HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Solutions Chapter 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग

प्रश्न 1.
कौनसे विभिन्न जन स्वास्थ्य उपाय हैं, जिन्हें आप संक्रामक रोगों के विरुद्ध रक्षा उपायों के रूप में सुझाएँगे?
उत्तर:
संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए हम निम्नलिखित उपाय सुझाएँगे-
(1) संक्रामक रोगों के प्रति टीकाकरण (प्रतिरक्षीकरण) कार्यक्रमों का आयोजन करना।
(2) खाने और पानी आपूर्ति के संसाधनों का स्वच्छ रख-रखाव रखने के लिए लोगों एवं सरकार (प्रशासन) को प्रेरित करें।
(3) रोग और शरीर के विभिन्न प्रकार्यों पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता (लोगों को रोगों के प्रति शिक्षित करना)।
(4) रोगवाहकों (वेक्टर्स) पर नियंत्रण रखने के उपाय करने चाहिए, जैसे गदंगी के ढेर और गंदे पानी को (बाढ़ या नालियों के पानी को) इकट्ठा न होने दें।
(5) अपशिष्टों (वेस्ट) का समुचित निपटान ताकि वातावरण स्वच्छ बना रहे।

प्रश्न 2.
जैविकी के अध्ययन ने संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने में किस प्रकार हमारी सहायता की है?
उत्तर:
जीव विज्ञान में हुई प्रगति से हमें संक्रामक रोगों से निबटने के लिए कारगर हथियार मिल गये हैं। टीका ( Vaccine) के उपयोग और प्रतिरक्षीकरण कार्यक्रमों से चेचक, डिफ्थीरिया, न्यूमोनिया और टिटेनस जैसे अनेक संक्रामक रोगों को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है। जैव प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नोलॉजी) के उपयोग से नए- नए और अधिक सुरक्षित वैक्सीन बनाये जा रहे हैं। प्रतिजैविकों (एंटीबायोटिक) एवं अन्य दूसरी औषधियों की खोज ने भी संक्रामक रोगों के प्रभावी ढंग से उपचार करने में हमें सक्षम बनाया है ।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित रोगों का संचरण कैसे होता है?
(क) अमीबता
(ख) मलेरिया
(ग) एस्के रिसता
(घ) न्यूमोनिया।
उत्तर:
(क) अमीबता ( Amoebiasis) – मानव की वृहत् आंत्र में पाए जाने वाले एंटअमीबा हिस्टोलिटिका (Entamoeba histolytica) नामक प्रोटोजोन परजीवी से अमीबता (अमीबिएसिस) या अमीबी अतिसार होता है। कोष्ठबद्धता (कब्ज), उदरीय पीड़ा और ऐंठन, अत्यधिक श्लेषमल और रक्त के थक्के वाला मल इस रोग के लक्षण हैं। घरेलू मक्खियाँ इस रोग की शारीरिक वाहक हैं और परजीवी को संक्रमित व्यक्ति के मल से खाद्य पदार्थों तक ले जाकर उन्हें संदूषित कर देती हैं। मल पदार्थों द्वारा संदूषित पेयजल और खाद्य पदार्थ संक्रमण के प्रमुख स्रोत हैं।

(ख) मलेरिया (Malaria) – प्लैज्मोडियम (Plasmodium) नामक एक बहुत ही छोटा-सा प्रोटोजोअन मलेरिया के लिए उत्तरदायी है। प्लैज्मोडियम की विभिन्न जातियाँ ( प्लै वाइवैक्स, प्लै मेलिरिआई और प्लै. फैल्सीपेरम) विभिन्न प्रकार के मलेरिया के लिए उत्तरदायी हैं। इनमें से प्लैज्मोडियम फैल्सीपेरम द्वारा होने वाला दुर्दम (मेलिगनेंट) है और यह घातक भी हो सकता है। मादा ऐनोफेलीज मच्छर मानव में इस रोग का संचारण करती है ।

(ग) एस्केरिसता (Ascariasis) – आंत्र परजीवी ऐस्केरिस लुम्बिकॉयड्स (Ascaris lumbricoids) से एस्के रिसता (एस्केरिएसिस) नामक रोग होता है। आंतरिक रक्तस्राव, पेशीय पीड़ा, ज्वर, अरक्तता और आंत्र का अवरोध इस रोग के लक्षण हैं। इस परजीवी के अंडे संक्रमित व्यक्ति के मल के साथ बाहर निकल आते हैं। और मिट्टी, जल, पौधों आदि को संदूषित कर देते हैं। स्वस्थ व्यक्ति में यह संक्रमण संदूषित पानी, शाक-सब्जियों, फलों आदि के सेवन से हो जाता है।

(घ) न्यूमोनिया (Pneumonia)- स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniac ) एवं हीमोफिल्स इंफ्लुएंजी (Haemophilus influenzae) नामक जीवाणु मानव में न्यूमोनिया रोग के लिए उत्तरदायी हैं। वायु के माध्यम से जीवाणु स्वस्थ व्यक्ति में संचरित होते हैं। इस रोग में फुफ्फुस के वायुकोष्ठ संक्रमित हो जाते हैं । संक्रमण के फलस्वरूप वायुकोष्ठकों में तरल भर जाता है जिसके कारण सांस लेने में गंभीर समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। ज्वर, ठिठुरन, खाँसी और सिरदर्द आदि न्यूमोनिया के लक्षण हैं।

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प्रश्न 4.
जल-वाहित रोगों की रोकथाम के लिए आप क्या उपाय अपनायेंगे?
उत्तर:
पानी के द्वारा संचारित होने वाले कुछ मुख्य रोग हैं- टायफॉइड, अमीबता, एस्केरिसता, मलेरिया, कॉलेरा आदि। इन रोगों की रोकथाम के लिए-
(1) जलाशयों, कुंडों और मलकुंडों और तालाबों की समय- समय पर सफाई करनी चाहिए।
(2) पानी को उबालकर या फिल्टर करके पीना चाहिए। पीने के पानी को साफ बर्तन में ढककर रखें।
(3) मानव मल-मूत्र का उचित निस्तारण करना चाहिए। इसके लिए शौचालयों से मल-मूत्र को भूमिगत टैंकों एवं सीवेज सिस्टम में निस्तारण करना चाहिए।
(4) मलेरिया एवं फाइलेरिया जैसे रोगों के रोगवाहकों के प्रजनन स्थलों को नष्ट कर देना चाहिए।
(5) आवासीय क्षेत्रों में और उसके आसपास पानी को जमा नहीं होने देना चाहिए।
(6) शीतल यंत्रों (कूलर ) की नियमित सफाई ।
(7) मच्छरों के लार्वा को खाने वाली गंबुजिया जैसी मछलियों का उपयोग करना चाहिए।
(8) दवाइयों, जल निकास क्षेत्रों और अनूपों ( दलदलों) (स्वप्स) आदि में कीटनाशकों के छिड़काव किए जाने चाहिए।
(9) मच्छरदानी का प्रयोग। इसके अतिरिक्त दरवाजों और खिड़कियों में जाली लगानी चाहिए ताकि मच्छर अंदर प्रवेश न कर सकें।

प्रश्न 5.
डी एन ए वैक्सीन के सन्दर्भ में ‘उपयुक्त जीन’ के अर्थ के बारे में अपने अध्यापक से चर्चा कीजिये ।
उत्तर:
जीवाणु या खमीर में रोगजनक की प्रतिजनी पॉलीपेप्टाइड का उत्पादन पुनर्योगज डीएनए (Recombinant DNA) प्रौद्योगिकी से होने लगा है। इसे उपयुक्त जीन ( Suitable Gene) कहा जाता है। इस विधि से बड़े पैमाने पर उत्पादित टीकों (उपयुक्त जीन) की प्रतिरक्षीकरण हेतु उपलब्धता बढ़ गई है। उदाहरण के लिये खमीर से बनने वाला यकृत शोध का टीका (Hapatitis B Vaccine) इसी प्रकार का टीका है।

प्रश्न 6.
प्राथमिक एवं द्वितीयक लसीकाओं के अंगों के नाम बताइये
उत्तर:
(i) प्राथमिक लसीका अंग (Primary Lymphoid Organs) – अस्थि मज्जा (Bone Marrow) एवं थाइमस (Thymus )।
(ii) द्वितीयक लसीका अंग (Secondary Lymphoid Organs) – प्लीहा (Spleen), लसीका ग्रन्थियां (Lymph Glands), टान्सिल्स (Tonsils), परिशेषिका ( Appendix ) एव क्षुद्रांत्र के पेयर पेंच आदि।

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प्रश्न 7.
इस अध्याय में निम्नलिखित सुप्रसिद्ध संकेताक्षर इस्तेमाल किये गये हैं।
इनका पूरा रूप बताइये –
(क) एम. ए. एल. टी.
(ख) सी. एम.आई.
(ग) एड्स
(घ) एन.ए.सी. ओ.
(च) एच.आई.वी.।
उत्तर:

संकेताक्षर पूरा नाम
(क) एम ए एल टी (M.A.L.T.) म्यूकोसल एसोसिएटेड लिम्फॉयड टिशू (श्लेष्म संबद्ध लसीकाभ ऊतक)
(ख) सी एम आई (C.M.I.) सेल मेडिएटेड इम्यूनिटी (कोशिका-माध्यित प्रतिरक्षा)
(ग) एड्स (A.I.D.S.) एक्वायर्ड इम्यूनो डिफीसियेंसी सिंड्रोम (उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण)
(घ) एन ए सी ओ (N.A.C.O.) नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन)
(च) एचआईवी (H.I.V.) ह्यूमन इम्यू नो डिफीसियें सी वायरस (मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु)

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में भेद कीजिये और प्रत्येक के उदाहरण दीजिये-
(क) सहज (जन्मजात ) और उपार्जित प्रतिरक्षा
(ख) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा।
उत्तर:
(क) सहज (जन्मजात) और उपार्जित प्रतिरक्षा में भेद (Difference between Innate and Aquired Immunity)

सहज (जन्मजात) प्रतिरक्षा (Innate Immunity): उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity):
यह शरीर की सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली होती है। यह विशिष्ट प्रतिरक्षा प्रणाली है।
यह जन्मजात उपस्थित होती है। यह जन्म के पश्चात् व्यक्ति अर्जित करता है।
यदि किसी प्रकार से रोगकारक शरीर में प्रविष्ट होने में सफल हो जाते हैं तो प्राकृतिक प्रतिरोधकता/ सहज प्रतिरक्षा के घटक (मुख्यतः वृहत् भक्षाणु) उन्हें समाप्त कर देते हैं। शरीर के भीतर प्रवेश करने वाले विशिष्ट एवं हानिकारक पदार्थों को विशेष अभिज्ञान द्वारा पहचान कर नष्ट कर दिया जाता है।
यह जीवों की सुरक्षा हेतु प्रथम रक्षा पंक्ति बनाती है। यह पूरक (Supplementary) प्रतिरक्षी की तरह कार्य करती है अर्थात् जब प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता आंशिक या पूर्ण रूप से असफल होने पर यह एक पूरक प्रतिरक्षी की तरह कार्य करती है।
उदाहरण-त्वचा, श्लेषमल झिल्लियाँ, आँसुओं में मौजूद रोगाणुरोधी पदार्थ, लार और भक्षाणुक कोशिकाएं आदि। उदाहरण-बी एवं टी कोशिकाएं।

(ख) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा में भेद (Difference between Active and Passive Immunity):

सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity): निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity):
जब परपोषी प्रतिजनों (एंटीजेंस) का सामना करता है तो शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं। प्रतिजन जीवित या मृत रोगाणुओं या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है। जब शरीर की रक्षा के लिये बने-बनाए प्रतिरक्षी सीधे ही शरीर को दिये जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है।
सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी होती है। जबकि निष्क्रिय प्रतिरक्षा तेज होती है।
यह अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय लेती है। यह अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय नहीं लेती है।
यह हानिरहित है। हानि अथवा खतरे की संभावना रहती है।

प्रश्न 9.
प्रतिरक्षी ( प्रतिपिण्ड ) अणु का अच्छी तरह नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
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प्रश्न 10.
वे कौनसे विभिन्न रास्ते हैं जिनके द्वारा मानव प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच आई वी ) का संचारण होता है?
उत्तर:
मानव प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच. आई. वी.) सामान्यतः संक्रमित व्यक्ति के रक्त, वीर्य एवं योनि स्रावों में उपस्थित रहते हैं। अतः इनका संचरण ऐसी क्रियाओं के माध्यम से होता है जिनसे ये द्रव स्वस्थ व्यक्ति के संपर्क में आते हैं। सामान्यतः रोग का संचरण लैंगिक तथा रक्त संपर्क से होता है।
एच.आई.वी. के संचरण के निम्न रास्ते हैं –
(1) समलैंगिक व्यक्तियों के बीच गुदा मैथुन क्रिया द्वारा
(2) संक्रमित व्यक्ति के रक्त आधान द्वारा
(3) एक ही सूई ( Injection) द्वारा नशीले पदार्थों का उपयोग
(4) माता से शिशु में प्लेसेंटा (Placenta ) द्वारा
(5) संक्रमित व्यक्ति के यौन संपर्क से
(6) संक्रमित व्यक्ति का किस (Kiss ) लेने से एच आई वी का संचरण हो जाता है जिसके मुंह में घाव होता है।
(7) संक्रमित रेजर के उपयोग से ।
करता है जहाँ उसका आर एन ए जीनोम विलोम ट्रांसक्रिप्टेज प्रकिण्व ( रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एंजाइम ) की सहायता से प्रतिकृतीयन ( रेप्लीकेसन) द्वारा विषाणवीय डी एन ए बनता

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प्रश्न 11.
वे कौनसी क्रियाविधि हैं जिससे एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति के प्रतिरक्षा तंत्र का ह्रास करता है?
उत्तर:
संक्रमित व्यक्ति के शरीर में आ जाने के बाद विषाणु बृहत् भक्षकाणु (मेक्रोफेग) में प्रवेश करता है जहाँ उसका आर एन ए जीनोम विलोम ट्रांसक्रिप्टेज प्रकिण्व (रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एंजाइम) की सहायता से प्रतिकृतीयन (रेप्लीकेसन) द्वारा विषाणवीय डी एन ए बनता है। यह विषाणवीय डी एन ए परपोषी की कोशिका के डी एन ए में समाविष्ट होकर संक्रमित कोशिकाओं को विषाणु कण पैदा करने का निर्देश देता है।

बृहत् भक्षकाणु विषाणु उत्पन्न करना जारी रखते हैं और एक एच आई वी फैक्टरी की तरह काम करते हैं। इसके साथ ही एच आई वी सहायक टी- लसीकाणुओं (टीएच) में घुस जाता है, प्रतिकृति बनाता है और संतति विषाणु पैदा करता है। यह क्रम बार-बार दोहराया जाता है जिसकी वजह से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में सहायक टी- लसीकाणुओं की संख्या में उत्तरोत्तर कमी होती है। इस अवधि के दौरान बार-बार बुखार और दस्त आते हैं तथा वजन घटता है।

सहायक टी-लसीकाणुओं की संख्या में गिरावट के कारण व्यक्ति जीवाणुओं, विशेष रूप से माइक्रोबैक्टीरियम, विषाणुओं, कवकों यहाँ तक कि टॉक्सोप्लैज्मा जैसे परजीवियों के संक्रमण का शिकार हो जाता है। रोगी में इतनी प्रतिरक्षा न्यूनता हो जाती है कि वह इन संक्रमणों से अपनी रक्षा करने में असमर्थ हो जाता है। एड्स के लिए व्यापक रूप से काम में लिया जाने वाला नैदानिक परीक्षण एंजाइम्स संलग्न प्रतिरक्षा रोधी आमापन एलीसा ( एलीसा – एंजाइम लिंक्ड इम्यूनो जारबेट एस्से ) है। प्रति- पश्चविषाणवीय (एंट्री रिट्रोवायरल ) औषधियों से एड्स का उपचार आंशिक रूप से प्रभावी है। ये औषधियाँ रोगी की अवश्यंभावी मृत्यु को आगे सरका सकती हैं, रोक नहीं सकतीं।

प्रश्न 12.
प्रसामान्य कोशिका से कैंसर कोशिका किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
हमारे शरीर में कोशिका वृद्धि और विभेदन अत्यधिक नियंत्रित और नियमित है। कैंसर कोशिकाओं में ये नियामक क्रियाविधियाँ टूट जाती हैं। प्रसामान्य कोशिकाएँ ऐसा गुण दर्शाती हैं। जिसे संस्पर्श संदमन (कांटेक्ट इनहिबिसन) कहते हैं और इसी गुण के कारण दूसरी कोशिकाओं से उनका संस्पर्श उनकी अनियंत्रित वृद्धि को संदमित करता है। ऐसा लगता है कि कैंसर कोशिकाओं में यह गुण खत्म हो गया है। इसके फलस्वरूप कैंसर कोशिकाएँ विभाजित होना जारी रख कोशिकाओं का भंडार खड़ा कर देती हैं जिसे अर्बुद (ट्यूमर) कहते हैं ।

अर्बुद दो प्रकार के होते हैं – सुदम (बिनाइन) और दुर्दम (मैलिग्नेंट)। सुदम अर्बुद सामान्यतया अपने मूल स्थान तक सीमित रहते हैं। दूसरी ओर, दुर्दम अर्बुद प्रचुरोद्भवी कोशिकाओं का पुंज है जो नवद्रव्यीय नियोप्लास्टिक कोशिकाएँ कहलाती हैं। ये बहुत तेजी से बढ़ती हैं और आस-पास के सामान्य ऊतकों पर हमला करके उन्हें क्षति (मैलिग्नेंट) । सुदम अर्बुद सामान्यतया अपने मूल स्थान तक सीमित रहते हैं। दूसरी ओर, दुर्दम अर्बुद प्रचुरोद्भवी कोशिकाओं का पुंज है जो नवद्रव्यीय नियोप्लास्टिक कोशिकाएँ कहलाती हैं। ये बहुत तेजी से बढ़ती हैं और आस-पास के सामान्य ऊतकों पर हमला करके उन्हें क्षति पहुँचाती हैं।

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प्रश्न 13.
मैटास्टेसिस का क्या मतलब है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अर्बुद कोशिकाएँ सक्रियता से विभाजित और वर्धित होती हैं जिससे वे अत्यावश्यक पोषकों के लिए सामान्य कोशिकाओं से स्पर्धा करती हैं और उन्हें भूखा मारती हैं। ऐसे अर्बुदों से उतरी हुई कोशिकाएं – रक्त द्वारा दूरदराज स्थलों पर पहुँच जाती हैं और जहाँ भी ये जाती हैं नये अर्बुद बनाना प्रारंभ कर देती हैं। मैटास्टेसिस कहलाने वाला यह गुण दुर्दम अर्बुदों का सबसे डरावना गुण है।

प्रश्न 14.
ऐल्कोहॉल / ड्रग के द्वारा होने वाले कुप्रयोग के हानिकारक प्रभावों की सूची बनाएँ।
उत्तर:
ड्रग और ऐल्कोहॉल के तात्कालिक प्रतिकूल प्रभाव अंधाधुंध व्यवहार, बर्बरता और हिंसा के रूप में व्यक्त होते हैं। ड्रगों की अत्यधिक मात्रा से श्वसन-पात ( रिस्पाइरेटरी फेल्योर ), हृदय – पात (हार्ट फेल्योर ) अथवा प्रमस्तिष्क रक्तस्राव (सेरेब्रल हेमरेज) के कारण संमूर्च्छा (कोमा) और मृत्यु हो सकती है।

ड्रगों का संयोजन या ऐल्कोहॉल के साथ उनके सेवन का आमतौर पर यह परिणाम –
1. अतिमात्रा होती है। युवाओं में ड्रग और ऐल्कोहॉल दुरुपयोग के सबसे सामान्य लक्षण शैक्षिक क्षेत्र में प्रदर्शन में कमी, बिना किसी स्पष्ट कारण के स्कूल या कॉलेज से अनुपस्थिति, व्यक्तिगत स्वच्छता की रुचि में कमी, विनिवर्तन, एकाकीपन, अवसाद, थकावट, आक्रमणशील और विद्रोही व्यवहार, परिवार और मित्रों से बिगड़ते संबंध, शौक की रुचि में कमी, सोने और खाने की आदतों में परिवर्तन, भूख और वजन में घट-बढ़ आदि हैं। ड्रग / ऐल्कोहॉल के कुप्रयोग के दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं। अगर कुप्रयोगकर्ता को ड्रग / ऐल्कोहॉल खरीदने के लिए पैसे नहीं मिलें तो वह चोरी का सहारा ले सकता है।

ये प्रतिकूल प्रभाव केवल ड्रग / ऐल्कोहॉल का सेवन करने वाले तक सीमित नहीं रहता। कभी- कभी ड्रग / ऐल्कोहॉल अपने परिवार या मित्र आदि के लिए भी मानसिक और आर्थिक कष्ट का कारण बन सकता/सकती है। जो अंतःशिरा द्वारा ड्रग लेते हैं उनको एड्स और यकृतशोथ – बी जैसे गंभीर संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है। जो अंतःशिरा द्वारा ड्रग लेते हैं उनको एड्स और यकृतशोथ – बी जैसे गंभीर संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है।

गर्भावस्था के दौरान ड्रग एवं ऐल्कोहॉल का उपयोग गर्भ पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। महिला खिलाड़ियों द्वारा उपचयी स्टेराइडों के सेवन के अनुषंगी प्रभावों में पुस्त्वन, बड़ी आक्रामकता, भावदशा में उतार- चढ़ाव, अवसाद, असामान्य आर्तव चक्र, मुँह और शरीर पर बालों की अत्यधिक वृद्धि भगशेफ का बढ़ जाना, आवाज का गहरा होना शामिल हैं। पुरुष खिलाड़ियों में मुँहासे, बढ़ी आक्रामकता भावदशा में उतार- चढ़ाव, अवसाद, वृषणों के आकार का घटना, शुक्राणु उत्पादन में कमी, यकृत और वृक्क की संभावित दुष्क्रियता, वक्ष का बढ़ना, समयपूर्व गंजापन, प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ना आदि शामिल हैं।

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प्रश्न 15.
क्या आप ऐसा सोचते हैं कि मित्रगण किसी को ऐल्कोहॉल / ड्रग सेवन के लिए प्रभावित कर सकते हैं? यदि हाँ, तो व्यक्ति ऐसे प्रभावों से कैसे अपने आपको बचा सकते हैं?
उत्तर:
ऐसे मामलों में माता-पिता और अध्यापकों का विशेष उत्तरदायित्व है। ऐसा लालन-पालन जिसमें पालन-पोषण का स्तर ऊँचा हो और सुसंगत अनुशासन हों, ऐल्कोहॉल / ड्रग / तंबाकू के कुप्रयोग का खतरा कम कर देता है। यहाँ दिए गए कुछ उपाय किशोरों में ऐल्कोहॉल और ड्रग के कुप्रयोग की रोकथाम तथा नियंत्रण में विशेष रूप से कारगर होंगे –

(1) माता-पिता और समकक्षियों से सहायता लेना – माता-पिता और समकक्षियों से फौरन मदद लेनी चाहिए, ताकि वे उचित मार्गदर्शन कर सकें । निकट और विश्वसनीय मित्रों से भी सलाह लेनी चाहिए। युवाओं की समस्याओं को सुलझाने के लिए समुचित सलाह से उन्हें अपनी चिंता और अपराध भावना को अभिव्यक्त करने में सहायता मिलेगी।

(2) आवश्यक समकक्षी दबाव से बचें – प्रत्येक बच्चे की अपनी पसंद और अपना व्यक्तित्व होता है, जिसका सम्मान और जिसे प्रोत्साहित करना चाहिए। बालक को उसकी अवसीमा (थ्रेसोल्ड) से अधिक करने के लिए आवश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए।

(3) संकट के संकेतों को देखना- सावधान माता – पिता और अध्यापकों को चाहिए कि ऊपर बताए गये खतरों के संकेतों पर ध्यान दें और उन्हें पहचानें। मित्रों को भी चाहिए कि अगर वे परिचित को ड्रग या ऐल्कोहॉल लेते हुए देखें तो वे उस व्यक्ति के भले के लिए माता-पिता या अध्यापक को बताने में हिचकिचाएँ नहीं। इसके बाद बीमारी को पहचानने और उसके पीछे छुपे कारणों का पता लगाने के लिए उचित उपाय करने होंगे। इससे समुचित चिकित्सकीय उपाय आरंभ करने में सहायता मिलेगी।

(4) व्यावसायिक और चिकित्सा सहायता लेना – जो व्यक्ति दुर्भाग्यवश ड्रग ऐल्कोहॉल के कुप्रयोग रूपी दलदल में फँस गया, उसकी सहायता के लिए उच्च योग्यता प्राप्त मनोवैज्ञानिकों, मनोरोगविज्ञानियों की उपलब्धता और व्यसन छुड़ाने तथा पुनः स्थापना कार्यक्रमों हेतु काफी सहायता उपलब्ध है। ऐसी सहायता से प्रभावित व्यक्ति पर्याप्त प्रयासों और इच्छाशक्ति द्वारा इस समस्या से पूरी तरह छुटकारा पा सकता है और पूर्णरूपेण प्रसामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकता है।

(5) शिक्षा और परामर्श – समस्याओं और दबावों का सामना करने और निराशाओं तथा असफलताओं को जीवन का एक हिस्सा समझकर स्वीकार करने की शिक्षा एवं परामर्श उन्हें देना चाहिए। यह भी उचित होगा कि बालक की ऊर्जा को खेल-कूद, पढ़ाई, संगीत और पाठ्यक्रम के अलावा दूसरी स्वस्थ गतिविधियों की दिशा में भी लगाना चाहिए।

प्रश्न 16.
ऐसा क्यों है कि जब कोई व्यक्ति ऐल्कोहॉल या ड्रग लेना शुरू कर देता है तो उस आदत से छुटकारा पाना कठिन होता है? अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए ।
उत्तर:
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐल्कोहॉल और ड्रग की अंतर्निहित व्यसनी प्रकृति है, लेकिन व्यक्ति इस बात को समझ नहीं पाता । ड्रगों और ऐल्कोहॉल के कुछ प्रभावों के प्रति लत, एक मनोवैज्ञानिक आसक्ति है जो व्यक्ति को उस समय भी ड्रग एवं ऐल्कोहॉल लेने के लिए प्रेरित करने से जुड़ी है जबकि उनकी जरूरत नहीं होती या उनका इस्तेमाल आत्मघाती है। ड्रग के बार-बार उपयोग से हमारे शरीर में मौजूद ग्राहियों का सह्य स्तर बढ़ जाता है।

इसके फलस्वरूप ग्राही, ड्रगों या ऐल्कोहॉल की केवल उच्चतर मात्रा के प्रति अनुक्रिया करते हैं, जिसके कारण अधिकाधिक मात्रा में लेने की लत पड़ जाती है। लेकिन एक बात बुद्धि में बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए कि इन ड्रग को एक बार लेना भी व्यसन बन सकता है। इस प्रकार ड्रग और ऐल्कोहॉल की व्यसनी शक्ति उन्हें इस्तेमाल करने वाले / वाली को एक दोषपूर्ण चक्र में घसीट लेते हैं, जिससे वे इनका नियमित सेवन (कुप्रयोग ) करने लगते हैं और इस चक्र से बाहर निकलना उनके बस में नहीं रहता । किसी मार्गदर्शन या परामर्श के अभाव में व्यक्ति व्यसनी (लती) बन जाता है और उनके ऊपर आश्रित होने लगता है।

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प्रश्न 17.
आपके विचार से किशोरों को ऐल्कोहॉल या ड्रग के सेवन के लिए क्या प्रेरित करता है और इससे कैसे बचा जा सकता है ?
उत्तर:
जिज्ञासा, जोखिम उठाने और उत्तेजना के प्रति आकर्षण और प्रयोग करने की इच्छा ऐसे सामान्य कारण हैं जो किशोरों को ड्रग और ऐल्कोहॉल के प्रति अभिप्रेरित करते हैं। बच्चे की प्राकृतिक जिज्ञासा उसे प्रयोग करने के लिए अभिप्रेरित करती है। ड्रग और ऐल्कोहॉल के प्रभाव को फायदे के रूप में देखने से समस्या और जटिल हो जाती है। ड्रग या ऐल्कोहॉल का पहली बार सेवन जिज्ञासा या प्रयोग करने के कारण हो सकता है। लेकिन बाद में बच्चा इनका उपयोग समस्याओं का सामना करने से बचने के लिए करने लगता है। पिछले कुछ समय से शैक्षिक क्षेत्र में या परीक्षा में सबसे आगे रहने के दबाव से उत्पन्न तनाव ने भी किशोरों को ऐल्कोहॉल या ड्रगों को आजमाने के लिए फुसलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

युवकों में यह बोध भी कि धूम्रपान करना, ड्रग या ऐल्कोहॉल का उपयोग व्यक्ति के ‘ठंडा’ या ‘प्रगति’ का प्रतीक है, यही इन आदतों को शुरू करने का मुख्य कारण है। इस बोध को बढ़ावा देने में टेलीविजन, सिनेमा, समाचार पत्र, इंटरनेट ने भी सहायता की है। किशोरों में ड्रग और ऐल्कोहॉल के कुप्रयोग के अन्य कारणों में, परिवार के ढाँचे में अस्थिरता या एक-दूसरे को सहारा देने तथा मित्रों के दबाव का अभाव है। माता-पिता और अध्यापकों का विशेष उत्तरदायित्व है। ऐसा लालन-पालन, जिसमें पालन-पोषण का स्तर ऊँचा हो और सुसंगत अनुशासन हो, ऐल्कोहॉल / ड्रग / तंबाकू के कुप्रयोग का खतरा कम कर देते हैं।

प्रत्येक बच्चे को अपनी पसंद और अपना व्यक्तित्व होता है, जिसका सम्मान करना चाहिए। किसी बात के लिए उन पर अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए। समस्याओं और दबावों का सामना करने और निराशाओं तथा असफलताओं को जीवन का एक हिस्सा समझकर स्वीकार करने की शिक्षा एवं परामर्श उन्हें देना चाहिए। युवाओं की समस्याओं को सुलझाने में उनकी मदद करनी चाहिए। जो व्यक्ति दुर्भाग्यवश ड्रग / ऐल्कोहॉल के कुप्रयोग रूपी दलदल में फँस गया है उसकी सहायता के लिए उच्च योग्यता प्राप्त मनोवैज्ञानिकों, मनोरोगविज्ञानियों की सहायता उपलब्ध करानी चाहिए।

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