Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Biology Solutions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन
प्रश्न 1.
एक शब्द या एक पंक्ति में उत्तर दीजिए-
(i) पेरिप्लेनेटा अमेरिकाना का सामान्य नाम लिखिए।
(ii) केंचुए में कितनी शुक्रधानियाँ पायी जाती हैं ?
(iii) तिलचट्टे में अण्डाशय की स्थिति क्या है ?
(iv) तिलचट्टे के उदर में कितने खण्ड होते हैं ?
(v) मैलपीघी नलिकाएँ कहाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
(i) पेरिप्लेनेटा अमेरिकाना (Periplanata americana) का सामान्य नाम कॉकरोच या तिलचट्टा (cockroach)
(ii) केंचुए में चार जोड़ी शुक्रधानियाँ ( spermathec) पायी जाती हैं।
(iii) तिलचट्टे में अण्डाशय उदर के 4, 5 व 6वें खण्ड में स्थित होते हैं।
(iv) तिलचट्टे के उदर में 10 खण्ड होते हैं।
(v) मैलपीघी नलिकाएँ कीटों की आहार नाल के मध्यान्त्र तथा पश्चात्र (hindgut) के मध्य स्थित होती हैं ।
प्रश्न 2.
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(i) वृक्कक का क्या कार्य है ?
(ii) अपनी स्थिति के अनुसार केंचुए में कितने प्रकार के वृक्कक पाये जाते हैं ?
उत्तर:
(i) वृक्कक (नेफ्रीडिया – Nephridia) का कार्य-संघ एनेलिडा के प्राणियों में उत्सर्जन के लिए विशेष प्रकार की कुण्डलित रचनाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें वृक्कक (नेफ्रीडिया) कहते हैं। ये जल सन्तुलन करने का कार्य भी करती हैं।
(ii) वृक्कक के प्रकार – स्थिति के अनुसार तीन प्रकार के होते हैं-
(1) पटीय वृक्कक (Septal nephridia),
(2) अध्यावरणी वृक्कक ( Integumentary nephridia),
(3) प्रसनीय वृक्कक (Pharyngeal nephridia)।
प्रश्न 3.
केंचुए के जननांगों का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
प्रश्न 4.
तिलचट्टे की आहारनाल का नामांकित बनाइए ।
उत्तर:
प्रश्न 5.
निम्न में विभेद करें-
(अ) पुरोमुख एवं परितुण्ड,
(ख) पटीय (Septal) वृक्कक और प्रसनीय वृक्कक ।
उत्तर:
(अ) परोमुख एवं परितुण्ड में अन्तर (Differences betwene Prostomiun and Peristomium) –
परोमुख (Prostomium) | परितुण्ड (Peristomium) |
1. केंचुए के प्रथम खण्ड परितुण्ड (Peristomium) से एक मांसल पिण्ड मुख के आगे लटका रहता है जिसे मुखाग्र या परोमुख (prostomium) कहते हैं। | 1. केंचुए के अगले सिरे पर स्थित प्रथम खण्ड को परितुण्ड (peristomium) कहते हैं । |
2. परोमुख के ऊपर प्रकाशप्राही अंग पाये जाते हैं जिससे केंचुए को प्रकाश व अन्धकार का ज्ञान हो जाता है। यह भाग सुरंग बनाने में भी सहायक होता है। | 2. परितुण्ड में आगे की ओर अधर तल पर मुखद्वार स्थित होता है। यह भोजन ग्रहण करने तथा प्रचलन में सहायक होता है। |
(ब) पटीय एवं प्रसनीय वृक्कक में अन्तर (Differences between Septal and Pharyngeal nephrldia).
पटीय वृक्कक (Septal nephridia) | ग्रसनीय वृक्कक (Pharyngeal nephridia) |
1. ये वृक्कक केंचुए के 15वें खण्ड के बाद वाले सभी खण्डों में प्रत्येक पट की दोनों सतहों पर स्थित होते हैं। | 1. ये वृक्कक 4 वें, 5वें तथा 6वें खण्डों में आहार नाल के इधर-उधर युग्मित गुच्छों के रूप में स्थित होते हैं। |
2. प्रत्येक वृक्कक (nephron ) के चार भाग होते हैं – वृक्कक मुख (nephrostome), ग्रीवा, वृक्कक काय तथा अन्तस्थ वाहिनी । | 2. प्रसनीय वृक्कक (pharyngeal nephrom) में वृक्कक मुखिका तथा ग्रीवा नहीं होती है। केवल वृक्कक काय तथा अन्तस्थ वाहिनी पायी जाती है । |
3. वृक्कक काय के दो भाग होते हैं-सीधी पालि तथा कुण्डलित लूप । कुण्डलित लूप की लम्बाई सीधी पालि से लगभग दुगुनी होती है। | 3. वृक्कक काय की सीधी पालि तथा कुण्डलित लूप की लम्बाई बराबर होती है । |
4. अन्तस्थ नलिका आन्त्र में खुलती है। | 4. अन्तस्थ नलिका प्रसनी (pharynx) तथा प्रसिका में खुलती है। |
प्रश्न 6.
रुधिर के कणिकीय अवयव क्या हैं ?
उत्तर:
रुधिर के कणिकीय अवयव (Cellular Components of Blood) – रुधिर एक तरल संयोजी (liquid connective tissue) ऊतक है। यह हल्के या गहरे लाल रंग, अपारदर्शी, गाढ़ा, क्षारीय व स्वाद में नमकीन होता है। रुधिर के दो मुख्य घटक होते हैं-
(क) प्लाज्मा (Plasma) – यह निर्जीव तरल मैट्रिक्स होता है।
(ख) रुधिर कणिकाएँ (Blood carpuscles) – यह रुधिर का कणिकीय भाग है।
रुधिर कणिकाएँ रुधिर का लगभग 45% भाग बनाती हैं। ये तीन प्रकार की होती हैं-लाल रुधिर कणिकाएँ, श्वेत रुधिर कणिकाएँ तथा रुधिर प्लेटलैट्स ।
(1) लाल रुधिर कणिकाएँ या इरीथ्रोसाइट (Red Blood Corpuscles – R. B.Cs.) – R. B. Cs. सभी कशेरुकी (Vertebrates) जन्तुओं में पायी जाती हैं तथा 99% रुधिर कणिकाएँ लाल रंग की होती हैं। मनुष्य के R.B.Cs. छोटे, चपटे, गोल तथा दोनों ओर बीच में दबे हुए होते हैं। इनमें केन्द्रक ( nucleus) नहीं होता है । 1 घन मिमी. में इनकी संख्या लगभग 55 लाख होती है। इनका व्यास 8.0 तथा मोटाई 1-24 होती है। इनका जीवनकाल 120 दिन होता है ।
इनका निर्माण अस्थियों की लाल मज्जा (Red bone mauow) में होता है। इनमें हीमोग्लोबिन नामक पदार्थ पाया जाता है, जिससे रक्त लाल रंग का दिखायी देता है। इनका प्रमुख कार्य ऑक्सीजन का परिवहन करना है। इसके अतिरिक्त ये शरीर के अन्तः वातावरण में अम्लीयता एवं क्षारीयता का नियन्त्रण करके हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) इसके pH को उपयुक्त दशा में बनाये रखने का महत्वपूर्ण कार्य भी करता है। R. B.Cs. ऊतकों से फेफड़ों तक CO, के परिवहन का भी कार्य करते हैं।
(2) श्वेत रुधिर कणिकाएँ या ल्यूकोसाइट (White Blood Corpuscles – W.B.Cs.) – ये लाल रुधिर कणिकाओं (R.B.C.) से बड़ी किन्तु संख्या में कम, अनियमित आकार की केन्द्रक युक्त होती हैं, मनुष्य के 1 घन मिमी रुधिर में इनकी संख्या लगभग 7.500 (6,000 से 10,000) तक होती है। इनमें हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) नहीं होता है, इसलिए ये सफेद या रंगहीन होती हैं। इनका निर्माण प्लीहा में होता है। ये मुख्यतः हानिकारक जीवाणुओं एवं रोगाणुओं का भक्षण करती हैं। इनका जीवनकाल 4-7 दिन का होता है। ये दो प्रकार की होती हैं-
(A) कणिकामय श्वेत रुधिर कणिकाएँ (Granuloaytes),
(B) कणिकारहित श्वेत रुधिर कणिकाएँ (एमेन्यूलोसाइट्स, Agranulocytes) ।
(A) कणिकामय श्वेत रुधिर कणिकाएँ (Agranulocytes) – इनका कोशिकाद्रव्य कणिकामय तथा केन्द्रक स्पष्ट तथा 2 से 5 पिण्डों में बँटा हुआ व
असममिति आकृति का होता है। ये तीन प्रकार की होती हैं- न्यूट्रोफिल, बेसोफिल तथा इओसिनोफिल ।
(i) न्यूट्रोफिल्स (neutrophils ) – श्वेत रुधिर कणिकाओं में इनकी संख्या सबसे अधिक (लगभग 60-65 प्रतिशत) होती है। ये सबसे अधिक सक्रिय W.B.C. हैं। ये भक्षक कोशिकाएँ होती हैं जो शरीर के अन्दर प्रवेश करने वाले बाह्य जीवों को समाप्त करती हैं। इस प्रकार ये शरीर की रोगों से रक्षा करती हैं।
(ii) बेसोफिल्स (Basophils) – इनकी संख्या सबसे कम (लगभग 0.5 से 1 प्रतिशत) होती है। ये हिपैरिन, हिस्टैमिन तथा सीरोटोनिन का स्राव करती हैं तथा शोधकारी क्रियाओं में सम्मिलित होती हैं।
(iii) इओसिनोफिल्स (Eosinophils) ये श्वेत रुधिर कणिकाओं का 2-3% भाग बनाती हैं। ये संक्रमण (infection) से बचाव करती हैं तथा एलर्जी प्रतिक्रिया में सम्मिलित रहती हैं। परजीवी कृमियों के संक्रमण के कारण व्यक्ति के रुधिर में इनकी संख्या अत्यधिक बढ़ जाती है तब इस रोग को ‘इओसिनोफीलिया’ कहते हैं।
(B) कणिकारहित श्वेत रुधिर कणिकाएँ (एप्रेन्यूलोसाइट्स) – इनका कोशिकाद्रव्य कणिकारहित तथा केन्द्रकयुक्त होता है। ये दो प्रकार की होती – लिम्फोसाइट्स तथा मोनोसाइट्स ।
(i) लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) – ये छोटे आकार की श्वेत रुधिर कणिकाएँ (while blood corpuscles) हैं। इनका प्रमुख कार्य शरीर में प्रतिरक्षी प्रोटीन्स (एण्टीबॉडीज) का निर्माण करना है, जो शरीर की सुरक्षा करती हैं। इनका जीवनकाल केवल कुछ दिन का होता है।
(ii) मोनोसाइट्स (Monocyts) – ये बड़े आकार की W.B.Cs. हैं। ये शरीर में आये हुए हानिकारक जीवाणुओं एवं रोगाणुओं का तेजी से भक्षण करके शरीर की सुरक्षा करती हैं।
(3) रुधिर प्लेटलेट्स या थ्रॉम्बोसाइट्स (Blood Platelets or Thrombocytes) ये अतिसूक्ष्म, केन्द्रकविहीन, संकुचनशील, गोल या अण्डाकार, उभयोत्तल (biconcave) एवं प्लेट के आकार की होती हैं। इनका निर्माण अस्थिमज्जा (bone marrow) में होता है। इनकी संख्या 1.5 से 3.5 लाख प्रति घन मिमी एवं जीवनकाल 5-8 दिन का होता है। इनका कार्य आहत भाग से बहते हुए रुधिर का थक्का (clot) जमाना है। थक्का जमने से उस स्थान से रुधिर का बहना बन्द हो जाता है।
प्रश्न 7.
निम्न क्या हैं तथा प्राणियों के शरीर में कहाँ मिलते हैं ?
(अ) उपास्थि अणु (कोंड्रोसाइट ),
(ब) तन्त्रिकाक्ष (ऐक्सोन)
(स) पक्ष्माभ उपकला ।
उत्तर:
(अ) उपास्थि अणु या कोंड्रोसाइट्स (Chondrocytes) – उपास्थि या कार्टिलेज (Cartilage) के मैट्रिक्स (Matrix ) में स्थित कोशिकाओं को कॉण्ड्रोसाइट्स (chondrocytes) कहते हैं। ये गोल या अण्डाकार गर्तिकाओं (लैकुनी – Lacunae) में स्थित होती हैं। प्रत्येक गर्तिका में एक से दो या चार कॉन्ड्रोसाइट्स (chondrocytes) होती हैं। विभाजन के फलस्वरूप कॉन्ड्रोसाइट्स (chondrocytes) की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ उपास्थि ( Cartilage) में भी वृद्धि होती है। कॉन्ड्रोसाइट्स (chondrocytes) द्वारा ही उपास्थि (cartilage) का मैट्रिक्स स्त्रावित होता है। यह कॉन्ड्रिन प्रोटीन (chondrin protein) होता है। उपास्थियाँ प्रायः अस्थियों के सन्धि स्थल पर पायी जाती हैं।
(ब) तन्त्रिकाक्ष या ऐक्सोन (Axon ) – तन्त्रिका कोशिका या न्यूरॉन तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण करती हैं। प्रत्येक तन्त्रिका (neuron) कोशिका के तीन भाग होते हैं –
(1) कोशिकाकाय या साइटोन (cyton)
(2) डेन्ड्रॉन्स (dendrons )
(3) तन्त्रिकाक्ष या ऐक्सोन (axon ) ।
साइटोन से निकले कई प्रवर्धी में से एक प्रवर्ध अपेक्षाकृत लम्बा, मोटा एवं बेलनाकार होता है। यह प्रवर्ध ऐक्सोन (Axon) कहलाता है। इसकी मोटाई 1-2014 तक होती है। ऐक्सोन के अन्तिम छोर पर घुण्डी के समान रचनाएँ दिखाई देती हैं, जिन्हें साइनेप्टिक घुण्डियाँ (Synaptic knobs) कहते हैं। ये घुण्डियाँ (बटन्स) दूसरी तन्त्रिका कोशिका के डेन्ड्रोन्स से कार्यकारी सम्बन्ध बनाती हैं जिन्हें सिनैप्स कहते हैं। ऐक्सोन में उपस्थित कोशिकाद्रव्य एक्सोप्लाज्म (exoplasm) कहलाता है। ऐक्सोन (axon) का बाहरी आवरण न्यूरोलीमा (Nurilemma) कहलाता है न्यूरोलीमा ( nurilemma) के अन्दर वसा की एक परत होती है जिसे मैडुलरी शीथ (medullary sheath) कहते हैं।
(स) पक्ष्माथ उपकरण (Ciliated Epithelium)- इस उपकला की कोशिकाएँ स्तम्भाकार (Columnar) या घनाकार (Cuboidal) होती हैं। कोशिकाओं के बाहरी सिरों पर पक्ष्माथ या सीलिया (cilia) होते हैं। प्रत्येक पक्ष्माभ के आधार पर एक आधार कण होता है। पक्ष्माभों की गति द्वारा श्लेष्म व अन्य पदार्थ आगे की ओर धकेल दिये जाते हैं। पक्ष्माभ उपकला (cilited epithelium) श्वासनाल, श्वसनियाँ (branchioles) अण्डवाहिनी (oviduct) तथा मूत्रवाहिनी आदि की भीतरी सतह पर पायी जाती है।
प्रश्न 8.
रेखांकित चित्र की सहायता से विभिन्न उपकला ऊतकों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
स्थिति (Position)-यह ऊतक प्राणियों के शरीर की बाह्य सतह तथा विभिन्न अंगों एवं गुहाओं के भीतरी एवं बाहरी आवरण बनाता है। इसमें रुधिर कोशिकाओं का अभाव होता है। पोषक पदार्थों का स्थानान्तरण इनमें विसरण (diffusion) की क्रिया द्वारा लसिका (lymph) के माध्यम से होता है।
विशेष्ताएँ (Characteristics)
1. कोशिका एक-दूसरे से सटी रहती हैं। इनके बीच कोशिका बाह्य पदार्थ (extracellular material) बहुत कम होता है।
2. ये कोशिकाएँ पतली आधार कला (basement membrane) पर स्थित होती हैं।
3. आधार कला में दो स्तर होते हैं-उपकला की ओर आधारी लेमिना (basal lamina) तथा नीचे के संयोजी ऊतक की ओर रेटिकुलर लेमिना (reticular lamina) 1
4. कोशिकाओं के बीच अन्तरकोशिकीय (interacellular spaces) स्थान अनुपस्थित होते हैं।
5. आधार कला म्यूकोपॉलीसैकेराइड (mucopolysaccharide) तथा कोलेजन तन्तुओं की बनी होती है।
6. कोशिकाएँ इन्टरडिजिटेशन (interdigitation), टाइट जंक्शन (tight junctions), डेस्मोसोम (desmosomes) तथा हेमीडेस्मोसोम्स (hemidesmosomes) अर्थात् कोशिका बंधों द्वारा एक-दूसरे से कसकर जुड़ी होती हैं।
7. उपकला ऊतक (epithelial tissue) में महीन तंत्रिकाएँ होती हैं किन्तु पोषक पदार्थ पहुँचाने हेतु रुधिर वाहिकाओं का अभाव होता है। यह नीचे स्थित संयोजी ऊतक (connective tissue) से पोषक पदार्थ प्राप्त करता है।
8. इसकी कोशिकाएँ एक या अधिक स्तरों के रूप में अंगों को बाहर व अन्दर से ढकती हैं।
9. इन कोशिकाओं में विभाजन की अत्यधिक क्षमता होती है।
10. गुहाओं को आच्छादित करने वाले उपकला ऊसक (epithelial tissue) की कोशिकाओं की स्वतम्त्र सतह पर रसांकुर (microvilli), स्टीरियोसिलिया, सिलिया या कशाभ (flagella) आदि पाए जाते हैं।
11. ऐसी नलिकाएँ या गुहाएँ जिनका बाहरी वातावरण से सम्पर्क होता है, उनकी उपकला में श्लेष्मा स्रावी कोशिकाएँ (mucilogenous cells) पायी जाती हैं। सामान्यतः इसके नीचे संयोजी ऊतक पाया जाता है, जिसे लैमिना प्रोप्रिया (lamina propria) कहते हैं। श्लेष्मा स्रावी उपकला ऊतक एवं लैमिना प्रोप्रिया को संयुक्त रूप से श्लेष्मिक कला कहते हैं। इस प्रकार की श्लेष्मिक कला आहार नाल, श्वसन नली एवं मूत्रजनन नलिकाओं में पायी जाती हैं।
12. नलिकाएँ व गुहाएँ जिनका बाहरी वातावरण के साथ सम्बन्ध नहीं होता है तो उनमें उपकला ऊतक व नीचे के संयोजी ऊतक को संयुक्त रूप से सीरस कला (serous membrane) कहते हैं। जैसे-हुदयावरण व फुफ्सावरण।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में विभेद कीजिये-
(अ) सरल उपकला तथा संयुक्त उपकला ऊतक
(स) सघन नियमित एवं सघन अनियमित संयोजी ऊतक
(य) सामान्य तथा संयुक्त ग्रन्थि ।
(ब) हृदय पेशी तथा रेखित पेशी
(द) वसामय तथा रुधिर ऊतक
उत्तर:
(अ) सरल उपकला तथा संयुक्त उपकला में अन्तर (Differences between Simple Epithelium and Compound Epithelium)
सरल उपकला (Simple Epithelium) | संयुक्त उपकला (Compound Epithelium) |
1. इसकी कोशिकाएँ आधार झिल्ली पर एक परत के रूप में लगी होती हैं। | 1. इसकी कोशिकाएँ आधार झिल्ली पर एक से अधिक परतों में लगी रहती हैं। |
2. यह उपकला मुख रूप से स्त्रावी और अवशोषण सतहों पर पायी जाती । जैसे- रुधिरवाहिनी, स्वर यन्त्र, प्रसनी मन्थियों की बाहरी सतह पर । | 2. यह उन स्थानों पर पायी जाती हैं जहाँ पर रासायनिक व यान्त्रिक रगड़ होती रहती है। जैसे- त्वचा, मुखगुहा, प्रासनाल, कॉर्निया आदि में। |
(ब) हृदयपेशी तथा रेखितपेशी में अन्तर (Differences between Cardiac Muscles and Striped Muscles) –
हृदयपेशी (Cardiac Muscles) | रेखितपेशी (Striped Muscles) |
1. ये पेशियाँ केवल हृदय (heart) में पायी जाती हैं। | 1. ये पेशियाँ अस्थियों से जुड़ी रहती हैं और कंकाल पेशी ( skeletal muscle ) भी कहलाती हैं। |
2. ये जीवनपर्यन्त निरन्तर कार्य करती रहती हैं, फिर भी थकान का अनुभव नहीं होता है। | 2. क्रियाशील रहने पर इनमें थकान का अनुभव होता है। अतः आराम आवश्यक है। |
3. ये निश्चित क्रम में स्वतः फैलती व सिकुड़ती हैं और इच्छा पर निर्भर नहीं करती हैं। | 3. ये जन्तु की इच्छा से सिकुड़ती व फैलती हैं। अतः ये ऐच्छिक होती हैं। |
4. इनके पेशीतन्तु लम्बे, बेलनाकार तथा शाखामय होते हैं। ये सिरों पर जाल के रूप में जुड़े होते हैं। इन तन्तुओं में अनुप्रस्थ पट्टियाँ होती हैं। | 4. इनके पेशी तन्तु लम्बे, बेलनाकार व शाखाहीन होते हैं। इन तन्तुओं में हल्के और गहरे रंग की पट्टियाँ होती हैं। |
5. पेशी तन्तु के कोशिका द्रव्य में एक केन्द्रक होता है। | 5. पेशी तन्तु के कोशिकाद्रव्य ( cytoplasm) में अनेक केन्द्रक होते हैं। |
(स) सघन नियमित तथा सघन अनियमित संयोजी ऊतक में अन्तर (Differences between Dense Regular and Dense Irregular Connective Tissues)
Dense Regular:
सघन नियमित संयोजी ऊतक में कोलेजन तन्सुओं के गुच्छे नियमित रूप से समानान्तर बण्डलों में पाये जाते हैं।
कण्डरा ( tendon) तथा स्नायु ( ligaments) में भी कोलेजन तन्तुओं के समानान्तर गच्छे होते हैं।
Dense Irregular:
सघन अनियमित संयोजी ऊतक में कोलेजन तन्तु फाइब्रोब्लास्ट, पीले इलास्टिन (elastin) तन्तु आदि मैट्रिक्स (matrix ) में अनियमित रूप से पाये जाते हैं। इस तरह के ऊतक त्वचा की डर्मिस (dermis ) में पाये जाते हैं।
(द) वसामय ऊतक तथा रुधिर ऊतक में अन्तर (Differences between Adipose Tissue and Blood Tissue).
वसामय ऊतक (Adipose Tissues) | रुधिर ऊतक (Blood Tissues ) |
1. यह एक सामान्य और ढीला संयोजी ऊतक ( loose connective issue) है। | 1. यह एक तरल संयोजी (liquid) ऊतक है। |
2. इस ऊतक का मैट्रिक्स (matrix ) जेली जैसा, पारदर्शी एवं चिपचिपा होता है। | 2. इसका मैट्रिक्स (matrix) गाढ़ा, जलीय और अल्पपारदर्शी होता है। |
3. इसके मैट्रिक्स (matrix ) में वसा कोशिकाएं, रुधिर वाहिनियाँ, श्वेत कोलेजन तन्तु तथा पीले इलास्टिन तन्तु उपस्थित होते हैं। | 3. इसके मैट्रिक्स में लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCs), श्वेत रुधिर कणिकाएँ (WBCs) तथा रुधिर प्लेटलेट्स होती हैं। |
4. यह ऊतक वसा का संचय करता है, तापरोधक स्तर बनाता है व शरीर को सुडौल बनाता है। आन्तरंगों को अत्यधिक दबाव, खिंचाव एवं धक्कों से बचाता है। | 4. रुधिर गैसों – O<sub>2</sub> व CO<sub>2</sub> का, भोजन, उत्सर्जी पदार्थों एवं हॉर्मोन्स आदि का संवहन करता है। शरीर के ताप को एक जैसा बनाये रखता है तथा शरीर की प्रतिरक्षा में भाग लेता है। |
(य) सामान्य तथा संयुक्त ग्रन्थि में अन्तर (Differences between Simple Glands and Compound Glands)
सामान्य ग्रन्थि (Simple Glands ) | संयुक्त प्रन्थि (Compound Glands ) |
1. ये प्रन्थियाँ सरल, अशाखित वाहिकाओं वाली होती हैं। इनकी गुहा पर उपकला कोशिकाओं (epithelial cells) का स्तर होता है। | 1. ये प्रन्थियाँ शाखामय वाहिकाओं वाली होती हैं। इनमें नालवत् कूपिकाओं अथवा दोनों ही आकृति की शाखामय स्रावी रचनाएँ होती |
2. सामान्य ग्रन्थि में एक ही अशाखित वाहिनी स्त्रावित पदार्थ को सम्बन्धित स्थल पर पहुंचाती है। | 2. इसकी शाखामय वाहिनियाँ आपस में मिलकर एक संयुक्त वाहिनी द्वारा स्त्रावित पदार्थ को सम्बन्धित स्थल पर पहुंचाती हैं। |
प्रश्न 10.
निम्न श्रृंखलाओं में सुमेलित न होने वाले अंशों को इंगित कीजिये-
(अ) एरिओलर ऊतक, रुधिर, तन्त्रिका कोशिका (न्यूरॉन), कंडरा (टेंडन)
(ब) लाल रुधिर कणिकाएँ, सफेद रुधिर कणिकाएँ, प्लेटलेट्स, उपास्थि
(स) बाह्य स्रावी, अन्तःस्रावी, लार ग्रन्दि, स्नायु (लिगामेंट)
(द) मैक्सिला, मैडिवल, लेब्रम, श्रृंगिका (एंटिना)
(य) प्रोटोनीमा मध्यवक्ष पश्चवक्ष तथा कक्षांग (कॉक्स) ।
उत्तर:
सुमेलित न होने वाले अंश-
(अ) तन्त्रिका कोशिका (न्यूरॉन),
(ब) उपास्थि (कार्टीलेज),
(स) स्नायु (लिगामेंट),
(द) श्रृंगिका (एंटिना),
(य) प्रोटोनीमा ।
प्रश्न 11.
स्तम्भ -1 और स्तम्भ -II को सुमेलित कीजिए-
स्तम्भ-I | स्तम्भ- 11 |
(क) संयुक्त कला | (i) आहारनाल |
(ख) संयुक्त नेत्र | (ii) तिलचट्टे |
(ग) पट्टीय वृक्कक | (iii) त्वचा |
(घ) खुला परिसंचण तन्त्र | (iv) किर्मीर दृष्टि |
(ङ) आत्र वलन | (v) केंचुआ |
(च) अस्थि अणु | (vi) शिश्न खण्ड |
(छ) जननेन्द्रिय | (vii) अस्थि । |
उत्तर:
(क) संयुक्त कला | स्तम्भ- 11 |
(ख) संयुक्त नेत्र | (iv) किर्मीर दृष्टि |
(ग) पट्टीय वृक्कक | (v) केंचुआ |
(घ) खुला परिसंचरण तन्त्र | (ii) तिलचट्टे |
(ङ) आन्त्र वलन | (i) आहारनाल |
(च) अस्थिअणु | (vii) अस्थि |
(छ) जननेन्द्रिय | (vi) शिश्नखण्ड |
(क) संयुक्त कला | (iii) त्वचा |
प्रश्न 12.
केंचुए के परिसंचरण तन्त्र का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कॉकरोच का परिसंचरण तन्त्र (Circulatory System of Cockroach)
अन्य कीटों की भाँति कॉकरोच में रुधिर परिसंचरण खुले(Open) प्रकार का होता है। अर्थात् रुधिर नलिकाओं (Vessels) में न बहकर देहगुहा (Coelom) में भरा रहता है। रुधिर परिसंचरण तंत्र को तीन प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है-
1. हीमोसील,
2. हृदय, तथा
3 . रुधिर।
1. हीमोसील (Haemocoel)-कॉकरोच की देहगुहा हीमोसील (haemocoel) कहलाती है। यह आन्तरिक मीजोडर्म के उपकला द्वारा आच्छादित नहीं होती अतः यह अवास्तविक देहगुहा (pseudocoelome) कहलाती है। हीमोसील दो पेशीय कलाओं द्वारा तीन कोष्ठकों में विभाजित रहती है। ये कोष्ठक हैं-पृष्ठकोटर (dorsal sinus) अथवा हृदयावरणी हीमोसील (perivisceral sinus), मध्यकोटर या परिअंतरंग हीमोसील तथा अधर कोटर या अधरक हीमोसील। मध्य कोटर अन्य दोनों कोटरों की अपेक्षा अधिक बड़ा होता है तथा तीनों कोटरों का रुधिर आपस में मिल जुल सकता है।
2. हृदय (Heart) -हुदय पृष्ठकोटर में स्थित रहता है। यह एक लम्बी पेशीय क्रमांकुचनी संरचना है जो कि वक्ष (thorax) तथा उदर के पृष्ठ भाग में टर्गम के ठीक नीचे मध्य रेखा में व्यवस्थित रहती है। कॉकरोच का हृदय कुल 13 खण्डों का बना है जिसमें 3 खण्ड वक्ष में तथा शेष 10 खण्ड उदर भाग में रहते हैं। हृदय (heart) का पश्च सिरा बन्द रहता है, जबकि इसका अग्र सिरा महाधमनी (aorata) के रूप में आगे बढ़ता है।
हुदय (Heart) के पश्चखण्ड को छोड़कर अन्य सभी खण्डों में पाश्श स्थिति में एक एक जोड़ी छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें ऑस्टिया (ostea) कहते हैं। प्रत्येक खण्ड में कपाट (valves) होते हैं जो रुधिर को हुदय के अन्दर जाने देते हैं किन्तु वापस नहीं आने देते। हुदय के प्रत्येक प्रकोष्ठ (sinus) के पार्श्व में एलेरी पेशियाँ (alary muscles) पायी जाती हैं जिनके संकुचन से परिहृदय कोटर (perichordial sinus) की गुहा का आयतन बढ़ जाता है तथा शिथिलन से वक्ष गुहा का आयतन कम हो जाता है। कॉकरोच का हृदय न्यूरोजेनिक (nurogenic) होता है अर्थात् इसकी क्रिया प्रणाली हृदय से नियंत्रित होती है। रुधिर पश्च सिरे से अम्र सिरे की ओर बहता है।
3. रुधिर लसीका या हीमोलिम्फ (Haemolymph)-कॉकरोच का रुधिर लसीका (blood lymph) रंगहीन होता है क्योंकि इसमें हीमोग्लोबिन या अन्य कोई श्वसन वर्णक (respiratory pigment) नहीं पाया जाता है। इसके दो भाग होते हैं-प्लाज्मा (plasma) तथा श्वेत रुधिराणु (white blood carpuscles) ।
प्लाउ्मा रंगहीन क्षारीय (alkaline) द्रव है इसमें 70%तक जल होता है। इसमें Na,K,Ca, Mg PO4 आदि अकार्बनिक लवण (inorganic salts) भी होते हैं। कार्बनिक पदारों के रूप में इसमें अमीनो अम्ल, यूरिक अम्ल, वसा, प्रोटीन आदि पदार्थ होते हैं। श्वेत रुधिरणु दो प्रकार के होते हैं-भक्षणु (phagocytes) तथा प्रोल्यूकोसाइट (proleucocytes)। रुधि लसीका विभिन्न पदार्थों, लवणों, जल आदि का संवहन करती है। इसमें श्वसन वर्णकों (resipratory pigments) के अभाव के कारण यह वायु का संवहन नहीं करता है।
प्रश्न 13.
मेंढक के पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
प्रश्न 14.
निम्नलिखित के कार्य बताइए-
(अ) मेंढक की मूत्रवाहिनी,
(ब) मैलपीघी नलिका
(स) केंचुए की देहभित्ति ।
उत्तर:
(अ) मेंढक की मूत्रवाहिनी (Ureter of Frog ) नर मेंढक में वृक्क (गुर्दे) से मूत्रवाहिनी निकलकर अवस्कर (Cloaca) में खुलती है। यह मूत्र जनन नलिका का कार्य करती है। मादा मेंढक में मूत्रवाहिनी (uretor) एवं अण्डवाहिनी अवस्कर में अलग-अलग खुलती हैं। मूत्रवाहिनी वृक्क से मूत्र को -अवस्कर (cloaca) तक पहुँचाने का कार्य करती है।
(ख) मैलपीघी नलिका (Malpighian Tubes) ये कीटों में मध्यान्त्र एवं पश्चान्त्र के सन्धि तल पर पायी जाने वाली पीले रंग की धागे सदृश उत्सर्जी रचनाएँ होती हैं। ये उत्सर्जी पदार्थों को हीमोसील (haemocoel) से ग्रहण करके आहारनाल में पहुँचाने का कार्य करती हैं।
(स) केंचुए की देहभित्ति (Body wall of Earthworm) केंचुए की देहभित्ति नम तथा चिकनी होती है। यह श्वसन के लिए गैस विनिमय में सहायक होती है। देहभित्ति का श्लेष्म केंचुए के बिलों या सुरंगों की सतह को चिकना एवं सुदृढ़ बनाता है।