Haryana State Board HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 11 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 8th Class Social Science Solutions History Chapter 11 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक
HBSE 8th Class History राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक Textbook Questions and Answers
आइए कल्पना करें
मान लीजिए कि आप भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हैं। इस अध्याय को पढ़ने के बाद संक्षेप में बताइए कि आप संघर्ष के लिए कौन से तरीके अपनाते और आप किस तरह का स्वतंत्र भारत रचते ?
उत्तर:
स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान मैं गाँधी जी के तरीकों को प्राथमिकता देता जो कि निम्नलिखित हैं:
- सत्याग्रह।
- असहयोग।
- स्वदेशी तथा बहिष्कार (विदेशी वस्तुओं, विदेशी शिक्षा तथा न्यायालयों का।)
- सविनय अवज्ञा, अहिंसात्मक प्रतिरोध।
- देश में सांप्रदायिक सद्भाव, जातिविहीन समाज, अस्पृश्यता – उन्मूलन, कुटीर एवं छोटे पैमाने के उद्योगों को प्रोत्साहन, संरक्षण एवं निवेश को प्रोत्साहन।
- कृषि एवं किसानों के विकास हितों के लिए सर्वाधिक प्राथमिकता।
- ग्रामीण भारत की काया परिवर्तन के लिए स्वशासन एवं स्वायत्त संस्थाओं को सशक्त करना।
- भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अथक कार्य करना।
- वरिष्ठ नागरिकों, विकलांगों, निर्धन रेखा के नीचे रहने वालों को सामाजिक सुरक्षा/न्याय तथा आर्थिक न्याय दिलाना।
- रोजगार का अधिकार शीघ्र से शीघ्र मौलिक अधिकार बनाना।
- प्रेस एवं जनसंचार माध्यमों तथा विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी।
मेरा नजरिया (दृष्टिकोण) हुआ होता (My vision would have been):
1. स्वतंत्रता प्राप्ति का उद्देश्य भारत में एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की स्थापना करना। कोई भी राज्य सभा का सांसद प्रधानमंत्री नहीं बनेगा। मेरे लोकतंत्र में केवल जन्म के आधार पर बने भारत के नागरिक ही प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा का स्पीकर, सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा निर्वाचन आयोग के पदों पर नियुक्त होंगे। किसी भी तरह से देश में आयातित नागरिक इन पदों पर नहीं होगा।
2. किसी भी तरह से आया राम-गया राम अथवा राजनीतिक दलों के बदलाव की अनुमति नहीं होगी। किसी भी राजनीतिक दल को पाँच वर्षों तक मान्यता नहीं दी जायेगी। विधायिका (राज्य विधान सभा) में कम से कम 10 प्रतिशत स्थान मिलने के बाद ही क्षेत्रीय दलों को मान्यता मिलेगी तथा संसद (लोकसभा) में 10 प्रतिशत स्थान प्राप्ति के बाद ही राष्ट्रीय दल माना जायेगा।
3. एक परिवार से केवल एक सांसद (प्रथम रक्त संबंध इसका आधार होगा।) ही चुना जाएगा।
4. भारत एक संघीय, धर्मनिरपेक्ष, उदारवादी सामाजिक आधार पर आधारित ऐच्छिक समाजवाद की ओर अग्रसर होगा। हर परिवार के पास कम से कम एक मकान, परिवार में से किसी भी सदस्य को केवल एक सरकारी रोजगार या मान्यताप्राप्त व्यापारिक/व्यावसायिक संस्था में रोजगार मिलेगा।
5. प्रगतिशील आयकर, सभी नागरिकों को मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य, जल, बिजली, सड़क सुविधाएँ दी जायेंगी।
6. देश की सेनाओं, पुलिस, सशस्त्र बलों एवं नागरिक सुरक्षा समूहों को सर्वाधिक प्राथमिकता-वेतन, सुविधाओं की दृष्टि से दी जाएगी।
7. कोई भी नेता दो बार से ज्यादा बार विधायक या सांसद नहीं बनेगा।
8. आर्थिक क्षेत्र में नियोजन, वैश्वीकरण, उदारीकरण को अपनाया जायेगा लेकिन कीमतों का नियंत्रण, रोजगार प्रदान करना एवं निर्धनता निवारण जैसे कार्यों की बलि नहीं दी जाएगी।
फिर से याद करें
राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
1870 और 1880 के दशकों में लोग ब्रिटिश शासन से क्यो असंतुष्ट थे?
उत्तर:
1870 के दशक में भारतीय जनता या लोग निम्नलिखित कारणों की वजह से विदेशी शासन-ब्रिटिश शासन के प्रति असंतुष्ट थे:
1. अंग्रेजों ने 1757 में बंगाल तथा 1761 में बंगाल के साथ बिहार एवं उड़ीसा को भी हड़प लिया। कंपनी जो हाथ जोड़कर, उसके सौदागर मुगल सम्राटों के समक्ष गिड़गिड़ा कर याचना करके व्यापार करने आये थे, वे यहाँ के शासक बन बैठे। भारतीय नवाबों, नरेशों, राजाओं को निरंतर उनके राज्यों से पृथक करते गये। लोग आजादी को हाथों से जाते देखकर अंग्रेजों से नाराज हुए एवं ब्रिटिश शासन जिसका आधार ही शोषण था से स्वाभाविक तौर पर असंतुष्ट थे।
2. अंग्रेजों ने 1757 से लेकर 1870 तक देश का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक शोषण शुरू कर दिया था। देश के हर वर्गों के लोगों के हितों को भारी हानि हो रही थी।
3. आर्स एक्ट (Arms Act) : अंग्रेजी सरकार ने 1878 में एक आर्स एक्ट पास करके भारतवासियों पर सख्ती से पाबंदी लगा दी कि वे किसी. भी तरह का हथियार नहीं रख सकते थे।
4. प्रेस एक्ट (Press Act): 1878 में ही ब्रिटिश सरकार ने प्रेस एक्ट; जिसे प्राय: वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट कहा जाता है, को पास करके भारतीय भाषाओं में छपने वाले सभी समाचारपत्रों, पत्रिकाओं आदि पर सेंसर एवं प्रतिबंध लगा दिया गया। इस तरह का प्रतिबंध विदेशी भाषा यानी अंग्रेजी में छपने वाले समाचारपत्रों आदि पर नहीं था। यह कानून स्पष्टतया भेदभावपूर्ण था तथा भारतीयों की अभिव्यक्ति तथा जनमत निर्माण आदि पर प्रतिबंध लगाने वाला काला कानून था। इसने भारतीयों को बहुत क्रोधित/नाराज एवं असंतुष्ट किया।
5. इलबर्ट बिल का मामला (Issue of llbert Bill) : लार्ड लिटन ने जब 1883 में इलबर्ट बिल को विधायिका में रखकर न्यायालय के क्षेत्र में रंग पर आधारित भेदभाव समाप्त करते हुए
तेहास) भारतीय न्यायाधीशों को भी यूरोपियों से जुड़े केसों (मामलों), मुकदमों की सुनवाई करने का अधिकार देने का प्रयत्न किया तो अंग्रेज उनके विरुद्ध उतर आये। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार अंग्रेजों की माँग के सामने झुकी तथा इलबर्ट बिल पास नहीं हो सका। भारतीयों ने जब अंग्रेजी सरकार के इस रंग भेदभावपूर्ण प्रयास की कटु आलोचना की तो देश में सर्वत्र ब्रिटिश शासन के विरुद्ध रोष की लहर दौड़ गई।
राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class History प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस किन लोगों के पक्ष में बोल रही थी?
उत्तर:
1. इंडियन नेशनल कांग्रेस वस्तुतः एक राजनीतिक दल नहीं बल्कि राष्ट्रीय आंदोलन चलाने वाली एक व्यापक-सर्वजनों, सर्व वर्गों, सर्व क्षेत्रों, सर्व भाषा-भाषायी लोगों की व्यापक संस्था थी। सभी धर्म, जातियों, क्षेत्रों, पंथों, भाषाओं एवं संस्कृतियों के लोग इसके सदस्य थे। इसलिए इसने प्रारंभ से ही सभी वर्गों के लोगों के कल्याण के लिए इच्छा अभिव्यक्त की।
2. कांग्रेस ने देश के प्रशासन में भारतीय जनता (लोगों) की भागेदारी की माँग की, सैन्य व्यय को घटाने, प्रशासन व्यय को घटाने एवं जनता को मतदान का अधिकार दिये जाने एवं जनप्रतिनिधित्व संस्थाओं की स्थापना, विस्तार एवं उनके सशक्तिकरण के लिए माँग की। कांग्रेस भारत का आर्थिक शोषण रोकने, देश के कृषि विकास, औद्योगिक प्रगति, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं तथा नागरिक सुविधाओं को बढ़ाने की माँग की। समय-समय पर विभिन्न समाचारपत्रों में छपे तथा राष्ट्रीय नेताओं द्वारा उद्धृत कथनों का उल्लेख नीचे दिया जाता है :
(i) जनवरी 1886 में ‘दि इंडियन मिरर’ नामक एक समाचारपत्र ने लिखा था : ‘बंबई में हुए कांग्रेस के प्रथम सत्र में कहा गया था- यह दल भावी भारतीय संसद की एक धुरी (nucleus) साबित होगी, यह पार्टी सभी देशवासियों के कल्याण के लिए ब्रिटिश नीतियों, कार्यक्रमों एवं योजनाओं को मोड़ने का पूरा-पूरा प्रयास करेगी,
(ii) 1887 में बदरुद्दीन तैयब जी ने अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि ‘यह कांग्रेस पार्टी किसी एक धर्मावलंबियों की पार्टी नहीं है बल्कि देश के सभी समुदायों के प्रतिनिधियों एवं लोगों की पार्टी है।’
राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक Notes HBSE 8th Class प्रश्न 3.
पहले विश्व युद्ध से भारत पर कौन से आर्थिक असर पड़े?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के भारत पर निम्नलिखित आर्थिक प्रभाव पड़े थे :
1. भारत के प्रतिरक्षा व्यय में बढ़ोत्तरी : ब्रिटिश शासन ने अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए भारत में हो रहे सैनिक एवं सैन्य सामान पर व्यय की राशि बढ़ा दी। इससे भारत में आर्थिक दबाव एवं व्यय का लोगों पर कई तरह से बुरा प्रभाव पड़ा।
2. भारी कर : सरकार ने अपने विभिन्न तरह के खर्चों को पूरा करने के लिए भारतीय जनता पर भारी करों का आर्थिक बोझ लाद दिया। यह कर व्यक्तिगत आय तथा व्यापारिक मुनाफों पर लाद दिए गए।
3. कीमतों में वृद्धि : प्रतिरक्षा व्यय के बढ़ने तथा रक्षा संबंधी विभिन्न तरह की सामग्रियों की माँग बढ़ने से सभी चीजों के दाम बढ़ते ही चले गये। महँगाई रुकने का नाम नहीं ले रही थी। इससे आम आदमी की आर्थिक कठिनाइयाँ और भी बढ़ गईं।
4. व्यापारी-मुनाफाखोरों को लाभ : जो लोग युद्ध में काम आने वाले हथियार, साजो-सामान बनाते थे या उनका व्यापार करते थे उनके मुनाफे बहुत ही बढ़ गये। यह सब कुछ युद्ध के कारण हो रहा था।
5. उद्योगों का उत्थान : युद्ध ने जहाँ एक तरफ विदेशी सामान के आयात को सुरक्षा कारणों से कम करने में मदद की वहीं युद्ध में काम आने वाले थैलों, वस्त्रों, तंबुओं, रेलवे, अन्य गाड़ियों, खाने-पीने के सामानों की माँग बढ़ा दी। उद्योगों ने 24 घंटे काम करना शुरू किया। इससे निर्मित मालों का उत्पादन बढ़ता चला गया।
6. तीव्र विकास : भारतीय व्यापारियों तथा उद्योगपतियों ने सरकार से अधिक सुविधाओं तथा अवसरों की माँग की ताकि वे उत्पादन तथा वाणिज्य आदि बढ़ाकर सरकार की इच्छानुसार अपना योगदान दे सकें। नि:संदेह इससे देश का औद्योगिक विकास तेज हो गया।
राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक Question Answer HBSE 8th Class प्रश्न 4.
1940 के मुसलिम लीग के प्रस्ताव में क्या माँ की गई थी?
What did the Muslim league resolution of 1940 ask for?
उत्तर:
यद्यपि मुस्लिम लीग ने 1940 के प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से देश के विभाजन अथवा पाकिस्तान का उल्लेख नहीं किया लेकिन इसने माँग की कि देश के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से तथा उत्तरी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए पृथक स्वतंत्र देश बनाया जाये। (वस्तुतः परोक्ष रूप से यह देश के विभाजन एवं पाकिस्तान की माँग का ही प्रस्ताव था, चाहे स्पष्ट रूप से हो या अस्पष्ट रूप से लीग का मतलब यही था।)
आइए विचार करें
प्रश्न 5.
मध्यमार्गी कौन थे? वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ किस तरह का संघर्ष करना चाहते थे?
उत्तर:
I. उदारवादी (या नरमपंथी = Moderates)
जे.पी.एच. ऑल-इन-वन सफलता का साधन-VIII (नया कोर्स) उदारवादियों से तात्पर्य उन प्रारंभिक कांग्रेसी नेताओं से है जो सरकार से अपनी बात को मनवाने या रखने के लिए प्रार्थनापत्रों, याचिकाओं, अपीलों आदि का सहारा लेते थे। वे सोचते थे कि अंग्रेज जाति पढ़ी-लिखी, सभ्य, शांति-विश्वास से समृद्ध है। वह एक दिन अवश्य भारतवासियों के दुख-दर्दो को समझकर उनके निवारण के उपाय करेगी। वस्तुतः उदारवादियों का ध्येय मुक्त कराने का नहीं अपितु भारत के लोगों को उनकी परेशानियों से छुटकारा दिलाना था। इस उदारवादी गुट का नेतृत्व दादाभाई नौरोजी कर रहे थे जिसके अन्य सदस्य सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, फिरोजशाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले आदि थे।
II. ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रस्तावित विधियाँ : उदारवादी/नरमपंथी कांग्रेसियों ने ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों, गलत नीतियों, दुष्प्रभावों से जनता को अवगत कराने के लिए सभायें की, प्रस्ताव पास किये, लेख लिखे, कुछ विद्वान कांग्रेसियों ने पुस्तकें भी लिखीं तथा विदेशी शासन के फलस्वरूप पड़े आर्थिक तथा अन्य बुरे प्रभावों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने समाचारपत्र, पत्रिकाएँ एवं पर्चे निकाले एवं छापे।
उन्होंने लोगों को बताया एवं अपने प्रतिनिधि देश के विभिन्न भागों में भेजे, जो भारतीय जनता को बताते थे कि किस तरह से अंग्रेजी राज ने भारत को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने लोगों को बताया कि किस तरह देश का आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक शोषण हो रहा था ताकि लोगों में राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रप्रेम, भाईचारा, एकता तथा स्वराज्य को तीव्र करने की भावनाएँ एवं साहस पैदा किया जा सके। कांग्रेस ने सरकार के पास भी अपने पारित प्रस्तावों के माध्यम से माँगें रखी तथा ब्रिटेन में भी अपने प्रतिनिधि भेजे। 1905 के बंगाल विभाजन का विरोध किया तथा स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया। याद रहे प्रारंभ में उदारवादियों ने बहिष्कार का समर्थन नहीं किया था।
प्रश्न 6.
कांग्रेस में आमूल परिवर्तनवादी की राजनीति मध्यमार्गी की राजनीति से किस तरह भिन्न थी?
उत्तर:
1. कांग्रेस पार्टी के नरमवादी या उदारवादी यह मानते थे कि अंग्रेज सरकार उनकी मांगों को न्याय की कसौटी पर परख कर लेगी। वह सरकार को ऐसा करने के लिए मजबूर कर सकते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के गरमपंथियों का विश्वास था कि सरकार केवल भारी दबाव में आकर ही किसी माँग को मानने के लिए तैयार हो सकती है।
2. नरमपंथी संघर्ष में संवैधानिक और शांतिपूर्ण तरीकों का ही प्रयोग करना चाहते थे। गरमपंथी संघर्ष में उग्र एवं क्रांतिकारी तरीकों का पालन करना चाहते थे। राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक (इति
3. उदारवादी चाहते थे कि ब्रिटिश शासन के अंतर्गत ही आर्थिक सुधारों का कार्यक्रम लागू किया जाए। गरमवादियों का विश्वास था कि साम्राज्यवादी ताकत भारत का आर्थिक विकास नहीं होने देगी।
4. नरमवादियों ने ब्रिटिश शासन से मुक्ति की किसी भी तरह की माँग की पेशकश नहीं की। गरमवादी चाहते थे भारतीयों को पूर्ण स्वराज्य दिया जाना चाहिए। उनका विश्वास था कि तभी भारत का सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक उत्थान संभव हो पाएगा।
5. उदारवादी ब्रिटिश सरकार के विरोध में आखिरी दम तक संघर्ष करने की नीति के पक्षधर नहीं थे। गरमवादी समूचे देश की शक्ति को अंग्रेजों के विरोध में जुटाना चाहते थे।
प्रश्न 7.
चर्चा करें कि भारत के विभिन्न भागों में असहयोग आंदोलन ने किस-किस तरह के रूप ग्रहण किए? लोग गाँधीजी के बारे में क्या समझते थे?
उत्तर:
1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन के विभिन्न रूप निम्नलिखित थे :
कारण :
1. जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद सरकार द्वारा पंजाब में किए जा रहे अन्यायपूर्ण कार्यों का विरोध करना, तुर्की साम्राज्य के प्रति ब्रिटिश अन्याय को समाप्त करना, ब्रिटिश सरकार से स्वराज्य की माँग, हिंदू-मुस्लिम एकता को सुदृढ़ करना।।
2. खिलाफत कमेटी ने महात्मा गाँधी के इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया कि खिलाफत आंदोलन को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक भाग बना दिया जाये। मुसलमानों ने कांग्रेस को पूरा सहयोग दिया और खिलाफत आंदोलन, असहयोग आंदोलन का एक भाग बना दिया।
कार्यक्रम तथा प्रभाव :
1. सितंबर 1920 ई. में कलकत्ता (कोलकाता) में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ। इसमें सरकारी स्कूलों, सरकारी उपाधियों, अदालतों तथा धारा सभाओं के बहिष्कार का प्रस्ताव रखा गया। जब यह प्रस्ताव पास हो गया, तो सारे देश में असहयोग आंदोलन आरंभ हो गया। महात्मा गाँधी ने गवर्नर जनरल द्वारा दी गई ‘केसरे हिंद’ की उपाधि को लौटा दिया। विद्यार्थियों ने कक्षाओं का बहिष्कार किया। शिक्षा प्रसार के लिए राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं में राष्ट्रीय मुस्लिम विद्यालय, काशी विद्यापीठ, बंगाल राष्ट्रीय मुस्लिम विद्यालय और तिलक विद्यापीठ के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी। हजारों व्यक्तियों ने ‘राय बहादुर’ जैसी उपाधियाँ लौटा दीं। नए एक्ट के अनुसार बनी धारा सभाओं का बहिष्कार कर दिया गया। कोई भी कांग्रेसी चुनाव में हास) उम्मीदवार के रूप में खड़ा नहीं हुआ। अधिकांश जनता ने मतदान नहीं किया। विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया गया। स्थान-स्थान पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के लिए प्रोत्साहन दिया गया।
2. नवंबर 1921 ई. में जब प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत आगमन हुआ, तो कांग्रेस ने उसका बहिष्कार किया। उसके मुंबई बंदरगाह पर पहुँचते ही शहर में दंगा हो गया। हर स्थान पर हड़तालों द्वारा उसका स्वागत किया। कई स्थानों पर पुलिस ने लाठियों के बल पर हड़ताल तुड़वाई। इस समय तक गाँधीजी के अलावा प्रायः सभी नेता जेलों में भरे पड़े थे।
3. अनेक मुसलमानों ने राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की। मुसलमान भी विशाल स्वयंसेवकों के समूह में भर्ती हो गये। उन्होंने सक्रिय होकर विधानसभाओं का बहिष्कार किया, उपाधियाँ लौटा दी एवं सरकारी शिक्षा संस्थाओं को छोड़ दिया। उन्होंने कर न देने के अभियान में भी हिस्सा लिया। मुसलमान मतदाताओं ने विधानसभाओं के चुनावों में मतदान नहीं किया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता का समर्थन किया।
4. इस आंदोलन का एक रचनात्मक पहलू भी था। यह अपील की गई कि भारतीय विभिन्न संस्थाओं का स्वयं गठन करें और अधिक मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन करें। लोगों से कहा गया कि वे प्रशासन को किसी भी प्रकार के करों का भुगतान न करें। सरकार को अवैधानिक घोषित कर दिया गया। चूँकि सरकार लोगों के कल्याण के प्रति उदासीन थी अतः इसे किसी तरह के कर लेने का अधिकार नहीं था।
5. लार्ड चेम्सफोर्ड के स्थान पर लार्ड रीडिंग को भारत का वायसराय बनाया गया। आते ही उसको 21 दिसंबर, 1921 ई. को कलकत्ता की यात्रा करनी पड़ी, क्योंकि इसी दिन प्रिंस ऑफ वेल्स को वहाँ पर पहुँचना था। नया वायसराय कांग्रेस से समझौता करना चाहता था, परंतु अली बंधुओं की रिहाई के संबंध में दोनों पक्षों में समझौता न हो सका। 1921 ई. में दिसंबर के अंत तक राजनीतिक बंदियों की संख्या 20,000 तक पहुँच गई थी। कुछ समय के बाद यह संख्या 35000 तक जा पहुँची थी।
1922 में असहयोग आंदोलन वापस लेने के कारण : गाँधीजी अहिंसा को बहुत प्यार करते थे। वे सभी प्रकार की हिंसा के विरोधी थे। वे साध्य की सरोचकता के साथ-साथ उस प्राप्ति के साधन को भी पवित्र रखना चाहते थे। महात्मा गाँधी ने जब 1922 ई. में चौरी-चौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया, तो कांग्रेस के प्रायः सभी नेताओं और जनता में असंतोष फैल गया। लेकिन फिर भी प्रत्यक्ष रूप से किसी ने भी गाँधीजी का विरोध नहीं किया। उधर ब्रिटिश सरकार ने जैसे ही देखा कि गाँधीजी की लोकप्रियता कुछ कम है, तो उसने गाँधीजी को बंदी बना लिया। इसके बाद असहयोग आंदोलन में शिथिलता आ गई थी।
प्रश्न 8.
गाँधीजी ने नमक कानून तोड़ने का फैसला क्यों लिया?
उत्तर:
गाँधीजी ने नमक कानून को तोड़ने को इसलिए चुना क्योंकि अब वह स्वराज्य के संघर्ष के लिए अनेक वर्षों से चल रहे आंदोलन को पूर्ण स्वराज्य प्राप्ति (अथवा पूर्ण स्वतंत्रता) के उद्देश्य की ओर शीघ्र से शीघ्र ले जाना चाहते थे। कांग्रेस द्वारा दिसंबर 1929 में लाहौर में ही रावी नदी के तट पर इस लक्ष्य प्राप्ति की घोषणा कर दी गई थी। गाँधीजी ने उन्हीं दिनों यह घोषित कर दिया कि अब एक दिन भी ब्रिटिश शासन के अधीन रहना देशवासियों के लिए घोर पाप करने के समान होगा क्योंकि ब्रिटिश शासन ने भारतवासियों का न केवल आर्थिक एवं राजनीतिक शोषण ही किया था बल्कि सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक शोषण भी किया था।
गाँधीजी मानते थे स्वराज्य अपने आप नहीं मिलेगा इसलिए अब प्रबल संघर्ष एवं आंदोलन करना ही होगा। गाँधीजी जानते थे कि नमक सभी लोगों की आवश्यकता है परंतु इसे बनाने का एकाधिकार केवल सरकार को ही प्राप्त है। 1930 में महात्मा गाँधी ने घोषणा की वह नमक कानून को तोड़कर यह जताने की कोशिश करेंगे कि अब हम अंग्रेजी सरकार के कानूनों को नहीं मानेंगे और इसके लिए एक मार्च का वह नेतृत्व करेंगे। नमक भोजन का अभिन्न अंग था। नमक अभियान गरीब एवं अमीर सभी के लिए समान था। वह सभी लोगों की स्वतंत्रता प्राप्ति की इच्छा अभिव्यक्त कर रहा था।
प्रश्न 9.
1937-47 की उन घटनाओं पर चर्चा करें जिनके फलस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ?
उत्तर:
1. 1930 के दशक से ही मुस्लिम लीग भारत में मुसलमानों को हिंदुओं से एक अलग राष्ट्र मानने लगी। इस गलत धारणा को विकसित करते हुए, यह पार्टी उन सांप्रदायिक घटनाओं से प्रभावित हो गयी थी जो हिंदुओं एवं मुसलमानों के कुछ गुटों के मध्य 1920 तथा 1930 के दशक के कुछ वर्षों में घटित हुई थीं।
2. इसके अतिरिक्त 1937 की प्रांतीय विधानसभाओं (एसेंबलियों) के जो चुनाव हुए थे और चुनाव परिणामों ने जिस तरह मुस्लिम लीग की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था तो उसने समझा कि कांग्रेस वस्तुत: बहुसंख्यक हिंदुओं का समर्थन सदैव ही प्राप्त करती रहेगी तथा देश में लोकतंत्रीय ढाँचे में मुसलमान केवल दूसरी श्रेणी के · नागरिक बन कर रह जायेंगे। इसे यह भी डर सताने लगा कि शायद मुसलमानों को विधायिकाओं में बिल्कुल भी प्रतिनिधित्व न प्राप्त हो।
3. मुस्लिम लीग ने कांग्रेस पार्टी से यह प्रार्थना भी की कि वह यूनाइटेड प्रोविंस (वर्तमान उ.प्र.) में लीग के साथ मिलकर संयुक्त (सांझी) सरकार गठित करे। सत्ता के नशे में मस्त कांग्रेस ने उसकी यह प्रार्थना जब ठुकरा दी तो लीग उससे बहुत नाराज हो गयी।
4. 1930 के दशक में कांग्रेस सर्वसाधारण मुसलमानों को बड़ी भारी संख्या में अपनी ओर खींचने में भी विफल रही तथा इससे मुस्लिम लीग को मुसलमानों में अपना सामाजिक आधार बढ़ाने का मौका मिल गया। जब 1940 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में अधिकांश नेता जेलों में बंद थे तो मुस्लिम लीग ने अपने समर्थन को और भी विस्तृत करना चाहा।
5. 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया। ब्रिटेन की नई सरकार (मजदूर दल) ने कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग से भारत को स्वतंत्रता दिए जाने के विषय पर बातचीत प्रारंभ की। बातचीत विफल हो गयी क्योंकि मुस्लिम लीग दावा करती थी कि वही संपूर्ण भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है और उनकी तरफ से बोलने का केवल उसे ही अधिकार है। कांग्रेस लीग के इस दावे को स्वीकार नहीं कर सकती थी क्योंकि अभी भी एक बहुत बड़ी संख्या में मुसलमान कांग्रेस के समर्थन में थे।
6. 1946 में प्रांतों में पुनः चुनाव हुए। साधारण चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस को भारी सफलता मिली लेकिन जो स्थान मुसलमानों के लिए आरक्षित थे वहाँ लीग को भी सफलता प्राप्त हुई। इससे उत्साहित हो लीग ने ‘पाकिस्तान’ की माँग पर और अधिक जोर देना शुरू कर दिया।
आइए करके देखें
प्रश्न 10.
पता लगाएँ कि आपके शहर, जिले, इलाके या राज्य में राष्ट्रीय आंदोलन किस तरह आयोजित किया गया। किन लोगों ने उसमें हिस्सा लिया और किन लोगों ने उसका नेतृत्व किया? आपके इलाके में आंदोलन को कौन सी सफलताएँ मिलीं?
उत्तर:
विद्यार्थियों के स्वाध्याय के लिए। आप इसके उत्तर के लिए अपने अध्यापकों या सुशिक्षित व्यक्तियों या पड़ोसियों से मदद ले सकते हैं। यदि आपके अभिभावक या दादा-दादी, नाना-नानी सुशिक्षित हैं तो उनकी मदद लेने में भी कोई हर्ज नहीं है।
प्रश्न 11.
राष्ट्रीय आंदोलन के किन्हीं दो सहभागियों या नेताओं के जीवन और कृतित्व के बारे में और पता लगाएँ तथा उनके बारे में एक संक्षिप्त निबंध लिखें। आप किसी ऐसे व्यक्ति को भी चुन सकते हैं जिसका इस अध्याय में जिक्र नहीं आया है।
उत्तर:
1. महात्मा गाँधी:
(i) गाँधीजी का प्रारंभिक जीवन : मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में हुआ था। इनका विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ। शिक्षा पूरी करने के बाद वे इंग्लैंड गये तथा प्रारंभिक वकालत की शिक्षा प्राप्त की। वे किसी कंपनी के मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए तथा वहाँ कई वर्षों तक रहे।
(ii) दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटना तथा 1919 तक राष्ट्रीय आंदोलन में भूमिका : दक्षिण अफ्रीकी में रह रहे भारतीयों को राजनीतिक अधिकार दिलाने हेतु सफल संघर्ष करके 1915 ई. में गाँधीजी भारत लौटे। उन्होंने 1916 में चंपारन (बिहार) में तथा 1917 में अहमदाबाद के मिल मजदूरों के हक में सत्याग्रह एवं संघर्ष किया। प्रथम महायुद्ध की समाप्ति पर गाँधीजी ने भारत में आंदोलन की वही नीति अपनाई। उसी सत्याग्रह के सिद्धांत का पूर्ण विकास किया। ब्रिटिश सरकार के अत्याचार के विरुद्ध अहिंसात्मक प्रतिरोध का वही रूप अपनाया जिसका प्रयोग उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में किया था। गाँधीजी के नेतृत्व में जो राष्ट्रीय आंदोलन चला उसमें लाखों व्यक्ति सम्मिलित हुए।
(iii) असहयोग आंदोलन : 1920 में गाँधी जी द्वारा संचालित असहयोग आदोलन में जनता ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए, न्यायालयों का बॉयकाट किया, हड़तालं की, शिक्षा संस्थाओं का बॉयकाट किया, शराब और विदेशी वस्तुएँ बेचने वाली दुकानों पर धरना दिया, सरकार को कर नहीं दिए और व्यापार तक ठप्प कर दिए गए। ये सभी कार्य अहिंसात्मक किंतु क्रांतिकारी थे। जनता में वीरता, निर्भयता और आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न हुई। गाँधीजी के आदेश पर जनता ने गाँधीजी के साथ मिलकर लाठियों के प्रहार सहे, गोलियों की बौछार सही तथा कारावास की यातनाएँ सहीं।
(iv) सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा भारत छोड़ो आंदोलन : गाँधीजी द्वारा ये अन्य दो प्रमुख आंदोलन चलाए गए। इनमें सबका नेतृत्व गाँधीजी ने किया। उनकी नीतियों, कार्यक्रमों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एकता स्थापित की। गाँधीजी ने समाज-सुधार को राष्ट्रीय आंदोलन के कार्यक्रमों का अंग बनाया। उन्होंने हरिजनोद्धार के द्वारा अस्पृश्यता की अमानुषिकता के विरुद्ध सफल अभियान चलाया। चरखे के माध्यम से ग्रामीण जनता के कष्टों की मुक्ति का नया माग निकाला।
स्वदेशी के प्रचार से राष्ट्रीय भावना का जागरण हुआ चरखे को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने झंडे में प्रमुख स्थान दिया। गाँधीजी ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए बहुत प्रयत् किया। उनका विचार था कि सांप्रदायिकता अमानुषिक है और राष्ट्रीयता में बाधक है। गाँधीजी सत्य और अहिंसा पर बहुत बल देते थे। जब उन्होंने देखा कि बारदोली में किसानों का आंदोलन हिंसात्मक हो गया है तो उन्होंने आंदोलन को स्थगित कर दिया। सांप्रदायिक दंगों को देखकर वे उपवास द्वारा आत्मशुद्धि का मार्ग अपनाते थे तथा सांप्रदायिकता के विष को समाप्त करने का यत्न करते थे।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महात्मा गाँधी का योगदान अपूर्व है। उनकी सेवाओं के लिए यह देश सदैव उनका ऋणी रहेगा।
2. बाल गंगाधर तिलक:
(i) तिलक का संक्षिप्त परिचय : तिलक का पूरा नाम बाल गंगाधर तिलक था। उनका जन्म महाराष्ट्र में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्हें हिंदू धर्म, भारतीय संस्कृति तथा राष्ट्रीयता से अटूट प्रेम था। गाँधीजी से पूर्व वह स्वराज्य के लिए चल रहे संघर्ष में भाग लेने वाले सभी नेताओं में सर्वाधिक प्रभावशाली नेता माने जाते रहे।
(ii) योगदान : बाल गंगाधर तिलक गरमपंथी नेता थे। वे भारत के लिए तुरंत स्वराज्य चाहते थे। स्वराज्य का मतलब उनके अनुसार पूर्ण स्वतंत्रता ही थी। उन्होंने एक बार ब्रिटिश अदालत में खुलेआम घोषणा की थी, ‘स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।’
तिलक कांग्रेस पार्टी के उदारवादी नेताओं की प्रार्थना करने की नीति को उचित नहीं समझते थे। उनके अनुसार स्वतंत्रता माँगी नहीं जाती अपितु छीनी जाती है। उन्होंने ‘केसरी’ और ‘मराठा’ नामक समाचार-पत्रों का संपादन किया। इन समाचार-पत्रों के माध्यम से उन्होंने जनता में राष्ट्रीय भावनाएँ कूट-कूटकर भर दीं। 1897 ई. में उन पर मुकदमा चलाया गया और हिंसा व राजद्रोह फैलाने वाले लेख लिखने तथा भाषण देने के अपराध में उन्हें 18 माह की जेल की सजा दी गई। 1911 ई. में उन्हें 6 वर्ष का लंबा कारावास का दंड दिया गया।
1916 ई. में उन्होंने श्रीमती ऐनी बेसेंट के साथ मिलकर होमरूल आंदोलन चलाया। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारत के लिए स्वराज्य प्राप्त करना था। उन्होंने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर बहुत बल दिया। अंग्रेज उन्हें ‘क्रांति का जन्मदाता’ मानते थे। 1920 में उनका स्वर्गवास हो गया था। गाँधीजी ने ‘तिलक फंड’ के नाम से स्वतंत्रता प्राप्ति की कार्यवाहियों के संचालन के लिए फंड बनाया। लोगों ने उदारता से उसमें चंदा दिया।
HBSE 8th Class History राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक Important Questions and Answers
अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
साधारण चुनाव क्षेत्रों का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निर्वाचन का वह क्षेत्र (पंचायत, विधानसभा, लोकसभा आदि से संबंधित) जो किसी विशेष धर्मावलंबी मतदाताओं के लिए आरक्षित नहीं होता अर्थात् जहाँ सभी धर्मों के अनुयायी मतदान करने तथा चुनाव लड़ने का अधिकार रखते हों, उसे साधारण या आम चुनाव क्षेत्र (General Constituency) कहते हैं।
प्रश्न 2.
‘लाल, बाल और पाल’ नाम से किन्हें जाना जाता था?
उत्तर:
- लाला लाजपत राय
- बाल गंगाधर तिलक एवं
- विपिन चंद्र पाल को क्रमशः ‘लाल, बाल तथा पाल’ के नाम जाना जाता था।
प्रश्न 3.
इंडियन नेशनल कांग्रेस का 1907 का सत्र किस घटना के लिए जाना जाता है?
उत्तर:
इंडियन नेशनल कांग्रेस का 1907 का सत्र (session) कांग्रेस के दो गुटों नरमपंथी तथा गरमपंथी में फूट तथा दोनों गुटों में हुई हाथापाई (लड़ाई-झगड़ा) के लिए जाना जाता है। 1907 से 1916 तक दोनों गुट अलग-अलग कार्यरत रहे। (1916 में हुए लखनऊ समझौते से पूर्व दोनों गुट फिर एक हो गये थे।)
प्रश्न 4.
उदारपंथियों (नरमपंथियों) तथा गरमपंथियों जैसे बाल, पाल तथा लाल के मध्य जो मतभेद थे उनमें से किसी एक का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नरम दल के नेता शांतिपूर्ण तथा संवैधानिक उपायों में विश्वास रखते थे। वे प्रार्थनाओं, पत्रों, भाषणों तथा प्रस्तावों द्वारा अपनी माँगें मनवाने के पक्ष में थे जबकि गरम दल के नेताओं के विचारानुसार स्वतंत्रता माँगी नहीं जाती बल्कि छीनी जाती है। अंग्रेजों के हर गलत काम का विरोध किया ही जाना चाहिए।
प्रश्न 5.
गोपाल कृष्ण गोखले के परामर्श पर गाँधीजी द्वारा 1915 में क्या किया गया था?
उत्तर:
गोपाल कृष्ण गोखले को गाँधीजी अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। उनकी सलाह पर उन्होंने 1915 में सारे देश का व्यापक भ्रमण किया ताकि वह ब्रिटिश भारत की जनता (लोगों) की सही स्थिति (तस्वीर) जान सकें।
प्रश्न 6.
रौलट एक्ट क्या था?
उत्तर:
1. मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों (1919) से राष्ट्रीय नेताओं में घोर निराशा व असंतोष देखकर सरकार बुरी तरह घबरा उठी। सरकार ने असंतोष को दबाने के लिए अपना दमनचक्र चला दिया।
2. सरकार ने 1919 ई. के प्रारंभ में रौलट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट से सरकार को दो व्यापक अधिकार मिले।
इस एक्ट के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाये तथा दोषी सिद्ध किए ही जेल में बंद कर सकती थी।
सरकार को यह अधिकार भी दिया गया कि वह बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas corpus) के अधिकार को स्थगित कर सकती थी।
3. इस एक्ट के कारण लोगों में रोष की लहर दौड़ गई। अतः देश भर में विरोध होने लगा। देश भर में विरोध सभाएँ, प्रदर्शन और हड़तालें हुईं। पंजाब में जलियाँवाला बाग कांड इसी के प्रतिरोध का परिणाम था।
प्रश्न 7.
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन का महत्त्वपूर्ण पक्ष क्या था?
उत्तर:
- इससे नई उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा को बल मिला।
- ‘पूर्ण स्वराज्य’ प्राप्ति के लिए कांग्रेस कटिबद्ध हुई।
- नागरिक अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया गया।
- 26 जनवरी, 1930 ई. को लाहौर में रावी के तट पर झंडा फहराकर प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
प्रश्न 8.
गाँधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में पृथक चुनाव मंडल के गठन की माँग का विरोध क्यों किया था?
उत्तर:
गाँधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन जो लंदन में सन् 1931 में हुआ था का इसलिए विरोध किया क्योंकि वह यह ब्रिटिश सरकार को हरिजनों (दलित जातियों के लोगों) या तथाकथित निम्न जातियों को शेष हिंदुओं से पृथक करने की चाल मानते थे। वह मानते थे कि संयुक्त निर्वाचन मंडल में सभी मतदाता भाग लेंगे तो वे मुख्यधारा में ही रहेंगे। यदि निम्न जाति के लोग पृथक निर्वाचन मंडलों के माध्यम से चुने जायेंगे तथा चुनाव लड़ेंगे तो वे स्थायी रूप से अन्य हिंदुओं से अलग हो जायेंगे। इससे पूरे हिंदू समाज में फूट एवं घृणा स्थायी रूप से विद्यमान हो जायेगी।
प्रश्न 9.
पाकिस्तान की माँग कब की गई थी? किस सिद्धांत पर यह माँग आधारित थी?
उत्तरः
1. 1940 के मुस्लिम लीग के लाहौर सत्र में एक प्रस्ताव पारित कर एक पृथक राष्ट्र ‘पाकिस्तान’ की माँग की गई थी।
2. इस माँग का आधार यह था कि लीग के विचारानुसार भारत में दो राष्ट्र-एक हिंदू तथा दूसरा मुसलमान थे। इनके धार्मिक सिद्धांत, संस्कृति एवं जीवनशैली कभी-भी एक नहीं थी और कभी भी एक नहीं हो सकती। वस्तुतः लीग के दिमाग में यह था कि कांग्रेस बहुसंख्यक हिंदुओं की समर्थक है तथा वही सदा भारत पर शासन करती रहेगी।
प्रश्न 10.
क्रिप्स मिशन भारत में कब और क्यों आया था?
उत्तर:
क्रिप्स मिशन 1942 में (द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान) भारत आया था। यह मिशन ब्रिटेन के लिए सभी भारतीयों का पूर्ण समर्थन प्राप्त करना चाहता था। इसने यह आश्वासन दिया कि युद्ध के बाद भारत को डोमीनियन स्टेटस (स्वशासन का स्तर) दे दिया जायेगा। देश के नेता 1929 में ही पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य घोषित कर चुके थे। इसलिए इस मिशन को निराश ही लौटना पड़ा। .
प्रश्न 11.
माउंटबेटन योजना की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
- भारत को दो भागों में विभक्त करके भारतीय संघ व पाकिस्तान नामक अलग-अलग दो राज्य बनाने का प्रस्ताव।
- भारतीय रजवाड़ों को अपना-अपना भविष्य स्वयं तय करने का अधिकार होगा।
- हिंदू व मुस्लिम राष्ट्रों का विभाजन इनकी जनसंख्या के आधार पर निर्धारित होना चाहिए। अतः पंजाब, बंगाल व असम का इस आधार पर विभाजन कर दिया गया।
प्रश्न 12.
भारत की स्वतंत्रता से संबंधित घोषणा कब और किसके द्वारा की गयी थी?
उत्तर:
भारत की स्वतंत्रता से संबंधित घोषणा 3 जून, 1947 को की गयी थी। यह घोषणा भारत में नियुक्त अंतिम अंग्रेज वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने की थी।
प्रश्न 13.
उन क्षेत्रों के नाम लिखें जिन्हें 1947 में पाकिस्तान को दिया गया था।
उत्तर:
- पश्चिमी पंजाब।
- पूर्वी बंगाल (जो अब बंगलादेश सन् 1971 से कहलाता है।)
- उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रांत।
प्रश्न 14.
1947 में स्वतंत्र भारत द्वारा जिन समस्याओ का सामना किया गया था, उनका उल्लेख करें।
उत्तर:
1. शरणार्थियों की समस्या : लाखों लोग बेघरबा. हो गये थे। उन्हें बसाना तथा यथासंभव आर्थिक सहायता देना व रोजगार प्रदान करना एक कठिन समस्या थी।
2. देश में अनाज, कुछ उद्योगों के कच्चे माल (जैसे जूट) का अभाव हो गया। देश के सामने विकास करने, संविधान बनाने तथा लगभग 560 से ज्यादा देशी रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने की समस्यायें भी थीं।
प्रश्न 15.
1947 में भारत विभाजन के लिए दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1. अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति ने देश में विघटनकारी शक्तियों को बढ़ावा दिया। मुस्लिम लीग तथा हिंदू महासभा जैसे सांप्रदायिक दलों ने विभाजन की जमीन तैयार कर दी थी।
2. देश में कई बार सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हुआ। 1946 और 1947 ई. में स्थान-स्थान पर निर्दोष लोगों की हत्याएँ होने लगीं तथा करोड़ों रुपये की संपत्ति जल कर राख हो गई। अतः देश का विभाजन होना आवश्यक समझा गया।
प्रश्न 16.
1942 में क्रिप्स मिशन की असफलता के दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) ब्रिटिश सरकार ने भारत में क्रिप्स मिशन भेजा, जिसका मुख्य उद्देश्य था युद्ध में भारतीयों की सक्रिय सहायता प्राप्त करना, परंतु ऐसा नहीं हुआ।
(ii) गाँधीजी ने अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिये सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन चलाया। इस आंदोलन में गाँधीजी ने लोगों को ‘करो या मरो’ का नारा दिया। इससे स्पष्ट होता है कि क्रिप्स मिशन भारत में पूरी तरह असफल रहा।
प्रश्न 17.
1916 में हुए कांग्रेस (इंडियन नेशनल कांग्रेस) अधिवेशन की दो ऐतिहासिक घटनाओं को लिखिए।
उत्तर:
1. प्रथम घटना : कांग्रेस के दोनों गुट एक हो गए। कांग्रेस के पुराने नेता तिलक व अन्य लड़ाकू राष्ट्रवादियों को फिर से आदर सहित कांग्रेस में वापस लाने के लिए मजबूर किया। 1916 का लखनऊ अधिवेशन 1907 ई. के बाद पहला संयुक्त अधिवेशन था।
2. दूसरी घटना : लखनऊ में कांग्रेस व ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का एक मंच पर आना था। इस समझौते के अनुसार कांग्रेस व मुस्लिम लीग ने मिलकर घोषणा की कि कौंसिल में चुने हुए प्रतिनिधियों का बहुमत हो और उनके अधिकार बढ़ाए जाएँ। उन्होंने यह भी माँग की कि वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् में कम-से-कम आधे सदस्य भारतीय हों। कांग्रेस व मुस्लिम लीग का । यह समझौता लखनऊ समझौते के नाम से जाना जाता है। यह र समझौता राष्ट्रीय आंदोलन की एक महत्त्वपूर्ण सफलता थी।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी में भारत में राष्ट्रवाद की भावना के उदय होने के साथ ही लोगों ने आत्म-निरीक्षण करते हुए स्वयं से एक जटिल प्रश्न पूछा-भारत का यह देश क्या है और यह किसके लिए बना है? इस प्रश्न का उत्तर किस तरह से उभरा? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
1. 19वीं शताब्दी में भारत में जब राष्ट्रीय चेतना या आधुनिक राष्ट्रवाद की भावना जागने लगी थी तब उन्हीं दिनों में लोगों ने स्वयं से एक जटिल लेकिन महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछा कि भारत का तात्पर्य क्या है? तथा यह देश किसके लिए है? लोगों ने इसका जवाब दिया कि यह देश वस्तुतः यहाँ की जनता (नागरिकों) से बना है। सभी लोग ही तो भारत हैं, इनमें सभी धर्मों, जातियों, प्रांतों, भाषाओं तथा संस्कृतियों के लोग शामिल हैं। यही तो भारत की पहचान है–‘अनेकता में एकता’ (Unity in diversity)। यह देश जिनसे बना है उन्हीं के लिए यह देश है भी।
2. यह देश, यहाँ के लोग तथा यहाँ की पहचान, इनका स्वाभिमान तभी बचेगा जब हम सब मिलकर विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकेंगे तथा अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पायेंगे। अंग्रेजों ने हमारा हर तरह से शोषण किया है। भारत की आजादी छीनी है। भारत की संपदा अंग्रेज ढो-ढोकर ले जा रहे हैं। वे भारतीय जनता के हितों को ध्यान में रखकर शासन नहीं करते। वे भारतीय संसाधनों तथा संस्कृति का भी शोषण कर रहे हैं।
प्रश्न 2.
प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत जिन तीन कारकों ने आम जनता में (सर्वसाधारण में) राष्ट्रवाद के उत्थान में मदद की थी, उन पर विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर:
1. प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्व की बागडोर गाँधीजी के हाथों में आ गई। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को सर्वसाधारण का आंदोलन बनाने के लिए सर्वसाधारण की वेशभूषा पहनी, उनकी भाषा में उनसे बात की तथा उन्होंने किसानों, मजदूरों और दलितों की समस्याओं को बार-बार उठाया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया।
2. मार्च, 1919 ई. में ब्रिटिश सरकार ने केंद्रीय विधानसभा में प्रत्येक भारतीय सदस्य के विरोध के बावजूद रौलट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट के अनुसार सरकार को अधिकार था कि वह किसी भी भारतीय को बिना कारण बताए, जब तक चाहे बंदी कर सकती थी। इसके विरोध में कोई अपील, दलील या वकील नहीं किया जा सकता था। इस काले कानून के विरुद्ध भारत में स्थान–स्थान पर लोगों ने प्रदर्शन किए। सरकार हर तरह से इस आंदोलन को कुचल देना चाहती थी। बंबई, अहमदाबाद, कलकत्ता, दिल्ली तथा दूसरे नगरों में निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर लाठी प्रहार और गोलियों की बरसात की गई।
3. अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 ई. को वैसाखी वाले दिन शांतिपूर्ण ढंग से चल रही जनसभा- पर जनरल डायर ने गोलियाँ चलवाईं। हजारों की संख्या में लोग हताहत हुए। इस हत्याकांड का समाचार फैलते ही पूरे देश में रोष की लहर फैल गई। बड़े पैमाने पर तोड़-फोड़ होने लगी।
4. 1919-1922 ई. तक देश में खिलाफत और असहयोग आंदोलन चले, जिनसे राष्ट्रीय आंदोलन में भारी जोश आ गया। दिल्ली में नवंबर 1919 ई. में आयोजित अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन ने निर्णय किया कि अगर उनकी माँगें न मानी गईं, तो वे सरकार के साथ किसी प्रकार का सहयोग नहीं करेंगे। इस समय मुस्लिम लीग पर राष्ट्रवादियों का नेतृत्व था। उन्होंने कांग्रेस द्वारा चलाये गये असहयोग आंदोलन का समर्थन किया।
प्रश्न 3.
लखनऊ समझौता (1916) पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1. सन् 1916 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लखनऊ में हुआ। उन दिनों प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था। तिलक एवं ऐनीबेसेंट की होमरूल लीग स्वराज्य प्राप्ति के लिए चलाया जा रहा राष्ट्रीय आंदोलन चरम सीमा पर पहुँचा हुआ था। सरकार ने कुछ नेताओं को पहले ही बंदी बना रखा था। इस संकटपूर्ण स्थिति में कांग्रेस का भाग्य सितारा एकाएक चमक उठा। मुस्लिम लीग और कांग्रेस एक ही मंच पर आ गये।
2. मुसलमानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन निम्नलिखित कारणों से हुआ :
- तुर्की और इटली के युद्ध में तुर्की को भारी हानि उठानी पड़ी। अंग्रेज मूकदर्शक बने देखते रहे।
- बंगाल विभाजन रद्द किये जाने के बाद मुसलमान, अंग्रेजों से रुष्ट हो गये।
- 1913 ई. के बाल्कन युद्धों को मुसलमान तुर्की के विरुद्ध ईसाइयों का षड्यंत्र समझते थे जहाँ पर मुसलमानों का खलीफा रहता था।
3. इसी के परिणामस्वरूप लखनऊ समझौता हुआ तथा कांग्रेस और मुस्लिम लीग की परिस्थितियाँ उन्हें पास-पास ले आईं। इस समझौते में कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल सांप्रदायिक चुनावों को मान लेना था। बाद में यही भारत के विभाजन का कारण बना। लखनऊ समझौता में कांग्रेस का गरम दल भी उससे राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक (इतिहास) आ मिला था। अतः कांग्रेस मुस्लिम लीग के साथ मिलकर पूरे जोश के साथ अपनी संयुक्त माँगें अंग्रेजों के सामने रख सकती थी।
प्रश्न 4.
खिलाफत आंदोलन क्या था?
उत्तर:
1. खिलाफत आंदोलन मुख्यतः ब्रिटिश सरकार की अमानवीय क्रियाओं के विरुद्ध था, जो वह तुर्की साम्राज्य के साथ कर रहा था। मित्र राष्ट्रों ने तुर्की के समृद्ध राष्ट्रों को हड़प लिया। अतः अंग्रेजों के विरुद्ध 1919 ई. में अली बंधुओं (मौलाना मुहम्मद अली और शौकत अली) तथा अबुल कलाम आजाद आदि के नेतृत्व में एक खिलाफत कमेटी का गठन किया गया। उधर गाँधीजी और बाल गंगाधर तिलक ने मुसलमानों को सहयोग देने के उद्देश्य से अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन छेड़ दिया। इस कार्यक्रम से जनता में भारी उत्साह उमड़ आया और वह स्वतंत्रता की लड़ाई में उतरने के लिए तैयार हो गई। असहयोग और खिलाफत आंदोलनों का एक सामान्य (General or Common) कार्यक्रम तैयार हो गया। गाँधीजी सर्वमान्य नेता मान लिए गये।
2. भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के क्षेत्र में खिलाफत के प्रश्न पर हिंदू-मुसलमानों में अभूतपूर्व एकता दृष्टिगोचर होने लगी। ‘अल्लाह-हू-अकबर’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारों की गूंज एक ही मंच से सुनाई देने लगी। मुसलमानों ने कट्टर आर्यसमाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद को दिल्ली की जामा मस्जिद के मिंबर से अपना उपदेश देने के लिए आमंत्रित किया और सिक्खों ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की चाभियाँ मुस्लिम नेता डॉ. सैफुद्दीन किचलू को सौंप दी। पहली अगस्त, 1920 ई. को संपूर्ण देश में खिलाफत आंदोलन प्रारंभ कर दिया गया किंतु यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार की तुर्की संबंधी नीति को प्रभावित करने में असमर्थ रहा।
3. खिलाफत आंदोलन का अंत : समय के साथ-साथ खिलाफत आंदोलन स्वतः ही दुर्बल होने लगा। ब्रिटिश सरकार ने – कूटनीति से हिंदू-मुसलमानों को एक-दूसरे के विरुद्ध भड़काना प्रारंभ कर दिया। परिणामस्वरूप हिंदू-मुस्लिम एकता में दरारें पड़ने लगीं और देश के विभिन्न भागों में सांप्रदायिक दंगे भड़कने लगे। इस बीच टर्की के प्रति ब्रिटेन का दृष्टिकोण भी सहानुभूतिपूर्ण होने लगा था। अतः परिस्थितियाँ परिवर्तित होते ही यह आंदोलन समाप्त हो गया।
प्रश्न 5.
मुस्लिम लीग पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1. अंग्रेजों ने मुसलमानों को उकसाया कि वे अपने लिए कांग्रेस से अलग एक नये राजनीतिक दल की स्थापना करें, पृथक निर्वाचन प्रणाली की माँग करें। इन मांगों को मानने का पूरा आश्वासन वायसराय मिंटो ने मुसलमानों के एक प्रतिनिधि मंडल के नेता आगा खाँ कौर अक्टूबर 1906 ई. को दिया।
2. भारत मंत्री मार्ले को इन बातों की जरा भी भनक न पड़ी। अंततः 1909 ई. में एक कानून द्वारा ‘सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को मान्यता दे दी। हिंदुओं ने इस प्रणाली का विरोध किया। भारतीय राजनीति पर इस कानून का गहरा प्रभाव पड़ा। इससे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव पैदा हो गया जो बाद में भारत विभाजन का कारण बना।
3. मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर 1906 ई. को ढाका में हुई। इसका उद्देश्य भारतीय मुसलमानों में ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादारी पैदा करना तथा भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करना था। मुसलमानों की कठिनाइयों को सरकार के समक्ष नम्रता से प्रस्तुत करना भी इसका काम था।
4. 1912 ई. के बाद मुस्लिम लीग की नीति में परिवर्तन आ गया। उसने भी उत्तरदायी सरकार की माँग की। इस परिवर्तन के निम्न कारण थे :
- इसका प्रमुख कारण अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में परिवर्तन था। उस समय अंग्रेज तुर्की के सुल्तान के साथ कठोरतापूर्ण व्यवहार कर रहे थे। भारतीय मुसलमान चाहते थे कि अंग्रेज तुर्की के सुल्तान के साथ उदारता का व्यवहार करें।
- 1911 ई. में परामर्श लिए बिना ही ब्रिटिश सरकार ने बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया था। इससे भारतीय मुसलमान अंग्रेजों से रुष्ट हो गये।
- उर्दू के समाचार पत्र ‘हमदर्द’ ने भी मुसलमानों में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया।
प्रश्न 6.
साइमन आयोग (कमीशन) के प्रति भारतवासियों का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
साइमन कमीशन के प्रति भारतवासियों का दृष्टिकोण (Attitude of the Indians towards Simon Commission) : इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन के कारण यह ‘साइमन कमीशन’ के नाम से जाना जाता है। इसमें 7 सदस्य थे और कोई भी भारतीय न था। अतः इसे ‘व्हाइट मैन कमीशन’ भी कहते हैं। कमीशन के भारत आगमन से पूर्व ही इसका विरोध प्रारंभ हो गया। कांग्रेस, हिंदू महासभा, मुस्लिम लीग सभी ने इसका विरोध करने का निर्णय लिया। जब यह कमीशन 3 फरवरी, 1928 को मुंबई पहुँचा, इसे जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा। लखनऊ में पं. जवाहर लाल नेहरू व गोविंद वल्लभ पंत के नेतृत्व में प्रदर्शन हुआ। लाहौर में वहाँ के विद्यार्थियों ने लाला लाजपत ..य के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस निकाला। पुलिस अधिकारी साडर्स ने लाजपत राय पर लाठी से प्रहार कराया।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट मई 1930 में प्रकाशित हुई। भारतीयों ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। इस कमीशन की रिपोर्ट 1935 के एक्ट का आधार बनी और ब्रिटिश सरकार के लिए एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज साबित हुई।
प्रश्न 7.
गाँधीजी ने छुआछूत ( अस्पृश्यता) उन्मूलन के लिए जो भूमिका निभायी उसका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एक सामाजिक सुधारक के रूप में गाँधीजी ने जातीय व्यवस्था का विरोध किया। वे मानवतावादी थे तथा छुआछूत को हिंदू समाज का एक बहुत बड़ा कलंक तथा इसको व्यवहार में लाने को मानवता तथा ईश्वर के विरुद्ध एक जघन्य पाप मानते थे। उन्होंने हिंदुओं को सभी सार्वजनिक स्थानों पर जाने तथा सामूहिक भोजन करने एवं अपने हाथों से सफाई करके लोगों को कर्म पूजा का महत्त्व समझाया। उन्होंने हरिजनों का उद्धार किया तथा पहली बार अछूतों को ‘हरिजन’ का नाम दिया। उनके लिए ‘हरिजन’ नामक पत्रिका निकाली गई। वे छुआछूत के विरुद्ध लड़ते रहे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के पृथक निर्वाचन की व्यवस्था का विरोध करते हुए 1931 में हिंदुओं के लिए संयुक्त निर्वाचन मंडल की बात कही तथा डॉ. भीमराव अंबेडकर जी को राजी करके पूना में 1932 का समझौता करके हिंदुओं तथा दलितों में पड़ रही फूट को दूर करने में सफलता प्राप्त कर ली।
प्रश्न 8.
दांडी मार्च से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 में चलाया जिसका आरंभ 12 मार्च, 1930 ई. को दांडी यात्रा द्वारा किया गया। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक छोटे से गाँव दांडी में गाँधीजी पैदल चलकर गए। इनके साथ उनके 79 अनुयायी भी थे। 5 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुँचकर उन्होंने नमक बनाकर कानून भंग किया। इस प्रकार दांडी यात्रा सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रतीक बन गई।
प्रश्न 9.
क्रिप्स मिशन भारत क्यों आया था? इसने क्या प्राप्त किया?
उत्तर:
1. द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) चल रहा था। मार्च, 1942 ई. में जापान ने रंगून पर अधिकार कर लिया और इस प्रकार युद्ध भारत की सीमाओं तक आ पहुँचा। अतः ब्रिटेन के अमरीका और चीन जैसे मित्र राष्ट्र उस पर दबाव डालने लगे कि वह भारतीयों की स्वाधीनता की माँग को स्वीकार कर ले। अतः ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों से समझौता वार्ता करने तथा युद्ध संबंधी प्रयासों में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए मार्च, 1942 ई. में हाउस ऑफ कॉमन्स के नेता सर स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक मिशन भारत भेजा।
2. मिशन के प्रमुख सुझाव थे:
युद्ध के पश्चात् भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वशासित राज्य बना दिया जाएगा।
युद्ध के बाद गठित की गई संविधान सभा द्वारा भारत के लिए. संविधान का निर्माण किया जाएगा।
यदि किसी देशी राज्य अथवा प्रांत को नया संविधान स्वीकृत नहीं होगा तो उसे भारतीय संघ से अलग होने की स्वतंत्रता होगी।
3. क्रिप्स के प्रस्तावों को किसी भी राजनैतिक दल ने स्वीकार नहीं किया। गाँधीजी ने क्रिप्स प्रस्तावों की ‘असफल हो रहे बैंक का एक उत्तर तिथि चैक (Post dated cheque) कहकर निंदा की। अंतत: 11 अप्रैल, 1942 ई. को क्रिप्स प्रस्तावों को वापिस ले लिया गया।
प्रश्न 10.
किन-किन कारणों की वजह से क्रिप्स मिशन विफल हो गया था?
उत्तर:
क्रिप्स मिशन निम्नलिखित कारणों से विफल हो गया:
- ब्रिटिश सरकार भारत को पूर्ण स्वाधीनता देने को राजी नहीं थी।
- युद्ध के दौरान राष्ट्रीय सरकार गठन करने की माँग भी ठुकरा दी गई।
- शासकों के हितों को बचाने की कोशिश की गई जबकि रजवाड़ों की जनता की माँगों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
प्रश्न 11.
भारत छोड़ो आंदोलन के महत्त्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1942 ई. में गाँधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया। गाँधीजी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। आंदोलन की पूर्व संध्या पर ही प्रमुख नेताओं को जेलों में डाल दिया गया। इससे जनता भड़क उठी और उसने रेलवे स्टेशनों, डाकघरों, थानों तथा सरकारी भवनों को जलाना शुरू कर दिया। टेलीफोन के तार काट डाले और रेल की पटरियाँ उखाड़ दी गईं। अंग्रेजों ने इस जन आंदोलन को दबाने के लिए लाठी, गोली आदि का सहारा लिया। हजारों प्रदर्शनकारी जेलों में ढूंस दिए गये। जनता नेतृत्वहीन और दिशा भ्रमित थी। अतः सब अपने-अपने ढंग से सरकार का प्रतिरोध कर रहे थे।
प्रश्न 12.
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
भारत में नियुक्त अंतिम अंग्रेज वायसराय माउंटबेटन योजना के आधार पर 4 जुलाई, 1947 ई. के दिन ब्रिटिश संसद में एक बिल पेश किया गया। दो ही सप्ताह पश्चात् (18 जुलाई के दिन) इसे पास करके एक अधिनियम का रूप दे दिया गया जो ‘भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी मुख्य धाराएँ निम्नलिखित थीं :
(i) भारत वर्ष 15 अगस्त, 1947 से स्वतंत्र होगा और इसका विभाजन दो अधिराज्यों में किया जाएगा। यह दो स्वतंत्र अधिराज्य होंगे- भारत और पाकिस्तान।
(ii) ब्रिटिश सरकार दोनों अधिराज्यों की संविधान सभाओं को सत्ता सौंप देगी। ये सभाएँ अपने-अपने देशों के लिए संविधान बनाएँगी। जब तक संविधान तैयार नहीं हो जाते तब तक संविधान सभाओं को यह अधिकार होगा कि वे अपने-अपने अधिराज्य में केंद्रीय विधानमंडल के रूप में कार्य करें।
(iii) नये संविधान के निर्माण तक दोनों अधिराज्यों का शासन 1935 के अधिनियम के अनुसार चलाया जाएगा, परंतु दोनों को अधिनियम में आवश्यक संशोधन करने का पूरा अधिकार होगा।
(iv) दोनों अधिराज्यों को इस बात की पूर्ण स्वतंत्रता होगी कि वे ब्रिटिश राष्ट्रमंडल (Commonwealth) का सदस्य बनें या उसकी सदस्यता त्याग दें।
(v) भारत सचिव का पद समाप्त कर दिया जाएगा और दोनों देश ब्रिटिश नियंत्रण से पूर्ण रूप से मुक्त होंगे।
(vi) भारत अधिराज्य में एक गवर्नर जनरल होगा। कुछ समय तक माउंटबेटन तथा फिर राजगोपालाचारी जी प्रथम भारतीय वायसराय बनाए गए।
(vii) देशी रियासतें (इनकी संख्या 560 से भी ज्यादा थी) भी ब्रिटिश संप्रभुता से पूरी तरह मुक्त होंगी। वे चाहें तो भारत के साथ अथवा पाकिस्तान के साथ मिल सकती हैं। उन्हें अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने की भी पूरी स्वतंत्रता होगी।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित दोनों राष्ट्रीय नेताओं पर टिप्पणियाँ लिखिए :
(क) सुरेंद्रनाथ बनर्जी, (ख) गोपालकृष्ण गोखले।
उत्तर:
(क) सुरेंद्रनाथ बनर्जी : दादाभाई नौरोजी की भाँति सुरेंद्रनाथ बनर्जी भी कांग्रेस के नरम दल के नेता थे। उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा पास की। देश को स्वतंत्रता दिलाने में उनका भी विशेष योगदान था। यद्यपि असम में न्यायाधीश के पद पर उनकी नियुक्ति हुई परंतु देश सेवा उनका सर्वप्रमुख कार्य था। वे इंडियन एसोसिएशन के संस्थापक थे जिसका मुख्य लक्ष्य भारतीयों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न करना था। उन्होंने मिंटो-मार्ले सुधार तथा बंगाल विभाजन का विरोध किया। अंग्रेजी माल का बहिष्कार एवं स्वदेशी सामान के प्रयोग का प्रचार किया।
बनर्जी की भाँति गोपालकृष्ण गोखले भी कांग्रेस के नरम दल के नेता थे। फर्गुसन कॉलेज के प्रधानाचार्य के पद पर एवं Imperial , council के सदस्य के रूप में निःस्वार्थ सेवा की। उन्होंने भारत . सेवक समाज (Servants of India Society) नामक संस्था की नींव रखी ताकि जनता की भलाई के लिए कार्य कर सके। गोपालकृष्ण गोखले एक महान देशभक्त थे। वे अपने समय के सबसे बड़े कूटनीतिज्ञ माने जाते थे। यहाँ तक कि महात्मा गाँधी भी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। गाँधीजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उन्होंने देश सेवा की। ऐसे देशभक्त के त्याग व बलिदान के लिए देश तथा देशवासी सदैव ऋणी रहेंगे।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में सन् ( 1870 या) 1885 से 1905 तक का काल भारतीय स्वतंत्रता का नरमपंथी (या उदारवादी) चरण क्यों कहलाता है?
उत्तर:
1. 1885 में अपनी स्थापना के वर्ष से ही इंडियन नेशनल कांग्रेस ने अपनी स्थापना के प्रथम दो दशकों तक ऐसे तरीके, नीतियाँ तथा कार्यक्रम अपनाये जिन्हें नरमपंथी या उदारवादी ही माना जाता है।
2. कांग्रेस के आरंभिक नेताओं की नीतियाँ और कार्यक्रम नरम थे। नरमपंथी लोग संवैधानिक लड़ाई में विश्वास रखते थे। उनका हथियार था, याचिकाओं, सभाओं और प्रस्तावों तथा भाषणों द्वारा जनमत को संगठित और तैयार करना तथा जनता की माँगों को सरकार तक पहुँचाना ताकि वह शनैः-शनैः इन बातों को मान ले। नरमपंथियों की धारणा थी कि अज्ञानवश ही अंग्रेजी सरकार भारतीय परिस्थितियों से अनभिज्ञ रही। यही कारण है कि सरकार उनके साथ समुचित न्याय किये जाने की इच्छा रखते हुए भी न्याय, नहीं कर पायी। दादाभाई नौरोजी ने इंग्लैंड में भारतीय जनता का पक्ष प्रशस्त करने के लिए अपना तन-मन-धन, लगा दिया।
3. नरमपंथी मानते थे कि अंग्रेज शासकों से सीधी टक्कर लेने का अभी समय नहीं आया है परंतु इसके विपरीत गरम दल के लोगों को अंग्रेजों पर जरा भी विश्वास नहीं था और वे अपनी शक्ति पर भरोसा रखते थे। तिलक इसी प्रवृत्ति के पोषक थे। नरम दल के नेता थे दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, गोपालकृष्ण गोखले और सुरेंद्रनाथ बनर्जी।
प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में नरमपंथियों (उदारवादियों) के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
1. नरमपंथी नेताओं ने जो अंग्रेजी शासन के प्रति नरम रुख अपनाया तथा सरकार ने प्रायः उनके प्रति जो उदोसीनता दिखायी उसे देखकर हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि उनके (नरमपंथियों के) प्रयत्न व्यर्थ गयें या वास्तव में उन्होंने अंग्रेजों की परोक्ष रूप से मदद की।
2. वास्तव में, वे भी उतने ही महान देशभक्त थे जितने कि बाद के उग्र राष्ट्रवादी नेता या गरमदलीय राष्ट्र नेता। इन नेताओं ने दो उद्देश्य अपने सामने रखे थे-एक तो देश की जनता को जागृत कर अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जनमत तैयार करना तथ दूसरा अंग्रेजों को धीरे-धीरे भारतीयों की माँगें मानने के लिए तैयार करना। निःसंदेह नरमदलीय लोग अपने उद्देश्यों में अधिक सफल नहीं रहे लेकिन उन्होंने जनता में अंग्रेजी शासन के प्रति विरोधी .. भावनाएँ उत्पन्न की, लोगों को जागृत किया तथा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनमत तैयार किया।
3. किसी हद तक उन्होंने अंग्रेजी शासन को भी भारत में सुधार के लिए तैयार करने में सफलता प्राप्त की। उनकी महानतम उपलब्धि लोगों में भारतीय राष्ट्र की भावना की थी।
4. उन्होंने लोगों को आंदोलन छेड़ने की कला में प्रशिक्षित किया। उनके प्रयासों से लोगों में लोकतंत्र एवं राष्ट्रभक्ति की भावना फैली। उन्हीं के आंदोलन पर बाद के राष्ट्रीय आंदोलन का ढाँचा खड़ा हो सका। …
5. लोगों को विदेशी शासन की हानियाँ पता लग गईं। संभवत: नरमपंथियों की सबसे महान सेवा उस समय दृष्टिगोचर हुई जबकि उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य के भारत पर आर्थिक प्रभाव का मूल्यांकन किया।
6. उन्होंने लोगों का ध्यान भारतीय निर्धनता की ओर आकर्षित किया और यह बतलाया कि यह निर्धनता अंग्रेजी औपनिवेशिक शोषण के कारण ही है। दादाभाई नौरोजी तथा दीनशावाचा जैसे नेताओं ने ‘निकास का सिद्धांत’ (Drain Theory) को प्रतिपादित कर भारतीय संपत्ति के निष्कासन की ओर लोगों का ध्यान खींचा। उदारवादियों के इसी सिद्धांत को बाद में उग्रराष्ट्रवादियों ने अंग्रेजी सरकार को बदनाम करने के लिए प्रचुर प्रयोग किया।
प्रश्न 3.
स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के विकास क्रम (या प्रगति) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का विकास क्रम : स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन ने स्वतंत्रता संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह आंदोलन 1905 ई. में बंगाल विभाजन के विरोध में आरंभ हुआ था।
1. स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के उद्देश्य : बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी और बहिष्कार’ आंदोलन चला था, परंतु शीघ्र ही यह स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख हथियार बन गया। ‘स्वदेशी’ का अर्थ है अपने देश का स्वतंत्रता संघर्ष में इसका अर्थ था कि हमको अपने देश में उत्पादित वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। इससे भारतीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। दस्तकारों को काम मिलेगा तथा देश की आर्थिक स्थिति सुधरेगी। देश भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए इस आंदोलन ने प्रकाश स्तंभ का .. काम किया। स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने के साथ-साथ विदेशी वस्तुओं। के बहिष्कार करने का भी नारा दिया गया। इससे जनता की राष्ट्रीय। भावनाओं को उभारने में सहायता मिली। विदेशी वस्तुओं के। बहिष्कार से इंग्लैंड की भारत स्थित मंडी पर बुरा प्रभाव पड़ा।
2. आंदोलन की गतिविधियाँ:
(i) कांग्रेस ने 1905 ई. के वाराणसी अधिवेशन में और 1906 ई. के कलकत्ता अधिवेशन में स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का समर्थन किया। इससे कांग्रेस द्वारा अपनाए गए तरीकों में भारी परिवर्तन हुआ। अब ये तरीके प्रतिवेदनों और अपीलों द्वारा ब्रिटिश शासकों से न्याय की माँग करने तक सीमित न रह गये थे।
(ii) स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन केवल बंगाल तक सीमित न रहकर देश के अनेक भागों में फैल गया। इससे पूरे भारत की राजनीतिक गतिविधियों में तेजी आ गई। ब्रिटिश कपड़ों, चीनी तथा अन्य वस्तुओं का बहिष्कार किया गया। लोग जत्थे बना कर दुकानों पर जाते और दुकानदारों से विदेशी माल के स्थान पर स्वदेशी माल बेचने का आग्रह करते। अंग्रेजी शराब और अंग्रेजी माल बेचने वाली दुकानों पर स्त्रियों ने भी धरने देने शुरू कर दिए। विदेशी माल खरीदने या बेचने वाले का सामाजिक बहिष्कार किया जाता था। कई स्थानों पर नाइयों ने उन लोगों के बाल काटने बंद कर दिए या धोबियों ने उन लोगों के कपड़े धोने बंद कर दिए जो लोग विदेशी माल खरीदते या बेचते थे। अतः लोगों ने विदेशी माल लेना बंद कर दिया।
(iii) इस आंदोलन में विद्यार्थियों की भूमिका बड़ी सराहनीय थी। उन्होंने स्वयं स्वदेशी माल प्रयोग करना आरंभ किया और साथ ही साथ लोगों से भी कहा कि वे विदेशी माल प्रयोग न करें। इस तरह युवा पीढ़ी के साथ मिलने से आंदोलन में और गति आ गई। सरकार ने विद्यार्थियों को भयभीत करने के उद्देश्य से कई विद्यार्थियों को स्कूलों और कॉलेजों से निकाल दिया। कइयों को मार-पीट कर जेल के सींकचों के पीछे धकेल दिया गया परंतु विद्यार्थियों पर इसका तनिक भी प्रभाव न हुआ, बल्कि वे और अधिक भड़क उठे थे।
(iv) स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन केवल विदेशी वस्तुओं तक ही सीमित न रहा। स्वदेशी का अर्थ हो गया, वह सब जो भारतीय है। इसी प्रकार, बहिष्कार का अर्थ हो गया, वह सब त्याग दो जिसका संबंध ब्रिटिश शासन से है। बंगाल के विभाजन के प्रतिरोध में आरंभ होने वाला यह आंदोलन अंत में विदेशी शासन से छुटकारा दिलाने का साधन बन गया। विशिष्ट व्यक्तियों ने सरकार को उसके द्वारा दी गई उपाधियाँ विरोध स्वरूप लौटा दी।
राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक Class 8 HBSE Notes
1. अंग्रेजों के शासन ने स्वयं ही भारत में राष्ट्रवाद के उदय के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न की।
2. अंग्रेज स्वयं को श्रेष्ठ समझते थे एवं भारतीयों को देखकर नाक सिकोड़ते थे तथा उन्हें हीन प्राणी समझते थे। वे उन्हें ‘बाबू’ – कहकर संबोधित करते थे।
3. फ्रांसीसी क्रांति का इतिहास आधुनिक यूरोप का इतिहास है जिसने राष्ट्रवादियों के मध्य एक नई जागृति उत्पन्न की थी।
4. ए.ओ. ह्यूम नामक एक रिटायर्ड अंग्रेज अधिकारी ने 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना की थी, जिसे अखिल भारतीय स्तर का प्रथम संगठन कहा जा सकता है।
5. दादा भाई नौरोजी ने ‘ईस्ट इंडिया एसोसिएशन’ को गठित किया था।
6. 1870 के दशक में न्यायमूर्ति एम.जी. रानाडे एवं कुछ अन्य लोगों ने मिलकर ‘पुणे सार्वजनिक सभा’ को गठित किया था।
7. ब्रिटिश सरकार द्वारा 1877 में इलाहाबाद में एक महान (शानदार) दरबार आयोजित किया गया था जबकि देश के कुछ भागों में भयंकर अकाल व्याप्त था।
8. लार्ड कर्जन (वायसराय) ने 1905 में बंगाल को विभाजित कर दिया था जिसने भारतीय लोगों की भावनाओं पर गहरा प्रहार किया। कांग्रेस में अतिवादियों या उग्र राष्ट्रभक्तों का एक गुट उदित करने में बंगाल विभाजन ने सहायता की थी।
9. महात्मा गाँधी का पूरा नाम था-मोहनदास करमचंद गाँधी। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में नटाल इंडियन कांग्रेस (NIC) का निर्माण किया था।
10. 1915 में महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौट आये तथा वे राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल हो गये।
11. गाँधी जी ने साबरमती आश्रम को सन् 1916 में स्थापित किया।
12. गाँधी जी ने 1917 में चंपारन (बिहार) में नील के बागानों में कार्यरत मजदूरों के हितों के लिए सत्याग्रह करके अपना संघर्ष शुरू किया था।
13. 1918 में गाँधी जी ने अहमदाबाद (गुजरात) के वस्त्र मिल मजदूरों की न्यायिक माँगों का समर्थन किया।
14. 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर स्थित जलियाँवाले बाग में लगभग 1000 व्यक्ति मारे गये तथा 1200 के लगभग भयंकर रूप से घायल हो गये जब निर्दयी अंग्रेज जनरल डायर ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले लोगों पर गोलियाँ चलवा दी थी।
15. गाँधी जी ने भारतीय मुस समानों द्वारा तुर्की के खलीफा के समर्थन में तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा उसके (तुर्की के) प्रति किए गए अन्यायपूर्ण व्यवहार क समर्थन में शुरू किये गये खिलाफ़त विरोध का समर्थन करने की घोषणा कर दी।
16. 1920 में गाँधी जी ने प्रथम असहयोग आंदोलन चलाया जिसमें स्वदेशी (वस्त्र, वस्तुएँ, शिक्षा तथा ग्रामीण तथा जातिगत पंचायतों) को अपनाना तथा विदेशी वस्तुओं, सरकारी शिक्षा संस्थाओं, विधायिकाओं तथा न्यायालयों का बहिष्कार आदि कार्यक्रम शामिल थे।
17. चौरी चौरा (गोरखपुर, उ.प्र.) के पुलिस थाने को क्रोधित भीड़ ने आग लगा दी जिसमें लगभग 22 पुलिसकर्मी मर गये। अहिंसा के पुजारी गाँधी जी को जब यह समाचार मिला तो उन्होंने तुरंत असहयोग आंदोलन स्थगित करने का निर्णय ले लिया।
18. चितरंजन दास तथा मोती लाल नेहरू ने गाँधी जी के निर्णय के विरुद्ध स्वराज्य पार्टी गठित की ताकि विधायिका के चुनावों में भाग ले सके। राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक (इतिहास)
19. सरदार भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरू आदि को केंद्रीय विधायिका में बम फेंकने तथा अन्य हिंसात्मक गतिविधियों के कारण मार्च 1931 में अंग्रेजी सरकार ने फाँसी पर लटका दिया।
20. 26 जनवरी, 1930 को प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया तथा महात्मा गाँधी ने ‘पूर्ण स्वराज’ (Complete Independence): प्राप्ति के लिए द्वितीय नागरिक सविनय अवज्ञा आंदोलन मार्च 1930 में अपने प्रसिद्ध दांडी मार्च से शुरू करके नमक आंदोलन तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया, जो सुदूर पेशावर तक व्याप्त हो गया।
21. इस दौरान प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय गोलमेज सम्मेलन एवं गाँधी-इर्विन समझौते जैसी ऐतिहासिक घटनायें भी हुई। चालाक ब्रिटिश सरकार ने हरिजनों को हिंदू समाज से तोड़ने की निंदनीय कोशिश की जब उनके लिए मुसलमानों की तर्ज पर पृथक : निर्वाचन की व्यवस्था करने की कोशिश की। गाँधी जी ने पूना जेल में इसके खिलाफ आमरण अनशन कर दिया।
22. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने ऐसी नाजुक परिस्थिति में दूरदर्शिता एवं अपनी बुद्धिमता का परिचय देते हुए गाँधी जी के सुझावों को मानते हुए पूना समझौते (Poona Pact) तथा सांप्रदायिक पारितोषिक (Communal Award) के अधीन पृथक चुनावों की व्यवस्था को खारिज करा दिया।
23. सरकार ने 1935 में इंडियन काउंसिल एक्ट पास किया तथा प्रांतीय स्वायतता दे दी गयी। कांग्रेस ने इसकी कुछ व्यवस्था से असहमति प्रकट की तथा इसे खारिज कर दिया लेकिन इसने चुनावों में भाग लेने का फैसला ले लिया।
24. 1937 में प्रांतीय सभाओं के लिए चुनाव हुए जिसमें अधिकांश प्रांतों में कांग्रेस को विजय प्राप्त हुई।
25. मुस्लिम लीग अपनी उपलब्धियों से खुश नहीं थी। उसने 1940 में द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के आधार पर भारत विभाजन तथा पाकिस्तान की माँग की। अधिकांश राष्ट्रवादी मुसलमानों ने पाकिस्तान की माँग का विरोध किया।
26. 1942 में क्रिप्स मिशन तथा 1946 में कैबिनेट मिशन भारत आया।
27. 14-15 अगस्त की आधी रात को भारत स्वतंत्र (लेकिन विभाजित) हो गया। पाकिस्तान का जन्म 14 अगस्त 1947 को हुआ।
28. वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (Vernacular Press Act) : वह अधिनियम जिसके माध्यम से लार्ड लिटन ने भारतीय भाषाओं में छपने वाले समाचारपत्रों, पत्रिकाओं आदि पर सेंसरशिप लगा दी जबकि अंग्रेजी भाषा में छपने वाले प्रकाशनों को इससे स्वतंत्र रखा।
29. उपन्यास/कथाएँ/गल्प साहित्य (Fiction) : ऐसा साहित्य गल्प साहित्य कहलाता है जिसकी घटनायें तथा पात्र काल्पनिक होते हैं जैसे उपन्यास, कहानियाँ, किस्से आदि।
30. सत्याग्रह (Satyagraha) : यह अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का एक अहिंसात्मक तरीका है।
31. अपील (Petition) : किसी बात या चीज के लिए लिखित रूप से प्रार्थनापत्र देना, अपील कहलाता है।
32. स्वराज्य (Swaraj) : किसी देश के लोगों द्वारा स्वयं शासन करना, स्वराज्य कहलाता है।
33. कूकास (Kukas) : सिखों में नामधारियों को कूका कहा गया। ये लोग गुरु राम सिंह के अनुयायी हुआ करते थे।
34. स्वदेशी (Swadeshi) : अपने देश का अर्थात् अपने देश की संस्कृति, भाषा, वस्तुएँ एवं स्वदेशी उद्योगों, शिक्षा, न्याय-प्रणाली – आदि को अपनाना एवं प्रोत्साहन देना। आगे चलकर चरखा तथा खादी भी स्वदेशी के अभिन्न अंग समझे गये।
35. नरमपंथी (Moderates) : कांग्रेस के नेताओं का वह गुट जो स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान (विशेषकर 1885 से 1905 तक) सर्वाधिक शक्तिशाली रहे थे। उन्हें अंग्रेजों की न्यायप्रियता में यकीन था तथा वे केवल संवैधानिक तरीकों, शांतिपूर्ण विरोध, प्रार्थनापत्र देना, प्रतिनिधिमंडल भेजना एवं अहिंसात्मक तरीकों से ही अपनी राजनीतिक माँगें मनवाने में यकीन करते थे। दादाभाई नौरोजी, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता आदि उदारपंथी या नरमपंथी कांग्रेसी थे।
36. उग्रपंथी या गरमपंथी (Extremists) : वे कांग्रेसी नेतागण जिन्हें ब्रिटिश शासन से घोर घृणा थी तथा उन्हें उनके शासन, कानून या न्यायप्रियता में बिल्कुल विश्वास नहीं था। वे सरकार पर दबाव डाल करके अपनी सभी माँगें मनवाने में विश्वास करते थे। इन नेताओं ने उदारपंथी नेताओं की भिक्षा माँगने की प्रवृत्ति या सरकार के सामने गिड़गिड़ाने की घोर निंदा की तथा उन्होंने स्वदेशी के साथ-साथ’ बहिष्कार को सशक्त हथियार बनाया। वे ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहते थे। वे पक्के राष्ट्रवादी भी कहे जाते हैं। इनमें पाल, बाल तथा लाल सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए। उनके पूरे नाम थे-बिपिन चंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक एवं लाला लाजपत राय। अरविंद घोष भी एक महान अतिराष्ट्रवादी नेता थे।
37. गदर पार्टी (Ghadar Party) : इसकी स्थापना 1913 में की गई थी। इसे प्रवासी भारतीयों ने कनाडा, अमेरिका तथा यूरोप में सक्रिय रखा।
38. जातिगत घृणा या ऊँच-नीच की भावना (Racial Arrogance) : किसी एक जाति (प्रजाति) के लोगों द्वारा स्वयं को अन्य से श्रेष्ठ समझने की भावना, उदाहरणार्थ श्वेत चमड़ी के अंग्रेज स्वयं को भारतीयों से श्रेष्ठ मानते थे।
39. राजनीतिक चेतना/जागृति (Political Awakening) : राष्ट्रीय भावनाओं का उत्थान।
40. बाबू (Babus) : प्रायः अंग्रेज छोटे पदों पर सरकारी कार्यालयों या थोड़ी-बहुत अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीयों को चिढ़ाने (tease) .. के उद्देश्य से ‘बाबू’ कहा करते थे।
41. हड़ताल (Hartal or Strike): किसी भी अन्यायपूर्ण कार्य/निर्णय या नीति के विरुद्ध विरोध अभिव्यक्त करने के लिए दैनिक। या सामान्य कार्यक्रमों एवं कार्यों को रोक कर विरोध प्रकट करना हड़ताल कहलाता है।
42. सांप्रदायिक दल (Communal Parties) : जो राजनीतिक दल केवल अपने धर्मावलंबियों या संप्रदायों के लोगों के हितों की ही बात करते हैं तथा एक धर्मावलंबी के हितों को अन्य धर्म के लोगों से पृथक मानते हैं वे दल सांप्रदायिक दल कहलाते हैं। स्वराज्य के लिए संघर्ष के दिनों में मुस्लिम लीग सर्वप्रथम गठित एक सांप्रदायिक दल था। प्रायः उसे ही भारत विभाजन के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है।
43. मार्शल लॉ (Martial Law) : सेना का शासन।
44. नाइटहुड (Knighthood) : कुछ वीरों, सामंतों एवं उच्च पदवी तथा सम्मान योग्य लोगों को अंग्रेज नाइट की जो पदवी देते थे उसे ‘नाइटहुड’ कहा जाता था।
45. ट्रायल (Trial) : न्याय प्रक्रिया की पूरी कार्यवाही जो किसी के अपराध को साबित करने एवं उसके लिए सजा तय करने के लिए प्रायः न्यायालयों में की जाती है।
46. वारंट (Warrant) : न्यायालय से एक लिखित आदेश, जो पुलिस को किसी व्यक्ति विशेष को गिरफ्तार करके कोर्ट में उपस्थित करने का अधिकार देता है, वारंट कहलाता है।
47. धरना देना (Picketing) : किसी दुकान, कारखाने, मिल या कार्यालय के बाहर बैठना तथा अन्य लोगों को उनके अंदर प्रवेश करने से रोकना। प्रायः हड़तालों को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए प्रमुख या नेतागण इस तकनीक को अपनाते हैं।
48. विरोध-प्रदर्शन (Agitation) : किसी निर्णय या नीति के विरुद्ध लोक (या जनता) द्वारा विरोध प्रकट करने की कार्यवाही।
49. सांप्रदायिकता (Communalism) : वह विचारधारा (या दर्शन) जो धर्म के आधार पर लोगों में भेदभाव करने का समर्थन करती है।
50. गाँधी युग (The Gandhian Era) : भारतीय इतिहास में स्वराज्य के लिए संघर्ष में गाँधी जी द्वारा नेतृत्व संभालने एवं उनके द्वारा प्रमुख भागेदारी एवं स्वतंत्रता के बाद के कुछ माह के कालांश को जो प्रायः 1919 से जनवरी, 1948 तक का माना जाता है।
51. खादी (Khadi) : खुरदरा (Coarse) वस्त्र (जो प्रायः सूती तथा ऊनी होता है) जिसे हाथ से काता तथा बुना (तैयार किया) जाता है।
52. चरखा (Charkha) : कताई का चक्र। चरखा गाँधी जी को कुटीर उद्योगों के प्रतीक के रूप में तथा खादी तैयार करने में उसकी भूमिका के लिए बहुत प्रिय था।
53. परिवर्तन के पक्षधर (Pro-changers) : कांग्रेसियों का वह समूह जो गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के स्थगन तथा विधायिकाओं के चुनावों के बहिष्कार के विरोधी थे, उन्हें इतिहास में परिवर्तनवादी कहा जाता है। इनमें मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास प्रमुख थे।
54. अपरिवर्तनशील (No-changers) : कांग्रेसियों का वह गुट (समूह) जो गाँधी जी की विचारधारा एवं रणनीति के (1922 में उनके द्वारा असहयोग आंदोलन वापिस लेने के बाद भी) समर्थक बने रहे, वे अपरिवर्तनशील कहलाये। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, विनोबा भावे आदि ऐसे ही नेता थे। राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक (इतिहास)
55. शहीद (Martyr): वह पुरुष अथवा महिला जो अपना जीवन किसी अच्छे (noble) एवं अनुकरणीय उद्देश्य के लिए बलिदान करते हैं उन्हें शहीद कहा जाता है। भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू आदि देश के महान शहीद माने जाते हैं।
56. नागरिक अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) : स्वराज के लिए संघर्ष के द्वारा 1930 से 1932 तक जो आंदोलन गाँधी जी ने चलाया उसे प्रायः सविनय अवज्ञा आंदोलन कहा जाता है। (यह विनम्रता के साथ आज्ञा या आदेशों के उल्लंघन करने का आंदोलन था।)
57. चंपारन सत्याग्रह (Champaran Satyagrah) : सन् 1917 में महात्मा गाँधी ने इसे नील के खेतों में काश्तकारों द्वारा की जा रही माँगों (उचित मजदूरी एवं पर्याप्त सुविधाओं) के पक्ष में अंग्रेज बागान मालिकों के विरुद्ध चंपारन (बिहार) में शुरू किया। उन्हें इसमें सफलता भी प्राप्त हुई।
58. क्रिप्स मिशन (Cripps Mission) : सन् 1942 में भारत में यह मिशन ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजा गया था। सर स्टैफोर्ड क्रिप्स (Sir Stafford Cripps) इस मिशन के प्रमुख थे। उन दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था (यह युद्ध 1939 से 1945 तक रहा था।)। इस मिशन का उद्देश्य ब्रिटेन के लिए भारतीयों का पूर्ण सहयोग एवं समर्थन प्राप्त करना था। यह युद्ध ब्रिटिश भारत की सीमाओं तक भी दस्तक दे रहा था। जापान ने दक्षिण पूर्व एशिया के अनेक देशों पर कब्जा कर लिया था। जापानी साम्राज्यवादी अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ रहे थे।
59. कैबिनेट मिशन (Cabinet Mission) : यह मिशन ब्रिटिश सरकार द्वारा 1946 में भेजा गया था। इसमें तीन कैबिनेट मंत्री थे। इसका उद्देश्य एवं कार्य भारतीय नेताओं से बातचीत करके शीघ्र से शीघ्र भारतीयों को सत्ता सौंपने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना था।
60. पाकिस्तान प्रस्ताव (Pakistan Resolution) : इसे 1940 में पास किया गया था। इसे मुस्लिम लीग ने पास किया था। इसमें उस दल ने भारत से पृथक एक स्वतंत्र देश के रूप में पाकिस्तान की माँग की थी।
61. परिसंघ (Federation) : इसमें एक संघ में कई छोटी इकाइयाँ या राज्य शामिल होते हैं। इसके राज्यों (प्रांतों) को आंतरिक – प्रशासन एवं कार्यों पर पूर्ण नियंत्रण रखने की स्वतंत्रता होती है। लेकिन कुछ मामले जैसे प्रतिरक्षा, विदेश नीति तथा मुद्रा आदि के विषय केंद्र के पास ही रहते हैं
62. संयुक्त या गठबंधन सरकार (Coalition Government) : दो अथवा दो से ज्यादा राजनीतिक दलों द्वारा बनायी गयी सांझी या संयुक्त सरकार। केंद्र में एनडीए की सरकार (जिसके प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे) तथा यूपीए सरकार (मनमोहन सिंह जिसके प्रधानमंत्री हैं।) गठबंधन सरकारों के उदाहरण हैं।
63. धर्मांध (Fanatic) : वह व्यक्ति जो किसी मामले पर विशेषकर धार्मिक मुद्दों पर बहुत ही कठोर एवं जटिल विचार रखते हैं वे धर्मांध / रूढ़िवादी कहलाते हैं।
64. लोकतंत्र (Democracy) : सरकार, जिसे लोग चुनते हैं।
65. गद्दारी (Treason) : किसी के द्वारा अपने ही देश को धोखा देना तथा उसके (देश/राज्य) के शत्रु की मदद करना।
66. अंतरिम सरकार (Interim Government) : एडहोक या अस्थायी सरकार अंतरिम सरकार कहलाती है। यह सरकार तब तक प्रशासन चलाती है जब तक वैधानिक सरकार का गठन या चयन नहीं हो जाता।
67. फासिस्ट देश (फासीवादी राष्ट्र = Fascist Countries) : 1920 के दशक से लेकर अगस्त-सितंबर 1945 के मध्य के वर्षों में इटली, जर्मनी तथा जापान की अधिनायकवादी/सैनिक तथा फासीवादी नीतियों की समर्थक सरकारों के कारण इन तीनों देशों को फासीवादी देश की संज्ञा दी गयी। इन पर क्रमशः मुसोलिनी, एडोल्फ हिटलर तथा सैनिक जनरल राज्य कर रहे थे। फासिस्टों ने खुलेआम युद्ध, आक्रमणों, आतंकवाद एवं अपने सभी विरोधियों को हरसंभव तरीके से मारने/कुचलने की बातें करते थे।
68. संप्रभुता (Sovereignty) : बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के ही स्वतंत्र रूप से निर्णय की क्षमता को संप्रभुता कहते हैं।
69. प्रकाशित किया हुआ (Publised) : जो कोई व्यक्ति सभाओं में बोल कर या भाषण करके अपने विचारों, कार्यक्रमों को
70. खारिज करना (Rejected) : किसी कानून को वापिस ले लेना या उसे रद्द कर देना, किसी सरकारी निर्णय को वापिस ले लेना या कानूनी तौर पर किसी की वैधता (रिपोर्ट या कागजात या लिखित निर्णयों) को समाप्त करना।
71. क्रांतिकारी हिंसा (Revolutionary Violence) : शक्ति एवं हिंसा का प्रयोग करके तुरंत परिवर्तन लाना (या व्यवस्थित अथवा चल रही व्यवस्था (सिस्टम) को ताकत के बल पर उलट देना) क्रांतिकारी हिंसा कहलाती है। यह हिंसा कभी-कभी अपने उद्देश्यों को पाने में सफल हो जाती है तो कभी-कभी विफल भी।
72. परिषद (या सभा) (Council) : प्रायः चुने लोगों या नामजद लोगों की परिषद जिसकी नियुक्ति एक निकाय के रूप में की जाती है। यह प्रशासनिक, सलाह देने या प्रतिनिधित्व कार्य करती है।
73. महंत (Mahants) : सिक्खों के गुरुद्वारों में धार्मिक उत्सवों को संपन्न कराने वालों को प्रायः महंत कहा जाता है।
74. गैर-कानूनी ढंग से बेदखल करना (Illegal eviction) : शक्ति का प्रयोग करते हुए जबरन एवं गैरकानूनी ढंग से किसी … किरायेदार को मकान, दुकान या फैक्टरी से उसका सामान बाहर निकालकर या फेंक कर कब्जा करना।
75. प्रांतीय स्वायतता (Provincial Autonomy): किसी परिसंघ का हिस्सा बना रहने के बाद भी आंतरिक प्रशासन एवं व्यवस्था के लिए उसकी इकाइयों (प्रांतों) को निर्णय लेने या शासन चलाने की आजादी।