ता के निर्देशन के अंदर रिपोर्ट तैयार की जाती है। इसम् विद्यार्थी अथवा अध्ययनकर्ता स्वयं ही क्षेत्र में जाकर तथ्य इकट्ठे करता है जिससे उसे सामाजिक परिवेश का ज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है और समस्या के बारे में उसे संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 2.
परियोजना कार्य के कितने स्तर हैं? उनका विस्तार से वर्णन करो।
अथवा
परियोजना कार्य का आयोजन कैसे किया जाता है? व्याख्या करें।
अथवा
परियोजना कार्य का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे पहला कार्य होता है उस कार्य से संबंधित योज ।। नाना क्योंकि अगर हम बिना किसी योजना के कार्य करना शुरू कर देंगे तो हमें बहुत ज्यादा परिश्रम व्यर्थ ही करना पड़ेगा तथा समय भी ज्यादा लगेगा। योजना बनाने से समय, धन तथा परिश्रम की बचत होती है तथा कार्य भी जल्दी हो जाता है। परियोजना कार्य की संपूर्ण प्रक्रिया चार चरणों से होकर गुज़रती है जोकि निम्नलिखित हैं:

  • परियोजना कार्य का आयोजन (Planning of Project Work)
  • तथ्यों का संकलन (Collection of data or facts)
  • तथ्यों का विश्लेषण व निर्वाचन (Analysis and interpretation of facts)
  • तथ्यों का प्रदर्शन (Presentation of data)।

अब हम इनका वर्णन विस्तार से करेंगे :
1. परियोजना कार्य का आयोजन (Planning of Project Work)-परियोजना कार्य के आयोजन के कई स्तर होते हैं तथा उन स्तरों का वर्णन इस प्रकार है :
(i) समस्या का चुनाव (Selection the Problem)-किसी भी परियोजना को शुरू करने का सबसे पहला कार्य होता है समस्या का चुनाव करना। किस समस्या का अध्ययन करना है तथा किस समस्या के बारे में तथ्य इकट्ठे करने हैं। समस्या का चुनाव करने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  • ऐसी समस्या का चुनाव करना चाहिए जिसमें अध्ययनकर्ता की रुचि हो ताकि वह ज्यादा परिश्रम से काम कर सके।
  • अध्ययनकर्ता को उस समस्या तथा उससे संबंधित अन्य पक्षों का पहले से ही ज्ञान होना चाहिए ताकि परियोजना कार्य अच्छी तरह हो सके।
  • समस्या को चुनते समय उद्देश्य को भी ध्यान में रखना चाहिए।
  • विषय का चुनाव साधनों की सीमा के अंदर ही होना चाहिए।

(ii) लक्ष्य का निर्धारण (Determination of Objective)-आयोजन के दूसरे स्तर पर आता है लक्ष्य निर्धारण। जब लक्ष्य निर्धारित हो जाता है तो उसमें प्रयोग होने वाली पद्धतियों तकनीकों के बारे में सोचा जा सकता है। उद्देश्य या लक्ष्य को निर्धारित करने से Design of Survey आसानी से बनाया जा सकता है।

(iii) सर्वेक्षण का संगठन (Organization)-समस्या तथा लक्ष्य को निर्धारित करने के बाद उस कार्य के लिए उचित संगठन बनाए जाने की आवश्यकता होती है। संगठन के लिए एक सर्वेक्षण समिति को बनाया जाता है जिसमें सर्वेक्षण के निर्देशक, प्रमुख सर्वेक्षक इत्यादि होते हैं। इस संगठन बनाने से उद्देश्य प्राप्त करने में आसानी होती है तथा एकरूपता आती है।

(iv) अध्ययन क्षेत्र को परिसीमित करना (Delimitation of the field of study)-अगर अध्ययनकर्ता अपने अध्ययन में वस्तुनिष्ठता (Objectivity) लाना चाहता है तो उसके लिए यह ज़रूरी है कि वह सभी तथ्यों को एकत्रित न करे बल्कि सिर्फ उन्हीं तथ्यों को एकत्रित करे जो उसके अध्ययन के लिए जरूरी हैं। यह जरूरी नहीं कि सभी तथ्य उसके अध्ययन से संबंधित हों। इसलिए उसको अपने अध्ययन क्षेत्र को परिसीमित करना चाहिए।

(v) प्रारंभिक तैयारियां (Preliminary Preparations)-अध्ययनकर्ता ने अध्ययन करने के लिए सर्वेक्षण के संबंध में कुछ प्रारंभिक तैयारियां भी रखी होती हैं जैसे सर्वेक्षण से संबंधित विषयों का ज्ञान प्राप्त करना, विशेषज्ञों से मिलना, अध्ययन में आने वाली मुश्किलों के बारे में सोचना, लोगों से अनौपचारिक बातचीत करना।

(vi) सैंपल का चुनाव (Selection of Sample)-अगर अध्ययन करने वाली इकाइयों के सैंपल का चुनाव सही या गलत है तो यह भी अध्ययन को प्रभावित कर सकता है। सैंपल का सही चुनाव अध्ययनकर्ता की बुद्धिमता पर निर्भर करता है। सर्वेक्षण की सफलता असफलता सैंपल के चुनाव पर निर्भर करती है क्योंकि सैंपल का चुनाव करने से सर्वेक्षण का क्षेत्र सीमित हो जाता है, धन, समय तथा परिश्रम की बचत होती है। अध्ययनकर्ता अपने समय को और चीजों पर केंद्रित कर सकता है।

(vii) बजट बनाना (Preparation of Budget)-अगला स्तर होता है बजट बनाने का जोकि सर्वेक्षण के लिए बहुत ज़रूरी है। अगर सर्वेक्षण को सुचारु रूप से चलाना है तो एक संतुलित बजट की ज़रूरत होती है। बजट को अपने सर्वेक्षण तथा साधनों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है नहीं तो सर्वेक्षण बीच में ही रुक जाता है।

(viii) समय सूची का बनाना (Preparation of Time Schedule)-सर्वेक्षण में समय का निर्धारण बहुत ज़रूरी है क्योंकि ज्यादा समय सर्वेक्षण की उपयोगिता को खराब कर सकता है। समय सूची सर्वेक्षण की प्रकृति सर्वेक्षण के उद्देश्य तथा सर्वेक्षण में लगे कार्यकर्ताओं की संख्या पर निर्भर करता है।

(ix) अध्ययन पद्धतियों का चुनाव (Selection of the Methods of Study)-परियोजना कार्य में अध्ययन पद्धतियां हमेशा समय, धन, सर्वेक्षण की प्रकृति, कार्यकर्ताओं को ध्यान में रख कर चुनी जाती हैं। अलग-अलग विषयों में अलग-अलग पद्धतियों को प्रयोग किया जाता है। एक ही सर्वेक्षण में दो पद्धतियां भी प्रयोग की जा सकती हैं, परंतु इनका चुनाव पहले से ही होना चाहिए।

(x) अध्ययन में यंत्रों का निर्माण (Preperation of study tools)-किसी भी सर्वेक्षण कार्य के सफल-असफल होने में उसमें प्रयोग होने वाले यंत्रों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। प्रश्नावली, साक्षात्कार, अनुसूची, अवलोकन इत्यादि जैसे यंत्रों को सावधानी से तैयार करना चाहिए नहीं तो सर्वेक्षण असफल हो जाएगा। इसलिए सर्वेक्षण की सफलता के लिए यंत्रों का ही निर्माण होना जरूरी होता है।

(xi) कार्यकर्ताओं का चुनाव तथा प्रशिक्षण (Selection and training of field workers)-क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं का चुनाव तथा प्रशिक्षण भी सर्वेक्षण को प्रभावित करता है। यंत्रों के निर्माण के साथ-साथ ईमानदार तथा निष्ठावान कार्यकर्ताओं का चुनाव करना चाहिए। उनको प्रशिक्षण भी देना चाहिए ताकि अध्ययन कार्य में एकरूपता तथा वैषयिकता लाई जा सके।

(xii) पूर्व परीक्षण तथा पूर्वगामी सर्वेक्षण (Pretesting and Pilot study)-यह भी सर्वेक्षण के लिए बहुत ज़रूरी है। पूर्व परीक्षण से हमें प्रयोग किए जाने वाले यंत्रों की उपयोगिता का पता चलता है। पूर्वगामी सर्वेक्षण से हमें सर्वेक्षण में आने वाली कठिनाइयों का पता चल जाता है। इस तरह पूर्व परीक्षण तथा पूर्वगामी सर्वेक्षण से अध्ययन की कमियों का पता चल जाता है तथा उन्हें समय रहते ही सुधारा जा सकता है।

(xiii) समुदाय को परियोजना कार्य के लिए तैयार करना (To prepare community for project)-सर्वेक्षण कार्य को शुरू करने से पहले समाचार-पत्रों, रेडियो, प्रचार के माध्यमों से लोगों को सर्वेक्षण के लिए तैयार करना तथा सर्वेक्षण के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना बहुत ज़रूरी होता है ताकि लोग मानसिक रूप से सर्वेक्षण में सहयोग देने को तैयार हो सके।

2. तथ्यों का संकलन-तथ्यों का संकलन कार्य क्षेत्र में होता है तथा इसमें लोगों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करना पड़ता है ताकि उनसे प्रश्न पूछ कर तथ्य इकट्ठे किए जा सके। यह कार्य बहुत सावधानी भरा है तथा इसमें निम्नलिखित स्तरों से गुजरना पड़ता है

  • सबसे पहले सैंपल में आए सूचनादाताओं से संपर्क स्थापित करना पड़ता है।
  • फिर सूचनादाताओं से प्रश्न पूछ कर सूचना एकत्रित की जाती है।
  • परियोजना कार्य में लगे कार्यकर्ताओं की देख-रेख करना ताकि वह अपना कार्य-निष्ठा तथा ईमानदारी से कर सकें।

3. तथ्यों का विश्लेषण तथा निर्वचन (Analysis and Interpretation of Data)-तथ्यों को इकट्ठे करने के बाद का स्तर है उनका विश्लेषण तथा निर्वचन। इसके लिए तीन निम्नलिखित चरण हैं-
(i) तथ्यों को तोलना (Weighting of data)-हरेक सर्वेक्षण में कुछ कसौटियां रखी जाती हैं जिन पर इन तथ्यों को रखकर परखा जाता है तथा उनके सही या ग़लत होने का पता लगाया जाता है।

(ii) संपादन (Editing)-अगला स्तर है तथ्यों का संपादन करना। सबसे पहले यह देखा जाता है कि हरेक तरफ से सूचना आ गई है या नहीं इसके बाद उत्तरों की जांच की जाती है ताकि कोई उत्तर भरने से रह न गया हो। इसके साथ गैर ज़रूरी तथ्यों को हटा दिया जाता है तथा एक जैसे तथ्यों को कोड नंबर दे दिया जाता है। कोड के लिए कोई संख्या इत्यादि को रखा जाता है।

(iii) वर्गीकरण तथा सारणीयन (Classification and Tabulation)-जब तथ्यों का संपादन हो जाता है तो तथ्यों को समानता तथा भिन्नता के आधार पर उन्हें अलग-अलग समूहों तथा वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण करने से तथ्य संक्षिप्त रूप में आ जाते हैं। तथ्यों के इस वर्गीकरण को अच्छी तरह समझने के लिए उन्हें तालिकाओं में लिखा दिया जाता है जिसे सारणीयन कहते हैं। परियोजना कार्य में वर्गीकरण तथा सारणीयन बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे हम बहुत ही जल्दी तथ्यों के बारे में पता कर सकते हैं।

4. तथ्यों का प्रदर्शन (Presentation of data)-तथ्यों को दो प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है।
(i) चित्रमयी प्रदर्शन (Diagramatic representation)-तथ्यों को आसानी से प्रकट करने के लिए चित्रों का . प्रयोग किया जाता है तथा तथ्यों को चित्रों की सहायता से दर्शाया जाता है। चित्रों की मदद से कम समय में मुख्य बातों को दिखाया जा सकता है।

(ii) रिपोर्ट का निर्माण तथा प्रकाशन (Preperation and Publication of Report)-संपूर्ण अध्ययन प्रक्रिया के पूरा होने के बाद परियोजना कार्य का अंतिम चरण होता है संपूर्ण प्रक्रिया की रिपोर्ट तैयार करना तथा उसे प्रकाशित करना। रिपोर्ट तैयार करते समय सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि वह सभी के समझ आ सके।

तथ्यों को तार्किक ढंग से पेश करना चाहिए तथा विचारों को स्पष्ट करना चाहिए। तकनीकी शब्दों को स्पष्ट तथा परिभाषित करना चाहिए। तथ्यों को दोबारा भी नहीं लिखना चाहिए। आवश्यक शीर्षक तथा उपशीर्षक भी देने चाहिए। जहां ज़रूरत हो पाद टिप्पणियां भी देनी चाहिए। चित्र तथा तालिकाओं का भी प्रयोग करना चाहिए ताकि आँकड़े आसानी से समझ में आ सकें। इस के बाद रिपोर्ट को प्रकाशित किया जाता है तथा उसे पेश कर दिया जाता है।

इस तरह परियोजना कार्य की संपूर्ण प्रक्रिया कई स्तरों से होकर गुज़रती है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 3.
परियोजना कार्य के गुणों तथा दोषों का वर्णन करो।
अथवा
परियोजना कार्य के लाभ व हानियाँ बताइए।
उत्तर:
परियोजना कार्य के गुण – (Merits of Project Work):
परियोजना कार्य के बहुत गुण होते हैं जिस कारण इसका समाज के अध्ययन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके अनलिखित गुण हैं-
1. आत्म विकास का अवसर (Opportunity of Self Development)-परियोजना कार्य कार्यकर्ताओं तथा विद्यार्थियों में आत्म विकास करने का काफ़ी महत्त्वपूर्ण साधन है। इसमें विद्यार्थी स्वयं सोचते हैं, कार्य करते हैं तथा ज़रूरत पड़ने पर अध्ययनकर्ता से निर्देश लेते हैं। इस तरह परियोजना कार्य विद्यार्थियों में आत्म-विश्वास जगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. सामाजिक भावना का विकास (Development of Social Feeling)-कोई भी परियोजना कार्य एक या दो व्यक्ति पूरा नहीं कर सकते हैं बल्कि यह बहुत सारे व्यक्तियों के सहयोग से पूर्ण होता है। इस तरह परियोजना कार्य से सामाजिक भावना विकसित होती है तथा व्यक्तियों में एक-दूसरे के साथ कार्य करने से सामुदायिक भावना भी विकसित होती है।

3. विकास के समान अवसर (Equal Opportunity of Development)-परियोजना कार्य करते समय सभी कार्यकर्ताओं को समान अवसर दिया जाता है। किसी के साथ किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। इससे सभी को विकसित होने के समान अवसर प्राप्त होते हैं।

4. व्यावहारिक ज्ञान (Practical Knowledge)-परियोजना कार्य से सभी कार्यकर्ताओं को व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें अलग-अलग समस्याओं को लेकर योजना बनाई जाती है तथा उनका अध्ययन किया जाता है। क्षेत्र में जाकर तथ्य इकट्ठे किए जाते हैं जिस के कारण हमें हरेक प्रकार का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

5. मनोवैज्ञानिक संतुष्टि (Psychological Satisfaction)-इस कार्य को करने से व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक संतुष्टि प्राप्त होती है। इस में कार्य करने से व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है तथा डर नहीं लगता और ज्ञान को दबाव में नहीं बल्कि खुल कर ग्रहण किया जाता है।

परियोजना कार्य के दोष-(Demerits of Project Work):
1. अधिक खर्च (More Expensive)-परियोजना कार्य में योजना बनाई जाती है तथा उस योजना के अनुसार कार्य किया जाता है। इस को करने के लिए बहुत सारे कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। ज्यादा कार्यकर्ताओं के होने के कारण उनके रहने, खाने-पीने, खर्चे के कारण बहुत ज्यादा खर्च हो जाता है तथा यह इसका एक बहुत बड़ा दोष है।

2. उचित परियोजना कार्य ढूंढ़ने की मुश्किल (Difficulty in finding right project work)-सबसे पहले सही समस्या अथवा परियोजना कार्य को ढूंढ़ने की आवश्यकता होती है जोकि काफी मुश्किल है। अगर सही परियोजना कार्य न मिल पाए तो अध्ययन के ज्यादा लाभ नहीं होते हैं।

3. क्रमबद्ध अध्ययन का न होना (Absence of seuqal study)-इस कार्य को करने के लिए कार्य से संबंधित समस्या का क्रमबद्ध अध्ययन भी ज़रूरी है जोकि इस में नहीं होता है। यह एक बहुत बड़ी कमी है।

प्रश्न 4.
निरीक्षण अथवा अवलोकन क्या होता है? इसकी परिभाषाओं तथा विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
सामाजिक अनुसंधान में सूचना इकट्ठी करने के लिए वैसे तो अनुसूची, प्रश्नावली और इंटरव्यू आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। पर ये सब सूचना संबंधित आदमी से प्रश्न पूछकर ली जाती है। अनुसूची द्वारा इंटरव्यू में उत्तर देने वाला अनुसूची में दिए हुए प्रश्नों के उत्तर अनुसंधानकर्ता को देता है, जो उन्हें नोट कर लेता है और प्रश्नावली में उन जवाबों को लिखकर आप ही भेज देता है।

विवरणात्मक इंटरव्यू में सूचनाओं का स्रोत संबंधित व्यक्ति होता है। अनुसंधानकर्ता को इस तरह दूसरों द्वारा दी सूचनाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। निरीक्षण विधि में अनुसंधानकर्ता आप घटना का निरीक्षण करता है। वह सूचना के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहता। इसलिए निरीक्षण विधि अथवा अवलोकन विधि और सब विधियों से ज्यादा विश्वसनीय मानी जाती है।

परिभाषाएँ-(Definitions):
अवलोकन शब्द अंग्रेज़ी शब्द Observation का रूपांतर है। Observation का अर्थ है आपसी संबंध को जानने के लिए स्वाभाविक रूप में घटने वाली घटनाओं का सूक्ष्म निरीक्षण। पी० वी० यंग ने इन्हें आंखों द्वारा एक उद्देश्यपूर्ण अध्ययन का नाम दिया है। पी० वी० यंग ने लिखा है कि “निरीक्षण आंखों द्वारा उद्देश्यपूर्ण अध्ययन है जिसकी सामूहिक व्यवहार और जटिल सामाजिक संस्थाओं के साथ ही एक समग्रता का निरीक्षण करने वाली अलग-अलग इकाइयों या सूक्ष्म अध्ययन करने वाली एक विधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।”।

(According to P.V. Young, “Observation is a deliberate study through the eye may be used as one of the methods for scrutinizing collective behaviour and complex social institutions as well as the separate units composing a totality.”’)

मोज़र (Moser) के अनुसार, “सही अर्थों में, निरीक्षण में कानों या ध्वनि के प्रयोग की जगह आंखों के प्रयोग के साथ है।”
(“In the strict sense, observation implies the use of the eyes rather than the ears and. the voice.”)
इस प्रकार निरीक्षण में निम्नलिखित परिणामों का सार है-
(1) इसमें घटना का ज्ञान आंखों द्वारा प्राप्त किया जाता है। चाहे हम कानों और वाक्य शक्ति का प्रयोग भी कर सकते हैं पर इनका प्रयोग उसकी जगह पर कम महत्त्वपूर्ण होता है।

(2) निरीक्षण हमेशा उद्देश्यपूर्ण और सूक्ष्म होता है। यही उसकी आम लोगों से भिन्नता होती है। हम सचेत अवस्था में बराबर, कुछ न कुछ देखते ही रहते हैं, पर उसे निरीक्षण नहीं कहा जा सकता। निरीक्षण एक विशेष उद्देश्य होता है, इसलिए यही ज्यादा सूक्ष्म और गहरा होता है।

नतीजा निकालने के लिए इसकी बहुत ज़रूरत होती है। सामाजिक घटनाएं तो सबके सामने घटित ही रहती है। एक व्यक्ति उसमें से सिद्धांत की खोज कर लेता है पर दूसरे को इसमें कोई विशेषता नहीं लगती। इस अंतर का कारण निरीक्षण की सूक्ष्मता और गहराई ही है। बिना उद्देश्य के अनुसंधानकर्ता भटकता रहता है और वह तथ्यों की गहराई तक नहीं पहुंच सकता।

दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम संक्षेप में निरीक्षण विधि में निम्नलिखित विशेषताओं का जिक्र कर सकते हैं।

  • निरीक्षण सामाजिक अनुसंधान में घटना के बारे में पहले तथ्य इकट्ठे करने की प्रमुख विधि है।
  • इस विधि में अनुसंधानकर्ता को किसी तथ्य को इकट्ठे करने के लिए दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ता बल्कि उसे अपनी इंद्रियों का प्रयोग करने का अवसर मिलता है जिसके साथ तथ्य अधिक विश्वसनीय होते हैं।
  • निरीक्षण विधि घटना के सूक्ष्म निरीक्षण का मौका देती है।
  • इस विधि द्वारा इकट्ठे किए हुए तथ्य किसी भी दूसरी विधि द्वारा इकट्ठे किए तथ्यों से अधिक विश्वसनीय होते हैं।
  • यह एक सामने दिखने वाली प्रणाली है जिनमें अनुसंधानकर्ता किसी दूसरे स्रोत पर आश्रित न रहकर आप ही घटना का सामने से ही निरीक्षण करके अध्ययन करता है।
  • इस विधि द्वारा वैज्ञानिक सूक्ष्मता संभव होती है।
  • यह विधि सबसे सरल है।
  • अनुसंधानकर्ता स्वयं ही घटना को अपनी आंखों से देखने के बाद तथ्य इकट्ठे करता है।
  • यह एक प्रचलित विधि है जिसका प्रयोग प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों में एक जैसा ही होता है।
  • यह प्रणाली सबसे सस्ती, स्पष्ट, सरल और वैज्ञानिक है।

प्रश्न 5.
सहभागी निरीक्षण अथवा सहभागी अवलोकन से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर:
1. सहभागी निरीक्षण-सहभागी निरीक्षण का प्रयोग सबसे पहले Lindeman ने 1924 में अपनी पुस्तक Social Discovery में किया था। चाहे विधि के रूप में इसका प्रयोग बहुत पहले ही हो चुका था। उसने लिखा “सहभागी निरीक्षण इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी घटना का निरीक्षण तभी करीब-करीब शुद्ध हो सकता है जब वह बाहरी और अंदरूनी दृष्टिकोण से मिलकर बना हो।

इस प्रकार उस व्यक्ति का दृष्टिकोण जिसने घटना में भाग लिया और जिसकी इच्छाओं और स्वार्थ किसी-न-किसी रूप में जुड़े हुए हो, उस आदमी के दृष्टिकोण से निश्चित ही अलग होगा जो सहभागी न होकर सिर्फ देखने वाला या विवेचनकर्ता के रूप में रहा है।”

सहभागी निरीक्षण की परिभाषा देते हुए ‘मैज’ ने लिखा है “जब देखने वाले के दिल की धड़कनें समूह के दूसरे व्यक्तियों की धड़कनों के साथ मिल जाती हैं और वह किसी दूर की प्रयोगशाला से आए हुए तटस्थ प्रतिनिधि के समान नहीं रह जाता, तब यह समझना चाहिए कि उसने सहभागी देखने वाला कहलाने का अधिकार प्राप्त कर लिया है।

मैज ने इस प्रकार समूह के साथ निरीक्षणकर्ता के रागात्मक एकीकरण पर ही जोर दिया है। उसके निरीक्षणकर्ता को सहभागी तब ही कहेंगे जब वह निरीक्षण किए जाने वाले समूह में अपनापन, अनुभव करने लगे, उसका दृष्टिकोण समूह के दृष्टिकोण के साथ मिल जाए और उसकी भावनाएं समूह की भावनाओं के साथ मिलकर एक हो जाएं।

विद्वानों ने इस प्रकार के पूरे एकीकरण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दोषपूर्ण बताया है। उन्होंने सहभागी निरीक्षणकर्ता की और ज्यादा खुली परिभाषा दी है। गुड एंड हॉट के अनुसार “निरीक्षणकर्ता सहभागी कहलाने का हकदार उस समय हो जाता है जब वह समह के एक मैंबर/सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।”

यहां मंजरी उस समूह से आती है जिसका निरीक्षण किया जाता है। देखने वाले के विचारों, भावनाओं और दृष्टिकोण में परिवर्तन ज़रूरी नहीं है। पी० वी० यंग ने इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए हैं। उसके अनुसार भी सहभागी निरीक्षणकर्ता “अध्ययन किए जाने वाले समूह में रहता है या दूसरी तरह से उनके जीवन में भाग लेता है।”

अब यह परिणाम निकलता है कि सहभागी निरीक्षण के लिए ज़रूरी है कि अनुसंधानकर्ता समूह में एक अजनबी की तरह न रहकर उसका एक अंग बनकर रहे। यह कोई ज़रूरी नहीं है कि वह उनकी सभी क्रियाओं में भाग ले, पर निश्चित ही वह वहां निरीक्षणकर्ता की हैसियत से नहीं रहता। इसी प्रकार यह भी ज़रूरी नहीं कि वह समह के बीच बराबर साथ साथ रहा हो। वह समय-समय बारी-बारी उनके बीच रहा। पर उसका उस समूह के साथ बहुत करीब का क्रियात्मक संपर्क होना बहुत ज़रूरी है।

सहभागी निरीक्षण के साथ निरीक्षणकर्ता अनेक प्रकार से समूह का अंग बन सकता है। वह ऐसा कोई भी काम हाथ में ले सकता है। जिससे वह अध्ययन में किए जाने वाले समूह के बराबर संपर्क में रहे। उदाहरण के लिए विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए पढ़ाई का काम। जिस प्रकार से समाज का अध्ययन करना है और जिस प्रकार का अध्ययन करना है, अनुसंधानकर्ता को उसी के अनुरूप पद भी लेना चाहिए। प्रयास इस बात का करना चाहिए कि उसे समूह की क्रियाओं को ज्यादा से ज्यादा करीब से देखने का मौका अथवा अवसर मिल सके।

प्रश्न 6.
सहभागी निरीक्षण के गुणों तथा दोषों का वर्णन करें।
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण के गण-
(1) इस निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले वर्ग के काफ़ी समीप आ जाता है। इस तरह उसे ज्यादा सूक्ष्म अध्ययन का अवसर मिलता है। किसी व्यक्ति के परिवार के जीवन का सब से बढ़िया और सच्चा परिचय उस व्यक्ति को होगा, जो उसके साथ या उसके घर में रहा हो।

(2) सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता को समूह के अलग व्यवहारों, आपसी संबंधों और रिवाजों का सच्चा समझने की शक्ति प्राप्त होती है। अधिकतर क्रियाएं सामाजिक संगठनों और हालातों से अच्छी तरह प्रभावित होती हैं। किसी समाज में कोई परंपरा क्यों प्रचलित है? इसका अनुभव कोई बाहर से देखकर नहीं कर सकता। इस तरह असहभागी निरीक्षण में घटना का केवल वर्णन होता है जबकि सहभागी अंदरूनी स्वरूप को समझने में सहायक होता है।

(3) सहभागी निरीक्षण स्वाभाविक हालात में संभव है। जब लोगों को पता लग जाता है कि उनका निरीक्षण किया जा रहा है तो उनके व्यवहार में अस्वाभाविकता आ जाती है और बनावटीपन भी। इस तरह निरीक्षणकर्ता द्वारा ईमानदारी और सावधानी बरतने पर भी उचित सूचना प्राप्त नहीं होती। इसलिए स्वाभाविक हालातों/परिस्थितियों में निरीक्षण के लिए सहभागी निरीक्षण ज़रूरी है।

(4) सहभागी निरीक्षण देखने वाले की नज़र को ज्यादा सूक्ष्म बना देता है जिससे वह जल्द ही उचित नतीजों को ग्रहण कर सके। निरीक्षण के लिए एक विशेष ज्ञान ज़रूरी है। इसके बिना कोई भी सूक्ष्म व्यवहारों का सही निरीक्षण नहीं कर सकता। एक इंजीनियर दो कारखानों में लगी मशीनों का तुलनात्मक अध्ययन जितनी आसानी सरलता से जल्दी ही कर लेता है उतना एक अपरिचित व्यक्ति नहीं।

यही बात सामाजिक समूह से संबंध में भी सत्य है। समूह में कुछ समय रहने के पश्चात् निरीक्षणकर्ता इसकी क्रियाओं और व्यवहारों से परिचित हो जाता है और उनमें मिलने वाली सूक्ष्म ग़लती या नकली धन भी उसका ध्यान खींच लेता है।

(5) सहभागी असहभागी निरीक्षण की जगह ज्यादा सुविधाजनक होता है। निरीक्षण की एक आवश्यक शर्त यह भी है कि संबंधित व्यक्ति या समूह अनुसंधानकर्ता को निरीक्षण करने का अवसर दे। सहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता एक निरीक्षण के रूप में नहीं जाता। बाहरी रूप से उसका उद्देश्य सरा ही होता है। इस तरह संबंधित व्यक्ति या समूह से किसी विरोध की संभावना नहीं रहती।

सहभागी निरीक्षण के दोष-
(1) इसमें अनुसंधानकर्ता को दो पार्ट एक साथ अदा करने पड़ते हैं-वह एक वैज्ञानिक भी होता है और अध्ययन किए जाने वाले समाज का सदस्य भी। संतुलन कायम रखना बहुत कठिन होता है।

(2) जब निरीक्षक का भावात्मक एकीकरण हो जाता है तो निरीक्षण की स्थूलता खत्म हो जाती है। एक तटस्थ देखने वाले के स्थान पर वह अपने आप को एक वर्ग का अंग मानने लगता है। उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण खत्म हो जाता है। इसमें बहुत सारी घटनाओं को इसी तरह देखने लगता है। वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक प्रकार का Bias बहुत हानिकारक है।

(3) समाज की क्रियाओं में नज़दीकी के परिचय हमारे सूक्ष्म निरीक्षण में कभी-कभी बाधक भी सिद्ध होते हैं। जब समूह की अनेक क्रियाओं के साथ हमारा नज़दीकी परिचय हो जाता है तो हम उनमें से बहुत को इसी तरह ही मान लेते हैं। बहुत सारी घटनाओं को आम मानकर छोड़ देते हैं। समूह में एकदम अपरिचित होने से उसकी प्रत्येक क्रिया हमारे लिए नई और आदर्शक होती है। इसलिए निरीक्षण ज्यादा सूक्ष्म और खुला होता है।

(4) कभी-कभी यह भी देखा गया है कि लोग अपरिचित व्यक्ति के समक्ष ज्यादा खुलकर व्यवहार करते हैं क्योंकि उन्हें इसमें किसी भी प्रकार की सामाजिक प्रसिद्धि को हानि की संभावना नहीं होती पर जब कोई अपरिचित व्यक्ति निरीक्षक के रूप में साथ होता है तो उनके व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है। इसी प्रकार सहभागी निरीक्षण उचित और सही सूचना प्राप्त करने में सहायता के स्थान पर मुस्किल अथवा कठिनाई उत्पन्न करता है।

(5) सहभागी अनुसंधानकर्ता आमतौर पर अपने आपको समाज से अलग अथवा पृथक नहीं रख सकता। कभी-कभी वह किसी विशेष समूह या दल में विशेष रुचि लेने लगता है या किसी वर्ग के साथ विशेष संपर्क बढ़ा लेता है। इस तरह निरीक्षक की वैज्ञानिकता समाप्त हो जाती है।

इसके अतिरिक्त यदि उसने समाज में कोई प्रसिद्ध स्थान प्राप्त कर लिया है तो उसे अनुसंधान से अधिक अपनी प्रसिद्धि का ध्यान अधिक रहता है। तो सकता है कि उस स्थान पर रहकर वह अपना प्रभाव लोगों के व्यवहारों और क्रियाओं पर डाल सकता है। इसके साथ भी अध्ययन में कठिनाई उत्पन्न होती है।

प्रश्न 7.
निरीक्षण विधि के गुणों तथा सीमाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
निरीक्षण विधि के गुण
(Merits of Observation)
(i) विश्वास योग्य-इस बात में कोई संदेह नहीं है कि निरीक्षण से प्राप्त सूचना और विधियों द्वारा प्राप्त सूचना से ज्यादा विश्वसनीय होते हैं। इसमें वैज्ञानिक उत्तरदाता पर आश्रित नहीं होता बल्कि वह सूचना खुद ही इकट्ठी करता है। अनुसूची तथा प्रश्नावली में वह उत्तरदाता पर आश्रित होता है परंतु इसमें वह सब कुछ अपने आप ही देखता है। यदि वैज्ञानिक चालाक है तो वह सही सूचना प्राप्त कर सकता है।

(ii) आसान-निरीक्षण विधि बहुत ही आसान है। साक्षात्कार, अनुसूची इत्यादि में उत्तरदाता से अपने मतलब की सूचना निकलवाने के लिए बहुत चतुरता की जरूरत होती है परंतु निरीक्षण में चतुरता की कोई जरूरत नहीं होती। हम सिर्फ चीजों को देखकर ही उनके बारे में अनुमान लगा सकते हैं।

(iii) सर्वव्यापक विधि-निरीक्षण विधि सर्वव्यापक तथा सर्वप्रचलित होती है। यह सभी विज्ञानों, देशों में समान रूप से उपयोगी होती है। प्रश्नावली, साक्षात्कार सिर्फ सामाजिक खोज में ही उपयोग होते हैं। परंतु निरीक्षण सभी विज्ञानों में उपयोग होती है।

(iv) सत्य की जांच करने की सुविधा-इस विधि से प्राप्त सूचना की दोबारा जांच भी हो सकती है। यदि निरीक्षणकर्ता से कोई ग़लती हो जाती है तो उस चीज़ का दोबारा निरीक्षण हो सकता है। हमें यह सुविधा साक्षात्कार, अनुसूची या प्रश्नावली में नहीं होती। उनमें उत्तरदाता झूठ बोल सकता है परंतु इसमें ऐसी कोई समस्या नहीं होती है।

निरीक्षण विधि की सीमाएं-(Limitations of Observation):
(i) निरीक्षणकर्ता का न होना-निरीक्षण विधि में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हो सकता है कि घटना के घटित होते समय निरीक्षक उस जगह पर ही हो। सामाजिक घटनाओं की प्रकृति अनिश्चित होती है तथा वह कभी भी घटित हो सकती है। यह ज़रूरी नहीं है कि व्यक्ति उस समय मौजूद ही हो। उसकी गैर-मौजूदगी के कारण निरीक्षण संभव नहीं है। उदाहरण के तौर पर, पति-पत्नी की लड़ाई।

(ii) घटनाएं निरीक्षण का मौका नहीं देतीं-यह समस्या भी निरीक्षण में हो सकती है। हो सकता है कि घटना के घटित होते समय उसका पता ही न चले या फिर संबंधित व्यक्ति निरीक्षण का अवसर ही न दें।

सामाजिक घटनाओं के निरीक्षण के लिए यह ज़रूरी है कि संबंधित व्यक्ति इसका अवसर दें परंतु काफ़ी हद तक ऐसा मुमकिन नहीं होता जैसे कि पति-पत्नी के आंतरिक संबंधों के निरीक्षण का मौका कोई भी नहीं देगा। इस प्रकार कई बार घटनाएं भी निरीक्षण का समय नहीं देती हैं।

(iii) निरीक्षण विधियों का असहयोग-काफ़ी सारे सामाजिक अनुसंधान भावनाओं, विचारों जैसे अमूर्त तथ्यों से संबंधित होते हैं। इन अमूर्त तथ्यों का निरीक्षण नहीं हो सकता। हमें इस बात का पता नहीं चल सकता कि कोई व्यक्ति क्या सोच रहा है या किसी चीज़ के बारे में उसके वास्तविक विचार क्या हैं? इसलिए व्यक्ति खुद ही निरीक्षण करने की बजाए संबंधित व्यक्ति से पूछकर ही चला जाता है।

प्रश्न 8.
सामाजिक सर्वेक्षण का क्या अर्थ है? परिभाषाओं सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
सामाजिक अनुसंधान की विधियों में सर्वेक्षण विधि बहुत महत्त्वपूर्ण है। सर्वेक्षण अंग्रेजी भाषा के शब्द Survey का हिंदी रूपांतर है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है किसी घटना को ऊपर से देखना, परंतु सामाजिक अनुसंधान में इसका एक विधि के रूप में बहुत ही विशिष्ट अर्थ है।

सर्वेक्षण का अर्थ एक ऐसी अनुसंधान की विधि से होता है जिसमें अनुसंधानकर्ता घटनास्थल पर जाकर घटना का वैज्ञानिक तरीके से निरीक्षण करता है तथा उस घटना के संबंध में खोज करता है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता को अपनी कल्पना से कुछ नहीं करना पड़ता बल्कि वह घटना के साथ प्रत्यक्ष रूप में संपर्क में आता है तथा उसमें से अपने मतलब की चीज़ निकाल लेता है। इससे उसके निष्कर्षों में ज्यादा वैयक्तिता आती है तथा वह सच के बहुत करीब होते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)-
1. मोज़र (Moser) के अनसार. “समाजशास्त्री के लिए सर्वेक्षण क्षेत्र का अनसंधान करने. अध्ययन के विषय से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संबंधित आंकड़े एकत्र करने का एक ऐसा अति उपयोगी साधन है जिससे समस्या पर प्रकाश पड़ सके।”

2. मोर्स (Morse) के अनुसार, “संक्षेप में सर्वेक्षण किसी प्रस्तुत सामाजिक परिस्थिति, समस्या अथवा जनसंख्या के विशिष्ट उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा क्रमबद्ध रूप में की गई विवेचना की विधि मात्र है।”

3. बर्जेस (Burgess) के अनुसार, “एक सर्वेक्षण समुदाय की दशाओं एवं आवश्यकताओं का सामाजिक विकास की रचनात्मक योजना प्रस्तुत करने के उद्देश्य से किया गया वैज्ञानिक अध्ययन है।”

4. एब्रम्स (Abrams) के अनुसार, “सामाजिक सर्वेक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के संगठन तथा क्रियाओं के सामाजिक पक्ष के संबंध में संख्यात्मक तथ्य संकलित किए जाते हैं।”

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक घटनाओं तथा सामाजिक समस्याओं से संबंधित होते हैं। इसमें किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में अनुसंधान के विषय से संबंधित घटनाओं का निरीक्षण किया जाता है तथा उस निरीक्षण से ही सूचना इकट्ठी की जाती है। फिर इस सूचना से निष्कर्ष निकाले जाते हैं। यह विधि वैज्ञानिक विधि के बहुत ज्यादा करीब होती है क्योंकि इस विधि में अभिनीत आने के मौके बहुत ही कम होते हैं। सामाजिक अनुसंधानों में यह विधि बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 9.
सामाजिक सर्वेक्षण विधि के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण विधि के बहुत से उद्देश्य हो सकते हैं, परंतु हम उन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित कर रहे हैं-
1. व्यावहारिक सूचना प्राप्त करना-ज्यादातर सर्वेक्षण लोगों को सूचना देने के लिए होते हैं चाहे वह लोग सरकारी हों या गैर-सरकारी। इस तरह का सर्वेक्षण कोई संस्था अपने या किसी और के लिए भी करवा सकती है। इस तरह के व्यावहारिक उपयोग से उस संस्था को अपना विकास करने में मदद मिलती है।

सर्वेक्षण का उपयोग अब आर्थिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में भी काफ़ी हो रहा है। अब ऐसी संस्थाएं भी बन गई हैं जो दूसरों के लिए सर्वेक्षण का कार्य करती हैं। बहुत सारी व्यापारिक संस्थाएं अपने उत्पाद की बिक्री के संबंध में सर्वेक्षण करवाती हैं। उद्योगपति अपने माल के लिए तथा कार्यक्षमता की वृद्धि के लिए भी सर्वेक्षण करवाते हैं। इस तरह सर्वेक्षण की मदद से अब सिर्फ सिद्धांत ही नहीं बनते बल्कि उनका व्यावहारिक उपयोग भी हो रहा है। इस तरह सर्वेक्षण की मदद से व्यावहारिक सूचना प्राप्त हो जाती है।

2. उपकल्पना की जांच-बहुत-से सर्वेक्षणों का उद्देश्य अलग-अलग उपकल्पनाओं की जांच करना होता है। रोज़ाना जीवन की घटनाओं को देखकर हमारे मन में बहुत-सी उपकल्पनाएं पैदा हो सकती हैं। उन उपकल्पनाओं में सच की पहचान तभी हो सकती है जब वैज्ञानिक तरीके से तथ्यों को इकट्ठा किया जाए तथा उन तथ्यों की उचित विवेचना की जाए। इसलिए बहुत से सर्वेक्षण उपकल्पनाओं की जांच के लिए किए जाते हैं।

3. सामाजिक सिद्धांतों के सच की पहचान-हमारा समाज प्रगतिशील है जिस कारण वह लगातार बदलता रहता है। इसलिए आज से कुछ समय पहले बने सिदधांतों में बदलाव आना भी जरूरी होता है। उ ले सकते। इसलिए बदले हुए हालात के अनुसार सामाजिक सिद्धांतों तथा नियमों के सच की पहचान ज़रूरी होती है।

इसलिए पुराने सिद्धांतों के सच की पहचान इस विधि से हो जाती है। इसके साथ ही अनुसंधान की तकनीकें भी समय के साथ बदलती रहती है। पुराने सिद्धांतों की नई तकनीकों के आधार पर जांच करने की ज़रूरत होती है। बहुत से सर्वेक्षण पुराने सिद्धांतों में सच की पहचान के लिए भी होते हैं।

4. कार्य करण संबंध का पता करना-बहुत से सर्वेक्षण का उद्देश्य वर्णन की जगह घटना की व्याख्या करना होता है। समाज में होने वाली घटनाओं को देखकर व्यक्ति के मन में उन घटनाओं के कारणों को जानने की इच्छा पैदा होती है। इनको निगमन विधि से पहले से बने सिद्धांतों से पता किया जा सकता है या फिर आगमन विधि से सर्वेक्षण हाला pr का MBD SOCIOLOGY (XII HR.) करके पता किया जा सकता है। सर्वेक्षण से घटना से संबंधित अलग-अलग तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है तथा उनके आधार पर उन घटनाओं के कारणों की खोज की जाती है।

5. सामाजिक घटनाओं का वर्णन-सामाजिक सर्वेक्षणों का उद्देश्य वर्णनात्मक भी हो सकता है, जैसे सामाजिक संबंधों या व्यवहार का अध्ययन। कई बार सर्वेक्षण किसी विशेष उद्देश्य को लेकर सिर्फ सामाजिक घटना के वर्णन के लिए होता है। सरकारी सर्वेक्षण सिर्फ साधारण सूचना इकट्ठी करने के लिए किये जाते हैं। वह किसी विशेष उद्देश्य के लिए नहीं होते बल्कि अनुसंधानकर्ता को उचित सामग्री प्रदान करने तथा उसके कार्य को सरल बनाने के लिए होते हैं।

प्रश्न 10.
सामाजिक सर्वेक्षणों के कितने प्रकार होते हैं? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षणों को अलग-अलग आधारों पर अलग-अलग भागों में बांटा जा सकता है। उनमें से कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. सामान्य तथा विशेष सर्वेक्षण-जब सर्वेक्षण किसी विशेष उद्देश्य के लिए नहीं होते बल्कि घटना के संबंध में सूचना इकट्ठी करने के लिए होते हैं तो उन्हें सामान्य सर्वेक्षण कहा जाता है। यह किसी उपकल्पना के आधार पर नहीं होते बल्कि इनमें तो अनुसंधान के विषय तथा क्षेत्र को निर्धारित कर दिया जाता है। इस तरह के सर्वेक्षण सरकार द्वारा किए जाते हैं।

विशेष सर्वेक्षण में अनुसंधान किसी विशेष उपकल्पना के आधार पर होता है। इनमें किसी समूह या स्थान का सर्वेक्षण नहीं होता बल्कि किसी विशेष घटना का सर्वेक्षण होता है। इसे उन लोगों से संपर्क बनाया जाता है जो उस विशेष घटना से संबंधित हैं तथा निष्कर्ष निकालने में मदद दे सकते हैं। इस तरह सामान्य सर्वेक्षण किसी वर्ग या स्थान से जुड़ा हुआ होता है। वहीं पर विशेष सर्वेक्षण घटना या समस्या से जुड़ा हुआ होता है।

2. अंतिम तथा आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण-कई सर्वेक्षण इस तरह से होते हैं जिनमें सूचना को दोबारा-दोबारा इकट्ठा करना नहीं पड़ता बल्कि एक बार ही सूचना इकट्ठी करने के बाद उसके आधार पर निष्कर्ष निकाल दिए जाते हैं तथा सर्वेक्षण खत्म हो जाता है। इन्हें अंतिम सर्वेक्षण कहा जाता है।

कछ सर्वेक्षण ऐसे होते हैं जिनमें सचना को बार-बार इकटठा करना पड़ता है। यह प्रायोगिक विधि के अंदर आते हैं। जिस वर्ग का निरीक्षण करना होता है, उसे कोई प्रेरक तत्त्व दे दिया जाता है तथा उस प्रभाव के अंतर्गत संबंधित आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं। इस तरह बार-बार कोई प्रेरक तत्त्व देकर उस तत्त्व के प्रभाव के अंतर्गत सूचना को एकत्र किया जाता है तथा अंत में निष्कर्ष निकाले जाते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण इस प्रकार के होते हैं।

3. नियमित तथा काम चलाऊ सर्वेक्षण-वह सर्वेक्षण जो नियमित रूप से तथा समय-समय पर बार-बार होते हैं उन्हें नियमित सर्वेक्षण कहते हैं। कामचलाऊ सर्वेक्षण वह होते हैं जो किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक-आध बार होते हैं। आमतौर पर कामचलाऊ सर्वेक्षण नियमित सर्वेक्षण से पहले होता है जिस वजह से इसको अग्रगामी सर्वेक्षण भी कहा जाता है।

काम चलाऊ सर्वेक्षण का उद्देश्य नियमित सर्वेक्षण की योजना की जांच करना होता है। कामचलाऊ सर्वेक्षण को अनुसूची, प्रश्नावली इत्यादि का परीक्षण करने के लिए भी किया जाता है। इस कामचलाऊ सर्वेक्षण को उस समय भी प्रयोग किया जाता है जब किसी अनुसंधान के लिए पूर्व सूचना उपलब्ध न हो। इस तरह काम चलाऊ सर्वेक्षण को नियमित सर्वेक्षण के लिए प्रयोग किया जाता है।

4. संगणना सर्वेक्षण तथा सैंपल सर्वेक्षण-सर्वेक्षण को समग्र इकाइयों के संबंध में संगणना विधि दवारा किया जाता है। इसमें अगर किसी विशेष वर्ग के संबंध में खोज करनी है तो उस वर्ग के हरेक व्यक्ति से संपर्क स्थापित किया जाता है तथा उनसे सूचना एकत्र की जाती है। इस तरह के सर्वेक्षण को संगणना सर्वेक्षण कहा जाता है।

परंतु अगर वर्ग बड़ा हो तथा वर्ग के हरेक व्यक्ति से संपर्क स्थापित करना मुमकिन न हो तो उस वर्ग में से थोड़े से व्यक्तियों का एक सैंपल ले लिया जाता है तथा उनसे सूचना प्राप्त की जाती है। उस सूचना से निष्कर्ष निकाले जाते हैं तथा उन्हें संपूर्ण समूह पर लागू किया जाता है। इस तरह के सर्वेक्षण को सैंपल सर्वेक्षण कहा जाता है। सामाजिक सर्वेक्षणों में इस विधि का प्रयोग ज्यादा हो रहा है। इसका कारण यह है कि एक तो संपूर्ण समाज से संपर्क स्थापित करना कठिन होता है तथा संगणना में बहुत सारे धन तथा समय की ज़रूरत होती है। सैंपल विधि से निकले निष्कर्ष ज्यादातर ठीक होते हैं। अगर कोई अशुद्धि भी हो तो भी उसे पता किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
सर्वेक्षण की प्रक्रिया का वर्णन करो।
उत्तर:
जिस तरह सामाजिक अनुसंधान की प्रक्रिया होती है, उस तरह सर्वेक्षण की प्रक्रिया भी होती है। सर्वेक्षण की प्रक्रिया के शुरू से लेकर अंत तक कई स्तर होते हैं। इन स्तरों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार हैं-

  • सर्वेक्षण का उद्देश्य तथा क्षेत्र
  • सूचना इकट्ठी करने के स्त्रोत का निर्धारण
  • सर्वेक्षण के प्रकार
  • प्रश्नावली या अनुसूची की रचना तथा सूचना का संकलन
  • इकट्ठी सूचना का संपादन
  • सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण
  • सूचना का विश्लेषण
  • सूचना का निर्वाचन तथा अंतिम रिपोर्ट तैयार करना।

इन सभी स्तरों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:
1. सर्वेक्षण का विषय या उद्देश्य-सबसे पहले सर्वेक्षण का विषय निर्धारित करना ज़रूरी होता है जिस पर सर्वेक्षण होता है। विषय सर्वेक्षण विधि के अनुसार होना चाहिए। अगर विषय इस विधि के अनुसार नहीं हैं तो सर्वेक्षण करने में काफ़ी कठिनाई आ सकती है।

2. स्रोत का निर्धारण-विषय के निर्धारण के पश्चात् अगला स्तर है सूचना इकट्ठी करने के स्रोत का निर्धारण। यह स्रोत प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार, अवलोकन इत्यादि कुछ भी हो सकता है। अगर हम इस विधि का निर्धारण ही न कर पाएं तो सूचना एकत्रित कैसे होगी। इसलिए इस स्रोत का निर्धारण करना पहले से ही आवश्यक होता है।

3. सर्वेक्षण के प्रकार-तीसरा स्तर होता है सर्वेक्षण के प्रकार को निर्धारण करने का। असल में सर्वेक्षण के विषय से ही सर्वेक्षण के प्रकार का निर्धारण हो जाता है। यह सर्वेक्षण सामान्य है अथवा विशेष एक ही बार होगा या बार बार। यदि सर्वेक्षण में संगणना विधि का प्रयोग किया गया है तो बहुत समय तथा धन की आवश्यकता होती है।

अगर सैंपल विधि का प्रयोग किया जाएगा तो सैंपल किस प्रकार निकाला जाएगा। सामाजिक सर्वेक्षण लो है। इसलिए हमें इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि विषय से संबंधित कौन लोग हैं वह कहां रहते हैं तथा उनको कैसे मिला जा सकता है।

4. प्रश्नावली अथवा अनुसूची की रचना-सर्वेक्षण के प्रकार को निर्धारित करने के पश्चात् यह ज़रूरी है कि अगर सर्वेक्षण में प्रश्नावली या अनुसूची विधि का प्रयोग हो रहा है तो उनका निर्माण किया जाए। प्रश्नावली या अनुसूची का निर्माण बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। प्रश्नों को सावधानी से निर्मित किया जाना चाहिए क्योंकि अगर प्रश्न ठीक न हआ तो उत्तरदाता उत्तर देना बंद भी कर सकता है।

इसके बाद का स्तर होता है सचना एकत्रित करने का। अगर सूचना को साहित्य से एकत्रित करना है तो उसे भी देख लेना चाहिए। अगर सर्वेक्षण का क्षेत्र बड़ा है तो कार्यकर्ताओं को नियुक्त करना पड़ता है तथा कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण तथा देख-रेख का ध्यान भी रखना पड़ता है। सूचना एकत्र हो जाने के पश्चात् सारी सूचना को एक जगह पर इकट्ठा कर लेना चाहिए।

5. इकट्ठी सूचना का संपादन-सूचना इकट्ठी करने के पश्चात् अगला स्तर होता है एकत्रित सूचना के संपादन का। सबसे पहले प्राप्त सूचना का संपादन किया जाता है। गलत या भ्रमपूर्ण सूचना को बाहर निकाल दिया जाता है ताकि निष्कर्ष निकालते समय ग़लती न हो। सूचना के संपादन से हमारे सामने सही तथा संभव सचना अ जिससे निष्कर्ष निकालने आसान हो जाते हैं।

6. सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण-सूचना के संपादन के बाद सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण किया जाता है। प्राप्त सूचना को अलग-अलग वर्गों में रखा जाता है तथा उन वर्गों से सारणियां बनाई जाती हैं। वर्गीकरण तथा सारणीकरण करने से सूचना को समझने में आसानी हो जाती है तथा देखने वाला एक ही नज़र में निष्कर्ष निकाल लेता है।

7. सूचना का विश्लेषण-सूचना को वर्गों तथा सारणियों में डालने के पश्चात् उस सूचना का अलग-अलग कोणों से विश्लेषण किया जाता है। कई प्रकार की क्रियाओं से उसकी तुलना की जाती है तथा समन्वय की कोशिश की जाती है। उपलब्ध सिद्धांतों के आधार पर उस सूचना को तोला जाता है तथा उसके आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

8. निर्वाचन तथा अंतिम रिपोर्ट तैयार करना-सर्वेक्षण का अंतिम स्तर होता है रिपोर्ट तैयार करना तथा ग्राफ, चित्रों से सूचना को प्रकट करना। सर्वेक्षण चाहे किसी संस्था के लिए किया गया हो या अनुसंधानकर्ता के लिए, खोज रिपोर्ट को लिखना बहुत जरूरी होता है। रिपोर्ट के साथ ग्राफ तथा चित्र भी होने ज़रूरी है ताकि सूचना का महत्त्व स्पष्ट हो जाए तथा एक सामान्य व्यक्ति भी उसे आसानी से समझ सके।

इस तरह सर्वेक्षण प्रक्रिया इन ऊपर लिखे स्तरों से होकर गुज़रती है।

प्रश्न 12.
सर्वेक्षण प्रणाली के गुणों तथा सीमाओं का वर्णन करो।
अथवा
सर्वेक्षण पद्धति की कमजोरियों का वर्णन करें।
उत्तर:
सर्वेक्षण प्रणाली के गुण सर्वेक्षण प्रणाली के सामाजिक अनुसंधान की ओर विधियों की अपेक्षा कुछ गुण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. इस विधि से अनुसंधान में किसी प्रकार की व्यक्तिगत अभिनीत नहीं आती हैं। असल में किसी भी व्यक्ति के विचार उसकी परंपराओं, संस्कारों, हालातों इत्यादि से प्रभावित होते हैं जिस कारण हम अनुसंधान में कई बार उन हालातों की कल्पना करते हैं जिन्हें सिर्फ हमारा दिमाग स्वीकार करता है।

हम उसके अलावा और किसी स्थिति के बारे में सोचते भी नहीं। अगर हमें अनुसंधान में वैषयिकता लानी है तथा अभिनीतियों को समाप्त करना है तो सर्वेक्षण विधि ही उपयुक्त है क्योंकि इसमें व्यक्ति को अपने विचारों को अनुसंधान में लाने का मौका ही नहीं देता।

2. इस विधि से अनुसंधानकर्ता सीधा अनुसंधान के विषय में संपर्क में आता है। अगर वह उत्तरदाता से सीधे संपर्क में नहीं आता है तो वह या पूर्व निर्मित सिद्धांतों से या अपने व्यक्तिगत अनुभवों से समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करता है जो कि ग़लत है। सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर समाज की सही स्थिति का पता नहीं कर सकते हैं। सर्वेक्षण विधि से हरेक प्रकार के हालात तथा हरेक प्रकार के व्यक्ति तथा व्यवहार का पता चल जाता है। इस कारण ही सर्वेक्षण विधि द्वारा प्राप्त निष्कर्ष अधिक विश्वास योग्य होते हैं।

3. सर्वेक्षण विधि वैज्ञानिक विधि के सबसे करीब होती है चाहे इसमें अनसंधानकर्ता का घटना पर नियंत्रण रखना संभव नहीं होता। उसे घटना का निरीक्षण घटनास्थल पर जाकर ही करना पड़ता है, परंतु फिर भी सैद्धांतिक ज्ञान की अपेक्षा इस आधार पर इकट्ठी की गई सूचना ज्यादा विश्वसनीय होती है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता को अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करना पड़ता बल्कि प्रत्यक्ष अवलोकन से आंकड़े इकट्ठे करने पड़ते हैं। इस तरह प्राप्त सूचना से निकाले गए निष्कर्ष सच्चे माने जाते हैं।

4. सामाजिक क्षेत्र में नए हालात पैदा होते रहते हैं जो कि हमें किसी भी सिद्धांत में नहीं मिलते। इन नए हालातों से समाज में भारी परिवर्तन आ जाता है तथा कई प्रकार उपलब्ध ज्ञान से हमें सही स्थितियों का पता नहीं चलता। उदाहरण के तौर पर भारत में 1947 से पहले तथा बाद के हालातों में काफ़ी अंतर था। इन हालातों में हमें समाज के सही हालातों का ज्ञान वैज्ञानिक अध्ययन से लोगों के बीच जाकर ही हो सकता है तथा उसके लिए सर्वेक्षण विधि सबसे उपयुक्त है।

सर्वेक्षण विधि की सीमाएं-चाहे सर्वेक्षण विधि के कुछ गुण हैं, परंतु इस विधि की कुछ सीमाएं भी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. इस विधि में सबसे जरूरी यह है कि घटना आंखों के सामने ही घटित हो, परंतु ज्यादातर सामाजिक घटनाओं में यह मुमकिन नहीं है। यह ज़रूरी नहीं है कि घटना के घटित होते समय अनुसंधानकर्ता वहां पर उपस्थित हों।

बहुत सारी घटनाएं व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित होती हैं जोकि कोई और व्यक्ति कैसे देख सकता है। इन हालातों में हमें संबंधित व्यक्ति से पूछ कर ही काम चलाना पड़ता है जोकि विश्वसनीय नहीं हैं। कई बार लोग झूठ भी बोल देते हैं जिससे इस प्रणाली पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

2. इस विधि से संपूर्ण समाज का अध्ययन संभव नहीं है। इससे हम समाज के सिर्फ एक भाग का ही अवलोकन कर सकते हैं। जब हम किसी घटना का प्रत्यक्ष अवलोकन करते हैं तो इसे ही सत्य समझ बैठते हैं जबकि वह ग़लत भी हो सकता है। इससे ऐसे सिद्धांत बन सकते हैं जो समय की सीमा से दूर होते हैं। इससे प्राप्त सूचना अंशकालीन होती है दीर्घकालीन नहीं।

3. सर्वेक्षण विधि को हम पूरी तरह विश्वास योग्य नहीं मान सकते हैं। किसी भी चीज़ का अवलोकन करते समय हमारी नज़र हमारे विचारों, संस्कारों से प्रभावित होती है। हम घटना में सिर्फ वह चीज़ देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं। हम उन चीज़ों को देखते भी नहीं, जो हमें पसंद नहीं हैं। आमतौर पर किसी घटना के अवलोकन से ही हम निष्कर्ष निकाल लेते हैं। हम औरों से सूचना प्राप्त करते हैं जिससे ग़लती की संभावना ज्यादा हो जाती है।

4. सर्वेक्षण विधि में सैंपल प्रणाली का आमतौर पर प्रयोग होता है। सैंपल प्रतिनिधित्वपूर्ण हैं या नहीं, इसके बारे ह नहीं सकते। यह हो सकता है कि सैंपल का चुनाव करते समय अनुसंधानकर्ता ने अपनी रुचि का भी ध्यान रखा है। इन हालातों में सैंपल से निकाले गए निष्कर्ष प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं हो सकते। यह निष्कर्ष हर समय लागू नहीं हो सकते। सैंपल में अभिनीत आने का भी खतरा होता है जो कि वैज्ञानिक विधि के लिए ठीक नहीं है।

5. सर्वेक्षण विधि में खर्चा बहुत होता है तथा समय भी बहुत अधिक लगता है। इस कारण से ही यह व्यक्तिगत अनुसंधानों में मुमकिन नहीं है। यह तो सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा ही प्रयोग होती है। इसलिए इसका प्रयोग बहुत ही सीमित है।

अंत में हम कह सकते हैं कि चाहे इस विधि में कुछ दोष हैं, परंतु फिर भी अगर इस विधि को सावधानी से प्रयोग किया जाए तो इससे बहुत ही विश्वसनीय निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

प्रश्न 13.
साक्षात्कार किसे कहते हैं? इसके उद्देश्यों तथा प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
साक्षात्कार सामाजिक अनुसंधान की एक महत्त्वपूर्ण रीति है। साक्षात्कार का अर्थ उन व्यक्तियों से है जो किसी विशेष घटना से संबंधित होते हैं। मिलन तथा उस घटना के संबंध में औपचारिक वार्तालाप होता है। वार्तालाप एक निश्चित क्षेत्र में मतलब उस घटना के साथ संबंधित होता है पर यह स्वतंत्र तता अच्छे वातावरण में होता है।

इसें साक्षी (उत्तरदाता) अपने दिल की बात कहता है। इसमें शोधकर्ता किसी घटना से संबंधित व्यक्ति के आमने सामने बैठकर बातचीत करता है तथा उससे प्रश्न पूछकर सूचना प्राप्त करता है। उस सूचना के आधार पर वह उस घटना या विषय के संबंध में निष्कर्ष बना लेता है।

पी०वी०यंग (P.V. Young) के अनुसार, “साक्षात्कार एक ऐसी क्रमबद्ध विधि है जिसके द्वारा व्यक्ति करीब करीब अपनी कल्पना की मदद से अपेक्षाकृत अपरिचित के जीवन में प्रवेश करता है।” ।

(“The interview may be regarded as a systematic method by which one person enters more or less, imaginatively into the inner life of another who is generally a comparative stranger to him.”‘)
गूड तथा हाट (Goode and Hatt) के अनुसार, “साक्षात्कार आधारभूत रूप में एक सामाजिक प्रक्रिया है।” (“Interview is fundamentally a process of social interaction.”)।

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि साक्षात्कार सूचना इकट्ठी करने की एक क्रमबद्ध विधि है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी उद्देश्य को सामने रखकर आपस में बातचीत या संवाद करते हैं तथा सूचना एकत्र की जाती है। यह दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच वार्तालाप होता है तथा शोध से संबंधित सूचना एकत्रित की जाती है।

साक्षात्कार के उद्देश्य-(Aims of Interview): साक्षात्कार के आम तौर से दो उद्देश्य होते हैं-
1. घटना से संबंधित व्यक्ति से ऐसी सूचना प्राप्त करना जो सिर्फ उसे पता हो तथा किसी और साधन से उसे प्राप्त न किया जा सकता हो।
इस बात का पता करना कि किन्हीं विशेष हालातों में व्यक्ति किस प्रकार का शाब्दिक व्यवहार करता है।

2. पहले उद्देश्य के लिए शोधकर्ता कोई विषय चुन कर उत्तरदाता से उस विषय से संबंधित घटना या प्रक्रियाओं के बारे में पूछता है तथा सुनता है। शोधकर्ता उस को ध्यान से सुनता है तथा यह जानने की कोशिश करता है कि उसकी उपकल्पना सही है या ग़लत। दूसरे उद्देश्य के लिए शोधकर्ता उत्तरदाता की सूचना के साथ-साथ उसके चेहरे के हाव-भाव को ध्यान से देखता है। यहां शोधकर्ता समाजशास्त्री की जगह सामाजिक मनोवैज्ञानिक होता है तथा घटना की जगह उसकी भाषा शैली तथा हाव-भाव में होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान रखता है।

यह दोनों उद्देश्य साथ-साथ चलते हैं। फ़र्क सिर्फ इतना होता है कि शोध की प्रकृति के अनुसार किसी उद्देश्य पर जोर देना पड़ता है। दूसरा उद्देश्य सूचना की सच्चाई पता करने के लिए होता है।

साक्षात्कार के प्रकार-(Types of Interview):
1. नियंत्रित साक्षात्कार (Structured Interview)-इसे नियोजित साक्षात्कार भी कहा जाता है। इसमें अनुसूची का प्रयोग होता है। सारी प्रक्रियाएं नियोजित होती हैं तथा शोधकर्ता नियोजन के अनुसार चलता है। साक्षात्कार प्रश्न उत्तर के रूप में होता है। उत्तरदाता प्रश्नों के उत्तर देता है तथा शोधकर्ता अनुसूची में भरता जाता है। प्रश्नों के उत्तर के अलावा कुछ भी न तो नोट किया जाता है तथा न ही उसका महत्त्व होता है।

2. अनियंत्रित साक्षात्कार (Unstructured Interview) इसे कहानी टाइप साक्षात्कार भी कहते हैं। इसमें निश्चित प्रश्न नहीं होते। शोधकर्ता सिर्फ विषय के बारे में बता देता है तथा उत्तरदाता उस विषय से संबंधित घटना या प्रतिक्रिया को एक कहानी की तरह बताता है। उसे अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता होती है तथा साक्षात्कारी पूरी तरह स्वतंत्र होता है। ज्यादा-से-ज्यादा घटना से संबंधित कोई प्रश्न पूछा जा सकता है।

3. केंद्रित साक्षात्कार (Focused Interview) इस प्रकार का साक्षात्कार रेडियो या फिल्म के प्रभाव को पता करने के लिए होता है। शोधकर्ता सिर्फ इस बात का ध्यान रखता है कि किसी घटना का किसी व्यक्ति प्रभाव पड़ा। उत्तरदाता अपने विचारों, मनोभावों को बताता है। इसके लिए Interview Guide की मदद भी ली जा सकती है। यह भी स्वतंत्र रूप में वर्णित किया जाता है।

4. आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार-इस प्रकार का साक्षात्कार किसी सामाजिक या मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा पड़ने वाले क्रमिक प्रभाव को जानने के लिए होता है। कई घटनाओं का प्रभाव ज्यादा देर रहता है। इसलिए इस को पता करने के लिए एक ही साक्षात्कार से काम नहीं चलता तो यह बार-बार किया जाता है।

इस प्रकार के साक्षात्कार में पैसा तथा समय काफ़ी खर्च होता है। इसलिए व्यक्तियों की संख्या कम होनी चाहिए।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 14.
साक्षात्कार की तैयारी की पूर्ण प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन दें।
उत्तर:
अगर साक्षात्कार अच्छे तरीके से करना है तो उसके लिए कुछ तैयारी की ज़रूरत है जिसका वर्णन इस प्रकार है-
1. समस्या का ज्ञान-साक्षात्कार शुरू करने से पहले उत्तरदाता को साक्षात्कार करने के लिए राजी करना होता है। शोधकर्ता को उत्तरदाता की शंका निवारण के लिए कई प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है।

इसलिए सबसे पहले शोधकर्ता या कार्यकर्ताओं को समस्या तथा उसके अलग-अलग पहलुओं का पूरा ज्ञान होना ज़रूरी है। अगर समस्या का ठीक तरीके से पता न हो तो आम तौर पर लोग साक्षात्कार देने से इंकार कर देते हैं। इसलिए सबसे पहले शोधकर्ता को समस्या का सही ज्ञान होना जरूरी है ताकि वह शंकाओं का निवारण कर सके।

2. साक्षात्कार प्रदर्शिका का निर्माण (Making of Interview Guide) समस्या का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् दूसरा काम Interview guide को तैयार करना होता है। Interview Guide एक लिखित आलेख होता है जिसमें Interview की योजना का संक्षेप वर्णन होता है। इसमें अनुसूची या प्रश्नावली की भांति निश्चित प्रश्न नहीं होते पर Interview की साधारण विधि समस्या के विभिन्न पक्षों जिन पर सूचना प्राप्त करनी है व विशेष स्थिति नर्देश होती है।

समस्या से संबंधित भिन्न इकाइयों की सही परिभाषा व अर्थ भी दिया जाता है ताकि इकाइयों का अर्थ समझने में विभिन्नता न हो। सारांश यह है कि Interview Guide इस काम के लिए भेजी ज कि उनके क्रम में एकरूपता रहे। इसलिए Interview लेने वाले के वर्णन को नोट करने की विधि का उल्लेख भी Guide में होना चाहिए।

3. Interview लेने वालों का चुनाव (साक्षी)-समस्या के अध्ययन व Interview Guide के निर्माण के पश्चात् उन व्यक्तियों का चुनाव करना पड़ता है जिनसे Interview की जानी है। इसके लिए निर्देशन प्रणालियों में किसी एक को अपनाया जा सकता है। इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि चुने हुए व्यक्तियों को अनुसंधान के विषय से संबंधित होने से Interview के लिए उपलब्ध हो सकें। इसके लिए उनके पते का होना भी ज़रूरी है। इस प्रकार के Interview में समय अधिक लगता है। इसलिए चुने हुए व्यक्तियों की संख्या कम होनी चाहिए।

4. Interview देने वालों के संबंध में सूचना-यदि पैनल विधि का उपयोग नहीं किया गया तो Interview देने वाले नए हैं तो उनके संबंध में आरंभिक ज्ञान प्राप्त कर लेना अधिक उपयोगी है। इसके लिए साक्षियों में स्वभाव, मिलनसारता, रुचियां, पेशे फुर्सत के समय आदि का ठीक-ठीक पता कर लेना आमतौर से Interview के काम में बहुत सहायक होता है।

इसको जांच लेने से Interview लेने वाला सजग व सावधान रहता है व ऐसे हालात नहीं पैदा होने देता जिससे कि साक्षी नाराज़ हो जाए। इसके सिवा उससे उचित समय पर मिला जा सकता है। इस प्रकार के ज्ञान के अभाव में कभी-कभी Interview लेने वाला ऐसी भूल कर जाता है जिससे Interview समाप्त हो जाता है या ऐसी स्थिति का एक दम से सामना करना पड़ता है कि जिसके लिए वह बिल्कुल तैयार नहीं होता।

5. Interview के समय का पूर्व निर्धारण-आमतौर पर Interview के लिए पहले ही, समय व स्थान निश्चित कर लेना अधिक उपयोगी होता है। इससे एक तो साक्षी समझता है कि अनुसंधानकर्ता से उसके समय का महत्त्व पता है व उसके अहम को चोट नहीं लगती। इसके अलावा जब अनुसंधानकर्ता साक्षी के घर पहुंचता है तो वह एकदम अचानक नहीं पहंच जाता। साक्षी एक प्रकार से उसके इन्तज़ार में रहता है व उसके लिए उचित प्रबंध कर लेता है।

साथ ही साथ उसको संबंधित विषय पर सोचने का मौका मिल जाता है। एकदम पहुंचने से साक्षी कभी-कभी बिगड़ जाते हैं व Interview देने से मना कर सकता है या कम-से-कम दोबारा आने के लिए कह सकता है। इसके सिवा समय का पूर्व निर्धारण कर लेने से Interview लेने वाला सही समय पर पहुंचता है। एकदम ग़लत समय पर पहुंचने का भी कभी-कभी ग़लत प्रभाव पड़ता है व साक्षी हमेशा के लिए अनुसंधानकर्ता के संबंध में गलत धारणा बना लेता है जिसका प्रभाव Interview व सूचना पर भी पड़ता है।

यदि ऐसा न हो तो एक ही व्यक्ति के पास बार-बार जाने से बहुत समय बर्बाद होता है। एकदम बिना पूर्व सूचना के पहुंच जाने से यह भी हो सकता है कि साक्षी घर पर ही न हो या बहुत Busy होने पर Interview करने की मनोस्थिति में न हो। ऐसी दशा में वह अनुसंधानकर्ता को फिर आने के लिए कहेगा तो व्यर्थ ही इस प्रकार बहुत समय बर्बाद होगा। समय का पूर्व निर्धारण पत्र के द्वारा व टेलीफोन के द्वारा किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
साक्षात्कार विधि की सीमाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
साक्षात्कार विधि की सीमाएं-(Limitations of Interview Method):
(1) इस प्रकार के Interview के संचालन के लिए उच्च कोटि की चतुरता या बुद्धि ज़रूरी है। Interview लेने वाले का व्यक्तिगत पूरा शक्तिशाली होना चाहिए ताकि वह सफलतापूर्वक साक्षी से सच कहला सके। जो काम करने वाले इस काम के लिए नियुक्त किए जाते हैं उनमें शायद ही यह गुण पाया जाता है। इसका फल यह होता है कि पूरी अविश्वासी विषय से संबंधित व झूठी सामग्री एकत्र हो जाती है।

(2) इस विधि में बहुत कुछ व्यक्ति प्रधानता होती है। साक्षी जो कुछ कहता है वह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उसको सुनने वाला कौन है। इसलिए उसका वर्णन भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के साथ बदलता रहता है। इसके अलावा किसी घटना के लोग अपने-अपने दृष्टिकोण से समझते व वर्णन करते हैं। इसके लिए एक ही घटना के भिन्न वर्णन हो सकते हैं।

(3) इस विधि द्वारा प्राप्त सामग्री का सच सदा शक होता है। उसमें ग़लती के अनेक कारण हो सकते हैं। Invalidity को दूर रखने के जो प्रतिबंध प्रयोग किए गए हैं वह अभी तक पूरी तरह प्रभावशाली सिद्ध नहीं हुए हैं। अनुसूची द्वारा जो सूचना छोटे-छोटे प्रश्न उत्तरों के रूप में ली जाती है उसकी जगह वर्णात्मक कथन में ग़लती, झूठ आदि बातें कहने को अधिक उत्साह मिलता है। व्यक्ति की कल्पना को इससे ज्यादा बल प्राप्त होता है व अधिकतर अंश काल्पनिक ही होते हैं।

(4) इस विधि में Interview के लिए राजी करना भी एक समस्या है। अनुसूची में लिखित साधारण प्रश्न को उत्तर की संक्षेप में लोग भी दे देते हैं। पर खुल कर खुले दिल से अपने साथ बीती घटनाओं का सिलसिला व सही विवरण सुनाना बहुत कम लोग स्वीकार करते हैं। यह मुश्किल उस समय और भी बढ़ जाती है जब अनुसंधान का विषय साक्षी के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित किसी भावात्मक घटना के बारे में होता है। जैसे प्रेम ववाह या तलाक संबंधी अनुसंधान।

(5) इस विधि में Interview लेने वाला पूरी तरह साक्षी की कृपा पर निर्भर रहता है। प्रत्यक्ष अवलोकन के अभाव में इस बात का निर्णय बहुत मुश्किल हो जाता है कि वर्णन में झूठ का अंश कितना है। साक्षी यदि ईमानदार है तो ही यह संभव है कि उसकी समझने की शक्ति (याददाशत) ठीक न हो, उसमें घटना की गहराई देखने से समझने की शक्ति न हो या घटना का ठीक-ठीक वर्णन न कर पाता हो।

(6) इस प्रकार के वर्णन भावनाओं की पूरी सीमा तक प्रभावित होते हैं। वह प्रमाणित नहीं होते व लोग मनमाने ढंग से वर्णन करते हैं। इसलिए सामग्री के वर्गीकरण व सारणी या सांख्यिकी विवेचन में मुश्किल होती है। आमतौर पर साक्षी व Interview लेने वाला ही अलग वातावरण व समाज दर्शन की कल्पना करते हैं व किसी विशेष सामाजिक घटना के संबंध में उनके विचार भिन्न हो सकते हैं यदि उनके विचार एक जैसे भी हो तो भी संभव हो सकता है कि जाने या अनजाने साक्षी अपने महत्त्वपूर्ण अनुभवों में कुछ को छोड़ देने पर इस तरह उसका वर्णन एक प्रकार से केवल एक तरफा, अपूर्ण व व्यर्थ का ही रह जाए।

प्रश्न 16.
साक्षात्कार विधि के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर:
साक्षात्कार विधि के गुण
(Merits of Interview Method)
(1) Interview विधि अनुसंधान की सबसे लचीली विधि है। यदि साक्षात्कारों के प्रश्न समझ में न आएं तो उन्हें और शब्दों में पूछा जा सकता है, प्रश्नों को दोबारा पूछा जा सकता है व उनके महत्त्व को समझा जा सकता है। इसके अलावा Interview लेने वाले को भी इस बात का मौका मिलता है कि वह दिए गए उत्तरों की जांच कर ले।

वह साक्षी के भाव, बोलने के ढंग से ही पता लगा लेता है कि साक्षी सच कह रहा है झूठ। यदि साक्षी कुछ विरोधी बातें कहता है तो यह इनकी जांच कर सकता है। कहने का मतलब यह है कि Interview द्वारा वर्णन को शुदधि करने का मौका मिलता है व सूचना अधिक विश्वास योग्य होती है।

(2) सामाजिक अनुसंधान में उपयोग की जाने वाली विधियों की तुलना में Interview विधि अधिक उपयोगी है। जैसे प्रश्नावली में हम केवल उन्हीं व्यक्तियों को अपने अध्ययन में चुने गए Sample की इकाई के रूप में शामिल करते हैं जोकि आमतौर पर शिक्षाप्रद हो और प्रश्नावली में दिए गए प्रश्नों को स्पष्ट रूप में समझता हो तो ही वह संतोषजनक उत्तर देगा पर Interview विधि में सभी वर्गों व स्तर के लोगों का अध्ययन कर प्रभावित तथ्य इकट्ठे कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त यह विधि नीरस या बोर नहीं होती बल्कि Interview लेने वाले व देने वाले Interview के दौरान एक-दूसरे के लिए नियंत्रक व आपसी प्रेरणा के रूप में काम करते हैं।

(3) Interview विधि द्वारा हम उन घटनाओं का भी अध्ययन कर सकते हैं जो प्रत्यक्ष अवकोलन के अयोग्य हैं व जिनका पता साक्षी के अलावा किसी को नहीं है। अधिकतर सामाजिक घटनाएं विषय श्रेणी की होती हैं। इसलिए Interview ही सामाजिक अनुसंधान की सबसे बढ़िया विधि है।

(4) भावात्मक स्थितियों में जैसे, विचार, भावनाओं व प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए यह बढ़िया विधि है। सभी तथ्य प्रत्यक्ष अवलोकन के लिए ठीक नहीं होते। किसी घटना से किसी व्यक्ति की मानसिक दशा पर क्या प्रभाव पड़ा इसको वही व्यक्ति जान सकता है, जो उसके संपर्क में रहा हो। इसलिए Interview द्वारा हम इसका पता आसानी से लगा सकते हैं। इस दृष्टिकोण से यह पद्धति सबसे गहरी मानी जा सकती है।

(5) Interview द्वारा हम किसी सामाजिक घटना का अध्ययन उसकी ऐतिहासिक भावनात्मक पृष्ठभूमि से कर सकते हैं। इसकी सहायता के बिना उनका असली महत्त्व जानना मुश्किल होता है। हमारी अधिकतर क्रियाएं भावनाओं द्वारा प्रभावित होती हैं और परिस्थितियों व भावनाओं को जाने बिना हमारा किसी घटना का अध्ययन अधूरा रहेगा। वर्णात्मक Interview में इस प्रकार हमें किसी घटना का सारा सच्चा स्वरूप पता लग सकता है।

(6) Interview द्वारा प्राप्त सूचना पर यदि उचित नियंत्रण का उपयोग किया जाए तो वह पूरी सीमा तक सही पाया जाता है। असल में जिन विशेष परिस्थितियों के लिए उसका उपयोग किया जाता है उसके लिए यह एकमात्र संभव विधि है।

प्रश्न 17.
ब्रोनिस्लाव मैलिनोवस्की द्वारा फील्डवर्क के आविष्कार पर चर्चा करें।
उत्तर:
मैलिनोवस्की को फील्डवर्क का आविष्कार माना जाता है। चाहे उससे पहले भी फील्डवर्क के अलग-अलग प्रकार प्रयोग में लाए जा चुके थे परंतु मैलिनोवस्की को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उसने फील्डवर्क को एक विधि के रूप में मानवशास्त्र में स्थापित किया। 1914 में जब यूरोप में पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया था तो मैलिनोवस्की उस समय ऑस्ट्रेलिया में था। उस समय ऑस्ट्रेलिया ब्रिटिश साम्राज्य का एक हिस्सा था तथा मैलिनोवस्की पोलैंड का नागरिक था।

क्योंकि पोलैंड को जर्मनी ने जीत लिया था इसलिए पोलैंड को ब्रिटेन द्वारा दुश्मन देश घोषित कर दिया गया था। मैलिनोवस्की उसकी पोलिश नागरिकता के कारण दुश्मन समझा गया। मैलिनोवस्की लंडन ऑफ इकोनोमिक्स का एक प्रसिद्ध प्रोफैसर जिस वजह से उसके ब्रिटिश तथा ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों से अच्छे संबंध थे। परंतु क्योंकि तकनीकी रूप से वह शत्रु था इसलिए या तो उसे नज़रबंद करना चाहिए था या फिर किसी विशेष जगह तक ही उसे सीमित कर देना चाहिए था।

मैलिनोवस्की ऑस्ट्रेलिया में कई जगह घूमता रहा। अंत में वह अपनी मानवी शास्त्रीय खोज के लिए South Pacific के द्वीपों पर जाना चाहता था। इसलिए उसने उच्च अधिकारियों से इस बारे में बात की कि उसे Tribriand के द्वीपों पर जाने की इजाजत दी जाए जोकि ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा थे। सरकार ने न सिर्फ इस बात की इजाजत दी बल्कि उसको वहां जाने तथा कार्य करने के लिए पैसा भी दिया। उसने उन द्वीपों पर डेढ़ साल बिताया।

वह वहां के गांवों में टैंटों में रहा, वहां की भाषा सीखी तथा उनकी संस्कृति को जानने के लिए उनके साथ नज़दीकी से अंतर्किया की। उसके अपने निरीक्षण का एक विस्तृत तथा सावधानी भरा रिकार्ड रखा तथा उसमें एक रोज़ाना डायरी भी रखी। उसने बाद में Trobriand संस्कृति पर कुछ किताबें भी लिखी, जोकि उसकी रोजाना की डायरियों तथा फील्ड नोट पर आधारित थी। बाद में यह किताबें काफ़ी मशहूर हो गईं तथा आज भी उन्हें काफ़ी महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।

Trobriand के अनुभव से पहले ही मैलिनोवस्की को एक पक्का विश्वास हो गया था कि मानवशास्त्र का भविष्य स्थानीय संस्कृति तथा मानवीशास्त्रीय के बीच सीधे संबंध में छुपा हुआ है। उसको पता चल गया था कि यह विषय उस समय तक तरक्की नहीं कर सकता जब तक कि मानवशास्त्रीय अपने आपको सीधे निरीक्षण से नहीं जोड़ लेता अध्ययन किए जाने वाले समह की भाषा को नहीं सीख लेता।

यह निरीक्षण इस दृष्टि से हो कि मानवशास्त्री उस समूह के बीच रहे, उनके जीवन का अवलोकन करे ताकि उसका उद्देश्य हल हो सके। उसको स्थानीय भाषा सीखनी चाहिए ताकि किसी मध्यस्थ की ज़रूरत न पड़े तथा वह उनके जीवन को सही दृष्टि से देख सके।

उसकी Trobriand की यात्रा तथा अध्ययन ने मानवशास्त्र में फील्डवर्क की ज़रूरत को बल दिया तथा इसके बाद मानवशास्त्र में फील्डवर्क होना शुरू हो गया। इस तरह फील्डवर्क की मदद से मानवशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में बहुत सहायता मिली।

प्रश्न 18.
भारतीय समाजशास्त्र में फील्डवर्क की महत्ता के बारे में चर्चा करें।
उत्तर:
भारतीय समाजशास्त्र में गांवों के अध्ययन के लिए फील्डवर्क को एक विधि के रूप में प्रयोग किया गया। 1950 के दशक में समाजशास्त्रियों तथा मानवशास्त्रियों, देसी तथा विदेशी, दोनों ने ग्रामीण जीवन का अध्ययन करना शुरू किया। गांव ने कबाईली समुदाय के जैसा कार्य किया। गांव को भी एक बंधा हुआ समुदाय माना गया जोकि इतना छोटा होता है कि एक व्यक्ति द्वारा अकेले भी अध्ययन हो सकता है।

एक व्यक्ति ग्रामीण जीवन के प्रत्येक पक्ष का आसानी से अध्ययन कर सकता है। इसके साथ ही भारतीय पढ़े-लिखे वर्ग में यह महसूस किया गया कि मानवशास्त्र साम्राज्यवाद की नीतियों के अनुसार चलता है। इसलिए गांवों को अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र ही ठीक है।

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों का अध्ययन महत्त्वपूर्ण था क्योंकि इससे अभी-अभी स्वतंत्र हुए भारत को काफ़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती थी। सरकार भी ग्रामीण भारत को विकसित करने की पक्षधर थी। देश का राष्ट्रीय आंदोलन तथा गांधी जी भी ग्रामीण क्षेत्रों को ऊपर उठाने के कार्यक्रम चलाने के पक्षधर थे। इसके साथ पढ़े-लिखे तथा शहरों में रहने वाले लोग भी ग्रामीण जीवन को ऊंचा उठाने के पक्षधर थे। क्योंकि उनके परिवार के कुछ सदस्य अभी भी गांवों में रहते थे तथा उनके गांवों से ऐतिहासिक Links थे।

इसके अलावा भारत की बहुत ज्यादा जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती थी। इन सभी कारणों के कारण गांवों का अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया तथा भारतीय समाजशास्त्र का एक अभिन्न अंग बन गया। इन सब के साथ फील्डवर्क ग्रामीण जीवन को समझने के लिए एक अच्छी विधि थी। इसलिए फील्डवर्क की समाजशास्त्र में महत्ता काफ़ी बढ़ गई। वैसे फील्डवर्क की समाजशास्त्र में महत्ता निम्नलिखित भी है-
(1) फील्डवर्क से अनुसंधानकर्ता को अध्ययन किए जाने वाले समूह के काफ़ी नज़दीक जाने का अवसर प्राप्त होता है जिससे वह ज्यादा सूक्ष्म रूप से अध्ययन कर सकता है। किसी व्यक्ति के परिवार के जीवन का सबसे बढ़िया तथा सच्चा परिचय उसको होगा जो उसके साथ उसके घर में रहा हो।

(2) फील्डवर्क में निरीक्षणकर्ताओं को समूह के अलग-अलग व्यवहारों, आपसी संबंधों तथा रिवाजों को अच्छी तरह समझने की शक्ति प्राप्त होती है। कोई भी बाहर से रीति-रिवाजों, व्यवहार को नहीं समझ सकता। उसके लिए समूह के अंदर जाना पड़ता है तथा फील्डवर्क में यह मुश्किल है।

(3) फील्डवर्क स्वाभाविक हालात में संभव है। जब लोगों को पता चलता है कि कोई उनका निरीक्षण कर रहा है तो उनके व्यवहार में अस्वाभाविकता आ जाती है तथा बनावटीपन भी आ जाता है। इससे निरीक्षणकर्ता को सही सूचना प्राप्त नहीं होती। इसलिए सही सूचना प्राप्त करने के लिए फील्डवर्क बहुत ज़रूरी है।

(4) फील्डवर्क देखने वाले की नज़र को ज्यादा सूक्ष्म बना देता है ताकि वह जल्दी-से-जल्दी उचित नतीजों को ग्रहण कर सके। समूह में रहने के बाद निरीक्षणकर्ता समूह की क्रियाओं तथा व्यवहार से परिचित हो जाता है तथा छोटी-सी ग़लती भी उसका ध्यान खींच लेती है।

(5) फील्डवर्क ज्यादा सुविधाजनक होता है। इसमें व्यक्ति समूह में उसके सदस्य के रूप में जाता है न कि निरीक्षणकर्ता के रूप में चाहे उसका उद्देश्य दूसरा होता है। संबंधित व्यक्ति भी इसका विरोध नहीं करते। इस तरह फील्डवर्क निरीक्षणकर्ता को ज्यादा सुविधा देता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र में फील्डवर्क की बहुत महत्ता है। किसी समूह या संस्था के बारे में विस्तृत जानकारी फील्डवर्क की मदद से ही संभव है।

परियोजना कार्य के लिए सुझाव HBSE 12th Class Sociology Notes

→ इस अध्याय में हमें कुछ छोटी-छोटी अनुसंधान परियोजनाओं के बारे में पता चलेगा जिन पर हम कार्य कर सकते हैं। वास्तव में अनुसंधान के बारे में पढ़ने तथा उसे वास्तव में करने में बहुत अंतर होता है तथा यह अध्याय हमें इसके बारे में ही बताता है।

→ प्रत्येक अनुसंधान प्रश्न पर कार्य करने के लिए एक उपयुक्त अनुसंधान पद्धति की आवश्यकता होती है तथा एक प्रश्न का उत्तर अक्सर एक से अधिक पद्धतियों से दिया जा सकता है। परंतु यह ज़रूरी नहीं है कि एक अनुसंधान पद्धति सभी प्रश्नों के लिए उपयुक्त हो। इसे बहुत ही सावधानीपूर्वक चुनना पड़ता है। अनुसंधान पद्धति के चुनाव के लिए व्यावहारिकता को ध्यान में रखना चाहिए। व्यावहारिकता में कई बातें शामिल होती हैं जैसे कि अनुसंधान के लिए उपलब्ध समय की मात्रा, लोगों एवं सामग्री दोनों के रूप में उपलब्ध संसाधन, वह हालात जिनमें शोध किया जाना है इत्यादि।

→ शोध में बहुत-सी पद्धतियां प्रयोग की जा सकती हैं। सबसे पहली पद्धति है सर्वेक्षण प्रणाली जिसमें सामान्यतः निर्धारित प्रश्नों को अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में लोगों से पूछा जाता है। इसमें उत्तरदाता प्रश्न सुनकर उत्तर देता है तथा अन्वेषक उन उत्तरों को लिख लेता है। इसे प्रश्नावली विधि में भी प्रयोग किया जा सकता है।

→ शोध में साक्षात्कार प्रणाली को भी प्रयोग किया जाता है जिसमें उत्तरदाता से आमने-सामने बैठ कर प्रश्न पूछे जाते हैं तथा अन्वेषक उन उत्तरों को या तो रिकार्ड कर लेता है या लिख लेता है। साक्षात्कार लेते समय तक भी चल सकता है।

→ प्रेक्षण पद्धति में शोधकर्ता अपने शोधकार्य के लिए निर्धारित परिस्थिति या संदर्भ में क्या कुछ हो रहा है इस पर बारीकी से नज़र रखता है तथा उसका अभिलेख तैयार करता है। चाहे वह कार्य काफ़ी सरल दिखाई देता है परंतु यह होता नहीं है। परियोजना कार्य पर शोध करने के लिए एक से अधिक पदधतियों का सम्मिश्रण भी किया जा सकता है तथा इसके लिए अक्सर सिफ़ारिश भी की जा जाती है।

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HBSE 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत Notes.

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत

→ विद्युत धारा (Electric current)-विद्युत एक बहुउपयोगी, सुविधाजनक, नियंत्रित कर सकने योग्य महत्वपूर्ण ऊर्जा है, विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं।

→ विद्युत धारा को i= \( \frac{q}{t}\) सूत्र से व्यक्त करते हैं। विद्युत धारा का मात्रक ऐम्पियर है।

→ विभवान्तर (Potential difference) किसी विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों को प्रवाहित करने के लिए किसी सेल या। बैटरी का प्रयोग करते हैं, सेल अपने सिरों के बीच विभवान्तर उत्पन्न करता है। दो बिन्दुओं के बीच 1 कूलॉम आवेश | को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में यदि 1 जूल कार्य किया जाए तो उन दोनों बिन्दुओं के बीच विभवान्तर 1 वोल्ट होगा।

→ किसी धारावाही विद्युत परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच विद्युत विभवान्तर को हम उस कार्य द्वारा परिभाषित करते हैं। जो एकांक आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक लाने में किया जाता है।
V=\(\frac{W}{q} \) ; विद्युत विभवान्तर का मात्रक वोल्ट है।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत

→ ओम का नियम (Ohm’s law)-किसी धातु के तार में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा उस तार में सिरों के बीच विभवान्तर के अनुक्रमानुपाती होती है, परन्तु तार,का ताप समान रहना चाहिए। इसे ओम का नियम कहते हैं।
V∝ I अथवा \(\frac{V}{I} \) =R (नियतांक)

→ धारा नियंत्रक (Current Controller)-किसी विद्युत परिपथ में परिपथ के प्रतिरोध को परिवर्तित करने के लिए। । धारा नियंत्रक का उपयोग किया जाता है।

→ प्रतिरोध (Resistance) किसी चालक का वह गुण जिसके कारण वह अपने में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा का विरोध करता है, प्रतिरोध कहलाता है। इसका SI मात्रक ओम (Ω) है।

→ किसी धातु के एक समान चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई के अनुक्रमानुपाती तथा उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती होता है। R= ρ \(\frac{l}{\mathrm{~A}}\) ρ को वैद्युत प्रतिरोधकता या विशिष्ट प्रतिरोध कहते हैं, इसका SI मात्रक Ω m है।

→ श्रेणी संयोजन (Series combination)-यदि प्रतिरोधों के एक सिरे से दूसरे सिरे को जोड़ा जाये तो यह श्रेणीक्रम संयोजन कहलाता है।

→ श्रेणीक्रम में तुल्य प्रतिरोध R = R1+ R2 + R3 +……………सूत्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

→ पावक्रम संयोजन (Parallel combination)-प्रतिरोधकों का ऐसा संयोजन जिसमें प्रतिरोधक एक साथ दो बिन्दुओं के मध्य संयोजित हो, पार्श्वक्रम संयोजन या समानान्तर संयोजन कहलाता है।

→ पावक्रम संयोजन में कुल विद्युत धारा I = I1+I2 + I3 +……………. से प्रदर्शित की जाती है।

→ पार्श्वक्रम में तुल्य प्रतिरोध \(\frac{1}{R}=\frac{1}{R_1}+\frac{1}{R_2}+\frac{1}{R_3} \) + …………… सूत्र से प्रदर्शित किया जाता है।

→ जूल का तापन नियम (Joules heating effect law)-जूल के तापन नियमानुसार किसी प्रतिरोधक में उत्पन्न होने वाली ऊष्मा निम्नलिखित दशाओं पर निर्भर करती है –

  • दिए गए प्रतिरोधक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है।
  • दी गई विद्युत धारा के लिए प्रतिरोध के अनुक्रमानुपाती होती है, तथा
  • उस समय के अनुक्रमानुपाती होती है जिसके लिए दिए गए प्रतिरोध से विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
    H=i2Rt

→ विद्युत शक्ति (Electric power)-ऊर्जा के उपभुक्त होने की दर शक्ति कहलाती है- P= i2 R= \(\frac{V^2}{R} \) =Vi विद्युत शक्ति का मात्रक वॉट (W) है।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत

→ यदि 1 A विद्युत धारा को 1 V विभवान्तर पर प्रचालित किया जाता है तो शक्ति 1 वॉट होती है
1 वॉट = 1 वोल्ट x 1 ऐम्पियर

→ विद्युत ऊर्जा (Electrical energy)-विद्युत ऊर्जा का व्यापारिक मात्रक किलोवॉट घण्टा (kWh) है।
kWh = 36,00,000 J= 3.6 x 106J.

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Exercise 1.3

Question 1.
Write the following in decimal form and say what kind of decimal expansion each has:
(i) \(\frac {36}{100}\)
(ii) \(\frac {1}{11}\)
(iii) 4\(\frac {1}{8}\)
(iv) \(\frac {3}{13}\)
(v) \(\frac {2}{11}\)
(vi) \(\frac {329}{400}\)
Solution:
(i) By long division, we have
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 1
Hence, \(\frac {36}{100}\) = 0.36
Hence, It has terminating decimal expansion.

(ii)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 2
Hence, \(\frac {1}{11}\) = 0.090909 = \(0 . \overline{09}\).
It has non-terminating and repeating decimal expansion.

(iii)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 3
Hence,
4\(\frac {1}{8}\) = 4.125.
It has terminating decimal expansion.

(iv)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 4
Hence, \(\frac {3}{13}\) = 0.2307692307692…
= \(0 \cdot \overline{230769}\)
It has non-terminating repeating decimal expansion.

(v)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 5
Hence,
\(\frac {2}{11}\) = 0.1818… = \(0 \cdot \overline{18}\)
It has non-terminating repeating decimal expansion.

(vi)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 6
Hence, \(\frac {329}{400}\) = 0.8225.
It has terminating decimal expansion.

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3

Question 2.
You know that \(\frac {1}{7}\) = \(0 \cdot \overline{142857}\). Can you predict what the decimal expansions of \(\frac{2}{7}, \frac{3}{7}, \frac{4}{7}, \frac{5}{7}, \frac{6}{7} \) are, without actually doing the long division ? If so, how ? [Hint : Study the remainders while finding the value of \(\frac {1}{7}\) carefully]
Solution :
Yes, we can predict what the decimal expansions of \(\frac{2}{7}, \frac{3}{7}, \frac{4}{7}, \frac{5}{7}, \frac{6}{7} \) are without actually doing the long division. Now 1 divide by 7
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 7
We observe that remainder repeat after six division. So, it has repeating block of six digits. The given rational numbers \(\frac{2}{7}, \frac{3}{7}, \frac{4}{7}, \frac{5}{7}\) and \(\frac {6}{7}\) and will also have repeating block of six digits in the decimal expansions. So, to obtain the decimal expansions of given rational numbers, multiplying \(0 . \overline{142857}\) successively by 2, 3, 4, 5 and 6 as follows:
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 8

Question 3.
Express the following in the form \(\frac {p}{q}\), where p and q are integers and q ≠ 0:
(i) \(0 \cdot \overline{6}\)
(ii) \(0.4 \overline{7}\)
(iii) \(0 \cdot \overline{001}\)
Solution:
(i) Let x = \(0 \cdot \overline{6}\) = 0.6666 …….(i)
Multiplying equation (i) by 10, we get
10x = \(6 \cdot \overline{6}\)
Subtracting equation (i) from (ii), we get
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 9
⇒ x = \(\frac{6}{9}=\frac{2}{3}\)
Hence,
\(0 \cdot \overline{6}\) = \(\frac{2}{3}\)

(ii) Let x = \(0.4 \overline{7}\) =0.47777 ……(i)
Since, there is one non-repeating digit after the decimal.
Therefore, multiplying equation (i) by 10. So that this digit shifted before the decimal, we get
10x = \(4 \cdot \overline{7}\) = 4.7777 ………(ii)
Multiplying the equation (ii) by 10, we get
100x = \(47 \cdot \overline{7}\) …….(ii)
Subtracting equation (ii) from (iii), we get
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 10
⇒ x = \(\frac {43}{90}\)
Hence,
\(0.4 \overline{7}\) = \(\frac {43}{90}\)

(iii) Let
x = \(0 . \overline{001}\)
= 0.001001001 ………(i)
Multiplying equation (i) by 1000, we get
1000x = \(1 . \overline{001}\) ………(ii)
Subtracting equation (i) from (ii), we get
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 11
⇒ x = \(\frac {1}{999}\)
Hence,
\(0 . \overline{001}\) = \(\frac {1}{999}\)

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3

Question 4.
Express 0.99999….. in the form \(\frac {p}{q}\). Are you surprised by your answer ? With your teacher and classmates discuss why the answer makes sense.
Solution:
Let x = 0.99999… = \(0 . \overline{9}\) …….(i)
Mutiplying equation (i) by 10, we get
10x = 9.99999… = \(9 . \overline{9}\) ……(ii)
Subtracting equation (i) from (ii), we get
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 12
x = \(\frac {9}{9}\) = 1
Hence, 0.99999… = 1
We observe that there is no gap between 1 and 0.99999… and hence they are equal.

Question 5.
What can the maximum number of digits be in the repeating block of digits in the decimal expansion of \(\frac {1}{17}\)? Perform the division to check your answer.
Solution:
By long division method, we have
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 13
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 14
We observe that the remainder start repeating after 16 divisions.
Hence, \(\frac {1}{17}\) = \(0 . \overline{0588236294117647}\)

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3

Question 6.
Look at several examples of rational numbers in the form \(\frac {p}{q}\) (q ≠ 0), where p and q are integers with no common factors other than 1 and having terminating decimal representations (expansions). Can you guess what property q must satisfy?
Solution :
Let us consider the various rational numbers be \(\frac{1}{2}, \frac{1}{4}, \frac{1}{8}, \frac{7}{20}, \frac{23}{25}, \frac{12}{125}\) etc.
In all these rational numbers multiplying the denominator by such numbers so that it becomes 10 or power of 10, we get
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 1 Number Systems Ex 1.3 - 15
In these cases we observe that to obtain a terminating decimal form of given rational numbers we have to multiplied the denominator of these rational numbers by a suitable integer. But it is possible when denominator of given rational numbers be 2n5m as the prime factor, where m and n are non-negative integers. Thus we have the following property :

If the prime factorization of denominator of given rational numbers is of the form 2n5m, where m, n are non-negative integers, then it can be represented as a terminating decimal.

Question 7.
Write three numbers whose decimal expansions are non-terminating nonrecurring.
Solution :
Three numbers whose decimal expansions are non-terminating non recurring are .01001000100001…, 0.202002000200002… and 0.003000300003…

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Question 8.
Find three different irrational numbers between rational numbers \(\frac {5}{7}\) and \(\frac {9}{11}\)
Solution:
We have,
\(\frac {5}{7}\) = 0.714285714…
\(\frac {9}{11}\) =0.81818181…
Three irrational numbers between
0.714285714… and 0.81818181… are: 0.75075007500075000075…, 0.767076700767000767…, and 0.808008000800008…
Hence, three irrational numbers between \(\frac {5}{7}\) and \(\frac {9}{11}\) are :
0.75075007500075000075…, 0.767076700767000767… and 0.808008000800008…

Question 9.
Classify the following numbers as rational or irrational:
(i) \(\sqrt{23}\)
(ii) \(\sqrt{225}\)
(ii) 0.3796
(iv) 7.478478…
(v) 1.101001000100001…
Solution:
(i) Since 23 is not a perfect square. So \(\sqrt{23}\) is an irrational number.

(ii) \(\sqrt{225}\) = \(\sqrt{3 \times 3 \times 5 \times 5}\)
= 3 × 5
= 15
which is a rational number.
Hence, \(\sqrt{225}\) is a rational number.

(iii) 0.3796 is a terminating decimal expansion, so it is a rational number.

(iv) 7.478478… is non-terminating repeating decimal expansion, so it is a rational number.

(v) 1.101001000100001… is non-terminating non-repeating decimal expansion, so it is an irrational number.

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेश नीति का क्या अर्थ है ? भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
नेहरू जी की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
भारत की विदेश नीति’ के मुख्य सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
विदेश नीति का अर्थ- प्रत्येक देश दूसरे देश के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है। विदेश नीति उन सिद्धान्तों और साधनों का समूह है जो राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने, अपने उद्देश्यों को सही बताने और उनको प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। रुथना स्वामी के अनुसार, “विदेश नीति ऐसे सिद्धान्तों और व्यवहारों का समूह है जिनके द्वारा राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों को नियमित किया जाता है।”

भारतीय विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्त-भारतीय विदेश नीति के निर्माता भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू माने जाते हैं। स्वतन्त्रता के पश्चात् उन्होंने भारतीय विदेश नीति में जिन तत्त्वों का समावेश किया, वे आज भी विद्यमान हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

1: गुट-निरपेक्षता (Non-Alignment):
भारत की विदेश नीति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुट-निरपेक्षता है। भारत एक गुट-निरपेक्ष देश है और इसकी विदेश नीति भी गुट-निरपेक्षता पर आधारित है। पं० नेहरू ने कहा था-“जहां तक सम्भव हो, हम इन शक्ति-गुटों से अलग रहना चाहते हैं, जिनके कारण पहले भी महायुद्ध हुए हैं और भविष्य में हैं।” गुट-निरपेक्षता का अर्थ है-अपनी स्वतन्त्र नीति । जनता सरकार ने मार्च, 1977 में सत्ता में आने पर गुट-निरपेक्षता की नीति पर बल दिया। श्रीमती इन्दिरा गांधी और उसके बाद राजीव गांधी की सरकार ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया। आजकल संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार भी गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण कर रही है।

2. साम्राज्यवादियों तथा उपनिवेशवादियों का विरोध (Opposition of Imperialists and Colonialists):
भारत स्वयं ब्रिटिश साम्राज्यवाद का शिकार रहा है, जिस कारण भारत ने सदैव साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध किया है।

3. जाति, रंग व भेदभाव की नीति के विरुद्ध (Opposite to the Policy of Caste, Colour and Discrimination):
भारत की विदेश नीति का एक अन्य मूल सिद्धान्त यह है कि भारत ने जाति, रंग, भेदभाव की भारत के विदेश सम्बन्ध नीति के विरुद्ध सदैव आवाज़ उठाई है। भारत शुरू से ही जाति-पाति के बन्धन को समाप्त करने के पक्ष में रहा है और उसने अपनी विदेश नीति द्वारा समय-समय पर ऐसे प्रयत्न किए हैं जिनसे इस नीति को विश्व में समाप्त कर सके।

4. अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध (Friendly Relations with other Countries):
भारत की विदेश नीति की एक अन्य विशेषता यह है कि भारत विश्व के अन्य देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए सदैव तैयार रहता है। भारत ने न केवल मित्रतापूर्ण सम्बन्ध एशिया के देशों से ही बढाए हैं, बल्कि उसने विश्व के अन्य देशों से भी सम्बन्ध बनाए हैं।

5. एशिया-अफ्रीकी देशों का संगठन (Unity of Afro-Asian Countries):
भारत ने पारस्परिक आर्थिक तथा राजनीतिक सम्बन्धों को मजबूत बनाने के लिए एशिया और अफ्रीका के देशों को संगठित करने का प्रयास किया है। भारत का विचार है कि देश संगठित होकर उपनिवेशवाद का अच्छी तरह से विरोध कर सकेंगे तथा अन्य एशियाई और अफ्रीकी देशों की स्वतन्त्रता के लिए वातावरण उत्पन्न कर सकेंगे। भारत ने इन देशों को गुट-निरपेक्षता का रास्ता दिखाया तथा अनेक देशों ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया और इस प्रकार गुट-निरपेक्ष देशों का एक गुट बन गया। 24 मई, 1994 को दक्षिण अफ्रीका गुट-निरपेक्ष देशों के आन्दोलन का 110वां सदस्य बन गया।

6. संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों को महत्त्व देना (Importance to Principles of United Nations):
भारत की विदेश नीति में संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों को भी महत्त्व दिया गया और भारत द्वारा सदा ही प्रयास किया गया है कि वह विश्व-शान्ति स्थापित करने के लिए युद्धों को रोके। भारत ने सदैव संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों का पालन किया है और किसी देश पर हमला नहीं किया है। भारत शान्ति का पुजारी है।

7. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता (Membership of Commonwealth of Nations):
भारत की विदेश नीति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता राष्ट्रमण्डल की सदस्यता है। राष्ट्रमण्डल की सदस्यता ने भारत को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अधिक प्रभावशाली भूमिका अदा करने योग्य बनाया है।

8. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत तटस्थ नहीं है (India is not Neutral in International Politics):
यद्यपि भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार गुट-निरपेक्षता है, परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं कि भारत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में बिल्कुल भाग नहीं लेता। भारत किसी गुट में शामिल न होने के कारण ठीक को ठीक और ग़लत को ग़लत कहने वाली नीति अपनाता है। पं० नेहरू के शब्द आज भी सजीव हैं “जहां स्वतन्त्रता के लिए खतरा उपस्थित हो, न्याय की धमकी दी जाती हो अथवा जहां आक्रमण होता हो, वहां न तो हम तटस्थ रह सकते हैं और न ही तटस्थ रहेंगे।”

9. पंचशील (Panchsheel):
भारत की विदेश नीति का एक और महत्त्वपूर्ण भाग है-पंचशील, जो भारत की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को एक महत्त्वपूर्ण देन है। यह सिद्धान्त 1954 में बड़ा लोकप्रिय हुआ जब भारत और चीन के बीच तिब्बत के प्रश्न पर सन्धि हुई। राज्यों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने के लिए पांच सिद्धान्तों की रचना की गई, जिन्हें पंचशील के नाम से पुकारा जाता है। भारत द्वारा जब भी कोई निर्णय अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर लिया जाता है तो वह इन पांच सिद्धान्तों को सामने रखकर लिया जाता है। भारत ने सदैव प्रयास किया है कि इन पांच सिद्धान्तों को अन्य देश भी स्वीकार करें।

10. क्षेत्रीय सहयोग (Regional Co-operation) :
यद्यपि भारत में एक महाशक्ति बनाने के सारे लक्षण पाए जाते हैं, परन्तु भारत ने कभी भी महाशक्ति बनने का प्रयत्न नहीं किया। भारत का सदा ही क्षेत्रीय सहयोग में विश्वास रहा है। भारत ने क्षेत्रीय सहयोग की भावना को विकसित करने के लिए 1985 में क्षेत्रीय सहयोग के लिए ‘दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ’ (South Asian Association of Regional Co-operation) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे संक्षेप में, ‘सार्क’ (SAARC) कहा जाता है। इस संघ में भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, बांग्ला देश, श्रीलंका, भूटान, नेपाल, अफगानिस्तान तथा मालद्वीप भी शामिल हैं।

11. नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और वातावरण की सुरक्षा का प्रश्न (New International Economic order and question of the protection of Environment):
पिछले कुछ वर्षों से नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना और वातावरण की सुरक्षा का प्रश्न भारत की विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण भाग बन गया है। भारत विश्व में से अन्याय पर आधारित अर्थव्यवस्था समाप्त करके न्यायपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना करना चाहता है, ताकि विकासशील देश विकसित देशों के वित्तीय संगठनों से आर्थिक मदद प्राप्त कर सकें। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किये जाने वाले ऐसे प्रयत्नों का भारत ने सदैव समर्थन किया है, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा की जा सके।

अन्त में हम कह सकते हैं कि, भारत की विदेश नीति प्रो० हीरेन मुखर्जी (Prof. Hiren Mukherjee) के शब्दों में यह है कि, “उपनिवेशवाद का विरोध ……… सारी नस्लों को पूरी समानता ………… गुट-निरपेक्षता ………. एशिया तथा अफ्रीका को संसार की राजनीति में नए उभर रहे तत्त्वों के रूप में मान्यता …………. अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को समाप्त करना और विवादों को हिंसा तथा युद्ध के बिना हल करना भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धान्त हैं।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 2.
‘विदेश नीति’ का अर्थ स्पष्ट करें। भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्त्व बताइये।
अथवा
भारत की ‘विदेश नीति’ के निर्धारक तत्त्वों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
विदेश नीति का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें। भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्त्व-सन् 1947 से पूर्व भारत की कोई अपनी विदेश नीति नहीं थी। ब्रिटेन की जो विदेश नीति होती थी वही भारत सरकार की विदेश नीति थी। यदि जर्मनी ब्रिटेन का शत्रु होता, तो भारत सरकार भी उसे अपना शत्रु मानती थी। 1947 में स्वतन्त्र होने के पश्चात् भारत को स्वतन्त्र विदेश नीति का निर्माण करना था। स्वतन्त्र भारत के संविधान में उन नीति निर्देशक सिद्धान्तों का वर्णन कर दिया गया है जिनका अनुसरण इस देश को करना है। स्वतन्त्र भारत ने जिस विदेश नीति का अनुसरण किया है वह भी राष्ट्रीय हितों पर आधारित है। इस नीति को निर्धारित करने में अनेक तत्त्वों ने सहयोग दिया है। ये तत्त्व निम्नलिखित हैं

1.संवैधानिक आधार (Constitutional Basis):
भारत के संविधान में राजनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में केवल राज्य की आन्तरिक नीति से सम्बन्धित ही निर्देश नहीं दिए गए बल्कि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए इस विषय में भी निर्देश दिए गए हैं। अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को निम्नलिखित कार्य करने के लिए कहा गया है

(क) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
(ख) दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों, समझौतों तथा कानूनों के लिए सम्मान उत्पन्न करना।
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाना। राजनीति के इन निर्देशक सिद्धान्तों ने भारत की विदेश नीति को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2. भौगोलिक तत्त्व (Geographical Factors):
भारत में विदेश नीति को निर्धारित करने में भौगोलिक तत्त्व ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत का समुद्र तट बहुत विशाल है। भारत की सुरक्षा के लिए नौ-सेना का शक्तिशाली होना अति आवश्यक है और इसलिए भारत अपनी नौ-सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए लगा हुआ है। भारत की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, नेपाल और बर्मा (म्यनमार) के साथ लगती हैं। कश्मीर राज्य के कुछ प्रदेश ऐसे भी हैं, जिनकी सीमा अफ़गानिस्तान और रूस के साथ लगती है यद्यपि इस समय वे पाकिस्तान के कब्जे में हैं। इन देशों को लगती अपनी सीमाओं को ध्यान में रखकर ही भारत ने अपनी विदेश नीति का निर्धारण किया है।

3. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background):
लगभग 200 वर्ष के दीर्घकाल तक भारत को अंग्रेजों की दासता में रहना पड़ा, फलस्वरूप भारत अन्य राष्ट्रों की तुलना में ग्रेट ब्रिटेन के सम्पर्क में अधिक रहा और इसी कारण इंग्लैण्ड की सभ्यता व संस्कृति का भारत पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। चिरकाल तक साम्राज्यवाद के कारण शोषित व परतन्त्र रहने के कारण भारत की विदेश नीति पर प्रभाव पड़ा है और अब इसकी विदेश नीति का मुख्य सिद्धान्त साम्राज्यवाद तथा औपनिवेशवाद का विरोध करना है अ एशिया व अफ्रीका में होने वाले स्वाधीनता संघर्षों का समर्थन करता रहा है।

4. आर्थिक तत्त्व (Economic Factors) :
भारत की विदेश नीति के निर्धारण में आर्थिक तत्त्व ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भारत स्वतन्त्र हुआ उस समय भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। भारत में उस समय अनाज की भारी कमी थी और वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं। भारत अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए अमेरिका और ब्रिटेन पर निर्भर करता था। भारत का विदेशी व्यापार मुख्यत: ब्रिटेन व अमेरिका के साथ था। जिन मशीनरियों व खाद्य सामग्रियों को विदेशों से मंगवाना होता है वह भी उसे इन देशों से ही मुख्यतः प्राप्त करनी होती हैं और इनके साथ ही अमेरिका व ब्रिटेन की पर्याप्त पूंजी भारत के अनेक कल-कारखानों में लगी हुई है।

ऐसी स्थिति में यह स्वाभाविक था कि भारत की विदेश नीति पश्चिमी पूंजीवादी राज्यों के प्रति सद्भावनापूर्ण रही। 1950 के पश्चात् भारत और सोवियत संघ धीरे-धीरे एक-दूसरे के नज़दीक आने लगे और भारत सोवियत संघ तथा अन्य समाजवादी देशों से तकनीकी तथा आर्थिक सहायता प्राप्त करने लगा। दोनों गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए भारत ने गट-निरपेक्षता की नीति अपनाई। वास्तव में भारत की विदेश नीति और उसके आर्थिक विकास में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

5. राष्ट्रीय हित (National Interest):
विदेश नीति के निर्माण में राष्ट्रीय हित ने सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 4 दिसम्बर, 1947 को संविधान सभा में पण्डित नेहरू ने कहा था कि आप कोई भी नीति अपनाएं, विदेश नीति का निर्धारण करने की कला राष्ट्रीय हित के सम्पादन में ही निहित है। पं. नेहरू ने गट-निरपेक्षता और विश्व-शान्ति की स्थापना को भारत की विदेश नीति का आधार इसलिए बनाया ताकि भारत गुटों से अलग रहकर अपना आर्थिक तथा औद्योगिक विकास कर सके। यदि भारत गुटों की नीति में फंस जाता तो दोनों गुटों से आर्थिक सहायता न पा सकता। अत: भारत के हित को देखते हुए ही गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाया गया है। भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रमण्डल (Commonwealth of Nations) का सदस्य रहना स्वीकार किया।

6. विचारधारा का प्रभाव (Impact of Ideology):
विदेश नीति का निर्माण करने में उस देश की विचारधारा का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। राष्ट्रीय आन्दोलन के समय कांग्रेस ने अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तरह-तरह के आदर्श संसार के सामने प्रस्तुत किए थे। कांग्रेस ने सदैव विश्व-शान्ति और शान्तिपूर्ण सह-जीवन का समर्थन तथा साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का घोर विरोध किया। सत्तारूढ़ होने पर कांग्रेस को अपनी विदेश नीति का निर्माण इन्हीं आदर्शों पर करना था। कांग्रेस महात्मा गांधी के आदर्शों तथा सिद्धान्तों से भी काफी प्रभावित थी।

अत: भारत की विदेश नीति गांधीवाद से काफी प्रभावित थी, इसलिए भारत की विदेश नीति में विश्व-शान्ति पर बहुत जोर दिया जाता है। समाजवादी देशों के प्रति भारत की सहानुभूति बहुत कुछ मार्क्सवादी प्रभाव का परिणाम मानी जाती है। पश्चिम के उदारवाद का भी भारत की विदेश नीति पर काफ़ी प्रभाव है। हमारी विदेश नीति के निर्माता पं० नेहरू पश्चिमी लोकतन्त्रीय परम्पराओं से बहुत प्रभावित थे। वे पश्चिमी लोकतन्त्र तथा साम्यवाद दोनों की अच्छाइयों को पसन्द करते थे और उनकी बुराइयों से दूर रहना चाहते थे। अत: गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया गया।

7. अन्तर्राष्ट्रीय तत्त्व (International Factors):
भारत की विदेश नीति के निर्धारण में अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भारत स्वतन्त्र हुआ उस समय सोवियत गुट और अमरीकी गुट में शीत-युद्ध चल रहा था। संसार के प्रायः सभी देश उस समय दो गुटों में विभाजित थे। पं० जवाहरलाल नेहरू ने किसी एक गुट में शामिल होने के स्थान पर दोनों गुटों से अलग रहना देश के हित में समझा।

अतः भारत ने गुट-निरपेक्ष नीति का अनुसरण किया। पिछले कुछ वर्षों से अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति में परिवर्तन हुआ है। अमेरिका और चीन के सम्बन्धों में सुधार हुआ है लेकिन अमेरिका और पाकिस्तान बहुत नज़दीक हैं। इस अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति के कारण भारत और सोवियत संघ और समीप आए। 1991 में सोवियत संघ के विघटन होने के बाद विश्व में अमेरिका ही एकमात्र सुपर पॉवर रह गया है। इसीलिए भारत भी अमेरिका के साथ अपने आर्थिक, सामाजिक सम्बन्धों को मज़बूत बनाने पर बल दे रहा है।

8. सैनिक तत्त्व (Military Factors):
सैनिक तत्त्व ने भी भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सैनिक दृष्टि से बहुत निर्बल था। इसलिए भारत ने दोनों गुटों से सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाई। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने खुलेआम पाकिस्तान का साथ दिया और भारत पर दबाव डालने के लिए अपना सातवां जंगी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेजा तो भारत को सोवियत संघ से 20 वर्षीय सन्धि करनी पड़ी। आजकल अमेरिका पाकिस्तान को आधुनिकतम हथियार दे रहा है, जिसका भारत ने अमेरिका से विरोध किया है, पर अमेरिका अपनी नीति पर अटल है। अतः भारत को भी अपनी रक्षा के लिए रूस तथा अन्य देशों से आधुनिकतम हथियार खरीदने पड़ रहे हैं।

9. राष्ट्रीय संघर्ष (National Struggle):
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन ने विदेश नीति के निर्माण में महत्त्वपूर्ण

  • राष्ट्रीय आन्दोलन ने भारत में महाशक्तियों के संघर्ष का मोहरा बनने से बचने का संकल्प उत्पन्न किया।
  • अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक क्षेत्र में गुट-निरपेक्ष रहते हुए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की भावना जागृत हुई।
  • प्रत्येक तरह के उपनिवेशवाद, जातिवाद व रंग-भेद का विरोध करने का साहस हुआ।
  • स्वाधीनता संघर्ष के लिए सहानुभूति उत्पन्न हुई।

10. वैयक्तिक तत्त्व (Personal Factors):
भारतीय विदेश नीति पर इस राष्ट्र के महान् नेताओं के वैयक्तिक तत्त्वों का भी प्रभाव पड़ा। पण्डित नेहरू के विचारों से हमारी विदेश नीति पर्याप्त प्रभावित हुई। पण्डित नेहरू उपनिवेशवाद व फासिस्टवाद के घोर विरोधी थे और वे समस्याओं का समाधान करने के लिए शान्तिपूर्ण मार्ग के समर्थक थे। वह मैत्री, सहयोग व सह-अस्तित्व के पोषक थे।

साथ ही अन्याय का विरोध करने के लिए शक्ति प्रयोग के समर्थक थे। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों द्वारा हमारी विदेश नीति के ढांचे को ढाला। पण्डित नेहरू के अतिरिक्त डॉ० राधाकृष्णन, कृष्णा मेनन, पाणिक्कर जैसे महान् नेताओं के विचारों ने भी हमारी विदेश नीति को प्रभावित किया। स्वर्गीय शास्त्री जी व भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी के काल में हमने अपनी विदेश नीति के मूल तत्त्वों को कायम रखते हुए इसमें व्यावहारिक तत्त्वों का भी प्रयोग किया।

प्रश्न 3.
भारत-चीन के मध्य विवाद के उन मुख्य विषयों का वर्णन करें जो 1962 के युद्ध का कारण बने।
अथवा
भारत और चीन के बीच मतभेदों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत एवं चीन एशिया के दो महत्त्वपूर्ण देश हैं। भारत और चीन के मध्य पहले गहरी मित्रता थी, परन्तु धीरे-धीरे दोनों देशों में मतभेद बढ़ते रहे, जिनके कारण अन्ततः 1962 में दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी हुआ। इस युद्ध के निम्नलिखित कारण माने जा सकते हैं

1. तिब्बत समस्या (Tibet Problem)-भारत-चीन के बीच हुए युद्ध का एक कारण तिब्बत की समस्या थी। सन् 1914 में इन दोनों देशों के बीच सीमा निर्धारण करने के लिए शिमला में एक सम्मेलन हुआ था जिसमें आर्थर हेनरी मैकमोहन ने भाग लिया था। शिमला-सन्धि में यह निर्णय हुआ था कि

  • तिब्बत पर चीन का आधिपत्य रहेगा परन्तु बाह्य तिब्बत को अपने कार्य में पूरी आज़ादी रहेगी।
  • चीन तिब्बत के आन्तरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
  • चीन कभी भी तिब्बत को अपने राज्य का प्रान्त घोषित नहीं करेगा।

बाह्य तिब्बत और भारत के बीच की ऊंची पर्वत श्रेणियों को सीमा मान कर एक नक्शे में लाल पैंसिल से निशान लगा दिए तथा इस सीमा रेखा को मैकमोहन लाइन का नाम दिया गया। सीमा-विवाद के समय चीन ने भी इसी रेखा का समर्थन किया। कश्मीर की उत्तरी सीमा को स्पष्ट करते हुए ब्रिटिश अधिकारियों ने 1899 में चीन को लिखा था कि भारत के विदेश सम्बन्ध इसकी पूर्वी सीमा 80 अक्षांश पूर्वी देशान्तर है। इससे स्पष्ट है कि अक्साई चीन भारतीय सीमा के अन्तर्गत है और वह सीमा ऐतिहासिक है।

स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद भारत को तिब्बत में निम्नलिखित बहिदेशीय (Extra-territorial) अधिकार मिले :

  • तिब्बत और ब्रिटिश भारतीय व्यापारियों के झगड़ों में बचाव पक्ष पर देश की विधि लागू होती थी और उसी देश का न्यायाधीश सुनवाई के समय अध्यक्षता करता था।
  • यदि तिब्बत में ब्रिटिश-राज्य के लोगों के बीच विवाद होते थे तो उनका निर्णय ब्रिटिश अधिकारी ही करते थे।
  • ब्रिटिश एजेंटों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ फ़ौज रखने का अधिकार था।
  • गेट टुंग के यान टुंग से व्यॉणट्सी तक टेलीफोन और टेलीग्राफ संस्थाओं पर भी ब्रिटिश अधिकारियों का अधिकार था।
  • तिब्बत में भारत सरकार के ग्यारह विश्राम-गृह थे।

चीन ने तिब्बत की सत्ता तथा भारत के अधिकारों का सम्मान न करते हुए 7 अक्तूबर, 1950 को तिब्बत में अपने सैनिक भेज दिए। जब भारत ने इस ओर चीन का ध्यान आकर्षित करवाया तो उसने कठोर शब्दों में अपेक्षा की। नये नक्शों में चीन ने भारत की लगभग 50 हज़ार वर्गमील सीमा चीन प्रदेश के अन्तर्गत दिखाई। श्री नेहरू द्वारा इसका विरोध करने पर चीनी प्रधानमन्त्री ने कहा कि ये नक्शे राष्ट्रवादी सरकार के पुराने नक्शों की नकल हैं और समय मिलने पर इसे ठीक कर लिया जाएगा।

चीनियों ने आक्साईचिन के पठार में सड़क बना ली। लद्दाख में कई सैनिक चौकियां स्थापित कर ली। सन् 1958 में लद्दाख के खरनाम किले पर भी कब्जा कर लिया गया। 31 मार्च, 1957 में दलाईलामा ने चीनियों के दमन से भयभीत होकर भारत में राजनीतिक शरण ली। चीन ने इसका विरोध किया। श्री चाऊ-एन-लाई ने भारत को लिखा कि “मैकमोहन रेखा चीन के तिब्बत क्षेत्र के विरुद्ध अंग्रेजों की आक्रमणकारी नीति का परिणाम था। कानूनी तौर पर इसे वैध नहीं माना जा सकता।”

सन् 1959 को भारत पर आरोप लगाया कि वह तिब्बत में सशस्त्र विद्रोहियों को संरक्षण दे रहा है। चीन ने भारत के लगभग 90,000 किलोमीटर प्रदेश पर दावा करते हुए कहा कि भारतीय सेनाएं इस प्रदेश में घुसकर चीन की अखण्डता को चुनौती दे रही हैं। __ 1960 में भारत और चीन के प्रधानमन्त्रियों ने दिल्ली में एक संयुक्त-विज्ञप्ति में यह माना कि दोनों देशों में कुछ मतभेद हैं। यह तनाव और भी बढ़ा जब 1962 में गलवान घाटी की भारतीय पुलिस चौकी को चीनियों ने घेर लिया।

2. मानचित्र से सम्बन्धित समस्या (Problem Regarding Maps):
भारत एवं चीन के मध्य 1962 में युद्ध का एक कारण दोनों देशों के बीच मानचित्र के रेखांकित भू-भाग था। चीन ने 1954 में प्रकाशित अपने मानचित्र में कुछ ऐसे भाग प्रदर्शित किये थे जो वास्तव में भारतीय भू-भागों में थे। जब इस मुद्दे को चीन के साथ उठाया गया, तो उसने कहा कि यह पुराना मानचित्र है, नये मानचित्र में इस गलती को सुधार लिया जायेगा, परन्तु 1955 में चीन ने बराहोती पर कब्जा किया, तत्पश्चात् शिपकी दर्रा के द्वारा भारतीय भू-क्षेत्र की अवमानना की।

3. सीमा विवाद (Boundary Dispute):
भारत-चीन के बीच विवाद का एक कारण सीमा विवाद था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तु चीन ने नहीं। सीमा विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ता गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 4.
1962 में भारत-चीन के मध्य हुए युद्ध का वर्णन करें। युद्ध से सम्बन्धित कोलम्बो समझौते का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत एवं चीन के मध्य 1962 में हुए युद्ध की परिस्थितियां बहुत पहले बननी शुरू हो गई थीं। अन्ततः चीन ने 20 अक्तूबर, 1962 को भारत की उत्तरी सीमा पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक हमले के कारण भारतीय फ़ौजें जब तक सम्भली तब तक चीन ने सैनिक चौकियों पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन और अमेरिका ने भारत के कहने पर तेजी से सैन्य सामग्री भेजी। चीन ने अचानक 21 नवम्बर, 1962 को एक पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा कर दी। इसके साथ ही द्वि-सूत्रीय योजना की घोषणा भी की

(1) चीनी सेनाएं 7 नवम्बर, 1962 की वास्तविक नियन्त्रण रेखा (Actual Line of Control) से 20 किलोमीटर अपनी ओर हट जाएंगी और सेना 1 दिसम्बर से हटना शुरू करेंगी।

(2) चीनी सेना के हटने से खाली क्षेत्र पर चीन सरकार अपनी असैनिक चौकियां स्थापित करेगी। इन चौकियों की स्थिति का पता भारत सरकार को उसके दूतावास द्वारा दिया जाएगा। चीन ने भारत सरकार को इन शर्तों को मानने के लिए कहा। इसके साथ ही भारत को 7 नवम्बर, 1959 को अपनी सेनाओं को अपने ही क्षेत्र में 20 किलोमीटर हटने के लिए कहा।

विपरीत स्थितियों के कारण भारत ने चीन की एक-पक्षीय युद्ध-विराम घोषणा को मान लिया परन्तु द्वि-सूत्रीय योजना को नहीं माना और घोषित किया कि जब तक चीन 8 सितम्बर, 1962 की स्थिति तक नहीं लौट जाता तब तक कोई वार्ता नहीं होगी। चीन के इस आक्रमण के बाद हिन्दी चीनी भाई-भाई का युग समाप्त हुआ और भारत और चीन एक-दूसरे के शत्रु गए। उन्हीं दिनों भारत की संसद ने एक सर्वसम्मत प्रस्ताव द्वारा यह संकल्प किया कि “भारत जब तक चीन द्वारा बलात् अधिकृत किए गए अपने क्षेत्र को खाली न करा लेगा तब तक चैन नहीं लेगा।”

चीन के इस आक्रमण के कारण भारत गुट-निरपेक्ष नीति की कड़ी आलोचना हुई परन्तु पं० नेहरू ने इस नीति पर गहरा विश्वास प्रकट किया। भारत की विदेश नीति में अब यथार्थवाद की ओर झुकाव शुरू हुआ। पं० नेहरू ने यह घोषणा कि-“अतीत में हम निर्धनता और निरक्षरता की मानवीय समस्याओं में इतने उलझे रहे कि हमने प्रतिरक्षा की आवश्यकताओं के प्रति तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम ध्यान दिया। यह स्पष्ट है कि अब हम इस ओर अधिक ध्यान देंगे। हम अपनी सेनाओं को सुदृढ़ बनायेंगे तथा जहां तक सम्भव होगा सेना के लिए आवश्यक शस्त्र सामग्री अपने ही देश में तैयार करेंगे।”

कोलम्बो प्रस्ताव और चीन का दुराग्रह-श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार) कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, मिस्र और घाना ने दिसम्बर 1962 में भारत-चीन वार्ता के लिए कोलम्बो सम्मेलन का आयोजन किया। श्रीमती भण्डारनायके स्वयं प्रस्ताव लेकर नई दिल्ली और पीकिंग गईं। इसके बाद 19 जनवरी, 1963 को यह प्रस्ताव प्रकाशित किए गए जिनकी मुख्य बातें निम्नलिखित थीं

  • युद्ध-विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण हल के लिए उचित है।
  • चीन पश्चिमी क्षेत्रों में अपनी सैनिक चौकियां 20 किलोमीटर पीछे हटा ले।
  • भारत अपनी वर्तमान स्थिति कायम रखे।
  • विवाद का अन्तिम हल होने तक चीन द्वारा खाली किया गया क्षेत्र असैनिक क्षेत्र हो जिसकी निगरानी दोनों पक्षों द्वारा नियुक्त गैर-सैनिक चौकियां करें।
  • पूर्वी नेफा क्षेत्र दोनों सरकारों द्वारा मान्य वास्तविक नियन्त्रण रेखा युद्ध-विराम रेखा का रूप ले। शेष क्षेत्रों के बारे में दोनों देश भावी वार्ताओं में निर्णय करें।
  • मध्यवर्ती क्षेत्र का हल शान्तिपूर्ण ढंग से किया जाए।

कोलम्बो प्रस्ताव का उद्देश्य दोनों देशों में गतिरोध की स्थिति को खत्म करना था। चीन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने का विश्वास दिलाया और भारत ने कुछ स्पष्टीकरण मांगे। पूर्वी क्षेत्र में भारतीय सेना मैकमोहन लाइन तक जा सकेगी और चीनी सेना भी अपने पूर्व तक जा सकेगी लेकिन विवादपूर्ण क्षेत्रों से उसे दूर रहना होगा। इस स्पष्टीकरण के बाद भारत ने अपनी सहमति दे दी परन्तु चीन ने कुछ शर्ते जोड़ दी जिससे यह प्रस्ताव महत्त्वहीन हो गया। इससे चीन का रुख स्पष्ट हो गया कि वह भारत के साथ अपने विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाना नहीं चाहता था।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 5.
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध से पहले की घटनाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ परन्तु साथ ही भारत का विभाजन भी हुआ और पाकिस्तान का जन्म हुआ। अतः पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश है जिस कारण भारत-पाक समस्याओं का विशेष महत्त्व है। कावदश सम्बन्ध पाकिस्तान को भारत की अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की नीति बिल्कुल पसन्द नहीं थी। पाकिस्तान अन्य देशों से सहायता प्राप्त करने तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपना महत्त्व बढ़ाने के लिए पश्चिमी गुट में सम्मिलित हो गया और CENTO तथा SEATO आदि क्षेत्रीय तथा सैनिक संगठनों का सदस्य बन गया। परन्तु भारत ने उन गुटों की नीति की अपेक्षा गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

विस्थापित सम्पत्ति, देशी रियासतों की संवैधानिक स्थिति, नहरी पानी, सीमा निर्धारण, वित्तीय और व्यापारिक समायोजन, जूनागढ़, हैदराबाद तथा कश्मीर और कच्छ के विवादों के लिए भारत और पाकिस्तान में युद्ध होते रहे हैं और तनावपूर्ण स्थिति बनी रही है। कश्मीर के विवाद को छोड़कर अन्य सभी विवादों एवं समस्याओं का हल लगभग हो चुका है। 1948 में कश्मीर को लेकर दोनों देशों में युद्ध हुआ फिर इसी समस्या को लेकर 1965 में युद्ध हुआ और 1971 में बंगला देश के मामले पर युद्ध हुआ। जब तक कश्मीर की समस्या का पूर्णरूप से हल नहीं होता तब तक दोनों देशों में स्थायी रूप से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध नहीं हो सकते।

भारत और पाकिस्तान में निम्नलिखित विवादों के कारण अच्छे सम्बन्ध नहीं रहे हैं :

1. जूनागढ़ और हैदराबाद का भारत में मिलाया जाना:
भारतीय क्षेत्र की रियासत जूनागढ़ के नवाब ने जब अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाना चाहा तो जनता ने विद्रोह कर दिया। नवाब स्वयं पाकिस्तान भाग गया और रियासत के दीवान तथा वहां की पुलिस की प्रार्थना पर 9 नवम्बर, 1947 को भारत सरकार ने रियासत का शासन अपने हाथों में ले लिया। फरवरी, 1948 में जनमत संग्रह में भारत के पक्ष में 1 लाख 90 हजार से भी अधिक मत आए जबकि पाकिस्तान के पक्ष में केवल 91 मत पड़े।

हैदराबाद की रियासत भी पूरी तरह भारतीय क्षेत्र में थी। 1947 में निज़ाम ने भारत के साथ एक ‘यथा-पूर्व-स्थिति’ में समझौता किया। लेकिन हैदराबाद के प्रशासन में प्रभावशाली मुस्लिम साम्प्रदायिक संगठन ‘मजलिस-ए-ईहादउल’ के रजाकारों ने रियासत में भयानक अराजकता की स्थिति पैदा कर दी। तब जनता और निज़ाम की रक्षा के लिए पुलिस की और रजाकारों ने आत्म-समर्पण कर दिया। हैदराबाद सरकार ने समस्या को सुरक्षा परिषद में रखा और इसका अन्तिम हल तब हुआ जब दिसम्बर, 1948 में भारत ने सुरक्षा परिषद् से स्पष्ट कह दिया कि वह अब इस प्रश्न के वाद-विवाद में कोई भाग नहीं लेगी।

2. ऋण अदा करने का प्रश्न:
स्वतन्त्र भारत ने पुरानी सरकार के कर्ज का भार सम्भाला। इसके अनुसार उसे 5 वर्ष में पाकिस्तान से 300 करोड़ रुपया लेना था लेकिन पाकिस्तान ने कर्जे को चुकाने का नाम तक नहीं लिया जबकि भारत ने पाकिस्तान को दिये जाने वाले ₹ 5 करोड़ का कर्ज चुका दिया।

3. विस्थापित सम्पत्ति तथा अल्पसंख्यकों की रक्षा का प्रश्न:
1947 से 1957 तक लगभग 90 लाख मुसलमान भारत से पाकिस्तान गए और इतने ही गैर मुस्लिम पाकिस्तान से भारत आए। दोनों ही क्षेत्रों के लोग अपने पीछे विशाल मात्रा में चल और अचल सम्पत्ति छोड़ गए। यह अनुमान लगाया जाता है कि मुसलमानों ने भारत में ₹300 करोड़ की और भारतीयों ने पाकिस्तान में ₹ 3 हजार करोड़ की सम्पत्ति छोड़ी थी।

पाकिस्तान समस्या के सभी सुझावों को ठुकराता गया। अल्पसंख्यकों की रक्षा की समस्या भी दोनों के सामने थी। 1950 में साम्प्रदायिक उपद्रवों को रोकने और अल्पसंख्यकों में रक्षा की भावना उत्पन्न करने के लिए दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों के बीच ‘नेहरू-लियाकत’ समझौता हुआ जिसका पाकिस्तान ने कभी पालन नहीं किया और दुःखी शरणार्थी भारत में आते रहे।

4. नहरी पानी विवाद:
भारत और पाकिस्तान के बीच एक और समस्या नदियों के हिस्से के सम्बन्ध में थी। पंजाब के विभाजन के कारण पानी के प्रश्न पर कठिन स्थिति पैदा हो गई। सतलुज, व्यास और रावी नदियों के हैडवर्क्स भारत में रह गए लेकिन नदियों की दृष्टि से 25 में से केवल 20 नहरें भारत में आईं और एक नहर दोनों देशों में आई।

दोनों देशों की सहमति से यह विवाद मध्यस्थता के लिए विश्व बैंक को सौंप दिया गया। इसके प्रयत्नों से 19 सितम्बर, 1960 को भारत और पाक में सिन्ध बेसिन के पाने के बंटवारे में ‘नहरी समझौता’ (Indo-Pak Canal Water Treaty) हुआ। इस समझौते के अनुसार यह निश्चय किया गया कि 10 वर्ष की अवधि के बाद, जो पाकिस्तान की प्रार्थना पर 3 वर्ष के लिए बढ़ाई जा सकेगी, तीनों पूर्वी नदियों का पानी भारत के अधिकार में रहेगा जबकि तीनों पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के अधिकार में; केवल इनका सीमित पानी उत्तर की ओर के जम्मू और कश्मीर

प्रान्त में प्रयोग किया जाएगा। यह तय हुआ कि 10 वर्ष तक भारत पूर्वी नदियों से पाकिस्तान की प्रत्येक वर्ष घटती हुई मात्रा में पानी देगा और नई नहरों के निर्माण के लिए पाकिस्तान को आवश्यक मात्रा में धन भी देगा। यदि पाकिस्तान भारत से पानी देने वाली अवधि में 3 वर्ष की वृद्धि के लिए प्रार्थना करेगा तो प्रार्थना स्वीकृत होने पर उसी अनुपात में भारत द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली राशि में कटौती कर दी जाएगी। 12 जनवरी, 1961 को इस सन्धि की शर्ते लागू कर दी गईं। यह सन्धि पाकिस्तान के लिए विशेष लाभदायक थी।

5. कश्मीर विवाद (Kashmir Controversy):
स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत था। इसका क्षेत्रफल 1,34,00 वर्ग कि० मी० और जनसंख्या 40 लाख थी। इनमें से लगभग 77% मुसलमान, 20% हिन्दू तथा 3% सिक्ख, बौद्ध आदि थे। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबायली लोगों (Tribesmen) को प्रेरणा और सहायता देकर 20 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया। 24 अक्तूबर, 1947 को श्रीनगर को बिजली प्रदान करने वाले मदुरा बिजली घर पर अधिकार कर लिया गया। इस पर महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की।

27 अक्तूबर, 1947 को भारत सरकार ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। भारत ने पाकिस्तान से कबायलियों को मार्ग न देने के लिए कहा परन्तु पाकिस्तान उन्हें पूरी सहायता देता रहा। इस पर लार्ड माऊंटबेटन के परामर्श पर भारत सरकार ने 1 जनवरी, 1948 की संयुक्त राष्ट्र चार्टर की 34वीं और 35वीं धारा के अनुसार सुरक्षा परिषद् से पाकिस्तान के विरुद्ध शिकायत की और अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान को आक्रमणकारियों की सहायता बन्द करने को कहे।

कश्मीर और संयुक्त राष्ट्र–सुरक्षा परिषद् कश्मीर विवाद का कोई समाधान ढूंढ़ने में असफल रही है। इसका मुख्य कारण यह था कि सुरक्षा परिषद् का उद्देश्य एक न्यायपूर्ण निर्णय करना नहीं रहा है। अपितु दोनों पक्षों में किसी भी मूल्य पर समझौता कराना रहा है। सुरक्षा परिषद् के सामने भारत की शिकायत के बाद दो मुख्य प्रश्न थे

(1) क्या पाकिस्तान ने आक्रमण किया है ?
(2) क्या कश्मीर का भारत में अधिमिलन (Accession) वैधानिक है? इन दोनों प्रश्नों के तथ्य स्पष्ट थे, परन्तु सुरक्षा परिषद् ने इनका उत्तर देने के अतिरिक्त आक्रमण के शिकार भारत और आक्रमणकारी पाकिस्तान को समान स्थिति देकर समझौता करवाने का प्रयत्न किया। 21 अप्रैल, 1948 को सुरक्षा-परिषद् ने भारत और पाकिस्तान के विवाद के समाधान के लिए 5 सदस्यों के संयुक्त राष्ट्र आयोग (U.N.C.I.P.) की नियक्ति की। को कश्मीर में युद्ध-विराम हो गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें कश्मीर विवाद के समाधान के लिए आधार रूप में निम्नलिखित सिद्धान्तों को सामने रखा

  • पाकिस्तान कश्मीर से अपनी सेनाएं हटा ले और कबायलियों को भी वहां से हटाने का प्रयत्न करे।
  • सेनाओं द्वारा खाली किए गए प्रदेशों का शासन-प्रबन्ध आयोग के निरीक्षण में स्थानीय अधिकारी करेंगे।
  • पाकिस्तानी सेनाओं के हट जाने के पश्चात् भारत भी अपनी सेना के अधिकांश भाग को हटा लेगा।
  • अन्त में एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह के द्वारा यह निर्णय किया जाएगा कि कश्मीर भारत में शामिल होगा या पाकिस्तान में।

सुरक्षा परिषद् ने श्री चैस्टर निमिट्ज को जनमत संग्रह का प्रशासक नियुक्त किया, परन्तु दोनों देशों में कोई समझौता न हो सकने के कारण श्री चैस्टर ने त्याग-पत्र दे दिया। फरवरी, 1950 में सुरक्षा-परिषद् ने सर ओवन डिक्सन (Sir Owen Dixon) को तथा उनकी कोशिशों के सफल हो जाने पर 1951 में डॉ० फ्रैंक ग्राहम (Dr. Frank Graham) को समझौता करवाने के लिए नियुक्त किया। 27 मार्च, 1953 को डॉ० ग्राहम ने अपनी अन्तिम रिपोर्ट में इस समस्या को दोनों देशों में सीधी वार्ता के द्वारा सुलझाने पर जोर दिया। इस सुझाव के अनुसार 1953 में दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों में सीधी वार्ता और 1953-54 में सीधा पत्र-व्यवहार हुआ, परन्तु इसका कोई फल नहीं निकला।

1954 में अमेरिका पाकिस्तान को सैनिक सहायता देने को तैयार हो गया। पाकिस्तान का उद्देश्य इस सहायता से अपनी सैनिक स्थिति दृढ़ करना था। इससे बाध्य होकर भारत को भी अपनी नीति बदलनी पड़ी। पं० नेहरू ने घोषणा की- “जनमत संग्रह करने का प्रश्न स्पष्ट रूप से इस शर्त के साथ सम्बद्ध था कि पाकिस्तान कश्मीर से अपनी सेनाएं भारत के विदेश सम्बन्ध हटा लेगा। पिछले 9 वर्षों में पाकिस्तान यह शर्त पूरी करने में असमर्थ रहा है। पाकिस्तान को मिलने वाली सैनिक सहायता और उसकी सैनिक समझौतों की सदस्यता ने कश्मीर में जनमत संग्रह करने के प्रस्ताव के मूल आधार को ही नष्ट कर दिया है।”

26 जनवरी, 1957 को जनता द्वारा निर्वाचित विधान सभा ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने का निश्चय किया। पाकिस्तान ने फिर से कश्मीर के प्रश्न को सुरक्षा परिषद् में उठाया। पहले गुन्नार यारिंग (Gunnar Yarring) और फिर डॉ० फ्रैंक ग्राहम को दोनों पक्षों में समझौता करने के लिए भेजा गया परन्तु कोई सफलता नहीं मिली। बाद में दिल्ली, कराची, रावलपिंडी और ढाका में दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों के बीच वार्ता हुई। परन्तु पाक विदेश मन्त्री श्री भुट्टो के तनावपूर्ण रुख के कारण ये वार्ताएं 1963 में असफल हो गईं।

प्रश्न 6.
भारत एवं पाकिस्तान के बीच हुए 1965 की युद्ध एवं ताशकंद समझौते का वर्णन करें।
उत्तर:
पाकिस्तान का व्यवहार सदैव भारत विरोधी रहा है। सन् 1965 में भारत को दो बार पाकिस्तानी आक्रमण का शिकार होना पड़ा। पहली बार अप्रैल में कच्छ के रण में और दूसरी बार सितम्बर में कश्मीर में। कच्छ के रण में कुछ सफलताओं के बाद पाकिस्तानी सेनाओं को पीछे हट जाना पड़ा। 30 जून, 1965 को युद्ध-विराम समझौता हो गया और भारत ने अपनी शान्तिप्रियता का परिचय देते हुए कच्छ-सम्बन्धी मतभेदों को एक अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के निर्णय के लिए रखने की बात मान ली।

परन्तु पाकिस्तान ने भारत के इस रूख को दुर्बलता समझा और 1965 में युद्ध-विराम रेखा का उल्लंघन करके बड़ी संख्या में घुसपैठिये कश्मीर में भेज दिये। परन्तु भारतीय सेनाओं ने उन्हें पीछे धकेल दिया और हाजीपीर और टिथवाल के पाक-अधिकृत इलाकों को मुक्त करवा लिया। सितम्बर, 1965 को पाकिस्तानी सेनाओं ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन करके छम्ब प्रदेश पर आक्रमण कर दिया।

इससे विवश होकर भारत को भी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पार कर पश्चिमी पाकिस्तान के क्षेत्र में युद्ध को ले जाना पड़ा। पाकिस्तानी सेनाओं के पास आधुनिकतम शस्त्रों के होते हुए भी भारतीय सेनाओं ने उन्हें बुरी तरह हरा दिया। अन्त में सुरक्षा परिषद् के 20 सितम्बर के प्रस्ताव का पालन करते हुए दोनों पक्षों ने 22-23 सितम्बर को सुबह 3.30 बजे युद्ध बन्द कर दिया। इस समय तक भारतीय सेनाएं लाहौर के दरवाजों तक पहुंच चुकी थीं।

युद्ध-विराम के बाद भी दोनों देशों में सामान्य सम्बन्धों की समस्या बनी रही। 10 जनवरी, 1966 को सोवियत संघ के प्रधानमन्त्री श्री कोसीगिन के प्रयत्नों से दोनों देशों में ताशकन्द समझौता हो गया जिसके द्वारा भारत के प्रधानमन्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हो गये कि दोनों देशों के सभी सशस्त्र व्यक्ति 25 फरवरी, 1966 के पूर्व उस स्थान पर वापस बुला लिये जाएंगे जहां वे 5 अगस्त, 1965 के पूर्व थे तथा दोनों पक्ष युद्ध-विराम रेखा पर युद्ध विराम की शर्तों का पालन करेंगे। इस समझौते के द्वारा भारत ने खोया अधिक और पाया कम। यह समझौता पाकिस्तान के लिए अधिक लाभप्रद था तथा आचार्य कृपलानी का यह मत, “श्री लाल बहादुर शास्त्री ने दबाव में आकर हस्ताक्षर किये थे,’ एक बड़ी सीमा तक उचित लगता है।

इससे एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पूरी हुई-भारत और पाकिस्तान में युद्ध स्थिति की औपचारिक समाप्ति। परन्तु पाकिस्तान ने शीघ्र ही भारत विरोधी प्रचार करना शुरू कर दिया। ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement)-भारत एवं पाकिस्तान के बीच हुए 1965 के युद्ध को रुकवाने में सोवियत संघ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके प्रयासों से भारत एवं पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता हुआ, जिसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं

  • दोनों पक्षों का यह प्रयास रहेगा कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बने।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि दोनों की सेनाएं 5 फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुंच जाये, जहां वे 5 अगस्त, 1965 से पहले थी।
  • दोनों देश एक-दूसरे के आन्तरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार नहीं करेंगे।
  • दोनों देशों के उच्चायुक्त एक-दूसरे के देश में वापिस आयेंगे।

प्रश्न 7.
सन् 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के मुख्य कारण बताइए। इसके क्या परिणाम हुए ?
उत्तर:
भारत एवं पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध का मुख्य कारण पूर्वी पाकिस्तान में होने वाली घटनाएं और उनका भारत पर पड़ने वाला प्रभाव था। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगला देश) में जनता ने याहियां खां की तानाशाही के विरुद्ध स्वतन्त्रता का आन्दोलन आरम्भ किया। याहिया खां ने आन्दोलन को कुचलने के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग किया।

भारत ने बंगला देश मुक्ति संघर्ष में उसका साथ दिया। लगभग एक करोड़ शरणार्थियों को भारत में आना पड़ा। इससे भारत की आर्थिक व्यवस्था पर बड़ा बोझ पड़ा। भारत ने विश्व के देशों से अपील की कि जब तक बंगला देश की समस्या का संकट हल नहीं हो जाता तब तक पाकिस्तान को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता न दी जाए।

सोवियत संघ और अनेक अन्य देशों ने भारत के साथ सहानुभूति प्रकट की। परन्तु चीन और अमेरिका जैसी महान् शक्तियां बंगला देश के प्रश्न को पाकिस्तान का घरेलू मामला बताकर उसे आर्थिक तथा सैनिक सहायता देती रहीं। पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर, 1971 को भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का निश्चय किया और पाकिस्तान के आक्रमण का डटकर मुकाबला किया। 5 दिसम्बर को सुरक्षा परिषद् की बैठक में पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाया कि वह पूर्वी पाकिस्तान में क्रान्तिकारियों को सहायता दे रहा है।

अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन किया, परन्तु सोवियत संघ ने भारत का पक्ष लिया और वीटो का प्रयोग किया। 6 दिसम्बर को श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारतीय संसद् में बंगला देश गणराज्य के उदय की सूचना दी। 16 दिसम्बर, 1971 को ढाका में जनरल नियाजी ने आत्म-समर्पण के कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए और लगभग 1 लाख पाक सैनिकों ने आत्म-समर्पण किया।

17 दिसम्बर को रात्रि के 8 बजे ‘एक-पक्षीय युद्ध विराम’ की घोषणा करते हुए श्रीमती गांधी ने याहिया खां को युद्धबन्दी प्रस्ताव मान लेने की अपील की। याहिया खां ने तुरन्त इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस युद्ध की विजय से भारत का सम्मान बढ़ा और अमेरिका की गहरी कूटनीतिक पराजय हुई। पाकिस्तान के विभाजन से पाकिस्तान का हौसला ध्वस्त हो गया।

शिमला सम्मेलन-श्रीमती गांधी ने पाकिस्तान की हार का कोई अनुभव लाभ न उठाते हुए दोनों देशों की समस्याओं पर विचार करने के लिए जून 1972 में शिमला में एक शिखर सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में पाक के तत्कालीन शासक प्रधानमन्त्री भुट्टो ने और भारत की उस समय की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने भाग लिया। 3 जुलाई को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जो शिमला समझौते के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस समझौते की महत्त्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं

(1) दोनों राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को द्विपक्षीय बातचीत और मान्य शांतिपूर्ण ढंगों से हल करने के लिए दृढ़ संकल्प हैं।

(2) दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और सार्वभौम समानता का सम्मान करेंगे।

(3) दोनों राष्ट्र एक-दूसरे क्षेत्रीय अखण्डता और राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध बल प्रयोग या धमकी का प्रयोग नहीं करेंगे।

(4) दोनों देशों द्वारा परस्पर विरोधी प्रचार नहीं किया जाएगा।

(5) समझौते में तय पाया गया कि दोनों देश परस्पर सामान्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रयत्न करेंगे। संचार व्यवस्था, डाक व्यवस्था, जल, थल, हवाई यात्रा को पुनः चालू करने के लिए वार्ताएं की जाएंगी। आर्थिक तथा व्यापारिक सहयोग के सम्बन्ध में भी शीघ्र वार्ता की जाएगी।

(6) स्थायी शान्ति हेतु भी अनेक प्रयत्न किए जाने का समझौते में उल्लेख था। इसके लिए दोनों देशों को अपनी सेनाओं को अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर वापस बुलाना था।

प्रश्न 8.
भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 के बाद के सम्बन्धों का वर्णन करें।
अथवा
भारत के पाकिस्तान के साथ संबंधों पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
1971 के युद्ध के पश्चात् भारत-पाक के सम्बन्ध काफ़ी खराब हो गए। मार्च, 1977 में जनता सरकार की स्थापना के पश्चात् भारत-पाक सम्बन्धों में सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने जनवरी, 1980 में प्रधानमन्त्री बनने पर भारत-पाक सम्बन्ध को सुधारने पर बल दिया, परन्तु सोवियत सेना के अफ़गानिस्तान में होने से स्थिति काफ़ी खराब हो गई। जनवरी-फरवरी, 1982 में पाकिस्तान के विदेश मन्त्री आगाशाह भारत आए और उन्होंने युद्ध-वर्जन सन्धि का प्रस्ताव पेश किया जिस पर श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारत पाक में सहयोग बढ़ाने के लिए संयुक्त आयोग की स्थापना का सुझाव दिया।

सहयोग के प्रयास-1985 में भारत और पाकिस्तान के कई मन्त्रियों और अधिकारियों की एक-दूसरे के देशों में यात्राएं हुईं। व्यापार, कृषि, विज्ञान, तकनीकी और संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए कुछ समझौते भी हुए। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की पाकिस्तान यात्रा-29 दिसम्बर, 1988 को प्रधानमन्त्री राजीव गांधी दक्षेस (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान गए और उनकी पाकिस्तान की प्रधानमन्त्री बेनजीर भुट्टो से भारत-पाक सम्बन्धों पर भी बातचीत हुई। 31 दिसम्बर, 1988 को भारत और पाकिस्तान ने आपसी सम्बन्ध सद्भावनापूर्ण बनाने के उद्देश्य से शिमला समझौते के करीब 16 वर्ष बाद तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिनमें एक-दूसरे के परमाणु संयन्त्रों पर आक्रमण नहीं करने सम्बन्धी समझौता काफ़ी महत्त्वपूर्ण है।

दिसम्बर, 1989 में वी० पी० सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी। इस सरकार के अल्पकालीन कार्यकाल में भारत-पाक सम्बन्धों में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। नरसिम्हा राव की सरकार और भारत-पाक सम्बन्ध– राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए भारत और पाक के प्रधानमन्त्री ने 17 अक्तूबर, 1991 को हरारे में बातचीत की। 1 जनवरी, 1992 को भारत और पाकिस्तान द्वारा यह समझौता लागू कर दिया गया, जिससे एक-दूसरे के आण्विक ठिकानों और सुविधाओं पर हमला न करने की व्यवस्था की गई थी।

पाक परमाणु कार्यक्रम-पाक परमाणु कार्यक्रम में भारत काफ़ी समय से चिन्तित है। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से चिन्तित होकर भारत ने भी मई, 1998 में पांच परमाणु परीक्षण किए जिसके मुकाबले में पाकिस्तान ने छ: परमाणु परीक्षण किए। बस सेवा के लिए भारत-पाक समझौता-17 फरवरी, 1999 को भारत और पाकिस्तान ने नई दिल्ली और लाहौर के बीच बस सेवा प्रारम्भ करने के लिए एक समझौता किया।

20 जनवरी, 1999 को भारत-पाक सम्बन्धों में एक नया अध्याय उस समय खुला जब भारतीय प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी स्वयं बस से लाहौर तक गए। ऐतिहासिक लाहौर घोषणा के अन्तर्गत भारत व पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर सहित सभी विवादों को गम्भीरता से हल करने पर सहमत हुए और दोनों ने एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का विश्वास व्यक्त किया।

कारगिल मुद्दा–पाकिस्तान ने लाहौर घोषणा को रौंदते हुए भारत के कारगिल व द्रास क्षेत्र में व्यापक घुसपैठ करवाई। अनंत धैर्य के पश्चात् 26 मई, 1999 को भारत ने पाकिस्तान के इस विश्वासघात का करारा जवाब दिया। 12 अक्तूबर, 1999 को पाकिस्तान में सेना ने शासन पर अपना कब्जा कर लिया। लेकिन पाकिस्तान के जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने भी भारत के साथ सम्बन्धों में मधुरता का कोई संकेत नहीं दिया। आगरा शिखर वार्ता-पाकिस्तान के शासक परवेज़ मुशर्रफ भारत के आमन्त्रण पर जुलाई, 2001 में भारत आए।

भारत में दोनों देशों के बीच शिखर वार्ता हुई, जिसमें कश्मीर समस्या का समाधान, प्रायोजित आतंकवाद, एटमी लड़ाई खतरा, सियाचिन से सेना की वापसी, व्यापार की सम्भावनाएं, युद्धबन्दियों की रिहाई एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान मुख्य मुद्दे थे, परन्तु मुशर्रफ के अड़ियल रवैये के कारण यह वार्ता विफल रही।

भारतीय संसद पर हमला-13 दिसम्बर, 2001 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तोइबा एवं जैश-ए-मोहम्मद ने भारतीय संसद् पर हमला किया जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत खराब हो गये तथा दोनों देशों ने सीमा पर फ़ौजें तैनात कर दीं, परन्तु विश्व समुदाय के हस्तक्षेप एवं पाकिस्तान द्वारा लश्कर-ए-तोइबा एवं जैश-ए मोहम्मद पर पाबन्दी लगाए जाने से दोनों देशों में तनाव कुछ कम हुआ।

प्रधानमन्त्री वाजपेयी की इस्लामाबाद यात्रा-जनवरी, 2004 में भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी चार दिन के लिए ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ (सार्क) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद गए। अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति व प्रधानमन्त्री से मुलाकात की। इस शिखर सम्मेलन से दोनों देशों के बीच तनाव में कमी आई और दोनों ने विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति व्यक्त की।

मुम्बई पर आतंकवादी हमला-26 नवम्बर, 2008 को पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों ने मुम्बई के होटलों पर कब्जा करके कई व्यक्तियों को मार दिया। भारत ने पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविरों को बंद करने की मांग की, जिसे पाकिस्तान ने नहीं माना, इससे दोनों देशों के सम्बन्ध और अधिक खराब हो गए। भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जुलाई 2009 में मिस्र में 15वें गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दौरान मिले तथा दोनों नेताओं ने परस्पर द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की। इस बैठक के दौरान दोनों देशों ने विवादित मुद्दों को परस्पर बातचीत द्वारा हल करने की बात को दोहराया था।

25 फरवरी, 2010 को भारत एवं पाकिस्तान के विदेश सचिवों की नई दिल्ली में बातचीत हुई। इस बातचीत के दौरान भारत ने पाकिस्तान को वांछित आतंकवादियों को भारत को सौंपने को कहा। अप्रैल 2010 में भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री सार्क सम्मेलन के दौरान भूटान में मिले। इस बातचीत के दौरान दोनों नेताओं ने विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति जताई। नवम्बर 2011 में भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मालद्वीप में 17वें सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान मिले। इस बैठक में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

दिसम्बर 2012 में पाकिस्तान के आन्तरिक मंत्री श्री रहमान मलिक भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने वीजा नियमों को और सरल बनाया। सितम्बर, 2013 में संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने द्विपक्षीय मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों ने सभी विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति जताई। मई 2014 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीप मुद्दों पर बातचीत की।

जुलाई 2015 में भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान रूस के शहर उफा में मुलाकात की। इस बैठक में दोनों नेताओं ने आतंकवाद एवं द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की। 25 दिसम्बर, 2015 को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक पाकिस्तान पहुंच कर दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार लाने का प्रयास किया। नवम्बर 2018 में भारत-पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरिडोर को बनाने की घोषणा की। करतारपुर साहब सिक्खों का पवित्र तीर्थ स्थल है, जहां गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के 18 साल बिताए थे।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध न तो सामान्य थे और न ही सामान्य हैं। समय के साथ-साथ दोनों देशों में कटुता बढ़ती जा रही है। यह खेद का विषय है कि दोनों देशों में इस कड़वाहट को दोनों देशों के पढ़े-लिखे नागरिक भी दूर करने में असफल रहे। वास्तव में दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध तब तक स्थापित नहीं हो सकते जब तक कि दोनों देशों के बीच अनेक विवादास्पद मुद्दों को हल नहीं किया जाता।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 9.
भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के मुख्य कारण बताएं।
उत्तर:
भारत में प्रारम्भिक वर्षों में परमाणु नीति एवं परमाणु हथियारों के प्रति दृष्टिकोण आदर्शवादी एवं उदारवादी ही रहा। भारत ने शीत युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आन्दोलन के विकास पर अधिक बल दिया तथा निशस्त्रीकरण का समर्थन करता रहा। परन्तु 1962 में चीन से युद्ध में हार, 1964 में चीन द्वारा परमाणु विस्फोट तथा 1965 एवं 1971 में पाकिस्तान के साथ दो युद्धों ने भारत की परमाणु नीति एवं परमाणु हथियारों के निर्माण पर बहुत अधिक प्रभाव डाला।

1970 के दशक में भारतीय नेतृत्व ने पहली बार अनुभव किया कि भारत को भी परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनना है। 1970 के दशक से लेकर वर्तमान समय तक भारत ने परमाणु नीति एवं परमाणु हथियारों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की हैं। भारत ने सर्वप्रथम 1974 में एक तथा 1998 में पांच परमाणु परीक्षण करके विश्व को दिखला दिया कि भारत भी एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है। भारत द्वारा परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार को बनान एवं रखने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

1. आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना (To Become Self Dependent Nation):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं वे सभी आत्मनिर्भर राष्ट्र माने जाते हैं।

2. न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना (To Achieve the Position of Minimum Deterrent):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है। भारत ने सदैव यह कहा है कि भारत कभी भी पहले परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा। भारत के पास परमाणु हथियार होने पर कोई भी देश भारत पर हमला करने से पहले सोचेगा।

3. शक्तिशाली राष्ट्र बनना (To Become Strong Nation):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जितने देश भी परमाणु सम्पन्न हैं, वे सभी के सभी शक्तिशाली राष्ट्र माने जाते हैं। इसके साथ परमाणु हथियारों की धारणा से भारत में केन्द्रीय शक्ति और अधिक मज़बूत एवं शक्तिशाली होती है जोकि बहुत आवश्यक है, क्योंकि जब कभी भी भारत में केन्द्रीय सरकार कमज़ोर हुई है, भारत को नुकसान उठाना पड़ा है।

4. प्रतिष्ठा प्राप्त करना (To achieve Prestige):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व में प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है। क्योंकि विश्व के सभी परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों को आदर एवं सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

5. भारत द्वारा लड़े गए युद्ध (War fought by India):
भारत ने समय-समय पर 1962, 1965, 1971 एवं 1999 में युद्धों का सामना किया। युद्धों में होने वाली अधिक हानि से बचने के लिए भारत परमाणु हथियार प्राप्त करना चाहता है।

6. दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना (Two Neighbours have a Nuclear Drum):
भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक हैं, क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और इन दोनों देशों के साथ भारत युद्ध भी लड़ चुका है। अतः भारत को अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार बनाने का हक है।

7. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की विभेदपूर्ण नीति (Policy of Nuclear Nation):
परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि (N.P.T.) तथा 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि (C.T.B.T.) को इस प्रकार लागू करना चाहा, कि उनके अतिरिक्त कोई अन्य देश परमाणु हथियार न बना सके। भारत ने इन दोनों सन्धियों को विभेदपूर्ण मानते हुए इन पर हस्ताक्षर नहीं किये तथा अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखा।

प्रश्न 10.
गुट-निरपेक्षता का अर्थ बताइए। गुट-निरपेक्षता आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
गुट-निरपेक्ष आंदोलन के मुख्य उद्देश्यों तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
गुट निरपेक्ष आन्दोलन का अर्थ-गुट-निरपेक्षता का अर्थ है किसी शक्तिशाली राष्ट्र का पिछलग्गू न बनकर अपना स्वतन्त्र मार्ग अपनाना। गुटों से अलग रहने की नीति का तात्पर्य अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में ‘वटस्थता’ कदापि नहीं है। कई पाश्चात्य लेखकों ने गुट-निरपेक्षता के लिए तटस्थता अथवा तटस्थतावाद शब्द का प्रयोग किया है उनमें मौर्गेन्थो, पीस्टर लायन, हेमिल्टन, फिश आर्मस्ट्रांग तथा कर्नल लेवि आदि ने इस नीति के लिए तटस्थता शब्द का प्रयोग कर भ्रम पैदा कर दिया है। वास्तव में दोनों नीतियां शान्ति व युद्ध के समय संघर्ष में नहीं उलझतीं, परन्तु तटस्थता निष्क्रियता व उदासनीता की नीति है, जबकि गुट-निरपेक्षता सक्रियता की नीति है।

तटस्थ देश अन्तर्राष्ट्रीय विषयों या घटनाओं के सम्बन्ध में पूर्णतया निष्पक्ष रहते हैं और वे किसी अन्तर्राष्ट्रीय घटना या विषय के सम्बन्ध में अपने विचार अभिव्यक्त नहीं करते हैं। गुट-निरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के प्रति निष्पक्ष या उदासीन नहीं होते, अपितु वे इन विषयों में पूर्ण रुचि लेते हैं और प्रत्येक के गुणों को सम्मुख रखते हुए उसके सम्बन्ध में निर्णय करने हेतु स्वतन्त्र होते हैं और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी अभिनीत करते हैं। अत: गुट-निरपेक्षता की नीति का अभिप्राय निष्पक्षता या उदासीनता की नीति नहीं है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्य-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं

1. शान्ति-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्व में शान्ति व्यवस्था और न्याय की स्थापना के लिए प्रयासरत है।

2. सजनात्मकता-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन शीत युद्ध के दौरान उत्पन्न हुई विश्व को नष्ट करने की प्रवृत्ति को समाप्त करके विश्व को सृजनात्मक प्रवृत्ति की ओर मोड़ना चाहता है।

3. आर्थिक न्याय-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का उद्देश्य विश्व में विद्यमान आर्थिक विषमता को दूर करके सभी देशों और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक न्याय को उपलब्ध करवाने का समर्थक है।

4. निःशस्त्रीकरण-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सभी तरह के अस्त्रों-शस्त्रों को नष्ट करके विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान करना है ताकि आतंक व भय के माहौल से मुक्ति प्राप्त हो सके।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के सिद्धान्त-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रमुख सिद्धान्त सैनिक सम्बन्धों का विरोध करना एवं उनसे दूर रहना है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्व को वैचारिक आधार पर बांटने का विरोध करना है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन मित्रता एवं समानता में विश्वास रखता है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्व संस्थाओं का समर्थन करता है।

प्रश्न 11.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का क्या अर्थ है ? भारत द्वारा इस नीति को अपनाने के मुख्य कारण लिखें।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 10 देखें। भारत द्वारा गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत के गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कारण हैं

1. आर्थिक पुनर्निर्माण–स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न देश का आर्थिक पुनर्निर्माण था। अतः भारत के लिए किसी गुट का सदस्य न बनना ही उचित था ताकि सभी देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

2. स्वतन्त्र नीति-निर्धारण के लिए- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतन्त्र नीति का निर्धारण कर सके। भारत को स्वतन्त्रता हज़ारों देश प्रेमियों के बलिदान के बाद मिली थी। किसी एक गुट में सम्मिलित होने का अर्थ इस मूल्यवान् स्वतन्त्रता को खो बैठना था।

3. भारत की प्रतिष्ठा बढाने के लिए भारत की प्रतिष्ठा बढाने के लिए गट-निरपेक्षता की नीति का निर्माण किया गया। यदि भारत स्वतन्त्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निष्पक्ष रूप से अपना निर्णय देता तो दोनों गुट उसके विचारों का आदर करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी होगी और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

4. दोनों गुटों से आर्थिक सहायता-भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण इसलिए भी किया ताकि दोनों गुटों से सहायता प्राप्त की जा सके और हुआ भी ऐसा ही।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 12.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) भारत गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का जन्मदाता है।

(2) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 7वां शिखर सम्मेलन 1983 में श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में दिल्ली में हुआ।

(3) राजीव गांधी की अध्यक्षता में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग, उत्तर-दक्षिण वार्तालाप, नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र संघ की सक्रिय भूमिका आदि विषयों पर जोर दिया।

(4) भारत की पहल पर ‘अफ्रीका कोष’ कायम किया गया।

(5) भारत ने अफ्रीका कोष को, रु० 50 करोड़ की राशि दी।

(6) भारत को 1986 एवं 1989 में अफ्रीका कोष का अध्यक्ष चुना गया। ऋण, पूंजी-निवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था जैसे कई आर्थिक प्रस्तावों का मूल प्रारूप भारत ने बनाया।

(7) 1989 के बेलग्रेड सम्मेलन में भारत ने पृथ्वी संरक्षण कोष कायम करने का सुझाव दिया और सदस्य राष्टों ने इसका भारी समर्थन किया।

(8) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दसवें शिखर सम्मेलन में भारत ने विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण, वातावरण सुरक्षा, आतंकवाद जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाया। भारत का यह रुख जकार्ता घोषणा में शामिल किया गया कि आतंकवाद प्रादेशिक अखण्डता एवं राष्ट्रों की सुरक्षा को एक भयानक चुनौती है।

(9) भारत ने ही गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का ध्यान विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण की तरफ खींचा।

(10) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के महत्त्व एवं सदस्य राष्ट्रों की इसमें निष्ठा बनाए रखने के लिए भारत ने द्विपक्षीय मामले सम्मेलन में न खींचने की बात कही जिसे सदस्य राष्ट्रों ने स्वीकार किया।

(11) 1997 में दिल्ली में गुट-निरपेक्ष देशों के विदेश मन्त्रियों का शिखर सम्मेलन हुआ।

(12) बारहवें शिखर सम्मेलन में भारत ने विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण, विश्व शान्ति एवं आतंकवाद से निपटने के लिए एक विश्वव्यापी सम्मेलन बुलाने का प्रस्ताव पेश किया, जिसका सदस्य राष्ट्रों ने समर्थन किया।

(13) तेरहवें शिखर सम्मेलन में सक्रिय भूमिका अभिनीत करते हुए भारत ने आतंकवाद एवं इसके समर्थकों की कड़ी आलोचना कर विश्व शान्ति पर बल दिया।

(14) भारत ने क्यूबा में हए 14वें एवं मिस्त्र में हए 15वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हए आतंकवाद को समाप्त करने का आह्वान किया।

(15) भारत ने ईरान में 16वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए सीरिया समस्या एवं ईरान परमाणु विवाद को बातचीत द्वारा हल करने पर जोर दिया।

(16) भारत ने वेनेजुएला (2016) में हए 17वें एवं अजरबैजान में (2019) हए 18वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए विकास के लिए वैश्विक शांति स्थापित करने एवं आतंकवाद को समाप्त करने पर जोर दिया।

प्रश्न 13.
‘गुट-निरपेक्षता’ का क्या अर्थ है ? भारतीय गुट-निरपेक्षता की विशेषताएं बताइये ।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 10 देखें।

1. भारत की निर्गुटता की नीति उदासीनता की नीति नहीं है- भारत की निर्गुटता की नीति उदासीनता की नीति नहीं है क्योंकि भारत ने स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय राज्य नीति से दूर नहीं रखा है, अपितु भारत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका अभिनीत करता है।

2. सैन्य समझौतों का विरोध-भारत सैन्य समझौतों का विरोध करता है। अतः भारत सेन्टो (CENTO), नाटो (NATO), सीटो (SEATO), वारसा सन्धि (WARSA-PACT) आदि में सम्मिलित नहीं हुआ है।

3. शक्ति राजनीति से दूर रहना-भारत शक्ति राजनीति का विरोध करता है और प्रत्येक राष्ट्र के शक्तिशाली बनने के अधिकार को स्वीकार करता है।

4. शान्तिमय सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप की नीति-भारत का पंचशील के सिद्धान्तों पर पूर्ण विश्वास है। शान्तिमय सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप की नीति पंचशील के दो प्रमुख सिद्धान्त हैं। भारत शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का समर्थन करता है।

5. स्वतन्त्र विदेश नीति-भारत अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति पर कार्यान्वयन करता है। भारत अपनी विदेश नीति का निर्माण किसी भी अन्य देश के प्रभावाधीन नहीं करता, अपितु स्वेच्छा से स्वतन्त्र रूप में करता है। भारत दोनों शक्ति गुटों में से किसी भी गुट का सदस्य नहीं है।

6. निर्गुट देशों के मध्य गुटबन्दी नहीं है-कुछ आलोचकों का मत है कि निर्गुटता की नीति गुट-निरपेक्ष देशों की गुटबन्दी है। किन्तु आलोचकों का यह विचार उचित नहीं है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ गुट-निरपेक्ष देशों का तृतीय गुट स्थापित करना नहीं है।

7. गुट-निरपेक्षता शान्ति की नीति है-भारत एक निर्गुट देश है। भारत की विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य विश्व शान्ति स्थापित करना है। भारत शीत युद्ध एवं सैन्य समझौतों का विरोध करता है क्योंकि वह इन्हें विश्व-शान्ति हेतु भयावह समझता है।

प्रश्न 14.
विदेश नीति से आप क्या समझते हैं ? भारत की विदेश नीति के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
अथवा
भारत की विदेश नीति के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
विदेश नीति का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें। भारतीय विदेश नीति के लक्ष्य एवं उद्देश्य-भारतीय विदेश नीति के लक्ष्य एवं उद्देश्यों का वर्णन इस प्रकार है

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  • दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों, समझौतों तथा कानूनों के लिए सम्मान उत्पन्न करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेश नीति का अर्थ बताइये। कोई एक परिभाषा भी दीजिए।
अथवा
विदेश नीति से आपका क्या अभिप्राय है? एक परिभाषा देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
विदेश नीति उन सिद्धान्तों और साधनों का एक समूह है जो राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने, अपने उद्देश्यों को सही बताने और उनको प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। विभिन्न राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के व्यवहार में क विदश सम्बन्ध परिवर्तन लाने के लिए और अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण को अपने व्यवहार के अनुसार बनाने के लिए विदेश नीति का प्रयोग करता है।

डॉ० महेन्द्र कुमार के शब्दों में , “विदेश नीति कार्यों की सोची समझी क्रिया दिशा है जिससे राष्ट्रीय हित की विचारधारा के अनुसार विदेशी सम्बन्धों में उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।” रुथना स्वामी के शब्दों में, “विदेश नीति ऐसे सिद्धान्तों और व्यवहार का समूह है जिनके द्वारा राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों को नियमित किया जाता है।”

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति के किन्हीं चार मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
अथवा
भारत की विदेश नीति के कोई चार मुख्य सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
1. गुट-निरपेक्षता- भारत की विदेश नीति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुट-निरपेक्षता है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है किसी गुट में शामिल न होना और स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करना। भारत सरकार ने सदा ही गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया है।

2. विश्व शान्ति और सुरक्षा की नीति-भारत की विदेश नीति का आधारभूत सिद्धान्त विश्व शान्ति और सुरक्षा बनाए रखना है। भारत अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने के पक्ष में है। भारत ने सदैव विश्व शान्ति की स्थापना की और सुरक्षा की नीति अपनाई है।

3. साम्राज्यवादियों तथा उपनिवेशों का विरोध-भारत स्वयं ब्रिटिश साम्राज्य का शिकार रहा है जिसके कारण भारत ने सदैव साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध किया है। भारत साम्राज्यवाद को विश्व शान्ति का शत्रु मानता है क्योंकि साम्राज्यवाद युद्ध को जन्म देता है।

4. अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध-भारतीय विदेश नीति की एक प्रमुख विशेषता यह है कि भारत विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाने का प्रयास करता है।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति के कोई चार निर्धारक तत्व लिखिए।
उत्तर:
1. संवैधानिक आधार-भारत के संविधान में राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए, बताया गया है। अनुच्छेद 51 के अनुसार भारत सरकार को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देना चाहिए तथा दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाने चाहिए।

2. राष्ट्रीय हित-विदेशी नीति के निर्माण में राष्ट्रीय हित ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति अपने हितों की रक्षा के लिए अपनाई है।

3. आर्थिक तत्व-भारत की विदेश नीति के निर्धारण में आर्थिक तत्व ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वतन्त्रता के समय भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए भारत ने गट-निरपेक्षता की नीति अपनाई ताकि दोनों गुटों के देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

4. विचारधारा का प्रभाव-विदेश नीति का निर्माण करने में उस देश की विचारधारा का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है।

प्रश्न 4.
भारत की परमाणु नीति की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत परमाणु शक्ति का प्रयोग विनाशकारी उद्देश्यों के लिए करने के विरुद्ध है। 1974 में भारत ने एक परमाणु धमाका किया था, परन्तु इसके साथ भारत ने यह घोषणा की थी कि भारत का परमाणु धमाका सैनिक लक्ष्यों के लिए नहीं, बल्कि शान्तिमयी उद्देश्यों के लिए है। भारत ने परमाणु अप्रसार सन्धि (Nuclear Non-Proliferation Treaty) के ऊपर हस्ताक्षर नहीं किए हैं क्योंकि भारत इस सन्धि को गैर-परमाणु शक्तियों के लिए पक्षपात वाली सन्धि मानता है।

यद्यपि भारत ने परमाणु बम न बनाने की घोषणा की थी, फिर भी अपने पड़ोसी देशों द्वारा एकत्र की जाने वाली परमाणु सामग्री से चिंतित होकर तथा अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत ने 11 मई तथा 13 मई, 1998 को पांच परमाणु विस्फोट किए। यह परमाणु विस्फोट भारत ने अपनी सुरक्षा की दृष्टि से किए हैं। इन विस्फोटों के बाद भारत ने और परमाणु विस्फोट न करने की घोषणा कर दी। इसके साथ ही साथ परमाणु अस्त्रों को पूर्णतः समाप्त करने के पक्ष में है। इसके लिए वह एक आम सहमति वाली सन्धि के निर्माण के पक्ष में है।

प्रश्न 5.
1962 के भारत-चीन युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे ?
उत्तर:
1. तिब्बत की समस्या-1962 की भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी समस्या तिब्बत की समस्या थी। चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बतवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सुलझाना चाहता था।

2. मानचित्र से सम्बन्धित समस्या-भारत एवं चीन के मध्य 1962 में युद्ध का एक कारण दोनों देशों के बीच मानचित्र में रेखांकित भू-भाग था। चीन ने 1954 में प्रकाशित अपने मानचित्र में कुछ ऐसे भाग प्रदर्शित किये जो वास्तव में भारतीय भू-भाग में थे, अत: भारत ने इस पर चीन के साथ अपना विरोध दर्ज कराया।

3. सीमा विवाद- भारत चीन के बीच युद्ध का एक कारण सीमा विवाद भी था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तुचीन ने नहीं। सीमा विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 6.
भारत-चीन सीमा विवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत और चीन एशिया के दो बड़े और पड़ोसी देश हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव रहा है। इसी विवाद के चलते 1962 में दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी हो चुका है। दोनों देशों के बीच तिब्बत एक संवेदनशील विषय है। तिब्बत भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित है। पहले यह एक स्वतन्त्र राज्य हुआ करता था। 18वीं शताब्दी में तिब्बत को चीन का एक भाग मान लिया गया। 1950 में चीन ने तिब्बत में व्यापक पैमाने पर घुसपैठ की जिसका भारत ने विरोध किया। 1959 में तिब्बत की राजधानी में अचानक सैनिक गतिविधियां बढ़ गयीं।

तिब्बत के वैधानिक शासक दलाई लामा को बाहर निकाल दिया गया। चीन भारत की तिब्बत के प्रति इस सहानुभूति को पसन्द नहीं करता और भारत के दलाई लामा की शरण को शत्रु जैसी कार्यवाही मानता है। सितम्बर, 1959 में चीनी सरकार ने भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के 1,28,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में औपचारिक रूप से अपना दावा प्रस्तुत किया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और इसकी 6400 वर्ग किलोमीटर सीमा पर कब्जा कर लिया। आज भी भारत की लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर सीमा चीन के कब्जे में है। चीन इस पर अपना दावा करता है जबकि यह भारत की सीमा है। आज भी दोनों देशों में सीमा विवाद बना हुआ है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 7.
1962 में भारत-चीन के मध्य हुए युद्ध का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत-चीन के मध्य 1962 में हुए युद्ध की परिस्थितियां बहुत पहले बननी शुरू हो गई थीं। अन्तत: चीन ने 20 अक्तूबर, 1962 को भारत की उत्तरी सीमा पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक हमले के कारण भारतीय फ़ौजें जब तक सम्भलीं, तब तक चीन ने सैनिक चौंकियों पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन और अमेरिका ने भारत के कहने पर तेजी से सैन्य सामग्री भेजी। चीन ने अचानक 21 नवम्बर, 1962 के एक पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा कर दी तथा दो सूत्रीय योजना की घोषणा की।

प्रथम, चीनी सेनाएं, 7 नवम्बर, 1959 की वास्तविक नियन्त्रण रेखा से 20 किलोमीटर अपनी ओर हट जायेंगी। द्वितीय, चीनी सेना के हटने से खाली क्षेत्र पर चीन सरकार अपनी असैनिक चौंकियां स्थापित करेगी। विपरीत परिस्थितियों के कारण भारत ने चीन की एक पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा को मान लिया, परन्तु द्विपक्षीय योजना को नहीं माना और यह घोषणा की, कि जब तक चीन 8 सितम्बर, 1962 की स्थिति तक नहीं लौट जाता तब तक कोई वार्ता नहीं होगी।

प्रश्न 8.
कोलम्बो प्रस्ताव के मुख्य प्रावधान लिखें।
उत्तर:
श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार), कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, मिस्र और घाना ने दिसम्बर, 1962 में भारत-चीन वार्ता लम्बो सम्मेलन आयोजित किया। श्रीमती भण्डारनायके स्वयं प्रस्ताव लेकर दिल्ली और पीकिंग गई। इसके बाद 19 जनवरी, 1963 को यह प्रस्ताव प्रकाशित किये गए, जिनकी मुख्य बातें निम्नलिखित थीं

  • युद्ध-विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण दल के लिए उचित है।
  • चीन पश्चिमी क्षेत्रों में सैनिक चौंकियां 20 किलोमीटर पीछे हटा ले।
  • भारत अपनी वर्तमान स्थिति कायम रखे।
  • विवाद को अन्तिम हल होने तक चीन द्वारा खाली किया गया क्षेत्र असैनिक क्षेत्र हो, जिसकी निगरानी दोनों पक्षों द्वारा नियुक्त गैर सैनिक चौंकियां करें।
  • मध्यवर्ती क्षेत्र का हल शान्तिपूर्ण ढंग से किया जाए।

प्रश्न 9. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के कोई चार कारण लिखें।
उत्तर:
1. जूनागढ़ एवं हैदराबाद का भारत में मिलाया जाना-जूनागढ एवं हैदराबाद की रियासतें भारत में मिला लिये जाने से पाकिस्तान को गहरा धक्का लगा तथा वह भारत को सदैव नीचा दिखाने की कार्यवाहियां करने लगा।

2. ऋण अदा करने का प्रश्न-स्वतन्त्र भारत ने पुरानी सरकार के कर्जे का भार सम्भाला। इसके अनुसार इसे 5 वर्ष में पाकिस्तान से 300 करोड़ रुपये लेने थे, लेकिन पाकिस्तान ने कर्जे को चुकाने का नाम तक नहीं लिया।

3. विस्थापित सम्पत्ति तथा अल्प संख्यकों की रक्षा का प्रश्न-1947 से 1957 तक लगभग 90 लाख मुसलमान भारत से पाकिस्तान गये तथा इतने ही गैर मुस्लिम पाकिस्तान से भारत आए। पाकिस्तान ने इन विस्थापितों की सम्पत्ति तथा अल्पसंख्यकों की रक्षा से सम्बन्धित सभी सुझावों को नकार दिया।

4. कश्मीर समस्या-1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध का सबसे बड़ा कारण कश्मीर समस्या थी। अक्तूबर, 1947 में कश्मीर के राजा हरि सिंह ने कश्मीर रियासत को भारत में मिलाने की घोषणा कर दी थी, परन्तु पाकिस्तान ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया।

प्रश्न 10.
ताशकंद समझौते के मुख्य प्रावधान लिखें।
उत्तर:
ताशकंद समझौता 1966 में सोवियत संघ में भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ। इस समझौते के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं

  • दोनों पक्षों का यह प्रयास रहेगा, कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बनें।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे, कि दोनों देशों की सेनाएं 5 फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुंच जायें, जहां वे 5 अगस्त, 1965 से पहले थीं।।
  • दोनों देश एक-दूसरे के आन्तरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार नहीं करेंगे।
  • दोनों देशों के उच्चायुक्त एक-दूसरे के देश में वापिस आयेंगे।

प्रश्न 11.
पंचशील पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्त भारत और चीन के प्रधानमंत्री, पण्डित जवाहर लाल व चाऊ-एन-लाई ने बनाए। पंचशील का साधारण अर्थ पांच सिद्धान्त हैं। अप्रैल, 1954 में भारत तथा चीन के मध्य एक व्यापारिक समझौता हुआ था। इस व्यापारिक समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धान्त दिए गए जिनको सामूहिक रूप से पंचशील कहा जाता है। इन पांच सिद्धान्तों को भारत तथा चीन ने परस्पर सम्बन्धों को नियमित करने के विषय में स्वीकार किया था। ये सिद्धान्त हैं-

  • परस्पर क्षेत्रीय अखण्डता तथा प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
  • परस्पर आक्रमण न करना।
  • परस्पर आन्तरिक कार्यों में हस्तक्षेप न करना।
  • समानता तथा परस्पर लाभ।
  • शान्तिमय सह-अस्तित्व।

प्रश्न 12.
भारत द्वारा परमाणु नीति एवं कार्यक्रम अपनाने के कोई चार कारण लिखें।
उत्तर:
1. आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना-भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं वे सभी आत्म-निर्भर राष्ट्र हैं।

2. न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना-भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।

3. दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना-भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं।

4. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की विभेदपूर्ण नीति- परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि (NPT) तथा 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण सन्धि (C.T.B.T.) के विभेदपूर्ण ढंग से लागू किया, जिसके कारण भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए।

प्रश्न 13.
भारतीय परमाणु नीति के कोई दो पक्ष बताएं।
उत्तर:
भारतीय परमाणु नीति के दो पक्ष निम्नलिखित हैं

1. आत्म रक्षा-भारतीय परमाणु नीति का प्रथम पक्ष आत्म रक्षा है। भारत ने आत्म रक्षा के लिए परमाणु हथियारों का निर्माण किया है, ताकि कोई अन्य देश भारत पर परमाणु हमला न कर सके।

2. प्रथम प्रयोग की मनाही-भारत की परमाणु नीति का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि भारत ने परमाणु हथियारों का युद्ध में पहले प्रयोग न करने की घोषणा कर रखी है।

प्रश्न 14.
भारत की विदेश नीति को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार बाहरी कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन-भारतीय विदेश नीति अन्तर्राष्ट्रीय जैसे यू० एन० ओ०, आई० एम० एफ० तथा वर्ल्ड बैंक प्रभावित करते हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय जनमत- भारतीय विदेश नीति को अन्तर्राष्ट्रीय जनमत प्रभावित करता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय कानून-भारतीय विदेश नीति को अन्तर्राष्ट्रीय कानून प्रभावित करते हैं।
  • विश्व समस्याएं-भारतीय विदेश नीति को मानवीय अधिकारों तथा आतंकवाद की समस्याएं भी प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 15.
‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन’ के कोई चार उद्देश्य बताइये।
अथवा
गुट निरपेक्षता के कोई चार उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों को शक्ति गुटों से अलग रखना था।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का उद्देश्य विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाना था।
  • सदस्य देशों में सामाजिक एवं आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना।
  • उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद को समाप्त करना इसका एक मुख्य उद्देश्य रखा गया।

प्रश्न 16.
भारतीय गुट-निरपेक्षता की कोई चार विशेषताएँ बताइये ।
अथवा
भारत की गुट निरपेक्षता की नीति के मुख्य तत्त्व लिखिए।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष आंदोलन की नीति किसी गुट में शामिल होने के विरुद्ध है।
  • गुट-निरपेक्षता की नीति सभी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने पर बल देती है।
  • गुट-निरपेक्षता की नीति साम्राज्यवाद के विरुद्ध है।
  • गुट-निरपेक्षता की नीति रंग भेदभाव की नीति के विरुद्ध है।

प्रश्न 17.
भारत द्वारा गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाने के कोई चार कारण लिखिए।
अथवा
गुट-निरपेक्षता का क्या अर्थ है? भारत द्वारा इस नीति को अपनाने के कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ- इसके लिए अति लघु उत्तरीय प्रश्नों में प्रश्न नं0 4 देखें। भारत द्वारा गुट निरपेक्ष नीति अपनाने के कारण

1. आर्थिक पुनर्निर्माण-स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न देश का आर्थिक पुनर्निर्माण था। अत: भारत के लिए किसी गुट का सदस्य न बनना ही उचित था ताकि सभी देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

2. स्वतन्त्र नीति-निर्धारण के लिए भारत ने गुट-निपरेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतन्त्र नीति का निर्धारण कर सके। भारत को स्वतन्त्रता हज़ारों देश प्रेमियों के बलिदान के बाद मिली थी। किसी एक गुट में सम्मिलित होने का अर्थ इस मूल्यवान् स्वतन्त्रता को खो बैठना था।

3. भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए गुट-निरपेक्षता की नीति का निर्माण किया गया। यदि भारत स्वतन्त्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निष्पक्ष रूप से अपना निर्णय देता तो दोनों गुट उसके विचारों का आदर करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी होगी और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

4. दोनों गुटों से आर्थिक सहायता- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण इसलिए भी किया ताकि दोनों गुटों से सहायता प्राप्त की जा सके और हुआ भी ऐसा ही।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेश नीति का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
प्रत्येक देश दूसरे देश के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है। विदेश नीति उन सिद्धान्तों और साधनों का समूह है जो राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने, अपने उद्देश्यों को सही बताने और उनको प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। रुथना स्वामी के अनुसार, “विदेश नीति ऐसे सिद्धान्तों और व्यवहारों का समूह है जिनके द्वारा राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों को नियमित किया जाता है।”

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति की कोई दो मुख्य विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:

  • भारतीय विदेश नीति का मुख्य आधारभूत सिद्धान्त गुट-निरपेक्षता है।
  • भारतीय विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त राष्ट्रहित की रक्षा करना है।

प्रश्न 3.
भारतीय विदेश नीति को निर्धारित करने वाले दो तत्त्वों का वर्णन करो।
उत्तर:
1. संवैधानिक आधार-भारत के संविधान में राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में केवल राज्य की आन्तरिक नीति से सम्बन्धित ही निर्देश नहीं दिए गए बल्कि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए इस विषय में भी निर्देश दिए गए हैं। अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने, दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध रखने तथा अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाने सम्बन्धी निर्देश दिए गए हैं।

2. राष्ट्र हित-विदेश नीति के निर्माण में राष्ट्रीय हित ने सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत ने अपने राष्ट्र हितों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रमण्डल का सदस्य रहना स्वीकार किया। भारत ने राष्ट्र हितों को सामने रखते हुए ही ऐसे कार्य किए हैं जिन्हें उचित कहना कठिन है।

प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्षता का अर्थ स्पस्ट करें।
उत्तर:
भारत एक गुट-निरपेक्ष देश है। भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार गुट-निरपेक्षता है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है-अपनी स्वतन्त्र नीति। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है कि किसी गुट में शामिल न होकर स्वतन्त्र रहना। गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण देश प्रत्येक समस्या पर उसके गुण-दोष पर विचार कर अपनी राय कायम करता है। गुट-निरपेक्षता की नीति शान्तिवाद की नीति है।

भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के अनुसार, “गुट-निरपेक्षता में न तो तटस्थता है और न ही समस्याओं के प्रति उदासीनता। उसमें सिद्धान्तों के आधार पर सक्रिय और स्वतन्त्र रूप से निर्णय करने की भावना निहित है। अपनी इसी आन्तरिक शक्ति के सहारे वह सभी देशों के बीच विश्वास तथा सहयोग को अधिक-से-अधिक बढ़ाने पर बल दे रहा है, ताकि विश्व को युद्ध और आर्थिक विनाश से बचाया जा सके।”

प्रश्न 5.
पंचशील क्या है ?
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्त भारत और चीन के प्रधानमन्त्री, पण्डित जवाहर लाल व चाऊ-एन-लाई ने बनाए। पंचशील का साधारण अर्थ पांच सिद्धान्त हैं। अप्रैल, 1954 में भारत तथा चीन के मध्य एक व्यापारिक समझौता हुआ था। इस व्यापारिक समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धान्त दिए गए जिनको सामूहिक रूप से पंचशील कहा जाता है। इन पांच सिद्धान्तों को भारत तथा चीन ने परस्पर सम्बन्धों को नियमित करने के विषय में स्वीकार किया था। ये सिद्धान्त हैं-

  • परस्पर क्षेत्रीय अखण्डता तथा प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
  • परस्पर आक्रमण न करना
  • परस्पर आन्तरिक कार्यों में हस्तक्षेप न करना
  • समानता तथा परस्पर लाभ
  • शान्तिमय सह-अस्तित्व।

प्रश्न 6.
भारत-चीन में हुए 1962 के युद्ध के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:
1. तिब्बत की समस्या-1962 के भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी समस्या तिब्बत की समस्या थी। चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बतवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सुलझाना चाहता था।

2. सीमा विवाद- भारत-चीन के बीच युद्ध का एक कारण सीमा विवाद भी था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तु चीन ने नहीं किया। सीमा विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 7.
कोलम्बो प्रस्ताव के कोई चार प्रावधान लिखें।
उत्तर:

  • युद्ध विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण हल के लिए उचित है।
  • चीन पश्चिमी क्षेत्रों में अपनी सैनिक चौकियां 20 किलोमीटर पीछे हटा लें।
  • भारत अपनी वर्तमान स्थिति कायम रखे।
  • मध्यवर्ती क्षेत्र का हल शांतिपूर्ण ढंग से किया जाए।

प्रश्न 8.
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने पाकिस्तान के साथ कब और कौन-सा समझौता किया था?
उत्तर:
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने पाकिस्तान के साथ सन् 1966 में ताशकन्द समझौता किया था।

प्रश्न 9.
ताशकंद समझौते के कोई दो प्रावधान लिखें।
उत्तर:

  • दोनों पक्षों (भारत-पाकिस्तान) का यह प्रयास रहेगा कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बनें।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि दोनों देशों की सेनाएं 5 फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुंच जाएं जहां से 5 अगस्त, 1965 से पहले थीं।

प्रश्न 10.
‘शिमला समझौता’ कब और किसके मध्य सम्पन्न हुआ ?
उत्तर:
1972 को भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री भुट्टो के बीच एक समझौता हुआ, जो शिमला समझौते के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं

  • दोनों देश आपसी मतभेदों का शान्तिपूर्ण ढंग से हल करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे की सीमा पर आक्रमण नहीं करेंगे।

प्रश्न 11.
भारत और चीन के मध्य दो मुख्य विवाद कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:

  • भारत और चीन में महत्त्वपूर्ण विवाद सीमा का विवाद है। चीन ने भारत की भूमि पर कब्ज़ा कर रखा है।
  • चीन का तिब्बत पर कब्जा और भारत का दलाई लामा को राजनीतिक शरण देना।

प्रश्न 12.
भारत-पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों में तनाव के मुख्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान में कभी भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध नहीं रहे। इन दोनों में तनाव के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण कश्मीर का मामला है। पाकिस्तान के नेताओं ने कई बार कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाया है जिसे भारत नापसन्द करता है।

(2) भारत और पाकिस्तान में तनावपूर्ण सम्बन्धों का एक कारण यह है कि पाकिस्तान पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर के आतंकवादियों की सभी तरह की सहायता कर रहा है।

प्रश्न 13.
भारत द्वारा परमाणु शस्त्र बनाने के दो मुख्य कारण क्या हैं ?
उत्तर:

  • भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
  • भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक हैं क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और इन दोनों देशों से भारत युद्ध भी लड़ चुका है।

प्रश्न 14.
भारत की परमाणु नीति के विकास के दो पड़ाव लिखें।
उत्तर:

  • भारत ने 1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की।
  • भारत ने 1974 एवं 1998 में परमाणु परीक्षण किए। इन परीक्षणों द्वारा भारत ने परमाणु कार्यक्रम को आगे जारी रखने के लिए आवश्यक तथ्य एवं आंकड़े प्राप्त किए।

प्रश्न 15.
पोखरण में भारत ने परमाणु परीक्षण कब किए ?
उत्तर:
भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण सन् 1974 एवं सन् 1998 में किये।

प्रश्न 16.
नेहरू की विदेश नीति के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:

  • दूसरे देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना।
  • गुटों की राजनीति से अलग रहना।

प्रश्न 17.
विदेशी नीति से सम्बन्धित किन्हीं दो नीति निर्देशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  • दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।

प्रश्न 18.
तिब्बत का पठार भारत और चीन में तनाव का एक बड़ा मसला कैसे बना ?
उत्तर:
भारत और चीन के बीच तनाव का एक कारण तिब्बत की समस्या है। 29 अप्रैल, 1954 को भारत ने कुछ शर्तों के साथ तिब्बत पर चीन के आधिपत्य को स्वीकार किया। दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों में विश्वास व्यक्त किया। मार्च, 1957 में दलाईलामा ने चीनियों के दमन से भयभीत होकर भारत में राजनीतिक शरण ले ली, जिसका चीन ने विरोध किया, तभी से तिब्बत भारत एवं चीन के बीच एक बड़ा मसला बना हुआ है।

प्रश्न 19.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों के ऐसे दो उदाहरण दीजिए जिनमें भारत ने स्वतन्त्र रवैया अपनाया है ?
उत्तर:

  • निःशस्त्रीकरण-भारत ने नि:शस्त्रीकरण के मुद्दे पर स्वतन्त्र रवैया अपनाया है तथा किसी के दबाव में नहीं आया।
  • आतंकवाद-भारत ने आतंकवाद जैसे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे पर स्वतन्त्र रवैया अपनाया है।

प्रश्न 20.
अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिए, जिनमें भारत ने स्वतन्त्र रवैया अपनाया ?
उत्तर:
1. स्वेज नहर की समस्या-26 जुलाई, 1956 को मिस्र ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इस पर ब्रिटेन, फ्रांस एवं इज़रायल ने मिस्र पर आक्रमण कर दिया, भारत ने इस आक्रमण की निन्दा करते हुए कहा कि विवाद को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाया जाए।

2. सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप-भारत ने 1979 में सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में किए गए सैनिक हस्तक्षेप की निन्दा की।

प्रश्न 21.
मैक्मोहन रेखा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मैक्मोहन रेखा उत्तर-पूर्व में भारत-चीन सीमा का विभाजन करती है। सन् 1914 में शिमला में हुए ब्रिटिश भारत, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों के एक सम्मेलन में यह सीमा रेखा निर्धारित करके औपचारिक रूप से सीमा विभाजन किया गया था। इस सीमा रेखा का नाम तत्कालीन भारत मन्त्री आर्थर हेनरी मैक्मोहन के नाम से रखा गया था। भारत ने इस सीमा रेखा को सदैव वैध माना है। यह एक प्राकृतिक सीमा है। क्योंकि यह उत्तर में तिब्बत के पठार और दक्षिण में भारत की पर्वत श्रेणियों से निकलती है। चीन ने इस सीमा रेखा का कभी आदर नहीं किया।

प्रश्न 22.
भारत चीन सीमा विवाद क्या है ?
उत्तर:
भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव रहा है। सितम्बर, 1959 में चीनी सरकार ने भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के 1,28,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में औपचारिक रूप से अपना दावा प्रस्तुत किया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और इसकी 6400 वर्ग किलोमीटर सीमा पर कब्जा कर लिया। आज भी भारत की लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर सीमा चीन के कब्जे में है। चीन इस पर अपना दावा करता है जबकि यह भारत की सीमा है। आज भी दोनों देशों में सीमा विवाद बना हुआ है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. निम्न में से कौन-सा पं० नेहरू द्वारा अपनाई गई विदेश नीति का एक तत्त्व है
(A) गुट-निरपेक्षता
(B) साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध
(C) पंचशील।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

2. निम्न में से कौन-सा भारतीय विदेश नीति को निर्धारित करने वाला तत्त्व है-
(A) संवैधानिक आधार
(B) भौगोलिक तत्त्व
(C) राष्ट्रीय हित
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

3. भारत-चीन युद्ध कब हुआ ?
(A) 1962
(B) 1965
(C) 1971
(D) 1974
उत्तर:
(A) 1962

4. कोलम्बो प्रस्ताव का प्रावधान था
(A) युद्ध विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण हल के लिए उचित है
(B) चीन द्वारा पश्चिमी क्षेत्रों में अपनी सैनिक चौकियां 20 किलोमीटर पीछे हटाना
(C) भारत द्वारा अपनी वर्तमान स्थिति को कायम रखना
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

5. मैक्मोहन रेखा का निर्धारण किया गया
(A) 1914 में
(B) 1920 में
(C) 1925 में
(D) 1935 में।
उत्तर:
(A) 1914 में।

6. निम्न में से किसने पंचशील के सिद्धान्तों का निर्धारण किया ?
(A) श्रीमती इन्दिरा गांधी
(B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(C) पं० नेहरू।

7. पंचशील के कितने सिद्धान्त हैं ?
(A) चार
(B) पाँच
(C) सात
(D) आठ।
उत्तर:
(B) पाँच।

8. 1965 में किन दो देशों के बीच युद्ध हुआ ?
(A) भारत-पाकिस्तान
(B) भारत-चीन
(C) भारत-श्रीलंका
(D) पाकिस्तान-नेपाल।
उत्तर:
(A) भारत-पाकिस्तान।

9. ताशकन्द समझौता किन दो देशों के बीच हुआ ?
(A) भारत-चीन
(B) भारत-पाकिस्तान
(C) भारत-नेपाल
(D) भारत-श्रीलंका।
उत्तर:
(B) भारत-पाकिस्तान।

10. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में किस नए देश का जन्म हुआ ?
(A) नेपाल
(B) भूटान
(C) बंगलादेश
(D) मालद्वीप।
उत्तर:
(C) बंगलादेश।

11. शिमला समझौता किन दो देशों के बीच हुआ ?
(A) भारत-पाकिस्तान
(B) भारत-चीन
(C) भारत-नेपाल
(D) भारत-श्रीलंका।
उत्तर:
(A) भारत-पाकिस्तान।

12. पं० नेहरू कब से कब तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे ?
(A) 1947-1950
(B) 1947-1955
(C) 1947-1962
(D) 1947-1964
उत्तर:
(D) 1947-1964

13. किसके सुझाव पर कश्मीर का विभाजन किया गया था ?
(A) माउण्टबेटन
(B) एम० सी० नाटन
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(A) माउण्टबेटन।

14. भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने का कारण है
(A) आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना
(B) शक्तिशाली राष्ट्र बनना
(C) पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

15. भारत ने प्रथम परमाणु विस्फोट किस वर्ष किया ?
(A) 1974
(B) 1988
(C) 2000
(D) 2001
उत्तर:
(A) 1974

16. भारत ने द्वितीय परमाणु विस्फोट कब किया ?
(A) 1974
(B) 1985
(C) 1998
(D) 2000
उत्तर:
(C) 1998

17. निम्नलिखित में से कौन-सा भारतीय विदेश नीति का आन्तरिक निर्धारक तत्त्व है ?
(A) संवैधानिक आधार
(B) भौगोलिक तत्त्व
(C) ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

18. निम्नलिखित में से कौन-सा भारतीय विदेश नीति का बाहरी निर्धारक तत्त्व है ?
(A) राष्ट्रीय हित
(B) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
(C) आर्थिक तत्त्व
(D) संवैधानिक आधार।
उत्तर:
(B) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन।

19. निम्नलिखित में से कौन-सी भारतीय विदेश नीति की विशेषता है ?
(A) गुट-निरपेक्षता
(B) साम्राज्यवादियों का विरोध
(C) उपनिवेशवादियों का विरोध
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

20. पंचशील के सिद्धान्तों का प्रतिपादन कब किया गया ?
(A) 1954
(B) 1956
(C) 1958
(D) 1960
उत्तर:
(A) 1954

21. निम्नलिखित में से कौन-सा पंचशील का सिद्धान्त है ?
(A) राष्ट्रों को एक-दूसरे की प्रभुसत्ता का सम्मान करना चाहिए
(B) एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण नहीं करेगा
(C) एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के आन्तरिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

22. भारत में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने परमाणु परीक्षण किया
(A) सन् 1998 में
(B) सन् 1996 में
(C) सन् 1999 में
(D) सन् 1997 में।
उत्तर:
(D) सन् 1998 में।

23. भारत-पाक के मध्य शिमला समझौता कब हुआ?
(A) वर्ष 1962 में
(B) वर्ष 1972 में
(C) वर्ष 1974 में
(D) वर्ष 1976 में।
उत्तर:
(B) वर्ष 1972 में।

24. कारगिल संघर्ष के दौरान भारतीय सेना ने कौन-सा ऑपरेशन चलाया था?
(A) ऑपरेशन विजय
(B) ऑपरेशन सुरक्षा
(C) ऑपरेशन शान्ति
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर:
(A) ऑपरेशन विजय।

25. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का जनक किसको माना जाता है ?
(A) सुकर्णो को
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू को
(C) नेल्सन मंडेला को
(D) सभी को।
उत्तर:
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू को।

26. पाकिस्तान की स्थापना किस वर्ष में हुई ?
(A) 1947 में
(B) 1950 में
(C) 1945 में
(D) 1949 में।
उत्तर:
(A) 1947 में।

27. भारत की विदेश नीति का मुख्य निर्माता किसे माना जाता है ?
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू
(B) इंदिरा गांधी
(C) महात्मा गांधी
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू।

28. पहला गुट-निरपेक्ष सम्मेलन हुआ
(A) काहिरा में
(B) बेलग्रेड में
(C) कोलम्बो में
(D) नई दिल्ली में।
उत्तर:
(B) बेलग्रेड में।

29. ‘पंचशील समझौता’ किन देशों के मध्य हुआ ?
(A) भारत-श्रीलंका
(B) भारत-नेपाल
(C) भारत-पाकिस्तान
(D) भारत-तीन।
उत्तर:
(D) भारत-चीन।

30. निम्न में से एक भारत का पड़ोसी देश नहीं है ?
(A) चीन
(B) अमेरिका
(C) नेपाल
(D) पाकिस्तान।
उत्तर:
(B) अमेरिका।

31. भारत का पड़ोसी देश नहीं है
(A) पाकिस्तान
(B) नेपाल
(C) अमेरिका
(D) चीन।
उत्तर:
(C) अमेरिका।

32. भारत का विभाजन कब हुआ ?
(A) 1947
(B) 1948
(C) 1949
(D) 1950
उत्तर:
(A) 1947

33. भारत के विभाजन से कौन-सा नया देश अस्तित्व में आया ?
(A) रूस
(B) जर्मनी
(C) पाकिस्तान
(D) जापान।
उत्तर:
(C) पाकिस्तान।

34. पाकिस्तान ने भारत पर पहली बार कब आक्रमण किया ?
(A) वर्ष 1965 में
(B) वर्ष 1971 में
(C) वर्ष 1984 में
(D) वर्ष 1950 में।
उत्तर:
(A) वर्ष 1965 में।

35. वर्ष 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच कौन-सा समझौता हुआ ?
(A) ताशकन्द समझौता
(B) पंचशील समझौता
(C) शिमला समझौता
(D) कारगिल समझौता।
उत्तर:
(C) शिमला समझौता।

36. प्रधानमन्त्री राजीव गांधी कब चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर गए ?
(A) 1985
(B) 1986
(C) 1987
(D) 1988
उत्तर:
(D) 1988

37. बांडुंग में एफ्रो-एशियाई दोनों देशों का सम्मेलन कब हुआ ?
(A) सन् 1952 में
(B) सन् 1955 में
(C) सन् 1956 में
(D) सन् 1972 में।
उत्तर:
(B) सन् 1955 में।

38. क्या वर्तमान समय में नेपाल में लोकतन्त्र पाया जाता है ?
(A) हां
(B) नहीं
(C) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) हां।

39. गुट निरपेक्षता से तात्पर्य है
(A) तटस्थता
(B) तटस्थीकरण
(C) अलगाववाद
(D) किसी भी शक्ति गुट में शामिल न होना।
उत्तर:
(D) किसी भी शक्ति गुट में शामिल न होना।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) चीन ………… दल के शासन वाला देश है।
उत्तर:
साम्यवादी

(2) शिमला समझौता वर्ष ……….. में हुआ।
उत्तर:
1972

(3) 1962 में ……….. और …….. देशों के बीच युद्ध हुआ।
उत्तर:
चीन, भारत

(4) ………. भारत का पड़ोसी देश है।
उत्तर:
पाकिस्तान

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

(5) आजकल गुट निरपेक्ष देशों की संख्या ………… है।
उत्तर:
120

(6) 1962 में ……………… ने भारत पर आक्रमण किया।
उत्तर:
चीन

(7) पंचशील समझौते पर ………….. और ……………. दो देशों ने हस्ताक्षर किए।
उत्तर:
भारत, चीन,

(8) भारत द्वारा अपना प्रथम परमाणु परीक्षण सन् ……………. में किया गया था।
उत्तर:
1974

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
विदेश नीति क्या होती है ?
उत्तर:
प्रत्येक देश दूसरे देश के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति का संवैधानिक आधार लिखें।
उत्तर:
अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाने सम्बन्धी निर्देश दिए गए हैं।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति का कोई एक उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
क्षेत्रीय अखण्डता की रक्षा करना।

प्रश्न 4.
भारत की विदेश नीति का मख्य निर्माता किसे माना जाता है ?
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू को भारत की विदेश नीति का निर्माता माना जाता है।

प्रश्न 5.
लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान के साथ कौन-सा समझौता किया?
उत्तर:
ताशकन्द समझौता।

प्रश्न 6.
‘ताशकन्द समझौता’ किन देशों के मध्य हुआ ?
उत्तर:
भारत-पाकिस्तान के बीच।

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HBSE 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार Notes.

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार

→ नेत्र प्रकाश के माध्यम से इस अद्भुत संसार को देखने में हमें समर्थ बनाते हैं।

→ रेटिना (Ratina)-मानव नेत्र एक कैमरे की तरह होता है, इसका लेंस-निकाय एक प्रकाश सुग्राही पर्दे पर प्रतिबिम्ब बनाता है। इस पर्दे को रेटिना या दृष्टि पटल कहते हैं।

→ सुग्राही कोशिकाएँ (Light-sensitive cells) रेटिना पर प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती हैं जो विद्युत सिग्नल उत्पन्न कर उन्हें मस्तिष्क तक पहुँचाती हैं।

→ अभिनेत्र लेंस रेशेदार जैली जैसे पदार्थ से बना होता है।

→ समंजन क्षमता (Power of Accommodation)-अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है, समंजन क्षमता कहलाती है।

→ किसी वस्तु को आराम से स्पष्ट रूप से देखने के लिये नेत्रों से इसे कम से कम 25 cm दूर रखना चाहिए।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार

→ मानव के एक नेत्र का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र लगभग 150° है जबकि दो नेत्रों द्वारा संयुक्त रूप से यह लगभग 180° हो जाता है।

→ दृष्टि के तीन दोष होते हैं-

  • निकट दृष्टि दोष,
  • दीर्घ दृष्टि दोष,
  • जरा दूर दृष्टिता दोष।

→ निकट दृष्टि दोष को उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस द्वारा ठीक किया जा सकता है।

→ दीर्घ दृष्टि दोष को उपयुक्त क्षमता के उत्तल लेंस द्वारा ठीक किया जा सकता है।

→ जरा दूर दृष्टिता दोष दूर करने के लिए द्विफोकसी लेंसों का उपयोग किया जाता है।

→ आजकल संस्पर्श लेंस (Contact lens) अथवा शल्य हस्तक्षेप द्वारा दृष्टि दोषों का संशोधन संभव है।

→ काँच का त्रिभुज प्रिज्म प्रकाश की किरणों को अपवर्तित कर देता है।

→ विक्षेपण (Dispersion)-प्रकाश के अवयवी वर्गों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं।

→ विचलन कोण (Angle of derivation)-प्रिज्म की विशेष आकृति के कारण निर्गत किरण, आपतित किरण की दिशा से एक कोण बनाती है, इस कोण को विचलन कोण कहते हैं।

→ VIBGYOR (Violet, Indigo, Blue, Green, Yellow, Orange, red) वर्णों के क्रम को प्रकट करता है।

→ स्पेक्ट्रम (Spectrum)-सर्वप्रथम न्यूटन ने काँच के प्रिज्म का उपयोग सूर्य के स्पेक्ट्रम को प्राप्त करने के लिए किया था।

→ वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं।

→ वायुमंडलीय अपवर्तन (Atmospheric Refraction) के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पहले दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात् तक दिखाई देता है।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार

→ प्रकीर्णन (Scattering)-प्रकाश का प्रकीर्णन ही आकाश के नीले रंग, समुद्र के रंग, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय । । सूर्य के लाल रंग का कारण है।

→ टिंडल प्रभाव (Tyndall effect)-कणों से विसरित प्रकाश परावर्तित होकर हमारे पास पहुँचता है।

→ लाल रंग के धुएँ या कुहरे में सबसे कम प्रकाश का प्रकीर्णन होता है इसलिए दूर से देखने पर भी वह लाल ही दिखाई देता है।

→ यदि पृथ्वी पर वायुमंडल न होता तो कोई प्रकीर्णन न हो पाता तब आकाश काला प्रतीत होता।

→ हमारे नेत्रों तक पहुँचने वाला प्रकाश अधिक तरंगदैर्ध्य का होता है, इस कारण से सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सूर्य लाल (रक्ताभ) प्रतीत होता है।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

HBSE 12th Class Political Science भारत के विदेश संबंध Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाएं
(क) गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका, दोनों की सहायता हासिल कर सका।
(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्ध शुरुआत से ही तनावपूर्ण रहे।
(ग) शीतयुद्ध का असर भारत-पाक सम्बन्धों पर भी पड़ा।
(घ) 1971 की शान्ति और मैत्री की सन्धि संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत की निकटता का परिणाम थी।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाएं
(क) 1950-64 के दौरान भारत की – (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत विदेश नीति का लक्ष्य चले आए।
(ख) पंचशील – (ii) क्षेत्रीय अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास।
(ग) बांडुंग सम्मेलन – (iii) शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धान्त।
(घ) दलाई लामा – (iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में हुई।
उत्तर:
(क) 1950-64 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य – (ii) क्षेत्रीय अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास।
(ख) पंचशील –  (iii) शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धान्त।
(ग) बांडुंग सम्मेलन – (iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में हुई।
(घ) दलाई लामा –  (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 3.
नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतन्त्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे ? अपने उत्तर में दो कारण बताएं और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।
उत्तर:
नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतन्त्रता का एक अनिवार्य संकेतक इसलिए मानते थे, क्योंकि विदेश नीति का संचालन वही देश कर सकता है, जो स्वतन्त्र हो। एक पराधीन देश अपनी विदेश नीति का संचालन नहीं कर सकता। क्योंकि वह दूसरे देश के अधीन होता है, जैसे 1947 से पहले भारत स्वयं अपनी विदेश नीति का संचालन नहीं करता था, बल्कि ब्रिटिश सरकार करती थी।

प्रश्न 4.
“विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे दबाव में होता है।” 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर:
किसी भी देश की विदेश नीति का निर्धारक घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के अन्तर्गत होता है। प्रत्येक राष्ट्र विदेश नीति बनाते समय अपनी घरेलू ज़रूरतें एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखता है। उदाहरण के लिए, भारत ने 1960 के दशक में जो विदेश नीति अपनाई उस पर चीन एवं पाकिस्तान के युद्ध, अकाल राजनीतिक परिस्थितियां तथा शीत युद्ध का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।

प्रश्न 5.
अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक इसी तरह यह भी बताएं कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति में चीन एवं पाकिस्तान के साथ जिस प्रकार की नीति अपनाई जा रही है, उसमें बदलाव की आवश्यकता है, क्योंकि उसमे वांछित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। इसी प्रकार वर्तमान समय में भारत को शीत युद्ध से अलग होकर अपनी विदेश नीति बनानी चाहिए, क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में शीत युद्ध का अब कोई अस्तित्व नहीं रह गया है। जहां तक विदेश नीति के दो पहलुओं को बरकरार रखने की है, तो प्रथम गुट निरपेक्षता के अस्तित्व को बनाये रखना चाहिए, क्योंकि यह भारत की विदेश नीति का मूल आधार है। द्वितीय भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग जारी रखना चाहिए, क्योंकि इसमें अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(क) भारत की परमाणु नीति।।
(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति।
उत्तर:
(क) भारत की परमाणु नीति:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (लघु उत्तरीय प्रश्न) प्रश्न नं० 4 देखें।

(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति:
विदेश नीति के मामलों में सर्व-सहमति आवश्यक है, क्योंकि यदि एक देश की विदेश नीति के मामलों में सर्व-सहमति नहीं होगी, तो वह देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अपना पक्ष प्रभावशाली ढंग ने नहीं रख पायेगा। भारत की विदेश नीति के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं जैसे गुट-निरपेक्षता, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध, दूसरे देशों में मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाना तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना, इत्यादि पर सदैव सर्वसहमति रही है।

प्रश्न 7.
भारत की विदेश नीति का निर्माण शान्ति और सहयोग के सिद्धान्तों को आधार मान कर हुआ। लेकिन, 1962-1972 की अवधि यानी महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा आप इसे अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे? अपने मन्तव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
आज़ादी के समय भारत ने अपनी विदेश नीति का निर्माण शान्ति और सहयोग के सिद्धान्तों के आधार पर किया अर्थात भारत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों के साथ शान्ति एवं सहयोग चाहता था, परन्त 1962 से लेकर 1972 तक भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े तो इसमें कुछ हद तक भारत की विदेश की असफलता भी मानी जाती है तथा अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम भी। भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने अपनी विदेश नीति के अन्तर्गत सभी पड़ोसी देशों पर विश्वास जताया, परन्तु चीन एवं पाकिस्तान ने उस विश्वास को तोड़ दिया। इसी तरह अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों जैसे शीत युद्ध ने पाकिस्तान को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया।

प्रश्न 8.
क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है ? 1971 के बांग्लादेश युद्ध के सन्दर्भ में इस प्रश्न पर विचार करें।
उत्तर:
भारत भारतीय उप-महाद्वीप का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली देश है। अतः भारत की विदेश नीति का चालन इस प्रकार से किया गया कि भारत भारतीय उपमहाद्वीप में एक महाशक्ति बनकर उभरे, क्योंकि यदि भारत इस क्षेत्र में एक महाशक्ति बन कर उभरता है, तो इससे इस क्षेत्र के सभी देशों को लाभ पहुंचेगा तथा 1971 के युद्ध से यह बात स्पष्ट हो गई, कि भारत एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।

प्रश्न 9.
किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है ? भारत की विदेश नीति के उदाहरण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए।
अथवा
किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति को प्रभावित करता है ? भारत की विदेश नीति से कोई दो उदाहरण देते हुए संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विदेश नीति के निर्माण में उस देश के राजनीतिक नेतृत्व का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक नेतृत्व की विचारधारा के आधार पर ही देश की विदेश नीति का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए भारतीय विदेश नीति पर इस राष्ट्र के महान् नेताओं के वैयक्तिक तत्त्वों का भी प्रभाव पड़ा। पण्डित नेहरू के विचारों से हमारी विदेश नीति पर्याप्त प्रभावित हुई। पण्डित नेहरू साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद व फासिस्टवाद के घोर विरोधी थे और वे समस्याओं का समाधान करने के लिए शान्तिपूर्ण मार्ग के समर्थक थे।

वह मैत्री, सहयोग व सह-अस्तित्व के पोषक थे। साथ ही अन्याय का विरोध करने के लिए शक्ति प्रयोग के समर्थक थे। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों द्वारा हमारी विदेश नीति के ढांचे को ढाला। पाणिक्कर जैसे महान् नेताओं के विचारों ने भी हमारी विदेश नीति को प्रभावित किया। स्वर्गीय शास्त्री जी व भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी के काल में हमने अपनी विदेश नीति के मूल तत्त्वों को कायम रखते हुए इसमें व्यावहारिक तत्त्वों का भी प्रयोग किया।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए ……….. गुटनिरपेक्षता का व्यापक अर्थ है अपने को किसी भी सैन्य गुट में शामिल नहीं करना……. इसका अर्थ होता है चीजों को यथासम्भव सैन्य दृष्टिकोण से न देखना और इसकी कभी ज़रूरत आन पड़े तब भी किसी सैन्य गुट के नजरिए को अपनाने की जगह स्वतन्त्र रूप से स्थिति पर विचार करना तथा सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना ………….
(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना चाहते थे ?
(ख) क्या आप मानते हैं कि भारत-सोवियत मैत्री की सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(ग) अगर सैन्य-गुट न होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती ?
उत्तर:
(क) नेहरू सैन्य गुटों से इसलिए दूरी बनाना चाहते थे क्योंकि किसी सैन्य गुट में शामिल होकर एक देश स्वतन्त्र नीति का निर्माण नहीं कर पाता, इसके साथ-साथ सैन्य गुट युद्धों को भी बढ़ावा देते हैं।

(ख) भारत सोवियत मैत्री की सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं हुआ, क्योंकि इस सन्धि के पश्चात् भी भारत गुट निरपेक्षता के मौलिक सिद्धान्तों पर कायम रहा तथा जब सोवियत संघ की सेनाएं अफगानिस्तान में पहुंची, तो भारत ने उसकी आलोचना की।।

(ग) यदि विश्व में सैन्य गुट नहीं होते तो भी गुट निरपेक्षता की प्रासंगिकता बनी रहती, क्योंकि गुट निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना शान्ति एवं विकास के लिए की गई थी तथा शान्ति एवं विकास के लिए चलाया गया कोई भी आन्दोलन कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकता।

भारत के विदेश संबंध HBSE 12th Class Political Science Notes

→ भारतीय विदेश नीति के निर्माता भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू माने जाते हैं।
→ भारतीय विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं गुट-निरपेक्षता, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध, अन्य देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध, पंचशील तथा संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों को महत्त्व देना है।
→ भारतीय विदेश नीति के मुख्य निर्धारक तत्त्वों में संवैधानिक आधार, भौगोलिक तत्त्व, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, आर्थिक तत्त्व, राष्ट्रीय हित, अन्तर्राष्ट्रीय हित तथा सैनिक तत्त्व शामिल हैं।
→ सन् 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया, जिससे भारत-चीन सम्बन्ध खराब हो गए।
→ 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया, परन्तु पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा।
→ सोवियत संघ के प्रयासों से ताशकंद में 1966 में भारत-पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ।
→ सन् 1971 में बंगलादेश के प्रश्न पर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, जिसमें पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा।
→ 1972 में भारत-पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ।
→ भारत ने 1974 एवं 1998 में परमाणु विस्फोट किये।
→ में भारत एक ज़िम्मेदार परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है।
→ भारत की भौगोलिक स्थिति के मद्देनज़र भारत के पास परमाणु हथियार होने आवश्यक हैं।

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HBSE 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन Notes.

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

→ प्रकाश (Light)-प्रकाश वह भौतिक कारण है जो कि वस्तुओं को देखने में सहायक होता है। प्रकाश की उपस्थिति के कारण ही दृश्यता संभव है।

→ प्रकाश किरण (Ray of Light)-प्रकाश एक सरल रेखा में गमन करता है। सरल रेखा में गमन करने वाले प्रकाश को प्रकाश की किरण कहते हैं।

→ परावर्तन (Reflection)-दर्पण स्वयं पर पड़ने वाले अधिकांश प्रकाश को परावर्तित कर देता है। इस क्रिया को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।

→ परावर्तन के नियम (Laws of Reflection)-परावर्तन के नियम निम्नलिखित हैं-

  • आपतन कोण, परावर्तन कोण के बराबर होता है, तथा
  • आपतित किरण, दर्पण के आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब तथा परावर्तित किरण सभी एक ही तल में होते हैं।

समतल दर्पण की अवधारणा (Concept Related to Plane Mirror)-समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब सदैव आभासी तथा सीधा होता है तथा यदि किरणें एक बिन्दु पर आती दिखाई पड़ती हैं तो प्रतिबिम्ब आभासी या काल्पनिक होता है।

→ गोलीय दर्पण (Spherical Mirror)-ऐसे दर्पण जिनका परावर्तक पृष्ठ गोलीय होता है, गोलीय दर्पण कहलाते हैं।
गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं-

  • उत्तल दर्पण,
  • अवतल दर्पण।

→ ध्रुव (Pole)-गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केन्द्र को दर्पण का ध्रुव कहते हैं।

→ वक्रता त्रिज्या (Radius of Curvature)-गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ जिस गोले का भाग होता है, उसकी त्रिज्या दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहलाती है।

→ दर्पण सूत्र (Mirror formula)-दर्पण सूत्र इस प्रकार होता है- \(\frac{1}{v}+\frac{1}{u}=\frac{1}{f} \)

→ आवर्धन (Magnification)-गोलीय दर्पण द्वारा उत्पन्न आवर्धन से यह ज्ञात होता है कि कोई प्रतिबिम्ब बिम्ब की अपेक्षा कितना गुना आवर्धित है। इसे प्रतिबिम्ब की ऊँचाई तथा बिम्ब की ऊँचाई के अनुपात रूप में व्यक्त किया जाता है।
अतः HBSE 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन 1

→ प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of light)-जब प्रकाश किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है तो  वह अपने प्रारम्भिक मार्ग से विचलित हो जाती है, इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।

→ अपवर्तन के नियम (Laws of Refraction)-अपवर्तन के नियम निम्न प्रकार है

  • आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा दोनों माध्यमों को पृथक् करने वाले पृष्ठ के आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब, सभी एक ही तल में होते हैं।
  • प्रकाश के किसी निश्चित रंग तथा निश्चित माध्यमों के युग्म के लिए आपतन कोण की ज्या (sine) तथा अपवर्तन कोण की ज्या (sine) का अनुपात स्थिर होता है। इस नियम को स्नैल का अपवर्तन का नियम भी कहते हैं। यदि i आपतन कोण तथा r अपवर्तन कोण हो, तब \(\frac{\sin i}{\sin r}\) = स्थिरांक = अपवर्तनांक (Refractive Index)

→ निर्वात में प्रकाश की चाल 3 x 108 m/s होती है।

→  यदि प्रकाश की चाल माध्यम 1 में v1 तथा माध्यम 2 में है तब माध्यम 2 का माध्यम 1 के सापेक्ष अपवर्तनांक,  माध्यम 1 में प्रकाश की चाल तथा माध्यम 2 में प्रकाश की चाल के अनुपात द्वारा व्यक्त करते हैं अतः
HBSE 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन 2

→ लेंस (Lens)-दो पृष्ठों से घिरा हुआ कोई पारदर्शी माध्यम, जिसके एक या दोनों पृष्ठ गोलीय हों, लेंस कहलाता है|

→ लेंस के प्रकार (Types of lens)-जो लेंस बीच में मोटे तथा किनारों पर पतले होते हैं, उन्हें उत्तल लेंस कहते हैं तथा जो लेंस बीच में पतले तथा किनारों पर मोटे होते हैं उन्हें अवतल लेंस कहते हैं। उत्तल लेंस को अभिसारी लेंस भी , कहते हैं। उत्तल लेंस की शक्ति धन (+) तथा अवतल लेंस की शक्ति ऋण (-) होती है।

→ मुख्य फोकस (Principal focus)-उत्तल लेंस में मुख्य अक्ष के समान्तर प्रकाश की आपतित होने वाली किरणें लेंस से अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष पर एक बिन्दु पर अभिसारित हो जाती हैं। यह बिन्दु लेंस का मुख्य फोकस, कहलाता है।

→ लेंस सूत्र (Lens formula)-यदि बिम्ब दूरी (u), प्रतिबिम्ब दूरी (v) तथा फोकस दूरी (f) हो तो लेंस सूत्र निम्नलिखित होता है
\(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\)

→ लेंस की क्षमता (Power of lens)-किसी लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को अभिसारित या उपसारित करने की मात्रा (degree) को उस लेंस की क्षमता कहते हैं।
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लेंस की क्षमता का मात्रक = डाइऑप्टर (dioptre), इसे D से प्रदर्शित करते हैं। (1 डाइऑप्टर = 1m-1)!
उत्तल लेंस के लिये P = धनात्मक
अवतल लेंस के लिये P = ऋणात्मक

→ संयोजन की क्षमता (Power of combination)- P =P1 + P2 + P3 …..Pn (सभी क्षमतायें चिह्न के साथ जुड़ती हैं क्योंकि क्षमता अदिश राशि है।

→ आवर्धन (Magnification)- यदि बिम्ब की ऊँचाई h तथा लेंस द्वारा बनाए गए प्रतिबिम्ब की ऊँचाई h’ हो तब लेंस द्वारा उत्पन्न आवर्धन निम्नवत् होगा
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HBSE 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास Notes.

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

→ आनुवंशिकी (Genetics)-जीवविज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवधा यों के आनुवंशिक लक्षणों एवं विभिन्नताओं का अध्ययन करते हैं, आनुवंशिकी कहलाती है।

→ आनुवंशिकता (Heredity)-जीवों में जनकों (parents) के लक्षणों का सन्तान (offsprings) में वंशानुगत स्थानांतरण होना, आनुवंशिकता कहलाता है।

→ लक्षण (Traits)-जीवधारियों में जो भिन्न-भिन्न गुण विद्यमान होते हैं, लक्षण कहलाते हैं। ये लक्षण दो प्रकार के होते हैं

  • प्रभावी लक्षण-ऐसे लक्षण जो प्रथम पुत्री पीढ़ी में दिखाई देते हैं या प्रकट होते हैं, प्रभावी लक्षण कहलाते हैं, जैसे-लम्बापन मटर के पौधे का प्रभावी लक्षण है।
  • अप्रभावी लक्षण-ऐसे लक्षण जो प्रथम पीढ़ी में छिपे रहते हैं अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं, जैसे-बौनापन मटर के पौधे का अप्रभावी लक्षण है।

→ विविधता (Diversity)-संसार में लगभग 10 लाख प्रकार के प्राणी तथा लगभग 3,43,000 पादप प्रजातियाँ पायी जाती हैं। ये सभी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक रूप से एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। इसे जैव विविधता (Bio – diversity) कहते हैं। जीवधारियों में यह विभिन्नताएँ उनकी आनुवंशिक संरचना के कारण होती हैं।

→ वंशागति के नियम (Laws of Heredity)-आस्ट्रिया के निवासी ग्रेगर जॉन मेण्डल (G. J. Mendel) ने वंशागति के तीन नियम प्रस्तुत किये-
I . प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)-इसके अनुसार जब एक जोड़ी के विपरीत लक्षणों को ध्यान में रखकर क्रॉस कराया जाता है तो पहली पीढ़ी में उत्पन्न होने वाला लक्षण प्रभावी (dominant) होता है तथा दूसरे लक्षण जो छिपे रहते हैं अप्रभावी होते हैं।

II युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Segregation)इस नियम के अनुसार संकर F1 पीढ़ी के पौधों में दोनों विपरीत लक्षण जोड़े में विद्यमान रहते हैं। ये लक्षण F2 पीढ़ी में पृथक् हो जाते हैं अतः इसे पृथक्करण का नियम भी कहते हैं।

III. स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)-इसके अनुसार दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले दो पौधों के बीच संकरण कराने पर इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतन्त्र रूप से होता है तथा एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति को प्रभावित नहीं करती है। जीन (Gene) मेण्डल के अनुसार आनुवंशिक कारकों को जीन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, आनुवंशिक लक्षणों का नियन्त्रण करने वाली इकाई को जीन कहते हैं।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

→ गुणसूत्र (Chromosomes)-जीवधारियों में पायी जाने वाली विशेष संरचनाएँ जो जीन्स का वहन करती हैं, गुणसूत्र न कहलाती हैं।

→ जीनोम (Genome)-किसी जीवधारी के गुणसूत्रों के एक अगुणित समुच्चय (haploid set) को जीनोम कहते हैं।

→ प्लाज्मोन (Plasmone)- केन्द्रक के बाहर कोशिका द्रव्य में पाये जाने वाले आनुवंशिक पदार्थ को प्लाज्मोन (plasmone) या प्लाज्मोजीन (Plasmogene) कहते हैं|

→ एलील (Allele)-जीन्स का वह जोड़ा जिसमें एक लक्षण के दो रूप होते हैं एलील कहलाता है।

→ उत्परिवर्तन (Mutation)-जीवों में अकस्मात् विकसित लक्षणों का परिवर्तित होना उत्परिवर्तन कहलाता है।

→ समयुग्मजी (Homozygous) कारकों के सजातीय जोड़े में दोनों कारकों में जब समान गुण पाए जाते हैं तो यह जोड़ा समयुग्मजी कहलाता है, (जैसे-TT)।

→ विषमयुग्मजी (Heterozygous)-यदि जीन्स के किसी जोड़े में दो विपर्यासी (अलग-अलग) लक्षणों वाले। । कारक होते हैं तो वह विषमयुग्मजी कहलाता है, (जैसे Tt)।

→ दर्शरूप (Phenotype)-वे लक्षण जो दिखाई देते हैं, फीनोटाइप कहलाते हैं।

→ लक्षण रूप (Genotype)-जीव का आनुवंशिक संगठन लक्षण रूप जीनोटाइप कहलाता है।

→ सहलग्नता (Linkage)-जब दो या दो से अधिक जीन्स एक ही गुणसूत्र पर तथा एक-दूसरे के पास स्थित होते हैं, तब यह स्वतन्त्र अपव्यूहन नहीं दिखाते, बल्कि यह साथ-साथ वंशानुगत होते हैं, इस लक्षण को सहलग्नता कहते |

→ दैहिक गुणसूत्र (Autosomes)-दैहिक लक्षणों का जीन्स को धारण करने वाले गुणसूत्र दैहिक गुणसूत्र कहलाते हैं।

→ लिंग गुणसूत्र (Sex chromosomes)-नर या मादा लक्षणों का निर्धारण करने वाले जीन्स को धारण करने वाले गुणसूत्रों को लिंग गुणसूत्र कहते हैं।

→ समलिंगी गुणसूत्र (Homologous chromosomes)-गुणसूत्रों का वह जोड़ा जिसमें माता-पिता से एक-एक गुणसूत्र प्राप्त होता है तथा दोनों में समान गुण होते हैं, समलिंगी गुणसूत्र कहलाते हैं।

→ विषमलिंगी गुणसूत्र (Heterosomes)-गुणसूत्रों का वह जोड़ा जिसमें से एक गुणसूत्र में नर लक्षण तथा दूसरे में , मादा लक्षण होते हैं, विषमलिंगी गुणसूत्र कहलाते हैं।

→ लिंग निर्धारण (Sex determination)-वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति का लिंग निर्धारित किया जाता है, लिंग , निर्धारण कहलाता है। पुरुष के लिंग गुणसूत्रों में एक X तथा दूसरा Y होता है। स्त्री के दोनों लिंग गुणसूत्र X X होते हैं। जब पुरुष का X गुणसूत्र (शुक्राणु) मादा के अण्डाणु से निषेचन करता है तो होने वाली भावी सन्तान लड़की होती है। यदि पुरुष का Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु मादा के अण्डाणु से निषेचन करता है तो भावी सन्तान लड़का होता है। इसी प्रक्रिया को लिंग निर्धारण कहते हैं।

→ विकास (Evolution)-पृथ्वी पर करोड़ों वर्ष पहले उपस्थित सरलतम जीवों से आधुनिक विशालतम जीवों के निर्माण की प्रक्रिया जैव विकास कहलाती है। जैव विकास के सम्बन्ध में समय-समय पर अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं-

  • जीवाश्मों से प्रमाण,
  • भूण विज्ञान से प्रमाण,
  • संयोजक कड़ियों से प्रमाण,
  • अवशेषी अंगों से प्रमाण। |

→ जीवाश्म (Fossils)-जीवधारियों के परिरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स , एक जीवाश्म है। जीवाश्म के अध्ययन से उनकी संरचना और विकास का ज्ञान होता है।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

→  भ्रूण विज्ञान (Embryology)-अनेक जीवधारियों में भ्रूण अपने पूर्वजों के लक्षण दर्शाते हैं। इससे इनके पूर्वजों के । बारे में ज्ञान होता है।

→ संयोजन कड़ी (Connecting link)-अनेक ऐसे जीवधारी हैं जिनमें दो वर्गों के लक्षण उपस्थित होते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स में सरीसृप तथा पक्षी दोनों के लक्षण होते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है।

→ समजात अंग (Homologous organs)-वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल रचना समान होती है किन्तु कार्य भिन्न होते हैं। समजात अंग कहलाते हैं।

→ समवृत्ति अंग (Analogous organs)-वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल रचना भिन्न होती है, लेकिन कार्य समान होते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं।

→ अवशेषी अंग (Vestigial organs)–ऐसे अंग जो किसी जीवधारी के पूर्वजों में क्रियाशील थे किन्तु अब उनकी सन्तानों में केवल अवशेष के रूप में शेष बचे हैं अवशेषी अंग कहलाते हैं। अवशेषी अंगों से विकास की पुष्टि होती।

→ डार्विनवाद (Darwinism) डार्विन के अनुसार –

  • किसी भी जनसमुदाय के बीच प्राकृतिक विविधता होती है। कुछ व्यक्तियों में दूसरे की अपेक्षा अधिक अनुकूल विविधताएँ होती हैं।
  • जीवधारियों में सन्तान उत्पत्ति की अत्यधिक क्षमता होती है, किन्तु फिर भी इनकी संख्या नियन्त्रित रहती है।
  • एक ही जाति के सदस्यों के बीच तथा भिन्न-भिन्न जातियों के बीच आवास, भोजन एवं प्रजनन के लिए संघर्ष होते हैं, जिन्हें जीवन संघर्ष कहते हैं।
  • जनसंख्याओं के अन्तर्गत जीवित रहने के लिए संघर्ष में जो व्यष्टि सफल होती है वही जीवित रहती है। इसे प्राकृतिक वरण (Natural selection) या योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the fittest) कहते हैं।

→ लैमार्कवाद (Lamarckism)-लैमार्क के अनुसार-

  • जीवधारियों में लगातार बढ़ने की प्रवृत्ति होती है।
  • जीवों पर वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का सीधा प्रभाव पड़ता है।
  • अंगों के उपयोग तथा अनुप्रयोग से अंग क्रमशः विकसित या विलुप्त हो जाते हैं।
  • अपने जीवन काल में जीव जिन लक्षणों को उपार्जित करता है। यह उनकी वंशागति होती है।

→ आनुवंशिक पदार्थ (Genetic Material)-DNA जीवधारियों का आनुवंशिक पदार्थ होता है। प्रत्येक डी. एन. ए. अणु का निर्माण अनेक इकाइयों द्वारा होता है जिन्हें न्यूक्लिओटाइड कहते हैं। प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड तीन विभिन्न अणुओं का बना होता है।

ये निम्न प्रकार है –

  • डी-ऑक्सी राइबोज शर्करा का एक अणु
  • फास्फोरिक अम्ल का एक अणु, तथा
  • एक नाइट्रोजनी क्षारक।

ये निम्न प्रकार के होते हैं-
(a) प्यूरीन – एडेनीन तथा ग्वानीन।
(b) पिरिमिडीन-साइटोसीन, थाइमीन तथा यूरेसिल।
HBSE 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास 1
डी. एन. ए. के अणु में दो पॉली न्यूक्लिओटाइड शृंखलाएँ होती हैं।

→ लिंग प्रभावित लक्षण (Sex influenced characters)- प्रत्येक लक्षण के लिए जीन्स उत्तरदायी होते हैं, जैसे- मनुष्य में गंजापन एक आनुवंशिक लक्षण है। इसकी आनुवंशिकी अलिंगी गुणसूत्र पर स्थित जीन्स की एक जोड़ी द्वारा नियन्त्रित होती है। जीन की होमोजाइगस प्रभावी (BB) में गंजापन स्त्री एवं पुरुष दोनों में विकसित होता है। जीन की हेटरोजाइगस अवस्था (Bb) में गंजापन केवल पुरुषों में प्रदर्शित होता है। इस अवस्था में यह नर हार्मोन से प्रभावित होता है। जीन की होमोजाइगस सुप्त (bb) अवस्था में गंजापन प्रदर्शित नहीं होता है।

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HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Haryana State Board HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

HBSE 12th Class English The Rattrap Textbook Questions and Answers

Question 1.
How does the peddler interpret the acts of kindness and hospitality shown by the crofter, the ironmaster and his daughter? (फेरी वाले ने किसान, आयरन मास्टर एवं उसकी बेटी के द्वारा दर्शाए गए दयालुता एवं आतिथ्य के कार्यों का क्या अर्थ लिया ?)
Answer:
The peddler is a rattrap seller. He goes around selling small rattraps. But he does not earn enough to make both ends meet. So he resorts to begging as well as stealing to remain alive. He knocks at the door of an old crofter who welcomes him. He offers him food and shelter for the night. He plays a game of cards with him. But the rattrap seller steals his money. Then he seeks shelter in an old iron mill. The ironmaster mistakes him for his old friend. He and his daughter Edla persuade him to go with them and stay there on the Christmas eve.

They feed him well. The next morning, the servant bathes him, shaves him and gives him decent clothes to wear. But now the ironmaster realises his mistake. He discovers that the peddler is not his old friend. He asks him to go away. But his daughter Edla asks her father to let the peddler stay there for one more night. The poor peddler is moved by the love and affection shown by Edla. The love and affection shown by Edla awakens his essential goodness. Edla’s sympathy deeply moves him. Before going away, he leaves behind the money stolen from the crofter. He also leaves a rattrap as a gift for Edla.

(फेरी वाला चूहेदानियाँ बेचता है। वह छोटी-छोटी चूहेदानियों को बेचने के लिए चारों ओर जाता है। लेकिन वह इतना धन नहीं कमा पाता कि उसका गुजारा चल सके। इसलिए वह जिन्दा रहने के लिए भीख माँगने के साथ-साथ चोरी करने का भी सहारा लेता है। वह एक बूढ़े किसान के घर का दरवाजा खटखटाता है जो कि उसका स्वागत करता है। वह उसे भोजन और रात बिताने के लिए आश्रय प्रदान करता है। वह उसके साथ ताश भी खेलता है। लेकिन चूहेदानियाँ बेचने वाला उसका धन चोरी कर लेता है। तब वह एक पुरानी लोहे की मिल में आश्रय लेता है।

आयरन मास्टर गलती से उसको अपना एक पुराना मित्र समझ लेता है। वह और उसकी बेटी एडला उस पर दबाव बनाते हैं कि वह उनके साथ चले और क्रिसमस की पूर्व संध्या उनके साथ बिताए। वे उसे अच्छी तरह से भोजन कराते हैं। अगली सुबह, नौकर उसे स्नान कराता है, उसकी दाढ़ी बनाता है और उसे पहनने के लिए सुन्दर कपड़े देता है। लेकिन तब आयरन मास्टर को अपनी गलती का एहसास होता है। उसे पता चलता है कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं है।

वह उसे चले जाने के लिए कहता है। लेकिन उसकी बेटी एडला अपने पिता से कहती है कि वह फेरी वाले को वहाँ पर एक और रात ठहरने की अनुमति दे दे। फेरी वाला एडला के द्वारा दर्शाए गए प्यार और स्नेह से बहुत प्रभावित हुआ। एडला द्वारा दर्शाए गए प्यार और स्नेह ने उसकी आंतरिक अच्छाई को जगा दिया। एडला की सहानुभूति ने उसको गहराई तक से प्रभावित कर दिया। जाने से पहले, वह किसान के यहाँ से चोरी किए धन को छोड़कर चला जाता है। वह एडला के लिए उपहारस्वरूप एक चूहेदानी भी छोड़कर जाता है।)

Question 2.
What are the instances in the story that show that the character of the ironmaster is different from that of his daughter in many ways?
(कहानी में वे उदाहरण कौन-से हैं जो दर्शाते हैं कि आयरन मास्टर का चरित्र कई प्रकार से उसकी बेटी से अलग है ?)or Edla is a better judge of character than her father. Justify. [H.B.S.E. 2019 (Set-B)] (एडला अपने पिता की तुलना में चरित्र में एक बेहतर न्यायधीश है। निरूपण करें।)
Answer:
There is a lot of difference between the character of the ironmaster and his daughter Edla. The ironmaster is the owner of the Ramsjö Ironworks. It is his ambition to produce good iron for the market. He is quite moody. When he sees the old peddler, he mistakes him as one of his old friends. He asks him, again and again, to come to his home for the night. When the peddler refuses, the ironmaster even brings his daughter to put pressure on him. But the next morning, when he realizes his mistake, he wants to hand over the peddler to the sheriff.

All his kindness and generosity vanish away. However, his daughter, Edla has all the qualities of head and heart. She has basic human qualities. She is kind, sympathetic and compassionate. She tells her father that it is wrong to chase away a man whom they themselves have invited to spend the night with them. She shows affection and sympathy to the peddler. The next morning, she is happy to find that the peddler is not a thief. Her goodness and compassion change the peddler’s heart. He leaves behind the old crofter’s money and also gives her a rattrap as a Christmas present.

(आयरन मास्टर और उसकी बेटी एडला के चरित्र में बहुत अधिक अंतर है। आयरन मास्टर रेमस्जो आयरन वर्क्स का मालिक है। उसका लक्ष्य बाजार के लिए उत्तम श्रेणी के लोहे का निर्माण करना है। वह पूरी तरह से अपनी मर्जी का मालिक है। जब वह बूढ़े फेरी वाले को देखता है तो वह उसे गलती से अपना एक पुराना मित्र मान लेता है। वह उसे बार-बार कहता है कि वह रात बिताने के लिए उसके घर चले। जब फेरी वाला मना कर देता है तो आयरन मास्टर उस पर दबाव बनाने के लिए अपनी बेटी को भी बुलाकर लाता है।

लेकिन अगली सुबह, जब उसको अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वह फेरी वाले को शेरिफ के हवाले करना चाहता है। उसकी सारी दयालुता और उदारता लुप्त हो जाती है। लेकिन उसकी बेटी एडला में सोच-विचार और दया के सारे गुण विद्यमान हैं। उसमें मानवता के आधारभूत गुण हैं। वह दयालु, सहानुभूतिपूर्ण एवं करुणामयी है। वह अपने पिता को बताती है कि उस आदमी को बाहर भगा देना एक गलत बात है जिस आदमी को अपने साथ रात बिताने के लिए उन्होंने स्वयं आमंत्रित किया था। वह फेरी वाले के प्रति स्नेह और सहानुभूति प्रकट करती है। अगली सुबह यह जानकर प्रसन्न होती है कि फेरी वाला कोई चोर नहीं है। उसकी अच्छाई और करुणा ने फेरी वाले के हृदय को परिवर्तित कर दिया। वह बूढ़े किसान वाले धन को वहीं छोड़ जाता है और एडला के लिए क्रिसमस के उपहारस्वरूप एक चूहेदानी छोड़ जाता है।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 3.
The story has many instances of unexpected reactions from the characters to others’ behaviour. Pick out instances of these surprises.
(कहानी में पात्रों के अन्य लोगों के बर्ताव के प्रति अप्रत्याशित प्रतिक्रिया के कई उदाहरण हैं। ऐसे आश्चर्यों के उदाहरण ढूंढिए।)
Answer:
This story has a number of instances of unexpected reactions from the characters to others. One dark evening, the rattrap seller is going along a road. He is hungry and wants to spend the night somewhere. He sees a cottage by the roadside. He knocks at the door. He expects to meet some sour faces. But unexpectedly, an old man welcomes him cheerfully. He is an old crofter without wife or child. He serves him food, talks with him, and plays a game of cards with him till the bedtime. The next morning, the peddler steals his money and goes away. At night, he seeks shelter at an ironworks. Suddenly the master comes and behaves in an unexpected manner.

He mistakes him to be his old friend. He invites him to spend the night with him at his residence. When the peddler does not agree, he asks his daughter to persuade him. Finally, he goes with them. They offer him food and shelter for the night. The next morning, they ask the servant to bath and shave him. But then the ironmaster realises that the peddler is not his old friends. Now, he asks the peddler to go away at once. But his daughter Edla, unexpectedly, persuades her father to let him stay for the night. The peddler also behaves unexpectedly. The next morning, before going away, he leaves the stolen money and a rattrap as a present for Edla.

(इस कहानी में पात्रों के अन्य लोगों के व्यवहार के प्रति अप्रत्याशित प्रतिक्रिया के बहुत सारे उदाहरण हैं। एक अंधेरी शाम को चहेदानियाँ बेचने वाला सड़क पर अकेला जा रहा है। वह भूखा है और कहीं पर रात बिताना चाहता है। उसे सड़क किनारे एक घर दिखाई देता है। वह दरवाजा खटखटाता है। उसे उम्मीद है कि रूखा चेहरा ही उसका स्वागत करेगा। लेकिन उम्मीद के विपरीत एक बूढ़ा आदमी प्रसन्नतापूर्वक उसका स्वागत करता है। वह एक बूढ़ा किसान है जो पत्नी अथवा बच्चे के बिना रहता है। वह उसे भोजन देता है, उसके साथ बातें करता है और रात को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेलता है। अगली सुबह, फेरी वाला उसका धन चोरी कर लेता है और चला जाता है। रात के समय वह एक लोहे के कारखाने में आश्रय लेता है।

अचानक ही मालिक आता है और वह उसके साथ अप्रत्याशित ढंग से व्यवहार करता है। वह गलती से उसे अपना एक पुराना मित्र समझ लेता है। वह उसे रात के समय अपने घर पर आने के लिए आमन्त्रित करता है। जब फेरी वाला सहमत नहीं होता है तो वह अपनी बेटी से कहता है कि वह उसे मनाए। अन्ततः वह उनके साथ जाता है। वे उसे रात के लिए भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं। अगली सुबह, वे अपने नौकर से कहते हैं कि वह उसे स्नान कराए और उसकी दाढ़ी बनाए। लेकिन तब आयरन मास्टर को एहसास होता है कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं है। तो वह फेरी वाले से वहाँ से तुरन्त चले जाने को कहता है। लेकिन अप्रत्याशित रूप से उसकी बेटी एडला अपने पिता पर दबाव बनाती है कि वह उसे रात के लिए वहीं ठहरने की अनुमति दे। फेरी वाला भी अप्रत्याशित ढंग से व्यवहार करता है। अगली सुबह जाने से पहले वह चोरी किया गया धन और एडला के लिए उपहारस्वरूप एक चूहेदानी छोड़कर चला जाता है।)

Question 4.
What made the peddler finally change his ways? (फेरी वाले को अन्त में अपने तौर तरीके बदलने पर किस बात ने मजबूर किया ?)
Answer:
The peddler was a rattrap seller. But he could not earn enough money to make both ends meet. So he often committed petty thefts also. One night an old man gave him food and shelter for the night. He showed love and sympathy to him. But the peddler proved to be ungrateful man. Before going away, he steals the old man’s money. But in the end, he is a transformed man. His basic human qualities are awakened through the love and understanding shown to him by the ironmaster’s daughter, Edla. The ironmaster invites him to spend the night with him. His daughter Edla shows sympathy and compassion to him.

When the ironmaster realises his mistake, he asks him to go. But Edla persuades her father to let him stay for one night. Her good nature, love and sympathy change the peddler’s heart. The next morning, he leaves before the ironmaster and his daughter return from church. But now he is a changed man. He leaves behind the money stolen from the old man. He also leaves a rattrap as a Christmas present for Edla. He has also written a letter to her in which he praises her kindness and sympathy. Thus the love and kindness shown to him finally change his heart and make him change his ways.

(फेरी वाला चूहेदानियाँ बेचता था। लेकिन वह इतना धन नहीं कमा सकता था कि उसका गुजारा चल सके। इसलिए प्रायः वह छोटी-मोटी चोरियाँ करता रहता था। एक रात एक बूढ़े आदमी ने उसे भोजन और रात बिताने के लिए आश्रय प्रदान किया। उसने उसके प्रति प्यार और सहानुभूति दिखाई। लेकिन फेरी वाला दगाबाज आदमी निकला। जाने से पहले, वह बूढ़े आदमी का धन चोरी कर लेता है। लेकिन कहानी के अन्त में वह पूरी तरह से परिवर्तित इन्सान लगता है। आयरन मास्टर की बेटी एडला के द्वारा प्रदर्शित प्यार और समझ के द्वारा उसके अन्दर मानवता के आधारभूत गुण जागृत हो जाते हैं। आयरन मास्टर उसको रात बिताने के लिए अपने घर आमंत्रित करता है। उसकी बेटी एडला उसके प्रति सहानुभूति और दया के भाव प्रकट करती है।

जब आयरन मास्टर को अपनी गलती का एहसास होता है तो वह उसे चले जाने के लिए कहता है। लेकिन एडला अपने पिता पर दबाव बनाती है कि वह उसे एक रात के लिए वहीं ठहरने दे। उसका अच्छा स्वभाव, प्यार और सहानुभूति फेरी वाले के हृदय को परिवर्तित कर देती है। अगली सुबह वह आयरन मास्टर और उसकी बेटी के चर्च से आने से पहले ही वह चला जाता है। लेकिन अब वह एक बदला हुआ इन्सान है। वह बूढ़े आदमी के यहाँ से चोरी किए हुए धन को वहीं छोड़ जाता है। वह एडला के लिए क्रिसमस के उपहारस्वरूप एक चूहेदानी छोड़ जाता है। उसने उसे एक पत्र भी लिखा है जिसमें उसने उसकी दयालुता और सहानुभूति की प्रशंसा की। इस तरह से उसके प्रति दिखाए गए प्यार और दयालुता ने अंततः उसके हृदय को बदल दिया और उसे अपने तौर-तरीकों को बदलने के लिए बाध्य कर दिया।)

Question 5.
How does the metaphor of the rattrap serve to highlight the human predicament? (चूहेदानी का रूपक किस प्रकार से मानवीय दुविधा को उजागर करता है ?)
Answer:
The title of the story ‘The rattrap’is highly metaphorical. The metaphor of the rattrap runs throughout the story. The writer uses this metaphor effectively. This metaphor highlights the human predicament. The story is based on a peddler who goes around selling rattraps. His life is poor and miserable. He does not earn enough money to keep his body and soul together. So he is compelled to beg or to commit petty thefts. One day, an idea comes to his mind that the whole world is a rattrap. In a rattrap the rat is caught while it tries to eat the bait. In the same way, the world sets baits for man to trap him. The riches, the joys, shelter, food, clothing, love, etc. are just baits. When a man attempts to get hold of these, he is caught in the rattrap of the world. Then everything comes to an end.

One night, an old man gives him food and shelter. The peddler sees his money in a pouch. That money lures him and the next morning, he steals the money. That was like a bait to him. Now he feels trapped. He dare not walk along the road for fear of being caught. He goes to a forest and loses his way. The forest appears like a rattrap to him. Then he goes to Ramsjö Ironworks and requests for shelter. The ironmaster invites him to his house. But the peddler does not want to fall into any fresh trouble. He thinks that going to his house is like falling into a den. So he emphatically refused to go with him. But when the ironmaster’s daughter insists, he goes with them. The next morning, he goes away and escapes being caught by police. Thus the metaphor of the rattrap highlights the predicament of the peddler.

(कहानी का शीर्षक ‘The Rattrap’ अति रूपकपूर्ण है। चूहेदानी का रूपक पूरी कहानी में बना रहता है। लेखक इस रूपक का बड़े ही प्रभावपूर्ण ढंग से प्रयोग करता है। यह रूपक मानवीय दुविधा का वर्णन करता है। यह कहानी एक फेरी वाले पर आधारित है जो कि इधर-उधर घूमकर अपनी चूहेदानियाँ बेचता है। वह गरीबी और कष्टों से पूर्ण जीवन व्यतीत करता है। वह अपने आप को सही ढंग से जीवित रख पाने के लिए पर्याप्त धन भी नहीं कमा सकता है। इसलिए वह भीख माँगने या फिर छोटी-मोटी चोरियाँ करने के लिए बाध्य हो जाता है। एक दिन उसके दिमाग में एक विचार आता है कि यह पूरा संसार एक चूहेदानी है। चूहेदानी में एक चूहा फंस जाता है जब वह रोटी के टुकड़े को खाने का प्रयास करता है। इसी तरह से, यह संसार भी इन्सान को फंसाने के लिए प्रलोभन पैदा करता है। अमीरी, खुशियाँ, घर, भोजन, वस्त्र, प्यार इत्यादि ऐसे ही कुछ प्रलोभन हैं। जब एक आदमी इनको हासिल करने का प्रयास करता है तो वह इस संसार की चूहेदानी में फंस जाता है। तब सब कुछ समाप्त हो जाता है।

एक रात, एक बूढ़ा आदमी उसको भोजन और आश्रय प्रदान करता है। फेरी वाला एक थैली में रखे उसके धन को देखता है। वह धन उसको ललचाता है और अगली सुबह वह उस धन को चोरी कर लेता है। यह उसके लिए एक प्रलोभन के समान था। अब वह फंसा हुआ महसूस करता है। पकड़े जाने के भय के कारण वह सड़क मार्ग से जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। वह जंगल मार्ग से जाता है और रास्ता भटक जाता है। जंगल उसको एक चूहेदानी के समान प्रतीत होता है। तब वह रेमस्जो आयरन वर्क्स में जाता है और आश्रय के लिए निवेदन करता है। आयरन मास्टर उसे अपने घर आमंत्रित करता है। लेकिन फेरी वाला किसी नए संकट में नहीं फंसना चाहता है। वह सोचता है कि उसके घर जाना किसी गुफा में घुस जाने की तरह है। इसलिए वह जोर देकर उसके साथ जाने से मना कर देता है। लेकिन जब आयरन मास्टर की बेटी जाने के लिए जिद्द करती है तो वह चला जाता है। अगली सुबह, वह पुलिस के द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए वहाँ से चला जाता है। इस प्रकार से चूहेदानी का रूपक फेरी वाले की दुविधा को प्रकाशित करता है।)

Question 6.
The peddler comes out as a person with a great subtle sense of humour. How does this serve in lightening the seriousness of the theme of the story and also endear him to us?
(फेरी वाला हास्य की सूक्ष्म भावना वाला व्यक्ति प्रतीत होता है। यह बात कहानी की गम्भीरता को किस प्रकार उजागर करती है और फेरी वाले को हमारे प्रति प्रिय बनाती है ?)
Answer:
This is a serious story and highlights the human predicament. Yet the peddler has a subtle sense of humour. He has a natural tendency to philosophize. It makes life less burdensome. His sense of humour makes him accept that he is like a rat like other people. He compares the world to a rattrap which sets baits for the people. The riches, the joys, the food, shelter, clothing and love are the things like baits. When a person tries to get them, he is caught in the rattrap.

The peddler’s meeting with the ironmaster is full of humour. The ironmaster mistakes him for his old friend. He addresses him as Captain von Stahle. This is humorous that a poor and uneducated peddler is mistaken as a captain. The peddler shows his senses of humour when he tells the ironmaster that he too “will get caught in the trap”. The ironmaster too accepts that it was “not so badly said.” His letter written to Edla also shows his sense of humour. He writes that he would have been caught in the rattrap if he had not been raised to captain. The peddler’s sense of humour serves to lighten the seriousness of the theme of the story. It also endears the peddler to the readers and evokes our sympathy for him.

(यह एक गंभीर कहानी है और मानव की दुविधा पर प्रकश डालती है। यद्यपि फेरी वाला हास्य की एक सूक्ष्म धारणा वाला व्यक्ति है। लेकिन उसमें वैचारिक सिद्धान्त का एक स्वभाविक गुण है। वह जीवन को कम बोझिल बनाता है। उसकी हास्य की भावना उससे स्वीकार करवा लेती है कि वह भी अन्य लोगों की तरह एक चूहा है। वह इस संसार की तुलना चूहेदानी से करता है जो लोगों को फंसाने के लिए प्रलोभन तय करता है। अमीरी, खुशियाँ, भोजन, घर, वस्त्र और प्यार प्रलोभन जैसी चीजें हैं। जब कोई व्यक्ति इनको हासिल करने का प्रयास करता है तो वह इसमें फंस जाता है। फेरी वाले की आयरन मास्टर से मुलाकात हास्य से भरपूर है। आयरन मास्टर उसे गलती से अपना पुराना मित्र समझ बैठता है। वह उसे कैप्टन वॉन स्टैहल कह कर सम्बोधित करता है। यह बात हास्य पैदा करने वाली है कि एक गरीब और अनपढ़ व्यक्ति को गलती से कैप्टन समझ लिया जाता है। फेरी वाला अपनी हास्य की भावना का प्रदर्शन करता है जब वह आयरन मास्टर को बताता है कि वह भी “चूहेदानी में फंस जाएगा” । आयरन मास्टर भी इस बात को स्वीकार करता है कि यह बात “इतनी बुरी तरह से नहीं कही गई”। फेरी वाले के एडला को लिखे पत्र में उसकी हास्य की भावना का प्रदर्शन होता है। वह लिखता है कि वह भी चूहेदानी में फंस जाता यदि वह कैप्टन के पद से ऊपर न उठ जाता। फेरी वाले की हास्य की भावना इस कहानी के विषय की गम्भीरता को हल्का करने का काम करती है। यह भावना फेरी वाले को पाठकों में लोकप्रिय बनाती और उसके प्रति हमारी सहानुभूति को जागृत करती है।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Think As You Read

Question 1.
From where did the peddler get the idea of the world being a rattrap? (फेरी वाले के दिमाग में यह विचार कैसे आया कि संसार एक चूहेदानी है?) Or Why did the peddler think that the world was a rattrap ? [H.B.S.E. March, 2019 (Set-C)] (फेरी वाले ने ऐसा क्यों सोचा कि संसार एक चूहेदानी है?)
Answer:
The peddler made his living by selling rattraps. But he did not earn much and often had to remain hungry. One day he was struck by an idea. He thought that the world was also like a rattrap. A rat is caught in the rattrap when it is lured by the bait. In the same way the world existed only to set baits for people. The world offers its riches, joys, shelter, food and clothing to man just to trap him.

(फेरी वाला चूहेदानियाँ बेचकर अपनी आजीविका कमाता था। लेकिन वह अधिक नहीं कमा पाता था और उसे प्रायः भूखा रहना पड़ता था। एक दिन उसको एक विचार सूझा। उसने सोचा कि यह संसार भी एक चूहेदानी के समान है। एक चूहा चूहेदानी के अंदर फंस जाता है जब वह खाने की चीज के लालच में आ जाता है। इसी तरह से यह संसार भी लोगों के लिए प्रलोभन पैदा करता रहता है। यह संसार मनुष्य को फंसाने के लिए अमीरी, खुशियाँ, घर, भोजन और वस्त्रों इत्यादि के प्रलोभन पैदा करता रहता है।)

Question 2.
Why was he amused by this idea? (वह इस विचार से प्रसन्न क्यों हुआ ?)
Answer:
One day an idea came to the mind of the rattrap seller that the whole world was also a rattrap. He was amused by this idea. He thought that the world’s joys, shelter, food, heat, clothing and riches were only baits to trap the people in. He was amused by the idea because he could philosophise his sad and boring life. The idea gave him satisfaction that he was not the only one in this world who was caught in the rattrap of poverty and misery.

(एक दिन चूहेदानियाँ बेचने वाले के दिमाग में एक विचार आया कि यह सारा संसार एक चूहेदानी के समान है। इस विचार से वह प्रसन्न हो गया। उसने सोचा कि संसार की खुशियाँ, घर, भोजन, ऊर्जा, वस्त्र और अमीर लोगों को फंसाने के लिए केवल एक प्रलोभन का काम करती है। वह इस विचार से प्रसन्न था क्योंकि वह अपने उदास और निराश जीवन को इस दर्शन (विचार) के साथ जोड़ सकता था। इस विचार ने उसको सन्तुष्टि प्रदान की कि इस संसार में वही केवल अकेला व्यक्ति नहीं है जो गरीबी और कष्टों की चूहेदानी में फंसा हुआ है।)

Question 3.
Did the peddler expect the kind of hospitality that he received from the crofter? (क्या फेरी वाले को उस आतिथ्य की आशा थी जो उसे बूढ़े किसान से प्राप्त हुआ ?)
Answer:
No, he did not expect the kind of hospitality that he received from the crofter. He only expected sour faces greeting him when he knocked at the door to ask for shelter for the night. But the old crofter was happy to get someone to talk to in his loneliness. He fed the peddler and played a game of cards with him until bed time.
(नहीं, उसने इस प्रकार के अतिथि सत्कार की कल्पना नहीं की थी। जैसा कि उसको किसान की ओर से मिला था। उसने केवल रूखे चेहरों के द्वारा अपना स्वागत किए जाने की कल्पना की थी जब रात के समय आश्रय के लिए उसने एक घर के दरवाजे को खटखटाया था। लेकिन बूढ़ा किसान अपने अकेलेपन में किसी को बात करने के लिए पाकर प्रसन्न था। उसने फेरी वाले को भोजन खिलाया और रात को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेली।)

Question 4.
Why was the crofter so talkative and friendly with the peddler? (किसान फेरी वाले के साथ इतना बातूनी एवं दोस्ताना क्यों था ?) [H.B.S.E. March, 2018 (Set-C)]
Answer:
The old crofter welcomed the peddler. He was a lonely old man. He was without wife or children. He wanted someone to talk to in his loneliness. So he was so talkative and friendly with the peddler.
(बूढ़े किसान ने फेरी वाले का स्वागत किया। वह एक अकेला वृद्ध आदमी था। वह पत्नी और बच्चों को बिना रहता था। वह चाहता था कि उसके अकेलेपन में कोई उससे बात करने वाला हो। इसलिए वह फेरी वाले के प्रति इतना बातूनी एवं दोस्ताना था।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 5.
Why did he show the thirty kronor to the peddler? (उसने फेरी वाले को तीस क्रॉनर क्यों दिखाए ?)
Answer:
The old crofter told the peddler that he earned his living by selling his cow’s milk. Then he went to the window and took down a leather pouch hanging on a nail. He took out three ten-kronor notes to him. He wanted to show the peddler that although he was old and lonely, he was not without any means of income. He had a small income with which he could make both ends meet.

(उसने फेरी वाले को बताया कि वह अपनी गाय का दूध बेचकर अपनी आजीविका कमाता है। तब वह खिड़की के पास गया और एक कील पर टंगी हुई चमड़े की थैली उतार कर के लाया। उसने दस क्रॉनर के तीन नोट उसे निकाल कर दिखाए। वह फेरी वाले को दिखाना चाहता था कि यद्यपि वह बूढ़ा और अकेला है लेकिन ऐसा नहीं है कि उसके पास आमदनी का कोई साधन नहीं है। उसकी थोड़ी-सी आमदनी थी जिसकी वजह से उसका हर रोज का गुजारा चल जाता था।)

Question 6.
Did the peddler respect the confidence reposed in him by the crofter ? (क्या फेरी वाले ने किसान द्वारा दर्शाए गए भरोसे का सम्मान किया ?)
Answer:
The peddler was a stranger to the old crofter. But he did not suspect him. He showed him the thirty kronors which he had in a leather pouch. He trusted the peddler. But the peddler did not respect the confidence reposed in him. After the crofter had left the cottage, the peddler went back. He broke a window pane and caught hold of the leather pouch. He took out the money. In this way, he robbed the man who had given him food and shelter.

(फेरी वाला बूढ़े किसान के लिए एक अजनबी था। लेकिन उसने उस पर संदेह नहीं किया। उसने उसको वो तीस क्रॉनर दिखाए जो उसने चमड़े की थैली में रखे हुए थे। वह फेरी-वाले पर यकीन करता था। लेकिन फेरी वाले ने अपने ऊपर दिखाए गए विश्वास का सम्मान नहीं किया। जब किसान घर से बाहर चला गया, तो फेरी वाला वहाँ वापस गया। उसने खिड़की का एक काँच तोड़ा और चमड़े की थैली को अपने हाथ में पकड़ लिया। उसने पैसे निकाल लिए इस तरह से, उसने उस आदमी को ठग लिया जिसने उसे भोजन और आश्रय दिया था।)

Question 7.
What made the peddler think that he had indeed fallen into a rattrap? (फेरी वाले ने ऐसा क्यों सोचा कि वह सचमुच चूहेदानी में फँस गया है ?)
Answer:
The peddler stole the old crofter’s money. In order to avoid being caught, he did not walkalong the main road. He entered a forest. But he lost the way. In the meantime, the night fell and it was very cold. He sat down on the ground. Now he thought that the world was indeed a rattrap. The money was only a bait to catch him.

(फेरी वाले ने किसान का धन चोरी कर लिया। पकड़े जाने से बचने के लिए, वह मुख्य मार्ग से नहीं गया। उसने एक जंगल में प्रवेश किया। लेकिन वह रास्ता भटक गया। इतनी देर में रात हो गई और ठंड भी बहुत अधिक थी। वह जमीन पर नीचे बैठ गया। अब उसने सोचा कि वह संसार सचमुच में ही एक चूहेदानी है। यह धन भी उसको शिकंजे में लेने के लिए एक प्रलोभन है।)

Question 8.
Why did the ironmaster speak kindly to the peddler and invite him home? (आयरन मास्टर फेरी वाले से दयालुता से क्यों बोला और उसे अपने घर क्यों बुलाया ?)
Answer:
When the ironmaster saw the peddler, he thought that he was one of his old friends. He mistook him for an old friend. The ironmaster was an old man. There was no one at his home except his eldest daughter. It was too bad that he didn’t have company for the Christmas night. So he spoke kindly to him and invited him to his house for the night.

(जब आयरन मास्टर ने फेरी वाले को देखा तो उसने सोचा कि वह उसका कोई पुराना मित्र है। उसने गलती से उसे अपना एक पुराना मित्र समझ लिया। आयरन मास्टर एक बूढ़ा आदमी था। उसकी सबसे बड़ी बेटी के सिवाय उसके घर पर और कोई नहीं था। यह उसके लिए बहुत बुरा था कि क्रिसमस की रात में साथ रहने के लिए उसके पास कोई भी नहीं था। इसलिए उसने उसके साथ दयालुतापूर्वक बात की और रात बिताने के लिए उसे अपने घर पर आमंत्रित किया।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 9.
Why did the peddler decline the invitation? [H.B.S.E. 2017 (Set-B), 2019 (Set-D)] (फेरी वाले ने निमन्त्रण क्यों ठुकरा दिया ?) [H.B.S.E. 2020 (Set-C)]
Answer:
The ironmaster invited the peddler to spend the night with him at his home. But the peddler felt alarmed. The ironmaster was a stranger to him. He thought that going with him to his home was like throwing himself into a lion’s den. He didn’t want to be caught in. So he declined the ironmaster’s invitation.

(आयरन मास्टर ने फेरी वाले को अपने घर पर उसके साथ रात बिताने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन फेरी वाला डरा हुआ था। आयरन मास्टर उसके लिए एक अजनबी था। उसने सोचा कि उसके साथ उसके घर जाना स्वयं को एक शेर की गुफा में घुसा देने के समान है। वह पकड़ा नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसने आयरन मास्टर के निमंत्रण को ठुकरा दिया।)

Question 10.
What made the peddler accept Edla Willmansson’s invitation ? (फेरी वाले ने एडला विलमैनसन के निमन्त्रण को स्वीकार क्यों कर लिया ?)
Answer:
The ironmaster mistook the peddler for one of his old friends. He invited the peddler to his home. But the peddler declined the invitation. Then the ironmaster’s young daughter Edla Willmansson came. She did not hate him for his shabby clothes. She looked at him compassionately. He requested him to stay with them on the Christmas Eve. Her manner was so friendly that the peddler accepted the invitation.

(आयरन मास्टर ने फेरी वाले को गलती से अपना एक मित्र मान लिया। उसने फेरी वाले को अपने घर आमंत्रित किया। लेकिन फेरी वाले ने उसके निमंत्रण को ठुकरा दिया। तब आयरन मास्टर की छोटी लड़की एडला विलमैनसन वहाँ आई। वह उसके गंदे कपड़ों की वजह से उससे घृणा नहीं कर रही थी। उसने दया भाव के साथ उसकी ओर देखा। उसने उससे प्रार्थना की कि वह क्रिसमस की शाम उनके साथ बिताए। उसका भाव इतना मित्रतापूर्ण था कि फेरी वाले ने उसके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।)

Question 11.
What doubts did Edla have about the peddler? [H.B.S.E. 2017 (Set-C), 2018 (Set-B)] (एडला को फेरी वाले के बारे में क्या सन्देह था ?)
Answer:
When Edla saw the peddler and his shabby conditions, she had her own doubts about him. She thought that perhaps he had stolen something. It was possible that he had escaped from prison. He did not look like an educated man. That is why, she had doubts about the peddler.
(जब एडला ने फेरी वाले और उसकी गंदी हालत को देखा, तो उसके मन में उसके प्रति संदेह पैदा हो गए। उसने सोचा कि शायद उसने कुछ चोरी किया हुआ है। इस बात की भी संभावना थी कि शायद वह जेल से बचकर निकला हो। वह एक पढ़े-लिखे इन्सान जैसा नहीं लगता था। इसी वजह से, उसके मन में फेरी वाले के प्रति संदेह थे।)

Question 12.
When did the ironmaster realise his mistake? [H.B.S.E. 2017 (Set-D), 2018 (Set-A)] (आयरन मास्टर को अपनी भूल का एहसास कब हुआ ?)
Answer:
The ironmaster took the peddler home. The next morning, his valet bathed and shaved him. He stood in front of him in broad daylight. Now everything became clear. The ironmaster realised that he had made a mistake about him. He was not his old regimental comrade.
(आयरन मास्टर फेरी वाले को घर ले गया। अगली सुबह उसके नौकर ने उसे स्नान करवाया और उसकी दाढ़ी बनाई। वह सूर्य के प्रकाश में उसके सामने खड़ा था। अब सब कुछ साफ हो चुका था। आयरन मास्टर को एहसास हो गया था कि उसने उसके बारे में गलती कर दी है। वह उसकी रेजिमेंट का उसका पुराना साथी नहीं था।)’

Question 13.
What did the peddler say in his defence when it was clear that he was not the person the ironmaster had thought he was? (जब यह मालूम हो गया कि फेरी वाला वह नहीं है जो उसके बारे में सोचा गया था तो उसने अपने बचाव में क्या कहा ?)
Answer:
In the broad daylight, it became clear to the ironmaster, the peddler was not his old comrade. He told him that he would hand him over to the sheriff. At this, the peddler said in his defence that he never tried to cheat him. He never pretended to be his friend. He insisted that he was only a poor rattrap seller. But they insisted on bringing him home and giving him shelter.

(दिन के प्रकाश में आयरन मास्टर को यह बात साफ हो गई कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं था। उसने उसे बताया कि वह उसे शेरिफ के हवाले कर देगा। इस बात पर फेरी वाले ने अपने बचाव में कहा कि उसने कभी भी उसे धोखा देने का प्रयास नहीं किया। उसने कभी भी उसका मित्र होने का ढोंग नहीं किया। उसने जोर देकर कहा कि वह तो मात्र एक गरीब चूहेदानियाँ बेचने वाला है। लेकिन वे उसे घर लाने और आश्रय प्रदान करने की जिद्द करते रहे।)

Question 14.
Why did Edla still entertain the peddler even after she knew the truth about him? (जब एडला को फेरी वाले की वास्तविकता का पता चल गया तो उसके बाद भी उसने उसका स्वागत क्यों किया ?)
Answer:
The peddler’s identity was revealed. The ironmaster asked him to go away. But his daughter, Edla still entertained him. She felt sorry for him. She told her father that the peddler was not welcome anywhere. She wanted that he should enjoy a day’s peace with them. Moreover, they themselves had invited him and promised Christmas cheer. Now it was wrong to chase him away.

(फेरी वाले की वास्तविकता का पता चल चुका था। आयरन मास्टर ने उसे चले जाने के लिए कहा। लेकिन उसकी बेटी एडला अभी भी उससे अच्छी तरह से बातचीत कर रही थी। उसे उसके प्रति खेद हो रहा था। उसने अपने पिता को बताया कि फेरी वाले का कहीं भी स्वागत नहीं है। वह चाहती थी कि वह एक दिन के लिए उनके साथ चैन से रहे। और उन्होंने स्वयं ही उसको आमंत्रित किया था और उसके साथ आनंदपूर्वक क्रिसमस का वायदा किया था। अब उसे वहाँ से भगा देना गलत बात थी।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 15.
Why was Edla happy to see the gift left by the peddler? [H.B.S.E. 2019 (Set-B), 2020 (Set-D)] (फेरी वाले द्वारा छोड़ा गया उपहार देखकर एडला प्रसन्न क्यों हुई ?)
Answer:
Although the peddler’s identity had been revealed, Edla had insisted that he should stay them for the night. The next morning at the church, she came to know that the peddler had robbed an old man. Her father was sure that in their absence, he might have stolen their silver spoons. But when they came back Edla found that the peddler had not taken anything away. On the other hand he had left a rattrap as a gift for her. He had also left the thirty kronors that he had stolen from the old crofter. In his letter, the peddler had praised Edla and her hospitality. So, Edla was happy to see the gift left by him.

(यद्यपि फेरी वाले की वास्तविकता का पता चल गया था, फिर भी एडला इस बात पर बल दे रही थी कि वह रात को तो उनके साथ ही रहे। अगली सुबह चर्च में, उसको इस बात का पता चला कि उसने एक बूढ़े आदमी को ठगा है। उसके पिता को इस बात का यकीन था कि उनकी गैर हाजरी में वह उनके चाँदी के चम्मचों को चुरा सकता था। लेकिन जब वे लौटकर आए तो एडला ने देखा कि फेरी वाला कुछ भी चुराकर नहीं ले गया था। बल्कि वह उसके लिए उपहारस्वरूप एक चूहेदानी छोड़कर गया था। वह उन तीस क्रॉनर को भी वहीं छोड़कर चला गया था जो उसने बूढ़े किसान के घर से चोरी किए थे। अपने पत्र में फेरी वाले ने एडला की और उसके अतिथि सत्कार की भावना की प्रशंसा की थी। इसलिए एडला उसके द्वारा छोड़े गए उपहार को देखकर प्रसन्न थी।)

Question 16.
Why did the peddler sign himself as Captain Von Stahle? [H.B.S.E. 2019 (Set-C)] (फेरी वाले ने अपने हस्ताक्षर कप्तान वॉन स्टाहल के रूप में क्यों किए ?)
Answer:
The peddler was a poor vagabond. But the ironmaster mistook him to be his old friend Captain von Stahle. He and his daughter treated him with kindness. They invited him to his house and fed and clothed him. When the ironmaster realised his mistake he asked him to go away. But his daughter, Edla insisted on his staying there. The kindliness and sympathy shown to him by Edla moved his heart. So he signed himself as Captain von Stahle in appreciation of the love that he received there.

(फेरी वाला एक गरीब घुमक्कड़ था। लेकिन आयरन मास्टर ने गलती से उसे अपना एक पुराना मित्र कैप्टन वॉन स्टाहल समझ लिया। उसने और उसकी बेटी ने उसके साथ दयालुतापूर्वक व्यवहार किया। उन्होंने उसे अपने घर आमंत्रित किया। उसे भोजन खिलाया और वस्त्र दिए। जब आयरन मास्टर को अपनी गलती का पता चला तो उसने उसे वहाँ से चले जाने के लिए कह दिया। लेकिन उसकी बेटी एडला इस बात की जिद्द करती रही कि वह वहीं पर रहे। एडला के द्वारा दिखाई गई दया और सहानुभूति ने उसके हृदय को द्रवित कर दिया। इसलिए उसने वहाँ मिले प्यार की प्रशंसा में वॉन स्टाहल के रूप में अपने हस्ताक्षर किए।)

Talking About The Text

Question 1.
The reader’s sympathy is with the peddler right from the beginning of the story. Why is this so? Is the sympathy justified?
(कहानी के आरम्भ से ही पाठकों की सहानुभूति फेरी वाले के साथ है। ऐसा क्यों है? क्या यह सहानुभूति उचित है?)
Answer:
The rattrap seller is a very poor man. He goes from village to village selling rattraps. But he does not earn enough to keep his body and soul together. So he resorts to begging and petty thefts. We know that stealing is a crime. Yet the readers do not hate him. They have sympathy for him. We know that he is not a habitual thief. If he had been a habitual thief, he would have committed big thefts and there would have been no need for him to wander here and there selling rattraps. He commit thefts only when he has nothing to eat. Although he is a poor, he is a thinker. He can philosophise about his condition. He steals the money of the old crofter. But the feeling of guilt remains with him. When Edla shows love and sympathy to him, he repents at his deed. He leaves the money and requests Edla her to return it to the old man. Thus our sympathy for him is justified. We know that he is not bad at heart. He is only a victim of circumstances.

(चूहेदानी बेचने वाला एक गरीब आदमी है। वह गाँव दर गाँव चूहेदानियाँ बेचने जाता है। लेकिन वह अपने आप को ठीक ढंग से जिन्दा रखने के लिए पर्याप्त धन नहीं कमा पाता है। इसलिए वह भीख माँगने और छोटी-मोटी चोरियाँ करने का काम करने लग जाता है। हम जानते हैं कि चोरी करना एक अपराध है। फिर भी पाठक चोरीवाले से घृणा नहीं करते हैं। वे उसके प्रति सहानुभूति रखते हैं। हम जानते हैं कि वह एक पेशेवर चोर नहीं है। यदि वह एक पेशेवर चोर होता, तो वह बड़ी चोरियाँ करता और फिर उसको इधर-उधर घूमकर चूहेदानियाँ बेचने की जरूरत न होती। वह तभी चोरियाँ करता है जब उसके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं होता है। यद्यपि वह एक गरीब है, लेकिन वह एक विचारक भी है। वह अपनी स्थिति पर विचार कर सकता है। वह बूढ़े किसान का धन चुराता है। लेकिन इस अपराध का बोध उसमें बना रहता है। जब एडला उसके प्रति प्यार और सहानुभूति प्रदर्शित करती है, तो उसे अपने काम पर पछतावा होता है। वह धन को छोड़ जाता है और एडला से प्रार्थना करता है कि वह उस धन को बूढ़े किसान को लौटा दे। अतः उसके प्रति हमारी सहानुभूति न्याय संगत है। हम जानते हैं कि वह दिल से बुरा नहीं है। वह तो केवल परिस्थितियों का शिकार है।)

Question 2.
The story also focuses on human loneliness and the need to bond with others. (कहानी मानवीय अकेलेपन एवं दूसरों के मिलने की उसकी जरूरत पर भी केन्द्रित है।)
Answer:
This story focuses on human loneliness and his need to bond with the others. Man is a social animal. He cannot live in isolation. We feel sympathy for the rattrap seller as he is a lonely and miserable man. He leads a sad and monotonous life. He goes from place to place, selling rattraps. One evening he sees a cottage by the side of a road. He knocks at the door in the hope of getting food and shelter. An old crofter lives there. He is also lonely. He is without wife or child. So he welcomes the peddler.

He offers him food and shelter. He is happy to see the stranger because he can talk to him. He plays a card of game with him until the bedtime. The ironmaster is also lonely, although his daughter lives with him. So he also welcomes the peddler. He tells him that he and his daughter were feeling bad because they did not have company for the Christmas. His daughter insists on his coming to stay with them for the night. Thus the story focuses on human loneliness. It highlights man’s need to bond with others.

(यह कहानी मानव के एकाकीपन और उसके दूसरों के साथ रिश्तों की जरूरत पर केंद्रित है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेलेपन में नहीं रह सकता है। हमें चूहेदानियाँ बेचने वाले के प्रति सहानुभूति होती है क्योंकि वह एक अकेला और दुखी आदमी है। वह एक उदासी और नीरसता भरा जीवन व्यतीत करता है। वह चूहेदानियाँ बेचने के लिए जगह-जगह जाता है। एक शाम उसे एक सड़क किनारे एक घर दिखाई देता है। वह भोजन और आश्रय पाने की उम्मीद के साथ उस घर का दरवाजा खटखटाता है। वहाँ एक बूढ़ा किसान रहता है। वह भी अकेला है। वह पत्नी या बच्चे के बिना रहता है। इसलिए वह फेरी वाले का स्वागत करता है। वह उसे भोजन और आश्रय प्रदान करता है।

वह अजनबी को देखकर प्रसन्न है क्योंकि वह उससे बात कर सकता है। वह सोने के समय तक उसके साथ ताश खेलता है। आयरन मास्टर भी अकेला है, यद्यपि उसकी बेटी उसके साथ रहती है। इसलिए वह भी फेरी वाले का स्वागत करता है। वह उसे बताता है कि उसे और उसकी बेटी को बुरा लग रहा है क्योंकि क्रिसमस पर उनके साथ कोई भी साथ देने वाला नहीं है। उसकी बेटी उसके साथ जिद्द करती है कि वह आकर उनके साथ रात बिताए। इस तरह से यह कहानी मानव के एकाकीपन पर केंद्रित है। यह मनुष्य की दूसरों के साथ रिश्तों के महत्व पर प्रकाश डालती है।)

Question 3.
Have you known/heard of an episode where a good deed or an act of kindness has changed a person’s view of the world? (क्या आपने ऐसी किसी घटना को देखा/सुना है जहाँ किसी व्यक्ति के दया के काम ने अन्य व्यक्ति के संसार के बारे के दृष्टिकोण को बदल दिया हो।)
Answer:
For self attempt with the help of the teacher and classfellows.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 4.
The story is both entertaining and philosophical. (कहानी मनोरंजनपूर्ण एवं दार्शनिकतापूर्ण दोनों ही है।)
Answer:
The ‘Rattrap’ is an interesting story. It is entertaining as it presents the story of a poor peddler who goes around selling rattraps. He also commits a theft. There is an element of suspense as the reader does not know whether he will be caught or not. At the same time, the story is philosophical also. The peddler is in the habit of philosophising his misery. One day an idea comes to his mind that the world is also a rattrap. It sets baits for people and then traps them. The world offers riches and joys, food and shelter, heat and clothing to man.

As soon as man is tempted to take these things, the world traps him. And there is no escape from this trap. The rattrap seller is tempted to steal the money of an old man who gives him shelter. Then the peddler escapes to a forest. There he loses his way and thinks that the forest is a rattrap. Later when the ironmaster invites him to his house, he feels that he is going into another rattrap. Another philosophical idea in the story is that love and understanding can awaken man’s essential goodness. The sympathy shown by Edla to the peddler changes his heart.

(‘The Rattrap’ एक रोचक कहानी है। यह मनोरंजक है क्योंकि यह एक गरीब फेरी वाले की कहानी प्रस्तुत करती है जो चूहेदानियाँ बेचने के लिए इधर-उधर जाता है। वह एक चोरी भी करता है। इस कहानी में एक रहस्य भी है क्योंकि पाठक यह नहीं जानता है कि वह पकड़ा जाएगा या नहीं। साथ-ही-साथ यह कहानी दार्शनिकतापूर्ण भी है। फेरी वाला अपने दुखों के बारे में विचार करता है। एक दिन उसके दिमाग में एक विचार आता है कि यह संसार एक चूहेदानी के समान है। यह लोगों के लिए प्रलोभन देता है और उनको फंसा लेता है। यह संसार (आदमी को) अमीरी और खुशियाँ, भोजन और आश्रय तथा ऊर्जा और वस्त्र प्रदान करता है। जैसे ही इन्सान इन चीजों को हासिल करने के लिए लालच में आता है तो संसार उसे फंसा लेता है और इस चंगुल से छूटने के लिए कोई रास्ता नहीं है।

चूहेदानियाँ बेचने वाला एक बूढ़े किसान का धन चोरी कर लेता है जो कि उसे आश्रय देता है। तब फेरी वाला एक जंगल के रास्ते से बचकर निकलता है। वहाँ वह रास्ता भटक जाता है और सोचता है कि यह संसार एक चूहेदानी के समान है। बाद में जब आयरन मास्टर उसे अपने घर आमंत्रित करता है, तो वह सोचता है कि वह एक अन्य चूहेदानी में फंसने जा रहा है। इस कहानी का दूसरा दार्शनिकता वाला विचार यह है कि प्यार और समझ इन्सान की अच्छाइयों को जागृत कर देती है। एडला के द्वारा फेरी वाले के प्रति दर्शाई गई सहानुभूति उसके हृदय को परिवर्तित कर देती है।)

Working With Words

Question 1.
The man selling the rattraps is referred to by many terms as ‘peddler,’ ‘stranger’, etc. Pick out all such references to him. What does each of these labels indicate of the context or the attitude of the people around him.
(चूहेदानियाँ बेचने वाले आदमी का जिक्र कई नामों से किया गया है, जैसे कि ‘फेरी वाला’, ‘अजनबी’, आदि। उसके बारे में सारे ऐसे नामों को ढूँढो। इनमें से प्रत्येक नाम, सन्दर्भ एवं उसके आस-पास के लोगों के बारे में क्या बताता है ?)
Answer:
The man selling the rattraps is referred to by many names. First of all, he is referred to as a ‘vagabond’. He has no permanent residence and wanders from place to place. He goes around selling rattraps. He seeks shelters wherever the night falls. Then an old crofter gives him food and shelter. Now he is referred to as a ‘stranger’. It is because the old crofter does not know him. He is a stranger to him. He is called the man with the rattraps’ because he sells rattraps. He is also referred to as the rattrap peddler’, because he is a travelling hawker who goes from village to village selling rattraps. He is called a “tramp’ because he is a wanderer.

When the ironmaster first saw him, he thought that he was a ‘tall ragamuffin’ because he was a tall man dressed in ragged clothes. Then the ironmaster mistakes him for his old friend and calls him his ‘old regimental comrade.’ When he refers to the whole world being a rattrap, the ironmaster laughs and calls him a “good fellow’. His daughter Edla refers to him as “the poor hungry wretch”. Thus he is given different labels accofding to the attitude of the people around him.

(चूहेदानियाँ बेचने वाले आदमी को कई नामों से सम्बोधित किया गया है। सबसे पहले तो उसको एक घुमक्कड़ के रूप में सम्बोधित किया गया है। उसका कोई स्थाई आवास नहीं है और वह जगह-जगह भटकता फिरता है। वह चारों ओर चूहेदानियाँ बेचता फिरता है। जहाँ कहीं रात पड़ जाती है वह वहीं आश्रय ले लेता है। तब एक बूढ़ा किसान उसको भोजन और आश्रय प्रदान करता है। फिर उसको एक अजनबी के रूप में सम्बोधित किया गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बूढ़ा किसान उसे जानता नहीं है। वह उसके लिए एक अजनबी है। उसे चूहेदानियों वाला आदमी भी कहा गया है क्योंकि वह चूहेदानियाँ बेचता है। उसे फेरी वाला भी कहा गया क्योंकि वह इधर-उधर घूमकर फेरी लगाने वाला व्यक्ति है जो गाँव दर गाँव चूहेदानियाँ बेचने के लिए घूमता रहता है। उसे एक ‘अवारा’ भी कहा गया है क्योंकि वह घूमने-फिरने वाला व्यक्ति है।

जब आयरन मास्टर ने पहली बार उसे देखा, तो उसने सोचा कि वह एक लम्बा भिखारी है क्योंकि वह एक लम्बा आदमी था जिसने फटे-पुराने कपड़े पहने हुए थे। तब आयरन मास्टर उसको गलती से अपना पुराना मित्र मान लेता है और उसे अपना सेना का पुराना मित्र बताता है। जब वह सारे संसार को एक चूहेदानी बताता है तो आयरन मास्टर उसको एक ‘अच्छा इन्सान’ कहता है। उसकी बेटी एडला उसको एक “गरीब भूखा आदमी” कहती है। इस तरह से उसको उसके आस-पास के लोगों के द्वारा विभिन्न नामों से पुकारा जाता है।)

Question 2.
You came across the words, ‘plod’, ‘trudge’, ‘stagger’ in the story. These words indicate movement accompanied by weariness. Find five other such words with a similar meaning. (आपको कहानी में ‘प्लॉड’, ‘ट्रज’, ‘स्टैगर’ जैसे शब्द नजर आते हैं। ये शब्द थकानपूर्ण चाल को दर्शाते हैं। इन्हीं अर्थों वाले ऐसे अन्य शब्द ढूँढो।)
Answer:
slog, drag, lurch, sway, wobble.

Noticing Form
1. He made them himself at odd moments.
2. He raised himself.
3. He had let himself be fooled by a bait and had been caught.
4…. a day may come when you yourself may want to get a big piece of pork. Notice the way in which these reflexive pronouns have been used (pronoun + self).
In 1 and 4 the reflexive pronouns “himself” and “yourself” are used to convey emphasis.
In 2 and 3 the reflexive pronoun is used in place of personal pronoun to signal that it refers to the same subject in the sentence.
Pick out other examples of the use of reflexive pronouns from the story and notice how they are used.
Answer:
(i) He let himself be tempted to touch the bait.
Here “himself” has been used in place of a personal pronoun to show that it refers to the same subject that is ‘He’ in the sentence.
(ii) He laughed to himself. It is used to show that it refers to the same subject in the sentence.
(iii) It would never occurred to me that ‘you would bother with me yourself’; It refers to the same subject in the sentence.
(iv) He could not bring himself to oppose her. It refers to the same subject in the sentence.

Thinking About Language

Question 1.
Notice the words in bold in the following sentence.
“The fire boy shovelled charcoal into the maw of the furnace with a great deal of clatter.” This is a phrase that is used in the specific context of an iron plant. Pick out other such phrases and words from the story that are peculiar to the terminology of ironworks.
Answer:
(a) A hard regular thumping.
(b) Those are the hammer strokes from an iron mill.
(c) ………………. with smelter, rolling mill, and forge.
(d) Master Smith and his helper sat in the dark forge near the furnace.
(e) Waiting for the pig iron
(f) ……… to be ready to put on the anvil.
(g) …. to stir the glowing mass
(h) The big bellows groaned.
(i) The burning cool cracked.

Question 2.
“Mjölis” is a card game of Sweden. Name a few indoor games played in your region. “Chopar” could be an example.
Answer:
ludo, carom, table tennis, chess, etc.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 3.
A “Crofter” is a person who rents or owns a small farm, especially in Scotland. Think of other uncommon terms for “a small farmer” including those in your language.
Answer:
granger, planter, tiller, cultivator, ranchman, grower, ‘Kisan, “khetihar’, etc.

HBSE 12th Class English The Rattrap Important Questions and Answers

Short Answer Type Questions
Answer the following questions in about 20-25 words : 

Question 1.
Did the rattrap peddler earn enough money to keep his body and soul together? (क्या चूहेदानी बेचने वाला जीवित रहने के लिए पर्याप्त धन कमा लेता है ?)
Answer:
No, the rattrap peddler did not earn enough money to make both ends meet. He went from place to place selling the rattraps. Yet the business was not good. He was always in rags. His cheeks were sunken and he often remained hungry. Sometimes he had to resort to begging or stealing in order to remain alive.
(नहीं, फेरी वाला इतना धन नहीं कमा सकता था जिससे उसका गुजारा हो सके। वह चूहेदानियाँ बेचने के लिए जगह-जगह जाता था। फिर भी उसका धंधा अच्छा नहीं था। वह फटे-पुराने कपड़े पहनता था। उसकी गालें चिपकी हुई थीं और वह हमेशा भूखा रहता था। कई बार तो उसको जिंदा रहने के लिए भीख माँगनी पड़ती थी या चोरी करनी पड़ती थी।)

Question 2.
What philosophical idea came to the peddler’s mind one day? (एक दिन फेरी वाले के दिमाग में क्या दार्शनिक विचार आया ?)
Answer:
One day, while selling rattraps, an idea struck his mind. He thought that the whole world is also like a rattrap. In a rattrap, the rat is caught when he is attracted to the bait and tries to eat it. In the same way the world sets baits for people. These baits are riches, joys, shelter, food and clothing. When a person is tempted towards these bats, he is caught like a rat.
(एक दिन, चूहेदानियाँ बेचते समय उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने सोचा कि सारा संसार ही एक चूहेदानी के समान है। चूहेदानी में चूहा फंस जाता है जब वह भोजन के लालच में आ जाता है और उसे खाने का प्रयास करता है। इसी तरह से यह संसार भी लोगों के लिए प्रलोभन प्रस्तुत करता है। अमीरी, खुशियाँ, घर, भोजन और कपड़े ऐसे ही कुछ प्रलोभन हैं। जब कोई इन्सान इन प्रलोभनों के लालच में आ जाता है, तो वह चूहे की तरह फंस जाता है।)

Question 3.
Where did the peddler seek shelter one evening? (एक शाम को फेरी वाले ने आश्रय की तलाश कहाँ की ?)
Answer:
One dark evening, the peddler was walking along the road with great difficulty. He noticed a little grey cottage by the roadside. He knocked on the door, an old man welcomed him. He was a crofter without wife or child. He gave shelter and food to the peddler.
(एक अंधेरी शाम को, फेरी वाला बड़ी कठिनाई से सड़क किनारे चला जा रहा था। उसने सड़क किनारे एक छोटा-सा स्लेटी रंग का घर देखा। उसने दरवाजे पर दस्तक दी, तो एक बूढ़े आदमी ने उसका स्वागत किया। वह एक किसान था जिसकी पत्नी अथवा बच्चा नहीं थे। उसने फेरी वाले को भोजन अथवा आश्रय प्रदान किया।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 4.
Why was the old crofter happy to see the peddler? (बूढ़ा किसान फेरी वाले को देखकर खुश क्यों हो गया ?) Or Why was the croften so talkative and friendly with the peddler? [H.B.S.E. March, 2019 (Set-D)] (किसान फेरीवाले के साथ इतना बातूनी और मैत्रीपूर्ण क्यों था?)
Answer:
The old crofter welcomed the poor peddler. He was happy to get someone to talk to in his loneliness. He fed the peddler and played a game of cards with him until bedtime. The old man told him that he had been a crofter at Ramsjö Ironworks.
(बूढ़े किसान ने फेरी वाले का स्वागत किया। वह अपने अकेलेपन में किसी को अपने साथ बात करने के लिए पाकर प्रसन्न था। उसने फेरी वाले को भोजन कराया और रात को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेली। बूढ़े आदमी ने उसको बताया कि वह रेमस्जो आयरन वर्क्स में काम किया करता था।)

Question 5.
What did the peddler sell and how did he make those things ? [H.B.S.E. 2020 (Set-B)] (फेरीवाले ने क्या किया और उसने उन चीजों को कैसे बनाया?)
Answer:
The peddler sold small rattraps of wire. He made them himself at odd moments,from the material he got by begging in the stores or at the big farms.
(फेरीवाले ने तार की छोटी चूहेदानियाँ बेचीं। उसने उन्हें स्वयं उस सामग्री से अजीब क्षणों में बनाया जिसे उसने दुकानों या बड़े खेतों में भीख मांगकर प्राप्त किया था।)

Question 6.
How did the old crofter and the peddler leave the cottage the next morning? (बूढ़ा किसान एवं फेरी वाला कुटीर से अगली प्रातः कैसे बाहर गए ?)
Answer:
The next morning, the old crofter and the peddler left the cottage simultaneously. The crofter locked the door and put the key in his pocket. The peddler thanked the old man and bade him good bye. Then they went their own ways. (अगली सुबह, किसान और फेरी वाला एक साथ घर से बाहर निकले। किसान ने दरवाजे पर ताला लगाया और चाबी अपनी जेब में डाल ली। फेरी वाले ने बूढ़े आदमी का धन्यवाद किया और उसे अलविदा कहा। तब वे अपने-अपने रास्तों पर चले गए।)

Question 7.
How did the peddler steal the old crofter’s money? (फेरी वाले ने बूढ़े किसान का पैसा किस प्रकार चुराया ?)
Answer:
The next morning both the men left the cottage at the same time. But half an hour later, the peddler came back to the house. He went to window, smashed a pane and got hold of the pouch. He took out the money and hung the pouch back in its place. Then he went his way.
(अगली सुबह दोनों आदमी एक साथ घर से बाहर गए। लेकिन आधे घंटे बाद, फेरी वाला वापस घर लौट आया। वह खिड़की के पास गया, उसने एक शीशा तोड़ा और थैली अपने हाथ में ले ली। उसने धन बाहर निकाला और थैली को उसी स्थान पर टांग दिया। तब वह चला गया।)

Question 8.
After stealing the money, why did the peddler feel that he was trapped? (पैसा चुराने के बाद फेरी वाले ने ऐसा क्यों महसूस किया कि वह फँस गया है ?)
Answer:
With the stolen money in his pocket, it was not safe for the peddler to walk on the public highway. So he turned off the road into a forest. Later in the day he got into a big and confusing forest. He walked and walked without coming to the end of the forest. Now he felt that the world was really a big rattrap. The money he had stolen was the bait and he had been trapped.

(अपनी जेब में चोरी किया हुआ धन रखकर, फेरी वाले के लिए मुख्य मार्ग से सफर करना सुरक्षित नहीं था। इसलिए वह सड़क मार्ग को छोड़कर जंगल के रास्ते चल दिया। बाद में वह एक बड़े और उलझन वाले जंगल में प्रवेश कर गया। वह चलता गया, चलता गया लेकिन जंगल का अंत ही नहीं हुआ। अब उसको एहसास हो गया था कि यह संसार एक बड़ी चूहेदानी है। जो धन उसने चोरी किया था वह एक प्रलोभन के समान था और वह इसके जाल में फंस चुका था।)

Question 9.
What did the peddler hear when he had lost the hope of his survival? (जब फेरी वाले को जीवन की आशा खो गई महसूस हुई तो उसने क्या सुना ?)
Answer:
Darkness was descending. It was late in December and the forest was getting cold. When he had lost hope of survival, he heard a sound. It was the sound of hammer strokes coming from a iron mill. He got up and moved with difficulty towards the sound.
(अंधेरा घना होता जा रहा था। दिसम्बर के अंतिम दिनों की बात थी और जंगल में ठंड बढ़ती जा रही थी। जब उसने अपने जीवन की आशा खो दी तो उसे एक आवाज सुनाई दी। यह एक लोहे के कारखाने से हथौड़े के टकराने की आवाज थी। वह उठ खड़ा हुआ और कठिनाई के साथ उस आवाज की ओर बढ़ा।)

Question 10.
Why did the rattrap peddler take his way through forest ? [H.B.S.E. 2020 (Set-A)] (चूहेदानी बेचने वाले ने जंगल के माध्यम से अपना रास्ता क्यों बनाया?)
Answer:
The paddler made his living by selling rattraps. But he did not earn much and often had to remain hungry. So, one day he stole an old crofter’s money. In order to being caught, he did not walk along the main road and took his way to the forest.
(पैडलर ने चूहेदानियाँ बेचकर अपना जीवनयापन किया। लेकिन वह ज्यादा नहीं कमाता था और अक्सर भूखा रहना पड़ता था। इसलिए, एक दिन उसने एक पुराने क्रॉफ्टर का पैसा चुरा लिया। पकड़े जाने के डर से, वह मुख्य सड़क पर नहीं चलता था और जंगल में अपना रास्ता बनाता था।)

Question 11.
Why did the ironmaster come to the Ramsjö Ironworks in the night? (आयरन मास्टर रात को रेमस्जो आयरन वर्कस में क्यों आया ?)
Answer:
The ironmaster was the owner of the Ramsjö Ironworks. It was his ambition to ship out good iron to market. He supervised the work day and night in order to make sure that the work was going on well. That night also he had come to the ironworks for his round of inspection.
(आयरन मास्टर रेमस्जो आयरन वर्क्स का मालिक था। उसका लक्ष्य था अच्छी किस्म के लोहे को विदेशी बाजारों में भेजना। वह रात-दिन देखता था कि काम जितना सम्भव हो सके उतना अच्छी तरह से हो। उस रात भी वह अपने निरीक्षण के दौरे पर आयरन वर्क्स में आया था।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 12.
How did the ironmaster react when he saw the ragged peddler? (जब उसने फटेहाल फेरी वाले को देखा तो आयरन मास्टर की क्या प्रतिक्रिया थी ?)
Answer:
After some time, the ironmaster, who owned the mill, came for his nightly inspection. He saw the peddler who was in rags. He mistook the peddler for an old acquaintance, Nils Olof. He wondered why his old friend was in rags. He invited him to visit his house and spend the night there.
(कुछ समय के पश्चात्, आयरन मास्टर, जो कि मिल का मालिक था, अपने रात्रि के समय के निरीक्षण के लिए आया। उसने फेरी वाले को देखा जिसने फटे पुराने कपड़े पहने हुए थे। उसने गलती से उस फेरी वाले को अपना पुराना जान-पहचान वाला नील्स ओल्फ समझ लिया। वह हैरान था कि उसके पुराने मित्र ने चिथड़े क्यों पहन रखे थे। उसने उसे अपने घर आमंत्रित किया और उनके साथ रात बिताने के लिए कहा।)

Question 13.
Why was the peddler surprised when the ironmaster referred to him as his old friend? Why did he refuse to go with him.? ।
(जब आयरन मास्टर ने उसे अपना पुराना मित्र कहा तो फेरी वाला हैरान क्यों हो गया ? उसने उसके साथ जाने से इन्कार क्यों किया ?)
Answer:
The peddler had never seen the ironmaster before. Nor did he know his name. But he told the ironmaster that he was running into bad luck. The ironmaster told him that he should not have resigned from the regiment. Then the ironmaster invited him to his house for the Christmas Eve. But the peddler did not want to fall into any fresh trouble. So he emphatically refused to go with him.

(फेरी वाले ने आयरन मास्टर को पहले कभी नहीं देखा था। वह उसका नाम भी नहीं जानता था। लेकिन उसने आयरन मास्टर को बताया कि आजकल उसकी किस्मत खराब चल रही है। आयरन मास्टर ने उसको बताया कि उसे सेना से त्यागपत्र नहीं देना चाहिए था। तब आयरन मास्टर ने उसको क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अपने घर आमंत्रित किया। लेकिन फेरी वाला किसी नए संकट में नहीं फंसना चाहता था। इसलिए उसने जोर देकर उसके साथ जाने से मना कर दिया।)

Question 14.
At last the peddler agreed to go to the ironmaster’s house and spend the night there. Why? (अन्त में फेरी वाला आयरन मास्टर के साथ जाने और वहाँ रात बिताने के लिए राजी हो गया। क्यों ?)
Answer:
The ironmaster had a young daughter named Edla. He thought that his daughter might persuade his old friend to stay with them. So he went home and brought his daughter. Edla looked at him compassionate. She requested him to come to her home. At last, the rattrap seller agreed and went with them.

(आयरन मास्टर की एक छोटी बेटी थी जिसका नाम एडला था। वह सोचता था कि उसकी बेटी उसके पुराने मित्र को उनके साथ रात बिताने के लिए मना सकती थी। इसलिए वह घर गया और अपनी बेटी को लेकर आया। एडला ने उसकी ओर दया भाव से देखा। उसने उससे अपने घर आने की प्रार्थना की। अंत में, चूहेदानियों की फेरी वाला सहमत हो गया और उनके साथ चलागया।)

Question 15.
When did the ironmaster realise that the peddler was not his old friend? (आयरन मास्टर को ऐसा कब महसूस हुआ कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं है ?)
Answer:
The next day was Christmas. The servant had bathed the peddler, cut his hair and shaved him. When the ironmaster came into the dining room he looked at him in broad daylight. Now he realised that he had been mistaken and that man was not his old friend.

(अगले दिन क्रिसमस था। नौकर ने फेरी वाले को स्नान करवा दिया था, उसके बाल काट दिए थे और दाढ़ी बना दी थी। जब आयरन मास्टर भोजन कक्ष में आया और दिन के प्रकाश में उसने उसे देखा। तब उसको उस बात का एहसास हो गया कि उससे गलती हो गई है और वह उसका पुराना मित्र नहीं है।)

Question 16.
What happened when the ironmaster realised his mistake? (जब आयरन मास्टर को अपनी भूल का एहसास हुआ तो क्या हुआ ?)
Answer:
The iron master realised that the peddler was not his old friend. He thundered at him and asked him who he was. He threatened to call the sheriff. But the peddler said that it was not his fault. He had not tried to deceive anybody. At this the ironmaster asked him to go away.

(आयरन मास्टर को इस बात का एहसास हो गया था कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं है। वह उस पर गरजा और पूछा कि वह कौन है। उसने शेरिफ को बुलाने की धमकी दी। लेकिन फेरी वाले ने कहा कि उसकी कोई गलती नहीं है। उसने किसी को भी धोखा देने का प्रयास नहीं किया था। इस पर आयरन मास्टर ने उसे वहाँ से चले जाने को कहा।)

Question 17.
Why didn’t the stranger tell the ironmaster that he was not Nils Ol of ? (अजनबी ने आयरन मास्टर को यह क्यों नहीं बताया कि वह निल्स ओलोफ नहीं था?) [H.B.S.E. 2019 (Set-A)]
Answer:
When the ironmaster came for his nightly inspection he saw a stranger (peddler) who was in rags. He mistook him for an old acquaintance, Nils Olof. He wondered why his old friend was in rags. He invited him to visit his house and spend the night there. But the stranger (peddler) did not tell him that he was not Nils Olof because he wanted shelter and food from him.
(जब रात को आयरन मास्टर निरीक्षण के लिए निकला तब उसने एक अजनबी (फेरी वाला) को देखा जो फटे पुराने कपड़ों में था। उसने गलती से उस अजनबी को अपना पुराना मित्र निल्स ओलोफ समझ लिया। परन्तु अजनबी ने उसे यह नहीं बताया कि वह उसका मित्र निल्स ओलोफ नहीं हैं क्योंकि आयरन मास्टर से उसे खाना और आसरा चाहिए था।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 18.
What news did the ironmaster and his daughter hear at the church? What did the ironmaster fear?
(चर्च में आयरन मास्टर एवं उसकी बेटी ने क्या समाचार सुना ? आयरन मास्टर को क्या भय था ?)
Answer:
The next morning, the ironmaster and his daughter went to church for Christmas service. The seller was still as the ironmaster and his daughter came to know that one of the old crofters had been robbed by a man who sold rattraps. That news made Edla sad. Her father was afraid that the rattrap seller might have stolen all their silver spoons in their absence.

(अगली सुबह, आयरन मास्टर और उसकी बेटी क्रिसमस मनाने चर्च चले गए। चूहेदानियाँ बेचने वाला अभी भी सो रहा था। चर्च में आयरन मास्टर और उसकी बेटी को इस बात का पता चला कि एक बूढ़े किसान को एक आदमी ने लूट लिया है जो चूहेदानियाँ बेचता है। इस समाचार से एडला निराश हो गई। उसके पिता को डर था कि चूहेदानियाँ बेचने वाला उनकी गैरहाजरी में उनके चाँदी के सारे चम्मच चुरा सकता था।)

Question 19.
What present did the peddler leave for Edla? What did he write in his letter to her? (फेरी वाला एडला के लिए क्या उपहार छोड़ गया ? उसने उसके लिए अपने पत्र में क्या लिखा ?)
Answer:
The valet told Edla that the peddler left a little package for her. She found a small rattrap in the package. Inside the package there were three ten-kronor notes and a letter. In his letter he thanked her for being so nice to him as if he was really a captain. He did not want her to be troubled with a thief on Christmas. He requested her to return the money to the old crofter. He wrote that the rattrap was a Christmas present to her.

_(नौकर ने एडला को बताया कि फेरी वाला उसके लिए एक छोटा पैकेट छोड़कर गया है। उस पैकेट के अन्दर एक छोटी चूहेदानी थी। पैकेट के अन्दर दस क्रॉनर के तीन नोट और एक पत्र था। अपने पत्र में उसने, उनके द्वारा किए गए अच्छे व्यवहार के लिए धन्यवाद किया जैसे कि वह कैप्टन ही हो। वह नहीं चाहता था कि उसको क्रिसमस पर एक चोर के साथ रहने का कष्ट हो। उसने उससे प्रार्थना की कि वह उस धन को बूढ़े किसान को लौटा दे। उसने लिखा कि चूहेदानी उसके लिए क्रिसमस का एक उपहार है।)

Long Answer Type Questions
Answer the following questions in about 80 words

Question 1.
Who was the poor peddler? Why did he think that the whole world was a rattrap? (गरीब फेरी वाला कौन था ? वह ऐसा क्यों सोचता था कि सारा संसार एक चूहेदानी है ?)
Answer:
The peddler was a poor man. He made small rattraps of wire. He wandered from place to place selling these rattraps. But he could not earn enough to make both ends meet. So he had to beg as well as resort to petty thefts. His clothes were in rags, his cheeks were sunken and he had often to remain hungry. His life was sad and monotonous. One day, while selling rattraps, an idea struck his mind. He thought that the whole world is also like a rattrap. In a rattrap, the rat is caught when he is attracted to the bait and tries to eat it. In the same way the world sets baits for people. These baits are riches, joys, shelter, food and clothing. When a person is tempted towards these baits, he is caught like a rat. Then there is no escape from the clutches of the world. The peddler thought that life had never been kind to him. This world was just like a rattrap to him. This idea amused him. He was able to philosophise his misery and poverty

(फेरी वाला एक गरीब आदमी था। वह तार के साथ छोटी चूहेदानियाँ बनाता था। वह इन चूहेदानियों को बेचने के लिए जगह-जगह घूमता फिरता था। लेकिन वह इतना धन नहीं कमा पाता था जिससे उसका गुजारा हो सके। इसलिए उसको भीख माँगनी पड़ती थी और छोटी-मोटी चोरियाँ भी करनी पड़ती थी। उसके कपड़े चिथड़े थे, उसकी गालें चिपकी हुई थी और उसको प्रायः भूखा रहना पड़ता था। उसका जीवन उदासी और नीरसता से भरा हुआ था। एक दिन, चूहेदानियाँ बेचते समय उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने सोचा कि यह सारा संसार एक चूहेदानी के समान है। चूहेदानी में चूहा फंस जाता है जब वह खाने की ओर आकर्षित हो जाता है और उसे खाने का प्रयास करता है। इसी तरह से यह संसार भी लोगों के लिए प्रलोभन प्रस्तुत करता है। ये प्रलोभन हैं अमीरी, खुशियाँ, घर, भोजन और वस्त्र। जब कोई व्यक्ति इन प्रलोभनों की ओर आकर्षित होता है, तो वह एक चूहे की तरह फंस जाता है। तब इस संसार के चंगुल से बचने का कोई भी रास्ता नहीं बचता है। फेरी वाला सोचता है कि यह संसार कभी भी उसके प्रति दयालु नहीं रहा है। यह संसार उसके लिए मात्र एक चूहेदानी के समान था। इस विचार से वह खुश हो गया। वह अपने कष्टों और गरीबी के बारे में दार्शनिकतापूर्ण विचार करने लगा।)

Question 2.
Describe the peddler’s stay with the old crofter. How did he respond to the old man’s kindness and hospitality? (फेरी वाले का बूढ़े किसान के पास ठहरने का वर्णन करो। उसने बूढ़े व्यक्ति की दयालुता एवं आतिथ्य का क्या बदला चुकाया ?)
Answer:
One dark evening, the peddler was walking along the road with great difficulty. He noticed a little grey cottage by the roadside. He knocked on the door, an old man welcomed him. He was a crofter without wife or child. The old man was happy to get someone to talk to in his loneliness. He fed the peddler and played a game of cards with him until bedtime. The old man told him that he had been a crofter at Ramsjö Ironworks. Now he earned his living by selling his cow’s milk. He said that the previous month he had received thirty kronors in payment. The old man showed him the money which he kept in a leather pouch hung on a nail in the window frame. The next morning both the men left the cottage at the same time. But half an hour later, the peddler came back to the house. He went to window, smashed a pane and got hold of the pouch. He took out the money and hung the pouch back in its place. Then he went his way.

(एक अंधेरी शाम को फेरी वाला बड़ी कठिनाई के साथ सड़क पर चला जा रहा था। उसने सड़क किनारे स्लेटी रंग का एक छोटा-सा घर देखा। उसने दरवाजे पर दस्तक दी, एक बूढ़े आदमी ने उसका स्वागत किया। वह एक किसान था जिसकी पत्नी अथवा बच्चा नहीं था। बूढ़ा आदमी अपने अकेलेपन में किसी को अपने साथ बातें करने के लिए पाकर प्रसन्न था। उसने फेरी वाले को भोजन कराया और रात को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेली। बूढ़े आदमी ने उसे बताया कि वह रेमस्जो आयरन वर्क्स में एक किसान के रूप में काम कर चुका था। अब वह अपनी गाय का दूध बेचकर अपनी आजीविका कमाता था। उसने कहा कि पिछले महीने उसे भुगतान के रूप में तीस क्रॉनर मिले थे। बूढ़े आदमी ने उसको वह धन दिखाया जो कि उसने एक चमड़े की थैली में डालकर खिड़की के पास कील पर टाँगा हुआ था। अगली सुबह दोनों आदमी एक साथ घर से बाहर गए। लेकिन आधे घंटे के पश्चात् फेरी वाला घर वापस लौटा। वह खिड़की के पास गया, एक शीशा तोड़ा और थैली को उतार लिया। उसने थैली से धन बाहर निकाला और थैली को वापस वहीं टाँग दिया। तब वह चला गया।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 3.
Where did the peddler go after stealing the old crofter’s money? (बूढ़े किसान का पैसा चुराने के बाद फेरी वाला कहाँ गया ?)
Answer:
The old crofter treated the peddler in a kind manner. He offered him food and shelter for the night. He played a game of cards with him until bed time. But the peddler stole his money and went away. With the stolen money in his pocket, it was not safe for the peddler to walk on the public highway. So he turned off the road into a forest. Later in the day he got into a big and confusing forest. He walked and walked without coming to the end of the forest. Now he felt that the world was really a big rattrap.

The money he had stolen was the bait and he had been trapped. Darkness was descending. It was late in December and the forest was getting cold. When he had lost hope of survival, he heard a sound. It was the sound of hammer strokes coming from an iron mill. He got up and moved with difficulty towards the sound. The rattrap seller reached the Ramsjö Ironworks and entered it. The blacksmiths looked at him with indifference. He asked permission to stay there for the night which was granted by the chief blacksmith.

(बूढ़े किसान ने एक दयालु ढंग के साथ फेरी वाले के साथ व्यवहार किया। उसने उसे भोजन और रात को ठहरने के लिए आश्रय दिया। उसने उसके साथ सोने के समय तक ताश भी खेली। लेकिन फेरी वाले ने उसका धन चोरी कर लिया और वह चला गया। अपनी जेब में चोरी किया हुआ धन डालकर, फेरी वाले के लिए मुख्य मार्ग से होकर जाना सुरक्षित नहीं था। इसलिए वह सड़क मार्ग छोड़कर जंगल के रास्ते से गया। बाद में वह एक बड़े और उलझन भरे जंगल में घुस गया। वह चलता गया, चलता गया लेकिन जंगल कहीं भी समाप्त नहीं हुआ। अब उसे महसूस हुआ कि यह संसार सचमुच में एक बड़ी चूहेदानी था। जो धन उसने चोरी किया था वह एक प्रलोभन था और वह उसमें फंस चुका था। अंधेरा घना होता जा रहा था।

दिसम्बर महीने के अंतिम दिन थे और जंगल में ठंड बढ़ती जा रही थी। जब उसने अपने जीवित रहने की आशा खो दी तो उसे एक आवाज सुनाई दी। यह हथौड़े के टकराने की आवाज थी जो कि एक लोहे के कारखाने से आ रही थी। वह उठ खड़ा हुआ और कठिनाई के साथ उस आवाज की ओर बढ़ा। चूहेदानी की फेरी लगाने वाला रेमस्जो आयरन वर्क्स पहुंचा और उसमें प्रवेश कर गया। लोहारों ने उसकी ओर उदासीनतापूर्वक देखा। उसने वहाँ रात को ठहरने के लिए अनुमति माँगी जो कि मुख्य लोहार के द्वारा प्रदान कर दी गई।)

Question 4.
Why did the peddler agree to spend the night at the house of the ironmaster? Why did the ironmaster ask him to go the next morning?
(फेरी वाला आयरन मास्टर के घर रात बिताने के लिए राजी क्यों हो गया ? अगली प्रातः आयरन मास्टर ने उसे चले जाने को क्यों कह दिया ?)
Answer:
The peddler was given permission to stay at the ironworks. After some time, the ironmaster came for his nightly inspection. He saw the peddler who was in rags. He mistook the peddler for an old acquaintance, Nils Olof. He wondered why his old friend was in rags. The peddler had never seen him. Nor did he know his name. But he told the ironmaster that he was running into bad luck. The ironmaster told him that he should not have resigned from the regiment.

Then the ironmaster invited him to his house for the Christmas Eve. But the peddler did not want to fall into any fresh trouble. So he emphatically refused to go with him. The ironmaster then asked his daughter Edla to persuade his old friend to stay with them. She requested him to come to her home. At last, the rattrap seller agreed and went with them. The next day was Christmas. The servant had bathed him, cut his hair and shaved him. When the ironmaster came into the dining room he looked at him in broad daylight. Now he realised that he had been mistaken and that man was not his old friend. He thundered at him and asked him to go away.

(फेरी वाले को आयरन वर्क्स में ठहरने की अनुमति प्रदान की गई। कुछ समय के पश्चात् आयरन मास्टर रात्रिकालीन निरीक्षण के लिए आया। उसने फेरी वाले को देखा, जिसने फटे-पुराने कपड़े पहन रखे थे। उसने फेरी वाले को गलती से अपना पुराना जान-पहचान वाला नील्स ओल्फ समझ लिया। वह हैरान था कि उसका पुराना मित्र चिथड़ों में क्यों था। फेरी वाले ने उसे पहले कभी नहीं देखा था। न ही वह उसका नाम जानता था। लेकिन उसने आयरन मास्टर को बताया कि उसकी किस्मत अच्छी नहीं चल रही है।

आयरन मास्टर ने उसको बताया कि उसे सेना से त्यागपत्र नहीं देना चाहिए था। तब आयरन मास्टर ने उसको क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अपने घर आमंत्रित किया। लेकिन फेरी वाला किसी नए संकट में नहीं फंसना चाहता था। इसलिए उसने बलपूर्वक ढंग से उनके साथ जाने से मना कर दिया। तब आयरन मास्टर ने अपनी बेटी एडला से कहा कि वह उसके पुराने मित्र को उनके साथ ठहरने के लिए मना ले। उसने उससे अपने घर आने के लिए प्रार्थना की। अंततः चूहेदानियाँ बेचने वाला मान गया और उनके साथ चला गया। अगले दिन क्रिसमस था। नौकर ने उसे स्नान करा दिया था, उसके बाल काट दिए थे और उसकी दाढ़ी बना दी थी। जब आयरन मास्टर भोजन कक्ष में आया तो उसने दिन के प्रकाश में उसे देखा। अब उसको इस बात का एहसास हुआ कि उसे गलती लग गई है। वह उस पर गरजा और उसे चले जाने के लिए कहा।)

Question 5.
Why did the ironmaster’s daughter insist that the peddler should stay with them? What happened in the end? (आयरन मास्टर की बेटी ने इस बात का आग्रह क्यों किया कि फेरी वाला उनके साथ रहे ? अन्त में क्या हुआ?) Or How did the peddler show his gratitude to Edla? (फेरी वाले ने एडला को अपनी कृतज्ञता कैसे दिखाई?) [H.B.S.E. March, 2018 (Set-D)]
Answer:
The ironmaster asked the peddler to go away. But his daughter Edla wanted the peddler to stay with them that day. She said that they let him stay and enjoy a day of peace. They should not chase away a man whom they had promised invitation to enjoy the Christmas joy. Then she asked him to sit down and eat. The next morning the ironmaster and his daughter went to church for Christmas service.

The rattrap seller was still asleep. At church the ironmaster and his daughter came to know that one of the old crofters had been robbed by a man who sold rattraps. That news made Edla sad. Her father was afraid that the rattrap seller might have stolen all their silver spoons in their absence. But the valet told them that the peddler had not taken anything with him. Rather he had left a little package for the girl. She found a small rattrap in the package. Inside the package there were three ten-kronor notes and a letter. In his letter he thanked her for being so nice to him as if he was really a captain. He did not want her to be troubled with a thief on Christmas. He requested her to return the money to the old crofter. He wrote that the rattrap was a Christmas present to her.

(आयरन मास्टर ने फेरी वाले से चले जाने को कहा। लेकिन उसकी बेटी एडला चाहती थी कि वह उस रात को उनके साथ ठहरे। उसने कहा कि उन्होंने उसे एक दिन उनके साथ चैन से रहने की अनुमति प्रदान की थी। उन्हें उस आदमी को भगाना नहीं चाहिए जिसको कि उन्होंने क्रिसमस की खुशियों के लिए निमंत्रण का वायदा किया था। तब उसने उससे कहा कि वह बैठ जाए और खाना खाए। अगली सुबह आयरन मास्टर और उसकी बेटी चर्च में क्रिसमस मनाने चले गए। चूहेदानियाँ बेचने वाला अभी भी सो रहा था।

चर्च में आयरन मास्टर और उसकी बेटी को जानकारी मिली कि एक बूढ़े किसान को एक चूहेदानियाँ बेचने वाले आदमी ने ठग लिया है। इस समाचार ने एडला को उदास कर दिया। उसके पिता को डर लग रहा था कि चूहेदानियाँ बेचने वाला उनकी गैर हाजरी में उनके चाँदी के सारे चम्मच चुरा सकता था। लेकिन नौकर ने उन्हें बताया कि फेरी वाला अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं गया है। बल्कि वह लड़की के लिए एक छोटा-सा पैकेट छोड़कर गया है। उसने पैकेट के अन्दर एक छोटी-सी चूहेदानी को पाया। उस पैकेट के अन्दर दस क्रॉनर के तीन नोट और एक पत्र भी था। अपने पत्र में उसने उस लड़की का अपने प्रति इतना अच्छा व्यवहार करने जैसे कि वह एक कैप्टन हो; के लिए धन्यवाद किया। वह नहीं चाहता था कि उसे क्रिसमस के अवसर पर एक चोर के साथ रहने का कष्ट हो। उसने उससे प्रार्थना की कि वह उस धन को बूढ़े किसान को लौटा दे। उसने लिखा कि चूहेदानी उसके लिए क्रिसमस का एक उपहार थी।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 6.
Do you think that the peddler is a criminal or a victim of circumstances? (आपके विचार में फेरी वाला अपराधी है या परिस्थितियों का शिकार है ?) [H.B.S.E. 2017 (Set-A)]
Or
Write a brief character-sketch of the peddler. (फेरी वाले का संक्षिप्त चरित्र-चित्रण करो।)
Answer:
The rattrap seller is a very poor man. He goes from place to place selling rattraps. But he does not earn enough to keep his body and soul together. So he resorts to begging and petty thefts. We know that stealing is a crime. Yet we do not hate him. We have sympathy for him. We know that he is not a habitual thief. If he had been a habitual thief, he would have committed big thefts and there would have been no need for him to wander here and there selling rattraps. He commits thefts only when he has nothing to eat. Although he is a poor, he is a thinker. He can philosophise about his condition. He steals the money of the old crofter. But the feeling of guilt remains with him. When Edla shows love and sympathy to him, he repents at his deed. His goodness is awakened. He leaves the money and requests Edla to return it to the old man. Thus we find that the poor rattrap peddler is not a criminal. He is only a victim of circumstances.

(चूहेदानियाँ बेचने वाला एक अति गरीब आदमी है। वह चूहेदानियाँ बेचने के लिए जगह-जगह जाता है। लेकिन वह इतना धन भी नहीं कमा पाता है कि अपने आप को जीवित रख सके। इसलिए वह भीख माँगने और छोटी-मोटी चोरियाँ करने लग जाता है। हम जानते हैं कि चोरी करना एक अपराध है। फिर भी हम उससे घृणा नहीं करते हैं। हम उसके प्रति सहानुभूति रखते हैं। हम जानते हैं कि वह एक पक्का चोर नहीं है। यदि वह एक पक्का चोर होता तो फिर वह बड़ी चोरियाँ करता और उसको इधर-उधर घूम कर चूहेदानियाँ बेचने की भी जरूरत न पड़ती। वह तभी चोरी करता है जब उसके पास खाने को कुछ भी नहीं होता है। यद्यपि वह एक गरीब है लेकिन वह एक विचारक है। वह अपनी स्थिति पर दार्शनिकतापूर्ण विचार कर सकता है। वह बूढ़े किसान का धन चोरी कर लेता है। लेकिन अपराध बोध की भावना उसका पीछा नहीं छोड़ती है। जब एडला उसके प्रति प्यार और सहानुभूति दिखाती है, तो उसे अपने किए पर पश्चाताप होता है। उसकी अच्छाई जागृत हो जाती है। वह धन वहीं छोड़ जाता है और एडला से प्रार्थना करता है कि वह उसे बूढ़े आदमी को लौटा दे। इस प्रकार से हम देखते हैं कि गरीब चूहेदानियाँ बेचने वाला फेरी वाला एक अपराधी नहीं है। वह तो केवल परिस्थितियों का मारा हुआ है।)

The Rattrap MCQ Questions with Answers

1. Who is the writer of the story ‘The Rattrap’?
(A) Ruskin Bond
(B) Selma Lagerlof
(C) R.K. Narayan
(D) Tagore
Answer:
(B) Selma Lagerlof

2. Who is the main character in the story “The Rattrap’?
(A) a poor man who made rattraps
(B) a rich man
(C) a doctor
(D) a teacher
Answer:
(A) a poor man who made rattraps

3. The poor man in the story could not make enough money by selling rattraps. What else did he do in order to make both ends meet?
(A) worked as a laborer
(B) did part-time work as a teacher
(C) did farming
(D) begged and stole
Answer:
(D) begged and stole

4. What idea struck the rattrap seller’s mind one day?
(A) this world is joyful and wonderful
(B) he should run away
(C) the whole world is also like a rattrap
(D) people are wonderful
Answer:
(C) the whole world is also like a rattrap

5. What did the rattrap seller notice one dark evening, as he was walking along the road?
(A) a big car
(B) a little grey cottage
(C) a big house
(D) a beautiful woman
Answer:
(B) a little grey cottage

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6. Who was the old man living in the little cottage?
(A) an engineer
(B) a politician
(C) a crofter without wife or children
(D) a thief
Answer:
(C) a crofter without wife or children

7. What did the old man do for a living?
(A) selling his cow’s milk
(B) he begged
(C) he was a farmer
(D) he wrote poems
Answer:
(A) selling his cow’s milk

8. Where did the old man keep his money?
(A) in a chest
(B) in his box
(C) in the bank
(D) in a leather pouch
Answer:
(D) in a leather pouch

9. Who stole the old man’s money?
(A) his neighbour
(B) his son
(C) the rattrap seller
(D) his wife
Answer:
(C) the rattrap seller

10. How did the rattrap seller enter the cottage in order to steal the old man’s money?
(A) by breaking the lock
(B) by smashing a window pane
(C) by breaking the door
(D) by entering through the ventilator
Answer:
(B) by smashing a window pane

11. What happened when the rattrap seller left the main road and went into a forest?
(A) he was happy there
(B) he took rest there
(C) he enjoyed the forest
(D) he became confused and lost the way
Answer:
(D) he became confused and lost the way

12. When the rattrap seller had lost all hope, he heard a sound. From where was the sound coming?
(A) from a school
(B) from a mill
(C) from a lake
(D) from a shop
Answer:
(B) from a mill

13. Where did the rattrap seller reach when he followed the sound?
(A) a school
(B) a shop
(C) a hill
(D) the Ramsjo Ironworks
Answer:
(D) the Ramsjo Ironworks.

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14. For what did the rattrap seller ask permission?
(A) to stay there for the night
(B) to dance in the factory
(C) to help the blacksmiths
(D) to build a wall
Answer:
(A) to stay there for the night

15. What did the owner of the factory mistake the rattrap seller for?
(A) a police inspector
(B) his old friend Nils Ol of
(C) a soldier
(D) a teacher
Answer:
(B) his old friend Nils Olof

16. Where did the ironmaster invite the rattrap seller?
(A) to the dance party
(B) to the hospital
(C) to his house for the Christmas Eve
(D) to a marriage party
Answer:
(C) to his house for the Christmas Eve

17. What was the name of the ironmaster’s daughter?
(A) Edla
(B) Pedal
(C) Sedla
(D) Media
Answer:
(A) Edla

18. At first the rattrap seller declined the ironmaster’s invitation. But then why did he agree to go to his house as his guest?
(A) because he was hungry
(B) because he wanted to sleep
(C) because the ironmaster’s daughter invited him
(D) because he wanted to steal ironmaster’s money
Answer:
(C) because the ironmaster’s daughter invited him

19. What happened when the ironmaster saw the rattrap seller looked at him in broad day light?
(A) he praised the personality of the rattrap seller
(B) he gave him good food
(C) he embraced him
(D) he recognized that he was not his friend
Answer:
(D) he recognized that he was not his friend

20. When the ironmaster asked the peddler to go away, what did his daughter say?
(A) she asked the peddler to stay with them that day
(B) she abused the peddler
(C) she beat the peddler
(D) she reported him to the police
Answer:
(A) she asked the peddler to stay with them that day

21. At the church next day, what did the ironmaster and his daughter come to know about the rattrap seller?
(A) that he was a rich man
(B) that he had stolen the old crofter’s money
(C) that the rattrap seller had run away
(D) that he had been arrested
Answer:
(B) that he had stolen the old crofter’s money

22. What did ironmaster feel when he learnt that the rattrap seller was a thief?
(A) that the rattrap seller might steal his silver spoons
(B) that he should report the matter to the police
(C) that he should beat the man
(D) that he should shoot him down
Answer:
(A) that the rattrap seller might steal his silver spoons.

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23. What had the rattrap seller left for the ironmaster’s daughter as a Christmas gift?
(A) a silver ring
(B) a gold ring
(C) a beautiful dress
(D) the rattrap
Answer:
(D) the rattrap

The Rattrap Important Passages for Comprehension

Seen Comprehension Passages
Read the following passages and answer the questions given below:

Type (i)
Passage 1
One dark evening as he was trudging along the road he caught sight of a little gray cottage by the roadside, and he knocked on the door to ask shelter for the night. Nor was he refused. Instead of the sour faces which ordinarily met him, the owner, who was an old man without wife or child, was happy to get someone to talk to in his loneliness. Immediately he put the porridge pot on the fire and gave him supper; then he carved off such a big slice from his tobacco roll that it was enough both for the stranger’s pipe and his own. Finally, he got out an old pack of cards and played ‘majlis’ with his guest until bedtime. [H.B.S.E. 2019 (Set-D)]
Word-meanings :
Trudging = wandering (आवारागर्दी);
sour = unpleasant (अप्रिय);
porridge = oat meal (दलिया)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(D) The Rattrap

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William O Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(D) Selma Lagerlöf

(iii) What did the vagabond see one dark evening?
(A) a little gray cottage
(B) an old woman
(C) a small boy
(D) all the above
Answer:
(A) a little gray cottage

(iv) Who was the owner of the cottage?
(A) an old woman
(B) an old man
(C) a rattrap seller
(D) the author himself
Answer:
(B) an old man

(v) Who were these two men?
(A) The old man and his guest
(B) The old man and his son
(C) The old man and his wife
(D) The old man and his father
Answer:
(A) The old man and his guest

Passage 2
The next day both men got up in good season. The crofter was in a hurry to milk his cow, and the other man probably thought he should not stay in bed when the head of the house had gotten up. They left the cottage at the same time. The crofter locked the door and put the key in his pocket. The man with the rattraps said good bye and thank you, and thereupon each went his own way.

But half an hour later the rattrap peddler stood again before the door. He did not try to get in, however, He only went up to the window, smashed a pane, stuck in his hand, and got hold of the pouch with the thirty kronor. He took the money and thrust it into his own pocket. Then he hung the leather pouch very carefully back in its place and went away.

Word-meanings :
Probably = perhaps (शायद);
smashed = broke (तोड़ा) ।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(D) The Rattrap

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William O Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(D) Selma Lagerl of

(iii) Who was in a hurry?
(A) The Crofter
(B) The other man
(C) Both (A) and (B)
(D) none of the above
Answer:
(A) The Crofter.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

(iv) What did the rattrap peddler do after half an hour?
(A) He went back to him home
(B) He came back to the old man’s cottage
(C) He went to the market to sell rattraps
(D) none of the above
Answer:
(B) He came back to the old man’s cottage

(v) What did he steal from the old man’s cottage?
(A) Rattraps
(B) Watch
(C) Money
(D) Food
Answer:
(C) Money

Passage 3
It was late in December. Darkness was already descending over the forest. This increased the danger and increased also his gloom and despair. Finally, he saw no way out, and he sank down on the ground, tired to death, thinking that his last moment had come. But just as he laid his head on the ground, he heard a sound a hard regular thumping. There was no doubt as to what that was. He raised himself. “Those are the hammer strokes from an iron mill”, he thought. “There must be people nearby”. He summoned all his strength, got up, and staggered in the direction of the sound.

Word-meanings :
Descending = coming down (नीचे आते हुए);
gloom = sadness (उदासी)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(D) The Rattrap

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William O Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(D) Selma Lagerlöf

(iii) What increased the rattrap seller’s despair?
(A) darkness and cold
(B) hunger and weakness
(C) disease and old age
(D) all the above
Answer:
(A) darkness and cold

(iv) What did he hear when he laid his head to the ground?
(A) hissing sounds
(B) humming sound
(C) creaking sounds
(D) chirping sounds
Answer:
(B) humming sound

(v) Where did he go after summoning his strength?
(A) in the direction of the sound
(B) to him home
(C) to the old man’s home
(D) none of the above
Answer:
(A) in the direction of the sound

Passage 4
During one of the long dark evenings just before Christmas, the master smith and his helper sat in the dark forge near the furnace waiting for the pig iron, which had been put in the fire, to be ready to put on the anvil. Every now and then one of them got up to stir the glowing mass with a long iron bar, returning in a few moments, dripping with perspiration, though, as was the custom, he wore nothing but a long shirt and a pair of wooden shoes.
[H.B.S.E. 2017 (Set-B)]
All the time there were many sounds to be heard in the forge. The big bellows groaned and the burning coal cracked. The fire boy shoveled charcoal into the maw of the furnace with a great deal of clatter. Outside roared the waterfall, and a sharp north wind whipped the rain against the brick-tiled roof.

Word-meanings :
Glowing = shining (चमकना);
shoveled = put through shovels (फावड़े से डालना)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(D) The Rattrap

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William O Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(D) Selma Lagerl of

(iii) Who sat in the dark forge near the furnace?
(A) the master smith
(B) his helper
(C) both (A) and (B)
(D) none of the above
Answer:
(C) both (A) and (B)

(iv) What sounds were coming from the furnace?
(A) groaning of bellowing
(B) cracking of coal
(C) both (A) and (B)
(D) none of the above
Answer:
(C) both (A) and (B)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

(v) What was he wearing?
(A) a short shirt and a pair of wooden shoes
(B) a long shirt and a pair of wooden shoes
(C) a long shirt and a pair of leather shoes
(D) a short shirt and a pair of leather shoes
Answer:
(B) a long shirt and a pair of wooden shoes

Type (ii)
Passage 5
No one can imagine how sad and monotonous life can appear to such a vagabond, who plods along the road, left to his own meditations. But one day this man had fallen into a line of thought, which really seemed to him entertaining. He had naturally been thinking of his rattraps when suddenly he was struck by the idea that the whole world about him – the whole world with its lands and seas, its cities and villages – was nothing but a big rattrap. It had never existed for any other purpose than to set baits for people. It offered riches and joys, shelter and food, heat and clothing, exactly as the rattrap offered cheese and pork, and as soon as anyone let himself be tempted to touch the bait, it closed in on him, and then everything came to an end.

Word-meanings :
Vagabond = wanderer (आवारा);
rattrap = a device for catching rats (चूहेदानी)।

Questions :
(i) Name the lesson and its author.
(ii) How does life appear to a vagabond?
(iii) What is the routine of a vagabond?
(iv) What did the vagabond sell in the passage?
(v) Find words from the passage which mean the same as :
(a) wandered, (b) a device for catching rats.
Answers:
(i) Chapter : The Rattrap.
Author : Selma Lagerlof.
(ii) Life appears sad and monotonous to a vagabond.
(iii) A vagabond plods along the road, left to his own meditations.
(iv) The vagabond sold the rattraps in the passage.
(v) (a) vagabond, (b) rattrap.

Passage 6
The man with the rattraps had never before seen the ironmaster at Ramsjo and did not even know what his name was. But it occurred to him that if the fine gentleman thought he was an old acquaintance, he might perhaps throw him a couple of kronor. Therefore he did not want to undeceive him all at once.

“Yes, God knows things have gone downhill with me”, he said. “You should not have resigned from the regiment”, said the ironmaster. “That was the mistake. If only I had still been in the service at the time, it never would have happened. Well, now of course you will come home with me,”

Word-meanings :
Acquaintance = a known person (परिचित);
regiment = mathrm unit of army (सेना दल)।

Questions :
(i) Name the chapter and its author.
(ii) Why did the rattrap peddler not want to undeceive the ironmaster?
(iii) What did the ironmaster think the rattrap peddler to be?
(iv) What did the rattrap peddler not want to do all at once?
(v) Find words from the passage having the meaning same as :
(a) a known person, (b) thought appeared in brain.
Answers:
(i) Chapter: The Rattrap.
Author: Selma Lagerlof.
(ii) The rattrap peddler did not want to undeceive the iron master because he wanted shelter and food from him.
(iii) He thought him an old acquaintance of him.
(iv) He did not want to undeceive the ironmaster all at once.
(v) (a) acquaintance, (b) occurred.

Passage 7
The next day was Christmas Eve, and when the ironmaster came into the dining room for breakfast he probably thought with satisfaction of his old regimental comrade whom he had run across so unexpectedly. “First of all we must see to it that he gets a little flesh on his bones,” he said to his daughter, who was busy at the table. “And then we must see that he gets something else to do than to run around the country selling rattraps.”

“It is queer that things have gone downhill with him as badly as that,” said the daughter. “Last night I did not think there was anything about him to show that he had once been an educated man.”

Word-meanings :
Comrade = friend (साथी);
queer= strange (अजीब)।

Questions :
(i) Name the chapter and its author.
(ii) What special occasion was the next day?
(iii) Why did the ironmaster visit the dining room?
(iv) What did the ironmaster’s daughter think about the rattrap peddler?
(v) Find words from the passage having the meaning same as :
(a) friend, (b) strange.
Answers :
(i) Chapter: The Rattrap.
Author: Selma Lagerlof.
(ii) The next day it was the christmas Eve.
(iii) He visited the dining room for breakfast.
(iv) She thought the rattrap peddler as an unlucky man.
(v) (a) comrade, (b) queer.

Passage 8
But half an hour later, the rattrap peddler stood again before the door. He did not try to get in, however. He only went up to the window, smashed a pane, stuck in his hand, and got hold of the pouch with the thirty kronor. He took the money and thrust it into his own pocket. Then he hung the leather pouch carefully back in its place and went away. [H.B.S.E. March 2018 (Set-D)]

Word-meanings :
Smashed = broke (तोड़ा);
pane = window glass (खिड़की का शीशा);
thrust = pushed (डालना)।

Questions :
(i) Name the chapter from which the above lines have been taken.
(ii) Name the author of the chapter.
(iii) Why did the rattrap peddler not try to get in?
(iv) Where had the leather pouch been hanging?
(v) What was there in the leather pouch?
Answers :
(i) The Rattrap
(ii) Selma Lagerlof
(iii) The rattrap peddler did not try to get in because he knew where the money pouch was.
(iv) The leather pouch was hanging near the window.
(v) There were thirty kroner in the leather pouch.

The Rattrap Summary in English and Hindi

The Rattrap Introduction to the Chapter

Selma Lagerlöf was a Swedish writer. She worked as a country school teacher for nearly ten years before adopted writing as her career. The particular focus of her stories and novels was on the legends she had learned as a child. In 1909 she was awarded the Nobel prize for literature. She was the first woman to get this prize for literature. “The Rattrap’ is an interesting story. It has been told somewhat in the manner of a fairy tale. The rattrap peddler is a poor man. He robs the same who gives him shelter and food. But he is reformed by the compassionate behaviour of a young girl Edla. The story gives the message that the essential goodness of man can be awakened through love and understanding.

(Selma Lagerlöf एक स्वीडिश लेखिका थी। लेखन के रूप में अपना व्यवसाय शुरू करने से पहले उसने लगभग दस साल तक एक ग्रामीण स्कूल में काम किया था। उनकी कहानियों और उपन्यासों का विशेष केंद्र उन दंत कथाओं पर था जो बचपन में उसने सीखी थीं। 1909 में उनको साहित्य का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। साहित्य के लिए यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली वह प्रथम महिला थी। ‘The Rattrap’ एक रोचक कहानी है। यह कुछ-कुछ परियों की कहानी के रूप में सुनाई गई है। चूहेदानियाँ बेचने वाला व्यक्ति एक गरीब आदमी है। वह उसी को ठगता है जो उसे आश्रय और भोजन प्रदान करता है। लेकिन एक छोटी लड़की एडला का दयालुतापूर्ण व्यवहार उसे परिवर्तित कर देता है। कहानी संदेश देती है कि मनुष्य की जरूरी अच्छाई को प्यार और समझ के द्वारा जगाया जा सकता है।)

The Rattrap Summary

This story is about a poor man who made small rattraps of wire. He wandered from place to place selling these rattraps. But he could not earn enough to make both ends meet. So he had to beg as well as resort to petty thefts. His clothes were in rags, his cheeks were sunken and he had often to remain hungry. His life was sad and monotonous.

One day, while selling rattraps, an idea struck his mind. He thought that the whole world is also like a rattrap. In a rattrap, the rat is caught when he is attracted to the bait then he tries to eat it. In the same way the world sets baits for people. These baits are riches, joys, shelter, food and clothing. When a person is tempted towards these baits, he is caught like a rat. The peddler thought that life had never been kind to him. This world was just like a rattrap to him.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

One dark evening, he was walking along the road with great difficulty. He noticed a little grey cottage by the roadside. He knocked on the door, an old man welcomed him. He was a crofter without wife or children. The old man was happy to get someone to talk to in his loneliness. He fed the peddler and played a game of cards with him until bedtime. The old man told him that he had been a crofter at Ramsjö Ironworks. Now he earned his living by selling his cow’s milk. He said that the previous month he had received thirty kronors in payment. The old man showed him the money which he kept in a leather pouch hung on a nail in the window frame.

The next morning both the men left the cottage at the same time. But half an hour later, the peddler came back to the house. He went to window, smashed a pane and got hold of the pouch. He took out the money and hung the pouch back in its place. Then he went his way.
With the stolen money in his pocket, it was not safe for the peddler to walk on the public highway. So he turned off the road into a forest. Later in the day he got into a big and confusing forest. He walked and walked without coming to the end of the forest. Now he felt that the world was really a big rattrap. The money

he had stolen was the bait and he had been trapped. Darkness was descending. It was late in December and the forest was getting cold. When he had lost hope of survival, he heard a sound. It was the sound of hammer strokes coming from a iron mill. He got up and moved with difficulty towards the sound.

The rattrap seller reached the Ramsjö Ironworks and entered it. The blacksmiths looked at him with indifference. He asked permission to stay there for the night which was granted by the chief blacksmith. After some time, the ironmaster, who owned the mill, came for his nightly inspection. He saw the peddler who was in rags. He mistook the peddler for an old acquaintance, Nils Olof.

He wondered why his old friend was in rags. The peddler had never seen him. Nor did he know his name. But he told the ironmaster that he was running into bad luck. The ironmaster told him that he should not have resigned from the regiment. Then the ironmaster invited him to his house for the Christmas Eve. But the peddler did not want to fall into any fresh trouble. So he emphatically refused to go with him.

The ironmaster had a young daughter named Edla. He thought that his daughter might persuade his old friend to stay with them. So he went home and brought his daughter. Edla looked at him compassionately. She requested him to come to her home. At last, the rattrap seller agreed and went with them. The next day was Christmas. The servant had bathed him, cut his hair and shaved him. When the ironmaster came into the dining room he looked at him in broad daylight. Now he realised that he had been mistaken and that man was not his old friend. He thundered at him and asked him who he was.

He threatened to call the sheriff. But the peddler said that it was not his fault. He had not tried to deceive anybody. At this the ironmaster asked him to go away. But the ironmaster’s daughter wanted the peddler to stay with them that day. She said that they let him stay and enjoy a day of peace. They should not chase away a man whom they had promised invited to enjoy the Christmas joy. Then she asked him to sit down and eat. In the evening the Christmas tree was lighted. He thanked everybody.

The next morning the ironmaster and his daughter went to church for Christmas service. The rattrap seller was still asleep. At church the ironmaster and his daughter came to know that one of the old crofters had been robbed by a man who sold rattraps. That news made Edla sad. Her father was afraid that the rattrap seller might have stolen all their silver spoons in their absence. But the valet told them that the peddler had not taken anything with him. Rather he had left a little package for the girl.

She found a small rattrap in the package. Inside the package there were three ten-kronor notes and a letter. In his letter he thanked her for being so nice to him as if he was really a captain. He did not want her to be troubled with a thief on Christmas. He requested her to return the money to the old crofter. He wrote that the rattrap was a Christmas present to her.

(यह कहानी एक गरीब आदमी के बारे में है जो तार की छोटी चूहेदानियाँ बनाया करता था। वह इन चूहेदानियों को बेचने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता था। लेकिन वह अपना गुजारा चलाने जितना भी नहीं कमा सकता था। इसलिए उसे या तो भीख माँगनी पड़ती थी या फिर छोटी-मोटी चोरियाँ करनी पड़ती थीं। उसके कपड़े चिथड़े थे, उसकी गालें धंसी हुई थीं और उसे हमेशा भूखा रहना पड़ता था। उसका जीवन उदास और नीरस था।

एक दिन, चूहेदानियाँ बेचते समय, उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने सोचा कि सारा संसार ही एक चूहेदानी के समान है। चूहेदानी में चूहा पकड़ा जाता है जब वह फँसाने के सामान (रोटी) की ओर आकर्षित होता है तो वह उसे खाने का प्रयास करता है। इसी प्रकार से संसार लोगों के लिए फंदे लगाता है। ये फंदे हैं, अमीरी, आनंद, आश्रय, भोजन और वस्त्र । जब एक व्यक्ति इन साधनों की लालसा करता है, तो वह चूहे की भाँति फँस जाता है। फेरी वाले ने सोचा कि जीवन कभी भी उसके प्रति दयालु नहीं रहा है। यह संसार तो उसके लिए केवल चूहेदानी के समान था।

एक अंधेरी शाम को, वह बड़ी कठिनाई के साथ सड़क के साथ-साथ चल रहा था। उसने सड़क के किनारे स्लेटी रंग के एक छोटे से घर को देखा। उसने दरवाजे पर दस्तक दी, एक बूढ़े आदमी ने उसका स्वागत किया। वह बिना पत्नी और बच्चों के एक छोटा-सा किसान था। वृद्ध आदमी अपने अकेलेपन में किसी को बात करने के लिए पाकर खुश था। उसने फेरी वाले को भोजन खिलाया और रात्रि को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेले। वृद्ध आदमी ने उसे बताया कि वह रेमस्जो लौह मिल में एक छोटे किसान के रूप में कार्य करता था। अब वह अपनी गाय का दूध बेचकर अपनी आजीविका कमाता था। उसने कहा कि पिछले महीने उसे भुगतान के रूप में तीस क्रॉनर प्राप्त हुए थे। वृद्ध आदमी ने उसे वह धन दिखाया जो उसने चमड़े की एक थैली में रखा था जो कि खिड़की के फ्रेम में लटक रही थी।

अगली सुबह दोनों आदमी एक-साथ घर से बाहर चले गए। लेकिन आधे घंटे के पश्चात्, फेरी वाला घर में वापिस आया। वह खिड़की के पास गया, एक काँच को तोड़ा और छोटी थैली हासिल कर ली उसने धन बाहर निकाला और थैली को वापिस उसी स्थान पर टाँग दिया। तब वह अपने रास्ते चला गया। अपनी जेब में चोरी किए हुए धन के साथ, फेरी वाले के लिए आम जनता वाली सड़क पर चलना सुरक्षित नहीं था। इसलिए वह सड़क मार्ग से हटकर जंगल के मार्ग की ओर गया। बाद में दिन में वह एक बड़े और उलझन भरे जंगल में फँस गया। वह चलता गया लेकिन जंगल का कोई सिरा नहीं आया। अब उसने महसूस किया कि दुनिया वास्तव में ही एक बड़ी चूहेदानी थी। धन जो उसने चोरी किया था एक फँसाने वाली चीज़ थी और वह उसमें फँस चुका था। अंधेरा होता जा रहा था। दिसंबर के आखिरी दिनों की बात थी और जंगल में ठंडक बढ़ती जा रही थी। जब उसने बचने की उम्मीद खो दी, उसने एक आवाज़ सुनी। यह एक लोहे के कारखाने से आ रही थी। यह एक घन (हथौड़ा) के प्रहार की आवाज थी। वह उठ खड़ा हुआ और कठिनाई के साथ आवाज की दिशा में चल पड़ा।

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

फेरी वाला रेमस्जो लौह मिल में पहुँचा और उसमें प्रवेश कर गया। लोहार ने लापरवाहीपूर्ण ढंग से उसकी ओर देखा। उसने वहाँ रात्रि को ठहरने की अनुमति माँगी जो कि मुख्य लोहार के द्वारा प्रदान कर दी गई। कुछ समय के पश्चात्, लोहार जो कि मिल का मालिक था, अपने रात्रिकालीन निरीक्षण के लिए आया। उसने फेरी वाले को देखा जिसके वस्त्र फटे-पुराने थे। उसने गलती से फेरी वाले को अपना पुराना परिचित नील्स ऑलोफ समझ लिया। वह हैरान था कि उसका पुराना मित्र चिथड़ों में क्यों था। फेरी वाले ने उसे कभी नहीं देखा था। न ही वह उसका नाम जानता था। लेकिन उसने लोहार को बताया कि उसकी किस्मत खराब चल रही है। लोहार ने उसे बताया कि उसे सेना की टुकड़ी से त्यागपत्र नहीं देना चाहिए था। तब लोहार ने उसे ‘क्रिसमस की पूर्व संध्या’ पर अपने घर आमंत्रित कर लिया। लेकिन फेरी वाला किसी नए संकट में फँसना नहीं चाहता था। इसलिए उसने उसके साथ जाने से दृढ़तापूर्वक मना कर दिया।

लोहार की एक युवा बेटी थी जिसका नाम एडला था। उसने सोचा कि उसकी बेटी उसके पुराने मित्र को उसके साथ ठहरने के लिए मना लेगी। इसलिए वह घर गया और अपनी बेटी को लेकर आया। एडला ने उसकी ओर दयाभाव के साथ देखा। उसने उससे निवेदन किया कि वह उसके घर आए। अंततः चूहेदानी बेचने वाला सहमत हो गया और उनके साथ चल दिया। अगले दिन क्रिसमस था। नौकर ने उसे स्नान करा दिया था, उसके बाल काट दिए थे और दाढ़ी बना दी थी। जब लोहार भोजन-कक्ष में आया, उसने दिन के प्रकाश में उसकी ओर देखा। अब उसने महसूस किया कि उससे गलती हो गई थी और वह आदमी उसका पुराना मित्र नहीं था। वह उस पर गरजा और उससे पूछा कि वह कौन है। उसने पुलिस को बुलाने की धमकी दी। लेकिन फेरी वाले ने कहा कि यह उसकी गलती नहीं थी। उसने किसी को भी धोखा देने का प्रयास नहीं किया था। इस पर लोहार ने उसे चले जाने को कहा।

लेकिन लोहार की बेटी चाहती थी कि वह फेरी वाला उस दिन उनके पास ही ठहर जाए। उसने कहा कि उन्होंने उसे एक दिन रहने और सकून का आनंद लेने की अनुमति दी थी। उन्होंने क्रिसमस का आनंद मनाने के लिए वादा किया था। उनको क्रिसमस की खुशियों का आनंद उठाने के निमंत्रण का वचन दिया था। तब उसने (एडला) उसे बैठने और भोजन खाने के लिए कहा। शाम के समय क्रिसमस वृक्ष को प्रकाशित किया गया। उसने प्रत्येक का धन्यवाद किया।

अगली सुबह लोहार और उसकी बेटी क्रिसमस की सेवा के लिए चर्च गए। चूहेदानी बेचने वाला अभी भी सोया हुआ था। चर्च में लोहार और उसकी बेटी को यह जानकारी मिली कि एक वृद्ध किसान को चूहेदानियाँ बेचने वाले एक व्यक्ति ने लूट लिया है। इस समाचार ने एडला को उदास कर दिया। उसके पिता को भय था कि चूहेदानियाँ बेचने वाला उनकी अनुपस्थिति में उनके चाँदी के सारे चम्मच चुरा सकता है लेकिन नौकर ने उन्हें बताया कि फेरी वाला अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं गया है। बल्कि वह लड़की के लिए एक छोटा पैकेट छोड़ गया है। पैकेट में उसे एक छोटी चूहेदानी मिली। पैकेट के अंदर दस-दस क्रॉनर के तीन नोट थे और एक पत्र था। अपने पत्र में उसने उसके प्रति दयालुता दिखाने के लिए उसका धन्यवाद किया जैसे कि वह एक सचमुच का कैप्टन था। वह नहीं चाहता था कि क्रिसमस के अवसर पर उसको एक चोर के साथ रहने से कोई कठिनाई का सामना करना पड़े। उसने लड़की से प्रार्थना की कि वह इस धन को वृद्ध किसान को लौटा दे। उसने लिखा कि चूहेदानी उसके लिए क्रिसमस का उपहार है।)

The Rattrap Word Meanings

[Page 32] :
Universal (belonging to the whole world) = सर्वव्यापक;
awakened (made mentally alive)= जागृत हुआ;
amidst (in the middle of) के बीच में;
legends (myths) पौराणिक बातें;
rattrap (device for catching rats) =चूहेदानी;
odd(notregular)=अनियमित;
especially(particularly) विशेषतौर पर;
profitable(giving profits)=फायदेमंद;
resort to (forced to do) = करने पर मजबूर होना;
petty (small) = छोटा, तुच्छ;
thievery (stealing) = चोरी;
rags (old, torn clothes) = चिथड़े;
sunken (hollow) = पिचकी हुई;
gleamed (shone) = चमकना;
monotonous (boring, joyless)= नीरस;
vagabond(wanderer )= आवारा;
plod (trudge)= कठिनाई से चलना;
meditation (deep thinking) = मनन;
struck (suddenly came to mind) = मन में विचार आना।

[Page 33] :
Existed (lived, remained) = जीवित रहना;
set bait (place food, etc to catch an animal) = चारा/फांस;
shelter(refuge) = शरण;
pork (pig meat)= सूअर का मांस;
tempted (lured)= प्रलोभित करना;
unwonted (not habitual) = आदत न होना;
cherished (held dear) = प्रिय;
pastime (means of entertainment) = मनोरंजन का साधन;
dreary (dull) = नीरस;
snare (trap) = जाल;
trudging (wandering) = आवारागर्दी;
sour (unpleasant) = अप्रिय;
porridge (oat meal) = दलिया;
carved off (cut)= काटा;
mjolis (a game of cards) = ताश का खेल;
prosperity (affluence) = समृद्धि;
crofter (who farms a piece of land) = छोटा किसान;
supported (sustained) = सहारा;
creamery (a small dairy)= छोटी डेयरी;
kronor (swedish currency) = स्वीडन की मुद्रा;
incredulous (unbelievable) = अविश्वसनीय;
bossy (domineering) = रौबीला;
pouch (small bag) = छोटी थैली;
nodding (shaking head) = सिर हिलाना।

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

[Page 34] :
Stuffed (packed tightly)= ठूसना;
in good season (cheerfully) = खुशी से;
peddler (travelling vendor)= फेरी वाला;
smashed (broke) = तोड़ा;
pane (window glass)= खिड़की का शीशा;
thrust (pushed) = डाले;
got hold (caught)=पकड़े;
smartness (cleverness)=चालाकी;
confusing(perplexing)= परेशान करने वाली;
fooled (deceived) = धोखा दिया;
bait(food to lure and catch animal)=फाँसने का सामान;
trunks(stems)=तने;
thickets(bushes)=झाड़ियाँ।

[Page 35]:
Descending (coming down) = नीचे आते हुए;
gloom (sadness) = उदासी;
despair (disappointment) = निराशा;
sank down (sat down) = बैठ गया;
staggered (walked unsteadily) = लड़खड़ाया;
summoned (gathered collected) = इकट्ठा किया;
smelter (one who melts ore to get metal from it) = धातु गलाने वाले;
forge (furnace) = भट्ठी;
barges (boats)= किश्तियाँ;
scow (flat bottomed boat)= चपटे तले वाली नाव;
dripping (thoroughly wet)= पुरी तरह से गीला;
groaned (moaned) =कराहना;
sifted (separated) = अलग;
pig iron (raw iron)=कच्चा लोहा;
anvil(an iron block on which a blacksmith hammers things) = निहाई;
glowing (shining) = चमकना;
stir (move a little) = कुछ हिलना;
bellows (device for producing a strong blast of air) = धौंकनी;
hovelled (put through shovels) = फावड़े से डालना;
clatter (loud noise) = जोर की आवाज;
whipped (sharp blowing or thrusting)= चाबुक मारना;
unusual(uncommon)=असाधारण;
vagabonds (wanderers) = आवारा;
sooty (covered with soot) = कालिख भरा।

[Page 36]:
Glanced (looked at)=देखा;
casually (carelessly)= लापरवाही से;
indifferently (without caring) = बिना परवाह किए;
intruder (one who is not invited) = घुसपैठिया;
ragged (shabbily clothed) = फटेहाल;
haughty (proud) = घमण्डी;
consent (agreement) = रजामन्दी;
tramp (wanderer) = आवारा;
ship out(shape out)= आकृति बनाना;
prominent (famous) = प्रसिद्ध;
ragamuffin (wearing rags) = फटेहाल;
eased(relaxed)=ढीला किया;
deigned(bothered) = तंग किया;
slouche(crouches)=दुबकना;
acquaintance (known, farniliar with) =परिचित, मित्र;
manor(farmhouse) = फार्महाउस;
comrade (friend) = साथी।

[Page 37]:
Alarmed (frightened) = भयभीत;
voluntarily (willingly) = इच्छापूर्वक;
apprentice (trainee) = नौसिखिया;
den (cave) = गुफा;
sneak away (go away unnoticed) = चुपके से चले जाना;
inconspicuously (without being noticed) = बिना नजर आए;
assumed (supposed) = कल्पना की;
embarrassed (feeling uneasy) = असुविधा महसूस करना;
abroad (in a foreign country) = विदेश में;
give in (surrender) = हार मान लेना;
persuasion (bringing round) = मनाना
valet (servant)= नौकर;
modest (gentle)= विनम्र;
glowed (shone )= चमका।

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[Page 38] :
Stretched (spread out)= फैला हुआ;
evidently (obviously)= प्रत्यक्ष रूप से;
abruptly (suddenly) = अचानक;
compassionately (sympathetically)= सहानुभूति से;
bother (worry)= चिन्ता;
astonished (surprised)= हैरान;
glance (look at) = देखना;
forebodings (predictions)= भविष्यवाणी;
probably (perhaps) = शायद।

[Page 39] :
Queer (strange) = अजीब;
fall away (go away) = चले जाना;
starched (stiffed) = सख्त;
puckered (wrinkled) =झुर्रियों वाला;
uncertain (not clear) = अस्पष्ट;
dissimulate(hide)= छिपाना;
splendour(grandeur)=शान;
sheriff (an officer for keeping law and order)= पुलिस अफसर;
struck (gave a blow)= प्रहार करना;
rind (peel) = छिला हुआ।

[Page 40]:
Christmassy (of Christmas)= क्रिसमस का;
wretch (unfortunate)=अभागा;
interceded (mediated) = बीच बचाव किया;
cross-examined (interrogated) = पूछताछ की;
mumbled (murmured) = बुड़बुड़ाया;
preach (sermonize)= उपदेश देना;
parson (priest) = पादरी;
regret (to repent) = पछताना।

[Page 41]:
Crazy (mad) पागल;
fare (festivity)=उत्सव का माहौल;
blinking (winking rapidly)=आँख झपकाना;
aroused (woken up)= जागृत हुआ;
intention (desire) = इच्छा;
boundless (endless)= अनन्त;
amazement(surprise) =हैरानी।

[Page 42] :
Dejectedly (sadly) = उदासी से;
done up (finished) = समाप्त;
contents (things, inside) = अन्दर की चीजें;
agged (rough) = खुरदरा।

The Rattrap Translation in Hindi

Once upon a time there was a man who went around selling small rattraps of wire. He made them himself at odd moments, from the material he got by begging in the stores or at the big farms. But even so, the business was not especially profitable, so he had to resort to both begging and petty thievery to keep body and soul together. Even so, his clothes were in rags, his cheeks were sunken, and hunger gleamed in his eyes.

No one can imagine how sad and monotonous life can appear to such a vagabond, who plods along the road, left to his own meditations. But one day this man had fallen into a line of thought which really seemed to him entertaining. He had naturally been thinking of his rattraps when suddenly he was struck by the idea that the whole world about him-the whole world with its lands and seas, its cities and villages-was nothing but a bit rattrap. It had never existed for any other purpose than to set baits for people. It offered riches and joys, shelter and food, heat and clothing, exactly as the rattrap offered cheese and pork, and as soon as anyone let himself be tempted to touch the bait, it closed in on him, and then everything came to an end.

(एक बार की बात है जब एक आदमी घूम-घूम कर तार से बनी छोटी-छोटी चूहेदानियाँ बेचा करता था। जो कुछ सामान उसे दुकानों और बड़े फार्मों पर माँगकर मिलता उससे वह स्वयं ही मुश्किल के समय उन्हें बनाया करता था। फिर भी यह धन्धा कोई विशेष फायदेमन्द नहीं था, और इसलिए भूखों मरने से बचने के लिए उसे भीख माँगने और छोटी-छोटी चोरी, दोनों का सहारा लेना पड़ता था। फिर भी उसके शरीर पर चिथड़े थे, उसके गाल पिचके हुए थे और उसकी आँखों में भूख चमकती थी।

कोई यह सोच नहीं सकता कि ऐसे आवारा व्यक्ति के लिए जीवन कितना उदास और नीरस होगा जो अपने विचारों में खोया सड़क पर चलता रहता हो। मगर एक दिन यह व्यक्ति एक ऐसे विचारों में खो गया जो उसे सचमुच बड़े मनोरंजक लगे। स्वाभाविक तौर पर वह अपने चूहों के पिंजरों के बारे में सोच रहा था, जब अचानक उसे यह ख्याल आया कि उसके चारों ओर का सारा संसारदेशों और सागरों, शहरों और गाँवों सहित-एक बड़ी चूहेदानी के अतिरिक्त कुछ नहीं है। मनुष्यों को दाना डालकर ललचाने के अतिरिक्त इसके अस्तित्व का कभी कोई अन्य उद्देश्य ही न था। इसमें धन और खुशियाँ हैं, आश्रय और भोजन है, गर्मी और वस्त्र हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे चूहेदानी में पनीर और सूअर का मांस होता है और जैसे ही कोई व्यक्ति स्वयं को दानों को छूने के प्रलोभन में आने देता है, पिंजरा उसके लिए बन्द हो जाता है और तब सब कुछ समाप्त हो जाता है।)

The world had, of course, never been very kind to him, so it gave him unwonted joy to think ill of it in this way. It became a cherished pastime of his, during many dreary ploddings, to think of people he knew who had let themselves be caught in the dangerous snare, and of others who were still circling around the bait.

(संसार निःसन्देह उस पर कभी अधिक मेहरबान नहीं रहा था। इसलिए इसके बारे में बुरा सोचने में उसे असाधारण आनन्द आता था। अपनी अनेक पैदल यात्राओं में समय बिताने के लिए यह उसका प्रिय काम हो गया कि अपने परिचित व्यक्तियों में उनके बारे में सोचे जिन्होंने स्वयं को इस खतरनाक पिंजरे में फंसने दिया था और उन अन्य व्यक्तियों के बारे में जो अभी भी दाने (ललचाने वाली वस्तु) के चारों तरफ घूम रहे थे।)

One dark evening as he was trudging along the road he caught sight of a little gray cottage by the roadside, and he knocked on the door to ask shelter for the night. Nor was he refused. Instead of the sour faces which ordinarily met him, the owner, who was an old man without wife or child, was happy to get someone to talk to in his loneliness. Immediately he put the porridge pot on the fire and gave him supper; then he carved off such a big slice from his tobacco roll that it was enough both for the stranger’s pipe and his own. Finally he got out an old pack of cards and played ‘mjölis’ with his guest until bedtime.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

(एक अन्धेरी शाम जब वह सड़क पर चला जा रहा था, तब उसने सड़क के किनारे बने सलेटी रंग के एक छोटे से मकान को देखा और रात के लिए आश्रय माँगने के लिए उसने वह दरवाजा खटखटाया। उसे इनकार भी नहीं किया गया। आमतौर पर जो रूखे चेहरे उसे मिला करते थे उनके स्थान पर वह बिना पत्नी और बच्चे वाला बूढ़ा मालिक अपने अकेलेपन में बात करने के लिए किसी को पाकर खुश हुआ। उसने तुरन्त दलिए के बर्तन को आग पर चढ़ा दिया और उसे रात्रि का भोजन दिया और फिर उसने अपनी तम्बाकू की रोल से इतना बड़ा टुकड़ा काटा जो उसके और अजनबी दोनों की चिलम के लिए काफी था। अन्त में उसने ताश की एक पुरानी गड्डी निकाली और सोने के समय तक अपने मेहमान के साथ ताश खेलता रहा।)

The old man was just as generous with his confidences as with his porridge and tobacco. The guest was informed at once that in his days of prosperity his host had been a crofter at Ramsjö Ironworks and had worked on the land. Now that he was no longer able to do day labour, it was his cow which supported him. Yes, that bossy was extraordinary. She could give milk for the creamery every day, and last month he had received all of thirty kronor in payment.

(वह बूढ़ा व्यक्ति अपने मन की बात बताने में किसी पर भरोसा करने में उतना ही उदार था जितना कि दलिया व तम्बाकू देने में। उसने अपने अतिथि को तुरन्त बता दिया कि वह अपने अच्छे दिनों में रेमस्जो लौह मिल में काम करता था और खेती भी करता था। अब वह मजदूरी नहीं कर सकता, तो उसका गाय से गुजारा चलता है। हाँ, वह बहुत असाधारण है। वह प्रतिदिन डेरी के लिए दूध देती है और पिछले मास उसे भुगतान में तीस क्रॉनर मिले थे।)

The stranger must have seemed incredulous, for the old man got up and went to the window, took down a leather pouch which hung on a nail in the very window frame, and picked out three wrinkled ten-kronor bills. These he held up before the eyes of his guest, nodding knowingly, and then stuffed them back into the pouch.

(ऐसा लगा होगा कि अजनबी को विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि वह खड़ा हुआ और खिड़की के पास गया, एक चमड़े की थैली उतारी जो इस खिड़की में लगी एक कील से लटकी हुई थी और इसमें से दस क्रॉनर के तीन मुड़े हुए नोट निकाले। ये तीनों उसने मेहमान की आँखों के सामने रखे, जान-बूझकर सिर हिलाते हुए और वापिस उनको थैली में रख दिया।)

The next day both men got up in good season. The crofter was in a hurry to milk his cow, and the other man probably thought he should not stay in bed when the head of the house had gotten up. They left the cottage at the same time. The crofter locked the door and put the key in his pocket. The man with the rattraps said good bye and thank you, and thereupon each went his own way.

(अगले दिन दोनों व्यक्ति प्रसन्नता से उठे। किसान गाय का दूध निकालने की जल्दी में था, और दूसरे आदमी ने शायद सोचा कि जब घर का मुखिया उठ गया है तो उसे लेटे नहीं रहना चाहिए। दोनों ने ही घर को एक-साथ छोड़ा। किसान ने ताला बन्द किया और चाबी अपनी जेब में डाली। चूहेदानियों वाले आदमी ने उसको अलविदा कहा और धन्यवाद किया, और इसके बाद दोनों अपने-अपने रास्ते चल दिए।)

But half an hour later the rattrap peddler stood again before the door. He did not try to get in, however. He only went up to the window, smashed a pane, stuck in his hand, and got hold of the pouch with the thirty kronor. He took the money and thrust it into his own pocket. Then he hung the leather pouch very carefully back in its place and went away.

(मगर आधे घण्टे बाद चूहेदानी बेचने वाला आदमी फिर से दरवाजे के सामने खड़ा था। उसने अन्दर जाने की कोशिश नहीं की। वह केवल खिड़की तक गया, एक शीशे को तोड़ा, अपने एक हाथ को अन्दर डाला और तीस क्रॉनर वाली थैली को अपने हाथ में पकड़ा। उसने पैसे निकाले और इन्हें अपनी जेब में रख लिया। फिर उसने चमड़े की थैली को वापिस बड़ी सावधानी से इसकी जगह पर रख दिया और चला गया।)

As he walked along with the money in his pocket he felt quite pleased with his smartness. He realised, of course, that at first he dared not continue on the public highway, but must turn off the road, into the woods. During the first hours this caused him no difficulty. Later in the day it became worse, for it was a big and confusing forest which he had gotten into.

He tried, to be sure, to walk in a definite direction, but the paths twisted back and forth so strangely! He walked and walked without coming to the end of the wood, and finally he realised that he had only been walking around in the same part of the forest. All at once he recalled his thoughts about the world and the rattrap. Now his own turn had come. He had let himself be fooled by a bait and had been caught. The whole forest, with its trunks and branches, its thickets and fallen logs, closed in upon him like an impenetrable prison from which he could never escape.

(अपनी जेब में पैसे डालकर जब वह जा रहा था, उसे अपनी चालाकी पर बड़ी खुशी हुई। निःसन्देह उसने यह अनुभव भी किया कि अब वह सामान्य सड़क पर चलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था मगर उसे सड़क से मुड़कर जंगल में चलना चाहिए था। पहले कुछ घण्टों में उसे कोई कठिनाई नहीं हुई। बाद में दिन के अन्तिम भाग में हालात बिगड़ गए; क्योंकि जिस जंगल में वह प्रवेश कर चुका था वह बड़ा और चक्कर में डालने वाला था।

उसने प्रयत्न किया कि वह निश्चयपूर्वक एक निश्चित दिशा में चले परन्तु रास्ते ऐसे विचित्र ढंग से आगे-पीछे मुड़ जाते थे। वह चलता ही गया और जंगल का कोई अन्त ही नहीं होता था और अन्ततः उसे एहसास हुआ कि वह जंगल के एक ही भाग में चक्कर काट रहा था। फौरन उसे अपने संसार और चूहेदानी के बारे में किए गए विचारों का ध्यान आया। अब उसकी बारी आ गई थी। उसने अपने-आपको दाने के लालच में मूर्ख बनने दिया था और पकड़ा गया था। सारे जंगल ने अपने वृक्षों और शाखाओं, तनों और गिरे हुए लकड़ी के लट्ठों से उसे घेर लिया था मानो कि वह एक अभेद्य जेल हो जिससे अब वह निकल नहीं सकता था।)

It was late in December. Darkness was already descending over the forest. This increased the danger, and increased also his gloom and despair. Finally he saw no way out, and he sank down on the ground, tired to death, thinking that his last moment had come. But just as he laid his head on the ground, he heard a sound, a hard regular thumping. There was no doubt as to what that was. He raised himself. “Those are the hammer strokes from an iron mill”, he thought. “There must be people near by”. He summoned all his strength, got up, and staggered in the direction of the sound.

(दिसम्बर के अन्तिम दिन थे। अन्धकार पहले ही जंगल में आने लगा था। इस बात ने खतरे को और बढ़ा दिया, और उसकी उदासी और निराशा को भी। अन्त में बाहर निकलने का कोई रास्ता उसे नहीं नजर नहीं आया और थकान के कारण मुर्दा-सा वह जमीन पर ही बैठ गया। पर जैसे ही उसने अपना सिर जमीन पर रखा, उसे एक आवाज सुनाई दी-एक कठोर लगातार ठक-ठक की आवाज। इसमें कोई शक नहीं था कि वह क्या थी। वह उठ खड़ा हुआ। “यह लोहे के कारखाने से आती हुई हथौड़े के चोटों की आवाज है”, उसने सोचा। “लोग पास ही होने चाहिएँ” उसने अपनी सारी शक्ति एकत्रित की, खड़ा हुआ और लड़खड़ाता हुआ आवाज की दिशा में चल पड़ा।)

The Ramsjö Ironworks, which are now closed down, were, not so long ago, a large plant, with smelter, rolling mill, and forge. In the summertime, long lines of heavily loaded barges and scows slid down the canal, which led to a large inland lake, and in the wintertime, the roads near the mill were black from all the coal dust which sifted down from the big charcoal crates.

(रमस्जो लौह मिल, जो अब बन्द हो चुका है कुछ समय पहले तक एक बड़ा कारखाना था जिसमें पिघलाने का यन्त्र, रोलिंग मिल और भट्ठी थी। गर्मी के दिनों में पूरे भरे छोटे जहाज और नौकाएँ नहर में उतारी जाती थीं जो एक बड़ी झील में जाती थीं और सर्दी के दिनों में मिल के पास की सड़कें उस कोयले से काली रहती थीं जो चारकोल की बड़ी-बड़ी क्रेटों से झरता रहता था।)

During one of the long dark evenings just before Christmas, the master smith and his helper sat in the dark forge near the furnace waiting for the pig iron, which had been put in the fire, to be ready to put on the anvil. Every now and then one of them got up to stir the glowing mass with a long iron bar, returning in a few moments, dripping with perspiration, though, as was the custom, he wore nothing but a long shirt and a pair of wooden shoes.

(क्रिसमस के पहले की एक लम्बी अन्धेरी शाम को मुख्य लोहार और उसके सहयोगी अन्धेरी भट्ठी में चूल्हे के पास बैठे थे और प्रतीक्षा कर रहे थे कि भट्ठी पर चढ़ा हुआ कच्चा लोहा इस लायक हो जाए कि उसे निहाई पर रखा जा सके। थोड़ी देर में उनमें से एक व्यक्ति उठता, एक लम्बी लोहे की छड़ी से उस लोहे को चलाता और पसीने से तर होकर कुछ क्षणों में वापस आ जाता, यद्यपि परम्परा के अनुसार वह व्यक्ति एक लम्बी कमीज और काठ के जूतों के अतिरिक्त कुछ नहीं पहनता था।)

All the time there were many sounds to be heard in the forge. The big bellows groaned and the burning coal cracked. The fire boy shovelled charcoal into the maw of the furnace with a great deal of clatter. Outside roared the waterfall, and a sharp north wind whipped the rain against the brick-tiled roof. It was probably on account of all this noise that the blacksmith did not notice that a man had opened the gate and entered the forge, until he stood close up to the furnace.

(हर समय भट्ठी में तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती थीं। बड़ी-बड़ी धौंकनियाँ कराहने की आवाज करती और जलता हुआ कोयला चटकता रहता। आग पर काम करने वाला लड़का फावड़े से उठाकर कोयला भट्ठी में डालता था और जोर की आवाज होती थी। बाहर झरने की तेज आवाज होती थी और तेज उत्तरी हवा ईंटों, टाइलों की बनी छत पर बरसात को कोड़े की तरह पटकती थी। शायद इस सारे शोर के कारण लोहार ने यह तब तक नहीं देखा कि कोई आदमी गेट खोलकर भट्ठी के अन्दर आ गया है जब तक कि वह चूल्हे के बिल्कुल पास ही नहीं आ गया।)

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Surely it was nothing unusual for poor vagabonds without any better shelter for the night to be attracted to the forge by the glow of light which escaped through the sooty panes, and to come in to warm themselves in fornt of the fire. The blacksmiths glanced only casually and indifferently at the intruder. He looked the way people of his type usually did, with a long beard, dirty, ragged, and with a bunch of rattraps dangling on his chest.
He asked permission to stay, and the master blacksmith nodded a haughty consent without honouring him with a single word. The tramp did not say anything, either. He had not come there to talk but only to warm himself and sleep.

(अवश्य ही, रात बिताने के लिए आश्रयहीन रहने वाले घुमक्कड़ों का रोशनी की चमक के पास भट्ठी की तरफ आकर्षित होना, जो रोशनी काली खिड़कियों में से आती थी, और उनका अपने-आपको गर्म करने के लिए आग के सामने आना कोई असामान्य बात नहीं थी। लोहारों ने बाहर से आने वाले आदमी की तरफ सहजता और उदासीनता से देखा। वह इस तरह दिखता था जैसे उसके तरह के लोग प्रायः दिखते थे, लम्बी, धूल भरी, खुरदरी दाढ़ी और चूहेदानियों का एक गुच्छा उसकी छाती पर लटकता हुआ। उसने वहाँ रुकने की आज्ञा माँगी, और मुख्य लोहार ने सिर हिलाकर, उसको एक शब्द भी सम्मान का कहे बिना घमण्ड से भरी हुई सहमति दे दी।
उस घुमक्कड़ ने भी कुछ नहीं कहा। वह वहाँ बातें करने के लिए नहीं, बल्कि अपने-आपको गर्म करने के लिए और सोने के लिए आया था।)

In those days the Ramsjö iron mill was owned by a very prominent ironmaster, whose greatest ambition was to ship out good iron to the market. He watched both night and day to see that the work was done as well as possible, and at this very moment he came into the forge on one of his nightly rounds of inspection.

(उन दिनों रेमस्जो लौह मिल का मालिक एक प्रसिद्ध आयरन मास्टर था जिसका महानतम उद्देश्य अच्छा लोहा जहाजों में भरकर बाजार में भेजना था। वह रात-दिन देखता था कि काम जितना सम्भव हो सके उतना अच्छी तरह से हो, और ठीक उसी समय वह भट्ठी में रात के समय का निरीक्षण करने आया था।)

Naturally, the first thing he saw was the tall ragamuffin who had eased his way so close to the furnace that steam rose from his wet rags. The ironmaster did not follow the example of the blacksmiths, who had hardly deigned to look at the stranger. He walked close up to him, looked him over very carefully, then tore off his slouch hat to get a better view of his face. “But of course, it is you, Nils Olof!” he said. “How you do look !”

(निःसन्देह जो चीज उसने सबसे पहले देखी वह था वह चिथड़े पहने हुए लम्बा आदमी जो आराम पाने के लिए भट्ठी के इतना पास आ गया था कि उसके चिथड़ों से भाप उठ रही थी। आयरन मास्टर ने लोहारों के उदाहरण का अनुसरण नहीं किया, जिन्होंने अजनबी की तरफ देखा भी नहीं था। वह उसके करीब आया, उसकी तरफ बड़े ध्यान से देखा, फिर उसके चेहरे को अच्छी तरह देखने के लिए अपनी तिरछी टोपी को उतारा। “परन्तु अवश्य तुम हो, नील्स ऑलोफ!” उसने कहा। “तुम कैसे दिखते हो!”)

The man with the rattraps had never before seen the ironmaster at Ramsjö and did not even know what his name was. But it occurred to him that if the fine gentleman thought he was an old acquaintance, he might perhaps throw him a couple of kronor. Therefore he did not want to undeceive him all at once. “Yes, God knows things have gone downhill with me”, he said.

(चूहेदानी वाले व्यक्ति ने रेमस्जो के आयरन मास्टर को पहले कभी नहीं देखा था और यह भी नहीं जानता था कि उसका नाम क्या है। परन्तु उसे लगा कि अगर वह श्रेष्ठ भद्रपुरुष उसे कोई पुराना परिचित समझता है तो वह शायद उसको दो क्रॉनर दे दे। अतः वह तुरन्त ही उसका धोखा दूर करना नहीं चाहता था। “हाँ, भगवान् जानता है, मेरे साथ बुरा हुआ है,” वह बोला।)

“You should not have resigned from the regiment”, said the ironmaster. “That was the mistake. If only I had still been in the service at the time, it never would have happened. Well, now of course you will come home with me.” To go along up to the manor house and be received by the owner like an old regimental corade-that, however, did not please the tramp.

(“तुम्हें फौज से इस्तीफा नहीं देना चाहिए था,” आयरन मास्टर बोला। “वह गलती थी। अगर मैं उस समय तक फौज में होता, तो ऐसा कभी न होता। खैर, अब निःसन्देह, तुम मेरे साथ घर चलोगे।”
बड़े फार्म हाउस पर जाना और मालिक के द्वारा एक पुराने फौजी साथी की तरह स्वागत किया जाना इस बात से तो वह घुमक्कड़ खुश नहीं हुआ।)

“No, I couldn’t think of it !” he said, looking quite alarmed. He thought of the thirty kronor. To go up to the manor house would be like throwing himself voluntarily into the lion’s den. He only wanted a chance to sleep here in the forge and then sneak away as inconspicuously as possible. The ironmaster assumed that he felt embarrassed because of his miserable clothing.

(“नहीं, मैं तो इस बारे में सोच भी नहीं सकता।” वह एकदम डरकर बोला।  उसने तीस क्रॉनर के बारे में सोचा। फार्म हाउस तक जाने का अर्थ था कि जान-बूझकर शेर की मांद में जाना। वह तो सिर्फ लोहे की मिल मे सोना चाहता था और तब जहाँ तक सम्भव हो बिना किसी के पता लगे चुपचाप खिसक जाना। आयरन मास्टर को लगा कि वह अपने खराब कपड़ों के कारण शर्मिंदगी अनुभव कर रहा है।)

“Please don’t think that I have such a fine home that you cannot show yourself there”. He said… “Elizabeth is dead, as you may already have heard. My boys are abroad, and there is no one at home except my oldest daughter and myself. We were just saying that it was too bad we didn’t have any company for Christmas. Now come along with me and help us make the Christmas food disappear a little faster.”

(“कृपया आप ऐसा न सोचें कि मेरा घर इतना बढ़िया है कि आप उसमें नहीं जा सकते।” वह बोला, “एलिजाबेथ मर चुकी है, आपको पहले यह पता चल चुका होगा। मेरे लड़के विदेश में हैं। और घर पर मेरी बड़ी बेटी और मेरे अतिरिक्त कोई नहीं है। हम अभी बात कर रहे थे कि कितनी बुरी बात है कि क्रिसमस के अवसर पर हमारे पास कोई साथी नहीं है। अब मेरे साथ चलो और क्रिसमस का भोजन थोड़ा शीघ्र समाप्त करने में हमारी सहायता करो।”)

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But the stranger said no, and no, and again no, and the ironmaster saw that he must give in. “It looks as though Captain Von Stahle preferred to stay with you tonight, Stjernström”, he said to the master blacksmith and turned on his heel. But he laughed to himself as he went away, and the blacksmith, who knew him, understood very well that he had not said his last word. It was not more than half an hour before they heard the sound of carriage wheels outside the forge, and a new guest came in, but this time it was not the ironmaster. He had sent his daughter, apparently hoping that she would have better powers of persuasion than he himself.

(परन्तु अजनबी ने बार-बार ना कहा, और आयरन मास्टर को लगा उसे हार माननी पड़ेगी। “ऐसा लगता है मानो कप्तान वॉन स्टाल आज रात तुम्हारे साथ रुकना चाहेगा, स्टेर्नस्टोर्म”, उसने मुख्य लोहार को कहा और मुड़ा। परन्तु वह जाते हुए खुद ही अपने-आप में हँसा, और लोहार, जो उसको जानता था, भली प्रकार समझ गया कि उसने अपने अन्तिम शब्द नहीं कहे थे। आधा घण्टे से अधिक नहीं बीता होगा कि उन्हें भट्ठी के बाहर गाड़ी के पहियों की आवाज सुनाई दी और एक नया मेहमान अन्दर आया, पर इस बार आयरन मास्टर नहीं था। उसने अपनी बेटी को भेजा था, लगता था कि उसे उम्मीद थी कि उसकी अपेक्षा उस (बेटी) में मनाने की शक्ति अधिक है।)

She entered, followed by a valet, carrying on his arm a big fur coat. She was not at all pretty but seemed modest and quite shy. In the forge, everything was just as it had been earlier in the evening. The master blacksmith and his apprentice still sat on their bench, and iron and charcoal still glowed in the furnace. The stranger had stretched himself out on the floor and lay with a piece of pig iron under his head and his hat pulled down over his eyes. As soon as the young girl caught sight of him, she went up and lifted his hat. The man was evidently used to sleeping with one eye open. He jumped up abruptly and seemed to be quite frightened.

(वह आई, उसके पीछे-पीछे एक बड़ा फर वाला कोट हाथ में लिए एक नौकर था। वह सुन्दर बिल्कुल न थी पर वह विनम्र और काफी शर्मीली लगती थी। लौह मिल में हर वस्तु वैसी ही थी जैसी कि शाम के प्रारम्भ में थी। मुख्य लोहार और उसका सहायक अभी भी अपने बैंच पर बैठे थे और लोहा और कोयला चूल्हे में अभी भी दहक रहे थे। अजनबी फर्श पर लेट गया था और कच्चे लोहे का एक टुकड़ा अपने सिर के नीचे लगा लिया और उसने अपना टोप अपनी आँखों पर डाल लिया था। युवा लड़की की जैसे ही उस पर नजर पड़ी, वह उसके पास गई और उसका टोप उठाया। साफ तौर पर उस आदमी को खुली आँखों से सोने की आदत थी। वह एकदम उछल पड़ा और लगता था कि काफी डर गया था।)

“My name is Edla Willmansson,” said the young girl. “My father came home and said that you wanted to sleep here in the forge tonight and then I asked permission to come and bring you home to us. I am so sorry, Captain, that you are having such a hard time.”
(“मेरा नाम एडला विलमनसन है,” युवा लड़की ने कहा। “मेरे पिता ने घर आकर बताया कि आप आज रात यहाँ लौह मिल में सोना चाहते हो और तब मैंने यहाँ आने की और आपको अपने घर ले जाने की आज्ञा माँगी। कैप्टन, मुझे बड़ा दुःख है कि आप इतनी मुश्किल हालत में हो।”)

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She looked at him compassionately, with her heavy eyes, and then she noticed that the man was afraid. “Either he has stolen something or else he has escaped from, jail”, she thought, and added quickly, “You may be sure, Captain, that you will be allowed to leave us just as freely as you came. Only please stay with us over Christmas Eve.”
(उसने उसकी भारी आँखों से उसको करुणापूर्वक देखा, और तब उसने देखा कि वह आदमी डर गया है। “या तो उसने कुछ चुराया है या वह जेल से निकलकर भागा है,” उसने सोचा और जल्दी ही कहा, “आप निश्चित हो सकते हैं, कप्तान, कि जितनी आसानी से आप हमारे पास आए हैं उतनी आसानी से ही आपको जाने दिया जाएगा। बस हमारे साथ क्रिसमस की पूर्व संध्या पर ठहरें।”)

She said this in such a friendly manner that the rattrap peddler must have felt confident in her. “It would never have occurred to me that you would bother with me yourself, miss,” he said. “I will come at once.” He accepted the fur coat, which the valet handed him with a deep bow, threw it over his rags, and followed the young lady out to the carriage, without granting the astonished blacksmiths so much as a glance.

(उसने यह बात इतनी मित्रतापूर्वक कही कि चूहेदानी बेचने वाले को उसमें विश्वास महसूस हुआ। “मुझे कभी नहीं लगा कि तुम मेरे लिए अपने-आपको तकलीफ दोगी, मिस,” उसने कहा। “मैं तुरन्त तुम्हारे साथ चलूँगा।”
उसने फर कोट, जो नौकर ने उसको दिया उसे झुककर स्वीकार किया, इसको अपने फटे कपड़ों पर डाला और हैरान लोहारों पर बिना दृष्टि डाले युवा लड़की के पीछे बाहर खड़ी-खड़ी गाड़ी तक गया।)

But while he was riding up to the manor house he had evil forebodings. “Why the devil did I take that fellow’s money?” he thought. “Now I am sitting in the trap and will never get out of it.” The next day was Christmas Eve, and when the ironmaster came into the dining room for breakfast he probably thought with satisfaction of his old regimental comrade whom he had run across so unexpectedly.

(परन्तु जब वह फार्म हाउस जा रहा था तो उसे कुछ बुरा होने का एहसास हो रहा था। “मैंने उस आदमी के पैसे क्यों चुराए?” उसने सोचा। “अब मैं जाल में फंस गया हूँ और कभी भी इससे बाहर नहीं आ सकूँगा।” अगले दिन क्रिसमस था और जब आयरन मास्टर डाइनिंग रूम में नाश्ते के लिए आया तो शायद उसने सन्तुष्टि के साथ अपने पुराने रेजिमेंट के साथी के बारे में सोचा जिसको वह इतना अचानक मिल गया था।)
“First of all we must see to it that he gets a little flesh on his bones,” he said to his daughter, who was busy at the table. “And then we must see that he gets something else to do than to run around the country selling rattraps.” “It is queer that things have gone downhill with him as badly as that,” said the daughter.” “Last night I did not think there was anything about him to show that he had once been an educated man.”

(“सबसे पहले हमें यह देखना चाहिए कि उसकी हड्डियों पर थोड़ा माँस आए”, उसने अपनी लड़की से कहा, जो टेबल पर व्यस्त थी। “और तब हमें यह देखना होगा कि वह पास घूम-घूम कर चूहेदानी बेचने की बजाय करने के लिए कोई अन्य काम करे।” “यह अजीब है कि उनके साथ बुरा हुआ”, लड़की ने कहा। “कल रात को मैं नहीं सोचती थी कि उसके पास यह दिखाने के लिए कुछ था कि वह कभी भी एक शिक्षित आदमी रहा है।”)

“You must have patience, my little girl,” said the father. “As soon as he gets clean and dressed up, you will see something different. Last night he was naturally embarrassed. The tramp manners will fall away from him with the tramp clothes.”

Just as he said this the door opened and the stranger entered. Yes, now he was truly clean and well dressed. The valet had bathed him, cut his hair, and shaved him. Moreover he was dressed in a good-looking suit of clothes which belonged to the ironmaster. He wore a white shirt and a starched collar and white shoes.

(“मेरी प्रिय बेटी, तुम्हें धैर्य रखना चाहिए,” पिता ने कहा । “जैसे ही साफ-सुथरा होगा और ढंग से कपड़े पहनेगा, तुम्हें कुछ अलग ही दिखाई देगा। पिछली रात वह, स्वाभाविक था कि शर्मिंदा था। आवारा कपड़ों के साथ ही उसके आवारा तौर-तरीके भी चले जाएँगे।” जैसे ही उसने यह कहा कि दरवाजा खुला और अजनबी अन्दर आया। हाँ, अब वह वाकई साफ-सुथरा था और अच्छे कपड़े पहने था। नौकर ने उसे नहलाया था, उसके बाल काटे थे और शेव की थी। इसके अतिरिक्त वह आयरन मास्टर का सुन्दर सूट पहने था। वह एक सफेद कमीज और कलफ लगा कालर तथा सफेद जूते पहने था।)

But although his guest was now so well groomed, the ironmaster did not seem pleased. He looked at him with puckered brow, and it was easy to understand that when he had seen the strange fellow in the uncertain reflection from the furnace he might have made a mistake, but that now, when he stood there in broad daylight, it was impossible to mistake him for an old acquaintance. “What does this mean?” he thundered. The stranger made no attempt to dissimulate. He saw at once that the splendour had come to an end.

(लेकिन यद्यपि यह मेहमान अब सजा संवरा था, आयरन मास्टर खुश नजर नहीं आया। उसने माथे पर त्योंरी डालकर उसे देखा, और यह समझना आसान था कि जब उसने अजनबी को भट्ठी की हल्की रोशनी में देखा था, शायद उससे गलती हो गई थी, परन्तु अब जबकि दिन के खुले प्रकाश में वह उसके सामने खड़ा था, उसे, भ्रमित होकर कोई पुराना मित्र समझना असम्भव था। “इसका क्या अभिप्राय है?” वह दहाड़ा। “अजनबी ने कुछ और दिखाने की कोशिश करने का कोई प्रयास नहीं किया। उसने तुरन्त ही भाँप लिया कि शानो-शौकत का अन्त आ गया है।)

“It is not my fault, sir,” he said. “I never pretended to be anything but a poor trader, and I pleaded and begged to be allowed to stay in the forge. But no harm has been done. At worst I can put on my rags again and go away.” “Well,” said the ironmaster, hesitating a little, “it was not quite honest, either. You must admit that, and I should not be surprised it the sheriff would like to have something to say in the matter.”

(“श्रीमान, यह मेरी गलती नहीं है,” वह बोला, “मैंने कभी भी एक गरीब फेरी वाला होने के अतिरिक्त कोई और दिखावा नहीं किया, और मैंने तर्क दिया और प्रार्थना की कि मुझे लौह मिल पर ही रहने दिया जाए। पर कोई हानि नहीं हुई है। मैं फिर से अपने चिथड़े पहनकर जा सकता हूँ।” “खैर,” आयरन मास्टर कुछ झिझक के साथ बोला, “पर यह बात पूरी ईमानदारी वाली नहीं थी। यह बात तुम्हें माननी होगी, और मुझे कोई हैरानी नहीं होगी अगर शेरिफ इस विषय में कुछ कहना चाहें।”)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

The tramp took a step forward and struck the table with his fist. “Now I am going to tell you, Mr. Ironmaster, how things are,” he said. “This whole world is nothing but a big rattarp. All the good things that are offered to you are nothing but cheese rinds and bits of pork, set out to drag a poor fellow into trouble. And if the sheriff comes now and locks me up for this, then you, Mr Ironmaster, must remember that a day may come when you yourself may want to get a big piece of pork, and then you will get caught in the trap.” The ironmaster began to laugh.

(उस आवारा व्यक्ति ने एक कदम आगे बढ़ाया और मेज पर मुक्का मारा। “अब मैं आपको बताता हूँ, श्री आयरन मास्टर, कि क्या बात है,” वह बोला । “यह सारा संसार एक चूहेदानी के अतिरिक्त कुछ नहीं है। आपके सामने जो भी अच्छी वस्तुएँ प्रस्तुत होती हैं वे पनीर के छिलके और सूअर का माँस के टुकड़ें के अलावा कुछ नहीं है जिन्हें किसी लाचार व्यक्ति को मुसीबत में खींचने के लिए लगाया गया है। और अब अगर शेरिफ आता है और मुझे इस बात के लिए कैद कर देता है तो आयरन मास्टर आप इतना अवश्य याद रखें कि ऐसा दिन भी आ सकता है कि जब आप खुद पोर्क का कोई बड़ा टुकड़ा पाना चाहों और तब आप जाल में फँस जाओ।”
आयरन मास्टर हँसने लगा।)

“That was not so badly said, my good fellow. Perhaps we should let the sheriff alone on Christmas Eve. But now get out of here as fast as you can.”
But just as the man was opening the door, the daughter said, “I think he ought to stay with us today. I don’t want him to go.” And with that she went and closed the door.

“What in the world are you doing?” said the father. The daughter stood there quite embarrassed and hardly knew what to answer. That morning she had felt so happy when she thought now homelike and Christmassy she was going to make things for the poor hungry wretch. She could not get away from the idea all at once, and that was why she had interceded for the vagabond.

(“भले व्यक्ति, यह बात कोई बुरी तरह से नहीं कही गई। शायद क्रिसमस की पूर्व-संध्या पर हम शेरिफ को रहने ही दें। लेकिन अब जितनी जल्दी हो सके यहाँ से चले जाओ।” लेकिन जब वह आदमी दरवाजा खोल रहा था, बेटी बोली, “मेरे ख्याल से आज उसे हमारे साथ रहना चाहिए। मैं नहीं चाहती कि वह जाए।” और इसके साथ ही उसने दरवाजा बन्द कर दिया।
“तुम यह भला क्या कर रही हो?” पिता ने कहा।

पुत्री बड़ी शर्मिंदा होकर वहाँ खड़ी रही और उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या उत्तर दे। उस प्रातः वह बड़ी खुश यह सोचकर हो रही थी कि वह गरीब भूखे अभागे व्यक्ति के लिए कैसी घर जैसी और क्रिसमस जैसी व्यवस्था करने जा रही थी। वह इस विचार को एकदम नहीं त्याग सकती थी और यही कारण था कि उसने उस आवारा का पक्ष लिया।)

“I am thinking of this stranger here,” said the young girl. “He walks and walks the whole year long, and there is probably not a single place in the whole country where he is welcome and can feel at home. Wherever he turns he is chased away. Always he is afraid of being arrested and cross-examined. I should like to have him enjoy a day of peace with us here-just one in the whole year.”

(“मैं इस अजनबी के बारे में सोच रही हूँ,” युवा लड़की ने कहा। “सारे साल यह चलता ही रहता है और शायद पूरे देश में कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ वह चैन से रह सके। जिधर भी वह जाता है, उसे भगा दिया जाता है। उसे सदा गिरफ्तार होने और सवाल पूछे जाने का डर सताता रहता है। मैं चाहूँगी कि वह यहाँ हमारे साथ एक दिन शान्ति का गुजार ले-पूरे साल में केवल एक दिन।”)

The ironmaster mumbled something in his beard. He could not bring himself to oppose her. “It was all a mistake, of course,” she continued. “But anyway I don’t think we ought to chase away a human being whom we have asked to come here, and to whom we have promised Christmas cheer.” “You do preach worse than a parson,” said the ironmaster. “I only hope you won’t have to regret this.”

(आयरन मास्टर धीरे से कुछ बड़बड़ाया। वह उसका विरोध नहीं कर सका। “माना कि यह सब एक गलती थी,” वह बोलती गई। “पर फिर भी मैं नहीं सोचती कि हमें ऐसे एक आदमी को भगा देना चाहिए जिससे हमने यहाँ आने के लिए कहा और जिसे हमने क्रिसमस की खुशी देने का वायदा किया।” “तुम तो पादरी से भी अधिक बुरा उपदेश देती हो,” आयरन मास्टर बोला। “मैं केवल यह आशा कर सकता हूँ कि तुम्हें इस बात के लिए पछताना न पड़े।”)

The young girl took the stranger by the hand and led him up to the table. “Now sit down and eat,” she said, for she could see that her father had given in. The man with the rattraps said not a word; he only sat down and helped himself to the food. Time after time he looked at the young girl who had interceded for him. Why had she done it? What could the crazy idea be?

(युवा लड़की ने अजनबी का हाथ पकड़ा और उसे मेज तक ले गई। “अब बैठ जाओ और खाओ,” वह बोली, क्योंकि वह देख सकती थी कि उसके पिता ने हार मान ली थी।
चूहेदानी वाला व्यक्ति कुछ नहीं बोला, वह बोला, वह केवल बैठ गया और खाना खाता रहा। समय-समय पर वह उस युवा लड़की को देख लेता था जिसने उसका पक्ष लिया था। उसने ऐसा क्यों किया था ? इसके पीछे क्या पागलपन भरा विचार हो सकता था ?)

After that, Christmas Eve at Ramsjö passed just as it always had. The stranger did not cause any trouble because he did nothing but sleep. The whole forenoon he lay on the sofa in one of the guest rooms and slept at one stretch. At noon they woke him up so that he could have his share of the good Christmas fare, but after that he slept again. It seemed as though for many years he had not been able to sleep as quietly and safely as here at Ramsjo.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

(इसके बाद क्रिसमस की पूर्व-संध्या रेमस्जो में वैसे ही गुजरी जैसी यह सदा गुजरा करती थी। अजनबी किसी परेशानी का कारण नहीं बना क्योंकि उसने सोने के अतिरिक्त कुछ किया ही नहीं। दोपहर बाद वह एक गेस्ट रूम के सोफे पर पड़ा लगातार सोता रहा। दोपहर में उन्होंने उसे क्रिसमस के अच्छे भोजन में अपना हिस्सा लेने के लिए जगाया, पर उसके बाद वह फिर सो गया। ऐसा लगता था कि बहुत वर्षों से वह इतनी शान्ति और सुरक्षा से नहीं सोया था जैसी कि यहाँ रेमस्जो में उसे मिली थी।)

In the evening, when the Christmas tree was lighted, they woke him up again, and he stood for a while in the drawing room, blinking as though the candlelight hurt him, but after that he disappeared again. Two hours later he was aroused once more. He then had to go down into the dining room and eat the Christmas fish and porridge.

(शाम को जब क्रिसमस ट्री को जलाया गया तो उन्होंने उसको दुबारा जगाया, और वह थोड़ी देर तक ड्राईंग रूम में इस तरह पलक झपकता हुआ खड़ा रहा मानो मोमबत्ती की रोशनी उसे चुभ रही हो, परन्तु इसके बाद वह दुबारा सोने चला गया। दो घण्टे बाद उसे एक बार फिर जगाया गया। इस बार उसे नीचे डाईनिंग रूम में जाना पड़ा और क्रिसमस के उपलक्ष्य में मछली और दलिया खाया।)

As soon as they got up from the table he went around to each one present and said thank you and good night, but when he came to the young girl she gave him to understand that it was her father’s intention that the suit which he wore was to be a Christmas present-he did not have to return it; and if he wanted to spend next Christmas Eve in a place where he could rest in peace, and be sure that no evil would befall him, he would be welcomed back again. The man with the rattraps did not answer anything to this. He only stared at the young girl in boundless amazement.

(ज्योंहि वे टेबल से खड़े हुए वह वहाँ उपस्थित हर एक के पास गया और धन्यवाद और शुभ रात्रि कहा, परन्तु जब वह जवान लड़की के पास आया उसने उसे समझाया कि जो सूट वह पहने हुए है वह उसके पिता की तरफ से उसको क्रिसमस का उपहार है उसे उसको लौटाने की जरूरत नहीं है; और यदि वह अगले वर्ष क्रिसमस एक ऐसी जगह बिताना चाहे जहाँ वह शान्ति से रहे और निश्चित हो कि जहाँ उसके साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा, तो उसका यहाँ पर फिर से स्वागत होगा। चूहेदानी वाले आदमी ने इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया। उसने केवल लड़की की तरफ असीमित हैरानी में देखा।)

The next morning the ironmaster and his daughter got up in good season to go to the early Christmas service. Their guest was still asleep, and they did not distrub him. When, at about ten o’clock, they drove back from church, the young girl sat and hung her head even more dejectedly than usual. At church she had learned that one of the old crofters of the ironworks had been robbed by a man who went around selling rattraps. “Yes, that was a fine fellow you let into the house,” said her father. “I only wonder how many silver spoons are left in the cupboard this time.”

(अगली प्रातः को आयरन मास्टर और उसकी बेटी क्रिसमस की धार्मिक रस्म को करवाने के लिए जल्दी जाग गए। उनका मेहमान अभी सोया हुआ था और उन्होंने उसे नहीं जगाया। जब लगभग दस बजे वे चर्च से लौटे, तो युवती पहले से अधिक उदासी से सिर नीचा करके बैठ गई। चर्च में उसे पता चला था कि एक बूढ़े किसान को एक घूम-घूम कर चूहेदानियाँ बेचने वाला आदमी लूटकर चला गया। “हाँ, वह बढ़िया आदमी था जिसे तुमने घर में रहने दिया था”, उसके पिता ने कहा, “मैं नहीं समझता कि अब तक घर की अलमारी में कोई चाँदी का चम्मच बचा होगा।”)

The wagon had hardly stopped at the front steps when the ironmaster asked the valet whether the stranger was still there. He added that he had heard at church that the man was a thief. The valet answered that the fellow had gone and that he had not taken anything with him at all. On the contrary, he had left behind a little package which Miss Willmansson was to be kind enough to accept as a Christmas present.

(गाड़ी सामने की सीढ़ियों के आगे मुश्किल से रुकी होगी जब आयरन मास्टर ने नौकर से पूछा कि क्या अजनबी अभी वहीं है। उसने यह भी कहा कि वह चर्च में सुनकर आया है कि वह आदमी चोर है। नौकर ने उत्तर दिया कि वह आदमी जा चुका और वह अपने साथ कोई चीज नहीं ले गया है। इसके विपरीत वह अपने पीछे एक छोटा-सा पैकेट छोड़ गया है जिसे मिस विलमनसन कृपया एक क्रिसमस की भेंट समझ स्वीकार करें।)

The young girl opened the package, which was so badly done up that the contents came into view at once. She gave a little cry of joy. She found a small rattrap, and in it lay three wrinkled ten kronor notes. But that was not all. In the rattrap lay also a letter written in large, jagged characters

(युवा लड़की ने पैकेट खोला जो इतनी बुरी तरह लपेटा गया था कि उसके अन्दर का सामान तुरन्त ही नजर आ गया। खुशी की एक छोटी-सी चीख उसके मुँह से निकल गई। उसे एक छोटी-सी चूहेदानी मिली और इसमें 10 क्रॉनर वाले तीन नोट मुड़े हुए रखे थे। परन्तु इतना ही नहीं था। चूहेदान के अन्दर बड़े-बड़े टूटे-फूटे अक्षरों में लिखा एक पत्र भी था।)

“Honoured and noble Miss, “Since you have been so nice to me all day long, as if I was a captain, I want to be nice to you, in return, as if I was a real captain-for I do not want you to be embarrassed at this Christmas season by a theif; but you can give back the money to the old man on the roadside, who has the money pouch hanging on the window frame as a bait for poor wanderers.

(“सम्मानीय और श्रेष्ठ मिस साहिबा, “क्योंकि आपने सारा दिन मुझसे ऐसा अच्छा व्यवहार किया है जैसे मानो मैं कोई कैप्टन हूँ, बदले में मैं आपके प्रति अच्छा व्यवहार करना चाहता हूँ जैसे कि मैं असली कैप्टन ही हूँ; क्योंकि मैं नहीं चाहता कि इस क्रिसमस के अवसर पर आपको किसी चोर के द्वारा शर्मिंदगी उठानी पड़े, बल्कि आप यह धन सड़क के किनारे रहने वाले बूढ़े व्यक्ति को दे देना जिसके धन की थैली गरीब आवारा लोगों को ललचाने के लिए दाने की तरह खिड़की की चौखट से लटकी रहती है।”)

“The rattrap is a Christmas present from a rat who would have been caught in this world’s rattrap if he had not been raised to captain, because in that way he got power to clear himself. “Written with friendship and high regard, “Captain von Stahle.” (“यह चूहेदानी उस चूहे की ओर से एक क्रिसमस उपहार है जो इस संसार के चूहेदान में फंस गया होता अगर आपने कैप्टन न बनाया होता क्योंकि इसके कारण उसके अन्दर स्वयं को शुद्ध करने की शक्ति आ गई।” “मैत्रीभाव से और बड़े सम्मान से लिखा गया, “कैप्टन वॉन स्टाहल।”)

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