Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 3 वनस्पति जगत Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Biology Solutions Chapter 3 वनस्पति जगत
प्रश्न 1.
शैवाल के वर्गीकरण का क्या आधार है ?
उत्तर:
शैवालों (Algae) को मुख्य रूप से प्रकाशसंश्लेषी वर्णक ( photosynthetic pigments), संचित खाद्य पदार्थ ( reserved food material), कोशिकाभित्ति की संरचना तथा कशाभिकाओं की उपस्थिति, अनुपस्थिति तथा संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। शैवालों को तीन प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है- क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae) फिओफाइसी (Phacophyceae), तथा रोडोफाइसी ( Rhodophyceae)
प्रश्न 2.
लिवरवर्ट, मॉस, फर्न, जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म के जीवन चक्र में कहाँ और कब निम्नीकरण विभाजन होता है ?
उत्तर:
(i) लिवरवर्ट (Liverwort ) – ये ब्रायोफाइटा समूह के पौधे हैं। इनमें बीजाणुद्भिद (Sporophyte) के संपुट (capsule) में बीजाणु मातृ कोशिकाओं (spore mother cells) में निम्नीकरण विभाजन ( reduction division ) से बीजाणु बनते हैं।
(ii) मॉस (Moss) – ये उच्च ब्रायोफाइट हैं इनमे बीजाणुद्भिद् (sporophyte ) के सम्पुट में बीजाणु मातृ कोशिकाओं में निम्नीकरण विभाजन (meiosis) होता है जिससे अगुणित बीजाणु बनते हैं।
(iii) फर्न (Fern) – ये टेरिडोफाइट सनूह के पौधे हैं। इनमें स्पोरोफाइट की बीजाणुधानी के अन्दर बीजाणु मातृ कोशिकाओं में निम्नीकरण विभाजन ( meiosis) होता है।
(iv) जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms) – लघुबीजाणुधानी (microsporangium) में परागकण बनते समय लघुबीजाणु मातृ कोशिका में निम्नीकरण विभाजन होता है। बीजाण्ड (ovule) के बीजाण्डकाय (nucellus) की गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में निम्नीकरण विभाजन होता है। इससे अगुणित गुरुबीजाणु बनते हैं । एक गुरुबीजाणु वृद्धि करके मादा युग्मकोद्भिद् अथवा भ्रूणपोष बनाता है ।
(v) एन्जियोस्पर्म (Angiosperms) – परागकोष (Anther) की पराग मातृ कोशिकाओं (pollen mother cells) में निम्नीकरण विभाजन से परागकणों (Pollen grains) का निर्माण होता है। बीजाण्डकाय (nucellus) की गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (megaspore mother cell) में निम्नीकरण विभाजन ( reduction division or meiosis) होता है जिसके फलस्वरूप चार अगुणित गुरुबीजाणु केन्द्रक बनते हैं जिनमें से तीन नष्ट हो जाते हैं केवल एक सक्रिय रहता है। यह अगुणित भ्रूणकोष बनाता है।
प्रश्न 3.
पौधे के तीन वर्गों के नाम लिखिए, जिनमें स्त्रीधानी होती है। इनमें से किसी एक के जीवन चक्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा तथा जिम्नोस्पर्म वर्ग के पौधों में स्त्रीधानी ( archegonium) पायी जाती है।
मॉस (ब्रायोफाइट पादप) का जीवन चक्र
(Life-cycle of Moss: A Bryophyte)
मॉस (फ्यूनेरिया) में युग्मकोद्भिद् तथा बीजाणुद्भिद् ( gametophyte and sporophyte ) दो स्पष्ट अवस्थाएँ पायी जाती हैं। युग्मकोद्भिद् (gametophyte ) अवस्था पादप की प्रमुख अवस्था है जो एक पर्णिल प्ररोह (foliage shoot) के रूप में होता है। यह स्वतन्त्र स्वपोषी होती है। इसके जननांग अलग-अलग शाखाओं के शिखानों पर पत्तियों से घिरे हुए होते हैं। मॉस का पौधा पूर्वी (protandrous) होता है।
मॉस में नर युग्मक पुंधानी (antheridium) तथा मादा युग्मक स्त्रीधानी (archegonium) में बनते हैं। नर युग्मक पुमणु (antherozoids) तथा मादा युग्मक अण्ड (egg) कहलाते हैं । निषेचन के लिए बाह्य जल आवश्यक होता है। नर तथा मादा युग्मकों के संलयन (fusion) से द्विगुणित ( diploid, 2n) युग्मनज (zygote) बनता है।
इससे बीजाणुद्भिद् पीढ़ी का आरम्भ होता है। युग्मनज (zygote) विभाजित होकर बहुकोशिकीय भ्रूण ( embryo) बनाता है। यह आंशिक परजीवी बीजाणुद्भिद् (sporophyte) में विकसित हो जाता है जो फुट, सीटा व कैप्सूल में विभाजित होता है। इसके सम्पुटिका वाले भाग में बीजाणु मातृ कोशिकाएँ होती हैं जो अर्द्धसूत्री विभाजन करके अगुणित (haploid) बीजाणु बनाती है। अगुणित बीजाणु अंकुरण द्वारा तन्तुवत प्रोटोनीमा (protonema) बनाते हैं। यह बाद में पार्णिल प्ररोह अर्थात् युग्मकोद्भिद को जन्म देते हैं।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित की सूत्रगुणता बताइए –
(i) मॉस की प्रथम तन्तु कोशिका
(ii) द्विबीजपत्री के प्राथमिक भ्रूणपोष का केन्द्रक,
(iii) मॉस की पत्तियों की कोशिका,
(iv) फर्न के प्रोथैलस की कोशिकाएँ,
(v) मारकेंशिया की जेमा कोशिका,
(vi) एकबीजपत्री की मैरिस्टैम कोशिका,
(vii) लिवरवर्ट के अण्डाशय तथा
(viii) फर्न के युग्मनज 1
उत्तर:
(i) मॉस की प्रथम तन्तु कोशिका (Protonemal cell of moss ) – इनका निर्माण सम्पुट ( capsule) की बीजाणु मातृकोशिकाओं (spore mother cell) में अर्द्धसूत्री विभाजन ( meiosis) से बने बीजाणुओं (spores) से होता है। अतः ये अगुणित (haploid; n) होती है।
(ii) द्विबीजपत्री के प्राथमिक भ्रूणपोष का केन्द्रक (Primary endosperm nucleus of dicots ) – द्विबीजपत्रियों में भ्रूणपोष (End… perm) का निर्माण, दो ध्रुवीय केन्द्रकों तथा एक नरयुग्मक के संलयन से होता है। अतः यह त्रिगुणित ( triploid; 3n) होता है ।
(ii) मॉस की पत्तियों की कोशिका (Leaf cell of moss) – मॉस की प्रमुख अवस्था युग्मकोद्भिद ( gametophyte ) होती है जो अगुणित (n) होती है। पत्तियाँ इसी अवस्था में होती है। अतः इनकी सूत्रगुणता, अगुणित (n) होती है।
(iv) फर्न के प्रोथैलस की कोशिकाएँ (Prothallus cells of a Fern ) – फर्न का प्रोथैलस अगुणित बीजाणुओं के अंकुरण से बनता है । अतः इसकी कोशिकाओं की सूत्रगुणिता अगुणित (n) होती है।
(v) मारकेंशिया की जैमा कोशिका (Gemma cell of Marchantia) – मार्केन्शिया में जैमा युग्मकोद्भिद् अवस्था पर होते हैं। अतः जैमा की कोशिका की सूत्रगुणता अगुणित (x) होती है।
(vi) एकबीजपत्री की मैरिस्टेम कोशिका (Meristem cell of monocot) – एकबीजपत्री का मुख्य पौधा बीजाणुद्भिद् (2n) होता है। मैरिस्टेम बीजाणुद्भिद का ही एक वर्षी ऊतक ( somatic tissue) है। अतः मैरिस्टेम कोशिका की सूत्रगुणता द्विगुणित ( diploid; 2n) होती है।
(vii) लिवरवर्ट के अण्डाशय (Ovum of Liverwort ) – लिवरवर्ट में अण्डप युग्मकोद्भिद् ( gametophyte ) पर बनता है । अतः इसकी सूत्रगुणता अगुणित (n) होती है।
(viii) फर्न का युग्मनज (Zygote of Fern) – फर्न में युग्मनज का निर्माण दो अगुणित युग्मकों के संलयन से होता है। अतः इसकी सूत्रगुणता द्विगुणित (2n) है।
प्रश्न 5.
शैवाल तथा जिम्नोस्पर्म के आर्थिक महत्व पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शैवाल का आर्थिक महत्व (Economic importance of algae)
शैवाल वातावरण में अमूल्य ऑक्सीजन मुक्त कर महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक सेवा प्रदान करते हैं।
1. शैवाल खाद्य के रूप में (Algae as Food) – शैवालों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। विटामिन A, C, D, E आदि मुख्य रूप से होते हैं। अल्वा (Utva), फ्यूकस (Fucus), पोरफाइरा (Porphyra), अलेरिया (Alaria), लैमिनेरिया (Laminaria), सरगासम (Sargassum) आदि को खाद्य पदार्थ व पशु खाद्य (animal feed) प्राप्त करने में उपयोग किया जाता है। क्लोरेला (Chlorella) नामक शैवाल में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसे भविष्य के भोजन के रूप में पहचाना जा रहा है। इसे एकल कोशिका प्रोटीन (single cell protein) कहा जाता है।
2. शैवाल उद्योगों में (Algae in industry ) – भूरे तथा लाल शैवाल व्यवसाय की दृष्टि से बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। समुद्री घास (kelp) की राख से आयोडीन तथा पोटैशियम निकाला जाता है। कुछ लाल शैवालों जैसे- जिलीडियम (Gelidium), प्रेसीलेरिया (Gracilaria) से एक श्लेष्मीय पदार्थ अगर (Agar) निकलता है इसका प्रयोग प्रयोगशाला तथा कॉस्मेटिक उद्योगों में किया जाता है।
अलेरिया, लैमिनेरिया नामक शैवालों से एल्जिन (algin) नामक पदार्थ निकाला जाता है जिसका प्रयोग अज्वलनशील फिल्मों तथा कृत्रिम रेशे बनाने में किया जाता है। कोन्ड्रस (Chondnis) तथा यूक्यिमा (Eucheuma) से कैराजीनिन (carrageenin) नामक पदार्थ प्राप्त होता है। इसका प्रयोग सौन्दर्य प्रसाधनों में किया जाता है। डायटम्स (Diatoms) की मृत्यु होने पर अपघटन द्वारा डायटमी मृदा बनती है जिसका प्रयोग अग्निसह ईंटें (fire bricks) बनाने में किया जाता है।
3. शैवाल का औषधीय महत्व (Medicinal use of algae ) क्लोरेला (Chlorella) नामक शैवाल से क्लोरेलिन नामक प्रतिजैविक पदार्थ प्राप्त होता है। जिम्नोस्पर्म का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Gymnosperms
(i) सजावटी पौधे (Ornamental Plants) – साइकस (Cycas), पाइनस (Pinus ), ऐरोकेरिया (Araucaria), गिन्गो (Ginkgo), थूजा (Thuja), क्रिप्टोमेरिया (Cryptomeria) आदि जिम्नोस्पर्म्स को उद्यानों एवं घरों में सजावट के लिया लगाया जाता है।
(ii) भोज्य पदार्थों के लिए (For Food) – साइकस रिवोल्यूटा तथा जैमिया पिग्मिया से साबूदाना (sago ) प्राप्त होता है। पाइनस जिरार्डियाना (Pinus girardiana) से चिलगोजा प्राप्त होता है। नीटम (Gnetum), गिन्गो (Ginkgo) व साइकस के बीजों को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
(iii) टिम्बर (Timber) – चीड़ (Pinus ), देवदार (Cedrus) कैल (Pinus walichiana), फर (Abies) आदि से प्राप्त लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर निर्माण में किया जाता है।
(iv) औषधियों के लिए (For medicines) – साइकस के बीज, छाल व गुरुबीजाणुपणों को पीसकर, पुल्टिस बनायी जाती हैं। एफिड्रा से एफिड्रीन औषधि बनाई जाती है। टेक्सस ब्रेबफोलिया से टैक्सॉल औषधि प्राप्त होती है। थूजा (Thuja) की पत्तियों का काढ़ा खाँसी, बुखार एवं गठिया में लाभदायक है।
(v) एवीज बालसेमिया से कनाडा बालसम, जूनीपेरस से सिडर वुड आयल तथा चीड़ (Pinus) से तारपीन का तेल प्राप्त किया जाता है।
प्रश्न 6.
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म दोनों में बीज होते हैं फिर भी इनका वर्गीकरण अलग-अलग क्यों है ?
उत्तर:
अनावृत्तबीजी या जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms) ऐसे पौधों का समूह है, जिनमें बीजों का निर्माण तो होता है किन्तु ये बीज किसी आवरण द्वारा ढके नहीं होते हैं अर्थात् बीजाण्ड अथवा उनसे विकसित बीज नग्न रूप से पौधों पर लगे होते हैं। जिम्नोस्पर्म (Gr. Gymno = naked, Sperma Seeds) में अण्डाशय और फल का अभाव होता है।
आवृत्तबीजी या एन्जियोस्पर्म (Angiosperms) ऐसे विकसित पौधों का समूह है जिनमें बीज फलावरण के अन्दर स्थित होते हैं। बीजाण्ड अण्डाशय में स्थित होते हैं। निषेचन (fertilization) के पश्चात् अण्डाशय (ovary) से फलावरण (fruit wall) अर्थात पेरीकार्प (pericarp) तथा बीजाण्ड (ovule) से बीज बनता है। फलावरण तथा बीज मिलकर फल (fruit) बनाते हैं। यही कारण है कि जिम्नोस्पर्म एवं एन्जियोस्पर्म को अलग-अलग समूहों में रखा जाता है।
प्रश्न 7.
विषम बीजाणुकता क्या है ? इसकी सार्थकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। इसके दो उदाहरण दो ।
उत्तर:
विषम बीजाणुकता (Heterospory) – टेरीडोफाइटा समूह के ऐसे पौधे जिनमें केवल एक ही प्रकार के बीजाणु उत्पन्न होते हैं, समबीजाणुक (homosporous) कहलाते हैं और यह दशा समबीजाणुकता (homospory) कहलाती है। परन्तु कुछ जातियों में एक ही पौधे में दो प्रकार के बीजाणु बनते हैं जो एक-दूसरे से आमाप (size) में भिन्न होते हैं।
छोटे आमाप के बीजाणु लघु बीजाणु (Microspores) कहलाते हैं तथा जिन बीजाणुधानियों (sporangia) में ये उत्पन्न होते हैं उन्हें लघुवीजाणु धानियाँ (microsporangia) कहते हैं। दूसरे प्रकार के बीजाणु जिनका आमाप लघु बीजाणुओं की तुलना में बड़ा होता है. गुरुबीजाणु (Megaspores) कहलाते हैं और इन्हें उत्पन्न करने वाली बीजाणुधानी, गुरुबीजाणुधानी ( megasporangium) कहलाती है।
उपरोक्त दोनों प्रकार के बीजाणुओं के कार्य भिन्न होते हैं। लघुबीजाणुओं के अंकुरण से नर युग्मकोद्भिद् तथा गुरुबीजाणुओं के अंकुरण से मादा युग्मकोद्भिद का निर्माण होता है। अतः पौधों में दो भिन्न आमाप, संरचना तथा कार्य वाले बीजाणुओं का बनना विषम बीजाणुकता कहलाता है। मादा युग्मकोद्भिद् अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बीजाणुद्भिद (sporophyte ) से जुड़ा रहता है।
मादा युग्मकोद्भिद से ही युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है जो बाद में भ्रूण ( embryo) के रूप में विकसित होता है। यह घटना विकासीय (evolutionary) दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण समझी जाती है। इससे धीरे-धीरे निषेचन हेतु बाह्य जल की आवश्यकता समाप्त हो जाती है जो कि स्थलीय पौधों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
इसी से बीजी प्रवृत्ति (seed habit) का विकास होता है। विषमबीजाणुकता टेरिडोफाइटा से सिलैजिनेला आइसोटीज, साल्वीनिया आदि में पायी जाती है। साबूदाना मुख्यतः कसाना या टेपिओका नामक पौधे से प्राप्त किया जाता है।
प्रश्न 8.
उदाहरण सहित निम्न शब्दावली का संक्षिप्त वर्णन कीजिए-
(i) प्रथम तन्तु
(ii) पुंधानी,
(iii) स्त्रीधानी,
(iv) द्विगुणितक,
(v) बीजाणुपर्ण,
(vi) समयुग्मकी।
उत्तर:
(i) प्रथम तन्तु (Protonema) – यह मॉस के युग्मकोद्भिद की प्राथमिक अवस्था है। बीजाणु (spore) अंकुरित होकर शाखामय, तन्तुरूपी हरे रंग की स्वपोषी रचना प्रथम तन्तु बनाते हैं। प्रथम तन्तुओं पर कलिकाएँ विकसित होकर पत्तीमय अवस्था में विकसित हो जाती हैं। इनके द्वारा वर्धी प्रजनन भी होता है।
(ii) पुंघानी (Antheridium)- ब्रायोफाइट्स तथा टैरिडोफाइट्स में नर जननांग पुंधानी कहलाते हैं। ये युग्मकोदुभिद् पर विकसित होती हैं। ये नाशपाती के आकार की या गोलाकार संरचनाएँ होती हैं। इनके चारों ओर एक स्तरीय बन्ध्य (sterile) जैकेट (jacket) पाया जाता है। पुंधानी के अन्दर पुमणु मातृकोशिकाओं (antherozoid mother cells) से माइटोसिस द्वारा पुमणुओं (antherozoids) का विकास होता है। ये नर युग्मक (male gametes) कहलाते हैं। मॉस के पुमणु द्विकशाभिक तथा फर्न के पुमणु बहुकशाभिक होते हैं।
(iii) स्त्रीधानी (Archegonium ) – यह ब्रायोफाइट तथा टेरिडोफाइट का स्त्री जननांग (Female reproductive part) है। यह फ्लास्क सदृश संरचना है। इसका आधारीय चौड़ा भाग अण्डधा (Venter) तथा ऊपरी संकरा भाग ग्रीवा (Neck) कहलाता हैं। अण्डधा में एक अण्डाणु (egg cell) बनता है। स्त्रीधानियों का निर्माण युग्मकोद्भिद पर होता है। जिम्नोस्पर्म में भी स्त्रीधानी पायी जाती है।
(iv) द्विगुणितक (Diplontic) – पौधों में युग्मकोदभिद अवस्था अगुणित (n) तथा बीजाणुदभिद् अवस्था द्विगुणित (2n) होती है । जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्मस में द्विगुणित अवस्था प्रभावी होती है। इस अवस्था का विकास नर युग्मक तथा मादा युग्मक के संलयन से बने युग्मनज (zygote) से होता है ।
युग्मनज (zygote) विकसित होकर लम्बी बीजाणुद्भिद अवस्था को जन्म देता है। बीजाणुद्भिद से अर्धसूत्री विभाजन के बाद अगुणित युग्मको द्भिद् अवस्था बनती है जो अल्पकालीन व बीजाणुद्भिद पर निर्भर होती है। इससे बने युग्मक संलयित होकर युग्मनज बनाते हैं। ऐसे जीवन चक्र को द्विगुणितक ( diplontic) कहते हैं।
(v) बीजाणुपर्ण (Sporophyll) बीजाणुद्भिद अवस्था जैसे फर्न में, जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित होती है। इनकी परिपक्व पत्तियों पर बीजाणुधानियों (sporangia) का निर्माण होता है जिनमें बीजाणु बनते हैं, बीजाणुधानियों के समूह को सोराई (Sori), एकवचन सोरस (sorus) कहते हैं।
बीजाणुधानियाँ (sporangia) धारण करने वाली पत्तियों को बीजाणुपर्ण (sporophylls) कहते हैं। जिम्नोस्पर्म में ये लघु बीजाणुपर्ण तथा गुरुबीजाणुपर्ण (microsporophylls and megasporophylls) कहलाते हैं। आवृत्तबीजियों में पुंकेसर रूपान्तरित लघुबीजाणु पर्ण तथा अण्डप (carpel) रूपान्तरित गुरुबीजाणुपर्ण ही है।
(vi) समयुग्मन (Isogamy) – यह एक प्रकार का संलयन है जिसमें भाग लेने वाले युग्मक आकार एवं आकृति में समान होते हैं।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में अन्तर कीजिए-
(i) लाल शैवाल तथा भूरे शैवाल
(ii) लिवरवर्ट तथा मॉस
(iii) विषम बीजाणुक तथा सम बीजाणुक टैरीडोफाइट
(iv) युग्मक संलयन तथा त्रिसंलयन।
उत्तर:
(i) लाल शैवाल तथा भूरे शैवाल में अन्तर (Differences between Red algae and Brown algae)
लाल शैवाल (Red algae) | भूरे शैवाल (Brown algae) |
1. ये सूक्ष्म, एककोशिकीय, कुछ बड़े एवं जटिल संरचना वाले शैवाल हैं। | 1. ये सरल तन्तुरूपी, सघन, शाखित व अपेक्षाकृत बड़े शैवाल हैं। |
2. इनमें क्लोरोफिल ‘a’ तथा ‘d’ पाया जाता है। | 2. इनमें क्लोरोफिल ‘a’ व क्लोरोफिल c’ पाया जाता है। |
3. ये आर-फाइकोएरिथ्रिन (r-phycoerythrin ) वर्णक की उपस्थिति के कारण लाल होते हैं। | 3. जैन्थोफिल, फ्यूकोजैन्वन के कारण भूरे रंग के होते हैं। |
4. संचित भोजन फ्लोरिडियन स्टार्च (floridian starch) होता है। | 4. संचित भोजन लैमिनेरिन या मैनीटॉल होता है। |
5. चल कोशिकाओं (motile cells) का अभाव होता है। | 5. युग्मक चल बीजाणु आदि कोशिकाओं में कशाभिका उपस्थित होते हैं। |
उदाहरण: पोरफाइरा, जिलीडियम, मेसीलेरिया । | उदाहरण: सरगासम, फ्यूकस, लैमिनेरिया । |
(ii) लिवरवर्ट तथा मॉस में अन्तर (Differences between Liverwort and Moss)
लिवरवर्ट (Liverwort) | मॉस (Moss) |
1. पादपकाय पृष्ठाधर चपटा सूकाय (thallus ) होता है। | 1. पादपकाय ऊर्ध्व, मूलाभास, तना तथा पत्ती सदृश रचनाओं में विभेदित होता है। |
2. मूलाभास (rhizoids) अशाखित तथा एककोशिकीय होते हैं। | 2. मूलाभास बहुकोशिकीय तथा शाखित होते हैं। |
3. थैलस की अधर सतह पर शल्क (scales) पाये जाते हैं। | 3. शल्क (scales) अनुपस्थित होते हैं। |
4. बीजाणुद्भिद्, युग्मकोद्भिद् पर पूर्ण आश्रित होता है। | 4. बीजाणुद्भिद्, युग्मकोद्भिद पर आंशिक रूप से आश्रित होता है। |
5. इलेटर्स (elaters) बीजाणुओं के प्रकीर्णन में भाग लेते हैं। | 5. परिमुखदन्त (peristomial teeth) बीजाणुओं के प्रकीर्णन में भाग लेते हैं । |
6. कैप्सूल में स्तम्भिका (collumella) अनुपस्थित होता है। | 6. कैप्सूल में कॉल्यूमेला (collumella) पाया जाता है। |
7. बीजाणु अंकुरित होकर युग्मकोद्भिद ( gametophyte) बनाते हैं। | 7. बीजाणु पहले प्रोटोनीमा बनाते हैं, बाद में युग्मकोद्भिद् बनता |
(iii) विषम बीजाणुक तथा सम बीजाणुक टेरिडोफाइट्स में अन्तर (Differences between Homosporous and Heterosporous Pteridophytes )
सम बीजाणुक (Homosporous) | विषम बीजाणुक (Heterosporous) |
1. ऐसे टेरीडोफाइट जिनमें सभी बीजाणु एक ही प्रकार के होते हैं, सम बीजाणुक (homosporous) कहलाते हैं। | 1. ऐसे टेरीडोफाइट जिनमें एक पौधे में दो प्रकार के बीजाणु बनते हैं विषम | बीजाणुक (heterosporous) कहलाते हैं। |
2. समबीजाणु (homosporous) से विकसित युग्मकोद्भिद् उभयलिंगी होता है। | 2. इनमें लघु बीजाणु तथा गुरुबीजाणु बनते हैं। जो क्रमशः नर युग्मकोदभिद तथा मादा युग्मकोद्भिद का निर्माण करते हैं। |
उदाहरण : ड्रायोप्टेरिस, टेरिस, लाइकोपोडियम आदि । | उदाहरण: मासीलिया, सिलैजिनेला, साल्वीनिया आदि । |
(iv) युग्मक संलयन तथा त्रिसंलयन में अन्तर (Differences between Syngamy and Triple fusion )
युग्मक संलयन (Syngamy) | त्रिसंलयन (Triple fusion ) |
1. युग्मक संलयन की क्रिया में अगुणित नर तथा मादा युग्मकों (पुमणु तथा अण्डाणु) का परस्पर मिलन होता है, फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज (zygote) बनता है। | 1. इसमें एक नर युग्मक दो ध्रुवीय केन्द्रकों के संयुजन से बने द्वितीयक केन्द्रक से मिलता है जिससे त्रिगुणित भ्रूणपोष बनता है। इस क्रिया को त्रिगुणिन (triple fusion) कहते हैं। |
2. यह क्रिया सभी श्रेणी के पौधों में पायी जाती है। | 2. यह केवल आवृत्तबीजी में पाया जाता |
प्रश्न 10
एकबीजपत्री को द्विबीजपत्री से किस प्रकार विमेदित करोगे ?
उत्तर:
एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री में विभिन्नताएँ (Differences between Monocots and Dicots)
एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री को अग्र लक्षणों के आधार पर विभेदित किया जा सकता है-
लक्षण | एकबीजपत्री (Monocotyledons) | द्विबीजपत्री (Dicotyledons ) |
1. जड़ का प्रकार | इनमें अपस्थानिक जड़ें पायी जाती हैं। | इनमें प्रायः मूसला जड़ें पायी जाती हैं। |
2. तना | प्रायः शाकीय तथा कोमल होता है। | शाकीय या काष्ठीय होता है। |
3. पत्तियों में शिरा-विन्यास | समानान्तर शिरा विन्यास (parallel venation) पाया जाता है। | जालिकावत् शिरा विन्यास ( reticulate venation) पाया जाता है। |
4. संवहन पूल (Vascular Bundle) | अवर्षी (closed) होते हैं। तने में संयुक्त (conjoint) समपार्श्व (collateral) पूल छितरे हुए (scattered) होते हैं। | वर्षी (open) होते हैं। तने में एक वलय के रूप में व्यवस्थित रहते हैं। |
5. पुष्प (Flowers) | त्रिअरीय (trimerous )। | प्रायः पंचतयी ( pentamerous) या चतुष्तयी (Tetramerous )। |
6. बीज (Seeds) | भ्रूणपोषी (endospermic) | अभ्रूण पोषी या भ्रूणपोषी (non- endospermic or endospermic)। |
7. बीजपत्र (Cotyledons) | एक अप्रस्थ बीजपत्र (cotyledons) | दो पाश्र्वय बीजपत्र (cotyledons) |
प्रश्न 11.
स्तम्भ में दिये गये पादपों का स्तम्भ II में दिये गये पादप वर्गों से मिलान कीजिए-
स्तम्भ I | स्तम्भ II |
(अ) क्लेमाइडोमोनास | (i) मॉस |
(ब) साइकस | (ii) टेरिडोफाइटा |
(स) सिलेजिनेला | (iii) शैवाल |
(द) स्फैगनम | (iv) जिम्नोस्पर्म |
उत्तर:
स्तम्भ I | स्तम्भ II |
(अ) क्लेमाइडोमोनास | (iii) शैवाल |
(ब) साइकस | (iv) जिम्नोस्पर्म |
(स) सिलेजिनेला | (ii) टेरिडोफाइटा |
(द) स्फैगनम | (i) मॉस |
प्रश्न 12.
जिम्नोस्पर्म के महत्वपूर्ण अभिलक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जिम्नोस्पर्म के विभेदक लक्षण (Distinguishing Features of Gymnosperms)
- अण्डाशय की अनुपस्थिति के कारण फल नहीं बनते। अतः इनमें बीज अनावृत होते हैं। इसीलिए इन्हें नग्नबीजी या अनावृत्तबीजी कहा जाता है।
- जिम्नोस्पर्म मुख्यतः बहुवर्षीय, काष्ठीय (Woody) तथा सदाहरित (Evergreen) वृक्ष या झाड़ियाँ (Shrubs) होते हैं।
- पादपकाय बीजाणुद्भिद होता है जो जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित होता है
- जड़ें मूसला तथा डाई आर्क से पॉलीआर्क होती हैं।
- पत्तियाँ प्रायः दो प्रकार की होती हैं, सत्य-पत्र (Foliage leaves) हरे रंग की तथा शल्क पत्र (Scale leaves) भूरे रंग की होती हैं।
- तने में संवहन पूल कन्जोइन्ट (Conjoint), कोलेट्रल (Collateral), खुले (Open) तथा एण्डार्क (endarch) होते हैं।
- जाइलम में प्रायः वाहिनकाएँ (Vessels) तथा फ्लोएम में सखि कोशिकाओं (Companian cells) का अभाव होता है।
- पुष्प नहीं होते हैं, जननांग धारण करने वाली संरचनाओं को शंकु (Cone) कहते हैं। नर तथा मादा शंकु अलग-अलग होते हैं।
- नर शंकुओं का निर्माण लघुबीजाणुपण (Microsporophylls) पर तथा मादा शंकुओं का निर्माण गुरुबीजाणुपणों (Megasporophylls) से होता है।
- नर युग्मकोद्भिद् (Male gametophyte ) अत्यन्त हासित होता है। परागनलिका (Pollen tube) बनती है।
- मादा युग्मकोद्भिद एक गुरुबीजाणु (Megaspore) से बनता है। यह बहुकोशिकीय होता है। यह पोषण के लिए पूर्णतः बीजाणुद्भिद पर आश्रित होता है।
- परागण वायु द्वारा होता है। द्विनिषेचन का अभाव होता है तथा अगुणित भूणपोष का निर्माण निषेचन से पूर्व होता है।
- प्रायः बहुभ्रूणता (Polyembryony) पायी जाती है।
- भूणपोष अगुणित होता है।
- स्पष्ट पीढ़ी एकान्तरण पाया जाता है।