Author name: Prasanna

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली

HBSE 9th Class Hindi माटी वाली Textbook Questions and Answers

माटी वाली के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1.
‘शहरवासी सिर्फ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं।’ आपकी समझ से वे कौन-से कारण रहे होंगे जिनके रहते ‘माटी वाली’ को सब पहचानते थे?
उत्तर-
माटी वाली को शहर के सब लोग भली-भाँति जानते थे, क्योंकि वह अकेली औरत थी। जो सभी घरों में लाल मिट्टी पहुँचाती थी। उसके अतिरिक्त शहर में मिट्टी देने वाली दूसरी कोई स्त्री नहीं थी। उसकी मिट्टी से ही चूल्हे बनाए जाते थे। उसके बिना घर में चूल्हे नहीं जलते थे। हर घर में प्रतिदिन चूल्हा लीपने और साल दो साल में घर की भी लिपाई करनी पड़ती थी। इसलिए इन दोनों कामों के लिए वह ही मिट्टी पहुँचाती थी। मिट्टी देने के कारण ही उसे सब लोग पहचानते थे।

माटी वाली पाठ 4 के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 2.
माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज़्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?
उत्तर-
माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के विषय में सोचने का अधिक समय नहीं था, क्योंकि वह दिन भर नगर के घरों में मिट्टी पहुँचाने का काम करने में व्यस्त रहती थी। माटाखान से मिट्टी निकालने और उसे शहर के लोगों के घरों तक पहुँचाने की दौड़-धूप करने के कारण उसके पास किसी और बात के बारे में सोचने का समय नहीं था।

Class 9 Hindi Kritika Chapter 4 HBSE प्रश्न 3.
‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
इस तथ्य के माध्यम से लेखक ने यह बताना चाहा है कि भोजन मीठा या स्वाद नहीं हुआ करता। वह भूख के कारण ही मीठा या स्वाद लगता है। यदि किसी व्यक्ति को भूख लगी हो तो उसे रूखा-सूखा भोजन भी बहुत स्वादिष्ट लगता है। इसलिए रोटी चाहे सूखी हो या साग के साथ या फिर चाय के साथ हो, वह मीठी या स्वाद तो भूख के कारण ही लगती है। अतः लेखक के दिए गए कथन के अनुसार ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ से यही तात्पर्य है कि भूख के कारण ही रोटी अच्छी व स्वाद लगती है।

माटी वाली पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 4.
‘पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता।’मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
जब माटी वाली ने मालकिन के पीतल के गिलास के विषय में बात की तो उसने उसे समझाते हुए कहा कि उसे अपने पुरखों की सब चीजों के प्रति मोह है। न जाने उसके पुरखों ने कितनी मेहनत से पेट काट-काट कर ये चीजें बनाई होंगी। इसलिए उन चीजों को सुरक्षित रखना जरूरी है। उन्हें सस्ते दामों में बेचना उचित नहीं है।
मेरे विचार से मालकिन की बातों में सच्चाई है। हमें अपने पूर्वजों की निशानी को बचाकर रखना चाहिए। किंतु यह मोह जीवन से बढ़कर नहीं होना चाहिए। यदि इस मोह के कारण जीवन का विकास रुकता है तो इस मोह को त्याग देने में ही भलाई है।

Class 9 Hindi Chapter 4 Mati Wali Question Answer HBSE प्रश्न 5.
माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है?
उत्तर-
माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी गरीबी को प्रकट करता है। उसके पास अपना और अपने बूढ़े पति का पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन भी नहीं है। इससे एक अन्य मजबूरी का भी पता चलता है कि उसका पति बीमार एवं असहाय है। वह कोई काम नहीं कर सकता। इसलिए उसके भोजन का प्रबंध भी उसे ही करना पड़ता है। माटी वाली का अपने । पति के सिवाय इस दुनिया में दूसरा कोई सहारा भी नहीं है।

Kritika Class 9 Chapter 4 HBSE प्रश्न 6.
‘आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी’-इस कथन के आधार पर माटी वाली के हृदय के भावों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
माटी वाली के इस कथन से उसके हृदय में अपने बूढ़े पति के लिए कितना सम्मान व प्यार है, इसका पता चलता है। वस्तुतः वह हर रोज़ अपने पति को रूखी-सूखी रोटी देती है। किंतु आज उसने मिट्टी बेचकर कुछ पैसे भी प्राप्त कर लिए थे। उन पैसों से उसने पावभर प्याज खरीदे। उसने सोच लिया था कि आज वह उसे प्याज कूटकर तथा उन्हें तलकर रोटी के साथ देगी ताकि वह रोटी को आनंद से खा सके। इससे उसके अपने पति के प्रति प्रेम की भावना का पता चलता है।

Class 9 Kritika Chapter 4 Mati Wali Question Answer HBSE प्रश्न 7.
‘गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए’-इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
माटी वाली हरिजन बुढ़िया के पति की मृत्यु हो जाती है। उधर टिहरी बाँध बनने से उसकी झोंपड़ी की जगह भी छिन जाती है। श्मशान घाट में बाँध का पानी भर गया था। इसलिए उसके सामने एक नहीं, दो-दो समस्याएँ थीं। अपने रहने का ठिकाना नहीं और मृतक पति के अंतिम संस्कार के लिए स्थान नहीं। इसलिए उस वृद्धा के इस कथन में उसके हृदय की पीड़ा समाई हुई है। गरीब आदमी का घर छिनने के पश्चात कोई दूसरा ठिकाना भी नहीं होता। उसके लिए यह बहुत बड़ी समस्या है। इसी समस्या की ओर ध्यान दिलाना इस कथन का मूल आशय है।

Class 9 Hindi Chapter 4 Mati Wali HBSE  प्रश्न 8.
‘विस्थापन की समस्या पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
शहरों के विकास तथा औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने विस्थापन की समस्या को जन्म दिया है। धन-दौलत व साधन संपन्न लोग तो समय रहते ही अपना ठिकाना अन्यत्र बना लेते हैं। किंतु वास्तविक समस्या का सामना गरीब लोगों को करना पड़ता है, जो हर रोज़ कमाकर हर रोज़ चूल्हा जलाते हैं। विस्थापितों को अपना निवास स्थान छोड़कर नया निवास स्थान ढूँढना पड़ता है। नए स्थान पर जीवन-यापन करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। छोटे किसान, मजदूर व छोटे दुकानदारों के लिए तो यह समस्या और भी विकट बन जाती है। विस्थापन होने की प्रक्रिया में प्रत्येक व्यक्ति को पूरा-पूरा न्याय नहीं मिल पाता। इसलिए सरकार को लोगों को उनके स्थान से अलग करने से पहले इस समस्या पर पूर्ण रूप से विचार करना चाहिए।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली

HBSE 9th Class Hindi माटी वाली Important Questions and Answers

Class 9 Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 1.
माटी वाली किस नगर में, किस प्रकार और कैसे मिट्टी पहुँचाती थी?
उत्तर-
माटी वाली एक हरिजन वृद्धा थी। वह टिहरी नगर के समीप के गाँव में रहती थी। टिहरी नगर टिहरी बाँध के समीप बसा हुआ था। वहाँ नदी के किनारे की रेतीली मिट्टी थी। घरों के चूल्हे बनाने, उन्हें प्रतिदिन लीपने व साल-दो-साल में घरों को लीपने के लिए उन्हें चिकनी मिट्टी चाहिए थी। माटी वाली यह चिकनी मिट्टी हर घर के लिए माटाखान से कंटर में भरकर लाती थी। एक टीन के कनस्तर के ऊपरी ढक्कन को काटकर निकाल दिया गया था। वह उसमें मिट्टी भर कर सिर पर कपड़े को मोड़कर बनाए गोल डिल्ले पर अपना कनस्तर रखकर गाँव से नगर तक मिट्टी पहुँचाती थी।

प्रश्न 2.
‘माटी वाली’ शीर्षक पाठ के आधार पर ‘माटी वाली’ हरिजन वृद्धा के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी की प्रमुख पात्र माटी वाली ही है। संपूर्ण कथानक उसके चरित्र के आस-पास ही घूमता है। इस पाठ में दिखाया गया है कि माटी वाली वृद्धा बहुत ही परिश्रमी और ईमानदार है। वह प्रतिदिन तीन-चार किलोमीटर सिर पर मिट्टी से भरा हुआ कनस्तर नगर में ले जाकर लोगों के घरों में देती है। फिर रात को पुनः लौटकर अपने पति के लिए भोजन की व्यवस्था करती है, वह मेहनती होने के साथ-साथ साहसी भी है, क्योंकि वह उस जंगली मार्ग से अकेले ही आती जाती है।

‘माटी वाली’ वृद्धा पति परायण नारी है। इस बुढ़ापे में उसे सहारे की आवश्यकता है, किंतु वह स्वयं अपने वृद्ध एवं बीमार पति का सहारा बनकर जीती है। कहीं से दो रोटी पाने पर वह पहले एक रोटी पति के लिए रख लेती है। कभी-कभी तो दोनों रोटी ही पति के लिए बचाकर रख लेती है। वह अपने पति के लिए तीन रोटियों का प्रबंध करती है। उसे खुश देखने के लिए प्याज मोल लेती है और उनको भूनकर पकौड़ियाँ बनाने का प्रबंध भी करती है। उसके इस कार्य से उसके पति परायण होने का पता चलता है।
वह पूरे टिहरी नगर में प्रसिद्ध है। वह विनम्र स्वभाव वाली स्त्री है। इसलिए पूरे नगर में लोग उसको जानते हैं और उसके आने की प्रतीक्षा भी करते हैं। सब लोग उसका आदर करते हैं।

प्रश्न 3.
‘माटी वाली’ शीर्षक कहानी के लक्ष्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘माटी वाली’ कहानी का प्रमुख लक्ष्य टिहरी बाँध के बनने पर वहाँ से विस्थापित होने वाले असहाय एवं गरीब लोगों की दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण करना है। लेखक चाहता है कि वहाँ से विस्थापित लोगों की समस्याओं और पीड़ाओं को लोग समझें और उनके प्रति सहानुभूतिपूर्ण भावना बनाएँ तथा उनके स्थापित होने में सहयोग भी दें।
कहानी के आरंभ में माटी वाली के जीवन और उसके काम पर प्रकाश डाला गया है। यह भी बताया गया है कि टिहरी नगर के लोगों के लिए ‘माटी वाली’ की क्या महत्ता है। उसकी लाई गई मिट्टी से वहाँ चूल्हों और घरों की चमक एवं पवित्रता बनी रहती है। इन्हीं लोगों के सहारे उसका जीवन चलता आया है। वह माटी को मामूली से दामों में बेचती है। इसके साथ-साथ लोग उसे रोटी व खाने की अन्य वस्तुएँ भी देते हैं।

लेखक ने कहानी के अंतिम भाग में टिहरी पर बाँध बनने के कारण माटी वाली या उस जैसे अनेक गरीब लोगों के विस्थापित अर्थात घर उठाए जाने की समस्या की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट किया है। लेखक ने बताया है कि जिन लोगों की ज़मीन-जायदाद नहीं है, वे क्या क्लेम करेंगे ? उनको उनके घरों से निकालने का सीधा अर्थ उन्हें उजाड़ना है। अनपढ़ और गरीब आदमी के पास जमीन-जायदाद ही नहीं होती तो उसके कागज़ कहाँ से आएँगे ? सरकारी अधिकारी तो ज़मीन के कागज़ देखकर ही उन्हें ज़मीन दिलाने की बात कहते हैं, किंतु संबंध तो उस स्थान से सदियों से बना आया है। उसके लिए उन्हें किसी कागज़ या प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं थी। अब ऐसे गरीब एवं मजदूर लोगों का क्या होगा ? इसी प्रश्न को उठाना कहानी का मूल लक्ष्य है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली

प्रश्न 4.
‘माटी वाली’ पाठ के आधार पर वृद्धा के पति की अवस्था का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में दिखाया गया है कि माटी वाली वृद्धा का पति अत्यंत असहाय, शक्तिहीन और लाचार है। वह कोई काम नहीं कर सकता। वह पूर्ण रूप से अपनी पत्नी (माटी वाली) पर निर्भर रहता है। जब संध्या के समय माटी वाली मिट्टी बेचकर घर लौटती है तो वह उसे कातर दृष्टि से देखता रहता है। भूख के मारे वह खाना बनाती हुई अपनी पत्नी के पास पहुँच जाता है।
बीमारी और बुढ़ापे ने उसके शरीर को गठरी के समान बना दिया है। वह सारा दिन झोंपड़ी में पड़ा-पड़ा अपनी पत्नी की प्रतीक्षा किया करता है। वह पत्नी द्वारा रूखी-सूखी दी गई रोटियाँ खाकर पड़ा रहता है। निश्चय ही उसका जीवन अत्यंत दयनीय और असहाय है।

प्रश्न 5.
‘माटी वाली’ को लोग किस कारण से जानते हैं?
उत्तर-
माटी वाली’ को लोग इसलिए जानते हैं, क्योंकि वह हर घर में चूल्हा बनाने व घर लीपने के लिए चिकनी मिट्टी पहुंचाया करती है। मिट्टी लाने वाला पूरे नगर में दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है।

प्रश्न 6.
टिहरी के लोग माटी वाली को मिट्टी की कीमत के अतिरिक्त और क्या देते हैं?
उत्तर-
टिहरी के लोगों के मन में माटी वाली वृद्धा के प्रति दया एवं सहानुभूति है। वे उसे मिट्टी के लिए थोड़ी-सी कीमत देते हैं। इसके अतिरिक्त वे माटी वाली को रोटी, चाय व खाने की अन्य वस्तुएँ देते हैं। लोग उसकी गरीबी और लाचारी को समझते हुए उसके प्रति दया एवं सहानुभूति रखते हैं।

प्रश्न 7.
टिहरी नगर की ठकुराइन ने पीतल का गिलास अब तक सँभालकर क्यों रखा हुआ था?
उत्तर-
ठकुराइन एक परंपरावादी एवं गंभीर स्त्री है। उसके मन में अपने पुरखों द्वारा बनाई हुई वस्तुओं के प्रति मोह ही नहीं, सम्मान की भावना भी है। वह जानती है कि उसके पुरखों ने अपनी गाढ़ी कमाई से ये वस्तुएँ बनाई थीं। इसके अतिरिक्त आज पीतल का भाव भी बहुत बढ़ गया है। जबकि पीतल खरीदने वाले व्यापारी लोग उन्हें बहुत सस्ते दामों में खरीदते हैं। इसलिए वह पुरखों की वस्तु को सस्ते में नहीं देना चाहती। इन्हीं दो कारणों से उसने अब भी पीतल के गिलास सँभालकर रखे हुए हैं।

प्रश्न 8.
ठकुराइन द्वारा दी गई दो रोटियों में माटी वाली द्वारा एक रोटी छिपा लेने का क्या कारण था?
उत्तर-
माटी वाली का वृद्ध पति अत्यंत लाचार था। वह कोई काम नहीं कर सकता था। वह पूर्णतः अपनी पत्नी पर ही निर्भर था। वह दिन भर माटी वाली (अपनी पत्नी) की प्रतीक्षा किया करता था। माटी वाली के मन में सदा अपने पति का ख्याल रहता था। अतः दो रोटी मिलने पर उसने एक रोटी अपने वृद्ध पति को देने के लिए छिपा ली थी।

प्रश्न 9.
माटी वाली द्वारा दी गई मिट्टी टिहरीवासियों के किस काम आती थी?
उत्तर-
माटी वाली वृद्धा टिहरी के लोगों को लाल एवं चिकनी मिट्टी देती थी। यह मिट्टी वहाँ के लोगों के दैनिक जीवन में बहुत काम आती थी। वे इस मिट्टी से प्रतिदिन अपना चूल्हा लीपते थे। इसके अतिरिक्त साल दो साल के पश्चात अपने घरों की दीवारों को भी उस मिट्टी से लीपते थे। अतः वह मिट्टी टिहरी के लोगों के लिए अत्यंत. उपयोगी वस्तु थी।

प्रश्न 10.
टिहरी बाँध बनने के कारण ठकुराइन को क्या परेशानी है?
उत्तर-
टिहरी बाँध बनने के कारण ठकुराइन को भी परेशानी थी। उसे पता था कि बाँध बनने से उसे अपना बसा-बसाया घर छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ेगा। उसे अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर बहुत परेशानी हो रही थी। वह सोचती रहती थी कि यहाँ से उजड़कर हम कहाँ जाएँगे।

प्रश्न 11.
लेखक ने ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ कथन के माध्यम से किसे मीठा कहा है?
उत्तर-
लेखक ने भूख को मीठा बताया है क्योंकि यदि हमें भूख नहीं होती तो हमें अच्छे-से-अच्छा भोजन भी मीठा अर्थात स्वादिष्ट नहीं लगता। भूख लगी हो तो सूखी रोटियाँ भी स्वादिष्ट लगती हैं। लेखक के इस तर्क के अनुसार तो भूख मीठी है। किंतु हम लेखक के इस तर्क से पूर्णतः सहमत नहीं हैं।

प्रश्न 12.
पुनर्वास के लिए माटी वाली जैसे लोगों को किस समस्या का सामना करना पड़ता है?
उत्तर-
सरकारी अधिकारी गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने की अपेक्षा सबूतों में अधिक विश्वास करते हैं। वे सबूत या प्रमाण के अभाव में उनकी सहायता नहीं कर पाते। यथा टिहरी बाँध बनाने से इस क्षेत्र के अधिकारी लोग माटी वाली से उसके निवास स्थान का प्रमाण-पत्र माँग रहे थे अर्थात जिस जमीन पर उसकी झोंपड़ी बनी हुई थी, वह जमीन उसकी अपनी है तो उसका प्रमाण-पत्र माँग रहे थे। सच्चाई यह थी कि वह जमीन तो ठाकुर की थी। इस माटी वाली वृद्धा को अन्य स्थान पर कोई जगह अलाट नहीं हो सकती थी। ऐसे अनेक लोग हैं, जिनका कई पुश्तों से मकान तो बना हुआ है, किंतु उस जमीन की मलकीयत का कोई सबूत उनके पास नहीं होता। ऐसे लोगों को पुनः स्थापित होने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘माटी वाली’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) विद्यासागर नौटियाल
(B) फणीश्वरनाथ रेणु
(C) मृदुला गर्ग
(D) जगदीशचंद्र माथुर
उत्तर-
(A) विद्यासागर नौटियाल

प्रश्न 2.
माटी वाली किस नगर की रहने वाली है?
(A) कलकत्ता
(B) टिहरी
(C) दिल्ली
(D) हरिद्वार
उत्तर-
(B) टिहरी

प्रश्न 3.
वह नगर के घरों में क्या पहुँचाती है?
(A) सफेद मिट्टी
(B) काली मिट्टी
(C) लाल मिट्टी
(D) साधारण मिट्टी
उत्तर-
(C) लाल मिट्टी

प्रश्न 4.
घरों में लाल मिट्टी किस काम आती है?
(A) खिलौने बनाने के
(B) बर्तन बनाने के
(C) धार्मिक मूर्तियाँ बनाने के
(D) चूल्हे-चौके की लिपाई के लिए
उत्तर-
(D) चूल्हे-चौके की लिपाई के लिए

प्रश्न 5.
टिहरी शहर किस नदी के तट पर बसा हुआ है?
(A) यमुना
(B) ब्यास
(C) भागीरथी
(D) गोदावरी
उत्तर-
(C) भागीरथी

प्रश्न 6.
माटाखाना किसे कहा जाता है?
(A) जहाँ मिट्टी रखी जाती है
(B) जहाँ से मिट्टी खोदकर लाई जाती है
(C) जहाँ मिट्टी को भिगोया जाता है
(D) जहाँ मिट्टी पूजी जाती है
उत्तर-
(B) जहाँ से मिट्टी खोदकर लाई जाती है

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली

प्रश्न 7.
‘भूख मीठी कि भोजन’ का अभिप्राय क्या है?
(A) भोजन मीठा है
(B) भूख मीठी है
(C) भूख और भोजन दोनों मीठे होते हैं
(D) भूख के कारण भोजन मीठा लगता है
उत्तर-
(D) भूख के कारण भोजन मीठा लगता है

प्रश्न 8.
“गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजाड़ना चाहिए।”-ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) घर की मालकिन ने
(B) माटी वाली ने
(C) माटीवाली के पति ने
(D) नगर के किसी व्यक्ति ने
उत्तर-
(B) माटी वाली ने

प्रश्न 9.
टिहरी बाँध बनने से वहाँ के लोगों को क्या कठिनाई हुई होगी?
(A) नगर छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ा
(B) घर पहुंचने में कठिनाई हुई होगी
(C) खेतों में पानी भर गया होगा
(D) पशुओं के चरने के स्थान पर पानी भर गया
उत्तर-
(A) नगर छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ा।

प्रश्न 10.
‘माटी वाली’ कहानी में किस समस्या की ओर संकेत किया गया है?
(A) बेरोजगारी की
(B) पुनःस्थापित होने की
(C) महँगाई की
(D) आवास की
उत्तर-
(B) पुनःस्थापित होने की

प्रश्न 11.
ठकुराइन द्वारा दी गई दो रोटियों में से एक रोटी माटी वाली ने किसके लिए छुपाकर रख ली थी?
(A) अपने बच्चों के लिए
(B) अपने लिए
(C) अपने वृद्ध पति के लिए
(D) गाय को देने के लिए
उत्तर-
(C) अपने वृद्ध पति के लिए

प्रश्न 12.
माटी वाली से उसके घर का प्रमाण-पत्र किसने माँगा था?
(A) ठाकुर साहब ने
(B) पुनर्वास के साहब ने
(C) गाँव के सरपंच ने
(D) तहसीलदार ने
उत्तर-
(C) गाँव के सरपंच ने

माटी वाली Summary in Hindi

माटी वाली पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘माटी वाली’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
श्री विद्यासागर नौटियाल द्वारा रचित इस पाठ में टिहरी बाँध के कारण विस्थापित लोगों के जीवन की समस्या का वर्णन किया गया है। इस पाठ में माटी बेचने वाली स्त्री के जीवन का मार्मिक वर्णन किया गया है। टिहरी के सेमल का तप्पड़ मोहल्ले के आखिरी घर की खोली में पहुँचकर माटी वाली ने अपना कनस्तर उतारा। टिहरी नगर का बच्चा-बच्चा माटी वाली को जानता था तथा वह भी सबको जानती थी। वह सबके घरों में चूल्हे-चौके लीपने वाली मिट्टी पहुँचाती थी। यूँ कह सकते हैं कि उसके कारण ही लोगों के घरों में चूल्हे जलते थे। वह लाल मिट्टी पहुँचाने वाली अकेली औरत है। शहर में कहीं माटाखान नहीं है। नदियों के तटों की रेतीली मिट्टी से घरों की लिपाई नहीं हो सकती थी। टिहरी नगर के नए-नए किराएदार भी उसके ग्राहक बन जाते थे।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली

माटी वाली एक हरिजन बुढ़िया है। घर की मालकिन ने उसे आँगन में मिट्टी उड़ेलने के लिए कहा। उसने सारी मिट्टी आँगन के एक कोने में रख दी। मालकिन ने उसे खाने के लिए दो रोटियाँ दीं। उसने एक रोटी मालकिन द्वारा दी गई चाय के साथ खा ली। दूसरी रोटी उसने अपने बूढ़े पति के लिए छुपाकर रख ली थी। माटी वाली ने मालकिन से कहा यह चाय भी अपने-आप में एक साग है। किंतु मालकिन ने कहा नहीं भूख ही अपने-आप में एक साग है। भूख में रूखी-सूखी रोटी भी स्वाद लगती है। “भूख मीठी कि भोजन मीठा ?”
माटी वाली ने पीतल के गिलास में चाय पीते हुए कहा कि आजकल चाय पीने के लिए लोगों ने काँच या स्टील के गिलास खरीद लिए हैं। पीतल के गिलास तो बहुत कम लोगों ने सँभालकर रखे हुए हैं। मालकिन ने कहा कि अपने पुरखों की वस्तुओं से सबको मोह होता है। इसलिए मैं इन गिलासों को कभी नहीं बेचती। वह पुनः कहती है कि अब यदि टिहरी बाँध के कारण इस जगह को छोड़ना पड़ा तो वह कहाँ जाएँगे।

माटी वाली ने बड़े दुःख और निराशा के साथ कहा, “ज़मीन-जायदादों के मालिक हैं, वे तो किसी-न-किसी ठिकाने पर ही जाएँगे। पर मैं सोचती हूँ मेरा क्या होगा! मेरी तरफ देखने वाला तो कोई भी नहीं” माटी वाली वहाँ से किसी दूसरे घर में गई, जहाँ उसे मिट्टी लाने का आदेश मिला और साथ ही दो रोटियाँ भी। उसने उन्हें भी कपड़े के किनारे से बाँध लिया।
माटी वाली का गाँव नगर से दूर था। उसे गाँव में पैदल चलकर पहुंचने में एक घंटा लग जाता था। उसने रास्ते में एक पाव प्याज़ खरीदे। वह सोच रही थी कि पहले जाकर प्याज़ पीतूंगी और फिर बूढ़े पति को रोटी दूंगी। वह मेरा इंतजार करता होगा।

माटी वाली की प्रतिदिन की यही दिनचर्या थी-मिट्टी खोदना, शहर पहुँचाना और फिर रात तक गाँव में लौटना। उसके पास न कोई अपना खेत था न ज़मीन। यहाँ तक कि उसकी झोंपड़ी भी ठाकुर की जमीन पर बनी हुई थीं। उसके बदले में उसे ठाकुर की बेगार करनी पड़ती थी। यह सोचते-सोचते वह घर पहुँची और देखा कि उसका बूढ़ा पति उसे छोड़कर जा चुका था। – टिहरी बाँध के पुनर्वास से संबंधित अधिकारी ने उससे उसके घर का पता पूछा। उसने बताया कि उसने जिंदगी भर टिहरी के लोगों को मिट्टी पहुँचाई है। अधिकारी ने फिर प्रश्न किया कि क्या माटाखान उसके नाम है ? बुढ़िया ने बताया-माटाखान मेरी रोज़ी है, वह मेरे नाम नहीं है। अधिकारी कुछ तीखे स्वर में बोला-‘बुढ़िया हमें ज़मीन का कागज़ चाहिए, रोज़ी का नहीं।’
बुढ़िया कुछ सकपकाकर बोली, ‘बाँध बनने के बाद मैं क्या खाऊँगी साब’ ? साहब बोला-‘इस बात का फैसला हम नहीं कर सकते। यह बात तो तुझे खुद तय करनी पड़ेगी।’
इसी के साथ ही टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया। फलस्वरूप नगर में पानी भरने लगा। चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। नगर के लोग घरों को छोड़-छोड़कर बाहर भागने लगे। पानी भरने से श्मशान घाट भी डूब गए।

माटी वाली अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठी हुई हर आने-जाने वाले से कहती है-“गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।”

कठिन शब्दों के अर्थ –

(पृष्ठ-42) : खोली = छोटी-सी कोठरी। कंटर = कनस्तर, पीपा। माटी = मिट्टी। कुल = सभी। निवासी = रहने वाले। प्रतिद्वंद्वी = मुकाबला करने वाला। बगैर = बिना। समस्या = कठिनाई। अवस्था = हालत। मौजूद = उपस्थित। अलावा = अतिरिक्त।

(पृष्ठ-43) : गोबरी लिपाई = गोबर और मिट्टी से की जाने वाली पुताई। माटाखान = मिट्टी की खान । तट = छोर, किनारा। ग्राहक = खरीददार । नाटा कद = छोटा शरीर । डिल्ला = सिर पर बोझ के नीचे रखने के लिए कपड़े की गद्दी। छुलबुल = पूरा भरा हुआ। इस्तेमाल = प्रयोग। उड़ेलना = उलटना। भाग्यवान = अच्छी किस्मत वाला।

(पृष्ठ-44) : फौरन = जल्दी, शीघ्रता से। हड़बड़ी = घबराहट। इकहरा = जिसका एक ही पल्लू हो। सद्दा = ताज़ा। बासी = कुछ समय पहले का बना हुआ। सुड़कना = सूं-तूं की आवाज़ करते हुए पीना। पुरखे = पूर्वज । गाढ़ी कमाई = मेहनत की कमाई। हराम के भाव = बिना मूल्य के, बहुत सस्ते। दिल गवाही देना = दिल मानना। तंगी = अभाव, कष्ट। चटपटी = मसालेदार। मन मसोसना = मन को मारना।

(पृष्ठ-45) : दिमाग चकराना = परेशान हो जाना । काँसा = एक मिश्रित धातु । जायदाद = संपत्ति । छोर = किनारा । अशक्त = शक्तिहीन । कातर = डरी हुई, घबराई हुई। हवाले करना = सुपुर्द करना, दे देना। चेहरा खिल उठना = प्रसन्न हो उठना।

(पृष्ठ-46) : रात घिरना = रात का छाना। एवज़ = के बदले। बेगार करना = बिना कुछ आमदनी लिए काम करना। आमदनी = आय, कमाई। परोसना = खाने के लिए रखना। हद से हद = ज्यादा-से-ज्यादा। आहट = आवाज़ । माटी छोड़ना = दुनिया को छोड़ना। पुनर्वास = फिर से बसाना। जिनगी = जिंदगी। रोज़ी = रोटी कमाने का साधन।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 माटी वाली

(पृष्ठ-47) : तय = निश्चित करना। सुरंग = गहरा गोल भीतरी रास्ता। आपाधापी मचना = हलचल होना। श्मशान = जहाँ मुर्दे जलाए जाते हैं।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

HBSE 9th Class Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Questions and Answers

Kritika Chapter 5 Question Answer HBSE 9th Class प्रश्न 1.
वह ऐसी कौन-सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया ?
उत्तर-
लेखक को किसी ने कुछ ऐसी बात कही होगी जिससे उनके स्वाभिमान पर आघात हुआ होगा। इसलिए वे अपने घर , से कुछ बनने के लिए निकल पड़े थे। उसी समय उन्होंने तय किया होगा कि अब उन्हें जो कोई काम मिलेगा, वह करेगा।

उन्होंने दूसरों के भरोसे बहुत जीवन व्यतीत कर दिया। अब अवश्य ही कुछ बनकर दिखाना होगा।

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 2.
लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफसोस क्यों रहा होगा ?
उत्तर-
लेखक के घर का माहौल उर्दू वातावरण का था। वह अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति या तो अंग्रेज़ी भाषा में करते थे या फिर उर्दू गज़ल के रूप में। निराला, पंत और बच्चन जी के संपर्क में आने के पश्चात ही लेखक का हिन्दी की ओर रुझान बढ़ा। बच्चन जी ने ही लेखक को हिन्दी के प्रांगण में स्थापित किया। लेखक ने श्रेष्ठ हिंदी साहित्य की रचना की और प्रसिद्धि भी प्राप्त की। इसलिए बाद में लेखक को अफ़सोस रहा होगा कि उसने पहले अंग्रेजी कविता लिखने में व्यर्थ ही समय गँवाया। इसलिए उन्हें अंग्रेजी कविता करने का अफ़सोस रहा होगा।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Summary HBSE 9th Class प्रश्न 3.
अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए ‘नोट’ में क्या लिखा होगा ?
उत्तर-
एक बार बच्चन लेखक से मिलने उनके स्टूडियो में गए, लेकिन वे क्लास समाप्त होने के पश्चात वहाँ से जा चुके थे। अतः उन्होंने लेखक के नाम एक नोट लिखा था-

प्रिय अनुज,

तुमसे मिलने की प्रबल इच्छा मेरे हृदय को बहुत समय से बेचैन कर रही थी। इसलिए मैं यहाँ देहरादून में तुम्हें मिलने चला आया था। किंतु आज तुम मुझे नहीं मिल सके। अतः मुझे यहाँ आना व्यर्थ लगा। मुझे पता चला कि तुम स्टूडियो में बहुत अच्छा काम कर रहे हो। नाम कमा रहे हो। एक दिन महान कलाकार बनोगे। भूले-भटके कभी इस बदनसीब को भी याद कर लिया करो।

तुम्हारा अपना
-बच्चन

Class 9 Hindi Kritika Chapter 5 Summary HBSE  प्रश्न 4.
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है ?
उत्तर-
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के निम्नलिखित रूपों को उभारा है-
सहृदय-बच्चन अत्यंत कोमल हृदय वाले व्यक्ति थे। वे किसी के दुःख को देखकर अत्यंत दुःखी हो जाते थे। वे अपनी पहली पत्नी को बहुत चाहते थे। उनकी अकस्मात मृत्यु ने उन्हें हिलाकर रख दिया था। वे न केवल अपनी पीड़ा से पीड़ित थे, अपितु लेखक की पत्नी की मृत्यु के वियोग की पीड़ा को भी समझते थे।

सहयोगी-श्री बच्चन के व्यक्तित्व की दूसरी प्रमुख विशेषता थी दूसरों को सहयोग देना। उन्होंने न केवल लेखक को इलाहाबाद बुलाया, अपितु उनको पढ़ाने व पूर्णतः बसाने तक का सहयोग भी दिया, जिसे लेखक आजीवन नहीं भूल सका। वे लेखक के संरक्षक बन गए थे।

निपुण, पारखी एवं प्रेरक-श्री बच्चन निपुण, पारखी एवं प्रेरक थे। वे सामने वाले की प्रतिभा को तुरंत भाँप जाते थे और यथासंभव उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देते थे। उन्होंने लेखक को देखकर तुरंत समझ लिया था कि उनमें काव्य-रचना की प्रतिभा है। इसलिए उन्हें इलाहाबाद बुलवाया और उनकी कविताओं को पढ़कर काँट-छाँट कर सुंदर रचना बना दी। श्री बच्चन अत्यंत सरल स्वभाव वाले व्यक्ति थे। छल-कपट तो उन्हें कभी छू भी नहीं सका था।

Class 9th Kritika Chapter 5 Question Answer HBSE प्रश्न 5.
बच्चन के अतिरिक्त लेखक को अन्य किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला ?
उत्तर-
लेखक को बच्चन जी के अतिरिक्त निम्नलिखित लोगों का सहयोग मिला था-

1. तेज बहादुर सिंह-ये लेखक के बड़े भाई थे, जिन्होंने घर में रहते हुए और घर से बाहर भी उनकी सहायता की थी।
2. सुमित्रानंदन पंत-सुमित्रानंदन पंत का स्वभाव भी अत्यंत सहयोगी था। उन्होंने लेखक को इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम दिलवाया था। उससे उनकी आर्थिक सहायता भी हुई थी। इसके पश्चात ही लेखक ने हिंदी में कविता रचने का मन बनाया था। ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपने वाली एक कविता पर भी निराला जी ने लेखक की प्रशंसा की थी।
3. ससुराल पक्ष के लोग-लेखक जब बेरोज़गार था, तब उन्होंने उन्हें कैमिस्ट की दुकान पर काम दिया था।

प्रश्न 6.
लेखक के हिंदी लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लेखक ने सन् 1933 में ‘चाँद’ और ‘सरस्वती’ में प्रकाशित होने के लिए रचनाएँ लिखी थीं।
तीन-चार वर्ष के अंतराल के पश्चात सन् 1937 में फिर लिखना शुरू किया। उस समय वे श्री बच्चन की प्रमुख रचना ‘निशा-निमंत्रण’ से बहुत प्रभावित थे। उन्हीं दिनों कुछ निबंध भी लिखे।
‘रूपाभ’ के कार्यालय में हिंदी का प्रशिक्षण भी लिया। बनारस से प्रकाशित होने वाले ‘हंस’ के कार्यालय में नौकरी की।
इस प्रकार लेखक ने हिंदी में लिखने के लिए अनेक प्रयास किए। अंततः वे हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों की पंक्ति में जा बैठे।

प्रश्न 7.
लेखक ने अपने जीवन में जिन कटिनाइयों को झेला है, उनके बारे में लिखिए।
उत्तर-
लेखक के जीवन में कठिनाइयों का क्रम-सा बना रहा। एक के बाद एक कठिनाई पूरे जोश के साथ उनके जीवन में . आती रही। यथा पत्नी की मृत्यु के पश्चात वियोग की पीड़ा को सहन करना पड़ा। बेरोज़गारी की मार झेलनी पड़ी। मात्र सात रुपए लेकर दिल्ली काम ढूँढने व पढ़ने जाना पड़ा। वहाँ कुछ साइनबोर्ड पेंट करके गुजारा करना पड़ा। ऐसी विकट परिस्थितियों में उनका लेखन कार्य किसी-न-किसी रूप में निरंतर जारी रहा। इसके पश्चात ससुराल की दवाइयों की दुकान पर रहकर केमस्ट्सि का कार्य सीखना पड़ा जिसे बाद में सदा के लिए अलविदा कह दिया। श्री बच्चन जी के सहयोग से एम०ए० की परीक्षा पास करने का प्रयास किया। श्री पंत द्वारा दिलाए गए अनुवाद का कार्य भी गुजारा करने के लिए करना पड़ा। इस प्रकार उन्हें एक के बाद एक कठिनाई का सामना करना पड़ा।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

HBSE 9th Class Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पठित पाठ के आधार पर उन कारणों पर प्रकाश डालिए जिनके कारण एक साहित्यकार के जीवन में प्रसन्नता का समावेश होता है।
उत्तर-
एक कवि-कलाकार की खुशी सांसारिक सुखों पर उतनी निर्भर नहीं होती, जितनी उसके द्वारा रचित किसी रचना की सफलता पर निर्भर होती है। लेखक श्री शमशेर बहादुर सिंह के जीवन से यह बात पूर्णतः सिद्ध हो जाती है। लेखक दिल्ली नौकरी की तलाश में जाता है, वहाँ उन्हें कुछ काम भी मिल जाता है, किंतु उन्हें उससे कोई विशेष प्रसन्नता नहीं होती। वे वहाँ एक अच्छा कलाकार बनने का प्रयास करते रहे। इसी प्रकार लेखक के गुरु श्री शारदाचरण के चित्रकला प्रशिक्षण केंद्र के बंद होते ही उन्हें लगा कि अब कोई उनके हृदय की भावनाओं को समझने वाला नहीं रहा। इतना ही नहीं, उन्हें अपना जीवन बेकार लगने लगा। इसी प्रकार लेखक देहरादून में रहते हुए कंपाउंडर का काम सीख गए थे और पैसे भी कमाने लगे थे। किंतु हरिवंशराय बच्चन द्वारा उनकी एक सॉनेट की सराहना किए जाने पर उन्हें जो प्रसन्नता मिली, वह अवर्णनीय है। वे उनके कहने पर देहरादून छोड़कर इलाहाबाद चले आए। वहाँ भी उन्हें एम०ए० की परीक्षा पास करने में इतनी खुशी नहीं मिली, जितनी उन्हें कवि-सम्मेलन में जाकर अपनी रचनाएँ पढ़ने व दूसरों की रचनाएँ सुनने
और बड़े-बड़े साहित्यकारों से मिलने में हुई। इस प्रकार स्पष्ट है कि साहित्यकारों की दुनिया में सांसारिक सुख-समृद्धि इतना महत्त्व नहीं रखती जितना उनके द्वारा रचित साहित्य। यही उनकी प्रसन्नता का प्रमुख कारण होता है।

प्रश्न 2.
पठित पाठ में अभिव्यक्त कविवर बच्चन जी के पत्नी-वियोग पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
पठित पाठ में बताया गया है कि श्री हरिवंशराय बच्चन अपनी पत्नी के वियोग में अत्यधिक व्याकुल एवं व्यथित रहते थे। उनके जीवन में उनकी पत्नी का वही स्थान था जो शिव के मस्त नृत्य में उमा का था। जिस प्रकार शिव पत्नी-वियोग में व्याकुल रहे थे, वैसे ही श्री बच्चन भी पत्नी के वियोग में दुःखी रहे। उस समय उन्हें संसार की प्रत्येक वस्तु व्यर्थ प्रतीत होती थी। उनकी पत्नी उनकी सच्ची संगिनी थी। उनके जीवन की प्रेरणा थी। श्री बच्चन जी पत्नी के प्रति समर्पित थे। इसलिए उसकी आकस्मिक मृत्यु ने उनके कवि एवं भावुक हृदय को झकझोर कर रख दिया।

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प्रश्न 3.
लेखक (श्री शमशेर बहादुर सिंह) को अकेलापन क्यों अच्छा लगता था ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
वस्तुतः लेखक बचपन से ही अत्यंत संकीर्ण एवं एकांतप्रिय स्वभाव के थे। वे घर से बाहर अति आवश्यक काम से ही निकलते थे। इसलिए लोगों से मिलना-जुलना भी कम ही होता था। उन्हें सदा भ्रम-सा बना रहता था कि निजी दुनिया में उनका कोई साथी नहीं बन सकता। इसलिए उन्होंने अकेलेपन को ही साथी समझ लिया था। वे अपने अकेलेपन में अपने हृदय में बसे कवि से ही बातें करते थे। लेखक के अनुसार-अंदर से मेरा हृदय बहुत उद्विग्न रहता, यद्यपि अपने को दृश्यों व चित्रों में खो देने की मुझमें शक्ति थी।’ लेखक ने अन्यत्र लिखा है कि उसे सड़कों पर अकेले घूमना, कविताएँ लिखना और स्कैच बनाना अच्छा लगता था। किंतु अपनी खोली में पहुंचकर बोरियत महसूस होती थी। लेखक के इन कथनों से स्पष्ट है कि लेखक अपनी रचनाओं की दुनिया में ही खोया रहना चाहता था। वह इसमें किसी प्रकार की बाधा को सहन नहीं कर सकता था। इसलिए उसे अकेलापन अच्छा लगता था।

प्रश्न 4.
लेखक के हिंदी लेखन की ओर मुड़ने के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
लेखक आरंभ में उर्दू और अंग्रेज़ी में अपनी रचनाएँ लिखा करता था। उर्दू में रचित उनकी रचनाएँ काफी प्रसिद्ध थीं। किंतु सन् 1930 में जब श्री हरिवंशराय बच्चन अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर थे, तब वे लेखक के संपर्क में एक रचना के माध्यम से आए। लेखक ने अपनी एक ‘सॉनेट’ श्री बच्चन के पास भेजी। उन्हें वह सॉनेट बहुत अच्छी लगी। श्री बच्चन जी समझ गए थे कि इस युवक में साहित्य रचने की प्रतिभा है। इसलिए उन्होंने लेखक को इलाहाबाद बुला लिया और उन्हें हिंदी में लिखने के लिए प्रेरित किया। इलाहाबाद में रहते हुए उन्हें हिंदी का वातावरण मिला। वहाँ उनका परिचय श्री पंत, श्री निराला जैसे महान कवियों से हुआ जिनसे उन्हें हिंदी में लिखने की प्रेरणा मिली। निराला जी ने उनकी एक कविता पर सुंदर टिप्पणी लिखी। पंत जी ने उनकी कविताओं में सुधार किया। इलाहाबाद रहते हुए उन्हें कवि-सम्मेलनों में जाने का अवसर भी मिला। इस प्रकार लेखक हिंदी लेखन की ओर मुड़े और हिंदी साहित्यकार बन गए।

प्रश्न 5.
लेखक को दिल्ली में उकील आर्ट स्कूल में बिना फीस के क्यों दाखिल किया गया था?
उत्तर-
उनकी चित्रकला की महान प्रतिभा को देखकर उन्हें बिना फीस के आर्टस् स्कूल में दाखिल कर लिया गया था। उन्हें उससे इस क्षेत्र में उन्नति करने की बहुत उम्मीदें थीं।

प्रश्न 6.
लेखक दिल्ली क्यों गया था? .
उत्तर-
वस्तुतः लेखक देहरादून में बेरोज़गार था। वहाँ उसके पास करने के लिए कुछ काम नहीं था। घरवाले व दूसरे लोग उसे बेकार घूमने पर ताने भी देते थे। इसलिए लेखक दिल्ली काम की तलाश में गया था। वहाँ उसने काम और चित्रकला की शिक्षा दोनों ही एक साथ आरंभ की थीं।

प्रश्न 7.
दिल्ली आने पर लेखक अपना समय कैसे बिताता था ?
उत्तर-
लेखक ने दिल्ली पहुंचने पर करोलबाग में सड़क के किनारे एक कमरा किराए पर लिया तथा आर्ट की कक्षाओं में जाने लगा। इसी बीच चित्र बनाने व कविताएँ लिखने का काम भी करता था। जब भी कुछ समय मिलता तो सड़कों पर घूमने निकल पड़ता। इस प्रकार लेखक ने दिल्ली में अपना समय व्यतीत किया।

प्रश्न 8.
इलाहाबाद में श्री बच्चन ने लेखक के लिए कौन-सी योजना तैयार की थी ?
उत्तर-
इलाहाबाद में लेखक को बुलाने के पश्चात श्री बच्चन ने यह योजना बनाई थी कि वह किसी प्रकार एम०ए० की परीक्षा पास कर ले। उसका जिम्मा उन्होंने खुद ले लिया था। वे चाहते थे कि लेखक पढ़-लिखकर अपने पाँवों पर खड़ा हो जाए।

प्रश्न 9.
लेखक दिल्ली में रहता हुआ अपने कमरे में आकर बोर क्यों हो जाता था ?
उत्तर-
लेखक को एकांत एवं अकेलापन बहुत प्रिय था। वह अकेलेपन एवं एकांत में खोकर नए-नए विषयों पर विचार करता और उन पर कुछ लिखता। किंतु कमरे में और भी लोग रहते थे। लेखक को उनकी बातों में कोई रुचि नहीं थी। इसलिए वह कमरे में आकर बोर हो जाता था।

प्रश्न 10.
लेखक मार्ग में आने-जाने व उससे मिलने वाले चेहरों को गौर से क्यों देखता था ?
उत्तर-
लेखक को हर चेहरे में अपनी ड्राईंग के लिए कोई-न-कोई विषय मिल जाता था। उसे हर विषय और हर दृश्य में कोई-न-कोई विशेष अर्थ मिल जाता था। इसके लिए उसे गहरा निरीक्षण करना पड़ता था। इसीलिए वह मार्ग में आने-जाने वाले लोगों के चेहरों को गौर से देखता था।.

प्रश्न 11.
लेखक ने जो सॉनेट श्री बच्चन जी को भेजा था, उसका प्रमुख विषय क्या था ? उन्होंने यह सॉनेट बच्चन जी को ही क्यों भेजा था ?
उत्तर-
लेखक द्वारा रचित उस सॉनेट में बच्चन जी के प्रति उनसे मिलने के लिए कृतज्ञता के भाव थे। यह सॉनेट अंग्रेजी भाषा में लिखा था और अतुकांत मुक्त छंद में था। उन्होंने बच्चन के पास अपना यह सॉनेट नमूने के रूप में भेजा था।

प्रश्न 12.
लेखक दिल्ली से देहरादून क्यों आया था ?
उत्तर-
लेखक आजीविका कमाने और पेंटिंग अथवा चित्रकला से जुड़ने के लिए देहरादून आया था। वहाँ उनके गुरु शारदाचरण उकील ने पेंटिंग का स्कूल खोला हुआ था। वहाँ आकर उसने ससुराल वालों की कैमिस्ट की दुकान पर कंपाउंडरी भी सीखी।

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प्रश्न 13.
लेखक को सरकारी नौकरी से घृणा क्यों थी ?
उत्तर-
लेखक को सरकारी नौकरी से घृणा थी। अपने पिता जी की सरकारी नौकरी के बंधनों को देखकर उन्होंने अपने मन में सरकारी नौकरी न करने की ठान ली थी। दूसरा प्रमुख कारण था कि साहित्यकार बंधन के जीवन को पसंद नहीं करता है।

प्रश्न 14.
कविवर बच्चन लेखक से एम०ए० की परीक्षा देने के लिए बार-बार क्यों कहते थे ?
उत्तर-
कविवर बच्चन दूसरों की प्रतिभा को पहचानने की कला में प्रवीण थे। उन्होंने लेखक की सॉनेट को पढ़कर उनकी प्रतिभा का अनुमान लगा लिया था। दूसरा कारण था कि उसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। वे उसके हृदय की पीड़ा को भी समझते थे। इसलिए वे उन्हें आर्थिक संकट एवं पत्नी-वियोग की पीड़ा से निकालने के लिए ऐसा कहते थे।

प्रश्न 15.
लेखक ने किस-किस भाषा में रचना की और अंत में किस भाषा के साहित्य के लिए प्रसिद्धि मिली ?
उत्तर-
लेखक ने उर्दू एवं अंग्रेज़ी भाषाओं में लिखना आरंभ किया था, किंतु बाद में श्री बच्चन की प्रेरणा से हिंदी में कविता लिखने लगे थे। वे कुछ समय पश्चात हिंदी के अच्छे कवि बन गए थे और उन्हें हिंदी कवि के रूप में ही प्रसिद्धि प्राप्त हुई थी।

प्रश्न 16.
कविवर शमशेर बहादुर सिंह को हिंदी की ओर ले जाने में किन-किन का प्रयास रहा है ?
उत्तर-
सर्वप्रथम तो कविवर हरिवंशराय बच्चन ने लेखक (शमशेर बहादुर सिंह) को हिंदी की ओर मोड़ने का सफल प्रयास किया था। इसके अतिरिक्त कविवर पंत और निराला जी ने भी लेखक को हिंदी की ओर मोड़ने में सहयोग दिया था।

प्रश्न 17.
लेखक श्री बच्चन के जीवन की किस विशेषता से सबसे अधिक प्रभावित थे ? ।
उत्तर-
लेखक श्री बच्चन की दूसरों की प्रतिभा को पहचानने और उसे बढ़ावा देने की विशेषता से अधिक प्रभावित थे। वे सदा दूसरों की प्रतिभा को उभारने के लिए तत्पर रहते थे। वे उसे उचित प्रोत्साहन देते और आगे बढ़ने के अवसर भी प्रदान करते थे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया” शीर्षक पाठ के लेखक कौन हैं?
(A) शमशेर बहादुर सिंह.
(B) फणीश्वरनाथ रेणु
(C) मृदुला गर्ग
(D) जगदीशचंद्र माथुर
उत्तर-
(A) शमशेर बहादुर सिंह

प्रश्न 2.
श्री शमशेर बहादुर सिंह ने दिल्ली में किस आर्ट स्कूल में प्रवेश लिया था?
(A) उनीस आर्ट स्कूल
(B) उकील आर्ट स्कूल
(C) नीलांभ आर्ट स्कूल
(D) चित्रा आर्ट स्कूल
उत्तर-
(B) उकील आर्ट स्कूल

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प्रश्न 3.
लेखक दिल्ली में आरंभ में कहाँ ठहरा हुआ था?
(A) मोती नगर
(B) उत्तम नगर
(C) करोलबाग
(D) कश्मीरी गेट
उत्तर-
(C) करोलबाग

प्रश्न 4.
आरंभ में श्री शमशेर बहादुर किस भाषा में लिखते थे?
(A) हिंदी में
(B) संस्कृत में
(C) उर्दू में
(D) बांग्ला में
उत्तर-
(C) उर्दू में

प्रश्न 5.
श्री शमशेर बहादुर सिंह को श्री हरिवंशराय बच्चन सर्वप्रथम कहाँ मिले थे?
(A) दिल्ली में
(B) इलाहाबाद में
(C) बनारस में
(D) देहरादून में
उत्तर-
(D) देहरादून में

प्रश्न 6.
देहरादून में आकर लेखक ने कौन-सा कार्य सीखा था?
(A) कविता लिखना
(B) पेंटिंग करना
(C) कंपाउंडरी
(D) दस्तकारी
उत्तर-
(C) कंपाउंडरी

प्रश्न 7.
श्री शमशेर बहादुर को आर्टस सिखाने वाले गुरू का क्या नाम था? ।
(A) श्री बच्चन
(B) श्री पंत
(C) शारदाचरण उकील
(D) निराला जी
उत्तर-
(C) शारदाचरण उकील

प्रश्न 8.
लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का पश्चात्ताप क्यों था?
(A) वह दूसरी भाषाएँ नहीं जानता था
(B) उनके घर का वातावरण उर्दू भाषा का था
(C) उसे संस्कृत का ज्ञान था किंतु उसमें नहीं लिखता था
(D) लेखक को अन्य भाषाओं में लिखने में लज्जा आती थी
उत्तर-
(B) उनके घर का वातावरण उर्दू भाषा का था

प्रश्न 9.
लेखक की दृष्टि में बच्चन जी के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता कौन-सी थी?
(A) वे महान् कवि थे
(B) कोमल हृदय व्यक्ति
(C) पारदर्शी व्यक्तित्व के धनी
(D) परिश्रमी
उत्तर-
(B) कोमल हृदय व्यक्ति

प्रश्न 10.
लेखक ने सर्वप्रथम हिंदी में कविता कब लिखी थी?
(A) सन् 1933 में
(B) सन् 1935 में
(C) सन् 1937 में
(D) सन् 1938 में
उत्तर-
(A) सन् 1933 में

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प्रश्न 11.
श्री हरिवंशराय बच्चन के पत्नी वियोग की तुलना लेखक ने किससे की है?
(A) श्रीराम के साथ
(B) मेघदूत के पक्ष के साथ
(C) शिव के साथ
(D) रतनसेन के साथ
उत्तर-
(C) शिव के साथ

प्रश्न 12.
लेखक को बच्चन कहाँ ले गए थे?
(A) इलाहाबाद
(B) दिल्ली
(C) बनारस
(D) कानपुर
उत्तर-
(A) इलाहाबाद

प्रश्न 13.
लेखक ने इलाहाबाद में आकर किस विषय में एम.ए. की परीक्षा की तैयारी की थी?
(A) अंग्रेज़ी
(B) इतिहास
(C) हिंदी
(D) संस्कृत
उत्तर-
(C) हिंदी

प्रश्न 14.
लेखक दिल्ली से देहरादून क्यों आया था?
(A) उनके गुरु उकील ने वहाँ आर्ट स्कूल खोल लिया
(B) उसे वहाँ नौकरी मिल गई
(C) उसके ससुराल वालों ने बुला लिया था
(D) अपने माता-पिता की चिंता के कारण
उत्तर-
(A) उनके गुरु उकील ने वहाँ आर्ट स्कूल खोल लिया।

प्रश्न 15.
लेखक सरकारी नौकरी क्यों नहीं करना चाहता था?
(A) उसे पसंद नहीं थी ।
(B) नौकरी उसके लिए बंधन के समान थी
(C) लेखक स्वच्छ प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था
(D) नौकरी में झूठ बोलना पड़ता
उत्तर-
(B) नौकरी उसके लिए बंधन के समान थी।

प्रश्न 16.
लेखक को किस भाषा में लिखने से प्रसिद्धि मिली थी?
(A) उर्दू ,
(B) अंग्रेजी
(C) हिंदी
(D) संस्कृत
उत्तर-
(C) हिंदी

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Summary in Hindi

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ एक संस्मरण है। इसमें लेखक ने श्री हरिवंशराय बच्चन तथा सुमित्रानंदन पंत के साथ बिताए जीवन के क्षणों को याद किया है। प्रस्तुत संस्मरण का सार इस प्रकार है

इस संस्मरण में बताया गया है कि लेखक को किसी ने ऐसा कुछ कहा कि वह पहली बस पकड़कर दिल्ली आ गया। उसने सोच लिया था कि अब उसे दिल्ली में रहना है और पेंटिंग का काम सीखना है। लेखक को उकील आर्ट स्कूल में मुफ्त में दाखिला मिल गया था। वह करोल बाग में एक कमरा किराए पर लेकर वहाँ रहने लगा था। वह रास्ते में चलता-चलता अंग्रेज़ी, हिंदी व उर्दू की कविताएँ करता था। उसकी आदत-सी बन गई थी कि वह हर आने-जाने वाले के चेहरे को ध्यानपूर्वक देखता और उनमें अपनी पेंटिंग के विषय ढूँढता। कुछ साइनबोर्ड पेंट करके तथा कुछ बड़े भाई से प्राप्त धन से गुजारा करता। उसके साथ महाराष्ट्र का एक पत्रकार भी आकर रहने लगा। वह भी बेकार था। वह इलाहाबाद की चर्चा किया करता था।
लेखक उन दिनों बहुत अकेला और बेचैन-सा रहता था। पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। एक बार बच्चन स्टूडियो में आए, किंतु लेखक क्लास खत्म होने के पश्चात जा चुका था। वे लेखक के लिए एक नोट छोड़ गए थे। वह नोट अत्यंत सारगर्भित और प्रभावशाली था। लेखक ने उसके लिए अपने-आपको अत्यंत कृतज्ञ अनुभव किया। जवाब में कृतज्ञतापूर्ण एक कविता भी लिखी, किंतु उनके पास कभी भेजी नहीं।

कुछ समय बाद दिल्ली में कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं कि लेखक पुनः देहरादून आ गया। वहाँ आकर लेखक अपनी ससुराल की केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स की दुकान पर कंपाउंडरी का काम सीखने लगा। इस काम में वह सफल भी हो गया। तभी उनके गुरु श्री शारदाचरण ने पेंटिंग की क्लास बंद कर दी। इससे लेखक को कला-बोध की कमी खलने लगी। कलात्मकता के अभाव में लेखक अपने-आपको बहुत अकेला अनुभव करने लगा था। उनकी आंतरिक रुचियों की किसी को परवाह नहीं थी। इसी उधेड़बुन में उन्होंने एक दिन श्री हरिवंशराय बच्चन को लिखी हुई अपनी कविता पोस्ट कर दी। संयोग ही था कि एक बार बच्चन जी देहरादून आए और लेखक के यहाँ मेहमान बनकर रहे।

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उन दिनों बच्चन जी साहित्य के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध हो चुके थे। लेखक को उस भयानक आँधी की याद आ गई जिसमें असंख्य पेड़ जड़ से उखड़कर गिर पड़े थे। बच्चन जी एक पेड़ के नीचे आने से बाल-बाल बच गए थे। उन्हीं दिनों बच्चन जी को भी अपनी पत्नी श्यामा का वियोग हुआ था। वे इतने दुःखी थे कि मानो मस्त नृत्य करते शिव से उनकी उमा को छीन लिया गया हो। वे अपनी बात के धनी थे। एक दिन बहुत बारिश थी और रात के समय उन्हें गाड़ी पकड़नी थी। मेजबान के रोकने पर भी वे न रुके। बिस्तर बाँधा और काँधे पर रखकर स्टेशन जा पहुंचे।

लेखक इस बात को सोचकर हैरान होता है कि वे बच्चन जी के आग्रह पर इलाहाबाद जा पहुंचेंगे। उनकी बच्चन जी से अधिक गहरी जान-पहचान नहीं थी। वे हमेशा एकांत को पसंद करते थे। उन्हें ऐसा भ्रम रहता था कि उनके एकांत में उनके साथ चलने वाला कोई नहीं था। एक ओर बच्चन जी ने कहा कि देहरादून में रहेगा तो मर जाएगा। उधर केमिस्ट्स की दुकान पर बैठने वाले डॉक्टर ने भी कहा इलाहाबाद गया तो वहाँ उसका जीवित रहना असंभव होगा। इस प्रकार वह भ्रमित-सा हो गया। किंतु उसने इलाहाबाद जाने का निश्चय कर लिया। बच्चन जी ने एम०ए० हिंदी की पढ़ाई का जिम्मा अपने ऊपर लिया तथा कहा कि जब कमाएगा तो लौटा देना। बच्चन जी चाहते थे कि वह काम का आदमी बन जाए, किंतु वह न एम०ए० की परीक्षा दे सका और न नौकरी कर सका।

वहाँ रहते हुए लेखक का पंत जी से भी परिचय हुआ। उनकी कृपा से ही उन्हें अनुवाद करने का काम मिल गया था। अब लेखक के मन में हिंदी कविता लिखने की रुचि जाग गई थी, किंतु उन्हें तो अंग्रेजी कविता और उर्दू गज़लें लिखने का अभ्यास था। बच्चन जी ने उनकी कविताओं की सराहना की और हिंदी में लिखने का अभ्यास भी निरंतर बढ़ने लगा था। जाट परिवार से संबंधित होने के कारण भी भाषा की दीवार उन्हें रोक न सकी। लेखक हिंदी की ओर बढ़ने के अपने आकर्षण का कारण निराला, पंत, श्री बच्चन आदि महान हिंदी कवियों व इलाहाबाद के अन्य साहित्यकारों से मिलने वाले उत्साह को मानता है। यद्यपि वे हिंदी में बढ़ रही गुटबाजी से दुःखी थे। बच्चन जी उस समय इस गुटबाजी के विरुद्ध लड़ रहे थे।

सन् 1937 में लेखक को लगा कि वह श्री बच्चन जी की भाँति फिर से जीवन की ओर लौट रहा है। उसे भी बच्चन जी की भाँति ही आर्थिक दृष्टि से सबल होना है। बच्चन जी ने उसे 14 पंक्तियों का नया सॉनेट लिखना सिखाया था। इसमें बीच में अतुकांत पंक्तियाँ भी थीं और तुकांत भी। लेखक ने भी कुछ ऐसी ही एक रचना लिखी लेकिन वह कभी प्रकाशित नहीं हो सकी। लेखक अब श्री बच्चन जी के ‘निशा-निमंत्रण’ से प्रभावित हुआ और कुछ उसी पैटर्न पर कविताएँ भी लिखने लगा था। नौ पंक्तियाँ, तीन स्टैंजा। यद्यपि पंत जी ने लेखक की ऐसी कविताओं का संशोधन भी किया, किंतु उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

लेखक द्वारा अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान न दिए जाने पर बच्चन जी बड़े दुःखी थे। लेखक एम०ए० की परीक्षा नहीं दे सका, किंतु उनकी हिंदी कविता में रुचि बढ़ती जा रही थी। वे एक दिन बच्चन जी के साथ एक कवि सम्मेलन में गए। उनका कविता लिखने का प्रभाव बेकार नहीं गया। उन्हीं दिनों उनकी एक कविता ने निराला जी का ध्यान आकृष्ट किया और उन्होंने लेखक को ‘हंस’ प्रकाशन में काम दिला दिया। इसलिए उन्हें हिंदी में लाने का श्रेय श्री बच्चन जी को जाता है।

लेखक का मानना है कि उनके जीवन को नया मोड़ देने के पीछे बच्चन जी की मौन-सजग प्रतिभा रही है। उनमें दूसरों की प्रतिभा को व्यक्तित्व प्रदान करने की स्वाभाविक क्षमता है। लेखक बच्चन जी से प्रायः दूर ही रहा है। परंतु उनके लिए दूर और समीप की परिभाषा दूसरों से हटकर है। वह नजदीक के लोगों के साथ भी दूरी अनुभव करता रहे और दूर के लोगों के साथ भी बहुत करीब रहे।

जिस प्रकार कवि अपनी कविता के माध्यम से अपने ही बहुत करीब रहता है। न वह कविता से कभी मिलता है, न कभी बात करता है फिर भी उसके अत्यधिक निकट रहता है। ठीक वैसे ही लेखक श्री बच्चन जी के निकट रहा। उनकी यह महानता उनके अच्छे-से-अच्छे कवि से भी महान है। श्री बच्चन जी ऐसे ही बहुत-से लोगों के करीब रहे हैं। उनका सहज एवं स्वाभाविक होना लेखक को बहुत अच्छा लगता है। इसी स्वाभाविकता के कारण लेखक अपने-आपको मुक्त समझता है। ऐसा अनुभव और लोगों को भी होता होगा। लेखक को विश्वास है कि बच्चन जैसे लोग दुनिया में हुआ करते हैं। वे असाधारण नहीं होते। होते तो साधारण हैं, किंतु होते बिरले हैं, दुष्प्राप्य हैं।

 

कठिन शब्दों के अर्थ –

(पृष्ठ-49) : जुमला = वाक्य । पेंटिंग = चित्रकारी। फौरन = जल्दी ही। किस्सा = कथा, घटना। मुख्तसर = संक्षिप्त, सार रूप में। शौक = रुचि। बिला-फीस = बिना फीस के। भर्ती = दाखिला। लबे-सड़क = सड़क के किनारे।

(पृष्ठ-51) : वहमो-गुमान = भ्रम, अनुमान। तरंग = लहर। टीस = वेदना। चुनाँचे = अतः, इसलिए। शेर = गज़ल के दो चरण। बगौर = ध्यानपूर्वक। तत्त्व = सार, तथ्य। दृश्य = दिखाई देने वाला। गति = चाल। विशिष्ट = विशेष। आकर्षण = खिंचाव। साइनबोर्ड = विज्ञापन के पट या पर्दे । बेकार = बेरोज़गार। जिक्र = चर्चा । हृदय = दिल। उद्विग्न = परेशान। टी०बी० = क्षय रोग। घसीटता = लापरवाही से लिखना। स्केच = रेखाचित्र। बोर होना = ऊब जाना। मुलाकात = भेंट। संलग्न = लगे हुए। वसीला = सहारा। नोट = कागज़ पर लिखा संदेश। कृतज्ञ = उपकार को अनुभव करना।

(पृष्ठ-52) : मौन = खामोश। उपलब्धि = प्राप्ति। अफसोस = दुःख। सॉनेट = यूरोपीय कविता का एक लोकप्रिय छंद। अतुकांत = तुक के बिना। मुक्तछंद = छंदों से मुक्त कविता। उफ = ओह । गोया = मानो, जैसे। केमिस्ट्रस = दवाइयाँ तथा रसायन बेचने वाला। ड्रगिस्ट्स = दवाइयाँ बेचने वाला। कंपाउंडरी = चिकित्सा में सहायता करने वाला कर्मचारी। महारत = कुशलता। अजूबा = अद्भुत, हैरान करने वाली। नुस्खा = तरीका। गरज़ = चाह, मतलब। आंतरिक = भीतरी, अंदरूनी। दिलचस्पी = रुचि। अदब-लिहाज़ = शर्म, संकोच। घुट्टी में पड़ना = जन्म से ही स्वभाव में होना। अभ्यासी = आदती। खिन्न = परेशान, दुःखी। सामंजस्य = तालमेल। कर्त्तव्य = करने योग्य काम। इत्तिफाक = संयोग।

(पृष्ठ-53) : प्रबल = मज़बूत, शक्तिशाली। झंझावात = आँधी। स्पष्ट = साफ़। मस्तिष्क = दिमाग। वियोग = बिछुड़ना। उमा = शिव की पत्नी पार्वती। अर्धांगिनी = पत्नी। मध्य वर्ग = धन की दृष्टि से बीच के लोग। भावुक = भावना से भरे, कोमल। आदर्श = सिद्धांत। उत्साह = जोश। संगिनी = साथिन। निश्छल = सरल, छल-रहित। आर-पार देखना = साफ़ एवं स्पष्ट होना। बात का धनी = अपनी बात पर टिके रहने वाला। वाणी का धनी = जिसकी वाणी बहुत मधुर एवं पटु हो। संकल्प = इरादा, निश्चय। फौलाद = बहुत मज़बूत। बरखा = वर्षा । झमाझम = बहुत तेजी से, अधिकता से। मेज़बान = आतिथ्य करने वाला। इसरार = आग्रह। बराय नाम = केवल नाम के लिए, दिखावे-भर को।

(पृष्ठ-54) : वहम = भ्रम, संदेह । गरीब-गरबा = गरीबों के लिए। नुस्खा = तरीका, ढंग, उपाय। थ्री टाइम्स अ-डे = एक दिन में तीन बार। बेफिक्र = चिंता से रहित। लोकल गार्जियन = स्थानीय अभिभावक। दर्ज होना = नाम लिखा जाना। सूफी नज्म = सूफ़ी कविता। प्रीवियस = पहला, पूर्व । फाइनल = अंतिम। काबिल = योग्य। प्लान = योजना। फारिग होना= मुक्त होना। पैर जमाकर खड़ा होना = नौकरी करने योग्य हो जाना। दिल में बैठना = दृढ़ होना। तर्क-वितर्क = बहसबाजी। घोंचूपन = नालायकी, कायरता, मूर्खता। पलायन = भागना। कॉमन रूम = सबके उठने-बैठने का कमरा।

(पृष्ठ-55) : गंभीरता = गहरी रुचि। शिल्प = शैली, तरीका। फर्स्ट फार्म = पहली भाषा। खालिस = शुद्ध। भावुकता = भावों की कोमलता। अभाव = कमी। विषयांतर = दूसरे विषय की तरफ भटक जाना। पुनर्संस्कार = फिर से स्वभाव में डालना। मतभेद = विचारों की भिन्नता। अभिव्यक्ति = भाव प्रकट करना। माध्यम = सहारा। एकांततः = अपने लिए ही। पछाँही = पश्चिम दिशा का। दीवार = बाधा। चेतना = मन, मस्तिष्क, हृदय। संस्कार = आदतें, गुण। प्रोत्साहन = उत्साह, बढ़ावा। विरक्त = अलगाव होना, अरुचि होना। संकीर्ण = तंग। सांप्रदायिक = एक संप्रदाय के प्रभाव वाला।

(पृष्ठ-56) : मर्दानावार = वीरों की भाँति। उच्च घोष = ऊँची आवाज । मनःस्थिति = मन की दशा। द्योतक = परिचायक। अंतश्चेतना = अंतर्मन। निश्चित = बेफिक्र । कमर कसना = तैयार होना। स्टैंज़ा = गीत का एक चरण या अंतरा । तुक = कविता के प्रत्येक चरण के अंतिम वर्णों का एक-सा होना। प्रभावकारी = प्रभावशाली। विन्यास = रचना। अतुकांत = तुक से रहित। बंद = पहरा, अनुच्छेद, चरण। फार्म = रूप। आकृष्ट करना = खींचना। संशोधन = सुधार। सुरक्षित = बचाकर रखे हुए।

(पृष्ठ-57) : क्षोभ = व्याकुलता। स्थायी संकोच = हमेशा महसूस होने वाली शर्म। निरर्थक = बेकार। प्रशिक्षण = ट्रेनिंग, सीखना। प्रांगण = आँगन, क्षेत्र। घसीट लाना = खींच लाना। आकस्मिक = अचानक। मौन-सजग = चुपचाप जाग्रत। प्रातिभ = प्रतिभा से युक्त। नैसर्गिक = सहज, प्राकृतिक। क्षमता = शक्ति। बेसिकली = मूल रूप से। व्यवधान = बाधा, रुकावट। प्रस्तुत होना = पेश होना, दिखाई देना, प्रकट होना। सामान्य = आम।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

(पृष्ठ-58) : विशिष्ट = खास, विशेष। असाधारण = जो साधारण न हो, विशेष। मर्यादा = शान। दुष्प्राप्य = कठिनाई से मिलने वाला।

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HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

HBSE 9th Class Hindi दो बैलों की कथा Textbook Questions and Answers

दो बैलों की कथा प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 1.
कांजीहौस में कैद पशुओं की हाज़िरी क्यों ली जाती होगी ?
उत्तर-
कांजीहौस में कैद पशुओं की हाज़िरी इसलिए ली जाती होगी, ताकि उनमें से किसी पशु को कोई चुराकर न ले जाए। कांजीहौस में लाए गए पशुओं की देखभाल की जिम्मेदारी भी कांजीहौस के कर्मचारियों की ही होती थी।

पाठ 1 दो बैलों की कथा के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 2.
छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया ?
उत्तर-
एक सच्चाई है कि दुखी व्यक्ति ही दूसरे दुखी व्यक्ति के दुख को अधिक अनुभव कर सकता है। गया के घर में छोटी बच्ची की विमाता हर समय उसके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करती थी। जब उसने देखा कि गया (छोटी बच्ची का पिता) अपने बैलों को अच्छा चारा देता है और झूरी के बैलों को रूखा-सूखा भूसा खाने को देता है और मारता भी है तो उनके प्रति गया के अन्याय को देखकर छोटी बच्ची के मन में प्रेम उमड़ आया था।

दो बैलों की कथा का प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 3.
कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभरकर आए हैं ?
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी में नीति संबंधी अनेक विषयों की…………. ओर संकेत किया गया है। उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

(क) अपने स्वामी के प्रति सदा वफादार रहना चाहिए।
(ख) सच्चा मित्र वही होता है, जो हर सुख-दुःख में साथ रहे।
(ग) आत्मसम्मान की रक्षा के लिए संघर्ष करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
(घ) आजादी के लिए बार-बार संघर्ष करना पड़ता है।
(ङ) एकता में सदा बल होता है।
(च) परोपकार के लिए आत्मबलिदान देना महान् कार्य है।

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दो बैलों की कथा प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE Hindi प्रश्न 4.
प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने गधे की किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ ‘मूर्ख’ का प्रयोग न कर किस नए अर्थ की ओर संकेत किया है ?
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने गधे को ‘मूर्ख’ न कहकर उसकी अन्य स्वभावगत विशेषताओं का उल्लेख किया है, यथा-वह निरापद सहिष्णु होता है। यदि कोई उसको मारता है या दुर्व्यवहार करता है तो वह शांत स्वभाव से उसे सहन कर लेता है। उसका प्रतिरोध नहीं करता, जैसे अन्य पशु करते हैं। उसे कभी किसी बात पर क्रोध नहीं आता। वह सदा उदास व निराश ही दिखाई देता है। वह सुख-दुःख, हानि-लाभ सब स्थितियों में समभाव रहता है। अतः उसका सीधापन ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है, इसीलिए लोग उसे ‘मूर्ख’ की पदवी दे देते हैं।

दो बैलों की कथा के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 5.
किन घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी ? ।
उत्तर-
हीरा और मोती, दोनों सदा एक-दूसरे के सुख-दुःख में साथ देते थे। उदाहरणार्थ-जब गया ने हीरा को अत्यधिक मारा तो मोती ने विद्रोह कर दिया और हल जुआ आदि लेकर भाग गया और उन्हें तोड़ डाला और कहा कि यदि वह तुम पर हाथ उठाएगा तो मैं भी उसे गिरा दूंगा। इसी प्रकार जब दोनों को भारी-भरकम साँड़ का सामना करना पड़ा तो भी दोनों सच्चे मित्रों की भाँति उससे संघर्ष किया और उसे हरा दिया। इसी प्रकार जब मोती मटर के खेत में फंस गया था, हीरा ने वहाँ से न भागकर उसके साथ ही अपने आपको पकड़वा लिया। इसी प्रकार जब कांजीहौस में हीरा रस्सी से बँधा हुआ था, किन्तु मोती स्वतंत्र था। वह चाहता तो कांजीहौस से भाग सकता था, किन्तु उसने ऐसा नहीं किया और हीरा के साथ ही खड़ा रहा और कांजीहौस के चौकीदार से मार भी खाई। इन सब घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी।

दो बैलों की कथा पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi प्रश्न 6.
‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’-हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मोती को यह देखकर कि गया की छोटी-सी बच्ची को गया की पत्नी (बच्ची की विमाता) खूब मारती व तंग करती है। वह गया की पत्नी को उठाकर पटकने की बात कहता है। यह सुनकर हीरा उपरोक्त शब्द कहता है। हीरा के इन शब्दों से पता चलता है कि प्रेमचंद नारी के प्रति अत्यंत उदार दृष्टिकोण एवं सम्मान की भावना रखते थे। वे मानते थे कि नारी को पीटना व मारना कोई बहादुरी का काम नहीं है। यह हमारी संस्कृति के भी विपरीत है।

प्रश्न 7.
किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है ?
उत्तर-
किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को अत्यंत आत्मीयतापूर्ण व्यक्त किया गया है। झूरी किसान है। उसके पास हीरा और मोती नामक दो बैल हैं। वह अपने बैलों को अत्यधिक प्यार करता है। उनकी देखभाल भी भली-भाँति करता है। उन्हें अपने से दूर करने में उसका जी छोटा होता है, किन्तु उन्हें पुनः प्राप्त करके अत्यंत खुश होता है। उनसे गले लगकर मिलता है जैसे बिछुड़े हुए मित्र मिलते हैं। उसकी पत्नी भी अपनी गलती मानकर बैलों के माथे चूम लेती है। अतः स्पष्ट है कि किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को अत्यंत निकटता एवं आत्मीयता के संबंधों के रूप में व्यक्त किया गया है।

प्रश्न 8.
“इतना तो हो ही गया कि नौ दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे।”-मोती के इस कथन के आलोक में उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
मोती भले ही स्वभाव का विद्रोही लगता हो, किन्तु वास्तव में वह एक सच्चा मित्र और पशु होते हुए भी मानवीय गुणों का प्रतीक है। जहाँ कहीं भी उसे अन्याय या अत्याचार अनुभव होता है, वहीं वह अपना विद्रोह व्यक्त करता है। वह दूसरों के दुःखों को अनुभव करता है और उसे दूर करने के लिए बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर रहता है। छोटी बच्ची के प्रति होने वाले अन्याय को देखकर वह कह उठता है कि “मालकिन को ही उठाकर पटक हूँ।” इसी प्रकार कांजीहौस में वह सींगों से दीवार को गिराकर अन्य पशुओं की जान बचा देता है। उसे इसके लिए बहुत मार खानी पड़ी और कसाई के हाथों नीलाम होना पड़ा, किन्तु उसे अपने बारे में कोई चिंता नहीं थी। वह चाहता है कि वह अधिक-से-अधिक दूसरों के काम आए।

प्रश्न 9.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है।
(ख) उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानों भोजन मिल गया।
उत्तर-
(क) कहानीकार ने प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से हीरा और मोती के चरित्रों पर प्रकाश डाला है। इन दोनों बैलों में कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे वे एक-दूसरे की भावनाओं को तुरंत समझ जाते थे। भले ही वह गया को मजा चखाने की योजना हो, साँड से भिड़ने की बात हो अथवा कांजीहौस में परोपकार करने में आत्मबलिदान की बात हो। इन सब घटनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी जिससे वे एक-दूसरे की भावनाओं को तुरंत समझ लेते थे। ऐसी शक्ति से अपने आपको प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ समझने वाला मनुष्य वंचित लगता है।

(ख) गया के घर में दोनों बैलों का अत्यधिक अनादर होता था, किन्तु गया की छोटी-सी बच्ची बैलों का सम्मान करती थी और घरवालों से चोरी-चोरी उन्हें एक रोटी रोज लाकर खिलाती थी। इतने बड़े-बड़े बैलों का एक-एक रोटी में कुछ नहीं बनता था, किन्तु सम्मान की दृष्टि से बैलों का मन संतुष्ट हो जाता था। उनसे भले ही उनकी भूख न मिट सके, किन्तु मन को यह यकीन हो जाता था कि यहाँ भी हमारा सम्मान करने वाला अवश्य है।

प्रश्न 10.
गया ने हीरा-मोती को दोनों बार सूखा भूसा खाने के लिए दिया क्योंकि-
(क) गया पराये बैलों पर अधिक खर्च नहीं करना चाहता था।
(ख) गरीबी के कारण खली आदि खरीदना उसके बस की बात न थी।
(ग) वह हीरा-मोती के व्यवहार से बहुत दुःखी था।
(घ) उसे खली आदि सामग्री की जानकारी न थी।
(सही उत्तर के आगे (√) का निशान लगाइए)
उत्तर-
(ग) वह हीरा-मोती के व्यवहार से बहुत दुःखी था।

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रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 11.
हीरा और मोती ने शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाई लेकिन उसके लिए प्रताड़ना भी सही। हीरा-मोती की इस प्रतिक्रिया पर तर्क सहित अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर-
निश्चय ही यदि कोई व्यक्ति शोषण या अन्याय के प्रति अपनी आवाज़ ऊँची करता है तो उसे सदा ही संघर्ष करना पड़ता है और अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। इतिहास इस बात का गवाह है। हीरा और मोती ने गया के द्वारा किए गए अन्याय तथा शोषण का विरोध किया तो उसने उन्हें भूखा रखा। इसी प्रकार कांजीहौस में कांजीहौस के मुँशी और पहरेदार के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाई तो वहाँ भी उन्हें मार खानी पड़ी। अतः यह स्पष्ट है कि शोषण के विरुद्ध बोलने वाले को सदा ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 12.
क्या आपको लगता है कि यह कहानी आजादी की लड़ाई की ओर भी संकेत करती है ?
उत्तर-
दो बैलों की कथा’ शीर्षक कहानी में मुंशी प्रेमचंद ने आजादी की लड़ाई की ओर भी संकेत किया है। उन्होंने कहा है कि भारतीय अत्यधिक सीधे और सरल हैं इसलिए अंग्रेज सरकार उनका शोषण करती है और उनके जन्मसिद्ध अधिकार स्वतंत्रता से वंचित रखना चाहती थी। प्रेमचंद ने दोनों बैलों के चरित्र के माध्यम से यह समझाया है कि यदि हम बैलों की भाँति एकता बनाकर संघर्ष करेंगे तो हमें स्वतंत्रता प्राप्त हो सकती है। यदि आपस में झगड़ते रहे तो कभी आजाद नहीं हो सकेंगे। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए बार-बार संघर्ष करना पड़ता है। अतः यह कहानी भारत की आजादी की लड़ाई की ओर संकेत करने वाली कहानी है।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 13.
बस इतना ही काफी है।
फिर मैं भी ज़ोर लगाता हूँ
‘ही’, ‘भी’ वाक्य में किसी बात पर जोर देने का काम कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को निपात कहते हैं। कहानी
में से पाँच ऐसे वाक्य छाँटिए जिनमें निपात का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर-
(क) फिर भी बदनाम हैं।
(ख) कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है।
(ग) कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे।
(घ) मालकिन मुझे मार ही डालेगी।
(ङ) पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी कहोगे।

प्रश्न 14.
रचना के आधार पर वाक्य भेद बताइए तथा उपवाक्य छाँटकर उसके भी भेद लिखिए
(क) दीवार का गिरना था कि अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।
(ख) सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर, आया।
(ग) हीरा ने कहा-गया के घर से नाहक भागे।
(घ) मैं बेचूंगा, तो बिकेंगे।
(ङ) अगर वह मुझे पकड़ता तो मैं बे-मारे न छोड़ता।
उत्तर-
(क) मिश्र वाक्य
दीवार का गिरना था। (प्रधान उपवाक्य)
अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे। (संज्ञा उपवाक्य)

(ख) मिश्र वाक्य
जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर। (विशेषण उपवाक्य)
सहसा एक दढ़ियल आदमी आया। (प्रधान वाक्य)

(ग) मिश्र वाक्य
हीरा ने कहा। (प्रधान वाक्य)
गया के घर से नाहक भागे। (संज्ञा उपवाक्य)

(घ) मिश्र वाक्य
मैं बेचूँगा। (प्रधान वाक्य)
तो बिकेंगे। (क्रिया-विशेषण उपवाक्य)

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

(ङ) मिश्रवाक्य –
अगर वह मुझे पकड़ता। (प्रधान वाक्य)
मैं बे-मारे न छोड़ता। (क्रियाविशेषण उपवाक्य)

प्रश्न 15.
कहानी में जगह-जगह मुहावरों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-

  • ईंट का जवाब पत्थर से देना-भारतवर्ष शांतिप्रिय अवश्य है, किन्तु ईंट का जवाब पत्थर से देना भी भली-भाँति जानता है।
  • दाँतों पसीना आना-पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त करने के लिए तो दाँतों पसीना आ जाता है।
  • कोई कसर न उठा रखना-मैंने परीक्षा में प्रथम आने में कोई कसर न उठा रखी थी।
  • मज़ा चखाना-मोती और हीरा ने मिलकर साँड को खूब मजा चखाया था।
  • जान से हाथ धोना-मोहन को चरस बेचने के धंधे में जान से हाथ धोने पड़े।

पाठेतर सक्रियता

पशु-
पक्षियों से संबंधित अन्य रचनाएँ ढूँढकर पढ़िए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

HBSE 9th Class Hindi दो बैलों की कथा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘दो बैलों की कथा’ नामक कहानी का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-
‘दो बैलों की कथा’ शीर्षक कहानी एक सोद्देश्य रचना है। इस कहानी में लेखक ने कृषक समाज एवं पशुओं के भावात्मक संबंधों का वर्णन किया है। कहानी में बताया गया है कि स्वतंत्रता सरलता से प्राप्त नहीं हो सकती, इसलिए बार-बार प्रयास किया जाता है। स्वामी के प्रति वफादारी निभाने का वर्णन करना कहानी का प्रमुख लक्ष्य है। कहानीकार का सच्ची मित्रता पर प्रकाश डालना भी एक उद्देश्य है। एक सच्चा मित्र ही सुख-दुःख में साथ देता है। आत्म रक्षा के लिए सदैव संघर्ष करना चाहिए। ‘एकता में सदा बल है’ इस सर्वविदित सत्य को दर्शाना भी कहानी का मूल उद्देश्य है।

प्रश्न 2.
‘दो बैलों की कथा’ कहानी के अनुसार बताइए कि आज संसार में किन लोगों की दुर्दशा हो रही है और क्यों?
उत्तर-
‘दो बैलों की कथा’ नामक कहानी में बताया गया है कि आज सीधे-सादे व साधारण लोगों की दुर्दशा हो रही है। इस संसार में सरलता, सीधापन, सहनशीलता आदि गुणों का कोई महत्त्व नहीं रह गया है। सरलता को मूर्खता और सहनशीलता को डरपोक होना समझा जाता है। आज इन्हीं गुणों के कारण व्यक्ति का शोषण होता है। आज हर सीधे-सादे व्यक्ति का शोषण किया जाता है। आज शक्तिशाली व चालाक व्यक्ति को सम्मान दिया जाता है। उससे सभी लोग डरते हैं। प्रस्तुत कहानी में प्रश्न उठाया है कि अफ्रीका व अमेरिका में भारतीयों का सम्मान क्यों नहीं है ? स्वयं ही इसका उत्तर देते उसने कहा है, क्योंकि वे सीधे-सादे
और परिश्रमी हैं। वे चोट खाकर भी सब कुछ सहन कर जाते हैं। इसके विपरीत जापान ने युद्ध में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके दुनिया में अपना सम्मान अर्जित कर लिया है।

प्रश्न 3.
‘हीरा और मोती सच्चे मित्रों के आदर्श हैं’ कैसे?
उत्तर-
सच्चे मित्र एक-दूसरे पर पूरा विश्वास करते हैं। वे एक-दूसरे के लिए त्याग भी करते हैं और एक साथ खाते-पीते भी हैं। ये सभी गुण हीरा और मोती दोनों बैलों में भी देखे जा सकते हैं। हीरा और मोती एक-दूसरे से प्यार करते हैं। एक-दूसरे को चाट-चूमकर और सूंघकर अपने प्यार का प्रदर्शन करते हैं। वे आपस में कौल-क्रीड़ा, शरारत आदि भी करते हैं। हीरा-मोती गहरे मित्र हैं। वे इकट्ठे खाते-पीते, खेलते व एक-दूसरे से सींग भिड़ाते हैं। वे एक-दूसरे को संकट से बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डाल देते हैं। इससे पता चलता है कि हीरा-मोती बैल होते हुए भी सच्चे मित्रों के आदर्श हैं।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत कहानी के आधार पर मोती के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कहानी में मोती एक बैल है। वह कुछ गर्म स्वभाव वाला है। वह स्वामिभक्त है। वह अन्याय करने वाले का विरोध करता है। झूरी का साला गया जब उनके प्रति अन्याय एवं अत्याचार करता है तो मोती उसका हल-जुआ लेकर भाग जाता है। मोती कहता भी है कि “मुझे मारेगा तो उठाकर पटक दूंगा।” जब गया उसका अपमान करता है और मारता है तो वह हीरा से कहता है कि “एकाध को सींगों पर उठाकर फैंक दूंगा।” इसी प्रकार वह दढ़ियल कसाई को भी सींग दिखाकर गाँव से भगा देता है। किन्तु वह दुखियों के प्रति दया का भाव भी रखता है। वह गया की बेटी तथा कांजीहौस में फँसे हुए जानवरों के प्रति दया दिखाता है।

प्रश्न 5.
‘हीरा एक धैर्यशील एवं अहिंसक प्राणी है’-पठित कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
कहानी को पढ़कर लगता है कि हीरा गांधीवादी विचारधारा का समर्थक है। वह मुसीबत के समय धैर्य बनाए रखता है। उसे पता है कि धैर्य खो देने से काम बिगड़ जाता है। वह कदम-कदम पर अपने मित्र मोती को भी धैर्य से काम लेने का परामर्श देता है। जब गया बैलों को गाड़ी में जोत कर ले जा रहा था तो मोती ने दो बार गया को गाड़ी सहित सड़क की खाई में गिराना चाहा, किन्तु हीरा ने उसे संभाल लिया। इसी प्रकार गया जब बैलों के प्रति अन्याय करता है, और उन्हें सूखा भूसा देता है तो भी मोती को गुस्सा आ जाता है और वह उससे बदला लेने की ठान लेता है। वह उसे मार गिराना चाहता है। उस समय हीरा ने ही उसे रोक लिया था, गया की पत्नी को भी मोती सबक सिखाना चाहता था, किन्तु हीरा ने कहा कि स्त्री जाति पर हाथ उठाना या सींग चलाना मना है, यह क्यों भूल जाता है। हीरा के धैर्य की परीक्षा तो उस समय होती है जब कांजीहौस की दीवार तोड़ता हुआ पकड़ा जाता है। उसे मोटी रस्सी में बाँध दिया जाता है। वह कहता है कि जोर तो मारता ही जाऊँगा चाहे कितने ही बँधन क्यों न पड़ जाएँ? इन सब तथ्यों से पता चलता है कि हीरा एक धैर्यशील बैल था।

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प्रश्न 6.
साँड के साथ बैलों की टक्कर की घटना से हमें क्या उपदेश मिलता है ?
अथवा
साँड को मार गिराने की घटना के माध्यम से लेखक क्या उपदेश देना चाहता है ?
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी में बैलों द्वारा साँड को हरा देने की घटना के पीछे एक महान संदेश छिपा हुआ है। इस घटना के माध्यम से लेखक ने संगठित होकर शत्रु का मुकाबला करने की प्रेरणा दी है। उसने बताया है जिस प्रकार हीरा और मोती दो बैल शक्तिशाली साँड को मार भगाते हैं, उसी प्रकार भारतीय भी आपसी मतभेद को त्यागकर एकजुट होकर अंग्रेजों को देश से बाहर कर सकते हैं। अतः लेखक ने ‘एकता में बल है’ नीति वाक्य को भी इस घटना के माध्यम से सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘दो बैलों की कथा’ पाठ हिंदी साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है ?
(A) कविता
(B) निबंध
(C) एकांकी
(D) कहानी
उत्तर-
(D) कहानी

प्रश्न 2.
‘दो बैलों की कथा’ कहानी के लेखक कौन हैं ?
(A) हज़ारीप्रसाद द्विवेदी
(B) प्रेमचंद
(C) महादेवी वर्मा
(D) जाबिर हुसैन
उत्तर-
(B) प्रेमचंद

प्रश्न 3.
प्रेमचंद अपनी किस प्रकार की रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हुए थे ?
(A) कविता
(B) उपन्यास
(C) एकांकी
(D) निबंध
उत्तर-
(B) उपन्यास

प्रश्न 4.
प्रेमचंद ने अपनी कहानी ‘दो बैलों की कथा’ में किसका वर्णन किया है ?
(A) विद्यार्थियों का
(B) पक्षियों का
(C) बैलों की मित्रता का
(D) किसान का
उत्तर-
(C) बैलों की मित्रता का

प्रश्न 5.
‘दो बैलों की कथा’ कहानी में किस-किस का संबंध दिखाया गया है ?
(A) किसान और उसके पशुओं का
(B) किसान और महाजन का
(C) महाजन और पशुओं का
(D) इनमें से किसी का नहीं
उत्तर-
(A) किसान और उसके पशुओं का

प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार सबसे बुद्धिहीन जानवर किसे समझा जाता है ?
(A) बैल को
(B) गाय को
(C) भैंस को
(D) गधे को
उत्तर-
(D) गधे को

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

प्रश्न 7.
हम जब किसी व्यक्ति को मूर्ख बताते हैं तो उसे क्या कहते हैं ?
(A) बैल
(B) कुत्ता
(C) गधा
(D) ऊँट
उत्तर-
(C) गधा

प्रश्न 8.
गाय किस दशा में सिंहनी का रूप धारण कर लेती है ?
(A) बैठी हुई
(B) दौड़ती हुई
(C) चरती हुई
(D) ब्याही हुई
उत्तर-
(D) ब्याही हुई

प्रश्न 9.
गधे के चेहरे पर कौन-सा स्थायी भाव सदा छाया रहता है ?
(A) प्रसन्नता का
(B) असंतोष का
(C) विषाद का
(D) निराशा का
उत्तर-
(C) विषाद का

प्रश्न 10.
भारतवासियों को किस देश में घुसने नहीं दिया जा रहा था ?
(A) अमेरिका
(B) इंग्लैंड
(C) जर्मनी
(D) अफ्रीका
उत्तर-
(A) अमेरिका

प्रश्न 11.
किस देश के लोगों की एक विजय ने उन्हें सभ्य जातियों के लोगों में स्थान दिला दिया ?
(A) भारत
(B) जापान
(C) अमेरिका
(D) इंग्लैंड
उत्तर-
(B) जापान

प्रश्न 12.
“अगर वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते, तो शायद सभ्य कहलाने लगते” ये शब्द लेखक ने किसके लिए कहे हैं ?
(A) भारतीयों के लिए
(B) जापान के लोगों के लिए
(C) पाकिस्तान के लोगों के लिए
(D) चीन के लोगों के लिए
उत्तर-
(A) भारतीयों के लिए

प्रश्न 13.
‘बछिया का ताऊ’ किसके लिए प्रयोग किया जाता है ?
(A) शेर के
(B) हाथी के
(C) भैंसा के
(D) बैल के
उत्तर-
(D) बैल के

प्रश्न 14.
हीरा और मोती बैलों के स्वामी का क्या नाम था ?
(A) किश्न
(B) झूरी
(C) होरी
(D) रामेश्वर
उत्तर-
(B) झूरी

प्रश्न 15.
झूरी के दोनों बैल किस जाति के थे ?
(A) पछाईं
(B) राजस्थानी
(C) मूर्रा
(D) जंगली
उत्तर-
(A) पछाईं

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

प्रश्न 16.
झूरी के साले का क्या नाम था ?
(A) मोहन
(B) गया
(C) बृज
(D) किश्न
उत्तर-
(B) गया

प्रश्न 17.
दोनों बैल कौन-सी भाषा में एक-दूसरे के भावों को समझ लेते थे ?
(A) मूक भाषा
(B) सांकेतिक भाषा
(C) संगीतात्मक भाषा
(D) रंभाकर
उत्तर-
(A) मूक भाषा

प्रश्न 18.
झूरी ने प्रातः ही नाद पर खड़े बैलों को देखकर क्या किया ?
(A) बैलों को पीटा
(B) उन्हें गले से लगा लिया
(C) घर से निकाल दिया
(D) बेच दिया
उत्तर-
(B) उन्हें गले से लगा लिया

प्रश्न 19.
“कैसे नमकहराम बैल हैं कि एक दिन वहाँ काम न किया” ये शब्द किसने कहे ?
(A) गया ने
(B) झूरी की पत्नी ने
(C) झूरी ने
(D) झूरी की बेटी ने
उत्तर-
(B) झूरी की पत्नी ने

प्रश्न 20.
“वे लोग तुम जैसे बुद्धओं की तरह बैलों को सहलाते नहीं” ये शब्द किसने किसके प्रति कहे ?
(A) झूरी की पत्नी ने झूरी को
(B) गया ने झूरी के प्रति
(C) गया की बेटी ने गया को
(D) इनमें से किसी ने नहीं
उत्तर-
(A) झूरी की पत्नी ने झूरी को

प्रश्न 21.
दूसरी बार गया बैलों को कैसे ले गया ?
(A) पीटता हुआ
(B) बैलगाड़ी में जोतकर
(C) हल में जोतकर
(D) प्रेमपूर्वक
उत्तर-
(B) बैलगाड़ी में जोतकर

प्रश्न 22.
गया की लड़की को बैलों से सहानुभूति क्यों थी ?
(A) उसकी माँ मर चुकी थी
(B) सौतेली माँ मारती थी
(C) उसे दोनों बैल सुंदर लगते थे
(D) वह किसी को भूखा नहीं देख सकती थी
उत्तर-
(B) सौतेली माँ मारती थी

प्रश्न 23.
गया के घर में दूसरी बार बैलों की रस्सियाँ किसने खोली थी ?
(A) गया की पत्नी ने
(B) गया के नौकर ने
(C) गया की बेटी ने
(D) स्वयं गया ने
उत्तर-
(C) गया की बेटी ने

प्रश्न 24.
हीरा ने मोती को गया की पत्नी पर सींग चलाने से मना क्यों कर दिया था ?
(A) वह बीमार थी
(B) वह दयालु थी
(C) वह स्त्री जाति थी
(D) वह बूढ़ी थी
उत्तर-
(C) वह स्त्री जाति थी

प्रश्न 25.
“गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिए” ये शब्द किसने कहे थे ?
(A) हीरा ने
(B) मोती ने
(C) साँड ने
(D) झूरी ने
उत्तर-
(A) हीरा ने

प्रश्न 26.
खेत के मालिक ने दोनों बैलों को कहाँ बंद कर दिया था ?
(A) जेल में
(B) अपने घर में
(C) कांजीहौस में
(D) थाने में
उत्तर-
(C) कांजीहौस में

प्रश्न 27.
‘दीवार को तोड़ना’ से बैलों की कौन-सी भावना का बोध होता है ?
(A) अनुशासन
(B) विद्रोह
(C) दया
(D) घृणा
उत्तर-
(B) विद्रोह

प्रश्न 28.
मोती द्वारा दीवार गिरा देने पर भी कौन-सा जानवर नहीं भागा ?
(A) घोड़ी
(B) बकरी
(C) भैंस
(D) गधा
उत्तर-
(D) गधा

प्रश्न 29.
कांजीहौस से हीरा और मोती को किसने खरीदा?
(A) सड़ियल ने
(B) दड़ियल ने
(C) मुच्छड़ ने
(D) अड़ियल ने
उत्तर-
(B) दड़ियल ने

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

दो बैलों की कथा प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण

1. जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, व्याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है; किन्तु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहे गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी।[पृष्ठ 5]

शब्दार्थ-बुद्धिहीन = मूर्ख । परले दरजे का बेवकूफ = अत्यधिक मूर्ख । निरापद = कष्ट न पहुँचाने की भावना। सहिष्णुता = सहनशीलता। पदवी = उपाधि। अनायास = अचानक। क्रोध = गुस्सा। असंतोष की छाया = संतोषहीनता का भाव।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित ‘दो बैलों की कथा’ शीर्षक कहानी से अवतरित है। इसके लेखक महान् कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं। इस कहानी में लेखक ने दो बैलों की कहानी के माध्यम से भारतीय जीवन-मूल्यों पर प्रकाश डाला है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि गधे के सीधेपन के कारण ही उसे गधा, मूर्ख कहा जाता है। वस्तुतः लेखक ने ‘गधा’ शब्द पर व्यंग्य करते हुए ये शब्द कहे हैं

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने बताया है कि सब जानवरों व पशुओं में गधा ही सीधा एवं सरल पशु है। वह सबसे अधिक नासमझ पशु है। अपने सीधेपन और मंद-बुद्धि के कारण उसका सर्वत्र अपमान होता है। समाज में जब किसी को परले दरजे का मूर्ख कहा जाता है तो उसे ‘गधा’ शब्द से संबोधित करते हैं। सीधेपन, बुद्धिहीनता, सहनशीलता आदि गुणों के कारण उसे यह उपाधि (गधा) मिली है। गधे में अधिकार-बोध की भावना तनिक भी नहीं होती। न उसमें विद्रोह की भावना है और न अधिकारचेष्टा ही। वह एक सहनशील प्राणी है, जो हर प्रकार के कष्टों को चुपचाप सहन कर लेता है। गाय भी सींग मारती है, भले ही उसे लोग गाय माता कहते हों, किन्तु वह जब ब्याई हुई होती है तो अचानक ही शेरनी का रूप धारण कर लेती है। यहाँ तक कि कुत्ते को भी लोग गरीब कहते हैं, किन्तु उसे भी कभी-न-कभी गुस्सा आ ही जाता है। किन्तु गधे जी को कभी गुस्सा करते न देखा होगा और न सुना होगा। उससे जितना चाहे काम लो, जितना चाहे पीट लो, और तो और चाहे सड़ी-गली व सूखी घास भी डाल दो तो भी उसके चेहरे पर कभी असंतोष की झलक दिखाई नहीं देगी।

विशेष-

  1. ‘गधा’ शब्द की अनेक अर्थों में सुंदर व्यंजना की गई है।
  2. ‘गधा’ शब्द को मूर्खता का पर्याय सिद्ध किया गया है।
  3. अन्य पशुओं से गधे की तुलना करके कहानीकार ने गधे की मूर्खता को स्पष्ट करने का सफल प्रयास किया है।
  4. भाषा सरल एवं सुबोध है।

उपर्युक्त गयांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) हम किसी व्यक्ति को गधा क्यों कहते हैं ?
(2) गधे के जीवन की प्रमुख विशेषता क्या है ?
(3) ‘परले दरजे का बेवकूफ’ से क्या अभिप्राय है ?
(4) गधे को गधा क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
(1) जब हम किसी व्यक्ति को मूर्ख कहना चाहते हैं, तब ही उसे गधा कहते हैं।
(2) सीधापन ही गधे के जीवन की प्रमुख विशेषता है।
(3) ‘परले दरजे का बेवकूफ’ से अभिप्राय है-पूर्णतः मूर्ख व्यक्ति, जिसे दीन-दुनिया की कोई खबर न हो।
(4) गधे की अत्यधिक सहनशीलता, सरलता, अक्रोधी स्वभाव, असंतोष को व्यक्त न करना एवं सुख-दुःख में सदा समान रहने के कारण ही उसे गधा कहते हैं। दूसरे जानवर ऐसे नहीं होते, वे क्रोध भी करते हैं और असंतोष भी दिखाते हैं।

2. उसके चेहरे पर एक स्थायी विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दुख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं, वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं। पर आदमी उसे बेवकूफ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा। कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। [पृष्ठ 5]

शब्दार्थ-विषाद = दुःख। दशा = हालत। पराकाष्ठा = चरम सीमा। बेवकूफ = मूर्ख । अनादर = अपमान। सीधापन = सरलता।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यावतरण हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित प्रेमचंद की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ से अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने गधे के सीधेपन का व्यंग्यार्थ के रूप में चित्रण किया है। आज के युग में सीधा या साधारण व सरल हृदयी होना मूर्खता कहलाता है। इन शब्दों में यही भाव झलकता है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-प्रेमचंद गधे के स्वभाव का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि गधा स्वभाव से सीधा होता है। उसमें किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता और न ही कभी प्रसन्नता की झलक ही दिखाई देती है। उसके चेहरे पर सदा निराशा का भाव ही छाया रहता है। सुख-दुःख, हानि-लाभ, सभी दशाओं में यह विषाद उसके चेहरे पर स्थायी रूप से छाया रहता है। ऐसा लगता है मानों ऋषि-मुनियों के सभी श्रेष्ठ गुण पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं। इन्हीं श्रेष्ठ गुणों के कारण ही आदमी उसे ‘बेवकूफ’ कहता है। यह उसके सद्गुणों का अनादर है। ऐसा लगता है कि गधे का सीधापन उसके लिए अभिशाप है। अति सरलता के कारण संसार के लोग उस पर टीका-टिप्पणी करते हैं।

विशेष-

  1. गधे के सीधेपन को व्यंग्य रूप में प्रस्तुत किया गया है। उसका अत्यधिक सीधापन ही उसकी मूर्खता बन गया है।
  2. कहानीकार ने गधे के वर्णन के माध्यम से सीधे-सादे व्यक्तियों को मूर्ख समझकर उनका शोषण करने वाले चालाक लोगों पर करारा व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं सुबोध है।
  4. ‘सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं’ का अभिप्राय है, संसार में सदा टेढ़ा बनकर ही रहना चाहिए।’
  5. विचारात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
(2) लेखक के अनुसार गधे और ऋषि-मुनियों में कौन-सी समानताएँ हैं ?
(3) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने क्या संदेश दिया है ?
(4) स्थायी विषाद का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
(1) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बताया है कि कुछ ही क्षणों या अवसरों को छोड़कर गधे के जीवन में सदा निराशा व दुःख ही छाया रहता है। ऋषि-मुनियों की भाँति सुख-दुःख में वह सदा समभाव रहता है। गधा सरल हृदय होता है। इतना कुछ होते हुए भी संसार गधे को मूर्ख कहता है। संसार में सीधापन उचित नहीं है।
(2) लेखक ने गधे और ऋषि-मुनियों की समानताएँ बताते हुए कहा है कि गधा और ऋषि-मुनि दोनों ही सरल स्वभाव वाले होते हैं। वे सुख-दुःख में सदा एक समान रहते हैं। वे अत्यधिक सहनशील और संतोषी होते हैं। उन्हें क्रोध भी बहुत कम आता है।
(3) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने हमें संदेश दिया है कि हमें अत्यधिक सरल, सीधा व सहनशील नहीं होना चाहिए। हमें अत्याचार, अन्याय आदि के प्रति असंतोष प्रकट करना चाहिए और उसका विरोध भी करना चाहिए।
(4) चेहरे पर सदा छाई रहने वाली निराशा को ही लेखक ने स्थायी विषाद कहा है।

उपर्युक्त गयांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) हम किसी व्यक्ति को गधा क्यों कहते हैं ?
(2) गधे के जीवन की प्रमुख विशेषता क्या है ?
(3) ‘परले दरजे का बेवकूफ’ से क्या अभिप्राय है ?
(4) गधे को गधा क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
(1) जब हम किसी व्यक्ति को मूर्ख कहना चाहते हैं, तब ही उसे गधा कहते हैं।
(2) सीधापन ही गधे के जीवन की प्रमुख विशेषता है।
(3) ‘परले दरजे का बेवकूफ’ से अभिप्राय है-पूर्णतः मूर्ख व्यक्ति, जिसे दीन-दुनिया की कोई खबर न हो।
(4) गधे की अत्यधिक सहनशीलता, सरलता, अक्रोधी स्वभाव, असंतोष को व्यक्त न करना एवं सुख-दुःख में सदा समान रहने के कारण ही उसे गधा कहते हैं। दूसरे जानवर ऐसे नहीं होते, वे क्रोध भी करते हैं और असंतोष भी दिखाते हैं।

3. लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है ‘बैल’। जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में ‘बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे; मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। [पृष्ठ 6]

शब्दार्थ-गधा = मूर्ख । बछिया का ताऊ = सीधा-सादा, भोंदू। बेवकूफी = मूर्खता। सर्वश्रेष्ठ = सबसे उत्तम। . प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित एवं महान् कथाकार प्रेमचंद कृत ‘दो बैलों की कथा’ शीर्षक कहानी से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कहानीकार ने गधे और बैल के गुणों की तुलना करते हुए बैल को गधे से बेहतर बताया है तथा ‘बछिया के ताऊ’ की सुंदर व्याख्या की है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने गधे और बैल के प्रसंग के माध्यम से मनुष्य के कम या अधिक गुणों के आधार पर समाज में उसके स्थान व सम्मान की ओर संकेत किया है। ‘गधा’ शब्द का व्यंजनामूलक अर्थ है-मूर्ख। जब किसी व्यक्ति को अव्वल दरजे का मूर्ख कहना हो, तो उसे गधा कहा जाता है। सामान्यतः बैल को ‘बछिया का ताऊ’ कहा जाता है। यह शब्द भी मूर्खता के अर्थ में प्रयुक्त होता है। कुछ लोग बैल को गधे से ज्यादा मूर्ख मानते हैं, लेकिन लेखक की मान्यता है कि बैल गधे से अधिक मूर्ख नहीं है। बैल में अपने अपमान का बदला लेने की भावना होती है। बैल में गधे की अपेक्षा अधिक संवेदना होती है। अतः बैल गधे की अपेक्षा श्रेष्ठ होता है।

विशेष-

  1. लेखक ने समाज के सरल एवं सीधे-सादे लोगों के स्वभाव की व्यंग्यार्थ विवेचना की है।
  2. ‘बछिया का ताऊ’ मुहावरे का व्यंजनामूलक अर्थों में सुंदर विश्लेषण किया गया है। किसी को कम मूर्ख कहना हो तो इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है।
  3. भाषा सरल, सुबोध एवं मुहावरेदार है।
  4. वाक्य-योजना सरल एवं सार्थक है। – उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) गधे का छोटा भाई किसे बताया गया है और क्यों ?
(2) ‘बछिया का ताऊ’ किसे कहा जाता है और क्यों ?
(3) लेखक के अनुसार बैल का स्थान गधे से नीचा क्यों है ?
(4) बैल कैसा व्यवहार करता है ?
उत्तर-
(1) गधे का छोटा भाई बैल को बताया गया है क्योंकि जो गुण गधे में होते हैं, वे ही गुण कुछ कम मात्रा में बैल में भी पाए जाते हैं।

(2) बैल को ही ‘बछिया का ताऊ’ कहा जाता है। बछिया अर्थात गाय जो सरल और सीधी होती है। बैल में ये गुण उससे अधिक होते हैं। वह सरल, सीधा एवं कार्यशील होता है। अतः अत्यधिक सरलता और सीधेपन के कारण उसे ‘बछिया का ताऊ’ कहा जाता है।

(3) बैल कभी-कभी सहनशीलता छोड़कर क्रोध में सींग चला देता है। वह असंतोष भी प्रकट करता है तथा अपने अनुकूल व्यवहार न होने पर कभी-कभी अड़ भी जाता है। इसलिए उसका स्थान सीधेपन में गधे से नीचा है।

(4) बैल स्वभावतः सरल, सीधा एवं परिश्रमी होता है, किन्तु कभी-कभी दूसरों को मारता है, अड़ियलपन पर उतर आता है तथा अपना विरोध भी प्रकट करता है।

4. दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक, दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे-विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हलकी-सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। [पृष्ठ 6]

शब्दार्थ-मूक-भाषा = मौन-भाषा। विनिमय = आदान-प्रदान। वंचित = रहित। विग्रह = मतभेद। विनोद = मज़ाक। आत्मीयता = अपनेपन। घनिष्ठता = गहन । फुसफुसी = हलकी, कच्ची।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित प्रेमचंद की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ से लिया गया है। लेखक ने इन पंक्तियों में हीरा-मोती की आपसी मित्रता की गहनता, आत्मीयता और प्रेमभाव को सुंदर ढंग से दर्शाया है। साथ ही पक्की दोस्ती के लक्षण की ओर भी संकेत किया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक का कथन है कि हीरा और मोती, दोनों बैलों के बीच अद्भुत मित्रता थी। दोनों आमने-सामने बैठकर मूक-भाषा में अपने हृदय की भावना व्यक्त करते थे। वे एक-दूसरे के मन की बात कैसे समझ पाते थे-यह बताना कठिन है। उनमें एक गुप्त शक्ति थी, जिसे आत्मीयता कहते हैं। इसी शक्ति के कारण उनके हृदय आपस में जुड़े हुए थे। प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य में इस शक्ति का अभाव है। लेखक ने हीरा और मोती की दोस्ती के विषय में बताया है कि दोनों एक-दूसरे को चाटकर या सूंघकर अपने प्रेम को प्रकट करते थे। चाटना, चूमना व सूंघना ही जानवरों के पास अपने प्रेम या स्वामिभक्ति को व्यक्त करने का साधन है, किन्तु हीरा और मोती कभी-कभी सींग भी भिड़ाते थे। ऐसा वे शत्रुता या नाराज़गी के कारण नहीं, अपितु हँसी-मजाक में ही करते थे। इससे उनकी आत्मीयता का भाव भी व्यक्त होता था। फिर दोस्ती में धक्का-मुक्का धौल-धप्पा तो चलता ही है। इसके अभाव में दोस्ती में बनावटीपन व हल्कापन रहता है। ऐसी दोस्ती पर विश्वास नहीं किया जा सकता। कहने का भाव है कि जहाँ आत्मीयता, सरलता, स्पष्टता, हँसी-मज़ाक आदि सब कुछ होता है, वहीं दोस्ती में गहनता होती है।

विशेष-

  1. लेखक ने हीरा और मोती की दोस्ती का वर्णन किया है।
  2. पशुओं की मूक भाषा की ओर संकेत किया गया है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं सुबोध है। – उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(1) मोती और हीरा दोनों परस्पर किस भाषा में विचार-विमर्श करते थे ?
(2) उनमें कौन-सी शक्ति होने की बात कही है ?
(3) दोनों बैल अपना प्रेम किस प्रकार प्रकट करते थे ?
(4) कैसी दोस्ती पर अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता ? ।
उत्तर-
(1) मोती और हीरा दोनों बैल मूक-भाषा में विचार-विमर्श करते थे।
(2) लेखक ने दोनों बैलों के बीच किसी गुप्त शक्ति के होने की बात कही है।
(3) दोनों बैल एक-दूसरे को चाटकर अथवा सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते थे।
(4) फुसफुसी व हल्की दोस्ती में अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता।

दो बैलों की कथा Summary in Hindi

दो बैलों की कथा लेखक-परिचय

प्रश्न-
मुंशी प्रेमचंद का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी कहानी-कला की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-मुंशी प्रेमचंद एक महान् कथाकार थे। उन्हें उपन्यास-सम्राट के रूप में भी जाना जाता है। उनका जन्म सन् 1880 में बनारस के निकट लमही नामक गाँव के एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपतराय था। पाँच वर्ष की आयु में ही उनकी माता का देहांत हो गया था। उनके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया था। विमाता (सौतेली माँ) का व्यवहार उनके प्रति अच्छा नहीं था। 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया गया था। 14 वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के पश्चात् परिवार का सारा बोझ इनके कंधों पर आ पड़ा। 16 वर्ष की आयु में ही उन्हें एक स्कूल में अध्यापक की नौकरी करनी पड़ी। नौकरी के दौरान ही प्रेमचंद जी डिप्टी-इंस्पैक्टर के पद तक पहुँचे। वे स्वभाव से स्वाभिमानी थे। सन् 1928 में प्रेमचंद जी नौकरी से त्याग-पत्र देकर गांधी जी द्वारा चलाए गए राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े थे। उन्होंने जीवन-पर्यन्त साहित्य-सेवा की। सन् 1936 में उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-मुंशी प्रेमचंद ने आरंभ में उर्दू में लिखना शुरू किया तथा बाद में हिंदी में आए थे। उन्होंने ‘वरदान’, ‘सेवासदन’, ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’, ‘गबन’, ‘निर्मला’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘गोदान’ आदि ग्यारह उपन्यासों की रचना की है तथा तीन सौ के लगभग कहानियाँ लिखी हैं जिनमें ‘कफन’, ‘पूस की रात’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’ आदि प्रमुख हैं।

3. कहानी-कला की विशेषताएँ-मुंशी प्रेमचंद का संपूर्ण कहानी-साहित्य ‘मानसरोवर’ के आठ भागों में संकलित है। कहानी-कला की दृष्टि से प्रेमचंद अपने युग के श्रेष्ठ कहानीकार हैं। उन्होंने अपने कहानी-साहित्य में जीवन के विभिन्न पहलुओं को विषय बनाकर कहानी को जन-जीवन से जोड़ा है। उनकी कहानी-कला की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) विषय की विभिन्नता-मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में विभिन्न विषयों का वर्णन किया गया है। उन्होंने जीवन के विविध पक्षों पर जमकर कलम चलाई है। उनकी कहानियों के विषय की व्यापकता पर टिप्पणी करते हुए डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है
“प्रेमचंद शताब्दियों से पददलित, अपमानित और शोषित कृषकों की आवाज़ थे। पर्दे में कैद, पद-पद पर लांछित, अपमानित और शोषित नारी जाति की महिमा के वे ज़बरदस्त वकील थे, गरीबों और बेकसों के महत्त्व के प्रचारक थे। अगर आप उत्तर भारत की समस्त जनता के आचार-विचार, भाषा-भाव, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा, सुख-दुःख और सूझबूझ जानना चाहते हैं तो प्रेमचंद से उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता। उनकी कहानियों में तत्कालीन समाज का सजीव चित्र देखा जा सकता है।”

(ii) गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव मुंशी प्रेमचंद के संपूर्ण साहित्य पर गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव देखा जा सकता है। इस संबंध में मुंशी प्रेमचंद स्वयं यह स्वीकार करते हुए लिखते हैं-“मैं दुनिया में महात्मा गांधी को सबसे बड़ा मानता हूँ। उनका उद्देश्य भी यही है कि मज़दूर और काश्तकार सुखी हों। महात्मा गांधी हिंदू-मुसलमानों की एकता चाहते हैं। मैं भी हिंदी और उर्दू को मिलाकर हिंदुस्तानी बनाना चाहता हूँ।” यही कारण है कि प्रेमचंद की कहानियों में गांधीवादी विचारधारा की झलक सर्वत्र देखी जा सकती है। उनके पात्र गांधीवादी आदर्शों पर चलते हैं और उनका समर्थन करते हैं।

(iii) मानव-स्वभाव का विश्लेषण-मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में जहाँ अपने पात्रों के बाह्य आकार व रूप-रंग का वर्णन किया है, वहाँ उनके मन का भी सूक्ष्म विवेचन-विश्लेषण किया है। वे मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से मुक्त कहानी को उत्तम मानते थे। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के विषय में उन्होंने लिखा है-“वर्तमान आख्यायिका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, जीवन के यथार्थ और स्वाभाविक चित्रण को अपना ध्येय समझती है।”

(iv) ग्रामीण-जीवन का चित्रांकन-मुंशी प्रेमचंद ने जितना ग्रामीण-जीवन का वर्णन किया है, उतना वर्णन किसी अन्य कहानीकार ने नहीं किया। उन्होंने कथा-साहित्य को जन-जीवन से जोड़ने का सार्थक प्रयास किया है। उनकी कहानियों में ग्रामीण-जीवन की विभिन्न समस्याओं का यथार्थ चित्रण सहानुभूतिपूर्वक किया गया है। उन्होंने अपने कथा-साहित्य में गाँव के गरीब किसानों, मज़दूरों, काश्तकारों, दलितों और पीड़ितों के प्रति विशेष संवेदना दिखाई है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

(v) आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद-मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में जीवन की विभिन्न समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया है, किन्तु उनके समाधान प्रस्तुत करते हुए आदर्श भी प्रस्तुत किए हैं। इस प्रकार, इनकी कहानियों में यथार्थ एवं आदर्श का अनुपम सौंदर्य है। इस विषय में प्रेमचंद जी का स्पष्ट मत है कि साहित्यकार को नग्नताओं का पोषक न बनकर मानवीय स्वभाव की उज्ज्वलताओं को भी दिखाने वाला होना चाहिए।

4. भाषा-शैली-मुंशी प्रेमचंद आरंभ में उर्दू भाषा में लिखते थे और बाद में इन्होंने हिंदी भाषा में लिखना आरंभ किया। इसलिए इनकी लेखन-भाषा में उर्दू के शब्दों का प्रयुक्त होना स्वाभाविक है। इनकी कहानियों की भाषा जितनी सरल, स्पष्ट और भावानुकूल है, उतनी ही व्यावहारिक भी है। लोक-प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रसंगानुकूल प्रयोग से इनकी भाषा में गठन एवं रोचकता का समावेश हुआ है। कहीं-कहीं मुहावरों के प्रयोग की झड़ी-सी लग जाती है। सूक्तियों के प्रयोग में तो प्रेमचंद बेजोड़ हैं।

प्रेमचंद की कहानियों में भावानुकूल एवं पात्रानुकूल भाषा का सार्थक प्रयोग किया गया है। सफल संवाद-योजना के कारण उनकी भाषा-शैली में नाटकीयता के गुण का समावेश हुआ है। कहानियों में वर्णन-शैली के साथ-साथ व्यंग्यात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया गया है। प्रेमचंद जी की भाषा-शैली में प्रेरणा देने की शक्ति के साथ-साथ पाठकों को चिंतन के लिए उकसाने की भी पूर्ण क्षमता है। अपनी कहानी-कला की इन्हीं प्रमुख विशेषताओं के कारण प्रेमचंद अपने युग के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार माने जाते हैं।

दो बैलों की कथा पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘दो बैलों की कथा’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘दो बैलों की कथा’ प्रेमचंद की एक महत्त्वपूर्ण कहानी है। इसमें उन्होंने कृषक समाज एवं पशुओं के भावात्मक संबंधों का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि स्वतंत्रता सरलता से नहीं मिलती। उसके लिए बार-बार प्रयास करना पड़ता है तथा आपसी भेदभाव त्यागकर एक-जुट होकर संघर्ष भी करना पड़ता है। कहानी का सार इस प्रकार है-

लेखक ने बताया है कि जानवरों में सबसे मूर्ख गधे को माना जाता है, क्योंकि वह अत्यंत सीधा और सरल है। वह किसी बात का विरोध नहीं करता। अन्य जानवरों को कभी-न-कभी गुस्सा आ जाता है, किन्तु गधे को कभी गुस्सा करते नहीं देखा। बैल के विषय में लोगों की कुछ और ही धारणा रही है तभी तो उसे ‘बछिया का ताऊ’ कहते हैं। किन्तु यह बात सच नहीं है क्योंकि बैल को गुस्सा भी आता है, वह मारता भी है और अड़ियल रुख भी अपना लेता है। इसलिए उसे लोग गधे से बेहतर समझते हैं।

झूरी काछी के यहाँ दो बैल थे। एक का नाम हीरा, दूसरे का नाम मोती था। दोनों सुंदर, स्वस्थ और काम करने वाले थे। दोनों में पक्की मित्रता थी। दोनों साथ-साथ रहते और काम करते थे।

संयोगवश एक बार झूरी ने दोनों बैल अपने साले गया को दे दिए। बैलों को लगा कि उन्हें बेच दिया गया है। अतः गया को बैलों को घर तक ले जाने में बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ा। शाम को जब वे गया के घर पहुंचे तो उन्होंने घास को मुँह तक नहीं लगाया। दोनों आपस में मूक भाषा में सलाह कर रात को रस्सियाँ तुड़वाकर झूरी के घर की ओर चल पड़ते हैं। झूरी प्रातःकाल उठकर देखता है कि उसके दोनों बैल नाद पर खड़े घास खा रहे हैं। झूरी दौड़कर स्नेहवश दोनों को गले से लगा लेता है। गाँव के सभी लोग बैलों की स्वामिभक्ति पर आश्चर्यचकित थे, किन्तु झूरी की पत्नी से यह देखते न बना। वह पति और बैलों को भला-बुरा . बताने लगी।

अगले दिन से पत्नी ने मजदूर को बैलों के पास सूखी घास डालने को कहा। मजदूर ने वैसा ही किया। दोनों बैलों ने कुछ नहीं खाया। दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और दोनों बैलों को फिर से ले जाकर मोटी-तगड़ी रस्सियों में बाँधकर सूखा भूसा डाल दिया और अपने बैलों को अच्छा चारा दिया।

अगले दिन दोनों को खेत में जोता गया, लेकिन मार खाने पर भी दोनों ने पैर न उठाने की कसम खा रखी थी। अधिक मार खाने पर दोनों भाग खड़े हुए। मोती के दिल में क्रोध की ज्वाला भड़क रही थी, किन्तु हीरा के समझाने पर मोती खड़ा हो गया। गया ने दूसरे लोगों की सहायता से उसको पकड़ा और घर ले जाकर फिर मोटी रस्सियों में बाँध दिया तथा फिर वही सूखा भूसा डाल दिया गया।

इस प्रकार दोनों बैल दिन-भर परिश्रम करते और मार खाते और संध्या के समय सूखा भूसा खाते। एक दिन गया की लड़की ने दोनों को खोल दिया और फिर शोर मचा दिया कि बैल भाग गए हैं। गया हड़बड़ाकर बाहर भागा और गाँव वालों की सहायता के लिए चिल्लाया, लेकिन बैल भाग चुके थे। दोनों बैल भागते-भागते अपनी राह भी भूल बैठे। अब वे भूख से बेहाल थे, लेकिन पास ही मटर का खेत देखकर उसमें चरने लगे और फिर खेलने लगे। कुछ ही देर में उधर एक साँड आया और उनसे भिड़ गया। दोनों ने जान हथेली पर रखकर बड़े प्रयत्न से उसे आगे-पीछे से रौंदना शुरू किया। दोनों ने बड़े साहस के साथ साँड पर विजय प्राप्त की। साँड मार खाकर गिर पड़ा। संघर्ष के बाद दोनों को फिर भूख लग गई थी। सामने मटर का खेत देखकर उसमें पुनः चरने लगे थे। किन्तु थोड़ी देर में खेत के रखवालों ने दोनों को पकड़कर कांजीहौस में बंद कर दिया।

कांजीहौस में उनसे अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। उन्हें रात-भर किसी प्रकार का भोजन नहीं दिया गया। वे भूख के मारे मरे जा रहे थे। हीरा के मन में विद्रोह भड़क उठा। मोती के समझाने पर भी वह न माना और उसने सामने कच्ची दीवार को तोड़ना शुरू कर दिया। इतने में चौकीदार लालटेन लेकर पशुओं को गिनने आया। हीरा को इस प्रकार दीवार तोड़ते देखकर उसने उसको रस्सी से बाँधकर कई डंडे दे मारे। चौकीदार के जाने के बाद मोती ने भी साहस बटोरकर दीवार गिरानी आरंभ कर दी। इस प्रकार काफी संघर्ष के बाद आधी दीवार गिर गई। काफी जानवर भाग निकले। मोती ने फिर हीरा की रस्सी काटनी आरंभ की, लेकिन रस्सी नहीं टूटी। के. दोनों वहीं पड़े रहे।

एक सप्ताह तक वे दोनों कांजीहौस में भूखे मरते रहे। वे बहुत ही कमजोर पड़ गए थे। दोनों बैलों को एक दढ़ियल के हाथों नीलाम कर दिया गया। दढ़ियल उन्हें लिए जा रहा था कि दोनों को परिचित राह मिल गई और वे उससे छूटकर सीधे झूरी के घर जा पहुँचे। झूरी धूप सेक रहा था। बैलों को आता देखकर उसने उन्हें गले से लगा लिया। झूरी और दढ़ियल में झगड़ा हो गया। किन्तु बैलों को फिर वही स्नेह मिला। झूरी ने उनकी पीठ सहलाई और मालकिन ने उनका माथा चूम लिया। दोनों बैलों को अच्छा चारा दिया गया। वे दोनों अब सुखद अनुभव कर रहे थे।

कठिन शब्दों के अर्थ –

(पृष्ठ-5) : ज्यादा = अधिक। बुद्धिहीन = मूर्ख । परले दरजे का बेवकूफ = अत्यधिक मूर्ख । निरापद = सुरक्षित। सहिष्णुता = सहनशीलता। अनायास = अचानक ही। कुलेल करना = खेलकूद करना। विषाद = निराशा, दुःख। पराकाष्ठा = चरम सीमा। अनादर = अपमान। दुर्दशा = बुरी हालत। कुसमय = बुरा समय। जी तोड़कर काम करना = खूब परिश्रम करना। गम खाना = चुप रहना। ईंट का जवाब पत्थर से देना = मुँह तोड़ जवाब देना।

(पृष्ठ-6) : मिसाल = उदाहरण। गण्य = प्रमुख। बछिया का ताऊ = सीधा। अड़ियल = जिद्दी। काछी = किसान। पछाईं = पालतू पशुओं की एक नस्ल। डील = कद। विचार-विनिमय = विचारों का आदान-प्रदान। वंचित = रहित, न मिलना। विग्रह = अलग होना। आत्मीयता = अपनेपन का भाव। घनिष्ठता = समीपता। फुसफुसी = हल्की, दिखावटी। वक्त = समय।

(पृष्ठ-7) : दाँतों पसीना आना = खूब परिश्रम करना। पगहिया = पशु बाँधने की रस्सियाँ। हुँकारना = गुस्से से आवाज निकालना। कोई कसर न उठा रखना = कोई कमी न छोड़ना। चाकरी = सेवा। जालिम = निर्दयी। मूक-भाषा = मौन भाषा। अनुमान होना = अंदाजा लगाना। गराँव = रस्सी जो बैलों के गले में बाँधी जाती है। विद्रोहमय = क्रांतियुक्त। प्रेमालिंगन = प्रेम से गले लगाना। मनोहर = सुंदर। अभूतपूर्व = जो पहले कभी न हुई हो।

(पृष्ठ-8) : प्रतिवाद = विरोध करना। साहस न होना = हौंसला न पड़ना। जल उठना = अत्यधिक गुस्सा आना। नमक हराम = किए हुए उपकार को न मानने वाला। कामचोर = काम न करने वाला। ताकीद करना = आदेश देना।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

(पृष्ठ-9) : मजा चखाना = बदला लेना, तंग करना। टिटकार = मुँह से निकलने वाला टिक-टिक का शब्द। आहत = घायल। सम्मान = इज्जत, आदर। व्यथा = पीड़ा। काबू से बाहर होना = सीमा से बाहर होना। व्यर्थ = बेकार।

(पृष्ठ-10) : दिल में ऐंठकर रह जाना = विवश होना। तेवर = गुस्से से युक्त शक्ल। मसलहत = हितकर। सज्जन = भला व्यक्ति।

(पृष्ठ-11) : बरकत = संतुष्टि। दुर्बल = कमजोर। विद्रोह = क्रांति, गुस्सा। अनाथ = जिसका कोई नहीं होता। उपाय = साधन। सहसा = अचानक। गराँव = पशुओं को बाँधने वाली रस्सियाँ । आफत आना = मुसीबत आना। संदेह = शंका।

(पृष्ठ-12) : हड़बड़ाकर = घबराकर । मौका = अवसर। बेतहाशा = बिना सोचे-समझे । व्याकुल = बेचैन। आहट = किसी के आने की ध्वनि। आज़ादी = स्वतंत्रता। बगलें झाँकना = डर के कारण इधर-उधर देखना। आरजू = इच्छा।

(पृष्ठ-13) : कायरता = डरपोकपन। नौ-दो ग्यारह होना = भाग जाना। रगेदना = खदेड़ना। जोखिम = खतरा। हथेलियों पर जान लेना = जीवन को खतरे में डालना। मल्लयुद्ध = कुश्ती। बेदम होना = थक जाना।

(पृष्ठ-14) : संगी = साथी। कांजीहौस = मवेशीखाना, वह बाड़ा जिसमें दूसरे का खेत आदि खाने वाले या लावारिस पशुओं को बंद किया जाता है और कुछ दंड लगाकर छोड़ दिया जाता है। साबिका = वास्ता। टकटकी लगाए ताकना = निरंतर देखते रहना। विद्रोह की ज्वाला दहक उठना = क्रांति की भावना जागृत होना। हिम्मत हारना = साहस या धीरज त्यागना।

(पृष्ठ-15) : उजड्डपन = शरारतीपन। डडे रसीद करना = डंडे मारना। जान से हाथ धोना = जीवन गँवाना। प्रतिद्वंद्वी= विरोधी। जोर-आज़माई = शक्ति लगाना।

(पृष्ठ-16) : विपत्ति = मुसीबत। अपराध = दोष, कसूर । खलबली मचना = बेचैनी उत्पन्न होना। मरम्मत होना = मार पड़ना। ठठरियाँ = हड्डियाँ। मृतक = मरा हुआ।

(पृष्ठ-17) : सहसा = अचानक। दढ़ियल = दाढ़ी वाला। अंतर्ज्ञान = आत्मा का ज्ञान। दिल काँप उठना = भयभीत हो जाना। भीत नेत्र = डरी हुई आँखें। नाहक = व्यर्थ में। नीलाम होना = बोली पर बिकना। रेवड़ = पशुओं का समूह। पागुर करना = जुगाली करना। प्रतिक्षण = हर पल । दुर्बलता = कमजोरी। गायब होना = समाप्त होना।

(पृष्ठ-18-19) : उन्मत्त = मतवाले। कुलेलें करना = क्रीड़ा करना । अख्तियार = अधिकार। रास्ता देखना = प्रतीक्षा करना। शूर = बहादुर। उछाह-सा = उत्साह ।

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HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 शांति

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 शांति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 शांति

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शान्ति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
साधारण अर्थ में शान्ति का अर्थ ‘युद्ध रहित’ अवस्था से लिया जाता है। इस तरह युद्ध या किसी अप्रिय स्थिति की आशंका को शान्ति नहीं कहा जा सकता। अतः शान्ति को हम युद्ध, दंगा, नरसंहार, कत्ल या सामान्य शारीरिक प्रहार सहित सभी प्रकार की हिंसक स्थिति या संघर्षों के अभाव के रूप में, परिभाषित कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
शान्ति स्थापना हेतु राष्ट्रों के बीच अपनाई जाने वाली किन्हीं दो नीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • एक-दूसरे राष्ट्र के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना,
  • राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति को अपनाना।

प्रश्न 3.
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
राष्ट्रों के मध्य ‘जिओ और जीने दो’ का सिद्धान्त शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व को व्यक्त करता है, जिसमें युद्ध का कोई स्थान नहीं है।

प्रश्न 4.
ऐसी किन्हीं दो स्थितियों का उल्लेख कीजिए जिनमें युद्ध की आवश्यकता होती है।
उत्तर:

  • राज्य की सुरक्षा के लिए,
  • राज्यों के मध्य शान्तिपूर्ण वार्ता विफल होने पर।

प्रश्न 5.
अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की स्थापना के लिए अपनाए जाने वाले किन्हीं दो साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था,
  • अन्तर्राष्ट्रीय कानून।

प्रश्न 6.
अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान के किन्हीं दो उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • राष्ट्रों के बीच परस्पर बातचीत द्वारा,
  • संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् द्वारा।

प्रश्न 7.
भारत विश्व-शान्ति को क्यों आवश्यक मानता है? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • भारत का मानना है कि विश्व-शान्ति कायम रहने पर ही तीव्र आर्थिक विकास सम्भव हो सकता है,
  • भारत गाँधी दर्शन के प्रभाव के कारण भी विश्व-शान्ति को आवश्यक मानता है।

प्रश्न 8.
विश्व में शान्ति स्थापित करने के लिए हिंसा की आवश्यकता नहीं है? कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:

  • राष्ट्रों के बीच शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा से विश्व में भय एवं हिंसा का वातावरण उत्पन्न होगा जिससे विश्व-शान्ति को गहरा झटका लगेगा,
  • संयुक्त राष्ट्र संघ भी राष्ट्रों के बीच विवाद को हिंसा पूर्ण तरीकों से नहीं, बल्कि शान्तिपूर्ण तरीकों; जैसे वार्ता, मध्यस्थता, न्यायिक निपटारे आदि को अपनाने पर ही बल देता है।

प्रश्न 9.
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के परिपेक्ष्य में ‘जिओ और जीने दो’ के सिद्धान्त का क्या अर्थ या सार है?
उत्तर:
जब विश्व के समस्त राष्ट्र पारस्परिक सहयोग के आधार पर एक-दूसरे की सत्ता एवं स्वतन्त्रता का सम्मान करते हुए विश्व के लोगों के बीच समानता एवं न्यायपूर्ण स्थिति की स्थापना करते हैं तो राष्ट्रों के बीच स्वतः ही शान्ति का अस्तित्व हो जाएगा। इसी सिद्धान्त को ही ‘जिओ और जीने दो’ के सिद्धान्त के नाम से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में जाना जाता

प्रश्न 10.
अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को खतरा या चुनौती उत्पन्न करने वाले किन्हीं दो प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • आतंकवाद की निरन्तर बढ़ती गतिविधियाँ,
  • विध्वंस जैविक, रासायनिक हथियारों का बढ़ता विकास एवं प्रयोग की आशैंका।

प्रश्न 11.
मार्गेन्थो के द्वारा शान्ति को सुरक्षित रखने की समस्या के सन्दर्भ में कौन-से तीन सुझाव दिए हैं?
उत्तर:

  • प्रतिबन्धों से शान्ति सुरक्षा,
  • बदलाव से शान्ति सुरक्षा,
  • कूटनीति द्वारा शान्ति सुरक्षा।

प्रश्न 12.
अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान हेतु कोई चार शान्तिपूर्ण उपाय लिखिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान हेतु चार शान्तिपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं-

  • वार्ता,
  • मध्यस्थता,
  • पंच-निर्णय,
  • जाँच आयोग।

प्रश्न 13.
‘सत्सेवा’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब दो राज्यों के बीच कोई महत्त्वपूर्ण समस्या विद्यमान हो, परन्तु अपने कटुतापूर्ण सम्बन्धों के कारण दोनों आपस में बातचीत न कर रहे हों, ऐसे में यदि कोई तीसरा राज्य अपनी सेवाएँ अर्पित करे और उन राज्यों के बीच बातचीत कराए, तो उसे सत्सेवा कहते हैं। सत्सेवा करने वाला राज्य स्वयं बातचीत करने में सम्मिलित नहीं होता। वह केवल दोनों पक्षों को वार्ता मेज पर ले आता है।

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प्रश्न 14.
‘मध्यस्थता’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब दो राज्यों के बीच समस्याओं के समाधान के लिए तीसरा राज्य अपनी सेवाएँ अर्पित करता है, दोनों की बातचीत कराता है, स्वयं भी सम्मिलित होता है और समस्या समाधान हेतु सुझाव देता है, तो इसे मध्यस्थता कहते हैं।

प्रश्न 15.
विश्व में शान्ति की स्थापना के लिए हिंसा या युद्ध का सिद्धान्त आवश्यक या सहायक है। कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:

  • विश्व में राष्ट्रों के मध्य उत्पन्न अशांति को हिंसा या युद्ध द्वारा ही नियन्त्रित किया जा सकता है,
  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की सामूहिक सुरक्षा परिषद की अवधारणा में भी सैन्य कार्रवाई या हिंसा को स्वीकृति प्रदान की गई है।

प्रश्न 16.
क्या शस्त्रीकरण की प्रवृत्ति विश्व को अशांति की ओर ले जाती है। इसके पक्ष में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:

  • शस्त्रीकरण की प्रवृत्ति राष्ट्रों में शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ उन्हें युद्ध की ओर अग्रसर करेगी। फलतः अशांति को जन्म मिलेगा,
  • शस्त्रीकरण की अवधारणा से राष्ट्रों में राजनीतिक रूप से सैन्यवाद की प्रवृत्ति भी जन्म लेती है। फलतः शस्त्रीकरण की प्रवृत्ति सैन्यवाद राष्ट्रों के बीच शत्रुता एवं ईर्ष्या को जन्म देगी जो युद्ध में परिवर्तित होकर अशांति को जन

प्रश्न 17.
निःशस्त्रीकरण विश्व शान्ति में कैसे सहायक है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
निःशस्त्रीकरण वास्तव में समूची अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में हिंसा के स्थान पर समस्याओं को शान्तिपूर्ण ढंग से आपसी सद्भाव और सहानुभूति से सुलझाने का एक तरीका है जो राष्ट्रों के बीच सुरक्षा, समृद्धि एवं आत्म-सुरक्षा की स्थिति को उत्पन्न कर सकता है।

प्रश्न 18.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में युद्ध को नियन्त्रित करने एवं शान्ति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कौन-कौन-से उपकरण या साधनों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:

  • शक्ति-सन्तुलन,
  • सामूहिक सुरक्षा,
  • अन्तर्राष्ट्रीय कानून,
  • निःशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियन्त्रण,
  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन,
  • अन्तर्राष्ट्रीय कानून

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शान्ति की अवधारणा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शान्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
जिओ और जीने दो’ का दूसरा नाम ही शान्ति है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
साधारण शब्दों में शान्ति का तात्पर्य ‘युद्ध रहित अवस्था’ से लिया जाता है। इस तरह युद्ध या किसी अप्रिय स्थिति की आशैंका को शान्ति नहीं कहा जा सकता। अतः शान्ति को हम युद्ध, दंगा, नरसंहार, कत्ल या सामान्य शारीरिक प्रहार सहित सभी प्रकार की हिंसक स्थिति या संघर्षों के अभाव के रूप में, परिभाषित कर सकते हैं। अतः शान्ति एक ऐसी अवस्था का नाम है जिसमें सभी लोग पारस्परिक सहयोग के साथ-साथ समानता एवं न्यायपूर्ण ढंग से रहते हों और सभी लोगों को विकास के उचित अवसर प्राप्त हों।

यही स्थिति अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शान्ति स्थापना हेतु राष्ट्रों पर लागू होती है। दूसरे शब्दों में, जब विश्व के समस्त राष्ट्र पारस्परिक सहयोग के आधार पर एक-दूसरे की सत्ता एवं स्वतन्त्रता का सम्मान करते हुए विश्व के लोगों के बीच समानता एवं न्यायपूर्ण स्थिति की स्थापना करते हैं तो राष्ट्रों के बीच स्वतः ही शान्ति का अस्तित्व हो जाएगा। इसी सिद्धान्त को दूसरे शब्दों में ‘जिओ और जीने दो’ के नाम से जाना जाता है। वास्तव में जिओ और जीने दो का वाक्य शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व है जिसमें युद्ध का कोई स्थान नहीं होता है।

प्रश्न 2.
विश्व शान्ति की स्थापना के लिए राष्ट्रों को क्या-क्या नीतियाँ अपनानी चाहिएँ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
विश्व शान्ति की स्थापना के लिए राष्ट्रों द्वारा निम्नलिखित नीतियाँ या सिद्धान्तों को अपनाया जा सकता है

  • एक-दूसरे राष्ट्र की भू-क्षेत्रीय अखण्डता तथा प्रभुसत्ता के लिए परस्पर सम्मान करना,
  • एक-दूसरे राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना,
  • एक-दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण न करना,
  • एक-दूसरे राष्ट्रों द्वारा परस्पर लाभ पहुँचाना,
  • राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति को अपनाना,
  • राष्ट्रों के बीच झगड़ों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान करने की प्रवृत्ति,
  • देश हित के लिए गुप्त समझौतों में सम्मिलित न होना,
  • मानवता हेतु न्याय के लिए सम्मान की भावना को विकसित करना।

प्रश्न 3.
भारत ने किन कारणों से विश्व शान्ति को आवश्यक माना? अथवा भारत किन कारणों से विश्व शान्ति का समर्थक बना?
उत्तर:
भारत की यह मान्यता है कि यदि तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो इसका अर्थ होगा सम्पूर्ण मानव सभ्यता की समाप्ति। इसलिए भारत सदैव यह चाहता रहा है कि विश्व-शान्ति बनी रहे। युद्ध से किसी भी देश का हित नहीं होता। अपार धन-जन की शांति हानि होती है। विभिन्न देश बर्बाद हो जाते हैं। विजयी देश आर्थिक रूप से टूट जाते हैं।

भारत के नेता यह जानते रहे हैं कि भारत एक विकासशील देश है। उसके आर्थिक व राष्ट्रीय विकास के लिए यह आवश्यक है कि वह युद्ध में न उलझे। इसलिए भारत विश्व-शान्ति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहा है। भारत जिन कारणों से विश्व-शान्ति को आवश्यक मानता है, वे निम्नलिखित हैं

  • स्वतन्त्रता के साथ ही देश का विभाजन हुआ तथा लाखों शरणार्थियों को बसाने की जिम्मेदारी पूरी करने और देश का विकास करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की आवश्यकता थी,
  • विश्व-शान्ति कायम रहने पर ही तीव्र आर्थिक विकास सम्भव था,
  • दो विश्वयुद्धों के प्रभाव का भुक्तभोगी होने के कारण भारत विश्व-शान्ति को आवश्यक मानता है,
  • गाँधी दर्शन के प्रभाव के कारण भी विश्व-शान्ति के दर्शन का भारत ने समर्थन किया।

प्रश्न 4.
भारत द्वारा विश्व शान्ति को कायम रखने हेतु कौन-कौन से प्रयास किए गए?
अथवा
विश्व शान्ति की स्थापना में भारत के योगदान का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत ने न केवल विश्व-शान्ति का सैद्धान्तिक समर्थन किया, अपितु उसके लिए सक्रिय भूमिका भी अदा की। भारत द्वारा इस हेतु किए गए प्रमुख प्रयास निम्नलिखित हैं-

  • प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय संकटों को सुलझाने हेतु भारत ने प्रयास किए, यथा 1967 का अरब-इजराइल युद्ध, इंग्लैंड और अर्जेंटाइना के मध्य फाकलैंड विवाद, ईरान-इराक युद्ध,
  • भारत द्वारा शीत युद्ध से अलग रहने की नीति अपनाई गई,
  • भारत द्वारा परस्पर विरोधी शक्तियों के मध्य सेतुबंध कार्य किया गया। कोरिया युद्ध विराम हेतु भारत के प्रयास, हिन्द-चीन युद्ध में शान्ति प्रयास आदि इसके उदाहरण हैं,
  • भारत ने नाटो, सीटो, सेंटो तथा वारसा पेक्ट जैसे सैन्य संगठनों का विरोध किया।

भारत का यह प्रयत्न रहा है कि विश्व में जहाँ कहीं भी युद्ध की आशैंका हो उस स्थिति तथा उसके कारण को समाप्त किया जाए। जहाँ कहीं शान्ति को खतरा उत्पन्न होता है, भारत उस खतरे को मिटाने में सक्रिय भूमिका निभाता रहा है। भारत ने शान्ति के लिए सदैव प्रयास किया है, परन्तु उसे स्वयं युद्ध लड़ने पड़े।

चीन ने उस पर आक्रमण किया, उसे पाकिस्तान से तीन बार युद्ध लड़ने पड़े, परन्तु युद्ध के दौरान भी वह शान्ति का प्रयास करता रहा। इस प्रकार स्पष्ट है कि शान्ति के सम्बन्ध में भारतीय दृष्टिकोण मानव जाति की उन्नति एवं विकास में सकारात्मक भूमिका वाला रहा है।

प्रश्न 5.
विश्व शान्ति की स्थापना हेतु हिंसा की आवश्यकता के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
विश्व शान्ति की स्थापना हेतु हिंसा सहायक एवं आवश्यक है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

1. राष्ट्रों के मध्य उत्पन्न अशांति को हिंसा या युद्ध द्वारा ही नियन्त्रित किया जा सकता है अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के इस युग में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बनाए रखने की आवश्यकता, जिसमें भविष्य में होने वाला युद्ध पूर्ण विध्वंसक युद्ध होने वाला है, मानव के लिए यह आवश्यक कर देता है कि वह विश्व में राज्यों के व्यवहार को नियमित करने तथा सम्भावित शान्ति भंग को रोकने के लिए युद्ध या हिंसा के साधन की अपरिहार्यता को स्वीकार करे। ऐसी स्थिति में सम्भावित अराजकता एवं अशांति हेतु युद्ध एवं हिंसा को एक सशक्त साधन कहा जाएगा।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ की सामूहिक सुरक्षा परिषद की अवधारणा में भी सैन्य कार्रवाई या हिंसा की स्वीकृति-संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र के अनुच्छेद प्रथम में संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख है कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा संयुक्त राष्ट्र की मुख्य प्राथमिकता है। इस अनुच्छेद के अनुसार, “

अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा कायम रखना तथा इसके लिए प्रभावपूर्ण सामूहिक प्रयत्नों द्वारा शान्ति के संकटों को रोकना और समाप्त करना तथा आक्रमण को एवं शान्ति भंग की अन्य चेष्टाओं को दबाना है।” यह एक अन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्य है। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए घोषणा-पत्र के अनुच्छेद 42 में यह भी उल्लेख किया गया है कि “यदि सुरक्षा परिषद् यह समझे कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बनाए रखने के लिए अथवा पुनः स्थापित करने के लिए सुरक्षा परिषद् वायु, समुद्र तथा स्थल सेनाओं की सहायता से आवश्यक कार्रवाई कर सकती है।

अतः स्पष्ट है कि सुरक्षा परिषद् की ऐसी सामूहिक कार्रवाई में सैन्य कार्रवाई की भी स्वीकृति है।” ऐसी स्वीकृति राष्ट्रों की राजनीतिक स्वाधीनता एवं विश्व शान्ति के संकटों के प्रतिकार के रूप में एक तरह से हिंसा की अवधारणा को स्वीकार करने की ही नीति कही जा सकती है।

अतः यह कहा जा सकता है कि शान्ति की स्थापना के लिए युद्ध, सैन्य कार्रवाई एवं हिंसा सिद्धान्त को स्वीकारना एक सार्वभौमिक मान्यता का रूप ले चुका है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र के विरुद्ध आत्मरक्षा हेतु अधिक-से-अधिक सैन्य कार्रवाई एवं हिंसा के लिए सदैव तैयार रहना होगा, तभी विश्व शान्ति संभव होगी।

प्रश्न 6.
विश्व शान्ति की स्थापना हेतु हिंसा की आवश्यकता नहीं है। संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
जैसा कि शान्ति की स्थापना हेतु हिंसा को आवश्यक मानने का तर्क दिया गया है, ठीक इसके विपरीत यह भी तर्क दिया जाता है कि शान्ति की स्थापना का मार्ग हिंसा नहीं, बल्कि अहिंसा हो सकता है। महात्मा गाँधी जैसे विचारकों ने अहिंसा को ही शान्ति का सशक्त आधार माना है और व्यवहार में अहिंसा रूपी शस्त्र का प्रयोग भी अपने व्यापक उद्देश्यों की प्राप्ति करने में किया है।

गाँधी जी के अनुसार सत्य के मार्ग पर चलते हुए विरोधी को किसी प्रकार की क्षति पहुँचाए बिना अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना अहिंसा का मार्ग है। गाँधी जी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में इसी अहिंसा रूपी शस्त्र का प्रयोग करते हुए अपने विभिन्न आंदोलनों को सफल अन्जाम दिया था। यहाँ यह भी स्पष्ट है कि गाँधी जी ने अहिंसा के विचार को सकारात्मक अर्थ प्रदान किया है।

नके लिए अहिंसा का अर्थ कल्याण और अच्छाई का सकारात्मक और सक्रिय क्रियाकलाप है। इसलिए जो लोग अहिंसा का प्रयोग करते हैं, उनके लिए आवश्यक है कि अत्यन्त गम्भीर उकसावे की स्थिति में भी शारीरिक, मानसिक संयम रखने का प्रयास करें। वास्तव में अहिंसा अतिशय सक्रिय शक्ति है, जिसमें कायरता और कमजोरी का कोई स्थान नहीं है।

कहने का अभिप्राय यह है कि यदि अहिंसा के द्वारा शान्तिपूर्ण तरीके से उद्देश्य की प्राप्ति करने में हम असफल रहते हैं, तो व्यापक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु वहाँ हम हिंसा का सहारा भी ले सकते हैं। लेकिन शान्तिपूर्ण प्रक्रिया के मार्ग में हमें अहिंसा को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। गाँधी जी के उपरोक्त विचारों के आधार पर हम कह सकते हैं कि, शान्ति के लिए हिंसा नहीं, बल्कि अहिंसा एक सशक्त आधार हो सकता है।

प्रश्न 7.
किस परिस्थिति में युद्ध को न्यायोचित माना जाता है? स्पष्ट कीजिए। अथवा युद्ध के न्यायसंगत होने के पक्ष में कौन-कौन से तर्क दिए जा सकते हैं?
उत्तर:
यद्यपि युद्ध एक बुराई है, परन्तु जैसा कि मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि यह भी सत्य है कि मानव-स्वभाव में युद्ध की प्रवृत्ति है। जैसे भय तथा असुरक्षा मानवीय स्वभाव के भाग हैं, उसी प्रकार आक्रमणशीलता भी उसकी प्रकृति का एक भाग है। सिग्मंड फ्रायड (Sigmund Freud) नामक एक मनोवैज्ञानिक का यह विश्वास है कि मानव स्वभाव से ही बुराई, आक्रमणशीलता, विध्वंसकता तथा दृष्ठता की प्रतिमूर्ति है।

उसके अनुसार, “मानव केवल मधुर तथा मैत्रीपूर्ण स्वभाव वाले प्राणी नहीं, जो मात्र प्यार की इच्छा रखते हैं तथा जो आक्रमण की स्थिति में सिर्फ अपनी सुरक्षा ही करते हैं, बल्कि आक्रमण की इच्छा प्रबल मात्रा में उनके अन्दर होती है, जो उसकी सहज प्राकृतिक देन के भाग के रूप में मानी जानी चाहिए।”

स्पष्ट है कि मानव-स्वभाव के अनुरूप व्यक्तियों के बीच विवादों एवं युद्धों का अस्तित्व तो रहेगा, परन्तु यहाँ विचारणीय प्रश्न यह है कि राज्य द्वारा अपनाए या प्रयोग किए जाने वाले मुद्दों को किन परिस्थितियों में न्यायसंगत कहा जा सकता है। युद्ध के न्यायसंगत होने के पक्ष में कई तर्क दिए जाते हैं जो निम्नलिखित हैं

(1) राज्यों को अपनी सम्प्रभुता एवं लोगों के जीवन, स्वतन्त्रता एवं सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए बल प्रयोग या युद्ध करने की गतिविधियों को न्यायसंगत माना जाता है,

(2) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को कायम रखने के लिए सामूहिक सुरक्षा के अन्तर्गत आक्रामक राष्ट्र के विरुद्ध शेष सदस्य देशों के द्वारा संयुक्त रूप से सैन्य बल या युद्ध का सहारा लेना भी न्यायसंगत ही माना जाएगा,

(3) असहनीय एवं अमानवीय अत्याचारों से बचने के लिए भी बल प्रयोग या युद्ध को न्यायसंगत माना जाता है। जैसे कि फ्रांसीसी क्राँति ने भ्रष्टाचारी तथा तानाशाही राजतंत्र को उलटकर रख दिया था।

अतः उपर्युक्त वर्णन से यह स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है कि चाहे युद्ध एक बुराई है, परन्तु कई बार उपर्युक्त वर्णित परिस्थितियों में युद्ध एक उपयोगी उपकरण के रूप में भी प्रयोग करना उपयुक्त होता है। इस सम्बन्ध में प्रो० इगल्टन के अनुसार, “सदियों से युद्ध का अनुचित परिस्थितियों को सुधारने जैसे झगड़ों का निपटारा करने के लिए तथा अधिकारों को लागू करने के साधन के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है।”

परन्तु यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि अब युद्ध पूर्णतः विध्वंसक बन गया है, तो हमें युद्ध से कोई सकारात्मक परिणामों की आशा नहीं रखनी चाहिए। भविष्य में होने वाला युद्ध निश्चय ही मानव जाति के लिए विध्वंसकारी सिद्ध हो सकता है। अतः उचित यही होगा कि हम युद्ध की प्रवृत्ति से हर संभव बचने का प्रयत्न करें।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 शांति

प्रश्न 8.
शस्त्रीकरण की अवधारणा से कैसे शांति भंग होगी? किन्हीं तीन तर्कों के द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर:
शस्त्रीकरण की अवधारणा से कैसे अशांति उत्पन्न होगी, हम निम्नलिखित तर्कों के माध्यम से स्पष्ट करेंगे

1. शस्त्रीकरण युद्ध की ओर ले जाता है-शस्त्रीकरण की अवधारणा राष्ट्रों को शस्त्रों की होड़ की ओर ले जाती है तथा शस्त्रों की होड़ उन्हें युद्ध की ओर अग्रसर करती है। अतः स्पष्ट है कि शस्त्र, युद्ध का कारण बनते हैं। फलतः अशांति उत्पन्न होती है।

2. शस्त्रीकरण सैन्यवाद को प्रोत्साहित करता है-शस्त्रीकरण की अवधारणा से राष्ट्रों में राजनीतिक रूप से सैन्यवाद की प्रवृत्ति भी जन्म लेती है। इस सैन्यवाद की प्रवृत्ति में राष्ट्र जहाँ सुरक्षा की भावना पैदा करने का प्रयास करते हैं, वहाँ वे अपने अन्तिम रूप में हमेशा असुरक्षा की भावना को ही बढ़ावा देते हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रों के बीच परस्पर शत्रुता तथा ईर्ष्या की भावना उत्पन्न होती है और जिसकी परिणति सशस्त्र मुठभेड़ एवं युद्ध के रूप में होती है। ऐसी स्थिति ही अशांति का कारण बनती है।

3. शस्त्रीकरण से शस्त्रों के प्रयोग की इच्छा-शक्ति जागृत होती है-यह भी एक मान्य सच्चाई है कि राष्ट्रों के द्वारा शस्त्रों के विकास एवं विस्तार पर किए जाने वाले भारी खर्च के औचित्य को सिद्ध करने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व उनका प्रयोग करने के लिए भी सदैव तत्पर रहता है। इस प्रकार राष्ट्रों द्वारा शस्त्रों के प्रयोग की प्रवृत्ति ही संघर्ष, युद्ध एवं अशांति को जन्म देती है।

प्रश्न 9.
शस्त्रीकरण नहीं बल्कि शस्त्र नियन्त्रण एवं निःशस्त्रीकरण ही वैश्विक शान्ति के प्रभावी साधन सिद्ध हो सकते हैं? अपने तर्क के माध्यम से समझाइए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध में विजय घोष के रूप में अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी नगरों के ऊपर किए गए परमाणु शस्त्रों के प्रयोग के पश्चात् जिस तरह से शक्तिशाली राष्ट्रों के बीच शस्त्रों की होड़ के परिणामस्वरूप शस्त्रीकरण की अवधारणा को जो बल मिला, उसके पश्चात् यह एक विचारणीय एवं चिन्तनीय विषय उभरकर सामने आया कि क्या हम शस्त्रीकरण के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को कायम या बनाए रख सकते हैं? यद्यपि इस प्रश्न के उत्तर में दार्शनिकों में मतभेद पाए जाते हैं।

एक ओर के पक्षधरों का मानना है कि शस्त्रीकरण के द्वारा शान्ति को बनाए रखा जा सकता है, क्योंकि इसके स्वयं आक्रमणकारी राष्ट्र भी अन्य राष्ट्र की शक्ति से भयभीत एवं आतंकित हो सकता है और युद्ध करने का दुष्साहस त्याग सकता है, परन्तु दूसरी तरफ के विरोधी विचार रखने वालों का कहना है कि शस्त्रीकरण के माध्यम से अर्जित शक्ति का प्रयोग करने की लालसा ऐसे शक्ति-सम्पन्न राष्ट्रों को युद्ध की ओर ले जाने को प्रेरित कर सकती है जो राष्ट्रों को अशांतिपूर्ण जीवन जीने को बाध्य कर सकती है। इसलिए अशांति की समस्या का समाधान हमारी सभ्यता की सम्भावनाओं को कम करना या समाप्त करना राष्ट्रों के बीच एक मुख्य उद्देश्य बन गया।

इस उद्देश्य के लिए शस्त्रीकरण पर अंकुश लगाने के लिए निःशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियन्त्रण आदर्श साधन समझे गए। निःशस्त्रीकरण की धारणा में विद्यमान शस्त्र-भंडार को समाप्त करने का निर्णय शामिल है तथा शस्त्र नियंत्रण की अवधारणा में, शस्त्रों के विस्तार तथा उनके अनुचित प्रयोग के लिए भविष्य में शस्त्रों के विस्तार तथा उनके अनुचित प्रयोग के लिए भविष्य में शस्त्रों के उत्पादन को नियन्त्रित किए जाने का विचार शामिल है। अतः निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण दोनों ही युद्ध को रोकने के लिए तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति, व्यवस्था तथा सुरक्षा के विकास के लिए संभव तथा प्रभावशाली साधन माने गए।

इसके अतिरिक्त आधुनिक आणविक युग में परमाणु शस्त्रों की विध्वंसता पैदा करने की क्षमता भी शस्त्रीकरण की अपेक्षा निःशस्त्रीकरण के महत्त्व को और भी अधिक बढ़ा देती है। अन्त में, यह कहा जा सकता कि शस्त्र-युद्ध मानवीय साधनों की व्यर्थ बर्बादी करते हैं तथा मानवता को अनैतिक कार्यों की ओर ले जाते हैं, इसलिए निःशस्त्रीकरण ही एक ऐसा साधन है जो शान्ति, सुरक्षा, समृद्धि तथा आत्म-सुरक्षा की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शान्ति की अवधारणा का अर्थ स्पष्ट करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शान्ति स्थापित करने के विभिन्न साधनों या उपकरणों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शान्ति कायम रखने के विभिन्न साधनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शान्ति का अर्थ (Meaning of Peace)-साधारण शब्दों में शान्ति का तात्पर्य ‘युद्ध रहित अवस्था’ से लिया जाता है। इस तरह युद्ध या किसी अप्रिय स्थिति की आशैंका को शान्ति नहीं कहा जा सकता। अतः शान्ति को हम युद्ध, दंगा, नरसंहार, कत्ल या सामान्य शारीरिक प्रहार सहित सभी प्रकार की हिंसक स्थिति या संघर्षों के अभाव के रूप में, परिभाषित कर सकते हैं।

अतः शान्ति एक ऐसी अवस्था का नाम है जिसमें सभी लोग पारस्परिक सहयोग के साथ-साथ समानता एवं न्यायपूर्ण ढंग से रहते हों और सभी लोगों को विकास के उचित अवसर प्राप्त हों। यही स्थिति अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शान्ति स्थापना हेतु राष्ट्रों पर लागू होती है। दूसरे शब्दों में, जब विश्व के समस्त राष्ट्र पारस्परिक सहयोग के आधार पर एक-दूसरे की सत्ता एवं स्वतन्त्रता का सम्मान करते हुए विश्व

के लोगों के बीच समानता एवं न्यायपूर्ण स्थिति की स्थापना करते हैं तो राष्ट्रों के बीच स्वतः ही शान्ति का अस्तित्व हो जाएगा। इसी सिद्धान्त को दूसरे शब्दों में ‘जिओ और जीने दो’ के नाम से जाना जाता है। वास्तव में जिओ और जीने दो का वाक्य शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व है जिसमें युद्ध का कोई स्थान नहीं होता है।

शान्ति के साधन:
शान्ति युद्ध की अनुपस्थिति के अतिरिक्त एक ऐसी परिस्थिति होती है, जिसमें विश्व के समस्त लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं साँस्कृतिक विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में सहयोग, मेल-मिलाप तथा व्यवस्थापूर्ण एवं न्यायपूर्ण वातावरण को कायम रखे। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि शान्ति की सुरक्षा हेतु पहली आवश्यकता युद्ध को दूर रखना है, परन्तु यह भी स्पष्ट है कि युद्ध को हम पूर्णतया समाप्त नहीं कर सकते हैं

क्योंकि युद्ध की प्रवृत्ति राष्ट्रों के बीच अवश्यम्भावी है। इसलिए युद्ध होने पर हमारी प्राथमिकता इसे सीमित रखने और समाप्त करने की होनी चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रसिद्ध विद्वान् मार्गेथो (Morgenthou) ने अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रों के मध्य राजनीति’ में शान्ति को सुरक्षित रखने की समस्या पर विश्लेषण करते हुए तीन सुझाव दिए हैं

(1) प्रतिबन्धों से शान्ति इसके अधीन मार्गेथो ने सामूहिक सुरक्षा, निःशस्त्रीकरण, न्यायिक सुझाव, शान्तिपूर्ण परिवर्तनों तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन (यू.एन.ओ.) की धारणाओं का वर्णन किया है, (i) बदलाव से शान्ति-इसके अधीन उसने विश्व राज्य, विश्व समुदाय तथा कार्यात्मकता का वर्णन किया है। परस्पर सहमति के द्वारा शान्ति अथवा कूटनीति द्वारा शान्ति की सुरक्षा। इन सभी साधनों में से मार्गेथो कूटनीति द्वारा शान्ति की सुरक्षा को प्राथमिक महत्त्व देता है, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था या सम्बन्धों में युद्ध एवं हिंसा को नियन्त्रित करने एवं शान्ति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित साधनों या उपकरणों का प्रयोग किया जाता है

1. शक्ति-सन्तुलन-शक्ति-सन्तुलन के सिद्धान्त को कुछ विद्वान् अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का आधार मानते हैं। वान डाइक के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के रूप में इसका उद्देश्य सुरक्षा व शान्ति कायम रखना है। इस दृष्टि से इसका मुख्य उद्देश्य सुरक्षा व शान्ति है, जो राज्यों की स्वतन्त्रता और विश्व-शान्ति में सहयोग देता है।”

इस सिद्धान्त में किसी राष्ट्र को इतना अधिक बढ़ने नहीं दिया जाता है कि वह अपार शक्ति से दूसरे देशों पर अत्याचार व मनमानी करने के लिए स्वतन्त्र हो जाए। इस सिद्धान्त का प्रयोग लगभग 100 वर्षों तक इंग्लैंड, यूरोप के साथ करता रहा। उसने किसी यूरोपीय देश या समूह को इतना शक्तिशाली नहीं बनने दिया, जो वह मनमानी कर सके।

शक्ति-सन्तुलन की व्यवस्था युद्धों को रोकने में सहायक है। इसने कई बार युद्धों को रोका है। युद्ध प्रायः तभी होता है, जबकि एक देश बहुत अधिक शक्ति प्राप्त कर लेता है। प्रथम विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होने के कारण पर टिप्पणी करते हुए क्लिमैंसो ने लिखा था,

“प्रथम विश्वयुद्ध सन्तुलन टूटने का परिणाम था। यदि शक्ति-सन्तुलन की व्यवस्था कायम रहती तो निश्चय ही विश्वयुद्ध न छिड़ता।” इस प्रकार स्पष्ट है कि शक्ति-सन्तुलन जब तक बना रहता है, तब तक युद्ध का खतरा टलता रहता है। यह आक्रमणों को रोककर राज्यों की स्वतन्त्रता की रक्षा करता है। यह विश्व विजय की योजनाओं को हतोत्साहित कर विश्व साम्राज्य की स्थापना को रोकता है और साथ ही गड़बड़ी की स्थिति को भी रोकता है। यह सिद्धान्त वास्तव में लड़ाई के स्थान पर समझौता कराने का प्रयास करता है।

अतः विश्व-शान्ति की स्थापना के लिए, युद्धों को रोकने, शक्ति के दुरुपयोग को रोकने तथा प्रत्येक देश की सम्प्रभुता व निर्णय लेने की स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखने के लिए शक्ति सन्तुलन के प्रयास करना जरूरी है। यद्यपि वर्तमान समय में विश्व राजनीति में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं, सोवियत संघ के विघटन तथा साम्यवादी राष्ट्रों के निष्फल हो जाने से शक्ति-सन्तुलन की धारणा में अन्तर आया है।

शक्ति-सन्तुलन की अवधारणा की पुनर्व्याख्या आज की आवश्यकता बन गया है, सोवियत रूस के विघटन के पश्चात् एक ध्रुवीयता के इस युग में शक्ति सन्तुलन के लिए नए सिरे से कोशिशें तेज करना जरूरी है। सुपर पावर या महाशक्ति के रूप में अमेरिका का वर्चस्व स्थापित हुआ है।

विश्व नए खतरे की तरफ बढ़ रहा है। सोवियत रूस के विघटन, दुर्भाग्य से गुट निरपेक्ष राष्ट्रों का नेतृत्व विहीन होना, संयुक्त राष्ट्रसंघ का अमेरिका के समक्ष मूक दर्शक बनना ऐसी घटनाएँ हैं जिन्होंने शक्ति सन्तुलन की अवधारणा को अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य से बाहर-सा कर दिया है। शक्ति-सन्तुलन के लिए राष्ट्रों का सामूहिक प्रतिरोध एकमात्र सहारा है।

शक्ति की रणा के उदय ने शक्ति-सन्तुलन के लिए जैसे दरवाजे बन्द कर दिए हैं। किन्तु महाशक्ति के रूप में अमेरिकी वर्चस्व के विरुद्ध नए शक्ति-सन्तुलन की आज आवश्यकता है। अनेक विश्व प्रसंगों पर संयुक्त राष्ट्रसंघ का दयनीय रवैया उजागर हो चुका है। ओपनहाइम ने “अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अस्तित्व के लिए शक्ति सन्तुलन को अनिवार्य व्यवस्था माना है।”

2. सामूहिक सुरक्षा विश्व राजनीति में शान्ति स्थापित करने एवं आक्रमण का सामूहिक प्रतिरोध करने की प्रक्रिया का नाम सामूहिक सुरक्षा है। संसार के छोटे और कमजोर राष्ट्र शक्ति और बल में बड़े राज्यों की तुलना नहीं कर सकते। शक्तिशाली राज्य जब चाहें दुर्बल राज्यों को कुचल सकते हैं। संसार का इतिहास कमजोर राज्यों पर ताकतवर राज्यों की विजय का इतिहास है। ऐसी अवस्था में कमजोर राज्यों के पास केवल एक रचनात्मक उपाय है, वे मिलकर अपनी रक्षा का उपाय करें। “सामूहिक सुरक्षा” का सिद्धान्त इसी आवश्यकता का परिणाम है।

सामूहिक सुरक्षा को वास्तविक रूप प्रदान करने तथा इस विचार को विकसित व लोकप्रिय बनाने में प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व से प्रयास किए गए। प्रथम विश्वयुद्ध के उपराँत राष्ट्रसंघ के जन्मदाताओं को राष्ट्रों के मध्य सहयोग व सामूहिक सुरक्षा की भावना के उदय की आशा थी, किन्तु राष्ट्रसंघ अपने इस कार्य में सफल नहीं हो सका।

लोकार्नो समझौता तथा पेरिस समझौता सामूहिक सुरक्षा के अल्प-कालीन प्रयास सिद्ध हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना भी सामूहिक सुरक्षा के सिद्धान्त के आधार पर की गई। संयुक्त राष्ट्रसंघ कोरिया, काँगो, साइप्रस के प्रश्न पर शान्ति स्थापना करने में सफल रहा है। किन्तु सोवियत रूस के विघटन के पश्चात पूंजीवादी राष्ट्रों की बढ़ती ताकत के समक्ष विशेषकर इराक के प्रश्न पर संयुक्त राष्ट्र निष्प्रभावी रहा है।

अतः राष्ट्रों को सुरक्षा प्रदान करने वाली इस धारणा की प्रासंगिकता सोवियत संघ के विघटन के पश्चात ज्यादा बढ़ी है। अमेरिका के सुपर पावर या महाशक्ति के रूप में उदय ने सामूहिक सुरक्षा की भावना को पुनर्जन्म दिया है। महाशक्ति के रूप में अमेरिका की भूमिका बदली हुई है। संयुक्त राष्ट्रसंघ अमेरिका के समक्ष बौना सिद्ध हुआ है।

गुट निरपेक्ष राष्ट्रों का विशाल संगठन नेतृत्व विहीन होने के कारण बिखरा हुआ है। यह संगठन अमेरिका के वर्चस्व का सामूहिक रूप से सामना कर सकता है, यदि इस गट में कोई ऐसा प्रभावशाली नेतत्व उत्पन्न हो। जॉन स्वजन बर्गर ने सामूहिक सुरक्षा को “अन्तर्राष्ट्रीय रोकने अथवा उनके विरुद्ध प्रतिक्रिया करने के लिए किए गए संयुक्त कार्यों का अंग” कहा है।

3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय कानून का विशिष्ट महत्त्व है, क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान और पालन के बिना सम्पूर्ण विश्व में अराजकता व्याप्त हो जाएगी। अन्तर्राष्ट्रीय कानून विश्व-शान्ति की पहली शर्त है। सम्पूर्ण विश्व में विवादों के न उठने अथवा उनके समाधान के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि नियमों का कोई समूह हो जिनके अनुसार सभी राज्य परस्पर व्यवहार करें।

जिस प्रकार एक राज्य में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना के लिए कानून आवश्यक है, उसी प्रकार संपूर्ण विश्व में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कानून बहुत आवश्यक हैं। अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रसिद्ध विद्वान फेनविक के शब्दों में “अन्तर्राष्ट्रीय कानून विश्व-शान्ति का आधार है।”

कानून के अभाव में किसी भी समाज में अराजकता का साम्राज्य स्थापित हो जाता है तथा समाज में ‘जंगल के कानून’ की स्थिति आ जाती है। इसी तरह विश्व समाज में भी अराजकता की स्थिति समाप्त करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय अन्तर्राष्ट्रीय कानून ही है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून की स्थापना से अनिश्चय की स्थिति समाप्त हो जाती है, सुनिश्चित नियमों का सर्वमान्य निर्धारण हो जाता है और अराजकता का अन्त हो जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून की वजह से शान्तिपूर्ण समाधान का मार्ग प्रशस्त होता है। यद्यपि कानून की व्याख्या को लेकर कई विवाद उत्पन्न भी होते हैं, तथापि इन विवादों के समाधान के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की उपस्थिति से यह स्पष्ट हो जाता है कि विवादों के समाधान का एकमात्र उपाय शस्त्र उपयोग नहीं है। शक्ति के बिना भी विवादों का समाधान हो सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान के लिए निम्नलिखित आठ प्रकार के शान्तिपूर्ण उपाय अपनाए जाते हैं।

(1) वार्ता अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय परस्पर बातचीत अथवा वार्ता है। प्रायः राज्यों के बीच सीमाओं के सम्बन्ध में, लेन-देन के सम्बन्ध में कई तरह के विवाद रहते हैं। इन विवादों को लेकर आपस में लड़ने की बजाय, बातचीत द्वारा उन्हें सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। मूरे (Moore) के शब्दों में, “अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तथा अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अर्थ में वार्ता एक कानूनी, व्यवस्थित एवं प्रशासनात्मक प्रक्रिया है। इसकी सहायता से राज्य सरकारें अपनी असंदिग्ध शक्तियों का प्रयोग करके एक-दूसरे के साथ अपने सम्बन्धों का संचालन करती हैं।”

वार्ता द्वारा समस्याओं के समाधान के कई उदाहरण हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा के पानी को लेकर विवाद रहा है। इस विवाद का समाधान दोनों देशों के बीच वार्ता द्वारा ही होता आया है। भारत और पाकिस्तान के बीच पाक युद्ध बंदियों की समस्या को लेकर और भारत द्वारा युद्ध में जीती हुई भूमि को लेकर भी 1972 में शिमला में ‘वार्ता’ हुई और ‘शिमला समझौता’ हुआ।

कालान्तर में 1999 तक वार्ताएँ होती रहीं, किन्तु इनसे निर्णय की स्थिति कभी नहीं बनी। वार्ता होते रहनी चाहिए। यह कोई आवश्यक नहीं है कि वार्ताओं के परिणाम सदा फलदायी हों। परन्तु वार्ता से वातावरण स्वस्थ बनता है और समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है। समस्याओं के शान्तिपूर्ण समाधान की पहली सीढ़ी वार्ता है। वार्ता के द्वारा ही अन्य उपायों के द्वार खुलते हैं।

(2) सत्सेवा जब दो राज्यों के बीच कोई महत्त्वपूर्ण समस्या हो, परन्तु अपने कटुतापूर्ण सम्बन्धों के कारण दोनों आपस में बातचीत न कर रहे हों, ऐसे में यदि कोई तीसरा राज्य अपनी सेवाएँ अर्पित करे और उन राज्यों के बीच बातचीत कराए, तो इसे सत्सेवा कहते हैं। सत्सेवा करने वाला राज्य स्वयं बातचीत करने में सम्मिलित नहीं होता। वह केवल दोनों पक्षों की वार्ता मेज पर ले आता है।

सत्सेवा करने वाले राज्य के सम्बन्ध दोनों पक्षों के साथ अच्छे होते हैं। इसी आधार पर वह दोनों के बीच बातचीत कराता है। 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत कराने के लिए तत्कालीन सोवियत संघ ने अपनी सत्सेवाएँ अर्पित की। ताशकंद में भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत कराई। इसी बातचीत के परिणामस्वरूप 10 जनवरी, 1966 को दोनों देशों के बीच ताशकंद समझौता हुआ और शान्ति की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।

यद्यपि सत्सेवा का अन्त समस्या के समाधान से हो, यह आवश्यक नहीं, परन्तु फिर भी सत्सेवा अनेक बार समस्याओं के समाधान में सहायता देती है। भारत ने भी ईरान और इराक के बीच युद्ध को समाप्त करने के लिए सत्सेवाएँ अर्पित की। अन्त में यह तो कहा ही जा सकता है कि सत्सेवा हमें शान्ति के मार्ग की ओर अग्रसर करने का एक माध्यम है।

(3) मध्यस्थता-जब दो राज्यों के बीच समस्याओं के समाधान के लिए तीसरा राज्य अपनी सेवाएँ अर्पित करता है, दोनों की बातचीत कराता है, स्वयं भी सम्मिलित होता है और अपने सुझाव देता है, तो इसे मध्यस्थता कहते हैं। विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान के सम्बन्ध में हुए हेग सम्मेलन में कहा गया था, “तीसरे राज्य द्वारा विवाद करने वाले राज्यों में उत्पन्न नाराजगी के भावों को दूर करना तथा

परस्पर विरोधी भाव को दूर करना तथा परस्पर विरोधी दावों का समन्वय करना मध्यस्थता है।” मध्यस्थता द्वारा विवादों के समाधान के कई उदाहरण हैं। हैनरी किसिंजर की मध्यस्थता से मिस्र और इजराइल के बीच युद्ध विराम हुआ। अमेरिका की मध्यस्थता से मिस्र और इजराइल के बीच ‘कैम्प डेविड’ समझौता हुआ।

(4) संराधन-संराधन के सम्बन्ध में ओपनहाइम ने कहा है-“यह विवाद के समाधान की ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कार्य कुछ को सौंप दिया जाता है। यह आयोग दोनों पक्षों का विवरण सुनता है तथा विवाद को तय करने की दृष्टि से तथ्यों के आधार पर अपना प्रतिवेदन देता है इसमें विवाद के समाधान के लिए कुछ प्रस्ताव होते हैं। यह प्रस्ताव किसी अदालत की तरह अनिवार्य रूप से मान्य नहीं होते।”

संराधन में और पंच निर्णय में अन्तर होता है। पंच निर्णय का फैसला दोनों पक्षों को मानना होता है। परन्तु, संराधन की सिफारिशें मानना या न मानना आवश्यक नहीं है। दोनों पक्ष इस बात पर तो सहमत हो जाते हैं कि कोई आयोग या कोई मध्यस्थ या कोई पंथ दोनों पक्षों के तर्क सुने और तथ्यों का अवलोकन करे। परन्तु, उस पंच के निर्णय मानने अथवा न मानने के लिए दोनों पक्ष स्वतन्त्र होते हैं।

(5) जाँच आयोग-सन् 1899 के हेग सम्मेलन में विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए जाँच आयोग की बात सुझाई गई और यह कहा गया कि जाँच आयोग की स्थापना और जाँच की कार्रवाई से भी विवादों के समाधान में सहायता मिल सकती है।

कई बार विभिन्न राज्यों में तथ्यों को लेकर बहुत विवाद होता है। सीमा के सम्बन्ध में, सन्धि के उपबन्धों के सम्बन्ध में, ओं के सम्बन्ध में कई प्रकार के विवाद होते हैं। ऐसे विवादों के समाधान का श्रेष्ठ उपाय यही है कि जाँच कर ली जाए और तथ्यों का पता लगा लिया जाना चाहिए। उदाहरणार्थ, सन् 1983 में उत्तरी कोरिया के एक यात्री विमान को सोवियत रूस ने मार गिराया।

रूस का कहना था कि यह विमान जासूसी करने के लिए उसकी भूमि के ऊपर से उड़ा था। उत्तरी कोरिया ने हर्जाना माँगा, जो सोवियत रूस ने नहीं दिया। इस विवाद के समाधान का श्रेष्ठ उपाय यही हो सकता था कि जाँच आयोग द्वारा यह निर्णय किया जाए कि वास्तविकता क्या है? विभिन्न जाँच आयोगों का कार्य तथ्यों का पता लगाना है, वास्तविकता की तह तक पहुँचना है। इससे समस्याओं के समाधान में मदद मिलती है।

(6) पंच निर्णय-विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान का एक अन्य उपाय है, पंच निर्णय। इसमें विवादग्रस्त राज्य इस बात पर सहमत हो जाते हैं कि अपने विवाद को किसी पंच को सौंप दें। साथ ही वे यह भी स्वीकार करते हैं कि पंच जो भी निर्णय करेंगे वह निर्णय दोनों पक्षों को स्वीकार होगा। ओपनहाइम के अनुसार, “पंच निर्णय का अर्थ है कि राज्यों के मतभेद का समाधान कानूनी निर्णय द्वारा किया जाए। निर्णय दोनों पक्षों द्वारा निर्वाचित अनेक पंचों के एक न्यायाधिकरण द्वारा होता है जो अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय से भिन्न होता है।”

विवादों के समाधान के लिए पंच मुख्य रूप से विवादों के कानूनी पक्ष का अध्ययन करते हैं और कानूनों के अनुसार ही अपना निर्णय देते हैं। ब्रियर्ली के शब्दों में, “पंच और जज दोनों के लिए यह अनिवार्य है कि वे कानून के नियमों के अनुसार अपना निर्णय दें, किसी को यह अधिकार नहीं है कि कानून का निरादर करते हुए अपने विवेक का प्रयोग करें अथवा जिसे उचित और न्यायपूर्ण समझता है, उसके अनुसार अपना निर्णय करें।” भारत और पाक के बीच कच्छ समस्या का समाधान भी पंच निर्णय के द्वारा ही हुआ था। इस प्रकार स्पष्ट है पंच निर्णय भी संघर्ष से टकराव को दूर कर शान्ति की प्रक्रिया की ओर अग्रसर करने में सहायक हैं।

(7) अधिनिर्णय राज्यों के बीच अधिकाँश विवाद कानूनी विवाद होते हैं। अतः इन विवादों का समाधान अन्तर्राष्ट्रीय न्यायिक संस्थान द्वारा ही होना चाहिए। यह कार्य करने के लिए ही हेग में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय गठित किया गया है। यह न्यायालय, अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार ही अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निर्णय करता है। सन् 1945 से 1984 अभी तक पचास से अधिक महत्त्वपूर्ण विवादों का निर्णय अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय कर चुका है। यह न्यायालय जिन विवादों का निर्णय कर चुका है, उनमें मुख्य हैं-को’ चैनल विवाद, एंग्लो ईरानियन आइल कंपनी विवाद, भारत और पुर्तगाल के बीच दादर-नगर हवेली विवाद आदि।

(8) संयुक्त राष्ट्र संघ-विश्व के राजनीतिक विवादों को संयुक्त राष्ट्र संघ में भी ले जाया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में विवादों पर केवल वाद-विवाद होता है। इससे विश्व जनमत जानने में सहायता मिलती है। विवादों के समाधान का मुख्य कार्य सुरक्षा परिषद् का है। परन्तु सुरक्षा परिषद् में शीत युद्ध के कारण तथा वीटो के कारण अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है। विवादों के समाधान में सुरक्षा परिषद् को केवल आँशिक सफलता ही मिली है। है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानुन अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान के अनेक उपाय करता है। आवश्यकता केवल उन उपायों को अपनाने की है।

4. निःशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियंत्रण:
प्रसिद्ध इतिहासकार आर्नोल्ड टायनबी के अनुसार, “आज के युग में यदि हमने युद्ध को समाप्त नहीं किया तो युद्ध हमें समाप्त कर देगा।” यही सबसे बड़ा सत्य है। आज संसार में इतने अधिक विनाशक शस्त्र बन चुके हैं कि उनका प्रयोग किया जाए, तो सारी मानव जाति का विनाश हो सकता है। इसलिए आज संसार की सबसे बड़ी समस्या निःशस्त्रीकरण ही है। निःशस्त्रीकरण’ का शाब्दिक अर्थ है, “शारीरिक हिंसा के प्रयोग के संपूर्ण भौतिक तथा मानवीय साधनों का उन्मूलन” तथा हथियारों के अस्तित्व एवं उनके खतरों को कम करना है। विश्व के विनाशकारी युद्धों के पीछे शक्ति की होड़ का योगदान ही मुख्य है।

मार्गेयो के अनुसार, “निःशस्त्रीकरण कुछ या सब शस्त्रों में कटौती या उनको समाप्त करना है, ताकि शस्त्रीकरण की दौड़ का अन्त हो।” अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय निःशस्त्रीकरण की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व के विभाजन ने हालाँकि निःशस्त्रीकरण के स्थान पर शस्त्रीकरण को जन्म दिया है,

किन्तु सामूहिक विनाश के विचार ने दोनों गुटों को मानवीय अस्तित्व के लिए चिन्तित किया है। मार्गेथो के इस कथन “निःशस्त्रीकरण के प्रयासों का इतिहास अधिक असफलताओं और कम सफलताओं का इतिहास है” के द्वारा भी यह ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है कि विश्व समुदाय निःशस्त्रीकरण की दिशा में भले ही सफल नहीं हो पाया है, किन्तु उसके प्रयास निरन्तर जारी हैं।

निःशस्त्रीकरण एकमात्र सार्थक साधन है विश्व-शान्ति और कराहती पीड़ित मानवता को बचाने का। इस हेतु संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में अनेक प्रयास हुए या निःशस्त्रीकरण के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रतिमान बदलने लगे हैं। विश्व राजनीति की स्थिति विस्फोटक होने लगी है। मानवीय मूल्यों के सम्मुख साम्राज्यवादी, परमाणु-सम्पन्न राष्ट्रों के हित प्रमुख हैं। परमाणु-सम्पन्न राष्ट्रों ने इतने आणविक हथियार बना रखे हैं, जिससे वर्तमान विश्व को अनेक बार नष्ट किया जा सकता है। परमाणु हथियारों ने विश्व व्यवस्था को आतंक के युग में रहने एवं जीने को बाध्य किया है।

मानव सभ्यता व विश्व-शान्ति के लिए किए गए प्रयासों में एक प्रयास सी.टी.बी.टी. अर्थात कंप्रीहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध संधि प्रमुख हैं। परमाणुशास्त्र सम्पन्न राष्ट्रों के समक्ष प्रारम्भ से यह माँग थी कि वे परमाणु निःशस्त्रीकरण की दिशा में एक समग्र नीति अपनाएँ। समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध संधि (C.T.B.T.) 1996 निःशस्त्रीकरण की दिशा में नवीनतम कदम है।

5. अन्तर्राष्ट्रीय संगठन:
विश्व में शान्ति व्यवस्था कायम करने में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का विशेषकर लीग ऑफ नेशॆज एवं संयुक्त राष्ट्र संघ का बहुत अधिक योगदान रहा है। यद्यपि प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात जिस आशय के साथ लीग ऑफ नेशॆज की स्थापना की गई थी वह द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होने के पश्चात पूर्णतः धूमिल हो गई, लेकिन भविष्य में युद्ध की पुनरावृत्ति की संभावना और उसके घातक परिणामों को ध्यान में रखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के दृढ़ संकल्प ने नए रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का आधार तैयार किया। विश्व में आज इसकी उपयोगिता का अनुमान वर्तमान में इसके 193 सदस्यीय संगठन से ही लगाया जा सकता है।

यद्यपि यह ठीक है कि यह संगठन भी पूर्णतः सफल नहीं रहा, लेकिन चाहे इसकी आँशिक सफलता ही रही हो, इसकी महत्ता और भूमिका को आज हम निर्विवाद रूप से स्वीकार करते हैं। इसी संगठन के माध्यम से हम न केवल विश्व-शान्ति को कायम रखने में सफल रहे हैं, बल्कि तृतीय विश्वयुद्ध की संभावना को भी नियन्त्रित करने में सफल रहे हैं। इसके अतिरिक्त विश्व व्यवस्था में उभरे अन्य अनेक क्षेत्रीय संगठनों; जैसे नाटो (NATO), सीटो (SEATO), सार्क (SAARC), आसियान (ASEAN), अरब लीग (ARAB LEAGUE) आदि ने भी अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा कायम रखने में संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता की है।

6. कूटनीति:
वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में कूटनीति का सर्वाधिक महत्त्व है। विदेश नीति के लक्ष्य को प्राप्त करने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन कुटनीति ही है। यदि किसी राष्ट्र के पास अपनी कूटनीति को कार्यान्वित करने की क्षमता नहीं है तो उसके पास युद्ध के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता है और यदि युद्ध को संचालित करने का सामर्थ्य उसमें नहीं है तो उसे अपने राष्ट्रीय हितों का परित्याग करना होगा।

आधुनिक शस्त्रों ने युद्ध की उपादेयता को संदिग्ध बना दिया है और इस बात की कोई गारंटी नहीं कि द्विपक्षीय युद्ध आणविक युद्ध में परिवर्तित न हो जाए अतः राज्यों के सामने कूटनीति के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है।

वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में कूटनीति का उद्देश्य परमाणु युद्ध का निवारण करना है। परमाणु युद्ध की समस्या एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है जिसका सामना कूटनीति को करना है। वर्तमान में कूटनीति का कार्य अन्तर्राष्ट्रीय संकटों और का हल खोजना है। इसके साथ ही परमाणु अस्त्रों के फैलाव को रोकना तथा तीसरे विश्वयुद्ध की संभावना को रोकना है। केवल कूटनीति के माध्यम से ही युद्ध से बचा जा सकता है।

मार्गेथो (Morgenthou) के शब्दों में, “कूटनीति शान्ति सर्वेक्षण का सफल उत्तम साधन है। कुटनीति आज की अपेक्षा शान्ति को अधिक सुरक्षित बना सकती है और यदि राष्ट्र कूटनीति के नियमों का पालन करें तो उस परिस्थिति की अपेक्षा विश्व राज्य शान्ति को अधिक सुरक्षित बना सकता है तथापि जिस प्रकार एक विश्व राज्य के बिना स्थायी शान्ति सम्भव नहीं है, उसी प्रकार कूटनीति की शान्ति सर्वेक्षण तथा लोक समाज निर्माण सम्बन्धी प्रक्रियाओं के बिना संभव नहीं है।”

अतः दिए गए वर्णन से स्पष्ट है कि राष्ट्रों के मध्य युद्ध की संभावना को विराम देने एवं शान्ति की व्यवस्था को कायम रखने के लिए दिए गए साधनों ने विश्व व्यवस्था में कारगर भूमिका का निर्वाह किया है और भविष्य में भी समय की आवश्यकता के अनुरूप भूमिका निभाकर मानव जाति की सुरक्षा एवं विकास में अपना बराबर योगदान देंगे।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 शांति

प्रश्न 2.
क्या राष्ट्रों के मध्य शान्ति की स्थापना सदैव अहिंसा द्वारा सम्भव है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्या राष्ट्रों के मध्य शान्ति की स्थापना का माध्यम हिंसा या अहिंसा हो सकता है? यह राजनीतिक दार्शनिकों के बीच एक विवाद का विषय है। इसलिए यहाँ हम स्पष्टता हेतु शान्ति स्थापना के लिए हिंसा आवश्यक है एवं हिंसा आवश्यक नहीं है दोनों तर्कों पर विचार स्पष्ट करेंगे एवं तत्पश्चात ही इस सम्बन्ध में किसी उपयुक्त निष्कर्ष पर पहुँचेगे। शान्ति की स्थापना के लिए हिंसा की आवश्यकता है शांति की स्थापना के लिए हिंसा की निम्नलिखित कारणों से आवश्यकता होती है

1. राष्टों के मध्य उत्पन्न अशांति को हिंसा या यद्ध द्वारा ही नियन्त्रित किया जा सकता है अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के इस युग में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बनाए रखने की आवश्यकता, जिसमें भविष्य में होने वाला युद्ध पूर्ण विध्वंसक युद्ध होने वाला है, मानव के लिए यह आवश्यक कर देता है कि वह विश्व में राज्यों के व्यवहार को नियमित करने तथा संभावित शान्ति भंग को रोकने के लिए युद्ध या हिंसा के साधन की अपरिहार्यता को स्वीकार करे। ऐसी स्थिति में सम्भावित अराजकता एवं अशांति हेतु युद्ध एवं हिंसा को एक सशक्त साधन कहा जाएगा।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ की सामूहिक सुरक्षा परिषद की अवधारणा में भी सैन्य कार्रवाई या हिंसा की स्वीकृति संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र के अनुच्छेद प्रथम में संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख है कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा संयुक्त राष्ट्र की मुख्य प्राथमिकता है। इस अनुच्छेद के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा कायम रखना तथा इसके लिए प्रभावपूर्ण सामूहिक प्रयत्नों द्वारा शान्ति के संकटों को रोकना और समाप्त करना तथा आक्रमण को एवं शान्ति भंग की अन्य चेष्टाओं को दबाना है।” यह एक अन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्य है।

इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए घोषणा-पत्र के अनुच्छेद 42 में यह भी उल्लेख किया गया है कि “यदि सुरक्षा परिषद यह समझे कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बनाए रखने के लिए अथवा पुनः स्थापित करने के लिए सुरक्षा परिषद वायु, समुद्र तथ स्थल सेनाओं की सहायता से आवश्यक कार्रवाई कर सकती है। अतः स्पष्ट है कि सुरक्षा परिषद की ऐसी सामूहिक कार्रवाई में सैन्य कार्रवाई की भी स्वीकृति है।” ऐसी स्वीकृति राष्ट्रों की राजनीतिक स्वाधीनता एवं विश्व शान्ति के संकटों के प्रतिकार के रूप में एक तरह से हिंसा की अवधारणा को स्वीकार करने की ही नीति कही जा सकती है।

अतः यह कहा जा सकता है कि शान्ति की स्थापना के लिए युद्ध, सैन्य कार्रवाई एवं हिंसा सिद्धान्त को स्वीकारना एक सार्वभौमिक मान्यता का रूप ले चुका है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र के विरुद्ध आत्मरक्षा हेतु अधिक-से-अधिक सैन्य कार्रवाई एवं हिंसा के लिए सदैव तैयार रहना होगा, तभी विश्व शान्ति सम्भव होगी। शान्ति की स्थापना के लिए हिंसा की आवश्यकता नहीं है शान्ति की स्थापना के लिए हिंसा की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से नहीं होती

उपर्युक्त मत में जैसा कि शान्ति की स्थापना हेतु हिंसा को आवश्यक मानने का तर्क दिया गया है, ठीक इसके विपरीत यह भी तर्क दिया जाता है कि शान्तिं की स्थापना का मार्ग हिंसा नहीं, बल्कि अहिंसा हो सकता है। महात्मा गाँधी जैसे विचारकों ने अहिंसा को ही शान्ति का सशक्त आधार माना है और व्यवहार में अहिंसा रूपी शस्त्र का प्रयोग भी अपने व्यापक उद्देश्यों की प्राप्ति करने में किया है।

गाँधी जी के अनुसार सत्य के मार्ग पर चलते हुए विरोधी को किसी प्रकार की क्षति पहुँचाए बिना अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना अहिंसा का मार्ग है। गाँधी जी ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में इसी अहिंसा रूपी शस्त्र का प्रयोग करते हुए अपने विभिन्न आन्दोलनों को सफल अन्जाम दिया था। यहाँ यह भी स्पष्ट है कि गाँधी जी ने अहिंसा के विचार को सकारात्मक अर्थ प्रदान किया है।

उनके लिए अहिंसा का अर्थ कल्याण और अच्छाई का सकारात्मक और सक्रिय क्रियाकलाप है। इसलिए जो लोग अहिंसा का प्रयोग करते हैं, उनके लिए आवश्यक है कि अत्यन्त गम्भीर उकसावे की स्थिति में भी शारीरिक, मानसिक संयम रखने का प्रयास करें। वास्तव में अहिंसा अतिशय सक्रिय शक्ति है, जिसमें कायरता और कमजोरी का कोई स्थान नहीं है।

कहने का अभिप्राय है यह है कि यदि अहिंसा के द्वारा शान्तिपूर्ण तरीके से उद्देश्य की प्राप्ति करने में हम असफल रहते हैं, तो व्यापक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु वहाँ हम हिंसा का सहारा भी ले सकते हैं। लेकिन शान्तिपूर्ण प्रक्रिया के मार्ग में हमें अहिंसा को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। गाँधी जी के इन विचारों के आधार पर हम कह सकते हैं कि, शान्ति के लिए हिंसा नहीं, बल्कि अहिंसा एक सशक्त आधार हो सकता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. शांति का अर्थ है
(A) युद्ध रहित अवस्था
(B) हिंसक स्थिति का अभाव
(C) दंगा या नरसंहार की स्थिति का अभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. निम्नलिखित में से कौन-सा शांति का तत्त्व नहीं है?
(A) हिंसा
(B) अहिंसा
(C) राष्ट्रों के बीच विश्वास
(D) राष्ट्रों के बीच पारस्परिक भाईचारा एवं मानवता की भावना
उत्तर:
(A) हिंसा

3. विश्व शांति की सुरक्षा हेतु मार्गेन्यो ने निम्नलिखित में से कौन-सा सुझाव दिया है?
(A) प्रतिबन्धों द्वारा शांति का
(B) बदलाव द्वारा शांति का
(C) कूटनीति द्वारा शांति का
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

4. प्रतिबन्धों द्वारा शांति स्थापित करने के निम्नलिखित में से कौन-से साधन हैं?
(A) सामूहिक सुरक्षा
(B) निःशस्त्रीकरण
(C) संयुक्त राष्ट्र संघ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. शक्ति संतुलन का प्रभाव निम्नलिखित में से होता है
(A) इससे युद्ध का खतरा टलता है
(B) यह आक्रमणों को रोककर राज्यों की स्वतंत्रता की रक्षा करता है
(C) यह साम्राज्यवाद को रोकता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शांति स्थापना का साधन निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(A) शक्ति संतुलन
(B) सामूहिक सुरक्षा
(C) अन्तर्राष्ट्रीय कानून
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 शांति

7. निम्नलिखित में से किस परिस्थिति में युद्ध न्यायोचित होता है?
(A) राज्य की सम्प्रभुत्ता की रक्षा करने के लिए
(B) असहनीय एवं अमानवीय अत्याचारों से बचने के लिए
(C) अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को कायम रखने के लिए
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. संयुक्त राष्ट्र संघ का विश्व शांति कायम करने में निम्नलिखित में से किस क्षेत्रीय संगठन ने सहयोग किया है?
(A) सार्क
(B) नाटो
(C) सीटो
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

9. विश्व-शांति हेतु भारत ने निम्नलिखित में से किस विवाद या संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाई?
(A) ईरान-इराक युद्ध
(B) फाकलैण्ड विवाद
(C) अरब-इजराइल संघर्ष
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

10. विश्व-शांति हेतु निःशस्त्रीकरण आवश्यक है
(A) अनियन्त्रित शस्त्र संचय पर अंकुश हेतु
(B) परमाणु युद्ध के भय से मुक्ति हेतु
(C) शस्त्रीकरण ही युद्धों को जन्म देते
(D) उपर्युक्त सभी हैं, के भय के कारण
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान हेतु कोई एक उपाय बताएँ।
उत्तर:
वार्ता।

2. किस विद्वान् ने अन्तर्राष्ट्रीय कानून को विश्व शांति का आधार माना है?
उत्तर:
फेनविक ने।

3. “आज के युग में यदि हमने युद्ध को समाप्त नहीं किया तो युद्ध हमें समाप्त कर देगा।” यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
आर्नोल्ड टायनबी का।

4. 15 जून, 2007 को किसके द्वारा विश्व शांति हेतु अहिंसा के सिद्धान्त को प्रतिवर्ष 2 अक्तूबर को अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया गया?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा।

5. विश्व-शांति के लिए कोई एक खतरनाक कारक (खतरा उत्पन्न करने वाला कारक) लिखिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद।

6. वर्तमान में विश्व-शान्ति को बढ़ावा देने में कौन-सा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ।।

7. वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में सुपर पावर या महाशक्ति का दर्जा किस राष्ट्र को प्राप्त है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका को।

रिक्त स्थान भरें

1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शांति स्थापना का साधन …………….. नहीं है।
उत्तर:
युद्ध

2. ‘राष्ट्रों के मध्य राजनीति’ नामक पुस्तक के लेखक ……………… हैं।
उत्तर:
हंस जे मार्गेन्थो

3. “शांति एक प्रक्रिया का नाम है जिसके माध्यम से व्यक्ति बिना शस्त्र उठाए, दूसरे व्यक्ति पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सकता है।” यह कथन …………….. का है।
उत्तर:
ब्रटेण्ड रसल

4. ………………. विश्व-शांति की स्थापना का एक साधन है।
उत्तर:
सामूहिक सुरक्षा

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.3

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Exercise 7.3

Question 1.
ΔABC and ΔDBC are two isosceles triangles on the same base BC and vertices A and D are on the same side of BC (see figure 7.56). If AD is extended to intersect BC at P, show that:
(i) ΔABD ≅ ΔACD,
(ii) ΔABP ≅ ΔACP,
(iii) AP bisects ∠A as well as ∠D,
(iv) AP is the perpendicular bisector of BC.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.3 - 1
Solution:
(i) In ΔABD and ΔACD, we have
AB = AC, (∵ ΔABC is an isosceles triangle)
DB = DC, (∵ ΔDBC is an isosceles triangle)
and AD = AD, (Common)
∴ ΔABD ≅ ΔACD,
(By SSS congruence rule)
⇒ ∠BAD = ∠CAD, (CPCT) …(i)
Hence proved

(ii) In ΔABP and ΔACP, we have
AB = AC, (Given)
∠BAP = ∠CAP,
[from (i), ∠BAD = ∠CAD]
and AP = AP, (Common)
∴ ΔABP ≅ ΔACP, …(ii)
(by SAS congruence rule)
⇒ BP = CP (CPCT) …(iii)
Hence proved

(iii) From (i), we have
∠BAD = ∠CAD
⇒ ∠BAP = ∠CAP
⇒ AP is the bisector of ∠A.
In ΔBPD and ΔCPD, we have
BD = CD, (Given)
BP = CP, [from (iii)]
and PD = PD, (Common)
∴ ΔBPD ≅ ΔCPD,
(by SSS congruence rule)
⇒ ∠BDP = ∠CDP, (CPCT)
⇒ DP is the bisector of ∠D.
Hence, AP is the bisector of ∠A as well as ∠D
Hence proved

(iv) From (ii), we have
ΔABP ≅ ΔACP (from (iii)]
⇒ BP = CP, [From (iii)]
and ∠APB = ∠APC, (CPCT) …(iv)
∠APB + ∠APC = 180°, (linear pair)
⇒ ∠APB + ∠APB = 180, [(Using (iv)]
⇒ 2∠APB = 180°
⇒ ∠APB = \(\frac {180°}{2}\) = 90°
Hence, AP is the perpendicular bisector of BC.
Hence proved

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.3

Question 2.
AD is an altitude of an isosceles triangle ABC in which AB = AC. Show that:
(i) AD bisects BC,
(ii) AD bisects ∠A.
Solution:
In ΔADB and ΔADC, we have
∠ADB = ∠ADC, (Each = 90°)
Hyp. AB = Hyp. AC, (Given)
and AD = AD, (Common)
∴ ΔADB ≅ ΔADC,
(by RHS congruence rule)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.3 - 2
(i) ⇒ DB = DC, (CPCT)
OR AD bisects BC.
Hence proved

(ii) ∠BAD = ∠CAD, (CPCT)
Or AD bisects ∠A.
Hence proved

Question 3.
Two sides AB and BC and median AM of one triangle ABC are respectively equal to sides PQ and QR and median PN of ΔPQR (see figure 7.58). Show that:
(i) ΔABM ≅ ΔPQN,
(ii) ΔABC ≅ ΔPQR.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.3 - 3
Solution:
We have, AM is the median of ΔABC.
⇒ BM = CM ……(i)
PN is the median of ΔPQR.
∵ QN = RN ……(ii)
BC = QR (Given)
⇒ \(\frac {1}{2}\) BC = \(\frac {1}{2}\) QR
(Multiplying by 1/2 on both sides)
⇒ BM = QN …….(iii)

(i) In ΔABM and ΔPQN, we have
AB = PQ, (Given)
BM = QN, [from (iii)]
and AM = PN, (Given)
∴ ΔABM ≅ ΔPQN, (by SSS congruence rule)
Hence proved
⇒ ∠B = ∠Q. (CPCT) …(iv)

(ii) In ΔABC and ΔPQR, we have
AB = PQ, (Given)
∠B = ∠Q, [from (iv)]
and BC = QR (Given)
∴ ΔABC ≅ ΔPQR, (by SAS congruence rule)
Hence proved

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.3

Question 4.
BE and CF are two equal altitudes of a triangle ABC. Using RHS congruence rule, prove that the triangle ABC is isosceles.
Solution:
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.3 - 4
We have,
BE ⊥ AC and CF ⊥ AB
i.e., ∠CFB= 90° and ∠BEC = 90° ………(i)
In ΔBFC and ΔCEB, we have
∠CFB = ∠BEC,
[from (i), Each = 90°]
Hyp. BC = Hyp. BC, (Common)
and CF = BE (Given)
∴ ΔBFC ≅ ΔCEB,
(by RHS congruecne rule)
⇒ ∠FBC = ∠ECB, (CPCT)
⇒ ∠B = ∠C
Now in ΔABC, we have
∠B = ∠C, (As proved above)
⇒ AB = AC, (∵ Sides opposite to equal angles are equal)
Or ΔABC is an isosceles triangle.
Hence proved

Question 5.
ABC is an isosceles triangle with AB = AC. Draw AP ⊥ BC to show that ∠B = ∠C.
Solution :
In ΔAPB and ΔAPC, we have
∠APB = ∠APC,
(∵ AP ⊥ BC, ∴ Each = 90°)
Hyp. AB = Hyp. AC, (Given)
and AP = AP (common)
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 7 Triangles Ex 7.3 - 5
∴ ΔAPB ≅ ΔAPC,
(by RHS congruence rule)
⇒ ∠B = ∠C, (CPCT)
Hence proved

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