Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Maths Solutions Chapter 9 अवकल समीकरण विविध प्रश्नावली

Haryana State Board HBSE 12th Class Maths Solutions Chapter 9 अवकल समीकरण विविध प्रश्नावली Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Maths Solutions Chapter 9 अवकल समीकरण विविध प्रश्नावली

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HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख Important Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

मुद्रा और साख Important Questions Economics HBSE 10th Class प्रश्न-1.
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग किसे कहते
उत्तर-
(क) जब क्रेता और विक्रेता दोनों एक दूसरे से चीजें खरीदने तथा बेचने पर सहमति रखतें हों तो इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहा जाता है।
(ख) वस्तु विनितय प्रणाली में मांगों का दोहरा संयोग होना लाजिमी विशिष्टता हैं।

HBSE 10th Class मुद्रा और साख Important Questions Economics प्रश्न-2.
मुद्रा माँगों के दोहर संयोग को कैसे खत्म करती
उत्तर-
ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है, विनिमय प्रक्रिया में मुद्रा बीच का महत्त्वपूर्ण चरण प्रदान करके माँगों के दोहरे संयोग की जरूरत को खत्म कर देते हैं।

Chapter 3 मुद्रा और साख Important Questions HBSE 10th Class प्रश्न-3.
माँग जमा किसे कहते हैं?
उत्तर-
चूंकि बैंक खातों में जमा धन को माँग के जरिये निकाला जा सकता हैं इसीलिए इस जमा धन को मांग जमा कहा जाता है।

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प्रश्न-4.
चेक क्या है?
उत्तर-
चेक एक ऐसा कागज है जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक खास रकम का भुगतन करने कजा आदेश देता है।

प्रश्न-5.
माँग जमा को मुद्रा क्यों माना जाता हैं?
उत्तर-
चूंकि मांग जमा व्यापक स्तर पर भुगतान का जरिया स्वीकार किये जाते हैं, इसलिये आधुनिक अर्थव्यवस्था मे करेंसी के साथ-साथ इसे भी मुद्रा समझा जाता है।

प्रश्न-6.
ऋण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
ऋण से हमारा तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ उध परदाता कर्जदार को धन, वस्तुएं या सेवाएँ प्रदान करता है। और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वादा लेता है।

प्रश्न-7.
ऋण की शर्ते क्या हैं?
उत्तर-
ब्याज-दर, संपत्ति एवं कागजात की माँग और भुगतान के तरीके, इन सबको मिलकार ऋण की शर्ते कहा जाता है। ऋण की शर्तो में एक ऋण व्यवस्था से दूसरी ऋण व्यवस्था में काफी फर्क आता हैं। ऋण की शर्ते उधारदाता और कर्जदार की प्रकृति पर भी निर्भर करती हैं।

प्रश्न-8.
सहकारी समितियाँ किन कार्यो के लिए ऋण उपलब्ध कराती हैं?
उत्तर-
सहकारी समितियाँ कृषि उपकरण खरीदने, खेती तथा कृषि व्यापार करने, मछली पकड़ने, घर बननाने और तमाम अन्य खर्चा के लिए ऋण उपलब्ध कराती है।

प्रश्न-9.
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण के विभिन्न स्रोतों की सूची बनाइए।
उत्तर-
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में निम्नलिखित स्रोतों से ऋण उपलब्ध है
(क) महाजन (ख) साहूकार (ग) कृषि-व्यापारी (घ) सहाकारी समितियाँ (ङ) भूपति मालिक एवं (च) बैंक

प्रश्न-10.
किन स्रोतों से प्राप्त ऋण ज्यादा महँगा होता
उत्तर-
औपचारिक स्तर पर ऋण देनेवालों की तुलना में अनौपचारिक खण्ड के ज्यादात ऋणदाता कहीं ज्यादा ब्याज वसूलते हैं। इसलिए, अनौपचारिक स्तर पर लिया गया ऋण कर्जदाता को अधिक महँगा पड़ता है।

प्रश्न-11.
भारत में औपचारिक क्षेत्र के ऋणदाताओं की गतिविधियों पर कौन नजर रखता है?
उत्तर-
भारत में भारतीर रिजर्व बैंक कर्जा के औपचारिक स्रोतों की गतिविधियों पर नजर रखता है।

प्रश्न-12.
औपचरिक खण्ड के ऋण का लोगों तक पहुँचना क्यों जरूरी हैं?
उत्तर-
(क) औपचारिक खण्ड के ऋण का विस्तार होने के साथ-साथ इसका लोगों तक पहुँवना जरूरी है। क्योंकि वर्तमान समय में अमीर परिवारों की पहुँच औपचारिक स्रोतों तक हैं परंतु गरीब परिवारों को ज्यादातर अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
(ख) औपचारिक खण्ड से ऋण का वितरण बराबरी के स्तर पर होना चाहिए। जिससे गरीब लोगों को भी सस्ते ऋण का लाभ प्राप्त हो सके।

प्रश्न-13.
कार्यशील पूँजी के कुछ उदाहरण दीजिये।
उत्तर-
कच्चा माल, नकदी, धन, बीज, खाद, बाँस खरीदना आदि कार्यशील पूँजी के उदहरण हैं।

प्रश्न-14.
बैंक आत्मनिर्भर गुटों से जुडः महिलाओं को कर्ज देने के लिए क्यों तैयार होते हैं?
उत्तर-
(क) जब महिलाएं स्वयं को आत्मनिर्भर गुटों में आयोजित कर लेती हैं तो बैकि उन्हें ऋण देने के लिए तैयार हो जाते हैं हालांकि उनके पास कोई ऋणाधार नहीं होता है।
(ख) इसका कारण यह है कि बचत और ऋण गतिविधि यों से जुड़े ज्यादातर महत्त्वपूर्ण निर्णय गुट के सदस्य खुद करते हैं गुट फैसला करता है कि कितना कर्ज दिया जागण, उसका लक्ष्य, उसकी रकम. ब्याज दर, वापस लौटाने की अवधि क्या होगी आदि।
(ग) ऋण उतारने की जिम्मेदारी भी गुट की होती है एक भी सदस्य यदि ऋण नहीं लौटाता तो गुट के अन्य सदस्य इस मामले को गंभीरता से उठाते हैं।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न-15.
आधुनिक करेंसी (मुद्रा) का उत्पाद के रूप में अपने आप में कोई मूल्य नहीं हैं फिर इसे मुद्रा के जेसे क्यों स्वीकार किया गया?
उत्तर-
(क) मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं। आधुनिक मुद्रा का अपना कोई इस्तेमाल नहीं है।
(ख) इसे मुद्रा के रूप में विनिमय को माध्यम इसलिए स्वीकार किया जाता है। क्योंकि किसी देश की सरकार इसे प्राधिकृत करती है।

प्रश्न-16.
आधुनिक मुद्रा को विनिमय के साधन के रूप में क्यों स्वीकार किया जाता है? उदारहण दीजिये।
उत्तर-
(क) मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं। आधुनिक मुद्रा का अपना कोई इस्तेमाल नहीं है फिर भी इसे विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है इसका कारण यह है कि देश की सरकार इसे प्राधिककृत करती है।
(ख) उदाहरण के लिए, भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केंद्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करने के लिए प्राधिकृत हैं।
(ग) कानून रुपयों को विनिमय का माध्यम जैसे उपयोग की वैधता प्रदान करता है।
(घ) भारत में कोई व्यक्ति कानूनी तौर पर रुपयों में अदायगी को अस्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए रूपया व्यापक स्तर पर विनिमय का माध्यम स्वीकार किया गया है।

प्रश्न-17.
बैंकों की कर्ज संबंधी गतिविधियों पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
बैंकों में लोग मुद्रा निक्षेप के रूप में रखते हैं। बैंक उसके पास जमा रकम का 15 प्रतिशत हिस्सा नकद के रूप में अपने पास रखते हैं। इस धन को किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की संभावना को देखते हुए संभार के रूप में रखा जाता है।
बैंक उनके पास जमा राशि के प्रमुख भाग को कर्ज देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए कर्ज की बहुत मांग रहती है इस प्रकार बैंक दो गुटों-जमाकर्ता और कर्जदार के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं। जमाकर्ताओं को दिये गये ब्याज और कर्जदारों से लिये गये बयाज का बंतर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत होता है।

प्रश्न-18.
ऋण-फंदा से आपका क्या अभिप्राय हैं?
उत्तर-
लोग ग्रामीण गतिविधियों के लिए ऋण लेते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की मुख्य मांग फसल उगाने के लिए होती है।
मान लीजिये एक छोटा किसान अपने छोटे जमीन के टुकड़े पर फसल उगाने के लिये महाजन से ऋण लेता है। वह उम्मीद करता है कि अच्छी फसल होने पर वह कर्ज वापस कर देगा।
परंतु मौसम के बीच में फसल पर नाशक कीओं के हमले से फसल बर्बाद हो जाने के कारण वह कर्ज लौटाने में असफल हो जाता है और साल के भीतर ही यह कर्ज बड़ी रकम बन जाता है। अलगे वर्ष वह पुनः उधार लेता है। इस बार फसल सामान्य होती हैं लेकिन इतनी कमाई नहीं होती कि वह पिछला कर्ज उतार सके। उसे कर्ज लौटाने के लिए अपनी जमीन का कुछ हिस्सा बेचना पड़ता है। इस प्रकार वह ऋण फंदे में फंस जाता है। ऐसी परिस्थिति में कर्जदार का ऋण फंदे से निकलना अति कष्टदायक होता है।

प्रश्न-19.
ऋण की शर्ते क्या होती हैं?
उत्तर-
(क) ब्याज दर, संपत्ति, कागजात की मांग और भुगतान के तरीके इन सबको मिलाकर ऋण की शर्ते कहा जाता है। ऋण की शतों में एक ऋण व्यवस्था से दूसरी ऋण व्यवस्था में काफी फर्क होता है। ऋण की शर्ते ऋणदाता और कदार की प्रकृति पर भी निर्भर करती हैं।
(ख) हरेक ऋण समझौते में ब्याज-दर साफ तरीके से दी जाती है। जिसे कर्जदार महाजन को मूल रकम के साथ वापस करता है।
(ग) ऋणदाता ऋण के खिलाफ कोई समर्थक ऋणाधार की मांग कर सकता है। समर्थक ऋणाधार ऐसी संपत्ति है जिसका मालिक कर्जदार होता है। जैसे, भूमि, मकान, गाड़ी, पशु, बैंक में जमा पूंजी आदि। इसका इस्तेमाल ऋणदाता को गारंटी के रूप में किया जाता है, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता है!
(घ) यदि कर्जदार ऋण वापस नहीं कर पाता है तो ऋणदाता को भुगतान प्राप्ति के लिए समर्थक ऋणाधार को बेचने का अधिकार होता है।

प्रश्न-20.
ऋणों को कितने वर्गों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर-
(क) विभिन्न प्रकार के ऋणों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है : औपचारिक तथा अनौपचारिक खण्ड।
(ख) औपचारिक वर्ग में बैंकों व सहकारी समितियों से लिये कर्ज आते हैं।
(ग) अनौपचारिक वर्ग में महाजन, व्यापारी, साहूकार, मालिक, दोस्त, रिश्तेदार आदि आते हैं।

प्रश्न-21.
गरीबों में आत्मनिर्भर गुट के संगठन का क्या लाभ होता है?
उत्तर-
(क) आत्मनिर्भर गुट कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या का समाधान करते हैं।
(ख) विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए उन्हें सस्ती ब्याज-दर पर ऋण उपलब्ध हो जाता है।
(ग) आत्मनिर्भर गुट ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को संघबद्ध करने में मदद करते हैं।
(घ) इससे महिलाएं स्वावलंबी बनती हैं। गुट की नियमित बैंठकों में तरह-तरह के सामाजिक विषयों जैसे, स्वास्थ्य, पोषण, हिंसा आदि पर विचार-विमर्श करने का मौका मिलता है।

प्रश्न-22.
बांग्लादेश ग्रामीण बैंक पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
बांग्लोदश ग्रामीण बैंक की शुरुआत 1970 में हुई। इसकी सफलता सस्ती ब्याज दरों पर गरीबों को ऋण देने में रही है। इसके 60 लाख कर्जदार हैं जो बांग्लादेश के 40, 000 गांवों में फैले हुए हैं। इससे ऋण लेने वाली ज्यादातर गरीब महिलाएँ हैं।

प्रश्न-23.
सोनपुर के छोटे किसान, मध्य किसान और भूमिहीन कृषि मजदूर के लिए ऋण की शर्तों की तुलना कीजिए।
उत्तर-
1. छोटा किसान-सोनपुर के एक छोटे किसान श्यामल के पास 1.5 एकड़ जमीन है, जिसे जोतने के लिए उसे हर मोसम में ऋण की जरूरत होती है। पहले वह गांव के एक महाजन से ऋण लेता था जिस पर उसे पाँ प्रतिशत मासिक ब्याज देना पड़ता । बाद में वह एक कृषि व्यापारी से तीन प्रतिशत ब्याज पर ऋण लेने लगा। जुताई के मौसम की शुरुआत होने पर व्यापारी उसे कृषि संबंधी उपकरण और माल ऋण पर मुहैया कराता हैं, फसल तैयार होने पर ये उपकरण उसे व्यापारी को वापस करने पड़ते हैं।
ऋण पर ब्याज के अलावा व्यापारी किसानों से यह वादा लेता हैं कि वे अपनी फसल उसे ही बेचेंगे। इससे उसकी ऋण की अदायगी तेजी से हो जाती है। फिर वह सस्ते दाम पर फसल खरीदकर बाद में उसे बढ़े दामों पर बेचता है।

2. मध्यम किसान-अरुण एक मध्यम वर्गीय किसान है; उसके पास 7 एकड़ जमीन हैं वह कृषि कार्य के लिए बैंक से 8.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर !ण लेता है। इस ऋण को वह अगले तीन सालों में कभी भी लौटा सकता है। पिछला ऋण अदायगी के बाद बचे फसलों के खिलाफ वह और भी ऋण ले सकता है। बैंक उन किसानों को ऐसी सुविधा देने को तैयार रहता है जो पहले भी खेती के लिए उससे ऋण ले चुके

3. भूमिहीन कृषि मजदूर-रमा एक कृषि मजदूर हैं साल के कई महीनों में उसके पास कोई काम नहीं होता और रोजमर्रा के खर्चों के लिए उसे ऋण लेना पड़ता है बीमारी की स्थिति में या पारिवारिक समारोहों पर खर्च करने के लिए भी उसे ऋण लेना पड़ता है।
वह ऋण के लिए सोनपुर के एक मध्यम वरीय भूपति पर निर्भर है जो उसका मालिक भी है। भूपति उसे 5 प्रतिशत मासिक ब्याज दर पर ऋण देता है। इस कर्ज को वापस करने के लिए रमा को उसके घर पर काम करना पड़ता है। वह पुराना ऋण वापस नहीं कर पाती है। परंतु अगली खर्चों के लिए उसे नया ऋण लेना पड़ता है। उसका मालिक उसके साथ अच्छा व्यवहार नही करता लेकिन वह उसके यहाँ काम करना जारी रखती है क्योंकि उसे उससे नये ऋण मिलने की उम्मीद रहती है।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न-24.
सहकारी समितियाँ किस प्रकार अपने सदस्यों को ऋण उपलब्ध कराती हैं?
उत्तर-
(क) ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत सहकारी समितियां हैं। सहकारी समिति के सदस्य कुछ विशेष क्षेत्रों में सहयोग के लिए अपने संसाधनों के जोड़ लेते
(ख) सहकारी समितियां कई प्रकार की हो सकती हैं, जैसे, किसानों, बुनकरों, औद्योगिक मजदूरों आदि की सहकारी समितियां।
(ग) ये अपने सदस्यों से जमा कबूल करती हैं इस जमा पूंजी के आधार पर बैंकों से इन्हें बड़ा ऋण भी मिलता है। ___ (घ) सहकारी समितियाँ इस रकम का इस्तेमाल सदस्यों को ऋण देने के लिए करती हैं।
(ङ) पुराना ऋण लौटाने के बाद नया ऋण लिया जा सकता है।
(च) सहकारी समितियाँ अपने सदस्यों को कृषि उपकरण खरीदने खेती तथा कृषि-व्यापार करने, मछली पकड़ने, घर बनाने आदि के लिए ऋण देती हैं।

प्रश्न-25.
ऋण की औपचारिक स्रोतों के विस्तार की जरूरत क्यों हैं? इससे क्या लाभ प्राप्त हो सकता हैं?
उत्तर-
(क) औपचारिक स्तर पर ऋण देनेवालों की तुलना में अनौपचारिक वर्ग के ऋणदाता ज्यादा ब्याज लेते हैं। अतः अनौपचारिक ऋण कर्जदाता को अधिक महंगा पड़ता है।
(ख) ऋण पर ऊँचीब्याज दरों के कारण कर्जदारों की आय का अधिकतर हिस्सा ऋण अदायगी में खर्च हो जाता हैं इस तरह, उनके पास निजी खर्चे के लिए कम आय बच जाती
(ग) कुछ मामलों ऋण की ऊँ ब्याज दरों के कारण कर्ज वापसी की रकम कर्जदार की आय से भी अधिक हो जाती हैं जिस कारण वह ऋण-फंदे में फंस सकता हैं ।
(घ) कई बार ऊँची ब्याज दरों के डर से लोग नया काम शुरू ही नहीं कर पाते हैं।
उपरोक्त कारणों से ऋण के औपचारिक स्रोतों यथा, बैंक और सहकारी समितियों को अधिक से अधिक कर्ज उपलब्ध कराना चाहिए।

मुख्य लाभ-
(क) सस्ते ऋण से लोगों की आय बढ़ सकती है। (ख) गाँवों में लोग सफल उगाने के लिय या छोटा-मोटा कारोबार करने के लिए ऋण ले सकते हैं। शहरोंम में लोग नया उद्योग लगा सकते हैं या व्यापार कर सकते हैं। सस्ता ऋण देश के विकास के लिए अति आवश्यक है।,

प्रश्न-26.
शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में मिलने वाली ओपचारिक व अनौपचारिक ऋणों की तुलना करें।
उत्तर-
(क) शहरी क्षेत्रों के गरीब परिवारों की कर्जा की 85% जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पुरी होती हैं। इसकी तुलना में शहरी-इलाकों में अमीर परिवार 90% औपचारिक स्रोतों से ऋण लेते हैं सिफ 10% लोग अनौपचारिक स्रोतों से अपनी ऋण की जरूरतें पूरी करते हैं।
(ख) ग्रामीण इलाकों में भी अमीर लोग औपचारिक स्रोतों से अधिक ऋण लेते हैं जबकि गरीब परिवार अपनी ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं।
(ग) औपचारिक वर्ग ग्रामीण परिवारों के ऋण की जरूरतों का मात्र 50% ही पूरा कर पाता हैं
(घ) अनौपचारिक वर्ग के ऋणदाताओं का ब्याज दर • काफी ऊँची होती हैं जिससे कर्जदारों की समस्या साधारणतया बढ़ती ही हैं।
(ङ) वतमान समय में अमीर परिवारों की पहुँच औपचारिक स्रोतों तक हैं, परंतु गरीब परविरों को अधिकतर अनौपचारिक ऋणों पर निर्भर रहना पड़ता हैं।

प्रश्न-27.
भारत में गरीब परिवार अब भी ऋण के लिए अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर क्यों हैं।
उत्तर-
भारत में अधिकांश गरीब परिवार ऋण संबंधी जरूरतों के लिए अब भी अनौपचारिक स्त्रोतों पर निर्भर हैं, इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(क) भारत के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद नहीं हैं।
(ख) बैंकों से कर्ज लेना महाजनों से कर्ज लेने की अपेक्षा ज्यादा मुश्किल हैं
(ग) बैंक से कर्ज लेने के लिए संपत्ति और तमाम किस्म के कागजातों की जरूरत होती हैं।
(घ) ऋणाधार नहीं होने पर कज्र नहीं मिल पाता है।
(ङ) अनौपचारिक ऋणदाता इन कर्जदारों को निजी स्तर पर जानते हैं, इस कारण वे बना ऋणाधार के ही ऋण देने को तैयार हो जाते हैं।
(च) कर्जदार जरूरत पड़ने पर पुराना बकाया चुकाये बिना, साहूकार से नया ऋण ले सकते हैं।

प्रश्न-28.
गरीबों में आत्मनिर्भर गुट पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर-
(क) पिछले कुछ सालों में, लोंगों ने गरीबों को उधार देने के लिए कई नये तरीकों को ईजाद किया हैं, इनमें एक विचार ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों, खासकर महिलाओं को छोटे-छोटे आत्मनिर्भर गुटों में जोड़कर उनकी बचत पूंजी को एकचित्र करना है।
(ख) आमतौर पर एक गुट में 15-20 सदस्य होते हैं जो नियमित रूप से मिलते है। और बचत करते हैं परिवारों की बचत क्षमता के आधार पर प्रतिव्यक्ति 5 रुपये से 100 रुपये तक बचत की जा सकती है।
(ग) आत्मनिर्भर गुट के सदस्य अपनी जरूरतों के हिसाब से गुट से ही कर्ज ले सकते हैं जिस पर उन्हें ब्याज देना पड़ता है परंतु यह ब्याज साहूकारों की अपेक्षा बहुत कम होता
(घ) एक या दो वर्षों बाद यह गुट बैंक से ऋण ले सकता है। इसका उद्देश्य सदस्यों को अपनी गिरवी जमीन छुड़वाने के लिए तथा कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऋण उपलब्ध कराना है।
(ङ) बचत और ऋण गतिविधियों से जुड़े ज्यादातर महत्त्वपूर्ण निणय गुट के सदस्य खुद करते है।। गुट ही फैसला करता है कि किमना कर्ज दिया जाएगा, उसका लक्ष्य, उसकी रकम, ब्याज दर, वापस लौटाने की अवधि आदि।
(च) इस ऋण को वापस करने की जिम्मेदारी भी गुट की होती हैं यदि गुट का कोई सदस्य ऋण वापस नहीं करता तो गुट के अन्य सदस्य इस मामले को गंभीरता से उठाते हैं।
(छ) आत्मनिर्भर गुट कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में मदद करते हैं।
(ज) उन्हें समायनुसार विभिन्न प्रकार के लक्ष्यों के लिए एक यथोचित ब्याज दर पर ऋण मिल जाता है।
(झ) यह गुट ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को संघबद्ध करने में मदद करते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के चार विकल्प दिए गए हैं। सही विकल्प का चयन करें।

प्रश्न 1.
जब क्रेता और विक्रेता दोनों एक-दूसरे से चीजें खरीदने और बेचने पर सहमति रखते हों, तो इसे कहते हैं-
(क) आवश्यकताओं का दोहरा संयोग
(ख) माँग तथा उत्पादन का दोहरा संयोग
(ग) उत्पादन का तिहरा संयोग
(घ) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(क) आवश्यकताओं का दोहरा संयोग

प्रश्न 2.
प्रारंभिक काल मे भारत में मुद्रा के रूप में इस्तेमाल होते थे-
(क) सिक्के
(ख) करेंसी
(ग) अनाज और पुश
(घ) रुपये
उत्तर-
(ग) अनाज और पुश

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 3.
मुद्रा के आधुनिक रूपों में शामिल हैं
(क) सोना और चाँदी के सिक्के
(ख) करैसी कागज के नोट और सिक्के
(ग) अनाज तथा पशु
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) करैसी कागज के नोट और सिक्के

प्रश्न 4.
केंद्र सरकार की ओर से नोट जारी करता हैं–
(क) भारतीय रटेट बैंक
(ख) सहकारी बैंक
(ग) कारपोरेशन बैंक
(घ) भारतीय रिजर्व बैंक
उत्तर-
(घ) भारतीय रिजर्व बैंक

प्रश्न 5.
भारत की मुद्रा हैं-
(क) रुपया
(ख) डॉलर
(ग) पौंड
(घ) दिनार
उत्तर-
(क) रुपया

प्रश्न 6.
चूंकि बैंक खातों में जमा धन को मांग के जरिये निकाला जा सकता है, इसलएि इसे कहते हैं-
(क) धन जमा
(ख) माँग जमा
(ग) चेक जमा
(घ) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) माँग जमा

प्रश्न 7.
आजकल भारत में बैंक जमा का कितना प्रतिशत हिस्सा नकद के रूप में रखते हैं?
(क) 5
(ख) 10
(ग) 15
(घ) 20
उत्तर-
(ग) 15

प्रश्न 8.
ऐसी संपत्ति जिसका मालिक कर्जदार है औश्र इसका इस्तेमाल वह उधारदाता को गांरटी देने के रूप में करता है, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता है, कहते हैं-
(क) समर्थक ऋणाधार
(ख) ऋण
(ग) पूंजी
(घ) समर्थक धन
उत्तर-
(क) समर्थक ऋणाधार

प्रश्न 9.
ब्याज दर, संपत्ति और कागजात की मांग और भुगतान के तरीके, इन सबकों मिलाकर क्या कहा जाता हैं?
(क) समर्थक ऋणाधार
(ख) ऋण की शर्ते
(ग) उत्पादन के साधन
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) ऋण की शर्ते

प्रश्न 10.
औपचारिक स्रोतों के ऋणदाता हैं–
(क) बैंक
(ख) सहकारी समितियाँ
(ग) a और b दोंनो
(घ) साहूकार
उत्तर-
(ग) a और b दोंनो

प्रश्न 11.
अनौपचारिक ऋण स्रोतों के उदाहरण हैं–
(क) बैंक
(ख) सहकारी समितियाँ
(ग) साहूकार
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ग) साहूकार

प्रश्न 12.
सोनपुर में भूमिहीन लोगों के लिए ऋण का स्रोत
(क) बैंक
(ख) गुर्ट
(ग) व्यापारी
(घ) भूपति मालिक
उत्तर-
(घ) भूपति मालिक

प्रश्न 13.
भारत में कों के औपचारिक स्रोतों पर नजर रखता हैं.
(क) भारतीय स्टेट बैंक
(ख) सहकारी समितियाँ
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक
(घ) वित्त मंत्रालय
उत्तर-
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक

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प्रश्न 14.
शहरी इलाकों के गरीब परिवारों के कर्ज की कितनी प्रतिशत जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं-
(क) 70
(ख) 75
(ग) 80
(घ) 85
उत्तर-
(घ) 85

प्रश्न 15.
शहरी इलाकों में अमीर परिवारों के कर्ज का कितना प्रतिशत अनौपचारिक स्रोतों से पूरा होता
(क) 5
(ख) 10
(ग) 15
(घ) 20
उत्तर-
(ख) 10

प्रश्न 16.
शहरी इलाकों में अमीर परिवारो के कर्ज का कितना प्रतिश औपचारिक स्रोतों से पूरा होता हैं?
(क) 70
(ख) 85
(ग) 90
(घ) 95
उत्तर-
(ग) 90

प्रश्न 17.
ग्रामीण परिवारों की ऋण की जरूरतों का कितना प्रतिशत औपचारिक खण्ड से पूरा होता हैं?
(क) 30
(ख) 40
(ग) 50
(घ) 80
उत्तर-
(ग) 50

प्रश्न 18.
साधारणतया आत्मनिर्भर गुट में कितने सदस्य होते है-
(क) 15-20
(ख) 20-25
(ग) 25-30
(घ) 30-50
उत्तर-
(क) 15-20

प्रश्न 19.
बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के आज कितने कर्जदार
(क) 1952
(ख) 1965
(ग) 1970
(घ) 1972
उत्तर-
(ग) 1970

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

प्रश्न 20.
बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के आज कितने कर्जदार
(क) 50 लाख
(ख) 60 लाख
(ग) 70 लाख ।
(घ) 75 लाख
उत्तर-
(ख) 60 लाख

प्रश्न 21.
बांग्लादेश ग्रामीण बैंक से ऋण लेने वाले ज्यादातर
(क) विद्यार्थी
(ख) व्यापारी
(ग) किसान
(घ) महिलायें
उत्तर-
(घ) महिलायें

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HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Important Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

उपभोक्ता अधिकार प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न-1.
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग का मुख्यालय कहाँ है?
उत्तर-
नई दिल्ली में।

HBSE 10th Class उपभोक्ता अधिकार Important Questions Economics प्रश्न-2.
सबसे अधिक प्रभावशाली उपभोक्ता न्यायालय का क्या नाम हैं?
उत्तरः
जिला मंचा

Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Important Questions HBSE 10th Class प्रश्न-3
उपभोक्ता सुरक्षा कानून कब अस्तित्व में आया। इसमें कब-कब सुधार किये गये? ।
उत्तर-
उपभोक्ता सुरक्षा कानून 1986 में अस्तित्व में आया। इसमें 1991 और 1993 में सुधार किए गये।

प्रश्न-4.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानकीकरण करने वाली संस्था कौन-सी है। इसका मुख्यालय कहाँ हैं?
उत्तर-
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानकीकरण करने वाली संस्था I.S.0 हैं। इसका मुख्यालय जेनेवा में हैं

प्रश्न 5.
विभिन्न वसतुओं और सेवाओं की माँग पर किसका असर प्रमुख रूप से पड़ता है?
उत्तर
विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं की माँग पर सबसे अधिक असर विज्ञापनों का पड़ता है।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

प्रश्न 6.
सीमित आपूर्ति से आपका क्या आशय हैं?
उत्तर-
सीमित आपूर्ति का आशय है कि मांग की तुलना में किसी वस्तु का उत्पादन कम होना।

प्रश्न 7.
भारत में व्यवस्थित रूप से उपभोक्ता आंदोलनों का आरंभ कब हुआ?
उत्तर-
भारत में व्यवस्थित रूप से उपभोक्ता आंदोलनों का आरंभ 1980 के उत्तरार्ध और 1990 के पूर्वार्ध में हुआ।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता अधिकारों के विषय में सबसे पहली घोषणा कब और कहाँ की गई?
उत्तर-
उपभोक्ता अधिकारों के विषय मे सबसे पहली घोषणा 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका में की गई।

प्रश्न 9.
बी.एस.आई.का मुख्यालय कहाँ हैं?
उत्तर-
नई दिल्ली में।

प्रश्न 10.
किस संस्था के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सामग्रियों के लिए मानक निर्धारित किये जाते हैं?
उत्तर-
कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन -(Codex Alimentarius Commission) द्वारा।

प्रश्न- 11.
हम उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों रूपों में भागीदारी कैसे करते हैं?
उत्तर-
(क) बाजार में हमारी भागीदारी उत्पादक एवं उपभोक्ता दोंनों रूपों में होती है।
(ख) सेवाओं तथा वस्तुओं के उत्पादक के रूप में हम कृषि, उद्योग या सेवा जैसे विभागों में कार्यरत हो सकते हैं। जब हम अपनी आवश्यकतानुसार बाजार से वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं तो हमारी भागीदारी उपभोक्ता के रूप में होती हैं।

प्रश्न- 12.
बाजार में लोगों के शोषण के लिये क्या तरीके अपनाये जाते हैं? उदारहण दीजिये।
उत्तर-
बाजार में लोगों का शोषण कई तरीकों से हो सकता
(क) महाजन कर्जदार पर बंधन लगाने के लिए कई दाँव पेच अपनाते हैं। सामयिक ऋण के कारण वे उत्पादक को अपना उत्पाद निम्न दरों पर उन्हें बेचने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
(ख) वे लोगों को ऋण चुकाने के लिए अपनी जमीन बेचने के लिए विवश कर सकते हैं।
(ग) असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले बहुत से कार्मिकों को कम वेतन पर कार्य करना पड़ता है।
(घ) साथ ही, उन्हें उन हालातों को झेलना पड़ता है, जो न्यायोजित नहीं होते और उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक – भी होते हैं।

प्रश्न-13.
उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत के क्या कारण थे?
उत्तर-
(क) उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत उपभोक्ताओं के असंतोष के कारण हुई, क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यवसायों में शामिल होते थे।
(ख) बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी।
(ग) जब कोई उपभोक्ता लम्बे समय तक एक विशेष ब्राण्ड उत्पाद या दुकान से संतुष्ट नहीं होता था तो वह या तो उस उत्पाद को खरीदना बंद कर देता था या उस दुकान से खरीददारी करना बंद कर देता था। यह माना जाता था कि किसी वस्तु अथवा सेवा को खरीदेते समय सावधानी बरतने की जिम्मेदारी उपभोक्ता की है।
(घ) इन्हीं कारणों से उपभोक्ता संस्थाओं का गठन किया गया और उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत हुई। परिणामस्वरूप वस्तुओं व सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी विक्रेताओं पर भी डाला गया।

प्रश्न-14.
भारत में 1970 के दशक में उपभोक्ता आंदोलन के विकास में उपभोक्ता संस्थाओं ने क्या योगदान दिया?
उत्तर-
(क) 1960 के दशक में भारत में व्यवस्थित रूप से उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ।
(ख) 1970 के दशक तक उपभोकता संस्थाओं ने वृहत् स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन तथा प्रदर्शनी का आयोजन शुरू किया।
(ग) उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ और राशन दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नजर रखने के लिए उपभोक्ता दलों का निर्माण किया।
(घ) इन सभी प्रयासों के कारण यह आंदोलन वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

प्रश्न-15.
उपभोक्ता इंटरनेशनल पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1985 ई. में उपभोक्ता सुरक्षा हेतु कई महत्त्वपूर्ण दिशा निर्देशों को अपनाया।
(ख) यह विभिन्न देशों के उपभोक्ता वकालत दलों के लिए एक हथियार था जिसके माध्यम से वे उपभोक्ता सुरक्षा के लिये उपयुक्त तरीके अपनाने के लिए अपनी सरकारों को मजबूर कर सकते थे।
(ग) यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता आंदोलन का आधार बना।
(घ) आज उपभोक्ता इंटरनेशनल 100 से भी अधिक देशों की 240 संस्थाओं का एक संरक्षक संस्था बन गया है।

प्रश्न-16.
सुरक्षा कानूनों के बावजूद बाजार से बुरे उत्पाद क्यों प्राप्त होते हैं?
उत्तर-
(क) सुरक्षा नियमों व अधिनियमों के बावजूद हमें बाजार से बुरे उत्पाद प्राप्त होते हैं क्योंकि इन नियमों व कानूनों के पालन पर उचित निगाह नहीं रखी जाती हैं और;
(ख) उपभोक्ता आंदोलन भी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है। जिस कारण उपभोक्ता संगठित होकर अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई नहीं लड़ सकते।।

प्रश्न-17.
वस्तुओ के पैकेट पर किन जानकारियों का होना जरूरी है?
उत्तर-
(क) वस्तुओं के पैकेट पर वस्तु के अवयवों, मूल्य, बैच संख्या, निर्माण की तारीख, खराब होने की अंतिम तिथि तथा वस्तु निर्माता का पता होना जरूरी है।
(ख) उदाहरण के तौर पर जब हम कोई दवा खरीदते हैं तो उस दवा के ‘उचित प्रयोग के बारे में निर्देश’ तथा उस दवा के प्रयोग के अन्य प्रभावों तथा खतरों से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ठीक इसी तरह वस्त्र खरीदने पर ‘धुलाई संबंधी निर्देश’ प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न-18.
राइट टू इनफारमेशन एक्ट के महत्त्व को उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) भारत सरकार ने अक्टूबर 2005 ई. में ‘राइट टू इनफारमेशन’ या सूचना पाने का अधिकार कानून पारित किया।
(ख) यह कानून नागरिकों को सरकारी विभागों के क्रियाकलापों की सीभी सूचनाएँ पाने का अधिकार सुनिश्चित करता है।
(ग) अमृता नाम की एक इंजीनियरिंग स्नातक ने नौकरी के लिए साक्षात्कार दिया एवं अपने सभी प्रमाण पत्र भी जमा किये परंतु उसे परिणाम प्राप्त नहीं हुआ। कर्मचारियों ने भी उसके प्रश्नों का उत्तर देने से इनकार कर दिया। तब उसने आर. टी. आई. एक्ट का प्रयोग करते हुए एक प्रार्थना पत्र दिया कि एक उचित समय सीमा के भीतर परिणाम की जानकारी उसका अधिकार था, जिससे वह भविष्य की योजना बना सके।
(घ) उसके प्रयासों का नतीजा यह हुआ कि यथाशीघ्र उसे नियुक्ति पत्र प्राप्त हो गया।

प्रश्न-19.
“जब हम वस्तुएँ खरीदते हैं तो पाते हैं कि कभी-कभी पैकेट पर छपे मूल्य से अधिक या कम मूल्य लिया जाता है।” इसके कारणों का पता लगाइए।
उत्तर-
वस्तुएँ खरीदते वक्त कभी-कभी पैकेट पर छपे मूल्य से अधिक या कम मूल्य लिया जाता है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते है
(क) उपभोक्ता अधिकारों के ज्ञान का अभाव (ख) मुनाफाखोरी (ग) अचानक मूल्य वृद्धि (घ) करो में वृद्धि (ङ) विक्रेता द्वारा शोषण का तरीका।

प्रश्न-20.
चुनने के अधिकार का उल्लंघन कैसे होता है? उदाहरण दीजिये।
उत्तर-
(क) कई बार हमें उन वस्तुओं को खरदीने के लिए भी दबाव डाला जाता है, जिनको खरीदने की हमारी बिल्कुल इच्छा नहीं होती। परंतु चुनाव के लिए हमारे पास कोई विकल्प नहीं होता है।
(ख) उदाहरण के लिए, कभी-कभी जब हम नया गैस कनेक्शन लेते हैं तो डीलर गैस के साथ-साथ चूल्हा भी लेने के लिए हम पर दबाव डालता है। वेसे ही यदि हम एक दंतमंजन खरीदना चाहते हैं और दुकानदार कहता है कि वह हमें दंजमंजन तभी बेच सकता है जब हम दंतमजन के साथ-साथ ब्रश भी खरीदेंगे।

प्रश्न-21.
एक आसान और प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर-
(क) उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी और शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति माँगने का अधिकार है।
(ख) यदि किसी उपभोक्ता को कोई क्षति पहुंचाई जाती है, तो क्षति की मात्रा के आधार पर उसे क्षतिपूर्ति पाने का अधि कार होता है। इस कार्य को पूरा करने के लिए एक आसान व प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है।

प्रश्न-22.
उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता सुरक्षा परिषद् किसे कहते हैं? इनके कार्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर-
भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए विभिन्न संगठनों के निर्माण को प्रेरित • किया है; इन्हें सामान्यतः उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता सुरक्षा परिषद् कहा जाता है।
(ख) ये उपभोक्ताओं को उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दायर करने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी देती हैं।
(ग) कई अवसरों पर ये उपभोक्ता अदालत में उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व भी करती हैं।
(घ) ये स्वयंसेवी संगठन है जिन्हें जनजागरण पैदा करने के लिए सरकार से वित्तीय सहायता भी प्राप्त होता है।

प्रश्न-23.
विभिन्न वस्तुएँ खरीदते समय आई.एस.आई. लोगों एगमार्क या हॉलमार्क के लोगों क्यों देखना चाहिए?
उत्तर-
(क) विभिन्न वस्तुएँ खरीदते समय हमें आवरण पर लिखे अक्षरों-आई.एस.आई. एगमार्क या हॉलमार्क के लोगों अवश्य देखना चाहिए।
(ख) ये लोगो या प्रमाण चिन्ह हमें अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मद्द करते हैं।
(ग) उपभोक्ता संगठनों द्वारा नियंत्रित एवं जारी किए जाने वाले इन प्रमाण चिन्हों के प्रयोग की अनुमति उत्पादकों को तब दी जाती है, जब वे निश्चित गुणवत्ता मानकों का पालन करते हैं।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

प्रश्न-24.
क्या सभी उत्पादों के लिए मानदण्डों का पालन करना आवश्यक है?
उत्तर-
(क) यद्यपि उपभोक्ता संगठन बहुत से उत्पादों के लिए गुणवत्ता का मानदण्ड विकसित करते हैं, किंतु सभी ‘उत्पादों के लिए इन मानदण्डों का पालन करना जरूरी नहीं होता है।
(ख) तथापि कुछ उत्पादों जो उपभोक्ता की सुरक्षा ओर स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं तथा जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर होता है। इनके उत्पादन के लिए उत्पादकों को इन संगठनों से प्रमाण-पत्र लेना आवश्यक है। जैसे-एल.पी.जी. सिलिंडर्स, खाद्य रंग एवं उसमें प्रयुक्त सामग्री, सीमेंट, बोतल बंद पेयजल आदि।

प्रश्न-25.
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?
उत्तर-
(क) प्रतिवर्ष 24 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।
(ख) क्योंकि 1986 ई. में इसी दिन भारतीय संसद ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम पारित किया था।

प्रश्न-26.
उपभोक्ता आंदोलन कैसे सफल हो सकता है?
उत्तर-
(क) उपभोक्ता आंदोलन की सफलता के लिए उपभोक्ताओं को अपनी भूमिका तथा महत्त्व जानने की जरूरत
(ख) उपभोक्ताओं की सक्रिया भागीदारी से उपभोक्ता आंदोलन प्रभावी हो सकता है। इसके लिए स्वयंसेवी प्रयास _और सबकी साझेदारी से संघर्ष करना जरूरी है।

प्रश्न-27.
उपभोक्ता अदालतों में शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर-
उपभोक्ता अदालतों में शिकायत दर्ज कराने हेतु किसी विधि विशेषज्ञ या कानूनी सलाहकार की सहायता लेना आवश्यक नहीं है। इन अदालतों में उपभोक्ता स्वयं अपने मामलों की पैरवी कर सकता है। यह प्रक्रिया इतनी सहज व सरल है कि उपभोक्ता सादे कागज पर अपनी शिकायत लिखकर भी दे सकता है। शिकायत के साथ वस्तु की रसीद अवश्य संलग्न करना चाहिए। यही कारण है कि यह कहा जाता है कि कोई भी वस्तु क्यों न खरीदें, रसीद अवश्य प्राप्त करें।

प्रश्न-28.
‘उपभोक्ता सुरक्षा कानून’ 1986 क्यों बनाया गया?
उत्तर-
‘उपभोक्ता सुरक्षा कानून’ 1986 बनाये जाने का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर, उनके हितों का सरंक्षण प्रदान करना है। इसके साथ ही उपभोक्ता हित से जुड़े मामलों से सम्बन्धित झगड़ों के निपटारे हेतु समितियों का गठन करना भी इस कानून का उद्देश्य है।

प्रश्न-29.
उपभोक्ता सुरक्षा कानून 1986 में दिये गए उपभोक्ताओं के अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
उपभोक्ता सुरक्षा कानून 1986 दवारा उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार दिये गये हैं

  • सुरक्षा का अधिकार-उपभोक्ताओं को यह अधिकार दिया गया है कि वे उन वस्तुओं की बिक्री से अपना बचाव कर सकें, जो उनके जीवन और सम्पत्ति के लिए खतरना हैं।
  • सूचना का अधिकार-इसके अंतर्गत गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता स्तर और मूल्य आदि के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करना शामिल है।
  • चुनाव का अधिकार-उपभोक्ताओं को यह अधिकार है कि वे अपनी आवश्यकताओं की वस्तुओं को चुन सकें, जिससे कि वे संतोषजनक गुणवत्ता की वस्तु सही मूल्य में – प्राप्त कर सकें।
  • सुनवाई का अधिकार-उपभोक्ताओं का यह विशेष अधिकार है कि उपभोक्ताओं से जुड़ी संस्थाओं तथा संगठनों पर अपनी समस्याओं की सुनवाई की माँग कर सकें।
  • शिकायतें निपटारे का अधिकार-उपभोक्ताओं को यह अधिकार मिला हुआ है कि शोषण व अनुचित व्यापारिक क्रियाओं के विरुद्ध निदान और शिकायतों का सही प्रकार से निपटारा हो।
  • उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार-उपभोक्ता को यह विशेष अधिकार है कि वह अपने हित से जुड़े मामलों तथा वस्तु विशेष से जुड़ी जानकारी प्राप्त कर सके।

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HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था Important Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
विश्व व्यापार संगठन कागठन कब हुआ था?
उत्तर-
सन् 1995 ई. में।
HBSE 10th Class वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था Important Questions Economics प्रश्न 2.
विश्व संगठन की स्थापना किसके द्वारा की गई थी?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों द्वारा।
(अ) मोटर गाड़ियों
(ब) कपड़ा, जूते-चप्पल, खेल सामान, व्यापार नियमत के लिए किया जाता है।
(स) कॉल सेंटर
(द) टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी
(य) व्यापार अवरोधक
Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था Important Questions HBSE 10th Class प्रश्न 3.
विश्व व्यापार संगठन का मुख्य कार्यालय कहाँ
उत्तर-
जेनेवा में।
प्रश्न 4.
1991 ई. के आद भारत में अपनाई गई नई आर्थिक नीति का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
सन् 1991 ई. के बाद अपनाई गई नई आर्थिक नीति का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को तेजी से आर्थिक विकास के मार्ग पर लाना था।
प्रश्न 5.
उदारीकरण प्रक्रिया के मुख्य कितने भाग होते
उत्तर-
उदारीकरण प्रक्रिया के मुख्यतः दो भाग होते हैं
(क) निजी क्षेत्र की उन औद्योगिक क्रियाओं को चलाने की अनुमति दी जाती है। जो पहले सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र में चलाई जाती थीं।
(ख) उन नियमों और प्रतिबंधों में छूअ देना जिनसे पहले निजी क्षेत्र के विकास में रुकावट आती थी।
प्रश्न 6.
भारत सरकार द्वारा वैश्वीकरण की नीति अपनाये जाने का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर-
भारत सरकार ने वैश्वीकरण की नीति को प्रमुखतः इसलिए अपनाया ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ा जा सके। जिससे तकनीकी ज्ञान, अनुभव, पूँजी आदि का अबाध रूप से आदान-प्रदान हो सके।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 7.
उदारीकरण तथा वैश्वीकरण का भारत के संचार क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की नीतियों के कारण भारत में कम कीमत पर उत्तम संचार साधन उपलब्ध होने लगा।
प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के लिए जिम्मेदार तीन कारक बताइये।
उत्तर-
(क) प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति (ख) व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण (ग) डब्ल्यू. टी. ओ. जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का दबाव।
प्रश्न 9.
बहुराष्ट्रीय कंपनी किसे कहते हैं?
उत्तर-
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी वह है जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथावा स्वामित्व रखती है।
प्रश्न 10.
निवेश से आपका क्या तात्यर्प हैं?
उत्तर-
(क) परिसंपत्तियों जैसे, भूमि, भवन, मशीन और अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते हैं।
(ख) कोई भी निवेश इस आशा से किया जाता है कि ये परिसंपत्तियाँ लाभ अर्जित करेंगी।
प्रश्न 11.
संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कंपनियों को क्या लाभ होता हैं?
उत्तर-
संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कंपनियों को दुगना लाभ होता है। एहला, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ तीव्र उत्पादन के लिए अतिरिक्त निवेश जैसे, नयी मशीन के लिए धन प्रदान कर सकती हैं।
(ख) दूसरा, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उतपादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी अपने साथ लाती हैं।
प्रश्न 12.
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार दूररथ स्थानों के उत्पादन पर अपना प्रभाव जमा रही हैं।
उत्तर-
स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी द्वारा, आपूर्ति के लिए स्थानीय कंपनियों का इस्तेमाल करके और स्थानीय कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करके अथवा उन्हें खरीदकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ स्थानों के उत्पादन पर अपना प्रभाव जमा रही हैं।
प्रश्न 13.
विदेशी व्यापार का क्या लाभ होता है?
उत्तर-
(क) विदेश व्यापार घरेलू बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उतपादकों को एक अवसर प्रदान करता है।
(ख) दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के समक्ष वस्तुओं के विकल्पों का विस्तार होता है।
प्रश्न 14.
अतीन में देशों को जोड़ने वाला मुख्य माध्यम क्या था?
उत्तर-
प्रायः लोग बेहतर आय, बेहतर रोजगार एवं शिक्षा की तलाश में एक देश से दूसरे देश में आवागम करते हैं।
प्रश्न 15.
विगत वर्षों में विभिन्न देशों के बीच अधि काधिक व्यापार व निवेश में योगदान करने वाला मुख्य कारक क्या है?
उत्तर-
हाल के वर्षों में अनेक देशों के बीच अधिकाधिक व्यापार और निवेश में योगदान करने वाला मुख्य कारक हैं-अनेक प्रकार के व्यापार और निवेश अवरोधकों या प्रतिबंध में में कटौती होना।
प्रश्न 16.
कोटा से आपका कया अभिप्राय हैं?
उत्तर-
सरकार व्यार अवरोधक के रूप में, आयात होने वाली वस्तुओं की संख्या सीमित कर सकती हैं, इसे कोटा कहते हैं।
प्रश्न 17.
कुछ प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का विदेश व्यापार और विदेशी निवेश के बारे में क्या विचार हैं?
उत्तर-
कुछ प्रभावशली अंतराष्ट्रीय संगठनों का मानना है कि विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेश पर सभी अवरोधक हानिकारक हैं। अत: कोई अवरोधक नहीं होना चाहिए। विभिन्न देशों के बीच मुक्त व्यापार होना चाहिए। तथा विश्व के सभी देशों को अपनी नीतियाँ उदार बनानी चाहिए।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 18.
गत वर्षों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में किन क्षेत्रों में निवेश किया हैं?
उत्तर-
भारत में विगत पंद्रह वर्षों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने उपभोक्ता वस्तुओं एवं सेवाओं जैसे, सेलफोन, मोअर गाड़ियों, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, ठंडे पेय पदार्थो, जंक खाद्या पदार्थो जैसी वस्तुओं एवं बैंकिंग जैसी संवाओं में निवेश किया है।
प्रश्न 19.
विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
विश्व व्यापार संगठन के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नवत्-
  • विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य है कि सदस्य देश आयात और निर्यात दोनों पर से प्रतिबंध हटा दें।
  • विश्व व्यापार संगठन आशा करता है। कि सभी सदस्य देश द्विपक्षीय व्यापारिक समझौतों के स्थान पर बहुपक्षीय व्यापारिक समझौते करें।
  • सभी सदस्य देशों के मध्य व्यापारिक समझौतों का विकास हो।
  • विश्व के सभी देशों के मध्य व्यापार का संचालन इस प्रकार हो कि समानता तथा खुलापन बरकार रहें।
  • सदस्य देशों में व्यापारिक गतिविधियों में किसी प्रकार का भेदभाव न हों।
प्रश्न 20.
उन प्रमुख प्रभावों का उल्लेख करें जो उदारीकरण नीति के तहत निजी क्षेत्र पर पड़े हैं
उत्तर-
  • अधिक-से-अधिक उद्योगों का निजी क्षेत्र के लिए खोला जाना।
  • निजी क्षेत्र को इस्पात, बिजली, वायु परिवहन, भारी मशीनरी निर्माण तथा रक्षा उपकरणों के निर्माण की अनुमति।
  • लाइसेंस के प्रतिबंधों से मुक्ति।
  • कच्चे माल के आयात की अनुमति।
  • मूल्य निर्धारण तथा वितरण पर नियंत्रण से मुक्ति।
  • बड़ी कम्पनियों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध से मुक्ति।
प्रश्न 21.
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किन स्थानों पर उतपादन कार्य संचलित करती हैं?
उत्तर-
(क) सामान्यत: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन कार्य संचालित करनी हैं जहाँ बाजार की निकटता हो, जहाँ सस्ते दर पर श्रमिक उपलब्ध हों और जहाँ उत्पादन के अन्य कारकों की उपलबधता सुनिश्चित हों। .
(ख) साी ही, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ सरकारी नीतियों पर भी विचार कर सकती हैं, जो उनके हितों की देखभाल करती
(ग) इन परिस्थितियों से सुनिश्चित होकर ही बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उतपादन के लिए कार्यालयों और कारखानों की स्थापना करती हैं।
प्रश्न 22.
सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग क्यों करती
उत्तर-
(क) देश में आयात पर कर लगाना व्यापार अवरोधक का उदाहरण है। इसे अवरोधक इसलिए कहा गया है। क्योंकि यह कुछ प्रतिबंध लगाता है।
(ख) सरकारें व्यपार अवरोधक का प्रयोग विदेश व्यापार में वृद्धि या कटौती करने तथा देश में आयात होनेवाली वस्तुओं की मात्रा निश्चित करने के लिए कर सकती है।
(ग) उपभोक्ताओं के लिए उचित मूल्ख सुनिश्चित करने __ की जरूरत भी इसका एक कारण हो सकता है।
(घ) सरकारें घरेलू उत्पादकों को संरक्षण प्रदान करने के लिए भी ऐसा करती हैं।
प्रश्न 23.
प्रतिस्पर्धा से भारत के लोगों को कैसे लाभ हुआ हैं?
उत्तर-
(क) वैश्वीकरण एवं राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय उत्पादकों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण उपभोक्ताओं, विशेषकर, धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को काफी लाभ हुआ हैं इन उपभोक्ताओं के पास पहले से अधिक विकल्प मौजूद हैं।
(ख) अब उनको उत्पादों की उत्कृष्टता, गुणवत्ता और कम कीमत का लाभ मिल रहा हैं।
(ग) लोग आज पहले की तुलना में अपेक्षाकृत उच्चतर जीवन स्तर का उपभोग कर रहे हैं।
प्रश्न 24.
वैश्वीकरण को अधिकाधिक न्यायसंगत कैसे बनाया जा सकता हैं?
उत्तर-
(क) न्यायसंगत वैश्वीकरण से सभी के लिए नये अवसरों का सृजन होगा तथा वैश्वीकरण के लाभों में सबकी हिरेदारी सुनिश्चित की जा सकेगी।
(ख) इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। सरकारी नीतियों से देश के सभीलोगों के हितों को संरक्षण मिलना चाहिये। जैसे, श्रम कानूनों का उचित कार्यान्वयन एवं श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा का दायित्व सरकार पर है।
(ग) सरकार छोटे उत्पादकों को मदद देकर उन्हें प्रतिस्पध के लिये सक्षम बना सकती है। .
(घ) आवश्यकता होने पर सरकार व्यापार तथा निवेश अवरोधकों का उपयोग कर सकती हैं तथा न्यायसंगत नियमों के लिए विश्व व्यापार संगठन से समझौते भी कर सकती है।
(ङ) पिछले कुछ वर्षों, में बड़े अभियानों और जनसंगठनों के प्रतिनिधियों ने विश्व व्यापार संगठन के व्यापार और निवेश से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित किया है। इससे सिद्ध होता है कि जनता भी न्याय संगत वैश्वीकरण के संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

HBSE 10th Class Social Science Important Questions Economics Chapter 4 वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 25.
उदारीकरण और वेश्वीकरण की नीति अपनाने के फलस्वरूप भारत में आए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की नीति अपनाने के कारण भारत में मुख्यतः निम्नलिखित परिवर्तन आये हैं-
  1. संचार के क्षेत्र में कम कीमत पर दूरभाषा के अच्छे उपकरण मिलने लगे।
  2. कम कीमत पर रंगीन टेलीविजन के अच्छे सेट उपलब्ध होने लगे।
  3. अनेक खाद्य पदार्थ उत्पादन करने वाली कम्पनियों द्वारा खाद्य तथा पेय पदार्थ उपलब्ध कराये जाने के कारण खाद्य पदार्थो के क्षेत्र ने बाजार में ऊँचा स्थान बना लिया।
  4. विश्व बाजार में भारतीय माल तथा सेवाओं की भागीदारी काफी बढ़ी है तथा अभी और बढ़ने की प्रचुर सम्भावना है।
  5. विदेशी कम्पनियों द्वारा भारत में किया जाने वाला निवेश बढ़ने लगा है। सन् 1991 में विदेशी निवेश जहाँ मात्र 174 करोड़ रुपये था वहीं यह सन् 2000 में 9, 338करोड़ रुपये हो गया।
  6. उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के कारण भारत के विदेशी मुद्रा भण्डार में प्रचुर वृद्धि हुई है। यह भण्डार सन् 1991 में मात्र 4, 622 करोड़ था सन् 2000 तक यह बढ़कर 1, 52, 924 करोड़ रुपये हो गया।
  7. उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के अपनाये जाने से मूल्य वृद्धि की दर में कमी आयी हैं। सन् 1990-93 में यह दर 12% थी जबकि 90 के दशक के ही अन्तिम भाग में यह मात्र 8% रह गई
  8. अर्थव्यवस्था के इस नये रूप के कारण रोजगार के नये अवसरों का सृजन हो रहा है हालांकि जनसंख्या वृद्धि के तेज रफ्तार के चलते रोजगार अवसरों की प्रगति और वृद्धि नाकाफी ही नजर आ रही है।
  9. 1991-2000 के दशक में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की नीति के कारण वर्याप्त औद्योगि विकास हुआ परन्तु अभी इस ओर प्रगति किये जाने की आवश्यकता है।
प्रश्न 26.
वैश्वीकरण क्या हैं?
उत्तर-
वैश्वीकरण का तात्पर्य किसी देश द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था तथा किवश्व अर्थव्यवस्था के मध्य सामंजस्य स्थापित करने से है। इस प्रक्रिया के माध्यम से कोई देश आर्थिक रूप से वैश्विक यानि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पारस्परिक रूप से निर्भर होता है। यह प्रक्रिया कई स्तरों पर सम्पन्न होती-
(क) आज जहाँ भारत वैश्वीकरण को अपना चुका है तो विदेशी उतपादक अपना माल और सेवाएँ भारत में बेच सकते हैं, साथ ही भारत भी अपना निर्मित माल और सेवाएँ दूसरे देशों को बेच सकता है।
(ख) वैश्वीकरण उन लोगों के लिए भी लाभदायक है जिनके पास भारत में उद्योग लगाने के लिए धन उपलब्ध है। वैश्वीकरण के माध्यम से उत्पादन को देश में विक्रय के लिए भीप्रस्तुत किया जा सकता है और नर्यात के लिए भी।
(ग) वैश्वीकरण ने आज भारत के उद्यमियों को यह अवसर प्रदान कर दिया है। कि वे दूसरे देशों में जाकर पूंजी निवेश कर सकते हैं।
(घ) वैश्वीकरण में मात्र पूंजी का ही नहीं वरन् देशों के मध्य श्रमिकों का भी आदन-प्रदान होता है।
(ङ) इस प्रकार वैश्वीकरण का तात्पर्य उस आर्थिक प्रक्रिया से है जिसके माध्यम से विश्व के देश आपस में सहयोग बढ़ाकर अधिक-से-अधिक उन्नति कर सकत हैं।
प्रश्न 27.
“सीमाओं के पार बहुराष्ट्रीय उत्पादन प्रक्रिया के प्रसार से असीमित लाभ हो सकता हैं।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर-
(क)बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विश्व स्तर पर अपना तैयार उतपाद बेचने के साथ-साथ वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन भी करती हैं।
(ख) उदाहरण के लिए, औद्योगिक उपकरण बनाने वाली एक बहुराष्ट्रीय कंपनी संयुक्त राज्य अमेरिका में अपने उत्पादों का डिजाइन तैयार करती है। उसके पुर्जे का निर्माण चीन में होता है पुिर इन सामानों का मेक्सिकों और पूर्वी यूरोप के देशों में ले जाते हैं। जहाँ इन्हें जोड़ा जाता है। और तैयार उतपाद को पूरे विश्व में बेचा जाता है!
(ग) इस बीच भारत स्थित कॉल सेंटरों के माध्यम से ग्राहक सेवा का संचालन किया जाता है।
(घ) इस प्रकार स्पष्ट है कि उतपादन प्रक्रिया क्रमशः जटिल ढंग से संगठित हुई है। उत्पादन प्रक्रिया दो छोटे भागों में विभाजित है और विश्व भर में फैली हुई है।
(ङ) उपरोक्त उदाहरण में चीन से एक ससता विनिर्माण केंद्र होने का फायदा मिलता है। मेक्सिकों एवं पूर्वी यूरोप बाजार की निकटता का लाभ देते हैं। भारत में उतपादन के तकनीकी पक्षों को समझने वाले दक्ष इंजीनियर मौजूद हैं और अंग्रेजी बोलने वाले शिक्षित युवक भी हैं जो उत्तम ग्राह देखभाल सेवायें उपलब्ध कराते हैं।
(च) इस कारण बहुराष्ट्रीय कंपनी की लागत का लगभग 50-60 प्रतिशत बचत हो सकता है जिससे लाभ प्रतिशत बढ़ता
प्रश्न 28.
बहराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार उत्पादन पर नियंत्रण करती हैं?
उत्तर-
(क) बहुराष्टीय कंपनियों के निवेश का सामान्य तरीका हैं, स्थानीय कंपनियों को खरीदना, उसके बाद उतपादन का प्रसार करना।
(ख) उदारहण के तौर पर, एक बहुत बड़ी अमेरिकी कंपनी कारगिल फूड्स ने एक छोटी भारतीय कंपनी परख फूड्स को खरीद लिया। परख फूड्स का भारत में बहुत बड़ा विपणन तंत्र था तथा उसका ब्रांड भी प्रसिद्ध था। परख फूड्स के चार तेल शोधक केंद्र भी थे।
(ग) अब इन सभी पर कारगिल फूड्स का नियंत्रण है और अब करगिल फूड्स 50 लाख पैकेट प्रतिदिन निर्माण क्षमता के साथ भारत में खाद्य तेलों की सबस बड़ी उत्पादक कंपनी है।
(घ) इसके अलावा बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उत्पादकों को उतपादन का आदेश देती है।
(ङ) विशेषकर वस्त्र, जूते-चप्पल व खेल के सामान ऐसे उद्योग हैं जिनका उत्पादन संपूर्ण विश्व में छोटे उत्पादकों द्वारा किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इन उत्पादों की आपूर्ति कर दी जाती है। जो अपने ब्रांड नाम से ग्राहों को बेचती
(च) इन बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में दूर स्थित उत्पादकों के मूल्य गुणवत्ता, आपूर्ति तथा श्रम शर्तो का निर्धारण करने की प्रचण्ड क्षमता होती है।
प्रश्न 29.
विदेश व्यापार के प्रभाव को उदाहरण देकर समझाइये। .
उत्तर-
(क) विदेश व्यापार उत्पादकों को घरेलू बाजारों से निकलकर बाहर के बाजारों में पहुँचने का अवसर प्रदान करता
(ख) इस कारण, खरीददारों के समक्ष विकल्पों का विस्तार होता है।
(ग) उदाहरण के लिए, चीन के खिलौना उत्पादक भारत को खिलौनों का निर्यात करते हैं। इससे भारतीय ग्राहकों को भारतीय अथवा चीनी खिलौना खरीदने का विकल्प उपलब्ध है।
(घ) नये डिजाइनों एवं कम दाम के कारण चीनी खिलौने भारत में काफी लोकप्रिय हैं। परिणामतः एक वर्ष में ही 70-80 प्रतिशत भारतीय दुकानें चीनी खिलौनों से भर गई और खिलौनों का दाम भी कम हुआ है।
(ङ) इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यापार के कारण ही चीनी खिलौन भारतीय बाजार में आए। चीनी खिलौने भारतीय खिलौनों की तुलना में बेहतर साबित हुए। अब भारतीय खरीददारों के पास कम कीमत पर खिलौनों के अपेक्षाकृत अधिक विकल्प हैं।
(च) साथ ही, चीनी खिलौना उतपटकों को अपना व्यवास फैलाने का अवसर मिलता है। इसके विपरीत भारतीय खिलौन निर्माताओं को हानि होती है, क्योंकि उनके खिलौनों की बिक्री कम हो गई हैं।

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प्रश्न 30.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की क्या भूमिका है?
उत्तर-
(क) पिछले दो-तीन दशकों से ज्यादातर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उन स्थानों की खोज कर रही है। जहाँ उनका उत्पादन सस्ता हों। ये कंपनियाँ ऐसे देशों में ज्यादा निवेश कर रही हैं, साथ ही विभिन्न देशों के बीच व्यापार भी बढ़ रहा है।
(ख) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विदेश व्यापार का एक बड़ा भाग नियंत्रित करती है। जैसे, भारत में फोर्ड मोटर्स के कार संयंत्र में भारत के लिए कारों का निर्माण तो होता ही है साथ ही अन्य विकाशशील देशों के लिए कारें एवं अन्य जगहों में अपने कारखाने के लिए पुर्जी का निर्माण भी होता है।
(ग) इसी प्रकार अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बहुत बड़े पैमाने पर वस्तुओं व सेवाओं के व्यापार में शामिल हैं।
(घ) अधिक विदेशी निवेश एवं अधिक विदेशी व्यापार के कारण विभिन्न देशों के बाजारों एवं उतपादनों में एकीकरण हो रहा है।
(ङ) विभिन्न देशों के बीच अधिकाधिक वस्तुओं तथा संवाओं, निवेश और प्रौद्योगिक का आदान-प्रदान हो रहा है। वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश देश एक-दूसरे के अपेक्षाकृत अधिक संपर्क में आए हैं।
(च) वैश्वीकरण के कारण बेहतर, शिक्षा,, बेहतर आय एवं बेहतर रोजगार की तलाश में विभिन्न देशों के लोगों में आवगमन भी होता है।
प्रश्न 31.
प्रौद्योगिकी की उन्नति से वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने में किस प्रकार मदद मिला हैं?
उत्तर-
(क) प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित किया है। जैसे, पिछले लगभग पाँच दशकों में परिवहन प्रौद्योगिकी में विकास के कारण लंबी दूरियां तक कम समय तथा कम लागत में वस्तुओं की आपूर्ति संभव हुई
(ख) सूचना एवं सचार प्रौद्योगिकी में विकास के कारण दूरसंचार, कंप्यूटर, इंटरनेट के क्षेत्र में तीव्र गति से प्रगति हो · रही है।
(ग) संचार उपग्रहों के विकास से दूरसंचार सेवाओं जैसे, टेलीग्राम, टेलीफोन, मोबाईल फोन एवं फैक्स के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हआ है।
(घ) हमारे जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में कंप्यूटरों का प्रवेश हो गया है। इंटरनेट से हम तत्काल ई-मेल भेज सकते हैं। और अत्यन्त कम मूल्य पर पूरे विश्व में बात (वॉयस मेल) कर सकते हैं।
(ङ)सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में मुख्य भूमिका निभाई है। जैसे, लंदन के पाठकों के लिए प्रकाशित एक समाचार पत्र की डिजाइनिंग और छपाई दिल्ली में होती है। पत्रिका छपाई के बाद वायुमार्ग से लंदन भेजी जाती है डिजाइन और छपाई का भुगतान ई-बैंकिंग के द्वारा लंदन के एक बैंक से दिल्ली के एक बैंक तत्काल हो जाता है।
प्रश्न 32.
विश्व व्यापार संगठन पर एक नोट लिखिये।
उत्तर-
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों द्वारा सन् 1995 ई. में की गई थीं। इसका मुख्य कार्यालय जेनेवा में हैं। वर्तमान में इसके 149 सदस्य हैं।
इस संगठन का मुख्य उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के स्थान पर बहुपक्षीय समझौतों का विस्तार करना है। इस संगठन का ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। विश्व व्यापार संगठन चाहता है कि सदस्य देश आयात और निर्यात दोनों पर से प्रतिबंध हटा दें। विकसित देशों की पहल पर शुरू विवर व्यापार संगठन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियम लागू करता है। और इन नियमों का पालन सुनिश्चित करता है।
यद्यपि विश्व व्यापार संगठन सभी देशों को मुक्त व्यापार की सुविधा देता है परंतु अनुभव किया गया है कि विकसित देशों ने अनुचित ढंग से व्यापार अवरोधकों को बरकरार रखा है। दूसरी ओर, विश्व व्यापार संगठन के नियमों के कारण विकासशील देश व्यापार अवरोधकों को हटाने के लिए विवश हुए हैं। कृषि उत्पादों के व्यापार पर वर्तमान बहस इसका एक ज्वलत उदाहरण है।
प्रश्न 33.
भारत में विदेशी निवेश आकर्षिक करने के लिए क्या कदम उड़ाए गए हैं?
उत्तर-
(क) पिछले कुछ वर्षों में भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) की स्थापना। विशेष आर्थिक क्षेत्रों में विश्व स्तरीय सुविधाएँ जैसे, बिजली, पानी, सड़क, परिवहन, मनोरंजन, शिक्षा सुविधाएँ आदि उपलब्ध है।
(ख) विशेष आर्थिक क्षेत्र में उत्पादन इकाइयाँ शुरू करने वाली कंपनियों को प्रारंभिक पाँ चा वर्षों तक कर देने से छूट दी गई हैं।
(ग) विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु सरकार ने श्रम कानूनों में लचीलापन अपनाने की अनुमति दे दी हैं।
(घ) पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने कपनिया का अनक नियमों से छूट लेने की अनुमति दी हैं। श्रम लागत में कटौती करने के लिए कंपनियाँ अब नियमित आधार पर श्रमिकों को रोजगार देने के बजाय, छोटी अवधि, जब काम का अधिक दबाव होता है, के लिए श्रमिकों को रोजगार पर रख सकती हैं।
प्रश्न 34.
वैश्वीकरण का भारतीय कंपनियों को क्या लाभ हुआ हैं?
उत्तर-
(क) वैश्वीकरण के कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा से अनेक बड़ी भारतीय कंपनियों को लाभ हुआ है। इन कंपनियों ने नयी प्रौद्योगिकी एवं उत्पादन प्रणाली में निवेश किया और अपने उत्पादन मानकों को ऊँचा उठाया।
(ख) कुछ कंपनियों ने विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर उत्पादन कार्य किया और उनको इसका लाभ भी मिला।
(ग) कुछ बड़ी कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरने का मौका मिला। ___ (घ) टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी, एशियन पेंट्स, सुन्दरम फास्टनर्स आदि कंपनियाँ अब विश्व स्तर पर अपने क्रियाकलापों का प्रसार कर रही है।
(ङ) वैश्वीकरण से सेवा प्रदाता कंपनियों, सूचना व संचार प्रौद्योगिकी वाली कंपनियों के लिए नये अवसरों का सृजन हुआ है। भारतीय कंपनी द्वारा लंदन स्थित कंपनी की पत्रिका का प्रकाशन और गुड़गाँव तथा बैंगलोर स्थित कॉल सेंटर इसके उदाहरण हैं।
(च) इसके अलावा डाटा एन्ट्री, लेखाकरण-प्रशासनिक कार्य, इंजीनियरिंग आदि कई सेवायें भारत जैसे देशों में अब ससते मे उपलब्ध हैं और कई विकतिस देशों को निर्यात की जाती है।
प्रश्न 35.
वैश्वीकरण के कारण श्रमिकों का जीवन किस प्रकार प्रभावित हुआ हैं?
अथवा
वस्त्र उद्योग के श्रमिकों, भारतीय निर्यातकों और विदेशी कंपनियों को प्रतिस्पर्धा किस प्रकार प्रभावित कर रही हैं?
उत्तर-
(क) बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता आजकल श्रमिकों को कम समय एवं काम का अधिक दबाव होने पर ही रोजगार देना पंसद करते हैं।
(ख) उदाहरण के मौर पर, अमेरिका और यूरोप की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों भारतीय निर्यातकों को वस्तुओं की आपूर्ति का आदेश देती हैं। ये बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अधिक लाभ कमाने के लिए सबसे सस्ती वस्तुओं की माँग करती हैं।
(ग) भारतीय निर्यातक बड़ा आदेश प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनी लागत कम करने की कोशिश करते हैं।
(घ) चूंकि कच्चेमाल पर लागत में कमी नहीं हो सकती, अत: नियोक्ता श्रम-लागत में कटौती करते हैं।
(ङ) इस कारण श्रमिकों का अस्थायी रोजगार दिया जाता है श्रमिकों को वेतन कम मिलता हैं, परंतु उनके कार्य की अवधि अपेक्षाकृत लंबी होती है। काम का दबाव ज्यादा होने पर श्रमिकों को अतिरिक्त समय में भी काम करने के लिए विवश किया जाता है।
(च) वस्त्र निर्यातकों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाभ होता है लेकिन वैश्वीकरण के कारण हुए लाभ में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा नहीं दिया जाता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न 
निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए विकल्पों से सही विकल्प का चयन करें
प्रश्न 1.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में किसकी मुख्य भूमिका
(क) स्थानीय कंपनियाँ
(ख) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ
(ग) सरकार
(घ) व्यक्ति एवं समाज
उत्तर-
(ख) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ
प्रश्न 2.
हमारे बाजारों में वस्तुओं के बहुव्यापी विकल्प अपेक्षाकृत ………. परिघटना है :
(क) नवीन
(ख) प्राचीन
(ग) मिश्रित
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(क) नवीन

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प्रश्न 3.
विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया को कहते हैं:
(क) स्थानीयकरण
(ख) राष्ट्रीकरण
(ग) सामाजीकरण
(घ) वैश्वीकरण
उत्तर-
(घ) वैश्वीकरण
प्रश्न 4.
विदेशी निवेश और निवेशी व्यापार के माध्यम से देशों को जोड़ने से हुए वैश्वीकरण सेः
(क) उत्पादकों के बीच कम प्रतिस्पर्धा होगी
(ख) उत्पादकों के बीच अधिक प्रतिस्पर्धा होगी
(ग) प्रतिस्पर्धा में कोई परिवर्तन नहीं होगा
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) उत्पादकों के बीच अधिक प्रतिस्पर्धा होगी
प्रश्न 5.
किस क्षेत्र में तीव्र उन्नति के कारण वैश्वीकरण की प्रक्रिया उत्प्रेरित हुई?
(क) प्रौद्योगिकी
(ख) परिवहन
(ग) व्यापार
(घ) औद्योगीकरण
उत्तर-
(क) प्रौद्योगिकी
प्रश्न 6.
विभिन्न देशों के बीच सेवाओं के उत्पादन के विस्तार में किस क्षेत्र ने मुख्य भूमिका निभाई हैं:
(क) विदेशी व्यापार
(ख) सूचना एंव संचार प्रौद्योगिकी
(ग) विदेशी निवेश
(घ) सरकार
उत्तर-
(ख) सूचना एंव संचार प्रौद्योगिकी
प्रश्न 7.
व्यापार अवरोधक का अर्थ हैं :
(क) प्रतिबंध लगाना
(ख) प्रतिबंध हटाना
(ग) व्यापार का विस्तार
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(क) प्रतिबंध लगाना
प्रश्न 8.
भारत में नई आर्थिक नीति लागू की गई :
(क) सन् 1989 ई.
(ख) सन् 1990 ई.
(ग) सन् 1991 ई.
(घ) सन् 1992 ई.
उत्तर-
(ग) सन् 1991 ई.
प्रश्न 9.
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कब हुई?
(क) 1993 ई.
(ख) 1995 ई.
(ग) 2000 ई.
(घ) 2003 ई.
उत्तर-
(ख) 1995 ई.
प्रश्न 10.
वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन के कितने सदस्य
(क) 147
(ख) 148
(ग) 149
(घ) 150
उत्तर-
(ग) 149

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प्रश्न 11.
विशेष आर्थिक क्षेत्र में उत्पादन इकाइयाँ स्थपित करने वाली कंपनियों को शुरुआत में कितने वर्षों तक कर नहीं देना पड़ेगा?
(क) तीन वर्ष
(ख) चार वर्ष
(ग) छः वर्ष
(घ) पाँच वर्ष
उत्तर-
(घ) पाँच वर्ष
प्रश्न 12.
भारत में लघु उद्योगों में कितने लोग नियोजित हैं?
(क) 50 लाख
(ख) 1 करोड़
(ग) 2 करोड़
(घ) 4 करोड़
उत्तर-
(ग) 2 करोड़
प्रश्न 13.
एक कपंनी जो दो या उससे अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व रखती हैं, उसे कहते हैं:
(क) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ
(ख) स्थानीय कंपनियाँ
(ग) प्राइवेट कंपनी
(घ) सार्वजनिक कंपनी
उत्तर-
(क) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ
प्रश्न 14.
बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किए गए निवेश को क्या कहते हैं?
(क) देशी निवेश
(ख) स्थानीय निवेश
(ग) विदेशी निवेश
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ग) विदेशी निवेश
प्रश्न 15.
विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों के ……….में सहायक सिद्ध हुआ हैं:
(क) विखंडन
(ख) एकीकरण
(ग) स्थानीयकरण
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) एकीकरण
प्रश्न 16.
आयात पर कर उदाहरण हैं :
(क) व्यापार विस्तार
(ख) वैश्वीकरण
(ग) राष्ट्रीकरण
(घ) व्यापार अवरोधक
उत्तर-
(घ) व्यापार अवरोधक
प्रश्न 17.
सरकार द्वारा अवरोधकों अथवा प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
(क) उदारीकरण
(ख) अनुदारीकरण
(ग) वैश्वीकरण
(घ) कोटा
उत्तर-
(क) उदारीकरण
प्रश्न 18.
अमेरिकी के जी. डी. पी. में कृषि का हिस्सा कितना हैं?
(क) 1%
(ख) 5%
(ग) 8%
(घ) 12%
उत्तर-
(क) 1%
प्रश्न 19.
वैश्वीकरण और उत्पादकों-स्थानीय एवं विदेशी दोनों के बीच बेहतर प्रतिस्पर्धा से किस वर्ग के उपभोक्ताओं को अधिक लाभ हुआ हैं?
(क) गरीब वर्ग
(ख) धनी वर्ग
(ग) मध्यम वर्ग
(घ) शहरी निवासी
उत्तर-
(ख) धनी वर्ग
प्रश्न 20.
शीर्ष भारतीय कंपनियों के पास क्या है जिसने उन्हें आधुनिकीकरण करने एवं प्रतिस्पर्धा में बने रहने में सहायता की?
(क) श्रमिक
(ख) मुद्रा
(ग) कारखाना
(घ) प्रौद्योगिकी
उत्तर-

(ख) मुद्रा

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

HBSE 10th Class Hindi स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Textbook Questions and Answers

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 1.
कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?
उत्तर-
कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने निम्नलिखित तर्क देकर स्त्रियों की शिक्षा का समर्थन किया है

(i) नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। वाल्मीकि रामायण में बंदर भी संस्कृत बोलते थे तो क्या स्त्रियाँ संस्कृत नहीं बोल सकती थीं।
(ii) बौद्ध धर्म का त्रिपिटक ग्रंथ, जो महाभारत से भी बड़ा ग्रंथ है, वह प्राकृत भाषा में रचित है। इसका प्रमुख कारण है कि प्राकृत उस समय जनभाषा थी। अतः प्राकृत बोलना अशिक्षित होने का चिह्न नहीं है। प्राकृत उस समय समाज की भाषा थी।
(iii) उस समय कुछ चुने हुए लोग ही संस्कृत बोल सकते थे। इसलिए दूसरे लोगों के साथ-साथ स्त्रियों की भाषा प्राकृत रखने का नियम बना दिया गया था।

Stri Shiksha Ke Virodhi Kutarkon Ka Khandan HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 2.
‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं। कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं।’-कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन करते हुए द्विवेदी जी ने लिखा है कि पढ़ने-लिखने से ऐसी कोई बात नहीं होती। अनर्थ तो पढ़े-लिखे व अनपढ़ दोनों से हो सकता है। स्त्रियों के पढ़ने से यदि अनर्थ होता है तो पुरुष भी पढ़-लिखकर कितने गलत कार्य करते हैं तो उनके लिए शिक्षित होने की मनाही क्यों नहीं की जाती। यदि पढ़ने-लिखने से स्त्रियाँ अनर्थकारी होती हैं तो इसमें स्त्रियों का दोष नहीं है, अपितु यह शिक्षा-प्रणाली का दोष है। अतः स्त्रियों को अवश्य शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। हमें दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली में ही संशोधन कर देना चाहिए।

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Summary HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 3.
द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर-
im

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

स्त्री शिक्षा पर पोस्टर इन हिंदी HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 4.
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है-पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्राचीनकाल में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा बोलने के अनेकानेक प्रमाण मिलते हैं। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि प्राकृत बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण है, या फिर प्राकृत भाषा अनपढ़ों की भाषा है। सच्चाई यह है कि प्राकृत उस समय की जन-साधारण की भाषा थी। वैसे ही जैसे आज हिंदी, बाँग्ला, गुजराती आदि प्राकृत भाषाएँ हैं। अतः प्राकृत भाषा में बोलने के कारण महिलाओं को अनपढ़ कहना अनुचित है।

प्रश्न 5.
परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा के विरोधियों का कुतर्क है कि यदि स्त्रियों को शिक्षा दी जाएगी तो अनर्थ हो जाएगा। यह बात तब तक सही थी कि पढ़-लिखकर कोई पुरुष अनर्थ न करता हो। पुरुष स्त्रियों की अपेक्षा अधिक अनर्थ करते हैं। एम.ए., बी.ए., शास्त्री और आचार्य होने के बावजूद भी पुरुष स्त्रियों को हंटर से पीटते हैं। अतः स्पष्ट है कि अनर्थ के पीछे पढ़ना-लिखना कोई कारण नहीं है। पढ़-लिखकर स्त्रियाँ किसी से कम नहीं रहीं। स्त्रियों ने पुरुषों के समान वेद-रचना तक की है और उन्हें अक्षर ज्ञान देना तक पाप समझें। यह बात तर्क सम्मत नहीं है। अतः स्त्री-पुरुष दोनों को पढ़ने का समान रूप से अधिकार है। स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए। यह समानता की बात नहीं है। अतः इसे बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
तब स्त्रियों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं थी। उनके लिए कोई विद्यालय या विश्वविद्यालय तक नहीं थे। आज स्त्रियों को शिक्षित करने के लिए स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय हैं। स्त्रियाँ पुरुषों के साथ भी शिक्षा ग्रहण करती हैं। पहले ऐसा संभव नहीं था।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 7.
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?
उत्तर-
महावीरप्रसाद द्विवेदी महान् चिंतक एवं साहित्यकार थे। वे इस बात को भली-भाँति समझते थे कि स्त्रियों को शिक्षा दिए बिना समाज के पिछड़ेपन को दूर नहीं किया जा सकता। वे चाहते थे कि स्त्रियों को शिक्षित करके उनकी प्रतिभा का प्रयोग समाज के विकास के लिए किया जाए। वे स्त्री-पुरुष में समानता के अधिकार के पक्ष में थे। जो बात उन्होंने सौ वर्ष पूर्व सोची थी, वह आज पूर्णतः सत्य घटित होती जा रही है। गाँवों में स्त्रियों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वहाँ अनपढ़ स्त्रियों की संख्या अधिक है। स्त्री के शिक्षित होने से पूरा परिवार शिक्षित हो सकता है। स्त्रियों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देना होगा। जिस घर में स्त्री शिक्षित होगी तो उस परिवार के बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण करेंगे। अतः यह कथन पूर्णतः सत्य है कि यह निबंध महावीरप्रसाद द्विवेदी की खुली एवं दूरगामी सोच का परिचायक है।

प्रश्न 8.
द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
द्विवेदी जी आधुनिक हिंदी गद्य की भाषा के जनक कहे जाते हैं। उन्होंने भाषा के संबंध में अत्यंत उदार दृष्टिकोण अपनाया है। उन्होंने अपनी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ विषय की माँग के अनुकूल उर्दू-फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। उन्होंने छोटे व सुगठित वाक्यों का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में निरंतर प्रवाह बना रहता है। उनकी भाषा तो ऐसी है मानो कोई अध्यापक अपने छात्रों को समझा रहा हो। इस निबंध में द्विवेदी जी ने वर्णनात्मक एवं विचारात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं व्यंग्यात्मक भाषा का भी सफल एवं सुंदर प्रयोग किया गया है। शब्द विधान सरल एवं लघु वाक्य रचना है। भाषा आदि से अंत तक सजीवता एवं प्रवाहमयता लिए हुए है। द्विवेदी जी ने भाषा की शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया है।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 9.
निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट होंचाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल।.
उत्तर-
चाल- मैं तुम्हारी चाल भली-भाँति समझता हूँ।
उसकी चाल हाथी की भाँति मस्त है।

दल – टिड्डी दल ने फसल नष्ट कर दी।
मोहन काँग्रेस दल का नेता नहीं है।

पत्र – मैंने अपने पिताजी को पत्र लिखा था।
पूजा के लिए बेल-पत्र लाओ।

हरा – हमारा देश हरा-भरा है।
भारत ने क्रिकेट में पाकिस्तान को हरा दिया।

पर – मैं मोहन के घर गया पर वह तब जा चुका था।
मोर के पर सुंदर हैं।

फल- मेहनत का फल अच्छा है।
फल खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

कुल – उसे परीक्षा में कुल 500 अंक प्राप्त हुए हैं।
वह उच्च कुल से संबंधित है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

पाठेतर सक्रियता

अपनी दादी, नानी और माँ से बातचीत कीजिए और (स्त्री-शिक्षा संबंधी) उस समय की स्थितियों का पता लगाइए और अपनी स्थितियों से तुलना करते हुए निबंध लिखिए। चाहें तो उसके साथ तसवीरें भी चिपकाइए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

लड़कियों की शिक्षा के प्रति परिवार और समाज में जागरूकता आए-इसके लिए आप क्या-क्या करेंगे?
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

स्त्री-शिक्षा पर एक पोस्टर तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

स्त्री-शिक्षा पर एक नुक्कड़ नाटक तैयार कर उसे प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

यह भी जानें

भवभूति- संस्कृत के प्रधान नाटककार हैं। इनके तीन प्रसिद्ध ग्रंथ-वीररचित, उत्तररामचरित और मालतीमाधव हैं। भवभूति करुणरस के प्रमुख लेखक थे।
विश्ववरा-अत्रिगोत्र की स्त्री। ये ऋग्वेद के पाँचवें मंडल 28वें सूक्त की एक में से छठी ऋक् की ऋषि थीं। शीला-कौरिडन्य मुनि की पत्नी का नाम । थेरीगाथा-बौद्ध भिक्षुणियों की पद्य रचना इसमें संकलित है।
अनुसूया-अक्रि मुनि की पत्नी और दक्ष प्रजापति की कन्या।
गार्गी–वैदिक समय की एक पंडिता ऋषिपुत्री। इनके पिता का नाम गर्ग मुनि था। मिथिला के जनकराज की सभा में इन्होंने पंडितों के सामने याज्ञवल्क्य के साथ वेदांत शास्त्र विषय पर शास्त्रार्थ किया था।
गाथा सप्तशती-प्राकृत भाषा का ग्रंथ जिसे हाल द्वारा रचित माना जाता है।
कुमारपाल चरित्र-एक ऐतिहासिक ग्रंथ है, जिसे 12वीं शताब्दी के अंत में अज्ञातनामा कवि ने अनहल के राजा कुमारपाल के लिए लिखा था। इसमें ब्रह्मा से लेकर राजा कुमारपाल तक बौद्ध राजाओं की वंशावली का वर्णन है।
त्रिपिटक ग्रंथ – गौतम बुद्ध ने भिक्षु-भिक्षुणियों को अपने सारे उपदेश मौखिक दिए थे। उन उपदेशों को उनके शिष्यों ने कंठस्थ कर लिया था और बाद में उन्हें त्रिपिटक के रूप में लेखबद्ध किया गया। वे तीन त्रिपिटक हैं-सुत या सूत्र पिटक, विनय पिटकं और ‘ अभिधर्म पिटक।
शाक्य मुनि- शक्यवंशीय होने के कारण गौतम बुद्ध को शाक्य मुनि भी कहा जाता है।
नाट्यशास्त्र-भरतमुनि रचित काव्यशास्त्र संबंधी संस्कृत के इस ग्रंथ में मुख्यतः रूपक (नाटक) का शास्त्रीय विवेचन किया गया है। इसकी रचना 300 ईसा पूर्व मानी जाती है।
कालिदास-संस्कृत के महान् कवियों में कालिदास की गणना की जाती है। उन्होंने कुमारसंभव, रघुवंश (महाकाव्य), ऋतु संहार, मेघदूत (खंडकाव्य), विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्र और अभिज्ञान शाकुंतलम् (नाटक) की रचना की।
आजादी के आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़ी पंडिता रमाबाई ने स्त्रियों की शिक्षा एवं उनके शोषण के विरुद्ध जो आवाज़ उठाई उसकी एक झलक यहाँ प्रस्तुत है। आप ऐसे अन्य लोगों के योगदान के बारे में पढ़िए और मित्रों से चर्चा कीजिए

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पंडिता रमाबाई

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पाँचवाँ अधिवेशन 1889 में मुंबई में आयोजित हुआ था। खचाखच भरे हॉल में देश भर के नेता एकत्र हुए थे।
एक सुंदर युवती अधिवेशन को संबोधित करने के लिए उठी। उसकी आँखों में तेज और उसके कांतिमय चेहरे पर प्रतिभा झलक रही थी। इससे पहले कांग्रेस अधिवेशनों में ऐसा दृश्य देखने में नहीं आया था। हॉल में लाउडस्पीकर न थे। पीछे बैठे हुए लोग उस युवती की आवाज़ नहीं सुन पा रहे थे। वे आगे की ओर बढ़ने लगे। यह देखकर युवती ने कहा, “भाइयो, मुझे क्षमा कीजिए। मेरी आवाज़ आप तक नहीं पहुंच पा रही है। लेकिन इस पर मुझे आश्चर्य नहीं है। क्या आपने शताब्दियों तक कभी किसी महिला की आवाज़ सुनने की कोशिश की? क्या आपने उसे इतनी शक्ति प्रदान की कि वह अपनी आवाज़ को आप तक पहुँचने योग्य बना सके?”
प्रतिनिधियों के पास इन प्रश्नों के उत्तर न थे।

इस साहसी युवती को अभी और बहुत कुछ कहना था। उसका नाम पंडिता रमाबाई था। उस दिन तक स्त्रियों ने कांग्रेस के अधिवेशनों में शायद ही कभी भाग लिया हो। पंडिता रमाबाई के प्रयास से 1889 के उस अधिवेशन में 9 महिला प्रतिनिधि सम्मिलित हुई थीं।

वे एक मूक प्रतिनिधि नहीं बन सकती थीं। विधवाओं को सिर मुंडवाए जाने की प्रथा के विरोध में रखे गए प्रस्ताव पर उन्होंने एक ज़ोरदार भाषण दिया। “आप पुरुष लोग ब्रिटिश संसद में प्रतिनिधित्व की माँग कर रहे हैं जिससे कि आप भारतीय जनता की राय वहाँ पर अभिव्यक्त कर सकें। इस पंडाल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए चीख-चिल्ला रहे हैं तब आप अपने परिवारों में वैसी ही स्वतंत्रता महिलाओं को क्यों नहीं देते? आप किसी महिला को उसके विधवा होते ही कुरूप और दूसरों पर निर्भर होने के लिए क्यों विवश करते हैं? क्या कोई विधुर भी वैसा करता है? उसे अपनी इच्छा के अनुसार जीने की स्वतंत्रता है। तब स्त्रियों को वैसी स्वतंत्रता क्यों नहीं मिलती?”

निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि पंडिता रमाबाई ने भारत में नारी-मुक्ति आंदोलन की नींव डाली।
वे बचपन से ही अन्याय सहन नहीं कर पाती थीं। एक दिन उन्होंने नौ वर्ष की एक छोटी-सी लड़की को उसके पति के शव के साथ भस्म किए जाने से बचाने की चेष्टा की। “यदि स्त्री के लिए सम्म होकर सती बनना अनिवार्य है तो क्या पुरुष भी पत्नी की मृत्यु के बाद सता होते हैं?” रौबपूर्वक पूछे गए इस प्रश्न का उस लड़की की माँ के पास कोई उत्तर न था। उसने केवल इतना कहा कि “यह पुरुषों की दुनिया है। कानून वे ही बनाते हैं, स्त्रियों को तो उनका पालन भर करना होता है।” रमाबाई ने पलटकर पूछा, “स्त्रियाँ ऐसे कानूनों को सहन क्यों करती हैं? मैं जब बड़ी हो जाऊँगी तो ऐसे कानूनों के विरुद्ध संघर्ष करूँगी।” सचमुच उन्होंने पुरुषों द्वारा महिलाओं के प्रत्येक प्रकार के शोषण के विरुद्ध संघर्ष किया।

HBSE 10th Class Hindi स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्त्री-शिक्षा के विरोधी लोगों के क्या तर्क हैं? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में स्त्री-शिक्षा विरोधी लोगों ने स्त्री-शिक्षा के विरोध में निम्नलिखित तर्क दिए हैं
स्त्री-शिक्षा की आवश्यकता प्राचीनकाल में नहीं थी, इसलिए प्राचीनकाल के पुराणों व इतिहास में स्त्री-शिक्षा की किसी भी प्रणाली के प्रमाण नहीं मिलते। इसलिए स्त्री-शिक्षा की आज भी आवश्यकता नहीं है।
स्त्री-शिक्षा के विरोधियों का यह भी तर्क है कि स्त्री-शिक्षा से अनर्थ होते हैं। शकुंतला ने दुष्यंत को जो कुवाक्य कहे, वे स्त्री-शिक्षा के अनर्थ का परिणाम है।
संस्कृत नाटकों में स्त्री-पात्रों के मुख से प्राकृत भाषा बुलवाई गई है। उस समय प्राकृत को गँवार भाषा समझा जाता था। इससे पता चलता है कि उन्हें संस्कृत का ज्ञान नहीं था, वे गँवार व अनपढ़ थीं। उनकी दृष्टि में तो गँवार भाषा के ज्ञान से भी अनर्थ हुआ।

प्रश्न 2.
पुरातन पंथी लोगों ने शकुंतला पर जो आरोप लगाया क्या आप उससे सहमत हैं?
उत्तर-
पुरातन पंथी लोगों ने शकुंतला पर आरोप लगाया है कि उसने अशिक्षा के कारण ही राजा दुष्यंत को कुवाक्य कहे। यदि वह शिक्षित होती तो ऐसा अनर्थ न करती। हम पुरातन पंथियों के इस आरोप से सहमत नहीं हैं। यहाँ प्रश्न शिक्षा व अशिक्षा का नहीं है। यहाँ प्रश्न है कि दुष्यंत ने शकुंतला से गांधर्व विवाह किया और जब वह उससे मिलने आई तो उसने उसे पहचानने से ही इंकार कर दिया। ऐसी स्थिति में तो कोई भी कुवाक्य ही कहता। यहाँ शकुंतला की शिक्षा को दोष देना उचित नहीं है।

प्रश्न 3.
संस्कृत और प्राकृत के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
संस्कृत प्राचीन एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा है। इस भाषा को जानने वाले बहुत कम लोग थे। उस समय संस्कृत के साथ-साथ कुछ प्राकृत भाषाएँ भी प्रचलित थीं। ये सभी भाषाएँ संस्कृत से ही निकली हुई जनभाषाएँ थीं। मागधी, महाराष्ट्री, पाली, शौरसेनी आदि अपने समय की लोक-भाषाएँ थीं। इन्हें प्राकृत भाषाएँ भी कहा जाता है। बौद्ध और जैन साहित्य इन्हीं भाषाओं में रचित साहित्य हैं। अतः प्राकृत भाषाएँ गँवार या अनपढ़ों की भाषा नहीं है।

प्रश्न 4.
संस्कृत नाटकों में स्त्री पात्रों द्वारा संस्कृत न बोल पाना क्या उनकी अनपढ़ता का प्रमाण है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा के विरोधियों ने प्राचीनकाल में भी स्त्रियों को अनपढ़ व गँवार सिद्ध करने के लिए नाटकों का उदाहरण देते हुए कहा है कि नाटकों में नारी पात्रों द्वारा संस्कृत की अपेक्षा प्राकृत भाषा बुलवाई जाती थी क्योंकि संस्कृत सुशिक्षितों की भाषा थी और प्राकृत लोक भाषा या जनभाषा थी। किंतु लेखक इन पुरातन पंथियों व स्त्री-शिक्षा विरोधियों के तर्क को उचित नहीं समझता। उनके अनुसार प्राकृत बोलना अनपढ़ता का सबूत नहीं है। उस समय आम बोलचाल में प्राकृत भाषा का ही प्रयोग किया जाता था। संस्कृत भाषा का प्रचलन तो कुछ ही लोगों तक सीमित था। अतः यही कारण रहा होगा कि नाट्यशास्त्रियों ने नाट्यशास्त्र संबंधी नियम बनाते समय इस बात का ध्यान रखा होगा क्योंकि संस्कृत को कुछ ही लोग बोल सकते थे। इसलिए कुछ पात्रों को छोड़कर अन्य पात्रों से प्राकृत बुलवाने का नियम बनाया जाए। इस प्रकार स्त्री पात्रों द्वारा संस्कृत न बोलने के कारण उन्हें अनपढ़ नहीं समझना चाहिए। फिर प्राकृत में भी तो महान् रचनाओं का निर्माण हुआ है।

प्रश्न 5.
‘प्राचीनकाल में प्राकृत भाषा का चलन था’-पाठ के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा विरोधियों ने प्राकृत भाषा को अनपढ़ एवं गँवार लोगों की भाषा बताया है। किंतु लेखक ने प्राकृत भाषा को जन-साधारण की भाषा बताया है। उस समय की पढ़ाई-लिखाई भी प्राकृत भाषा में होती थी। उस समय प्राकृत भाषा के प्रचलन का प्रमाण बौद्ध-ग्रंथों एवं जैन-ग्रंथों में मिलता है। दोनों धर्मों के हजारों ग्रंथ प्राकृत भाषा में रचित हैं। महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश भी प्राकृत भाषा में ही दिए हैं। बौद्ध धर्म का महान् ग्रंथ त्रिपिटक भी प्राकृत भाषा में रचित है। ऐसे महान् ग्रंथों का प्राकृत में रचे जाने का कारण यही था कि उस समय जन-भाषा प्राकृत ही थी। अतः प्राकृत अनपढ़ों की भाषा नहीं थी।

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प्रश्न 6.
लेखक के मतानुसार आज के युग में स्त्रियों के शिक्षित होने की आवश्यकता प्राचीनकाल की अपेक्षा अधिक क्यों है? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
यदि स्त्री-शिक्षा विरोधियों की बात मान भी ली जाए कि प्राचीनकाल में स्त्रियों को पढ़ाने या शिक्षित करने का प्रचलन नहीं था तो उस समय स्त्रियों को शिक्षा की अधिक आवश्यकता नहीं होगी। किंतु आज के युग में स्त्री-शिक्षा कि आवश्यकता एवं महत्त्व दोनों ही अधिक हैं। आज का युग भौतिकवादी एवं प्रतियोगिता का युग है। इस युग में अनपढ़ता देश व समाज के विकास में बाधा ही नहीं, अपितु देश व समाज के लिए कलंक भी है। नारी का शिक्षित होना तो इसलिए अति आवश्यक है कि जिस परिवार में नारी शिक्षित होगी उस परिवार के बच्चों की शिक्षा-व्यवस्था अच्छी हो सकेगी। शिक्षित नारी ही बच्चों को अच्छे-बुरे की पहचान करने का ज्ञान देकर उन्हें अच्छे नागरिक बना सकेगी। शिक्षित नारी नौकरी करके या अन्य कार्य करके धन कमाकर परिवार के आर्थिक विकास में सहायता कर सकती है। इसीलिए लेखक ने प्राचीनकाल की अपेक्षा आधुनिक युग में स्त्री-शिक्षा को अति आवश्यक बताया है।

प्रश्न 7.
प्राचीन ग्रंथों में स्त्रियों के लिए किस-किस शिक्षा का विधान किया गया था?
उत्तर-
प्राचीन ग्रंथों में कुछ ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि कुमारियों के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षा का प्रबंध था; जैसे चित्र बनाना, नाचने, गाने, बजाने, फूल चुनने, हार गूंथने आदि। लेखक का मानना है कि उन्हें पढ़ने-लिखने की शिक्षा भी निश्चित रूप से दी जाती होगी।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 8.
लेखक ने किन लोगों को स्त्री-शिक्षा के विरोधी बताया है ?
उत्तर-
लेखक ने बताया है कि जो लोग स्वयं शिक्षित हैं और जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा ग्रहण की है, जो धर्मशास्त्र व संस्कृत साहित्य से परिचित हैं, जिनका काम कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना है, जो कुमार्गियों को सुमार्गी बनाते हैं और अधार्मिकों को धर्मतत्त्व समझाते हैं, वही लोग स्त्री-शिक्षा का विरोध करते हैं।

प्रश्न 9.
‘स्त्री शिक्षा की पुराने समय में कोई नियमबद्ध प्रणाली थी, जो शायद नष्ट हो गई थी’ इस बात को सिद्ध करने के लिए लेखक ने कौन-कौन से प्रमाण प्रस्तुत किए हैं ?
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा की पुराने समय में कोई नियमबद्ध प्रणाली रही होगी किंतु वह शायद नष्ट हो गई होगी। इस बात को सिद्ध करने के लिए लेखक ने सर्वप्रथम प्रमाण दिया है कि पुराने समय में विमान भी उड़ाए जाते थे तथा बड़े-बड़े जहाज़ों पर सवार होकर लोग एक द्वीप से दूसरे द्वीप पर जाते थे। ऐसी बातें अत्यंत आश्चर्यजनक हैं। इनके बनाने व चलाने के कोई नियमबद्ध प्रमाण नहीं मिलते क्योंकि शायद नष्ट हो गए होंगे। यदि विमानों व जहाज़ों के विषय में विश्वास किया जा सकता है तो स्त्री-शिक्षा की नियमबद्ध प्रणाली होने में विश्वास क्यों नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 10.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ नामक पाठ का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
इस पाठ का प्रमुख उद्देश्य स्त्री-शिक्षा के विरोधी लोगों के कुतर्कों का जोरदार शब्दों में खंडन करना है। लेखक ने अनेक प्रमाण प्रस्तुत करके सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है कि प्राचीनकाल में भी स्त्री-शिक्षा की व्यवस्था थी और अनेक शिक्षित स्त्रियों के नामोल्लेख भी किए गए हैं यथा-गार्गी, अत्रि-पत्नी, विश्ववरा, मंडन मिश्र की पत्नी आदि अनेक विदुषियाँ हुई हैं। आज के युग में स्त्री- शिक्षा नितांत आवश्यक है। शिक्षा कभी किसी का अनर्थ नहीं करती। यदि स्त्री-शिक्षा में कुछ संशोधनों की आवश्यकता पड़े तो कर लेने चाहिएँ। किंतु स्त्री-शिक्षा का विरोध करना कदाचित उचित नहीं है।

प्रश्न 11.
आपकी दृष्टि में क्या स्त्री-शिक्षा अनर्थकारी हो सकती है?
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा किसी भी प्रकार से अनर्थ नहीं हो सकती। किसी भी प्रकार की शिक्षा पापाचार नहीं सिखाती। यदि कोई व्यक्ति अर्थात् पुरुष या स्त्री कोई पाप या अपराध करता है तो उसका संबंध शिक्षा से नहीं होता। उनके पापाचार का कारण कुछ और हो सकता है, शिक्षा नहीं क्योंकि शिक्षा तो सबको सद्मार्ग की ओर ले जाती है।

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अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ नामक पाठ के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ के लेखक महावीरप्रसाद द्विवेदी हैं।

प्रश्न 2.
महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर–
महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 में हुआ था।

प्रश्न 3.
महावीरप्रसाद द्विवेदी जी का निधन कब हुआ?
उत्तर-
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निधन सन् 1938 में हुआ।

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प्रश्न 4.
सर्वप्रथम पठित निबंध किस शीर्षक से प्रकाशित हुआ था?
उत्तर-
सर्वप्रथम पठित निबंध ‘पढ़े-लिखों का पांडित्य’ से प्रकाशित हुआ था।

प्रश्न 5.
शकुंतला ने किस भाषा में श्लोक रचा है?
उत्तर-
शकुंतला ने अनपढ़ गँवारों की भाषा में श्लोक रचा है।

प्रश्न 6.
शंकराचार्य के छक्के किसने छुड़ा दिए? .
उत्तर-
मंडन मिश्र की धर्मपत्नी ने।

प्रश्न 7.
बौद्धों के त्रिपिटिक ग्रंथ की रचना किस भाषा में हुई है?
उत्तर-
बौद्धों के त्रिपिटिक ग्रंथ की रचना प्राकृत ग्रंथ में हुई है।

प्रश्न 8.
‘नाट्यशास्त्र’ संबंधी नियम किस भाषा में लिखित हैं?
उत्तर-
‘नाट्यशास्त्र’ संबंधी नियम संस्कृत भाषा में लिखित हैं।

प्रश्न 9.
गार्गी ने पांडित्यपूर्ण वाद-विवाद में किसे हराया था?
उत्तर-
गार्गी ने पांडित्यपूर्ण वाद-विवाद में ब्रह्मवादियों को हराया था।

प्रश्न 10.
मुमानियत का क्या अर्थ है?
उत्तर-
मुमानियत का अर्थ मनाही है।

प्रश्न 11.
मण्डन मिश्र की सहधर्मचारिणी ने किसके छक्के छुड़ा दिए?
उत्तर-
शंकराचार्य के।

प्रश्न 12.
कालिदास के युग में जन-साधारण के बोलचाल की कौन-सी भाषा बताई गई है?
उत्तर–
कालिदास के युग में जन-साधारण के बोलचाल की प्राकृत भाषा बताई गई है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सीता ने राम को क्या संबोधित करके अपना क्रोध प्रकट किया था?
(A) स्वामी
(B) आर्य पुत्र
(C) भगवन्
(D) राजा
उत्तर-
(D) राजा

प्रश्न 2.
त्रिपिटक ग्रंथों की रचना किसने की थी?
(A) बौद्धों ने
(B) नाथों ने
(C) सिद्धों ने
(D) जैनों ने
उत्तर-
(A) बौद्धों ने

प्रश्न 3.
प्रस्तुत लेख पहली बार प्रकाशित हुआ था-
(A) धर्मयुग में
(B) कल्याण में
(C) हिंदुस्तान में
(D) सरस्वती में
उत्तर-
(D) सरस्वती में

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प्रश्न 4.
महावीरप्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित पत्रिका का नाम था-
(A) हंस
(B) सरस्वती
(C) आलोचना
(D) कादम्बिनी
उत्तर-
(B) सरस्वती

प्रश्न 5.
महावीरप्रसाद द्विवेदी ने साहित्य के क्षेत्र में कौन-सा महान कार्य किया था?
(A) निबंध लेखन का
(B) पत्रिका संपादन का
(C) भाषा सुधार का
(D) आलोचना का
उत्तर-
(C) भाषा सुधार का

प्रश्न 6.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ शीर्षक निबंध प्रथम बार कब प्रकाशित हुआ था?
(A) सन् 1910 में
(B) सन् 1914 में
(C) सन् 1916 में
(D) सन् 1918 में
उत्तर-
(B) सन् 1914 में

प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार आजकल कैसे शिक्षित लोग विद्यमान हैं?
(A) स्त्री-शिक्षा के पक्षधर
(B) स्त्री-शिक्षा के विरोधी
(C) स्त्री-शिक्षा को अनर्थ कहने वाले
(D) स्त्री-शिक्षा को फालतू की वस्तु बताने वाले
उत्तर-
(B) स्त्री-शिक्षा के विरोधी

प्रश्न 8.
पुराने संस्कृत कवियों के नाटकों में कुलीन स्त्रियों से किस भाषा में बातें कराई गई हैं?
(A) संस्कृत में
(B) पढ़े-लिखों की भाषा में
(C) विद्वत्तापूर्ण
(D) अपढ़ों की भाषा में
उत्तर-
(D) अपढ़ों की भाषा में

प्रश्न 9.
शकुंतला ने किसे कटु वाक्य कहे थे?
(A) दुष्यंत को
(B) ऋषि कण्व को ।
(C) ऋषि दुर्वासा को
(D) अपने पिता को
उत्तर-
(A) दुष्यंत को

प्रश्न 10.
शकुंतला ने दुष्यन्त से कैसा विवाह किया था?
(A) आसुरी
(B) आर्यसमाजी
(C) गांधर्व
(D) वैदिक
उत्तर-
(C) गांधर्व

प्रश्न 11.
‘शिक्षा’ शब्द कैसा है?
(A) व्यापक
(B) सीमित
(C) संकुचित
(D) महत्त्वपूर्ण
उत्तर-
(A) व्यापक

प्रश्न 12.
किसकी धर्मपत्नी ने शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दिए थे?
(A) अत्रि की
(B) महावीर प्रसाद की
(C) मंडन मिश्र की
(D) भरत मुनि की
उत्तर-
(C) मंडन मिश्र की

प्रश्न 13.
श्रीमद्भागवत के कौन-से स्कंध में रुक्मिणी हरण की कथा है?
(A) पंचम
(B) सप्तम
(C) दशम
(D) द्वादश
उत्तर-
(C) दशम

प्रश्न 14.
हिंदू लोग वेदों को किसके द्वारा रचित मानते हैं? .
(A) पंडितों द्वारा
(B) ईश्वर द्वारा
(C) ऋषियों द्वारा
(D) विद्यार्थियों द्वारा
उत्तर-
(B) ईश्वर द्वारा

प्रश्न 15.
जिस समय आचार्यों ने नाट्यशास्त्र संबंधी नियम बनाए थे उस समय सर्वसाधारण की भाषा क्या थी?
(A) हिन्दी
(B) अंग्रेजी
(C) प्राकृत
(D) संस्कृत
उत्तर-
(C) प्राकृत

प्रश्न 16.
किस ऋषि की पत्नी ने पत्नी-धर्म पर व्याख्यान दिया था?
(A) कण्व ऋषि की
(B) गौतम ऋषि की
(C) दुर्वासा ऋषि की
(D) अत्रि ऋषि की
उत्तर-
(D) अत्रि ऋषि की

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प्रश्न 17.
बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को किसने हराया था?
(A) मंडन मिश्र की पत्नी
(B) गार्गी
(C) सत्यभामा
(D) अनुसूया
उत्तर-
(B) गार्गी

प्रश्न 18.
मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी (पत्नी) ने ज्ञान के क्षेत्र में किससे शास्त्रार्थ किया था?
(A) ब्रह्मवादियों से
(B) जैन मुनियों से
(C) शंकराचार्य से
(D) बौद्ध महात्माओं से
उत्तर-
(C) शंकराचार्य से

प्रश्न 19.
किसने श्रीकृष्ण को लंबा-चौड़ा पत्र लिखा था?
(A) राधा ने
(B) सत्यभामा ने
(C) कुब्जा ने
(D) रुक्मिणी ने
उत्तर-
(D) रुक्मिणी ने

प्रश्न 20.
त्रिपिटक ग्रंथों की रचना किस भाषा में हुई?
(A) हिन्दी
(B) प्राकृत
(C) संस्कृत
(D) अंग्रेजी
उत्तर-
(B) प्राकृत

प्रश्न 21.
श्रीमद्भागवत के दशम् स्कंध के उत्तरार्द्ध के कौन-से अध्याय में रुक्मिणी हरण की कथा है?
(A) 53वें
(B) 31वें
(C) 48वें
(D) 57वें
उत्तर-
(A) 53वें

प्रश्न 22.
थेरीगाथा निम्नलिखित में से किस ग्रंथ का एक भाग है?
(A) वेद
(B) भागवत
(C) त्रिपिटक
(D) कुमारसंभव
उत्तर-
(C) त्रिपिटक

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) बड़े शोक की बात है, आजकल भी ऐसे लोग विद्यमान हैं जो स्त्रियों को पढ़ाना उनके और गृह-सुख के नाश का कारण समझते हैं। और, लोग भी ऐसे-वैसे नहीं, सुशिक्षित लोग-ऐसे लोग जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों और शायद कॉलिजों में भी शिक्षा पाई है, जो धर्म-शास्त्र और संस्कृत के ग्रंथ साहित्य से परिचय रखते हैं, और जिनका पेशा कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना, कुमार्गगामियों को सुमार्गगामी बनाना और अधार्मिकों को धर्मतत्त्व समझाना है। [पृष्ठ 105]

(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक के विचार में शोक की बात क्या है?
(ग) ‘गृह-सुख के नाश’ से क्या अभिप्राय है?
(घ) ‘ऐसे-वैसे’ किन लोगों को और क्यों कहा गया है?
(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने किन-किन के पेशों की ओर संकेत किया है और क्यों?
(च) इस गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट करें।
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

(ख) लेखक के विचार में शोक की बात यह है कि आज के युग में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो स्वयं तो शिक्षा प्राप्त करते हैं और स्त्रियों का पढ़ना या पढ़ाना उचित नहीं समझते। ऐसे लोगों का विचार है कि स्त्रियाँ पढ़-लिखकर बिगड़ जाती हैं तथा परिवार के सुख का नाश हो जाता है।

(ग) ‘गृह-सुख के नाश’ से अभिप्राय है कि घर के काम-काज में रुचि न लेना तथा परिवार की देखभाल न करना। घर में आए मेहमान का आदर न करना। किसी को अपने बराबर न समझना तथा सदैव अहंकार की बातें करना। ऐसा करने से घर की सुख-शांति नष्ट हो जाती है।

(घ) लेखक ने ‘ऐसे-वैसे’ उन लोगों को कहा है जो स्वयं खूब पढ़े-लिखे हैं। वे अच्छे-अच्छे स्कूल-कॉलेजों में पढ़े हुए हैं, किंतु नारी-शिक्षा के पक्ष में नहीं हैं। वे स्वयं शिक्षित होने का लाभ उठाकर स्त्रियों पर प्रभाव डालने के लिए उन्हें अशिक्षित रखना चाहते हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने अध्यापकों, समाज-सुधारकों, धर्माचार्यों, उपदेशकों आदि के पेशों की ओर संकेत किया है। अध्यापक स्वयं शिक्षित होकर दूसरों को शिक्षित करने का कार्य करता है। समाज-सुधारक समाज में फैली बुराइयों को दूर करके समाज को अच्छा बनाता है तथा लोगों को सद्मार्ग पर चलने का उपदेश देता है। धर्माचार्य भी धर्म के मार्ग पर चलने का उपदेश देता है। ऐसे लोग सुयोग्य होते हुए भी स्त्री-शिक्षा के पक्ष में नहीं हैं। वे स्त्रियों को अनपढ़ बनाए रखने के पक्ष में हैं। लेखक ने इन्हीं लोगों को ‘ऐसे-वैसे’ की संज्ञा दी है तथा इन पर करारा व्यंग्य किया है।

(च) इस गद्यांश का मूल भाव स्त्री-शिक्षा के विरोधियों पर व्यंग्य करना है तथा स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देने की प्रेरणा देना है। क्योंकि स्त्री-शिक्षा से समाज का समुचित विकास हो सकता है।

(छ) आशय/व्याख्या प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने उन लोगों की स्त्री-शिक्षा संबंधी सोच का उल्लेख किया है जो न केवल स्वयं शिक्षित हैं, अपितु वे दूसरों को भी शिक्षा देते हैं। ऐसे लोग स्त्री-शिक्षा को उसके गृह-सुख का नाश बताते हैं। उनका विचार है कि शिक्षा प्राप्त करने से स्त्री के सुख नष्ट हो जाएँगे। यह विचार उन लोगों का है जो स्वयं उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। वे धर्मशास्त्र, संस्कृत के ग्रंथों एवं साहित्य को भी पढ़ चुके हैं तथा अनपढ़ों को पढ़ाते हैं। वे बुरे मार्ग पर चलने वालों को सद्मार्ग पर चलाते हैं। अधर्मियों को धर्म की शिक्षा देते हैं। ऐसे लोगों पर लेखक ने व्यंग्य किया है तथा स्त्री-शिक्षा का पक्ष लिया है।

(2) पुराने जमाने में स्त्रियों के लिए कोई विश्वविद्यालय न था। फिर नियमबद्ध प्रणाली का उल्लेख आदि पुराणों में न मिले तो क्या आश्चर्य। और, उल्लेख उसका कहीं रहा हो, पर नष्ट हो गया हो तो? पुराने ज़माने में विमान उड़ते थे। बताइए उनके बनाने की विद्या सिखाने वाला कोई शास्त्र! बड़े-बड़े जहाज़ों पर सवार होकर लोग द्वीपांतरों को जाते थे। दिखाइए, जहाज़ बनाने की नियमबद्ध प्रणाली के दर्शक ग्रंथ! पुराणादि में विमानों और जहाजों द्वारा की गई यात्राओं के हवाले देखकर उनका अस्तित्व तो हम बड़े गर्व से स्वीकार करते हैं, परंतु पुराने ग्रंथों में अनेक प्रगल्भ पंडिताओं के नामोल्लेख देखकर भी कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों को मूर्ख, अपढ़ और गँवार बताते हैं! इस तर्कशास्त्रज्ञता और इस न्यायशीलता की बलिहारी!
[पृष्ठ 106-107]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) पुराने जमाने में क्या उड़ते थे?
(ग) लोग द्वीपांतरों को कैसे जाते थे?
(घ) भारत की प्राचीन स्त्रियों को अनपढ़ व गँवार कौन बताते हैं?
(ङ) वेदों में स्त्री-शिक्षा के प्रमाण किस रूप में प्राप्त होते हैं?
(च) स्त्री-शिक्षा को कौन पाप समझता है और क्यों?
(छ) लेखक किस तर्कशास्त्रज्ञता और न्यायशीलता पर न्योछावर हो जाता है और क्यों?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

(ख) पुराने जमाने में विमान उड़ाते थे।

(ग) बड़े-बड़े जहाज़ों पर सवार होकर लोग दीपांतरों पर जाते थे।

(घ) कुछ लोग भारत की प्राचीन स्त्रियों को अनपढ़ व गँवार बताते हैं।

(ङ) वेदों में स्त्री-शिक्षा का सबसे बड़ा प्रमाण उपलब्ध है कि कितने ही वेदों की रचना स्त्रियों ने की है। इनमें एक देवी हैं विश्ववरा जिसने वेदों की रचना की है। इससे प्रमाणित होता है कि वेदों में स्त्री-शिक्षा के प्रमाण विद्यमान हैं।

(च) जो लोग स्त्री-शिक्षा का विरोध करते हुए कहते हैं कि स्त्रियों को शिक्षा देना उचित नहीं है, स्त्रियों को शिक्षित करने से घर का सुख-चैन चला जाता है। ऐसे लोग ही स्त्री-शिक्षा को पाप समझते हैं क्योंकि इन लोगों के विचार संकीर्ण एवं स्त्री विरोधी होते हैं।

(छ) लेखक तर्क देने वाले और न्याय करने वालों पर व्यंग्य करता हुआ ये शब्द कहता है। ये लोग बिना प्रमाण के विमान का होना तो स्वीकार कर सकते हैं, किंतु स्त्री-शिक्षा के होने को स्वीकार नहीं कर सकते। लेखक ऐसे लोगों पर व्यंग्य करते हुए कहता . है कि इनके तर्क एवं न्याय दोनों ही व्यर्थ हैं।

(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने पुराने समय के स्त्री-शिक्षा के विषय में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा है कि उस समय ऐसा कोई विश्वविद्यालय नहीं था, जिसमें स्त्रियों को शिक्षा दी जाती हो। इसलिए प्राचीन ग्रंथों में स्त्रियों की नियमबद्ध शिक्षा प्रणाली के प्रमाण नहीं मिलते। इस संबंध में लेखक ने सुंदर तर्क प्रस्तुत किया है कि हो सकता है कि शिक्षा प्रणाली के नियम तो हों किंतु नष्ट हो गए हों। जिस प्रकार विमान उड़ने का वर्णन तो मिलता है किंतु विमान बनाने या विमान विद्या के कोई शास्त्र उपलब्ध नहीं है। पुराणादि ग्रंथों में जहाज़ों द्वारा की गई यात्रा का वर्णन तो बड़े गर्व से किया जाता है, किंतु जहाज़-निर्माण के नियम कहीं नहीं मिलते। पुराने ग्रंथों में कुछ महान् पंडितों के नामोल्लेख मात्र को देखकर भी लोग उस समय की स्त्रियों को मूर्ख, अनपढ़, गँवार बताते हैं। लेखक ने ऐसे तर्कों पर करारा व्यंग्य किया है। ये सब स्त्री-शिक्षा के विरोधी लोगों के कुतर्क हैं।

(3) अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटों पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे! गज़ब! इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी! यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़ती, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करती। यह सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने ही का कुफल है। समझे। स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घुट ! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं। [पृष्ठ 107]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) प्राचीनकाल में स्त्रियों ने किस प्रकार अपने ज्ञान का प्रभाव जमाया था?
(ग) लेखक ने ‘भयंकर बात’ और ‘पापी पढ़ने का अपराध’ किसे और क्यों कहा है?
(घ) “यह सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने ही का कुफल है”-इस पंक्ति में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
(ङ) किस बात को लेकर हम स्त्रियों एवं पुरुषों के साथ अलग-अलग व्यवहार करते हैं?
(च) इस गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

(ख) प्राचीनकाल में स्त्रियों ने अपने ज्ञान, तर्क एवं उपदेश की क्षमता-शक्ति के बल पर समाज में प्रभाव बढ़ाया था। अत्रि ऋषि की पत्नी ने पत्नी-धर्म पर घंटों व्याख्यान दिया था। गार्गी ने बड़े-बड़े ब्रह्मवादी चिंतकों को शास्त्रार्थ में चित्त कर दिया था। मंडन मिश्र की पत्नी ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में निरुत्तर कर दिया था।

(ग) लेखक ने व्यंग्य में स्त्रियों द्वारा महान् एवं आदरणीय पुरुषों को हराने को ‘भयंकर बात’ कही है। भयंकर बात इसलिए भी है कि पुरुषों को अपने ज्ञान एवं विद्या पर अत्यधिक घमंड था और वे अपने-आपको अजेय समझते थे। ‘पापी पढ़ने का अपराध’ कहकर उन पुरुषों पर चोट की गई है जो स्त्रियों की शिक्षा का विरोध करते हैं। वे स्त्रियों के बढ़ते प्रभाव को सहन नहीं कर सकते।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

(घ) लेखक ने उन पुरुषों को दोषी ठहराया है जो स्त्रियों के पढ़ने-लिखने का विरोध करते हैं। यदि स्त्रियाँ तर्क के क्षेत्र में पुरुषों को हरा देती हैं तो ऐसे लोग इसे स्त्री-शिक्षा का ही दुराचार मानते हैं अर्थात् न स्त्री-शिक्षा होती न पुरुषों को नारियों के सामने हारना पड़ता। वास्तव में यह पंक्ति अहंकारी पुरुषों की अहंकार की मनोवृत्ति पर करारा व्यंग्य है।

(ङ) हम स्त्रियों एवं पुरुषों में शिक्षा को लेकर अलग-अलग व्यवहार करते हैं। हम पुरुषों के लिए शिक्षा को अनिवार्य समझते हैं, जबकि स्त्रियों के लिए नहीं। हम चाहते हैं कि कोई भी स्त्री पुरुष को शिक्षा के क्षेत्र में परास्त न करे। इससे पुरुषों के खोखले अहं को ठेस पहुँचती है।

(च) इस गद्यांश का मूल भाव है कि हमें स्त्री-शिक्षा का विरोध नहीं करना चाहिए। हमें स्त्री-शिक्षा का भी वैसा ही पक्ष लेना चाहिए जैसा कि हम पुरुषों का लेते हैं। यदि स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर दिए जाएँगे तो वे भी समाज के विकास में सहयोगी सिद्ध हो सकती हैं।

(छ) आशय-कुछ लोगों का मत है कि प्राचीनकाल में भारतीय स्त्रियाँ अनपढ़ और मूर्ख थीं। लेखक ने उन लोगों के इस मत का खंडन करते हुए कहा है कि अत्रि ऋषि की पत्नी ने पत्नी-धर्म पर पांडित्यपूर्ण व्याख्यान दिया। गार्गी ने भी बड़े-बड़े ब्रह्मवादी पंडितों को ज्ञान के क्षेत्र में पछाड़ दिया। मंडन मिश्र की पत्नी भी बहुत विदुषी थी। उसने ज्ञान के क्षेत्र में शंकराचार्य को हरा दिया था। इससे बढ़कर भारतीय स्त्रियों के ज्ञानवान होने के क्या प्रमाण हो सकते हैं। स्त्री-शिक्षा विरोधी इस बात को भी शिक्षा का कुफल कहते हैं। स्त्री-शिक्षा के विरोधियों का कथन है कि स्त्रियों के लिए पढ़ना ज़हर के समान है और पुरुषों के लिए अमृत। ऐसे उदाहरण देकर कुछ लोग स्त्रियों को अनपढ़ रखना चाहते हैं। इससे देश का गौरव नहीं बढ़ सकता। देश एवं समाज की उन्नति के लिए स्त्रियों का शिक्षित होना अति अनिवार्य है।

(4) स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा ही का परिणाम समझना चाहिए। बम के गोले फेंकना, नरहत्या करना, डाके डालना, चोरियाँ करना, घूस लेना ये सब यदि पढ़ने-लिखने ही का परिणाम हो तो सारे कॉलिज, स्कूल और पाठशालाएँ बंद हो जानी चाहिए। परंतु विक्षिप्तों, बातव्यथितों और ग्रहास्तों के सिवा ऐसी दलीलें पेश करने वाले बहुत ही कम मिलेंगे। शकुंतला ने दुष्यंत को कटु वाक्य कहकर कौन-सी अस्वाभाविकता दिखाई? क्या वह यह कहती कि-“आर्य पुत्र, शाबाश! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!” पत्नी पर घोर से घोर अत्याचार करके जो उससे ऐसी आशा रखते हैं वे मनुष्य-स्वभाव का किंचित् भी ज्ञान नहीं रखते। [पृष्ठ 108]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने स्त्रियों द्वारा किए गए किस अनर्थ की चर्चा की है? क्या यह वास्तव में अनर्थ है?
(ग) पुरुष पढ़-लिखकर भी क्या कुकर्म करता है? क्या यह उसकी शिक्षा का दोष है?
(घ) मनुष्य को शिक्षा किस मार्ग पर चलने की शिक्षा देती है?
(ङ) लेखक स्कूल-कॉलेज बंद करने की बात क्यों कहता है?
(च) लेखक ने स्त्रियों को पढ़ा-लिखा होने को अनर्थ का कारण मानने वालों को क्या और क्यों कहा है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी

(ख) लेखक ने पढ़ी-लिखी स्त्रियों द्वारा अपनी विद्वता से शास्त्रार्थ में बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित करने तथा अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करने की चर्चा की है, जिसे पुरुष प्रधान समाज स्त्रियों द्वारा किया गया अनर्थ मानता है और उन्हें अनपढ़ बनाए रखना चाहता है। वास्तव में यह अनर्थ नहीं है। यह पुरुष समाज द्वारा स्त्रियों पर बलात किया जाने वाला अनर्थ है।

(ग) पुरुष पढ़-लिखकर भी चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि कुकर्म करता है जो उसकी पढ़ाई-लिखाई का दोष नहीं होता है। वह यह सब बुरे कार्य अपनी संगति अथवा संस्कारों के कारण करता है। इसलिए पढ़ाई-लिखाई को कुकर्मों को प्रेरित करने वाली नहीं मानना चाहिए।

(घ) शिक्षा सदा ही मनुष्य को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। वह मनुष्य को बुरे रास्ते से हटाकर अच्छे मार्ग पर चलाती है। शिक्षा मनुष्य में अच्छे-बुरे की पहचान करने की शक्ति भी उत्पन्न करती है। मनुष्य शिक्षा प्राप्त करके जीवन में विकास करने के सद्प्रयास करता है। शिक्षा मनुष्य में मानवीय गुणों का विकास भी करती है। इसलिए शिक्षा को अनर्थ कारक कहना अनुचित है।

(ङ) लेखक का तर्क है कि जब बम के गोले फेंकना, नर हत्या करना, डाके डालना, घूस लेना, व्यभिचार करना सब पढ़ने-लिखने का परिणाम है तो फिर ये स्कूल-कॉलेज किसलिए खोल रखे हैं। यदि शिक्षा से व्यक्ति दुष्कर्म ही करेगा तो फिर इन स्कूल-कॉलेजों को बंद करना ही उचित होगा।

(च) लेखक ने पढ़ी-लिखी स्त्रियों को अनर्थ करने वाली स्त्रियाँ कहने वाले पुरुषों को पागल, पूर्वाग्रहों से ग्रस्त, अंधविश्वासी आदि कहा है। ये लोग अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए स्त्रियों को अनपढ़ ही बनाए रखना चाहते हैं। ये लोग यह नहीं चाहते कि स्त्रियाँ अपना भला-बुरा सोचने तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बन सकें।

(छ) आशय/व्याख्या-इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि स्त्रियों ने अपनी विद्वत्ता से शास्त्रार्थ में बड़े-बड़े विद्वानों को हरा दिया और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष किया। किंतु पुरुष-प्रधान इस समाज के कुछ लोग उनके इस प्रयास को अनर्थ कहते हैं तथा वे उन्हें मूर्ख बनाए रखना चाहते हैं। यदि इन सभी बातों को विद्या-प्राप्ति या शिक्षा का परिणाम समझते हैं तो फिर पुरुष भी शिक्षा से बम बनाना, नर-हत्या करना, डाके डालना, चोरी करना, रिश्वत लेना आदि सीखता है तो उसे भी अनपढ़ ही रहना चाहिए। शिक्षा-प्राप्ति के सभी साधन समाप्त कर देने चाहिएँ। किंतु ऐसी बुरी दलीलें देने वाले कम ही लोग मिलेंगे। लेखक शकुंतला का उदाहरण देते हुए स्त्री-शिक्षा और स्त्री-अस्तित्व के संघर्ष का पक्ष लेते हुए कहता है कि शकुंतला ने दुष्यंत से यह पूछकर कोई बुराई नहीं की कि उसने उससे गांधर्व-विवाह किया था और वह उस विवाह से मुकर गया है। पत्नी पर घोर अत्याचार करने वाले पुरुष का पक्ष लेना अमानवीय है। ऐसे लोग नहीं चाहते कि स्त्रियाँ शिक्षित हों और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनें।

(5) जो लोग यह कहते हैं कि पुराने जमाने में यहाँ स्त्रियाँ न पढ़ती थीं अथवा उन्हें पढ़ने की मुमानियत थी वे या तो इतिहास से अभिज्ञता नहीं रखते या जान-बूझकर लोगों को धोखा देते हैं। समाज की दृष्टि में ऐसे लोग दंडनीय हैं। क्योंकि स्त्रियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज का अपकार और अपराध करना है-समाज की उन्नति में बाधा डालना है।
‘शिक्षा’ बहुत व्यापक शब्द है। उसमें सीखने योग्य अनेक विषयों का समावेश हो सकता है। पढ़ना-लिखना भी उसी के अंतर्गत है। इस देश की वर्तमान शिक्षा-प्रणाली अच्छी नहीं। इस कारण यदि कोई स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थकारी समझे तो उसे उस प्रणाली का संशोधन करना या कराना चाहिए, खुद पढ़ने-लिखने को दोष न देना चाहिए। [पृष्ठ 109]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) स्त्री-शिक्षा को लेकर लेखक के क्या विचार थे?
(ग) ‘निरक्षर स्त्री समाज की उन्नति में बाधा है’ इस विषय पर अपना मत प्रकट कीजिए।
(घ) वर्तमान शिक्षा प्रणाली में संशोधन करने का अवसर आपको मिले तो क्या करना चाहेंगे?
(ङ) शिक्षा का क्या अर्थ है?
(च) लेखक स्त्री-शिक्षा के विरोधियों से क्या कहना चाहता है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

(ख) लेखक कहता है कि यदि कुछ लोग यह सोचते हैं कि पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं तो वे सच्चाई से दूर हैं। स्त्री-शिक्षा की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। यह विचार गलत है कि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होता है, बल्कि स्त्री को पढ़ाने से समाज शिक्षित होता है। लेखक इस विषय पर लोगों के कुतर्कों को महत्त्व नहीं देता।

(ग) यदि समाज में निरक्षर स्त्री होगी तो अवश्य ही समाज का विकास बाधित होगा। कोई भी स्त्री यदि पढ़ी-लिखी है तो वह अपने बच्चों तथा परिवार को अच्छी शिक्षा तथा अच्छे संस्कार देगी। यदि एक परिवार का सर्वांगीण विकास चाहिए तो स्त्री को अवश्य पढ़ाएँ।

(घ) संशोधित शिक्षा प्रणाली ऐसी हो जिसमें रटने पर नहीं, बल्कि समझने पर जोर दिया गया हो। शिक्षा ऐसी हो जिसे व्यवहार में लाया जा सके। बच्चों के लिए शिक्षा भार न बनकर सीखने का माध्यम बने और वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके।

(ङ) शिक्षा का अर्थ केवल अक्षर ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं, अपितु शिक्षा का बहुत व्यापक अर्थ है। हम जो कुछ भी सीखते हैं, वह शिक्षा कहलाती है। सीखने योग्य अनेक विषय हो सकते हैं जिनमें पढ़ना-लिखना भी एक विषय है।

(च) लेखक स्त्री-शिक्षा के विरोधियों से कहना चाहता है कि यदि आवश्यक है तो शिक्षा प्रणाली में संशोधन कर दीजिए। उनकी शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिए, इस पर बैठकर विचार किया जा सकता है, किंतु यह मत कहिए कि स्त्रियों का पढ़ना-लिखना अनर्थकारी है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

(छ) आशय/व्याख्या-उपर्युक्त गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट शब्दों में बताया है कि जो लोग यह कहते हैं कि पुराने समय में स्त्रियाँ पढ़ती नहीं थीं अथवा उनको पढ़ने की मनाही थी तो ऐसे लोग इतिहास से अनभिज्ञ हैं या फिर जान-बूझकर लोगों को धोखा देना चाहते हैं। ऐसे लोगों को सजा मिलनी चाहिए, क्योंकि वे समाज में स्त्रियों के प्रति भ्रांति फैलाते हैं। स्त्रियों को अनपढ़ रखना समाज के विकास में बाधा डालना है। फिर ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ ही बहुत विस्तृत है। उसमें सीखने के अनेक विषय हैं। पढ़ना-लिखना भी उसी में आता है। लेखक के अनुसार इस देश की शिक्षा-प्रणाली अच्छी नहीं है। इसमें सुधार करना चाहिए। किंतु यह नहीं कहना चाहिए कि स्त्रियों का पढ़ना-लिखना अनर्थकारी है। स्त्रियाँ भी समाज का अभिन्न अंग हैं। यदि स्त्रियाँ शिक्षित नहीं होंगी तो समाज का एक भाग अशिक्षित रह जाएगा और समाज का विकास समुचित रूप से नहीं हो सकेगा।

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Summary in Hindi

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन लेखक-परिचय

प्रश्न-
आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का आधुनिक साहित्य के साहित्यकारों में प्रमुख स्थान है। इनका जन्म सन् 1864 में रायबरेली के दौलतपुर गाँव में हुआ था। आपकी आरंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। आपने स्कूली शिक्षा मैट्रिक तक ही प्राप्त की थी, किंतु आपने अध्यवसाय, विपुल जिज्ञासा, प्रेरित अनवरत अध्ययन और चिंतन-मनन की अपनी प्रवृत्ति के कारण हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, उर्दू, बाँग्ला, गुजराती आदि अनेक भाषाओं का गहन अध्ययन किया। अपने इसी गुण के कारण आप अपने युग के अग्रणी साहित्यकार रहे। आप भाषा के महापंडित थे। आपने कई वर्षों तक रेलवे विभाग में नौकरी की। आपने 1903 ई० में ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन का कार्यभार संभाला। हिंदी जगत् के लिए यह एक महान् घटना थी। सन् 1920 तक इस पत्रिका का संपादन करते हुए आपने हिंदी में खड़ी बोली गद्य को व्यवस्थित एवं परिष्कृत करके उसे व्याकरण-सम्मत बनाया। आप जीवन-पर्यंत साहित्य-साधना में लगे रहे। सन् 1938 में आपका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने लगभग 80 रचनाएँ लिखीं, जिनमें से 14 अनूदित और 66 मौलिक रचनाएँ हैं। केवल गद्य पर इनकी अनूदित और मौलिक रचनाओं की संख्या 64 है। इनके प्रमुख निबंध-संग्रह निम्नलिखित हैं
‘संकलन’, ‘रसज्ञ रंजन’, ‘लेखांजलि’, ‘संचयन’, ‘विचार-विमर्श’, ‘साहित्य-सीकर’, ‘साहित्य-संदर्भ’, ‘समालोचना समुच्चय’ आदि।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी युग- प्रवर्तक एवं युग-निर्माता पहले हैं, साहित्यकार बाद में इसलिए उनके निबंधों में भारतेंदु अथवा बाद के निबंधकारों की भाँति वैयक्तिकता, रोचकता एवं सजीवता उपलब्ध नहीं होती। वस्तुतः द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ के माध्यम से धर्म, साहित्य, समाज, विज्ञान, राजनीति आदि विषयों पर जमकर निबंध लिखे। उन्होंने भाषा संस्कार और पुनरुत्थान का महान् कार्य किया। बेकन उनके आदर्श निबंधकार थे। इसलिए उन्होंने उनके अनेक निबंधों का हिंदी में अनुवाद भी किया। बेकन की भाँति ही महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के निबंधों में विचारों की अधिकता सर्वत्र देखी जा सकती है।

4. भाषा-शैली-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने भाषा सुधार का महान् कार्य किया। उनके निबंधों में शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है। वे विषयानुकूल, व्याकरण सम्मत एवं सरल भाषा के प्रयोग के पक्ष में थे। उनके निबंधों में विभिन्न शैलियों का प्रयोग हुआ है। उनके साहित्य की भाषा में लोक प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया गया है।

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन पाठ का सार

प्रश्न-
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कृतों का खंडन’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में महावीरप्रसाद द्विवेदी ने उन लोगों को मुँह तोड़ जवाब दिया है जो स्त्री-शिक्षा को व्यर्थ एवं समाज के विघटन का कारण मानते थे। इसके साथ ही लेखक ने सड़ी-गली परंपराओं को त्याग देने की प्रेरणा भी दी है। निबंध का सार इस प्रकार है-
लेखक को इस बात का बेहद दुःख है कि पढ़े-लिखे लोग भी स्त्री-शिक्षा का विरोध करते थे। बड़े-बड़े धर्मगुरु व अध्यापक भी स्त्री-शिक्षा के विपक्ष में तर्क देते थे। उनका तर्क है कि पुराने संस्कृत नाटकों में स्त्री-पात्र अनपढ़ों की भाषा में बात करते थे। इससे पता चलता है कि पुराने समय में स्त्री-शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। स्त्री-शिक्षा से समाज में अनर्थ होते हैं। वे शकुंतला का उदाहरण भी देते हैं कि शकुंतला ने गँवारों की भाषा में श्लोक रचा था। इससे पता चलता है कि स्त्रियों के लिए कुछ भी पढ़ना उचित नहीं था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

लेखक ने तर्क देते हुए कहा है कि नाटकों में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनकी अनपढ़ता का प्रमाण नहीं है। संस्कृत न बोल पाना भी अनपढ़, गँवार होने का प्रतीक नहीं है। बौद्ध-धर्म और जैन-धर्म के ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में हुई है। इन धर्मों के उपदेश भी प्राकृत भाषा में ही दिए जाते थे। अतः स्पष्ट है कि प्राकृत बोलना या प्रयोग करना अनपढ़ता का प्रतीक नहीं हो सकता। जैसे हिंदी, बाँग्ला आदि भाषाएँ आज की प्राकृत हैं, वैसे ही शौरसेनी, मागधी, पाली आदि उस समय की प्राकृत भाषाएँ थीं। नाटकों में कुछ ही लोगों द्वारा संस्कृत बोलने का प्रावधान किया गया था क्योंकि सब संस्कृत नहीं बोल सकते थे।

लेखक का कथन है कि प्राचीनकाल में महिलाओं के लिए विश्वविद्यालय नहीं थे, किंतु वे प्रमाण आज नष्ट हो चुके हैं। किंतु इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पुराने समय में जहाज़ और विमान थे किंतु उनको बनाने की विद्या सिखाने के प्रमाण नहीं मिलते। फिर भी हम उनके होने की बात को बड़े गर्व से स्वीकार करते हैं। लेकिन न जाने इसी तर्क पर हम स्त्रियों का शिक्षित होना क्यों नहीं मानते? ईश्वर ने अनेक वेद मंत्र उनके मुख से कहलवाए हैं। बौद्ध ग्रंथों में स्त्रियों की अनेक पद्य-रचनाएँ उपलब्ध हैं। इतना कुछ होने पर भी हम उन्हें अनपढ़ कहने पर तुले हुए हैं। . लेखक ने अनेक ज्ञानवान स्त्रियों के प्रमाण प्रस्तुत करके यह सिद्ध किया है कि स्त्रियाँ भी शिक्षित थीं। अत्रि की पत्नी गार्गी और मंडन मिश्र की पत्नी का तर्क ज्ञान पूजनीय पुरुषों को भी परास्त करता है। क्या यह दुराचार है। उधर एम.ए., बी.ए. करके पत्नियों को मारना व पीटना पुरुषों का सदाचार है। पुरुषों के लिए शिक्षा अमृत और स्त्रियों के लिए जहर, क्या इस बात को संगत कह सकते हैं।

यदि यह भी मान लिया जाए कि पुराने ज़माने में स्त्रियाँ अशिक्षित थीं किंतु वर्तमान युग में स्त्रियों का शिक्षित होना अति अनिवार्य है। अतः हमें स्त्रियों को अनपढ़ रखने की चाल को छोड़ देना चाहिए। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में पुराने समय में स्त्रियों के शिक्षित होने के प्रमाण उपलब्ध हैं। रुक्मिणी की हरण कथा इस बात का प्रमाण है। रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को प्रेम-पत्र लिखा था। वह प्राकृत में नहीं हो सकता।

लेखक ने तर्क देते हुए कहा है कि यदि नारी-शिक्षा से अनर्थ होता है तो पुरुषों की हिंसा और पापाचार भी पढ़ाई या शिक्षा का परिणाम है। इस प्रकार तो सभी स्कूल-कॉलेज बंद हो जाने चाहिएँ। शकुंतला ने ऐसी कौन-सी दलील दे दी थी, जिससे दुष्यंत का अपमान हुआ हो। यदि वह उससे विवाह करके उसे भुला देता है तो क्या वह उसका सम्मान करती? इसी प्रकार राम ने भी सीता की अग्नि-परीक्षा भी ले ली थी और फिर किसी के बहकावे में आकर उसे पुनः त्याग दिया था। यहाँ सीता का राम के प्रति क्रोध करना उसके गँवार होने की निशानी नहीं, उसका ऐसा करना स्वाभाविक है।

लेखक के अनुसार शिक्षा कभी-भी अनर्थकारी नहीं हो सकती। अनर्थ तो पुरुष भी करते हैं। अनपढ़ों और अशिक्षितों से भी अनर्थ होते हैं। जो लोग स्त्री-शिक्षा का विरोध करते हैं, वे अपनी अज्ञानता दिखाते हैं। ऐसे लोग तो दंडनीय हैं तथा समाज की उन्नति में बाधा डालने के लिए अपराधी भी। वस्तुतः शिक्षा बहुत व्यापक हैं उसमें सीखने योग्य विविध विषय हो सकते हैं। यदि आज की शिक्षा दोषपूर्ण है और स्त्रियों को सिखाने योग्य कुछ नहीं है तो उसमें सुधार होना चाहिए। पुरुषों की शिक्षा में भी दोष हैं, किंतु इस कारण स्कूल-कॉलेज बंद नहीं किए जा सकते। इस संदर्भ में लेखक का निवेदन है कि यदि शिक्षा में दोष है तो उस पर बहस होनी चाहिए, संशोधन होना चाहिए। किंतु इसे हमें अनर्थकारी, विनाशकारी या फिर मिथ्या नहीं कहना चाहिए।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-105) कुतर्क = गलत तर्क। शोक = दुःख। गृह-सुख = घर के सुख या घर की शांति। सुशिक्षित = अच्छे पढ़े-लिखे लोग। परिचय = जानकारी। पेशा = व्यवसाय। कुशिक्षित = गलत सीख वाले। कुमार्गगामी = गलत या बुरे मार्ग पर चलने वाले। सुमार्गगामी = अच्छे रास्ते पर चलने वाले। अधार्मिक = जिसका धर्म से संबंध न हो। दलील = तर्क। धर्मत्व = धर्म का सार। प्रमाणित = सिद्ध। चाल = रीति। अनर्थ = बुरा। गँवार = मूर्ख, अनपढ़। कटु = कड़वा। दुष्परिणाम = बुरा नतीजा।

(पृष्ठ-106) प्राकृत = प्राचीन भाषा का नाम। उत्तररामचरित = संस्कृत के कवि भवभूति द्वारा रचित नाटक। वेदांतवादिनी = वेदांत पर बोलने वाली। प्रचलित = प्रसिद्ध, व्यवहार में लाई जाने वाली। धर्मोपदेश = धर्म की बातें बताना। पंडित = विद्वान्। एकमात्र = केवल एक। सर्वसाधारण = जनसामान्य। नाट्यशास्त्र = नाटक कला से संबंधित ग्रंथ। विमान = हवाई जहाज़। द्वीपांतर = एक द्वीप से दूसरे द्वीप तक। हवाला = संदर्भ। अस्तित्व = जीवन होना।

(पृष्ठ-107) तर्कशास्त्रज्ञता = तर्कशास्त्र की जानकारी। तत्कालीन = उसी समय का। न्यायशीलता = न्याय के अनुकूल व्यवहार करना । ईश्वर-कृत = ईश्वर के द्वारा किया हुआ। ककहरा = क.ख.ग. आदि का ज्ञान। पुरुष-कवि = कविता लिखने वाले पुरुष। आदृत ‘= आदर-प्राप्त, सम्मानित। शाङ्गधर-पद्धति = छंद शास्त्र लिखने वाले शाङ्गधर नामक कवि के अनुसार। पद्यरचना = कविता लिखना। उद्धृत = ली गई, संकलित। कुमारिका = कुमारी, बालिका। विज्ञ = ज्ञानी, जानकार। पत्नी-धर्म = पत्नी का कर्तव्य । ब्रह्मवादी = वेद पढ़ने-पढ़ाने वाला। सहधर्मचारिणी = पत्नी। छक्के छुड़ाना = बुरी तरह हराना।

भयंकर = भयानक। दुराचार = निंदनीय व्यवहार। कालकूट = ज़हर । पीयूष = अमृत। दृष्टांत = उदाहरण। विपक्षी = विरोधी। उत्तरार्द्ध = पीछे वाला आधा भाग। हरण = चुराना। एकांत = अकेला। पांडित्य = विद्वता, ज्ञान। अल्पज्ञ = कम जानने वाला। सनातन-धर्मावलंबी = सनातन धर्म को मानने वाला। अपेक्षा = तुलना में। दशा = हालत।

(पृष्ठ-108) प्राक्कालीन = पुराने समय की। घूस = रिश्वत । विक्षिप्त = पागल। बात व्यथित = बातों से दुःखी होने वाला। ग्रहग्रस्त = पाप ग्रह से प्रभावित । अस्वाभाविक = जो स्वाभाविक न हो। गांधर्व-विवाह = प्रेम-विवाह। प्रत्यक्ष मूर्ति = साक्षात् रूप। घोर = भयंकर। किंचित् = ज़रा। साध्वी = सीधी, पतिव्रता। दुर्वाक्य = निंदा करने वाला वचन। परित्यक्त = पूरी तरह छोड़ दिया गया। मिथ्यावाद = झूठी बात। अनुरूप = अनुसार। विद्वता = पंडित होना, बुद्धिमानी। महत्ता = महत्त्व। महाब्रह्मज्ञानी = ब्रह्म का ज्ञान रखने वाले महान् पुरुष। मन्वादि = मनु आदि। महर्षि = महान् ऋषि। धर्मशास्त्रज्ञता = धर्म-शास्त्र को जानना। नीतिज्ञ = नीति को जानने वाला। क्षमाशील = क्षमा करने वाला।

(पृष्ठ-109) अकुलीनता = बुरे कुल से होना। हरगिज़ = किसी भी स्थिति में। पापाचार = पापपूर्ण व्यवहार। चाल-चलन = व्यवहार, चरित्र। मुमानियत = मनाही, पाबंदी। अभिज्ञता = जानकारी, ज्ञान। दंडनीय = दंड देने योग्य। निरक्षर = अनपढ़। अपकार = बुरा। बाधा = रुकावट। व्यापक = विस्तार वाला। संशोधन = सुधार। राय = मत, विचार। अनर्थकर = बुरा करने वाला। उत्पादक = बनाने वाला। मिथ्या = झूठ। सोलहों आने = पूर्ण रूप से।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

HBSE 10th Class Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Questions and Answers

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा Question Answer HBSE 10th Class प्रश्न 1.
हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी में लेखक ने उपेक्षित समाज के लोगों द्वारा आज़ादी की लड़ाई में योगदान पर प्रकाश डाला है। दुलारी एक गीत गाने वाली स्त्री है, जिसे समाज हेय दृष्टि से देखता है। टुन्नू एक किशोर युवक है। वह भी गीत गाता है तथा राष्ट्रीय आंदोलन और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। दुलारी को फेंकू सरदार मानचेस्टर तथा लंका शायर की मिलों में बनी मखमली किनारे वाली कोरी धोतियों का बंडल लाकर देता है। दुलारी को बढ़िया-बढ़िया साड़ियाँ पहनने का चाव भी है। किंतु दुलारी के मन में देश-प्रेम की भावना भी है। वह उस बंडल को विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर उनकी होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे देती है। वह टुन्नू के द्वारा दी हुई खादी आश्रम में बनाई साड़ी को पहनती है। वह फेंकू सरदार, जो अंग्रेज़ों का मुखबर है, को झाड़ मार-मार कर घर से निकाल देती है। टुन्नू विदेशी वस्त्रों को जला देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का साथ देता है और इसी कारण अंग्रेज़ पुलिस द्वारा मारा जाता है। इस प्रकार लेखक ने प्रस्तुत कहानी में समाज में उपेक्षित समझे जाने वाले लोगों द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में दिए गए सहयोग का सजीव चित्रण किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Class 10th Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 2.
कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
उत्तर-
दुलारी एक गौनहारी है। उसे अत्यंत कठोर हृदय वाली स्त्री समझा जाता है। होली के अवसर पर साड़ी लाने पर वह टुन्नू को डाँट देती है। इतना ही नहीं, वह साड़ी को फैंक देती है। किंतु जब टुन्नू उसे कहता है कि “मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” उसके ये शब्द सुनकर कठोर दिखने वाली दुलारी का मन ही नहीं, आत्मा भी पिघल जाती है। टुन्नू के चले जाने पर वह साड़ी को उठाकर बार-बार चूमती है। इसी प्रकार दुलारी जब टुन्नू की मृत्यु का समाचार सुनती है तो व्याकुल हो उठती है और उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती है। उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर से नहीं, आत्मा से प्रेम करता है। वह उसकी गायन कला का प्रेमी था। ऐसे व्यक्ति की मृत्यु पर गौनहारिन दुलारी का विचलित होना स्वाभाविक था।

कक्षा 10 कृतिका पाठ 4 के प्रश्न उत्तर HBSE प्रश्न 3.
कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
कजली लोक गायन की एक शैली है। इसे भादो मास की तीज़ के अवसर पर गाया जाता है। कजली दंगल में दो कजली-गायकों के बीच प्रतियोगिता होती थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसके आयोजन पर खूब भीड़ जमा होती थी। यह आम जनता के मनोरंजन का प्रमुख साधन भी था। मनोरंजन के लिए ही ऐसे दंगलों का आयोजन किया जाता था। इसके माध्यम से जन प्रचार भी किया जाता था तथा गायन शैली में नए प्रयोग भी किए जाते थे। स्वतंत्रता के आंदोलनों के समय तो इन दंगलों के माध्यम से जनता में देश-भक्ति की भावना का संचार किया जाता था। हरियाणा में रागनी प्रतियोगिता व सांग भी लोक नाट्य परंपरा के प्रमुख उदाहरण हैं। ‘आल्हा- उत्सव’ राजस्थान की लोक गायन कला है। आजकल क्षेत्रीय लोक-गायकी के आयोजन किए जाते हैं। लोक-गायक इनमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

Class 10th Hindi Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 4.
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। -इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
गौनहारिन होने के कारण दुलारी को समाज अच्छी दृष्टि से नहीं देखता। वह समाज की दृष्टि में उपेक्षित और तिरस्कृत है। दूसरे शब्दों में विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक व सांस्कृतिक दायरे से बाहर है। किंतु उसके व्यक्तिगत गुण इतने अच्छे हैं कि वह अति विशिष्ट समझी जाती है। उसके अग्रलिखित गुण व व्यक्तिगत विशेषताएँ ही उसे यह दर्जा दिलवाते हैं

  • कुशल गायिका-दुलारी एक कुशल गायिका थी। हर व्यक्ति उसके सामने गीत -गाने की हिम्मत नहीं रखता था। उसका स्वर मधुर एवं आकर्षक था। वह मौके के अनुसार हर प्रकार का गीत गा सकती थी।
  • कवयित्री-दुलारी एक कुशल गायिका ही नहीं, अपितु सफल कवयित्री भी थी। वह आशु कवयित्री थी। वह तुरंत ऐसा पद्य तैयार कर देती थी कि सुनने वाले दंग रह जाते थे।
  • स्वाभिमानी-दुलारी को भले ही समाज उपेक्षा के भाव से देखता था, किंतु वह कभी किसी वस्तु के लिए दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाती थी। जब कभी उसके स्वाभिमान पर चोट की गई तो उसने अपने स्वाभिमान की स्वयं साहसपूर्वक रक्षा की।
  • सच्ची प्रेमिका-दुलारी एक गौनहारिन है। उसे समाज में उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। किंतु उसके हृदय में सच्चे प्रेम के प्रति आदर का भाव है। वह टुन्नू के हृदय की भावना को समझ जाती है। वह उससे मन-ही-मन प्रेम करने लगती है। जब फेंकू सरदार टुन्नू के विषय में कुछ गलत कहता है, तो वह उसे झाड़ से पीटती हुई घर से बाहर निकाल देती है।

Chapter 4 Kritika Class 10 HBSE  प्रश्न 5.
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
उत्तर-
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय तीज के अवसर पर आयोजित ‘कजली दंगल’ में हुआ था। इस कंजली दंगल का आयोजन खोजवाँ बाजार में हो रहा था। दुलारी खोजवाँ वालों की ओर से प्रतिद्वंद्वी थी, तो दूसरे पक्ष यानि बजरडीहा वालों ने टुन्नू को अपना प्रतिद्वंद्वी बनाया था। इसी प्रतियोगिता में दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय हुआ था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Class 10th Kritika Chapter 4 HBSE प्रश्न 6.
दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“तें सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट?…” दुलारी ‘ के इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
दुलारी इस कथन के माध्यम से टुन्नू पर यह आक्षेप लगाती है कि वह बढ़-चढ़कर बोलता है। उसके कथनों में सत्यता नहीं है। इसी प्रसंग में आगे वह उस पर बगुला भगत होने का भी आक्षेप लगाती है। वह आज के युवा-वर्ग को बड़बोलापन त्यागकर गंभीर बनने का संदेश देती है। उन्हें आडंबरों को त्यागकर गाँधी जी जैसा सीधा-सादा जीवन जीना चाहिए। देश के लिए त्यागशीलता की भावना होना अनिवार्य है।

Class 10 Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 7.
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया ?
उत्तर-
दुलारी और टुन्नू ने अपने-अपने ढंग से भारत के स्वाधीनता आंदोलन में योगदान दिया। टुन्नू ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने में भाग लेकर विदेशी शासकों का विरोध किया। उसने विदेशी वस्त्र इकट्ठे करके उनकी होली जलाई जिससे लोगों में देशभक्ति की भावना का संचार हुआ। इसी आंदोलन में भाग लेने के कारण उसे अपने प्राणों से भी हाथ धोने पड़े।
दुलारी एक गौनहारिन थी, किंतु उसके हृदय में देशभक्ति की भावना भी विद्यमान थी। उसने फेंकू सरदार द्वारा दी गई कीमती साड़ियों को विदेशी वस्त्रों की होली में फेंक दिया और खादी की साड़ी धारण की। टुन्नू की निर्मम हत्या से वह व्याकुल हो उठी और उसके बलिदान पर आँसू बहाने लगी।

कक्षा 10 कृतिका पाठ 4 के प्रश्न-उत्तर HBSE प्रश्न 8.
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। यह प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुंचाता है?
उत्तर-
कहानी से पता चलता है कि दुलारी और टुन्नू के बीच शारीरिक प्रेम नहीं था। उनका प्रेम आत्मिक प्रेम था। दुलारी के गायन और उसकी काव्य कला से टुन्नू बहुत प्रभावित था। टुन्नू अभी सोलह-सत्रह वर्ष का किशोर था और दुलारी यौवन की अंतिम सीमा भी लाँघने वाली थी। वह उसे फटकारती भी है कि मैं तुम्हारी माँ से भी एक-आध वर्ष बड़ी हूँ। उसके मन के किसी एकांत कोने में टुन्नू ने अपना स्थान बना लिया था। यह सब दोनों के कलाकार मन और कला के कारण ही हुआ। टुन्नू द्वारा विदेशी कपड़ों के स्थान पर खादी पहनना और देश के लिए मर-मिटना दुलारी को भी देश-प्रेम के बहाव में बहाकर ले जाता है। वह टुन्नू की कुर्बानी से इतनी प्रभावित हुई कि उसने अपनी कीमती साड़ियों का बंडल अग्नि के हवाले कर दिया। स्वयं भी खादी की धोती पहनकर उस स्थान पर जाने के लिए तत्पर हो गई, जहाँ टुन्नू का कत्ल किया गया था। कहने का भाव है कि टुन्नू का महान् त्याग ही दुलारी को देश-प्रेम के मार्ग पर ले आता है।

Class 10 Kritika Chapter 4 HBSE प्रश्न 9.
जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परंत दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है? ..
उत्तर-
विदेशी वस्त्रों को जलाने वाले आंदोलनकारियों द्वारा फैलाई गई चादर पर लोग फटे-पुराने वस्त्र ही फेंक रहे थे। अच्छे वस्त्र उनमें बहुत ही कम थे। किंतु दुलारी ने फेंकू सरदार द्वारा लाई गई विदेशी साड़ियों को ही आग के हवाले करने के लिए दे दिया था। इससे पता चलता है कि उसके मन में देश-प्रेम की सच्ची भावना थी।

एही ठैयाँ झुलनी हो रामा HBSE 10th Class प्रश्न 10.
“मन पर किसी का बस नहीं है; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है, परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा? ?
उत्तर-
निश्चय ही टुन्नू का यह कथन सत्य है। मन पर किसी का बस नहीं चलता। वैसे भी टुन्नू का दुलारी के प्रति आत्मिक प्रेम था। उसे दुलारी के रूप व आयु से कोई सरोकार नहीं था, क्योंकि यह प्रेम शरीर की भूख की तृप्ति के लिए नहीं था। इसलिए उसने इसे देश-प्रेम के मार्ग की ओर मोड़ दिया था जो स्वार्थहीन और प्रेम का सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोच्च स्वरूप है। देश-प्रेम के रूप में व्यक्ति की आत्मा का उदात्तीकरण होता है। टुन्नू देश के लिए अपना बलिदान कर देता है। दुलारी में देश के प्रति सद्भावना जागती है। वह विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर खादी आश्रम में बनी सूती धोती धारण करती है और टुन्नू की मृत्यु पर बेचैन हो उठती है। कहने का भाव है कि दोनों का प्रेम देश-प्रेम में बदल गया था।

Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 Question Answer HBSE प्रश्न 11.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर-
यह पंक्ति लोकगीत की प्रथम पंक्ति है। इसका शाब्दिक अर्थ है-इसी स्थान पर मेरी नाक की लोंग खो गई है। इसका प्रतीक अत्यंत गंभीर है। नाक में पहना जाने वाला झुलनी नामक आभूषण सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है। वह किसके नाम की झुलनी अपने नाक में पहने। किंतु आत्मिक स्तर पर वह टुन्नू से प्रेम करती थी और उसी के नाम की झुलनी उसने मानसिक व आत्मिक स्तर पर पहन ली थी। जिस स्थान पर वह यह गीत गा रही थी, उसी स्थान पर टुन्नू की हत्या की गई थी। अतः इस पंक्ति का भावार्थ यह हुआ कि यही वह स्थान है जहाँ उसका सुहाग लुटा था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

HBSE 10th Class Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Important Questions and Answers

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा HBSE 10th Class प्रश्न 1.
“एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!” पाठ का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस पाठ में लेखक का परम उद्देश्य उपेक्षित कहे जाने वाले लोगों के द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए महान् सहयोग को उजागर करना है। इस लक्ष्य में लेखक पूर्ण रूप से सफल रहा है। इस पाठ में लेखक ने टुन्नू और दुलारी के आत्मिक प्रेम को देश-प्रेम जैसी उदात्त भावना में परिवर्तित करके इस लक्ष्य की पूर्ति की है। टुन्नू किशोरावस्था में है और दुलारी यौवन के अंतिम छोर पर खड़ी है। टुन्नू का दुलारी के प्रति प्रेम आत्मिक प्रेम है। उसे उसके रूप-सौंदर्य से कुछ लेना-देना नहीं है। वह उसके कलाकार मन से प्रेम करता है। दुलारी भी उससे इसी भाव से प्रेम करती है। उसको फटकार कर उसका हित चाहती है। किंतु उसके जाने के बाद अपने मन में एक अजीब-सा भाव अनुभव करती है। टुन्नू के प्रति फेंकू सरदार द्वारा कहे गए अपशब्द सुनकर वह उसे झाड़ से पीटकर घर से बाहर निकाल देती है। फेंकू सरदार द्वारा दी गई कीमती साड़ियों को विदेशी वस्त्रों की होली में फैंक देती है और खादी की साड़ी धारण कर लेती है तथा टुन्नू की हत्या करने वालों पर व्यंग्य करती है। अतः इस कहानी का प्रमुख उद्देश्य देश-प्रेम और त्याग की भावना की प्रेरणा देना है।

Hindi Class 10 Chapter 4 Kritika HBSE प्रश्न 2.
दुलारी के दिन का आरंभ कैसे होता था?
उत्तर-
दुलारी के दिन का आरंभ कसरत से होता था। वह मराठी महिलाओं की भाँति धोती तथा कच्छा-बाँधकर प्रतिदिन प्रातःकाल कसरत करती थी। वह इतनी कठोर कसरत करती थी कि उसके शरीर से पसीना बहने लगता था। कसरत करने के पश्चात् वह अंगोछे से अपना पसीना पोंछती थी। वह सिर पर बंधे बालों के जूड़े को खोलकर बालों को सुखाती थी। उसके पश्चात् वह आदम कद शीशे के सामने खड़ी होकर पहलवानों की भाँति अपने भुजदंडों को मुग्ध दृष्टि से देखती थी। उसका प्रातःकाल का नाश्ता प्याज, हरी मिर्च व भीगे हुए चनों से होता था।

प्रश्न 3.
पठित पाठ के आधार पर टुन्नू के चरित्र पर प्रकाश डालिए। अथवा [H.B.S.E. March, 2018 (Set-A)] टुन्नू के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
टुन्नू “एही छैयां झुलनी हेरानी हो रामा!” कहानी का प्रमुख पात्र है। उसे कहानी का नायक भी कहा जा सकता है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  • गायक-वह एक उच्चकोटि का गायक कलाकार है। वह एक किशोर है, किंतु अपनी गायिकी से सुप्रसिद्ध गौनहारिन दुलारी का मुकाबला ही नहीं करता, अपितु उसे मात भी दे देता है।
  • गुण ग्राहक वह दूसरों के गुणों को शीघ्र ही पहचान लेता है और उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता है। जब उसे पता चलता है कि दुलारी महान् गायिका है तो वह श्रद्धापूर्वक उसके पास गायिकी सीखने के लिए जाता है। वह उसकी कला का पुजारी बन जाता है।
  • देशभक्त निश्चय ही टुम्नू एक देशभक्त था। वह देश के राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेता है और देश के लिए अपना बलिदान भी देता है।
  • सच्चा प्रेमी-टुन्नू एक सच्चा प्रेमी है। वह दुलारी को एक कलाकार होने के नाते प्रेम करता है। उसका प्रेम आत्मिक है। इसलिए वह कहता भी है कि मन पर किसी का कोई बसें नहीं चलता। इससे सिद्ध हो जाता है कि उसके मन में दुलारी के प्रति सच्चा एवं पवित्र प्रेम भाव था।

प्रश्न 4.
दुलारी द्वारा टुन्नू के उपहार को ठुकराने के पीछे क्या भावना थी?
उत्तर-
दुलारी एक गौनहारिन स्त्री थी। वह नाच-गाकर लोगों का मन बहलाव करती थी। उसे समाज उपेक्षा की दृष्टि से देखता था। टुन्नू एक संस्कारी ब्राह्मण का पुत्र था। वह अभी किशोरावस्था में था। वह दुलारी की गायन कला से बेहद प्रभावित था। उसकी उम्र भी ऐसी न थी कि उसे समाज की ऊँच-नीच का पता हो। वह दुलारी के पास कभी-कभार आकर बैठ जाता था। उसने कभी कोई हल्की बात नहीं कही और न ही अपने मन की भावना ही प्रकट की। होली के त्योहार पर वह दुलारी को खादी की धोती उपहारस्वरूप देना चाहता था, किंतु दुलारी ने उसे फटकार दिया और उसके द्वारा लाई गई धोती को भी पटक दिया। दुलारी ने यह सब उसको अपमानित करने के लिए नहीं किया था। वह टुन्नू के प्रेम की सात्विकता की भावना को पहचानती थी। वह नहीं चाहती थी, टुन्नू उसकी बदनाम बस्ती में आए और समाज उसे और टुन्नू को लेकर ऊँगली उठाए। उसने टुन्नू के द्वारा लाए गए उपहार को इसलिए ठुकरा दिया था ताकि वह कभी उसकी ओर रुख न करे। वास्तव में वह टुन्नू की भलाई चाहती थी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 5.
टुन्नू के पद्यात्मक आक्षेप का दुलारी ने क्या उत्तर दिया था?
उत्तर-
टुन्नू द्वारा दुलारी को साँवले रंग की और दूसरों द्वारा पोषित होने का आक्षेप लगाया गया था। इस आक्षेप को दुलारी ने हँसते-हँसते झेला और इसका उत्तर देती हुई वह गीत के माध्यम से कहती है, “अरे कोढ़ी अपने मुख पर लगाम दे, यहाँ तू बड़ी-बड़ी बातें बना रहा है। तेरा बाप तो घाट पर बैठा-बैठा सारा दिन कौड़ी-कौड़ी जोड़ता है। त सिर-फिरा है। तने कभी जिंदगी में नोट देखे भी हैं। कब देखे हैं, बता तू मुझसे परमेसरी नोट (वादा) माँग रहा है, जरा अपनी औकात तो देख।” इस प्रकार दुलारी ने टुन्नू की दयनीय आर्थिक दशा और अनुभवहीनता पर आक्षेप करके उसके आक्षेप का तगड़ा उत्तर दिया जिसे सुनकर सभा में उपस्थित लोगों ने उसकी खूब प्रशंसा की।

प्रश्न 6.
शर्मा जी द्वारा लिखित रिपोर्ट को सार रूप में लिखिए।
उत्तर-
शर्मा जी अखबार के रिपोर्टर थे। उन्होंने टुन्नू के कत्ल की घटना वाले दिन होने वाली वारदात पर रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। उसका सार इस प्रकार है
उन्होंने “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!” शीर्षक रिपोर्ट में लिखा कि कल छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर नगर में पूर्ण हड़ताल रही। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई और जुलूस निकाला। इस जुलूस में टुन्नू ने भी भाग लिया था। जिसे पुलिस के जमादार अली सगीर ने पकड़ा और गालियाँ दीं। विरोध करने पर उसे ठोकर मारी। टुन्नू गिर पड़ा और उसके मुख से खून आने लगा। गोरे सिपाहियों ने उसे अस्पताल ले जाने का बहाना किया, किंतु उसे वरुणा के जल में प्रवाहित कर दिया। संवाददाता ने गाड़ी का पीछा करके पता लगाया था कि टुन्नू मर चुका था। टुन्नू और दुलारी के संबंधों की चर्चा करते हुए संवाददाता ने दुलारी को पुलिस के द्वारा बलपूर्वक टाऊन हॉल में उसी स्थान पर नाचने के लिए विवश करने का विवरण भी दिया जहाँ टुन्नू की हत्या की गई थी। वह नाचते हुए. आँखों से आँसू बहाती रही।

प्रश्न 7.
कजली दंगल की मजलिस के बदमज़ा होने का क्या कारण था? सार रूप में उत्तर दीजिए।
उत्तर-
खोजवाँ बाजार में कजली दंगल का आयोजन किया गया था। ‘कजली दंगल’ में दुलारी का मुकाबला टुन्नू कर रहा था। लोग दोनों के तेवर देखकर आनंद ले रहे थे। टुन्नू ने दुलारी पर कोयल की भांति दूसरों पर पोषित होने का आक्षेप किया, तो दुलारी ने भी उसे बगुला भक्त कहकर उसकी औकात की याद दिला दी। उसे बगुलाभक्त कहकर किसी बुरे नतीजे के लिए तैयार रहने के लिए चेताया। इस पर टुन्नू ने भी बढ़कर चोट करते हुए कहा कि तुम कितनी भी गालियाँ दो हम तो अपने मन की बात को डंके की चोट पर कहेंगे। इस बात पर फेंकू सरदार लाठी लेकर टुन्नू को मारने दौड़े। दुलारी ने टुन्नू को बचाया। इसके बाद कोई गाने के लिए तैयार नहीं हुआ और मजलिस बदमज़ा हो गई।

प्रश्न 8.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासो मैं पूढूँ’-दुलारी के इस गीत का दूसरा चरण क्या है?
उत्तर-
‘सास से पूछू, ननदिया से पूछू, देवर से पूछत लजानी हो रामा’।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) शिवपूजन सहाय
(B) कमलेश्वर
(C) मधु कांकरिया .
(D) शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’
उत्तर-
(D) शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’

प्रश्न 2.
दुलारी ने किस प्रदेश की महिलाओं की भाँति धोती बाँधी हुई थी?
(A) महाराष्ट्र की महिलाओं की भाँति
(B) उत्तर प्रदेश की महिलाओं की भाँति
(C) हरियाणा की महिलाओं की भाँति
(D) पंजाब की महिलाओं की भाँति
उत्तर-
(A) महाराष्ट्र की महिलाओं की भाँति

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 3.
पाठ के आरंभ में दुलारी को क्या करते हुए दिखाया गया है?
(A) सोते हुए
(B) गीत गाते हुए
(C) दंड लगाते हुए
(D) प्राणायाम करते हुए
उत्तर-
(C) दंड लगाते हुए

प्रश्न 4.
दुलारी को मिलने के लिए कौन आता है?
(A) दुलारी का भाई
(B) टुन्नू
(C) दुलारी का पिता
(D) पुलिस का सिपाही
उत्तर-
(B) टुन्नू

प्रश्न 5.
टुन्नू दुलारी के लिए क्या लेकर आया था?
(A) भोजन
(B) आभूषण
(C) खादी की साड़ी
(D) छाता
उत्तर-
(C) खादी की साड़ी

प्रश्न 6.
“मन पर किसी का बस नहीं। वह उमर या रूप का कायल नहीं।” ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) दुलारी ने
(B) दुलारी की सखी ने
(C) किसी अजनबी ने
(D) टुन्नू ने
उत्तर-
(D) टुन्नू ने

प्रश्न 7.
दुलारी का मुख्य धंधा क्या था?
(A) काव्य रचना
(B) नृत्य करना
(C) कजली गीत गाना
(D) कीर्तन करना
उत्तर-
(C) कजली गीत गाना

प्रश्न 8.
‘तीर कमान होना’ का क्या अर्थ है?
(A) लड़ने के लिए तैयार होना
(B) तीर की भाँति तेज गति से जाना
(C) कमान की भाँति गोल होना..
(D) कमान से तीर चलाना
उत्तर-
(A) लड़ने के लिए तैयार होना

प्रश्न 9.
टुन्नू के पिता क्या कार्य करते थे?
(A) अध्यापन
(B) पंडिताई
(C) वकालत
(D) व्यापार
उत्तर-
(B) पंडिताई

प्रश्न 10.
दुलारी किस की ओर से कजली गाने आई थी?
(A) बजरडीहा की ओर से
(B) सुंदरगढ़ की ओर से
(C) खोजवाँ बाजार की ओर से
(D) राम नगर की ओर से
उत्तर-
(C) खोजवाँ बाजार की ओर से

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एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Summary in Hindi

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! पाठ का सार

प्रश्न-
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने यथार्थ और आदर्श, दंत कथा और इतिहास, मानव मन की कमजोरियों और उदात्तताओं को उजागर किया है। लेखक ने इन सबको क्षेत्रीय भाषा की रंगत में रंगकर अभिव्यक्त किया है। यह एक प्रेम कहानी-सी लगती है, किंतु इसमें प्रेम भाव के अतिरिक्त आदर्श, यथार्थ और व्यंग्य का संगम कुछ इस प्रकार हुआ है कि इन्हें अलग-अलग करके देखना संभव नहीं है। पाठ का सार इस प्रकार है

बनारस में चार-पाँच के समूह में गाने वालियों की एक परंपरा रही है-‘गौनहारिन परंपरा’ । कहानी की मुख्य नारी पात्र दुलारी बाई उसी परंपरा की एक कड़ी रही है। दुलारी दनादन दंड लगा रही थी और उसका पसीना भूमि पर पसीने का पुतला बना रहा था। वह कसरत समाप्त कर पसीना पोंछ रही थी कि तभी किसी ने उसके दरवाजे की कुंडी खटखटाई। दुलारी ने स्वयं को व्यवस्थित किया, धोती पहनी, केश बाँधे और दरवाज़ा खोल दिया। बगल में बंडल दबाए बाहर टुन्नू खड़ा था। टुन्नू भी एक गायक था। उसकी आँखों में शर्म और होंठों पर झेंप भरी मुस्कराहट थी। दुलारी ने आते ही उसे फटकरा, “ मैंने तुम्हें यहाँ आने के लिए मना किया था न?” गिरे हुए मन से टुन्नू बोला, “साल भर का त्योहार था इसीलिए मैंने सोचा कि ……….,” कहते हुए उसने बगल से बंडल निकालकर दुलारी को दे दिया। इसमें खद्दर की एक साड़ी थी। दुलारी का रुख और कड़ा हो गया और बोली, लेकिन तुम इसे यहाँ क्यों लाए हो। तुम्हें जलने के लिए कोई और चिता नहीं मिली। तुम मेरे मालिक हो, बेटे हो, भाई हो क्या हो? उसने साड़ी टुन्नू के पैरों के पास फैंक दी। टुन्नू सिर झुकाए हुए ही बोला, “पत्थर की देवी भी अपने भक्त द्वारा दी गई भेंट को नहीं ठुकराती, फिर तुम तो हाड़-माँस की बनी हो। उसकी कज्जल भरी आँखों से आँसू टपक-टपककर धोती पर गिरने लगे। दुलारी कहती रही कि हाड़-माँस की बनी हूँ, तभी तो कहती हूँ कि अभी तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे। बाप तो कौड़ी-कौड़ी जुटाकर गृहस्थी चलाता है और बेटा आशिकी के घोड़े पर सवार है। यह गली तुम्हारे लिए नहीं है। मैं तो शायद तुम्हारी माँ से भी वर्ष भर बड़ी हूँ।

पत्थर की तरह मूर्तिवत खड़ा टुन्नू बोला, ‘मन पर किसी का बस नहीं। वह उमर या रूप का कायल नहीं।’ वह धीरे-धीरे . सीढ़ियाँ उतरने लगा। उसके जाने के बाद दुलारी के भाव बदले उसने धोती उठाई जिस पर टुन्नू के आँसू गिरे हुए थे। एक बार गली में टुन्नू को जाते देखा और धोती पर पड़े आँसुओं के धब्बों को बार-बार चूमने लगी।

भादो की तीज पर खोजवाँ बाजार में गाने का कार्यक्रम था। दुलारी गाने में निपुण थी। उसमें पद में सवाल – जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। बड़े-बड़े शायर भी उसके सामने गाते हुए घबराते थे। खोजवाँ बाजार वाले दुलारी को अपनी तरफ से खड़ा करके अपनी जीत सुनिश्चित कर चुके थे। उसके विपक्ष में सोलह-सत्रह वर्ष का टुन्नू किशोर था। टुन्नू के पिता यजमानी करके अपनी घर-गृहस्थी चलाते थे। किंतु टुन्नू को गायकी और शायरी का चस्का लग गया था। टुन्नू ने उस दिन जमकर दुलारी का मुकाबला किया। दुलारी को भी टुन्नू का गाना अच्छा लग रहा था। मुकाबले में टुन्नू के मुख से दुलारी की तारीफ सुनकर सुंदर के ‘मालिक’ फेंकू सरदार ने टुन्नू पर लाठी का वार किया। दुलारी ने टुन्नू की उस वार से रक्षा की थी। टुन्नू के चले जाने के बाद भी दुलारी. उसी के विषय में सोचती रही। टुन्नू उस दिन अत्यंत सभ्य लग रहा था। दुलारी ने घर जाकर टुन्नू द्वारा दी हुई साड़ी को संदूक में रख दिया। उसके मन में भी टुन्नू के प्रति कोमल भाव जागृत होने लगे थे। टुन्नू कई दिनों से उसके पास आने लगा था और उसकी बातों को बड़े गौर से सुनने लगा था। दुलारी का यौवन ढल रहा था। टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का था जबकि दुलारी दुनिया देख चुकी थी। वह समझ गई थी कि टुन्नू और उसका संबंध शारीरिक नहीं, आत्मा का था। वह यह बात टुन्नू के सामने स्वीकार करने से डर रही थी। उसी समय फेंकू धोतियों का एक बंडल लेकर उसके पास आता है। फेंकू सरदार उसे तीज पर बनारसी साड़ी दिलवाने का वादा करता है। जब ये दोनों बातचीत कर रहे थे, तभी गली में नीचे विदेशी कपड़ों की होली जलाने वाली टोली निकली। लोग पुराने विदेशी कपड़े जलाने के लिए फैंक रहे थे। किंतु दुलारी ने फेंकू सरदार द्वारा दी गई बढ़िया साड़ियों का बंडल फैंक दिया। दुलारी द्वारा फैंके गए बंडल को देखकर सबकी आँखें उसकी ओर उठ गईं। जुलूस के पीछे चल रही खुफिया पुलिस के रिपोर्टर अली सगीर ने भी दुलारी को देख लिया।

दुलारी फेंकू सरदार की किसी बात पर बिगड़ गई और झाड़ से मारती हुई बोली निकल यहाँ से। यदि मेरी देहरी पर डाँका तो दाँत से तेरी नाक काट लूँगी। आँगन में खड़ी संगनियों और पड़ोसिनों ने दुलारी को अत्यंत हैरानी से देखा। चूल्हे पर चढ़ी दाल को दुलारी ने ठोकर मारकर गिरा दिया। दाल के गिरने से चूल्हे की आग तो बुझ गई, किंतु दुलारी के दिल की आग न बुझ सकी। पड़ोसिनों के मीठे वचनों की जलधारा से दुलारी के हृदय की आग कुछ ठंडी हुई। उनकी आपस की बातचीत से पता चला कि फेंकू सरदार टुन्नू से जलन रखता था। इसी बात को लेकर दुलारी ने फेंकू पर झाड़ बरसाए थे। तभी नौ वर्षीय झींगुर आकर बताता है कि टुन्नू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार डाला और लाश को उठा ले गए। टुन्नू की मौत की खबर सुनते ही दुलारी की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। अब पड़ोसिनें दुलारी के दिल का हाल जान गई थीं। सभी ने उसके रोने को नाटक समझा किंतु दुलारी अपने मन की सच्चाई जानती थी। उसने टुन्नू द्वारा दी गई साधारण साड़ी पहन ली। वह झींगुर से टुन्नू की शहीदी के स्थान का पता पूछकर वहाँ जाने के लिए घर से निकली ही थी कि तभी थाने के मुंशी और फेंकू सरदार ने उसे थाने चलकर अमन सभा के समारोह में गाने के लिए कहा। न चाहते हुए भी उसे उनके साथ जाना पड़ा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 4 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

उधर अखबार के दफ्तर में प्रधान संवाददाता शर्मा जी की लिखी रिपोर्ट को पढ़कर क्रोध से लाल हो रहे थे। संपादक जी के आदेश पर शर्मा जी रिपोर्ट पढ़ने लगे, शीर्षक दिया था, “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा,” रिपोर्ट में लिखा था कि कल नगर भर में हड़ताल थी। यहाँ तक कि खोमचे वाले भी बाजार में दिखाई नहीं दिए थे।

सुबह से ही विदेशी कपड़ों को एकत्रित करके उनकी होली जलाने वालों के जुलूस निकलते रहे। उनके साथ प्रसिद्ध गायक टुन्नू भी था। जुलूस टाऊन हॉल पर पहुंचकर समाप्त हो गया। जब सब अपने-अपने घरों को लौट रहे थे तो पुलिस के जमादार अली सगीर ने टुन्नूं को गालियाँ दीं। प्रतिवाद करने पर उसे जमादार ने खूब पीटा और बूट से ठोकर मारी। इससे उसकी पसली पर चोट आई। वह गिर पड़ा और उसके मुख से खून निकलने लगा। गोरे सिपाहियों ने उसे अस्पताल में ले जाने की अपेक्षा वरुणा में प्रवाहित कर दिया, जिसे संवाददाता ने भी देखा था। इस टुन्नू नामक गायक का दुलारी से भी संबंध बताया जाता है।

शाम को टाऊन हॉल में आयोजित अमन सभा में जहाँ जनता का एक भी प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था, दुलारी को नचाया व गवाया गया था। टुन्नू की मृत्यु से दुलारी बहुत उदास थी। उसने खद्दर की साधारण धोती पहनी हुई थी। वह उस स्थान पर गाना नहीं चाहती थी, जहाँ आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या कर दी गई थी। फिर भी उसने कुख्यात जमादार अली सगीर के कहने पर गाया, किंतु उसके स्वर में दर्द स्पष्ट रूप में अनुभव किया जा सकता था। उसके गीत के बोल थे “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा। कासों मैं पूछू।” उसने सारा गीत उस स्थान पर नज़र गड़ाकर गाया जहाँ टुन्नू का कत्ल किया गया था। गाते-गाते उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी थी। उसके आसुओं की बूंदें ऐसी लग रही थीं जैसे टुन्नू की लाश को वरुणा के जल में फैंकने से उस जल की बूंदें छिटक गई थीं।” संपादक महोदय को रिपोर्ट तो सत्य लगी, किंतु इसे वे छाप न सके।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-31) दनादन = तेज़ गति से। चणक-चर्वण-पर्व = चने चबाने का त्योहार। बाकायदे = ठीक ढंग से। विलोल = असली। विलीन = गायब होना, नष्ट होना।

(पृष्ठ-33) शीर्ण वदन = कमज़ोर शरीर। खैरियत = कुशल। उपेक्षापूर्ण = निरादर के भाव से। कज्जल-मलिन = काजल से मैली हुई। पाषाण = पत्थर। प्रतिमा = मूर्ति। वक्र = टेढ़ी। दुक्कड़ = शहनाई के साथ बजाया जाने वाला यंत्र। महती = अत्यधिक। पद्य = कविता। क्षमता = शक्ति। कजली = एक प्रकार का लोकगीत। कायल = मानने वाला। कोर दबना = लिहाज करना।

(पृष्ठ-34) गौनहारियों की गोल = गाने वालों का समूह। प्रतिकूल = उलट। स्वर = आवाज़ । मुग्ध = मोहित। सार्वजनिक आविर्भाव = मंच पर लोगों के सामने अपनी कला दिखाने का अवसर। यजमानी = पुरोहित की जीविका। चस्का = स्वाद। रंग उतर गया = निराश हो गए। मद-विह्वल = अहंकार से पूर्ण। कोढ़ियल = कुरूप, कोढ़ के रोग से पीड़ित।

(पृष्ठ-35) सरबउला = पागल। व्यर्थ = बेकार। मजलिस = महफिल। बदमज़ा = बेस्वाद। प्रकृतिस्थ = स्वाभाविक। आबरवाँ = बहुत महीन मलमल। चंचल = अस्थिर, व्याकुल । दुर्बलता = कमज़ोरी।

(पृष्ठ-36) मनोयोग = लगन। यौवन का अस्ताचल = जवानी के समाप्त होने की दशा। उन्माद = पागलपन। कृशकाय = दुबला-पतला। पाँडुमुख = पीला मुख। करुणा = दया। आसक्त = मोहित, ललचाया हुआ। कृत्रिम = बनावटी। निभृत = एकांत। प्रस्तुत = तैयार। सहसा = एकाएक।

(पृष्ठ-37-38) आकृति = रूप, शक्ल । मुखबर = वह अपराधी जो अपराध स्वीकार करके सरकारी गवाह बन जाता है। तमोली = पान बेचने वाला। शपाशप = निरंतर। देहरी डाँकना = दहलीज पार करना। उत्कट = प्रबल। अधर = होंठ। कुतूहल = हैरानी। बटलोही = दाल पकाने का बर्तन। कातर = व्याकुल। स्तब्ध = हक्का-बक्का रह जाना। आँखों में मेघमाला घिर आना = आँखों से निरंतर आँसू बहना।

(पृष्ठ-39) कर्कशा = कटु वचन बोलने वाली। वनिता-सुलभ = सद् गृहिणियों के अनुरूप। दिल्लगी = मज़ाक। सहकर्मी = साथ काम करने वाला। बूते की बात नहीं = वश का काम नहीं। बड़ा घर = यहाँ जेल के लिए प्रयोग हुआ है। सजग = सावधान, चौकन्ने। झेंप = लज्जा। मुद्रा = भाव।

(पृष्ठ-40-41) विघटित = छंट गया, अलग-अलग हो गया। शव = मृत शरीर। विवश = मजबूर। आमोदित = प्रसन्न। उद्घांत दृष्टि = उड़ती-सी बेचैन नज़रें। अधर-प्रांत पर = होंठों पर। स्मित = हल्की-सी मुसकान। आविर्भाव = उदय होना।

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