Author name: Bhagya

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं?
उत्तर :
खेल एक –

  1. आनन्ददायक क्रिया है
  2. स्वतन्त्र क्रिया है
  3. आत्म-प्रेरित क्रिया है
  4. मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है
  5. सद्गणों का विकास करने वाली क्रिया है।

प्रश्न 2.
खेल को प्रभावित करने वाले तत्त्व क्या हैं?
उत्तर :

  1. शारीरिक स्वास्थ्य
  2. आयु
  3. क्रियात्मक विकास
  4. लिंग भिन्नता
  5. बौद्धिक विकास
  6. मौसम
  7. अवकाश की अवधि
  8. खेल के साधन
  9. सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति
  10. खेल के साथी
  11. परम्परा
  12. वातावरण।

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प्रश्न 3.
खेल की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
ग्यूलिक के अनुसार खेल की परिभाषा इस प्रकार दी गई है “जो कार्य हम अपनी इच्छा से स्वतन्त्र वातावरण में करते हैं वही खेल है।” थामसन के अनुसार, “खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है।”

प्रश्न 4.
बाल्य जीवन में खेल का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
खेल का बाल्य जीवन में विशेष महत्त्व है। अभिभावकों की दृष्टि में खेलना समय को व्यर्थ गंवाना है। वे पढ़ने-लिखने और गृह-कार्य को महत्त्व देते हैं। बालक को खेल से दूर रखने से उसके शारीरिक और व्यक्तित्व का विकास ठीक से नहीं होता। इसलिए खेल और कार्य में सामान्य संतुलन होना चाहिए।

प्रश्न 5.
खेल कितने प्रकार के हैं? संक्षेप में लिखो।
उत्तर :

  1. साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के हैं –
    • समान्तर खेल
    • सहचरी खेल
    • सामूहिक खेल।
  2. घर के अन्दर खेले जाने वाले खेल-ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, साँप-सीढ़ी आदि।
  3. घर के बाहर खेले जाने वाले खेल-क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बैडमिंटन आदि।

प्रश्न 5.
(A) बच्चों के खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
(B) घर में तथा घर से बाहर खेले जाने वाले दो-दो खेलों के बारे में लिखो।
(C) खेल कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 5 का उत्तर।

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प्रश्न 6.
खेल क्या है?
उत्तर :
खेल कोई भी ऐसी क्रिया है जिससे बच्चा आनन्द व सन्तोष प्राप्त करता है। बच्चा इसे स्वयं शुरू करता है। यह बच्चे पर थोपी नहीं जाती। जो चीज़ उसे पसन्द आ जाए वह उसकी खेल सामग्री बन जाती है अतः खेल अनायास, स्वाभाविक और आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है। खेल बच्चे के लिए मज़ा है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित क्रियाओं में से जो खेल हैं उन पर (✓) का चिह्न लगाएँ।
(i) मां द्वारा बच्चे से ज़बरदस्ती ढोलक बजवाना
(ii) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(iii) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(iv) मां द्वारा बच्चे को कहा जाना कि वह सिर्फ ब्लाक्स से ही खेल सकता है
उत्तर :
(i) ✗ (ii) ✓ (iii) ✓ (iv) ✗

प्रश्न 8.
मनोरंजन के विभिन्न साधनों के नाम लिखो।
उत्तर :
मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं –

  1. शिशु कविताएँ
  2. शिशु गीत
  3. लोरी
  4. कहानियाँ
  5. बालक साहित्य
  6. बाल-फिल्म
  7. खिलौने
  8. रेडियो
  9. टेलीविज़न
  10. संगीत
  11. खेल।

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प्रश्न 9.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
चिकित्सा की दृष्टि से भी बालकों के जीवन में खेल का महत्त्व है। इनके द्वारा बालकों की समस्या का पता लगाकर समाधान किया जाता है।

प्रश्न 10.
बच्चे के जीवन में खेल के दो शारीरिक महत्त्व लिखें।
उत्तर :
1. तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
2. बालक की मांसपेशियां सुचारू रूप से विकसित होती हैं।

प्रश्न 11.
बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, क्या उसके खेल में अन्तर आता है ?
उत्तर :
आयु बढ़ने के साथ खेल क्रियाएँ कम होती हैं।

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प्रश्न 12.
घर से बाहर खेले जाने वाले खेल कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, बैंडमिंटन आदि।

लघ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन कौन-से हैं?
उत्तर :
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं
1. शिशु गीत – बच्चा नर्सरी गीतों को बहुत शीघ्र सीखता है और याद कर के सुनाता है।
2. लोरी – बच्चा जब रात्रि को सोते समय नखरा करता है, तो मां उसे लोरी सना कर सुलाती है। मां द्वारा गाई लोरी सुनकर बच्चे शीघ्र सो जाते हैं।
3. कहानी – बच्चा कहानी बड़े शौक से सुनता है। कहानियों का बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है, अत: बच्चे को जो भी कहानियां सुनाई जाएं, वे डरावनी न हों बल्कि शिक्षाप्रद हों।
4. बाल साहित्य – बच्चा जब थोड़ा बड़ा होकर पढ़ने की स्थिति में आता है तब बाल साहित्य उसके मनोरंजन का साधन होता है। बाल साहित्य का चयन करते समय बालक के शारीरिक विकास का ध्यान रखना चाहिए। महापुरुषों की कहानियाँ, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों के बारे में तथा सांसारिक वस्तुओं की जानकारी देने वाला साहित्य होना चाहिए। साहित्य यदि चित्रों के रूप में हो, तो सोने पे सुहागा होता है।
5. खिलौने – खिलौनों से बच्चा शैक्षिक ज्ञान प्राप्त करता है। उसकी कल्पना शक्ति तथा विचार शक्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
बालकों के कार्य और खेल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कार्य और खेल में निम्नलिखित अन्तर हैं –

बालकों के कार्यबालकों के खेल
1. कार्य किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।1. खेल में किसी प्रकार का लक्ष्य नहीं रहता है।
2. कार्य में समय का बन्धन रहता है।2. खेल में स्वतन्त्रता रहती है।
3. कार्य प्रारम्भ से ही नियमबद्ध होते है।3. प्रारम्भिक अवस्था में खेल नियमबद्ध नहीं होते।
4. कार्य के सम्पन्न होने पर ही आनन्द की प्राप्ति होती है।4. खेल में खेलते समय ही आनन्द की प्राप्ति होती है, बाद में नहीं।
5. कार्य में वास्तविकता रहती है।5. खेल काल्पनिक होते हैं।
6. कार्य से अपेक्षित विकास होना आवश्यक विकास नहीं है।6. खेल से शारीरिक तथा मानसिक होता है।
7. कार्य में मस्तिष्क का नियन्त्रण आवश्यक होता है। सही रूप दिया जा सकता है।7. खेल में मस्तिष्क के नियंत्रण की इसी के आधार पर कार्य को अधिक आवश्यकता नहीं होती।

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प्रश्न 3.
मनोरंजन का बालक के सामाजिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
बालक को मनोरंजन की जितनी अधिक सुविधाएं प्राप्त होती हैं, उतना ही अधिक वह घूमने-फिरने, खेल-तमाशों और मित्रों के साथ व्यस्त रहता है। इस प्रकार सुविधाएँ अधिक प्राप्त होने पर बालक का स्वभाव हँसमुख प्रकार का हो जाता है। अपने इस स्वभाव के कारण उसे सामाजिक परिस्थितियों में सफल समायोजन करने में सहायता मिलती है। फलस्वरूप उसका सामाजिक विकास शीघ्र होता है। मनोरंजन के साधनों और अवसरों की बहुलता से बालक में समाज विरोधी व्यवहार के उत्पन्न होने की भी सम्भावना कम होती है। मनोरंजन की सुविधाओं के फलस्वरूप उसमें सामाजिक विकास सामान्य ढंग से होता है और सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुरूप होता है।

प्रश्न 4.
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य बातें बताइए।
अथवा
बच्चों के लिए खिलौने कैसे होने चाहिए ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य छ: बातें बताएं।
उत्तर :
बच्चों के लिए खिलौनों का चयन निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर करना चाहिए

  1. बच्चों के खिलौने उनकी आयु के अनुरूप होने चाहिएं।
  2. बच्चों के लिए बहुत महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।
  3. बच्चों के खिलौने बहुत बड़े व वज़न वाले नहीं होने चाहिएं।
  4. बच्चों के लिए खिलौने बहुत छोटे भी नहीं होने चाहिएं।
  5. खिलौने उत्तम धातु या सामग्री के बने होने चाहिएं।
  6. खिलौने शीघ्र टूटने वाले नहीं होने चाहिएं।
  7. खिलौने का रंग पक्का होना चाहिए।
  8. खिलौने धुल सकने वाले होने चाहिएं।
  9. खिलौने आकर्षक, सुन्दर व सुन्दर रंग के होने चाहिएं।
  10. खिलौने सुन्दर आकार, आकृति और स्वाभाविक एवं प्राकृतिक होने चाहिएं।
  11. खिलौने बच्चों के लिए सुरक्षित होने चाहिएं।
  12. खिलौने शिक्षाप्रद व ज्ञान अर्जन में सहायक होने चाहिएं।
  13. खिलौने मनोरंजन करने वाले होने चाहिएं।
  14. खिलौने ऐसे होने चाहिएं कि बच्चे आत्म-निर्भर बन सकें।
  15. खिलौने शारीरिक सन्तुलन व शारीरिक वृद्धि में सहायक होने चाहिएं।

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प्रश्न 5.
दैहिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा आमोद-प्रमोद का शारीरिक विकास में क्या महत्त्व है?
उत्तर :
दैहिक दृष्टि से खेलों का महत्त्व –

  1. खेल से बालक का तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
  2. खेल से बालक की मांसपेशियां सुचारु रूप से विकसित होती हैं।
  3. बालक की देह के सभी अवयवों का व्यायाम हो जाता है।
  4. आयु के साथ-साथ बालकों में वाद-विवाद, प्रतियोगिता, दूरदर्शन, चलचित्र निरीक्षण आदि में अभिव्यक्त होने लग जाती है। अभिभावकों के विपरीत होने पर उनके बालक भी विपरीत होंगे। वे अपनी दैहिक क्रियाओं को नहीं रोक पाएंगे।

प्रश्न 6.
नैतिक दृष्टि से खेल का क्या महत्त्व है?
अथवा
नैतिक दृष्टि से खेल के द्वारा बच्चों में किन-किन गुणों का विकास होता है ?
उत्तर :
नैतिक दृष्टि से खेल का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बालक में खेल के द्वारा सहनशीलता की भावना का भी विकास होता है।
  2. समुदाय के साथ खेलते हुए बालक आत्म-नियंत्रण, ईमानदारी, सत्य-भाषण, निष्पक्षता व सहयोगादि के गुणों को धारण करता है।
  3. बालक खेल के द्वारा यह सीख जाता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता है और न ही उसमें द्वेष की भावना पनप पाती है।

प्रश्न 7.
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा
खेलों का सामाजिक विकास की दृष्टि से क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बच्चे जब दूसरे बच्चों के साथ खेलते हैं तो वे सामाजिकता का पाठ सीखते हैं।
  2. खेलों के द्वारा बालक में सहनशीलता की भावना आ जाती है और वह दूसरे के अधिकारों का आदर करने लगता है।।
  3. एक-दूसरे के साथ खेलने से बालकों को बड़ों की तरह व्यवहार करना और उनका सम्मान करना भी आ जाता है।
  4. खेलों से बच्चों में स्नेह, प्यार, सहयोग, नियम, निष्ठता की भावना का विकास होता है।

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प्रश्न 8.
आयु के साथ खेल में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं ?
उत्तर :
बच्चों के खेल उम्र के साथ बदल जाते हैं। 0-2 महीने के बच्चे अपने आप से खेलना पसंद करते हैं। अपने हाथ पैर चलाते हैं।
2 महीने से 2 वर्ष का बच्चा खिलौनों में दिलचस्पी लेता है। वह खिलौनों से खेलना पसन्द करता है और अकेले होने पर भी वह खिलौनों से खेल कर खुश होता है।
2 साल से 6 वर्ष तक के बच्चों के खेल में अनेक परिवर्तन आते हैं। 2 साल के बच्चे समूह में बैठ कर खेलते तो हैं पर समूह का हर एक बच्चा अपनी धुन में मस्त रहता है।
कुछ बड़े होने पर बच्चे समूह के अर्थ समझते हैं और सामूहिक खेल खेलना शुरू कर देते हैं। वह साथ में खेलते हैं और एक ही खिलौने से भी खेलते हैं। धीरे-धीरे बच्चे नियम वाले खेल खेलना सीख जाते हैं।

प्रश्न 9.
घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर क्यों है ?
उत्तर :
ऐसा इसलिए है क्योंकि घर की सामग्री से बने खिलौने सुरक्षित होते हैं। इसके अलावा घर का काफ़ी फालतू सामान जैसे बचा हुआ कपड़ा, माचिस की डिब्बी आदि प्रयोग में आ जाते हैं। इन खिलौनों से बच्चा जैसे चाहे खेल सकता है। चूंकि ये महंगे नहीं हैं अतः आप को बच्चे को बार-बार ध्यान नहीं दिलाना पड़ता है कि वह ध्यान से खेले। अत: इन खिलौनों से बच्चा अपनी इच्छानुसार खेल सकता है।

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प्रश्न 10.
खेल और कार्य में दो अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 11.
खेल और कार्य में तीन अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 12.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
खेल चिकित्सा का प्रयोग 3 से 11 वर्ष के बच्चों पर किया जाता है। इसमें बच्चा खेलते-खेलते अपने मनो भावों को दर्शाता है। अपने अनुभवों, संवेगों, भावनाओं का प्रदर्शन करता है जिससे मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ बच्चे को समझता है तथा उसका इलाज करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं ?
उत्तर :
खेल के मापदण्ड निम्नलिखित हैं –
1. खेल एक आनन्ददायक क्रिया है – जिस क्रिया से व्यक्ति को आनन्द की प्राप्ति होती है, वह उसके लिए खेल हो जाती है। बच्चे जब जाग्रतावस्था में रहते हैं, तो सदैव ऐसी क्रियाओं में व्यस्त रहते हैं जिनसे उन्हें आनन्द की प्राप्ति होती है। जिस क्रिया में बच्चों को आनन्द की प्राप्ति नहीं होती बच्चे उसे करना ही नहीं चाहते। अतः जो क्रिया बच्चा आनन्द प्राप्ति के लिए करता है वह उसके लिए खेल है। इस प्रकार खेल एक आनन्ददायक क्रिया है।

2. खेल एक स्वतन्त्र क्रिया है – खेल में बच्चे बिल्कुल स्वतन्त्र होते हैं। बच्चा अपनी इच्छानुसार खेलता है। इस पर किसी तरह की बाहरी दबाव नहीं होता। ऐसा देखा जाता है कि बच्चे अपनी इच्छा से दिनभर उछलते-कूदते रहते हैं फिर भी थकते नहीं हैं, किन्तु उसी खेल के लिए उन्हें यदि बाहरी दबाव दिया जाए तो उन्हें तुरन्त थकावट आ जाती है जैसे बच्चे जब इच्छा से पढ़ने वाला खेल खेलते हैं तो दो-तीन घण्टे तक भी उस खेल में लगे रहने पर भी उन्हें थकावट नहीं आती, परन्तु जब उन्हें स्कूल का होम-वर्क करने को कहा जाता है या वे करते हैं, तो शीघ्र ही वे थकावट से घिर जाते हैं। अत: खेल में स्वतन्त्रता रहती है। यदि खेल में स्वतन्त्रता न रहे तो वह खेल, खेल न होकर काम हो जाता है।

3. खेल एक आत्म – प्रेरित क्रिया है-खेल व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। इसमें किसी उद्देश्य प्राप्ति की इच्छा नहीं होती है। वह बिलकुल निरुद्देश्य होता है; जैसे-बच्चा जब खेल के मैदान में गेंद खेलने जाता है, तो उस समय उसका कोई उद्देश्य नहीं होता, बच्चा केवल आत्म-प्रेरित होकर ही गेंद खेलता है। ऐसे खेल को ही खेल कहेंगे। किन्तु जब बच्चे में यह भावना आ जाए कि खेल के मैदान में अपने प्रतियोगी को हराना है तो वह खेल-खेल नहीं रह जाता। इसमें उद्देश्य आ गया और कोई भी उद्देश्यपूर्ण कार्य खेल नहीं होता बल्कि कार्य हो जाता है। अत: वे सभी क्रियाएं खेल हैं जिन्हें बच्चे स्वतन्त्रतापूर्वक आत्म-प्रेरित होकर आनन्द प्राप्ति के लिए करते हैं।

4. खेल एक मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है-बच्चे प्रायः जब भी खेलते हैं तो वे बड़े प्रसन्न होते हैं। प्राय: देखा गया है कि कुशाग्र बुद्धि एवं मानसिक रूप से स्वस्थ बालक खूब खेल खेलते हैं। वे प्रत्येक कार्य को खेल समझकर ही करते हैं।

5. खेल द्वारा सद्गुणों का विकास होता है-बच्चों की रुचि, चरित्र, ज़िम्मेदारी तथा मिल-जुलकर काम करने की भावना का विकास खेल के मैदान में ही होता है। जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य सन्तोषजनक नहीं होता।

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प्रश्न 1. (A)
खेल के तीन मापदण्ड बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 2.
बालकों के खेल की विशेषताएं क्या हैं ?
अथवा
बालकों के खेल की किन्हीं तीन विशेषताओं के बारे में लिखें।
उत्तर :
अध्ययन के पश्चात् यह ज्ञात हुआ है कि बालक के खेलों की कुछ विशेषताएं होती हैं। बालक के खेल, युवा के खेलों से भिन्न होते हैं। बालकों के खेल की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
1. बालक अपनी इच्छानुसार खेलता है – छोटे बालकों के खेल में स्वतन्त्रता का अंश अधिक होता है। जब वह चाहता है, तब खेलता है। जहां चाहता है, वहां खेलता है। जो खिलौने उसे पसन्द आते हैं, उन्हीं से खेलता है। खेलने के लिए समय और स्थान का कोई बन्धन बालक को मान्य नहीं है। आयु वृद्धि के साथ-साथ बालकों के खेल में औपचारिकता का अंश बढ़ता जाता है।

2. खेल परम्परा से प्रभावित होते हैं – यह देखा जाता है कि बालक अधिकतर वही खेल खेलते हैं जो उनके परिवार में खेले जाते हैं । शतरंज, ताश, क्रिकेट, बास्केटबॉल आदि खेल-कूद के विषय में यही देखा जाता है।

3. खेलों का निश्चित प्रतिमान होता है-बालक की आयु, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, देश व वातावरण को देखकर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि बालक कौन-कौन से खेल खेलता होगा। आयु के अनुसार तीन महीने का बालक वस्तुओं को छू-छू कर खेल का अनुभव करता है। एक साल का बालक खिलौने से खेलना प्रारम्भ करता है। सात-आठ साल तक अधिकतर बच्चे खिलौना पसन्द करते हैं। जब बालक स्कूल जाता है तो खेल-कूद में भाग लेना प्रारम्भ कर देता है। दस साल के बाद अधिकतर बालक दिवास्वप्न देखने शुरू कर देते हैं। अब वह अपना अधिक समय खेल-कूद में न बिताकर कहानियां पढ़ने, अकेले में दिवास्वप्न देखने में व्यतीत करते हैं।

4. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं-जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, बालक की खेलों के प्रति रुचि घटती जाती है।

5. आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक खेल का समय घटाता जाता है क्योंकि खेल के अलावा वह अपना समय अन्य कामों में व्यतीत करता है।

6. बड़े होने पर बालक की रुचि किसी एक विशेष खेल में हो जाती है और उसी में वह अपना समय व्यतीत करता है।

7. आयु के साथ-साथ खेल के साथियों की संख्या भी कम होती जाती है।

8. पाँच-छ: साल की आयु के बाद बालक अपने ही लिंग के बच्चों के साथ खेलना पसन्द करता है।

9. जन्म से छ: सात वर्ष की आयु तक बालक के खेल अनौपचारिक होते हैं। बाद में वह केवल औपचारिक खेल खेलना पसन्द करते हैं।

10. बड़े हो जाने पर बालक सिर्फ वही खेल खेलना अधिक पसन्द करते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति कम खर्च होती है।

11. बालक खेल में जोखिम उठाते हैं। पेड़ों पर चढ़ना, साइकिल चलाना, तैरना आदि ऐसे ही खेल हैं। जोखिम भरे खेलों में बालकों को आनन्द आता है।

12. खेलों में आवृत्ति का अंश रहता है। बालक किसी खेल को बार-बार खेलना चाहता है।

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प्रश्न 3.
खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
बालक के खेलों के प्रकार लिखिए।
अथवा
कार्ल ग्रूस व हरलॉक के अनुसार खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बच्चों के खेलों में व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है। इसी भिन्नता के आधार पर खेलों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल 1

उपर्युक्त खेलों के अतिरिक्त कार्लस ने खेलों को क्रमशः पाँच भागों में बांटा है –

  1. परीक्षणात्मक खेल-इन खेलों का मूल आधार जिज्ञासा है। बालक वस्तुओं को उलट-पुलट कर देखते हैं। खिलौने को तोड़कर फिर जोड़ते हैं।
  2. गतिशील खेल-इन खेलों की क्रिया में उछलना-कूदना, दौड़ना, घूमना आदि आता है।
  3. रचनात्मक खेल-इन खेलों में बच्चों की रचनात्मक प्रवृत्ति कार्य करती है। इसके अन्तर्गत ध्वंस तथा निर्माण दोनों ही प्रकार के खेल आते हैं।
  4. लड़ाई के खेल-यह खेल व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों प्रकार के होते हैं। इसमें हार और जीत प्रकट करने वाले खेल होते हैं।
  5. बौद्धिक खेल-इसमें बुद्धि का विकास करने वाले खेल सम्मिलित हैं, जैसे पहेलियां, शतरंज, बॅनो, मल्टिइलेक्ट्रो खेल आदि।

हरलॉक के अनुसार, खेल को निम्नलिखित प्रकारों में बाँटा जा सकता है –

  1. बालकों के स्वतन्त्र तथा स्वप्रेरित खेल
  2. कल्पनात्मक खेल
  3. रचनात्मक खेल
  4. क्रीड़ाएं।

1. स्वप्रेरित खेल – प्रारम्भ में बालक जो खेल खेलता है वे स्वप्रेरित होते हैं। कुछ महीनों का बालक अपने हाथ-पैरों को हिला-डुलाकर खेलता है। तीन महीनों के बाद उसके हाथों में इतनी शक्ति आ जाती है कि वह खिलौनों से खेल सके।

2. कल्पनात्मक खेल – बालक के कल्पनात्मक अभिनय का विशिष्ट समय 11-2 वर्ष की अवस्था है। प्रमुख कल्पनात्मक खेलों में घर बनाना, उसे सजाना, भोजन बनाना और परोसना, माता-पिता के रूप में छोटे-बड़े बालकों का पालन-पोषण करना, वस्तुएं खरीदना तथा बेचना, मोटर-गाड़ी, नाव आदि की सवारी करना, पुलिस का अफसर बनकर चोरों को पकड़ने का अभिनय करना, शत्रु को जान से मार डालने तथा मरने का अभिनय करना, सैनिक खेल आदि आते हैं।

3. रचनात्मक खेल – वास्तविकता कम तथा कल्पना के अधिक अंश वाले बालकों में रचनात्मक खेलों की प्रवृत्ति नहीं मिलती। रचनात्मक खेलों में गीली मिट्टी तथा बालू से मकान बनाना, मनकों से माला बनाना, कागज़ को कैंची से काटकर अनेक वस्तुएं बनाना, बालिकाओं में गुड़िया बनाना, गुड़ियों के रंग-बिरंगे कपड़े सीना, रंगदार कागज़ से रंग-बिरंगे फूल बनाना आदि खेल आते हैं।

4. क्रीड़ाएं – बालक 4-5 वर्ष की आयु में अपने पास-पड़ोस के बालक-बालिकाओं के साथ अनेकों क्रीड़ाएं करता है, जैसे-आँख-मिचौली, राम-रावण, चोर-सिपाही आदि।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

प्रश्न 3A.
खेल कितने प्रकार के होते हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 3B.
बौद्धिक खेलों से आप क्या समझते हैं ? इन खेलों के दो उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3.

प्रश्न 4.
खेल का बालक के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेलों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
खेल-खेल शब्द का इतना अधिक सामान्य-सा प्रचलन हो गया है कि यह अपनी वास्तविक महत्ता खो बैठा है। खेल का मतलब परिणाम की चिन्ता किए बिना आनन्ददायक क्रिया में संलग्न रहने से है। इसका सम्बन्ध कार्य से नहीं है। कार्य का अर्थ किसी उद्देश्य की पूर्ति करना है। खेल एक सरल क्रिया है। बालक का खेल के माध्यम से सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक, भाषा आदि का सर्वांगीण विकास होता है। बेलेन्टीन के अनुसार, “खेल एक प्रकार का मनोरंजन है।” खेल का महत्त्व अग्रलिखित है

1. खेल का सामाजिक महत्त्व – खेल के माध्यम से बालकों में पारस्परिक सम्पर्क स्थापित होता है तथा इस मधुर सम्पर्क के परिणामस्वरूप जातिगत भेद-भाव, ऊँच-नीच के विचार एवं आपसी संघर्षों की सम्भावना कम होने लगती है। खेल में सदैव ही सहयोग की आवश्यकता होती है। खेल के समय विकसित हुई सहयोग की यह भावना जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी विकसित हो जाती है। इसके अतिरिक्त खेल के ही माध्यम से विभिन्न सद्गुणों का विकास होता है तथा बालक सम्भवतः अनुशासन, नियम पालन, नेतृत्व तथा उत्तरदायित्व आदि के प्रति सजग हो जाते हैं। इन सब आदतों, सद्गुणों एवं भावनाओं का जहाँ एक ओर सामान्य जीवन में लाभ है, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी इनसे पर्याप्त लाभ होता है।

2. खेल का मानसिक एवं बौद्धिक क्षेत्र में महत्त्व – प्रत्येक बालक के लिए उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी अत्यधिक आवश्यक होता है। खेल से इस विकास में विशेष योगदान प्राप्त होता है। खेल से विभिन्न मानसिक शक्तियों जैसे कि प्रत्यक्षीकरण, स्मरणशक्ति, कल्पना तथा संवेदना आदि का समुचित विकास होता है। खेल के ही माध्यम से कुछ ऐसी योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास होता है जो मानसिक सन्तुलन, नियन्त्रण तथा रचनात्मकता के विकास में सहायक होती हैं। खेल द्वारा ही बालकों की शब्दावली तथा भाषा का भी विकास होता है।

3. खेल द्वारा संवेगात्मक विकास – बालक के उचित संवेगात्मक विकास में भी खेल से समुचित योगदान मिलता है। खेल द्वारा बालक अपने संवेगों को स्थिरता प्रदान करके नियन्त्रित रूप में रख सकते हैं। खेलों में समुचित रुचि लेने से बालकों में पायी जाने वाली कायरता, चिड़चिड़ापन, लज्जाशीलता तथा वैमनस्य के भावों को समाप्त किया जा सकता है। कुछ बालक विभिन्न कारणों से यथार्थ जीवन से पलायन करके दिवास्वप्नों में खोये रहने लगते हैं। वह प्रवृत्ति भी खेलों में भाग लेने से समाप्त की जा सकती है। समुचित संवेगात्मक विकास के परिणामस्वरूप बालक शिक्षा में भी सही रूप से विकास कर सकते हैं।

4. शारीरिक विकास में खेलों का महत्त्व – यह एक निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक बालक का समुचित शारीरिक विकास होना अनिवार्य है। शारीरिक स्वास्थ्य का विशेष महत्त्व है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नियमित रूप से खेलों में भाग लेना विशेष महत्त्व रखता है। खेलों से जहाँ स्वास्थ्य का विकास होता है, वहीं साथ ही साथ व्यक्ति में पर्यावरण के साथ अनकूलन की क्षमता बढ़ती है तथा रोगों से बचने की प्रतिरोधक शक्ति भी विकसित होती है।

5. व्यक्तित्व के विकास में खेलों का महत्त्व – व्यक्तित्व के समुचित विकास में भी खेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। खेलों के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व सम्बन्धी विभिन्न गुणों का विकास होता है तथा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है।

6. खेलों का शैक्षिक महत्त्व – विभिन्न दृष्टिकोणों से खेल के शैक्षिक महत्त्व को भी स्वीकार किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन की गम्भीर एवं महत्त्वपूर्ण समस्या है। अब यह माना जाने लगा है कि यदि बालक की पाश्विक मूल प्रवृत्तियों का शोधन हो जाये, तो वह सामान्य रूप से अनुशासित रह सकता है तथा खेल के माध्यम से इस उद्देश्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है। ऐसा देखा गया है कि बच्चे खेल के मैदान में आज्ञा-पालन

सरलता से कर लेते हैं। आज्ञा-पालन की यह आदत अन्य क्षेत्रों में भी प्रकट होने लगती है। शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक ज्ञान प्रयोग करके ही प्राप्त किया जा सकता है अर्थात् प्रयोगात्मक कार्य उत्तम समझा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में खेल के समावेश से यह उद्देश्य पूरा हो जाता है। शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्धारण में भी खेल के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। खेल से बालकों में स्वतन्त्रता, स्वाभाविकता तथा स्फूर्ति का संचार होता है।

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प्रश्न 4. (A)
बच्चों के जीवन में खेल की दो उपयोगिताएं बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 4 का उत्तर।

प्रश्न 5.
जन्म से छ: साल तक के बच्चों के लिये खेल की सामग्री का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बालक के खेलों के लिए खिलौनों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक आयु की अपनी-अपनी माँग होती है। बच्चों को वही खिलौने देने चाहिएं जो कि उनके लिए उपयोगी हों।

1. जन्म से एक वर्ष तक के बच्चों के खिलौने – तीन से नौ महीने के बालक में प्रवृत्ति होती है कि वह प्रत्येक वस्तु को अपने मुँह में रखता है। अत: उनके लिए ऐसे खिलौने होने चाहिएं जो नरम हों, रबर, स्पंज, कपड़े आदि के बने हों। यह ध्यान रखना चाहिए कि खिलौना गन्दा न हो, उस पर धूल-मिट्टी न लगी हो। खिलौने की बनावट ऐसी हो कि यदि बच्चा उसे मुंह में रखे तो उसे कोई चोट न आए और सरलता से मुंह में रख सके। इस आयु में बच्चों को ध्वनि अच्छी लगती है। अतः उसे ध्वनि करने वाले खिलौने जैसे झुनझुना, सीटी लगे रबर के खिलौने भी दिये जा सकते हैं।

2. एक से दो साल के बच्चों के खिलौने – ऐसे बच्चों को रबर, लकड़ी, प्लास्टिक आदि के बने खिलौने जैसे जानवर, ट्रेन, मोटर, हवाई जहाज़ आदि खेलने के लिए देना चाहिए जिससे उनके वातावरण का ज्ञान बढ़े। एक-दूसरे में फंसने वाले खिलौने भी देने चाहिएं जिससे उनके स्नायुओं का विकास होता है तथा रचनात्मक कार्यों से मानसिक विकास भी होता है। दो साल के बच्चे में नकल करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। ऐसे बच्चों को गुड़िया आदि खेलने के लिए दिए जा सकते हैं।

3. तीन-चार साल के बच्चों के खिलौने – इस अवस्था में बच्चों को मोटर, ट्रेन, हेलीकॉप्टर आदि चाबी से चलने वाले खिलौने देने चाहिएं। खेल-कूद का सामान भी देना चाहिए, जैसे-गेंद, बल्ला आदि। इसके अलावा बिल्डिग ब्लॉक, मीनार बनाने का सामान, सीढ़ी बनाने का सामान आदि। इसके द्वारा बालक का मानसिक, गत्यात्मक विकास होता है। अब बच्चा रंग और माडलिंग में विशेष रुचि लेने लगता है। वह फर्श, दीवार पर लकीरें खींचता है। बालक को माडलिंग के लिए मिट्टी व प्लास्टीसीन देना चाहिए।

4. पाँच साल का बालक चित्र बनाने लगता है। उसे रंग दिए जा सकते हैं। वह कैंची से कागज़ काट सकता है।

5. छ: साल का बालक छोटे – छोटे खिलौने जैसे बर्तन, गुड़िया, इंजन, सोफा सैट आदि पसन्द करता है। बालक अब छोटे-छोटे ड्रामा भी खेलता है। इसलिए उसे ड्रामा से सम्बन्धित सामग्री प्रदान करनी चाहिए। घरेलू खेलों में बालक को लूडो, साँप-सीढ़ी आदि खेलने को देना चाहिए। इस समय बच्चा ट्राइसिकल व बाइसिकिल भी चलाना सीख जाता है। चाबी वाले बड़े खिलौने भी बालकों को पसन्द आते हैं।

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प्रश्न 6.
खेल के गुण उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर :
खेल के निम्नलिखित गुण हैं –
1. खेल बच्चों को आनन्दित करता है।
उदाहरण – बच्चा रसोई में जाता है और कटोरी, चम्मच उठाकर उन्हें बजाने लगता है। उसे ध्वनि सुनने में मजा आता है। अतः वह उसे बजाता ही जाता है। वह यह खेल इसीलिए खेल रहा है क्योंकि उसे मजा आ रहा है।

2. खेल एक स्वाभाविक क्रिया है।
उदाहरण – एक बच्ची अपनी गुड़िया से खेल रही है। वह गुड़िया को नहलाती है, उसके बाल संवारती है, उससे बातें करती है, एवम् उसे थपकियां देकर सुलाती है। यह सब कुछ स्वाभाविक है। कोई उसे गुड़िया से इस तरह खेलना नहीं सिखाता।

3. खेल गम्भीर होता है।
उदाहरण – बच्चा किताब लेकर पढ़ता है। हालांकि उसने किताब उल्टी पकड़ी होती है पर फिर भी वह उसे गम्भीरता से पढ़ता है व एक काल्पनिक कहानी भी गढ़ लेता है।

4. खेल जिज्ञासा से पूर्ण होता है।
उदाहरण – जब भी बच्चे को नया खिलौना दिया जाता है वह उसे जिज्ञासापूर्ण नज़रों से देखता है। फिर वह उसे उलट-पुलट कर देखेगा और कभी तो खोलकर उसे अन्दर लगे कल-पुर्जी के बारे में जानने की कोशिश करेगा क्योंकि उसके अन्दर नई चीज़ के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है।

5. खेल शान्त या चंचल होता है।
उदाहरण – कभी बच्चा चुपचाप कमरे के एक कोने में बैठ जाता है और अपने हाथ में पकड़ी हुई चीज़ से खेलता है; जैसे ताला-चाबी। वह चाबी से ताले को खोलने की कोशिश करता है। इस तरह वह शान्ति से खेल रहा है।
कभी-कभी बच्चा चारपाई पर कूदता है और इस हलचल का आनन्द लेता है। इस खेल में चंचलता है।

प्रश्न 7.
नीचे दिए गए खेलों को खेल के गुणों के आधार पर वर्गीकृत कीजिए। वर्गीकरण के लिए निम्नलिखित चिन्हों का प्रयोग करें
स्वः स्वाभाविक
च : चंचल
ग : गम्भीर
नि: निरुद्देश्य जि: जिज्ञासापूर्ण शां: शान्त –
1. पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है।
2. अपने कमरे में बैठकर बच्चा ताश से खेलता है।
3. बच्चा फुटबाल खेल रहा है।
4. फिसल पट्टी पर बार-बार चढ़कर फिसलता है।
5. एक गिलास से दूसरे गिलास में पानी पलटता है।
6. किताब के पन्ने पलटता है।
7. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखता है।
8. गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है।
9. झुनझुना बजाता जाता है।
10.  निरन्तर कूदता रहता है।
उत्तर :
1. स्व. 2. शां. 3. चं. 4. नि. 5. नि. 6. जि. 7. जि. 8. नि. 9. ग. 10. ग.।

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प्रश्न 8.
खेलों का बच्चों के विकास पर क्या लाभप्रद प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेल की क्या आवश्यकता है ?
अथवा
बच्चों के जीवन में खेल के कोई दो महत्त्व लिखें।
उत्तर :
खेल इसीलिए आवश्यक है क्योंकि वह बच्चे के विकास के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक।
1. शारीरिक विकास – खेल शरीर के विकास को प्रभावित करते हैं। खेल से बच्चे की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है। खेल से हाथों व आंखों के समन्वय में ताल-मेल बैठाता है। बचा शरीर को सन्तुलित करना सीखता है। इसके अलावा खेलते समय बच्चे अपने शरीर की मांसपेशियों और गति पर नियन्त्रण पाना सीखते हैं।

2. मानसिक विकास – खेल द्वारा बच्चा अपने आस-पास की वस्तुओं के बारे में सब कुछ जान लेता है जैसे रंग, आकार इत्यादि। वह विभिन्न चीज़ों को देखता है, छूता है, अनुभव करता है, चखता है और इस तरह से उन्हें जान लेता है।

3. सामाजिक विकास – बच्चे खेल द्वारा ओर सामाजिक बनते हैं अर्थात् वह सामाजिक व्यवहार सीखते हैं जैसे अपनी चीजें दूसरों के साथ बांटना, अपनी बारी का इन्तज़ार करना, दोस्तों के साथ ताल-मेल बिठाना आदि। इसके अलावा खेल द्वारा बच्चे नकल से वयस्कों (adults) की भूमिकाएं सीखते हैं।

4. भावनात्मक विकास – बच्चे खेल द्वारा अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण करना सीखते हैं। उन्हें अपने रोने, हंसने, चिल्लाने पर काबू करना आ जाता है। उन्हें यह समझ आ जाती है कि अपने मन के भावों को किस तरह बाहर लाना है और उनकी दूसरों के सामने अभिव्यक्ति कैसे करनी है।

5. नैतिक विकास – खेल द्वारा बच्चे अनेक नैतिकता की बातें सीखते हैं जैसे सच्चाई, ईमानदारी, गुस्सा न करना, झूठ न बोलना आदि।

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प्रश्न 9.
कॉलम ” में दिए गए कथनों को कॉलम ‘II’ के कथनों से मिलाएं।

कॉलम – Iकॉलम – II
1. खेल से बच्चे1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो3. तो वह आकार के विषय में जानता है
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
6. उसे स्कूल में खेलना होगा।

उत्तर :

कॉलम – Iकॉलम – II
1. खेल से बच्चे4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है3. तो वह आकार के विषय में जानता है

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से उन कथनों पर (✓) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को दर्शाते हैं और उन पर (✗) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को नहीं दर्शाते।
1. लम्बाई में बढ़ोत्तरी
2. गत्यात्मक नियन्त्रण
3. गुस्से पर नियन्त्रण
4. आसन सुधरता है
5. भाषा का विकास
6. गणित के सवाल हल करना
7. बेहतर निबन्ध लिख पाना
8. अपनी बारी का इन्तजार करना
9. आऊट दिए जाने पर बिना बहस किए चले जाना
10. गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
(1), (4), (6), (7) ✗ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को नहीं दर्शाते। (2), (3), (5), (8), (9) (10) ✓ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को दर्शाते हैं।

प्रश्न 11.
खिलौने खरीदते वक्त आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे जिनके आधार पर आप खिलौनों का चयन करेंगे ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों का चयन करते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगे ?
अथवा
खिलौनों का चुनाव करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखोगे ?
उत्तर :
खिलौने खरीदते समय या उनका चयन करते समय हम अग्रलिखित बातों का ध्यान रखेंगे –

1. बच्चे की उम्र – खिलौनों का चयन करते समय बच्चे की आयु का ध्यान अवश्य रखें; जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए झुनझुना खरीदें क्योंकि उसे आवाज़ अच्छी लगती है। एक साल के बच्चे के लिए ऐसा खिलौना खरीदें जिसे रस्सी से खींचा जा सकता है इत्यादि।
2. खिलौने का सुरक्षित होना – जो खिलौने आप बच्चे के लिए ले रहे हैं वह सुरक्षित होने चाहिएं। वह खुरदरे या नोकीले नहीं होने चाहिएं। उन पर लगे रंग आई० एस० आई० प्रमाणित होने चाहिएं। घटिया रंग ज़हरीले होते हैं।
3. खिलौने टिकाऊ हों – जहां तक सम्भव हो नाजुक और कमज़ोर खिलौने न खरीदें। प्लास्टिक के खिलौनों की अपेक्षा लकड़ी व रबड़ के खिलौने ज्यादा चलते हैं।
4. खिलौने महंगे न हों – खिलौने महंगे न हों अन्यथा आप सारा समय बच्चे को ध्यान से खेलने की हिदायत देते रहेंगे। इससे बच्चा ठीक से खेल नहीं पाएगा और खिलौने से खेलना छोड़ देगा।
5. खिलौने आकर्षक हों – बच्चे का खिलौना खरीदते समय यह देख लें कि खिलौना देखने में आकर्षक हो। यदि बच्चे को खिलौने का रंग या आकार पसन्द नहीं आएगा तो वह उससे नहीं खेलेगा।

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प्रश्न 12.
बच्चों के लिए खेल का क्या महत्त्व है ?
अथवा
खेल बच्चों के लिए क्यों जरूरी है ?
उत्तर :

  1. खेलने से बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास अधिक होता है।
  2. खेल द्वारा बच्चा अपने साथियों के साथ मिल-जुल कर रहना सीखता है।
  3. खेलों द्वारा बच्चे जिन्दगी में जीत तथा हार को सहना सीखते हैं।
  4. खेलों द्वारा बच्चे की काल्पनिक शक्ति भी विकसित होती है।।
  5. खेलों में व्यस्त रहने के कारण बच्चा बुरे कार्यों से बचा रहता है।
  6. खेलों द्वारा बच्चे अपने जीवन में भिन्न-भिन्न भूमिकाएं निभाना सीखते हैं।

जैसे लड़कियां गुड़िया के खेल द्वारा एक माँ, बहन तथा दोस्त की भूमिका निभाना सीखती हैं। इसी तरह लड़के खेलों द्वारा डॉक्टर पुलिस, फौजी, व्यापारी आदि बनना सीखते हैं।

प्रश्न 13.
(क) बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न खेलों के लिए खेल सामग्री का चुनाव करते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
(ख) तीन वर्षीय बालिका की माता को सुरक्षित खिलौना खरीदने के लिए कौन-कौन सी बातों का निरीक्षण करना होगा ?
उत्तर :
(क) 1. आयु वर्ग (Age Group) – प्रत्येक आयु में बच्चे का शरीर तथा मानसिक विकास एक जैसा नहीं होता। इस लिए बच्चे के खिलौनों का चुनाव उनकी आयु को ध्यान में रख कर करना चाहिए जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए भार में हल्के तथा आवाज़ पैदा करने वाले खिलौने लेने चाहिएं। जब बच्चा चलने लग जाए तो उस को चाबी वाले खिलौने तथा चलने वाले खिलौने पसंद आते हैं। इस के बाद 2-3 साल वर्ष के बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न ब्लाक्स (blocks) का चुनाव किया जाना चाहिए। आजकल बाजार में प्रत्येक आयु वर्ग के बच्चों के मानसिक तथा शारीरिक विकास को ध्यान में रखते हुए कई तरह के खिलौने तथा गेम्स मिलती हैं जैसे बिज़नस गेम, विडियो गेम, कैरम बोर्ड आदि। कोई भी खेल या खिलौना खरीदते समय बच्चे की आयु को ध्यान में रखना चाहिए।

2. रंगदार (Colourful) – बच्चों के खिलौने भिन्न-भिन्न रंगों तथा आकर्षक होने चाहिए। प्राय: बच्चों को तेज़ रंग जैसे लाल, पीला, नीला, संगतरी आदि पसंद होते हैं। परन्तु यह ध्यान में रखें कि खिलौनों के रंग पक्के हों क्योंकि बच्चे को प्रत्येक वस्तु मुंह में डालने की आदत होती है। यदि रंग घुलनशील हो, तो बच्चे को हानि पहुँच सकती है।

3. अच्छी गुणवत्ता (Good Quality) – प्रायः खिलौने रबड़ तथा प्लास्टिक के बने होते हैं। खिलौने खरीदने के समय यह देखना आवश्यक है कि बढ़िया रबड़ या प्लास्टिक का प्रयोग किया गया हो जो जल्दी टूट न सके। घटिया गुणवत्ता के खिलौने शीघ्र टूट जाते हैं तथा बच्चे टूटे-फूटे टुकड़े उठा कर मुंह में डाल सकता है। जो बच्चे के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं।

4. शिक्षात्मक (Educational) – खिलौने शिक्षात्मक होने चाहिए ताकि बच्चा उनके साथ खेलता हुआ कुछ ज्ञान भी प्राप्त कर सके क्योंकि बच्चा खेलों द्वारा अधिक सीखता है। भिन्न-भिन्न रंगों, आकारों तथा संख्या का ज्ञान बच्चे को आसानी से खिलौनों की सहायता के साथ दिया जा सकता है।

5. सफाई में आसानी (Easy to Learn) – खिलौने ऐसी सामग्री के बने हों जिन्हें सरलता के साथ साफ किया जा सके जैसे प्लास्टिक तथा सिंथैटिक खिलौने सरलता से साफ हो सकते हैं।

6. सुरक्षित सामग्री (Safe Material) – खिलौनों का सामान मज़बूत नर्म, रंगदार तथा भार में हल्का होना चाहिए। खिलौनों के भिन्न-भिन्न भाग ठीक ढंग से मज़बूती के साथ जुड़े हो। इनकी नुक्करें तेज़ न हों नहीं तो यह बच्चे को खेल के समय हानि पहुंचा सकती हैं।

7. लड़के तथा लड़कियों के खिलौने (Boys and Girls Toys) – खिलौने लड़के तथा लड़कियों के लिए भिन्न-भिन्न खरीदने चाहिएं। लड़कियां अधिकतर गुड़िया, घरेलू सामान तथा श्रृंगार के सामान से खेलना पसन्द करती हैं जबकि लड़के कारों, बसों, ट्रैक्टर, बैटबाल, फुटबाल आदि के साथ खेलना पसन्द करते हैं। खिलौनों का चुनाव बच्चे की आयु तथा लिंग को ध्यान में रख कर करना चाहिए।

8. खिलौनों की कीमत (Cost of Toys) – अधिक महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं क्योंकि महंगे खिलौने टूट जाने पर माँ-बाप बच्चों को डांटते हैं पर बच्चा सदा ही अपने ढंग से खेलना चाहता है। इसलिए खिलौना इतना महंगा न हो कि खराब होने पर दु:ख हो।

9. संभालने का स्थान (Storage Space) – खिलौनों को संभालने के लिए व्यापक स्थान होना चाहिए ताकि उनको ठीक ढंग से रखा जा सके तथा खिलौने टूट-फूट से बच सकें। इसलिए हर नया खिलौना खरीदने से पहले उस को सम्भालने के स्थान को ध्यान में रखना आवश्यक है।

10. खिलौने बहुत अधिक न खरीदें (Not to Buy too Many Toys) – यदि घर में बहुत अधिक खिलौने हों, तो बच्चा किसी भी खिलौने का पूरा लाभ नहीं उठाता इसलिए बहुत अधिक खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।

बच्चों के खेलने के लिए कौन-से भिन्न-भिन्न किस्म के खिलौने होते हैं –

  1. रंगदार तथा आवाज़ करने वाले खिलौने
  2. चलने वाले खिलौने
  3. चाबी वाले खिलौने
  4. भिन्न-भिन्न तरह के ब्लाक्स
  5. घर में खेलने वाली खेलें जैसे लुडो, कैरम-बोर्ड, बिजनैस, वीडियो गेम आदि।
  6. विशेषतः लड़कियों के लिए किचन सैट, डरैसिंग सैट, डॉक्टर सैट, गुड़िया आदि।
  7. घर से बाहर खेलने वाली खेल जैसे बैडमिंटन, बैटबाल, हॉकी, फुटबाल, रस्सी कूदना आदि।

(ख) देखें प्रश्न (क) का उत्तर।

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एक शब्द/रक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) एक शब्द में उत्तर दें –

प्रश्न 1.
साथियों की संख्या के आधार पर खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 2.
किसके अनुसार खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है ?
उत्तर :
थॉमसन के अनुसार।

प्रश्न 3.
गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देना कैसा खेल है ?
उत्तर :
निरुद्देश्य खेल।

प्रश्न 4.
फुटबॉल खेलना कैसा खेल हैं ?
उत्तर :
चंचल खेल।

प्रश्न 5.
पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है कैसा खेल है ?
उत्तर :
स्वभाविक खेल।

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प्रश्न 6.
शतरंज कैसा खेल है ?
उत्तर :
शान्त तथा दिमागी।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. लूडो ………… खेल है।
2. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखना ……… खेल है।
3. खेलों से बच्चों को ………… की प्राप्ति होती है।
4. शुरू में बालक ……… खेल खेलता है।
उत्तर :
1. घरेलू
2. जिज्ञासापूर्ण
3. आनन्द
4. स्वप्रेरित।

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(ग) निम्न में गलत अथवा ठीक बताएं –

1. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे संवेगात्मक व्यवहार सीखते है।
3. जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन होता है। उसका मानसिक व शारीरिक विकास सन्तोषजनक नहीं होता।
4. खिलौनों का रंग पक्का होना चाहिए।
5. बच्चे का पतंग लेकर भागना खेल नहीं है।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक
5. गलत।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
घर के अन्दर खेले जाने वाला खेल नहीं है –
(A) हॉकी
(B) ताश
(C) शतरंज
(D) कैरम।
उत्तर :
हॉकी।

प्रश्न 2.
निम्न में खेल नहीं है –
(A) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(B) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(C) माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना
(D) बच्चे का पतंग लेकर भागना।
उत्तर :
माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना।

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प्रश्न 3.
कार्लग्रूस ने खेलों को कितने भागों में बांटा है –
(A) एक
(B) तीन
(C) पांच
(D) सात।
उत्तर :
पांच।

प्रश्न 4.
निम्न में चंचल खेल है –
(A) पार्क में पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है
(B) फुटबाल खेलना
(C) गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है
(D) खिलौना तोड़ कर उसके अन्दर देखता है।
उत्तर :
फुटबाल खेलना।

प्रश्न 5.
निम्न में खेल कार्य नहीं है
(A) गणित के सवाल हल करना
(B) गत्यात्मक नियन्त्रण
(C) गुस्से पर नियन्त्रण
(D) गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
गणित के सवाल हल करना

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प्रश्न 6.
ऑक्सीकरण की क्रिया कब पूर्ण होती है-
(A) हाइड्रोजन मिलने पर
(B) ऑक्सीजन मिलने पर
(C) नाइट्रोजन मिलने पर
(D) कार्बन डाइऑक्साइड मिलने पर।
उत्तर :
ऑक्सीजन मिलने पर।

प्रश्न 7.
समूह में खेलते हुए बच्चे ……………. सीखते हैं
(A) काल्पनिक व्यवहार
(B) सामाजिक व्यवहार
(C) संवेगात्मक व्यवहार
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 8.
कमरे में बैठकर ताश खेलने को खेल के गुणों के आधार पर किस प्रकार के खेल में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(A) निरुद्देश्य खेल
(B) जिज्ञासापूर्ण खेल
(C) शान्त खेल
(D) गम्भीर खेल।
उत्तर :
शान्त खेल।

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प्रश्न 9.
खिलौने को खरीदते समय किस बात को ध्यान में रखना चाहिए :
(A) आयु वर्ग
(B) रंग-बिरंगे
(C) अच्छी गुणवत्ता
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 10.
नैतिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है –
(A) सहनशीलता की भावना का विकास
(B) तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होना
(C) व्यायाम होना
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
सहनशीलता की भावना का विकास।

प्रश्न 11.
खेलों से बच्चों को …………. की प्राप्ति होती है –
(A) पैसों
(B) आनन्द
(C) ऊर्जा.
(D) समयः।
उत्तर :
आनन्द।

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प्रश्न 12.
जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका ………… सन्तोषजनक नहीं होता
(A) मानसिक विकास
(B) शारीरिक विकास
(C) मानसिक और शारीरिक विकास
(D) सामाजिक विकास।
उत्तर :
मानसिक और शारीरिक विकास।

प्रश्न 13.
खेल की क्रियाएं आयु के साथ ………. हैं।
(A) घटती
(B) बढ़ती
(C) समान रहती
(D) सामान्य।
उत्तर :
घटती।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से बौद्धिक खेल कौन-सा है ?
(A) हॉकी खेलना
(B) शतरंज
(C) दौड़ लगाना
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

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प्रश्न 15.
शुरू में बालक कौन-से खेल खेलता है ?
(A) स्वप्रेरित
(B) कल्पनात्मक
(C) रचनात्मक
(D) क्रीड़ाएं।
उत्तर :
स्वप्रेरित।

प्रश्न 16.
क्रीड़ायें बच्चों के लिए फायदेमंद हैं, क्योंकि ये प्रदान करती हैं –
(A) मनोरंजन
(B) धन
(C) भोजन
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
मनोरंजन।

प्रश्न 17.
बालकों के जीवन में मनोरंजन का क्या महत्त्व है ?
(A) सहनशीलता, त्याग, सच्चाई जैसे गुण उत्पन्न होते हैं
(B) संवेगों का प्रकाशन और नियंत्रण
(C) नैतिक व मानसिक विकास में सहायक
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 18.
गतिशील खेल कौन-सा है ?
(A) खिलौनों से खेलना
(B) उछलना-कूदना
(C) पहेलियां बूझना
(D) शतरंज खेलना।
उत्तर :
उछलना-कूदना।

प्रश्न 19.
खेलने से बच्चों का………… विकास होता है।
(A) शारीरिक
(B) मानसिक
(C) सामाजिक
(D) शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।
उत्तर :
शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।

प्रश्न 20.
खेलों को कौन-सा तत्त्व प्रभावित करता है ?
(A) साधन
(B) ऋतु
(C) वातावरण
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

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प्रश्न 21.
घर के भीतर खेला जाने वाला कौन-सा खेल है ?
(A) ताश
(B) कैरम
(C) शतरंज
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

प्रश्न 22.
……………. से हड्डियों की मजबूती आती है।
(A) लोहा
(B) आयोडीन
(C) कैल्शियम
(D) वसा।
उत्तर :
कैल्शियम।

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प्रश्न 23.
घर के भीतर खेले जाने वाला खेल कौन-सा है ?
(A) शतरंज
(B) हॉकी
(C) फुटबाल
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

खेल HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य।

→ बालकों का खेलना एक स्वाभाविक क्रिया है जो आत्म प्रेरित होती है और आनन्ददायक भी होती है।
→ खेल तथा मनोरंजन बालक के जीवन में प्रसन्नता, चंचलता, उत्साह, स्फूर्ति तथा स्वतन्त्रता के भाव उत्पन्न करते हैं।
→ खेल की अनेक विशेषताएं होती हैं जैसे यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, यह एक आत्मप्रेरित, शारीरिक व मानसिक प्रवृत्ति है, खेल का कोई गुप्त लक्ष्य नहीं होता, खेल का मुख्य लक्ष्य आनन्द और आत्म विश्वास प्राप्त करना होता है, बालक खेल के अन्तिम परिणाम पर कोई विचार नहीं करते आदि।
→ खेल और कार्य में अन्तर होता है।
→ खेल का बालक के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। खेल के आधार पर बालक के अनेक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक आदि गुणों का विकास होता है।
→ खेल के साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के होते हैं

  • समानान्तर खेल
  • सहचारी खेल तथा
  • सामूहिक खेल।

→ खेल के स्थान के आधार पर खेल दो प्रकार के होते हैं –
(i) घर के भीतर खेले जाने वाले खेल (इनडोर गेम्स) – जैसे ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, चायनीज चेकर, सांप-सीढ़ी आदि।
(ii) घर के बाहर खेले जाने वाले खेल (आउटडोर गेम्स) – जैसे क्रिकेट, फुटबाल, हाकी, बैडमिन्टन आदि।

→ ऐसा देखा गया है कि जो बालक पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त खूब खेलता है, वह सामान्यतः कुशाग्र बुद्धि का होता है।

→ खेल एक ऐसी क्रिया है जो बच्चे को अच्छी लगती है। बच्चा उसे अपनी खुशी से शुरू करता है। उसे करते हुए वह आनन्द अनुभव करता है और जब चाहे उसे समाप्त कर देता है। बच्चे का सारा दिन खेल से भरा होता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

→ खेल के निम्नलिखित गुण हैं –

  • खेल अनायास व स्वाभाविक होता है।
  • खेल आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है।
  • खेल की शुरुआत बच्चा स्वयं करता है।
  • खेल बच्चे के लिए मज़ा है।
  • खेल कभी-कभी गंभीर एवं जिज्ञासा से पूर्ण भी हो सकता है।
  • खेल चंचल या शांत भी हो सकता है।

→ खेल बच्चे के शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक संवेगों के विकास एवम् नैतिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
→ खेल से बच्चे का शारीरिक विकास होता है, उसे बहुत चीज़ों का ज्ञान मिलता है, वह नई चीजें बनाना सीखता है, वह सामाजिक होकर अपने दोस्तों से तालमेल बिठाना सीखता है और अपने भावों पर नियन्त्रण पाना सीखता है। इसके अलावा सच बोलना, ईमानदार बनना आदि नैतिक गुण भी वह अपनाता है।

→ आयु के साथ खेल भी बदलते हैं। बहुत छोटे बच्चे (0-2 महीने तक) अपने आप से खेलना पसन्द करते हैं। वह अपने हाथ-पैर चलाते रहते हैं।

→ 2 महीने से 2 वर्ष के बच्चे खिलौनों को देखना व उनसे खेलना पसन्द करते हैं। अकेले बैठे हुए भी वह अपने खिलौनों से खेलते रहते हैं। दो साल के बच्चे समूह में खेलना पसन्द करते हैं हालांकि समूह का प्रत्येक बच्चा अपनी धुन में मस्त होता है।

→ दो साल से छः साल के बच्चों के खेलों में और बदलाव आ जाता है। वह साथ-साथ खेलना शुरू कर देते हैं। वह एक खिलौने से भी खेल सकते हैं।

→ बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं व अधिक सामाजिक बनते हैं। वह नए दोस्त बनाते हैं। उनके निर्धारित समूह होते हैं और वह नियम वाले खेल भी खेलते हैं। बड़े बच्चे अकेले भी खेल सकते हैं और समूह में भी।

→ खेलने के तरीके बदलने के साथ-साथ खिलौने भी बदल जाते हैं। अत: बच्चों को खिलौने खरीदते समय उनकी उम्र, खिलौने का टिकाऊपन, सुरक्षा, आकर्षणता, वृद्धि का स्तर आदि बातों का ध्यान अवश्य रखें।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

→ यदि कीमती खिलौने खरीदने की बजाए आप बच्चों को घर के बने खिलौने देंगे जैसे कपड़े की बनी बिल्ली, माचिस की डिब्बी का झुनझुना आदि तो बच्चे इसे ज्यादा पसन्द करेंगे। ऐसे खिलौनों के साथ वह अपनी इच्छानुसार उठक-पटक कर सकते हैं। इस तरह वह नए विचार और खेल सोच पाते हैं।

→ यदि आप बच्चे को कीमती खिलौने देते हैं। तो आप सारा समय बच्चे को यही हिदायत देते हैं कि खिलौने टूट न जाएं। इस तरह बच्चा ठीक से खेल नहीं पाता और परिणामस्वरूप जल्द ही ऐसे खिलौने से खेलना छोड़ देता है। अतः घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
सभी प्रकार की आय का आयोजन नियंत्रण व मूल्यांकन करना, जिससे परिवार के लिए अधिकतम सन्तुष्टि की प्राप्ति हो सके, उसे पारिवारिक आय कहते हैं।

प्रश्न 2.
मौद्रिक आय किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आय के कई साधन हैं। वेतन से प्राप्त मुद्रा, व्यापार से प्राप्त मुद्रा, ज़मीन मकान के किराये से प्राप्त मुद्रा आदि। किसी भी साधन से प्राप्त मुद्रा, मौद्रिक आय कहलाती है।

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प्रश्न 3.
आत्मिक आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त मौद्रिक तथा वास्तविक आय के व्यय से प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि आत्मिक आय कहलाती है।

प्रश्न 4.
आवश्यक व्यय कौन-कौन से हैं ? आवश्यकताओं के वर्ग भी बताइये।
उत्तर :
भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा एवं चिकित्सा पर किये व्यय आवश्यक व्यय माने जाते हैं। आवश्यकताओं के वर्ग निम्नलिखित हैं –

  1. अनिवार्य आवश्यकताएं (जीवन रक्षक आवश्यकताएँ)
  2. निपुणता-रक्षक आवश्यकताएँ
  3. प्रतिष्ठा-रक्षक आवश्यकताएँ
  4. आराम संबंधी आवश्यकताएँ
  5. विलासिता संबंधी आवश्यकताएँ।

प्रश्न 5.
व्यय किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अपने परिवार के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु तथा आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए विभिन्न साधनों से आय को किस प्रकार और कितना विभिन्न आवश्यकताओं पर खर्च किया जाता है, उसे व्यय कहते हैं।

प्रश्न 6.
परिवार की आय को कौन-कौन-से दो भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :
परिवार की आय को दो भागों में विभाजित किया जाता है-प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष आय वह है जो पैसे के रूप में प्राप्त होती है जैसे वेतन, दुकान की कमाई। अप्रत्यक्ष आय जो किसी नौकरी करने वाले व्यक्ति को सुविधाओं के रूप में मिलती है जैसे मकान, मुफ्त दवाइयाँ, डॉक्टरी सहायता आदि।

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प्रश्न 7.
खर्च कितने प्रकार के हो सकते हैं ?
उत्तर :
परिवार को भिन्न – भिन्न जगहों से आय प्राप्त होती है उसको कहां और कितना प्रयोग किया जाता है को खर्च कहा जाता है। खर्च तीन प्रकार के होते हैं –
1. निर्धारित खर्च जैसे मकान का किराया, बच्चों की फीस।
2. अर्द्ध-निर्धारित खर्च-जो बढ़ता-घटता रहता है; जैसे कपड़े, भोजन और दवाइयों का खर्च।
3. गैर-निर्धारित खर्च-जिनको घटाया या बिल्कुल बन्द किया जा सकता है; जैसे मनोरंजन, हार-शृंगार आदि।

प्रश्न 8.
बजट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक आय के अनुसार घर के खर्च का पहले से भी अनुमान लगाने को बजट कहा जाता है या आय और खर्च का लेखा-जोखा बजट कहलाता है। बजट लिखित या मौखिक भी हो सकता है।

प्रश्न 9.
खर्च की आवश्यक और अनावश्यक मदें कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
खर्च की आवश्यक और अनावश्यक मदें निम्नलिखित हैं –
(क) आवश्यक मदें-घर, भोजन और कपड़े।
(ख) कम आवश्यक मदें-घर को चलाने के लिए खर्चे बच्चों की पढाई, डॉक्टरी सहायता, मनोरंजन और अन्य फुटकर खर्च और बचत।
(ग) खर्च की अवश्यक मदें ये वे खर्चे हैं जिनसे आसानी से बचा जा सकता है। मनोरंजन का खर्च, हार-श्रृंगार का खर्च और धार्मिक खर्चे आदि।

प्रश्न 10.
बचत से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
घर की आय में से वह भाग जिसको प्रत्येक महीने आय में से बचा लिया जाता है उसको बचत कहते हैं। बचत प्रत्येक परिवार के लिए इसलिए आवश्यक है ताकि बीमारी, दुर्घटना, बुढ़ापे आदि के लिए पैसा इकट्ठा हो सके।

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प्रश्न 11.
बचत करने के किन्हीं चार ढंगों के बारे में बताएं।
उत्तर :
पुराने समय में गहने और सोने के रूप में ही बचत की जाती थी। परन्तु आजकल बचत करने के लिए नए ढंग हैं जो न केवल मनुष्य को बचत करने में सहायक होते हैं बल्कि वह बचत मनुष्य की आय का एक अन्य साधन भी बन जाती है; जैसे जीवन बीमा, निश्चित काल का जमा खाता, डाकघर बचत खाता और भविष्य निधि फण्ड योजना आदि।

प्रश्न 12.
व्यक्ति का व्यवसाय बजट पर कैसे प्रभाव डालता है ?
उत्तर :
कई व्यक्तियों को अपनी नौकरी या बिजनैस करके कई स्थानों पर जाना पड़ता है। इसलिए उनको कई ऐसी वस्तुओं पर खर्च करना पड़ता है जिनकी साधारण व्यक्ति को आवश्यकता नहीं होती जैसे सूटकेस, बढ़िया कपड़े और मोबाइल आदि। इन सभी बातों का प्रभाव बजट पर पड़ता है।

प्रश्न 13.
गृहिणी की योग्यता बजट पर कैसे प्रभाव डालती है ?
उत्तर :
समझदार गृहिणियां अपनी योग्यता और कुशलता से कम आय में परिवार की आवश्यकताएं पूर्ण करके बचत कर लेती हैं। जैसे घर कपड़े सिल कर,पुराने कपड़ों की मरम्मत करके, घर में आचार चटनियां बनाकर या घर में सब्जियां उगा कर पारिवारिक बजट को प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 14.
बजट कितनी प्रकार का हो सकता है ?
उत्तर :
पारिवारिक बजट तीन प्रकार का होता है –

  1. बचत बजट (Surplus Budget) – इसमें आय अधिक और खर्च कम होता है।
  2. सन्तुलित बजट (Balanced Budget) – इसमें आय और खर्च बराबर होते हैं।
  3. घाटे का बजट (Deficit Budget) – इसमें आय कम और खर्च अधिक होता है।

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प्रश्न 15.
प्रतिदिन का हिसाब रखना बजट बनाने के लिए क्यों आवश्यक है ?
अथवा
प्रतिदिन का हिसाब-किताब रखना क्यों जरूरी है ?
उत्तर :
रोज़ाना खर्च का हिसाब रखने से गृहिणी को यह पता लगता है कि खर्च बजट के अनुसार हो रहा है। यदि किसी मद पर खर्च अधिक हो जाए तो किसी और से घटाकर उसको सन्तुलित किया जाता है।

प्रश्न 16.
बजट के प्रकार लिखिए, तथा बताइये कि सबसे अच्छा बजट कौन-सा माना जाता है ?
उत्तर :
पारिवारिक आय-व्यय के हिसाब से बजट तीन प्रकार के होते हैं –

  1. सन्तुलित बजट
  2. बचत का बजट
  3. घाटे का बजट।

बचत का बजट सर्वाधिक अच्छा बजट माना जाता है।

प्रश्न 17.
पारिवारिक बजट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक आय तथा व्यय में सन्तुलन लाने के लिए आय का सही उपयोग करना अत्यन्त आवश्यक है, इसलिए गृहिणी को धन व्यय करने से पहले परिवार में विभिन्न साधनों या स्रोतों से होने वाली पूरी आय (आमदनी) तथा इस आय को विभिन्न मदों पर खर्च करने की पूरी योजना बना लेनी चाहिए। इस प्रकार परिवार में किसी निश्चित अवधि के लिए पर्व अनुमानित आय-व्यय के विस्तत विवरण को पारिवारिक बजट कहते हैं।

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प्रश्न 18.
बजट योजना किन तत्त्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर :
बजट योजना निम्न चार तत्त्वों पर निर्भर करती है –

  1. परिवार की आय।
  2. परिवार का लक्ष्य।
  3. परिवार की तात्कालिक आवश्यकताएँ।
  4. परिवार की भावी आवश्यकताएँ।

प्रश्न 19.
बजट-निर्माण के मुख्य चरण क्या हैं ?
उत्तर :
बजट-निर्माण के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं –

  1. परिवार के सभी स्रोतों से प्राप्त मासिक आय को जोड़ना।
  2. परिवार की आवश्यकताओं की सूची उनकी प्राथमिकता के आधार पर बना लेना।
  3. पारिवारिक परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक आवश्यकता के लिए आय का प्रतिशत निर्धारित करना और अन्त में कुल खर्च का अनुमान लगाना।
  4. कुछ धन भविष्य के लिए अथवा आकस्मिक खर्च के लिए बचाया जाना।

प्रश्न 20.
बजट सम्बन्धी ऐन्जिल का सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर :
ऐन्जिल के सिद्धान्त के अनुसार जैसे-जैसे आय बढ़ती है –

  1. भोजन पर व्यय का प्रतिशत घटता है तथा अन्य आरामदेह वस्तुओं पर व्यय का प्रतिशत बढ़ता है।
  2. मकान, वस्त्र, विद्युत् पर व्यय उतना ही रहता है, उसमें परिवर्तन नहीं होता।
  3. विलासिता, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, सांस्कृतिक आवश्यकताओं पर व्यय का प्रतिशत बढ़ जाता है।

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प्रश्न 21.
निम्न व उच्च वर्ग के बजट में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
निम्न व उच्च वर्ग के बजट में निम्नलिखित अन्तर है –

  1. निम्न वर्ग में भोजन की मद में अधिक खर्च होता है जबकि उच्च वर्ग में भोजन की मद पर खर्च का प्रतिशत कम रहता है।
  2. उच्च वर्ग में शिक्षा तथा मनोरंजन पर प्रतिशत व्यय अधिक होता है जबकि निम्न वर्ग में इन मदों का प्रतिशत व्यय कम रहता है।
  3. उच्च परिवार में बचत का प्रतिशत अधिक होता है, जबकि निम्न परिवार में बचत नहीं के बराबर ही होती है।

प्रश्न 22.
गृहिणी को परिवार के आय-व्यय का सन्तुलन बनाए रखने के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर :
परिवार के आय-व्यय का सन्तुलन बनाए रखने के लिए अग्र बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  1. परिवार की आय के साधन।
  2. आय को प्रभावित करने वाले तत्त्व।
  3. परिवार के आवश्यक व्यय।
  4. व्यय को प्रभावित करने वाले तत्त्व।
  5. आय के साधनों का सम्भावित विकास।
  6. आय के साधनों को विकसित कर व्यय-योजना द्वारा रहन-सहन का स्तर उन्नत करना।
  7. बुद्धिमत्तापूर्ण व्यय, बचत के लाभ तथा ऋण से हानियाँ।
  8. आय-व्यय का सन्तुलित बजट।
  9. घरेलू हिसाब रखना।
  10. बचत के साधन अपनाना।
  11. बचत का सही उपयोग।
  12. आवश्यक कागज़-पत्रों की सम्भाल।

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प्रश्न 23.
बचत के प्रमुख लक्ष्य क्या हैं ?
अथवा
बचत करना क्यों आवश्यक है ?
अथवा
बचत के लाभ लिखें।
उत्तर :
बचत के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं –

  1. आय बन्द हो जाने पर एक साधन-नौकरी छूट जाने या व्यवसाय में घाटा हो जाने पर बचत की राशि ही काम आती है।
  2. चोरी हो जाने, आग लग जाने एवं महंगाई बढ़ने पर बचत का सदुपयोग किया जाता है।
  3. आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी तथा बुढ़ापे में कार्य करने की असमर्थता के समय बचत ही काम आती है।
  4. मकान खरीदने, बनवाने या जमीन खरीदने के लिए बचत का प्रयोग किया जाता है।
  5. बच्चों की ऊँची शिक्षा में बचत का उपयोग किया जाता है।
  6. सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों पर भी बचत का उपयोग होता है।
  7. राष्ट्र के विकास तथा रक्षा के साधनों पर बचत का उपयोग होता है।
  8. मुद्रा-स्फीति पर नियंत्रण के लिए बचत करना आवश्यक है।

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प्रश्न 23.
(A). बचत क्यों की जानी चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 23 का उत्तर।

प्रश्न 24.
बचत किसे कहते हैं ? बचत तथा विनियोग के साधनों के नाम लिखिए।
उत्तर :
धन को किसी भी समय इकट्ठा जमा करने या फिर नियमित समय के अन्तर पर धीरे-धीरे एकत्रित करने को बचत कहा जाता है। बचत तथा विनियोग के प्रमुख साधन अग्रलिखित हैं –

  1. बैंक (Banks)
  2. डाकघर बचत खाता (Post Office Savings Account)
  3. जीवन बीमा (Life Insurance)
  4. भविष्य निधि योजना (Provident Fund)
  5. यूनिट्स (Units)
  6. राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेट (National Savings Certificate)
  7. लॉटरी, चिट व्यवस्था आदि (Lottery and Chit System)
  8. सहकारी संस्थाएँ (Co-operative Societies)
  9. कम्पनियों में पैसा लगाना (Investing in Companies)।

प्रश्न 24. (A)
बचत किसे कहते हैं ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 24 का उत्तर।

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प्रश्न 25.
बचत के विनियोजन में किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक तथा लाभकारी होता है ?
अथवा
बचत किए हुए धन को निवेश करते समय आप किन-किन बातों को ध्यान में रखेंगे।
उत्तर :
बचत के विनियोजन में निम्न दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक तथा लाभकारी होता है –
1. जिस संस्था में धन जमा करना है, वह विश्वसनीय हो।
2. विश्वसनीय संस्थाओं की ब्याज की दरें जानकर, जिस संस्था में ब्याज की दर अधिक हो, उसी में बचत का धन जमा करना चाहिए।

प्रश्न 26.
बचत के विनियोजन के लिए सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं की सूची बनाइये।
उत्तर :
बैंक, डाकखाना, बीमा, प्रॉवीडेन्ट फण्ड, यूनिट ट्रस्ट, सहकारी समितियाँ, हिस्से (शेयर्स), चिट फण्ड कम्पनियाँ आदि।

प्रश्न 27.
बैंक में रुपया जमा करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
बैंक में रुपया जमा करने के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. बचत का धन सुरक्षित रहता है।
  2. आवश्यकता होने पर धन निकाला भी जा सकता है।
  3. बचत के धन पर ब्याज भी मिलता है।
  4. इस धन को देश के विकास के लिए विभिन्न उत्पादक कार्यों में लगाया जाता है।

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प्रश्न 28.
बचत खाता किसके नाम पर खोला जा सकता है ?
उत्तर :
बचत खाता निम्नलिखित नामों से खोला जा सकता है –

  1. किसी बालिग व्यक्ति के नाम पर।
  2. संरक्षता में किसी नाबालिग के नाम पर।
  3. दो या अधिक व्यक्तियों के नाम पर (संयुक्त खाता)। एक वर्ष से अधिक के नाबालिग बच्चे के नाम पर बचत खाते में धनराशि नकद, चैक या ड्राफ्ट के रूप में जमा कराई जा सकती है।

प्रश्न 29.
आवश्यकता पड़ने पर बैंक से धन किस प्रकार निकाला जा सकता है ? बचत खाते से धन निकालने के बैंक के क्या नियम होते हैं ?
उत्तर :
आवश्यकता पड़ने पर बैंक से चैक द्वारा या निकासी फार्म (Withdrawal form) की सहायता से धन निकाला जा सकता है। बैंक से धन निकालने के निम्न नियम होते हैं –

  1. जमाकर्ता अपने बचत खाते में 3 महीने में 30 बार धन निकाल सकता है।
  2. आवश्यकता पड़ने पर बैंक जमाकर्ता को 30 बार से अधिक बार धन निकालने की अनुमति दे सकता है।
  3. किसी भी समय यदि बचत खाते में पाँच सौ रुपये से कम होंगे तो जमाकर्ता से एक रुपया प्रति छः माह की दर से वसूल किया जाता है।
  4. जमाकर्ता द्वारा अपने बचत खाते से एक महीने में एक या अधिक बार निकाली गई कुल राशि 10,000 से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  5. चैक बुक उन्हीं जमाकर्ता को दी जाती है जिनके बचत खाते में ₹ 500 या उससे अधिक रहते हैं।

प्रश्न 30.
पास बुक क्या होती है ?
उत्तर :
हर बचत खातेदार को एक पास बुक या पुस्तिका दी जाती है जिसमें बचत बैंक के नियम दिये होते हैं तथा खातेदार का नाम, पता तथा खाता नम्बर आदि विवरण होते हैं। बैंक से धन निकालते समय या जमा कराते समय पास बुक को साथ दिया जाता है जिससे राशि सम्बन्धी सभी आवश्यक विवरण बैंक द्वारा उसी समय दर्ज कर दिये जाते हैं।

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प्रश्न 31.
भविष्य निधि योजना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
यह योजना नौकरी करने वाले सभी वर्ग के कर्मचारियों के लिए है। प्रत्येक कर्मचारी अपने वेतन में से अनिवार्य रूप से इस योजना में राशि विनियोजित करता है।

प्रश्न 32.
स्कूल बचत बैंक योजना क्या होती है ?
उत्तर :
स्कूल बचत बैंक योजना (संचायिका योजना) स्कूल के बच्चों का ऐसा बचत बैंक होता है जिसका नियमन वे स्वयं करते हैं। इससे बच्चों में नियमित बचत करने की आदत का विकास होता है, साथ ही उन्हें पैसे रखने का हिसाब भी आ जाता है। इस प्रकार स्कूली बच्चों द्वारा जमा की गई धनराशि का खाता विद्यालय के नाम से खोला जाता है।

प्रश्न 33.
यूनिट ट्रस्ट क्रय करके किस प्रकार बचत की जाती है ?
उत्तर :
भारतीय संसद् ने एक अधिनियम 1964 में लागू कर ‘यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया’ की स्थापना की थी। यूनिट एक प्रकार की अंशपूँजी होती है। इसकी कीमत ₹ 10 होती है परन्तु इसका क्रय-विक्रय मूल्य कम व अधिक होता रहता है। ट्रस्ट को उद्योगों से जो लाभ होता है उसका 90% यूनिट क्रय करने वालों में लाभांश के रूप में प्रतिवर्ष 30 जून को बाँट दिया जाता है। सन् 1983 में विधवाओं, अपंगों और 55 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों को लाभांश प्रतिमास देने की सुविधा हो गई है। इसमें कम से-कम ₹ 5,000 जमा करने पड़ते हैं। इसका लाभ बैंक या डाकघर से प्राप्त किया जा सकता है।

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प्रश्न 34.
परिवार के लिए धन की बचत करने के कोई चार लाभ लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न का उत्तर।

प्रश्न 35.
बचत का निवेश करने की किन्हीं छः संस्थाओं की सूची बनाएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 8, दीर्घ उत्तरीय प्रश्न का उत्तर।

प्रश्न 36.
व्यय योजना बनाने से परिवार को होने वाले कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर :
1. आकस्मिक खर्चों का अनुमान लगाना सरल हो जाता है।
2. व्यय योजना बनाने से बचत करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 37.
बचत और विनियोग के दो साधन बताएं।
उत्तर :
बैंक, बीमा, शेयरस, यूनिट ट्रस्ट।

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प्रश्न 38.
आवश्यक व्यय तथा अनावश्यक व्यय कौन-कौन से हैं ? दो उदाहरण दें ?
उत्तर :
आवश्यक व्यय : बच्चों की फीस, घर का किराया। अनावश्यक व्यय : घूमने जाना, फिल्म देखने जाना।

प्रश्न 39.
अनावश्यक व्यय कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 40.
यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

लघ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
धन के प्रबन्ध के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
धन एक भौतिक साधन है। प्रत्येक परिवार के लिए इसकी मात्रा भिन्न-भिन्न होते हुए भी परिवार के लिए इसकी मात्रा सीमित भी होती है और यह परिवार पर ही निर्भर करता है कि वह किस प्रकार से अपने इस सीमित धन से अधिक-से-अधिक आवश्यकताएँ पूरी कर सकें। धन का जीवन में एक महत्त्वपूर्ण साधन है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की विभिन्न सुख-सुविधाएँ जुटाने के लिए धन पर निर्भर रहना पड़ता है। दिन-प्रतिदिन मनुष्य को जीवन में अनेक आवश्यकताओं का अनुभव होता है। मनुष्य की आवश्यकताएं तीन प्रकारों में बाँटी जा सकती हैं; जैसे कि-अति आवश्यक आवश्यकताएँ (Needs or Essential Requirements); आरामदायक आवश्यकताएँ (Comforts) तथा विलासितापूर्ण आवश्यकताएँ (Luxuries)।

इन सभी आवश्यकताओं को मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूर्ण करने का प्रयत्न करता है। परिवार की सम्पूर्ण व्यवस्था का संचालन धन पर ही निर्भर है। धन एक प्रकार का ऐसा सुविधाजनक साधन है जो कि मनुष्य को उन वस्तुओं को खरीदने में मदद करता है जिनके प्रयोग से उसकी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है। धन के उचित उपयोग के लिए धन के प्रबन्ध’ (Money Management) का सही ज्ञान होना अति आवश्यक है।

धन-प्रबन्ध के द्वारा ही पारिवारिक आय का योजनाबद्ध उपयोग सम्भव है। धन प्रबन्ध इस प्रकार करना चाहिए कि आय तथा व्यय में सन्तुलन हो तथा थोड़ी बहुत बचत की जा सके जो कि भविष्य में काम आ सके और परिवार की आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने में भी सहायता दे सके। उचित धन प्रबन्ध परिवार के भविष्य को सुखमय तथा सुविधाजनक बनाने में सहायक होता है। इसके लिए आय के समस्त साधनों का पूरा ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि व्यय बहुत कुछ आय की राशि पर ही निर्भर करता है।

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प्रश्न 2.
पारिवारिक आय की क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक आय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. पारिवारिक आय राष्ट्रीय की आय पर निर्भर करती है।
  2. आय का वितरण देशवासियों में समान रूप से नहीं होता। समाज में आय की विषमताओं के कारण निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग एवं उच्च वर्ग समाज बन जाता है।
  3. जिस वर्ग का व्यक्ति होता है उसके अनुसार उसकी आय निर्धारित होती है। जैसे-कृषक वर्ग, व्यापारी वर्ग, शिक्षक वर्ग, डॉक्टर या अभियन्ता वर्ग आदि।
  4. व्यक्ति की कुशलता एवं उसके व्यक्तिगत गुणों पर उसकी आय निर्भर करती है।
  5. पारिवारिक आय परिवार में आय अर्जित करने वाले सदस्यों की संख्या पर निर्भर करती है।
  6. शिक्षित व्यक्तियों की आय अशिक्षित व्यक्तियों से अधिक होती है।
  7. परिवार में सदस्यों की संख्या कम रहने पर एक निश्चित आय अधिक लगती है परन्तु परिवार में सदस्यों की संख्या यदि बढ़ जाती है तब वही निश्चित आय कम लगती है।
  8. एक परिवार के लिए जितनी आय पर्याप्त होगी इसकी कोई सीमा निश्चित नहीं होती।

प्रश्न 3.
आय वर्ग कितने प्रकार के हैं ? विवेचना कीजिए।
उत्तर :
हर परिवार की अलग-अलग आय होती है, जिसके आधार पर वह अपनी भिन्न-भिन्न जरूरतों को पूर्ण करने में सफल होते हैं। किसी भी परिवार के जीवन-स्तर का अनुमान उसकी पारिवारिक आय से सरलता से लगाया जा सकता है। आय की मात्रा के आधार पर परिवारों को मुख्यत: तीन आय-वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. निम्न आय वर्ग (Low Income Group)
  2. मध्यम आय वर्ग (Middle Income Group)
  3. उच्च आय वर्ग (High Income Group)

सामान्यतः ये तीन आयु-वर्ग मान्य हैं, परन्तु इनमें कोई भी निश्चित विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती; जैसे कि निम्न और मध्यम वर्ग के बीच के वर्ग को निम्न-मध्यम आय वर्ग भी कहा जा सकता है और इससे उच्च और मध्यम वर्ग के बीच में उच्च-मध्यम आय-वर्ग आ सकता है। कितनी आय वाले परिवार को इनमें से किस वर्ग में रखा जाए यह भी पूरी तरह से निश्चित नहीं किया जाता है और यह समय-समय पर बदलता रहता है।

यही नहीं, विभिन्न अर्थशास्त्रियों के भी इसके बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं। इसके साथ ही कोई परिवार कहाँ रहता है यानी रहने के स्थान पर, वस्तुओं की उपलब्धि तथा परिवार की उन्हें खरीदने की क्षमता (Purchasing Power) भी भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरणार्थ बड़े शहरों में उसी धन की मात्रा से कम वस्तुएँ, सुख-सुविधाएँ तथा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है, जबकि गाँवों या छोटे शहरों में उतने ही धन से अधिक पारिवारिक आवश्यकताओं को सुविधापूर्वक पूरा किया जा सकता है।

फिर भी मान्य नियमों के आधार पर परिवार की आय को देखते हुए विभिन्न परिवारों को निम्न, मध्यम व उच्च आय वर्गों में बाँटने के लिए आगे दी गई विभाजन सीमा ली जा सकती है –
निम्न आय वर्ग – ₹ 800 मासिक तक।
मध्यम आय वर्ग – ₹ 800 से ₹ 2,000 मासिक तक।
उच्च आय वर्ग – ₹ 2,000 या ₹ 2,500 से ऊपर।

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प्रश्न 4.
व्यय कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
जो कुछ भी हम खर्च करते हैं उसको तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
निर्धारित व्यय – निर्धारित व्यय प्रतिमाह करने पड़ते हैं। ऐसे खर्च की राशि प्रायः निश्चित रहती है, जैसे-मकान का किराया, बिजली का खर्च, बीमे की किस्तें, आय कर, शिक्षा शुल्क आदि। ऐसे व्यय में किसी प्रकार की कटौती करना असम्भव रहता है।

अर्ध-निर्धारित – व्यय-कछ ऐसे व्यय होते हैं जिनको करना अनिवार्य होता है पर इनकी धनराशि में कमी या वृद्धि की जा सकती है। कमी या वृद्धि परिवार के सदस्यों की आमदनी व परिस्थिति पर निर्भर करती है। आमदनी बढ़ने पर खाने तथा वस्त्र पर अधिक व्यय किया जा सकता है, इसके विपरीत आमदनी कम हो जाने पर सादा भोजन या सादा वस्त्रों पर जीवित रहा जा सकता है।

अन्य व्यय – कुछ ऐसे व्यय होते हैं जो व्यक्ति विशेष की आमदनी पर निश्चित होते हैं। धन की कमी होने पर ऐसे व्यय बन्द किए जा सकते हैं तथा आमदनी बढ़ने पर उन्हें फिर किया जा सकता है। मनोरंजन व सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर आय के अनुसार ही खर्च होने लगता है तथा आय कम होने पर उन्हें बन्द किया जा सकता है।

आकस्मिक व्यय – ये व्यय ऐसे होते हैं जो अतिथियों के आगमन, बीमारी, दुर्घटना आदि के कारण उत्पन्न हो जाते हैं। इनकी पूर्ति करना भी आवश्यक होता है।

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प्रश्न 5.
व्यय को सीमित रखने के लिए गृहिणी को किन बातों का ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर :
व्यय को सीमित रखने के लिए गृहिणी को अग्रलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  1. प्रत्येक गृहिणी को घर की आय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए ताकि वह ठीक बजट बना सके और खर्च भी उसी के अनुसार कर सके।
  2. प्रत्येक गृहिणी को घर में परिस्थितियों का ज्ञान होना चाहिए। परिवार में व्यक्तियों की संख्या, उनकी उम्र, उनकी आवश्यकताएँ, बच्चों की शिक्षा-श्रेणी आदि का ज्ञान गृहिणी को होना चाहिए।
  3. गृहिणी को पारिवारिक बजट बनाने का ज्ञान होना चाहिए।
  4. प्रतिदिन के व्यय का हिसाब रखा जाना चाहिए जिससे यह पता रहे कि किस मद में कितना खर्च हो चुका है और कितना भाग शेष बचा है। इससे अनावश्यक खर्चों को रोका जा सकता है।
  5. थोक क्रय करना चाहिए। इससे पूरे माह का सामान क्रय हो जाता है। सामान का मूल्य भी सस्ता रहता है और सामान ढोने आदि का खर्च भी बच जाता है।
  6. गृहिणी को बाजार भाव का ज्ञान भी होना चाहिए जिससे ठगे जाने की सम्भावना नहीं रहती।
  7. आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी ही करनी चाहिए।
  8. वस्तुओं को सदैव नकद खरीदना चाहिए। उधार खरीदने की आदत से व्यय असीमित हो जाता है।
  9. मितव्ययिता के साथ खर्च करने की आदत होनी चाहिए।

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प्रश्न 6.
व्यय को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से होते हैं ?
उत्तर :
परिवार पर किए गए व्यय निम्नलिखित तत्त्वों से प्रभावित होते हैं –
1. परिवार का ढाँचा – हमारे देश में दो प्रकार की परिवार व्यवस्था है। संयुक्त परिवार व्यवस्था तथा एकाकी परिवार व्यवस्था। संयुक्त परिवार में कुछ मदों जैसे मकान का किराया, नौकर का पारिश्रमिक, भोजन, विद्युत् आदि के खर्च सम्मिलित रूप से एक जगह हो जाते हैं। ऐसे परिवार में सम्मिलित व्यय का बोझ परिवार के सभी सदस्यों पर पड़ता है। एकाकी परिवार में सभी खर्चे एक ही व्यक्ति की आय से ही करने पड़ते हैं। संयुक्त परिवार में एकाकी की तुलना में अधिक बचत की जा सकती है।

2. परिवार के सदस्यों की संख्या – एक व्यक्ति की आय और परिवार में सदस्यों की अधिक संख्या वाली स्थिति में बचत की सम्भावना नहीं के बराबर होती है।

3. बच्चों की संख्या – जिस परिवार में बच्चे अधिक होते हैं, उसमें खर्च अधिक होते हैं। इसलिए कहते हैं-‘कम बच्चे सुखी, परिवार’।

4. रहन-सहन का स्तर – जिस परिवार के रहन-सहन का स्तर ऊँचा होता है वैसे परिवार को अपने स्तर को बनाए रखने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है।

5. परिवार के सदस्यों के व्यवसाय – परिवार के सदस्यों के व्यवसाय भी खर्च को प्रभावित करते हैं। व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने के लिए भी व्यवसाय में धन खर्च करते रहना पड़ता है।

6. सामाजिक तथा धार्मिक परम्पराएँ – प्रत्येक समाज तथा परिवार में ऐसी सामाजिक तथा धार्मिक परम्पराएँ होती हैं जिन्हें न चाहते हुए भी मानना पड़ता है और उन्हें निभाने में खर्च होता है। हमारे भारतीय समाज में आए दिन उत्सव होते हैं, जैसे-अन्नप्राशन, मुंडन, जनेऊ, विवाह, नामकरण, गृह-प्रवेश, मरणोपरान्त तेरहवीं आदि। इन उत्सवों को मनाने तथा सगे-सम्बन्धियों को भोज इत्यादि देने में बजट से अलग बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है। आज ये सब खर्च व्यर्थ माने जाते हैं।

7. गृहिणी की योग्यता एवं कुशलता – बुद्धिमानी से खर्च करने पर परिवार को अधिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। यदि गृहिणी कुशल है और वह सोच-समझकर खर्च करती है तो वह परिवार को सुख व शान्ति दे सकती है।

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प्रश्न 7.
बचत के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?
उत्तर :
बचत के प्रमुख लक्षण निम्न हैं –

  1. अन्य बन्द हो जाने पर, आय साधन-नौकरी छूट जाने या व्यवसाय में घाटा हो जाने पर बचत की राशि ही काम आती है।
  2. चोरी हो जाने, आग लग जाने एवं महँगाई बढ़ने पर बचत का सदुपयोग किया जाता है।
  3. आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी तथा बुढ़ापे में कार्य की असमर्थता के समय बचत ही काम आती है।
  4. मकान खरीदने, बनवाने या जमीन खरीदने के लिए बचत का ही उपयोग किया जाता है।
  5. बच्चों की ऊँची शिक्षा में बचत का उपयोग किया जाता है।
  6. सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों पर भी बचत का उपयोग होता है।
  7. राष्ट्र के विकास तथा रक्षा के साधनों पर बचत का उपयोग होता है।
  8. मुद्रा-स्फीति पर नियन्त्रण के लिए बचत करना आवश्यक है।

प्रश्न 8.
पारिवारिक बजट किस प्रकार बनाया जाता है?
उत्तर :
पारिवारिक बजट बनाने के लिए निम्न प्रकार तैयारी करते हैं
1. बजट बनाने से पूर्व निम्न सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं –

  • परिवार के सभी सदस्यों की संख्या (स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े आदि)।
  • परिवार के सदस्यों की विभिन्न साधनों से होने वाली आय।
  • परिवार के बजट की अवधि-मासिक बजट बनाना है या वार्षिक।

2. सूचनाएँ एकत्रित करने के बाद खर्चों के बारे में अनुमान लगाया जाता है। यह देखना होता है कि किन-किन मदों पर खर्च होना है। उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा तथा संख्या की सूची बनाई जाती है। वस्तुओं के मूल्य तथा उन पर व्यय किए गए कुल धन का पता लगाया जाता है।

3. पूरी सूची तैयार करने के बाद यह देखते हैं कि विभिन्न मदों पर आय का कितना प्रतिशत खर्च किया गया है। अन्त में आय में से व्यय निकालकर कुल बचत हुई या नहीं, यह देखते हैं। यदि व्यय अधिक है तो इसे किस प्रकार पूरा किया जा सकता है, यह देखते हैं। बजट बनाते समय आय का विभाजन इस प्रकार करना चाहिए जिससे आवश्यकताओं की पूर्ति करने के बाद कुछ धन भावी आवश्यकताओं के लिए भी बच जाए।

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प्रश्न 9.
गृहिणी मितव्ययिता कैसे कर सकती है?
उत्तर :
घर में मितव्ययिता के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं –

  1. अति आवश्यक वस्तुओं को ही खरीदना चाहिए।
  2. खरीददारी सदैव नगद करनी चाहिए, उधार कभी नहीं लेना चाहिए।
  3. सामान सदैव विश्वास की व अच्छी दुकानों से ही खरीदना चाहिए।
  4. पौष्टिक गुणों वाले सस्ते खाद्य-पदार्थ ही प्रयोग में लाने चाहिएं।
  5. फसल के समय अधिक सामग्री (जैसे-गेहूँ, चावल) खरीदकर उसे विधिपूर्वक सुरक्षित रखना चाहिए। फल व सब्जियों का संरक्षण करना चाहिए।
  6. प्रतिकूल मौसम में सस्ता सामान (जैसे-गर्मी में ऊन) खरीदना चाहिए।
  7. जल, ईंधन तथा बिजली का सावधानी से प्रयोग करना चाहिए। बेकार में इन्हें बरबाद नहीं करना चाहिए।
  8. घर की वस्तुओं की नियमपूर्वक देखभाल, सफ़ाई तथा मरम्मत करते रहना चाहिए।
  9. बच्चों के लिए ट्यूटर रखने के बजाय उन्हें परिवार के सदस्यों द्वारा खुद पढ़ाया जाना चाहिए।
  10. घर के कामों में भी सदस्यों को हाथ बँटाना चाहिए और नौकर कम-से-कम रखने चाहिए।

प्रश्न 10.
भारत में पारिवारिक बजट बनाने में क्या कठिनाइयाँ सामने आती हैं ?
उत्तर :
भारत में पारिवारिक बजट बनाने में निम्न कठिनाइयाँ सामने आती हैं
1. गृहिणियों में शिक्षा का अभाव – भारत में अधिकांश गृहिणियाँ या तो अशिक्षित हैं या बहुत कम पढ़ी-लिखी हैं। इस कारण उन्हें बजट बनाने का ज्ञान नहीं है।
2. बजट बनाने का आलस्य – बहुत-सी गृहिणियाँ बजट बनाने को एक अतिरिक्त कार्य समझती हैं। इस प्रकार आलस्य बजट बनाने में एक कठिनाई है।
3. गृहिणियों में व्याप्त अन्धविश्वास – भारत की अधिकांश गृहिणियाँ अन्धविश्वासों तथा कुप्रथाओं को मान्यता देती हैं, इस कारण वे परिवार की आय और व्यय की बातों को खुलकर नहीं कह पाती हैं।
4. उचित सम्पर्क का अभाव – सरकारी कर्मचारियों और साधारण जनता का सीधा सम्पर्क न होने के कारण जनता बजट बनाने की ओर विशेष ध्यान नहीं देती है।

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प्रश्न 11.
परिवार के लिए खरीदी जाने वाली वस्तुओं को कितनी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है?
अथवा
क्रय के कितने स्वरूप हैं?
उत्तर :
परिवार के लिए क्रय की जाने वाली वस्तुओं के चार स्वरूप हैं जो अग्रलिखित –
1. दैनिक क्रय – दैनिक क्रय में वे सभी वस्तुएँ आती हैं जिन्हें हम इकट्ठा खरीदकर नहीं रख सकते। उन्हें प्रतिदिन ही खरीदना चाहिए, जैसे-दूध, दही, पनीर, मक्खन, फल, सब्जी, अण्डे आदि। बहुधा ये वस्तुएं नियमित रूप से एक-दो बेचने वालों से ही खरीदी जाती हैं। इनमें से बहुत से बेचने वाले घर पर ही सामान दे जाते हैं। फल तथा ये सभी वस्तुएं मिश्रित दुकानों से खरीदनी चाहिए क्योंकि अनेक दुकानों से खरीदने पर वस्तुएँ अच्छी मिलती हैं।

2. मासिक उपयोग का सामान या आवधिक क्रय – पूरे माह के लिए सामान खरीद लिया जाता है। इसमें वे सभी वस्तुएँ खरीद ली जाती हैं जिनके खराब होने की सम्भावना नहीं रहती है और जिन्हें बार-बार खरीदे जाने से समय, धन, श्रम अधिक लगता है, जैसे अनाज, दालें, गुड़, साबुन आदि। कपड़े भी साल में दो-तीन बार इकट्ठे ही क्रय करके बनवा लिये जाते हैं। इस क्रय का बजट में स्थान होता है। इन वस्तुओं को भी निश्चित और हमेशा एक दुकान से नहीं खरीदना चाहिए।

3. आकस्मिक क्रय – इसके अन्तर्गत वे सभी वस्तएँ आती हैं जो कि आकस्मिक स्थिति में खरीदी जाती हैं, जैसे-अचानक बीमार पड़ने पर दवाइयाँ, इन्जेकशन, किसी के यहाँ से शादी का निमन्त्रण आने पर उपहार, भेंट आदि आकस्मिक रूप से खरीदी जाती हैं।

4. कदाचित् क्रय – इसके अन्तर्गत वे वस्तुएँ आती हैं जो कि कभी-कभी खरीदी जाती हैं। कई परिवार तो उन्हें जीवन में एक ही बार खरीद सकते हैं, जैसे-मकान, जमीन, मोटर-कार, फ्रिज, आभूषण। इनका खरीदा जाना बचत पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 12.
डाकघर बचत बैंक में खाता खोलने की विधि बताइये।
उत्तर :
खाता खोलने के लिए अपनी सुविधानुसार निकटतम डाकघर में जाकर निर्धारित फार्म भरकर तथा धनराशि (जो जमा करनी हो या कम-से-कम पाँच रुपये) देकर खाता खुलवाया जा सकता है। डाकघर का अधिकारी उस व्यक्ति के नाम पास बुक बना देता है तथा जमा की गई राशी को पास बुक में चढ़ाकर मोहर लगा देता है। अब इस पास बुक की सहायता से कभी भी रुपये जमा कराये जा सकते हैं। एक व्यक्ति द्वारा खोले गये खाते में अधिक-से-अधिक ₹ 25,000 तथा दो व्यक्तियों के संयुक्त खाते में अधिक-से-अधिक ₹ 50,000 जमा हो सकते हैं। पास बुक खो जाने पर खातेदान प्रार्थना-पत्र निर्धारित शुल्क देकर नई पास-बुक बनवा सकता है।

प्रश्न 13.
भविष्य निधि (प्रॉवीडेन्ट फण्ड) क्या होती है? यह कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर :
भविष्य निधि नौकरी करने वाले की अनिवार्य बचत योजना होती है। इस योजना के अन्तर्गत प्रति माह वेतन से निश्चित धनराशि काटकर जमा कर ली जाती है। यह दो प्रकार की होती है –
1. अनिवार्य भविष्य निधि योजना (Compulsory Provident Fund) यह योजना गैर-सरकारी, अर्द्ध-सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, फैक्ट्रियों, फर्मों, कारखानों के कर्मचारियों पर लागू होती है। इसमें संस्था प्रत्येक कर्मचारी के वेतन से निश्चित हिसाब से पैसा काटकर भावी खाते में जमा कर देती है। कार्यरत रहने पर की गई जमा राशि का सेवा-निवृत्ति के बाद भुगतान कर दिया जाता है। यदि सेवक की। जाती है, तो उसके वारिसों को उक्त धनराशि दी जाती है। यदि उच्च शिक्षा, लम्बी बीमारी, आवास-गृह हेतु धन की आवश्यकता होती है तो उसे आंशिक भुगतान लेकर प्राप्त किया जा सकता है।

2. सामान्य भविष्य निधि योजना (General Provident Fund) यह योजना सरकारी कर्मचारियों पर लागू होती है। इसमें वेतन से निश्चित धन प्रति मास काटकर शासकीय कोष में जमा कर दिया जाता है। यदि कोई व्यक्ति अधिक राशि जमा करवाना चाहता है तो उसकी स्वेच्छा से अधिक काट लिया जाता है। शासकीय कर्मचारी की सेवा मुक्ति के बाद जमा राशि ब्याज सहित उसे वापस लौटा दी जाती है। यदि कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके द्वारा उल्लेख किए गए वारिस को भुगतान कर दिया जाता है।

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प्रश्न 14.
परिवार की आय से आप क्या समझते हो? आय कितनी तरह की हो सकती है?
अथवा
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है ? प्रत्येक का 2-2 पंक्तियों में वर्णन करें।
उत्तर :
परिवार की आय को दो भागों में विभाजित किया जाता है-प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष ।
प्रत्यक्ष आय – जो आय पैसे के रूप में घर आती है, उसको प्रत्यक्ष आय कहा जाता है। यह किसी दुकान से रोजाना की बचत, महीने का वेतन, छिमाही फसलों की कमाई या फैक्टरियों वालों का मुनाफ़ा आदि के रूप में हो सकती है। इसके अतिरिक्त अपने मकान का किराया, ज़मीन का वार्षिक ठेका (आय), बैंक का ब्याज आदि को भी प्रत्यक्ष आय कहा जाता है।

अप्रत्यक्ष आय – यह आय उन सुविधाओं के कारण होती है जो किसी भी नौकरी करने वाले को मिली हों और उनके न मिलने से घर वालों को आय में से खर्च करना पड़े जैसे कि सरकारी घर, मुफ्त दवाइयां या डॉक्टरी सहायता, बिना फ़ीस से बच्चों की पढ़ाई पर, सरकारी कार आदि।

प्रश्न 14. (A)
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 14 का उत्तर।

प्रश्न 15.
खर्च से आप क्या समझते हो? खर्च को कौन-कौन से भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर :
खर्च परिवार की आय और उसकी आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। कुछ खर्च ऐसे होते हैं जो परिवार को चाहे आय आधिक हो या कम करने ही पड़ते हैं पर कुछ खर्चे ऐसे होते हैं जिनको आय बढ़ने या घटने से बढ़ाये या घटाये जा सकते हैं जैसे मनोरंजन और हार-श्रृंगार का खर्चा । खर्च को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. निश्चित खर्च-जैसे मकान का किराया, बिजली का बिल, स्कूल की फीस आदि वे खर्च हैं जो निश्चित होते हैं।
2. अर्द्ध-निश्चित खर्च-ये वे खर्च हैं जो आवश्यक होते हैं परन्तु इनमें परिवर्तन किया जा सकता है जैसे मकान का रख-रखाव, कपड़े और खाने पीने आदि का खर्च।
3. अतिरिक्त खर्च-ये वे खर्च हैं जो आय बढ़ने से बढ़ाए और घटने से घटाए या बन्द किए जा सकते हैं जैसे मनोरंजन और हार भंगार पर खर्च आदि।

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प्रश्न 15. (A)
निर्धारित व्यय व अर्धनिर्धारित व्यय में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 15 का उत्तर।

प्रश्न 16.
घर के खर्चों को तुम कौन-कौन से मदों में बांटोगे?
उत्तर :
घर में कई प्रकार की वस्तुओं पर खर्च किया जाता है। घर के खर्च को मुख्य रूप में दो सूचियों में विभाजित किया जा सकता है
1. आवश्यक सूची-इस सूची में घर, भोजन, कपड़े, दवाई, बच्चों की पढ़ाई पर खर्चा आदि शामिल हैं। यह खर्चा प्रत्येक स्थिति में करना ही पड़ता है जिससे परिवार के आवश्यक खर्चे पूरे हो सकें।

2. कम आवश्यक सूची-इस सूची में मनोरंजन, हार-शृंगार, सैर-सपाटा, सामाजिक और धार्मिक समागमों के खर्चे शामिल होते हैं। ये खर्चे ऐसे होते हैं जिनको कुछ समय के लिए टाला भी जा सकता है और पैसा न होने की सूरत में ये खर्चे बन्द भी किए जा सकते हैं।

प्रश्न 17.
बचत क्यों और कैसे की जा सकती है?
उत्तर :
परिवार की आय में से खर्च के पश्चात् जो बचता है उसको बचत कहा जाता है। प्रत्येक मनुष्य को अपनी आय का कुछ प्रतिशत भाग अवश्य बचाना चाहिए। निम्नलिखित कारणों से बचत करनी आवश्यक होती है
1. अचानक बीमारी – कई बार घर का कोई सदस्य अचानक किसी गम्भीर बीमारी का शिकार हो सकता है और उसका इलाज कराने के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता पड़ती है और ऐसी स्थिति में बचत काम आती है।

2. परिवार पालक की मृत्यु – कई बार किसी दुर्घटना या बीमारी कारण पारिवारिक मुखिया की अचानक मृत्यु हो सकती है जिससे परिवार की आय बन्द या कम हो सकती है। ऐसी स्थिति में बचत काम आती है।

3. अचानक घाटा – व्यापार करने वाले लोगों को कई बार व्यापार में बहुत अधिक घाटा पड़ जाता है और उनके पास आय का साधन नहीं रहता। ऐसी स्थिति में बचत ही काम आती है।

4. भविष्य की आवश्यकताएं – प्रत्येक परिवार की अपनी भविष्य की आवश्यकताएं होती हैं जैसे बच्चों की उच्च शिक्षा, विवाह शादियों और मकान बनाने आदि के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। इन कामों के लिए बचाया हुआ धन प्रयोग किया जाता है।

5. सुरक्षित बुढ़ापे के लिए – बुढ़ापा एक कुदरती अवस्था है। इस अवस्था में मनुष्य कमाई करने के योग्य नहीं रहता, इसलिए इस समय उसको अपने खर्चे भोजन, कपड़े, आवास और दवाइयों के लिए धन की आवश्यकता होती है जोकि की गई बचत में से ही पूरी की जा सकती है।

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प्रश्न 18.
खर्च पर कौन-कौन से तत्त्व प्रभाव डालते हैं?
अथवा
व्यय को प्रभावित करने वाले तत्त्व लिखें।
उत्तर :
पारिवारिक आवश्यकताएं, मनोरंजन और अन्य सामाजिक और धार्मिक कार्यों पर प्रयोग की गई धन राशि को खर्च कहा जाता है। प्रत्येक परिवार के खर्चे भिन्न-भिन्न होते हैं। खर्च पर निम्नलिखित तत्त्व प्रभाव डालते हैं –
1. पारिवारिक सदस्यों की संख्या-यदि परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक है तो खर्च भी अधिक होगा इसके अतिरिक्त सदस्यों की आयु और स्वास्थ्य से भी खर्च का सम्बन्ध है।

2. परिवार का सामाजिक स्तर-समाज में परिवार का क्या स्तर है इससे भी परिवार के खर्च पर प्रभाव पड़ता है। समाज में ऊँचा स्तर रखने वाले परिवारों को सामाजिक और धार्मिक कार्यों में अधिक योगदान देना पड़ता है।

3. व्यवसाय – व्यक्ति का व्यवसाय भी उनके खर्च को प्रभावित करता है जैसे राजनीतिज्ञ और व्यापार करने वाले लोगों को अपने व्यवसाय की सफलता के लिए क्लबों, मनोरंजन, महत्त्वपूर्ण लोगों की खातिरदारी पर खर्च करना पड़ता है।
इन तत्त्वों के अतिरिक्त व्यक्ति का स्वभाव, आदतें, दोस्ती का घेरा और मानसिक स्तर भी उसके खर्च को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 19.
प्रतिदिन का हिसाब लिखना क्यों ज़रूरी है और कैसे रखा जाता है?
अथवा
प्रतिदिन का हिसाब-किताब रखना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर :
रोज़ाना हिसाब रखना सीमित आय वालों के लिए अति आवश्यक है, क्योंकि रोजाना हिसाब रखने से गृहिणी को यह पता चलता रहता है कि क्या खर्च बजट के अनुसार हो रहा है। यदि खर्चा बढ़ जाए तो गृहिणी को उसी दिन मालूम हो जाता है और दूसरे दिन वह जहां हो सके खर्चा कम कर के बजट को संतुलित कर सकती है। रोज़ाना हिसाब लिखने से गृहिणी परिवार के अन्य सदस्यों को साथ-साथ खर्चे के बारे में सावधान करती रहती है जिससे परिवार के दूसरे सदस्य भी फिजूलखर्ची नहीं करते।

हिसाब रखना-हर रोज़ का हिसाब रखने के लिए एक कापी या डायरी का प्रयोग किया जा सकता है। प्रतिदिन का हिसाब रखने के लिए हर रोज़ एक सफे (पेज) का प्रयोग करना चाहिए। पेज पर तारीख डाल कर चीज़ का ब्योरा अच्छी तरह देकर उसका रेट और कुल रकम लिखनी चाहिए। अगर किसी को सेवा फल के तौर पर कोई रकम दी जाए तो वह भी लिख लेनी चाहिए। महीने के अन्त में हर मद पर हुए खर्चे को अलग-अलग कर लेना चाहिए ताकि पता चल जाए कि किसी मद पर फजूल खर्च तो नहीं हुआ।

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प्रश्न 20.
खर्च की कौन-सी मदों से उच्च आय वालों का प्रतिशत खर्च कम आय वालों से अधिक होता है?
उत्तर :
खर्चे की मदें अमीर और ग़रीब दोनों की एक ही हैं परन्तु उच्च आय वर्ग, कम आय वालों से कई मदों पर अधिक खर्च करते हैं। जैसे भोजन, कपड़े, मनोरंजन और घर चलाना। भोजन में उच्च आय वर्ग महंगे भोजन पदार्थों का प्रयोग करते हैं और इसके साथ साथ उनका बाहर भोजन करने का खर्च अधिक होता है।

इस तरह कपड़ों और जूतों पर भी इस वर्ग का खर्च अधिक होता है। अमीर या उच्च आय वर्ग के लोग महंगे और संख्या में अधिक कपड़े बनाते हैं। इसके साथ ही जूते भी कपड़ों से मिलते या मेल खाते खरीदते हैं इसलिए इस तरह उनका कपड़ों के ऊपर कुल खर्चा अधिक हो जाता है। इसके अतिरिक्त उच्च आय वर्ग के लोग कम आय वालों से मनोरंजन पर अधिक खर्च करते हैं। वह सैर-सपाटे, फिल्मों, हार-शृंगार, सिगरेट, शराब आदि के खर्चे बढ़ा लेते हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिक और धार्मिक कामों पर भी अधिक खर्च करते हैं। इसके साथ-साथ उनके नौकरों, पेट्रोल और टेलीफोनों के खर्चे भी बढ़ जाते हैं।

प्रश्न 21.
धन निवेश करने की किसी एक योजना के बारे में लिखें।
उत्तर :
देखें दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 8 का उत्तर।

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प्रश्न 22.
पारिवारिक व्यय का ब्योरा रखने के कोई दो लाभ बताएं।
उत्तर :
1. व्यय का ब्योरा रखने से मितव्ययिता आती है।
2. हिसाब रखने से बचत करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 23.
कोई दो ऐसे तथ्य बतायें जो निवेश संस्था चुनने से पूर्व आप ध्यान में रखेंगे ?
उत्तर :
1. आयकर से छुटकारा-हमें वहां धन लगाना चाहिए जहां पर आयकर से छूट मिलती हो। विभिन्न बचत योजनाओं में आयकर छूट का प्रतिशत भिन्न-भिन्न होता है। अधिक प्रतिशत छूट वाला विकल्प उत्तम रहेगा।
2. आसान उपलब्धि-जैसे ही धन वापसी का समय आये तो धन वापसी आसान होनी चाहिए।

प्रश्न 24.
व्यय को प्रभावित करने वाले चार कारक बताएँ।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आय का मुख्य साधन है-‘काम के बाद प्राप्त होने वाला धन’। लेकिन इसके अतिरिक्त परिवार को अन्य स्रोतों से भी धन प्राप्त हो सकता है।
पारिवारिक आय को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. मौद्रिक आय (Money Income)
  2. वास्तविक आय (Real Income) प्रत्यक्ष आय
  3. आत्मिक आय (Psychic Income) अप्रत्यक्ष आय

मौद्रिक आय, ‘प्रत्यक्ष’ व ‘अप्रत्यक्ष’ दोनों तरह की वास्तविक आय तथा उनके उपभोग से प्राप्त मनोवैज्ञानिक सन्तुष्टि के योग को कुल आय (Total Income) कहते हैं।

1. मौद्रिक आय (Money Income) परिवार के सभी सदस्यों को किसी भी प्रकार से मुद्रा के रूप में प्राप्त हुई आय को मौद्रिक आय कहते हैं। इसके अन्तर्गत परिवार के सभी सदस्यों को सभी साधनों से प्राप्त वेतन, व्यापार, उद्योग-धन्धों से प्राप्त धन, मकान से प्राप्त किराया, बचत किए हुए धन से प्राप्त ब्याज या और किसी भी रूप में हुए लाभ आते हैं। इस प्रकार से प्राप्त धन परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किसी भी समय प्रयोग में लाया जा सकता है।

2. वास्तविक आय (Real Income) किसी भी समय पर मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए उपलब्ध वस्तुएँ तथा सुख-सुविधाओं को वास्तविक आय कहा जा सकता है। यह आय समयानुसार परिवर्तनशील होती है। इसमें परिवार के किसी भी सदस्य को अपने कार्य-स्थल से धन के अतिरिक्त प्राप्त होने वाली वस्तुएँ तथा सुविधाएँ भी सम्मिलित होती हैं और इस प्रकार यह एक नियत समय के लिए निर्धारित होती है।

यह आय दो प्रकार की होती है –
(i) वास्तविक प्रत्यक्ष आय (Real Direct Income)
(ii) वास्तविक अप्रत्यक्ष आय (Real Indirect Income)

(i) वास्तविक प्रत्यक्ष आय – परिवार को वास्तविक प्रत्यक्ष रूप से होने वाली आय मुख्यतः वस्तुओं एवं सुविधाओं के रूप में ही प्राप्त होती है उदाहरणतः कई बार कार्य-स्थल से वेतन के अलावा कुछ ओर सुविधाएँ, जैसे कि रहने के लिए घर, कार, औषधि खर्चा, टेलीफोन का खर्चा, आने-जाने का खर्चा, यूनीफार्म (Uniform), नौकर आदि भी मिलते हैं और इस प्रकार यह परिवार के लिए प्रत्यक्ष आय का ही एक साधन है। इसी प्रकार गाँवों में किसानों की भूमि में खेती करने पर उनकी मेहनत के बदले उन्हें नगद पैसे के स्थान पर अधिकतर भूमि में हुई उपज में से एक हिस्सा दे दिया जाता है। यह भी परिवार के लिए प्रत्यक्ष आय ही है।

(ii) वास्तविक अप्रत्यक्ष आय-इस प्रकार की आय मुख्यतः परिवार के सदस्यों के ज्ञान व निपुणता के फलस्वरूप प्राप्त होती है उदाहरणार्थ परिवार को किसी सदस्य के बिजली व उपकरण ठीक करने के काम जानने से घर में बिजली या फिर कोई उपकरण बिगड़ जाने पर उसे ठीक करने के लिए बाहर से किसी व्यक्ति को बुलवाने पर होने वाले धन को बचाया जा सकता है। अन्य उदाहरणों में घर में बागबानी करके कुछ फल व सब्जियाँ आदि उगाकर तथा घर में ही कपड़े आदि सिलकर दर्जी को दी जाने वाली सिलाई से बचत की जा सकती है।

घर में इसी प्रकार से यदि गृहिणी अन्य कार्य, जैसे-घरेलू उपयोग के लिए फल-सब्जियों का संरक्षण करना, घर में कपड़े धोना आदि स्वयं करे तो वह परिवार के लिए एक प्रकार से अप्रत्यक्ष रूप से आय अर्जित कर रही है। इस प्रकार संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि वास्तविक आय वह आय होती है जो परिवार को सुविधाओं के रूप में प्राप्त होती है और जिनके प्राप्त न होने पर परिवार को अपनी मौद्रिक आय में से खर्च करना पड़ता है।

3. आत्मिक आय (Psychic Income) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त मौद्रिक तथा वास्तविक आय के व्यय से प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि आत्मिक आय कहलाती है, हालांकि इस प्रकार की आय का कोई भी मापदण्ड नहीं है क्योंकि किसी भी आय के व्यय से किसी मनुष्य को कितनी सन्तुष्टि होती है, इसका माप लगाना अति कठिन है। यही नहीं, हर मनुष्य या परिवार को एक निश्चित मात्रा में किए गए व्यय से प्राप्त सन्तुष्टि भिन्न-भिन्न होती है परन्तु फिर भी आत्मिक आय में वृद्धि के लिए धन-प्रबन्ध का समुचित उपयोग बहुत ही आवश्यक है।

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प्रश्न 1. (A)
मौद्रिक आय से आप क्या समझते हैं ?
(B) मौद्रिक आय के चार उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 2.
पारिवारिक आय की सम्पूर्ति करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है ? आय की सम्पूर्ति करने के विभिन्न तरीकों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर :
परिवार चाहे किसी भी आय वर्ग का हो, उसे धन को समझदारी से प्रयोग करना चाहिए। हमारी दिन प्रतिदिन की अनगिनत आवश्यकताएँ होती हैं और उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आय के साधन सीमित होते हैं। इस कारण केवल पारिवारिक आय तथा व्यय में सन्तुलन लाना बहुत कठिन हो जाता है, अपितु बचत की तो गुंजाइश ही नहीं रह जाती। इन सबके अतिरिक्त परिवार की आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करना भी बहुत ही आवश्यक हो जाता है जिसके लिए पारिवारिक आय की सम्पूर्ति की आवश्यकता पड़ती है। पारिवारिक आय की सम्पूर्ति निम्नलिखित तरीकों द्वारा की जा सकती है –

1. गृह-उद्योगों द्वारा (Through Household Production) – गृहिणी घर में कुछ साधारण उद्योगों द्वारा धन में वृद्धि कर सकती है। उदाहरणार्थ अगर गृहिणी सिलाई कढ़ाई में निपुण हो तो उसे चाहिए कि वह घर के सभी कार्यों को सम्पन्न कर कुछ खाली समय अवश्य निकाल ले। इस समय का सदुपयोग वह कपड़ों की सिलाई करके और उन कपड़ों को बेचकर, कुछ धन बचाकर आय की सम्पूर्ति अवश्य कर सकती है। इसी प्रकार मौसम में फल तथा सब्जियों का संरक्षण करके बाज़ार में बेचना, पापड़-बड़ियाँ आदि बनाकर बेचना भी कुछ अन्य उदाहरण हैं। न केवल गृहिणी ही, वरन् घर का कोई भी सदस्य अपनी कुशलता, निपुणता तथा क्षमता का सही उपयोग करके पारिवारिक आय की सम्पूर्ति करने में सहायक हो सकता है।

2. पार्ट-टाइम नौकरी द्वारा (Through Part-Time Jobs) – गृहिणी या घर का कोई भी अन्य सदस्य कोई पार्ट-टाइम नौकरी कर ले तो परिवार की आय में वृद्धि की जा सकती है और आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। अत: गृहिणी को चाहिए कि गृह-संचालन में समय की उचित व्यवस्था करके कुछ समय बचाकर पार्ट-टाइम नौकरी करे जिससे कि परिवार का जीवन-स्तर ऊँचा उठाया जा सके।

3. परिवार की वास्तविक आय में बढ़ोत्तरी करना (Increase in the Real Income of the Family) परिवार की मौद्रिक आय के साथ-साथ वास्तविक आय में भी वृद्धि की जा सकती है। घर के आगे या पीछे पड़े खाली स्थान पर गृह-वाटिका बनाई जा सकती है, जिसमें विभिन्न प्रकार के फल तथा सब्जियाँ उगाई जा सकती हैं। इस प्रकार फल व सब्जियों पर व्यय होने वाले धन को बचाकर उसका उपयोग अन्य आवश्यक कार्यों के लिए किया जा सकता है।

उपरोक्त के अलावा पारिवारिक आय त में निम्नलिखित बातें भी सहायक होती हैं –

  1. समय का उचित विभाजन – गृह कार्यों का परिवार के सदस्यों में उचित विभाजन कर गृहिणी निर्धारित समय में गृह कार्य समाप्त कर बाहर भी कार्य कर सकती है या गृह उद्योग से आय को बढ़ा सकती है।
  2. श्रम एवं समय की बचत के साधनों का प्रयोग – इन साधनों द्वारा समय की बचत होती है जिसे अन्य गृह व्यवसाय में लगाकर धन उपार्जन किया जा सकता है।
  3. खाद्य – पदार्थों का संरक्षण एवं संग्रहीकरण-मौसम के अनुसार खाद्य-पदार्थों का संरक्षण तथा संग्रहीकरण कर व्यय में मितव्ययिता की जा सकती है जैसे – मौसम में अनाज सस्ते होते हैं, मौसमी फलों तथा सब्जियों को सॉस, चटनी, जैम, अचार, मुरब्बों आदि के रूप में संरक्षित करना।
  4. धन का मितव्यय-विवेकपूर्ण व्यय से बचत होती है।
  5. बचत किए हुए धन का उचित विनियोग-बचत के उचित विनियोग से धन में वृद्धि होती है। ब्याज के रूप में अतिरिक्त आय की वृद्धि होती है। अतः बचत का उचित विनियोग भी आवश्यक है। ब्याज से आय की कमी की पूर्ति होती है।

इस प्रकार उपरोक्त तरीकों से अर्जित सम्पूर्ण आय से परिवार की आवश्यकताओं को किसी सीमा तक पूरा किया जा सकता है, परन्तु साथ ही यह भी ज़रूरी है कि गृहिणी अपनी पारिवारिक आय का योजनापूर्वक उपयोग करे। अधिकतर गृहिणियाँ बिना योजना के ही धन का व्यय करती रहती है, जिसके कारण महीने के अन्त में कई महत्त्वपूर्ण कार्य अधूरे ही रह जाते हैं और परिवार के सभी लक्ष्यों की पूर्ति होना सम्भव नहीं हो पाता है। गृहिणी को चाहिए कि बचत का बजट बनाए जिससे पारिवारिक आय का कुछ अंश आकस्मिक आवश्यकताओं के लिए बचत के रूप में संग्रहित हो सके।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पारिवारिक आय तथा व्यय में सन्तुलन लाने के लिए आय की सम्पूर्ति करना परिवार के लिए सहायक है। अत: किसी भी परिवार को सुखमय बनाने के लिए पारिवारिक आय का सही उपयोग तथा आवश्यकता पड़ने पर पारिवारिक आय को विभिन्न तरीकों से बढ़ाना भी अत्यन्त आवश्यक होता है।

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प्रश्न 2.A.
आय की सम्पूर्ति के तरीके बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 3.
परिवार का हिसाब रखने के क्या लाभ होते हैं ?
अथवा
परिवार में आय-व्यय का विवरण रखना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
परिवार की अर्थ – व्यवस्था को ठीक बनाए रखने के लिए परिवार की आय तथा विभिन्न उद्देश्यों को ध्यान में रखकर बजट बना लेना ही पर्याप्त नहीं होता है, बल्कि विभिन्न मदों पर खर्च किए जाने वाले पैसे का हिसाब-किताब रखना भी बहुत ज़रूरी होता है। घर में इतने प्रकार के खर्चे होते हैं, ‘सभी को याद रखना सम्भव नहीं होता और मानसिक बोझ लदा रहता है। बाजार का हिसाब-किताब रखने के लिए अलग से कापी होनी चाहिए। कापी के ऊपर के पृष्ठ पर ‘बाज़ार का हिसाब’ लिखना चाहिए। प्रत्येक वस्तु का मूल्य अलग-अलग लिखकर उससे प्रतिदिन के खर्च का जोड़ रात को लिख लिया जाए।

कई दिन का हिसाब यदि एक साथ लिखा जाता है तो इसमें भूलने का भय रहता है। हिसाब लिखते समय पृष्ठ के ऊपर तिथि एवं दिन अवश्य लिखना चाहिए। प्रत्येक कापी के पृष्ठ पर केवल एक दिन का हिसाब लिखने से देखने में आसानी होती है। हिसाब की कापी भी एक निर्धारित स्थान पर ही रखनी चाहिए। इससे कापी ढूँढ़ने में व्यर्थ में समय नष्ट नहीं होता और ढूँढने में कठिनाई भी नहीं होती। महीने के शुरू में ही गृह-स्वामिनी को खर्च का ब्योरा बना लेने से सुविधा रहती है तथा व्यर्थ की मदों पर फ़िजूल खर्च का भी भय नहीं रहता।

परिवार में आय-व्यय के विवरण रखने से निम्नलिखित लाभ होते हैं –

1. विभिन्न मदों के लिए निश्चित की गई धनराशि की उपयुक्तता का पता चलता है। यदि धनराशि कम पड़ जाती है तो इस बात का ध्यान रखा जा सकता है कि अगली बार बजट बनाते समय उस मद के लिए अधिक धनराशि नियत की जा सके। इसके विपरीत यदि निर्धारित धनराशि अधिक हो तो उससे सही करने में सहायता मिलती है।
2. कई पदार्थ, जैसे-अखबार, दूध आदि का मूल्य नकद नहीं चुकाया जाता है और महीने के अन्त में ही रकम का भुगतान किया जाता है। यदि नियमित रूप से दैनिक हिसाब लिखा हुआ हो तो भुगतान करने में परेशानी नहीं होती।
3. परिवार के विभिन्न सदस्यों की इच्छाओं-आकांक्षाओं का पता चल जाता है।
4. नई गृहस्थी की पारिवारिक आवश्यकताओं का ज्ञान हो जाता है।
5. आकस्मिक खर्चों का अनुमान लगाना सरल हो जाता है।
6. महीने के प्रारम्भिक दिनों में हाथ में अधिक पैसा होने से अधिक खर्चा हो जाता है। यदि दैनिक हिसाब लिखा हो तो आगामी दिनों में व्यय को सीमित करके सन्तुलित किया जा सकता है।
7. महीने भर बाजार से उधार सामान लेते रहने वाले परिवार में तो हिसाब-किताब लिखना और भी आवश्यक हो जाता है, जिससे दुकानदार किसी प्रकार की हेराफेरी न कर सके।
8. खर्चे का हिसाब-किताब रखने से मितव्ययिता आती है।
9. हिसाब रखने से गृहिणी को बचत करने की प्रेरणा मिलती है।
10. हिसाब रखने से नौकर की चोरी की आदत को बढ़ावा नहीं मिलता।

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प्रश्न 4.
घरेलू हिसाब-किताब की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर :
परिवार में हिसाब-किताब की कुछ विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. पारिवारिक वित्त योजना – इसे बजट विधि भी कहते हैं। इस विधि के अन्तर्गत परिवार की सारी आय को एकत्रित करके बजट के अनुसार विभिन्न मदों में बाँट देते हैं। पूरा पैसा गहस्वामी या गृहिणी दोनों में से किसी के हाथ में होता है, या दोनों मिलकर खर्चा करते हैं।

2. आबंटन विधि – इस विधि में यह तय कर लिया जाता है कि आय का कितना भाग पारिवारिक खर्च के लिए है और वह गृहिणी को दे दिया जाता है। शेष अंश गृहस्वामी मकान के किराये तथा वैयक्तिक खर्चे के लिए अपने पास रख लेता है।

3. बराबर वेतन विधि – इस विधि में परिवार की आय में से परिवार के सभी प्रकार के खर्चों के लिए अपेक्षित धनराशि निकाल ली जाती है। शेष धन को पति-पत्नी वैयक्तिक खर्चे के लिए बराबर बाँट लेते हैं।

4. आय-व्यय की बराबर बाँट विधि-इस विधि के अन्तर्गत पूरी आय तथा खर्चों को दो बराबर-बराबर भागों में बाँट लिया जाता है। आय और व्यय का एक भाग पत्नी के तथा दूसरा भाग पति के हिस्से रहता है। जिन घरों में पति व पत्नी दोनों कमाते हैं, वहाँ इस पद्धति का प्रचलन अधिक है।

5. वितरण विधि – इस विधि में पूरी आय सामान्यतः गृहस्वामी के हाथ में रहती है और सभी उसी से अपनी आवश्यकतानुसार पैसा माँगते हैं।

6. अलग – अलग लिफाफों में पैसे रखना-खर्च के हिसाब-किताब की एक सरल विधि यह है कि बजट में जिस-जिस मद के लिए जितनी धनराशि निश्चित की गई है उसे अलग-अलग लिफाफों में डालकर लिफाफे पर मद का नाम लिख लिया जाता है। जिस समय जो खर्च करना होता है, उस समय उसी लिफाफे में से पैसे निकालकर खर्च कर लिया जाता है। इस विधि से महीने के अन्त में यह तो पता आसानी से चल जाता है कि किस मद में कितना खर्च हुआ है, परन्तु मद का पूरा हिसाब नहीं रखा जा सकता है।

7. अलग – अलग कार्ड बनाना-खर्चे का हिसाब-किताब रखने की यह अच्छी विधि है। इस विधि में विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए अलग-अलग कार्ड बना लिए जाते हैं, जैसे-दूध वाले के लिए कार्ड, धोबी के लिए अलग कार्ड, किराने वाले के लिए कार्ड आदि। इस विधि का दोष यह है कि कार्ड के खोने की सम्भावना रहती है और वर्ष भर में इतने कार्ड एकत्रित हो जाते हैं कि वार्षिक खर्च का आसानी से पता नहीं लगता।

8. खर्च की कापी बनाना – इस विधि में एक कापी, डायरी या रजिस्टर में प्रतिदिन विभिन्न मदों पर होने वाले खर्च को लिख लिया जाता है, जिससे प्रतिदिन का कुल व्यय निकल सकता है। दूध, अखबार, धोबी आदि के लिए महीने के शुरू में ही तारीख डालकर लेखा बना लिया जाता है तथा प्रतिदिन की मात्रा और मूल्यों को भर देते हैं। महीने के अन्त में इनका जोड़ निकाल लेते हैं।

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प्रश्न 5.
दूध का हिसाब रखना क्यों आवश्यक है ? इसके क्या नियम हैं ? दूध वाले के हिसाब-किताब का नमूना बनाइये।
उत्तर :
दूध का पैसा प्रतिदिन के हिसाब से भी चुकता किया जाता है, परन्तु इसमें असुविधा होती है। बड़े-बड़े शहरों में जहाँ सरकारी डेरियाँ होती हैं, वहां दूध की मात्रा प्रतिदिन के हिसाब से निर्धारित की जाती है। उपभोक्ता यदि इससे कम व अधिक लेना चाहता है तो नहीं ले सकता, अतः दूध का सीधा हिसाब होने से इसमें हिसाब रखने की आवश्यकता नहीं होती। भारतवर्ष में अधिकतर प्राइवेट डेरियों तथा दुकानों से दूध आता है। दूध ग्वालों द्वारा घरों में लाया जाता है जो कि अधिकतर अनपढ़ होते हैं। दूध का हिसाब रखना गृहिणी के लिए जरूरी हो जाता है। हिसाब न रखने से यह पता नहीं चल सकता कि किस दिन दूध कम या अधिक आया, किस दिन नहीं लिया गया तथा महीने में कुल दूध कितना लिया गया। इससे डेयरी वाला हिसाब में गड़बड़ी कर सकता है। दूध की मात्रा ज्यादा बतलाकर अधिक रुपये ले सकता है।

दूध का हिसाब रखने के नियम –

  1. दूध का हिसाब रखने के लिए अलग कापी हो।
  2. दूध का हिसाब प्रतिदिन लिख लेना चाहिए।
  3. हिसाब की कापी के प्रत्येक पृष्ठ का प्रयोग करें जिससे वह व्यर्थ में नष्ट न हो।
  4. इसके लिए हिसाब-किताब की तालिका अवश्य बनाई जाए।

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प्रश्न 6.
बचत की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर :
बचत की आवश्यकता निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होती है –
1. आपात्कालीन स्थितियों के लिए-भविष्य अनिश्चित होता है तथा परिवार के लिए कई ऐसी स्थितियाँ आ सकती हैं जिनका सामना करने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता पड़ती है
(i) बीमारी-परिवार का कोई भी सदस्य जब किसी गम्भीर रोग से ग्रस्त हो जाता है तो उसकी चिकित्सा के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी संकटकालीन स्थिति में परिवार द्वारा पहले से बचाया हुआ धन ही काम आता है।

(ii) किसी दुर्घटना के कारण असमर्थता-कई बार दुर्घटना से गृहस्वामी अपंग हो जाता है तथा काम करने योग्य नहीं रहता है। ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए बचत किए गए धन की आवश्यकता होती है।

(iii) आय बन्द होना या कम होना-कई कारणों से, जैसे-नौकरी छूटना, व्यापार बन्द होना या व्यापार में घाटा होने से आय बन्द हो जाती है या कम हो जाती है लेकिन अन्य व्यय उतना ही रहता है। ऐसी स्थिति में बचत किया हुआ धन बहुत काम आता है और जब तक दूसरी नौकरी या व्यापार करते हैं तब तक इसी राशि से व्यय को सीमित करके काम चलाया जा सकता है।

(iv) गृहस्वामी का निधन हो जाने पर-मानव जीवन अस्थिर है। गृहस्वामी के निधन के बाद परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति से बचत की गई राशि, जैसे-जीवन बीमा आदि परिवार को आर्थिक संरक्षण प्रदान करती है।

(v) अन्य आकस्मिक दुर्घटनाएँ-घर में आग लग जाने के कारण या चोरी हो जाने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है तथा इस क्षति को बचत किए गए धन द्वारा ही पूरा किया जा सकता है।

2. सुरक्षित भविष्य के लिए नौकरी से अवकाश – प्राप्ति के बाद जो निवृत्त वेतन मिलता है वह परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु काफ़ी नहीं होता है, अतः आर्थिक रूप से सुरक्षित भविष्य के लिए बचत करना बहुत आवश्यक है।

3. पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए – प्रत्येक परिवार के जीवन लक्ष्य होते हैं, जैसे-बच्चों के लिए उच्च शिक्षा आदि। सीमित आय द्वारा इन लक्ष्यों की पूर्ति करना असम्भव-सा है। यदि पहले ही जब बच्चे छोटे हों और परिवार पर आर्थिक दबाव अधिक न हो, आय का कुछ अंश बचाकर उचित रूप से जमा करते जाएँ तो बच्चों के बड़े होने तक उनकी शिक्षा के लिए काफ़ी धन हो जाता है।

4. पारिवारिक जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए – आज के भौतिक गुण में परिवार के जीवन स्तर की मापक कुछ भौतिक वस्तुएँ, जैसे-फ्रिज, रंगीन टी० वी०, कार आदि हैं। सीमित आय में इनको खरीदना तो कठिन है परन्तु बचत करके यदि धन इकट्ठा कर लिया जाए तो यह परिवार को उपलब्ध हो सकती हैं।

5. अन्य आकस्मिक खर्चों के लिए – परिवार के कई आकस्मिक खर्च, जैसे अतिथि आगमन, विवाह आदि के कारण होते हैं। ऐसी स्थिति में बचत की धनराशि ही काम आती है।

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प्रश्न 7.
परिवार द्वारा बचत कौन-कौन से माध्यम से की जाती है ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
बचत किए हुए धन के विनियोग के विभिन्न साधनों के बारे में लिखिए।
उत्तर :
परिवार के द्वारा बचाई गई धनराशि बचत कहलाती है। इसे गृहिणी को ऐसे काम में लगाना चाहिए जिससे कुछ आय भी अर्जित हो तथा धन भी सुरक्षित रहे। बचत विनियोग के विभिन्न साधन हैं। सुरक्षा तथा आय की दृष्टि से प्रमुख साधन अग्रलिखित हैं –

  1. बैंक
  2. बीमा
  3. डाकखाना
  4. राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र
  5. यूनिट ट्रस्ट क्रय करके।

1. बैंक – पहले समय में लोग बैंक में रुपया जमा करवाने से घबराते थे। उन्हें इस बात का डर रहता था कि बैंक फेल हो जाए और रकम न दे तो उनकी रकम डूब जाएगी, परन्तु आजकल ऐसा नहीं होता। आज प्रायः अधिकांश बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो गया है और राष्ट्रीयकृत बैंकों पर भी रिज़र्व बैंक ऑफ़ इण्डिया का पूर्ण नियन्त्रण है। अत: बैंकों में जमा राशि की पूर्ण सुरक्षा रहती है।

बैंक एक ऐसी राष्ट्रीयकृत संस्था है जो मनुष्य की धन सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण में सहयोग देती है। बैंक लोगों के धन को जमा करने का कार्य करती है। आवश्यकता पड़ने पर बैंक लोगों को अनेक कार्यों हेतु उधार रुपया देने की व्यवस्था करती है जिसके लिए ब्याज की दर बहुत कम होती है।

इसके अतिरिक्त बैंक में जमा रुपयों को समय-समय पर निकालने की सुविधा, औद्योगिक व्यवसायों के सम्पादन, कीमती वस्तुओं की सुरक्षा के लिए लॉकर्स की सुविधा, चैक, बिल, हुण्डी, ड्राफ्ट से भुगतान की सुविधा प्राप्त होती है।

2. जीवन बीमा – जीवन बीमा अनिवार्य रूप से बचत का उत्तम माध्यम है। यह व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है। जीवन बीमा एक ऐसा करार या बन्ध-पत्र होता है जिसमें भावी अनिश्चित विपत्तियों या विशेष घटना घटने पर बीमा धारक या उसके उत्तराधिकारी को एक पूर्व निश्चित धनराशि प्रदान की जाती है। इसके लिए उसे प्रति मास निश्चित किस्त देनी पड़ती है। बीमा निगम एक ऐसी संस्था है जो साधन एवं सुरक्षा प्रदान कर जोखिम को समाप्त करती है तथा अनिश्चित वातावरण को निश्चित वातावरण में परिवर्तित करती है।

3. डाकघर बचत बैंक – डाकघर बचत को सुरक्षित रखने तथा उसका पूर्ण लाभ उठाने में सहायक होता है। डाकघर में कम-से-कम राशि 2 रुपये तक जमा की जा सकती है। डाकघर, बैंक की भी भूमिका निभाते हैं। भारतीय सरकार ने डाकघर बचत बैंक की स्थापना इस दृष्टिकोण से की है कि लोग सरलतापूर्वक बचत कर सकें तथा उनमें बचत की आदत बन सके। इसमें दो व्यक्ति मिलकर रुपया जमा कर सकते हैं तथा नाबालिग बच्चों के नाम से भी माता-पिता खाता खोल सकते हैं।

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4. राष्ट्रीय बचत प्रमाण – पत्र-राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र की योजना 10 जून, 1966 से शुरू की गई है। ये बचत प्रमाण-पत्र ₹10, ₹ 100 तथा ₹ 1,000 की कीमत के डाकघर से खरीदे जा सकते हैं। अवधि की समाप्ति पर इस रकम पर ₹ 8 प्रति सैंकड़ा की दर से रुपया जमा करने वाले को वापस लौटा दिया जाता है। ये विभिन्न वर्षीय पत्र होते हैं।

5. यूनिट्स – भारतीय संसद् ने एक अधिनियम 1964 में लागू कर ‘यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया’ की स्थापना की थी। यूनिट एक प्रकार की अंशपूँजी होती है। इसकी कीमत ₹ 10 होती है। इसके द्वारा यूनिट क्रय करके बचत की जाती है। पोस्ट ऑफिस में आवेदन-पत्र देकर यूनिट्स को क्रय किया जा सकता है। यूनिट से मिलने वाले धन को विभिन्न उद्योगों में विनिमय किया जा सकता है। इसका लाभ बैंक या डाकघर से प्राप्त विभिन्न उद्योगों में विनिमय किया जा सकता है। इसका लाभ बैंक या डाकघर से प्राप्त किया जा सकता है।

6. अनिवार्य समय बचत खाता – इसमें एक निश्चित समयावधि के लिए खाते में धन जमा करवाया जाता है। इससे जमाकर्ता को प्रतिवर्ष निर्धारित ब्याज मिलता रहता है। निश्चित अवधि के पश्चात् ही जमाराशि वापस मिलती है। यह जमा खाता अकेले व्यक्ति द्वारा, संयुक्त रूप से, अल्पवयस्क और विक्षिप्त व्यक्ति के अभिभावक द्वारा खोला जा सकता है।

7. उपहार कूपन्स – यह कूपन ₹ 500, ₹ 1,000, ₹ 5,000 तथा ₹ 10,000 के मिलते हैं। कोई भी व्यक्ति उपहार के रूप में इन्हें किसी अल्पवयस्क या वयस्क व्यक्ति को दे सकता है।

8. दस-वर्षीय रक्षा जमा बाण्ड – यह रिज़र्व बैंक तथा स्टेट बैंक की कुछ शाखाओं और शासकीय कोषालय से खरीदे जा सकते हैं। एक वयस्क अधिक-से-अधिक ₹ 35,000 के और दो वयस्क संयुक्त रूप से ₹ 70,000 के बाण्ड खरीद सकते हैं। इनकी क्रय करने की तिथि से एक वर्ष तक भुगतान नहीं होता है तथा इसके पश्चात् नियमानुसार कटौती काटकर इच्छा से राशि वापिस ली जा सकती है।।

9. प्रीमियम इनामी बाण्ड – ये इनामी बाण्ड ₹ 5 से लेकर ₹ 100 तक के होते हैं। इनकी राशि का भुगतान पाँच वर्ष से पहले नहीं हो सकता है। इन पर इनाम की राशि भी प्राप्त होती है। ये रिज़र्व बैंक, स्टेट बैंक की शाखाओं, शासकीय कोषालयों तथा डाकखानों से प्राप्त किए जा सकते हैं।

10. लॉटरी चिट व्यवस्था – इसमें जान-पहचान वाले व्यक्ति मिलकर प्रतिमास निश्चित राशि देकर कुछ धन इकट्ठा करते हैं। इनमें से जिन व्यक्तियों को धन की आवश्यकता होती है वह चिट पर नाम लिखकर डालते हैं। चिट उठाने पर जिसका नाम आता है, उसे ही धन मिल जाता है, लेकिन आगामी सभी किस्तें जमा करवाते रहनी पड़ती है।

11. कम्पनियों में हिस्सा खरीदना – कई कम्पनियाँ अपने शेयर बेचती हैं। ये शेयर खरीदने पर प्रतिवर्ष धनराशि के हिसाब से लाभांश (Dividend) मिलता रहता है।

12. सहकारी संस्थाएँ – कुछ व्यक्ति मिलकर सहकारी संस्थाएं बनाकर व्यापार आदि करते हैं। जो लाभ होता है उसे आपस में लगाई गई धनराशि के हिसाब से बाँट लेते हैं। सहकारी संस्थाओं को पंजीकृत होने के पश्चात् सरकार की ओर से भी कई प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।

नोट – यहां दी गई सभी रुपयों की सीमा अथवा दर सरकार की तथा बैंक या डाकखाने द्वारा तय किए नियमों अनुसार कम या अधिक हो सकती है।

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प्रश्न 7.
(A) बचत किए हुए धन के निवेश के किसी एक साधन के बारे में लिखिए।
(B) बचत करना क्यों आवश्यक है ? बचत के विभिन्न तरीकों के बारे में बताइए।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

प्रश्न 8.
डाकघर में किन-किन तरीकों से बचत की जाती है ?
उत्तर :
1. डाकघर बचत बैंक (Postal Saving Bank Account) डाकघर में भी रुपया जमा करके बचत की जाती है। सरकार ने डाकघर में बचत बैंक का निर्माण इसलिए किया है कि लोग सरलतापूर्वक रुपया जमा कर सकें तथा उनमें बचत की प्रवृत्ति पैदा हो सके। देहाती क्षेत्रों में जहाँ बैंक की शाखाएँ नहीं हैं, परिवारों के लिए यह सुविधा बहत कल्याणकारी है। डाकघर बचत बैंक में कोई भी व्यक्ति स्वयं के नाम पर नाबालिग के नाम पर जिसका संरक्षक है, खाता खोल सकता है। इसमें दो व्यक्ति संयुक्त रूप से भी खाता खोल सकते हैं। यह खाता पाँच रुपए जमा करवा कर खोला जा सकता है।

डाकघर बचत बैंक में ब्याज की दर बदलती रहती है। डाकघर बचत बैंक में खाता खोलने को प्रोत्साहित करने के लिए कई इनामी योजनाएं भी निकाली गई हैं। इनमें प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को इनाम के लिए रखा जा सकता है जिसकी कम-से-कम ₹ 200 की राशि डाकघर में जमा हो। एक व्यक्ति के नाम में अधिक-से-अधिक ₹ 25,000 तथा संयुक्त खाते में ₹ 50,000 जमा हो सकते हैं। जमा राशि केवल उसी डाकघर से निकाली जा सकती है, जहाँ पर खाता खोला गया है। ब्याज 31 मार्च के बाद वर्ष में एक बार जोड़ा जाता है। बैंक की तरह डाकघर भी खाता खोलने वाले को पास बुक देता है जिसमें प्रत्येक जमा तथा निकाली गई राशि का लेखा होता है। माता-पिता या अभिभावक स्वयं नाबालिग के नाम पर खाता खोल सकते हैं।

2. डाकघर सावधि संचयी योजना (Cumulative Scheme) बैंक की तरह इसमें भी सी० टी० डी० जमा खाते खोले जाते हैं। ये 5, 10, 15 वर्ष के लिए खोले जाते हैं। इसमें प्रतिमाह ₹ 5 से ₹ 100 तक की राशि जमा की जा सकती है।

  • इस योजना के अन्तर्गत कोई भी एक व्यक्ति या दो व्यक्ति मिलकर खाता खोल सकते हैं।
  • यह जमा खाता निश्चित अवधि के लिए खोला जाता है। इसमें ब्याज की दरें बदलती रहती हैं।
  • ब्याज का भुगतान प्रति वर्ष किया जाता है परन्तु ब्याज की गणना छमाही की जाती है।

3. डाकघर मियादी खाता (Postal Fixed Deposit) – यह खाता डाकघर में अकेले या संयुक्त रूप में खोला जा सकता है। यह 1, 2, 3, 5 या 10 वर्ष तक के लिए खोला जा सकता है। इसमें ₹ 50 से लेकर ₹ 25,000 तक जमा किए जा सकते हैं।

4. राष्ट्रीय बचत प्रमाण – पत्र (National Saving Certificates) ये प्रमाण-पत्र 10, 100, 1,000 की कीमत के डाकघर से खरीदे जा सकते हैं। ये रकम 10 वर्ष के बाद ₹ 8 प्रति सैंकड़ा की दर से ब्याज सहित जमा करने वाले को दे दी जाती है।

5. बारह-वर्षीय राष्ट्रीय रक्षा – पत्र-ये रक्षा-पत्र ₹ 5, 10, 15, 50, 100, 500, 1000, 5,000 तथा ₹ 25,000 की कीमतों के डाकघर से खरीदे जा सकते हैं। इसमें वार्षिक दर से ब्याज दिया जाता है। एक व्यक्ति 35,000 के तथा दो व्यक्ति एक साथ मिलकर 50,000 के 12 वर्षीय राष्ट्रीय रक्षा-पत्र खरीद सकते हैं।

उपरोक्त के अलावा डाकघर की सहायता से विविध प्रकार के बचत प्रमाण-पत्र तथा खातों द्वारा बचत की जा सकती है। पाँच वर्षीय राष्ट्रीय विकास पत्र, सामाजिक सुरक्षा पत्र, राष्ट्रीय बचत वार्षिक पत्र आदि इसी प्रकार के बचत पत्र हैं।

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प्रश्न 9.
जीवन बीमा क्या है ? इसके प्रमुख उद्देश्य व लाभ बताइए।
उत्तर :
जीवन बीमा बचत का सर्वोत्तम साधन है। जीवन बीमा निगम द्वारा दिया गया एक बन्ध-पत्र होता है जिसमें भावी अनिश्चित आपत्तियों या घटना घटित होने पर बीमाधारक को या उसके उत्तराधिकारी को एक पूर्व निश्चित धनराशि निगम द्वारा दी जाती है।

जीवन बीमा के उद्देश्य व लाभ जीवन बीमा के मुख्य उद्देश्य या लाभ निम्नलिखित हैं –
1. परिवार को आर्थिक संरक्षण प्रदान करना – बीमेदार के निधन पर उसके द्वारा नियुक्त परिवार के सदस्य को बीमा की राशि दी जाती है जिससे परिवार आर्थिक संकट का सामना कर सके।

2. वृद्धावस्था में आर्थिक सुरक्षा – वृद्धावस्था में बीमे द्वारा प्राप्त धनराशि आर्थिक संरक्षता प्रदान करती है।

3. विवाह, शिक्षा आदि के लिए आर्थिक सहायता – जीवन बीमा अपनी विशेष पॉलिसी के द्वारा परिवार के विभिन्न उद्देश्यों, विवाह, शिक्षा आदि के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है।

4. बचत की आदत डालना – जीवन बीमा बचत के लिए विवश करके परिवार के सदस्यों में नियमित बचत करने की आदत डालता है।

5. सम्पत्ति कर चुकाना – बीमेदार के निधन के बाद सम्पत्ति कर चुकाने के लिए सम्पत्ति को बेचने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, जीवन बीमा सम्पत्ति कर के लिए धन की व्यवस्था करता है।

6. बीमेदार को व्यापार आदि के लिए ऋण देना-आर्थिक संकट में या व्यापार आदि के लिए बीमा निगम बीमेदार की पॉलिसी की जमानत लेकर ऋण भी देता है।

7. अन्य बचत योजनाओं की अपेक्षा अधिक लाभ पहुँचाना-जीवन बीमा अन्य बचत योजनाओं से अधिक लाभ पहुंचाती है –

  • बीमेदार की मृत्यु के बाद उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्राप्त होती है।
  • बीमे में जमा करवाई गई धनराशि पर आयकर की छूट होती है।
  • बीमेदार ने यदि किसी से ऋण लिया हो, तब भी उसके निधन के बाद बीमे की राशि उत्तराधिकारी को दी जाती है और इस प्रकार यह राशि लेनदारों से पूर्ण रूप से सुरक्षित होती है।
  • बीमेदार के व्यवस्था करने पर उसके निधन के बाद बीमे की धनराशि उत्तराधिकारी को किस्तों में दी जाती है और जिससे पूर्ण राशि का एक साथ अपव्यय न हो।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध

प्रश्न 10.
धन का सदुपयोग करने के लिए एक परिवार को क्या-क्या करना चाहिए (कोई तीन उपाय)?
उत्तर :
धन का सदुपयोग करने के लिए परिवार को निम्न कार्य करने चाहिए –

  1. धन से सोना चांदी खरीद कर रख लेना चाहिए।
  2. बैंक में बचत खाता खोल लेना चाहिएं।
  3. निश्चित अवधि जमा योजना में पैसे लगाने चाहिए।
  4. वस्तुएँ आवश्यकतानुसार खरीदनी चाहिएं ना कि दिखावे के लिए।
  5. डाकखाने की विभिन्न बचत योजनाओं में पैसा लगाना चाहिए जैसे किसान विकास पत्र, राष्ट्रीय बचत योजना, डाक घर मासिक आय योजना।
  6. भविष्य निधि, बीमा पॉलिसी आदि में भी धन लगाया जा सकता है।
  7. वस्तुओं को ऑफ सीजन में खरीद कर भी पैसे की बचत की जा सकती है।

प्रश्न 11.
(A) बचत करना क्यों आवश्यक है ? बचत के किन्हीं चार साधनों के नाम बताएं।
(B) बचत किसे कहते हैं ? इसके साधनों के नाम लिखें।
(C) बचत करना क्यों आवश्यक है ? बचत करने के विभिन्न तरीकों के बारे में बताइए।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दें –

प्रश्न 1.
मकान का किराया कैसा खर्च है ?
उत्तर :
निर्धारित खर्च।

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प्रश्न 2.
पारिवारिक आय व्यय के हिसाब से बजट कितने प्रकार का है ?
उत्तर :
तीन प्रकार का।

प्रश्न 3.
यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1964.

प्रश्न 4.
आय को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 5.
बजट योजना कितने तत्त्वों पर निर्भर है ?
उत्तर :
चार।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. अवकाश काल का उचित प्रयोग करके हम आत्मिक आय, पारिवारिक आय तथा
………… आय को बढ़ा सकते हैं।
2. ………….. का बजट उत्तम रहता है।
3. खर्चे का हिसाब-किताब रखने से …………. आती है।
4. आयु बढ़ने के साथ-साथ खर्चों में …………. होती है।
उत्तर :
1. मौद्रिक
2. बचत
3. मितव्ययता
4. वृद्धि।

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(ग) निम्न में ठीक तथा गलत बताएं –

1. विवेकपूर्ण व्यय से बचत होती है।
2. हमारे देश में दो प्रकार की परिवार व्यवस्था है।
3. शिक्षित व्यक्तियों की आय अशिक्षित व्यक्तियों से अधिक होती है।
4. आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी ही करनी चाहिए।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खर्च कितने प्रकार के होते हैं –
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 2.
पारिवारिक बजट के प्रकार हैं –
(A) बचत बजट
(B) सन्तुलित बजट
(C) घाटे का बजट
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 3.
यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया की स्थापना कब की गई ?
(A) 1962
(B) 1964
(C) 1971
(D) 1980
उत्तर :
1964.

प्रश्न 4.
आय को मुख्यतः कितने भागों में बांट सकते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 5.
आत्मिक आय से आप क्या समझते हैं –
(A) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय के व्यय से होने वाली सन्तुष्टि
(B) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त धन
(C) प्राप्त सेवाएं और सुविधाएं
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय के व्यय से होने वाली सन्तुष्टि।

प्रश्न 6.
परिवार की आय को कैसे बढ़ाया जा सकता है –
(A) अंशकालिक नौकरी करके
(B) परिवार की आय में बढ़ोत्तरी करके
(C) गृह उद्योगों की शुरुआत द्वारा
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

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प्रश्न 7.
अवकाश काल का उचित प्रयोग करके हम ……………. को बढ़ा सकते हैं।
(A) आत्मिक आय
(B) पारिवारिक आय
(C) मौद्रिक आय
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 8.
सुरक्षित भविष्य के लिए क्या करना चाहिए –
(A) बचत करना
(B) खुलकर खर्च करना
(C) उधार लेना
(D) धन का दान देना।
उत्तर :
बचत करना।

प्रश्न 9.
आयु बढ़ने के साथ-साथ खर्चों में ……… होती है।
(A) वृद्धि
(B) कमी
(C) कोई फ़र्क नहीं पड़ता
(D) उपरिलिखित में से कोई नहीं।
उत्तर :
वृद्धि।

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प्रश्न 10.
किस प्रकार का बजट उत्तम रहता है –
(A) घाटे का बजट
(B) बचत का बजट
(C) सन्तुलित बजट
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
बचत का बजट।

प्रश्न 11.
संयुक्त परिवार में खर्च …………… होता है।
(A) कम
(B) अधिक
(C) सामान्य
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
कम।

प्रश्न 12.
खर्च की आवश्यक मद कौन-सी है –
(A) घर
(B) भोजन
(C) कपड़े
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

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प्रश्न 13.
खर्च कितने प्रकार के होते हैं –
(A) निर्धारित खर्च
(B) अर्द्ध-निर्धारित खर्च
(C) गैर-निर्धारित खर्च
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 14.
ऐन्जिल के सिद्धान्त के अनुसार जैसे-जैसे आय बढ़ती है, भोजन पर व्यय का प्रतिशत ……………. है।
(A) घटता
(B) बढ़ता
(C) उतना ही रहता है
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
घटता।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से कौन-सी प्राथमिक आवश्यकता नहीं है ?
(A) आवास
(B) भोजन
(C) कपड़ा
(D) शिक्षा।
उत्तर :
शिक्षा।

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प्रश्न 16.
बचत की आवश्यकता क्यों होती है ?
(A) सुरक्षित भविष्य के लिए
(B) आपात स्थिति का सामना करने के लिए
(C) परिवार के रहन-सहन का स्तर बढ़ाने के लिए
(D) उपर्युक्त सभी के लिए।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी के लिए।

प्रश्न 17.
परिवार के द्वारा जिन साधनों और सुविधाओं का प्रयोग किया जाता है, वह उसकी कौन-सी आय कहलाती है ?
(A) आत्मिक आय
(B) वास्तविक आय
(C) मौद्रिक आय
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
आत्मिक आय

प्रश्न 18.
निम्नलिखित मदों में व्यय करने के लिए आप किसको सबसे अधिक प्राथमिकता देंगे ?
(A) विदेश यात्रा के लिए जाना
(B) सर्दियों के लिए पर्याप्त ऊनी कपड़ों की खरीददारी
(C) रेफ्रिजरेटर खरीदना
(D) नया सोफा सेट खरीदना।
उत्तर :
सर्दियों के लिए पर्याप्त ऊनी कपड़ों की खरीददारी।

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प्रश्न 19.
जीवन बीमा पॉलिसी कराना कहलाता है –
(A) निवेश
(B) व्यय करना
(C) बचत
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
बचत।

प्रश्न 20.
सुरक्षित भविष्य के लिए क्या करना चाहिए ?
(A) बचत करना
(B) खुलकर खर्च करना
(C) उधार लेना
(D) धन का दान देना।
उत्तर :
बचत करना।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित मदों में से व्यय करने के लिए आप किसको सबसे अधिक प्राथमिकता देंगे ?
(A) छुट्टियाँ बिताने के लिए कहीं बाहर जाना
(B) बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन की खरीद
(C) मिक्सर ग्राइंडर की खरीद
(D) साधारण पर्दे बदलने के लिए नए फैन्सी पर्दो की खरीद।
उत्तर :
बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन की खरीद।

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प्रश्न 22.
निम्न में से कौन-सा कथन बचत से सम्बन्धित है ?
(A) आपकी माता द्वारा आपको दिए गए पैसे
(B) आपके पिता का वेतन
(C) आप प्रतिदिन दस रुपये एक डिब्बे में डालते हैं
(D) अण्डे बेचकर आपको धन मिलता है।
उत्तर :
आप प्रतिदिन दस रुपये एक डिब्बे में डालते हैं।

प्रश्न 24.
ऐंजिल के अनुसार, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, मकान, वस्त्र, विद्युत् पर व्यय में ……………… ।
(A) परिवर्तन नहीं होता है
(B) परिवर्तन होता है
(C) लाभ होता है
(D) हानि होती है।
उत्तर :
परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 25.
संयुक्त परिवार में खर्च कम और आय …………. होती है।
(A) कम
(B) सामान्य
(C) अधिक
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
अधिक।

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प्रश्न 26.
कौन-सा बजट सबसे उत्तम रहता है ?
(A) घाटे का बजट
(B) बचत का बजट
(C) संतुलित बजट
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
बचत का बजट।

प्रश्न 27.
ऐंजिल के अनुसार, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, भोजन पर व्यय का प्रतिशत
(A) घटता
(B) बढ़ता
(C) सामान्य
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
घटता।

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प्रश्न 28.
संयुक्त परिवार में खर्च आय अधिक होती है।
(A) ज्यादा
(B) कम
(C) सामान्य
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
कम।

प्रश्न 29.
परिवार की आय को कौन-कौन से दो भागों में बाँटा जा सकता है ?
(A) मौद्रिक आय व मानसिक रूप से प्राप्त आय
(B) प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष आय
(C) मौद्रिक आय व अप्रत्यक्ष आय
(D) अप्रत्यक्ष आय व मानसिक रूप से प्राप्त आय।
उत्तर :
मौद्रिक आय व मानसिक रूप से प्राप्त आय।

प्रश्न 30.
डाकखाने में कितने रुपयों से खाता खोला जा सकता है ?
(A) कम से कम ₹ 1000 से
(B) कम से कम ₹ 2000 से
(C) कम से कम ₹ 5000 से
(D) कम से कम ₹ 50 से।
उत्तर :
कम से कम ₹ 50 से।

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प्रश्न 31.
आमदनी में से ………… को बचत कहते हैं।
(A) खर्च की गई रकम
(B) उधार ली गई रकम
(C) बचाई गई रकम
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
बचाई गई रकम।

प्रश्न 32.
बजट योजना किस तत्त्व पर निर्भर करती है ?
(A) परिवार की आय
(B) परिवार का लक्ष्य
(C) परिवार की तत्कालीन आवश्यकताएँ
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

धन का प्रबन्ध HBSE 10th Class Home Science Notes

धन का प्रबन्ध –

→ परिवार की आय को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दो किस्मों में विभाजित किया जाता है।
→ घर की आवश्यकताओं के लिए प्रयोग की धन राशि को खर्च कहा जाता है।
→ खर्च निर्धारित और गैर-निर्धारित होता है।
→ पारिवारिक आमदन के अनुसार खर्च के अनुमान को बजट कहा जाता है।
→ आमदन में से बचाई गई रकम को बचत कहते हैं।
→ कुशल गृहिणी कम आमदन से भी बढ़िया घर चला सकती है।
→ बजट तीन किस्मों का होता है-बचत बजट, संतुलित बजट और घाटे का बजट।
→ बचत अवश्य करनी चाहिए। इसमें परिवार के सदस्यों की भलाई है।
→ संयुक्त परिवारों में खर्च कम और आय अधिक होती है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध

परिवार के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वह अपने वित्तीय साधनों का प्रयोग इस ढंग से करे कि अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त हो सके। प्रत्येक मनुष्य अपने ज्ञान, योग्यताओं का प्रयोग करके अपने जीवन का गुजारा करता है। एक विशेष समय में जैसे कि सप्ताह, महीना, साल में परिवार द्वारा कमाई गई आय को पारिवारिक आय कहा जाता है।

इस पारिवारिक आय को इस ढंग से खर्च करना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्य सन्तुष्ट, खुश और तन्दुरुस्त रहें। इसलिए एक समझदार गृहिणी को आय और खर्च में सन्तुलन रखने के लिए बजट बनाना चाहिए।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
आई० सी० एम० आर० द्वारा निर्धारित किए गए पाँच आहार समूहों के नाम बताइए।
उत्तर :
आई० सी० एम० आर० (ICMR) ने निम्नलिखित पाँच आहार समूह निर्धारित किए हैं। यह हैं –

  1. अनाज
  2. दालें
  3. दूध, अण्डा व मांसाहार
  4. फल व सब्जियाँ
  5. वसा और शक्कर।

प्रश्न 2.
सन्तुलित भोजन से आप क्या समझते हो ? संतुलित भोजन क्यों जरूरी है ?
उत्तर :
सन्तुलित भोजन से भाव ऐसी मिली-जुली खुराक से है जिसमें भोजन के सभी आवश्यक तत्त्व जैसे, प्रोटीन, कार्बोज़, विटामिन, खनिज लवण आदि पूरी मात्रा में हों। भोजन न केवल माप-तोल में पूरा हो बल्कि गुणकारी भी हो ताकि मनुष्य की मानसिक वृद्धि भी हो सके तथा बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बनी रहे। सन्तुलित भोजन सभी व्यक्तियों के लिए एक-सा नहीं हो सकता। शारीरिक मेहनत करने वाले व्यक्तियों के लिए जो भोजन सन्तुलित होगा वह एक दफ्तर में काम करने वाले से भिन्न होगा।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह

प्रश्न 3.
भोजन को किन-किन भोजन समूहों में बांटा जा सकता है और क्यों ?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक तन्दुरुस्ती के लिए सन्तुलित भोजन का प्राप्त होना आवश्यक है जिसमें प्रोटीन, कार्बोज, विटामिन, खनिज लवण पूरी मात्रा में हो। परन्तु ये सभी वस्तुएँ एक तरह के भोजन से प्राप्त नहीं हो सकतीं। इसलिए भोजन को उनके खुराकी तत्त्वों के आधार पर निम्नलिखित समूहों में विभाजित किया जाता है –

  1. अनाज
  2. दालें
  3. सूखे मेवे
  4. सब्जियां
  5. फल
  6. दूध और दूध से बने पदार्थ तथा अन्य पशु जन्य साधनों के पदार्थ।
  7. मक्खन घी तेल
  8. शक्कर, गुड़
  9. मसाले, चटनी आदि।

प्रश्न 4.
क्या कैलोरियों की उचित मात्रा होने से भोजन सन्तुलित होता है ?
उत्तर :
खुराक व्यक्ति की आयु लिंग, काम करने की शारीरिक स्थिति पर निर्भर करती है। कठिन काम करने वाले व्यक्ति को साधारण काम करने वाले व्यक्ति से अधिक कैलोरियों की आवश्यकता होती है। परन्तु खराक में केवल कैलोरियों की उचित मात्रा से ही भोजन सन्तुलित नहीं बन जाता बल्कि इसके साथ-साथ पौष्टिक तत्त्वों की भी उचित मात्रा लेनी चाहिए। किसी एक पौष्टिक तत्त्व की कमी भी शरीर के लिए हानिकारक हो सकती है। इसलिए उचित कैलोरियों की मात्रा वाली खुराक को सन्तुलित नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 5.
दालों में कौन-से पौष्टिक तत्त्व होते हैं और अधिक मात्रा किसकी होती है ?
उत्तर :
दालें जैसे मूंग, मोठ, मांह, राजमांह, चने आदि में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। इनमें 20-25 प्रतिशत प्रोटीन होती है। इसके अतिरिक्त विटामिन ‘बी’ खनिज पदार्थ विशेष रूप में कैल्शियम की अच्छी मात्रा में होते हैं। सूखी दालों में विटामिन ‘सी’ नहीं होता परन्तु अंकुरित हुई दालें विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्रोत हैं।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह

प्रश्न 6.
कार्बोहाइड्रेट्स कौन-कौन से भोजन समूह में पाए जाते हैं ?
उत्तर :
कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का मिश्रण है। ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन 2 : 1 के अनुपात में प्राप्त होती हैं। शरीर में 75 से 80 प्रतिशत ऊर्जा कार्बोहाड्रेट्स से ही पूरी होती है। यह ऊर्जा का एक सस्ता तथा मुख्य स्रोत है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह 1

चित्र-कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत

कार्बोहाइड्रेट्स के स्त्रोत – कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत निम्नलिखित हैं –

  1. अनाज।
  2. दालें।
  3. जड़ों वाली तथा भूमि के अन्दर पैदा होने वाली सब्जियां जैसे आलू, कचालू, अरबी, जिमीकन्द तथा शकरकन्दी आदि।
  4. शहद, चीनी तथा गुड़।
  5. जैम तथा जैली।
  6. सूखे मेवे जैसे बादाम, अखरोट, खजूर, किशमिश तथा मूंगफली आदि।

प्रश्न 7.
सब्जियों में कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्व होते हैं ?
उत्तर :
भोजन में सब्जियों का होना अति आवश्यक है क्योंकि इनसे विटामिन और खनिज पदार्थ मिलते हैं। भिन्न-भिन्न सब्जियों में भिन्न-भिन्न तत्त्व मिलते हैं। जड़ों वाली सब्जियां विटामिन ‘ए’ का अच्छा स्रोत है, हरी पत्तेदार सब्जियों में विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ और लोहा काफ़ी मात्रा में होता है। फलीदार सब्जियां प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह

प्रश्न 8.
भोजन में मिर्च मसालों का प्रयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर :
भोजन का स्वाद और महक बढ़ाने के लिए इनमें कई तरह के मसाले जैसे जीरा, काली मिर्च, धनिया, लौंग, इलायची आदि प्रयोग किए जाते हैं। यह मसाले भोजन का स्वाद बढ़ाने के अतिरिक्त भोजन शीघ्र पचाने में भी सहायता करते हैं क्योंकि ये पाचक रसों को उत्तेजित करते हैं जिससे भोजन शीघ्र हज्म हो जाता है।

प्रश्न 9.
आहार नियोजन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
खाने का ढंग परिवार के अलग-अलग सदस्यों की आवश्यकता अनुसार बनाया जाता है जैसे बच्चे और रोगी के लिए थोड़ी-थोड़ी देर के पश्चात् भोजन तथा बुजुर्गों के लिए नर्म और हल्के भोजन का प्रबन्ध किया जाता है। परिवार के सदस्यों की ज़रूरत और निश्चित समय अनुसार अच्छे पोषण के लिए खाद्य पदार्थों का नियोजन करने को ही आहार नियोजन कहा जाता है।

प्रश्न 10.
आहार आयोजन के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं ?
अथवा
आहार आयोजन करते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर :
आहार आयोजन करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  1. परिवार की रुचि
  2. ऋतु का ध्यान
  3. पारिवारिक आय
  4. व्यवसाय
  5. उपलब्ध वस्तुएं
  6. साप्ताहिक तालिका
  7. नवीनता
  8. मितव्ययता
  9. समय और शक्ति
  10. विविधता
  11. सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश
  12. अतिथियों की रुचि
  13. सरलता।

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प्रश्न 11.
परिवार के आहार का स्तर किन बातों पर निर्भर करता है ?
उत्तर :
परिवार के आहार का स्तर निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है –

  1. आहार के लिए उपलब्ध धन।
  2. गृहिणी के पास भोजन पकाने के लिए उपलब्ध समय एवं ऊर्जा।
  3. गृहिणी का खाद्य तथा पोषण सम्बन्धी ज्ञान।
  4. गृहिणी का आहार पकाने और परोसने में निपुण होना।

प्रश्न 12.
आहार की पौष्टिकता बढ़ाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
सामान्य आहार में अनाज की मात्रा अधिक होती है। कार्बोज द्वारा व्यक्ति की कैलोरी आवश्यकताओं की पूर्ति तो हो जाती है, परन्तु शरीर निर्माण करने वाले पौष्टिक तत्त्व जैसे प्रोटीन और स्वास्थ्य रक्षा करने वाले तत्त्व जैसे विटामिन और खनिज लवणों का अभाव है। इसलिए आहार की पौष्टिकता बढ़ाना आवश्यक है।

प्रश्न 13.
खाद्य पदार्थों का पौष्टिक मान बढ़ाने का महत्त्व लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 12 का उत्तर।

प्रश्न 14.
आहार की पौष्टिकता कैसे बढ़ाई जा सकती है ?
उत्तर :

  1. आहार में मिश्रित अनाजों का प्रयोग करना चाहिए, जैसे-चावल या गेहूँ के साथ रागी या बाजरा।
  2. दालों के प्रयोग को बढ़ाना।
  3. हरी पत्तेदार सब्जियों का प्रयोग करना।
  4. सस्ते मौसमी खाद्य-पदार्थों का प्रयोग करना।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह

प्रश्न 15.
दैनिक आहार व्यवस्था का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
परिवार के सदस्यों की दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं ज्ञात करके, दैनिक आहार की व्यवस्था की जाती है। भारत में प्राय: दिन चार बार आहार करने का प्रचलन है। इसलिए दिनभर की प्रस्तावित खाद्य-पदार्थों की मात्रा को चार भागों में बाँटा जाता है।

  1. प्रात:काल का नाश्ता (Breakfast)
  2. दोपहर का भोजन (Lunch)
  3. शाम की चाय (Evening Tea)
  4. रात्रि का भोजन (Dinner)।

प्रश्न 16.
सन्तुलित भोजन की योजना बनाते समय कौन-कौन सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर :
परिवार के सदस्य का स्वास्थ्य उनके खाने वाले भोजन पर निर्भर करता है। एक समझदार गृहिणी को अपने परिवार के सदस्यों को सन्तुलित भोजन प्रदान करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. परिवार के प्रत्येक सदस्य के रोज़ाना खुराकी तत्त्वों का ज्ञान होना चाहिए
  2. आवश्यक पौष्टिक तत्त्व देने वाले भोजन की जानकारी और चुनाव
  3. भोजन की योजनाबन्दी
  4. भोजन पकाने का सही ढंग, और
  5. भोजन परोसने के ढंग का ज्ञान होना चाहिए।

प्रश्न 17.
किन-किन कारणों से अनेक लोगों को सन्तुलित भोजन उपलब्ध नहीं होता ?
उत्तर :
दुनिया भर में 90% बीमारियों का कारण सन्तुलित भोजन का सेवन न करना है। विशेष रूप में तीसरी दुनिया के देशों में जनसंख्या के एक बड़े भाग को संतुलित भोजन नहीं मिलता। इसके कई कारण हैं जैसे –
1.ग़रीबी – ग़रीब लोग अपनी आय कम होने के कारण उपयुक्त मात्रा में आवश्यक पौष्टिक तत्त्वों वाले भोजन नहीं खरीद सकते। सब्जियां, फल, दूध, आदि इन ग़रीब लोगों की खुराक का भाग नहीं बनते।

2. शिक्षा की कमी – यह आवश्यक नहीं कि केवल ग़रीब लोग ही सन्तुलित भोजन से वंचित रहते हैं। कई बार शिक्षा की कमी के कारण अच्छी आय वाले भी आवश्यक पौष्टिक भोजन नहीं लेते। आजकल कई अमीर लोग भी जंक फूड या फास्ट फूड का प्रयोग
अधिक करते हैं जो किसी तरह भी सन्तुलित भोजन नहीं होता।

3. बढ़िया भोजन न मिलना – कई बार लोगों को खाने पीने की वस्तुएं बढ़िया नहीं मिलतीं। आजकल सब्जियों में ज़हर की मात्रा काफ़ी अधिक होती है। शहर के लोगों को दूध भी बढ़िया किस्म का नहीं मिलता। इस तरह भी लोग सन्तुलित भोजन से वंचित रह जाते हैं।

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प्रश्न 18.
खाने का नियोजन किन-किन बातों पर आधारित है ?
अथवा
खाने के नियोजन को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं ?
उत्तर :
ठीक खाने का नियोजन बनाना एक समझदार गृहिणी का काम है। यह नियोजन कई बातों पर आधारित होता है –
1. परिवार की आय-परिवार के भोजन का नियोजन परिवार की आय पर निर्भर करता है। उच्च आय वर्ग की गृहिणी महंगे भोजन पदार्थ बनाने के नियोजन तैयार कर सकती है परन्तु एक ग़रीब वर्ग की गृहिणी को परिवार की पौष्टिक आवश्यकताएं पूर्ण करने वाले परन्तु सस्ते भोजन का नियोजन बनाना पड़ता है।

2. परिवार का आकार और रचना-परिवार के सदस्यों की संख्या और उनकी आयु, स्वाद आदि भी भोजन के नियोजन को प्रभावित करते हैं जैसे जिस परिवार में बज़र्ग माता पिता हों, उस परिवार के भोजन का आयोजन एक ऐसा परिवार जिसमें जवान बच्चे और माता-पिता हों, से भिन्न होता है।

3. भोजन पकाने का समय और परोसने और पकाने का ढंग-ये भी खाने के नियोजन को प्रभावित करते हैं।

4. मौसम और घर की सुविधाएं भी गृहिणी के खाने नियोजन पर प्रभाव डालती हैं। उदाहरणस्वरूप यदि घर में फ्रिज हो तो एक बार बनाया भोजन दूसरे समय के लिए सम्भालकर रखा जा सकता है।

प्रश्न 19.
आहार आयोजन को परिवार का आकार व रचना किस प्रकार प्रभावित करते हैं, वर्णन करें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 18 का उत्तर।

प्रश्न 20.
भोजन में भिन्नता कैसे ला सकते हैं तथा क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
एक तरह का भोजन खाने से मन भर जाता है इसलिए खाने में रुचि बनाए रखने के लिए भिन्नता होनी आवश्यक है। यह भोजन में अनेक प्रकार से पैदा की जा सकती है –

  1. नाश्ते में प्रायः परांठे बनते हैं परन्तु रोज़ाना अलग किस्म का परांठा बनाकर भोजन में भिन्नता लाई जा सकती है जैसे मूली का परांठा, मेथी वाला, गोभी वाला, मिस्सा परांठा आदि।
  2. सभी भोजन पदार्थ एक रंग के नहीं होने चाहिएं। प्रत्येक सब्जी, दाल या सलाद का रंग अलग-अलग होना चाहिए। इससे भोजन देखने को अच्छा लगता है और अधिक पौष्टिक भी होता है।
  3. भोजन पकाने की विधि से भी खाने में भिन्नता आ सकती है जैसे तवे की रोटी, तन्दूर की रोटी, पूरी आदि बनाकर भोजन में भिन्नता लाई जा सकती है।

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प्रश्न 21.
भोजन देखने में भी सुन्दर होना चाहिए। क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं ? यदि हाँ तो क्यों ?
उत्तर :
जी हाँ; यह तथ्य बिल्कुल सही है कि भोजन देखने में अच्छा लगना चाहिए क्योंकि जो भोजन देखने में अच्छा न लगे उसको खाने को मन नहीं करता। यदि भोजन आँखों को न भाए तो मनुष्य उसका स्वाद भी नहीं देखना चाहता। भोजन को सुन्दर बनाने के लिए भोजन पकाने की विधि और उसको सजाने की जानकारी भी होनी चाहिए।

प्रश्न 22.
गर्भवती औरत के लिए एक दिन की आहार योजना बनाओ।
उत्तर :
एक गर्भवती औरत के लिए सन्तुलित भोजन की आवश्यकता होती है और यह भोजन दिन में पाँच बार खाना चाहिए। गर्भवती औरत के भोजन की एक दिन की योजना इस प्रकार होनी चाहिए –
सुबह-चाय, नींबू पानी, बिस्कुट या रस। नाश्ता-डबलरोटी, मक्खन, उबला हुआ अण्डा, परांठा, फलों का जूस। दिन के मध्य-दलिया, मौसमी फल। दोपहर का खाना-रोटी, चने, दही, सब्जी, सलाद। शाम के समय-केक या पौष्टिक लड़ड़ या कोई नमकीन और चाय। रात को-सब्जियों का सूप, रोटी, दाल, सब्जी, सलाद और खीर। सोने के समय-दूध।

प्रश्न 23.
गर्भवती औरत के लिए कैसा भोजन चाहिए और क्यों ?
अथवा
गर्भवती स्त्री को पौष्टिक तत्त्व अधिक मात्रा में क्यों लेना चाहिए ?
उत्तर :
माँ के पेट में ही बच्चे की सेहत और शारीरिक बनावट का फैसला हो जाता है। इसलिए गर्भवती माँ की खुराक सन्तुलित और अच्छी किस्म की होनी चाहिए। स्वस्थ माँ ही स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है। गर्भवती माँ की खुराकी आवश्यकता अपने लिए और बच्चे के लिए होती है। इसीलिए गर्भवती स्त्री को पौष्टिक तत्त्व को अधिक मात्रा में लेना चाहिए। गर्भवती औरत के लिए थोड़े-थोड़े समय के पश्चात् कम मात्रा में भोजन खाना ठीक रहता है। इसलिए गर्भवती औरत को दिन में तीन बार के स्थान पर पाँच बार भोजन खाना चाहिए। गर्भवती औरत के भोजन में दूध, फल, सब्जियां, मक्खन और दालें अवश्य शामिल होनी चाहिएं।

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प्रश्न 24.
दूध पिलाने वाली माँ के लिए कैसा भोजन चाहिए ? एक दिन की आहार योजना बनाओ।
उत्तर :
दूध पिलाने वाली माँ के एक दिन के भोजन का नियोजन- दूध पिलाने वाली माँ का आहार सन्तुलित होना चाहिए क्योंकि इसका प्रभाव बच्चे के स्वास्थ्य पर अच्छा पड़ेगा। दूध पिलाने वाली माँ का एक दिन का भोजन निम्नलिखित अनुसार होना चाहिए

  • सुबह – दूध या चाय।
  • नाशता – गोभी, आलू या मिस्सा परांठा, मक्खन, दही या दूध।
  • मध्य में – फलों का रस चीनी मिलाकर, फल या अंकुरित दाल।
  • दोपहर का भोजन – रोटी, हरी सब्जी, दाल या चने, राइता, सलाद, मौसमी फल।
  • शाम को – पंजीरी, केक, बिस्कुट, चाय या दूध।
  • रात को – दूध का गिलास।

बच्चे का स्वास्थ्य माँ के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। यदि माँ की खुराक में पौष्टिक तत्त्व होंगे, तभी बच्चा तन्दुरुस्त होगा। दूध पिलाने वाली माँ की खराकी आवश्यकता गर्भवती औरत से अधिक होती है। दूध पिलाने वाली माँ को अन्य औरतों की अपेक्षा कैलोरियां, प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थों की आवश्यकता अधिक होती है। अच्छी प्रोटीन दूध की पैदावार में सहायक होती है। इसलिए दूध पिलाने वाली माँ की खुराक में प्रोटीन युक्त पदार्थ जैसे दूध, पनीर और दालें आदि काफ़ी मात्रा में होनी चाहिएं।

प्रश्न 25.
बुखार के समय भोजन की जरूरत बढ़ती है या कम हो जाती है ? बताओ और क्यों ?
उत्तर :
बुखार में पौष्टिक भोजन की आवश्यकता बढ़ जाती है क्योंकि बुखार से शरीर में कई परिवर्तन आते हैं जैसे कि शरीर की मैटाबोलिक दर बढ़ने से शरीर को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह आवश्यकता साधारण से 50% बढ़ जाती है। बुखार में शरीर का तापमान बढ़ने से शरीर में तंतुओं की तोड़-फोड़ तेजी से होती है जिसके लिए अधिक प्रोटीन की ज़रूरत होती है। बुखार में शरीर के रोगों से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है। इसलिए अधिक विटामिनों की आवश्यकता होती है। बुखार से खनिज पदार्थ का निकास बढ़ जाता है। उनकी पूर्ति के लिए अधिक खुराक की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 26.
बुखार से आप क्या समझते हैं ? इसका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
शरीर एक मशीन की तरह काम करता है। मशीन की तरह ही शरीर में नुक्स पड़ सकता है जो प्रायः बुखार के रूप में प्रकट होता है। शरीर का तापमान तन्दुरुस्ती की स्थिति में 98.4 फार्नहीट होता है। यदि शरीर का तापमान इससे बढ़ जाए तो उसको बुखार कहा जाता है। बुखार से शरीर के तन्तुओं की तोड़-फोड़ बहुत तेजी से होती है, मैटाबोलिक दर बढ़ जाती है। शरीर में पौष्टिक तत्त्वों का शोषण कम होता है और सिर दर्द, कमर दर्द, बेचैनी प्रायः देखने में आते हैं।

प्रश्न 27.
बुखार में कैसा भोजन खाना चाहिए तथा क्यों ?
उत्तर :
बुखार में आहार आयोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि बुखार से शरीर में कई परिवर्तन आते हैं और कई खुराकी तत्त्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है। बुखार के समय खुराक सम्बन्धी निम्नलिखित नुस्खे प्रयोग किए जाने चाहिएं

  1. ऊर्जा और प्रोटीन वाले भोजन पदार्थों का अधिक उपयोग।
  2. तरल और नर्म-गर्म भोजन का प्रयोग।
  3. दूध की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
  4. फलों का रस, सब्जियों की तरी, मीट की तरी, काले चने की तरी बीमार के लिए गुणकारी होती है।
  5. खिचड़ी, दलिया और अन्य हल्के भोजन देने चाहिएं।
  6. बीमार के खाने में मिर्च-मसाले कम होने चाहिएं।

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प्रश्न 28.
बुखार से शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? बुखार की अवस्था में पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न नं० 26, 27 में।

प्रश्न 29.
बुखार में भोजन के तत्त्वों की आवश्यकता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
बुखार में खुराकी तत्त्वों की आवश्यकता शरीर में कई परिवर्तन आने के कारण बढ़ जाती है।

  1. ऊर्जा या शक्ति – बुखार में मैटाबोलिक दर बढ़ने से शरीर का तापमान बढ़ जाता है जिसके कारण 5% अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है इसलिए अधिक कैलोरियों वाली खुराक देनी चाहिए।
  2. प्रोटीन – शरीर में तापमान बढ़ने से तन्तुओं की तोड़-फोड़ तेजी से होती है इसलिए प्रोटीन अधिक मात्रा में लेनी चाहिए।
  3. कार्बोहाइड्रेट्स – बुखार से शरीर के कार्बोहाइड्रेट्स के भण्डार कम हो जाते हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स देने चाहिएं।
  4. विटामिन – बीमारी की हालत में शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है। इस स्थिति में बीमार मनुष्य को अधिक विटामिनों की आवश्यकता होती है।
  5. खनिज पदार्थ – सोडियम और पोटाशियम पसीने द्वारा अधिक निकल जाते हैं। इनकी पूर्ति के लिए दूध और जूस का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
  6. पानी – बीमार आदमी को पानी उचित मात्रा में पीना चाहिए क्योंकि रोगी के शरीर में से पानी पसीने और पेशाब के द्वारा निकलता रहता है।

प्रश्न 30.
बढ़ते बच्चों के लिए कैसा भोजन चाहिए ?
उत्तर :
बढ़ रहे बच्चों के शरीर में बने सैलों और तन्तुओं का निर्माण होता है और इसके लिए प्रोटीन तथा कार्बोज़ आदि अधिक मात्रा में चाहिएं ताकि तन्तुओं का निर्माण और तोड़-फोड़ की पूर्ति हो सके। इसके अतिरिक्त बच्चों की दौड़ने, भागने और खेलने में कैलोरियां अधिक खर्च होती हैं। इसलिए इनकी पूर्ति करने के लिए बच्चों के भोजन में आवश्यक मात्रा में मक्खन, घी, तेल, चीनी, शक्कर, दूध, पनीर और सब्जियों का शामिल होना आवश्यक है।

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प्रश्न 31.
गर्भवती औरत के लिए अधिक कैलोरियों की आवश्यकता होती है या दूध पिलाने वाली माँ के लिए, और क्यों ?
उत्तर :
गर्भवती औरत या दूध पिलाने वाली माँ, दोनों का भोजन सन्तुलित होना चाहिए। परन्तु दूध पिलाने वाली माँ की खुराकी आवश्यकताएं गर्भवती औरत से अधिक होती हैं। दूध पिलाने वाली माँ को गर्भवती और अन्य औरतों की अपेक्षा कैलोरियां और अन्य पौष्टिक तत्त्व अधिक मात्रा में चाहिएं। बच्चे की पूर्ण खुराक के लिए माँ का दूध काफ़ी मात्रा में आवश्यक है। यह दूध तभी प्राप्त होगा यदि माँ की खुराक में दूध, सब्जियाँ, दालें, पनीर काफ़ी मात्रा में होंगे। पहले छः महीने माँ का दूध बच्चे के लिए मुख्य खुराक होता है। इसलिए दूध पिलाती माँ को अधिक कैलोरियों वाला पौष्टिक भोजन चाहिए।

प्रश्न 32.
पाँच आहार समूहों से प्राप्त होने वाले पोषक तत्त्व बताइए। प्रत्येक समूह के कुछ उदाहरण भी दें।
अथवा
ICMR द्वारा प्रस्तावित खाद्य वर्ग योजना में खाद्य पदार्थों को कितने वर्गों में बांटा गया है ? प्रत्येक वर्ग में सम्मिलित होने वाले दो-दो खाद्य पदार्थों के नाम लिखें।
अथवा
ICMR द्वारा प्रस्तावित पांच खाद्य वर्गों के नाम लिखें व प्रत्येक वर्ग के अन्तर्गत दो-दो भोज्य पदार्थ लिखें।
अथवा
ICMR द्वारा प्रस्तावित पांच खाद्य वर्गों के नाम लिखें और उनके प्राप्त पोषक तत्त्व भी बताएं।
अथवा
ICMR द्वारा प्रस्तावित ‘पांच खाद्य वर्ग योजना’ का विवरण दीजिए ?
अथवा
खाद्य पदार्थों को किन-किन वर्गों में बांटा जा सकता है ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर :
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प्रश्न 33.
पोषक तत्त्वों के आधार पर आहार समूह बनाने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
पोषक तत्त्वों के आधार पर आहार समूह बनाने के निम्नलिखित लाभ हैं
(i) किसी विशेष पोषक तत्त्व की आवश्यकता होने पर ज्ञात होता है कि किस आहार समूह की भोजन सामग्री लेनी है।
(ii) एक आहार समूह की भोज्य सामग्री एक-से पोषक तत्त्व लगभग एक-सी ही मात्रा में उपलब्ध कराती है। हम सफलता से एक भोज्य सामग्री के स्थान पर दूसरी भोज्य सामग्री उसी आहार समूह में से परिवर्तित कर सकते हैं। इसे आहार परिवर्तन कहते हैं।

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प्रश्न 34.
सन्तुलित आहार की परिभाषा दीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताएं।
उत्तर :
सन्तुलित आहार वह है जिसमें पोषक तत्त्व उतनी मात्रा तथा अनुपात में हो अर्थात् उचित मात्रा में रहते हैं जिनसे शरीर को सभी आवश्यक पोषक तत्त्व मिल सकें और साथ ही कुछ पोषक तत्त्वों का शरीर में भण्डारण भी हो सके जिससे कभी-कभी अल्पाहार के समय उनका उपयोग शरीर में हो सके। सन्तुलित आहार की विशिष्टताएँ – सन्तुलित आहार में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही खाद्य पदार्थों का समावेश रहता है। अत: निम्नलिखित ज़रूरतें सन्तुलित आहार द्वारा पूर्ण हो पाती हैं।

  1. किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पोषण आवश्यकता की पूर्ति।
  2. सभी आहार समूहों में से खाद्य पदार्थों का समावेश।
  3. भोजन के विभिन्न प्रकारों का समावेश।
  4. मौसमी भोज्य पदार्थों का समावेश।
  5. कम खर्चीला।
  6. व्यक्तिगत रुचि और स्वाद के अनुकूल होना।

प्रश्न 35.
भोजन सम्बन्धी योजना क्या है ?
उत्तर :
इसका अर्थ है भोजन के लिए इस प्रकार से योजना बनाना कि परिवार का प्रत्येक सदस्य उपयुक्त पोषण स्तर प्राप्त कर सके। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें यह निर्धारित किया जाता है कि प्रतिदिन प्रत्येक भोजन में परिवार के सदस्य क्या खाएँगे।

प्रश्न 36.
भोजन सम्बन्धी योजना का क्या महत्त्व है ?
अथवा
आहार आयोजन का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
भोजन सम्बन्धी योजना निम्नलिखित बातों में सहायता प्रदान करती है –

  1. परिवार के सदस्यों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति।
  2. भोजन में मितव्ययिता का ध्यान रखना।
  3. विभिन्न सदस्यों की भोजन सम्बन्धी प्राथमिकताओं का ध्यान रखना।
  4. भोजन आकर्षक तरीके से परोसना।
  5. ऊर्जा, समय और ईंधन की बचत करना।
  6. बचे हुए भोजन का सही उपयोग।

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प्रश्न 37.
भोजन पकाते समय गृहिणी की व्यक्तिगत स्वच्छता सम्बन्धी किसी एक नियम का उल्लेख करें।
उत्तर :
भोजन पकाना शुरू करने से पूर्व गृहिणी को अपने हाथ अच्छी प्रकार से धोने चाहिए। बालों को हमेशा बांधकर रखना चाहिए।

प्रश्न 38.
खाना परोसते समय स्वच्छता सम्बन्धी किसी एक नियम का उल्लेख करें।
उत्तर :
खाना साफ-सुथरे बर्तनों में परोसना चाहिए तथा खाना खाने के लिए स्थान हवादार होना चाहिए।

प्रश्न 39.
दूध व दही का भण्डारण कैसे करेंगे ?
उत्तर :
दूध व दही का भण्डारण कम तापमान पर रेफ्रिजीरेटर में किया जाता है।

प्रश्न 40.
गेहूँ का भण्डारण कैसे करेंगे ?
उत्तर :
गेहूँ का भण्डारण बोरियों में, टीन के बने ड्रमों में किया जाता है। गेहूँ में नीम के पत्ते मिलाकर इसका भण्डारण किया जाता है।

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प्रश्न 41.
रसोई घर की स्वच्छता सम्बन्धी किसी एक नियम का उल्लेख करें।
उत्तर :
रसोईघर में खाने वाला सामान इधर-उधर बिखरा नहीं होना चाहिए, इससे चूहे, तिलचिट्टे, मक्खियां, छिपकलियां आदि रसोई में नहीं आ पाएंगे।

प्रश्न 42.
ताजे फलों व सब्जियों का भण्डारण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर :
ताजे फलों व सब्जियों को ठण्डे स्थान जैसे फ्रिज में रखकर भण्डारण किया जाता है।

प्रश्न 43.
किस दशा में दिए जाने वाले आहार को उपचारार्थ कहा जाता है ?
उत्तर :
किसी रोगी को रोग की दशा में दिए जाने वाले भोजन को उपचारार्थ कहा जाता है।

प्रश्न 44.
आहार नियोजन कला है या विज्ञान ?
उत्तर :
आहार-नियोजन कला भी है तथा विज्ञान भी। विज्ञान इसलिए कि आहार नियोजन में पौष्टिक मूल्यों के अनुसार भोज्य पदार्थ तालिका में शामिल किए जाते हैं तथा पकाने में तथा परोसने में कला का प्रयोग होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
आहार आयोजन का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
आहार आयोजन का अर्थ है उपलब्ध भोज्य सामग्री के द्वारा परिवार के सदस्यों के लिए रुचिकर, स्वास्थ्यप्रद तथा पारिवारिक बजट के अनुकूल दैनिक आहार की अग्रिम रूप-रेखा तैयार करना। आहार आयोजन परिवार के हर सदस्य की आयु, लिंग, कार्य और उसकी पोषण सम्बन्धी आवश्यकता को ध्यान में रखकर ही वैज्ञानिक ढंग से किया जा सकता है। आहार आयोजन के दो प्रमुख पहलू हैं – (i) आर्थिक तथा (ii) मनोवैज्ञानिक। एक धनी परिवार का आहार आयोजन गरीब परिवार के आहार आयोजन से सदैव भिन्न होगा। आहार आयोजन परिवार के सदस्यों को भोजन सम्बन्धी रुचियों एवं प्रवृत्तियों से भी बहुत अधिक प्रभावित होता है। आहार आयोजन का प्रमुख उद्देश्य परिवार के लिए पौष्टिक भोजन प्रदान करना है।

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प्रश्न 2.
आहार आयोजन से क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
आहार आयोजन से निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. परिवार के प्रत्येक सदस्य को शारीरिक आवश्यकताओं के अनुकूल पौष्टिक भोजन की प्राप्ति होती है।
  2. गृहिणी के समय की बचत होती है क्योंकि ठीक मौके पर यह नहीं सोचना पड़ता कि अमुक समय में क्या बनेगा। साथ ही उसके लिए सामान पहले से ही खरीद लिया जाता है।
  3. गृहिणी की शक्ति की बचत होती है। आहार आयोजन से कम समय में ही अधिक कार्य किया जा सकता है।
  4. परिवार के सदस्यों की रुचि को ध्यान में रखकर आहार आयोजन करने से प्रत्येक सदस्य को उसकी रुचि के अनुसार भोजन मिलता है।
  5. आहार आयोजन कर लेने से इकट्ठा सामान थोक के भाव से खरीदने से धन की बचत होती है।
  6. आहार आयोजन में सभी समय का आहार सन्तुलित, सुपाच्य होने के साथ-साथ स्वास्थ्यकर भी होता है।

प्रश्न 3.
प्रातःकाल के नाश्ते की कुछ व्यवस्थायें या मीन बताइये।
उत्तर :
नाश्ते की कुछ व्यवस्थायें निम्नलिखित हैं –

  1. गेहूँ, मक्का – बाजरा या गेहूँ-मक्का का दलिया, दूध या लस्सी के साथ; दो टोस्ट, मक्खन या मलाई के साथ, आलू का कटलेट या बेसन का पूड़ा, मौसमी फल – केला, अमरूद, पपीता, आम, सन्तरा या बेर आदि, चाय, कॉफी, लस्सी।
  2. गेहूँ, चने की या मिश्रित अनाज की रोटी, दही या रायते या आचार के साथ, मौसमी फल, लस्सी, शिकन्जवी, चाय या कॉफी।
  3. आलू, प्याज, मूली, गोभी, मेथी या बथुआ का परांठा दही के साथ; एक टोस्ट मक्खन, जैम या पनीर के टुकड़े के साथ; मौसमी फल, लस्सी, शिकन्जी, चाय या कॉफी।
  4. दो टोस्ट मक्खन या जैम के साथ, दो अण्डे उबले या तले हुए या बेसनी आमलेट, कार्न फ्लेक-दूध, मौसमी फल, चाय या कॉफी।
  5. डोसा-सांभर या इडली – सांभर, पोहे या ढोकले दाल व दही के साथ, बेसनी आमलेट या अण्डे का आमलेट, मौसमी फल, लस्सी, शिकन्जवी, चाय या कॉफी।

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प्रश्न 4.
दोपहर के भोजन की कुछ व्यवस्थायें बताइये।
उत्तर :
दोपहर के भोजन की कुछ व्यवस्थायें या मीनू निम्नलिखित हैं –

  1. मक्की की रोटी सरसों के साग के साथ या बाजरे की रोटी पत्ते सहित मूली की भुरजी व मूंग, मोठ की मिश्रित दाल के साथ या रोटी, पूड़ी या परांठों के साथ दाल, सब्जी, दही, चटनी व सलाद।
  2. चावल – दाल की खिचड़ी या बाजरा-दाल की खिचड़ी, बाजरा-लस्सी की राबड़ी हरी-सब्जी, दही, चटनी, अचार व सलाद।
  3. चावल, हरी-सब्जी, चटनी, टोस्ट-मक्खन, सलाद।
  4. चावल, दाल, कोई हरी-सब्जी, दही या रायता, चटनी व सलाद।
  5. रोटी, कोई हरी सब्जी, रायता, चटनी व सलाद।

नोट – दाल के स्थान पर कोफ्ते, सांभर, कढ़ी, आलू, बड़ियां, सोयाबीन बड़ियां, राजमांह, छोले, लोबिया आदि का प्रयोग करके भोजन में विविधता लाई जाती है।

प्रश्न 5.
संध्या का जलपान या शाम की चाय कब और कैसी होनी चाहिए ? शाम की चाय के कुछ मीनू भी बताइये।।
उत्तर :
कुछ लोग तो शाम को केवल चाय ही पीना पसन्द करते हैं, जबकि कुछ उसके साथ कुछ खाने को भी लेते हैं। चाय के साथ परोसे जाने वाले व्यंजन अवसर के अनुसार देने चाहिए। रोज़ तो घर में शाम को चाय के साथ अक्सर कुछ नमकीन और मीठा खा लिया जाता है, परन्तु ध्यान रखना चाहिए कि साथ में दिए जाने वाले व्यंजन हल्के, स्फूर्तिदायक और आसानी से परोसे जाने वाले हों। ऐसा करना इसलिए आवश्यक है कि रोज़ चाय पीने के लिए परिवार के सदस्य मेज आदि पर बैठना पसन्द नहीं करते अपितु जहाँ बैठे हों वहीं लेना पसन्द करते हैं। कुछ लोग जो दिनभर के काम के पश्चात् घर आते हैं, तो चाय के साथ कुछ भारी चीज़ जैसे लड्डू आदि खाना पसन्द करते हैं। परन्तु कुछ ऐसे भी लोग हैं जो रात्रि का भोजन जल्दी लेना चाहते हैं। अतः वे शाम को खाली चाय ही पीते हैं।

साधारण समय के लिए :

  1. पकौड़े, चाय।
  2. टमाटर के सैंडविच, चाय।
  3. मठरी, बेसन के लड्डू, चाय।
  4. मीठे बिस्कुट, साबूदाने के बड़े, चाय।
  5. जलेबी, आलू के चिप्स, चाय।

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प्रश्न 6.
रात्रि का भोजन कैसा होना चाहिए ?
उत्तर :
रात्रि के भोजन तथा दोपहर के भोजन में कोई विशेष अन्तर नहीं होता। अत: रात के भोजन में भी वे सभी खाद्य-पदार्थ सम्मिलित किये जाते हैं जो दोपहर के भोजन में सम्मिलित किये जाते हैं लेकिन इतना होने पर भी रात के भोजन की व्यवस्था करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। ये बातें निम्नलिखित हैं –

  1. इस भोजन की व्यवस्था सोने से कम-से-कम दो-तीन घंटे पूर्व होनी चाहिए।
  2. दिनभर काम करने के कारण टूटने-फूटने वाले कोषाणुओं की पूर्ति करने के लिए प्रोटीनयुक्त खाद्य-पदार्थों की संख्या अधिक होनी चाहिए।
  3. यह दोपहर के भोजन की तुलना में हल्का होना चाहिए अन्यथा पाचन क्रिया ठीक प्रकार से नहीं हो पाती है।

रात्रि के भोजन में निम्नलिखित खाद्य-पदार्थों को लिया जाना चाहिए –

  1. कोई भी दाल।
  2. हरी-सब्जी (यदि दोपहर के भोजन में न ली गई हो तो अवश्य ही प्रयोग करें)।
  3. दूध, दही।
  4. कोई मीठा व्यंजन, जैसे-कस्टर्ड, फ्रूट क्रीम, पुडिंग चावल या साबूदाने की खीर, आटा-सूजी या मूंग की दाल का अथवा बाजरे का हलवा, आइसक्रीम, कुल्फी आदि।
  5. भोजन से पूर्व सब्जियों या मांस का सूप।

प्रश्न 7.
रात्रि के भोजन के लिए कुछ मीनू बताइये।
उत्तर :

  1. पालक-पनीर कोफ्ता, गोभी की सब्जी, बूंदी का रायता, सलाद, पूरी, मूंगफली का पुलाव, गाजर का हलवा।
  2. कीमा-कोफ्ता, पालक-मूंगफली साग, आलू-गाजर-मटर की सब्जी, सलाद, पुलाव / तन्दूरी रोटी, फ्रूट-क्रीम (Fruit Cream)।
  3. टमाटर का सूप, धन-साग (Dhan-Sag), बेक्ड सब्जियां (Baked Vegetables), सलाद, पुलाव / नॉन, ट्राइफल पुडिंग (Trifle Pudding)।
  4. पालक सूप, आलू-मटर पनीर; गोभी मुसल्लम; गाजर का रायता; पुलाव / तन्दूरी रोटी; लैमन सूफले (Lemon Souffle)।
  5. केले और अमरूद का पेय; मीट करी / पनीर कोफ्ते; राजमांह; भरवां लौकी, सलाद; सादा पुलाव / पूरी, रबड़ी।

प्रश्न 8.
स्कूल जाने वाले बच्चे के लिए सुबह का नाश्ता तैयार करते समय कौन कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :
स्कूल जाने वाले बच्चे के लिए सुबह का नाश्ता तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
1. सन्तुलित नाश्ता तैयार करना – स्कूल जाने वाले बच्चे के लिए सदैव सन्तुलित नाश्ते की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे उसकी पौष्टिक आवश्यकताएं पूरी हो सकें। इसके लिए चपाती या परांठा, उबली हुई सूखी दाल, सब्जी, दही एवं दूध की व्यवस्था करनी चाहिए। नाश्ते के मीनू में हमेशा बच्चों की रुचि के अनुकूल खाद्य-पदार्थों का समावेश करना चाहिए।

2. नाश्ते का आकर्षक होना – नाश्ते का रूप-रंग और उसकी रचना इतनी आकर्षक होनी चाहिए कि उसे देखते ही बच्चे का मन खाने के लिए लालायित हो उठे।

3. समय से नाश्ता तैयार करना – स्कूल जाने वाले बच्चे का नाश्ता तैयार करते समय माँ को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नाश्ता बच्चे के स्कूल जाने से इतनी देर पहले अवश्य तैयार हो जाए कि बच्चा आराम से नाश्ता कर सके।

4. नाश्ते का महत्त्व समझाना – प्रायः ऐसा होता है कि बच्चे स्कूल जाने से पहले नाश्ता लेना पसंद नहीं करते ऐसी स्थिति में बच्चे को डांटने-फटकारने के स्थान पर प्रेम से यह समझाना चाहिए कि उनके लिए नाश्ता लेना ज़रूरी है।

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प्रश्न 9.
स्कूल जाने वाले बच्चे के लिए टिफिन तैयार करते समय कौन-कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :

  1. कैलोरी की मात्रा – टिफिन में पोषक तत्त्वों की दृष्टि में दैनिक आवश्यकता के 1/6 से 1/5 भाग की पूर्ति होनी चाहिए।
  2. सन्तुलित आहार – टिफिन तैयार करते समय सन्तुलित आहार सम्बन्धी सिद्धान्तों का ध्यान रखना चाहिए।
  3. हर रोज़ मीन बदलना – इससे भोजन के प्रति अरुचि पैदा नहीं होती।
  4. भोजन की मात्रा – बच्चे के टिफिन में भोजन की मात्रा न तो बहुत अधिक रखनी चाहिए और न बहुत कम।
  5. भोजन इस प्रकार का होना चाहिए कि टिफिन के उलटने से कोई पदार्थ, तरी आदि गिरकर कपड़े या किताबें खराब न हों।
  6. बच्चे को टिफिन के साथ एक नेपकिन देना चाहिए।
  7. बच्चे को पानी की बोतल भी ज़रूर देनी चाहिए।

प्रश्न 10.
जल्दी-जल्दी नाश्ता करने से क्या हानियाँ होती हैं ?
उत्तर :
जल्दी-जल्दी नाश्ता करने से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं –
1. भोजन ठीक से चबाया नहीं जाता जिससे मुँह में स्टॉर्च शर्करा में रूपान्तरण नहीं हो पाता।

2. जल्दी-जल्दी में पूरा नाश्ता नहीं किया जाता जिससे भूख लगने के कारण बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगता और वह थका-थका सा रहता है। इससे वह पढ़ाई में भी कमज़ोर होता है।

3. सन्तुलित और पूरा नाश्ता न करने और नाश्ते के लिए पैसा ले जाने के कारण बच्चे स्कूल के बाहर बैठे खोमचे वालों से दूषित भोज्य-पदार्थ खाते हैं जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। अतः स्पष्ट है कि स्कूल जाने वाले बच्चे को प्रातःकालीन नाश्ता आयोजित करते समय कुछ अधिक सावधानी रखनी चाहिए।

प्रश्न 11.
किशोरावस्था में पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएं क्यों बढ़ जाती हैं ?
उत्तर :
इस अवस्था में पर्याप्त शारीरिक परिवर्तन होते हैं –

  1. हड्डियां बढ़ती हैं,
  2. मांस-पेशियों की वृद्धि होती है
  3. कोमल तन्तुओं में वसा संग्रहीत होती है
  4. अस्थि पिजर दृढ़ हो जाता है
  5. शरीर में रोग-निरोधक क्षमता का विकास होता है
  6. नाड़ी मंडल में स्थिरता आती है
  7. लड़कों के कन्धे चौड़े होते हैं
  8. लड़कियों के नितम्ब बढ़ते हैं और मासिक धर्म प्रारम्भ हो जाता है।

इस प्रकार शारीरिक वृद्धि की गति बढ़ जाने के कारण इस अवस्था में भूख अधिक लगती है और पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएं बढ़ जाती हैं।

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प्रश्न 12.
किशोरावस्था के लड़के-लड़कियां कुपोषण के शिकार क्यों होते हैं ?
उत्तर :
एक तरफ़ जब किशोरावस्था में पोषण आवश्यकताएं बढ़ती हैं दूसरी और वे प्रायः कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। इसके अग्रलिखित कारण होते हैं –

  • पोषण विज्ञान सम्बन्धी अज्ञानता।
  • परम्परागत भोजन सम्बन्धी आदतें।
  • निर्धनता के कारण अपर्याप्त और असंतुलित भोजन।
  • मानसिक अस्थिरता और चिड़चिड़ापन।
  • कोई तीव्र संक्रमण एवं शारीरिक रोग जिसके कारण भूख कम लगती हो।
  • लड़कियों में स्थूलता का भय जिसके कारण वे बहुत-से खाद्य-पदार्थों जैसे दूध, आलू आदि से परहेज करती हैं।
  • दिनचर्या का नियमित न होना और भोजन करने का निश्चित समय न होना।
  • स्वतन्त्रता की भावना होने से अपने लिए भोजन स्वयं चुनना तथा अपनी शारीरिक आवश्यकताओं का ध्यान न रखना।

प्रश्न 13.
किशोरावस्था के लिए आहार आयोजन करते समय क्या सुझाव लाभकारी हो सकते हैं ?
अथवा
किशोरावस्था के लिए आहार आयोजन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :
किशोरावस्था के लिए आहार आयोजन करते समय निम्नलिखित सुझाव लाभकारी हो सकते हैं

  • भोजन की पौष्टिकता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • भोजन में सभी वर्गों के खाद्य पदार्थ बदल-बदल कर सम्मिलित किए होने चाहिएँ।
  • दूध और दूध से बने पदार्थ भोजन में अवश्य सम्मिलित किए जाने चाहिएँ।
  • दूध का अभाव होने पर प्रोटीन की पूर्ति सोयाबीन एवं मूंगफली द्वारा करनी चाहिए।
  • हरी पत्तेदार सब्जियों तथा गहरी पीली सब्जियों को आहार में विशेष स्थान देना चाहिए।
  • भोजन में सलाद का होना आवश्यक है क्योंकि कच्ची सब्जियों द्वारा विटामिन सुलभ प्राप्त हो जाते हैं।
  • मौसम के फल जैसे अमरूद, केला, आम, पपीता को आहार में अवश्य सम्मिलित करना चाहिए।
  • भोजन तैयार करते समय तलने-भूनने की क्रियाओं का प्रयोग कम होना चाहिए।
  • मसालों का प्रयोग कम करना चाहिए।
  • भोजन का समय नियमित होना आवश्यक है।
  • शरीर का भार बढ़ रहा हो तो कैलोरी की मात्रा कम रखनी चाहिए।
  • कोष्ठबद्धता से बचने के लिए आहार में रेशेदार पदार्थों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

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प्रश्न 14.
एक 15 वर्षीय किशोर लड़के की ICMR द्वारा प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं लिखें।
उत्तर :
एक 15 वर्षीय किशोर लड़के की ICMR द्वारा प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं इस प्रकार हैं –

  • किशोर का भार – लगभग 48 कि०ग्रा०
  • कैलोरी की मात्रा – 2450 कि० कैलोरी
  • प्रोटीन – 70 ग्राम
  • कैल्शियम – 600 मि.ग्रा०
  • लोहा – 41 मिग्रा०
  • विटामिन ए – 2400 मिग्रा०
  • थायामिन – 1.2 मि०ग्रा०
  • राइबोफ्लेबिन – 1.5 मिग्रा०

प्रश्न 15.
भोजन का पौष्टिक मान बढ़ाने का अभिप्राय लिखें।
उत्तर :
सामान्य आहार में अनाज की मात्रा अधिक होती है। कार्बोज़ द्वारा व्यक्ति की कैलोरी आवश्यकताओं की पूर्ति तो हो जाती है, परन्तु शरीर निर्माण करने वाले पौष्टिक तत्त्व जैसे प्रोटीन तथा स्वास्थ्य रक्षा करने वाले तत्त्व जैसे विटामिन व खनिज लवणों का अभाव होता है। जो भी खाद्य पदार्थ उपलब्ध होते हैं उनका पौष्टिक मान बढ़ाने से शरीर के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्त्व उपलब्ध हो जाते हैं। अंकुरण द्वारा, मिश्रण द्वारा पौष्टिक मान बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 16.
आटे का चोकर फेंकने से क्या नुकसान होते हैं ?
उत्तर :
आटे का चोकर फेंकने से प्रोटीन, थायमिन, निकोटिनिक एसिड, विटामिन B आदि का नुकसान होता है।

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प्रश्न 17.
एक गर्भवती स्त्री की ICMR द्वारा प्रस्तावित दैनिक पौशिक आवश्यकतायें लिखें।
उत्तर :
गर्भवती स्त्री के लिए प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं इस प्रकार हैं –

  • ऊर्जा – 2525 कि० कै (मध्यम कार्य)
  • प्रोटीन – 65 ग्राम
  • कैल्शियम – 1000 मिग्रा०
  • लोह – 38 मि०ग्रा०
  • रेटीनाल – 600 माइक्रो ग्रा०
  • थायमिन – 1.3 माइक्रो ग्रा०
  • विटामिन ‘सी’ – 40 मिग्रा०
  • विटामिन B12 – 1 माइक्रो ग्रा०
  • नायसिन – 16 मि.ग्रा०

प्रश्न 18.
दोपहर के भोजन का आयोजन करते समय गृहिणी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :

  1. दोपहर का भोजन भारी होना चाहिए ताकि सन्तुष्टि मिले।
  2. इसमें सभी भोजन समूह से खाद्य पदार्थ होने चाहिए।
  3. कच्ची तथा पक्की सब्जियां होनी चाहिए।
  4. पूरे दिन की ज़रूरत का तीसरा भाग दोपहर के खाने से मिलना चाहिए।

प्रश्न 19.
एक वयस्क पुरुष की ICMR द्वारा प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं लिखें।
उत्तर :
वयस्क पुरुष जिसका शारीरिक भार 60 किलोग्राम है तथा मध्यम दर्जे का कार्य करता है, उसके लिए प्रस्तावित दैनिक पौष्टिक आवश्यकताएं हैं –

  • प्रोटीन – 60 ग्राम
  • कैल्शियम – 400 मिग्रा०
  • लोहा – 28 मि०ग्रा०
  • विटामिन ए – 2400 माइक्रो ग्राम
  • थायमिन – 1.4 मि०ग्रा०
  • राइबोफलेविन – 1.6 मि०ग्रा०
  • कैलोरी – 2875 किलो कैलोरी

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प्रश्न 20.
रात्रि के भोजन की व्यवस्था करते समय गृहिणी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? (कोई दो)
उत्तर :
1. भोजन की व्यवस्था सोने से कम-से-कम दो तीन घण्टे पूर्व होनी चाहिए।
2. यह दोपहर के भोजन की तुलना में हल्का होना चाहिए।

प्रश्न 21.
भोजन सम्बन्धी अन्ध विश्वास एवं मान्यताओं का आहार आयोजन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
हमारे देश में भोजन सम्बन्धी अन्ध विश्वास तथा भ्रम सदियों से चले आ रहे हैं। इनका आहार आयोजन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इनके कारण से जो भी कुछ भोजन हमें मिल पाता है उसका भी पूर्ण रूप से लाभ हम नहीं उठा पाते।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
(क) भोजन को समूहों में क्यों बांटा गया है ? सन्तुलित भोजन बनाने के समय इसके क्या लाभ हैं ?
(ख) संतुलित आहार आयोजन में आहार वर्ग किस प्रकार सहायक होते हैं ? उदाहरण सहित समझाएं।
उत्तर :
(क) अलग-अलग भोजनों में अलग-अलग पौष्टिक तत्त्व मौजूद होते हैं। इसलिए भोजन को उनके पौष्टिक तत्त्वों के अनुसार अलग-अलग भोजन समूहों में बांटा गया है। अण्डे और दूध को पूर्ण खुराक माना गया है। लेकिन प्रतिदिन एक भोजन नहीं खाया जा सकता। इससे मन ऊब जाता है। इसलिए भोजन समूहों में से ज़रूरत अनुसार कुछ-न-कुछ लेकर सन्तुलित भोजन प्राप्त किया जाता है। अलग-अलग भोजनों की पौष्टिक तत्त्वों के अनुसार बारम्बारता इस तरह है –

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सन्तुलित भोजन बनाते समय सारे भोजन समूहों में से आवश्यक पौष्टिक तत्त्वों वाले भोजन लिए जाएंगे ताकि भोजन स्वादिष्ट और खुशबूदार बनाया जा सके।
परिवार के लिए सन्तुलित भोजन बनाना (Planning Balanced Diet for the Family) सन्तुलित भोजन बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. मनुष्य की प्रतिदिन की पौष्टिक तत्वों की ज़रूरत का ज्ञान (Knowledge of Daily Nutritional Requirements)
  2. ज़रूरी पौष्टिक तत्त्व देने वाले भोजनों की जानकारी तथा चुनाव (Knowledge of Food Stuffs that can Provide Essential Nutrients)
  3. भोजन की योजनाबन्दी (Planning of Meals)
  4. भोजन पकाने का ढंग (Method of Cooking)
  5. भोजन परोसने का ढंग (Method of Serving Food)

1. मनुष्य की प्रतिदिन की पौष्टिक तत्त्वों की जरूरत का ज्ञान (Knowledge of Daily Nutritional Requirements) मनुष्य की भोजन की आवश्यकता उसकी आयु, लिंग, व्यवसाय तथा जलवायु के साथ-साथ शारीरिक हालत पर निर्भर करती है। जैसे भारा तथा शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति को हल्का तथा दिमागी कार्य करने वाले मनुष्य की अपेक्षा ज्यादा कैलोरी तथा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा लोहे की ज्यादा ज़रूरत है। इसलिए सन्तुलित भोजन बनाने से पहले पारिवारिक व्यक्तियों की पौष्टिक तत्त्वों की ज़रूरत का ज्ञान होना जरूरी है।

2. ज़रूरी पौष्टिक तत्त्व देने वाले भोजन की जानकारी (Knowledge of Food Stuffs that can Provide Essential Nutrients) – प्राकृतिक रूप में मिलने वाले भोजन को उनके पौष्टिक तत्त्वों के आधार पर पाँच भोजन समूहों में बांटा गया है, जोकि पीछे टेबल नं० 1 में दिए गए हैं। प्रत्येक समूह में से भोजन पदार्थ शामिल करने से सन्तुलित भोजन तैयार किया जा सकता है। भिन्न-भिन्न प्रकार की आयु, लिंग तथा शारीरिक अवस्था के अनुसार पौष्टिक तत्त्वों की ज़रूरत भी भिन्न-भिन्न होती है।

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3. भोजन की योजनाबन्दी (Planning of Meals) भोजन की ज़रूरत तथा चुनाव के बाद उसकी योजना बना ली जाए। कितने समय के अन्तराल के बाद भोजन खाया जाए जिसके पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा पूरी हो सके। भोजन की योजनाबन्दी को निम्नलिखित बातें प्रभावित करती हैं –

  1. परिवार के सदस्यों की संख्या।
  2. परिवार के सदस्यों की आयु, व्यवसाय तथा शारीरिक अवस्था।
  3. परिवार के सदस्यों की भोजन के प्रति रुचि तथा जरूरत।
  4. परिवार के रीति-रिवाज।
  5. भोजन पर किया जाने वाला व्यय तथा भोजन पदार्थों की खुराक।

ऊपरलिखित बातों को ध्यान में रखते हुए पौष्टिक तत्त्वों की पूर्ति तथा भोजन की ज़रूरत के अनुसार सारे दिन में खाए जाने वाले भोजन को चार मुख्य भागों में बांटा गया है –

  1. सुबह का नाश्ता (Breakfast)
  2. दोपहर का भोजन (Lunch)
  3. शाम का चाय-पानी (Evening Tea)
  4. रात का भोजन (Dinner)

(i) सुबह का नाश्ता (Breakfast) – पूरे दिन की ज़रूरत का चौथा भाग सुबह के नाश्ते द्वारा प्राप्त होना चाहिए। अच्छा नाश्ता शारीरिक तथा मानसिक योग्यता को प्रभावित करता है। नाश्ते की योजना बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –
(क) शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए नाश्ता ठोस तथा कार्बोज़ युक्त होना चाहिए जबकि मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए हल्का तथा प्रोटीन युक्त नाश्ता अच्छा रहता है।

(ख) यदि नाश्ते तथा दोपहर के खाने में ज्यादा लम्बा समय हो तो नाश्ता भारी लेना चाहिए तथा यदि अन्तर कम या समय कम हो तो नाश्ता हल्का तथा जल्दी पचने वाला होना चाहिए।

(ग) नाश्ते में सभी भोजन तत्त्व शामिल होने चाहिएं जैसे भारी नाश्ते के लिए भरा हुआ परांठा, दूध, दही या लस्सी तथा कोई फल लिया जा सकता है। हल्के नाश्ते के लिए अंकुरित दाल, टोस्ट, दूध तथा फल आदि लिए जा सकते हैं।

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(ii) दोपहर का भोजन (Lunch) – पूरे दिन की ज़रूरत का तीसरा भाग दोपहर के भोजन द्वारा प्राप्त होना चाहिए। इसमें अनाज दालें, पनीर, मौसमी फल तथा हरी पत्तेदार सब्जियां होनी चाहिएं। भोजन में कुछ कच्ची तथा कुछ पक्की चीजें होनी चाहिएं। अधिकतर कार्य करने वाले लोग दोपहर का खाना साथ लेकर जाते हैं। इसलिए वह भोजन भी पौष्टिक होना चाहिए। उदाहरण के लिए दोपहर के भोजन में रोटी, राजमांह, कोई सब्जी, रायता तथा सलाद लिया जा सकता है तथा साथ ले जाने वाले भोजन में पुदीने की चटनी आदि तथा सैंडविच, गचक तथा कुछ फल सम्मिलित किया जा सकता है।

(iii) शाम की चाय (Evening Tea) – इस समय चाय के साथ कोई नमकीन या मीठी चीज़ जैसे बिस्कुट, केक, बर्फी, पकौड़े, समौसे आदि लिए जा सकते हैं।

(iv) रात का भोजन (Dinner) – इस भोजन में से भी पूरे दिन की ज़रूरत का तीसरा भाग प्राप्त होना चाहिए। रात तथा दोपहर के भोजन में कोई फर्क नहीं होता परन्तु फिर भी इसको बनाते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे –

(क) दोपहर के भोजन की अपेक्षा रात का भोजन हल्का होना चाहिए ताकि जल्दी पच सके।
(ख) सारा दिन काम – काज करते हुए शरीर के तन्तुओं की टूट-फूट होती रहती है। इसलिए इनकी मरम्मत के लिए प्रोटीन वाले भोजन पदार्थ होने चाहिएं।
(ग) रात का भोजन विशेष ध्यान देकर बनाना चाहिए क्योंकि इस समय परिवार के सारे सदस्य इकट्ठे होकर भोजन करते हैं।

4. भोजन पकाने का ढंग (Method of Cooking) – भोजन की योजनाबन्दी का तभी फ़ायदा है जब भोजन को ऐसे ढंग के साथ पकाया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा खुराकी तत्त्वों की सम्भाल हो सके। भोजन खरीदते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. सूखे भोजन पदार्थ जैसे अनाज, दालें अधिक मात्रा में खरीदनी चाहिएं परन्तु यह भी उतनी ही मात्रा में जिसकी आसानी से सम्भाल हो सके।
  2. फल तथा सब्जियां ताज़ी खरीदनी चाहिएं क्योंकि बासी फल तथा सब्जियों में विटामिन तथा खनिज लवण नष्ट हो जाते हैं।
  3. हमेशा साफ़ – सुथरी दुकानों से ही भोजन खरीदना चाहिए।

भोजन को पकाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. भोजन को अधिक समय तक भिगोकर नहीं रखना चाहिए क्योंकि बहुत सारे घुलनशील तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  2. सब्जियों तथा फलों के ज्यादा छिलके नहीं उतारने चाहिएं क्योंकि छिलकों के नीचे विटामिन तथा खनिज लवण ज्यादा मात्रा में होते हैं।
  3. सब्जियों को बनाने से थोड़ी देर पहले ही काटना चाहिए नहीं तो हवा के सम्पर्क के साथ भी विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
  4. सब्जियां तथा फल हमेशा बड़े-बड़े टुकड़ों में काटने चाहिएं क्योंकि इस तरह से फल तथा सब्जियों की कम सतह पानी तथा हवा के सम्पर्क में आती है।
  5. सब्जियों को उबालते समय पानी में डालकर कम-से-कम समय के लिए पकाया जाए ताकि उनकी शक्ल, स्वाद तथा पौष्टिक तत्त्व बने रहें।
  6. भोजन को पकाने के लिए मीठे सोडे का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे विटामिन ‘बी’ तथा ‘सी’ नष्ट हो जाते हैं।
  7. प्रोटीन युक्त पदार्थों को धीमी आग पर पकाना चाहिए नहीं तो प्रोटीन नष्ट हो जाएंगे।
  8. भोजन हिलाते तथा छानते समय अधिक समय नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे भोजन के अन्दर हवा इकट्ठी होने के कारण विटामिन ‘सी’ नष्ट हो जाता है।
  9. खाना बनाने वाले बर्तन तथा रसोई साफ़-सुथरी होनी चाहिए।
  10. भोजन में अधिक मसालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  11. एक ही प्रकार के भोजन पदार्थों का प्रयोग बार-बार नहीं करना चाहिए।
  12. जो लोग शाकाहारी हों उनके भोजन में दूध, पनीर, दालें तथा सोयाबीन का प्रयोग अधिक होना चाहिए।
  13. जहां तक हो सके भोजन को प्रैशर कुक्कर में पकाना चाहिए क्योंकि इससे समय तथा शक्ति के साथ-साथ पौष्टिक तत्त्व भी बचाए जा सकते हैं।

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5. भोजन परोसने का ढंग (Method of Serving Food) –

  • खाना खाने वाला स्थान, साफ़-सुथरा तथा हवादार होना चाहिए।
  • खाना हमेशा ठीक तरह के बर्तनों में ही परोसना चाहिए जैसे तरी वाली सब्जियों के लिए गहरी प्लेट तथा सूखी सब्जियों के लिए चपटी प्लेट प्रयोग में लाई जा सकती है।
  • एक बार ही बहुत ज्यादा भोजन नहीं परोसना चाहिए बल्कि पहले थोड़ा तथा आवश्यकता पड़ने पर ओर लिया जा सकता है।
  • सलाद तथा फल भी भोजन के साथ अवश्य परोसने चाहिएं।
  • भोजन में रंग तथा भिन्नता होनी चाहिए। इसलिए धनिये के हरे पत्ते, नींबू तथा टमाटर आदि का प्रयोग किया जा सकता है।

यदि ऊपरलिखित बातों को ध्यान में रखकर भोजन तैयार किया जाए तो व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार, प्रसन्न मन के साथ भोजन खाकर सन्तुलित भोजन का उद्देश्य पूरा कर सकता है। (ख) देखें (क) का उत्तर।

प्रश्न 2.
भोजन की पौष्टिकता बनाने के लिए भोजन पकाते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 3.
आहार नियोजन से आप क्या समझते हैं ? इसको प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं ?
उत्तर :
एक समझदार गृहिणी में यह गुण होना चाहिए कि आहार भोजन इस तरह बनाए कि परिवार के सभी सदस्यों को उनकी आवश्यकता अनुसार सन्तुलित और स्वादिष्ट खाना मिल सके। सारा दिन आवश्यकता अनुसार क्या-क्या खाना चाहिए यह आहार नियोजन से पता चलता है। इसलिए परिवार के सदस्यों की आवश्यकता और निश्चित समय अनुसार अच्छे पोषण के लिए खाद्य पदार्थों की योजनाबन्दी को आहार नियोजन कहा जाता है।

आहार नियोजन को प्रभावित करने वाले कारक –
1. आय – आहार नियोजन के समय आय को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छा आहार अर्थात् सन्तुलित भोजन होना आवश्यक है। सन्तुलित भोजन के बारे में आप पहले ही पढ़ चुके हैं। यदि हम गैर-मौसमी वस्तु खरीदेंगे तो महंगी ही मिलेंगी। इस के विपरीत मौसमी सब्जी या फल पर खर्च कम होगा। यदि हम महंगे भोजन नहीं खरीद सकते तो हमारी कुछ आवश्यकताएं (पौष्टिक तत्त्वों सम्बन्धी) सस्ते भोजन से भी पूरी हो सकती हैं। जिस तरह सप्रेटा दूध अधिक प्रयोग किया जाए तो इसमें कोई नुकसान नहीं। जहां तक हो सके स्थानिक पैदा हुई सब्जियां और फल उपयोग करने में सस्ते से ही भोजन ताज़ा और विटामिन भरपूर होगा।

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2. मौसम – सर्दियों में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जबकि गर्मियों में ठण्डे और तरल पदार्थों की आवश्यकता अधिक होती है। इसके अनुसार ही खाने की योजना बनानी चाहिए। सर्दियों में जो ऊर्जा भरपूर पिन्नियां, मिठाइयां, समौसे और पकौड़े साथ देते हैं। प्रत्येक मौसम के अनुसार सूची बनाकर परिवार की पौष्टिक आवश्यकताओं को मुख्य रखना चाहिए। मौसमी फलों और सब्जियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। बेमौसमी सब्जियां और फल महंगे भी मिलते हैं और ताज़े भी नहीं होते।

3. भोजन प्राप्ति – प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक भोजन पदार्थ उपलब्ध नहीं होता। वह ही भोजन सूची में रखने चाहिएं जो आसानी से मिल सकें और निकट मिल सकें। दूर जाने से पैसा और समय नष्ट होगा। यदि घर में फ्रिज है तो बची हुई सब्जी प्रयोग की जा सकती है या यदि सूची में डबलरोटी है तो क्या वह उपलब्ध है आदि।

4. गृहिणी की रुचि और निपुणता – गृहिणी की खाना पकाने में रुचि और निपुणता होनी बहुत आवश्यक है इस तरह वह भिन्न-भिन्न प्रकार के खाने बनाकर भिन्नता लाकर अपने परिवार को खुश कर सकती है और अच्छे आयोजन से परिवार के सदस्यों की पौष्टिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है।

5. परिवार का आकार और रचना – आहार नियोजन के समय परिवार के आकार और रचना को ध्यान में रखना पड़ेगा। परिवार के सदस्यों की आयु, कार्य, संख्या और शारीरिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर सूची बनानी पड़ेगी। जैसे पुरुषों को औरतों से अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, बढ़ रहे बच्चे को अधिक प्रोटीन चाहिए। जैसे कि आप पीछे दिए अध्यायों में पढ़ चुके हैं कि गर्भवती बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ की शारीरिक आवश्यकता अधिक होती है। कृषि करने वाले या सख्त मेहनत करने वाले आदमी को दफ्तर जाने वाले आदमी से अधिक खुराक की आवश्यकता होती है।

आहार नियोजन के समय भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त सूची बनाते समय भोजन सम्बन्धी आदतें, रीति-रिवाज और धार्मिक तथ्य भी ध्यान में रखने चाहिएं। जैसे परिवार का कोई सदस्य यदि शाकाहारी है तो खाने का आयोजन बनाते समय उसका ध्यान रखना चाहिए। यदि जीवन के रूप में ढंगों को ध्यान में रखकर खाने की योजना को बनाया जाएगा तभी भोजन का आनन्द लिया जा सकता है। ये सभी बातों को ध्यान में रखकर यदि सूची बनाई जाए तो शुरू में थोड़ी मुश्किल और अधिक समय लगेगा धीरे-धीरे आदत बन जाती है और कोई मुश्किल नहीं आती।

आहार नियोजन के लाभ –

  1. परिवार के लिए भोजन को सन्तुलित बनाया जा सकता है।
  2. सभी परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
  3. समय, पैसा और शक्ति की बचत की जा सकती है।
  4. भोजन को स्वादिष्ट और आकर्षित बनाया जा सकता है।
  5. बचा हुआ भोजन सही ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है।
  6. खाना पकाते समय पौष्टिक तत्त्वों को बचाया जा सकता है।

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प्रश्न 4.
कोई तीन कारक बताएँ जो संतुलित भोजन की योजना बनाते समय ध्यान में रखने चाहिएँ।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3 का उत्तर।

प्रश्न 5.
भारतीय मेडिकल खोज संस्था की ओर से भारतीयों के लिए की गई खराकी तत्त्वों की सिफ़ारिश के बारे में लिखें।
उत्तर :
भारतीय मेडिकल खोज संस्था (2000) की ओर से भारतीयों के लिए खुराकी तत्त्वों की रोजाना सिफ़ारिश

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प्रश्न 6.
वयस्क पुरुष और स्त्री के सन्तुलित भोजन का एक चार्ट बनाएं।
उत्तर :
वयस्क पुरुष और स्त्री का सन्तुलित भोजन

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प्रश्न 7.
आहार समूह के आधार पर परिवार के लिए सन्तुलित आहार की रचना करें।
उत्तर :
आहार समूह के आधार पर निम्नलिखित भोजनावली की रचना की जा सकती है, जो सन्तुलित है।

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पाँच समूह – भोजन

  1. अनाज – चपाती
  2. दालें – मूंग की दाल
  3. दूध तथा अन्य पशु जन्य पदार्थ – दही
  4. फल व सब्जियाँ – पालक गोभी व संतरा
  5. तेल, घी और चीनी – पकाने के लिए तेल का इस्तेमाल होगा।

एक और भोजनावली की भी रचना की जा सकती है –

आहार समूह – भोजन

  1. अनाज – चावल
  2. दालें – अरहर दाल
  3. दूध तथा अन्य पशु जन्य पदार्थ – रायता
  4. फूल व सब्जियां – मेथी, आड़, गाजर व अमरूद
  5. तेल, घी तथा चीनी – इन्हें पकाने में तेल का इस्तेमाल होगा।

प्रश्न 8.
परिवार के आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित घटकों का उल्लेख कीजिए।
1. लिंग
2. आयु
3. कार्य
4. आर्थिक स्थिति
5. सामाजिक घटक-कर्म, संस्कृति, जाति
6. भोजन संबंधी आदतें
7. भोजन का प्राप्त होना
8. भोजन सम्बन्धी अंधविश्वास एवं मान्यतायें।
उत्तर :
1. लिंग – परिवार के आहार आयोजन पर सदस्यों के लिंग का बहुत प्रभाव पड़ता है। समान आयु एवं व्यवसाय के पुरुषों और स्त्रियों की आहारीय आवश्यकतायें भिन्न-भिन्न होती हैं। एक शारीरिक श्रम करने वाली 30 वर्षीय स्त्री को प्रतिदिन 3000 कैलोरी की आवश्यकता होती है, जबकि उसी आयु के शारीरिक श्रम करने वाले पुरुष को प्रतिदिन 3900 कैलोरी की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार समान आयु के किशोर और किशोरियों की पौष्टिक आवश्यकताओं में भी काफी भिन्नता होती है। इस प्रकार लिंग की दृष्टि से भी आहार में भिन्नता होती है।

2. आयु – आहारीय आवश्यकतायें परिवार के विभिन्न सदस्यों की आयु पर निर्भर करती हैं। किसी भी परिवार में बच्चों की आहार आवश्यकतायें बड़े की आहार आवश्यकताओं से सदैव भिन्न होती हैं। बच्चों को बढ़ोतरी के लिए अधिक प्रोटीन, विटामिन और खनिज लवण युक्त आहार की आवश्यकता होती है, तो शारीरिक श्रम करने वाले वयस्क पुरुष या स्त्री को ऊर्जा प्राप्ति के लिए अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है। अतः ऐसे दो परिवार जिनमें सदस्यों की संख्या तो बराबर हो परन्तु उसकी आयु भिन्न-भिन्न हो तो अलग-अलग प्रकार के खाद्य-पदार्थों की आवश्यकता होगी।

3. कार्य – किसी व्यक्ति की आहारीय आवश्यकताएं उसके कार्य या व्यवसाय पर निर्भर करती हैं। अतः परिवार का आहार आयोजन उसके सदस्यों के व्यवसाय पर निर्भर करेगा। जिस परिवार में शारीरिक श्रम करने वाले सदस्य अधिक होंगे उस परिवार के आहार आयोजन में अधिक कैलोरी प्रदान करने वाले अथवा कार्बोज़ एवं वसायुक्त खाद्य पदार्थों का अधिक समावेश होगा। इसके विपरीत जिस परिवार में मानसिक कार्य करने वाले सदस्य अधिक होंगे उसके आहार आयोजन में प्रोटीन एवं खनिज लवण युक्त पदार्थों का समावेश अधिक होगा।

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4. आर्थिक स्थिति – आहार आयोजन पर घर की आर्थिक स्थिति का बहुत प्रभाव पड़ता है। गृहिणी को आहार आयोजन अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार करना होता है। इसीलिए गृहिणी आहार के लिए उपलब्ध धन के आधार पर ही खाद्य-पदार्थों का चयन करती है। यदि आहार के लिए धन की कोई कमी नहीं होती तो वह आहार आयोजन के लिए महंगे खाद्य-पदार्थों का चयन कर सकती है। इसके विपरीत यदि धन कम हो तो सस्ते खाद्य-पदार्थों का चयन करना पड़ता है।

5. सामाजिक घटक – धर्म, संस्कृति, जाति – भोजन सम्बन्धी आदतें, धर्म, जाति, सामाजिक स्थिति एवं संस्कृति से प्रभावित होती हैं। पंजाबी भोजन में तन्दूरी रोटी, दक्षिण भारतीय भोजन में इमली, मारवाड़ी भोजन में पापड़ अवश्य होना चाहिए। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लोग दिन के खाने में चपातियों के साथ थोडा चावल खाते हैं जबकि दक्षिण भारतीय, बिहारी एवं बंगाली दिन में केवल भात खाते हैं और वह भी पेट भर के।

6. भोजन सम्बन्धी आदतें – आदत मनुष्य की द्वितीय प्रकृति है। कई ऐसे काम हैं जो हम आदतवश करते हैं। भोजन सम्बन्धी आदत भी इनमें से एक है। हम किसी व्यक्ति के पास सुस्वादु एवं अति पौष्टिक भोजन ले जा सकते हैं, परन्तु उसे खाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। उस भोजन को खाना उस व्यक्ति की आदत पर निर्भर करता है। कुछ व्यक्तियों को कुछ विशेष वस्तु के प्रति रुचि एवं कुछ विशेष के प्रति अरुचि रहती है। संसार में विभिन्न जाति एवं धर्म के लोग हैं। उनकी भोजन-सम्बन्धी आदतें भी भिन्न-भिन्न हैं।

हमारे देश में ही विभिन्न प्रान्त के लोग विभिन्न प्रकार के भोजन पसन्द करते हैं। दक्षिण भारत के लोग इमली, मिर्च, चावल अधिक पसन्द करते हैं तो मध्य प्रदेश और उत्तर भारत के लोग रोटी, परांठे, पूरियां आदि अधिक खाते हैं। भोजन के समय में भी विभिन्नता आदत के कारण होती है। कुछ लोग दिन में दो बार भोजन करते हैं तो कुछ लोग चार बार भोजन करते हैं। कुछ लोग दिनभर कुछ-न-कुछ खाते ही रहते हैं। कुछ लोग रात्रि में ही भरपेट भोजन करते हैं । यह सब आदत के ही कारण होता है। भोजन-सम्बन्धी आदत व्यक्तिगत होती है। भोजन-सम्बन्धी गलत आदतों से कुपोषण की समस्या उठ खड़ी होती है। इस प्रकार भोजन सम्बन्धी आदतों का आहार आयोजन पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

7. भोजन का प्राप्त होना – आहार नियोजन करने में घर में उपलब्ध या आसानी से उपलब्ध वस्तुओं का बहुत प्रभाव पड़ता है। खाद्य-पदार्थों की उपलब्धि पर, मौसम व जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ता है और विभिन्न मौसम में भिन्न-भिन्न खाद्य-पदार्थ पाये जाते हैं। अत: आहार आयोजन के समय ध्यान रखना चाहिए कि मौसम के अनुसार ही खाद्य-पदार्थों को अपने भोजन में सम्मिलित करें। ऐसे खाद्य-पदार्थ आसानी से मिल जाते हैं और सस्ते भी होते हैं।

यातायात के अच्छे साधन भी खाद्य-पदार्थों की उपलब्धि पर प्रभाव डालते हैं। अच्छे यातायात के साधन व खाद्य-पदार्थों को सुरक्षित रखने के अच्छे तरीकों से एक जगह पर पाये जाने वाले खाद्य-पदार्थों को आसानी से दूसरी जगह पर पहुँचाया जा सकता है। कुछ खाद्य-पदार्थों के उचित संग्रह व संरक्षण से उन्हें अधिक समय के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।

8. भोजन सम्बन्धी अन्ध – विश्वास एवं मान्यतायें-हमारे देश में भोजन सम्बन्धी अन्ध-विश्वास और भ्रम सदियों से चले आ रहे हैं। इनका आहार आयोजन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इनकी वजह से जो भी कुछ भोजन हमें मिल पाता है उसका भी हम पूरा फायदा नहीं उठा पाते। यदि वैज्ञानिक तौर पर देखा जाये तो हम यह कह सकते हैं कि ये बिल्कुल निराधार हैं क्योंकि हम देखते हैं कि इनके आधार पर एक वर्ग के लोग किसी भोज्य-पदार्थ को ग्रहण नहीं करते परन्तु दूसरे वर्ग के लोग उसी भोज्य-पदार्थ को बहुत लाभदायक समझते हैं। अतः आहार आयोजन के समय हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम इन भोजन भ्रमों को किस प्रकार से दूर करके पौष्टिक आहार दे सकें।

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प्रश्न 9.
आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले किन्हीं पाँच कारकों के बारे में बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3 का उत्तर।

प्रश्न 10.
आहार आयोजन करते समय गृहिणी को किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिये ?
उत्तर :
आहार आयोजन करते समय गृहिणी को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिये –
→ प्रतिदिन की आहार – तालिका बनाते समय परे दिन को एक इकाई के रूप में लेना चाहिए-यानी सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना, शाम का नाश्ता एवं रात्रि के भोजन की आहार तालिका एक बार बनानी चाहिए। तालिका ऐसी हो जिससे दिनभर के भोजन से शरीर को अनिवार्य पोषक तत्त्व मिल सकें।

→ आर हा– तालिका बनाते समय मितव्ययिता को ध्यान में रखना चाहिए, परन्तु भोजन की पौष्टिकता को नहीं भूलना चाहिये। गृहिणी को यह ज्ञान होना चाहिये कि भोजन तत्त्वों की प्राप्ति के सस्ते साधन कौन-कौन से हैं ?

→ तालिका में पाँचों प्रमुख तत्त्वों (प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज लवण) का समावेश शारीरिक आवश्यकता के अनुसार होना चाहिये।
→ आहार – तालिका में सातों आधारभूत भोज्य पदार्थों का रहना अनिवार्य है।
→ आहार – तालिका में मुलायम खाद्य वस्तुओं के साथ कुछ प्राकृतिक रूप से कच्चे पदार्थों (अमरूद, खीरा, ककड़ी, टमाटर, गाजर, प्याज, मूली) आदि का रहना अनिवार्य है।
→ भोजन में क्षुधावर्द्धक पदार्थ (मट्ठा, जलजीरा, पोदीने का पानी, सूप, चाय, कॉफी) भी रहना अनिवार्य है।
→ एक समय के भोजन में ऐसे व्यंजन नहीं रखने चाहिये जिसमें एक ही भोजन तत्त्व की मात्रा अधिक हो, जैसे-दूध तथा दूध से बने पदार्थ।
→ प्रत्येक समय के भोजन में कुछ स्वाभाविक सुगन्ध और आकर्षण वाले पदार्थों का रहना ज़रूरी है।
→ पूरे दिन की आहार – तालिका में एक ही खाद्य वस्तु को एक ही रूप में एक बार से अधिक नहीं रखना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि एक ही भोज्य पदार्थ विभिन्न रूप से भोजन में सम्मिलित नहीं किया जाये, यथा–आलूभरी पूरी, आलू की भुजिया, आलू का चाप, आलू की सब्जी आदि।
→ बच्चों के स्कूल या दफ्तर के लिए दिया जाने वाला भोजन देखने में आकर्षक होना चाहिए, साथ ही लेकर जाने में सुविधाजनक होने के साथ-साथ पौष्टिकता से भरपूर होना भी आवश्यक है।
→ एक ही तरह के भोज्य-पदार्थों को प्रतिदिन की आहार-तालिका में नहीं रखना चाहिए। रात और दिन के भोजन में एक ही प्रकार का भोजन नहीं रहना चाहिए।
→ आहार – तालिका बनाते समय परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को कैलोरी सम्बन्धी आवश्यकताओं को ध्यान में रखना ज़रूरी है। कैलोरी की आवश्यकता एक ही भोज्य पदार्थ से पूरी न होकर विभिन्न भोज्य पदार्थों से होनी चाहिये।
→ आहार – तालिका जलवायु और मौसम के अनुकूल होनी चाहिये। गर्मी में ठण्डे पेय पदार्थ तथा मौसमी फल, सुपाच्य एवं हल्के भोज्य पदार्थों का आहार में समावेश होना चाहिये। जाड़े के मौसम में गरिष्ठ तले हुए भोज्य-पदार्थ, गर्म पेय आदि का उपयोग करना चाहिये।
→ आहार – तालिका बनाते समय परिवार के सदस्यों तथा अतिथियों की रुचि एवं आदतों को भी ध्यान में रखना अनिवार्य है।
→ आहार – तालिका में मौसमी चीज़ों का ही समावेश होना चाहिए।
→ एक बार के भोजन में अधिक किस्म के भोज्य पदार्थों को नहीं रखना चाहिए।
→ आहार – तालिका बनाते समय यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि तालिका में सम्मिलित किये गये खाद्य-पदार्थों को खाने योग्य बनाने में कितना समय लगेगा।
→ आहार – तालिका बनाते समय अपनी आर्थिक स्थिति पर भी ध्यान देना चाहिए।
→ भोजन सम्बन्धी आदतें, धर्म, जाति, सामाजिक स्थिति एवं सांस्कृतिक परिवेश से प्रभावित होती हैं। आहार आयोजन करते समय इन सभी का ध्यान रखना चाहिए।
→ कामकाजी स्त्रियों को सरल आहार तालिका बनानी चाहिए।

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प्रश्न 11.
सुबह के नाश्ते का आयोजन करते समय गृहिणी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिये ?
उत्तर :
दिन का पहला आहार नाश्ता या कलेवा कहलाता है। इसका आयोजन करते समय गृहिणी को निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना चाहिए –
1. व्यवसाय – प्रातःकाल के नाश्ते का बहुत कुछ सम्बन्ध व्यवसाय से है। जिन लोगों को शारीरिक कार्य बहुत अधिक करना पड़ता है उनका नाश्ता पौष्टिक, ठोस तथा पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए जबकि मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए तरल, हल्के तथा थोड़े नाश्ते की आवश्यकता होती है।

2. नाश्ते तथा दोपहर के भोजन के समय में अन्तर – नाश्ता तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि नाश्ते तथा दोपहर के भोजन के समय में कितना अंतर होगा। यदि अंतर केवल दो अथवा तीन घण्टे का हो तो दूध, लस्सी, चाय तथा टोस्ट से ही काम चल सकता है, लेकिन यदि अन्तर चार पाँच घण्टों का हो तो फिर नाश्ता भारी होना चाहिए।

3. आदत – नाश्ते की मात्रा तथा उसके प्रकार का सम्बन्ध खाने वालों की आदत पर भी निर्भर करता है। इसका कारण यह है कि कुछ व्यक्ति बहुत हल्का नाश्ता लेना पसंद करते हैं तो कुछ लोगों की तृप्ति भारी नाश्ते के बिना होती ही नहीं है। इसी प्रकार से कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो नाश्ता लेना पसन्द ही नहीं करते। यही बात नाश्ते में ली जाने वाली वस्तुओं के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है। विभिन्न प्रदेशों के निवासी विभिन्न प्रकार का नाश्ता लेना पसन्द करते हैं। उदाहरण के लिये पंजाब के लोग नाश्ते में लस्सी, दूध, परांठा लेना पसन्द करते हैं, उत्तर प्रदेश के लोग सत्तू, जलेबी, दूध, पूड़ी-कचौड़ी तो दक्षिण के लोग इडली, डोसा, कॉफी आदि।

4. सभी प्रकार के भोजन तत्त्वों का समावेश – नाश्ता तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि उसमें सभी भोजन तत्त्वों यथा कार्बोज, प्रोटीन, वसा, लवण, रेशेदार पदार्थ, विटामिन युक्त पदार्थ तथा पेय पदार्थ तथा पेय पदार्थों का समावेश हो। दूध, चाय, कॉफी, कोको, लस्सी, शरबत, रस आदि पेय पदार्थ उत्तेजक होते हैं तथा रात की सुस्ती दूर करने में सहायता पहुँचाते हैं। फल या सब्जी रेशेदार होने के कारण पेट साफ करने तथा भूख बढ़ाने में योगदान देती हैं। मक्खन, पनीर, क्रीम आदि के द्वारा शरीर की वसा सम्बन्धी आवश्यकताएं पूरी होती हैं। परांठा, दलिया, रोटी, टोस्ट आदि के द्वारा शरीर को कार्बोज़ प्राप्त होता है तो दूध तथा दूध से बने पदार्थों के द्वारा प्रोटीन।

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प्रश्न 12.
दोपहर के आहार की योजना किस प्रकार करनी चाहिए ?
उत्तर :
दोपहर के आहार की योजना बहुत सावधानी से करनी चाहिए। इसका कारण यह कि आहार दिनभर कार्य करने की शक्ति व गर्मी प्रदान करता है । इस समय की आहार तालिका करते समय भी व्यवसाय, आयु, स्वास्थ्य, आदत आदि का ध्यान रखना चाहिए, किन्तु निम्नलिखित वर्गों में से कम-से-कम एक-एक खाद्य-पदार्थ अवश्य होना चाहिए –

  1. अनाज – गेहूँ, चावल, चना, जौ, बाजरा आदि।
  2. दाल – उड़द, अरहर, मूंग आदि।
  3. दही, पनीर।
  4. मौसमी फल – केला, सेब, संतरा, आम आदि।
  5. मौसमी सब्जी – मटर, गोभी, सीताफल, लौकी, भिण्डी, टिंडे, तोरई आदि।
  6. हरी पत्तेदार सब्जियां अथवा सलाद।
  7. वसायुक्त पदार्थ।

यह ध्यान देने वाली बात है कि दोपहर के आहार में अनाज पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए, जिससे दिनभर कार्य करने के लिए ऊर्जा व शक्ति भरपूर मात्रा में प्राप्त हो सके। दूसरी बात यह कि प्रतिदिन भोजन एक ही रीति से पकाने के स्थान पर भिन्न-भिन्न पद्धतियों से पकाना चाहिए। उदाहरण के लिए चावल कभी मीठे, कभी नमकीन तथा कभी सादा बनाये जा सकते हैं तो कभी आटे से रोटी, पूड़ी, कचौड़ी अथवा परांठे।

बड़े नगरों में कार्य करने का स्थान घर से इतनी दूर होता है कि प्रायः लोगों को दोपहर का भोजन अपने साथ ले जाना पड़ता है। ऐसी अवस्था में उसे ले जाने की सुविधा का अधिक ध्यान रखा जाता है तथा इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया जाता कि वह शरीर को पर्याप्त ऊर्जा एवं शक्ति देने वाला है अथवा नहीं। अतः प्रत्येक गृहिणी का यह कर्त्तव्य है कि वह इस बात का ध्यान रखे कि जो व्यक्ति दोपहर का भोजन साथ ले जाते हों, उनके आहार में शाक-भाजी, मूली, प्याज, हरी मिर्च आदि कुछ अधिक हों।

कच्चे फल, मूली आदि के द्वारा शरीर को सेलुलोज, लवण तथा विटामिन मिलने में सहायता पहुंचेगी। जो व्यक्ति भोजन साथ लेकर जाते हैं प्रायः उन्हें ठंडा भोजन ही करना पड़ता है। ठंडा भोजन खाने से पाचक रस ग्रन्थियां देर से उत्तेजित होती हैं। अतः ऐसे व्यक्तियों को भोजन के बाद चाय या कॉफी आदि गर्म पेय पदार्थ पीने चाहिए जिससे भोजन पचने में सहायता पहुँचे।

प्रश्न 13.
आहार नियोजन से आप क्या समझते हैं ? आहार नियोजन की उपयोगिता बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3 का उत्तर।

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प्रश्न 14.
भोजन सम्बन्धी योजना का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 3 का उत्तर में आहार नियोजन के लाभ ।

प्रश्न 15.
आहार-समहों के निर्धारण का उद्देश्य क्या है ? अमेरिका की नेशनल रिसर्च कौंसिल तथा ICMR द्वारा निर्धारित आहार-समूहों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
शरीर को भिन्न-भिन्न प्रकार के पौष्टिक तत्त्वों जैसे प्रोटीन, कार्बोज, वसा, विटामिन, खनिज लवण आदि की आवश्यकता होती है। इन्हें विभिन्न भोज्य पदार्थों से प्राप्त किया जाता है, क्योंकि भोजन के सभी आवश्यक तत्त्व एक प्रकार के भोज्य पदार्थ में नहीं पाए जाते। गृहिणी के लिए यह विकट समस्या पैदा हो जाती है कि प्रत्येक बार कौन-से भोज्य पदार्थों का चुनाव करे ताकि सन्तुलित भोजन पकाया जा सके तथा सभी सदस्यों को उनकी रुचि तथा शारीरिक स्थिति के अनुसार पौष्टिक आहार उपलब्ध करवाया जा सके। इस समस्याओं से निपटने के लिए आहार समूहों का निर्धारण किया गया है।

आहार-समूह-अमेरिका की राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद् ने सात आहार समूहों का निर्धारण किया है। इनका आधार यह माना गया है कि हमारे शरीर को मुख्यतः दस पोषक तत्त्वों की आवश्यकता है। यह पोषक तत्त्व हैं- प्रोटीन, कार्बोज, वसा, कैल्शियम, लोहा, विटामिन ए, थायमिन, राइबोफ्लेबिन, विटामिन सी तथा विटामिन डी।

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ICMR द्वारा किए गए आहार समूहों के वगीकरण
ICMR द्वारा आहार समूहों का एक व्यावहारिक वर्गीकरण किया गया है जिसमें पांच आहार समूह पाए गए हैं। ये समूह निम्नलिखित अनुसार हैं –

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एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दो –

प्रश्न 1.
आहार की पौष्टिकता बढ़ाने का एक ढंग बताओ।
उत्तर :
खाद्य पदार्थों का मिश्रण।

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प्रश्न 2.
आटे के चोकर में क्या होता है ?
उत्तर :
प्रोटीन।

प्रश्न 3.
दालों में कौन-सा पौष्टिक तत्त्व अधिक होता है ?
उत्तर :
प्रोटीन।

प्रश्न 4.
आहार नियोजन से गृहिणी का क्या बचता है ?
उत्तर :
समय।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. स्वस्थ व्यक्ति का शरीर का तापमान ……….. होता है।
2. दूध पिलाने वाली माँ के भोजन में ……….. की मात्रा अधिक हो।
3. दालों आदि में ……….. % प्रोटीन होती है।
4. कार्बोज़ द्वारा ……….. मिलती है।
5. रात्रि का भोजन दोपहर के भोजन की तुलना में ……….. होना चाहिए।
उत्तर :
1. 98.4F
2. प्रोटीन
3. 20-25
4. ऊर्जा
5. हल्का।

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(ग) ठीक/गलत बताएं –

1. भोजन सोने से कम-से-कम दो घण्टे पहले लें।
2. दालों में प्रोटीन होता है।
3. बच्चों को सन्तुलित आहार नहीं चाहिए।
4. बच्चों को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है।
5. आहार आयोजन से समय की बचत होती है।
उत्तर :
1. (✓) 2. (✓) 3. (✗) 4. (✓) 5. (✓)।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
परिवार के आहार का स्तर निम्न बातों पर निर्भर है –
(A) आहार के लिए उपलब्ध धन ।
(B) गृहिणी के पास भोजन पकाने के लिए उपलब्ध समय एवं ऊर्जा
(C) गृहिणी का खाद्य तथा पोषण सम्बन्धी ज्ञान
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 2.
सब्जियों में ……… कम होता है।
(A) लोहा
(B) प्रोटीन
(C) विटामिन बी
(D) विटामिन सी।
उत्तर :
प्रोटीन।

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प्रश्न 3.
आहार आयोजन निम्न पर निर्भर है –
(A) परिवार की रुचि
(B) व्यवसाय
(C) समय तथा शक्ति
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 4.
सन्तुलित भोजन की योजना बनाते समय कौन-कौन सी बातों को ध्यान में रखोगे ?
(A) भोजन की योजनाबन्दी
(B) भोजन पकाने का सही ढंग
(C) परिवार के सदस्यों के रोज़ाना खुराकी तत्त्वों का ज्ञान
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 5.
निम्न में ठीक है –
(A) भोजन पकाने का समय तथा परोसने का ढंग खाने के नियोजन को प्रभावित करता है।
(B) गरीबी के कारण लोग सन्तुलित भोजन नहीं ले पाते।
(C) अशिक्षा के कारण भी लोग सन्तुलित भोजन नहीं करते।
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

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प्रश्न 6.
निम्न में गलत है –
(A) सभी अमीर लोग सन्तुलित भोजन ही लेते हैं।
(B) अशिक्षा के कारण लोग सन्तुलित भोजन नहीं लेते।
(C) परिवार का आकार भोजन नियोजन को प्रभावित करता है।
(D) सभी गलत।
उत्तर :
सभी अमीर लोग सन्तुलित भोजन ही लेते हैं।

प्रश्न 7.
बुखार में निम्न प्रकार का भोजन नहीं लेना चाहिए –
(A) तरल तथा नर्म गर्म भोजन का प्रयोग
(B) तला हुआ भारी भोजन
(C) खिचड़ी, दलिया आदि
(D) अधिक मात्रा में दूध।
उत्तर :
तला हुआ भारी भोजन।

प्रश्न 8.
रात्रि के भोजन में लेने चाहिए –
(A) दाल कोई भी
(B) हरी सब्जी
(C) सूप
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

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प्रश्न 9.
निम्न में सन्तुलित आहार की विशिष्टता नहीं है –
(A) व्यक्तिगत रुचि और स्वाद के अनुकूल
(B) अधिक महंगा
(C) सभी आहार समूहों में से खाद्य पदार्थों का समावेश
(D) व्यक्तिगत पोषण आवश्यकता।
उत्तर :
सभी ठीक।

प्रश्न 10.
निम्न में गलत है –
(A) वसा शरीर का तापमान बनाए रखने में सहायक है
(B) भोजन की योजना बनाने से समय नष्ट होता है
(C) कैलोरी की उचित मात्रा से ही सन्तुलित भोजन नहीं बनता
(D) अंकुरण से पौष्टिकता बढ़ती है।
उत्तर :
भोजन की योजना बनाने से समय नष्ट होता है।

प्रश्न 11.
निम्न में से आहार आयोजन के प्रमुख सिद्धान्त का हिस्सा है –
(A) परिवार की रुचि
(B) पारिवारिक आय
(C) साप्ताहिक तालिका
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

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प्रश्न 12.
किसी व्यक्ति के लिए पोषक तत्त्व कितनी मात्रा में चाहिए निम्न पर निर्भर है ?
(A) आयु
(B) वज़न
(C) लिंग
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 13.
निम्न में ठीक नहीं है –
(A) सन्तुलित भोजन से ही शरीर तन्दरुस्त रह सकता है
(B) सब्जियों में प्रोटीन होता है
(C) गर्भवती औरत को पौष्टिक भोजन ही खाना चाहिए
(D) बुखार की हालत में हल्का भोजन लेना चाहिए।
उत्तर :
सब्जियों में प्रोटीन होता है।

प्रश्न 14.
आई०सी० एम० आर० ने कितने आहार समूह निर्धारित किए हैं ?
(A) 3
(B) 2
(C) 4
(D) 5.
उत्तर :
5.

भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ भोजन सम्बन्धी योजना का अर्थ है भोजन के लिए इस प्रकार से योजना बनाना कि परिवार का प्रत्येक सदस्य उपयुक्त पोषण स्तर प्राप्त कर सके।

→ भोजन सम्बन्धी योजना वह प्रक्रिया है जिसमें वह निर्धारित किया जाता है कि प्रतिदिन प्रत्येक भोजन में क्या खाना चाहिए।

→ परिवारजनों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करना उनके स्वास्थ्य और उनकी कुशलता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।

→ भोजन सम्बन्धी योजना को हम ‘दैनिक भोजन निर्देशिका’ भी कह सकते हैं।

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→ भोजन योजना पर प्रभाव डालने वाले बहुत-से कारक हैं। भोजन का प्रकार और मात्रा को निर्धारित करते समय इनका ध्यान रखा जाता है।

→ यह कारक हजार यह कारक हैं-आयु, लिंग, गतिविधियाँ, आर्थिक स्थिति, मौसम, व्यवसाय, समय, ऊर्जा व कुशलता सम्बन्धी पहलू, परम्पराएं और प्रथाएं, व्यक्ति की पसंद व नापसंद, संतोष का स्तर आदि।

→ भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (ICMR) ने आहारों को वर्गीकृत करने का अधिक व्यावहारिक तरीका सुझाया है।

→ यह निम्नलिखित प्रकार से है –

  • अनाज
  • दालें
  • दूध तथा अन्य पशु जन्य पदार्थ
  • फल और सब्जियाँ
  • वसा और चीनी।

→ सन्तुलित भोजन से ही शरीर तन्दुरुस्त रह सकता है।

→ सन्तुलित भोजन में आवश्यक मात्रा में प्रोटीन, कार्बोज, विटामिन, चिकनाई, लवण और पानी होते हैं।

→ भोजन में केवल कैलोरियाँ होने से ही भोजन सन्तुलित नहीं बनता।

→ दालों, दूध तथा पशु जन्य पदार्थों आदि में प्रोटीन होती है।

→ अनाज दालें, गुड़, सूखे मेवे, मूंगफली, आलू, फल आदि कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत हैं।

→ सब्जियों में विटामिन और खनिज पदार्थ होते हैं।

→ खाना बनाने के लिए योजना बनाना एक अच्छी गृहिणी की निशानी है।

→ परिवार की आय और आकार आहार के नियोजन को प्रभावित करते हैं।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 8 भोजन सम्बन्धी योजना एवं आहार समूह

→ गर्भवती औरत को पौष्टिक भोजन ही खाना चाहिए।

→ बुखार की हालत में पौष्टिक और हल्का भोजन खाना चाहिए।

→ अच्छे स्वास्थ्य के लिए सभी पोषक तत्त्वों की शरीर को आवश्यकता होती है।

→ किसी व्यक्ति के लिए पोषक तत्त्व कितनी मात्रा में चाहिए, यह अनेक तथ्यों पर निर्भर करता है जैसे आयु, लम्बाई, वज़न, लिंग, जलवायु, स्वास्थ्य, व्यवसाय एवं शारीरिक दशा।।

→ संतुलित आहार – यह एक ऐसा आहार है जो हमारे शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान कर हमें स्वस्थ रहने में सहायक होता है। मनुष्य के जीवन का आधार भोजन है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन का पौष्टिक होना आवश्यक है। जब मनुष्य अच्छा भोजन नहीं लेता तो वे बीमारियों का शिकार हो जाता है। मनुष्य अपने भोजन की आवश्यकता अनाज, सब्जियां, फल, दूध, दही तथा अन्य पशु जन्य पदार्थों आदि से पूरा करता है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 11 बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 11 बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 11 बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
सिली सिलाई मर्दाना शर्ट को खरीदते समय ध्यान रखने योग्य किन्हीं दो बातों के बारे में बताएं।
उत्तर :
1. व्यवसाय अनुसार शर्ट खरीदनी चाहिए।
2. शर्ट का रंग, डिजाइन और प्रिंट ऐसा होना चाहिए जो उसके शरीर पर अच्छा लगे।

प्रश्न 2.
कपड़ों पर लगे सूचना लेबल हमें क्या जानकारी देते हैं ?
उत्तर :
सूचना लेबल से निम्नलिखित जानकारी मिलती है –

  1. वस्त्र किस रेशे का बना है।
  2. वस्त्र किस तरह प्रयोग करना है।
  3. माप बड़ा अथवा बीच का अथवा छोटा है।
  4. निर्माता कम्पनी के नाम का पता चलता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 11 बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख

प्रश्न 3.
वस्त्रों पर लगे देख-रेख लेबल से हमें क्या सूचना मिलती है ?
उत्तर :
इससे हमें पता चलता है कि कपड़ों को कैसे धोएं, गर्म या ठण्डे पानी में धोएं, प्रैस का तापमान कितना होना चाहिए, कपड़ों को धूप में सुखाएं या छांव में आदि।

प्रश्न 4.
कारण बताते हुए समझाएं कि छोटे बच्चों के लिए निम्न में से कौन से वस्त्र अधिक उचित हैं और क्यों (क) बने बनाए वस्त्र (ख) दर्जी से सिलवाए गए।
उत्तर :
बने बनाए वस्त्र बच्चों के लिए ठीक रहते हैं। बाज़ार में बच्चों के लिए –
भिन्न-भिन्न प्रकार के भिन्न-भिन्न रंगों के वस्त्र बड़ी मात्रा में उपलब्ध रहते हैं। बच्चों की वृद्धि भी तीव्रता से होती है इसलिए दर्जी से बार-बार जाने से समय तथा पैसा दोनों की बर्बादी होती है। बाजार से बने बनाए वस्त्रों को खरीदने से समय की बचत, पैसे की बचत हो जाती है तथा इन्तज़ार नहीं करना पड़ता। किसी भी तरह की मांग की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 5.
दर्जी से वस्त्र सिलवाने के कोई दो लाभ व दो हानियां लिखें।
उत्तर :
लाभ (1) दर्जी से वस्त्र सिलवाने से कपड़ों की फिटिंग अच्छी होती है। (2) वस्त्रों पर डिज़ाइन अपनी पसंद का डलवाया जा सकता है। हानियां (1) कपड़ों को प्राप्त करने के लिए इन्तजार करना पड़ता है। (2) कई बार फिटिंग नहीं आती तो ठीक करवाना पड़ता है।

प्रश्न 6.
दर्जी से वस्त्र सिलवाने के दो लाभ बताएं।
उत्तर :
नोट-देखें प्रश्न 5.

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 11 बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख

प्रश्न 7.
गुणवत्ता से क्या भाव है ?
उत्तर :
किसी वस्त्र की प्रकार, प्रकृति उसकी बनावट की श्रेष्ठता की मात्रा को उसकी गुणवत्ता कह सकते हैं।

प्रश्न 8.
बाज़ारी वस्त्रों का चुनाव करने के लिए क्या ढंग अपनाएंगे ?
उत्तर :
निम्न बातों को ध्यान में रख कर चुनाव किया जाना चाहिए। वस्त्र में निम्न गुण हों –

  1. आकर्षक
  2. आरामदायक
  3. अच्छी कारीगरी
  4. बजट में
  5. अपने कार्य के अनुसार
  6. रंग का चयन आदि।

प्रश्न 9.
अच्छी कारीगरी के गुण बताएं।
उत्तर :
धागा, सीन का मिलान, कटाई, कॉलर तथा कफ, प्लेटें, बटन, काज, जि, लाईनिंग।

प्रश्न 10.
कारीगरी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
कारीगरी का अर्थ है तैयार वस्त्रों के नाप, कटाई, सिलाई, उलेड़ी, वन्धक, कालर, कफ और अलंकरण से है। इनका प्रयोग कैसे हो कि वस्त्र की कार्यशीलता, सुन्दरता, आकर्षकता और टिकाऊपन बना रहे।

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प्रश्न 11.
रेडीमेड कपड़े खरीदने का कोई एक (दो) लाभ लिखें।
उत्तर :
1. समय की बचत हो जाती है।
2. दर्जियों के पास आने-जाने की समस्या भी नहीं रहती।

प्रश्न 12.
दर्जी से कपड़े सिलवाते समय ध्यान रखने योग्य किसी एक बात का उल्लेख करें।
उत्तर :
दर्जी को चाहिए कि कपड़े की सिलाई मज़बूत धागे तथा कपड़े के रंग वाले धागे से ही करे।

प्रश्न 13.
दर्जी से सिलवाये गये वस्त्रों की कारीगरी की जाँच करने के लिए किसी एक बिन्दु का उल्लेख करें।
उत्तर :
सिलाई का वखिया छोटा होना चाहिए। कई बार दर्जी शीघ्र सिलाई और अधिक सिलाई करने के कारण वखिया मोटा कर देते हैं जो टिकाऊ नहीं होता।

प्रश्न 14.
दर्जी से कपड़े सिलवाने का कोई एक लाभ लिखें।
उत्तर :
कपड़ों की फिटिंग अच्छी रहती है।

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प्रश्न 15.
बच्चों के लिए रेडीमेड कपड़े खरीदने का कोई एक लाभ लिखें।
उत्तर :
बाज़ार में बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न रंगों तथा नमूनों वाले कपड़े उपलब्ध हैं तथा मनपसन्द वस्त्र चुनना आसान रहता है।

प्रश्न 16.
अपने लिए रेडीमेड सूट खरीदते समय उसकी कारीगरी का आंकलन करने का कोई एक बिन्दु लिखें।।
उत्तर :
वस्त्र सिलने के लिए प्रयोग किया गया धागा वस्त्र से मिलता हो तथा मज़बूत हो तथा धागे का रंग भी पक्का हो।

प्रश्न 17.
रंगीन रेडीमेड कपड़ों के लेबल पर क्या-क्या सूचना होनी चाहिए ?
उत्तर :
इस पर कपड़े को कैसे धोया जाए ठण्डे या गर्म पानी से, किस प्रकार का साबुन या डिटरजेंट प्रयोग करें, धूप में सुखाया जाए या छांव में, आदि जानकारी होनी चाहिए। कपडे पर कितनी गर्म प्रेस का प्रयोग करें। यह सब जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए।

प्रश्न 18.
तीन वर्षीय बालक के लिए रेडीमेड वस्त्रों का चुनाव करते समय ध्यान रखने योग्य दो बातें लिखिए।
उत्तर :
1. वस्त्र आसानी से पहनने तथा उतारने वाले हों माता की कम सहायता लेनी पड़े।
2. वस्त्रों पर अधिक नमूने नहीं होने चाहिए इससे वस्त्र भारी हो जाते हैं।

प्रश्न 19.
आजकल पुरुषों के लिए रेडीमेड कमीज़ क्यों बेहतर मानी जाती है, कोई दो कारण लिखें।
उत्तर :

  1. यह आरामदायक रहती है।
  2. सस्ती होती है।
  3. समय की बचत हो जाती है।
  4. दर्जियों के चक्करों से छुटकारा मिल जाता है।

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प्रश्न 20.
दर्जी से छोटे बच्चों के कपड़े सिलवाते समय ध्यान रखने योग्य किन्हीं दो बातों का उल्लेख करें।
उत्तर :
1. बच्चों का शरीर जल्दी बढ़ता है इसलिए दर्जी से सिलवाए कपड़े में अधिक दाब रखना चाहिए ताकि ज़रूरत पड़ने पर वस्त्र खुला किया जा सके।
2. वस्त्र सरलता से पहने तथा उतारे जा सकें ऐसे होने चाहिए।

प्रश्न 21.
वस्त्रों पर ‘देखरेख लेबल’ क्या होता है ?
उत्तर :
देखरेख लेबल रेडीमेड वस्त्रों पर लगा रहता है। इस पर वस्त्र की देखरेख जैसे धुलाई, सुखाना, प्रैस करना आदि के बारे में जानकारी दी गई होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न :
बने बनाए वस्त्र खरीदते समय उसकी कारीगरी का मूल्यांकन किस प्रकार करोगे?
अथवा
अपने लिए रेडीमेड सूट खरीदते समय उसकी कारीगरी की जांच कैसे करेंगे ? किन्हीं दो बिन्दुओं का उल्लेख करें।
उत्तर :
कारीगरी का अर्थ तैयार वस्त्रों के नाम, कटाई, सिलाई, उलेड़ी, बन्धक, कालर, कफ़ और अलंकरण से है। इनका कैसे प्रयोग किया जाए कि वस्त्र की कार्यशीलता, सुन्दरता, आकर्षकता और टिकाऊपन बना रहे। कारीगरी का मूल्यांकन करने के लिए निम्नलिखित तत्त्वों को देखना पड़ता है –

  1. नमूना-नमूनों का अर्थ है कि विभिन्न रेखाओं के प्रयोग से किसी आकृति को बनाना। ये सजावटी तथा रचनात्मक हो सकते हैं।
  2. कपड़े की कटाई-कपड़ा सिलने से पहले कपड़े की कटाई ठीक होनी चाहिए। कपड़े की कटाई ठीक होगी तो कपड़े की सिलाई भी अच्छी होगी।
  3. सिलाई-सिलाई का बखिया छोटा होना चाहिए। कई बार दर्जी शीघ्र सिलाई और अधिक सिलाई करने के कारण बखिया मोटा कर देते हैं जो टिकाऊ नहीं होता।
  4. उलेड़ी-जब वस्त्र तैयार हो जाता है तो कई स्थानों; जैसे घेरे पर, गले की रेखा पर उलेड़ी करनी पड़ती है यदि ऐसा न हो तो इन स्थानों से धागे निकलने लगते हैं जो अच्छे नहीं लगते।
  5. बन्धक-बन्धक की सहायता से हम किसी परिधान को उतार-पहन सकते हैं। इसके लिए हुक-आई, बटन, काज और जिप का प्रयोग किया जाता है। यदि यह ठीक हो तो वस्त्र की फाल अच्छी आती है वस्त्र पहना हुआ अच्छा लगता है।
  6. कालर, कफ़, जेब-कालर और कफ़ की फिटिंग ठीक होनी चाहिए इन पर झोल नहीं होनी चाहिए। जेब ठीक दिशा में लगी हो।
  7. पलीटस, डार्टस और चुन्नटें-इनसे कपड़े में लचीलापन आ जाता है।
  8. अलंकरण-कपड़े को आकर्षक बनाने के लिए लेस, पाईपिंग, झालर आदि लगाई जाती है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
रेडीमेड वस्त्रों की ज़रूरत क्यों है ?
अथवा
रेडीमेड वस्त्र खरीदने के कोई दो लाभ लिखो ?
उत्तर :
1. समय को बचाना (Saves Time) – आजकल हर व्यक्ति अपने कार्य में व्यस्त रहता है जिससे उसके पास समय का अभाव है। उसके पास इतना समय नहीं होता कि वह कपड़ा खरीदे, डिज़ाइन का फैसला ले, दर्जी को माप दे। अगर फिटिंग नहीं आती तो ठीक करवाये। इन सब झंझटों से वह बच जाता है।

2. इन्तज़ार नहीं करना पड़ता (No Waiting) – तैयार वस्त्रों को पहनने के लिए इन्तज़ार नहीं करना पड़ता है। जैसे ही वस्त्र खरीदते हैं तुरन्त उसे पहन लेते हैं।

3. रचनात्मकता की ज़रूरत नहीं (Need for Creativity) – बाज़ारी वस्त्र किसी विशेषज्ञ के द्वारा तैयार किये जाते हैं। वही अपनी बुद्धिमत्ता से विभिन्न नमूनों वाले वस्त्र तैयार करता है। इससे पहनने वाले को डिजाइन के लिए सोचने की ज़रूरत नहीं होती है।

4. अलग-अलग आर्थिक स्तर के लोगों के लिए उपलब्धि (Availability of Readymade Garments for Different Income Groups) – तैयार वस्त्र हर आर्थिक स्तर वाले लोगों के लिए सिले होते हैं जिससे उनकी लोकप्रियता और भी बढ़ती जा रही है। हमारे समाज में तीन तरह के आर्थिक स्तर वाले लोग हैं।

उच्च आर्थिक स्तर वाले लोगों के लिए उत्तम गुणों वाले महंगे तैयार वस्त्र उपलब्ध होते हैं। ये वस्त्र काफ़ी दृढ़ और मज़बूत होते हैं। इनकी रंग और सिलाई पक्की होती है। तैयार वस्त्र मध्यम आर्थिक स्तर वाले लोगों के लिए भी होते हैं। यह छोटे शोरूम में उपलब्ध होते हैं। ये भी मज़बूत होते हैं और धुलाई के बाद खराब नहीं होते हैं। तैयार वस्त्र निम्न आर्थिक स्थिति वाले लोगों के लिए भी उपलब्ध होते हैं। हमारे देश के अधिकतर लोग गरीब हैं। इसलिए निम्न आय वर्ग के लिए तैयार वस्त्र काफ़ी संख्या में उपलब्ध हैं। ये कपड़े सस्ते होते हैं। इनका कपड़ा साधारण होता है। इनकी सिलाई, धागा, रंग पक्का नहीं होता है। यह धोने के बाद सिकुड़ भी जाते हैं।

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5. उचित लटकाव (Proper Drape) – तैयार वस्त्र जब हम खरीदते हैं तो हम उसी समय खरीदने से पहले डालकर उनका आकार, फिटिंग आदि का निरीक्षण कर लेते हैं जिससे यह वस्त्र हमारे शरीर की बनावट पर पूरे उतरते हैं और हमें जचते भी हैं।

6. कम दाम (Less Price) – बाज़ारी वस्त्र घर पर सिले वस्त्रों से कम मूल्य के पड़ते हैं क्योंकि वस्त्र को बाज़ारी रूप से तैयार करने के लिए कपड़ा काफ़ी मात्रा में थोक रेट में इकट्ठा खरीदा जाता है जिसके कारण यह सीधा फैक्टरी अथवा मिलों से भी खरीदा जाता है। कपड़े को जब इकट्ठा बड़े स्तर पर खरीदा जाता है तो उनको इकट्ठा ही काटा जाता है। इससे कपड़ा व्यर्थ नहीं जाता और यह कपड़ा किसी कटाई विशेषज्ञ के द्वारा ही काटा जाता है जिससे वह कपड़े का छोटे से छोटा टुकड़ा भी व्यर्थ नहीं फेंकते। कपड़ा काटने के बाद सिलाई के लिए सक्षम दर्जियों को दिया जाता है जो इतनी अधिक मात्रा में सिलाई कार्य मिलने के कारण सिलाई करने के दाम कम लेते हैं।

7. तुरन्त ज़रूरतों की पूर्ति करना (Fullfilling Immediate Requirements) – कई बार हमें किसी वस्त्र की बहुत जल्दी ज़रूरत होती है तो हम तैयार वस्त्र को उसी समय खरीद कर अपनी ज़रूरत को पूरा कर लेते हैं।

8. दर्जियों के चक्करों से छुटकारा (Protection from Harassment of Tailors) तैयार वस्त्र खरीदने के लिए उसे दर्जियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। वह अपनी इच्छानुसार और फिटिंग अनुसार तैयार वस्त्र खरीद कर पहन लेता है।

9. अधिक विभिन्नता (More Variety) – तैयार वस्त्रों के नमूने विशेष डिज़ाइनर और फैशन विशेषज्ञ के द्वारा बनाये जाते हैं। वह अधिकतर प्रचलित फैशन के सम्पर्क में होते हैं जिससे वह वही नमूना और डिज़ाइन बनाते हैं जो उपभोक्ता को पहली बार देखने में भी पसन्द आ जाता है। वह विभिन्न नमूने तैयार करके बाज़ारी वस्त्रों में अधिक विभिन्नता पैदा करते हैं।

10. विस्तृत पसन्द (Wider Choice) – रेडीमेड वस्त्र विभिन्न रंग, डिजाइन और बनावट के होते हैं। इनको देखकर व्यक्ति की पसन्द भी अधिक हो जाती है। उसके सामने एक ही ज़रूरत को पूरा करने के लिए कई तरह के वस्त्र होते हैं और अपनी रुचि अनुसार इन वस्त्रों को वह खरीद सकता है।

11. किसी भी तरह की मांग की पूर्ति (Meeting of any Type of Demands) – उपभोक्ता की जैसी भी मांग होती है जैसा भी नमूना वह चाहते हैं, जैसा स्टाइल उपभोक्ता चाहते हैं, निर्माता उसी तरह के वस्त्र उपभोक्ता को देते हैं। जिससे उपभोक्ता अधिक सन्तुष्ट होते हैं।

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प्रश्न 2.
रेडीमेड कपड़ों के दो लाभ बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 3.
बने बनाए वस्त्रों को खरीदते समय ध्यान रखने योग्य किन्हीं चार बातों का उल्लेख करो।
अथवा
रेडीमेड कपड़े खरीदते समय ध्यान रखने योग्य कोई दो बातें लिखें।
उत्तर :
बाज़ारी वस्त्रों को चुनते हुए ध्यान रखने योग्य बातें (Criteria for Selection of Readymade Garment) । आजकल तैयार वस्त्र अधिक पसन्द किए जाते हैं। इनकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अधिकतर लोग पसन्द करते हैं कि वह सिले सिलाए कपड़ों की अपेक्षा बाज़ारी तैयार वस्त्र ही लें। हर उपभोक्ता वस्त्र पर धन खर्च करने से पहले यही चाहता है कि जिस वस्त्र को वह खरीदे वह उत्तम किस्म का और ठीक मूल्य का हो और उपभोक्ता की ज़रूरतों के अनुसार होना चाहिए। इसलिए उपभोक्ता को तैयार वस्त्रों को चुनते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

1. वस्त्र की गुणवत्ता (Quality of Garments) – वस्त्र को खरीदने से पहले हमें उसकी गुणवत्ता परख लेनी चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए
(क) कपड़े का तन्तु कैसा है अगर यह तन्तु मिश्रित है, तो कपड़े की मजबूती अधिक होगी।
(ख) कपड़े की बुनाई घनी होनी चाहिए।
(ग) परिधान पर डिज़ाइनिंग के लिए जो भी वस्तु प्रयोग की गई हो वह मुख्य वस्त्र से मिलती होनी चाहिए।
(घ) कपड़ा ऐसा हो जो शरीर पर अच्छी तरह से ड्रेप होता है। अगर यह शरीर के अनुसार ड्रेप होते हैं तो यह देखने में काफ़ी सुन्दर लगते हैं। इससे शरीर की फिटिंग ठीक रहती है।
(ङ) कपड़ा ऐसा हो जिसको ड्राइकलीन की ज़रूरत न हो।
(च) कपड़े पर रगड़ने और धुलाई के साबुन का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
(छ) कपड़े के रेशे सीधी दिशा में होने चाहिएं न कि टेढ़े। इनकी मोटाई एक समान होनी चाहिए।

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2. कारीगरी (Workmanship) – कारीगरी का अर्थ है तैयार वस्त्रों के नाप, कटाई, सिलाई, उलेड़ी, बन्धक, कालर, कफ़ और अलंकरण से है। इनका कैसे प्रयोग किया जाए कि वस्त्र की कार्यशीलता, सुन्दरता, आकर्षकता और टिकाऊपन बना रहे। वस्त्र की कारीगरी अच्छी है तो वस्त्र की कीमत होगी वह गुणात्मक रूप से भी अच्छा होगा। अगर कारीगरी अच्छी नहीं होगी तो ऐसे वस्त्र को पहनकर व्यक्ति को अच्छा नहीं लगेगा। कारीगरी के निम्नलिखित तत्त्व आते हैं –
(i) नमूना (Design) – नमूनों का अर्थ होता है कि विभिन्न रेखाओं के प्रयोग से किसी आकृति को बनाना। यह सजावटी और रचनात्मक हो सकते हैं। अपनी इच्छानुसार व्यक्ति किसी तरह के नमूने का अपनी पोशाक के लिए चयन कर सकता है। आजकल निर्माता उपभोक्ता की मांग पर आकर्षक नमूने वाले वस्त्र बना रहे हैं जिनको देखकर हमारा मन खरीदने के लिए लालायित हो जाता है। नमूना अगर अलग-अलग टुकड़े काट कर बना हआ है तो वह ट्रकडे ठीक लगे हए होने चाहिए, अगर नमूने के टुकड़े में धारियां अथवा चैक हैं तो उनकी लाइनें ठीक मिलनी चाहिए। अगर नमूना छपे हुए कपड़े का है तो छपे हुई नमूने की दिशा एक तरफ जाना चाहिए ऐसा नहीं कि एक रेखा ऊपर की ओर और दूसरी रेखा नीचे की ओर जा रही हो। अगर कपड़ा रोएंदार है तो वस्त्र के रोये एक ही दिशा में होने चाहिए।

(ii) कपड़े की कटाई (Cutting) – कपड़ा सिलने से पहले कपड़े की कटाई ठीक होनी चाहिए। कपड़े की कटाई ठीक होगी, तो कपड़े की सिलाई भी अच्छी होगी। वह वस्त्र व्यक्ति को पहना हुआ भी अच्छा लगेगा। अधिकतर निर्माता कपड़े की कटाई की तरफ विशेष ध्यान नहीं देते। कटाई के बाद सिलाई के दौरान उसमें सुधार नहीं किया जा सकता। उसमें दोष वैसे के वैसे ही रहेंगे। इसलिए कटाई की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए।

कपड़े की कटाई में निम्नलिखित बातों को देखना चाहिए –
(क) अधिकतर जो कपड़ा लम्बाई अथवा सीधे रुख की तरफ काटा गया है उस कपड़े का टिकाऊपन अधिक होता है जो चौड़ाई के रेशों पर काटा गया है। उसका टिकाऊपन कम होता है, हमें यह देखना चाहिए कि परिधान के सब टुकड़ों की लम्बाई कपड़े की लम्बाई वाले रेशों की तरफ और चौड़ाई कपड़े के चौड़ाई वाले रेशों की तरफ कटी हुई होनी चाहिए।

इससे कपड़ों को सिलने के बाद जब पहना जाता है तो अच्छा लगता है और किसी भी तरह का कोई खिंचाव उत्पन्न नहीं होता परन्तु जब कपड़े की लम्बाई को चौड़ाई वाले पर काटा जाता है तो इसमें कपड़े का टिकाऊपन कम होता है। कपडे में खिंचाव अधिक रहता है और कपड़ा थोड़े समय के बाद ही फटना शुरू हो जाता है। इसलिए इस बात का वस्त्र खरीदने से पहले अच्छी तरह परख लेना चाहिए। अगर ग्रेन की दिशा को देखने पर पता नहीं चल रहा तो आप कपड़े को पहनकर इसका परीक्षण कर सकते हैं।

(ख) गले की रेखा पर वास्तविक उरेब पट्टी (True Bias) लगी होनी चाहिए। इससे गले की फिटिंग सही आती है और उसमें ढीलापन नहीं आता।

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(ग) कपड़े को काटते हुए कई बार कपड़े की सिलवटें नहीं निकाली जाती उसको पूरी तरह समतल करके कपड़ा नहीं काटा जाता। इससे कई बार कपड़े का मुख्य ग्रेन सही नहीं होता और कपड़े में काण आ जाती है और ऐसे कपड़े को जब पहना जाता है तो वह अलग से लटकना शुरू हो जाता है।

(घ) कपड़े की लम्बाई और चौड़ाई वाले पैटर्न आपस में मिलते होने चाहिए।
(ङ) कपड़े में कोई छिद्र अथवा कट नहीं होना चाहिए इससे कपड़ा जल्दी ही फटना शुरू हो जाता है।

(iii) सिलाई (Seam) – बाज़ारी वस्त्रों की सिलाई का निरीक्षण ध्यानपूर्वक करना चाहिए –

(क) सिलाई दृढ़ होनी चाहिए। सिलाई का बखिया छोटा होना चाहिए कई बार दर्जी शीघ्र सिलाई और अधिक सिलाई करने के कारण बखिया मोटा कर देते हैं जो इतना टिकाऊ नहीं होता और थोड़े ही समय के बाद उधड़ने शुरू हो जाते हैं। ऐसे वस्त्रों की मरम्मत बहुत जल्दी करनी पड़ती है लम्बाई कपड़े की मोटाई के अनुसार होनी चाहिए परन्तु लम्बाई एक जैसी होनी चाहिए।
(ख) सिलाई यहां खत्म होती है वहां पर लटकते हुए धागे या तो बंधे हुए होने चाहिए या कटे हुए होने चाहिए।
(ग) कपड़ों की सिलाई में दबाव पर्याप्त होना चाहिए। अधिकतर रेडीमेड वस्त्रों में दबाव बहुत कम रखा जाता है।
(ङ) जिस स्थान पर कपड़े के दो टुकड़ों को जोड़ा जाता है वहां पर सिलाई अधिक मज़बूत होनी चाहिए।
(च) साधारण सिलाई के किनारों पर या तो कटाव होने चाहिए या इन्टरलोकिंग होनी चाहिए।
(छ) सिलाई सपाट होनी चाहिए विशेषकर बच्चों के लिए बच्चों की त्वचा कोमल होती है।
(ज) अगर कपड़े के नीचे लाइनिंग लगी है तो लाइनिंग की सिलाई देखना भी ज़रूरी है लाइनिंग का हर हिस्सा कपड़े से जुड़ा हुआ होना चाहिए।

(iv) उलेडी (Hem) – जब वस्त्र तैयार हो जाता है तो कई स्थानों पर उलेडी करनी पड़ती है जैसे घेरे पर, गले की रेखा पर और बाजू की मोहरी पर जिससे वस्त्र के निकले हुए धागों को अन्दर की तरफ मोड़कर सफाई से कस दिया जाता है। अगर उलेडी न की हो तो वस्त्र के धागे वहां से निकलते रहेंगे वस्त्र देखने में अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए तुरपन बहुत जरूरी हो जाती है। तुरपन में हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

(क) उलेड़ी अधिक मोटी नहीं होनी चाहिए इसके टांके पास-पास और समान दूरी के होने चाहिए।
(ख) उलेड़ी की चौड़ाई वस्त्र के नमूने के अनुसार होनी चाहिए।
(ग) उलेड़ी में धागा कहीं अटका हुआ नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर कहीं धागा अटक जाता है तो तुरपन खींचकर सारी उधड़ सकती है।
(घ) उलेड़ी जिस स्थान पर खत्म होती है वहां से पक्की तरह बन्द हुई होनी चाहिए।
(ङ) उलेड़ी के धागे का रंग कपड़े के धागे के रंग के साथ मिलना चाहिए क्योंकि उलेड़ी के धागे का रंग सीधी तरफ भी दिखाई देता हैं। धागा अच्छी किस्म का होना चाहिए और उसका रंग अच्छा होना चाहिए कई बार धागे का रंग पक्का नहीं होता तो जिस स्थान पर तुरपन हुई होती है उस स्थान पर रंग उतरना शुरू हो जाता है जिससे कपड़ा देखने में भद्दा लगता है।
(च) उलेडी का कपड़ा इतना मुड़ा हुआ होना चाहिए कि अगर हम किसी स्थान पर लम्बाई बढ़ाने के इच्छुक हैं तो उलेड़ी को खोलकर कपड़े की लम्बाई बढ़ा सकें।

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(v) बन्धक (Fasteners) – बन्धक की सहायता से हम किसी परिधान को उतार सकते हैं। उसे पहन सकते हैं इसके लिए हुक-आई, बटन काज और जिप का प्रयोग किया जाता है। अगर ये ठीक से लगे हों तो वस्त्र की फाल अच्छी आती है, वस्त्र पहना हुआ अच्छा लगता है। वस्त्र की फिटिंग ठीक आती है अगर ये ठीक न लगे हों तो वस्त्र की दिखावट बिगड़ सकती है। इसलिए वस्त्र चुनते हुए इनका विशेष ध्यान रखना चाहिए इसके लिए निम्नलिखित बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए –

(क) बटन और हुक की पट्टी वस्त्र के अनुसार लगी हुई होनी चाहिए। इसकी लम्बाई और चौड़ाई व्यक्ति की ज़रूरत अनुसार होनी चाहिए इसको लगाने के लिए अलग कपड़े की ज़रूरत होती है और कई बार कपड़ा बचाने के चक्कर में पट्टी बहुत छोटी लगाते हैं। इससे कपड़े की फिटिंग ठीक नहीं आती और वस्त्र पहनने में कठिनाई होती है। यह पट्टी इतने आकार की होनी चाहिए कि कपड़े को आसानी से पहना और उतारा जा सके। अगर यह पट्टी सीधे रूप में और सफ़ाई से लगी होगी, तो वस्त्र आकर्षक लगेगा इस पट्टी पर बटन अथवा हुक एक जैसी दूरी पर लगे होने चाहिए। इनका टांका पक्का होना चाहिए। बटन और हुक अच्छी किस्म की होनी चाहिए। कई बार घटिया किस्म के होने के कारण जल्दी टूट जाती है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बटन ऐसे तो नहीं लगे जिनको धोते समय अलग करना पड़े तो हमें ऐसा वस्त्र नहीं खरीदना चाहिए।

(ख) काज की पट्टी सीधी होनी चाहिए और ऐसे हो कि अधिक दिखाई न दें।
(ग) काज के टांके कसे हुए होने चाहिएं ढीले नहीं होने चाहिएं। काज को बनाने के बाद कोई भी धागा नज़र नहीं आना चाहिए काज का कटा भाग धागे से अच्छी तरह टका होना चाहिए।
(घ) हुक और आँख भी सफ़ाई से लगी होने चाहिए। जिप भी अच्छी किस्म की लगी होनी चहिए। इसको खोलकर और बन्द करके देख लेना चाहिए कि इसका कार्य ठीक है।

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(vi) कालर, कफ, जेब (Collar, Cuff & Pocket) यदि वस्त्र पर कालर कफ, पाकेट, इत्यादि लगे हों तो उनको भी ध्यान से देख लेना चाहिए इसमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

(क) कालर, कफ का कपड़ा वस्त्र के कपड़े से मिलना चाहिए इनकी दोनों साइड में एक जैसा कपड़ा इस्तेमाल होना चाहिए।
(ख) कालर और कफ की फिटिंग ठीक से होनी चाहिए इन पर झोल नहीं होना चाहिए।
(ग) कालर और कफ मुख्य डिज़ाइन के अनुसार ही बने हुए होने चाहिएं।
(घ) कालर की सिलाई के दबाव को पीछे की तरफ कटिंग कर देनी चाहिए ताकि कालर में झोल न पड़े।
(ङ) जेब बिल्कुल ठीक दिशा में लगी होनी चाहिए इसका कपड़ा मुख्य कपड़े जैसा होना चाहिए। इस पर डबल सिलाई होनी चाहिए जेब पर की गई उलेड़ी ऐसी हो जो सीधी तरफ से दिखाई न दे पाकेट का आकार वस्त्र के अनुसार होना चाहिए इतना आकार होना चाहिए कि उसमें हाथ डालते हुए अटके नहीं।
(च) कफ की सिलाई भी ठीक होनी चाहिए आसानी से उधड़ने वाली नहीं होनी चाहिए।

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(vii) पलीटस, डार्टस और चुन्नटें (Pleats, Darts & Gathers) – का मुख्य कार्य शरीर के झुकावों और मोड़ों के अनुसार कपड़े में फिटिंग को उत्पन्न करना। चुन्नटों के द्वारा कपड़े में लचीलापन पैदा किया जाता यह कपड़े को आकर्षक बना देती है। इससे कपड़े का आकार सुविधाजनक रहता है इसमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

(क) डार्ट और पलीट ऐसे हों जो शरीर की रूपरेखा के साथ मेल खाते हैं। ये कोणों पर कम चौड़ाई के होने चाहिए।
(ख) डार्ट और पलीटस बनाने के बाद समतल हुए होने चाहिए।
(ग) चुन्नटें एक जैसी होनी चाहिएं। इनके बीच में अगर कपड़ा अधिक लिया जाता है तो यह अच्छी लगती है इनका प्रभाव अच्छा आता है इनको बनाने के बाद अच्छी तरह से प्रेस करना चाहिए।
(घ) चुन्नटों के लिए प्रयोग किया गया धागा मज़बूत होना चाहिए और जब चुन्नटों को खींचा जाए तो टूटना नहीं चाहिए।

(viii) अलंकरण (Trimming) – कपड़े को आकर्षक और सुन्दर बनाने के लिए उन पर अलंकरण का प्रयोग किया जाता है। अलंकरण में लेस, पाइपिंग, झालर, फ्रिल और कढाई आता है अलंकरण के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

(क) अलंकरण की बनावट वस्त्र जैसी होनी चाहिए। अगर वस्त्र की बनावट चमकीली है तो अलंकरण की बनावट भी चमकीली होनी चाहिए।
(ख) अलंकरण का रंग अच्छी किस्म का और पक्का होना चाहिए।
(ग) जो परिधान धोए जाते हैं उन पर ऐसे अलंकरण नहीं लगाने चाहिए जिनको हम धो नहीं सकते।
(घ) बैल्ट अगर कपड़े के साथ लगी है तो अच्छी तरह लगी होनी चाहिए।

3. रंग (Colour) – वस्त्र का चुनाव करते हुए इनमें रंग का भी ध्यान रखना चाहिए। रंग पोशाक के चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है रंग के द्वारा ही पहना हुआ वस्त्र अच्छा, सुन्दर आकर्षक और लुभावना लगता है। वस्त्रों में रंग का चुनाव करते हुए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

(क) परिधान में जितने भी टुकड़े प्रयोग किए गए हैं उनका रंग पक्का होना चाहिए। रंग उतरना नहीं चाहिए जो भी अलंकरण का प्रयोग किया गया हो उनका भी रंग पक्का होना चाहिए।
(ख) रंग मौसम के अनुसार हो, ठण्डे और हल्के रंग गर्म मौसम में पहनने चाहिएं।
(ग) वस्त्र का रंग पहनने वाले व्यक्ति के शरीर में अच्छा लगना चाहिए।
(घ) वस्त्र खरीदने से पहले हमें देख लेना चाहिए कि किन-किन रंगों का वस्त्र हम खरीदना चाहते हैं यह रंग एक-दूसरे से मिलते-जुलते होने चाहिएं। विशेषकर एक ही पोशाक के वस्त्रों के रंग।
(ङ) हमें अपनी, फब्बत देखनी चाहिए। जो रंग हमें जंचता हो जिसमें हम सुन्दर लगते हैं, हमें वही रंग चुनना चाहिए।
(छ) जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है हल्के रंगों का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
(ज) हमें सफेद रंग का प्रयोग गहरे रंगों के वस्त्रों के साथ करना चाहिए।
(झ) पोशाक के बड़े क्षेत्र में हल्का रंग अधिक होना चाहिएं और बाकी में हम गहरा रंग प्रयोग कर सकते हैं।

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4. लेबल (Label) – खरीदने से पहले उसका लेबल ध्यानपूर्वक देखना चाहिए और उसके ऊपर दी गई पूरी जानकारी का विश्लेषण करना चाहिए एक वस्त्र सम्बन्धी अच्छे लेबल पर प्रायः निम्नलिखित तरह की जानकारी होती है –

(क) वस्त्र किस रेशे का बना हुआ है अर्थात् इसमें कितने प्रतिशत सूत कितने प्रतिशत टैरीलिन कितने प्रतिशत पोलिएस्टर अर्थात् मिश्रित तन्तु के वस्त्र में विभिन्न रेशों का प्रतिशत बताया जाता है।
(ख) वस्त्र किस तरह का कार्य करेगा तुम्हारे लिए कैसे सहायक हैं।
(ग) वस्त्र का किस तरह प्रयोग करना है।
(घ) इसको कैसे धोना है, हाथ के साथ अथवा मशीन के साथ।
(ङ) क्या यह धोने के बाद सिकुड़ेगा या नहीं अर्थात् इसको preshrink किया गया है।
(च) इसका रंग पक्का है अथवा उतरने वाला है।
(छ) माप बड़ा छोटा अथवा बीच का है।
(ज) निर्माता अथवा वितरक का नाम होना चाहिए, अच्छे लेबल में सूचना स्पष्ट और सीधी होनी चाहिए। समझी जाने वाली भाषा में होनी चाहिए ताकि हर व्यक्ति इस पर दी गई जानकारी को पढ सके परन्तु अधिकतर निर्माता लेबल पर पर्याप्त निर्देश नहीं देते हैं जिसे उपभोक्ता को कोई लाभ नहीं मिलता और न ही उसका मार्ग दर्शन होता है।

5. फैशन (Fashion) – जो भी परिधान हम खरीद रहे हों प्रचलित फैशन का होना चाहिए। वस्त्रों में फैशन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

(क) परिधान का स्टाइल हमारे विचारों के अनुसार होना चाहिए।
(ख) परिधान की सुन्दरता नमूना, लम्बाई और चौड़ाई हमारे शरीर पर अच्छी लगनी चाहिए।
(ग) हमें उसी फैशन को अपनाना चाहिए जो हमारे शरीर के लिए आरामदायक हो।
(घ) जो फैशन हमारे शरीर में कोई विकार उत्पन्न करे उस फैशन का हमें बिना सोचे समझे नकल नहीं करनी चाहिए।
(ङ) हमें अपने वस्त्रों के लिए फैशन का चुनाव खुद करना चाहिए। हमें विक्रेता की बातों में नहीं आना चाहिए।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 11 बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख

6. लटकाव और माप (Drape and Size) – बाज़ारी बस्त्र खरीदते समय लटकाव का भी ध्यान रखना चाहिए। ड्रेप हम वस्त्र को देखकर तह नहीं कर सकते हैं इसका अंदाजा तभी लग सकता है जब हम इसको पहनकर देखें हमें इसको पहनकर (Trial) लेना चाहिए और शीशे में देखना चाहिए कि वह हमारे शरीर पर कैसे जचता है और कैसे दिखाई देता है। सामान्य रूप में दुकानदार वस्त्र को इतना आकर्षक बना देते हैं कि उपभोक्ता उस वस्त्र का परीक्षण किए बिना ही उसे खरीद लेते हैं। वस्त्रों को जब खरीदने से पहले हम उनकी ड्रेप का निरीक्षण करते हैं उसके साथ ही हमें माप का भी ध्यान रखना चाहिए।

कई बार कमीज़-सलवार में कमीज़ तो सही बनाते हैं परन्तु सलवार का घेर छोटा बनाते हैं जिससे सल्वार का घेरा पहनने से फटना शुरू हो जाता है। इसी तरह पायजामा में भी अधिक दबाव नहीं दिया जाता है। अलग-अलग बाज़ारी तैयार वस्त्रों में अलग-अलग माप दिया जाता है जैसे पुरुषों की पैंट का माप कमर के माप से मापा जाता है, और उनकी शर्ट का माप छाती के माप से जैसे 44”, 42” 40” दिया जाता है महिलाओं के वस्त्र फ्री आकार में आते हैं जैसे XL Extra large, L (Large) M (Medium) S (Small) परन्तु बाज़ारी वस्त्र खरीदने से पहले पहनकर अवश्य देख लें कि उनका माप, आपके शरीर पर सही बैठता है कि नहीं अगर माप में कुछ अन्तर है तो उसमें सुधार करवाया जा सकता है।

7. आकर्षकता (Attractiveness) – वस्त्र चाहे कैसा भी हो यह सुन्दर और आकर्षक होना चाहिए जो पहनने वाले पर जंचना चाहिए क्योंकि सभी तरह के डिजाइन और रंग हर व्यक्ति के शरीर पर नहीं जचते। सुन्दरता निम्नलिखित तत्त्वों से बनती है –

(क) वस्त्र का प्रकार (Type of Cloth) – वस्त्र की बनावट वस्त्र की सुन्दरता को प्रभावित करती है। वस्त्र नरम अथवा सख्त बनावट का हो सकता है। वस्त्र की बुनाई ठीक होनी चाहिए। यह इतनी ढीली नहीं होनी चाहिए नहीं तो वस्त्र जल्दी फट जाएगा। वस्त्र पर परिसज्जा ठीक होनी चाहिए।

(ख) डिज़ाइन और स्टाइल (Design and Style) – वस्त्रों के कई डिजाइन और स्टाइल बनाए जाते हैं। परन्तु सभी को यह फबते नहीं हैं। भारी डिजाइन के वस्त्र, भारी व्यक्ति पर अच्छे नहीं लगते। कपडे पर समतल रेखाएं व्यक्ति को छोटा बना देती हैं और लम्बी रेखाएं लम्बा बना देती हैं। भारी साड़ी जिसका चौड़ा बार्डर है, लम्बी और पतली स्त्री पर अच्छी लगती है।

(ग) अनुरूपता (Harmony) – कपड़े की सुन्दरता में अनुरूपता का बहुत हाथ है। जैसे सिल्क सलवार सिलक की कमीज़ के साथ अच्छी लगती है। इस तरह रंग भी एक दूसरे के अनुरूप होने चाहिएं।

8. मूल्य (Cost) – परिधान हमें अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ही खरीदना चाहिए। हमें पहले से ही पता होना चाहिए कि हमने किस रेंज में किस वस्त्र को खरीदना है तो इससे हमारा भी समय बचता है और दुकानदार का भी समय बचता है परन्तु इसे इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर वस्त्र गुणात्मक रूप में अच्छा है और कीमत थोड़ी सी अधिक है तो हमें तभी खरीदना चाहिए।

9. सविधाजनक (Comfortability) – जो भी परिधान हम खरीदें वे आरामदायक होने चाहिएं। इसके पहनने से हमारी शारीरिक क्रियाशीलता में कमी नहीं आनी चाहिए। कई बार कपड़ा आड़ा कटा होता है जो कि पहनने पर फट जाता है इसलिए कपड़ों को पहन कर चल फिर कर देख लेना चाहिए अगर कहीं से दबाव कम हो तो उसको भी देख लेना चाहिए।

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प्रश्न 4.
कपड़ों की सुन्दरता को प्रभावित करने वाले कारक बताएं।
उत्तर :
कपड़ों की सुन्दरता को प्रभावित करने वाले कारक हैं – रंग, डिज़ाइन, अलं करण, वस्त्र का प्रकार, अनुरूपता आदि।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक-शब्द में दें

प्रश्न 1.
अच्छी कारीगरी का एक गुण बताएं।
उत्तर :
कटाई।

प्रश्न 2.
दर्जी से वस्त्र सिलवाने की एक हानि बताओ।
उत्तर :
समय नष्ट होता है।

प्रश्न 3.
रेडीमेड कपड़ा खरीदने का एक लाभ बताओ।
उत्तर :
समय की बचत।

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(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. रेडीमेड वस्त्र खरीदने से ……….. की बचत होती है।
2. ……….. का अर्थ है विभिन्न रेखाओं के प्रयोग से किसी आकृति को बनाना।
3. ……….. लेबल रेडीमेड कपड़ों पर लगा रहता है।
4. वस्त्र सिलने के लिए प्रयोग धागा ……….. से मिलता हो।
5. परिधान का स्टाईल तथा डिज़ाईन ……….. के अनुसार हो।
उत्तर :
1. समय
2. नमूने
3. देख-रेख
4. वस्त्र
5. आयु।

(ग) ठीक /गलत बताएं

1. बच्चों के वस्त्र सरलता से पहने तथा उतारे जा सकें।
2. दर्जी से वस्त्र सिलाने से फिटिंग अच्छी होती है।
3. सूचना लेबल पर वस्त्र के रेशे की सूचना भी होती है।
4. वस्त्र का रंग कोई भी हो चलेगा।
5. बड़ी आयु में गहरे रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
उत्तर :
1. (✓) 2. (✓) 3. (✓) 4. (✗) 5. (✗)

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
कारीगरी का अर्थ है –
(A) नाप
(B) कटाई
(C) सिलाई
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

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प्रश्न 2.
निम्न में ठीक है –
(A) दर्जी से वस्त्र सिलवाने से कपड़ों की फिटिंग अच्छी होती है
(B) वस्त्रों पर डिजाइन अपनी पंसद का डलवाया जा सकता है
(C) कपड़ों को प्राप्त करने का इन्तजार करना पड़ता है
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

प्रश्न 3.
अच्छी कारीगरी है –
(A) धागा
(B) सीन का मिलान
(C) बटन
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

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प्रश्न 4.
कारीगरी का मूल्यांकन करने लिए …………. देखें।
(A) नमूना
(B) कपड़े की कटाई
(C) उलेड़ी
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 5.
निम्न में ठीक नहीं है –
(A) तैयार वस्त्र खरीदने पर भी समय नष्ट होता है
(B) दर्जी से वस्त्र सिलवाने पर समय नष्ट नहीं होता
(C) बड़ी आयु वाले व्यक्ति के लिए हल्के रंग के वस्त्र ठीक रहते हैं
(D) बच्चों के वस्त्र नर्म होने चाहिएं।
उत्तर :
दर्जी से वस्त्र सिलवाने पर समय नष्ट नहीं होता।

प्रश्न 6.
निम्न में ठीक है –
(A) बन्धक की सहायता से हम किसी परिधान को उतार सकते हैं
(B) उलेड़ी की चौड़ाई वस्त्र के नमूने के अनुसार हो।
(C) कालर पर सोल न हो
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

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प्रश्न 7.
निम्न में गलत है
(A) कपड़े की बुनाई घनी हो।
(B) दर्जी को कपड़े की सिलाई कच्चे धागे से करनी चाहिए।
(C) कपड़ा ऐसा खरीदे जिसे ड्राइक्लीन की आवश्यकता न हो
(D) सभी गलत है।
उत्तर :
दर्जी को कपड़े की सिलाई कच्चे धागे से करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
कपड़ों पर लगे सूचना लेबल से हमें …………… जानकारी मिलती है।
(A) वस्त्र के रेशे की
(B) वस्त्र के प्रयोग की
(C) माप की
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

बाज़ारी वस्त्रों की गुणवत्ता परख HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य –

→ रेडीमेड वस्त्रों से समय बचता है।

→ रेडीमेड वस्त्रों से दर्जियों के चक्करों से छुटकारा मिलता है।

→ बाज़ारी वस्त्र खरीदते समय ध्यान दें कि इनकी सिलाई दृढ़ होनी चाहिए।

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→ वस्त्र का चुनाव करते समय रंग का भी ध्यान रखना चाहिए।

→ अधिक आयु वाले व्यक्ति के लिए हल्के रंग के परिधान लें।

→ खरीदने से पहले वस्त्रों पर लेबल को ध्यानपूर्वक देख लें।

→ प्रचलित फैशन का ही परिधान खरीदना चाहिए।

→ वस्त्र अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ही खरीदें।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बालकों के विकास पर घर के बाहर की किन-किन बातों का प्रभाव पड़ता
उत्तर :
पुस्तकों, संगीत, रेडियो, सिनेमा, टेलीविज़न, विज्ञापन आदि का।

प्रश्न 2.
खेल तथा मनोरंजन का संवेगात्मक विकास से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर :
खेलों द्वारा बालक संवेगों का प्रकाशन तथा साथ-साथ संवेगात्मक नियंत्रण भी सीखता है।

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प्रश्न 3.
जिन बालकों में संवेगात्मक नियंत्रण अधिक होता है, उनमें कैसे गुण अधिक पाए जाते हैं ?
उत्तर :
सहनशीलता, त्याग, सच्चाई और सहानुभूति आदि गुण।

प्रश्न 4.
खेल का शारीरिक महत्त्व क्या है?
उत्तर :

  1. इससे बच्चों की मांसपेशियां समुचित ढंग से विकसित होती हैं।
  2. इसके द्वारा बच्चों के शरीर के सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है।
  3. बच्चों का तनाव व चिड़चिड़ापन कम हो जाता है।

प्रश्न 5.
खेल का सामाजिक विकास की दृष्टि से क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

  1. बच्चे अपरिचित व्यक्तियों के साथ सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करना सीख लेते हैं।
  2. खेल-खेल में वे सहयोग करना सीख लेते हैं।
  3. बच्चों में नियम-निष्ठा की भावना आ जाती है।
  4. जो बच्चे परस्पर खेलते हैं, उनमें द्वेष की भावना नहीं रहती।
  5. बच्चे जब अपने माता-पिता या अन्य भाई-बहिनों के साथ खेलते हैं तो इससे परिवार में सौहार्द्र और स्नेह का वातावरण विकसित होता है।

प्रश्न 6.
नैतिक दृष्टि से खेल के द्वारा बच्चों में किन-किन गुणों का विकास होता
अथवा
बच्चों के नैतिक विकास में खेलों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

  1. समूह के साथ खेलते हुए बच्चों में आत्म-नियन्त्रण, सच्चाई, दयानतदारी, निष्पक्षता तथा सहयोग आदि गुणों का विकास होता है।
  2. बच्चा सीखता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता और न ही उसमें द्वेष का भाव आता है।
  3. खेल के द्वारा बच्चों में सहनशीलता की भावना का विकास होता है।

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प्रश्न 7.
टेलीविज़न का बालक (बच्चों) के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले शिक्षाप्रद कार्यक्रम, ऐतिहासिक घटनाएँ तथा अन्य बहुत से कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ बालक के नैतिक व मानसिक विकास में सहायक होते हैं।

प्रश्न 8.
मनोरंजन के साधन बालक के लिए कब हानिकारक होते हैं ?
उत्तर :
रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा की ओर बालकों के बढ़ते हुए झुकाव के कारण उनकी खेलों के प्रति रुचि कम हो जाती है। परिणामस्वरूप शारीरिक विकास रुक जाता है। साथ ही उनका व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन बिगड़ जाता है।

प्रश्न 9.
बालकों की अभिव्यक्ति के अन्य साधन कौन-से हैं?
उत्तर :
बालकों की अभिव्यक्ति के अन्य साधन-

  • चित्रांकन
  • संगीत
  • लेखन
  • हस्तकौशल।

प्रश्न 10.
खेल के सिद्धान्त कौन-से हैं?
उत्तर :
खेल के सिद्धान्त –

  • अतिरिक्त शक्ति का सिद्धान्त
  • शक्तिवर्द्धन का सिद्धान्त
  • पुनरावृत्ति का सिद्धान्त
  • भावी जीवन की तैयारी का सिद्धान्त
  • रेचन का सिद्धान्त
  • जीवन की क्रियाशीलता।

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प्रश्न 11.
बालकों के खेलों की क्या विशेषताएं हैं?
अथवा
खेल की चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर :
बालकों के खेलों की निम्नलिखित विशेषताएं हैं –

  • बालक स्वेच्छा से खेलता है।
  • उम्र वृद्धि के साथ-साथ बालकों के खेल में दैहिक क्रियाओं की कमी आती है।
  • बालकों के खेल का निश्चित प्रतिरूप होता है।
  • बालक प्रत्येक खेल में जोखिम उठाता है।
  • बालक के खेलों में आवृत्ति का अंश रहता है।

प्रश्न 12.
बालकों के विकास पर घर के अलावा किन चीज़ों का प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
पुस्तकों, संगीत, रेडियो, सिनेमा, टेलीविज़न, विज्ञापन इत्यादि।

प्रश्न 13.
खेल से संवेगात्मक विकास कैसे होता है?
उत्तर :
खेलों द्वारा बालक संवेगों का प्रसारण तथा संवेगों पर नियन्त्रण करना भी सीखता है। ऐसा बच्चा ज्यादा सहनशील, सत्यवादी और सहानुभूति प्रकट करने वाला होता है। उसके अंदर त्याग की भावना भी होती है।

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प्रश्न 14.
खेलों का शारीरिक विकास में क्या योगदान है?
उत्तर :
खेलों द्वारा बच्चे का व्यायाम होता है, उसकी हडियां व मांसपेशियों का विकास होता है और उसका चिड़चिड़ापन कम हो जाता है।

प्रश्न 15.
मनोरंजन के अतिरिक्त बालक के जीवन में टेलीविजन की कोई एक अन्य उपयोगिता लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

प्रश्न 16.
बच्चों के खेल के दो महत्त्व लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 4, 5, 6 का उत्तर।

प्रश्न 17.
किताबों का बच्चों के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

  • इनसे बालकों को पढ़ने की प्रेरणा मिलती है,
  • इनके द्वारा बच्चों के पढ़ने की योग्यता बढ़ाई जा सकती है,
  • इनके द्वारा बच्चों को नए शब्दों का ज्ञान होता है,
  • इनके पढ़ने से ‘रेचन’ द्वारा उनके संवेगात्मक तनाव निकल जाते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल का शैक्षिक महत्त्व क्या है?
उत्तर :

  1. बच्चे सभी प्रकार के खिलौनों से खेलते हैं। उन्हें भिन्न-भिन्न पदार्थों के आकार, रंग, भार तथा उनकी सतह का ज्ञान हो जाता है।
  2. जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वैसे-वैसे खेल के द्वारा उनमें कई कौशलों का विकास होता है।
  3. बच्चे खेल के द्वारा सीखते हैं कि किस प्रकार पदार्थ-विशेष की जानकारी प्राप्त की जाए तथा वस्तुओं का संग्रह किस प्रकार से किया जाए।
  4. खेल के द्वारा बच्चे अपनी तथा अपने साथियों की क्षमताओं की भली-भांति तुलना कर सकते हैं। इस प्रकार उन्हें अपने रूप का वास्तविक ज्ञान हो जाता है।

प्रश्न 2.
विकास प्रक्रिया के निर्देशन में खेल का क्या महत्व है?
उत्तर :
पहले बालक खेल के माध्यम से ही विभिन्न प्रकार के क्रियात्मक विकासों को सीखता है। इसमें वह अपने क्रियात्मक कौशलों को और शब्दों को सीखता है। यह विकास वह अन्य बालकों के साथ खेलकर सीखता है। खेल में वह विभिन्न क्रियाओं को पसन्द के आधार पर भी सीखता है। प्रारम्भ के कुछ महीनों में वह कुछ अधिक तीव्र गति से सीखता है। वह अपने हाथों, कपड़े और खिलौने आदि के साथ भी खेलता है। बालक तीन साल की अवस्था में पहुंचकर अपने खेल के साथियों को अधिक महत्त्व देने लग जाता है। अत: विकास प्रक्रिया का निर्देशन खेल द्वारा भी किया जा सकता है। .

प्रश्न 3.
बालक के सामाजिक विकास में खेल की भूमिका समझाइए।
उत्तर :
खेल एक स्वाभाविक, स्वतन्त्र, उद्देश्यहीन एवं आनन्द की अनुभूति देने वाली क्रिया है। बालक के शारीरिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास में खेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। खेल बालक की कल्पनाओं, सहयोग की भावना तथा दयानतदारी को दर्शाता है। खेल के द्वारा बालक में नियम पालन की भावना आती है। खेल में वह अपनी व्यक्तिगत सत्ता समष्टि में लीन करता है। इस प्रकार उसमें सामाजिक भावना का विकास भी होता है। आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक के खेल में परिवर्तन आता रहता है। बचपन में बालक-बालिकाएं साथ-साथ खेलते हैं परन्तु बाद में दोनों की रुचियों में अन्तर आ जाता है।

रुचि में अन्तर –

  • बालकों में बालिकाओं की तुलना में अधिक शारीरिक शक्ति
  • बालिकाओं में शीघ्र परिपक्वता का आ जाना तथा
  • सामाजिक प्रतिबन्ध (किशोरावस्था में दोनों का मिलना ठीक नहीं समझा जाना) आदि के कारण होता है।

बालकों के खेल के संगी-साथी के मानसिक तथा बौद्धिक स्तर एवं आर्थिक स्तर का प्रभाव भी बालकों के सामाजिक विकास पर पड़ता है। कुशाग्र बुद्धि वाला बालक अपने से बड़े बालक के साथ खेलना पसन्द करता है। इसी प्रकार मन्द बुद्धि वाला बालक अपने से छोटे बालकों के साथ खेलना पसन्द करता है।

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प्रश्न 4.
खेल की क्या परिभाषा है?
उत्तर :
वास्तव में खेल ऐसी एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है जिसमें अनुकरण एवं रचनात्मक प्रवृत्तियों का सम्मिश्रण रहता है। वैलनटाइन ने इसकी परिभाषा इस प्रकार की है कि खेल वह क्रिया है जो खेल के लिए ही की जाती है। ग्यूलिक ने खेल की सुन्दर परिभाषा इस तरह की है कि जो कार्य हम अपनी इच्छा से स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण में करते हैं, वही खेल है, यह परिभाषा सर्वमान्य है।

प्रश्न 5.
रेडियो की बच्चों के विकास में क्या भूमिका है?
उत्तर :
रेडियो की प्रसिद्धि पहले की अपेक्षा अब कम हो गई है। जबसे रंगीन टेलीविज़न आया है उसने रेडियो का स्थान ले लिया है। अब तो बच्चे रेडियो बहुत ही कम सुनते हैं। शहरों की अपेक्षा गांव के बच्चे रेडियो अधिक सुनते हैं। एक अध्ययन में यह देखा गया है कि जो बच्चे जितना अधिक समायोजित होते हैं व रेडियो उतना ही कम सुनते हैं। लगभग तीन वर्ष का बच्चा रेडियो में रुचि लेता है। रेडियो सुनने से भाषा का विकास होता है, भाषा सुधरती है, व्याकरण का ज्ञान बढ़ता है इत्यादि, पर आज रेडियो का स्थान टेलीविज़न ले चुका है।

प्रश्न 5. (A)
बच्चों के लिए रेडियो किस तरह उपयोगी हैं ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 5 का उत्तर।

प्रश्न 6.
बच्चों पर संगीत का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
संगीत के माध्यम से बच्चे अपने आप को अभिव्यक्त करते हैं। बोलना सीखने से पूर्व बच्चा गाना सीख जाता है। सभी बच्चे गाते हैं चाहे उनमें गायन सम्बन्धी क्षमता हो या ना हो। शिशु का बबलाना (babbling) उसका गायन है क्योंकि इसमें भी एक लय है। इसे सुनकर बालक बहुत प्रसन्न होता है। वह गाने के साथ अनेक शारीरिक क्रियाएँ भी करता है। जैसे-जैसे बालक थोड़ा बड़ा होता है वह छोटी व आसान कविताएं लय व ताल में गा सकता है। अच्छा संगीत बच्चे के मनोरंजन के साथ उसके विकास पर भी प्रभाव डालता है।

प्रश्न 7.
विज्ञापन का बालक के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ? उदाहरण सहित वर्णन करें।
अथवा
बच्चों के जीवन पर विज्ञापनों का क्या प्रभाव पड़ता है ? उदाहरण सहित बताएं।
उत्तर :
विज्ञापन का बालकों के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है वह विभिन्न पत्रिकाओं एवं टेलीविज़न में विज्ञापनों को देखता है और उन पर अपने मन में गहरा विचार करता है। विभिन्न विद्वानों ने अपने अध्ययनों में सिद्ध कर दिया है कि विभिन्न प्रकार के विज्ञापन बालक एवं किशोर को सांसारिक वस्तुओं का परिचय करा कर उनके ज्ञान में विकास करते हैं। इस तरह बालक अपने आस-पास की वस्तुओं को बहुत सूक्ष्मता से देखता है और उन पर विचार करता है।

उदाहरण – टेलीविज़न में दिखाए जाने वाले विज्ञापनों को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं जो कि बालक को संदेह में डाल देते हैं और उनके विकास पर उल्टा प्रभाव डालते हैं। कई बार बालक विज्ञापनों को देखकर उनकी नकल करने की कोशिश करते हैं और अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।

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प्रश्न 8.
बच्चों के लिए किस प्रकार के टेलीविजन कार्यक्रम बनाए जाने चाहिएं ?
उत्तर :
बच्चों के लिए निम्नलिखित प्रकार के टेलीविज़न कार्यक्रम बनाए जाने चाहिएं –

  1. कार्यक्रम मनोरंजक हो. जिन्हें देख कर बच्चों को आनन्द तथा प्रसन्नता प्राप्त हो।
  2. कार्यक्रम द्वारा बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा प्रदान होनी चाहिए।
  3. कार्यक्रम ऐसे न हों जिन्हें देख कर बच्चे असमंजस में पड़ जाएं।
  4. कार्यक्रमों में बच्चों की अधिकता होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
साहित्य को समाज का दर्पण क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
साहित्य हमें जीवन को उचित ढंग से जीने का तरीका बताता है। इसमें ठीक तथा गलत का ज्ञान भी शामिल होता है। साहित्य में समाज में चल रही बातों की चर्चा होती है। साहित्य जिस भी काल में रचा गया हो उसी समय के रहन-सहन, समस्याओं, फैशन,
आदि को वर्णित करता है। इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
(क) व्यक्ति के विकास पर पुस्तकों, संगीत, रेडियो, सिनेमा तथा दूरदर्शन के प्रभावों की चर्चा कीजिए।
(ख) बालकों के जीवन पर टेलीविज़न व चलचित्रों का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
(क) पुस्तकों का प्रभाव – पुस्तकों आदि का पढ़ना एक प्रकार का आनन्ददायक खेल है। इसमें बच्चे दूसरे की क्रियाशीलता का आनन्द लेते हैं। जब बच्चे अकेले होते हैं और शारीरिक खेल खेलने का उनका मन नहीं होता या थोड़े थके हुए होते हैं तब पुस्तकें पढ़ते हैं। घर में बच्चों को जब बाहर निकलने से मना किया जाता है या कमरे में बैठने के लिए बाध्य किया जाता है तब वे पढ़ते हैं। अध्ययनों में देखा गया है कि लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक पढ़ती हैं। एक अध्ययन में देखा गया है कि प्रतिभाशाली बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में अधिक पढ़ते हैं। वे पढ़ने को खेल न समझकर कार्य समझते हैं। अधिकांश बच्चे परिचित व्यक्तियों और जानवरों के सम्बन्ध में कहानियां पढ़ना पसन्द करते हैं। आजकल के बच्चों में कॉमिक्स पढ़ने का बहुत शौक है।

कॉमिक्स पढ़ने से अनेक लाभ होते हैं – (i) इनसे बालकों को पढ़ने की प्रेरणा मिलती है, (ii) इनके द्वारा बच्चों के पढ़ने की योग्यता बढ़ाई जा सकती है, (iii) इनके द्वारा बच्चों को नए शब्दों का ज्ञान होता है, (iv) इनके पढ़ने से ‘रेचन’ द्वारा उनके संवेगात्मक तनाव निकल जाते हैं। अधिक कॉमिक्स पढ़ने से बच्चों को कुछ हानियां भी होती हैं, (i) बच्चे अच्छा साहित्य पढ़ने से कतराते हैं, (ii) अधिकांश कॉमिक्स में कहानियों की भाषा और शब्द निम्नकोटि के होते हैं, (iii) इनके अधिक पढ़ने से सैक्स, हिंसा व भय आदि का विकास होता है, (iv) इनके अधिक पढ़ने से बच्चे अपने वास्तविक जीवन से कुछ नीरस हो जाते हैं, (v) जो बच्चे कॉमिक्स अधिक पढ़ते हैं वे अन्य खेलों में कम रुचि लेते हैं जिससे उनके शारीरिक विकास में रुकावट आती है। अच्छा साहित्य पढ़ने से मनोरंजन के साथ-साथ बच्चों का मानसिक, बौद्धिक, चारित्रिक तथा नैतिक विकास होता है।

किशोरावस्था तक बालकों को कहानियां, उपन्यास पढ़ने का बहत शौक हो जाता है। बहुधा निम्न स्तर के उपन्यास और कहानियां किशोरों को अधिक पसन्द आते हैं। इस प्रकार की पाठ्य-सामग्री उनके नैतिक विकास को अवनति की ओर अग्रसर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।

संगीत का प्रभाव-संगीत के माध्यम द्वारा भी बच्चे अपने आपको अभिव्यक्त करते हैं। बोलना सीखने से पूर्व ही बालक गाना सीख जाता है। सभी बच्चे गाते हैं। चाहे उनमें गायन सम्बन्धी क्षमता हो या न हो। शिशु का बबलाना उसका गायन है। बालक के बबलाने में भी एक लय होती है। इसे सुनकर बालक बड़ा प्रसन्न होता है। शुरू-शुरू में बालक गाते समय कई शारीरिक क्रियाएँ भी करता है।

4-5 वर्ष की आयु में बच्चे सरल कविताएं लय के अनुसार गा सकते हैं। वे जानते हैं कौन-सी कविता किस लय में गाई जाएगी। बड़े होते-होते बच्चों की रुचि देशभक्ति ज्ञान, लोक संगीत तथा शास्त्रीय संगीत में बढ़ती जाती है। बहुत से बच्चे धार्मिक भजनों में भी रुचि लेते हैं। फिशर का कथन है कि उच्च वर्ग तथा मध्यम वर्ग के बच्चों में संगीत की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं पाया जाता है। संगीत मनोरंजन का साधन होने के साथ-साथ बच्चों के विकास पर भी प्रभाव डालता है।

रेडियो तथा टेलीविज़न का प्रभाव – लगभग तीन वर्ष का बालक रेडियो में थोड़ी-थोड़ी रुचि लेने लगता है। लड़के लड़कियों की अपेक्षा रेडियो अधिक सुनते हैं। प्रतिभाशाली बालक रेडियो सुनना कम पसन्द करते हैं। शहरों की अपेक्षा गांवों के बच्चे रेडियो अधिक सुनते हैं। एक अध्ययन से देखा गया है कि जो बच्चे जितने अधिक समायोजित होते हैं वे रेडियो उतना ही कम सुनते हैं। रेडियो से बच्चों को आनन्द ही प्राप्त नहीं होता है वरन् उन्हें इससे अनेक ज्ञान की बातों को सीखने का अवसर प्राप्त होता है। इसके सुनने से उनकी भाषा का विकास होता है, भाषा सुधर जाती है, उनकी व्याकरण सुधर जाती है तथा वे इससे आत्म उन्नति के लिए प्रेरित होते हैं। – रेडियो से घर बैठे हुए ही समाचार, संगीत, भाषण, चर्चा, लोकसभा या विधानसभा की समीक्षा, वाद-विवाद, नाटक, प्रहसन आदि सुनने से मनोरंजन होता है।

मनोरंजन शारीरिक व मानसिक विकास में बहुत अधिक सहायक होता है। परन्तु अधिक रेडियो सुनने से बच्चे शारीरिक खेल नहीं खेल पाते जिससे उनका शारीरिक विकास अवरुद्ध हो सकता है। विभिन्न अध्ययनों में देखा गया है कि जो बच्चे अधिक रेडियो सुनते हैं उनका व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन इसलिए बिगड़ जाता है कि उनका अधिकांश समय रेडियो सुनने में निकल जाता है। आज रेडियो का स्थान टेलीविज़न ने ले लिया है।

जिलने समय तक टेलीविज़न पर अच्छे-अच्छे प्रोग्राम, सीरियल आदि आते हैं, बच्चे उन्हें अवश्य ही देखना चाहते हैं। एक अध्ययन से पता लगा है कि अमेरिका में बच्चे लगभग अपने जागने के समय का लगभग 1/6 भाग टेलीविज़न देखने में व्यय करते हैं। छ: वर्ष की अवस्था तक उनमें टेलीविज़न देखने की अधिक प्रवृत्ति पाई जाती है। अधिक पढ़ने-लिखने वाले बच्चे कम टेलीविज़न देखते हैं। जो बच्चे कम समायोजित होते हैं, वे अधिक टेलीविज़न देखते हैं।

उच्च आर्थिक व सामाजिक स्तर वाले बच्चे कम टेलीविज़न देखते हैं। लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक टेलीविज़न देखते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कुल मिलाकर टेलीविज़न का प्रभाव बच्चों के विकास पर बहुत अधिक पड़ता है। एक ओर जहां अच्छे-अच्छे प्रोग्राम, शिक्षाप्रद कहानियां तथा देश-विदेश के समाचारों से बच्चों का मानसिक तथा चारित्रिक विकास होता है, दूसरी ओर अधिक T.V देखने से शारीरिक विकास अवरुद्ध भी होता है। इसके साथ ही वयस्कों को दिखाये जाने वाले कुछ प्रोग्राम जिन्हें वयस्क देखें या न देखें बच्चे अवश्य ही देखते हैं जिनका उनके बारित्रिक व संवेगात्मक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

निश्चय ही आज के युग में टेलीविज़न मनोरंजन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण साधन है। इसका उपयोग देश की प्रगति, शिक्षा के प्रसार तथा बच्चों के चरित्र निर्माण में अधिकाधिक किया जाना चाहिए।

चलचित्र (सिनेमा) का प्रभाव-आजकल छोटे-छोटे सभी आयु के बालक सिनेमा में दिखाई देते हैं। सिनेमा देखने वालों में किशोरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। दुराचार, अपराध, नारी सौंदर्य, प्रेम आदि की चरम सीमाएं चलचित्रों में प्रदर्शित कर लोगों को

अधिक-से-अधिक मात्रा में आकर्षित किया जाता है। यद्यपि कुछ चलचित्रों की कहानी तथा उद्देश्य सराहनीय होते हैं परन्तु बालकों व किशोरों की मानसिक योग्यता सीमित होने के कारण यह सिनेमा के उद्देश्यों और कहानी को कम समझ पाते हैं। वे सिनेमा से गन्दी बातें ही अधिक सीखते हैं। सिनेमा का स्थान अब विडियो कैसेट प्लेयर या रिकार्डर लेता जा रहा है।

(ख) देखें प्रश्न 1 (क) का उत्तर।

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प्रश्न 2.
खेलों को कौन-कौन से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
अथवा
खेलों को प्रभावित करने वाले चार कारक बताएँ।
उत्तर :
खेलों को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं –
1. शारीरिक स्वास्थ्य-स्वस्थ बालक में शक्ति अधिक होती है, इसलिए वे खेलों में अधिक रुचि लेते हैं।
2. ऋतु-ऋतु का खेल पर विशेष प्रभाव होता है। जैसे ग्रीष्म ऋतु में बालकों को जल विहार व तैरना अच्छा लगता है तथा बसन्त ऋतु में साइकिल पर इधर-उधर घूमना। पहाड़ों पर रहने वाले जाड़े में बर्फ में खेलते हैं।
3. वातावरण-बालक के खेल पर वातावरण का विशेष प्रभाव पड़ता है। जैसे बालक अपने घर में क्षेत्र में खेलना ज्यादा पसन्द करता है।
4. क्रियात्मक विकास-खेलों का बालक के क्रियात्मक विकास पर प्रभाव पड़ता है। गेंद वाली खेलों में वहीं बालक भाग लेते हैं जो उसे पकड़ या फेंक सकते हैं। जोन्स के मतानुसार 21 मास की अवस्था वाला बालक चीजों को खींच सकता है और 24 मास की अवस्था वाला बालक खिलौने को खींच व फेंक सकता है। 29 मास की अवस्था वाला बालक किसी चीज़ को कम-से-कम 7- फ़ीट तक धकेल सकता है।

5. लिंग-भेद-प्रारम्भ में लड़के-लड़कियों के खेल में कोई अन्तर नहीं होता, परन्तु अवस्था वृद्धि के साथ इनके खेलों में विविधता पाई जाती है।

6. बौद्धिक क्षमता-खेलों पर बौद्धिक क्षमता का भी प्रभाव पड़ता है। कुशाग्र बुद्धि वाले बालक मन्द बुद्धि बालकों की अपेक्षा ज्यादा खेला करते हैं। कुशाग्र बुद्धि बालक नाटक, रचनात्मक खेलों व पुस्तकों में ज्यादा रुचि लेते हैं। ये पहेलियां और ताश का खेल आदि पसन्द करते हैं।

7. अवकाश की मात्रा-बालक थकने पर कम श्रम वाले खेल खेलता है। धनी परिवार के बच्चों के पास काफ़ी अवकाश होता है। निर्धन परिवार के बच्चों के पास कम। अत: वे समयानुसार ही खेलना पसन्द करते हैं।

8. सामाजिक-आर्थिक स्तर-धनी परिवार के बच्चे क्रिकेट, टेनिस, बैडमिन्टन आदि खेलना पसन्द करते हैं, जबकि ग़रीब के बच्चे गेंद व कबड्डी खेलना ही पसन्द करते हैं। निम्न वर्ग के बालक जन्माष्टमी व अन्य मेलों में जाना पसन्द करते हैं। धनी वर्ग के बालक नाटक, नृत्य, कला आदि समारोहों में जाना पसन्द करते हैं।

9. खेल सम्बन्धी उपकरण-यदि बालकों को खेलने के लिए लकड़ी के टुकड़े, हथौड़ी और कील आदि दिए जाएंगे, तो उनके खेल रचनात्मक होंगे। बड़े बालकों को भी उपयुक्त उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। इस स्थिति में बालक अपनी खेल सम्बन्धी रुचियों को दूसरी ओर मोड़ लेता है।

10. परम्पराएँ- परम्पराओं का भी बालक के खेलों पर प्रभाव पड़ता है। भारतीय परम्परा के अनुसार लड़कियां गुड्डे-गुड़ियों का खेल तथा लड़के आँख-मिचौनी और चोर-सिपाही का खेल खेलते हैं। उच्च वर्ग की अपेक्षा मध्यम वर्ग के बालक-बालिकाएँ परम्परागत खेल अधिक खेलते हैं।

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प्रश्न 3.
खेलों के अतिरिक्त बालकों की अभिव्यक्ति के कौन-कौन से साधन हैं?
उत्तर :
निम्न साधन बालकों की अभिव्यक्ति में मददगार हैं –
1. चित्रांकन – यह एक बहुत अच्छा साधन है। बालक अपने मन के भाव चित्रों द्वारा अभिव्यक्त करते हैं। उनका बनाया हुआ चित्र, रंगों का चयन इत्यादि उनके भावों को बखूबी प्रदर्शित करता है। छोटे बच्चों की तो खासकर रंगों में रुचि होती है।

2. संगीत – सभी बच्चे संगीत-प्रेमी होते हैं। अच्छी लय और ताल न केवल समा बांधती है बल्कि तनाव को भी काफ़ी हद तक कम करती है। छोटे बच्चे कविता गान से संगीत सीखना शुरू करते हैं और जैसे-जैसे वह बड़े होते हैं कविताओं का स्तर भी मुश्किल हो जाता है।

3. लेखन – लेखन कला बच्चों में कुछ समय पश्चात् आती है जब उन्हें भाषा, व्याकरण की समझ आ जाती है और वह लिखना पूर्णतया सीख जाते हैं। बच्चे अपने छोटे-छोटे अनुभवों को लिपिबद्ध करने में सक्षम हो जाते हैं। समय के साथ उनके अनुभव ओर पेचीदे हो जाते हैं और वह उन्हें लिपिबद्ध करने के लिए और अच्छी भाषा व व्याकरण की मदद लेते हैं।

4. हस्तकौशल-हाथ की चीजें बनाने का एक अपना ही आनंद है। अनेक वस्तुएं जैसे मिट्टी, धागे, कागज़, थर्माकोल आदि इस्तेमाल करके सुन्दर वस्तुएं बनाई जा सकती हैं। इससे छोटी मासपेशियों का विकास तो होता ही है अपितु आंख व हाथ का समन्वय (तालमेल) भी बहुत बढ़िया हो जाता है।

प्रश्न 4.
बालक पर पुस्तकों का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
कहा जाता है कि पुस्तकें व्यक्ति की सच्ची साथी होती हैं। पुस्तकों द्वारा मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, भाषा विकास सभी कुछ सम्भव है। छोटा बच्चा जो पढ़ नहीं सकता, उसे भी माता-पिता कहानी पढ़कर सुना सकते हैं। इससे वह ध्यान लगाना सीखता है। इसके अलावा नए शब्द और ज्ञान भी सीखता है। डांटने की अपेक्षा यदि उसे कहानी द्वारा कोई बात समझाई जाए, वह उसे जल्दी समझ में आती है। थोड़े बड़े बच्चे तो स्वयं ही किताबें पढ़ सकते हैं। इसके अनेक लाभ हैं जैसे –

  1. इनसे बालकों को पढ़ने की और प्रेरणा मिलती है।
  2. बच्चों की पढ़ने के प्रति रुचि जागृत होती है।
  3. बच्चों की योग्यता अच्छी पुस्तकों द्वारा बढ़ाई जा सकती है।
  4. बच्चों का ज्ञानवर्धन होता है।
  5. उनका भाषा का विकास भी होता है।

पुस्तकों के चयन में माता-पिता का काफ़ी सहयोग है। यदि वे अपने बच्चों को सही पुस्तकें चुनकर देते हैं, तो इसका अर्थ है कि वह उसके विकास में रुचि लेते हैं। यदि वह ऐसा नहीं करते तो बच्चे कभी कभी गलत पुस्तकों का चयन कर लेते हैं जो उनके विकास में हानिकारक सिद्ध होती हैं। ऐसी किताबें सदैव उन्हें अच्छा साहित्य पढ़ने से रोकती हैं। अत: किताबों का चयन बहुत सोच समझकर करना चाहिए।

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प्रश्न 5.
बच्चों के विकास में टेलीविज़न का क्या स्थान है?
अथवा
बालकों के जीवन पर टेलीविज़न का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
टेलीविज़न का एक बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। कौन-सा घर आज ऐसा है जिसमें टेलीविज़न न हो। टेलीविज़न में अनेक तरह के शिक्षाप्रद व मनोरंजक कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। चूंकि टेलीविज़न में न केवल आप सुनते हैं बल्कि देखते भी हैं अतः वो चीज़ आपको ज्यादा याद रहती है। केबल आने के बाद बच्चों का अधिकांश समय टेलीविज़न के आगे ही गुज़रता है । केबल द्वारा अनेक चैनल अब देखे जा सकते हैं। परन्तु यह माता-पिता का फर्ज़ है कि वह इस बात पर ध्यान दें कि उनके बच्चे कौन से चैनल ज्यादा देख रहे हैं। कुछ चैनल के कार्यक्रम केवल वयस्कों के लिए होते हैं।

यदि बच्चे उन्हें देखें, तो उनके विकास पर विपरीत असर अवश्य पड़ेगा। वैसे भी ज्यादा टेलीविज़न देखना आंखों के लिए हानिकारक है। इसके अलावा बच्चों का शारीरिक विकास रुक जाता है। अत: माता-पिता बच्चों को केवल चुने हुए चैनल ही देखने दें जो कि उनके काम के हैं। इसके अलावा कितना समय बच्चा टी० वी० देखेगा, उस पर भी नियन्त्रण रखें। वह इसीलिए क्योंकि सामूहिक विकास के लिए सभी क्रियाओं को करना अनिवार्य है।

प्रश्न 6.
बच्चों के मनोरंजन के लिए पुस्तकें तथा उनके चुनाव के बारे में बताएं।
उत्तर :
बच्चों की दुनिया अलग होती है इसलिए उनकी पढ़ने वाली पुस्तकें भिन्न तरह की होती हैं। बच्चों में पढ़ने की रुचि जागृत हो इसलिए पुस्तकों का चुनाव ध्यानपूर्वक करना चाहिए। छोटे बच्चों के लिए पुस्तकें रंगदार तस्वीरों तथा मोटी छपाई वाली होनी चाहिएं। इनकी जिल्द तथा पेज़ मज़बूत होने चाहिएं। बच्चों की पुस्तकों में कहानियां अच्छे मूल्यों को सिखाने वाली होनी चाहिए। बाल पुस्तकों में जंगली जानवरों, पौधों तथा अपने इर्द-गिर्द के लोगों के साथ मिल जुलकर रहने की शिक्षा होनी चाहिए। छोटी-छोटी शिक्षात्मक कहानियों वाली पुस्तकों का चुनाव करना चाहिए। बच्चों में पढ़ने की रुचि पैदा करनी अति आवश्यक है। इससे बच्चे की काल्पनिक शक्ति में वृद्धि होती है तथा बच्चा बुरी संगत से बचा रहता है।

प्रश्न 7.
बच्चों के मनोरंजन के लिए कहानियों तथा कविताओं के बारे में लिखें।
अथवा
तीन माह तक के बच्चों को सुनाए जाने वाले बाल गीत किस प्रकार के होने चाहिए ? इनका बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
कहानियाँ तथा कविताएँ (Stories and Nursery Rhymes)-खेलों तथा पुस्तकों के अलावा बच्चे का मनोरंजन कहानियां तथा कविताओं से भी होता है। जब परिवार में माता-पिता या दादा-दादी बच्चों को कहानियां सुनाते हैं तो बच्चों की काल्पनिक शक्ति तथा याद शक्ति का विकास होता है साथ ही उन की अपने बुर्जुगों से नज़दीकी बढ़ती है। बचपन में सुनी हुई कहानियां बच्चों पर बहुत प्रभाव डालती हैं तथा बड़े होने तक याद रहती हैं।

इसी तरह माँ छोटे से बच्चे को गोद में उठा कर झूले में डाल कर झुलाती है तथा लोरी गाती है। लोरी सुनने से बच्चा शांत हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि संगीत पौधों तथा जानवरों की वृद्धि तथा विकास को भी प्रभावित करता है। बच्चा तो एक इन्सान है वह भी संगीत का आनन्द मानता है। बाल गीत खुशी का साधन होते हैं तथा बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव डालते हैं। बाल गीत से बच्चे का उच्चारण शुद्ध तथा सामाजिक विकास भी होता है। बच्चों को प्यार, दया, हमदर्दी तथा अपने मन के गुणों की शिक्षा प्रदान की जाती है। बाल गीत तथा कहानियां बच्चों की आयु अनुसार होने चाहिएं। बाल गीतों द्वारा बतलाई बातें बच्चे के इर्द-गिर्द के वातावरण अनुसार चाहिए।

बाल गीत गा कर बच्चा अपने मन के भावों को प्रकट करता है तथा दूसरे के जीवन को अपने जीवन से मिला कर अन्तर देखने की कोशिश करता है। इसमें कोई शंका नहीं कि यह अन्तर जलदी पता नहीं चलता क्योंकि पहली अवस्था में तो बच्चा केवल अपने आप ही उस गीत, कविता तथा छोटी-छोटी कहानियां सुनाने तथा सुनने के लिए भावुक होता है। वह बाल गीत सुना कर बहुत खुशी महसूस करता है। यह खुशी ही उसका मनोरंजन है। कुछ बाल गीत नीचे दिए गए हैं

1. चंदा मामा दूर के, पूड़े पकाए नूर के,
आप खाए थाली में, मुझे दे प्याली में,
प्याली गई टूट, मुन्ना गया रूठ।

2. Jonny, Jonny, Yes Papa
Eating Sugar, No Papa,
Open Your Mouth Ha Ha Ha

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प्रश्न 7. (A).
शिशु गीतों का बच्चों के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

प्रश्न 8.
बालकों के जीवन में मनोरंजन का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
मनोरंजन तथा खेल का बालक के जीवन में निम्नलिखित महत्त्व है –
1. बालक संवेगों का प्रकाशन तथा नियन्त्रण सीखता है।
2. सहनशीलता, त्याग, सच्चाई तथा सहानुभूति जैसे गुण उत्पन्न होते हैं।
3. बच्चों में नियम निष्ठा की भावना आ जाती है।
4. बच्चा सीखता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता और न ही उसमें द्वेष का भाव आता है।
5. टेलीविज़न तथा रेडियो आदि में आने वाले शिक्षाप्रद कार्यक्रम, ऐतिहासिक घटनाएं तथा बहुत से कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ बालक के नैतिक व मानसिक विकास में सहायक होते हैं।
6. रेडियो सनने से भाषा का विकास होता है, भाषा सधरती है, व्याकरण का ज्ञान बढ़ता है।
7. संगीत के प्रभाव में बच्चे कई शारीरिक क्रियाएं करते हैं जिससे व्यायाम तथा प्रसन्नता का भाव पैदा होता है।
8. पुस्तकें पढ़ने से नए-नए शब्दों का ज्ञान होता है तथा बच्चे की काल्पनिक शक्ति में वृद्धि होती है। इस प्रकार मनोरंजन के भिन्न-भिन्न साधनों का बच्चे के जीवन में कुछ-न-कुछ प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। परन्तु कई बार किसी विशेष प्रकार की मनोरंजन क्रिया को अधिक करने से हानि भी हो सकती है।

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प्रश्न 9.
बच्चों के जीवन में पुस्तकों का क्या प्रभाव पड़ता है ? बाल साहित्य कैसा होना चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 4 तथा 6 का उत्तर।

प्रश्न 9. (A).
बच्चों की पुस्तकें कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 9 का उत्तर।

प्रश्न 10.
बालक के विकास में वातावरण की भूमिका का उल्लेख करें।
उत्तर :
वातावरण का भाव ऐसी बाहरी परिस्थितियों से है जिनका प्रभाव बालक पर गर्भाधान से लेकर मत्य तक पडता रहता है। वातावरण, व्यक्ति की बौद्धिक आर्थिक नैतिक, सामाजिक, संवेगात्मक क्षमतायों को प्रभावित करता है।
1. भौतिक वातावरण-गर्मी, सर्दी, भोजन, घर, स्कूल आदि ऐसे कारक हैं जो व्यक्ति के विकास को प्रभावित करते हैं।
2. सामाजिक वातावरण-माता-पिता के आपसी सम्बन्ध, बच्चे के दोस्त, परिवार के सदस्य, अध्यापक, सम्बन्धी आदि भी विकास को प्रभावित करते हैं।
3. संवेगात्मक वातावरण-बालक के मित्र, माता-पिता, अध्यापक, सम्बन्धियों के साथ सम्बन्धों के कारण बच्चों में संवेगात्मक विकास भी होता है।
4. बौद्धिक वातावरण रेडियो, टी० वी०, पुस्तकें, खिलौने, स्कूल आदि से बच्चों का बौद्धिक विकास होता है।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दें –

प्रश्न 1.
टेलीविज़न के द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ किसका विकास होता ?
उत्तर :
बौद्धिक विकास।

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प्रश्न 2.
बच्चों में बढ़िया आदतों का निर्माण कौन कर सकता है ?
उत्तर :
माँ-बाप।

प्रश्न 3. जोन्स के अनुसार कितने मास का बालक चीजों को खींच सकता
उत्तर :
21 मास।

प्रश्न 4.
बच्चों पर पुस्तकों का एक प्रभाव बताएं।
उत्तर :
भाषा का विकास।

प्रश्न 5.
सिनेमा में दिखाई जाने वाली असामाजिक बातों का किस विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
नैतिक विकास।

(ख) रिक्त स्थान भरो –
1. विज्ञापन ………….. का परिचय करवाते हैं।
2. खेलों द्वारा शरीर का ………… होता है।
3. पुस्तकें पढ़ने से बच्चों में ……….. शब्दों का ज्ञान होता है।
4. …………… से भाषा का ज्ञान होता है।
उत्तर :
1. चित्रांकन, संगीत तथा सांसारिक वस्तुओं
2. व्यायाम
3. नए
4. रेडियो सुनने।

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(ग) निम्न में ठीक अथवा गलत बताएं –
1. पुस्तकें पढ़ने से बच्चों में पढ़ने की रुचि नहीं रहती।
2. बालकों की अभिव्यक्ति केवल लेखन से ही होती है।
3. जो बच्चे परस्पर खेलते हैं, उनमें द्वेष की भावना नहीं रहती।
4. खेलों से चिड़चिड़ापन दूर होता है।
उत्तर :
1. गलत
2. गलत
3. ठीक
4. ठीक।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बालक के विकास पर घर के बाहर की निम्न बातों का प्रभाव पड़ता है –
(A) पुस्तकें
(B) रेडियो
(C) टेलीविज़न
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
खेलों का शारीरिक विकास में निम्न महत्त्व है –
(A) बच्चे का व्यायाम होता है
(B) चिड़चिड़ापन कम होता है
(C) सहनशीलता की भावना का विकास होता है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 3.
बालक के विकास पर सबसे अधिक प्रभाव किस बात का पड़ता है ?
(A) परिवार
(B) रेडियो
(C) चलचित्र
(D) संगीत।
उत्तर :
परिवार।

प्रश्न 4.
टेलीविज़न के द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ किसका विकास होता है ?
(A) शारीरिक विकास
(B) बौद्धिक विकास
(C) मानसिक विकास
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
बौद्धिक विकास।

प्रश्न 5.
सिनेमा में दिखाई जाने वाली असामाजिक बातों का किस विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ?
(A) नैतिक विकास
(B) शारीरिक विकास
(C) संवेगात्मक विकास
(D) सामाजिक विकास।
उत्तर :
नैतिक विकास।

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प्रश्न 6.
बच्चों में बढ़िया आदतों का निर्माण कौन कर सकता है ?
(A) दोस्त
(B) मां-बाप
(C) दादा-दादी
(D) चाचा-चाची।
उत्तर :
मां-बाप।

प्रश्न 7.
विज्ञापन ………….. का परिचय करवाते हैं
(A) चित्रांकन
(B) संगीत
(C) सांसारिक वस्तुओं
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 8.
बच्चे में झूठ बोलने की आदत कैसे पैदा होती है ?
(A) अधिक सख़्ती
(B) अधिक लाड़-प्यार
(C) अधिक सख्ती और अधिक लाड़-प्यार
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
अधिक सख्ती और अधिक लाड़-प्यार।

प्रश्न 9.
रेडियो व टेलीविज़न का बच्चों के लिए क्या उपयोग होता है ?
(A) मनोरंजन
(B) बौद्धिक विकास
(C) नैतिक विकास
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 10.
तीन साल से छोटे बच्चों की पुस्तकें कैसी होनी चाहिए ?
(A) रंग-बिरंगे चित्रों वाली
(B) पढ़ाई से सम्बन्धित
(C) यथार्थ से सम्बन्धित कहानियों वाली
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
रंग-बिरंगे चित्रों वाली।

प्रश्न 11.
बालगीत (राइम) बच्चों के ……. के लिए जरूरी है ?
(A) भाषा विकास के लिए
(B) मनोरंजन हेतु
(C) बौद्धिक विकास के लिए
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।।

प्रश्न 12.
रेडियो तथा टेलीविज़न द्वारा बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ किसका विकास होता है ?
(A) भाषा विकास
(B) बौद्धिक विकास
(C) नैतिक विकास
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 13.
बालकों की अभिव्यक्ति के क्या साधन हैं ?
(A) चित्रांकन
(B) संगीत
(C) हस्तकौशल
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 14.
टेलीविज़न का बालक के लिए क्या महत्त्व है ?
(A) शिक्षाप्रद
(B) ऐतिहासिक रूप से
(C) मनोरंजन
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 15.
रेडियो और टेलीविजन सुनने से ……….. का विकास होता है।
(A) शरीर
(B) भाषा
(C) गत्यात्मक
(D) संवेगात्मक।
उत्तर :
भाषा।

विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ परिवार (घर) तथा विद्यालय के अलावा बालक के विकास पर विभिन्न बाहरी वातावरण तथा प्रक्रियाओं का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

→ बालक के विकास पर पुस्तकों, खेलों, संगीत, रेडियो, चलचित्र (सिनेमा), टेलीविज़न तथा विज्ञापनों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

→ बाहरी खेल उचित शारीरिक विकास में सहायक होते हैं। खेलों द्वारा बालकों के संवेगों का नियंत्रण हो जाता है। बाहरी मनोरंजनों द्वारा बच्चों को हँसमुख बनाकर संवेगात्मक रचना सम्भव है।

→ रेडियो, सिनेमा, टेलीविज़न द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ बालकों का बौद्धिक विकास भी होता है। परन्तु सिनेमा में दिखाई जाने वाली हिंसा तथा अन्य अर्थहीन तथा असामाजिक बातों से बालकों के नैतिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

→ टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले शिक्षाप्रद कार्यक्रम, ऐतिहासिक घटनाएं तथा अन्य बहुत से कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ बालक के मानसिक तथा नैतिक विकास में सहायक होते हैं। आज का बालक पहले के बालकों से कहीं अधिक स्मार्ट है। यह टेलीविज़न के कार्यक्रमों की ही देन है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

→ संगीत का विकास में बहुत अधिक महत्त्व है। अच्छा संगीत मनोरंजन का एक अच्छा साधन है।

→ किसी भी चीज़ की अति बुरी होती है। यही बात आज रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा की ओर बालकों के बढ़ते झुकाव द्वारा प्रदर्शित होती है। आज का बालक टेलीविज़न के सभी कार्यक्रम देखना चाहता है जिससे उसकी खेलों में रुचि कम होती है और परिणामस्वरूप शारीरिक विकास रुक जाता है। साथ ही उनका व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन बिगड़ जाता है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
वस्त्र धोने में प्रयोग किए जाने वाले सामान को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :

  1. स्टोर करने के लिए सामान
  2. वस्त्र धोने के लिए सामान
  3. वस्त्र सुखाने के लिए सामान
  4. वस्त्र इस्तरी करने के लिए सामान।

प्रश्न 2.
वस्त्र संग्रह करने के लिए हमें क्या-क्या सामान चाहिए ?
उत्तर :
इसके लिए हमें अलमारी, लांडरी बैग अथवा गन्दे वस्त्र रखने के लिए टोकरी की ज़रूरत होती है। मर्तबान तथा प्लास्टिक के डिब्बे भी आवश्यक होते हैं।

प्रश्न 3.
वस्त्र धोने के लिए हम पानी कहां से प्राप्त करते हैं ?
उत्तर :
वस्त्र धोने के लिए वर्षा का पानी, दरिया का पानी, चश्मे का पानी तथा कु आदि स्रोतों से पानी प्राप्त किया जा सकता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

प्रश्न 4.
हल्के और भारी पानी में क्या अन्तर है ? भारी पानी को हल्का कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर :

हल्का पानीभारी पानी
1. इसमें अशुद्धियां नहीं होती।1. इसमें अशुद्धियां होती हैं।
2. इसमें आसानी से साबुन की झाग बन जाती है।2. इसमें साबुन की झाग नहीं बनती।

भारी पानी को उबालकर तथा चूने के पानी से मिलाकर हल्का बनाया जा सकता है अथवा फिर कास्टिक सोडा अथवा सोडियम बाइकार्बोनेट से प्रक्रिया करके इसको हल्का बनाया जाता है।

प्रश्न 5.
वस्त्र धोने के लिए पानी के अतिरिक्त और क्या-क्या सामान चाहिए ?
उत्तर :
वस्त्र धोने के लिए पानी के अतिरिक्त साबुन, टब, बाल्टियां, चिल्मचियां, मग, रगड़ने वाला ब्रुश तथा फट्टा, पानी गर्म करने वाली देग, वस्त्र धोने वाली मशीन, सक्शन वाशर आदि सामान की ज़रूरत होती है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

प्रश्न 6.
स्थाई और अस्थाई भारी पानी के दो अन्तर बताएं।
उत्तर :

स्थाई भारी पानीअस्थाई भारी पानी
1. इसमें कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के क्लोराइड तथा सल्फेट घुले होते हैं।1. इसमें कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवण होते हैं।
2. कास्टिक सोडा अथवा सोडियम बाइकार्बोनेट से प्रक्रिया करके छानकर इसको हल्का बनाया जाता है।2. इसको उबालकर तथा चूने के पानी से मिलाकर हल्का बनाया जाता है।

प्रश्न 7.
वस्त्रों की धुलाई में पानी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
1. पानी को विश्वव्यापी घोलक कहा जाता है। इसलिए वस्त्रों पर लगे दाग 1 मिट्टी आदि पानी में घुल जाते हैं तथा वस्त्र साफ़ हो जाते हैं।
2. पानी वस्त्र को गीला करके अन्दर तक चला जाता है तथा उसको साफ़ कर देता हैं।

प्रश्न 8.
ऊनी कपड़ों को ज्यादा समय क्यों नहीं भिगोना चाहिए ?
अथवा
ऊनी वस्त्रों को जल में अधिक देर तक क्यों नहीं भिगो कर रखना चाहिए?
उत्तर :
ऊन का तन्तु बहुत नर्म और मुलायम होता है। इसके ऊपर छोटी-छोटी तहें होती हैं जो कि पानी, गर्मी और क्षार से नर्म हो जाती हैं और एक दूसरे से उलझ जाती ‘सलिए इन्हें ज्यादा देर तक नहीं भिगोना चाहिए।

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प्रश्न 9.
गर्म कपड़े धोते समय गर्म तथा ठण्डा पानी क्यों नहीं डालना चाहिए ?
उत्तर :
क्योंकि इसके तन्तु आपस में जुड़ जाते हैं।

प्रश्न 10.
सूती कपड़े को धोने के लिए कुछ देर तक साबुन के पानी में भिगोकर रखने से क्या लाभ होता है ?
उत्तर :
वस्त्रों पर लगा हुआ घुलनशील मैल पानी में घुल जाता है तथा अन्य गन्दगी, धब्बे इन्हें आदि छूट जाते हैं।

प्रश्न 11.
वस्त्र धोने से पूर्व उसकी मरम्मत करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
वरन् उसके और अधिक फटने या उधड़ने का भय रहता है।

प्रश्न 12.
रेयॉन के वस्त्रों की धुलाई कठिन क्यों होती है ?
उत्तर :
क्योंकि रेयॉन के वस्त्र पानी के सम्पर्क से निर्बल पड़ जाते हैं।

प्रश्न 13.
रेयॉन के वस्त्रों के लिए किस प्रकार की धुलाई अच्छी रहती है ?
उत्तर :
शुष्क धुलाई (ड्राइक्लीनिंग)।

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प्रश्न 14.
रेयॉन के वस्त्रों पर अम्ल तथा क्षार का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
शक्तिशाली अम्ल तथा क्षार दोनों से ही रेयॉन के वस्त्रों को हानि होती है।

प्रश्न 15.
रेयॉन के वस्त्रों को धोते समय क्या बातें वर्जित हैं ?
उत्तर :
वस्त्रों को पानी में फुलाना, ताप, शक्तिशाली रसायनों तथा एल्कोहल का प्रयोग करना वर्जित है।

प्रश्न 16.
रेयॉन के वस्त्रों की धुलाई के लिए कौन-सी विधि उपयुक्त होती है ?
उत्तर :
गँधने और निपीड़न की विधि।

प्रश्न 17.
रेयॉन के वस्त्रों को कहां सुखाना चाहिए ?
उत्तर :
छायादार स्थान पर तथा बिना लटकाए हुए चौरस स्थान पर।

प्रश्न 18.
रेयॉन के वस्त्रों पर इस्तरी किस प्रकार करनी चाहिए ?
उत्तर :
कम गर्म इस्तरी वस्त्र के उल्टी तरफ से करनी चाहिए। इस्तरी करते समय वस्त्र में हल्की सी नमी होनी चाहिए।

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प्रश्न 19.
ऊन का तन्तु कैसा होता है ?
उत्तर :
काफ़ी कोमल, मुलायम और प्राणिजन्य।

प्रश्न 20.
ऊन का तन्तु आपस में किन कारणों से जुड़ जाता है ?
उत्तर :
नमी, क्षार, दबाव तथा गर्मी के कारण।

प्रश्न 21.
ऊन के तन्तुओं की सतह कैसी होती है ?
उत्तर :
खुरदरी।

प्रश्न 22.
ऊन के रेशों की सतह खुरदरी क्यों होती है ?
उत्तर :
क्योंकि ऊन की सतह पर परस्पर व्यापी शल्क होते हैं।

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प्रश्न 23.
ऊनी कपड़ों को लटकाना क्यों नहीं चाहिए ?
उत्तर :
ऊन बहुत पानी चूसती है और भारी हो जाती है, इसलिए अगर कपड़े लटकाकर सुखाया जाए तो वह नीचे लटक जाता है और आकार खराब हो जाता है।

प्रश्न 24.
ऊन के रेशों की सतह के शल्कों की प्रकृति कैसी होती है ?
उत्तर :
लसलसी, जिससे शल्क जब पानी के सम्पर्क में आते हैं तो फूलकर नर्म हो जाते हैं।

प्रश्न 25.
ऊन के रेशों के शत्रु क्या हैं ?
उत्तर :
नमी, ताप और क्षार।

प्रश्न 26.
ताप के अनिश्चित परिवर्तन से रेशों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
रेशों में जमाव व सिकुड़न हो जाती है।

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प्रश्न 27.
ऊन के वस्त्रों को किस प्रकार के साबुन से धोना चाहिए ?
उत्तर :
कोमल प्रकृति के शुद्ध क्षार रहित साबुन से।

प्रश्न 28.
धुलाई से कभी-कभी ऊन क्यों जुड़ जाती है ?
उत्तर :
ऊनी वस्त्र को धोते समय जब उसे पानी या साबुन के घोल में हिलाया-डुलाया जाता है तो ऊन के तन्तुओं के रेशे आपस में एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं जिसके फलस्वरूप ऊन जुड़ जाती है।

प्रश्न 29.
अधिक क्षार मिले पानी का ऊन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
ऊन सख्त हो जाती है तथा सूखने पर पीली पड़ जाती है।

प्रश्न 30.
ऊनी वस्त्रों की धुलाई करने के लिए किस प्रकार के जल का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर :
मृदु जल का।

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प्रश्न 31.
ऊनी वस्त्रों की धुलाई में कौन-से घोल अधिक प्रचलित हैं ?
उत्तर :
पोटाशियम परमैंगनेट, सोडियम परऑक्साइड तथा हाइड्रोजन परऑक्साइड के हल्के घोल।

प्रश्न 32.
ऊनी कपड़ों को फुलाने की आवश्यकता क्यों नहीं होती ?
उत्तर :
क्योंकि पानी में डुबोने से रेशे निर्बल हो जाते हैं।

प्रश्न 33.
ऊनी वस्त्रों को धोते समय रगडना-कटना क्यों नहीं चाहिए ?
उत्तर :
रगड़ने से रेशे नाश हो जाते हैं तथा आपस में फँसते हुए जम जाते हैं।

प्रश्न 34.
वस्त्रों को पानी में आखिरी बार खंगालने से पहले पानी में थोड़ी-सी नील क्यों डाल देनी चाहिए ?
उत्तर :
जिससे कि ऊनी वस्त्रों में सफ़ेदी व चमक बनी रहे।

प्रश्न 35.
ऊनी कपड़ों को धूप में क्यों नहीं सुखाना चाहिए ?
उत्तर :
क्योंकि तेज़ धूप के प्रकाश के ताप से ऊन की रचना बिगड़ जाती है।

प्रश्न 36.
ऊनी कपड़ों की धुलाई के लिए तापमान की दृष्टि से किस प्रकार के पानी का प्रयोग किया जाना चाहिए ?
उत्तर :
ऊनी कपड़ों की धुलाई के लिए गुनगुने पानी का प्रयोग करना चाहिए। धोते समय पानी का तापमान कपड़े को भिगोने से लेकर आखिरी बार खंगालने तक एक-सा होना चाहिए।

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प्रश्न 37.
धोने के बाद ऊनी कपड़ों को किस प्रकार सुखाना चाहिए ?
उत्तर :
धोने से पूर्व बनाए गए खाके पर कपड़ों को रखकर उसका आकार ठीक करके तथा छाया में उल्टा करके, समतल स्थान पर सुखाना चाहिए जहां चारों ओर से कपड़े पर हवा लग सके।

प्रश्न 38.
ऊनी कपड़ों पर कीड़ों का असर न हो इसलिए कपड़ों के साथ बक्से या अलमारी में क्या रखा जा सकता है ?
उत्तर :
नैफ्थलीन की गोलियां, पैराडाइक्लोरो बेंजीन का चूरा, तम्बाकू की पत्ती, कपूर, पिसी हुई लौंग, चन्दन का बुरादा, फिटकरी का चूरा या नीम की पत्तियां आदि।

प्रश्न 39.
रेयॉन के वस्त्रों को रगड़ना क्यों नहीं चाहिए ?
उत्तर :
रेयॉन के वस्त्र कमजोर और मुलायम होते हैं। इसलिए गीली अथवा सूखी अवस्था में रगड़ना या मरोड़ना नहीं चाहिए।

प्रश्न 40.
ऊनी वस्त्रों को अधिक देर तक नल में भिगोने से क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
ऊन के तन्तु कमजोर हो जाते हैं।

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प्रश्न 41.
दाग (धब्बे) कितनी किस्म के होते हैं तथा कौन-कौन से ?
उत्तर :
दाग कई प्रकार के होते हैं। दाग को ठीक ढंग से उतारने के लिए दाग की किस्म के बारे में जानकारी होना आवश्यक है। दाग को चार किस्मों में बांटा जा सकता है –

  1. वनस्पति दाग
  2. पाश्विक दाग
  3. चिकनाई के दाग
  4. रासायनिक दाग।

प्रश्न 42.
पाश्विक दाग से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण सहित लिखो।
उत्तर :
ये दाग जानवरों या उनके उत्पादन; जैसे-अण्डे, मीट, दूध, खून या फिर पशुओं के मल-मूत्र से लगते हैं। ये दाग प्रोटीन प्रधान होते हैं तथा इनको ठण्डे पानी तथा साबुन से उतारा जा सकता है।

प्रश्न 43.
किसी एक वानस्पतिक धब्बे का नाम व उसे छुड़ाने की विधि लिखें।
अथवा
वानस्पतिक दाग से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण दो।
उत्तर :
ये दाग वानस्पतिक चीज़ों से लगते हैं; जैसे-फूल, फलों का रस, सब्जी, घास, चाय, कॉफी आदि। इनको लवणयुक्त रासायनिक पदार्थों से उतारा जा सकता है।

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प्रश्न 44.
रासायनिक दाग कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
ये दाग रासायनिक पदार्थों से लगते हैं; जैसे कि स्याही, रंग, दवाइयां, नेल पालिश आदि। इनको रंगकाट या दूसरे रासायनिक पदार्थों से उतारा जा सकता है।

प्रश्न 45.
धब्बे कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दें ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 41 से 44 का उत्तर।

प्रश्न 46.
दाग उतारते समय इस्तेमाल होने वाले काट पदार्थ कितने किस्म के होते हैं ? नाम बताओ।
उत्तर :
साधारणतया दो प्रकार के रंगकाट दाग उतारने के लिए प्रयोग किये जाते हैं –
1. ऑक्सीडाइजिंग रंगकाट (ब्लीच) जैसे प्राकृतिक हवा, धूप, हाइड्रोजन-परऑक्साइड, पोटोशियम, परमैंगनेट, सोडियम परबोरेट।
2. रिड्यूसिंग रंगकाट (ब्लीच) जैसे सोडियम बाइसल्फाइड, सोडियम हाइड्रोसल्फाइड।

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प्रश्न 47.
ऑक्सी कारक विरंजक (ब्लीच) से क्या अभिप्राय है ? दो उदाहरणे दें।
अथवा
ऑक्सी कारक विरंजक क्या होते हैं ?
अथवा
ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच क्या है ? इसके दो उदाहरण दें।
उत्तर :
ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच का प्रयोग जब धब्बे पर किया जाता है तो इनके बीच की ऑक्सीजन दाग के रंग से मिलकर उसको रंग रहित कर देती है जिससे दाग उतर जाता है। पोटाशियम परमैंगनेट, हाइड्रोजन परऑक्साइड इसकी दो किस्में हैं।

प्रश्न 48.
अपचायक ब्लीच से क्या अभिप्राय है ? दो उदाहरणे दो।
उत्तर :
इन ब्लीचों का प्रयोग जब दाग पर किया जाता है तो यह दाग से ऑक्सीजन दूर करके उनको रंग रहित कर देते हैं। यह सोडियम बाइसल्फाइड तथा सोडियम हाइड्रोसल्फाइड हैं। इनको ऊनी तथा रेशमी कपड़ों पर आसानी से प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 49.
कपड़ों को रंगकाट करने का प्राकृतिक तथा सबसे पुराना ढंग कौन-सा है ?
उत्तर :
खुली हवा तथा धूप कपड़ों को रंगकाट करने का सबसे पुराना तथा प्राकृतिक ढंग है। यह सबसे सस्ता तथा सरल भी है। दाग लगे सूती तथा सिल्क के कपड़े को धोकर धूप में सुखाया जाता है। हवा तथा धूप से दाग उड़ जाते हैं।

प्रश्न 50.
लाल दवाई क्या है तथा किस काम आती है ?
उत्तर :
लाल दवाई या पोटाशियम परमैंगनेट, बिना किसी खतरे के प्रयोग किया जाने वाला रंगकाट है। इससे दाग उतारते समय इसका अपना लाल भूरा रंग कपड़े पर रह जाता है जिसको सोडियम हाइड्रोसल्फाइड वाले पानी में डुबोकर साफ़ किया जाता है। लाल दवाई से पसीने, फफूंदी के दागों को दूर किया जा सकता है।

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प्रश्न 51.
पोटाशियम परमैंगनेट से दाग उतारते समय जो भूरा रंग रह जाता है उनको किस रसायन द्वारा उतारा जाता है ?
उत्तर :
इससे दाग उतारते समय रह गये लाल भूरे रंग को सोडियम हाइड्रोसल्फाइड तथा फिर हाइड्रोजन परऑक्साइड में डुबोकर साफ़ किया जाता है।

प्रश्न 52.
क्षारीय माध्यम वाले दो रसायनों के नाम लिखो जो कि कपड़ों से दाग उतारने के लिए प्रयोग किये जाते हैं ?
उत्तर :
क्षारीय माध्यम को बनाने के लिए कास्टिक सोडा, बोरैक्स तथा अमोनिया का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 53.
तेज़ाबी माध्यम वाले दो रसायनों के नाम लिखो जो कपड़ों के दाग उतारने के लिये प्रयोग किए जाते हैं।
उत्तर :
तेजाबी माध्यम वाले रसायन पदार्थ-(1) आगजैलिक एसिड तथा (2) एसिटिक एसिड हैं।

प्रश्न 54.
घी से किस प्रकार का दाग लगेगा ? इसे कैसे दूर किया जा सकता है ?
उत्तर :
इस किस्म के दागों को चिकनाई दाग कहा जाता है। इस प्रकार के दाग हल्के तेज़ाबी घोलों में भिगोकर दूर किये जाते हैं तथा बाद में कपड़े में रहे तेज़ाब को हल्के क्षारीय घोल से दूर किया जाता है। घी के दाग को पेट्रोल से भी उतारा जा सकता है।

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प्रश्न 55.
दाग उतारते समय कपड़े की पहचान करनी क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर :
दाग उतारते समय कपड़े की पहचान करनी इसलिए आवश्यक है कि दाग उतारने वाले रासायनिक पदार्थ प्रत्येक किस्म के कपड़ों पर नहीं प्रयोग किये जा सकते। यदि कोई रासायनिक पदार्थ कुछ कपड़ों के लिए ठीक हैं, तो वह दूसरी किस्म के रेशों के लिये हानिकारक भी हो सकता है। इसलिये दाग उतारते समय कपड़े की किस्म की जानकारी आवश्यक है।

प्रश्न 56.
दाग उतारते समय कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
अथवा
कपड़ों पर लगे दाग धब्बे उतारते समय ध्यान रखने योग्य किन्हीं दो बातों का उल्लेख करें।
उत्तर :
दाग उतारते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. दाग की पहचान-यह सबसे पहला कदम है क्योंकि विभिन्न किस्म के दाग विभिन्न वस्तुओं से उतरते हैं।
  2. दाग लगने का समय-दाग कितना पुराना है, इस बात का पता होना चाहिए।
  3. कपड़े की पहचान- इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि जिस कपड़े पर दाग पड़ा हो वह किस किस्म के रेशे से बना हुआ है।
  4. कपड़े का रंग-दाग उतारते समय कपड़े के रंग का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि रंगदार कपड़े पर लगे दाग को उतारते समय कपड़े के रंग भी खराब हो जाते हैं।

प्रश्न 57.
जैवले पानी किस किस्म का ब्लीच है तथा इसको किस प्रकार के कपड़ों के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ?
उत्तर :
सोडियम हाइपोक्लोराइड को जैवले पानी कहा जाता है। यह एक शक्तिशाली रंगकाट है। इसको हल्का करके इस्तेमाल किया जाता है। ब्लीच करने की प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए सिरका भी मिलाया जा सकता है। इस रंगकाट को ज्यादा देर तक कपड़ों के सम्पर्क में नहीं रखना चाहिए। जैवले पानी को सिल्क तथा ऊनी कपड़ों के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 58.
हाइड्रोजन परऑक्साइड किस किस्म का ब्लीच है ? किस रसायन से इसकी क्रिया तीव्र की जा सकती है ?
उत्तर :
अधिकतर कपड़ों के लिये यह सुरक्षित तथा प्रभावशील ब्लीच है। आवश्यकता अनुसार इसको हल्का या गाढ़ा घोल बनाकर प्रयोग किया जा सकता है। इसकी क्रिया तेज़ करने तथा प्रभावशील बनाने के लिए इसमें अमोनिया या सोडियम परबोरेट थोड़ी मात्रा में मिलाया जा सकता है। सूती तथा लिनन के कपड़ों के लिये सीधा गाढ़ा घोल प्रयोग किया जा सकता है। अन्य कपड़ों के लिए 1 : 6 भाग पानी डालकर हल्का घोल बनाकर प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 59.
ऊनी तथा रेशमी कपड़ों के दाग ब्लीच करने के लिये ऑक्सीकारक ब्लीच ठीक रहते हैं या अपचायक ब्लीच ?
उत्तर :
ऊनी तथा सिल्क के कपड़ों के लिये रिड्यूसिंग ब्लीच का प्रयोग किया जाता है। सोडियम हाइड्रोसल्फाइड को तो सब किस्म के कपड़ों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। पर सिल्क तथा ऊनी कपड़ों के लिये यह ज्यादा प्रभावशाली है। सोडियम बाइसल्फाइड की प्रक्रिया सल्फर ऑक्साइड गैस के कारण होती है। इसलिए रंगकाट करने के उपरान्त कपड़े को अच्छी तरह साफ़ पानी से धोना चाहिए अन्यथा हवा की नमी से सल्फ्यूरिक अम्ल बन जाएगा जो कपड़ों को खराब कर देता है।

प्रश्न 60.
ऊनी कपड़ों के दाग ब्लीच करने के लिए कौन-सा ब्लीच प्रयोग करना चाहिए तथा क्यों ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 59 का उत्तर।

प्रश्न 61.
सोडियम बाइसल्फाइड की रंगकाट करने की प्रक्रिया किस कारण होती है ? अच्छी प्रकार न खंगालने पर कपड़े को नुकसान क्यों पहुंचता है ?
उत्तर :
सोडियम बाइसल्फाइड की रंगकाट प्रक्रिया सल्फर डाइऑक्साइड से होती है। इसलिए रंगकाट करने के उपरान्त कपड़े को अच्छी तरह साफ़ पानी से खंगालना चाहिए अन्यथा हवा की नमी से सल्फ्यूरिक अम्ल बनकर कपड़ों को खराब कर सकता है। इस रंगकाट से बार-बार कपड़े धोने से पीले कपड़े भी सफेद हो जाते हैं।

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प्रश्न 62.
सूती कपड़े से चाय के दाग कैसे उतारोगे ?
उत्तर :
ताज़े दाग वाले सूती कपड़े पर कुछ ऊंचाई से उबलते पानी से चाय का ताज़ा दाग उतारा जा सकता है। परन्तु पुराने हुए दाग वाले कपड़े को सोडे या बौरेक्स मिले उबलते पानी में कुछ देर पड़े रहने के पश्चात् उस पर ग्लैसरीन लगाकर गुनगुने बोरैक्स या हल्के अमोनिया के घोल में कुछ देर रखें यदि फिर भी दाग रह जाए तो हाइड्रोजन परऑक्साइड से रंगकाट करें।

प्रश्न 63.
सूती कपड़े से खून का दाग कैसे उतारोगे ?
उत्तर :
सती कपडे से खन का ताज़ा दाग ठण्डे पानी से भिगो कर अमोनिया से धोकर उतारा जा सकता है। खून का सूखा दाग ठण्डे नमक वाले पानी में कुछ देर भिगो कर तथा फिर कपड़े को साबुन से धोकर उतारा जा सकता है।

प्रश्न 64.
नीली तथा काली स्याही का दाग कैसे उतारा जाता है ?
उत्तर :
विभिन्न किस्म की स्याहियों के दागों को विभिन्न चीजों से उतारा जाता है। नीली तथा काली स्याही में लोहे तथा रंगों का मिश्रण होता है। लोहे के दाग को काटने के लिए तेज़ाब तथा रंग उतारने के लिए रंगकाट की आवश्यकता पड़ती है। सबसे पहले पानी से पके हुए दाग को फीका करें। फिर लोहे के दाग को उतारने के लिए दही या नींबू में दाग वाले भाग को कुछ घण्टे पड़ा रहने दें। बाद में धोकर सूती कपड़े पर पोटाशियम परमैंगनेट का घोल लगाएं। सोडियम हाइड्रोसल्फाइड के घोल से भी स्याही के दाग हटाए जा सकते हैं।

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प्रश्न 65.
वस्त्र सुखाने के लिए क्या-क्या सामान चाहिए ? महानगरों और फ्लैटों में रहने वाले लोग वस्त्र कैसे सुखाते हैं ?
उत्तर :
वस्त्रों को सुखाने के लिए प्राकृतिक धूप तथा हवा की ज़रूरत होती है। परन्तु अन्य सामान जिसकी ज़रूरत होती है, वह है –

  1. रस्सी अथवा तार
  2. किल्प तथा हैंगर
  3. वस्त्र सुखाने वाला रैक
  4. वस्त्र सुखाने के लिए बिजली की कैबिनेट।

बड़े शहरों में फ्लैटों में रहने वाले लोग कपड़ों को सुखाने के लिए रैकों का प्रयोग करते हैं। ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन की सहायता भी ली जा सकती है।

प्रश्न 66.
वस्त्र सुखाने के लिए क्या-क्या सामान चाहिए ? हमारे देश में वस्त्र सुखाने के लिए कौन-सा ढंग अपनाया जाता है ?
उत्तर :
वस्त्र धोने के लिए सामान-देखें प्रश्न 63 का उत्तर।

हमारे देश में साधारणतः घर खुले से होते हैं। छतों अथवा चौबारों पर जहां धूप आती हो रस्सियां अथवा तारों को ठीक ऊंचाई पर बांधकर इन पर वस्त्र सुखाने के लिए लटकाये जाते हैं। बड़े शहरों में जहां घर खुले नहीं होते तथा लोग फ्लैटों में रहते हैं, वस्त्रों को रैकों पर सुखाया जाता है। आजकल वाशिंग मशीनों का प्रयोग तो हर कहीं होने लगा है। इनके साथ भी वस्त्र सुखाये जा सकते हैं।

प्रश्न 67.
वस्त्रों को इस्त्री करना क्यों ज़रूरी है और कौन-कौन से सामान की आवश्यकता पड़ती है ?
उत्तर :
वस्त्र धोकर जब सुखाये जाते हैं, इनमें कई सिलवटें पड़ जाती हैं तथा वस्त्र की दिखावट बुरी सी हो जाती है। कपड़ों को प्रैस करके इनकी सिलवटें आदि तो निकल ही जाती हैं साथ ही वस्त्र में भी चमक आ जाती है तथा वस्त्र साफ़-सुथरा लगता है। वस्त्र प्रैस करने के लिए निम्नलिखित सामान की ज़रूरत पड़ती है बिजली अथवा कोयले से चलने वाली प्रैस, प्रेस करने के लिए फट्टा आदि।

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प्रश्न 68.
वस्त्र धोने के लिए कैसा पानी उपयुक्त नहीं और क्यों ?
उत्तर :
समुद्र के पानी का प्रयोग वस्त्र धोने के लिए नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें बहुत सारी अशुद्धियां मिली होती हैं।

प्रश्न 69.
धोबी को वस्त्र देने से क्या नुकसान हैं ?
उत्तर :

  1. धोबी कई बार वस्त्र साफ़ करने के लिए ऐसी विधियों का प्रयोग करता है जिससे वस्त्र जल्दी फट जाते हैं अथवा फिर कमजोर हो जाते हैं।
  2. कई बार वस्त्रों के रंग खराब हो जाते हैं।
  3. छूत की बीमारियां होने का भी डर रहता है।
  4. धोबी से वस्त्र धुलाना महंगा पड़ता है।

प्रश्न 70.
जल चक्र क्या है ?
उत्तर :
प्राकृतिक रूप में पानी कुओं, चश्मों, दरियाओं तथा समुद्रों में से मिलता है। धरती पर सूर्य की धूप से यह पानी भाप बनकर उड़ जाता है तथा वायुमण्डल में जलवाष्प के रूप में इकट्ठा होता रहता है तथा बादलों का रूप धारण कर लेता है। जब यह भारी हो जाते हैं तो वर्षा, ओलों तथा बर्फ के रूप में पानी दुबारा धरती पर आ जाता है। यह पानी शुरू से दरियाओं द्वारा होता हुआ समुद्र में मिल जाता है तथा यह चक्र इसी तरह चलता रहता है।

प्रश्न 71.
स्वादानुसार पानी का वर्गीकरण कैसे किया गया है ?
उत्तर :
स्वादानुसार पानी दो तरह का होता है –
1. मीठा अथवा हल्का पानी-इस पानी का स्वाद मीठा होता है।
2. खारा पानी-यह पानी स्वाद में नमकीन-सा होता है।

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प्रश्न 72.
पानी का वर्गीकरण अशुद्धियों के अनुसार किस प्रकार किया गया है ?
उत्तर :
अशुद्धियां के अनुसार पानी दो प्रकार का है –
1. हल्का पानी-इसमें अशुद्धियां नहीं होती तथा यह पीने में स्वादिष्ट होता है। इसमें साबुन की झाग भी शीघ्र बनती है।
2. भारी पानी-इसमें कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवण घुले होते हैं। यह साबुन से मिलकर झाग नहीं बनाता। यह भी दो तरह का होता है अस्थाई भारी पानी तथा स्थाई भारी पानी।

प्रश्न 73.
वस्त्र धोने के लिए थापी अथवा डण्डे का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहिए ? वस्त्र धोने वाला फट्टा क्या होता है ?
उत्तर :
थापी का अधिक प्रयोग किया जाये तो कई बार वस्त्र फट जाते हैं, वस्त्र धोने वाला फट्टा स्टील अथवा लकड़ी का बना होता है। इस पर रखकर वस्त्रों को साबुन लगाकर रगड़ा जाता है। इस तरह वस्त्र से मैल उतर जाती है।

प्रश्न 74.
आप वस्त्र सुखाने के लिए लोहे के तार का प्रयोग करोगे अथवा नाइलॉन की रस्सी का ?
उत्तर :
वैसे तो दोनों का प्रयोग किया जा सकता है परन्तु लोहे की तार को जंग लग जाता है जिससे वस्त्र पर दाग पड़ जाते हैं। इसलिए नाइलॉन की रस्सी अधिक उपयुक्त रहेगी।

प्रश्न 75.
वस्त्रों की सफाई करने के लिए कौन-कौन से पदार्थों का प्रयोग किया जाता है ? नाम बताओ।
उत्तर :
वस्त्रों की सफाई करने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है –
साबुन, रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ (जैसे-निरमा, रिन, लिसापोल आदि), कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरैक्स, एसिटिक एसिड, ऑग्जैलिक एसिड, ब्लीच, नील, रानीपॉल आदि।

प्रश्न 76.
साबुन बनाने के लिए ज़रूरी पदार्थ कौन-से हैं ?
उत्तर :
साबुन बनाने के लिए चर्बी तथा खार आवश्यक पदार्थ हैं। नारियल, महुए, सरसों, जैतून का तेल, सूअर की चर्बी आदि के चर्बी के रूप में प्रयोग किये जा सकते हैं। जबकि खार कास्टिक सोडा अथवा पोटाश से प्राप्त की जाती है।

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प्रश्न 77.
साबुन बनाने की कौन-कौन सी विधियां हैं ? किसी एक विधि का लाभ बताओ।
उत्तर :
साबुन बनाने की दो विधियां हैं –
1. गर्म तथा
2. ठण्डी विधि।

ठण्डी विधि के लाभ –

1. इसमें मेहनत अधिक नहीं लगती।
2. साबुन भी जल्दी बन जाता है।
3. यह एक सस्ती विधि है।

प्रश्न 78.
वस्त्रों में कड़ापन क्यों लाया जाता है ?
उत्तर :
1. वस्त्रों में ऐंठन लाने से यह मुलायम हो जाते हैं और इनमें चमक आ जाती है।
2. मैल भी वस्त्र के ऊपर ही रह जाती है जिस कारण कपड़े को धोना आसान हो जाता है।
3. वस्त्र में जान पड़ जाती है। देखने में मज़बूत लगता है।

प्रश्न 79.
वस्त्रों से दाग उतारने वाले पदार्थों को मुख्य रूप से कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :
इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है –
1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच – इससे ऑक्सीजन निकलकर धब्बे को रंग रहित कर देती है। हाइड्रोजन परऑक्साइड, सोडियम परबोरेट आदि ऐसे पदार्थ हैं।
2. रिड्यूसिंग एजेंट – यह पदार्थ धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर उसे रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट तथा सोडियम हाइड्रोसल्फेट ऐसे पदार्थ हैं।

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प्रश्न 80.
साबुन और साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ में क्या अन्तर है ?
उत्तर :

साबुनसाबुन रहित सफाईकारी पदार्थ
1. साबुन प्राकृतिक तेलों; जैसे-नारियल, जैतून, सरसों आदि से बनता है।1. साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ शोधक
2. साबुन का प्रयोग भारी पानी में नहीं किया जा सकता।2. इनका प्रयोग भारी पानी में भी किया जा सकता है।
3. साबुन को जब कपड़ों पर रगड़ा जाता है तो सफ़ेद-सी झाग बनती है।3. इनमें कई बार सफ़ेद झाग नहीं बनती।

प्रश्न 81.
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ हैं-नील तथा टीनोपॉल अथवा रानीपॉल। नील-नील दो प्रकार के होते हैं –
1. पानी में घुलनशील तथा
2. पानी में अघुलनशील नील।

इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील पहली प्रकार के नील हैं। ये पानी के नीचे बैठ जाते हैं। इन्हें अच्छी तरह से मलना पड़ता है।
एनीलिन दूसरी तरह के नील हैं। ये पानी में घुल जाते हैं।
टीनोपॉल – यह भी सफ़ेद वस्त्रों को और सफ़ेद तथा चमकदार करने के लिए प्रयोग किया जाता हैं।

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प्रश्न 82.
वस्त्रों को नील क्यों दिया जाता है?
अथवा
कपड़ों की धुलाई में सहायक सामग्री के रूप में नील की उपयोगिता लिखें।
उत्तर :
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों पर बार-बार धोने से पीलापन-सा आ जाता है। इसको दूर करने के लिए वस्त्रों को नील दिया जाता है तथा वस्त्र सी सफ़ेदी बनी रहती है।

प्रश्न 83.
नील देते समय धब्बे क्यों पड़ जाते हैं? यदि धब्बे पड़ जायें तो क्या करना चाहिए?
उत्तर :
अघुलनशील नील के कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं तथा इस तरह वस्त्रों को नील देने से वस्त्रों पर कई बार नील के धब्बे पड़ जाते हैं। जब नील के धब्बे पड़ जाएं तो वस्त्र को सिरके के घोल में खंगाल लेना चाहिए।

प्रश्न 84.
किस प्रकार के वस्त्रों को सफ़ेद करने की आवश्यकता पड़ती है ?
उत्तर :
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों को बार-बार धोने पर इन पर पीलापन सा आ जाता है। इनका यह पीलापन दूर करने के लिए नील देना पड़ता है।

प्रश्न 85.
साबुन बनाने की गर्म विधि के बारे बताओ।
उत्तर :
तेल को गर्म करके धीरे-धीरे इसमें कास्टिक सोडा डाला जाता है। इस मिश्रण को गर्म किया जाता है। इस तरह चर्बी अम्ल तथा ग्लिसरीन में बदल जाती है। फिर उसमें नमक डाला जाता है, इससे साबुन ऊपर आ जाता है तथा ग्लिसरीन, अतिरिक्त खार तथा नमक नीचे चले जाते हैं। साबुन में सुगन्ध तथा रंग ठण्डा होने पर मिलाये जाते हैं तथा चक्कियां काट ली जाती हैं।

प्रश्न 86.
कपड़ों को नील कैसे दिया जाता है ?
उत्तर :
नील देते समय वस्त्र को धोकर साफ़ पानी से निकाल लेना चाहिए। नील को किसी पतले वस्त्र में पोटली बनाकर पानी में खंगालना चाहिए। वस्त्र को अच्छी तरह निचोड़कर तथा बिखेरकर नील वाले पानी में डालो तथा बाद में वस्त्र को धूप में सुखाओ।

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प्रश्न 87.
धोने से पूर्व वस्त्रों की मरम्मत करनी क्यों ज़रूरी है?
अथवा
कपड़े धोने से पहले उनकी मुरम्मत के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
कई बार वस्त्र सिलाइयों से अथवा उलेड़ियों से उधड़ जाते हैं अथवा किसी चीज़ में फँसकर फट जाते हैं। ऐसी हालत में वस्त्रों को धोने से पहले मरम्मत कर लेनी चाहिए नहीं तो और फटने अथवा उधड़ने का डर रहता है।

प्रश्न 88.
कौन-कौन सी बातों के आधार पर आप वस्त्रों को धोने से पहले छांटोगे?
उत्तर :
वस्त्रों की छंटाई उनके रंग, रेशों, आकार तथा गन्दगी के आधार पर की जाती है।

प्रश्न 89.
संश्लेषित कपड़ों पर इस्त्री करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर :
1. इस्त्री उपयुक्त ताप पर गर्म करें।
2. इस्त्री करने का स्थान समतल तथा सीधा होना चाहिए।
3. वस्त्र के एक तरफ से शुरू होकर अन्त तक इस्त्री करनी चाहिए।

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प्रश्न 90.
सफेद कपड़ों का पीलापन दूर करने के उपाय व उसकी विधि लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 84, 86 का उत्तर।

प्रश्न 91.
किसी एक वानस्पतिक धब्बे का नाम व उसे छुड़ाने की विधि लिखें।
उत्तर :
चाय का दाग वानस्पतिक दाग है। सूती कपड़े से ताजा दाग उतारने के लिए कुछ ऊंचाई से उबलता पानी दाग पर डालने से साफ हो जाता है। पुराने दाग के लिए सोडे या बोरैक्स या अमोनिया के हल्के घोल में कुछ देर रखा जाता है।

प्रश्न 92.
कपड़े धोने से पहले उनकी छंटाई करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
ऐसा करने से अधिक गन्दे, कम गन्दे, सफेद तथा रंगदार वस्त्रों को अलग करने से धुलाई सरलता से हो जाती है।

प्रश्न 93.
अपाच्य ब्लीच के दो उदाहरण दें।
उत्तर :
सोडियम बाईसल्फाईड, सोडियम हाइड्रोसल्फाईड।

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प्रश्न 94.
कपड़ों पर अकड़न लाने वाले पदार्थ बताएं।
उत्तर :
मैदा, अरारोट, आलू, चावलों का पानी, गेहूँ।।

प्रश्न 95.
भारी पानी को हल्का कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर :
भारी पानी को उबालकर तथा चूने के पानी से मिलाकर हल्का बनाया जाता है।

प्रश्न 96.
ऑक्सीकारक ब्लीच के दो उदाहरण दें।
अथवा
कोई भी दो ऑक्सीकारक विरंजकों के नाम लिखें।
उत्तर :
पोटाशियम परमैंगनेट, हाइड्रोजन परऑक्साइड।

प्रश्न 97.
सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ बताएं।
उत्तर :
वस्त्र धोने वाला सोडा, सुहागा, अमोनिया, एसिटिक एसिड, ऑग्ज़ैलिक एसिड।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
ठण्डी विधि द्वारा कौन-कौन सी वस्तुओं से साबुन कैसे तैयार किया जा सकता है ? इसकी क्या हानियां हैं ?
अथवा
ठण्डी विधि द्वारा साबुन बनाने में कौन-कौन सी वस्तुएँ प्रयोग में आती हैं ?
उत्तर :
ठण्डी विधि द्वारा साबुन तैयार करने के लिए निम्नलिखित सामान लो –
कास्टिक सोडा अथवा पोटाश 250 ग्राम
महुआ अथवा नारियल तेल-1 लीटर
पानी-3/4 किलोग्राम
मैदा-250 ग्राम।
किसी मिट्टी के बर्तन में कास्टिक सोडा तथा पानी को मिलाकर 2 घण्टे तक रख दो। तेल तथा मैदे को अच्छी तरह घोल लो तथा फिर इसमें सोडे का घोल धीरे-धीरे डालो तथा हिलाते रहो। पैदा हुई गर्मी से साबुन तैयार हो जाएगा। इसको किसी सांचे में डालकर सुखा लो तथा चक्कियां काट लो।

हानियां – साबुन के अतिरिक्त खार तथा तेल और ग्लिसरॉल आदि साबुन में रह जाते हैं। अधिक खार वाले साबुन कपड़ों को हानि पहुंचाते हैं।

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प्रश्न 2.
साबुन किन-किन किस्मों में मिलता है ?
उत्तर :
साबुन निम्नलिखित किस्मों में मिलता है –
1. साबुन की चक्की-साबुन चक्की के रूप में प्रायः मिल जाता है। चक्की को गीले वस्त्र पर रगड़कर प्रयोग किया जाता है।
2. साबुन का पाऊडर-यह साबुन तथा सोडियम कार्बोनेट का बना होता है। इसको गर्म पानी में घोलकर कपड़े धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें सफ़ेद-सफ़ेद सूती वस्त्रों को अच्छी तरह साफ़ किया जाता है।
3. साबुन का चूरा-यह बन्द पैकेटों में मिलता है। इसको पानी में उबालकर सूती वस्त्र कुछ देर भिगो कर रखने के पश्चात् इसमें धोया जाता है। रोगियों के वस्त्रों को भी कीटाणु रहित करने के लिए साबुन के उबलते घोल का प्रयोग किया जाता है।
4. साबुन की लेस-एक हिस्सा साबुन का चूरा लेकर पाँच हिस्से पानी डालकर तब तक उबालो जब तक लेस-सी तैयार न हो जाये। इसको ठण्डा होने पर बोतलों में डालकर रख लो तथा जरूरत पड़ने पर पानी डालकर धोने के लिए इसे प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
अच्छे साबुन की पहचान क्या है ?
उत्तर :

  1. साबुन हल्के पीले रंग का होना चाहिए। गहरे रंग के साबुन में मिलावट भी हो सकती है।
  2. साबुन हाथ लगाने पर थोड़ा कठोर होना चाहिए। अधिक नर्म साबुन में ज़रूरत से अधिक पानी हो सकता है जो केवल भार बढ़ाने के लिए ही होता है।
  3. हाथ लगाने पर अधिक कठोर तथा सूखा नहीं होना चाहिए। कुछ घटिया किस्म के साबुनों में भार बढ़ाने वाले पाऊडर डाले जाते हैं जो वस्त्र धोने में सहायक नहीं होते।
  4. अच्छा साबुन स्टोर करने पर, पहले की तरह रहता है, जबकि घटिया साबुनों पर स्टोर करने पर सफ़ेद पाऊडर-सा बन जाता है। इनमें आवश्यकता से अधिक खार होती है जोकि वस्त्र को खराब भी कर सकती है।
  5. अच्छा साबुन जुबान पर लगने से ठीक स्वाद देता है जबकि मिलावट वाला साबुन जुबान पर लगने पर तीखा तथा कड़वा स्वाद देता है।

प्रश्न 4.
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर :
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-रीठे तथा शिकाकाई। इनकी फलियों को सुखा कर स्टोर कर लिया जाता है।
रीठा – रीठों की बाहरी छील के रस में वस्त्र साफ़ करने की शक्ति होती है। रीठों की छील उतारकर पीस लो तथा 250 ग्राम छील को कुछ घण्टे के लिए एक लिटर पानी में भिगो कर रखो तथा फिर इन्हें उबालो तथा ठण्डा करके छानकर बोतलों में भरकर रखा जा सकता है। इसके प्रयोग से ऊनी, रेशमी वस्त्र ही नहीं अपितु सोने, चांदी के आभूषण भी साफ़ किये जा सकते हैं।

शिकाकाई – इसका भी रीठों की तरह घोल बना लिया जाता है। इससे कपड़े निखरते ही नहीं अपितु उनमें चमक भी आ जाती है। इससे सिर भी धोया जा सकता है।

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प्रश्न 5.
साबुन रहित रासायनिक सफ़ाईकारी पदार्थों से आप क्या समझते हो? इनके क्या लाभ हैं?
उत्तर :
साबुन प्राकृतिक तेल अथवा चर्बी से बनते हैं जबकि रासायनिक सफाईकारी शोधक रासायनिक पदार्थों से बनते हैं। यह चक्की, पाऊडर तथा तरल के रूप में उपलब्ध हो सकते हैं।
लाभ – (i) इनका प्रयोग हर तरह के सूती, रेशमी, ऊनी तथा बनावटी रेशों के लिए किया जा सकता है।
(ii) इनका प्रयोग गर्म, ठण्डे, हल्के अथवा भारी सभी प्रकार के पानी में किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
साबुन और अन्य साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थों के अतिरिक्त वस्त्रों की धुलाई के लिए कौन-से सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं ?
उत्तर :
सहायक सफाईकारी पदार्थ निम्नलिखित हैं –
(i) वस्त्र धोने वाला सोडा – इसको सफ़ेद सूती वस्त्रों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। परन्तु रंगदार सूती वस्त्रों का रंग हल्का पड़ जाता है तथा रेशे कमजोर हो जाते हैं। यह रवेदार होता है तथा उबलते पानी में तुरन्त घुल जाता है। इससे सफ़ाई की प्रक्रिया में वृद्धि होती है। इसका प्रयोग भारी पानी को हल्का करने के लिए, चिकनाहट साफ़ करने तथा दाग़ उतारने के लिए किया जाता है।

(ii) बोरेक्स (सहागा) – इसका प्रयोग सफ़ेद सती वस्त्रों के पीलेपन को दर करने के लिए तथा चाय, कॉफी, फल, सब्जियों आदि के दाग उतारने के लिए किया जाता है। इसके हल्के घोल में मैले वस्त्र भिगोकर रखने पर उनकी मैल उगल आती है। इससे वस्त्रों में ऐंठन भी लाई जाती है।

(iii) अमोनिया – इसका प्रयोग रेशमी तथा ऊनी कपड़ों से चिकनाहट के दाग दूर करने के लिए किया जाता है।

(iv) एसिटिक एसिड – रेशमी वस्त्र को इसके घोल में खंगालने से इनमें चमक आ जाती है। इसका प्रयोग वस्त्रों के अतिरिक्त नील का प्रभाव कम करने के लिए भी किया जाता है। रेशमी, ऊनी वस्त्र की रंगाई के समय भी इसका प्रयोग किया जाता है।

(v) ऑग्ज़ैलिक एसिड – इसका प्रयोग छार की बनी चटाइयों, टोकरियों तथा टोपियों आदि को साफ़ करने के लिए किया जाता है। स्याही, जंग, दवाई आदि के दाग उतारने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 7.
वस्त्रों से दागों का रंग काट करने के लिए क्या प्रयोग किया जाता है?
उत्तर :
कपड़ों से दागों का रंग काट करने के लिए ब्लीचों का प्रयोग होता है। यह दो प्रकार के होते हैं
(i) ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच – जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है, इसकी ऑक्सीजन धब्बे से क्रिया करके इसको रंग रहित कर देती है तथा दाग उतर जाता है। प्राकृतिक धूप, हवा तथा नमी, पोटाशियम परमैंगनेट, हाइड्रोजन पराक्साइड, सोडियम परबोरेट, हाइपोक्लोराइड आदि ऐसे रंग काट हैं।

(i) रिड्यूसिंग ब्लीच – जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है तो यह धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर इसको रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट, सोडियम हाइडोसल्फाइट ऐसे ही रंग काट हैं। ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों पर इनका प्रयोग आसानी से किया जा सकता है। परन्तु तेज़ रंग काट से वस्त्र खराब भी हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
नील की मुख्य कौन-कौन सी किस्में हैं ?
उत्तर :
नील मुख्यतः दो प्रकार का होता है –
(i) पानी में अघुलनशील नील – इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील ऐसे नील हैं। इसके कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं, इसलिए वस्त्रों को धोने से पहले नील वाले पानी में अच्छी तरह हिलाना पड़ता है।
(ii) पानी में घुलनशील नील – इनको पानी में थोड़ी मात्रा में घोलना पड़ता है तथा इससे वस्त्र पर थोड़ा नीला रंग आ जाता है। इस तरह वस्त्र का पीलापन दूर हो जाता है। एनीलिन नील ऐसा ही नील है।

प्रश्न 9.
नील देते समय ध्यान में रखने योग्य बातें कौन-सी हैं?
उत्तर :

  1. नील सफ़ेद वस्त्रों को देना चाहिए रंगीन कपड़ों को नहीं।
  2. यदि नील पानी में अघुलनशील हो तो पानी को हिलाते रहना चाहिए नहीं तो वस्त्रों पर नील के धब्बे से पड़ जाएंगे।
  3. नील के धब्बे दूर करने के लिए वस्त्र को सिरके वाले पानी में खंगाल लेना चाहिए।
  4. नील दिए वस्त्रों को धूप में सुखाने पर उनमें और भी सफ़ेदी आ जाती है।

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प्रश्न 10.
वस्त्रों के कड़ापन लाने के लिए किन वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है? किन्हीं चार वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर :
वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए अग्रलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है –

  1. मैदा अथवा अरारोट-इसको पानी में घोलकर गर्म किया जाता है।
  2. चावलों का पानी-चावलों को पानी में उबालने के पश्चात् बचे पानी का प्रयोग वस्त्र में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  3. आलू-आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. गंद-गंद को पीसकर गर्म पानी में घोल लिया जाता है तथा घोल को पतले वस्त्र में छान लिया जाता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, लेसों तथा वैल के वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  5. बोरैक्स (सुहागा)-आधा लीटर पानी में दो बड़े चम्मच सुहागा घोल कर लेसों पर इसका प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
वस्त्र धोने से पूर्व आप क्या-क्या तैयारी करेंगे?
उत्तर :

  1. वस्त्रों की उधड़ी सिलाइयां लगा लेनी चाहिएं। यदि रफू, बटन, हुकों आदि की ज़रूरत हो तो लगा लो।
  2. वस्त्रों की जेबों आदि को देख लो, बैल्टें, बक्कल आदि उतार दो।
  3. वस्त्रों को रंग अनुसार, रेशे अनुसार, आकार अनुसार, गन्दगी अनुसार छांट कर अलग कर लो।
  4. यदि वस्त्रों पर कोई दाग धब्बे हैं तो पहले इन्हें दूर करो।

प्रश्न 12.
वस्त्रों को छांटने से आप क्या समझते हो?
अथवा
कपड़े धोते समय उनकी छंटाई कैसे की जाती है ?
उत्तर :
वस्त्रों को छांटने का अर्थ है कि वस्त्रों को उनके रंग, रेशे, आकार तथा गन्दगी के आधार पर अलग-अलग कर लेना क्योंकि सारे रेशे एक विधि से नहीं धोए जा सकते इसलिए सूती, ऊनी, रेशमी, नायलॉन, पालिएस्टर के अनुसार वस्त्र अलग कर लिये जाते हैं। सफ़ेद वस्त्र रंगदार वस्त्रों से पहले धोने चाहिएं क्योंकि रंगदार वस्त्रों से कई बार रंग निकलने लगता है। छोटे वस्त्र पहले धो लो तथा बड़े जैसे चादरें, खेस आदि को बाद में। कम गन्दे वस्त्र हमेशा पहले धोएं तथा अधिक गन्दे बाद में।

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प्रश्न 13.
सूती वस्त्रों की धुलाई कैसी की जाती है?
अथवा
सफेद सूती कपड़ों की धुलाई आप कैसे करोगे ?
उत्तर :

  1. पहले वस्त्र को कुछ समय के लिए भिगोकर रखा जाता है ताकि मैल उगल जाये। इस तरह साबुन, मेहनत तथा समय कम लगता है।
  2. कीटाणु रहित करने के लिए वस्त्रों को पानी में 10-15 मिनट के लिए उबाला जाता है।
  3. पहले से भीगे वस्त्रों को पानी से निकालकर निचोड़ा जाता है तथा साबुन अथवा अन्य किसी डिटर्जेंट आदि से वस्त्रों को रगड़कर, मलकर अथवा थापी से धोया जाता है। अधिक गन्दे हिस्से जैसे कालर, कफ आदि को ब्रश आदि से रगड़कर साफ़ किया जाता है।
  4. उबालने अथवा साबुन वाले पानी से धोने के पश्चात् कपड़ों को साफ़ पानी से 2-4 बार खंगाल कर सारा पानी निकाल देना चाहिए। फिर उन्हें अच्छी तरह निचोड़ लो।
  5. आवश्यकतानुसार नील अथवा मावा आदि देकर वस्त्र निचोड़कर झाड़कर सूखने के लिए डाल दो।

प्रश्न 14.
ऊनी वस्त्र धोते समय बहुत सावधानी प्रयोग करने की जरूरत क्यों पड़ती है?
उत्तर :
ऊनी रेशे पानी में डालने से कमजोर हो जाते हैं तथा लटक जाते हैं। गर्म पानी में डालने पर तथा रगड़कर धोने से यह रेशे जुड़ जाते हैं। सोडे वाले साबुन से धोने पर भी यह रेशे जुड़ जाते हैं। इसलिए ऊनी वस्त्र धोते समय काफ़ी सावधानी की ज़रूरत होती है। इनको धोते समय ध्यान रखो कि जितना भी पानी प्रयोग किया जाए, सारे का तापमान एक-सा होना चाहिए। कभी भी गर्म तथा सोडे वाले साबुन का प्रयोग न करो। धोने के लिए वस्त्र को हाथ से धीरे-धीरे दबाते रहना चाहिए तथा ऊनी वस्त्र को लटकाकर सुखाना नहीं चाहिए। वस्त्र को समतल स्थान पर सीधा रखकर सुखाना चाहिए।

प्रश्न 15.
अपने ऊनी स्वैटर की धुलाई आप कैसे करोगे?
अथवा
ऊनी वस्त्रों की धुलाई आप कैसे करोगे ?
उत्तर :
1. पहले स्वैटर से नर्म ब्रश से ऊपरी मिट्टी झाड़ी जाती है।
2. यदि स्वैटर ऐसा हो कि धोने के पश्चात् उसके बेढंगे हो जाने का डर हो तो धोने से पहले इसको खाका अखबार अथवा खाकी कागज़ पर उतार लेना चाहिए ताकि धोने के पश्चात् इसको फिर से पहले आकार में लाया जा सके।
3. पहले ऊनी वस्त्र को पानी में से डुबो कर निकाल लो तथा हाथों से दबाकर पानी निकाल दो। शिकाकाई, रीठे, जैनटिल अथवा लीसापोल को गुनगुने पानी में घोल कर झाग बना लो। फिर इस निचोड़े गए वस्त्र को इस साबुन वाले पानी में हाथों से धीरे-धीरे दबाकर रगड़े बगैर साफ़ करो।
4. वस्त्र को साफ़ पानी में धीरे-धीरे खंगालकर इसमें से साबुन अच्छी तरह निकाल दो तथा अतिरिक्त पानी तौलिए में दबाकर निकाल लो।
5. वस्त्र को बनाये हुए खाके पर रखकर इसके आकार में ले आयो तथा समतल स्थान जैसे-चारपाई पर वस्त्र बिछाकर इसके ऊपर सीधा डालकर छांव में सुखाओ।

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प्रश्न 16.
ऊनी स्वैटर को समतल स्थान पर क्यों व कैसे सुखाना चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 15 का उत्तर।

प्रश्न 17.
भिगोने से सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्रों में से कौन-कौन से कमज़ोर हो जाते हैं और इनका धोने से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर :
भिगोने से ऊनी तथा रेशमी वस्त्र कमजोर हो जाते हैं जबकि सुती वस्त्र मज़बत होते हैं। इनका धोने के साथ यह सम्बन्ध है कि ऊपर बताये कारण से सूती वस्त्रों को तो धोने से पहले कुछ समय के लिए भिगो कर रखा जाता है। परन्तु ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों को भिगो कर नहीं रखा जाता।

प्रश्न 18.
भिगौने से कौन-से वस्त्र कमजोर पड़ जाते हैं ?
उत्तर :
ऊन के वस्त्र तथा सिल्क के वस्त्र।

प्रश्न 19.
ऐसी किस्म के वस्त्रों के बारे में बताओ जिन्हें उबाल कर धोया जा सकता है। ऐसे वस्त्र को धोते समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिएं?
उत्तर :
सूती वस्त्रों को उबालकर धोया जा सकता है। इन वस्त्रों को धोते समय निम्नलिखित सावधानियों की ज़रूरत है –

  1. सिलाइयों से उधड़े अथवा किसी अन्य कारण से फटे वस्त्र को धोने से पहले मरम्मत कर लो।
  2. सूती, लिनन, ऊनी, नायलॉन, पॉलिएस्टर, रेशमी वस्त्रों को अलग-अलग कर लो।
  3. सफ़ेद वस्त्रों को पहले धोएं तथा रंगदार को बाद में।
  4. अधिक मैले वस्त्रों को बाद में धोएं।
  5. रोगी के वस्त्रों को 10-15 मिनट के लिए पानी में उबालो तथा बाद में धोएं।
  6. छोटे तथा बड़े वस्त्रों को अलग-अलग करके धोएं।

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प्रश्न 20.
रेशमी वस्त्रों की धुलाई कैसे की जाती है ?
अथवा
रेश्मी कपड़ों को किस विधि से धोना चाहिए ?
अथवा
सिल्क का स्कार्फ धोने की विधि लिखें ?
उत्तर :
i. रीठे, शिकाकाई अथवा जैनटिल को गुनगुने पानी में घोलकर झाग बनाओ तथा इसमें वस्त्र को हाथों से धीरे-धीरे दबाकर धोएं तथा बाद में साफ़ से 3-4 बार खंगाल कर निकाल लो। वस्त्र को खंगालते समय एक चम्मच सिरका डाल लो। इससे वस्त्र में चमक आ जायेगी।
ii. धोने के पश्चात् रेशमी वस्त्र को गेहूँ का मावा दो ताकि इसकी प्राकृतिक ऐंठन कायम रखी जा सके।
iii. इन वस्त्रों को हमेशा छाया में सुखाएं। आधे सूखे वस्त्रों को इस्तरी करने के लिए उतार लो।

प्रश्न 21.
सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्रों को इस्त्री करने में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
सूती वस्त्रों की प्रेस-सूखे वस्त्रों पर पानी छिड़ककर इन्हें नम कर लिया जाता है तथा कुछ समय के लिए लपेट कर रख दिया जाता है ताकि वस्त्र एक जैसे नम हो जाएं। जब प्रैस अच्छी तरह गर्म हो जाये, तो वस्त्र के उल्टे तरफ पहले सिलाइयां, प्लीट, उलेड़ियों वाले फट्टे आदि प्रैस करो। वस्त्र की सीधी तरफ वस्त्र की लम्बाई की ओर प्रैस करो। कालर, कफ, बाजू आदि को पहले इस्तरी करो। प्रैस करने के पश्चात् वस्त्रों को तह लगा कर रख दें अथवा हैंगर पर टांग दें।

ऊनी वस्त्र की प्रैस-ऊनी वस्त्र पर प्रैस सीधी सम्पर्क में नहीं लाई जाती, इससे ऊनी रेशे जल जाते हैं। मलमल के एक सफ़ेद वस्त्र को गीला करके ऊनी वस्त्र पर बिछाओ तथा हल्की गर्म प्रैस से उसको प्रैस करो। एक स्थान पर प्रैस 3-4 सैकिण्ड से अधिक न रखो। प्रेस करने के पश्चात् वस्त्र की तह लगा दो ।।

रेशमी वस्त्रों की इस्तरी-वस्त्रों को नम तौलिए में लपेटकर नम कर दो। पानी का छींटा देने से दाग पड़ सकते हैं। हल्की गर्म इस्तरी से इस्तरी करो। इस्तरी करने के पश्चात् यदि वस्त्र नम हों तो इन्हें सुखा लो तथा सूखने के बाद ही सम्भालो।

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प्रश्न 22.
रेयॉन के वस्त्रों की धुलाई करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
रेयॉन के वस्त्रों की धुलाई करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. रेयॉन के वस्त्रों को भिगोना, उबालना या ब्लीच नहीं करना चाहिए।
  2. साबुन मृदु प्रकृति का प्रयोग करना चाहिए।
  3. गुनगुना पानी ही प्रयोग में लाना चाहिए, अधिक गर्म नहीं।
  4. साबन का अधिक-से-अधिक झाग बनाना चाहिए जिससे साबुन पूरी तरह घुल जाए।
  5. गीली अवस्था में रेयॉन के कपड़े अपनी शक्ति 50% तक खो देते हैं, अत: वस्त्रों में से साबुन की झाग निकालने के लिए उन्हें सावधानीपूर्वक निचोड़ना चाहिए।
  6. साबुन की झाग निचोड़ने के बाद वस्त्र को दो बार गुनगुने पानी में से खंगालना चाहिए।
  7. वस्त्रों में से पानी को भी कोमलता से निचोड़कर निकालना चाहिए। वस्त्र को मरोड़कर नहीं निचोड़ना चाहिए।
  8. वस्त्र को किसी भारी तौलिए में रखकर, लपेटकर हल्के-हल्के दबाकर नमी को सुखाना चाहिए।
  9. वस्त्र को धूप में नहीं सुखाना चाहिए।
  10. वस्त्र को लटकाकर नहीं सुखाना चाहिए।
  11. वस्त्र को हल्की नमी की अवस्था में वस्त्र की उल्टी तरफ़ इस्तरी करना चाहिए।
  12. वस्त्रों को अलमारी में रखने अर्थात् तह करके रखने से पूर्व यह देख लेना चाहिए कि उनमें से नमी पूरी तरह से दूर हो चुकी है या नहीं।

प्रश्न 23.
ऊनी कपड़ों की धुलाई में प्रारम्भ से अन्त तक की विभिन्न क्रियाओं की सूची बनाइए।
उत्तर :

  1. वस्त्रों का छाँटना।
  2. वस्त्रों को झाड़ना या धूल-रहित करना।
  3. वस्त्रों में यदि कोई सुराख आदि हों तो उसकी मरम्मत करना।
  4. वस्त्र का खाका तैयार करना।
  5. दाग-धब्बे छुड़ाना।
  6. साबुन तथा पानी की तैयारी।
  7. धुलाई करना।
  8. वस्त्रों को सुखाना।
  9. वस्त्रों पर इस्तरी करना।

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प्रश्न 24.
ऊनी कपड़ों में रंग व चमक बनाए रखने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
ऊनी कपड़ों में रंग व चमक बनाए रखने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. ऊनी वस्त्रों को अधिक गर्म पानी से नहीं धोना चाहिए।
  2. ऊनी वस्त्रों को धूप में नहीं सुखाना चाहिए।
  3. अधिक क्षारीय घोलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  4. यदि रंग कच्चा हो और धुलाई में निकलता दिखाई दे तो धुलाई के अन्तिम जल में थोड़ी-सी नींबू की खटाई या सिरका मिला देना चाहिए।
  5. कच्चे रंग के कपड़ों को रीठे के घोल से घोलना चाहिए।

प्रश्न 25.
ऊनी वस्त्रों की धुलाई के लिए किस प्रकार का साबुन प्रयोग करना चाहिए और क्यों?
उत्तर :
ऊनी वस्त्रों की धुलाई के लिए मृदु साबुन का प्रयोग करना चाहिए जिसमें सोडा बहुत कम हो या बिल्कुल न हो। साबुन द्रव रूप में अथवा चिप्स के रूप में हो जो पानी में एक जैसा घोल बना ले। क्षारयुक्त साबुन से ऊन के तन्तु कड़े हो जाते हैं तथा सफ़ेद ऊन में पीलापन आ जाता है। रंगीन वस्त्रों के लिए रीठे के घोल का प्रयोग किया जाना चाहिए क्योंकि इसके प्रयोग से कपड़े का रंग नहीं उतरता।

प्रश्न 26.
ऊन क्यों जुड़ जाती है?
उत्तर :
ऊन का तन्तु बहुत नर्म और मुलायम होता है। इसके ऊपर छोटी-छोटी तहें होती हैं जो कि पानी, गर्मी और क्षार से नर्म हो जाती हैं और एक-दूसरे से उलझ जाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि कपडा जुड़ जाता है। इसलिए ऊन की धुलाई में विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 27.
ऊनी कपड़ों को सिकुड़ने व जुड़ने से बचाने के लिए आवश्यक चार बातें लिखो।
उत्तर :

  1. कपड़ों को रगड़ना नहीं चाहिए।
  2. पानी बहुत गर्म नहीं होना चाहिए।
  3. कपड़ों की धुलाई में क्षारों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  4. कपड़ों को गीली अवस्था में लटकाकर नहीं सुखाना चाहिए।

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प्रश्न 28.
अधिक मैले ऊनी वस्त्रों को कैसे साफ़ करोगे?
उत्तर :
ऊनी वस्त्रों को रीठे के घोल या इजी वाले पानी में थोड़ी देर के लिए भिगोएँ। उसे हाथों से धीरे-धीरे रगड़ें। अधिक मैले भाग को हाथ की हथेली पर रखकर थोड़ा और साबुन लगाकर दूसरे हाथ से धीरे-धीरे रगड़ें, यदि मैल साफ़ न हो तो उस भाग पर ब्रुश का प्रयोग करें। जब वस्त्र साफ़ हो जाएं तो फिर उसे समतल, छायादार स्थान पर सुखाएँ।

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चित्र-धीरे-धीरे मलने की विधि

प्रश्न 29.
ऊनी कपड़ों में रंग व चमक बनाए रखने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिये?
उत्तर :
ऊनी कपड़ों में रंग व चमक बनाए रखने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चहिए –

  1. ऊनी वस्त्र को अधिक गर्म पानी से नहीं धोना चाहिए।
  2. ऊनी वस्त्र को धूप में नहीं सुखाना चाहिए।
  3. अधिक क्षारीय घोलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  4. यदि रंग कच्चा हो और धुलाई में निकलता दिखाई दे तो धुलाई के अन्तिम जल में थोड़ी-सी नींबू की खटाई या सिरका मिला देना चाहिए।
  5. कच्चे रंग के कपड़ों को रीठे के घोल से धोना चाहिए।

प्रश्न 30.
ऊनी वस्त्रों को धोने से पूर्व उनका खाका क्यों तैयार किया जाता है ?
अथवा
ऊनी स्वैटर को धोने से पहले उसका खाका क्यों बनाया जाता है ?
उत्तर :
हाथ से बुने कपड़े सिकुड़ जाने या खींचे जाने के कारण खराब हो सकते हैं। इसलिए गीला करने से पहले खाकी कागज़ पर इनका खाका बना लिया जाता है ताकि धोने के बाद कपड़े को इसी कागज़ पर रख कर उसको ठीक करके सुखाया जा सके।

प्रश्न 31.
कपड़ों के परिष्करण (फिनिशिंग) से सम्बन्धित क्रियाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर :

  1. कपड़ों को नम करना।
  2. कपड़ों पर इस्तरी करना।
  3. प्रेसिंग या प्रैस करना।
  4. स्टीमिंग या स्टीम करना।
  5. मेंगलिंग विधि या मेंगल करना।
  6. केलेन्डरिंग या केलेन्डर करना।

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प्रश्न 32.
कलफ लगाने से क्या लाभ होते हैं ?
अथवा
कलफ का प्रयोग वस्त्रों के लिए क्यों आवश्यक है ? किन वस्त्रों को कलफ किया जाता है?
अथवा
कपड़ों पर कलफ क्यों लगाया जाता है ? रेशमी कपड़ों पर किस चीज़ का कलफ लगाते हैं ?
अथवा
कल्फ का प्रयोग क्यों किया जाता है ? कपड़ों को कल्फ लगाने के लिए किन किन चीज़ों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर :
कपड़ों में कलफ से चमक और नवीनता आ जाती है।

  1. कपड़े में कलफ रहने से कपड़े में कड़ापन आ जाता है। वस्त्र कई दिनों तक पहना जा सकता है।
  2. मांड लगे कपड़ों पर धूल नहीं जमती है क्योंकि यह धागों के बीच के रिक्त स्थानों की पूर्ति करती है।
  3. कपड़ों पर सिलवटें नहीं पड़ती हैं, कपड़ों का आकार ठीक लगता है।
  4. कलफ लगे वस्त्र पहनने पर व्यक्ति स्मार्ट लगता है, उसके व्यक्तित्व में निखार आ जाता है। आमतौर पर सूती और रेशमी कपड़ों पर कलफ लगाई जाती है।

रेशमी कपड़ों पर गोंद की कलफ की जाती है।
कल्फ लगाने के लिए चीजें-देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 33.
धुलाई में नील का क्या महत्त्व है?
अथवा
कपड़ों पर नील क्यों लगाया जाता है ? नील लगाने की विधि लिखें।
उत्तर :
सूती वस्त्रों की सफेदी बढ़ाने के लिए नील लगाया जाता है। सफ़ेद वस्त्र पहनने अथवा धोने के पश्चात् पीले से पड़ जाते हैं क्योंकि उनकी सफेदी जाती रहती है। इस पीले रंग को दूर करने के लिए नील का प्रयोग किया जाता है। इससे वस्त्र में सफेदी व नवीनता पुनः आ जाती है।

वस्त्रों में नील देते समय विशेष ध्यान देना चाहिए। नील पानी में अच्छी तरह से घोल देना चाहिए। नील लगाने की उत्तम विधि यह है कि एक कपड़े के टुकड़े में नील रखकर पोटली बना लेनी चाहिए तथा पानी में डाल कर नील को घोल लेना चाहिए। जब पानी में नील एक सा घुल जाए तो गीले वस्त्र को उसमे डुबो देना चाहिए। नील लग जाने के बाद वस्त्र को धूप में सुखा देना चाहिए। इससे वस्त्र की सफेदी बढ़ जाती है।

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प्रश्न 34.
कपड़ों पर इस्तरी करने से क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
वस्त्रों की धुलाई करने के पश्चात् सभी कपड़ों पर प्रायः सिलवटें पड़ जाती हैं। कुछ वस्त्र ऐसे भी होते हैं जो मैले न होते हुए भी सिलवटों के कारण पहनने योग्य नहीं होते। इन वस्त्रों को मूलरूप व आकर्षण देने के लिए इन पर इस्तरी करने की आवश्यकता होती है। इस्तरी दो प्रकार की होती है-बिजली से चलने वाली तथा कोयले से चलने वाली।
इस्तरी करने से –

  1. वस्त्रों में चमक आ जाती है।
  2. वस्त्रों में सुन्दरता तथा निखार आ जाता है।
  3. सिलवटें समाप्त हो जाती हैं।

प्रश्न 35.
पानी के स्रोत के आधार पर पानी का वर्गीकरण कैसे करोगे ?
उत्तर :
पानी के स्रोत के आधार पर पानी का वर्गीकरण निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है –
1. वर्षा का पानी – यह पानी का सबसे शुद्ध रूप होता है। यह हल्का पानी होता है परन्तु हवा की अशुद्धियां इसमें घुली होती हैं। इसको वस्त्र धोने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
2. दरिया का पानी – पहाड़ों की बर्फ पिघल कर दरिया बनते हैं। जैसे-जैसे यह पानी मैदानी इलाकों में आता रहता है इसमें अशुद्धियों की मात्रा बढ़ती रहती है तथा पानी गंदा-सा हो जाता है। यह पानी पीने के लिए ठीक नहीं होता परन्तु इससे वस्त्र धोए जा सकते हैं।
3. चश्मे का पानी – धरती के नीचे इकट्ठा हुआ पानी किसी कमज़ोर स्थान से बाहर निकल आता है, इसको चश्मा कहते हैं। इस पानी में कई खनिज लवण घुले होते हैं इसको कई बार दवाई के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। वस्त्र धोने के लिए यह पानी ठीक है।
4. धरती को खोदकर जो पानी बाहर निकलता है, वह पानी पीने के लिए ठीक होता है। इसको कुएं का पानी कहते हैं। इससे वस्त्र धोए जा सकते हैं।
5. समुद्र का पानी – इस पानी में काफ़ी अधिक अशुद्धियां होती हैं। यह पीने के लिए तथा वस्त्र धोने के लिए भी ठीक नहीं होता।

प्रश्न 36.
सूती सफेद कपड़े से निम्नलिखित दाग कैसे छुड़ायेंगे ?
(i) रक्त
(ii) पेंट।
उत्तर :
रक्त – 1. ताज़ा दाग के लिए ठण्डे पानी तथा साबुन से धोएं।
2. पुराने दाग को नमक वाले पानी में धोएं।

पेंट-ताज़ा दाग के सूखे अंश को खुरचकर निकालें तथा फिर मिथीलेटिड स्पिरिट या मिट्टी के तेल में डुबोकर धीरे-धीरे रगड़ें। पुराने दाग के लिए इसी विधि को दो-तीन बार दोहराएं।

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प्रश्न 37.
सूती कपड़ों पर कलफ लगाने की विधि लिखें।
उत्तर :
सूती कपड़े पर कलफ लगाकर कड़ापन लाया जाता है। इसके लिए 1 हिस्सा स्टार्च का तथा 2 हिस्सा ठण्डे पानी का लेकर इसमें सूती कपड़ा डाला जाता है। कलफ लगाते समय वस्त्र में साबुन नहीं होना चाहिए इसे अच्छी तरह धो लेना चाहिए।

प्रश्न 38.
सूती साड़ी पर कड़ापन लाने के लिए किस चीज़ का इस्तेमाल किया जाता है ? उसे लगाने की विधि लिखें।
उत्तर :
सूती साड़ी पर कड़ापन लाने के लिए मैदा या अरारोट, चावल का पानी, आलुयों से तैयार पानी का प्रयोग किया जाता है।
मैदा या अरारोट को पानी में घोलकर गर्म किया जाता है तथा इससे वस्त्र में कड़ापन लाया जाता है।
इसी प्रकार आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में कड़ापन लाया जाता है।

प्रश्न 39.
पानी भारी किन कारणों से होता है?
उत्तर :
जल का भारीपन स्थाई तथा अस्थाई दो प्रकार का होता है। स्थाई भारीपन, पानी में मौजूद कैल्शियम सल्फेट, मैगनीशियम सल्फेट लवणों के कारण होता है। अस्थाई भारीपन, पानी में मौजूद कैल्शियम बाइकार्बोनेट तथा मैगनीशियम बाइकार्बोनेट लवणों के कारण होता है। अस्थाई भारीपन पानी को उबालने से दूर हो जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
धुलाई के लिए प्रयोग होने वाले सही सामान के चयन से समय और श्रम की बचत कैसे होती है?
उत्तर :
धुलाई के लिए प्रयोग होने वाला सामान इस तरह है –

  1. स्टोर करने के लिए सामान
  2. वस्त्र धोने के लिए सामान
  3. वस्त्र सुखाने के लिए सामान
  4. वस्त्र प्रेस करने के लिए सामान।

जब धोने वाले वस्त्र पहले ही इकट्ठे करके एक अलमारी अथवा टोकरी आदि में रखे जाएं जो कि धोने वाले स्थान के नज़दीक रखी हो, तो वस्त्र धोते समय सारे घर से विभिन्न कमरों से पहले वस्त्र इकट्ठे करने का समय बच जाता है। यह आदत गृहिणी को सारे घर के सदस्यों को डालनी चाहिए कि जो भी धोने वाला कपड़ा हो उसे इस काम के लिए बनाई अलमारी अथवा टोकरी में रखें। घर में साबुन, डिटर्जेंट, नील, ब्रुश आदि आवश्यक सामान पहले ही मौजूद होना चाहिए। इस तरह नहीं होना चाहिए कि उधर से वस्त्र धोने आरम्भ कर लिये जाएं तथा बाद में पता चले घर में तो साबुन अथवा कोई अन्य आवश्यक सामान नहीं है। इस तरह समय तथा मेहनत दोनों नष्ट होते हैं।

धोने के लिए पानी भी हल्का ही प्रयोग करना चाहिए क्योंकि भारी पानी में साबुन की झाग नहीं बनती तथा वस्त्र अच्छी तरह नहीं निखरते। इसलिए पानी को गर्म करके अथवा अन्य तरीके से पानी को हल्का बना लेना चाहिए।

वस्त्र सुखाने का भी ठीक प्रबन्ध होना चाहिए। रस्सियों आदि को अच्छी तरह बांधना चाहिए तथा कपड़ों पर क्लिप आदि लगा लेने चाहिए ताकि हवा चले तो वस्त्र उड़ न जाएं। यदि रैक हैं तो इन्हें पहले ही खोल लेना चाहिए। इस तरह विभिन्न आवश्यक सामान पहले ही इकट्ठा किया हो तो समय तथा मेहनत की बचत हो जाती है।

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प्रश्न 2.
वस्त्र धुलाई के सामान को किन-किन वर्गों में बांटा जा सकता है?
उत्तर :
स्टोर करने के लिए सामान –

  1. अलमारी-धोने वाले कमरे के नज़दीक अलमारी होनी चाहिए जिसमें साबुन, नील, मावा, रीठे, दाग उतारने वाला सामान आदि होना चाहिए।
  2. लांडरी बैग अथवा वस्त्र रखने के लिए टोकरी-इसमें घर के गंदे वस्त्र रखे जाते हैं।
  3. मर्तबान तथा प्लास्टिक के डिब्बे-रीठे, दाग उतारने का सामान, डिटर्जेंट आदि इनमें रखा जाता है।

वस्त्र धोने के लिए सामान –

(i) पानी – पानी एक विश्वव्यापी घोलक है। इसमें सभी तरह की मैल घुल जाती है तथा इस तरह इसका कपड़ों की धुलाई में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पानी को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है। वर्षा का पानी, दरिया का पानी, चश्मे का पानी, कुएँ के पानी का प्रयोग वस्त्र धोने के लिए किया जा सकता है।

(ii) साबुन – वस्त्र धोने के लिए कई सफ़ाईकारी पदार्थ, साबुन तथा डिटर्जेंट मिलते हैं। वस्त्र साफ़ करने में इनका बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है।

(iii) टब तथा बाल्टियां – इनमें वस्त्र भिगोकर रखे, धोये तथा खंगाले जाते हैं। यह लोहे, प्लास्टिक अथवा पीतल के होते हैं। इनमें नील देने, रंग देने तथा मावा देने का भी कार्य किया जाता है।

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चित्र- बालटी, मग और चम्मच आदि

(iv) चिल्मचियां तथा मग – इनमें नील, मावा आदि देने का कार्य किया जाता है। यह प्लास्टिक, तामचीनी तथा पीतल आदि के होतेहैं।

(v) लकड़ी का चम्मच तथा डण्डा-इससे नील अथवा मावा घोलने का कार्य किया जाता है। चादरें, खेस आदि को डण्डे अथवा थापी से पीट कर साफ़ किया जाता है।

(vi) हौदी-धुलाई वाले कमरे में पानी की टूटी के नीचे सीमेंट की हौदी बनी हुई होनी चाहिए। इससे काम आसान हो जाता है। हौदी के दोनों ओर सीमेंट अथवा लकड़ी के फट्टे लगे होने चाहिएं ताकि धोकर वस्त्र इन पर रखे जा सकें। इनकी ढलान हौदी की ओर होनी चाहिए।

(vii) रगड़ने वाला ब्रुश तथा फट्टा प्लास्टिक के ब्रुशों का प्रयोग वस्त्र के अधिक मैले हिस्से को रगड़कर मैल उतारने के लिए किया जाता है। फट्टा लकड़ी, स्टील अथवा जस्त का बना होता है। इस पर रखकर वस्त्र को रगड़कर मैल निकाली जाती है।

(viii) गर्म पानी-वस्त्र धोने के लिए या तो बिजली के बायलर में पानी गर्म किया जाता है या फिर आग के सेक से बर्तन में डालकर पानी गर्म किया जाता है।

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चित्र-रगड़ने वाला फट्टा

(ix) वस्त्र धोने वाली मशीन-इससे समय तथा शक्ति दोनों की बचत होती है। अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार इसको खरीदा जा सकता है।
(x) सक्शन वाशर-भारी, ऊनी कम्बल, साड़ियां तथा अन्य वस्त्र इसके प्रयोग से आसानी से धोए जा सकते हैं।

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चित्र-सक्शन वाशर

वस्त्र सुखाने के लिए सामान-वस्त्रों को धोने के पश्चात् साधारणतः प्राकृतिक धूप तथा हवा में सुखाया जाता है। अन्य आवश्यक सामान इस तरह हैं –

(i) रस्सी अथवा तार – रस्सी को अथवा तार को खींचकर खूटियों तथा खम्बों में बांधा जाता है। रस्सी नायलॉन, सन अथवा सूत की हो सकती है। जंग रहित लोहे की तार भी हो सकती है।
(ii) क्लिप तथा हैंगर – वस्त्र तार पर लटका कर क्लिप लगा दी जाती है ताकि हवा चलने पर वस्त्र नीचे गिरकर खराब न हो जाएं। बढ़िया किस्म के वस्त्र हैंगर में डालकर सुखाए जा सकते हैं।
(iii) वस्त्र सुखाने वाले रैक – बरसातों में अथवा बड़े शहरों में जहां लोग फ्लैटों में रहते हैं वहां रैकों पर वस्त्र सुखाये जाते हैं। यह एल्यूमीनियम अथवा लकड़ी के हो सकते हैं। इन्हें फोल्ड करके सम्भाला भी जा सकता है।

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चित्र-वस्त्र सुखाने वाले रैक

(iv) वस्त्र सुखाने के लिए बिजली की कैबिनेट – विकसित देशों में प्रायः इसका प्रयोग होता है। खासकर जहां अधिक ठण्ड अथवा वर्षा होती है उन देशों में इसका प्रयोग साधारण है।
इनके अतिरिक्त ऑटोमैटिक वाशिंग मशीनों से भी वस्त्र सुखाए जा सकते हैं।

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चित्र-वस्त्र सुखाने के लिए बिजली की कैबिनेट

वस्त्र प्रेस करने वाला सामान (i) प्रेस-वस्त्र प्रेस करने के लिए बिजली अथवा कोयले वाली प्रैस का प्रयोग किया जाता है। प्रैस लोहे, पीतल तथा स्टील की मिलती है।

(ii) प्रेस करने वाला फट्टा-यह लकड़ी का होता है, फट्टे के स्थान पर बैंच अथवा मेज़ आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है। इस पर कम्बल बिछा कर ऊपर पुरानी चादर बिछा लेनी चाहिए।

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चित्र-वस्त्र प्रेस करने वाला फट्टा और बाजू बोर्ड

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प्रश्न 3.
सूती वस्त्रों की धुलाई किस प्रकार की जा सकती है?
अथवा
रंगीन सूती कपड़ों को किस प्रकार धोएंगे और उनको धोते समय किन-किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर :
1. वस्त्र धोने से पूर्व यह ध्यानपूर्वक देख लेना चाहिए कि कहीं वस्त्र फटा तो नहीं है। यदि फटा है तो उसकी सिलाई कर देनी चाहिए।
2. यदि वस्त्रों में किसी प्रकार का धब्बा लगा हो तो धोने से पहले छुड़ा लेना चाहिए। इसके पश्चात् समस्त वस्त्रों को उनके आकार व प्रकार के अनुसार उनके समूहों में विभाजित कर लेना चाहिए।
3. रंगीन और सफ़ेद सूती वस्त्रों को अलग-अलग कर लेना चाहिए।
4. कपड़ों को पहले पानी में भिगो देना चाहिए। ऐसा करने से कपड़े की घुलनशील मैल पानी में घुल जाती है। वस्त्रों के अन्य गन्दगी धब्बे आदि गल जाते हैं।
5. धोने के लिए गर्म पानी का प्रयोग अच्छा रहता है। कपड़े धोने का साबुन, रगड़ने का तख्ता या ब्रुश तथा कलफ आदि सभी चीजें तैयार रखनी चाहिएँ।
6. वस्त्र के प्रकार के अनुसार धुलाई करनी चाहिए। मज़बूत वस्त्र; जैसे चादर, पतलून, सलवार आदि गर्म पानी में भिगोकर साबुन की टिक्की मिलानी चाहिए। रसोईघर के झाड़न आदि गर्म पानी में साबुन डालकर भिगो देने चाहिए, फिर हाथ से रगड़कर मलना चाहिए। कालर, कफ व कोर के नीचे के मैल को मुलायम ब्रश से रगड़कर धोना चाहिए।
7. रंगीन कपड़ों को हमेशा ठण्डे पानी में भिगोना व धोना चाहिए। यदि कपड़े बहुत अधिक गन्दे हों, तो उन्हें गुनगुने पानी में भिगोना चाहिए।
8. कोमल वस्त्रों को अधिक नहीं रगड़ना चाहिए, उन्हें थोड़ा-सा रगड़कर और निचोड़कर धोना चाहिए।
9. कपड़ों में से साबुन निकालने के लिए उसे स्वच्छ पानी में से बार-बार निकालना चाहिए। जब कपड़ों में से साबुन का पूरा झाग निकल जाए और कपड़ा साफ़ हो जाए, तो निचोड़ लेना चाहिए।
10. सफ़ेद कपड़ों पर कलफ लगाते समय कलफ के घोल में थोड़ी-सा नील डाल देना चाहिए ताकि कपड़ों में चमक आ जाए, फिर भली-भान्ति निचोड़कर कपड़े सुखाने चाहिए।
11. पानी निचोड़कर वस्त्रों को धूप में सुखाना चाहिए। यदि कोई रंगीन वस्त्र है तो उसे छाया में सुखाना चाहिए।
12. कपड़ों को हमेशा उल्टा करके सुखाना चाहिए।
13. सूखे वस्त्र को नम करके इस्तरी कर लेनी चाहिए।

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प्रश्न 4.
दाग धब्बे छुड़ाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
जल का भारीपन स्थाई तथा अस्थाई दो प्रकार का होता है। स्थाई भारीपन, पानी में मौजूद कैल्शियम सल्फेट, मैगनीशियम सल्फेट लवणों के कारण होता है। अस्थाई भारीपन, पानी में मौजूद कैल्शियम बाइकार्बोनेट तथा मैगनीशियम बाइकार्बोनेट लवणों के कारण होता है। अस्थाई भारीपन पानी को उबालने से दूर हो जाता है।
उत्तर :
दाग-धब्बे किस प्रकार छुड़ाये जाते हैं, यह जानते हुए भी दाग-धब्बे छुड़ाते समय कुछ महत्त्वपूर्ण बातें जान लेनी चाहिएं जो निम्नलिखित हैं –
1. दाग-धब्बा तुरन्त छुड़ाया जाना चाहिए। इसके लिए धोबी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए क्योंकि तब तक ये दाग-धब्बे और अधिक पक्के हो जाते हैं।
2. दाग-धब्बे छुड़ाने में रासायनिक पदार्थों का कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
3. घोल को वस्त्र पर उतनी देर तक ही रखना चाहिए जितनी देर तक धब्बा फीका न पड़ जाए, अधिक देर तक रखने से वस्त्र कमज़ोर पड़ जाते हैं।
4. चिकनाई को दूर करने से पूर्व उस स्थान के नीचे किसी सोखने वाले पदार्थ की मोटी तह रखनी चाहिए। धब्बे को दूर करते समय रगड़ने के लिए साफ़ और नरम पुराने रुमाल का प्रयोग किया जा सकता है।
5. धब्बे उतारने का काम खुश्क हवा में करना चाहिए ताकि धब्बा उतारने के लिए प्रयोग किये जाने वाले रसायनों की वाष्प के दुष्प्रभाव से बचा जा सके।
6. दाग किस प्रकार का है, जब तक इसका ज्ञान न हो तब तक गर्म जल का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि गर्म जल में कई तरह के धब्बे और अधिक पक्के हो जाते हैं।
7. रंगीन वस्त्रों पर ये धब्बे छुड़ाते समय कपड़े के कोने को जल में डुबोकर देखना चाहिए कि रंग कच्चा है अथवा पक्का।
8. धब्बा छुड़ाने की विधियों का ज्ञान अवश्य होना चाहिए क्योंकि विभिन्न वस्तुओं का प्रयोग अलग-अलग धब्बों को छुड़ाने हेतु किया जाता है।
9. ऊनी वस्त्रों पर से धब्बे छुड़ाते समय न तो गर्म जल का प्रयोग करना चाहिए और न ही क्लोरीन-युक्त रासायनिक पदार्थ का। (10) एल्कोहल, स्प्रिट, बैन्जीन, पेट्रोल आदि से दाग छुड़ाते समय आग से बचाव रखना चाहिए।

प्रश्न 5.
गर्म कपड़े धोने के समय कौन-कौन सी सावधानियाँ अपेक्षित हैं?
उत्तर :
गर्म कपड़े धोने के समय निम्नलिखित सावधानियाँ अपेक्षित हैं –

  1. ऊनी वस्त्रों को धोते समय रगडना तथा पीटना नहीं चाहिए।
  2. ऊनी वस्त्रों को धोने से पूर्व अधिक देर तक भिगोकर नहीं रखना चाहिए।
  3. ऊनी कपड़ों को कभी उबालना नहीं चाहिए।
  4. ऊनी वस्त्र धोने के लिए पानी बिल्कुल गुनगुना होना चाहिए। पानी का ताप सदैव एक-सा होना चाहिए।
  5. ऊनी वस्त्र धोने के लिए मृदु जल का ही प्रयोग करना चाहिए। अधिक क्षारयुक्त पानी से ऊन सख्त हो जाती है व सूखने पर पीली पड़ जाती है।
  6. ऊनी वस्त्र धोने के लिए साबुन क्षाररहित होना चाहिए। तीव्र क्षार का ऊन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
  7. रंगीन ऊन के कपड़ों के लिए रीठों के घोल या डिटर्जेन्ट्स का प्रयोग करना चाहिए।
  8. सफ़ेद ऊनी कपड़ों को धोने के लिए घरेलू ब्लीचिंग घोलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि किसी ब्लीचिंग की आवश्यकता अनुभव की जाए तो हल्के हाइड्रोजन पर ऑक्साइड का प्रयोग करना चाहिए।
  9. वस्त्र को तब तक पानी में खंगालना चाहिए जब तक कि उसका साबुन या झाग पूर्णरूप से निकल न जाए।
  10. वस्त्र को पानी में आखिरी बार खंगालने से पहले पानी में थोड़ा-सा नील डाल देना चाहिए।
  11. ऊनी कपड़े को निचोड़ने के लिए उसे मोटे रोएंदार तौलिये में रखकर दोनों हाथों में चारों तरफ से दबाना चाहिए।
  12. काफ़ी मात्रा में अपने अन्दर पानी सोख लेने के कारण गीले ऊनी कपड़े भारी हो जाते हैं। उन्हें धोने के बाद तार पर टांग कर नहीं सुखाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से कपड़ा लम्बा तथा बेडौल हो जाता है।
  13. ऊनी कपड़े को उल्टा करके सेज या चारपाई पर छायदार स्थान पर सुखाना चाहिए।
  14. सुखाने पर कपड़े को उल्टा करके गीला कपड़ा रखकर इस्तरी करनी चाहिए।
  15. ऊनी कपड़ों को अधिक मैला होने से पहले ही धो लेना चाहिए।

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प्रश्न 6.
गर्म कपड़े धोने से पहले क्या तैयारी करोगे ?
उत्तर :
1.  गर्म कपड़ा कहीं फटा या उधड़ा हुआ हो तो ठीक कर लेना चाहिए ताकि धोने के समय छेद बड़ा न हो जाए।
2. गर्म कपड़े की बुनाई बड़ी खुली होती है जिससे उसमें मिट्टी फँस जाती है। इसलिए धोने से पहले कपड़ों को अच्छी तरह झाड़ना चाहिए।
3. धुलाई क्रिया को सफल बनाने के लिए गर्म वस्त्रों पर शोधक पदार्थों की क्या प्रतिक्रिया होती है, इसके विषय में जानकारी होनी चाहिए।
4. गर्म वस्त्र में प्रयोग किए रेशों के अनुरूप, अनुकूल शोधक पदार्थों को ही चुनना – और प्रयोग करना चाहिए।
5. गर्म वस्त्रों पर दाग-धब्बे छुड़ाने वाले विभिन्न रसायनों तथा प्रतिकर्मकों आदि की क्या प्रतिक्रिया होती है, इसकी जानकारी रखनी चाहिए।
6. गर्म वस्त्रों की सफलतापूर्वक धुलाई के लिए उन्हें किस विधि से धोया जाए इसकी जानकारी आवश्यक है। वस्त्र की रचना के अनुसार ही विधि का प्रयोग करना चाहिए।

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चित्र-गर्म कपड़ा धोने की तैयारी

7. सभी प्रकार के वस्त्रों को एक साथ मिलाकर नहीं धोना चाहिए। वस्त्रों को किस्म, रचना, रंग आदि के अनुसार छांटकर अलग-अलग धोना चाहिए।
8. कम गन्दे वस्त्रों को अधिक गन्दे वस्त्रों के साथ नहीं धोना चाहिए।
9. वस्त्रों को धोने से पूर्व उनका निरीक्षण कर लेना चाहिए। यदि कहीं से सिलाई खुल गई हो या छेद आदि हो गया हो तो पहले उनकी मरम्मत करनी चाहिए।
10.  वस्त्र पर यदि कोई दाग या धब्बा लग गया है तो पहले उसे दूर करना चाहिए।
11. धोने से पूर्व वस्त्रों की जेबें देख लेनी चाहिएँ और यदि उनमें कुछ भी है तो उसे निकाल देना चाहिए।
12. धुलाई से पूर्व धुलाई में आवश्यक सहायक उपकरणों का पूर्व प्रबन्ध कर लेना चाहिए। इसमें समय की बचत होती है।
13. धुलाई में प्रयोग आने वाले रासायनिक प्रतिकर्मकों को बच्चों से दूर रखना चाहिए।
14. धुले वस्त्रों को सुखाने की उचित विधि का प्रयोग तथा उचित प्रबन्ध करना चाहिए।
15. धुलाई के लिए मृदु जल का प्रयोग करना चाहिए।
16. धोकर सुखाए वस्त्रों को तुरन्त प्रैस (इस्तरी) कर देना चाहिए।

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प्रश्न 7.
एक गर्म स्वेटर को कैसे धोओगे और प्रैस करोगे ?
उत्तर :
गर्म स्वेटर पर प्रायः बटन लगे रहते हैं। यदि कुछ ऐसे फैन्सी बटन हों जिनको धोने से खराब होने की सम्भावना हो तो उतार लेते हैं। यदि स्वेटर कहीं से फटा हो, तो सिल लेना चाहिए। अब स्वेटर का खाका तैयार करते हैं। इसके उपरान्त गुनगुने पानी में आवश्यकतानुसार लक्स का चूरा अथवा रीठे का घोल मिलाकर हल्की दबाव विधि से धो लेते हैं। तत्पश्चात् गुनगुने साफ़ पानी में तब तक धोते हैं जब तक सारा साबुन न निकल जाए। ऊनी वस्त्रों के लिए पानी का तापमान एक-सा रखते हैं तथा ऊनी वस्त्रों को पानी में बहुत देर तक नहीं भिगोना चाहिए वरन् इनके सिकुड़ने का भय हो सकता है। इसके बाद एक रोएंदार (टर्किश) तौलिए में रखकर उसको हल्के हाथों से दबाकर पानी निकाल लेते हैं। फिर खाके पर रखकर किसी समतल स्थान पर छाया में सुखा लेते हैं।

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चित्र-गर्म वस्त्र का खाका बनाना
प्रैस करना-सूखने के बाद वस्त्र को उल्टा करके उसके ऊपर गीला कपड़ा रखकर इस्तरी करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
कपड़ों को सम्भालकर रखना क्यों ज़रूरी है? आप रेशमी कपड़ों को कैसे सम्भालोगे ?
उत्तर : कपड़ों को सम्भालकर रखना बहुत ज़रूरी है ताकि उनको टिड्डियों आदि से बचाया जा सके। गर्मियों के मौसम में गर्म कपड़ों को अच्छी तरह सम्भालकर रखना चाहिए ताकि गर्म कपड़ों वाला कीड़ा न खाए।

रेशमी कपड़ों को सम्भालना अथवा भण्डारण –

  1. रोज़ पहनने वाले कपड़ों को हैंगर में लटकाकर अलमारी में रखना चाहिए।
  2. सूरज की तेज़ रोशनी से रंग फीके पड़ जाते हैं, इसलिए इन्हें तेज़ रोशनी में नहीं रखना चाहिए।
  3. कपडों को मैली स्थिति में कई दिनों तक नहीं रखना चाहिए। हमेशा कपड़ों को साफ़ करके सम्भालना चाहिए।
  4. गर्मियों में जब रेशमी कपड़े न पहनने हों तो उन्हें किसी पुरानी चादर, सूती धोती, तौलिये या गुड्डी कागज़ में लपेटकर रखना चाहिए।
  5. सम्भालकर रखे जाने वाले कपड़ों में माया (माँड) लगाकर नहीं रखना चाहिए।

प्रश्न 9.
कपड़ों को सम्भाल कर रखना क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 8 का उत्तर।

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प्रश्न 10.
सूती और ऊनी कपड़ों को सम्भालते समय कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?
अथवा
सूती कपड़ों की सम्भाल आप कैसे करेंगे ?
उत्तर :
सूती कपड़ों की सम्भाल करते समय ध्यान रखने योग्य बातें निम्नलिखित हैं –

  1. कपड़ों को हमेशा धोकर और अच्छी तरह सुखाकर रखना चाहिए।
  2. कपड़ों पर माया (कलफ) लगाकर अधिक दिन के लिए नहीं रखना चाहिए।
  3. प्रेस करने के बाद कपड़े को पूरी तरह समाप्त करके ही कपड़ों को सम्भालना चाहिए।
  4. नमीयुक्त कपड़ों में फफूंदी लग जाती है जिससे कपड़े कमज़ोर हो जाते हैं तथा उन पर दाग लग जाते हैं। अतः बरसात में कपड़ों की अलमारी या सन्दूक में कपड़े अच्छी तरह बन्द रहने चाहिए। धूप निकलने पर उन्हें धूप लगवाते रहना चाहिए।
  5. कपड़ों को नमी वाले स्थान में भूलकर भी नहीं रखना चाहिए।

ऊनी कपड़ों की सम्भाल –

  1. ऊनी कपड़ों की सम्भाल करने से पूर्व उन्हें ब्रुश से अच्छी तरह झाड़ लेना चाहिए।
  2. जो कपड़े गन्दे हों उन्हें धोकर या सूखी धुलाई (ड्राइक्लीनिंग) कराकर रखना चाहिए।
  3. ऊनी कपड़ों के बक्से, अलमारी आदि में धूप व हवा लगवाते रहना चाहिए।
  4. कपड़ों को नमी की हालत में या नमी के स्थान पर नहीं रखना चाहिए।
  5. जब बक्से में कपड़े बन्द किए जाएँ तो उनमें नैफ्थलीन की गोलियाँ, कपूर या नीम के सूखे पत्ते रखकर अच्छी प्रकार बन्द करना चाहिए।
  6. प्रत्येक कपड़े को अखबार के कागज़ में लपेटकर रखा जा सकता है, छपाई की स्याही के कारण कपड़ों को कीड़ा नहीं लगता।

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प्रश्न 11.
दाग उतारने के क्या नियम हैं तथा क्यों जरूरी हैं ?
उत्तर :
कपड़े पर लगा दाग एक चिह्न होता है जो कपड़े के रंग से अलग किस्म का होता है। इससे कपड़े की सुन्दरता खराब हो जाती है। कई तेजाबी दाग कपड़े में छेद भी कर देते हैं। इसलिये दाग को जल्दी से जल्दी उतारना चाहिए। दाग उतारने के नियम इस प्रकार हैं
1. दाग जब ताज़ा हो तो उस समय ही उतारने की कोशिश करनी चाहिए। पुराना होने से दाग पक जाता है तथा उतारते समय कपड़ा खराब होने का डर रहता है।
2. दाग लगे कपड़े को कभी भी प्रैस न करें। इससे दाग पक्का हो जाता है।
3. जब भी दाग को उतारना हो, साबुन तथा ठण्डे पानी या थोड़े से गुनगुने पानी से धो लें। गर्म पानी से कई दाग पक्के हो जाते हैं।
4. यदि कपड़ा कीमती हो तथा पानी से धोया न जा सकता हो परन्तु थोड़ा पानी सह सकता हो, तो दाग वाले स्थान पर कपड़े में रूई डालकर इस पैड पर दाग उतारने वाला पदार्थ लगा कर सिर्फ दाग वाले स्थान पर बार-बार पैड दबाना चाहिए।
5. तेल या चिकनाई वाली चीज़ को कपड़े पर जम जाने से रोकना चाहिए।
6. कई चीजें सूखने पर खरोंची जा सकती हैं। ऐसी चीजों को कपड़े पर सूखने के उपरान्त कम धार वाली छुरी से खरोंच लेना चाहिए।
7. दाग उतारने से पहले कपड़े की किस्म का पता करें। क्योंकि प्रत्येक रासायनिक पदार्थ प्रत्येक कपड़े पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
8. कपड़े की किस्म तथा दाग की किस्म जानने के बाद दाग उतारने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली चीज़/रासायनिक पदार्थ का पता करें।
9. जिस कपड़े से दाग उतारना हो, उस कपड़े के ऐसे भाग को जांच लेना चाहिए जो बाहर दिखाई न देता हो जैसे कपड़े की सिलाई नेफे के पास से या पट्टी के उल्टी तरफ या उसके साथ के कपड़े का टुकड़ा आदि।
10. यदि दाग को किसी कपड़े से उतारना हो, तो बाहर से गोल घुमाते हुए अन्दर को आएं। इस प्रकार करने से दाग उस भाग से बाहर नहीं फैलेगा।
11. चिकनाहट आदि का दाग उतारते समय स्याही चूस आदि बार-बार बदल कर रखना चाहिए।
12. दाग उतारने के लिए इस्तेमाल होने वाले रासायनिक पदार्थ का हल्का घोल इस्तेमाल करना चाहिए। हल्के घोल से कई बार धोने का उतना नुकसान नहीं होता जितना कि तेज़ घोल का एक बार प्रयोग करने से होता है। तेज काट पदार्थ प्रयोग करने से कपड़ा फट सकता है या रंगदार कपड़े का असली रंग खराब हो सकता है।
13. यदि दाग उतारने के लिए नमक का घोल इस्तेमाल किया गया है तो बाद में कपड़े पर क्षार का प्रभाव कम करने के लिए हमेशा तेज़ाब के हल्के घोल में धो लें। यदि पहले तेज़ाब का घोल प्रयोग किया गया हो तो बाद में कपड़े को क्षार के हल्के घोल में से निकालना चाहिए ताकि एक दूसरे के प्रभाव से उदासीन किया जा सके ।
14. दाग वाले कपड़े को दाग उतारने वाले घोल में केवल उतनी देर ही रखना चाहिए जब तक दाग न उतर जाए। यदि कपड़े को उस घोल में पड़ा रहने देंगे तो यह कपड़े के रेशों तक पहुंच कर उनको खराब कर सकता है या कमजोर बना सकता है।
15. दाग उतारने के पश्चात् कपड़े को दो-तीन बार साधारण पानी तथा साबुन से धोना चाहिए ताकि कपड़े में किसी किस्म का बाहरी पदार्थ न रह जाए।
16. रासायनिक पदार्थों को दाग उतारने के लिए खुली हवा में प्रयोग करें। दाग उतारने के लिये रासायनिक पदार्थ कभी भी आग के नज़दीक न लाएं क्योंकि रासायनिक पदार्थों को आग लगने का खतरा होता है।
17. यदि दाग की किस्म का पता लगे तो सबसे कम हानिकारक प्रतिकारक से निम्नलिखित ढंग प्रयोग करना चाहिए –
(i) दाग वाले कपड़े को ठण्डे पानी में भिगो दें।
(ii) गुनगुने पानी में भिगो दें, थोड़ी देर बाद साबुन से धो लें।
(iii) यदि कपड़ा सफ़ेद हो तो धूप में काफ़ी समय के लिए रख दें।
(iv) लवणयुक्त हल्के घोल का इस्तेमाल करें।
(v) तेज़ाब वाले हल्के घोल का इस्तेमाल करें।
(vi) यदि इससे भी दाग न उतरे तो ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच से यत्न करें।
(vii) यदि इनमें से किसी चीज़ से धब्बा फीका हो जाता है परन्तु उतरता नहीं तो बार बार उसी चीज़ का प्रयोग करें। पर घोल में तेज़ाब या क्षार की मात्रा ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

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प्रश्न 12.
दाग उतारने के लिये दाग की किस्म जानना क्यों ज़रूरी है ? और किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
दाग उतारने से पहले इसकी किस्म जानना आवश्यक है क्योंकि दाग की पहचान करने पर दाग को उतारने में आसानी रहती है। मुख्य तौर पर दाग चार किस्म के होते हैं –

  1. वनस्पति दाग (फूल, फल, सब्जियां)
  2. पाश्विक दाग (दूध, खून, अण्डा)
  3. चिकनाई के दाग (घी, मक्खन, पनीर)
  4. रासायनिक दाग (स्याही, रंग, दवाइयां)

इन चार किस्मों के दागों के स्रोत अलग-अलग हैं। इसलिये इनको उतारने के लिये भिन्न-भिन्न पदार्थों की आवश्यकता होती है जैसे वनस्पति दागों को लवणयुक्त पदार्थों, पाश्विक दागों को ठण्डे पानी तथा साबुन, चिकनाहट वाले दागों को गर्म पानी पर रंगकाट तथा रासायनिक पदार्थों को रंगकाट से उतारा जा सकता है। यदि दाग उतारने के लिए किसी ग़लत पदार्थ का प्रयोग कर लें तो दाग भी नहीं उतरता तथा कपड़ा भी खराब हो जाता है। इसलिये दाग उतारने के लिये दाग की किस्म को जानना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त दाग उतारते समय निम्नलिखित बातों का भी ध्यान रखना चाहिए

दाग उतारते समय ध्यान रखने योग्य बातें –

1. दाग की पहचान – दाग उतारने से पहले इसकी पहचान करनी आवश्यक है क्योंकि भिन्न-भिन्न किस्म के दाग भिन्न-भिन्न चीजों से उतरते हैं। इनकी पहचान इनके रंग, सुगन्धों तथा छूने से भी की जा सकती है। जैसे घास का रंग हरा, खून का लाल, चाय का खाकी होता है। पालिश तथा लिप्सटिक, रंग रोगन के दाग सूंघने पर पता लग सकते हैं। पाश्विक दाग से कपड़े अकड़ जाते हैं।

2. दाग लगने का समय – दाग की पहचान के बाद यह पता लगाना चाहिए कि दाग ताज़ा या पुराना है क्योंकि ताज़े दाग कई बार पानी तथा साबुन की साधारण धुलाई से निकल जाते हैं, जबकि पुराने दाग को उतारना काफ़ी मुश्किल होता है। दाग जितना ज्यादा पुराना होगा, उतारने में उतनी मुश्किल आती है। ताजे दाग की पहचान कपड़े को हाथ लगाने तथा सूंघने पर हो सकती है। ताजा दाग कई बार गीला होता है तथा उसमें ताज़गी की चमक होती है।

3. कपड़े की पहचान-जिस कपड़े पर दाग लगा हो वह किस किस्म के रेशों से बना हुआ है क्योंकि प्रत्येक किस्म के दाग उतारने वाले रासायनिक पदार्थ प्रत्येक किस्म के कपड़ों पर नहीं प्रयोग किये जा सकते। यदि कुछ रासायनिक पदार्थ कुछ किस्म के रेशों के लिये ठीक हैं तो वह दूसरी किस्म के कपड़ों के लिये हानिकारक भी सिद्ध हो सकते हैं। कपड़े निम्नलिखित किस्मों के रेशों से बने हो सकते हैं –

(क) वनस्पति से प्राप्त होने वाले रेशे-ये कपास, जूट तथा पटसन से प्राप्त होते हैं। इन बने कपड़ों से दाग उतारना काफ़ी आसान है। क्योंकि इनको पानी में धोने से कोई हानि नहीं होती। इनके ऊपर रासायनिक पदार्थों का कम बुरा प्रभाव होता है। तेज़ाब से यह रेशे जल जाते हैं।

(ख) जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे-ये जानवरों की ऊन तथा रेशम के कीड़ों से प्राप्त होते हैं। ये पानी में भिगोने पर कमजोर हो जाते हैं। इसलिए दाग उतारते समय इनको ज्यादा देर पानी में नहीं रखना चाहिए। इन पर रासायनिक पदार्थ ज्यादा बुरा प्रभाव डालते हैं। इसलिये इनसे दाग उतारते समय विशेष सावधानी प्रयोग करनी चाहिए। विशेषतया लवणयुक्त पदार्थ इनके लिये बहुत हानिकारक हैं। रगड़ कर दाग उतारने से यह कपड़े जल्दी फट जाते हैं।

(ग) कृत्रिम रेशे-ये रासायनिक पदार्थों से प्राप्त होते हैं; जैसे-कि टैरालीन, नाइलोन, एक्रीलिक आदि। इन पर पानी तथा रासायनिक पदार्थों का कम प्रभाव पड़ता है। इसलिये इनसे दाग उतारने आसान हैं। वैसे भी इन रेशों में दाग कम ही समाते हैं, जिसके कारण कई बार साधारण धुलाई से भी दाग उतर जाते हैं।

4. कपड़े का रंग-कपड़े की किस्म की पहचान करने के पश्चात् उसके रंग की ओर भी ध्यान देना चाहिए। सफ़ेद कपड़ों से दाग उतारने काफ़ी आसान हैं। परन्तु रंगदार कपड़ों से दाग उतारने थोड़े मुश्किल होते हैं। क्योंकि कुछ रासायनिक पदार्थ दाग उतारते समय कपड़े के असली रंग को भी खराब कर देते हैं, जिससे दाग वाला स्थान और भी भद्दा लगने लगता है। ऐसी किस्म के रंगदार कपड़ों से दाग उतारते समय ऐसी किस्म के रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करें जो कपड़े के रंग पर प्रभाव न डालें या फिर दाग को बिना उतारे ही रहने दें।

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प्रश्न 13.
दाग उतारते समय आप किन तीन बातों को ध्यान में रखोगे ?
उत्तर :
नोट-देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 14.
कपड़ों से दाग उतारने वाले ऑक्सीकारक ब्लीच कौन-कौन से हैं तथा इनसे किस किस्म के कपड़ों से तथा कैसे दाग उतारे जाते हैं ?
अथवा
आक्सीडाइजिंग ब्लीच क्या है ? इनके दो उदाहरण दें।
उत्तर :
साधारणतया दो प्रकार के ब्लीच (रंगकाट) कपड़े के दाग उतारने के लिए प्रयोग किये जाते हैं।

ब्लीच की किस्में –
1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच
2. रिड्यूसिंग ब्लीच।

1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच – इनका प्रयोग जब दाग पर किया जाता है तो इनमें ऑक्सीजन दाग के रंग से मिलकर उसको रंग रहित कर देती है जिससे दाग उतर जाता है। ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच की निम्नलिखित किस्में हैं –

(क) खुली हवा तथा धूप – यह कपड़ों को सफ़ेद करने का रंगकाट का सबसे पुराना, सस्ता तथा आसान ढंग है। जब सूती तथा लिनन के कपड़ों को घास पर फैला कर सुखाया जाता है तो सफ़ेद कपड़े और सफ़ेद होते हैं तथा यदि कोई दाग लगा हो तो वह भी उड़ जाता है।

(ख) जैवले पानी (सोडियम हाइपोक्लोराइड) – सोडियम हाइपोक्लोराइड को ही जैवले पानी कहा जाता है। यह एक शक्तिशाली रंगकाट है। इसको हल्का करके इस्तेमाल किया जा सकता है। ब्लीच करने की प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए सिरका भी मिलाया जा सकता है। इस रंगकाट को कभी भी ज्यादा समय के लिये कपडे के सम्पर्क में नहीं रखना चाहिए। जितनी देर आवश्यक है उतनी देर के लिए ही इस्तेमाल करना चाहिए। कपड़ा इसमें सूखना नहीं चाहिए। अच्छी तरह खंगालने के बाद अमोनिया से खंगालना चाहिए परन्तु इसको

(i) सिल्क या ऊन के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
(ii) रंगदार कपड़ों पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
(iii) कपड़े इसमें उबाले भी जा सकते हैं।

(ग) हाइड्रोजन परऑक्साइड – यह अधिकतर कपड़ों के लिए सुरक्षित तथा प्रभावशाली रसायन है। आवश्यकता अनुसार इसका हल्का या गाढ़ा घोल बनाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसको ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिये इसमें अमोनिया या सोडियम परबोरेट थोड़ी मात्रा में मिलाया जा सकता है। सूती तथा लिनन के कपड़ों पर सीधा गाढ़े घोल का इस्तेमाल किया जा सकता है। शेष कपड़ों के लिये 1 : 6 भाग पानी डालकर घोल बनाकर इस्तेमाल किया जा सकता है।

(घ) सोडियम परबोरेट – यह बोरेक्स, कासटिक सोडा तथा हाइड्रोजन परऑक्साइड से बनाया जाता है। कपड़ों पर इस्तेमाल करने से पहले इसको एस्टिक अम्ल से उदासीन किया जा सकता है। यदि क्षार माध्यम बनाना हो तो अमोनिया मिलाया जा सकता है। हाइड्रोजन परऑक्साइड की तरह ही गर्म पानी से प्रयोग करने पर यह विशेष प्रभाव देता है।

(ङ) लाल दवाई या पोटाशियम परमैंगनेट – यह बिना किसी जोखिम के प्रयोग किया जाने वाला ब्लीच है, पसीना, फफूंदी के दागों को इससे साफ किया जाता है। इससे दाग उतारते समय इसका अपना भूरा रंग कपड़े पर किया जाता है। इसको सोडियम हाइड्रोसल्फाइड तथा फिर हाइड्रोजन परऑक्साइड में डुबोकर साफ किया जा सकता है।

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प्रश्न 15.
वस्त्रों की सुरक्षा हेतु या देखरेख में प्रयोग की जाने वाली सावधानियां कौन-कौन सी हैं?
उत्तर :
वस्त्र कितने भी कीमती, मज़बूत क्यों न हों किन्तु यदि उनकी ठीक से देखरेख नहीं की जायेगी तो वे अधिक दिनों तक नहीं चल सकेंगे। वस्त्रों की देखरेख के सम्बन्ध में अग्रलिखित बातों की ओर ध्यान देना चाहिए –

  1. वस्त्रों को अधिक दिनों तक गन्दे नहीं पड़े रहने देना चाहिए, उन्हें शीघ्र धो डालना चाहिए।
  2. गन्दे वस्त्रों को चूहे कुतर डालते हैं। उन्हें इधर-उधर नहीं रखना चाहिए। उन्हें एक डलिया (टोकरी) में डालकर रखना चाहिए।
  3. कपड़ों के फट जाने पर या उनमें छेद हो जाने पर उन्हें तुरन्त रफू करना चाहिये। रफू न करने से कपड़ा और अधिक फटने लगता है।
  4. कोट-पैन्ट आदि कपड़ों को टांग कर रखना चाहिए।
  5. वस्त्रों को सदैव तह करके अलमारी में रखना चाहिये।
  6. कलफ लगे कपड़ों को अधिक दिनों तक बिना प्रैस के नहीं रखना चाहिये।
  7. नये पुराने कपड़ों को पर्याप्त धूप लगवाने के बाद सन्दूक में रखना चाहिए जिससे उनकी सीलन दूर हो जाये।
  8. ऊनी वस्त्रों को रखते समय विशेष सावधानी का प्रयोग करना चाहिए। ऊनी वस्त्रों को धूप लगवाकर, पेट्रोल से साफ़ करके या ड्राइक्लीनिंग करवा कर फिनाइल की गोलियां रखकर सन्दूक में बन्द करके रखना चाहिए।
  9. रेशमी कपड़ों को भी अलमारी में टांगकर रखना चाहिये।
  10. वस्त्रों को रखने के बॉक्स में छेद नहीं होना चाहिये अन्यथा चूहे आदि घुसकर कपड़े काट सकते हैं।

प्रश्न 16.
वस्त्रों को धोने से पूर्व उनकी मरम्मत करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर :
कपड़ों से धूल-मिट्टी तथा गन्दगी हटाने के लिए उनको धोना ज़रूरी है और वस्त्रों की धुलाई से पूर्व मरम्मत ज़रूरी है। यदि किसी कपड़े में खोंच लग गयी हो तो उसे मरम्मत किए बिना कदापि नहीं धोना चाहिए। यदि कपड़ा कहीं से उधड़ गया है या सीवन खुल गयी हो तो उसे धोने से पहले सिलाई कर देनी चाहिए वरना उसके और अधिक उधड़ने का भय रहता है। कपड़े में यदि छोटे-छोटे छेद हो गए हों तो उन्हें धोने से पहले रफू कर लेना चाहिए। यदि कपड़ा अधिक फटा हो या छेद अधिक बड़ा हो तो उसमें पैबन्द लगा लेना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो पैबन्द उसी रंग तथा डिजाइन के कपड़े का लगाना चाहिए। कपड़ों के बटन टूट गये हों तो उन्हें पहले ही टांक लेना चाहिए।

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प्रश्न 17.
वस्त्रों की धुलाई क्यों आवश्यक है ? अथवा धुलाई के क्या-क्या लाभ हैं?
अथवा
वस्त्रों की धुलाई के दो लाभ बताएं।
उत्तर :
1. व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए कपड़ों का स्वच्छ सुन्दर होना अति आवश्यक है। धुलाई द्वारा कपड़ों में से अनेक प्रकार के कीटाणु दूर हो जाते हैं एवं स्वच्छ पहनने से व्यक्ति प्रसन्नचित रहता है।
2. कपड़ों द्वारा मनुष्य के व्यक्तित्व का परिचय मिलता है। धुले हुए स्वच्छ एवं इस्तरी किए हुए कपड़े व्यक्ति के गुणों को अभिव्यक्त करते हैं तथा गन्दे कपड़े व्यक्ति के व्यक्तित्व सम्बन्धी दोषों के प्रतीक हैं।
3. ओढ़ने-पहनने के कपड़ों में से पसीने आदि की दुर्गन्ध आने लगती है अत: दुर्गन्ध को कपड़ों की धुलाई द्वारा दूर किया जाता है।
4. कपड़ों की समय पर धुलाई न की जाए तो ऊनी, रेशमी तथा धातवीय तन्तुओं के वस्त्रों में अक्सर कीड़ा लग जाता है। गन्दगी से कपड़े की वास्तविक आयु भी शीघ्र समाप्त हो जाती है अतः कपड़ों की सुरक्षा हेतु उनकी धुलाई अथवा सफाई अति आवश्यक है।
5. बचत की दृष्टि से भी कपड़ों की धुलाई आवश्यक है। कपड़ों की धुलाई में खर्च किया हुआ पैसा अथवा गर्म कपड़ों की ड्राइक्लीनिंग में जो पैसा खर्च होता है, वह कपड़े की लम्बी अवधि तक चलने से वसूल हो जाता है। सही तरीके से कपड़ों को स्वच्छ रखा जाए तो वे काफ़ी लम्बे समय तक चलते हैं।
6. सौंदर्य की दृष्टि से भी कपड़ों का स्वच्छ होना आवश्यक है क्योंकि गन्दे कपड़े असुन्दर तथा स्वच्छ कपड़े सुन्दर माने जाते हैं।

प्रश्न 18.
धोबी से कपड़े धुलवाने की अपेक्षा घर पर कपड़े धोना अधिक उचित क्यों होता है?
अथवा
धोबी से कपड़े धुलवाने में क्या-क्या हानियां हैं?
उत्तर :
धोबी से कपड़े धुलवाने से निम्नलिखित हानियां हैं –

  1. धोबी से कपड़े धुलवाने में धन अधिक खर्च होता है।
  2. धोबी कपड़ों को बार-बार भट्टी लगाकर धोते हैं तथा पत्थर पर कूट-कूट कर साफ़ करते हैं, इससे कपड़ों का जीवन आधा रह जाता है।
  3. रंगीन कपड़ों का रंग फीका या खराब हो जाता है।
  4. धोबी के यहाँ रोगियों आदि के कपड़े भी धुलने के लिए आते हैं इसलिए अन्य कपड़ों को भी छूत के रोगाणु लगने का भय रहता है। ये रोगाणु स्वस्थ शरीर में रोग उत्पन्न कर सकते हैं।
  5. धोबी से कपड़े धुलवाने से कई जोड़े कपड़ों की आवश्यकता होती है जो हर परिवार के लिए सम्भव नहीं है।
  6. धोबी प्रायः कपड़ों को समय पर नहीं देते अतः उन पर आश्रित नहीं रहा जा सकता है।

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प्रश्न 19.
विशेष अवसरों पर पहनने वाले तथा ऊनी कपड़ों की देखभाल किस प्रकार करनी चाहिए?
उत्तर :
विशेष अवसरों पर पहनने वाले तथा ऊनी कपड़ों की देखभाल-विशेष अवसरों पर पहनने के वस्त्र उच्च श्रेणी के व कोमल होते हैं। सर्दियों में ऊनी कपड़ों का प्रयोग करना पड़ता है। ये दोनों प्रकार के कपड़े कभी-कभी निकाले जाते हैं; जैसे-ऊनी कपड़ों को सर्दियों में ही निकाला जाता है तथा कुछ को विशेष अवसरों पर ही निकाला जाता है। अतः इनकी देखभाल की बहुत आवश्यकता रहती है। यदि इनकी देखभाल में लापरवाही बरती जाये तो इनमें कीड़ा लग जाता है या इनकी आकृति बिगड़ जाती है।

इनकी देखभाल हम निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं –

1. इन वस्त्रों का संग्रह करने से पहले इनमें धूप व हवा लगा ली जाये लेकिन ज्यादा देर तक इन्हें धूप में न रखा जाये क्योंकि रेशमी वस्त्र ज्यादा देर तक धूप में रखने से खराब हो जाते हैं।
2.  वस्त्रों को रखने से पूर्व ब्रुश से झाड़ लिया जाये। ब्रुश से झाड़ने से पहले सारी जेबों को खाली करके उसे अच्छी तरह से हिलाओ या झटका मारो।
3. विशेष अवसरों पर पहनने वाले वस्त्र घर पर धोने से खराब हो जाते हैं अतः इनकी शुष्क धुलाई करवानी चाहिए।
4. कीमती सोने-चांदी से जड़े एवं बनारसी वस्त्र डस्ट प्रूफ बैग में रखने चाहिए। परन्तु इन वस्त्रों को जिसमें रखा जाए उसमें डी० डी० टी० का स्प्रे या अन्य किसी प्रकार का प्रतिकारक डाल देना चाहिए।
5. पहनने वाले ऊनी वस्त्रों को उतार कर हैंगर पर लटका देना चाहिए। यदि कोट आदि की बांह में पतला कागज़ लगा दिया जाए, तो उसकी बांह की आकृति ठीक बनी रहेगी। हैंगर पर वस्त्र को लटकाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उसकी बाहें हैंगर पर ठीक प्रकार से जम गई हैं या नहीं।
6. वस्त्रों को नमी वाले स्थानों पर नहीं रखना चाहिए। नमी वाले स्थान पर रखने से कपड़ों में फफूंदी लग जाती है। वस्त्र को सूखे स्थान पर लटका कर तथा वस्त्र को ब्रश से झाड़ कर रखना चाहिए।
7. तम्बाकू, सूखी नीम की पत्तियां, देवदार वृक्ष की छाल, कपूर तथा फिनाइल की गोलियां ऊनी कपड़ों के साथ रखनी चाहिये। ये गोलियां तभी तक उपयोग होती हैं जब तक इनमें सुगन्ध बनी रहती है। वस्त्रों को कीटाणुओं से बचाने के लिए नेफ्थलीन की गोलियां अधिक प्रभावशाली होती हैं। पेराडाइक्लोरोबेन्जीन सर्वोत्तम प्रतिकारक है किन्तु यह महंगा है।
8. समस्त ऊनी वस्त्रों को पुराने अखबार के कागज़ में बाँधकर रखना चाहिये क्योंकि कीटाणुओं को अखबार की स्याही रुचिकर प्रतीत नहीं होती।
9. हाइड्रोसायनिक एसिड सेंक करने पर कीटाणु नष्ट हो जाते हैं किन्तु इसका प्रयोग केवल विशेषज्ञ कर सकते हैं अन्यथा यह हानिकारक सिद्ध हो सकती है।
10. कृमिनाशक पदार्थ का ऊन में मिश्रण करने से या तो जीवाणु नष्ट हो जाते हैं या ऊन उनके लिए अपाच्य हो जाती है।

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प्रश्न 20.
आप अपनी माता जी का ऊनी शाल का संग्रह कैसे करेंगे ?
अथवा
ऊनी कपड़ों का भण्डारण कैसे करोगे ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 19 का उत्तर।

प्रश्न 21.
वस्त्रों पर कलफ करते समय क्या सावधानियां प्रयोग में लानी चाहिए ?
उत्तर :
वस्त्रों पर कलफ करते समय निम्नलिखित सावधानियां प्रयोग करनी चाहिएं –

  1. जिन वस्त्रों को कलफ देना है, उनमें साबुन बिल्कुल नहीं होना चाहिए। कपड़ा बिल्कुल साफ़ पानी से निकला होना चाहिए।
  2. कलफ का गाढ़ापन कपड़े की बनावट पर निर्भर करता है। अगर कपड़ा पतला है तो गाढ़ा कलफ। अगर कपड़ा मोटा है तो पतला कलफ प्रयोग में लाना चाहिए।
  3. जो रंगीन कपड़े हैं उनके लिए ठंडी विधि के द्वारा कलफ प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि गर्म कलफ से रंग खराब हो जाएगा।
  4. अगर कपड़ों में चमक बढ़ाना चाहते हैं तो कलफ के घोल में थोड़ा तारपीन का तेल अथवा बोरेक्स डालना चाहिए।
  5. अगर कलफ का घोल गाढ़ा है और पतला करना है तो गर्म पानी मिलाना चाहिए। गर्म पानी मिलाने से घोल एक जैसा पतला हो जाएगा।
  6. कपड़े को कलफ लगाते समय कलफ वाले पानी में अच्छी तरह हिलाना चाहिए। इससे कपड़े के सब तरफ घोल लग जाएगा।
  7. जब कलफ लग जाता है, कपड़े का फालतू पानी निकाल कर अच्छी तरह झटक ले ताकि उसकी सिलवटें निकल जाएं, धूप में सुखाना चाहिए।
  8. वस्त्र जब सूख जाएं तो कपड़े को थोड़ा खींच लेना चाहिए ताकि उसके लम्बाई और चौड़ाई के धागे सीधे हो जाएं।
  9. जैसे ही कपड़े में थोड़ी नमी रहती है तो हमें इस्तरी कर लेनी चाहिए। थोड़ी नमी पर इस्तरी करने से उसमें चमक आ जाती है और कपड़ा थोड़ा कड़ा हो जाता है।
  10. अगर हमें कपड़ों को नील लगाना है तो उनके कलफ में ही नील डाल देना चाहिए।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

प्रश्न 22.
सिल्क की साड़ी धोने के लिए किस विधि का इस्तेमाल करोगे तथा क्यों ? रेशमी वस्त्रों को धोने के सामान्य नियम क्या हैं ?
उत्तर :
सिल्क की धुलाई दबाने तथा निचोड़ने की विधि द्वारा की जाती है। बहुत गन्दे भागों को हल्का सा रगड़ लें अगर बहुत गन्दी है तो साबुन के घोल में बोरेक्स या अमोनिया मिला लें। वस्त्र को दो या तीन बार हल्के गर्म पानी से निकाल लें। इसके लिए दबाने तथा निचोड़ने की विधि का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि यह कोमल और सुन्दर होती है। अत्यधिक रगड़ से इसके तन्तु खराब हो जाते हैं। इसको अधिक रगड़ना नहीं चाहिए क्योंकि इसके तन्तु कमज़ोर पड़ जाते हैं। इन वस्त्रों में नाइट्रोजन काफ़ी मात्रा में होती है। इसलिए इन पर अम्ल और क्षार का हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इनकी धुलाई निम्नलिखित तरह से करनी चाहिए –

1. धोने से पहले तैयारी – कटे-फटे वस्त्र की मरम्मत कर लेनी चाहिए नहीं तो धोने की प्रक्रिया में थोड़ा सा फटा कपड़ा ओर फट जाएगा। वस्त्र पर लगे दाग धब्बों को भी हटा लेना चाहिए। हमें इसके लिए अम्लीय प्रकृति वाले प्रतिकिर्मक का हल्का घोल प्रयोग करना चाहिए।

2. धोना-इनको धोने के लिए डिटर्जेन्ट तथा हल्के गर्म पानी का प्रयोग करना चाहिए। परन्तु अन्तिम धुलाई ठण्डे पानी में होनी चाहिए। साबुन के घोल में हल्का बोरेक्स या अमोनिया डालते ही वस्त्र अधिक साफ़ हो जाते हैं। वस्त्र का जो भाग अधिक गन्दा है इस के लिए हमें हल्के साबुन का घोल प्रयोग करना चाहिए और थोड़ा रगड़ भी सकते हैं।

3. खंगालना – कपड़े का पानी बदल-बदल कर तब तक खंगालें जब तक सारा साबुन न निकल जाए। आखिर के पानी में कुछ बूंदें सिरके की डालनी चाहिएं। इससे चमक आ जाती है। सिरका अधिक पड़ जाने पर दोबारा साफ पानी में खंगाल लें क्योंकि अम्ल से रेशे कमजोर हो जाते हैं।

4. कलफ लगाना रेशमी वस्त्रों पर कडापन लाने के लिए गोंद के पानी का प्रयोग करना चाहिए। प्रायः वस्त्र को कलफ की आवश्यकता नहीं होती अगर गीले कपड़े पर लोहा कर दिया जाये।

5. सुखाना – छाया में सुखाना चाहिए क्योंकि धूप में सुखाने से सफ़ेद वस्त्र पीला पड़ जाता है रंगीन वस्त्रों का रंग उड़ जाता है।
6. परिसज्जा-इनको इस्तरी करते समय गीला करने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इन्हें सुखाते समय थोड़ी गीली अवस्था में ही हटा लिये जाते हैं। इस्तरी करते समय पानी के छींटे नहीं देने चाहिएं क्योंकि इससे दाग पड़ जाते हैं।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

प्रश्न 23.
सफेद सूती कपड़ों की धुलाई किस प्रकार करेंगे ?
उत्तर :
1. धुलाई से पहले तैयारी-धुलाई से पहले कटे-फटे वस्त्रों की मरम्मत करनी चाहिए तथा उधड़ा भाग सिल लें। दाग धब्बे निकाल लें।
2. छंटाई-रंग, मैल, गन्दगी, मोटाई के अनुसार छंटाई कर लेनी चाहिए।
3. भिगोना-कपड़ों को साबुन आदि के घोल में कुछ समय तक भिगोना चाहिए। इस प्रकार मैल उगल जाती है तथा धुलाई में अधिक समय नहीं लगता। अधिक मैले वस्त्र को अधिक समय तक भिगोएं। यदि भिगोने के लिए गर्म पानी का प्रयोग किया जाए तो वस्त्र और भी अच्छी प्रकार साफ होते हैं।
4. धुलाई-गर्म पानी तथा साबुन से धुलाई करनी चाहिए। अधिक गन्दे वस्त्रों को पानी में उबाला भी जा सकता है। मोटे वस्त्रों को ज़ोर से रगड़ें तथा पतले वस्त्रों को हल्का रगड़ें। कालर कफ को अच्छी तरह रगड़ें।
5. खंगालना-धुलने के बाद वस्त्रों को बार-बार साफ पानी में से खंगालें, तब तक खंगालें जब तक साबुन का सारा अंश निकल न जाए।
6. कलफ तथा नील-सफेद कपड़ों को नील देना चाहिए तथा व्यक्तिगत वस्त्रों को हल्की कलफ लगाएं।
7. सुखाना-धूप तथा खुले स्थान पर सुखाएं परन्तु अधिक देर तक धूप में रखने से पीलापन आ जाता है।

प्रश्न 24.
नायलॉन की साड़ी धोने की विधि का वर्णन करें।
उत्तर :
नायलॉन एक बनावटी तन्तु है तथा इसे निम्न विधि से धोया जाता है –

  1. धोने से पहले तैयारी-कटे-फटे वस्त्रों की मरम्मत करनी चाहिए तथा दाग-धब्बे निकाल लेने चाहिएं।
  2. धोना-अच्छे स्तर के डिटर्जेंट से इन्हें धोना चाहिए तथा हल्का धोना चाहिए। यदि अधिक मैला हो तो अधिक डिटर्जेंट डाल कर रगड़ कर मैल साफ करें।
  3. खंगालना-चार-पांच बार साफ पानी में खंगालें। खंगालने के बाद ऐंठन देकर निचोड़ना नहीं चाहिए इससे तन्तु विकृत हो जाते हैं। हाथ के हल्के दाब से निचोड़ें।
  4. सुखाना-वस्त्र को छायादार स्थान पर सुखाना चाहिए। धूप में वस्त्र खराब हो सकता है।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) एक शब्द में उत्तर दें –

प्रश्न 1.
एक पाश्विक दाग का उदाहरण दें।
उत्तर :
दूध का दाग।

प्रश्न 2.
अस्थाई भारी पानी को कैसे ठीक करेंगे ?
उत्तर :
उबाल कर।

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प्रश्न 3.
साबुन की झाग किस पानी में नहीं बनती ?
उत्तर :
भारी पानी में।

प्रश्न 4.
घास का दाग कैसा है ?
उत्तर :
वनस्पतिक दाग।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. स्थाई भारे पानी में कैल्शियम के ………. घुले होते हैं।
2. ऊन का तन्तु ………. तथा मुलायम होता है।
3. ………. पानी में साबुन की झाग आसानी से बनती है।
4. सोडियम बाइसल्फाइड ………. ब्लीच है।
5. ………. को जैवले पानी कहते हैं।
6. ऊनी वस्त्र को सुखाने के लिए ………. पर नहीं लटकाना चाहिए।
उत्तर :
1. क्लोराइड तथा सल्फेट
2. कोमल
3. हल्के
4. अपाच्य
5. सोडियम हाइपोक्लोराइड
6. तार।

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(ग) ठीक/गलत बताएं –

1. गोंद का प्रयोग कड़ापन लाने के लिए किया जाता है।
2. ऊन पर क्षारीय घोल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
3. ऊनी वस्त्र गीले होने पर मजबूत हो जाते हैं।
4. एनीलिन नील पानी में घुलनशील नील है।
5. ऊनी वस्त्र पर रिड्यूसिंग ब्लीच का प्रयोग होता है।
6. कपड़े धोने से पहले उनकी छंटाई करनी चाहिए।
उत्तर :
1. (✓) 2. (✓) 3. (✗) 4. (✓) 5. (✓) 6. (✓)

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
निम्न में ठीक है –
(A) सूती वस्त्र को पानी का छींटा देकर धोएं
(B) सफेद वस्त्र पहले धोएं
(C) भारी पानी के साबुन की झाग नहीं बनती
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

प्रश्न 2.
ऊन के लिए ठीक नहीं है –
(A) ऊनी वस्त्र को धोकर तार पर डालें
(B) ऊन सर्दी में प्रयोग होती है
(C) ऊन के तन्तु नर्म तथा मुलायम है
(D) अधिक क्षार से ऊन सख्त हो जाती है।
उत्तर :
ऊनी वस्त्र को धोकर तार पर डालें।

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प्रश्न 3.
ऊनी वस्त्रों की धुलाई में कौन-से धोल अधिक प्रचलित है –
(A) पोटाशियम परमैंगनेट
(B) सोडियम परऑक्साइड
(C) हाइड्रोजन परऑक्साइड
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 4.
तेज़ाबी माध्यम वाले रसायन हैं –
(A) अमोनिया
(B) एसटिक एसीड
(C) बारैक्स
(D) कासटिक सोडा।
उत्तर :
एसटिक एसीड।

प्रश्न 5.
ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच नहीं है –
(A) सोडियम बाइसल्फाइड
(B) धूप
(C) पोटाशियम परमैंगनेट
(D) सोडियम परबोरेट।
उत्तर :
सोडियम बाइसल्फाइड।

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प्रश्न 6.
जैवले पानी किसे कहते हैं –
(A) पोटाशियम परमैंगनेट
(B) सोडियम परबोरेट
(C) सोडियम हाइड्रोक्लोराइड
(D) सोडियम बाइसल्फाइड।
उत्तर :
सोडियम हाइड्रोक्लोराइड।

प्रश्न 7.
निम्न में ठीक है –
(A) जैवले पानी एक रंगकाट है
(B) फूल, घास का दाग वनस्पतिक दाग है
(C) दाग उतारते समय वस्त्र के रंग का भी ध्यान रखें
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

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प्रश्न 8.
निम्न में ठीक है –
(A) ऊनी तथा रेशमी कपड़ों के लिए रिड्यूसिंग ब्लीच का प्रयोग होता है।
(B) धूप भी रंगकाट का काम करती है
(C) धोबी को कपड़े देने से छूत की बीमारी हो सकती है
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

प्रश्न 9.
पानी में घुलनशील नील है –
(A) इण्डीगो
(B) अल्ट्रामैरीन
(C) प्रशियन
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 10.
अच्छे साबुन का गुण नहीं है –
(A) साबुन हल्के पीले रंग का हो
(B) हाथ लगाने पर कठोर तथा सूखा होना चाहिए।
(C) अच्छे साबुन का स्वाद ठीक होता है।
(D) सभी।
उत्तर :
हाथ लगाने पर कठोर तथा सूखा होना चाहिए।

प्रश्न 11.
कपड़े में कड़ापन लाने के लिए प्रयोग करें –
(A) मैदा
(B) गोंद
(C) आलू
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

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प्रश्न 12.
निम्न में गलत है –
(A) एसीटिक एसीड के प्रयोग से रेशमी वस्त्रों में चमक आ जाती है
(B) अमोनिया का प्रयोग साबुन की जगह कर सकते हैं
(C) सोडियम बाइसल्फाइट रिड्यूसिंग ब्लीच है।
(D) सभी गलत।
उत्तर :
अमोनिया का प्रयोग साबुन की जगह कर सकते हैं।

प्रश्न 13.
कपड़ों के परिष्करण से सम्बन्धित क्रियाएं हैं –
(A) कपड़ों को इस्तरी करना
(B) स्टीम करना
(C) मेंगल करना
(D) सभी ठीक।
उत्तर :
सभी ठीक।

प्रश्न 14.
धोबी से कपड़े धुलवाने से हानि है –
(A) खर्चीला काम
(B) कपड़े फट सकते हैं
(C) रंग हो सकते हैं
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

प्रश्न 15.
छंटाई का ढंग है –
(A) रंग अनुसार
(B) गन्दगी अनुसार
(C) मोटाई अनुसार
(D) सभी।
उत्तर :
सभी।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

प्रश्न 16.
निम्न में ठीक है –
(A) कल्फ देने वाले वस्त्रों में साबुन रह जाए तो अच्छा है
(B) कल्फ का घोल पतला करने के लिए गर्म पानी डालें
(C) वस्त्रों को नमी वाले स्थान पर रखें
(D) कल्फ लगे कपड़ों को कई दिन तक प्रेस न करें।
उत्तर :
कल्फ का घोल पतला करने के लिए गर्म पानी डालें।

प्रश्न 17.
निम्न में गलत है
(A) कोट पेन्ट को टांग कर रखें
(B) धोबी से कपड़े धुलाना सस्ता है।
(C) रक्त का धब्बा पाश्विक दाग हैं।
(D) ताज़े दाग को उतारने की कोशिश करें।
उत्तर :
धोबी से कपड़े धुलाना सस्ता है।

वस्त्रों की देखभाल HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ घर में वस्त्र धोने के लिए कई तरह का सामान चाहिए।
→ वस्त्र धोने का सामान अपनी आर्थिक हालत अनुसार तथा आवश्यकतानुसार ही लो।
→ लाण्डरी बैग में धोने वाले वस्त्र इकट्ठे किये जाते हैं।
→ पानी एक विश्वव्यापी घोलक है, इसमें साधारणत: प्रत्येक प्रकार की मैल घुल जाती है।
→ पानी प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्रोत हैं। वर्षा, दरिया, कुएं, चश्मे तथा समुद्र का पानी।
→ समुद्र का पानी वस्त्र धोने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
→ पानी दो तरह का होता है-हल्का तथा भारी।
→ हल्के पानी में साबुन की झाग शीघ्र बनती है।
→ भारी पानी स्थाई तथा अस्थाई दो तरह का होता है। अस्थाई भारे पानी को उबाल कर हल्का किया जा सकता है।
→ साबुनों को सफ़ाईकारी कहा जाता है। यह चर्बी तथा खारों के मिश्रण से बनता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

→ टब, बाल्टियां, चिल्मचियां आदि का प्रयोग नील देने, मावा देने, वस्त्र भिगोने, खंगालने आदि के लिए किया जाता है।
→ फ्लैटों में रहने वाले लोग वस्त्र सुखाने के लिए रैकों का प्रयोग करते हैं।
→ विकसित देशों में वस्त्र सुखाने के लिए बिजली की कैबिनेट का प्रयोग किया जाता है।
→ वस्त्र को साफ़-सुथरी, चमकदार, सिलवट रहित दिखावट प्रदान करने के लिए इस्तरी किया जाता है।
→ ऊन का धागा जानवरों के बालों और पशम से बनता है।
→ ऊन के गीले कपड़ों को हैंगर में टांगकर नहीं सुखाना चाहिए।
→ ऊन का कपड़ा भिगोने से कमजोर हो जाता है। इसलिए इसको सीधा साबुन वाले पानी में धोना चाहिए।
→ ऊनी कपड़े को साबुन वाले पानी में डालकर हाथों से दबाकर धोना चाहिए।
→ प्रैस करने के बाद ऊनी वस्त्रों को हैंगर में डालकर थोड़ी देर हवा में लटकाना चाहिए ताकि कपड़ा अच्छी तरह सूख जाए।
→ ऊनी कपड़े में तह लगने के बाद प्रेस करने की ज़रूरत नहीं होती है।
→ गर्मियों के मौसम में गर्म कपड़ों को अच्छी तरह सम्भाल कर रखना चाहिए ताकि उनको गर्म कपड़ों वाला कीड़ा न खाए।
→ गन्दे कपड़ों को जो धोए जा सकते हों, धोना चाहिए और दूसरों को ड्राइक्लीन करवा लेना चाहिए।
→ जब ऊनी कपड़े बॉक्स में बन्द किए जाएं उनमें सूखी नीम, यूक्लिप्टस के पत्ते या नैफ्थलीन की गोलियां डालनी चाहिएं।।
→ सूती कपड़ों को धोना और सम्भालकर रखना सबसे आसान है।
→ फफूंदी कपड़े को कमजोर कर देती है और इसके दाग भी बड़ी मुश्किल से उतरते हैं।
→ रेशमी कपड़ों के सूरज की रोशनी में रंग खराब हो जाते हैं, इसलिए कपड़े तेज़ रोशनी में नहीं रखने चाहिए।
→ कपड़े पर किसी चीज़ से पड़े निशान को दाग कहा जाता है।
→ दाग की चार किस्में होती हैं-वनस्पति, पाश्विक, चिकनाई दाग तथा खनिज दाग।
→ इन चार किस्मों के दागों को उतारने के लिए भिन्न-भिन्न पदार्थ प्रयोग किए जाते हैं।
→ खुली धूप तथा हवा में कपड़ों से दाग उतारना सबसे पुराना ढंग है।
→ दो प्रकार के रंगकाट ऑक्सीडाइजिंग तथा ब्लीच तथा रिड्यूसिंग ब्लीच दाग उतारने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
→ स्याही के दाग को रासायनिक दाग कहा जाता है।
→ दूध, अण्डा, खून के दाग को पाश्विक दाग कहा जाता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

→ दाग उतारने से पहले दाग की किस्म के बारे में जानना आवश्यक है।
→ हल्के रंगकाट ही दाग उतारने के लिए प्रयोग करने चाहिएं।
→ दाग वाले कपड़े के रेशे की पहचान भी दाग उतारने के लिए आवश्यक है।
→ साबुन चर्बी तथा खार का मिश्रण है।
→ साबुन दो विधियों से तैयार किया जा सकता है-ठण्डी विधि तथा गर्म विधि।
→ साबुन कई तरह के मिलते हैं-साबुन की चक्की, साबुन का चूरा, साबुन का पाऊडर, साबुन की लेस।
→ साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ।
→ सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरैक्स, एसिटिक एसिड, ऑग्जैलिक एसिड।
→ रंग काट दो तरह के होते हैं-ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच तथा रिड्यूसिंग ब्लीच।
→ नील, टीनोपाल आदि का प्रयोग कपड़ों को सफ़ेद रखने के लिए किया जाता
→ नील दो तरह के होते हैं-घुलनशील तथा अघुलनशील पदार्थ।
→ कपड़ों में ऐंठन अथवा अकड़न लाने वाले पदार्थ हैं-मैदा अथवा अरारोट, चावलों का पानी, आलू, गोंद, बोरैक्स।
→ वस्त्रों की अच्छी धुलाई से वस्त्र नये जैसे तथा स्वच्छ हो जाते हैं।
→ वस्त्र घर में अथवा लाण्डरी में धुलाए जा सकते हैं।
→ वस्त्र धोने से पहले इनकी मरम्मत, छटाई तथा दाग़ उतारने का काम कर लेना चाहिए।
→ वस्त्रों की छंटाई रेशों, रंग, आकार तथा गन्दगी के अनुसार करनी चाहिए।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 वस्त्रों की देखभाल

→ सूती वस्त्र पानी में भिगोने पर मजबूत हो जाते हैं जबकि ऊनी तथा रेशमी वस्त्र पानी में भिगो कर रखने पर कमजोर हो जाते हैं।
→ सूती वस्त्रों को कीटाणु रहित करने के लिए उबलते पानी में 10-15 मिनट के लिए रखना चाहिए।
→ सफेद वस्त्र पहले धोने चाहिएं।
→ सूती वस्त्रों को पानी का छींटा देकर प्रैस करो।
→ ऊनी, रेशमी वस्त्रों का रीठा, शिकाकाई, जैंटील आदि से धोना चाहिए।
→ ऊनी वस्त्रों को लटका कर नहीं सुखाना चाहिए।
→ ऊनी वस्त्रों को सीधा प्रैस के सम्पर्क में न लायें।
→ रेशमी सिल्क के वस्त्र को पानी छिडक कर नम न करो बल्कि किसी नम तौलिए में लपेटकर नम करो तथा प्रैस करो।

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HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

Haryana State Board HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

HBSE 6th Class Science विद्युत तथा परिपथ InText Questions and Answers

बूझो/पहेली

प्रश्न 1.
पहेली के पास बल्ब तथा सेल जोड़ने की दूसरी व्यवस्था है। क्या इस व्यवस्था में बल्ब जलेगा?
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -1
उत्तर:
नहीं, बल्ब फ्यूज होगा तो नहीं जलेगा क्योंकि फ्यूज बल्ब के तन्तु से विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होगी।

प्रश्न 2.
बूझो ने चित्र (A) के अनुसार टॉर्च के आन्तरिक आरेख को चित्रित किया है। जब हम स्विच को ऑन करते हैं तो परिपथ पूरा होता है तथा बल्ब दीप्तमान होता है। क्या आप चित्र में बिन्दुकित विद्युत् गेला रेखा खींचकर पूरे परिपथ को इंगित कर सकते हैं?
उत्तर:
बिंदु कित रेखा से परिपथ इंगित है।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -2
चित्र (A): टॉर्च का आन्तरिक आरेख

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

HBSE 6th Class Science विद्युत तथा परिपथ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) एक युक्ति जो परिपथ को तोड़ने के लिए उपयोग की जाती है, …………. कहलाती है।
(ख) एक विद्युत-सेल में ………… टर्मिनल होते हैं।
उत्तर:
(क) स्विच
(ख) दो।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित कथनों पर ‘सही’ या ‘गलत’ का चिन्ह लगाइए
(क) विद्युत-धारा धातुओं से होकर प्रवाहित हो सकती
(ख) विद्युत-परिपथ बनाने के लिए धातु के तारों के स्थान पर जूट की डोरी प्रयुक्त की जा सकती है।
(ग) विद्युत-धारा थर्मोकोल की शीट से होकर प्रवाहित हो सकती है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) गलत।

प्रश्न 3.
व्याख्या कीजिए कि निम्न चित्र में दर्शाई गई व्यवस्था में बल्ब क्यों नहीं दीप्तिमान होता है?
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -3
उत्तर:
बल्ब इसलिए दीप्तिमान नहीं होता क्योंकि बीच में एक विद्युत रोधक उपस्थित है। (पेंचकस का प्लास्टिक का बना हत्था) जिससे परिपथ पूरा नहीं होता।

प्रश्न 4.
निम्न चित्र (A) में दर्शाए गये आरेख को पूरा कीजिए और बताइए कि बल्ब को दीप्तिमान करने के लिए तारों के स्वतन्त्र सिरों को किस प्रकार जोड़ना चाहिए?
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -4
उत्तर:
स्विच के एक स्वतन्त्र तार को बल्ब की नोंक से तथा एक स्वतंत्र तार को सेल की टोपी से जोड़ना चाहिए।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -5

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 5.
विद्युत-स्विच को उपयोग करने का क्या प्रयोजन है? कुछ विद्युत-साधित्रों के नाम बताइए जिनमें स्विच उनके अन्दर ही निर्मित होते हैं।
उत्तर:

  1. विद्युत स्विच एक सरल युक्ति है जो विद्युत धारा के प्रवाह को रोकने या प्रारम्भ करने के लिए परिपथ को तोड़ता अथवा पूरा करता है।
  2. कुछ विद्युत साधित्र जिनके स्विच उनके अन्दर ही निर्मित होते हैं-माइक्रोवेव ऑवेन, स्वचालित लौह इस्तरी, पेटीज मेकर, टोस्टर, फ्रिज आदि।

प्रश्न 6.
चित्र (A) में सुरक्षा पिन की जगह यदि रबड़ लगा दें तो क्या बल्ब दीप्तिमान होगा?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि रबड़ एक विद्युत रोधक वस्तु है।

प्रश्न 7.
क्या चित्र (B) में दिखाए गये परिपथ में बल्ब दीप्तिमान होगा?
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -6
चित्र (B)
उत्तर:
नहीं क्योंकि परिपथ पूरा नहीं है।

प्रश्न 8.
किसी वस्तु के साथ ‘चालक-परीक्षित्र’ का उपयोग करके यह देखा गया कि बल्ब दीप्तिमान होता है। क्या इस वस्तु का पदार्थ विद्युत-चालक है या विद्युतरोधक? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वस्तु का पदार्थ विद्यत चालक है क्योंकि विद्युत रा केवल विद्युत-चालक में से प्रवाहित हो सकती है न कि विद्युत रोधक पदार्थ से। बल्ब तभी दीप्तमान होगा जब वह पदार्थ विद्युत चालक हो।

प्रश्न 9.
आपके घर में स्विच की मरम्मत करते समय विद्युत मिस्त्री रबड़ के दस्ताने क्यों पहनता है?
उत्तर:
विद्युत मिस्त्री रबड़ के दस्ताने इसलिए पहनते हैं क्योंकि रबड़ विद्युत रोधक होता है। ये मिस्त्री को विद्युत को छूने पर लगने वाले झटके से बचाते हैं।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 10.
विद्युत मिस्त्री द्वारा उपयोग किये जाने वाले औजार, जैसे-पेचकस और प्लायर्स के हत्थों पर प्रायः प्लास्टिक या रबड़ के आवरण चढ़े होते हैं। क्या आप इसका कारण समझा सकते हैं ?
उत्तर:
रबड़ तथा प्लास्टिक दोनों ही विद्युत रोधक पदार्थ हैं। ये विद्युत झटकों से पकड़ने वाले को बचाते हैं। इसलिए पेचकस और प्लायर्स के हत्थों पर प्रायः प्लास्टिक या रबड़ के आवरण चढ़े होते हैं।

HBSE 6th Class Science जल Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पी प्रश्न : निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए

1. विद्युत सेल का उपयोग किया जा सकता है-
(क) टार्च में
(ख) अलार्म घड़ी में
(ग) रेडियो में
(घ) इन सभी से
उत्तर:
(घ) इन सभी से

2. विद्युत सेल में संचित किए जाते हैं
(क) रासायनिक पदार्थ
(ख) जैविक पदार्थ
(ग) धातुएँ
(घ) सक्रियक
उत्तर:
(क) रासायनिक पदार्थ

3. विद्युत बल्ब में चमकने वाली महीन स्प्रिंग जैसी रचना कहलाती है
(क) तंतु
(ख) टर्मिनल
(ग) टोपी
(घ) धातु
उत्तर:
(क) तंतु

4. विद्युत परिपथ में धारा की दिशा होती है
(क) ऋण टर्मिनल से धन टर्मिनल की ओर
(ख) धन टर्मिनल से ऋण टर्मिनल की ओर
(ग) कभी धन टर्मिनल की ओर कभी ऋण टर्मिनल की ओर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) धन टर्मिनल से ऋण टर्मिनल की ओर

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

II. रिक्त स्थान : निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. …………………. विद्युत का स्रोत है।
2. …………………. प्रवाहित होने पर विद्युत बल्ब दीप्त होने लगता
3. हम …………………. का उपयोग कुँए से प्राप्त द्वारा जल को बाहर निकालने में करते हैं।
4. थर्मोकोल एक …………………. है।
उत्तर:
1. विद्युत सेल
2. विद्युत धारा
3. विद्युत
4. विद्युत रोधक

III. सुमेलन : कॉलम ‘A’ के शब्दों का मिलान कॉलम ‘B’ के शब्दों से कीजिए-

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. विद्युत चालक(a) रासायनिक पदार्थों से विद्युत उत्पन्न करता है।
2. विद्युत रोधक(b) यह सेल के अन्दर ‘उत्पन्न होती है।
3. विद्युत सेल(c) थर्मोकोल और वायु
4. बल्ब(d) हमारा शरीर
5. विद्युत धारा(e) विद्युत प्रवाहित करने पर यह प्रकाश उत्पन्न करता है।

उत्तर:

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. विद्युत चालक(d) हमारा शरीर
2. विद्युत रोधक(c) थर्मोकोल और वायु
3. विद्युत सेल(a) रासायनिक पदार्थों से विद्युत उत्पन्न करता है।
4. बल्ब(e) विद्युत प्रवाहित करने पर यह प्रकाश उत्पन्न करता है।
5. विद्युत धारा(b) यह सेल के अन्दर ‘उत्पन्न होती है।

IV. सत्य/असत्य : निम्नलिखित वाक्यों में सत्य एवं असत्य कथन छटिए

(i) विद्युत सेल में धातु की टोपी (+) सिरा तथा धातु की डिस्क (-) सिरा कहलाती हैं।
(ii) विद्युत बल्ब में भी दो टर्मिनल होते हैं।
(iii) कोई बल्ब तभी दीप्त होता है जब परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होती हैं।
(iv)बल्ब में तंतु का खंडित होना बल्ब का फ्यूज होना कहलाता
उत्तर:
1. सत्य
2. सत्य,
3. सत्य
4. सत्य।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्युत सेल में कितने टर्मिनल होते हैं?
उत्तर:
दो टर्मिनल धन (+) तथा ऋण (-) होते हैं।

प्रश्न 2.
विद्युत सेल के दोनों टर्मिनलों के तारों को आपस में क्यों नहीं मिलाना चाहिए?
उत्तर:
दोनों टर्मिनलों के तारों को मिलाने से उसके रासायनिक पदार्थ खत्म हो जाते हैं।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 3.
विद्युत सेल के दो उपयोग लिखिए।
उत्तर:

  1. टॉर्च में प्रकाश उत्पन्न करने के लिए।
  2. सेल घड़ी को चलाने के लिए।

प्रश्न 4.
विद्युत बल्ब का चमकने वाला भाग क्या कहलाता है?
उत्तर:
तन्तु या फिलामेंट।

प्रश्न 5.
विद्युत तार पर रबड़ या प्लास्टिक का आवरण क्यों चढ़ा रहता हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
अनावरित दोनों तारों के सम्पर्क में आने पर परिपथ भंग हो जाने से बचाने के लिए। इसके अतिरिक्त अधिक वोल्टेज वाले नग्न तार को छू जाने पर विद्युत आघात लगता है।

प्रश्न 6.
विद्युत बल्ब के दो टर्मिनलों को विद्युत सेल के दोनों टर्मिनलों से किस प्रकार जोड़ा जाता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
विद्युत बल्ब का धन टर्मिनल सेल के धन टर्मिनल सेल से तथा बल्ब का ऋण टर्मिनल सेल के ऋण टर्मिनल से।

प्रश्न 7.
परिपथ में धारा किस प्रकार प्रवाहित होने लगती है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
जब विद्युत बल्ब के दोनों टर्मिनलों को विद्युत सेल के दोनों टर्मिनलों से सही क्रम में और भली प्रकार जोड़ा जाता है।

प्रश्न 8.
विद्युत चालक क्या है?
उत्तर:
वह पदार्थ जिससे विद्युत धारा प्रवाहित हो जाती है, विद्युत चालक कहलाता है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 9.
विद्युत सेल में विद्युत कहाँ से आती है?
उत्तर:
विद्युत सेल में उपस्थित रासायनिक पदार्थ से विद्युत बनती है।

प्रश्न 10.
हमारा शरीर विद्युत का सुचालक है अथवा कुचालक ?
उत्तर:
सुचालक है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से विद्युत चालक पदार्थ छाँटिए. प्लास्टिक का पेन, स्टीलकी चम्मच, कागज, लकड़ी, लोहे का चिमटा।
उत्तर:
विद्युत चालक- स्टील की चम्मच, लोहे का चिमटा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
टार्च के बल्ब का आरेख बनाइए। इसमें दो टर्मिनल क्यों होते हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -7
क्रियाशील परिपथ तैयार करने के लिए बल्ब के दोनों टर्मिनलों को सेल के दोनों टर्मिनलों से जोड़ा जाता है।

प्रश्न 2.
निम्न चित्रों में विद्युत सेल तथा विद्युत बल्ब को जोड़ने की विभिन्न व्यवस्थाएँ दर्शायी गई हैं। कौन-सी व्यवस्थाओं में बल्य दीप्त हैं और क्यों? (क्रियाकलाप)
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -8
उत्तर:
उपरोक्त व्यवस्था में बल्ब a तथा f दीप्त है। अन्य बल्ब दीप्त नहीं होते हैं। दीप्त बल्बों के टर्मिनल सेल के टर्मिनलों से सही ढंग से जोड़े गये हैं।
व्यवस्था b तथा c में परिपथ पूर्ण नहीं है। व्यवस्था व तथा C में बल्ब के दोनों टर्मिनलों को सेल के एक ही टर्मिनल से जोड़ा गया है। इसलिए ये बल्ब दीप्त नहीं होते हैं।

प्रश्न 3.
घर में आप एक विद्युत बल्ब, एक तार एवं एक सेल से टॉर्च किस प्रकार तैयार करेंगे?(क्रियाकलाप)
उत्तर:
एक टॉर्च बल्ब तथा तार का एक टुकड़ा लीजिए। पहले की तरह तार के दोनों सिरों से प्लास्टिक आवरण हटाइए। चित्र में दर्शाए अनुसार तार के एक सिरे को बल्ब के धातु के ढाँचे के चारों ओर लपेटिए। तार के दूसरे सिरे को रबड़ बैंड की सहायता से विद्युत सेल के ऋणात्मक टर्मिनल से जोड़िए। अब बल्ब के आधार की नोंक अर्थात इसके टर्मिनल को विद्युत सेल के धनात्मक टर्मिनल पर रखिए।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -9

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 4.
आपके द्वारा तैयार किये गये एक स्विच का चित्र बनाकर उसके दो कार्य लिखिए।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -10
उत्तर:

  • यह विद्युत धारा को परिपथ में प्रवाहित होने देता है।
  • यह परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को रोकता है।

प्रश्न 5.
स्विच सहित विद्युत परिपथ का चित्र बनाइए (क्रियाकलाप)
उत्तर:
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -11

प्रश्न 6.
निम्नलिखित के दो-दो उदाहरण लिखिए
(i) विद्युत-सुचालक
(ii) विद्युत रोधक।
उत्तर:
(i) विद्युत-सुचालक ताँबा, एल्युमिनियम।
(ii) विद्युत रोधक-प्लास्टिक, रबड़।

प्रश्न 7.
विद्युत धारा का प्रयोग करते समय क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए ?
उत्तर:

  1. विद्युत परिपथ के खुले तारों को कदापि नहीं छूना चाहिए।
  2. विद्युत परिपथ की मरम्मत सदैव प्लास्टिक के हत्थे लगे औजारों से ही करनी चाहिए।
  3. सदैव रबड़ के दस्ताने पहनने चाहिए।
  4. सुरक्षा टेप का प्रयोग करना चाहिए।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्युत सेल का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विद्युत सेल: विद्युत सेल एक ऐसी युक्ति है जो – इसमें संचित रासायनिक ऊर्जा को विद्युत कर्जा में बदलती है। यह धातु की बनी बेलनाकार रचना है। इसमें ऊपर की ओर ६ पातु की टोपी तथा दूसरी ओर धातु की डिस्क (चक्रिका) होती है। धातु की टोपी को सेल का धन (+) टर्मिनल तथा चक्रिका को सेल का ऋण (-) टर्मिनल कहते हैं।

विद्युत सेल के अन्दर रासायनिक पदार्थ भरे होते हैं। इन्हीं पदार्थों से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -12
विद्युत सेल का उपयोग टॉर्च, अलार्म घड़ी, रेडियो, कैमरा, खिलौनों आदि में किया जाता है।

प्रश्न 2.
विद्युत सेल तथा विद्युत बल्ब में टर्मिनलों को कैसे जोड़ा जाता है? चित्र सहित समझाइए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
विभिन्न रंगों के प्लास्टिक का आवरण चढ़े विद्युत तार के चार टुकड़े लीजिए। प्रत्येक तार के टुकड़ों के दोनों सिरों से प्लास्टिक आवरण को हटा दीजिए। इस प्रकार दोनों सिरों पर धातु का तार अनावरित हो जाता। दोनों तारों के अनावरित भागों को विद्युत-सेल तथा दूसरे दो तारों को बल्ब से (चित्रानुसार) जोड़ दीजिए।
बल्ब के साथ तारों को जोड़ने के लिए आप विद्युत रोधी टेप (बिजली मिस्त्रियों द्वारा उपयोग की जाने वाली) और सेल के लिए रबड़ बैंड या टेप का उपयोग कर सकते हैं।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -13

प्रश्न 3.
किसी परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर-किसी विद्युत परिपथ में चित्रानुसार, विद्युत धारा की दिशा विद्युत सेल के धन (+) टर्मिनल से ऋण (-) टर्मिनल की ओर होती है। जब बल्ब के टर्मिनलों को तार के द्वारा विद्युत सेल के टॉमनलो से जोड़ा जाता ह तो बल्बक वन्तु स होकर विद्युत धारा प्रवाहित होती है। यह बल्ब को दीप्तमान करती है।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -14

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 4. आपको विभिन्न वस्तुएँ जैसे चाबी, माचिस की तीली, लोहे की कील इत्यादि दी गई है। साथ ही टॉर्च का एक बल्ब, एक सेल और तार दिया गया है। आप किस प्रकार इन वस्तुओं की चालकता ज्ञात करेंगे। विद्युत चालक एवं विद्युत रोधक वस्तुओं को छाँटिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
चित्रानुसार परिपथ में उस वस्तु को चाबी के स्थान पर बारी-बारी से लगाने पर उनकी चालकता की जाँच कर सकते हैं।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -15
जाँच करने के लिए विभिन्न प्रकार के पदार्थों जैसे- सिक्के, कार्क, रबड़, काँच, चाबियाँ, पिन, प्लास्टिक का स्केल, लकड़ी का गुटका, एल्युमिनियम की पत्ती, मोमबत्ती, सिलाई मशीन की सुई, थर्मोकोल, कागज तथा पेंसिल की लीड आदि एकत्रित कीजिए। चालक-परीक्षित्र के तारों के स्वतन्त्र छोरों को प्रत्येक नमूने से बारी-बारी से स्पर्श करें। ध्यान रखिए कि दोनों तार एक-दूसरे को स्पर्श न करें।

सारणी : विद्युत चालक एवं विद्युत रोधक

स्विच के स्थान पर उपयोग की गई वस्तुपद्रर्थ जिसका घह बना हैअलुज्ज जलता है या नहीं, हाँ/नहीं
1. चाबीधातुहाँ
2. रबड (इरेजर)रबड़नहीं
3. स्केलप्लास्टिकनहीं
4. माचिस की तीलीलकड़ीनहीं
5. काँच की चूड़ीकाँचनहीं
6. लोहे की कीललोहाहाँ

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

विद्युत तथा परिपथ Class 6 HBSE Notes in Hindi

→ हम विद्युत का प्रयोग अपने अनेक कार्यों को आसान करने के लिए करते है।
→ विद्युत से अनेक घरेलू यंत्रों को चलाया जाता है। विद्युत का प्रयोग प्रकाश तथा गर्मी उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
→ विद्युत सेल विद्युत का स्रोत है। विद्युत सेल का उपयोग रेडियो, टॉर्च, कैमरा, घड़ी, अलार्म, खिलौनों आदि में किया जाता है।
→ विद्युत सेल में दो टर्मिनल होते हैं- एक धन टर्मिनल (+) तथा एक ऋण टर्मिनल (-)।
→ विद्युत सेल में भरे गए रासायनिक पदार्थों से सेल विद्युत उत्पन्न करता है।
→ विद्युत बल्ब सेल की रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में बदलता है।
→ विद्युत बल्ब में एक फिलामेंट होता है जो इसके टर्मिनलों से जुड़ा होता है।
→ बल्य केवल तभी दीप्त होता है जब परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
→ स्विच एक सरल युक्ति है जो परिपथ को जोड़ या काट सकती है। घरों में स्विच का उपयोग बल्ब को दीप्तमान करने तथा अन्य युक्तियों को चलाने के लिए किया जाता है।
→ ऐसे पदार्थ जो विद्युत धारा का प्रवाह होने देते हैं, विद्युत के सुचालक कहलाते हैं।
→ ऐसे पदार्थ जो विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होने देते हैं, विद्युत अवरोधक या कुचालक कहलाते हैं।
→ विद्युत चालक तथा विद्युत रोधक हमारे लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। स्विच, विद्युत प्लग, सॉकेट सुचालक पदाथों से बनाए जाते हैं तथा इनके कवर कुचालक पदार्थों से बनाए जाते हैं।
→ बल्य – एक गोलाकार काँच का बना खोखला गोला “जिसमें फिलामेण्ट लगा होता है और इसमें विद्युत प्रवाहित करने पर प्रकाश उत्पन्न करता है।
→ विद्युत – सेल यह एक युक्ति है जिससे रासायनिक पदार्थ से विद्युत प्राप्त होती है।
→ टर्मिनल – सेल या किसी अन्य विद्युत युक्ति के दो स्वतंत्र छोर टर्मिनल कहलाते हैं। इन्हें धन (+) तथा ऋण (-) टर्मिनल कहते हैं।
→ तन्तु – विद्युत बल्ब के अन्दर लगी तार की पतली स्प्रिंग जो विद्युत प्रवाहित करने पर चमकती है, तन्तु या फिलामेंट कहलाती है।
→ विद्युत-परिपथ – विद्युत परिपथ, विद्युत सेल के दोनों टर्मिनलों से लेकर विद्युत ऊर्जा खपत युक्ति तक के सम्पर्क को बताने वाला पथ है।
→ स्विच – यह एक सरल युक्ति है जो विद्युत धारा के प्रवाह को रोकने या प्रारम्भ करने के लिए परिपथ को जोड़ता है अथवा काटता है।
→ विद्युत-चालक – ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत धारा प्रवाहित हो जाती है, विद्युत चालक कहलाते हैं।
→ विद्युत-रोधक – ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत धारा प्रवाहित नहीं हो सकती, विद्युत रोधक कहलाते हैं।

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HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

Haryana State Board HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

HBSE 7th Class Science अपशिष्ट जल की कहानी InText Questions and Answers

बूझो/पहेली

प्रश्न 1.
अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र का बोझ मत बढ़ाइए। पहेली जानना चाहती है कि यह कैसे सम्भव होगा?
उत्तर:
(i) नालियों में चिकनाई न बहाकर ।
(ii) रासायनिक पदार्थ तथा औषधियाँ न बहाकर इनसे शुद्धिकरण में सहायक सूक्ष्म जीव मर सकते हैं।
(iii) कोई भी ठोस पदार्थ नाली में न बहाकर।

प्रश्न 2.
बूझो जानना चाहता है कि हवाई जहाज में वाहित मल का निबटान कैसे होता है ?
उत्तर:
इसे एक टैंक में एकत्रित करके हवाई अड्डे पर लाकर संयंत्र में डाला जाता है जहाँ इसका निबटान किया जाता है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

HBSE 7th Class Science अपशिष्ट जल की कहानी Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) जल को स्वच्छ करना ……………………. को दूर करने का प्रक्रम है।
(ख) घरों द्वारा निर्मुक्त किये जाने वाला अपशिष्ट जल ……………………. कहलाता है।
……………………. का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है।
(घ) नालियाँ ……………………. और ……………………. के द्वारा अवरुद्ध हो जाती हैं।
उत्तर:
(क) संदूषकों
(ख) वाहित मल
(ग) गोबर
(घ) पॉलीथीन, आपंक।

प्रश्न 2.
वाहित मल क्या है ? अनुपचारित वाहित मल को नदियों अथवा समुद्र में विसर्जित करना हानिकारक क्यों है, समझाइए।
उत्तर:
वाहित मल अपशिष्ट जल होता है जो कि घरों, उद्योगों, अस्पतालों आदि द्वारा उपयोग के बाद प्रवाहित होता है। तेज वर्षा के समय गलियों, सड़कों तथा छतों से बहकर आने वाला वर्षा जल भी इसमें शामिल है जो अपने साथ हानिकारक पदार्थों को भी बहा ले जाता है। वाहित मल में धुले हुए तथा निलम्बित अपद्रव्य युक्त जल होता है। ये अपद्रव्य संदूषक कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
तेल और वसाओं को नाली में क्यों नहीं बहाना चाहिए ? समझाइए।
उत्तर:
तेल या वसा हल्का होने के कारण जल की सतह पर तैरता रहता है। इसके कारण वायु जल के अन्दर प्रवेश नहीं कर पाती है। फलस्वरूप ऐसे जल में रहने वाले जीवों को ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती और श्वसन के अभाव में उनकी मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 4.
अपशिष्ट जल से स्वच्छ जल प्राप्त करने के प्रक्रम में सम्मिलित चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वच्छ जल प्राप्त करने के प्रक्रम में सर्वप्रथम जल को बार-बार शलाका छन्नों (बार स्क्रीन) से गुजारा जाता है जिससे कि बड़े आकार के सन्दूषक पृथक हो जाते हैं। अब वाहित अपशिष्ट जल को इस टंकी के अपशिष्ट जल से कम प्रवाह से छोड़ा जाता है, जिससे उसमें उपस्थित बालू, ग्रिट, कंकड़, पत्थर उसकी पेंदी में बैठ जाते हैं। फिर आपंक को अलग किया जाता है। उपचारित जल में अल्प मात्रा में कार्बनिक पदार्थ और निलम्बित अशुद्धियाँ होती हैं। इसे समुद्र, नदी अथवा भूमि में विसर्जित कर दिया जाता है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

प्रश्न 5.
आपंक क्या है ? समझाइए कि इसे कैसे उपचारित किया जाता है ?
उत्तर:
जल शोधन के समय टंकी की तली में बैठ जाने वाली अशुद्धियों (मल आदि) खुरचकर बाहर निकाली जाती हैं जिन्हें आपंक कहते हैं। आपंक को पृथक् टंकी में स्थानान्तरित करके जीवाणुओं द्वारा अपघटित कराया जा सकता है। जल को बालू बिछाकर बनाये शुष्कन तलों अथवा मशीनों द्वारा हटा दिया जाता है। शुष्क अपंक का प्रयोग खाद के रूप में कृषि में किया जाता है।

प्रश्न 6.
अनुपचारित मानव मल एक स्वास्थ्य संकट है। समझाइए।
उत्तर:
अनुपचारित मानव मल, जल तथा मृदा प्रदूषण का कारण बन सकता है। इससे भौमजल तथा सतही जल दोनों ही प्रदूषित हो सकते हैं। अनुपचारित मानव मल से भयंकर बीमारियों के फैलने की अत्यधिक संभावनाएँ होती हैं। इसीलिये यह एक स्वास्थ्य संकट है।

प्रश्न 7.
जल को रोगाणुनाशित (रोगाणुमुक्त) करने के लिये उपयोग किये जाने वाले दो रसायनों के नाम बताइए।
उत्तर:
(i) क्लोरीन
(ii) ओजोन।

प्रश्न 8.
अपशिष्ट जल उपचार संयन्त्र में शलाका छन्नों के कार्यों को समझाइए।
उत्तर:
अपशिष्ट जल को शलाका छन्नों से गुजारे जाने पर बड़े आकार के सभी सन्दूषक अलग हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
स्वच्छता और रोग के बीच सम्बन्ध को समझाइए।
उत्तर:
स्वच्छता और रोग के बीच निम्न सम्बन्ध हैं

  1. गन्दगी के कारण रोगाणु तथा रोग फैलते हैं।
  2. साफ तथा स्वच्छ शरीर से रोगाणु दूर रहते हैं।
  3. जहाँ स्वच्छता होती है वहाँ रोग नहीं होते।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

प्रश्न 10.
स्वच्छता के सन्दर्भ में एक सक्रिय नागरिक के रूप में अपनी भूमिका को समझाइए।
उत्तर:
स्वच्छता के सन्दर्भ में एक सक्रिय नागरिक के रूप में हम निम्न कार्य कर सकते हैं
(i) हम सबसे पहले अपने शरीर को साफ एवं स्वच्छ रखेंगे।
(ii) हम अपने घर तथा इसके आस-पास के वातावरण को स्वच्छ रखेंगे।
(iii) हम अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर जल निकास की उचित व्यवस्था करेंगे।
(iv) मल-मूत्र को खले में नहीं छोड़ेंगे।
(v) हम सम्बन्धित नगरपालिका को साफ-सफाई के सम्बन्ध में सहयोग करेंगे।

प्रश्न 11.
प्रस्तुत वर्ग पहेली को दिये गये संकेतों की सहायता से हल कीजिए।
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी -1

बाएँ से दाएँ-

2. वाहित मल उपचार संयन्त्र से प्राप्त गैसीय उत्पाद.
4. इस प्रक्रम में प्रदूषित जल से वायु को गुजारा जाता है।
7. वाहित मल ले जाने वाले पाइपों की व्यवस्था
8. उपयोग के बाद नालियों में बहता जल।

ऊपर से नीचे
1. जल उपचार में रोगाणुनाशन के लिए प्रयुक्त एक रसायन
3. वह सूक्ष्मजीव, जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैव पदार्थों का विघटन करते हैं।
5. सन्दूषित जल
6. यह स्थान, जहाँ वाहित मल से प्रदूषक पृथक किये जाते हैं।
19. अनेक व्यक्ति इसका विसर्जन खुले स्थानों में करते हैं।
उत्तर:
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी -2

प्रश्न 12.
ओजोन के बारे में निम्नलिखित वक्तव्यों को ध्यानपूर्वक पढ़िए-
(क) यह सजीव जीवों के श्वसन के लिये अनिवार्य
(ख) इसका उपयोग जल को रोगाणु रहित करने के लिये किया जाता है।
(ग) यह पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती
(घ) वायु में इसका अनुपात लगभग 3% है। इनमें से कौन से वक्तव्य सही हैं।
(i) (क), (ख) और (ग)
(ii) (ख) और (ग)
(iii) (क) और (ग)
(iv) सभी चार
उत्तर:
(i) (ख) और (ग)।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

HBSE 7th Class Science अपशिष्ट जल की कहानी Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में से सही विकल्प का चयन कीजिए
1. ‘जीवन के लिए जल’ पर कार्य के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दशक के रूप में घोषित किया गया
(क) वर्ष 1990 से 2000
(ख) वर्ष 1995 से 2005
(ग) वर्ष 2005 से 2015
(घ) वर्ष 2010 से 2020
उत्तर:
(ग) वर्ष 2005 से 2015

2. जल में कार्बनिक अशुद्धियाँ हो सकती हैं
(क) मानव मल
(ख) पीड़कनाशी
(ग) तेल
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

3. प्रदूषित जल में हानिकारक जीव हो सकते हैं
(क) जीवाणु
(ख) प्रोटोजोआ
(ग) बीजाणु
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

4. जल शोधक पदार्थ है
(क) मेथेन
(ख) क्लोरीन
(ग) सैकरीन
(घ) फीनॉल
उत्तर:
(ख) क्लोरीन

5. जैव निम्नीकरणीय जल प्रदूषक है
(क) प्लास्टिक की थैली
(ख) शाकनाशी
(ग) पीड़कनाशी
(घ) मानव मल
उत्तर:
(घ) मानव मल

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

II. रिक्त स्थान

निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थान भरिए
1. अपशिष्ट जल के उपचार का प्रक्रम सामान्य रूप से ……………….. कहलाता है।
2. सीवर मिलकर ………… की व्यवस्था करता है।
3. निर्मलीकृत जल में पंप द्वारा वायु को गुजारा जाता है जिससे उसमें ………… की वृद्धि होती है।
4. ………… उन स्थानों के लिए उपयुक्त हैं जहाँ मल वहन की व्यवस्था नहीं है।
उत्तर;
1. वाहित मल उपचार
2. मल विसर्जन
3. वायवीय जीवाणु
4. सैप्टिक टैंक।

III. सुमेलन

कॉलम A तथा कॉलम B के शब्दों का मिलान कीजिए

कॉलम Aकॉलम B
1. टाइफाइड(a) वायुवीय जीवाणु
2. जल निर्मलीकरण(b) प्रदूषित जल का उपयोग
3. कीटनाशक(c) वाहित मल उपचार संयंत्र
4. वातित्र(d) जल प्रदूषक

उत्तर:

कॉलम Aकॉलम B
1. टाइफाइड(b) प्रदूषित जल का उपयोग
2. जल निर्मलीकरण(a) वायुवीय जीवाणु
3. कीटनाशक(d) जल प्रदूषक
4. वातित्र(c) वाहित मल उपचार संयंत्र

IV. सत्य/असत्य

निम्नलिखित वाक्यों में से सत्य एवं असत्य कथन छाँटिए
1. वह जल जो शौचालयों, लान्ड्री, सिंक, कारखानों आदि से निकलता है, अपशिष्ट जल कहलाता है।
2. हैजा और टाइफाइड रोग के रोग कारक क्रमशः विनियो कोलेरा एवं साल्मानेला पैराटाइफी जीवाणु हैं।
3. अपशिष्ट जल में तैरने वाले तेल और ग्रीज को हटाने के लिए अपमथित्र (स्किमर) का उपयोग किया जाता है।
4. बायोगैस का उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में नहीं किया जा सकता है।
उत्तर:
1, सत्य
2. सत्य
3. सत्य
4. असत्य।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जल के शुद्धिकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
शुद्धिकरण की प्रक्रिया जिसमें जल से पानी व सन्दूषित पदार्थों को पृथक् कर दिया जाता है।

प्रश्न 2.
वाहित मल क्या होता है ?
उत्तर:
वाहित मल घरों, उद्योगों, अस्पतालों, कार्यालयों और अन्य उपयोगों के बाद प्रवाहित किया जाने वाला जल होता है।

प्रश्न 3.
सन्दूषक किसे कहते हैं ?
उत्तर;
जल में घुले हुए तथा निलम्बित अपद्रव्य होते हैं जिन्हें सन्दूषक कहते हैं।

प्रश्न 4.
वाहित मल जल में कौन-कौन से पदार्थ हो सकते हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर:

  1. सूक्ष्म जीव
  2. रासायनिक अपशिष्ट
  3. धातुओं के कण
  4. सीसा के कण।

प्रश्न 5.
सन्दूषित जल के प्रयोग से किन रोगों के होने की सम्भावना होती है ?
उत्तर:
हैजा, टाइफाइड, पोलियो, मेनिन्जाइटिस, हेपैटाइटिस और पेचिश।

प्रश्न 6.
उस जीव का नाम लिखिये जिसका प्रयोग जल के शुद्धिकरण में किया जाता है ?
उत्तर:
जीवाणु (बैक्टीरिया)।

प्रश्न 7.
दो ऐसे पदार्थों के नाम लिखिए जिनसे जल को कीटाणु मुक्त किया जा सकता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
(i) फिटकरी
(ii) क्लोरीन।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

प्रश्न 8.
नदियों में जल प्रदूषण के दो कारक लिखिए।
उत्तर:
(i) घरेलू बाहित मल
(ii) उद्योगों का कचरा।

प्रश्न 9.
अपशिष्ट जल को कहाँ उपचारित किया जाता है ?
उत्तर:
अपशिष्ट जल को वाहित मल उपचार संयन्त्र में उपचारित किया जाता है।

प्रश्न 10.
हमारे लिये जल के स्रोत क्या हैं ?
उत्तर:
नदियाँ, कुएँ, ट्यूबवैल, झरने आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आरेख में खाली स्थानों में उपयुक्त शब्द भरिए। (क्रियाकलाप)
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी -3
उत्तर:
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी -4

प्रश्न 2.
ऐसे चार क्रियाकलापों की सूची बनाइए जिसे न करने पर आप जल को सन्दूषणरहित बनाने में योगदान कर सकते हैं?
उत्तर:

  • हमें खुले स्थानों पर मल विसर्जन नहीं करना चाहिए।
  • रसोईघर के अपशिष्ट पदार्थ, जैसे सब्जियों के छिलके आदि को नालियों में नहीं डालना चाहिए।
  • खाना पकाने के तेल एवं बर्तन साफ करने से निकले मैले को जल में नहीं डालना चाहिए।
  • कीटनाशकों, औषधियों, पेंट, विलायक आदि को जल में नहीं फेंकना चाहिए।

प्रश्न 3.
कृमि प्रसंस्करण शौचालय का क्या महत्व
उत्तर:
भारत में ऐसे शौचालयों की रूपरेखा का परीक्षण किया गया है, जिसमें मानव मल को केंचुओं द्वारा उपचारित किया जाता है। यह तकनीक मानव मल के सुरक्षित प्रसंस्करण के लिये आदर्श सिद्ध हो सकती है, क्योंकि इसके उपयोग में जल की बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है। शौचालय का संचालन बहुत सरल और स्वच्छ है। मानव मल पूर्णत: कृमि केकों में परिवर्तित हो जाता है जो मृदा के लिये अति समृद्ध पोषक है।

प्रश्न 4.
वाहित जल में पाई जाने वाली विभिन्न अशुद्धियों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
वाहित जल में पाई जाने वाली अशुद्धियाँ निम्न प्रकार हैं
(1) कार्बनिक अशुद्धियाँ-मानव मल, जैविक अपशिष्ट पदार्थ, तेल, यूरिया (मूत्र), पीड़कनाशी, शाकनाशी, फल एवं सब्जी का कचरा आदि।
(2) अकार्बनिक अशुद्धियाँ-नाइट्रेट, फॉस्फेट, धातुएँ।
(3) पोषक तत्व-फॉस्फोरस और नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ।
(4) जीवाणु-हैजा और टाइफाइड आदि रोग उत्पन्न करने वाले।
(5) अन्य सूक्ष्म जीव पेचिश आदि रोग उत्पन्न करने वाले।

प्रश्न 5.
मल विसर्जन व्यवस्था क्या होती है ?
उत्तर:
घरों तथा सार्वजनिक भवनों को स्वच्छ जल की आपूर्ति सामान्यत: पाइपों के जाल द्वारा की जाती है। पाइपों के एक अन्य जाल द्वारा उपयोग किये जा चुके जल को ले जाया जाता है। उपयोग किये जा चुके जल को ले जाने वाली पाइप लाइनों को सीवर कहते हैं जो मल विसर्जन की व्यवस्था करता है। यह एक परिवहन तन्त्र की तरह है जो वाहित मल को उसके उद्गम स्थल से उसके निबटान के स्थान अर्थात् उपचार संयन्त्र तक ले जाता है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अपशिष्ट जल उपचार संयन्त्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपशिष्ट जल के उपचार में भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रम सम्मिलित होते हैं। यह प्रक्रम जल को सन्दूषित करने वाले भौतिक, रासायनिक और जैविक द्रव्यों को पृथक् करने में सहायता करते हैं।
(1) सबसे पहले अपशिष्ट जल को ऊर्ध्वाधर लगी छड़ों से बने शलाका छन्ने (बार स्क्रीन) से गुजारा जाता है। इससे अपशिष्ट जल में उपस्थित कपड़ों के टुकड़े, डण्डियाँ, डिब्बे, प्लास्टिक के पैकेट, नैपकिन आदि जैसे बड़े साइज के सन्दूषक अलग हो जाते हैं।

(2) अब वाहित अपशिष्ट जल को ग्रिट और बालू अलग करने की टंकी में ले जाया जाता है। इस टंकी में अपशिष्ट जल को कम प्रवाह से छोड़ा जाता है, जिससे उसमें उपस्थित बालू, ग्रिट और कंकड़-पत्थर उसकी पेंदी में बैठ जाते हैं।

(3) फिर जल को एक ऐसी बड़ी टंकी में ले जाया जाता है जिसका पेंदा मध्य भाग की ओर ढलान वाला होता है। जल को इस टंकी में कई घण्टों तक रखा जाता है, जिसमें मल जैसे ठोस उसकी तली के मध्य भाग में बैठ जाते हैं। इन अशुद्धियों को खुरचकर बाहर निकाल दिया जाता है। यह आपंक (स्लज) होता है। अपशिष्ट जल में तैरने वाले तेल और ग्रीस जैसी अशुद्धियों को हटाने के लिये अपमथित्र (स्किमर) का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार साफ किया गया जल निर्मलीकृत होता है।

(4) निर्मलीकृत जल में पम्प द्वारा वायु को गुजारा जाता है जिससे जीवाणुओं की वृद्धि होती है। ये अनेक अपशिष्ट पदार्थों का विघटन कर देते हैं।

कई घण्टों के पश्चात् जल में निलम्बित सूक्ष्म जीव टंकी की पेंदी में सक्रिय आपंक के रूप में बैठ जाते हैं। अब शीर्ष भाग से जल को निकाल दिया जाता है। सक्रिय आपंक लगभग 97% जल है। जल को बालू बिछाकर बनाये शुष्कन तो अथवा मशीनों द्वारा हटा दिया जाता है। शुष्क आपंक का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है जिससे कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्व पुनः मृदा में वापस चले जाते हैं।

उपचारित जल में अल्प मात्रा में कार्बनिक पदार्थ और निलम्बित तत्व होते हैं। इसे समुद्र, नदी अथवा भूमि में विसर्जित कर दिया जाता है। कभी-कभी जल को वितरण तन्त्र में निर्मुक्त करने से पहले उसमें क्लोरीन अथवा ओजोन मिलाकर रोगाणुमुक्त किया जाता है।

प्रश्न 2.
अपने संदूषक सर्वेक्षण के आधार पर वाहित मल के प्रकार, उत्पत्ति स्थल, उपस्थित संदूषक पदार्थों की तालिका बनाइए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
सारणी सन्दूषक सर्वेक्षण

वाहित मल का प्रकारउत्पत्ति स्थलसंदूषक पदार्थकोई अन्य टिप्पणी
कूड़ा-करकट/मलिन जलरसोईशाकनाशीज्यादा प्रदूषित नहीं
दुर्गन्ध युक्त अपशिष्टशौचालयमलबहुत प्रदूषित
व्यावसायिक अपशिष्टऔद्योगिक और व्यावसायिक संस्थानरसायनअत्यधिक प्रदूषित

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वन: हमारी जीवन रेखा Class 7  HBSE Notes in Hindi

→ झाग से भरपूर, तेल मिश्रित, काले, भूरे रंग का जल जो सिंक, शौचालय, लॉन्ड्री आदि से नालियों में जाता है, वह अपशिष्ट जल कहलाता है।
→ जल समस्या की गंभीरता को समझते हुए विश्व जल दिवस 22 मार्च 2005 को संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेम्बली ने 2005-2015 को जीवन के लिए जल पर कार्य के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दशक के रूप में घोषित किया है।
→ वाहित मल घरों, उद्योगों, अस्पतालों, कार्यालयों और अन्य उपयोगों के बाद प्रवाहित किए जाने वाला जल अपशिष्ट जल होता है।
प्रयुक्त जल अपशिष्ट जल कहलाता है, जिसका पुन: उपयोग किया जा सकता है।
→ वाहित मल द्रवरूपी अपशिष्ट पदार्थ होता है जो जल और मृदा का प्रदूषण उत्पन्न करता है।
→ छोटे एवं बड़े पाइपों की भूमि के अन्दर बनायी गयी व्यवस्था जो मिलकर मल विसर्जन की व्यवस्था करती है, सीवर कहलाती है।
अपशिष्ट जल उपचार के सह-उत्पाद, आपंक और बायो गैस हैं।
→ खुली (मुक्त) नाली व्यवस्था, मक्खी, मच्छर और अन्य ऐसे जीवों के लिए प्रजनन स्थल प्रदान करती है, जो रोग उत्पन्न करते हैं।
→ हमें खुले में मलत्याग नहीं करना चाहिये। कम लागत विधियों को अपनाकर मल का सुरक्षित निबटान सम्भव है।
→ अपशिष्ट जल – उपयोग के बाद बचा प्रदूषित जल अपशिष्ट जल कहलाता है।
→ वाहित मल – नालियों से बहता हुआ जल जिसमें घरेल, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ होते हैं।
→ सीवर – वह व्यवस्था जो नालियाँ एवं पाइपों को जोड़कर मल विसर्जन के लिए बनायी जाती है।
→ वातन – वाहित मल में वायु का संचरण करना।
→ अपशिष्ट पदार्थ – ऐसे पदार्थ जो प्रयोग करने के बाद व्यर्थ बच जाते हैं।
→ आपंक – जब अपशिष्ट जल को साफ करने के लिये टंकी में ले जाया जाता है तो अपशिष्ट ठोस उसकी तली में बैठ जाते हैं, यह आपंक कहलाता है।
→ अवायवीय जीवाणु – जीवाणु जिन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है।
→ वायवीय जीवाणु – जीवाणु जिन्हें जीवित रहने के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
→ जैवनिम्नीकरण – ऐसे अपशिष्ट पदार्थ जिन्हें सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित (निम्नीकृत) किया जा सकता है।
→ बायो गैस – अवायवीय जीवाणुओं द्वारा आपंक को अपघटित करने पर एक ज्वलनशील गैस उत्पन्न होती है जो बायो गैस कहलाती है।
→ जल शोधन – अपशिष्ट जल का शुद्धीकरण।

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HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

Haryana State Board HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

HBSE 7th Class Science वन: हमारी जीवन रेखा InText Questions and Answers

बूझो/पहेली

प्रश्न 1.
पहेली को याद आया कि उसने अपने विद्यालय की पावं दीवार पर पीपल का एक पौधा उगा हुआ देखा था। क्या आप यह समझने में उसकी सहायता कर सकते हैं कि वह वहाँ कैसे उग आया ?
उत्तर:
पीपल के फल गोल तथा स्वादिष्ट होते हैं। इनके अन्दर असंख्य सूक्ष्म बीज होते हैं। पके फलों को पक्षियों द्वारा खा लिया जाता है। पक्षियों के उदर में फल तो पच जाते हैं पर बीज नहीं पचते। ये बीज पक्षियों की बीट के साथ बाहर आते हैं। पक्षियों की बीट दीवारों, अन्य वृक्षों आदि पर गिरती हैं तो ये दीवारों या तनों की छाल में एकत्र थोड़ी-सी मिट्टी में ही उग आते हैं। ये इन स्थानों पर काफी बड़े हो सकते हैं।

प्रश्न 2.
यदि वन लुप्त हो जाये तो क्या होगा?
उत्तर:
पर्यावरण सन्तुलन बिगड़ जायेगा। वन्य जीवन में उथल-पुथल हो जायेगा। पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ जाएगा। इसके कारण जन्तु-जीवन भी खतरे में आ जाएगा।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

HBSE 7th Class Science वन: हमारी जीवन रेखा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
समझाइए कि वन में रहने वाले जन्तु किस प्रकार वनों की वृद्धि करने और पुनर्जनन में सहायक होते
उत्तर:
जन्तु कुछ विशेष प्रकार के पादपों के बीजों के प्रकीर्णन में सहायक होते हैं। जन्तुओं के क्षयमान मल से नवोद्भिदों को उगने के लिये पोषकता भी प्राप्त होती है। कुछ बीज तो ऐसे होते हैं जो जन्तुओं के पेट में जाकर और मल के साथ बाहर निकलकर ही अंकुरण कर पाते हैं। इस प्रकार जन्तु वनों की वृद्धि और पुनर्जनन में सहायक होते हैं।

प्रश्न 2.
समझाइए कि वन, बाढ़ की रोकथाम किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर:
वन अनेक प्रकार से बाढ़ की रोकथाम करते हैं, जैसे-

  1. वनों के कारण वर्षा जल सीधे जमीन पर नहीं गिरता।
  2. घना तथा विस्तृत वितरण होने पर वर्षा भी एक ही स्थान पर नहीं होती और वर्षा का पानी जमीन में रिसकर चला जाता है।
  3. पेड़-पौधों की जड़ें मिट्टी को बाँधे रखती हैं जिससे मृदा का क्षरण नहीं होता है।
  4. जल के साथ बहने वाली मृदा नदियों में पहुँचकर उन्हें अवरुद्ध कर देती है जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
  5. इस प्रकार पेड़-पौधे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से बाढ़ नियन्त्रण में सहायक होते हैं।

प्रश्न 3.
अपघटक किन्हें कहते हैं ? इनमें से किन्हीं दो के नाम बताइए। ये वन में क्या करते हैं ?
उत्तर:
अपघटक – ऐसे सूक्ष्म जीव जो मृत पेड़-पौधों तथा जन्तुओं एवं इनके अपशिष्टों का अपघटन करके इन्हें ह्यूमस में परिवर्तित कर देते हैं, अपघटक कहलाते हैं।
उदाहरण – जीवाणु एवं मशरूम अपघटक की श्रेणी में आते हैं। वन में अपघटक पेड़-पौधों से गिरी पत्तियों, मृत जन्तुओं के शरीरों का अपघटन करके मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं।

प्रश्न 4.
वायुमण्डल में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के बीच सन्तुलन को बनाए रखने में वनों की भूमिका को समझाइए।
उत्तर:
सभी हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं तथा ऑक्सीजन मुक्त करते हैं। इस प्रकार वन वायुमण्डल में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के सन्तुलन को बनाये रखते हैं।
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन हमारी जीवन रेखा -1

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

प्रश्न 5.
समझाइए कि वनों में कुछ भी व्यर्थ क्यों नहीं होता है?
उत्तर:
पेड़-पौधों की गिरी हुई, पत्तियाँ, कूड़ा-करकट, जन्तुओं के मृत शरीर, हड्डियाँ आदि सभी को सूक्ष्म जीव अपघटित करके अपना पोषण प्राप्त कर लेते हैं तथा अनेक पदार्थों को मृदा में मिला देते हैं।

प्रश्न 6.
ऐसे पाँच उत्पादों के नाम बताइए जिन्हें हम वनों से प्राप्त करते हैं ?
उत्तर;
कागज, गोंद, मसाले, फल, रेशा, शहद आदि।

प्रश्न 7.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) कीट, तितलियाँ, मधुमक्खियाँ और पक्षी, पुष्पीय पादपों की ……….. में सहायता करते हैं।
(ख) वन परिशुद्ध करते हैं ………………. और ………………. को।
(ग) शाक वन में ………………. परत बनाते हैं।
(घ) वन में क्षयमान पत्तियाँ और जन्तुओं की लीद ………………. को समृद्ध करते हैं।
उत्तर;
(क) परागण
(ख) जल, हवा
(ग) सतही
(घ) ह्यूमस।

प्रश्न 8.
हमें अपने से दूर स्थित वनों से सम्बन्धित परिस्थितियों और मुद्दों के विषय में चिन्तित होने की क्यों आवश्यकता है?
उत्तर:
वन हमारे लिए अति उपयोगी संसाधन हैं। ये वायु को शुद्ध करने के साथ-साथ जल-चक्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन वर्षा कराने, बाढ़ नियन्त्रण आदि में भी हमारे लिये उपयोगी हैं। वनों से हमें अनेक वस्तुएँ एवं खाद्य प्राप्त होते हैं। इसलिए हमें सभी प्रकार के वनों से सम्बन्धित परिस्थितियों और मुद्दों के विषय में चिन्तित होने की आवश्यकता है।

प्रश्न 9.
समझाइए कि वनों में विभिन्न प्रकार के जन्तुओं और पादपों के होने की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
वनों में अनेक खाद्य श्रृंखलाएँ मिलती हैं तथा – सभी परस्पर सम्बद्ध होती हैं। यदि किसी एक खाद्य श्रृंखला में कोई विघ्न पड़ता है, तो अन्य खाद्य श्रृंखलाएँ प्रभावित होती हैं। उदाहरण के लिये; घास को कीटों द्वारा खाया जाता है जिन्हें मेंढक खाते हैं, मेंडक को सर्प खा लेते हैं। इस प्रकार बनी श्रृंखला, खाद्य शृंखला कहलाती है।

वन की प्रत्येक कड़ी एक-दूसरी कड़ी पर निर्भर होता है। किसी एक घटक को अलग कर देने पर अन्य सभी घटक प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 10.
चित्र (पा. पु. पृष्ठ 228) में चित्रकार, चित्र को नामांकित करना और तीरों द्वारा दिशा दिखाना भूल गया है। तीरों पर दिशा को दिखाइए और चित्र को निम्नलिखित नामों द्वारा नामांकित कीजिए
बादल, वर्षा, वायुमण्डल, कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, पादप, जन्तु, मृदा, अपघटक, मूल, भौमजल स्तर।
उत्तर:
नामांकित चित्र
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन हमारी जीवन रेखा -2

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प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-सा वन उत्पाद नहीं
(i) गोंद
(ii) प्लाईवुड
(iii) सील करने की लाख
(iv) कैरोसीन।
उत्तर:
(iv) कैरोसीन।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन-सा वक्तव्य सही नहीं है
(i) वन, मृदा को अपरदन से बचाते हैं।
(ii) वन में पादप और जन्तु एक-दूसरे पर निर्भर नहीं होते हैं।
(iii) वन जलवायु और चल चक्र को प्रभावित करते हैं।
(iii) मृदा, वनों की वृद्धि और पुनर्जनन में सहायक होती
उत्तर:
(ii) वन में पादप और जन्तु एक-दूसरे पर निर्भर नहीं होते हैं।

प्रश्न 13.
सूक्ष्म जीवों द्वारा मृत पादपों पर क्रिया करने से बनने वाले एक उत्पाद का नाम है
(i) बालू
(ii) मशरूम
(iii) ह्यूमस
(iv) काष्ठ।
उत्तर:
(iii) ह्यूमस

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HBSE 7th Class Science वन: हमारी जीवन रेखा Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में से सही विकल्प का चयन कीजिए
1. किसी वन में होते हैं
(क) वृक्ष और जन्तु
(ख) सूक्ष्म जीव-जन्तु
(ग) अपघटक व जीवाणु
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

2. वन आवास है
(क) गौर का
(ख) शूकरों का
(ग) बन्दरों का
(घ) इन सभी का
उत्तर:
(घ) इन सभी का

3. वन्य उत्पाद नहीं है
(क) शहद
(ख) काष्ठ
(ग) खनिज लवण
(घ) जड़ी-बूटी।
उत्तर:
(ग) खनिज लवण

4. उत्पादक हैं
(क) घास
(ख) ट्ड्डिा
(ग) मेढ़क
(घ) गरूड़
उत्तर:
(क) घास

5. वन
(क) वायु शुद्ध करते हैं
(ख) वर्षा कराते हैं
(ग) मृदा अपरदन रोकते हैं
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

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II. रिक्त स्थान

निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थान भरिए
1. हरे भरे वन हमारे लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितना हमारे ………… हैं।
2. वन, जल ………… के रूप में भी कार्य करते हैं।
3. वृक्षों की शाखाओं व पत्तियों से बनी छतरी आकार की संरचना ………… कहलाती है।
4. वन वर्षा जल के ………… का कार्य करते हैं।
उत्तर:
1. फेफड़े
2. शोधन तंत्रों
3. वितान
4. प्राकृतिक अवशोषक।

III. सुमेलन

कॉलम ‘A’ के शब्दों को कॉलम ‘B’ के शब्दों से मिलान कीजिए-

कॉलम Aकॉलम B
1. ह्यूमस(a) हरे पौधे
2. प्रकाश संश्लेषण(b) अपघटक
3. कैटरपिलर(c) उगते हुए बीज
4. नवोदभिद्(d) लार्वा

उत्तर:

कॉलम Aकॉलम B
1. ह्यूमस(b) अपघटक
2. प्रकाश संश्लेषण(a) हरे पौधे
3. कैटरपिलर(d) लार्वा
4. नवोदभिद्(c) उगते हुए बीज

IV. सत्य/असत्य

निम्नलिखित वाक्यों में से सत्य एवं असत्य कथन छाँटिए
1. वनों में सूक्ष्म जीवों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
2. शेर वन में स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं, उनका वनों से कोई सम्बन्ध नहीं होता।
3. वन एक गतिक सजीव इकाई है।
4. वन व्यर्थ में जल उड़ाते है, पर्यावरण में इनकी कोई भूमिका नहीं होती है।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. असत्य।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जब वन में कोई जन्तु मर जाता है, तो उसका क्या होता है ?
उत्तर:
वह माँसाहारी जीवों, जैसे- गिद्ध, कौआ, सियार और सूक्ष्म जीवों का आहार बनता है।

प्रश्न 2.
जब आपके शहर में तेज वर्षा होती है, तो क्या होता है ?
उत्तर:
तेज वर्षा होने पर जगह-जगह पानी भर जाता है। कई बार तो बाढ़ आ जाती है।

प्रश्न 3.
वन दिन-प्रतिदिन क्यों खत्म हो रहे हैं ?
उत्तर:
जनसंख्या वृद्धि के कारण, उद्योगों एवं सड़कों आदि के बनाने के कारण।

प्रश्न 4.
वन पर्यावरण के फेफड़े क्यों कहलाते हैं ?
उत्तर:
जिस प्रकार हमारे फेफड़े शुद्ध वायु को हमारे शरीर में भेजते हैं उसी प्रकार वन वायु को शुद्ध करते हैं।

प्रश्न 5.
दो वन्य जन्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
सियार, सिंह।

प्रश्न 6.
दो वन्य वृक्षों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शीशम, बाँस।

प्रश्न 7.
कैनोपी क्या होती हैं ?
उत्तर:
बड़े वृक्षों की शाखाएँ छत जैसी आकृति बनाती हैं, इन्हें वितान (कैनोपी) कहते हैं।

प्रश्न 8.
पौधों को उनके आकार के आधार पर कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर:
तीन भागों में शाक, झाड़ी तथा वृक्ष।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

प्रश्न 9.
वन में पायी जाने वाली किसी आहार श्रृंखला को बनाइए।
उत्तर:
घास → कीट → मेंढक → सर्प → मोर।

प्रश्न 10.
वन भूमि की सतह पर आपको क्या दिखाई देता है ?
उत्तर:
वन भूमि की सतह पर सूखी पत्तियाँ, कीड़ेमकोड़े, गोबर आदि दिखाई देता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वन हमारी किस प्रकार सहायता करते हैं ?
उत्तर:
वन हमारी निम्न प्रकार सहायता करते हैं

  1. वन हमारे वातावरण को शुद्ध करते हैं।
  2. वन हमें ईंधन के लिए लकड़ी प्रदान करते हैं।
  3. वर्गों से हमें फल, फूल, ईधन आदि प्राप्त होते हैं।
  4. वन वर्षा कराने में सहायता करते हैं।

प्रश्न 2.
“वन में इतने सारे वृक्ष हैं। यदि हम कारखाने के लिए कुछ वृक्षों को काट दें, तो क्या फर्क पड़ेगा ?” (क्रियाकलाप)
उत्तर:
वृक्ष पर्यावरण की रक्षा करते हैं। ये वायु को शुद्ध करते हैं तथा वर्षा होने में मदद करते हैं। वन अनेक वन्य जीवों के आवास भी हैं। वनों से वृक्षों को काटने पर उपरोक्त क्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। .

प्रश्न 3.
यदि वृक्षों की संख्या कम होगी तो जल चक्र किस प्रकार प्रभावित होगा?
उत्तर:
वृक्ष भीमजल का अवशोषण करके उसका वाष्पोत्सर्जन करते हैं। वृक्षों द्वारा बादलों का आकर्षण भी होता है। जहाँ अधिक वृक्ष होते हैं वहाँ का वातावरण ठण्डा हो जाता है जिससे बादल ठण्डे होकर बरसते हैं। वाष्पीकरण से बादल बनते हैं तथा संघनन द्वारा बरसते हैं। इस प्रकार ये जल-चक्र में सहायता करते हैं। यदि वृक्षों की संख्या कम हो जायेगी तो जल-चक्र प्रभावित होगा।

प्रश्न 4.
मृदा अपरदन क्या है ? वृक्ष मृदा अपरदन को किस प्रकार रोकते हैं?
उत्तर:
जल धारा या तेज पवन द्वारा मृदा को बहाकर ले जाया जाना मृदा अपरदन कहलाता है। वृक्ष मृदा अपरदन को रोकने में निम्न प्रकार से सहायता करते हैं-

  • वृक्षों का वितान वर्षा की तीव्र बूंदों को जमीन पर सीधे ही नहीं आने देता है जिससे मिट्टी पानी में नहीं घुल पाती।
  • वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं जिससे मिट्टी पानी के साथ बह नहीं पाती है।

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प्रश्न 5.
वन अपरोपण क्या है ? इसके क्या प्रभाव
उत्तर:
वनों का खत्म होना या कटाई होना अपरोपण कहलाता है। वन अपरोपण के निम्न प्रभाव होंगे।

  1. यदि वन नष्ट होंगे तो वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ेगी, जिससे पृथ्वी का ताप बढ़ेगा।
  2. पेड़ों और पादपों की अनुपस्थिति में जीवों को खाद्य और आश्रय नहीं मिलेगा।
  3. पेड़ों की अनुपस्थिति में मृदा, जल को नहीं बाँध पाती है जिससे बाढ़ आती है।
  4. हमारे जीवन और वातावरण के लिये वन अपरोपण घातक है।

प्रश्न 6.
ह्यूमस का निर्माण कैसे होता है ? यह किस प्रकार लाभदायक है ?
उत्तर:
वनों में पेड़-पौधों से पत्तियाँ गिरती रहती हैं जिससे वन भूमि इनसे ढक जाती है। साथ ही वन भूमि पर जन्तुओं के अपशिष्ट भी गिरते रहते हैं। ऐसी भूमि में सूक्ष्म जीवों की भरमार होती है। ये सूक्ष्म जीव पत्तियों, मल तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थों का विघटन करके अपना भोजन प्राप्त करते हैं। फलस्वरूप एक गहरे रंग का पदार्थ बनता है जिसे होमस कहते हैं। घुमस में अनेक कार्बनिक पदार्थ उपस्थित होते हैं। ये मृदा में मिलकर पौधों के लिए पोषण प्रदान करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वनों से प्राप्त होने वाले विभिन्न उत्पादों को सूचीबद्ध कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
काष्ठ से बनी वस्तुएँ-प्लाईवुड, ईंधन की लकड़ी, बक्से, कागज, माचिस की तीलियाँ , फर्नीचर, खिलौने।
शहद-वनों में मधुमक्खी अपने छत्ते बनाती हैं। औषधियाँ-अनेक जड़ी-बूटियाँ। अन्य-मसाले, फल, चारा, तेल, गोंद आदि ।

प्रश्न 2.
वन में मृदा, पादप, जन्तु और अपघटक किस प्रकार सम्बन्धित होते हैं ? चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा सभी के लिये अत्यन्त आवश्यक कारक है। पौधे मृदा में उगते हैं तथा जन्तु मृदा में रहते हैं। पौधों को जल एवं खनिज लवण मृदा से ही प्राप्त होते हैं। मृदा में ये पदार्थ इनके चक्रण से सूक्ष्म जीवों द्वारा ही आते हैं। मृदा में जल उपस्थित होता है जिसे पौधे अवशोषित करते हैं। वृक्ष एवं पौधे अनेक जन्तुओं का आश्रय तथा भोजन बनते हैं। ये पर्यावरण को शुद्ध करते हैं तथा जन्तुओं के लिए ऑक्सीजन भी देते हैं। अनेक जन्तु पेड़ों के बीजों का प्रकीर्णन करके वनों के पुनर्जनन में सहायता करते हैं। पेड़ों और पौधों के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है जो कि जन्तुओं द्वारा श्वसन से प्राप्त होती है। इस प्रकार वन में पादप, जन्तु तथा सूक्ष्म जीव परस्पर, सम्बन्धित होते हैं।
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन हमारी जीवन रेखा -3

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(क) खाद्य श्रृंखला
(ख) अधोतल
(ग) अपघटक
(घ) वृक्ष वितान।
उत्तर:
(क) खाद्य श्रृंखला: वन में विभिन्न जीव एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। जैसे-घास को टिड्डा खाता है, टिड्डे को मेंढ़क खाता है, मेंढ़क को सर्प खाता है तथा सर्प को मोर खाता है। इस प्रकार एक श्रृंखला बन जाती है। इसे खाद्य श्रृंखला कहते हैं।

(ख) अधोतल : वन में विभिन्न आकार के वृक्ष पाये जाते हैं। बहुत से लम्बे वृक्षों के नीचे छोटे वृक्ष भी होते हैं। छोटे वृक्षों द्वारा बनाया गया तल अधोतल कहलाता है।

(ग) अपघटक : मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीव, जैसेकेंचुआ, जीवाणु, कवक, सहस्रपाद, चीटिया, दीमक आदि अपघटक कहलाते हैं। ये मृत पेड़-पौधों, जन्तुओं तथा इनके अपशिष्ट उत्पाद (गोबर, मूत्र) आदि का विघटन करके अपना भोजन प्राप्त करते हैं तथा ह्यूमस का निर्माण करते हैं।

(घ) वृक्ष वितान : वृक्षों के आकार एवं आकृति विभिन्न प्रकार की होती हैं। इनकी शाखाएँ एक विशिष्ट आकृति बनाती हैं जिसे वृक्ष वितान या कैनोपी कहते हैं। उदाहरण के लिए; नीम की कैनोपी गुम्बदाकार होती है तथा चीड़ की कैनोपी छाते के आकार की होती है।

प्रश्न 4.
क्या सभी वनों में वृक्ष समान प्रकार के होते हैं ? वृक्षों की लम्बाई, पत्तियों का प्रकार, शिखर आदि को तालिकाबद्ध कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
नहीं, वनों में उस प्रदेश की जलवायवीय स्थितियों के अनुसार वृक्षों में अन्तर पाया जाता है।
कुछ वृक्षों की विशेषताएँ

वृक्ष का नामलम्बाईपत्तियों का आकारशिखरपुष्पों का प्रकारफलों का प्रकारबीज
1. आम8-12 मीचौड़ी लम्बाग्रगुम्बदाकारअत्यधिक छोटेरसीलेबड़े
2. पीपल8-12 मीचौड़ी अण्डाकारगुम्बदाकारबहुत छोटे एक गोली जैसी संरचना में बन्दबेरी प्रकार केसूक्ष्म
3. चीड़10-15 मीसुई के आकार कीसँकरेनहीं बनतेनहीं बनतेमध्यम तथा काले
4. अशोक12-15 मीपत्ती चौड़ी तथा लम्बीसँकराछोटेमध्यम बेर जैसेबड़े

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

प्रश्न 5.
कुछ वृक्षों के शिखर आरेख का चित्र बनाइए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 17 वन हमारी जीवन रेखा -4

वन: हमारी जीवन रेखा Class 7  HBSE Notes in Hindi

→ ‘वन’ विभिन्न पादपों, जन्तुओं और सूक्ष्म जीवों से मिलकर बना एक तन्त्र है।
→ वनों से हमें अनेक उत्पाद मिलते हैं। वनों की सबसे ऊपरी परत वृक्ष शिखर बनाते हैं, जिसके नीचे झाड़ियों द्वारा बनी परत होती है। शाक वनस्पतियाँ सबसे नीचे की परत बनाती हैं।
→ वनों में वनस्पतियों की विभिन्न परतें जन्तुओं, पक्षियों और कीटों को भोजन और आश्रय प्रदान करती हैं।
→ वन में उत्पादक (हरे पौधे) तथा उपभोक्ता (जन्तु) एक-दूसरे से अन्योन्य क्रियाएँ करते हैं।
→ उत्पादक तथा उपभोक्ता मिलकर खाद्य शृंखलाएँ तथा खाद्य जाल बनाते हैं।
→ पादपों तथा जन्तुओं के मृत शरीर को अपघटित करने वाले सूक्ष्म जीव अपघटक कहलाते हैं।
→ वन के सभी घटक एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।
→ वन वृद्धि करते और परिवर्तित होते रहते हैं तथा उनका पुनर्जनन हो सकता है।
→ वन में मृदा, जल, वायु और सजीवों के बीच परस्पर क्रिया होती रहती है।
→ वन मृदा को अपरदन से बचाते हैं।
→ जल धारा या तेज पवन द्वारा मृदा की उपजाऊ परत का स्थानान्तरण मृदा अपरदन कहलाता है।
→ मृदा, वनों की वृद्धि करने और उनके पुनर्जनन में सहायक होती है।
→ वन, जलवायु, जल-चक्र और वायु की गुणवत्ता को नियमित करते हैं।
→ वन – जंगल। विभिन्न पादपों, जन्तुओं और सूक्ष्म जीवों का एक तंत्र जो विस्तृत क्षेत्र पर फैला होता है।
→ वृक्ष वितान – वृक्षों की शाखाओं एवं पत्तियों से बनी विशेष आकृति वृक्ष वितान या कैनोपी कहलाती है।
→ वृक्ष शिखर – वृक्ष का तने से ऊपर उठा शाखीय भाग।
→ ह्यूमस – सूक्ष्म जीवों द्वारा मृदा की ऊपरी परत में पेड़पौधों तथा जन्तु अपशिष्टों को सड़ा-गलाकर बनाया गया कार्बनिक पदार्थ जो गहरे रंग का होता है।
→ अपघटक – सूक्ष्म जीव जो पादपों एवं जन्तुओं के मृत शरीरों का अपघटन कर देते हैं।
→ पुनर्जनन – वन्य पदार्थों की पुनः उत्पत्ति।
→ मृदा अपरदन – जलधारा या तेज पवन द्वारा मृदा का नष्ट होना।
→ अधो-तल – वनों के नीचे का स्थान।
→ वन अरोपण – वनों की वृद्धि।
→ वन अपरोपण – वनों की कटाई।

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HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

Haryana State Board HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

HBSE 7th Class Science जल: एक बहुमूल्य संसाधन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वक्तव्य ‘सत्य’ हैं अथवा असत्य’
(क) भौमजल विश्वभर की नदियों और झीलों में पाये जाने वाले जल से कहीं अधिक है।
(ख) जल की कमी की समस्या का सामना केवल ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी करते हैं।
(ग) नदियों का जल खेतों में सिंचाई का एकमात्र स्रोत है।
(घ) वर्षा जल का चरम स्रोत है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) असत्य
(घ) सत्य।

प्रश्न 2.
समझाइए कि भौमजल की पुनःपूर्ति किस प्रकार होती है ?
उत्तर:
वर्षा का जल विभिन्न जल स्रोतों, जैसे-नदियों, झीलों, तालाबों, रिक्त स्थानों एवं दरारों में भर जाता है। यह जल रिस-रिस कर जमीन के अन्दर चला जाता है।

प्रश्न 3.
किसी गली में पचास घर हैं, जिनके लिए दस नलकूप (ट्यूबवैल) लगाये गये हैं। भौमजल स्तर पर इसका दीर्घावधि प्रभाव क्या होगा?
उत्तर:
भौमजल के लगातार दोहन से भौमजल का स्तर नीचे चला जायेगा और फिर पानी प्राप्त करना मुश्किल होगा।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

प्रश्न 4.
मान लीजिये आपको किसी बगीचे का रखरखाव करने की जिम्मेदारी दी जाती है। आप जल का सदुपयोग करने के लिए क्या कदम उठायेंगे ?
उत्तर:
हम जल का सदुपयोग करने के लिये निम्न कदम उठायेंगे

1. हम वर्षा जल एकत्र करेंगे।
2. नहाने और घरेलू कार्यों के बाद उस जल से सिंचाई करेंगे।

प्रश्न 5.
भौमजल स्तर के नीचे गिरने के लिये उत्तरदायी कारकों को समझाइए।
उत्तर:
भौमजल स्तर कई कारणों से नीचे गिर रहा है
1. जनसंख्या वृद्धि के कारण पानी की आवश्यकता भी बढ़ गयी है जबकि खुले मैदान कम हो गये हैं। इससे वर्षा का जल बहकर नदियों में चला जाता है और यह भूमि में नहीं रिस पाता है।

2. उद्योग-धन्धे बढ़ने से भी जल स्तर नीचे गिर गया है, क्योंकि सभी उद्योग-धन्धों में पानी की आवश्यकता होती है।

3. कृषि कार्यों में जल का अत्यधिक प्रयोग होता है। हमारे देश में अधिकांश कृषि वर्षा द्वारा सिंचाई पर ही निर्भर है। वर्षा न होने पर इसकी पूर्ति भौमजल से ही की जाती है।

प्रश्न 6.
रिक्त स्थानों की उचित शब्द भरकर पूर्ति कीजिए।
(क) भौमजल प्राप्त करने के लिये …………………. तथा …………………. का उपयोग होता है।
(ख) जल की तीन अवस्थाएँ …………………., …………………. और …………………. हैं।
(ग) भूमि की जल धारण करने वाली परत …………………. कहलाती है।
(घ) भूमि में जल के अवस्रवण के प्रक्रम को …………………. कहते हैं।
उत्तर:
(क) कुंआ, पम्प
(ख) ठोस, द्रव, गैस
(ग) जल भर
(घ) अन्त:स्यंदन।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा कारक जल की कमी के लिये उत्तरदायी नहीं है ?
(क) औद्योगीकरण में वृद्धि
(ख) बढ़ती जनसंख्या
(ग) अत्यधिक वर्षा
(घ) जल संसाधनों का कुप्रबंधन।
उत्तर:
(ग) अत्यधिक वर्षा।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

प्रश्न 8.
सही विकल्प का चयन कीजिए
(क) विश्व की सभी झीलों और नदियों में जल की कुल मात्रा नियत (स्थिर) रहती है।
(ख) भूमिगत जल की कुल मात्रा नियत रहती है।
(ग) विश्व के समुद्रों और महासागरों में जल की कुल. मात्रा नियत है।
(घ) विश्व में जल की कुल मात्रा नियत है।
उत्तर:
(घ) विश्व में जल की कुल मात्रा नियत है।

प्रश्न 9.
भौमजल और भौमजल स्तर को दिखाते हुए एक चित्र बनाइए। उसे चिन्हित कीजिए।
उत्तर:
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल एक बहुमूल्य संसाधन -1

क्या आप जानते हैं?

कोठापल्ली गाँव के समीप जल संभर प्रबन्धन परियोजना द्वारा जल प्रबन्धन के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। परियोजना के नाटकीय परिणाम आये हैं। भौमजल स्तर बढ़ गया है, हरित क्षेत्र में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप इस उपबंजर क्षेत्र में उत्पादकता और आय में आशातीत वृद्धि हुई है।

HBSE 7th Class Science जल: एक बहुमूल्य संसाधन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में से सही विकल्प का चयन कीजिए
1. विश्व जल दिवस मनाया जाता है
(क) 25 दिसम्बर
(ख) 5 जून
(ग) 22 मार्च
(घ) 15 अगस्त
उत्तर:
(ग) 22 मार्च

2. पृथ्वी की सतह का कितना भाग जल से ढका है?
(क) 25%
(ख) 51%
(ग) 71%
(घ) 91%
उत्तर:
(ग) 71%

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

3. पीने योग्य जल है
(क) कुएँ का जल
(ख) नदियों का जल
(ग) झरने का जल
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

4. भूमि में जल का रिसाव कहलाता है
(क) जलभर
(ख) अंत: स्पंदन
(ग) संचरण
(घ) विसरण
उत्तर:
(ख) अंत: स्पंदन

II. रिक्त स्थान

निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थान भरिए
1. ………… को अन्तर्राष्ट्रीय अलवण जल वर्ष मनाया गया था।
2. ………… अवस्था में जल बर्फ और हिम के रूप में पृथ्वी के ध्रुवों पर पाया जाता है।
3. गैसीय अवस्था में जल हमारे आस-पास की वायु में ………… के रूप में उपस्थित रहता है।
4. संचित भौम जल के भंडारों को ………… कहते हैं।
उत्तर:
1. वर्ष 2003
2. ठोस
3. जलवाष्प
4, जलभर।

III. सुमलन

कॉलम A तथा कॉलम B के शब्दों का मिलान कीजिए-

कॉलम Aकॉलम B
1. ताजा जल(a) जलवाष्प लिए
2. समुद्री जल(b) अलवणीय
3. ठोस जल(c) लवणीय
4. गैसीय जल(d) बर्फ

उत्तर:

कॉलम Aकॉलम B
1. ताजा जल(b) अलवणीय
2. समुद्री जल(c) लवणीय
3. ठोस जल(d) बर्फ
4. गैसीय जल(a) जलवाष्प लिए

IV. सत्य/असत्य

निम्नलिखित वाक्यों में से सत्य एवं असत्य छाँटिए
1. भौमजल की पुनः पूर्ति प्रायः वर्षा जल के अवनवण द्वारा हो जाती है।
2. शहरीकरण, सड़क निर्माण, हवाई पत्तन आदि निर्माण से अवस्रवण पर कोई प्रभाव नहीं होता।
3. बढ़ते उद्योगों के कारण भी पेयजल समस्या उत्पन्न हुई
4. जल भंडारण के लिए बावड़ी निर्माण एक प्राचीन पद्धति है।
उत्तर:
1, सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. सत्य।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व जल दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर:
विश्व जल दिवस 22 मार्च को बनाया जाता है।

प्रश्न 2.
क्या हम भूमि के नीचे से निरन्तर जल निकाल सकते हैं?
उत्तर:
नही, क्योंकि भूमि के अन्दर जल सीमित है।

प्रश्न 3.
अत्यधिक वनारोपण का जल-चक्र पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 4.
भारत के किस राज्य में सबसे कम तथा किस राज्य में सबसे अधिक वर्षा होती है ?
उत्तर:
राजस्थान में सबसे कम तथा मेघालय में सबसे अधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 5.
जल संग्रहण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भविष्य के लिये जल का नियमित संग्रह जल संग्रहण कहलाता है।

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प्रश्न 6.
सिंचाई की एक व्यवस्था का नाम लिखिए जिसमें कम-से-कम जल का अपव्यय होता है ?
उत्तर:
बूंद-बूँद (ड्रिप) सिंचाई विधि।

प्रश्न 7.
एक पारम्परिक तरीका लिखिए जो वर्षा जल संग्रहण के लिये महत्वपूर्ण है?
उत्तर:
बावड़ी का निर्माण।

प्रश्न 8.
पादपों पर जल की कमी का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
जल की कमी होने पर पौधों की क्रियाएँ रुक जाती हैं।

लयु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐसे चार उद्योगों के नाम लिखिए जिनसे निकला जल नदियों को प्रदूषित करता है। (क्रियाकलाप)
उत्तर:

  1. सूती वस्त्र उद्योग सूती वस्त्र।
  2. कागज उद्योग कागज।
  3. शीतल पेय उद्योग शीतल पेय।
  4. इस्पात उद्योग-इस्पात ।

प्रश्न 2.
पृथ्वी पर कितना जल है ? यह कहाँ-कहाँ वितरित है?
उत्तर:
पृथ्वी की सम्पूर्ण सतह का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से ढका है। सर्वाधिक जल समुद्रों एवं महासागरों के रूप में है जो हमारे उपयोग हेतु नहीं है। जल की कुछ मात्रा पहाड़ों पर बर्फ के रूप में, नदियों, झीलों तथा तालाबों में होती है। इसके अतिरिक्त अल्प मात्रा में जल भूमि के अन्दर भौमजल के रूप में पाया जाता है।

प्रश्न 3.
भौमजल की पुन: पूर्ति किस प्रकार होती है ?
उत्तर:
वर्षा जल और अन्य स्रोतों, जैसे नदियों और तालाबों का जल मृदा में से रिसकर भूमि के नीचे की गहराई में रिक्त स्थानों और दरारों को भर देता है। भूमि में जल का रिसाव अन्त:स्यंदन कहलाता है। अतः इस प्रक्रम द्वारा उपयोग किये जा चुके भौमजल की पुनः परिपूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 4.
भौमजल स्तर के अवक्षय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
भूमि के नीचे से निकाले गये भौमजल की पुन: पूर्ति प्रायः वर्षा जल के अवनवण (रिसाव) द्वारा हो जाती है। भौमजल स्तर तब तक प्रभावित नहीं होता, जब तक कि हम केवल उतना ही जल निकालते हैं जितने जल की प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा पुनः पूर्ति हो जाती है। तथापि जल की पर्याप्त रूप से पुनः पूर्ति न होने पर भौमजल स्तर नीचे गिर सकता है।

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दीर्य उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जल-चक्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूर्य की गर्मी के कारण सागरों, महासागरों, नदियों, झरनों तथा तालाबों की सतह से जल का वाष्पीकरण होता रहता है। इसके अलावा पौधों द्वारा भी जल का वाष्पीकरण होता है। यह वाष्पीकृत जल वायु में ऊपर जाकर संघनन करता है और बादल बन जाते हैं। पवन के द्वारा बादलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। जब बादल ठण्डे होते हैं, तो जल बूंदों के रूप पुन: पृथ्वी पर आता है अथवा पहाड़ी पर हिमपात के रूप में गिरकर बर्फ बनाता है। वर्षा का जल नदियों द्वारा समुद्रों एवं जलाशयों में पहुँचता है। कुछ जल जमीन में रिसकर भौमजल में मिल जाता है। भौमजल को कुओं तथा हैडपम्पों के द्वारा निकाला जाता है। इस प्रकार जल-चक्र चलता रहता है।

प्रश्न 2.
जल प्रबन्धन पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
जल भविष्य की सबसे बड़ी चिन्ता का विषय है। आजकल हो रहे जल के अत्यधिक दोहन से भविष्य का जल संकट गहराता जा रहा है।
जल की इस समस्या से निजात पाने के लिये जल के सीमित दोहन तथा जल को संरक्षित करने के सम्बन्ध में क्रियान्वयन जल प्रबन्धन कहलाता है।
जल संरक्षण के उपाय-

  • हमें अत्यधिक जल का दोहन बन्द करना चाहिए।
  • नलों की टौटियों को व्यर्थ में खुला नहीं छोड़ना चाहिए।
  • रिसते पाइपों की लीकेज को बन्द करना चाहिए।
  • व्यर्थ हुए घरेलू एवं औद्योगिक जल को उपचारित करके उसका प्रयोग सिंचाई के लिये करना चाहिए।

हमें वर्षा जल संग्रहण के लिये उचित कार्यक्रम प्रारम्भ करने चाहिए, जैसे-

  • खाली स्थानों पर अधिकाधिक तालाब बनवाकर ।
  • वर्षा जल को बहने से रोकने के लिये मेड़बन्दी करके।
  • बाँध बनाकर ।
  • अधिक वृक्षारोपण करके।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

प्रश्न 3.
जल चक्र का आरेख बनाकर उस पर विभिन्न क्रियाओं का नामांकन कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल एक बहुमूल्य संसाधन -2
1. भौम जल
2. वाष्प
3. संघनन
4. बादल
5. वाष्पोत्सर्जन
6, अन्तःस्यंदन
7. वर्षण।

प्रश्न 4.
भारत वर्ष में वार्षिक वर्षा के वितरण को मानचित्र में प्रदर्शित कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 16 जल एक बहुमूल्य संसाधन -3

जल: एक बहुमूल्य संसाधन Class 7  HBSE Notes in Hindi

→ हर व्यक्ति का जल संरक्षण के महत्त्व की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए ही हम प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाते हैं।
→ यदि जल उपलब्ध है तो हमारा भविष्य सुरक्षित है।
→ जल सभी जीवों के लिये अनिवार्य है। इसके बिना जीवन सम्भव नहीं है।
→ पृथ्वी की सतह का लगभग 71% भाग जल से ढका है।
→ उपयोग के लिए उपयुक्त जल अलवण जल है। अधिकांश जल समुद्रों में पाया जाता है जो लवणीय जल है और उपयोग लायक नहीं है।
→ जल तीन अवस्थाओं में पाया जाता है- ठोस, द्रव तथा गैस (वाष्प)।
→ यद्यपि जलचक्र के द्वारा जल की आपूर्ति बनी रहती है, फिर भी विश्व के अनेक भागों में उपभोग योग्य जल की कमी है।
→ विश्व के विभिन्न भागों में जल का वितरण असमान है। ऐसा बहुत कुछ मानव क्रियाकलापों के कारण भी है।
→ उद्योगों की तेजी से वृद्धि, बढ़ती जनसंख्या, सिंचाई की बढ़ती आवश्यकताएँ और कुप्रबन्धन जल की कमी के कुछ प्रमुख कारण हैं।
→ समय की माँग है कि हर व्यक्ति जल का उचित उपयोग मितव्यता से करे।
→ यदि पौधों को कुछ दिनों तक पानी न दिया जाये तो वह मुरझा जाते हैं और अन्तत: सूख जाते हैं।
→ अलवण जल – वह जल जो प्रयोग करने के योग्य हो। सामान्य तौर पर इसे ताजा जल कहा जाता है।
→ भौमजल – भौमजल स्तर के नीचे पाया जाने वाला जल।
→ अंत:स्यंदन – प्रक्रिया जिसमें जल मृदा में से रिसकर भूमि के नीचे गहराई में रिक्त स्थानों और दरारों को भर देता है।
→ जलभर – संचित भौमजल के भण्डार। वनोन्मूलन वनों का नष्ट होना। जल संग्रहण जल को भविष्य के लिये बचाना, संग्रह करना।
→ अवक्षय – समाप्त होना।
→ पुनःपूर्ति – वर्षा जल का उपयोग भौमजल स्तर की पुनः पूर्ति के लिये किया जाता है।
→ बूंद सिंचाई व्यवस्था – पौधों को पाइपों के जाल द्वारा बूंद-बूंद पानी देने की तकनीक।

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HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 प्रकाश

Haryana State Board HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 प्रकाश Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Science Solutions Chapter 15 प्रकाश

HBSE 7th Class Science प्रकाश InText Questions and Answers

बूझो/पहेली

प्रश्न 1.
बूझो मुड़े हुए पाइप से मोमबत्ती की लौ क्यों नहीं देख पाया ?
उत्तर:
क्योंकि प्रकाश एक सीधी रेखा में ही गमन करता है। इसलिये मोमबत्ती का प्रकाश मुड़े हुए पाइप से गमन नहीं कर पाया।

प्रश्न 2.
पहेली जानना चाहती है कि हमें वस्तुएँ कैसे दिखाई देती हैं ? बूझो का विचार है कि वस्तुएँ तभी दिखाई देती हैं, जब प्रकाश उनसे परावर्तित होकर हमारी आँखों तक पहुंचे। क्या आप उससे सहमत हैं?
उत्तर:
हाँ, बूझो का विचार सही है।

प्रश्न 3.
बूझो ने अपनी नोटबुक में लिखा। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि दर्पण चाहे छोटा हो या बड़ा, मेरा प्रतिबिम्ब मेरे साइज के समान ही बनता है ?
उत्तर:
हाँ।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 प्रकाश

प्रश्न 4.
पहेली ने अपनी नोटबुक पर लिखा। समतल दर्पण में प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है। यह सीधा होता है। बिम्ब के साइज के समान होता है तथा दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी, दर्पण के सामने बिम्ब की दूरी के बराबर होती है।
उत्तर:
हाँ।

HBSE 7th Class Science प्रकाश Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) जिस प्रतिबिम्ब को पर्दे पर न प्राप्त किया जा सके, वह ………… कहलाता है।
(ख) यदि प्रतिबिम्ब सदैव आभासी तथा साइज में छेटा हो, तो यह किसी उत्तल ………… द्वारा बना होगा।
(ग) यदि प्रतिबिम्ब सदैव बिम्ब के साइज का बने, तो दर्पण ………… होगा।
(घ) जिस प्रतिबिम्ब को पर्दे पर प्राप्त किया जा सके, वह ……… प्रतिबिम्ब कहलाता है।
(च) अवतल ……………….. द्वारा बनाया गयां प्रतिबिम्ब पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता।
उत्तर:
(क) आभासी प्रतिबिम्ब
(ख) दर्पण
(ग) समतल
(घ) वास्तविक प्रतिबिम्ब
(च) लस।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वक्तव्य ‘सत्य’ है अथवा ‘असत्य
(क) हम उत्तल दर्पण से आवर्धित तथा सीधा प्रतिबिम्ब प्राप्त कर सकते हैं।
(ख) अवतल लेंस सदैव आभासी प्रतिबिम्ब बनाता
(ग) अवतल दर्पण से हम वास्तविक, आवर्धित तथा उल्टा प्रतिबिम्ब प्राप्त कर सकते हैं
(घ) वास्तविक प्रतिबिम्ब को पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
(च) अवतल दर्पण सदैव वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाता है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) असत्य
(घ) असत्य
(च) असत्य।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 प्रकाश

प्रश्न 3.
कॉलम A में दिये गये शब्दों का मिलान कॉलम B के एक अथवा अधिक कथनों से कीजिए-

कॉलम Aकॉलम B
(क) समतल दर्पण(i) आवर्धक लेंस की भाँति उपयोग होता है।
(ख) उत्तल दर्पण(ii) अधिक क्षेत्र के दृश्य का प्रतिबिम्ब बना सकता है।
(ग) उत्तल लेंस(iii) दंत चिकित्सक दाँतों का आवर्धित प्रतिबिम्ब देखने के लिए उपयेग करते हैं।
(घ) अवतल दर्पण(iv) उल्टा तथा आवर्धित प्रतिबिम्ब बना सकता है।
(च) अवतल लेंस(v) प्रतिबिम्ब सीधा तथा बिम्ब के साइज का प्रतिबिम्ब बनाता है।

उत्तर:

कॉलम Aकॉलम B
(क) समतल दर्पण(v) प्रतिबिम्ब सीधा तथा बिम्ब के साइज का प्रतिबिम्ब बनाता है।
(ख) उत्तल दर्पण(ii) अधिक क्षेत्र के दृश्य का प्रतिबिम्ब बना सकता है।
(ग) उत्तल लेंस(i) आवर्धक लेंस की भाँति उपयोग होता है।
(घ) अवतल दर्पण(iii) दंत चिकित्सक दाँतों का आवर्धित प्रतिबिम्ब देखने के लिए उपयेग करते हैं।
(च) अवतल लेंस(iv) उल्टा तथा आवर्धित प्रतिबिम्ब बना सकता है।

प्रश्न 4.
समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिम्ब के अभिलक्षण लिखिए।
उत्तर:

इसमें प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है।
प्रतिबिम्ब सीधा, समान आकार का तथा दर्पण से वस्तु की दूरी के बराबर दूरी पर बनता है।

प्रश्न 5.
अंग्रेजी या अन्य कोई भाषा, जिसका आपको ज्ञान है, की वर्णमाला के उन अक्षरों का पता लगाइए, जिनके समतल दर्पण में बने प्रतिबिम्ब बिल्कुल अक्षरों के सदृश्य लगते हैं। अपने परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
A, H, I, M, O, T, U, V, W,X, Y.

प्रश्न 6.
आभासी प्रतिबिम्ब क्या होता है ? कोई ऐसी स्थिति बताइए, जहाँ आभासी प्रतिबिम्ब बनता हो।
उत्तर:
जो प्रतिबिम्ब पर्दे पर प्राप्त न किया जा सके उसे आभासी प्रतिबिम्ब कहते हैं। आभासी प्रतिबिम्ब अवतल दर्पण से बनता है।

प्रश्न 7.
उत्तल तथा अवतल लेंसों में दो अन्तर बताइए।
उत्तर:

1. उत्तल लेंस बीच से मोटा तथा किनारों से पतला होता है, जबकि अवतल लेंस बीच से पतला तथा किनारों से मोटा होता है।
2. उत्तल लेंस वास्तविक प्रतिबिम्ब बना सकता है, जबकि अवतल लेंस वास्तविक प्रतिबिम्ब नहीं बनाता है।

प्रश्न 8.
अवतल तथा उत्तल दर्पणों का एक-एक उपयोग लिखिए।
उत्तर:

1. अवतल दर्पण का प्रयोग डेंटिस्ट मुख में दाँतों को देखने के लिये करते हैं।
2. उत्तल दर्पणों का प्रयोग वाहनों में पीछे के दृश्यों को देखने में किया जाता है।

प्रश्न 9.
किस प्रकार का दर्पण वास्तविक प्रतिबिम्ब बना सकता है?
उत्तर:
अवतल दर्पण।

प्रश्न 10.
किस प्रकार का लेंस सदैव आभासी प्रतिबिम्ब बनाता है?
उत्तर:
अवतल लेंस।

प्रश्न संख्या 11 से 13 में सही विकल्प का चयन कीजिए

प्रश्न 11.
बिम्ब से बड़े साइज का आभासी प्रतिबिम्ब बनाया जा सकता है?
(i) अवतल लेंस द्वारा
(ii) अवतल दर्पण द्वारा
(iii) उत्तल दर्पण द्वारा
(iv) समतल दर्पण द्वारा
उत्तर:
(ii) अवतल दर्पण द्वारा

प्रश्न 12.
डेविड अपने प्रतिबिम्ब को समतल दर्पण में देख रहा है। दर्पण तथा उसके प्रतिबिम्ब के बीच की दूरी 4m है। यदि वह दर्पण की ओर 1 m चलता है, तो डेविड तथा उसके प्रतिबिम्ब के बीच की दूरी होगी
(i) 3 m
(ii) 5 m
(iii) 6 m.
(iv) 8 m.
उत्तर:
(iii) 6 m.

प्रश्न 13.
एक कार का पश्च दृश्य दर्पण समतल दर्पण है। डाइवर अपनी कार को 2 m/s की चाल से ‘बैक’ करते समय पश्च दृश्य दर्पण में अपनी कार के पीछे खडे (पार्क किये हुये) किसी दूक का प्रतिबिम्ब देखता है। ड्राइवर को ट्रक का प्रतिबिम्ब जिस चाल से अपनी ओर आता प्रतीत होगा, वह है
(i) 1 m/s
(ii) 2 m/s
(iii) 4 m/s
(iv) 8 m/s.
उत्तर:
(iii) 4 m/s

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क्या आप जानते हैं ?

दर्पण, अस्त्रों की भाँति भी उपयोग में लाये जा सकते हैं। कहते हैं कि ग्रीक वैज्ञानिक आर्किमिडीज ने लगभग दो हजार वर्ष पहले ऐसा कर दिखाया था। जब रोमनों ने ग्रीक के समुद्री तट के सायराक्यूज (सिसली) नामक नगर पर आक्रमण किया, तो आर्किमिडीज ने नीचे चित्र में दर्शाये अनुसार दर्पणों को लगाया। दर्पणों को किसी भी दिशा में घुमाया जा सकता था। इन्हें इस प्रकार व्यवस्थित किया गया कि वे सूर्य के प्रकाश को रोमन सैनिकों के ऊपर परावर्तित कर सकते थे। सूर्य के प्रकाश से रोमन सैनिक चाँधिया गये। वे नहीं जानते थे कि क्या हो रहा है। वे चकरा गये और भाग खड़े हुए। यह एक ऐसा उदाहरण है, जो यह स्पष्ट करता है कि किस प्रकार सैनिक ताकत पर सूझ-बूझ से विजय पाई जा सकती है।
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HBSE 7th Class Science प्रकाश Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में से सही विकल्प का चयन कीजिए

1. प्रकाश के परावर्तन के लिए उपयुक्त सतह होगी
(क) समतल बालू
(ख) स्टेनलेस स्टील की चमकदार प्लेट
(ग) लकड़ी का चिकना टुकड़ा
(घ) पत्थर
उत्तर;
(ख) स्टेनलेस स्टील की चमकदार प्लेट

2. समतल दर्पण में काँच की पतली प्लेट को पालिश किया जाता है
(क) एक सतह पर
(ख) दोनों सतहों पर
(ग) किनारों पर
(घ) कोनों पर
उत्तर;
(क) एक सतह पर

3. एक समतल दर्पण के सामने एक मोमबत्ती को जलाकर रखा गया है, मोमबत्ती का प्रतिबिम्ब बनेगा
(क) सीधा, समान आमाप का
(ख) सीधा बड़े आमाप का
(ग) उल्टा, समान आमाप का
(घ) उल्टा, छोटे आमाप का
उत्तर;
(क) सीधा, समान आमाप का

4. पर्दे पर बनने वाला प्रतिबिम्ब कहलाता है
(क) आभासी
(ख) वास्तविक
(ग) अर्द्ध आभासी
(घ) अनिश्चित
उत्तर;
(ख) वास्तविक

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5. उत्तल लेंस का उपयोग होता है
(क) डॉक्टर द्वारा दाँत देखने में
(ख) टार्च के अग्रदीप के परावर्तक पृष्ठ में
(ग) वाहन के पार्श्व दृश्यन में
(घ) आवर्धक (हैण्ड लेंस) में
उत्तर;
(घ) आवर्धक (हैण्ड लेंस) में

II. रिक्त स्थान

निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थान भरिए
1. प्रकाश ………… के अनुदिश गमन करता है।
2. कोई भी पॉलिश किया हुआ अथवा चमकदार पृष्ठ ……………. की भाँति कार्य कर सकता है।
3. यदि किसी दर्पण का परावर्तक पृष्ठ उत्तल है तो इसे …………. कहते हैं।
4. इन्द्रधनुष में ………… रंगों की पट्टियाँ होती हैं।
उत्तर:
1. सरल रेखा
2. दर्पण
3. उत्तल दर्पण
4. सात।

III. सुमेलन

कॉलम A तथा कॉलम B के शब्दों को सुमेलित कीजिए-

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. अभिसारी(a) अवतल लेंस
2. अपसारी(b) समतल दर्पण
3. वर्ण विक्षेपण(c) उत्तल लेंस
4. दाढ़ी बनाने के लिए दर्पण(d) प्रिज्म

उत्तर:

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. अभिसारी(c) उत्तल लेंस
2. अपसारी(a) अवतल लेंस
3. वर्ण विक्षेपण(d) प्रिज्म
4. दाढ़ी बनाने के लिए दर्पण(b) समतल दर्पण

IV. सत्य/असत्य

निम्नलिखित वाक्यों में से सत्य एवं असत्य छाँटिए
1. गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ अवतल है तो वह दर्पण अवतल दर्पण कहलाता है।
2. कार के पार्श्व दर्पण में उत्तल लैंस का उपयोग किया जाता है।
3. सूक्ष्मदर्शी में लेंसों का उपयोग किया जाता है।
4. सूर्य के प्रकाश में केवल एक ही प्रकार का प्रकाश होता है।
उत्तर:
1. सत्य
2. सत्य
3. सत्य
4. असत्य।

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अतिलयु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रकाश का परावर्तन क्या है ?
उत्तर:
प्रकाश किरणों का किसी चिकने तल से टकराकर वापस लौटना प्रकाश का परावर्तन कहलाता है।

प्रश्न 2.
समतल दर्पण पर टार्च का प्रकाश डालने पर क्या होता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
दर्पण प्रकाश का परावर्तन कर देता है।

प्रश्न 3.
जलती मोमबत्ती का समतल दर्पण के सामने कैसा प्रतिबिम्ब बनेगा? (क्रियाकलाप)
उत्तर;
मोमबत्ती के समान आकार का तथा दर्पण से मोमबत्ती की समान दूरी पर।

प्रश्न 4.
क्या समतल दर्पण में बने प्रतिबिम्ब को पर्दे पर प्राप्त कर सकते हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर;
नहीं।

प्रश्न 5.
क्या दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी तथा दर्पण के सामने रखे बिम्ब की दूरी में आप कोई सम्बन्ध पाते हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर;
हाँ, जितनी दूरी बिम्ब की होती है, उतनी ही दूरी पर प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है।

प्रश्न 6.
जब आप स्वयं को किसी दर्पण में देखते हो तो क्या विशेष बात नजर आती है ?
उत्तर:
हमारा दायाँ भाग बायाँ प्रतीत होता है।

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प्रश्न 7.
AMBULANCE पर यह शब्द उल्टा क्यों लिखा जाता है ?
उत्तर:
किसी वाहन का ड्राइवर अपने बैक मिरर से इस शब्द को सीधा पढ़ सके और एम्बुलेंस को पास दे दे।

प्रश्न 8.
आप सिनेमा हॉल में किस प्रकार का बिम्ब देखते हैं ?
उत्तर:
वास्तविक बिम्ब क्योंकि यह पर्दे पर बनता है।

प्रश्न 9.
लाइट हाउस क्या है?
उत्तर:
बन्दरगाहों पर जहाजों को समुद्री किनारा दिखाने के लिये प्रकाशपुंज की व्यवस्था।

प्रश्न 10.
क्या जल भी वस्तुओं का परावर्तन दिखाता
उत्तर:
हाँ, जल का पृष्ठ भी दर्पण की भाँति कार्य करता है।

प्रश्न 11.
दाँतों के निरीक्षण के लिए डॉक्टर किस दर्पण का प्रयोग करते हैं ?
उत्तर:
अवतल दर्पण का।

प्रश्न 12.
टॉर्च के काँच की आकृति कैसी होती है ?
उत्तर:
अवतल।

प्रश्न 13.
हैंड लेंस में कौन-सा लेंस लगाया जाता है ?
उत्तर:
उत्तल लेंस।

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प्रश्न 14.
आप उत्तल लेंस को कैसे पहचानोगे?
उत्तर:
उत्तल लेंस बीच में मोटा तथा किनारों पर पतला होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गोलीय दर्पण क्या है ? इनके प्रकार बताइए।
उत्तर:
काँच के किसी खोखले गोले को काटकर तथा इसके एक पृष्ठ पर पॉलिश करके बनाया गया दर्पण गोलीय दर्पण कहलाता है। गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं
(i) अवतल दर्पण – इसका परावर्तक पृष्ठ अवतल होता है।
(ii) उत्तल दर्पण – इसका परावर्तक पृष्ठ उत्तल होता है।
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चित्र : दो प्रकार के दर्पण

प्रश्न 2.
अवतल तथा उत्तल दर्पणों को गोलीय दर्पण क्यों कहते हैं ? समझाने के लिए एक संक्षिप्त क्रियाकलाप लिखिए।
उत्तर:
अवतल तथा उत्तल दर्पणों को गोलीय दर्पण कहते हैं- रबड़ की एक गेंद लीजिए तथा इसके एक भाग को चाकू अथवा आरी से काटिए चित्र (a)।

सावधान! गेंद काटने के लिये किसी अपने से बड़े व्यक्ति की सहायता लीजिए।
कटी हुई गेंद का भीतरी पृष्ठ अवतल तथा बाहरी पृष्ठ उत्तल कहलाता है [चित्र (b)]।
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प्रश्न 3.
स्टेनलेस स्टील की चम्मच को दर्पण की भाँति प्रयोग करते हुए इससे अपने चेहरे के प्रतिबिम्बों की प्रकृति बताइए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
चम्मच के वक्रित भाग पर चेहरे का प्रतिबिम्ब सीधा तथा बड़ा दिखाई देता है। चम्मच से चेहरे की दूरी बढ़ाने पर बड़ा व उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। चम्मच के उभरे हुए भाग में सीधा व छोटा प्रतिबिम्ब दिखाई देता है।

प्रश्न 4.
अवतल दर्पण द्वारा बिम्ब की विभिन्न स्थितियों के लिए बने प्रतिबिम्बों को तालिका बनाकर लिखिए।
उत्तर:
सारणी किसी अवतल दर्पण द्वारा बिम्ब की विभिन्न स्थितियों के लिए बने प्रतिबिम्ब

बिम्ब की दर्पण से दूरी

प्रतिबिम्ब की प्रकुति

बिम्ब से छोटा/बड़ाउल्टा/सीधावास्तविक/आभासी
50 cmछोटाउल्टावास्तविक
40 cmछोटाउल्टावास्तविक
30 cmछोटाउल्टावास्तविक
20 cmबराबरउल्टावास्तविक
10 cmबहुत बड़ाउल्टावास्तविक
5 cmबड़ासीधाआभासी

प्रश्न 5.
प्रिज्म द्वारा प्रकाश के अपवर्तन को चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
काँच का एक प्रिज्म लीजिए। किती अंधेरे कमरे की खिड़की के छोटे छिद्र से सूर्य के प्रकाश का एक पतला किरण पुंज प्रिज्म के एक फलक पर डालिए। प्रिज्म के दूसरे फलक से बाहर निकलने वाले प्रकाश को सफेद कागज की एक शीट अथवा सफेद दीवार पर गिरने दीजिए।
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प्रश्न 6.
लेंस कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
लेस दो प्रकार के होते हैं-

उत्तल लेंस यह लेंस बीच में मोटा तथा किनारों पर पतला होता है।
अवतल लेंसयह लेंस बीच में पतला तथा किनारों पर मोटा होता है।
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चित्र : विभिन्न लेंस

प्रश्न 7.
अपसारी तथा अभिसारी लेंस क्या होते हैं?
उत्तर:
अवतल लेंस प्रायः आपतित प्रकाश को अपसरित (बाहर की ओर मोड़ना) करता है इसलिये इसे अपसारी लेंस कहते हैं। उत्तल लेंस आपतित प्रकाश को अभिसरित (अन्दर की ओर मोड़ना) करता है, इसीलिये इसे अभिसारी लेंस कहते हैं।
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दीर्य उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“प्रकाश सीधी रेखा में गमन करता है ?” सिद्ध करने के लिए एक क्रियाकलाप लिखिए।
उत्तर:
क्रियाकलाप मेज पर एक मोमबत्ती रखकर उसे जलाइए। अब एक पाइप (लगभग 30-50 cm) लेकर उसमें से होकर मोमबत्ती की लौ को देखिए। आपको मोमबत्ती की लौ स्पष्ट दिखाई देगी (चित्र a) अब पाइप को उसके बीच के भाग से थोड़ा-सा मोड़ दीजिए। पुनः पाइप से होकर मोमबत्ती की लौ को देखिए। क्या अब आपको मोमबत्ती की लौ दिखाई दी। नहीं, (चित्र b) क्योंकि मुड़े हुए पाइप ने प्रकाश को रोक HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 प्रकाश -7

प्रकाश Class 7  HBSE Notes in Hindi

→ प्रकाश सरल रेखा के अनुदिश गमन करता है।
→ कोई भी पालिश किया हुआ अथवा चमकदार पृष्ठ दर्पण की भाँति कार्य करता है।
→ दर्पण द्वारा प्रकाश की दिशा को परिवर्तित किया जाना प्रकाश का परावर्तन कहलाता है।
→ समतल दर्पण द्वारा बनने वाला प्रतिबिम्ब दर्पण में सीधा तथा बिंब के समान आमाप (साइज) का दिखाई देता है।
→ जो प्रतिबिम्ब पर्दे पर प्राप्त किया जा सके, वास्तविक प्रतिबिम्ब कहलाता है।
→ जिस प्रतिबिम्ब को पर्दे पर प्राप्त न किया जा सके, उसे आभासी प्रतिबिम्ब कहते हैं।
→ अवतल दर्पण वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिम्ब बना सकता है। जब बिम्ब को दर्पण के अत्यन्त निकट रखते हैं, तो प्रतिबिम्ब आभासी सीधा तथा आवर्धित होता है।
→ उत्तल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब सीधा, आभासी तथा साइज में बिम्ब से छोटा होता है।
→ उत्तल लेंस वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिम्ब बना सकता है। जब बिम्ब लेंस के अत्यन्त निकट रखा जाता है, तो बनने वाला प्रतिबिम्ब आभासी, सीधा तथा आवर्धित होता है।
→ जब उत्तल लेंस को वस्तुओं को आवर्धित करके देखने के लिये उपयोग किया जाता है, तो उसे आवर्धक लेंस कहते हैं।
→ अवतल लैंस सदैव सीधा, आभासी तथा साइज में बिम्ब से छोटा प्रतिबिम्ब बनाता है।
→ श्वेत प्रकाश सात वर्णों-बेंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल का मिश्रण है।
→ प्रकाश का परावर्तन – दर्पण द्वारा प्रकाश की दिशा का परिवर्तन।
→ समतल दर्पण – काँच की एक प्लेट के एक ओर पॉलिश करके बनाया गया दर्पण।
→ गोलीय दर्पण – किसी खोखले गोले को काटकर बनाये गये दर्पण।
→ प्रतिबिम्ब – किसी वस्तु का लेंस या दर्पण द्वारा बना प्रतिरूप।
→ बिम्ब – वस्तु जिसका प्रतिबिम्ब बनता है।
→ पश्च दूश्य दर्पण – उत्तल दर्पण जो वाहनों में पीछे के वाहन देखने के लिये लगाया जाता है।
→ अवतल दर्पण – गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ अवतल होता है।
→ उत्तल दर्पण – गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ उत्तल होता है।
→ आभासी प्रतिबिम्ब – पर्दे पर प्राप्त न होने वाला प्रतिबिम्ब।
→ अभिसरित – परावर्तित किरणें जो मुख्य अक्ष की ओर एकत्र होती हैं।
→ पार्श्व दर्पण – पार्श्व की वस्तुओं को देखने वाला दर्पण।

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