HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 विधायिका

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 विधायिका Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 विधायिका

HBSE 11th Class Political Science विधायिका Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आलोक मानता है कि किसी देश को कारगर सरकार की जरूरत होती है जो जनता की भलाई करे। अतः यदि हम सीधे-सीधे अपना प्रधानमंत्री और मंत्रिगण चुन लें और शासन का काम उन पर छोड़ दें, तो हमें विधायिका की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताएँ।
उत्तर:
आलोक का उक्त विचार उचित प्रतीत नहीं होता, क्योंकि सीधे-सीधे प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल चुनने से शासन का संचालन जनहित की अपेक्षा स्वहित के लिए होगा। शासक वर्ग निरंकुश हो जाएगा। इसलिए विधायिका का होना अत्यंत जरूरी है। विधायिका ही कार्यपालिका को नियंत्रित करती है और उसके अनुचित एवं मनमाने कार्यों की आलोचना करती है। विधायिका के ऐसे नियन्त्रण से ही कार्यपालिका जन-कल्याण के कार्य करने के लिए बाध्य होती है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 विधायिका

प्रश्न 2.
किसी कक्षा में द्वि-सदनीय प्रणाली के गुणों पर बहस चल रही थी। चर्चा में निम्नलिखित बातें उभरकर सामने आयीं। इन तर्कों को पढ़िए और इनसे अपनी सहमति-असहमति के कारण बताइए।
(क) नेहा ने कहा कि द्वि-सदनीय प्रणाली से कोई उद्देश्य नहीं सधता।
(ख) शमा का तर्क था कि राज्यसभा में विशेषज्ञों का मनोनयन होना चाहिए।
(ग) त्रिदेव ने कहा कि यदि कोई देश संघीय नहीं है, तो फिर दूसरे सदन की जरूरत नहीं रह जाती।
उत्तर:
(क) मैं नेहा के तर्क पर असहमति व्यक्त करता हूँ क्योंकि नेहा के अनुसार द्वि-सदनीय व्यवस्था से कोई उद्देश्य नहीं सधता, जबकि ऐसा नहीं है। किसी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में द्वितीय सदन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए विश्व में केवल सभ्यवादी देशों को छोड़कर सभी जगह द्वि-सदनीय विधानमंडल ही पाया जाता है। भारत में द्वि-सदनीय विधानमंडल की व्यवस्था को अपनाया गया है जिसके द्वारा दूसरा सदन प्रथम सदन के मनमाने निर्णय लेने पर अंकुश लगाता है वहाँ निर्विवाद बिलों पर पहले विचार-विमर्श कर प्रथम सदन के समय को भी बचाता है। अतः द्वि-सदनीय प्रणाली अपने उद्देश्य में सफल हो जाती है।

(ख) मैं शमा के तर्क पर सहमति व्यक्त करते हुए यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि दूसरे सदन में मनोनयन की प्रणाली सही है जैसे कि भारत में ऐसी व्यवस्था है। राष्ट्रपति उन 12 सदस्यों को राज्यसभा में मनोनीत करते हैं, जिन्हें कला, विज्ञान, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त होती है। ये मनोनीत सदस्य विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञ होने के कारण संसद में विशेष क्षेत्रों सम्बन्धी नीति-निर्माण करवाने में अपने-अपने अनुभवों एवं ज्ञान के माध्यम से विशेष योगदान दे सकते हैं।

(ग) त्रिदेव के अनुसार संघीय शासन में ही द्वितीय सदन की आवश्यकता होती है अन्यथा यह निरर्थक है। यह तर्क उचित प्रतीत होता है। साधारणतः संघीय व्यवस्था वाले राज्यों में द्वितीय सदन संघ की इकाइयों (प्रदेशों) का प्रतिनिधित्व करता है। यद्यपि गैर-संघात्मक देशों में भी द्वितीय सदन पाया जाता है। परन्तु यह प्रथम सदन की अपेक्षा कमजोर होता है।

यह जनहित के लिए कोई भी कार्य नहीं करता। हालाँकि कानून निर्माण में इसकी भी भूमिका होती है। कोई भी विधेयक इसकी स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। परन्तु उस विधेयक पर इसका निर्णय अंतिम नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त धन विधेयक पर इसकी स्वीकृति औपचारिक मात्र ही होती है। साधारण विधेयक को यह सदन 6 माह से अधिक नहीं रोक सकता है। इस प्रकार गैर-संघात्मक राज्यों में द्वितीय अनावश्यक कार्य में विलम्ब एवं शक्तिहीन प्रतीत होता है।

प्रश्न 3.
लोकसभा कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में क्यों कारगर ढंग से नियंत्रण में रख सकती है?
उत्तर:
लोकसभा कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में इसलिए अधिक कारगर ढंग से नियंत्रित करती है, क्योंकि कार्यपालिका संघीय विधायिका के निम्न सदन लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है और लोकसभा में जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि होने के कारण लोकसभा को जनता के प्रति भी उत्तरदायी माना जाता है। इसके अतिरिक्त लोकसभा में बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री होता है। प्रधानमंत्री ही राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद् की नियुक्ति करता है।

मंत्रिपरिषद् में भी लोकसभा के ही सदस्य होते हैं। परन्तु, फिर भी मंत्रिपरिषद् को अपने प्रत्येक कार्य एवं निर्णय के लिए लोकसभा को विश्वास में लेना आवश्यक है। यदि लोकसभा मंत्रिपरिषद् के किसी निर्णय के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव बहुमत से पास कर दे तो उसे अपना त्यागपत्र देना पड़ता है जबकि राज्यसभा को ऐसा अविश्वास प्रस्ताव पारित करने का अधिकार नहीं होता। इसलिए यह कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में अधिक आसानी से नियंत्रित कर लेता है।

प्रश्न 4.
लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखने की नहीं बल्कि जनभावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है। क्या आप इससे सहमत हैं? कारण बताएँ।
उत्तर:
हाँ, निश्चित रूप से मैं लोकसभा को ऐसा मंच मानता हूँ जहाँ जनभावनाओं का सम्मान किया जाता है और उसकी । इच्छा के अनुरूप कार्य किया जाता है, क्योंकि लोकसभा वास्तविक रूप से जनता की ही सभा है। जनता यहाँ अपने प्रतिनिधियों को निर्वाचित करके भेजती है। ये प्रतिनिधि जन-अभिव्यक्ति के साधन होते हैं अर्थात् यह न केवल कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है बल्कि जन-सामान्य के कल्याण एवं विकास के लिए भी सदैव तत्पर रहती है। इस तरह लोकसभा को एक विचारशील मंच भी कहा जाता है, जिसमें जनहितों से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर विचार-विमर्श कर नीतियों का निर्माण किया जाता है।

प्रश्न 5.
नीचे संसद को ज़्यादा कारगर बनाने के कुछ प्रस्ताव लिखे जा रहे हैं। इनमें से प्रत्येक के साथ अपनी सहमति या असहमति का उल्लेख करें। यह भी बताएँ कि इन सुझावों को मानने के क्या प्रभाव होंगे?
(क) संसद को अपेक्षाकृत ज़्यादा समय तक काम करना चाहिए।
(ख) संसद के सदस्यों की सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।
(ग) अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि सदन की कार्यवाही में बाधा पैदा करने पर सदस्य को दंडित कर सकें।
उत्तर:
(क) संसद को अपेक्षाकृत अधिक समय तक काम करना चाहिए। इस पर सहमति व्यक्त की जा सकती है। वर्तमान में यदि देखा जाए तो संसद की बैठकों की अवधि का कार्य दिवस निरन्तर कम होता जा रहा है। संसद की बैठकों का अधिकांश समय धरने, बहिष्कार, सदन की कार्यवाही को स्थगित करने में ही निकल जाता है, जबकि महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर पर्याप्त विचार-विमर्श ही नहीं हो पाता और महत्त्वपूर्ण विधेयक भी बिना बहस के ही पास हो जाता है। इसलिए यदि संसद की कार्य अवधि को हम बढ़ाएंगे तो सदन में पर्याप्त संघ से जनहित के मुद्दों पर विचार-विमर्श होगा एवं कार्यपालिका की स्वेच्छाचारिता पर भी अंकुश लगेगा।

(ख) दूसरे तर्क पर सहमति व्यक्त करते हुए यह कहना अनुपयुक्त न होगा कि सांसद की उपस्थिति अनिवार्य करनी चाहिए, क्योंकि जनता अपना बहुमूल्य मत देकर इन्हें देश एवं अपने हितों की रक्षा करने के लिए निर्वाचित कर संसद में भेजती है। वास्तव में जनप्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी से ही उत्तरदायी शासन की स्थापना की जा सकती है।

(ग) तीसरे कथन के सन्दर्भ में यह कहने में कोई आपत्ति नहीं कि लोकसभा के स्पीकर को यह अधिकार होना चाहिए कि वह सदन में व्यवधान उत्पन्न करने वाले सदस्य को दंडित करे। स्पीकर का कार्य होता है कि वह सदन में शांति स्थापित करे, परंतु आजकल जिस तरह लोकसभा में सांसद अनुचित एवं असंसदीय आचरण करते हैं और सदन की कार्यव हैं, इससे संसद सत्र का बहुमूल्य समय नष्ट होता है। यदि स्पीकर को यह अधिकार देने से संसद निःसंदेह सदस्य अनुचित व्यवहार करने से डरेंगे और सदन में भी अनुशासन के साथ कार्यवाही का संचालन सम्भव हो सकेगा।।

प्रश्न 6.
आरिफ यह जानना चाहता था कि अगर मंत्री ही अधिकांश महत्त्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत करते हैं और बहुसंख्यक दल अकसर सरकारी विधेयक को पारित कर देता है, तो फिर कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की भूमिका क्या है? आप आरिफ को क्या उत्तर देंगे?
उत्तर:
आरिफ के प्रश्न के उत्तर में मैं यह कह सकता हूँ कि कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। धन विधेयक को छोड़कर शेष विधेयक किसी भी सदन में पेश किए जा सकते हैं। यह एक सदन से पारित होने के उपरांत दूसरे सदन में जाता है। इस संदर्भ में स्पष्टता हेतु यह उल्लेखनीय है कि प्रत्येक सदन में किसी विधेयक को विभिन्न अवस्थाओं या चरणों से पास होना पड़ता है;

जैसे प्रथम वाचन, द्वितीय वाचन, तृतीय वाचन, समिति स्तर, रिपोर्ट स्तर। इन सभी अवस्थाओं/चरणों से पास होने के बाद विधेयक अंतिम स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास जाता है। राष्ट्रपति भी संसद का अभिन्न अंग होता है जिनकी स्वीकृति मिलने पर पारित विधेयक कानून का रूप ले लेता है। इस प्रकार विधि निर्माण में संसद की भूमिका पर अंगुली उठाने का कोई औचित्य नज़र नहीं आता। वास्तव में कानून निर्माण में संसद की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न 7.
आप निम्नलिखित में से किस कथन से सबसे ज्यादा सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण दें।
(क) सांसद/विधायकों को अपनी पसंद की पार्टी में शामिल होने की छूट होनी चाहिए।
(ख) दलबदल विरोधी कानून के कारण पार्टी के नेता का दबदबा पार्टी के सांसद विधायकों पर बढ़ा है।
(ग) दलबदल हमेशा स्वार्थ के लिए होता है और इस कारण जो विधायक/सांसद दूसरे दल में शामिल होना चाहता है उसे आगामी दो वर्षों के लिए मंत्री-पद के अयोग्य करार कर दिया जाना चाहिए।
उत्तर:
(क) सांसद विधायकों को किसी दल के चुनाव चिह्न पर या निर्दलीय निर्वाचित होने पर अपनी पसंद की पार्टी में शामिल होने की छूट नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ऐसी छूट देने से राजनीतिक अस्थिरता बनी रहेगी। जिन सांसदों या विधायकों को जिस दल में अपना स्वार्थ सिद्ध होता या भविष्य सुनहरा होता नज़र आएगा, वे उसी दल में शामिल हो जाएँगे, जैसा कि आजकल हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप न केवल राजनीतिक मूल्यों का ह्रास होगा बल्कि अस्थाई एवं दुर्बल सरकार का निर्माण होगा। ऐसी स्थिति निश्चित ही लोकसभा के प्रति एक प्रश्न चिह्न लगाएगी।

(ख) दलबदल विरोधी कानून के अस्तित्व में आने के बाद भी इस दलबदल की राजनीति पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। है क्योंकि अब दलबदल सामूहिक रूप से बढ़ा है। हाँ, इससे नेताओं का दबदबा अवश्य बढ़ा है। इन्हें अपने नेता द्वारा जारी किए गए आदेश को मानना पड़ता है अन्यथा दलबदल कानून के अंतर्गत उनकी सदस्यता समाप्ति की कार्यवाही की जा सकती है।

(ग) तीसरे कथन से मैं सबसे अधिक सहमत हूँ, क्योंकि इस कथन के अनुसार दलबदल करने पर किसी सांसद या विधायक को मंत्री-पद के आयोग्य घोषित करने से इस प्रथा पर कुछ हद तक रोक लगेगी। जैसा कि प्रायः देखने में आता है कि अधिकतर दलबदल सरकार बनाने या सरकार में शामिल होने के लिए होते हैं। दलबदल की प्रक्रिया पूरी करने हेतु सांसद या विधायक को मंत्री-पद का प्रलोभन दिया जाता है। अतः इस दलबदल की बुराई को रोकने के लिए इस प्रकार का प्रावधान प्रभावी सिद्ध हो सकता है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 विधायिका

प्रश्न 8.
डॉली और सुधा में इस बात पर चर्चा चल रही थी कि मौजूदा वक्त में संसद कितनी कारगर और प्रभावकारी है। डॉली का मानना था कि भारतीय संसद के कामकाज में गिरावट आयी है। यह गिरावट एकदम साफ दिखती है क्योंकि अब बहस-मुबाहिसे पर समय कम खर्च होता है और सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करने अथवा वॉकआउट (बहिर्गमन) करने में ज़्यादा। सुधा का तर्क था कि लोकसभा में अलग-अलग सरकारों ने मुँह की खायी है, धराशायी हुई है। आप सुधा या डॉली के तर्क के पक्ष या विपक्ष में और कौन-सा तर्क देंगे?
उत्तर:
भारत में पिछले कुछ वर्षों में संसद में जिस तरह अप्रिय घटनाएँ एवं असंसदीय व्यवहार हो रहा है, उससे तो यह स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है कि संसद का बहुमूल्य समय नष्ट हो रहा है। इसलिए इस बात में कोई दोराय नहीं है कि हाल ही के दिनों में संसद की कार्यकुशलता एवं क्षमता पर प्रश्न-चिह्न लगा है, यद्यपि ऐसा कुछ सदस्य ही करते हैं। उस संदर्भ में डॉली का तर्क उचित नहीं है। संसद के अधिकांश सदस्य सदन में उचित रूप से कार्य करते हैं। सदन तो वाद-विवाद का मंच है। यहाँ सभी सदस्य अपने विचारों एवं तर्कों को रखते हैं, जिन पर बहस होती है। संसद देश की कानून बनाने की सर्वोच्च संस्था है। इसी कार्य से संसद की गरिमा बनी रहेगी और देश का विकास भी होगा।

प्रश्न 9.
किसी विधेयक को कानून बनने के क्रम में जिन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है उन्हें क्रमवार सजाएँ।
(क) किसी विधेयक पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है।
(ख) विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है बताएँ कि वह अगर इस पर हस्ताक्षर नहीं करता/करती है, तो क्या होता है?
(ग) विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है और वहाँ इसे पारित कर दिया जाता है।
(घ) विधेयक का प्रस्ताव जिस सदन में हुआ है उसमें यह विधेयक पारित होता है।
(घ) विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है।
(च) विधेयक उप-समिति के पास भेजा जाता है – समिति उसमें कुछ फेर-बदल करती है और चर्चा के लिए सदन में भेज देती है।
(छ) संबद्ध मंत्री विधेयक की जरूरत के बारे में प्रस्ताव करता है।
(ज) विधि-मंत्रालय का कानून-विभाग विधेयक तैयार करता है।
उत्तर:
किसी विधेयक को कानून बनाने के लिए निम्नलिखित क्रम से विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है

(क) किसी विधेयक पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है।

(ख) विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। इस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति अति आवश्यक है। कोई विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद ही कानून बनता है। परंतु राष्ट्रपति चाहे तो इसे पुनः विचार के लिए वापिस कर स लेकिन यदि संसद पुनः उसे पारित कर दे तो राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

(ग) विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है और वहाँ इसे पारित कर दिया जाता है।

(घ) विधेयक का प्रस्ताव जिस सदन में हुआ है उसमें यह विधेयक पारित होता है। (ङ) विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है। और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है।

(च) विधेयक उप-समिति के पास भेजा जाता है-समिति उसमें कुछ फेरबदल करती है और चर्चा के लिए सदन में भेज देती है।

(छ) संबद्ध मंत्री विधयेक की ज़रूरत के बारे में प्रस्ताव करता है।

(ज) विधि-मंत्रालय का कानून-विभाग विधेयक तैयार करता है।

प्रश्न 10.
संसदीय समिति की व्यवस्था से संसद के विधायी कामों के मूल्यांकन और देखरेख पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
संसदीय समिति व्यवस्थापिका के समस्त कार्यों का निरीक्षण करने के कारण एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है। संसदीय समिति का गठन विधायी कार्यों को उचित ढंग से निपटाने के लिए ही किया गया है, क्योंकि संसद केवल अधिवेशन के दौरान ही बैठती है। इसलिए उसके पास समय बहुत कम जबकि काम बहुत अधिक होता है। अतः ऐसी स्थिति में संसदीय समितियाँ विभिन्न मामलों की जाँच एवं निरीक्षण का कार्य करती हैं। ये समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों के अनुदान माँगों का अध्ययन करती हैं।

संसद के दोनों सदनों में व्यवस्था कुछ मामलों में छोड़कर एक-जैसी है। ये समितियाँ दो प्रकार की होती हैं तदर्थ और स्थायी। इसमें स्थायी समितियाँ विभिन्न विभागों के कार्यों, उनके बजट, व्यय तथा संबंधित विधेयक की देखरेख करती हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विधायी कार्यों पर इन समितियों का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। संसदीय समितियों द्वारा की जाने वाली जाँच और आलोचना के भय से अधिकारी अनुचित निर्णय लेने से घबराते हैं एवं सचेत भी रहते हैं। सरकार द्वारा इसे बहुत प्रोत्साहन दिया जाता है और इसके सुझावों को सरकार स्वीकार भी करती है।

विधायिका HBSE 11th Class Political Science Notes

→ साधारण शब्दों में, सरकार उस व्यवस्था का नाम है जो शासन चलाती है। राजतन्त्र में कानून बनाने व उन्हें लागू करने की शक्ति राजा या सम्राट के पास होती है।

→ परन्तु आधुनिक लोकतन्त्र के युग में सरकार का निर्माण जनता के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। प्रजातन्त्र में सरकार के तीन अंग होते हैं कार्यपालिका, विधानपालिका तथा न्यायपालिका। तीनों अंगों में विधानपालिका अधिक महत्त्वपूर्ण है।

→ विधानपालिका का मुख्य कार्य कानूनों का निर्माण करना होता है। कार्यपालिका विधानपालिका द्वारा निर्मित कानूनों को लागू करने का कार्य करती है। अतः विधानपालिका सरकार का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है।

→ वह जनता की इच्छाओं का दर्पण है। इस अध्याय में अध्ययन का विषय रहेगा कि निर्वाचित विधायिकाएँ कैसे काम करती हैं और प्रजातान्त्रिक सरकार बनाए रखने में कैसे सहायता करती हैं? भारत में संसद और राज्यों की विधायिकाओं की संरचना और कार्यों तथा लोकतान्त्रिक शासन में उनके महत्त्व का अध्ययन करेंगे।

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