HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

प्रश्न 1.
बी टी (Bt) आविष के रवे कुछ जीवाणुओं द्वारा बनाये जाते हैं लेकिन जीवाणु स्वयं को नहीं मारते हैं, क्योंकि-
(क) जीवाणु आविष के प्रति प्रतिरोधी हैं।
(ख) आविष परिपक्व है।
(ग) आविष निष्क्रिय होता है।
(घ) आविष जीवाणु की विशेष थैली में मिलता है।
उत्तर:
(ग) जीवाणु में यह आविष निष्क्रिय रूप में होता है।

‘प्रश्न 2.
पारजीवी (transgenic) जीवाणु क्या है? किसी एक उदाहरण द्वारा सचित्र वर्णन करो।
उत्तर;
ऐसे जीवाणु जिनके DNA में परिचालन द्वारा एक अतिरिक्त (बाहरी) जीन व्यवस्थित होता है, जो अपना लक्षण व्यक्त करता है, उसे पारजीवी जीवाणु कहते हैं। इसका उपयुक्त उदाहरण- – बैसीलस थुरीनजिएंसिस (Bacillus thuringiensis) है। यह एक छड़ाकार जीवाणु है। इसके बीजाणुओं द्वारा एक विशिष्ट पदार्थ Bt विष उत्पन्न किया जाता है। यह जीवाणु मृदा में आवास बनाता है तथा बीजाणु उत्पन्न करता है।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

इसके बीजाणुजनन (sporulation) के समय एक क्रिस्टलीय प्रोटीन विष का निर्माण होता है जिसे पैरास्पोरल क्रिस्टल (perasporal crystal) कहा जाता है। इस विष में जो प्रोटीन होता है, उसे डेल्टा ऐंडोटॉक्सिन (Delta endotoxin) या क्राई प्रोटीन (cry protein) कहा जाता है। यह विशेष प्रकार का विष अनेक प्रकार के कीटों, जैसे-गण लेपीडॉप्टेरा (Lepidoptera) एवं डिप्टेरा (Diptera) समूह के कीटों हेतु अत्यन्त घातक साबित होता है।

इन जीवाणुओं से ऐसी विशिष्ट Bt जीव विष जींस पृथक् कर अनेक फसलों जैसे कपास में समाविष्ट करवाई गई है। इन जींस को Bt जीन अथवा क्राई जीन (cry gene) कहते हैं व इस पादप को Bt कपास कहते हैं जो कि बालकृमि ( Bollworm) के लिये प्रतिरोधी होता है। Bt जीन युक्त कपास को किलर कॉटन (Killer cotton) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
आनुवंशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के लाभ हानि का तुलनात्मक विभेद कीजिए ।
उत्तर:
आनुवंशिक रूपांतरित फसलों (GM) या ट्रांसजीनिक पादप, पादपों के आण्विक जीव वैज्ञानिक अध्ययन हेतु बहुत ही महत्त्वपूर्ण साधन हैं। जीन अभिव्यक्ति के नियमन हेतु नियामक, प्रचालक ( operator) आदि अनुक्रमों की पहचान हेतु इन्हें उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त इनका उपयोग विभिन्न उपापचयी पदों के विश्लेषण, जीन अभिव्यक्ति में DNA बंधित प्रोटीन्स की भूमिका के अध्ययन तथा विपरीत वातावरणीय परिस्थितियों में पादप किस प्रकार अपने को व्यक्त करते हैं, इसके अध्ययन हेतु किया जाता है।

इसके अतिरिक्त इनके उपयोग से निम्न लाभ हैं –
(1) फसली पादपों में विशिष्ट जीन्स के स्थानान्तरण अर्थात् ट्रांसजीनिक पादप अपने मूल पादपों से अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं। फसली पादपों में वांछित जीन को स्थानान्तरित करके इच्छित लक्षण उत्पन्न किये जा सकते हैं। जैसे कि फसली पादपों में शाकनाशी जीन का स्थानान्तरण कर उन्हें जैव अपघटनीय शाकनाशी का उपयोग करने हेतु सक्षम बनाया गया है जिससे फसल व पर्यावरण को कम नुकसान पहुँचता है।

(2) कीट, विषाणु आदि जैविक घटकों के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न करने के लिए ट्रांसजीनिक पादपों में प्रतिरोधक जीन्स का समावेश कर दिया जाता है।

(3) फसलीय पादपों में अधिक उत्पादन प्राप्त करने एवं उच्च गुणवत्ता, जैसे- प्रोटीन्स या लिपिड्स की मात्रा बढ़ाने के उद्देश्य को पूरा करने हेतु कई तरह के जीन्स को फसलीय पादपों में समावेशित कर ट्रांसजीनिक पादप प्राप्त किये जा सकते हैं।

(4) पादपों में कुछ उपयोगी जैव रासायनिक पदार्थों, जैसे- इन्टरफेरोन (Interferon ), इन्सुलिन ( Insulin), इम्यूनोग्लोब्यूलिन (Immunoglobulin) तथा कुछ उपयोगी बहुलक जैसे- पॉलीहाइड्रोक्सी ब्यूटाइरेट जो कि पादपों में सामान्यतः उत्पादित नहीं होते हैं, ट्रांसजीनिक पादपों में इनका उत्पादन सम्भव हो जाता है जिनका उपयोग दवाइयाँ बनाने में किया जाता है।

(5) ट्रांसजीनिक पादपों का उपयोग टीके के रूप में अनेक रोगकारकों के प्रति प्रतिरक्षा उत्पन्न करने के लिये किया जा सकता है।
भविष्य में फसली पादपों में जीन स्थानांतरण के द्वारा उपयोगी एवं बेहतर गुणवत्ता वाले ट्रांसजैनिक पौधे तैयार करके हम कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त निम्न प्रयास किये जा रहे हैं-

(1) मृदा का उपजाऊपन बढ़ाने के उद्देश्य से उच्च श्रेणी के पौधों में जीवाणुओं जैसे- राइजोबियम एजोटोबेक्टर एवं क्लॉस्ट्रीडियम तथा साइनोजीवाणु जैसे ऐनाबीना आदि के नाइट्रोजन स्थिरकारी जीनों (Nif – जीन) को स्थानान्तरित कर ट्रान्सजैनिक पौधे प्राप्त करने के प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे कि बिना खाद व रासायनिक उर्वरकों के भी हम भरपूर मात्रा में फसल प्राप्त कर सकते हैं।

(2) विभिन्न प्रकार के खाद्योपयोगी कृषि उत्पादों में प्रोटीनीय पदार्थों की मात्रा एवं किस्मों में बढ़ोतरी करने के प्रयास किये जा रहे हैं। इससे विश्व की जनसंख्या को भूख एवं कुपोषण से बचाया जा सकेगा।

(3) जीन स्थानान्तरण द्वारा C3 पौधों का C4 पौधों में परिवर्तन तथा इनके एन्जाइम्स मुख्यतः प्रकाश-संश्लेषी एन्जाइमों जैसे रुबिस्को ( RUBISCO) की कार्य- शैली में बदलाव लाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

(4) सब्जियों व फलों के आयु में इच्छित परिवर्तन करने के पकने के समय में व पादपों की प्रयास किये जा रहे हैं। ट्रांसजीनी पादपों के सम्भावित खतरे- सजीनी पादपों की खेती से अनेक प्रकार के हानिकारक प्रभावों की बातें देश-विदेश में उठ रही हैं। उदाहरणस्वरूप कीट अवरोधी कपास की फसल भारत में गंगानगर व अन्य स्थानों पर बेची जा रही है। यह बताया जा रहा है कि इसके पत्ते यदि पशु खा लें तो यह पशु के लिये हानिकारक है।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

ट्रांसजीनी पादपों की खेती से निम्न कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं-
(1) यदि किसी ट्रांसजीनी पादप का परागकोष उड़ कर किसी सम्बन्धित फसल पर जाकर विकसित हो जाये तो इसे नष्ट करना भविष्य में कठिन हो सकता है। इसे जीन प्रदूषण भी कहते हैं।
(2) ट्रांसजीनी पादप मृदा में अपना टॉक्सिन छोड़ता है या नहीं, ऐसा ज्ञात नहीं है। किन्तु यह मृदा पर अपना प्रभाव दिखा कर जैव विविधता को नष्ट कर सकता है। इस पर शोध ( research) की आवश्यकता है।
(3) प्रत्येक पादप अनेक प्रकार के जीवों जैसे कीट, सहजीवियों या जीवाणुओं को आश्रय देता है। यह जैव विविधता में वृद्धि करते हैं। कीट प्रतिरोधक ट्रांसजीनी पादप इन सभी को आश्रय देने में सक्षम हैं अथवा नहीं, यह ज्ञात नहीं है।
(4) ट्रांसजीनी पादप को यदि दूसरे जानवर खा लेते हैं तो यह उनमें विकार उत्पन्न करता है।
(5) ट्रांसजीन मूंगफली को खाने से एलर्जी की शिकायतें आई। हैं। अब ऐसी मूंगफली पर टैग लगाकर बेचा जाने लगा है। अन्य ट्रांसजीनी उत्पाद बिना टैग के ही बाजार में उपलब्ध हैं। उपभोक्ता इन्हें खाने के लिये चाहे अनचाहे मजबूर हैं।
(6) ट्रांसजीनी पादपों का अनेक पीढ़ियों तक गमन के दौरान कुछ नये नॉन ट्रांसजीनी के साथ क्रॉस होने पर क्या परिस्थितियाँ होंगी व नई प्रजातियाँ विकसित होने पर क्या परिवर्तन होंगे, यह भविष्य में ही ज्ञात हो सकेगा।

सम्पूर्ण विश्व में ट्रांसजीनी पादपों के व्यापारिक स्तर पर आमजन के लिये उत्पादन करके बाजार में बेचने पर विरोध हो रहा है। इसका मुख्य कारण इनसे होने वाले हानिकारक प्रभावों के विषय में अनभिज्ञता होना है। लोग इनसे होने वाले दुष्प्रभावों के विषय में चिंतित हैं। Bt कॉटन को संक्रमित करने वाला बुलवर्म (Bullworm) भी इसके प्रति प्रतिरोधित हो गया है। यदि ऐसा है तो इसकी खेती का कोई लाभ नहीं। विश्व में सबसे अधिक ट्रांसजीनी फूड न्यूजीलैण्ड में निर्मित हो रहा है। ब्रिटेन में पर्यावरण विभाग ने ऐसे पादपों पर तीन साल के लिये प्रतिबन्ध लगाने की सिफारिश की है। यूरोपियन कमीशन साइंटिफिक एडवाइजर ने ट्रांसजीनी आलू पर प्रतिबन्ध लगाने के लिये सिफारिश की है।

प्रश्न 4.
क्राई प्रोटींस क्या है? उस जीव का नाम बताओ जो इसे पैदा करता है। मनुष्य इस प्रोटीन को अपने फायदे के लिये कैसे उपयोग में लाता है?
उत्तर:
एक विशेष प्रकार के छड़ाकार जीवाणु बेसीलस थुरीनजिएंसिस (B1) के बीजाणुओं द्वारा एक विशिष्ट पदार्थ Bt विष (Bt-toxin) उत्पन्न किया जाता है। यह जीवाणु मृदा में रहता है तथा बीजाणु उत्पन्न करता है। इसके बीजाणुजनन के दौरान एक क्रिस्टलीय प्रोटीन विष का निर्माण होता है जिसे पेरास्पोरल क्रिस्टल (Perasporal crystal) कहा जाता है। इस विष में जो प्रोटीन होता है, उसे क्राई प्रोटीन (Cry protein) कहते हैं ।

यह प्रोटीन विशिष्ट कीटों जैसे लीपीडोप्टेरान (Lepidopteran – तम्बाकू की कलिका कीड़ा, सैनिक कीड़ा), कोलियोप्टेरान (Coleopterans – भृंग ) व डीप्टेरान (Dipterans – मक्खी, मच्छर ) को मारने में सहायक है। यह जीवाणु अपनी वृद्धि की विशेष अवस्था में कुछ प्रोटीन रवा ( crystals) का निर्माण करते हैं। इन क्रिस्टल में विषाक्त कीटनाशक प्रोटीन होता है।

इस विष से जीवाणु को कोई हानि नहीं होती है क्योंकि यह जीव विष (prototoxin) प्रोटीन निष्क्रिय रूप अवस्था में होता है परन्तु जैसे ही कोई कीट इस निष्क्रिय विष को खाता है तो उसके रवे आंत में क्षारीय PH के कारण घुलनशील होकर सक्रिय हो जाते हैं। सक्रिय जीव विष (prototoxins ) मध्य आंत के उपकलीय कोशिकाओं (midgur epithelial cells) की सतह से बंधकर उसमें छिद्रों का निर्माण करते हैं, जिस कारण से कोशिकाएँ फूलकर फट जाती हैं और परिणामस्वरूप कीट की मृत्यु हो जाती है।

अध्ययन में यह पाया गया है कि इस जीवाणु के बीजाणुओं का कीटों द्वारा भक्षण करने पर इनके साथ चिपका हुआ प्रोटीन किस्टल भी कीटों की आहार नाल में पहुंच जाता है, जहाँ यह गल जाने के बाद कीट में मुख उपांगों एवं आहार नाल को पक्षाघात (paralysis) से ग्रसित कर देता है। पक्षाघात से ग्रसित ऐसे कीट कुछ ही समय पश्चात् अपना आहार लेने में अक्षम हो जाते हैं व कुछ भी नहीं खा सकते।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

इसके अतिरिक्त इन कीटों की आहार नाल में उपस्थित बीजाणु अंकुरित होकर और अधिक संख्या में बीजाणुओं का निर्माण करते हैं। इस प्रक्रिया में जहाँ पक्षाघात से ग्रसित कीट एक ओर तो फसल उत्पादक पौधों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा सकते, वहीं दूसरी ओर ये अधिक संख्या में बीजाणुओं के निर्माण हेतु एक कारखाने का काम करते हैं । अन्त में जब कीटों की मृत्यु होती है तो इनके मृत शरीरों से असंख्य बीजाणु मुक्त हो जाते हैं, जो कि हानिकारक कीटों को पक्षाघात से ग्रसित कर देते हैं।

विशिष्ट BI जीव विष जींस बैसीलस थुरीनजिएंसिस से पृथक् कर अनेक फसलों जैसे कपास में समाविष्ट किया जा चुका है। इस कॉटन को किलर कॉटन (Killer cotton) या बीटी कॉटन भी कहते हैं। जींस का चुनाव फसल व निर्धारित कीट पर निर्भर करता है, जबकि सर्वाधिक बी टी जीवविष कीट समूह विशिष्टता पर निर्भर करते हैं।

जीव विष जिस जीन द्वारा कूटबद्ध होते हैं उसे क्राई (Cry) कहते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं। जैसे-जो प्रोटींस जीन क्राई 1 ए सी व क्राई 2 ए बी द्वारा कूटबद्ध होते हैं वे कपास के मुकुल कृमि को नियंत्रित करते हैं जब कि क्राई 1 ए बी मक्का छेदक को नियंत्रित करता है।

प्रश्न 5.
जीन चिकित्सा क्या है? एडीनोसीन डिएमीनेज (ADA) की कमी का उदाहरण देते हुए इसका वर्णन करें।
उत्तर:
जो व्यक्ति आनुवंशिक रोग के साथ पैदा होते हैं उनका उपचार जीन चिकित्सा द्वारा किया जाता है। जीन चिकित्सा के द्वारा दोषी जीन का प्रतिस्थापन सामान्य व स्वस्थ जीन से कर दिया जाता है। आनुवंशिक दोषयुक्त जीनों की आनुवंशिक अभियान्त्रिकी तकनीक से नवजात शिशु या अजन्मे बच्चे में से पृथक् कर पुनः संयोजित ( recombinant ) जीन का निर्माण करके उसके स्थान पर स्थानापन्न (transfer) कर दिया जाता है।

इस विधि में DNA के उतने भाग को (जितने में वह दोषी जीन है) काट कर अलग किया जाये तथा उसके स्थान पर सही टुकड़ा जोड़ दिया जाये। इस विधि से पुटी तंतुमयता (Cystic fibrosis), हंसियासम कोशिका अरक्तता (Sickle cell anaemia), गंभीर संयुक्त प्रतिरक्षा अपूर्णता (Severe combined immuno deficiency) जैसे घातक रोगों की चिकित्सा की जाती है। जीन उपचार के निम्नलिखित चरण होते हैं-
(i) आनुवंशिक रोग उत्पन्न करने वाले जीन की पहचान करना ।
(ii) इस जीन के उत्पाद की रोग / स्वास्थ्य में भूमिका ज्ञात करना ।
(iii) जीन का विलगन एवं क्लोनन (Cloning) ।
(iv) जीन उपचार की उपयुक्त युक्ति का विकास।
जीन चिकित्सा का सर्वप्रथम प्रयोग वर्ष 1990 में एक चार वर्षीय लड़की में एडीनोसीन डिएमीनेज (adinosine deaminase = ADA) की कमी को दूर करने के लिये किया गया था। यह एंजाइम प्रतिरक्षा तंत्र (immune system) के कार्य के लिये अति आवश्यक होता है। यह समस्या एंजाइम एडीनोसीन डिएमीनेज की अनुपस्थिति के कारण होती है।

कुछ बच्चों में ADA की कमी का उपचार अस्थिमज्जा (bone marrow) के प्रत्यारोपण से होता है। जबकि दूसरों में एंजाइम प्रतिस्थापन चिकित्सा द्वारा उपचार किया जाता है; इसमें सुई द्वारा रोगी को सक्रिय ADA दिया जाता है। उपरोक्त दोनों विधियों में यह कमी है कि ये पूर्णतया रोगनाशक नहीं हैं। जीन चिकित्सा में सर्वप्रथम रोगी के रक्त से लसीकाणु (Lymphocytes) को निकालकर शरीर से बाहर संवर्धन किया जाता है।

सक्रिय ADA का DNA (पश्च विषाणु संवाहक अर्थात् retroviral vector का प्रयोग कर ) लसीकाणु में प्रवेश कराकर अंत में रोगी के शरीर में वापस कर दिया जाता है। ये कोशिकाएँ मृतप्राय होती हैं। इसलिये आनुवंशिक निर्मित लसीकाणुओं को समय-समय पर रोगी के शरीर से अलग करने की आवश्यकता होती है। यदि मज्जा कोशिकाओं से विलगित अच्छे जीनों को प्रारम्भिक भ्रूणीय अवस्था की कोशिकाओं से उत्पादित ADA में प्रवेश करा दिये जाएँ तो यह एक स्थायी उपचार हो सकता है।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

प्रश्न 6
ई. कोलाई जैसे जीवाणु में मानव रोग की क्लोनिंग एवं अभिव्यक्ति के प्रायोगिक चरणों का आरेखीय निरूपण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
मानव में मधुमेह (diabetes ) रोग अग्नाश्य (Pancreas) की दोषपूर्ण कार्यप्रणाली के कारण होता है । यह पर्याप्त रूप से इन्सुलिन का निर्माण नहीं कर पाता है। अग्नाश्य की दोषपूर्ण कार्यप्रणाली के फलस्वरूप शरीर में अधिक शर्करा का हो जाना तथा रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित नहीं कर पाता है। इसका केवल मात्र इलाज इन्सुलिन के द्वारा ही सम्भव है। मधुमेह रोगियों के उपचार में लाए जाने वाला इंसुलिन ( insulin) जानवरों व सुअरों को मारकर उनके अग्नाश्य से निकाला जाता था। जानवरों द्वारा प्राप्त इंसुलिन से कुछ रोगियों में प्रत्यूर्जा (allergy) या बाह्य प्रोटीन के प्रति दूसरे तरह की प्रतिक्रिया होने लगती थी।

इंसुलिन दो छोटी पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं का बना होता है, श्रृंखला ‘ए’ व श्रृंखला ‘बी’ (Chain ‘A’ and Chain ‘B’)। ये श्रृंखलायें आपस में डाईसल्फाइड बंधों द्वारा जुड़ी होती हैं। मानव सहित स्तनधारियों में इंसुलिन प्राक् – हार्मोन (pro-hormone) संश्लेषित होता है। प्राक् एन्जाइम (pro enzyme) की जैसे प्राक्- हार्मोन को भी पूर्ण परिपक्व व क्रियाशील हार्मोन बनने से पूर्व संसाधित (processed) होने की आवश्यकता होती है।

इस संश्लेषित इंसुलिन हार्मोन में एक अतिरिक्त फैलाव ( stretch ) होता है जिसे पेप्टाइड ‘सी’ (C peptide ) कहते हैं। यह ‘सी’ पेप्टाइड परिपक्वता के दौरान इंसुलिन से अलग हो जाता है अतः ‘सी’ पेप्टाइड परिपक्व इंसुलिन में अनुपस्थित होता है । पुनर्योगज DNA तकनीकियों प्रयोग (recombinant DNA technologies or r.DNA) का करते हुए इंसुलिन के उत्पादन में मुख्य चुनौती यह है कि इंसुलिन को एकत्रित कर परिपक्व रूप में तैयार किया जाए।

1983 में एली लिली (Eli Lilly) नामक एक अमेरिकी कम्पनी ने DNA अनुक्रमों को तैयार किया जो मानव इंसुलिन की श्रृंखला ‘ए’ और ‘बी’ के अनुरूप होती है, जिसे ई. कोलाई के प्लाज्मिड में प्रवेश कराकर इंसुलिन श्रृंखलाओं का उत्पादन किया। इन अलग-अलग निर्मित श्रृंखलाओं ‘ए’ और ‘बी’ को निकालकर डाईसल्फाइड बंध बनाकर आपस में संयोजित कर मानव इंसुलिन का निर्माण किया गया।
HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग 1

‘सी’ पेप्टाइड में 35 एमिनो अम्ल होते हैं और यह देखा गया है कि ‘सी’ पेप्टाइड के 6 एमिनो अम्ल जोड़ने के कार्य हेतु सक्षम होते हैं । इन्सुलिन उत्पन्न करने वाली जीन को जीवाणु में क्लोन (clone) करके इन्सुलिन के संश्लेषण हेतु उपयोग किया गया। इन्सुलिन की जीन क्लोन का कार्य भारतीय मूल के डॉ. सरन नारंग (Dr. Saran Narang) ने किया जो कनाडा के ओटावा (Ottawa) में कार्यरत थे।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

इस इन्सुलिन को ह्यूमिलिन (Humiline) नाम दिया गया है तथा यह बाजारों में बिक रही है। इस तकनीक द्वारा मानव वृद्धि हार्मोन (Human Growth Hormone =HGH) प्रोटोपिन सन् 1986 में निर्मित किया जा चुका है। इसको बौनेपन के उपचार हेतु प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 7.
तेल के रसायनशास्त्र तथा आर. डी. एन. ए. जिसके बारे में आपको जितना भी ज्ञान प्राप्त है, उसके आधार पर बीजों से तेल हाइड्रोकार्बन हटाने की कोई एक विधि सुझाइए ।
उत्तर:
इस क्रिया के लिए जैव प्रौद्योगिकी की आण्विक, जैव तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
इंटरनेट से पता लगाइए कि गोल्डन राइस ( गोल्डन धान) क्या है?
उत्तर;
गोल्डन राइस में जैव संश्लेषित बीटा कैरोटीन (प्रो- विटामिन A ) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। सन् 2005 में गोल्डन राइस की एक और किस्म तैयार की गई है जिसमें 23 गुना अधिक बीटा कैरोटीन होता है। प्रो. इंगो पोट्रीकस तथा डॉ. पीटर बेयर ने इस आनुवंशिकतः अभियांत्रित चावल प्रजाति ‘गोल्डन राइस’ का विकास किया। बीटा कैरोटीन विटामिन ‘ए’ का पूर्ववर्ती (precursor) पदार्थ है।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

प्रश्न 9.
क्या हमारे रुधिर में प्रोटिओजेज तथा न्यूक्लीएजेज हैं?
उत्तर:
हमारे रक्त में प्रोटीओजेज तथा न्यूक्लीएजेज नहीं होते हैं।

प्रश्न 10.
इंटरनेट से पता लगाइये कि मुखीय सक्रिय औषध प्रोटीन को किस प्रकार बनायेंगे? इस कार्य में आने वाली मुख्य समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुखीय औषध प्रोटीन के निर्माण में ड्यूटेरियम एक्सचेंज मास स्पेक्ट्रोमीटरी (DXMS Deuterium Exchange Mass Spectrometry) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। यह तकनीक प्रोटीन संरचना और उसके प्रकार्यों का अध्ययन करने के लिए एक शक्तिशाली माध्यम है। इस कार्य में आने वाली मुख्य समस्याएँ श्रम और समय की हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया होती है।

अतः मुखीय प्रोटीन का निर्माण कम ही किया जा रहा है। जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके जीवाणुओं की सहायता से पुनर्योगज चिकित्सीय औषधि मानव इन्सुलिन (ह्युमिलिन) प्राप्त की गई है। यह एक औषध प्रोटीन है। निकट भविष्य में मानव इन्सुलिन मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्तियों को मुख से दिया जा सकेगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *