Author name: Bhagya

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2

प्रश्न 1.
एक व्यक्ति के वेतन में 10% की वृद्धि होती हैं। यदि उसका नया वेतन ₹ 1, 54,000 है तो उसका मूल वेतन ज्ञात कीजिए।
हल:
नया वेतन =₹1,54,000
माना उसका मूल वेतन = ₹ x
∴ 10% वृद्धि का मान = x का 10%
= \(\frac{x × 10}{100}\)
= \(\frac{x}{10}\)
अतः नया वेतन = मूल वेतन + वेतन वृद्धि
154000 = x + \(\frac{x}{10}\)
= \(\frac{10x + x}{10}\)
= \(\frac{11x}{10}\)

अतः \(\frac{11x}{10}\) = 154000
∴ x = \(\frac{154000 \times 10}{11}\)
= 14000 × 10
= ₹1,40,000
अत: उसका मूल वेतन = ₹ 1,40,000

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प्रश्न 2.
रविवार को 845 व्यक्ति चिड़ियाघर गये । सोमवार को केवल 169 व्यक्ति गये । चिड़ियाघर की सैर करने वाले व्यक्तियों की संख्या में सोमवार को कितने प्रतिशत कमी हुई?
हल :
रविवार को जाने वाले व्यक्तियों की संख्या = 845
सोमवार को जाने वाले व्यक्तियों की संख्या = 169
∴ सोमवार को जाने वाले व्यक्तियों की संख्या में कमी
= 845 – 169 = 676
सोमवार को जाने वालों की संख्या में प्रतिशत कमी
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 -1
= \(\frac{676 \times 100}{845}\)% = 80%
∴ x =80%
अत: सोमवार को 80% व्यक्तियों की कमी हुई।

प्रश्न 3.
एक दुकानदार ₹ 2400 में 80 वस्तुएँ खरीदता है और उन्हें 16% लाभ पर बेचता है । एक वस्तु का विक्रय मूल्य ज्ञात कीजिए ।
हल :
80 वस्तुओं का क्रय मूल्य = ₹ 2400 रु.
लाभ = 16%
तब विक्रय मूल्य = ?
हम जानते हैं कि,
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 -2
80 वस्तुओं का विक्रय मूल्य = \(\frac{100+16}{100}\) × 2400
= \(\frac{116 \times 2400}{100}\)
= 116 × 24

अत: 80 वस्तुओं का विक्रय मूल्य = ₹ 2784.
∴ 1 वस्तु का विक्रय मूल्य = \(\frac{2784}{80}\)
अतः एक वस्तु का विक्रय मूल्य = ₹ 34.80

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प्रश्न 4.
एक वस्तु का मूल्य 115,500 था। ₹ 450 इसकी मरम्मत पर खर्च किये गये थे। यदि उसे 15% लाभ पर बेचा जाता है, तो उसका विक्रय मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल :
वस्तु का कुल क्रय मूल्य = अंकित मूल्य + मरम्मत खर्च
= ₹ (15500 + 450)
= ₹ 15950
विक्रय मूल्य = ?
लाभ = 15%
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 -3
= \(\frac{100+15}{100}\) × 15650
= ₹ \(\frac{115 \times 15650}{100}\)
= ₹ 18342.50

अत: वस्तु का विक्रय मूल्य = ₹ 18342.50

प्रश्न 5.
एक VCR और TV में से प्रत्येक को ₹8000 में खरीदा गया । दुकानदार को VCR पर 4% हानि तथा TV पर 8% लाभ हुआ । इस पूरे लेन-देन में लाभ अथवा हानि का प्रतिशत ज्ञात कीजिए । हल :
VCR के लिए-
क्रय मूल्य = ₹ 8000
हानि = 4%
माना विक्रय मूल्य = ₹ x
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 -4
∴ x = \(\frac{100-4}{100}\) × 8000
= ₹ \(\frac{96 \times 8000}{100}\)
∴ x = ₹ 7680

TV के लिए –
क्रय मूल्य = ₹ 8000
लाभ% = 8%
माना विक्रय मूल्य = y रु.
अत:
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 -5
∴ y = \(\frac{100+8}{100}\) × 8000
= ₹ \(\frac{108 \times 8000}{100}\)
= 108 × 80
∴ y = ₹ 8640

अब, कुल क्रय मूल्य = 8000 + 8000 = ₹16000
कुल विक्रय मूल्य = (x + y) = 7680 + 8610 = ₹ 16320
लेन-देन में लाभ = 16320 – 16000
= ₹320
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 -6
= \(\frac{320 \times 100}{16000} \%\)
= \(\frac{32000}{16000}\)
= 2%

अत: पूरे लेन-देन में लाभ% = 2%

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प्रश्न 6.
सेल के दौरान एक दुकान सभी वस्तुओं के अंकित मूल्य पर 10% बढ़ा देती है ।1 1450 अंकित मूल्य वाला एक जीन्स और दो कमीजें, जिनमें से प्रत्येक का अंकित मूल्य १ 850 है, को खरीदने के लिए किसी ग्राहक को कितना भुगतान करना पड़ेगा ?
हल :
जीन्स का अंकित मूल्य =₹ 1450
बट्टा (छूट) = 10%
∴ 10% बट्टे (छूट) = 1450 का 10%
= \(\frac{1450 \times 10}{100} \%\)
= \(\frac{14500}{100}\)
= ₹ 145

∴ 10% छूट के बाद जीन्स का विक्रय मूल्य = 1450 – 145
= ₹ 1305 ……… (i)
1 कमीज का अंकित मूल्य = ₹850
∴ 2 कमीजों का अंकित मूल्य = 850 × 2
= ₹ 1700

10% बदटा (छूट) = 1700 का 10%
= \(\frac{1700 \times 10}{100} \%\)
= \(\frac{17000}{100}\)
= ₹ 170

अब, 10% छूट के बाद 2 कमीजों का विक्रय मूल्य = 1700 – 170
= ₹ 1530 ……….(ii)
अतः 1 जीन्स तथा 2 कमीजों के लिए किया गया भुगतान = 1305 + 1530 = 22835
अतः कुल भुगतान किया गया = ₹ 2835

प्रश्न 7.
एक दूध वाले ने अपनी दो भैंसों को ₹20,000 प्रति भैंस की दर से बेचा । एक भैंस पर उसे 5% लाभ और दूसरी पर उसे 10% की हानि हुई । इस सौदे में उसका कुल लाभ अथवा हानि ज्ञात कीजिए।
हल :
एक भैंस के लिएविक्रय मूल्य = ₹20,000
लाभ 5% माना, क्रय मूल्य = x
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 -7
x = \(\frac{100}{100+5}\) × 20000
= \(\frac{100 \times 20000}{105}\)
अत: क्रयमूल्य (x) = ₹ 19047.62 ……..(i)

दूसरे भैंस के लिए –
विक्रय मूल्य = 20,000
हानि = 10%
माना, क्रय मूल्य = ₹ y
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 -8
= \(\frac{100}{100-5}\) × 20000
= ₹ \(\frac{100 \times 20000}{90}\)
∴ y = ₹ 22222.22 ……..(ii)
अतः कुल क्रय मूल्य = (x + y)
= 19047.62 + 22222.22
=₹ 41269.84
तथा कुल विक्रय मूल्य = 20,000 + 20,000
= ₹ 40,000

अत: हानि = कुल क्रय मूल्य – कुल विक्रय मूल्य
= ₹ 41269.84 – ₹ 40,000
= ₹ 1269.84
अत: इस सौदे में कुल हानि = ₹ 1269.84

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2

प्रश्न 8.
एक टेलीविजन का मूल्य ₹ 13000 है। इस पर 12% की दर से बिक्री कर वसूला जाता है । यदि विनोद इस टेलीविजन को खरीदता है तो उसके द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि ज्ञात कीजिए।
हल :
क्रय मूल्य = ₹ 13000
बिक्री कर की दर=12%
बिक्री कर = 13000 का 12%
= ₹ 13000 × \(\frac{12}{100}\) = 1560
∴ कुल राशि = क्रय मूल्य + बिक्री कर
₹ 13000 + ₹ 1560 = ₹ 14560
∴ भुगतान राशि = ₹ 14560

प्रश्न 9.
अरुण एक जोड़ी स्केट्स (पहियेदार जूते) किसी सेल से खरीदकर लाया, जिस पर दिये गये बट्टे की दर 20% थी । यदि उसके द्वारा भुगतान की गई राशि 11600 है तो अंकित मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल :
माना अंकित मूल्य = ₹ x
बट्टा अंकित मूल्य पर ही दिया जाता है।
बट्टा = x का 20%
= \(\frac{20x}{100}\)

विक्रय मूल्य (भुगतान मूल्य) = (x – \(\frac{20x}{100}\)) = 1600
\(\frac{100x – 20x}{100}\) = 1600
\(\frac{80x}{100}\) = 1600
80x = 1600 × 100
∴ x = \(\frac{1600 \times 100}{80}\) = 2000
अत: अंकित मूल्य = ₹ 2000

प्रश्न 10.
मैंने एक हेयर ड्रायर 8% जी. एस. टी. सहित ₹5400 रु. में खरीदा । वैट को जोड़ने से पहले का उसका मूल्य ज्ञात किजिए।
हल :
माना बैट को जोड़ने से पहले हेयर ड्रायर का मूल्य = x रु.
जी. एस. टी. = x का 8%
= ₹ \(\frac{80}{100}\)

कुल मूल्य =x+ \(\frac{80}{100}\) = 5400
= \(\frac{100x+80x}{100}\) = 5400
= \(\frac{108x}{100}\) = 5400
= x = \(\frac{5400 \times 100}{108}\)
∴ x = 5000
अतः हेयर ड्रायर का वास्तविक मूल्य (जी.एस.टी. जोड़ने से पहले) = ₹ 5000

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2

प्रश्न 11.
कोई वस्तु 18% जी.एस.टी. सम्मिलित करने के बाद 11239 में खरीदी गई। जी.एस.टी. जोड़ने से पहले का उस वस्तु का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल :
18% जी.एस.टी. सहित क्र.मू. = ₹ 1239
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.2 -9
= \(\frac{100}{100+18}\) × 1239
= \(\frac{100}{118}\) × 1239
= \(\frac{123900}{118}\)
= ₹ 1050
अत: जी.एस.टी. से पहले वस्तु का मूल्य = ₹ 1050

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Exercise 2.5

प्रश्न 1.
\(\frac{x}{2}-\frac{1}{5}\) = \(\frac{x}{3}+\frac{1}{4}\)
हल :
\(\frac{x}{2}-\frac{1}{5}\) = \(\frac{x}{3}+\frac{1}{4}\)
\(\frac{x}{2}-\frac{x}{3}\) = \(\frac{1}{4}+\frac{1}{5}\)
⇒ \(\frac{3x – 2x}{6}\) = \(\frac{5 + 4}{20}\)
⇒ \(\frac{x}{6}\) = \(\frac{9}{20}\)
कैंची गुणा करने पर,
20x = 54
x = \(\frac{54}{20}\) = \(\frac{27}{10}\)
अत: x = \(\frac{27}{10}\)

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5

प्रश्न 2.
\(\frac{n}{2}\) – \(\frac{3n}{4}\) + \(\frac{5n}{6}\) = 21
हल :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5 - 1

प्रश्न 3.
x + 7 – \(\frac{8x}{3}\) = \(\frac{17}{6}\) – \(\frac{5x}{2}\)
हल :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5 - 2

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5

प्रश्न 4.
\(\frac{x-5}{3}\) = \(\frac{x-3}{5}\)
हल :
\(\frac{x-5}{3}\) = \(\frac{x-3}{5}\)

कैंची गुणा करने पर,
5(x – 5) = 3(x – 3)
⇒ 5x – 25 = 3x – 9
पक्षान्तरण करने पर,
5x – 3x = – 9 + 25
⇒ 2x = 162
⇒ x = \(\frac{16}{2}\)
अतः x = 8

प्रश्न 5.
\(\frac{3t-2}{4}\) – \(\frac{2t-3}{3}\) = \(\frac{2}{3}\) – t
हल :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5 - 3

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5

प्रश्न 6.
m – \(\frac{m-1}{2}\) = 1 – \(\frac{m-2}{3}\)
हल :
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5 - 4

निम्नलिखित समीकरणों को सरल रूप में बदलते हुए ल कीजिए :

प्रश्न 7.
3(t – 3) = 5(2t + 1)
हल :
3(t – 3) = 5(2t + 1)
⇒ 3t – 9 = 10t + 5
10 तथा 9 का पक्षान्तरण करने पर,
⇒ 3t – 10t = 5 + 9
⇒ – 7t = 14
⇒ t = \(\frac{-14}{7}\)
∴ t = – 2

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.5

प्रश्न 8.
15(y – 4) – 2(y – 9) + 5(y + 6) = 0
हल :
15(y – 4) – 2(y – 9) + 5(y + 6) = 0
⇒ 15y – 60 – 2y + 18 + 5y + 30 = 0
⇒ 15y – 2y + 5y – 60 + 18 + 30 = 0
⇒ 18y – 12 = 0
⇒ 18y = 12
⇒ y = \(\frac{12}{18}\)
अत: y = \(\frac{2}{3}\)

प्रश्न 9.
3(5z – 7) – 2(9z – 11) = 4(8z – 13) – 17
हल :
3(5z – 7) – 2(9z – 11) = 4(8z – 13) – 17
⇒ 15z – 21 – 18z + 22 = 32z – 52 – 17
पक्षान्तरण करने पर,
⇒ 15z – 18z – 32z = – 52 – 17 + 21 – 22
⇒ 15z – 50z = 21 – 91
⇒ – 35z = – 70
⇒ – 35z = – 70
⇒ z = \(\frac{-70}{-35}\)
अत: z = 2

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प्रश्न 10.
0.25 (4f – 3) = 0.05 (10f – 9)
हल :
0.25 (4f – 3) = 0.05 (10f – 9)
1.00 f – 0.75 f = 0.5 f – 0.45
पक्षान्तरण करने पर,
⇒ 1.00 f – 0.75 = – 0.45 + 0.75
0.5 f = 0.30
f = \(\frac{0.30}{0.5}\) = 0.6
अत: f = 0.6

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.4

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Exercise 2.4

प्रश्न 1.
अमीना एक संख्या सोचती है । वह इसमें से \(\frac{5}{2}\) घटाकर परिणाम को 8 से गुणा करती है । अब जो परिणाम मिलता है, वह सोची गई संख्या की तिगुनी है । वह सोची गई संख्या ज्ञात कीजिए ।
हल :
माना कि सोची गयी संख्या है।
संख्या X में से \(\frac{5}{2}\) को घटाकर प्राप्त परिणाम को 8 से गुणा करने पर प्राप्त अंक = \(8\left(x-\frac{5}{2}\right)\)
यह परिणाम संख्या के तिगुर्न (3x) के बराबर है ।
अतः \(8\left(x-\frac{5}{2}\right)\) = 3x
या 8x – \(\frac{40}{2}\) = 3x
⇒ 8x – 20 = 3x
3x तथा 20 का पक्षान्तरण करने पर,
8x – 3x = 20
या 5x = 20
∴ x = \(\frac{20}{5}\) = 4

अत: संख्या =4

प्रश्न 2.
दो संख्याओं में पहली संख्या दूसरी की पाँच गुनी है। प्रत्येक संख्या में 21 जोड़ने पर पहली संख्या दूसरी की दुगुनी हो जाती है । संख्याएँ ज्ञात कीजिए।
हल :
माना, दूसरी संख्या =x
तो, पहली संख्या = 5x
दोनों संख्याओं में 21 जोड़ने पर प्राप्त संख्याएँ,
पहली संख्या = 5x + 21
दूसरी संख्या = x + 21

प्रश्नानुसार,
5x + 21 = 2 (x + 21)
5x + 21 = 2x + 42
2x तथा 21 का पक्षान्तरण करने पर
⇒ 5x – 2x= 42 – 21
⇒ 3x = 21
⇒ x = \(\frac{21}{3}\)
⇒ x = 7

अतः पहली संख्या = 5x
x = 5 × 7
x = 35

तथा दूसरी संख्या = x
x = 7

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.4

प्रश्न 3.
दो अंकों वाली दी गई एक संख्या के अंकों का योग 9 है। इस संख्या के अंकों के स्थान बदलकर प्राप्त संख्या दी गई संख्या से 27 अधिक है । दी गई संख्या ज्ञात कीजिए।
हल:
माना कि इकाई का अंक = x
अंकों का योग = 9
तो, दहाई का अंक = (9 – x)
संख्या = 10 (9 – x) + x
अंकों का स्थान बदलने पर प्राप्त नई संख्या = 10x + (9 – x)
अब, प्रश्नानुसार नई संख्या दी गई संख्या से 27 अधिक है।
10 (9 – x) + x + 27 = 10x + (9 – x)
⇒ 90- 10x + x + 27 = 10x + 9 – x
⇒ – 9x + 117 = 9x +9

पक्षान्तरण करने पर,
117 – 9 = 9x + 9x
अतः
या 18x = 108
या x = \(\frac{108}{18}\) = 6
∴ x = 6

अतः इकाई का अंक = x = 6
दहाई का अंक = (9 – x) = (9 – 6) = 3

अतः संख्या = 10 × 3 + 6 = 30 + 6
अत: संख्या = 36

प्रश्न 4.
दो अंकों वाली दी गई एक संख्या में एक अंक दूसरे का तीन गुना है। इसके अंकों के स्थान बदलकर प्राप्त संख्या को, दी गई संख्या में जोड़ने पर 88 प्राप्त होता है। दी गई संख्या ज्ञात कीजिए।
हल :
माना कि इकाई का अंक = x
दहाई का अंक =3x
अत: संख्या = 10 (3x) + x
=30x + x
संख्या = 31x
अंकों के स्थान बदलकर प्राप्त संख्या = 10 × x+ 3x
= 10x + 3x
= 13x

दोनों संख्याओं को जोड़ने पर योग 88 प्राप्त होता है।
अतः 31x + 13x= 88
या 44x = 88
या x = \(\frac {88}{44}\) = 2
∴ x = 2

अतः दी गई संख्या = 31x या 13x
= 31 × 2 या 13 × 2
∴ संख्या = 62 या 26

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.4

प्रश्न 5.
शोबो की माँ की आयु, शोबो की आयु की छः गुनी है। 5 वर्ष बाद शोबो की आयु उसकी माँ की वर्तमान आयु की एक-तिहाई हो जायेगी । उनकी आयु ज्ञात कीजिए।
हल :
माना कि शोबो की वर्तमान आयु = x वर्ष
तो, उसकी माँ की वर्तमान आयु = 6x वर्ष
5 वर्ष बाद शोबो की आयु = (x+ 5) वर्ष
प्रश्नानुसार, पाँच वर्ष बाद शोबो की आयु
= \(\frac {1}{3}\) × माँ की वर्तमान आयु
x + 5 = \(\frac {1}{3}\) × 6x = 2x
x + 5 = 2x
5 = 2x – x = x
∴ x = 5
अत: शोबो की वर्तमान आयु = 5 वर्ष
तथा माँ की वर्तमान आयु (6x) = 5 × 6 = 30 वर्ष

प्रश्न 6.
महूली गाँव में, एक तंग आयताकार भूखण्ड विद्यालय बनाने के लिए सुरक्षित है। इस भूखण्ड की लम्बाई और चौड़ाई में 11 : 4 का अनुपात है । गाँव पंचायत को इस भूखण्ड की बाड़ कराने में ₹ 100 प्रति मीटर की दर से ₹75,000 व्यय करने होंगे। भूखण्ड की माप ज्ञात कीजिए।
हल :
माना कि आयत की लम्बाई 11 तथा चौड़ाई 4x है।
आयत का परिमाप = 2 (लम्बाई + चौड़ाई)
= 2 (11x + 4)
= 2 × 15x
= 30x
प्रश्नानुसार, बाड़ कराने में ₹ 100 प्रति मीटर की दर से ₹75000 व्यय होते हैं ।
भूखण्ड का परिमाप = \(\frac {75000}{100}\) = 750 मीटर
अत: 30x = 750
x = \(\frac {750}{30}\) = 25
∴ x = 25

अत: आयताकार भूखण्ड की लम्बाई = 11x = 11 × 25 = 275 मीटर
तथा चौड़ाई = 4x = 4 × 25 = 100 मीटर

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.4

प्रश्न 7.
हसन, स्कूल वर्दी बनाने के लिए दो प्रकार का कपड़ा खरीदता है । इसमें कमीज के कपड़े का भाव 50 प्रति मीटर तथा पतलून के कपड़े का भाव ₹90 प्रति मीटर है । वह पतलून के प्रत्येक 2 मीटर कपड़े के लिए कमीज़ का 3 मीटर कपड़ा खरीदता है । वह इस कपड़े को क्रमशः 12% तथा 10% लाभ पर बेचकर ₹36,660 प्राप्त करता है। उसने पतलूनों के लिए कितना कपड़ा खरीदा?
हल:
माना कि पतलून का 2x मीटर कपड़ा खरीदता है तथा कमीज का 3x मीटर कपड़ा खरीदता है।
∵ कमीज के कपड़े का भाव = ₹50 प्रतिमीटर
अतः कमीज के कुल कपड़े का दाम = 50 × 3x
= ₹ 150x
इसी प्रकार, पतलून के कुल कपड़े का दाम = 90 × 2x
= ₹180x
पतलून के कपड़े का लाभ = 12%
= \(\frac{180 x \times 12}{100}\)
= 21.6x

अत: पतलून के कपड़े का विक्रयमूल्य = 180x + 21.6x = 201.6x
इसी प्रकार, कमीज के कपड़े का लाभ = 10%
= \(\frac{150 x \times 10}{100}\) = 15x

अतः कमीज के कपड़े का विक्रय मूल्य = 150x + 15x = 165x
अतः कुल विक्रय मूल्य = 201.6x + 165x
= 366.6x

प्रश्नानुसार विक्रय मूल्य = 36,660 रुपये
366.6x = 36,660 रुपये
x = \(\frac{36,660}{366.6}\) = 100
∴ x = 100

अत: हसन ने पतलून का कुल कपड़ा खरीदा = 2x = 2 × 100 =200 मीटर

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.4

प्रश्न 8.
हिरणों के एक झुंड का आधा भाग मैदान में चर रहा है और शेष का तीन-चौथाई पड़ोस में ही खेलकूद रहा है। शेष बचे 9 हिरण एक तालाब में पानी पी रहे हैं। झुंड में हिरणों की संख्या ज्ञात कीजिए।
हल :
माना कि हिरणों की कुल संख्या = x
चरने वाले हिरणों की संख्या = \(\frac{x}{2}\)
शेष हिरणों की संख्या = (x – \(\frac{x}{2}\))
(\(\frac{2x – x}{2}\)) = \(\frac{x}{2}\)

पड़ोस में खेलने वाले हिरणों की संख्या = \(\frac{3}{4}\left(\frac{x}{2}\right)\)
= \(\frac{3x}{8}\)

शेष बचे हिरणों की संख्या = \(\frac{x}{2}\) – \(\frac{3x}{8}\)
= \(\frac{4x – 3x}{8}\) = \(\frac{x}{8}\)
शेष 9 हिरण तालाब में पानी पी रहे हैं।
\(\frac{x}{8}\) = 9
x = 72
अत: झुण्ड में कुल हिरणों की संख्या = 72

प्रश्न 9.
दादाजी की आयु अपनी पौत्री की आयु की दस गुनी है। यदि उनकी आयु पौत्री की आयु से 54 वर्ष अधिक है, तो उन दोनों की आयु ज्ञात कीजिए।
हल :
माना कि पौत्री की आयु = x वर्ष
तो दादा जी की आयु = 10x वर्ष
दिया हुआ है कि दादाजी की आयु, पौत्री की आयु से 54 वर्ष अधिक है, तो
10x = x + 54
या 10x – x = 54
9x = 54
x = \(\frac{54}{9}\)
x = 6

अत: पौत्री की आयु = 6 वर्ष
तथा दादाजी की आयु = 10x = 10 × 6 = 60 वर्ष

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.4

प्रश्न 10.
अमन की आयु उसके पुत्र की आयु की तीन गुनी है । 10 वर्ष पहले उसकी आयु पुत्र की आयु की पाँच गुनी थी। दोनों की वर्तमान आयु ज्ञात कीजिए।
हल :
माना कि अमन के पुत्र की वर्तमान आयु = x वर्ष
तो अमन की वर्तमान आयु = 3xवर्ष
दस वर्ष पहले पुत्र की आयु = (x – 10) वर्ष
दस वर्ष पहले अमन की आयु = (3x – 10) वर्ष
प्रश्नानुसार, (3x – 10) = 5(x – 10) (∵ अमन की आयु 35x पुत्र की आयु)
⇒ 3x – 10 = 5x – 50
3x तथा 50 का पक्षान्तरण करने पर,
– 10 + 50 = 5x – 3x
40 = 2x
⇒ 2x= 40
x = \(\frac{40}{2}\) = 20

अत: अमन की वर्तमान आयु (3x) = 3 × 20 वर्ष = 60
वर्ष पुत्र की वर्तमान आयु (x) = 20 वर्ष

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.1

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.1

प्रश्न 1.
निम्नलिखित का अनुपात ज्ञात कीजिए
(a) एक साइकिल की 15km प्रति घंटे की गति का एक स्कूटर की 30 km प्रति घंटे की गति से।
(b) 5m का 10 km से
(c) 50 पैसे का 5 रुपए से
हल:
(a) साइकिल तथा स्कूटर की गति का अनुपात = 15 km : 30 km
= \(\frac{15}{30}\)
= \(\frac{1}{2}\)
अतः उनकी गति का अनुपात = 1 : 2

(b)
5 m : 10 km
5 m : 10 × 1000 m
5m : 10000
= \(\frac{5}{10000}\)
= \(\frac{1}{2000}\)
अतः अनुपात = 1 : 2000

(c) 50 पैसे : ₹ 5
हम जानते हैं कि 1 रु. = 100 पैसे
∴ 50 : 5 × 100
= 50 : 500 = \(\frac{50}{500}\)
= \(\frac{1}{10}\)
अतः अनुपात = 1 : 10

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अनुपातों को प्रतिशत में परिवर्तित कीजिए
(a) 3 : 4
(b) 2 : 3
हल :
नोट- यदि किसी संख्या को प्रतिशत में बदलना है तो उस संख्या में 100 का गुणा करते हैं तथा यदि प्रतिशत से संख्या बनानी होती है, तो उसमें 100 से भाग करते हैं ।
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.1 -1

प्रश्न 3.
25 विद्यार्थियों में से 72% विद्यार्थी गणित में अच्छे हैं। कितने विद्यार्थी गणित में अच्छे नहीं हैं?
हल:
दिया है, 25 विद्यार्थियों में से 72% गणित में अच्छे हैं।

अतः गणित में अच्छे विद्यार्थियों की संख्या = 25% का 72%
= \(\frac{25 \times 72}{100}\)
= 18
अतः गणित में अच्छे विद्यार्थियों की संख्या = 18
विद्यार्थी गणित में अच्छे नहीं हैं = 25 – 18 = 7

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 8 राशियों की तुलना Ex 8.1

प्रश्न 4.
एक फुटबॉल टीम ने कुल जितने मैच खेले उनमें से 10 में जीत हासिल की। यदि उनकी जीत का प्रतिशत 40 था तो उस टीम ने कुल कितने मैच खेले?
हल:
माना की टीम ने x मैच खेले।

तब, जीते मैचों की संख्या = कुल मैच में से जीते मैच का प्रतिशत
10 = x का 40%
10 = x × \(\frac{40}{100}\)
\(\frac{10 \times 100}{40}\) = x
x = 25

अतः टीम ने 25 मैच खेले।

प्रश्न 5.
यदि चमेली के पास अपने धन का 75% खर्च करने के बाद ₹ 600 बचे तो ज्ञात कीजिए कि उसके पास शुरू में कितने रुपए थे?
हल:
माना कि चमेली के पास शुरू में कुल ₹ x थे ।
उसके पास 75 % खर्च करने बाद बचते हैं = ₹ 600
खर्च करने के बाद बचा धन = (100 – 75)% = 25%
x का 25% = 600
x × \(\frac{25}{100}\) = 600
x = \(\frac{600 \times 100}{25}\)
x = 2400
अत: चमेली के पास शुरू में ₹ 2400 थे ।

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प्रश्न 6.
यदि किसी शहर में 60% व्यक्ति क्रिकेट पसन्द करते हैं, 30% व्यक्ति फुटबॉल पसन्द करते हैं, और शेष अन्य खेल पसन्द करते हैं । तो ज्ञात कीजिए कि कितने प्रतिशत व्यक्ति अन्य खेल पसन्द करते हैं ? यदि कुल व्यक्ति 50 लाख हैं तो प्रत्येक प्रकार के खेल को पसन्द करने वाले व्यक्तियों की यथार्थ संख्या ज्ञात कीजिए।
हल :
(i) अन्य खेल पसन्द करने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत = [100 – (60 + 30)]%
= (100 – 90)%
= 10%
कुल व्यक्तियों की संख्या = 50,00,000
क्रिकेट पसन्द करने वाले व्यक्तियों की संख्या
= 50 लाख का 60%
= 5000000 × \(\frac{60}{100}\)
= 30,00,000
अत: 30 लाख व्यक्ति क्रिकेट पसन्द करते हैं।

(ii) फुटबॉल पसन्द करने वाले व्यक्ति
= 50 लाख का 30%
=-5000000 × \(\frac{30}{100}\)
= 15,00,000
अत: 15 लाख व्यक्ति फुटबॉल पसन्द करते हैं।

(iii) अन्य खेल पसन्द करने वाले व्यक्तियों की संख्या
= 50 लाख का 10%
= 5000000 × \(\frac{10}{100}\)
= 500000
अतः अन्य खेल पसन्द करने वाले व्यक्ति = 5 लाख

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Apathit Avbodhanam अपठित-अवबोधनम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

अपठित-गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि

1. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत कस्मिंश्चित् अरण्ये अनेके पशवः वसन्ति स्म। एकदा पशूनां राजा सिंहः रोगपीड़ितः अभवत्। एकं शृगालं विहाय सर्वे पशवः रोगपीड़ितं नृपं द्रष्टुमागताः। एकः उष्ट्रः नृपाय एतत् न्यवेदयत् यत् अहंकारिणं शृगालं विहाय सर्वे भवन्तं द्रष्टुमागताः। एतच्छ्रुत्वा सिंहः क्रोधितोऽभवत्। स्वमित्रैः एतत्ज्ञात्वा शृगालः शीघ्रमेव सिंहस्य समीपे प्राप्तः । क्रोधितेन सिंहेन विलम्बेन आगमनकारणं पृष्टः शृगालोऽवदत् यदहं तु सर्वप्रथममागन्तुम् ऐच्छम् परं चिकित्सकात् औषधमपि आनेयमिति विचिन्त्य तत्रागच्छम्। तच्छ्रुत्वा प्रसन्नः सिंहः औषधविषये पृष्टवान्। शृगालः अवदत् यत्तेन औषधिस्तु न दत्ता परं चिकित्साक्रमम् उक्तवान् यत् उष्ट्रस्य रक्तपानेनैव रोगस्य शान्तिः भविष्यति। तदा सिंहः उष्ट्रमाहूय भक्त्या आगतं तं मारयित्वा तस्य रक्तं पीतवान् एवं स्वपिशुनतायाः दुष्फलम् उष्ट्रेण स्वयमेव प्राप्तम्।
प्रश्ना:
(क) अनेके पशवः कुत्र वसन्ति स्म ?
(ख) शृगालः शीघ्रमेव कस्य समीपे प्राप्तः ?
(ग) उष्ट्रेण कस्याः दुष्फलं प्राप्तम् ?
(घ) रोगपीडितः कः अभवत् ?
(ङ) ‘पृष्टः’ – अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
उत्तराणि
(क) अनेके पशवः अरण्ये वसन्ति स्म।
(ख) शृगालः शीघ्रमेव सिंहस्य समीपे प्राप्तः।
(ग) उष्ट्रेव स्वपिशुनतायाः दुष्फलं प्राप्तम्।
(घ) सिंह: रोगपीड़ितः अभवत्।
(ङ) ‘पृष्टः’ अत्र क्त प्रत्ययः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

2. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत गङ्गा सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा अस्ति। सा लोकत्रयस्य कल्याणकारिणी अस्ति।सा भौतिकसुखदृष्ट्या आध्यात्मिक सुखदृष्ट्या कल्याणप्रदा। यं गङ्गा पूर्णरूपेण समर्पितो-भवति, तस्य जीवनं धन्यं भवति। इह संसारे यः जनः राज्ञा भगीरथेन आनीतां भगवती गङ्गां सदा वन्दते स एव शोभन: चतुरः कथ्यते। यः जनः आदरपूर्वकं जहनुतनयां मनसा ध्यायति, स एव सम्यक् तपस्वी भवति। यः गङ्गायाः नामानि गुणान् च सदा स्मरति, स एव श्रेष्ठः पुरुषः कथ्यते। यस्य जनस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, यथार्थरूपेण स एव कर्मयोगी अस्ति, स एव सर्वेषां स्वामी भवति।
प्रश्ना:
(क) सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा नदी का अस्ति ?
(ख) इह संसारे गङ्गां कः आनीतवान् ?
(ग) यः आदरपूर्वकं जह्नतनयां ध्यायति सः किं भवति ? ।
(घ) यस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, स किम् अस्ति ?
(ङ) ‘श्रेष्ठः’ इत्यत्र कः प्रत्ययः ?
उत्तराणि
(क) सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा नदी गङ्गा अस्ति।
(ख) इह संसारे गङ्गां भगीरथः आनीतवान् ।
(ग) यः आदरपूर्वकं जहनुतनयां ध्यायति सः सम्यक् तपस्वी भवति ।
(घ) यस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, स कर्मयोगी अस्ति।
(ङ) ‘श्रेष्ठः’ इत्यत्र – ‘इष्ठन्’ प्रत्ययः ।

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3. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत सत्सङ्गति धियः जाड्यं हरति। वाचि सत्यं सिञ्चति। मानोन्नतिं करोति। पापम् अपाकरोति। मनः प्रसादयति। सर्वत्र यशः तनोति। कथय, मनुष्याणां कृते सत्सङ्गति किं न करोति, अर्थात् सर्वेषामेव उत्तमगुणानां विकासं करोति। ईदृशः अस्ति सत्सङ्गतेः महिमा। अयम् एकः स्वाभाविकः अभिप्रायोऽस्ति यत् मनुष्यस्य सङ्गतिः यादृक्प्रवृत्तिधारकेण सह भवति, सः तादृशः एव भवति। यदि तस्य उत्थानम् उपवेशनं दुष्टैः सह, तदा सोऽपि भविष्यति। परं सज्जनै: साकं संसर्गात् स एव जनः सुजनः भवितुं शक्नोति।प्रभावस्तु अवश्यमेव पतति अन्योऽन्ययोः, एतत् तु स्वीकरणीयमेव जायिष्यते। यदा वयं सङ्गतेः प्रभावं जडपदार्थेषु पश्यामः, तदा चेतनः प्राणी कथं नु प्रभवितुं क्षमते।
प्रश्ना:
(क) सत्सङ्गतिः धियः किं हरति ?
(ख) सत्सङ्गतिः केषां विकासं करोति ?
(ग) सज्जनैः सह सङ्गतिना जनः कीदृशः भवितुं शक्नोति ?
(घ) सङ्गतेः प्रभावः वयं केषु पदार्थेषु पश्याम: ?
(ङ) ‘भवितुम्’ अत्र कः प्रत्ययः ?
उत्तराणि
(क) सत्सङ्गतिः धियः जाड्यं हरति ।
(ख) सत्सङ्गतिः सर्वेषाम् उत्तमगुणानां विकासं करोति।
(ग) सज्जनैः सह सङ्गतिना जनः सुजनः भवितुं शक्नोति ।
(घ) सङ्गतेः प्रभावः वयं जडपदार्थेषु पश्यामः ।
(ङ) ‘भवितुम्’ अत्र – ‘तुमुन्’ प्रत्ययः ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

4. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत’रघुवंशम्’ कालिदासप्रणीतम् एकं महाकाव्यम्। एतस्य एकोनविंशतिसर्गेषु सूर्यवंशिनां नृपाणां कीर्तिगानम् अस्ति। अस्य महाकाव्यस्य कथानकं रामायणे पुराणेषु च आधारितम्। प्रथमे सर्गे सूर्यवंशिराज्ञां वर्णनानन्तरं दिलीपस्य चरित्रस्य, तस्य अपत्यहीनत्वेन वसिष्ठस्य आश्रमे गमनस्य च वर्णनं वर्तते। द्वितीये सर्गे दिलीपस्य नन्दिन्याः सेवया पुत्रप्राप्तिवरदानस्य च चित्रणम् अस्ति। तृतीये सर्गे रघुजन्मनः वर्णनम्। चतुर्थे सर्गे रघोः दिग्विजयनिरूपणम्। अतः परेषु सर्गेषु रघोः सर्वस्वदानम्, अजजन्म, अजस्य विजयः, राज्यशासनम्, अजविलापः, दशरथजन्म, रामकथा-आदिकानि घटनानि वर्णितानि सन्ति। सम्भाव्यते कवेः देहान्तरस्य हेतोः काव्यस्य अन्तः भवति यतो हि कथायाः विधिवत् समाप्तिर्न जाता अस्ति। एतत् कालिदासस्य द्वितीयं महाकाव्यम् अस्ति। संस्कृतकाव्यशास्त्र-परम्परया इदं श्रेष्ठं महाकाव्यं स्वीकृतम्।
प्रश्नाः
(क) केषां कीर्तिगानम् अस्ति ?
(ख) दिलीप: केन कारणेन वसिष्ठस्य आश्रमे अगच्छत् ?
(ग) ‘रघुवंशम्’ केन प्रणीतं महाकाव्यम् ?
(घ) काव्यशास्त्रपरम्परया इदं कीदृशं महाकाव्यं स्वीकृतम् ?
(ङ) गमनम्’ अत्र कः प्रत्ययः ?
उत्तराणि.
(क) सूर्यवंशिनां नृपाणां कीर्तिगानम् अस्ति।
(ख) दिलीपः अपत्यहीनत्वेन वसिष्ठस्य आश्रमे अगच्छत् ।
(ग) ‘रघुवंशम्’ कालिदासेन प्रणीतं महाकाव्यम् ।
(घ) काव्यशास्त्रपरम्परया इदं श्रेष्ठं महाकाव्यं स्वीकृतम्।
(ङ) ‘गमनम्’ अत्र – ‘ल्युट्’ प्रत्ययः।।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

5. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयु: आसीत् धारानगर्यां भोजो नाम राजा। सिंहासनम् अधिष्ठितः सः सुप्रबन्धं स्वराज्यं समृद्धमकरोत्। तस्य राज्ये विद्यार्थिनः विद्याभ्यासं, विद्वांसः च अध्यापनं कुर्वन्ति स्म। धनिनः विपत्तौ निर्धनानां साहाय्यं कुर्वन्ति स्म। भोजः एतादृशः गुणग्राही आसीत् यत् यः कोऽपि विद्वान् राजसदसि स्वकीयां कवितां, नवीनम् आविष्कारं वा प्रस्तौति स्म तस्मै भूयांसं पुरस्कारम् अयच्छत्।
प्रश्नाः
(क) भोजो नाम राजा कुत्र आसीत् ?
(ख) धनिनः केषां सहायतां कुर्वन्ति स्म?
(ग) भोजः किं समृद्धम् अकरोत् ?
(घ) भोजस्य राज्ये विद्याभ्यास के कुर्वन्ति स्म?
(ङ) भोजः कस्मै भूयांसं पुरस्कारम् अयच्छत् ?
उत्तराणि
(क) भोजो नाम राजा धारानगर्याम् आसीत् ।
(ख) धनिनः निर्धनानां सहायतां कुर्वन्ति स्म ।
(ग) भोजः स्वराज्यं समृद्धम् अकरोत् ।
(घ) भोजस्य राज्ये विद्याभ्यासं विद्यार्थिनः कुर्वन्ति स्म।
(ङ) भोजः विद्वद्भ्यः भूयांसं पुरस्कारम् अयच्छत् ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

6. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयुःनदी पर्वतेभ्यः निर्गत्य क्षेत्रेषु आगच्छति। प्रपात: तस्याः प्रथमावस्था अस्ति। शनैः शनैः सा सागरं प्रति गच्छति। तस्याः बालुकायुक्ततटेषु हरिताः तरवः भवन्ति। तेषां वृक्षाणामुपरि काकाः, चटकाः, शुकाः कोकिला: च वसन्ति। पक्षिणां कलरवैः, बालकानां क्रीडाभिः, स्त्रीणां, वार्तालापैः तस्याः तटा: गुञ्जायमानाः भवन्ति परं केचन जनाः अत्रागत्य मनोरञ्जनं कुर्वन्ति, खादन्ति, भोजनस्य अवशिष्टं च तस्याः जले एव पातयन्ति। एवं तस्यां जलं दूषितं भवति। दूषितं जलं स्वास्थ्याय अहितकरम् अस्ति। अत: जलं दूषितं न कर्त्तव्यम् यतः जलम् एव प्राणिनां जीवनम् अस्ति।
प्रश्ना:
(क) नद्याः प्रथमावस्था का ?
(ख) नदी केभ्यः निर्गत्य क्षेत्रेषु आगच्छति ?
(ग) कीदृशं जलं स्वास्थ्याय अहितकरम् ?
(घ) नद्याः तटाः कथं गुञ्जायमानाः भवन्ति ?
(ङ) जलं केषां जीवनम् ?
उत्तराणि
(क) नद्याः प्रथमावस्था प्रपातः ।
(ख) नदी पर्वतेभ्यः निर्गत्य क्षेत्रेषु आगच्छति।
(ग) दूषितं जलं स्वास्थ्याय अहितकरम् ।
(घ) नद्याः तटाः पक्षिणां कलरवैः, बालकानां क्रीडाभिः, स्त्रीणां, वार्तालापैः गुञ्जायमानाः भवन्ति ।
(ङ) जलं प्राणिनां जीवनम्।

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7. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयु: आसीत् पुरा कस्मिंश्चित् वने निसर्गरमणीयं शान्तं पवित्रं किमपि आश्रमपदम्। तत्र तपः परायणा: ऋषयः वसन्ति स्म। ऋषीणां तपः प्रभावात् परस्परं वैरभावम् अपहाय पशवः पक्षिणश्च निर्भयं तत्र विचरन्ति स्म। आसीत् तत्र वरतन्तुनामा कुलपतिः। तत्र अनेके मेधाविनः पटवश्च बटवः अपठन्। तेषु कश्चन आकृत्या मृदुलः प्रकृत्या सरलः कौत्सनामा बटुः आसीत् अयं बालः स्वल्पेनैव कालेन वेदानां वेत्ता, पुराणानां पठिता, दर्शनशास्त्राणां विज्ञाता चाभवत्।
प्रश्ना:
(क) आश्रमपदं कीदृशम् आसीत् ?
(ख) आश्रमपदे के वसन्ति स्म ?
(ग) आश्रमे वरतन्तुः कः आसीत् ?
(घ) केषां प्रभावात् पशवः पक्षिणश्च आश्रमपदे निर्भयं विचरन्ति स्म ?
(ङ) कौत्सनामा बटुः केषां वेत्ता अभवत् ?
उत्तराणि
(क) आश्रमपदं निसर्गरमणीयं शान्तं पवित्रं च आसीत्।
(ख) आश्रमपदे तपः परायणा: ऋषयः वसन्ति स्म ।
(ग) आश्रमे वरतन्तुः कुलपतिः आसीत् ।
(घ) ऋषीणां तपः-प्रभावात् पशवः पक्षिणश्च आश्रमपदे निर्भयं विचरन्ति स्म।
(ङ) कौत्सनामा बटुः वेदानां वेत्ता अभवत् ।

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8. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा निम्नांकितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखेयुः गङ्गाम् उभयतः विविधैः वृक्षैः सुशोभिता: ग्रामाः आसन्। तत्र एकस्मिन् ग्रामे एकः जीर्णः कूपः आसीत्। तस्मिन् कूपे मण्डूकानाम् अधिपतिः गङ्गदत्तः परिजनैः सह निवसति स्म। सः विनैव परिश्रमं प्रभुत्वं प्राप्नोत्। अतः गर्वितः अभवत्। तस्य दुर्व्यवहारेण केचित् प्रमुखाः भेकाः रुष्टाः जाताः। ते गङ्गदत्तं कूपात् बहिः कर्तुम् उद्यताः अभवन्। तद् ज्ञात्वा गंगदत्तः विषादम् अनुभवति स्म। “शत्रूणां नाशः कथं भवेत्।” इति एकान्ते चाटुकारैः सह मन्त्रणाम् अकरोत्।
प्रश्ना:
(क) गङ्गामुभयतः के आसन्?
(ख) मण्डूकानामधिपतिः कः आसीत्?
(ग) सः कथं गर्वितः अभवत् ?
(घ) के गङ्गदत्तं कूपात् बहिः कर्तुम् उद्यताः अभवन् ?
(ङ) गंगदत्तः कै: सह मन्त्रणामकरोत् ?
उत्तराणि
(क) गङ्गामुभयतः विविधैः वृक्षैः सुशोभिताः ग्रामाः आसन् ।
(ख) मण्डूकानामधिपतिः गङ्गदत्तः आसीत् ।
(ग) ‘सः विनैव परिश्रमं प्रभुत्वं प्राप्नोत्, अतः सः गर्वितः अभवत्।
(घ) प्रमुखाः भेका: गङ्गदत्तं कूपात् बहिः कर्तुम् उद्यताः अभवन् ।
(ङ) गंगदत्तः चाटुकारैः सह मन्त्रणामकरोत् ।

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9. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत अद्यत्वे विज्ञानस्य प्रभावः सर्वत्र दृश्यते। वैज्ञानिकाः आविष्कारैः न केवलं विस्मापयन्ति, अपितु मनोविनोदम् अपि कुर्वन्ति। अद्य दूरदर्शनं विज्ञानस्य अद्भुतः चमत्कारः। अस्य आविष्कारः मूलत: ‘मारकोनी’ महोदयेन कृतः। अयं आकाशवाण्याः एव विकसितः प्रयासः अस्ति। वयम् आकाशवाणीयन्त्रैः अभीष्टस्थानस्य कार्यक्रमं एव आकर्णयामः, परं दूरदर्शनेन वयं दर्शनमपि कुर्मः। साम्प्रतं दूरदर्शनं संचारव्यवस्थायाः प्रमुखं साधनमस्ति।
प्रश्ना:
(क) कस्य प्रभावः सर्वत्र दृश्यते ?
(ख) विज्ञानस्य अद्भुतः चमत्कारः किमस्ति ?
(ग) अस्य आविष्कारः केन कृतः ?
(घ) दूरदर्शनं संचारव्यवस्थायाः कीदृशं साधनमस्ति ?
उत्तराणि
(क) विज्ञानस्य प्रभावः सर्वत्र दृश्यते।
(ख) विज्ञानस्य अद्भुतः चमत्कार: दूरदर्शनम् अस्ति।
(ग) अस्य आविष्कारः ‘मारकोनी’ महोदयेन कृतः।
(घ) दूरदर्शनं संचारव्यवस्थायाः प्रमुखं साधनमस्ति।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् अपठित-अवबोधनम्

10. अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा एतदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत सजानानाम् आचारः सदाचारः कथ्यते। जीवने सदाचारस्य स्थानं महत्त्वपूर्णम् अस्ति। आचारवान् पुरुषः सर्वत्र पूज्यते। सदाचारात् एव मनुष्यः दीर्घमायुः वैभवं च प्राप्नोति। यतः यः नरः सर्वलक्षणहीनः अपि अस्ति, परं सदाचारवान् अस्ति, स शतं वर्षाणि जीवति। सद्व्यवहारस्य बलेनैव मनुष्याः सुन्दरान् गुणान् अर्जयितुं समर्थाः भवन्ति। जनः उन्नतिं करोति। आचारहीनाः जनाः अपवित्राः भवन्ति। वेदाः अपि तान् रक्षितुं तं समर्थाः भवन्ति। सर्वस्य तपसः मूलं सदाचारः एव अस्ति। अतएव सदाचरणं सर्वेषाम् कृते अत्यावश्यकम् अस्ति।
प्रश्ना:
(क) सदाचारः किम् कथ्यते ?
(ख) जीवने कस्य स्थानं महत्त्वपूर्णम् अस्ति ?
(ग) सदाचारः कस्य मूलम् अस्ति ?
(घ) कः सर्वत्र पूज्यते ?
उत्तराणि
(क) सज्जनानाम् आचारः सदाचारः कथ्यते।
(ख) जीवने सदाचारस्य स्थानं महत्त्वपूर्णम् अस्ति।
(ग) सदाचारः सर्वस्य तपसः मूलम् अस्ति।
(घ) आचारवान् पुरुषः सर्वत्र पूज्यते।

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 10 ठोस आकारों का चित्रण Ex 10.3

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 10 ठोस आकारों का चित्रण Ex 10.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 10 ठोस आकारों का चित्रण Ex 10.3

प्रश्न 1.
क्या किसी बहुफलक के फलक नीचे दिए अनुसार हो सकते हैं?
(i) 3 त्रिभुज
(ii) 4 त्रिभुज
(iii) एक वर्ग और चार त्रिभुज।
हल:
(i) 3 त्रिभुज – नहीं।
(ii) 4 त्रिभुज – हाँ।
(iii) एक वर्ग और चार त्रिभुज – हाँ।

प्रश्न 2.
क्या ऐसा बहुफलक सम्भव है जिसके फलकों की संख्या कोई भी संख्या हो?
हल:
हाँ, सम्भव है केवल तभी जब फलकों की संख्या कम-से-कम 4 या 4 से अधिक हो ।

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 10 ठोस आकारों का चित्रण Ex 10.3

प्रश्न 3.
निम्नलिखित (पा.पु. पृष्ठ 176) में से कौन-कौन प्रिज्म है?
हल :
बिना छिली हुई पेंसिल तथा बॉक्स प्रिज्म हैं।

प्रश्न 4.
(i) प्रिज्म तथा बेलन किस प्रकार एक जैसे हैं ?
(ii) पिरामिड और शंकु किस प्रकार एक जैसे हैं ?
हल :
(i) प्रिज्म, बेलन का रूप तब ले लेता है, जब आधार की भुजाओं की संख्या बड़ी और बड़ी होती जाती है।
(ii) एक पिरामिड, जब शंकु का रूप ले लेता है, तब आधार की भुजाओं की संख्या बड़ी और बड़ी हो जाती है।

प्रश्न 5.
क्या एक वर्ग प्रिज्म और एक घन एक ही होते है ? स्पष्ट कीजिए।
हल :
नहीं, एक वर्ग प्रिज्म और एक घन एक ही नहीं होते हैं, एक घनाभ भी हो सकता है ।

प्रश्न 6.
इन ठोसों के लिए ऑयलर सूत्र का सत्यापन कीजिए
HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 10 ठोस आकारों का चित्रण Ex 10.3 -1
हल:
(i)
F = 6
E = 15
V = 10
ऑयलर सूत्र, F + V – E = 2 से
F + V – E = 7 + 10 – 15 = 17 – 15 = 2
इति सिद्धम्

(ii)
F = 9
E = 16
V = 9
F + V – E = 9 + 9 – 16 = 18 – 16 = 2
इति सिद्धम्

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 10 ठोस आकारों का चित्रण Ex 10.3

प्रश्न 7.
ऑयलर सूत्र का प्रयोग करते हुए, अज्ञात संख्या को ज्ञात कीजिए-
Table 1
हल :
ऑयलर सूत्र, F + V – E = 2 से,
(i) F + V – E = 2
F + 6 – 12 = 2
F = 2 + 12 – 6
F = 14 – 6
F = 8

(ii) F + V – E = 2
5 + V – 9 = 2
V = 2 + 9 – 5
V = 11 – 5
V = 6

(iii) F + V – E = 2
20 + 12 – E = 2
20 + 12 – 2 = E
E = 32 – 2
E = 30

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 10 ठोस आकारों का चित्रण Ex 10.3

प्रश्न 8.
क्या किसी बहुफलक के 10 फलक, 20 किनारे तथा 15 शीर्ष हो सकते हैं ?
हल :
F = 10, E = 20,V = 15
सूत्र, F + V – E = 2
L.H.S. = 10 + 15 – 20
= 25 – 20
= 5 = R.H.S.
हम जानते हैं कि, F + V – E = 2 होता है।
लेकिन हल करने पर F+V- E का मान 5 आ रहा इसलिए यह बहुफलक सम्भव नहीं है।

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.3

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Exercise 2.3

निम्न समीकरणों को हल कीजिये और अपने उत्तर की जाँच कीजिए।

प्रश्न 1.
3x = 2x + 18
हल :
3x = 2x + 18
2x को बाईं ओर पक्षांतरण करने पर 3x – 2x = 18
x= 18

जाँच-
3x= 2x + 18
L.H.S. में x= 18 रखने पर,
3x = 3 × 18 = 54

R.H.S. में x= 18 रखने पर,
2x + 18 = 2 × 18 + 18 = 54
=36+ 18
= 54
अत: L.H.S. = R.H.S.

प्रश्न 2.
5t – 3 = 3t – 5
हल :
5t – 3 = 3t – 5
3t तथा 3 का पक्षान्तरण करने पर,
5t – 3t = -5 + 3
या 2t = 2
या t = \(\frac{-2}{2}\) = -1
∴ t = -1

जाँच-
5t – 3= 3t – 5
L.H.S. में t = -1 रखने पर,
(5t – 3) = 5 (-1) – 3 = – 5 – 3 = -8.

R.H.S. में t=-1 रखने पर,
(3t – 5) = 3(-1) – 5 = – 3 – 5 = – 8
अत: L.H.S. = R.H.S.

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.3

प्रश्न 3.
5x + 9 = 5 + 3x
हल :
5x +9 = 5 + 3x
3x तथा 9 का पक्षान्तरण करने पर,
5x – 3x = 5 – 9
या 2x = – 4
या x = \(\frac{-4}{2}\) = – 2
∴ x = – 2

जाँच-
5x + 9 = 5 + 3x
L.H.S. में x = – 2 रखने पर,
5(-2) + 9 = – 10 + 9 = – 1

L.H.S. में x = – 2 रखने पर,
5 + 3(-2) = 5 – 6 = – 1
अत: L.H.S. = R.H.S.

प्रश्न 4.
4z + 3 = 6 + 2z.
हल :
4z + 3 = 6 + 2z.
2z तथा 3 का पक्षान्तरण करने पर,
4z – 2z = 6 – 3
या 2z = 3
∴ z = \(\frac{3}{2}\)

जाँच-
4z + 3 = 6 + 2z.
L.H.S. में z = \(\frac{3}{2}\) रखने पर,
4z + 3 = z = \(4 \frac{3}{2}\) + 3 = 6 + 3 = 9

R.H.S. में z = \(\frac{3}{2}\) रखने पर,
6 + 4z = z = 6 + \(2 \frac{3}{2}\) = 6 + 3 = 9

∴ L.H.S. = R.H.S.

प्रश्न 5.
2x – 1 = 14 – x
हल :
2x – 1 = 14 – x
x तथा 1 का पक्षान्तरण करने पर,
2x + x = 14 + 1
या 3x = 15
या x = \(\frac{15}{3}\) = 5
∴ x = 5

जाँच-
2x – 1 = 14 – x
L.H.S. में x = 5 रखने पर,
2x – 1 = 2(5) – 1 = 10 – 1 = 9

R.H.S. में x = 5 रखने पर,
14 – x = 14 – 5 = 9

अत: L.H.S. = R.H.S.

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.3

प्रश्न 6.
8x + 4 = 3 (x – 1) + 7
हल :
8x + 4 = 3 (x – 1) + 7
या 8x + 4 = 3x – 3 + 7
या 8x + 4 = 3x + 4
3x तथा 4 का पक्षान्तरण करने पर,
या
8x – 3x = 4 – 4
या 5x = 0
या x = \(\frac{0}{5}\) = 0
∴ x = 0

जाँच-
8x + 4 = 3 (x – 1) + 7

L.H.S. में x = 0 रखने पर,
8x + 4 = 8 × 0 + 4 = 0 + 4 = 4

R.H.S. में x = 0 रखने पर,
3 (x – 1) + 7 = 3(0 – 1) + 7 = 3 (-1) + 7 = 4

अत: L.H.S. = R.H.S.

प्रश्न 7.
x = \(\frac{4}{5}\)(x + 10)
हल :
x = \(\frac{4}{5}\)(x + 10)
कैंची गुणा करने पर,
5x = 4(x + 10)
या 5x = 4x + 40
4x का पक्षान्तरण करने पर,
5x – 4x = 40
∴ x = 40

जाँच-
x = \(\frac{4}{5}\)(x + 10)

L.H.S. में x = 40 रखने पर,
x = 40

R.H.S. में x = 40 रखने पर,
\(\frac{4}{5}\)(x + 10) = \(\frac{4}{5}\)(40 + 10)
= \(\frac{4}{5}\)(50) = \(\frac{4 × 50}{5}\) = 40

अत: L.H.S. = R.H.S.

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.3

प्रश्न 8.
\(\frac{2x}{3}\) + 1 = \(\frac{7x}{15}\) + 3
हल :
\(\frac{2x}{3}\) + 1 = \(\frac{7x}{15}\) + 3
\(\frac{7x}{15}\) तथा 4 का पक्षान्तरण करने पर,
\(\frac{2x}{3}\) + \(\frac{7x}{15}\) = 3 – 1
या \(\frac{10x – 7x}{15}\) = 2
या \(\frac{3x}{15}\) = 2
कैंची गुणा करने पर-
3x = 2 × 15
या x = \(\frac{2 \times 15}{3}\) = 10
∴ x = 10

जाँच-
\(\frac{2x}{3}\) + 1 = \(\frac{7x}{15}\) + 3

L.H.S. में x = 10 रखने पर,
\(\frac{2x}{3}\) + 1 = \(\frac{2 \times 10}{3}\) + 3
= \(\frac{20}{3}\) + 1
= \(\frac{20 + 3}{3}\) = \(\frac{23}{3}\)

R.H.S. में x = 40 रखने पर,
\(\frac{7x}{15}\) + 3 = \(\frac{7 \times 10}{15}\) + 3
= \(\frac{14}{3}\) + 3
= \(\frac{14 + 9}{3}\) + 3 = \(\frac{23}{3}\) + 3

अत: L.H.S. = R.H.S.

प्रश्न 9.
2y + \(\frac{5}{3}\) = \(\frac{26}{3}\) – y.
हल :
y तथा \(\frac{5}{3}\) का पक्षान्तरण करने पर,

2y + y = \(\frac{26}{3}\) – \(\frac{5}{3}\)
या 3y = \(\frac{26 – 5}{3}\) = \(\frac{21}{3}\)
या 3y = 7
∴ y = \(\frac{7}{3}\)

जाँच-
2y + \(\frac{5}{3}\) = \(\frac{26}{3}\) – y.
L.H.S. में y = \(\frac{7}{3}\) रखने पर-
2y + \(\frac{5}{3}\) = \(2\left(\frac{7}{3}\right)+\frac{5}{3}\)
= \(\left(\frac{14}{3}\right)+\frac{5}{3}\)
= \(\frac{14 + 5}{3}\) = \(\frac{19}{3}\)

R.H.S. में y = \(\frac{7}{3}\) रखने पर-
\(\frac{26}{3}\) – y = \(\frac{26}{3}\) – \(\frac{7}{3}\)
= \(\frac{26 – 7}{3}\) = \(\frac{19}{3}\)

अत: L.H.S. = R.H.S.

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.3

प्रश्न 10.
3m = 5m – \(\frac{8}{5}\)
हल :
3m = 5m – \(\frac{8}{5}\)
5m का पक्षान्तरण करने पर,
3m – 5m = – \(\frac{8}{5}\)
– 2m = – \(\frac{8}{5}\)
या m = \(\frac{8}{5 \times 2}=\frac{4}{5}\)
∴ m = \(\frac{4}{5}\)

जाँच-
3m = 5m – \(\frac{8}{5}\)

L.H.S. में m = \(\frac{4}{5}\) रखने पर-
3m = \(3 \frac{4}{5}\)
= \(\frac{12}{5}\)

R.H.S. में m = \(\frac{4}{5}\) रखने पर-
5m – \(\frac{8}{5}\) = \(5\left(\frac{4}{5}\right)-\frac{8}{5}\)
= \(4-\frac{8}{5}\)
= \(\frac{20 – 8}{5}\)
= \(\frac{12}{5}\)

अत: L.H.S. = R.H.S.

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HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.1

Haryana State Board HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Exercise 2.1

निम्न समीकरणों को हल कीजिए-

प्रश्न 1.
x – 2 = 7
हल :
x – 2 = 7
2 को दायें पक्ष में पक्षांतरण करने पर,
x = 7 +2
∴ x = 9

प्रश्न 2.
y + 3 = 10
हल :
y + 3 = 10
3 को दायें पक्ष में पक्षांतरण करने पर,
y = 10 – 3
∴ y = 7

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.1

प्रश्न 3.
6 = z + 2
हल :
6 = z + 2
2 को बायें पक्ष में पक्षांतरण करने पर,
6 – 2 = z
या 4 = z
∴ z = 4

प्रश्न 4.
\(\frac{3}{7}\) + x = \(\frac{17}{7}\)
हल :
\(\frac{3}{7}\) + x = \(\frac{17}{7}\)
\(\frac{3}{7}\) को दायें पक्ष में पक्षांतरण करने पर,
x = \(\frac{17}{7}\) – \(\frac{3}{7}\)
या x = \(\frac{14}{7}\) = 2
∴ x = 2

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.1

प्रश्न 5.
6x = 12
हल :
6x = 12
या x = \(\frac{12}{6}\)
∴ x = 2

प्रश्न 6.
\(\frac{t}{5}\) = 10
हल :
\(\frac{t}{5}\) = 10
या t = 10 × 5 (कैंची गुणा करने)
∴ t = 50

प्रश्न 7.
\(\frac{2x}{3}\) = 18
हल :
\(\frac{2x}{3}\) = 18
या 2x = 18 × 3 (कैंची गुणा करने)
या x = \(\frac{18 \times 3}{2}\)
∴ x = 27

प्रश्न 8.
1.6 = \(\frac{y}{1.5}\)
हल :
1.6 = \(\frac{y}{1.5}\)
या \(\frac{16}{1}\) = \(\frac{y}{1.5}\)
या 1 × y = 1.6 × 1.5 (कैंची गुणा करने पर)
या y = 2.40
∴ y = 2.4

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.1

प्रश्न 9.
7x – 9 = 16
हल :
7x – 9 = 16
– 9 को पांतरण करने पर,
7x = 16 + 9
या 7x = 25
∴ x = \(\frac{25}{7}\)

प्रश्न 10.
14y – 8 = 13
हल :
14y – 8 = 13
-8 को दायें पक्ष में पक्षांतरण करने पर,
14y = 13 +8
या 14y = 21
∴ y = \(\frac{21}{14}\) = \(\frac{3}{2}\)
∴ y = \(\frac{3}{2}\)

प्रश्न 11.
17 + 6p = 9
17 + 6p = 9
17 को दायें पक्ष में पक्षांतरण करने पर,
6p = 9 – 17
या 6p = -8
या p = \(\frac{-8}{6}\)
∴ p = \(\frac{-4}{3}\)

HBSE 8th Class Maths Solutions Chapter 2 एक चर वाले रैखिक समीकरण Ex 2.1

प्रश्न 12.
\(\frac{x}{3}\) + 1 = \(\frac{7}{15}\)
हल :
\(\frac{x}{3}\) + 1 = \(\frac{7}{15}\)
1 को पक्षांतरण करने पर,
\(\frac{x}{3}\) + 1 – 1 = \(\frac{7}{15}\) – 1
या \(\frac{x}{3}\) = \(\frac{7-15}{15}\)
या \(\frac{x}{3}\) = \(\frac{-8}{15}\)
15x = -8 × 3 (कैंची गुणा करने पर)
या x = \(\frac{-8}{15}\) × 3
∴ x = \(\frac{-8}{5}\)

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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

HBSE 12th Class Sanskrit किन्तोः कुटिलता Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतेन उत्तरं दीयताम्
(क) भूमिविषयके अभियोगे ‘किन्तु’-ना का बाधा उपस्थापिता ?
(ख) वाक्यमध्ये प्रविश्य सर्वं कार्यं केन विनाश्यते ?
(ग) लेखकस्य देशसेवायाः विचारस्य कथम् इतिश्रीरभूत् ?
(घ) नेतृमहोदयः पुस्तकप्रशंसां कुर्वन् ‘किन्तु’ प्रयोगेन कं परामर्शम् अददात् ?
(ङ) भोजन-गोष्ठीस्थले कीदृशी प्रदर्शनी समायोजिता आसीत् ?
(च) भोजनगोष्ठ्यां लेखकस्य कण्ठनलिकां क: अरुधत् ?
(छ) धर्मव्यवस्थापक: विधवायाः पुनर्विवाहमुचितं मन्यमानोऽपि व्यवस्थां किमर्थं न ददौ ?
(ज) गृहिणी पत्युः कर्णसमीपे आगत्य शनैः किम् अवदत् ?
(झ) लोकाः किन्तु-युक्तां वार्ता केन कारणेन विगुणां गणयन्ति ?
(ञ) किन्तोः सार्वदिकः प्रभावः कः ?
उत्तरम्:
(क) ‘राजस्वविभागस्य प्रधानः अधिकारी तद्-विरोधे एकं पत्रं प्रेषितवान्’- इति बाधा किन्तुना उपस्थापिता।
(ख) वाक्यमध्ये प्रविश्य सर्वं कार्यं किन्तुना विनाश्यते।
(ग) “किन्तु किञ्चित् स्वगृहाभिमुखं विलोकनीयम्’ इति अध्यापकवचनेन लेखकस्य देशसेवायाः विचारस्य इति श्रीः अभूत्।
(घ) नेतृमहोदयः परामर्शम् अददात्- “यदि इदं पुस्तकं हिन्दीभाषायाम् अलिखिष्यत् तर्हि सम्यग् अभविष्यत्।”
(ङ) भोजन-गोष्ठीस्थले भोज्य-व्यञ्जनानां प्रदर्शनी समायोजिता आसीत्।
(च) लेखकमहोदयस्य कण्ठनलिकां स्वामिमहोदयस्य ‘किन्तुः’ अरुधत्।
(छ) यतः धर्मव्यवस्थापक: प्राचीनमर्यादाम् अपि रक्षितुम् इच्छति स्म, अतः सः पुनर्विवाहस्य व्यवस्थां न ददौ।
(ज) सा अवदत्-“अन्धकारेऽस्मिन् त्वम् अवश्यं यासि, ‘किन्तु’ दृश्यताम्, स शस्त्रं न प्रहरेत्।”
(झ) यतः किन्तुयुक्तायाः वार्तायाः सिद्धौ किन्तुना बाधा अवश्यमेव स्थाप्यते, अतः लोकाः किन्तुयुक्तां वार्ता विगुणां गणयन्ति।
(ञ) एषः किन्तुः सर्वासां वार्तानां मध्ये प्रविश्य वार्तायाः विच्छेदम् अवश्यं करोति इत्येव किन्तोः सार्वदिकः प्रभावः ।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

2. उपयुक्तशब्दान् चित्वा रिक्तस्थानानां पूर्तिः विधेया
(दुर्घटा, अवधानम्, सन्दानितः, स्वामिमहोदयम्, संस्कृते, विवाहस्य, शान्तम्, पलायांचक्रे, कालात्, संकटे)
(क) अहं…………….. अप्राक्षं किमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि।
(ख) अस्य ‘किन्तोः’ कारणात् कस्मिन्नपि कार्ये सफलता…………. अस्ति।
(ग) तस्य स्वादसूत्रेण ……………अहं यथैव द्वितीयं ग्रासमगृह्णम्, तथैव ‘किन्तुः’ मम कण्ठनलिकामरुधत्।
(घ) गरिष्ठवस्तुनो भोजने……………..अत्यावश्यकम्।
(ङ) विगुणः कार्षापणः कुत्सितश्च पुत्रः……………..कदाचिदुपयुक्तो भवेत् ।
(च) राज्यतो लब्धाया भूमेरभियोगो बहोः……………..न्यायालये चलति स्म।
(छ) मम सर्वोऽप्युत्साहः………………..
(ज) अहं निश्चिन्तताया एकं……………..निःश्वासममुचम्।
(झ) जातस्य तस्या …………….. अद्य तृतीयो दिवसः ।
(ञ) बहुकालानन्तरं…………….. एवं विधा नवीनता दृष्टिगताऽभवत्।
उत्तरम्:
(क) अहं स्वामिमहोदयम् अप्राक्षं किमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि ।
(ख) अस्य ‘किन्तोः’ कारणात् कस्मिन्नपि कार्यै सफलता दुर्घटा अस्ति ।
(ग) तस्य स्वादसूत्रेण सन्दानितः अहं यथैव द्वितीयं ग्रासमगृह्णम्, तथैव ‘किन्तुः’ मम कण्ठनलिकामरुधत्।
(घ) गरिष्ठवस्तुनो भोजने अवधानम् अत्यावश्यकम्।
(ङ) विगुणः कार्षापणः कुत्सितश्च पुत्रः संकटे कदाचिदुपयुक्तो भवेत्।
(च) राज्यतो लब्धाया भूमेरभियोगो बहो: कालात् न्यायालये चलति स्म।
(छ) मम सर्वोऽप्युत्साहः पलायाञ्चक्रे।
(ज) अहं निश्चिन्तताया एकं शान्तं नि:श्वासममुचम्।
(झ) जातस्य तस्या विवाहस्य अद्य तृतीयो दिवसः।
(ब) बहुकालानन्तरं संस्कृते एवं विधा नवीनता दृष्टिगताऽभवत्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

3. अधोलिखितैः उचितक्रियापदैः रिक्तस्थानानि पूरयत परिगण्येत, परावर्तिषि, आच्छिनत्ति, मन्यामहे, दीयेत, अलिखिष्यत्।
(क) प्रधानः एकं पत्रं प्रेषितवानस्ति। एतदुपर्यपि लक्ष्यदानमावश्यकं ………… ।
(ख) गृहाभिमुखं मुखं कुर्वन् तस्मात् स्थानादेव …………. ।
(ग) यदि हिन्दीभाषायाम् …………. तर्हि सम्यगभविष्यत्।
(घ) इदमेवोचितं प्रतीयते यत् एवंविधस्थले पुनर्विवाहस्य व्यवस्था ………….।
(ङ) कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूरः ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमपि ………… ।
(च) नाद्यापि चतुर्थीकर्म सम्पन्नं येन विवाहः पूर्णः ……….. ।
उत्तरम्:
(क) प्रधानः एकं पत्रं प्रेषितवानस्ति। एतदुपर्यपि लक्ष्यदानमावश्यकं मन्यामहे।
(ख) गृहाभिमुखं मुखं कुर्वन् तस्मात् स्थानादेव परावर्तिषि।
(ग) यदि हिन्दीभाषायाम् अलिखिष्यत् तर्हि सम्यगभविष्यत्।
(घ) इदमेवोचितं प्रतीयते यत् एवंविधस्थले पुनर्विवाहस्य व्यवस्था दीयेत।
(ङ) कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूर: ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमपि आच्छिनत्ति।
(च) नाद्यापि चतुर्थीकर्म सम्पन्नं येन विवाहः पूर्णः परिगण्येत।

4. सन्धिच्छेदं कुरुत
उत्तरसहितम्
(क) तत्रैवास्य = तत्र + एव + अस्य
(ख) सर्वाण्येव = सर्वाणि + एव
(ग) मन्निर्मितमेकम् = मत् + निर्मितम् + एकम्
(घ) किलैकोऽधिकारी = किल + एकः + अधिकारी
(ङ) द्वयोरुपर्येव = द्वयोः + उपरि + एव।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

5. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम्
उत्तरसहितम्
(क) निर्मुच्य = निर् + √मुच् + क्त्वा > ल्यप्
(ख) आदाय = आ + √दा + क्त्वा > ल्यप्
(ग) प्रविष्टः = प्र + √विश् + क्त (पुंल्लिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(घ) आगत्य = आ + √गम् + क्त्वा > ल्यप्
(ङ) परिज्ञातम् = परि + √ज्ञा + क्त (नपुंसकलिङ्गम् प्रथमा-एकवचनम्)

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

6. अधोलिखितेषु पदेषु विभक्तिं वचनं च दर्शयत
उत्तरसहितम्
(क) कार्ये कार्य-सप्तमी विभक्तिः , एकवचनम्
(ख) अभियोक्तुः अभियोक्तृ-पञ्चमी/षष्ठी विभक्तिः, एकवचनम्
(ग) बालिकायाः बालिका – पञ्चमी/षष्ठी विभक्तिः, एकवचनम्
(घ) न्यायालयेन न्यायालय-तृतीया विभक्तिः, एकवचनम्
(ङ) नेतुः नेतृ – सप्तमी विभक्तिः , एकवचनम्
(च) शक्तौ शक्ति – सप्तमी विभक्तिः, एकवचनम्
(छ) औषधिम् औषधि – द्वितीया विभक्तिः, एकवचनम्

7. स्वरचितवाक्येषु अधोलिखितपदानां प्रयोगं कुरुत
किन्तु, गन्तुम, मह्यम्, विभीषिका, भरणपोषणम्, दृष्ट्वा
उत्तरम्:
(क) किन्तु-अहं धावनप्रतियोगितायां सर्वतो अग्रे आसम्, किन्तु सहसा मम पादस्खलनम् अभवत्।
(ख) गन्तुम्-अहं विद्यालयं गन्तुम् इच्छामि।
(ग) मह्यम्-मयं पठनम् अतीव रोचते।
(घ) विभीषिका-परीक्षायाः विभीषिका मनः उद्वेलयति।
(ङ) भरणपोषणम्-परिवारस्य भरणपोषणं तु सर्वेषां कर्तव्यम् अस्ति।
(च) दृष्ट्वा-अधः दृष्ट्वा कथं न गच्छसि ?

8. विलोमशब्दान् लिखत
उत्तरसहितम्: – विलोमपदम्
(क) विगुणः – सगुणः
(ख) शौर्यम् – अशौर्यम्
(ग) सुरक्षितः – विनष्टः
(घ) शत्रुता – मित्रता
(ङ) धीरः – अधीरः
(च) भयम् – निर्भयम्

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योग्यताविस्तारः
1. स्वकल्पनया वाक्यपूर्तिं कुरुत
उत्तरम्
(क) अहम् उच्चाध्ययनं कर्तुमिच्छामि, किन्तु आर्थिकस्थितिः न अनुमन्यते।
(ख) छात्राः कक्षायामुपस्थिताः किन्तु अध्यापकः एव नास्ति।
(ग) सः गन्तुमिच्छति, किन्तु बसयानम् एव निर्गतम्।
(घ) वयं तर्तुच्छिामः, किन्तु क्लिन्नाः भवितुं न इच्छामः ।
(ङ) ते कार्यं कर्तुमिच्छन्ति, किन्तु अवसरः एव न लभन्ते।
(च) अर्वाचीनाः जना अपि प्राचीनां भाषां पठितुमिच्छन्ति, किन्तु यदि तया आजीविका सिध्येत तदैव ।
(छ) निर्धना अपि धनमिच्छन्ति, किन्तु धनेन एव धनम् अर्च्यते इति समस्या।
(ज) सर्वे जना आजीविकामिच्छन्ति, किन्तु सर्वेभ्यः सा सुलभा न भवति।
(झ) मूकोऽपि वक्तुमिच्छति, किन्तु असमर्थः अस्ति। ..
(ञ) अध्यापका अध्यापनं कर्तुमिच्छन्ति, किन्तु केचन छात्राः एव पठितुं न इच्छन्ति।

2. अधोलिखितानाम् आभाणकानां समानार्थकानि वाक्यानि पाठात् अन्वेष्टव्यानि
(क) मुँह का कौर छीनना।
(ख) कुछ दिन पहले की बात है।
(ग) खोटा सिक्का और खोटा बेटा भी समय पर काम आते हैं।
(घ) नाक-भौंह सिकोड़ना।
उत्तरम्:
(क) मुखस्य कवलमपि आच्छिनत्ति।
(ख) स्वल्पदिनानामेव वार्तास्ति।
(ग) विगुणः कार्षापणः कुत्सितश्च पुत्रः संकटे कदाचित् उपयुक्तो भवेत्।
(घ) नासा-भ्रूसकोचः।

HBSE 9th Class Sanskrit किन्तोः कुटिलता Important Questions and Answers

I. पुस्तकानुसारं समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) भोजनगोष्ठ्यां लेखकस्य कण्ठनलिकां क: अरुधत् ?
(A) पत्नी
(B) स्वामिमहोदस्य किन्तुः
(C) मन्त्रिमहोदयस्य किन्तुः
(D) शिक्षकः।
उत्तराणि
(B) स्वामिमहोदयस्य किन्तुः ।

(ii) वाक्यमध्ये प्रविश्य सर्वं कार्य केन विनाश्यते ?
(A) स्वामिना
(B) सेवकेन
(C) अधिकारिणा
(D) किन्तुना।
उत्तराणि
(C) किन्तुना

(iii) गरिष्ठवस्तुनो भोजने किम् अत्यावश्यकम् ?
(A) मिष्ठान्नम्
(B) तिक्त-व्यञ्जनम्
(C) अवधानम्
(D) क्षीरम्।
उत्तराणि
(B) अवधानम्

(iv) गहिणी कस्य कर्णसमीगे आगत्य शनैः अवदत् ?
(A) पत्युः
(B) अधिकारिणः
(C) किन्तोः
(D) मन्त्रिणः।
उत्तराणि
(A) पत्युः

(v) कस्य कारणात् कस्मिन्नपि कार्ये सफलता दुर्घटा अस्ति ?
(A) पत्न्याः
(B) न्युः
(C) किन्तोः
(D) स्वामिनः।
उत्तराणि
(A) किन्तोः

(vi) भूमेः अभियोगः कुत्र चलति स्म ?
(A) ग्रामपञ्चायते
(B) न्यायालये
(C) नगरे
(D) ग्रामे।
उत्तराणि
(D) न्यायालये।

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II. रेखाकितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) क्रूरः किन्तुः मध्ये प्रविश्य सर्वं विनाशयति।
(A) कः
(B) काः
(C) के
(D) किम्।
उत्तराणि:
(D) किम्

(ii) राजस्वविभागस्य एक: अधिकारी एतद्विरोधे पत्रं प्रेषितवान्।
(A) काः
(B) कस्मात्
(C) कस्य
(D) कस्मिन्।
उत्तराणि:
(C) कस्य

(iii) कन्यायाः पतिः सहसा अम्रियत।
(A) कस्याः
(B) कः
(C) कथम्
(D) को।
उत्तराणि:
(B) कः

(iv) मानवाः क्षणमपि परपीडनात् न विरमन्ति।
(A) किम्
(B) कुत्र
(C) कस्मात्
(D) कस्य।
उत्तराणि:
(B) कुत्र

(v) स्वामिमहाभागस्य औषधिं निषेव्य अधुना अहं नीरोगः अभवम्।
(A) कीदृशः
(B) काः
(C) के
(D) कथम्।
उत्तराणि:
(A) कीदृशः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

किन्तोः कुटिलता पाठ्यांशः

1. कुटिलेनामुना ‘किन्तु’-ना कियत्कालात् क्लेशितोऽस्मि। यत्र यत्राहं गच्छामि तत्र तत्रैवास्य शत्रुता सम्मुखस्थिता भवति। अस्य ‘किन्तोः’ कारणात् कस्मिन्नपि कार्ये सफलता दुर्घटास्ति। बहून् वारान् दृष्टवानस्मि यत्कार्यं सर्वथा सज्जं सम्पद्यते, सर्वप्रकारैः सिद्धिहस्तगता भवति, यथैव सफलताया मूर्तिः सम्मुखमागच्छन्ती विलोक्यते तथैव क्रूरोऽयं किन्तुर्मध्ये प्रविश्य सर्वं विनाशयति।

हिन्दी-अनुवादः इस कुटिल ‘किन्तु’ शब्द से मैं कितने ही समय से पीड़ित हूँ। मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ, वहाँ-वहाँ ही इसकी शत्रुता सामने आ खड़ी होती है। इस ‘किन्तु’ के कारण किसी भी कार्य में सफलता अति-कठिन है। मैंने बहुत बार देखा है कि जो काम पूरी तरह से तैयार होता है, सब प्रकार से सफलता हाथ में आने वाली होती है, जैसे ही सफलता की मूर्ति सामने आती हुई दिखाई पड़ती है, वैसे ही यह क्रूर ‘किन्तु’ बीच में घुसकर सब नष्ट-भ्रष्ट कर देता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च क्लेशितः = दुःखी; कष्टापन्नः, √क्लेिश + क्त । दुर्घटा = असम्भव, कठिन; दुःखेन घटयितुं शक्या, दुर् + √घट् + आ। बहून् वारान् = बहुत बार; अनेकवारम्। आगच्छन्ती = आती हुई; आयान्ती, आ + √गम् + शतृ + ङीप्।

2. राज्यतो लब्धाया भूमेरभियोगो बहोः कालान्यायालये चलति स्म। अस्मिन्नभियोगे प्राविवाकमहोदयो निर्णयं श्रावयन् अवोचत् … वयं पश्यामो यदभियोक्तुः पक्षादावश्यकानि सर्वाण्येव प्रमाणान्युपस्थितानि सन्ति। राज्यतो लब्धाया भूमेर्दानपत्रमप्युपस्थापितमस्ति। न्यायालयेन परिज्ञातं यत् इयं भूमिरभियोक्तुरधिकारभुक्ताऽस्ति……..।’
अहं निश्चिन्तताया एकं शान्तं निःश्वासममुचम्। मया सर्वथा स्थिरीकृतं यद्भाग्य-लक्ष्मीरनुपदमेव मे कन्धरायां विजयमाल्यं प्रददातीति। परं प्राविवाकमहोदयः पुनरग्रे प्रावोचत्- ……… किन्तु राजस्व-विभागस्य प्रधानः किलैकोऽधिकारी एतद्विरोधे एकं पत्रं प्रेषितवानस्ति। एतदुपर्यपि लक्ष्यदानमावश्यकं मन्यामहे।’ मम सर्वोऽप्युत्साहः पलायाञ्चक्रे। किन्तु’-कुन्तो ममान्तः-करणं समन्तात् कृन्तति स्म। निजहृदयमवष्टभ्य न्यायं प्रशंसन् गृहमागमम्।

हिन्दी-अनुवादः राज्य से प्राप्त भूमि का अभियोग बहुत समय से न्यायालय में चल रहा था। इस अभियोग में जज महोदय ने निर्णय सुनाते हुए कहा-‘हम देखते हैं कि अभियोक्ता के पक्ष की ओर से सभी आवश्यक प्रमाण उपस्थित कर दिए गए हैं। राज्य से प्राप्त भूमि का दानपत्र भी उपस्थित कर दिया गया है। न्यायालय ने अच्छी तरह जान लिया है कि यह भूमि अभियोक्ता के अधिकार वाली है………….।

मैंने निश्चिन्तता से एक शान्त श्वास छोड़ी। मैंने पूरी तरह से निश्चय कर लिया कि भाग्यलक्ष्मी तुरन्त ही मेरे गले में विजयमाला पहनाने वाली है। परन्तु जज महोदय ने फिर आगे कहा-‘…………किन्तु राजस्व विभाग के एक मुख्य अधिकारी ने इसके विरोध में एक पत्र भेजा है। इस पर भी एक नज़र डालना मैं आवश्यक समझता हूँ।’ मेरा सारा उत्साह फुर्र हो गया (गायब हो गया)। किन्तु’ रूपी भाला मेरे चित्त को चारों तरफ से काट रहा था। मैं अपने हृदय को सान्त्वना देकर न्याय की प्रशंसा करते हुए घर वापस आ गया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अभियोगः = मुकद्दमा; अभि + √युज् + घञ्, पुंल्लिङ्ग, प्रथम पुरुष एकवचन। अभियोक्तुः = मुद्दई का, मुकद्दमा चलाने वाले का; अभि + √युज् + तृ। ऋकारान्त पुंल्लिङ्ग, पञ्चमी एकवचन। कुन्तः = भाला। मुद्रा = मुखाकृति । प्राबल्यस्य = प्रबलता का, वेगपूर्वक; प्र + √बल + ष्यञ्, नपुंसकलिङ्ग, षष्ठी एकवचन। निर्वाणा = समाप्त हो चुकी; निर् + √वा + क्त, स्त्रीलिङ्ग, प्रथमपुरुष, एकवचन। इतिश्रीः = समाप्ति। मार्मिकः = तत्त्वज्ञ, विषयज्ञ; मर्म + ठक्, प्रथमपुरुष एकवचन। कन्धरायाम् = गले में, गर्दन पर। प्राड्विवाकः = जज, न्यायाधीश। लक्ष्यदानम् = दृष्टिपात, ध्यानदेना; लक्ष्यस्य दानम्, षष्ठी-तत्पुरुष। कृन्तति स्म = काट रहा था। अवष्टभ्य = रोककर; अव + √स्तम्भ (अवरोध) + ल्यप्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

3. दृष्टं मया यदेष ‘किन्तुः’ दयाधर्मादिष्वपि अनधिकारचेष्टातो न विरतो भवति। प्रातः कालस्यैव कथास्ति…. धर्मव्यवस्थापकमहोदयस्य समीपे एको दीनः करुणक्रन्दनपुरःसरं न्यवेदयत्-“महाराज! नववार्षिकी मे कन्या। जातस्य तस्या विवाहस्य अद्य तृतीयो दिवसः। नाद्यापि चतुर्थीकर्म सम्पन्नं येन विवाहः पूर्णः परिगण्येत। तस्याः पतिः सहसाऽम्रियत। हा हन्त! तस्या अबोधबालिकाया अग्रे किं भावि? अस्तकर्मसंख्यावृद्धौ किं ममोच्चकुलमपि सहायकं भविष्यति? आज्ञापयन्तु श्रीमन्तः किं मया साम्प्रतं कर्तव्यम्।” पण्डितमहोदयो गभीरतममुद्रयाऽवोचत्… “अवश्यमिदं दयास्थानम्। वर्तमानकाले समाजस्य भीषणपरिस्थितेः पर्यालोचन इदमेवोचितं प्रतीयते यत् एवं विधस्थले पुनर्विवाहस्य व्यवस्था दीयेत…. किन्तु’ वयं मुखेन कथमेतत् कथयितुं शक्नुमः। प्राचीनमर्यादापि तु रक्षितव्या स्यात्।”

हिन्दी-अनुवादः मैंने देखा है कि यह ‘किन्तु’ दया धर्म आदि में भी अपनी अनधिकार चेष्टा से रुकता नहीं है। प्रातः काल की ही बात है……. धर्मव्यवस्थापक महोदय के पास एक गरीब ने करुणक्रन्दन पूर्वक निवेदन किया-“महाराज! नौ वर्ष की मेरी कन्या है। उसका विवाह हुए तीन दिन बीत गए। आज भी ‘चतुर्थी कर्म’ पूरा नहीं हुआ, जिससे विवाह पूर्ण गिना जाए। उसका पति अचानक मर गया। हाय! उस अबोध बालिका का अब आगे क्या होगा? ‘अस्तकर्म’ की संख्या बढ़ाने में क्या मेरा उच्च कुल भी सहायक होगा ? आप आज्ञा कीजिए कि मुझे क्या करना है?” पण्डित महोदय ने गम्भीरतम मुद्रा में कहा-“यह तो अवश्य ही दयनीय स्थिति है। वर्तमान समय में समाज की
भीषण परिस्थिति को देखते हुए यही उचित प्रतीत होता है कि ऐसी दशा में पुनर्विवाह की व्यवस्था दे दी जाए (नियम बना दिया जाए)। ‘किन्तु हम अपने मुख से यह बात कैसे कह सकते हैं? प्राचीन मर्यादा की रक्षा भी तो की जानी चाहिए।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च विरतः = विरत, पृथक्, अलग; वि + √रम् + क्त। चतुर्थीकर्म = विवाहोपरान्त चौथे दिन किया जाने वाला कर्म, चतुर्थे अहनि क्रियमाणं कर्म, मध्यमपदलोपी समास। न्यवेदयत् = निवेदन किया, नि + अवेदयत्, √विद् (ज्ञाने) लङ् लकार णिजन्त, प्रथमपुरुष, एकवचन । नववार्षिकी = नौ वर्ष की आयु वाली। परिगण्येत = गिना जाए; परि + √गण (संख्याने) + विधिलिङ् प्रथमपुरुष, एकवचन। साम्प्रतम् = अभी, वर्तमान में, सम्प्रति एव साम्प्रतम्। गभीरतमम् = गम्भीरतम; गभीर + तमप्। पर्यालोचने = देखने पर, समग्र दृष्टिपात करने पर; परि + आ + √लोच् + ल्युट् सप्तमी विभक्ति, एकवचन (दर्शन, अंकन)।

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4. कुत्रचित् सोऽयं ‘किन्तुः’ नितान्तमनुतापं जनयति। अनेकवर्षाणां परिश्रमस्य फलस्वरूपं मन्निर्मितमेकं नवीनसंस्कृतपुस्तकमादाय साहित्यमर्मज्ञस्य एकस्य देशनेतुः समीपेऽगच्छम्। ‘नेतृ’-महोदयः पुस्तकस्य गुणान् सम्यक् परीक्ष्य प्रसन्नः सन्नवोचत्… “पुस्तकं वास्तव एव अद्भुतं निर्मितमस्ति बहुकालानान्तरं संस्कृते एवंविधा नवीनता दृष्टिगताऽभवत्।… ‘किन्तु’ मत्सम्मत्यां तदिदं पुस्तकं भवान् संस्कृते न विलिख्य यदि हिन्दीभाषायामलिखिष्यत् तर्हि सम्यगभविष्यत्।” अनेन ‘किन्तु’-ना मह्यं सा शिक्षा दत्तास्ति यद्यहं सत्पुरुषः स्यां तर्हि पुनरस्मिन् मार्गे पदनिक्षेपस्य नामापि न गृह्णीयाम्।

हिन्दी-अनुवादः – कहीं पर तो यह ‘किन्तु’ अत्यधिक दुःख पैदा करता है। अनेक वर्षों के परिश्रम के फलस्वरूप अपने द्वारा रचित एक नवीन संस्कृत पुस्तक लेकर एक साहित्य-मर्मज्ञ देश के नेता के समीप पहुँचा। नेता जी ने पुस्तक के गुणों की उचित परीक्षा करके प्रसन्न होते हुए कहा-“पुस्तक तो वास्तव में अद्भुत लिखी गई है। बहुत समय के पश्चात् संस्कृत में इस प्रकार की नवीनता देखी गई है।…….. किन्तु’ मेरी सम्मति में आप इस पुस्तक को संस्कृत में न लिखकर यदि हिन्दी भाषा में लिखते तो बहुत अच्छा होता।”

घर वापस लौटते हुए मैं ‘किन्तु’ द्वारा दी गई इस मर्मवेधक शिक्षा पर, घर के पूरे रास्ते कान मसलता हुआ चला गया। इस ‘किन्तु’ ने मुझे वह शिक्षा दी थी कि यदि मैं सत्पुरुष हूँ तो फिर इस रास्ते पर पाँव रखने का नाम भी न लूँ।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च नितान्तम् = अत्यधिक। अनुतापम् = पश्चात्ताप, पछतावा; अनु + तापम्। परीक्ष्य = परीक्षा करके, परि + √ईक्ष् + ल्यप्। निवर्तमानः = लौटता हुआ; नि + √वृत् + शानच । मर्मवेधकशिक्षायाः = मर्मभेदी शिक्षा के। मर्दयन् = मसलता हुआ। पदनिक्षेपः = कदम रखना; पदयोः निक्षेपः (षष्ठी-तत्पुरुष)

5. कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूरः ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमप्याच्छिनत्ति। स्वल्प-दिनानामेव वार्तास्ति। आयुर्वेदमार्तण्डस्य श्रीमतः स्वामिमहाभागस्य औषधिं निषेव्य अधुनैवाहं नीरोगोऽभवम्।अस्मिन्नेव समये मित्रगोष्ठ्या अहं स्वामिमहोदयमप्राक्षम्… ‘किमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि।’ उत्तरमलभ्यत… ‘तादृशी हानिस्तु नास्ति। ‘किन्तु’ गरिष्ठवस्तुनो भोजने अवधानमत्यावश्यकम् अधुनापि दौर्बल्यमस्ति।

हिन्दी-अनुवादः कभी-कभी तो यह क्रूर किन्तु मुख के कवल (ग्रास) को भी छीन लेता है। थोड़े ही दिनों की बात है। आयुर्वेद मार्तण्ड श्री स्वामी जी महाराज की औषधि का सेवन करके अब मैं स्वस्थ हो गया हूँ। इसी समय मित्र मण्डली की ओर से निमन्त्रण प्राप्त हुआ। भोजनगोष्ठी (पार्टी) में सम्मिलित होने के लिए मेरी इच्छा शक्ति की प्रबलता का प्रवाह पूरी तरह से बढ़ रहा था। मैंने स्वामी जी महाराज से पूछा-“क्या मैं वहाँ जा सकता हूँ।” उत्तर मिला-“वैसे तो कोई हानि नहीं है, ‘किन्तु’ गरिष्ठ पदार्थों के सेवन में बड़ी सावधानी की आवश्यकता है, अभी भी कमजोरी है।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च कवलम् = ग्रास। आच्छिनत्ति = छीन लेता है; आ + √छिद् + लट्लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन। स्वल्पदिनानाम् एव वार्ता = थोड़े दिनों की ही बात। निषेव्य = सेवन करके; नि + √सेव् + ल्यप् । समवेतुम् = सम्मिलित होने के लिए; सम्मिलितुम्, सम् + अव + √इ + तुमुन्। प्रवर्द्धमानः = अत्यधिक बढ़ा हुआ; प्र + √वृध् + शानच्। अप्राक्षम् = पूछा। अवधानम् = सावधानी, परहेज; अव + √धा + ल्युट > अन। दौर्बल्यम् = दुर्बलता, कमज़ोरी; दुर्बल + ण्यत्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

6. उत्साहस्य ज्वाला या पूर्वं प्रचण्डतमा आसीत् अर्द्धमात्रायां तु तत्रैव निर्वाणाभवत्। अस्तु येन केनापि प्रकारेण भोजनगोष्ठ्याविशेषाधिवेशनेऽस्मिन् सम्मिलितस्त्वभवमेव। भोजनपीठे अधिकारं कुर्वन्नेवाहमपश्यं यत् सर्वागपूर्णा एका भोज्य-व्यञ्जनानां प्रदर्शनी सम्मुखे वर्तत इति।धीरगम्भीरक्रमेणाहं भोजनकाण्डस्यारम्भमकरवम्। अहं मोदकस्यैकं ग्रासमगृह्णम्। तस्य स्वादसूत्रेण सन्दानितोऽहं यथैव द्वितीय ग्रासमगृह्ण तथैव ‘स्वामिमहोदयस्य ‘किन्तुः’ मम कण्ठनलिकामरुधत्। मुखस्य ग्रासो मुख एवाऽभ्राम्यत् अग्रे गन्तुं नाशक्नोत्। ‘किन्तोः’ भीषणविभीषिका प्रत्येकवस्तुनि गरिष्ठतां सम्पाद्य भोजनं तत्रैव समाप्तमकरोत्।

हिन्दी-अनुवादः – उत्साह की जो ज्वाला पहले अत्यधिक प्रचण्ड हो रही थी, आधे ही मिनट में वहीं बुझ गई। भोजन के आसन पर अधिकार जमाते हुए मैंने देखा कि एक सर्वांगपूर्ण भोज्य व्यंजनों की प्रदर्शनी सामने लगी हुई है। धीर-गम्भीर क्रम से मैंने भोजनकाण्ड की शुरुआत कर दी। मैंने लड्डू का एक ग्रास लिया। उसके स्वाद सूत्र से बँधे हुए मैंने जैसे ही दूसरा ग्रास ग्रहण किया तभी स्वामी महोदय की ‘किन्तु’ से मेरी कण्ठनली ही रुंध गई। मुख का ग्रास मुख में ही घूम गया, आगे जा ही न सका। ‘किन्तु’ के भीषण भय ने प्रत्येक वस्तु में गरिष्ठता बता कर भोजन वहीं समाप्त कर दिया।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अर्द्धमात्रायाम् = आधे मिनट में। निर्वाणा = शान्त हो गई, बुझ गई। सम्मिलितस्त्व- भवमेव = सम्मिलितः + तु + अभवम् + एव। स्वादसूत्रेण = स्वाद रूपी रस्सी से। सन्दानितः = बँधा हुआ; सन्दान + इतच् । अभ्राम्यत् = घूम गया। विभीषिका = भय, डर; वि + √भी + णिच् + ण्वुल् + टाप, षुक्, आगम और इत्व।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

7. अहं देशसेवां कर्तुं गृहाद बहिरभवम्। मया निश्चितमासीत् ‘एतावन्ति दिनानि स्वोदरसेवायै क्लिष्टोऽभवम। इदानीं कियन्तं कालं देशसेवायामपि लक्ष्यं ददामि। यथैवाहं मार्गेऽग्रेसरो भवामि, तथैव मम बाल्याध्यापकमहोदयः सम्मुखोऽभवत्। मास्टरमहोदयेन प्रस्थानहेतौ पृष्टे सति सम्पूर्णसमाचारनिवेदनं ममाऽऽवश्यकमभूत्। अध्यापकमहोदयः प्रावोचत्… “तात, सर्वमिदं सम्यक्। किन्तु स्वगृहाभिमुखमपि किञ्चिद्विलोकनीयं भवेत्। येषां भरणपोषणं भवत्येवायत्तम् तान् किं भवान् निराधारमेव निर्मुच्य स्वैरं गन्तुमर्हेत्।”
पुनः किमासीत्। अत्रैव परोपकारविचाराणाम् इतिश्रीरभूत्। किन्तु’-महोदयेन देशसेवायाः सर्वापि विचारपरम्परा परपारे परावर्त्यत गृहाभिमुखं मुखं कुर्वन् तस्मात् स्थानादेव परावर्तिषि।

हिन्दी-अनुवादः मैं देशसेवा करने के लिए घर से बाहर हुआ। मैंने निश्चय किया था कि इतने दिनों तक अपनी पेट-पूजा के लिए कष्ट उठाया है। अब कुछ समय देशसेवा में भी लगाता हूँ। जैसे ही मैं रास्ते में आगे-आगे हुआ, तभी मेरे बचपन के अध्यापक मेरे सामने आ गए। मास्टर महोदय द्वारा प्रस्थान का कारण पूछने पर मेरे लिए सारा समाचार निवेदन करना आवश्यक हो गया था। अध्यापक महोदय ने कहा-“पुत्र, यह सब तो ठीक है। ‘किन्तु’ अपने घर की तरफ भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए। जिनके भरण-पोषण की आपने ज़िम्मेदारी ली है, क्या आप उन्हें बेसहारा छोड़कर अपनी इच्छानुसार जा सकते हो?” फिर क्या था, यहीं पर परोपकार के विचार की इतिश्री हो गई। ‘किन्तु’ जी महाराज ने देशसेवा की सारी विचार परम्परा को परले पार कर (लौटा) दिया। घर की ओर मुँह करते हुए उसी स्थान से वापस लौट गया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च स्वोदरसेवायै = अपनी पेट-पूजा के लिए। क्लिष्टः = दुःखी। कियन्तं कालम् = कुछ समय। अग्रेसरः = आगे चलने वाला। आयत्तम् = प्राप्त किया गया, स्वीकार किया गया। निराधारम् = व्यर्थ। निर्मुच्य = छोड़कर; परित्यज्य, निः + √मुच् + ल्यप्। स्वैरम् = स्वेच्छानुसार। गन्तुम् अर्हेत् = जा सकते हो; ‘तुमुन्’ प्रत्ययान्त शब्दों के साथ √अर्ह धातु का प्रयोग √शक् धातु (= सकना) के अर्थ में होता है। परपारे = परले पार, दूसरी ओर। परावर्त्यत = लौटा दिया।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

8. मयानुभूतमस्ति यदयं कुटिलः ‘किन्तुः’ नानादेशेषु नानारूपाणि सन्धार्य गुप्तं विचरति। यथैव लोकानां कार्यसिद्धेरवसरः समुपतिष्ठते तथैवायं प्रकटीभूय लोकानां कार्याणि यथावस्थितमवरुणद्धि। अहमेतस्य ‘किन्तु’कुठारस्य कठोरतया नितान्तमेव तान्तोऽस्मि। अहं वाञ्छामि यदेतस्याक्रमणात् सुरक्षितो भवेयम्। परं नायं मां त्यक्तुमिच्छति। बहवो मार्मिका मामबोधयन् यत् ‘त्वम् एतं सम्मुखमायान्तं दृष्ट्वैव कथं वित्रस्यसि, कुतश्च एनमपसारयितुं प्रयतसे ? किमेनं सर्वथा अहितकारिणमेव निश्चितवानसि ? नेदं सम्यक् पशुघातकस्य छुरिकापि पाश-पतितस्य गलबन्धनं छित्त्वा समये प्राणरक्षां कुर्वती दृष्टा।’ अहमपि सत्यस्यैकान्ततोऽपलापं न करिष्यामि। एतस्य कथनस्य सत्यताया मयापि परिचयः कदाचित् कदाचित् प्राप्तोऽस्ति।

हिन्दी-अनुवादः मैंने अनुभव किया कि यह कुटिल ‘किन्तु’ अनेक स्थानों पर अनेक रूप धारण करके गुप्त रूप से विचरण करता है। जैसे ही लोगों की कार्य सिद्धि का अवसर समीप होता है, तभी यह प्रकट होकर लोगों के कार्यों को उसी स्थिति में रोक देता है। मैं इस ‘किन्तु’ के कुल्हाड़े की कठोरता से बुरी तरह पीड़ित हूँ। मैं चाहता हूँ कि इसके आक्रमण से बच जाऊँ। परन्तु यह मुझे छोड़ना ही नहीं चाहता। बहुत से मर्मज्ञों ने मुझे समझाया कि तुम इसे सामने आता हुआ देखकर ही क्यों डर जाते हो और क्यों इसे दूर करने के लिए यत्नशील रहते हो ? क्यों इसे सर्वथा अहितकर ही मानते हो ? यह ठीक नहीं। पशुघातक की छुरी भी जाल में बँधे हुए के गले का बन्धन काटकर, अवसर आने पर प्राण रक्षा करती हुई देखी गई है। मैं भी सच्चाई को पूरी तरह से नहीं झुठलाऊँगा। इस कथन की सत्यता का परिचय मुझे भी कभी कभी प्राप्त हुआ है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च सन्धार्य = धारण करके; सम् + √धृ + णिच् + ल्यप्। तान्तः = पीड़ित, परेशान। वित्रस्यसि = डर रहे हो; वि + √त्रस, लट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन। अपसारयितुम् = दूर भागने के लिए; अप + √सृ + णिच् + तुमुन्। पाशपतितस्य = जाल में फंसे हुए के। अपलापम् = झुठलाना, सत्य को असत्य और असत्य को सत्य करना।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

9. ‘शब्दैः प्रतीयते यद गहे चौरः प्रविष्टोऽस्ति’ इति सभयमनुलपन्ती गहिणी रात्रौ मामबोधयत् । अहं निजशौर्य प्रकाशयन् महता वीरदर्पण लगुडमात्रमादाय अन्धकार एव चौरनिग्रहाय प्रचलितोऽभवम्। गृहिणी कर्णसमीप आगत्य शनैरवदत्… “अन्धकारे-ऽस्मिन् यासि त्वमवश्यम्, ‘किन्तु’ दृश्यताम् स शस्त्रं न प्रहरेत्।” पुनः किमासीत्। मम वीरदर्पस्य शौर्यस्य च प्रज्वलितं ज्योतिस्तत्रैव निर्वाणमभूत। चौरनिग्रहः कीदृशः, निजप्राणपरित्राणमेव मे अन्वेषणीयमभवत्। लगडं प्रक्षिप्य कोष्ठके निलीनोऽभवम्। तत एव च कम्पित-कण्ठेन चीत्कारमकरवम्-“लोका: ! आगच्छत, चौरः प्रविष्टोऽस्ति।

हिन्दी-अनुवादः ‘आवाजों से प्रतीत होता है कि घर में चोर घुस आया है’-इस प्रकार भयपूर्वक कहती हुई मेरी घरवाली ने रात्री में मुझे जगाया। मैं अपनी शूरवीरता प्रकट करते हुए बड़े घमण्ड से लाठी मात्र लेकर अन्धकार में ही चोर को पकड़ने के लिए चल पड़ा। पत्नी ने कान के पास आकर धीरे से कहा-“अन्धकार में तुम जाना ज़रूर, ‘किन्तु’ देखना, कहीं वह शस्त्रप्रहार न कर दे।” फिर क्या था। मेरे वीरोचित घमण्ड और शूरता की जली हुई ज्योति वहीं बुझ गई। चोर का पकड़ना कैसा, मैं अपनी प्राणरक्षा ही खोजने लगा। लाठी फैंक कर कोठे (कमरे) में छिप गया। तभी काँपते हुए स्वर से मैं चीखा-“लोगो ! आओ, चोर घुस आया है।”

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अनुलपन्ती = कहती हुई; अनु + √लप् + शतृ + ङीप्। चौरनिग्रहाय = चोर को पकड़ने के लिए; चौरस्य निग्रहाय (चतुर्थी तत्पुरुष)। परित्राणम् = रक्षण, बचाव, परि + √त्रैङ् (पालने) + ल्युट नपुंसकलिङ्ग प्रथमपुरुष एकवचन। अन्वेषणीयम् = ढूँढने योग्य, खोजने योग्य; अनु + √इष् + अनीयर् प्रत्यय। लगुडम् = लाठी, दण्ड। निलीनः = छुपा हुआ; नि + √ली + क्त प्रत्यय।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

10. एकेन अमुना ‘किन्तु’-ना चौरस्य चपेटाभ्योऽवमुच्य सौख्यस्य सुरक्षिते प्रकोष्ठकेऽहं प्रवेशितः। अनेन किन्तुना कस्मिन्नपि संकटसमये कदाचित् किञ्चित्कार्यं कामं कृतं स्यात् परं भूयसा तु अस्माद् भयमेव भवति। अस्य हि सार्वदिकः स्वभाव एव यत् वार्ता काममुत्तमास्तु अधमा वा परमयं मध्ये प्रविश्य तस्याः कथाया विच्छेदमवश्यं करिष्यति। एतएव कस्मिन्नपि समये कार्यसाधकत्वेऽपि लोका अस्माद् वित्रस्यन्त्येव।वैरिणां भारावताराय कदाचित् हिताधराऽपि करवालधारा क्रूराकारा प्रखरप्रकारा एव प्रसिद्धा लोकेषु। विगुणः कार्षापणः, कुत्सितश्च पुत्रः संकटे कदाचिदुपयुक्तो भवेत् परन्तु जनसमाजे द्वयोरुपर्येव नासा-भूसकोचो जातो जनिष्यते च। इदमेव कारणं यत् यस्यां वार्तायां ‘किन्तुः’ उत्पद्यते तां वार्ता लोका विगुणां गणयन्ति।

हिन्दी-अनुवादः इस एक किन्तु ने चोर की चपेटों से छुड़वाकर मुझे सुख के सुरक्षित कोठे (कमरे) में प्रविष्ट करवा दिया। इस किन्तु ने किसी संकट के समय कभी कोई कार्य शायद किया हो, परन्तु अधिकतर तो इससे भय ही होता है। इसका सदा-सदा रहने वाला स्वभाव ही है कि चाहे बात अच्छी हो बुरी परन्तु यह बीच में प्रविष्ट होकर उस बात को अवश्य ही काट देगा। इसीलिए किसी भी समय कार्य सिद्धि में लोग इससे डरते ही हैं। वैरियों का भार उतारने के लिए शायद हितकारक तलवार की धार भी क्रूर आकार तथा तीखे रूप वाली ही संसार में प्रसिद्ध होती है। खोटा सिक्का तथा निन्दित पुत्र संकट में कभी काम भले ही आ जाए, परन्तु जनसमाज में तो दोनों के ऊपर ही नाक-भौंह सिकोड़ी जाती रही है और आगे भी सिकोड़ी जाती रहेगी। यही कारण है कि जिस किसी बात में ‘किन्तु’ लग लग जाता है, उस बात को लोग खटाई में पड़ी हुई बात ही समझते हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्श्च चपेटाभ्यः = थप्पड़ों से। अवमुच्य = छुड़ाकर। प्रकोष्ठके = घर में। कामम् = भले ही। सार्वदिकः = सर्वदा होने वाला। भारावताराय = भार उतारने के लिए। कदाचित् = शायद। करवालधारः = तलवार की धार। विगुणः कार्षापणः = खोटा सिक्का। कुत्सितः = निन्दित, कुत्स + इतच्। नासा-भ्रूसकोचः = नाक-भौंह सिकोड़ना। विगुणाम् = गुण रहित, खटाई में पड़ी हुई।

किन्तोः कुटिलता (किन्तु’ की कुटिलता) Summary in Hindi

किन्तोः कुटिलता पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ ‘किन्तोः कुटिलता’ देवर्षि श्रीकलानाथ शास्त्री द्वारा सम्पादित पं० श्री भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के निबन्धसंग्रह ‘प्रबन्धपारिजातः’ से संकलित किया गया है।

पं० भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के पिता पं० भट्ट द्वारकानाथ जयपुर निवासी थे। पं० भट्ट मथुरानाथ का जन्म जयपुर में सन् 1889 ई० में हुआ और निधन भी 4 जून, 1964 ई० को जयपुर में ही हुआ। श्री भट्ट की पूर्वज परम्परा अत्यन्त प्रतिभा सम्पन्न रही। इन्होंने महाराजा संस्कृत कॉलेज से साहित्याचार्य की उपाधि प्राप्त की और वहीं व्याख्याता बन गए। आप जयपुर से प्रकाशित ‘संस्कृतरत्नाकर’ पत्रिका के सम्पादक रहे। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री द्वारा प्रणीत संस्कृत की रचनाओं में ‘जयपुरवैभवम्’, ‘गोविन्दवैभवम्’, ‘संस्कृतगाथासप्तशती’ और ‘साहित्यवैभवम्’ विशेष उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने चालीस कथाएँ और सौ से भी अधिक निबन्ध संस्कृत में लिखे। इनकी ‘सुरभारती’, ‘सुजनदुर्जन-सन्दर्भः’ और ‘युद्धमुद्धतम्’ नामक पद्य रचनाएँ भी उल्लेखनीय हैं।

यहाँ संकलित पाठ में श्री भट्ट जी ने दिखाया है कि जब कभी किसी कथन के साथ ‘किन्तु’ लग जाता है, तब बहुधा वह पहले कथन के अच्छे भाव को समाप्त कर उसे दोषपूर्ण और सम्बोधित व्यक्ति के लिए दुःख पैदा करने वाला, उसके उत्साह का नाशक और शत्रुरूप बना देता है। ऐसे अवसर विरल होते हैं जहाँ ‘किन्तु’ सम्बोधित व्यक्ति के लिए सुखदायक सिद्ध होता है।

लेख की भाषा सरल व सुबोध है, अलंकारों और दीर्घ समासों आदि का प्रयोग नहीं किया गया है। भाव सुस्पष्ट और सामान्य जीवन में जनसाधारण द्वारा अनुभूत हैं।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 12 किन्तोः कुटिलता

किन्तोः कुटिलता पाठस्य सारः

‘किन्तोः कुटिलता’ यह पाठ पं० श्री भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के निबन्ध संग्रह ‘प्रबन्धपारिजात:’ से संकलित किया गया है। इस पाठ में दिखाया गया है कि जब कभी किसी कथन के साथ ‘किन्तु’ लग जाता है तब प्रायः पहले कथन के अच्छे भाव को समाप्त कर वह ‘किन्तु’ उसे दोषपूर्ण बना देता है। तथा सम्बोधित व्यक्ति के लिए कष्टकारी, उत्साहनाशक तथा शत्रुरूप बन जाता है। ऐसे अवसर बहुत कम होते हैं जहाँ ‘किन्तु’ शब्द संबोधित व्यक्ति के लिए सुखकारी सिद्ध होता है। लेखक ने अपने जीवन में घटित तीन- चार घटनाओं के अनुभव से ‘किन्तु’ के इस षड्यन्त्र को प्रमाणपूर्वक पाठकों के समक्ष-प्रस्तुत किया है।

एक बार लेखक का राज्य से प्राप्त हुई भूमि के सम्बन्ध में लम्बे समय से एक मुकदमा न्यायालय में चल रहा था। जज महोदय ने लेखक के पक्ष में निर्णय सुनाया और कहा अभियोक्ता की ओर से सभी आवश्यक प्रमाण उपस्थित कर किन्तोः कुटिलता दिए गए। राज्य से प्राप्त भूमि का दानपत्र भी प्रस्तुत कर दिया गया और न्यायालय को इस बात का पूरा निश्चय हो गया है कि यह भूमि अभियोक्ता के अधिकार वाली है।” जज महोदय के निर्णय से लेखक बड़ा प्रसन्न हो रहा था कि भूमि मेरे पास आ ही गई है। तभी जज महोदय ने आगे कहा-“किन्तु राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने इसके विरोध में एक पत्र भेजा है, उस पर दृष्टिपात करना भी हम अपना कर्तव्य समझते हैं।” किन्तु शब्द के इस भाले ने लेखक के हृदय को चीरकर रख दिया।

इसी प्रकार की एक अन्य घटना में लेखक बताता है कि एक बार धर्माधिकारी के पास एक ग़रीब आदमी चीख पुकार करता हुआ कहने लगा कि मेरी नौ वर्ष की कन्या के विवाह को तीन ही दिन हुए हैं। चतुर्थी कर्म (गौना) न होने से विवाह भी पूरा नहीं हुआ और उसके पति की मृत्यु हो गई। ऐसी दशा में मैं क्या करूँ। धर्माधिकारी ने कहा कि यह तो अवश्य ही दयनीय स्थिति है, वर्तमान समय में समाज की भयंकर दशा पर विचार करते हुए इसके पुनर्विवाह की व्यवस्था दी जानी चाहिए।..किन्तु हम अपने मुँह से कैसे कहे, हमें प्राचीन मर्यादा की रक्षा भी तो करनी है। यहाँ भी किन्तु ने उस अबोध बालिका के जीवन को नरक बना दिया।

लेखक ने एक बहुत ही उत्तम पुस्तक संस्कृत में लिखी और एक साहित्य प्रेमी देश के नेता को समीक्षा के लिए दी। नेता जी ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए अंतिम वाक्य कहा-“बहुत समय के पश्चात् संस्कृत में इस प्रकार की अद्भुत पुस्तक लिखी गई है।……..किन्तु ये हिन्दी में लिखी जाती तो उचित होता।” नेताजी के किन्तु शब्द ने लेखक को मार्मिक पीड़ा दी और वह अपना कान मसलता हुआ घर की ओर निकल गया।

लेखक एक बार बीमार हो गया। एक वैद्य की औषध सेवन से वह स्वस्थ हो गया। तभी लेखक के पास मित्रों की ओर से भोजन गोष्ठी का निमंत्रण आया। लेखक ने वैद्य से उसमें सम्मिलित होने के लिए पूछा। उत्तर में वैद्य ने कहा”कोई खास हानि तो नहीं है…किन्तु गरिष्ठ वस्तुओं के सेवन से परहेज करना।” लेखक प्रीतिभोज में सम्मिलित हुआ, स्वादिष्ट व्यंजन सामने आए। जैसे ही लेखक ने एक ग्रास गले के नीचे उतारा वैद्य के किन्तु ने सारा मजा किरकिरा कर दिया। लेखक ने एक बार देशसेवा करने के लिए घर छोड़ने का निश्चय किया। रास्ते में बचपन के मास्टर जी मिल गए। उन्होंने पूछा तो बताना पड़ा। मास्टर जी ने कहा-“बेटा यह सब तो ठीक है…….किन्तु जिस परिवार का भार तुम्हारे सिर पर है उसे निराधार छोड़कर अकेले कैसे जा सकते हो।”

मास्टर जी के किन्तु ने लेखक के सिर से देशसेवा का भूत उतार दिया। एक बार लेखक की पत्नी ने भयपूर्वक कहा-“शायद घर में कोई चोर घुस आया है।” लेखक बड़ी वीरता से अंधेरे में ही लाठी लेकर चोर को पकड़ने चल पड़ा तभी पत्नी ने कान के पास आकर बुदबुदाया, “अन्धकार में अकेले जा तो रहे हो……. किन्तु देखना कहीं वह शस्त्र का प्रहार न कर दे।” लेखक की वीरता तुरन्त गायब हो गई और वह प्राण बचाने के लिए लाठी फैंककर घर के अन्दर छिप गया और वहीं से चीखते स्वर में बोला- लोगो ! आओ, चोर घुस आया है। पत्नी की इस एक किन्तु ने चोर के थप्पड़ों से छुड़वाकर लेखक को सुरक्षित घर में भेज दिया था। विचारने वाली बात यह है कि यह किन्तु ऐसा कल्याणकारी कार्य भूले भटके ही करता है। खोटा सिक्का तथा नालायक बेटा संकट में कभी भले ही काम आ जाते हों, परन्तु अधिकांश में तो समाज इन दोनों पर नाक भौंह सिकोड़ता रहा है और सिकोड़ता रहेगा। यही दशा ‘किन्तु’ की है। यह ‘किन्तु’ जीवन में एक आध बार ही सुखदायी होता है, संकट से बचाता है और सुखदायी होती है। अधिकांश में तो जिस कथन के साथ ‘किन्तु’ महाराज लग जाते हैं। समझिए वह काम खटाई में पड़ गया। कोई न कोई बाधा आ पड़ी और काम बीच में अटक गया।

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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

HBSE 12th Class Sanskrit उद्भिज्ज-परिषद् Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतभाषया उत्तरत
(क) ‘उद्भिजपरिषद्’ इति पाठस्य लेखकः कः अस्ति ?
(ख) उद्भिज्जपरिषदः सभापतिः कः आसीत् ?
(ग) अश्वत्थमते मानवाः तृणवत् कम् उपेक्षन्ते ?
(घ) सृष्टिधारासु मानवो नाम कीदृशी सृष्टिः ?
(ङ) मनुष्यायाणां हिंसावृत्तिः कीदृशी ?
(च) पशुहत्या केषाम् आक्रीडनम् ?
(छ) श्वापदानां हिंसाकर्म कीदृशम् ?
उत्तरम्:
(क) ‘उद्भिज्जपरिषद्’ इति पाठस्य लेखकः पण्डित-हृषीकेश-भट्टाचार्यः अस्ति।
(ख) उद्भिज्जपरिषदः सभापतिः अश्वत्थ-देवः आसीत्।
(ग) अश्वत्थमते मानवाः तृणवत् स्नेहम् उपेक्षन्ते।
(घ) सृष्टिधारासु मानवो नाम निकृष्टतमा सृष्टिः ?
(ङ) मनुष्यायाणां हिंसावृत्तिः निरवधिः अस्ति।
(च) पशुहत्या मनुष्याणाम् आक्रीडनम्।
(छ) श्वापदानां हिंसाकर्म जठरानलनिर्वाणमात्रप्रयोजकम् अस्ति।

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2. रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) मानवा नाम सर्वासु सृष्टिधारासु ……………सृष्टिः ।
(ख) मनुष्याणां ……………… निरवधिः।।
(ग) नहि ते करतलगतानपि ……………… उपघ्नन्ति।
(घ) परं तृणवद् उपेक्षन्ते……………… ।
(ङ) न केवलमेते पशुभ्यो निकृष्टास्तृणेभ्योऽपि ……….. एव।
उत्तरम्:
(क) मानवा नाम सर्वासु सृष्टिधारासु निकृष्टतमा सृष्टिः ।
(ख) मनुष्याणां हिंसावृत्तिः निरवधिः ।
(ग) नहि ते करतलगतानपि हरिण-शशकादीन् उपघ्नन्ति।
(घ) परं तृणवद् उपेक्षन्ते स्हेनम् ।
(ङ) न केवलमेते पशुभ्यो निकृष्टास्तृणेभ्योऽपि निस्साराः एव।

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3. अधोलिखितानां पदानां वाक्येषु प्रयोगं कुरुत
मायाविनः, श्वापदान्, निरवधिः, विसर्जयामास, बिभ्यति, पर्याकुलाः, लजन्ते, विरमन्ति, कापुरुषाः, प्रकटयति।
उत्तरम्:
(वाक्यप्रयोगः)
(क) मायाविनः-सृष्टिधारासु मानवाः सर्वाधिकाः मायाविनः सन्ति।
(ख) श्वापदान्-मानवाः स्वमनोविनोदाय श्वापदान् हन्ति।
(ग) निरवधि:-मनुष्याणां हिंसावृत्तिः निरवधिः अस्ति।
(घ) विसर्जयामास-सभापतिः सभां विसर्जयामस।
(ङ) बिभ्यति-मानवाः पापाचारेभ्यः किमपि न बिभ्यति।
(च) पर्याकुला:-विपत्तिषु मानवाः पर्याकुलाः भवन्ति।
(छ) लज्जन्ते-मानवाः अनृतव्यवहारात् किञ्चिद् अपि न लज्जन्ते।
(ज) विरमन्ति – स्वार्थसाधनपरा: मानवाः परपीडनात् न विरमन्ति।
(झ) कापुरुषा:-कापुरुषाः तु आत्मरक्षाम् अपि कर्तुं न शक्नुवन्ति।
(ञ) प्रकटयति-शिशुः क्रोधं प्रकटयति।

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4. सप्रसङ्गं हिन्दीभाषया व्याख्या कार्या
मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः। पशुहत्या तु तेषाम् आक्रीडनम्। केवलं विक्लान्तचित्तविनोदाय महारण्यम् उपगम्य ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति। तेषां पशुप्रहार-व्यापारमालोक्य जडानामपि अस्माकं विदीर्यते हृदयम्।
उत्तरम्:
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘उद्भिज्ज-परिषद्’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ पण्डित हृषीकेश भट्टाचार्य के निबन्धसंग्रह ‘प्रबन्ध-मञ्जरी’ से संकलित है। इस निबन्ध में वृक्षों की सभा के सभापति पीपल ने मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति के प्रति तीखा व्यंग्य-प्रहार किया गया है।

व्याख्या – हिंसा के दो प्रमुख रूप हैं-(1) स्वाभाविक भूख की शान्ति के लिए हिंसा (2) मन बहलाने के लिए हिंसा। मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है। परन्तु सिंह-व्याघ्र आदि पशुओं का स्वाभाविक भोजन मांस ही है। अतः ऐसे पशुओं को न चाहते हुए भी केवल पेट की भूख शान्त करने हेतु पशुवध करना पड़ता है। परन्तु इन पशुओं की यह विशेषता भी है कि भूख शान्त होने पर पास खड़े हुए हिरण आदि का भी ये वध नहीं करते। पशुओं का पशुवध भूख शान्ति तक ही सीमित होता है। परन्तु मनुष्य की पशुहिंसा असीम है। क्योंकि वह तो अपने बेचैन मन की प्रसन्नता के लिए ही पशुवध करता है। मनुष्य की इस विलक्षण एवं भयावह हिंसावृत्ति पर वृक्षों की सभा के सभापति अश्वत्थ (पीपल) को अत्यन्त खेद है और जड़ होने पर भी मनुष्य के इस दुष्कर्म से उसका हृदय फटा जा रहा है।

5. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम्निकृष्टतमा, उपगम्य, प्रवर्तमाना, अतिक्रान्तम्, व्याख्याय, कथयन्तु, उपजन्ति, आक्रीडनम्।
उत्तरम्:
प्रकृतिः + प्रत्ययः
(क) निकृष्टतमा नि + √कृष् + क्त + तमप् + टाप्
(ख) उपगम्य उप + √गम् + ल्यप्
(ग) प्रवर्तमाना प्र + √वृत् + शानच् + टाप्
(घ) अतिक्रान्तम् अति + √क्रम् + क्त
(ङ) व्याख्याय वि + आ + √चक्षि > ख्या + ल्यप्
(च) कथयन्तु √कथ् + लोट्, प्रथमपुरुषः, बहुवचनम्
(छ) उपघ्नन्ति उप + √हन् + लट्, प्रथमपुरुषः, बहुवचनम्
(ज) आक्रीडनम् आ + √क्रीड् + ल्युट् , अन (नपुं०, प्रथमा-एकवचनम्)

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

6. सन्धिच्छेदं कुरुत
मानवा इव, भवन्तो, स्वोदरपूर्तिम्, हिंसावृत्तिस्तु, आत्मोन्नतिम्, स्वल्पमपि।
उत्तरम्
(क) मानवा इव = मानवाः + इव
(ख) भवन्तो नित्यम् = भवन्तः + नित्यम्
(ग) स्वोदरपूर्तिम् = स्व + उदरपूर्तिम्
(घ) हिंसावृत्तिस्तु = हिंसावृत्तिः + तु
(ङ) आत्मोन्नतिम् = आत्म + उन्नतिम्
(च) स्वल्पमपि = सु + अल्पम् + अपि

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

7. अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं कुरुत
महापादपाः, सृष्टिधारासु, करतलगतान्, वीरपुरुषाः, शान्तिसुखम्।
उत्तरम्
(क) महापादपाः – महान्तः पादपा:-कर्मधारयः।
(ख) सृष्टिधारासु – सृष्टिः एव धारा, तासु-कर्मधारयः ।
(ग) करतलगतान् – करतलं गतान्-द्वितीया-तत्पुरुषः ।
(घ) वीरपुरुषाः – वीराः पुरुषाः-कर्मधारयः ।
(ङ) शान्तिसुखम् – शान्तिः च सुखं च तयोः समाहारः-द्वन्द्वः।

योग्यताविस्तारः
(1) प्रचुरोदकवृक्षो यो निवातो दुर्लभातपः।
अनूपो बहुदोषश्च समः साधारणो मतः॥ चरकसंहिता

(2) मानवं पुत्रवद् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च।
पुत्रवत्परिपाल्यास्ते पुत्रास्ते धर्मतः स्मृताः। महाभारतम् , अनुशासनपर्व

(3) एतेषां सर्ववृक्षाणां छेदनं नैव कारयेत्।
चतुर्मासे विशेषेण विना यज्ञादिकारणम्। महाभारतम् , अनुशासनपर्व

(4) एकेनापि सुवृक्षण पुष्यितेन सुगन्धिना।
वासितं वै वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥ महाभारतम् , अनुशासनपर्व

(5) “दशकूपसमा वापी दशपुत्रसमो द्रुमः।”
वृक्षविषयिण्यः ईदृश्य अन्य सूक्तयोऽपि गवेषणीयाः॥

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

HBSE 9th Class Sanskrit उद्भिज्ज-परिषद् Important Questions and Answers

I. पुस्तकानुसारं समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) ‘उद्भिज्जपरिषद्’ इति पाठस्य लेखकः कः अस्ति ?
(A) आर्यभट्टः
(B) हृषीकेशः भट्टाचार्यः
(C) बाणभट्टः
(D) अम्बिकादत्तव्यासः ।
उत्तराणि:
(B) हृषीकेशः भट्टाचार्यः

(ii) उद्भिज्जपरिषदः सभापतिः कः आसीत् ?
(A) देवाधिपतिः
(B) देवराज इन्द्रः
(C) आम्रः
(D) अश्वत्थदेवः।
उत्तराणि:
(C) अश्वत्थदेवः

(iii) अश्वत्थमते मानवाः तृणवत् कम् उपेक्षन्ते ?
(A) आत्मानम्
(B) खगान्
(C) स्नेहम्
(D) पशून्।
उत्तराणि:
(B) स्नेहम्

(iv) सृष्टिधारासु मानवो नाम कीदृशी सृष्टि: ?
(A) उत्कृष्टतमा
(B) निकृष्टतमा
(C) उत्तमा
(D) बृहत्तमा।
उत्तराणि:
(A) निकृष्टतमा

(v) मनुष्याणां हिंसावृत्तिः कीदृशी ?
(A) निरवधिः
(B) सावधिः
(C) मासावधिः
(D) वर्षावधिः।
उत्तराणि:
(A) निरवधिः

(vi) पशुहत्या केषाम् आक्रीडनम् ?
(A) पुरुषाणाम्
(B) स्त्रीणाम्
(C) सिंहानाम्
(D) मनुष्याणाम्।
उत्तराणि:
(D) मनुष्याणाम्।

II. रेखाङ्कितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) सावहिताः शृणवन्तु भवन्तः।
(A) कः
(B) के
(C) को
(D) काः।
उत्तराणि:
(B) के

(ii) मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः ।
(A) केषाम्
(B) कस्याम्
(C) कस्मात्
(D) कैः।
उत्तराणि:
(A) केषाम्

(iii) मनुजन्मानः प्रतिक्षणं स्वार्थसाधनाय प्रवर्तन्ते।
(A) कम्
(B) के
(C) किमर्थम्
(D) कथम्।
उत्तराणि:
(B) किमर्थम्

(iv) मानवाः क्षणमपि परपीडनात् न विरमन्ति।
(A) कस्मात्
(B) कम्
(C) किम्
(D) किमर्थम्।
उत्तराणि:
(D) कस्मात्

(v) मनुष्याः महारण्यम् उपगम्य यथेच्छं पशुधातं कुर्वन्ति ?
(A) के
(B) काः
(C) कस्मै
(D) किम।
उत्तराणि:
(A) किम्

(vi) जीवसृष्टिप्रवाहेषु मानवाः इव हिंसानिरताः जीवाः न विद्यन्ते।
(A) के
(B) कथम्
(C) कीदृशाः
(D) काः।
उत्तराणि:
(B) कीदृशाः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

उद्भिज्ज-परिषद् पाठ्यांशः

1. अथ सर्वविधविटपिनां मध्यभागे स्थितः सुमहान् अश्वत्थदेवः वदति-“भो भो वनस्पतिकुलप्रदीपा महापादपाः कुसुमकोमलदन्तरुचः लता-कुलललनाश्च ! सावहिताः शृण्वन्तु भवन्तः। अद्य मानववार्रवास्माकं समालोच्यविषयः । मानवा नाम सर्वासु सृष्टिधारासु निकृष्टतमा सृष्टिः, जीवसृष्टिप्रवाहेषु मानवा इव पर-प्रतारकाः स्वार्थसाधनपराः, मायाविनः, कपट-व्यवहारकुशलाः, हिंसानिरताः, जीवा: न विद्यन्ते। भवन्तो नित्यमेवारण्यचारिणः सिंहव्याघ्रप्रमुखान् हिंस्रत्वभावनया प्रसिद्धान् श्वापदान् अवलोकयन्ति। ततो भवन्त एव कथयन्तु याथातथ्येन किमेते हिंसादिक्रियासु मनुष्येभ्यो भृशं गरिष्ठाः।

हिन्दी-अनुवादः सभी प्रकार के वृक्षों के मध्यभाग में स्थितं विशाल अश्वत्थदेव (पीपल का वृक्ष) कहता है-“हे हे वनस्पतिकुल के दीपक महान् पौधो! और पुष्प रूपी कोमल दाँतों से सुशोभित लतावंश की ललनाओ” आप ध्यानपूर्वक सुनिएआज मनुष्य व्यवहार ही हमारी आलोचना का विषय है। सभी सृष्टिधाराओं में सबसे निकृष्ट सृष्टि मनुष्य ही है। जीवसृष्टिप्रवाहों में मनुष्य की भाँति पर-पीड़क, स्वार्थपरायण, मायावी, कपट-व्यवहार में कुशल, हिंसा में संलग्न जीव नहीं हैं। आप नित्य ही जंगलों में घूमने वाले हिंसात्मक भावना के लिए प्रसिद्ध सिंह, व्याघ्र आदि पशुओं को देखते हैं। फिर आप ही ठीक-ठीक बताएं कि क्या ये (पशु) हिंसक-क्रियाओं में मनुष्यों से बढ़कर हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च उद्भिज्जः = वनस्पति (उद्भिज्य जायते इति उद्भिज्जः)। विटपी = वृक्ष (विटप + इनि > इन्)। अश्वत्थः = पीपल का पेड़। कुलललनाः = कुल की स्त्रियाँ; कुलस्य ललनाः। सावहिता = सावधान । सृष्टिधारासु = सृष्टि की परम्परा में; सृष्टे: धारा, सृष्टिधारा, तासु, षष्ठी तत्पुरुष समास। निकृष्टतमा = अत्यधिक नीच; निकृष्ट + तमप्। परप्रतारकाः = दूसरे को पीड़ित करने वाले; परस्य प्रतारकः, षष्ठी-तत्पुरुष समास।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

2. श्वापादानां हिंसाकर्म किल जठरानलनिर्वाणमात्रप्रयोजकम्। प्रशान्तजठरानले सकृदुपजातायां स्वोदरपूर्ती नहि ते करतलगतानपि हरिणशशकादीन् उपघ्नन्ति। न वा तथाविध-दुर्बलजीवानां घातार्थम् अटवीतोऽटवीं परिभ्रमन्ति। मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः । पशुहत्या तु तेषाम् आक्रीडनम्। केवलं विक्लान्तचित्तविनोदाय महारण्यम् उपगम्य ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति। तेषां पशुप्रहार-व्यापारमालोक्य जडानामपि अस्माकं विदीर्यते हृदयम्।

हिन्दी-अनुवादः पशुओं का हिंसाकर्म पेट की आग बुझाने मात्र के लिए होता है। जठराग्नि के शान्त हो जाने पर, एक बार अपनी उदरपूर्ति हो जाने पर वे (पशु) हाथ में आए हुए हिरण, खरगोश आदि को भी नहीं मारते। और न ही इस प्रकार के दुर्बल प्राणियों को मारने के लिए वे एक जंगल से दूसरे जंगल में घूमते हैं।

मनुष्यों की हिंसावृत्ति तो असीम है। पशुहत्या तो उनका खेल है। केवल अपने बेचैन मन को प्रसन्न करने के लिए बड़े जंगल में जाकर वे जी-भरकर निर्दयतापूर्वक पशुवध करते हैं। उनके पशुप्रहार के व्यवहार को देखकर हम जड़वृक्षों का हृदय भी फट जाता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च श्वापदान् = जंगली जानवरों को। याथातथ्येन = वस्तुतः । भृशम् = अत्यधिक। जठरानल-निर्वाणम् = पेट की अग्नि, भूख की शान्ति; जठरानलस्य निर्वाणम्, षष्ठी तत्पुरुष समास। करतलगतान् = हाथ में आए हुए; करतलगतान्। उपघ्नन्ति = मारते हैं; उप + √हन् + लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। घातार्थम् = मारने के लिए। अटवीतः अटवीम् = एक जंगल से दूसरे जंगल को; अटवी + तस्। निरवधिः = असीम। आक्रीडनम् = खेल; आ + √क्रीड् + ल्युट् प्रत्यय। विक्लान्तः= थका हुआ; वि + √क्लम् + क्त प्रत्यय। उपगम्य = पास जाकर; उप + √गम् + क्त्वा (ल्यप् प्रत्यय)।

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3. निरन्तरम् आत्मोन्नतये चेष्टमानाः लोभाक्रान्त-हृदयाः मनुजन्मानः किल प्रतिक्षणं स्वार्थसाधनाय सर्वात्मना प्रवर्तन्ते। न धर्ममनुधावन्ति, न सत्यमनुबध्नन्ति। परं तृणवद् उपेक्षन्ते स्नेहम्। अहितमिव परित्यजन्ति आर्जवम्। अमङ्गलमिव उपघ्नन्ति विश्वासम्। न स्वल्पमपि बिभ्यति पापाचारेभ्यः न किञ्चिदपि लज्जन्ते मुहुरनृतव्यवहारात्। नहि क्षणमपि विरमन्ति परपीडनात्।

हिन्दी-अनुवादः निरन्तर अपनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील, लोभ से ग्रस्त हृदय वाले मनुष्य सब प्रकार से अपनी स्वार्थसाधना के लिए प्रतिक्षण लगे रहते है। न धर्माचरण करते हैं, न सत्य को स्वीकारते हैं; अपितु स्नेह (= प्राणिमात्र के प्रति प्यार) को अतितुच्छ समझकर उसकी उपेक्षा करते हैं। सरलता को हानिकर वस्तु की भाँति त्याग देते हैं। विश्वास को अमंगल (= अपशकुन) समझकर नष्ट कर देते हैं। पापाचार से वे थोड़ा भी नहीं डरते। बार-बार के झूठे व्यवहार से उन्हें थोड़ीसी भी लज्जा नहीं होती। दूसरों को पीड़ित करने से वे क्षणभर भी विराम नहीं लेते।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च सर्वात्मना = पूरे मन से (सभी प्रकार से)। प्रवर्तन्ते = प्रवृत्त होते हैं; प्र + √वृत् + लट्लकार, प्रथम पुरुष बहुवचन। उपेक्षन्ते = उपेक्षा करते हैं; उप + √ईक्ष् + लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। आर्जवम् = सीधापन; ऋजोर्भावः आर्जवम्। बिभ्यति = डरते हैं; √भी + लट्लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। पापाचारेभ्यः = अनुचित आचरण से; पाप-श्चासौ आचारः, पापाचारः तेभ्यः। विरमन्ति = रुकते हैं; वि + √रम् धातु + लट्लकार + प्रथम पुरुष बहुवचन।

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4. न केवलमेते पशुभ्यो निकृष्टास्तृणेभ्योऽपि निस्सारा एव। तृणानि खलु वात्यया सह स्वशक्तितः सुचिरमभियुध्य सम्मुखसमरप्रवर्तमाना वीरपुरुषा इव शक्तिक्षये क्षितितले निपतन्ति, न तु कदाचित् कापुरुषा इव स्वस्थानम् अपहाय प्रपलायन्त। मनुष्याः पुनः स्वचेतसा एव भविष्यत्-समये संघटिष्यमाणं कमपि विपत्पातमाकलय्य परिकम्पमानकलेवराः दुःख-दुःखेन समयमतिवाहयन्ति। परिकल्पयन्ति च पर्याकुला बहुविधान् प्रतिकारोपायान् येन मनुष्यजीवने शान्तिसुखं मनोरथपथादतिक्रान्तमेव।

हिन्दी-अनुवादः वे (मनुष्य) न केवल पशुओं से भी अधिक निकृष्ट हैं, (अपितु) तिनकों से भी अधिक तुच्छ हैं। तिनके तो आँधी के साथ अपनी शक्ति के अनुसार देर तक लड़कर, सम्मुख उपस्थित युद्ध में लगे हुए वीर पुरुषों की भाँति शक्तिक्षीण होने पर धरती पर गिर जाते हैं, न कि एक बार भी कायरों की तरह अपना स्थान छोड़कर भागते हैं। मनुष्य तो फिर अपने मन (ज्ञान) से ही भविष्य में होने वाली किसी विपत्ति का विचार कर कँपकँपाते शरीर वाले बड़े कष्टपूर्वक अपना समय बिताते हैं। और अति व्याकुल होकर प्रतिकार के लिए अनेक प्रकार के उपाय करते हैं, जिसके कारण मनुष्य जीवन में शान्ति और सुख उनके मनोरथ के मार्ग से दूर ही रहते हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च – वात्यया = आँधी से। अभियुध्य = संघर्ष करके; अभि + √युध् + क्त्वा > ल्यप्। कापुरुषाः = कायर। प्रपलायन्त = भागते हैं; प्र + परा + √अय् + लङ् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन। अग्रतः = आगे; अग्र + तस्। संघटिष्यमाणम् = घटित होने वाले; सम् + √घट + शानच् प्रत्यय। परिकम्पमानः = काँपता हुआ; परि + √कम्प् + कानच् प्रत्यय, प्रथमा, विभक्ति एकवचन। अतिवाहयन्ति = बिताते हैं; अति + √वह + णिच् + लट् लकार, प्रथमपुरुष बहुवचन। पर्याकुलाः = बेचैन; परि + आकुलाः । अतिक्रान्तम् = बाहर जा चुका है; अति + √क्रम् + क्त प्रत्यय, प्रथम पुरुष एकवचन। अप्यसाराः = सारहीन; अपि + असाराः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

5. अथ ते तावत्तृणेभ्योऽप्यसाराः पशुभ्योऽपि निकृष्टतराश्च । तथा च तृणा-दिसष्टेरनन्तरं तथाविधजीवनिर्माणं विश्वविधातुः कीदृशं नाम बुद्धिमत्ताप्रकर्ष प्रकटयति। इत्येव हेतुप्रमाणपुरस्सरं सुचिरं बहुविधं विशदं च व्याख्याय सभापतिरश्वत्थदेव उद्भिज्ज-परिषद् विसर्जयामास।

हिन्दी-अनुवादः – इस प्रकार वे (मनुष्य) तिनकों से भी तुच्छ तथा पशुओं से भी निकृष्ट हैं। वनस्पति आदि की सृष्टि के पश्चात् इस प्रकार के जीवों (मनुष्यों) का निर्माण करना विश्व के सृजनहार विधाता की कैसी बुद्धिमत्ता की अधिकता को प्रकट करता है ?

इस प्रकार कारण और प्रमाण निर्देशपूर्वक बहुत देर तक, बहुत प्रकार से तथा विस्तृत व्याख्या करके सभापति अश्वत्थदेव (पीपल-देव) ने वृक्षों की सभा को विसर्जित किया।
शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च प्रकर्षम् = अधिकता। पुरस्सरम् = पूर्वक, आगे; पुरः सरतीति पुरस्सरः तम्। सुचिरम् = देर तक। विशदम् = . विस्तारपूर्वक। व्याख्याय = व्याख्यान देकर; वि + आ + √ख्या + ल्यप्। सभापतिरश्वत्थदेवः = सभापतिः + अश्वत्थदेव।

उद्भिज्ज-परिषद् (वृक्षों की सभा) Summary in Hindi

उद्भिज्ज-परिषद् पाठ परिचय

आधुनिक गद्य लेखकों में पण्डित हृषीकेश भट्टाचार्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनका समय 1850-1913 ई० है। ये ओरियण्टल कॉलेज, लाहौर में संस्कृत के प्राध्यापक थे। इन्होंने ‘विद्योदयम्’ नामक संस्कृत पत्रिका के माध्यम से 44 वर्ष तक निबन्ध-लेखन करके संस्कृत में निबन्ध-विधा को जन्म दिया है। श्री भट्टाचार्य द्वारा लिखित संस्कृत निबन्धों का एक संग्रह ‘प्रबन्धमञ्जरी’ के नाम से 1930 ई० में प्रकाशित हुआ। इसमें 11 निबन्ध संगृहीत हैं। इनमें से अधिकांश निबन्ध व्यङ्ग्य-प्रधान शैली में लिखे गए हैं। संस्कृत में व्यङ्ग्य-शैली का प्रादुर्भाव श्री भट्टाचार्य के इन निबन्धों से ही माना जाता है। इनका व्यंग्य अत्यन्त शिष्ट, परिष्कृत और प्रभावोत्पादक है। इनकी भाषा में सरलता, सरसता, मधुरता तथा सुबोधता है। इनकी भाषा में संस्कृत के महान् गद्यकार बाण की शैली का प्रभाव स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।
प्रस्तुत पाठ ‘उद्भिज्ज-परिषद्’ श्री भट्टाचार्य की इसी प्रबन्ध-मञ्जरी’ से सम्पादित करके लिया गया है। उद्भिज्ज शब्द का अर्थ है-वृक्ष और परिषद् का अर्थ है-सभा। इस प्रकार ‘उदभिज्ज-परिषद्’ शब्द का अर्थ हुआ ‘वृक्षों की सभा।’ इस सभा के सभापति हैं अश्वत्थ-पीपल। सभापति अपने भाषण में मानवों पर बड़े ही व्यंग्यपूर्ण प्रहार करते हैं।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 11 उद्भिज्ज-परिषद्

उद्भिज्ज-परिषद् पाठस्य सार:

प्रस्तुत पाठ ‘उद्भिज-परिषद्’ श्री हृषीकेष भट्टाचार्य जी द्वारा रचित ‘प्रबन्ध-मञ्जरी’ नामक निबन्ध संग्रह से सम्पादित किया गया है। ‘उद्भिज्ज’ शब्द का अर्थ है-वृक्ष और ‘परिषद्’ का अर्थ है सभा। वृक्षों की इस सभा के सभापति अश्वत्थ ‘पीपल’ हैं। वे अपने भाषण में मनुष्य पर बड़ा ही व्यंग्यपूर्ण प्रहार कर रहे हैं।

सभी प्रकार के वृक्षों की सभा लगी हुई है। सभा के सभापति अश्वत्थ सभी वृक्ष-वनस्पतियों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि आज हमारे विचार का विषय ‘मानव व्यवहार’ है इस सृष्टि में मानव से लड़कर कोई भी निकृष्ट जीवन नहीं है। सभी प्राणियों में मनुष्य ही सबसे अधिक दूसरों को पीड़ित करने वाला स्वार्थी, मायावी, छली, कपटी और निरन्तर हिंसा में लगा रहने वाला जीव है। सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक भावना के लिए प्रसिद्ध पशु हैं। परन्तु इन पशुओं की हिंसा पेट की आग बुझाने के लिए होती है भूख शान्त हो जाने पर पंजे में आए हुए हिरण, खरगोश आदि को भी

ये नहीं मारते। मनुष्य तो अपना मनोरञ्जन करने के लिए पशुपक्षियों की हत्या करता है। जीव हिंसा करना मनुष्य का खेल है। हिंसक पशुओं की हिंसा तो पेट की आग बुझाने तक सीमित होती है। परन्तु मनुष्य की हिंसा असीम है। इसके इस हिंसा व्यवहार को देखकर जड़ कही जाने वाली वृक्ष वनस्पतियों के हृदय भी फट जाते हैं।

मनुष्य केवल अपनी उन्नति के लिए लोभ से आक्रांत तथा स्वार्थी होकर कार्य करता है। यह किसी भी पापाचार से नहीं डरता। मनुष्य पशुओं से ही घटिया नहीं है, अपितु तिनकों से भी तुच्छ है। आँधी-तूफान आने पर मैदान में खड़ा हुआ एक घास का तिनका भी पूरी शक्ति के साथ तूफान का सामना करता है। गर्मी-सर्दी, बरसात को सहता है। मनुष्य इन सबसे बेचैन होकर इनसे बचने के उपाय खोजता रहता है। इसी से सिद्ध होता है कि मनुष्य से बढ़कर कोई डरपोक भी नहीं है।

सभा पति अश्वत्थ अपने भाषण को समाप्त करते हुए निष्कर्ष रूप में कहते हैं कि इसीलिए मैं कहता हूँ कि यह आदमी नाम का जन्तु तिनकों से भी तुच्छ और पशुओं से भी निकृष्ट है। वृक्ष-वनस्पति, पशु-पक्षी आदि की सुन्दर सृष्टि रच लेने के बाद इस विचित्र स्वभाव वाली मानव सृष्टि की रचना करके विधाता ने अपनी किस बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है। इस प्रकार कारण और प्रमाणों के साथ बड़े विस्तारपूर्वक व्याख्यान करके सभापति अश्वत्थ देव ने वृक्ष-सभा को विसर्जित किया। वृक्षों की सभा के माध्यम से लेखक ने मनुष्य के हिंसापरक, परपीड़क तथा स्वार्थी व्यवहार पर तीखा व्यंग्य किया

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Sandhi Prakaranam संधि प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

सन्धि अथवा संहिता-दो वर्णों के, चाहे वे स्वर हों या व्यञ्जन, के मेल से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे सन्धि अथवा संहिता कहते हैं। यथा
विद्या + अर्थीः = विद्यार्थीः
वाक् + ईशः = वागीशः।

सन्धियों के भेद
जिन दो वर्णों (व्यवधान रहित) में हम सन्धि करते हैं वे वर्ण प्रायः अच् (स्वर) तथा हल् (व्यञ्जन) होते हैं और कई बार पहला विसर्ग तथा दूसरा कोई व्यञ्जन अथवा स्वर भी हो सकता है। अतः सन्धियों के मुख्य तीन भेद किए गए हैं
(क) अच् सन्धि (स्वरसन्धि)
(ख) हल् सन्धि (व्यञ्जनसन्धि)
(ग) विसर्ग सन्धि ।

(क) अच् सन्धि (स्वरसन्धि)
दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे अच् सन्धि अथवा स्वर सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के क्रमशः आठ भेद हैं –
(1) दीर्घ सन्धि
(2) गुण सन्धि
(3) वृद्धि सन्धि
(4) यण् सन्धि
(5) अयादि सन्धि
(6) पूर्वरूप सन्धि
(7) पररूप सन्धि
(8) प्रकृतिभाव सन्धि

(1) दीर्घसन्धि
ह्रस्व या दीर्घ अ इ उ अथवा ऋ से सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋके परे होने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है।
(i) नियम-यदि अ या आ से परे अ या आ हो तो दोनों को आ हो जाता है; अर्थात् अ/आ + अ/आ = आ।
उदाहरण
परम + अर्थः = परमार्थः ।
च + अपि = चापि।
उत्तम + अङ्गम् = उत्तमाङ्गम्।
च + अस्ति = चास्ति।
हिम + आलयः = हिमालयः।
देव + आलयः = देवालयः ।
शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी।
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी।
रत्न + आकरः = रत्नाकरः।
मुर + अरिः = मुरारिः।
प्रधान + आचार्यः = प्रधानाचार्यः ।
तव + आशा = तवाशा।
तथा + अपि = तथापि।
दया + आनन्दः = दयानन्दः ।
महा + आशयः = महाशयः।
सा + अपि = सापि।
विद्या + आलयः = विद्यालयः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ii) नियम-यदि इ या ई से परे इ या ई हो तो दोनों को ई हो जाता है, अर्थात् इ/ई + इ/ई = ई।
उदाहरण:
मही + इन्द्रः = महीन्द्रः।
कवि + ईशः = कवीशः।
कवि + इन्द्रः = कवीन्द्रः।
परि + ईक्षा = परीक्षा।
गिरि + ईशः = गिरीशः।
प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा।
लक्ष्मी + ईश्वरः = लक्ष्मीश्वरः।
सुधी + इन्द्रः = सुधीन्द्रः।
लक्ष्मी + इन्द्रः = लक्ष्मीन्द्रः।
महती + इच्छा = महतीच्छा।
श्री + ईशः = श्रीशः।
लक्ष्मी + ईशः = लक्ष्मीशः।
गिरि + इन्द्रः = गिरीन्द्रः।
नदी + ईशः = नदीशः।
मुनि + इन्द्रः = मुनीन्द्रः।
रजनी + ईशः = रजनीशः।

(iii) नियम-यदि उ या ऊ से परे उ या ऊ हो तो दोनों को ऊ हो जाता है ; अर्थात् उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ।
उदाहरण
सु + उक्तम् = सूक्तम्।
वधू + उत्सवः = वधूत्सवः।
सिन्धु + ऊर्मिः = सिन्धूर्मिः।
भू + ऊर्ध्वम् = भूर्ध्वम्।
लघु + ऊर्मिः = लघूर्मिः।
भानु + उदयः = भानूदयः।

(iv) नियम-यदि ऋ से परे ऋ हो तो दोनों को ऋ हो जाता है, अर्थात् ऋ + ऋ = ऋ।
उदाहरण:
पितृ + ऋणम् = पितृणम् ।
भ्रातृ + ऋद्धिः = भ्रातृद्धिः ।
मातृ + ऋणम् = मातृणम् ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

2. गुणसन्धि
यदि अ या आ से परे कोई अन्य (भिन्न) ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, ल हो तो दोनों के स्थान में गुण आदेश होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘ए’, ‘ओ’, ‘अर्’, ‘अल्’ इनकी गुण संज्ञा होती है।
(i) नियम-यदि अ या आ से परे इ या ई आ जाए तो दोनों के स्थान पर ‘ए’ हो जाता है ; अर्थात् अ/आ + इ/ ई = ए।
उदाहरण
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः।
उमा + ईशः = उमेशः।
नर + ईशः = नरेशः।
नर + इन्द्रः = नरेन्द्रः।
गज + इन्द्रः = गजेन्द्रः।
गण + ईशः = गणेशः।
पूर्ण + इन्दुः = पूर्णेन्दुः।
परम + ईश्वरः = परमेश्वरः।
तथा + इति = तथेति।

(ii) नियम-यदि अ या आ से परे उ या ऊ हो तो दोनों के स्थान पर ओ हो जाता है ; अर्थात् अ/आ + उ/ऊ = ओ।
उदाहरण
हित + उपदेशः = हितोपदेशः।
देव + उरुः = देवोरुः।
चन्द्र + उदयः =चन्द्रोदयः।।
तस्य + उपरिः = तस्योपरि।
गीता + उपदेशः = गीतोपदेशः ।
गङ्गा + ऊर्मिः = गङ्गोर्मिः।
गङ्गा + उदकम् = गगोदकम्।
पर + उपकारः = परोपकारः।
महा + उदयः = महोदयः।
महा + ऊर्मिः = महोर्मिः।

(i) नियम-यदि अ या आ से परे ऋ हो तो दोनों के स्थान पर अर हो जाता है; अर्थात् अ/आ + ऋ = अर्।
उदाहरण
परम + ऋषिः = परमर्षिः ।
कृष्ण + ऋद्धिः = कृष्णर्द्धिः।
महा + ऋषिः = महर्षिः।
राज + ऋषिः = राजर्षिः ।
देव + ऋषिः = देवर्षिः।
पुरुष + ऋषभः = पुरुषर्षभः ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

3. वृद्धिसन्धि
(i) नियम-यदि अया आ से परे ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ कर दिया जाता है; अर्थात् अ/आ + ए/ ऐ = ऐ।
उदाहरण
एक + एकम् = एकैकम्।
तव + ऐश्वर्यम् = तवैश्वर्यम्।
मम + ऐश्वर्य = ममैश्वर्यम्।
सदा + एव = सदैव।
अत्र + एव = अत्रैव।
परम्परा + एषा = परम्परैषा।
मम + एव = ममैव।
तथा + एव = तथैव।
तव + एव = तवैव।
महा + ऐरावत: = महैरावतः।
च+ एव = चैव।
कृष्ण + एकत्वम् = कृष्णैकत्वम्।

(ii) नियम-यदि अ या आ से परे आया औ हो तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता है अर्थात अ/आ + ओ/ औ = औ।
उदाहरण
मम + ओष्ठः = ममौष्ठः।
महा + औदार्यम् =महौदार्यम्।
महा + औषधिः = महौषधिः।
चित्त + औदार्यम् = चित्तौदार्यम्।
तव + औषधिः = तवौषधिः।
महा + औत्सुक्यम् = महौत्सुक्यम्।
मम + औषधिः = ममौषधिः।
जल + ओघः = जलौघः।
नव + औषधिः = नवौषधिः ।
तव + औदार्यम् = तवौदार्यम्।

(iii) नियम-यदि अया आ से परे ऋहो तो दोनों के स्थान पर आर् हो जाता है; अर्थात्/अ/आ + ऋ = आर्।
उदाहरण
प्र + ऋच्छतिः = प्रार्छतिः।
सुख + ऋतः = सुखार्तः ।
पिपासा + ऋतः = पिपासातः।
दुःख + ऋतः = दुःखार्तः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

4. यण्सन्धि
यदि इ ई, उ ऊ, ऋ, ल से परे कोई असवर्ण स्वर हो तो वे क्रमशः य, व, र, ल में बदल जाते हैं।
(i) नियम-यदिइ, ई से परेइ, ईको छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो’इ’याईको यहो जाता है ; अर्थात् इ ई + अन्य स्वर अ, आ, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ = य् + अन्य स्वर।
उदाहरण
यदि + अपि = यद्यपि।
इति + अपि = इत्यपि।
वारि+अधिगच्छति = वार्यधिगच्छति।
महती + एषणा = महत्येषणा।
इति + आदिः = इत्यादिः।
सरस्वती + औघः = सरस्वत्यौघः।
नदी + अस्ति = नद्यस्ति।
पिबति + अत्र = पिबत्यत्र।
अति + आचारः = अत्याचारः।
सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः।
नदी + अम्बुः = नद्यम्बुः।
देवी + अस्ति = देव्यस्ति।
सखी + उक्तम् = सख्युक्तम्।
देवी + आगता = देव्यागता।
गोपी + एषा = गोप्येषा।
प्रति + एकम् = प्रत्येकम्

(ii) नियम-यदि उ, ऊ से परे उ, ऊ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो ‘उ’ या ‘ऊ’ को व हो जाता है; अर्थात् उ या ऊ + अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ = व् + अन्य स्वर।
उदाहरण
सु + आगतम् = स्वागतम्।
गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः।
मधु + अरिष्टः = मध्वरिष्टः।
पचतु + ओदनम् = पचत्वोदनम्।
गुरु + आदिः = गुर्वादिः।
गच्छतु + एकः = गच्छत्वेकः।
साधु + आचरणम् = साध्वाचरणम्।
साधु + इष्टम् = साध्विष्टम्
वधू + आदिः = वध्वादिः।

(iii) नियम-यदि ‘ऋ’ के बाद ऋको छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो ‘ऋ’को र हो जाता है ; अर्थात् ऋ+ अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ = र् + अन्य स्वर ।
उदाहरण
मातृ + अनुग्रहः = मात्रनुग्रहः ।
धातृ + अंशः = धात्रंशः।
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा।
पितृ + अभिलाषः = पित्रभिलाषः ।
पितृ + अर्थम् = पित्रर्थम्।
पितृ+ऐश्वर्यम् = पित्रैश्वर्यम्।।

(iv) नियम-लु के बाद ल को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो लु को ल हो जाता है ; अर्थात् ल + अ, आ, ई, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ= ल् + अन्य स्वर ।
उदाहरण
लृ + आकृतिः = लाकृतिः।
ल + आकारः = लाकारः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्
5. अयादिसन्धि

यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो वे क्रमशः अय, अव, आय और आव् में बदल जाते हैं।
(i) नियम-‘ए’ से परे कोई स्वर आने पर ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’ हो जाता है; अर्थात् ए + कोई स्वर = अय् + कोई स्वर।
उदाहरण
कवे + ए = कवये।
ने + अनम् = नयनम्।
हरि + ए = हरये।
जे + अति = जयति।
मुने + ए = मुनये।
ने + अति = नयति।
शे + अनम् = शयनम्।

(ii) नियम-‘ऐ से परे कोई स्वर आने पर ‘ऐ’ को ‘आय’ हो जाता है; अर्थात् ऐ + कोई स्वर = आय् + कोई
उदाहरण
नै + अक: = नायकः।
रे + ऐ = रायै।
गै+ अकः = गायकः।
रै + ओः = रायोः ।

(iii) नियम-‘ओ’ से परे कोई स्वर आने पर ओ के स्थान पर अव हो जाता है; अर्थात् ओ + कोई स्वर = अव् + कोई स्वर ।
उदाहरण
साधो + अ = साधवः।
विष्णो + ए = विष्णवे।
भो + अति = भवति।
भो + अनम् = भवनम्।
भानो + ए = भानवे।
साधो + ए = साधवे।
गो + इ = गवि।
पो + अनः = पवनः।
गो + ए = गवे।

(iv) नियम-‘औ’ से परे कोई स्वर आने पर औ के स्थान पर आव् हो जाता है। अर्थात् औ + कोई स्वर = आव् + कोई स्वर ।
उदाहरण
पौ + अकः = पावकः।
गौ + औ = गावौ।
भौ + उकः = भावुकः।
तौ + आगतौ = तावागतौ।
नौ + आ = नावा।
रौ + अनः = रावणः।

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6. पूर्वरूपसन्धि
नियम-यदि पदान्त ए या ओ से परे ह्रस्व अ हो तो अका लोप हो जाता है और उसके स्थान पर अवग्रह ” चिह्न लगता है।
उदाहरण
ते + अपि = तेऽपि।
ग्रामो + अपि = ग्रामोऽपि।
ते + अत्र = तेऽत्र।
साधो + अत्र = साधोऽत्र।
कवे + अवेहि = कवेऽवेहि।
सर्वे + अपि = सर्वेऽपि।
विष्णो + अत्र = विष्णोऽत्र।
प्रभो + अत्र = प्रभोऽत्र।
प्रभो + अनुगृहाण = प्रभोऽनुगृहाण।
कवे + अत्र = कवेऽत्र।

7. पररूपसन्धि
नियम-‘अ’ वर्ण से अन्त होने वाले उपसर्ग के बाद अगर कोई ऐसी धातु का रूप हो जिसके आदि में ‘ए’ अथवा ‘ओ’ हो तो उस उपसर्ग के अ को पररूप हो जाता है, अर्थात् ए’ अथवा ‘ओ’ जैसा रूप हो जाता है। उदाहरण-प्र + एजते = प्रेजते।।
उप + ओषति = उपोषति ।

8. प्रकृतिभाव सन्धि
प्रकृतिभाव शब्द से तात्पर्य है पहले जैसा रूप रहना अर्थात कोई परिवर्तन न होना। जहाँ सन्धि के नियमानुसार सन्धि नहीं होती, उसे प्रकृतिभाव सन्धि कहते हैं।
(i) नियम-द्विवचन वाले पद के अन्त में ई, ऊ, ए से परे कोई भी स्वर होने पर सन्धि नहीं होती।
उदाहरण
कवी + इमौ = कवी इमौ।
हरी + एतौ = हरी एतौ।
याचेते + अर्थम् = याचेते अर्थम्।।
साधू + इमौ = साधू इमौ।

(ii) नियम-अदस् शब्द के ‘अमी’ और ‘अमू’ रूपों से परे ‘ई’ और ‘ऊ’ स्वर परे होने पर सन्धि नहीं होती।
उदाहरण
अमू + आसते = अमू आसते।
अमू + उपविशतः = अमू उपविशतः ।
अमी + अश्वाः = अमी अश्वाः।
अमी + ईशाः = अमी ईशाः ।

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(ख) हलसन्धि (व्यञ्जनसन्धि)
व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ अथवा व्यञ्जन का स्वर के साथ मिलने पर जो ‘विकार’ होता है उस विकार को ‘व्यञ्जन’ सन्धि कहते हैं। जैसे
(i) व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ-सत् + जनः = सज्जनः ।
(ii) व्यञ्जन का स्वर के साथ-सद् + आचारः = सदाचारः।
व्यञ्जनसन्धि के कुछ मुख्य-मुख्य नियम निम्नलिखित हैं
1.श्चुत्त्व सन्धि (स्तोश्चुनाश्चः )-जब ‘स्तु’ अर्थात् सकार और तवर्ग (त् थ् द् ध् न्) से पहले या बाद में ‘श्चु’. अर्थात् शकार और चवर्ग (च् छ् ज् झ् ञ्) आए तो सकार को शकार और तवर्ग के स्थान पर चवर्ग होता है
(क) स् को श् – हरिस् + शेते = हरिश्शेते।
कस् + चित् = कश्चित्।
(ख) तवर्ग को चवर्गसत् + चित् = सच्चित्।
सत् + जनः = सज्जनः।
शत्रून् + जयति = शत्रूञ्जयति ।

2. ष्टुत्व-सन्धि (ष्टुनाष्टुः)-
जब ‘स्तु’ से पहले या बाद में ष्टु अर्थात् षकार या टवर्ग (ट् ठ् ड् ढ् ण्) आए तो सकार को षकार तथा तवर्ग को टवर्ग हो जाता है। जैसे
(क) स् को – . रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः।
(ख) तवर्ग को टवर्गतत् + टीका = तट्टीका।
उद् + डीयते – उड्डीयते।
कृष् + नः = कृष्णः।
विष् + नुः = विष्णुः।

3. जश्त्व-सन्धि (झलां जशोऽन्ते):
पदान्त में स्थित वर्ग के पहले अक्षर क्, च्, ट्, त् प्, के बाद कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे अक्षर या अन्त:स्थ य, र, ल, व् या ह् बाद में हों तो उनके स्थान पर ‘जश्त्व’ हो जाता है। (संस्कृत में ज्, ब्, ग, ड्, ह की संज्ञा ‘जश्’ है।) जैसे
क् को ग्-वाक् + ईशः = वागीशः।
च् को ज्-अच् + अन्तः – अजन्तः।
च् को ड्-षट् + एव = षडेव।
त् को द्-जगत् + बन्धुः = जगबन्धुः।
प् को ब्-अप् + जः = अब्जः ।

4. अनुस्वार-सन्धि (मोऽनुस्वारः)
पद के अन्त में यदि ‘म्’ हो और उसके बाद कोई व्यञ्जन हो तो ‘म्’ के स्थान में अनुस्वार हो जाता है, (बाद में स्वर हो तो अनुस्वार नहीं होता) जैसे
हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे।।
पुस्तकम् + पठति = पुस्तकं पठति।
(सम् + आचारः = समाचार:-यहाँ स्वर परे है अत: अनुस्वार नहीं हुआ)।

5. (क) परसवर्ण-सन्धि:
(वा पदान्तस्य) पूर्व अनुस्वार से परे वर्ग का कोई भी अक्षर हो तो अनुस्वार को विकल्प से परसवर्ण हो जाता है। परसवर्ण का अर्थ है-उसी अक्षर का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है।
जैसेकवर्ग में-किं + खादति = किखादति।
चवर्ग में-किं + च = किञ्च।
टवर्ग में-किं + ढौकसे = किण्ढौकसे।
तवर्ग में–अन्नं + ददाति = अन्नन्ददाति।
पवर्ग में-अन्नं + पचामि = अन्नम्पचामि।

(ख) अनुस्वार को परसवर्ण:
पदान्तरहित ‘म्’ के बाद वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा य र ल व में से कोई भी वर्ण हो तो ‘म्’ को परसवर्ण हो जाता है। जैसे
शाम् + तः = शान्तः (तवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ‘न्’)
अम् + कः = अकः (कवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ङ्)
कुम् + ठितः = कुण्ठितः (टवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ण) इत्यादि।

(ग)
(i) तोर्लि-यदि तवर्ग से परे ‘ल’ हो तो उसे ‘ल’ परसवर्ण हो जाता है। जैसे
तत् + लयः = तल्लयः।
तत् + लाभः = तल्लाभः ।

(ii) यदि ‘न्’ से परे ‘ल’ हो तो अनुनासिक ‘ल’ हो जाता है। जैसे
विद्वान् + लिखति = विद्वाँल्लिखति।

6. अनुनासिक-सन्धि (नश्छव्यप्राशान्):
यदि पद के अन्त में ‘न्’ हो और उसके आगे च-छ, ट्-ठ् तथा त्थ, में से कोई वर्ण हो तो ‘न्’ के स्थान में अनुनासिक या अनुस्वार तथा च छ परे रहने पर ‘श्’, ट् ठ् परे रहने पर ‘ष’, त् थ् परे रहने पर ‘स्’ अनुनासिक या अनुस्वार हो जाता है। जैसे
कस्मिन् + चित् = कस्मिंश्चित्।
महान् + छेदः = महाँश्छेदः।
महान् + ठाकुरः = महाँष्ठाकुरः।
महान् + टङ्कारः = महाँष्टङ्कारः ।
चक्रिन् + त्रायस्व = चक्रिस्त्रायस्व।
पतन् + तरुः = पतँस्तरुः।

7. द्वित्व-सन्धि (डमोह्रस्वादचि डमुण नित्यम्)
यदि ह्रस्व स्वर के बाद इण् न हों, उनके बाद भी स्वर हो तो ङ् ण् न् को द्वित्व हो जाता है अर्थात् एक-एक और ङ् ण् न् आ जाता है। जैसे
ङ्-प्रत्यङ् + आत्मा = प्रत्यङ्डात्मा।
ण् -सुगण् + ईशः = सुगण्णीशः ।
न् – पठन् + अस्ति = पठन्नस्ति।

8. चकार-सन्धि (छे च)- ह्रस्व स्वर से परे यदि छकार आए तो छकार से पहले चकार जोड़ दिया जाता है।
जैसे
स्व + छन्दः = स्वच्छन्दः।।
वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया।

9. छकार-सन्धि (शश्छोऽटि):
यदि ‘तकार’ के बाद ‘शकार’ आ जाए तो ‘तकार को चकार’ नित्य होता है तथा शकार को छकार विकल्प से होता है। जैसे
तत् + शिवः = तच्छिवः, तच्शिवः।
तत् + श्लोकेन = तच्छ्लोकेन, तच्श्लोकेन।

10. रेफ लोप सन्धि (रोरि)- यदि रेफ (र्) स परे रेफ (र) हो तो एक ‘र’ का लोप हो जाता है तथा पूर्व स्वर को दीर्घ हो जाता है।
जैसेपुनर् + रमते = पुना रमते।
निर् + रोगः = नीरोगः।
साधुः (साधुर्) + रमते = साधू रमते।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ग) विसर्गसन्धि

विसर्ग (:) को वर्गों में मिलाने के लिए उसमें जो विकार आता है, उसे विसर्गसन्धि कहते हैं।
जैसे- रामः + चलति = रामश्चलति।
विसर्गसन्धि के नियम इस प्रकार हैं
1. विसर्ग (:) को स् श् ष् (विसर्जनीयस्य सः)
(i) यदि विसर्ग के बाद त् थ् और स हों तो विसर्ग के स्थान पर ‘स’ हो जाता है। जैसे
रामः + तिष्ठति = रामस्तिष्ठति।
देवाः + सन्ति = देवास्सन्ति।
(ii) यदि विसर्ग के बाद च , छ या श हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘श’ हो जाता है। जैसे
बाल: + चलति = बालश्चलति।
हरिः + शेते = हरिश्शेते।
(iii) यदि विसर्ग के बाद ट ठ या ष हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष’ हो जाता है। जैसे
रामः + टीकते = रामष्टीकते।
धनुः + टंकारः = धनुष्टङ्कारः।
रामः + षष्ठः = रामष्षष्ठः।

2. विसर्ग (रु) को उ
(i) (हशि च)-यदि विसर्ग से पूर्व ‘आ’ हो और बाद में हश् अर्थात् वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ अक्षर अथवा य, र् ल् व् ह्-इनमें से कोई एक वर्ण हो तो विसर्ग (रु) को ‘उ’ हो जाता है। यही ‘उ’ विसर्ग पूर्ववर्ती ‘अ’ के साथ मिल कर ‘ओ’ हो जाता है। जैसे
शिवः + वन्द्य = शिवो वन्द्यः।
यश: + दा = यशोदा
मनः + भावः = मनोभावः।
मनः + हरः = मनोहरः।

(ii) (अतो रो रुः प्लुतादप्लुते)-यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और बाद में भी ‘अ’ हो तो विसर्ग को ‘उ’ हो जाता है। उस ‘उ’ को पूर्ववर्ती अ के साथ गुण होकर ‘ओ’ हो जाता है। परवर्ती ‘अ’ को पूर्वरूप हो जाने पर ‘अ’ लोपवाचक अवग्रह-चिह्न (s) लगा दिया जाता है। जैसे
सः + अपि = सोऽपि
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्।
क: + अयम् = कोऽयम्
स: + अगच्छत् = सोऽगच्छत्।

3. विसर्गलोपः-(विसर्ग का लोप हो जाने पर पुनः सन्धि नहीं होती)
(क) यदि विसर्ग से पूर्व में ‘अ’ हो तो उसके बाद ‘अ’ को छोड़कर कोई और स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे
अतः + एव = अत एव ।
रामः + उवाच = राम उवाच ।

(ख) यदि विसर्ग से पूर्व ‘आ’ हो और उसके बाद कोई स्वर अथवा वर्ण के प्रथम, द्वितीय अक्षरों को छोड़कर अन्य कोई अक्षर अथवा य् र् ल् व् ह हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे
छात्राः + अपि = छात्रा अपि।
जनाः + इच्छन्ति = जना इच्छन्ति।
अश्वाः + गच्छन्ति = अश्वा गच्छन्ति।
जनाः + हसन्ति = जना हसन्ति।

(ग) ‘स’ और ‘एष’ की विसर्गों का लोप हो जाता है यदि बाद में ‘अ’ को छोड़कर अन्य कोई अक्षर हो। जैसे
सः + आगच्छति = स आगच्छति।
एषः + एति = एष एति।
सः + वदति = स वदति।
एषः + हसति = एष हसति।

4. विसर्ग को ‘र’- यदि विसर्ग से पहले अ, आ से भिन्न कोई भी स्वर हो और बाद में कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे पाँचवें अक्षर अथवा य र ल व् ह हों तो विसर्ग के स्थान पर ‘र’ हो जाता है। जैसे
मुनिः + आगतः + मुनिरागतः ।
धेनु: + इयम् = धेनुरियम्।
भानुः + उदेति = भानुरुदेति ।
मुनिः + याति = मुनिर्याति ।
शिशुः + लिखति = शिशुर्लिखति। इत्यादि।

5. विसर्ग को ‘र’
अ के बाद ‘र’ के स्थान पर होने वाले विसर्ग को स्वर, वर्ग के तृतीय, चतुर्थ या पञ्चम वर्ण तथा य, र् ल् व् ह् इनमें से किसी वर्ण के परे रहते ‘र’ हो जाता है। जैसे
प्रात: + एव = प्रातरेव।
पुनः + अपि = पुनरपि।
पुनः = वदति – पुनर्वदति।
मातः देहि = मातर्देहि।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

पाठ्यपुस्तक से उदाहरण

ईशावास्यम् = ईश + आवास्यम्
कुर्वन्नेव = कुर्वन् + एव
तास्ते = तान् + ते
प्रेत्यापि = प्रेत्य + अपि
येऽविद्याम् = ये + अविद्याम्
चाविद्याम् = च + अविद्याम्
वेदोभयम् = वेद + उभयम्
जिजीविषेच्छतम् = जिजीविषेत् + शतम्
तद्धावतः = तत् + धावतः
अनेजदेकम् = अनेजत् + एकम्
आहुरविद्यया = आहुः + अविद्यया
अन्यथेत: = अन्यथा + इतः
अत्येति = अति + एति
क्षितीशम् = क्षिति + ईशम्
प्रत्युज्जगाम = प्रति + उत् + जगाम
यतस्त्वया = यतः + त्वया
तवार्हतः = तव + अर्हतः
स्वार्थोपपत्तिम् = स्वार्थ + उपपत्तिम्
इत्यवोचत् = इति + अवोचत्
इवावशिष्टः = इव + अवशिष्टः
चातकोऽपि = चातक: + अपि
नार्दति = न + नर्दति
एतावदुक्त्वा = एतावत् + उक्त्वा
अन्वयुक्त = अनु + अयुक्त
चाहर = च + आहर
आहरेति = आहर + इति
गुर्वर्थम् = गुरु + अर्थम्
इत्ययम् = इति + अयम्
जहातीह = जहाति + इह
ह्यकर्मणः = हि + अकर्मणः
शरीरयात्रापि = शरीरयात्रा + अपि
पुरुषोऽश्नुते = पुरुषः + अश्नुते
तिष्ठत्यकर्मकृत् = तिष्ठति + अकर्मकृत्
प्रकृतिजैर्गुणैः = प्रकृतिजैः + गुणैः
कर्मणैव = कर्मणा + एव
लोकस्तदनुवर्तते = लोकः + तत् + अनुवर्तते
जनयेदज्ञानाम् = जनयेत् + अज्ञानाम्
एवातिगहनम् = एव + अतिगहनम्
गर्भेश्वरत्वम् = गर्भ + ईश्वरत्वम्
गुरूपदेशः = गुरु + उपदेशः
येवम् = हि + एवम्
नाभिजनम् = न + अभिजनम्
नोपसर्पति = न + उपसर्पति.
नालम्बते = न + आलम्बते
कोऽपि = कः + अपि
चन्द्रोज्ज्वलाः = चन्द्र + उज्ज्वलाः

पदम्सन्धिच्ठेद:सन्धिनाम
यद्यहम्यदि + अहम्(यण् सन्धि:)
पर्याकुला:परि + आकुला:(यण् सन्धि:)
पुनरपिपुनः + अपि( विसर्ग सन्धि: )
किज्चित्किम् + चित्(परसवर्ण सन्धि: )
ततो उन्यातत: + अन्या( विसर्ग/पूर्वरूपसन्धि: )
अध्यासितव्यम्अधि + आसितव्यम्(यण् सन्धि:)
भोजेनोक्तम्भोजेन + उक्तम्(गुण सन्धि:)
तस्यौदार्यम्तस्य + औदार्यम्(वृद्धि सन्धि:)
तस्येप्सितम्तस्य + ईप्सितम्(गुण सन्धि:)
व्यसनेष्वसक्तम्व्यसनेषु + असक्तम्(यण् सन्धि:)
हरन्त्यन्ये .हरन्ति + अन्ये(यण् सन्धि:)
इत्येवम्इति + एवम्(यण् सन्धि:)
आत्मोन्नतिम्आत्म + उन्नतिम्(गुण सन्धि:)
स्वल्पम्सु + अल्पम्(यण् सन्धि:)
अधुनात्रअधुना + अत्र(दीर्घ सन्धि:).
अनाथाश्रम:अनाथ + आश्रम:(दीर्घ सन्धि:)
तस्मिन्नवसरेतस्मिन् + अवसरे(द्वित्वसन्धि: )
प्रत्येकम्प्रति + एकम्(यण् सन्धि:)
कस्मिन्नपिकस्मिन् + अपि(द्वित्वसन्धि:)
उपर्युपरिउपरि + उपरि(यण् सन्धि:)
हरितेनैवहरितेन + एव(गुण सन्धि:)
भवन्तो नित्यम्भवन्तः + नित्यम्(विसर्ग सन्धि:)
कश्चित्क: + चित्(विसर्ग सन्धि:)
सोऽपिस: + अपि(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
कोऽपिक: + अपि(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
प्रेषितोऽहम्प्रेषितः + अहम्(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
पुष्पाঞ्जलि:पुष्प + अऊ्जलि:(दीर्घ सन्धि:)
हिंसावृत्तिस्तुहिंसावृत्ति + तु(विसर्ग सन्धि:)
प्रत्युत्तरम्प्रति + उत्तरम्(यण् सन्धि:)
प्रत्यागच्छतिप्रति + आगच्छति(यण् सन्धि:)
कस्मिन्नपिकस्मिन् + अपि(द्वित्व सन्धि:)
यत्राहमयत्र + अहम्(दीर्घ सन्धि:)
प्रेषितस्त्वम्प्रेषितः + त्वम्( विसर्ग सन्धि:)
प्राप्तैवप्राप्ता + एव(वृद्धि सन्धि:)
यथैवयथा + एव(वृद्धि सन्धि:)
तस्यैवतस्य + एव(वृद्धि सन्धि:)
क्रूरोडयम्क्रूर: + अयम्(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धः)
स्वोदरपूर्तिम्स्व + उदरपूर्तिम्(गुणसन्धि: )
प्रावोचत्प्र + अवोचत्(दीर्घ सन्धि:)
मानवा इवमानवा: + इव(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
अद्यापिअद्य + अपि(दीर्घ सन्धि:)
पुनरेष:पुन: + एष:(विसर्ग सन्धि:)
तत्रैवतत्र + एव(वृद्धि सन्धि: )
सहसाम्रियतसहसा + अम्रियत(दीर्घ सन्धिः)
रत्नार्यर्पयित्वारत्नानि + अर्पयित्वा(यण् सन्धि:)
सर्वोडपिसर्व: + अपि(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
अन्नेनैवअन्नेव + एव(वृद्धि सन्धः:)
नावलोक्यतेन + अवलोक्यते(दीर्घ सन्धि:)
महोत्साह:महा + उत्साह:(गुण सन्धि: )
पित्रोक्तम्पित्रा + उक्तम्(गुण सन्धि:)
स्नुषयोक्तम्स्नुषया + उक्तम्(गुण सन्धि:)
भार्ययोक्तम्भार्यया + उक्तम्(गुण सन्धि:) .
पुत्रेणोक्तम्पुत्रेण + उक्तम्(गुण सन्धि:)
राजापिराजा + अपि(दीर्घ सन्धि: )
चत्वार्यपिचत्वारि + अपि(यण् सन्धि:)
द्वयोरुपरिद्वयो: + उपरि(विसर्ग सन्धि:)
सर्वाण्येवसर्वाणि + एव(यण् सन्धि:)
मन्निर्मितम्मत् + निर्मितम्(परसवर्ण सन्धि:)
तच्छुत्वातत् + श्रुत्वा(छत्व सन्धि:)
त्वर येवम्त्वयि + एवम्(यण् सन्धि:)
लोकास्तिष्ठन्तिलोका: + तिष्ठन्ति(विसर्ग सन्धि:)
सोपानवज्जानन्तिसोपानवत् + जानन्ति(श्चुत्वसन्धि:)
पौराणिकास्तुपौराणिका: + तु(विसर्ग सन्धि:)
सुमेरोरुत्तरतःसुमेरो: + उत्तरत:( विसर्ग सन्धि:)
कैलासश्चकैलास: + च(विसर्ग सन्धि:)
स्वर्गस्पोपरिस्वर्गस्य + उपरि(गुण सन्धि:)
जन्तवस्तिष्ठन्तिजन्तव: + तिष्ठन्ति( विसर्ग सन्धि:)
अथाकस्मात्अथ + अकस्मात्(दीर्घ सन्धि: )
प्रादुरभूत् :प्रादु: + अभूत्( विसर्ग सन्धि:)
मासोडयम्मास: + अयम्(विसर्ग/पूर्वरूप सन्धि:)
पर्वतश्रेणीरिवपर्वतश्रेणी: + इव(विसर्ग सन्धि:)
यथेच्छम्यथा + इच्छम्(गुण सन्धि:)
महान्धकार:महा + अन्धकार:(दीर्घ सन्धि:)

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

बोर्ड की परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

I. स्वरसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् – दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे अच्सन्धि अथवा स्वर सन्धि कहा जाता है। दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण् आदि इसके अनेक प्रकार हैं।
उदाहरण
परम + आनन्दः = परमानन्दः
सु + उक्तिः = सूक्तिः
देव + इन्द्रः = देवेन्द्र:
यदि + अपि = यद्यपि।

II. गुणसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् – यदि अ या आ से परे कोई अन्य (भिन्न) ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, ल हो तो दोनों के स्थान में गुण आदेश होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘ए’, ‘ओ’, ‘अर्’, ‘अल्’ इनकी गुण संज्ञा होती है।
उदाहरण
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
हित + उपदेशः = हितोपदेशः
देव + ऋषिः = देवर्षिः

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

III. व्यञ्जनसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम – व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ अथवा व्यञ्जन का स्वर के साथ मिलने पर जो ‘विकार’ होता है उस विकार को ‘व्यञ्जन’ सन्धि कहते हैं। जैसे
(i) व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ-सत् + जनः = सज्जनः । सत् + चित् = सच्चित्।
(ii) व्यञ्जन का स्वर के साथ-सद् + आचारः = सदाचारः। वाक् + ईशः = वागीशः।

IV. यण्सन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्-यदि इ / ई, उ / ऊ, ऋ / ऋ, ल से परे कोई असमान स्वर हो तो वे क्रमश: य, व, र, ल में बदल जाते
उदाहरण
यदि + अपि = यद्यपि
सु + आगतम् = स्वागतम्
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
तव + लकारः = तवल्कारः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

V. विसर्गसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्-विसर्ग (:) को वर्गों में मिलाने के लिए जो विकार आता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। जैसे
रामः + चलति = रामश्चलति।
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्।
रामः + तिष्ठति = रामस्तिष्ठति।
मुनिः + आगच्छत् = मुनिरागच्छत् ।

VI. दीर्घसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम्-दीर्घसन्धि- ह्रस्व या दीर्घ अ इ उ अथवा ऋ से सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋ के परे होने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है।
उदाहरण
परम + अर्थः = परमार्थः।
परि + ईक्षा = परीक्षा।
सु + उक्तम् = सूक्तम्।
मातृ + ऋणम् = मातृणम् ।

VII. अयादिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्-अयादिसन्धि–यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो वे क्रमशः अय, अव, आय और आव् में बदल जाते हैं।
उदाहरण:
ने + अनम् = नयनम् ।
नै + अकः = नायकः ।
भो + अनम् = भवनम्।
पौ + अकः = पावकः।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

VIII. वृद्धिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् – वृद्धिसन्धि
(i) नियम-यदि अ या आ से परे ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ कर दिया जाता है; अर्थात् अ/आ + ए/ ऐ = ऐ।
उदाहरण
एक + एकम् = एकैकम्।
तव + ऐश्वर्यम् = तवैश्वर्यम्।
मम + ऐश्वर्य = ममैश्वर्यम्।
सदा + एव = सदैव।

(ii) नियम-यदि अ/ आसे परे आ /औ, ऋहो तो दोनों के स्थान पर क्रमशः औ तथा आर् हो जाते हैं; अर्थात् अ/ आ + ओ / औ = औ। ऋ/अ/आ + ऋ = आर्।
उदाहरण:
महा + औषधिः = महौषधिः ।
दुःख + ऋतः = दुःखार्तः ।

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