Class 10

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

HBSE 10th Class Science नियंत्रण एवं समन्वय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन सा पादप हॉर्मोन है –
(a) इन्सुलिन
(b) थायरॉक्सिन
(c) एस्ट्रोजन
(d) सायटोकाइनिन।
उत्तर-
(d) सायटोकाइनिन।

प्रश्न 2.
दो तंत्रिका कोशिकाओं के मध्य खाली स्थान को कहते हैं –
(a) द्रुमिका
(b) सिनेप्स
(c) एक्सॉन
(d) आवेग।
उत्तर-
(b) सिनेप्स।

प्रश्न 3.
मस्तिष्क उत्तरदायी है –
(a) सोचने के लिए
(b) हृदय स्पंदन के लिए
(c) शरीर का सन्तुलन बनाने के लिए
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
हमारे शरीर में ग्राही का क्या कार्य है ? ऐसी स्थिति पर विचार कीजिए जहाँ ग्राही उचित प्रकार से कार्य नहीं कर रहे हों, क्या समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं ?
उत्तर-
शरीर में स्थित संवेदांग (Sensory receptors) शरीर के भीतरी एवं बाहरी वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का अनुभव करके संवेदी तंत्रिकाओं द्वारा केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को पहुँचा देते हैं। ये संवेदांग ग्राही कहलाते हैं। गन्ध का ज्ञान घ्राणग्राही द्वारा, स्वाद का ज्ञान स्वादग्राही द्वारा, स्पर्श का ज्ञान त्वक्ग्राही द्वारा, ध्वनि तथा सन्तुलन का ज्ञान श्रवणोसन्तुलनग्राही द्वारा होता है। जब ग्राही अपना कार्य सामान्य रूप से नहीं करते हैं तो उपर्युक्त संवेदनाओं को ग्रहण नहीं किया जा सकता जिससे कभी-कभी विकराल परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

जैसे-गर्म वस्तु पर हाथ पड़ने पर यदि ताप की पीड़ा का उद्दीपन संवेदी तंत्रिका द्वारा केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में प्रेषित नहीं होगा तो व्यक्ति जलकर घायल हो जाएगा। सामान्य स्थिति में प्रतिवर्ती क्रिया के फलस्वरूप गर्म वस्तु पर हाथ पड़ने पर ताप का उद्दीपन संवेदी तंत्रिका द्वारा मेरुरज्जु में पहुँचता है और चालक तंत्रिका द्वारा सम्बन्धित कंकाल पेशी को पहुँचा दिया जाता है। कंकाल पेशी में संकुचन के फलस्वरूप हाथ गर्म वस्तु से हट जाता है।

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प्रश्न 5.
एक तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) की संरचना बनाइए तथा इसके कार्यों का वर्णन कीजिए। (नमूना प्र.प. 2012, राज. 2015)
उत्तर-
तंत्रिका कोशिका की संरचना (Structure of Neuron) –
(1) केन्द्रक (Nucleus) केन्द्रक तंत्रिका कोशिका का केन्द्र होता है। यह तंत्रिका कोशिका को कार्य करने के निर्देश देता है एवं सभी प्रकार के संदेशों का वहन इसकी सहायता से ही होता है।
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(2) कोशिकाकाय (Cell Body)-यह केन्द्र के चारों ओर बना होता है। इसका कार्य केन्द्रक की सुरक्षा करना होता है।
(3) दुमिका (Dendrite)-दूमिका, तंत्रिका कोशिका के सिरे पर बनी होती है, इसका कार्य तंत्रिका से जुड़ने का होता है।
(4) तंत्रिकाक्ष (Axon)-इसका कार्य पिछली तंत्रिका के अन्तिम सिरे से प्राप्त संदेश को उसके केन्द्रक तक पहुँचाना होता है।
तंत्रिका कोशिकाएँ तीन प्रकार की होती है
(i) संवेदी तंत्रिकोशिका-संवेदनाओं को शरीर के विभिन्न भागों से मस्तिष्क की ओर ले जाती है।
(ii) प्रेरक तंत्रिकोशिका-यह मस्तिष्क से आदेशों को पेशियों तक ले जाती हैं।
(iii) बहुध्रुवी तंत्रिकोशिका-यह संवेदनाओं को मस्तिष्क की ओर तथा मस्तिष्क से पेशियों की ओर ले जाती है।

तंत्रिका कोशिका के कार्य-

  • तंत्रिका कोशिका आपस में मिलकर श्रृंखलाएँ बनाती हैं। ये उद्दीपन और प्रेरणाओं को विद्युत् आवेश के रूप में द्रुत गति से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती हैं जिससे क्रियाएँ तुरन्त सम्पन्न हो जाती हैं। .
  • तंत्रिका कोशिका का अन्य कार्य अवचेतन मस्तिष्क से जुड़े रहना भी है गौरतलब है कि अवचेतन मस्तिष्क मनुष्य के जीवन से जुड़ी सभी यादों को सुरक्षित एवं संग्रहित करके रखता है। इस कारण तंत्रिका कोशिका का कार्य अनेकों क्षणों की प्रतिमा पहुँचाना भी है।

प्रश्न 6.
पादप में प्रकाशानुवर्तन किस प्रकार होता है?
उत्तर-
पादप प्ररोह का प्रकाश की ओर मुड़ना प्रकाशानुवर्तन कहलाता है। प्ररोह में एक पादप हॉर्मोन ऑक्सिन का स्रावण होता है। जब प्ररोह को एक दिशीय प्रकाश मिलता है तो ऑक्सिन प्रकाश की विपरीत दिशा की ओर विसरित हो जाता है। ऑक्सिन के कारण प्रकाश के विपरीत दिशा वाली प्ररोह कोशिकाएँ तीव्र विभाजन करती हैं जिससे पादप प्ररोह प्रकाश की ओर मुड़ जाता है।
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प्रश्न 7.
मेरुरज्जु आघात में किन संकेतों को आने में व्यवधान होगा?
उत्तर-
मेरुरज्जु आघात में प्रतिवर्ती क्रियाएँ तथा अनैच्छिक ‘क्रियाओं के लिए आने वाले संकेतों में व्यवधान होगा।

प्रश्न 8.
पादप में रासायनिक समन्वय किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
पादप में रासायनिक समन्वय हॉर्मोन्स द्वारा होता है। पादपों में उद्दीपित कोशिकाएँ विभिन्न हॉर्मोन्स का स्रावण करती हैं। विभिन्न हॉर्मोन्स पौधों की वृद्धि, विकास एवं पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया के समन्वयन में सहायता करते हैं। हॉर्मोन्स का संश्लेषण प्रायः क्रिया क्षेत्र से दूर होता है और इनका स्थानान्तरण विसरण द्वारा होता है।

उदाहरण के लिए, वृद्धि हॉर्मोन पादप प्ररोह के शीर्ष भाग में संश्लेषित होकर विभिन्न भागों में पहुँचता है जो कि कोशिका प्रवर्धन, शीर्ष प्रभावन, जड़ों की वृद्धि में कमी उत्पन्न करता है। इसी प्रकार साइटोकाइनिन कोशिका विभाजन को उत्प्रेरित करता है। एब्सीसिक अम्ल पतझड़ के मौसम में पर्णविलगन को बढ़ाता है। एथिलीन हॉर्मोन फलों के पकने में सहायता प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 9.
एक जीव में नियन्त्रण एवं समन्वयन के तंत्र की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
किसी भी जीव को अपने पर्यावरण में स्वयं के अस्तित्व के लिए नियन्त्रण एवं समन्वय की आवश्यकता होती है। सभी पादपों एवं प्राणियों में नियन्त्रण एवं समन्वय की क्षमता पायी जाती है। जीव में नियन्त्रण एवं समन्वय तंत्र की आवश्यकता निम्न दो प्रमुख प्रकार्यों के लिए होती है
1. इससे शरीर के विभिन्न अंग एवं अंगतंत्र एक सुनिश्चित तथा व्यवस्थित तरीके से कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए, जब हम भोजन करते हैं तो इस समय हमारे हाथ भोजन लेकर मुँह की ओर आते हैं, घ्राण अंग भोजन की गन्ध लेते हैं, चक्षु भोजन को देखते हैं, दाँत भोजन को चबाते हैं, उसी समय लार स्रावित होती है इत्यादि। ये सभी अंग एवं अंगतंत्र एक नियन्त्रित तरीके से कार्य करते हैं।

2. बहुत सी क्रियाएँ आदतन हो जाती हैं, जैसे-गर्म वस्तु को छूने पर हाथ का दूर छिटकना, काँटा चुभने पर अंग को वापस खींचना आदि। ये क्रियाएँ हमारे मस्तिष्क में विचार आने से पहले ही घट जाती हैं। पौधों में भी ऐसी अनेक क्रियाएँ होती हैं, जैसे प्रतानों का आधार के सहारे लिपटना आदि।

प्रश्न 10.
अनैच्छिक क्रियाएँ तथा प्रतिवर्ती क्रियाएँ एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर-
अनैच्छिक एवं प्रतिवर्ती क्रियाओं में भिन्नता-

प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Reflex Action)अनैच्छिक क्रियाएँ (Involuntary Action)
हमारे शरीर में अनेक क्रियाएँ ऐसी होती हैं जो शीघ्र घटित होती हैं और उनका नियन्त्रण मस्तिष्क द्वारा न होकर मेरुरज्जु द्वारा हो जाता है। ऐसी क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रियाएँ कहते हैं। उदाहरण के लिए, किसी गर्म वस्तु से हाथ छू जाने पर हाथ का पीछे खींचा जाना।हमारे शरीर में अनेक ऐसी क्रियाएँ भी होती हैं जिनका नियन्त्रण मस्तिष्क द्वारा होता है। ऐसी क्रियाएँ अनैच्छिक क्रियाएँ कहलाती हैं। जैसे, भोजन को देखकर मुँह में लार आना, उल्टी होना आदि। इन क्रियाओं का नियन्त्रण केन्द्र पश्च- मस्तिष्क का मेडुला भाग होता है।

प्रश्न 11.
जन्तुओं में नियन्त्रण एवं समन्वयन के लिए तंत्रिका तथा हॉर्मोन क्रियाविधि की तुलना तथा व्यतिरेक (Contrast) कीजिए।
उत्तर-
जन्तुओं में नियन्त्रण एवं समन्वयन दो तंत्रों के द्वारा होता है-
(i) तंत्रिका तंत्र (Nervous System),
(ii) हॉर्मोनी तंत्र या अन्तःस्रावी तंत्र (Endocrine System)।

तन्त्रिकीय नियन्त्रणहॉर्मोनिक क्रियाविधि
1. यह तंत्रिकाओं द्वारा होता है तथा तंत्रिकाएँ शरीर में जाल बनाती हैं।यह हॉर्मोन्स द्वारा होता है। हॉर्मोन्स का स्रावण अन्तः ग्रन्थियों द्वारा होता है।
2. यह एक तीव्रगामी क्रिया है। तंत्रिकाओं द्वारा तुरन्त आवश्यक क्रियाओं का नियन्त्रण होता है।यह एक मन्द गति से होने वाली क्रिया है।
3. इससे तंत्रिका कोशिकाएँ संवेदांगों से उद्दीपन प्राप्त करके इन्हें मस्तिष्क या मेरुरज्जु तक पहुँचाती हैं। ये उद्दीपन, प्रेरणाओं के रूप में मस्तिष्क द्वारा कार्यकारी अंगों तक विद्युत् आवेश के रूप में प्रेषित किये जाते हैं।हॉर्मोन्स अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से स्रावित होकर लक्ष्य कोशिकाओं में पहुँचकर उनकी उपापचयी क्रियाओं को प्रभावित करते हैं।
4. इसके कार्यकर अंग प्रायः पेशियाँ या ग्रंथिंया होती है। यह अंग प्रतिक्रिया को प्रदर्शित करते हैं।हॉर्मोन प्रायः पाचन, वृद्धि जनन, स्त्रावण, उपापचय आदि क्रियाओं का नियन्त्रण और नियमन करते हैं।

प्रश्न 12.
छुई-मुई पादप में गति तथा हमारी टाँगों में होने वाली गति के तरीके में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
छुई-मुई पादप में गति-छुई-मुई पादप में गति स्पर्श उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया के फलस्वरूप होती है। ऐसी गति को स्पर्शानुकुंचन (Thigmonasty) कहते हैं। जब पत्ती को छूते हैं तब उद्दीपन पत्ती में आधार तक संचरित हो जाता है और पत्तियाँ नीचे की ओर झुक जाती हैं। यह आधार कोशिकाओं में परासरणीय दाब में कमी होने के कारण होता है।

हमारे पैरों (टाँगों) की गति-हमारे पैरों की हड्डियों से कंकाल पेशियाँ जुड़ी होती हैं और पेशियों का सम्बन्ध तंत्रिकाओं से होता है। इन तंत्रिकाओं का संचालन मस्तिष्क द्वारा न होकर मेरुरज्जु द्वारा क्रियाएँ कहलाती हैं। जैसे, हो जाता है। ऐसी क्रियाओं भोजन को देखकर मुँह में लार को प्रतिवर्ती क्रियाएँ कहते आना, उल्टी होना आदि। इन हैं। उदाहरण के लिए, क्रियाओं का नियन्त्रण केन्द्र किसी गर्म वस्तु से हाथ छु पश्च- मस्तिष्क का मेडुला जाने पर हाथ का पीछे खींचा भाग होता है। जाना।

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(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 132)

प्रश्न 1.
प्रतिवर्ती क्रिया तथा टहलने के बीच क्या अन्तर है ?
उत्तर-
प्रतिवर्ती क्रिया तथा टहलने के बीच अन्तर-

प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action)टहलना (Walking)
1. वे क्रियाएँ जिन्हें हम अपनी इच्छानुसार नहीं कर सकते प्रतिवर्ती क्रियाएँ कहलाती हैं।वे क्रियाएँ जिन्हें हम अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं ऐच्छिक क्रियाएँ कहलाती हैं अतः टहलना एक ऐच्छिक क्रिया है।
2. यह क्रिया मेरुरज्जु द्वारा नियन्त्रित होती हैं।यह मस्तिष्क द्वारा नियन्त्रित होता है।

प्रश्न 2.
दो तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन) के मध्य अंतर्गंथन (सिनेप्स) में क्या होता है ?
उत्तर-
तंत्रिका तंत्र में तंत्रिका कोशिकाएँ आपस में जुड़कर शृंखलाएँ बनाकर सूचनाओं का प्रेषण करती हैं। दो र तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन) के मध्य अंतर्ग्रथन (सिनेप्स) पर न्यूरॉन के तंत्रिकाक्ष (axon) का घुण्डीनुमा अन्तिम छोर । दूसरी न्यूरॉन के डेन्ड्राइट के साथ सन्धि बनाता है।
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“निकटवर्ती तंत्रिका कोशिकाओं की जोड़ी के बीच अति सूक्ष्म रिक्त स्थान जिसके पार तंत्रिका आवेगों को जब एक तंत्रिका कोशिका से अगली तंत्रिका कोशिका को जाने पर, आगे बढ़ाया जाता है, अंतर्ग्रथन कहलाता है।” अंतर्ग्रथन वास्तव में एकलमार्ग वाल्वों की तरह कार्य करते हैं। कारण यह है कि सन्धि स्थल पर रासायनिक पदार्थ केवल एक तरफ उपस्थित होता है। इसके कारण न्यूरॉन के एक विशिष्ट सेट के द्वारा तंत्रिका आवेग केवल एक तरफ से ही पार जा सकते हैं।

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प्रश्न 3.
मस्तिष्क का कौन-सा भाग शरीर की स्थिति तथा सन्तुलन का अनुरक्षण करता है ?
उत्तर-
पश्च मस्तिष्क (Hind brain) का अनुमस्तिष्क (Cerebellum) भाग हमारे शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है।

प्रश्न 4.
हम एक अगरबत्ती की गन्ध का पता कैसे लगाते हैं?
उत्तर-
हम अगरबत्ती की गंध का पता नासिका में स्थित घ्राण संवेदांगों (Olfactory receptors) द्वारा लगाते हैं। गंध ज्ञान का केन्द्र हमारे मस्तिष्क के प्रमस्तिष्क भाग में स्थित होता है।

प्रश्न 5.
प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की क्या भूमिका
उत्तर-
सामान्यतः दैहिक प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जु द्वारा नियन्त्रित की जाती हैं तथापि मध्य मस्तिष्क सिर, गर्दन एवं धड़ की प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियन्त्रण करता है। यह नेत्र पेशियों (eye muscles); आइरिस पेशियों के संकुचन व शिथिलन, नेत्र लेंस की फोकस दूरियों में परिवर्तन आदि क्रियाओं को भी नियन्त्रित करता है। पश्च मस्तिष्क का मस्तिष्क पुच्छ (Medulla oblongata) हृदय स्पंदन, श्वास दर, खाँसना, छींकना, लार स्रवण, रुधिर दाब, वमन, पसीना आना आदि क्रियाओं का नियमन करता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 136)

प्रश्न 1.
पादप हॉर्मोन्स क्या हैं ?
उत्तर-
पौधों में उत्पन्न विशेष प्रकार के कार्बनिक पदार्थ जो पौधों की वृद्धि, विकास एवं अनुक्रियाओं का नियमन करते हैं, पादप हॉर्मोन्स (Phyto hormones) कहलाते हैं। इन्हें वृद्धि नियामक (Growth regulators) भी कहते हैं। पौधों में पाँच प्रकार के पादप हॉर्मोन्स पाए जाते हैं- ऑक्सिन्स, जिब्रेलिन्स, साइटोकाइनिन्स, एब्सीसिक अम्ल तथा इथाइलीन ।

प्रश्न 2.
छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति, प्रकाश की ओर प्ररोह की गति से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर-
छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति एक अनुकुंचन (Nastic) गति है। इसे स्पर्शानुकुंचन (Thigmonasty) कहते हैं और यह उद्दीपन की दिशा से प्रभावित नहीं होती है।
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इसके विपरीत प्रकाश की ओर प्ररोह की गति अनुवर्तन (Tropic) गति है। इसे प्रकाशानुवर्तन (Phototropism) कहते हैं और इस पर उद्दीपन की दिशा का प्रभाव होता है।

प्रश्न 3.
एक पादप हॉर्मोन का उदाहरण दीजिए जो वृद्धि को बढ़ाता है।
उत्तर-
ऑक्सिन (Auxin)।

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प्रश्न 4.
किसी सहारे के चारों ओर एक प्रतान की वृद्धि में ऑक्सिन किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर-
प्रतान (Tendril) स्पर्शानुवर्तन (Thigmotropism) गति प्रदर्शित करता है अर्थात् यह स्पर्श के प्रति संवेदनशील होता है। प्रतान जैसे ही किसी आधार के सम्पर्क में आता है इसमें स्थित ऑक्सिन स्पर्श के दूसरी ओर विसरित हो जाता है जिससे दूसरी ओर की कोशिकाएँ अधिक विवर्धन करने लगती हैं और प्रतान विपरीत दिशा में मुड़ता है। इस प्रकार वह सहारे के चारों ओर लिपट जाता है।

प्रश्न 5.
जलानुवर्तन दर्शाने के लिए एक प्रयोग की अभिकल्पना कीजिए।
उत्तर-
जलानुवर्तन का प्रदर्शन (Demonstration of Hydrotropism)- नमी के कारण होने वाली पादप गति को जलानुवर्तन कहते हैं। इस प्रकार की गति उच्च श्रेणी के पौधों की जड़ों, ब्रायोफाइट्स के मूलाभास, कवकों के हाइफा आदि में देखने को मिलती है। प्रयोग के लिए एक हम काँच की दो द्रोणिकाएँ A और B लेते हैं और प्रत्येक में 3-4 सेमी मोटी मृदा की सतह बिछाते हैं। दोनों द्रोणिकाओं में समान किस्म का एक-एक बीज बोते हैं और बीज उगने तक बराबर पानी छिड़कते हैं। अब द्रोणी A में एक समान जल देते हैं जबकि द्रोणी B में जल से भरा सछिद्र बर्तन चित्रानुसार रखते हैं।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय 7
हम देखते हैं कि द्रोणी A के पौधे की जड़ सीधी रहती है, जबकि द्रोणी B के पौधे की जड़ पानी से भरे बर्तन की ओर मुड़ जाती है। इससे स्पष्ट है कि जड़ें जलानुवर्तन गति प्रदर्शित करती हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 139)

प्रश्न 1.
जन्तुओं में रासायनिक समन्वय कैसे होता है?
उत्तर-
जन्तुओं में रासायनिक समन्वय (Chemical Coordination) अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स द्वारा होता है। ये हार्मोन्स विशिष्ट ग्रन्थियों से स्रावित होकर रासायनिक संदेशवाहकों के रूप में लक्ष्य कोशिकाओं में पहुँचकर उनके कार्यों पर नियन्त्रण एवं समन्वयन करते हैं। हॉर्मोन्स द्वारा क्रियाओं का मंद गति से नियमन होता है।

प्रश्न 2.
आयोडीन युक्त नमक खाने की सलाह क्यों दी जाती है?
उत्तर-
अवटुग्रन्थि अथवा थायरॉइड ग्रन्थि द्वारा थायरॉक्सिन के निर्माण के लिए आयोडीन आवश्यक है। थायरॉक्सिन हमारे शरीर में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के उपापचय का नियन्त्रण करता है जिससे वृद्धि के लिए उत्कृष्ट सन्तुलन उपलब्ध कराया जा सके। यदि भोजन में आयोडीन की कमी हो जाती है तो थायरॉक्सिन के निर्माण में कमी आ जाती है। इसके कारण थायरॉइड ग्रन्थि फूल जाती है जिसे घेघा (goiter) रोग कहते हैं। इस बीमारी का एक लक्षण फूली हुई गर्दन है।

प्रश्न 3.
जब एड्रीनलीन रुधिर में स्रावित होती है तो हमारे शरीर में क्या अनुक्रिया होती है?
उत्तर-
एड्रीनलीन (adrenaline) को “आपातकालीन हॉर्मोन’ भी कहते हैं क्योंकि भय, क्रोध अथवा संकट की अवस्था में यह हॉर्मोन ऐसी परिस्थितियों का सामना करने के लिए शरीर को तुरन्त तैयार करता है। ऐसी स्थिति में एड्रीनल ग्रन्थि में काफी मात्रा में एड्रीनलीन का स्रावण होता है।

इससे हृदय की धड़कन बढ़ जाती है ताकि शरीर की पेशियों को अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध हो सके। पाचन तंत्र एवं त्वचा में रुधिर आपूर्ति कम हो जाती है। रुधिर की दिशा कंकाल पेशियों की ओर हो जाती है। पसलियों तथा डायफ्राम की पेशियों में तीव्र गति होने लगती है जिससे श्वास दर बढ़ जाती है। ये सभी क्रियाएँ मिलकर जन्तु शरीर को संकट की स्थिति से निपटने के लिए तैयार करती हैं।

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प्रश्न 4.
मधुमेह के कुछ रोगियों की चिकित्सा इन्सुलिन का इंजेक्शन देकर क्यों की जाती है?
उत्तर-
इन्सुलिन हॉर्मोन अग्न्याशय में स्थित लैंगरहँस की B कोशिकाओं से स्रावित होता है। यह रुधिर में शर्करा की मात्रा का नियमन करता है। यदि इन्सुलिन का स्रावण उचित मात्रा में नहीं होता है तो रुधिर में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है इससे शरीर पर हानिकारक प्रभाव होने लगते हैं। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए मधुमेह रोगी को इन्सुलिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं।

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क्रियाकलाप 7.1 (पा. पु. पृ. सं. 128)

प्रश्न 1.
कुछ चीनी अपने मुँह में रखिए। इसका स्वाद कैसा है?
उत्तर-
चीनी मीठी (sweet) लगती है।

प्रश्न 2.
अपनी नाक को अंगूठा तथा तर्जनी अंगुली से दबाकर बन्द कर लीजिए। अब फिर से चीनी खाइये। इसके स्वाद में क्या कोई अन्तर है?
उत्तर-
द्वितीय क्रिया में स्वाद में कोई अन्तर नहीं होता है।

प्रश्न 3.
खाना खाते समय उसी तरह से अपनी नाक बन्द कर लीजिए तथा ध्यान दीजिए कि जिस भोजन को आप खा रहे हैं, क्या उस खाने का आप पूरा स्वाद ले रहे हैं?
उत्तर-
तीसरी क्रिया में खाने की गन्ध न मिलने से खाने का पूरा स्वाद नहीं आता है।

क्रियाकलाप 7.2 (पा. पु. पृ. सं. 134)

प्रश्न-
(i) क्या प्ररोह और जड़ के पुराने भागों ने दिशा बदल दी है ? क्या ये अन्तर नयी वृद्धि की दिशा में है?
(ii) इस क्रियाकलाप से हम क्या निष्कर्ष निकालते हैं?
उत्तर-
(i) हाँ, प्ररोह प्रकाश की ओर तथा जड़ प्रकाश से विपरीत दिशा में वृद्धि करेगी।
(ii) प्ररोह प्रकाशानुवर्तनी गति तथा जड़ें गुरुत्वानुवर्तनी गति प्रदर्शित करती हैं।

क्रियाकलाप 7.3 (पा. पु. पृ. सं. 137)

प्रश्न-
अन्य ग्रंथियों के कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करके निम्न तालिका में प्रदर्शित करें।
उत्तर
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HBSE 10th Class Science विद्युत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रतिरोध R के किसी तार के टुकड़े को पाँच बराबर भागों में काटा जाता है। इन टुकड़ों को फिर पार्श्वक्रम में संयोजित कर देते हैं। यदि संयोजन का तुल्य प्रतिरोध R’ है तो R/R’ अनुपात का मान क्या है
(a) 1/25
(b) 1/5
(c) 5
(d) 25.
उत्तर-
(d) 25.

संकेत-प्रत्येक कटे भाग का प्रतिरोध R/5 होगा।
अतः तुल्य प्रतिरोध
\(\frac{1}{R^{\prime}}=\frac{1}{R / 5}+\frac{1}{R / 5}+\frac{1}{R / 5}+\frac{1}{R / 5}+\frac{1}{R / 5}\)
\(\frac{1}{R^{\prime}}=\frac{5}{R}+\frac{5}{R}+\frac{5}{R}+\frac{5}{R}+\frac{5}{R}=\frac{25}{R}\)
अतः \(\frac{R}{R^{\prime}}\) = 25

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा पद विद्युत परिपथ में विद्युत शक्ति को निरूपित नहीं करता ?
(a) PR
(b) IR2
(c)VI
(d)V2/R.
उत्तर-
(b) IR2

प्रश्न 3.
किसी विद्युत बल्ब का अनुमंताक 220 v; 100 w है। जब इसे 110V पर प्रचालित करते हैं तब इसके द्वारा उपभुक्त शक्ति कितनी होती है?
(a) 100W
(b) 75w
(c) 50 W
(d) 25 W
उत्तर-
(d) 25 W.
संकेतसूत्र P= \(\frac{\mathrm{v}^2}{\mathrm{R}}\) अतः बल्ब का प्रतिरोध R = \(\frac{v^2}{P}\)
R = \(\frac{220 \times 220}{100}\) = 484Ω
∴ द्वितीय स्थिति में शक्ति खर्च P1 = \(\frac{v_1^2}{R}\)
= \(\frac{110 \times 110}{484}\) =25 W

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प्रश्न 4.
दो चालक तार जिनके पदार्थ, लम्बाई तथा व्यास समान हैं किसी विद्युत परिपथ में पहले श्रेणीक्रम में और फिर पावक्रम में संयोजित किए जाते हैं। श्रेणीक्रम तथा पार्श्वक्रम संयोजन में उत्पन्न ऊष्माओं का अनुपात क्या होगा?
(a) 1:2
(b) 2:1
(c) 1:4
(d) 4:1.
उत्तर-
(c) 1 : 4.

संकेत-यदि एक तार का प्रतिरोध R हो तो श्रेणी संयोजन का प्रतिरोध R1 = 2R व पार्श्व संयोजन का प्रतिरोध R2 = \( \frac{\mathrm{R}}{2}\) होगा।
यदि विभवान्तर V है तो ऊष्माओं का अनुपात
\(\frac{\mathrm{H}_1}{\mathrm{H}_2}=\frac{\mathrm{V}^2 / \mathrm{R}_1}{\mathrm{~V}^2 / \mathrm{R}_2}=\frac{\mathrm{R}_2}{\mathrm{R}_1}=\frac{\mathrm{R} / 2}{2 \mathrm{R}}=\frac{1}{4}\)

प्रश्न 5.
किसी विद्युत परिपथ में दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर मापने के लिए वोल्टमीटर को किस प्रकार संयोजित किया जाता है ?
उत्तर-
दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर मापने के लिए वोल्टमीटर को दोनों बिन्दुओं के बीच में पार्श्वक्रम में संयोजित किया जाता है।

प्रश्न 6.
किसी ताँबे के तार का व्यास 0.5 mm तथा प्रतिरोधकता 1.6 x 10-8Ωm है। 100 प्रतिरोध का प्रतिरोधक बनाने के लिए कितने लम्बे तार की आवश्यकता होगी? यदि इससे दोगुना व्यास का तार लें तो प्रतिरोध में क्या अन्तर आएगा?
हल : दिया है प्रतिरोधकता ρ = 1.6 x 10-8 Ωm,
प्रतिरोध R=10Ω
व्यास 2r= 0.5 mm
∴ त्रिज्या r = \(\frac{0.5}{2}\) mm = 2.5 x 10-4m
∵ R = ρ \(\frac{l}{\mathrm{~A}}\)
∴ तार की लम्बाई l = \(\frac{R \times A}{\rho}\)
= \(\frac{10 \times \pi \mathrm{r}^2}{\rho}\)
= \(\frac{10 \times 3.14 \times\left(2.5 \times 10^{-4}\right)^2}{1.6 \times 10^{-8} \Omega \mathrm{m}} \)
= 12.26 x 103m = 122.6 m
व्यास दोगुना करने पर त्रिज्या r दोगुनी तथा अनुप्रस्थं क्षेत्रफल (A = πr²) चार गुना हो जाएगा।
∵ R ∝ \(\frac{1}{\mathrm{~A}}\)
∴ क्षेत्रफल चार गुना होने पर प्रतिरोध एक चौथाई रह जाएगा।
अतः नया प्रतिरोध R1 = \(\frac{1}{4}\) R = \(\frac{1}{4} \times 10\) = 2.5 Ω

प्रश्न 7.
किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवान्तर v के विभिन्न मानों के लिए उससे प्रवाहित विद्युत धाराओं I के संगत मान आगे दिए गए हैं –
I(ऐम्पियर),: 0.5 1.0 2.0 3.0 4.0
v(वोल्ट): 1.6 3.4 6.7 10.2 13.2
V और I के बीच ग्राफ खींचकर इस प्रतिरोधक का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 1
हल : अभीष्ट ग्राफ के लिए उपयुक्त चित्र देखिए। प्रतिरोधक का प्रतिरोध, ग्राफ के ढाल के बराबर होगा।
R= \(\frac{\Delta V}{\Delta I}\)
अर्थात्
दिए गए आँकड़ों से,
V 1 =3.4V, V2 = 10.2V
तथा संगत धाराएँ I1 = 1.0A
I2 = 3.0A
ΔV=V2 -V1
= 10.2 – 3.4=6.8V

ΔI= I2 -I1
= 3.0 – 1.0=2.0A
∴ प्रतिरोध R = \( \frac{\Delta \mathrm{V}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{6.8 \mathrm{~V}}{2.0 \mathrm{~A}}\) = 3.4Ω

प्रश्न 8.
किसी अज्ञात प्रतिरोध के प्रतिरोधक के सिरों से 12V की बैटरी को संयोजित करने पर परिपथ में 2.5 mA विद्युत धारा प्रवाहित होती है। प्रतिरोधक का प्रतिरोध परिकलित कीजिए।
हल : दिया है : V= 12 V, I = 2.5 mA= 2.5 x 10-3A
प्रतिरोध R = \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{I}}=\frac{12 \mathrm{~V}}{2.5 \times 10^{-3} \mathrm{~A}}\)
=4.8 x 103 Ω या R=4.8kΩ

प्रश्न 9.
9v की किसी बैटरी को 0.2Ω, 0.3Ω, 0.4Ω, 0.5Ω तथा 122 के प्रतिरोधकों के साथ श्रेणीक्रम में संयोजित किया गया है, 122 के प्रतिरोधक से कितनी विद्युत धारा प्रवाहित होगी ?
हल : दिया है-
R1 = 0.2Ω, R2 = 0.3Ω, R3 = 0.4Ω, R4 = 0.5Ω तथा R5 = 12Ω
श्रेणी संयोजन का कुल प्रतिरोध
R =R1 +R2+R3 + R4 + R5
= 0.2+0.3+0.4+0.5+ 12
R =13.4Ω

∴ परिपथ में प्रवाहित कुल धारा I = \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{R}}=\frac{9}{13.4}\) = 0.67A
श्रेणी संयोजन में प्रत्येक प्रतिरोध से होकर इतनी ही धारा प्रवाहित होगी।
∴ 122 के प्रतिरोध में धारा = 0.67A

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत

प्रश्न 10.
176 Ω प्रतिरोध के कितने प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम में संयोजित करें कि 220 V के विद्युत स्रोत के संयोजन से 5A विद्युत धारा प्रवाहित हो ?
हल : I=5A, V= 220 V
परिपथ की प्रतिरोधकता R=\(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{I}}=\frac{220}{5} \) = 44Ω
प्रत्येक प्रतिरोधक का प्रतिरोध r = 176Ω
यदि n प्रतिरोधक, प्रत्येक की प्रतिरोधकताको पार्श्वक्रम में संयोजित करें तो इच्छित प्रतिरोध होगा R = r/n
या 44 = \(\frac{176}{n}\) or n=\(\frac{176}{44}\) = 4

प्रश्न 11.
यह दर्शाइए कि आप 6Ω प्रतिरोध के तीन प्रतिरोधकों को किस प्रकार संयोजित करेंगे कि प्राप्त संयोजन का प्रतिरोध
(i) 9Ω, (ii) 4Ω हो।
हल :
(i) 9Ω का प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए, पहले दो प्रतिरोधकों को पार्यक्रम में और इसके बाद तीसरे प्रतिरोध को श्रेणीक्रम में जोड़ना होगा।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 2
पार्श्व संयोजन का प्रतिरोध \(\frac{1}{\mathrm{R}}=\frac{1}{6}+\frac{1}{6}=\frac{2}{6}\)
या R = \(\frac{6}{2}\) = 3Ω
यह 3 Ω का प्रतिरोध 6Ω के तीसरे प्रतिरोध के साथ श्रेणीक्रम में जुड़कर 3 + 6 = 9Ω का प्रतिरोध हो जाएगा।

(ii) 4Ω का प्रतिरोध पाने के लिए पहले 6-60 के दो प्रतिरोधकों को श्रेणीक्रम में जोड़ना होगा और फिर इसके पश्चात् तीसरा प्रतिरोधक इनके पार्श्वक्रम में जोड़ना होगा।
6Ω – 6 Ω के दो प्रतिरोधकों के श्रेणी संयोजन का प्रतिरोध 6 + 6 = 12 Ω होगा।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 3
∴ \(\frac{1}{R}=\frac{1}{6}+\frac{1}{12}=\frac{2+1}{12}=\frac{3}{12}\)
अत: R=\(\frac{12}{3}\) =4Ω

प्रश्न 12.
220 V की विद्युत लाइन पर उपयोग किए जाने वाले बहुत से बल्बों का अनुमतांक 10 w है। यदि 220 V लाइन से अनुमत अधिकतम विद्युत धारा 5A है तो इस लाइन के दो तारों के बीच कितने बल्ब पार्श्वक्रम में संयोजित किए जा सकते हैं ?
हल : माना n बल्बों को पार्यक्रम में जोड़ा जाता है, तब परिपथ में कुल शक्ति व्यय
P=n x एक बल्ब की शक्ति
=n x 10 W = 10 nw होगी।
दिया है : V= 220 V, I = 5A
तब P= VI से, (10 nw = 220 V x 5A)
n = \(\frac{220 \times 5}{10}\) = 110
अर्थात् 110 बल्बों को पार्यक्रम में जोड़ा जा सकता है।

प्रश्न 13.
किसी विद्युत भट्टी की तप्त प्लेट दो प्रतिरोधक कुंडलियोंA तथा B की बनी हैं जिनमें प्रत्येक का प्रतिरोध 24 0 है तथा इन्हें पृथक्-पृथक्, श्रेणीक्रम में अथवा पार्श्वक्रम में संयोजित करके उपयोग किया जा सकता है। यदि यह भट्टी 220 V विद्युत स्रोत से संयोजित की जाती है तो तीनों प्रकरणों में प्रवाहित विद्युत धाराएँ क्या हैं ?
हल : दिया है : V = 220 V, कुंडलियों का प्रतिरोध
R1 = R2 = 24Ω
प्रथम स्थिति में : जब किसी एक कुण्डली का प्रयोग किया जाता है तो कुल प्रतिरोध
R1 = R2 = 24Ω
∴ ली गई धारा 1= \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{R}}=\frac{220}{24}\) = 9.17A
द्वितीय स्थिति में : जब दोनों कुण्डलियों को श्रेणीक्रम में प्रयोग किया जाता है तब कुल प्रतिरोध
R= R1 + R2 = 48 Ω
∴ ली गई धारा I= \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{R}}=\frac{220}{48}\) = 4.58 A

तृतीय स्थिति में : जब कुण्डलियों को पार्यक्रम में संयोजित किया जाता है, तब
\(\frac{1}{R}=\frac{1}{R_1}+\frac{1}{R_2}=\frac{1}{24}+\frac{1}{24}=\frac{2}{24}\)
R = \(\frac{24}{2}\) = 120
∴ ली गई धारा I = \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{R}}=\frac{220}{12}\) = 18.33 A

प्रश्न 14.
निम्नलिखित परिपथों में प्रत्येक में 2Ω प्रतिरोधक द्वारा उपभुक्त शक्तियों की तुलना कीजिए :
(i) 6 V की बैटरी से संयोजित 1Ω तथा 2Ω श्रेणीक्रम संयोजन,
(ii) 4 V बैटरी से संयोजित 12Ω तथा 2Ω का पावक्रम संयोजन।
हल :
(i) दिया है, V=6V 1Ω, 2Ω के श्रेणी संयोजन का प्रतिरोध R= 1+2=3Ω
परिपथ में धारा I= \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{R}}=\frac{6}{3}\) = 2A
श्रेणीक्रम में प्रत्येक प्रतिरोध में धारा 2A ही प्रवाहित होगी अत: 2 Ω के प्रतिरोधक द्वारा उपभुक्त शक्ति
P1, =I2 R = (2)2 x 2 =8 W
(ii) ∵ दोनों प्रतिरोध पार्श्वक्रम में जुड़े हैं ; अतः प्रत्येक प्रतिरोध के सिरों के बीच एक ही विभवान्तर 4 V होगा।
∴ 2Ω के प्रतिरोध द्वारा उपभुक्त शक्ति
P2 = \(\frac{\mathrm{V}^2}{\mathrm{R}}\)
P2 = \(\frac{(4 \mathrm{~V})^2}{2 \Omega}\) = 8W
अतः दोनों दशाओं में 2Ω प्रतिरोधक में समान शक्ति खर्च होगी।

प्रश्न 15.
दो विद्युत लैम्प जिनमें से एक का अनुमतांक 100 W; 220 V तथा दूसरे का 60 W; 220 V है, विद्युत मेन्स के साथ पार्श्वक्रम में संयोजित हैं। यदि विद्युत आपूर्ति की वोल्टता 220 V है तो विद्युत मेन्स से कितनी धारा ली जाती है ?
हल : प्रथम बल्ब के लिए V1, = 220 V, P1, = 100 W
माना इसका प्रतिरोध R1, है ता P = V2/R से, .
R1 = \(\frac{\mathrm{V}_1^2}{\mathrm{P}_1}=\frac{(220 \mathrm{~V})^2}{100 \mathrm{~W}}\) = 484 Ω
दूसरे बल्ब के लिए
V2 = 220V, P2= 60W
∴ इसका प्रतिरोध R2 = \(\frac{\mathrm{V}_2^2}{\mathrm{P}_2} \) = \(\frac{(220 \mathrm{~V})^2}{60}=\frac{2420}{3} \Omega\)
माना कि दोनों को पार्श्वक्रम में जोड़ने पर संयोजन का प्रतिरोध R है, तो \(\frac{1}{R}=\frac{1}{R_1}+\frac{1}{R_2}=\frac{1}{484}+\frac{8}{2420}\)
\(\frac{1}{R}=\frac{5+3}{2420}=\frac{8}{2420}\)
∴ \(\frac{1}{R}=\frac{2420}{8}\) = 302.5 Ω
∴ लाइन वोल्टेज V = 220 v
∴ लाइन से ली गई धारा I= \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{R}}=\frac{220}{302.5}\) = 0.73A

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत

प्रश्न 16.
किसमें अधिक विद्युत ऊर्जा उपभुक्त होती है : 250 w का टी.वी. सेट जो एक घण्टे तक चलाया जाता है अथवा 120 W का विद्युत हीटर जो 10 मिनट के लिए चलाया जाता है ?
हल : T.V. सेट के लिए P1, = 250 W
t1, = 1h= 60 x 60s
खर्च की गई ऊर्जा = P1 t1 = 250 x 60 x 60
=9x 105 जूल
तथा विद्युत हीटर के लिए P2 = 120 W, t2, = 10 min =600s
∴ खर्च की गई ऊर्जा = P2 x t2 = 120 x 600=7.2 x 104 जूल
अतः T.V. सेट द्वारा खर्च की गई ऊर्जा अधिक है।

प्रश्न 17.
8Ω प्रतिरोध का कोई विद्युत हीटर विद्युत मेन्स से 2 घण्टे तक 15A विद्युत धारा लेता है। हीटर में उत्पन्न ऊष्मा की दर परिकलित कीजिए।
हल : दिया है R=8Ω, I = 15A .
विद्युत हीटर में ऊष्मा उत्पन्न होने की दर या विद्युत हीटर की शक्ति
P=I2R
=(15)2 x 8= 1800W .

प्रश्न 18.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए
(a) विद्युत लैम्पों के तन्तुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग क्यों किया जाता है ?
(b) विद्युत तापन युक्तियों जैसे ब्रेड-टोस्टर तथा विद्युत इस्तरी के चालक शुद्ध धातुओं के स्थान पर मिश्रातुओं के क्यों बनाए जाते हैं ?
(c) घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है ?
(d) किसी तार का प्रतिरोध उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल में परिवर्तन के साथ किस प्रकार परिवर्तित होता
(e) विद्युत संचारण के लिए प्रायः कॉपर तथा ऐलुमिनियम के तारों का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर-
(a) विद्युत लैम्पों के तन्तुओं में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग किया जाता है, क्योंकि टंगस्टन के बहत पतले तार बनाए जा सकते हैं तथा टंगस्टन का गलनांक 3400°C होता है जो अन्य धातुओं की तुलना में बहुत अधिक होता है।

(b) ब्रेड-टोस्टर, विद्युत इस्तरी आदि के चालक मिश्रधातुओं के इसलिए बनाए जाते हैं, क्योंकि मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता, शुद्ध धातुओं की तुलना में अधिक होती है तथा ताप वृद्धि के साथ इनकी प्रतिरोधकता में नगण्य परिवर्तन होता है। इसके अलावा मिश्रधातुओं का ऑक्सीकरण भी कम होता है। फलतः मिश्रधातुओं से बने चालकों की उम्र शुद्ध धात्विक चालकों की तुलना में अधिक होती है।

(c) श्रेणीक्रम में प्रतिरोध बढ़ने पर अलग-अलग प्रतिरोधकों के सिरों के बीच उपलब्ध विभवान्तर घटता जाता है। अतः परिपथ में धारा भी घटती जाती है। यदि घरों में प्रकाश करने के लिए श्रेणी सम्बद्ध व्यवस्था प्रयोग की जाए तो परिपथ में जितने अधिक संयन्त्र (बल्ब), जुड़े होंगे उनका प्रकाश उतना ही कम हो जाएगा। इसके अतिरिक्त श्रेणीक्रम में सभी संयन्त्र एक साथ एक ही स्विच से कार्य करेंगे व एक साथ एक ही स्विच से बंद होंगे एवं यदि कोई एक भी संयन्त्र खराब हो जाएगा तो शेष सभी उपकरण कार्य करना बन्द कर देंगे। इस कारण से घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग नहीं किया जाता ।

(d) तार का प्रतिरोध उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् |

(e) कॉपर तथा एलुमिनियम के तारों का प्रतिरोध न्यूनतम है। इस कारण से इनका प्रयोग विद्युत संचारण के लिए प्रयुक्त तारों में किया जाता है। ये दोनों धातुएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं एवं सस्ती भी हैं।

HBSE 10th Class Science विद्युत InText Questions and Answers

(पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 222)

प्रश्न 1.
विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
किसी विद्युत धारा के सतत तथा बन्द पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं।

प्रश्न 2.
विद्युत धारा के मात्रक की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
विद्युत धारा का S.I. मात्रक ऐम्पियर है। इसे A से प्रदर्शित करते हैं।
सूत्र I = \(\frac{\mathrm{Q}}{t}\) से यदि Q = 1C, 1 = 1s तब I = 1A
अतः यदि आवेश 1 कूलॉम/सेकण्ड की दर से प्रवाहित होता है तब उस चालक में प्रवाहित होने वाली धारा 1A होगी।

प्रश्न 3.
एक कूलॉम आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या परिकलित कीजिए।
हल : दिया है
Q = 1C
∵ सूत्र Q = n e से,
n = \(\frac{\mathrm{Q}}{e}=\frac{1}{1.6 \times 10^{-19}}\)
= \(\frac{10 \times 10^{18}}{1.6}\) = 6.25 × 1018
अतः 1 कूलॉम आवेश में 6.25 x 1018 इलेक्ट्रॉन होंगे।

(पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 224)

प्रश्न 1.
उस युक्ति का नाम लिखिए जो किसी चालक के सिरों पर विभवान्तर बनाए रखने में सहायता करती है।
उत्तर-
विद्युत सेल।

प्रश्न 2.
यह कहने का क्या तात्पर्य है कि दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर 1V है?
उत्तर-
इस कथन का अर्थ है कि 1C के आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में 1J कार्य करना होगा।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत

प्रश्न 3.
6 V बैटरी से गुजरने वाले हर एक कूलॉम आवेश को कितनी ऊर्जा दी जाती है ?
उत्तर-
बैटरी का विभवान्तर 6V अर्थात 6J/C है, अतः । हर एक कूलॉम आवेश को 6J ऊर्जा दी जाएगी।

(पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 232)

प्रश्न 1.
किसी चालक का प्रतिरोध किन कारकों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
किसी चालक का प्रतिरोध R उसकी लम्बाई 1, उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल A तथा उसके पदार्थ पर निम्न प्रकार से निर्भर करता है
R ∝ l, R ∝ \(\frac{1}{\mathrm{~A}}\) अत: R= ρ\(\frac{1}{\mathrm{~A}}\)
जहाँ p चालक के पदार्थ की प्रतिरोधकता है।

प्रश्न 2.
समान पदार्थ के दो तारों में यदि एक पतला तथा दूसरा मोटा हो तो इनमें से किसमें विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होगी जबकि उन्हें समान विद्युत स्रोत से संयोजित किया जाता है ? क्यों ?
उत्तर-
∵ तार का प्रतिरोध RC अतः मोटे तार का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल अधिक है अतः इसका प्रतिरोध कम होगा, इसलिए मोटे तार से धारा आसानी से प्रवाहित हो जाएगी।

प्रश्न 3.
मान लीजिए किसी वैद्युत अवयव के दो सिरों के बीच विभवान्तर को उसके पूर्व के विभवान्तर की तुलना में घटाकर आधा कर देने पर भी उसका प्रतिरोध नियत रहता है। तब उस अवयव से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा में क्या परिवर्तन होगा ?
उत्तर-
धारा I = \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{R}}\) जब R नियत है तब I∝ V अर्थात् विभवान्तर का मान आधा कर देने पर धारा भी आधी हो जाएगी।

प्रश्न 4.
विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रातु के क्यों बनाए जाते हैं ?
उत्तर-
मिश्रातुओं की प्रतिरोधकता शुद्ध धातुओं की तुलना में अधिक होती है तथा तापवृद्धि के साथ इनकी प्रतिरोधकता में नगण्य परिवर्तन होता है, इसके अतिरिक्त मिश्रातुओं का ऑक्सीकरण भी कम होता है, इस कारण से टोस्टर, इस्त्री आदि के चालक मिश्रातुओं के बनाए जाते हैं।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तालिका (पृ. 298) में दिए गए आँकड़ों के आधार पर दीजिए-
(a) आयरन (Fe) तथा मर्करी (Hg) में कौन अच्छा वैद्युत चालक है ?
(b) कौन-सा पदार्थ सर्वश्रेष्ठ चालक है?
उत्तर-
(a) आयरन की प्रतिरोधकता 10 x 10-8 Ω m
तथा मर्करी (Hg) की प्रतिरोधकता 94 x 10-8Ω m है। अतः आयरन (Fe), मर्करी (Hg) की अपेक्षा विद्युत का अच्छा चालक है।
(b) सारणी के आधार पर सिल्वर (Ag) की प्रतिरोधकता 1.6 x 10-8Ω m अर्थात् सबसे कम है ; अतः यह सर्वश्रेष्ठ चालक है।

(पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 237)

प्रश्न 1.
किसी विद्युत परिपथ का व्यवस्था आरेख खींचिए जिसमें 2 V के तीन सेलों की बैटरी, एक 5Ω प्रतिरोधक, एक 8Ω प्रतिरोधक, एक 12Ω प्रतिरोधक तथा प्लग कुंजी सभी श्रेणीक्रम में संयोजित हों।
हल:
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 4

प्रश्न 2.
प्रश्न 1 का परिपथ दुबारा खींचिए तथा इसमें प्रतिरोधकों से प्रवाहित विद्युत धारा को मापने के लिए ऐमीटर तथा 12Ω के प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवान्तर मापने के लिए वोल्टमीटर लगाइए। ऐमीटर तथा वोल्टमीटर के क्या पाठ्यांक होंगे?
हल:
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 5
परिपथ में जुड़े 5Ω , 8Ω , व 12Ω का तुल्य प्रतिरोध
R=R1,+R2,+R3,
=5+8+ 12 = 25Ω
∵ बैटरी में तीन सेल श्रेणीक्रम में जुड़ी हैं अतः बैटरी का विभवान्तर V=2 + 2 + 2 = 6V
∵ परिपथ में धारा I = \(\frac{V}{R}=\frac{6}{25}\) = 0.24 A
अतः अमीटर का पाठ्यांक 0.24 A होगा।
12Ω के सिरों पर जुड़े वोल्टमीटर का पाठ्यांक
V3 =IR3, = 0.24 x 12
V3= 2.88 V
अत: वोल्टमीटर का पाठ्यांक 2.88 V होगा।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत

(पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 240)

प्रश्न 1.
जब (a) 1Ω तथा 106 Ω
(b) 1Ω , 103 तथा 106Ω के प्रतिरोध पार्श्वक्रम में संयोजित किए जाते हैं तो इनके तुल्य प्रतिरोध के सम्बन्ध में आप क्या निर्णय करेंगे?
हल :
(a) दिया है R1, = 12,R2, = 106 = 1000000Ω
समान्तर संयोजन के सूत्र \(\frac{1}{R}=\frac{1}{R_1}+\frac{1}{R_2}\) स
\(\frac{1}{\mathrm{R}}=\frac{1}{1}+\frac{1}{1000000}\)
= \(\frac{1000000+1}{1000000}=\frac{1000001}{1000000}\)
अतः तुल्य प्रतिरोध R = \(\frac{1000000}{1000001} \) = 0.9999 Ω
अतः तुल्य प्रतिरोध, संयोजन में जुड़े अल्पतम प्रतिरोध से भी कम प्राप्त होता है।

(b) दिया है, R1 = 1Ω, R2, = 103Ω = 1000Ω
R3= 1000000Ω
समान्तर संयोजन के सूत्र
\(\frac{1}{\mathrm{R}}=\frac{1}{\mathrm{R}_1}+\frac{1}{\mathrm{R}_2}+\frac{1}{\mathrm{R}_3}\)
\(\frac{1}{R}=\frac{1}{1}+\frac{1}{1000}+\frac{1}{1000000}\)
\(\frac{1}{\mathrm{R}}=\frac{1}{1}+\frac{1}{1000}+\frac{1}{1000000}\)
\(\frac{1}{R}=\frac{1000000+1000+1}{1000000}\)
\(\frac{1}{R}=\frac{1001001}{1000000}\)
∴ तुल्य प्रतिरोध R = \(\frac{1000000}{1001001}\) = 0.999Ω
अतः तुल्य प्रतिरोध, संयोजन में जुड़े अल्पतम प्रतिरोध से भी कम होता है।

प्रश्न 2.
100Ω का एक विद्युत लैम्प, 50Ω का एक विद्युत टोस्टर तथा 500 Ω का एक जल फिल्टर 200 V के विद्युत स्रोत से पार्श्वक्रम में संयोजित हैं। उस विद्युत इस्तरी का प्रतिरोध क्या है जिसे यदि समान स्रोत के साथ संयोजित कर दें तो वह उतनी ही विद्युत धारा लेती है जितनी तीनों युक्तियाँ लेती हैं। यह भी ज्ञात कीजिए कि इस विद्युत इस्तरी से कितनी विद्युत धारा प्रवाहित होती है ?
हल : विद्युत इस्तरी, तीनों उपकरणों के बराबर धारा लेती है; अत इस्तरी का प्रतिरोध, उपकरणों के समान्तर संयोजन के तुल्य प्रतिरोध के बराबर होगा।

यहाँ R1, = 100 Ω, R2,= 50 Ω तथा R3, =500 Ω
माना कि इस्तरी का प्रतिरोध R है तो समान्तर संयोजन के सूत्र से,
\(\frac{1}{R}=\frac{1}{R_1}+\frac{1}{R_2}+\frac{1}{R_3}=\frac{1}{100}+\frac{1}{50}+\frac{1}{500}\)
= \(\frac{5+10+1}{500}=\frac{16}{500}\)
∴ विद्युत इस्तरी का प्रतिरोध R= \(\frac{500}{16}\) = 31.25 Ω
तथा विद्युत इस्तरी द्वारा ली गई धारा
I = \(\frac{V}{R}=\frac{220}{(500 / 16)}\) = 7.04 A

प्रश्न 3.
श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर वैद्युत युक्तियों को पार्श्वक्रम में संयोजित करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
उपकरणों को पार्यक्रम में जोड़ने से निम्नलिखित लाभ होते हैं
(i) पार्श्वक्रम में जोड़ने पर किसी भी चालक में स्विच का उपयोग करके स्वतन्त्रतापूर्वक विद्युतधारा भेजी जा सकती
(ii) उपकरणों को पार्यक्रम में जोड़ने पर सभी उपकरणों को समान विभवान्तर प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 4.
2Ω,3Ω तथा 6Ω के तीन प्रतिरोधकों को किस प्रकार संयोजित करेंगे कि संयोजन का कुल प्रतिरोध (a) 4Ω, (b) 1Ω हो ?
हल :
(a) यहाँ R1 = 2Ω,R2,=3Ω तथा R3, =6Ω,4Ω तुल्य प्रतिरोध प्राप्ति हेतु 3Ω व 6Ω के प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम में जोड़कर उन्हें श्रेणीक्रम में चित्रानुसार जोड़ना होगा
अतः3Ω व 6Ω के पार्श्व संयोजन का प्रतिरोध यदि R’ हो, तब
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 6
\(\frac{1}{R^{\prime}}=\frac{1}{3}+\frac{1}{6}=\frac{2+1}{6}=\frac{3}{6}\)
∴ R’ = \(\frac{6}{3}\) = 2Ω
यह R’ = 2Ω का प्रतिरोध 20 के साथ श्रेणीक्रम में जुड़ा है अतः तुल्य प्रतिरोध R= R1, + R’ = 2 + 2 = 4Ω

(b) 1 Ω तुल्य प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए तीनों प्रतिरोधकों को पार्यक्रम में जोड़ना होगा।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 7
चित्र-तुल्य प्रतिरोध प्राप्त करने हेतु पार्श्व क्रम संयोजन
∴ \(\frac{1}{\mathrm{R}}=\frac{1}{\mathrm{R}_1}+\frac{1}{\mathrm{R}_2}+\frac{1}{\mathrm{R}_3}\)
\(\frac{1}{\mathrm{R}}=\frac{1}{2}+\frac{1}{3}+\frac{1}{6}\)
\(\frac{1}{\mathrm{R}}=\frac{3+2+1}{6}=\frac{6}{6}\)
अतः R= 1Ω

प्रश्न 5.
4Ω,8Ω, 12 Ω तथा 24 Ω प्रतिरोध की चार कुंडलियों को किस प्रकार संयोजित करें कि संयोजन से (a) अधिकतम, (b) निम्नतम प्रतिरोध प्राप्त हो सके ?
उत्तर-
(a) यदि इन चारों प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम में रखा जाए तो अधिकतम प्रतिरोध प्राप्त होगा
Rs=4Ω+8Ω+ 12Ω + 24Ω=48Ω
(b) न्यूनतम प्रतिरोध पाने के लिए उपर्युक्त चारों प्रतिरोधों को पार्यक्रम में रखा जाएगा।
\(\frac{1}{R_P}=\frac{1}{4}+\frac{1}{8}+\frac{1}{12}+\frac{1}{24}=\frac{6+3+2+1}{24}=\frac{12}{24}\)
Rp = \(\frac{24}{12}\) = 2 Ω

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 242) .

प्रश्न 1.
किसी विद्युत हीटर की डोरी क्यों उत्तप्त नहीं होती, जबकि उसका तापन अवयव उत्तप्त हो जाता है ?
उत्तर-
विद्युत हीटर की कुण्डली मिश्रधातु नाइक्रोम की बनी होती है। नाइक्रोम की प्रतिरोधकता ताँबे से बहुत अधिक होने के कारण कुण्डली का प्रतिरोध डोरी में प्रयुक्त ताँबे के प्रतिरोध से बहुत अधिक होता है।
विद्युत हीटर में व्यय शक्ति P = I2 R के अनुसार समान धारा I के लिए P ∝ R
अतः विद्युत हीटर कुण्डली में डोरी की तुलना में अधिक शक्ति व्यय होती है जिससे उसकी कुण्डली उत्तप्त हो जाती है जबकि डोरी उत्तप्त नहीं होती है।

प्रश्न 2.
एक घण्टे में 50 w विभवान्तर से 96000 कूलॉम आवेश को स्थानान्तरित करने में उत्पन्न ऊष्मा का परिकलन कीजिए।
हल : दिया है; V = 50 W, स्थानान्तरित आवेश
Q=96000 कूलॉम
आवेश के स्थानान्तरण में खर्च की गई ऊर्जा
W =OV
=96000×50=4800000J
=4.8x 106J

प्रश्न 3.
202 प्रतिरोध की कोई विद्युत इस्तरी 5 A विद्युत धारा लेती है। 30s में उत्पन्न ऊष्मा परिकलित कीजिए।
हल : दिया है R = 20Ω, I = 5A, t=30s
∴उत्पन्न ऊष्मा (H) = I2Rt
= (5)2 x 20 x 30 = 15000 जूल
= 1.5 x 104 जूल

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 245)

प्रश्न 1.
विद्युत धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर का निर्धारण कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
विद्युत धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर का निर्धारण विद्युत शक्ति द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 2.
`कोई विद्युत मोटर 220 V के विद्युत स्रोत से 5.0 A विद्युत धारा लेता है। मोटर की शक्ति निर्धारित कीजिए तथा 2 घण्टे में मोटर द्वारा उपभुक्त ऊर्जा परिकलित कीजिए।
हल : दिया है : V = 220 V, I = 5A, समय t=2 घंटे
∴ मोटर की शक्ति P= VI= 220 x 5 = 1100 W
अत: 2 घंटे में मोटर द्वारा व्यय ऊर्जा W = Pt
∴ W = 1100 Wx 2 h = 2200 Wh
W = 2.2 kWh

HBSE 10th Class Science विद्युत InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 12.1 (पा. पु. पृ. सं. 226)

प्रश्न 1.
विभवान्तर V तथ विद्युत धारा I के प्रत्येक युगल के लिए अनुपात V/I परिकलित कीजिए।
उत्तर –
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 8

प्रश्न 2.
V तथा I के बीच ग्राफ खींचिए तथा इस ग्राफ की प्रकृति का प्रेक्षण कीजिए।
उत्तर-
इस क्रियाकलाप में हम यह पाते हैं कि प्रत्येक प्रकरण में VII का मान लगभग एक समान प्राप्त होता है। इस प्रकार V-I ग्राफ मूल बिन्दु से गुजरने वाली एक सरल रेखा होती है। 1827 में जर्मन वैज्ञानिक जार्ज साइमन ओम ने यह बताया कि “किसी धातु के तार में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा उस तार के सिरों के बीच विभवान्तर के अनुक्रमानुपाती होती है, परन्तु तार का ताप समान रहना चाहिए” इसे ही ओम का नियम कहते हैं । ग्राफ चित्र में प्रदर्शित है। ।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 9
चित्र निक्रोम तार के लिए V-I ग्राफ। सरल रेखीय ग्राफ यह दर्शाता है कि जैसे-जैसे तार में प्रवाहित विद्युत धारा बढ़ती है विभवान्तर रैखिकतः बढ़ता है। यही ओम का नियम है।

क्रियाकलाप 12.2. (पा. पु. पृ.सं. 228)

क्रिया विधि (Procedure)-
1. एक निक्रोम तार, एक टॉर्च बल्ब, एक 10 W का बल्ब तथा एक ऐमीटर (0-5A परिसर), एक प्लग कुंजी तथा कुछ संयोजी तार लेकर चार शुष्क सेलों (प्रत्येक 1.5 V का) को श्रेणीक्रम में संयोजित करके परिपथ में XY एक अन्तराल छोड़ देते हैं।
2. अन्तराल XY में निक्रोम के तार को जोड़कर परिपथ पूरा करके कुंजी लगाकर ऐमीटर का पाठ्यांक नोट करके प्लग कुंजी को बाहर निकाल लेते हैं।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 10

3. अब निक्रोम तार के स्थान पर XY में टार्च बल्ब को परिपथ में जोड़कर ऐमीटर का पाठ्यांक लेकर बल्ब में प्रवाहित विद्युत धारा मापते हैं तथा XY में विभिन्न अवयवों को जोड़ने पर ऐमीटर के पाठ्यांक के भिन्न-भिन्न होने का अवलोकन करते हैं।

प्रेक्षण (Observation)-इस क्रियाकलाप से यह पता चलता है कि किसी चालक से होकर इलेक्ट्रानों की गति उसके प्रतिरोध द्वारा मन्द हो जाती है। एक ही आकार के चालकों में जिसमें प्रतिरोध कम होता है वह अच्छा चालक होता है। पर्याप्त आकार के चालकों में जो पर्याप्त प्रतिरोध आरोपित करता है, प्रतिरोधक कहलाता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत

क्रियाकलाप 12.3. (पा. पु. पृ. सं. 229)

प्रश्न 1.
क्या विद्युत धारा चालक की लम्बाई पर निर्भर करती है?
उत्तर-
हाँ, चालक में प्रवाहित विद्युत धारा चालक की लंबाई के व्युक्रमानुपाती होती है। क्योंकि लंबाई बढ़ने पर प्रतिरोध बढ़ जाता है व धारा की मात्रा कम हो जाती है।

प्रश्न 2.
क्या विद्युत धारा उपयोग किए जान वाले तार के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर निर्भर करती है?
उत्तर-
हाँ, विद्युत धारा चालक के तार के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के समानुपाती होती है।
I ∝ \(\frac{1}{\mathrm{~L}}\)
अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल बढ़ने पर प्रतिरोध कम हो जाता है अत: धारा का मान बढ़ जाता है।

क्रियाकलाप 12.4. (पा. पु. पृ. सं. 234)

प्रश्न-क्या आप एमीटर के द्वारा विद्युत धारा के मान में कोई अंतर पाते हैं?
उत्तर-
ऐमीटर के पाठ्यांक में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है अतः प्रत्येक स्थिति में धारा का मान समान रहता है। अथात् श्रणी क्रम में जुड़े सभा प्रतिरोधका से समान धारा प्रवाहित होती है।

क्रियाकलाप 12.5. (पा. पु. पृ. सं. 234)

प्रश्न-श्रेणी में x वY के बीच वोल्टमीटर V1,V2, V3, लगाने पर कुल विभवान्तर क्या होगा?
उत्तर-
विभवान्तर V, अन्य विभवान्तरों V1,V2, व V3, के योग के बराबर प्राप्त होता है।
V= V1+V2 + V3,

क्रियाकलाप 12.6. (पा. पु. पृ. सं. 237)
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत 11

प्रेक्षण (Observation)-प्रेक्षण करने पर यह पाया गया कि कुल विद्युत धारा 1, संयोजन की प्रत्येक शाखा में प्रवाहित होने वाली पृथक् धाराओं के योग के बराबर है।
∴ I= I1+I2+I3

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

HBSE 10th Class Science जैव प्रक्रम Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मनुष्य में वृक्क एक तन्त्र का भाग है जो सम्बन्धित है –
(a) पोषण से
(b) श्वसन से
(c) उत्सर्जन से
(d) परिवहन से।
उत्तर-
(c) उत्सर्जन से।

प्रश्न 2.
पादप में जाइलम उत्तरदायी है –
(a) जल का वहन
(b) भोजन का वहन
(c) अमीनो अम्ल का वहन
(d) ऑक्सीजन का वहन।
उत्तर-
(a) जल का वहन।

प्रश्न 3.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है –
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
(b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
पायरूवेट के विखण्डन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है
(a) कोशिका द्रव्य
(b) माइटोकॉण्ड्रिया
(c) हरित लवक
(d) केन्द्रक।
उत्तर-
(d) केन्द्रक।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 5.
हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है ? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर-
हमारे शरीर में वसा (Fat) का पाचन आहार नाल (alimentary canal) में लाइपेज (lipase) नामक विकर द्वारा होता है। पित्त रस (bile juice) में उपस्थित पित्त लवण (bile salts) वसा का इमल्सीकरण करते हैं। जठर रस, अग्न्याशयी रस तथा आंत्रीय रस में लाइपेज एन्जाइम उपस्थित होता है। यह इमल्सीकृत वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदलता है। इस प्रकार वसा का पाचन होता है।

प्रश्न 6.
भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर-
भोजन के पाचन में लार की भूमिका निम्न प्रकार है-

  • यह भोजन को गीला एवं चिकना करती है जिससे भोजन को चबाने तथा निगलने में आसानी होती है।
  • लार में उपस्थित टायलिन (Ptylin) विकर भोजन की मंड को माल्टोज शर्करा में बदलता है।
  • लार में उपस्थित लाइसोजाइम (Lysozyme) जीवाणु एवं अन्य सूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है।
  • लार दाँतों के बीच फंसे अन्न के कणों को निकालने में सहायता करती है।

प्रश्न 7.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उनके उपोत्पाद क्या हैं ?
उत्तर-
स्वपोषी पोषण (Autotrophic nutrition) के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ अथवा कारक निम्नलिखित

  • सूर्य का प्रकाश,
  • पादपों में उपस्थित पर्णहरित,
  • जल तथा
  • कार्बन डाइऑक्साइड।

सभी हरे पौधों में पर्णहरित (chlorophyll) उपस्थित होता है। इसकी सहायता से ये पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल द्वारा भोजन (कार्बोहाइड्रेट) का निर्माण करते हैं।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम 1
ग्लूकोज प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया का मुख्य उत्पाद ग्लूकोज है तथा. इसके उपोत्पाद जल तथा ऑक्सीजन हैं।

प्रश्न 8.
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है। (नमूना प्रश्न-पत्र 2012)
उत्तर-
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में अन्तर-

वायवीय श्वसन (Aerobic Respiration)अवायवीय श्वसन  (Anaerobic Respiration)
1. इसे ऑक्सीश्वसन भी कहते हैं।1. इसे अनॉक्सीश्वसन भी कहते हैं।
2. यह ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है।2. ऑक्सीजन की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है।
3. इसके द्वारा भोज्य पदार्थों का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है।3. इसके द्वारा भोज्य पदार्थों का अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है।
4. इसके अन्तिम उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल होते हैं।4. इसके अन्तिम उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड तथा कार्बनिक अम्ल होते हैं।
5. इसमें अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।5. इसमें अपेक्षाकृत कम ऊर्जा उत्पन्न होती है।

यीस्ट में अवायवीय श्वसन होता है। इसके द्वारा ग्लूकोज के अपघटन से इथाइल ऐल्कोहॉल तथा CO2, उत्पन्न होते

प्रश्न 9.
गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं ?
उत्तर –
श्वसन नली (Trachea) वक्ष गुहा में प्रवेश करके दाईं तथा बाईं दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। अब इन्हें श्वसनियाँ कहते हैं। फेफड़ों में प्रवेश करके प्रत्येक श्वसनी पुनः बार-बार विभाजित होकर अनेक श्वसनिकाओं (Bronchioles) में बँट जाती हैं। श्वसनियाँ पुनः कूपिका नलिकाओं में बँट जाती हैं। प्रत्येक कूपिका नलिका दो-तीन छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाओं में खुलती है जिन्हें कूपिकाएँ (Alveoli) कहते हैं।

हमारे प्रत्येक फेफड़े में लगभग 15 करोड़ कूपिकाएँ होती हैं। इस प्रकार दोनों फेफड़ों की सतह के धरातल का क्षेत्रफल जिसके द्वारा गैस-विनिमय होता है, लगभग 80 वर्ग मीटर होता है। कूपिकाओं की इतनी अधिक संख्या के कारण सतह का धरातल भी अत्यधिक बड़ा होता है जिससे गैस-विनिमय अधिक दक्षतापूर्वक होता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 10.
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं ?
उत्तर-
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन का प्रमुख कार्य फेफड़ों से ऑक्सीजन ग्रहण करके शरीर के विभिन्न ऊतकों तक पहुँचाना है अतः इसे श्वसन वर्णक भी कहते हैं। हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन (haemoglobin) की कमी के कारण फेफड़ों से शरीर की कोशिकाओं के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी हो जाएगी, फलस्वरूप भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण में बाधा उत्पन्न होगी। ऐसा होने से शरीर की विभिन्न क्रियाओं के संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा में कमी हो जाएगी। इसके कारण स्वास्थ्य खराब हो सकता है तथा शरीर में थकान रहने लगती है। हीमोग्लोबिन की कमी से होने वाले रोग को रक्ताल्पता (anaemia) कहते हैं। इसकी अत्यधिक कमी से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

प्रश्न 11.
मनुष्य में दोहरे परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
मनुष्य के हृदय में चार कक्ष पाए जाते हैं-दो अलिंद तथा दो निलय। ऐसी व्यवस्था होने से मनुष्य में शुद्ध (ऑक्सीकृत) तथा अशुद्ध (अनॉक्सीकृत) रुधिर पृथक रहता है। मनुष्य के रुधिर परिसंचरण में रुधिर को हृदय से होकर दो बार गुजरना पड़ता है। पहले चक्र में अशुद्ध रुधिर को हृदय फेफड़ों में ऑक्सीकृत होने के लिए पम्प करता है। फेफड़ों से ऑक्सीकृत रुधिर वापस बाएँ निलय में आता है जहाँ से दूसरे चक्र में इसे विभिन्न अंगों को पम्प किया जाता है। शरीर के अंगों से अशुद्ध रुधिर पुनः हृदय के दाएँ अलिन्द में आता है। अतः रुधिर का परिसंचरण दो बार होता दोहरा परिसंचरण होने के कारण शरीर के विभिन्न ऊतकों को अधिक-से-अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध हो पाती है। मनुष्य को नियततापी होने के कारण ताप नियन्त्रण के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो श्वसन से प्राप्त होती है।

प्रश्न 12.
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अन्तर है?
उत्तर-
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में अन्तर –

जाइलम में वहनफ्लोएम में वहन
1. जाइलम में जल एवं इसमें घुलित खनिज लवणों का वहन होता है।1. इसमें पत्तियों में संश्लेषित खाद्य पदार्थों का वहन होता है।
2. जाइलम में वहन केवल ऊपर की ओर होता है।2. फ्लोएम में वहन ऊपर तथा नीचे की ओर दोनों दिशाओं में होता है।
3. जाइलम में वहन भौतिक बलों द्वारा सम्पन्न होता है।3. फ्लोएम में वहन ऊर्जा का उपयोग करके होता है।

प्रश्न 13.
फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रिया-विधि की तुलना कीजिए।
उत्तर-
फुफ्फुस में कूपिकाओं तथा वृक्क  में वृक्काणु की तुलना

फुफ्फुस में कूपिकाएँवृक्क में वृक्काणु
1. वायु कूपिकाएँ फेफड़ों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाइयाँ हैं।1. वृक्काणु वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाइयाँ हैं।
2. इनकी संख्या अत्यधिक (लगभग 15 करोड़ प्रति फेफड़ा) होती है।2. इनकी संख्या भी अत्यधिक (लगभग 10 लाख  प्रति वृक्क) होती है।
3. इनमें पतली केशिकाओं का जाल होता है।3. इनमें भी पतली केशि काओं का जाल होता है।
4. वायु कूपिकाएँ गैसों के आदान-प्रदान के लिए अत्यधिक सतह धरातल उपलब्ध कराती हैं।4. वृक्काणु रुधिर से उत्सर्जी पदार्थों को पृथक् करने के लिए अत्यधिक सतह धरातल उपलब्ध करात हैं।
5. कूपिकाओं में CO2, रुधिर से अलग तथा O2, रुधिर होते हैं।5. वृक्काणु में रुधिर से वर्ण्य नाइट्रोजनी पदार्थ पृथक् में मिलती है।

HBSE 10th Class Science तत्वों का आवर्त वर्गीकरण  InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ.सं. 105)

प्रश्न 1.
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है ?
उत्तर-
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में विसरण द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो सकती क्योंकि विसरण द्वारा ऑक्सीजन उन्हीं कोशिकाओं में पहुँच सकती है जो वायु के सम्पर्क में होती हैं। हमारे आंतरिक अंगों की कोशिकाएँ एवं ऊतक वायु से दूर गहराई में स्थित होते हैं। अतः इन्हें विसरण द्वारा ऑक्सीजन नहीं मिल सकती।

प्रश्न 2.
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदण्ड का उपयोग करेंगे? .
उत्तर-
किसी वस्तु को सजीव की संज्ञा तभी दी जा सकती है जब उसमें निम्नलिखित लक्षण उपस्थित होते हैं-

  • सजीवों का एक निश्चित आकार एवं आकृति होती
  • सजीवों का शरीर कोशिका/कोशिकाओं/ऊतकों का बना होता है।
  • सजीवों में पोषण होता है।
  • सजीवों में विभिन्न उपापचयी क्रियाएँ; जैसे-पाचन, श्वसन, स्वांगीकरण आदि पायी जाती हैं।
  • सजीव जनन करके अपनी संतति को बढ़ाते हैं।
  • सजीवों में वृद्धि होती है।
  • सजीव गति करते हैं तथा संवेदनशीलता प्रदर्शित करते हैं।
  • सजीवों की मृत्यु होती है।

यद्यपि सजीव रूप-रंग, आकार आदि में समान भी होते हैं और भिन्न भी। जन्तु दौड़ते-भागते हैं, साँस लेते हैं, बोलते हैं, उत्सर्जन करते हैं। परन्तु पौधों में चलने, साँस लेने, बोलने या उत्सर्जन की क्षमता नहीं होती फिर भी पौधे सजीव हैं, क्योंकि इनमें अन्य सभी क्रियाएँ सामान्य रूप से होती हैं।

प्रश्न 3.
किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
किसी जीव द्वारा कच्ची सामग्रियों का उपयोग कार्बन आधारित अणुओं के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 4.
जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?
उत्तर-
जीवन के अनुरक्षण के लिए, हम पोषण (Nutrition), श्वसन (Respiration), परिवहन (Transportation), वृद्धि (Growth), उत्सर्जन (Excretion) आदि को आवश्यक प्रक्रम मानेंगे।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 111)

प्रश्न 1.
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में अन्तर –

स्वयंपोषी पोषण  (Autotrophic Nutrition)विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition)
1. वे जीवधारी जो सरल अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं कर लेते हैं, स्वयंपोषी कहलाते हैं और पोषण की यह विधि स्वयंपोणी पोषण कहलाती है।वे जीवधारी जो सरल अकार्बनिक पदार्थों से भोजन निर्मित नहीं कर पाते और दूसरे जीवों से प्राप्त करते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं और यह पोषण विधि विषमपोषी पोषण कहलाती है।
2. सभी हरे पौधे स्वयंपोषी पोषण विधि अपनाते हैं और ये सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पर्णहरित द्वारा जल व CO2, से ग्लूकोज का निर्माण करते हैं | उदाहरण-सभी हरे पौधे, नीले-हरे शैवाल तथा कुछ प्रकाश-संश्लेषी जीवाण।।सभी जन्तु विषमपोषी पोषण विधि प्रदर्शित करते हैं, तथा ये शाकाहारी, माँसाहारी, परजीवी या मृतोपजीवी हो सकते हैं। उदाहरण-सभी जन्तु, कवक, अधिकांश जीवाणु, परजीवी पादप।

प्रश्न 2.
प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है ?
उत्तर-
प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री के रूप में पौधे को प्रकाश सूर्य से प्राप्त होता है। जल पौधे की जड़ों द्वारा मृदा से ग्रहण किया जाता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल से ली जाती है। पौधे के प्रकाशसंश्लेषी भागों में रन्ध्र (Stomata) उपस्थित होते हैं जिनसे होकर CO2, ऊतकों तक पहुँचती है। मृदा से जड़ों द्वारा अवशोषित जल जाइलम द्वारा प्रकाश-संश्लेषी भाग तक पहुँचता है। जलीय पौधे जल में घुली हुई CO2, तथा जल तने की सतह द्वारा अवशोषित करते हैं।

प्रश्न 3.
हमारे आमाशय में अम्ल की क्या भूमिका है?
उत्तर-
हमारे आमाशय में उपस्थित जठर ग्रन्थियों (Gastric glands) द्वारा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) स्रावित होता है। यह आमाशय में अम्लीय माध्यम बनाता है जिससे पेप्सिन नामक विकर प्रभावशाली होकर प्रोटीन पाचन का कार्य करता है। HCl भोजन के साथ आए जीवाणुओं को नष्ट करके भोजन को सड़ने से बचाता है। यह भोजन में उपस्थित Ca को कोमल बनाता है। यह पाइलोरिक वाल्वों के खुलने एवं बन्द होने पर भी नियन्त्रण रखता है। साथ ही यह वसा के इमल्शीकरण में भी सहायक होता है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

प्रश्न 4.
पाचक एन्जाइमों का क्या कार्य है ?
उत्तर-
एन्जाइम (Enzymes) कार्बनिक जैव-उत्प्रेरक (Biocatalysts) हैं जो विभिन्न जैव-रासायनिक क्रियाओं की दर बढ़ा देते हैं। ये पाचन क्रिया में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा के पाचन को सुगम बनाते हैं। मुख गुहा में एमिलेस नामक एन्जाइम कार्बोहाइड्रेट का आंशिक पाचन करके इसे माल्टोज में बदलता है। उदर में लाइपेज नामक एन्जाइम वसा को वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल में बदलता है। आंत्र लाइपेज, सुक्रेज, माल्टेज एवं लैक्टेज क्रमशः वसा, सुक्रोज, माल्टोज एवं दुग्ध शर्करा का पाचन करते हैं। अतः पाचक एन्जाइम हमारी पाचन क्रिया को सुगम बनाते हैं।

प्रश्न 5.
पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर-
छोटी आंत अर्थात् क्षुद्रांत्र (small intestine) की भीतरी सतह पर असंख्य उंगली सदश रसांकर (villi) तथा सूक्ष्म रसांकुर (microvilli) पाए जाते । ये क्षुद्रांत्र की अवशोषी सतह को लगभग 600 गुना बढ़ा देते हैं। प्रत्येक रसांकुर में रुधिर कोशिकाओं तथा लसीका कोशिकाओं का जाल फैला रहता है। वसीय अम्लों एवं ग्लिसरॉल का अवशोषण लसीका कोशिकाओं द्वारा तथा अन्य भोज्य पदार्थों का अवशोषण रुधिर कोशिकाओं द्वारा होता है। अतः क्षुद्रांत्र को पचे हुए भोजन के अवशोषण का स्तम्भ माना जाता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 116)

प्रश्न 1.
श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है ?
उत्तर-
जलीय जीव श्वसन के लिए जल में घुली हुई ऑक्सीजन का प्रयोग करते हैं। जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा सीमित होती है। स्थलीय जीव वायु से ऑक्सीजन लेते हैं जहाँ ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है। अतः स्थलीय जीव को जलीय जीव की अपेक्षा अधिक ऑक्सीजन मिल जाती है।

प्रश्न 2.
ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं ?
उत्तर-
विभिन्न जैविक-क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है, जोकि ATP के रूप में संचित रहती है। विभिन्न जीवधारियों में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण निम्न प्रकार से हो सकता है –
1. वायवीय श्वसन (Aerobic respiration)- यदि ग्लूकोज का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है तो इसे वायवीय श्वसन कहते हैं। अधिकांश जीवों में इसी प्रकार से ऊर्जा उत्पादन होता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम 2
2. अवायवीय श्वसन (Anaerobic respiration)यदि ग्लूकोज का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है तो इसे अवायवीय श्वसन कहते हैं। , .
(i) जब अवायवीय श्वसन किसी सूक्ष्म जीव (जैसेयीस्ट) में होता है तो इथाइल ऐल्कोहॉल, CO2, तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम 3

(ii) जब अवायवीय श्वसन माँसपेशियों में होता है तब लैक्टिक अम्ल एवं ऊर्जा उत्पन्न होती है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम 4

प्रश्न 3.
मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर-
श्वासोच्छ्वास की क्रिया में खींची गयी वायु फेफड़ों की कूपिकाओं (Alveoli) में भर जाती है। फेफड़ों के अन्दर रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है। लाल रुधिराणुओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन में ऑक्सीजन के प्रति काफी सहिष्णुता होती है। अतः वायु कूपिकाओं से विसरित होकर ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन के अणुओं से बँध जाती है। रुधिर इस ऑक्सीजन को ऑक्सीजन की कमी वाले ऊतकों में पहुँचा देता है। CO2, रुधिर में विलेय होकर फेफड़ों तक लायी जाती है। वायु कूपिकाओं में CO2,’ की सान्द्रता कम होने के कारण रुधिर से यह विसरित होट र फेफड़ों में आ जाती है। अब CO2, युक्त वायु निःश्वसन द्वारा शरीर से बाहर निकाल दी जाती है।

प्रश्न 4.
गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर-
श्वास नाल अथवा ट्रैकिया (Trachea) वक्ष गुहा में प्रवेश करके दाईं तथा बाईं दो शाखाओं में बँट जाती है। अब इन्हें श्वसनियाँ (Bronchi) कहते हैं। फेफड़ों में प्रवेश करके प्रत्येक श्वसनी, पुनः बारम्बार विभाजित होकर अनेक श्वसनिकाओं (Bronchioles) में बँट जाती हैं। श्वसनिकाएँ पुनः कूपिका नलिकाओं (Alveolar ducts) में बँट जाती हैं। प्रत्येक कूपिका नलिका दो-तीन छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाओं में खुलती है जिन्हें कूपिकाएँ (alveoli) कहते हैं। हमारे प्रत्येक फेफड़े (Lung) में लगभग 15 करोड़ वायु कूपिकाएँ (Alveoli) होती हैं। इस प्रकार दोनों फेफड़ों का सतह धरातल जिसके द्वारा गैस विनिमय होता है, लगभग 80 वर्ग मीटर होता है। इस प्रकार हमारे फेफड़े गैसों के अधिकतम आदान-प्रदान के लिए उपयोजित होते हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 122)

प्रश्न 1.
मानव में परिवहन तन्त्र के घटक कौन से हैं ? इन घटकों के क्या कार्य हैं ?
उत्तर-
मानव में परिवहन तन्त्र के घटक एवं इनके कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. हृदय (Heart)-यह मानव शरीर में एक पम्पिंग स्टेशन का कार्य करता है। यह रुधिर को विभिन्न अंगों में पम्प करता है।
  2. धमनियाँ (Arteries)-ये मोटी भित्ति वाली रुधिर वाहिकाएँ हैं जो हृदय से रुधिर को विभिन्न अंगों में पहुँचाती
  3. शिराएँ (Veins)-ये पतली भित्ति वाली वाहिकाएँ हैं जो विभिन्न अंगों से रुधिर एकत्र कर हृदय में लाती हैं।
  4. केशिकाएँ (Capillaries)-ये अत्यधिक पतली एवं संकीर्ण वाहिकाएँ हैं जो धमनियों को शिराओं से जोड़ती हैं।
  5. रुधिर (Blood)-रुधिर में एक प्रकार के तरल संर्योजी ऊतक होते हैं, जो भोजन, ऑक्सीजन, लवणों, विकरों, हॉर्मोनों एवं अपशिष्ट पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक पहुँचाते हैं।

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प्रश्न 2.
स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्तनधारी तथा पक्षियों में दोहरा रुधिर परिसंचरण (Double blood circulation) पाया जाता है। इसका अर्थ है कि रुधिर अपने एक चक्र में दो बार हृदय से होकर गुजरता है। स्तनधारी एवं पक्षियों का हृदय चार कक्षों में बँटा होता है-दो अलिन्द तथा दो निलय। हृदय का बायाँ भाग दैहिक हृदय (Systemic heart) तथा दायाँ भाग पल्मोनरी हृदय (Pulmonary heart) कहलाता है। बाएँ भाग में शुद्ध रुधिर तथा दाएँ भाग में अशुद्ध रुधिर भरा होता है।

शुद्ध अथवा ऑक्सीजन युक्त रुधिर शरीर के विभिन्न अंगों को पहुँचाया जाता है जबकि अशुद्ध रुधिर फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजा जाता है। शुद्ध तथा अशुद्ध रुधिर के पृथक् होने से ऑक्सीजन का ऊतकों में वितरण अधिक प्रभावी तरीके से किया जाता है। स्तनधारी तथा पक्षियों के शरीर का ताप सदैव एक जैसा बनाए रखने एवं अधिक ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
उच्च संगठित पादपों में परिवहन तन्त्र के घटक क्या हैं?
उत्तर-
उच्च संगठित पादपों में परिवहन तन्त्र के निम्नलिखित घटक हैं –

  • जाइलम (Xylem)-यह ऊतक जड़ों द्वारा अवशोषित जल एवं खनिज लवणों को पौधे के विभिन्न वायवीय भागों में परिवहन करता है।
  • फ्लोएम (Phloem)-यह ऊतक पत्तियों में प्रकाशसंश्लेषण के फलस्वरूप बने कार्बनिक भोज्य पदार्थों तथा हॉर्मोन्स का पौधे के विभिन्न भागों में परिवहन करता है।

प्रश्न 4.
पादप में जल और खनिज लवण का परिवहन कैसे होता है ?
उत्तर-
पादप में जल एवं इसमें घुलित लवणों का परिवहन जाइलम ऊतक (Xylem tissue) द्वारा किया जाता है। जाइलम वाहिकाएँ तथा वाहिनिकाएँ आपस में सम्बद्ध होकर पादप की जड़ से लेकर पत्तियों तक एक अनवरत जल संचालक मार्ग बनाती हैं। ऐसे अनेक मार्ग पौधे के विभिन्न भागों तक पहँचते हैं। पौधे की पत्तियों में उपस्थित रंध्रों (Stomata) से जल का वाष्पोत्सर्जन होता है जिससे अनवरत जलमार्ग में एक ‘ वाष्पोत्सर्जन अपकर्ष उत्पन्न होता है। साथ ही जल के अणुओं में ससंजक एवं आसंजक क्षमता भी पायी जाती है जिसके फलस्वरूप जड़ों से लेकर पत्तियों तक जल का एक सतत स्तम्भ बना रहता है और जल ऊपर की ओर चढ़ता है!

प्रश्न 5.
पादप में भोजन का स्थानान्तरण कैसे होता है।
उत्तर-
पादप की पत्तियों में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा निर्मित भोज्य पदार्थों का पौधे के अन्य भागों में स्थानान्तरण फ्लोएम (Pholem) नामक ऊतक द्वारा होता है। फ्लोएम चालनी नलिका तथा सहचर कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है। ऊर्जा का उपयोग करके फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानान्तरण होता है। वह स्थान जहाँ भोजन का निर्माण होता है, स्त्रोत (Source) कहलाता है तथा जहाँ इसका प्रयोग होता है, उपभोग (Sink) कहलाता है। स्रोत से भोज्य पदार्थ ATP की ऊर्जा का प्रयोग करके फ्लोएम की चालनी नलिकाओं में भरा जाता है।

अब शर्करायुक्त चालनी नलिका में परासरण द्वारा जल प्रवेश करता है जिससे फ्लोएम ऊतकों में दाब बढ़ जाता है। फ्लोएम भोज्य पदार्थों का उच्च दाब क्षेत्र से कम दाब क्षेत्र की ओर परिवहन करता है। भोज्य पदार्थों का परिवहन उपभोग स्थल एवं संचय स्थल की ओर अधिक होता है।

(पाठ्य-पुस्तक घृ. सं. 124)

प्रश्न 1.
वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वृक्काणु (Nephrons)-वृक्काणु मानव के वृक्क की उत्सर्जी इकाई कहलाते हैं। प्रत्येक वृक्क का निर्माण असंख्य सूक्ष्म कुण्डलित वृक्क नलिकाओं या वृक्काणु से होता है। प्रत्येक वृक्काणु के दो भाग होते हैं-

  • मैल्पीघी कोष (Malpighian corpuscles) तथा
  • स्रावी नलिका (Secretory tubule)।

मैल्पीघी कोष में प्यालेनुमा संरचना बोमैन सम्पुट (Bowman’s capsule) तथा रुधिर केशिकाओं का गुच्छा ग्लोमेरुलस (glomerulus) होता है।

स्रावी नलिका के तीन भाग होते हैं-
(a) समीपस्थ कुण्डलित नलिका (Proximal convulated tube),
(b) मध्य का हेनले लूप (middle Henle’s loop) तथा
(c) अन्तिम कुण्डलित नलिका (Distal convulated tube)।

मध्य U-आकार की नलिका हेनले लप के चारों ओर रुधिर केशिकाओं का बना परिनालिका केशिका चालक होता है। वृक्काणु का अन्तिम कुण्डलित भाग चौड़ी गुहा वाली संग्रह नलिका में खुलता है। ग्लोमेरुलस के रुधिर का परानिष्यंदन (ultrafiltration) होता है। इसके फलस्वरूप नेफ्रिक फिल्ट्रेट (nephric filtrate) बनता है। इससे पुनः अवशोषण (re-absorption) तथा स्रावण (secretion) द्वारा मूत्र (Urine) का निर्माण होता हैं। मूत्र में विभिन्न उत्सर्जी पदार्थ; जैसे-यूरिया, अमोनिया, यूरिक अम्ल, औषधि आदि होते हैं।
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प्रश्न 2.
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं ?
उत्तर-
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादपों ‘ में निम्नलिखित विधियाँ पायी जाती हैं-

  • पादपों का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ CO2, है। इसका निर्माण श्वसन क्रिया में होता है। श्वसन क्रिया में उत्पन्न CO2, तथा जलवाष्प का निष्कासन सामान्य विसरण द्वारा रन्ध्रों (Stomata) एवं वातरन्ध्रों (Lenticels) द्वारा किया जाता
  • पौधों के उत्सर्जी वर्ण्य पदार्थों को पत्तियों, छाल एवं फलों में पहुँचा दिया जाता है। इनके पौधों से पृथक् होने पर पौधों को इनसे छुटकारा मिल जाता है।
  • अनेक उत्सर्जी पदार्थ कोशिकाओं की रिक्तिकाओं में संचित कर दिए जाते हैं।
  • गोंद, रेजिन, टेनिन आदि पदार्थ मृत काष्ठ में पहुँचा दिए जाते हैं।
  • अनावश्यक जल वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमण्डल में मुक्त कर दिया जाता है।
  • कुछ अपशिष्ट पदार्थों को पौधों की जड़ों द्वारा मृदा में स्रावित कर दिया जाता है।

प्रश्न 3.
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-
मूत्र बनने की मात्रा प्रमुख रूप से पुनः अवशोषण पर निर्भर करती है। वृक्काणु नलिका द्वारा पानी का पुनः अवशोषण निम्न बातों पर निर्भर करता है-

  • जब शरीर के ऊतकों में पर्याप्त मात्रा में जल हो, तब एक बड़ी मात्रा में तनु मूत्र का उत्सर्जन होता है और पुनः अवशोषण कम होता है। यदि शरीर के ऊतकों में जल की मात्रा कम हो, तब सान्द्र मूत्र का उत्सर्जन होता है और पुनः अवशोषण अधिक होता है।
  • जब मूत्र में घुलनशील उत्सर्जकों (जैसे-यूरिया, यूरिक अम्ल, औषधि) की मात्रा अधिक हो तो इनके उत्सर्जन के लिए अधिक जल की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।

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क्रियाकलाप 6.1 (पा. पु. पृ. सं. 107)

प्रश्न 1.
पत्ती के रंग का क्या होता है? विलयन का रंग कैसा हो जाता है?
उत्तर-
पत्ती का हरा भाग रंगहीन हो जाता है। विलयन का रंग क्लोरोफिल निकलने के कारण हरा हो जाता है।

प्रश्न 2.
पत्ती के रंग का अवलोकन कीजिए और प्रारम्भ में पत्ती का जो हरा भाग ट्रेस किया था उससे इसकी तुलना कीजिए।
उत्तर-
पत्ती का वह भाग जो पहले हरा था अब वह बैंगनी काला हो गया है।

प्रश्न 3.
पत्ती के विभिन्न भागों में मंड की उपस्थिति के बारे में आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं?
उत्तर-
निष्कर्ष- क्रोटन अथवा मनीप्लांट की पत्ती शबलित या चितकबरी होती है। पत्ती के हरे भाग में पर्णहरित की उपस्थिति के कारण मंड का निर्माण हुआ जो आयोडीन परीक्षण करने पर बैंगनी काला हो गया। पत्ती के रंगहीन भाग पर मंड परीक्षण का प्रभाव नहीं हुआ। इससे स्पष्ट है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में मंड के निर्माण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।

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क्रियाकलाप 6.2 (पा. पु. पृ. सं. 108)

प्रश्न 1.
क्या दोनों पत्तियाँ समान मात्रा में मंड की उपस्थिति दर्शाती हैं ?
उत्तर-
नहीं, (a) पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के साथ रखे गये पौधे की पत्ती में मंड अनुपस्थित है, जबकि पौधे (b) की पत्ती में मंड उपस्थित है।

प्रश्न 2.
इस क्रियाकलाप से आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं ?
उत्तर-
इस क्रियाकलाप से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि मंड के निर्माण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है। पौधा (a) के साथ पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड रखने से यह बेलजार के अन्दर की सारी CO2, को सोख लेता है और पौधे को प्रकाश-संश्लेषण के लिए CO2, उपलब्ध नहीं होती है।

क्रियाकलाप 6.3 (पा. पु. पृ. सं. 109)

प्रश्न 1.
किस परखनली में आपको रंग में परिवर्तन दिखाई दे रहा है ?
उत्तर-
परखनली ‘B’ के विलयन का रंग परिवर्तित हो जाता है। परखनली ‘A’ में रंग परिवर्तन नहीं होता है। . प्रश्न 2. दोनों परखनलियों में मंड की उपस्थिति के बारे में यह क्या इंगित करता है ? – उत्तर-लार में एमाइलेज एन्जाइम होता है। जब परखनली ‘A’ में 1 ml लार डाली जाती है तो इसमें उपस्थित एन्जाइम एमिलेस मण्ड को माल्टोज शर्करा में बदल देता है। जब दोनों परखनलियों में आयोडीन डाली जाती है तो परखनली ‘B’ में उपस्थित मंड के कारण विलयन का रंग नीला हो जाता है। परखनली ‘A’ में बने माल्टोज पर आयोडीन की क्रिया नहीं होती, अतः इसका रंग अपरिवर्तित रहता है।

प्रश्न 3.
यह लार की मंड पर क्रिया के बारे में क्या दर्शाता है ?
उत्तर-
लार में उपस्थित ऐमिलेस एन्जाइम मंड से क्रिया करके इसे माल्टोज शर्करा में बदल देता है।

क्रियाकलाप 6.4 (पा. पु. पृ. सं. 112)

प्रश्न 1.
एक परखनली में ताजा तैयार किया हुआ चूने का पानी लीजिए। इस चूने के पानी में निःश्वास द्वारा निकली वायु प्रवाहित कीजिए। नोट कीजिए कि चूने के पानी को दूधिया होने में कितना समय लगता है?
उत्तर-
छात्र स्वयं समय नोट करें।

प्रश्न 2.
एक सिरिंज या पिचकारी द्वारा दूसरी परखनली में ताजा चूने का पानी लेकर वायु प्रवाहित करते हैं। चित्र (b)। नोट कीजिए कि इस बार चूने के पानी को दूधिया होने में कितना समय लगता है।
उत्तर-
छात्र स्वयं समय नोट करें।

प्रश्न 3.
निःश्वास द्वारा निकली वायु में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा के बारे में यह हमें क्या दर्शाता है?
उत्तर-
निःश्वास द्वारा निकली वायु में CO2, की मात्रा सामान्य वायु की अपेक्षा अधिक होती है। यह चूने के पानी के साथ क्रिया करके कैल्सियम कार्बोनेट बनाती है, जोकि एक अवक्षेप के रूप में चूने के पानी को दूधिया कर देता है।
Ca(OH)2, + CO2, →CaCO2, + HO
इससे यह भी सिद्ध होता है कि नि:श्वास में निकली वायु में CO2, होती है।

क्रियाकलाप 6.5 (पा. पु. पृ. सं. 112)

प्रश्न-किण्वन के उत्पाद के बारे में यह हमें क्या दर्शाता है ?
उत्तर-
फल के रस या चीनी के घोल में यीस्ट द्वारा किण्वन की क्रिया होती है जिससे एक गैस उत्पन्न होती है। यह गैस चूने के पानी को दूधिया कर देती है। इससे पता चलता है कि किण्वन की क्रिया में CO2, गैस उत्पन्न होती है अर्थात् CO2, गैस किण्वन का उत्पाद है।

क्रियाकलाप 6.6 (पा.पु. पृ.सं. 114)

प्रश्न 1.
एक जलशाला में मछली का अवलोकन कीजिए। वे अपना मुँह खोलती और बन्द करती रहती हैं, साथ ही आँखों के पीछे क्लोमछिद्र (या क्लोमछिद्र को ढकने वाला प्रच्छद) भी खुलता है और बन्द होता रहता है। क्या मुँह और क्लोम छिद्र के खुलने और बन्द होने के समय में किसी प्रकार का समन्वय है?
उत्तर-
मछलियाँ जल में घुली हुई ऑक्सीजन को अपनी श्वसन क्रिया के लिए ग्रहण करती हैं। जल में वायु की अपेक्षा कम ऑक्सीजन घुली रहती है। मछलियाँ अपना मुँह खोलकर पानी अन्दर खींचती हैं और क्लोम छिद्र से होकर बाहर निकाल देती हैं। अतः क्लोम छिद्र एवं मुँह के खुलने में आपसी समन्वय है।

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प्रश्न 2.
गिनती करो कि मछली एक मिनट में कितनी बार मुँह खोलती और बन्द करती है। इसकी तुलना आप अपनी श्वास को एक मिनट में अन्दर और बाहर करने से कीजिए।
उत्तर-
हम एक मिनट में 15 से 18 बार श्वास लेते हैं जबकि मछलियाँ एक मिनट में इससे अधिक बार मुँह खोलती हैं एवं बन्द करती हैं।

क्रियाकलाप 6.7 (पा. पु. पृ. सं. 116) 

प्रश्न 1.
अपने आस-पास के एक स्वास्थ्य केन्द्र का भ्रमण कीजिए और ज्ञात कीजिए कि मनुष्यों में हीमोग्लोबिन की मात्रा का सामान्य परिसर क्या है ?
उत्तर-
मनुष्यों में हीमोग्लोबिन का सामान्य परिसर 12 से 15% होता है।

प्रश्न 2.
क्या यह बच्चे और वयस्क के लिए समान
उत्तर-
हाँ, यह बच्चे और वयस्क के लिए समान

प्रश्न 3.
क्या पुरुष और महिलाओं के हीमोग्लोबिन स्तर में कोई अन्तर है ?
उत्तर-
प्रायः महिलाओं में हीमोग्लोबिन का स्तर पुरुषों से कुछ कम होता है।

प्रश्न 4.
अपने आस-पास के एक पशुचिकित्सा क्लीनिक का भ्रमण कीजिए। ज्ञात कीजिए कि पशुओं, जैसे-भैंस या गाय में हीमोग्लोबिन की मात्रा का सामान्य परिसर क्या है ?
उत्तर-
भैंस या गाय में हीमोग्लोबिन की मात्रा के सामान्य परिसर में थोड़ा फर्क होता है। गाय का हीमोग्लोबिन परिसर 11.4 से 17% एवं भैंस का 12 से 18% तक होता है।

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क्रियाकलाप 6.8 (पा. पु. पृ. सं. 121)

प्रश्न-
क्या आप दोनों में कोई अन्तर देखते हैं ?
उत्तर-
हाँ, पौधे लगे गमले के ऊपर ढके बेलजार की भीतरी सतह पर पानी की बूँदें जमा हो जाती हैं। दूसरे गमले में ऐसा नहीं होता है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 9 आरोग्य भोजन सेवा एवं विभिन्न खाद्य पदार्थों का भण्डारण

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 9 आरोग्य भोजन सेवा एवं विभिन्न खाद्य पदार्थों का भण्डारण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 9 आरोग्य भोजन सेवा एवं विभिन्न खाद्य पदार्थों का भण्डारण

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
आरोग्य भोजन सेवा की क्या परिभाषा है ?
उत्तर :
आरोग्य भोजन सेवा का अर्थ है भोजन का ऐसा रख-रखाव जिससे कि वह अति सूक्ष्म जीवों से मुक्त और सुरक्षित रह सके।

प्रश्न 2.
हम भोजन को आरोग्य कैसे रख सकते हैं ?
उत्तर :
भोजन को आरोग्य रखने के लिए हमें कुछ सामान्य नियमों का ध्यान रखना पड़ेगा। वह हैं –

  1. रसोई में स्वच्छता
  2. साफ़-सफ़ाई के साथ भोजन का रख-रखाव
  3. व्यक्तिगत आरोग्य धर्मिता।

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प्रश्न 3.
फ्रिज में रखकर भोजन को खराब होने से बचाना किस सिद्धान्त पर आधारित है ?
उत्तर :
भोजन में एन्जाइम की क्रिया और सूक्ष्म जीवों में वृद्धि तापमान के बढ़ने से बढ़ती है। कम तापमान पर इनकी वृद्धि कम होती है। इसलिए फ्रिज में भोजन को ठण्डा रखा जाता है। इससे भोजन सरक्षित रहता है।

प्रश्न 4.
बन्द डिब्बों और बोतलों में भोजन खराब होने से क्यों बचा रहता है ?
उत्तर :
हवा और नमी का अस्तित्व जीवाणुओं की वृद्धि का कारण बनता है। इसलिए भोजन को सुरक्षित रखने के लिए पहले भोजन को गर्म करके जीवाणु रहित कर लिया जाता है और फिर डिब्बे या बोतलों में बन्द करके हवा रहित बना लिया जाता है। इस तरह भोजन दीर्घकाल तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

प्रश्न 5.
मीट और मछली पर जीवाणुओं के प्रभाव के बारे में लिखो।
उत्तर :
मीट तथा मछली पर जीवाणुओं का प्रभाव बहुत शीघ्र होता है क्योंकि मीट में नमी और प्रोटीन अधिक मात्रा में होता है। इसलिए जीवाणु शीघ्र आक्रमण करते हैं और संख्या में शीघ्रता से बढ़ते हैं।

प्रश्न 6.
डबलरोटी को फफूंदी लगने से उस पर कैसे परिवर्तन आ जाते हैं ?
उत्तर :
फफूंदी प्रत्येक प्रकार के भोजन पर पैदा हो जाती है। परन्तु नमी वाले भोजन पर 20-40 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में यह वृद्धि तेजी से होती है। फफूंदी लगने से डबलरोटी का स्वाद बदल जाता है। ऐसी डबलरोटी खाने से आदमी बीमार हो सकता है।

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प्रश्न 7.
भोजन को डिब्बों में बन्द करने से एन्जाइम अपनी क्रिया नहीं कर सकते। बताएं क्यों ?
उत्तर :
एन्जाइम को क्रियाशील होने के लिए हवा का होना बहुत ज़रूरी है। भोजन को डिब्बों और बोतलों में बन्द करते समय हवा रहित कर लिया जाता है ताकि एन्जाइम अपनी क्रिया न कर सकें।

प्रश्न 8.
कुछ बैक्टीरिया लाभदायक परिवर्तन लाते हैं, उदाहरण दो।
उत्तर :
बैक्टीरिया बहुत सूक्ष्म जीव होते हैं जो कम तेजाबी मात्रा वाले भोजनों में पाए जाते हैं। अनुकूल वातावरण में ये बहुत शीघ्रता से बढ़ते हैं और भोजन को खराब कर देते हैं। परन्तु कुछ बैक्टीरिया भोजन में लाभदायक परिवर्तन भी लाते हैं। जैसे दूध से दही और एल्कोहल से सिरका बनाने वाले बैक्टीरिया।

प्रश्न 9.
क्या धातएं भी भोजन को खराब कर सकती हैं ?
उत्तर :
कई धातुओं से मिलकर भी भोजन खराब हो जाता है जैसे तांबे और पीतल के बर्तनों में बनाया भोजन कुछ देर में ही खराब हो जाता है और खाने योग्य नहीं रहता। क्योंकि इन धातुओं से भोजन की रासायनिक क्रिया हो जाती है। इसलिए पीतल के बर्तनों को कलई करवाया जाता है।

प्रश्न 10.
भोजन की मिलावट से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
भोजन में कुछ ऐसी वस्तुओं की मिलावट करनी जो भोजन की कीमत से सस्ती हों या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हों, को भोजन की मिलावट कहा जाता है। जैसे देसी घी में वनस्पति घी मिला देना या अरहर की दाल में हानिकारक केसरी दाल को मिलाना।

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प्रश्न 11.
दालों में आम तौर पर किस वस्तु की मिलावट की जाती है ?
उत्तर :
अनाज की तरह दालों में भी कंकर, पत्थरी, मिट्टी, तिनके तथा अन्य कई बीज मिलाए जाते हैं। कई बार दालों की शक्ल अच्छी करने के लिए हानिकारक रंग भी मिलाए जाते हैं। चने और अरहर की दाल में केसरी दाल मिलाई जाती है तथा मांह और मूंगी की दालों में टैल्कम पाऊडर मिलाया जाता है।

प्रश्न 12.
चाय की पत्ती में मिलावट करने के लिए कौन-कौन से मिलावटी पदार्थ प्रयोग किए जाते हैं ?
उत्तर :
लोहे के बारीक टुकड़े चाय की पत्ती की तरह ही लगते हैं। जिस कारण चाय की इनसे मिलावट की जाती है। यह चाय पत्ती से भारी होने के कारण चाय पत्ती का भार बढ़ जाता है। कई बार प्रयोग की गई चाय पत्ती सुखा कर चाय पत्ती में मिलाई जाती है या वैसे ही पुरानी पत्ती बेची जाती है। मांह की दाल के छिलके भी पीस कर चाय पत्ती में मिलावट के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

प्रश्न 13.
भोजन पदार्थों में मिलावट क्यों की जाती है ?
उत्तर :
भोजन में मिलावट व्यापारियों की ओर से अधिक लाभ कमाने के लिए की जाती है। इसलिए व्यापारी घटिया और सस्ती वस्तुएं भोजन में मिला देते हैं। कई बार ये वस्तुएं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो जाती हैं।

प्रश्न 14.
सरसों के बीज में किस वस्तु की मिलावट की जाती है ?
उत्तर :
अर्गमोन के बीज तथा एरगट के बीज (Argemone seeds and ergot seeds) देखने में सरसों के बीजों की तरह लगते हैं इसलिए इनकी मिलावट सरसों के बीजों में आसानी से की जा सकती है।

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प्रश्न 15.
भोजन पदार्थों में मिलावट करने के क्या नुकसान हैं ? किन्हीं दो के बारे में लिखें।
उत्तर :
1. अधिक लाभ कमाने के लालच में कई व्यापारी और दुकानदार खाने वाली वस्तुओं में भी मिलावट कर देते हैं, जिससे वह वस्तुएं खाने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य का नुकसान होता है। जैसे अरहर की दाल में केसरी दाल मिलाने से खाने वाले को अधरंग हो जाता है।
2. खाने वाली वस्तुओं में वर्जित रंगों के प्रयोग से जिगर खराब हो जाता है और कैंसर भी हो सकता है।

प्रश्न 16.
बनावटी रंग कौन-कौन से भोजन पदार्थों में मिलाए जाते हैं और इनके क्या नुकसान हैं ?
उत्तर :
आइसक्रीम, मिठाइयां, बिस्कुट, शर्बत, सक्वैश आदि वस्तुओं में वर्जित और आवश्यकता से अधिक रंगों के प्रयोग से गुर्दे और जिगर खराब हो जाते हैं, कैंसर भी हो सकता है। गर्भवती औरत के भ्रूण में विकार पैदा हो सकते हैं।

प्रश्न 17.
क्या भोजन में मिलावटी पदार्थ का पता लगाया जा सकता है ?
उत्तर :
हाँ, भोजन में मिलावटी पदार्थ का पता चल सकता है। परन्तु इसके लिए जानकारी की आवश्यकता है। जैसे अनाज में एरगट के बीजों की जाँच करने के लिए अनाज को नमक वाले पानी में डालने से एरगट के बीज ऊपर तैर आते हैं। इस तरह दूध में मैदा या स्टार्च की मिलावट आयोडीन के कुछ तुपके मिलाने से पता चल सकती है। दूध का आयोडीन मिलाने के पश्चात् नीला या काला रंग स्टार्च का अस्तित्व दर्शाता है।

प्रश्न 18.
काली मिर्च में किस चीज़ की मिलावट की जा सकती है ? इसकी पहचान कैसे करोगे ?
उत्तर :
काली मिर्च में पपीते के बीज सुखा कर मिलाए जाते हैं। परन्तु पानी में डालने से पपीते के बीज पानी की स्तह पर तैरने लगते हैं।

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प्रश्न 19.
ड्रॉप्सी (Dropsy) नामक बीमारी कौन-से पदार्थ की मिलावट से होती है ?
उत्तर :
सरसों या दूसरे खाने वाले तेलों में यदि अधिक देर तक अर्गमोन की मिलावट वाला तेल प्रयोग किया जाए तो इस से ड्रॉप्सी नाम की बीमारी लग सकती है।

प्रश्न 20.
खराब होने वाले और न खराब होने वाले भोजन में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
खराब होने वाले भोजन वे पदार्थ होते हैं जिनको अधिक देर तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। इन में दध और दध से बने पदार्थ, हरी सब्जियां, मीट, मछली आदि भोजन आते हैं। न खराब होने वाले भोजन वे भोजन हैं, जिनको प्राकृतिक रूप में दीर्घकाल के लिए खराब होने के बिना रखा जा सकता है, जैसे-गेहूँ, चावल, दालें, चीनी, घी आदि।

प्रश्न 21.
मक्खन को कहाँ और कैसे सम्भाला जा सकता है ?
उत्तर :
मक्खन बहुत जल्दी खराब होने वाली वस्तु है। ये सभी वस्तुओं से जल्दी पिघलता है और खराब होकर बदबू मारने लगता है। इस लिए इसको ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए। इस को फ्रिज में रखना चाहिए। यदि फ्रिज न हो तो ठण्डे पानी में मक्खन वाला बर्तन रखें और दिन में तीन बार पानी बदलें।

प्रश्न 22.
भोजन की सम्भाल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
भोजन की सम्भाल से अभिप्राय भोजन को दीर्घकाल के लिए हानिकारक जीवाणुओं और रासायनिक तत्त्वों के प्रभाव से खराब होने से बचाना है ताकि भोजन की सुगन्ध, रंग और पौष्टिकता में कोई अन्तर न पड़े।

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प्रश्न 23.
खराब भोजन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
भोजन की नमी और रासायनिक तत्त्वों के परिवर्तन से भोजन की रचना, स्वाद और गुणों में अन्तर पड़ जाता है। ऐसे भोजन खाने योग्य नहीं रहते। यदि ऐसे भोजन को खा लिया जाए तो व्यक्ति बीमार हो सकता है।

प्रश्न 24.
पोषण तत्त्वों का संरक्षण करने के चार उपाय बताओ।
उत्तर :
देखें दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1.

प्रश्न 25.
शीघ्र नष्ट होने वाले भोज्य पदार्थों के नाम बताएँ।
अथवा
कोई भी चार शीघ्र नष्ट होने वाले भोज्य पदार्थों के नाम लिखें।
उत्तर :
दूध, फल, हरी पत्तेदार सब्जियां।

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प्रश्न 26.
किन्हीं चार अर्धविकारीय खाद्य पदार्थों के नाम बताएं।
उत्तर :
मक्की का आटा, इमली, चावल का आटा, मक्खन।

प्रश्न 27.
फ्रिज में भोज्य पदार्थों को रखने से उन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 3।

प्रश्न 28.
कोई चार अविकारीय खाद्य पदार्थों के नाम बताएं।
उत्तर :
गेहूँ, दाल, मसाले, तेल।

प्रश्न 29.
डबलरोटी का भण्डारण आप कैसे करेंगे ?
उत्तर :
इसको डबलरोटी रखने वाले डिब्बे में ही रखना चाहिए जिसमें कि हवा न जा सके।

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प्रश्न 30.
अण्डों का भण्डारण आप कैसे करोगे ?
उत्तर :
ठण्डे स्थान पर रखकर जैसे फ्रिज में।

प्रश्न 31.
दीर्घकालीन सुरक्षित रहने वाले भोज्य पदार्थों के नाम लिखें।
उत्तर :
गेहूं, दालें, मसाले, तेल, भुनी मुंगफली आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
घरों में प्रयोग किए जाने वाले भोजन पदार्थ कितनी प्रकार के होते हैं ?
अथवा
भोज्य पदार्थों को हम कैसे वर्गीकृत कर सकते हैं ?
उत्तर :
भोजन पदार्थ जल्दी खराब नहीं होते परन्तु नमी युक्त भोजन पदार्थ जैसे-फल, सब्जियां आदि कुछ समय के बाद खराब हो जाते हैं। भोजन पदार्थों की नमी के आधार पर भोजन पदार्थों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जाता है –

  1. शीघ्र खराब होने वाले भोजन पदार्थ (Perishable Foods)-जैसे-दूध, मांस, फल, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि।
  2. कुछ समय के लिए सुरक्षित रहने वाले भोजन (Semiperishable Foods) जैसे-आलू, प्याज, लहसुन, अरबी आदि।
  3. दीर्घकाल तक सुरक्षित रहने वाले भोजन (Non-Perishable Foods)-इन भोजन पदार्थों में नमी नाममात्र ही होती है। यह काफ़ी समय तक सुरक्षित रह सकते हैं जैसे अनाज, दालें, मूंगफली आदि।

प्रश्न 2.
भोजन को सम्भालने से क्या भाव है ?
उत्तर :
पौष्टिक तथा सन्तुलित भोजन को तैयार करने के लिए भोजन पदार्थों की देखभाल करनी बहुत ज़रूरी है। उचित ढंग के साथ सम्भाला भोजन अधिक समय तक चल सकता है। जब कभी किसी विशेष भोजन पदार्थ की कमी महसूस हो तो सम्भाले हुए भोजन पदार्थ को प्रयोग में लाया जा सकता है। भोजन की सम्भाल से अभिप्राय भोजन को दीर्घकाल तक हानिकारक जीवाणुओं तथा रासायनिक तत्त्वों के प्रभावाधीन खराब होने से बचाना है ताकि इसके रंग-रूप, सुगन्ध तथा पौष्टिक तत्त्वों में कोई अन्तर न आए।

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प्रश्न 3.
भोजन को सम्भालने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
1. भोजन की सम्भाल से भोजन में भिन्नता लाई जा सकती है।
2. भोजन पर खर्च होने वाला समय तथा धन की बचत की जा सकती है जैसे मौसम में फल तथा सब्जियां सस्ते मिल जाते हैं। इसको आचार, चटनियां, जैम, मुरब्बे तथा शर्बत आदि बनाकर सम्भाला जाता है तथा दूसरे मौसम में जबकि भोजन पदार्थ नहीं मिलते तो प्रयोग में लाया जा सकता है।
3. मौसमी फल तथा सब्जियों की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। उनको सम्भालकर रखने से नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
4. भोजन पदार्थों को सम्भालकर रखने से सन्तुलित भोजन तैयार करना सरल हो जाता है। क्योंकि भोजन पदार्थों की सम्भाल करने से पौष्टिक तत्त्वों को भी सम्भाल कर रखा जाता है।
5. भिन्न-भिन्न ढंगों से सम्भालकर रखे भोजन को दीर्घकाल तक प्रयोग किया जा सकता है। जैसे फल तथा सब्जियों के आचार, चटनियां, जैम आदि बनाए जा सकते हैं। जैसे कई सब्जियों को सुखा कर भी लम्बे समय तक प्रयोग किया जा सकता है। जैम-साग, मेथी, मटर आदि।

प्रश्न 4.
गर्मियों की ऋतु में भोजन जल्दी खराब हो जाता है, क्यों ?
उत्तर :
गर्मियों की ऋतु में भोजन जल्दी खराब होने का कारण सूक्ष्मजीव होते हैं। गर्मियों का तापमान सूक्ष्म जीवों के बढ़ने, फूलने और एंजाइमों की क्रिया के लिए ज्यादा अनुकूल होता है। इसलिए सूक्ष्म जीव भोजन में बढ़ते-फूलते हैं और उसको खराब कर देते हैं। गर्मियों में भोजन को इसी कारण ही ठण्डी जगहों जैसे फ्रिज और कोल्ड स्टोरों में रखा जाता है।

प्रश्न 5.
भोजन में मौजूद एंजाइम कैसे परिवर्तन लाते हैं ? उदाहरण दो।
उत्तर :
भोजन में कई तरह के एंजाइम होते हैं जोकि भोजन में कई तरह के परिवर्तन लाते हैं। पहले तो यह भोजन को पकाने का कार्य करते हैं जोकि हमारे हित में होता है परन्तु पकने के बाद यह भोजन को गलाने-सड़ाने के लिए भी ज़िम्मेदार हैं। इनकी क्रिया खास तापमान और हवा पर निर्भर करती है। हवा और तापमान दोनों को घटा कर एंजाइमों की प्रतिक्रिया को कंट्रोल किया जा सकता है। भोजन पदार्थों को हवा रहित डिब्बियों में बन्द कर एंजाइमों से भोजन को कुछ समय के लिए बचाया जा सकता है।

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प्रश्न 6.
किस प्रकार के सूक्ष्म जीवों के कारण भोजन खराब हो सकता है ? नाम बताओ।
उत्तर :
भोजन पदार्थ और सूक्ष्मजीव क्रिया करके इनको खराब कर देते हैं।
1. खमीर-गर्मियों में कई बार गुंथा आटा रात भर फ्रिज से बाहर रह जाए तो यह फूल जाता है इसको खमीर हो जाना कहते हैं। यह सूक्ष्म जीवों के कारण ऐसा होता है।
2. बैक्टीरिया-ये कम तेज़ाब वाले भोजन पदार्थों में होते हैं। अनुकूल वातावरण मिलने से ये जल्दी बढ़ते हैं। कुछ ही दिनों में एक बैक्टीरिया से लाखों करोड़ों बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं।
3. फंगस-फंगस हर तरह के भोजन से पैदा हो सकती है। परन्तु नमी वाले भोजन पदार्थों में जल्दी बढ़ती फूलती है। फंगस लगने से भोजन का स्वाद खराब हो जाता है, सड़ जाता है और खाने से हानि होती है।

प्रश्न 7.
मक्खियां भोजन को कैसे खराब करती हैं ? कीड़े, काकरोच और चूहे भोजन को कैसे खराब करते हैं और खराब होने से कैसे बचाया जा सकता है ?
उत्तर :
मक्खियां – मक्खियां गन्दी जगहों पर बैठती हैं। इनकी टांगों से बीमारी के जर्म चिपके होते हैं। जब ये भोजन पदार्थ पर बैठती हैं तो ये जर्म भोजन के ऊपर छोड़ देती हैं। ऐसा भोजन खाकर कई बार बीमारियां भी लग जाती हैं।

बचाव – मक्खियों से बचाव के लिए भोजन को जालीदार अल्मारियों या डोली में रखा जाता है। कीड़े, काकरोच आदि भी भोजन को खराब करते हैं। ज्यादा कीड़ियों वाला भोजन कड़वा हो जाता है। चूहे भी भोजन को कुतरते हैं और बीमारियों के जर्म छोड़ देते हैं।

बचाव – इनके बचाव के लिए डोली (जाली वाली) के पावे को पानी में रखो। चीजों को बन्द पैकटों, डिब्बों, टीनों आदि में रखो। जहां चींटियों का घर हो वहां कीट-नाशक दवाइयां डाल दो। चूहों से बचाव के लिए आटा, सूखी सेवियों और दालों आदि को बन्द टीनों में रखो। अनाज को ड्रमों में रखकर चूहों से और सुसरियों से बचाया जा सकता है।

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प्रश्न 8.
सूखे पदार्थ जैसे कि अनाज को कैसे और कहां सम्भाल कर रखा जा सकता है ?
उत्तर :
अनाज को आमतौर पर बोरियों में रखा जाता है परन्तु इनको चूहे कुतर देते हैं। आजकल ऐसी बोरियां मिलती हैं जिनको चूहे खराब नहीं कर सकते। अनाज को टीन के बड़े-बड़े ड्रमों में भी रखा जा सकता है। बोरियों को तूड़ी में रखने से इसको सुसरी नहीं लगती। अनाज में नीम के सूखे पत्ते भी मिलाए जा सकते हैं। चावलों को बहुत समय रखना हो तो धान के रूप में रखा जा सकता है। इनमें हल्दी या कुछ नमक मिला कर भी सुरक्षित रखा जाता है। सूखी दालों आदि को बन्द पैकटों या हवा बन्द डिब्बों में रखा जाता है।

प्रश्न 9.
अर्गीमोन के बीज किस में मिलाए जाते हैं और इनका क्या नुकसान है ?
उत्तर :
सरसों या दूसरे खाने वाले तेल में इनकी मिलावट की जाती है।
अर्गीमोन की मिलावट वाले तेल के प्रयोग से जिगर का आकार बढ़ जाता है। आंखों की रोशनी कम हो जाती है। ज्यादा देर तक ऐसा तेल प्रयोग किया जाए तो आदमी अन्धा भी हो सकता है। दिल की बीमारी हो सकती है। ड्रॉप्सी नाम की बीमारी हो सकती है।

प्रश्न 10.
भोजन की मिलावटों से अपने आप को कैसे बचाओगे ?
उत्तर :
भोजन की मिलावटों से अपने आप को निम्नलिखित ढंगों से बचाया जा सकता है –

  1. भोजन भरोसेमन्द दुकानदारों से खरीदो।
  2. ऐग्मार्क, आई० एस० आई० या एफ० पी० ओ० मार्के वाली चीजें ही खरीदनी चाहिएं।
  3. तेल और पत्ती डिब्बा बन्द ही खरीदनी चाहिएं क्योंकि खुले पदार्थों में मिलावट हो सकती है।
  4. शंका होने की स्थिति में पदार्थ का नमूना मिलावट जांच करने वाली संस्थाओं को भेजना चाहिए।

प्रश्न 11.
‘आरोग्य धर्मी भोजन सेवा’ को परिभाषित करें।
उत्तर :
इसका अर्थ है सुरक्षित भोजन परोसना। इस लक्ष्य की प्राप्ति व्यक्तिगत स्वच्छता एवं क्षेत्र की सफाई बरकरार रखकर की जा सकती है।

प्रश्न 12.
खाद्य पदार्थों का वर्गीकरण कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर :
हम खाद्य पदार्थों को तीन प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं –

1. विकारीय खाद्य पदार्थ जो जल्दी खराब हो जाते हैं जैसे-दूध, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ आदि।
2. अविकारीय खाद्य पदार्थ जो लम्बे समय तक खराब नहीं होते जैसे-गेहूँ, दाल, मसाले, तेल आदि।
3. अधर्विकारीय खाद्य पदार्थ जो अविकारीय खाद्य पदार्थों से जल्दी खराब हो जाते हैं परन्तु विकारीय खाद्य पदार्थों से बाद में खराब होते हैं जैसे-मैदा, सूजी, बेसन, मक्खन आदि।

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प्रश्न 13.
निम्नलिखित खाद्य पदार्थों को विकारीय, अर्धविकारीय एवं अविकारीय वर्गों में बांटिए –
बाजरा, साबूदाना, मक्के का आटा, शिमला मिर्च, बैंगन, छाछ, क्रीम, इमली, पालक, चावल का आटा, भूनी मूंगफली, पुदीना, दही।
उत्तर :
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प्रश्न 14.
खाद्य पदार्थों के भण्डारण का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
इसका अर्थ है खाद्य पदार्थों को सम्भाल कर रखना। उचित भण्डारण से खाद्य पदार्थों की रक्षा न केवल चूहों और कीड़ों से बल्कि नमी और कीटाणुओं से भी होती है।

प्रश्न 15.
कुछ अविकारीय खाद्य पदार्थों का उदाहरण देकर बताइए कि आप उनका भण्डारण कैसे करेंगे ?
उत्तर :
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प्रश्न 16.
अर्धविकारीय खाद्य पदार्थों का भण्डारण कैसे करेंगे ?
अथवा
अधर्विकारीय खाद्य पदार्थ कौन से हैं ? उनका भण्डारण कैसे करोगे ?
उत्तर :
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प्रश्न 17.
गेहूँ, दालों व मसालों का भण्डारण कैसे करोगे ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 15, 16 का उत्तर।

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प्रश्न 18.
चावल एवं दाल को बार-बार क्यों नहीं धोना चाहिए ?
उत्तर :
पानी में घुलनशील विटामिन तथा अन्य पोषक तत्त्वों का नाश होता है इसलिए चावल तथा दाल को बार-बार नहीं धोना चाहिए।

प्रश्न 19.
पोषक तत्त्वों का संरक्षण क्या होता है ?
उत्तर :
भोजन पकाते समय पोषक तत्त्वों को नष्ट न होने देना पोषक तत्त्वों का संरक्षण है जैसे तेज़ गर्मी पर विटामिन सी, ए आदि नष्ट हो जाते हैं इसलिए अत्यधिक समय तक गर्म नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार जब सब्जी आदि को छीलते हैं तो इसे बहुत ही पतला निकालना चाहिए क्योंकि इसमें कई पोषक तत्त्व होते हैं। इसी प्रकार दालों आदि को अधिक बार धोने से भी पोषक तत्त्व नष्ट होते हैं।

प्रश्न 20.
सब्जियों को काट कर धोने से क्या क्षति (हानि) होती है ?
उत्तर :
सब्जियों को काट कर धोने से इनमें मौजूद पानी में घुलनशील विटामिन तथा अन्य पोषक तत्त्व पानी के साथ निकल जाते हैं तथा सब्जी के पोषक गुणों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 21.
पोषक तत्त्वों के संरक्षण के कोई दो उपाय बताएं।
उत्तर :

  1. सब्जियों को काट कर नहीं धोना चाहिए।
  2. चावलों को उबालकर पानी को फेंकना नहीं चाहिए।
  3. सब्जियों आदि के छिलके बहुत पतले-पतले निकालने चाहिए।

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प्रश्न 22.
खाना बनाते समय मीठे सोडे का प्रयोग करने का क्या नुकसान है ?
उत्तर :
मीठा सोडा कई पोषक तत्त्वों को नष्ट कर देता है जैसे कई प्रकार के विटामिन इससे नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 23.
भोजन खराब होने के कारण बतायें।
उत्तर :
बैक्टीरिया, नमी, फंगस आदि के कारण भोजन खराब हो सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
भोजन को सुरक्षित कैसे रखा जा सकता है ?
उत्तर :
ताज़ा तथा साफ़-सुथरा भोजन तन्दरुस्ती के लिए आवश्यक है। भोजन को साफ़-सुथरा तथा खराब होने से बचाने के लिए भोजन की सुरक्षा के बारे में जानना आवश्यक है। भोजन की सुरक्षा के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –
भोजन की सुरक्षा के सिद्धान्त (Principles of Food Preservation) – उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट होता है कि भोजन पदार्थ कई कारणों द्वारा खराब हो जाते हैं जिनको खाने से स्वास्थ्य को हानि पहंचती है। भोजन को खराब होने से बचाने तथा उसमें पाए जाने वाले हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करना, भोजन के रंग-रूप तथा पौष्टिक तत्त्वों को सुरक्षित रखना ही भोजन की सम्भाल करना है। भोजन की सम्भाल के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित
(क) सूक्ष्म जीवाणुओं से बचाना
(ख) एन्ज़ाइम से बचाना
(ग) कीड़े-मकौड़ों से बचाना।

(क) सूक्ष्म जीवाणुओं से बचाना – सूक्ष्म जीवाणुओं से बचाना तथा उनके विकास को रोकना भोजन सुरक्षा का पहला सिद्धान्त है। आमतौर पर भोजन इन जीवाणुओं द्वारा ही खराब होते हैं। भोजन पदार्थ को निम्नलिखित ढंगों द्वारा सूक्ष्म जीवाणुओं से बचाया जा सकता है –

  • जीवाणुओं को दूर रखकर
  • जीवाणुओं को समाप्त करके
  • जीवाणुओं के विकास को रोककर।

1. जीवाणुओं को दूर रखकर – भोजन की सुरक्षा के सिद्धान्त का पालन करते हुए भोजन पदार्थों को जीवाणुओं से दूर रखने के लिए बढ़िया पैकिंग तथा भोजन भण्डार होने ज़रूरी हैं। पैकिंग के लिए गत्ते के डिब्बे से पोलीथिन, टिन तथा प्लास्टिक के हवा बन्द डिब्बे ठीक रहते हैं। जिन स्थानों पर भोजन अधिक मात्रा में सम्भाला गया हो वहां समय-समय पर कीटाणु नाशक दवाइयों का छिड़काव करना चाहिए ताकि जीवाणु पैदा ही न हो सकें।

2. जीवाणुओं को नष्ट करके – जीवाणुओं को पूरी तरह समाप्त करने के लिए निथारना या छानने की विधि का प्रयोग किया जाता है। इस तरीके से सारे जीवाणु भोजन में से अलग हो जाते हैं। यह तरीका आम तौर पर पानी, फलों का रस, जौ का पानी, शर्बत तथा शराब आदि के लिए प्रयोग किया जाता है। निथारना या छानने के लिए जिस फिल्टर का प्रयोग किया जाता है उसको भी पहले कीटाणु रहित किया जाता है।

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3. जीवाणुओं के विकास को रोकना – जीवाणुओं के विकास को रोकने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं, जिनका वर्णन नीचे दिया गया है –
(i) तापमान को घटाकर या बढ़ाकर (Increasing or Decreasing Temperature) – जब भोजन पदार्थों को बहुत कम तापमान पर रखा जाए तो जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है। इसी कारण भोजन पदार्थों को कोल्ड स्टोरों में सम्भाला जाता है। तापमान को बढ़ाकर भोजन सुरक्षित किया जाता है। जैसे अधिक तापमान पर भोजन पकाने से जीवाणु नष्ट हो जाते हैं या फिर भोजन को निश्चित तापमान पर निश्चित समय के लिए गर्म करके (Sterilization) कीटाणुओं को नष्ट किया जाता है। दूसरा तरीका पाश्चुरीकरण (Pasteurization) है। इसमें भोजन को निश्चित तापमान तथा निश्चित समय के लिए गर्म करके फिर एकदम ठण्डा किया जाता है। इस विधि से भोजन को लम्बे समय तक रखा जा सकता है।

(ii) हवा को रोककर – इस विधि में भोजन को ऐसे तरीके के साथ बन्द किया जाता है कि उसमें हवा को रोककर ऑक्सीजन की कमी पैदा की जाती है। इस तरह ऑक्सीजन की कमी से जीवाणुओं का विकास रुक जाता है।

(ii) नमी घटाकर – जीवाणुओं के विकास के लिए नमी भी एक ज़रूरी तत्त्व है। इसलिए भोजन पदार्थों की सम्भाल के लिए उनमें पाई जाने वाली नमी को घटाना या सुखाना बहुत ज़रूरी है। नमी के सूखने से जीवाणुओं का विकास रुक जाता है। यह तरीका फसल, सब्जियों तथा दूध आदि के लिए प्रयोग किया जाता है।

(iv) रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करके – रासायनिक पदार्थों के प्रयोग से भोजन में पाए जाने वाले जीवाणु खत्म नहीं होते परन्तु भोजन में कुछ ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जिनसे जीवाणुओं का विकास नहीं हो सकता। साधारणतः प्रयोग किए जाने वाले कुछ रासायनिक पदार्थ सिरका, सोडियम बैनजोएट (Sodium Benzoate) तथा पोटशियम मैटा बाइसल्फाइट (Potassium Meta Bisulphite) हैं।

प्रश्न 2.
भोजन को सूक्ष्म जीवाणुओं से कैसे बचाया जा सकता है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 3.
भोजन संरक्षण के लिए किन-किन रासायनिक पदार्थों का प्रयोग किया जा सकता है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

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प्रश्न 4.
जीवाणुओं के विकास को कैसे रोका जा सकता है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित भोजन पदार्थों को आप कैसे सुरक्षित रख सकते हो –
(i) ताज़ी सब्जियां
(ii) दूध
(iii) मक्खन
(iv) अनाज
(v) अण्डे
(vi) मीट तथा मछली
(vii) फल
(viii) मिर्च मसाले
(ix) डबलरोटी
(x) दालें तथा तरी वाली सब्जियां।
उत्तर :
(i) सब्जियां – सब्जियां ताजी ही खरीदनी चाहिएं। पत्ता गोभी को 1-2 दिन में प्रयोग कर लेना चाहिए। घर के सबसे ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए। इस प्रकार गाजरों, मूली तथा पत्ते वाली सब्जियों को सम्भालना ज़रूरी है। मटरों को निकालकर लम्बे समय के लिए रखना ठीक नहीं। सब्जियों को अच्छी तरह साफ़ करके फ्रिज में ही सम्भाला जा सकता है। आल, प्याज को तारों वाली टोकरी आदि में डालकर हवा में लटकाना ठीक रहेगा।

(ii) दूध-दूध को सुरक्षित रखने के लिए निथार कर उबाल लेना चाहिए। इससे टाइफाइड आदि के जीवाणु मर जाते हैं। उबालने के बाद किसी बर्तन में डालकर मलमल के कपड़े या जाली के साथ ढककर ठण्डे तथा हवा वाले स्थान पर या फ्रिज में रख लेना चाहिए। इसको मक्खियों से बचाकर रखना चाहिए।

(ii) मक्खन – मक्खन खट्टा हो जाता है, इसको यदि कुछ देर के लिए गर्म स्थान पर रखा जाए तो दुर्गन्ध आने लगती है। इसलिए इसको किसी चीनी या मिट्टी के बर्तन में डाल दो। अब इस बर्तन को किसी अन्य बड़े बर्तन जिसमें कि पानी हो में रखकर ऊपर मलमल के गीले कपड़े के साथ ढक देना चाहिए। मलमल धीरे-धीरे पानी चूसती जाएगी तथा इस पानी के उड़ने से ठण्डक रहेगी या मक्खन को फ्रिज में रखा जा सकता है।

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(iv) अनाज (सूखे पदार्थ) – हमारे देश में अनाज को आम तौर पर बोरियों में रखा जाता है परन्तु चूहे इसको रखने के साथ ही खराब कर देते हैं। परन्तु आजकल ऐसी बोरियां बनाई जा चुकी हैं जिनको चूहे खराब नहीं कर सकते। परन्तु यदि गेहूं, मक्की आदि को ऐसी बोरियों या टिन के बड़े-बड़े ढोलों में रखा जाए, तो इसको चूहों से बचाया जा सकता है। गेहूँ की बोरियां भूसे में रखने से भी उनको सुसरी नहीं लगती तथा ज्यादा समय ठीक रहती हैं। परन्तु अब अनाज को लोहे के ढोलों में डालकर तथा उसमें सल्फास की गोलियां डालकर दीर्घकाल के लिए सम्भाल कर रखा जा सकता है।

चावल को अधिक देर तक सुरक्षित रखने के लिए जीरी (धान) के रूप में रखना चाहिए नहीं तो थोड़ी-सी हल्दी या तेल लगाया जा सकता है। कई बार चावल में नमक या बोरैक्स मिलाकर इनको सुरक्षित रखा जाता है। इनको अन्धेरे वाले तथा नमी वाले स्थानों पर इकट्ठा रखना ठीक नहीं। चावल को तो मिट्टी के बर्तनों में भी नहीं रखना चाहिए क्योंकि यह नमी चूस सकते हैं।

सूखी दालों को जहाँ तक हो सके बन्द पैकटों में ही रखना चाहिए। इनको नमी वाले स्थानों पर नहीं रखना चाहिए या फिर हवा बन्द डिब्बों में। यदि ज्यादा मात्रा में हैं तो नीम के पत्ते डालकर या फिर पारे की गोलियां डालकर भी सम्भाला जा सकता है। आटा दुकान से देखकर खरीदना चाहिए कि पुराना होने के कारण इसमें सुसरी या कीड़े तो नहीं। आटा नमी वाली हवा में बिल्कुल नहीं रखना चाहिए।

(v) अण्डे-अण्डों को भी ठण्डे स्थानों पर ही रखना उचित रहता है। इनको फ्रिज के ऊपर के खाने में रखा जा सकता है।

(vi) पशु जन्य पदार्थ – इन पर जीवाणुओं का प्रभाव बहुत जल्दी होता है। इनको अच्छी तरह ढक कर सबसे ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए। यदि फ्रिज की सुविधा हो तो इसमें भी सबसे ठण्डे खाने (Freezer) में रखना चाहिए। रखने से पहले गीले कपड़े के साथ साफ़ कर लेना चाहिए। पानी से धोना नहीं चाहिए। फ्रिज में रखते समय प्लास्टिक के बैग आदि में डालकर रखना ठीक रहता है। यदि फ्रिज की सुविधा न हो तो बाज़ार से लाकर तुरन्त पका लेना ठीक रहता है।

(vii) फल-फल हमेशा ताज़े खरीदने चाहिएं तथा ठण्डे स्थानों पर सम्भालने चाहिएं। यदि घर में फ्रिज हो तो यह उनमें रखे जा सकते हैं। परन्तु केले फ्रिज में बिल्कुल नहीं रखने चाहिएं क्योंकि उसमें इनका ऊपरी छिलका काला हो जाता है।

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(viii) मिर्च-मसाले – इनको ज्यादा मात्रा में खरीदना नहीं चाहिए क्योंकि ज्यादा देर पड़े रहने से इनकी सुगन्ध खत्म हो जाती है। इनको हमेशा ठण्डे, सूखे तथा अन्धेरे वाले स्थान पर रखना चाहिए यदि हो सके तो बन्द बर्तनों में रखना उचित होगा।

(ix) डबलरोटी – इसको डबलरोटी रखने वाले डिब्बे में ही रखना चाहिए जिसमें कि हवा न जा सके।

(r) दालें तथा तरी वाली सब्जियां – इनको खले बर्तन में डालकर आग पर रखकर कुछ देर के लिए उबालना चाहिए तथा 5-10 मिनट के लिए धीरे-धीरे कम आग पर पकने देना चाहिए। फिर आग से उतारकर ढक्कन से अच्छी तरह बन्द करने के बाद ठण्डे स्थान पर रख देना चाहिए। प्रयोग करने से पहले ढक्कन खोलना नहीं चाहिए। जब यह कमरे के तापमान पर पहुंच जाएं तो फ्रिज में भी रखा जा सकता है।

प्रश्न 6.
भोजन की मिलावट से आप क्या समझते हो ? यह क्यों की जाती है ? आम भोजन पदार्थों में की जाने वाली मिलावटें कौन-सी हैं? भोजन में मिलावट के क्या नुकसान हैं ?
उत्तर :
अधिक लाभ कमाने के लालच में कई घटिया व्यापारी और दकानदार खाने वाली वस्तुओं में मिलावट कर देते हैं। भोजन में सस्ती और हानिकारक वस्तुएं मिलाने को भोजन की मिलावट कहा जाता है, जैसे-देसी घी में वनस्पति घी, दूध में पानी, अरहर की दाल में केसरी दाल, दालों में कंकर, मिट्टी आदि। इस तरह जहां ग्राहक को घटिया वस्तुओं के लिए अधिक पैसे देने पड़ते हैं वहां कई बार मिलावटी भोजन स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है। मिलावट का अर्थ-तीन कारणों के कारण भोजन को मिलावटी कहा जाता है।

1. सस्ते और घटिया पदार्थ मिलाकर – सस्ते और घटिया पदार्थ मिलाने से भोजन के स्तर (Quality) को घटाया जा सकता है जैसे कि दूध में पानी मिलाना या देसी घी में वनस्पति घी और बासमती चावल में परमल चावल मिलाना आदि।

2. स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थ मिला कर – कई बार भोजन में इस तरह के पदार्थ भी मिलाए जाते हैं जोकि सस्ते और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं जैसे कि चनों की दाल या अरहर की दाल में केसरी दाल मिलाना। कई बार अचानक भी स्वास्थ्य प्रतिरोधक पदार्थ भोजन में चले जाते हैं जैसे कि बरसात में बाहर पड़े गेहूँ को फफूंदी लग जाती है जोकि गेहूं में जहर पैदा करती है। यह चाहे अचानक ही हुई हो और किसी ने जान कर न भी की हो फिर भी भोजन की मिलावट ही कहलाती है।

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3. भोजन में से आवश्यक तत्त्वों को निकालकर – आवश्यक तत्त्वों को निकाल कर भी भोजन के स्तर (Quality) को कम किया जाता है। दूध में से क्रीम निकालकर दूध बेचना। इस प्रकार के दूध को भी मिलावटी कहा जाएगा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मिलावट उस को कहा जाता है जब कि भोजन में कोई सस्ता या घटिया पदार्थ मिलाया जाए तो उस में से कुछ निकाला जाए या उस में कोई स्वास्थ्य प्रतिरोधक (Harmful to Health) पदार्थ मिलाया जाए। मिलावट करने के लिए जो पदार्थ प्रयोग किया जाता है उसको मिलावटी पदार्थ (Adultrant) कहते हैं। यह प्रायः वास्तविक भोजन पदार्थ से सस्ता होता है और देखने में मूल पदार्थ की तरह ही दिखाई देता है ताकि मिलावटी पदार्थ को आसानी से पहचाना न जा सके।

प्रायः प्रयोग किए जाने वाले मिलावटी पदार्थ –
लगभग सभी ही खाद्य पदार्थों में मिलावट की जा सकती है। कुछ मिलावटी पदार्थों का विवरण निम्नलिखित दिया गया है –

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भोजन की साधारण मिलावटों के नुकसान

कई मिलावटी पदार्थों का स्वास्थ्य पर कोई नुकसान नहीं होता जैसे दूध में साफ पानी मिलाना और खोए में कारन स्टार्च या संघाड़े का आटा मिलाना परन्तु कई मिलावटी पदार्थ स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक भी हो सकते हैं। कई मिलावटों से मौत तक भी हो सकती है। कुछ मिलावटों के नुकसान निम्नलिखित हैं –

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प्रश्न 7.
हम रसोई में स्वच्छता कैसे रख सकते हैं ?
अथवा
रसोई घर में पालन किए जाने वाले स्वच्छता सम्बन्धी नियमों का उल्लेख करें।
उत्तर :
रसोई की स्वच्छता का अर्थ है उस क्षेत्र की साफ-सफाई जहाँ भोजन तैयार किया जाता है। इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है यदि निम्न बातों का ध्यान रखा जाए –

  1. रसोई को साफ़ रखें और घर में पनपने वाले जन्तु जैसे-चूहे, मक्खियाँ, तिलचट्टे, मच्छर आदि से रसोई मुक्त रखें।
  2. रसोई में प्रकाश की समुचित व्यवस्था रखें, ताकि आप यह देख सकें कि रसोई में धूल या कीड़े-मकौड़े तो नहीं आ गए।
  3. जहाँ तक संभव हो रसोई का मुख सूर्य की तरफ रखें ताकि धूप रसोई में आए। धूप नमी को दूर करती है और कीटाणु व अन्य जीवाणुओं को मारती है।
  4. नाली व्यवस्था दुरुस्त रखें। नाली का मार्ग हमेशा खुला रहे और पानी जमा न हो।
  5. रसोई में एक ढका हुआ कूड़ेदान रखें। यह निश्चित कर लें कि वह रोज़ खाली कर दिया जाए।
  6. रसोई में प्रयुक्त कपड़े व धूल झाड़ने वाले को समय-समय पर साफ़ करें। उसके लिए गर्म पानी व उपयुक्त डिटर्जेन्ट इस्तेमाल करें।

प्रश्न 8.
रसोईघर की स्वच्छता सम्बन्धी किन्हीं तीन नियमों का उल्लेख करें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

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प्रश्न 9.
भोजन का रख-रखाव कैसे होना चाहिए जिससे कि वह आरोग्य रहे ?
उत्तर :
इसका अर्थ है कि भोजन बनाते समय स्वच्छता रखी जाए ताकि कोई जीवाणु और गन्दगी हमारे भोजन में प्रवेश न कर सके। यह उसी चरण से शुरू हो जाता है जब हम बाजार से भोजन खरीदते हैं। निम्न सुझावों के अनुसरण से भोजन आरोग्य रह सकता है।

  1. खाद्य पदार्थ का चयन पूर्ण परीक्षण करके ही करें । दूषित व खराब खाद्य पदार्थों को नकार दें।
  2. भोजन का भण्डारण सही तरीके से करें। पका हुआ भोजन फ्रिज में ही रखें। कच्चे भोजन को भी सही जगह और सही तरीके से रखें।
  3. रसोई का काम करने से पहले अच्छी तरह हाथ धोएँ।
  4. पके हुए भोजन को बिना ढके हुए कभी न छोड़ें क्योंकि धूल, गंदगी, कीटाणु एवं मच्छर भोजन को बर्बाद कर सकते हैं।
  5. यदि आप बीमार हैं अथवा सर्दी से पीड़ित हैं तो भोजन के सामने खाँसे या छींके नहीं। इससे भोजन संक्रमित हो सकता है और अन्य सदस्य बीमार हो सकते हैं।
  6. ताजे फलों व सब्जियों को भी अच्छी तरह धोकर खाएँ ताकि धूल व गन्दगी दूर हो जाए।
  7. पके हुए भोजन को साफ़ जगह एवं साफ़ बर्तनों में परोसें। बचे हुए भोजन को फ्रिज में रखें।
  8. छिलके आदि को कूड़ेदान में ही डालें।
  9. यदि फर्श पर कुछ गिरा है तो उसे एकदम साफ़ करें अन्यथा मक्खियाँ, तिलचट्टे उसकी ओर आकर्षित होंगे।
  10. प्रयोग के बाद सारे बर्तनों को साफ़ कर लें।

प्रश्न 10.
व्यक्तिगत स्वच्छता एवं आरोग्य धर्मिता से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
भोजन तैयार करते (पकाते) समय आप स्वच्छता सम्बन्धी जिन नियमों का पालन करेंगे, उनका ब्योरा दें।
अथवा
भोजन पकाते समय आप किन-किन चार बातों को ध्यान में रखोगे ?
उत्तर :
इसका अर्थ है सामान्य स्वास्थ्य और रसोई में काम करने के तरीके। यह इस प्रकार से हैं –

  1. भोजन बनाना आरम्भ करने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धोएँ। नाखूनों को सदा कटा हुआ व साफ़ रखें।
  2. बालों को रसोई में हमेशा बाँध कर रखें।
  3. भोजन बनाते समय उसे चखने की प्रवृत्ति से यथा संभव बचें। चखते समय उंगलियों को चाटना और उन्हीं उंगलियों को भोजन बनाने में प्रयोग करना एक बहुत बुरी आदत है।
  4. रसोई में गंदे पैर, गंदी चप्पल या गंदे कपड़ों के साथ न जाएँ। यदि आप ऐसा नहीं करते तो आप अनेक कीटाणु अपने साथ रसोई में ले जाते हैं। इससे आपका भोजन संक्रमित व बर्बाद हो सकता है।
  5. यदि आप बीमार हों तो उस समय भोजन बनाने से बचें। भोजन का रख-रखाव करने वाला व्यक्ति यदि बीमार हो तो वह पूरे परिवार में बीमारी फैला सकता है।

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प्रश्न 11.
विकारीय खाद्य पदार्थों का भण्डारण कैसे करेंगे ?
उत्तर :
विकारीय खाद्य पदार्थ –
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प्रश्न 12.
भोजन खराब होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
भोजन में पाई जाने वाली नमी तथा रासायनिक तत्त्वों के बदलाव से ही भोजन की रचना, स्वाद तथा गुणों में अन्तर पड़ जाता है। यह भोजन पदार्थ देखने, सूंघने तथा स्वाद में भी ताज़े भोजन पदार्थों की अपेक्षा भिन्न होते हैं। ऐसे भोजन पदार्थ खाने योग्य नहीं रहते। यदि खराब भोजन पदार्थ खाया जाए तो यह कई बीमारियां पैदा करता है। भोजन में यह सारी तबदीलियां हानिकारक कीटाणुओं की वृद्धि के कारण होती हैं।

आमतौर पर भोजन दो कारणों से खराब होता है –

  • बाह्य कारण (Extenal Causes)
  • आन्तरिक कारण (Internal Causes

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1. बाह्य कारण (External Causes) – बाह्य कारण भोजन के वातावरण के साथ सम्बन्धित हैं जैसे-नमी, गर्मी, प्रकाश, हवा, जीवाणु तथा कीड़े-मकौड़े आदि।
नमी (Moisture) – नमी वाले भोजन पदार्थ जल्दी खराब हो जाते हैं क्योंकि बैक्टीरिया नमी वाले भोजन पदार्थ में अधिक होता है।
गर्मी (Heat) – कई जीवाणुओं को वृद्धि के लिए विशेष तापमान की आवश्यकता होती है। यदि वह तापमान मिल जाए तो इनकी वृद्धि बहुत जल्दी होती है तथा भोजन अल्पकाल में ही खराब हो जाता है। जैसे-दूध का फटना, आटे का फूलना आदि।
प्रकाश (Light) – घी या तेल वाले भोजन पदार्थ प्रकाश में पड़े रहें तो खराब हो जाते हैं क्योंकि उचित प्रकाश मिलने से जीवाणुओं की वृद्धि तेज़ हो जाती है तथा भोजन खाने योग्य नहीं रहता।
हवा (Air) – वायु में पाई जाने वाली नमी भी भोजन पदार्थों को खराब करती है। इसलिए भोजन पदार्थों को हवा रहित डिब्बों में रखना चाहिए।
जीवाणु (Micro Organisms) – जीवाणु बहुत बारीक होते हैं। इनको केवल माइक्रोस्कोप द्वारा ही देखा जा सकता है। यह भोजन की रचना, स्वाद तथा गुणों को प्रभावित करते हैं। भोजन को खराब करने वाले जीवाणु तीन प्रकार के होते हैं –

  • बैक्टीरिया (Bacteria)
  • फफूंदी (Mould)
  • खमीर (Yeat)

(i) बैक्टीरिया (Bacteria) – कुछ बैक्टीरिया नमी के कारण बढ़ने वाले, कुछ नमी तथा ताप के साथ बढ़ने वाले तथा कुछ अन्य केवल ताप के साथ बढ़ने वाले होते हैं। कुछ बैक्टीरिया हवा के बिना जीवित रह सकते हैं। इनको समाप्त करना काफ़ी कठिन होता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के बैक्टीरिया को उचित परिस्थितियां मिलने से इनकी वृद्धि बहुत शीघ्र होती है। यह न केवल भोजन को खराब ही करते हैं, बल्कि कई बार ज़हरीला भी बना देते हैं।

(ii) फफूंदी (Mould) – फफूंदी भोजन को खराब करके ऐसी परिस्थिति पैदा करती है कि उसमें बैक्टीरिया की वृद्धि बहुत शीघ्र होती है। फफूंदी लगा भोजन सड़ना शुरू हो जाता है। उसमें से दर्गन्ध आने लगती है। बन्द डिब्बों में भोजन पर फफंदी नहीं लगती।

(iii) खमीर (Yeast) – खमीर की वृद्धि के लिए नमी तथा चीनी की ज़रूरत होती है। जिन भोजनों पर बैक्टीरिया की वृद्धि कम हो उन पर खमीर का प्रभाव बहुत जल्दी होता है। खमीर ज्यादातर फलों के रस, जैम, जैली आदि पर लगती है।

कीड़े-मकौड़े (Insects) – सुसरी, ढोरा, सुंडी तथा मक्खियां आदि भी भोजन को खराब करती हैं। यह भोजन पदार्थों को अन्दर से खाकर खोखला कर देते हैं, जिससे भोजन खाने योग्य नहीं रहता। कीड़े-मकौड़े भोजन पदार्थों पर फफूंदी, बैक्टीरिया तथा हानिकारक कीटाणु छोड़ जाते हैं, जिससे थोड़े समय में ही भोजन खराब होना शुरू हो जाता है।

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2. आन्तरिक कारण (Internal Causes) – भोजन में पाए जाने वाले एन्ज़ाइम्स (Enzymes) भी भोजन पदार्थों को खराब करते हैं। भोजन पदार्थों में एन्ज़ाइम्स 37 सेंटीग्रेड

तापमान पर क्रियाशील होते हैं। यह एन्ज़ाइम्स प्रोटीन से बने होते हैं। इसलिए अधिक तापमान से नष्ट हो जाते हैं। इनके द्वारा हुए परिवर्तन के कारण भोजन खाने योग्य नहीं रहता। चार प्रतिशत नमक के घोल में फल तथा सब्जियों को डालने से इनके अन्दर एन्जाइमों की क्रिया कम हो जाती है।

प्रश्न 13.
भोजन को खराब करने वाले आन्तरिक कारण बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 12 का उत्तर।

प्रश्न 14.
कौन-से ढंगों का प्रयोग करके भोजन को सुरक्षित रखा जा सकता है ?
अथवा
हम भोजन को किस प्रकार सुरक्षित रख सकते हैं ?
उत्तर :
भोजन की सुरक्षा के ढंग-कई भोजन पदार्थ शीघ्र ही खराब होने वाले होते हैं। यदि उनकी सम्भाल न की जाए तो नष्ट हो जाते हैं। जैसे-माँस, मछली, अण्डे, फल, सब्जियां, दूध तथा दूध से बने पदार्थ आदि। घर में प्रयोग किए जाने वाले भोजन पदार्थों की सम्भाल बहुत ज़रूरी है। इसके लिए निम्नलिखित घरेलु तरीके अपनाए जाते हैं –

  1. सुखाकर
  2. रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करके
  3. फ्रिज में रखकर
  4. डिब्बा-बन्द करके
  5. तेल तथा मसालों का प्रयोग करके।

1. सुखाकर – खाने वाली चीजों को सुखाकर रखने का तरीका बहुत पुराना है। यह तरीका उन इलाकों में अपनाया जाता है जहां धूप काफ़ी ज्यादा होती है तथा उस मौसम में वर्षा नहीं होती। तेज़ धूप तथा गर्मी के साथ भोजन पदार्थों का पानी सुखाकर जीवाणुओं की वृद्धि समाप्त हो जाती है। इस विधि के द्वारा सब्जियां जैसे साग, शलगम, मेथी, मटर, फल, पापड़, वड़ीयां, चिप्स तथा मछली आदि को सुखाया जाता है।

2. रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करके – साधारणतः प्रयोग किए जाने वाले रासायनिक पदार्थ जैसे सिरका, सोडियम बैंजोएट तथा पोटाशियम मैटाबाइसल्फाइट का स्कवैश, जैम तथा चटनियां, आचार आदि की सुरक्षा के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

3. फ्रिज में रखकर – यदि ताप को ज्यादा कम कर दिया जाए तो जीवाणु क्रियाहीन हो जाते हैं। दूध, फल तथा सब्जियों को इस तरीके से सम्भाला जा सकता है।

4. डिब्बा बन्द करके-डिब्बा बन्दी भी भोजन सम्भालने का एक तरीका है। इस तरीके में बोतलों या डिब्बों को कीटाणु रहित (Sterlize) किया जाता है तथा फिर डिब्बों तथा बोतलों में भोजन डालकर हवा रहित (हवा निकालकर) सील बन्द किया जाता है। इस प्रकार भोजन को लम्बे समय तक रखा जाता है।

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5. तेल तथा मसालों का प्रयोग करके – भोजन पदार्थों को तेल, नमक तथा चीनी के प्रयोग द्वारा भी खराब होने से बचाया जाता है। यह चीजें जीवाणुओं को बढ़ने से रोकती हैं। इन पदार्थों का प्रयोग आचार, चटनियां तथा मुरब्बों में किया जाता है।

प्रश्न 15.
किन कारणों करके भोजन को सुरक्षित रखना जरूरी है ?
उत्तर :
भोजन की सम्भाल से अभिप्राय भोजन को लम्बे समय तक हानिकारक जीवाणुओं तथा रासायनिक तत्त्वों के प्रभावशाली खराब होने से बचाना है ताकि इसके रंग-रूप, सुगन्ध तथा पौष्टिक तत्त्वों में कोई अन्तर न आए।

भोजन को सुरक्षित रखने के लाभ –

1. भोजन को सुरक्षित रखने से भोजन में भिन्नता लाई जा सकती है।
2. भोजन पर खर्च होने वाला समय तथा धन की बचत की जा सकती है जैसे मौसम में फल तथा सब्जियां सस्ते मिल जाते हैं। इसको आचार, चटनियां, जैम, मुरब्बे तथा शर्बत आदि बनाकर सम्भाला जाता है तथा दूसरे मौसम में जबकि भोजन पदार्थ नहीं मिलते तो प्रयोग में लाया जा सकता है।
3. मौसमी फल तथा सब्जियों की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। उनको सम्भालकर रखने से नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
4. भोजन पदार्थों को सम्भालकर रखने से सन्तुलित भोजन तैयार करना सरल हो जाता है। क्योंकि भोजन पदार्थों की सम्भाल करने से पौष्टिक तत्त्वों को भी सम्भाल कर रखा जाता है।
5. भिन्न-भिन्न ढंगों से सम्भालकर रखे भोजन को लम्बे समय तक प्रयोग किया जा सकता है। जैसे फल तथा सब्जियों के आचार, चटनियां, जैम आदि बनाए जा सकते हैं। कई सब्जियों को सुखाकर भी लम्बे समय तक प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-साग, मेथी, मटर आदि।
6. सुरक्षित और सम्भाल कर रखा भोजन लड़ाई के समय सैनिकों को आसानी से भेजा जा सकता है।
7. सम्भाल कर रखा भोजन एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाना आसान है। अमेरिका से बड़ी मात्रा में सूखा दूध दूसरी जगहों पर भेजा जाता है। सूखे भोजन का लाभ भी घट जाता है।
8. ऐसा भोजन बे-मौसम भी प्रयोग में लाया जा सकता है।
9. लम्बी यात्रा के समय भी सम्भाला और सुरक्षित भोजन काम आ सकता है।

भोजन की सम्भाल करने से पहले यह जानकारी होना ज़रूरी है कि भोजन क्यों तथा किन कारणों द्वारा खराब होते हैं तथा खराब भोजन क्या होता है।

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प्रश्न 16.
आहार संरक्षण की घरेलू विधियां बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 14 का उत्तर।

प्रश्न 17.
पोषक तत्त्वों के संरक्षण से आप क्या समझते हैं ? यह किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दें।

प्रश्न 1.
अण्डों का भण्डारण कहां करेंगे ?
उत्तर : फ्रिज में।

प्रश्न 2.
क्या सभी बैक्टीरिया हानिकारक हैं ?
उत्तर :
नहीं।

प्रश्न 3.
अविकारीय भोजन पदार्थ की उदाहरण दें।
उत्तर :
गेहूँ।

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प्रश्न 4.
अर्ध विकारीय भोजन पदार्थ की उदाहरण दें।
उत्तर :
इमली।

प्रश्न 5.
सूजी कैसा भोजन पदार्थ है ?
उत्तर :
अर्ध विकारीय।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. दूध ……… खाद्य पदार्थ है।
2. गर्मी से ……… वाले भोजन पदार्थ जल्दी खराब होते हैं।
3. ……… भोज्य पदार्थ लम्बे समय तक खराब नहीं होते।
4. ……… में रखकर सब्जी, दूध को खराब होने से बचाया जाता है।
उत्तर :
1. विकारीय
2. नमी
3. विकारीय
4. फ्रिज़।

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(ग) ठीक/गलत बताएं –

1. मक्खियां तथा जीवाणु भोजन को खराब करते हैं।
2. मैदा अर्ध विकारीय भोजन पदार्थ है।
3. आरोग्य धर्मी भोजन सेवा का अर्थ है सुरक्षित भोजन परोसना।
4. मसालों को हवा बन्द टीन या बोतल में बन्द करें।
5. मीठा सोडा पके भोजन को कोई हानि नहीं पहुंचाता।
उत्तर :
1. (✓) 2. (✓) 3. (✓) 4. (✓) 5. (✗)

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
भोजन को आरोग्य कैसे रख सकते हैं ?
(A) रसोई में स्वच्छता
(B) साफ़-सफ़ाई के साथ भोजन का रख-रखाव
(C) व्यक्तिगत आरोग्यधर्मिता
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 2.
निम्न में गलत है –
(A) दूध अविकारीय खाद्य पदार्थ है
(B) मैदा अर्धविकारीय पदार्थ है
(C) गेहूं अविकारीय खाद्य पदार्थ है।
(D) कम तापमान पर सूक्ष्मजीवों की वृद्धि कम होती है।
उत्तर :
दूध अविकारीय खाद्य पदार्थ है।

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प्रश्न 3.
निम्न में ठाकले भोजन जल्दी खराती है।
(A) गर्मी में नमी वाले भोजन जल्दी खराब होते हैं।
(B) भोजन को खराब होने से बचाने से बचत होती है।
(C) फ्रिज में रखकर सब्जियों तथा दूध को खराब होने से बचाया जा सकता है।
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

प्रश्न 4.
निम्न में विकारीय भोजन पदार्थ है –
(A) मक्की का आटा
(B) क्रीम
(C) इमली
(D) बाजरा।
उत्तर :
क्रीम।

प्रश्न 5.
निम्न में अर्द्धविकारीय भोजन पदार्थ नहीं है –
(A) मक्के का आटा
(B) पालक
(C) बाजरा
(D) चावल का आटा।
उत्तर :
पालक।

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प्रश्न 6.
निम्न में ठीक नहीं है –
(A) फंगस हर तरह के भोजन से पैदा हो सकती है
(B) बेसन अर्ध-विकारीय खाद्य पदार्थ है
(C) चूहे भोजन को कोई हानि नहीं पहुंचाते
(D) शिमला मिर्च विकारीय पदार्थ है।
उत्तर :
चूहे भोजन को कोई हानि नहीं पहुंचाते।

प्रश्न 7.
निम्न में अविकारीय पदार्थ नहीं है –
(A) बाजरा
(B) दही
(C) साबूदाना
(D) भूनी मूंगफली।
उत्तर :
दही।

प्रश्न 8.
भोजन को सुरक्षित रखने के लिए रसायन पदार्थ का प्रयोग नहीं कर सकते –
(A) सोडियम बैन्जोएट
(B) पोटाशियम मैटा बाइसल्फाइट
(C) सिरका
(D) सोडियम नाइट्रेट।
उत्तर :
सोडियम नाइट्रेट।

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प्रश्न 9.
निम्न में ठीक है –
(A) सब्जियों को काट कर नहीं धोना चाहिए
(B) चावलों को उबालकर पानी नहीं फेंकना चाहिए।
(C) सब्जियों आदि को छिलके पतले-पतले निकाले
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

प्रश्न 10.
निम्न में गलत है –
(A) सब्जियों को पकाने के लिए मीठे सोडे का प्रयोग करना आवश्यक है।
(B) पानी में घुलनशील विटामिन सब्जी को काट कर धोने से नष्ट हो जाते हैं
(C) चावलों को उबालकर पानी को फेंकना नहीं चाहिए।
(D) तेल अविकारीय खाद्य पदार्थ है।
उत्तर :
सब्जियों को पकाने के लिए मीठे सोडे का प्रयोग करना आवश्यक है।

प्रश्न 11.
जीवाणुओं के विकास को रोकने का ढंग है –
(A) तापमान को घटाना
(B) हवा को रोककर
(C) नमी घटाकर
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

प्रश्न 12.
मिलावट का अर्थ है –
(A) सस्ते और घटिया पदार्थ मिलाना
(B) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थ मिलाना
(C) भोजन में से आवश्यक तत्त्वों को निकालना
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

आरोग्य भोजन सेवा एवं विभिन्न खाद्य पदार्थों का भण्डारण HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ आरोग्य भोजन वह है जिसका रख-रखाव इस तरीके से किया जाता है कि वह अति सूक्ष्म जीवों से मुक्त व सुरक्षित रह सके।

→ यह इस बात पर निर्भर करता है कि गंदा-जल और गंदगी निकास व्यवस्था को आप कितना दुरुस्त रखते हैं और भोजन बनाते व परोसते समय व्यक्तिगत स्वच्छता का किस हद तक ध्यान रखते हैं।

→ भोजन की आरोग्य धर्मिता को सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित सामान्य नियमों का ध्यान रखना पड़ेगा –

  • रसोई में स्वच्छता
  • साफ-सफ़ाई के साथ भोजन का रख-रखाव
  • व्यक्तिगत आरोग्य धर्मिता।

→ विकारीय खाद्य पदार्थ वह हैं जो बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं जैसे-दूध, हरी पत्तेदार सब्जियाँ आदि।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 9 आरोग्य भोजन सेवा एवं विभिन्न खाद्य पदार्थों का भण्डारण

→ अविकारीय खाद्य पदार्थ वह हैं जो लम्बे समय तक खराब नहीं होते जैसे गेहूँ, दाल, मसाले, तेल आदि।

→ अर्ध-विकारीय खाद्य पदार्थ वह हैं जो अविकारीय खाद्य पदार्थों से जल्दी खराब हो जाते हैं परन्तु विकारीय खाद्य पदार्थों से देर से खराब होते हैं।
जैसे – मैदा, सूजी, बेसन, मक्खन आदि।

→ भण्डारण का अर्थ है तुरन्त प्रयोग न होने वाले खाद्य पदार्थों को सम्भाल कर रखना।

→ यदि हम खाद्य पदार्थों को उचित तरीके से नहीं रखेंगे, तो उनके आस-पास चूहे, मक्खियां व कीड़े घूमेंगे। वे न केवल उनको खाएँगें अपितु उन्हें गन्दा भी कर देंगे जिससे कि वह हमारे खाने लायक नहीं रहेंगे।

→ उचित भण्डारण से खाद्य पदार्थों की रक्षा केवल चूहों और कीड़ों से नहीं बल्कि नमी और कीटाणुओं से भी होती है। इस प्रकार हम खाद्य पदार्थों को नष्ट होने से बचा लेते हैं। अविकारीय अधर्विकारीय एवं विकारीय खाद्य पदार्थों के भण्डारण के अलग-अलग तरीके हैं

  1. भोजन को खराब होने से बचाना ही भोजन की सम्भाल है।
  2. भोजन को खराब होने से बचाना चाहिए।
  3. नमी वाले भोजन पदार्थ जल्दी खराब होते हैं।
  4. फ्रिज में रखकर सब्जियों और दूध को खराब होने से बचाया जा सकता है।
  5. गर्मी में नमी वाले भोजन जल्दी खराब होते हैं।
  6. भोजन को खराब होने से बचाने से बचत होती है।
  7. मिलावटी भोजन खाने से स्वास्थ्य का नुकसान होता है।
  8. कुछ रसायनों के प्रयोग से भी भोजन सुरक्षित रखा जा सकता है।
  9. मक्खियाँ और जीवाणु भोजन को खराब करते हैं।
  10. बिना नमी वाले भोजन अधिक देर तक सुरक्षित रहते हैं।
  11. प्रत्येक कुशल गृहिणी को मिलावटी भोजन की जाँच करने की जानकारी होनी चाहिए।

ताज़ा और साफ़-सुथरा भोजन तन्दरुस्ती के लिए आवश्यक है। भोजन साफ़ सुथरा रखने के लिए और खराब होने से बचाने के लिए, भोजन की सम्भाल के बारे में प्रत्येक गृहिणी को जानकारी होनी आवश्यक है।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण Textbook Exercise Questions, and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

HBSE 10th Class Science हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन से समूहों में केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ हैं?
(a) घास, पुष्प तथा चमड़ा
(b) घास, लकड़ी तथा प्लास्टिक
(c) फलों के छिलके, केक एवं नीबू का रस
(d) केक, लकड़ी एवं घास।
उत्तर-(c) एवं (d)।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन आहार श्रृंखला का निर्माण करते हैं?
(a) घास, गेहूँ तथा आम
(b) घास, बकरी तथा मानव
(c) बकरी, गाय तथा हाथी
(d) घास, मछली तथा बकरी
उत्तर-
(b) घास, बकरी तथा मानव।

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन पर्यावरण-मित्र व्यवहार कहलाते हैं?
(a) बाजार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना।
(b) कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना।
(c) माँ द्वारा स्कूटर विद्यालय छोड़ने की बजाय तुम्हारा विद्यालय तक पैदल जाना।
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डाले)?
उत्तर-
एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर देने से पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा। प्रकृति में सभी आहार श्रृंखलाएँ अनेक कड़ियों से मिलकर बनी हैं। इसकी प्रत्येक कड़ी एक पोषी स्तर कहलाती है। यदि आहार श्रृंखला की किसी भी कड़ी (पोषी स्तर) को समाप्त कर दें तो उससे पहले के पोषी स्तर में जीवों की संख्या अत्यधिक बढ़ जाएगी और उसके बाद के पोषी स्तर के लिए भोजन अनुपलब्ध होने के कारण संख्या घट जाएगी। उदाहरण के लिए यदि हम प्रथम पोषी स्तर (हरी घास) को नष्ट कर दें तो इन पर निर्भर करने वाले सभी जीव भूखे मर जाएँगे।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

प्रश्न 5.
क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलगअलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है ?
उत्तर-
नहीं, यदि एक पोषी स्तर के जीवों को नष्ट कर दिया जाए तो पहले तथा बाद के पोषी स्तरों में आने वाले जीवधारी प्रभावित होंगे और पहले तीव्रता से तत्पश्चात् धीमी गति से सभी पोषी स्तर प्रभावित होंगे। किसी भी पोषी स्तर (trophic level) के सभी जीवधारी पारितंत्र में बिना किसी हानि के अथवा क्षति के समाप्त नहीं होते।

प्रश्न 6.
जैविक आवर्धन (Biological Magnification) क्या है ? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैव आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होगा?
उत्तर-
फसलों में अनेक रसायनों जैसे-कीटनाशी, पीड़कनाशी, शाकना ी तथा उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। इनका कुछ भाग मृदा में मिल जाता है जो पौधों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है. जबकि इनका कछ भाग वर्षा जल के साथ घुल कर जलाशयों में चला जाता है। जलीय पौधे इन्हें अवशोषित करते हैं जिससे यह खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं। ये रसायन अजैव निम्नीकरणीय होते हैं जो आहार श्रृंखला के विभिन्न पोषीस्तरों में संचित होते जाते हैं, इस प्रक्रम को जैव आवर्धन कहते हैं। हाँ, विभिन्न पोषी स्तरों में रसायनों की सान्द्रता भिन्न-भिन्न होती है। जैसे-जैसे आहार श्रृंखला की श्रेणी बढ़ती जाती है रसायनों की सांद्रता में भी अधिकता होती रहती है और उसका प्रभाव भी बढ़ता जाता है।

प्रश्न 7.
हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं ? .
उत्तर-
हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों जैसे-प्लास्टिक, चमड़ा, काँच, डी. डी. टी. आदि से युक्त कचरे से अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं-

  • प्लास्टिक जैसे पदार्थों को निगल लेने से शाकाहारी जन्तुओं की मृत्यु हो सकती है।
  • नाले-नालियों में अवरोध उत्पन्न होता है।
  • मृदा प्रदूषण बढ़ता है।
  • जीवधारियों में जैविक आवर्धन होता है।
  • जल एवं वायु प्रदूषण बढ़ता है।
  • पर्यावरण अस्वच्छ होता है।
  • पारिस्थितिक संतुलन में अवरोध उत्पन्न होता है।
  • भूमि की उत्पादकता कम होती है।

प्रश्न 8.
यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय ही, तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-
यदि हमारे द्वारा (उत्पादित) सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो निपटान आसानी से कर दिया जाएगा। जैव निम्नीकरणीय पदार्थ सरलता से सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित कर दिए जाते हैं। अतः इनसे हमारे पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

प्रश्न 9.
ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है ? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं ? (CBSE 2016)
उत्तर-
ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है। यह सूर्य से आने वाले हानिकारक विकिरण को सोख लेती है। यह विकिरण हमारे शरीर में विभिन्न व्याधियों जैसे-कैंसर, त्वचा रोग, आँखों के रोग आदि उत्पन्न कर सकता है। रेफ्रिजरेशन वक्स, एरोसोल, जेट यानों आदि से उत्सर्जित रसायन जैसे-क्लोरोफ्लुओरो कार्बन्स (CFCs) ओजोन परत का क्षरण करते हैं जिससे सूर्य की पराबैगनी किरणों (UV-rays) के पृथ्वी पर आने की सम्भावना बढ़ रही है अतः ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिन्ता का विषय है।

ओजोन परत की क्षति को रोकने के लिए 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) में सर्वसम्मति से यह पारित हुआ कि क्लोरोफ्लुओरो कार्बन का उत्पादन 1986 के स्तर पर सीमित रखा जाए। मांट्रियल प्रोटोकॉल में 1987 में यह पारित हुआ कि 1998 तक इसके प्रयोग में 50% तक की कमी लायी जाए। धीरे-धीरे सभी देश इस समस्या से निपटने के लिए अग्रसर हो रहे हैं।

HBSE 10th Class Science हमारा पर्यावरण InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 292)

प्रश्न 1.
पोषी-स्तर क्या है? एक आहार श्रृंखला का उदाहरण दीजिए तथा इसमें विभिन्न पोषी स्तर बताइए। (RBSE 2016) (नमूना प्रश्न पत्र 2012)
उत्तर-
पोषी-स्तर (Trophic Level) हरे पौधे सौर ऊर्जा की सहायता से अपना भोजन बनाते हैं। इन पौधों को शाकाहारी प्राणियों द्वारा खाया जाता है जिन्हें मांसाहारी प्राणियों द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार से खाद्य के आहार के अनुसार विभिन्न प्राणियों में एक श्रृंखला निर्मित होती जाती है जिसे आहार श्रृंखला कहते है। आहार श्रृंखला की प्रत्येक कड़ी पोषी स्तर कहलाती है। एक आहार श्रृंखला नीचे दी गई है-
घास → कीट → मेंढ़क → सर्प → बाज

उपरोक्त आहार श्रृंखला में पाँच पोषी स्तर हैं –

  • प्रथम पोषी स्तर घास है जो कि स्वयंपोषी है और उत्पादक कहलाती है।
  • द्वितीय पोषी स्तर कीट है जो शाकाहारी है और प्राथमिक उपभोक्ता कहलाता है।
  • तृतीय पोषी स्तर मेंढ़क है जो मांसाहारी है और द्वितीयक उपभोक्ता कहलाता है।
  • चतुर्थ पोषी स्तर सर्प है जो मांसाहारी है और तृतीयक उपभोक्ता कहलाता है।
  • पंचम पोषी स्तर बाज़ है जो मांसाहारी है और चतुर्थ उपभोक्ता कहलाता है।

प्रश्न 2.
पारितंत्र में अपमार्जकों की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
पारितंत्र में अपमार्जकों (scavengers) का प्रमुख स्थान है। जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीव अपमार्जकों का कार्य करते हैं। ये पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं के मृत शरीरों पर आक्रमण कर जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल पदार्थों में बदल देते हैं। इसी प्रकार कचरा जैसे- सब्जियों एवं फलों के छिलके, जन्तुओं के मल-मूत्र, पौधों के सड़े-गले भाग अपमार्जकों द्वारा ही विघटित कर दिए जाते हैं। इस प्रकार पदार्थों के पुनः चक्रण में अपमार्जक सहायता करते हैं और वातावरण को स्वच्छ रखते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 295)

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय होते हैं तथा कुछ अजैव-निम्नीकरणीय ?
उत्तर-
ऐसे अपशिष्ट पदार्थ जो सूक्ष्म जीवधारियों द्वारा अपघटित होकर अपेक्षाकृत सरल एवं अहानिकारक पदार्थों में बदल दिए जाते हैं, जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण के लिए शाक-सब्जियों, फलों आदि के अवशेष तथा मल-मूत्र आदि पदार्थों को सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित कर दिया जाता है। कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो इन सूक्ष्म जीव धारियों द्वारा अपघटित नहीं किये जा सकते हैं। ये लम्बे समय तक प्रकृति में बने रहते हैं। यह पदार्थ अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते हैं जैसे-प्लास्टिक, पॉलीथीन, काँच, डी. डी. टी. आदि।

प्रश्न 2.
ऐसे दो तरीके सुझाइए जिनमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर-
जैव निम्नीकरणीय पदार्थ निम्न प्रकार से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं-

  • जैव निम्नीकरणीय पदार्थों के सूक्ष्म जीवों द्वारा विघटन से मुक्त विषाक्त एवं दुर्गन्धमय गैसें पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं।
  • कार्बनिक जैव निम्नीकरणीय पदार्थों की अधिकता से ऑक्सीजन की कमी हो जाने से सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। इसके फलस्वरूप अपघटन क्रिया प्रभावित होती है और पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।

प्रश्न 3.
ऐसे दो तरीके बताइए जिनमें अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर-
अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ निम्न प्रकार से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं-

  • अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ लम्बे समय तक पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। ये पदार्थ विभिन्न पदार्थों के चक्रण में रुकावट उत्पन्न करते हैं।
  • अनेक कीटनाशक तथा पीड़कनाशक रसायन खाद्य श्रृंखला के माध्यम से जीवधारियों तथा मनुष्य के शरीर में पहुँचकर उसे क्षति पहुचाते हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 296)

प्रश्न 1.
ओजोन क्या है तथा यह किसी पारितंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ? (CBSE 2016)
उत्तर-
ओजोन एक गैस है जिसका अणुसूत्र ‘o,’ है तथा इसका प्रत्येक अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनता है। ओजोन गैस की परत वायुमंडल के समताप मण्डल में पायी जाती है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को रोकती है। अतः पृथ्वी के जीवों को पराबैंगनी किरणों के घातक प्रभाव से बचाती है। पराबैंगनी किरणें ऑक्सीजन अणुओं को विघटित करके स्वतंत्र ऑक्सीजन (Nascent Oxygen; O) परमाणु बनाती हैं। ऑक्सीजन के ये स्वतंत्र परमाणु संयुक्त होकर ओजोन बनाते हैं।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण 1
यदि वायुमण्डल में ओजोन परत नहीं होती तो हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच जाती और मानव सहित विभिन्न जीवधारियों में घातक रोग जैसे कैंसर, आँख के रोग आदि उत्पन्न करती।

प्रश्न 2.
आप कचरा निपटान की समस्या कम करने में क्या योगदान कर सकते हैं ?
उत्तर-
कचरा निपटान की समस्या कम करने में हम निम्नलिखित योगदान कर सकते हैं-

  • हमें जैव निम्नीकरणीय तथा अजैव निम्नीकरणीय कचरे को अलग-अलग कर लेना चाहिए। अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों को पुनः चक्रण हेतु कारखाने भेज देना चाहिए जिससे इन्हें पुनः प्रयोग में लाया जा सके।
  • जैव निम्नीकरणीय पदार्थों का प्रयोग ह्यूमस या खाद बनाने के लिए करना चाहिए जिससे पौधों को उच्च कोटि की खाद उपलब्ध हो सके।

HBSE 10th Class Science हमारा पर्यावरण InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 15.1. (पा. पु. पृ. सं. 289)

प्रश्न 1.
जल जीवशाला बनाते समय हमें किन बातों का ध्यान रखना होगा ?
उत्तर-
मछलियों को तैरने के लिए स्थान, जल, ऑक्सीजन एवं भोजन।

प्रश्न 2.
यदि हम इसमें कुछ पौधे लगा दें तो यह एक स्व निर्वाह तंत्र बन जाएगा। क्या आप सोच सकते हैं कि यह कैसे होता है ?
उत्तर-
पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में 02 निकाल कर जल को स्वच्छ बनाते रहेंगे तथा श्वसन में छोड़ी गई CO2, को भोजन बनाने में काम लेते रहेंगे।

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प्रश्न 3.
क्या हम जल जीवशाला बनाने के उपरान्त इसे ऐसे ही छोड़ सकते हैं ? कभी-कभी इसकी सफाई की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
नहीं, हमें जलजीवशाला की समय-समय पर देख-रेख करनी होगी। इसमें जीवाणु उत्पन्न हो सकते हैं जिन्हें हटाने के लिए कभी-कभी जल भी बदलना होगा।

प्रश्न 4.
क्या हमें इसी प्रकार तालाबों एवं झीलों की सफाई भी करनी चाहिए ? क्यों और क्यों नहीं ?
उत्तर-
तालाबों एवं झीलों की भी यदि सम्भव हो तो सफाई करनी चाहिए, क्योंकि तालाबों एवं झीलों में सुपोषण (eutrophication) की संभावना बनी रहती है।

क्रियाकलाप 15.2. (पा. पु. पृ. सं. 289)

प्रश्न 1.
जल जीवशाला बनाते समय क्या आपने इस बात का ध्यान रखा कि ऐसे जन्तुओं को साथ न रखें जो दूसरों को खा जाएँ।
उत्तर-
माँसाहारी मछलियाँ अन्य मछलियों को खा जाएँगी। कृत्रिम पारितंत्र में वे अपनी वंश वृद्धि भी नहीं कर सकती हैं।

प्रश्न 2.
समूह बनाइए तथा चर्चा करें कि उपर्युक्त समूह एक दूसरे पर निर्भर करते हैं?
उत्तर-
मछलियाँ भोजन खाती हैं। उत्सर्जन करती हैं जिससे जलीय पादपों और काई का पोषण होता है और वे मछलियों का भोजन बनते हैं। इससे वे एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

प्रश्न 3.
जलीय जीवों के नाम उसी क्रम में लिखिए जिसमें एक जीव दूसरे जीव को खाता है तथा एक ही श्रृंखला की स्थापना कीजिए जिसमें कम से कम तीन चरण हों।
उत्तर-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण 2

प्रश्न 4.
क्या आप किसी एक समूह को सबसे अधिक महत्व का मानते हैं? क्यों एवं क्यों नहीं ?
उत्तर-
सभी समूह महत्वपूर्ण हैं परन्तु उत्पादक (पादप) सबसे महत्वपूर्ण हैं। उनके बिना अन्य प्राणियों का जीवन संभव नहीं है।

क्रियाकलाप 15.3. (पा. पु. पृ. स. 292)

प्रश्न 1.
समाचार पत्रों में, तैयार सामग्री अथवा भोज्य पदार्थों में पीड़क एवं रसायनों की मात्रा के विषय में अक्सर ही समाचार छपते रहते हैं। कुछ राज्यों ने इन पदार्थों पर रोक भी लगा दी है। इस प्रकार की रोक के औचित्य पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
पीड़कनाशी जैव आवर्धन द्वारा आहार श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं और अन्ततः मानव में प्रवेश करके अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। विभिन्न प्रकार के शीतल पेय पदार्थों में इनकी उपस्थिति प्रायः समाचार पत्रों में छपती रहती है। अनेक राज्यों ने इनके प्रयोग पर रोक लगा दी है।

प्रश्न 2.
आपके विचार में इन खाद्य पदार्थों में पीड़क नाशियों का स्रोत क्या है ? क्या यह पीड़कनाशी अन्य खाद्य स्त्रोतों के माध्यम से हमारे शरीर में पहुँच सकते हैं ?
उत्तर-
खेत-खलिहानों में फसलों की सुरक्षा की दृष्टि से विभिन्न कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। ये फसल के माध्यम से धान्यों में पहुँच जाते हैं, साथ ही पशुओं द्वारा खाये गये ‘चारे से उनके मांस एव दूध में भी पहुँच जाते हैं। फल, सब्जियाँ, दालों आदि में भी इनकी मात्रा संचित हो जाती है। जब ये वस्तुएँ मानव द्वारा खायी जाती हैं तो मानव के शरीर में वे संचित हो जाते हैं।

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प्रश्न 3.
किन उपायों द्वारा शरीर में इन पीड़कनाशियों की मात्रा कम की जा सकती है ? चर्चा कीजिए।
उत्तर-
फलों एवं सब्जियों को भली भाँति धो लेने से, इन्हें छीलकर इस्तेमाल करने से इन कीटनाशकों से कुछ बचाव किया जा सकता है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त खाद्य पदार्थों के प्रयोग से भी कुछ बचाव हो सकता है।

क्रियाकलाप 15.4. (पा. पु. पृ. सं. 293)

प्रश्न 1.
पुस्तकालय, इंटरनेट अथवा समाचार-पत्रों से पता लगाइए कि वे कौन से रसायन हैं जो ओजोन परत की क्षीणता के लिए उत्तरदायी हैं ?
उत्तर-
क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन, नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा हाइड्रोकार्बन, ओजोन परत की क्षीणता के लिए उत्तरदायी हैं |

प्रश्न 2.
पता लगाइए इन पदार्थों के उत्पादन एवं उत्सर्जन के नियमन संबंधी कानून ओजोन क्षरण कम करने में सफल रहे हैं? क्या पिछले कुछ वर्षों में ओजोन छिद्र के आकार में कुछ परिवर्तन आया है?
उत्तर-
रेफ्रिजरेटर्स, अग्निशामकों, ऐरोसोल आदि से उत्सर्जित क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन के कारण ओजोन क्षरण होता है। मांट्रियल प्रोटोकोल के प्रयासों से पिछले कुछ वर्षों में ओजोन-छिद्र के आकार में कुछ परिवर्तन आया है।

क्रियाकलाप 15.5. (पा. पु. पृ. सं. 294)

प्रश्न 1.
वे कौनसे पदार्थ हैं जो लम्बे समय बाद भी अपरिवर्तित रहते हैं ?
उत्तर-
लंबे समय तक दूध की खाली थैलियाँ, दवा की खाली बोतलें, स्ट्रिप्स, टूटे जूते आदि अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ अपरिवर्तित रहते हैं।

प्रश्न 2.
वे कौन-से पदार्थ हैं जिनके स्वरूप व संरचना में परिवर्तन होता है ?
उत्तर-
संदूषित भोजन, सब्जियों के छिलके, चाय की उपयोग की गयी पत्तियाँ, रद्दी कागज आदि पदार्थों की संरचना में परिवर्तन होते हैं।

प्रश्न 3.
जिन पदार्थों के स्वरूप में समय के साथ परिवर्तन आया है, कौन-से पदार्थ अल्पतम समय में अतिशीघ्र परिवर्तित हुए हैं ?
उत्तर-
सबसे कम समय में सूती कपड़े, सब्जियों के छिलके, संदूषित भोजन और चाय की उपयोग की गई पत्तियों का स्वरूप परिवर्तित हुआ है।

क्रियाकलाप 15.6 (पा. पु. पृ. सं. 294)

प्रश्न 1.
अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कितने समय तक पर्यावरण में इसी रूप में बने रह सकते हैं ?
उत्तर-
जैव और अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों को अपनी संरचना बदलने में अलग-अलग समय लगता है। सूती कपड़ों के चीथड़े प्रायः 1-6 माह, कागज 2-6 माह, फलों व सब्जियों के छिलके 6 माह, ऊनी कपड़े 1-5 वर्ष, लेमिनेटेड डिब्बे 5 वर्ष, चमड़े के जूते 25-40 वर्ष, नाइलॉन/टेरीलीन 30-40 वर्ष, धातुएँ 50 से 100 वर्ष और काँच की बोतलें/बर्तन दस लाख वर्ष में अपनी संरचना बदल लेते हैं। प्लास्टिक का सामान कभी भी विकृत नहीं होता है।

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प्रश्न 2.
आजकल ‘जैव निम्नीकरणीय प्लास्टिक’ उपलब्ध हैं। इन पदार्थों के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए तथा पता लगाइए कि क्या उनसे पर्यावरण को हानि हो सकती है अथवा नहीं।
उत्तर-
गेहूँ, मकई या आलू से प्राप्त स्टार्च की लैक्टिक अम्ल से जीवाणुओं की उपस्थिति में क्रिया से जैव निम्नीकरणीय प्लास्टिक बनाया जा रहा है। इसे पॉलीलैक्टाइड (Polylactide) कहते हैं। इनसे पर्यावरण की हानि नहीं होती।

क्रियाकलाप 15.7. (पा. पु. पृ.सं. 295)

प्रश्न 1.
पता लगाइए कि घरों में उत्पादित कचरे का क्या होता है? क्या किसी स्थान से इसे एकत्र करने का कोई प्रबन्ध है?
उत्तर-
आमतौर पर घरों से उत्पन्न कूड़ा-कर्कट किसी बन्द बाल्टी में एकत्र कर लिया जाता है जिसे स्थानीय निकायों के कर्मचारी किसी बड़े स्थान पर ले जाते हैं।

प्रश्न 2.
पता लगाइए कि स्थानीय निकायों (पंचायत, नगर पालिका, आवास कल्याण समिति ‘RWA’) द्वारा इसका निपटान किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर-
स्थानीय निकाय एकत्र किए गए कचरे को गाड़ियों द्वारा व्यर्थ भूमि के भराव के लिए या खाद बनाने के लिए भेजते हैं।

प्रश्न 3.
क्या वहाँ जैव अपघटित तथा अजैव अपघटित कचरे को अलग-अलग करने की व्यवस्था है?
उत्तर-
हाँ। जैव निम्नीकरणीय कचरे को खाद निर्माण के लिए तथा अजैव निम्नीकरणीय कचरे को पुनः चक्रण हेतु भेज दिया जाता है।

प्रश्न 4.
गणना कीजिए कि एक दिन में घर से कितना कचरा उत्पादित होता है ?
उत्तर-
सामान्यतया एक दिन में घर से 2 से 3 किग्रा कचरा उत्पन्न होता है।

प्रश्न 5.
इसमें से कितना कचरा जैव निम्नीकरणीय है?
उत्तर-
इसका अधिकांश भाग जैव निम्नीकरणीय है।

प्रश्न 6.
गणना कीजिए कि कक्षा में प्रति दिन कितना कचरा उत्पादित होता है ?
उत्तर-
कक्षा में उत्पन्न कचरा प्रायः फटे कागज, धूल, बचे-खुचे खाद्य पदार्थ, पेंसिल की छीलन, चॉक के टुकड़े आदि होता है।

प्रश्न 7.
इसमें कितना कचरा जैव निम्नीकरणीय है और कितना अजैव निम्नीकरणीय है ?
उत्तर-
अधिकांश भाग जैव निम्नीकरणीय होता है।

प्रश्न 8.
इस कचरे से निपटने के कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर-
कचरे को स्कूल में बगीचे में गड्ढा खोदकर दबा देना चाहिए।

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क्रियाकलाप 15.8. (पा. पु. पृ. सं. 295)

प्रश्न 1.
पता लगाइए कि आपके क्षेत्र में मल व्ययन की क्या व्यवस्था है? क्या वहाँ इस बात का प्रबंध है कि स्थानीय जलाशय एवं जल के अन्य स्रोत जल मल से प्रभावित न हों?
उत्तर-
हमारे क्षेत्र में मल व्ययन के लिए भूमिगत सीवरेज की व्यवस्था है। सड़क के एक ओर जलवाही पाइप लाइनें हैं तो दूसरी ओर सीवेज पाइपलाइनें हैं इसलिए पेय जल मल प्रभावित नहीं हो सकता।

प्रश्न 2.
अपने क्षेत्र में पता लगाइए कि स्थानीय उद्योग अपने अपशिष्ट (कूड़े-कचरे एवं तरल अपशिष्ट) के निपटान का क्या प्रबन्ध करते हैं? क्या वहाँ इस बात का प्रबन्धन है जिससे सुनिश्चित हो सके कि इन पदार्थों से भूमि तथा जल का प्रदूषण नहीं होगा।
उत्तर-
गंदे प्रदूषित जल को साफ करके विभिन्न रासायनिक पदार्थों द्वारा उपचारित किया जाता है और नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।

क्रियाकलाप 15.9. (पा. पु. पृ. सं. 296)

प्रश्न 1.
इंटरनेट अथवा पुस्तकालय की सहायता से पता लगाएँ कि इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के निपटान के समय किन खतरनाक वस्तुओं से आपको सुरक्षापूर्वक छुटकारा पाना है। यह पदार्थ पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर-
इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में सीसा, कैडमियम, सिलिकॉन, प्लास्टिक आदि आते हैं जो मृदा को प्रदूषित करते हैं। इसका हमारे स्वास्थ्य तथा अन्य जीवों पर कुप्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 2.
पता लगाइए कि प्लास्टिक का पुनः चक्रण किस प्रकार होता है? क्या प्लास्टिक के पुनः चक्रण का पर्यावरण पर कोई प्रभाव होता है ?
उत्तर-
प्लास्टिक को पिघलाकर खिलौने, मग, कंघे, बाल्टियाँ आदि तैयार किए जाते हैं। पुनः चक्रण के समय प्लास्टिक से अनेक हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं जो वाय को प्रदूषित करती हैं। प्रदूषित वायु से हमारे स्वास्थ्य तथा अन्य जीवों पर बुरा प्रभाव होता है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं?
उत्तर :
खेल एक –

  1. आनन्ददायक क्रिया है
  2. स्वतन्त्र क्रिया है
  3. आत्म-प्रेरित क्रिया है
  4. मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है
  5. सद्गणों का विकास करने वाली क्रिया है।

प्रश्न 2.
खेल को प्रभावित करने वाले तत्त्व क्या हैं?
उत्तर :

  1. शारीरिक स्वास्थ्य
  2. आयु
  3. क्रियात्मक विकास
  4. लिंग भिन्नता
  5. बौद्धिक विकास
  6. मौसम
  7. अवकाश की अवधि
  8. खेल के साधन
  9. सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति
  10. खेल के साथी
  11. परम्परा
  12. वातावरण।

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प्रश्न 3.
खेल की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
ग्यूलिक के अनुसार खेल की परिभाषा इस प्रकार दी गई है “जो कार्य हम अपनी इच्छा से स्वतन्त्र वातावरण में करते हैं वही खेल है।” थामसन के अनुसार, “खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है।”

प्रश्न 4.
बाल्य जीवन में खेल का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
खेल का बाल्य जीवन में विशेष महत्त्व है। अभिभावकों की दृष्टि में खेलना समय को व्यर्थ गंवाना है। वे पढ़ने-लिखने और गृह-कार्य को महत्त्व देते हैं। बालक को खेल से दूर रखने से उसके शारीरिक और व्यक्तित्व का विकास ठीक से नहीं होता। इसलिए खेल और कार्य में सामान्य संतुलन होना चाहिए।

प्रश्न 5.
खेल कितने प्रकार के हैं? संक्षेप में लिखो।
उत्तर :

  1. साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के हैं –
    • समान्तर खेल
    • सहचरी खेल
    • सामूहिक खेल।
  2. घर के अन्दर खेले जाने वाले खेल-ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, साँप-सीढ़ी आदि।
  3. घर के बाहर खेले जाने वाले खेल-क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बैडमिंटन आदि।

प्रश्न 5.
(A) बच्चों के खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
(B) घर में तथा घर से बाहर खेले जाने वाले दो-दो खेलों के बारे में लिखो।
(C) खेल कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 5 का उत्तर।

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प्रश्न 6.
खेल क्या है?
उत्तर :
खेल कोई भी ऐसी क्रिया है जिससे बच्चा आनन्द व सन्तोष प्राप्त करता है। बच्चा इसे स्वयं शुरू करता है। यह बच्चे पर थोपी नहीं जाती। जो चीज़ उसे पसन्द आ जाए वह उसकी खेल सामग्री बन जाती है अतः खेल अनायास, स्वाभाविक और आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है। खेल बच्चे के लिए मज़ा है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित क्रियाओं में से जो खेल हैं उन पर (✓) का चिह्न लगाएँ।
(i) मां द्वारा बच्चे से ज़बरदस्ती ढोलक बजवाना
(ii) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(iii) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(iv) मां द्वारा बच्चे को कहा जाना कि वह सिर्फ ब्लाक्स से ही खेल सकता है
उत्तर :
(i) ✗ (ii) ✓ (iii) ✓ (iv) ✗

प्रश्न 8.
मनोरंजन के विभिन्न साधनों के नाम लिखो।
उत्तर :
मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं –

  1. शिशु कविताएँ
  2. शिशु गीत
  3. लोरी
  4. कहानियाँ
  5. बालक साहित्य
  6. बाल-फिल्म
  7. खिलौने
  8. रेडियो
  9. टेलीविज़न
  10. संगीत
  11. खेल।

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प्रश्न 9.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
चिकित्सा की दृष्टि से भी बालकों के जीवन में खेल का महत्त्व है। इनके द्वारा बालकों की समस्या का पता लगाकर समाधान किया जाता है।

प्रश्न 10.
बच्चे के जीवन में खेल के दो शारीरिक महत्त्व लिखें।
उत्तर :
1. तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
2. बालक की मांसपेशियां सुचारू रूप से विकसित होती हैं।

प्रश्न 11.
बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, क्या उसके खेल में अन्तर आता है ?
उत्तर :
आयु बढ़ने के साथ खेल क्रियाएँ कम होती हैं।

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प्रश्न 12.
घर से बाहर खेले जाने वाले खेल कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, बैंडमिंटन आदि।

लघ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन कौन-से हैं?
उत्तर :
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं
1. शिशु गीत – बच्चा नर्सरी गीतों को बहुत शीघ्र सीखता है और याद कर के सुनाता है।
2. लोरी – बच्चा जब रात्रि को सोते समय नखरा करता है, तो मां उसे लोरी सना कर सुलाती है। मां द्वारा गाई लोरी सुनकर बच्चे शीघ्र सो जाते हैं।
3. कहानी – बच्चा कहानी बड़े शौक से सुनता है। कहानियों का बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है, अत: बच्चे को जो भी कहानियां सुनाई जाएं, वे डरावनी न हों बल्कि शिक्षाप्रद हों।
4. बाल साहित्य – बच्चा जब थोड़ा बड़ा होकर पढ़ने की स्थिति में आता है तब बाल साहित्य उसके मनोरंजन का साधन होता है। बाल साहित्य का चयन करते समय बालक के शारीरिक विकास का ध्यान रखना चाहिए। महापुरुषों की कहानियाँ, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों के बारे में तथा सांसारिक वस्तुओं की जानकारी देने वाला साहित्य होना चाहिए। साहित्य यदि चित्रों के रूप में हो, तो सोने पे सुहागा होता है।
5. खिलौने – खिलौनों से बच्चा शैक्षिक ज्ञान प्राप्त करता है। उसकी कल्पना शक्ति तथा विचार शक्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
बालकों के कार्य और खेल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कार्य और खेल में निम्नलिखित अन्तर हैं –

बालकों के कार्यबालकों के खेल
1. कार्य किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।1. खेल में किसी प्रकार का लक्ष्य नहीं रहता है।
2. कार्य में समय का बन्धन रहता है।2. खेल में स्वतन्त्रता रहती है।
3. कार्य प्रारम्भ से ही नियमबद्ध होते है।3. प्रारम्भिक अवस्था में खेल नियमबद्ध नहीं होते।
4. कार्य के सम्पन्न होने पर ही आनन्द की प्राप्ति होती है।4. खेल में खेलते समय ही आनन्द की प्राप्ति होती है, बाद में नहीं।
5. कार्य में वास्तविकता रहती है।5. खेल काल्पनिक होते हैं।
6. कार्य से अपेक्षित विकास होना आवश्यक विकास नहीं है।6. खेल से शारीरिक तथा मानसिक होता है।
7. कार्य में मस्तिष्क का नियन्त्रण आवश्यक होता है। सही रूप दिया जा सकता है।7. खेल में मस्तिष्क के नियंत्रण की इसी के आधार पर कार्य को अधिक आवश्यकता नहीं होती।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

प्रश्न 3.
मनोरंजन का बालक के सामाजिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
बालक को मनोरंजन की जितनी अधिक सुविधाएं प्राप्त होती हैं, उतना ही अधिक वह घूमने-फिरने, खेल-तमाशों और मित्रों के साथ व्यस्त रहता है। इस प्रकार सुविधाएँ अधिक प्राप्त होने पर बालक का स्वभाव हँसमुख प्रकार का हो जाता है। अपने इस स्वभाव के कारण उसे सामाजिक परिस्थितियों में सफल समायोजन करने में सहायता मिलती है। फलस्वरूप उसका सामाजिक विकास शीघ्र होता है। मनोरंजन के साधनों और अवसरों की बहुलता से बालक में समाज विरोधी व्यवहार के उत्पन्न होने की भी सम्भावना कम होती है। मनोरंजन की सुविधाओं के फलस्वरूप उसमें सामाजिक विकास सामान्य ढंग से होता है और सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुरूप होता है।

प्रश्न 4.
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य बातें बताइए।
अथवा
बच्चों के लिए खिलौने कैसे होने चाहिए ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य छ: बातें बताएं।
उत्तर :
बच्चों के लिए खिलौनों का चयन निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर करना चाहिए

  1. बच्चों के खिलौने उनकी आयु के अनुरूप होने चाहिएं।
  2. बच्चों के लिए बहुत महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।
  3. बच्चों के खिलौने बहुत बड़े व वज़न वाले नहीं होने चाहिएं।
  4. बच्चों के लिए खिलौने बहुत छोटे भी नहीं होने चाहिएं।
  5. खिलौने उत्तम धातु या सामग्री के बने होने चाहिएं।
  6. खिलौने शीघ्र टूटने वाले नहीं होने चाहिएं।
  7. खिलौने का रंग पक्का होना चाहिए।
  8. खिलौने धुल सकने वाले होने चाहिएं।
  9. खिलौने आकर्षक, सुन्दर व सुन्दर रंग के होने चाहिएं।
  10. खिलौने सुन्दर आकार, आकृति और स्वाभाविक एवं प्राकृतिक होने चाहिएं।
  11. खिलौने बच्चों के लिए सुरक्षित होने चाहिएं।
  12. खिलौने शिक्षाप्रद व ज्ञान अर्जन में सहायक होने चाहिएं।
  13. खिलौने मनोरंजन करने वाले होने चाहिएं।
  14. खिलौने ऐसे होने चाहिएं कि बच्चे आत्म-निर्भर बन सकें।
  15. खिलौने शारीरिक सन्तुलन व शारीरिक वृद्धि में सहायक होने चाहिएं।

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प्रश्न 5.
दैहिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा आमोद-प्रमोद का शारीरिक विकास में क्या महत्त्व है?
उत्तर :
दैहिक दृष्टि से खेलों का महत्त्व –

  1. खेल से बालक का तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
  2. खेल से बालक की मांसपेशियां सुचारु रूप से विकसित होती हैं।
  3. बालक की देह के सभी अवयवों का व्यायाम हो जाता है।
  4. आयु के साथ-साथ बालकों में वाद-विवाद, प्रतियोगिता, दूरदर्शन, चलचित्र निरीक्षण आदि में अभिव्यक्त होने लग जाती है। अभिभावकों के विपरीत होने पर उनके बालक भी विपरीत होंगे। वे अपनी दैहिक क्रियाओं को नहीं रोक पाएंगे।

प्रश्न 6.
नैतिक दृष्टि से खेल का क्या महत्त्व है?
अथवा
नैतिक दृष्टि से खेल के द्वारा बच्चों में किन-किन गुणों का विकास होता है ?
उत्तर :
नैतिक दृष्टि से खेल का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बालक में खेल के द्वारा सहनशीलता की भावना का भी विकास होता है।
  2. समुदाय के साथ खेलते हुए बालक आत्म-नियंत्रण, ईमानदारी, सत्य-भाषण, निष्पक्षता व सहयोगादि के गुणों को धारण करता है।
  3. बालक खेल के द्वारा यह सीख जाता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता है और न ही उसमें द्वेष की भावना पनप पाती है।

प्रश्न 7.
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा
खेलों का सामाजिक विकास की दृष्टि से क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बच्चे जब दूसरे बच्चों के साथ खेलते हैं तो वे सामाजिकता का पाठ सीखते हैं।
  2. खेलों के द्वारा बालक में सहनशीलता की भावना आ जाती है और वह दूसरे के अधिकारों का आदर करने लगता है।।
  3. एक-दूसरे के साथ खेलने से बालकों को बड़ों की तरह व्यवहार करना और उनका सम्मान करना भी आ जाता है।
  4. खेलों से बच्चों में स्नेह, प्यार, सहयोग, नियम, निष्ठता की भावना का विकास होता है।

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प्रश्न 8.
आयु के साथ खेल में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं ?
उत्तर :
बच्चों के खेल उम्र के साथ बदल जाते हैं। 0-2 महीने के बच्चे अपने आप से खेलना पसंद करते हैं। अपने हाथ पैर चलाते हैं।
2 महीने से 2 वर्ष का बच्चा खिलौनों में दिलचस्पी लेता है। वह खिलौनों से खेलना पसन्द करता है और अकेले होने पर भी वह खिलौनों से खेल कर खुश होता है।
2 साल से 6 वर्ष तक के बच्चों के खेल में अनेक परिवर्तन आते हैं। 2 साल के बच्चे समूह में बैठ कर खेलते तो हैं पर समूह का हर एक बच्चा अपनी धुन में मस्त रहता है।
कुछ बड़े होने पर बच्चे समूह के अर्थ समझते हैं और सामूहिक खेल खेलना शुरू कर देते हैं। वह साथ में खेलते हैं और एक ही खिलौने से भी खेलते हैं। धीरे-धीरे बच्चे नियम वाले खेल खेलना सीख जाते हैं।

प्रश्न 9.
घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर क्यों है ?
उत्तर :
ऐसा इसलिए है क्योंकि घर की सामग्री से बने खिलौने सुरक्षित होते हैं। इसके अलावा घर का काफ़ी फालतू सामान जैसे बचा हुआ कपड़ा, माचिस की डिब्बी आदि प्रयोग में आ जाते हैं। इन खिलौनों से बच्चा जैसे चाहे खेल सकता है। चूंकि ये महंगे नहीं हैं अतः आप को बच्चे को बार-बार ध्यान नहीं दिलाना पड़ता है कि वह ध्यान से खेले। अत: इन खिलौनों से बच्चा अपनी इच्छानुसार खेल सकता है।

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प्रश्न 10.
खेल और कार्य में दो अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 11.
खेल और कार्य में तीन अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 12.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
खेल चिकित्सा का प्रयोग 3 से 11 वर्ष के बच्चों पर किया जाता है। इसमें बच्चा खेलते-खेलते अपने मनो भावों को दर्शाता है। अपने अनुभवों, संवेगों, भावनाओं का प्रदर्शन करता है जिससे मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ बच्चे को समझता है तथा उसका इलाज करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं ?
उत्तर :
खेल के मापदण्ड निम्नलिखित हैं –
1. खेल एक आनन्ददायक क्रिया है – जिस क्रिया से व्यक्ति को आनन्द की प्राप्ति होती है, वह उसके लिए खेल हो जाती है। बच्चे जब जाग्रतावस्था में रहते हैं, तो सदैव ऐसी क्रियाओं में व्यस्त रहते हैं जिनसे उन्हें आनन्द की प्राप्ति होती है। जिस क्रिया में बच्चों को आनन्द की प्राप्ति नहीं होती बच्चे उसे करना ही नहीं चाहते। अतः जो क्रिया बच्चा आनन्द प्राप्ति के लिए करता है वह उसके लिए खेल है। इस प्रकार खेल एक आनन्ददायक क्रिया है।

2. खेल एक स्वतन्त्र क्रिया है – खेल में बच्चे बिल्कुल स्वतन्त्र होते हैं। बच्चा अपनी इच्छानुसार खेलता है। इस पर किसी तरह की बाहरी दबाव नहीं होता। ऐसा देखा जाता है कि बच्चे अपनी इच्छा से दिनभर उछलते-कूदते रहते हैं फिर भी थकते नहीं हैं, किन्तु उसी खेल के लिए उन्हें यदि बाहरी दबाव दिया जाए तो उन्हें तुरन्त थकावट आ जाती है जैसे बच्चे जब इच्छा से पढ़ने वाला खेल खेलते हैं तो दो-तीन घण्टे तक भी उस खेल में लगे रहने पर भी उन्हें थकावट नहीं आती, परन्तु जब उन्हें स्कूल का होम-वर्क करने को कहा जाता है या वे करते हैं, तो शीघ्र ही वे थकावट से घिर जाते हैं। अत: खेल में स्वतन्त्रता रहती है। यदि खेल में स्वतन्त्रता न रहे तो वह खेल, खेल न होकर काम हो जाता है।

3. खेल एक आत्म – प्रेरित क्रिया है-खेल व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। इसमें किसी उद्देश्य प्राप्ति की इच्छा नहीं होती है। वह बिलकुल निरुद्देश्य होता है; जैसे-बच्चा जब खेल के मैदान में गेंद खेलने जाता है, तो उस समय उसका कोई उद्देश्य नहीं होता, बच्चा केवल आत्म-प्रेरित होकर ही गेंद खेलता है। ऐसे खेल को ही खेल कहेंगे। किन्तु जब बच्चे में यह भावना आ जाए कि खेल के मैदान में अपने प्रतियोगी को हराना है तो वह खेल-खेल नहीं रह जाता। इसमें उद्देश्य आ गया और कोई भी उद्देश्यपूर्ण कार्य खेल नहीं होता बल्कि कार्य हो जाता है। अत: वे सभी क्रियाएं खेल हैं जिन्हें बच्चे स्वतन्त्रतापूर्वक आत्म-प्रेरित होकर आनन्द प्राप्ति के लिए करते हैं।

4. खेल एक मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है-बच्चे प्रायः जब भी खेलते हैं तो वे बड़े प्रसन्न होते हैं। प्राय: देखा गया है कि कुशाग्र बुद्धि एवं मानसिक रूप से स्वस्थ बालक खूब खेल खेलते हैं। वे प्रत्येक कार्य को खेल समझकर ही करते हैं।

5. खेल द्वारा सद्गुणों का विकास होता है-बच्चों की रुचि, चरित्र, ज़िम्मेदारी तथा मिल-जुलकर काम करने की भावना का विकास खेल के मैदान में ही होता है। जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य सन्तोषजनक नहीं होता।

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प्रश्न 1. (A)
खेल के तीन मापदण्ड बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 2.
बालकों के खेल की विशेषताएं क्या हैं ?
अथवा
बालकों के खेल की किन्हीं तीन विशेषताओं के बारे में लिखें।
उत्तर :
अध्ययन के पश्चात् यह ज्ञात हुआ है कि बालक के खेलों की कुछ विशेषताएं होती हैं। बालक के खेल, युवा के खेलों से भिन्न होते हैं। बालकों के खेल की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
1. बालक अपनी इच्छानुसार खेलता है – छोटे बालकों के खेल में स्वतन्त्रता का अंश अधिक होता है। जब वह चाहता है, तब खेलता है। जहां चाहता है, वहां खेलता है। जो खिलौने उसे पसन्द आते हैं, उन्हीं से खेलता है। खेलने के लिए समय और स्थान का कोई बन्धन बालक को मान्य नहीं है। आयु वृद्धि के साथ-साथ बालकों के खेल में औपचारिकता का अंश बढ़ता जाता है।

2. खेल परम्परा से प्रभावित होते हैं – यह देखा जाता है कि बालक अधिकतर वही खेल खेलते हैं जो उनके परिवार में खेले जाते हैं । शतरंज, ताश, क्रिकेट, बास्केटबॉल आदि खेल-कूद के विषय में यही देखा जाता है।

3. खेलों का निश्चित प्रतिमान होता है-बालक की आयु, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, देश व वातावरण को देखकर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि बालक कौन-कौन से खेल खेलता होगा। आयु के अनुसार तीन महीने का बालक वस्तुओं को छू-छू कर खेल का अनुभव करता है। एक साल का बालक खिलौने से खेलना प्रारम्भ करता है। सात-आठ साल तक अधिकतर बच्चे खिलौना पसन्द करते हैं। जब बालक स्कूल जाता है तो खेल-कूद में भाग लेना प्रारम्भ कर देता है। दस साल के बाद अधिकतर बालक दिवास्वप्न देखने शुरू कर देते हैं। अब वह अपना अधिक समय खेल-कूद में न बिताकर कहानियां पढ़ने, अकेले में दिवास्वप्न देखने में व्यतीत करते हैं।

4. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं-जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, बालक की खेलों के प्रति रुचि घटती जाती है।

5. आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक खेल का समय घटाता जाता है क्योंकि खेल के अलावा वह अपना समय अन्य कामों में व्यतीत करता है।

6. बड़े होने पर बालक की रुचि किसी एक विशेष खेल में हो जाती है और उसी में वह अपना समय व्यतीत करता है।

7. आयु के साथ-साथ खेल के साथियों की संख्या भी कम होती जाती है।

8. पाँच-छ: साल की आयु के बाद बालक अपने ही लिंग के बच्चों के साथ खेलना पसन्द करता है।

9. जन्म से छ: सात वर्ष की आयु तक बालक के खेल अनौपचारिक होते हैं। बाद में वह केवल औपचारिक खेल खेलना पसन्द करते हैं।

10. बड़े हो जाने पर बालक सिर्फ वही खेल खेलना अधिक पसन्द करते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति कम खर्च होती है।

11. बालक खेल में जोखिम उठाते हैं। पेड़ों पर चढ़ना, साइकिल चलाना, तैरना आदि ऐसे ही खेल हैं। जोखिम भरे खेलों में बालकों को आनन्द आता है।

12. खेलों में आवृत्ति का अंश रहता है। बालक किसी खेल को बार-बार खेलना चाहता है।

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प्रश्न 3.
खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
बालक के खेलों के प्रकार लिखिए।
अथवा
कार्ल ग्रूस व हरलॉक के अनुसार खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बच्चों के खेलों में व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है। इसी भिन्नता के आधार पर खेलों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल 1

उपर्युक्त खेलों के अतिरिक्त कार्लस ने खेलों को क्रमशः पाँच भागों में बांटा है –

  1. परीक्षणात्मक खेल-इन खेलों का मूल आधार जिज्ञासा है। बालक वस्तुओं को उलट-पुलट कर देखते हैं। खिलौने को तोड़कर फिर जोड़ते हैं।
  2. गतिशील खेल-इन खेलों की क्रिया में उछलना-कूदना, दौड़ना, घूमना आदि आता है।
  3. रचनात्मक खेल-इन खेलों में बच्चों की रचनात्मक प्रवृत्ति कार्य करती है। इसके अन्तर्गत ध्वंस तथा निर्माण दोनों ही प्रकार के खेल आते हैं।
  4. लड़ाई के खेल-यह खेल व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों प्रकार के होते हैं। इसमें हार और जीत प्रकट करने वाले खेल होते हैं।
  5. बौद्धिक खेल-इसमें बुद्धि का विकास करने वाले खेल सम्मिलित हैं, जैसे पहेलियां, शतरंज, बॅनो, मल्टिइलेक्ट्रो खेल आदि।

हरलॉक के अनुसार, खेल को निम्नलिखित प्रकारों में बाँटा जा सकता है –

  1. बालकों के स्वतन्त्र तथा स्वप्रेरित खेल
  2. कल्पनात्मक खेल
  3. रचनात्मक खेल
  4. क्रीड़ाएं।

1. स्वप्रेरित खेल – प्रारम्भ में बालक जो खेल खेलता है वे स्वप्रेरित होते हैं। कुछ महीनों का बालक अपने हाथ-पैरों को हिला-डुलाकर खेलता है। तीन महीनों के बाद उसके हाथों में इतनी शक्ति आ जाती है कि वह खिलौनों से खेल सके।

2. कल्पनात्मक खेल – बालक के कल्पनात्मक अभिनय का विशिष्ट समय 11-2 वर्ष की अवस्था है। प्रमुख कल्पनात्मक खेलों में घर बनाना, उसे सजाना, भोजन बनाना और परोसना, माता-पिता के रूप में छोटे-बड़े बालकों का पालन-पोषण करना, वस्तुएं खरीदना तथा बेचना, मोटर-गाड़ी, नाव आदि की सवारी करना, पुलिस का अफसर बनकर चोरों को पकड़ने का अभिनय करना, शत्रु को जान से मार डालने तथा मरने का अभिनय करना, सैनिक खेल आदि आते हैं।

3. रचनात्मक खेल – वास्तविकता कम तथा कल्पना के अधिक अंश वाले बालकों में रचनात्मक खेलों की प्रवृत्ति नहीं मिलती। रचनात्मक खेलों में गीली मिट्टी तथा बालू से मकान बनाना, मनकों से माला बनाना, कागज़ को कैंची से काटकर अनेक वस्तुएं बनाना, बालिकाओं में गुड़िया बनाना, गुड़ियों के रंग-बिरंगे कपड़े सीना, रंगदार कागज़ से रंग-बिरंगे फूल बनाना आदि खेल आते हैं।

4. क्रीड़ाएं – बालक 4-5 वर्ष की आयु में अपने पास-पड़ोस के बालक-बालिकाओं के साथ अनेकों क्रीड़ाएं करता है, जैसे-आँख-मिचौली, राम-रावण, चोर-सिपाही आदि।

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प्रश्न 3A.
खेल कितने प्रकार के होते हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 3B.
बौद्धिक खेलों से आप क्या समझते हैं ? इन खेलों के दो उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3.

प्रश्न 4.
खेल का बालक के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेलों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
खेल-खेल शब्द का इतना अधिक सामान्य-सा प्रचलन हो गया है कि यह अपनी वास्तविक महत्ता खो बैठा है। खेल का मतलब परिणाम की चिन्ता किए बिना आनन्ददायक क्रिया में संलग्न रहने से है। इसका सम्बन्ध कार्य से नहीं है। कार्य का अर्थ किसी उद्देश्य की पूर्ति करना है। खेल एक सरल क्रिया है। बालक का खेल के माध्यम से सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक, भाषा आदि का सर्वांगीण विकास होता है। बेलेन्टीन के अनुसार, “खेल एक प्रकार का मनोरंजन है।” खेल का महत्त्व अग्रलिखित है

1. खेल का सामाजिक महत्त्व – खेल के माध्यम से बालकों में पारस्परिक सम्पर्क स्थापित होता है तथा इस मधुर सम्पर्क के परिणामस्वरूप जातिगत भेद-भाव, ऊँच-नीच के विचार एवं आपसी संघर्षों की सम्भावना कम होने लगती है। खेल में सदैव ही सहयोग की आवश्यकता होती है। खेल के समय विकसित हुई सहयोग की यह भावना जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी विकसित हो जाती है। इसके अतिरिक्त खेल के ही माध्यम से विभिन्न सद्गुणों का विकास होता है तथा बालक सम्भवतः अनुशासन, नियम पालन, नेतृत्व तथा उत्तरदायित्व आदि के प्रति सजग हो जाते हैं। इन सब आदतों, सद्गुणों एवं भावनाओं का जहाँ एक ओर सामान्य जीवन में लाभ है, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी इनसे पर्याप्त लाभ होता है।

2. खेल का मानसिक एवं बौद्धिक क्षेत्र में महत्त्व – प्रत्येक बालक के लिए उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी अत्यधिक आवश्यक होता है। खेल से इस विकास में विशेष योगदान प्राप्त होता है। खेल से विभिन्न मानसिक शक्तियों जैसे कि प्रत्यक्षीकरण, स्मरणशक्ति, कल्पना तथा संवेदना आदि का समुचित विकास होता है। खेल के ही माध्यम से कुछ ऐसी योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास होता है जो मानसिक सन्तुलन, नियन्त्रण तथा रचनात्मकता के विकास में सहायक होती हैं। खेल द्वारा ही बालकों की शब्दावली तथा भाषा का भी विकास होता है।

3. खेल द्वारा संवेगात्मक विकास – बालक के उचित संवेगात्मक विकास में भी खेल से समुचित योगदान मिलता है। खेल द्वारा बालक अपने संवेगों को स्थिरता प्रदान करके नियन्त्रित रूप में रख सकते हैं। खेलों में समुचित रुचि लेने से बालकों में पायी जाने वाली कायरता, चिड़चिड़ापन, लज्जाशीलता तथा वैमनस्य के भावों को समाप्त किया जा सकता है। कुछ बालक विभिन्न कारणों से यथार्थ जीवन से पलायन करके दिवास्वप्नों में खोये रहने लगते हैं। वह प्रवृत्ति भी खेलों में भाग लेने से समाप्त की जा सकती है। समुचित संवेगात्मक विकास के परिणामस्वरूप बालक शिक्षा में भी सही रूप से विकास कर सकते हैं।

4. शारीरिक विकास में खेलों का महत्त्व – यह एक निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक बालक का समुचित शारीरिक विकास होना अनिवार्य है। शारीरिक स्वास्थ्य का विशेष महत्त्व है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नियमित रूप से खेलों में भाग लेना विशेष महत्त्व रखता है। खेलों से जहाँ स्वास्थ्य का विकास होता है, वहीं साथ ही साथ व्यक्ति में पर्यावरण के साथ अनकूलन की क्षमता बढ़ती है तथा रोगों से बचने की प्रतिरोधक शक्ति भी विकसित होती है।

5. व्यक्तित्व के विकास में खेलों का महत्त्व – व्यक्तित्व के समुचित विकास में भी खेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। खेलों के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व सम्बन्धी विभिन्न गुणों का विकास होता है तथा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है।

6. खेलों का शैक्षिक महत्त्व – विभिन्न दृष्टिकोणों से खेल के शैक्षिक महत्त्व को भी स्वीकार किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन की गम्भीर एवं महत्त्वपूर्ण समस्या है। अब यह माना जाने लगा है कि यदि बालक की पाश्विक मूल प्रवृत्तियों का शोधन हो जाये, तो वह सामान्य रूप से अनुशासित रह सकता है तथा खेल के माध्यम से इस उद्देश्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है। ऐसा देखा गया है कि बच्चे खेल के मैदान में आज्ञा-पालन

सरलता से कर लेते हैं। आज्ञा-पालन की यह आदत अन्य क्षेत्रों में भी प्रकट होने लगती है। शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक ज्ञान प्रयोग करके ही प्राप्त किया जा सकता है अर्थात् प्रयोगात्मक कार्य उत्तम समझा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में खेल के समावेश से यह उद्देश्य पूरा हो जाता है। शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्धारण में भी खेल के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। खेल से बालकों में स्वतन्त्रता, स्वाभाविकता तथा स्फूर्ति का संचार होता है।

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प्रश्न 4. (A)
बच्चों के जीवन में खेल की दो उपयोगिताएं बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 4 का उत्तर।

प्रश्न 5.
जन्म से छ: साल तक के बच्चों के लिये खेल की सामग्री का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बालक के खेलों के लिए खिलौनों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक आयु की अपनी-अपनी माँग होती है। बच्चों को वही खिलौने देने चाहिएं जो कि उनके लिए उपयोगी हों।

1. जन्म से एक वर्ष तक के बच्चों के खिलौने – तीन से नौ महीने के बालक में प्रवृत्ति होती है कि वह प्रत्येक वस्तु को अपने मुँह में रखता है। अत: उनके लिए ऐसे खिलौने होने चाहिएं जो नरम हों, रबर, स्पंज, कपड़े आदि के बने हों। यह ध्यान रखना चाहिए कि खिलौना गन्दा न हो, उस पर धूल-मिट्टी न लगी हो। खिलौने की बनावट ऐसी हो कि यदि बच्चा उसे मुंह में रखे तो उसे कोई चोट न आए और सरलता से मुंह में रख सके। इस आयु में बच्चों को ध्वनि अच्छी लगती है। अतः उसे ध्वनि करने वाले खिलौने जैसे झुनझुना, सीटी लगे रबर के खिलौने भी दिये जा सकते हैं।

2. एक से दो साल के बच्चों के खिलौने – ऐसे बच्चों को रबर, लकड़ी, प्लास्टिक आदि के बने खिलौने जैसे जानवर, ट्रेन, मोटर, हवाई जहाज़ आदि खेलने के लिए देना चाहिए जिससे उनके वातावरण का ज्ञान बढ़े। एक-दूसरे में फंसने वाले खिलौने भी देने चाहिएं जिससे उनके स्नायुओं का विकास होता है तथा रचनात्मक कार्यों से मानसिक विकास भी होता है। दो साल के बच्चे में नकल करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। ऐसे बच्चों को गुड़िया आदि खेलने के लिए दिए जा सकते हैं।

3. तीन-चार साल के बच्चों के खिलौने – इस अवस्था में बच्चों को मोटर, ट्रेन, हेलीकॉप्टर आदि चाबी से चलने वाले खिलौने देने चाहिएं। खेल-कूद का सामान भी देना चाहिए, जैसे-गेंद, बल्ला आदि। इसके अलावा बिल्डिग ब्लॉक, मीनार बनाने का सामान, सीढ़ी बनाने का सामान आदि। इसके द्वारा बालक का मानसिक, गत्यात्मक विकास होता है। अब बच्चा रंग और माडलिंग में विशेष रुचि लेने लगता है। वह फर्श, दीवार पर लकीरें खींचता है। बालक को माडलिंग के लिए मिट्टी व प्लास्टीसीन देना चाहिए।

4. पाँच साल का बालक चित्र बनाने लगता है। उसे रंग दिए जा सकते हैं। वह कैंची से कागज़ काट सकता है।

5. छ: साल का बालक छोटे – छोटे खिलौने जैसे बर्तन, गुड़िया, इंजन, सोफा सैट आदि पसन्द करता है। बालक अब छोटे-छोटे ड्रामा भी खेलता है। इसलिए उसे ड्रामा से सम्बन्धित सामग्री प्रदान करनी चाहिए। घरेलू खेलों में बालक को लूडो, साँप-सीढ़ी आदि खेलने को देना चाहिए। इस समय बच्चा ट्राइसिकल व बाइसिकिल भी चलाना सीख जाता है। चाबी वाले बड़े खिलौने भी बालकों को पसन्द आते हैं।

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प्रश्न 6.
खेल के गुण उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर :
खेल के निम्नलिखित गुण हैं –
1. खेल बच्चों को आनन्दित करता है।
उदाहरण – बच्चा रसोई में जाता है और कटोरी, चम्मच उठाकर उन्हें बजाने लगता है। उसे ध्वनि सुनने में मजा आता है। अतः वह उसे बजाता ही जाता है। वह यह खेल इसीलिए खेल रहा है क्योंकि उसे मजा आ रहा है।

2. खेल एक स्वाभाविक क्रिया है।
उदाहरण – एक बच्ची अपनी गुड़िया से खेल रही है। वह गुड़िया को नहलाती है, उसके बाल संवारती है, उससे बातें करती है, एवम् उसे थपकियां देकर सुलाती है। यह सब कुछ स्वाभाविक है। कोई उसे गुड़िया से इस तरह खेलना नहीं सिखाता।

3. खेल गम्भीर होता है।
उदाहरण – बच्चा किताब लेकर पढ़ता है। हालांकि उसने किताब उल्टी पकड़ी होती है पर फिर भी वह उसे गम्भीरता से पढ़ता है व एक काल्पनिक कहानी भी गढ़ लेता है।

4. खेल जिज्ञासा से पूर्ण होता है।
उदाहरण – जब भी बच्चे को नया खिलौना दिया जाता है वह उसे जिज्ञासापूर्ण नज़रों से देखता है। फिर वह उसे उलट-पुलट कर देखेगा और कभी तो खोलकर उसे अन्दर लगे कल-पुर्जी के बारे में जानने की कोशिश करेगा क्योंकि उसके अन्दर नई चीज़ के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है।

5. खेल शान्त या चंचल होता है।
उदाहरण – कभी बच्चा चुपचाप कमरे के एक कोने में बैठ जाता है और अपने हाथ में पकड़ी हुई चीज़ से खेलता है; जैसे ताला-चाबी। वह चाबी से ताले को खोलने की कोशिश करता है। इस तरह वह शान्ति से खेल रहा है।
कभी-कभी बच्चा चारपाई पर कूदता है और इस हलचल का आनन्द लेता है। इस खेल में चंचलता है।

प्रश्न 7.
नीचे दिए गए खेलों को खेल के गुणों के आधार पर वर्गीकृत कीजिए। वर्गीकरण के लिए निम्नलिखित चिन्हों का प्रयोग करें
स्वः स्वाभाविक
च : चंचल
ग : गम्भीर
नि: निरुद्देश्य जि: जिज्ञासापूर्ण शां: शान्त –
1. पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है।
2. अपने कमरे में बैठकर बच्चा ताश से खेलता है।
3. बच्चा फुटबाल खेल रहा है।
4. फिसल पट्टी पर बार-बार चढ़कर फिसलता है।
5. एक गिलास से दूसरे गिलास में पानी पलटता है।
6. किताब के पन्ने पलटता है।
7. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखता है।
8. गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है।
9. झुनझुना बजाता जाता है।
10.  निरन्तर कूदता रहता है।
उत्तर :
1. स्व. 2. शां. 3. चं. 4. नि. 5. नि. 6. जि. 7. जि. 8. नि. 9. ग. 10. ग.।

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प्रश्न 8.
खेलों का बच्चों के विकास पर क्या लाभप्रद प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेल की क्या आवश्यकता है ?
अथवा
बच्चों के जीवन में खेल के कोई दो महत्त्व लिखें।
उत्तर :
खेल इसीलिए आवश्यक है क्योंकि वह बच्चे के विकास के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक।
1. शारीरिक विकास – खेल शरीर के विकास को प्रभावित करते हैं। खेल से बच्चे की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है। खेल से हाथों व आंखों के समन्वय में ताल-मेल बैठाता है। बचा शरीर को सन्तुलित करना सीखता है। इसके अलावा खेलते समय बच्चे अपने शरीर की मांसपेशियों और गति पर नियन्त्रण पाना सीखते हैं।

2. मानसिक विकास – खेल द्वारा बच्चा अपने आस-पास की वस्तुओं के बारे में सब कुछ जान लेता है जैसे रंग, आकार इत्यादि। वह विभिन्न चीज़ों को देखता है, छूता है, अनुभव करता है, चखता है और इस तरह से उन्हें जान लेता है।

3. सामाजिक विकास – बच्चे खेल द्वारा ओर सामाजिक बनते हैं अर्थात् वह सामाजिक व्यवहार सीखते हैं जैसे अपनी चीजें दूसरों के साथ बांटना, अपनी बारी का इन्तज़ार करना, दोस्तों के साथ ताल-मेल बिठाना आदि। इसके अलावा खेल द्वारा बच्चे नकल से वयस्कों (adults) की भूमिकाएं सीखते हैं।

4. भावनात्मक विकास – बच्चे खेल द्वारा अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण करना सीखते हैं। उन्हें अपने रोने, हंसने, चिल्लाने पर काबू करना आ जाता है। उन्हें यह समझ आ जाती है कि अपने मन के भावों को किस तरह बाहर लाना है और उनकी दूसरों के सामने अभिव्यक्ति कैसे करनी है।

5. नैतिक विकास – खेल द्वारा बच्चे अनेक नैतिकता की बातें सीखते हैं जैसे सच्चाई, ईमानदारी, गुस्सा न करना, झूठ न बोलना आदि।

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प्रश्न 9.
कॉलम ” में दिए गए कथनों को कॉलम ‘II’ के कथनों से मिलाएं।

कॉलम – Iकॉलम – II
1. खेल से बच्चे1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो3. तो वह आकार के विषय में जानता है
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
6. उसे स्कूल में खेलना होगा।

उत्तर :

कॉलम – Iकॉलम – II
1. खेल से बच्चे4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है3. तो वह आकार के विषय में जानता है

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से उन कथनों पर (✓) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को दर्शाते हैं और उन पर (✗) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को नहीं दर्शाते।
1. लम्बाई में बढ़ोत्तरी
2. गत्यात्मक नियन्त्रण
3. गुस्से पर नियन्त्रण
4. आसन सुधरता है
5. भाषा का विकास
6. गणित के सवाल हल करना
7. बेहतर निबन्ध लिख पाना
8. अपनी बारी का इन्तजार करना
9. आऊट दिए जाने पर बिना बहस किए चले जाना
10. गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
(1), (4), (6), (7) ✗ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को नहीं दर्शाते। (2), (3), (5), (8), (9) (10) ✓ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को दर्शाते हैं।

प्रश्न 11.
खिलौने खरीदते वक्त आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे जिनके आधार पर आप खिलौनों का चयन करेंगे ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों का चयन करते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगे ?
अथवा
खिलौनों का चुनाव करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखोगे ?
उत्तर :
खिलौने खरीदते समय या उनका चयन करते समय हम अग्रलिखित बातों का ध्यान रखेंगे –

1. बच्चे की उम्र – खिलौनों का चयन करते समय बच्चे की आयु का ध्यान अवश्य रखें; जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए झुनझुना खरीदें क्योंकि उसे आवाज़ अच्छी लगती है। एक साल के बच्चे के लिए ऐसा खिलौना खरीदें जिसे रस्सी से खींचा जा सकता है इत्यादि।
2. खिलौने का सुरक्षित होना – जो खिलौने आप बच्चे के लिए ले रहे हैं वह सुरक्षित होने चाहिएं। वह खुरदरे या नोकीले नहीं होने चाहिएं। उन पर लगे रंग आई० एस० आई० प्रमाणित होने चाहिएं। घटिया रंग ज़हरीले होते हैं।
3. खिलौने टिकाऊ हों – जहां तक सम्भव हो नाजुक और कमज़ोर खिलौने न खरीदें। प्लास्टिक के खिलौनों की अपेक्षा लकड़ी व रबड़ के खिलौने ज्यादा चलते हैं।
4. खिलौने महंगे न हों – खिलौने महंगे न हों अन्यथा आप सारा समय बच्चे को ध्यान से खेलने की हिदायत देते रहेंगे। इससे बच्चा ठीक से खेल नहीं पाएगा और खिलौने से खेलना छोड़ देगा।
5. खिलौने आकर्षक हों – बच्चे का खिलौना खरीदते समय यह देख लें कि खिलौना देखने में आकर्षक हो। यदि बच्चे को खिलौने का रंग या आकार पसन्द नहीं आएगा तो वह उससे नहीं खेलेगा।

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प्रश्न 12.
बच्चों के लिए खेल का क्या महत्त्व है ?
अथवा
खेल बच्चों के लिए क्यों जरूरी है ?
उत्तर :

  1. खेलने से बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास अधिक होता है।
  2. खेल द्वारा बच्चा अपने साथियों के साथ मिल-जुल कर रहना सीखता है।
  3. खेलों द्वारा बच्चे जिन्दगी में जीत तथा हार को सहना सीखते हैं।
  4. खेलों द्वारा बच्चे की काल्पनिक शक्ति भी विकसित होती है।।
  5. खेलों में व्यस्त रहने के कारण बच्चा बुरे कार्यों से बचा रहता है।
  6. खेलों द्वारा बच्चे अपने जीवन में भिन्न-भिन्न भूमिकाएं निभाना सीखते हैं।

जैसे लड़कियां गुड़िया के खेल द्वारा एक माँ, बहन तथा दोस्त की भूमिका निभाना सीखती हैं। इसी तरह लड़के खेलों द्वारा डॉक्टर पुलिस, फौजी, व्यापारी आदि बनना सीखते हैं।

प्रश्न 13.
(क) बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न खेलों के लिए खेल सामग्री का चुनाव करते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
(ख) तीन वर्षीय बालिका की माता को सुरक्षित खिलौना खरीदने के लिए कौन-कौन सी बातों का निरीक्षण करना होगा ?
उत्तर :
(क) 1. आयु वर्ग (Age Group) – प्रत्येक आयु में बच्चे का शरीर तथा मानसिक विकास एक जैसा नहीं होता। इस लिए बच्चे के खिलौनों का चुनाव उनकी आयु को ध्यान में रख कर करना चाहिए जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए भार में हल्के तथा आवाज़ पैदा करने वाले खिलौने लेने चाहिएं। जब बच्चा चलने लग जाए तो उस को चाबी वाले खिलौने तथा चलने वाले खिलौने पसंद आते हैं। इस के बाद 2-3 साल वर्ष के बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न ब्लाक्स (blocks) का चुनाव किया जाना चाहिए। आजकल बाजार में प्रत्येक आयु वर्ग के बच्चों के मानसिक तथा शारीरिक विकास को ध्यान में रखते हुए कई तरह के खिलौने तथा गेम्स मिलती हैं जैसे बिज़नस गेम, विडियो गेम, कैरम बोर्ड आदि। कोई भी खेल या खिलौना खरीदते समय बच्चे की आयु को ध्यान में रखना चाहिए।

2. रंगदार (Colourful) – बच्चों के खिलौने भिन्न-भिन्न रंगों तथा आकर्षक होने चाहिए। प्राय: बच्चों को तेज़ रंग जैसे लाल, पीला, नीला, संगतरी आदि पसंद होते हैं। परन्तु यह ध्यान में रखें कि खिलौनों के रंग पक्के हों क्योंकि बच्चे को प्रत्येक वस्तु मुंह में डालने की आदत होती है। यदि रंग घुलनशील हो, तो बच्चे को हानि पहुँच सकती है।

3. अच्छी गुणवत्ता (Good Quality) – प्रायः खिलौने रबड़ तथा प्लास्टिक के बने होते हैं। खिलौने खरीदने के समय यह देखना आवश्यक है कि बढ़िया रबड़ या प्लास्टिक का प्रयोग किया गया हो जो जल्दी टूट न सके। घटिया गुणवत्ता के खिलौने शीघ्र टूट जाते हैं तथा बच्चे टूटे-फूटे टुकड़े उठा कर मुंह में डाल सकता है। जो बच्चे के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं।

4. शिक्षात्मक (Educational) – खिलौने शिक्षात्मक होने चाहिए ताकि बच्चा उनके साथ खेलता हुआ कुछ ज्ञान भी प्राप्त कर सके क्योंकि बच्चा खेलों द्वारा अधिक सीखता है। भिन्न-भिन्न रंगों, आकारों तथा संख्या का ज्ञान बच्चे को आसानी से खिलौनों की सहायता के साथ दिया जा सकता है।

5. सफाई में आसानी (Easy to Learn) – खिलौने ऐसी सामग्री के बने हों जिन्हें सरलता के साथ साफ किया जा सके जैसे प्लास्टिक तथा सिंथैटिक खिलौने सरलता से साफ हो सकते हैं।

6. सुरक्षित सामग्री (Safe Material) – खिलौनों का सामान मज़बूत नर्म, रंगदार तथा भार में हल्का होना चाहिए। खिलौनों के भिन्न-भिन्न भाग ठीक ढंग से मज़बूती के साथ जुड़े हो। इनकी नुक्करें तेज़ न हों नहीं तो यह बच्चे को खेल के समय हानि पहुंचा सकती हैं।

7. लड़के तथा लड़कियों के खिलौने (Boys and Girls Toys) – खिलौने लड़के तथा लड़कियों के लिए भिन्न-भिन्न खरीदने चाहिएं। लड़कियां अधिकतर गुड़िया, घरेलू सामान तथा श्रृंगार के सामान से खेलना पसन्द करती हैं जबकि लड़के कारों, बसों, ट्रैक्टर, बैटबाल, फुटबाल आदि के साथ खेलना पसन्द करते हैं। खिलौनों का चुनाव बच्चे की आयु तथा लिंग को ध्यान में रख कर करना चाहिए।

8. खिलौनों की कीमत (Cost of Toys) – अधिक महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं क्योंकि महंगे खिलौने टूट जाने पर माँ-बाप बच्चों को डांटते हैं पर बच्चा सदा ही अपने ढंग से खेलना चाहता है। इसलिए खिलौना इतना महंगा न हो कि खराब होने पर दु:ख हो।

9. संभालने का स्थान (Storage Space) – खिलौनों को संभालने के लिए व्यापक स्थान होना चाहिए ताकि उनको ठीक ढंग से रखा जा सके तथा खिलौने टूट-फूट से बच सकें। इसलिए हर नया खिलौना खरीदने से पहले उस को सम्भालने के स्थान को ध्यान में रखना आवश्यक है।

10. खिलौने बहुत अधिक न खरीदें (Not to Buy too Many Toys) – यदि घर में बहुत अधिक खिलौने हों, तो बच्चा किसी भी खिलौने का पूरा लाभ नहीं उठाता इसलिए बहुत अधिक खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।

बच्चों के खेलने के लिए कौन-से भिन्न-भिन्न किस्म के खिलौने होते हैं –

  1. रंगदार तथा आवाज़ करने वाले खिलौने
  2. चलने वाले खिलौने
  3. चाबी वाले खिलौने
  4. भिन्न-भिन्न तरह के ब्लाक्स
  5. घर में खेलने वाली खेलें जैसे लुडो, कैरम-बोर्ड, बिजनैस, वीडियो गेम आदि।
  6. विशेषतः लड़कियों के लिए किचन सैट, डरैसिंग सैट, डॉक्टर सैट, गुड़िया आदि।
  7. घर से बाहर खेलने वाली खेल जैसे बैडमिंटन, बैटबाल, हॉकी, फुटबाल, रस्सी कूदना आदि।

(ख) देखें प्रश्न (क) का उत्तर।

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एक शब्द/रक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) एक शब्द में उत्तर दें –

प्रश्न 1.
साथियों की संख्या के आधार पर खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 2.
किसके अनुसार खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है ?
उत्तर :
थॉमसन के अनुसार।

प्रश्न 3.
गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देना कैसा खेल है ?
उत्तर :
निरुद्देश्य खेल।

प्रश्न 4.
फुटबॉल खेलना कैसा खेल हैं ?
उत्तर :
चंचल खेल।

प्रश्न 5.
पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है कैसा खेल है ?
उत्तर :
स्वभाविक खेल।

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प्रश्न 6.
शतरंज कैसा खेल है ?
उत्तर :
शान्त तथा दिमागी।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. लूडो ………… खेल है।
2. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखना ……… खेल है।
3. खेलों से बच्चों को ………… की प्राप्ति होती है।
4. शुरू में बालक ……… खेल खेलता है।
उत्तर :
1. घरेलू
2. जिज्ञासापूर्ण
3. आनन्द
4. स्वप्रेरित।

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(ग) निम्न में गलत अथवा ठीक बताएं –

1. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे संवेगात्मक व्यवहार सीखते है।
3. जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन होता है। उसका मानसिक व शारीरिक विकास सन्तोषजनक नहीं होता।
4. खिलौनों का रंग पक्का होना चाहिए।
5. बच्चे का पतंग लेकर भागना खेल नहीं है।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक
5. गलत।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
घर के अन्दर खेले जाने वाला खेल नहीं है –
(A) हॉकी
(B) ताश
(C) शतरंज
(D) कैरम।
उत्तर :
हॉकी।

प्रश्न 2.
निम्न में खेल नहीं है –
(A) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(B) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(C) माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना
(D) बच्चे का पतंग लेकर भागना।
उत्तर :
माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना।

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प्रश्न 3.
कार्लग्रूस ने खेलों को कितने भागों में बांटा है –
(A) एक
(B) तीन
(C) पांच
(D) सात।
उत्तर :
पांच।

प्रश्न 4.
निम्न में चंचल खेल है –
(A) पार्क में पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है
(B) फुटबाल खेलना
(C) गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है
(D) खिलौना तोड़ कर उसके अन्दर देखता है।
उत्तर :
फुटबाल खेलना।

प्रश्न 5.
निम्न में खेल कार्य नहीं है
(A) गणित के सवाल हल करना
(B) गत्यात्मक नियन्त्रण
(C) गुस्से पर नियन्त्रण
(D) गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
गणित के सवाल हल करना

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प्रश्न 6.
ऑक्सीकरण की क्रिया कब पूर्ण होती है-
(A) हाइड्रोजन मिलने पर
(B) ऑक्सीजन मिलने पर
(C) नाइट्रोजन मिलने पर
(D) कार्बन डाइऑक्साइड मिलने पर।
उत्तर :
ऑक्सीजन मिलने पर।

प्रश्न 7.
समूह में खेलते हुए बच्चे ……………. सीखते हैं
(A) काल्पनिक व्यवहार
(B) सामाजिक व्यवहार
(C) संवेगात्मक व्यवहार
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 8.
कमरे में बैठकर ताश खेलने को खेल के गुणों के आधार पर किस प्रकार के खेल में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(A) निरुद्देश्य खेल
(B) जिज्ञासापूर्ण खेल
(C) शान्त खेल
(D) गम्भीर खेल।
उत्तर :
शान्त खेल।

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प्रश्न 9.
खिलौने को खरीदते समय किस बात को ध्यान में रखना चाहिए :
(A) आयु वर्ग
(B) रंग-बिरंगे
(C) अच्छी गुणवत्ता
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 10.
नैतिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है –
(A) सहनशीलता की भावना का विकास
(B) तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होना
(C) व्यायाम होना
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
सहनशीलता की भावना का विकास।

प्रश्न 11.
खेलों से बच्चों को …………. की प्राप्ति होती है –
(A) पैसों
(B) आनन्द
(C) ऊर्जा.
(D) समयः।
उत्तर :
आनन्द।

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प्रश्न 12.
जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका ………… सन्तोषजनक नहीं होता
(A) मानसिक विकास
(B) शारीरिक विकास
(C) मानसिक और शारीरिक विकास
(D) सामाजिक विकास।
उत्तर :
मानसिक और शारीरिक विकास।

प्रश्न 13.
खेल की क्रियाएं आयु के साथ ………. हैं।
(A) घटती
(B) बढ़ती
(C) समान रहती
(D) सामान्य।
उत्तर :
घटती।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से बौद्धिक खेल कौन-सा है ?
(A) हॉकी खेलना
(B) शतरंज
(C) दौड़ लगाना
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

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प्रश्न 15.
शुरू में बालक कौन-से खेल खेलता है ?
(A) स्वप्रेरित
(B) कल्पनात्मक
(C) रचनात्मक
(D) क्रीड़ाएं।
उत्तर :
स्वप्रेरित।

प्रश्न 16.
क्रीड़ायें बच्चों के लिए फायदेमंद हैं, क्योंकि ये प्रदान करती हैं –
(A) मनोरंजन
(B) धन
(C) भोजन
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
मनोरंजन।

प्रश्न 17.
बालकों के जीवन में मनोरंजन का क्या महत्त्व है ?
(A) सहनशीलता, त्याग, सच्चाई जैसे गुण उत्पन्न होते हैं
(B) संवेगों का प्रकाशन और नियंत्रण
(C) नैतिक व मानसिक विकास में सहायक
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 18.
गतिशील खेल कौन-सा है ?
(A) खिलौनों से खेलना
(B) उछलना-कूदना
(C) पहेलियां बूझना
(D) शतरंज खेलना।
उत्तर :
उछलना-कूदना।

प्रश्न 19.
खेलने से बच्चों का………… विकास होता है।
(A) शारीरिक
(B) मानसिक
(C) सामाजिक
(D) शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।
उत्तर :
शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।

प्रश्न 20.
खेलों को कौन-सा तत्त्व प्रभावित करता है ?
(A) साधन
(B) ऋतु
(C) वातावरण
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

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प्रश्न 21.
घर के भीतर खेला जाने वाला कौन-सा खेल है ?
(A) ताश
(B) कैरम
(C) शतरंज
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

प्रश्न 22.
……………. से हड्डियों की मजबूती आती है।
(A) लोहा
(B) आयोडीन
(C) कैल्शियम
(D) वसा।
उत्तर :
कैल्शियम।

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प्रश्न 23.
घर के भीतर खेले जाने वाला खेल कौन-सा है ?
(A) शतरंज
(B) हॉकी
(C) फुटबाल
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

खेल HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य।

→ बालकों का खेलना एक स्वाभाविक क्रिया है जो आत्म प्रेरित होती है और आनन्ददायक भी होती है।
→ खेल तथा मनोरंजन बालक के जीवन में प्रसन्नता, चंचलता, उत्साह, स्फूर्ति तथा स्वतन्त्रता के भाव उत्पन्न करते हैं।
→ खेल की अनेक विशेषताएं होती हैं जैसे यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, यह एक आत्मप्रेरित, शारीरिक व मानसिक प्रवृत्ति है, खेल का कोई गुप्त लक्ष्य नहीं होता, खेल का मुख्य लक्ष्य आनन्द और आत्म विश्वास प्राप्त करना होता है, बालक खेल के अन्तिम परिणाम पर कोई विचार नहीं करते आदि।
→ खेल और कार्य में अन्तर होता है।
→ खेल का बालक के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। खेल के आधार पर बालक के अनेक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक आदि गुणों का विकास होता है।
→ खेल के साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के होते हैं

  • समानान्तर खेल
  • सहचारी खेल तथा
  • सामूहिक खेल।

→ खेल के स्थान के आधार पर खेल दो प्रकार के होते हैं –
(i) घर के भीतर खेले जाने वाले खेल (इनडोर गेम्स) – जैसे ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, चायनीज चेकर, सांप-सीढ़ी आदि।
(ii) घर के बाहर खेले जाने वाले खेल (आउटडोर गेम्स) – जैसे क्रिकेट, फुटबाल, हाकी, बैडमिन्टन आदि।

→ ऐसा देखा गया है कि जो बालक पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त खूब खेलता है, वह सामान्यतः कुशाग्र बुद्धि का होता है।

→ खेल एक ऐसी क्रिया है जो बच्चे को अच्छी लगती है। बच्चा उसे अपनी खुशी से शुरू करता है। उसे करते हुए वह आनन्द अनुभव करता है और जब चाहे उसे समाप्त कर देता है। बच्चे का सारा दिन खेल से भरा होता है।

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→ खेल के निम्नलिखित गुण हैं –

  • खेल अनायास व स्वाभाविक होता है।
  • खेल आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है।
  • खेल की शुरुआत बच्चा स्वयं करता है।
  • खेल बच्चे के लिए मज़ा है।
  • खेल कभी-कभी गंभीर एवं जिज्ञासा से पूर्ण भी हो सकता है।
  • खेल चंचल या शांत भी हो सकता है।

→ खेल बच्चे के शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक संवेगों के विकास एवम् नैतिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
→ खेल से बच्चे का शारीरिक विकास होता है, उसे बहुत चीज़ों का ज्ञान मिलता है, वह नई चीजें बनाना सीखता है, वह सामाजिक होकर अपने दोस्तों से तालमेल बिठाना सीखता है और अपने भावों पर नियन्त्रण पाना सीखता है। इसके अलावा सच बोलना, ईमानदार बनना आदि नैतिक गुण भी वह अपनाता है।

→ आयु के साथ खेल भी बदलते हैं। बहुत छोटे बच्चे (0-2 महीने तक) अपने आप से खेलना पसन्द करते हैं। वह अपने हाथ-पैर चलाते रहते हैं।

→ 2 महीने से 2 वर्ष के बच्चे खिलौनों को देखना व उनसे खेलना पसन्द करते हैं। अकेले बैठे हुए भी वह अपने खिलौनों से खेलते रहते हैं। दो साल के बच्चे समूह में खेलना पसन्द करते हैं हालांकि समूह का प्रत्येक बच्चा अपनी धुन में मस्त होता है।

→ दो साल से छः साल के बच्चों के खेलों में और बदलाव आ जाता है। वह साथ-साथ खेलना शुरू कर देते हैं। वह एक खिलौने से भी खेल सकते हैं।

→ बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं व अधिक सामाजिक बनते हैं। वह नए दोस्त बनाते हैं। उनके निर्धारित समूह होते हैं और वह नियम वाले खेल भी खेलते हैं। बड़े बच्चे अकेले भी खेल सकते हैं और समूह में भी।

→ खेलने के तरीके बदलने के साथ-साथ खिलौने भी बदल जाते हैं। अत: बच्चों को खिलौने खरीदते समय उनकी उम्र, खिलौने का टिकाऊपन, सुरक्षा, आकर्षणता, वृद्धि का स्तर आदि बातों का ध्यान अवश्य रखें।

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→ यदि कीमती खिलौने खरीदने की बजाए आप बच्चों को घर के बने खिलौने देंगे जैसे कपड़े की बनी बिल्ली, माचिस की डिब्बी का झुनझुना आदि तो बच्चे इसे ज्यादा पसन्द करेंगे। ऐसे खिलौनों के साथ वह अपनी इच्छानुसार उठक-पटक कर सकते हैं। इस तरह वह नए विचार और खेल सोच पाते हैं।

→ यदि आप बच्चे को कीमती खिलौने देते हैं। तो आप सारा समय बच्चे को यही हिदायत देते हैं कि खिलौने टूट न जाएं। इस तरह बच्चा ठीक से खेल नहीं पाता और परिणामस्वरूप जल्द ही ऐसे खिलौने से खेलना छोड़ देता है। अतः घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर है।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

HBSE 10th Class Science उर्जा के स्रोत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गर्म जल प्राप्त करने के लिए हम सौर जल तापक का उपयोग किस दिन नहीं कर सकते?
(a) धूप वाले दिन
(b) बादलों वाले दिन
(c) गरम दिन
(d) पवनों (वायु) वाले दिन।
उत्तर-
(b) बादलों वाले दिन।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन जैव-मात्रा ऊर्जा स्त्रोत का उदाहरण नहीं है?
(a) लकड़ी
(b) गोबर गैस
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) कोयला।
उत्तर-
(c) नाभिकीय ऊर्जा।

प्रश्न 3.
जितने ऊर्जा स्रोत हम उपयोग में लाते हैं, उनमें से अधिकांश सौर ऊर्जा को निरूपित करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा स्रोत अन्ततः सौर ऊर्जा से व्युत्पन्न नहीं है?
(a) भूतापीय ऊर्जा
(b) पवन ऊर्जा
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) जैवमात्रा।
उत्तर-
(c) नाभिकीय ऊर्जा।

प्रश्न 4.
ऊर्जा स्त्रोत के रूप में जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना कीजिए और उनमें अन्तर लिखिए।
उत्तर-
जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना-

जीवाश्मी ईंधनसूर्य
1.यह ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत हैं।यह ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।
2. जीवाश्म ईंधन प्रदूषण फैलाते हैं।सूर्य से प्राप्त ऊर्जा में कोई प्रदूषण नहीं होता।
3. जीवाश्म ईंधन से हमारी सभी ऊर्जाओं की पूर्ति हो सकती है।सौर ऊर्जा से हमारी सभी ऊर्जा सम्बन्धी आवश्य कताओं की पूर्ति सम्भव नहीं है।
4. इससे ऊर्जा प्रत्येक समय, प्रत्येक परिस्थिति में प्राप्त की जा सकती है।बादलों से घिरे आकाश वाले दिन तथा रात्रि में सूर्य से ऊर्जा प्राप्त नहीं की जा सकती।

प्रश्न 5.
जैव मात्रा तथा ऊर्जा स्रोत के रूप में जल विद्युत की तुलना कीजिए और उनमें अन्तर लिखिए।
उत्तर-
जैव मात्रा तथा जल विद्युत की तुलना-

जैव मात्राजल विद्युत
1. जैव मात्रा से ऊर्जा प्राप्त करने के प्रक्रम में प्रदूषण फैलता है।जल विद्युत ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत है।
2. जैव मात्रा द्वारा प्राप्त ऊर्जा को सीमित स्थान में ही प्रयोग किया जा सकता है।जल विद्युत ऊर्जा को लाइनों द्वारा कहीं भी संचरित किया जा सकता है।
3. जैव मात्रा केवल सीमित मात्रा में ही ऊर्जा प्रदान कर सकती है।जल विद्युत ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से ऊर्जा निष्कर्षित करने की सीमाएँ लिखिए
(a) पवनें,
(b) तरंगें,
(c) ज्वार-भाटा।
उत्तर-
(a) पवन ऊर्जा की सीमाएँ-
1. पवन ऊर्जा के निष्कर्षण हेतु पवन ऊर्जा फार्म की स्थापना के लिये बहुत अधिक बड़े स्थान की आवश्यकता होती है।
2. हवा की तेज गति के कारण टूट-फूट और नुकसान की संभावनाएँ अधिक होती हैं।
3. पवन ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए हवा की गति 15 km/h से अधिक होनी चाहिए।

(b) तरंगों से प्राप्त ऊर्जा की सीमाएँ-समुद्र तल पर जल तरंगें तीव्र वेग से चलने वाली समुद्री हवाओं के कारण उत्पन्न होती हैं। केवल कुछ ही स्थानों पर ये तरंगें इतनी शक्तिशाली होती हैं कि उनसे सम्बद्ध ऊर्जा का दोहन किया जा सके।

(c) ज्वार-भाटा ऊर्जा की सीमाएँ-प्रत्येक ज्वार के समय जल का चढ़ाव इतना पर्याप्त नहीं हो पाता है कि उससे विद्युत उत्पन्न की जा सके। इसके अतिरिक्त समुद्र तट का केवल कुछ ही स्थान बाँध बनाने के लिए अच्छा रहता है। इस कारण से ज्वारीय ऊर्जा को विश्वसनीय ऊर्जा स्रोत के रूप में नहीं मान सकते।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 7.
ऊर्जा स्रोतों का वर्गीकरण निम्नलिखित वर्गों में किस आधार पर करेंगे
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय
(b) समाप्य तथा अक्षय क्या (a) तथा (b) के विकल्प समान हैं ?
उत्तर-
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोतयदि कोई ऊर्जा स्रोत एक बार अपनी ऊर्जा दे देने के उपरान्त पुनः ऊर्जा देने की स्थिति में आ सकता है तो ऐसे स्रोतों को नवीकरणीय स्रोतों के वर्ग में रखा जाता है उदाहरण के लिए-जल विद्युत, जैव मात्रा। – यदि कोई ऊर्जा स्रोत अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा दे चुकने के पश्चात् पुनर्जीवित नहीं हो सकता तो ऐसे स्रोत को अनवीकरणीय स्रोतों के वर्ग में रखा जाएगा। उदाहरण के लिएजीवाश्मी ईंधन।

(b) समाप्य तथा अक्षय स्रोत-यदि कोई ऊर्जा स्रोत निश्चित समय तक ऊर्जा प्रदान करने के पश्चात् समाप्त हो जाए तथा उसे पुनः प्राप्त न किया जा सके तो उसे समाप्य ऊर्जा स्रोत माना जाएगा। उदाहरण के लिए जीवाश्मी ईंधन।

यदि किसी ऊर्जा स्रोत को प्रयोग करने के पश्चात् बार-बार फिर से प्राप्त किया जा सकता हो तो उसे अक्षय ऊर्जा स्रोत कहते हैं। पवन ऊर्जा अक्षय ऊर्जा स्रोत है। ऊपर दिए गए विवरणों से स्पष्ट है कि (a) तथा (b) विकल्प एक जैसे हैं।

प्रश्न 8.
ऊर्जा के आदर्श स्त्रोत में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर-

  • पर्याप्त मात्रा में स्त्रोत द्वारा ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता होनी चाहिए।
  • सरलता से प्रयोग करने की सुविधा से संपन्न होना चाहिए।
  • यह पर्यावरण के लिए हितकारी होना चाहिए।
  • ऊर्जा स्रोत ऐसा होना चाहिए जो दीर्घकाल तक नियत दर पर ऊर्जा प्रदान कर सके।
  • यह आर्थिक रूप से सस्ता होना चाहिए।

प्रश्न 9.
सौर कुकर का उपयोग करने के क्या लाभ तथा हानियाँ हैं? क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर कुकरों की सीमित उपयोगिता है ?
उत्तर-
सौर कुकर के लाभ-
1. ईंधन का कोई खर्च नहीं होता तथा इससे प्रदूषण नहीं होता है।
2. इसमें धीमी गति से खाना पकता है इसलिए इसके द्वारा पके भोजन, से पोषक तत्व नष्ट नहीं होते।
3. इसमें निरन्तर देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है।

सौर कुकर से हानियाँ-
1. यह बहुत अधिक तापमान उत्पन्न नहीं कर सकता है।
2. यह रात्रि में, बरसात में तथा बादल वाले दिनों में काम नहीं करते।
3. सौर कुकर से खाना धीमी गति से पकता है, अतः खाना पकाने में बहुत अधिक समय लगता है।
4. यह 100°C -140°C तापमान प्राप्त करने के लिए 2-3 घंटे ले लेता है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहाँ सौर कुकरों का प्रयोग सीमित अवधि में हो पाता है। जिन क्षेत्रों में आकाश में बादल रहते हैं वहाँ यह ठीक से कार्य नहीं कर पाता है वहाँ इनकी सीमित उपयोगिता है।

प्रश्न 10.
ऊर्जा की बढ़ती माँग के पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं ? ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय लिखिए।
उत्तर-
ऊर्जा की माँग जनसंख्या वृद्धि के साथ निरंतर बढ़ती जाती है। ऊर्जा किसी प्रकार की हो उसका पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जीवाश्मी ईंधनों को जलाने पर ये वायु प्रदूषण फैलाते हैं फलस्वरूप पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। नाभिकीय रिऐक्टर से निकलने वाले कचरे द्वारा खतरनाक विकिरण उत्सर्जित होते हैं जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेय हैं।

ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय-
1. घरों में विद्युत के उपकरणों को आवश्यकता होने पर ही प्रयोग में लाया जाना चाहिए।
2. जीवाश्मी ईंधन का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। अलग-अलग वाहनों की बजाय सामूहिक वाहन (सार्वजनिक परिवहन प्रणाली) का प्रयोग करना चाहिए।

HBSE 10th Class Science उर्जा के स्रोत InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 273)

प्रश्न 1.
ऊर्जा का उत्तम स्त्रोत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ऊर्जा का उत्तम स्रोत वह स्रोत है जिसमें निम्नलिखित गुण होते हैं-

  • जिसके प्रति एकांक द्रव्यमान से अधिक ऊर्जा प्राप्त हो सके।
  • जो सरलता से उपलब्ध हो सके।
  • जिसका भण्डारण आसान व परिवहन में आसानी हो।
  • सस्ता हो।

प्रश्न 2.
उत्तम ईंधन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
उत्तम ईंधन के निम्नलिखित गुण होते हैं-

  • ईंधन के जलाने पर प्रति एकांक द्रव्यमान से अधिक ऊष्मा प्राप्त हो सके।
  • जलने पर उससे कम से कम धुआँ उत्पन्न हो। ]
  • आसानी से उपलब्ध हो।

प्रश्न 3.
यदि आप अपने भोजन को गरम करने के लिए किसी भी ऊर्जा-स्रोत का उपयोग कर सकते हैं तो आप किसका उपयोग करेंगे और क्यों?
उत्तर-
हम रसोई गैस या माइक्रोवेव ओवन का प्रयोग करेंगे क्योंकि उपर्युक्त दोनों स्रोत उपयोग में आसान हैं, आर्थिक रूप से सस्ते हैं तथा प्रदूषण भी नहीं फैलाते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 279)

प्रश्न 1.
जीवाश्मी ईधन की क्या हानियाँ हैं ?
उत्तर-
जीवाश्मी ईंधन से निम्नलिखित हानियाँ हैं-

  • पृथ्वी पर जीवाश्मी ईंधन का सीमित भण्डार उपलब्ध है अतः इनका संरक्षण आवश्यक है। .
  • जीवाश्मी ईंधन, जलाए जाने पर प्रदूषण फैलाते हैं।
  • ये अम्ल वर्षा करने में भागीदार होते हैं।

प्रश्न 2.
हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर क्यों ध्यान दे रहे हैं ?
उत्तर-
हमारे जीवन के लिए प्रत्येक कार्य में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। खाना पकाने, बिजली उत्पन्न करने, कल कारखानों को चलाने हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसे हम आजकल अधिकतर पेट्रोलियम पदार्थों से पूरा कर रहे हैं। इनका प्रयोग होने पर इन्हें पुनः उत्पन्न नहीं किया जा सकता इस कारण से इनका संरक्षण आवश्यक है। अतः हमें ऐसे नवीकरणीय स्रोतों की ओर ध्यान देना होगा जो कि आसानी से उपलब्ध हैं और जिनका असीमित तथा व्यापक उपयोग किया जा सकता है।

सौर ऊर्जा एक ऐसा स्रोत है जो विभिन्न माध्यमों से ऊर्जा प्रदान करता है। सौर ऊर्जा का सीधा प्रयोग युगों से किया जा रहा है। हमारी आवश्यकताएँ निरंतर बढ़ने के कारण उन्हें पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग में वृद्धि करनी चाहिए ताकि भविष्य में हमें ऊर्जा संकट का सामना न करना पड़े। नवीकरणीय ऊर्जा से वातावरण का प्रदूषण भी रोका जा सकता है।

प्रश्न 3.
हमारी सुविधा के लिए पवनों तथा जल ऊर्जा के पारंपरिक उपयोग में किस प्रकार सुधार किए गए हैं ?
उत्तर-
प्राचीनकाल में पवन ऊर्जा का उपयोग पालदार नावों को चलाने में एवं पवनचक्की की सहायता से यान्त्रिक कार्य करने के लिए किया जाता था परन्तु अन्य प्रकार की ऊर्जा की तुलना में विद्युत ऊर्जा का उपयोग सबसे अधिक सुविधाजनक है। इसलिए पवन ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाने लगा है। इसके लिए समुद्र तट के समीप के स्थानों में बहुत सी पवन चक्कियाँ एक साथ लगाकर बड़े-बड़े ऊर्जा फार्म स्थापित किये गये हैं जहाँ पर्याप्त विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है। इसी प्रकार जल ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा के रूप में प्रयोग करने के लिए पहाड़ी ढालों पर बाँध बनाकर जल को एकत्रित किया जाता है। एकत्रित जल को जनित्र की टरबाइन पर डालकर विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 285)

प्रश्न 1.
सौर कुकर के लिए कौन सा दर्पण अवतल, उत्तल अथवा समतल सर्वाधिक उपयुक्त होता है ? क्यों ?
उत्तर-
अवतल दर्पण सर्वाधिक उपयुक्त होता है क्योंकि यह अपने ऊपर गिरने वाली सम्पूर्ण सौर ऊर्जा को अपने फोकस पर सूक्ष्म बिन्दु के रूप में केन्द्रित कर देता है।

प्रश्न 2.
महासागरों से प्राप्त हो सकने वाली ऊर्जाओं
उत्तर-

  • ज्वार-भाटा की ऊर्जा का उपयोग करने के लिए बाँध बनाने योग्य स्थान सीमित हैं|
  • तरंग ऊर्जा भी केवल उन्हीं स्थानों पर उपयोग की जा सकती है जहाँ तरंगें पर्याप्त शक्तिशाली हों।
  • महासागरीय तापीय ऊर्जा के दोहन की तकनीक बहुत ही कठिन है।

प्रश्न 3.
भूतापीय ऊर्जा क्या होती है ?
उत्तर-
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में स्थित, पिघली हुई चट्टानें भूगर्भीय हलचल के कारण केन्द्रीय भाग से सतह की ओर विस्थापित हो जाती हैं तथा गर्म क्षेत्रों का निर्माण करती हैं। जब कभी भूगर्भीय जल इस प्रकार के गर्म क्षेत्रों के संपर्क में आता है तो वाष्प में बदल जाता है तथा इस जल वाष्प को पाइपों की सहायता से बाहर लाकर टरबाइन चलाकर विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। पृथ्वी के गर्भ में स्थित उच्च ताप क्षेत्रों से सम्बद्ध ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं।

प्रश्न 4.
नाभिकीय ऊर्जा का क्या महत्व है ?
उत्तर-
अन्य परम्परागत ऊर्जा स्रोत सीमित तथा शीघ्र समाप्त हो जाने वाले हैं जबकि नाभिकीय ऊर्जा बहुत लम्बे समय तक हमारी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है। जीवाश्मी ईंधन से प्राप्त ऊर्जा की तुलना में यूरेनियम के विखण्डन से बहुत अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 285)

प्रश्न 1.
क्या कोई ऊर्जा स्त्रोत प्रदूषण मुक्त हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर-
नहीं, कोई भी ऊर्जा स्रोत पूर्ण रूप से प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकता, चाहे ऊर्जा स्रोत कितना ही विकसित क्यों न हो फिर भी वह पर्यावरण को किसी न किसी प्रकार से नुकसान पहुंचाता ही है। सौर सेल को प्रायः प्रदूषण मुक्त कहते हैं परन्तु इस युक्ति के निर्माण में पर्यावरणीय क्षति होती ही है।

प्रश्न 2.
राकेट ईधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग न किया जाता रहा है ? क्या आप इसे CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन मानते हैं ? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर-
हाइड्रोजन CNG से स्वच्छ ईंधन है क्योंकि यह दहन क्रिया में CO2, को उत्पन्न नहीं करती और न ही इसका अपूर्ण दहन होता है। इसके जलने से केवल जल उत्पन्न होता है। CNG के जलने से CO2, उत्पन्न होती है जो कि ग्रीन हाऊस गैस है और पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 286)

प्रश्न 1.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप नवीकरणीय मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर-
वायु ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा एवं सागरीय ऊर्जा नवीकरणीय स्रोत हैं क्योंकि इनका प्रयोग तब तक किया जा सकता है जब तक हमारे सौर परिवार की समान परिस्थितियाँ बनी रहेंगी।

प्रश्न 2.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप समाप्य मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर-
कोयला तथा पेट्रोलियम, दोनों ऊर्जा के दो समाप्य स्रोत हैं। कोयला तथा पेट्रोलियम, दोनों के पृथ्वी पर उपलब्ध भण्डार सीमित हैं तथा जल्दी ही समाप्त हो जाने वाले हैं तथा इन्हें कभी भी पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता, अतः ये दोनों ऊर्जा के समाप्य स्रोत हैं।

HBSE 10th Class Science उर्जा के स्रोत InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 14.1 (पा. पु. पृ. सं. 272)

प्रश्न 1.
प्रातःकाल सोकर उठने से विद्यालय पहुँचने तक आप जिन ऊर्जाओं का उपयोग करते हैं उनमें से ऊर्जा के किन्हीं चार रूपों की सूची बनाइए।
उत्तर-
हम अग्रलिखित ऊर्जा का उपयोग करते हैं

  • ऊष्मीय ऊर्जा खाना पकाने के लिए।
  • घर को प्रकाशित करने के लिए प्रकाशीय ऊर्जा ।
  • साइकिल चलाने और बैग होने के लिए वेशीय ऊर्जा।
  • मित्रों को बुलाने के लिए ध्वनि ऊर्जा।

प्रश्न 2.
इन विभिन्न रूपों की ऊर्जाओं को हम कहाँ से प्राप्त करते हैं?
उत्तर-
इस विभिन्न रूपों की ऊर्जाओं के स्रोत इस प्रकार हैं-
सौर ऊर्जा – सूर्य
ऊष्मीय ऊर्जा – सूर्य,
LPG पेशीय ऊर्जा – भोजन
प्रकाश ऊर्जा – विद्युत, सूर्य

प्रश्न 3.
क्या हम इन्हें ऊर्जा का स्रोत’ कह सकते हैं ? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर-
सूर्य ऊर्जा का स्रोत है परन्तु अन्य स्रोत ऊर्जा के रूपान्तरण से प्राप्त होते हैं।

क्रियाकलाप 14.2. (पा. पु. पृ. सं. 272)

प्रश्न 1.
उन विविध विकल्पों पर विचार कीजिए जो भोजन पकाने के लिए ईंधन का चयन करते समय हमारे पास होते हैं तथा किसी ईंधन को अच्छे ईंधन की श्रेणी में रखने का प्रयास करते समय आप किन मानदंडों पर विचार करेंगे?
उत्तर-
कोयला, कोक, कैरोसीन, लकड़ी, L.P.G. ईंधन का अच्छा स्रोत होने के कारण इसका कैलोरी मान अधिक होता है। ईंधन प्रदूषण रहित, सस्ता एवं सुलभ होना चाहिए।

प्रश्न 2.
क्या तब आपकी पसंद अलग होती जब आप
(a) वन में जीवन निर्वाह कर रहे होते?
(b) किसी सुदूर पर्वतीय ग्राम अथवा छोटे द्वीप पर जीवन निर्वाह कर रहे होते ?
(c) नई दिल्ली में जीवन निर्वाह करते ?
(d) पाँच शताब्दियों पहले जीवन निर्वाह करते ?
उत्तर-
हाँ प्रत्येक स्थिति में पसंद भिन्न-भिन्न होती।
(a) वन में निर्वाह करते समय ईंधन के रूप में लकड़ी, ऊष्मा और प्रकाश के लिये सूर्य और शारीरिक ऊर्जा के लिए फलों आदि पर निर्भर करना पड़ता ।
(b) किसी पर्वतीय ग्राम अथवा छोटे द्वीप पर भी वन में जीवन निर्वाह के समान ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भर करना पड़ता।
(c) नई दिल्ली में विद्युत चलित उपकरणों एवं पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भर करते।
(d) पाँच शताब्दी पहले जीवन निर्वाह के लिये, सूर्य से प्राप्त ऊर्जा, वनों की लकड़ी आदि पर निर्भर रहते।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 3.
उपर्युक्त प्रत्येक परिस्थिति ईंधन की उपलब्धता की दृष्टि से किस प्रकार भिन्न थी ?
उत्तर-
पहले आबादी कम थी और ऊर्जा के सीमित स्रोत उपलब्ध थे। परन्तु जैसे-जैसे विकास हुआ, औद्योगिक क्रांति आई, आबादी बढ़ी, वैसे-वैस मानव ने ऊर्जा के नए स्रोतों को ढूँढना शुरू किया। आज ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों की उपलब्धता धीरे-धीरे कम हो रही है तथा गैर-परम्परागत स्त्रोतों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

क्रियाकलाप 14.3. (पा. पु. पृ. सं. 274)

प्रश्न-क्या आप देखते हैं?
उत्तर-
इस प्रयोग में हम यह देखते हैं कि भाप द्वारा पंखुड़ियाँ घूमती हैं जिससे वह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करने के लिए डायनेमो के शैफ्ट को घुमाती है जिससे बल्ब जलने लगता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत 1

क्रियाकलाप 14.4. (पा. पु. पृ. सं. 279)

प्रश्न 1.
अपने दादा-दादी अथवा अन्य वयोवृद्धों से पता लगाइए कि वे
(a) अपने विद्यालय कैसे जाते थे ?
(b) अपने बचपन में दैनिक आवश्यकताओं के लिए जल कैसे प्राप्त करते थे ?
(c) मनोरंजन कैसे करते थे ?
उत्तर-
(a) हमारे दादा-दादी अपने विद्यालय पैदल या साइकिल से जाते थे, हम बस या स्कूटर से स्कूल जाते हैं।
(b) वे पानी को कुओं व हैण्डपम्प तथा नदियों से प्राप्त करते थे। हम जल की प्राप्ति नलों से करते हैं। चूँकि ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ गयी है अतः अधिक ऊर्जा उपभुक्त हो रही है।

प्रश्न 2.
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तरों की तुलना इस प्रश्न के उत्तर से कीजिए कि “अब आप इन कार्यों को कैसे करते हैं ?”
उत्तर-
दादा दादी के युग में मनोरंजन के साधन रामलीला, लोक संगीत, रेडियो आदि थे। आधुनिक युग में मनोरंजन के अनेक साधन, जैसे—मल्टीमीडिया, कम्प्यूटर, मोबाइल, इन्टरनेट आदि मौजूद हैं।

प्रश्न 3.
क्या इन उत्तरों में कोई अन्तर है? यदि हाँ तो किस स्थिति में बाह्य स्रोतों से अधिक ऊर्जा उपभुक्त हुई।
उत्तर-
हाँ, इन उत्तरों में काफी अन्तर है। आधुनिक युग में बाह्य स्त्रोतों से अधिक ऊर्जा उपभुक्त हुई है। क्योंकि वाहनों को चलाने, जल प्राप्ति तथा मनोरंजन के लिए ऊर्जा (ईंधन) की आवश्यकता होती है।

क्रियाकलाप 14.5. (पा. पु. पृ. सं. 280)

प्रश्न 1.
दोनों फ्लास्कों को स्पर्श कीजिए। इनमें कौन तप्त है। आप इन दोनों फ्लास्कों के जल के ताप तापमापी द्वारा भी माप सकते हैं।
उत्तर-
वह फ्लास्क जिसे काले रंग से पेंट किया गया है वह तप्त है।

प्रश्न 2.
क्या आप कोई ऐसा उपाय सोच सकते है जिसके द्वारा इस ज्ञान का उपयोग आप अपने दैनिक जीवन में कर सकें।
उत्तर-
इस ज्ञान का उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में निम्न रूपों से कर सकते हैं-

  • खाना बनाने के बर्तन के आधार को काला पेंट करके।
  • जाड़ों में गहरे रंग के कपड़े पहनकर ।
  • पानी गर्म करने में।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

क्रियाकलाप 14.6. (पा. पु. पृ. सं. 281)

प्रश्न 1.
किसी सौर कुकर/अथवा सौर जल तापक की संरचना तथा कार्य प्रणाली का विशेषकर इस दृष्टि से अध्ययन कीजिए कि उसमें ऊष्मारोधन कैसे किया जाता है तथा अधिकतम ऊष्मा अवशोषण कैसे सुनिश्चित करते
उत्तर-
अधिकतम ऊष्मा अवशोषण के लिए काँच के टुकड़े का उपयोग करते हैं। सामान्य सौर कुकर से लगभग 100°C से 120°C का तापमान उत्पन्न हो सकता है। सौर कुकर
और सौर जल तापक का उपयोग रात के समय नहीं किया जा सकता है। इनसे बहुत अधिक तापमान प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
सस्ती सुलभ सामग्री का उपयोग करके किसी सौर कुकर अथवा सौर जल तापक का डिजाइन बनाकर उसकी संरचना प्राप्त करके यह जाँच कीजिए कि आपके इस निकाय में अधिकतम कितना ताप प्राप्त किया जा सकता है।
उत्तर-
सौर सेल, सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। धूप में रखे जाने पर किसी सौर सेल से 0.5 – 1.0 V तक वोल्टता विकसित होती है तथा यह लगभग 0.7 W विद्युत ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं। जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को संयोजित करते हैं तो यह व्यवस्था सौर पैनल कहलाती है जिनसे उपयोग के लिए पर्याप्त विद्युत की प्राप्ति हो जाती है। सौर सेलों का रख-रखाव सस्ता है तथा इन्हें कहीं भी स्थापित किया जा सकता है। सौर सेलों को बनाने के लिए सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है सौर सेलों के उत्पादन की प्रक्रिया बहुत महँगी है, इसे परस्पर संयोजित करके सौर पैनल बनाने में सिल्वर (चाँदी) का उपयोग होता है जिसके कारण इसकी लागत में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 3.
सौर कुकरों अथवा सौर जल तापकों के उपयोग की सीमाओं एवं विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
सौर कुकर-परावर्तक पृष्ठ अथवा श्वेत (सफेद) पृष्ठ की तुलना में काला पृष्ठ अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है। सौर कुकरों में सूर्य की किरणों को फोकसित करने के लिए दर्पणों का उपयोग किया जाता है जिससे इनका ताप . उच्च हो जाता है। सौर कुकरों में काँच की शीट का एक ढक्कन होता है।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत 2

ट्रैफिक सिग्नलों, परिकलकों तथा बहुत से खिलौनों में सौर सेल लगे होते हैं। अधिक महँगा होने के कारण सौर सेलों का घरेलू उपयोग अभी तक सीमित है।

क्रियाकलाप 14.7. (पा. पु. पृ. सं. 284)

प्रश्न 1.
कक्षा में इस प्रश्न पर चर्चा कीजिए कि महासागरीय तापीय ऊर्जा, पवनों तथा जैव मात्रा की ऊर्जाओं का अंतिम स्त्रोत क्या है ?
उत्तर-
इन सभी ऊर्जाओं का अंतिम स्रोत सूर्य है इसकी ऊर्जा से ही अन्य ऊर्जाओं का रूपांतरण होता है।

प्रश्न 2.
क्या इस संदर्भ में भूतापीय ऊर्जा तथा नाभिकीय ऊर्जा भिन्न है? क्यों ?
उत्तर-
भूतापीय ऊर्जा के लिए भूमिगत लावा से उत्पन्न ऊष्मा आधार है तो नाभिकीय ऊर्जा भारी नाभिक तत्वों के नाभिको के विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा का आधार है।

प्रश्न 3.
आप जल विद्युत ऊर्जा को किस श्रेणी में रखेंगे?
उत्तर-
जल विद्युत एवं तरंग ऊर्जा भी अंततः सूर्य की ऊष्मा द्वारा ही प्राप्त होते हैं।

क्रियाकलाप 14.8. (पा. पु. पृ. सं. 285)

प्रश्न-
1. विविध ऊर्जा स्त्रोतों के विषय में जानकारी एकत्र करके उसके बारे में ज्ञात कीजिए कि उसमें से प्रत्येक पर्यावरण को किस प्रकार प्रभावित करता है।
2. प्रत्येक ऊर्जा स्रोत के लाभ तथा हानियों पर वाद-विवाद कीजिए तथा इस आधार पर ऊर्जा का सर्वोतम स्रोत चुनिए।
उत्तर-
स्रोत द्वारा पर्यावरण का नुकसान नहीं होना चाहिए तथा सर्वोतम स्रोत उसी को माना जाना चाहिए जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो तथा उच्च स्तरीय ऊर्जा सस्ते में प्राप्त हो सके तथा उसका भंडारण संभव हो।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

क्रियाकलाप 14.9. (पा. पु. पृ. सं. 286)
प्रश्न-कक्षा में निम्नलिखित समस्याओं पर वादविवाद कीजिए –
(a) यह कहा जाता है कि अनुमानतः कोयले के भंडार आने वाले दो सौ वर्ष के लिए पर्याप्त हैं। क्या इस प्रकरण में हमें चिंता करने की आवश्यकता है कि हमारे कोयले के भंडार रिक्त होते जा रहे हैं? क्यों अथवा क्यों नहीं?
(b) ऐसा अनुमान है कि सूर्य आगामी 5 करोड़ वर्ष तक जीवित रहेगा। क्या हमें यह चिन्ता करनी चाहिए कि सौर ऊर्जा समाप्त हो रही है? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
(c) वाद-विवाद के आधार पर यह निर्णय लीजिए कि कौन सा ऊर्जा स्रोत (a) समाप्य, (b) अक्षय, (c) नवीकरणीय तथा (d) अनवीकरणीय है। प्रत्येक चयन के लिए अपना तर्क दीजिए।
उत्तर-
अध्यापक/अध्यापिकाओं की सहायता से कक्षा में वाद-विवाद कीजिए।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

HBSE 10th Class Science तत्वों का आवर्त वर्गीकरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आवर्त सारणी में बाईं से दाईं ओर जाने पर, प्रवृत्तियों के बारे में निम्न में से कौन-सा कथन असत्य है?
(a) तत्वों की धात्विक प्रकृति घटती है।
(b) संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाती है।
(c) परमाणु आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं।
(d) इसमें ऑक्साइड अधिक अम्लीय हो जाते हैं।
उत्तर-
(c) परमाणु आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं।

प्रश्न 2.
तत्व X, XCl2, सूत्र वाला एक क्लोराइड बनाता है जो एक ठोस है तथा जिसका गलनांक अधिक है। आवर्त सारणी में यह तत्व सम्भवतः किस समूह के अन्तर्गत होगा?
(a) Na
(b) Mg
(c) Al
(d) Si
उत्तर-
(b) Mg.

प्रश्न 3.
किस तत्व में
(a) दो कोश हैं तथा दोनों इलेक्ट्रॉनों से पूर्ण हैं?
(b) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 2 है?
(c) कुल तीन कोश हैं तथा संयोजकता कोश में चार इलेक्ट्रॉन हैं?
(d) कुल दो कोश हैं तथा संयोजकता कोश में तीन इलेक्ट्रॉन हैं?
(e) दूसरे कोश में पहले कोश से दोगुने इलेक्ट्रॉन हैं?
उत्तर-
(a) नीऑन (Ne)।
(b) मैग्नीशियम (Mg)।
(c) सिलिकॉन (Si)।
(d) बोरॉन (B)।
(e) कार्बन (C)।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

प्रश्न 4.
(a) आवर्त सारणी में बोरॉन के स्तम्भ के सभी तत्वों के कौन-से गुणधर्म समान हैं?
(b) आवर्त सारणी में फ्लुओरीन के स्तम्भ के सभी तत्वों के कौन-से गुणधर्म समान हैं? ।
उत्तर-
(a) बोरॉन की भाँति, आवर्त सारणी के समान स्तम्भ में सभी तत्वों के बाह्यतम कोशों में तीन इलेक्ट्रॉन होते हैं अर्थात् इनकी संयोजकता तीन होती है। सभी विद्युत के सुचालक होते हैं।
(b) फ्लुओरीन की भाँति, आवर्त सारणी के समान स्तम्भ में सभी तत्वों के बाह्यतम कोशों में सात इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा ये हैलोजेन कहलाते हैं। इन सभी की संयोजकता 1 होती है। सभी विद्युत के अचालक और भंगुर होते हैं।

प्रश्न 5.
एक परमाणु का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8,7
(a) इस तत्व की परमाणु संख्या क्या है?
(b) निम्न में किस तत्व के साथ इसकी रासायनिक समानता होगी? (परमाणु संख्या कोष्ठक में दी गई है।)
N(7) F(9) P(15) Ar (18)
उत्तर-
(a) तत्व की परमाणु संख्या 17 है।
(b) यह रासायनिक रूप से F (9) के समान होगा।

प्रश्न 6.
आवर्त सारणी में तीन तत्व A, B, तथा C की स्थिति निम्न प्रकार है –

वर्ग 16वर्ग 17
A
BC

अब बताइए कि –
(a) A धातु है या अधातु।
(b) A की अपेक्षा C अधिक अभिक्रियाशील है या कम।
(c) C का साइज B से बड़ा होगा या छोटा।
(d) तत्व A किस प्रकार के आयन, धनायन या ऋणायन बनाएगा?
उत्तर-
(a) A अधातु है।
(b) A की तुलना में C कम अभिक्रियाशील है।
(c) B की तुलना में C छोटा होगा।
(d) तत्व A ऋणायन बनाएगा।

प्रश्न 7.
नाइट्रोजन (परमाणु-संख्या 7) तथा फॉस्फोरस (परमाणु-संख्या 15) आवर्त सारणी के समूह 15 के तत्व हैं। इन दोनों तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए। इनमें से कौन-सा तत्व अधिक ऋणविद्युती होगा और क्यों?
उत्तर-
नाइट्रोजन (7) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : 2, 5 फॉस्फोरस (15) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : 2, 8, 5-नाइट्रोजन अधिक विद्युत्-ऋणात्मक होगा क्योंकि किसी समूह में ऊपर से नीचे जाने पर विद्युत ऋणात्मकता घटती है।

प्रश्न 8.
तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास का आधुनिक आवर्त सारणी में तत्व की स्थिति से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
किसी तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास आधुनिक आवर्त सारणी में इसकी स्थिति से सम्बन्धित होता है, जिन परमाणुओं के बाह्यतम कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है, उन्हें समान समूह में रखा जाता है! किसी आवर्त में बाएँ से दाएँ चलते समय संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 1 इकाई बढ़ जाती है क्योंकि परमाणु क्रमांक 1 इकाई बढ़ जाता है।

प्रश्न 9.
आधुनिक आवर्त सारणी में कैल्सियम (परमाणु-संख्या 20) के चारों ओर 12, 19, 21 तथा 38 परमाणु-संख्या वाले तत्व स्थित हैं। इनमें से किन तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म कैल्सियम के समान हैं?
उत्तर-
इन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास इस प्रकार हैं –

परमाणु संख्याइलेक्ट्रॉनिक विन्यास
122,8,2
192,8,8,1
20 (कैल्सियम)2,8,8,2
212,8,8,3
382,8, 18, 8,2

हम पाते हैं कि परमाणु संख्या 12 व 38 वाले तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास कैल्सियम से मिलते-जुलते हैं और इसलिए इनके भौतिक व रासायनिक गुणधर्म भी समान होते हैं।

प्रश्न 10.
आधुनिक आवर्त सारणी एवं मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में तत्वों की व्यवस्था की तुलना कीजिए।
उत्तर-
1. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी के समय 63 ज्ञात तत्व थे परन्तु आधुनिक आवर्त सारणी में 114 ज्ञात तत्व
2. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में कुछ तत्वों के लिए स्थान खाली छोड़ दिए गए थे जो कि उस समय ज्ञात नहीं थे परन्तु अब आधुनिक आवर्त सारणी में सभी तत्व भली-भाँति व्यवस्थित हैं।
3. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में कोबाल्ट व निकल तथा टेलुरियम व आयोडीन गलत रखे गये थे, परन्तु आधुनिक आवर्त सारणी में नियमानुसार वे सही क्रम में व्यवस्थित हैं।
4. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी का आधार द्रव्यमान है .. जबकि आधुनिक आवर्त सारणी का आधार परमाणु क्रमांक है। अत: मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में तत्व परमाणु द्रव्यमानों के वृद्धि क्रम में रखे हुए हैं, जबकि आधुनिक सारणी में तत्व परमाणु क्रमांक के वृद्धि क्रम में रखे गए हैं।
5. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में 9 ऊर्ध्वाधर स्तम्भ हैं जिन्हें समूह कहते हैं, जबकि आधुनिक आवर्त सारणी में 18 ऊर्ध्वाधर स्तम्भ हैं जिन्हें समूह कहते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

HBSE 10th Class Science तत्वों का आवर्त वर्गीकरण  InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ.सं.91)

प्रश्न 1.
क्या डॉबेराइनर के त्रिक, न्यूलैंड्स के अष्टक के स्तम्भ में भी पाए जाते हैं ? तुलना करके पता कीजिए।
उत्तर-
हाँ, डॉबेराइनर के त्रिक न्यूलैंड्स के अष्टक के स्तम्भ में भी पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए

  • त्रिक-Li, Na तथा K न्यूलैंड्स अष्टकों के ‘रे’ स्तम्भ में उपस्थित हैं।
  • त्रिक-Ca, Sr तथा Ba न्यूलैंड्स के अष्टक के ‘गा’ स्तम्भ में उपस्थित हैं।

प्रश्न 2.
डॉबेराइनर के वर्गीकरण की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर-
डॉबेराइनर के वर्गीकरण की सीमाओं के रूप में यह वर्गीकरण उस समय ज्ञात तत्वों में से केवल तीन त्रिकों को निर्धारित करने में सफल रहा। अतः यह वर्गीकरण

प्रश्न 3.
न्यूलैंड्स के अष्टक सिद्धान्त की क्या सीमाएँ
उत्तर-
न्यूलैंड्स के अष्टक नियम की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-
1. यह वर्गीकरण केवल कैल्सियम तक ही मान्य हो पाया क्योंकि कैल्सियम के बाद प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व से नहीं मिलता था। .
2. बाद में खोजे गए अनेक तत्व अष्टक नियम के अनुसार इसमें व्यवस्थित न हो सके।
3. इसमें कुछ असमान तत्वों को एक स्तर के अन्तर्गत रखा गया था। उदाहरण के लिए, कोबाल्ट तथा निकल को एक ही स्थान पर रखा गया परन्तु इन्हें फ्लुओरीन, क्लोरीन तथा ब्रोमीन के साथ एक ही स्तम्भ ‘सा’ के अन्तर्गत रखा गया है जबकि कोबाल्ट तथा निकल के गुण फ्लुओरीन, क्लोरीन तथा ब्रोमीन से सर्वथा भिन्न हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 94).

प्रश्न 1.
मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी का उपयोग कर निम्नलिखित तत्वों के ऑक्साइड के सूत्र का अनुमान दीजिए- K,C,Al, Si, Ba
उत्तर –

तत्वऑक्साइडों के सूत्र
K,K2O
CCO2
AlAl2O3
SiSiO2
BaBaO

प्रश्न 2.
गैलियम के अतिरिक्त, अब तक कौन-कौन से तत्वों का पता चला है जिसके लिए मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में खाली स्थान छोड़ दिया था? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
जर्मेनियम (Ge) तथा पोलोनियम (Po) वर्ग IVA के दो तत्व हैं। इन दोनों तत्वों के लिए भी मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में खाली स्थान छोड़ा था। इन तत्वों की बाद में खोज होने पर इनके गुणधर्म मेन्डेलीफ के बताए गुणधर्म से मिलते हैं।

प्रश्न 3.
मेन्डेलीफने अपनी आवर्त सारणी तैयार करने के लिए कौन सा मानदण्ड अपनाया?
उत्तर-
मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में तत्वों को उनके मूल गुणधर्म, परमाणु द्रव्यमान तथा रासायनिक गुणधर्मों में समानता के आधार पर व्यवस्थित किया।

प्रश्न 4.
आपके अनुसार उत्कृष्ट गैसों को अलग समूह में क्यों रखा गया?
उत्तर-
सभी तत्वों में से उत्कृष्ट गैसें, जैसे-हीलियम (He), नीऑन (Ne), आर्गन (Ar), क्रिप्टॉन (Kr) तथा जीनॉन (Xe), सबसे अधिक अक्रियाशील हैं। ये अन्य तत्वों से अभिक्रिया नहीं करते, इसलिए मेन्डेलीफ ने उन्हें अलग वर्ग में रखा जिसे उन्होंने शून्य वर्ग कहा।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 100)

प्रश्न 1.
आधुनिक आवर्त सारणी द्वारा किस प्रकार से मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी की विविध विसंगतियों को दूर किया गया?
उत्तर-
सन् 1913 में हेनरी मोजले ने बताया कि परमाणु का आधारभूत गुण परमाणु क्रमांक है न कि परमाणु भार । इसके द्वारा आधुनिक आवर्त सारणी का निर्माण किया गया तथा इस सारणी द्वारा मेन्डेलीफ की सारणी के निम्न दोषों को दूर किया गया-

  • आधुनिक आवर्त सारणी में सभी समस्थानिकों को एक ही स्थान दिया गया क्योंकि इनके परमाणु क्रमांक एकसमान होते हैं।
  • आर्गन तथा पोटैशियम की परमाणु संख्या क्रमश: 18 एवं 19 है। तत्वों की बढ़ती परमाणु संख्या के आधार पर व्यवस्थित करने पर आर्गन पहले आता है, जबकि उनके परमाणु द्रव्यमान इसके विपरीत हैं। आधुनिक आवर्त सारणी में इस दोष को दूर किया गया है।
  • सभी मृदा तत्वों को एक ही स्थान पर रखा गया है क्योंकि इनकी बाह्यतम कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान है।

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प्रश्न 2.
मैग्नीशियम की तरह रासायनिक अभिक्रियाशीलता दिखाने वाले दो तत्वों के नाम लिखिए। आपके चयन का क्या आधार है?
उत्तर-
मैग्नीशियम की तरह रासायनिक अभिक्रिया शीलता दिखाने वाले दो तत्व बेरीलियम तथा कैल्सियम हैं। . आधुनिक आवर्त सारणी के अनुसार, “जिन तत्वों का बाहरी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है उनके गुणधर्म भी समान होते हैं। मैग्नीशियम के बाहरी कोश में 2 इलेक्ट्रॉन हैं अत: वे सभी तत्व जिनके बाहरी कोश में 2 इलेक्ट्रॉन होंगे Mg के समान ही गुणधर्म प्रदर्शित करेंगे।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रकृति वाले तत्वों के नाम बताइए –
(a) तीन तत्व जिनके सबसे बाहरी कोश में एक इलेक्ट्रॉन उपस्थित हो।
(b) दो तत्व जिनके सबसे बाहरी कोश में दो इलेक्ट्रॉन उपस्थित हों।
(c) तीन तत्व जिनका बाहरी कोश पूर्ण हो।
उत्तर-
(a) लीथियम, सोडियम, पोटैशियम।
(b) मैग्नीशियम, कैल्सियम।
(c) हीलियम, नीऑन, आर्गन।

प्रश्न 4.
(a) लीथियम, सोडियम, पोटैशियम ये सभी धातुएँ जल से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करती हैं। क्या इन तत्वों के परमाणुओं में कोई समानता है?
(b) हीलियम एक अक्रियाशील गैस है जबकि नीऑन की अभिक्रियाशीलता अत्यन्त कम है। इनके परमाणुओं में कोई समानता है?
उत्तर-
(a) लीथियम, सोडियम, पोटैशियम समूह से सम्बन्धित हैं। इन सभी तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोश में एक इलेक्ट्रॉन होता है।
(b) हीलियम तथा नीऑन दोनों अक्रिय गैसें हैं तथा इनके बाह्यतम कक्ष पूर्ण हैं।

प्रश्न 5.
आधुनिक आवर्त सारणी में पहले दस तत्वों में कौन-सी धातुएँ हैं?
उत्तर-
पहले दस तत्व हैं-
H. He, Li. Be: B.C, N.O. F तथा Ne इन सभी तत्वों में से धातु हैं – Li तथा Be

प्रश्न 6.
आवर्त सारणी में इनके स्थान के आधार पर इनमें से किस तत्व में सबसे अधिक धात्विक अभिलक्षण की विशेषता है?
Ga Ge As Se Be
उत्तर-
Ga; चूँकि धात्विक गुण बाएँ से दाएँ घटता है। दिए गए तत्वों की आवर्त सारणी में ऐसी स्थिति के अनुसार Ga धातु है, Ge तथा AS उपधातु हैं तथा Se, Be अधातु हैं। स्पष्ट है Ga में धात्विक गण सर्वाधिक है।

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क्रियाकलाप 5.1 (पा. पु. पृ. सं. 94)

प्रश्न-क्षार धातुओं एवं हैलोजेन कुल की समानता को ध्यान में रखते हुए हाइड्रोजन को मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में उचित स्थान पर रखिए। हाइड्रोजन को किस समूह एवं आवर्त में रखना चाहिए?
उत्तर-
मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में हाइड्रोजन को नियत स्थान नहीं दिया जा सकता क्योंकि हाइड्रोजन, ऑक्सीजन एवं सल्फर के साथ एक सूत्र वाले यौगिक बनाती है। दूसरी ओर हाइड्रोजन द्विपरमाणुक अणु के रूप में भी पायी जाती हैं।

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क्रियाकलाप 5.2 (पा. पु. पृ.सं. 94)

प्रश्न –
क्लोरीन के समस्थानिक Cl-35 व Cl-37 के परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न होने के कारण क्या आप उन्हें अलग-अलग रखेंगे? या रासायनिक गुणधर्म समान होने के कारण आप दोनों को एक ही स्थान पर रखेंगे?
उत्तर-
सभी तत्वों के समस्थानिक मेन्डेलीफ के आवर्त नियम के लिए एक चुनौती थी तथा समस्या यह थी कि एक तत्व से दूसरे तत्व की ओर आगे बढ़ने पर परमाणु द्रव्यमान नियमित रूप से नहीं बढ़ते हैं। इसलिए यह अनुमान लगाना कठिन हो गया कि दो तत्वों के बीच कितने तत्व खोजे जा सकते हैं। मेन्डेलीफ के आवर्त नियमानुसार इन्हें इनकी सारणी में स्थान देना चाहिए था परन्तु रासायनिक गुणधर्म के समान होने के कारण ये एक ही स्थान पर रखे जायेंगे। आधुनिक आवर्त सारणी में यह समस्या दूर हो गयी थी क्योंकि इसे परमाणु क्रमांकों के बढ़ते क्रम के आधार पर बनाया गया था।

क्रियाकलाप 5.3 (पा. पु. पृ. सं. 95)

प्रश्न 1.
आधुनिक आवर्त सारणी में कोबाल्ट एवं निकल के स्थान कैसे निर्धारित किए गए हैं?
2. आधुनिक आवर्त सारणी में विभिन्न तत्वों के समस्थानिकों का स्थान कैसे सुनिश्चित किया गया
3. क्या 1.5 परमाणु संख्या वाले किसी तत्व को हाइड्रोजन एवं हीलियम के बीच रखा जा सकता
4. आपके अनुसार आवर्त सारणी में हाइड्रोजन को – कहाँ रखना चाहिए? –
उत्तर-
(1) कोबाल्ट का परमाणु क्रमांक 27 एवं निकिल · का परमाणु क्रमांक 28 है। आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार आवर्त सारणी में तत्वों को बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के क्रम में रखा जाता है। अतः कम परमाणु क्रमांक वाला तत्व कोबाल्ट पहले तथा अधिक परमाणु क्रमांक वाला तत्व निकिल बाद में आएगा। पूर्व में परमाणु भार के आधार पर ये दोनों तत्व गलत क्रम में व्यवस्थित थे क्योंकि कोबाल्ट का परमाणु भार 58.93 तथा निकिल का परमाणु भार 58.71 है।

(2) आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार एक ही तत्व के सभी समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक एक समान होता है – अतः इन्हें एक ही स्थान पर रखा गया है जो कि उचित है। .

(3) 1.5 परमाणु क्रमांक वाला तत्व हाइड्रोजन व हीलियम के बीच स्थित नहीं हो सकता।

(4) हाइड्रोजन परमाणु पहले समूह के तत्वों की तरह एक इलेक्ट्रॉन खोकर तथा सातवें समूह के तत्वों की तरह एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके संयोजन करता है, अतः इसको प्रथम तथा सप्तम समूह में रखना ठीक है।

क्रियाकलाप 5.4 (पा. पु. पृ. सं. 95)

प्रश्न 1.
आधुनिक आवर्त सारणी के समूह –
1. में उपस्थित तत्वों के नाम बताइए।
2. समूह के पहले तीन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
3. इन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में क्या समानता
4. इन तीनों तत्वों में कितने संयोजकता इलेक्ट्रॉन
उत्तर-
1. हाइड्रोजन (H), लीथियम (Li), सोडियम (Na), पोटैशियम (K), रूबीडियम (Rb), कैल्सियम (Ca), फ्रान्शियम (Fr)।
2. प्रथम तीन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास –
हाइड्रोजन (H) =1
लीथियम (Li)=2,1
सोडियम (Na)= 2,8,1 3.
3. इनके सबसे बाहरी कोश में इलेकनों की संख्या समान (प्रत्येक में 1) है। अतः इनके संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या भी समान है।
4. एक संयोजी इलेक्ट्रॉन।

क्रियाकलाप 5.5 (पा. पु. पृ. सं.97)
प्रश्न
1. यदि आप आवर्त सारणी के लम्बे रूप को देखें . तो आपको पता चलेगा कि Li, Be, B, C,N,O, F तथा Ne दूसरे आवर्त के तत्व हैं। इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
2. क्या इन सभी तत्वों के भी संयोजकता इलेक्ट्रॉनों . की संख्या समान है।
3. क्या इनके कोशों की संख्या समान है।
उत्तर-
1.
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 1
2. नहीं, सभी में असमान हैं।
3. हाँ, सभी में समान हैं। ‘

क्रियाकलाप 5.6 (पा. पु. पृ. सं.98)

प्रश्न 1.
किसी तत्व के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से आप उसकी संयोजकता का परिकलन कैसे करेंगे?
2. परमाणु संख्या 12 वाले मैग्नीशियम तथा परमाणु संख्या 16 वाले सल्फर की संयोजकता क्या है?
3. इसी प्रकार पहले 20 तत्वों की संयोजकताएँ ज्ञात कीजिए।
4. आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर संयोजकता किस प्रकार परिवर्तित होती है?
5. समूह में ऊपर से नीचे जाने पर संयोजकता किस – प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर-
1. यदि तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 1, 2, 3 या 4 है तो उन तत्वों की संयोजकताएँ क्रमश: 1, 2, 3 तथा 4 होंगी। ..यदि तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5, 6 या 7 है तो उन तत्वों की संयोजकताएँ क्रमश: 3,2, 1 होंगी। यदि तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोशों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 है तो उन तत्वों की संयोजकता शृन्य (0) होगी।
2. मैग्नीशियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 2 है, अतः इसकी संयोजकता 2 है। सल्फर का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 6 है, अत: इसकी संयोजकता 2 है।
3. आवर्त सारणी के प्रथम बीस तत्वों की ‘वयोजकताएँ निम्नलिखित है-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 2
4. आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर संयोजकता पहले 1 से 4 तक बढ़ती है फिर 1 तक घटकर उत्कृष्ट गैस की स्थिति में शून्य हो जाती है।
5. समूह में सभी तत्वों की संयोजकताएँ समान होती है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

क्रियाकलाप 5.7 (पा.पु. पृ.सं.98)

प्रश्न-
आधुनिक आवर्त सारणी का अध्ययन कर दिये गये प्रश्नों का उत्तर देना। दूसरे आवर्त के तत्वों की परमाणु त्रिज्याएँ नीचे दी गई हैं-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 4
1. इन्हें परमाणु त्रिज्या के अवरोही क्रम में व्यवस्थित – कीजिए।
2. क्या ये तत्व अब आवर्त सारणी के आवर्त की – तरह ही व्यवस्थित हैं?
3. किस तत्व का परमाणु सबसे बड़ा एवं किसका . सबसे छोटा है?
4. आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर परमाणु त्रिज्या .. किस प्रकार बदलती है?
उत्तर-
1. अवरोही क्रम
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 5
2. हाँ, ये आवर्त सारणी के आवर्त की भाँति व्यवस्थित
3. लीथियम का परमाणु सबसे बड़ा तथा ऑक्सीजन का सबसे छोटा है। 4. परमाणु त्रिज्या, आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर घटती है।

क्रियाकलाप 5.8 (पा. पु. पृ. सं. 99)

प्रश्न 1.
प्रथम समूह के तत्वों की परमाणु त्रिज्या में परिवर्तन का अध्ययन कीजिए तथा उन्हें आरोही
क्रम में व्यवस्थित कीजिए। प्रथम समूह के तत्व
Na | Li] Rs |Cs | K परमाणु त्रिज्या (pm) | 86 | 152| 244 262|231
2. किस तत्व का परमाणु सबसे छोटा तथा किसका सबसे बड़ा है?
3. समूह में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु आकार में परिवर्तन किस प्रकार होगा?
उत्तर-
1. परमाणु त्रिज्या का आरोही क्रम निम्नवत्
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 6
2. सोडियम (Na) के परमाणु सबसे छोटे तथा सीजियम (Cs) के परमाणु सबसे बड़े हैं।
3. समूह में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु त्रिज्या बढ़ती है। इसका कारण यह है कि नीचे जाने पर एक नया कोश जुड़ जाता है, इससे नाभिक तथा सबसे बाहरी कोश के बीच की दूरी बढ़ जाती है और इस कारण नाभिक का आवेश बढ़ जाने के बाद भी परमाणु का आकार बढ़ जाता है।

क्रियाकलाप 5.9 (पा. पु. पृ.सं. 99)

प्रश्न 1.
तीसरे आवर्त के तत्वों की जाँच कर उन्हें धातु एवं अधातु में वर्गीकृत करें।
2. सारणी के किस ओर धातएं स्थित है?
3. सारणी के किस ओर अधातुएं स्थित हैं?
उत्तर-
1. तीसरे आवर्त में Na. Mg व AI धातुएँ हैं तथा P, S, CIव Ar अधातुएँ हैं।
2. सारणी में तिरछी रेखा के बाईं ओर धातुएँ स्थित हैं।
3. सारणी में तिरछी रेखा के दाईं ओर अधातुएँ स्थित हैं।

क्रियाकलाप 5.10 (पा.पु. पृ. सं. 99)

प्रश्न – समूह में इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति किस प्रकार बदलती है? आवर्त में यह प्रवृत्ति कैसे बदलेगी?
उत्तर-
आवर्त में जैसे-जैसे संयोजकता कोश के इलेक्ट्रॉनों पर क्रिया करने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है, इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति घट जाती है। समूह में नीचे की ओर, संयोजकता इलेक्ट्रॉन पर क्रिया करने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश घटता है। बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से सुगमतापूर्वक निकल जाते हैं, अतः धात्विक अभिलक्षण आवर्त में घटता है तथा समूह में नीचे जाने पर धात्विक अभिलक्षण में वृद्धि होती है। अधातुएँ विद्युत ऋणात्मक होती हैं, उनमें इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके आबन्ध बनाने की प्रवृत्ति होती है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

क्रियाकलाप 5.11 (पा. पु. पृ. सं. 100)

प्रश्न-
आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति कैसे परिवर्तित होती है तथा समूह में ऊपर से नीचे जाने पर इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति कैसे परिवर्तित होगी?
उत्तर-
किसी आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर इलेक्ट्रॉन बन्धुता या इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति बढ़ती है। किसी समूह में ऊपर से नीचे आने पर इलेक्ट्रॉन बन्धुता घटती है।

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मेण्डल के एक प्रयोग में लम्बे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्य बैंगनी रंग के थे, परन्तु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लम्बे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी –
(a) TT WW
(b) TT WW
(c) Tt WW
(d) Tt Ww.

प्रश्न 2. समजात अंगों का उदाहरण है –
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते का अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू तथा घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
विकासीय दृष्टि से हमारी किससे अधिक समानता है
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी
(d) जीवाणु।
उत्तर-
1. (c),
2. (d),
3. (a)

प्रश्न 4.
एक अध्ययन से पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त परिस्थिति में नेत्रों का हल्का रंग प्रभावी लक्षण है। अत: यह लक्षण जनकों से भावी पीढ़ी की सन्तानों में स्थानान्तरित हो सकता है। प्रभावी लक्षण उसी अवस्था में अथवा कुछ परिवर्तन के साथ भावी पीढ़ी में चले जाते हैं। इनमें अप्रभावी लक्षण भी उपस्थित होते हैं। ये अप्रभावी लक्षण प्रभावी लक्षणों की अनुपस्थिति में सन्तान में प्रदर्शित हो सकते हैं।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

प्रश्न 5.
जैव विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर संबंधित है?
उत्तर-
दो जातियों के बीच जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका सम्बन्ध भी उतना ही निकट का होगा। जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा। उदाहरण के लिए; एक भाई एवं बहिन अति निकट सम्बन्धी हैं। उनसे पहली पीढ़ी में उनके पूर्वज समान थे अर्थात् वे एक ही माता-पिता की सन्तान हैं। लड़की के चचेरे/ममेरे भाई बहिन भी उनसे सम्बन्धित हैं लेकिन उसके अपने भाई से कम निकट का सम्बन्ध है। इसका मुख्य कारण है कि उनके पूर्वज समान हैं, अर्थात् दादा-दादी जो उनसे दो पीढ़ी पहले के हैं, न कि एक पीढ़ी पहले के। अब हम इस बात को भली प्रकार समझ सकते हैं कि जाति/जीवों का वर्गीकरण उनके विकास के सम्बन्धों का प्रतिबन्ध है।

प्रश्न 6.
समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
समजात अंग-ऐसे अंग जो उत्पत्ति एवं मूल रचना में समान होते हैं तथा जिनके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण-घोड़े के अग्रपाद, चमगादड़ एवं पक्षी के पंख, मनुष्य के हाथ आदि। समरूप अंग-ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति तथा मूल रचना भिन्न-भिन्न होती हैं किन्तु कार्य समान होते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं।
उदाहरण-तितली के पंख एवं चमगादड़ के पंख, आदि।

प्रश्न 7.
कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर-
माना कुत्ते की त्वचा का काला रंग (W), भूरे रंग (w) पर प्रभावी लक्षण है। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास 1
अत: F2 पीढ़ी में तीन कुत्ते काले एवं एक कुत्ता भूरा है। यह प्रोजेक्ट दर्शाता है कि काला रंग भूरे पर प्रभावी है।

प्रश्न 8.
विकासीय सम्बन्ध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
जीवाश्म विकास के पक्ष में प्रमाण उपलब्ध कराते हैं। ये किसी जीव के विकास काल की सापेक्ष जानकारी एवं विकास की विलुप्त कड़ियों की भी जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स नामक जीवाश्म में पक्षियों एवं सरीसृपों दोनों के गुण पाये जाते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है। अतः जीवाश्म विकास की कड़ियों को खोलने में सहायक हैं। जीवाश्मों की आयु का निर्धारण चट्टान में पाये जाने वाले रेडियोधर्मी तत्वों और इसके रेडियोधर्मिताविहीन समस्थानिक तत्वों के अनुपात से किया जाता है।

प्रश्न 9.
किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति पदार्थों से हुई है?
उत्तर-
हम जानते हैं कि अनेकों अकार्बनिक पदार्थ तथा कार्बनिक पदार्थ विशिष्ट परिस्थितियों में मिलकर जीन का निर्माण करते हैं जो आनुवंशिकता की इकाई हैं। हाल्डेन तथा मिलर एवं यूरे ने अपने प्रयोग द्वारा प्रयोगशाला में यह सिद्ध कर दिया कि प्रारम्भिक जीव की उत्पत्ति अकार्बनिक पदार्थों से हुई। अकार्बनिक अणुओं से कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेषण हुआ जिसके फलस्वरूप वे सरल कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित हुये तथा अमीनों अम्ल जैसे पदार्थों का निर्माण हुआ जो जीवन का आधार होते हैं।

प्रश्न 10.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर-
लैंगिक जनन की प्रक्रिया में संयुग्मन करने वाले युग्मक (gametes) विभिन्न जनकों से आते हैं। इनके मिलने से युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। युग्मनज से सम्पूर्ण संतति जीव विकसित होता है। युग्मकों का निर्माण डी. एन. ए. के प्रतिकृतिकरण के द्वारा सम्भव होता है और डी. एन. ए. के प्रतिकृति होने के समय इसमें अनेक विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं जो नये जीव में वंशानुगत होती हैं। इसीलिए लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं।

अलैंगिक जनन में उत्पन्न विभिन्नताएँ जीव के जनन द्रव्य में न होकर केवल प्लाज़्मा द्रव्य में होती हैं अतः ये स्थायी नहीं होती हैं। यदि किसी प्रकार की विभिन्नता उत्तम है तो यह जीव के विकास व उत्तरजीविता के अधिक अवसर प्रदान करेगी। यह नयी स्पीशीज के उद्भव का मुख्य कारक है।

HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

प्रश्न 11.
संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर-
सामान्यतया विकसित जीवधारियों की कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों के दो जोड़े होते हैं। इसे 2n से प्रदर्शित करते हैं और ऐसी कोशिकाओं को द्विगुणित कहते हैं। द्विगुणित जनन कोशिकाओं में युग्मक निर्माण के समय अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। इसके फलस्वरूप अगुणित (n) युग्मकों का निर्माण होता है।

संतति निर्माण के समय जनक युग्मक मिलकर द्विगुणित युग्मनज (Zygote) बनाते हैं। युग्मनज से सन्तान का विकास होता है। इसमें एक युग्मक माता (मादा) से तथा दूसरा युग्मक पिता (नर) से आता है। अतः स्पष्ट है कि सन्तान की उत्पत्ति में नर एवं मादा द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की हिस्सेदार होती है तथा ये युग्मक ही आनुवंशिक पदार्थ का वहन करते हैं।

प्रश्न 12.
केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं ? |
उत्तर-
हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि जो विभिन्नताएँ एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी हैं, वे वर्तमान पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्राकृतिक चयन द्वारा अपने अस्तित्व को बनाये रखती हैं। ये विभिन्नताएँ समय व्यतीत होने के साथ-साथ समष्टि की मुख्य विशेषता के रूप में स्थापित हो जाती हैं। जीवधारी इन विभिन्नताओं के कारण स्वयं को वातावरण से अनुकूलित किए रहते हैं। यह जीवधारी सफल होते हैं और अपनी संतति को निरन्तर सृष्टि में बनाये रखते हैं।

HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास  InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 157)

प्रश्न 1.
यदि एक ‘लक्षण-A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण-B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर-
लक्षण-B’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है। यह लक्षण-A’ प्रजनन वाली समष्टि से 50 प्रतिशत अधिक है इसलिए ‘लक्षण-B’ पहले उत्पन्न हुआ होगा।

प्रश्न 2.
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर-
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी जाति (species) की उत्तरजीविता की सम्भावना बढ़ जाती है। जाति की उत्तरजीविता का आधार वातावरण में घटने वाला प्राकृतिक चयन ही होता है। समय के साथ उनमें जो प्रगति की प्रवृत्ति दिखाई देती है उसके साथ उनके शारीरिक अधिकल्प में जटिलता की वृद्धि भी हो जाती है। विभिन्नताएँ जैव विकास का आधार हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 161)

प्रश्न 1.
मेण्डल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
उत्तर-
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के दो विपर्यासी लक्षणों को चुना, जैसे कि मटर के लम्बे पौधे जो लम्बे पौधों को उत्पन्न करते थे तथा बौने पौधे जो बौने पौधों को ही उत्पन्न करते थे। जब मेण्डल ने लम्बे पौधे तथा बौने पौधे के बीच संकरण कराया तो प्रथम संतति (F) में सभी पौधे लम्बे थे। इससे स्पष्ट हो गया कि पौधे के लम्बेपन का लक्षण बौनेपन लक्षण पर प्रभावी हो गया तथा बौनापन अप्रभावी होने के कारण छिपा रह गया।
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास 3
जब F1 पीढ़ी के पौधों में मेण्डल ने स्वपरागण होने दिया और इससे प्राप्त बीजों को उगाने पर देखा कि लम्बे और बौने पौधे 3 : 1 के अनुपात में उत्पन्न हुए। इस प्रयोग से ज्ञात हो गया कि लक्षण प्रभावी एवं अप्रभावी होते हैं। उपर्युक्त विवरण के आधार पर ही मेण्डल का प्रथम नियम, प्रभाविता का नियम स्थापित हुआ।

प्रश्न 2.
मेण्डल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं? [CBSE 2015]
उत्तर-
मेण्डल ने अपने प्रयोगों में दो जोड़ी विपर्यासी (contrasting) लक्षणों का चयन किया, जैसे-पीले एवं गोल तथा हरे एवं झुर्शीदार बीज वाले पौधे। जब उन्होंने पीले एवं गोल (RRYY) बीज वाले पौधे का क्रॉस हरे एवं झुर्शीदार (rryy) बीज वाले पौधे के साथ कराया तो प्रथम पुत्री पीढ़ी में सभी पौधे पीले तथा गोल बीज वाले थे। जब F, पीढ़ी के पौधों के बीच उन्होंने स्वपरागण होने दिया तो F, पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे उत्पन्न हुए-

  • पीले एवं गोल बीज वाले,
  • पीले एवं झुरींदार बीज वाले,
  • हरे एवं गोल बीज वाले,
  • हरे एवं झुर्रादार बीज वाले।

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F2 पीढ़ी में उपर्युक्त पौधों का अनुपात 9: 3:3:1 था। इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि बीजों के रंग एवं आकृति की वंशानुगत पीढ़ी एक-दूसरे से प्रभावित नहीं होती। ये लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं। इसे मेण्डल का स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक ‘A’ रुधिर वर्ग वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘0’ है से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग ‘0’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है? यदि आपसे कहा जाए कि कौन-सा विकल्प लक्षण-रुधिर वर्ग ‘A’ अथवा ‘0’ प्रभावी लक्षण है? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिए। .
उत्तर-
‘A’ तथा ‘0’ रुधिर वर्ग में कौन-सा लक्षण प्रभावी है, यह बताने के लिए यह सूचना कि पुत्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है, पर्याप्त नहीं है। रुधिर वर्ग का निर्धारण रुधिर में उपस्थित प्रतिजन (Antigen) तथा प्रतिरक्षी (antibody) की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर किया जाता है। ‘A’ रुधिर वर्ग में ‘A’ प्रतिजन व ‘b’ प्रतिरक्षी पाया जाता है, जबकि ‘O’ रुधिर वर्ग में कोई प्रतिजन नहीं पाया जाता परन्तु ‘a’ एवं ‘b’ दोनों प्रतिरक्षी अवश्य पाए जाते हैं। al, a तथा a° जीन प्रतिजन के लिए उत्तरदायी होते हैं।

a bb क्रमशः a° पर प्रभावी होते हैं।’A’ रुधिर वर्ग वाले पुरुष की जीन संरचना a° a° तथा ‘0’ रुधिर वाली स्त्री की जीन संरचना a° a° होने पर पुत्री पिता से a° तथा माता से a° जीन अर्थात् दोनों सुप्त जीन प्राप्त करने के कारण ‘O’ रुधिर वर्ग वाली होती है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि ‘A’ प्रभावी होगा।

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प्रश्न 4.
मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता
उत्तर-
मानव में उपस्थित लिंग गुणसूत्रों (Sex chromosomes) द्वारा बच्चे के लिंग का निर्धारण किया जाता है

  • पुरुषों में दोनों लिंग गुणसूत्रों में से एक गुणसूत्र X तथा दूसरा गुणसूत्र Y होता है।
  • स्त्री में दोनों लिंग गुणसूत्र समान अर्थात् XX होते
  • पुरुष दो प्रकार के शुक्राणु उत्पन्न करते हैं। आधे शुक्राणु X गुणसूत्रों को तथा आधे शुक्राणु Y गुणसूत्रों को धारण करते हैं।
  • स्त्री में केवल एक अण्डाणु बनता है, जिसमें X गुणसूत्र होता है।
  • जब X गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु (X) में संलयन करता है तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़की (XX) होती है।
  • जब Y गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु (X) से संलयन करता है तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़का (XY) होता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 165)

प्रश्न 1.
वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर-
किसी एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की समष्टि में संख्या निम्नलिखित तरीकों से बढ़ सकती है-
(i) यदि व्यष्टि में विशिष्ट लक्षण पर्यावरण के अनुकूल हो और इसका प्राकृतिक चयन होता रहे तब इस लक्षण वाले जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है। उदाहरणार्थ, लाल शृंग की समष्टि में हरे रंग वाले भृग का उत्पन्न होना। पक्षी हरे रंग के भंगों को पत्तियों के बीच में पहचान नहीं पाते हैं और भंग शिकार होने से बच जाते हैं, जबकि लाल भुंग आसानी से पहचाने जा सकते हैं और पक्षियों के शिकार हो जाते हैं। इस प्रकार हरे रंग के ,गों की संख्या समष्टि में बढ़ जाती है।

(ii) आकस्मिक दुर्घटना के कारण जब किसी समष्टि के अत्यधिक सदस्य समाप्त हो जाते हैं तो जीन पूल (gene pool) सीमित रह जाता है। इससे समष्टि का रूप बदल जाता है। इसे जीनी अपवहन (Genetic Drift) कहते हैं। ऐसा प्रायः महामारियों, परभक्षण, प्रलय आदि के कारण होता है।

प्रश्न 2.
एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतया अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते, क्यों ?
उत्तर-
उपार्जित लक्षणों के प्रभाव केवल कायिक कोशिकाओं पर ही होते हैं अर्थात् इनका समावेशन आनुवंशिक पदार्थ (डी. एन. ए.) में नहीं होता है। आनुवंशिक पदार्थ में होने वाले परिवर्तन ही अगली पीढ़ी में वंशानुगत हो सकते हैं, अतः उपार्जित लक्षण सामान्यतया अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते हैं।

प्रश्न 3.
बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता की दृष्टि से चिन्ता का विषय क्यों है ? ..
उत्तर-
बाघों की संख्या में लगातार हो रही कमी यह दर्शाती है कि बाघ प्राकृतिक चयन में पिछड़ रहे हैं अर्थात् उनमें प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन नहीं हो रहे हैं जो कि समष्टि में इनकी संख्या बढ़ा सके। छोटी समष्टि पर दुर्घटनाओं का प्रभाव अधिक पड़ता है जिससे जीवों की आवृत्ति प्रभावित हो सकती है। अतः बाघों की घटती संख्या चिन्ता का विषय है क्योंकि इनका प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन न कर सकने के कारण बाघों की प्रजाति कभी भी विलुप्त हो सकती है। बाघों के संरक्षण हेतु टाइगर प्रोजेक्ट के अन्तर्गत इन्हें सुरक्षित राष्ट्रीय उद्यानों में रखा गया है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 166)

प्रश्न 1.
वे कौन से कारक हैं, जो नई स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं? [CBSE 2015]
उत्तर-
नई जाति के उद्भव (speciation) में निम्नलिखित कारक सहायक हैं-

  • लैंगिक प्रजनन के फलस्वरूप उत्पन्न परिवर्तन,
  • दो उपसमष्टियों का एक-दूसरे से भौगोलिक पृथक्करण। इसके कारण समष्टियों के सदस्य परस्पर प्रजनन नहीं कर पाते हैं।
  • आनुवंशिक अपवहन।
  • प्राकृतिक चयन।

प्रश्न 2.
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं ?
उत्तर-
जाति उद्भव (speciation) में भौगोलिक पृथक्करण (Geographical isolation) ही प्रमुख कारण है। विशेष रूप से अलैंगिक जनन करने वाले पादपों में एक जीवधारी भौतिक परिस्थितियों में जीवित रहता है परन्तु कुछ जीवधारी यदि निकटवर्ती भौगोलिक पर्यावरण में विस्थापित हो जाते हैं जिनमें विभिन्न भौतिक परिवर्तनीय लक्षण हों तो वे जीवित नहीं रहेंगे। यदि जीवित रह रहे जीवधारियों में अलैंगिक जनन होता है तत्पश्चात् वे अन्य पर्यावरण में विस्थापित होते हैं तो भी भिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवित नहीं रह पाएँगे।

प्रश्न 3.
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर-
नहीं, क्योंकि अलैंगिक जनन के लिए दूसरे जीव की आवश्यकता नहीं है। यह एकल जीव द्वारा ही सम्पन्न होता है। अतः भौगोलिक पृथक्करण का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 171)

प्रश्न 1.
उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज के विकासीय सम्बन्ध निर्धारण के लिए करते हैं?
उत्तर-
लगभग 2000 वर्ष पूर्व जंगली बन्दगोभी को खाद्य पौधे के रूप में उगाया जाने लगा था, यह एक कृत्रिम चयन था न कि प्राकृतिक चयन। इसलिए कुछ किसानों का अनुमान था कि इस गोभी में पत्तियाँ आपस में निकट होनी चाहिए। अतः उन्होंने परस्पर संकरण द्वारा उस बंदगोभी को प्राप्त किया जिसका हम आजकल प्रयोग करते हैं। कुछ किसानों ने पत्तियों को पुष्पों के निकट प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। अतः उन्होंने प्रयास करके इस प्रकार का पौधा प्राप्त किया। इस पौधे को आधुनिक फूलगोभी का नया नाम दिया गया। इस प्रकार बन्दगोभी एवं फूलगोभी दोनों निकट स्पीशीज हैं जो उद्विकास से विकसित स्पीशीज हैं।

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प्रश्न 2.
क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर-
ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना समान होती है किन्तु कार्य भिन्न होते हैं, समजात (homologous) अंग कहलाते हैं। चूँकि तितली एवं चमगादड़ के पंखों के कार्य (उड़ना) तो समान हैं लेकिन उनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना समान नहीं है अतः ये समजात अंग नहीं हैं। ये समवृत्ति अंग है।

प्रश्न 3.
जीवाश्म क्या हैं? वह जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं? [CBSE 2015]
उत्तर-
प्राचीनकाल के जीवों के अवशेष, जो प्राचीन काल में पृथ्वी पर पाये जाते थे, किन्तु अब जीवित नहीं हैं, जीवाश्म कहलाते हैं। ये अवशेष प्राचीन समय में मृत जीवों के सम्पूर्ण, अपूर्ण, अंग या अन्य भाग के अवशेष या उन अंगों के ठोस मिट्टी, शैल तथा चट्टानों पर बने चिन्ह होते हैं जिन्हें पृथ्वी को खोदने से प्राप्त किया गया है।

ये चिन्ह इस बात का प्रतीक हैं कि ये जीव करोड़ों वर्ष पूर्व जीवित थे लेकिन वर्तमान में विलुप्त हो चुके हैं-

  • जीवाश्म उन जीवों के पृथ्वी पर अस्तित्व की पुष्टि करते हैं।
  • इन जीवाश्मों की तुलना वर्तमान काल में उपस्थित समतुल्य जीवों से कर सकते हैं।

इनकी तुलना से अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्तमान में उन जीवाश्मों के जीवित स्थिति के काल के सापेक्ष क्या विशेष परिवर्तन हुए हैं, जो जीवधारियों को जीवित रखने के प्रतिकूल हो गए हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 173)

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई देने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं?
उत्तर-
मानव में आकृति, आकार, रंग-रूप आदि भिन्नता का कारण भौतिक पर्यावरण के कारकों से भौतिक लक्षणों में होने वाले परिवर्तन हैं। उनकी जैविक संरचना के लक्षणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है इसीलिए उनके अंगों में कोई परिवर्तन नहीं आता। परन्तु भौगोलिक परिस्थितियों में परिवर्तनों के कारण उनके आकार, रंग तथा दिखाई देने वाली आकृति में परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं, जबकि वे एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं।

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प्रश्न 2.
विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी आदि में उद्विकास के आधार पर इनके शरीरों में जीवधारियों के वंशों की विविधता के अस्तित्व के लक्षण विद्यमान होते हैं। यद्यपि चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प अन्य की अपेक्षा अधिक विकसित है; लेकिन अन्य जीवाणु, जैसे-मकड़ी, मछली आदि के अभिकल्पों को अविकसित नहीं कहा जा सकता ये शरीर की प्रतिकूलता को अनुकूलता में परिवर्तित कर देते हैं, जैसे-गर्म झरने, गहरे समुद्रों के गर्म स्रोत तथा अन्टार्कटिका में बर्फ आदि में उपस्थित जीवधारियों के लक्षण जो उन्हें उत्तरजीविता के योग्य बनाते हैं। जैव विकास के आधार पर यह इनकी विशेषतायें हैं। अभिकल्प को उत्तम या अधम नहीं कहा जा सकता।

HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 9.1 (पा. पु. पृ. सं. 157)

प्रेक्षण (Observation)-कक्षा में बहुत कम छात्र/छात्राओं की कर्ण पालि जुड़ी हुई है। इसका कारण उनके माता-पिता से प्राप्त वंशानुगत गुण हैं।

क्रियाकलाप 9.2 (पा. पु. पृ. सं. 158)

प्रेक्षण एवं निष्कर्ष (Observation and Result)-हम मेंण्डल के द्वारा किए गए प्रयोग को दोहराकर मटर में भिन्न-भिन्न प्रकार के बीजों के इस संयोजन से इस अनुपात को प्राप्त कर सकते हैं।
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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
सभी प्रकार की आय का आयोजन नियंत्रण व मूल्यांकन करना, जिससे परिवार के लिए अधिकतम सन्तुष्टि की प्राप्ति हो सके, उसे पारिवारिक आय कहते हैं।

प्रश्न 2.
मौद्रिक आय किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आय के कई साधन हैं। वेतन से प्राप्त मुद्रा, व्यापार से प्राप्त मुद्रा, ज़मीन मकान के किराये से प्राप्त मुद्रा आदि। किसी भी साधन से प्राप्त मुद्रा, मौद्रिक आय कहलाती है।

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प्रश्न 3.
आत्मिक आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त मौद्रिक तथा वास्तविक आय के व्यय से प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि आत्मिक आय कहलाती है।

प्रश्न 4.
आवश्यक व्यय कौन-कौन से हैं ? आवश्यकताओं के वर्ग भी बताइये।
उत्तर :
भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा एवं चिकित्सा पर किये व्यय आवश्यक व्यय माने जाते हैं। आवश्यकताओं के वर्ग निम्नलिखित हैं –

  1. अनिवार्य आवश्यकताएं (जीवन रक्षक आवश्यकताएँ)
  2. निपुणता-रक्षक आवश्यकताएँ
  3. प्रतिष्ठा-रक्षक आवश्यकताएँ
  4. आराम संबंधी आवश्यकताएँ
  5. विलासिता संबंधी आवश्यकताएँ।

प्रश्न 5.
व्यय किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अपने परिवार के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु तथा आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए विभिन्न साधनों से आय को किस प्रकार और कितना विभिन्न आवश्यकताओं पर खर्च किया जाता है, उसे व्यय कहते हैं।

प्रश्न 6.
परिवार की आय को कौन-कौन-से दो भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :
परिवार की आय को दो भागों में विभाजित किया जाता है-प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष आय वह है जो पैसे के रूप में प्राप्त होती है जैसे वेतन, दुकान की कमाई। अप्रत्यक्ष आय जो किसी नौकरी करने वाले व्यक्ति को सुविधाओं के रूप में मिलती है जैसे मकान, मुफ्त दवाइयाँ, डॉक्टरी सहायता आदि।

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प्रश्न 7.
खर्च कितने प्रकार के हो सकते हैं ?
उत्तर :
परिवार को भिन्न – भिन्न जगहों से आय प्राप्त होती है उसको कहां और कितना प्रयोग किया जाता है को खर्च कहा जाता है। खर्च तीन प्रकार के होते हैं –
1. निर्धारित खर्च जैसे मकान का किराया, बच्चों की फीस।
2. अर्द्ध-निर्धारित खर्च-जो बढ़ता-घटता रहता है; जैसे कपड़े, भोजन और दवाइयों का खर्च।
3. गैर-निर्धारित खर्च-जिनको घटाया या बिल्कुल बन्द किया जा सकता है; जैसे मनोरंजन, हार-शृंगार आदि।

प्रश्न 8.
बजट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक आय के अनुसार घर के खर्च का पहले से भी अनुमान लगाने को बजट कहा जाता है या आय और खर्च का लेखा-जोखा बजट कहलाता है। बजट लिखित या मौखिक भी हो सकता है।

प्रश्न 9.
खर्च की आवश्यक और अनावश्यक मदें कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
खर्च की आवश्यक और अनावश्यक मदें निम्नलिखित हैं –
(क) आवश्यक मदें-घर, भोजन और कपड़े।
(ख) कम आवश्यक मदें-घर को चलाने के लिए खर्चे बच्चों की पढाई, डॉक्टरी सहायता, मनोरंजन और अन्य फुटकर खर्च और बचत।
(ग) खर्च की अवश्यक मदें ये वे खर्चे हैं जिनसे आसानी से बचा जा सकता है। मनोरंजन का खर्च, हार-श्रृंगार का खर्च और धार्मिक खर्चे आदि।

प्रश्न 10.
बचत से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
घर की आय में से वह भाग जिसको प्रत्येक महीने आय में से बचा लिया जाता है उसको बचत कहते हैं। बचत प्रत्येक परिवार के लिए इसलिए आवश्यक है ताकि बीमारी, दुर्घटना, बुढ़ापे आदि के लिए पैसा इकट्ठा हो सके।

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प्रश्न 11.
बचत करने के किन्हीं चार ढंगों के बारे में बताएं।
उत्तर :
पुराने समय में गहने और सोने के रूप में ही बचत की जाती थी। परन्तु आजकल बचत करने के लिए नए ढंग हैं जो न केवल मनुष्य को बचत करने में सहायक होते हैं बल्कि वह बचत मनुष्य की आय का एक अन्य साधन भी बन जाती है; जैसे जीवन बीमा, निश्चित काल का जमा खाता, डाकघर बचत खाता और भविष्य निधि फण्ड योजना आदि।

प्रश्न 12.
व्यक्ति का व्यवसाय बजट पर कैसे प्रभाव डालता है ?
उत्तर :
कई व्यक्तियों को अपनी नौकरी या बिजनैस करके कई स्थानों पर जाना पड़ता है। इसलिए उनको कई ऐसी वस्तुओं पर खर्च करना पड़ता है जिनकी साधारण व्यक्ति को आवश्यकता नहीं होती जैसे सूटकेस, बढ़िया कपड़े और मोबाइल आदि। इन सभी बातों का प्रभाव बजट पर पड़ता है।

प्रश्न 13.
गृहिणी की योग्यता बजट पर कैसे प्रभाव डालती है ?
उत्तर :
समझदार गृहिणियां अपनी योग्यता और कुशलता से कम आय में परिवार की आवश्यकताएं पूर्ण करके बचत कर लेती हैं। जैसे घर कपड़े सिल कर,पुराने कपड़ों की मरम्मत करके, घर में आचार चटनियां बनाकर या घर में सब्जियां उगा कर पारिवारिक बजट को प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 14.
बजट कितनी प्रकार का हो सकता है ?
उत्तर :
पारिवारिक बजट तीन प्रकार का होता है –

  1. बचत बजट (Surplus Budget) – इसमें आय अधिक और खर्च कम होता है।
  2. सन्तुलित बजट (Balanced Budget) – इसमें आय और खर्च बराबर होते हैं।
  3. घाटे का बजट (Deficit Budget) – इसमें आय कम और खर्च अधिक होता है।

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प्रश्न 15.
प्रतिदिन का हिसाब रखना बजट बनाने के लिए क्यों आवश्यक है ?
अथवा
प्रतिदिन का हिसाब-किताब रखना क्यों जरूरी है ?
उत्तर :
रोज़ाना खर्च का हिसाब रखने से गृहिणी को यह पता लगता है कि खर्च बजट के अनुसार हो रहा है। यदि किसी मद पर खर्च अधिक हो जाए तो किसी और से घटाकर उसको सन्तुलित किया जाता है।

प्रश्न 16.
बजट के प्रकार लिखिए, तथा बताइये कि सबसे अच्छा बजट कौन-सा माना जाता है ?
उत्तर :
पारिवारिक आय-व्यय के हिसाब से बजट तीन प्रकार के होते हैं –

  1. सन्तुलित बजट
  2. बचत का बजट
  3. घाटे का बजट।

बचत का बजट सर्वाधिक अच्छा बजट माना जाता है।

प्रश्न 17.
पारिवारिक बजट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक आय तथा व्यय में सन्तुलन लाने के लिए आय का सही उपयोग करना अत्यन्त आवश्यक है, इसलिए गृहिणी को धन व्यय करने से पहले परिवार में विभिन्न साधनों या स्रोतों से होने वाली पूरी आय (आमदनी) तथा इस आय को विभिन्न मदों पर खर्च करने की पूरी योजना बना लेनी चाहिए। इस प्रकार परिवार में किसी निश्चित अवधि के लिए पर्व अनुमानित आय-व्यय के विस्तत विवरण को पारिवारिक बजट कहते हैं।

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प्रश्न 18.
बजट योजना किन तत्त्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर :
बजट योजना निम्न चार तत्त्वों पर निर्भर करती है –

  1. परिवार की आय।
  2. परिवार का लक्ष्य।
  3. परिवार की तात्कालिक आवश्यकताएँ।
  4. परिवार की भावी आवश्यकताएँ।

प्रश्न 19.
बजट-निर्माण के मुख्य चरण क्या हैं ?
उत्तर :
बजट-निर्माण के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं –

  1. परिवार के सभी स्रोतों से प्राप्त मासिक आय को जोड़ना।
  2. परिवार की आवश्यकताओं की सूची उनकी प्राथमिकता के आधार पर बना लेना।
  3. पारिवारिक परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक आवश्यकता के लिए आय का प्रतिशत निर्धारित करना और अन्त में कुल खर्च का अनुमान लगाना।
  4. कुछ धन भविष्य के लिए अथवा आकस्मिक खर्च के लिए बचाया जाना।

प्रश्न 20.
बजट सम्बन्धी ऐन्जिल का सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर :
ऐन्जिल के सिद्धान्त के अनुसार जैसे-जैसे आय बढ़ती है –

  1. भोजन पर व्यय का प्रतिशत घटता है तथा अन्य आरामदेह वस्तुओं पर व्यय का प्रतिशत बढ़ता है।
  2. मकान, वस्त्र, विद्युत् पर व्यय उतना ही रहता है, उसमें परिवर्तन नहीं होता।
  3. विलासिता, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, सांस्कृतिक आवश्यकताओं पर व्यय का प्रतिशत बढ़ जाता है।

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प्रश्न 21.
निम्न व उच्च वर्ग के बजट में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
निम्न व उच्च वर्ग के बजट में निम्नलिखित अन्तर है –

  1. निम्न वर्ग में भोजन की मद में अधिक खर्च होता है जबकि उच्च वर्ग में भोजन की मद पर खर्च का प्रतिशत कम रहता है।
  2. उच्च वर्ग में शिक्षा तथा मनोरंजन पर प्रतिशत व्यय अधिक होता है जबकि निम्न वर्ग में इन मदों का प्रतिशत व्यय कम रहता है।
  3. उच्च परिवार में बचत का प्रतिशत अधिक होता है, जबकि निम्न परिवार में बचत नहीं के बराबर ही होती है।

प्रश्न 22.
गृहिणी को परिवार के आय-व्यय का सन्तुलन बनाए रखने के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर :
परिवार के आय-व्यय का सन्तुलन बनाए रखने के लिए अग्र बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  1. परिवार की आय के साधन।
  2. आय को प्रभावित करने वाले तत्त्व।
  3. परिवार के आवश्यक व्यय।
  4. व्यय को प्रभावित करने वाले तत्त्व।
  5. आय के साधनों का सम्भावित विकास।
  6. आय के साधनों को विकसित कर व्यय-योजना द्वारा रहन-सहन का स्तर उन्नत करना।
  7. बुद्धिमत्तापूर्ण व्यय, बचत के लाभ तथा ऋण से हानियाँ।
  8. आय-व्यय का सन्तुलित बजट।
  9. घरेलू हिसाब रखना।
  10. बचत के साधन अपनाना।
  11. बचत का सही उपयोग।
  12. आवश्यक कागज़-पत्रों की सम्भाल।

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प्रश्न 23.
बचत के प्रमुख लक्ष्य क्या हैं ?
अथवा
बचत करना क्यों आवश्यक है ?
अथवा
बचत के लाभ लिखें।
उत्तर :
बचत के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं –

  1. आय बन्द हो जाने पर एक साधन-नौकरी छूट जाने या व्यवसाय में घाटा हो जाने पर बचत की राशि ही काम आती है।
  2. चोरी हो जाने, आग लग जाने एवं महंगाई बढ़ने पर बचत का सदुपयोग किया जाता है।
  3. आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी तथा बुढ़ापे में कार्य करने की असमर्थता के समय बचत ही काम आती है।
  4. मकान खरीदने, बनवाने या जमीन खरीदने के लिए बचत का प्रयोग किया जाता है।
  5. बच्चों की ऊँची शिक्षा में बचत का उपयोग किया जाता है।
  6. सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों पर भी बचत का उपयोग होता है।
  7. राष्ट्र के विकास तथा रक्षा के साधनों पर बचत का उपयोग होता है।
  8. मुद्रा-स्फीति पर नियंत्रण के लिए बचत करना आवश्यक है।

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प्रश्न 23.
(A). बचत क्यों की जानी चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 23 का उत्तर।

प्रश्न 24.
बचत किसे कहते हैं ? बचत तथा विनियोग के साधनों के नाम लिखिए।
उत्तर :
धन को किसी भी समय इकट्ठा जमा करने या फिर नियमित समय के अन्तर पर धीरे-धीरे एकत्रित करने को बचत कहा जाता है। बचत तथा विनियोग के प्रमुख साधन अग्रलिखित हैं –

  1. बैंक (Banks)
  2. डाकघर बचत खाता (Post Office Savings Account)
  3. जीवन बीमा (Life Insurance)
  4. भविष्य निधि योजना (Provident Fund)
  5. यूनिट्स (Units)
  6. राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेट (National Savings Certificate)
  7. लॉटरी, चिट व्यवस्था आदि (Lottery and Chit System)
  8. सहकारी संस्थाएँ (Co-operative Societies)
  9. कम्पनियों में पैसा लगाना (Investing in Companies)।

प्रश्न 24. (A)
बचत किसे कहते हैं ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 24 का उत्तर।

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प्रश्न 25.
बचत के विनियोजन में किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक तथा लाभकारी होता है ?
अथवा
बचत किए हुए धन को निवेश करते समय आप किन-किन बातों को ध्यान में रखेंगे।
उत्तर :
बचत के विनियोजन में निम्न दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक तथा लाभकारी होता है –
1. जिस संस्था में धन जमा करना है, वह विश्वसनीय हो।
2. विश्वसनीय संस्थाओं की ब्याज की दरें जानकर, जिस संस्था में ब्याज की दर अधिक हो, उसी में बचत का धन जमा करना चाहिए।

प्रश्न 26.
बचत के विनियोजन के लिए सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं की सूची बनाइये।
उत्तर :
बैंक, डाकखाना, बीमा, प्रॉवीडेन्ट फण्ड, यूनिट ट्रस्ट, सहकारी समितियाँ, हिस्से (शेयर्स), चिट फण्ड कम्पनियाँ आदि।

प्रश्न 27.
बैंक में रुपया जमा करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
बैंक में रुपया जमा करने के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. बचत का धन सुरक्षित रहता है।
  2. आवश्यकता होने पर धन निकाला भी जा सकता है।
  3. बचत के धन पर ब्याज भी मिलता है।
  4. इस धन को देश के विकास के लिए विभिन्न उत्पादक कार्यों में लगाया जाता है।

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प्रश्न 28.
बचत खाता किसके नाम पर खोला जा सकता है ?
उत्तर :
बचत खाता निम्नलिखित नामों से खोला जा सकता है –

  1. किसी बालिग व्यक्ति के नाम पर।
  2. संरक्षता में किसी नाबालिग के नाम पर।
  3. दो या अधिक व्यक्तियों के नाम पर (संयुक्त खाता)। एक वर्ष से अधिक के नाबालिग बच्चे के नाम पर बचत खाते में धनराशि नकद, चैक या ड्राफ्ट के रूप में जमा कराई जा सकती है।

प्रश्न 29.
आवश्यकता पड़ने पर बैंक से धन किस प्रकार निकाला जा सकता है ? बचत खाते से धन निकालने के बैंक के क्या नियम होते हैं ?
उत्तर :
आवश्यकता पड़ने पर बैंक से चैक द्वारा या निकासी फार्म (Withdrawal form) की सहायता से धन निकाला जा सकता है। बैंक से धन निकालने के निम्न नियम होते हैं –

  1. जमाकर्ता अपने बचत खाते में 3 महीने में 30 बार धन निकाल सकता है।
  2. आवश्यकता पड़ने पर बैंक जमाकर्ता को 30 बार से अधिक बार धन निकालने की अनुमति दे सकता है।
  3. किसी भी समय यदि बचत खाते में पाँच सौ रुपये से कम होंगे तो जमाकर्ता से एक रुपया प्रति छः माह की दर से वसूल किया जाता है।
  4. जमाकर्ता द्वारा अपने बचत खाते से एक महीने में एक या अधिक बार निकाली गई कुल राशि 10,000 से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  5. चैक बुक उन्हीं जमाकर्ता को दी जाती है जिनके बचत खाते में ₹ 500 या उससे अधिक रहते हैं।

प्रश्न 30.
पास बुक क्या होती है ?
उत्तर :
हर बचत खातेदार को एक पास बुक या पुस्तिका दी जाती है जिसमें बचत बैंक के नियम दिये होते हैं तथा खातेदार का नाम, पता तथा खाता नम्बर आदि विवरण होते हैं। बैंक से धन निकालते समय या जमा कराते समय पास बुक को साथ दिया जाता है जिससे राशि सम्बन्धी सभी आवश्यक विवरण बैंक द्वारा उसी समय दर्ज कर दिये जाते हैं।

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प्रश्न 31.
भविष्य निधि योजना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
यह योजना नौकरी करने वाले सभी वर्ग के कर्मचारियों के लिए है। प्रत्येक कर्मचारी अपने वेतन में से अनिवार्य रूप से इस योजना में राशि विनियोजित करता है।

प्रश्न 32.
स्कूल बचत बैंक योजना क्या होती है ?
उत्तर :
स्कूल बचत बैंक योजना (संचायिका योजना) स्कूल के बच्चों का ऐसा बचत बैंक होता है जिसका नियमन वे स्वयं करते हैं। इससे बच्चों में नियमित बचत करने की आदत का विकास होता है, साथ ही उन्हें पैसे रखने का हिसाब भी आ जाता है। इस प्रकार स्कूली बच्चों द्वारा जमा की गई धनराशि का खाता विद्यालय के नाम से खोला जाता है।

प्रश्न 33.
यूनिट ट्रस्ट क्रय करके किस प्रकार बचत की जाती है ?
उत्तर :
भारतीय संसद् ने एक अधिनियम 1964 में लागू कर ‘यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया’ की स्थापना की थी। यूनिट एक प्रकार की अंशपूँजी होती है। इसकी कीमत ₹ 10 होती है परन्तु इसका क्रय-विक्रय मूल्य कम व अधिक होता रहता है। ट्रस्ट को उद्योगों से जो लाभ होता है उसका 90% यूनिट क्रय करने वालों में लाभांश के रूप में प्रतिवर्ष 30 जून को बाँट दिया जाता है। सन् 1983 में विधवाओं, अपंगों और 55 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों को लाभांश प्रतिमास देने की सुविधा हो गई है। इसमें कम से-कम ₹ 5,000 जमा करने पड़ते हैं। इसका लाभ बैंक या डाकघर से प्राप्त किया जा सकता है।

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प्रश्न 34.
परिवार के लिए धन की बचत करने के कोई चार लाभ लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न का उत्तर।

प्रश्न 35.
बचत का निवेश करने की किन्हीं छः संस्थाओं की सूची बनाएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 8, दीर्घ उत्तरीय प्रश्न का उत्तर।

प्रश्न 36.
व्यय योजना बनाने से परिवार को होने वाले कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर :
1. आकस्मिक खर्चों का अनुमान लगाना सरल हो जाता है।
2. व्यय योजना बनाने से बचत करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 37.
बचत और विनियोग के दो साधन बताएं।
उत्तर :
बैंक, बीमा, शेयरस, यूनिट ट्रस्ट।

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प्रश्न 38.
आवश्यक व्यय तथा अनावश्यक व्यय कौन-कौन से हैं ? दो उदाहरण दें ?
उत्तर :
आवश्यक व्यय : बच्चों की फीस, घर का किराया। अनावश्यक व्यय : घूमने जाना, फिल्म देखने जाना।

प्रश्न 39.
अनावश्यक व्यय कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 40.
यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

लघ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
धन के प्रबन्ध के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
धन एक भौतिक साधन है। प्रत्येक परिवार के लिए इसकी मात्रा भिन्न-भिन्न होते हुए भी परिवार के लिए इसकी मात्रा सीमित भी होती है और यह परिवार पर ही निर्भर करता है कि वह किस प्रकार से अपने इस सीमित धन से अधिक-से-अधिक आवश्यकताएँ पूरी कर सकें। धन का जीवन में एक महत्त्वपूर्ण साधन है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की विभिन्न सुख-सुविधाएँ जुटाने के लिए धन पर निर्भर रहना पड़ता है। दिन-प्रतिदिन मनुष्य को जीवन में अनेक आवश्यकताओं का अनुभव होता है। मनुष्य की आवश्यकताएं तीन प्रकारों में बाँटी जा सकती हैं; जैसे कि-अति आवश्यक आवश्यकताएँ (Needs or Essential Requirements); आरामदायक आवश्यकताएँ (Comforts) तथा विलासितापूर्ण आवश्यकताएँ (Luxuries)।

इन सभी आवश्यकताओं को मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूर्ण करने का प्रयत्न करता है। परिवार की सम्पूर्ण व्यवस्था का संचालन धन पर ही निर्भर है। धन एक प्रकार का ऐसा सुविधाजनक साधन है जो कि मनुष्य को उन वस्तुओं को खरीदने में मदद करता है जिनके प्रयोग से उसकी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है। धन के उचित उपयोग के लिए धन के प्रबन्ध’ (Money Management) का सही ज्ञान होना अति आवश्यक है।

धन-प्रबन्ध के द्वारा ही पारिवारिक आय का योजनाबद्ध उपयोग सम्भव है। धन प्रबन्ध इस प्रकार करना चाहिए कि आय तथा व्यय में सन्तुलन हो तथा थोड़ी बहुत बचत की जा सके जो कि भविष्य में काम आ सके और परिवार की आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने में भी सहायता दे सके। उचित धन प्रबन्ध परिवार के भविष्य को सुखमय तथा सुविधाजनक बनाने में सहायक होता है। इसके लिए आय के समस्त साधनों का पूरा ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि व्यय बहुत कुछ आय की राशि पर ही निर्भर करता है।

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प्रश्न 2.
पारिवारिक आय की क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक आय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. पारिवारिक आय राष्ट्रीय की आय पर निर्भर करती है।
  2. आय का वितरण देशवासियों में समान रूप से नहीं होता। समाज में आय की विषमताओं के कारण निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग एवं उच्च वर्ग समाज बन जाता है।
  3. जिस वर्ग का व्यक्ति होता है उसके अनुसार उसकी आय निर्धारित होती है। जैसे-कृषक वर्ग, व्यापारी वर्ग, शिक्षक वर्ग, डॉक्टर या अभियन्ता वर्ग आदि।
  4. व्यक्ति की कुशलता एवं उसके व्यक्तिगत गुणों पर उसकी आय निर्भर करती है।
  5. पारिवारिक आय परिवार में आय अर्जित करने वाले सदस्यों की संख्या पर निर्भर करती है।
  6. शिक्षित व्यक्तियों की आय अशिक्षित व्यक्तियों से अधिक होती है।
  7. परिवार में सदस्यों की संख्या कम रहने पर एक निश्चित आय अधिक लगती है परन्तु परिवार में सदस्यों की संख्या यदि बढ़ जाती है तब वही निश्चित आय कम लगती है।
  8. एक परिवार के लिए जितनी आय पर्याप्त होगी इसकी कोई सीमा निश्चित नहीं होती।

प्रश्न 3.
आय वर्ग कितने प्रकार के हैं ? विवेचना कीजिए।
उत्तर :
हर परिवार की अलग-अलग आय होती है, जिसके आधार पर वह अपनी भिन्न-भिन्न जरूरतों को पूर्ण करने में सफल होते हैं। किसी भी परिवार के जीवन-स्तर का अनुमान उसकी पारिवारिक आय से सरलता से लगाया जा सकता है। आय की मात्रा के आधार पर परिवारों को मुख्यत: तीन आय-वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. निम्न आय वर्ग (Low Income Group)
  2. मध्यम आय वर्ग (Middle Income Group)
  3. उच्च आय वर्ग (High Income Group)

सामान्यतः ये तीन आयु-वर्ग मान्य हैं, परन्तु इनमें कोई भी निश्चित विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती; जैसे कि निम्न और मध्यम वर्ग के बीच के वर्ग को निम्न-मध्यम आय वर्ग भी कहा जा सकता है और इससे उच्च और मध्यम वर्ग के बीच में उच्च-मध्यम आय-वर्ग आ सकता है। कितनी आय वाले परिवार को इनमें से किस वर्ग में रखा जाए यह भी पूरी तरह से निश्चित नहीं किया जाता है और यह समय-समय पर बदलता रहता है।

यही नहीं, विभिन्न अर्थशास्त्रियों के भी इसके बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं। इसके साथ ही कोई परिवार कहाँ रहता है यानी रहने के स्थान पर, वस्तुओं की उपलब्धि तथा परिवार की उन्हें खरीदने की क्षमता (Purchasing Power) भी भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरणार्थ बड़े शहरों में उसी धन की मात्रा से कम वस्तुएँ, सुख-सुविधाएँ तथा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है, जबकि गाँवों या छोटे शहरों में उतने ही धन से अधिक पारिवारिक आवश्यकताओं को सुविधापूर्वक पूरा किया जा सकता है।

फिर भी मान्य नियमों के आधार पर परिवार की आय को देखते हुए विभिन्न परिवारों को निम्न, मध्यम व उच्च आय वर्गों में बाँटने के लिए आगे दी गई विभाजन सीमा ली जा सकती है –
निम्न आय वर्ग – ₹ 800 मासिक तक।
मध्यम आय वर्ग – ₹ 800 से ₹ 2,000 मासिक तक।
उच्च आय वर्ग – ₹ 2,000 या ₹ 2,500 से ऊपर।

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प्रश्न 4.
व्यय कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
जो कुछ भी हम खर्च करते हैं उसको तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
निर्धारित व्यय – निर्धारित व्यय प्रतिमाह करने पड़ते हैं। ऐसे खर्च की राशि प्रायः निश्चित रहती है, जैसे-मकान का किराया, बिजली का खर्च, बीमे की किस्तें, आय कर, शिक्षा शुल्क आदि। ऐसे व्यय में किसी प्रकार की कटौती करना असम्भव रहता है।

अर्ध-निर्धारित – व्यय-कछ ऐसे व्यय होते हैं जिनको करना अनिवार्य होता है पर इनकी धनराशि में कमी या वृद्धि की जा सकती है। कमी या वृद्धि परिवार के सदस्यों की आमदनी व परिस्थिति पर निर्भर करती है। आमदनी बढ़ने पर खाने तथा वस्त्र पर अधिक व्यय किया जा सकता है, इसके विपरीत आमदनी कम हो जाने पर सादा भोजन या सादा वस्त्रों पर जीवित रहा जा सकता है।

अन्य व्यय – कुछ ऐसे व्यय होते हैं जो व्यक्ति विशेष की आमदनी पर निश्चित होते हैं। धन की कमी होने पर ऐसे व्यय बन्द किए जा सकते हैं तथा आमदनी बढ़ने पर उन्हें फिर किया जा सकता है। मनोरंजन व सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर आय के अनुसार ही खर्च होने लगता है तथा आय कम होने पर उन्हें बन्द किया जा सकता है।

आकस्मिक व्यय – ये व्यय ऐसे होते हैं जो अतिथियों के आगमन, बीमारी, दुर्घटना आदि के कारण उत्पन्न हो जाते हैं। इनकी पूर्ति करना भी आवश्यक होता है।

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प्रश्न 5.
व्यय को सीमित रखने के लिए गृहिणी को किन बातों का ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर :
व्यय को सीमित रखने के लिए गृहिणी को अग्रलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  1. प्रत्येक गृहिणी को घर की आय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए ताकि वह ठीक बजट बना सके और खर्च भी उसी के अनुसार कर सके।
  2. प्रत्येक गृहिणी को घर में परिस्थितियों का ज्ञान होना चाहिए। परिवार में व्यक्तियों की संख्या, उनकी उम्र, उनकी आवश्यकताएँ, बच्चों की शिक्षा-श्रेणी आदि का ज्ञान गृहिणी को होना चाहिए।
  3. गृहिणी को पारिवारिक बजट बनाने का ज्ञान होना चाहिए।
  4. प्रतिदिन के व्यय का हिसाब रखा जाना चाहिए जिससे यह पता रहे कि किस मद में कितना खर्च हो चुका है और कितना भाग शेष बचा है। इससे अनावश्यक खर्चों को रोका जा सकता है।
  5. थोक क्रय करना चाहिए। इससे पूरे माह का सामान क्रय हो जाता है। सामान का मूल्य भी सस्ता रहता है और सामान ढोने आदि का खर्च भी बच जाता है।
  6. गृहिणी को बाजार भाव का ज्ञान भी होना चाहिए जिससे ठगे जाने की सम्भावना नहीं रहती।
  7. आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी ही करनी चाहिए।
  8. वस्तुओं को सदैव नकद खरीदना चाहिए। उधार खरीदने की आदत से व्यय असीमित हो जाता है।
  9. मितव्ययिता के साथ खर्च करने की आदत होनी चाहिए।

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प्रश्न 6.
व्यय को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से होते हैं ?
उत्तर :
परिवार पर किए गए व्यय निम्नलिखित तत्त्वों से प्रभावित होते हैं –
1. परिवार का ढाँचा – हमारे देश में दो प्रकार की परिवार व्यवस्था है। संयुक्त परिवार व्यवस्था तथा एकाकी परिवार व्यवस्था। संयुक्त परिवार में कुछ मदों जैसे मकान का किराया, नौकर का पारिश्रमिक, भोजन, विद्युत् आदि के खर्च सम्मिलित रूप से एक जगह हो जाते हैं। ऐसे परिवार में सम्मिलित व्यय का बोझ परिवार के सभी सदस्यों पर पड़ता है। एकाकी परिवार में सभी खर्चे एक ही व्यक्ति की आय से ही करने पड़ते हैं। संयुक्त परिवार में एकाकी की तुलना में अधिक बचत की जा सकती है।

2. परिवार के सदस्यों की संख्या – एक व्यक्ति की आय और परिवार में सदस्यों की अधिक संख्या वाली स्थिति में बचत की सम्भावना नहीं के बराबर होती है।

3. बच्चों की संख्या – जिस परिवार में बच्चे अधिक होते हैं, उसमें खर्च अधिक होते हैं। इसलिए कहते हैं-‘कम बच्चे सुखी, परिवार’।

4. रहन-सहन का स्तर – जिस परिवार के रहन-सहन का स्तर ऊँचा होता है वैसे परिवार को अपने स्तर को बनाए रखने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है।

5. परिवार के सदस्यों के व्यवसाय – परिवार के सदस्यों के व्यवसाय भी खर्च को प्रभावित करते हैं। व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने के लिए भी व्यवसाय में धन खर्च करते रहना पड़ता है।

6. सामाजिक तथा धार्मिक परम्पराएँ – प्रत्येक समाज तथा परिवार में ऐसी सामाजिक तथा धार्मिक परम्पराएँ होती हैं जिन्हें न चाहते हुए भी मानना पड़ता है और उन्हें निभाने में खर्च होता है। हमारे भारतीय समाज में आए दिन उत्सव होते हैं, जैसे-अन्नप्राशन, मुंडन, जनेऊ, विवाह, नामकरण, गृह-प्रवेश, मरणोपरान्त तेरहवीं आदि। इन उत्सवों को मनाने तथा सगे-सम्बन्धियों को भोज इत्यादि देने में बजट से अलग बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है। आज ये सब खर्च व्यर्थ माने जाते हैं।

7. गृहिणी की योग्यता एवं कुशलता – बुद्धिमानी से खर्च करने पर परिवार को अधिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। यदि गृहिणी कुशल है और वह सोच-समझकर खर्च करती है तो वह परिवार को सुख व शान्ति दे सकती है।

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प्रश्न 7.
बचत के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?
उत्तर :
बचत के प्रमुख लक्षण निम्न हैं –

  1. अन्य बन्द हो जाने पर, आय साधन-नौकरी छूट जाने या व्यवसाय में घाटा हो जाने पर बचत की राशि ही काम आती है।
  2. चोरी हो जाने, आग लग जाने एवं महँगाई बढ़ने पर बचत का सदुपयोग किया जाता है।
  3. आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी तथा बुढ़ापे में कार्य की असमर्थता के समय बचत ही काम आती है।
  4. मकान खरीदने, बनवाने या जमीन खरीदने के लिए बचत का ही उपयोग किया जाता है।
  5. बच्चों की ऊँची शिक्षा में बचत का उपयोग किया जाता है।
  6. सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों पर भी बचत का उपयोग होता है।
  7. राष्ट्र के विकास तथा रक्षा के साधनों पर बचत का उपयोग होता है।
  8. मुद्रा-स्फीति पर नियन्त्रण के लिए बचत करना आवश्यक है।

प्रश्न 8.
पारिवारिक बजट किस प्रकार बनाया जाता है?
उत्तर :
पारिवारिक बजट बनाने के लिए निम्न प्रकार तैयारी करते हैं
1. बजट बनाने से पूर्व निम्न सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं –

  • परिवार के सभी सदस्यों की संख्या (स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े आदि)।
  • परिवार के सदस्यों की विभिन्न साधनों से होने वाली आय।
  • परिवार के बजट की अवधि-मासिक बजट बनाना है या वार्षिक।

2. सूचनाएँ एकत्रित करने के बाद खर्चों के बारे में अनुमान लगाया जाता है। यह देखना होता है कि किन-किन मदों पर खर्च होना है। उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा तथा संख्या की सूची बनाई जाती है। वस्तुओं के मूल्य तथा उन पर व्यय किए गए कुल धन का पता लगाया जाता है।

3. पूरी सूची तैयार करने के बाद यह देखते हैं कि विभिन्न मदों पर आय का कितना प्रतिशत खर्च किया गया है। अन्त में आय में से व्यय निकालकर कुल बचत हुई या नहीं, यह देखते हैं। यदि व्यय अधिक है तो इसे किस प्रकार पूरा किया जा सकता है, यह देखते हैं। बजट बनाते समय आय का विभाजन इस प्रकार करना चाहिए जिससे आवश्यकताओं की पूर्ति करने के बाद कुछ धन भावी आवश्यकताओं के लिए भी बच जाए।

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प्रश्न 9.
गृहिणी मितव्ययिता कैसे कर सकती है?
उत्तर :
घर में मितव्ययिता के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं –

  1. अति आवश्यक वस्तुओं को ही खरीदना चाहिए।
  2. खरीददारी सदैव नगद करनी चाहिए, उधार कभी नहीं लेना चाहिए।
  3. सामान सदैव विश्वास की व अच्छी दुकानों से ही खरीदना चाहिए।
  4. पौष्टिक गुणों वाले सस्ते खाद्य-पदार्थ ही प्रयोग में लाने चाहिएं।
  5. फसल के समय अधिक सामग्री (जैसे-गेहूँ, चावल) खरीदकर उसे विधिपूर्वक सुरक्षित रखना चाहिए। फल व सब्जियों का संरक्षण करना चाहिए।
  6. प्रतिकूल मौसम में सस्ता सामान (जैसे-गर्मी में ऊन) खरीदना चाहिए।
  7. जल, ईंधन तथा बिजली का सावधानी से प्रयोग करना चाहिए। बेकार में इन्हें बरबाद नहीं करना चाहिए।
  8. घर की वस्तुओं की नियमपूर्वक देखभाल, सफ़ाई तथा मरम्मत करते रहना चाहिए।
  9. बच्चों के लिए ट्यूटर रखने के बजाय उन्हें परिवार के सदस्यों द्वारा खुद पढ़ाया जाना चाहिए।
  10. घर के कामों में भी सदस्यों को हाथ बँटाना चाहिए और नौकर कम-से-कम रखने चाहिए।

प्रश्न 10.
भारत में पारिवारिक बजट बनाने में क्या कठिनाइयाँ सामने आती हैं ?
उत्तर :
भारत में पारिवारिक बजट बनाने में निम्न कठिनाइयाँ सामने आती हैं
1. गृहिणियों में शिक्षा का अभाव – भारत में अधिकांश गृहिणियाँ या तो अशिक्षित हैं या बहुत कम पढ़ी-लिखी हैं। इस कारण उन्हें बजट बनाने का ज्ञान नहीं है।
2. बजट बनाने का आलस्य – बहुत-सी गृहिणियाँ बजट बनाने को एक अतिरिक्त कार्य समझती हैं। इस प्रकार आलस्य बजट बनाने में एक कठिनाई है।
3. गृहिणियों में व्याप्त अन्धविश्वास – भारत की अधिकांश गृहिणियाँ अन्धविश्वासों तथा कुप्रथाओं को मान्यता देती हैं, इस कारण वे परिवार की आय और व्यय की बातों को खुलकर नहीं कह पाती हैं।
4. उचित सम्पर्क का अभाव – सरकारी कर्मचारियों और साधारण जनता का सीधा सम्पर्क न होने के कारण जनता बजट बनाने की ओर विशेष ध्यान नहीं देती है।

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प्रश्न 11.
परिवार के लिए खरीदी जाने वाली वस्तुओं को कितनी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है?
अथवा
क्रय के कितने स्वरूप हैं?
उत्तर :
परिवार के लिए क्रय की जाने वाली वस्तुओं के चार स्वरूप हैं जो अग्रलिखित –
1. दैनिक क्रय – दैनिक क्रय में वे सभी वस्तुएँ आती हैं जिन्हें हम इकट्ठा खरीदकर नहीं रख सकते। उन्हें प्रतिदिन ही खरीदना चाहिए, जैसे-दूध, दही, पनीर, मक्खन, फल, सब्जी, अण्डे आदि। बहुधा ये वस्तुएं नियमित रूप से एक-दो बेचने वालों से ही खरीदी जाती हैं। इनमें से बहुत से बेचने वाले घर पर ही सामान दे जाते हैं। फल तथा ये सभी वस्तुएं मिश्रित दुकानों से खरीदनी चाहिए क्योंकि अनेक दुकानों से खरीदने पर वस्तुएँ अच्छी मिलती हैं।

2. मासिक उपयोग का सामान या आवधिक क्रय – पूरे माह के लिए सामान खरीद लिया जाता है। इसमें वे सभी वस्तुएँ खरीद ली जाती हैं जिनके खराब होने की सम्भावना नहीं रहती है और जिन्हें बार-बार खरीदे जाने से समय, धन, श्रम अधिक लगता है, जैसे अनाज, दालें, गुड़, साबुन आदि। कपड़े भी साल में दो-तीन बार इकट्ठे ही क्रय करके बनवा लिये जाते हैं। इस क्रय का बजट में स्थान होता है। इन वस्तुओं को भी निश्चित और हमेशा एक दुकान से नहीं खरीदना चाहिए।

3. आकस्मिक क्रय – इसके अन्तर्गत वे सभी वस्तएँ आती हैं जो कि आकस्मिक स्थिति में खरीदी जाती हैं, जैसे-अचानक बीमार पड़ने पर दवाइयाँ, इन्जेकशन, किसी के यहाँ से शादी का निमन्त्रण आने पर उपहार, भेंट आदि आकस्मिक रूप से खरीदी जाती हैं।

4. कदाचित् क्रय – इसके अन्तर्गत वे वस्तुएँ आती हैं जो कि कभी-कभी खरीदी जाती हैं। कई परिवार तो उन्हें जीवन में एक ही बार खरीद सकते हैं, जैसे-मकान, जमीन, मोटर-कार, फ्रिज, आभूषण। इनका खरीदा जाना बचत पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 12.
डाकघर बचत बैंक में खाता खोलने की विधि बताइये।
उत्तर :
खाता खोलने के लिए अपनी सुविधानुसार निकटतम डाकघर में जाकर निर्धारित फार्म भरकर तथा धनराशि (जो जमा करनी हो या कम-से-कम पाँच रुपये) देकर खाता खुलवाया जा सकता है। डाकघर का अधिकारी उस व्यक्ति के नाम पास बुक बना देता है तथा जमा की गई राशी को पास बुक में चढ़ाकर मोहर लगा देता है। अब इस पास बुक की सहायता से कभी भी रुपये जमा कराये जा सकते हैं। एक व्यक्ति द्वारा खोले गये खाते में अधिक-से-अधिक ₹ 25,000 तथा दो व्यक्तियों के संयुक्त खाते में अधिक-से-अधिक ₹ 50,000 जमा हो सकते हैं। पास बुक खो जाने पर खातेदान प्रार्थना-पत्र निर्धारित शुल्क देकर नई पास-बुक बनवा सकता है।

प्रश्न 13.
भविष्य निधि (प्रॉवीडेन्ट फण्ड) क्या होती है? यह कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर :
भविष्य निधि नौकरी करने वाले की अनिवार्य बचत योजना होती है। इस योजना के अन्तर्गत प्रति माह वेतन से निश्चित धनराशि काटकर जमा कर ली जाती है। यह दो प्रकार की होती है –
1. अनिवार्य भविष्य निधि योजना (Compulsory Provident Fund) यह योजना गैर-सरकारी, अर्द्ध-सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, फैक्ट्रियों, फर्मों, कारखानों के कर्मचारियों पर लागू होती है। इसमें संस्था प्रत्येक कर्मचारी के वेतन से निश्चित हिसाब से पैसा काटकर भावी खाते में जमा कर देती है। कार्यरत रहने पर की गई जमा राशि का सेवा-निवृत्ति के बाद भुगतान कर दिया जाता है। यदि सेवक की। जाती है, तो उसके वारिसों को उक्त धनराशि दी जाती है। यदि उच्च शिक्षा, लम्बी बीमारी, आवास-गृह हेतु धन की आवश्यकता होती है तो उसे आंशिक भुगतान लेकर प्राप्त किया जा सकता है।

2. सामान्य भविष्य निधि योजना (General Provident Fund) यह योजना सरकारी कर्मचारियों पर लागू होती है। इसमें वेतन से निश्चित धन प्रति मास काटकर शासकीय कोष में जमा कर दिया जाता है। यदि कोई व्यक्ति अधिक राशि जमा करवाना चाहता है तो उसकी स्वेच्छा से अधिक काट लिया जाता है। शासकीय कर्मचारी की सेवा मुक्ति के बाद जमा राशि ब्याज सहित उसे वापस लौटा दी जाती है। यदि कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके द्वारा उल्लेख किए गए वारिस को भुगतान कर दिया जाता है।

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प्रश्न 14.
परिवार की आय से आप क्या समझते हो? आय कितनी तरह की हो सकती है?
अथवा
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है ? प्रत्येक का 2-2 पंक्तियों में वर्णन करें।
उत्तर :
परिवार की आय को दो भागों में विभाजित किया जाता है-प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष ।
प्रत्यक्ष आय – जो आय पैसे के रूप में घर आती है, उसको प्रत्यक्ष आय कहा जाता है। यह किसी दुकान से रोजाना की बचत, महीने का वेतन, छिमाही फसलों की कमाई या फैक्टरियों वालों का मुनाफ़ा आदि के रूप में हो सकती है। इसके अतिरिक्त अपने मकान का किराया, ज़मीन का वार्षिक ठेका (आय), बैंक का ब्याज आदि को भी प्रत्यक्ष आय कहा जाता है।

अप्रत्यक्ष आय – यह आय उन सुविधाओं के कारण होती है जो किसी भी नौकरी करने वाले को मिली हों और उनके न मिलने से घर वालों को आय में से खर्च करना पड़े जैसे कि सरकारी घर, मुफ्त दवाइयां या डॉक्टरी सहायता, बिना फ़ीस से बच्चों की पढ़ाई पर, सरकारी कार आदि।

प्रश्न 14. (A)
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 14 का उत्तर।

प्रश्न 15.
खर्च से आप क्या समझते हो? खर्च को कौन-कौन से भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर :
खर्च परिवार की आय और उसकी आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। कुछ खर्च ऐसे होते हैं जो परिवार को चाहे आय आधिक हो या कम करने ही पड़ते हैं पर कुछ खर्चे ऐसे होते हैं जिनको आय बढ़ने या घटने से बढ़ाये या घटाये जा सकते हैं जैसे मनोरंजन और हार-श्रृंगार का खर्चा । खर्च को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. निश्चित खर्च-जैसे मकान का किराया, बिजली का बिल, स्कूल की फीस आदि वे खर्च हैं जो निश्चित होते हैं।
2. अर्द्ध-निश्चित खर्च-ये वे खर्च हैं जो आवश्यक होते हैं परन्तु इनमें परिवर्तन किया जा सकता है जैसे मकान का रख-रखाव, कपड़े और खाने पीने आदि का खर्च।
3. अतिरिक्त खर्च-ये वे खर्च हैं जो आय बढ़ने से बढ़ाए और घटने से घटाए या बन्द किए जा सकते हैं जैसे मनोरंजन और हार भंगार पर खर्च आदि।

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प्रश्न 15. (A)
निर्धारित व्यय व अर्धनिर्धारित व्यय में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 15 का उत्तर।

प्रश्न 16.
घर के खर्चों को तुम कौन-कौन से मदों में बांटोगे?
उत्तर :
घर में कई प्रकार की वस्तुओं पर खर्च किया जाता है। घर के खर्च को मुख्य रूप में दो सूचियों में विभाजित किया जा सकता है
1. आवश्यक सूची-इस सूची में घर, भोजन, कपड़े, दवाई, बच्चों की पढ़ाई पर खर्चा आदि शामिल हैं। यह खर्चा प्रत्येक स्थिति में करना ही पड़ता है जिससे परिवार के आवश्यक खर्चे पूरे हो सकें।

2. कम आवश्यक सूची-इस सूची में मनोरंजन, हार-शृंगार, सैर-सपाटा, सामाजिक और धार्मिक समागमों के खर्चे शामिल होते हैं। ये खर्चे ऐसे होते हैं जिनको कुछ समय के लिए टाला भी जा सकता है और पैसा न होने की सूरत में ये खर्चे बन्द भी किए जा सकते हैं।

प्रश्न 17.
बचत क्यों और कैसे की जा सकती है?
उत्तर :
परिवार की आय में से खर्च के पश्चात् जो बचता है उसको बचत कहा जाता है। प्रत्येक मनुष्य को अपनी आय का कुछ प्रतिशत भाग अवश्य बचाना चाहिए। निम्नलिखित कारणों से बचत करनी आवश्यक होती है
1. अचानक बीमारी – कई बार घर का कोई सदस्य अचानक किसी गम्भीर बीमारी का शिकार हो सकता है और उसका इलाज कराने के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता पड़ती है और ऐसी स्थिति में बचत काम आती है।

2. परिवार पालक की मृत्यु – कई बार किसी दुर्घटना या बीमारी कारण पारिवारिक मुखिया की अचानक मृत्यु हो सकती है जिससे परिवार की आय बन्द या कम हो सकती है। ऐसी स्थिति में बचत काम आती है।

3. अचानक घाटा – व्यापार करने वाले लोगों को कई बार व्यापार में बहुत अधिक घाटा पड़ जाता है और उनके पास आय का साधन नहीं रहता। ऐसी स्थिति में बचत ही काम आती है।

4. भविष्य की आवश्यकताएं – प्रत्येक परिवार की अपनी भविष्य की आवश्यकताएं होती हैं जैसे बच्चों की उच्च शिक्षा, विवाह शादियों और मकान बनाने आदि के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। इन कामों के लिए बचाया हुआ धन प्रयोग किया जाता है।

5. सुरक्षित बुढ़ापे के लिए – बुढ़ापा एक कुदरती अवस्था है। इस अवस्था में मनुष्य कमाई करने के योग्य नहीं रहता, इसलिए इस समय उसको अपने खर्चे भोजन, कपड़े, आवास और दवाइयों के लिए धन की आवश्यकता होती है जोकि की गई बचत में से ही पूरी की जा सकती है।

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प्रश्न 18.
खर्च पर कौन-कौन से तत्त्व प्रभाव डालते हैं?
अथवा
व्यय को प्रभावित करने वाले तत्त्व लिखें।
उत्तर :
पारिवारिक आवश्यकताएं, मनोरंजन और अन्य सामाजिक और धार्मिक कार्यों पर प्रयोग की गई धन राशि को खर्च कहा जाता है। प्रत्येक परिवार के खर्चे भिन्न-भिन्न होते हैं। खर्च पर निम्नलिखित तत्त्व प्रभाव डालते हैं –
1. पारिवारिक सदस्यों की संख्या-यदि परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक है तो खर्च भी अधिक होगा इसके अतिरिक्त सदस्यों की आयु और स्वास्थ्य से भी खर्च का सम्बन्ध है।

2. परिवार का सामाजिक स्तर-समाज में परिवार का क्या स्तर है इससे भी परिवार के खर्च पर प्रभाव पड़ता है। समाज में ऊँचा स्तर रखने वाले परिवारों को सामाजिक और धार्मिक कार्यों में अधिक योगदान देना पड़ता है।

3. व्यवसाय – व्यक्ति का व्यवसाय भी उनके खर्च को प्रभावित करता है जैसे राजनीतिज्ञ और व्यापार करने वाले लोगों को अपने व्यवसाय की सफलता के लिए क्लबों, मनोरंजन, महत्त्वपूर्ण लोगों की खातिरदारी पर खर्च करना पड़ता है।
इन तत्त्वों के अतिरिक्त व्यक्ति का स्वभाव, आदतें, दोस्ती का घेरा और मानसिक स्तर भी उसके खर्च को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 19.
प्रतिदिन का हिसाब लिखना क्यों ज़रूरी है और कैसे रखा जाता है?
अथवा
प्रतिदिन का हिसाब-किताब रखना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर :
रोज़ाना हिसाब रखना सीमित आय वालों के लिए अति आवश्यक है, क्योंकि रोजाना हिसाब रखने से गृहिणी को यह पता चलता रहता है कि क्या खर्च बजट के अनुसार हो रहा है। यदि खर्चा बढ़ जाए तो गृहिणी को उसी दिन मालूम हो जाता है और दूसरे दिन वह जहां हो सके खर्चा कम कर के बजट को संतुलित कर सकती है। रोज़ाना हिसाब लिखने से गृहिणी परिवार के अन्य सदस्यों को साथ-साथ खर्चे के बारे में सावधान करती रहती है जिससे परिवार के दूसरे सदस्य भी फिजूलखर्ची नहीं करते।

हिसाब रखना-हर रोज़ का हिसाब रखने के लिए एक कापी या डायरी का प्रयोग किया जा सकता है। प्रतिदिन का हिसाब रखने के लिए हर रोज़ एक सफे (पेज) का प्रयोग करना चाहिए। पेज पर तारीख डाल कर चीज़ का ब्योरा अच्छी तरह देकर उसका रेट और कुल रकम लिखनी चाहिए। अगर किसी को सेवा फल के तौर पर कोई रकम दी जाए तो वह भी लिख लेनी चाहिए। महीने के अन्त में हर मद पर हुए खर्चे को अलग-अलग कर लेना चाहिए ताकि पता चल जाए कि किसी मद पर फजूल खर्च तो नहीं हुआ।

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प्रश्न 20.
खर्च की कौन-सी मदों से उच्च आय वालों का प्रतिशत खर्च कम आय वालों से अधिक होता है?
उत्तर :
खर्चे की मदें अमीर और ग़रीब दोनों की एक ही हैं परन्तु उच्च आय वर्ग, कम आय वालों से कई मदों पर अधिक खर्च करते हैं। जैसे भोजन, कपड़े, मनोरंजन और घर चलाना। भोजन में उच्च आय वर्ग महंगे भोजन पदार्थों का प्रयोग करते हैं और इसके साथ साथ उनका बाहर भोजन करने का खर्च अधिक होता है।

इस तरह कपड़ों और जूतों पर भी इस वर्ग का खर्च अधिक होता है। अमीर या उच्च आय वर्ग के लोग महंगे और संख्या में अधिक कपड़े बनाते हैं। इसके साथ ही जूते भी कपड़ों से मिलते या मेल खाते खरीदते हैं इसलिए इस तरह उनका कपड़ों के ऊपर कुल खर्चा अधिक हो जाता है। इसके अतिरिक्त उच्च आय वर्ग के लोग कम आय वालों से मनोरंजन पर अधिक खर्च करते हैं। वह सैर-सपाटे, फिल्मों, हार-शृंगार, सिगरेट, शराब आदि के खर्चे बढ़ा लेते हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिक और धार्मिक कामों पर भी अधिक खर्च करते हैं। इसके साथ-साथ उनके नौकरों, पेट्रोल और टेलीफोनों के खर्चे भी बढ़ जाते हैं।

प्रश्न 21.
धन निवेश करने की किसी एक योजना के बारे में लिखें।
उत्तर :
देखें दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 8 का उत्तर।

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प्रश्न 22.
पारिवारिक व्यय का ब्योरा रखने के कोई दो लाभ बताएं।
उत्तर :
1. व्यय का ब्योरा रखने से मितव्ययिता आती है।
2. हिसाब रखने से बचत करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 23.
कोई दो ऐसे तथ्य बतायें जो निवेश संस्था चुनने से पूर्व आप ध्यान में रखेंगे ?
उत्तर :
1. आयकर से छुटकारा-हमें वहां धन लगाना चाहिए जहां पर आयकर से छूट मिलती हो। विभिन्न बचत योजनाओं में आयकर छूट का प्रतिशत भिन्न-भिन्न होता है। अधिक प्रतिशत छूट वाला विकल्प उत्तम रहेगा।
2. आसान उपलब्धि-जैसे ही धन वापसी का समय आये तो धन वापसी आसान होनी चाहिए।

प्रश्न 24.
व्यय को प्रभावित करने वाले चार कारक बताएँ।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आय का मुख्य साधन है-‘काम के बाद प्राप्त होने वाला धन’। लेकिन इसके अतिरिक्त परिवार को अन्य स्रोतों से भी धन प्राप्त हो सकता है।
पारिवारिक आय को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. मौद्रिक आय (Money Income)
  2. वास्तविक आय (Real Income) प्रत्यक्ष आय
  3. आत्मिक आय (Psychic Income) अप्रत्यक्ष आय

मौद्रिक आय, ‘प्रत्यक्ष’ व ‘अप्रत्यक्ष’ दोनों तरह की वास्तविक आय तथा उनके उपभोग से प्राप्त मनोवैज्ञानिक सन्तुष्टि के योग को कुल आय (Total Income) कहते हैं।

1. मौद्रिक आय (Money Income) परिवार के सभी सदस्यों को किसी भी प्रकार से मुद्रा के रूप में प्राप्त हुई आय को मौद्रिक आय कहते हैं। इसके अन्तर्गत परिवार के सभी सदस्यों को सभी साधनों से प्राप्त वेतन, व्यापार, उद्योग-धन्धों से प्राप्त धन, मकान से प्राप्त किराया, बचत किए हुए धन से प्राप्त ब्याज या और किसी भी रूप में हुए लाभ आते हैं। इस प्रकार से प्राप्त धन परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किसी भी समय प्रयोग में लाया जा सकता है।

2. वास्तविक आय (Real Income) किसी भी समय पर मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए उपलब्ध वस्तुएँ तथा सुख-सुविधाओं को वास्तविक आय कहा जा सकता है। यह आय समयानुसार परिवर्तनशील होती है। इसमें परिवार के किसी भी सदस्य को अपने कार्य-स्थल से धन के अतिरिक्त प्राप्त होने वाली वस्तुएँ तथा सुविधाएँ भी सम्मिलित होती हैं और इस प्रकार यह एक नियत समय के लिए निर्धारित होती है।

यह आय दो प्रकार की होती है –
(i) वास्तविक प्रत्यक्ष आय (Real Direct Income)
(ii) वास्तविक अप्रत्यक्ष आय (Real Indirect Income)

(i) वास्तविक प्रत्यक्ष आय – परिवार को वास्तविक प्रत्यक्ष रूप से होने वाली आय मुख्यतः वस्तुओं एवं सुविधाओं के रूप में ही प्राप्त होती है उदाहरणतः कई बार कार्य-स्थल से वेतन के अलावा कुछ ओर सुविधाएँ, जैसे कि रहने के लिए घर, कार, औषधि खर्चा, टेलीफोन का खर्चा, आने-जाने का खर्चा, यूनीफार्म (Uniform), नौकर आदि भी मिलते हैं और इस प्रकार यह परिवार के लिए प्रत्यक्ष आय का ही एक साधन है। इसी प्रकार गाँवों में किसानों की भूमि में खेती करने पर उनकी मेहनत के बदले उन्हें नगद पैसे के स्थान पर अधिकतर भूमि में हुई उपज में से एक हिस्सा दे दिया जाता है। यह भी परिवार के लिए प्रत्यक्ष आय ही है।

(ii) वास्तविक अप्रत्यक्ष आय-इस प्रकार की आय मुख्यतः परिवार के सदस्यों के ज्ञान व निपुणता के फलस्वरूप प्राप्त होती है उदाहरणार्थ परिवार को किसी सदस्य के बिजली व उपकरण ठीक करने के काम जानने से घर में बिजली या फिर कोई उपकरण बिगड़ जाने पर उसे ठीक करने के लिए बाहर से किसी व्यक्ति को बुलवाने पर होने वाले धन को बचाया जा सकता है। अन्य उदाहरणों में घर में बागबानी करके कुछ फल व सब्जियाँ आदि उगाकर तथा घर में ही कपड़े आदि सिलकर दर्जी को दी जाने वाली सिलाई से बचत की जा सकती है।

घर में इसी प्रकार से यदि गृहिणी अन्य कार्य, जैसे-घरेलू उपयोग के लिए फल-सब्जियों का संरक्षण करना, घर में कपड़े धोना आदि स्वयं करे तो वह परिवार के लिए एक प्रकार से अप्रत्यक्ष रूप से आय अर्जित कर रही है। इस प्रकार संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि वास्तविक आय वह आय होती है जो परिवार को सुविधाओं के रूप में प्राप्त होती है और जिनके प्राप्त न होने पर परिवार को अपनी मौद्रिक आय में से खर्च करना पड़ता है।

3. आत्मिक आय (Psychic Income) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त मौद्रिक तथा वास्तविक आय के व्यय से प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि आत्मिक आय कहलाती है, हालांकि इस प्रकार की आय का कोई भी मापदण्ड नहीं है क्योंकि किसी भी आय के व्यय से किसी मनुष्य को कितनी सन्तुष्टि होती है, इसका माप लगाना अति कठिन है। यही नहीं, हर मनुष्य या परिवार को एक निश्चित मात्रा में किए गए व्यय से प्राप्त सन्तुष्टि भिन्न-भिन्न होती है परन्तु फिर भी आत्मिक आय में वृद्धि के लिए धन-प्रबन्ध का समुचित उपयोग बहुत ही आवश्यक है।

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प्रश्न 1. (A)
मौद्रिक आय से आप क्या समझते हैं ?
(B) मौद्रिक आय के चार उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 2.
पारिवारिक आय की सम्पूर्ति करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है ? आय की सम्पूर्ति करने के विभिन्न तरीकों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर :
परिवार चाहे किसी भी आय वर्ग का हो, उसे धन को समझदारी से प्रयोग करना चाहिए। हमारी दिन प्रतिदिन की अनगिनत आवश्यकताएँ होती हैं और उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आय के साधन सीमित होते हैं। इस कारण केवल पारिवारिक आय तथा व्यय में सन्तुलन लाना बहुत कठिन हो जाता है, अपितु बचत की तो गुंजाइश ही नहीं रह जाती। इन सबके अतिरिक्त परिवार की आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करना भी बहुत ही आवश्यक हो जाता है जिसके लिए पारिवारिक आय की सम्पूर्ति की आवश्यकता पड़ती है। पारिवारिक आय की सम्पूर्ति निम्नलिखित तरीकों द्वारा की जा सकती है –

1. गृह-उद्योगों द्वारा (Through Household Production) – गृहिणी घर में कुछ साधारण उद्योगों द्वारा धन में वृद्धि कर सकती है। उदाहरणार्थ अगर गृहिणी सिलाई कढ़ाई में निपुण हो तो उसे चाहिए कि वह घर के सभी कार्यों को सम्पन्न कर कुछ खाली समय अवश्य निकाल ले। इस समय का सदुपयोग वह कपड़ों की सिलाई करके और उन कपड़ों को बेचकर, कुछ धन बचाकर आय की सम्पूर्ति अवश्य कर सकती है। इसी प्रकार मौसम में फल तथा सब्जियों का संरक्षण करके बाज़ार में बेचना, पापड़-बड़ियाँ आदि बनाकर बेचना भी कुछ अन्य उदाहरण हैं। न केवल गृहिणी ही, वरन् घर का कोई भी सदस्य अपनी कुशलता, निपुणता तथा क्षमता का सही उपयोग करके पारिवारिक आय की सम्पूर्ति करने में सहायक हो सकता है।

2. पार्ट-टाइम नौकरी द्वारा (Through Part-Time Jobs) – गृहिणी या घर का कोई भी अन्य सदस्य कोई पार्ट-टाइम नौकरी कर ले तो परिवार की आय में वृद्धि की जा सकती है और आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। अत: गृहिणी को चाहिए कि गृह-संचालन में समय की उचित व्यवस्था करके कुछ समय बचाकर पार्ट-टाइम नौकरी करे जिससे कि परिवार का जीवन-स्तर ऊँचा उठाया जा सके।

3. परिवार की वास्तविक आय में बढ़ोत्तरी करना (Increase in the Real Income of the Family) परिवार की मौद्रिक आय के साथ-साथ वास्तविक आय में भी वृद्धि की जा सकती है। घर के आगे या पीछे पड़े खाली स्थान पर गृह-वाटिका बनाई जा सकती है, जिसमें विभिन्न प्रकार के फल तथा सब्जियाँ उगाई जा सकती हैं। इस प्रकार फल व सब्जियों पर व्यय होने वाले धन को बचाकर उसका उपयोग अन्य आवश्यक कार्यों के लिए किया जा सकता है।

उपरोक्त के अलावा पारिवारिक आय त में निम्नलिखित बातें भी सहायक होती हैं –

  1. समय का उचित विभाजन – गृह कार्यों का परिवार के सदस्यों में उचित विभाजन कर गृहिणी निर्धारित समय में गृह कार्य समाप्त कर बाहर भी कार्य कर सकती है या गृह उद्योग से आय को बढ़ा सकती है।
  2. श्रम एवं समय की बचत के साधनों का प्रयोग – इन साधनों द्वारा समय की बचत होती है जिसे अन्य गृह व्यवसाय में लगाकर धन उपार्जन किया जा सकता है।
  3. खाद्य – पदार्थों का संरक्षण एवं संग्रहीकरण-मौसम के अनुसार खाद्य-पदार्थों का संरक्षण तथा संग्रहीकरण कर व्यय में मितव्ययिता की जा सकती है जैसे – मौसम में अनाज सस्ते होते हैं, मौसमी फलों तथा सब्जियों को सॉस, चटनी, जैम, अचार, मुरब्बों आदि के रूप में संरक्षित करना।
  4. धन का मितव्यय-विवेकपूर्ण व्यय से बचत होती है।
  5. बचत किए हुए धन का उचित विनियोग-बचत के उचित विनियोग से धन में वृद्धि होती है। ब्याज के रूप में अतिरिक्त आय की वृद्धि होती है। अतः बचत का उचित विनियोग भी आवश्यक है। ब्याज से आय की कमी की पूर्ति होती है।

इस प्रकार उपरोक्त तरीकों से अर्जित सम्पूर्ण आय से परिवार की आवश्यकताओं को किसी सीमा तक पूरा किया जा सकता है, परन्तु साथ ही यह भी ज़रूरी है कि गृहिणी अपनी पारिवारिक आय का योजनापूर्वक उपयोग करे। अधिकतर गृहिणियाँ बिना योजना के ही धन का व्यय करती रहती है, जिसके कारण महीने के अन्त में कई महत्त्वपूर्ण कार्य अधूरे ही रह जाते हैं और परिवार के सभी लक्ष्यों की पूर्ति होना सम्भव नहीं हो पाता है। गृहिणी को चाहिए कि बचत का बजट बनाए जिससे पारिवारिक आय का कुछ अंश आकस्मिक आवश्यकताओं के लिए बचत के रूप में संग्रहित हो सके।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पारिवारिक आय तथा व्यय में सन्तुलन लाने के लिए आय की सम्पूर्ति करना परिवार के लिए सहायक है। अत: किसी भी परिवार को सुखमय बनाने के लिए पारिवारिक आय का सही उपयोग तथा आवश्यकता पड़ने पर पारिवारिक आय को विभिन्न तरीकों से बढ़ाना भी अत्यन्त आवश्यक होता है।

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प्रश्न 2.A.
आय की सम्पूर्ति के तरीके बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 3.
परिवार का हिसाब रखने के क्या लाभ होते हैं ?
अथवा
परिवार में आय-व्यय का विवरण रखना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
परिवार की अर्थ – व्यवस्था को ठीक बनाए रखने के लिए परिवार की आय तथा विभिन्न उद्देश्यों को ध्यान में रखकर बजट बना लेना ही पर्याप्त नहीं होता है, बल्कि विभिन्न मदों पर खर्च किए जाने वाले पैसे का हिसाब-किताब रखना भी बहुत ज़रूरी होता है। घर में इतने प्रकार के खर्चे होते हैं, ‘सभी को याद रखना सम्भव नहीं होता और मानसिक बोझ लदा रहता है। बाजार का हिसाब-किताब रखने के लिए अलग से कापी होनी चाहिए। कापी के ऊपर के पृष्ठ पर ‘बाज़ार का हिसाब’ लिखना चाहिए। प्रत्येक वस्तु का मूल्य अलग-अलग लिखकर उससे प्रतिदिन के खर्च का जोड़ रात को लिख लिया जाए।

कई दिन का हिसाब यदि एक साथ लिखा जाता है तो इसमें भूलने का भय रहता है। हिसाब लिखते समय पृष्ठ के ऊपर तिथि एवं दिन अवश्य लिखना चाहिए। प्रत्येक कापी के पृष्ठ पर केवल एक दिन का हिसाब लिखने से देखने में आसानी होती है। हिसाब की कापी भी एक निर्धारित स्थान पर ही रखनी चाहिए। इससे कापी ढूँढ़ने में व्यर्थ में समय नष्ट नहीं होता और ढूँढने में कठिनाई भी नहीं होती। महीने के शुरू में ही गृह-स्वामिनी को खर्च का ब्योरा बना लेने से सुविधा रहती है तथा व्यर्थ की मदों पर फ़िजूल खर्च का भी भय नहीं रहता।

परिवार में आय-व्यय के विवरण रखने से निम्नलिखित लाभ होते हैं –

1. विभिन्न मदों के लिए निश्चित की गई धनराशि की उपयुक्तता का पता चलता है। यदि धनराशि कम पड़ जाती है तो इस बात का ध्यान रखा जा सकता है कि अगली बार बजट बनाते समय उस मद के लिए अधिक धनराशि नियत की जा सके। इसके विपरीत यदि निर्धारित धनराशि अधिक हो तो उससे सही करने में सहायता मिलती है।
2. कई पदार्थ, जैसे-अखबार, दूध आदि का मूल्य नकद नहीं चुकाया जाता है और महीने के अन्त में ही रकम का भुगतान किया जाता है। यदि नियमित रूप से दैनिक हिसाब लिखा हुआ हो तो भुगतान करने में परेशानी नहीं होती।
3. परिवार के विभिन्न सदस्यों की इच्छाओं-आकांक्षाओं का पता चल जाता है।
4. नई गृहस्थी की पारिवारिक आवश्यकताओं का ज्ञान हो जाता है।
5. आकस्मिक खर्चों का अनुमान लगाना सरल हो जाता है।
6. महीने के प्रारम्भिक दिनों में हाथ में अधिक पैसा होने से अधिक खर्चा हो जाता है। यदि दैनिक हिसाब लिखा हो तो आगामी दिनों में व्यय को सीमित करके सन्तुलित किया जा सकता है।
7. महीने भर बाजार से उधार सामान लेते रहने वाले परिवार में तो हिसाब-किताब लिखना और भी आवश्यक हो जाता है, जिससे दुकानदार किसी प्रकार की हेराफेरी न कर सके।
8. खर्चे का हिसाब-किताब रखने से मितव्ययिता आती है।
9. हिसाब रखने से गृहिणी को बचत करने की प्रेरणा मिलती है।
10. हिसाब रखने से नौकर की चोरी की आदत को बढ़ावा नहीं मिलता।

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प्रश्न 4.
घरेलू हिसाब-किताब की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर :
परिवार में हिसाब-किताब की कुछ विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. पारिवारिक वित्त योजना – इसे बजट विधि भी कहते हैं। इस विधि के अन्तर्गत परिवार की सारी आय को एकत्रित करके बजट के अनुसार विभिन्न मदों में बाँट देते हैं। पूरा पैसा गहस्वामी या गृहिणी दोनों में से किसी के हाथ में होता है, या दोनों मिलकर खर्चा करते हैं।

2. आबंटन विधि – इस विधि में यह तय कर लिया जाता है कि आय का कितना भाग पारिवारिक खर्च के लिए है और वह गृहिणी को दे दिया जाता है। शेष अंश गृहस्वामी मकान के किराये तथा वैयक्तिक खर्चे के लिए अपने पास रख लेता है।

3. बराबर वेतन विधि – इस विधि में परिवार की आय में से परिवार के सभी प्रकार के खर्चों के लिए अपेक्षित धनराशि निकाल ली जाती है। शेष धन को पति-पत्नी वैयक्तिक खर्चे के लिए बराबर बाँट लेते हैं।

4. आय-व्यय की बराबर बाँट विधि-इस विधि के अन्तर्गत पूरी आय तथा खर्चों को दो बराबर-बराबर भागों में बाँट लिया जाता है। आय और व्यय का एक भाग पत्नी के तथा दूसरा भाग पति के हिस्से रहता है। जिन घरों में पति व पत्नी दोनों कमाते हैं, वहाँ इस पद्धति का प्रचलन अधिक है।

5. वितरण विधि – इस विधि में पूरी आय सामान्यतः गृहस्वामी के हाथ में रहती है और सभी उसी से अपनी आवश्यकतानुसार पैसा माँगते हैं।

6. अलग – अलग लिफाफों में पैसे रखना-खर्च के हिसाब-किताब की एक सरल विधि यह है कि बजट में जिस-जिस मद के लिए जितनी धनराशि निश्चित की गई है उसे अलग-अलग लिफाफों में डालकर लिफाफे पर मद का नाम लिख लिया जाता है। जिस समय जो खर्च करना होता है, उस समय उसी लिफाफे में से पैसे निकालकर खर्च कर लिया जाता है। इस विधि से महीने के अन्त में यह तो पता आसानी से चल जाता है कि किस मद में कितना खर्च हुआ है, परन्तु मद का पूरा हिसाब नहीं रखा जा सकता है।

7. अलग – अलग कार्ड बनाना-खर्चे का हिसाब-किताब रखने की यह अच्छी विधि है। इस विधि में विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए अलग-अलग कार्ड बना लिए जाते हैं, जैसे-दूध वाले के लिए कार्ड, धोबी के लिए अलग कार्ड, किराने वाले के लिए कार्ड आदि। इस विधि का दोष यह है कि कार्ड के खोने की सम्भावना रहती है और वर्ष भर में इतने कार्ड एकत्रित हो जाते हैं कि वार्षिक खर्च का आसानी से पता नहीं लगता।

8. खर्च की कापी बनाना – इस विधि में एक कापी, डायरी या रजिस्टर में प्रतिदिन विभिन्न मदों पर होने वाले खर्च को लिख लिया जाता है, जिससे प्रतिदिन का कुल व्यय निकल सकता है। दूध, अखबार, धोबी आदि के लिए महीने के शुरू में ही तारीख डालकर लेखा बना लिया जाता है तथा प्रतिदिन की मात्रा और मूल्यों को भर देते हैं। महीने के अन्त में इनका जोड़ निकाल लेते हैं।

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प्रश्न 5.
दूध का हिसाब रखना क्यों आवश्यक है ? इसके क्या नियम हैं ? दूध वाले के हिसाब-किताब का नमूना बनाइये।
उत्तर :
दूध का पैसा प्रतिदिन के हिसाब से भी चुकता किया जाता है, परन्तु इसमें असुविधा होती है। बड़े-बड़े शहरों में जहाँ सरकारी डेरियाँ होती हैं, वहां दूध की मात्रा प्रतिदिन के हिसाब से निर्धारित की जाती है। उपभोक्ता यदि इससे कम व अधिक लेना चाहता है तो नहीं ले सकता, अतः दूध का सीधा हिसाब होने से इसमें हिसाब रखने की आवश्यकता नहीं होती। भारतवर्ष में अधिकतर प्राइवेट डेरियों तथा दुकानों से दूध आता है। दूध ग्वालों द्वारा घरों में लाया जाता है जो कि अधिकतर अनपढ़ होते हैं। दूध का हिसाब रखना गृहिणी के लिए जरूरी हो जाता है। हिसाब न रखने से यह पता नहीं चल सकता कि किस दिन दूध कम या अधिक आया, किस दिन नहीं लिया गया तथा महीने में कुल दूध कितना लिया गया। इससे डेयरी वाला हिसाब में गड़बड़ी कर सकता है। दूध की मात्रा ज्यादा बतलाकर अधिक रुपये ले सकता है।

दूध का हिसाब रखने के नियम –

  1. दूध का हिसाब रखने के लिए अलग कापी हो।
  2. दूध का हिसाब प्रतिदिन लिख लेना चाहिए।
  3. हिसाब की कापी के प्रत्येक पृष्ठ का प्रयोग करें जिससे वह व्यर्थ में नष्ट न हो।
  4. इसके लिए हिसाब-किताब की तालिका अवश्य बनाई जाए।

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प्रश्न 6.
बचत की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर :
बचत की आवश्यकता निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होती है –
1. आपात्कालीन स्थितियों के लिए-भविष्य अनिश्चित होता है तथा परिवार के लिए कई ऐसी स्थितियाँ आ सकती हैं जिनका सामना करने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता पड़ती है
(i) बीमारी-परिवार का कोई भी सदस्य जब किसी गम्भीर रोग से ग्रस्त हो जाता है तो उसकी चिकित्सा के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी संकटकालीन स्थिति में परिवार द्वारा पहले से बचाया हुआ धन ही काम आता है।

(ii) किसी दुर्घटना के कारण असमर्थता-कई बार दुर्घटना से गृहस्वामी अपंग हो जाता है तथा काम करने योग्य नहीं रहता है। ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए बचत किए गए धन की आवश्यकता होती है।

(iii) आय बन्द होना या कम होना-कई कारणों से, जैसे-नौकरी छूटना, व्यापार बन्द होना या व्यापार में घाटा होने से आय बन्द हो जाती है या कम हो जाती है लेकिन अन्य व्यय उतना ही रहता है। ऐसी स्थिति में बचत किया हुआ धन बहुत काम आता है और जब तक दूसरी नौकरी या व्यापार करते हैं तब तक इसी राशि से व्यय को सीमित करके काम चलाया जा सकता है।

(iv) गृहस्वामी का निधन हो जाने पर-मानव जीवन अस्थिर है। गृहस्वामी के निधन के बाद परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति से बचत की गई राशि, जैसे-जीवन बीमा आदि परिवार को आर्थिक संरक्षण प्रदान करती है।

(v) अन्य आकस्मिक दुर्घटनाएँ-घर में आग लग जाने के कारण या चोरी हो जाने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है तथा इस क्षति को बचत किए गए धन द्वारा ही पूरा किया जा सकता है।

2. सुरक्षित भविष्य के लिए नौकरी से अवकाश – प्राप्ति के बाद जो निवृत्त वेतन मिलता है वह परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु काफ़ी नहीं होता है, अतः आर्थिक रूप से सुरक्षित भविष्य के लिए बचत करना बहुत आवश्यक है।

3. पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए – प्रत्येक परिवार के जीवन लक्ष्य होते हैं, जैसे-बच्चों के लिए उच्च शिक्षा आदि। सीमित आय द्वारा इन लक्ष्यों की पूर्ति करना असम्भव-सा है। यदि पहले ही जब बच्चे छोटे हों और परिवार पर आर्थिक दबाव अधिक न हो, आय का कुछ अंश बचाकर उचित रूप से जमा करते जाएँ तो बच्चों के बड़े होने तक उनकी शिक्षा के लिए काफ़ी धन हो जाता है।

4. पारिवारिक जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए – आज के भौतिक गुण में परिवार के जीवन स्तर की मापक कुछ भौतिक वस्तुएँ, जैसे-फ्रिज, रंगीन टी० वी०, कार आदि हैं। सीमित आय में इनको खरीदना तो कठिन है परन्तु बचत करके यदि धन इकट्ठा कर लिया जाए तो यह परिवार को उपलब्ध हो सकती हैं।

5. अन्य आकस्मिक खर्चों के लिए – परिवार के कई आकस्मिक खर्च, जैसे अतिथि आगमन, विवाह आदि के कारण होते हैं। ऐसी स्थिति में बचत की धनराशि ही काम आती है।

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प्रश्न 7.
परिवार द्वारा बचत कौन-कौन से माध्यम से की जाती है ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
बचत किए हुए धन के विनियोग के विभिन्न साधनों के बारे में लिखिए।
उत्तर :
परिवार के द्वारा बचाई गई धनराशि बचत कहलाती है। इसे गृहिणी को ऐसे काम में लगाना चाहिए जिससे कुछ आय भी अर्जित हो तथा धन भी सुरक्षित रहे। बचत विनियोग के विभिन्न साधन हैं। सुरक्षा तथा आय की दृष्टि से प्रमुख साधन अग्रलिखित हैं –

  1. बैंक
  2. बीमा
  3. डाकखाना
  4. राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र
  5. यूनिट ट्रस्ट क्रय करके।

1. बैंक – पहले समय में लोग बैंक में रुपया जमा करवाने से घबराते थे। उन्हें इस बात का डर रहता था कि बैंक फेल हो जाए और रकम न दे तो उनकी रकम डूब जाएगी, परन्तु आजकल ऐसा नहीं होता। आज प्रायः अधिकांश बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो गया है और राष्ट्रीयकृत बैंकों पर भी रिज़र्व बैंक ऑफ़ इण्डिया का पूर्ण नियन्त्रण है। अत: बैंकों में जमा राशि की पूर्ण सुरक्षा रहती है।

बैंक एक ऐसी राष्ट्रीयकृत संस्था है जो मनुष्य की धन सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण में सहयोग देती है। बैंक लोगों के धन को जमा करने का कार्य करती है। आवश्यकता पड़ने पर बैंक लोगों को अनेक कार्यों हेतु उधार रुपया देने की व्यवस्था करती है जिसके लिए ब्याज की दर बहुत कम होती है।

इसके अतिरिक्त बैंक में जमा रुपयों को समय-समय पर निकालने की सुविधा, औद्योगिक व्यवसायों के सम्पादन, कीमती वस्तुओं की सुरक्षा के लिए लॉकर्स की सुविधा, चैक, बिल, हुण्डी, ड्राफ्ट से भुगतान की सुविधा प्राप्त होती है।

2. जीवन बीमा – जीवन बीमा अनिवार्य रूप से बचत का उत्तम माध्यम है। यह व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है। जीवन बीमा एक ऐसा करार या बन्ध-पत्र होता है जिसमें भावी अनिश्चित विपत्तियों या विशेष घटना घटने पर बीमा धारक या उसके उत्तराधिकारी को एक पूर्व निश्चित धनराशि प्रदान की जाती है। इसके लिए उसे प्रति मास निश्चित किस्त देनी पड़ती है। बीमा निगम एक ऐसी संस्था है जो साधन एवं सुरक्षा प्रदान कर जोखिम को समाप्त करती है तथा अनिश्चित वातावरण को निश्चित वातावरण में परिवर्तित करती है।

3. डाकघर बचत बैंक – डाकघर बचत को सुरक्षित रखने तथा उसका पूर्ण लाभ उठाने में सहायक होता है। डाकघर में कम-से-कम राशि 2 रुपये तक जमा की जा सकती है। डाकघर, बैंक की भी भूमिका निभाते हैं। भारतीय सरकार ने डाकघर बचत बैंक की स्थापना इस दृष्टिकोण से की है कि लोग सरलतापूर्वक बचत कर सकें तथा उनमें बचत की आदत बन सके। इसमें दो व्यक्ति मिलकर रुपया जमा कर सकते हैं तथा नाबालिग बच्चों के नाम से भी माता-पिता खाता खोल सकते हैं।

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4. राष्ट्रीय बचत प्रमाण – पत्र-राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र की योजना 10 जून, 1966 से शुरू की गई है। ये बचत प्रमाण-पत्र ₹10, ₹ 100 तथा ₹ 1,000 की कीमत के डाकघर से खरीदे जा सकते हैं। अवधि की समाप्ति पर इस रकम पर ₹ 8 प्रति सैंकड़ा की दर से रुपया जमा करने वाले को वापस लौटा दिया जाता है। ये विभिन्न वर्षीय पत्र होते हैं।

5. यूनिट्स – भारतीय संसद् ने एक अधिनियम 1964 में लागू कर ‘यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया’ की स्थापना की थी। यूनिट एक प्रकार की अंशपूँजी होती है। इसकी कीमत ₹ 10 होती है। इसके द्वारा यूनिट क्रय करके बचत की जाती है। पोस्ट ऑफिस में आवेदन-पत्र देकर यूनिट्स को क्रय किया जा सकता है। यूनिट से मिलने वाले धन को विभिन्न उद्योगों में विनिमय किया जा सकता है। इसका लाभ बैंक या डाकघर से प्राप्त विभिन्न उद्योगों में विनिमय किया जा सकता है। इसका लाभ बैंक या डाकघर से प्राप्त किया जा सकता है।

6. अनिवार्य समय बचत खाता – इसमें एक निश्चित समयावधि के लिए खाते में धन जमा करवाया जाता है। इससे जमाकर्ता को प्रतिवर्ष निर्धारित ब्याज मिलता रहता है। निश्चित अवधि के पश्चात् ही जमाराशि वापस मिलती है। यह जमा खाता अकेले व्यक्ति द्वारा, संयुक्त रूप से, अल्पवयस्क और विक्षिप्त व्यक्ति के अभिभावक द्वारा खोला जा सकता है।

7. उपहार कूपन्स – यह कूपन ₹ 500, ₹ 1,000, ₹ 5,000 तथा ₹ 10,000 के मिलते हैं। कोई भी व्यक्ति उपहार के रूप में इन्हें किसी अल्पवयस्क या वयस्क व्यक्ति को दे सकता है।

8. दस-वर्षीय रक्षा जमा बाण्ड – यह रिज़र्व बैंक तथा स्टेट बैंक की कुछ शाखाओं और शासकीय कोषालय से खरीदे जा सकते हैं। एक वयस्क अधिक-से-अधिक ₹ 35,000 के और दो वयस्क संयुक्त रूप से ₹ 70,000 के बाण्ड खरीद सकते हैं। इनकी क्रय करने की तिथि से एक वर्ष तक भुगतान नहीं होता है तथा इसके पश्चात् नियमानुसार कटौती काटकर इच्छा से राशि वापिस ली जा सकती है।।

9. प्रीमियम इनामी बाण्ड – ये इनामी बाण्ड ₹ 5 से लेकर ₹ 100 तक के होते हैं। इनकी राशि का भुगतान पाँच वर्ष से पहले नहीं हो सकता है। इन पर इनाम की राशि भी प्राप्त होती है। ये रिज़र्व बैंक, स्टेट बैंक की शाखाओं, शासकीय कोषालयों तथा डाकखानों से प्राप्त किए जा सकते हैं।

10. लॉटरी चिट व्यवस्था – इसमें जान-पहचान वाले व्यक्ति मिलकर प्रतिमास निश्चित राशि देकर कुछ धन इकट्ठा करते हैं। इनमें से जिन व्यक्तियों को धन की आवश्यकता होती है वह चिट पर नाम लिखकर डालते हैं। चिट उठाने पर जिसका नाम आता है, उसे ही धन मिल जाता है, लेकिन आगामी सभी किस्तें जमा करवाते रहनी पड़ती है।

11. कम्पनियों में हिस्सा खरीदना – कई कम्पनियाँ अपने शेयर बेचती हैं। ये शेयर खरीदने पर प्रतिवर्ष धनराशि के हिसाब से लाभांश (Dividend) मिलता रहता है।

12. सहकारी संस्थाएँ – कुछ व्यक्ति मिलकर सहकारी संस्थाएं बनाकर व्यापार आदि करते हैं। जो लाभ होता है उसे आपस में लगाई गई धनराशि के हिसाब से बाँट लेते हैं। सहकारी संस्थाओं को पंजीकृत होने के पश्चात् सरकार की ओर से भी कई प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।

नोट – यहां दी गई सभी रुपयों की सीमा अथवा दर सरकार की तथा बैंक या डाकखाने द्वारा तय किए नियमों अनुसार कम या अधिक हो सकती है।

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प्रश्न 7.
(A) बचत किए हुए धन के निवेश के किसी एक साधन के बारे में लिखिए।
(B) बचत करना क्यों आवश्यक है ? बचत के विभिन्न तरीकों के बारे में बताइए।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

प्रश्न 8.
डाकघर में किन-किन तरीकों से बचत की जाती है ?
उत्तर :
1. डाकघर बचत बैंक (Postal Saving Bank Account) डाकघर में भी रुपया जमा करके बचत की जाती है। सरकार ने डाकघर में बचत बैंक का निर्माण इसलिए किया है कि लोग सरलतापूर्वक रुपया जमा कर सकें तथा उनमें बचत की प्रवृत्ति पैदा हो सके। देहाती क्षेत्रों में जहाँ बैंक की शाखाएँ नहीं हैं, परिवारों के लिए यह सुविधा बहत कल्याणकारी है। डाकघर बचत बैंक में कोई भी व्यक्ति स्वयं के नाम पर नाबालिग के नाम पर जिसका संरक्षक है, खाता खोल सकता है। इसमें दो व्यक्ति संयुक्त रूप से भी खाता खोल सकते हैं। यह खाता पाँच रुपए जमा करवा कर खोला जा सकता है।

डाकघर बचत बैंक में ब्याज की दर बदलती रहती है। डाकघर बचत बैंक में खाता खोलने को प्रोत्साहित करने के लिए कई इनामी योजनाएं भी निकाली गई हैं। इनमें प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को इनाम के लिए रखा जा सकता है जिसकी कम-से-कम ₹ 200 की राशि डाकघर में जमा हो। एक व्यक्ति के नाम में अधिक-से-अधिक ₹ 25,000 तथा संयुक्त खाते में ₹ 50,000 जमा हो सकते हैं। जमा राशि केवल उसी डाकघर से निकाली जा सकती है, जहाँ पर खाता खोला गया है। ब्याज 31 मार्च के बाद वर्ष में एक बार जोड़ा जाता है। बैंक की तरह डाकघर भी खाता खोलने वाले को पास बुक देता है जिसमें प्रत्येक जमा तथा निकाली गई राशि का लेखा होता है। माता-पिता या अभिभावक स्वयं नाबालिग के नाम पर खाता खोल सकते हैं।

2. डाकघर सावधि संचयी योजना (Cumulative Scheme) बैंक की तरह इसमें भी सी० टी० डी० जमा खाते खोले जाते हैं। ये 5, 10, 15 वर्ष के लिए खोले जाते हैं। इसमें प्रतिमाह ₹ 5 से ₹ 100 तक की राशि जमा की जा सकती है।

  • इस योजना के अन्तर्गत कोई भी एक व्यक्ति या दो व्यक्ति मिलकर खाता खोल सकते हैं।
  • यह जमा खाता निश्चित अवधि के लिए खोला जाता है। इसमें ब्याज की दरें बदलती रहती हैं।
  • ब्याज का भुगतान प्रति वर्ष किया जाता है परन्तु ब्याज की गणना छमाही की जाती है।

3. डाकघर मियादी खाता (Postal Fixed Deposit) – यह खाता डाकघर में अकेले या संयुक्त रूप में खोला जा सकता है। यह 1, 2, 3, 5 या 10 वर्ष तक के लिए खोला जा सकता है। इसमें ₹ 50 से लेकर ₹ 25,000 तक जमा किए जा सकते हैं।

4. राष्ट्रीय बचत प्रमाण – पत्र (National Saving Certificates) ये प्रमाण-पत्र 10, 100, 1,000 की कीमत के डाकघर से खरीदे जा सकते हैं। ये रकम 10 वर्ष के बाद ₹ 8 प्रति सैंकड़ा की दर से ब्याज सहित जमा करने वाले को दे दी जाती है।

5. बारह-वर्षीय राष्ट्रीय रक्षा – पत्र-ये रक्षा-पत्र ₹ 5, 10, 15, 50, 100, 500, 1000, 5,000 तथा ₹ 25,000 की कीमतों के डाकघर से खरीदे जा सकते हैं। इसमें वार्षिक दर से ब्याज दिया जाता है। एक व्यक्ति 35,000 के तथा दो व्यक्ति एक साथ मिलकर 50,000 के 12 वर्षीय राष्ट्रीय रक्षा-पत्र खरीद सकते हैं।

उपरोक्त के अलावा डाकघर की सहायता से विविध प्रकार के बचत प्रमाण-पत्र तथा खातों द्वारा बचत की जा सकती है। पाँच वर्षीय राष्ट्रीय विकास पत्र, सामाजिक सुरक्षा पत्र, राष्ट्रीय बचत वार्षिक पत्र आदि इसी प्रकार के बचत पत्र हैं।

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प्रश्न 9.
जीवन बीमा क्या है ? इसके प्रमुख उद्देश्य व लाभ बताइए।
उत्तर :
जीवन बीमा बचत का सर्वोत्तम साधन है। जीवन बीमा निगम द्वारा दिया गया एक बन्ध-पत्र होता है जिसमें भावी अनिश्चित आपत्तियों या घटना घटित होने पर बीमाधारक को या उसके उत्तराधिकारी को एक पूर्व निश्चित धनराशि निगम द्वारा दी जाती है।

जीवन बीमा के उद्देश्य व लाभ जीवन बीमा के मुख्य उद्देश्य या लाभ निम्नलिखित हैं –
1. परिवार को आर्थिक संरक्षण प्रदान करना – बीमेदार के निधन पर उसके द्वारा नियुक्त परिवार के सदस्य को बीमा की राशि दी जाती है जिससे परिवार आर्थिक संकट का सामना कर सके।

2. वृद्धावस्था में आर्थिक सुरक्षा – वृद्धावस्था में बीमे द्वारा प्राप्त धनराशि आर्थिक संरक्षता प्रदान करती है।

3. विवाह, शिक्षा आदि के लिए आर्थिक सहायता – जीवन बीमा अपनी विशेष पॉलिसी के द्वारा परिवार के विभिन्न उद्देश्यों, विवाह, शिक्षा आदि के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है।

4. बचत की आदत डालना – जीवन बीमा बचत के लिए विवश करके परिवार के सदस्यों में नियमित बचत करने की आदत डालता है।

5. सम्पत्ति कर चुकाना – बीमेदार के निधन के बाद सम्पत्ति कर चुकाने के लिए सम्पत्ति को बेचने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, जीवन बीमा सम्पत्ति कर के लिए धन की व्यवस्था करता है।

6. बीमेदार को व्यापार आदि के लिए ऋण देना-आर्थिक संकट में या व्यापार आदि के लिए बीमा निगम बीमेदार की पॉलिसी की जमानत लेकर ऋण भी देता है।

7. अन्य बचत योजनाओं की अपेक्षा अधिक लाभ पहुँचाना-जीवन बीमा अन्य बचत योजनाओं से अधिक लाभ पहुंचाती है –

  • बीमेदार की मृत्यु के बाद उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्राप्त होती है।
  • बीमे में जमा करवाई गई धनराशि पर आयकर की छूट होती है।
  • बीमेदार ने यदि किसी से ऋण लिया हो, तब भी उसके निधन के बाद बीमे की राशि उत्तराधिकारी को दी जाती है और इस प्रकार यह राशि लेनदारों से पूर्ण रूप से सुरक्षित होती है।
  • बीमेदार के व्यवस्था करने पर उसके निधन के बाद बीमे की धनराशि उत्तराधिकारी को किस्तों में दी जाती है और जिससे पूर्ण राशि का एक साथ अपव्यय न हो।

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प्रश्न 10.
धन का सदुपयोग करने के लिए एक परिवार को क्या-क्या करना चाहिए (कोई तीन उपाय)?
उत्तर :
धन का सदुपयोग करने के लिए परिवार को निम्न कार्य करने चाहिए –

  1. धन से सोना चांदी खरीद कर रख लेना चाहिए।
  2. बैंक में बचत खाता खोल लेना चाहिएं।
  3. निश्चित अवधि जमा योजना में पैसे लगाने चाहिए।
  4. वस्तुएँ आवश्यकतानुसार खरीदनी चाहिएं ना कि दिखावे के लिए।
  5. डाकखाने की विभिन्न बचत योजनाओं में पैसा लगाना चाहिए जैसे किसान विकास पत्र, राष्ट्रीय बचत योजना, डाक घर मासिक आय योजना।
  6. भविष्य निधि, बीमा पॉलिसी आदि में भी धन लगाया जा सकता है।
  7. वस्तुओं को ऑफ सीजन में खरीद कर भी पैसे की बचत की जा सकती है।

प्रश्न 11.
(A) बचत करना क्यों आवश्यक है ? बचत के किन्हीं चार साधनों के नाम बताएं।
(B) बचत किसे कहते हैं ? इसके साधनों के नाम लिखें।
(C) बचत करना क्यों आवश्यक है ? बचत करने के विभिन्न तरीकों के बारे में बताइए।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दें –

प्रश्न 1.
मकान का किराया कैसा खर्च है ?
उत्तर :
निर्धारित खर्च।

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प्रश्न 2.
पारिवारिक आय व्यय के हिसाब से बजट कितने प्रकार का है ?
उत्तर :
तीन प्रकार का।

प्रश्न 3.
यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1964.

प्रश्न 4.
आय को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 5.
बजट योजना कितने तत्त्वों पर निर्भर है ?
उत्तर :
चार।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. अवकाश काल का उचित प्रयोग करके हम आत्मिक आय, पारिवारिक आय तथा
………… आय को बढ़ा सकते हैं।
2. ………….. का बजट उत्तम रहता है।
3. खर्चे का हिसाब-किताब रखने से …………. आती है।
4. आयु बढ़ने के साथ-साथ खर्चों में …………. होती है।
उत्तर :
1. मौद्रिक
2. बचत
3. मितव्ययता
4. वृद्धि।

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(ग) निम्न में ठीक तथा गलत बताएं –

1. विवेकपूर्ण व्यय से बचत होती है।
2. हमारे देश में दो प्रकार की परिवार व्यवस्था है।
3. शिक्षित व्यक्तियों की आय अशिक्षित व्यक्तियों से अधिक होती है।
4. आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी ही करनी चाहिए।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खर्च कितने प्रकार के होते हैं –
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 2.
पारिवारिक बजट के प्रकार हैं –
(A) बचत बजट
(B) सन्तुलित बजट
(C) घाटे का बजट
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 3.
यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया की स्थापना कब की गई ?
(A) 1962
(B) 1964
(C) 1971
(D) 1980
उत्तर :
1964.

प्रश्न 4.
आय को मुख्यतः कितने भागों में बांट सकते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 5.
आत्मिक आय से आप क्या समझते हैं –
(A) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय के व्यय से होने वाली सन्तुष्टि
(B) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त धन
(C) प्राप्त सेवाएं और सुविधाएं
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय के व्यय से होने वाली सन्तुष्टि।

प्रश्न 6.
परिवार की आय को कैसे बढ़ाया जा सकता है –
(A) अंशकालिक नौकरी करके
(B) परिवार की आय में बढ़ोत्तरी करके
(C) गृह उद्योगों की शुरुआत द्वारा
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

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प्रश्न 7.
अवकाश काल का उचित प्रयोग करके हम ……………. को बढ़ा सकते हैं।
(A) आत्मिक आय
(B) पारिवारिक आय
(C) मौद्रिक आय
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 8.
सुरक्षित भविष्य के लिए क्या करना चाहिए –
(A) बचत करना
(B) खुलकर खर्च करना
(C) उधार लेना
(D) धन का दान देना।
उत्तर :
बचत करना।

प्रश्न 9.
आयु बढ़ने के साथ-साथ खर्चों में ……… होती है।
(A) वृद्धि
(B) कमी
(C) कोई फ़र्क नहीं पड़ता
(D) उपरिलिखित में से कोई नहीं।
उत्तर :
वृद्धि।

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प्रश्न 10.
किस प्रकार का बजट उत्तम रहता है –
(A) घाटे का बजट
(B) बचत का बजट
(C) सन्तुलित बजट
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
बचत का बजट।

प्रश्न 11.
संयुक्त परिवार में खर्च …………… होता है।
(A) कम
(B) अधिक
(C) सामान्य
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
कम।

प्रश्न 12.
खर्च की आवश्यक मद कौन-सी है –
(A) घर
(B) भोजन
(C) कपड़े
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

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प्रश्न 13.
खर्च कितने प्रकार के होते हैं –
(A) निर्धारित खर्च
(B) अर्द्ध-निर्धारित खर्च
(C) गैर-निर्धारित खर्च
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 14.
ऐन्जिल के सिद्धान्त के अनुसार जैसे-जैसे आय बढ़ती है, भोजन पर व्यय का प्रतिशत ……………. है।
(A) घटता
(B) बढ़ता
(C) उतना ही रहता है
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
घटता।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से कौन-सी प्राथमिक आवश्यकता नहीं है ?
(A) आवास
(B) भोजन
(C) कपड़ा
(D) शिक्षा।
उत्तर :
शिक्षा।

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प्रश्न 16.
बचत की आवश्यकता क्यों होती है ?
(A) सुरक्षित भविष्य के लिए
(B) आपात स्थिति का सामना करने के लिए
(C) परिवार के रहन-सहन का स्तर बढ़ाने के लिए
(D) उपर्युक्त सभी के लिए।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी के लिए।

प्रश्न 17.
परिवार के द्वारा जिन साधनों और सुविधाओं का प्रयोग किया जाता है, वह उसकी कौन-सी आय कहलाती है ?
(A) आत्मिक आय
(B) वास्तविक आय
(C) मौद्रिक आय
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
आत्मिक आय

प्रश्न 18.
निम्नलिखित मदों में व्यय करने के लिए आप किसको सबसे अधिक प्राथमिकता देंगे ?
(A) विदेश यात्रा के लिए जाना
(B) सर्दियों के लिए पर्याप्त ऊनी कपड़ों की खरीददारी
(C) रेफ्रिजरेटर खरीदना
(D) नया सोफा सेट खरीदना।
उत्तर :
सर्दियों के लिए पर्याप्त ऊनी कपड़ों की खरीददारी।

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प्रश्न 19.
जीवन बीमा पॉलिसी कराना कहलाता है –
(A) निवेश
(B) व्यय करना
(C) बचत
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
बचत।

प्रश्न 20.
सुरक्षित भविष्य के लिए क्या करना चाहिए ?
(A) बचत करना
(B) खुलकर खर्च करना
(C) उधार लेना
(D) धन का दान देना।
उत्तर :
बचत करना।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित मदों में से व्यय करने के लिए आप किसको सबसे अधिक प्राथमिकता देंगे ?
(A) छुट्टियाँ बिताने के लिए कहीं बाहर जाना
(B) बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन की खरीद
(C) मिक्सर ग्राइंडर की खरीद
(D) साधारण पर्दे बदलने के लिए नए फैन्सी पर्दो की खरीद।
उत्तर :
बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन की खरीद।

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प्रश्न 22.
निम्न में से कौन-सा कथन बचत से सम्बन्धित है ?
(A) आपकी माता द्वारा आपको दिए गए पैसे
(B) आपके पिता का वेतन
(C) आप प्रतिदिन दस रुपये एक डिब्बे में डालते हैं
(D) अण्डे बेचकर आपको धन मिलता है।
उत्तर :
आप प्रतिदिन दस रुपये एक डिब्बे में डालते हैं।

प्रश्न 24.
ऐंजिल के अनुसार, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, मकान, वस्त्र, विद्युत् पर व्यय में ……………… ।
(A) परिवर्तन नहीं होता है
(B) परिवर्तन होता है
(C) लाभ होता है
(D) हानि होती है।
उत्तर :
परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 25.
संयुक्त परिवार में खर्च कम और आय …………. होती है।
(A) कम
(B) सामान्य
(C) अधिक
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
अधिक।

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प्रश्न 26.
कौन-सा बजट सबसे उत्तम रहता है ?
(A) घाटे का बजट
(B) बचत का बजट
(C) संतुलित बजट
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
बचत का बजट।

प्रश्न 27.
ऐंजिल के अनुसार, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, भोजन पर व्यय का प्रतिशत
(A) घटता
(B) बढ़ता
(C) सामान्य
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
घटता।

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प्रश्न 28.
संयुक्त परिवार में खर्च आय अधिक होती है।
(A) ज्यादा
(B) कम
(C) सामान्य
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
कम।

प्रश्न 29.
परिवार की आय को कौन-कौन से दो भागों में बाँटा जा सकता है ?
(A) मौद्रिक आय व मानसिक रूप से प्राप्त आय
(B) प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष आय
(C) मौद्रिक आय व अप्रत्यक्ष आय
(D) अप्रत्यक्ष आय व मानसिक रूप से प्राप्त आय।
उत्तर :
मौद्रिक आय व मानसिक रूप से प्राप्त आय।

प्रश्न 30.
डाकखाने में कितने रुपयों से खाता खोला जा सकता है ?
(A) कम से कम ₹ 1000 से
(B) कम से कम ₹ 2000 से
(C) कम से कम ₹ 5000 से
(D) कम से कम ₹ 50 से।
उत्तर :
कम से कम ₹ 50 से।

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प्रश्न 31.
आमदनी में से ………… को बचत कहते हैं।
(A) खर्च की गई रकम
(B) उधार ली गई रकम
(C) बचाई गई रकम
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
बचाई गई रकम।

प्रश्न 32.
बजट योजना किस तत्त्व पर निर्भर करती है ?
(A) परिवार की आय
(B) परिवार का लक्ष्य
(C) परिवार की तत्कालीन आवश्यकताएँ
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

धन का प्रबन्ध HBSE 10th Class Home Science Notes

धन का प्रबन्ध –

→ परिवार की आय को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दो किस्मों में विभाजित किया जाता है।
→ घर की आवश्यकताओं के लिए प्रयोग की धन राशि को खर्च कहा जाता है।
→ खर्च निर्धारित और गैर-निर्धारित होता है।
→ पारिवारिक आमदन के अनुसार खर्च के अनुमान को बजट कहा जाता है।
→ आमदन में से बचाई गई रकम को बचत कहते हैं।
→ कुशल गृहिणी कम आमदन से भी बढ़िया घर चला सकती है।
→ बजट तीन किस्मों का होता है-बचत बजट, संतुलित बजट और घाटे का बजट।
→ बचत अवश्य करनी चाहिए। इसमें परिवार के सदस्यों की भलाई है।
→ संयुक्त परिवारों में खर्च कम और आय अधिक होती है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध

परिवार के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वह अपने वित्तीय साधनों का प्रयोग इस ढंग से करे कि अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त हो सके। प्रत्येक मनुष्य अपने ज्ञान, योग्यताओं का प्रयोग करके अपने जीवन का गुजारा करता है। एक विशेष समय में जैसे कि सप्ताह, महीना, साल में परिवार द्वारा कमाई गई आय को पारिवारिक आय कहा जाता है।

इस पारिवारिक आय को इस ढंग से खर्च करना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्य सन्तुष्ट, खुश और तन्दुरुस्त रहें। इसलिए एक समझदार गृहिणी को आय और खर्च में सन्तुलन रखने के लिए बजट बनाना चाहिए।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
आई० सी० एम० आर० द्वारा निर्धारित किए गए पाँच आहार समूहों के नाम बताइए।
उत्तर :
आई० सी० एम० आर० (ICMR) ने निम्नलिखित पाँच आहार समूह निर्धारित किए हैं। यह हैं –

  1. अनाज
  2. दालें
  3. दूध, अण्डा व मांसाहार
  4. फल व सब्जियाँ
  5. वसा और शक्कर।

प्रश्न 2.
सन्तुलित भोजन से आप क्या समझते हो ? संतुलित भोजन क्यों जरूरी है ?
उत्तर :
सन्तुलित भोजन से भाव ऐसी मिली-जुली खुराक से है जिसमें भोजन के सभी आवश्यक तत्त्व जैसे, प्रोटीन, कार्बोज़, विटामिन, खनिज लवण आदि पूरी मात्रा में हों। भोजन न केवल माप-तोल में पूरा हो बल्कि गुणकारी भी हो ताकि मनुष्य की मानसिक वृद्धि भी हो सके तथा बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बनी रहे। सन्तुलित भोजन सभी व्यक्तियों के लिए एक-सा नहीं हो सकता। शारीरिक मेहनत करने वाले व्यक्तियों के लिए जो भोजन सन्तुलित होगा वह एक दफ्तर में काम करने वाले से भिन्न होगा।

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प्रश्न 3.
भोजन को किन-किन भोजन समूहों में बांटा जा सकता है और क्यों ?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक तन्दुरुस्ती के लिए सन्तुलित भोजन का प्राप्त होना आवश्यक है जिसमें प्रोटीन, कार्बोज, विटामिन, खनिज लवण पूरी मात्रा में हो। परन्तु ये सभी वस्तुएँ एक तरह के भोजन से प्राप्त नहीं हो सकतीं। इसलिए भोजन को उनके खुराकी तत्त्वों के आधार पर निम्नलिखित समूहों में विभाजित किया जाता है –

  1. अनाज
  2. दालें
  3. सूखे मेवे
  4. सब्जियां
  5. फल
  6. दूध और दूध से बने पदार्थ तथा अन्य पशु जन्य साधनों के पदार्थ।
  7. मक्खन घी तेल
  8. शक्कर, गुड़
  9. मसाले, चटनी आदि।

प्रश्न 4.
क्या कैलोरियों की उचित मात्रा होने से भोजन सन्तुलित होता है ?
उत्तर :
खुराक व्यक्ति की आयु लिंग, काम करने की शारीरिक स्थिति पर निर्भर करती है। कठिन काम करने वाले व्यक्ति को साधारण काम करने वाले व्यक्ति से अधिक कैलोरियों की आवश्यकता होती है। परन्तु खराक में केवल कैलोरियों की उचित मात्रा से ही भोजन सन्तुलित नहीं बन जाता बल्कि इसके साथ-साथ पौष्टिक तत्त्वों की भी उचित मात्रा लेनी चाहिए। किसी एक पौष्टिक तत्त्व की कमी भी शरीर के लिए हानिकारक हो सकती है। इसलिए उचित कैलोरियों की मात्रा वाली खुराक को सन्तुलित नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 5.
दालों में कौन-से पौष्टिक तत्त्व होते हैं और अधिक मात्रा किसकी होती है ?
उत्तर :
दालें जैसे मूंग, मोठ, मांह, राजमांह, चने आदि में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। इनमें 20-25 प्रतिशत प्रोटीन होती है। इसके अतिरिक्त विटामिन ‘बी’ खनिज पदार्थ विशेष रूप में कैल्शियम की अच्छी मात्रा में होते हैं। सूखी दालों में विटामिन ‘सी’ नहीं होता परन्तु अंकुरित हुई दालें विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्रोत हैं।

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प्रश्न 6.
कार्बोहाइड्रेट्स कौन-कौन से भोजन समूह में पाए जाते हैं ?
उत्तर :
कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का मिश्रण है। ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन 2 : 1 के अनुपात में प्राप्त होती हैं। शरीर में 75 से 80 प्रतिशत ऊर्जा कार्बोहाड्रेट्स से ही पूरी होती है। यह ऊर्जा का एक सस्ता तथा मुख्य स्रोत है।

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चित्र-कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत

कार्बोहाइड्रेट्स के स्त्रोत – कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत निम्नलिखित हैं –

  1. अनाज।
  2. दालें।
  3. जड़ों वाली तथा भूमि के अन्दर पैदा होने वाली सब्जियां जैसे आलू, कचालू, अरबी, जिमीकन्द तथा शकरकन्दी आदि।
  4. शहद, चीनी तथा गुड़।
  5. जैम तथा जैली।
  6. सूखे मेवे जैसे बादाम, अखरोट, खजूर, किशमिश तथा मूंगफली आदि।

प्रश्न 7.
सब्जियों में कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्व होते हैं ?
उत्तर :
भोजन में सब्जियों का होना अति आवश्यक है क्योंकि इनसे विटामिन और खनिज पदार्थ मिलते हैं। भिन्न-भिन्न सब्जियों में भिन्न-भिन्न तत्त्व मिलते हैं। जड़ों वाली सब्जियां विटामिन ‘ए’ का अच्छा स्रोत है, हरी पत्तेदार सब्जियों में विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ और लोहा काफ़ी मात्रा में होता है। फलीदार सब्जियां प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं।

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प्रश्न 8.
भोजन में मिर्च मसालों का प्रयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर :
भोजन का स्वाद और महक बढ़ाने के लिए इनमें कई तरह के मसाले जैसे जीरा, काली मिर्च, धनिया, लौंग, इलायची आदि प्रयोग किए जाते हैं। यह मसाले भोजन का स्वाद बढ़ाने के अतिरिक्त भोजन शीघ्र पचाने में भी सहायता करते हैं क्योंकि ये पाचक रसों को उत्तेजित करते हैं जिससे भोजन शीघ्र हज्म हो जाता है।

प्रश्न 9.
आहार नियोजन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
खाने का ढंग परिवार के अलग-अलग सदस्यों की आवश्यकता अनुसार बनाया जाता है जैसे बच्चे और रोगी के लिए थोड़ी-थोड़ी देर के पश्चात् भोजन तथा बुजुर्गों के लिए नर्म और हल्के भोजन का प्रबन्ध किया जाता है। परिवार के सदस्यों की ज़रूरत और निश्चित समय अनुसार अच्छे पोषण के लिए खाद्य पदार्थों का नियोजन करने को ही आहार नियोजन कहा जाता है।

प्रश्न 10.
आहार आयोजन के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं ?
अथवा
आहार आयोजन करते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर :
आहार आयोजन करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  1. परिवार की रुचि
  2. ऋतु का ध्यान
  3. पारिवारिक आय
  4. व्यवसाय
  5. उपलब्ध वस्तुएं
  6. साप्ताहिक तालिका
  7. नवीनता
  8. मितव्ययता
  9. समय और शक्ति
  10. विविधता
  11. सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश
  12. अतिथियों की रुचि
  13. सरलता।

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प्रश्न 11.
परिवार के आहार का स्तर किन बातों पर निर्भर करता है ?
उत्तर :
परिवार के आहार का स्तर निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है –

  1. आहार के लिए उपलब्ध धन।
  2. गृहिणी के पास भोजन पकाने के लिए उपलब्ध समय एवं ऊर्जा।
  3. गृहिणी का खाद्य तथा पोषण सम्बन्धी ज्ञान।
  4. गृहिणी का आहार पकाने और परोसने में निपुण होना।

प्रश्न 12.
आहार की पौष्टिकता बढ़ाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
सामान्य आहार में अनाज की मात्रा अधिक होती है। कार्बोज द्वारा व्यक्ति की कैलोरी आवश्यकताओं की पूर्ति तो हो जाती है, परन्तु शरीर निर्माण करने वाले पौष्टिक तत्त्व जैसे प्रोटीन और स्वास्थ्य रक्षा करने वाले तत्त्व जैसे विटामिन और खनिज लवणों का अभाव है। इसलिए आहार की पौष्टिकता बढ़ाना आवश्यक है।

प्रश्न 13.
खाद्य पदार्थों का पौष्टिक मान बढ़ाने का महत्त्व लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 12 का उत्तर।

प्रश्न 14.
आहार की पौष्टिकता कैसे बढ़ाई जा सकती है ?
उत्तर :

  1. आहार में मिश्रित अनाजों का प्रयोग करना चाहिए, जैसे-चावल या गेहूँ के साथ रागी या बाजरा।
  2. दालों के प्रयोग को बढ़ाना।
  3. हरी पत्तेदार सब्जियों का प्रयोग करना।
  4. सस्ते मौसमी खाद्य-पदार्थों का प्रयोग करना।

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प्रश्न 15.
दैनिक आहार व्यवस्था का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
परिवार के सदस्यों की दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं ज्ञात करके, दैनिक आहार की व्यवस्था की जाती है। भारत में प्राय: दिन चार बार आहार करने का प्रचलन है। इसलिए दिनभर की प्रस्तावित खाद्य-पदार्थों की मात्रा को चार भागों में बाँटा जाता है।

  1. प्रात:काल का नाश्ता (Breakfast)
  2. दोपहर का भोजन (Lunch)
  3. शाम की चाय (Evening Tea)
  4. रात्रि का भोजन (Dinner)।

प्रश्न 16.
सन्तुलित भोजन की योजना बनाते समय कौन-कौन सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर :
परिवार के सदस्य का स्वास्थ्य उनके खाने वाले भोजन पर निर्भर करता है। एक समझदार गृहिणी को अपने परिवार के सदस्यों को सन्तुलित भोजन प्रदान करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. परिवार के प्रत्येक सदस्य के रोज़ाना खुराकी तत्त्वों का ज्ञान होना चाहिए
  2. आवश्यक पौष्टिक तत्त्व देने वाले भोजन की जानकारी और चुनाव
  3. भोजन की योजनाबन्दी
  4. भोजन पकाने का सही ढंग, और
  5. भोजन परोसने के ढंग का ज्ञान होना चाहिए।

प्रश्न 17.
किन-किन कारणों से अनेक लोगों को सन्तुलित भोजन उपलब्ध नहीं होता ?
उत्तर :
दुनिया भर में 90% बीमारियों का कारण सन्तुलित भोजन का सेवन न करना है। विशेष रूप में तीसरी दुनिया के देशों में जनसंख्या के एक बड़े भाग को संतुलित भोजन नहीं मिलता। इसके कई कारण हैं जैसे –
1.ग़रीबी – ग़रीब लोग अपनी आय कम होने के कारण उपयुक्त मात्रा में आवश्यक पौष्टिक तत्त्वों वाले भोजन नहीं खरीद सकते। सब्जियां, फल, दूध, आदि इन ग़रीब लोगों की खुराक का भाग नहीं बनते।

2. शिक्षा की कमी – यह आवश्यक नहीं कि केवल ग़रीब लोग ही सन्तुलित भोजन से वंचित रहते हैं। कई बार शिक्षा की कमी के कारण अच्छी आय वाले भी आवश्यक पौष्टिक भोजन नहीं लेते। आजकल कई अमीर लोग भी जंक फूड या फास्ट फूड का प्रयोग
अधिक करते हैं जो किसी तरह भी सन्तुलित भोजन नहीं होता।

3. बढ़िया भोजन न मिलना – कई बार लोगों को खाने पीने की वस्तुएं बढ़िया नहीं मिलतीं। आजकल सब्जियों में ज़हर की मात्रा काफ़ी अधिक होती है। शहर के लोगों को दूध भी बढ़िया किस्म का नहीं मिलता। इस तरह भी लोग सन्तुलित भोजन से वंचित रह जाते हैं।

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प्रश्न 18.
खाने का नियोजन किन-किन बातों पर आधारित है ?
अथवा
खाने के नियोजन को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं ?
उत्तर :
ठीक खाने का नियोजन बनाना एक समझदार गृहिणी का काम है। यह नियोजन कई बातों पर आधारित होता है –
1. परिवार की आय-परिवार के भोजन का नियोजन परिवार की आय पर निर्भर करता है। उच्च आय वर्ग की गृहिणी महंगे भोजन पदार्थ बनाने के नियोजन तैयार कर सकती है परन्तु एक ग़रीब वर्ग की गृहिणी को परिवार की पौष्टिक आवश्यकताएं पूर्ण करने वाले परन्तु सस्ते भोजन का नियोजन बनाना पड़ता है।

2. परिवार का आकार और रचना-परिवार के सदस्यों की संख्या और उनकी आयु, स्वाद आदि भी भोजन के नियोजन को प्रभावित करते हैं जैसे जिस परिवार में बज़र्ग माता पिता हों, उस परिवार के भोजन का आयोजन एक ऐसा परिवार जिसमें जवान बच्चे और माता-पिता हों, से भिन्न होता है।

3. भोजन पकाने का समय और परोसने और पकाने का ढंग-ये भी खाने के नियोजन को प्रभावित करते हैं।

4. मौसम और घर की सुविधाएं भी गृहिणी के खाने नियोजन पर प्रभाव डालती हैं। उदाहरणस्वरूप यदि घर में फ्रिज हो तो एक बार बनाया भोजन दूसरे समय के लिए सम्भालकर रखा जा सकता है।

प्रश्न 19.
आहार आयोजन को परिवार का आकार व रचना किस प्रकार प्रभावित करते हैं, वर्णन करें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 18 का उत्तर।

प्रश्न 20.
भोजन में भिन्नता कैसे ला सकते हैं तथा क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
एक तरह का भोजन खाने से मन भर जाता है इसलिए खाने में रुचि बनाए रखने के लिए भिन्नता होनी आवश्यक है। यह भोजन में अनेक प्रकार से पैदा की जा सकती है –

  1. नाश्ते में प्रायः परांठे बनते हैं परन्तु रोज़ाना अलग किस्म का परांठा बनाकर भोजन में भिन्नता लाई जा सकती है जैसे मूली का परांठा, मेथी वाला, गोभी वाला, मिस्सा परांठा आदि।
  2. सभी भोजन पदार्थ एक रंग के नहीं होने चाहिएं। प्रत्येक सब्जी, दाल या सलाद का रंग अलग-अलग होना चाहिए। इससे भोजन देखने को अच्छा लगता है और अधिक पौष्टिक भी होता है।
  3. भोजन पकाने की विधि से भी खाने में भिन्नता आ सकती है जैसे तवे की रोटी, तन्दूर की रोटी, पूरी आदि बनाकर भोजन में भिन्नता लाई जा सकती है।

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प्रश्न 21.
भोजन देखने में भी सुन्दर होना चाहिए। क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं ? यदि हाँ तो क्यों ?
उत्तर :
जी हाँ; यह तथ्य बिल्कुल सही है कि भोजन देखने में अच्छा लगना चाहिए क्योंकि जो भोजन देखने में अच्छा न लगे उसको खाने को मन नहीं करता। यदि भोजन आँखों को न भाए तो मनुष्य उसका स्वाद भी नहीं देखना चाहता। भोजन को सुन्दर बनाने के लिए भोजन पकाने की विधि और उसको सजाने की जानकारी भी होनी चाहिए।

प्रश्न 22.
गर्भवती औरत के लिए एक दिन की आहार योजना बनाओ।
उत्तर :
एक गर्भवती औरत के लिए सन्तुलित भोजन की आवश्यकता होती है और यह भोजन दिन में पाँच बार खाना चाहिए। गर्भवती औरत के भोजन की एक दिन की योजना इस प्रकार होनी चाहिए –
सुबह-चाय, नींबू पानी, बिस्कुट या रस। नाश्ता-डबलरोटी, मक्खन, उबला हुआ अण्डा, परांठा, फलों का जूस। दिन के मध्य-दलिया, मौसमी फल। दोपहर का खाना-रोटी, चने, दही, सब्जी, सलाद। शाम के समय-केक या पौष्टिक लड़ड़ या कोई नमकीन और चाय। रात को-सब्जियों का सूप, रोटी, दाल, सब्जी, सलाद और खीर। सोने के समय-दूध।

प्रश्न 23.
गर्भवती औरत के लिए कैसा भोजन चाहिए और क्यों ?
अथवा
गर्भवती स्त्री को पौष्टिक तत्त्व अधिक मात्रा में क्यों लेना चाहिए ?
उत्तर :
माँ के पेट में ही बच्चे की सेहत और शारीरिक बनावट का फैसला हो जाता है। इसलिए गर्भवती माँ की खुराक सन्तुलित और अच्छी किस्म की होनी चाहिए। स्वस्थ माँ ही स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है। गर्भवती माँ की खुराकी आवश्यकता अपने लिए और बच्चे के लिए होती है। इसीलिए गर्भवती स्त्री को पौष्टिक तत्त्व को अधिक मात्रा में लेना चाहिए। गर्भवती औरत के लिए थोड़े-थोड़े समय के पश्चात् कम मात्रा में भोजन खाना ठीक रहता है। इसलिए गर्भवती औरत को दिन में तीन बार के स्थान पर पाँच बार भोजन खाना चाहिए। गर्भवती औरत के भोजन में दूध, फल, सब्जियां, मक्खन और दालें अवश्य शामिल होनी चाहिएं।

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प्रश्न 24.
दूध पिलाने वाली माँ के लिए कैसा भोजन चाहिए ? एक दिन की आहार योजना बनाओ।
उत्तर :
दूध पिलाने वाली माँ के एक दिन के भोजन का नियोजन- दूध पिलाने वाली माँ का आहार सन्तुलित होना चाहिए क्योंकि इसका प्रभाव बच्चे के स्वास्थ्य पर अच्छा पड़ेगा। दूध पिलाने वाली माँ का एक दिन का भोजन निम्नलिखित अनुसार होना चाहिए

  • सुबह – दूध या चाय।
  • नाशता – गोभी, आलू या मिस्सा परांठा, मक्खन, दही या दूध।
  • मध्य में – फलों का रस चीनी मिलाकर, फल या अंकुरित दाल।
  • दोपहर का भोजन – रोटी, हरी सब्जी, दाल या चने, राइता, सलाद, मौसमी फल।
  • शाम को – पंजीरी, केक, बिस्कुट, चाय या दूध।
  • रात को – दूध का गिलास।

बच्चे का स्वास्थ्य माँ के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। यदि माँ की खुराक में पौष्टिक तत्त्व होंगे, तभी बच्चा तन्दुरुस्त होगा। दूध पिलाने वाली माँ की खराकी आवश्यकता गर्भवती औरत से अधिक होती है। दूध पिलाने वाली माँ को अन्य औरतों की अपेक्षा कैलोरियां, प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थों की आवश्यकता अधिक होती है। अच्छी प्रोटीन दूध की पैदावार में सहायक होती है। इसलिए दूध पिलाने वाली माँ की खुराक में प्रोटीन युक्त पदार्थ जैसे दूध, पनीर और दालें आदि काफ़ी मात्रा में होनी चाहिएं।

प्रश्न 25.
बुखार के समय भोजन की जरूरत बढ़ती है या कम हो जाती है ? बताओ और क्यों ?
उत्तर :
बुखार में पौष्टिक भोजन की आवश्यकता बढ़ जाती है क्योंकि बुखार से शरीर में कई परिवर्तन आते हैं जैसे कि शरीर की मैटाबोलिक दर बढ़ने से शरीर को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह आवश्यकता साधारण से 50% बढ़ जाती है। बुखार में शरीर का तापमान बढ़ने से शरीर में तंतुओं की तोड़-फोड़ तेजी से होती है जिसके लिए अधिक प्रोटीन की ज़रूरत होती है। बुखार में शरीर के रोगों से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है। इसलिए अधिक विटामिनों की आवश्यकता होती है। बुखार से खनिज पदार्थ का निकास बढ़ जाता है। उनकी पूर्ति के लिए अधिक खुराक की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 26.
बुखार से आप क्या समझते हैं ? इसका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
शरीर एक मशीन की तरह काम करता है। मशीन की तरह ही शरीर में नुक्स पड़ सकता है जो प्रायः बुखार के रूप में प्रकट होता है। शरीर का तापमान तन्दुरुस्ती की स्थिति में 98.4 फार्नहीट होता है। यदि शरीर का तापमान इससे बढ़ जाए तो उसको बुखार कहा जाता है। बुखार से शरीर के तन्तुओं की तोड़-फोड़ बहुत तेजी से होती है, मैटाबोलिक दर बढ़ जाती है। शरीर में पौष्टिक तत्त्वों का शोषण कम होता है और सिर दर्द, कमर दर्द, बेचैनी प्रायः देखने में आते हैं।

प्रश्न 27.
बुखार में कैसा भोजन खाना चाहिए तथा क्यों ?
उत्तर :
बुखार में आहार आयोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि बुखार से शरीर में कई परिवर्तन आते हैं और कई खुराकी तत्त्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है। बुखार के समय खुराक सम्बन्धी निम्नलिखित नुस्खे प्रयोग किए जाने चाहिएं

  1. ऊर्जा और प्रोटीन वाले भोजन पदार्थों का अधिक उपयोग।
  2. तरल और नर्म-गर्म भोजन का प्रयोग।
  3. दूध की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
  4. फलों का रस, सब्जियों की तरी, मीट की तरी, काले चने की तरी बीमार के लिए गुणकारी होती है।
  5. खिचड़ी, दलिया और अन्य हल्के भोजन देने चाहिएं।
  6. बीमार के खाने में मिर्च-मसाले कम होने चाहिएं।

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प्रश्न 28.
बुखार से शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? बुखार की अवस्था में पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न नं० 26, 27 में।

प्रश्न 29.
बुखार में भोजन के तत्त्वों की आवश्यकता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
बुखार में खुराकी तत्त्वों की आवश्यकता शरीर में कई परिवर्तन आने के कारण बढ़ जाती है।

  1. ऊर्जा या शक्ति – बुखार में मैटाबोलिक दर बढ़ने से शरीर का तापमान बढ़ जाता है जिसके कारण 5% अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है इसलिए अधिक कैलोरियों वाली खुराक देनी चाहिए।
  2. प्रोटीन – शरीर में तापमान बढ़ने से तन्तुओं की तोड़-फोड़ तेजी से होती है इसलिए प्रोटीन अधिक मात्रा में लेनी चाहिए।
  3. कार्बोहाइड्रेट्स – बुखार से शरीर के कार्बोहाइड्रेट्स के भण्डार कम हो जाते हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स देने चाहिएं।
  4. विटामिन – बीमारी की हालत में शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है। इस स्थिति में बीमार मनुष्य को अधिक विटामिनों की आवश्यकता होती है।
  5. खनिज पदार्थ – सोडियम और पोटाशियम पसीने द्वारा अधिक निकल जाते हैं। इनकी पूर्ति के लिए दूध और जूस का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
  6. पानी – बीमार आदमी को पानी उचित मात्रा में पीना चाहिए क्योंकि रोगी के शरीर में से पानी पसीने और पेशाब के द्वारा निकलता रहता है।

प्रश्न 30.
बढ़ते बच्चों के लिए कैसा भोजन चाहिए ?
उत्तर :
बढ़ रहे बच्चों के शरीर में बने सैलों और तन्तुओं का निर्माण होता है और इसके लिए प्रोटीन तथा कार्बोज़ आदि अधिक मात्रा में चाहिएं ताकि तन्तुओं का निर्माण और तोड़-फोड़ की पूर्ति हो सके। इसके अतिरिक्त बच्चों की दौड़ने, भागने और खेलने में कैलोरियां अधिक खर्च होती हैं। इसलिए इनकी पूर्ति करने के लिए बच्चों के भोजन में आवश्यक मात्रा में मक्खन, घी, तेल, चीनी, शक्कर, दूध, पनीर और सब्जियों का शामिल होना आवश्यक है।

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प्रश्न 31.
गर्भवती औरत के लिए अधिक कैलोरियों की आवश्यकता होती है या दूध पिलाने वाली माँ के लिए, और क्यों ?
उत्तर :
गर्भवती औरत या दूध पिलाने वाली माँ, दोनों का भोजन सन्तुलित होना चाहिए। परन्तु दूध पिलाने वाली माँ की खुराकी आवश्यकताएं गर्भवती औरत से अधिक होती हैं। दूध पिलाने वाली माँ को गर्भवती और अन्य औरतों की अपेक्षा कैलोरियां और अन्य पौष्टिक तत्त्व अधिक मात्रा में चाहिएं। बच्चे की पूर्ण खुराक के लिए माँ का दूध काफ़ी मात्रा में आवश्यक है। यह दूध तभी प्राप्त होगा यदि माँ की खुराक में दूध, सब्जियाँ, दालें, पनीर काफ़ी मात्रा में होंगे। पहले छः महीने माँ का दूध बच्चे के लिए मुख्य खुराक होता है। इसलिए दूध पिलाती माँ को अधिक कैलोरियों वाला पौष्टिक भोजन चाहिए।

प्रश्न 32.
पाँच आहार समूहों से प्राप्त होने वाले पोषक तत्त्व बताइए। प्रत्येक समूह के कुछ उदाहरण भी दें।
अथवा
ICMR द्वारा प्रस्तावित खाद्य वर्ग योजना में खाद्य पदार्थों को कितने वर्गों में बांटा गया है ? प्रत्येक वर्ग में सम्मिलित होने वाले दो-दो खाद्य पदार्थों के नाम लिखें।
अथवा
ICMR द्वारा प्रस्तावित पांच खाद्य वर्गों के नाम लिखें व प्रत्येक वर्ग के अन्तर्गत दो-दो भोज्य पदार्थ लिखें।
अथवा
ICMR द्वारा प्रस्तावित पांच खाद्य वर्गों के नाम लिखें और उनके प्राप्त पोषक तत्त्व भी बताएं।
अथवा
ICMR द्वारा प्रस्तावित ‘पांच खाद्य वर्ग योजना’ का विवरण दीजिए ?
अथवा
खाद्य पदार्थों को किन-किन वर्गों में बांटा जा सकता है ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर :
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प्रश्न 33.
पोषक तत्त्वों के आधार पर आहार समूह बनाने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
पोषक तत्त्वों के आधार पर आहार समूह बनाने के निम्नलिखित लाभ हैं
(i) किसी विशेष पोषक तत्त्व की आवश्यकता होने पर ज्ञात होता है कि किस आहार समूह की भोजन सामग्री लेनी है।
(ii) एक आहार समूह की भोज्य सामग्री एक-से पोषक तत्त्व लगभग एक-सी ही मात्रा में उपलब्ध कराती है। हम सफलता से एक भोज्य सामग्री के स्थान पर दूसरी भोज्य सामग्री उसी आहार समूह में से परिवर्तित कर सकते हैं। इसे आहार परिवर्तन कहते हैं।

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प्रश्न 34.
सन्तुलित आहार की परिभाषा दीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताएं।
उत्तर :
सन्तुलित आहार वह है जिसमें पोषक तत्त्व उतनी मात्रा तथा अनुपात में हो अर्थात् उचित मात्रा में रहते हैं जिनसे शरीर को सभी आवश्यक पोषक तत्त्व मिल सकें और साथ ही कुछ पोषक तत्त्वों का शरीर में भण्डारण भी हो सके जिससे कभी-कभी अल्पाहार के समय उनका उपयोग शरीर में हो सके। सन्तुलित आहार की विशिष्टताएँ – सन्तुलित आहार में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही खाद्य पदार्थों का समावेश रहता है। अत: निम्नलिखित ज़रूरतें सन्तुलित आहार द्वारा पूर्ण हो पाती हैं।

  1. किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पोषण आवश्यकता की पूर्ति।
  2. सभी आहार समूहों में से खाद्य पदार्थों का समावेश।
  3. भोजन के विभिन्न प्रकारों का समावेश।
  4. मौसमी भोज्य पदार्थों का समावेश।
  5. कम खर्चीला।
  6. व्यक्तिगत रुचि और स्वाद के अनुकूल होना।

प्रश्न 35.
भोजन सम्बन्धी योजना क्या है ?
उत्तर :
इसका अर्थ है भोजन के लिए इस प्रकार से योजना बनाना कि परिवार का प्रत्येक सदस्य उपयुक्त पोषण स्तर प्राप्त कर सके। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें यह निर्धारित किया जाता है कि प्रतिदिन प्रत्येक भोजन में परिवार के सदस्य क्या खाएँगे।

प्रश्न 36.
भोजन सम्बन्धी योजना का क्या महत्त्व है ?
अथवा
आहार आयोजन का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
भोजन सम्बन्धी योजना निम्नलिखित बातों में सहायता प्रदान करती है –

  1. परिवार के सदस्यों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति।
  2. भोजन में मितव्ययिता का ध्यान रखना।
  3. विभिन्न सदस्यों की भोजन सम्बन्धी प्राथमिकताओं का ध्यान रखना।
  4. भोजन आकर्षक तरीके से परोसना।
  5. ऊर्जा, समय और ईंधन की बचत करना।
  6. बचे हुए भोजन का सही उपयोग।

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प्रश्न 37.
भोजन पकाते समय गृहिणी की व्यक्तिगत स्वच्छता सम्बन्धी किसी एक नियम का उल्लेख करें।
उत्तर :
भोजन पकाना शुरू करने से पूर्व गृहिणी को अपने हाथ अच्छी प्रकार से धोने चाहिए। बालों को हमेशा बांधकर रखना चाहिए।

प्रश्न 38.
खाना परोसते समय स्वच्छता सम्बन्धी किसी एक नियम का उल्लेख करें।
उत्तर :
खाना साफ-सुथरे बर्तनों में परोसना चाहिए तथा खाना खाने के लिए स्थान हवादार होना चाहिए।

प्रश्न 39.
दूध व दही का भण्डारण कैसे करेंगे ?
उत्तर :
दूध व दही का भण्डारण कम तापमान पर रेफ्रिजीरेटर में किया जाता है।

प्रश्न 40.
गेहूँ का भण्डारण कैसे करेंगे ?
उत्तर :
गेहूँ का भण्डारण बोरियों में, टीन के बने ड्रमों में किया जाता है। गेहूँ में नीम के पत्ते मिलाकर इसका भण्डारण किया जाता है।

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प्रश्न 41.
रसोई घर की स्वच्छता सम्बन्धी किसी एक नियम का उल्लेख करें।
उत्तर :
रसोईघर में खाने वाला सामान इधर-उधर बिखरा नहीं होना चाहिए, इससे चूहे, तिलचिट्टे, मक्खियां, छिपकलियां आदि रसोई में नहीं आ पाएंगे।

प्रश्न 42.
ताजे फलों व सब्जियों का भण्डारण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर :
ताजे फलों व सब्जियों को ठण्डे स्थान जैसे फ्रिज में रखकर भण्डारण किया जाता है।

प्रश्न 43.
किस दशा में दिए जाने वाले आहार को उपचारार्थ कहा जाता है ?
उत्तर :
किसी रोगी को रोग की दशा में दिए जाने वाले भोजन को उपचारार्थ कहा जाता है।

प्रश्न 44.
आहार नियोजन कला है या विज्ञान ?
उत्तर :
आहार-नियोजन कला भी है तथा विज्ञान भी। विज्ञान इसलिए कि आहार नियोजन में पौष्टिक मूल्यों के अनुसार भोज्य पदार्थ तालिका में शामिल किए जाते हैं तथा पकाने में तथा परोसने में कला का प्रयोग होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
आहार आयोजन का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
आहार आयोजन का अर्थ है उपलब्ध भोज्य सामग्री के द्वारा परिवार के सदस्यों के लिए रुचिकर, स्वास्थ्यप्रद तथा पारिवारिक बजट के अनुकूल दैनिक आहार की अग्रिम रूप-रेखा तैयार करना। आहार आयोजन परिवार के हर सदस्य की आयु, लिंग, कार्य और उसकी पोषण सम्बन्धी आवश्यकता को ध्यान में रखकर ही वैज्ञानिक ढंग से किया जा सकता है। आहार आयोजन के दो प्रमुख पहलू हैं – (i) आर्थिक तथा (ii) मनोवैज्ञानिक। एक धनी परिवार का आहार आयोजन गरीब परिवार के आहार आयोजन से सदैव भिन्न होगा। आहार आयोजन परिवार के सदस्यों को भोजन सम्बन्धी रुचियों एवं प्रवृत्तियों से भी बहुत अधिक प्रभावित होता है। आहार आयोजन का प्रमुख उद्देश्य परिवार के लिए पौष्टिक भोजन प्रदान करना है।

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प्रश्न 2.
आहार आयोजन से क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
आहार आयोजन से निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. परिवार के प्रत्येक सदस्य को शारीरिक आवश्यकताओं के अनुकूल पौष्टिक भोजन की प्राप्ति होती है।
  2. गृहिणी के समय की बचत होती है क्योंकि ठीक मौके पर यह नहीं सोचना पड़ता कि अमुक समय में क्या बनेगा। साथ ही उसके लिए सामान पहले से ही खरीद लिया जाता है।
  3. गृहिणी की शक्ति की बचत होती है। आहार आयोजन से कम समय में ही अधिक कार्य किया जा सकता है।
  4. परिवार के सदस्यों की रुचि को ध्यान में रखकर आहार आयोजन करने से प्रत्येक सदस्य को उसकी रुचि के अनुसार भोजन मिलता है।
  5. आहार आयोजन कर लेने से इकट्ठा सामान थोक के भाव से खरीदने से धन की बचत होती है।
  6. आहार आयोजन में सभी समय का आहार सन्तुलित, सुपाच्य होने के साथ-साथ स्वास्थ्यकर भी होता है।

प्रश्न 3.
प्रातःकाल के नाश्ते की कुछ व्यवस्थायें या मीन बताइये।
उत्तर :
नाश्ते की कुछ व्यवस्थायें निम्नलिखित हैं –

  1. गेहूँ, मक्का – बाजरा या गेहूँ-मक्का का दलिया, दूध या लस्सी के साथ; दो टोस्ट, मक्खन या मलाई के साथ, आलू का कटलेट या बेसन का पूड़ा, मौसमी फल – केला, अमरूद, पपीता, आम, सन्तरा या बेर आदि, चाय, कॉफी, लस्सी।
  2. गेहूँ, चने की या मिश्रित अनाज की रोटी, दही या रायते या आचार के साथ, मौसमी फल, लस्सी, शिकन्जवी, चाय या कॉफी।
  3. आलू, प्याज, मूली, गोभी, मेथी या बथुआ का परांठा दही के साथ; एक टोस्ट मक्खन, जैम या पनीर के टुकड़े के साथ; मौसमी फल, लस्सी, शिकन्जी, चाय या कॉफी।
  4. दो टोस्ट मक्खन या जैम के साथ, दो अण्डे उबले या तले हुए या बेसनी आमलेट, कार्न फ्लेक-दूध, मौसमी फल, चाय या कॉफी।
  5. डोसा-सांभर या इडली – सांभर, पोहे या ढोकले दाल व दही के साथ, बेसनी आमलेट या अण्डे का आमलेट, मौसमी फल, लस्सी, शिकन्जवी, चाय या कॉफी।

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प्रश्न 4.
दोपहर के भोजन की कुछ व्यवस्थायें बताइये।
उत्तर :
दोपहर के भोजन की कुछ व्यवस्थायें या मीनू निम्नलिखित हैं –

  1. मक्की की रोटी सरसों के साग के साथ या बाजरे की रोटी पत्ते सहित मूली की भुरजी व मूंग, मोठ की मिश्रित दाल के साथ या रोटी, पूड़ी या परांठों के साथ दाल, सब्जी, दही, चटनी व सलाद।
  2. चावल – दाल की खिचड़ी या बाजरा-दाल की खिचड़ी, बाजरा-लस्सी की राबड़ी हरी-सब्जी, दही, चटनी, अचार व सलाद।
  3. चावल, हरी-सब्जी, चटनी, टोस्ट-मक्खन, सलाद।
  4. चावल, दाल, कोई हरी-सब्जी, दही या रायता, चटनी व सलाद।
  5. रोटी, कोई हरी सब्जी, रायता, चटनी व सलाद।

नोट – दाल के स्थान पर कोफ्ते, सांभर, कढ़ी, आलू, बड़ियां, सोयाबीन बड़ियां, राजमांह, छोले, लोबिया आदि का प्रयोग करके भोजन में विविधता लाई जाती है।

प्रश्न 5.
संध्या का जलपान या शाम की चाय कब और कैसी होनी चाहिए ? शाम की चाय के कुछ मीनू भी बताइये।।
उत्तर :
कुछ लोग तो शाम को केवल चाय ही पीना पसन्द करते हैं, जबकि कुछ उसके साथ कुछ खाने को भी लेते हैं। चाय के साथ परोसे जाने वाले व्यंजन अवसर के अनुसार देने चाहिए। रोज़ तो घर में शाम को चाय के साथ अक्सर कुछ नमकीन और मीठा खा लिया जाता है, परन्तु ध्यान रखना चाहिए कि साथ में दिए जाने वाले व्यंजन हल्के, स्फूर्तिदायक और आसानी से परोसे जाने वाले हों। ऐसा करना इसलिए आवश्यक है कि रोज़ चाय पीने के लिए परिवार के सदस्य मेज आदि पर बैठना पसन्द नहीं करते अपितु जहाँ बैठे हों वहीं लेना पसन्द करते हैं। कुछ लोग जो दिनभर के काम के पश्चात् घर आते हैं, तो चाय के साथ कुछ भारी चीज़ जैसे लड्डू आदि खाना पसन्द करते हैं। परन्तु कुछ ऐसे भी लोग हैं जो रात्रि का भोजन जल्दी लेना चाहते हैं। अतः वे शाम को खाली चाय ही पीते हैं।

साधारण समय के लिए :

  1. पकौड़े, चाय।
  2. टमाटर के सैंडविच, चाय।
  3. मठरी, बेसन के लड्डू, चाय।
  4. मीठे बिस्कुट, साबूदाने के बड़े, चाय।
  5. जलेबी, आलू के चिप्स, चाय।

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प्रश्न 6.
रात्रि का भोजन कैसा होना चाहिए ?
उत्तर :
रात्रि के भोजन तथा दोपहर के भोजन में कोई विशेष अन्तर नहीं होता। अत: रात के भोजन में भी वे सभी खाद्य-पदार्थ सम्मिलित किये जाते हैं जो दोपहर के भोजन में सम्मिलित किये जाते हैं लेकिन इतना होने पर भी रात के भोजन की व्यवस्था करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। ये बातें निम्नलिखित हैं –

  1. इस भोजन की व्यवस्था सोने से कम-से-कम दो-तीन घंटे पूर्व होनी चाहिए।
  2. दिनभर काम करने के कारण टूटने-फूटने वाले कोषाणुओं की पूर्ति करने के लिए प्रोटीनयुक्त खाद्य-पदार्थों की संख्या अधिक होनी चाहिए।
  3. यह दोपहर के भोजन की तुलना में हल्का होना चाहिए अन्यथा पाचन क्रिया ठीक प्रकार से नहीं हो पाती है।

रात्रि के भोजन में निम्नलिखित खाद्य-पदार्थों को लिया जाना चाहिए –

  1. कोई भी दाल।
  2. हरी-सब्जी (यदि दोपहर के भोजन में न ली गई हो तो अवश्य ही प्रयोग करें)।
  3. दूध, दही।
  4. कोई मीठा व्यंजन, जैसे-कस्टर्ड, फ्रूट क्रीम, पुडिंग चावल या साबूदाने की खीर, आटा-सूजी या मूंग की दाल का अथवा बाजरे का हलवा, आइसक्रीम, कुल्फी आदि।
  5. भोजन से पूर्व सब्जियों या मांस का सूप।

प्रश्न 7.
रात्रि के भोजन के लिए कुछ मीनू बताइये।
उत्तर :

  1. पालक-पनीर कोफ्ता, गोभी की सब्जी, बूंदी का रायता, सलाद, पूरी, मूंगफली का पुलाव, गाजर का हलवा।
  2. कीमा-कोफ्ता, पालक-मूंगफली साग, आलू-गाजर-मटर की सब्जी, सलाद, पुलाव / तन्दूरी रोटी, फ्रूट-क्रीम (Fruit Cream)।
  3. टमाटर का सूप, धन-साग (Dhan-Sag), बेक्ड सब्जियां (Baked Vegetables), सलाद, पुलाव / नॉन, ट्राइफल पुडिंग (Trifle Pudding)।
  4. पालक सूप, आलू-मटर पनीर; गोभी मुसल्लम; गाजर का रायता; पुलाव / तन्दूरी रोटी; लैमन सूफले (Lemon Souffle)।
  5. केले और अमरूद का पेय; मीट करी / पनीर कोफ्ते; राजमांह; भरवां लौकी, सलाद; सादा पुलाव / पूरी, रबड़ी।

प्रश्न 8.
स्कूल जाने वाले बच्चे के लिए सुबह का नाश्ता तैयार करते समय कौन कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :
स्कूल जाने वाले बच्चे के लिए सुबह का नाश्ता तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
1. सन्तुलित नाश्ता तैयार करना – स्कूल जाने वाले बच्चे के लिए सदैव सन्तुलित नाश्ते की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे उसकी पौष्टिक आवश्यकताएं पूरी हो सकें। इसके लिए चपाती या परांठा, उबली हुई सूखी दाल, सब्जी, दही एवं दूध की व्यवस्था करनी चाहिए। नाश्ते के मीनू में हमेशा बच्चों की रुचि के अनुकूल खाद्य-पदार्थों का समावेश करना चाहिए।

2. नाश्ते का आकर्षक होना – नाश्ते का रूप-रंग और उसकी रचना इतनी आकर्षक होनी चाहिए कि उसे देखते ही बच्चे का मन खाने के लिए लालायित हो उठे।

3. समय से नाश्ता तैयार करना – स्कूल जाने वाले बच्चे का नाश्ता तैयार करते समय माँ को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नाश्ता बच्चे के स्कूल जाने से इतनी देर पहले अवश्य तैयार हो जाए कि बच्चा आराम से नाश्ता कर सके।

4. नाश्ते का महत्त्व समझाना – प्रायः ऐसा होता है कि बच्चे स्कूल जाने से पहले नाश्ता लेना पसंद नहीं करते ऐसी स्थिति में बच्चे को डांटने-फटकारने के स्थान पर प्रेम से यह समझाना चाहिए कि उनके लिए नाश्ता लेना ज़रूरी है।

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प्रश्न 9.
स्कूल जाने वाले बच्चे के लिए टिफिन तैयार करते समय कौन-कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :

  1. कैलोरी की मात्रा – टिफिन में पोषक तत्त्वों की दृष्टि में दैनिक आवश्यकता के 1/6 से 1/5 भाग की पूर्ति होनी चाहिए।
  2. सन्तुलित आहार – टिफिन तैयार करते समय सन्तुलित आहार सम्बन्धी सिद्धान्तों का ध्यान रखना चाहिए।
  3. हर रोज़ मीन बदलना – इससे भोजन के प्रति अरुचि पैदा नहीं होती।
  4. भोजन की मात्रा – बच्चे के टिफिन में भोजन की मात्रा न तो बहुत अधिक रखनी चाहिए और न बहुत कम।
  5. भोजन इस प्रकार का होना चाहिए कि टिफिन के उलटने से कोई पदार्थ, तरी आदि गिरकर कपड़े या किताबें खराब न हों।
  6. बच्चे को टिफिन के साथ एक नेपकिन देना चाहिए।
  7. बच्चे को पानी की बोतल भी ज़रूर देनी चाहिए।

प्रश्न 10.
जल्दी-जल्दी नाश्ता करने से क्या हानियाँ होती हैं ?
उत्तर :
जल्दी-जल्दी नाश्ता करने से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं –
1. भोजन ठीक से चबाया नहीं जाता जिससे मुँह में स्टॉर्च शर्करा में रूपान्तरण नहीं हो पाता।

2. जल्दी-जल्दी में पूरा नाश्ता नहीं किया जाता जिससे भूख लगने के कारण बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगता और वह थका-थका सा रहता है। इससे वह पढ़ाई में भी कमज़ोर होता है।

3. सन्तुलित और पूरा नाश्ता न करने और नाश्ते के लिए पैसा ले जाने के कारण बच्चे स्कूल के बाहर बैठे खोमचे वालों से दूषित भोज्य-पदार्थ खाते हैं जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। अतः स्पष्ट है कि स्कूल जाने वाले बच्चे को प्रातःकालीन नाश्ता आयोजित करते समय कुछ अधिक सावधानी रखनी चाहिए।

प्रश्न 11.
किशोरावस्था में पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएं क्यों बढ़ जाती हैं ?
उत्तर :
इस अवस्था में पर्याप्त शारीरिक परिवर्तन होते हैं –

  1. हड्डियां बढ़ती हैं,
  2. मांस-पेशियों की वृद्धि होती है
  3. कोमल तन्तुओं में वसा संग्रहीत होती है
  4. अस्थि पिजर दृढ़ हो जाता है
  5. शरीर में रोग-निरोधक क्षमता का विकास होता है
  6. नाड़ी मंडल में स्थिरता आती है
  7. लड़कों के कन्धे चौड़े होते हैं
  8. लड़कियों के नितम्ब बढ़ते हैं और मासिक धर्म प्रारम्भ हो जाता है।

इस प्रकार शारीरिक वृद्धि की गति बढ़ जाने के कारण इस अवस्था में भूख अधिक लगती है और पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएं बढ़ जाती हैं।

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प्रश्न 12.
किशोरावस्था के लड़के-लड़कियां कुपोषण के शिकार क्यों होते हैं ?
उत्तर :
एक तरफ़ जब किशोरावस्था में पोषण आवश्यकताएं बढ़ती हैं दूसरी और वे प्रायः कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। इसके अग्रलिखित कारण होते हैं –

  • पोषण विज्ञान सम्बन्धी अज्ञानता।
  • परम्परागत भोजन सम्बन्धी आदतें।
  • निर्धनता के कारण अपर्याप्त और असंतुलित भोजन।
  • मानसिक अस्थिरता और चिड़चिड़ापन।
  • कोई तीव्र संक्रमण एवं शारीरिक रोग जिसके कारण भूख कम लगती हो।
  • लड़कियों में स्थूलता का भय जिसके कारण वे बहुत-से खाद्य-पदार्थों जैसे दूध, आलू आदि से परहेज करती हैं।
  • दिनचर्या का नियमित न होना और भोजन करने का निश्चित समय न होना।
  • स्वतन्त्रता की भावना होने से अपने लिए भोजन स्वयं चुनना तथा अपनी शारीरिक आवश्यकताओं का ध्यान न रखना।

प्रश्न 13.
किशोरावस्था के लिए आहार आयोजन करते समय क्या सुझाव लाभकारी हो सकते हैं ?
अथवा
किशोरावस्था के लिए आहार आयोजन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :
किशोरावस्था के लिए आहार आयोजन करते समय निम्नलिखित सुझाव लाभकारी हो सकते हैं

  • भोजन की पौष्टिकता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • भोजन में सभी वर्गों के खाद्य पदार्थ बदल-बदल कर सम्मिलित किए होने चाहिएँ।
  • दूध और दूध से बने पदार्थ भोजन में अवश्य सम्मिलित किए जाने चाहिएँ।
  • दूध का अभाव होने पर प्रोटीन की पूर्ति सोयाबीन एवं मूंगफली द्वारा करनी चाहिए।
  • हरी पत्तेदार सब्जियों तथा गहरी पीली सब्जियों को आहार में विशेष स्थान देना चाहिए।
  • भोजन में सलाद का होना आवश्यक है क्योंकि कच्ची सब्जियों द्वारा विटामिन सुलभ प्राप्त हो जाते हैं।
  • मौसम के फल जैसे अमरूद, केला, आम, पपीता को आहार में अवश्य सम्मिलित करना चाहिए।
  • भोजन तैयार करते समय तलने-भूनने की क्रियाओं का प्रयोग कम होना चाहिए।
  • मसालों का प्रयोग कम करना चाहिए।
  • भोजन का समय नियमित होना आवश्यक है।
  • शरीर का भार बढ़ रहा हो तो कैलोरी की मात्रा कम रखनी चाहिए।
  • कोष्ठबद्धता से बचने के लिए आहार में रेशेदार पदार्थों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

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प्रश्न 14.
एक 15 वर्षीय किशोर लड़के की ICMR द्वारा प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं लिखें।
उत्तर :
एक 15 वर्षीय किशोर लड़के की ICMR द्वारा प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं इस प्रकार हैं –

  • किशोर का भार – लगभग 48 कि०ग्रा०
  • कैलोरी की मात्रा – 2450 कि० कैलोरी
  • प्रोटीन – 70 ग्राम
  • कैल्शियम – 600 मि.ग्रा०
  • लोहा – 41 मिग्रा०
  • विटामिन ए – 2400 मिग्रा०
  • थायामिन – 1.2 मि०ग्रा०
  • राइबोफ्लेबिन – 1.5 मिग्रा०

प्रश्न 15.
भोजन का पौष्टिक मान बढ़ाने का अभिप्राय लिखें।
उत्तर :
सामान्य आहार में अनाज की मात्रा अधिक होती है। कार्बोज़ द्वारा व्यक्ति की कैलोरी आवश्यकताओं की पूर्ति तो हो जाती है, परन्तु शरीर निर्माण करने वाले पौष्टिक तत्त्व जैसे प्रोटीन तथा स्वास्थ्य रक्षा करने वाले तत्त्व जैसे विटामिन व खनिज लवणों का अभाव होता है। जो भी खाद्य पदार्थ उपलब्ध होते हैं उनका पौष्टिक मान बढ़ाने से शरीर के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्त्व उपलब्ध हो जाते हैं। अंकुरण द्वारा, मिश्रण द्वारा पौष्टिक मान बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 16.
आटे का चोकर फेंकने से क्या नुकसान होते हैं ?
उत्तर :
आटे का चोकर फेंकने से प्रोटीन, थायमिन, निकोटिनिक एसिड, विटामिन B आदि का नुकसान होता है।

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प्रश्न 17.
एक गर्भवती स्त्री की ICMR द्वारा प्रस्तावित दैनिक पौशिक आवश्यकतायें लिखें।
उत्तर :
गर्भवती स्त्री के लिए प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं इस प्रकार हैं –

  • ऊर्जा – 2525 कि० कै (मध्यम कार्य)
  • प्रोटीन – 65 ग्राम
  • कैल्शियम – 1000 मिग्रा०
  • लोह – 38 मि०ग्रा०
  • रेटीनाल – 600 माइक्रो ग्रा०
  • थायमिन – 1.3 माइक्रो ग्रा०
  • विटामिन ‘सी’ – 40 मिग्रा०
  • विटामिन B12 – 1 माइक्रो ग्रा०
  • नायसिन – 16 मि.ग्रा०

प्रश्न 18.
दोपहर के भोजन का आयोजन करते समय गृहिणी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :

  1. दोपहर का भोजन भारी होना चाहिए ताकि सन्तुष्टि मिले।
  2. इसमें सभी भोजन समूह से खाद्य पदार्थ होने चाहिए।
  3. कच्ची तथा पक्की सब्जियां होनी चाहिए।
  4. पूरे दिन की ज़रूरत का तीसरा भाग दोपहर के खाने से मिलना चाहिए।

प्रश्न 19.
एक वयस्क पुरुष की ICMR द्वारा प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं लिखें।
उत्तर :
वयस्क पुरुष जिसका शारीरिक भार 60 किलोग्राम है तथा मध्यम दर्जे का कार्य करता है, उसके लिए प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं हैं –

  • प्रोटीन – 60 ग्राम
  • कैल्शियम – 400 मिग्रा०
  • लोहा – 28 मि०ग्रा०
  • विटामिन ए – 2400 माइक्रो ग्राम
  • थायमिन – 1.4 मि०ग्रा०
  • राइबोफलेविन – 1.6 मि०ग्रा०
  • कैलोरी – 2875 किलो कैलोरी

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प्रश्न 20.
रात्रि के भोजन की व्यवस्था करते समय गृहिणी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? (कोई दो)
उत्तर :
1. भोजन की व्यवस्था सोने से कम-से-कम दो तीन घण्टे पूर्व होनी चाहिए।
2. यह दोपहर के भोजन की तुलना में हल्का होना चाहिए।

प्रश्न 21.
भोजन सम्बन्धी अन्ध विश्वास एवं मान्यताओं का आहार आयोजन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
हमारे देश में भोजन सम्बन्धी अन्ध विश्वास तथा भ्रम सदियों से चले आ रहे हैं। इनका आहार आयोजन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इनके कारण से जो भी कुछ भोजन हमें मिल पाता है उसका भी पूर्ण रूप से लाभ हम नहीं उठा पाते।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
(क) भोजन को समूहों में क्यों बांटा गया है ? सन्तुलित भोजन बनाने के समय इसके क्या लाभ हैं ?
(ख) संतुलित आहार आयोजन में आहार वर्ग किस प्रकार सहायक होते हैं ? उदाहरण सहित समझाएं।
उत्तर :
(क) अलग-अलग भोजनों में अलग-अलग पौष्टिक तत्त्व मौजूद होते हैं। इसलिए भोजन को उनके पौष्टिक तत्त्वों के अनुसार अलग-अलग भोजन समूहों में बांटा गया है। अण्डे और दूध को पूर्ण खुराक माना गया है। लेकिन प्रतिदिन एक भोजन नहीं खाया जा सकता। इससे मन ऊब जाता है। इसलिए भोजन समूहों में से ज़रूरत अनुसार कुछ-न-कुछ लेकर सन्तुलित भोजन प्राप्त किया जाता है। अलग-अलग भोजनों की पौष्टिक तत्त्वों के अनुसार बारम्बारता इस तरह है –

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सन्तुलित भोजन बनाते समय सारे भोजन समूहों में से आवश्यक पौष्टिक तत्त्वों वाले भोजन लिए जाएंगे ताकि भोजन स्वादिष्ट और खुशबूदार बनाया जा सके।
परिवार के लिए सन्तुलित भोजन बनाना (Planning Balanced Diet for the Family) सन्तुलित भोजन बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. मनुष्य की प्रतिदिन की पौष्टिक तत्वों की ज़रूरत का ज्ञान (Knowledge of Daily Nutritional Requirements)
  2. ज़रूरी पौष्टिक तत्त्व देने वाले भोजनों की जानकारी तथा चुनाव (Knowledge of Food Stuffs that can Provide Essential Nutrients)
  3. भोजन की योजनाबन्दी (Planning of Meals)
  4. भोजन पकाने का ढंग (Method of Cooking)
  5. भोजन परोसने का ढंग (Method of Serving Food)

1. मनुष्य की प्रतिदिन की पौष्टिक तत्त्वों की जरूरत का ज्ञान (Knowledge of Daily Nutritional Requirements) मनुष्य की भोजन की आवश्यकता उसकी आयु, लिंग, व्यवसाय तथा जलवायु के साथ-साथ शारीरिक हालत पर निर्भर करती है। जैसे भारा तथा शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति को हल्का तथा दिमागी कार्य करने वाले मनुष्य की अपेक्षा ज्यादा कैलोरी तथा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा लोहे की ज्यादा ज़रूरत है। इसलिए सन्तुलित भोजन बनाने से पहले पारिवारिक व्यक्तियों की पौष्टिक तत्त्वों की ज़रूरत का ज्ञान होना जरूरी है।

2. ज़रूरी पौष्टिक तत्त्व देने वाले भोजन की जानकारी (Knowledge of Food Stuffs that can Provide Essential Nutrients) – प्राकृतिक रूप में मिलने वाले भोजन को उनके पौष्टिक तत्त्वों के आधार पर पाँच भोजन समूहों में बांटा गया है, जोकि पीछे टेबल नं० 1 में दिए गए हैं। प्रत्येक समूह में से भोजन पदार्थ शामिल करने से सन्तुलित भोजन तैयार किया जा सकता है। भिन्न-भिन्न प्रकार की आयु, लिंग तथा शारीरिक अवस्था के अनुसार पौष्टिक तत्त्वों की ज़रूरत भी भिन्न-भिन्न होती है।

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3. भोजन की योजनाबन्दी (Planning of Meals) भोजन की ज़रूरत तथा चुनाव के बाद उसकी योजना बना ली जाए। कितने समय के अन्तराल के बाद भोजन खाया जाए जिसके पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा पूरी हो सके। भोजन की योजनाबन्दी को निम्नलिखित बातें प्रभावित करती हैं –

  1. परिवार के सदस्यों की संख्या।
  2. परिवार के सदस्यों की आयु, व्यवसाय तथा शारीरिक अवस्था।
  3. परिवार के सदस्यों की भोजन के प्रति रुचि तथा जरूरत।
  4. परिवार के रीति-रिवाज।
  5. भोजन पर किया जाने वाला व्यय तथा भोजन पदार्थों की खुराक।

ऊपरलिखित बातों को ध्यान में रखते हुए पौष्टिक तत्त्वों की पूर्ति तथा भोजन की ज़रूरत के अनुसार सारे दिन में खाए जाने वाले भोजन को चार मुख्य भागों में बांटा गया है –

  1. सुबह का नाश्ता (Breakfast)
  2. दोपहर का भोजन (Lunch)
  3. शाम का चाय-पानी (Evening Tea)
  4. रात का भोजन (Dinner)

(i) सुबह का नाश्ता (Breakfast) – पूरे दिन की ज़रूरत का चौथा भाग सुबह के नाश्ते द्वारा प्राप्त होना चाहिए। अच्छा नाश्ता शारीरिक तथा मानसिक योग्यता को प्रभावित करता है। नाश्ते की योजना बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –
(क) शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए नाश्ता ठोस तथा कार्बोज़ युक्त होना चाहिए जबकि मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए हल्का तथा प्रोटीन युक्त नाश्ता अच्छा रहता है।

(ख) यदि नाश्ते तथा दोपहर के खाने में ज्यादा लम्बा समय हो तो नाश्ता भारी लेना चाहिए तथा यदि अन्तर कम या समय कम हो तो नाश्ता हल्का तथा जल्दी पचने वाला होना चाहिए।

(ग) नाश्ते में सभी भोजन तत्त्व शामिल होने चाहिएं जैसे भारी नाश्ते के लिए भरा हुआ परांठा, दूध, दही या लस्सी तथा कोई फल लिया जा सकता है। हल्के नाश्ते के लिए अंकुरित दाल, टोस्ट, दूध तथा फल आदि लिए जा सकते हैं।

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(ii) दोपहर का भोजन (Lunch) – पूरे दिन की ज़रूरत का तीसरा भाग दोपहर के भोजन द्वारा प्राप्त होना चाहिए। इसमें अनाज दालें, पनीर, मौसमी फल तथा हरी पत्तेदार सब्जियां होनी चाहिएं। भोजन में कुछ कच्ची तथा कुछ पक्की चीजें होनी चाहिएं। अधिकतर कार्य करने वाले लोग दोपहर का खाना साथ लेकर जाते हैं। इसलिए वह भोजन भी पौष्टिक होना चाहिए। उदाहरण के लिए दोपहर के भोजन में रोटी, राजमांह, कोई सब्जी, रायता तथा सलाद लिया जा सकता है तथा साथ ले जाने वाले भोजन में पुदीने की चटनी आदि तथा सैंडविच, गचक तथा कुछ फल सम्मिलित किया जा सकता है।

(iii) शाम की चाय (Evening Tea) – इस समय चाय के साथ कोई नमकीन या मीठी चीज़ जैसे बिस्कुट, केक, बर्फी, पकौड़े, समौसे आदि लिए जा सकते हैं।

(iv) रात का भोजन (Dinner) – इस भोजन में से भी पूरे दिन की ज़रूरत का तीसरा भाग प्राप्त होना चाहिए। रात तथा दोपहर के भोजन में कोई फर्क नहीं होता परन्तु फिर भी इसको बनाते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे –

(क) दोपहर के भोजन की अपेक्षा रात का भोजन हल्का होना चाहिए ताकि जल्दी पच सके।
(ख) सारा दिन काम – काज करते हुए शरीर के तन्तुओं की टूट-फूट होती रहती है। इसलिए इनकी मरम्मत के लिए प्रोटीन वाले भोजन पदार्थ होने चाहिएं।
(ग) रात का भोजन विशेष ध्यान देकर बनाना चाहिए क्योंकि इस समय परिवार के सारे सदस्य इकट्ठे होकर भोजन करते हैं।

4. भोजन पकाने का ढंग (Method of Cooking) – भोजन की योजनाबन्दी का तभी फ़ायदा है जब भोजन को ऐसे ढंग के साथ पकाया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा खुराकी तत्त्वों की सम्भाल हो सके। भोजन खरीदते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. सूखे भोजन पदार्थ जैसे अनाज, दालें अधिक मात्रा में खरीदनी चाहिएं परन्तु यह भी उतनी ही मात्रा में जिसकी आसानी से सम्भाल हो सके।
  2. फल तथा सब्जियां ताज़ी खरीदनी चाहिएं क्योंकि बासी फल तथा सब्जियों में विटामिन तथा खनिज लवण नष्ट हो जाते हैं।
  3. हमेशा साफ़ – सुथरी दुकानों से ही भोजन खरीदना चाहिए।

भोजन को पकाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. भोजन को अधिक समय तक भिगोकर नहीं रखना चाहिए क्योंकि बहुत सारे घुलनशील तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  2. सब्जियों तथा फलों के ज्यादा छिलके नहीं उतारने चाहिएं क्योंकि छिलकों के नीचे विटामिन तथा खनिज लवण ज्यादा मात्रा में होते हैं।
  3. सब्जियों को बनाने से थोड़ी देर पहले ही काटना चाहिए नहीं तो हवा के सम्पर्क के साथ भी विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
  4. सब्जियां तथा फल हमेशा बड़े-बड़े टुकड़ों में काटने चाहिएं क्योंकि इस तरह से फल तथा सब्जियों की कम सतह पानी तथा हवा के सम्पर्क में आती है।
  5. सब्जियों को उबालते समय पानी में डालकर कम-से-कम समय के लिए पकाया जाए ताकि उनकी शक्ल, स्वाद तथा पौष्टिक तत्त्व बने रहें।
  6. भोजन को पकाने के लिए मीठे सोडे का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे विटामिन ‘बी’ तथा ‘सी’ नष्ट हो जाते हैं।
  7. प्रोटीन युक्त पदार्थों को धीमी आग पर पकाना चाहिए नहीं तो प्रोटीन नष्ट हो जाएंगे।
  8. भोजन हिलाते तथा छानते समय अधिक समय नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे भोजन के अन्दर हवा इकट्ठी होने के कारण विटामिन ‘सी’ नष्ट हो जाता है।
  9. खाना बनाने वाले बर्तन तथा रसोई साफ़-सुथरी होनी चाहिए।
  10. भोजन में अधिक मसालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  11. एक ही प्रकार के भोजन पदार्थों का प्रयोग बार-बार नहीं करना चाहिए।
  12. जो लोग शाकाहारी हों उनके भोजन में दूध, पनीर, दालें तथा सोयाबीन का प्रयोग अधिक होना चाहिए।
  13. जहां तक हो सके भोजन को प्रैशर कुक्कर में पकाना चाहिए क्योंकि इससे समय तथा शक्ति के साथ-साथ पौष्टिक तत्त्व भी बचाए जा सकते हैं।

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5. भोजन परोसने का ढंग (Method of Serving Food) –

  • खाना खाने वाला स्थान, साफ़-सुथरा तथा हवादार होना चाहिए।
  • खाना हमेशा ठीक तरह के बर्तनों में ही परोसना चाहिए जैसे तरी वाली सब्जियों के लिए गहरी प्लेट तथा सूखी सब्जियों के लिए चपटी प्लेट प्रयोग में लाई जा सकती है।
  • एक बार ही बहुत ज्यादा भोजन नहीं परोसना चाहिए बल्कि पहले थोड़ा तथा आवश्यकता पड़ने पर ओर लिया जा सकता है।
  • सलाद तथा फल भी भोजन के साथ अवश्य परोसने चाहिएं।
  • भोजन में रंग तथा भिन्नता होनी चाहिए। इसलिए धनिये के हरे पत्ते, नींबू तथा टमाटर आदि का प्रयोग किया जा सकता है।

यदि ऊपरलिखित बातों को ध्यान में रखकर भोजन तैयार किया जाए तो व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार, प्रसन्न मन के साथ भोजन खाकर सन्तुलित भोजन का उद्देश्य पूरा कर सकता है। (ख) देखें (क) का उत्तर।

प्रश्न 2.
भोजन की पौष्टिकता बनाने के लिए भोजन पकाते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 3.
आहार नियोजन से आप क्या समझते हैं ? इसको प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं ?
उत्तर :
एक समझदार गृहिणी में यह गुण होना चाहिए कि आहार भोजन इस तरह बनाए कि परिवार के सभी सदस्यों को उनकी आवश्यकता अनुसार सन्तुलित और स्वादिष्ट खाना मिल सके। सारा दिन आवश्यकता अनुसार क्या-क्या खाना चाहिए यह आहार नियोजन से पता चलता है। इसलिए परिवार के सदस्यों की आवश्यकता और निश्चित समय अनुसार अच्छे पोषण के लिए खाद्य पदार्थों की योजनाबन्दी को आहार नियोजन कहा जाता है।

आहार नियोजन को प्रभावित करने वाले कारक –
1. आय – आहार नियोजन के समय आय को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छा आहार अर्थात् सन्तुलित भोजन होना आवश्यक है। सन्तुलित भोजन के बारे में आप पहले ही पढ़ चुके हैं। यदि हम गैर-मौसमी वस्तु खरीदेंगे तो महंगी ही मिलेंगी। इस के विपरीत मौसमी सब्जी या फल पर खर्च कम होगा। यदि हम महंगे भोजन नहीं खरीद सकते तो हमारी कुछ आवश्यकताएं (पौष्टिक तत्त्वों सम्बन्धी) सस्ते भोजन से भी पूरी हो सकती हैं। जिस तरह सप्रेटा दूध अधिक प्रयोग किया जाए तो इसमें कोई नुकसान नहीं। जहां तक हो सके स्थानिक पैदा हुई सब्जियां और फल उपयोग करने में सस्ते से ही भोजन ताज़ा और विटामिन भरपूर होगा।

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2. मौसम – सर्दियों में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जबकि गर्मियों में ठण्डे और तरल पदार्थों की आवश्यकता अधिक होती है। इसके अनुसार ही खाने की योजना बनानी चाहिए। सर्दियों में जो ऊर्जा भरपूर पिन्नियां, मिठाइयां, समौसे और पकौड़े साथ देते हैं। प्रत्येक मौसम के अनुसार सूची बनाकर परिवार की पौष्टिक आवश्यकताओं को मुख्य रखना चाहिए। मौसमी फलों और सब्जियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। बेमौसमी सब्जियां और फल महंगे भी मिलते हैं और ताज़े भी नहीं होते।

3. भोजन प्राप्ति – प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक भोजन पदार्थ उपलब्ध नहीं होता। वह ही भोजन सूची में रखने चाहिएं जो आसानी से मिल सकें और निकट मिल सकें। दूर जाने से पैसा और समय नष्ट होगा। यदि घर में फ्रिज है तो बची हुई सब्जी प्रयोग की जा सकती है या यदि सूची में डबलरोटी है तो क्या वह उपलब्ध है आदि।

4. गृहिणी की रुचि और निपुणता – गृहिणी की खाना पकाने में रुचि और निपुणता होनी बहुत आवश्यक है इस तरह वह भिन्न-भिन्न प्रकार के खाने बनाकर भिन्नता लाकर अपने परिवार को खुश कर सकती है और अच्छे आयोजन से परिवार के सदस्यों की पौष्टिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है।

5. परिवार का आकार और रचना – आहार नियोजन के समय परिवार के आकार और रचना को ध्यान में रखना पड़ेगा। परिवार के सदस्यों की आयु, कार्य, संख्या और शारीरिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर सूची बनानी पड़ेगी। जैसे पुरुषों को औरतों से अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, बढ़ रहे बच्चे को अधिक प्रोटीन चाहिए। जैसे कि आप पीछे दिए अध्यायों में पढ़ चुके हैं कि गर्भवती बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ की शारीरिक आवश्यकता अधिक होती है। कृषि करने वाले या सख्त मेहनत करने वाले आदमी को दफ्तर जाने वाले आदमी से अधिक खुराक की आवश्यकता होती है।

आहार नियोजन के समय भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त सूची बनाते समय भोजन सम्बन्धी आदतें, रीति-रिवाज और धार्मिक तथ्य भी ध्यान में रखने चाहिएं। जैसे परिवार का कोई सदस्य यदि शाकाहारी है तो खाने का आयोजन बनाते समय उसका ध्यान रखना चाहिए। यदि जीवन के रूप में ढंगों को ध्यान में रखकर खाने की योजना को बनाया जाएगा तभी भोजन का आनन्द लिया जा सकता है। ये सभी बातों को ध्यान में रखकर यदि सूची बनाई जाए तो शुरू में थोड़ी मुश्किल और अधिक समय लगेगा धीरे-धीरे आदत बन जाती है और कोई मुश्किल नहीं आती।

आहार नियोजन के लाभ –

  1. परिवार के लिए भोजन को सन्तुलित बनाया जा सकता है।
  2. सभी परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
  3. समय, पैसा और शक्ति की बचत की जा सकती है।
  4. भोजन को स्वादिष्ट और आकर्षित बनाया जा सकता है।
  5. बचा हुआ भोजन सही ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है।
  6. खाना पकाते समय पौष्टिक तत्त्वों को बचाया जा सकता है।

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प्रश्न 4.
कोई तीन कारक बताएँ जो संतुलित भोजन की योजना बनाते समय ध्यान में रखने चाहिएँ।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3 का उत्तर।

प्रश्न 5.
भारतीय मेडिकल खोज संस्था की ओर से भारतीयों के लिए की गई खराकी तत्त्वों की सिफ़ारिश के बारे में लिखें।
उत्तर :
भारतीय मेडिकल खोज संस्था (2000) की ओर से भारतीयों के लिए खुराकी तत्त्वों की रोजाना सिफ़ारिश

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प्रश्न 6.
वयस्क पुरुष और स्त्री के सन्तुलित भोजन का एक चार्ट बनाएं।
उत्तर :
वयस्क पुरुष और स्त्री का सन्तुलित भोजन

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प्रश्न 7.
आहार समूह के आधार पर परिवार के लिए सन्तुलित आहार की रचना करें।
उत्तर :
आहार समूह के आधार पर निम्नलिखित भोजनावली की रचना की जा सकती है, जो सन्तुलित है।

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पाँच समूह – भोजन

  1. अनाज – चपाती
  2. दालें – मूंग की दाल
  3. दूध तथा अन्य पशु जन्य पदार्थ – दही
  4. फल व सब्जियाँ – पालक गोभी व संतरा
  5. तेल, घी और चीनी – पकाने के लिए तेल का इस्तेमाल होगा।

एक और भोजनावली की भी रचना की जा सकती है –

आहार समूह – भोजन

  1. अनाज – चावल
  2. दालें – अरहर दाल
  3. दूध तथा अन्य पशु जन्य पदार्थ – रायता
  4. फूल व सब्जियां – मेथी, आड़, गाजर व अमरूद
  5. तेल, घी तथा चीनी – इन्हें पकाने में तेल का इस्तेमाल होगा।

प्रश्न 8.
परिवार के आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित घटकों का उल्लेख कीजिए।
1. लिंग
2. आयु
3. कार्य
4. आर्थिक स्थिति
5. सामाजिक घटक-कर्म, संस्कृति, जाति
6. भोजन संबंधी आदतें
7. भोजन का प्राप्त होना
8. भोजन सम्बन्धी अंधविश्वास एवं मान्यतायें।
उत्तर :
1. लिंग – परिवार के आहार आयोजन पर सदस्यों के लिंग का बहुत प्रभाव पड़ता है। समान आयु एवं व्यवसाय के पुरुषों और स्त्रियों की आहारीय आवश्यकतायें भिन्न-भिन्न होती हैं। एक शारीरिक श्रम करने वाली 30 वर्षीय स्त्री को प्रतिदिन 3000 कैलोरी की आवश्यकता होती है, जबकि उसी आयु के शारीरिक श्रम करने वाले पुरुष को प्रतिदिन 3900 कैलोरी की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार समान आयु के किशोर और किशोरियों की पौष्टिक आवश्यकताओं में भी काफी भिन्नता होती है। इस प्रकार लिंग की दृष्टि से भी आहार में भिन्नता होती है।

2. आयु – आहारीय आवश्यकतायें परिवार के विभिन्न सदस्यों की आयु पर निर्भर करती हैं। किसी भी परिवार में बच्चों की आहार आवश्यकतायें बड़े की आहार आवश्यकताओं से सदैव भिन्न होती हैं। बच्चों को बढ़ोतरी के लिए अधिक प्रोटीन, विटामिन और खनिज लवण युक्त आहार की आवश्यकता होती है, तो शारीरिक श्रम करने वाले वयस्क पुरुष या स्त्री को ऊर्जा प्राप्ति के लिए अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है। अतः ऐसे दो परिवार जिनमें सदस्यों की संख्या तो बराबर हो परन्तु उसकी आयु भिन्न-भिन्न हो तो अलग-अलग प्रकार के खाद्य-पदार्थों की आवश्यकता होगी।

3. कार्य – किसी व्यक्ति की आहारीय आवश्यकताएं उसके कार्य या व्यवसाय पर निर्भर करती हैं। अतः परिवार का आहार आयोजन उसके सदस्यों के व्यवसाय पर निर्भर करेगा। जिस परिवार में शारीरिक श्रम करने वाले सदस्य अधिक होंगे उस परिवार के आहार आयोजन में अधिक कैलोरी प्रदान करने वाले अथवा कार्बोज़ एवं वसायुक्त खाद्य पदार्थों का अधिक समावेश होगा। इसके विपरीत जिस परिवार में मानसिक कार्य करने वाले सदस्य अधिक होंगे उसके आहार आयोजन में प्रोटीन एवं खनिज लवण युक्त पदार्थों का समावेश अधिक होगा।

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4. आर्थिक स्थिति – आहार आयोजन पर घर की आर्थिक स्थिति का बहुत प्रभाव पड़ता है। गृहिणी को आहार आयोजन अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार करना होता है। इसीलिए गृहिणी आहार के लिए उपलब्ध धन के आधार पर ही खाद्य-पदार्थों का चयन करती है। यदि आहार के लिए धन की कोई कमी नहीं होती तो वह आहार आयोजन के लिए महंगे खाद्य-पदार्थों का चयन कर सकती है। इसके विपरीत यदि धन कम हो तो सस्ते खाद्य-पदार्थों का चयन करना पड़ता है।

5. सामाजिक घटक – धर्म, संस्कृति, जाति – भोजन सम्बन्धी आदतें, धर्म, जाति, सामाजिक स्थिति एवं संस्कृति से प्रभावित होती हैं। पंजाबी भोजन में तन्दूरी रोटी, दक्षिण भारतीय भोजन में इमली, मारवाड़ी भोजन में पापड़ अवश्य होना चाहिए। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लोग दिन के खाने में चपातियों के साथ थोडा चावल खाते हैं जबकि दक्षिण भारतीय, बिहारी एवं बंगाली दिन में केवल भात खाते हैं और वह भी पेट भर के।

6. भोजन सम्बन्धी आदतें – आदत मनुष्य की द्वितीय प्रकृति है। कई ऐसे काम हैं जो हम आदतवश करते हैं। भोजन सम्बन्धी आदत भी इनमें से एक है। हम किसी व्यक्ति के पास सुस्वादु एवं अति पौष्टिक भोजन ले जा सकते हैं, परन्तु उसे खाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। उस भोजन को खाना उस व्यक्ति की आदत पर निर्भर करता है। कुछ व्यक्तियों को कुछ विशेष वस्तु के प्रति रुचि एवं कुछ विशेष के प्रति अरुचि रहती है। संसार में विभिन्न जाति एवं धर्म के लोग हैं। उनकी भोजन-सम्बन्धी आदतें भी भिन्न-भिन्न हैं।

हमारे देश में ही विभिन्न प्रान्त के लोग विभिन्न प्रकार के भोजन पसन्द करते हैं। दक्षिण भारत के लोग इमली, मिर्च, चावल अधिक पसन्द करते हैं तो मध्य प्रदेश और उत्तर भारत के लोग रोटी, परांठे, पूरियां आदि अधिक खाते हैं। भोजन के समय में भी विभिन्नता आदत के कारण होती है। कुछ लोग दिन में दो बार भोजन करते हैं तो कुछ लोग चार बार भोजन करते हैं। कुछ लोग दिनभर कुछ-न-कुछ खाते ही रहते हैं। कुछ लोग रात्रि में ही भरपेट भोजन करते हैं । यह सब आदत के ही कारण होता है। भोजन-सम्बन्धी आदत व्यक्तिगत होती है। भोजन-सम्बन्धी गलत आदतों से कुपोषण की समस्या उठ खड़ी होती है। इस प्रकार भोजन सम्बन्धी आदतों का आहार आयोजन पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

7. भोजन का प्राप्त होना – आहार नियोजन करने में घर में उपलब्ध या आसानी से उपलब्ध वस्तुओं का बहुत प्रभाव पड़ता है। खाद्य-पदार्थों की उपलब्धि पर, मौसम व जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ता है और विभिन्न मौसम में भिन्न-भिन्न खाद्य-पदार्थ पाये जाते हैं। अत: आहार आयोजन के समय ध्यान रखना चाहिए कि मौसम के अनुसार ही खाद्य-पदार्थों को अपने भोजन में सम्मिलित करें। ऐसे खाद्य-पदार्थ आसानी से मिल जाते हैं और सस्ते भी होते हैं।

यातायात के अच्छे साधन भी खाद्य-पदार्थों की उपलब्धि पर प्रभाव डालते हैं। अच्छे यातायात के साधन व खाद्य-पदार्थों को सुरक्षित रखने के अच्छे तरीकों से एक जगह पर पाये जाने वाले खाद्य-पदार्थों को आसानी से दूसरी जगह पर पहुँचाया जा सकता है। कुछ खाद्य-पदार्थों के उचित संग्रह व संरक्षण से उन्हें अधिक समय के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।

8. भोजन सम्बन्धी अन्ध – विश्वास एवं मान्यतायें-हमारे देश में भोजन सम्बन्धी अन्ध-विश्वास और भ्रम सदियों से चले आ रहे हैं। इनका आहार आयोजन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इनकी वजह से जो भी कुछ भोजन हमें मिल पाता है उसका भी हम पूरा फायदा नहीं उठा पाते। यदि वैज्ञानिक तौर पर देखा जाये तो हम यह कह सकते हैं कि ये बिल्कुल निराधार हैं क्योंकि हम देखते हैं कि इनके आधार पर एक वर्ग के लोग किसी भोज्य-पदार्थ को ग्रहण नहीं करते परन्तु दूसरे वर्ग के लोग उसी भोज्य-पदार्थ को बहुत लाभदायक समझते हैं। अतः आहार आयोजन के समय हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम इन भोजन भ्रमों को किस प्रकार से दूर करके पौष्टिक आहार दे सकें।

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प्रश्न 9.
आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले किन्हीं पाँच कारकों के बारे में बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3 का उत्तर।

प्रश्न 10.
आहार आयोजन करते समय गृहिणी को किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिये ?
उत्तर :
आहार आयोजन करते समय गृहिणी को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिये –
→ प्रतिदिन की आहार – तालिका बनाते समय परे दिन को एक इकाई के रूप में लेना चाहिए-यानी सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना, शाम का नाश्ता एवं रात्रि के भोजन की आहार तालिका एक बार बनानी चाहिए। तालिका ऐसी हो जिससे दिनभर के भोजन से शरीर को अनिवार्य पोषक तत्त्व मिल सकें।

→ आर हा– तालिका बनाते समय मितव्ययिता को ध्यान में रखना चाहिए, परन्तु भोजन की पौष्टिकता को नहीं भूलना चाहिये। गृहिणी को यह ज्ञान होना चाहिये कि भोजन तत्त्वों की प्राप्ति के सस्ते साधन कौन-कौन से हैं ?

→ तालिका में पाँचों प्रमुख तत्त्वों (प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज लवण) का समावेश शारीरिक आवश्यकता के अनुसार होना चाहिये।
→ आहार – तालिका में सातों आधारभूत भोज्य पदार्थों का रहना अनिवार्य है।
→ आहार – तालिका में मुलायम खाद्य वस्तुओं के साथ कुछ प्राकृतिक रूप से कच्चे पदार्थों (अमरूद, खीरा, ककड़ी, टमाटर, गाजर, प्याज, मूली) आदि का रहना अनिवार्य है।
→ भोजन में क्षुधावर्द्धक पदार्थ (मट्ठा, जलजीरा, पोदीने का पानी, सूप, चाय, कॉफी) भी रहना अनिवार्य है।
→ एक समय के भोजन में ऐसे व्यंजन नहीं रखने चाहिये जिसमें एक ही भोजन तत्त्व की मात्रा अधिक हो, जैसे-दूध तथा दूध से बने पदार्थ।
→ प्रत्येक समय के भोजन में कुछ स्वाभाविक सुगन्ध और आकर्षण वाले पदार्थों का रहना ज़रूरी है।
→ पूरे दिन की आहार – तालिका में एक ही खाद्य वस्तु को एक ही रूप में एक बार से अधिक नहीं रखना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि एक ही भोज्य पदार्थ विभिन्न रूप से भोजन में सम्मिलित नहीं किया जाये, यथा–आलूभरी पूरी, आलू की भुजिया, आलू का चाप, आलू की सब्जी आदि।
→ बच्चों के स्कूल या दफ्तर के लिए दिया जाने वाला भोजन देखने में आकर्षक होना चाहिए, साथ ही लेकर जाने में सुविधाजनक होने के साथ-साथ पौष्टिकता से भरपूर होना भी आवश्यक है।
→ एक ही तरह के भोज्य-पदार्थों को प्रतिदिन की आहार-तालिका में नहीं रखना चाहिए। रात और दिन के भोजन में एक ही प्रकार का भोजन नहीं रहना चाहिए।
→ आहार – तालिका बनाते समय परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को कैलोरी सम्बन्धी आवश्यकताओं को ध्यान में रखना ज़रूरी है। कैलोरी की आवश्यकता एक ही भोज्य पदार्थ से पूरी न होकर विभिन्न भोज्य पदार्थों से होनी चाहिये।
→ आहार – तालिका जलवायु और मौसम के अनुकूल होनी चाहिये। गर्मी में ठण्डे पेय पदार्थ तथा मौसमी फल, सुपाच्य एवं हल्के भोज्य पदार्थों का आहार में समावेश होना चाहिये। जाड़े के मौसम में गरिष्ठ तले हुए भोज्य-पदार्थ, गर्म पेय आदि का उपयोग करना चाहिये।
→ आहार – तालिका बनाते समय परिवार के सदस्यों तथा अतिथियों की रुचि एवं आदतों को भी ध्यान में रखना अनिवार्य है।
→ आहार – तालिका में मौसमी चीज़ों का ही समावेश होना चाहिए।
→ एक बार के भोजन में अधिक किस्म के भोज्य पदार्थों को नहीं रखना चाहिए।
→ आहार – तालिका बनाते समय यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि तालिका में सम्मिलित किये गये खाद्य-पदार्थों को खाने योग्य बनाने में कितना समय लगेगा।
→ आहार – तालिका बनाते समय अपनी आर्थिक स्थिति पर भी ध्यान देना चाहिए।
→ भोजन सम्बन्धी आदतें, धर्म, जाति, सामाजिक स्थिति एवं सांस्कृतिक परिवेश से प्रभावित होती हैं। आहार आयोजन करते समय इन सभी का ध्यान रखना चाहिए।
→ कामकाजी स्त्रियों को सरल आहार तालिका बनानी चाहिए।

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प्रश्न 11.
सुबह के नाश्ते का आयोजन करते समय गृहिणी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिये ?
उत्तर :
दिन का पहला आहार नाश्ता या कलेवा कहलाता है। इसका आयोजन करते समय गृहिणी को निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना चाहिए –
1. व्यवसाय – प्रातःकाल के नाश्ते का बहुत कुछ सम्बन्ध व्यवसाय से है। जिन लोगों को शारीरिक कार्य बहुत अधिक करना पड़ता है उनका नाश्ता पौष्टिक, ठोस तथा पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए जबकि मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए तरल, हल्के तथा थोड़े नाश्ते की आवश्यकता होती है।

2. नाश्ते तथा दोपहर के भोजन के समय में अन्तर – नाश्ता तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि नाश्ते तथा दोपहर के भोजन के समय में कितना अंतर होगा। यदि अंतर केवल दो अथवा तीन घण्टे का हो तो दूध, लस्सी, चाय तथा टोस्ट से ही काम चल सकता है, लेकिन यदि अन्तर चार पाँच घण्टों का हो तो फिर नाश्ता भारी होना चाहिए।

3. आदत – नाश्ते की मात्रा तथा उसके प्रकार का सम्बन्ध खाने वालों की आदत पर भी निर्भर करता है। इसका कारण यह है कि कुछ व्यक्ति बहुत हल्का नाश्ता लेना पसंद करते हैं तो कुछ लोगों की तृप्ति भारी नाश्ते के बिना होती ही नहीं है। इसी प्रकार से कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो नाश्ता लेना पसन्द ही नहीं करते। यही बात नाश्ते में ली जाने वाली वस्तुओं के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है। विभिन्न प्रदेशों के निवासी विभिन्न प्रकार का नाश्ता लेना पसन्द करते हैं। उदाहरण के लिये पंजाब के लोग नाश्ते में लस्सी, दूध, परांठा लेना पसन्द करते हैं, उत्तर प्रदेश के लोग सत्तू, जलेबी, दूध, पूड़ी-कचौड़ी तो दक्षिण के लोग इडली, डोसा, कॉफी आदि।

4. सभी प्रकार के भोजन तत्त्वों का समावेश – नाश्ता तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि उसमें सभी भोजन तत्त्वों यथा कार्बोज, प्रोटीन, वसा, लवण, रेशेदार पदार्थ, विटामिन युक्त पदार्थ तथा पेय पदार्थ तथा पेय पदार्थों का समावेश हो। दूध, चाय, कॉफी, कोको, लस्सी, शरबत, रस आदि पेय पदार्थ उत्तेजक होते हैं तथा रात की सुस्ती दूर करने में सहायता पहुँचाते हैं। फल या सब्जी रेशेदार होने के कारण पेट साफ करने तथा भूख बढ़ाने में योगदान देती हैं। मक्खन, पनीर, क्रीम आदि के द्वारा शरीर की वसा सम्बन्धी आवश्यकताएं पूरी होती हैं। परांठा, दलिया, रोटी, टोस्ट आदि के द्वारा शरीर को कार्बोज़ प्राप्त होता है तो दूध तथा दूध से बने पदार्थों के द्वारा प्रोटीन।

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प्रश्न 12.
दोपहर के आहार की योजना किस प्रकार करनी चाहिए ?
उत्तर :
दोपहर के आहार की योजना बहुत सावधानी से करनी चाहिए। इसका कारण यह कि आहार दिनभर कार्य करने की शक्ति व गर्मी प्रदान करता है । इस समय की आहार तालिका करते समय भी व्यवसाय, आयु, स्वास्थ्य, आदत आदि का ध्यान रखना चाहिए, किन्तु निम्नलिखित वर्गों में से कम-से-कम एक-एक खाद्य-पदार्थ अवश्य होना चाहिए –

  1. अनाज – गेहूँ, चावल, चना, जौ, बाजरा आदि।
  2. दाल – उड़द, अरहर, मूंग आदि।
  3. दही, पनीर।
  4. मौसमी फल – केला, सेब, संतरा, आम आदि।
  5. मौसमी सब्जी – मटर, गोभी, सीताफल, लौकी, भिण्डी, टिंडे, तोरई आदि।
  6. हरी पत्तेदार सब्जियां अथवा सलाद।
  7. वसायुक्त पदार्थ।

यह ध्यान देने वाली बात है कि दोपहर के आहार में अनाज पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए, जिससे दिनभर कार्य करने के लिए ऊर्जा व शक्ति भरपूर मात्रा में प्राप्त हो सके। दूसरी बात यह कि प्रतिदिन भोजन एक ही रीति से पकाने के स्थान पर भिन्न-भिन्न पद्धतियों से पकाना चाहिए। उदाहरण के लिए चावल कभी मीठे, कभी नमकीन तथा कभी सादा बनाये जा सकते हैं तो कभी आटे से रोटी, पूड़ी, कचौड़ी अथवा परांठे।

बड़े नगरों में कार्य करने का स्थान घर से इतनी दूर होता है कि प्रायः लोगों को दोपहर का भोजन अपने साथ ले जाना पड़ता है। ऐसी अवस्था में उसे ले जाने की सुविधा का अधिक ध्यान रखा जाता है तथा इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया जाता कि वह शरीर को पर्याप्त ऊर्जा एवं शक्ति देने वाला है अथवा नहीं। अतः प्रत्येक गृहिणी का यह कर्त्तव्य है कि वह इस बात का ध्यान रखे कि जो व्यक्ति दोपहर का भोजन साथ ले जाते हों, उनके आहार में शाक-भाजी, मूली, प्याज, हरी मिर्च आदि कुछ अधिक हों।

कच्चे फल, मूली आदि के द्वारा शरीर को सेलुलोज, लवण तथा विटामिन मिलने में सहायता पहुंचेगी। जो व्यक्ति भोजन साथ लेकर जाते हैं प्रायः उन्हें ठंडा भोजन ही करना पड़ता है। ठंडा भोजन खाने से पाचक रस ग्रन्थियां देर से उत्तेजित होती हैं। अतः ऐसे व्यक्तियों को भोजन के बाद चाय या कॉफी आदि गर्म पेय पदार्थ पीने चाहिए जिससे भोजन पचने में सहायता पहुँचे।

प्रश्न 13.
आहार नियोजन से आप क्या समझते हैं ? आहार नियोजन की उपयोगिता बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3 का उत्तर।

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प्रश्न 14.
भोजन सम्बन्धी योजना का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 3 का उत्तर में आहार नियोजन के लाभ ।

प्रश्न 15.
आहार-समहों के निर्धारण का उद्देश्य क्या है ? अमेरिका की नेशनल रिसर्च कौंसिल तथा ICMR द्वारा निर्धारित आहार-समूहों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
शरीर को भिन्न-भिन्न प्रकार के पौष्टिक तत्त्वों जैसे प्रोटीन, कार्बोज, वसा, विटामिन, खनिज लवण आदि की आवश्यकता होती है। इन्हें विभिन्न भोज्य पदार्थों से प्राप्त किया जाता है, क्योंकि भोजन के सभी आवश्यक तत्त्व एक प्रकार के भोज्य पदार्थ में नहीं पाए जाते। गृहिणी के लिए यह विकट समस्या पैदा हो जाती है कि प्रत्येक बार कौन-से भोज्य पदार्थों का चुनाव करे ताकि सन्तुलित भोजन पकाया जा सके तथा सभी सदस्यों को उनकी रुचि तथा शारीरिक स्थिति के अनुसार पौष्टिक आहार उपलब्ध करवाया जा सके। इस समस्याओं से निपटने के लिए आहार समूहों का निर्धारण किया गया है।

आहार-समूह-अमेरिका की राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद् ने सात आहार समूहों का निर्धारण किया है। इनका आधार यह माना गया है कि हमारे शरीर को मुख्यतः दस पोषक तत्त्वों की आवश्यकता है। यह पोषक तत्त्व हैं- प्रोटीन, कार्बोज, वसा, कैल्शियम, लोहा, विटामिन ए, थायमिन, राइबोफ्लेबिन, विटामिन सी तथा विटामिन डी।

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ICMR द्वारा किए गए आहार समूहों के वगीकरण
ICMR द्वारा आहार समूहों का एक व्यावहारिक वर्गीकरण किया गया है जिसमें पांच आहार समूह पाए गए हैं। ये समूह निम्नलिखित अनुसार हैं –

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एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दो –

प्रश्न 1.
आहार की पौष्टिकता बढ़ाने का एक ढंग बताओ।
उत्तर :
खाद्य पदार्थों का मिश्रण।

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प्रश्न 2.
आटे के चोकर में क्या होता है ?
उत्तर :
प्रोटीन।

प्रश्न 3.
दालों में कौन-सा पौष्टिक तत्त्व अधिक होता है ?
उत्तर :
प्रोटीन।

प्रश्न 4.
आहार नियोजन से गृहिणी का क्या बचता है ?
उत्तर :
समय।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. स्वस्थ व्यक्ति का शरीर का तापमान ……….. होता है।
2. दूध पिलाने वाली माँ के भोजन में ……….. की मात्रा अधिक हो।
3. दालों आदि में ……….. % प्रोटीन होती है।
4. कार्बोज़ द्वारा ……….. मिलती है।
5. रात्रि का भोजन दोपहर के भोजन की तुलना में ……….. होना चाहिए।
उत्तर :
1. 98.4F
2. प्रोटीन
3. 20-25
4. ऊर्जा
5. हल्का।

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(ग) ठीक/गलत बताएं –

1. भोजन सोने से कम-से-कम दो घण्टे पहले लें।
2. दालों में प्रोटीन होता है।
3. बच्चों को सन्तुलित आहार नहीं चाहिए।
4. बच्चों को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है।
5. आहार आयोजन से समय की बचत होती है।
उत्तर :
1. (✓) 2. (✓) 3. (✗) 4. (✓) 5. (✓)।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
परिवार के आहार का स्तर निम्न बातों पर निर्भर है –
(A) आहार के लिए उपलब्ध धन ।
(B) गृहिणी के पास भोजन पकाने के लिए उपलब्ध समय एवं ऊर्जा
(C) गृहिणी का खाद्य तथा पोषण सम्बन्धी ज्ञान
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 2.
सब्जियों में ……… कम होता है।
(A) लोहा
(B) प्रोटीन
(C) विटामिन बी
(D) विटामिन सी।
उत्तर :
प्रोटीन।

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प्रश्न 3.
आहार आयोजन निम्न पर निर्भर है –
(A) परिवार की रुचि
(B) व्यवसाय
(C) समय तथा शक्ति
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 4.
सन्तुलित भोजन की योजना बनाते समय कौन-कौन सी बातों को ध्यान में रखोगे ?
(A) भोजन की योजनाबन्दी
(B) भोजन पकाने का सही ढंग
(C) परिवार के सदस्यों के रोज़ाना खुराकी तत्त्वों का ज्ञान
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 5.
निम्न में ठीक है –
(A) भोजन पकाने का समय तथा परोसने का ढंग खाने के नियोजन को प्रभावित करता है।
(B) गरीबी के कारण लोग सन्तुलित भोजन नहीं ले पाते।
(C) अशिक्षा के कारण भी लोग सन्तुलित भोजन नहीं करते।
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

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प्रश्न 6.
निम्न में गलत है –
(A) सभी अमीर लोग सन्तुलित भोजन ही लेते हैं।
(B) अशिक्षा के कारण लोग सन्तुलित भोजन नहीं लेते।
(C) परिवार का आकार भोजन नियोजन को प्रभावित करता है।
(D) सभी गलत।
उत्तर :
सभी अमीर लोग सन्तुलित भोजन ही लेते हैं।

प्रश्न 7.
बुखार में निम्न प्रकार का भोजन नहीं लेना चाहिए –
(A) तरल तथा नर्म गर्म भोजन का प्रयोग
(B) तला हुआ भारी भोजन
(C) खिचड़ी, दलिया आदि
(D) अधिक मात्रा में दूध।
उत्तर :
तला हुआ भारी भोजन।

प्रश्न 8.
रात्रि के भोजन में लेने चाहिए –
(A) दाल कोई भी
(B) हरी सब्जी
(C) सूप
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

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प्रश्न 9.
निम्न में सन्तुलित आहार की विशिष्टता नहीं है –
(A) व्यक्तिगत रुचि और स्वाद के अनुकूल
(B) अधिक महंगा
(C) सभी आहार समूहों में से खाद्य पदार्थों का समावेश
(D) व्यक्तिगत पोषण आवश्यकता।
उत्तर :
सभी ठीक।

प्रश्न 10.
निम्न में गलत है –
(A) वसा शरीर का तापमान बनाए रखने में सहायक है
(B) भोजन की योजना बनाने से समय नष्ट होता है
(C) कैलोरी की उचित मात्रा से ही सन्तुलित भोजन नहीं बनता
(D) अंकुरण से पौष्टिकता बढ़ती है।
उत्तर :
भोजन की योजना बनाने से समय नष्ट होता है।

प्रश्न 11.
निम्न में से आहार आयोजन के प्रमुख सिद्धान्त का हिस्सा है –
(A) परिवार की रुचि
(B) पारिवारिक आय
(C) साप्ताहिक तालिका
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

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प्रश्न 12.
किसी व्यक्ति के लिए पोषक तत्त्व कितनी मात्रा में चाहिए निम्न पर निर्भर है ?
(A) आयु
(B) वज़न
(C) लिंग
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 13.
निम्न में ठीक नहीं है –
(A) सन्तुलित भोजन से ही शरीर तन्दरुस्त रह सकता है
(B) सब्जियों में प्रोटीन होता है
(C) गर्भवती औरत को पौष्टिक भोजन ही खाना चाहिए
(D) बुखार की हालत में हल्का भोजन लेना चाहिए।
उत्तर :
सब्जियों में प्रोटीन होता है।

प्रश्न 14.
आई०सी० एम० आर० ने कितने आहार समूह निर्धारित किए हैं ?
(A) 3
(B) 2
(C) 4
(D) 5.
उत्तर :
5.

भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ भोजन सम्बन्धी योजना का अर्थ है भोजन के लिए इस प्रकार से योजना बनाना कि परिवार का प्रत्येक सदस्य उपयुक्त पोषण स्तर प्राप्त कर सके।

→ भोजन सम्बन्धी योजना वह प्रक्रिया है जिसमें वह निर्धारित किया जाता है कि प्रतिदिन प्रत्येक भोजन में क्या खाना चाहिए।

→ परिवारजनों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करना उनके स्वास्थ्य और उनकी कुशलता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।

→ भोजन सम्बन्धी योजना को हम ‘दैनिक भोजन निर्देशिका’ भी कह सकते हैं।

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→ भोजन योजना पर प्रभाव डालने वाले बहुत-से कारक हैं। भोजन का प्रकार और मात्रा को निर्धारित करते समय इनका ध्यान रखा जाता है।

→ यह कारक हजार यह कारक हैं-आयु, लिंग, गतिविधियाँ, आर्थिक स्थिति, मौसम, व्यवसाय, समय, ऊर्जा व कुशलता सम्बन्धी पहलू, परम्पराएं और प्रथाएं, व्यक्ति की पसंद व नापसंद, संतोष का स्तर आदि।

→ भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (ICMR) ने आहारों को वर्गीकृत करने का अधिक व्यावहारिक तरीका सुझाया है।

→ यह निम्नलिखित प्रकार से है –

  • अनाज
  • दालें
  • दूध तथा अन्य पशु जन्य पदार्थ
  • फल और सब्जियाँ
  • वसा और चीनी।

→ सन्तुलित भोजन से ही शरीर तन्दुरुस्त रह सकता है।

→ सन्तुलित भोजन में आवश्यक मात्रा में प्रोटीन, कार्बोज, विटामिन, चिकनाई, लवण और पानी होते हैं।

→ भोजन में केवल कैलोरियाँ होने से ही भोजन सन्तुलित नहीं बनता।

→ दालों, दूध तथा पशु जन्य पदार्थों आदि में प्रोटीन होती है।

→ अनाज दालें, गुड़, सूखे मेवे, मूंगफली, आलू, फल आदि कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत हैं।

→ सब्जियों में विटामिन और खनिज पदार्थ होते हैं।

→ खाना बनाने के लिए योजना बनाना एक अच्छी गृहिणी की निशानी है।

→ परिवार की आय और आकार आहार के नियोजन को प्रभावित करते हैं।

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→ गर्भवती औरत को पौष्टिक भोजन ही खाना चाहिए।

→ बुखार की हालत में पौष्टिक और हल्का भोजन खाना चाहिए।

→ अच्छे स्वास्थ्य के लिए सभी पोषक तत्त्वों की शरीर को आवश्यकता होती है।

→ किसी व्यक्ति के लिए पोषक तत्त्व कितनी मात्रा में चाहिए, यह अनेक तथ्यों पर निर्भर करता है जैसे आयु, लम्बाई, वज़न, लिंग, जलवायु, स्वास्थ्य, व्यवसाय एवं शारीरिक दशा।।

→ संतुलित आहार – यह एक ऐसा आहार है जो हमारे शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान कर हमें स्वस्थ रहने में सहायक होता है। मनुष्य के जीवन का आधार भोजन है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन का पौष्टिक होना आवश्यक है। जब मनुष्य अच्छा भोजन नहीं लेता तो वे बीमारियों का शिकार हो जाता है। मनुष्य अपने भोजन की आवश्यकता अनाज, सब्जियां, फल, दूध, दही तथा अन्य पशु जन्य पदार्थों आदि से पूरा करता है।

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