Class 12

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेश नीति का क्या अर्थ है ? भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
नेहरू जी की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
भारत की विदेश नीति’ के मुख्य सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
विदेश नीति का अर्थ- प्रत्येक देश दूसरे देश के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है। विदेश नीति उन सिद्धान्तों और साधनों का समूह है जो राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने, अपने उद्देश्यों को सही बताने और उनको प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। रुथना स्वामी के अनुसार, “विदेश नीति ऐसे सिद्धान्तों और व्यवहारों का समूह है जिनके द्वारा राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों को नियमित किया जाता है।”

भारतीय विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्त-भारतीय विदेश नीति के निर्माता भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू माने जाते हैं। स्वतन्त्रता के पश्चात् उन्होंने भारतीय विदेश नीति में जिन तत्त्वों का समावेश किया, वे आज भी विद्यमान हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

1: गुट-निरपेक्षता (Non-Alignment):
भारत की विदेश नीति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुट-निरपेक्षता है। भारत एक गुट-निरपेक्ष देश है और इसकी विदेश नीति भी गुट-निरपेक्षता पर आधारित है। पं० नेहरू ने कहा था-“जहां तक सम्भव हो, हम इन शक्ति-गुटों से अलग रहना चाहते हैं, जिनके कारण पहले भी महायुद्ध हुए हैं और भविष्य में हैं।” गुट-निरपेक्षता का अर्थ है-अपनी स्वतन्त्र नीति । जनता सरकार ने मार्च, 1977 में सत्ता में आने पर गुट-निरपेक्षता की नीति पर बल दिया। श्रीमती इन्दिरा गांधी और उसके बाद राजीव गांधी की सरकार ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया। आजकल संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार भी गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण कर रही है।

2. साम्राज्यवादियों तथा उपनिवेशवादियों का विरोध (Opposition of Imperialists and Colonialists):
भारत स्वयं ब्रिटिश साम्राज्यवाद का शिकार रहा है, जिस कारण भारत ने सदैव साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध किया है।

3. जाति, रंग व भेदभाव की नीति के विरुद्ध (Opposite to the Policy of Caste, Colour and Discrimination):
भारत की विदेश नीति का एक अन्य मूल सिद्धान्त यह है कि भारत ने जाति, रंग, भेदभाव की भारत के विदेश सम्बन्ध नीति के विरुद्ध सदैव आवाज़ उठाई है। भारत शुरू से ही जाति-पाति के बन्धन को समाप्त करने के पक्ष में रहा है और उसने अपनी विदेश नीति द्वारा समय-समय पर ऐसे प्रयत्न किए हैं जिनसे इस नीति को विश्व में समाप्त कर सके।

4. अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध (Friendly Relations with other Countries):
भारत की विदेश नीति की एक अन्य विशेषता यह है कि भारत विश्व के अन्य देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए सदैव तैयार रहता है। भारत ने न केवल मित्रतापूर्ण सम्बन्ध एशिया के देशों से ही बढाए हैं, बल्कि उसने विश्व के अन्य देशों से भी सम्बन्ध बनाए हैं।

5. एशिया-अफ्रीकी देशों का संगठन (Unity of Afro-Asian Countries):
भारत ने पारस्परिक आर्थिक तथा राजनीतिक सम्बन्धों को मजबूत बनाने के लिए एशिया और अफ्रीका के देशों को संगठित करने का प्रयास किया है। भारत का विचार है कि देश संगठित होकर उपनिवेशवाद का अच्छी तरह से विरोध कर सकेंगे तथा अन्य एशियाई और अफ्रीकी देशों की स्वतन्त्रता के लिए वातावरण उत्पन्न कर सकेंगे। भारत ने इन देशों को गुट-निरपेक्षता का रास्ता दिखाया तथा अनेक देशों ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया और इस प्रकार गुट-निरपेक्ष देशों का एक गुट बन गया। 24 मई, 1994 को दक्षिण अफ्रीका गुट-निरपेक्ष देशों के आन्दोलन का 110वां सदस्य बन गया।

6. संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों को महत्त्व देना (Importance to Principles of United Nations):
भारत की विदेश नीति में संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों को भी महत्त्व दिया गया और भारत द्वारा सदा ही प्रयास किया गया है कि वह विश्व-शान्ति स्थापित करने के लिए युद्धों को रोके। भारत ने सदैव संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों का पालन किया है और किसी देश पर हमला नहीं किया है। भारत शान्ति का पुजारी है।

7. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता (Membership of Commonwealth of Nations):
भारत की विदेश नीति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता राष्ट्रमण्डल की सदस्यता है। राष्ट्रमण्डल की सदस्यता ने भारत को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अधिक प्रभावशाली भूमिका अदा करने योग्य बनाया है।

8. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत तटस्थ नहीं है (India is not Neutral in International Politics):
यद्यपि भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार गुट-निरपेक्षता है, परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं कि भारत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में बिल्कुल भाग नहीं लेता। भारत किसी गुट में शामिल न होने के कारण ठीक को ठीक और ग़लत को ग़लत कहने वाली नीति अपनाता है। पं० नेहरू के शब्द आज भी सजीव हैं “जहां स्वतन्त्रता के लिए खतरा उपस्थित हो, न्याय की धमकी दी जाती हो अथवा जहां आक्रमण होता हो, वहां न तो हम तटस्थ रह सकते हैं और न ही तटस्थ रहेंगे।”

9. पंचशील (Panchsheel):
भारत की विदेश नीति का एक और महत्त्वपूर्ण भाग है-पंचशील, जो भारत की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को एक महत्त्वपूर्ण देन है। यह सिद्धान्त 1954 में बड़ा लोकप्रिय हुआ जब भारत और चीन के बीच तिब्बत के प्रश्न पर सन्धि हुई। राज्यों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने के लिए पांच सिद्धान्तों की रचना की गई, जिन्हें पंचशील के नाम से पुकारा जाता है। भारत द्वारा जब भी कोई निर्णय अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर लिया जाता है तो वह इन पांच सिद्धान्तों को सामने रखकर लिया जाता है। भारत ने सदैव प्रयास किया है कि इन पांच सिद्धान्तों को अन्य देश भी स्वीकार करें।

10. क्षेत्रीय सहयोग (Regional Co-operation) :
यद्यपि भारत में एक महाशक्ति बनाने के सारे लक्षण पाए जाते हैं, परन्तु भारत ने कभी भी महाशक्ति बनने का प्रयत्न नहीं किया। भारत का सदा ही क्षेत्रीय सहयोग में विश्वास रहा है। भारत ने क्षेत्रीय सहयोग की भावना को विकसित करने के लिए 1985 में क्षेत्रीय सहयोग के लिए ‘दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ’ (South Asian Association of Regional Co-operation) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे संक्षेप में, ‘सार्क’ (SAARC) कहा जाता है। इस संघ में भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, बांग्ला देश, श्रीलंका, भूटान, नेपाल, अफगानिस्तान तथा मालद्वीप भी शामिल हैं।

11. नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और वातावरण की सुरक्षा का प्रश्न (New International Economic order and question of the protection of Environment):
पिछले कुछ वर्षों से नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना और वातावरण की सुरक्षा का प्रश्न भारत की विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण भाग बन गया है। भारत विश्व में से अन्याय पर आधारित अर्थव्यवस्था समाप्त करके न्यायपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना करना चाहता है, ताकि विकासशील देश विकसित देशों के वित्तीय संगठनों से आर्थिक मदद प्राप्त कर सकें। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किये जाने वाले ऐसे प्रयत्नों का भारत ने सदैव समर्थन किया है, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा की जा सके।

अन्त में हम कह सकते हैं कि, भारत की विदेश नीति प्रो० हीरेन मुखर्जी (Prof. Hiren Mukherjee) के शब्दों में यह है कि, “उपनिवेशवाद का विरोध ……… सारी नस्लों को पूरी समानता ………… गुट-निरपेक्षता ………. एशिया तथा अफ्रीका को संसार की राजनीति में नए उभर रहे तत्त्वों के रूप में मान्यता …………. अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को समाप्त करना और विवादों को हिंसा तथा युद्ध के बिना हल करना भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धान्त हैं।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 2.
‘विदेश नीति’ का अर्थ स्पष्ट करें। भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्त्व बताइये।
अथवा
भारत की ‘विदेश नीति’ के निर्धारक तत्त्वों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
विदेश नीति का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें। भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्त्व-सन् 1947 से पूर्व भारत की कोई अपनी विदेश नीति नहीं थी। ब्रिटेन की जो विदेश नीति होती थी वही भारत सरकार की विदेश नीति थी। यदि जर्मनी ब्रिटेन का शत्रु होता, तो भारत सरकार भी उसे अपना शत्रु मानती थी। 1947 में स्वतन्त्र होने के पश्चात् भारत को स्वतन्त्र विदेश नीति का निर्माण करना था। स्वतन्त्र भारत के संविधान में उन नीति निर्देशक सिद्धान्तों का वर्णन कर दिया गया है जिनका अनुसरण इस देश को करना है। स्वतन्त्र भारत ने जिस विदेश नीति का अनुसरण किया है वह भी राष्ट्रीय हितों पर आधारित है। इस नीति को निर्धारित करने में अनेक तत्त्वों ने सहयोग दिया है। ये तत्त्व निम्नलिखित हैं

1.संवैधानिक आधार (Constitutional Basis):
भारत के संविधान में राजनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में केवल राज्य की आन्तरिक नीति से सम्बन्धित ही निर्देश नहीं दिए गए बल्कि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए इस विषय में भी निर्देश दिए गए हैं। अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को निम्नलिखित कार्य करने के लिए कहा गया है

(क) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
(ख) दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों, समझौतों तथा कानूनों के लिए सम्मान उत्पन्न करना।
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाना। राजनीति के इन निर्देशक सिद्धान्तों ने भारत की विदेश नीति को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2. भौगोलिक तत्त्व (Geographical Factors):
भारत में विदेश नीति को निर्धारित करने में भौगोलिक तत्त्व ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत का समुद्र तट बहुत विशाल है। भारत की सुरक्षा के लिए नौ-सेना का शक्तिशाली होना अति आवश्यक है और इसलिए भारत अपनी नौ-सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए लगा हुआ है। भारत की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, नेपाल और बर्मा (म्यनमार) के साथ लगती हैं। कश्मीर राज्य के कुछ प्रदेश ऐसे भी हैं, जिनकी सीमा अफ़गानिस्तान और रूस के साथ लगती है यद्यपि इस समय वे पाकिस्तान के कब्जे में हैं। इन देशों को लगती अपनी सीमाओं को ध्यान में रखकर ही भारत ने अपनी विदेश नीति का निर्धारण किया है।

3. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background):
लगभग 200 वर्ष के दीर्घकाल तक भारत को अंग्रेजों की दासता में रहना पड़ा, फलस्वरूप भारत अन्य राष्ट्रों की तुलना में ग्रेट ब्रिटेन के सम्पर्क में अधिक रहा और इसी कारण इंग्लैण्ड की सभ्यता व संस्कृति का भारत पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। चिरकाल तक साम्राज्यवाद के कारण शोषित व परतन्त्र रहने के कारण भारत की विदेश नीति पर प्रभाव पड़ा है और अब इसकी विदेश नीति का मुख्य सिद्धान्त साम्राज्यवाद तथा औपनिवेशवाद का विरोध करना है अ एशिया व अफ्रीका में होने वाले स्वाधीनता संघर्षों का समर्थन करता रहा है।

4. आर्थिक तत्त्व (Economic Factors) :
भारत की विदेश नीति के निर्धारण में आर्थिक तत्त्व ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भारत स्वतन्त्र हुआ उस समय भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। भारत में उस समय अनाज की भारी कमी थी और वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं। भारत अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए अमेरिका और ब्रिटेन पर निर्भर करता था। भारत का विदेशी व्यापार मुख्यत: ब्रिटेन व अमेरिका के साथ था। जिन मशीनरियों व खाद्य सामग्रियों को विदेशों से मंगवाना होता है वह भी उसे इन देशों से ही मुख्यतः प्राप्त करनी होती हैं और इनके साथ ही अमेरिका व ब्रिटेन की पर्याप्त पूंजी भारत के अनेक कल-कारखानों में लगी हुई है।

ऐसी स्थिति में यह स्वाभाविक था कि भारत की विदेश नीति पश्चिमी पूंजीवादी राज्यों के प्रति सद्भावनापूर्ण रही। 1950 के पश्चात् भारत और सोवियत संघ धीरे-धीरे एक-दूसरे के नज़दीक आने लगे और भारत सोवियत संघ तथा अन्य समाजवादी देशों से तकनीकी तथा आर्थिक सहायता प्राप्त करने लगा। दोनों गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए भारत ने गट-निरपेक्षता की नीति अपनाई। वास्तव में भारत की विदेश नीति और उसके आर्थिक विकास में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

5. राष्ट्रीय हित (National Interest):
विदेश नीति के निर्माण में राष्ट्रीय हित ने सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 4 दिसम्बर, 1947 को संविधान सभा में पण्डित नेहरू ने कहा था कि आप कोई भी नीति अपनाएं, विदेश नीति का निर्धारण करने की कला राष्ट्रीय हित के सम्पादन में ही निहित है। पं. नेहरू ने गट-निरपेक्षता और विश्व-शान्ति की स्थापना को भारत की विदेश नीति का आधार इसलिए बनाया ताकि भारत गुटों से अलग रहकर अपना आर्थिक तथा औद्योगिक विकास कर सके। यदि भारत गुटों की नीति में फंस जाता तो दोनों गुटों से आर्थिक सहायता न पा सकता। अत: भारत के हित को देखते हुए ही गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाया गया है। भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रमण्डल (Commonwealth of Nations) का सदस्य रहना स्वीकार किया।

6. विचारधारा का प्रभाव (Impact of Ideology):
विदेश नीति का निर्माण करने में उस देश की विचारधारा का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। राष्ट्रीय आन्दोलन के समय कांग्रेस ने अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तरह-तरह के आदर्श संसार के सामने प्रस्तुत किए थे। कांग्रेस ने सदैव विश्व-शान्ति और शान्तिपूर्ण सह-जीवन का समर्थन तथा साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का घोर विरोध किया। सत्तारूढ़ होने पर कांग्रेस को अपनी विदेश नीति का निर्माण इन्हीं आदर्शों पर करना था। कांग्रेस महात्मा गांधी के आदर्शों तथा सिद्धान्तों से भी काफी प्रभावित थी।

अत: भारत की विदेश नीति गांधीवाद से काफी प्रभावित थी, इसलिए भारत की विदेश नीति में विश्व-शान्ति पर बहुत जोर दिया जाता है। समाजवादी देशों के प्रति भारत की सहानुभूति बहुत कुछ मार्क्सवादी प्रभाव का परिणाम मानी जाती है। पश्चिम के उदारवाद का भी भारत की विदेश नीति पर काफ़ी प्रभाव है। हमारी विदेश नीति के निर्माता पं० नेहरू पश्चिमी लोकतन्त्रीय परम्पराओं से बहुत प्रभावित थे। वे पश्चिमी लोकतन्त्र तथा साम्यवाद दोनों की अच्छाइयों को पसन्द करते थे और उनकी बुराइयों से दूर रहना चाहते थे। अत: गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया गया।

7. अन्तर्राष्ट्रीय तत्त्व (International Factors):
भारत की विदेश नीति के निर्धारण में अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भारत स्वतन्त्र हुआ उस समय सोवियत गुट और अमरीकी गुट में शीत-युद्ध चल रहा था। संसार के प्रायः सभी देश उस समय दो गुटों में विभाजित थे। पं० जवाहरलाल नेहरू ने किसी एक गुट में शामिल होने के स्थान पर दोनों गुटों से अलग रहना देश के हित में समझा।

अतः भारत ने गुट-निरपेक्ष नीति का अनुसरण किया। पिछले कुछ वर्षों से अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति में परिवर्तन हुआ है। अमेरिका और चीन के सम्बन्धों में सुधार हुआ है लेकिन अमेरिका और पाकिस्तान बहुत नज़दीक हैं। इस अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति के कारण भारत और सोवियत संघ और समीप आए। 1991 में सोवियत संघ के विघटन होने के बाद विश्व में अमेरिका ही एकमात्र सुपर पॉवर रह गया है। इसीलिए भारत भी अमेरिका के साथ अपने आर्थिक, सामाजिक सम्बन्धों को मज़बूत बनाने पर बल दे रहा है।

8. सैनिक तत्त्व (Military Factors):
सैनिक तत्त्व ने भी भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सैनिक दृष्टि से बहुत निर्बल था। इसलिए भारत ने दोनों गुटों से सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाई। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने खुलेआम पाकिस्तान का साथ दिया और भारत पर दबाव डालने के लिए अपना सातवां जंगी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेजा तो भारत को सोवियत संघ से 20 वर्षीय सन्धि करनी पड़ी। आजकल अमेरिका पाकिस्तान को आधुनिकतम हथियार दे रहा है, जिसका भारत ने अमेरिका से विरोध किया है, पर अमेरिका अपनी नीति पर अटल है। अतः भारत को भी अपनी रक्षा के लिए रूस तथा अन्य देशों से आधुनिकतम हथियार खरीदने पड़ रहे हैं।

9. राष्ट्रीय संघर्ष (National Struggle):
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन ने विदेश नीति के निर्माण में महत्त्वपूर्ण

  • राष्ट्रीय आन्दोलन ने भारत में महाशक्तियों के संघर्ष का मोहरा बनने से बचने का संकल्प उत्पन्न किया।
  • अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक क्षेत्र में गुट-निरपेक्ष रहते हुए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की भावना जागृत हुई।
  • प्रत्येक तरह के उपनिवेशवाद, जातिवाद व रंग-भेद का विरोध करने का साहस हुआ।
  • स्वाधीनता संघर्ष के लिए सहानुभूति उत्पन्न हुई।

10. वैयक्तिक तत्त्व (Personal Factors):
भारतीय विदेश नीति पर इस राष्ट्र के महान् नेताओं के वैयक्तिक तत्त्वों का भी प्रभाव पड़ा। पण्डित नेहरू के विचारों से हमारी विदेश नीति पर्याप्त प्रभावित हुई। पण्डित नेहरू उपनिवेशवाद व फासिस्टवाद के घोर विरोधी थे और वे समस्याओं का समाधान करने के लिए शान्तिपूर्ण मार्ग के समर्थक थे। वह मैत्री, सहयोग व सह-अस्तित्व के पोषक थे।

साथ ही अन्याय का विरोध करने के लिए शक्ति प्रयोग के समर्थक थे। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों द्वारा हमारी विदेश नीति के ढांचे को ढाला। पण्डित नेहरू के अतिरिक्त डॉ० राधाकृष्णन, कृष्णा मेनन, पाणिक्कर जैसे महान् नेताओं के विचारों ने भी हमारी विदेश नीति को प्रभावित किया। स्वर्गीय शास्त्री जी व भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी के काल में हमने अपनी विदेश नीति के मूल तत्त्वों को कायम रखते हुए इसमें व्यावहारिक तत्त्वों का भी प्रयोग किया।

प्रश्न 3.
भारत-चीन के मध्य विवाद के उन मुख्य विषयों का वर्णन करें जो 1962 के युद्ध का कारण बने।
अथवा
भारत और चीन के बीच मतभेदों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत एवं चीन एशिया के दो महत्त्वपूर्ण देश हैं। भारत और चीन के मध्य पहले गहरी मित्रता थी, परन्तु धीरे-धीरे दोनों देशों में मतभेद बढ़ते रहे, जिनके कारण अन्ततः 1962 में दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी हुआ। इस युद्ध के निम्नलिखित कारण माने जा सकते हैं

1. तिब्बत समस्या (Tibet Problem)-भारत-चीन के बीच हुए युद्ध का एक कारण तिब्बत की समस्या थी। सन् 1914 में इन दोनों देशों के बीच सीमा निर्धारण करने के लिए शिमला में एक सम्मेलन हुआ था जिसमें आर्थर हेनरी मैकमोहन ने भाग लिया था। शिमला-सन्धि में यह निर्णय हुआ था कि

  • तिब्बत पर चीन का आधिपत्य रहेगा परन्तु बाह्य तिब्बत को अपने कार्य में पूरी आज़ादी रहेगी।
  • चीन तिब्बत के आन्तरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
  • चीन कभी भी तिब्बत को अपने राज्य का प्रान्त घोषित नहीं करेगा।

बाह्य तिब्बत और भारत के बीच की ऊंची पर्वत श्रेणियों को सीमा मान कर एक नक्शे में लाल पैंसिल से निशान लगा दिए तथा इस सीमा रेखा को मैकमोहन लाइन का नाम दिया गया। सीमा-विवाद के समय चीन ने भी इसी रेखा का समर्थन किया। कश्मीर की उत्तरी सीमा को स्पष्ट करते हुए ब्रिटिश अधिकारियों ने 1899 में चीन को लिखा था कि भारत के विदेश सम्बन्ध इसकी पूर्वी सीमा 80 अक्षांश पूर्वी देशान्तर है। इससे स्पष्ट है कि अक्साई चीन भारतीय सीमा के अन्तर्गत है और वह सीमा ऐतिहासिक है।

स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद भारत को तिब्बत में निम्नलिखित बहिदेशीय (Extra-territorial) अधिकार मिले :

  • तिब्बत और ब्रिटिश भारतीय व्यापारियों के झगड़ों में बचाव पक्ष पर देश की विधि लागू होती थी और उसी देश का न्यायाधीश सुनवाई के समय अध्यक्षता करता था।
  • यदि तिब्बत में ब्रिटिश-राज्य के लोगों के बीच विवाद होते थे तो उनका निर्णय ब्रिटिश अधिकारी ही करते थे।
  • ब्रिटिश एजेंटों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ फ़ौज रखने का अधिकार था।
  • गेट टुंग के यान टुंग से व्यॉणट्सी तक टेलीफोन और टेलीग्राफ संस्थाओं पर भी ब्रिटिश अधिकारियों का अधिकार था।
  • तिब्बत में भारत सरकार के ग्यारह विश्राम-गृह थे।

चीन ने तिब्बत की सत्ता तथा भारत के अधिकारों का सम्मान न करते हुए 7 अक्तूबर, 1950 को तिब्बत में अपने सैनिक भेज दिए। जब भारत ने इस ओर चीन का ध्यान आकर्षित करवाया तो उसने कठोर शब्दों में अपेक्षा की। नये नक्शों में चीन ने भारत की लगभग 50 हज़ार वर्गमील सीमा चीन प्रदेश के अन्तर्गत दिखाई। श्री नेहरू द्वारा इसका विरोध करने पर चीनी प्रधानमन्त्री ने कहा कि ये नक्शे राष्ट्रवादी सरकार के पुराने नक्शों की नकल हैं और समय मिलने पर इसे ठीक कर लिया जाएगा।

चीनियों ने आक्साईचिन के पठार में सड़क बना ली। लद्दाख में कई सैनिक चौकियां स्थापित कर ली। सन् 1958 में लद्दाख के खरनाम किले पर भी कब्जा कर लिया गया। 31 मार्च, 1957 में दलाईलामा ने चीनियों के दमन से भयभीत होकर भारत में राजनीतिक शरण ली। चीन ने इसका विरोध किया। श्री चाऊ-एन-लाई ने भारत को लिखा कि “मैकमोहन रेखा चीन के तिब्बत क्षेत्र के विरुद्ध अंग्रेजों की आक्रमणकारी नीति का परिणाम था। कानूनी तौर पर इसे वैध नहीं माना जा सकता।”

सन् 1959 को भारत पर आरोप लगाया कि वह तिब्बत में सशस्त्र विद्रोहियों को संरक्षण दे रहा है। चीन ने भारत के लगभग 90,000 किलोमीटर प्रदेश पर दावा करते हुए कहा कि भारतीय सेनाएं इस प्रदेश में घुसकर चीन की अखण्डता को चुनौती दे रही हैं। __ 1960 में भारत और चीन के प्रधानमन्त्रियों ने दिल्ली में एक संयुक्त-विज्ञप्ति में यह माना कि दोनों देशों में कुछ मतभेद हैं। यह तनाव और भी बढ़ा जब 1962 में गलवान घाटी की भारतीय पुलिस चौकी को चीनियों ने घेर लिया।

2. मानचित्र से सम्बन्धित समस्या (Problem Regarding Maps):
भारत एवं चीन के मध्य 1962 में युद्ध का एक कारण दोनों देशों के बीच मानचित्र के रेखांकित भू-भाग था। चीन ने 1954 में प्रकाशित अपने मानचित्र में कुछ ऐसे भाग प्रदर्शित किये थे जो वास्तव में भारतीय भू-भागों में थे। जब इस मुद्दे को चीन के साथ उठाया गया, तो उसने कहा कि यह पुराना मानचित्र है, नये मानचित्र में इस गलती को सुधार लिया जायेगा, परन्तु 1955 में चीन ने बराहोती पर कब्जा किया, तत्पश्चात् शिपकी दर्रा के द्वारा भारतीय भू-क्षेत्र की अवमानना की।

3. सीमा विवाद (Boundary Dispute):
भारत-चीन के बीच विवाद का एक कारण सीमा विवाद था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तु चीन ने नहीं। सीमा विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ता गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 4.
1962 में भारत-चीन के मध्य हुए युद्ध का वर्णन करें। युद्ध से सम्बन्धित कोलम्बो समझौते का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत एवं चीन के मध्य 1962 में हुए युद्ध की परिस्थितियां बहुत पहले बननी शुरू हो गई थीं। अन्ततः चीन ने 20 अक्तूबर, 1962 को भारत की उत्तरी सीमा पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक हमले के कारण भारतीय फ़ौजें जब तक सम्भली तब तक चीन ने सैनिक चौकियों पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन और अमेरिका ने भारत के कहने पर तेजी से सैन्य सामग्री भेजी। चीन ने अचानक 21 नवम्बर, 1962 को एक पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा कर दी। इसके साथ ही द्वि-सूत्रीय योजना की घोषणा भी की

(1) चीनी सेनाएं 7 नवम्बर, 1962 की वास्तविक नियन्त्रण रेखा (Actual Line of Control) से 20 किलोमीटर अपनी ओर हट जाएंगी और सेना 1 दिसम्बर से हटना शुरू करेंगी।

(2) चीनी सेना के हटने से खाली क्षेत्र पर चीन सरकार अपनी असैनिक चौकियां स्थापित करेगी। इन चौकियों की स्थिति का पता भारत सरकार को उसके दूतावास द्वारा दिया जाएगा। चीन ने भारत सरकार को इन शर्तों को मानने के लिए कहा। इसके साथ ही भारत को 7 नवम्बर, 1959 को अपनी सेनाओं को अपने ही क्षेत्र में 20 किलोमीटर हटने के लिए कहा।

विपरीत स्थितियों के कारण भारत ने चीन की एक-पक्षीय युद्ध-विराम घोषणा को मान लिया परन्तु द्वि-सूत्रीय योजना को नहीं माना और घोषित किया कि जब तक चीन 8 सितम्बर, 1962 की स्थिति तक नहीं लौट जाता तब तक कोई वार्ता नहीं होगी। चीन के इस आक्रमण के बाद हिन्दी चीनी भाई-भाई का युग समाप्त हुआ और भारत और चीन एक-दूसरे के शत्रु गए। उन्हीं दिनों भारत की संसद ने एक सर्वसम्मत प्रस्ताव द्वारा यह संकल्प किया कि “भारत जब तक चीन द्वारा बलात् अधिकृत किए गए अपने क्षेत्र को खाली न करा लेगा तब तक चैन नहीं लेगा।”

चीन के इस आक्रमण के कारण भारत गुट-निरपेक्ष नीति की कड़ी आलोचना हुई परन्तु पं० नेहरू ने इस नीति पर गहरा विश्वास प्रकट किया। भारत की विदेश नीति में अब यथार्थवाद की ओर झुकाव शुरू हुआ। पं० नेहरू ने यह घोषणा कि-“अतीत में हम निर्धनता और निरक्षरता की मानवीय समस्याओं में इतने उलझे रहे कि हमने प्रतिरक्षा की आवश्यकताओं के प्रति तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम ध्यान दिया। यह स्पष्ट है कि अब हम इस ओर अधिक ध्यान देंगे। हम अपनी सेनाओं को सुदृढ़ बनायेंगे तथा जहां तक सम्भव होगा सेना के लिए आवश्यक शस्त्र सामग्री अपने ही देश में तैयार करेंगे।”

कोलम्बो प्रस्ताव और चीन का दुराग्रह-श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार) कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, मिस्र और घाना ने दिसम्बर 1962 में भारत-चीन वार्ता के लिए कोलम्बो सम्मेलन का आयोजन किया। श्रीमती भण्डारनायके स्वयं प्रस्ताव लेकर नई दिल्ली और पीकिंग गईं। इसके बाद 19 जनवरी, 1963 को यह प्रस्ताव प्रकाशित किए गए जिनकी मुख्य बातें निम्नलिखित थीं

  • युद्ध-विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण हल के लिए उचित है।
  • चीन पश्चिमी क्षेत्रों में अपनी सैनिक चौकियां 20 किलोमीटर पीछे हटा ले।
  • भारत अपनी वर्तमान स्थिति कायम रखे।
  • विवाद का अन्तिम हल होने तक चीन द्वारा खाली किया गया क्षेत्र असैनिक क्षेत्र हो जिसकी निगरानी दोनों पक्षों द्वारा नियुक्त गैर-सैनिक चौकियां करें।
  • पूर्वी नेफा क्षेत्र दोनों सरकारों द्वारा मान्य वास्तविक नियन्त्रण रेखा युद्ध-विराम रेखा का रूप ले। शेष क्षेत्रों के बारे में दोनों देश भावी वार्ताओं में निर्णय करें।
  • मध्यवर्ती क्षेत्र का हल शान्तिपूर्ण ढंग से किया जाए।

कोलम्बो प्रस्ताव का उद्देश्य दोनों देशों में गतिरोध की स्थिति को खत्म करना था। चीन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने का विश्वास दिलाया और भारत ने कुछ स्पष्टीकरण मांगे। पूर्वी क्षेत्र में भारतीय सेना मैकमोहन लाइन तक जा सकेगी और चीनी सेना भी अपने पूर्व तक जा सकेगी लेकिन विवादपूर्ण क्षेत्रों से उसे दूर रहना होगा। इस स्पष्टीकरण के बाद भारत ने अपनी सहमति दे दी परन्तु चीन ने कुछ शर्ते जोड़ दी जिससे यह प्रस्ताव महत्त्वहीन हो गया। इससे चीन का रुख स्पष्ट हो गया कि वह भारत के साथ अपने विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाना नहीं चाहता था।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 5.
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध से पहले की घटनाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ परन्तु साथ ही भारत का विभाजन भी हुआ और पाकिस्तान का जन्म हुआ। अतः पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश है जिस कारण भारत-पाक समस्याओं का विशेष महत्त्व है। कावदश सम्बन्ध पाकिस्तान को भारत की अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की नीति बिल्कुल पसन्द नहीं थी। पाकिस्तान अन्य देशों से सहायता प्राप्त करने तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपना महत्त्व बढ़ाने के लिए पश्चिमी गुट में सम्मिलित हो गया और CENTO तथा SEATO आदि क्षेत्रीय तथा सैनिक संगठनों का सदस्य बन गया। परन्तु भारत ने उन गुटों की नीति की अपेक्षा गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

विस्थापित सम्पत्ति, देशी रियासतों की संवैधानिक स्थिति, नहरी पानी, सीमा निर्धारण, वित्तीय और व्यापारिक समायोजन, जूनागढ़, हैदराबाद तथा कश्मीर और कच्छ के विवादों के लिए भारत और पाकिस्तान में युद्ध होते रहे हैं और तनावपूर्ण स्थिति बनी रही है। कश्मीर के विवाद को छोड़कर अन्य सभी विवादों एवं समस्याओं का हल लगभग हो चुका है। 1948 में कश्मीर को लेकर दोनों देशों में युद्ध हुआ फिर इसी समस्या को लेकर 1965 में युद्ध हुआ और 1971 में बंगला देश के मामले पर युद्ध हुआ। जब तक कश्मीर की समस्या का पूर्णरूप से हल नहीं होता तब तक दोनों देशों में स्थायी रूप से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध नहीं हो सकते।

भारत और पाकिस्तान में निम्नलिखित विवादों के कारण अच्छे सम्बन्ध नहीं रहे हैं :

1. जूनागढ़ और हैदराबाद का भारत में मिलाया जाना:
भारतीय क्षेत्र की रियासत जूनागढ़ के नवाब ने जब अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाना चाहा तो जनता ने विद्रोह कर दिया। नवाब स्वयं पाकिस्तान भाग गया और रियासत के दीवान तथा वहां की पुलिस की प्रार्थना पर 9 नवम्बर, 1947 को भारत सरकार ने रियासत का शासन अपने हाथों में ले लिया। फरवरी, 1948 में जनमत संग्रह में भारत के पक्ष में 1 लाख 90 हजार से भी अधिक मत आए जबकि पाकिस्तान के पक्ष में केवल 91 मत पड़े।

हैदराबाद की रियासत भी पूरी तरह भारतीय क्षेत्र में थी। 1947 में निज़ाम ने भारत के साथ एक ‘यथा-पूर्व-स्थिति’ में समझौता किया। लेकिन हैदराबाद के प्रशासन में प्रभावशाली मुस्लिम साम्प्रदायिक संगठन ‘मजलिस-ए-ईहादउल’ के रजाकारों ने रियासत में भयानक अराजकता की स्थिति पैदा कर दी। तब जनता और निज़ाम की रक्षा के लिए पुलिस की और रजाकारों ने आत्म-समर्पण कर दिया। हैदराबाद सरकार ने समस्या को सुरक्षा परिषद में रखा और इसका अन्तिम हल तब हुआ जब दिसम्बर, 1948 में भारत ने सुरक्षा परिषद् से स्पष्ट कह दिया कि वह अब इस प्रश्न के वाद-विवाद में कोई भाग नहीं लेगी।

2. ऋण अदा करने का प्रश्न:
स्वतन्त्र भारत ने पुरानी सरकार के कर्ज का भार सम्भाला। इसके अनुसार उसे 5 वर्ष में पाकिस्तान से 300 करोड़ रुपया लेना था लेकिन पाकिस्तान ने कर्जे को चुकाने का नाम तक नहीं लिया जबकि भारत ने पाकिस्तान को दिये जाने वाले ₹ 5 करोड़ का कर्ज चुका दिया।

3. विस्थापित सम्पत्ति तथा अल्पसंख्यकों की रक्षा का प्रश्न:
1947 से 1957 तक लगभग 90 लाख मुसलमान भारत से पाकिस्तान गए और इतने ही गैर मुस्लिम पाकिस्तान से भारत आए। दोनों ही क्षेत्रों के लोग अपने पीछे विशाल मात्रा में चल और अचल सम्पत्ति छोड़ गए। यह अनुमान लगाया जाता है कि मुसलमानों ने भारत में ₹300 करोड़ की और भारतीयों ने पाकिस्तान में ₹ 3 हजार करोड़ की सम्पत्ति छोड़ी थी।

पाकिस्तान समस्या के सभी सुझावों को ठुकराता गया। अल्पसंख्यकों की रक्षा की समस्या भी दोनों के सामने थी। 1950 में साम्प्रदायिक उपद्रवों को रोकने और अल्पसंख्यकों में रक्षा की भावना उत्पन्न करने के लिए दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों के बीच ‘नेहरू-लियाकत’ समझौता हुआ जिसका पाकिस्तान ने कभी पालन नहीं किया और दुःखी शरणार्थी भारत में आते रहे।

4. नहरी पानी विवाद:
भारत और पाकिस्तान के बीच एक और समस्या नदियों के हिस्से के सम्बन्ध में थी। पंजाब के विभाजन के कारण पानी के प्रश्न पर कठिन स्थिति पैदा हो गई। सतलुज, व्यास और रावी नदियों के हैडवर्क्स भारत में रह गए लेकिन नदियों की दृष्टि से 25 में से केवल 20 नहरें भारत में आईं और एक नहर दोनों देशों में आई।

दोनों देशों की सहमति से यह विवाद मध्यस्थता के लिए विश्व बैंक को सौंप दिया गया। इसके प्रयत्नों से 19 सितम्बर, 1960 को भारत और पाक में सिन्ध बेसिन के पाने के बंटवारे में ‘नहरी समझौता’ (Indo-Pak Canal Water Treaty) हुआ। इस समझौते के अनुसार यह निश्चय किया गया कि 10 वर्ष की अवधि के बाद, जो पाकिस्तान की प्रार्थना पर 3 वर्ष के लिए बढ़ाई जा सकेगी, तीनों पूर्वी नदियों का पानी भारत के अधिकार में रहेगा जबकि तीनों पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के अधिकार में; केवल इनका सीमित पानी उत्तर की ओर के जम्मू और कश्मीर

प्रान्त में प्रयोग किया जाएगा। यह तय हुआ कि 10 वर्ष तक भारत पूर्वी नदियों से पाकिस्तान की प्रत्येक वर्ष घटती हुई मात्रा में पानी देगा और नई नहरों के निर्माण के लिए पाकिस्तान को आवश्यक मात्रा में धन भी देगा। यदि पाकिस्तान भारत से पानी देने वाली अवधि में 3 वर्ष की वृद्धि के लिए प्रार्थना करेगा तो प्रार्थना स्वीकृत होने पर उसी अनुपात में भारत द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली राशि में कटौती कर दी जाएगी। 12 जनवरी, 1961 को इस सन्धि की शर्ते लागू कर दी गईं। यह सन्धि पाकिस्तान के लिए विशेष लाभदायक थी।

5. कश्मीर विवाद (Kashmir Controversy):
स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत था। इसका क्षेत्रफल 1,34,00 वर्ग कि० मी० और जनसंख्या 40 लाख थी। इनमें से लगभग 77% मुसलमान, 20% हिन्दू तथा 3% सिक्ख, बौद्ध आदि थे। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबायली लोगों (Tribesmen) को प्रेरणा और सहायता देकर 20 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया। 24 अक्तूबर, 1947 को श्रीनगर को बिजली प्रदान करने वाले मदुरा बिजली घर पर अधिकार कर लिया गया। इस पर महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की।

27 अक्तूबर, 1947 को भारत सरकार ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। भारत ने पाकिस्तान से कबायलियों को मार्ग न देने के लिए कहा परन्तु पाकिस्तान उन्हें पूरी सहायता देता रहा। इस पर लार्ड माऊंटबेटन के परामर्श पर भारत सरकार ने 1 जनवरी, 1948 की संयुक्त राष्ट्र चार्टर की 34वीं और 35वीं धारा के अनुसार सुरक्षा परिषद् से पाकिस्तान के विरुद्ध शिकायत की और अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान को आक्रमणकारियों की सहायता बन्द करने को कहे।

कश्मीर और संयुक्त राष्ट्र–सुरक्षा परिषद् कश्मीर विवाद का कोई समाधान ढूंढ़ने में असफल रही है। इसका मुख्य कारण यह था कि सुरक्षा परिषद् का उद्देश्य एक न्यायपूर्ण निर्णय करना नहीं रहा है। अपितु दोनों पक्षों में किसी भी मूल्य पर समझौता कराना रहा है। सुरक्षा परिषद् के सामने भारत की शिकायत के बाद दो मुख्य प्रश्न थे

(1) क्या पाकिस्तान ने आक्रमण किया है ?
(2) क्या कश्मीर का भारत में अधिमिलन (Accession) वैधानिक है? इन दोनों प्रश्नों के तथ्य स्पष्ट थे, परन्तु सुरक्षा परिषद् ने इनका उत्तर देने के अतिरिक्त आक्रमण के शिकार भारत और आक्रमणकारी पाकिस्तान को समान स्थिति देकर समझौता करवाने का प्रयत्न किया। 21 अप्रैल, 1948 को सुरक्षा-परिषद् ने भारत और पाकिस्तान के विवाद के समाधान के लिए 5 सदस्यों के संयुक्त राष्ट्र आयोग (U.N.C.I.P.) की नियक्ति की। को कश्मीर में युद्ध-विराम हो गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें कश्मीर विवाद के समाधान के लिए आधार रूप में निम्नलिखित सिद्धान्तों को सामने रखा

  • पाकिस्तान कश्मीर से अपनी सेनाएं हटा ले और कबायलियों को भी वहां से हटाने का प्रयत्न करे।
  • सेनाओं द्वारा खाली किए गए प्रदेशों का शासन-प्रबन्ध आयोग के निरीक्षण में स्थानीय अधिकारी करेंगे।
  • पाकिस्तानी सेनाओं के हट जाने के पश्चात् भारत भी अपनी सेना के अधिकांश भाग को हटा लेगा।
  • अन्त में एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह के द्वारा यह निर्णय किया जाएगा कि कश्मीर भारत में शामिल होगा या पाकिस्तान में।

सुरक्षा परिषद् ने श्री चैस्टर निमिट्ज को जनमत संग्रह का प्रशासक नियुक्त किया, परन्तु दोनों देशों में कोई समझौता न हो सकने के कारण श्री चैस्टर ने त्याग-पत्र दे दिया। फरवरी, 1950 में सुरक्षा-परिषद् ने सर ओवन डिक्सन (Sir Owen Dixon) को तथा उनकी कोशिशों के सफल हो जाने पर 1951 में डॉ० फ्रैंक ग्राहम (Dr. Frank Graham) को समझौता करवाने के लिए नियुक्त किया। 27 मार्च, 1953 को डॉ० ग्राहम ने अपनी अन्तिम रिपोर्ट में इस समस्या को दोनों देशों में सीधी वार्ता के द्वारा सुलझाने पर जोर दिया। इस सुझाव के अनुसार 1953 में दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों में सीधी वार्ता और 1953-54 में सीधा पत्र-व्यवहार हुआ, परन्तु इसका कोई फल नहीं निकला।

1954 में अमेरिका पाकिस्तान को सैनिक सहायता देने को तैयार हो गया। पाकिस्तान का उद्देश्य इस सहायता से अपनी सैनिक स्थिति दृढ़ करना था। इससे बाध्य होकर भारत को भी अपनी नीति बदलनी पड़ी। पं० नेहरू ने घोषणा की- “जनमत संग्रह करने का प्रश्न स्पष्ट रूप से इस शर्त के साथ सम्बद्ध था कि पाकिस्तान कश्मीर से अपनी सेनाएं भारत के विदेश सम्बन्ध हटा लेगा। पिछले 9 वर्षों में पाकिस्तान यह शर्त पूरी करने में असमर्थ रहा है। पाकिस्तान को मिलने वाली सैनिक सहायता और उसकी सैनिक समझौतों की सदस्यता ने कश्मीर में जनमत संग्रह करने के प्रस्ताव के मूल आधार को ही नष्ट कर दिया है।”

26 जनवरी, 1957 को जनता द्वारा निर्वाचित विधान सभा ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने का निश्चय किया। पाकिस्तान ने फिर से कश्मीर के प्रश्न को सुरक्षा परिषद् में उठाया। पहले गुन्नार यारिंग (Gunnar Yarring) और फिर डॉ० फ्रैंक ग्राहम को दोनों पक्षों में समझौता करने के लिए भेजा गया परन्तु कोई सफलता नहीं मिली। बाद में दिल्ली, कराची, रावलपिंडी और ढाका में दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों के बीच वार्ता हुई। परन्तु पाक विदेश मन्त्री श्री भुट्टो के तनावपूर्ण रुख के कारण ये वार्ताएं 1963 में असफल हो गईं।

प्रश्न 6.
भारत एवं पाकिस्तान के बीच हुए 1965 की युद्ध एवं ताशकंद समझौते का वर्णन करें।
उत्तर:
पाकिस्तान का व्यवहार सदैव भारत विरोधी रहा है। सन् 1965 में भारत को दो बार पाकिस्तानी आक्रमण का शिकार होना पड़ा। पहली बार अप्रैल में कच्छ के रण में और दूसरी बार सितम्बर में कश्मीर में। कच्छ के रण में कुछ सफलताओं के बाद पाकिस्तानी सेनाओं को पीछे हट जाना पड़ा। 30 जून, 1965 को युद्ध-विराम समझौता हो गया और भारत ने अपनी शान्तिप्रियता का परिचय देते हुए कच्छ-सम्बन्धी मतभेदों को एक अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के निर्णय के लिए रखने की बात मान ली।

परन्तु पाकिस्तान ने भारत के इस रूख को दुर्बलता समझा और 1965 में युद्ध-विराम रेखा का उल्लंघन करके बड़ी संख्या में घुसपैठिये कश्मीर में भेज दिये। परन्तु भारतीय सेनाओं ने उन्हें पीछे धकेल दिया और हाजीपीर और टिथवाल के पाक-अधिकृत इलाकों को मुक्त करवा लिया। सितम्बर, 1965 को पाकिस्तानी सेनाओं ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन करके छम्ब प्रदेश पर आक्रमण कर दिया।

इससे विवश होकर भारत को भी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पार कर पश्चिमी पाकिस्तान के क्षेत्र में युद्ध को ले जाना पड़ा। पाकिस्तानी सेनाओं के पास आधुनिकतम शस्त्रों के होते हुए भी भारतीय सेनाओं ने उन्हें बुरी तरह हरा दिया। अन्त में सुरक्षा परिषद् के 20 सितम्बर के प्रस्ताव का पालन करते हुए दोनों पक्षों ने 22-23 सितम्बर को सुबह 3.30 बजे युद्ध बन्द कर दिया। इस समय तक भारतीय सेनाएं लाहौर के दरवाजों तक पहुंच चुकी थीं।

युद्ध-विराम के बाद भी दोनों देशों में सामान्य सम्बन्धों की समस्या बनी रही। 10 जनवरी, 1966 को सोवियत संघ के प्रधानमन्त्री श्री कोसीगिन के प्रयत्नों से दोनों देशों में ताशकन्द समझौता हो गया जिसके द्वारा भारत के प्रधानमन्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हो गये कि दोनों देशों के सभी सशस्त्र व्यक्ति 25 फरवरी, 1966 के पूर्व उस स्थान पर वापस बुला लिये जाएंगे जहां वे 5 अगस्त, 1965 के पूर्व थे तथा दोनों पक्ष युद्ध-विराम रेखा पर युद्ध विराम की शर्तों का पालन करेंगे। इस समझौते के द्वारा भारत ने खोया अधिक और पाया कम। यह समझौता पाकिस्तान के लिए अधिक लाभप्रद था तथा आचार्य कृपलानी का यह मत, “श्री लाल बहादुर शास्त्री ने दबाव में आकर हस्ताक्षर किये थे,’ एक बड़ी सीमा तक उचित लगता है।

इससे एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पूरी हुई-भारत और पाकिस्तान में युद्ध स्थिति की औपचारिक समाप्ति। परन्तु पाकिस्तान ने शीघ्र ही भारत विरोधी प्रचार करना शुरू कर दिया। ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement)-भारत एवं पाकिस्तान के बीच हुए 1965 के युद्ध को रुकवाने में सोवियत संघ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके प्रयासों से भारत एवं पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता हुआ, जिसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं

  • दोनों पक्षों का यह प्रयास रहेगा कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बने।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि दोनों की सेनाएं 5 फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुंच जाये, जहां वे 5 अगस्त, 1965 से पहले थी।
  • दोनों देश एक-दूसरे के आन्तरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार नहीं करेंगे।
  • दोनों देशों के उच्चायुक्त एक-दूसरे के देश में वापिस आयेंगे।

प्रश्न 7.
सन् 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के मुख्य कारण बताइए। इसके क्या परिणाम हुए ?
उत्तर:
भारत एवं पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध का मुख्य कारण पूर्वी पाकिस्तान में होने वाली घटनाएं और उनका भारत पर पड़ने वाला प्रभाव था। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगला देश) में जनता ने याहियां खां की तानाशाही के विरुद्ध स्वतन्त्रता का आन्दोलन आरम्भ किया। याहिया खां ने आन्दोलन को कुचलने के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग किया।

भारत ने बंगला देश मुक्ति संघर्ष में उसका साथ दिया। लगभग एक करोड़ शरणार्थियों को भारत में आना पड़ा। इससे भारत की आर्थिक व्यवस्था पर बड़ा बोझ पड़ा। भारत ने विश्व के देशों से अपील की कि जब तक बंगला देश की समस्या का संकट हल नहीं हो जाता तब तक पाकिस्तान को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता न दी जाए।

सोवियत संघ और अनेक अन्य देशों ने भारत के साथ सहानुभूति प्रकट की। परन्तु चीन और अमेरिका जैसी महान् शक्तियां बंगला देश के प्रश्न को पाकिस्तान का घरेलू मामला बताकर उसे आर्थिक तथा सैनिक सहायता देती रहीं। पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर, 1971 को भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का निश्चय किया और पाकिस्तान के आक्रमण का डटकर मुकाबला किया। 5 दिसम्बर को सुरक्षा परिषद् की बैठक में पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाया कि वह पूर्वी पाकिस्तान में क्रान्तिकारियों को सहायता दे रहा है।

अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन किया, परन्तु सोवियत संघ ने भारत का पक्ष लिया और वीटो का प्रयोग किया। 6 दिसम्बर को श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारतीय संसद् में बंगला देश गणराज्य के उदय की सूचना दी। 16 दिसम्बर, 1971 को ढाका में जनरल नियाजी ने आत्म-समर्पण के कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए और लगभग 1 लाख पाक सैनिकों ने आत्म-समर्पण किया।

17 दिसम्बर को रात्रि के 8 बजे ‘एक-पक्षीय युद्ध विराम’ की घोषणा करते हुए श्रीमती गांधी ने याहिया खां को युद्धबन्दी प्रस्ताव मान लेने की अपील की। याहिया खां ने तुरन्त इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस युद्ध की विजय से भारत का सम्मान बढ़ा और अमेरिका की गहरी कूटनीतिक पराजय हुई। पाकिस्तान के विभाजन से पाकिस्तान का हौसला ध्वस्त हो गया।

शिमला सम्मेलन-श्रीमती गांधी ने पाकिस्तान की हार का कोई अनुभव लाभ न उठाते हुए दोनों देशों की समस्याओं पर विचार करने के लिए जून 1972 में शिमला में एक शिखर सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में पाक के तत्कालीन शासक प्रधानमन्त्री भुट्टो ने और भारत की उस समय की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने भाग लिया। 3 जुलाई को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जो शिमला समझौते के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस समझौते की महत्त्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं

(1) दोनों राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को द्विपक्षीय बातचीत और मान्य शांतिपूर्ण ढंगों से हल करने के लिए दृढ़ संकल्प हैं।

(2) दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और सार्वभौम समानता का सम्मान करेंगे।

(3) दोनों राष्ट्र एक-दूसरे क्षेत्रीय अखण्डता और राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध बल प्रयोग या धमकी का प्रयोग नहीं करेंगे।

(4) दोनों देशों द्वारा परस्पर विरोधी प्रचार नहीं किया जाएगा।

(5) समझौते में तय पाया गया कि दोनों देश परस्पर सामान्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रयत्न करेंगे। संचार व्यवस्था, डाक व्यवस्था, जल, थल, हवाई यात्रा को पुनः चालू करने के लिए वार्ताएं की जाएंगी। आर्थिक तथा व्यापारिक सहयोग के सम्बन्ध में भी शीघ्र वार्ता की जाएगी।

(6) स्थायी शान्ति हेतु भी अनेक प्रयत्न किए जाने का समझौते में उल्लेख था। इसके लिए दोनों देशों को अपनी सेनाओं को अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर वापस बुलाना था।

प्रश्न 8.
भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 के बाद के सम्बन्धों का वर्णन करें।
अथवा
भारत के पाकिस्तान के साथ संबंधों पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
1971 के युद्ध के पश्चात् भारत-पाक के सम्बन्ध काफ़ी खराब हो गए। मार्च, 1977 में जनता सरकार की स्थापना के पश्चात् भारत-पाक सम्बन्धों में सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने जनवरी, 1980 में प्रधानमन्त्री बनने पर भारत-पाक सम्बन्ध को सुधारने पर बल दिया, परन्तु सोवियत सेना के अफ़गानिस्तान में होने से स्थिति काफ़ी खराब हो गई। जनवरी-फरवरी, 1982 में पाकिस्तान के विदेश मन्त्री आगाशाह भारत आए और उन्होंने युद्ध-वर्जन सन्धि का प्रस्ताव पेश किया जिस पर श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारत पाक में सहयोग बढ़ाने के लिए संयुक्त आयोग की स्थापना का सुझाव दिया।

सहयोग के प्रयास-1985 में भारत और पाकिस्तान के कई मन्त्रियों और अधिकारियों की एक-दूसरे के देशों में यात्राएं हुईं। व्यापार, कृषि, विज्ञान, तकनीकी और संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए कुछ समझौते भी हुए। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की पाकिस्तान यात्रा-29 दिसम्बर, 1988 को प्रधानमन्त्री राजीव गांधी दक्षेस (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान गए और उनकी पाकिस्तान की प्रधानमन्त्री बेनजीर भुट्टो से भारत-पाक सम्बन्धों पर भी बातचीत हुई। 31 दिसम्बर, 1988 को भारत और पाकिस्तान ने आपसी सम्बन्ध सद्भावनापूर्ण बनाने के उद्देश्य से शिमला समझौते के करीब 16 वर्ष बाद तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिनमें एक-दूसरे के परमाणु संयन्त्रों पर आक्रमण नहीं करने सम्बन्धी समझौता काफ़ी महत्त्वपूर्ण है।

दिसम्बर, 1989 में वी० पी० सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी। इस सरकार के अल्पकालीन कार्यकाल में भारत-पाक सम्बन्धों में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। नरसिम्हा राव की सरकार और भारत-पाक सम्बन्ध– राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए भारत और पाक के प्रधानमन्त्री ने 17 अक्तूबर, 1991 को हरारे में बातचीत की। 1 जनवरी, 1992 को भारत और पाकिस्तान द्वारा यह समझौता लागू कर दिया गया, जिससे एक-दूसरे के आण्विक ठिकानों और सुविधाओं पर हमला न करने की व्यवस्था की गई थी।

पाक परमाणु कार्यक्रम-पाक परमाणु कार्यक्रम में भारत काफ़ी समय से चिन्तित है। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से चिन्तित होकर भारत ने भी मई, 1998 में पांच परमाणु परीक्षण किए जिसके मुकाबले में पाकिस्तान ने छ: परमाणु परीक्षण किए। बस सेवा के लिए भारत-पाक समझौता-17 फरवरी, 1999 को भारत और पाकिस्तान ने नई दिल्ली और लाहौर के बीच बस सेवा प्रारम्भ करने के लिए एक समझौता किया।

20 जनवरी, 1999 को भारत-पाक सम्बन्धों में एक नया अध्याय उस समय खुला जब भारतीय प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी स्वयं बस से लाहौर तक गए। ऐतिहासिक लाहौर घोषणा के अन्तर्गत भारत व पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर सहित सभी विवादों को गम्भीरता से हल करने पर सहमत हुए और दोनों ने एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का विश्वास व्यक्त किया।

कारगिल मुद्दा–पाकिस्तान ने लाहौर घोषणा को रौंदते हुए भारत के कारगिल व द्रास क्षेत्र में व्यापक घुसपैठ करवाई। अनंत धैर्य के पश्चात् 26 मई, 1999 को भारत ने पाकिस्तान के इस विश्वासघात का करारा जवाब दिया। 12 अक्तूबर, 1999 को पाकिस्तान में सेना ने शासन पर अपना कब्जा कर लिया। लेकिन पाकिस्तान के जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने भी भारत के साथ सम्बन्धों में मधुरता का कोई संकेत नहीं दिया। आगरा शिखर वार्ता-पाकिस्तान के शासक परवेज़ मुशर्रफ भारत के आमन्त्रण पर जुलाई, 2001 में भारत आए।

भारत में दोनों देशों के बीच शिखर वार्ता हुई, जिसमें कश्मीर समस्या का समाधान, प्रायोजित आतंकवाद, एटमी लड़ाई खतरा, सियाचिन से सेना की वापसी, व्यापार की सम्भावनाएं, युद्धबन्दियों की रिहाई एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान मुख्य मुद्दे थे, परन्तु मुशर्रफ के अड़ियल रवैये के कारण यह वार्ता विफल रही।

भारतीय संसद पर हमला-13 दिसम्बर, 2001 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तोइबा एवं जैश-ए-मोहम्मद ने भारतीय संसद् पर हमला किया जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत खराब हो गये तथा दोनों देशों ने सीमा पर फ़ौजें तैनात कर दीं, परन्तु विश्व समुदाय के हस्तक्षेप एवं पाकिस्तान द्वारा लश्कर-ए-तोइबा एवं जैश-ए मोहम्मद पर पाबन्दी लगाए जाने से दोनों देशों में तनाव कुछ कम हुआ।

प्रधानमन्त्री वाजपेयी की इस्लामाबाद यात्रा-जनवरी, 2004 में भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी चार दिन के लिए ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ (सार्क) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद गए। अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति व प्रधानमन्त्री से मुलाकात की। इस शिखर सम्मेलन से दोनों देशों के बीच तनाव में कमी आई और दोनों ने विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति व्यक्त की।

मुम्बई पर आतंकवादी हमला-26 नवम्बर, 2008 को पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों ने मुम्बई के होटलों पर कब्जा करके कई व्यक्तियों को मार दिया। भारत ने पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविरों को बंद करने की मांग की, जिसे पाकिस्तान ने नहीं माना, इससे दोनों देशों के सम्बन्ध और अधिक खराब हो गए। भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जुलाई 2009 में मिस्र में 15वें गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दौरान मिले तथा दोनों नेताओं ने परस्पर द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की। इस बैठक के दौरान दोनों देशों ने विवादित मुद्दों को परस्पर बातचीत द्वारा हल करने की बात को दोहराया था।

25 फरवरी, 2010 को भारत एवं पाकिस्तान के विदेश सचिवों की नई दिल्ली में बातचीत हुई। इस बातचीत के दौरान भारत ने पाकिस्तान को वांछित आतंकवादियों को भारत को सौंपने को कहा। अप्रैल 2010 में भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री सार्क सम्मेलन के दौरान भूटान में मिले। इस बातचीत के दौरान दोनों नेताओं ने विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति जताई। नवम्बर 2011 में भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मालद्वीप में 17वें सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान मिले। इस बैठक में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

दिसम्बर 2012 में पाकिस्तान के आन्तरिक मंत्री श्री रहमान मलिक भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने वीजा नियमों को और सरल बनाया। सितम्बर, 2013 में संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने द्विपक्षीय मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों ने सभी विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति जताई। मई 2014 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीप मुद्दों पर बातचीत की।

जुलाई 2015 में भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान रूस के शहर उफा में मुलाकात की। इस बैठक में दोनों नेताओं ने आतंकवाद एवं द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की। 25 दिसम्बर, 2015 को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक पाकिस्तान पहुंच कर दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार लाने का प्रयास किया। नवम्बर 2018 में भारत-पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरिडोर को बनाने की घोषणा की। करतारपुर साहब सिक्खों का पवित्र तीर्थ स्थल है, जहां गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के 18 साल बिताए थे।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध न तो सामान्य थे और न ही सामान्य हैं। समय के साथ-साथ दोनों देशों में कटुता बढ़ती जा रही है। यह खेद का विषय है कि दोनों देशों में इस कड़वाहट को दोनों देशों के पढ़े-लिखे नागरिक भी दूर करने में असफल रहे। वास्तव में दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध तब तक स्थापित नहीं हो सकते जब तक कि दोनों देशों के बीच अनेक विवादास्पद मुद्दों को हल नहीं किया जाता।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 9.
भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के मुख्य कारण बताएं।
उत्तर:
भारत में प्रारम्भिक वर्षों में परमाणु नीति एवं परमाणु हथियारों के प्रति दृष्टिकोण आदर्शवादी एवं उदारवादी ही रहा। भारत ने शीत युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आन्दोलन के विकास पर अधिक बल दिया तथा निशस्त्रीकरण का समर्थन करता रहा। परन्तु 1962 में चीन से युद्ध में हार, 1964 में चीन द्वारा परमाणु विस्फोट तथा 1965 एवं 1971 में पाकिस्तान के साथ दो युद्धों ने भारत की परमाणु नीति एवं परमाणु हथियारों के निर्माण पर बहुत अधिक प्रभाव डाला।

1970 के दशक में भारतीय नेतृत्व ने पहली बार अनुभव किया कि भारत को भी परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनना है। 1970 के दशक से लेकर वर्तमान समय तक भारत ने परमाणु नीति एवं परमाणु हथियारों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की हैं। भारत ने सर्वप्रथम 1974 में एक तथा 1998 में पांच परमाणु परीक्षण करके विश्व को दिखला दिया कि भारत भी एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है। भारत द्वारा परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार को बनान एवं रखने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

1. आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना (To Become Self Dependent Nation):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं वे सभी आत्मनिर्भर राष्ट्र माने जाते हैं।

2. न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना (To Achieve the Position of Minimum Deterrent):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है। भारत ने सदैव यह कहा है कि भारत कभी भी पहले परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा। भारत के पास परमाणु हथियार होने पर कोई भी देश भारत पर हमला करने से पहले सोचेगा।

3. शक्तिशाली राष्ट्र बनना (To Become Strong Nation):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जितने देश भी परमाणु सम्पन्न हैं, वे सभी के सभी शक्तिशाली राष्ट्र माने जाते हैं। इसके साथ परमाणु हथियारों की धारणा से भारत में केन्द्रीय शक्ति और अधिक मज़बूत एवं शक्तिशाली होती है जोकि बहुत आवश्यक है, क्योंकि जब कभी भी भारत में केन्द्रीय सरकार कमज़ोर हुई है, भारत को नुकसान उठाना पड़ा है।

4. प्रतिष्ठा प्राप्त करना (To achieve Prestige):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व में प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है। क्योंकि विश्व के सभी परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों को आदर एवं सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

5. भारत द्वारा लड़े गए युद्ध (War fought by India):
भारत ने समय-समय पर 1962, 1965, 1971 एवं 1999 में युद्धों का सामना किया। युद्धों में होने वाली अधिक हानि से बचने के लिए भारत परमाणु हथियार प्राप्त करना चाहता है।

6. दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना (Two Neighbours have a Nuclear Drum):
भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक हैं, क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और इन दोनों देशों के साथ भारत युद्ध भी लड़ चुका है। अतः भारत को अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार बनाने का हक है।

7. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की विभेदपूर्ण नीति (Policy of Nuclear Nation):
परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि (N.P.T.) तथा 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि (C.T.B.T.) को इस प्रकार लागू करना चाहा, कि उनके अतिरिक्त कोई अन्य देश परमाणु हथियार न बना सके। भारत ने इन दोनों सन्धियों को विभेदपूर्ण मानते हुए इन पर हस्ताक्षर नहीं किये तथा अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखा।

प्रश्न 10.
गुट-निरपेक्षता का अर्थ बताइए। गुट-निरपेक्षता आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
गुट-निरपेक्ष आंदोलन के मुख्य उद्देश्यों तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
गुट निरपेक्ष आन्दोलन का अर्थ-गुट-निरपेक्षता का अर्थ है किसी शक्तिशाली राष्ट्र का पिछलग्गू न बनकर अपना स्वतन्त्र मार्ग अपनाना। गुटों से अलग रहने की नीति का तात्पर्य अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में ‘वटस्थता’ कदापि नहीं है। कई पाश्चात्य लेखकों ने गुट-निरपेक्षता के लिए तटस्थता अथवा तटस्थतावाद शब्द का प्रयोग किया है उनमें मौर्गेन्थो, पीस्टर लायन, हेमिल्टन, फिश आर्मस्ट्रांग तथा कर्नल लेवि आदि ने इस नीति के लिए तटस्थता शब्द का प्रयोग कर भ्रम पैदा कर दिया है। वास्तव में दोनों नीतियां शान्ति व युद्ध के समय संघर्ष में नहीं उलझतीं, परन्तु तटस्थता निष्क्रियता व उदासनीता की नीति है, जबकि गुट-निरपेक्षता सक्रियता की नीति है।

तटस्थ देश अन्तर्राष्ट्रीय विषयों या घटनाओं के सम्बन्ध में पूर्णतया निष्पक्ष रहते हैं और वे किसी अन्तर्राष्ट्रीय घटना या विषय के सम्बन्ध में अपने विचार अभिव्यक्त नहीं करते हैं। गुट-निरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के प्रति निष्पक्ष या उदासीन नहीं होते, अपितु वे इन विषयों में पूर्ण रुचि लेते हैं और प्रत्येक के गुणों को सम्मुख रखते हुए उसके सम्बन्ध में निर्णय करने हेतु स्वतन्त्र होते हैं और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी अभिनीत करते हैं। अत: गुट-निरपेक्षता की नीति का अभिप्राय निष्पक्षता या उदासीनता की नीति नहीं है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्य-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं

1. शान्ति-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्व में शान्ति व्यवस्था और न्याय की स्थापना के लिए प्रयासरत है।

2. सजनात्मकता-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन शीत युद्ध के दौरान उत्पन्न हुई विश्व को नष्ट करने की प्रवृत्ति को समाप्त करके विश्व को सृजनात्मक प्रवृत्ति की ओर मोड़ना चाहता है।

3. आर्थिक न्याय-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का उद्देश्य विश्व में विद्यमान आर्थिक विषमता को दूर करके सभी देशों और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक न्याय को उपलब्ध करवाने का समर्थक है।

4. निःशस्त्रीकरण-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सभी तरह के अस्त्रों-शस्त्रों को नष्ट करके विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान करना है ताकि आतंक व भय के माहौल से मुक्ति प्राप्त हो सके।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के सिद्धान्त-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रमुख सिद्धान्त सैनिक सम्बन्धों का विरोध करना एवं उनसे दूर रहना है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्व को वैचारिक आधार पर बांटने का विरोध करना है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन मित्रता एवं समानता में विश्वास रखता है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्व संस्थाओं का समर्थन करता है।

प्रश्न 11.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का क्या अर्थ है ? भारत द्वारा इस नीति को अपनाने के मुख्य कारण लिखें।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 10 देखें। भारत द्वारा गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत के गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कारण हैं

1. आर्थिक पुनर्निर्माण–स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न देश का आर्थिक पुनर्निर्माण था। अतः भारत के लिए किसी गुट का सदस्य न बनना ही उचित था ताकि सभी देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

2. स्वतन्त्र नीति-निर्धारण के लिए- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतन्त्र नीति का निर्धारण कर सके। भारत को स्वतन्त्रता हज़ारों देश प्रेमियों के बलिदान के बाद मिली थी। किसी एक गुट में सम्मिलित होने का अर्थ इस मूल्यवान् स्वतन्त्रता को खो बैठना था।

3. भारत की प्रतिष्ठा बढाने के लिए भारत की प्रतिष्ठा बढाने के लिए गट-निरपेक्षता की नीति का निर्माण किया गया। यदि भारत स्वतन्त्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निष्पक्ष रूप से अपना निर्णय देता तो दोनों गुट उसके विचारों का आदर करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी होगी और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

4. दोनों गुटों से आर्थिक सहायता-भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण इसलिए भी किया ताकि दोनों गुटों से सहायता प्राप्त की जा सके और हुआ भी ऐसा ही।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 12.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) भारत गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का जन्मदाता है।

(2) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 7वां शिखर सम्मेलन 1983 में श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में दिल्ली में हुआ।

(3) राजीव गांधी की अध्यक्षता में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग, उत्तर-दक्षिण वार्तालाप, नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र संघ की सक्रिय भूमिका आदि विषयों पर जोर दिया।

(4) भारत की पहल पर ‘अफ्रीका कोष’ कायम किया गया।

(5) भारत ने अफ्रीका कोष को, रु० 50 करोड़ की राशि दी।

(6) भारत को 1986 एवं 1989 में अफ्रीका कोष का अध्यक्ष चुना गया। ऋण, पूंजी-निवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था जैसे कई आर्थिक प्रस्तावों का मूल प्रारूप भारत ने बनाया।

(7) 1989 के बेलग्रेड सम्मेलन में भारत ने पृथ्वी संरक्षण कोष कायम करने का सुझाव दिया और सदस्य राष्टों ने इसका भारी समर्थन किया।

(8) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दसवें शिखर सम्मेलन में भारत ने विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण, वातावरण सुरक्षा, आतंकवाद जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाया। भारत का यह रुख जकार्ता घोषणा में शामिल किया गया कि आतंकवाद प्रादेशिक अखण्डता एवं राष्ट्रों की सुरक्षा को एक भयानक चुनौती है।

(9) भारत ने ही गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का ध्यान विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण की तरफ खींचा।

(10) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के महत्त्व एवं सदस्य राष्ट्रों की इसमें निष्ठा बनाए रखने के लिए भारत ने द्विपक्षीय मामले सम्मेलन में न खींचने की बात कही जिसे सदस्य राष्ट्रों ने स्वीकार किया।

(11) 1997 में दिल्ली में गुट-निरपेक्ष देशों के विदेश मन्त्रियों का शिखर सम्मेलन हुआ।

(12) बारहवें शिखर सम्मेलन में भारत ने विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण, विश्व शान्ति एवं आतंकवाद से निपटने के लिए एक विश्वव्यापी सम्मेलन बुलाने का प्रस्ताव पेश किया, जिसका सदस्य राष्ट्रों ने समर्थन किया।

(13) तेरहवें शिखर सम्मेलन में सक्रिय भूमिका अभिनीत करते हुए भारत ने आतंकवाद एवं इसके समर्थकों की कड़ी आलोचना कर विश्व शान्ति पर बल दिया।

(14) भारत ने क्यूबा में हए 14वें एवं मिस्त्र में हए 15वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हए आतंकवाद को समाप्त करने का आह्वान किया।

(15) भारत ने ईरान में 16वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए सीरिया समस्या एवं ईरान परमाणु विवाद को बातचीत द्वारा हल करने पर जोर दिया।

(16) भारत ने वेनेजुएला (2016) में हए 17वें एवं अजरबैजान में (2019) हए 18वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए विकास के लिए वैश्विक शांति स्थापित करने एवं आतंकवाद को समाप्त करने पर जोर दिया।

प्रश्न 13.
‘गुट-निरपेक्षता’ का क्या अर्थ है ? भारतीय गुट-निरपेक्षता की विशेषताएं बताइये ।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 10 देखें।

1. भारत की निर्गुटता की नीति उदासीनता की नीति नहीं है- भारत की निर्गुटता की नीति उदासीनता की नीति नहीं है क्योंकि भारत ने स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय राज्य नीति से दूर नहीं रखा है, अपितु भारत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका अभिनीत करता है।

2. सैन्य समझौतों का विरोध-भारत सैन्य समझौतों का विरोध करता है। अतः भारत सेन्टो (CENTO), नाटो (NATO), सीटो (SEATO), वारसा सन्धि (WARSA-PACT) आदि में सम्मिलित नहीं हुआ है।

3. शक्ति राजनीति से दूर रहना-भारत शक्ति राजनीति का विरोध करता है और प्रत्येक राष्ट्र के शक्तिशाली बनने के अधिकार को स्वीकार करता है।

4. शान्तिमय सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप की नीति-भारत का पंचशील के सिद्धान्तों पर पूर्ण विश्वास है। शान्तिमय सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप की नीति पंचशील के दो प्रमुख सिद्धान्त हैं। भारत शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का समर्थन करता है।

5. स्वतन्त्र विदेश नीति-भारत अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति पर कार्यान्वयन करता है। भारत अपनी विदेश नीति का निर्माण किसी भी अन्य देश के प्रभावाधीन नहीं करता, अपितु स्वेच्छा से स्वतन्त्र रूप में करता है। भारत दोनों शक्ति गुटों में से किसी भी गुट का सदस्य नहीं है।

6. निर्गुट देशों के मध्य गुटबन्दी नहीं है-कुछ आलोचकों का मत है कि निर्गुटता की नीति गुट-निरपेक्ष देशों की गुटबन्दी है। किन्तु आलोचकों का यह विचार उचित नहीं है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ गुट-निरपेक्ष देशों का तृतीय गुट स्थापित करना नहीं है।

7. गुट-निरपेक्षता शान्ति की नीति है-भारत एक निर्गुट देश है। भारत की विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य विश्व शान्ति स्थापित करना है। भारत शीत युद्ध एवं सैन्य समझौतों का विरोध करता है क्योंकि वह इन्हें विश्व-शान्ति हेतु भयावह समझता है।

प्रश्न 14.
विदेश नीति से आप क्या समझते हैं ? भारत की विदेश नीति के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
अथवा
भारत की विदेश नीति के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
विदेश नीति का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें। भारतीय विदेश नीति के लक्ष्य एवं उद्देश्य-भारतीय विदेश नीति के लक्ष्य एवं उद्देश्यों का वर्णन इस प्रकार है

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  • दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों, समझौतों तथा कानूनों के लिए सम्मान उत्पन्न करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेश नीति का अर्थ बताइये। कोई एक परिभाषा भी दीजिए।
अथवा
विदेश नीति से आपका क्या अभिप्राय है? एक परिभाषा देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
विदेश नीति उन सिद्धान्तों और साधनों का एक समूह है जो राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने, अपने उद्देश्यों को सही बताने और उनको प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। विभिन्न राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के व्यवहार में क विदश सम्बन्ध परिवर्तन लाने के लिए और अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण को अपने व्यवहार के अनुसार बनाने के लिए विदेश नीति का प्रयोग करता है।

डॉ० महेन्द्र कुमार के शब्दों में , “विदेश नीति कार्यों की सोची समझी क्रिया दिशा है जिससे राष्ट्रीय हित की विचारधारा के अनुसार विदेशी सम्बन्धों में उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।” रुथना स्वामी के शब्दों में, “विदेश नीति ऐसे सिद्धान्तों और व्यवहार का समूह है जिनके द्वारा राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों को नियमित किया जाता है।”

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति के किन्हीं चार मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
अथवा
भारत की विदेश नीति के कोई चार मुख्य सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
1. गुट-निरपेक्षता- भारत की विदेश नीति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुट-निरपेक्षता है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है किसी गुट में शामिल न होना और स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करना। भारत सरकार ने सदा ही गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया है।

2. विश्व शान्ति और सुरक्षा की नीति-भारत की विदेश नीति का आधारभूत सिद्धान्त विश्व शान्ति और सुरक्षा बनाए रखना है। भारत अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने के पक्ष में है। भारत ने सदैव विश्व शान्ति की स्थापना की और सुरक्षा की नीति अपनाई है।

3. साम्राज्यवादियों तथा उपनिवेशों का विरोध-भारत स्वयं ब्रिटिश साम्राज्य का शिकार रहा है जिसके कारण भारत ने सदैव साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध किया है। भारत साम्राज्यवाद को विश्व शान्ति का शत्रु मानता है क्योंकि साम्राज्यवाद युद्ध को जन्म देता है।

4. अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध-भारतीय विदेश नीति की एक प्रमुख विशेषता यह है कि भारत विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाने का प्रयास करता है।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति के कोई चार निर्धारक तत्व लिखिए।
उत्तर:
1. संवैधानिक आधार-भारत के संविधान में राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए, बताया गया है। अनुच्छेद 51 के अनुसार भारत सरकार को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देना चाहिए तथा दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाने चाहिए।

2. राष्ट्रीय हित-विदेशी नीति के निर्माण में राष्ट्रीय हित ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति अपने हितों की रक्षा के लिए अपनाई है।

3. आर्थिक तत्व-भारत की विदेश नीति के निर्धारण में आर्थिक तत्व ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वतन्त्रता के समय भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए भारत ने गट-निरपेक्षता की नीति अपनाई ताकि दोनों गुटों के देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

4. विचारधारा का प्रभाव-विदेश नीति का निर्माण करने में उस देश की विचारधारा का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है।

प्रश्न 4.
भारत की परमाणु नीति की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत परमाणु शक्ति का प्रयोग विनाशकारी उद्देश्यों के लिए करने के विरुद्ध है। 1974 में भारत ने एक परमाणु धमाका किया था, परन्तु इसके साथ भारत ने यह घोषणा की थी कि भारत का परमाणु धमाका सैनिक लक्ष्यों के लिए नहीं, बल्कि शान्तिमयी उद्देश्यों के लिए है। भारत ने परमाणु अप्रसार सन्धि (Nuclear Non-Proliferation Treaty) के ऊपर हस्ताक्षर नहीं किए हैं क्योंकि भारत इस सन्धि को गैर-परमाणु शक्तियों के लिए पक्षपात वाली सन्धि मानता है।

यद्यपि भारत ने परमाणु बम न बनाने की घोषणा की थी, फिर भी अपने पड़ोसी देशों द्वारा एकत्र की जाने वाली परमाणु सामग्री से चिंतित होकर तथा अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत ने 11 मई तथा 13 मई, 1998 को पांच परमाणु विस्फोट किए। यह परमाणु विस्फोट भारत ने अपनी सुरक्षा की दृष्टि से किए हैं। इन विस्फोटों के बाद भारत ने और परमाणु विस्फोट न करने की घोषणा कर दी। इसके साथ ही साथ परमाणु अस्त्रों को पूर्णतः समाप्त करने के पक्ष में है। इसके लिए वह एक आम सहमति वाली सन्धि के निर्माण के पक्ष में है।

प्रश्न 5.
1962 के भारत-चीन युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे ?
उत्तर:
1. तिब्बत की समस्या-1962 की भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी समस्या तिब्बत की समस्या थी। चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बतवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सुलझाना चाहता था।

2. मानचित्र से सम्बन्धित समस्या-भारत एवं चीन के मध्य 1962 में युद्ध का एक कारण दोनों देशों के बीच मानचित्र में रेखांकित भू-भाग था। चीन ने 1954 में प्रकाशित अपने मानचित्र में कुछ ऐसे भाग प्रदर्शित किये जो वास्तव में भारतीय भू-भाग में थे, अत: भारत ने इस पर चीन के साथ अपना विरोध दर्ज कराया।

3. सीमा विवाद- भारत चीन के बीच युद्ध का एक कारण सीमा विवाद भी था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तुचीन ने नहीं। सीमा विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 6.
भारत-चीन सीमा विवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत और चीन एशिया के दो बड़े और पड़ोसी देश हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव रहा है। इसी विवाद के चलते 1962 में दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी हो चुका है। दोनों देशों के बीच तिब्बत एक संवेदनशील विषय है। तिब्बत भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित है। पहले यह एक स्वतन्त्र राज्य हुआ करता था। 18वीं शताब्दी में तिब्बत को चीन का एक भाग मान लिया गया। 1950 में चीन ने तिब्बत में व्यापक पैमाने पर घुसपैठ की जिसका भारत ने विरोध किया। 1959 में तिब्बत की राजधानी में अचानक सैनिक गतिविधियां बढ़ गयीं।

तिब्बत के वैधानिक शासक दलाई लामा को बाहर निकाल दिया गया। चीन भारत की तिब्बत के प्रति इस सहानुभूति को पसन्द नहीं करता और भारत के दलाई लामा की शरण को शत्रु जैसी कार्यवाही मानता है। सितम्बर, 1959 में चीनी सरकार ने भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के 1,28,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में औपचारिक रूप से अपना दावा प्रस्तुत किया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और इसकी 6400 वर्ग किलोमीटर सीमा पर कब्जा कर लिया। आज भी भारत की लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर सीमा चीन के कब्जे में है। चीन इस पर अपना दावा करता है जबकि यह भारत की सीमा है। आज भी दोनों देशों में सीमा विवाद बना हुआ है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 7.
1962 में भारत-चीन के मध्य हुए युद्ध का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत-चीन के मध्य 1962 में हुए युद्ध की परिस्थितियां बहुत पहले बननी शुरू हो गई थीं। अन्तत: चीन ने 20 अक्तूबर, 1962 को भारत की उत्तरी सीमा पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक हमले के कारण भारतीय फ़ौजें जब तक सम्भलीं, तब तक चीन ने सैनिक चौंकियों पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन और अमेरिका ने भारत के कहने पर तेजी से सैन्य सामग्री भेजी। चीन ने अचानक 21 नवम्बर, 1962 के एक पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा कर दी तथा दो सूत्रीय योजना की घोषणा की।

प्रथम, चीनी सेनाएं, 7 नवम्बर, 1959 की वास्तविक नियन्त्रण रेखा से 20 किलोमीटर अपनी ओर हट जायेंगी। द्वितीय, चीनी सेना के हटने से खाली क्षेत्र पर चीन सरकार अपनी असैनिक चौंकियां स्थापित करेगी। विपरीत परिस्थितियों के कारण भारत ने चीन की एक पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा को मान लिया, परन्तु द्विपक्षीय योजना को नहीं माना और यह घोषणा की, कि जब तक चीन 8 सितम्बर, 1962 की स्थिति तक नहीं लौट जाता तब तक कोई वार्ता नहीं होगी।

प्रश्न 8.
कोलम्बो प्रस्ताव के मुख्य प्रावधान लिखें।
उत्तर:
श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार), कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, मिस्र और घाना ने दिसम्बर, 1962 में भारत-चीन वार्ता लम्बो सम्मेलन आयोजित किया। श्रीमती भण्डारनायके स्वयं प्रस्ताव लेकर दिल्ली और पीकिंग गई। इसके बाद 19 जनवरी, 1963 को यह प्रस्ताव प्रकाशित किये गए, जिनकी मुख्य बातें निम्नलिखित थीं

  • युद्ध-विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण दल के लिए उचित है।
  • चीन पश्चिमी क्षेत्रों में सैनिक चौंकियां 20 किलोमीटर पीछे हटा ले।
  • भारत अपनी वर्तमान स्थिति कायम रखे।
  • विवाद को अन्तिम हल होने तक चीन द्वारा खाली किया गया क्षेत्र असैनिक क्षेत्र हो, जिसकी निगरानी दोनों पक्षों द्वारा नियुक्त गैर सैनिक चौंकियां करें।
  • मध्यवर्ती क्षेत्र का हल शान्तिपूर्ण ढंग से किया जाए।

प्रश्न 9. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के कोई चार कारण लिखें।
उत्तर:
1. जूनागढ़ एवं हैदराबाद का भारत में मिलाया जाना-जूनागढ एवं हैदराबाद की रियासतें भारत में मिला लिये जाने से पाकिस्तान को गहरा धक्का लगा तथा वह भारत को सदैव नीचा दिखाने की कार्यवाहियां करने लगा।

2. ऋण अदा करने का प्रश्न-स्वतन्त्र भारत ने पुरानी सरकार के कर्जे का भार सम्भाला। इसके अनुसार इसे 5 वर्ष में पाकिस्तान से 300 करोड़ रुपये लेने थे, लेकिन पाकिस्तान ने कर्जे को चुकाने का नाम तक नहीं लिया।

3. विस्थापित सम्पत्ति तथा अल्प संख्यकों की रक्षा का प्रश्न-1947 से 1957 तक लगभग 90 लाख मुसलमान भारत से पाकिस्तान गये तथा इतने ही गैर मुस्लिम पाकिस्तान से भारत आए। पाकिस्तान ने इन विस्थापितों की सम्पत्ति तथा अल्पसंख्यकों की रक्षा से सम्बन्धित सभी सुझावों को नकार दिया।

4. कश्मीर समस्या-1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध का सबसे बड़ा कारण कश्मीर समस्या थी। अक्तूबर, 1947 में कश्मीर के राजा हरि सिंह ने कश्मीर रियासत को भारत में मिलाने की घोषणा कर दी थी, परन्तु पाकिस्तान ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया।

प्रश्न 10.
ताशकंद समझौते के मुख्य प्रावधान लिखें।
उत्तर:
ताशकंद समझौता 1966 में सोवियत संघ में भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ। इस समझौते के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं

  • दोनों पक्षों का यह प्रयास रहेगा, कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बनें।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे, कि दोनों देशों की सेनाएं 5 फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुंच जायें, जहां वे 5 अगस्त, 1965 से पहले थीं।।
  • दोनों देश एक-दूसरे के आन्तरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार नहीं करेंगे।
  • दोनों देशों के उच्चायुक्त एक-दूसरे के देश में वापिस आयेंगे।

प्रश्न 11.
पंचशील पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्त भारत और चीन के प्रधानमंत्री, पण्डित जवाहर लाल व चाऊ-एन-लाई ने बनाए। पंचशील का साधारण अर्थ पांच सिद्धान्त हैं। अप्रैल, 1954 में भारत तथा चीन के मध्य एक व्यापारिक समझौता हुआ था। इस व्यापारिक समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धान्त दिए गए जिनको सामूहिक रूप से पंचशील कहा जाता है। इन पांच सिद्धान्तों को भारत तथा चीन ने परस्पर सम्बन्धों को नियमित करने के विषय में स्वीकार किया था। ये सिद्धान्त हैं-

  • परस्पर क्षेत्रीय अखण्डता तथा प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
  • परस्पर आक्रमण न करना।
  • परस्पर आन्तरिक कार्यों में हस्तक्षेप न करना।
  • समानता तथा परस्पर लाभ।
  • शान्तिमय सह-अस्तित्व।

प्रश्न 12.
भारत द्वारा परमाणु नीति एवं कार्यक्रम अपनाने के कोई चार कारण लिखें।
उत्तर:
1. आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना-भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं वे सभी आत्म-निर्भर राष्ट्र हैं।

2. न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना-भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।

3. दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना-भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं।

4. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की विभेदपूर्ण नीति- परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि (NPT) तथा 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण सन्धि (C.T.B.T.) के विभेदपूर्ण ढंग से लागू किया, जिसके कारण भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए।

प्रश्न 13.
भारतीय परमाणु नीति के कोई दो पक्ष बताएं।
उत्तर:
भारतीय परमाणु नीति के दो पक्ष निम्नलिखित हैं

1. आत्म रक्षा-भारतीय परमाणु नीति का प्रथम पक्ष आत्म रक्षा है। भारत ने आत्म रक्षा के लिए परमाणु हथियारों का निर्माण किया है, ताकि कोई अन्य देश भारत पर परमाणु हमला न कर सके।

2. प्रथम प्रयोग की मनाही-भारत की परमाणु नीति का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि भारत ने परमाणु हथियारों का युद्ध में पहले प्रयोग न करने की घोषणा कर रखी है।

प्रश्न 14.
भारत की विदेश नीति को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार बाहरी कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन-भारतीय विदेश नीति अन्तर्राष्ट्रीय जैसे यू० एन० ओ०, आई० एम० एफ० तथा वर्ल्ड बैंक प्रभावित करते हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय जनमत- भारतीय विदेश नीति को अन्तर्राष्ट्रीय जनमत प्रभावित करता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय कानून-भारतीय विदेश नीति को अन्तर्राष्ट्रीय कानून प्रभावित करते हैं।
  • विश्व समस्याएं-भारतीय विदेश नीति को मानवीय अधिकारों तथा आतंकवाद की समस्याएं भी प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 15.
‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन’ के कोई चार उद्देश्य बताइये।
अथवा
गुट निरपेक्षता के कोई चार उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों को शक्ति गुटों से अलग रखना था।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का उद्देश्य विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाना था।
  • सदस्य देशों में सामाजिक एवं आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना।
  • उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद को समाप्त करना इसका एक मुख्य उद्देश्य रखा गया।

प्रश्न 16.
भारतीय गुट-निरपेक्षता की कोई चार विशेषताएँ बताइये ।
अथवा
भारत की गुट निरपेक्षता की नीति के मुख्य तत्त्व लिखिए।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष आंदोलन की नीति किसी गुट में शामिल होने के विरुद्ध है।
  • गुट-निरपेक्षता की नीति सभी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने पर बल देती है।
  • गुट-निरपेक्षता की नीति साम्राज्यवाद के विरुद्ध है।
  • गुट-निरपेक्षता की नीति रंग भेदभाव की नीति के विरुद्ध है।

प्रश्न 17.
भारत द्वारा गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाने के कोई चार कारण लिखिए।
अथवा
गुट-निरपेक्षता का क्या अर्थ है? भारत द्वारा इस नीति को अपनाने के कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ- इसके लिए अति लघु उत्तरीय प्रश्नों में प्रश्न नं0 4 देखें। भारत द्वारा गुट निरपेक्ष नीति अपनाने के कारण

1. आर्थिक पुनर्निर्माण-स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न देश का आर्थिक पुनर्निर्माण था। अत: भारत के लिए किसी गुट का सदस्य न बनना ही उचित था ताकि सभी देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

2. स्वतन्त्र नीति-निर्धारण के लिए भारत ने गुट-निपरेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतन्त्र नीति का निर्धारण कर सके। भारत को स्वतन्त्रता हज़ारों देश प्रेमियों के बलिदान के बाद मिली थी। किसी एक गुट में सम्मिलित होने का अर्थ इस मूल्यवान् स्वतन्त्रता को खो बैठना था।

3. भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए गुट-निरपेक्षता की नीति का निर्माण किया गया। यदि भारत स्वतन्त्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निष्पक्ष रूप से अपना निर्णय देता तो दोनों गुट उसके विचारों का आदर करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी होगी और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

4. दोनों गुटों से आर्थिक सहायता- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण इसलिए भी किया ताकि दोनों गुटों से सहायता प्राप्त की जा सके और हुआ भी ऐसा ही।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेश नीति का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
प्रत्येक देश दूसरे देश के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है। विदेश नीति उन सिद्धान्तों और साधनों का समूह है जो राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने, अपने उद्देश्यों को सही बताने और उनको प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। रुथना स्वामी के अनुसार, “विदेश नीति ऐसे सिद्धान्तों और व्यवहारों का समूह है जिनके द्वारा राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों को नियमित किया जाता है।”

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति की कोई दो मुख्य विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:

  • भारतीय विदेश नीति का मुख्य आधारभूत सिद्धान्त गुट-निरपेक्षता है।
  • भारतीय विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त राष्ट्रहित की रक्षा करना है।

प्रश्न 3.
भारतीय विदेश नीति को निर्धारित करने वाले दो तत्त्वों का वर्णन करो।
उत्तर:
1. संवैधानिक आधार-भारत के संविधान में राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में केवल राज्य की आन्तरिक नीति से सम्बन्धित ही निर्देश नहीं दिए गए बल्कि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए इस विषय में भी निर्देश दिए गए हैं। अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने, दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध रखने तथा अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाने सम्बन्धी निर्देश दिए गए हैं।

2. राष्ट्र हित-विदेश नीति के निर्माण में राष्ट्रीय हित ने सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत ने अपने राष्ट्र हितों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रमण्डल का सदस्य रहना स्वीकार किया। भारत ने राष्ट्र हितों को सामने रखते हुए ही ऐसे कार्य किए हैं जिन्हें उचित कहना कठिन है।

प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्षता का अर्थ स्पस्ट करें।
उत्तर:
भारत एक गुट-निरपेक्ष देश है। भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार गुट-निरपेक्षता है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है-अपनी स्वतन्त्र नीति। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है कि किसी गुट में शामिल न होकर स्वतन्त्र रहना। गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण देश प्रत्येक समस्या पर उसके गुण-दोष पर विचार कर अपनी राय कायम करता है। गुट-निरपेक्षता की नीति शान्तिवाद की नीति है।

भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के अनुसार, “गुट-निरपेक्षता में न तो तटस्थता है और न ही समस्याओं के प्रति उदासीनता। उसमें सिद्धान्तों के आधार पर सक्रिय और स्वतन्त्र रूप से निर्णय करने की भावना निहित है। अपनी इसी आन्तरिक शक्ति के सहारे वह सभी देशों के बीच विश्वास तथा सहयोग को अधिक-से-अधिक बढ़ाने पर बल दे रहा है, ताकि विश्व को युद्ध और आर्थिक विनाश से बचाया जा सके।”

प्रश्न 5.
पंचशील क्या है ?
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्त भारत और चीन के प्रधानमन्त्री, पण्डित जवाहर लाल व चाऊ-एन-लाई ने बनाए। पंचशील का साधारण अर्थ पांच सिद्धान्त हैं। अप्रैल, 1954 में भारत तथा चीन के मध्य एक व्यापारिक समझौता हुआ था। इस व्यापारिक समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धान्त दिए गए जिनको सामूहिक रूप से पंचशील कहा जाता है। इन पांच सिद्धान्तों को भारत तथा चीन ने परस्पर सम्बन्धों को नियमित करने के विषय में स्वीकार किया था। ये सिद्धान्त हैं-

  • परस्पर क्षेत्रीय अखण्डता तथा प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
  • परस्पर आक्रमण न करना
  • परस्पर आन्तरिक कार्यों में हस्तक्षेप न करना
  • समानता तथा परस्पर लाभ
  • शान्तिमय सह-अस्तित्व।

प्रश्न 6.
भारत-चीन में हुए 1962 के युद्ध के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:
1. तिब्बत की समस्या-1962 के भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी समस्या तिब्बत की समस्या थी। चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बतवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सुलझाना चाहता था।

2. सीमा विवाद- भारत-चीन के बीच युद्ध का एक कारण सीमा विवाद भी था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तु चीन ने नहीं किया। सीमा विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 7.
कोलम्बो प्रस्ताव के कोई चार प्रावधान लिखें।
उत्तर:

  • युद्ध विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण हल के लिए उचित है।
  • चीन पश्चिमी क्षेत्रों में अपनी सैनिक चौकियां 20 किलोमीटर पीछे हटा लें।
  • भारत अपनी वर्तमान स्थिति कायम रखे।
  • मध्यवर्ती क्षेत्र का हल शांतिपूर्ण ढंग से किया जाए।

प्रश्न 8.
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने पाकिस्तान के साथ कब और कौन-सा समझौता किया था?
उत्तर:
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने पाकिस्तान के साथ सन् 1966 में ताशकन्द समझौता किया था।

प्रश्न 9.
ताशकंद समझौते के कोई दो प्रावधान लिखें।
उत्तर:

  • दोनों पक्षों (भारत-पाकिस्तान) का यह प्रयास रहेगा कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बनें।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि दोनों देशों की सेनाएं 5 फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुंच जाएं जहां से 5 अगस्त, 1965 से पहले थीं।

प्रश्न 10.
‘शिमला समझौता’ कब और किसके मध्य सम्पन्न हुआ ?
उत्तर:
1972 को भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री भुट्टो के बीच एक समझौता हुआ, जो शिमला समझौते के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं

  • दोनों देश आपसी मतभेदों का शान्तिपूर्ण ढंग से हल करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे की सीमा पर आक्रमण नहीं करेंगे।

प्रश्न 11.
भारत और चीन के मध्य दो मुख्य विवाद कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:

  • भारत और चीन में महत्त्वपूर्ण विवाद सीमा का विवाद है। चीन ने भारत की भूमि पर कब्ज़ा कर रखा है।
  • चीन का तिब्बत पर कब्जा और भारत का दलाई लामा को राजनीतिक शरण देना।

प्रश्न 12.
भारत-पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों में तनाव के मुख्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान में कभी भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध नहीं रहे। इन दोनों में तनाव के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण कश्मीर का मामला है। पाकिस्तान के नेताओं ने कई बार कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाया है जिसे भारत नापसन्द करता है।

(2) भारत और पाकिस्तान में तनावपूर्ण सम्बन्धों का एक कारण यह है कि पाकिस्तान पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर के आतंकवादियों की सभी तरह की सहायता कर रहा है।

प्रश्न 13.
भारत द्वारा परमाणु शस्त्र बनाने के दो मुख्य कारण क्या हैं ?
उत्तर:

  • भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
  • भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक हैं क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और इन दोनों देशों से भारत युद्ध भी लड़ चुका है।

प्रश्न 14.
भारत की परमाणु नीति के विकास के दो पड़ाव लिखें।
उत्तर:

  • भारत ने 1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की।
  • भारत ने 1974 एवं 1998 में परमाणु परीक्षण किए। इन परीक्षणों द्वारा भारत ने परमाणु कार्यक्रम को आगे जारी रखने के लिए आवश्यक तथ्य एवं आंकड़े प्राप्त किए।

प्रश्न 15.
पोखरण में भारत ने परमाणु परीक्षण कब किए ?
उत्तर:
भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण सन् 1974 एवं सन् 1998 में किये।

प्रश्न 16.
नेहरू की विदेश नीति के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:

  • दूसरे देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना।
  • गुटों की राजनीति से अलग रहना।

प्रश्न 17.
विदेशी नीति से सम्बन्धित किन्हीं दो नीति निर्देशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  • दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।

प्रश्न 18.
तिब्बत का पठार भारत और चीन में तनाव का एक बड़ा मसला कैसे बना ?
उत्तर:
भारत और चीन के बीच तनाव का एक कारण तिब्बत की समस्या है। 29 अप्रैल, 1954 को भारत ने कुछ शर्तों के साथ तिब्बत पर चीन के आधिपत्य को स्वीकार किया। दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों में विश्वास व्यक्त किया। मार्च, 1957 में दलाईलामा ने चीनियों के दमन से भयभीत होकर भारत में राजनीतिक शरण ले ली, जिसका चीन ने विरोध किया, तभी से तिब्बत भारत एवं चीन के बीच एक बड़ा मसला बना हुआ है।

प्रश्न 19.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों के ऐसे दो उदाहरण दीजिए जिनमें भारत ने स्वतन्त्र रवैया अपनाया है ?
उत्तर:

  • निःशस्त्रीकरण-भारत ने नि:शस्त्रीकरण के मुद्दे पर स्वतन्त्र रवैया अपनाया है तथा किसी के दबाव में नहीं आया।
  • आतंकवाद-भारत ने आतंकवाद जैसे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे पर स्वतन्त्र रवैया अपनाया है।

प्रश्न 20.
अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिए, जिनमें भारत ने स्वतन्त्र रवैया अपनाया ?
उत्तर:
1. स्वेज नहर की समस्या-26 जुलाई, 1956 को मिस्र ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इस पर ब्रिटेन, फ्रांस एवं इज़रायल ने मिस्र पर आक्रमण कर दिया, भारत ने इस आक्रमण की निन्दा करते हुए कहा कि विवाद को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाया जाए।

2. सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप-भारत ने 1979 में सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में किए गए सैनिक हस्तक्षेप की निन्दा की।

प्रश्न 21.
मैक्मोहन रेखा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मैक्मोहन रेखा उत्तर-पूर्व में भारत-चीन सीमा का विभाजन करती है। सन् 1914 में शिमला में हुए ब्रिटिश भारत, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों के एक सम्मेलन में यह सीमा रेखा निर्धारित करके औपचारिक रूप से सीमा विभाजन किया गया था। इस सीमा रेखा का नाम तत्कालीन भारत मन्त्री आर्थर हेनरी मैक्मोहन के नाम से रखा गया था। भारत ने इस सीमा रेखा को सदैव वैध माना है। यह एक प्राकृतिक सीमा है। क्योंकि यह उत्तर में तिब्बत के पठार और दक्षिण में भारत की पर्वत श्रेणियों से निकलती है। चीन ने इस सीमा रेखा का कभी आदर नहीं किया।

प्रश्न 22.
भारत चीन सीमा विवाद क्या है ?
उत्तर:
भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव रहा है। सितम्बर, 1959 में चीनी सरकार ने भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के 1,28,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में औपचारिक रूप से अपना दावा प्रस्तुत किया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और इसकी 6400 वर्ग किलोमीटर सीमा पर कब्जा कर लिया। आज भी भारत की लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर सीमा चीन के कब्जे में है। चीन इस पर अपना दावा करता है जबकि यह भारत की सीमा है। आज भी दोनों देशों में सीमा विवाद बना हुआ है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. निम्न में से कौन-सा पं० नेहरू द्वारा अपनाई गई विदेश नीति का एक तत्त्व है
(A) गुट-निरपेक्षता
(B) साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध
(C) पंचशील।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

2. निम्न में से कौन-सा भारतीय विदेश नीति को निर्धारित करने वाला तत्त्व है-
(A) संवैधानिक आधार
(B) भौगोलिक तत्त्व
(C) राष्ट्रीय हित
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

3. भारत-चीन युद्ध कब हुआ ?
(A) 1962
(B) 1965
(C) 1971
(D) 1974
उत्तर:
(A) 1962

4. कोलम्बो प्रस्ताव का प्रावधान था
(A) युद्ध विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण हल के लिए उचित है
(B) चीन द्वारा पश्चिमी क्षेत्रों में अपनी सैनिक चौकियां 20 किलोमीटर पीछे हटाना
(C) भारत द्वारा अपनी वर्तमान स्थिति को कायम रखना
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

5. मैक्मोहन रेखा का निर्धारण किया गया
(A) 1914 में
(B) 1920 में
(C) 1925 में
(D) 1935 में।
उत्तर:
(A) 1914 में।

6. निम्न में से किसने पंचशील के सिद्धान्तों का निर्धारण किया ?
(A) श्रीमती इन्दिरा गांधी
(B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(C) पं० नेहरू।

7. पंचशील के कितने सिद्धान्त हैं ?
(A) चार
(B) पाँच
(C) सात
(D) आठ।
उत्तर:
(B) पाँच।

8. 1965 में किन दो देशों के बीच युद्ध हुआ ?
(A) भारत-पाकिस्तान
(B) भारत-चीन
(C) भारत-श्रीलंका
(D) पाकिस्तान-नेपाल।
उत्तर:
(A) भारत-पाकिस्तान।

9. ताशकन्द समझौता किन दो देशों के बीच हुआ ?
(A) भारत-चीन
(B) भारत-पाकिस्तान
(C) भारत-नेपाल
(D) भारत-श्रीलंका।
उत्तर:
(B) भारत-पाकिस्तान।

10. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में किस नए देश का जन्म हुआ ?
(A) नेपाल
(B) भूटान
(C) बंगलादेश
(D) मालद्वीप।
उत्तर:
(C) बंगलादेश।

11. शिमला समझौता किन दो देशों के बीच हुआ ?
(A) भारत-पाकिस्तान
(B) भारत-चीन
(C) भारत-नेपाल
(D) भारत-श्रीलंका।
उत्तर:
(A) भारत-पाकिस्तान।

12. पं० नेहरू कब से कब तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे ?
(A) 1947-1950
(B) 1947-1955
(C) 1947-1962
(D) 1947-1964
उत्तर:
(D) 1947-1964

13. किसके सुझाव पर कश्मीर का विभाजन किया गया था ?
(A) माउण्टबेटन
(B) एम० सी० नाटन
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(A) माउण्टबेटन।

14. भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने का कारण है
(A) आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना
(B) शक्तिशाली राष्ट्र बनना
(C) पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

15. भारत ने प्रथम परमाणु विस्फोट किस वर्ष किया ?
(A) 1974
(B) 1988
(C) 2000
(D) 2001
उत्तर:
(A) 1974

16. भारत ने द्वितीय परमाणु विस्फोट कब किया ?
(A) 1974
(B) 1985
(C) 1998
(D) 2000
उत्तर:
(C) 1998

17. निम्नलिखित में से कौन-सा भारतीय विदेश नीति का आन्तरिक निर्धारक तत्त्व है ?
(A) संवैधानिक आधार
(B) भौगोलिक तत्त्व
(C) ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

18. निम्नलिखित में से कौन-सा भारतीय विदेश नीति का बाहरी निर्धारक तत्त्व है ?
(A) राष्ट्रीय हित
(B) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
(C) आर्थिक तत्त्व
(D) संवैधानिक आधार।
उत्तर:
(B) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन।

19. निम्नलिखित में से कौन-सी भारतीय विदेश नीति की विशेषता है ?
(A) गुट-निरपेक्षता
(B) साम्राज्यवादियों का विरोध
(C) उपनिवेशवादियों का विरोध
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

20. पंचशील के सिद्धान्तों का प्रतिपादन कब किया गया ?
(A) 1954
(B) 1956
(C) 1958
(D) 1960
उत्तर:
(A) 1954

21. निम्नलिखित में से कौन-सा पंचशील का सिद्धान्त है ?
(A) राष्ट्रों को एक-दूसरे की प्रभुसत्ता का सम्मान करना चाहिए
(B) एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण नहीं करेगा
(C) एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के आन्तरिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

22. भारत में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने परमाणु परीक्षण किया
(A) सन् 1998 में
(B) सन् 1996 में
(C) सन् 1999 में
(D) सन् 1997 में।
उत्तर:
(D) सन् 1998 में।

23. भारत-पाक के मध्य शिमला समझौता कब हुआ?
(A) वर्ष 1962 में
(B) वर्ष 1972 में
(C) वर्ष 1974 में
(D) वर्ष 1976 में।
उत्तर:
(B) वर्ष 1972 में।

24. कारगिल संघर्ष के दौरान भारतीय सेना ने कौन-सा ऑपरेशन चलाया था?
(A) ऑपरेशन विजय
(B) ऑपरेशन सुरक्षा
(C) ऑपरेशन शान्ति
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर:
(A) ऑपरेशन विजय।

25. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का जनक किसको माना जाता है ?
(A) सुकर्णो को
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू को
(C) नेल्सन मंडेला को
(D) सभी को।
उत्तर:
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू को।

26. पाकिस्तान की स्थापना किस वर्ष में हुई ?
(A) 1947 में
(B) 1950 में
(C) 1945 में
(D) 1949 में।
उत्तर:
(A) 1947 में।

27. भारत की विदेश नीति का मुख्य निर्माता किसे माना जाता है ?
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू
(B) इंदिरा गांधी
(C) महात्मा गांधी
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू।

28. पहला गुट-निरपेक्ष सम्मेलन हुआ
(A) काहिरा में
(B) बेलग्रेड में
(C) कोलम्बो में
(D) नई दिल्ली में।
उत्तर:
(B) बेलग्रेड में।

29. ‘पंचशील समझौता’ किन देशों के मध्य हुआ ?
(A) भारत-श्रीलंका
(B) भारत-नेपाल
(C) भारत-पाकिस्तान
(D) भारत-तीन।
उत्तर:
(D) भारत-चीन।

30. निम्न में से एक भारत का पड़ोसी देश नहीं है ?
(A) चीन
(B) अमेरिका
(C) नेपाल
(D) पाकिस्तान।
उत्तर:
(B) अमेरिका।

31. भारत का पड़ोसी देश नहीं है
(A) पाकिस्तान
(B) नेपाल
(C) अमेरिका
(D) चीन।
उत्तर:
(C) अमेरिका।

32. भारत का विभाजन कब हुआ ?
(A) 1947
(B) 1948
(C) 1949
(D) 1950
उत्तर:
(A) 1947

33. भारत के विभाजन से कौन-सा नया देश अस्तित्व में आया ?
(A) रूस
(B) जर्मनी
(C) पाकिस्तान
(D) जापान।
उत्तर:
(C) पाकिस्तान।

34. पाकिस्तान ने भारत पर पहली बार कब आक्रमण किया ?
(A) वर्ष 1965 में
(B) वर्ष 1971 में
(C) वर्ष 1984 में
(D) वर्ष 1950 में।
उत्तर:
(A) वर्ष 1965 में।

35. वर्ष 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच कौन-सा समझौता हुआ ?
(A) ताशकन्द समझौता
(B) पंचशील समझौता
(C) शिमला समझौता
(D) कारगिल समझौता।
उत्तर:
(C) शिमला समझौता।

36. प्रधानमन्त्री राजीव गांधी कब चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर गए ?
(A) 1985
(B) 1986
(C) 1987
(D) 1988
उत्तर:
(D) 1988

37. बांडुंग में एफ्रो-एशियाई दोनों देशों का सम्मेलन कब हुआ ?
(A) सन् 1952 में
(B) सन् 1955 में
(C) सन् 1956 में
(D) सन् 1972 में।
उत्तर:
(B) सन् 1955 में।

38. क्या वर्तमान समय में नेपाल में लोकतन्त्र पाया जाता है ?
(A) हां
(B) नहीं
(C) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) हां।

39. गुट निरपेक्षता से तात्पर्य है
(A) तटस्थता
(B) तटस्थीकरण
(C) अलगाववाद
(D) किसी भी शक्ति गुट में शामिल न होना।
उत्तर:
(D) किसी भी शक्ति गुट में शामिल न होना।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) चीन ………… दल के शासन वाला देश है।
उत्तर:
साम्यवादी

(2) शिमला समझौता वर्ष ……….. में हुआ।
उत्तर:
1972

(3) 1962 में ……….. और …….. देशों के बीच युद्ध हुआ।
उत्तर:
चीन, भारत

(4) ………. भारत का पड़ोसी देश है।
उत्तर:
पाकिस्तान

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

(5) आजकल गुट निरपेक्ष देशों की संख्या ………… है।
उत्तर:
120

(6) 1962 में ……………… ने भारत पर आक्रमण किया।
उत्तर:
चीन

(7) पंचशील समझौते पर ………….. और ……………. दो देशों ने हस्ताक्षर किए।
उत्तर:
भारत, चीन,

(8) भारत द्वारा अपना प्रथम परमाणु परीक्षण सन् ……………. में किया गया था।
उत्तर:
1974

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
विदेश नीति क्या होती है ?
उत्तर:
प्रत्येक देश दूसरे देश के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति का संवैधानिक आधार लिखें।
उत्तर:
अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाने सम्बन्धी निर्देश दिए गए हैं।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति का कोई एक उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
क्षेत्रीय अखण्डता की रक्षा करना।

प्रश्न 4.
भारत की विदेश नीति का मख्य निर्माता किसे माना जाता है ?
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू को भारत की विदेश नीति का निर्माता माना जाता है।

प्रश्न 5.
लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान के साथ कौन-सा समझौता किया?
उत्तर:
ताशकन्द समझौता।

प्रश्न 6.
‘ताशकन्द समझौता’ किन देशों के मध्य हुआ ?
उत्तर:
भारत-पाकिस्तान के बीच।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class Political Science भारत के विदेश संबंध Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाएं
(क) गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका, दोनों की सहायता हासिल कर सका।
(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्ध शुरुआत से ही तनावपूर्ण रहे।
(ग) शीतयुद्ध का असर भारत-पाक सम्बन्धों पर भी पड़ा।
(घ) 1971 की शान्ति और मैत्री की सन्धि संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत की निकटता का परिणाम थी।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाएं
(क) 1950-64 के दौरान भारत की – (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत विदेश नीति का लक्ष्य चले आए।
(ख) पंचशील – (ii) क्षेत्रीय अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास।
(ग) बांडुंग सम्मेलन – (iii) शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धान्त।
(घ) दलाई लामा – (iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में हुई।
उत्तर:
(क) 1950-64 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य – (ii) क्षेत्रीय अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास।
(ख) पंचशील –  (iii) शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धान्त।
(ग) बांडुंग सम्मेलन – (iv) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में हुई।
(घ) दलाई लामा –  (i) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए।

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प्रश्न 3.
नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतन्त्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे ? अपने उत्तर में दो कारण बताएं और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।
उत्तर:
नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतन्त्रता का एक अनिवार्य संकेतक इसलिए मानते थे, क्योंकि विदेश नीति का संचालन वही देश कर सकता है, जो स्वतन्त्र हो। एक पराधीन देश अपनी विदेश नीति का संचालन नहीं कर सकता। क्योंकि वह दूसरे देश के अधीन होता है, जैसे 1947 से पहले भारत स्वयं अपनी विदेश नीति का संचालन नहीं करता था, बल्कि ब्रिटिश सरकार करती थी।

प्रश्न 4.
“विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे दबाव में होता है।” 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर:
किसी भी देश की विदेश नीति का निर्धारक घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के अन्तर्गत होता है। प्रत्येक राष्ट्र विदेश नीति बनाते समय अपनी घरेलू ज़रूरतें एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखता है। उदाहरण के लिए, भारत ने 1960 के दशक में जो विदेश नीति अपनाई उस पर चीन एवं पाकिस्तान के युद्ध, अकाल राजनीतिक परिस्थितियां तथा शीत युद्ध का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।

प्रश्न 5.
अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक इसी तरह यह भी बताएं कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति में चीन एवं पाकिस्तान के साथ जिस प्रकार की नीति अपनाई जा रही है, उसमें बदलाव की आवश्यकता है, क्योंकि उसमे वांछित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। इसी प्रकार वर्तमान समय में भारत को शीत युद्ध से अलग होकर अपनी विदेश नीति बनानी चाहिए, क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में शीत युद्ध का अब कोई अस्तित्व नहीं रह गया है। जहां तक विदेश नीति के दो पहलुओं को बरकरार रखने की है, तो प्रथम गुट निरपेक्षता के अस्तित्व को बनाये रखना चाहिए, क्योंकि यह भारत की विदेश नीति का मूल आधार है। द्वितीय भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग जारी रखना चाहिए, क्योंकि इसमें अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(क) भारत की परमाणु नीति।।
(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति।
उत्तर:
(क) भारत की परमाणु नीति:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (लघु उत्तरीय प्रश्न) प्रश्न नं० 4 देखें।

(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति:
विदेश नीति के मामलों में सर्व-सहमति आवश्यक है, क्योंकि यदि एक देश की विदेश नीति के मामलों में सर्व-सहमति नहीं होगी, तो वह देश अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अपना पक्ष प्रभावशाली ढंग ने नहीं रख पायेगा। भारत की विदेश नीति के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं जैसे गुट-निरपेक्षता, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध, दूसरे देशों में मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाना तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना, इत्यादि पर सदैव सर्वसहमति रही है।

प्रश्न 7.
भारत की विदेश नीति का निर्माण शान्ति और सहयोग के सिद्धान्तों को आधार मान कर हुआ। लेकिन, 1962-1972 की अवधि यानी महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा आप इसे अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे? अपने मन्तव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
आज़ादी के समय भारत ने अपनी विदेश नीति का निर्माण शान्ति और सहयोग के सिद्धान्तों के आधार पर किया अर्थात भारत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों के साथ शान्ति एवं सहयोग चाहता था, परन्त 1962 से लेकर 1972 तक भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े तो इसमें कुछ हद तक भारत की विदेश की असफलता भी मानी जाती है तथा अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम भी। भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने अपनी विदेश नीति के अन्तर्गत सभी पड़ोसी देशों पर विश्वास जताया, परन्तु चीन एवं पाकिस्तान ने उस विश्वास को तोड़ दिया। इसी तरह अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों जैसे शीत युद्ध ने पाकिस्तान को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया।

प्रश्न 8.
क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है ? 1971 के बांग्लादेश युद्ध के सन्दर्भ में इस प्रश्न पर विचार करें।
उत्तर:
भारत भारतीय उप-महाद्वीप का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली देश है। अतः भारत की विदेश नीति का चालन इस प्रकार से किया गया कि भारत भारतीय उपमहाद्वीप में एक महाशक्ति बनकर उभरे, क्योंकि यदि भारत इस क्षेत्र में एक महाशक्ति बन कर उभरता है, तो इससे इस क्षेत्र के सभी देशों को लाभ पहुंचेगा तथा 1971 के युद्ध से यह बात स्पष्ट हो गई, कि भारत एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।

प्रश्न 9.
किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है ? भारत की विदेश नीति के उदाहरण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए।
अथवा
किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति को प्रभावित करता है ? भारत की विदेश नीति से कोई दो उदाहरण देते हुए संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विदेश नीति के निर्माण में उस देश के राजनीतिक नेतृत्व का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक नेतृत्व की विचारधारा के आधार पर ही देश की विदेश नीति का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए भारतीय विदेश नीति पर इस राष्ट्र के महान् नेताओं के वैयक्तिक तत्त्वों का भी प्रभाव पड़ा। पण्डित नेहरू के विचारों से हमारी विदेश नीति पर्याप्त प्रभावित हुई। पण्डित नेहरू साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद व फासिस्टवाद के घोर विरोधी थे और वे समस्याओं का समाधान करने के लिए शान्तिपूर्ण मार्ग के समर्थक थे।

वह मैत्री, सहयोग व सह-अस्तित्व के पोषक थे। साथ ही अन्याय का विरोध करने के लिए शक्ति प्रयोग के समर्थक थे। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों द्वारा हमारी विदेश नीति के ढांचे को ढाला। पाणिक्कर जैसे महान् नेताओं के विचारों ने भी हमारी विदेश नीति को प्रभावित किया। स्वर्गीय शास्त्री जी व भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी के काल में हमने अपनी विदेश नीति के मूल तत्त्वों को कायम रखते हुए इसमें व्यावहारिक तत्त्वों का भी प्रयोग किया।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए ……….. गुटनिरपेक्षता का व्यापक अर्थ है अपने को किसी भी सैन्य गुट में शामिल नहीं करना……. इसका अर्थ होता है चीजों को यथासम्भव सैन्य दृष्टिकोण से न देखना और इसकी कभी ज़रूरत आन पड़े तब भी किसी सैन्य गुट के नजरिए को अपनाने की जगह स्वतन्त्र रूप से स्थिति पर विचार करना तथा सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना ………….
(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना चाहते थे ?
(ख) क्या आप मानते हैं कि भारत-सोवियत मैत्री की सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(ग) अगर सैन्य-गुट न होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती ?
उत्तर:
(क) नेहरू सैन्य गुटों से इसलिए दूरी बनाना चाहते थे क्योंकि किसी सैन्य गुट में शामिल होकर एक देश स्वतन्त्र नीति का निर्माण नहीं कर पाता, इसके साथ-साथ सैन्य गुट युद्धों को भी बढ़ावा देते हैं।

(ख) भारत सोवियत मैत्री की सन्धि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं हुआ, क्योंकि इस सन्धि के पश्चात् भी भारत गुट निरपेक्षता के मौलिक सिद्धान्तों पर कायम रहा तथा जब सोवियत संघ की सेनाएं अफगानिस्तान में पहुंची, तो भारत ने उसकी आलोचना की।।

(ग) यदि विश्व में सैन्य गुट नहीं होते तो भी गुट निरपेक्षता की प्रासंगिकता बनी रहती, क्योंकि गुट निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना शान्ति एवं विकास के लिए की गई थी तथा शान्ति एवं विकास के लिए चलाया गया कोई भी आन्दोलन कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकता।

भारत के विदेश संबंध HBSE 12th Class Political Science Notes

→ भारतीय विदेश नीति के निर्माता भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू माने जाते हैं।
→ भारतीय विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं गुट-निरपेक्षता, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध, अन्य देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध, पंचशील तथा संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों को महत्त्व देना है।
→ भारतीय विदेश नीति के मुख्य निर्धारक तत्त्वों में संवैधानिक आधार, भौगोलिक तत्त्व, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, आर्थिक तत्त्व, राष्ट्रीय हित, अन्तर्राष्ट्रीय हित तथा सैनिक तत्त्व शामिल हैं।
→ सन् 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया, जिससे भारत-चीन सम्बन्ध खराब हो गए।
→ 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया, परन्तु पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा।
→ सोवियत संघ के प्रयासों से ताशकंद में 1966 में भारत-पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ।
→ सन् 1971 में बंगलादेश के प्रश्न पर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, जिसमें पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा।
→ 1972 में भारत-पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ।
→ भारत ने 1974 एवं 1998 में परमाणु विस्फोट किये।
→ में भारत एक ज़िम्मेदार परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है।
→ भारत की भौगोलिक स्थिति के मद्देनज़र भारत के पास परमाणु हथियार होने आवश्यक हैं।

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HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Haryana State Board HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class English The Rattrap Textbook Questions and Answers

Question 1.
How does the peddler interpret the acts of kindness and hospitality shown by the crofter, the ironmaster and his daughter? (फेरी वाले ने किसान, आयरन मास्टर एवं उसकी बेटी के द्वारा दर्शाए गए दयालुता एवं आतिथ्य के कार्यों का क्या अर्थ लिया ?)
Answer:
The peddler is a rattrap seller. He goes around selling small rattraps. But he does not earn enough to make both ends meet. So he resorts to begging as well as stealing to remain alive. He knocks at the door of an old crofter who welcomes him. He offers him food and shelter for the night. He plays a game of cards with him. But the rattrap seller steals his money. Then he seeks shelter in an old iron mill. The ironmaster mistakes him for his old friend. He and his daughter Edla persuade him to go with them and stay there on the Christmas eve.

They feed him well. The next morning, the servant bathes him, shaves him and gives him decent clothes to wear. But now the ironmaster realises his mistake. He discovers that the peddler is not his old friend. He asks him to go away. But his daughter Edla asks her father to let the peddler stay there for one more night. The poor peddler is moved by the love and affection shown by Edla. The love and affection shown by Edla awakens his essential goodness. Edla’s sympathy deeply moves him. Before going away, he leaves behind the money stolen from the crofter. He also leaves a rattrap as a gift for Edla.

(फेरी वाला चूहेदानियाँ बेचता है। वह छोटी-छोटी चूहेदानियों को बेचने के लिए चारों ओर जाता है। लेकिन वह इतना धन नहीं कमा पाता कि उसका गुजारा चल सके। इसलिए वह जिन्दा रहने के लिए भीख माँगने के साथ-साथ चोरी करने का भी सहारा लेता है। वह एक बूढ़े किसान के घर का दरवाजा खटखटाता है जो कि उसका स्वागत करता है। वह उसे भोजन और रात बिताने के लिए आश्रय प्रदान करता है। वह उसके साथ ताश भी खेलता है। लेकिन चूहेदानियाँ बेचने वाला उसका धन चोरी कर लेता है। तब वह एक पुरानी लोहे की मिल में आश्रय लेता है।

आयरन मास्टर गलती से उसको अपना एक पुराना मित्र समझ लेता है। वह और उसकी बेटी एडला उस पर दबाव बनाते हैं कि वह उनके साथ चले और क्रिसमस की पूर्व संध्या उनके साथ बिताए। वे उसे अच्छी तरह से भोजन कराते हैं। अगली सुबह, नौकर उसे स्नान कराता है, उसकी दाढ़ी बनाता है और उसे पहनने के लिए सुन्दर कपड़े देता है। लेकिन तब आयरन मास्टर को अपनी गलती का एहसास होता है। उसे पता चलता है कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं है।

वह उसे चले जाने के लिए कहता है। लेकिन उसकी बेटी एडला अपने पिता से कहती है कि वह फेरी वाले को वहाँ पर एक और रात ठहरने की अनुमति दे दे। फेरी वाला एडला के द्वारा दर्शाए गए प्यार और स्नेह से बहुत प्रभावित हुआ। एडला द्वारा दर्शाए गए प्यार और स्नेह ने उसकी आंतरिक अच्छाई को जगा दिया। एडला की सहानुभूति ने उसको गहराई तक से प्रभावित कर दिया। जाने से पहले, वह किसान के यहाँ से चोरी किए धन को छोड़कर चला जाता है। वह एडला के लिए उपहारस्वरूप एक चूहेदानी भी छोड़कर जाता है।)

Question 2.
What are the instances in the story that show that the character of the ironmaster is different from that of his daughter in many ways?
(कहानी में वे उदाहरण कौन-से हैं जो दर्शाते हैं कि आयरन मास्टर का चरित्र कई प्रकार से उसकी बेटी से अलग है ?)or Edla is a better judge of character than her father. Justify. [H.B.S.E. 2019 (Set-B)] (एडला अपने पिता की तुलना में चरित्र में एक बेहतर न्यायधीश है। निरूपण करें।)
Answer:
There is a lot of difference between the character of the ironmaster and his daughter Edla. The ironmaster is the owner of the Ramsjö Ironworks. It is his ambition to produce good iron for the market. He is quite moody. When he sees the old peddler, he mistakes him as one of his old friends. He asks him, again and again, to come to his home for the night. When the peddler refuses, the ironmaster even brings his daughter to put pressure on him. But the next morning, when he realizes his mistake, he wants to hand over the peddler to the sheriff.

All his kindness and generosity vanish away. However, his daughter, Edla has all the qualities of head and heart. She has basic human qualities. She is kind, sympathetic and compassionate. She tells her father that it is wrong to chase away a man whom they themselves have invited to spend the night with them. She shows affection and sympathy to the peddler. The next morning, she is happy to find that the peddler is not a thief. Her goodness and compassion change the peddler’s heart. He leaves behind the old crofter’s money and also gives her a rattrap as a Christmas present.

(आयरन मास्टर और उसकी बेटी एडला के चरित्र में बहुत अधिक अंतर है। आयरन मास्टर रेमस्जो आयरन वर्क्स का मालिक है। उसका लक्ष्य बाजार के लिए उत्तम श्रेणी के लोहे का निर्माण करना है। वह पूरी तरह से अपनी मर्जी का मालिक है। जब वह बूढ़े फेरी वाले को देखता है तो वह उसे गलती से अपना एक पुराना मित्र मान लेता है। वह उसे बार-बार कहता है कि वह रात बिताने के लिए उसके घर चले। जब फेरी वाला मना कर देता है तो आयरन मास्टर उस पर दबाव बनाने के लिए अपनी बेटी को भी बुलाकर लाता है।

लेकिन अगली सुबह, जब उसको अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वह फेरी वाले को शेरिफ के हवाले करना चाहता है। उसकी सारी दयालुता और उदारता लुप्त हो जाती है। लेकिन उसकी बेटी एडला में सोच-विचार और दया के सारे गुण विद्यमान हैं। उसमें मानवता के आधारभूत गुण हैं। वह दयालु, सहानुभूतिपूर्ण एवं करुणामयी है। वह अपने पिता को बताती है कि उस आदमी को बाहर भगा देना एक गलत बात है जिस आदमी को अपने साथ रात बिताने के लिए उन्होंने स्वयं आमंत्रित किया था। वह फेरी वाले के प्रति स्नेह और सहानुभूति प्रकट करती है। अगली सुबह यह जानकर प्रसन्न होती है कि फेरी वाला कोई चोर नहीं है। उसकी अच्छाई और करुणा ने फेरी वाले के हृदय को परिवर्तित कर दिया। वह बूढ़े किसान वाले धन को वहीं छोड़ जाता है और एडला के लिए क्रिसमस के उपहारस्वरूप एक चूहेदानी छोड़ जाता है।)

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Question 3.
The story has many instances of unexpected reactions from the characters to others’ behaviour. Pick out instances of these surprises.
(कहानी में पात्रों के अन्य लोगों के बर्ताव के प्रति अप्रत्याशित प्रतिक्रिया के कई उदाहरण हैं। ऐसे आश्चर्यों के उदाहरण ढूंढिए।)
Answer:
This story has a number of instances of unexpected reactions from the characters to others. One dark evening, the rattrap seller is going along a road. He is hungry and wants to spend the night somewhere. He sees a cottage by the roadside. He knocks at the door. He expects to meet some sour faces. But unexpectedly, an old man welcomes him cheerfully. He is an old crofter without wife or child. He serves him food, talks with him, and plays a game of cards with him till the bedtime. The next morning, the peddler steals his money and goes away. At night, he seeks shelter at an ironworks. Suddenly the master comes and behaves in an unexpected manner.

He mistakes him to be his old friend. He invites him to spend the night with him at his residence. When the peddler does not agree, he asks his daughter to persuade him. Finally, he goes with them. They offer him food and shelter for the night. The next morning, they ask the servant to bath and shave him. But then the ironmaster realises that the peddler is not his old friends. Now, he asks the peddler to go away at once. But his daughter Edla, unexpectedly, persuades her father to let him stay for the night. The peddler also behaves unexpectedly. The next morning, before going away, he leaves the stolen money and a rattrap as a present for Edla.

(इस कहानी में पात्रों के अन्य लोगों के व्यवहार के प्रति अप्रत्याशित प्रतिक्रिया के बहुत सारे उदाहरण हैं। एक अंधेरी शाम को चहेदानियाँ बेचने वाला सड़क पर अकेला जा रहा है। वह भूखा है और कहीं पर रात बिताना चाहता है। उसे सड़क किनारे एक घर दिखाई देता है। वह दरवाजा खटखटाता है। उसे उम्मीद है कि रूखा चेहरा ही उसका स्वागत करेगा। लेकिन उम्मीद के विपरीत एक बूढ़ा आदमी प्रसन्नतापूर्वक उसका स्वागत करता है। वह एक बूढ़ा किसान है जो पत्नी अथवा बच्चे के बिना रहता है। वह उसे भोजन देता है, उसके साथ बातें करता है और रात को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेलता है। अगली सुबह, फेरी वाला उसका धन चोरी कर लेता है और चला जाता है। रात के समय वह एक लोहे के कारखाने में आश्रय लेता है।

अचानक ही मालिक आता है और वह उसके साथ अप्रत्याशित ढंग से व्यवहार करता है। वह गलती से उसे अपना एक पुराना मित्र समझ लेता है। वह उसे रात के समय अपने घर पर आने के लिए आमन्त्रित करता है। जब फेरी वाला सहमत नहीं होता है तो वह अपनी बेटी से कहता है कि वह उसे मनाए। अन्ततः वह उनके साथ जाता है। वे उसे रात के लिए भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं। अगली सुबह, वे अपने नौकर से कहते हैं कि वह उसे स्नान कराए और उसकी दाढ़ी बनाए। लेकिन तब आयरन मास्टर को एहसास होता है कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं है। तो वह फेरी वाले से वहाँ से तुरन्त चले जाने को कहता है। लेकिन अप्रत्याशित रूप से उसकी बेटी एडला अपने पिता पर दबाव बनाती है कि वह उसे रात के लिए वहीं ठहरने की अनुमति दे। फेरी वाला भी अप्रत्याशित ढंग से व्यवहार करता है। अगली सुबह जाने से पहले वह चोरी किया गया धन और एडला के लिए उपहारस्वरूप एक चूहेदानी छोड़कर चला जाता है।)

Question 4.
What made the peddler finally change his ways? (फेरी वाले को अन्त में अपने तौर तरीके बदलने पर किस बात ने मजबूर किया ?)
Answer:
The peddler was a rattrap seller. But he could not earn enough money to make both ends meet. So he often committed petty thefts also. One night an old man gave him food and shelter for the night. He showed love and sympathy to him. But the peddler proved to be ungrateful man. Before going away, he steals the old man’s money. But in the end, he is a transformed man. His basic human qualities are awakened through the love and understanding shown to him by the ironmaster’s daughter, Edla. The ironmaster invites him to spend the night with him. His daughter Edla shows sympathy and compassion to him.

When the ironmaster realises his mistake, he asks him to go. But Edla persuades her father to let him stay for one night. Her good nature, love and sympathy change the peddler’s heart. The next morning, he leaves before the ironmaster and his daughter return from church. But now he is a changed man. He leaves behind the money stolen from the old man. He also leaves a rattrap as a Christmas present for Edla. He has also written a letter to her in which he praises her kindness and sympathy. Thus the love and kindness shown to him finally change his heart and make him change his ways.

(फेरी वाला चूहेदानियाँ बेचता था। लेकिन वह इतना धन नहीं कमा सकता था कि उसका गुजारा चल सके। इसलिए प्रायः वह छोटी-मोटी चोरियाँ करता रहता था। एक रात एक बूढ़े आदमी ने उसे भोजन और रात बिताने के लिए आश्रय प्रदान किया। उसने उसके प्रति प्यार और सहानुभूति दिखाई। लेकिन फेरी वाला दगाबाज आदमी निकला। जाने से पहले, वह बूढ़े आदमी का धन चोरी कर लेता है। लेकिन कहानी के अन्त में वह पूरी तरह से परिवर्तित इन्सान लगता है। आयरन मास्टर की बेटी एडला के द्वारा प्रदर्शित प्यार और समझ के द्वारा उसके अन्दर मानवता के आधारभूत गुण जागृत हो जाते हैं। आयरन मास्टर उसको रात बिताने के लिए अपने घर आमंत्रित करता है। उसकी बेटी एडला उसके प्रति सहानुभूति और दया के भाव प्रकट करती है।

जब आयरन मास्टर को अपनी गलती का एहसास होता है तो वह उसे चले जाने के लिए कहता है। लेकिन एडला अपने पिता पर दबाव बनाती है कि वह उसे एक रात के लिए वहीं ठहरने दे। उसका अच्छा स्वभाव, प्यार और सहानुभूति फेरी वाले के हृदय को परिवर्तित कर देती है। अगली सुबह वह आयरन मास्टर और उसकी बेटी के चर्च से आने से पहले ही वह चला जाता है। लेकिन अब वह एक बदला हुआ इन्सान है। वह बूढ़े आदमी के यहाँ से चोरी किए हुए धन को वहीं छोड़ जाता है। वह एडला के लिए क्रिसमस के उपहारस्वरूप एक चूहेदानी छोड़ जाता है। उसने उसे एक पत्र भी लिखा है जिसमें उसने उसकी दयालुता और सहानुभूति की प्रशंसा की। इस तरह से उसके प्रति दिखाए गए प्यार और दयालुता ने अंततः उसके हृदय को बदल दिया और उसे अपने तौर-तरीकों को बदलने के लिए बाध्य कर दिया।)

Question 5.
How does the metaphor of the rattrap serve to highlight the human predicament? (चूहेदानी का रूपक किस प्रकार से मानवीय दुविधा को उजागर करता है ?)
Answer:
The title of the story ‘The rattrap’is highly metaphorical. The metaphor of the rattrap runs throughout the story. The writer uses this metaphor effectively. This metaphor highlights the human predicament. The story is based on a peddler who goes around selling rattraps. His life is poor and miserable. He does not earn enough money to keep his body and soul together. So he is compelled to beg or to commit petty thefts. One day, an idea comes to his mind that the whole world is a rattrap. In a rattrap the rat is caught while it tries to eat the bait. In the same way, the world sets baits for man to trap him. The riches, the joys, shelter, food, clothing, love, etc. are just baits. When a man attempts to get hold of these, he is caught in the rattrap of the world. Then everything comes to an end.

One night, an old man gives him food and shelter. The peddler sees his money in a pouch. That money lures him and the next morning, he steals the money. That was like a bait to him. Now he feels trapped. He dare not walk along the road for fear of being caught. He goes to a forest and loses his way. The forest appears like a rattrap to him. Then he goes to Ramsjö Ironworks and requests for shelter. The ironmaster invites him to his house. But the peddler does not want to fall into any fresh trouble. He thinks that going to his house is like falling into a den. So he emphatically refused to go with him. But when the ironmaster’s daughter insists, he goes with them. The next morning, he goes away and escapes being caught by police. Thus the metaphor of the rattrap highlights the predicament of the peddler.

(कहानी का शीर्षक ‘The Rattrap’ अति रूपकपूर्ण है। चूहेदानी का रूपक पूरी कहानी में बना रहता है। लेखक इस रूपक का बड़े ही प्रभावपूर्ण ढंग से प्रयोग करता है। यह रूपक मानवीय दुविधा का वर्णन करता है। यह कहानी एक फेरी वाले पर आधारित है जो कि इधर-उधर घूमकर अपनी चूहेदानियाँ बेचता है। वह गरीबी और कष्टों से पूर्ण जीवन व्यतीत करता है। वह अपने आप को सही ढंग से जीवित रख पाने के लिए पर्याप्त धन भी नहीं कमा सकता है। इसलिए वह भीख माँगने या फिर छोटी-मोटी चोरियाँ करने के लिए बाध्य हो जाता है। एक दिन उसके दिमाग में एक विचार आता है कि यह पूरा संसार एक चूहेदानी है। चूहेदानी में एक चूहा फंस जाता है जब वह रोटी के टुकड़े को खाने का प्रयास करता है। इसी तरह से, यह संसार भी इन्सान को फंसाने के लिए प्रलोभन पैदा करता है। अमीरी, खुशियाँ, घर, भोजन, वस्त्र, प्यार इत्यादि ऐसे ही कुछ प्रलोभन हैं। जब एक आदमी इनको हासिल करने का प्रयास करता है तो वह इस संसार की चूहेदानी में फंस जाता है। तब सब कुछ समाप्त हो जाता है।

एक रात, एक बूढ़ा आदमी उसको भोजन और आश्रय प्रदान करता है। फेरी वाला एक थैली में रखे उसके धन को देखता है। वह धन उसको ललचाता है और अगली सुबह वह उस धन को चोरी कर लेता है। यह उसके लिए एक प्रलोभन के समान था। अब वह फंसा हुआ महसूस करता है। पकड़े जाने के भय के कारण वह सड़क मार्ग से जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। वह जंगल मार्ग से जाता है और रास्ता भटक जाता है। जंगल उसको एक चूहेदानी के समान प्रतीत होता है। तब वह रेमस्जो आयरन वर्क्स में जाता है और आश्रय के लिए निवेदन करता है। आयरन मास्टर उसे अपने घर आमंत्रित करता है। लेकिन फेरी वाला किसी नए संकट में नहीं फंसना चाहता है। वह सोचता है कि उसके घर जाना किसी गुफा में घुस जाने की तरह है। इसलिए वह जोर देकर उसके साथ जाने से मना कर देता है। लेकिन जब आयरन मास्टर की बेटी जाने के लिए जिद्द करती है तो वह चला जाता है। अगली सुबह, वह पुलिस के द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए वहाँ से चला जाता है। इस प्रकार से चूहेदानी का रूपक फेरी वाले की दुविधा को प्रकाशित करता है।)

Question 6.
The peddler comes out as a person with a great subtle sense of humour. How does this serve in lightening the seriousness of the theme of the story and also endear him to us?
(फेरी वाला हास्य की सूक्ष्म भावना वाला व्यक्ति प्रतीत होता है। यह बात कहानी की गम्भीरता को किस प्रकार उजागर करती है और फेरी वाले को हमारे प्रति प्रिय बनाती है ?)
Answer:
This is a serious story and highlights the human predicament. Yet the peddler has a subtle sense of humour. He has a natural tendency to philosophize. It makes life less burdensome. His sense of humour makes him accept that he is like a rat like other people. He compares the world to a rattrap which sets baits for the people. The riches, the joys, the food, shelter, clothing and love are the things like baits. When a person tries to get them, he is caught in the rattrap.

The peddler’s meeting with the ironmaster is full of humour. The ironmaster mistakes him for his old friend. He addresses him as Captain von Stahle. This is humorous that a poor and uneducated peddler is mistaken as a captain. The peddler shows his senses of humour when he tells the ironmaster that he too “will get caught in the trap”. The ironmaster too accepts that it was “not so badly said.” His letter written to Edla also shows his sense of humour. He writes that he would have been caught in the rattrap if he had not been raised to captain. The peddler’s sense of humour serves to lighten the seriousness of the theme of the story. It also endears the peddler to the readers and evokes our sympathy for him.

(यह एक गंभीर कहानी है और मानव की दुविधा पर प्रकश डालती है। यद्यपि फेरी वाला हास्य की एक सूक्ष्म धारणा वाला व्यक्ति है। लेकिन उसमें वैचारिक सिद्धान्त का एक स्वभाविक गुण है। वह जीवन को कम बोझिल बनाता है। उसकी हास्य की भावना उससे स्वीकार करवा लेती है कि वह भी अन्य लोगों की तरह एक चूहा है। वह इस संसार की तुलना चूहेदानी से करता है जो लोगों को फंसाने के लिए प्रलोभन तय करता है। अमीरी, खुशियाँ, भोजन, घर, वस्त्र और प्यार प्रलोभन जैसी चीजें हैं। जब कोई व्यक्ति इनको हासिल करने का प्रयास करता है तो वह इसमें फंस जाता है। फेरी वाले की आयरन मास्टर से मुलाकात हास्य से भरपूर है। आयरन मास्टर उसे गलती से अपना पुराना मित्र समझ बैठता है। वह उसे कैप्टन वॉन स्टैहल कह कर सम्बोधित करता है। यह बात हास्य पैदा करने वाली है कि एक गरीब और अनपढ़ व्यक्ति को गलती से कैप्टन समझ लिया जाता है। फेरी वाला अपनी हास्य की भावना का प्रदर्शन करता है जब वह आयरन मास्टर को बताता है कि वह भी “चूहेदानी में फंस जाएगा” । आयरन मास्टर भी इस बात को स्वीकार करता है कि यह बात “इतनी बुरी तरह से नहीं कही गई”। फेरी वाले के एडला को लिखे पत्र में उसकी हास्य की भावना का प्रदर्शन होता है। वह लिखता है कि वह भी चूहेदानी में फंस जाता यदि वह कैप्टन के पद से ऊपर न उठ जाता। फेरी वाले की हास्य की भावना इस कहानी के विषय की गम्भीरता को हल्का करने का काम करती है। यह भावना फेरी वाले को पाठकों में लोकप्रिय बनाती और उसके प्रति हमारी सहानुभूति को जागृत करती है।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Think As You Read

Question 1.
From where did the peddler get the idea of the world being a rattrap? (फेरी वाले के दिमाग में यह विचार कैसे आया कि संसार एक चूहेदानी है?) Or Why did the peddler think that the world was a rattrap ? [H.B.S.E. March, 2019 (Set-C)] (फेरी वाले ने ऐसा क्यों सोचा कि संसार एक चूहेदानी है?)
Answer:
The peddler made his living by selling rattraps. But he did not earn much and often had to remain hungry. One day he was struck by an idea. He thought that the world was also like a rattrap. A rat is caught in the rattrap when it is lured by the bait. In the same way the world existed only to set baits for people. The world offers its riches, joys, shelter, food and clothing to man just to trap him.

(फेरी वाला चूहेदानियाँ बेचकर अपनी आजीविका कमाता था। लेकिन वह अधिक नहीं कमा पाता था और उसे प्रायः भूखा रहना पड़ता था। एक दिन उसको एक विचार सूझा। उसने सोचा कि यह संसार भी एक चूहेदानी के समान है। एक चूहा चूहेदानी के अंदर फंस जाता है जब वह खाने की चीज के लालच में आ जाता है। इसी तरह से यह संसार भी लोगों के लिए प्रलोभन पैदा करता रहता है। यह संसार मनुष्य को फंसाने के लिए अमीरी, खुशियाँ, घर, भोजन और वस्त्रों इत्यादि के प्रलोभन पैदा करता रहता है।)

Question 2.
Why was he amused by this idea? (वह इस विचार से प्रसन्न क्यों हुआ ?)
Answer:
One day an idea came to the mind of the rattrap seller that the whole world was also a rattrap. He was amused by this idea. He thought that the world’s joys, shelter, food, heat, clothing and riches were only baits to trap the people in. He was amused by the idea because he could philosophise his sad and boring life. The idea gave him satisfaction that he was not the only one in this world who was caught in the rattrap of poverty and misery.

(एक दिन चूहेदानियाँ बेचने वाले के दिमाग में एक विचार आया कि यह सारा संसार एक चूहेदानी के समान है। इस विचार से वह प्रसन्न हो गया। उसने सोचा कि संसार की खुशियाँ, घर, भोजन, ऊर्जा, वस्त्र और अमीर लोगों को फंसाने के लिए केवल एक प्रलोभन का काम करती है। वह इस विचार से प्रसन्न था क्योंकि वह अपने उदास और निराश जीवन को इस दर्शन (विचार) के साथ जोड़ सकता था। इस विचार ने उसको सन्तुष्टि प्रदान की कि इस संसार में वही केवल अकेला व्यक्ति नहीं है जो गरीबी और कष्टों की चूहेदानी में फंसा हुआ है।)

Question 3.
Did the peddler expect the kind of hospitality that he received from the crofter? (क्या फेरी वाले को उस आतिथ्य की आशा थी जो उसे बूढ़े किसान से प्राप्त हुआ ?)
Answer:
No, he did not expect the kind of hospitality that he received from the crofter. He only expected sour faces greeting him when he knocked at the door to ask for shelter for the night. But the old crofter was happy to get someone to talk to in his loneliness. He fed the peddler and played a game of cards with him until bed time.
(नहीं, उसने इस प्रकार के अतिथि सत्कार की कल्पना नहीं की थी। जैसा कि उसको किसान की ओर से मिला था। उसने केवल रूखे चेहरों के द्वारा अपना स्वागत किए जाने की कल्पना की थी जब रात के समय आश्रय के लिए उसने एक घर के दरवाजे को खटखटाया था। लेकिन बूढ़ा किसान अपने अकेलेपन में किसी को बात करने के लिए पाकर प्रसन्न था। उसने फेरी वाले को भोजन खिलाया और रात को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेली।)

Question 4.
Why was the crofter so talkative and friendly with the peddler? (किसान फेरी वाले के साथ इतना बातूनी एवं दोस्ताना क्यों था ?) [H.B.S.E. March, 2018 (Set-C)]
Answer:
The old crofter welcomed the peddler. He was a lonely old man. He was without wife or children. He wanted someone to talk to in his loneliness. So he was so talkative and friendly with the peddler.
(बूढ़े किसान ने फेरी वाले का स्वागत किया। वह एक अकेला वृद्ध आदमी था। वह पत्नी और बच्चों को बिना रहता था। वह चाहता था कि उसके अकेलेपन में कोई उससे बात करने वाला हो। इसलिए वह फेरी वाले के प्रति इतना बातूनी एवं दोस्ताना था।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 5.
Why did he show the thirty kronor to the peddler? (उसने फेरी वाले को तीस क्रॉनर क्यों दिखाए ?)
Answer:
The old crofter told the peddler that he earned his living by selling his cow’s milk. Then he went to the window and took down a leather pouch hanging on a nail. He took out three ten-kronor notes to him. He wanted to show the peddler that although he was old and lonely, he was not without any means of income. He had a small income with which he could make both ends meet.

(उसने फेरी वाले को बताया कि वह अपनी गाय का दूध बेचकर अपनी आजीविका कमाता है। तब वह खिड़की के पास गया और एक कील पर टंगी हुई चमड़े की थैली उतार कर के लाया। उसने दस क्रॉनर के तीन नोट उसे निकाल कर दिखाए। वह फेरी वाले को दिखाना चाहता था कि यद्यपि वह बूढ़ा और अकेला है लेकिन ऐसा नहीं है कि उसके पास आमदनी का कोई साधन नहीं है। उसकी थोड़ी-सी आमदनी थी जिसकी वजह से उसका हर रोज का गुजारा चल जाता था।)

Question 6.
Did the peddler respect the confidence reposed in him by the crofter ? (क्या फेरी वाले ने किसान द्वारा दर्शाए गए भरोसे का सम्मान किया ?)
Answer:
The peddler was a stranger to the old crofter. But he did not suspect him. He showed him the thirty kronors which he had in a leather pouch. He trusted the peddler. But the peddler did not respect the confidence reposed in him. After the crofter had left the cottage, the peddler went back. He broke a window pane and caught hold of the leather pouch. He took out the money. In this way, he robbed the man who had given him food and shelter.

(फेरी वाला बूढ़े किसान के लिए एक अजनबी था। लेकिन उसने उस पर संदेह नहीं किया। उसने उसको वो तीस क्रॉनर दिखाए जो उसने चमड़े की थैली में रखे हुए थे। वह फेरी-वाले पर यकीन करता था। लेकिन फेरी वाले ने अपने ऊपर दिखाए गए विश्वास का सम्मान नहीं किया। जब किसान घर से बाहर चला गया, तो फेरी वाला वहाँ वापस गया। उसने खिड़की का एक काँच तोड़ा और चमड़े की थैली को अपने हाथ में पकड़ लिया। उसने पैसे निकाल लिए इस तरह से, उसने उस आदमी को ठग लिया जिसने उसे भोजन और आश्रय दिया था।)

Question 7.
What made the peddler think that he had indeed fallen into a rattrap? (फेरी वाले ने ऐसा क्यों सोचा कि वह सचमुच चूहेदानी में फँस गया है ?)
Answer:
The peddler stole the old crofter’s money. In order to avoid being caught, he did not walkalong the main road. He entered a forest. But he lost the way. In the meantime, the night fell and it was very cold. He sat down on the ground. Now he thought that the world was indeed a rattrap. The money was only a bait to catch him.

(फेरी वाले ने किसान का धन चोरी कर लिया। पकड़े जाने से बचने के लिए, वह मुख्य मार्ग से नहीं गया। उसने एक जंगल में प्रवेश किया। लेकिन वह रास्ता भटक गया। इतनी देर में रात हो गई और ठंड भी बहुत अधिक थी। वह जमीन पर नीचे बैठ गया। अब उसने सोचा कि वह संसार सचमुच में ही एक चूहेदानी है। यह धन भी उसको शिकंजे में लेने के लिए एक प्रलोभन है।)

Question 8.
Why did the ironmaster speak kindly to the peddler and invite him home? (आयरन मास्टर फेरी वाले से दयालुता से क्यों बोला और उसे अपने घर क्यों बुलाया ?)
Answer:
When the ironmaster saw the peddler, he thought that he was one of his old friends. He mistook him for an old friend. The ironmaster was an old man. There was no one at his home except his eldest daughter. It was too bad that he didn’t have company for the Christmas night. So he spoke kindly to him and invited him to his house for the night.

(जब आयरन मास्टर ने फेरी वाले को देखा तो उसने सोचा कि वह उसका कोई पुराना मित्र है। उसने गलती से उसे अपना एक पुराना मित्र समझ लिया। आयरन मास्टर एक बूढ़ा आदमी था। उसकी सबसे बड़ी बेटी के सिवाय उसके घर पर और कोई नहीं था। यह उसके लिए बहुत बुरा था कि क्रिसमस की रात में साथ रहने के लिए उसके पास कोई भी नहीं था। इसलिए उसने उसके साथ दयालुतापूर्वक बात की और रात बिताने के लिए उसे अपने घर पर आमंत्रित किया।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 9.
Why did the peddler decline the invitation? [H.B.S.E. 2017 (Set-B), 2019 (Set-D)] (फेरी वाले ने निमन्त्रण क्यों ठुकरा दिया ?) [H.B.S.E. 2020 (Set-C)]
Answer:
The ironmaster invited the peddler to spend the night with him at his home. But the peddler felt alarmed. The ironmaster was a stranger to him. He thought that going with him to his home was like throwing himself into a lion’s den. He didn’t want to be caught in. So he declined the ironmaster’s invitation.

(आयरन मास्टर ने फेरी वाले को अपने घर पर उसके साथ रात बिताने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन फेरी वाला डरा हुआ था। आयरन मास्टर उसके लिए एक अजनबी था। उसने सोचा कि उसके साथ उसके घर जाना स्वयं को एक शेर की गुफा में घुसा देने के समान है। वह पकड़ा नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसने आयरन मास्टर के निमंत्रण को ठुकरा दिया।)

Question 10.
What made the peddler accept Edla Willmansson’s invitation ? (फेरी वाले ने एडला विलमैनसन के निमन्त्रण को स्वीकार क्यों कर लिया ?)
Answer:
The ironmaster mistook the peddler for one of his old friends. He invited the peddler to his home. But the peddler declined the invitation. Then the ironmaster’s young daughter Edla Willmansson came. She did not hate him for his shabby clothes. She looked at him compassionately. He requested him to stay with them on the Christmas Eve. Her manner was so friendly that the peddler accepted the invitation.

(आयरन मास्टर ने फेरी वाले को गलती से अपना एक मित्र मान लिया। उसने फेरी वाले को अपने घर आमंत्रित किया। लेकिन फेरी वाले ने उसके निमंत्रण को ठुकरा दिया। तब आयरन मास्टर की छोटी लड़की एडला विलमैनसन वहाँ आई। वह उसके गंदे कपड़ों की वजह से उससे घृणा नहीं कर रही थी। उसने दया भाव के साथ उसकी ओर देखा। उसने उससे प्रार्थना की कि वह क्रिसमस की शाम उनके साथ बिताए। उसका भाव इतना मित्रतापूर्ण था कि फेरी वाले ने उसके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।)

Question 11.
What doubts did Edla have about the peddler? [H.B.S.E. 2017 (Set-C), 2018 (Set-B)] (एडला को फेरी वाले के बारे में क्या सन्देह था ?)
Answer:
When Edla saw the peddler and his shabby conditions, she had her own doubts about him. She thought that perhaps he had stolen something. It was possible that he had escaped from prison. He did not look like an educated man. That is why, she had doubts about the peddler.
(जब एडला ने फेरी वाले और उसकी गंदी हालत को देखा, तो उसके मन में उसके प्रति संदेह पैदा हो गए। उसने सोचा कि शायद उसने कुछ चोरी किया हुआ है। इस बात की भी संभावना थी कि शायद वह जेल से बचकर निकला हो। वह एक पढ़े-लिखे इन्सान जैसा नहीं लगता था। इसी वजह से, उसके मन में फेरी वाले के प्रति संदेह थे।)

Question 12.
When did the ironmaster realise his mistake? [H.B.S.E. 2017 (Set-D), 2018 (Set-A)] (आयरन मास्टर को अपनी भूल का एहसास कब हुआ ?)
Answer:
The ironmaster took the peddler home. The next morning, his valet bathed and shaved him. He stood in front of him in broad daylight. Now everything became clear. The ironmaster realised that he had made a mistake about him. He was not his old regimental comrade.
(आयरन मास्टर फेरी वाले को घर ले गया। अगली सुबह उसके नौकर ने उसे स्नान करवाया और उसकी दाढ़ी बनाई। वह सूर्य के प्रकाश में उसके सामने खड़ा था। अब सब कुछ साफ हो चुका था। आयरन मास्टर को एहसास हो गया था कि उसने उसके बारे में गलती कर दी है। वह उसकी रेजिमेंट का उसका पुराना साथी नहीं था।)’

Question 13.
What did the peddler say in his defence when it was clear that he was not the person the ironmaster had thought he was? (जब यह मालूम हो गया कि फेरी वाला वह नहीं है जो उसके बारे में सोचा गया था तो उसने अपने बचाव में क्या कहा ?)
Answer:
In the broad daylight, it became clear to the ironmaster, the peddler was not his old comrade. He told him that he would hand him over to the sheriff. At this, the peddler said in his defence that he never tried to cheat him. He never pretended to be his friend. He insisted that he was only a poor rattrap seller. But they insisted on bringing him home and giving him shelter.

(दिन के प्रकाश में आयरन मास्टर को यह बात साफ हो गई कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं था। उसने उसे बताया कि वह उसे शेरिफ के हवाले कर देगा। इस बात पर फेरी वाले ने अपने बचाव में कहा कि उसने कभी भी उसे धोखा देने का प्रयास नहीं किया। उसने कभी भी उसका मित्र होने का ढोंग नहीं किया। उसने जोर देकर कहा कि वह तो मात्र एक गरीब चूहेदानियाँ बेचने वाला है। लेकिन वे उसे घर लाने और आश्रय प्रदान करने की जिद्द करते रहे।)

Question 14.
Why did Edla still entertain the peddler even after she knew the truth about him? (जब एडला को फेरी वाले की वास्तविकता का पता चल गया तो उसके बाद भी उसने उसका स्वागत क्यों किया ?)
Answer:
The peddler’s identity was revealed. The ironmaster asked him to go away. But his daughter, Edla still entertained him. She felt sorry for him. She told her father that the peddler was not welcome anywhere. She wanted that he should enjoy a day’s peace with them. Moreover, they themselves had invited him and promised Christmas cheer. Now it was wrong to chase him away.

(फेरी वाले की वास्तविकता का पता चल चुका था। आयरन मास्टर ने उसे चले जाने के लिए कहा। लेकिन उसकी बेटी एडला अभी भी उससे अच्छी तरह से बातचीत कर रही थी। उसे उसके प्रति खेद हो रहा था। उसने अपने पिता को बताया कि फेरी वाले का कहीं भी स्वागत नहीं है। वह चाहती थी कि वह एक दिन के लिए उनके साथ चैन से रहे। और उन्होंने स्वयं ही उसको आमंत्रित किया था और उसके साथ आनंदपूर्वक क्रिसमस का वायदा किया था। अब उसे वहाँ से भगा देना गलत बात थी।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 15.
Why was Edla happy to see the gift left by the peddler? [H.B.S.E. 2019 (Set-B), 2020 (Set-D)] (फेरी वाले द्वारा छोड़ा गया उपहार देखकर एडला प्रसन्न क्यों हुई ?)
Answer:
Although the peddler’s identity had been revealed, Edla had insisted that he should stay them for the night. The next morning at the church, she came to know that the peddler had robbed an old man. Her father was sure that in their absence, he might have stolen their silver spoons. But when they came back Edla found that the peddler had not taken anything away. On the other hand he had left a rattrap as a gift for her. He had also left the thirty kronors that he had stolen from the old crofter. In his letter, the peddler had praised Edla and her hospitality. So, Edla was happy to see the gift left by him.

(यद्यपि फेरी वाले की वास्तविकता का पता चल गया था, फिर भी एडला इस बात पर बल दे रही थी कि वह रात को तो उनके साथ ही रहे। अगली सुबह चर्च में, उसको इस बात का पता चला कि उसने एक बूढ़े आदमी को ठगा है। उसके पिता को इस बात का यकीन था कि उनकी गैर हाजरी में वह उनके चाँदी के चम्मचों को चुरा सकता था। लेकिन जब वे लौटकर आए तो एडला ने देखा कि फेरी वाला कुछ भी चुराकर नहीं ले गया था। बल्कि वह उसके लिए उपहारस्वरूप एक चूहेदानी छोड़कर गया था। वह उन तीस क्रॉनर को भी वहीं छोड़कर चला गया था जो उसने बूढ़े किसान के घर से चोरी किए थे। अपने पत्र में फेरी वाले ने एडला की और उसके अतिथि सत्कार की भावना की प्रशंसा की थी। इसलिए एडला उसके द्वारा छोड़े गए उपहार को देखकर प्रसन्न थी।)

Question 16.
Why did the peddler sign himself as Captain Von Stahle? [H.B.S.E. 2019 (Set-C)] (फेरी वाले ने अपने हस्ताक्षर कप्तान वॉन स्टाहल के रूप में क्यों किए ?)
Answer:
The peddler was a poor vagabond. But the ironmaster mistook him to be his old friend Captain von Stahle. He and his daughter treated him with kindness. They invited him to his house and fed and clothed him. When the ironmaster realised his mistake he asked him to go away. But his daughter, Edla insisted on his staying there. The kindliness and sympathy shown to him by Edla moved his heart. So he signed himself as Captain von Stahle in appreciation of the love that he received there.

(फेरी वाला एक गरीब घुमक्कड़ था। लेकिन आयरन मास्टर ने गलती से उसे अपना एक पुराना मित्र कैप्टन वॉन स्टाहल समझ लिया। उसने और उसकी बेटी ने उसके साथ दयालुतापूर्वक व्यवहार किया। उन्होंने उसे अपने घर आमंत्रित किया। उसे भोजन खिलाया और वस्त्र दिए। जब आयरन मास्टर को अपनी गलती का पता चला तो उसने उसे वहाँ से चले जाने के लिए कह दिया। लेकिन उसकी बेटी एडला इस बात की जिद्द करती रही कि वह वहीं पर रहे। एडला के द्वारा दिखाई गई दया और सहानुभूति ने उसके हृदय को द्रवित कर दिया। इसलिए उसने वहाँ मिले प्यार की प्रशंसा में वॉन स्टाहल के रूप में अपने हस्ताक्षर किए।)

Talking About The Text

Question 1.
The reader’s sympathy is with the peddler right from the beginning of the story. Why is this so? Is the sympathy justified?
(कहानी के आरम्भ से ही पाठकों की सहानुभूति फेरी वाले के साथ है। ऐसा क्यों है? क्या यह सहानुभूति उचित है?)
Answer:
The rattrap seller is a very poor man. He goes from village to village selling rattraps. But he does not earn enough to keep his body and soul together. So he resorts to begging and petty thefts. We know that stealing is a crime. Yet the readers do not hate him. They have sympathy for him. We know that he is not a habitual thief. If he had been a habitual thief, he would have committed big thefts and there would have been no need for him to wander here and there selling rattraps. He commit thefts only when he has nothing to eat. Although he is a poor, he is a thinker. He can philosophise about his condition. He steals the money of the old crofter. But the feeling of guilt remains with him. When Edla shows love and sympathy to him, he repents at his deed. He leaves the money and requests Edla her to return it to the old man. Thus our sympathy for him is justified. We know that he is not bad at heart. He is only a victim of circumstances.

(चूहेदानी बेचने वाला एक गरीब आदमी है। वह गाँव दर गाँव चूहेदानियाँ बेचने जाता है। लेकिन वह अपने आप को ठीक ढंग से जिन्दा रखने के लिए पर्याप्त धन नहीं कमा पाता है। इसलिए वह भीख माँगने और छोटी-मोटी चोरियाँ करने का काम करने लग जाता है। हम जानते हैं कि चोरी करना एक अपराध है। फिर भी पाठक चोरीवाले से घृणा नहीं करते हैं। वे उसके प्रति सहानुभूति रखते हैं। हम जानते हैं कि वह एक पेशेवर चोर नहीं है। यदि वह एक पेशेवर चोर होता, तो वह बड़ी चोरियाँ करता और फिर उसको इधर-उधर घूमकर चूहेदानियाँ बेचने की जरूरत न होती। वह तभी चोरियाँ करता है जब उसके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं होता है। यद्यपि वह एक गरीब है, लेकिन वह एक विचारक भी है। वह अपनी स्थिति पर विचार कर सकता है। वह बूढ़े किसान का धन चुराता है। लेकिन इस अपराध का बोध उसमें बना रहता है। जब एडला उसके प्रति प्यार और सहानुभूति प्रदर्शित करती है, तो उसे अपने काम पर पछतावा होता है। वह धन को छोड़ जाता है और एडला से प्रार्थना करता है कि वह उस धन को बूढ़े किसान को लौटा दे। अतः उसके प्रति हमारी सहानुभूति न्याय संगत है। हम जानते हैं कि वह दिल से बुरा नहीं है। वह तो केवल परिस्थितियों का शिकार है।)

Question 2.
The story also focuses on human loneliness and the need to bond with others. (कहानी मानवीय अकेलेपन एवं दूसरों के मिलने की उसकी जरूरत पर भी केन्द्रित है।)
Answer:
This story focuses on human loneliness and his need to bond with the others. Man is a social animal. He cannot live in isolation. We feel sympathy for the rattrap seller as he is a lonely and miserable man. He leads a sad and monotonous life. He goes from place to place, selling rattraps. One evening he sees a cottage by the side of a road. He knocks at the door in the hope of getting food and shelter. An old crofter lives there. He is also lonely. He is without wife or child. So he welcomes the peddler.

He offers him food and shelter. He is happy to see the stranger because he can talk to him. He plays a card of game with him until the bedtime. The ironmaster is also lonely, although his daughter lives with him. So he also welcomes the peddler. He tells him that he and his daughter were feeling bad because they did not have company for the Christmas. His daughter insists on his coming to stay with them for the night. Thus the story focuses on human loneliness. It highlights man’s need to bond with others.

(यह कहानी मानव के एकाकीपन और उसके दूसरों के साथ रिश्तों की जरूरत पर केंद्रित है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेलेपन में नहीं रह सकता है। हमें चूहेदानियाँ बेचने वाले के प्रति सहानुभूति होती है क्योंकि वह एक अकेला और दुखी आदमी है। वह एक उदासी और नीरसता भरा जीवन व्यतीत करता है। वह चूहेदानियाँ बेचने के लिए जगह-जगह जाता है। एक शाम उसे एक सड़क किनारे एक घर दिखाई देता है। वह भोजन और आश्रय पाने की उम्मीद के साथ उस घर का दरवाजा खटखटाता है। वहाँ एक बूढ़ा किसान रहता है। वह भी अकेला है। वह पत्नी या बच्चे के बिना रहता है। इसलिए वह फेरी वाले का स्वागत करता है। वह उसे भोजन और आश्रय प्रदान करता है।

वह अजनबी को देखकर प्रसन्न है क्योंकि वह उससे बात कर सकता है। वह सोने के समय तक उसके साथ ताश खेलता है। आयरन मास्टर भी अकेला है, यद्यपि उसकी बेटी उसके साथ रहती है। इसलिए वह भी फेरी वाले का स्वागत करता है। वह उसे बताता है कि उसे और उसकी बेटी को बुरा लग रहा है क्योंकि क्रिसमस पर उनके साथ कोई भी साथ देने वाला नहीं है। उसकी बेटी उसके साथ जिद्द करती है कि वह आकर उनके साथ रात बिताए। इस तरह से यह कहानी मानव के एकाकीपन पर केंद्रित है। यह मनुष्य की दूसरों के साथ रिश्तों के महत्व पर प्रकाश डालती है।)

Question 3.
Have you known/heard of an episode where a good deed or an act of kindness has changed a person’s view of the world? (क्या आपने ऐसी किसी घटना को देखा/सुना है जहाँ किसी व्यक्ति के दया के काम ने अन्य व्यक्ति के संसार के बारे के दृष्टिकोण को बदल दिया हो।)
Answer:
For self attempt with the help of the teacher and classfellows.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 4.
The story is both entertaining and philosophical. (कहानी मनोरंजनपूर्ण एवं दार्शनिकतापूर्ण दोनों ही है।)
Answer:
The ‘Rattrap’ is an interesting story. It is entertaining as it presents the story of a poor peddler who goes around selling rattraps. He also commits a theft. There is an element of suspense as the reader does not know whether he will be caught or not. At the same time, the story is philosophical also. The peddler is in the habit of philosophising his misery. One day an idea comes to his mind that the world is also a rattrap. It sets baits for people and then traps them. The world offers riches and joys, food and shelter, heat and clothing to man.

As soon as man is tempted to take these things, the world traps him. And there is no escape from this trap. The rattrap seller is tempted to steal the money of an old man who gives him shelter. Then the peddler escapes to a forest. There he loses his way and thinks that the forest is a rattrap. Later when the ironmaster invites him to his house, he feels that he is going into another rattrap. Another philosophical idea in the story is that love and understanding can awaken man’s essential goodness. The sympathy shown by Edla to the peddler changes his heart.

(‘The Rattrap’ एक रोचक कहानी है। यह मनोरंजक है क्योंकि यह एक गरीब फेरी वाले की कहानी प्रस्तुत करती है जो चूहेदानियाँ बेचने के लिए इधर-उधर जाता है। वह एक चोरी भी करता है। इस कहानी में एक रहस्य भी है क्योंकि पाठक यह नहीं जानता है कि वह पकड़ा जाएगा या नहीं। साथ-ही-साथ यह कहानी दार्शनिकतापूर्ण भी है। फेरी वाला अपने दुखों के बारे में विचार करता है। एक दिन उसके दिमाग में एक विचार आता है कि यह संसार एक चूहेदानी के समान है। यह लोगों के लिए प्रलोभन देता है और उनको फंसा लेता है। यह संसार (आदमी को) अमीरी और खुशियाँ, भोजन और आश्रय तथा ऊर्जा और वस्त्र प्रदान करता है। जैसे ही इन्सान इन चीजों को हासिल करने के लिए लालच में आता है तो संसार उसे फंसा लेता है और इस चंगुल से छूटने के लिए कोई रास्ता नहीं है।

चूहेदानियाँ बेचने वाला एक बूढ़े किसान का धन चोरी कर लेता है जो कि उसे आश्रय देता है। तब फेरी वाला एक जंगल के रास्ते से बचकर निकलता है। वहाँ वह रास्ता भटक जाता है और सोचता है कि यह संसार एक चूहेदानी के समान है। बाद में जब आयरन मास्टर उसे अपने घर आमंत्रित करता है, तो वह सोचता है कि वह एक अन्य चूहेदानी में फंसने जा रहा है। इस कहानी का दूसरा दार्शनिकता वाला विचार यह है कि प्यार और समझ इन्सान की अच्छाइयों को जागृत कर देती है। एडला के द्वारा फेरी वाले के प्रति दर्शाई गई सहानुभूति उसके हृदय को परिवर्तित कर देती है।)

Working With Words

Question 1.
The man selling the rattraps is referred to by many terms as ‘peddler,’ ‘stranger’, etc. Pick out all such references to him. What does each of these labels indicate of the context or the attitude of the people around him.
(चूहेदानियाँ बेचने वाले आदमी का जिक्र कई नामों से किया गया है, जैसे कि ‘फेरी वाला’, ‘अजनबी’, आदि। उसके बारे में सारे ऐसे नामों को ढूँढो। इनमें से प्रत्येक नाम, सन्दर्भ एवं उसके आस-पास के लोगों के बारे में क्या बताता है ?)
Answer:
The man selling the rattraps is referred to by many names. First of all, he is referred to as a ‘vagabond’. He has no permanent residence and wanders from place to place. He goes around selling rattraps. He seeks shelters wherever the night falls. Then an old crofter gives him food and shelter. Now he is referred to as a ‘stranger’. It is because the old crofter does not know him. He is a stranger to him. He is called the man with the rattraps’ because he sells rattraps. He is also referred to as the rattrap peddler’, because he is a travelling hawker who goes from village to village selling rattraps. He is called a “tramp’ because he is a wanderer.

When the ironmaster first saw him, he thought that he was a ‘tall ragamuffin’ because he was a tall man dressed in ragged clothes. Then the ironmaster mistakes him for his old friend and calls him his ‘old regimental comrade.’ When he refers to the whole world being a rattrap, the ironmaster laughs and calls him a “good fellow’. His daughter Edla refers to him as “the poor hungry wretch”. Thus he is given different labels accofding to the attitude of the people around him.

(चूहेदानियाँ बेचने वाले आदमी को कई नामों से सम्बोधित किया गया है। सबसे पहले तो उसको एक घुमक्कड़ के रूप में सम्बोधित किया गया है। उसका कोई स्थाई आवास नहीं है और वह जगह-जगह भटकता फिरता है। वह चारों ओर चूहेदानियाँ बेचता फिरता है। जहाँ कहीं रात पड़ जाती है वह वहीं आश्रय ले लेता है। तब एक बूढ़ा किसान उसको भोजन और आश्रय प्रदान करता है। फिर उसको एक अजनबी के रूप में सम्बोधित किया गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बूढ़ा किसान उसे जानता नहीं है। वह उसके लिए एक अजनबी है। उसे चूहेदानियों वाला आदमी भी कहा गया है क्योंकि वह चूहेदानियाँ बेचता है। उसे फेरी वाला भी कहा गया क्योंकि वह इधर-उधर घूमकर फेरी लगाने वाला व्यक्ति है जो गाँव दर गाँव चूहेदानियाँ बेचने के लिए घूमता रहता है। उसे एक ‘अवारा’ भी कहा गया है क्योंकि वह घूमने-फिरने वाला व्यक्ति है।

जब आयरन मास्टर ने पहली बार उसे देखा, तो उसने सोचा कि वह एक लम्बा भिखारी है क्योंकि वह एक लम्बा आदमी था जिसने फटे-पुराने कपड़े पहने हुए थे। तब आयरन मास्टर उसको गलती से अपना पुराना मित्र मान लेता है और उसे अपना सेना का पुराना मित्र बताता है। जब वह सारे संसार को एक चूहेदानी बताता है तो आयरन मास्टर उसको एक ‘अच्छा इन्सान’ कहता है। उसकी बेटी एडला उसको एक “गरीब भूखा आदमी” कहती है। इस तरह से उसको उसके आस-पास के लोगों के द्वारा विभिन्न नामों से पुकारा जाता है।)

Question 2.
You came across the words, ‘plod’, ‘trudge’, ‘stagger’ in the story. These words indicate movement accompanied by weariness. Find five other such words with a similar meaning. (आपको कहानी में ‘प्लॉड’, ‘ट्रज’, ‘स्टैगर’ जैसे शब्द नजर आते हैं। ये शब्द थकानपूर्ण चाल को दर्शाते हैं। इन्हीं अर्थों वाले ऐसे अन्य शब्द ढूँढो।)
Answer:
slog, drag, lurch, sway, wobble.

Noticing Form
1. He made them himself at odd moments.
2. He raised himself.
3. He had let himself be fooled by a bait and had been caught.
4…. a day may come when you yourself may want to get a big piece of pork. Notice the way in which these reflexive pronouns have been used (pronoun + self).
In 1 and 4 the reflexive pronouns “himself” and “yourself” are used to convey emphasis.
In 2 and 3 the reflexive pronoun is used in place of personal pronoun to signal that it refers to the same subject in the sentence.
Pick out other examples of the use of reflexive pronouns from the story and notice how they are used.
Answer:
(i) He let himself be tempted to touch the bait.
Here “himself” has been used in place of a personal pronoun to show that it refers to the same subject that is ‘He’ in the sentence.
(ii) He laughed to himself. It is used to show that it refers to the same subject in the sentence.
(iii) It would never occurred to me that ‘you would bother with me yourself’; It refers to the same subject in the sentence.
(iv) He could not bring himself to oppose her. It refers to the same subject in the sentence.

Thinking About Language

Question 1.
Notice the words in bold in the following sentence.
“The fire boy shovelled charcoal into the maw of the furnace with a great deal of clatter.” This is a phrase that is used in the specific context of an iron plant. Pick out other such phrases and words from the story that are peculiar to the terminology of ironworks.
Answer:
(a) A hard regular thumping.
(b) Those are the hammer strokes from an iron mill.
(c) ………………. with smelter, rolling mill, and forge.
(d) Master Smith and his helper sat in the dark forge near the furnace.
(e) Waiting for the pig iron
(f) ……… to be ready to put on the anvil.
(g) …. to stir the glowing mass
(h) The big bellows groaned.
(i) The burning cool cracked.

Question 2.
“Mjölis” is a card game of Sweden. Name a few indoor games played in your region. “Chopar” could be an example.
Answer:
ludo, carom, table tennis, chess, etc.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 3.
A “Crofter” is a person who rents or owns a small farm, especially in Scotland. Think of other uncommon terms for “a small farmer” including those in your language.
Answer:
granger, planter, tiller, cultivator, ranchman, grower, ‘Kisan, “khetihar’, etc.

HBSE 12th Class English The Rattrap Important Questions and Answers

Short Answer Type Questions
Answer the following questions in about 20-25 words : 

Question 1.
Did the rattrap peddler earn enough money to keep his body and soul together? (क्या चूहेदानी बेचने वाला जीवित रहने के लिए पर्याप्त धन कमा लेता है ?)
Answer:
No, the rattrap peddler did not earn enough money to make both ends meet. He went from place to place selling the rattraps. Yet the business was not good. He was always in rags. His cheeks were sunken and he often remained hungry. Sometimes he had to resort to begging or stealing in order to remain alive.
(नहीं, फेरी वाला इतना धन नहीं कमा सकता था जिससे उसका गुजारा हो सके। वह चूहेदानियाँ बेचने के लिए जगह-जगह जाता था। फिर भी उसका धंधा अच्छा नहीं था। वह फटे-पुराने कपड़े पहनता था। उसकी गालें चिपकी हुई थीं और वह हमेशा भूखा रहता था। कई बार तो उसको जिंदा रहने के लिए भीख माँगनी पड़ती थी या चोरी करनी पड़ती थी।)

Question 2.
What philosophical idea came to the peddler’s mind one day? (एक दिन फेरी वाले के दिमाग में क्या दार्शनिक विचार आया ?)
Answer:
One day, while selling rattraps, an idea struck his mind. He thought that the whole world is also like a rattrap. In a rattrap, the rat is caught when he is attracted to the bait and tries to eat it. In the same way the world sets baits for people. These baits are riches, joys, shelter, food and clothing. When a person is tempted towards these bats, he is caught like a rat.
(एक दिन, चूहेदानियाँ बेचते समय उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने सोचा कि सारा संसार ही एक चूहेदानी के समान है। चूहेदानी में चूहा फंस जाता है जब वह भोजन के लालच में आ जाता है और उसे खाने का प्रयास करता है। इसी तरह से यह संसार भी लोगों के लिए प्रलोभन प्रस्तुत करता है। अमीरी, खुशियाँ, घर, भोजन और कपड़े ऐसे ही कुछ प्रलोभन हैं। जब कोई इन्सान इन प्रलोभनों के लालच में आ जाता है, तो वह चूहे की तरह फंस जाता है।)

Question 3.
Where did the peddler seek shelter one evening? (एक शाम को फेरी वाले ने आश्रय की तलाश कहाँ की ?)
Answer:
One dark evening, the peddler was walking along the road with great difficulty. He noticed a little grey cottage by the roadside. He knocked on the door, an old man welcomed him. He was a crofter without wife or child. He gave shelter and food to the peddler.
(एक अंधेरी शाम को, फेरी वाला बड़ी कठिनाई से सड़क किनारे चला जा रहा था। उसने सड़क किनारे एक छोटा-सा स्लेटी रंग का घर देखा। उसने दरवाजे पर दस्तक दी, तो एक बूढ़े आदमी ने उसका स्वागत किया। वह एक किसान था जिसकी पत्नी अथवा बच्चा नहीं थे। उसने फेरी वाले को भोजन अथवा आश्रय प्रदान किया।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 4.
Why was the old crofter happy to see the peddler? (बूढ़ा किसान फेरी वाले को देखकर खुश क्यों हो गया ?) Or Why was the croften so talkative and friendly with the peddler? [H.B.S.E. March, 2019 (Set-D)] (किसान फेरीवाले के साथ इतना बातूनी और मैत्रीपूर्ण क्यों था?)
Answer:
The old crofter welcomed the poor peddler. He was happy to get someone to talk to in his loneliness. He fed the peddler and played a game of cards with him until bedtime. The old man told him that he had been a crofter at Ramsjö Ironworks.
(बूढ़े किसान ने फेरी वाले का स्वागत किया। वह अपने अकेलेपन में किसी को अपने साथ बात करने के लिए पाकर प्रसन्न था। उसने फेरी वाले को भोजन कराया और रात को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेली। बूढ़े आदमी ने उसको बताया कि वह रेमस्जो आयरन वर्क्स में काम किया करता था।)

Question 5.
What did the peddler sell and how did he make those things ? [H.B.S.E. 2020 (Set-B)] (फेरीवाले ने क्या किया और उसने उन चीजों को कैसे बनाया?)
Answer:
The peddler sold small rattraps of wire. He made them himself at odd moments,from the material he got by begging in the stores or at the big farms.
(फेरीवाले ने तार की छोटी चूहेदानियाँ बेचीं। उसने उन्हें स्वयं उस सामग्री से अजीब क्षणों में बनाया जिसे उसने दुकानों या बड़े खेतों में भीख मांगकर प्राप्त किया था।)

Question 6.
How did the old crofter and the peddler leave the cottage the next morning? (बूढ़ा किसान एवं फेरी वाला कुटीर से अगली प्रातः कैसे बाहर गए ?)
Answer:
The next morning, the old crofter and the peddler left the cottage simultaneously. The crofter locked the door and put the key in his pocket. The peddler thanked the old man and bade him good bye. Then they went their own ways. (अगली सुबह, किसान और फेरी वाला एक साथ घर से बाहर निकले। किसान ने दरवाजे पर ताला लगाया और चाबी अपनी जेब में डाल ली। फेरी वाले ने बूढ़े आदमी का धन्यवाद किया और उसे अलविदा कहा। तब वे अपने-अपने रास्तों पर चले गए।)

Question 7.
How did the peddler steal the old crofter’s money? (फेरी वाले ने बूढ़े किसान का पैसा किस प्रकार चुराया ?)
Answer:
The next morning both the men left the cottage at the same time. But half an hour later, the peddler came back to the house. He went to window, smashed a pane and got hold of the pouch. He took out the money and hung the pouch back in its place. Then he went his way.
(अगली सुबह दोनों आदमी एक साथ घर से बाहर गए। लेकिन आधे घंटे बाद, फेरी वाला वापस घर लौट आया। वह खिड़की के पास गया, उसने एक शीशा तोड़ा और थैली अपने हाथ में ले ली। उसने धन बाहर निकाला और थैली को उसी स्थान पर टांग दिया। तब वह चला गया।)

Question 8.
After stealing the money, why did the peddler feel that he was trapped? (पैसा चुराने के बाद फेरी वाले ने ऐसा क्यों महसूस किया कि वह फँस गया है ?)
Answer:
With the stolen money in his pocket, it was not safe for the peddler to walk on the public highway. So he turned off the road into a forest. Later in the day he got into a big and confusing forest. He walked and walked without coming to the end of the forest. Now he felt that the world was really a big rattrap. The money he had stolen was the bait and he had been trapped.

(अपनी जेब में चोरी किया हुआ धन रखकर, फेरी वाले के लिए मुख्य मार्ग से सफर करना सुरक्षित नहीं था। इसलिए वह सड़क मार्ग को छोड़कर जंगल के रास्ते चल दिया। बाद में वह एक बड़े और उलझन वाले जंगल में प्रवेश कर गया। वह चलता गया, चलता गया लेकिन जंगल का अंत ही नहीं हुआ। अब उसको एहसास हो गया था कि यह संसार एक बड़ी चूहेदानी है। जो धन उसने चोरी किया था वह एक प्रलोभन के समान था और वह इसके जाल में फंस चुका था।)

Question 9.
What did the peddler hear when he had lost the hope of his survival? (जब फेरी वाले को जीवन की आशा खो गई महसूस हुई तो उसने क्या सुना ?)
Answer:
Darkness was descending. It was late in December and the forest was getting cold. When he had lost hope of survival, he heard a sound. It was the sound of hammer strokes coming from a iron mill. He got up and moved with difficulty towards the sound.
(अंधेरा घना होता जा रहा था। दिसम्बर के अंतिम दिनों की बात थी और जंगल में ठंड बढ़ती जा रही थी। जब उसने अपने जीवन की आशा खो दी तो उसे एक आवाज सुनाई दी। यह एक लोहे के कारखाने से हथौड़े के टकराने की आवाज थी। वह उठ खड़ा हुआ और कठिनाई के साथ उस आवाज की ओर बढ़ा।)

Question 10.
Why did the rattrap peddler take his way through forest ? [H.B.S.E. 2020 (Set-A)] (चूहेदानी बेचने वाले ने जंगल के माध्यम से अपना रास्ता क्यों बनाया?)
Answer:
The paddler made his living by selling rattraps. But he did not earn much and often had to remain hungry. So, one day he stole an old crofter’s money. In order to being caught, he did not walk along the main road and took his way to the forest.
(पैडलर ने चूहेदानियाँ बेचकर अपना जीवनयापन किया। लेकिन वह ज्यादा नहीं कमाता था और अक्सर भूखा रहना पड़ता था। इसलिए, एक दिन उसने एक पुराने क्रॉफ्टर का पैसा चुरा लिया। पकड़े जाने के डर से, वह मुख्य सड़क पर नहीं चलता था और जंगल में अपना रास्ता बनाता था।)

Question 11.
Why did the ironmaster come to the Ramsjö Ironworks in the night? (आयरन मास्टर रात को रेमस्जो आयरन वर्कस में क्यों आया ?)
Answer:
The ironmaster was the owner of the Ramsjö Ironworks. It was his ambition to ship out good iron to market. He supervised the work day and night in order to make sure that the work was going on well. That night also he had come to the ironworks for his round of inspection.
(आयरन मास्टर रेमस्जो आयरन वर्क्स का मालिक था। उसका लक्ष्य था अच्छी किस्म के लोहे को विदेशी बाजारों में भेजना। वह रात-दिन देखता था कि काम जितना सम्भव हो सके उतना अच्छी तरह से हो। उस रात भी वह अपने निरीक्षण के दौरे पर आयरन वर्क्स में आया था।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 12.
How did the ironmaster react when he saw the ragged peddler? (जब उसने फटेहाल फेरी वाले को देखा तो आयरन मास्टर की क्या प्रतिक्रिया थी ?)
Answer:
After some time, the ironmaster, who owned the mill, came for his nightly inspection. He saw the peddler who was in rags. He mistook the peddler for an old acquaintance, Nils Olof. He wondered why his old friend was in rags. He invited him to visit his house and spend the night there.
(कुछ समय के पश्चात्, आयरन मास्टर, जो कि मिल का मालिक था, अपने रात्रि के समय के निरीक्षण के लिए आया। उसने फेरी वाले को देखा जिसने फटे पुराने कपड़े पहने हुए थे। उसने गलती से उस फेरी वाले को अपना पुराना जान-पहचान वाला नील्स ओल्फ समझ लिया। वह हैरान था कि उसके पुराने मित्र ने चिथड़े क्यों पहन रखे थे। उसने उसे अपने घर आमंत्रित किया और उनके साथ रात बिताने के लिए कहा।)

Question 13.
Why was the peddler surprised when the ironmaster referred to him as his old friend? Why did he refuse to go with him.? ।
(जब आयरन मास्टर ने उसे अपना पुराना मित्र कहा तो फेरी वाला हैरान क्यों हो गया ? उसने उसके साथ जाने से इन्कार क्यों किया ?)
Answer:
The peddler had never seen the ironmaster before. Nor did he know his name. But he told the ironmaster that he was running into bad luck. The ironmaster told him that he should not have resigned from the regiment. Then the ironmaster invited him to his house for the Christmas Eve. But the peddler did not want to fall into any fresh trouble. So he emphatically refused to go with him.

(फेरी वाले ने आयरन मास्टर को पहले कभी नहीं देखा था। वह उसका नाम भी नहीं जानता था। लेकिन उसने आयरन मास्टर को बताया कि आजकल उसकी किस्मत खराब चल रही है। आयरन मास्टर ने उसको बताया कि उसे सेना से त्यागपत्र नहीं देना चाहिए था। तब आयरन मास्टर ने उसको क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अपने घर आमंत्रित किया। लेकिन फेरी वाला किसी नए संकट में नहीं फंसना चाहता था। इसलिए उसने जोर देकर उसके साथ जाने से मना कर दिया।)

Question 14.
At last the peddler agreed to go to the ironmaster’s house and spend the night there. Why? (अन्त में फेरी वाला आयरन मास्टर के साथ जाने और वहाँ रात बिताने के लिए राजी हो गया। क्यों ?)
Answer:
The ironmaster had a young daughter named Edla. He thought that his daughter might persuade his old friend to stay with them. So he went home and brought his daughter. Edla looked at him compassionate. She requested him to come to her home. At last, the rattrap seller agreed and went with them.

(आयरन मास्टर की एक छोटी बेटी थी जिसका नाम एडला था। वह सोचता था कि उसकी बेटी उसके पुराने मित्र को उनके साथ रात बिताने के लिए मना सकती थी। इसलिए वह घर गया और अपनी बेटी को लेकर आया। एडला ने उसकी ओर दया भाव से देखा। उसने उससे अपने घर आने की प्रार्थना की। अंत में, चूहेदानियों की फेरी वाला सहमत हो गया और उनके साथ चलागया।)

Question 15.
When did the ironmaster realise that the peddler was not his old friend? (आयरन मास्टर को ऐसा कब महसूस हुआ कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं है ?)
Answer:
The next day was Christmas. The servant had bathed the peddler, cut his hair and shaved him. When the ironmaster came into the dining room he looked at him in broad daylight. Now he realised that he had been mistaken and that man was not his old friend.

(अगले दिन क्रिसमस था। नौकर ने फेरी वाले को स्नान करवा दिया था, उसके बाल काट दिए थे और दाढ़ी बना दी थी। जब आयरन मास्टर भोजन कक्ष में आया और दिन के प्रकाश में उसने उसे देखा। तब उसको उस बात का एहसास हो गया कि उससे गलती हो गई है और वह उसका पुराना मित्र नहीं है।)

Question 16.
What happened when the ironmaster realised his mistake? (जब आयरन मास्टर को अपनी भूल का एहसास हुआ तो क्या हुआ ?)
Answer:
The iron master realised that the peddler was not his old friend. He thundered at him and asked him who he was. He threatened to call the sheriff. But the peddler said that it was not his fault. He had not tried to deceive anybody. At this the ironmaster asked him to go away.

(आयरन मास्टर को इस बात का एहसास हो गया था कि फेरी वाला उसका पुराना मित्र नहीं है। वह उस पर गरजा और पूछा कि वह कौन है। उसने शेरिफ को बुलाने की धमकी दी। लेकिन फेरी वाले ने कहा कि उसकी कोई गलती नहीं है। उसने किसी को भी धोखा देने का प्रयास नहीं किया था। इस पर आयरन मास्टर ने उसे वहाँ से चले जाने को कहा।)

Question 17.
Why didn’t the stranger tell the ironmaster that he was not Nils Ol of ? (अजनबी ने आयरन मास्टर को यह क्यों नहीं बताया कि वह निल्स ओलोफ नहीं था?) [H.B.S.E. 2019 (Set-A)]
Answer:
When the ironmaster came for his nightly inspection he saw a stranger (peddler) who was in rags. He mistook him for an old acquaintance, Nils Olof. He wondered why his old friend was in rags. He invited him to visit his house and spend the night there. But the stranger (peddler) did not tell him that he was not Nils Olof because he wanted shelter and food from him.
(जब रात को आयरन मास्टर निरीक्षण के लिए निकला तब उसने एक अजनबी (फेरी वाला) को देखा जो फटे पुराने कपड़ों में था। उसने गलती से उस अजनबी को अपना पुराना मित्र निल्स ओलोफ समझ लिया। परन्तु अजनबी ने उसे यह नहीं बताया कि वह उसका मित्र निल्स ओलोफ नहीं हैं क्योंकि आयरन मास्टर से उसे खाना और आसरा चाहिए था।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 18.
What news did the ironmaster and his daughter hear at the church? What did the ironmaster fear?
(चर्च में आयरन मास्टर एवं उसकी बेटी ने क्या समाचार सुना ? आयरन मास्टर को क्या भय था ?)
Answer:
The next morning, the ironmaster and his daughter went to church for Christmas service. The seller was still as the ironmaster and his daughter came to know that one of the old crofters had been robbed by a man who sold rattraps. That news made Edla sad. Her father was afraid that the rattrap seller might have stolen all their silver spoons in their absence.

(अगली सुबह, आयरन मास्टर और उसकी बेटी क्रिसमस मनाने चर्च चले गए। चूहेदानियाँ बेचने वाला अभी भी सो रहा था। चर्च में आयरन मास्टर और उसकी बेटी को इस बात का पता चला कि एक बूढ़े किसान को एक आदमी ने लूट लिया है जो चूहेदानियाँ बेचता है। इस समाचार से एडला निराश हो गई। उसके पिता को डर था कि चूहेदानियाँ बेचने वाला उनकी गैरहाजरी में उनके चाँदी के सारे चम्मच चुरा सकता था।)

Question 19.
What present did the peddler leave for Edla? What did he write in his letter to her? (फेरी वाला एडला के लिए क्या उपहार छोड़ गया ? उसने उसके लिए अपने पत्र में क्या लिखा ?)
Answer:
The valet told Edla that the peddler left a little package for her. She found a small rattrap in the package. Inside the package there were three ten-kronor notes and a letter. In his letter he thanked her for being so nice to him as if he was really a captain. He did not want her to be troubled with a thief on Christmas. He requested her to return the money to the old crofter. He wrote that the rattrap was a Christmas present to her.

_(नौकर ने एडला को बताया कि फेरी वाला उसके लिए एक छोटा पैकेट छोड़कर गया है। उस पैकेट के अन्दर एक छोटी चूहेदानी थी। पैकेट के अन्दर दस क्रॉनर के तीन नोट और एक पत्र था। अपने पत्र में उसने, उनके द्वारा किए गए अच्छे व्यवहार के लिए धन्यवाद किया जैसे कि वह कैप्टन ही हो। वह नहीं चाहता था कि उसको क्रिसमस पर एक चोर के साथ रहने का कष्ट हो। उसने उससे प्रार्थना की कि वह उस धन को बूढ़े किसान को लौटा दे। उसने लिखा कि चूहेदानी उसके लिए क्रिसमस का एक उपहार है।)

Long Answer Type Questions
Answer the following questions in about 80 words

Question 1.
Who was the poor peddler? Why did he think that the whole world was a rattrap? (गरीब फेरी वाला कौन था ? वह ऐसा क्यों सोचता था कि सारा संसार एक चूहेदानी है ?)
Answer:
The peddler was a poor man. He made small rattraps of wire. He wandered from place to place selling these rattraps. But he could not earn enough to make both ends meet. So he had to beg as well as resort to petty thefts. His clothes were in rags, his cheeks were sunken and he had often to remain hungry. His life was sad and monotonous. One day, while selling rattraps, an idea struck his mind. He thought that the whole world is also like a rattrap. In a rattrap, the rat is caught when he is attracted to the bait and tries to eat it. In the same way the world sets baits for people. These baits are riches, joys, shelter, food and clothing. When a person is tempted towards these baits, he is caught like a rat. Then there is no escape from the clutches of the world. The peddler thought that life had never been kind to him. This world was just like a rattrap to him. This idea amused him. He was able to philosophise his misery and poverty

(फेरी वाला एक गरीब आदमी था। वह तार के साथ छोटी चूहेदानियाँ बनाता था। वह इन चूहेदानियों को बेचने के लिए जगह-जगह घूमता फिरता था। लेकिन वह इतना धन नहीं कमा पाता था जिससे उसका गुजारा हो सके। इसलिए उसको भीख माँगनी पड़ती थी और छोटी-मोटी चोरियाँ भी करनी पड़ती थी। उसके कपड़े चिथड़े थे, उसकी गालें चिपकी हुई थी और उसको प्रायः भूखा रहना पड़ता था। उसका जीवन उदासी और नीरसता से भरा हुआ था। एक दिन, चूहेदानियाँ बेचते समय उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने सोचा कि यह सारा संसार एक चूहेदानी के समान है। चूहेदानी में चूहा फंस जाता है जब वह खाने की ओर आकर्षित हो जाता है और उसे खाने का प्रयास करता है। इसी तरह से यह संसार भी लोगों के लिए प्रलोभन प्रस्तुत करता है। ये प्रलोभन हैं अमीरी, खुशियाँ, घर, भोजन और वस्त्र। जब कोई व्यक्ति इन प्रलोभनों की ओर आकर्षित होता है, तो वह एक चूहे की तरह फंस जाता है। तब इस संसार के चंगुल से बचने का कोई भी रास्ता नहीं बचता है। फेरी वाला सोचता है कि यह संसार कभी भी उसके प्रति दयालु नहीं रहा है। यह संसार उसके लिए मात्र एक चूहेदानी के समान था। इस विचार से वह खुश हो गया। वह अपने कष्टों और गरीबी के बारे में दार्शनिकतापूर्ण विचार करने लगा।)

Question 2.
Describe the peddler’s stay with the old crofter. How did he respond to the old man’s kindness and hospitality? (फेरी वाले का बूढ़े किसान के पास ठहरने का वर्णन करो। उसने बूढ़े व्यक्ति की दयालुता एवं आतिथ्य का क्या बदला चुकाया ?)
Answer:
One dark evening, the peddler was walking along the road with great difficulty. He noticed a little grey cottage by the roadside. He knocked on the door, an old man welcomed him. He was a crofter without wife or child. The old man was happy to get someone to talk to in his loneliness. He fed the peddler and played a game of cards with him until bedtime. The old man told him that he had been a crofter at Ramsjö Ironworks. Now he earned his living by selling his cow’s milk. He said that the previous month he had received thirty kronors in payment. The old man showed him the money which he kept in a leather pouch hung on a nail in the window frame. The next morning both the men left the cottage at the same time. But half an hour later, the peddler came back to the house. He went to window, smashed a pane and got hold of the pouch. He took out the money and hung the pouch back in its place. Then he went his way.

(एक अंधेरी शाम को फेरी वाला बड़ी कठिनाई के साथ सड़क पर चला जा रहा था। उसने सड़क किनारे स्लेटी रंग का एक छोटा-सा घर देखा। उसने दरवाजे पर दस्तक दी, एक बूढ़े आदमी ने उसका स्वागत किया। वह एक किसान था जिसकी पत्नी अथवा बच्चा नहीं था। बूढ़ा आदमी अपने अकेलेपन में किसी को अपने साथ बातें करने के लिए पाकर प्रसन्न था। उसने फेरी वाले को भोजन कराया और रात को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेली। बूढ़े आदमी ने उसे बताया कि वह रेमस्जो आयरन वर्क्स में एक किसान के रूप में काम कर चुका था। अब वह अपनी गाय का दूध बेचकर अपनी आजीविका कमाता था। उसने कहा कि पिछले महीने उसे भुगतान के रूप में तीस क्रॉनर मिले थे। बूढ़े आदमी ने उसको वह धन दिखाया जो कि उसने एक चमड़े की थैली में डालकर खिड़की के पास कील पर टाँगा हुआ था। अगली सुबह दोनों आदमी एक साथ घर से बाहर गए। लेकिन आधे घंटे के पश्चात् फेरी वाला घर वापस लौटा। वह खिड़की के पास गया, एक शीशा तोड़ा और थैली को उतार लिया। उसने थैली से धन बाहर निकाला और थैली को वापस वहीं टाँग दिया। तब वह चला गया।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 3.
Where did the peddler go after stealing the old crofter’s money? (बूढ़े किसान का पैसा चुराने के बाद फेरी वाला कहाँ गया ?)
Answer:
The old crofter treated the peddler in a kind manner. He offered him food and shelter for the night. He played a game of cards with him until bed time. But the peddler stole his money and went away. With the stolen money in his pocket, it was not safe for the peddler to walk on the public highway. So he turned off the road into a forest. Later in the day he got into a big and confusing forest. He walked and walked without coming to the end of the forest. Now he felt that the world was really a big rattrap.

The money he had stolen was the bait and he had been trapped. Darkness was descending. It was late in December and the forest was getting cold. When he had lost hope of survival, he heard a sound. It was the sound of hammer strokes coming from an iron mill. He got up and moved with difficulty towards the sound. The rattrap seller reached the Ramsjö Ironworks and entered it. The blacksmiths looked at him with indifference. He asked permission to stay there for the night which was granted by the chief blacksmith.

(बूढ़े किसान ने एक दयालु ढंग के साथ फेरी वाले के साथ व्यवहार किया। उसने उसे भोजन और रात को ठहरने के लिए आश्रय दिया। उसने उसके साथ सोने के समय तक ताश भी खेली। लेकिन फेरी वाले ने उसका धन चोरी कर लिया और वह चला गया। अपनी जेब में चोरी किया हुआ धन डालकर, फेरी वाले के लिए मुख्य मार्ग से होकर जाना सुरक्षित नहीं था। इसलिए वह सड़क मार्ग छोड़कर जंगल के रास्ते से गया। बाद में वह एक बड़े और उलझन भरे जंगल में घुस गया। वह चलता गया, चलता गया लेकिन जंगल कहीं भी समाप्त नहीं हुआ। अब उसे महसूस हुआ कि यह संसार सचमुच में एक बड़ी चूहेदानी था। जो धन उसने चोरी किया था वह एक प्रलोभन था और वह उसमें फंस चुका था। अंधेरा घना होता जा रहा था।

दिसम्बर महीने के अंतिम दिन थे और जंगल में ठंड बढ़ती जा रही थी। जब उसने अपने जीवित रहने की आशा खो दी तो उसे एक आवाज सुनाई दी। यह हथौड़े के टकराने की आवाज थी जो कि एक लोहे के कारखाने से आ रही थी। वह उठ खड़ा हुआ और कठिनाई के साथ उस आवाज की ओर बढ़ा। चूहेदानी की फेरी लगाने वाला रेमस्जो आयरन वर्क्स पहुंचा और उसमें प्रवेश कर गया। लोहारों ने उसकी ओर उदासीनतापूर्वक देखा। उसने वहाँ रात को ठहरने के लिए अनुमति माँगी जो कि मुख्य लोहार के द्वारा प्रदान कर दी गई।)

Question 4.
Why did the peddler agree to spend the night at the house of the ironmaster? Why did the ironmaster ask him to go the next morning?
(फेरी वाला आयरन मास्टर के घर रात बिताने के लिए राजी क्यों हो गया ? अगली प्रातः आयरन मास्टर ने उसे चले जाने को क्यों कह दिया ?)
Answer:
The peddler was given permission to stay at the ironworks. After some time, the ironmaster came for his nightly inspection. He saw the peddler who was in rags. He mistook the peddler for an old acquaintance, Nils Olof. He wondered why his old friend was in rags. The peddler had never seen him. Nor did he know his name. But he told the ironmaster that he was running into bad luck. The ironmaster told him that he should not have resigned from the regiment.

Then the ironmaster invited him to his house for the Christmas Eve. But the peddler did not want to fall into any fresh trouble. So he emphatically refused to go with him. The ironmaster then asked his daughter Edla to persuade his old friend to stay with them. She requested him to come to her home. At last, the rattrap seller agreed and went with them. The next day was Christmas. The servant had bathed him, cut his hair and shaved him. When the ironmaster came into the dining room he looked at him in broad daylight. Now he realised that he had been mistaken and that man was not his old friend. He thundered at him and asked him to go away.

(फेरी वाले को आयरन वर्क्स में ठहरने की अनुमति प्रदान की गई। कुछ समय के पश्चात् आयरन मास्टर रात्रिकालीन निरीक्षण के लिए आया। उसने फेरी वाले को देखा, जिसने फटे-पुराने कपड़े पहन रखे थे। उसने फेरी वाले को गलती से अपना पुराना जान-पहचान वाला नील्स ओल्फ समझ लिया। वह हैरान था कि उसका पुराना मित्र चिथड़ों में क्यों था। फेरी वाले ने उसे पहले कभी नहीं देखा था। न ही वह उसका नाम जानता था। लेकिन उसने आयरन मास्टर को बताया कि उसकी किस्मत अच्छी नहीं चल रही है।

आयरन मास्टर ने उसको बताया कि उसे सेना से त्यागपत्र नहीं देना चाहिए था। तब आयरन मास्टर ने उसको क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अपने घर आमंत्रित किया। लेकिन फेरी वाला किसी नए संकट में नहीं फंसना चाहता था। इसलिए उसने बलपूर्वक ढंग से उनके साथ जाने से मना कर दिया। तब आयरन मास्टर ने अपनी बेटी एडला से कहा कि वह उसके पुराने मित्र को उनके साथ ठहरने के लिए मना ले। उसने उससे अपने घर आने के लिए प्रार्थना की। अंततः चूहेदानियाँ बेचने वाला मान गया और उनके साथ चला गया। अगले दिन क्रिसमस था। नौकर ने उसे स्नान करा दिया था, उसके बाल काट दिए थे और उसकी दाढ़ी बना दी थी। जब आयरन मास्टर भोजन कक्ष में आया तो उसने दिन के प्रकाश में उसे देखा। अब उसको इस बात का एहसास हुआ कि उसे गलती लग गई है। वह उस पर गरजा और उसे चले जाने के लिए कहा।)

Question 5.
Why did the ironmaster’s daughter insist that the peddler should stay with them? What happened in the end? (आयरन मास्टर की बेटी ने इस बात का आग्रह क्यों किया कि फेरी वाला उनके साथ रहे ? अन्त में क्या हुआ?) Or How did the peddler show his gratitude to Edla? (फेरी वाले ने एडला को अपनी कृतज्ञता कैसे दिखाई?) [H.B.S.E. March, 2018 (Set-D)]
Answer:
The ironmaster asked the peddler to go away. But his daughter Edla wanted the peddler to stay with them that day. She said that they let him stay and enjoy a day of peace. They should not chase away a man whom they had promised invitation to enjoy the Christmas joy. Then she asked him to sit down and eat. The next morning the ironmaster and his daughter went to church for Christmas service.

The rattrap seller was still asleep. At church the ironmaster and his daughter came to know that one of the old crofters had been robbed by a man who sold rattraps. That news made Edla sad. Her father was afraid that the rattrap seller might have stolen all their silver spoons in their absence. But the valet told them that the peddler had not taken anything with him. Rather he had left a little package for the girl. She found a small rattrap in the package. Inside the package there were three ten-kronor notes and a letter. In his letter he thanked her for being so nice to him as if he was really a captain. He did not want her to be troubled with a thief on Christmas. He requested her to return the money to the old crofter. He wrote that the rattrap was a Christmas present to her.

(आयरन मास्टर ने फेरी वाले से चले जाने को कहा। लेकिन उसकी बेटी एडला चाहती थी कि वह उस रात को उनके साथ ठहरे। उसने कहा कि उन्होंने उसे एक दिन उनके साथ चैन से रहने की अनुमति प्रदान की थी। उन्हें उस आदमी को भगाना नहीं चाहिए जिसको कि उन्होंने क्रिसमस की खुशियों के लिए निमंत्रण का वायदा किया था। तब उसने उससे कहा कि वह बैठ जाए और खाना खाए। अगली सुबह आयरन मास्टर और उसकी बेटी चर्च में क्रिसमस मनाने चले गए। चूहेदानियाँ बेचने वाला अभी भी सो रहा था।

चर्च में आयरन मास्टर और उसकी बेटी को जानकारी मिली कि एक बूढ़े किसान को एक चूहेदानियाँ बेचने वाले आदमी ने ठग लिया है। इस समाचार ने एडला को उदास कर दिया। उसके पिता को डर लग रहा था कि चूहेदानियाँ बेचने वाला उनकी गैर हाजरी में उनके चाँदी के सारे चम्मच चुरा सकता था। लेकिन नौकर ने उन्हें बताया कि फेरी वाला अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं गया है। बल्कि वह लड़की के लिए एक छोटा-सा पैकेट छोड़कर गया है। उसने पैकेट के अन्दर एक छोटी-सी चूहेदानी को पाया। उस पैकेट के अन्दर दस क्रॉनर के तीन नोट और एक पत्र भी था। अपने पत्र में उसने उस लड़की का अपने प्रति इतना अच्छा व्यवहार करने जैसे कि वह एक कैप्टन हो; के लिए धन्यवाद किया। वह नहीं चाहता था कि उसे क्रिसमस के अवसर पर एक चोर के साथ रहने का कष्ट हो। उसने उससे प्रार्थना की कि वह उस धन को बूढ़े किसान को लौटा दे। उसने लिखा कि चूहेदानी उसके लिए क्रिसमस का एक उपहार थी।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

Question 6.
Do you think that the peddler is a criminal or a victim of circumstances? (आपके विचार में फेरी वाला अपराधी है या परिस्थितियों का शिकार है ?) [H.B.S.E. 2017 (Set-A)]
Or
Write a brief character-sketch of the peddler. (फेरी वाले का संक्षिप्त चरित्र-चित्रण करो।)
Answer:
The rattrap seller is a very poor man. He goes from place to place selling rattraps. But he does not earn enough to keep his body and soul together. So he resorts to begging and petty thefts. We know that stealing is a crime. Yet we do not hate him. We have sympathy for him. We know that he is not a habitual thief. If he had been a habitual thief, he would have committed big thefts and there would have been no need for him to wander here and there selling rattraps. He commits thefts only when he has nothing to eat. Although he is a poor, he is a thinker. He can philosophise about his condition. He steals the money of the old crofter. But the feeling of guilt remains with him. When Edla shows love and sympathy to him, he repents at his deed. His goodness is awakened. He leaves the money and requests Edla to return it to the old man. Thus we find that the poor rattrap peddler is not a criminal. He is only a victim of circumstances.

(चूहेदानियाँ बेचने वाला एक अति गरीब आदमी है। वह चूहेदानियाँ बेचने के लिए जगह-जगह जाता है। लेकिन वह इतना धन भी नहीं कमा पाता है कि अपने आप को जीवित रख सके। इसलिए वह भीख माँगने और छोटी-मोटी चोरियाँ करने लग जाता है। हम जानते हैं कि चोरी करना एक अपराध है। फिर भी हम उससे घृणा नहीं करते हैं। हम उसके प्रति सहानुभूति रखते हैं। हम जानते हैं कि वह एक पक्का चोर नहीं है। यदि वह एक पक्का चोर होता तो फिर वह बड़ी चोरियाँ करता और उसको इधर-उधर घूम कर चूहेदानियाँ बेचने की भी जरूरत न पड़ती। वह तभी चोरी करता है जब उसके पास खाने को कुछ भी नहीं होता है। यद्यपि वह एक गरीब है लेकिन वह एक विचारक है। वह अपनी स्थिति पर दार्शनिकतापूर्ण विचार कर सकता है। वह बूढ़े किसान का धन चोरी कर लेता है। लेकिन अपराध बोध की भावना उसका पीछा नहीं छोड़ती है। जब एडला उसके प्रति प्यार और सहानुभूति दिखाती है, तो उसे अपने किए पर पश्चाताप होता है। उसकी अच्छाई जागृत हो जाती है। वह धन वहीं छोड़ जाता है और एडला से प्रार्थना करता है कि वह उसे बूढ़े आदमी को लौटा दे। इस प्रकार से हम देखते हैं कि गरीब चूहेदानियाँ बेचने वाला फेरी वाला एक अपराधी नहीं है। वह तो केवल परिस्थितियों का मारा हुआ है।)

The Rattrap MCQ Questions with Answers

1. Who is the writer of the story ‘The Rattrap’?
(A) Ruskin Bond
(B) Selma Lagerlof
(C) R.K. Narayan
(D) Tagore
Answer:
(B) Selma Lagerlof

2. Who is the main character in the story “The Rattrap’?
(A) a poor man who made rattraps
(B) a rich man
(C) a doctor
(D) a teacher
Answer:
(A) a poor man who made rattraps

3. The poor man in the story could not make enough money by selling rattraps. What else did he do in order to make both ends meet?
(A) worked as a laborer
(B) did part-time work as a teacher
(C) did farming
(D) begged and stole
Answer:
(D) begged and stole

4. What idea struck the rattrap seller’s mind one day?
(A) this world is joyful and wonderful
(B) he should run away
(C) the whole world is also like a rattrap
(D) people are wonderful
Answer:
(C) the whole world is also like a rattrap

5. What did the rattrap seller notice one dark evening, as he was walking along the road?
(A) a big car
(B) a little grey cottage
(C) a big house
(D) a beautiful woman
Answer:
(B) a little grey cottage

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6. Who was the old man living in the little cottage?
(A) an engineer
(B) a politician
(C) a crofter without wife or children
(D) a thief
Answer:
(C) a crofter without wife or children

7. What did the old man do for a living?
(A) selling his cow’s milk
(B) he begged
(C) he was a farmer
(D) he wrote poems
Answer:
(A) selling his cow’s milk

8. Where did the old man keep his money?
(A) in a chest
(B) in his box
(C) in the bank
(D) in a leather pouch
Answer:
(D) in a leather pouch

9. Who stole the old man’s money?
(A) his neighbour
(B) his son
(C) the rattrap seller
(D) his wife
Answer:
(C) the rattrap seller

10. How did the rattrap seller enter the cottage in order to steal the old man’s money?
(A) by breaking the lock
(B) by smashing a window pane
(C) by breaking the door
(D) by entering through the ventilator
Answer:
(B) by smashing a window pane

11. What happened when the rattrap seller left the main road and went into a forest?
(A) he was happy there
(B) he took rest there
(C) he enjoyed the forest
(D) he became confused and lost the way
Answer:
(D) he became confused and lost the way

12. When the rattrap seller had lost all hope, he heard a sound. From where was the sound coming?
(A) from a school
(B) from a mill
(C) from a lake
(D) from a shop
Answer:
(B) from a mill

13. Where did the rattrap seller reach when he followed the sound?
(A) a school
(B) a shop
(C) a hill
(D) the Ramsjo Ironworks
Answer:
(D) the Ramsjo Ironworks.

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14. For what did the rattrap seller ask permission?
(A) to stay there for the night
(B) to dance in the factory
(C) to help the blacksmiths
(D) to build a wall
Answer:
(A) to stay there for the night

15. What did the owner of the factory mistake the rattrap seller for?
(A) a police inspector
(B) his old friend Nils Ol of
(C) a soldier
(D) a teacher
Answer:
(B) his old friend Nils Olof

16. Where did the ironmaster invite the rattrap seller?
(A) to the dance party
(B) to the hospital
(C) to his house for the Christmas Eve
(D) to a marriage party
Answer:
(C) to his house for the Christmas Eve

17. What was the name of the ironmaster’s daughter?
(A) Edla
(B) Pedal
(C) Sedla
(D) Media
Answer:
(A) Edla

18. At first the rattrap seller declined the ironmaster’s invitation. But then why did he agree to go to his house as his guest?
(A) because he was hungry
(B) because he wanted to sleep
(C) because the ironmaster’s daughter invited him
(D) because he wanted to steal ironmaster’s money
Answer:
(C) because the ironmaster’s daughter invited him

19. What happened when the ironmaster saw the rattrap seller looked at him in broad day light?
(A) he praised the personality of the rattrap seller
(B) he gave him good food
(C) he embraced him
(D) he recognized that he was not his friend
Answer:
(D) he recognized that he was not his friend

20. When the ironmaster asked the peddler to go away, what did his daughter say?
(A) she asked the peddler to stay with them that day
(B) she abused the peddler
(C) she beat the peddler
(D) she reported him to the police
Answer:
(A) she asked the peddler to stay with them that day

21. At the church next day, what did the ironmaster and his daughter come to know about the rattrap seller?
(A) that he was a rich man
(B) that he had stolen the old crofter’s money
(C) that the rattrap seller had run away
(D) that he had been arrested
Answer:
(B) that he had stolen the old crofter’s money

22. What did ironmaster feel when he learnt that the rattrap seller was a thief?
(A) that the rattrap seller might steal his silver spoons
(B) that he should report the matter to the police
(C) that he should beat the man
(D) that he should shoot him down
Answer:
(A) that the rattrap seller might steal his silver spoons.

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23. What had the rattrap seller left for the ironmaster’s daughter as a Christmas gift?
(A) a silver ring
(B) a gold ring
(C) a beautiful dress
(D) the rattrap
Answer:
(D) the rattrap

The Rattrap Important Passages for Comprehension

Seen Comprehension Passages
Read the following passages and answer the questions given below:

Type (i)
Passage 1
One dark evening as he was trudging along the road he caught sight of a little gray cottage by the roadside, and he knocked on the door to ask shelter for the night. Nor was he refused. Instead of the sour faces which ordinarily met him, the owner, who was an old man without wife or child, was happy to get someone to talk to in his loneliness. Immediately he put the porridge pot on the fire and gave him supper; then he carved off such a big slice from his tobacco roll that it was enough both for the stranger’s pipe and his own. Finally, he got out an old pack of cards and played ‘majlis’ with his guest until bedtime. [H.B.S.E. 2019 (Set-D)]
Word-meanings :
Trudging = wandering (आवारागर्दी);
sour = unpleasant (अप्रिय);
porridge = oat meal (दलिया)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(D) The Rattrap

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William O Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(D) Selma Lagerlöf

(iii) What did the vagabond see one dark evening?
(A) a little gray cottage
(B) an old woman
(C) a small boy
(D) all the above
Answer:
(A) a little gray cottage

(iv) Who was the owner of the cottage?
(A) an old woman
(B) an old man
(C) a rattrap seller
(D) the author himself
Answer:
(B) an old man

(v) Who were these two men?
(A) The old man and his guest
(B) The old man and his son
(C) The old man and his wife
(D) The old man and his father
Answer:
(A) The old man and his guest

Passage 2
The next day both men got up in good season. The crofter was in a hurry to milk his cow, and the other man probably thought he should not stay in bed when the head of the house had gotten up. They left the cottage at the same time. The crofter locked the door and put the key in his pocket. The man with the rattraps said good bye and thank you, and thereupon each went his own way.

But half an hour later the rattrap peddler stood again before the door. He did not try to get in, however, He only went up to the window, smashed a pane, stuck in his hand, and got hold of the pouch with the thirty kronor. He took the money and thrust it into his own pocket. Then he hung the leather pouch very carefully back in its place and went away.

Word-meanings :
Probably = perhaps (शायद);
smashed = broke (तोड़ा) ।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(D) The Rattrap

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William O Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(D) Selma Lagerl of

(iii) Who was in a hurry?
(A) The Crofter
(B) The other man
(C) Both (A) and (B)
(D) none of the above
Answer:
(A) The Crofter.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

(iv) What did the rattrap peddler do after half an hour?
(A) He went back to him home
(B) He came back to the old man’s cottage
(C) He went to the market to sell rattraps
(D) none of the above
Answer:
(B) He came back to the old man’s cottage

(v) What did he steal from the old man’s cottage?
(A) Rattraps
(B) Watch
(C) Money
(D) Food
Answer:
(C) Money

Passage 3
It was late in December. Darkness was already descending over the forest. This increased the danger and increased also his gloom and despair. Finally, he saw no way out, and he sank down on the ground, tired to death, thinking that his last moment had come. But just as he laid his head on the ground, he heard a sound a hard regular thumping. There was no doubt as to what that was. He raised himself. “Those are the hammer strokes from an iron mill”, he thought. “There must be people nearby”. He summoned all his strength, got up, and staggered in the direction of the sound.

Word-meanings :
Descending = coming down (नीचे आते हुए);
gloom = sadness (उदासी)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(D) The Rattrap

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William O Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(D) Selma Lagerlöf

(iii) What increased the rattrap seller’s despair?
(A) darkness and cold
(B) hunger and weakness
(C) disease and old age
(D) all the above
Answer:
(A) darkness and cold

(iv) What did he hear when he laid his head to the ground?
(A) hissing sounds
(B) humming sound
(C) creaking sounds
(D) chirping sounds
Answer:
(B) humming sound

(v) Where did he go after summoning his strength?
(A) in the direction of the sound
(B) to him home
(C) to the old man’s home
(D) none of the above
Answer:
(A) in the direction of the sound

Passage 4
During one of the long dark evenings just before Christmas, the master smith and his helper sat in the dark forge near the furnace waiting for the pig iron, which had been put in the fire, to be ready to put on the anvil. Every now and then one of them got up to stir the glowing mass with a long iron bar, returning in a few moments, dripping with perspiration, though, as was the custom, he wore nothing but a long shirt and a pair of wooden shoes.
[H.B.S.E. 2017 (Set-B)]
All the time there were many sounds to be heard in the forge. The big bellows groaned and the burning coal cracked. The fire boy shoveled charcoal into the maw of the furnace with a great deal of clatter. Outside roared the waterfall, and a sharp north wind whipped the rain against the brick-tiled roof.

Word-meanings :
Glowing = shining (चमकना);
shoveled = put through shovels (फावड़े से डालना)।

Questions :
(i) Name the chapter from which these lines have been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(D) The Rattrap

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William O Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(D) Selma Lagerl of

(iii) Who sat in the dark forge near the furnace?
(A) the master smith
(B) his helper
(C) both (A) and (B)
(D) none of the above
Answer:
(C) both (A) and (B)

(iv) What sounds were coming from the furnace?
(A) groaning of bellowing
(B) cracking of coal
(C) both (A) and (B)
(D) none of the above
Answer:
(C) both (A) and (B)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

(v) What was he wearing?
(A) a short shirt and a pair of wooden shoes
(B) a long shirt and a pair of wooden shoes
(C) a long shirt and a pair of leather shoes
(D) a short shirt and a pair of leather shoes
Answer:
(B) a long shirt and a pair of wooden shoes

Type (ii)
Passage 5
No one can imagine how sad and monotonous life can appear to such a vagabond, who plods along the road, left to his own meditations. But one day this man had fallen into a line of thought, which really seemed to him entertaining. He had naturally been thinking of his rattraps when suddenly he was struck by the idea that the whole world about him – the whole world with its lands and seas, its cities and villages – was nothing but a big rattrap. It had never existed for any other purpose than to set baits for people. It offered riches and joys, shelter and food, heat and clothing, exactly as the rattrap offered cheese and pork, and as soon as anyone let himself be tempted to touch the bait, it closed in on him, and then everything came to an end.

Word-meanings :
Vagabond = wanderer (आवारा);
rattrap = a device for catching rats (चूहेदानी)।

Questions :
(i) Name the lesson and its author.
(ii) How does life appear to a vagabond?
(iii) What is the routine of a vagabond?
(iv) What did the vagabond sell in the passage?
(v) Find words from the passage which mean the same as :
(a) wandered, (b) a device for catching rats.
Answers:
(i) Chapter : The Rattrap.
Author : Selma Lagerlof.
(ii) Life appears sad and monotonous to a vagabond.
(iii) A vagabond plods along the road, left to his own meditations.
(iv) The vagabond sold the rattraps in the passage.
(v) (a) vagabond, (b) rattrap.

Passage 6
The man with the rattraps had never before seen the ironmaster at Ramsjo and did not even know what his name was. But it occurred to him that if the fine gentleman thought he was an old acquaintance, he might perhaps throw him a couple of kronor. Therefore he did not want to undeceive him all at once.

“Yes, God knows things have gone downhill with me”, he said. “You should not have resigned from the regiment”, said the ironmaster. “That was the mistake. If only I had still been in the service at the time, it never would have happened. Well, now of course you will come home with me,”

Word-meanings :
Acquaintance = a known person (परिचित);
regiment = mathrm unit of army (सेना दल)।

Questions :
(i) Name the chapter and its author.
(ii) Why did the rattrap peddler not want to undeceive the ironmaster?
(iii) What did the ironmaster think the rattrap peddler to be?
(iv) What did the rattrap peddler not want to do all at once?
(v) Find words from the passage having the meaning same as :
(a) a known person, (b) thought appeared in brain.
Answers:
(i) Chapter: The Rattrap.
Author: Selma Lagerlof.
(ii) The rattrap peddler did not want to undeceive the iron master because he wanted shelter and food from him.
(iii) He thought him an old acquaintance of him.
(iv) He did not want to undeceive the ironmaster all at once.
(v) (a) acquaintance, (b) occurred.

Passage 7
The next day was Christmas Eve, and when the ironmaster came into the dining room for breakfast he probably thought with satisfaction of his old regimental comrade whom he had run across so unexpectedly. “First of all we must see to it that he gets a little flesh on his bones,” he said to his daughter, who was busy at the table. “And then we must see that he gets something else to do than to run around the country selling rattraps.”

“It is queer that things have gone downhill with him as badly as that,” said the daughter. “Last night I did not think there was anything about him to show that he had once been an educated man.”

Word-meanings :
Comrade = friend (साथी);
queer= strange (अजीब)।

Questions :
(i) Name the chapter and its author.
(ii) What special occasion was the next day?
(iii) Why did the ironmaster visit the dining room?
(iv) What did the ironmaster’s daughter think about the rattrap peddler?
(v) Find words from the passage having the meaning same as :
(a) friend, (b) strange.
Answers :
(i) Chapter: The Rattrap.
Author: Selma Lagerlof.
(ii) The next day it was the christmas Eve.
(iii) He visited the dining room for breakfast.
(iv) She thought the rattrap peddler as an unlucky man.
(v) (a) comrade, (b) queer.

Passage 8
But half an hour later, the rattrap peddler stood again before the door. He did not try to get in, however. He only went up to the window, smashed a pane, stuck in his hand, and got hold of the pouch with the thirty kronor. He took the money and thrust it into his own pocket. Then he hung the leather pouch carefully back in its place and went away. [H.B.S.E. March 2018 (Set-D)]

Word-meanings :
Smashed = broke (तोड़ा);
pane = window glass (खिड़की का शीशा);
thrust = pushed (डालना)।

Questions :
(i) Name the chapter from which the above lines have been taken.
(ii) Name the author of the chapter.
(iii) Why did the rattrap peddler not try to get in?
(iv) Where had the leather pouch been hanging?
(v) What was there in the leather pouch?
Answers :
(i) The Rattrap
(ii) Selma Lagerlof
(iii) The rattrap peddler did not try to get in because he knew where the money pouch was.
(iv) The leather pouch was hanging near the window.
(v) There were thirty kroner in the leather pouch.

The Rattrap Summary in English and Hindi

The Rattrap Introduction to the Chapter

Selma Lagerlöf was a Swedish writer. She worked as a country school teacher for nearly ten years before adopted writing as her career. The particular focus of her stories and novels was on the legends she had learned as a child. In 1909 she was awarded the Nobel prize for literature. She was the first woman to get this prize for literature. “The Rattrap’ is an interesting story. It has been told somewhat in the manner of a fairy tale. The rattrap peddler is a poor man. He robs the same who gives him shelter and food. But he is reformed by the compassionate behaviour of a young girl Edla. The story gives the message that the essential goodness of man can be awakened through love and understanding.

(Selma Lagerlöf एक स्वीडिश लेखिका थी। लेखन के रूप में अपना व्यवसाय शुरू करने से पहले उसने लगभग दस साल तक एक ग्रामीण स्कूल में काम किया था। उनकी कहानियों और उपन्यासों का विशेष केंद्र उन दंत कथाओं पर था जो बचपन में उसने सीखी थीं। 1909 में उनको साहित्य का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। साहित्य के लिए यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली वह प्रथम महिला थी। ‘The Rattrap’ एक रोचक कहानी है। यह कुछ-कुछ परियों की कहानी के रूप में सुनाई गई है। चूहेदानियाँ बेचने वाला व्यक्ति एक गरीब आदमी है। वह उसी को ठगता है जो उसे आश्रय और भोजन प्रदान करता है। लेकिन एक छोटी लड़की एडला का दयालुतापूर्ण व्यवहार उसे परिवर्तित कर देता है। कहानी संदेश देती है कि मनुष्य की जरूरी अच्छाई को प्यार और समझ के द्वारा जगाया जा सकता है।)

The Rattrap Summary

This story is about a poor man who made small rattraps of wire. He wandered from place to place selling these rattraps. But he could not earn enough to make both ends meet. So he had to beg as well as resort to petty thefts. His clothes were in rags, his cheeks were sunken and he had often to remain hungry. His life was sad and monotonous.

One day, while selling rattraps, an idea struck his mind. He thought that the whole world is also like a rattrap. In a rattrap, the rat is caught when he is attracted to the bait then he tries to eat it. In the same way the world sets baits for people. These baits are riches, joys, shelter, food and clothing. When a person is tempted towards these baits, he is caught like a rat. The peddler thought that life had never been kind to him. This world was just like a rattrap to him.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

One dark evening, he was walking along the road with great difficulty. He noticed a little grey cottage by the roadside. He knocked on the door, an old man welcomed him. He was a crofter without wife or children. The old man was happy to get someone to talk to in his loneliness. He fed the peddler and played a game of cards with him until bedtime. The old man told him that he had been a crofter at Ramsjö Ironworks. Now he earned his living by selling his cow’s milk. He said that the previous month he had received thirty kronors in payment. The old man showed him the money which he kept in a leather pouch hung on a nail in the window frame.

The next morning both the men left the cottage at the same time. But half an hour later, the peddler came back to the house. He went to window, smashed a pane and got hold of the pouch. He took out the money and hung the pouch back in its place. Then he went his way.
With the stolen money in his pocket, it was not safe for the peddler to walk on the public highway. So he turned off the road into a forest. Later in the day he got into a big and confusing forest. He walked and walked without coming to the end of the forest. Now he felt that the world was really a big rattrap. The money

he had stolen was the bait and he had been trapped. Darkness was descending. It was late in December and the forest was getting cold. When he had lost hope of survival, he heard a sound. It was the sound of hammer strokes coming from a iron mill. He got up and moved with difficulty towards the sound.

The rattrap seller reached the Ramsjö Ironworks and entered it. The blacksmiths looked at him with indifference. He asked permission to stay there for the night which was granted by the chief blacksmith. After some time, the ironmaster, who owned the mill, came for his nightly inspection. He saw the peddler who was in rags. He mistook the peddler for an old acquaintance, Nils Olof.

He wondered why his old friend was in rags. The peddler had never seen him. Nor did he know his name. But he told the ironmaster that he was running into bad luck. The ironmaster told him that he should not have resigned from the regiment. Then the ironmaster invited him to his house for the Christmas Eve. But the peddler did not want to fall into any fresh trouble. So he emphatically refused to go with him.

The ironmaster had a young daughter named Edla. He thought that his daughter might persuade his old friend to stay with them. So he went home and brought his daughter. Edla looked at him compassionately. She requested him to come to her home. At last, the rattrap seller agreed and went with them. The next day was Christmas. The servant had bathed him, cut his hair and shaved him. When the ironmaster came into the dining room he looked at him in broad daylight. Now he realised that he had been mistaken and that man was not his old friend. He thundered at him and asked him who he was.

He threatened to call the sheriff. But the peddler said that it was not his fault. He had not tried to deceive anybody. At this the ironmaster asked him to go away. But the ironmaster’s daughter wanted the peddler to stay with them that day. She said that they let him stay and enjoy a day of peace. They should not chase away a man whom they had promised invited to enjoy the Christmas joy. Then she asked him to sit down and eat. In the evening the Christmas tree was lighted. He thanked everybody.

The next morning the ironmaster and his daughter went to church for Christmas service. The rattrap seller was still asleep. At church the ironmaster and his daughter came to know that one of the old crofters had been robbed by a man who sold rattraps. That news made Edla sad. Her father was afraid that the rattrap seller might have stolen all their silver spoons in their absence. But the valet told them that the peddler had not taken anything with him. Rather he had left a little package for the girl.

She found a small rattrap in the package. Inside the package there were three ten-kronor notes and a letter. In his letter he thanked her for being so nice to him as if he was really a captain. He did not want her to be troubled with a thief on Christmas. He requested her to return the money to the old crofter. He wrote that the rattrap was a Christmas present to her.

(यह कहानी एक गरीब आदमी के बारे में है जो तार की छोटी चूहेदानियाँ बनाया करता था। वह इन चूहेदानियों को बेचने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता था। लेकिन वह अपना गुजारा चलाने जितना भी नहीं कमा सकता था। इसलिए उसे या तो भीख माँगनी पड़ती थी या फिर छोटी-मोटी चोरियाँ करनी पड़ती थीं। उसके कपड़े चिथड़े थे, उसकी गालें धंसी हुई थीं और उसे हमेशा भूखा रहना पड़ता था। उसका जीवन उदास और नीरस था।

एक दिन, चूहेदानियाँ बेचते समय, उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने सोचा कि सारा संसार ही एक चूहेदानी के समान है। चूहेदानी में चूहा पकड़ा जाता है जब वह फँसाने के सामान (रोटी) की ओर आकर्षित होता है तो वह उसे खाने का प्रयास करता है। इसी प्रकार से संसार लोगों के लिए फंदे लगाता है। ये फंदे हैं, अमीरी, आनंद, आश्रय, भोजन और वस्त्र । जब एक व्यक्ति इन साधनों की लालसा करता है, तो वह चूहे की भाँति फँस जाता है। फेरी वाले ने सोचा कि जीवन कभी भी उसके प्रति दयालु नहीं रहा है। यह संसार तो उसके लिए केवल चूहेदानी के समान था।

एक अंधेरी शाम को, वह बड़ी कठिनाई के साथ सड़क के साथ-साथ चल रहा था। उसने सड़क के किनारे स्लेटी रंग के एक छोटे से घर को देखा। उसने दरवाजे पर दस्तक दी, एक बूढ़े आदमी ने उसका स्वागत किया। वह बिना पत्नी और बच्चों के एक छोटा-सा किसान था। वृद्ध आदमी अपने अकेलेपन में किसी को बात करने के लिए पाकर खुश था। उसने फेरी वाले को भोजन खिलाया और रात्रि को सोने के समय तक उसके साथ ताश खेले। वृद्ध आदमी ने उसे बताया कि वह रेमस्जो लौह मिल में एक छोटे किसान के रूप में कार्य करता था। अब वह अपनी गाय का दूध बेचकर अपनी आजीविका कमाता था। उसने कहा कि पिछले महीने उसे भुगतान के रूप में तीस क्रॉनर प्राप्त हुए थे। वृद्ध आदमी ने उसे वह धन दिखाया जो उसने चमड़े की एक थैली में रखा था जो कि खिड़की के फ्रेम में लटक रही थी।

अगली सुबह दोनों आदमी एक-साथ घर से बाहर चले गए। लेकिन आधे घंटे के पश्चात्, फेरी वाला घर में वापिस आया। वह खिड़की के पास गया, एक काँच को तोड़ा और छोटी थैली हासिल कर ली उसने धन बाहर निकाला और थैली को वापिस उसी स्थान पर टाँग दिया। तब वह अपने रास्ते चला गया। अपनी जेब में चोरी किए हुए धन के साथ, फेरी वाले के लिए आम जनता वाली सड़क पर चलना सुरक्षित नहीं था। इसलिए वह सड़क मार्ग से हटकर जंगल के मार्ग की ओर गया। बाद में दिन में वह एक बड़े और उलझन भरे जंगल में फँस गया। वह चलता गया लेकिन जंगल का कोई सिरा नहीं आया। अब उसने महसूस किया कि दुनिया वास्तव में ही एक बड़ी चूहेदानी थी। धन जो उसने चोरी किया था एक फँसाने वाली चीज़ थी और वह उसमें फँस चुका था। अंधेरा होता जा रहा था। दिसंबर के आखिरी दिनों की बात थी और जंगल में ठंडक बढ़ती जा रही थी। जब उसने बचने की उम्मीद खो दी, उसने एक आवाज़ सुनी। यह एक लोहे के कारखाने से आ रही थी। यह एक घन (हथौड़ा) के प्रहार की आवाज थी। वह उठ खड़ा हुआ और कठिनाई के साथ आवाज की दिशा में चल पड़ा।

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

फेरी वाला रेमस्जो लौह मिल में पहुँचा और उसमें प्रवेश कर गया। लोहार ने लापरवाहीपूर्ण ढंग से उसकी ओर देखा। उसने वहाँ रात्रि को ठहरने की अनुमति माँगी जो कि मुख्य लोहार के द्वारा प्रदान कर दी गई। कुछ समय के पश्चात्, लोहार जो कि मिल का मालिक था, अपने रात्रिकालीन निरीक्षण के लिए आया। उसने फेरी वाले को देखा जिसके वस्त्र फटे-पुराने थे। उसने गलती से फेरी वाले को अपना पुराना परिचित नील्स ऑलोफ समझ लिया। वह हैरान था कि उसका पुराना मित्र चिथड़ों में क्यों था। फेरी वाले ने उसे कभी नहीं देखा था। न ही वह उसका नाम जानता था। लेकिन उसने लोहार को बताया कि उसकी किस्मत खराब चल रही है। लोहार ने उसे बताया कि उसे सेना की टुकड़ी से त्यागपत्र नहीं देना चाहिए था। तब लोहार ने उसे ‘क्रिसमस की पूर्व संध्या’ पर अपने घर आमंत्रित कर लिया। लेकिन फेरी वाला किसी नए संकट में फँसना नहीं चाहता था। इसलिए उसने उसके साथ जाने से दृढ़तापूर्वक मना कर दिया।

लोहार की एक युवा बेटी थी जिसका नाम एडला था। उसने सोचा कि उसकी बेटी उसके पुराने मित्र को उसके साथ ठहरने के लिए मना लेगी। इसलिए वह घर गया और अपनी बेटी को लेकर आया। एडला ने उसकी ओर दयाभाव के साथ देखा। उसने उससे निवेदन किया कि वह उसके घर आए। अंततः चूहेदानी बेचने वाला सहमत हो गया और उनके साथ चल दिया। अगले दिन क्रिसमस था। नौकर ने उसे स्नान करा दिया था, उसके बाल काट दिए थे और दाढ़ी बना दी थी। जब लोहार भोजन-कक्ष में आया, उसने दिन के प्रकाश में उसकी ओर देखा। अब उसने महसूस किया कि उससे गलती हो गई थी और वह आदमी उसका पुराना मित्र नहीं था। वह उस पर गरजा और उससे पूछा कि वह कौन है। उसने पुलिस को बुलाने की धमकी दी। लेकिन फेरी वाले ने कहा कि यह उसकी गलती नहीं थी। उसने किसी को भी धोखा देने का प्रयास नहीं किया था। इस पर लोहार ने उसे चले जाने को कहा।

लेकिन लोहार की बेटी चाहती थी कि वह फेरी वाला उस दिन उनके पास ही ठहर जाए। उसने कहा कि उन्होंने उसे एक दिन रहने और सकून का आनंद लेने की अनुमति दी थी। उन्होंने क्रिसमस का आनंद मनाने के लिए वादा किया था। उनको क्रिसमस की खुशियों का आनंद उठाने के निमंत्रण का वचन दिया था। तब उसने (एडला) उसे बैठने और भोजन खाने के लिए कहा। शाम के समय क्रिसमस वृक्ष को प्रकाशित किया गया। उसने प्रत्येक का धन्यवाद किया।

अगली सुबह लोहार और उसकी बेटी क्रिसमस की सेवा के लिए चर्च गए। चूहेदानी बेचने वाला अभी भी सोया हुआ था। चर्च में लोहार और उसकी बेटी को यह जानकारी मिली कि एक वृद्ध किसान को चूहेदानियाँ बेचने वाले एक व्यक्ति ने लूट लिया है। इस समाचार ने एडला को उदास कर दिया। उसके पिता को भय था कि चूहेदानियाँ बेचने वाला उनकी अनुपस्थिति में उनके चाँदी के सारे चम्मच चुरा सकता है लेकिन नौकर ने उन्हें बताया कि फेरी वाला अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं गया है। बल्कि वह लड़की के लिए एक छोटा पैकेट छोड़ गया है। पैकेट में उसे एक छोटी चूहेदानी मिली। पैकेट के अंदर दस-दस क्रॉनर के तीन नोट थे और एक पत्र था। अपने पत्र में उसने उसके प्रति दयालुता दिखाने के लिए उसका धन्यवाद किया जैसे कि वह एक सचमुच का कैप्टन था। वह नहीं चाहता था कि क्रिसमस के अवसर पर उसको एक चोर के साथ रहने से कोई कठिनाई का सामना करना पड़े। उसने लड़की से प्रार्थना की कि वह इस धन को वृद्ध किसान को लौटा दे। उसने लिखा कि चूहेदानी उसके लिए क्रिसमस का उपहार है।)

The Rattrap Word Meanings

[Page 32] :
Universal (belonging to the whole world) = सर्वव्यापक;
awakened (made mentally alive)= जागृत हुआ;
amidst (in the middle of) के बीच में;
legends (myths) पौराणिक बातें;
rattrap (device for catching rats) =चूहेदानी;
odd(notregular)=अनियमित;
especially(particularly) विशेषतौर पर;
profitable(giving profits)=फायदेमंद;
resort to (forced to do) = करने पर मजबूर होना;
petty (small) = छोटा, तुच्छ;
thievery (stealing) = चोरी;
rags (old, torn clothes) = चिथड़े;
sunken (hollow) = पिचकी हुई;
gleamed (shone) = चमकना;
monotonous (boring, joyless)= नीरस;
vagabond(wanderer )= आवारा;
plod (trudge)= कठिनाई से चलना;
meditation (deep thinking) = मनन;
struck (suddenly came to mind) = मन में विचार आना।

[Page 33] :
Existed (lived, remained) = जीवित रहना;
set bait (place food, etc to catch an animal) = चारा/फांस;
shelter(refuge) = शरण;
pork (pig meat)= सूअर का मांस;
tempted (lured)= प्रलोभित करना;
unwonted (not habitual) = आदत न होना;
cherished (held dear) = प्रिय;
pastime (means of entertainment) = मनोरंजन का साधन;
dreary (dull) = नीरस;
snare (trap) = जाल;
trudging (wandering) = आवारागर्दी;
sour (unpleasant) = अप्रिय;
porridge (oat meal) = दलिया;
carved off (cut)= काटा;
mjolis (a game of cards) = ताश का खेल;
prosperity (affluence) = समृद्धि;
crofter (who farms a piece of land) = छोटा किसान;
supported (sustained) = सहारा;
creamery (a small dairy)= छोटी डेयरी;
kronor (swedish currency) = स्वीडन की मुद्रा;
incredulous (unbelievable) = अविश्वसनीय;
bossy (domineering) = रौबीला;
pouch (small bag) = छोटी थैली;
nodding (shaking head) = सिर हिलाना।

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

[Page 34] :
Stuffed (packed tightly)= ठूसना;
in good season (cheerfully) = खुशी से;
peddler (travelling vendor)= फेरी वाला;
smashed (broke) = तोड़ा;
pane (window glass)= खिड़की का शीशा;
thrust (pushed) = डाले;
got hold (caught)=पकड़े;
smartness (cleverness)=चालाकी;
confusing(perplexing)= परेशान करने वाली;
fooled (deceived) = धोखा दिया;
bait(food to lure and catch animal)=फाँसने का सामान;
trunks(stems)=तने;
thickets(bushes)=झाड़ियाँ।

[Page 35]:
Descending (coming down) = नीचे आते हुए;
gloom (sadness) = उदासी;
despair (disappointment) = निराशा;
sank down (sat down) = बैठ गया;
staggered (walked unsteadily) = लड़खड़ाया;
summoned (gathered collected) = इकट्ठा किया;
smelter (one who melts ore to get metal from it) = धातु गलाने वाले;
forge (furnace) = भट्ठी;
barges (boats)= किश्तियाँ;
scow (flat bottomed boat)= चपटे तले वाली नाव;
dripping (thoroughly wet)= पुरी तरह से गीला;
groaned (moaned) =कराहना;
sifted (separated) = अलग;
pig iron (raw iron)=कच्चा लोहा;
anvil(an iron block on which a blacksmith hammers things) = निहाई;
glowing (shining) = चमकना;
stir (move a little) = कुछ हिलना;
bellows (device for producing a strong blast of air) = धौंकनी;
hovelled (put through shovels) = फावड़े से डालना;
clatter (loud noise) = जोर की आवाज;
whipped (sharp blowing or thrusting)= चाबुक मारना;
unusual(uncommon)=असाधारण;
vagabonds (wanderers) = आवारा;
sooty (covered with soot) = कालिख भरा।

[Page 36]:
Glanced (looked at)=देखा;
casually (carelessly)= लापरवाही से;
indifferently (without caring) = बिना परवाह किए;
intruder (one who is not invited) = घुसपैठिया;
ragged (shabbily clothed) = फटेहाल;
haughty (proud) = घमण्डी;
consent (agreement) = रजामन्दी;
tramp (wanderer) = आवारा;
ship out(shape out)= आकृति बनाना;
prominent (famous) = प्रसिद्ध;
ragamuffin (wearing rags) = फटेहाल;
eased(relaxed)=ढीला किया;
deigned(bothered) = तंग किया;
slouche(crouches)=दुबकना;
acquaintance (known, farniliar with) =परिचित, मित्र;
manor(farmhouse) = फार्महाउस;
comrade (friend) = साथी।

[Page 37]:
Alarmed (frightened) = भयभीत;
voluntarily (willingly) = इच्छापूर्वक;
apprentice (trainee) = नौसिखिया;
den (cave) = गुफा;
sneak away (go away unnoticed) = चुपके से चले जाना;
inconspicuously (without being noticed) = बिना नजर आए;
assumed (supposed) = कल्पना की;
embarrassed (feeling uneasy) = असुविधा महसूस करना;
abroad (in a foreign country) = विदेश में;
give in (surrender) = हार मान लेना;
persuasion (bringing round) = मनाना
valet (servant)= नौकर;
modest (gentle)= विनम्र;
glowed (shone )= चमका।

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[Page 38] :
Stretched (spread out)= फैला हुआ;
evidently (obviously)= प्रत्यक्ष रूप से;
abruptly (suddenly) = अचानक;
compassionately (sympathetically)= सहानुभूति से;
bother (worry)= चिन्ता;
astonished (surprised)= हैरान;
glance (look at) = देखना;
forebodings (predictions)= भविष्यवाणी;
probably (perhaps) = शायद।

[Page 39] :
Queer (strange) = अजीब;
fall away (go away) = चले जाना;
starched (stiffed) = सख्त;
puckered (wrinkled) =झुर्रियों वाला;
uncertain (not clear) = अस्पष्ट;
dissimulate(hide)= छिपाना;
splendour(grandeur)=शान;
sheriff (an officer for keeping law and order)= पुलिस अफसर;
struck (gave a blow)= प्रहार करना;
rind (peel) = छिला हुआ।

[Page 40]:
Christmassy (of Christmas)= क्रिसमस का;
wretch (unfortunate)=अभागा;
interceded (mediated) = बीच बचाव किया;
cross-examined (interrogated) = पूछताछ की;
mumbled (murmured) = बुड़बुड़ाया;
preach (sermonize)= उपदेश देना;
parson (priest) = पादरी;
regret (to repent) = पछताना।

[Page 41]:
Crazy (mad) पागल;
fare (festivity)=उत्सव का माहौल;
blinking (winking rapidly)=आँख झपकाना;
aroused (woken up)= जागृत हुआ;
intention (desire) = इच्छा;
boundless (endless)= अनन्त;
amazement(surprise) =हैरानी।

[Page 42] :
Dejectedly (sadly) = उदासी से;
done up (finished) = समाप्त;
contents (things, inside) = अन्दर की चीजें;
agged (rough) = खुरदरा।

The Rattrap Translation in Hindi

Once upon a time there was a man who went around selling small rattraps of wire. He made them himself at odd moments, from the material he got by begging in the stores or at the big farms. But even so, the business was not especially profitable, so he had to resort to both begging and petty thievery to keep body and soul together. Even so, his clothes were in rags, his cheeks were sunken, and hunger gleamed in his eyes.

No one can imagine how sad and monotonous life can appear to such a vagabond, who plods along the road, left to his own meditations. But one day this man had fallen into a line of thought which really seemed to him entertaining. He had naturally been thinking of his rattraps when suddenly he was struck by the idea that the whole world about him-the whole world with its lands and seas, its cities and villages-was nothing but a bit rattrap. It had never existed for any other purpose than to set baits for people. It offered riches and joys, shelter and food, heat and clothing, exactly as the rattrap offered cheese and pork, and as soon as anyone let himself be tempted to touch the bait, it closed in on him, and then everything came to an end.

(एक बार की बात है जब एक आदमी घूम-घूम कर तार से बनी छोटी-छोटी चूहेदानियाँ बेचा करता था। जो कुछ सामान उसे दुकानों और बड़े फार्मों पर माँगकर मिलता उससे वह स्वयं ही मुश्किल के समय उन्हें बनाया करता था। फिर भी यह धन्धा कोई विशेष फायदेमन्द नहीं था, और इसलिए भूखों मरने से बचने के लिए उसे भीख माँगने और छोटी-छोटी चोरी, दोनों का सहारा लेना पड़ता था। फिर भी उसके शरीर पर चिथड़े थे, उसके गाल पिचके हुए थे और उसकी आँखों में भूख चमकती थी।

कोई यह सोच नहीं सकता कि ऐसे आवारा व्यक्ति के लिए जीवन कितना उदास और नीरस होगा जो अपने विचारों में खोया सड़क पर चलता रहता हो। मगर एक दिन यह व्यक्ति एक ऐसे विचारों में खो गया जो उसे सचमुच बड़े मनोरंजक लगे। स्वाभाविक तौर पर वह अपने चूहों के पिंजरों के बारे में सोच रहा था, जब अचानक उसे यह ख्याल आया कि उसके चारों ओर का सारा संसारदेशों और सागरों, शहरों और गाँवों सहित-एक बड़ी चूहेदानी के अतिरिक्त कुछ नहीं है। मनुष्यों को दाना डालकर ललचाने के अतिरिक्त इसके अस्तित्व का कभी कोई अन्य उद्देश्य ही न था। इसमें धन और खुशियाँ हैं, आश्रय और भोजन है, गर्मी और वस्त्र हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे चूहेदानी में पनीर और सूअर का मांस होता है और जैसे ही कोई व्यक्ति स्वयं को दानों को छूने के प्रलोभन में आने देता है, पिंजरा उसके लिए बन्द हो जाता है और तब सब कुछ समाप्त हो जाता है।)

The world had, of course, never been very kind to him, so it gave him unwonted joy to think ill of it in this way. It became a cherished pastime of his, during many dreary ploddings, to think of people he knew who had let themselves be caught in the dangerous snare, and of others who were still circling around the bait.

(संसार निःसन्देह उस पर कभी अधिक मेहरबान नहीं रहा था। इसलिए इसके बारे में बुरा सोचने में उसे असाधारण आनन्द आता था। अपनी अनेक पैदल यात्राओं में समय बिताने के लिए यह उसका प्रिय काम हो गया कि अपने परिचित व्यक्तियों में उनके बारे में सोचे जिन्होंने स्वयं को इस खतरनाक पिंजरे में फंसने दिया था और उन अन्य व्यक्तियों के बारे में जो अभी भी दाने (ललचाने वाली वस्तु) के चारों तरफ घूम रहे थे।)

One dark evening as he was trudging along the road he caught sight of a little gray cottage by the roadside, and he knocked on the door to ask shelter for the night. Nor was he refused. Instead of the sour faces which ordinarily met him, the owner, who was an old man without wife or child, was happy to get someone to talk to in his loneliness. Immediately he put the porridge pot on the fire and gave him supper; then he carved off such a big slice from his tobacco roll that it was enough both for the stranger’s pipe and his own. Finally he got out an old pack of cards and played ‘mjölis’ with his guest until bedtime.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

(एक अन्धेरी शाम जब वह सड़क पर चला जा रहा था, तब उसने सड़क के किनारे बने सलेटी रंग के एक छोटे से मकान को देखा और रात के लिए आश्रय माँगने के लिए उसने वह दरवाजा खटखटाया। उसे इनकार भी नहीं किया गया। आमतौर पर जो रूखे चेहरे उसे मिला करते थे उनके स्थान पर वह बिना पत्नी और बच्चे वाला बूढ़ा मालिक अपने अकेलेपन में बात करने के लिए किसी को पाकर खुश हुआ। उसने तुरन्त दलिए के बर्तन को आग पर चढ़ा दिया और उसे रात्रि का भोजन दिया और फिर उसने अपनी तम्बाकू की रोल से इतना बड़ा टुकड़ा काटा जो उसके और अजनबी दोनों की चिलम के लिए काफी था। अन्त में उसने ताश की एक पुरानी गड्डी निकाली और सोने के समय तक अपने मेहमान के साथ ताश खेलता रहा।)

The old man was just as generous with his confidences as with his porridge and tobacco. The guest was informed at once that in his days of prosperity his host had been a crofter at Ramsjö Ironworks and had worked on the land. Now that he was no longer able to do day labour, it was his cow which supported him. Yes, that bossy was extraordinary. She could give milk for the creamery every day, and last month he had received all of thirty kronor in payment.

(वह बूढ़ा व्यक्ति अपने मन की बात बताने में किसी पर भरोसा करने में उतना ही उदार था जितना कि दलिया व तम्बाकू देने में। उसने अपने अतिथि को तुरन्त बता दिया कि वह अपने अच्छे दिनों में रेमस्जो लौह मिल में काम करता था और खेती भी करता था। अब वह मजदूरी नहीं कर सकता, तो उसका गाय से गुजारा चलता है। हाँ, वह बहुत असाधारण है। वह प्रतिदिन डेरी के लिए दूध देती है और पिछले मास उसे भुगतान में तीस क्रॉनर मिले थे।)

The stranger must have seemed incredulous, for the old man got up and went to the window, took down a leather pouch which hung on a nail in the very window frame, and picked out three wrinkled ten-kronor bills. These he held up before the eyes of his guest, nodding knowingly, and then stuffed them back into the pouch.

(ऐसा लगा होगा कि अजनबी को विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि वह खड़ा हुआ और खिड़की के पास गया, एक चमड़े की थैली उतारी जो इस खिड़की में लगी एक कील से लटकी हुई थी और इसमें से दस क्रॉनर के तीन मुड़े हुए नोट निकाले। ये तीनों उसने मेहमान की आँखों के सामने रखे, जान-बूझकर सिर हिलाते हुए और वापिस उनको थैली में रख दिया।)

The next day both men got up in good season. The crofter was in a hurry to milk his cow, and the other man probably thought he should not stay in bed when the head of the house had gotten up. They left the cottage at the same time. The crofter locked the door and put the key in his pocket. The man with the rattraps said good bye and thank you, and thereupon each went his own way.

(अगले दिन दोनों व्यक्ति प्रसन्नता से उठे। किसान गाय का दूध निकालने की जल्दी में था, और दूसरे आदमी ने शायद सोचा कि जब घर का मुखिया उठ गया है तो उसे लेटे नहीं रहना चाहिए। दोनों ने ही घर को एक-साथ छोड़ा। किसान ने ताला बन्द किया और चाबी अपनी जेब में डाली। चूहेदानियों वाले आदमी ने उसको अलविदा कहा और धन्यवाद किया, और इसके बाद दोनों अपने-अपने रास्ते चल दिए।)

But half an hour later the rattrap peddler stood again before the door. He did not try to get in, however. He only went up to the window, smashed a pane, stuck in his hand, and got hold of the pouch with the thirty kronor. He took the money and thrust it into his own pocket. Then he hung the leather pouch very carefully back in its place and went away.

(मगर आधे घण्टे बाद चूहेदानी बेचने वाला आदमी फिर से दरवाजे के सामने खड़ा था। उसने अन्दर जाने की कोशिश नहीं की। वह केवल खिड़की तक गया, एक शीशे को तोड़ा, अपने एक हाथ को अन्दर डाला और तीस क्रॉनर वाली थैली को अपने हाथ में पकड़ा। उसने पैसे निकाले और इन्हें अपनी जेब में रख लिया। फिर उसने चमड़े की थैली को वापिस बड़ी सावधानी से इसकी जगह पर रख दिया और चला गया।)

As he walked along with the money in his pocket he felt quite pleased with his smartness. He realised, of course, that at first he dared not continue on the public highway, but must turn off the road, into the woods. During the first hours this caused him no difficulty. Later in the day it became worse, for it was a big and confusing forest which he had gotten into.

He tried, to be sure, to walk in a definite direction, but the paths twisted back and forth so strangely! He walked and walked without coming to the end of the wood, and finally he realised that he had only been walking around in the same part of the forest. All at once he recalled his thoughts about the world and the rattrap. Now his own turn had come. He had let himself be fooled by a bait and had been caught. The whole forest, with its trunks and branches, its thickets and fallen logs, closed in upon him like an impenetrable prison from which he could never escape.

(अपनी जेब में पैसे डालकर जब वह जा रहा था, उसे अपनी चालाकी पर बड़ी खुशी हुई। निःसन्देह उसने यह अनुभव भी किया कि अब वह सामान्य सड़क पर चलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था मगर उसे सड़क से मुड़कर जंगल में चलना चाहिए था। पहले कुछ घण्टों में उसे कोई कठिनाई नहीं हुई। बाद में दिन के अन्तिम भाग में हालात बिगड़ गए; क्योंकि जिस जंगल में वह प्रवेश कर चुका था वह बड़ा और चक्कर में डालने वाला था।

उसने प्रयत्न किया कि वह निश्चयपूर्वक एक निश्चित दिशा में चले परन्तु रास्ते ऐसे विचित्र ढंग से आगे-पीछे मुड़ जाते थे। वह चलता ही गया और जंगल का कोई अन्त ही नहीं होता था और अन्ततः उसे एहसास हुआ कि वह जंगल के एक ही भाग में चक्कर काट रहा था। फौरन उसे अपने संसार और चूहेदानी के बारे में किए गए विचारों का ध्यान आया। अब उसकी बारी आ गई थी। उसने अपने-आपको दाने के लालच में मूर्ख बनने दिया था और पकड़ा गया था। सारे जंगल ने अपने वृक्षों और शाखाओं, तनों और गिरे हुए लकड़ी के लट्ठों से उसे घेर लिया था मानो कि वह एक अभेद्य जेल हो जिससे अब वह निकल नहीं सकता था।)

It was late in December. Darkness was already descending over the forest. This increased the danger, and increased also his gloom and despair. Finally he saw no way out, and he sank down on the ground, tired to death, thinking that his last moment had come. But just as he laid his head on the ground, he heard a sound, a hard regular thumping. There was no doubt as to what that was. He raised himself. “Those are the hammer strokes from an iron mill”, he thought. “There must be people near by”. He summoned all his strength, got up, and staggered in the direction of the sound.

(दिसम्बर के अन्तिम दिन थे। अन्धकार पहले ही जंगल में आने लगा था। इस बात ने खतरे को और बढ़ा दिया, और उसकी उदासी और निराशा को भी। अन्त में बाहर निकलने का कोई रास्ता उसे नहीं नजर नहीं आया और थकान के कारण मुर्दा-सा वह जमीन पर ही बैठ गया। पर जैसे ही उसने अपना सिर जमीन पर रखा, उसे एक आवाज सुनाई दी-एक कठोर लगातार ठक-ठक की आवाज। इसमें कोई शक नहीं था कि वह क्या थी। वह उठ खड़ा हुआ। “यह लोहे के कारखाने से आती हुई हथौड़े के चोटों की आवाज है”, उसने सोचा। “लोग पास ही होने चाहिएँ” उसने अपनी सारी शक्ति एकत्रित की, खड़ा हुआ और लड़खड़ाता हुआ आवाज की दिशा में चल पड़ा।)

The Ramsjö Ironworks, which are now closed down, were, not so long ago, a large plant, with smelter, rolling mill, and forge. In the summertime, long lines of heavily loaded barges and scows slid down the canal, which led to a large inland lake, and in the wintertime, the roads near the mill were black from all the coal dust which sifted down from the big charcoal crates.

(रमस्जो लौह मिल, जो अब बन्द हो चुका है कुछ समय पहले तक एक बड़ा कारखाना था जिसमें पिघलाने का यन्त्र, रोलिंग मिल और भट्ठी थी। गर्मी के दिनों में पूरे भरे छोटे जहाज और नौकाएँ नहर में उतारी जाती थीं जो एक बड़ी झील में जाती थीं और सर्दी के दिनों में मिल के पास की सड़कें उस कोयले से काली रहती थीं जो चारकोल की बड़ी-बड़ी क्रेटों से झरता रहता था।)

During one of the long dark evenings just before Christmas, the master smith and his helper sat in the dark forge near the furnace waiting for the pig iron, which had been put in the fire, to be ready to put on the anvil. Every now and then one of them got up to stir the glowing mass with a long iron bar, returning in a few moments, dripping with perspiration, though, as was the custom, he wore nothing but a long shirt and a pair of wooden shoes.

(क्रिसमस के पहले की एक लम्बी अन्धेरी शाम को मुख्य लोहार और उसके सहयोगी अन्धेरी भट्ठी में चूल्हे के पास बैठे थे और प्रतीक्षा कर रहे थे कि भट्ठी पर चढ़ा हुआ कच्चा लोहा इस लायक हो जाए कि उसे निहाई पर रखा जा सके। थोड़ी देर में उनमें से एक व्यक्ति उठता, एक लम्बी लोहे की छड़ी से उस लोहे को चलाता और पसीने से तर होकर कुछ क्षणों में वापस आ जाता, यद्यपि परम्परा के अनुसार वह व्यक्ति एक लम्बी कमीज और काठ के जूतों के अतिरिक्त कुछ नहीं पहनता था।)

All the time there were many sounds to be heard in the forge. The big bellows groaned and the burning coal cracked. The fire boy shovelled charcoal into the maw of the furnace with a great deal of clatter. Outside roared the waterfall, and a sharp north wind whipped the rain against the brick-tiled roof. It was probably on account of all this noise that the blacksmith did not notice that a man had opened the gate and entered the forge, until he stood close up to the furnace.

(हर समय भट्ठी में तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती थीं। बड़ी-बड़ी धौंकनियाँ कराहने की आवाज करती और जलता हुआ कोयला चटकता रहता। आग पर काम करने वाला लड़का फावड़े से उठाकर कोयला भट्ठी में डालता था और जोर की आवाज होती थी। बाहर झरने की तेज आवाज होती थी और तेज उत्तरी हवा ईंटों, टाइलों की बनी छत पर बरसात को कोड़े की तरह पटकती थी। शायद इस सारे शोर के कारण लोहार ने यह तब तक नहीं देखा कि कोई आदमी गेट खोलकर भट्ठी के अन्दर आ गया है जब तक कि वह चूल्हे के बिल्कुल पास ही नहीं आ गया।)

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Surely it was nothing unusual for poor vagabonds without any better shelter for the night to be attracted to the forge by the glow of light which escaped through the sooty panes, and to come in to warm themselves in fornt of the fire. The blacksmiths glanced only casually and indifferently at the intruder. He looked the way people of his type usually did, with a long beard, dirty, ragged, and with a bunch of rattraps dangling on his chest.
He asked permission to stay, and the master blacksmith nodded a haughty consent without honouring him with a single word. The tramp did not say anything, either. He had not come there to talk but only to warm himself and sleep.

(अवश्य ही, रात बिताने के लिए आश्रयहीन रहने वाले घुमक्कड़ों का रोशनी की चमक के पास भट्ठी की तरफ आकर्षित होना, जो रोशनी काली खिड़कियों में से आती थी, और उनका अपने-आपको गर्म करने के लिए आग के सामने आना कोई असामान्य बात नहीं थी। लोहारों ने बाहर से आने वाले आदमी की तरफ सहजता और उदासीनता से देखा। वह इस तरह दिखता था जैसे उसके तरह के लोग प्रायः दिखते थे, लम्बी, धूल भरी, खुरदरी दाढ़ी और चूहेदानियों का एक गुच्छा उसकी छाती पर लटकता हुआ। उसने वहाँ रुकने की आज्ञा माँगी, और मुख्य लोहार ने सिर हिलाकर, उसको एक शब्द भी सम्मान का कहे बिना घमण्ड से भरी हुई सहमति दे दी।
उस घुमक्कड़ ने भी कुछ नहीं कहा। वह वहाँ बातें करने के लिए नहीं, बल्कि अपने-आपको गर्म करने के लिए और सोने के लिए आया था।)

In those days the Ramsjö iron mill was owned by a very prominent ironmaster, whose greatest ambition was to ship out good iron to the market. He watched both night and day to see that the work was done as well as possible, and at this very moment he came into the forge on one of his nightly rounds of inspection.

(उन दिनों रेमस्जो लौह मिल का मालिक एक प्रसिद्ध आयरन मास्टर था जिसका महानतम उद्देश्य अच्छा लोहा जहाजों में भरकर बाजार में भेजना था। वह रात-दिन देखता था कि काम जितना सम्भव हो सके उतना अच्छी तरह से हो, और ठीक उसी समय वह भट्ठी में रात के समय का निरीक्षण करने आया था।)

Naturally, the first thing he saw was the tall ragamuffin who had eased his way so close to the furnace that steam rose from his wet rags. The ironmaster did not follow the example of the blacksmiths, who had hardly deigned to look at the stranger. He walked close up to him, looked him over very carefully, then tore off his slouch hat to get a better view of his face. “But of course, it is you, Nils Olof!” he said. “How you do look !”

(निःसन्देह जो चीज उसने सबसे पहले देखी वह था वह चिथड़े पहने हुए लम्बा आदमी जो आराम पाने के लिए भट्ठी के इतना पास आ गया था कि उसके चिथड़ों से भाप उठ रही थी। आयरन मास्टर ने लोहारों के उदाहरण का अनुसरण नहीं किया, जिन्होंने अजनबी की तरफ देखा भी नहीं था। वह उसके करीब आया, उसकी तरफ बड़े ध्यान से देखा, फिर उसके चेहरे को अच्छी तरह देखने के लिए अपनी तिरछी टोपी को उतारा। “परन्तु अवश्य तुम हो, नील्स ऑलोफ!” उसने कहा। “तुम कैसे दिखते हो!”)

The man with the rattraps had never before seen the ironmaster at Ramsjö and did not even know what his name was. But it occurred to him that if the fine gentleman thought he was an old acquaintance, he might perhaps throw him a couple of kronor. Therefore he did not want to undeceive him all at once. “Yes, God knows things have gone downhill with me”, he said.

(चूहेदानी वाले व्यक्ति ने रेमस्जो के आयरन मास्टर को पहले कभी नहीं देखा था और यह भी नहीं जानता था कि उसका नाम क्या है। परन्तु उसे लगा कि अगर वह श्रेष्ठ भद्रपुरुष उसे कोई पुराना परिचित समझता है तो वह शायद उसको दो क्रॉनर दे दे। अतः वह तुरन्त ही उसका धोखा दूर करना नहीं चाहता था। “हाँ, भगवान् जानता है, मेरे साथ बुरा हुआ है,” वह बोला।)

“You should not have resigned from the regiment”, said the ironmaster. “That was the mistake. If only I had still been in the service at the time, it never would have happened. Well, now of course you will come home with me.” To go along up to the manor house and be received by the owner like an old regimental corade-that, however, did not please the tramp.

(“तुम्हें फौज से इस्तीफा नहीं देना चाहिए था,” आयरन मास्टर बोला। “वह गलती थी। अगर मैं उस समय तक फौज में होता, तो ऐसा कभी न होता। खैर, अब निःसन्देह, तुम मेरे साथ घर चलोगे।”
बड़े फार्म हाउस पर जाना और मालिक के द्वारा एक पुराने फौजी साथी की तरह स्वागत किया जाना इस बात से तो वह घुमक्कड़ खुश नहीं हुआ।)

“No, I couldn’t think of it !” he said, looking quite alarmed. He thought of the thirty kronor. To go up to the manor house would be like throwing himself voluntarily into the lion’s den. He only wanted a chance to sleep here in the forge and then sneak away as inconspicuously as possible. The ironmaster assumed that he felt embarrassed because of his miserable clothing.

(“नहीं, मैं तो इस बारे में सोच भी नहीं सकता।” वह एकदम डरकर बोला।  उसने तीस क्रॉनर के बारे में सोचा। फार्म हाउस तक जाने का अर्थ था कि जान-बूझकर शेर की मांद में जाना। वह तो सिर्फ लोहे की मिल मे सोना चाहता था और तब जहाँ तक सम्भव हो बिना किसी के पता लगे चुपचाप खिसक जाना। आयरन मास्टर को लगा कि वह अपने खराब कपड़ों के कारण शर्मिंदगी अनुभव कर रहा है।)

“Please don’t think that I have such a fine home that you cannot show yourself there”. He said… “Elizabeth is dead, as you may already have heard. My boys are abroad, and there is no one at home except my oldest daughter and myself. We were just saying that it was too bad we didn’t have any company for Christmas. Now come along with me and help us make the Christmas food disappear a little faster.”

(“कृपया आप ऐसा न सोचें कि मेरा घर इतना बढ़िया है कि आप उसमें नहीं जा सकते।” वह बोला, “एलिजाबेथ मर चुकी है, आपको पहले यह पता चल चुका होगा। मेरे लड़के विदेश में हैं। और घर पर मेरी बड़ी बेटी और मेरे अतिरिक्त कोई नहीं है। हम अभी बात कर रहे थे कि कितनी बुरी बात है कि क्रिसमस के अवसर पर हमारे पास कोई साथी नहीं है। अब मेरे साथ चलो और क्रिसमस का भोजन थोड़ा शीघ्र समाप्त करने में हमारी सहायता करो।”)

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But the stranger said no, and no, and again no, and the ironmaster saw that he must give in. “It looks as though Captain Von Stahle preferred to stay with you tonight, Stjernström”, he said to the master blacksmith and turned on his heel. But he laughed to himself as he went away, and the blacksmith, who knew him, understood very well that he had not said his last word. It was not more than half an hour before they heard the sound of carriage wheels outside the forge, and a new guest came in, but this time it was not the ironmaster. He had sent his daughter, apparently hoping that she would have better powers of persuasion than he himself.

(परन्तु अजनबी ने बार-बार ना कहा, और आयरन मास्टर को लगा उसे हार माननी पड़ेगी। “ऐसा लगता है मानो कप्तान वॉन स्टाल आज रात तुम्हारे साथ रुकना चाहेगा, स्टेर्नस्टोर्म”, उसने मुख्य लोहार को कहा और मुड़ा। परन्तु वह जाते हुए खुद ही अपने-आप में हँसा, और लोहार, जो उसको जानता था, भली प्रकार समझ गया कि उसने अपने अन्तिम शब्द नहीं कहे थे। आधा घण्टे से अधिक नहीं बीता होगा कि उन्हें भट्ठी के बाहर गाड़ी के पहियों की आवाज सुनाई दी और एक नया मेहमान अन्दर आया, पर इस बार आयरन मास्टर नहीं था। उसने अपनी बेटी को भेजा था, लगता था कि उसे उम्मीद थी कि उसकी अपेक्षा उस (बेटी) में मनाने की शक्ति अधिक है।)

She entered, followed by a valet, carrying on his arm a big fur coat. She was not at all pretty but seemed modest and quite shy. In the forge, everything was just as it had been earlier in the evening. The master blacksmith and his apprentice still sat on their bench, and iron and charcoal still glowed in the furnace. The stranger had stretched himself out on the floor and lay with a piece of pig iron under his head and his hat pulled down over his eyes. As soon as the young girl caught sight of him, she went up and lifted his hat. The man was evidently used to sleeping with one eye open. He jumped up abruptly and seemed to be quite frightened.

(वह आई, उसके पीछे-पीछे एक बड़ा फर वाला कोट हाथ में लिए एक नौकर था। वह सुन्दर बिल्कुल न थी पर वह विनम्र और काफी शर्मीली लगती थी। लौह मिल में हर वस्तु वैसी ही थी जैसी कि शाम के प्रारम्भ में थी। मुख्य लोहार और उसका सहायक अभी भी अपने बैंच पर बैठे थे और लोहा और कोयला चूल्हे में अभी भी दहक रहे थे। अजनबी फर्श पर लेट गया था और कच्चे लोहे का एक टुकड़ा अपने सिर के नीचे लगा लिया और उसने अपना टोप अपनी आँखों पर डाल लिया था। युवा लड़की की जैसे ही उस पर नजर पड़ी, वह उसके पास गई और उसका टोप उठाया। साफ तौर पर उस आदमी को खुली आँखों से सोने की आदत थी। वह एकदम उछल पड़ा और लगता था कि काफी डर गया था।)

“My name is Edla Willmansson,” said the young girl. “My father came home and said that you wanted to sleep here in the forge tonight and then I asked permission to come and bring you home to us. I am so sorry, Captain, that you are having such a hard time.”
(“मेरा नाम एडला विलमनसन है,” युवा लड़की ने कहा। “मेरे पिता ने घर आकर बताया कि आप आज रात यहाँ लौह मिल में सोना चाहते हो और तब मैंने यहाँ आने की और आपको अपने घर ले जाने की आज्ञा माँगी। कैप्टन, मुझे बड़ा दुःख है कि आप इतनी मुश्किल हालत में हो।”)

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She looked at him compassionately, with her heavy eyes, and then she noticed that the man was afraid. “Either he has stolen something or else he has escaped from, jail”, she thought, and added quickly, “You may be sure, Captain, that you will be allowed to leave us just as freely as you came. Only please stay with us over Christmas Eve.”
(उसने उसकी भारी आँखों से उसको करुणापूर्वक देखा, और तब उसने देखा कि वह आदमी डर गया है। “या तो उसने कुछ चुराया है या वह जेल से निकलकर भागा है,” उसने सोचा और जल्दी ही कहा, “आप निश्चित हो सकते हैं, कप्तान, कि जितनी आसानी से आप हमारे पास आए हैं उतनी आसानी से ही आपको जाने दिया जाएगा। बस हमारे साथ क्रिसमस की पूर्व संध्या पर ठहरें।”)

She said this in such a friendly manner that the rattrap peddler must have felt confident in her. “It would never have occurred to me that you would bother with me yourself, miss,” he said. “I will come at once.” He accepted the fur coat, which the valet handed him with a deep bow, threw it over his rags, and followed the young lady out to the carriage, without granting the astonished blacksmiths so much as a glance.

(उसने यह बात इतनी मित्रतापूर्वक कही कि चूहेदानी बेचने वाले को उसमें विश्वास महसूस हुआ। “मुझे कभी नहीं लगा कि तुम मेरे लिए अपने-आपको तकलीफ दोगी, मिस,” उसने कहा। “मैं तुरन्त तुम्हारे साथ चलूँगा।”
उसने फर कोट, जो नौकर ने उसको दिया उसे झुककर स्वीकार किया, इसको अपने फटे कपड़ों पर डाला और हैरान लोहारों पर बिना दृष्टि डाले युवा लड़की के पीछे बाहर खड़ी-खड़ी गाड़ी तक गया।)

But while he was riding up to the manor house he had evil forebodings. “Why the devil did I take that fellow’s money?” he thought. “Now I am sitting in the trap and will never get out of it.” The next day was Christmas Eve, and when the ironmaster came into the dining room for breakfast he probably thought with satisfaction of his old regimental comrade whom he had run across so unexpectedly.

(परन्तु जब वह फार्म हाउस जा रहा था तो उसे कुछ बुरा होने का एहसास हो रहा था। “मैंने उस आदमी के पैसे क्यों चुराए?” उसने सोचा। “अब मैं जाल में फंस गया हूँ और कभी भी इससे बाहर नहीं आ सकूँगा।” अगले दिन क्रिसमस था और जब आयरन मास्टर डाइनिंग रूम में नाश्ते के लिए आया तो शायद उसने सन्तुष्टि के साथ अपने पुराने रेजिमेंट के साथी के बारे में सोचा जिसको वह इतना अचानक मिल गया था।)
“First of all we must see to it that he gets a little flesh on his bones,” he said to his daughter, who was busy at the table. “And then we must see that he gets something else to do than to run around the country selling rattraps.” “It is queer that things have gone downhill with him as badly as that,” said the daughter.” “Last night I did not think there was anything about him to show that he had once been an educated man.”

(“सबसे पहले हमें यह देखना चाहिए कि उसकी हड्डियों पर थोड़ा माँस आए”, उसने अपनी लड़की से कहा, जो टेबल पर व्यस्त थी। “और तब हमें यह देखना होगा कि वह पास घूम-घूम कर चूहेदानी बेचने की बजाय करने के लिए कोई अन्य काम करे।” “यह अजीब है कि उनके साथ बुरा हुआ”, लड़की ने कहा। “कल रात को मैं नहीं सोचती थी कि उसके पास यह दिखाने के लिए कुछ था कि वह कभी भी एक शिक्षित आदमी रहा है।”)

“You must have patience, my little girl,” said the father. “As soon as he gets clean and dressed up, you will see something different. Last night he was naturally embarrassed. The tramp manners will fall away from him with the tramp clothes.”

Just as he said this the door opened and the stranger entered. Yes, now he was truly clean and well dressed. The valet had bathed him, cut his hair, and shaved him. Moreover he was dressed in a good-looking suit of clothes which belonged to the ironmaster. He wore a white shirt and a starched collar and white shoes.

(“मेरी प्रिय बेटी, तुम्हें धैर्य रखना चाहिए,” पिता ने कहा । “जैसे ही साफ-सुथरा होगा और ढंग से कपड़े पहनेगा, तुम्हें कुछ अलग ही दिखाई देगा। पिछली रात वह, स्वाभाविक था कि शर्मिंदा था। आवारा कपड़ों के साथ ही उसके आवारा तौर-तरीके भी चले जाएँगे।” जैसे ही उसने यह कहा कि दरवाजा खुला और अजनबी अन्दर आया। हाँ, अब वह वाकई साफ-सुथरा था और अच्छे कपड़े पहने था। नौकर ने उसे नहलाया था, उसके बाल काटे थे और शेव की थी। इसके अतिरिक्त वह आयरन मास्टर का सुन्दर सूट पहने था। वह एक सफेद कमीज और कलफ लगा कालर तथा सफेद जूते पहने था।)

But although his guest was now so well groomed, the ironmaster did not seem pleased. He looked at him with puckered brow, and it was easy to understand that when he had seen the strange fellow in the uncertain reflection from the furnace he might have made a mistake, but that now, when he stood there in broad daylight, it was impossible to mistake him for an old acquaintance. “What does this mean?” he thundered. The stranger made no attempt to dissimulate. He saw at once that the splendour had come to an end.

(लेकिन यद्यपि यह मेहमान अब सजा संवरा था, आयरन मास्टर खुश नजर नहीं आया। उसने माथे पर त्योंरी डालकर उसे देखा, और यह समझना आसान था कि जब उसने अजनबी को भट्ठी की हल्की रोशनी में देखा था, शायद उससे गलती हो गई थी, परन्तु अब जबकि दिन के खुले प्रकाश में वह उसके सामने खड़ा था, उसे, भ्रमित होकर कोई पुराना मित्र समझना असम्भव था। “इसका क्या अभिप्राय है?” वह दहाड़ा। “अजनबी ने कुछ और दिखाने की कोशिश करने का कोई प्रयास नहीं किया। उसने तुरन्त ही भाँप लिया कि शानो-शौकत का अन्त आ गया है।)

“It is not my fault, sir,” he said. “I never pretended to be anything but a poor trader, and I pleaded and begged to be allowed to stay in the forge. But no harm has been done. At worst I can put on my rags again and go away.” “Well,” said the ironmaster, hesitating a little, “it was not quite honest, either. You must admit that, and I should not be surprised it the sheriff would like to have something to say in the matter.”

(“श्रीमान, यह मेरी गलती नहीं है,” वह बोला, “मैंने कभी भी एक गरीब फेरी वाला होने के अतिरिक्त कोई और दिखावा नहीं किया, और मैंने तर्क दिया और प्रार्थना की कि मुझे लौह मिल पर ही रहने दिया जाए। पर कोई हानि नहीं हुई है। मैं फिर से अपने चिथड़े पहनकर जा सकता हूँ।” “खैर,” आयरन मास्टर कुछ झिझक के साथ बोला, “पर यह बात पूरी ईमानदारी वाली नहीं थी। यह बात तुम्हें माननी होगी, और मुझे कोई हैरानी नहीं होगी अगर शेरिफ इस विषय में कुछ कहना चाहें।”)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

The tramp took a step forward and struck the table with his fist. “Now I am going to tell you, Mr. Ironmaster, how things are,” he said. “This whole world is nothing but a big rattarp. All the good things that are offered to you are nothing but cheese rinds and bits of pork, set out to drag a poor fellow into trouble. And if the sheriff comes now and locks me up for this, then you, Mr Ironmaster, must remember that a day may come when you yourself may want to get a big piece of pork, and then you will get caught in the trap.” The ironmaster began to laugh.

(उस आवारा व्यक्ति ने एक कदम आगे बढ़ाया और मेज पर मुक्का मारा। “अब मैं आपको बताता हूँ, श्री आयरन मास्टर, कि क्या बात है,” वह बोला । “यह सारा संसार एक चूहेदानी के अतिरिक्त कुछ नहीं है। आपके सामने जो भी अच्छी वस्तुएँ प्रस्तुत होती हैं वे पनीर के छिलके और सूअर का माँस के टुकड़ें के अलावा कुछ नहीं है जिन्हें किसी लाचार व्यक्ति को मुसीबत में खींचने के लिए लगाया गया है। और अब अगर शेरिफ आता है और मुझे इस बात के लिए कैद कर देता है तो आयरन मास्टर आप इतना अवश्य याद रखें कि ऐसा दिन भी आ सकता है कि जब आप खुद पोर्क का कोई बड़ा टुकड़ा पाना चाहों और तब आप जाल में फँस जाओ।”
आयरन मास्टर हँसने लगा।)

“That was not so badly said, my good fellow. Perhaps we should let the sheriff alone on Christmas Eve. But now get out of here as fast as you can.”
But just as the man was opening the door, the daughter said, “I think he ought to stay with us today. I don’t want him to go.” And with that she went and closed the door.

“What in the world are you doing?” said the father. The daughter stood there quite embarrassed and hardly knew what to answer. That morning she had felt so happy when she thought now homelike and Christmassy she was going to make things for the poor hungry wretch. She could not get away from the idea all at once, and that was why she had interceded for the vagabond.

(“भले व्यक्ति, यह बात कोई बुरी तरह से नहीं कही गई। शायद क्रिसमस की पूर्व-संध्या पर हम शेरिफ को रहने ही दें। लेकिन अब जितनी जल्दी हो सके यहाँ से चले जाओ।” लेकिन जब वह आदमी दरवाजा खोल रहा था, बेटी बोली, “मेरे ख्याल से आज उसे हमारे साथ रहना चाहिए। मैं नहीं चाहती कि वह जाए।” और इसके साथ ही उसने दरवाजा बन्द कर दिया।
“तुम यह भला क्या कर रही हो?” पिता ने कहा।

पुत्री बड़ी शर्मिंदा होकर वहाँ खड़ी रही और उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या उत्तर दे। उस प्रातः वह बड़ी खुश यह सोचकर हो रही थी कि वह गरीब भूखे अभागे व्यक्ति के लिए कैसी घर जैसी और क्रिसमस जैसी व्यवस्था करने जा रही थी। वह इस विचार को एकदम नहीं त्याग सकती थी और यही कारण था कि उसने उस आवारा का पक्ष लिया।)

“I am thinking of this stranger here,” said the young girl. “He walks and walks the whole year long, and there is probably not a single place in the whole country where he is welcome and can feel at home. Wherever he turns he is chased away. Always he is afraid of being arrested and cross-examined. I should like to have him enjoy a day of peace with us here-just one in the whole year.”

(“मैं इस अजनबी के बारे में सोच रही हूँ,” युवा लड़की ने कहा। “सारे साल यह चलता ही रहता है और शायद पूरे देश में कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ वह चैन से रह सके। जिधर भी वह जाता है, उसे भगा दिया जाता है। उसे सदा गिरफ्तार होने और सवाल पूछे जाने का डर सताता रहता है। मैं चाहूँगी कि वह यहाँ हमारे साथ एक दिन शान्ति का गुजार ले-पूरे साल में केवल एक दिन।”)

The ironmaster mumbled something in his beard. He could not bring himself to oppose her. “It was all a mistake, of course,” she continued. “But anyway I don’t think we ought to chase away a human being whom we have asked to come here, and to whom we have promised Christmas cheer.” “You do preach worse than a parson,” said the ironmaster. “I only hope you won’t have to regret this.”

(आयरन मास्टर धीरे से कुछ बड़बड़ाया। वह उसका विरोध नहीं कर सका। “माना कि यह सब एक गलती थी,” वह बोलती गई। “पर फिर भी मैं नहीं सोचती कि हमें ऐसे एक आदमी को भगा देना चाहिए जिससे हमने यहाँ आने के लिए कहा और जिसे हमने क्रिसमस की खुशी देने का वायदा किया।” “तुम तो पादरी से भी अधिक बुरा उपदेश देती हो,” आयरन मास्टर बोला। “मैं केवल यह आशा कर सकता हूँ कि तुम्हें इस बात के लिए पछताना न पड़े।”)

The young girl took the stranger by the hand and led him up to the table. “Now sit down and eat,” she said, for she could see that her father had given in. The man with the rattraps said not a word; he only sat down and helped himself to the food. Time after time he looked at the young girl who had interceded for him. Why had she done it? What could the crazy idea be?

(युवा लड़की ने अजनबी का हाथ पकड़ा और उसे मेज तक ले गई। “अब बैठ जाओ और खाओ,” वह बोली, क्योंकि वह देख सकती थी कि उसके पिता ने हार मान ली थी।
चूहेदानी वाला व्यक्ति कुछ नहीं बोला, वह बोला, वह केवल बैठ गया और खाना खाता रहा। समय-समय पर वह उस युवा लड़की को देख लेता था जिसने उसका पक्ष लिया था। उसने ऐसा क्यों किया था ? इसके पीछे क्या पागलपन भरा विचार हो सकता था ?)

After that, Christmas Eve at Ramsjö passed just as it always had. The stranger did not cause any trouble because he did nothing but sleep. The whole forenoon he lay on the sofa in one of the guest rooms and slept at one stretch. At noon they woke him up so that he could have his share of the good Christmas fare, but after that he slept again. It seemed as though for many years he had not been able to sleep as quietly and safely as here at Ramsjo.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 4 The Rattrap

(इसके बाद क्रिसमस की पूर्व-संध्या रेमस्जो में वैसे ही गुजरी जैसी यह सदा गुजरा करती थी। अजनबी किसी परेशानी का कारण नहीं बना क्योंकि उसने सोने के अतिरिक्त कुछ किया ही नहीं। दोपहर बाद वह एक गेस्ट रूम के सोफे पर पड़ा लगातार सोता रहा। दोपहर में उन्होंने उसे क्रिसमस के अच्छे भोजन में अपना हिस्सा लेने के लिए जगाया, पर उसके बाद वह फिर सो गया। ऐसा लगता था कि बहुत वर्षों से वह इतनी शान्ति और सुरक्षा से नहीं सोया था जैसी कि यहाँ रेमस्जो में उसे मिली थी।)

In the evening, when the Christmas tree was lighted, they woke him up again, and he stood for a while in the drawing room, blinking as though the candlelight hurt him, but after that he disappeared again. Two hours later he was aroused once more. He then had to go down into the dining room and eat the Christmas fish and porridge.

(शाम को जब क्रिसमस ट्री को जलाया गया तो उन्होंने उसको दुबारा जगाया, और वह थोड़ी देर तक ड्राईंग रूम में इस तरह पलक झपकता हुआ खड़ा रहा मानो मोमबत्ती की रोशनी उसे चुभ रही हो, परन्तु इसके बाद वह दुबारा सोने चला गया। दो घण्टे बाद उसे एक बार फिर जगाया गया। इस बार उसे नीचे डाईनिंग रूम में जाना पड़ा और क्रिसमस के उपलक्ष्य में मछली और दलिया खाया।)

As soon as they got up from the table he went around to each one present and said thank you and good night, but when he came to the young girl she gave him to understand that it was her father’s intention that the suit which he wore was to be a Christmas present-he did not have to return it; and if he wanted to spend next Christmas Eve in a place where he could rest in peace, and be sure that no evil would befall him, he would be welcomed back again. The man with the rattraps did not answer anything to this. He only stared at the young girl in boundless amazement.

(ज्योंहि वे टेबल से खड़े हुए वह वहाँ उपस्थित हर एक के पास गया और धन्यवाद और शुभ रात्रि कहा, परन्तु जब वह जवान लड़की के पास आया उसने उसे समझाया कि जो सूट वह पहने हुए है वह उसके पिता की तरफ से उसको क्रिसमस का उपहार है उसे उसको लौटाने की जरूरत नहीं है; और यदि वह अगले वर्ष क्रिसमस एक ऐसी जगह बिताना चाहे जहाँ वह शान्ति से रहे और निश्चित हो कि जहाँ उसके साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा, तो उसका यहाँ पर फिर से स्वागत होगा। चूहेदानी वाले आदमी ने इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया। उसने केवल लड़की की तरफ असीमित हैरानी में देखा।)

The next morning the ironmaster and his daughter got up in good season to go to the early Christmas service. Their guest was still asleep, and they did not distrub him. When, at about ten o’clock, they drove back from church, the young girl sat and hung her head even more dejectedly than usual. At church she had learned that one of the old crofters of the ironworks had been robbed by a man who went around selling rattraps. “Yes, that was a fine fellow you let into the house,” said her father. “I only wonder how many silver spoons are left in the cupboard this time.”

(अगली प्रातः को आयरन मास्टर और उसकी बेटी क्रिसमस की धार्मिक रस्म को करवाने के लिए जल्दी जाग गए। उनका मेहमान अभी सोया हुआ था और उन्होंने उसे नहीं जगाया। जब लगभग दस बजे वे चर्च से लौटे, तो युवती पहले से अधिक उदासी से सिर नीचा करके बैठ गई। चर्च में उसे पता चला था कि एक बूढ़े किसान को एक घूम-घूम कर चूहेदानियाँ बेचने वाला आदमी लूटकर चला गया। “हाँ, वह बढ़िया आदमी था जिसे तुमने घर में रहने दिया था”, उसके पिता ने कहा, “मैं नहीं समझता कि अब तक घर की अलमारी में कोई चाँदी का चम्मच बचा होगा।”)

The wagon had hardly stopped at the front steps when the ironmaster asked the valet whether the stranger was still there. He added that he had heard at church that the man was a thief. The valet answered that the fellow had gone and that he had not taken anything with him at all. On the contrary, he had left behind a little package which Miss Willmansson was to be kind enough to accept as a Christmas present.

(गाड़ी सामने की सीढ़ियों के आगे मुश्किल से रुकी होगी जब आयरन मास्टर ने नौकर से पूछा कि क्या अजनबी अभी वहीं है। उसने यह भी कहा कि वह चर्च में सुनकर आया है कि वह आदमी चोर है। नौकर ने उत्तर दिया कि वह आदमी जा चुका और वह अपने साथ कोई चीज नहीं ले गया है। इसके विपरीत वह अपने पीछे एक छोटा-सा पैकेट छोड़ गया है जिसे मिस विलमनसन कृपया एक क्रिसमस की भेंट समझ स्वीकार करें।)

The young girl opened the package, which was so badly done up that the contents came into view at once. She gave a little cry of joy. She found a small rattrap, and in it lay three wrinkled ten kronor notes. But that was not all. In the rattrap lay also a letter written in large, jagged characters

(युवा लड़की ने पैकेट खोला जो इतनी बुरी तरह लपेटा गया था कि उसके अन्दर का सामान तुरन्त ही नजर आ गया। खुशी की एक छोटी-सी चीख उसके मुँह से निकल गई। उसे एक छोटी-सी चूहेदानी मिली और इसमें 10 क्रॉनर वाले तीन नोट मुड़े हुए रखे थे। परन्तु इतना ही नहीं था। चूहेदान के अन्दर बड़े-बड़े टूटे-फूटे अक्षरों में लिखा एक पत्र भी था।)

“Honoured and noble Miss, “Since you have been so nice to me all day long, as if I was a captain, I want to be nice to you, in return, as if I was a real captain-for I do not want you to be embarrassed at this Christmas season by a theif; but you can give back the money to the old man on the roadside, who has the money pouch hanging on the window frame as a bait for poor wanderers.

(“सम्मानीय और श्रेष्ठ मिस साहिबा, “क्योंकि आपने सारा दिन मुझसे ऐसा अच्छा व्यवहार किया है जैसे मानो मैं कोई कैप्टन हूँ, बदले में मैं आपके प्रति अच्छा व्यवहार करना चाहता हूँ जैसे कि मैं असली कैप्टन ही हूँ; क्योंकि मैं नहीं चाहता कि इस क्रिसमस के अवसर पर आपको किसी चोर के द्वारा शर्मिंदगी उठानी पड़े, बल्कि आप यह धन सड़क के किनारे रहने वाले बूढ़े व्यक्ति को दे देना जिसके धन की थैली गरीब आवारा लोगों को ललचाने के लिए दाने की तरह खिड़की की चौखट से लटकी रहती है।”)

“The rattrap is a Christmas present from a rat who would have been caught in this world’s rattrap if he had not been raised to captain, because in that way he got power to clear himself. “Written with friendship and high regard, “Captain von Stahle.” (“यह चूहेदानी उस चूहे की ओर से एक क्रिसमस उपहार है जो इस संसार के चूहेदान में फंस गया होता अगर आपने कैप्टन न बनाया होता क्योंकि इसके कारण उसके अन्दर स्वयं को शुद्ध करने की शक्ति आ गई।” “मैत्रीभाव से और बड़े सम्मान से लिखा गया, “कैप्टन वॉन स्टाहल।”)

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. जनसंचार के साधनों को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है?
(A) तीन
(B) चार
(C) पाँच
(D) छः।
उत्तर:
तीन।

2. इनमें से कौन-सा जनसंचार का साधन है?
(A) मुद्रित संचार
(B) विद्युत् संचार
(C) श्रव्य-दृश्य संचार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

3. इनमें से किसे मुद्रित संचार में शामिल कर सकते हैं?
(A) समाचार-पत्र
(B) मैगज़ीन
(C) जर्नल
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

4. इनमें से कौन-सा विद्युत् संचार का मुख्य साधन है?
(A) रेडियो
(B) टी० वी०
(C) a + b दोनों
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
a + b दोनों।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

5. इनमें से कौन-सा श्रव्य-दृश्य संचार का मुख्य साधन है?
(A) समाचार-पत्र
(B) सिनेमा
(C) रेडियो
(D) मैगज़ीन।
उत्तर:
सिनेमा।

6. भारत में कितने रेडियो स्टेशन हैं?
(A) 200
(B) 225
(C) 208
(D) 216
उत्तर:
208.

7. भारत में दूरदर्शन प्रसारण कब शुरू हुआ था?
(A) 1959
(B) 1957
(C) 1961
(D) 1963
उत्तर:
1959.

8. दूरदर्शन तथा आकाशवाणी कब अलग हुए थे?
(A) 1974
(B) 1976
(C) 1978
(D) 1980
उत्तर:
1976

9. टी० वी० का आविष्कार किसने किया था?
(A) गुटेनवर्ग
(B) ग्राहम बैल
(C) जान लोगी बर्ड
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
जान लोगी बर्ड।

10. भारत में पिन कोड सुविधा कब शुरू हुई थी?
(A) 1980
(B) 1972
(C) 1976
(D) 1974
उत्तर:
1972

11. किस प्रदेश में सबसे अधिक समाचार-पत्र प्रकाशित होते हैं?
(A) पंजाब
(B) राजस्थान
(C) उत्तर प्रदेश
(D) महाराष्ट्र।
उत्तर:
उत्तर प्रदेश।

12. भारत में रेडियो प्रसारण कब शुरू हुआ था?
(A) 1923
(B) 1925
(C) 1927
(D) 1930
उत्तर:
1923

13. संस्कृति में आने वाले परिवर्तन को क्या कहते हैं?
(A) सांस्कृतिक परिवर्तन
(B) सांस्कृतिक आधुनिकता
(C) आधुनिक संस्कृति
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
सांस्कृतिक परिवर्तन।

14. उस संस्कृति को क्या कहते हैं जो किसी विशेष क्षेत्र में फैली हो?
(A) प्रादेशिक संस्कृति
(B) सांस्कृतिक अपदर्श
(C) स्थानीय संस्कृति
(D) विश्वव्यापी संस्कृति।
उत्तर:
स्थानीय संस्कृति।

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15. इनमें से कौन-सा जनसंचार का कार्य है?
(A) संसार में घट रही घटनाओं की जानकारी देना
(B) प्रशासन की जानकारी देना
(C) सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्यों की जानकारी देना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंचार के माध्यमों को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
अथवा
जनसंचार के कितने प्रकार हैं?
अथवा
वर्तमान समय में कितने प्रकार का जनसंचार पाया जाता है?
अथवा
संचार माध्यम में जनसंचार के साधन कौन-से हैं?
उत्तर:
जनसंचार के माध्यमों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  • मुद्रित संचार
  • विद्युत् संचार
  • श्रव्य-दृश्य संचार।

प्रश्न 2.
मुद्रित संचार में क्या-क्या शामिल होता है?
अथवा
मुद्रित संचार क्या है?
उत्तर:
मुद्रित संचार में समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, जर्नल (Journals) इत्यादि शामिल होते हैं।

प्रश्न 3.
विद्युत् संचार के कौन-कौन से प्रमुख साधन हैं?
उत्तर:
विद्युत् संचार के प्रमुख साधन आकाशवाणी तथा दूरदर्शन हैं। इनसे संबंधित रेडियो तथा टी० वी० संचार भी इसमें शामिल होते हैं।

प्रश्न 4.
श्रव्य-दृश्य का कौन-सा प्रमुख साधन है?
उत्तर:
श्रव्य-दृश्य संचार का प्रमुख साधन फिल्में हैं चाहे वह फीचर फिल्म हो या दस्तावेजी फिल्म हो।

प्रश्न 5.
जनसंचार कौन-सा कार्य करता है?
उत्तर:
जनसंचार का प्रमुख कार्य सूचना के प्रसारण का होता है।

प्रश्न 6.
प्रसार भारती का गठन कब हआ था?
उत्तर:
1997 में प्रसार भारती अधिनियम पारित करके प्रसार भारती का गठन हुआ था।

प्रश्न 7.
भारत में कितने समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं?
उत्तर:
भारत में 52,000 के करीब समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं।

प्रश्न 8.
भारत में कितने रेडियो स्टेशन हैं?
उत्तर:
भारत में इस समय 208 रेडियो स्टेशन हैं।

प्रश्न 9.
आजकल कार्यक्रमों का प्रसारण किस माध्यम से होता है?
उत्तर:
आजकल कार्यक्रमों का प्रसारण कंप्यूटर तथा उपग्रहों के माध्यम से होता है।

प्रश्न 10.
भारत में रेडियो प्रसारण कब शुरू हुआ था?
उत्तर:
भारत में रेडियो प्रसारण 1923 में शुरू हुआ था।

प्रश्न 11.
भारत में चलती-फिरती फिल्में कब बननी शुरू हुई थीं?
उत्तर:
भारत में चलती-फिरती फिल्में 1912-13 में शुरू हुई थीं।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय फिल्म विकास लिमिटेड का गठन कब हुआ था?
उत्तर:
राष्ट्रीय फिल्म विकास लिमिटेड का गठन 1975 में हुआ था।

प्रश्न 13.
जनसंचार क्या होता है?
अथवा
जनसंचार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जनसंचार दो शब्दों जन तथा संचार को मिला कर बना है। जन का अर्थ है जनता तथा संचार का अर्थ है प्रसार या फैलाव। इस तरह जनसंचार वह प्रक्रिया है जिसमें जनता तक सूचना का प्रसारण आधुनिक माध्यमों से होता है जैसे कि उपग्रह, कंप्यूटर, टी० वी० रेडियो इत्यादि।

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प्रश्न 14.
जनसंचार के प्रसारण के माध्यमो के नाम बताओ।
अथवा
जनसंचार के एक साधन का नाम लिखें।
उत्तर:
जनसंचार के प्रसारण के माध्यम रेडियो, टी० वी०, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, फिल्में, इंटरनेट, टेलीफोन, त्यादि हैं।

प्रश्न 15.
जनसंचार के माध्यमों को कितने भागों में बाँट सकते हैं?
उत्तर:
जनसंचार के माध्यमों को तीन भागों में बाट सकते हैं-

  • मुद्रित संचार
  • विद्युत् संधार
  • श्रव्य-दृश्य संचार।

प्रश्न 16.
सबसे पहले भारत में कौन-सा अखबार प्रकाशित हुआ था?
उत्तर:
सबसे पहले 1882 में भारत में बांबे समाचार प्रकाशित हुआ था।

प्रश्न 17.
मनोरंजन क्रांति क्या होती है?
उत्तर:
सूचना तकनीक में क्रांति की वजह से मनोरंजन के क्षेत्र में जो क्रांति हुई है उसे मनोरंजन क्रांति कहते हैं। अब टी० वी० कंप्यूटर तथा दूरदर्शन एक साथ जुड़ गए हैं जिस वजह से आम लोगों के जीवन के विभिन्न पक्षों में परिवर्तन आ रहे हैं। इंटरनेट जोकि मनोरंजन का एक साधन है ने दुनिया को जोड़ कर या छोटा कर के रख दिया है।

प्रश्न 18.
सांस्कृतिक आधुनिकीकरण क्या होता है?
उत्तर:
संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों को हम सांस्कृतिक आधुनिकीकरण कहते हैं। आज रहन-सहन, खाने पीने, कपड़ों, मनोरंजन, परिवार, संस्थाओं हर जगह परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। यह सब सांस्कृतिक आधुनिकीकरण है क्योंकि यह सब हमारी संस्कृति का हिस्सा है।

प्रश्न 19.
जनसंवाद क्या होता है?
उत्तर:
वह प्रक्रिया जिसकी मदद से सूचनाएं बहुत से लोगों तक पहुँचाई जाती हैं वह जनसंवाद होता है।

प्रश्न 20.
जनसंवाद तथा जनसंचार में क्या भिन्नता है?
उत्तर:
जनसंवाद वह प्रक्रिया है जिसकी मदद से बहुत-से लोगों तक सूचनाएं पहुँचाई जाती हैं पर जनसंचार इन सूचनाओं को लोगों तक पहुँचाने का एक माध्यम है।

प्रश्न 21.
स्थानीय संस्कृति क्या होती है?
उत्तर:
वह संस्कृति किसी निश्चित सीमा के भीतर होती है या अगर किसी संस्कृति का फैलाव किसी भौगोलिक क्षेत्र की निश्चित सीमा के अंदर रहता है तो उसे स्थानीय संस्कति कहते हैं।

प्रश्न 22.
टेलीविज़न किस प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित करता है?
उत्तर:
टेलीविज़न राष्ट्रीय स्तर के, प्रादेशिक स्तर के तथा स्थानीय स्तर के कार्यक्रम प्रसारित करता है।

प्रश्न 23.
भारत में दूरदर्शन का प्रसारण कब शुरू हुआ था?
उत्तर:
भारत में दूरदर्शन का प्रसारण 1959 में शुरू हुआ था।

प्रश्न 24.
न तथा आकाशवाणी कब अलग हुए थे?
उत्तर:
दूरदर्शन तथा आकाशवाणी 1976 में बने थे।

प्रश्न 25.
PIN-CODE का पूरा अर्थ बताएं।
उत्तर:
PIN-CODE का पूरा अर्थ है Postal Index Number Code जो कि चिट्ठियों पर प्रयोग होता है।

प्रश्न 26.
टेलीविज़न की खोज किसने तथा कब की थी?
उत्तर:
जान लोगी बेयर्ड ने 1925 में टेलीविज़न का आविष्कार किया था।

प्रश्न 27.
पिन कोड की सेवा किस वर्ष में शुरू हुई थी?
उत्तर:
पिन कोड की सेवा 1972 में शुरू हुई थी।

प्रश्न 28.
किस राज्य में सबसे ज्यादा अखबार छपते हैं?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा अखबार छपते हैं।

प्रश्न 29.
देश में छपने वाले किन्हीं दस प्रमुख समाचार-पत्रों के नाम बताएं।
उत्तर:

  1. पंजाब केसरी
  2. दैनिक भास्कर
  3. नवभारत टाइम्स
  4. हिंदुस्तान टाइम्स
  5. अमर उजाला
  6. हिंदुस्तान
  7. दि ट्रिब्यून
  8. टाइम्स ऑफ़ इंडिया
  9. दैनिक जागरण
  10. इक्नामिक टाइम्स।

प्रश्न 30.
इंटरनेट का पत्रकारिता के संसार पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
इंटरनेट के कारण पत्रकारिता का संसार सिमट कर छोटा-सा रह गया है। इंटरनेट की सहायता से कुछ ही क्षणों में संसार के एक हिस्से की ख़बरें दूसरे हिस्से तक पहुँच जाती हैं। पत्रकार इंटरनेट की सहायता से किसी से भी सीधी बात कर सकते हैं तथा गोष्ठियाँ तक आयोजित करवा सकते हैं।

प्रश्न 31.
किसी प्रमुख समाचार-पत्र का नाम बताएँ।
उत्तर:
द ट्रिब्यून, द हिन्दुस्तान टाइम्स भारत के प्रमुख समाचार-पत्र हैं।

प्रश्न 32.
किसी हिंदी समाचार-पत्र का नाम बताएँ।
अथवा
किन्हीं दो हिंदी समाचार-पत्रों के नाम बताएँ।
उत्तर:
पंजाब केसरी, अमर उजाला हिंदी के समाचार-पत्र हैं।

प्रश्न 33.
समाचार-पत्रों के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:

  1. समाचार-पत्र पढ़ने से हमें सुबह-सुबह ही घर बैठे हुए संसार भर में घटी घटनाओं के बारे में पता चल जाता है।
  2. समाचार-पत्र पढ़ने से हमारे सामान्य ज्ञान में वृद्धि होती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

प्रश्न 34.
रेडियो के दो लाभ बताएँ।
उत्तर:

  1. कम पैसे में व्यक्ति रेडियो की सहायता से अपना मनोरंजन कर सकता है।
  2. रेडियो की सहायता से किसानों, छात्रों इत्यादि के ज्ञान में वृद्धि होती है क्योंकि रेडियो पर इनके लिए कई कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।

प्रश्न 35.
दूरदर्शन के कोई दो लाभ बताएँ।
अथवा
टेलीविज़न या दूरदर्शन के कोई दो लाभ लिखिए।
उत्तर:

  1. दूरदर्शन पर किसानों से संबंधित कई कार्यक्रम प्रसारित होते है जिससे वह अपनी कृषि में सुधार कर सकते हैं।
  2. दूरदर्शन की सहायता से लोग घर बैठ कर ही अपना मनोरंजन कर सकते हैं।

प्रश्न 36.
समाचार-पत्र जनसंचार का साधन हैं या नहीं?
उत्तर:
जी हाँ, समाचार-पत्र जनसंचार का साधन हैं।

प्रश्न 37.
‘आज तक’ एक समाचार प्रसारण करने वाला दूरदर्शन चैनल है या नहीं?
उत्तर:
‘आज तक’ एक समाचार प्रसारण करने वाला दूरदर्शन चैनल है।

प्रश्न 38.
दूरदर्शन पर दिए जाने वाले विज्ञापनों के दो लाभ बताएँ।
उत्तर:

  1. इन विज्ञापनों की सहायता से कंपनियां नए उत्पादों को बाजार में उतारती है।
  2. उत्पादों की बिक्री बढ़ती है तथा कंपनियों की आय में बढ़ोत्तरी होती है।

प्रश्न 39.
दूरदर्शन के किसी एक न्यूज़ चैनल का नाम बताएँ।
उत्तर:
आज तक, स्टार न्यूज़, इंडिया टी. वी. इत्यादि न्यूज़ चैनलों के नाम हैं।

प्रश्न 40.
मोबाइल फोन के दो उपयोग बताएँ।
उत्तर:

  1. इससे हम दर-दर तक बात कर सकते हैं।
  2. इसे कहीं पर भी लेकर जाया जा सकता है।

प्रश्न 41.
समाचार-पत्र किस प्रकार के जनसंचार से संबंधित है?
उत्तर:
समाचार-पत्र मुद्रित जनसंचार से संबंधित है।

प्रश्न 42.
भारत की संपर्क भाषा कौन-सी है?
उत्तर:
अंग्रेजी (English) भारत की संपर्क भाषा है।

प्रश्न 43.
रेडियो कौन-से प्रकार के जनसंचार से संबंधित है?
उत्तर:
रेडियो विद्युत् जनसंचार से संबंधित है।

प्रश्न 44.
दूरदर्शन (टलीविज़न) कौन-से प्रकार के जन-संचार से संबंधित है?
उत्तर:
दूरदर्शन (टेलीविज़न) जन-संचार के विद्युत् संचार से संबंधित है।

प्रश्न 45.
मुद्रित संचार क्या है?
उत्तर:
छपे हुए संचार माध्यमों को मुद्रित संचार कहा जाता है। उदाहरण के लिए समाचार पत्र तथा पत्रिकाएं।

प्रश्न 46.
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में कितने रेडियो स्टेशन थे?
उत्तर:
उस समय भारत में 6 रेडियो स्टेशन थे।

प्रश्न 47.
दि सिविल एंड मिलिटी गज़ट कब प्रकाशित हुआ?
उत्तर:
1872 में।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंचार के कार्यों के बारे में बताओ।
उत्तर:
जनसंचार के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • मीडिया दुनिया में हो रही सभी गतिविधियों की जानकारी तथा घट रही घटनाओं की सूचना लोगों तक पहुँचाता है।
  • मीडिया शासन संबंधी सूचनाएं लोगों तक पहुंचाता है।
  • मीडिया सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों, संसद् तथा विधानमंडलों द्वारा किए जा रहे कार्यों की सूचना लोगों तक पहुँचाता है।
  • दुनिया भर में हो रहे खेलों का आँखों देखा हाल मीडिया की वजह से ही लोगों तक पहुँचता है।
  • टी० वी० पर ही पश्चिमी शिक्षा, तौर-तरीकों, रहने-सहने के ढंगों का प्रसार होता है।
  • मीडिया यह सब करने के साथ-साथ लोगों को उनके अधिकारों तथा कर्तव्य के बारे में भी बताता है।

प्रश्न 2.
जनसंचार के माध्यमों के लोगों पर क्या ग़लत प्रभाव पड़ रहे हैं?
उत्तर:
जनसंचार के लोगों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ रहे हैं-

  • कंपनियां अपने उत्पादन बेचने के लिए महिलाओं की अश्लीलता का उपयोग जनसंचार के माध्यमों से करती हैं।
  • जनसंचार लोगों से असलियत छुपा कर गलत तसवीर भी लोगों के सामने पेश करता है।
  • जनसंचार के माध्यम लोगों को खासकर युवाओं को सपनों की दुनिया में ले जाते हैं तथा असलियत से दूर कर देते हैं।
  • जनसंचार के माध्यम समाज का ध्यान जीवन की रचनात्मक तथा गंभीर वस्तुओं से दूर कर देते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

प्रश्न 3.
शिक्षा के क्षेत्र में जनसंचार के माध्यमों का क्या योगदान है?
उत्तर:
शिक्षा के क्षेत्र में जनसंचार के माध्यमों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। दिल्ली दूरदर्शन पर हमेशा U.G.C. के कार्यक्रम चलते रहते हैं जहां से लगातार बच्चों तथा युवाओं को शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा बच्चों के लिए भी हमेशा शिक्षा कार्यक्रम चलते रहते हैं। U.G.C. हमेशा उच्च शिक्षा के कार्यक्रम आयोजित करती रहती है ताकि युवाओं को इनके बारे में जानकारी दी जा सके तथा इन सभी कार्यक्रमों का प्रसारण दूरदर्शन पर होता है।

दूरदर्शन के अलावा अब Discovery Channel, National Geographic Channel तथा History Channel भी चल रहे हैं जहां पर हमेशा लोगों को शिक्षित करने के लिए ज्ञानवर्धक कार्यक्रम चलते रहते हैं। History Channel पर तो हमेशा ही दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के इतिहास का विवरण दिया जाता है जो कि युवाओं, बच्चों तथा इतिहास पढ़ रहे विद्यार्थियों के लिए लाभदायक है।

इस तरह अखबारें, पत्रिकाएं भी बच्चों तथा युवाओं का ज्ञान बढ़ाने में काफी मददगार साबित होती हैं। इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में जनसंचार के माध्यमों का काफ़ी महत्त्वपूर्ण योगदान है। यहां तक कि स्कूलों या कालेजों में रेडियो या टी०वी० पर आ रहे शिक्षावर्धक कार्यक्रमों को विदयार्थियों को सुनाया या दिखाया जाता है ताकि वह कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 4.
जनसंचार के माध्यमों का वर्णन करें।
अथवा
जनसंचार माध्यम क्या है?
अथवा
विभिन्न प्रकार के जनसंचार की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
लोगों को मनोरंजन प्रदान करने तथा देश की जनता को सूचना पहुंचाने में जनसंचार के माध्यमों का काफ़ी बड़ा हाथ होता है। जनसंचार के माध्यम देश में कोई लहर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। जनसंचार के माध्यमों को हम तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं-मुद्रित संचार, विद्युत् संचार तथा श्रव्य-दृश्य संचार। मुद्रित संचार में अखबारें तथा पत्रिकाएं आती हैं। अखबारें तथा पत्रिकाएं लोगों को हर सुबह यह बता देती हैं कि कल सारी दुनिया में क्या तथा किस तरह हुआ।

इनको पढ़कर सुबह ही व्यक्ति सारी दुनिया को जान लेता है। विद्युत् संचार में टेलीविज़न तथा रेडियो आते हैं। इन दोनों पर हम कई प्रकार के कार्यक्रम देख तथा सुन सकते हैं जिनसे हमारा ज्ञान बढे। इन दोनों पर बहत से मनोरंजन के कार्यक्रम भी आते हैं जिससे हमारा खाली समय पास हो जाता है।

श्रव्य दृश्य संचार में फिल्में आती हैं जो लोगों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उनको कई प्रकार की शिक्षा भी प्रदान करती हैं। जनसंचार के इन माध्यमों से ऐसा लगता है कि जैसे सारी दुनिया हमारे हाथों में है हम कभी भी इनको छू सकते हैं। यह जनसमर्थन जुटाने का सबसे बढ़िया साधन है। अगर यह माध्यम चाहे तो देश की सरकार तक को उल्ट सकते हैं।

प्रश्न 5.
समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं से सामाजिक परिवर्तन कैसे होता है?
उत्तर:
यह सच है कि समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। वास्तव में समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं लोगों की सोई हुई भावनाओं को जगाती है। समाचार-पत्रों में रोजाना की देश-विदेश की खबरें, कई प्रकार के लेख इत्यादि छपते रहते हैं। इन्हें पढ़ कर लोगों में जागृति पैदा होती है। स्वतंत्रता से पहले बहुत-से नेताओं ने समाचार पत्रों की सहायता से जनता की सोई हुई भावनाओं को जगाया तथा उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

स्वतंत्रता के बाद प्रेस को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तथा वह सरकार की गलत नीतियों को उजागर करने लगी। इससे भी जनता सरकारों को बदलने के लिए बाध्य हुई। इससे सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस प्रकार पत्रिकाएं भी समय-समय पर अलग-अलग मुद्दों पर जनता की भावनाओं को जगाकर सामाजिक परिवर्तन लाने का प्रयास करती रहती है।

प्रश्न 6.
दूरदर्शन से भारतीय समाज में क्या-क्या परिवर्तन हो रहे हैं?
अथवा
भारतीय समाज पर जनसंचार के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
दूरदर्शन से भारतीय समाज में जन संचार में एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में विकसित हुआ है। इसकी शुरुआत एक प्रयोग के रूप में 1959 में दिल्ली से की गई। टेलीविज़न के कार्यक्रमों में साक्षात्कार किसी समस्या या घटना के ऊपर विचार-विमर्श करना तथा वृत्त चित्रों का महत्त्वपूर्ण साधन है। इसके अतिरिक्त नृत्यु, नाटक, संगीत, समाचार इत्यादि को भी दिखाया जाता है। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, दीवाली इत्यादि के कार्यक्रम भी इस पर दिखाए जाते हैं।

इसके साथ ही दूरदर्शन के प्रसारण के लिए विशेष प्रकार के कार्यक्रमों को भी बनाया जाता है जिसमें यातायात संबंधी नियमों की जानकारी देना, नगर नियोजन संबंधी नियमों से अवगत कराना, स्वास्थ्य समुदायों तथा खानपान में की जाने वाली मिलावट जैसी समस्याओं के बारे में बताया जाता है। खबरों की सहायता से जनता को अलग-अलग मुद्दों की जानकारी दी जाती है। इस प्रकार दूरदर्शन से जनता को जगाकर सामाजिक परिवर्तन लाया जा रहा है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में विद्युत् संचार के माध्यमों का वर्णन करें।
अथवा
इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम पर नोट लिखें।
अथवा
रेडियो के प्रसारण के संबंध में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
विद्युत् अर्थात् बिजली। विद्युत् संचार का अर्थ है बिजली से चलने वाले संचार के साधन। अब हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि विद्युत् संचार में कौन-कौन से माध्यम होंगे। विद्युत् संचार के दो प्रमुख माध्यम हैं रेडियो तथा टी० वी०। इन दोनों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
(i) रेडियो (आकाशवाणी)-भारत में सबसे पहले रेडियो प्रसारण का कार्यक्रम सन् 1923 में शुरू हुआ था, जब रेडियो क्लब ऑफ बंबई’ द्वारा एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया था।

इसके बाद 1927 में प्रयोग के तौर प्राइवेट ट्रांसमीटरों ने भी काम करना शुरू कर दिया था। सरकार ने इन प्राइवेट ट्रांसमीटरों को 1930 में अपने हाथ में ले लिया तथा इसे इंडियन ब्राडकॉस्टिंग सर्विस (Indian Broadcasting Service) के नाम से चलाना शुरू कर दिया था।

सन् 1936 तथा 1957 में इसे आकाशवाणी का नाम दे दिया गया। आज के समय में आकाशवाणी 24 भाषाओं में कार्यक्रम पेश करती है। आकाशवाणी का मुख्य उद्देश्य लोगों के हितों को ध्यान में रख कर कार्य करना है। इस समय भारत में 208 रेडियो स्टेशन कार्य कर रहे हैं। अब तो भारत में बहुत सारे एफ० एम० (F.M.) स्टेशन भी स्थापित हो चुके हैं।

इस समय देश के 90% क्षेत्र में तथा 98% जनसंख्या आकाशवाणी के कार्यक्रम सुन सकती है। 1966 के बाद से तो आकाशवाणी पर ग्रामीणों के लिए भी कार्यक्रम प्रसारित होने लग पड़े हैं। याद रहे 1966 के बाद ही हरित क्रांति आयी थी। अब महिलाओं खासकर ग्रामीण महिलाओं तथा बच्चों के लिए कई तरह के कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। इस की वजह से यह उम्मीद की जाती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी परिवर्तन आएगा तथा वह आ भी रहा है।

(ii) दूरदर्शन (टलीविज़न)-भारत में टेलीविज़न सबसे पहले 1959 में दिल्ली के आकाशवाणी भवन में प्रयोग के तौर पर चलाया गया। भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे दूरदर्शन की सेवा विश्व की संचार की सेवाओं में सबसे बड़ी सेवाओं में से एक है। सबसे पहले दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में तीन दिन होता था। फिर धीरे-धीरे रोज़ाना समाचार प्रणाली शुरू हुई। 1975-76 में भारत में उपग्रह से संबंधित पहला प्रयोग साईट के द्वारा किया गया।

लोगों को सामाजिक शिक्षा देने के लिए तकनीकी मदद से यह पहला प्रयास था। देश में दूसरा टेलीविज़न केंद्र 1972 में खोला गया। 1973 में तो कई स्थानों पर ऐसे केंद्र खोले गए। 1976 में दूरदर्शन को ऑल इंडिया रेडियो (Ali India Radio) से अलग करके अलग विभाग बना दिया गया। रंगीन टी० वी० की शुरुआत सबसे पहले 1982 के एशियाई खेलों के दौरान हुई।

1984 में दिल्ली दूरदर्शन के साथ डी० डी० मैट्रो को जोड़ दिया गया। पहले तो मैट्रो सिर्फ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा चेन्नई में ही दिखाया जाता था पर कुछ समय बाद यह पूरे भारत में दिखाया जाने लगा। 1999 में खेलों के लिए डी० डी० स्पोर्टस (D.D. Sports) नामक खेल चैनल भी शुरू किया गया ताकि दुनिया भर में चल रही खेलों को दिखाया जा सके।

आज भारत में 8 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के पास टेलीविज़न उपलब्ध हैं। इस समय दूरदर्शन देश की 87% आबादी तक तथा 70% भौगोलिक क्षेत्र तक अपने चैनलों को पहँचा चका है। देश के 49 शहरों में तो दरदर्शन के प्रोडक्शन स्टूडियो (Production Studio) हैं। दूरदर्शन से शिक्षा संबंधी कई कार्यक्रम प्रस्तुत होते हैं।

IGNOU के माध्यम से तथा U.G.C. के माध्यम से उच्च शिक्षा के लिए कई कार्यक्रम दूरदर्शन पर चलाए जा रहे हैं। 1995 में दूरदर्शन ने डी० डी० वर्ल्ड नामक एक चैनल चलाया था पर 2002 में इसे डी० डी० इंडिया (D.D. India) का नाम दिया गया।

इनके अतिरिक्त भारत में आज के समय में प्राइवेट चैनलों की भरमार आई हुई है। दूरदर्शन के अलावा सोनी, जी० टी०वी०, मैक्स, स्टार स्पोर्ट्स, स्टार प्लस, ई० एस० पी एन० एवं जी न्यूज, आज तक इत्यादि सैकड़ों ऐसे चैनल हैं जो दिन-रात चल रहे हैं तथा लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं।

इस तरह हम कह सकते हैं विद्युत् संचार के साधनों ने देश में काफ़ी उन्नति की है। सरकारी चैनलों के साथ साथ प्राइवेट चैनलों की भी भरमार हो गई है जिसकी वजह से लोगों का विद्युत् संचार के माध्यम से काफ़ी मनोरंजन हो रहा है।

प्रश्न 2.
मुद्रित संचार के विभिन्न माध्यमों का वर्णन करो।
उत्तर:
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में से मुद्रित संचार भी एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। मुद्रित संचार को प्रेस भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएं आती हैं। प्रेस रजिस्ट्रार की 2001 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत में उस समय 51960 समाचार पत्र तथा पत्रिकाएं प्रकाशित होती थीं।

इस वर्ष में 5638 दैनिक, 348 सप्ताह में दो या तीन बार प्रकाशित होने वाले, 18582 साप्ताहिक, 6881 पाक्षिक (Fortnightly), 14634 मासिक, 3634 त्रैमासिक, 469 वार्षिक तथा 1774 अन्य पत्र-पत्रिकाएं छप रही थीं। सबसे ज्यादा अखबार या पत्रिकाएं हिंदी भाषा में प्रकाशित होते हैं, फिर अंग्रेज़ी तथा फिर मराठी का नंबर आया। काश्मीरी भाषा को छोड़कर बाकी सभी प्रमुख भाषाओं में समाचार पत्र प्रकाशित होती हैं।

सबसे ज्यादा अखबार उत्तर प्रदेश में प्रकाशित होते हैं जो कि 8400 के करीब हैं। उसके बाद दिल्ली, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश का नंबर आता है। दैनिक ले में भी उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। उसके बाद महाराष्ट्र तथा कर्नाटक का स्थान रहा है। सबसे पुराना अखबार 1882 से छप रहा गुजराती भाषा का बंबई समाचार है।

मुद्रित संचार को आगे बढ़ाने में समाचारों की कई एजेंसियों का प्रमुख हाथ रहा है जिनका वर्णन इस प्रकार है-
(i) प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (Press Trust of India PTI)-यह समाचार एजेंसी समाचार पत्रों को टेलीप्रिंटर की मदद से समाचार उपलब्ध करवाती है। यह भारत की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी है।

इसका गठन 1947 में हुआ था पर इसने फरवरी, 1949 से कार्य करना शुरू किया था। यह हिंदी तथा अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में अपनी सेवाएं उपलब्ध करवा रही है। इसकी तो अब अपनी ही उपग्रह प्रणाली है जिसकी मदद से यह विभिन्न समाचार पत्रों को समाचार उपलब्ध करवाती है।

(ii) दि रजिस्ट्रार ऑफ़ न्यूजपेपर्स इन इंडिया (The Registrar of Newspapers in India R.N.I.)-समाचार पत्रों को अखबारी कागज़ का आबंटन होता है तथा यह आबंटन इस एजेंसी के द्वारा होता है। इसकी स्थापना 1956 में हुई थी।

सरकारी कोटे से अखबारी कागज़ लेने के लिए यह ज़रूरी है पत्र, पत्रिकाएं R. N. I. के पास अपना पंजीकरण कराएं तभी उन्हें अखबारी कागज़ उपलब्ध करवाया जाएगा वरना नहीं। इस तरह यह एजेंसी काफी महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।

(iii) यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ़ इंडिया (United News of India U.N.I.)-यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ़ इंडिया की स्थापना 1961 में हुई थी। विदेशों में तथा भारत में इस एजेंसी के तार फैले हुए हैं। इसके 76 समाचार ब्यूरो हैं जिस वजह से यह एशिया की सबसे बड़ी समाचार एजेंसियों में से एक है। इसने 1981 में पूरी तरह भारतीय भाषा समाचार एजेंसी हिंदी में यूनिवार्ता शुरू की। 1991 में इसने टेलीप्रिंटर की मदद से उर्दू समाचारों के लिए भी उर्दू सेवा शुरू की।

(iv) प्रैस सूचना ब्यूरो (Press Information Bureu P.I.B.)-ब्यूरो सरकार के कार्यक्रमों, नीतियों तथा प्राप्त की गई उपलब्धियों की सूचना देने वाली यह प्रमुख एजेंसी है। इसके मुख्यालय समेत 9 कार्यालय हैं। दिल्ली प्रमुख कार्यालय है। बाकी मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, लखनऊ, कोलकाता, गुवाहटी, भोपाल तथा हैदराबाद में स्थित हैं। इनके हरेक केंद्र में दूरसंचार केंद्र, संवाददाता केंद्र कक्ष तथा कैफेटेरिया इत्यादि हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।

(v) प्रैस काऊंसिल ऑफ़ इंडिया (Press Council of India P.C.I.)-प्रैस परिषद् की स्थापना समाचार पत्रों की आजादी की रक्षा के लिए तथा भारत में समाचार पत्रों तथा एजेंसियों के स्तर को बनाए रखने के लिए तथा उनमें सुधार करने के लिए की गई है। 2000-01 में इसकी 1250 शिकायतें मिली थीं जिनमें से 1175 का निपटारा कर दिया गया था।

प्रश्न 3.
जनसंचार के साधनों ने हमारी संस्कृति को कैसे प्रभावित किया है?
अथवा
जनसंचार तथा सांस्कृतिक परिवर्तन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
जनसंचार तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में क्या संबंध है? संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संस्कृति प्राचीन परंपराओं, रीति-रिवाजों तथा पुरानी संस्कृति के सभी पक्षों पर आधारित है। यहाँ तक कि आज भी हमारी संस्कृति के ऊपर पुरानी संस्कृति की छाप देखने को मिल जाएगी। पर आज जो जनसंचार के माध्यम हमारे सामने आए हैं उन्होंने हमारी संस्कृति में एक परिवर्तन-सा ला दिया है। हम कह सकते हैं कि हमारी संस्कृति भी जनसंचार के माध्यमों से अछूती नहीं रही है।

हमारी संस्कृति के अलग-अलग हिस्सों के ऊपर जनसंचार का प्रभाव देखने को मिल जाता है। हमारी संस्कृति के आदर्शों, मूल्यों में बहुत तेजी से बदलाव देखने को मिल रहे हैं। संस्कृति के दोनों पक्षों चाहे वह भौतिक हो या अभौतिक दोनों पक्षों में बदलाव आ रहे हैं। आज-कल जनसंचार के माध्यम से बहुत तेजी से सांस्कृतिक परिवर्तन आ रहे हैं।

जनसंचार से संसार में परिवर्तन एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। प्रेस समाचार पत्रों द्वारा छोटी-छोटी घटनाओं को इकट्ठा करके लोगों तक पहुँचाती है। आज समाचार-पत्र हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन चुके हैं। सुबह उठते ही हम समाचार-पत्र मांगते हैं। समाचार-पत्र सिर्फ शहरों में ही नहीं बल्कि गांवों में भी लोकप्रिय हो चुके हैं।

चाहे चाय की दुकान हो या कोई और दुकान हर जगह समाचार-पत्र ज़रूर मिल जाएगा। लोकतंत्र का रखवाला हम समाचार-पत्र को कह सकते हैं। समाचार पत्र की मदद से ही लोग अपना विरोध, अपनी इच्छा प्रकट करते हैं। अगर समाचार-पत्र लोगों को किसी चीज़ के बारे में बताते हैं तो वह जनमत तैयार करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रेस तथा टी० वी० न सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं, जैसा कि आजकल हम देख रहे हैं, बल्कि समाज में सृजनात्मक कार्य भी करते हैं। प्रदूषण, परिवार नियोजन, बाढ़, भूखमरी, सूखा इत्यादि क्षेत्रों में यह लोगों को जगा कर कल्याणकारी कार्य करते हैं।

जनसंचार की मदद से ही स्त्री को पुरुष के बराबर का दर्जा प्राप्त हुआ पत्र तथा पत्रिकाएं लोगों के मनोरंजन का कार्य भी करती हैं। नई-नई कहानियां, किस्से, चुटकले, फिल्मी कहानियाँ इत्यादि इनमें छपता रहता है। इसी तरह टी० वी० पर भी व्यंग्य के धारावाहिक, फिल्में, समाचार खेलों इत्यादि का आनंद लिया जा सकता है।

जनसंचार के आधुनिक माध्यमों ने नई सांस्कृतिक चुनौतियों को भी जन्म दिया है। इनके माध्यम से सांस्कृतिक परिवर्तन भी हो रहे हैं। गाँवों तथा शहरों में एक नए मध्यम वर्ग का जन्म हो रहा है तथा इस मध्यम वर्ग ने हरेक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। पिछड़े वर्गों में एक नई चेतना का उदय हो रहा है।

निम्न जातियों ने भी अपनी रक्षा के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी है। शहरों में भी मध्यम वर्ग आगे आया है जो अपनी कुशलता दिखाने की इच्छा रखता है। जनसंचार के साधनों ने अलग-अलग समूहों में संस्कृति के आदान-प्रदान की प्रक्रिया में मदद की है। आज सिर्फ जनसंचार के माध्यमों के कारण ही दुनिया में अलग-अलग देशों की संस्कृति को देखा तथा ग्रहण किया जा सकता है। इस तरह जनसंचार ने संस्कृति को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

प्रश्न 4.
टेलीविज़न के हमारे समाज पर क्या गलत प्रभाव पड़े हैं?
अथवा
दूरदर्शन के समाज पर क्या-क्या प्रभाव पड़े हैं? वर्णन करें।
अथवा
भारतीय समाज पर दूरदर्शन के दुष्परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
आज के आधुनिक समय में जब जनसंचार के सभी माध्यम हमारे जीवन पर अलग-अलग तरीके से प्रभाव डाल रहे हैं। टेलीविज़न संचार माध्यम से लोगों का सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करता बल्कि लोगों के जीने तथा सोचने, खाने-पीने, उठने-बैठने आदि हर प्रकार के क्षेत्र पर प्रभाव डाल रहा है। गाँवों की अपेक्षा शहरों में यह प्रभाव डालने की प्रक्रिया काफ़ी तेज़ है। इस भूमंडलीकरण के समय में टी० वी० का एक गलत रूप भी हमारे सामने आ रहा है।

टी० वी० हमारी संस्कृति को न सिर्फ बदल रहा है बल्कि इस पर हमला भी बोल रहा है। टी० वी० पर पश्चिमी संस्कृति का प्रसार हो रहा है जिससे न सिर्फ हमारी संस्कृति बल्कि हमारा देश भी पतन की तरफ जा रहा है। टी०वी० जोकि जनसंचार का प्रमुख साधन है उसका हमारे बच्चों पर काफी गलत प्रभाव पड़ रहा है।

जब टी० वी० नया-नया आया था उस समय टी० वी० सिर्फ समय बिताने के लिए देखा जाता था पर आज कल के बच्चे, जिन्हें अपना ज्यादातर समय पढ़ाई में लगाना चाहिए, टी० वी० देखने में अपना समय बिता देते हैं। टी० वी० पर नाच चल रहा होता है तो वह भी नाचने लग जाते हैं तथा अगर टी० वी० पर कोई हिंसक दृश्य आ रहा जनसंचार के माध्यम हमारे सामने आए हैं उन्होंने हमारी संस्कृति में एक परिवर्तन-सा ला दिया है। हम कह सकते हैं कि हमारी संस्कृति भी जनसंचार के माध्यमों से अछूती नहीं रही है।

हमारी संस्कृति के अलग-अलग हिस्सों के ऊपर जनसंचार का प्रभाव देखने को मिल जाता है। हमारी संस्कृति के आदर्शों, मूल्यों में बहुत तेजी से बदलाव देखने को मिल रहे हैं। संस्कृति के दोनों पक्षों चाहे वह भौतिक हो या अभौतिक दोनों पक्षों में बदलाव आ रहे हैं। आज-कल जनसंचार के माध्यम से बहुत तेजी से सांस्कृतिक परिवर्तन आ रहे हैं।

जनसंचार से संसार में परिवर्तन एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। प्रेस समाचार पत्रों द्वारा छोटी-छोटी घटनाओं को इकट्ठा करके लोगों तक पहुँचाती है। आज समाचार-पत्र हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन चुके हैं। सुबह उठते ही हम समाचार-पत्र मांगते हैं। समाचार-पत्र सिर्फ शहरों में ही नहीं बल्कि गांवों में भी लोकप्रिय हो चुके हैं।

चाहे चाय की दुकान हो या कोई और दुकान हर जगह समाचार-पत्र ज़रूर मिल जाएगा। लोकतंत्र का रखवाला हम समाचार-पत्र को कह सकते हैं। समाचार-पत्र की मदद से ही लोग अपना विरोध, अपनी इच्छा प्रकट करते हैं। अगर समाचार-पत्र लोगों को किसी चीज़ के बारे में बताते हैं तो वह जनमत तैयार करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रेस तथा टी० वी० न सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं, जैसा कि आजकल हम देख रहे हैं, बल्कि समाज में सृजनात्मक कार्य भी करते हैं। प्रदूषण, परिवार नियोजन, बाढ़, भूखमरी, सूखा इत्यादि क्षेत्रों में यह लोगों णकारी कार्य करते हैं। जनसंचार की मदद से ही स्त्री को पुरुष के बराबर का दर्जा प्राप्त हुआ है।

समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएं लोगों के मनोरंजन का कार्य भी करती हैं। नई-नई कहानियां, किस्से, चुटकले, फिल्मी कहानियाँ इत्यादि इनमें छपता रहता है। इसी तरह टी० वी० पर भी व्यंग्य के धारावाहिक, फिल्में, समाचार खेलों इत्यादि का आनंद लिया जा सकता है।

जनसंचार के आधुनिक माध्यमों ने नई सांस्कृतिक चुनौतियों को भी जन्म दिया है। इनके माध्यम से सांस्कृतिक परिवर्तन भी हो रहे हैं। गाँवों तथा शहरों में एक नए मध्यम वर्ग का जन्म हो रहा है तथा इस मध्यम वर्ग ने हरेक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। पिछड़े वर्गों में एक नई चेतना का उदय हो रहा है। निम्न जातियों ने भी अपनी रक्षा के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी है।

शहरों में भी मध्यम वर्ग आगे आया है जो अपनी कुशलता दिखाने की इच्छा रखता है। जनसंचार के साधनों ने अलग-अलग समूहों में संस्कृति के आदान-प्रदान की प्रक्रिया में मदद की है। आज सिर्फ जनसंचार के माध्यमों के कारण ही दुनिया में अलग-अलग देशों की संस्कृति को देखा तथा ग्रहण किया जा सकता है। इस तरह जनसंचार ने संस्कृति को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है।

प्रश्न 4.
टेलीविज़न के हमारे समाज पर क्या गलत प्रभाव पड़े हैं?
अथवा
दूरदर्शन के समाज पर क्या-क्या प्रभाव पड़े हैं? वर्णन करें।
अथवा
भारतीय समाज पर दूरदर्शन के दुष्परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
आज के आधुनिक समय में जब जनसंचार के सभी माध्यम हमारे जीवन पर अलग-अलग तरीके से प्रभाव डाल रहे हैं। टेलीविज़न संचार माध्यम से लोगों का सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करता बल्कि लोगों के जीने तथा सोचने, खाने-पीने, उठने-बैठने आदि हर प्रकार के क्षेत्र पर प्रभाव डाल रहा है। गाँवों की अपेक्षा शहरों में यह प्रभाव डालने की प्रक्रिया काफ़ी तेज़ है।

इस भूमंडलीकरण के समय में टी० वी० का एक गलत रूप भी हमारे सामने आ रहा है। टी० वी० हमारी संस्कृति को न सिर्फ बदल रहा है बल्कि इस पर हमला भी बोल रहा है। टी० वी० पर पश्चिमी संस्कृति का प्रसार हो रहा है जिससे न सिर्फ हमारी संस्कृति बल्कि हमारा देश भी पतन की तरफ जा रहा है। टी०वी० जोकि जनसंचार का प्रमुख साधन है उसका हमारे बच्चों पर काफी गलत प्रभाव पड़ रहा है।

जब टी० वी० नया-नया आया था उस समय टी० वी० सिर्फ समय बिताने के लिए देखा जाता था पर आज कल के बच्चे, जिन्हें अपना ज्यादातर समय पढ़ाई में लगाना चाहिए, टी० वी० देखने में अपना समय बिता देते हैं। टी० नाच चल रहा होता है तो वह भी नाचने लग जाते हैं तथा अगर टी० वी० पर कोई हिंसक दृश्य आ रहा होता है तो वह भी हिंसक हो जाते हैं।

जवान लोग किसी नामी-गिरामी हीरो का अनुसरण करते हैं उसी की तरह नाचते-गाते हैं। टी० वी० पर कामुक दृश्यों को देखकर उनमें कामुकता की भावना उभर आती है। संचार के इन साधनों से हम अतार्किक तथा गलत रास्ते पर जा रहे हैं।

किसी देश की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखने में संचार माध्यमों का काफ़ी बड़ा योगदान होता है। सांस्कृतिक निरंतरता से संस्कृति अपने आप ही जीवित रहती है। तेजी से हो रहे भूमंडलीकरण ने आर्थिक तथा राजनीतिक भूमंडलीकरण की जगह सांस्कृतिक भूमंडलीकरण को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। भूमंडलीकरण के इस युग ने दुनिया के अलग देशों की संस्कृति को मिला कर रख दिया है। सभी लोग राष्ट्रों की सीमाओं को तोड़ कर एक दूसरे की संस्कृति को अपनाने लग गए हैं।

भारत का शास्त्रीय संगीत दुनिया में काफ़ी मशहूर भी रहा है तथा टी० वी०,रेडियो पर इसको चला कर जीवित रखने की कोशिश भी की जा रही है पर अब रेडियो तथा टी० वी० परल गानों तथा पॉप गानों की धूम मची हुई है। हमारे परंपरागत लोक नृत्य समाप्त हो रहे हैं। नए-नए नाच के तरीके सामने आ रहे हैं।

कंपनियां अपने उत्पाद बेचने के लिए महिलाओं के अश्लील चलचित्रों का इस्तेमाल टी० वी० पर करती हैं। इस तरह टेलीविज़न के हमारे जीवन तथा हमारी संस्कृति पर काफ़ी गलत प्रभाव पड़ रहे हैं। अगर इस को न रोका गया तो आने वाले समय में हमारी अपनी संस्कृति हमें खुद ही ढूँढ़नी पड़ेगी।

प्रश्न 5.
जनसंचार ने किस प्रकार सांस्कृतिक परिवर्तन में मदद की है?
उत्तर:
आधुनिक युग परिवर्तन का युग है। किसी भी समाज एवं देश में परिवर्तन सामाजिक विकास तथा सूचना संचार के साधनों में परिवर्तन के फलस्वरूप ही संभव है। देश का विकास और परिवर्तन विचारों व दृष्टिकोणों में परिवर्तन के ऊपर निर्भर करता है। समाज में परिवर्तन के लिए सूचनाओं को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के एक सर्वेक्षण के आधार पर विश्व की लगभग 70% जनता की पूर्ण सूचनाएं नहीं मिलती हैं, वे सूचना के अधिकार से वंचित रह जाते हैं।

किसी भी देश का विकास व परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि लोग क्या कर रहे हैं। वर्तमान समय में यह विचारधारा विकसित हो रही है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए ज्ञान, तकनीक, बुदधि व मनोभाव में परिवर्तन होना अनिवार्य है। आधुनिकीकरण व औद्योगिक विकास के तीन स्तरों-शिक्षा का विकास, जनसंचार व्यवस्था का विकास तथा नगरीकरण की प्रक्रिया के आधार पर समझा जा सकता है। इन व्यवस्थाओं का परस्पर संबंध है।

जो व्यक्ति शिक्षित है वही व्यक्ति जनसंचार की व्यवस्था के साथ भी जुड़ा हुआ है व उनमें गतिशीलता भी पाई जाती है। युनेस्को ने आय, शिक्षा एवं नगरीयकरण की प्रक्रिया को जनसंचार, समाचार-पत्र, रेडियो, दूरदर्शन तथा सिनेमा से संबंधित किया है। भारत में नगरों के समीप बसने वाले गांवों में सूचनाओं का स्तर उन गांवों की अपेक्षा अधिक है जो नगरों से दूर हैं।

जनसंचार के माध्यम से भारत में समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं ने सामाजिक व संस्कृति के क्षेत्र में कई प्रभाव डाले हैं। इन माध्यमों के आधार पर ही भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व आर्थिक चेतना व जागरूकता का विकास हो पाया है। वर्तमान समय में समाचार-पत्र न केवल सूचना पहुंचाने का एकमात्र साधन हैं बल्कि अनेक कठिनाइयों को संबंधित नेताओं व कर्मचारियों तक पहुंचाने का भी लोकप्रिय माध्यम है।

मुद्रित संचार के साथ ही विद्युत् संचार-रेडियो, टेलीविज़न ने भी भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को काफी प्रभावित किया है। टेलीविज़न, रेडियो दोनों ही माध्यमों से सूचनाएं नगर व गांव तक पहुंचाई जाती हैं। गांव में किसान नई-नई कृषि तकनीकें, नए बीज व खाद संबंधित सूचनाओं की जनकारी प्राप्त करते हैं। मौसम संबंधी जानकारी ग्रामीण जन पुनःउत्थान संबंधी कार्यक्रमों की सूचनाएं सुनते हैं। टेलीविज़न पर अन्य प्रसारण को भी देखते हैं।

सिनेमा ने सबसे अधिक भारतीय संस्कृति को प्रभावित किया है। फिल्मों का निर्माण सामाजिक समस्याओं पर किया जा रहा है। जिनमें अधिकतर फिल्में महिलाओं के सामाजिक स्तर से संबंधित व छुआछूत, निम्नवर्गों का शोषण, बाल-विवाह के ऊपर आधारित हैं। राष्ट्रीयता की भावना का विकास करने में भी फिल्मों की अहम भूमिका रही है। भारत के सिनेमा में नगरीय व ग्रामीण दोनों ही संदर्भो को मध्य नज़र रखते हुए फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है जिससे दोनों ही क्षेत्रों में सिनेमा ने अपना प्रभाव डाला है।

देश में जन संचार सूचनाओं को प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम होने के बावजूद इसके प्रभाव से कुछ एक कारणों के परिणामस्वरूप जनता लाभांवित नहीं हो पा रही है। वर्तमान समय में समाचार-पत्र भी थोडे से शिक्षित लोगों की आवश्यकता को पूरा करते हैं। इन पक्षों में अधिकतर समाचार राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के होते हैं जिनमें कम शिक्षित लोगों की रुचि कम होती है।

सिनेमा घरों में जो फिल्में दिखाई जाती हैं उन फिल्मों में अधिकतर फिल्में समाज की वास्तविकता से परे होती हैं। ये केवल काल्पनिक मूल्यों से ओत-प्रोत होती हैं जो युवा पीढ़ी को अधिक प्रभावित करती हैं। सिनेमा देखने वालों में निम्न आर्थिक श्रेणी के लोगों का प्रतिशत अधिक होता है। सिनेमा पर प्रसारित किये जाने वाले विज्ञापनों ने भी उच्च वर्ग को अधिक आकर्षित किया है। कुल मिलाकर यह कहने में आपत्ति नहीं है कि सिनेमा विभिन्न स्थानों में उपयुक्त सूचनाएं व ज्ञान के प्रसार के साधन के रूप में एक उपयोगी साधन नहीं बन पाया है।

सांस्कृतिक मूल्यों को जनसंचार ने कई आधारों पर प्रभावित किया है। जन संचार ने समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया को काफ़ी तीव्र किया है। इसके प्रभाव के कारण ही लोग नये-नये विषयों व स्थान से अवगत होने लगे हैं। उनकी संस्कृति में कई नये सांस्कृतिक, तत्त्वों का विकास हो रहा है। दैनिक जीवन के व्यवहार के तरीके दूसरों के व्यवहार के तरीकों में परिवर्तित हो रहे हैं व संचार माध्यमों से संस्कृतिक परिवर्तनों का आरंभ हो रहा है।

जनसंचार के माध्यम से लोग अपनी परंपरागत संस्कृति के अस्तित्व के साथ अपने आपको फिर से जोड़ने लगे हैं। कई नई सांस्कृतिक चुनौतियों को भी जन्म दिया है। इस माध्यम के आधार पर ही आधुनिक मूल्य व्यवस्था में एक संतुलन बन पाया है। आधुनिक सांस्कृतिक व्यवस्था को परंपरागत सांस्कृतिक व्यवस्था के साथ जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य जन संचार माध्यम के द्वारा ही संभव हो पाया है।

प्रश्न 6.
जनसंचार कौन-से हैं व कितने प्रकार के हैं? व्याख्या करो।
अथवा
जनसंचार के विभिन्न प्रकारों की सविस्तार व्याख्या करें।
अथवा
विभिन्न प्रकार के जन-संचार माध्यमों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जब भारत में जनसंचार के आधुनिक साधन टेलीविज़न, इंटरनैट आदि उपलब्ध नहीं थे तब तक लोग पारंपरिक संवाद के आधार पर परंपरागत तरीकों से ही सूचनाएं प्राप्त करते थे। भारतीय समाज में विभिन्न समुदायों, धर्मों, जातियों, जनजातियों के आधार पर भाषा, विश्वासों, विचारधाराओं, लोकरीतियों, प्रथाओं व आदर्शों एवं मूल्यों में भिन्नता पाई जाती है।

19वीं शताब्दी में विज्ञान व तकनीक के विकास ने जनसंचार के क्षेत्र में क्रांति का कार्य किया। वर्तमान समय में जन संचार व्यक्तियों के मनोरंजन के साथ-ही-साथ शिक्षा संबंधी कार्यों को भी पूरा कर रहा है। आधुनिक समय में भारतीय समाज में जनसंचार के मुख्य तीन प्रकार के साधन हैं-

  • मुद्रित संचार (Print Media)
  • विद्युत् संचार (Electronic Media)
  • श्रव्य-दृश्य (Audio-Visual)

1. मुद्रित संचार (Print Media)-मुद्रित संचार मुख्यतः समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं के माध्यम से किया जाता है। मुद्रित संचार के अंतर्गत लिखित प्रारूपों को सम्मलित किया गया है।

समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएं (News Paper and Magazines):
सन् 1780 में बंगाल राजपत्र के नाम से भारत में पहला समाचार-पत्र प्रकाशित हुआ। इसके कुछ वर्षों के उपरांत ही अनेक पत्रिकाओं का प्रकाशन कोलकाता, चेन्नई तथा मुंबई में शुरू किया गया। लेकिन ये सभी पत्र व पत्रिकाएं अंग्रेज़ व्यक्तियों द्वारा प्रकाशित की जाती थीं। इनमें मुख्यतः इंग्लैंड की घटनाओं तथा सरकारी गतिविधियों व कार्यवाहियों का विवरण होता था। सामाजिक समाचार भी अंग्रेजों के व्यापार, प्रशासन व सेना के होते थे।

18वीं शताब्दी के अंतिम चरण में मुंबई पहली बार एक बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरा जिससे 1797 में पहली बार एक अंग्रेज़ी पत्रिका में गुजराती में एक विज्ञापन का प्रकाशन हुआ। गुजराती भाषा का सबसे पहली बार समाचार प्रकाशन में प्रयोग किया गया जबकि भारतीय पत्रकारिता का जन्म बंगाली में हुआ है। सन् 1816 में गंगाधर भट्टाचार्य ने बंगाल राजपत्र का प्रकाशन किया। सन् 1821 में राजा राममोहन राय ने बंगाल में ‘Sambad Kaumudi’ नामक साप्ताहिक इसमें इन्होंने हिंदू धर्म के सिद्धांतों का वर्णन किया तथा सती प्रथा का खंडन भी किया। इसके पश्चात्

सन् 1822 में फरदूनजी मराजॉन (Ferdunji Marazhan) ने गुजराती साप्ताहिक बांबे समाचार नामक पत्रिका का प्रकाशन किया। इस प्रकार भारतीय भाषाओं में सबसे पहले दो भाषाओं गुजराती एवं बंगाली को पत्रिकाओं के प्रकाशन में प्रयोग किया गया। भारत में पत्रकारिता का आरंभ करने में सामाजिक सुधार तथा व्यापारिक हितों का विकास करना महत्त्वपूर्ण प्रेरक तत्त्व रहे हैं।

20वीं शताब्दी के आरंभिक समय के दौरान भारतीय प्रेस के विकास में महात्मा गांधी की भूमिका अधिक प्रिय रही है। महात्मा गांधी स्वयं 1904 ई० से दक्षिण अफ्रीका में भारतीय राष्ट्र (Indian Nation) का संपादन कर रहे थे। महात्मा गांधी ने अंग्रेजी में ‘यंग इंडिया’, गुजराती में ‘नवजीवन’ तथा हिंदी में ‘हरिजन’ पत्रिकाएं प्रारंभ की। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय 51 दैनिक तथा 258 साप्ताहिक पत्रिकाएं अंग्रेजी भाषा में शुरू की गई थीं।

1978 में समाचार पत्रों की संख्या 15,814 तथा 1979 में 17,168 थी। भारत में समाचार-पत्रों के रजिस्ट्रार वर्ष 2000 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों व पत्रिकाओं की संख्या बढ़कर 49,145 थी जोकि वर्ष 1999 से 5.34 प्रतिशत अधिक थी। भारत में सबसे अधिक समाचार पत्र हिंदी में, दूसरे स्थान पर अंग्रेज़ी में तत्पश्चात् अन्य भाषाओं में छपते हैं।

वर्ष 2000 के दौरान 101 भाषाओं एवं बोलियों में समाचार पत्रों का प्रकाशन हुआ था। काश्मीरी भाषा को छोड़ कर बाकि सभी भाषाओं में दैनिक समाचार पत्रों का प्रकाशन हुआ था। सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों में प्रकाशन का कार्य हो रहा है। बंबई समाचार सबसे पुराना समाचार पत्र है जिसका प्रकाशन 1822 में हुआ था।

मद्रा संचार को मज़बत बनाने के उददेश्य से कई संगठनों का निर्माण किया गया है। सन 1956 को ‘द रजिस्टार ऑफ न्यूजपेपर इन इंडिया’ की स्थापना की गई जिसमें समाचार पत्रों अखबारी कागज़ के आबंटन के लिए पंजीकृत होना पड़ता है। समाचार पत्रों के लिए समाचार एकत्रित करना तथा उन्हें प्रेस तक पहुंचाने के लिए ‘प्रेस ट्रस्ट इंडिया’ तथा ‘यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ इंडिया’ समाचार एजेंसियों को शुरू किया गया।

‘प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया’ का भी संगठन किया गया जिसका मुख्य कार्य प्रेस की स्वतंत्रता को बनाये रखना तथा समाचार पत्रों एवं एजेंसी के स्तर के सुधारना है। भारतीय सरकार ने अपनी नीतियों व कार्यक्रमों से संबंधित सूचनाओं के प्रसार हेतु अनेक संस्थाएं प्रेस सूचना ब्यूरो तथा प्रकाशन विभाग की भी स्थापना की है।

2. विद्युत् संचार (Electronic Media) भारत में विद्युत् संचार के मुख्य दो साधन रेडियो तथा दूरदर्शन हैं। (i) रेडियो (Radio) रेडियो को आकाशवाणी भी कहा जा सकता है। सन् 1927 में भारतीय व्यापारियों के एक समूह ने यूरोपियन के द्वारा प्रसारित एजेंसियों की सफलता को देखते हुए दो छोटे स्टेशन बनाये।

ये स्टेशन कोलकाता व मुंबई में विकसित किये गए तथा तभी से भारत में रेडियो का प्रसारण शुरू हुआ। भारत में 1927 में ही निजी ट्रांसमीटरों द्वारा प्रसारण शुरू हुआ। सन् 1930 में भारतीय सरकार ने ट्रांसमीटरों को अपने हाथ ले लिया और ‘इंडियन ब्राडकास्टिंग सर्विस’ के नाम से प्रसारण किया जाने लगा लेकिन ये प्रोग्राम अधिक रोच

सरकार ने दिल्ली में भी एक रेडियो स्टेशन शुरू कर दिया। सन् 1932 में इसका नाम बदल कर ‘आल इंडिया रेडियो’ (AIR) रखा गया। वर्ष 1935 में देश में केवल तीन स्टेशन तथा 1939 में चार स्टेशनों पर प्रसारण किया जाता था। इसके साथ ही वर्ष 1957 से लेकर वर्तमान समय तक इसको आकाशवाणी के नाम से ही जाना जा रहा है। आधुनिक समय में देश के लगभग 100 से भी अधिक F.M. एफ० एम० फरिक्वेंसी मौडुलेशन रेडियो स्टेशन स्थापित किए जा चके हैं।

‘आल इंडिया रेडियो’ (AIR) का मुख्य उददेश्य लोगों को शिक्षा एवं मनोरंजनात्मक सूचनाओं से अवगत कराना है। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए वर्तमान समय में रेडियो स्टेशनों को अनेक स्थानों पर विकसित किया जा रहा है ताकि देश में लोगों की आवश्यकताओं को उनकी अपनी भाषा एवं संस्कृति के आधार पर पूरा किया जा सके। आकाशवाणी के प्रसारणों के माध्यम से अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएं श्रोताओं तक पहुंचाई जाती हैं। आकाशवाणी देश में कुल 208 रेडियो स्टेशन तथा 327 ट्रांसमीटर हैं जिनमें से 149 मिडियम वेव, 55 शार्ट वेव व 1 2 3 एफ० एम० ट्रांसमीटर हैं।

इनमें ‘विविध भारती’ (Vivid Bharti) नामक केंद्र चंडीगढ़ तथा कानपुर में विकसित किया गया व वर्तमान समय में रेडियो न्यूज़ को फोन सेवा से भी जोड़ दिया गया है। वर्ष 1995 में एफ० एम० चैनल को तथा 1998 से ‘आल इंडिया रेडियो’ न्यूज़ ऑफ़ फोन सेवा शुरू कर दी गई है। भारत वर्ष में रेडियो पर प्रसारण सेवा का विस्तार राष्ट्रीय स्तर पर 90.6 प्रतिशत हो चुका है। जनसंख्यात्मक आधार पर यह प्रसारण लगभग 98.8% पूरा हो गया है।

(ii) टेलीविज़न या दूरदर्शन (डी डी) [Television or Doordarshan (DD)]-दूरदर्शन भारतीय समाज में जन संचार के एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में विकसित हुआ है। टेलीविज़न की शुरुआत एक प्रयोग के तौर पर 15 अक्तूबर 1959 के दिल्ली से की गई। टेलीविज़न के कार्यक्रमों में साक्षात्कार, किसी समस्या या घटना के ऊपर विचार-विमर्श करना तथा वृत्त-चित्रों (Documentary films) का महत्त्वपूर्ण साधन है।

इसके अलावा नृत्य, नाटक, संगीत इत्यादि को भी दर्शाया जाता था। तत्पश्चात् अनेक उत्सवों जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, होली, दीवाली इत्यादि कार्यक्रमों को भी दूरदर्शन के जरिये लोगों तक पहुंचाया जाने लगा। इसके साथ ही दूरदर्शन के प्रसारण के लिए विशेष प्रकार के कार्यक्रमों को बनाया जाता है जिसमें यातायात संबंधी नियमों की जानकारी देना, नगर नियोजन संबंधी नियमों से अवगत कराना, स्वास्थ्य समुदायों तथा खान-पान में की जाने वाली मिलावट जैसी समस्याओं के बारे में जानकारी प्रदान करना कुछ एक महत्त्वपूर्ण सूचनाएं हैं।

टेलीविज़न को जब दिल्ली में शुरू किया गया था तो केवल एक सप्ताह में 20 मिनटों का कार्यक्रम दो बार प्रसारित किया जाता था। लेकिन वर्तमान समय में इसके प्रसारण समय में काफ़ी वृद्धि हुई है। शुरू में ये प्रयोग शिक्षा प्रदान करने के माध्यम के रूप में ही होता था। हिंदी में समाचार बुलेटिन के साथ नियमित सेवा की शुरुआत 15 अगस्त, 1965 को हुई थी। दिल्ली के बाद देश को दूसरा टेलीविज़न केंद्र सन् 1972 में मुंबई में मिला। तत्पश्चात् 1973 में श्रीनगर एवं अमृतसर में और 1975 में कोलकाता, चेन्नई तथा लखनऊ में टेलीविज़न केंद्र स्थापित किये गए थे।

सन् 1976 में दूरदर्शन को ‘आल इंडिया रेडियो’ (AIR) से अलग करके एक स्वतंत्र विभाग के रूप में स्थापित किया गया। सन् 1984 में दिल्ली में दृश्य अवलोकन के अतिरिक्त दूसरे विकल्प उपलब्ध कराने के लिए एक नये चैनल को भी जोड़ा गया। वर्तमान समय में देश में लगभग 1042 स्थानीय ट्रांसमीटर स्थापित किये जा चुके हैं तथा 49 शहरों में उसके स्टूडियो खोले गए हैं। विभिन्न दूरदर्शन केंद्रों के द्वारा विभिन्न भाषाओं में टेलीविज़न कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है।

26 जनवरी, 2000 को मानव संसाधन मंत्रालय तथा इंदिरा गांधी ओपन विश्वविद्यालय के प्रयासों के आधार पर नये शैक्षिक चैनल डी० डी० ज्ञानदर्शन को शुरू किया गया। संपूर्ण देश में तकरीबन सौ से भी अधिक निजी टेलीविजन चैनल तथा केबल नेटवर्क (Cable Network) हैं जिसके माध्यम से हिंदी-अंग्रेजी के अतिरिक्त स्थानीय व क्षेत्रीय भाषाओं व बोलियों में भी कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा रहा है।

3. श्रव्य-दृश्य संचार (Audio-Visual Media) लगभग 200 वर्ष पहले समाचार पत्र व पत्रिकाएं अपने अस्तित्व में आये। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही इसके अतिरिक्त तीन और साधन जन संचार के माध्यम के रूप में विकसित हुये। इन तीन साधनों में फिल्म, रेडियो व टेलीविज़न को लिया जाता है। जन संचार के इन माध्यमों का विकास 20वीं शताब्दी में होने वाले तीव्रता से तकनीकी विकास का कारण माना जा सकता है।

अमेरिका ने अपनी पहली फिल्म “The Great Train Robbery’ नामक 1903 में बनाई थी। भारत में 20वीं शताब्दी के प्रारंभ अर्थात् 1904 में बांबे में नियमित रूप से फिल्म दिखाना शुरू किया था। भारत में फिल्मों का प्रसारण अमेरिका व यूरोप के साथ-साथ ही हुआ है। भारत को जन संचार के माध्यम के रूप में फिल्मों की भूमिका आरंभ से ही लोकप्रिय रही। भारत में 1912 13 से फिल्में बनानी शुरू कर दी गईं।

आर० जी० टोरनी चिते के साथ मिलकर पुंडलिक नाम की फिल्म 1912 में बनाई। 1913 में धूनजीराज गोबिंद फालके ने ‘राजा हरिश्चंद्र’ नामक फिल्म का निर्माण किया। 1917 में पहली बंगाली काल्पनिक फिल्म ‘नल दमयंति’ के नाम से निर्मित की। 1920 तक बनाई जाने वाली फिल्में काल्पनिक सार के आधार पर ही निर्मित की जाती रहीं।

तत्पश्चात् कुछ समय के लिए फिल्मों को राजपूत दंत कथाओं एवं लेखों (Legends) के ऊपर आधारित किया गया। इसके पश्चात् ही भारत में फिल्मों को सामाजिक फिल्म के रूप में विकसित किया गया। सन् 1931 में बोल पर (Talkies) में मूक फिल्मों का स्थान लिया जब अदेसीर इरानी की ‘आलम आरा’ फिल्म प्रस्तुत हुई।

भारत आजकल फीचर फिल्मों के निर्माण में पूरे विश्व में अग्रणी की भूमिका निहित कर रहा है। भारत में फिल्मों के प्रदर्शन के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेर्टीफिकेशन (Central Board of Film Certification) का प्रमाण-पत्र मिलना आवश्यक है। इस प्रणाम-पत्र को प्राप्त करने के बाद ही किसी भी फिल्म का प्रदर्शन किया जा सकता है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

प्रश्न 7.
जनसंचार का क्या अर्थ है? इसके समाज पर कौन-कौन से सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं?
अथवा
समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं के भारतीय समाज पर अच्छे-बुरे प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
जनसंचार किसे कहते हैं?
उत्तर:
19वीं शताब्दी के आरंभ काल से ही विज्ञापन व तकनीक से विकास हो रहा है। तभी से जनसंचार के साधनों में भी वृद्धि होती जा रही है। इसमें साथ ही भारतीय समाज की राजनीतिक व आर्थिक स्थिति में भी परिवर्तन हुआ है। पहले भाषा व क्षेत्र के आधार पर विभिन्नता अधिक पाई जाती थी, लेकिन वर्तमान समय में जन संपर्क और जन संचार के माध्यमों दवारा इन विभिन्नताओं में काफ़ी कमी आई है।

जनसंचार का अर्थ (Meaning of Mass Media)-जनसंचार में ‘जन’ शब्द का अर्थ किसी समुदाय, समूह, या देश के सामान्य लोगों के संदर्भ में व्यक्त किया है। यहां जन का अर्थ किसी विशेष वर्ग, समूह श्रेणी या समुदाय के लिये गया। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि जन संचार दसरे प्रकार के संचारों से अलग है क्योंकि इसका संबंध संपूर्ण जनता से है।

जन संचार का अर्थ अनेक माध्यमों से जनता को एक साथ अनेक सूचनाओं को पहुंचाना। साधारण बोलचाल जन संचार का अर्थ मुद्रित सामग्री समाचार पत्र, पत्रिकाएं, रेडियो, दूरदर्शन तथा फिल्म इत्यादि साधनों से है, जिनके माध्यम से जनता तक सूचनाओं को पहुंचाया जाता है।

भारतीय समाज में जनसंचार (Indian Society and Mass Media)-जनसंचार ने सूचनाओं के विवरण के एक माध्यम के रूप में भारतीय समाज में कई महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। संचार के इन कार्यों ने समाज के कई क्षेत्रों में अनेक परिवर्तन किये हैं। संचार के कार्यों को भी सकारात्मक और नकारात्मक दो वर्गों में विभाजित किया गया है।

सकारात्मक कार्य या प्रभाव (Positive Function or Impact)-संचार के कार्यों का सकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रमुख रूप से देखा जा सकता है-
1. मनोरंजनात्मक प्रकार्य (Recreative Functions) मनोरंजन संचार का महत्त्वपूर्ण कार्य है जिसके द्वारा व्यक्ति न केवल मनोरंजनात्मक साधनों जैसे फिल्म इत्यादि से मनोरंजन ही करते हैं। बल्कि जन संचार द्वारा की गई सूचनाओं से ज्ञान भी अर्जित करते हैं। समाज के विकास के लिये बनाये गये स्थानीय आधार पर कार्यक्रमों, खेलकूद विषयों, स्वास्थ्य एवं अपराधों के बारे में सूचना अर्जित करने में भी संचार एक माध्यम के रूप में व्यक्तियों की सहायता करता है। टेलीविज़न के माध्यम भी जनता अपने स्थानीय चैनल के द्वारा पर्याप्त मनोरंजनात्मक कार्यक्रमों को देखती है।

2. समाजीकरण की प्रक्रिया में सहायक (Helpful in the Process of Socialisation)-समाजीकरण समाज में एक सीखने की प्रक्रिया है। आधुनिक समय में बच्चों के समाजीकरण में भी संचार की भूमिका अत्यधिक बढ़ती जा रही है। परिवार, पड़ोस, सम समूह, विद्यालय समाजीकरण की प्रक्रिया के विकास में महत्त्वपूर्ण एजेंसियों के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं। लेकिन आधुनिक समय में बच्चों के व्यवहार के ऊपर जन संचार का प्रभाव सबसे अधिक पड़ रहा है।

3. सांस्कृतिक निरंतरता में सहायक (Helpful in Cultural Continuity)-जन संचार भारतीय संस्कृति का आधार है। यही एक ऐसा माध्यम है जिनके आधार पर हमारी संस्कृति जीवित रह पाई है। बदलती परिस्थितियों में तथा पश्चिमी संस्कृति के कारण हमारे पारंपरिक सांस्कृतिक तत्त्व भी लुप्त होते जा रहे हैं। इन तत्त्वों को विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल करके जनता तक पहुंचाया जाता है तथा प्राचीन संस्कृति के अस्तित्व से अवगत कराया जाता है। जैसे भारत में रेडियो व दूरदर्शन के माध्यम से शास्त्रीय संगीत तथा धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है।

व्याख्या को कार्यक्रमों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। वर्तमान समय में रामायण, महाभारत विष्णु पुराण, धार्मिक ग्रंथों पर आधारित प्रसारित किये जाते हैं। इनके अतिरिक्त दूरदर्शन के आस्था, तथा संस्कार आदि चैनलों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को, धार्मिक मूल्यों, विश्वासों, परंपराओं, योग की विधियों तथा ध्यान के तरीकों को देश के करोड़ों लोगों तक पहुंचा कर प्राचीन भारतीय संस्कृति को आधुनिकता के साथ जोड़ा जा रहा है। यह परंपरा तथा आधुनिकता में निरंतरता स्थापित करने का अनूठा प्रयास है। इसके द्वारा प्राचीन तथा आधुनिक भारतीय संस्कृति का संगठन होता है।

4. दैनिक घटनाओं की सूचना में सहायक (Helpful in providing information about day to day events) जनसंचार के माध्यम से व्यक्ति दैनिक घटनाओं से अवगत होता है। इसके माध्यम के आधार पर व्यक्ति को स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है।

इसके साथ ही मौसम की जानकारी, राजनीतिक घटनाओं, प्राकृतिक विपदाओं, भ्रष्टाचार एवं हिंसक गतिविधियों का ज्ञान भी प्राप्त होता है। जन संचार के माध्यम से ही नगरों न महानगरों के व्यक्ति एक-दूसरे की घटनाओं से भी प्रभावित होते हैं तथा जानकारी प्राप्त करते हैं।

नकारात्मक कार्य या अकार्य (Negative Function or Dysfunction)-जनसंचार सूचनाओं को व्यक्तियों तक पहुंचाने का एक माध्यम है। अनेक विचारकों, विद्वानों तथा शिक्षा कार्यक्रमों ने संचार के प्रभाव को जन-जीवन के ऊपर नकारात्मक प्रभाव के रूप में व्यक्त किया है। उन्होंने अनेक आधारों पर जन संचार की एक माध्यम के रूप में आलोचना की।

  • जन संचार सूचना को व्यक्तियों तक पहुंचाने का एक माध्यम है। लेकिन इस माध्यम के द्वारा लोगों को गलत सूचनाएं भी पहुंचाई जाती हैं जो कि वास्तविकता से दूर होती हैं। अर्थात् वह वास्तविकता की गलत तस्वीर लोगों तक पहुंचाता है जिसका जनता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • जनसंचार में व्यक्ति अपनी पसंद नापसंद को भी भूला देता है। उसका ध्यान व्यक्तिगत रुचियों से हटकर सांस्कृतिक एकता की ओर अग्रसर होता है।।
  • जनसंचार समाज में पलायनवाद को भी बढ़ावा देता है।
  • व्यक्तियों में निष्कृष्टता पैदा करना भी जनसंचार का महत्त्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव माना जाता है।
  • जनसंचार के माध्यम से विज्ञापनों में अनेक प्रकार की वस्तुओं को बेचने के लिये महिलाओं को अभद्र तरीके से उपयोग किया जाता है।

उपर्युक्त नकारात्मक प्रकोप को देखते हुए हम जनसंचार को अपने जीवन से अछूता नहीं रख सकते। ज़रूरत है तो इस बात की कि जनसंख्या के माध्यम को सकारात्मक दृष्टिकोण से विकसित किया जाए और लोगों तक पहुँचाने के लिये भी सकारात्मक माध्यम का ही प्रयोग किया जाये। तभी समाज में होने वाले परिवर्तन को सकारात्मक परिवर्तन का रूप दिया जा सकता है।

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class Sociology जनसंपर्क साधन और जनसंचार Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
समाचार-पत्र उद्योग में जो परिवर्तन हो रहे हैं, उनकी रूपरेखा प्रस्तुत करें। इन परिवर्तनों के बारे में आपकी क्या राय है?
उत्तर:
हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं ने काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। अकसर ऐसा कहा जाता है कि टेलीविज़न तथा इंटरनेट के विकास से प्रिंट मीडिया का महत्त्व कम हो जाएगा परंतु हमने यह देखा है कि भारत में समाचार-पत्रों का प्रसार बढ़ रहा है। नयी प्रौद्योगिकी के विकास से समाचार-पत्रों के उत्पादन तथा प्रसार को काफ़ी सहायता मिली है। इस कारण ही बहुत-सी चमकदार पत्रिकाएं बाज़ार में रोज़ आ रही हैं।

असल में भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों की इस अचानक वृद्धि के बहुत-से कारण हैं। पहला तो यह कि बहुत-से पढ़े-लिखे लोग शहरों की ओर प्रवास कर रहे हैं। सन् 2003 में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के दिल्ली में 64,000 प्रतियां छपती थीं जो 2005 में बढ़कर 4,25,000 हो गई थी। इसका कारण यह है कि दिल्ली के डेढ़ करोड़ की जनसंख्या में से आधे से अधिक लोग उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे हिंदी भाषी क्षेत्रों से आए हैं। इनमें से 47% लोग ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं तथा उनमें से 60% लोग 40 वर्ष से कम उम्र के हैं।

दूसरा कारण यह है कि गाँवों तथा कस्बों के पढ़ने वालों की ज़रूरतें शहरी पढ़ने वालों से अलग होती हैं। अलग अलग भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्र उन ज़रूरतों को पूर्ण करते हैं। मलयाली मनोरमा तथा ईनाडु जैसे भारतीय भाषाओं के प्रमुख पत्रों ने स्थानीय समाचारों की संकल्पना को एक महत्त्वपूर्ण रीति से जिला संस्करणों तथा आवश्यकता के अनुसार ब्लाक संस्करणों की सहायता से शुरू किया। एक और तमिल ‘दिन तंती’ ने हमेशा तथा लोगों की बोल-चाल की भाषा का प्रयोग किया है। भारतीय समाचार-पत्रों ने उन्नत प्रौद्योगिकी को अपना कर पाठकों को अलग-अलग अंक देने के प्रयास किए हैं।

समाचार-पत्रों ने कई प्रकार की रणनीतियाँ अपनायी हैं ताकि अधिक-से-अधिक पाठकों तक पहुँचा जा सके। अंग्रेजी भाषा के समाचार-पत्रों को राष्ट्रीय दैनिक कहा जाता है तथा यह सभी क्षेत्रों में पढ़े जाते हैं। भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों का प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों में काफ़ी अधिक बढ़ गया है। समाचार-पत्रों, विशेष तथा अंग्रेजी तथा हिंदी, ने अपनी न केवल कीमतें घटा दी हैं बल्कि यह तो कई केंद्रों से अलग-अलग संस्करण निकालने शुरू कर दिए हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

प्रश्न 2.
क्या एक जनसंचार के माध्यम के रूप में रेडियो ख़त्म हो रहा है? उदारीकरण के बाद भी भारत में एफ० एम० स्टेशनों के सामर्थ्य की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत में सबसे पहला रेडियो प्रसारण का कार्यक्रम 1925 में शरू हआ था जब रेडियो क्लब ऑफ़ बंबई द्वारा एक कार्यक्रम पेश किया गया था। उसके बाद से लेकर अब तक रेडियो अमीरों तथा निर्धन लोगों के मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन रहा है। समाचार-पत्रों के बाद रेडियो ही एक ऐसा साधन है जो हरेक व्यक्ति की पहुँच में है।

यहाँ तक कि निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी ₹ 100-150 में रेडियो खरीद कर अपना मनोरंजन कर सकता है। चाहे टी० वी० चैनलों की बाढ़ आने से रेडियो का प्रभाव थोड़ा-सा कम हो गया था परंतु एफ० एम० स्टेशनों के चलने से रेडियो का क्रेज फिर बढ़ गया है। देश के दूर-दूर से इलाकों में जहां मनोरंजन का कोई और साधन नहीं पहुँच सकता वहां रेडियो पहुँच सकता है।

आज के उदारीकरण के समय में एफ०एम० स्टेशनों का सामर्थ्य काफ़ी बढ़ गया है। रेडियो स्टेशनों के अधिक निजीकरण तथा समुदाय के स्वामित्व वाले रेडियो स्टेशनों के सामने आने से रेडियो स्टेशनों का अधिक विकास हो रहा है। लोग स्थानीय समाचारों को सुनना पसंद करते हैं।

देश में एफ० एम० चैनलों को सुनने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है क्योंकि यह चैनल जनता के मनोरंजन के नए-नए कार्यक्रम पेश करते हैं। इसके साथ ही यह जनता को कार्यक्रम के दौरान प्रश्न पूछ कर उपहार भी देते हैं। इस प्रकार एफ० एम० रेडियो चैनल देश भर में प्रसिद्ध हो रहे हैं। 92.7 एफ० एम० रेडियो स्टेशन ने तो सारे देश में अपनी शाखाएं खोली हुई हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

प्रश्न 3.
टेलीविज़न के माध्यम में जो परिवर्तन होते रहे हैं, उनकी रूपरेखा प्रस्तुत करें। चर्चा करें।
उत्तर:
देश में सबसे पहले 1959 में दिल्ली के आकाशवाणी भवन में टेलीविज़न को प्रयोग के तौर पर चलाया गया। भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे दूरदर्शन की सेवा विश्व की संचार की सेवाओं में सबसे बड़ी सेवाओं में से एक है। सबसे पहले दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में तीन दिन होता था। फिर धीरे-धीरे रोजाना समाचार प्रणाली शुरू हुई। 1975-76 में भारत में उपग्रह से संबंधित पहला प्रयोग साईट के द्वारा किया गया।

लोगों को सामाजिक शिक्षा देने के लिए तकनीकी सहायता से यह पहला प्रयास था। देश में दूसरा टी०वी० केंद्र 1972 में खोला गया। 1973 में तो कई स्थानों पर ऐसे केंद्र खोले गए। 1976 में दूरदर्शन को ऑल इंडिया रेडियो से अलग करके अलग विभाग बना दिया गया। रंगीन टी० वी० की शुरुआत सबसे पहले 1982 के एशियाई खेलों के दौरान हुई।

1984 में दिल्ली दूरदर्शन के साथ डी० डी० मैट्रो को जोड़ दिया गया। पहले तो मैट्रो केवल दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा चेन्नई में ही दिखाया जाता था परंतु कुछ समय पश्चात् यह संपूर्ण भारत में दिखाया जाने लगा। 1999 में खेलों के लिए डी०डी० स्पोर्टस नामक खेल चैनल भी शुरू किया गया ताकि दुनिया भर में चल रही खेलों को दिखाया जा सके।

आज भारत के 9 करोड़ से भी अधिक लोगों के साथ टेलीविज़न उपलब्ध है। इस समय दूरदर्शन देश की 87% आबादी तथा 70% भौगोलिक क्षेत्र तक अपने चैनलों को पहुँचा चुका है। देश के 49 शहरों में तो दूरदर्शन के प्रोडक्शन स्टूडियो हैं। दूरदर्शन से शिक्षा संबंधी कई कार्यक्रम प्रस्तुत होते हैं। IGNOU के माध्यम से तथा U.G.C. के माध्यम से उच्च शिक्षा के लिए कई कार्यक्रम दूरदर्शन पर चलाए जा रहे हैं।

1995 में दूरदर्शन ने डी०डी० वर्ल्ड नामक एक चैनल चलाया था पर 2002 में इसे डी० डी० इंडिया का नाम दिया गया। 1991 में उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद देश में प्राईवेट चैनलों की तो बाढ़ सी आ गई है। दूरदर्शन के अतिरिक्त सोनी, जी, मैक्स, स्टार, ई०एस०पी०एन०, न्यूज़ चैनल, खेलों के चैनल, व्यापार के चैनल, संगीत के चैनल इत्यादि से संबंधित सैंकड़ों ऐसे चैनल चल रहे हैं जो दिन-रात चल रहे हैं तथा लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। अब तो D.T.H. (Direct to Home) सेवा शुरू हो गई है जिसने तो इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 1959 से लेकर अब तक टेलीविज़न के माध्यम में ज़मीन आसमान का अंतर आ चुका है तथा हम घर पर बैठ कर संसार भर के समाचार तथा हरेक प्रकार के कार्यक्रम देख सकते हैं।

जनसंपर्क साधन और जनसंचार HBSE 12th Class Sociology Notes

→ मास मीडिया का अर्थ है जनसंपर्क के साधन। यह कई प्रकार के होते हैं जैसे कि टी० वी०, समाचार-पत्र, फिल्में, पत्रिकाएँ, रेडियो, विज्ञापन, सीडी इत्यादि। इन्हें मास मीडिया इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह एक साथ बहुत बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचते हैं।

→ मास मीडिया हमारे दैनिक जीवन का एक अंग है। लाखों लोग सुबह उठ कर या तो समाचार-पत्र देखते हैं, या टी० वी० पर ख़बरें देखते हैं या फिर फोन पर मिस्ड कॉल देखते हैं। इस प्रकार मास मीडिया हमारे जीवन में काफ़ी महत्त्वपूर्ण हो गया है।

→ हाल ही के वर्षों में सभी प्रकार के जनसंचार के साधनों का चमत्कारिक रूप से विस्तार हुआ है। टी० वी०, डी० टी० एच०, समाचार-पत्रों की बाढ़, न्यूज़ चैनलों की बाढ़, मनोरंजन के कार्यक्रम इतने अधिक हो गए हैं कि व्यक्ति को समझ ही नहीं आता कि वह क्या देखे तथा क्या न देखे।

→ भारत में मुद्रण की शुरुआत चाहे अंग्रेजों के समय में हुई थी परंतु अंग्रेजों ने समाचार-पत्रों को हमेशा दबा कर रखा। उन्हें डर था कि कहीं समाचार-पत्र लोगों में बग़ावत की भावना न फैला दें। परंतु स्वतंत्रता के बाद इसने अत्यधिक प्रगति की तथा इसे लोकतंत्र का पहरेदार भी कहा गया।

→ रेडियो, टी० वी० तथा प्रिंट मीडिया ऐसे माध्यम हैं जो जनता में किसी मुद्दे पर जागृति उत्पन्न करते हैं तथा यह राष्ट्र निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। आजकल तो भूमंडलीकरण के कारण संचार के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति सी आ गई है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

→ भारत में आजकल हज़ारों समाचार-पत्र रोज़ाना छपते हैं तथा इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। बहुत से लोगों को डर था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उत्थान से प्रिंट मीडिया के प्रसार में गिरावट आएगी परंतु ऐसा नहीं हुआ।

→ 1991 में भारत में केवल राज्य नियंत्रित दूरदर्शन चैनल चलता था जो अब बढ़ कर 200-250 के करीब प्राइवेट चैनल हो गए हैं। मनोरंजन के चैनल, समाचार के चैनल, खेलों के चैनल, संगीत के चैनल, फिल्मों के चैनल, शिक्षावर्धक चैनलों की तो बाढ़ सी आ गई है। केबल टी० वी० तथा डी० टी० एच० सेवा ने तो इसमें क्रांति ही ला दी है।

→ रेडियो मनोरंजन का एक ऐसा साधन है जिसे कोई भी कहीं भी सुन सकता है। पहले केवल सरकारी चैनल ही हुआ करते थे परंतु आजकल एफ०एम० चैनल आ गए हैं जो दिन-रात लोगों का मनोरंजन करते हैं। यह एक मनोरंजन का सस्ता साधन भी है जिसको सुनने के लिए केवल रेडियो की कीमत ही अदा करनी पड़ती है।

→ इसमें कोई शक नहीं है कि मास मीडिया आज हमारे व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक जीवन का एक आवश्यक अंग बन गया है। मास मीडिया आजकल अनेकों नए आयाम स्थापित करने में लगा है।

→ जन संचार-जब व्यक्तियों के समूह के साथ आमने-सामने की बातचीत के स्थान पर किसी यांत्रिक माध्यम की सहायता से एक विशाल वर्ग से बातचीत की जाती है तो इसे जनसंचार कहा जाता है।

→ प्रिंट मीडिया-समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं को प्रिंट मीडिया के साधन कहा जाता है।

→ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया-टी० वी० तथा रेडियो को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साधन कहा जाता है।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

HBSE 12th Class Political Science क्षेत्रीय आकांक्षाएँ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में मेल करें :


क्षेत्रीय आकांक्षाओं की प्रकृति

राज्य

(क) सामाजिक-धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य के निर्माण(i) नागालैंड/मिज़ोरम
(ख) भाषायी पहचान और केन्द्र के साथ तनाव(ii) झारखण्ड/छत्तीसगढ़
(ग) क्षेत्रीय असन्तुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण(iii) पंजाब
(घ) आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी मांग(iv) तमिलनाडु

उत्तर:


क्षेत्रीय आकांक्षाओं की प्रकृति

राज्य

(क) सामाजिक-धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य के निर्माण(iii) पंजाब
(ख) भाषायी पहचान और केन्द्र के साथ तनाव(iv) तमिलनाडु
(ग) क्षेत्रीय असन्तुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण(i) नागालैंड/मिज़ोरम
(घ) आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी मांग(ii) झारखण्ड/छत्तीसगढ़

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 2.
पूर्वोत्तर के लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है। बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन, ज्यादा स्वायत्तता की मांग के आन्दोलन और अलग देश बनाने की मांग करना ऐसी ही कुछ अभिव्यक्तियां हैं। पूर्वोत्तर के मानचित्र पर इन तीनों के लिए अलग-अलग रंग भरिए और दिखाइए कि किस राज्य में कौन-सी प्रवृत्ति ज्यादा प्रबल है ?
उत्तर:
(1) बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन-असम
(2) ज्यादा स्वायत्तता की मांग के आन्दोलन-मेघालय
(3) अलग देश बनाने की मांग-मिजोरम
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प्रश्न 3.
पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधान क्या थे ? क्या ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ोसी राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने के लिए कारण बन सकते हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 2 देखें।

प्रश्न 4.
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने के क्या कारण थे ?
उत्तर:
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने का मुख्य कारण यह था, कि इस प्रस्ताव में पंजाब सूबे के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की गई, जोकि परोक्ष रूप से एक अलग सिख राष्ट्र की मांग को बढ़ावा देती है।

प्रश्न 5.
जम्मू-कश्मीर की अंदरूनी विभिन्नताओं की व्याख्या कीजिए और बताइए कि इन विभिन्नताओं के कारण इस राज्य में किस तरह अनेक क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सर उठाया है।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर में अधिकांश रूप में अंदरूनी विभिन्नताएं पाई जाती हैं। जम्मू-कश्मीर में राज्य में जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के क्षेत्र शामिल हैं। जम्मू पहाड़ी क्षेत्र है, इसमें हिन्दू, मुस्लिम और सिख अर्थात् कई धर्मों एवं भाषाओं के लोग रहते हैं। कश्मीर में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या अधिक है और यहां पर हिन्दू अल्पसंख्यक हैं।

जबकि लद्दाख पर्वतीय क्षेत्र हैं, इसमें बौद्ध, मुस्लिम की आबादी है। इतनी विभिन्नताओं के कारण यहां पर कई क्षेत्रीय आकांक्षाएं पैदा होती रहती हैं। जम्मू-कश्मीर में कई राजनीतिक दल हैं, जो जम्मू-कश्मीर के लिए स्वायत्तता की मांग करते रहते हैं। इसमें नेशनल काफ्रैंस सबसे महत्त्वपूर्ण दल है। इसके अतिरिक्त कुछ उग्रवादी संगठन भी हैं, जो धर्म के नाम पर जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं।

महत्त्वपूर्ण नोट-5-6 अगस्त, 2019 को केन्द्र सरकार ने धारा 370 को समाप्त कर दिया। इस कारण जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हो गया है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर का विभाजन करके लद्दाख को इससे अलग कर दिया गया है। अब जम्मू-कश्मीर एक राज्य नहीं है बल्कि जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख दो केन्द्र शासित प्रदेश बना दिये गए हैं। अत: अब भारत में 28 राज्य एवं 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं।

प्रश्न 6.
कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्ष क्या हैं ? इनमें कौन-सा पक्ष आपको समुचित जान पड़ता है ? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
कश्मीर के क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर मुख्य रूप से दो पक्ष सामने आते हैं। प्रथम पक्ष वह है, जो धारा 370 को समाप्त करना चाहता है, जबकि दूसरा पक्ष वह है, जो इस राज्य को और अधिक स्वायत्तता देना चाहता है। इन दोनों पक्षों यदि उचित ढंग से अध्ययन किया जाए तो प्रथम पक्ष अधिक उचित दिखाई पड़ता है।

जो लोग धारा 370 के समाप्त करने के पक्ष में हैं, उनका तर्क है कि इस धारा के कारण यह राज्य भारत के साथ पूरी तरह नहीं मिल पाया है। इसके साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देने से कई प्रकार की राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याएं भी पैदा होती हैं। महत्त्वपूर्ण नोट-5-6 अगस्त, 2019 को केन्द्र सरकार ने धारा 370 को समाप्त कर दिया। इस कारण जम्मू-कश्मीर का विभाजन करके लद्दाख को इससे अलग कर दिया गया है। अब जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख दो केन्द्र शासित प्रदेश बना दिये गए हैं। अतः अब भारत में 28 राज्य एवं 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं।

प्रश्न 7.
असम आन्दोलन सांस्कृतिक अभिमान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों (निबन्धात्मक प्रश्न) में प्रश्न नं० 5 देखें।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 8.
हर क्षेत्रीय आन्दोलन अलगाववादी मांग की तरफ अग्रसर नहीं होता। इस अध्याय से उदाहरण देकर इस तथ्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के कई क्षेत्रों से काफी समय से कुछ अलगाववादी आन्दोलन चल रहे हैं, परन्तु सभी आन्दोलन अलगाववादी आन्दोलन नहीं होते, अर्थात् कुछ क्षेत्रीय आन्दोलन भारत से अलग नहीं होना चाहते, बल्कि अपने लिए अलग राज्य की मांग करते हैं, जैसे झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का आन्दलोन, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा चलाया गया आन्दोलन तथा तेलंगाना प्रजा समिति द्वारा चलाया गया आन्दोलन इत्यादि। आगे चलकर झारखण्ड, छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना राज्य बन गए।

प्रश्न 9.
भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से ‘विविधता में एकता’ के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत में विभिन्न जातियों के आगमन के कारण इसकी संस्कृति में सम्मिश्रण पाया जाता है। यहां पर भौगोलिक, जलवायु, सामाजिक मान्यताओं, धर्म, भाषा, साहित्य, कला, रहन-सहन, रीति-रिवाजों, खान-पान, वेष-भूषा आदि में विभिन्नताएं व विविधताएं पाई जाती हैं किन्तु इन विविधताओं में सहयोग एकता व सह-अस्तित्व की स्पष्ट झलक प्राप्त होती है।

विभिन्न धार्मिक विश्वासों के बावजूद ईश्वर की एकता, धर्म-निरपेक्षता, सहयोग, कर्म, उदारता, सहिष्णुता, करुणा, सत्य पर दृढ़ श्रद्धा आदि विचारों पर प्रत्येक भारतीय की समान आस्था है। यद्यपि बढ़ती हुई जनसंख्या, विशाल भू-क्षेत्र, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधताओं के अन्तर ने कई प्रकार के विरोध व टकराव पैदा किए हैं, किन्तु भारतीय सभ्यता की विशिष्टता तथा पहचान उसके परिवर्तन के साथ निरन्तरता, सहयोग व सद्भावना में निहित है। सहयोग तथा पारस्परिक भाईचारा व अनेकता में बसी हुई एकता ही भारत की पहचान है।

प्रश्न 10.
नीचे लिखे अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें
हजारिका का एक गीत….. एकता की विजय पर है; पूर्वोत्तर के सात राज्यों को इस गीत में एक ही माँ की सात बेटियां कहा गया है…… मेघालय अपने रास्ते गई….. अरुणाचल भी अलग हुई और मिज़ोरम असम के द्वार पर दूल्हे की तरह दूसरी बेटी से ब्याह रचाने को खड़ा है…… इस गीत का अन्त असमी लोगों की एकता को बनाए रखने के संकल्प के साथ होता है और इसमें समकालीन असम में मौजूद छोटी-छोटी कौमों को भी अपने साथ एकजुट रखने की बात कही गई है…… करबी और मिजिंग भाई-बहन हमारे ही प्रियजन हैं।

(क) लेखक यहां किस एकता की बात कह रहा है ?
(ख) पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य क्यों बनाए गए ?
(ग) क्या आपको लगता है कि भारत के सभी क्षेत्रों के ऊपर एकता की यही बात लागू हो सकती है ? क्यों ?
उत्तर:
(क) लेखक यहां पर पूर्वोत्तर राज्यों की एकता की बात कर रहा है।

(ख) सभी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए तथा आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य बनाए गए।

(ग) भारत के सभी क्षेत्रों पर एकता की यह बात लागू हो सकती है, क्योंकि भारत के सभी राज्यों में अलग-अलग धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं तथा देश की एकता एवं अखण्डता के लिए उनमें एकता कायम करना आवश्यक है।

क्षेत्रीय आकांक्षाएँ HBSE 12th Class Political Science Notes

→ भारत में क्षेत्रीय आकांक्षाएं एवं संघर्ष देखने को मिलता है।
→ भारत में क्षेत्र्वाद को बढ़ावा मिला है।
→ भारत में क्षेत्रीय दलों का विका स हुआ है।
→ भारत के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दलों में इण्डियन नेशनल लोकदल, डी० एम० के०, अन्ना डी० एम० के०, तेलुगू देशम, शिरोमणि अकाली दल तथा नेशनल कान्फ्रेंस शामिल हैं।
→ इण्डियन नेशनल लोकदल हरियाणा का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है।
→ 1980 के दशक के प्रारम्भ में पंजाब में राजनीतिक एवं सामाजिक अस्थिरता फैलने लगी थी।
→ केन्द्र की श्रीमती इन्दिरा गांधी की सरकार ने परिणामस्वरूप 5 जून, 1984 को पंजाब में ‘ब्लू स्टार आपरेशन’ के अन्तर्गत कार्यवाही की।
→ 31 अक्तूबर, 1984 को श्रीमती गांधी की हत्या कर दी गई।
→ श्रीमती गांधी की हत्या के कारण दिल्ली में बड़े पैमाने पर सिक्ख विरोधी दंगे हुए जिसमें लगभग 2000 सिक्ख पुरुष, स्त्री एवं बच्चे मारे गए।
→ 1985 में प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी एवं अकाली नेताओं के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे पंजाब समझौते के नाम से जाना जाता है।
→ भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र सात राज्यों (असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नागालैण्ड, मिजोरम एवं त्रिपुरा) से मिलकर बनता है।
→ असम गण परिषद् असम का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है।

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जन आन्दोलन का क्या अर्थ है ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
जन आन्दोलन का अर्थ-जो आन्दोलन लोगों की किसी समस्या या जनहित को लेकर चलाए जाते हैं, उन्हें जन आन्दोलन कहते हैं। ऐसे आन्दोलन के साथ अधिक से अधिक लोग जुड़े हुए होते हैं। एक आन्दोलन के साथ जितने अधिक लोग जुड़ते जायेंगे वह आंदोलन और अधिक लोकप्रिय होता जायेगा। उदाहरण के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ श्री अन्ना हजारे द्वारा चलाया गया आन्दोलन एक जन आन्दोलन ही था।

विशेषताएं:
(1) जन आन्दोलनों ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे।

(2) जन आन्दोलन सामाजिक समूहों के लिए अपनी बात उचित ढंग से रखने के बेहतर मंच बनकर उभरे हैं।

(3) इन आंदोलनों ने जनता के क्रोध एवं तनाव को एक सार्थक दिशा देकर लोकतंत्र को मजबूत किया।

(4) इन आंदोलनों ने भारतीय लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में चलाए गए किसान आन्दोलनों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद किसान आन्दोलन (Peasant Movements after Independence) स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने निश्चय किया कि उसे कृषकों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए, फिर भी कृषकों ने कई आन्दोलन किए, जिनका वर्णन निम्नलिखित है

1.तिभागा आन्दोलन (Tibhaga Movement):
तिभागा आन्दोलन 1946-47 में बंगाल में आरम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों एवं बटाईदारों का संयुक्त प्रयास था। इस आन्दोलन का मुख्य कारण सन् 1943 में बंगाल में पड़ा भीषण अकाल था। इस आन्दोलन के कारण कई गांवों में किसान सभा का शासन स्थापित हो गया। परन्तु औद्योगिक मजदूर वर्ग और मझोले किसानों के समर्थन के बिना यह शीघ्र ही समाप्त हो गया।

2. तेलंगाना आन्दोलन (Telangana Movement):
तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी किसान आन्दोलन था। इस आन्दोलन में किसानों ने मांग की कि उनके सभी ऋण माफ कर दिए जाएं, परन्तु ज़मींदारों ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। क्रान्तिकारी किसानों ने पांच हजार गुरिल्ला सैनिक तैयार किए और ज़मींदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। गुरिल्ला सैनिकों ने ज़मींदारों के हथियार छीन लिए और उन्हें भगा दिया, परन्तु भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हो गया।

3. नक्सलवाड़ी आन्दोलन (Naxalbari Movement):
सन् 1964 में साम्यवादी दल में फूट पड़ गई। दोनों दलों के संसदीय राजनीति में व्यस्त होने के कारण इन दलों के सक्रिय व संघर्षशील कार्यकर्ता दलों से अलग होकर जन कार्य करने लगे। सन् 1967 में बंगाल में साम्यवादी दल की सरकार बनी। इसी समय दार्जिलिंग में नक्सलवाड़ी नामक स्थान पर किसानों ने विद्रोह कर दिया। यद्यपि पश्चिमी बंगाल की सरकार ने इसे दबा दिया।

परन्तु इस आन्दोलन की प्रतिक्रिया पंजाब, उत्तर प्रदेश और कश्मीर में भी हुई। इससे नक्सलवाड़ी आन्दोलन का विरोध किया गया, जिसके परिणामस्वरूप मई, 1967 में भारी हिंसक घटनाएं हुईं। यह आन्दोलन तेज़ी से राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया। केन्द्र सरकार का ध्यान इस तरफ आकर्षित हुआ क्योंकि सन् 1948 के बाद यह किसानों का मुख्य हिंसक विद्रोह था और ऐसे समय में हुआ था जब पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादियों की सरकार सत्तारूढ़ थी।

4. आधुनिक आन्दोलन (Modern Movement):
अपने हितों की रक्षा के लिए किसान समय-समय पर आन्दोलन करते रहे हैं। पिछले कई वर्षों से कपास के दामों में कमी होने के कारण कपास उत्पादक राज्यों, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब आदि के किसानों में असंतोष भर गया। मार्च, 1987 में गुजरात के किसानों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए विधान सभा का घेराव करने की योजना बनाई। सरकार ने गुजरात विधानसभा (गांधीनगर) की किलेबन्दी कर दी। पुलिस ने किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए और किसानों ने पुलिस के अत्याचारों के विरुद्ध ग्रामबंद की अपील की, जिसके कारण गुजरात के अनेक शहरों में दूध और सब्जी की समस्या कई दिनों तक रही।

मनों का मल्यांकन (Evaluation of Peasant Movements):स्वतन्त्रता प्राप्ति के वर्षों के बाद भी किसानों की समस्याएं वैसी ही बनी हुई हैं जैसी कि ब्रिटिश काल में थीं। इससे जाहिर होता है कि स्वतन्त्रता से पूर्व और स्वतन्त्रता के बाद किए गए सभी किसान आन्दोलन असफल रहे हैं। अपनी सफलता के कारण ये आन्दोलन किसानों को न्याय न दिला सके। यद्यपि किसानों की स्थिति और भूमि सुधार की दिशा में सरकार ने काफ़ी यत्न किए हैं, परन्तु वह ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ ही सिद्ध हुए हैं। इन किसान आन्दोलनों की असफलता के महत्त्वपूर्ण कारण हैं, किसान आन्दोलन के अच्छे संगठन की कमी, किसानों में अज्ञानता, अन्धविश्वास, आसन्न स्थिति, क्रान्तिकारी तथा उद्देश्यपूर्ण विचारधारा की कमी और योग्य नेतृत्व का अभाव।

राजनीतिक दल और किसान आन्दोलन (Peasant Movements and Political Parties):भारत के सभी प्रमुख दलों का किसानों के प्रति व्यवहार स्वार्थपूर्ण रहा है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस पार्टी ने किसानों के हितों की रक्षा, भूमिहीन किसानों और बन्धुओं मजदूरों की सुरक्षा और उन्नति की गारन्टी दी थी। परन्तु यह अपने उद्देश्य में असफल रही है।

ज़मींदार और समृद्ध किसान कांग्रेस दल के लिए ‘वोट बैंक’ का काम करते हैं और उसे ग़रीब वर्ग का समर्थन दिलवाते हैं। परन्तु कांग्रेस की नीतियों से विमुख होकर किसान वर्ग वामपंथी दलों की तरफ झुका है। वामपंथी दलों ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए कई आन्दोलन चलाए हैं और उनका सफल नेतृत्व भी किया है।

वामपंथी दलों ने पश्चिमी बंगाल, केरल, त्रिपुरा, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र आदि के किसानों को संगठित करके किसानों की मांगों को पूरा करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। किसानों के हितों के सम्बन्ध में जो कुछ भी आज उपलब्ध हुआ है, वह वामपंथी दलों के सक्रिय सहयोग के कारण हुआ है। किसानों में संगठन की कमी के कारण उनकी आर्थिक स्थिति पिछड़ी हुई है।

किसान वर्ग में राजनीतिक चेतना न होने के कारण उन पर धर्म और जाति का विशेष प्रभाव रहा है। राजनीतिज्ञ किसानों की जातीय और धार्मिक भावनाओं को भड़का कर अपने स्वार्थों की पूर्ति करते हैं। किसानों की राजनीति में अधिक सक्रिय न होने के कारण भारतीय राजनीति पिछड़ी हुई है, जिसके कारण सवर्ण हिन्दुओं और हरिजनों तथा आदिवासियों के बीच जाति संघर्ष पैदा हुआ है।

बिहार, उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में सवर्ण हिन्दुओं ने और खेतिहर हरिजनों ने अपनी जातीय सेनाएं तैयार कर रखी हैं, जो कि खूनी संघर्ष करती हैं। आज धनी किसान अधिक साधन उत्पन्न और समृद्ध हो रहे हैं। यह वर्ग ही किसान आन्दोलन का नेतृत्व करते हैं तथा राजनीतिक दल चाहे वह सत्तारूढ़ दल हो अथवा विपक्षी दल, किसान रैलिय आयोजन करके अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए और किसानों के मत अपने पक्ष में बटोरने के लिए करते रहते हैं।

आज किसान आन्दोलन की आड़ में क्षेत्रीय और अल्पसंख्यक नेतृत्व भी उभरने लगा है। इसके अतिरिक्त उत्तर और दक्षिण भारत में चलाए जाने वाले किसान आन्दोलनों में एक बड़ा भारी अन्तर पाया जाता है। वह अन्तर है उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत के किसान आन्दोलन में पिछड़ी जातियों का प्रमुख हाथ रहा है और वह उन में बढ़-चढ़ कर भाग लेती रही हैं। राजनीतिक दल इस तरह के आन्दोलन कर्ताओं को प्रोत्साहित करते रहे हैं कि किसानों को संगठित होकर विशाल रैलियों व आन्दोलनों के माध्यम से सरकार पर किसानों की मांगों को मनवाने के लिए दबाव डालना चाहिए।

इसी कारण से स्वतन्त्रता के बाद किसानों के कई दबाव समूह उभरकर सामने आए हैं। । आज चाहे कोई भी राजनीतिक दल हो, उसमें उद्योगपतियों की एक सशक्त लॉबी सक्रिय है। इनके माध्यम से यह उद्योगपति किसान आन्दोलन को गुमराह करने की कोशिश करते हैं।

इनका प्रयास रहता है कि किसान आन्दोलन का नेतृत्व किसी तरह राजनीतिक दलों के हाथों में आ जाए ताकि वे अपने हितों की पूर्ति कर सकें। वास्तव में आज जो भी आन्दोलन देश में सक्रिय है, चाहे वह किसान आन्दोलन हो या छात्र आन्दोलन और चाहे अन्य आन्दोलन, उनमें राजनीतिज्ञ किसी-न-किसी रूप में ज़रूर संलिप्त होते हैं। ये सभी आन्दोलन अपने ही ढंग की राजनीति को उभार रहे हैं।

भारत सरकार द्वारा समय-समय पर निश्चित की गई योजनाओं और नीतियों से देश के लगभग एक चौथाई किसानों को ही लाभ मिला है और तथाकथित हरित क्रान्ति के नाम पर किसानों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ी है। हरित क्रान्ति से यद्यपि देश का उत्पादन बढ़ा है, परन्तु यह एक सीमित क्षेत्र तक ही पनप सकी है। सिंचाई के साधनों की उपलब्धता न होने के कारण देश के किसानों को प्राकृतिक साधनों, वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। दो या तीन वर्ष बाद किसानों को बाढ़ अथवा सूखे का सामना करना पड़ता है।

अतः किसानों को चाहिए कि वे संगठित होकर यह मा “एक निश्चित अवधि में देश के प्रत्येक खेत में पानी का इन्तज़ाम होना चाहिए। सिंचाई सरकारी होगी।” किसानों को अपने आन्दोलनों का नेतृत्व स्वयं करना चाहिए क्योंकि राजनीतिक दलों का उद्देश्य लोगों को मूर्ख बना कर सत्ता प्राप्त करना रहा है। किसानों को उन लोगों और पाखण्डी राजनीतिज्ञों से बचना चाहिए, जोकि अपने-आपको किसानों का मसीहा कहलाते हैं, जोकि स्वयं तो वातानुकूलित कमरों में बैठते हैं और उनके किसान भाई अपनी मौलिक आवश्यकताओं को भी तरसते हैं। उन्हें ऐसे लोगों से भी बचना होगा, जिनका एक पैर गांव में तथा दूसरा पांव शहर में रहता है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

प्रश्न 3.
महिला आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
प्राचीन काल से ही पुरुष प्रधान समाज रहा है और आज भी काफ़ी हद तक समाज में और सार्वजनिक जीवन में पुरुषों का ही अधिक महत्त्व है। स्त्रियों को दासी मान कर पांव की जूती के समान दर्जा दिया जाता रहा था। जन आन्दोलन का उनका कार्य क्षेत्र घर की चारदीवारी रहा था और उनको पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं थे। स्त्रियों का मुख्य कर्त्तव्य पुरुषों की सेवा करना, बच्चे पैदा करना, बच्चों का पालन करना तथा पति को परमेश्वर मान कर जीवन यापन करना रहा है। स्त्रियों के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता रहा है और आज भी संसार के अधिकांश देशों में स्त्रियों की स्थिति विशेष अच्छी नहीं है केवल पिछड़े देशों में ही नहीं, बल्कि संसार के अन्य देशों में भी स्त्रियों की स्थिति शोचनीय है।

यद्यपि संसार के कई देशों में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए हैं, किन्तु व्यवहार में स्त्रियों को समानाधिकार प्राप्त नहीं हैं। राजनीतिक क्षेत्र में स्त्रियों का महत्त्व और भी कम है। निःसन्देह भारत, अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस आदि देशों में स्त्रियों को मताधिकार और चुने जाने का अधिकार प्राप्त है, परन्तु व्यवहार में इन देशों में भी स्त्रियां राजनीति में अधिक सक्रिय नहीं हैं।

निर्णय निर्माण में तो स्त्रियां बहुत ही कम भागीदार हैं। स्त्रियों में राजनीतिक चेतना आने के बावजूद भी रूढ़िवादी पुरुष प्रधान समाज के कारण प्रगतिशील परिवर्तन नहीं हो रहे हैं। अत: आज भी स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। यद्यपि आज भी स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं है, परन्तु स्त्रियों में मानसिक परिवर्तन अवश्य आया है।

स्त्रियों के अन्दर व्यक्तित्व की भावना जाग उठी है और वे अपने हितों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील हैं। संसार के अनेक विकसित देशों में स्त्रियों ने पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने के लिए आन्दोलन चलाए हैं और उन्हें काफ़ी सफलता भी प्राप्त हुई हैं। अनेक पुरुष संगठनों ने भी स्त्रियों के इन आन्दोलनों का समर्थन किया है। आज स्त्रियां अपने हितों एवं अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होकर संघर्ष के मार्ग पर चल पड़ी हैं और स्त्रियों के इस आन्दोलन को ही स्त्रीवाद कहा जाता है। Feminism शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द Female से बना है, जिसका अर्थ है स्त्री या स्त्रियों सम्बन्धी। स्त्रीवाद स्त्रियों के हितों की रक्षा से सम्बन्धित आन्दोलन है।

1. ऑक्सफोर्ड शब्दकोष (Oxford Dictionary) के अनुसार, “स्त्रीवाद स्त्रियों के दावों की मान्यता, उनकी सफलताओं तथा उनके अधिकारों का समर्थन करता है।”

2. रैनडो हाऊस शब्दकोष (Randow House Dictionary) के अनुसार, “स्त्रीवाद पुरुषों के समान स्त्रियों के सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकारों के समर्थन का सिद्धान्त है। स्त्रीवाद स्त्रियों के अधिकारों की प्राप्ति के लिए संगठित आन्दोलन है।” विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि स्त्रीवाद (Feminism) एक ऐसा आन्दोलन है. जो स्त्रियों की समस्याओं का आलोचनात्मक मल्यांकन करता है तथा स्त्रियों को समान अधिकार दिलवाने के लिए प्रयत्नशील है।

स्त्रीवाद स्त्रियों को उन्नति के लिए अधिक सुविधाएं व अवसर दिलाने के लिए प्रयत्नशील है। केवल स्त्रियां ही नहीं बल्कि अनेक पुरुष भी इन आन्दोलनों में सक्रिय भाग ले रहे हैं और इन आन्दोलनों का समर्थन कर रहे हैं।

3. जॉन चारवेट (John Charvet) के अनुसार, “स्त्रीवाद का मूल विचार यह है कि मौलिक महत्त्व की दृष्टि से पुरुषों और स्त्रियों में कोई भेद नहीं है। इस स्तर पर समाज में पुरुष प्राणी या स्त्री प्राणी नहीं बल्कि वे केवल मानव प्राणी या व्यक्ति है। व्यक्तियों का स्वभाव और महत्त्व उनके लिंग भेद से स्वतन्त्र है।” महिला आन्दोलन की उत्पत्ति व विकास (Origin and Development of Women Movement) स्त्रियों की समानता की धारणा का इतिहास बहुत पुराना है।

भारतीय वैदिक काल में स्त्री को सामाजिक व धार्मिक दृष्टि से अनेक अधिकार प्राप्त थे। कोई भी धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठान व यज्ञ स्त्री बिना अधूरा माना जाता था। उसे कुल लक्ष्मी व देवी आदि उपनामों से पुकारा जाता था वेदों में तो यहां तक लिखा है कि जहां-जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का निवास होता है। उत्तर वैदिक काल में नारी के स्थान व सम्मान में कमी आनी शुरू हो गई।

उसे धीरे-धीरे वर चुनने व शिक्षा प्राप्ति के अधिकारों से वंचित कर दिया गया। महात्मा बुद्ध ने तो अपने शिष्य आनन्द के बार-बार अनुरोध करने पर स्त्रियों को भिक्षुणियां बनने की अनुमति दी थी। राजपूतों और तुर्कों के काल में स्त्रियां, चारदीवारी में बन्द हो गईं और पर्दा व कन्यावध जैसी सामाजिक कुरीतियों द्वारा इनका शोषण किया जाता रहा है।

15वीं शताब्दी में गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों की समानता और स्त्रियों की श्रेष्ठता का प्रचार किया। भक्ति आन्दोलन और सुधार आन्दोलनों ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए अनेक यत्न किए। 18वीं शताब्दी में अनेक विद्वानों ने पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर किए गए अत्याचारों की कड़ी आलोचना की। बोरन डी हुलबैक (Boron D Holbach) ने स्त्रियों को शिक्षा न दिया जाने का विरोध किया और इस बात पर जोर दिया कि समाज की उन्नति के लिए स्त्रियों को शिक्षा देना अति ज़रूरी है।

अनेक फ्रांसीसी विद्वानों ने स्त्रियों को पुरुषों के समान शिक्षा देने का समर्थन किया। मेरी उलम्पी डी गोज़ज (Marie Olympe D. Goages) ने 1791 ई० में “स्त्रियों के अधिकारों की घोषणा” (Declaration of Women) प्रकाशित की और इस बात की मांग की कि, “जब हमें स्त्रियों को फांसी के फंदे पर लटकने का अधिकार है तो हमें न्यायालयों की कुर्सी पर भी बैठने का अधिकार है।”

1792 ई० में एक अंग्रेज़ स्त्री मेरी वुलस्टोनकराफट (Mary Wollstonecraft) ने स्त्रियों के अधिकारों का समर्थन व रक्षा (A Vindication of the Rights of Women) नामक एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में मेरी वुलस्टोनकराफट ने इस बात पर जोर दिया है कि स्त्रियों के शरीर का प्रयोग किया जाता है, किन्तु उनके दिमाग को जंग लगने दिया जाता है। मेरी ने स्त्रियों को शिक्षा दिए जाने पर बल दिया और यह भी कहा कि अनेक स्त्रियां ब्रिटिश संसद् की सदस्या बनने के योग्य हैं।

परन्तु इन विद्वानों के विचारों के बावजूद स्त्रियों की दशा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ और न ही 17वीं शताब्दी के अन्त तक कोई विशेष संगठन शुरू हुआ। शैले (Shelley), फलोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale), एलिजाबेथ गैसकल (Elizabeth Gaskall), राबर्ट ओवन (Robert Oven) और एलिजाबेथ फराई (Elizabeth Fry) आदि ने अस्पतालों, कारखानों तथा अन्य स्थानों पर काम कर रही स्त्रियों की स्थिति को सुधारने के लिए प्रयत्न किए।

1820 ई० में अमेरिका में United Tailoresses Society of New York और Lady Shoe Bender of Cynu Massachusetts नामक संगठनों की स्थापना की गई, परन्तु इन संगठनों को कोई विशेष सफलता न मिली क्योंकि इन संगठनों को पुरुषों का समर्थन प्राप्त नहीं था। अमेरिका में 1824 ई० में स्त्रियों ने पहली बार हड़ताल की। इस हड़ताल का पुरुषों ने भी काफ़ी सीमा तक समर्थन किया।

1848 ई० में एलिजाबेथ केडी स्टेनटन (Elizabeth Cady Stanton) तथा लुकरीसियन मट (Lucretin Matt) द्वारा बुलाई कन्वेंशन में की गई घोषणा अमेरिकन स्त्रियों के अधिकारों के लिए चलाए गए आन्दोलनों से महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस घोषणा में स्पष्ट कहा गया था कि मानव जाति का इतिहास पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर किए गए अत्याचारों का इतिहास है। अमेरिका के गृह युद्ध (1861-65) ने स्त्रियों को कुछ अधिकार दिलवाने में बहुत सहायता की। स्त्रियों के लिए एक कॉलेज खोला गया और उन्हें सरकारी नौकरियां देने की भी व्यवस्था की गईं। 19वीं शताब्दी के अन्त में स्त्रियों को अनेक अधिकार दिए गए।

स्त्रियों को मताधिकार की प्राप्ति (Attainment of right to vote by women)-जे० एस० मिल (J. S. Mill) स्त्री मताधिकार का भारी समर्थक था। उसके विचारानुसार मताधिकार देने में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। स्त्रियों को मताधिकार न देना उसे बहुत अन्यायपूर्ण लगता था। मिल स्त्रियों को वही समर्थन देना चाहता था, जो पुरुषों को प्राप्त था। उस का कहना है कि, “स्त्री और पुरुषं में कोई अन्तर है भी तो पुरुष की अपेक्षा मत देने के अधिकार की आवश्यकता नारी को अधिक है क्योंकि शारीरिक दृष्टि से पुरुष की तुलना में निर्बल होने के कारण उसे रक्षा के लिए कानून और समाज पर निर्भर रहना पड़ता है।”

अमेरिका में 1920 ई० में तथा इंग्लैण्ड में 1928 ई० में स्त्रियों को मताधिकार दिया गया। फ्रांस में द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् स्त्रियों को मताधिकार दिया गया। भारतीय संविधान के अन्तर्गत स्त्रियों को पुरुषों समान अधिकार दिए गए हैं। संविधान में यह स्पष्ट लिखा गया है कि लिंग के आधार पर किसी प्रकार का स्त्रियों के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। अमेरिका में 1964 ई० में “नागरिक अधिकार अधिनियम” (Civil Rights Act) के अन्तर्गत नौकरियों में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। इंग्लैण्ड में 1967 ई० में अमेरिका में 1975 ई० में गर्भपात के अधिकार को कानूनी मान्यता दी गई।

1960 ई० के पश्चात् स्त्रियों को स्वतन्त्रता दिलवाने के लिए अनेक संगठनों की स्थापना की गई है और अनेक आन्दोलन चलाए गए हैं। 1963 ई० में बैट्टी फ्राईडन (Betty Friden) ने “The Ferminine Mystique” नामक पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक में स्त्रीवाद आन्दोलन के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् स्त्रियों में राजनीतिक जागृति का काफ़ी विकास हुआ है। भारत जैसे देश में आज अनेक महिला संगठन स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं। इन संगठनों में मुख्य संगठन इस प्रकार है-All India Women Conference, National Council of Women in India, Bharatiya Grameen Mahila Sangh, National Federation of Indian Women आदि।

यूरोप के अनेक देशों में, विशेषकर अमेरिका में स्त्रियों के अधिकारों के लिए चलाए गए आन्दोलन उग्र रूप धारण कर चुके हैं। स्त्रीवाद के उग्र रूप की समर्थक स्त्रियां केवल समान अधिकारों की बात करती है बल्कि पुरुषों की आवश्यकता का भी खण्डन करती है। इसलिए अमेरिका में हमें एक स्त्री का दूसरी स्त्री के साथ विवाह का उदाहरण मिलता है। परन्तु स्त्रीवाद का यह रूप समाज एवं मानव के हित में नहीं है क्योंकि समाज को बनाए रखने के लिए स्त्री पुरुष सम्बन्ध होना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
महिला सशक्तिकरण हेतु संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करें।
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण और विकास के लिए यह आवश्यक है कि महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाया जाए। प्राय: सभी राजनीतिक दल, महिला संघ व सामाजिक संगठन निरन्तर इस बात पर बल देते रहे हैं कि जब तक स्थानीय संस्थाओं, विधानमण्डलों और संसद् में महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता। 73वें और 74वें संशोधन द्वारा ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिए कुल निर्वाचित पदों का एक तिहाई भाग आरक्षित किया गया है।

इससे महिला सशक्तिकरण आन्दोलन को बल मिला। संसद् और राज्य विधानमण्डलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित रखने के लिए कई बार प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई। विभिन्न राजनीतिक दल अपनी रैलियों, घोषणा-पत्रों, सार्वजनिक स्थानों आदि पर तो महिलाओं के लिए संसद् व राज्य विधान सभाओं में एक-तिहाई स्थान दिलाने का जोर-शोर से प्रचार करते हैं, लेकिन जब संसद् में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया जाता है तो उसे पास नहीं होने दिया जाता।

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय महिला आयोग के प्रमुख कार्यों का सविस्तार वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में महिलाओं की रक्षा तथा उनकी स्थिति में सुधार के लिए राष्ट्रीय महिला आपेक्षा महिला आयोग निम्नलिखित कार्य करता है

1. महिलाओं का सर्वांगीण विकास-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के सर्वांगीण विकास पर विशेष बल देता है, तथा इससे सम्बन्धित कई प्रकार के कार्य करता है।

2. महिलाओं से सम्बन्धित कानूनों की समीक्षा करना-राष्ट्रीय महिला आयोग सरकार द्वारा समय-समय पर महिला कल्याण के लिए जो कानून बनाए जाते हैं, उनकी समीक्षा करता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उससे संशोधन हेतु सुझाव भी देता है।

3. महिलाओं से सम्बन्धित कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं से सम्बन्धित कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा एवं जांच-पड़ताल करता है तथा इन कानूनों को प्रभावशाली ढंग से लागू करने के लिए समय-समय पर सरकार को परामर्श भी देता है।

4. महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है। यदि कोई व्यक्ति या अधिकारी इन अधिकारों की अवहेलना करता है, तो राष्ट्रीय महिला आयोग इस घटना को सम्बन्धित अधिकारी के समक्ष उठाता है।

5. लिंग भेदभाव को समाप्त करना-राष्ट्रीय महिला आयोग समाज में से लिंग भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास करता है। यह आयोग महिलाओं से सम्बन्धित समस्याओं से सम्बन्धित खोज करके, उसको समाप्त करने का सुझाव देता है।

6. महिलाओं को सामाजिक-आर्थिक विकास-वर्तमान में भी समाज में महिलाओं की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। अतः राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अनेक कार्य करता है।

7. घरेलू हिंसा से बचाव-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।

8. वार्षिक प्रतिवेदन देना-राष्ट्रीय महिला आयोग प्रति वर्ष महिलाओं की स्थिति से सम्बन्धित प्रतिवेदन केन्द्रीय सरकार को देता है तथा आवश्यकता पड़ने पर किसी राज्य सरकार को भी प्रतिवेदन दे सकता है। ..

9. महिलाओं से सम्बन्धित सुधार गृहों तथा जेलों का निरीक्षण करना-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं से सम्बन्धित सुधार गृहों तथा जेलों आदि का समय-समय पर निरीक्षण करता है उनमें सुधार के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करता है।

10. महिलाओं के कल्याण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा दिया गया कोई कार्य करना-राष्ट्रीय महिला आयोग कोई ऐसा कार्य करता है, जो महिलाओं के कल्याण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा उसे सौंपा जाए। .

11. राष्ट्रीय महिला आयोग अपने समक्ष किसी भी व्यक्ति को बुलाने एवं उसकी उपस्थिति विश्वसनीय बनाने की शक्ति प्राप्त है ।

12. शपथ पत्रों की जांच करना-राष्ट्रीय महिला आयोग को शपथ पत्रों की जांच करने की शक्ति प्राप्त है।

13. न्यायालय से महिलाओं से सम्बन्धित रिकार्ड प्राप्त करना-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं से सम्बन्धित कोई रिकार्ड किसी न्यायलय या कार्यालय से प्राप्त कर सकता है।

14. सबूतों एवं प्रलेखों की जांच-राष्ट्रीय महिला आयोग को सबूतों एवं प्रलेखों की जांचे के आदेश देने का अधिकार प्राप्त है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

प्रश्न 6.
पर्यावरण एवं विकास से प्रभावित लोगों के आन्दोलनों का वर्णन करें।
उत्तर:
विकासशील देश निरन्तर विकास के लिए प्रयत्न करते रहते हैं और अल्पविकसित राष्ट्र भी अपने अस्तित्व . के लिए तथा अपने-अपने देश की आवश्यकताओं के लिए हमेशा संघर्षरत रहते हैं। विकास के इन प्रयत्नों के फलस्वरूप विश्व के पर्यावरण पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। सभ्यता के प्रारम्भिक युग में मानव की आवश्यकताएं अत्यधिक सीमित थीं और मानव जनसंख्या भी कम थी। आवश्यकताओं के सीमित होने व जनसंख्या के कम होने के कारण प्रकृति के चक्कर (Cycle of Nature) पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता था, क्योंकि मनुष्य प्रकृति के अपार भण्डार से जो कुछ व्यय करता था, वह वापिस प्रकृति में, बिना क्षति पहुंचाए किसी-न-किसी रूप में, विलीन हो जाता था।

किन्तु जहां एक ओर जनसंख्या का निरन्तर विस्तार हो रहा है, वहां दूसरी ओर सभ्यता और प्रौद्योगिकी के विकास के कारण मानव उपभोग का स्तर ऊंचा होता जा रहा है, जिसके कारण विश्व के सभी राष्ट्रों-विकसित, विकासशील एवं अल्पविकसित द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इतना अधिक बढ़ गया है कि प्राकृतिक साधनों की कमी होनी शुरू हो गई है और पर्यावरण के प्रदूषण की समस्याएं पैदा हो गई हैं।
पर्यावरण क्षरण एवं विकास के कारण विश्व के अधिकांश लोग नकारात्मक ढंग से प्रभावित हुए हैं।

इसका प्रभाव भारत जैसे विकासशील देश में भी बहुत पड़ा है। इसी कारण विश्व के साथ-साथ भारत में भी पर्यावरण क्षरण एवं विकास के विरुद्ध समय-समय पर आन्दोलन होते रहे हैं। भारत में पर्यावरण से सम्बन्धित सर्वप्रथम आन्दोलन को चिपको आन्दोलन के रूप में जाना जाता है। चिपको आन्दोलन 1972 में हिमालय क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। चिपको आन्दोलन का अर्थ है-पेड़ से चिपक जाना अर्थात् पेड़ को आलिंगन बद्ध कर लेना। चिपको आन्दोलन की शुरुआत उस समय हुई जब एक ठेकेदार ने गांव के समीप पड़ने वाले जंगल के पेड़ों को काटने का फैसला किया।

लेकिन गांव वालों ने इसका विरोध किया। परन्तु जब एक दिन गांव के सभी पुरुष गांव से बाहर गए हुए थे, तब ठेकेदार ने पेड़ों को काटने के लिए अपने कर्मचारियों को भेजा। इसकी जानकारी जब गांव की महिलाओं को मिली, तब वे एकत्र होकर जंगल पहुंच गईं तथा पेड़ों से चिपक गईं। इस कारण ठेकेदार के कर्मचारी पेड़ों को काट न सके। इस घटना की जानकारी पूरे देश में समाचार माध्यमों के द्वारा फैल गई। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित इस आन्दोलन को ? प्राप्त है। चिपको आन्दोलन के बाद भारत में नर्मदा बचाओ आन्दोलन बांध विरोधी आन्दोलन, उद्योगों एवं कारखानों को शहर से बाहर स्थापित करने की योजना, ताजमहल को बचाने की योजना, बसों एवं आटो रिक्शा में सी० एन० जी० के प्रयोग जन आन्दोलन का उदय की योजना शुरू की गई।

इन योजनाओं में लोगों के साथ-साथ भारत की न्यायपालिका ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नर्मदा बचाओ आन्दोलन में लोगों की भागीदारी इतनी अधिक थी, कि विश्व बैंक ने भी इस योजना से अपने आपको अलग कर लिया। इसके साथ-साथ भारत में टिहरी बांध परियोजना नर्मदा घाटी परियोजना तथा शांत घाटी परियोजना से सम्बन्धित भी पर्यावरणीय आन्दोलन चलाए। टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध चलने वाला आन्दोलन भारत का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला आन्दोलन माना जाता है। टिहरी बांध परियोजना का विरोध करने के लिए लोगों ने स्वतन्त्रता सेनानी वीरेन्द्र दत्त सखलानी के नेतृत्व में टिहरी बांध परियोजना विरोधी संघर्ष समिति का निर्माण किया।

टिहरी बांध से टिहरी शहर के पानी में डूब जाने का खतरा था। आगे चलकर इस योजना से समाज सेवी सुन्दर लाल बहुगुणा भी जुड़ गए तथा टिहरी बांध परियोजना का विरोध करने के लिए उन्होंने आमरण अनशन भी किया तथा प्रधानमन्त्री द्वारा इस योजना की समीक्षा के आश्वासन पर ही उन्होंने अपना आमरण अनशन तोड़ा था। शांत घाटी परियोजना केरल में शुरू की गई थी। इस परियोजना का विरोध करने के लिए ‘केरल शास्त्र साहित्य परिशट्’ की स्थापना की गई इस सभा का मुख्य तर्क यह था कि यदि यह परियोजना पूरी होती है, तो इससे जंगली जीवों को बहुत हानि पहुंचेगी। इसी कारण इस परियोजना को बन्द ही कर दिया गया।

पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण आन्दोलन नर्मदा बचाओ आन्दोलन को माना जाता है। यद्यपि यह आन्दोलन 1970 के दशक में ही शुरू हो गया था, परन्तु इसमें तेजी 1980 के दशक में आई। इस आन्दोलन को चलाने वालों में मेधा पाटकर, बाबा आमटे तथा सुन्दर लाल बहुगुणा शामिल हैं। इनके प्रयासों से समाज के अन्य वर्गों से भी इन्हें समर्थन मिला।

आन्दोलन के समर्थकों की मांग है कि बांध परियोजना के पूर्ण होने पर कई लाख लोग बेघर हो जाएंगे, अतः सरकार इनके पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था करे। परन्तु सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा लोगों के पुनर्वास को अधिक गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा था। इसी कारण इस आन्दोलन के साथ समाज के अन्य वर्गों के लोग भी जुड़ गए तथा यह आन्दोलन और तेज़ हो गया तथा जो देश इस परियोजना में धन लगा रहे थे, वो पीछे हट गए।

यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि भारत में पर्यावरण से सम्बन्धित, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, जैसे कई और आन्दोलन भी सफलतापूर्वक चले हैं, परन्तु कुछ ऐसे आन्दोलन भी रहे हैं जो सफलता प्राप्त नहीं कर पाए। जैसे 1985 में भोपाल में ‘यूनियन कारबाइड गैस’ दुर्घटना द्वारा लगभग 3000 लोग मारे गए। इस घटना के विरुद्ध भी एक सफल आन्दोलन चलाया जा सकता था, क्योंकि इसमें तात्कालिक तौर पर ही 3000 लोग मारे जा चुके थे। क्योंकि इस दुर्घटना के लिए एक विदेशी कम्पनी यनियन कारबाइड कार्पोरेशन उत्तरदायी थी, अत: उसके विरुद्ध न तो भारतीय सरकार और न ही स्थानीय लोग ही उचित कार्यवाही कर पाए।

निष्कर्ष (Conclusion)-उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है, कि भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् लोगों में पर्यावरण से सम्बन्धित जागरुकता बढ़ी तथा भारतीय लोगों ने पर्यावरण को खराब करने वाली परियोजनाओं के विरुद्ध सफल आन्दोलन चलाए।

प्रश्न 7.
भारत में महिलाओं के उत्थान के लिए उठाए गए मुख्य कदम बताएं।
उत्तर:
भारत में महिलाओं के उत्थान के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं

(1) महिलाओं के उत्थान के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम-1956, स्त्रियों एवं लड़कियों का अनैतिक व्यापार निषेध कानून, 1956 तथा दहेज विरोधी कानून, 1960 कानून बनाया गया।

(2) सन् 1972 में कामकाजी महिलाओं के लिए आवास गृह योजना आरम्भ की गई।

(3) भारत में महिलाओं एवं लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 1958 में एक परिषद् की स्थापना की गई जिसे लड़कियों तथा स्त्रियों की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय परिषद् कहा जाता है।

(4) 1987 में विशेष तौर पर ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिलाओं के लिए प्रशिक्षण एवं रोजगार हेतु कार्यक्रम शुरू किया गया।

(5) 1982 में स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए शिक्षात्मक कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया।

(6) सन् 1977 में संकट ग्रस्त स्त्रियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं रोज़गार तथा आवासीय व्यवस्था का प्रावधान किया गया।

(7) सन् 1992 में 73वें एवं 74वें संशोधनों द्वारा ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिए कुल निर्वाचित पदों का एक तिहाई भाग आरक्षित किया गया।

(8) 20 अगस्त, 1995 में को इन्दिरा महिला योजना आरम्भ की गई ।

(9) सन् 1992 में राष्ट्रपति महिला आयोग का गठन किया गया।

(10) सन् 2001 में महिला सशक्तिकरण नीति का निर्माण किया गया।

(11) सन् 2005 में घरेलू महिला हिंसा विरोधी कानून लागू किया गया।

प्रश्न 8.
आरक्षण की नीति का भारतीय राजनीति पर प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीति पर आरक्षण की नीति का निम्नलिखित ढंग से प्रभाव पड़ा है :-

  • आरक्षण की नीति ने दलितों का सर्वांगीण विकास हुआ है।
  • आरक्षण की नीति ने दलितों में वर्गीय चेतना का विकास किया है।
  • जाति आधारित राजनीतिक दलों और दबाव समूहों का निर्माण हुआ है।
  • आरक्षण की नीति के कारण दलितों में विशिष्ट वर्ग का विकास हुआ है।
  • आरक्षण की नीति के कारण समाज में सामाजिक तनाव बढ़ा है।
  • आरक्षण की नीति के कारण दलितों को एक वोट बैंक के रूप में देखा जाने लगा है।
  • आरक्षण की नीति ने मतदान व्यवहार को भी प्रभावित किया है।
  • आरक्षण की नीति के कारण अन्य कई जातियों ने भी आरक्षण की मांग करनी आरम्भ कर दी है।
  • आरक्षण की नीति के कारण बहुत तेजी से राजनीति का जातीयकरण हुआ है।
  • आरक्षण की नीति ने गठबंधन की नीति को बढ़ावा दिया है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

प्रश्न 9.
मण्डल आयोग के गठन एवं उसकी सिफ़ारिशों का वर्णन करें।
उत्तर:
काका कालेलकर की अध्यक्षता में पिछड़ी जाति आयोग-संविधान के अनुच्छेद 340 के अन्तर्गत अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जन-जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई लेकिन पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। इसलिए पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए भारत सरकार ने 1953 में गांधीवादी विचारक काका कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ी जाति आयोग की स्थापना की। इस आयोग ने 30 मार्च, 1955 को राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

इस आयोग ने पिछड़ी जातियों के रूप में 2399 जातियों की पहचान की। इस आयोग ने सभी स्त्रियों को पिछड़ी जाति में शामिल करने की सिफारिश की

(1) आयोग ने प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरियों में 25 प्रतिशत, दूसरी श्रेणी में 33 प्रतिशत, तीसरी तथा चौथी श्रेणी में 40 प्रतिशत आरक्षण की भी सिफारिश की। आयोग ने सभी तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षण संस्थाओं में 70 प्रतिशत स्थान आरक्षित रखने की भी मांग की लेकिन इन सिफ़ारिशों के सम्बन्ध में आयोग के सारे सदस्य एक मत नहीं थे।

आयोग के सात में से तीन सदस्यों ने तो यह भी नहीं माना कि जातीयता पिछड़ेपन का कारण है। स्वयं आयोग के अध्यक्ष काका कालेलकर ने सरकार को लिखे अपने प्रशस्ति-पत्र में अपनी सिफ़ारिशों के परिणाम पर सन्देह प्रकट किया था। इसलिए 1956 में संसद् में एक रिपोर्ट के साथ अपने स्मृति-पत्र में आयोग द्वारा निर्णय एकमत के अभाव के आधार इसे अस्वीकार कर दिया और 1961 में राज्यों को सूचित किया गया कि उन्हें अपने स्तर पर ‘समुचित आधार’ खोजने की स्वतन्त्रता है। इस सम्बन्ध में यह उचित होगा कि यदि राज्य

आर्थिक मापदण्ड को व्यवहार में लाएं। इसका परिणाम यह निकला कि पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का विषय उलझता. चला गया। राज्यों ने अपने स्तर पर पिछड़ेपन के आधार ढूंढने के प्रयास किए। इससे न केवल भेदभाव बढ़े बल्कि पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था राजनीति का शिकार हो गई। प्रान्तीय स्तर पर अनेक हिंसक आरक्षण समर्थक तथा आरक्षण विरोधी आन्दोलन हुए।

तमिलनाडु में 50 प्रतिशत, कर्नाटक में 48 प्रतिशत, केरल में 30 प्रतिशत कोटा निर्धारित किया गया जबकि पंजाब में केवल 5 प्रतिशत और राजस्थान, दिल्ली एवं उड़ीसा में यह व्यवस्था बिल्कुल भी नहीं है जन आन्दोलन का उदय जैसा कि स्पष्ट किया गया है कि विभिन्न व्यवस्थाओं से राज्य स्तर पर अनेक विवादों एवं हिंसक कार्यवाहियों का जन्म हुआ।

मण्डल आयोग की स्थापना-काका कालेलकर आयोग की सिफारिशों के भेदभाव को दूर करने के लिए मोरारजी देसाई की प्रधानता में जनता पार्टी की सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमन्त्री बिन्देश्वरी प्रसाद मण्डल की अध्यक्षता में 20 सितम्बर, 1978 को दूसरे पिछड़ी जाति आयोग का गठन किया। इस आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त पांच अन्य सदस्य रखे गए। इस आयोग का उद्देश्य सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की पहचान करके उनके उत्थान के लिए दिशा निर्धारित करना था। इस आयोग ने 31 दिसम्बर, 1980 को राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में कालेलकर रिपोर्ट की तरह तथ्यों के अभाव को स्वीकार किया गया, फिर भी आयोग की कार्यविधि में सुधार कहा जा सकता है जो कि काफ़ी खोजबीन पर आधारित थी।

मण्डल आयोग की सिफ़ारिशें-आयोग ने कुल 3743 पिछड़ी जातियों को वर्गीकृत किया जिसमें हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य धर्मों को भी शामिल किया गया। आयोग के अनुसार देश भर में इनकी संख्या 52 प्रतिशत है। मण्डल आयोग की मुख्य सिफ़ारिश यह है कि पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों, शिक्षण संस्थाओं के प्रवेश में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए।

आयोग ने इस सिफ़ारिश के पक्ष में यह तर्क दिया कि यदि 22.5 प्रतिशत जनसंख्या वाले हरिजनों एवं जन-जातियों के लिए उतनी ही आरक्षण की व्यवस्था हो सकती है तो 52 प्रतिशत पिछड़ी जातियों के लिए 27 प्रतिशत क्यों नहीं किया जा सकता। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जाति को पिछड़ेपन का आधार मानते हुए सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के लिए 11 मापदण्ड प्रस्तुत किए जिनको मुख्य रूप से तीन शीर्षकों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया

  • सामाजिक
  • शैक्षणिक
  • आर्थिक। इन. 11 मापदण्डों का वर्णन इस प्रकार हैं

1. सामाजिक मापदण्ड (Social Standard):
ऐसी जातियां या वर्ग जिनको सामाजिक तौर पर निम्न जातियों या वर्गों द्वारा पिछड़ा हुआ.माना जाता है।

(2) ऐसी जातियां या वर्ग जो मुख्य तौर पर शारीरिक श्रम पर निर्भर हैं।

(3) ऐसी जातियां या वर्ग जिनमें राज्य के औसत से 25 प्रतिशत से अधिक महिलाएं तथा 10 प्रतिशत से ज्यादा पुरुष ग्रामीण क्षेत्र में तथा कम-से-कम 10 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एवं 5 प्रतिशत से अधिक पुरुष शहरी क्षेत्र में 17 साल की आयु से पहले ही वैवाहिक पाए जाते हैं।

(4) ऐसी जातियां या वर्ग जहां कार्यों में महिलाओं की भागीदारी राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक है।

2. शैक्षणिक मापदण्ड (Educational Standard):
(1) ऐसी जातियां या वर्ग जहां 5 से 15 साल की आयु वर्ग में कभी स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या राज्य के अनुपात से कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक है।

(2) ऐसी जातियां या वर्ग जहाँ स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक है।

(3) ऐसी जातियां या वर्ग जिनमें 10वीं पास लोगों की संख्या राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत कम है।

3. आर्थिक मापदण्ड (Economic Standard):

  • ऐसी जातियां या वर्ग जिनकी पारिवारिक सम्पत्ति का मूल्य राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत कम है।
  • ऐसी जातियां या वर्ग जिनमें कच्चे घरों में रहने वाले परिवारों की संख्या राज्य के औसत से 25 प्रतिशत से अधिक है।
  • ऐसी जातियां या वर्ग जहां 50 प्रतिशत से अधिक परिवारों के लिए पीने के पानी का स्रोत आधा किलोमीटर से दूर है।
  • ऐसी जातियां या वर्ग जिनमें उपभोक्ता ग्रहण (Consumption Loan) लेने वाले परिवारों की संख्या राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक है।

मण्डल आयोग ने उपरोक्त मापदण्डों के आधार पर 1931 के जनगणना आंकड़ों से वर्ग समुदाय सम्बन्धी आंकड़े प्राप्त किए तथा उनको पांच प्रमुख शीर्षकों के अधीन इस प्रकार बांटा है
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इस प्रकार मण्डल आयोग ने कुल जनसंख्या के 52 प्रतिशत भाग को पिछड़े वर्ग के रूप में माना। इसमें हिन्दू तथा गैर-हिन्दू दोनों समुदायों के पिछड़े वर्गों को शामिल किया गया है। आयोग ने यह भी माना है कि धर्म परिवर्तन के बाद यह समह जाति रूढिवादिता तथा पिछडेपन से स्वतन्त्र नहीं हो सके हैं। आयोग ने इनके लिए जाति आधार की अपेक्षा अग्रलिखित आधारों का प्रयोग किया है

(A) धर्म परिवर्तन करने वाले सभी अछूत जातियां तथा
(B) कुछ हिन्दू जातियों को व्यावसायिकता के आधार पर भी पिछड़े वर्गों में शामिल किया। इन जातियों में बार्बर, धोबी, गुज्जर, लुहार आदि वर्णन योग्य हैं। आयोग ने सभी महिलाओं को भी पिछड़े वर्गों में रखा।

27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश:
मण्डल आयोग का यह मानना है कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने से दलितों की स्थिति में परिवर्तन आएगा। इसलिए आयोग ने पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग करते हुए संविधान की धारा 15 (4), 16 (4) तथा सर्वोच्च न्यायालय के उन सब निर्णयों का पालन किया है जिसके अनुसार देश में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं किया जा सकता। इसलिए आयोग ने पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत
आरक्षण की निम्नलिखित योजना प्रस्तुत की

  • अन्य पिछड़े वर्गों के उन सदस्यों को जो खुली प्रतियोगिता द्वारा नियुक्त किए गए हैं, 27 प्रतिशत आरक्षण के अन्तर्गत न माने जाएं।
  • आरक्षण की यही व्यवस्था पदोन्नति के लिए सभी स्तरों पर लागू मानी जाएगी।
  • आरक्षित पद यदि रिक्त है तो उसे तीन वर्ष तक आरक्षित रखा जाए। इसके बाद इसे गैर-आरक्षित कर दिया जाए।
  • अनुसूचित जातियों एवं जन-जातियों की तरह पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार को भी सीधी भर्ती के मामले में आय सीमा में छूट दी जाए।

मण्डल आयोग ने सिफारिश की थी कि पिछड़े वर्गों से सम्बन्धित 27 प्रतिशत आरक्षण की यह व्यवस्था सभी सार्वजनिक उद्यमों, सरकारी सहायता प्राप्त निजी उद्यमों, विश्वविद्यालयों तथा उनसे सम्बन्धित कॉलेजों में लागू की जानी चाहिए। आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि जिन राज्यों में 27 प्रतिशत से अधिक की व्यवस्था लागू की जा चुकी है उसे वैसा ही रखा जाए अर्थात् अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण कम-से-कम था।

आयोग का यह भी मानना था कि शिक्षा के माध्यम से पिछड़े वर्गों की सामाजिक दशा में सुधार किया जा सकता है। इसलिए इन वर्गों के विद्यालयों के लिए व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए तकनीकी एवं व्यावसायिक संस्थाओं में प्रशिक्षण की अधिक सुविधा होनी चाहिए।

पिछड़े वर्गों की सहायता के लिए आयोग ने वित्तीय संस्थाओं तथा सहकारी संस्थाओं की भी सिफ़ारिश की। इन वर्गों में औद्योगिक उद्यमों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकारों को भी अपने स्तर पर वित्तीय तथा तकनीकी संस्थाओं की स्थापना का सुझाव दिया। आयोग ने केन्द्र तथा राज्य सरकारों को वर्तमान भूमि सम्बन्धों को बदलने के लिए भूमि सुधार कानूनों के निर्माण तथा उसे लागू करने के लिए कहा।

आयोग ने यह भी सिफ़ारिश की कि आरक्षण की व्यवस्था को लागू करने के लिए एक पिछड़ा वर्ग विकास निगम (Backward Class Development Corporation) का निर्माण किया जाए। मण्डल आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की इस सिफ़ारिश से लोगों के दिलों में धड़कन बढ़ जाएगी, पर क्या इसी एक तथ्य के कारण एक बड़े सामाजिक हित के कार्य को रोक दिया जाए ?

प्रश्न 10.
ताड़ी विरोधी आन्दोलन क्या था ? इस आन्दोलन का आरम्भ क्यों हुआ?
उत्तर:
ताड़ी विरोधी आन्दोलन शराब माफिया के विरुद्ध चलाया गया एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन था। इस आन्दोलन का आरम्भ 1990 के दशक में आध्र-प्रदेश में हुआ। ताड़ी सामान्यतः देसी शराब को कहते हैं। इस प्रकार की शराब का निर्माण घरों में ही हो जाता है। ताड़ी के विरोध में आन्ध्र प्रदेश की महिलाओं ने आन्दोलन चलाया। उन्होंने इसके निर्माण एवं वितरण पर रोक लगाने की मांग की। इस आन्दोलन के प्रारम्भ होने के निम्नलिखित कारण थे

  • ताड़ी पीने के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही थी।
  • ताड़ी पीने के कारण लोगों की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति खराब हो रही थी, जिसका प्रभाव प्रतिदिन के कार्यों एवं खेती बाड़ी पर पड़ रहा था।
  • ताड़ी पीने के कारण पुरुष कोई कार्य नहीं करते थे, जिससे सारा कार्य महिलाओं को करना पड़ता था।
  • ताड़ी बनाने वाले लोगों को ताड़ी पीने के लिए प्रोत्साहित करते थे, और प्रायः कृषि भूमि कर्ज में चली जाती है।
  • ताड़ी के नशे में पुरुष घरों में महिलाओं एवं बच्चों से मारपीट करते थे। (6) ताड़ी के कारण घरों एवं गांवों में तनाव रहने लगा था।

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प्रश्न 11.
जन अथवा सामाजिक आन्दोलन भारतीय लोकतन्त्र को कैसे सुदृढ़ बनाते हैं ? इनकी क्या सीमाएं हैं ?
उत्तर:
जन अथवा सामाजिक आन्दोलन भारतीय लोकतन्त्र को सुदृढ़ बनाते हैं। जन आन्दोलन अथवा सामाजिक आन्दोलन का अर्थ केवल सामूहिक कार्यवाही ही नहीं होता, बल्कि आन्दोलन का एक काम सम्बन्धित लोगों को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाना भी है। भारत में चलने वाले विभिन्न सामाजिक आन्दोलनों ने लोगों को इस सम्बन्ध में जागरूक बनाया है, तथा लोकतन्त्र को मज़बत किया है।

भारत में समय-समय ताड़ी विरोधी आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन तथा सरदार सरोवर परियोजना से सम्बन्धित आन्दोलन चलते रहते हैं। इन आन्दोलनों ने कहीं-कहीं भारतीय लोकतन्त्र को मज़बूत ही किया है। इन सभी आन्दोलनों का उद्देश्य भारतीय दलीय राजनीति की समस्या को दूर करना था।

सामाजिक आन्दोलन ने उन वर्गों के सामाजिक-आर्थिक हितों को उजागर किया, जोकि समकालीन राजनीतिक द्वारा नहीं उभारे जा रहे थे। इस प्रकार सामाजिक आन्दोलनों ने समाज के गहरे तनाव और जनता के क्रोध को एक सकारात्मक दिशा देकर भारतीय लोकतन्त्र को सुदृढ़ किया है। इसके साथ-साथ सक्रिय राजनीति भागेदारी के नये-नये रूपों के प्रयोगों ने भी भारतीय लोकतन्त्र के जनाधार को बढ़ाया है।

ये आन्दोलन जनसाधारण की उचित मांगों को उभार कर सरकार के सामने रखते हैं तथा इस प्रकार जनता के एक बड़े भाग को अपने साथ जोड़ने में सफल रहते हैं। अत: जिस आन्दोलन में इतनी बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं, उसको समाज की स्वीकृति भी प्राप्त होती है तथा इससे देश में लोकतन्त्र को मजबूती भी मिलती है।

प्रश्न 12.
दलित पैंथर्स की गतिविधियों एवं सफलताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
दलित पैंथर्स की स्थापना सन 1972 में महाराष्ट्र में हई। दलित पैंथर्स दलित यवाओं का एक संगठन था। दलित पँथर्स नामक संगठन में ज्यादातर शहर की मलिन बस्तियों में रहने वाले युवा शामिल थे। दलित पैंथर्स के निम्नलिखित उद्देश्य थे–

  • जाति आधारित असमानता को समाप्त करना इस संगठन का मुख्य उद्देश्य था।
  • आरक्षण के कानूनों को लागू करना।
  • सामाजिक न्याय की स्थापना करना।
  • छुआछूत को पूरी तरह समाप्त करना।

गतिविधियां एवं सफलताएं-महाराष्ट्र के अलग-अलग क्षेत्रों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार से लड़ना दलित पैंथर्स की मुख्य गतिविधि थी। इस संगठन के बार-बार मांग करने पर 1989 में एक कानून बनाया गया, जिसके अन्तर्गत दलित पर अत्याचार करने पर कठोर सजा का प्रावधान किया गया।

इस संगठन का व्यापक विचारात्मक एजेण्डा जाति प्रथा को समाप्त करना तथा भूमिहीन, गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मज़दूर और दलित सहित सभी वंचित वर्गों का एक संगठन बनाना था। इस दौरान अनेक आत्मकथाएं एवं साहित्यिक रचनाएं लिखी गईं। दलितों के दबे-कुचले जीवन के अनुभव इन रचनाओं में अंकित थे। इस रचनाओं से मराठी भाषा के साहित्य पर बड़ा प्रभाव पड़ा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकप्रिय आन्दोलन का क्या अर्थ है ? दल आधारित एवं गैर-दल आधारित आन्दोलन की व्याख्या करें।
उत्तर:
लोकप्रिय आन्दोलन का अर्थ यह है कि एक आन्दोलन के साथ अधिक-से-अधिक लोगों को जुड़ना। एक आन्दोलन के साथ जितने अधिक लोग जुड़ते जायेंगे, वह आन्दोलन उतना ही अधिक लोकप्रिय होता जायेगा। जो आन्दोलन किसी संगठित दल द्वारा चलाया जाए, उसे दल आधारित आन्दोलन कहा जाता है तथा जो आन्दोलन बिना किसी दल के द्वारा चलाया जाए, उसे गैर-दल आधारित आन्दोलन कहा जाता है। गुजरात आन्दोलन एवं बिहार आन्दोलन दल आधारित आन्दोलन माने जाते हैं तथा चिपको आन्दोलन एवं नर्मदा बचाओ गैर-दल आधारित आन्दोलन माने जातें हैं।

प्रश्न 2.
किन्हीं चार किसान आन्दोलनों का वर्णन करें।
उत्तर:
1. तिभागा आन्दोलन-तिभागा आन्दोलन 1946-47 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों एवं बंटाईदारों का संयुक्त प्रयास था। इस आन्दोलन का मुख्य कारण भीषण अकाल था।

2. तेलंगाना आन्दोलन-तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी किसान आन्दोलन था। क्रान्तिकारी किसानों ने पांच हज़ार गुरिल्ला सैनिक तैयार किए और ज़मीदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हो गया।

3. नक्सलबाड़ी आन्दोलन-नक्सलबाड़ी आन्दोलन 1967 में साम्यवादी सरकार के समय शुरू हुआ। धीरे-धीरे यह आन्दोलन पंजाब, उत्तर-प्रदेश तथा काश्मीर में भी फैल गया।

4. आधुनिक आन्दोलन-1980 के दशक में महाराष्ट्र, गुजरात तथा पंजाब के किसानों ने कपास के दामों को कम किए जाने के विरोध में आन्दोलन किया। 1987 में किसानों द्वारा गुजरात विधानसभा का घेराव किये जाने के कारण पुलिस ने किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए।

प्रश्न 3.
महिला कल्याण के लिए संसद् द्वारा पारित किन्हीं दो अधिनियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में महिलाओं की स्थिति सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से अत्यन्त पिछड़ी हुई है। महिलाओं के कल्याण के लिए स्वतन्त्रता से पूर्व भी समाज सुधारकों तथा राष्ट्रीय नेताओं ने अनेक सराहनीय प्रयास किए। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज तथा अनेक सामाजिक आन्दोलनों द्वारा महिलाओं के प्रति अन्याय का विषय प्रमुखता से उठाया गया।

19वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम (1829), विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856), सिविल मैरिज अधिनियम (1872) आदि अनेक कदम उठाए गए। स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं के कल्याण के लिए अनेक कानून बनाए गए जिनमें तीन कानूनों का वर्णन इस प्रकार हैं-

  • हिन्दू विवाह अधिनियम (1955),
  • हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (1956),
  • दहेज निषेध अधिनियम (1961),
  • गर्भपात अधिनियम (1971), बाल-विवाह पर रोक (संशोधन अधिनियम) 1978,
  • दहेज निषेध (संशोधन) अधिनियम (1984) आदि।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय महिला आयोग पर नोट लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए की गई है। इस आयोग में एक अध्यक्ष और 5 अन्य सदस्य होते हैं। अध्यक्ष की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है। वर्तमान समय में श्रीमती गिरिजा व्यास राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष हैं। अन्य सदस्यों की नियुक्ति ऐसे व्यक्तियों में से की जाती है, जो कानून के जानकार हों तथा प्रशासनिक योग्यता रखते हों, तथा महिलाओं के कल्याण के इच्छुक हों। आयोग का एक सचिव होता है, जिसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार करती है। आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 3 साल से अधिक नहीं हो सकता। केन्द्र सरकार किसी सदस्य को समय से पहले भी हटा सकती है।

प्रश्न 5.
भारत में महिलाओं की सक्षमता के लक्ष्य को पूरा करने में राष्ट्रीय महिला आयोग की भूमिका बताइए।
उत्तर:
भारत में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए 1990 में संसद् ने एक कानून बनाया जो कि 31 जनवरी, 1992 को अस्तित्व में आया। इस कानून के तहत महिला राष्ट्रीय आयोग (National Woman Commission) की स्थापना की गई। महिला राष्ट्रीय आयोग को बहुत अधिक और व्यापक कार्य दिये गए हैं। महिला राष्ट्रीय आयोग वे सभी कार्य करता है, जो महिलाओं की उन्नति एवं अधिकार से जुड़े हुए हैं।

यह आयोग महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए संसद् को कानून बनाने के लिए उस पर दबाव डालती है। संसद् द्वारा पास किये गए ऐसे कानूनों की आयोग समीक्षा करता है, जो महिलाओं के अधिकारों से सम्बन्धित हैं। यह आयोग महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की जांच करता है, तथा दोषी को दण्ड दिलवाने की सिफारिश करता है। इसके साथ-साथ यह आयोग महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए प्रयासरत रहता है।

प्रश्न 6.
‘ताड़ी विरोधी आन्दोलन’ के कोई चार प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  • ताड़ी विरोधी आन्दोलन के कारण महिलाओं में काफ़ी जागरूकता फैली।
  • महिलाएं अब घरेलू हिंसा के मुद्दे पर खुलकर बोलने लगीं।
  • इस आन्दोलन के कारण दहेज प्रथा, कार्य स्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के मामले मुख्य मुद्दे बन गए।
  • आन्दोलन के कारण लैंगिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित व्यक्तिगत एवं सम्पत्ति कानूनों की मांग की जाने लगी।

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प्रश्न 7.
महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
“यत्र नार्यास्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता” अर्थात् जहां नारी की उपासना होती है वहां देवताओं का निवास होता है। नारी के विषय में इसी प्रकार की अनेक गर्वोक्तियां अनादि काल से सुनाई पड़ रही हैं। परन्तु वास्तव में समाज में नारी की स्थिति इसके सर्वथा विपरीत है। प्रत्येक समाज का स्वरूप इस प्रकार का बना हुआ है कि इसमें पुरुष की प्रधानता बनी रहे।

ऐसी स्थिति में स्त्री के विषय में कहा जाता है कि वह दोहरी दासता की शिकार है। एक दासता पुरातन रूढ़ियों व परम्पराओं की ओर दूसरी पुरुष की। जैसे ही नारी के कदम घर की दहलीज़ से बाहर निकलते हैं, सामाजिक बाधाएं उस पर हावी हो जाती हैं। विशेषतः मुस्लिम समाज में पर्दा प्रथा को स्वीकार किया गया है।

कट्टरपन्थी यह तय करते हैं कि विशेष समुदाय के लोग क्या पहनें और क्या खाएं तथा कैसे अपने उत्सव मनाएं। मुसलमानों में स्त्रियों को पर्दा करने अथवा बुर्का ओढ़ने के नियमों को कट्टरता से पालन करना पड़ता है। ऐसा न करने पर उन्हें कठोर दण्ड का भागीदार बनाना पड़ता है। भेदभाव के कारण स्त्रियों को समुचित शिक्षा व्यवस्था भी नहीं दिलाई जाती जिसके परिणामस्वरूप स्त्रियां निरक्षर रह जाती हैं।

विशेष रूप से विकासशील राज्यों में महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या अशिक्षा है। 1991 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार संसार की 33.6 प्रतिशत महिलाएं निरक्षर थीं। 1991 में की गई जनगणना के आंकड़े भी दर्शाते हैं कि भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की निरक्षरता दर अधिक है। अशिक्षा के कारण स्त्रियां न तो अपने अधिकारों को समझ पाती हैं और न ही उनकी रक्षा कर सकती हैं। इसलिए वे अनवरत शोषण की शिकार बनी रहती हैं।

प्रश्न 8.
भारत में किसान आन्दोलन’ की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • किसान आन्दोलन के कारण भारत में किसानों की स्थिति अच्छी एवं मज़बूत हुई।
  • किसान आन्दोलन पूर्ण रूप से संगठित नहीं थे।
  • बड़े-बड़े जमीदारों ने अपने आप को किसान नेता के रूप में स्थापित करके अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति की।
  • किसान आन्दोलन में स्थायित्व का अभाव पाया जाता है।

प्रश्न 9.
महिला सशक्तिकरण हेतु भारतीय संविधान में दिए गए विभिन्न अनुच्छेदों में से किन्हीं चार अनुच्छेदों का वर्णन करें।
अथवा
भारत में महिला सशक्तिकरण हेतु संवैधानिक प्रावधान का उल्लेख करें।
उत्तर:
(1) संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत महिलाओं को भी सभी नागरिकों सहित कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण प्राप्त है।

(2) अनुच्छेद 15 के अनुसार भेदभाव की मनाही की गई है। इसका अभिप्राय है कि राज्य महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। अनुच्छेद 15 के अन्तर्गत ही यह व्यवस्था की गई है कि राज्य महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए विशेष कदम उठा सकता है।

(3) अनुच्छेद 39 (क) के अनुसार राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि सभी स्त्री-पुरुषों को समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त हों।

(4) अनुच्छेद 39 (घ) के अनुसार स्त्रियों और पुरुषों को समान काम के लिए समान वेतन मिले।

प्रश्न 10.
‘चिपको आन्दोलन’ करने वालों की मुख्य मांगें क्या थी ?
उत्तर:

  • जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को न दिया जाए।
  • स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण होना चाहिए।
  • सरकार लघु उद्योगों के लिए कम कीमत पर सामग्री उपलब्ध कराए।
  • सरकार मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी की व्यवस्था करे।

प्रश्न 11.
टिहरी बांध परियोजना के विरोध में चलाए गए आन्दोलनों पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध चलने वाला आन्दोलन भारत का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला आन्दोलन माना जाता है। टिहरी बांध परियोजना का विरोध करने के लिए लोगों ने स्वतन्त्रता सेनानी वीरेन्द्र दत्त सखलानी के नेतृत्व में ‘टिहरी बांध परियोजना विरोधी संघर्ष समिति’ का निर्माण किया। टिहरी बांध से टिहरी शहर के पानी में डूबने का खतरा था। समाज सेवी सुन्दर लाल बहुगुणा ने इस परियोजना का विरोध करने के लिए आमरण अनशन किया तथा प्रधानमन्त्री द्वारा इस योजना की समीक्षा के आश्वासन पर ही उन्होंने अपना आमरण अनशन तोड़ा था।

प्रश्न 12.
मण्डल आयोग के बारे में क्या जानते हैं ? इसकी किन्हीं दो सिफ़ारिशों को लिखिए।
उत्तर:
1 जनवरी, 1979 को जनता पार्टी की सरकार ने मण्डल आयोग का गठन किया। इस आयोग के चार सदस्य थे और बिहार के भूतपूर्व मुख्यमन्त्री बी० पी० मण्डल इसके अध्यक्ष थे। इस आयोग का कार्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप वर्गों की पहचान करना तथा उनके विकास के लिए सुझाव देना था। मण्डल कमीशन ने 13 दिसम्बर, 1980 को अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की। मण्डल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 3743 पिछड़ी जातियों की पहचान की। मण्डल आयोग की मुख्य सिफ़ारिशें निम्नलिखित हैं

  • सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए।
  • अन्य पिछड़े वर्गों (OBCs) के कल्याण के लिए बनाए गए कार्यक्रम के लिए धन केन्द्रीय सरकार को देना चाहिए।
  • भूमि सुधार शीघ्र किए जाएं ताकि छोटे किसानों को अमीर किसानों पर निर्भर न रहना पड़े।
  • अन्य पिछड़े वर्गों को लघु उद्योग लगाने के लिए सहायता दी जाए तथा उन्हें प्रोत्साहित किया जाए।
  • अन्य पिछड़े वर्गों के लिए विशेष शिक्षा योजनाएं लागू की जाएं।

प्रश्न 13.
आरक्षण नीति के पक्ष में कोई चार तर्क दें।
उत्तर:
1. आर्थिक उन्नति में सहायक-आरक्षण की नीति का समर्थन करने वालों का मत है कि इससे समाज के ग़रीब वर्गों के लिए वर्षों से रुके हुए व्यवसाय के अवसर खुलेंगे, जिससे उनकी आर्थिक उन्नति होगी।

2. सामाजिक सम्मान में वृद्धि-आरक्षण की नीति के फलस्वरूप कमजोर वर्ग के लोग सार्वजनिक सेवा के किसी भी उच्च पद को प्राप्त करने में सफल हो सकेंगे, जिससे उनके सामाजिक सम्मान में वृद्धि होगी।

3. राजनीतिक चेतना में वृद्धि-कमजोर वर्गों के शिक्षित लोग अब अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति पहले से अधिक जागरूक हैं। यह सब साक्षरता की व्यवस्था लागू करने के परिणामस्वरूप ही सम्भव हो पाया है।

4. राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि-आरक्षण की नीति के कारण समाज के उच्च वर्गों के साथ-साथ निम्न वर्गों को भी शासन प्रणाली और राजनीतिक व्यवस्था में अपनी भागीदारी निभाने का अवसर मिलता है।

प्रश्न 14.
आरक्षण के विरोध में कोई चार तर्क दें।
उत्तर:
1. जातिवाद को बढ़ावा-आरक्षण आर्थिक आधार पर न होकर जातिगत आधार पर तय किया गया है। इसलिए इस व्यवस्था का लाभ उठाने के लिए जातिवाद को बहुत अधिक बढ़ावा मिला है।

2. आरक्षण का लाभ सभी लोगों को नहीं मिला-आरक्षण का लाभ अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के सभी लोगों को नहीं मिल पाया है। इसका लाभ इन जातियों के एक छोटे से वर्ग ने उठाया है।

3. निर्भरता को बढ़ावा-आरक्षण के कारण अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों की आत्म निर्भरता में कमी हई है। ये जातियां स्वेच्छा से अपनी उन्नति करने की अपेक्षा आरक्षण को सीढी बनाकर ऊपर उठना चाहते हैं। ये जातियां आरक्षण के बिना अपना विकास सम्भव नहीं मानती हैं।

4. समानता के सिद्धान्त के विरुद्ध-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है। परन्तु आरक्षण की व्यवस्था इस समानता के विरुद्ध है।

प्रश्न 15.
दलित पैंथर्स कौन थे ? उनका उद्देश्य क्या था ?
अथवा
दलित पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए ?
उत्तर:
दलित पैंथर्स दलित युवाओं का एक संगठन था। दलित पैंथर्स नामक संगठन में ज्यादातर शहर की मलिन बस्तियों में रहने वाले युवा शामिल थे। दलित पैंथर्स के निम्नलिखित उद्देश्य थे

  • जाति आधारित असमानता को समाप्त करना इस संगठन का मुख्य उद्देश्य था।
  • आरक्षण के कानूनों को लागू करना।
  • सामाजिक न्याय की स्थापना करना।
  • छुआछूत को पूरी तरह समाप्त करना।

प्रश्न 16.
चिपको आन्दोलन के विभिन्न पहलू बताइए।
उत्तर:
चिपको आन्दोलन के निम्नलिखित पहलू सामने आए

(1) चिपको आन्दोलन का एकदम नया पहलू यह था कि इसमें महिलाओं ने सक्रिय भागेदारी की।

(2) महिलाओं ने शराबखोरी की लत के खिलाफ भी आवाज़ उठाई।

(3) आन्दोलन के कारण सरकार ने अगले 15 सालों के लिए हिमालयी क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी, ताकि बनाच्छादन फिर से ठीक स्थिति में लाया जा सके।

(4) चिपको आन्दोलन सत्तर के दशक और उसके बाद के वर्षों में देश के विभिन्न भागों में शुरू हुए कई जन आन्दोलनों का प्रतीक बन गया।

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प्रश्न 17.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन क्या था ? इसके विरुद्ध क्या आलोचना की गई है ?
उत्तर:
नर्मदा बांध परियोजना के विरुद्ध नर्मदा बचाओ आन्दोलन चलाया गया। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण आन्दोलन नर्मदा बचाओ आन्दोलन को माना जाता है। इस आन्दोलन को चलाने में मेधा पाटकर, बाबा आमटे तथा सुन्दर लाल बहुगुणा शामिल हैं। आन्दोलन के समर्थकों की मांग है कि बांध परियोजना के पूर्ण होने पर कई लाख लोग बेघर हो जाएंगे, अतः सरकार इनके पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था करे।

परन्तु नर्मदा बचाओ आन्दोलन को सफलता के साथ-साथ कुछ आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। आलोचकों के अनुसार आन्दोलन का नकारात्मक रुख विकास प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता तथा आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। इसी कारण यह आन्दोलन मुख्य विपक्षी दलों के बीच अपना महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं बना पाया है।

प्रश्न 18.
‘सूचना के अधिकार’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सूचना का अर्थ यह है, कि नागरिकों को ज्ञात होना चाहिए कि सरकार उनके कल्याण के लिए क्या-क्या योजनाएं बना रही हैं। किस योजना पर कितना धन एवं क्यों खर्च कर रही है। इस प्रकार की जानकारी जब हम सरकार से प्राप्त करते हैं, तो उसे सूचना कहते हैं। सन् 2005 में पारित सूचना के अधिकार के कानून में यह प्रावधान किया गया है, कि कोई भी नागरिक सलाह, विचार, ई-मेल, अभिलेख, दस्तावेज़, प्रेस विज्ञापन तथा मीडिया द्वारा प्रसारित आंकड़ों से ऐसी प्रत्येक सूचना सरलता से प्राप्त कर सकते हैं, जिस तक कि किसी सार्वजनिक अधिकारी की कानूनी पहुंच हो। सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदनकत्तो को 10 रु. के मामूली शुल्क के साथ दस्तावेजों की प्रतिलिपि अथवा सी० डी० जन सूचना अधिकारी को देनी होगी।

प्रश्न 19.
जन आन्दोलन की कोई चार विशेषताएं लिखिए।
अथवा
जन आन्दोलनों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • जन आन्दोलनों ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे।
  • जन आन्दोलन सामाजिक समूहों के लिए अपनी बात उचित ढंग से रखने के बेहतर मंच बन कर उभरे।
  • इन आन्दोलनों ने जनता के क्रोध एवं तनाव को एक सार्थक दिशा देकर लोकतन्त्र को मज़बूत किया।
  • इन आन्दोलनों ने भारतीय लोकतन्त्र के जनाधार को बढ़ाया है।

प्रश्न 20.
सूचना के अधिकार की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर:

  • वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना-सूचना के अधिकार से वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना होती है।
  • भ्रष्टाचार की समाप्ति सूचना के अधिकार से प्रशासन में से भ्रष्टाचार की समाप्ति होती है।
  • कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी-सूचना के अधिकार से लोगों को कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी मिलती है।
  • कार्यकुशलता में वृद्धि–सूचना के अधिकार से कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय महिला आयोग के कोई चार कार्य लिखें।
अथवा
राष्ट्रीय महिला आयोग के कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय महिला आयोग संसद् द्वारा पास किए गए उन कानूनों की समीक्षा करता है जो महिलाओं के अधिकारों से सम्बन्धित है।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की जांच करता है तथा दोषी को दण्ड दिलवाने की सिफ़ारिश करता है।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए प्रयासरत रहता है।
  • महिलाओं से सम्बन्धित किसी भी मामले के बारे में और विशेष करके जिन कठिनाइयों में महिलाएं काम करती हैं, उनके बारे में सरकार को नियतकालीन रिपोर्ट देना।

प्रश्न 22.
भारतीय किसान यूनियन की मुख्य माँगें क्या थी ?
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन की मुख्य माँगें निम्नलिखित थीं

  • भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूँ के सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोत्तरी की मांग की।
  • कृषि उत्पादों के अन्तर्राज्जीय आवाजाही पर लगी पाबंदियों को हटाने की मांग की।
  • समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने की मांग।
  • किसानों के बकाया कर्ज माफ करने तथा किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने की मांग।

प्रश्न 23.
महिला सशक्तिकरण वर्ष 2001 की मुख्य घोषणाएं बताएं।
उत्तर:

  • महिलाओं को आर्थिक पक्ष से सुदृढ़ बनाने के लिए राष्ट्रीय महिला कोष गठित किया जाएगा।
  • महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के लिए ‘स्वशक्ति योजना’ लागू की जाएगी।
  • आपदाग्रस्त महिलाओं के पुनर्वास के लिए ‘स्वधार योजना’ चलाई जाएगी।
  • महिलाओं को संसद एवं राज्य की विधानसभाओं में 33% स्थान आरक्षित करने के प्रयत्न किये जायेंगे।

प्रश्न 24.
महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के कारण बताइये।
उत्तर:

  • महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त न होना।
  • महिलाओं की आर्थिक स्थिति निम्न स्तर की होना एवं इसके लिए पुरुषों पर निर्भर होना।
  • सामाजिक स्तर पर महिलाओं का कमजोर होना।
  • महिलाओं को राजनीतिक अधिकार प्राप्त न होना।

आत लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
कृषक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जो आन्दोलन कृषकों के हितों की पूर्ति के लिए चलाए जाते हैं, उन्हें कृषक आन्दोलन कहते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है, अत: यहां पर किसानों से सम्बन्धित दबाव समूहों द्वारा किसानों को अपने हितों की पूर्ति के लिए जागरूक करके आन्दोलन करते रहते हैं। उदाहरण के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में तिभागा आन्दोलन, तेलंगाना आन्दोलन, नक्सलवादी आन्दोलन चलाए गए।

प्रश्न 2.
किन्हीं दो किसान आन्दोलनों के नाम लिखें।
उत्तर:
1.तिभागा आन्दोलन-तिभागा आन्दोलन 1946-1947 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों एवं बंटाईदारों का संयुक्त प्रयास था। इस आन्दोलन का मुख्य कारण भीषण अकाल था।

2. तेलंगाना आन्दोलन तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी आन्दोलन था। क्रान्तिकारी किसानों ने पांच हज़ार गुरिल्ला सैनिक तैयार किए और ज़मींदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हो गया।

प्रश्न 3.
महिला सशक्तिकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण से अभिप्राय महिलाओं को अपने व्यक्तित्व के विकास के पूर्ण अवसर उपलब्ध करवाना है, ताकि वे समाज में पुरुषों के समान सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण विश्वास के साथ कार्य कर सके। महिला सशक्तिकरण के लिए यह अनिवार्य है कि महिलाओं को उनकी वर्तमान उपेक्षित स्थिति से मुक्ति दिलाई जाए। उन्हें आर्थिक क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाया जाए। सामाजिक और राजनीतिक जीवन में उन्हें आगे बढ़ने के अवसर दिए जाएं। इन सबसे अधिक महिलाओं को भी इंसान समझा जाए और उन्हें समाज में अपनी भमिका निभाने का मौका दिया जाए।

प्रश्न 4.
मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत महिलाओं के कल्याण के बारे में क्या व्यवस्थाएं की गई हैं ?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत महिलाओं के कल्याण के बारे में निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई हैं

  • संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत महिलाओं को भी सभी नागरिकों सहित कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण प्राप्त है।
  • अनुच्छेद 15 के अनुसार भेदभाव की मनाही की गई है। इसका अभिप्राय है कि राज्य महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता।
  • अनुच्छेद 15 के अन्तर्गत ही यह व्यवस्था की गई है कि राज्य महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए विशेष कदम उठा सकता है।

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प्रश्न 5.
राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में महिलाओं के कल्याण सम्बन्धी क्या व्यवस्थाएं की गई हैं ?
उत्तर:
राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में महिलाओं के कल्याण के विषय में निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई हैं

  • राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि सभी स्त्री-पुरुषों को समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त हों (अनुच्छेद 39)
  • स्त्रियों और पुरुषों के समान काम के लिए समान वेतन मिले। (अनुच्छेद 39)

प्रश्न 6.
महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति, 2001 के दो मुख्य उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति, 2001 के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं

  • न्याय प्रणाली को बेहतर बनाकर महिलाओं के विरुद्ध होने वाले भेदभाव की मनाही।
  • सकारात्मक आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों द्वारा ऐसा वातावरण बनाना जिसमें महिलाएं अपनी पूर्ण क्षमता की पहचान कर सकें और उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास हो सके।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय महिला आयोग के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय महिला आयोग संसद् द्वारा पास किए गए उन कानूनों की समीक्षा करता है जो महिलाओं के अधिकारों से सम्बन्धित है।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की जांच करता है तथा दोषी को दण्ड दिलवाने की सिफ़ारिश करता है।

प्रश्न 8.
आप महिला सशक्तिकरण के लिए कौन-कौन से सुझाव देंगे ?
उत्तर:
(1) महिलाओं के लिए उचित शिक्षा व्यवस्था की जाए ताकि उनका मानसिक विकास हो सके। इससे उनका दृष्टिकोण व्यापक होगा और वे अपने अधिकारों के प्रति सजग होंगी।

(2) महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव किया जाना चाहिए। महिलाएं भी पुरुषों के समान क्षमतावान और सूझबूझ रखती हैं। महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए अवसर प्रदान किए जाने चाहिएं।

प्रश्न 9.
टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध-चलाए गए आन्दोलन पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध चलने वाला आन्दोलन भारत का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला | माना जाता है। टिहरी बांध परियोजना का विरोध करने के लिए लोगों ने स्वतन्त्रता सेनानी वीरेन्द्र दत्त सखलानी में टिहरी बांध परियोजना विरोधी संघर्ष समिति’ का निर्माण किया। टिहरी बांध से टिहरी शहर के पानी में का खतरा था। समाजसेवी सुन्दर लाल बहुगुणा ने इस परियोजना का विरोध करने के लिए आमरण अनशन किया तथा प्रधानमन्त्री द्वारा इस योजना की समीक्षा के आश्वासन पर ही उन्होंने अपना आमरण अनशन तोड़ा था।

प्रश्न 10
चिपको आन्दोलन पर एक नोट लिखें।
अथवा
चिपको आन्दोलन का आरम्भ कब और किस राज्य से हआ ?
उत्तर:
चिपको आन्दोलन 1972 में हिमालय क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। चिपको आन्दोलन का अर्थ है-पेड़ से चिपक जाना अर्थात् पेड़ को आलिंगनबद्ध कर लेना। जब एक ठेकेदार ने गांव के समीप जंगल में अपने कर्मचारियों को पेड़ काटने के लिए भेजा तो गांव की महिलाएं आकर पेड़ों से चिपक गई। जिसके कारण कर्मचारी पेड़ कहीं काट सके। पर्यावरण संरक्षण वे सम्बन्धित इस आन्दोलन का भारत में विशेष स्थान है।

प्रश्न 11.
‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
नर्मदा बांध परियोजना के विरुद्ध नर्मदा बचाओ आन्दोलन चलाया गया। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण आन्दोलन नर्मदा बचाओ आन्दोलन को माना जाता है। इस आन्दोलन को चलाने में मेधा पाटकर, बाबा आमटे तथा सुन्दर लाल बहुगुणा शामिल हैं। आन्दोलन के समर्थकों की मांग है कि बांध परियोजना के पूर्ण होने पर कई लाख लोग बेघर हो जाएंगे, अतः सरकार इनके पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था करें।

प्रश्न 12.
मण्डल आयोग के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
मण्डल आयोग ने राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट कब पेश की थी?
उत्तर:
मण्डल आयोग की स्थापना जनता पार्टी की सरकार ने 1979 में की थी। इस आयोग का कार्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों की पहचान करना तथा उनके विकास के लिए सुझाव देना था। मण्डल आयोग ने 13 दिसम्बर, 1980 को अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की। मण्डल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 3743 पिछड़ी जातियों की पहचान की।

प्रश्न 13.
‘मण्डल कमीशन’ की किन्हीं दो सिफ़ारिशों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लिए 27% आरक्षण होना चाहिए।
  • अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए बनाए गए कार्यक्रमों के लिए धन केन्द्र सरकार को देना चाहिए।

प्रश्न 14.
‘अन्य पिछड़े वर्ग का सम्पन्न तबका’ (Creamy Layer) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सम्पन्न तबका पिछड़े वर्गों में वह वर्ग है जो सामाजिक आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से काफ़ी सम्पन्न है और जो राजनीतिक कारणों से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का लाभ उठा रहा है। इस शब्द का प्रयोग सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में एक निर्णय में किया था जिसमें कहा गया कि यह वर्ग यदि सामाजिक आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न है तो उसे पिछड़ा वर्ग से अलग किया जाए क्योंकि इसे पिछड़ा वर्ग नहीं माना जा सकता।

प्रश्न 15.
मण्डल आयोग की सिफ़ारिशों को कब लागू किया गया और किस प्रकार सरकार ने लागू किया ?
उत्तर:
मण्डल आयोग की सिफारिशों को राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने 8 अगस्त, 1990 को लागू करने के लिए आदेश जारी किया।

प्रश्न 16.
एन० एफ० एफ० का पूरा नाम लिखिए। मछुआरों के जीवन के लिए एक बड़ा संकट कैसा आ खड़ा हुआ है ?
उत्तर:
एन० एफ० एफ० का पूरा नाम नेशनल फिशवर्कर्स फोरम है। केन्द्र सरकार की एक नीति के अन्तर्गत व्यावसायिक जहाजों को गहरे समुद्र में मछली मारने की इजाजत दी गई थी, जिसमें मछुआरों के जीवन के लिए एक बड़ा संकट खड़ा हो गया।

प्रश्न 17.
जन आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जन आन्दोलन से अभिप्राय आन्दोलन के साथ अधिक लोगों का जुड़ना ताकि वे अपने सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकें। जन आन्दोलन के साथ जितने अधिक लोग जुड़ते जाएंगे, वह आन्दोलन उतना ही अधिक लोकप्रिय होता जाएगा। जन आन्दोलन भारतीय लोकतन्त्र को सुदृढ़ बनाते हैं। जन आन्दोलन का अर्थ केवल सामूहिक कार्यवाही ही नहीं होता, बल्कि आन्दोलन का एक काम सम्बन्धित लोगों को अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक भी बनाता है। भारत में चलने वाले विभिन्न सामाजिक आन्दोलनों ने लोगों को इस सम्बन्ध में जागरूक बनाया है, तथा लोकतन्त्र को मज़बूत किया है।

प्रश्न 18.
‘चिपको आन्दोलन’ का मुख्य उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
‘चिपको आन्दोलन’ का मुख्य उद्देश्य वृक्षों (वनों) की रक्षा करना था।

प्रश्न 19.
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित किन्हीं दो आन्दोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • चिपको आन्दोलन।
  • नर्मदा बचाओ आन्दोलन।

प्रश्न 20.
हरियाणा में शराबबन्दी कब लागू हुई थी ?
उत्तर:
हरियाणा में शराबबन्दी सन् 1996 में लागू हुई थी।

प्रश्न 21.
किस स्थान पर हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ आन्दोलन चला ?
उत्तर:
हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ तमिलनाडु में आन्दोलन चलाया गया।

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प्रश्न 22.
महाराष्ट्र में दलितों के हितों की रक्षा के लिये कौन-सा संगठन बना ?
उत्तर:
महाराष्ट्र में दलितों के हितों की रक्षा के लिये दलित पैन्थर्स नाम का संगठन बना।

प्रश्न 23.
किन्हीं दो किसान आन्दोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • तिभागा आन्दोलन,
  • तेलगांना आन्दोलन।

प्रश्न 24.
‘सूचना के अधिकार’ का आन्दोलन कब शुरू हुआ तथा इसका नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर:
‘सूचना के अधिकार’ का आन्दोलन सन् 1990 में शुरू हुआ तथा प्रारम्भ में इसका नेतृत्व मजदूर किसान शक्ति संगठन ने किया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. निम्न में से कौन-सा किसान आन्दोलन माना जाता है ?
(A) तिभागा आन्दोलन
(B) तेलंगाना आन्दोलन
(C) नक्सलवादी आन्दोलन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

2. अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना कब की गई ?
(A) 1920
(B) 1924
(C) 1936
(D) 1930
उत्तर:
(C) 1936

3. वर्तमान में लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए कितने स्थानों का आरक्षण किया गया है ?
(A) 69
(B) 84
(C) 40
(D) 89
उत्तर:
(B) 84

4. महिला आन्दोलन किससे सम्बन्धित है ?
(A) पुरुषों से
(B) महिलाओं से
(C) बच्चों से
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(B) महिलाओं से।

5. निम्न में से कौन-सा पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित आन्दोलन माना जाता है ?
(A) चिपको आन्दोलन
(B) नर्मदा बचाओ आन्दोलन
(C) टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध आन्दोलन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

6. निम्न में से कौन पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित है ?
(A) सुन्दर लाल बहुगुणा
(B) मेधा पाटकर
(C) बाबा आमटे
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

7. मण्डल आयोग में कितने सदस्य थे ?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच।
उत्तर:
(C) चार।

8. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद महिलाओं के कल्याण से सम्बन्धित है ?
(A) अनुच्छेद 39
(B) अनुच्छेद 10
(C) अनुच्छेद 30
(D) अनुच्छेद 54
उत्तर:
(A) अनुच्छेद 39

9. राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग का गठन कब किया गया ?
(A) सन् 1993 में
(B) सन् 1992 में
(C) सन् 1991 में
(D) सन् 1990 में।
उत्तर:
(A) सन् 1993 में।

10. आन्ध्र प्रदेश में चलाए गए शराब (ताड़ी) विरोधी आन्दोलन का सम्बन्ध था
(A) पेड़ काटने से
(B) छुआछूत पर पाबन्दी लगाने से
(C) शराब की बिक्री पर पाबन्दी लगाने से
(D) गऊ सुरक्षा से।
उत्तर:
(C) शराब की बिक्री पर पाबन्दी लगाने से।

11. 2019 में हुए 17वीं लोकसभा के चुनावों में कितनी महिलाएं निर्वाचित हुई थीं ?
(A) 73
(B) 80
(C) 78
(D) 71
उत्तर:
(C) 78

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12. भारत में प्रतिवर्ष कब महिला दिवस मनाया जाता है ?
(A) 1 जनवरी
(B) 26 जनवरी
(C) 20 फरवरी
(D) 8 मार्च।
उत्तर:
(D) 8 मार्च।

13. भारत में ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ की स्थापना निम्न में से किस वर्ष में हुई ?
(A) 1990 में
(B) 1991 में
(C) 1992 में
(D) 1995 में।
उत्तर:
(C) 1992 में।

14. मेधा पाटेकर निम्नलिखित आन्दोलन से सम्बन्धित है ?
(A) किसान आन्दोलन
(B) महिला आन्दोलन
(C) चिपको आन्दोलन
(D) नर्मदा बचाओ आन्दोलन।
उत्तर:
(D) नर्मदा बचाओ आन्दोलन

15. किसान आन्दोलन के मुख्य नेता थे।
(A) वी० पी० सिंह
(B) महेन्द्र सिंह टिकैत
(C) रामकृष्ण हेगड़े
(D) राजीव गांधी।
उत्तर:
(B) महेन्द्र सिंह टिकैत।

16. चिपको आन्दोलन का क्या उद्देश्य था ?
(A) वनों की रक्षा करना
(B) शिक्षा को बढ़ावा देना
(C) खेलों को बढ़ावा देना
(D) मनोरंजन को बढ़ावा देना।
उत्तर:
(A) वनों की रक्षा करना।

17. दहेज निषेध अधिनियम पास किया गया
(A) 1950
(B) 1958
(C) 1961
(D) 1977
उत्तर:
(C) 1961

18. घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा सम्बन्धी अधिनियम किस वर्ष पारित हुआ ?
(A) 2002
(B) 2003
(C) 2005
(D) 2017
उत्तर:
(C) 2005

19. किस वर्ष को महिला सशक्तिकरण वर्ष का नाम दिया गया ?
(A) 2001
(B) 1990
(C) 2003
(D) 2005
उत्तर:
(A) 2001

20. जन-आन्दोलन लोकतन्त्र को
(A) कमज़ोर करते हैं
(B) समाप्त करते हैं
(C) मजबूत करते हैं
(D) प्रभावित नहीं करते।
उत्तर:
(C) मज़बूत करते हैं।

21. मण्डल आयोग की सिफारिशों को किस वर्ष में लागू किया गया था?
(A) 1971 में
(B) 1977 में
(C) 1990 में
(D) 1991 में।
उत्तर:
(C) 1990 में।

22. ‘चिपको आन्दोलन’ का उद्देश्य था
(A) आर्थिक शोषण से रक्षा
(B) महिलाओं से रक्षा
(C) वनों की रक्षा
(D) दलितों की रक्षा।
उत्तर:
(C) वनों की रक्षा।

23. महाराष्ट्र में दलितों के हितों की रक्षा के लिए कौन-सा संगठन बनाया गया ?
(A) दलित पँथर्स
(B) मंडल आयोग
(C) पिछड़ा वर्ग आयोग
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) दलित पैंथर्स।

24. दलित पैन्थर्स संगठन की कब स्थापना की गई ?
(A) 1980
(B) 1976
(C) 1972
(D) 1975
उत्तर:
(C) 1972

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25. ताड़ी विरोधी आन्दोलन किस राज्य में शुरू किया गया ?
(A) बिहार
(B) आन्ध्र प्रदेश
(C) गुजरात
(D) केरल।
उत्तर:
(B) आन्ध्र प्रदेश।

26. चिपको आन्दोलन किस राज्य से सम्बन्धित है ?
(A) उत्तराखण्ड
(B) हरियाणा
(C) उड़ीसा
(D) केरल।
उत्तर:
(A) उत्तराखण्ड।

निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) चिपको आन्दोलन का सम्बन्ध ………. प्रदेश से है।
उत्तर:
उत्तराखण्ड

(2) भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् ……….. का प्रतिमान अपनाया।
उत्तर:
नियोजित विकास

(3) ……… मराठी के एक प्रसिद्ध कवि हैं।
उत्तर:
नामदेव दसाल

(4) डॉ० अम्बेदकर ……….. के नेता माने जाते हैं।
उत्तर:
दलितों

(5) महेन्द्र सिंह टिकैत ………. के अध्यक्ष थे।
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन

(6) मछुआरों के राष्ट्रीय संगठन का नाम …………. है।
उत्तर:
नेशनल फिशवर्कर्स फोरम

(7) वर्तमान में लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए …….. स्थानों का आरक्षण किया गया है।
उत्तर:
84

(8) 1989 में प्रधानमन्त्री ………….. ने मण्डल आयोग रिपोर्ट को लाग किया।
उत्तर:
वी० पी० सिंह

(9) 73वें एवं 74वें संशोधन द्वारा स्थानीय निकायों में ……….. को आरक्षण प्रदान किया गया है ?
उत्तर:
महिलाओं

(10) मेघा पाटेकर …….. आन्दोलन से सम्बन्धित हैं।
उत्तर:
पर्यावरण

(11) 1972 में महाराष्ट्र में दलित हितों की रक्षा के लिए …………… नामक संगठन बनाया गया।
उत्तर:
दलित पैन्थर्स

(12) ‘चिपको आन्दोलन’ का उद्देश्य ……. करना था।
उत्तर:
वृक्षों (वनों) की रक्षा

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
मण्डल आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर:
मण्डल आयोग के अध्यक्ष बी० पी० मण्डल थे।

प्रश्न 2.
ताड़ी विरोधी आन्दोलन किस राज्य में शुरू हुआ था ?
उत्तर:
ताड़ी विरोधी आन्दोलन आंध्र प्रदेश में शुरू हुआ था।

प्रश्न 3.
मेघा पाटेकर किस आन्दोलन से सम्बन्धित हैं ?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन से।

प्रश्न 4.
महिलाओं की घरेलू हिंसा से सुरक्षा कानून कब पास हुआ ?
उत्तर:
सन् 2005 में।

प्रश्न 5.
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित किसी एक आन्दोलन का नाम बताइये।
उत्तर:
चिपको आन्दोलन।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

प्रश्न 6.
‘चिपको आन्दोलन’ किस राज्य से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
उत्तराखण्ड से।

प्रश्न 7.
किस प्रधानमन्त्री ने ‘मंडल आयोग’ की सिफ़ारिशों को लागू किया ?
उत्तर:
मंडल आयोग की सिफारिशों को वी० पी० सिंह ने लागू किया।

प्रश्न 8.
आन्ध्र-प्रदेश में सन् 1990 में महिलाओं द्वारा कौन कौन-सा आन्दोलन प्रारम्भ किया गया ?
उत्तर:
ताड़ी विरोधी आन्दोलन।

प्रश्न 9.
सूचना का अधिकार सम्बन्धी कानून किस वर्ष पारित हुआ ?
उत्तर:
सूचना का अधिकार सम्बन्धी कानून. सन् 2005 में पारित हुआ।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

HBSE 12th Class Political Science जन आंदोलनों का उदय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
चिपको आन्दोलन के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन सा कथन गलत है
(क) यह पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आन्दोलन था।
(ख) इस आन्दोलन ने पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण के मामले उठाए।
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आन्दोलन था।
(घ) इस आन्दोलन की मांग थी कि स्थानीय निवासियों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण होना चाहिए।
उत्तर:
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आन्दोलन था।

प्रश्न 2.
नीचे लिखे कुछ कथन गलत हैं। इनकी पहचान करें और ज़रूरी सुधार के साथ उन्हें दुरुस्त करके दोबारा लिखें
(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतन्त्र को हानि पहुंचा रहे हैं।
(ख) सामाजिक आन्दोलनों की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका जनाधार है।
(ग) भारत के राजनीतिक दलों ने कई मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक आन्दोलनों का उदय हुआ।
उत्तर:
(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतन्त्र को बढ़ावा दे रहे हैं।
(ख) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।
(ग) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।

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प्रश्न 3.
उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में (अब उत्तराखण्ड) 1970 के दशक में किन कारणों से चिपको आन्दोलन का जन्म हुआ ? इस आन्दोलन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
भारत में पर्यावरण से सम्बन्धित सर्वप्रथम आन्दोलन चिपको आन्दोलन के रूप में जाना जाता है। चिपको आन्दोलन 1972 में हिमालय क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। चिपको आन्दोलन का अर्थ है-पेड़ से चिपक जाना अर्थात् पेड़ को आलिंग्न बद्ध कर लेना। चिपको आन्दोलन की शुरुआत उस समय हुई जब एक ठेकेदार ने गांव के समीप पड़ने वाले जंगल के पेड़ों को कटाने का फैसला किया। लेकिन गांव वालों ने इसका विरोध किया। परन्तु जब एक दिन गांव के सभी पुरुष गांव के बाहर गए हुए थे, तब ठेकेदार ने पेड़ों को काटने के लिए अपने कर्मचारियों को भेजा।

इसकी जानकारी जब गांव की महिलाओं को मिली, तब वे एकत्र होकर जंगल पहुंच गईं तथा पेड़ों से चिपक गईं। इस कारण ठेकेदार के कर्मचारी पेड़ों को काट न सके। इस घटना की जानकारी पूरे देश में समाचार-पत्रों के द्वारा फैल गई। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित इस आन्दोलन को भारत में विशेष स्थान प्राप्त है। इस आन्दोलन की सफलता ने भारत में चलाए गए अन्य आन्दोलनों को भी प्रभावित किया। इस आन्दोलन से ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक जागरूकता के आन्दोलन चलाए गए।

प्रश्न 4.
भारतीय किसान यूनियन किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहां तक सफलता मिली ?
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूं के सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोत्तरी, कृषि उत्पादों के अन्तर्राष्ट्रीय आवाजाही पर लगी रोक को हटाने, समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने, किसानों के बकाया कर्ज माफ करने तथा किसानों के लिए पेन्शन आदि जैसे मुद्दों को उठाया। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर अपनी कुछ मांगों को मनवाने में सफलता प्राप्त की।

प्रश्न 5.
आन्ध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आन्दोलन ने देश का ध्यान कुछ गम्भीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे ?
उत्तर:
आन्ध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आन्दोलन में निम्नलिखित मुद्दे उभरे

  • शराब पीने से पुरुषों का शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होना।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रभावित होना।
  • शराबखोरी के कारण ग्रामीणों पर कर्ज का बोझ बढ़ना।
  • पुरुषों द्वारा अपने काम से गैर-हाजिर रहना।
  • शराब माफिया के सक्रिय होने से गांवों में अपराधों का बढ़ना।
  • शराबखोरी से परिवार की महिलाओं से मारपीट एवं तनाव होना।

प्रश्न 6.
क्या आप शराब विरोधी आन्दोलन को महिला आन्दोलन का दर्जा देंगे ? कारण बताएं।
उत्तर:
शराब विरोधी आन्दोलन को महिला आन्दोलन का दर्जा दिया जा सकता है, क्योंकि अब तक जितने भी शराब विरोधी आन्दोलन हुए हैं, उनमें महिलाओं की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण रही है।

प्रश्न 7.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बांध परियोजनाओं का विरोध क्यों किया ?
उत्तर:
नर्मदा बांध परियोजना के विरुद्ध नर्मदा बचाओ आन्दोलन चलाया गया। आन्दोलन के समर्थकों का यह मत है कि बांध परियोजना के पूर्ण होने पर कई लाख लोग बेघर हो जायेंगे।

प्रश्न 8.
क्या आन्दोलन और विरोध की कार्रवाइयों से देश का लोकतन्त्र मज़बूत होता है ? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 11 देखें।

प्रश्न 9.
दलित-पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए ?
उत्तर:
दलित पँथर्स ने दलित समुदाय से सम्बन्धित सामाजिक असमानता, जातिगत आधार पर भेदभाव, दलित महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, दलितों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न तथा दलितों के लिए आरक्षण जैसे मुद्दे उठाए।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें ….लगभग सभी नए सामाजिक आन्दोलन नयी समस्याओं जैसे-पर्यावरण का विनाश, महिलाओं की बदहाली, आदिवासी संस्कृति का नाश और मानवाधिकारों का उल्लंघन….. के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे। इनमें से कोई भी अपने आप में समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के सवाल से नहीं जुड़ा था।

इस अर्थ में ये आन्दोलन अतीत की क्रान्तिकारी विचारधाराओं से एकदम अलग हैं। लेकिन, ये आन्दोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए हैं और यही इनकी कमज़ोरी है….सामाजिक आन्दोलनों का एक बड़ा दायरा ऐसी चीजों की चपेट में है कि वह एक ठोस तथा एकजुट जन आन्दोलन का रूप नहीं ले पाता और न ही वंचितों और गरीबों के लिए प्रासंगिक हो पाता है। ये आन्दोलन बिखरे-बिखरे हैं, प्रतिक्रिया के तत्त्वों से भरे हैं, अनियत हैं और बुनियादी सामाजिक बदलाव के लिए इनके पास कोई फ्रेमवर्क नहीं है। ‘इस’ या ‘उस’ के विरोध (पश्चिमी-विरोधी, पूंजीवाद विरोधी, विकास-विरोधी, आदि) में चलने के कारण इनमें कोई संगति आती हो अथवा दबे-कुचले लोगों और हाशिए के समुदायों के लिए ये प्रासंगिक हो पाते हों-ऐसी बात नहीं।

(क) नए सामाजिक आन्दोलन और क्रान्तिकारी विचारधाराओं में क्या अन्तर है ?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आन्दोलन की सीमाएं क्या-क्या हैं ?
(ग) यदि सामाजिक आन्दोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो आप उन्हें ‘बिखरा’ हुआ कहेंगे या मानेंगे कि वे अपने मुद्दे पर कहीं ज्यादा केन्द्रित हैं। अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
उत्तर:
(क) क्रान्तिकारी विचारधाराएं समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के साथ जुड़ी हुई होर्ती हैं, जबकि नये सामाजिक आन्दोलन समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के साथ जुड़े हुए नहीं हैं।

(ख) सामाजिक आन्दोलन बिखरे हुए हैं तथा उनमें एकजुटता का अभाव है। सामाजिक आन्दोलनों के पास सामाजिक बदलाव के लिए कोई ढांचागत योजना नहीं है।

(ग) सामाजिक आन्दोलन द्वारा उठाए गए विशिष्ट मुद्दों के कारण यह कहा जा सकता है कि ये आन्दोलन अपने मुद्दे पर अधिक केन्द्रित हैं।

जन आंदोलनों का उदय HBSE 12th Class Political Science Notes

→ भारत में स्वतन्त्रता के बाद कई नवीन सामाजिक आन्दोलनों का उदय हुआ है।
→ भारत में किसानों से सम्बन्धित कई आन्दोलन चलाए गए हैं जैसे तिभागा आन्दोलन, तेलंगाना आन्दोलन, नक्सलवाड़ी आन्दोलन इत्यादि।
→ किसान आन्दोलनों पर समय-समय पर राजनीति होती रही है।
→ महिलाओं के अधिकारों के लिए कई महिला आन्दोलन चलाए गये हैं।
→ भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई।
→ स्थानीय स्वः-शासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए 1/3 स्थान आरक्षित किये गए हैं।
→ भारत में 1950 में ही महिलाओं को मताधिकार प्रदान कर दिया गया था।
→ भारत में पर्यावरण एवं विकास से प्रभावित लोगों के लिए आन्दोलन चलाए गए हैं।
→ 1972 में चिपको आन्दोलन चलाया गया।
→ मेधा पाटेकर, बाबा आमटे तथा सुन्दर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में नर्मदा बचाओ आन्दोलन चल रहा है।
→ टिहरी बांध परियोजना एवं शांत घाटी परियोजना से सम्बन्धित भी पर्यावरणीय आन्दोलन चलाए गए।
→ भारत सरकार ने 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में पिछड़ी जाति आयोग की स्थापना की।
→ 1978 में बी० पी० मण्डल की अध्यक्षता में पिछड़ी जाति आयोग की स्थापना की गई।
→ मण्डल आयोग ने 1980 में सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
→ 1990 में वी० पी० सिंह सरकार ने मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की, जिसका व्यापक विरोध हुआ।

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वचनबद्ध नौकरशाही से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
भारत में वचनबद्ध नौकरशाही का अर्थ स्पष्ट करें। इस अवधारणा के विकास एवं समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर:
वचनबद्ध अथवा प्रतिबद्ध नौकरशाही का अर्थ यह है कि नौकरशाही किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के सिद्धान्तों एवं नीतियों से बन्धी हुई रहती है और उस दल के निर्देशों से ही कार्य करती है। वचनबद्ध अथवा प्रतिबद्ध नौकरशाही निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करती, बल्कि इसका कार्य किसी दल विशेष की योजनाओं को बिना कोई प्रश्न उठाए आंखें मूंद कर लागू करना होता है। साम्यवादी देशों में जैसे कि चीन में वचनबद्ध नौकरशाही पाई जाती है।

सितम्बर, 1991 तक सोवियत संघ में वचनबद्ध नौकरशाही पाई जाती रही है। चीन में एक ही राजनीतिक दल (साम्यवादी दल) है और वहां पर नौकरशाही साम्यवादी दल के सिद्धान्तों एवं लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध है। नौकरशाही का परम कर्त्तव्य साम्यवादी दल के लक्ष्यों को पूरा करने में सहयोग देना है।

भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही की बात कही जाती है, परन्तु नौकरशाही किसी दल के सिद्धान्तों के प्रति वचनबद्ध न होकर संविधान के सिद्धान्तों के प्रति वचनबद्ध है। लोकतन्त्र में वचनबद्ध नौकरशाही सफल नहीं हो सकती क्योंकि चुनाव के पश्चात् कोई भी दल सत्ता में आ सकता है। इसलिए प्राय: सभी लोकतान्त्रिक देशों में नौकरशाही की तटस्थता पर बल दिया जाता है ताकि नौकरशाही स्वतन्त्र और निष्पक्ष होकर कार्य कर सके।

संविधान में लोक सेवाओं की स्वतन्त्रता, निष्पक्षता एवं तटस्थता को बनाए रखने के लिए व्यापक रूप से व्यवस्था की गई है। अखिल भारतीय सेवाएं तथा केन्द्रीय सेवाओं की नियुक्ति राज्य सेवा आयोग द्वारा की जाती है और राज्य सेवाओं की नियुक्ति राज्य सेवा आयोग द्वारा की जाती है। लोक सेवा आयोग (Public Service Commission) की निष्पक्षता और स्वतन्त्रता को बनाए रखने के लिए संविधान में काफ़ी उपाय किए गए हैं। संघ या संयुक्त लोक सेवा

आयोग के सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। लोक सेवा आयोग के सदस्य निश्चित अवधि के लिए नियुक्त किए जाते हैं और उन्हें निश्चित अवधि से पूर्व राष्ट्रपति तभी हटा सकता है जब उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार का कोई गम्भीर अभियोग हो और इस विषय में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा भली प्रकार जांच करके यह निष्कर्ष न निकाल लिया हो कि अभियोग ठीक है।

लोक सेवा आयोग की स्वतन्त्रता एवं निष्पक्षता के अतिरिक्त लोक सेवाओं की स्वतन्त्रता तथा निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए भी कई प्रकार के उपाय किए गए हैं। लोक सेवाओं के सदस्यों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती है और योग्यता की जांच लिखित परीक्षा एवं इण्टरव्यू के आधार पर की जाती है। लोक सेवक एक स्थायी कर्मचारी होता है और रिटायर होने की आयु तक अपने पद पर रहता है।

संविधान के अनुसार किसी लोक सेवक को तब तक पद से हटाया या अवनत नहीं किया जा सकता, जब तक उसको दोष-पत्र (Charge Sheet) न दिया जाए और उसको अपनी रक्षा के लिए उसका उत्तर देने के लिए अवसर न दिया जाए। लोक सेवक राजनीतिक तौर पर तटस्थ होता है,

वह केवल अपने मत का प्रयोग कर सकता है। संविधान के अनुसार कानून द्वारा लोक सेवाओं, सेवाओं की शर्तों और नियुक्ति को नियमित करने की शक्ति विधानमण्डलों को है। लोक सेवक की सेवा की अवधि के उसके वेतन एवं भत्तों को उसके हितों के विरुद्ध परिवर्तित नहीं किया जा सकता और न ही उसे उसका छोटा अधिकारी दण्ड दे सकता है। लोक सेवक अपनी जिम्मेवारियों को तटस्थता से निभाते हैं और केवल संविधान के सिद्धान्तों के प्रति वचनबद्ध होते हैं।

परन्तु 1969 में वचनबद्ध नौकरशाही (Committed Bureaucracy) का प्रश्न काफ़ी महत्त्वपूर्ण बन गया, विशेषकर उस समय जब तत्कालीन स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने अपने सार्वजनिक भाषणों में प्रशासनिक मशीनरी को देश की प्रगति में बाधा कह कर, उसकी आलोचना शुरू की। वचनबद्ध नौकरशाही का प्रश्न उस समय उत्पन्न हुआ जब कार्यकारिणी और न्यायालयों में झगड़ा उत्पन्न हुआ और अन्त में कांग्रेस पार्टी का विभाजन भी हुआ। प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने नई नीति अपनाते हुए प्रत्येक समस्या को जनता के सामने प्रस्तुत करके अन्तिम निर्णय लेने की नीति अपनाई। स्वर्गीय इन्दिरा गांधी ने अपने विरोधियों पर चारों ओर से हमला किया और इसमें नौकरशाही की भी आलोचना की और इस बात पर बल दिया कि नौकरशाही वचनबद्ध होनी चाहिए।

यह विचार कि नौकरशाही ‘वचनबद्ध की भावना’ से ओत-प्रोत नहीं होनी चाहिए शीघ्र ही स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गांधी के चेलों में लोकप्रिय हो गया। तत्कालीन कांग्रेस के अन्तरिम अध्यक्ष (Interim President) श्री जगजीवन राम ने पार्टी के बम्बई अधिवेशन में जो दिसम्बर, 1969 में हुआ, वचनबद्ध नौकरशाही के विचार को औपचारिक रूप दिया जब उन्होंने इस सिद्धान्त का अपने अध्यक्षीय भाषण में जोरदार समर्थन किया।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने नौकरशाही पर रूढ़िवादी होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया और इस बात पर बल देना शुरू कर दिया कि नौकरशाही को जनता की इच्छाओं और राष्ट्रीय उद्देश्यों की पूर्ति के अनुसार बदलना होगा। नियुक्ति की नीति इस प्रकार होनी चाहिए कि लोक सेवक सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक हो ताकि लोकतन्त्र, धर्म-निरपेक्षवाद तथा समाजवाद जैसे आदर्शों की पूर्ति की जा सके।
तत्कालीन स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी और उनके शिष्यों ने वचनबद्ध ‘नौकरशाही’ का समर्थन तो किया, रष्ट नहीं था कि वे ‘वचनबद्ध’ का क्या अर्थ लेते हैं।

उन्होंने जानबझ कर साम्यवादी देशों की वचनबद्ध नौकरशाही की प्रणाली का उल्लेख नहीं किया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के वचनबद्ध नौकरशाही के बारे में जो कुछ कहा उससे ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे वे ऐसी नौकरशाही चाहते हैं जो राजनीति के निर्देशक सिद्धान्तों के प्रति वचनबद्ध हो। इसीलिए अशोक मेहता ने कहा था कि, “लोकतन्त्र में यह समझना आसान नहीं है कि ‘वचनबद्ध नौकरशाही’ का क्या अर्थ है। लोकतन्त्र प्रणाली में सरकारें बदलती हैं, उनके राजनीतिक उद्देश्यों में परिवर्तन आते रहते हैं, इसलिए यह समझना कठिन होता है कि नौकरशाही किन विचारों के लिए वचनबद्ध हो।”

‘वचनबद्ध नौकरशाही’ पर कांग्रेस के नेताओं के ज़ोर देने से उन लोगों में सन्देह उत्पन्न हो गया, जिन्होंने साम्यवादी देशों में ‘वचनबद्ध नौकरशाही’ का अध्ययन किया हुआ था। अतः वे यह समझने लगे कि ‘वचनबद्ध नौकरशाही’ का सिद्धान्त बड़ा खतरनाक है क्योंकि यह देश को सर्वसत्तावाद (Totalitarianism) की ओर ले जाएगा।

इस बात का भय था कि लोकतन्त्रात्मक सरकार के साथ यह सिद्धान्त मेल नहीं खाता और जब एक स्थान पर दूसरा दल सत्ता में आएगा तो अराजकता उत्पन्न हो जाएगी। ‘वचनबद्ध नौकरशाही’ का सिद्धान्त सर्वसत्तावाद राज्य में ही पनप सकता है। सी० राजगोपालाचार्य (C. Rajagopalachari) जैसे राजनीतिज्ञों ने वचनबद्ध नौकरशाही’ (Committed Bureaucracy) पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह सिद्धान्त देश को बर्बाद कर देगा।

‘हिन्दुस्तान टाइम्ज़’ (The Hindustan Times) के सम्पादक ने 3 दिसम्बर, 1969 को उस समय के राजनीतिक वातावरण के सन्दर्भ में लिखा था, “यदि सेवकों को श्रीमती इन्दिरा गांधी की सरकार और नीतियों के प्रति, उड़ीसा है तो उनको दिल्ली में जनसंघ प्रशासन के प्रति, पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु के प्रति, उड़ीसा में स्वतन्त्र पार्टी के प्रशासन के प्रति, मद्रास में डी० एम० के० के प्रति, पंजाब में अकाली प्रशासन के प्रति आदि वचनबद्ध होना पड़ेगा।”

इसमें सन्देह नहीं है कि ‘वचनबद्ध नौकरशाही’ का विचार भारत के लिए बहुत खतरनाक है। इस सिद्धान्त का सम्बन्ध लोकतन्त्रात्मक प्रणाली से न होकर उस शासन प्रणाली से है जिसमें एक ही दल हो जैसे कि साम्यवादी देशों में। इस सिद्धान्त का अभिप्राय है कि नौकरशाही सत्ताधारी पार्टी की विचारधारा के प्रति शपथबद्ध है। इसलिए यह सिद्धान्त उसी देश में लागू हो सकता है जहां पर एक ही विचारधारा निष्ठुरता से शासन कर रही हो।

लोकतन्त्रात्मक राज्यों में इस सिद्धान्त को नहीं अपनाया जा सकता क्योंकि लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली में अनेक राजनीतिक दल होते हैं और दल सत्ता में आते-जाते रहते हैं। अत: नौकरशाही का परम कर्त्तव्य यह होता है कि वे तटस्थता से कुशलतापूर्वक अपने कार्यों को करें। उनका राजनीति एवं किसी दल की विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं होता। लोक सेवाओं की सेवाओं के नियमों के प्रति निष्ठा एवं श्रद्धा को ‘वचनबद्ध’ के विचार से नहीं मिलाया जाना चाहिए।

नौकरशाही की निष्पक्षता का मूल्यांकन (Critical Appraisal of Uncommitted Bureaucracy)
1971 के लोकसभा के चुनाव में स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गांधी को भारी बहुमत प्राप्त हुआ और चुनाव के साथ ही वचनबद्ध नौकरशाही का खतरनाक सिद्धान्त समाप्त हो गया क्योंकि कांग्रेस को इतना अधिक बहुमत प्राप्त हुआ था कि अब लोकतन्त्रात्मक साधनों द्वारा अपने प्रगतिशील कार्यक्रम और सुधारों को लागू कर सकती थी। नौकरशाही की निष्पक्षता एवं स्वतन्त्रता को बनाए रखने में संघ लोक सेवा आयोग ने महत्त्वपूर्ण रोल अदा किया है।

संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य बटुक सिंह ने लोक सेवा आयोग को भारतीय लोकतन्त्र का मज़बूत स्तम्भ कहा है। संविधान की धाराएं संघ लोक सेवा आयोग को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से पूर्ण स्वतन्त्रता की गारण्टी देती हैं। परन्तु व्यावहारिक रूप में सरकार ने संविधान की धाराओं को इस प्रकार लागू किया है कि लोक सेवा की स्वतन्त्रता सीमित हो गई है और नौकरशाही की स्वतन्त्रता एवं निष्पक्षता से वर्तमान सरकार ने खेलने की कोशिश की है तथा इसके लिए कई उदाहरण भी दिए जा सकते हैं, जिनमें कुछ इस प्रकार हैं

(1) संघ लोक सेवा आयोग अधिनियम 1958 के अनुसार सरकार के लिए कई प्रकार के अधिकारियों की नियुक्ति के लिए तदर्थ (Adhoc) नियुक्तियों के लिए और उन नियुक्तियों के लिए जहां पर नियुक्ति शीघ्र करना अनिवार्य है तथा उन नियुक्तियों का लोक सेवा आयोग में उल्लेख करने से अनावश्यक देरी होगी, संघ लोक सेवा आयोग को सलाह लेना अनिवार्य नहीं है।

यद्यपि हम उन कारणों से सरकार के साथ सहमत हैं जिनके कारण यह अधिनियम पास किया गया, परन्तु इस अधिनियम के गलत प्रयोग की सम्भावना भी बहुत अधिक है। इस अधिनियम के द्वारा सरकार बड़ी आसानी से लोक सेवा आयोग के क्षेत्राधिकार को सीमित कर सकती है। जिन अधिकारियों की नियुक्ति सरकार की इच्छा पर की गई है, वे स्वतन्त्र और निष्पक्ष नहीं हो सकते।

(2) नौकरशाही के वास्तविक रोल से स्पष्ट होता है कि कई अधिकारी सत्ता पार्टी के नेताओं की सहायता इसलिए करते हैं ताकि इनके कुछ लाभ उठा सकें। चुनाव के दिनों में नौकरशाही की सत्ता पार्टी की सहायता देखने लायक होती है और अधिकारी यह सहायता इसलिए करते हैं ताकि उनसे बाद में पदोन्नति, एवं अच्छी नौकरी प्राप्त कर सकें। प्रो० भाम्बरी (Bhambri) ने ठीक ही कहा है कि “भारतीय नौकरशाही कांग्रेस के शासन में कांग्रेस के साथ सांठ गांठ करके कांग्रेस के हित अथवा नेताओं के व्यक्तिगत हित के लिए काम करती है ताकि उनसे लाभ उठा सके।”

(3) भारतीय नौकरशाही की एक सर्वगत विशेषता भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार होने के कारण-वेतन कम होना, पदोन्नति के कम अवसर तथा कर्मचारियों में ईमानदारी का न होना इत्यादि है। कई बार तो भ्रष्टाचार के षड्यन्त्रों में बड़े-बड़े अधिकारी भी शामिल होते हैं और उन्हें कई बार राजनीतिज्ञों का सहयोग भी प्राप्त होता है।

(4) भ्रष्टाचार की तरह भारतीय नौकरशाही की एक विशेषता यह भी है कि यह जी-हजूरियों से भरी पड़ी है। नौजवान कर्मचारी शीघ्र ही समझ जाता है कि स्वतन्त्रता और स्पष्टवादिता से काम नहीं चलेगा और वह शीघ्र ही अपने बड़े अधिकारी की जी-हजूरी करनी शुरू कर देता है।

यह आम देखने में आया है कि जी-हजूरी करने वाले कर्मचारी शीघ्र पदोन्नति तथा अन्य लाभ प्राप्त कर लेते हैं जबकि ईमानदार और परिश्रमी कर्मचारी जी-हजूरी न करने के कारण कई वर्ष पदोन्नति प्राप्त नहीं कर पाते। गेरवाला (Gerwala) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि “अधिक कर्मचारी अपने बड़े अधिकारियों को चापलूसी द्वारा प्रसन्न करने में लगे रहते हैं, जिससे प्रशासन की कुशलता की क्षति होती है।”

निष्कर्ष (Conclusion)-इसमें सन्देह नहीं है कि भारतीय नौकरशाही में कई दोष पाए जाते हैं, परन्तु इसके बावजूद भारतीय नौकरशाही को ‘वचनबद्ध’ नहीं कहा जा सकता। भारतीय नौकरशाही स्वतन्त्र एवं लाल-फीताशाही (Red tapism), भ्रष्टाचार आशाभंग (Frustrations) इत्यादि बुराइयां शासन की देन हैं।

यद्यपि आलोचकों ने राज्य सेवा आयोग को ‘Packed house’ कहा है, तथापि संघ लोक सेवा आयोग को ऐसा नहीं कहा जा सकता। संघ लोक सेवा आयोग को भारतीय लोकतन्त्र के स्तम्भों में से एक स्तम्भ माना जाता है और संघ लोक सेवा आयोग की स्वतन्त्रता और निष्पक्षता पर ही नौकरशाही की स्वतन्त्रता एवं निष्पक्षता काफ़ी सीमा तक निर्भर करती है।

प्रश्न 2.
वचनबद्ध न्यायपालिका से क्या तात्पर्य है ? वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए सरकार द्वारा प्रयोग किए गए उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1973 में प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों श्री जे० एम० शैलट, श्री के० एस० हेगड़े तथा श्री ए० एन० ग्रोवर की उपेक्षा करके श्री ए० एन० राय को नियुक्त किया। इस नियुक्ति से उस समय एक राजनीतिक एवं न्यायिक विवाद पैदा हो गया। श्री ए० एन० राय की नियुक्ति के विरोध में तीनों वरिष्ठ न्यायाधीशों ने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया। इससे यह प्रश्न उठने लगा कि क्या न्यायपालिका सरकार के प्रति वचनबद्ध होनी चाहिए या स्वतन्त्र ।

स्वतन्त्र न्यायपालिका की धारणा एवं भारतीय न्यायपालिका (Concept of Independent Judiciary and Indian Judiciary)-स्वतन्त्र न्यायपालिका से निम्नलिखित अर्थ लिया जाता है

  • न्यायपालिका का सरकार के अन्य विभागों से स्वतन्त्र होना।
  • न्यायपालिका द्वारा किये जाने वाले निर्णयों पर कार्यपालिका एवं न्यायपालिका का प्रभाव नहीं होना चाहिए।
  • न्यायाधीश स्वतन्त्र हों, ताकि वे बिना किसी भय एवं पक्ष के निर्णय कर सकें।

भारत में सैद्धान्तिक तौर पर स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की व्यवस्था की गई। न्यायपालिका को स्वतन्त्र बनाए रखने के लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं

  • न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • न्यायाधीशों की योग्यताओं का वर्णन संविधान में किया गया है।
  • न्यायाधीश एक निश्चित आयु पर सेवानिवृत्त होते हैं।
  • न्यायाधीशों के पद की सुरक्षा की गई है, उन्हें केवल महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है।
  • न्यायाधीशों को उचित वेतन एवं भत्ते दिए जाते हैं।
  • सेवानिवृत्त होने के पश्चात् सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश किसी न्यायालय में वकालत नहीं कर सकते।

वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा का उदय (Origin of the Idea of Committed Judiciary)-1973 में स्वामी केशवानन्द भारती एवं अन्य ने 24वें तथा 25वें संवैधानिक संशोधनों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। ये संशोधन संसद् को सभी अधिकारों में हस्तक्षेप करने से शामिल थे, जिसमें समुदाय बनाना तथा धर्म की स्वतन्त्रता भी शामिल थी। स्वामी केशवानन्द भारती मुकद्दमे की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय की एक 13 सदस्यीय संविधान पीठ ने की।

13 में से 9 न्यायाधीशों (श्री एस० एम० सीकरी, जे० एम० रौलट, के० एस० हेगड़े, ए० एन० ग्रोवर, बी० जगमोहन रेडी, डी० जी० पालेकर, एच० आर० खन्ना, ए० के० मुखर्जी तथा वाई० वी० चन्द्रचड) ने यह निर्णय । मौलिक अधिकारों सहित संविधान में संशोधन कर सकती है, परन्तु संविधान के मूलभूत ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। चार अन्य न्यायाधीशों (श्री ए० एन० राय, के० के० मैथ्यू, एम० एच० बेग तथा एस० एन० द्विवेदी) ने इस निर्णय पर हस्ताक्षर नहीं किए।

केशवानन्द भारती के मुकद्दमे में सरकार एवं न्यायपालिका में मतभेद बढ़ गए, क्योंकि 1973 में सरकार का नेतृत्व श्रीमती इन्दिरा गांधी कर रही थीं, अतः यह विवाद श्रीमती गांधी एवं न्यायालय के बीच हुआ, जिसमें जीत न्यायालय की हुई, क्योंकि न्यायालय ने संसद् की संविधान में संशोधन करने की शक्ति को सीमित कर दिया। इसी कारण श्रीमती गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा को आगे बढ़ाया। 1975 में आपात्काल के समय वचनबद्ध न्यायपालिका का सिद्धान्त कार्यपालिका का सिद्धान्त बन गया।

वचनबद्ध न्यायपालिका के मा सरकार द्वारा प्रयोग किए गए उपाय (Tactics used by Govt. to make Committed Judiciary) तत्कालीन श्रीमती गांधी की सरकार ने न्यायपालिका को वचनबद्ध बनाने के लिए अग्रलिखित उपाय किए

1. न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी (Supersession of Judges):
श्रीमती इन्दिरा गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी की तथा उन न्यायाधीशों को पदोन्नत किया जो सरकार के प्रति वफादार थे। उदाहरण के लिए श्रीमती गांधी ने श्री जे० एम० शैलट, के० एस० हेगड़े तथा ए० एन० ग्रोवर की वरिष्ठता की अनदेखी करके श्री ए० एन० राय को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करवाया। अतः तीनों वरिष्ठ न्यायाधीशों ने अपने पदों से त्याग-पत्र दे दिया। 1977 में पुनः श्री एच० आर० खन्ना की वरिष्ठता की अनदेखी करके श्री एम० एच० बेग को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करवाया गया।

2. न्यायाधीशों का स्थानान्तरण (Transfer of Judges):
श्रीमती इन्दिरा गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों के स्थानान्तरण का सहारा भी लिया। उन्होंने 1981 में मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इस्माइल को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाकर भेजा तथा पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के० बी० एन० सिंह को मद्रास उच्च न्यायालय स्थानान्तरित करवाया।

3. रिक्त पदों को भरने से मना करना (Refusal to fill Vacancies):
सरकार ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए कई बार रिक्त पदों को भरने से भी मना कर दिया या अपनी असमर्थता व्यक्त की।

4. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का प्रावधान (Provision of Acting Chief Justice):
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के संवैधानिक प्रावधान को भी वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए प्रयोग किया गया।

5. अन्य पदों पर नियुक्तियां (Appointments on other Posts):
सरकार ने सेवा निवृत्त न्यायाधीशों में से उन्हें राज्यपाल, राजदूत, मन्त्री या किसी आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जो सरकार के प्रति वफादार थे अथवा सरकार की नीतियों के अनुसार चलते थे।

6. अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति (Appointment of Temporary Judges):
वचनबद्ध न्यायपालिका का एक अन्य उपाय अस्थाई न्यायाधीशों की नियुक्ति करना था। सरकार अस्थाई तौर पर नियुक्ति करके न्यायाधीश की कार्यप्रणाली एवं व्यवहार का अध्ययन करती थी, कि वह सरकार के पक्ष में कार्य कर रहा है या विपक्ष में।

7. कम वेतन (Meagre Salaries):
न्यायाधीशों को अन्य विभागों के मुकाबले कम वेतन मिलता था।

8. न्यायपालिका की आलोचना (Criticism of Judiciary):
न्यायाधीशों द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों की प्रायः अधिकारियों द्वारा आलोचना की जाती थी जबकि ऐसा करना संविधान के विरुद्ध था।

निष्कर्ष (Conclusion):
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि भारत में एक समय ऐसा आया जब वचनबद्ध न्यायपालिका को बढ़ावा मिलने लगा था, परन्तु वास्तविकता यह है कि न्यायपालिका सभी प्रकार के बन्धनों से स्वतन्त्र होनी चाहिए तभी न्यायपालिका संविधान की रक्षा कर सकेगी तथा लोगों के अधिकारों की रक्षा कर सकेगी।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 3.
बिहार आन्दोलन एवं गुजरात के नव-निर्माण आन्दोलन ने भारतीय लोकतन्त्र को किस प्रकार प्रभावित किया ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. गुजरात में नवनिर्माण आन्दोलन (Navnirman Movement in Gujarat):
गुजरात में 1970 के दशक में नवनिर्माण आन्दोलन की शुरुआत हुई थी। 1960 के दशक में गुजरात के प्रमुख शहर अहमदाबाद में बहुत विकास कार्य हुए। इसी शहर से 1974 में गुजरात में नवनिर्माण आन्दोलन की शुरुआत हुई। अहमदाबाद के एल० डी० इन्जीनियरिंग महाविद्यालय के छात्रावास में खाने में 20% की वृद्धि पर विवाद के कारण अहमदाबा गया तथा आगे चलकर इस असन्तोष ने गुजरात नवनिर्माण आन्दोलन का रूप धारण कर लिया।

इस एक घटना से अहमदाबाद राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में आ गया। गुजरात नवनिर्माण आन्दोलन उन लोगों के विरुद्ध था, जो हरित क्रान्ति एवं श्वेत क्रान्ति के समर्थक थे। यह आन्दोलन इतना व्यापक था कि गुजरात के मुख्यमन्त्री चिमनभाई पटेल को त्याग पत्र देना पड़ा। प्रायः यह कहा जाता है कि 1975 में श्रीमती गांधी ने जो आपात्काल की घोषणा की थी, उसका एक प्रमुख कारण गुजरात का नवनिर्माण आन्दोलन भी था।

नवनिर्माण आन्दोलन धीरे-धीरे सम्पूर्ण गुजरात में फैल गया तथा अनेक लोग इस आन्दोलन से जुड़ गए। कांग्रेस पार्टी ने नवनिर्माण आन्दोलन के विरुद्ध एक चुनावी रणनीति तैयार की, जिसे क्षत्रिय-हरिजन-आदिवासी तथा मुस्लिम मिलन का नाम दिया गया। 1980 के गुजरात विधानसभा चुनावों में इस योजना को सफलता भी मिली। परन्तु इससे उच्च जातियों को पहली बार यह अनुभव हुआ कि शक्ति उच्च वर्गों से निकल कर मध्यवर्ग की ओर जा रही है।

2. बिहार आन्दोलन (Bihar Movement):
बिहार आन्दोलन जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 में चलाया गया था। बिहार आन्दोलन शासन में भ्रष्टाचारी एवं अयोग्य कर्मचारियों के विरुद्ध चलाया गया था। इस आन्दोलन को पूर्ण या व्यापक क्रान्ति (Total Revolution) भी कहा जाता है। जयप्रकाश नारायण ने 1975 में बिहार के लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि बिहार आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य समाज एवं व्यक्ति के सभी पक्षों में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना है। यह उद्देश्य ऐसा नहीं है, जिसे एक दिन या एक वर्ष में प्राप्त कर लिया जाए, बल्कि अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमें एक लम्बे समय तक बिहार आन्दोलन को जारी रखना होगा।

बिहार आन्दोलन में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को भी हल करने का प्रयास किया गया। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के विषय में बोलते हुए जय प्रकाश नारायण ने कहा कि ये जातियां आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई हैं। उच्च जाति के लोगों द्वारा अब भी इन जातियों का शोषण किया जा रहा है।

कई बार तथाकथित उच्च जाति के लोग इन जातियों के लोगों को जिन्दा जला भी देते हैं। अत: इस समस्या के समाधान के लिए हल खोजना आवश्यक है। बिहार आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को इन अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के विकास के लिए कार्य करना होगा। जयप्रकाश नारायण ने बिहार आन्दोलन के चार पक्षों का वर्णन किया-प्रथम संघर्ष, द्वितीय निर्माण, तृतीय प्रचार तथा चतुर्थ संगठन।

जयप्रकाश नारायण ने तात्कालिक परिस्थितियों में निर्माण कार्य पर अधिक बल दिया। उनके अनुसार बिहार आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को समाज में से सामाजिक कुरीतियों (जातिवाद, छुआछूत, साम्प्रदायिकता तथा दहेज प्रथा) को दूर करना होगा। थामस वेबर का कहना है कि, जयप्रकाश नारायण दलविहीन लोकतान्त्रिक व्यवस्था के पक्षधर थे। उनकी इच्छा वास्तविक लोकतन्त्र के अन्तर्गत एक ऐसे समाज की स्थापना की थी, जिसमें असमानता न हो तथा सभी लोगों को अपने विकास के लिए समान अवसर प्राप्त हों।

जहां गुजरात में गुजरात नवनिर्माण आन्दोलन चल रहा था, वहीं बिहार में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार आन्दोलन चल रहा था। इन दोनों आन्दोलनों ने केन्द्र में कांग्रेस सरकार को भी चुनौतियां पेश की तथा श्रीमती गांधी ने इन आन्दोलनों के दबाव में आकर आपात्काल की घोषणा की।

प्रश्न 4.
1975 में की गई आपात्कालीन घोषणा के कारणों की विस्तृत व्याख्या करें।
उत्तर:
1970 का दशक भारतीय राजनीति के लिए सर्वाधिक परिवर्तनशील एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह दशक कांग्रेस पार्टी विशेषकर प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के लिए विशेष महत्त्व रखता है। जहां इस दशक के शुरुआत में (1971) पाकिस्तान को युद्ध में हराकर श्रीमती गांधी पूरे देश में लोकप्रिय हो गईं, वहीं 1975 तक आते-आते भारतीय राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियां इतनी बदल गईं कि श्रीमती गांधी को देश में आपात्काल की घोषणा करनी पड़ी। जो श्रीमती गांधी 1971 में देश में सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थीं, उन्हें अपनी रक्षा के लिए 25 जून, 1975 को आपात्काल की घोषणा करनी पड़ी।

इतना ही नहीं 1977 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी एवं स्वयं श्रीमती गांधी को पराजय का सामना भी करना पड़ा। जून, 1975 में श्रीमती इन्दिरा गांधी को निम्नलिखित कारणों से आपात्कालीन घोषणा करनी पड़ी

1.1971 के युद्ध में हुआ अत्यधिक खर्च (Enormous Expenditure of 1971 War):
1975 में लागू की गई आपात्काल की घोषणा का एक प्रमुख कारण 1971 में हुए पाकिस्तान के साथ युद्ध को माना जाता है। इस युद्ध में भारत को बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ा। इसके अतिरिक्त पूर्वी पाकिस्तान से आए करोड़ों शरणार्थियों का भार भी भारत पर पड़ा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था खराब हो गई। श्रीमती गांधी का ‘गरीबी हटाओ’ का नारा धन के अभाव के कारण पूरी तरह सफल नहीं हो पाया, जिससे लोगों में असन्तोष फैला।

2. अधिक एवं अच्छी फसल का पैदा न होना (No Production of Enough and good crops):
1972 1973 में भारत में फसल भी अच्छी नहीं हुई। दूसरे शब्दों में सरकार को कृषि क्षेत्र में भी असफलता मिल रही थी, जिससे भारत का आर्थिक विकास नहीं हो पा रहा था।

3. तेल संकट (Oil Crises):
1973 में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल संकट पैदा हो गया। 1973 में ओपेक देशों (OPEC-Organisation of Pertroleum Exporting Countries) ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात मनवाने के लिए तेल का उत्पादन कम कर दिया। इसे तेल कूटनीति (Oil Diplomacy) के नाम से भी जाना जाता है। इस तेल संकट के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ गईं। तेल की कीमतें बढ़ने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी उसका प्रभाव देखा जाने लगा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति और खराब हो गई।

4. औद्योगिक उत्पाद में कमी (Decreasing Industrial Production):
भारत में प्रशिक्षित एवं कुशल वैज्ञानिकों, इंजीनियरों तथा कर्मचारियों के होने के बावजूद भी भारत के औद्योगिक उत्पाद में निरन्तर कमी हो रही थी, जिससे कर्मचारियों में असन्तोष बढ़ रहा था।

5. रेलवे की हड़ताल (Railway Strike):
1975 में की गई आपात्कालीन घोषणा का एक कारण रेलवे कर्मचारियों द्वारा की गई हड़ताल भी थी जिससे यातायात व्यवस्था बिल्कुल खराब हो गई।

6. गुजरात का नवनिर्माण आन्दोलन (Gujarat Navnirman Movement):
अहमदाबाद के एल० डी० इन्जीनियरिंग महाविद्यालय के छात्रावास में खाने में 20% की वृद्धि पर विवाद के कारण अहमदाबाद में असन्तोष फैल गया तथा आगे चलकर इस असन्तोष ने गुजरात नवनिर्माण आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। इस एक घटना से अहमदाबाद राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में आ गया। यह आन्दोलन इतना व्यापक था कि गुजरात के मुख्यमन्त्री चिमनभाई पटेल को त्याग-पत्र देना पड़ा। 1975 में श्रीमती गांधी ने जो आपात्काल की घोषणा की थी, उसका एक प्रमुख कारण गुजरात का नवनिर्माण आन्दोलन भी था।

7. बिहार आन्दोलन (Bihar Movement):
जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार में चलाया गया बिहार आन्दोलन भी 1975 में आपात्काल की घोषणा का एक प्रमुख कारण था, क्योंकि इस आन्दोलन के कारण जयप्रकाश नारायण ने लोगों को श्रीमती इन्दिरा गांधी के विरुद्ध एकजुट कर दिया था। बिहार आन्दोलन ने केन्द्र में कांग्रेस सरकार को चुनौतियां पेश की तथा श्रीमती गांधी ने इन आन्दोलनों के दबाव में आपात्काल की घोषणा की। .

8. श्रीमती गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित करना (Mrs. Gandhi’s Election Declare illegal) :
श्रीमती गांधी द्वारा 1975 में आपातकाल की घोषणा का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं तात्कालिक कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके निर्वाचन को अवैध घोषित करना था। श्रीमती गांधी को छ: वर्ष तक संसद् की सदस्यता न ग्रहण करने की सज़ा दी गई। परन्तु अदालत ने श्रीमती गांधी को अपील का एक मौका देते हुए अपने निर्णय को स्थगित रखा।

अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि श्रीमती गांधी अपना प्रधानमन्त्री का कार्यकाल पूरा कर सकती हैं, परन्तु इस दौरान वह न तो संसद् में भाषण दे सकती हैं, न ही किसी विषय में मतदान कर सकती हैं और न ही वेतन प्राप्त कर सकती हैं। इस प्रकार के निर्णय से श्रीमती गांधी के लिए परिस्थितियां एकदम प्रतिकूल हो गईं, क्योंकि विरोधी दलों ने इस आधार पर उनसे त्याग-पत्र की मांग की तथा श्रीमती गांधी के विरुद्ध एकजुट होकर आन्दोलन करने लगे। इन परिस्थितियों पर काबू पाने के लिए श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को आपात्काल की घोषणा की।

प्रश्न 5.
सन् 1975 में घोषित आपात्काल के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1975 में श्रीमती गांधी के लिए राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियां इतनी खराब हो गईं कि उन्हें 25 जून, 1975 को भारत में पहली बार आन्तरिक सुरक्षा के आधार पर आपात्काल की घोषणा करनी पड़ी। इससे पहले जब भी आपात्काल की घोषणा की गई, वह युद्ध के समय की गई थी। राष्ट्रपति फखरूदीन अली अहमद एवं संसद् पर श्रीमती गांधी का प्रभाव होने के कारण आपात्काल की घोषणा की स्वीकृति में भी कोई बाधा नहीं आई।

आपात्काल की घोषणा के बाद श्रीमती गांधी ने अपने विरोधियों को जेलों में डालना शुरू कर दिया। उन्होंने गुजरात तथा तमिलनाडु की विधानसभाओं को भंग कर दिया। आन्तरिक सुरक्षा कानून (Maintenance of Internal Security Act-MISA) के अन्तर्गत लोगों को बिना कारण बताए कानूनी हिरासत में ले लिया जाता था तथा इस कानून के अन्तर्गत न्यायपालिका को भी कारण बताने की आवश्यकता नहीं थी।

संजय गांधी ने देश की जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए नसबन्दी कार्यक्रम चलाया। दिल्ली की आबादी को कम करने का प्रयास किया तथा गन्दी बस्तियों को हटाया। इस दौरान प्रैस की स्वतन्त्रता पर पाबन्दी लगा दी गई। लोगों को अपने विचार व्यक्त करने की आजादी नहीं थी। परन्तु मार्च, 1977 में श्रीमती गांधी ने आपात्काल की घोषणा समाप्त कर दी तथा नये चुनाव करवाये। इन चुनावों में कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा, यहां तक कि श्रीमती गांधी स्वयं भी चुनाव हार गई।

आपात्काल के संवैधानिक एवं उत्तर संवैधानिक पक्ष (Constitutional and Extra Constitutional dimensions of Emergency)-आपात्काल के दौरान कुछ संवैधानिक एवं उत्तर संवैधानिक पक्ष भी सामने आए। श्रीमती गांधी ने संविधान में 39वां संवैधानिक संशोधन किया। इस संशोधन द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री तथा स्पीकर के चुनाव से सम्बन्धित मुकद्दमों की सुनवाई की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति समाप्त कर दी गई। इसके स्थान पर सरकार ने यह घोषणा की कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री तथा स्पीकर के चुनाव से सम्बन्धित मुकद्दमों की सुनवाई एक आयोग करेगा।

39वें संशोधन की उपधारा 4 के अन्तर्गत उपरोक्त पदों से सम्बन्धित चुनावों को न्यायालय में चुनौती देने की शक्ति को समाप्त कर दिया गया। इस संशोधन को पास करने का मुख्य उद्देश्य श्रीमती गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय से राहत दिलाना था। 39वें संवैधानिक संशोधन को संसद् एवं राष्ट्रपति ने केवल चार दिनों में अपनी-अपनी स्वीकृति दे दी। श्रीमती गांधी के निर्वाचन सम्बन्धी सुनवाई के समय महान्यायवादी ने 39वें संशोधन के आधार पर इस मुकद्दमे को खारिज करने की बात की।

परन्तु राज नारायण (श्रीमती गांधी के विरुद्ध चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति) के वकील ने 39वें संशोधन को संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध बताया। क्योंकि यह संशोधन स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव के विरुद्ध है। परन्तु उच्च न्यायालय की पीठ के पांच में से चार न्यायाधीशों ने 39वें संशोधन को वैध ठहराया तथा इस संशोधन के आधार पर श्रीमती गांधी के निर्वाचन को पूर्ण रूप से वैध ठहराया।

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री ए० एन० राय ने बड़े विचित्र ढंग से यह विचार व्यक्त किया कि ‘प्रजातन्त्र’ संविधान का मूल ढांचा है, परन्तु स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष चुनाव नहीं। इस प्रकार श्रीमती गांधी के निर्वाचन को वैध ठहराने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक बड़ी कवायद की गई। इसे ही प्रतिबद्ध न्यायपालिका के रूप में जाना जाता है।

आपात्काल के विरोध का दमन (Resistance of Emergency):
श्रीमती गांधी की सरकार ने आपात्काल का विरोध कर रहे लोगों का कठोरतापूर्वक दमन किया। आपात्काल की घोषणा के कुछ घण्टों के अन्दर ही प्रमुख विरोधी नेताओं को पकड़कर जेल में डाल दिया गया। विरोधी नेताओं एवं लोगों के विरुद्ध मीसा कानून के तहत कार्यवाही की गई।

निष्कर्ष (Conclusion):
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि आपात्काल की घोषणा करके श्रीमती गांधी ने राजनीतिक एवं न्यायिक व्यवस्था को अपनी इच्छानुसार चलाना चाहा। परन्तु यह घटना आगे चलकर (1977 के चुनावों में) श्रीमती गांधी एवं कांग्रेस पार्टी के लिए हानिकारक साबित हुई।

प्रश्न 6.
देश में 1975 ई० में घोषित आपात्काल से हमें क्या सबक मिले ? वर्णन करें।
उत्तर:
श्रीमती गांधी के लिए राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियां इतनी खराब हो गईं कि उन्हें 25 जून, 1975 को आपात्काल की घोषणा करनी पड़ी। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद एवं संसद् पर श्रीमती गांधी का प्रभाव होने के कारण आपात्काल की घोषणा की स्वीकृति में भी कोई बाधा नहीं आई। आपात्काल की घोषणा के बाद श्रीमती गांधी ने अपने विरोधियों को जेलों में डालना शुरू कर दिया। उन्होंने गुजरात एवं तमिलनाडु विधानसभाओं को भंग कर दिया।

मीसा (MISA) कानून के अंतर्गत लोगों को बिना कारण बताए कानूनी हिरासत में ले लिया जाता था तथा इस कानून के अन्तर्गत न्यायपालिका को भी कारण बताने की आवश्यकता नहीं थी। आपात्कालीन परिस्थितियों में श्रीमती गांधी का छोटा बेटा संजय गांधी उनके लिए सबसे अधिक मददगार बना हुआ था। संजय गांधी ने जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए नसबंदी कार्यक्रम चलाया। प्रैस की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। परन्तु मार्च, 1977 में श्रीमती गांधी ने आपात्काल की घोषणा समाप्त करके नये चुनाव करवाये। इन चुनावों में कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। यहां तक कि श्रीमती गांधी स्वयं भी चुनाव हार गईं। आपात्काल से जो सबक हमें मिलें उनका वर्णन इस प्रकार है

  • नौकरशाही एवं न्यायपालिका को सदैव स्वतन्त्र रखना चाहिए ताकि लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की . जा सके।
  • सरकार को सदैव संविधान के अनुसार शासन करना चाहिए।
  • सरकार को सदैव जनता एवं विरोधी दल का सम्मान करना चाहिए।
  • आपात्काल में एक सबक यह मिला कि भारत में लोकतन्त्र की जड़ें बहुत मज़बूत हैं तथा उसे आसानी से समाप्त नहीं किया जा सकता।
  • आपातकाल के पश्चात् भारत में कुछ संवैधानिक उलझनों को ठीक किया गया, जैसे-अन्दरूनी आपात्काल केवल सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में ही लगाया जा सकता है, इसके लिए भी आवश्यक है कि मन्त्रिपरिषद् राष्ट्रपति को लिखित सलाह दे।
  • आपातकाल के पश्चात् नागरिक अधिकारों के कई संगठन अस्तित्व में आए।

प्रश्न 7.
1977 में जनता पार्टी की स्थापना का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में जनता पार्टी की स्थापना का वही महत्त्व है जो स्वतन्त्रता के पूर्व कांग्रेस पार्टी की स्थापना का था। यदि कांग्रेस पार्टी ने भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के चंगुल से छुड़ाया और उन्हें स्वतन्त्रता प्रदान की तो जनता पार्टी ने कांग्रेस सरकार विशेषकर, श्रीमती इन्दिरा गांधी, संजय गांधी व बंसी लाल की तानाशाही से जनता को राहत दिलाई। 1 मई, 1977 का दिवस स्वतन्त्र भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। भविष्य के इतिहासकार 1 मई, 1977 को उसी दृष्टि से देखेंगे जिस प्रकार कल के इतिहासकार 1885 सन् को देखते हैं।

यद्यपि 1 मई, 1977 को जनता पार्टी का विधिवत् जन्म हुआ, परन्तु व्यवहार में जनता पार्टी की स्थापना जनवरी, 1977 में हो गई थी। प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की जनवरी, 1977 में चुनाव की घोषणा करने के पश्चात् जेलों में बन्द राजनीतिक नेताओं को धीरे-धीरे रिहा किया गया। कांग्रेस संगठन, जनसंघ, भारतीय लोकदल तथा सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं और विद्रोही कांग्रेस नेताओं ने यह अनुभव किया कि प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की तानाशाही से छुटकारा पाने के लिए एक राष्ट्रीय पार्टी का निर्माण अति आवश्यक है।

श्री जयप्रकाश नारायण 1974 से ही इन दलों को एक दल बनाने का आग्रह कर रहे थे, अतः श्री जयप्रकाश नारायण के प्रयासों के फलस्वरूप संगठन कांग्रेस जनसंघ, भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी ने मिलकर जनवरी, 1977 में जनता पार्टी की स्थापना करके भारतीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन ला दिया। विद्रोही कांग्रेस सदस्य चन्द्रशेखर, मोहन धारिया और रामधन आदि भी जनता पार्टी में शामिल हुए। जनता पार्टी ने श्री मोरारजी देसाई को पार्टी का अध्यक्ष और चौधरी चरण सिंह को उपाध्यक्ष चुना।

एक राष्ट्रीय समिति (National Committee) की स्थापना की, जिसमें 27 सदस्य थे। चार महासचिव-श्री लाल कृष्ण अडवानी, श्री सुरेन्द्र मोहन, रामधन और सिकन्दर बख्त नियुक्त किये गए। राष्ट्रीय समिति ने 31 जनवरी को चुनाव में भाग लेने की विधिवत् घोषणा की। मार्च के चुनाव घोषणा-पत्र में कहा गया कि जनता पार्टी कुछ महज़ पुरानी पार्टियों का गठबन्धन नहीं है वरन् यह एक नई और राष्ट्रीय पार्टी है जिसे संगठन कांग्रेस, भारतीय लोकदल, जनसंघ तथा समाजवादी दल और स्वतन्त्र कांग्रेस-जनों ने सफल बनाने का व्रत लिया है और यह घोषणा-पत्र इस संघबद्ध संकल्प का पुष्टि-प्रमाण है।

लोकसभा के चुनाव के समय जनता पार्टी के नेताओं ने कहा था कि समय के अभाव के कारण जनता पार्टी के चारों घटकों का विधिवत् विलय नहीं किया जा सका। उन्होंने जनता से वायदा किया था कि चुनाव के पश्चात् शीघ्र ही चारों दल विधिवत् रूप से जनता पार्टी में सम्मिलित हो जाएंगे। इन नेताओं ने अपने इस वायदे को शीघ्र ही पूरा किया, जबकि 1 मई, 1977 को हर्ष और उल्लास के वातावरण में जनता पार्टी का विधिवत् उदय हुआ।

जब संगठन कांग्रेस, जनसंघ, भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी के पिछले अध्यक्षों ने नए दल में अपनी-अपनी पार्टी के विलय की घोषणा की और प्रतिनिधियों के विशाल समूह में पार्टी ने स्थापना का प्रस्ताव सर्व-सम्मति से स्वीकार किया। प्रगति मैदान के भव्य ‘हॉल ऑफ नेशन्स’ में जनता पार्टी की स्थापना का सम्मेलन हुआ।

चारों दलों के अध्यक्षों ने अपने-अपने ढंग से और संक्षेप में घोषणा की कि उनकी पार्टियों ने अपने अस्तित्व समाप्त कर जनाकांक्षाओं की क्रान्तिकारी की प्रतीक जनता पार्टी में विलीन होने का विधिवत् निश्चय किया है। अपने-अपने दलों को विसर्जित करके उन्हें जनता पार्टी में शामिल करने के निर्णयों की घोषणा भारतीय लोकदल की ओर से चौधरी चरण सिंह ने, संगठन कांग्रेस की तरफ से श्री अशोक मेहता ने, सोशलिस्ट पार्टी की ओर से श्री जार्ज फर्नांडीज़ ने और जनसंघ की ओर से श्री लालकृष्ण अडवानी ने की।

श्री चन्द्रशेखर-“मैं यहां आपका स्वागत और अभिनन्दन करता हूं। अब समाज बदलने का एक बड़ा काम आपको और हमें मिलकर करना है।” कांग्रेस फॉर डैमोक्रेसी के अध्यक्ष श्री जगजीवन राम ने गगनभेदी नारों के बीच अपनी पार्टी के जनता पार्टी में विलय की घोषणा की। दल के महासचिव श्री नाना जी देशमुख ने सम्मेलन का संयोजन किया और जनता पार्टी को “पंच प्रवाही का पावन संगम” बताया।

प्रधानमन्त्री श्री मोरारजी देसाई ने, जो दल के अध्यक्ष थे, नया दल जनता को समर्पित करने का प्रस्ताव किया, जिसमें कहा गया कि जनता पार्टी का प्रादुर्भाव भारतीय जनता के द्वारा अपनी खोई हुई स्वाधीनता को प्राप्त करने और लोकतन्त्र के राजपथ पर अपनी खण्डित जनता के द्वारा पुनः आरम्भ करने के संकल्प से हुआ था, प्रचण्ड जन समर्थन और उत्साहपूर्ण तथा प्रबल जन-स्वीकृति का ही परिणाम था कि विगत चुनावों में जनता पार्टी को ऐतिहासिक विजय प्राप्त हो सकी। अब वह अपने कोटि-कोटि समर्थकों और शुभचिन्तकों को अपने परिवार में सम्मिलित होने का निमन्त्रण देती है ताकि वह जन-संकल्प की पूर्ति का उपयोगी एवं जीवन्त उपकरण बन सकें।

जन-सहयोग का आह्वान करते हुए प्रस्ताव में कहा गया : जनता पार्टी जनता की समस्त आशा-आकांक्षाओं की अमूल्य धरोहर लेकर चल रही है। जनता पार्टी और सरकार को जितना अधिक सक्रिय सहयोग जनता की ओर से प्राप्त होगा, उतनी ही अधिक मात्रा में वे इन आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। जनता की गहरी सूझ-बूझ और उसके सहयोग के बिना पूर्ण लोकतन्त्र की स्थापना तथा इस प्राचीन देश का पुनर्जीवन, जिसमें स्वतन्त्रता, समता और बंधुता के आदर्श फलीभूत हो सकें, सम्भव नहीं है।

प्रस्ताव में सभी निष्ठावान और समर्पित देशवासियों को दल में आने के लिए आमन्त्रित किया गया ताकि वे इसमें शामिल होकर इसे हमारे “राष्ट्र के भाग्य के निर्माण का विशिष्ट उपकरण बनाने में सहायक हों।”. 2 अप्रैल, 1977 को जनता पार्टी की संसदीय दल की कार्यकारिणी ने अपनी पहली बैठक में दल के संविधान पर विचार किया और इसे तैयार करने के लिए एक आठ-सदस्यीय समिति की स्थापना की और पार्टी का संविधान तैयार किया गया।

उद्देश्य (Aims)-जनता पार्टी के संविधान की धारा 2 में पार्टी के उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया है, जिसमें लिखा हुआ है-“स्वाधीनता संग्राम के दौरान जिन उदात्त निष्ठाओं ने हमारा मार्ग प्रशस्त किया था और जो विरासत में हमें गांधी जी के आदर्शों के रूप में मिलीं, उनसे प्रेरणा लेकर जनता पार्टी एक लोकतान्त्रिक, धर्म-निरपेक्ष और समाजवादी राष्ट्र के निर्माण के लिए कृत-संकल्प है। वह ऐसी राज्य-व्यवस्था में विश्वास करती है जिसमें आर्थिक और राजनीतिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण निश्चित रूप में हो। वह शान्तिमय तथा लोकतान्त्रिक तरीकों से विरोध प्रकट करने के अधिकार को मानती है, जिनमें सत्याग्रह और अहिंसक विरोध शामिल है।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 8.
1977 के आम चुनावों में जनता पार्टी की जीत के क्या कारण थे ?
अथवा
सन् 1977 ई० में हुए छठी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1977 के छठे आम चुनाव कई कारणों से भारतीय राजनीति में ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं। इन चनावों में पहली बार केन्द्र में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा तथा उसका भारतीय राजनीति पर एकाधिकार पूरी तरह समाप्त हो गया। इन चुनावों में मतदाताओं ने जनता पार्टी को ऐतिहासिक जीत दिलवाई। 1977 के लोकसभा चुनावों की दलीय स्थिति इस प्रकार है

राजनीतिक दलसीटें जीवीं
1. जनता पार्टी272
2. कांग्रेस फार डेमोक्रेसी22
3. कांग्रेस153
4. सी०पी०आई०7
5. सी०पी०एम०22
6. ए०डी०एम०के०18
7. डी०एम०के०1
8. अकाली दल9
9. अन्य37

1977 के चुनावों में जनता पार्टी की जीत एवं कांग्रेस पार्टी की हार के निम्नलिखित कारण थे

1. आपात्काल की घोषणा (Declaration of Emergency):
1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार का सबसे बड़ा एवं तात्कालिक कारण श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा की गई आपात्काल की घोषणा थी। इस घोषणा के विरोध में सभी राजनीतिक दल एक जुट हो गए तथा जनता पार्टी का निर्माण किया तथा 1977 के चुनावों में इस पार्टी को
आपात्काल के कारण जीत प्राप्त हुई।

2. आपात्काल के दौरान अत्याचार (Excesses during Emergency):
श्रीमती गांधी ने न केवल आपात्काल ही लाग किया बल्कि लोगों पर कई प्रकार के अत्याचार भी किये गए। लोगों की स्वतन्त्रताओं को निलम्बित कर दिया गया। कोई भी व्यक्ति या दल सत्ताधारी पार्टी एवं आपातकाल के विरुद्ध नहीं बोल सकता था। इस कारण लोगों में कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध असन्तोष पैदा हुआ तथा उन्होंने कांग्रेस पार्टी को हराकर जनता पार्टी को जितवाया।

3. संजय गांधी की (Role of Sanjay Gandhi):
आपात्काल के समय उत्तर संवैधानिक तत्त्व (Extra Constitutional Element) के रूप में संजय गांधी का उभरना था। संजय गांधी सभी प्रकार की शक्तियों का प्रयोग कर रहे थे, परन्तु वे किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। आपातकाल के समय संजय गांधी द्वारा निभाई गई भूमिका के प्रति भी लोगों में असन्तोष था।

4. मीसा कानून (Implemention of MISA):
आपात्काल के दौरान श्रीमती गांधी ने मीसा कानून (MISA) लागू किया, जिसके अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए तथा मुकद्दमा चलाए जेल में डाला जा सकता था। इस कानून के कारण किसी भी व्यक्ति का जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति सुरक्षित नहीं थी।

5. धन (Constitutional Amendments) :
आपातकाल के समय जब सभी महत्त्वपूर्ण विरोधी नेता जेलों में बन्द थे, तब सरकार ने संविधान में 39वां एवं 42वां संशोधन पास करके न्यायपालिका की शक्तियों को घटाकर कार्यपालिका की शक्तियों को बढ़ा दिया। इस प्रकार के संशोधन संविधान की मूल भावना के विरुद्ध थे।

6. संजय गांधी को महत्त्वपूर्ण नेता के रूप में प्रस्तुत करना (Elevation of Sanjay Gandhi as a great Leader) आपातकाल के दौरान श्रीमती गांधी ने अपने छोटे बेटे संजय गांधी को महत्त्वपूर्ण नेता के रूप में प्रस्तुत किया तथा कांग्रेसी नेताओं को अधिक महत्त्व नहीं दिया।

7. युवा कांग्रेस का अनावश्यक महत्त्व (Unwanted Importance of Youth Congress) :
आपात्काल के समय कांग्रेस के अनुभवी नेताओं की अपेक्षा युवा कांग्रेस को अधिक महत्त्व दिया गया। आपात्काल के समय युवा कांग्रेस द्वारा निभाई गई भूमिका से न केवल पुराने कांग्रेसी नेता ही नाराज़ थे, बल्कि जन साधारण लोगों में भी इसके प्रति नाराज़गी थी।

8. जगजीवन राम का त्याग-पत्र (Resignation of Jagjivan Ram):
आपात्काल के समय जगजीवन राम जैसे श्रीमती गांधी के वफादार नेता भी उनके साथ नहीं रहे तथा कांग्रेस एवं सरकार से त्याग-पत्र दे दिया। इससे लोगों को यह अनुभव हुआ कि शासन के ऊपरी स्तर पर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

9. अनिवार्य नसबंदी (Compulsory Sterilization):
आपात्काल के समय संजय गांधी द्वारा चलाया गया नसबंदी कार्यक्रम भी कांग्रेस की हार का एक प्रमुख कारण बना। यद्यपि भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी तथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था का संकट ल जनसंख्या वृद्धि को रोकने के उपाय करने आवश्यक थे, परन्तु इसके लिए अनिवार्य नसबंदी कार्यक्रम की आवश्यकता नहीं थी। इसके अन्तर्गत लोगों को जबरदस्ती अस्पताल भेजकर उनकी नसबंदी कर दी जाती थी। इस कारण कई लोगों की मृत्यु भी हो गई।

10. कीमतों का बढ़ना (Rising Prices):
श्रीमती गांधी की सरकार सभी प्रकार के उपाय करके भी कीमतों की वृद्धि को नहीं रोक पा रही थी तथा 1971 के चुनावों में उनके द्वारा दिया गया ‘गरीबी हटाओ’ का नारा भी दम तोड़ता नज़र आ रहा था।

11. कर्मचारियों की खराब दशा (Pitiable Condition of the Employees):
कीमतों के बढ़ने से सरकारी कर्मचारियों की दशा खराब होने लगी, क्योंकि उनका वेतन निश्चित था तथा उस वेतन से वे बढ़ती हुई महंगाई में अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे थे।

12. बोनस की समाप्ति (Abolition of Bonus):
कांग्रेस पार्टी ने सार्वजनिक क्षेत्रों के कर्मचारियों के बोनस को भी समाप्त कर दिया, जिससे कर्मचारी वर्ग भी कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध हो गया।

13. प्रेस पर प्रतिबन्ध (Censorship on Press):
आपात्काल के समय श्रीमती गांधी ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया। कोई भी समाचार-पत्र या पत्रिका सरकार एवं कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध नहीं लिख सकती थी। समाचार-पत्र एवं पत्रिका में प्रकाशित होने वाली खबरों को पहले सरकार द्वारा पास किया जाता था। इस तरह के प्रतिबन्ध से भी लोगों में असन्तोष था।

निष्कर्ष (Conclusion):
उपरोक्त वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार एवं जनता पार्टी की जीत के कई कारण थे, परन्तु उस समय महत्त्वपूर्ण कारण आपात्काल की घोषणा थी, जिसके कारण अधिकांश मतदाता कांग्रेस के विरुद्ध हो गये।

प्रश्न 9.
1977 के लोकसभा चुनावों के किन्हीं तीन निष्कर्षों का वर्णन करें।
उत्तर:
1977 के छठे आम चुनाव कई कारणों से भारतीय राजनीति में ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं। इन चुनावों में पहली बार केन्द्र में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा तथा उसका भारतीय राजनीति पर एकाधिकार पूरी तरह समाप्त हो गया। 1977 के लोकसभा चुनावों के तीन निष्कर्ष निम्नलिखित रहे

1. कांग्रेस के एकाधिकार की समाप्ति:
1977 के चुनावों का सबसे महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष यह रहा कि पिछले तीन दशकों से कांग्रेस पार्टी का चला आ रहा प्रभुत्व समाप्त हो गया।

2. केन्द्र में प्रथम गठबंधन सरकार का निर्माण:
1977 के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में पहली बार गठबंधन सरकार का निर्माण हआ। विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी के झण्डे के नीचे गठबंधन सरकार का निर्माण किया। जनता पार्टी को मार्च, 1977 के लोकसभा के चुनाव में भारी सफलता प्राप्त हुई। 542 सीटों में से जनता पार्टी को 272 सीटें और कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी को 28 सीटें प्राप्त हुईं।

चूंकि 1 मई, 1977 को कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी जनता पार्टी में विलय हो गई, इसलिए जनता पार्टी की लोकसभा में संख्या 300 हो गई। याद रहे, कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी ने जनता पार्टी के झंडे और चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लड़ा था। इस प्रकार जनता पार्टी ने कांग्रेस को करारी हार दी, अत: जनता पार्टी की सरकार बनी। यह प्रथम अवसर था जब केंद्र में गैर-कांग्रेस सरकार की स्थापना हुई थी।

3. नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए लोगों का संघ:
1977 के चुनावों के पश्चात् कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं ने नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए लोगों के संघ का निर्माण किया। यह संगठन नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए जनमत तैयार करवाता था, संवैधानिक संगठनों को उचित ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करता था। इस संगठन के कार्यकर्ता मानवाधिकारों के हनन की जाँच करके उसका प्रकाशन करवाते थे तथा सार्वजनिक गोष्ठियों में उस पर विचार करते थे तथा आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय की शरण भी लेते थे।

प्रश्न 10.
नागरिक स्वतन्त्रताओं के संगठनों के उदय का वर्णन करें।
उत्तर:
1975 में सरकार द्वारा की गई आपात्काल की घोषणा ने भारतीय लोगों में कई सन्देह पैदा कर दिये। लोगों में स्वतन्त्र भारत में पहली बार यह सन्देह पैदा हुआ कि जिस लोकतन्त्र को वे अपने अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी मानते थे, उसी लोकतन्त्र का सहारा लेकर सरकार ने आपात्काल की घोषणा कर दी तथा लोगों के सभी प्रकार के अधिकारों एवं स्वतन्त्रताओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया। आपात्काल के समय लोगों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया, प्रैस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, न्यायपालिका की शक्ति को सीमित कर दिया गया तथा जो लोग आपात्काल का विरोध करते थे, उन्हें जेलों में डाल दिया जाता था।

आपात्काल के समय निरोधक नज़रबन्दी का भी बहुत प्रयोग किया गया। इससे पता चलता है कि जो धाराएं लोगों के जीवन की सुरक्षा की गारंटी हैं, उनमें भी कुछ कमियां मौजूद हैं। अतः आपात्काल की समाप्ति के पश्चात् यद्यपि लोकतन्त्र की स्थापना हुई, परन्तु उसमें नागरिक समाज की सीमा में वृद्धि कर दी गई। आपात्काल से पहले लोगों ने नागरिक स्वतन्त्रता के संगठनों की आवश्यकता अनुभव नहीं की, परन्तु आपात्काल के समय एवं इसके पश्चात् लोगों को इसकी कमी अनुभव होने लगी। अतः आपात्काल एवं इसके पश्चात् नागरिक स्वतन्त्रता संगठनों के उदय एवं प्रसार में कुछ प्रगति हुई जिसका वर्णन इस प्रकार है

1. नागरिक स्वतन्त्रता आन्दोलन का उदय (Rise of Civil Liberties Movements):
आपात्काल की घोषणा से कुछ समय पहले सरकार ने न्यायपालिका, वैज्ञानिक संस्थाओं के विकास एवं सामाजिक आर्थिक उन्नति के लिए कुछ पद्धतियों का वर्णन किया, जिसमें श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा दिया गया 20 सूत्रीय कार्यक्रम एवं संजय गांधी द्वारा दिया गया 4 सूत्रीय कार्यक्रम शामिल है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य ग़रीबी हटाने के लक्ष्य को प्राप्त करना था, जिसमें कि देश का सामाजिक एवं आर्थिक विकास हो सके। परन्तु साथ ही इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए वचनबद्ध नौकरशाही एवं वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा की मांग की गई। सरकार ने यह आशा प्रकट की कि सभी लोग इसमें अपना सहयोग दें।

2. गांधीवादी दृष्टिकोण (Gandhian Approach):
गांधीवादी दृष्टिकोण जयप्रकाश नारायण से सम्बन्धित था। जयप्रकाश नारायण ने बिहार आन्दोलन के समय दल विहीन लोकतन्त्र तथा पूर्ण क्रान्ति का नारा दिया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन को भी इसमें शामिल किया। जयप्रकाश नारायण ने इसके लिए गुजरात एवं बिहार के युवा छात्रों को शामिल किया तथा एक नवनिर्माण समिति का गठन किया।

इस समित्ति का उद्देश्य सार्वजनिक जीवन से भ्रष्टाचार को समाप्त करना था। इन सभी कारणों से भारत में नागरिक स्वतन्त्रताओं की सुरक्षा का आन्दोलन शुरू हुआ तथा इससे नागरिक स्वतन्त्रता के लिए लोगों का संगठन एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों का संघ नाम के दो संगठन सामने आए।

3. नक्सलवादी दृष्टिकोण (Naxalite’s Approach):
नक्सलवादी पद्धति बंगाल, केरल एवं आन्ध्र प्रदेश में सक्रिय थी। नक्सलवाद वामदलों से अलग हुआ गुट था, क्योंकि इनका वामदलों से मोह भंग हो गया था। इन्होंने लोगों की स्वतन्त्रता एवं मांगों को पूरा करने के लिए हिंसा का सहारा लिया, परन्तु सरकारों ने इस प्रकार के आन्दोलन को समाप्त करने के लिए बल प्रयोग का सहारा लिया।

4. नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों का संघ (People’s Union for Civil Liberties and Democratic Rights):
नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ का उदय अक्तबर. 1976 में हआ। संगठन ने न केवल आपातकाल में ही बल्कि सामान्य परिस्थितियों में भी लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहने के लिए कहा। क्योंकि प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में भी प्रायः मानवाधिकारों का हनन होता रहता है।

कई युवाओं को नक्सलवादी कहकर मार दिया जाता है, जबकि वे नक्सलवादी नहीं होते। 1980 में नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ का नाम बदलकर ‘नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए लोगों का संघ’ रख दिया गया, तथा इस संगठन का प्रचार-प्रसार पूरे देश में किया गया। यह संगठन नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए जनमत तैयार करवाता था। यह संगठन संवैधानिक संगठनों को भी उचित ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करता था। यह संगठन मानवाधिकारों के हनन की जांच करके, उसका प्रकाशन करवाते थे तथा सार्वजनिक गोष्ठियों में उस पर विचार-विमर्श करते थे तथा आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय की शरण भी लेते थे।

नागरिक स्वतन्त्रता के संगठनों की समस्याएं (Problems of the Organisation of Civil Liberties) नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए लोगों के संघ को अपने कार्यों एवं लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कई प्रकार की समस्याओं . का भी सामना करना पड़ता है, जिनका वर्णन इस प्रकार है लोकतान्त्रिक व्यवस्था का संकट

  • प्रायः इस प्रकार की संस्थाओं को राष्ट्र विरोधी कहकर इनकी आलोचना की जाती है।
  • नागरिक स्वतन्त्रता के संगठनों की गतिविधियां आतंकवादियों से भी प्रभावित रही हैं।
  • नागरिक स्वतन्त्रता के संगठनों की सफलता से कुछ ऐसे असामाजिक तत्त्व भी इसमें शामिल हो गए हैं, जो इन संगठनों की विश्वसनीयता को अपनी गतिविधियों से कम कर रहे हैं।
  • कुछ तथाकथित ऐसे समाज सुधारक भी इन संगठनों से जुड़ गए हैं, जिनके लिए यह केवल एक व्यवसाय

प्रश्न 11.
जिन सरकारों को लोकतन्त्र विरोधी माना जाता है, मतदाता उन्हें भारी दण्ड देते हैं। 1975-1977 की आपातकालीन स्थिति के सन्दर्भ में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1975 में श्रीमती गांधी के लिए राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियां इतनी खराब हो गईं कि उन्हें 25 जून, 1975 को भारत में पहली बार आन्तरिक सुरक्षा के आधार पर आपात्काल की घोषणा करनी पड़ी। इससे पहले जब भी आपात्काल की घोषणा की गई, वह युद्ध के समय की गई थी। राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद एवं संसद् पर श्रीमती गांधी का प्रभाव होने के कारण आपात्काल की घोषणा की स्वीकृति में भी कोई बाधा नहीं आई।

आपात्काल की घोषणा के बाद श्रीमती गांधी ने अपने विरोधियों को जेलों में डालना शुरू कर दिया। उन्होंने गुजरात तथा तमिलनाडु की विधानसभाओं को भंग कर दिया। आन्तरिक सुरक्षा कानून (Maintenance of Internal Security Act-MISA) के अन्तर्गत लोगों को बिना कारण बताए कानूनी हिरासत में ले लिया जाता था तथा इस कानून के अन्तर्गत न्यायपालिका को भी कारण बताने की आवश्यकता नहीं थी।

इस दौरान प्रेस की स्वतन्त्रता पर पाबन्दी लगा दी गई। लोगों को अपने विचार व्यक्त करने की आजादी नहीं थी। परन्तु मार्च, 1977 में श्रीमती गांधी ने आपात्काल की घोषणा समाप्त कर दी तथा नये चुनाव करवाये। इन चुनावों में कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा, यहां तक कि श्रीमती गांधी स्वयं भी चुनाव हार गईं। भारतीय मतदाताओं ने आपातकाल के दौरान की गई गलतियों के लिए कांग्रेस सरकार को दण्डित किया। नोट-आपात्काल में कांग्रेस द्वारा की गई गलतियों के लिए प्रश्न नं० 8 देखें।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 12.
“सरकार अगर अस्थिर हो और इसके भीतर झगड़े हों तो मतदाता ऐसी सरकार को कड़ा दण्ड देते हैं।” जनता पार्टी के शासन के सन्दर्भ में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में जनता पार्टी की स्थापना का वही महत्त्व है जो स्वतन्त्रता के पूर्व कांग्रेस पार्टी की स्थापना का था। यदि कांग्रेस पार्टी ने भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के चंगुल से छुड़ाया और उन्हें स्वतन्त्रता प्रदान की तो जनता पार्टी ने कांग्रेस सरकार विशेषकर श्रीमती इन्दिरा गांधी, संजय गांधी व बंसी लाल की तानाशाही से जनता को राहत दिलाई। 1 मई, 1977 का दिवस स्वतन्त्र भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा।

भविष्य के इतिहासकार 1 मई, 1977 को उसी दृष्टि से देखेंगे जिस प्रकार कल के इतिहासकार 1855 सन् को देखते हैं। यद्यपि 1 मई, 1977 को जनता पार्टी का विधिवत् जन्म हुआ, परन्तु व्यवहार में जनता पार्टी की स्थापना जनवरी, 1977 में हो गई थी। 1977 के चुनावों में जनता पार्टी को भारी एवं ऐतिहासिक चुनावी सफलता मिली तथा मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी।

परन्तु यह सरकार सफलतापूर्वक कार्य नहीं कर पाई, जिसके कई कारण थे। इस पार्टी के घटक दलों में तालमेल का अभाव था। प्रत्येक नेता बड़े पद की इच्छा रखे हुए था जिसके कारण इनमें लगातार खींचातान चलती रही। जनता पार्टी के पास एक ठोस कार्यक्रम, नीति एवं दिशा का अभाव था। यह पार्टी कांग्रेस की नीतियों में कोई मूलभूत बदलाव नहीं ला सकी।

धीरे-धीरे जनता पार्टी में आन्तरिक कलह बढ़ती गई, परिणामस्वरूप मोरारजी देसाई की सरकार ने 18 माह बाद ही अपना बहुमत खो दिया। इसके पश्चात् चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमन्त्री बने, परन्तु वे भी अधिक समय तक सत्ता नहीं सम्भाल सके। परिणामस्वरूप 1980 के चुनावों में जनता ने जनता पार्टी को हराकर पुनः श्रीमती इन्दिरा को जिता दिया तथा जनता पार्टी को इसकी अस्थिरता एवं आन्तरिक झगड़े की सज़ा दी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘वचनबद्ध नौकरशाही’ क्या है ?
अथवा
बचनबद्ध नौकरशाही से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वचनबद्ध अथवा प्रतिबद्ध (Committed) नौकरशाही का अर्थ यह है कि नौकरशाही किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के सिद्धान्तों एवं नीतियों से बंधी हुई रहती है और उस दल के निर्देशन में ही कार्य करती है। प्रतिबद्ध नौकरशाही निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करती बल्कि इसका कार्य किसी दल विशेष की योजनाओं को बिना कोई प्रश्न उठाए आंखें मूंद कर लागू करना होता है। लोकतान्त्रिक देशों में नौकरशाही प्रतिबद्ध नहीं होती।

इंग्लैण्ड, अमेरिका, स्विट्ज़रलैण्ड आदि देशों में नौकरशाही प्रतिबद्ध नहीं है, परन्तु साम्यवादी देशों में जैसे कि चीन में वचनबद्ध नौकरशाही पाई जाती है। चीन में एक ही राजनीतिक दल (साम्यवादी दल) है और वहां पर नौकरशाही साम्यवादी दल के सिद्धान्तों एवं लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध है। नौकरशाही का परम कर्त्तव्य साम्यवादी दल के लक्ष्यों को पूरा करने में सहयोग देना है।

भारत में भी प्रतिबद्ध नौकरशाही की बात कही जाती है, परन्तु भारत में नौकरशाही किसी दल के सिद्धान्तों के प्रति वचनबद्ध न होकर संविधान के प्रति वचनबद्ध है। कोई भी दल सत्ता में क्यों न हो, नौकरशाही का कार्य राजनीतिक कार्यपालिका की नीतियों को नियम के अनुसार लागू करना है।

प्रश्न 2.
वचनबद्ध न्यायपालिका से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
वचनबद्ध न्यायपालिका से अभिप्राय ऐसी न्यायपालिका से है, जो एक दल विशेष या सरकार विशेष के प्रति वफ़ादार हो तथा सरकार के निर्देशों एवं आदेशों के अनुसार ही चले। 1973 में प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों श्री जे०एम० शैलट, श्री के०एस० हेगड़े तथा श्री ए०एन० ग्रोवर की उपेक्षा करके श्री ए०एन० राय को नियुक्त किया। इस नियुक्ति से उस समय एक राजनीतिक एवं न्यायिक विवाद पैदा हो गया। श्री ए०एन० राय की नियुक्ति के विरोध में तीनों वरिष्ठ न्यायाधीशों ने अपने पद से त्याग दिया। इससे यह प्रश्न उठने लगा कि क्या न्यायपालिका सरकार के प्रति वचनबद्ध होनी चाहिए या स्वतन्त्र। प्रश्न 3. भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा का उदय कैसे हुआ ?
उत्तर:
1973 में स्वामी केशवानन्द भारती एवं अन्य ने 24वें तथा 25वें संवैधानिक संशोधनों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। ये संशोधन संसद् को सभी अधिकारों में हस्तक्षेप से सम्बन्धित थे, जिसमें समुदाय बनाना तथा धर्म की स्वतन्त्रता भी शामिल थी। स्वामी केशवानन्द भारती मुकद्दमे की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय की एक 13 सदस्यीय संविधान पीठ ने की। 13 में से 9 न्यायाधीशों ने यह निर्णय दिया कि संसद् मौलिक अधिकारों सहित संविधान में संशोधन कर सकती है, परन्तु संविधान के मूलभूत ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती।

इस निर्णय से सरकार एवं न्यायपालिका में मतभेद बढ़ गए, क्योंकि 1973 में सरकार का नेतृत्व श्रीमती इन्दिरा गांधी कर रही थीं, अत: यह विवाद श्रीमती गांधी एवं न्यायालय के बीच हुआ, जिसमें जीत न्यायालय की हुई, क्योंकि न्यायालय ने संसद् की संविधान में संशोधन करने की शक्ति को सीमित कर दिया। इसी कारण श्रीमती गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा को आगे बढ़ाया। 1975 में आपात्काल के समय वचनबद्ध न्यायपालिका का सिद्धान्त कार्यपालिका का सिद्धान्त बन गया।

प्रश्न 4.
‘वचनबद्ध’ न्यायपालिका के लिए इन्दिरा गांधी सरकार द्वारा किन उपायों का प्रयोग किया गया था ?
उत्तर:
1. न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी-श्रीमती गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता की अनदेखी की। श्रीमती गांधी ने श्री ए०एन० राय को तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी करके सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया था।

2. न्यायाधीशों का स्थानान्तरण-श्रीमती गांधी ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों के स्थानान्तरण का सहारा भी लिया। उन्होंने 1981 में मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इस्माइल को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाकर भेजा।

3. रिक्त पदों को भरने से मना करना-सरकार ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए कई बार रिक्त पदों को भरने से भी मना कर दिया।

4. अन्य पदों पर नियुक्तियां-सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों में से उन्हें राज्यपाल, राजदूत, मन्त्री या किसी आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जो सरकार के प्रति वफादार थे।

प्रश्न 5.
गुजरात में नवनिर्माण आन्दोलन कब आरम्भ हुआ ?
अथवा
गुजरात के नवनिर्माण आन्दोलन का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
गुजरात में 1970 के दशक में नवनिर्माण आन्दोलन की शुरुआत हुई थी। अहमदाबाद के एल० डी० इन्जीनियरिंग महाविद्यालय के छात्रावास में खाने में 20% की वृद्धि पर विवाद के कारण अहमदाबाद में असन्तोष फैल गया तथा आगे चलकर इस असन्तोष ने गुजरात नवनिर्माण का रूप धारण कर लिया। इस एक घटना से अहमदाबाद राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में आ गया। गुजरात नवनिर्माण आन्दोलन उन लोगों के विरुद्ध था, जो हरित क्रान्ति एवं श्वेत क्रान्ति के समर्थक थे। यह आन्दोलन इतना व्यापक था कि गुजरात के मुख्यमन्त्री चिमनबाई पटेल को त्याग-पत्र देना पड़ा।

नवनिर्माण आन्दोलन धीरे-धीरे सम्पूर्ण गुजरात में फैल गया तथा अनेक लोग इस आन्दोलन से जुड़ गए। कांग्रेस पार्टी ने नवनिर्माण आन्दोलन के विरुद्ध एक चुनावी रणनीति तैयार की, जिसे क्षत्रिय-हरिजन-आदिवासी तथा मुस्लिम मिलन (Kshatriya-Harijan-Adivasi-Muslim Combine-KHAM) का नाम दिया। 1980 के गुजरात विधानसभा चुनावों में इस योजना को सफलता मिली, परन्तु इससे उच्च जातियों को पहली बार यह अनुभव हुआ कि शक्ति उच्च वर्गों से निकलकर मध्यम वर्ग की ओर जा रही है।

प्रश्न 6.
‘बिहार आन्दोलन’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा
‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
बिहार आन्दोलन जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 में चलाया गया था। बिहार आन्दोलन शासन में भ्रष्टाचारी एवं अयोग्य कर्मचारियों के विरुद्ध चलाया गया था। इस आन्दोलन को पूर्ण या व्यापक क्रान्ति (Total Revolution) भी कहा जाता है। जय प्रकाश नारायण ने 1975 में बिहार के लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि बिहार आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य समाज एवं व्यक्ति के सभी पक्षों में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना है।

यह उद्देश्य ऐसा नहीं है, जिसे एक दिन या एक वर्ष में प्राप्त कर लिया जाए, बल्कि अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमें एक लम्बे समय तक बिहार आन्दोलन जारी रखना होगा। बिहार आन्दोलन में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को भी हल करने का प्रयास किया गया। जय प्रकाश नारायण ने बिहार आन्दोलन के चार पक्षों का वर्णन किया-प्रथम संघर्ष, द्वितीय निर्माण, तृतीय प्रचार तथा चतुर्थ संगठन। जय प्रकाश नारायण ने तात्कालिक परिस्थितियों में निर्माण कार्य पर अधिक जोर दिया।

प्रश्न 7.
आपात्काल के मुख्य चार कारण लिखो।
अथवा
1975 में आपात्काल की घोषणा के कोई चार कारण लिखिये।
अथवा
श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में की गई आपातस्थिति की घोषणा के कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर:
1. 1971 के युद्ध में अत्यधिक खर्च-1975 में लागू की गई आपात्काल की घोषणा का एक प्रमुख कारण 1971 में हुए पाकिस्तान के साथ युद्ध को माना जाता है। इस युद्ध में भारत को बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था खराब हो गई।

2. अधिक एवं अच्छी फसल का पैदा न होना-1972-73 में भारत में फसल भी अच्छी नहीं हुई। दूसरे शब्दों में सरकार को कृषि क्षेत्र में असफलता मिल रही थी।

3. गुजरात एवं बिहार आन्दोलन-आपात्काल की घोषणा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण गुजरात का नवनिर्माण आन्दोलन तथा बिहार आन्दोलन था। इन दोनों आन्दोलनों ने श्रीमती गांधी को भयभीत कर दिया।

4. श्रीमती गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित करना-श्रीमती गांधी द्वारा 1975 में आपात्काल की घोषणा का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं तात्कालिक कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके निर्वाचन को अवैध घोषित करना था।

प्रश्न 8.
आपातकाल के दौरान आम जनता व शासन पर नियन्त्रण के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए ?
उत्तर:
(1) आपात्काल की घोषणा के बाद श्रीमती गांधी ने अपने विरोधियों को जेलों में डालना शुरू कर दिया। उन्होंने गुजरात एवं तमिलनाडु विधानसभाओं को भंग कर दिया।

(2) मीसा (MISA) कानून के अन्तर्गत लोगों को बिना कारण बताए कानूनी हिरासत में ले लिया जाता था तथा इस कानून के अन्तर्गत न्यायपालिका को भी कारण बताने की आवश्यकता नहीं थी।

(3) सरकार ने जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए नसबंदी कार्यक्रम चलाया।

(4) प्रेस की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

प्रश्न 9.
1977 के चुनाव तथा जनता पार्टी के गठन का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की जनवरी, 1977 में चुनाव की घोषणा करने के पश्चात् जेलों में बन्द राजनीतिक नेताओं को धीरे-धीरे रिहा किया गया। कांग्रेस संगठन, जनसंघ, भारतीय लोकदल तथा सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं और विद्रोही कांग्रेस नेताओं ने यह अनुभव किया कि प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की तानाशाही से छुटकारा पाने के लिए एक राष्ट्रीय पार्टी का निर्माण अति आवश्यक है।

श्री जयप्रकाश नारायण 1974 से ही इन दलों को एक दल बनाने का आग्रह कर रहे थे, अत: श्री जयप्रकाश नारायण के प्रयासों के फलस्वरूप संगठन कांग्रेस, जनसंघ, भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी ने मिलकर जनवरी, 1977 में जनता पार्टी की स्थापना करके भारतीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन ला दिया। विद्रोही कांग्रेस सदस्य चन्द्रशेखर, मोहन धारिया और रामधन आदि भी जनता पार्टी में शामिल हुए। 1977 के चुनावों में जनता पार्टी ने 542 सीटों में से 300 सीटें जीतीं। इस प्रकार जनता पार्टी ने कांग्रेस को करारी हार दी।

प्रश्न 10.
सन् 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की विजय के कोई चार उत्तरदायी कारण लिखिए।
अथवा
1977 में हुए छठी लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार के कोई चार कारण बताएं।
उत्तर:
1. आपात्काल घोषणा-1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार एवं जनता पार्टी की जीत का स बड़ा एवं तात्कालिक कारण श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा की गई आपात्काल की घोषणा थी। इस घोषणा के कारण अगले चुनावों में लोगों ने जनता पार्टी को वोट दिए।

2. संजय गांधी की भूमिका- आपात्काल के समय उत्तर-संवैधानिक तत्त्व के रूप में संजय गांधी का उभरना था। आपात्काल के समय संजय गांधी द्वारा निभाई गई भूमिका के प्रति लोगों में असन्तोष था।

3. मीसा कानून-आपात्काल के दौरान श्रीमती गांधी ने मीसा कानून लागू किया, जिसके अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए तथा मुकद्दमा चलाए जेल में डाल दिया जाता था। इस कानून के कारण किसी भी व्यक्ति का जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति सुरक्षित नहीं थी।

4. संवैधानिक संशोधन- आपात्काल के समय सरकार ने संविधान में 39वां एवं 42वां संशोधन करके न्यायपालिका की शक्तियों को घटाकर कार्यपालिका की शक्तियों को बढ़ा दिया। इस प्रकार के संशोधन संविधान की मूल भावना के विरुद्ध थे।

प्रश्न 11.
नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ का उदय अक्तूबर, 1976 में हुआ। इस संगठन ने न केवल आपात्काल में ही बल्कि सामान्य परिस्थितियों में भी लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहने के लिए कहा। क्योंकि प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में भी प्राय: मानवाधिकारों का हनन होता रहता है। उदाहरण के लिए कई युवाओं को नक्सलवादी कहकर मार दिया जाता है, जबकि वे नक्सलवादी नहीं होते हैं।

1980 में नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ का नाम बदलकर ‘नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए लोगों का संघ’ रख दिया गया तथा इस संगठन का प्रचार-प्रसार पूरे देश में किया गया। यह संगठन नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए जनमत तैयार करवाता था, संवैधानिक संगठनों को उचित ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करता था। इस संगठन के कार्यकर्ता मानवाधिकारों के हनन की जांच करके उसका प्रकाशन करवाते थे तथा सार्वजनिक गोष्ठियों में उस पर विचार करते थे तथा आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय की शरण भी लेते थे।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 12.
आपात्काल से हमें मिलने वाली किन्हीं चार शिक्षाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • आपातकाल की पहली शिक्षा तो यह है कि भारत से लोकतंत्र को समाप्त कर पाना बहुत कठिन है।
  • आपात्काल के समय आपातकाल से सम्बन्धित कुछ प्रावधानों में उलझाव सामने आए जिसे बाद में ठीक कर लिया गया।
  • आपात्काल से प्रत्येक नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुआ।
  • नौकरशाही तथा न्यायपालिका को स्वतंत्र रखना चाहिए, ताकि लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सके।

प्रश्न 13.
1975 में आपात्काल की घोषणा के कोई चार परिणाम लिखिए।
उत्तर:
(1) आपात्काल का विरोध करने के लिए लगभग सभी विरोधी दल एकत्र हो गए तथा लोगों को आपातकाल के विरुद्ध आन्दोलन करने के लिए प्रेरित करने लगे। इन दलों ने आपस में मिलकर जनता पार्टी नाम के एक दल का भी निर्माण किया।

(2) आपातकाल के दौरान ही नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ का उदय अक्तूबर, 1976 में हुआ। इस संगठन ने न केवल आपात्काल में ही बल्कि सामान्य परिस्थितियों में भी लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहने के लिए कहा।

(3) आपात्काल के समय 42वां संवैधानिक संशोधन पास हुआ। (4) आपात्काल की घोषणा के कारण 1977 के चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
‘वचनबद्ध नौकरशाही’ से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
वचनबद्ध नौकरशाही से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
वचनबद्ध नौकरशाही का अर्थ यह है कि नौकरशाही किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के सिद्धान्तों एवं नीतियों से बन्धी हुई रहती है और उस दल के निर्देशों से ही कार्य करती है। वचनबद्ध नौकरशाही निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र होकर कार्य नहीं करती, बल्कि इसका कार्य किसी दल विशेष की योजनाओं को बिना कोई प्रश्न उठाए आंखें मूंद कर लागू करना होता है।

प्रश्न 2.
‘वचनबद्ध न्यायपालिका’ से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
वचनबद्ध न्यायपालिका से अभिप्रायः ऐसी न्यायपालिका से है, जो एक दल विशेष या सरकार विशेष के प्रति वफ़ादार हो तथा उसके निर्देशों एवं आदेशों के अनुसार ही चले। 1973 में प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की उपेक्षा करके श्री ए०एन० राय को नियुक्त किया, जिससे वचनबद्ध न्यायपालिका से सम्बन्धित विवाद पैदा हो गया।

प्रश्न 3.
वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए सरकार द्वारा प्रयोग किये गए किन्हीं दो उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • सरकार ने वचनबद्ध न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी की।
  • सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों में से उन्हें राज्यपाल, राजदूत, मन्त्री या किसी आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जो सरकार के प्रति वफ़ादार थे।

प्रश्न 4.
भारतीय न्यायपालिका को स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष बनाये रखने के लिए संविधान में क्या उपाय किये गए हैं ?
उत्तर:

  • न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • न्यायाधीशों की योग्यताओं का वर्णन संविधान में किया गया है।
  • न्यायाधीश एक निश्चित आयु पर सेवानिवृत्त होते हैं।
  • न्यायाधीशों को केवल महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है।

प्रश्न 5.
गुजरात के नवनिर्माण आन्दोलन पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
गुजरात में 1970 के दशक में नवनिर्माण आन्दोलन की शुरुआत हुई थी। अहमदाबाद के एल०डी० इन्जीनियरिंग महाविद्यालय के छात्रावास में खाने में 20% की वृद्धि पर विवाद के कारण अहमदाबाद में असन्तोष फैल गया। गुजरात नव-निर्माण आन्दोलन उन लोगों के विरुद्ध था, जो हरित क्रान्ति एवं श्वेत क्रान्ति के समर्थक थे। यह आन्दोलन इतना व्यापक था कि गुजरात के मुख्यमन्त्री चिमन भाई पटेल को त्याग-पत्र देना पड़ा।

प्रश्न 6.
आपात्काल से पूर्व बिहार आन्दोलन कब और किसके नेतृत्व में चलाया गया ?
अथवा
1974 में बिहार आन्दोलन को किस नाम से पुकारा जाता है और उसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर:
बिहार आन्दोलन जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 में चलाया गया था। जयप्रकाश नारायण ने इसे पूर्ण या व्यापक क्रान्ति भी कहा है। जयप्रकाश नारायण ने 1975 में बिहार के लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि बिहार आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य समाज एवं व्यक्ति के सभी पक्षों में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना है। यह उद्देश्य ऐसा नहीं है, जिसे एक दिन या एक वर्ष में प्राप्त कर लिया जाए, बल्कि अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमें एक लम्बे समय तक बिहार आन्दोलन जारी रखना होगा।

प्रश्न 7.
जयप्रकाश नारायण ने बिहार आन्दोलन के कितने पक्षों का वर्णन किया और तात्कालिक परिस्थितियों में किस पक्ष पर अधिक जोर देने के लिए कहा ?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण ने बिहार आन्दोलन के चार पक्षों-प्रथम संघर्ष, द्वितीय निर्माण, तृतीय प्रचार एवं चतुर्थ संगठन का वर्णन किया तथा तात्कालिक परिस्थितियों में निर्माण कार्य पर अधिक बल दिया।

प्रश्न 8.
1975 में की गई आपात्काल घोषणा के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:
(1) 1975 में लागू की गई आपात्काल की घोषणा का एक मुख्य कारण 1971 में हुए पाकिस्तान के साथ युद्ध को माना जाता है। इस युद्ध में भारत को बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था खराब हो गई।

(2) श्रीमती गांधी द्वारा 1975 में आपात्काल की घोषणा का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं तात्कालिक कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके निर्वाचन को अवैध घोषित करना था।

प्रश्न 9.
1977 के आम चुनावों में जनता पार्टी की जीत के कोई दो कारण बताएं।
अथवा
1977 के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:
(1) 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार एवं जनता पार्टी की जीत का सबसे बड़ा एवं तात्कालिक कारण श्रीमती गांधी द्वारा की गई आपात्काल की घोषणा थी।

(2) आपात्काल के समय उत्तर-संवैधानिक तत्त्व के रूप में संजय गांधी का उभरना था। आपात्काल के समय संजय गांधी द्वारा निभाई गई भूमिका के प्रति लोगों में असन्तोष था।

प्रश्न 10.
आपात्काल से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
श्रीमती गांधी ने 25 जून, 1975 को भारत में पहली बार आन्तरिक सुरक्षा के आधार पर आपात्काल की घोषणा की। इससे पहले जब भी आपात्काल की घोषणा की गई, वह युद्ध के समय की गई थी। राष्ट्रपति फखरूदीन अली अहमद एवं संसद् पर श्रीमती गांधी का प्रभाव होने के कारण आपात्काल की घोषणा की स्वीकृति में भी कोई बाधा नहीं आई।

आपात्काल की घोषणा के बाद श्रीमती गांधी ने अपने विरोधियों को जेलों में डालना शुरू कर दिया उन्होंने गुजरात तथा तमिलनाडु की विधानसभाओं को भंग कर दिया। आन्तरिक सुरक्षा कानून (Maintenance of Internal Security Act MISA) के अन्तर्गत लोगों को बिना कारण बताए कानूनी हिरासत में ले लिया जाता था तथा इस कानून के अन्तर्गत न्यायपालिका को भी कारण बताने की आवश्यकता नहीं थी।

प्रश्न 11.
‘नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए लोगों का संघ’ के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1980 में नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों के संघ का नाम बदलकर ‘नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए लोगों का संघ’ रख दिया गया। यह संगठन नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए जनमत तैयार करवाता था, संवैधानिक संगठनों को उचित ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करता था। इस संगठन के कार्यकर्ता मानवाधिकारों के हनन की जांच करके उसका प्रकाशन करवाते थे तथा सार्वजनिक गोष्ठियों में उस पर विचार करते थे तथा आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय की भी शरण लेते थे।

प्रश्न 12.
नागरिक स्वतन्त्रता के संगठनों की किन्हीं दो समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर:

  • प्रायः नागरिक स्वतन्त्रता के संगठनों को राष्ट्र विरोधी कहकर इनकी आलोचना की जाती है।
  • कुछ तथाकथित ऐसे समाज सुधारक भी इन संगठनों से जुड़ गए हैं, जिनके लिए यह केवल एक व्यवसाय है।

प्रश्न 13.
प्रेस सेंसरशिप किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
प्रेस सेंसरशिप का अर्थ है कि प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को कुछ भी छापने या दिखाने से पहले उसकी स्वीकृति सरकार से लेनी होती है। सरकार ही इस बात का निर्णय करती है कि क्या दिखाया या छापना चाहिए और क्या नहीं। सन् 1975-1977 में आपात्काल के दौरान सरकार ने प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी। समाचार-पत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले अनुमति लेना ज़रूरी है।

प्रश्न 14.
आपात्काल के दौरान पुलिस एवं नौकरशाहों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
आपात्काल के दौरान पुलिस एवं नौकरशाही सरकार के साथ रही। पुलिस ने मनमाने ढंग से लोगों को गिरफ्तार करके सरकार की सहायता की एवं नौकरशाही सरकार के प्रति वचनबद्ध बनी रही।

प्रश्न 15.
चारू मजूमदार का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
चारू मजूमदार एक क्रान्तिकारी समाजवादी नेता थे। उनका जन्म 1918 में हुआ। चारू मजूमदार ने तिभागा आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। इन्होंने भारतीय साम्यवादी दल (मार्क्सवादी लेनिनवादी) की स्थापना की। वे किसान विद्रोह के माओवादी धारा में विश्वास रखते थे। 1972 में पुलिस हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 16.
लोकनायक जय प्रकाश नारायण का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 1902 में हुआ। वे मार्क्सवादी विचारधारा में विश्वास रखते थे। उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लिया। स्वतन्त्रता के बाद नेहरू डल में शामिल होने से मना किया। वे बिहार आन्दोलन के प्रमुख नेता थे। 1979 में उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 17.
मोरारजी देसाई के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मोरारजी देसाई 1977 से 1979 तक देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमन्त्री थे। उनका जन्म 1896 में हुआ। वे स्वतन्त्रता सेनानी तथा गांधीवादी नेता थे। वे बांबे प्रांत के मुख्यमन्त्री भी रहे हैं। 1969 में कांग्रेस के पश्चात् वे कांग्रेस (ओ) में शामिल हुए। 1995 में उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 18.
चौ० चरण सिंह का जीवन परिचय लिखें।
उत्तर:
चौ० चरण सिंह 1979 में भारत के दूसरे गैर-कांग्रेसी प्रधानमन्त्री बने। वे एक प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे ग्रामीण एवं कृषि विकास के समर्थक थे। 1967 में उन्होंने भारतीय क्रान्ति दल की स्थापना की। वे उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमन्त्री बने। 1987 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 19.
जगजीवन राम के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
जगजीवन राम का जन्म 1908 में हुआ। वे बिहार के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता एवं स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे संविधान सभा के सदस्य थे। 1977-1979 के बीच वे देश के उप-प्रधानमन्त्री रहे। उन्होंने स्वतन्त्रता के बाद नेहरू मन्त्रिमण्डल में श्रम मन्त्री का कार्यभार सम्भाला। उनका निधन 1986 में हो गया।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 20.
जनता पार्टी के गठन के बारे में लिखिए।
उत्तर:
जनता पार्टी का गठन आपात्काल के पश्चात् 1 मई, 1977 को विधिवत रूप से हुआ। इस पार्टी में अधिकांश वे दल एवं नेता शामिल थे, जिन्होंने आपात्काल का विरोध किया था जैसे कांग्रेस संगठन, जनसंघ, भारतीय लोकदल तथा सोशलिस्ट पार्टी इत्यादि। जय प्रकाश नारायण ने इस पार्टी के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मोरारजी देसाई को पार्टी का अध्यक्ष एवं चौ० चरण सिंह को पार्टी का उपाध्यक्ष चुना गया था।

प्रश्न 21.
इन्दिरा गांधी की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
इन्दिरा गांधी की मृत्यु 31 अक्तूबर, 1984 को हुई।

प्रश्न 22.
इंदिरा गांधी के ‘बीस सूत्री कार्यक्रम’ में शामिल किन्हीं चार विषयों का नाम लिखें।
उत्तर:

  • भूमि सुधार।
  • भू-पुनर्वितरण।
  • खेतिहर मजदूरों के पारिश्रमिक पर पुनर्विचार।
  • प्रबंधन में कामगारों की भागीदारी।

प्रश्न 23.
‘नक्सलवादी आन्दोलन’ क्या है ?
उत्तर:
सन् 1964 में साम्यवादी दल में फूट पड़ गई। दोनों दलों के संसदीय राजनीति में व्यस्त होने के कारण इन दलों के सक्रिय व संघर्षशील कार्यकर्ता दलों से अलग होकर जन कार्य करने लगे । सन् 1967 में बंगाल में साम्यवादी दल की सरकार बनी। इसी समय दार्जिलिंग में नक्सलवाड़ी नामक स्थान पर किसानों ने विद्रोह कर दिया।

यद्यपि पश्चिमी बंगाल की सरकार ने इसे दबा दिया। परन्तु इस आन्दोलन की प्रतिक्रिया पंजाब, उत्तर प्रदेश और कश्मीर में भी हुई। इससे नक्सलवाड़ी आन्दोलन का विरोध किया गया। जिसके परिणामस्वरूप मई, 1967 में भारी हिंसक घटनाएं हुईं। यह आन्दोलन तेज़ी से राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया।

प्रश्न 24.
डॉ० राम मनोहर लोहिया कौन थे ?
उत्तर:
डॉ० राम मनोहर लोहिया भारत के एक महान् समाजवादी चिंतक थे। उनका जन्म 23 मार्च, 1910 को उत्तर-प्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था। सन् 1952 में उन्होंने प्रजा समाजवादी दल का निर्माण किया। सन् 1967 के चौथे आम चुनावों के परिणामों को उन्होंने ‘गैर-कांग्रेसवाद’ का युग बनाया।

प्रश्न 25.
आपात्काल ने जनसंचार के साधनों पर क्या प्रभाव डाला ?
उत्तर:
आपात्काल ने जनसंचार के साधनों पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव डाला। मीडिया को नियन्त्रित करने के लिए प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी गई। समाचार-पत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

1. किस भारतीय नेता ने वचनबद्ध नौकरशाही एवं वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा को जन्म दिया ?
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू
(B) सरदार पटेल
(C) श्रीमती इन्दिरा गांधी
(D) मोरारजी देसाई।
उत्तर:
(C) श्रीमती इन्दिरा गांधी।

2. 1973 में किस न्यायाधीश को तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया ?
(A) जे० एम० शैलट
(B) के० एस० हेगड़े
(C) एन० एन० ग्रोवर
(D) ए० एन० राय।
उत्तर:
(D) ए० एन० राय।

3. केशवानन्द भारती मुकद्दमे का निर्णय कब हुआ ?
(A) 1973
(B) 1971
(C) 1977
(D) 1976
उत्तर:
(A) 1973

4. किस मुकद्दमे में संविधान के मूलभूत ढांचे की धारणा का जन्म हुआ ?
(A) केशवानन्द भारती मुकद्दमा
(B) मिनर्वा मिल्स मुकद्दमा
(C) अयोध्या विवाद
(D) गोलकनाथ मुकद्दमा।
उत्तर:
(A) केशवानन्द भारती मुकद्दमा।

5. निम्नलिखित में से किस राज्य में नव-निर्माण’आन्दोलन चला’ था?
(A) पंजाब
(B) बिहार
(C) हरियाणा
(D) गुजरात।
उत्तर:
(D) गुजरात।

6. आपात्काल की समाप्ति के बाद देश में छठी लोकसभा के चुनाव कब हुए?
(A) जनवरी 1977 में
(B) मार्च 1977 में
(C) जनवरी 1978 में
(D) मार्च 1978 में।
उत्तर:
(B) मार्च 1977 में।

7. भारत में चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है
(A) राष्ट्रपति को
(B) संसद् को
(C) मुख्य न्यायाधीश को
(D) चुनाव आयोग को।
उत्तर:
(D) चुनाव आयोग को।

8. आपात्काल की घोषणा के समय भारत का प्रधानमंत्री कौन था?
(A) चौ० चरण सिंह
(B) श्री राजीव गांधी
(C) श्रीमती इंदिरा गांधी
(D) श्री मोरार जी देसाई।
उत्तर:
(C) श्रीमती इंदिरा गांधी।

9. जनता पार्टी की सरकार द्वारा आपात्काल की ज्यादतियों की जाँच हेतु ‘शाह आयोग’ की नियुक्ति कब की गई थी?
(A) मई 1976 में
(B) मई 1977 में
(C) मई 1978 में
(D) जून 1979 में।
उत्तर:
(B) मई 1977 में।

10. 1980 में हुए 7वें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को कितने लोकसभा स्थानों पर विजय मिली ?
(A) 350
(B) 353
(C) 363
(D) 373
उत्तर:
(B) 353

11. देश में प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री निम्नलिखित में से कौन बना?
(A) श्री जगजीवन राम
(B) चौधरी चरण सिंह
(C) श्री मोरार जी देसाई
(D) श्री अटल बिहारी बाजपेयी।
उत्तर:
(C) श्री मोरार जी देसाई।

12. बिहार आन्दोलन को किसने चलाया ?
(A) जयप्रकाश नारायण
(B) लालू प्रसाद यादव
(C) मोरारजी देसाई
(D) अटल बिहारी बाजपेयी।
उत्तर:
(A) जयप्रकाश नारायण।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

13. आपात्काल की घोषणा कब की गई ?
(A) 25 जून, 1975
(B) 30 जून, 1975
(C) 13 अगस्त, 1975
(D) 1 नवम्बर, 1975
उत्तर:
(A) 25 जून, 1975

14. जनता पार्टी की स्थापना हुई
(A) 1976
(B) 1975
(C) 1977
(D) 1978
उत्तर:
(C) 1977

15. 1977 के आम चुनावों में किस पार्टी की विजय हुई ?
(A) कांग्रेस पार्टी
(B) जनता पार्टी
(C) भारतीय जनता पार्टी
(D) कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी।
उत्तर:
(B) जनता पार्टी।

16. 1977 के चुनावों में जनता पार्टी को कितनी सीटें मिलीं ?
(A) 272
(B) 172
(C) 310
(D) 292
उत्तर:
(A) 272

17. 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को कितनी सीटें मिलीं ?
(A) 53
(B) 153
(C) 253
(D) 309
उत्तर:
(B) 153

18. 1977 में स्वतन्त्रता से सम्बन्धित किस संगठन का निर्माण हुआ ?
(A) नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों का संघ
(B) आपात्कालीन विरोधी संगठन
(C) तानाशाही विरोधी संगठन
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) नागरिक स्वतन्त्रता एवं लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए लोगों का संघ।

19. शाह आयोग की स्थापना किस सरकार ने की थी ?
(A) जनता पार्टी की सरकार
(B) कांग्रेस सरकार ने
(C) भारतीय जनता पार्टी की सरकार
(D) जनता दल की सरकार
उत्तर:
(A) जनता पार्टी की सरकार।

20. जनता पार्टी की सरकार द्वारा आपात्काल की ज्यादतियों की जांच हेतु शाह आयोग की नियुक्ति कब की गई ?
(A) मई 1977 में
(B) मई 1978 में
(C) मार्च 1976 में
(D) मार्च 1979 में।
उत्तर:
(A) मई 1977 में।

21. शाह आयोग के अनुसार निवारक नज़रबंदी कानून के अन्तर्गत लगभग कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया ?
(A) 111000
(B) 90000
(C) 70000
(D) 85000
उत्तर:
(A) 111000

22. 1980 के लोकसभा के चुनाव में किस पार्टी को अधिकतम सीटें प्राप्त हुईं थीं ?
(A) कांग्रेस पार्टी
(B) जनता पार्टी
(C) साम्यवादी दल
(D) भारतीय जनता पार्टी।
उत्तर:
(A) कांग्रेस पार्टी।

23. 1980 के लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को कितने सीटें मिलीं ?
(A) 153
(B) 253
(C) 353
(D) 410
उत्तर:
(C) 353

24. जनता पार्टी के पतन का कारण था ?
(A) गुटबाज़ी
(B) कल्याणकारी नीति
(C) शिक्षा नीति
(D) कर नीति।
उत्तर:
(A) गुटबाजी।

25. श्री मोरार जी देसाई कब प्रधानमन्त्री बने थे ?
(A) 1975
(B) 1976
(C) 1977
(D) 1964
उत्तर:
(C) 1977

26. चौ० चरण सिंह कब भारत के प्रधानमन्त्री बने थे ?
(A) 1980
(B) 1977
(C) 1967
(D) 1979
उत्तर:
(D) 1979

27. भारत में ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ का आह्वान किस नेता ने किया था ?
(A) श्री मोरार जी देसाई
(B) श्री जय प्रकाश नारायण
(C) चौधरी चरण सिंह
(D) श्री बिनोवा भावे।
उत्तर:
(B) श्री जय प्रकाश नारायण।

28. 1947 में रेलवे कर्मचारियों की देशव्यापी हड़ताल का नेतृत्व किस नेता ने किया?
(A) श्री जय प्रकाश नारायण
(B) श्री जार्ज फर्नाडिंस
(C) श्री मोरार जी देसाई
(D) चौधरी चरण सिंह।
उत्तर:
(B) श्री जार्ज फर्नाडिंस।

29. भारत का प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमन्त्री निम्नलिखित में से कौन था ?
(A) श्री जगजीवन राम
(B) श्री चौधरी चरण सिंह
(C) श्री मोरारजी देसाई
(D) श्री वी० पी० सिंह।
उत्तर:
(C) श्री मोरारजी देसाई।

30. ‘इन्दिरा इज इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा’ का नारा निम्नलिखित में से किसने दिया था ?
(A) डी० के० बरूआ
(B) इन्दिरा गांधी
(C) संजय गांधी
(D) राजीव गांधी।
उत्तर:
(A) डी० के० बरूआ।

31. आपातकाल के दौरान हुए किस संवैधानिक संशोधन को ‘लघु संविधान’ तक कहा गया है ?
(A) 38वां संशोधन
(B) 39वां संशोधन
(C) 40वां संशोधन
(D) 42वां संशोधन।
उत्तर:
(C) 40वां संशोधन।

32. भारत में सम्पूर्ण क्रान्ति’ का आह्वान निम्नलिखित में से किस नेता ने किया था?
(A) श्री मोरार जी देसाई
(B) चौधरी चरण सिंह
(C) श्री चारु मजूमदार
(D) श्री जय प्रकाश नारायण।
उत्तर:
(D) श्री जय प्रकाश नारायण।

निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) ……………. भारतीय नेता ने वचनबद्ध नौकरशाही एवं वचनबद्ध न्यायपालिका की धारणा को जन्म दिया।
उत्तर:
श्रीमती इंदिरा गांधी

(2) 1977 में …………. भारत के प्रधानमन्त्री बने।
उत्तर:
श्री मोरार जी देसाई

(3) 26 जून, 1975 को देश में ……………… की घोषणा की गई।
उत्तर:
आपातकाल

(4) जून 1975 को देश में आपात्काल की घोषणा प्रधानमंत्री ………… ने की।
उत्तर:
श्रीमती इंदिरा गांधी

(5) बिहार आन्दोलन के प्रमुख नेता …………… थे।
उत्तर:
जय प्रकाश नारायण

(6) 1975 में जय प्रकाश नारायण ने जनता के …………. का नेतृत्व किया।
उत्तर:
संसद् मार्च

(7) 1974 में देश में …………….. हड़ताल हुई।
उत्तर:
रेल

(8) सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के मौलिक ढांचे की व्यवस्था ……….. के मुकद्दमे में दी।
उत्तर:
केशवानन्द भारती

(9) 1975 में आन्तरिक आपात्काल संविधान के अनुच्छेद ………… के अन्तर्गत लगाया गया।
उत्तर:
352

(10) 42वें संशोधन द्वारा लोकसभा का कार्यकाल 5 साल से बढ़ाकर ………. कर दिया गया।
उत्तर:
6 साल

(11) शाह आयोग का गठन ………….. में किया गया।
उत्तर:
मई

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
भारत में सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान किस नेता ने किया?
उत्तर:
श्री जय प्रकाश नारायण ने।

प्रश्न 2.
किस संवैधानिक संशोधन द्वारा लोकसभा की अवधि 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दी गई थी ?
उत्तर:
42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा।

प्रश्न 3.
भारत में प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री कौन बना ?
उत्तर:
श्री मोरारजी देसाई।

प्रश्न 4.
भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही एवं प्रतिबद्ध न्यायपालिका’ रूपी धारणा को किसने जन्म दिया?
उत्तर:
श्रीमती इंदिरा गांधी ने।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 5.
1974 में छात्र आन्दोलन ने किस राज्य में राष्ट्रव्यापी आन्दोलन का रूप ले लिया?
उत्तर:
गुजरात में।

प्रश्न 6.
चौधरी चरण सिंह कब भारत के प्रधानमन्त्री रहे ?
उत्तर:
चौधरी चरण सिंह जुलाई 1979 से जनवरी 1980 के बीच भारत के प्रधानमन्त्री रहे।

प्रश्न 7.
1977 के चनाव के बाद भारत का प्रधानमन्त्री कौन बना ?
उत्तर:
1977 के चुनाव के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री बने।

प्रश्न 8.
प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई कितने समय तक प्रधानमन्त्री रहे ?
उत्तर:
मोरारजी देसाई 1977 से 1979 तक प्रधानमन्त्री रहे।

प्रश्न 9.
1977 का चुनाव विपक्ष ने किस नारे पर लड़ा ?
उत्तर:
विपक्ष ने ‘लोकतन्त्र बचाओ’ के नारे पर चुनाव लड़ा।

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
राष्ट्र निर्माण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण की समस्या सभी राष्ट्रों के सामने आती है। यह समस्या विशेषकर उन देशों की है जिन्होंने द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् स्वतन्त्रता प्राप्त की। आज भी यह समस्या तीसरे विश्व (Third World) के देशों के लिए बनी हुई है।

राष्ट्र-निर्माण का अर्थ (Meaning of Nation-Building):
राष्ट्र निर्माण के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं। एक इतिहासकार राष्ट्रों के विकास (Growth of Nations) की शब्दावली का प्रयोग करता है जबकि एक राजनीतिज्ञ राष्ट्र निर्माण (Nation-Building) की भाषा बोलता है। समाजशास्त्री राष्ट्र विकास (Nation Development) जैसे शब्दों का प्रयोग करता है। राष्ट्र निर्माण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां ।

कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना प्रकट होती है। यह सामाजिक प्रक्रिया कई प्रकार की संस्थाओं में पाई जाती है। इसके कई स्वरूप होते हैं जिनके द्वारा राष्ट्र निर्माण का कार्य होता है। डेविड ए० विलसन (David A. Wilson) के शब्दों में, “राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय वह सामाजिक प्रक्रिया अथवा प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना उभरती है तथा यह समूह कुछ-न-कुछ संगठित सामाजिक संरचनाओं के माध्यम से समाज के लिए राजनैतिक स्वायत्तता प्राप्त करते हैं।’

लुसियन पाई (Pye) के मतानुसार, “राष्ट्र निर्माण का अर्थ है वह प्रक्रिया जिसके द्वारा लोग छोटे कबीलों, गांवों, नगरों या छोटी रियासतों के प्रति वफ़ादारी और बन्धनों को विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली की ओर मोड़ लेते हैं।”

गिलक्राइस्ट (Gilchrist) ने राष्ट्र की परिभाषा इस प्रकार दी है, “राष्ट्र राज्य तथा राष्ट्रीयता का योग है।”

ब्लंट्शली (Bluntschli) के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण मनुष्यों के ऐसे समूह को कहते हैं जो विशेषतया भाषा और रीति-रिवाज द्वारा एक समान सभ्यता में बंधे हुए हों, जिससे उनमें एकता और समस्त विदेशियों से भिन्नता की भावना पैदा होती है।”

नाविको (Navicow) कहता है कि, “राष्ट्र एक सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक एकता है और सामाजिक विकास का उच्चतम उत्पादन है।” कुछ विद्वान् राष्ट्र निर्माण को राजनीतिक विकास समझते हैं। परन्तु वास्तव में राष्ट्र निर्माण राजनीतिक विकास नहीं है। राजनीतिक विकास का अर्थ समाज का सामूहिक राजनीतिक परिवर्तन होता है। (Total Political Formation of Society.) राजनीतिक परिवर्तन के भिन्न-भिन्न पक्ष होते हैं।

आल्मण्ड और पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “राजनीतिक विकास अर्थात् राजनीतिक परिवर्तन में चार मुख्य समस्याएं होती हैं।” वे हैं-राज्य निर्माण, राष्ट्र निर्माण, राजनीतिक भागेदारी, कल्याण और विभाजन। (State building, Political Participation, Welfare and Distribution.) इसका अर्थ यह है कि राष्ट्र निर्माण न तो राज्य निर्माण है और न ही इसको राजनीतिक विकास कहा जा सकता है क्योंकि आल्मण्ड के मतानुसार राज्य निर्माण का अर्थ है एक राज्य में नये ढांचों की रचना और सरकार के चले हुए ढांचों का पुनर्गठन और उसकी अधिक क्रिया। इससे अभिप्राय यह है कि राज्य निर्माण का अर्थ है आधुनिक राजनीतिक ढांचों के सभी रूपों की रचना।

इसके विपरीत राष्ट्र निर्माण एक ढांचे सम्बन्धी समस्या नहीं है, राष्ट्र निर्माण राजनीतिक विकास के सांस्कृतिक पक्ष पर जोर देता है। इसके अनुसार एक राष्ट्र में ऐसी प्रक्रिया हो जिसके द्वारा लोग अपने छोटे-छोटे कबीलों, गांवों और नगरों के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली को वफ़ादारी प्रदान करें।

साधारण शब्दों में इसका अर्थ यह है कि परम्परावादी संकुचित वफ़ादारों को समाप्त होना चाहिए जैसे कि परिवार, जाति, धर्म, आदि के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर सम्पूर्ण प्रणाली तथा राष्ट्र के प्रति वफ़ादारी होनी चाहिए। इससे अभिप्राय यह है कि एक देश में राष्ट्रीय एकीकरण (National Integration) हो जहां एक व्यक्ति सीमित वफ़ादारियों की तुलना में राज्य के प्रति वफादारियों को अधिक महत्त्व दें।

प्रश्न 2.
राष्ट्र निर्माण की परिभाषा दीजिए और राष्ट्र निर्माण के मुख्य तत्त्वों का उल्लेख करें।
अथवा
राष्ट्र निर्माण का अर्थ स्पष्ट करें। राष्ट्र निर्माण के मुख्य तत्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें। राष्ट्र निर्माण के तत्त्व-इसके लिए पाठ्य-पुस्तक का प्रश्न नं० १ देखें।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 3.
“राष्ट्र निर्माण” के मार्ग में बाधक तत्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्र निर्माण के मार्ग में आने वाले बाधक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत को विदेशी गुलामी से स्वतंत्रता 15 अगस्त, 1947 को प्राप्त हुई थी। इस दीर्घ समय में भारत राष्ट्र निर्माण के आदर्श को प्राप्त नहीं कर सका है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में कुछ ऐसी समस्याएं विद्यमान हैं जो राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधाएं सिद्ध हुई हैं। ऐसी कुछ समस्याएं अथवा बाधाएं इस प्रकार हैं

1. साम्प्रदायिकता (Communalism):
भारत बहुधर्मी देश है। अंग्रेजों ने भारत के इस बहुधर्मी स्वरूप को अपने राजनीतिक हितों के लिए प्रयोग किया था। उन्होंने भारतीयों में ‘फूट डालो तथा राज्य करो’ की नीति (Policy of divide and rule) को ग्रहण किया था। अंग्रेजों ने विशेष रूप से हिन्दुओं तथा मुसलमानों में पारस्परिक वैर विरोध बढ़ाने के लिए विशेष प्रयत्न किये थे।

उनके ऐसे प्रयत्नों के कारण ही 1947 में साम्प्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ था। इस विभाजन के साथ ही भारत में साम्प्रदायिकता समाप्त न हुई, बल्कि अनेक कारणों ने साम्प्रदायिकता को और भी अधिक उत्तेजित किया तथा अन्त में यह समस्या राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण संकट अथवा बाधा बन गई।

2. जातिवाद (Casteism):
साम्प्रदायिकता की तरह जातिवाद भी राष्ट्र निर्माण के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। जातिवाद के तथ्य ने लोगों को तुच्छ विचारों वाले मनुष्य बना दिया है। अनेक लोग राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा जाति हितों को प्राथमिकता देते हैं। उनकी ऐसी प्रवृत्ति ही राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में बड़ी बाधा है।

3. भाषावाद (Linguism):
जिस तरह भारत एक बह-धर्मी देश है उसी तरह भारत एक बह-भाषाई देश भी है। भारतीय संविधान ने हिन्दी सहित भारत की 22 भाषाओं को मान्यता दी है। परन्तु भारत में बोलने वाली भाषाएं कई सैंकड़ों में हैं। भारतीय लोग अपनी भाषा के साथ बहुत अनुराग रखते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि सभी लोगों को अपनी मातृ-भाषा से प्रेम होता है। परन्तु भारत में भाषा को एक राजनीतिक तथ्य बना दिया गया है। भाषावाद तथा साम्प्रदायिकता का गम्भीर संगम कर दिया है तथा यह संगम राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधा बना हुआ है।

4. क्षेत्रवाद (Regionalism):
भारत एक विशाल देश है जिसके कई क्षेत्र (Regions) हैं। कई क्षेत्रों को भाषा के आधार पर राज्यों के रूप में संगठित किया गया है। लोगों की क्षेत्रवाद की भावना इतनी अधिक बलवान् है कि राष्ट्रीय सरकार इन विवादों को सम्बन्धित लोगों की प्रसन्नतानुसार हल नहीं कर सकी है। क्षेत्रवाद की इस बलवान भावना के कारण ही भारत के कई भागों में पृथक्कवाद का स्वर भी उठा है। इस तरह क्षेत्रवाद अथवा प्रदेशवाद राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधा बन गया है।

5. साम्प्रदायिक राजनीतिक दल (Communal Political Parties):
भारत के कुछ राजनीतिक दल साम्प्रदायिक आधारों पर संगठित किए गए हैं। कुछ ऐसे दल भी हैं जिसका संगठन जाति अथवा भाषा के आधार पर किया गया है। ऐसे राजनीतिक दल दोनों की धार्मिक, जातीय अथवा भाषाई भावनाओं को अपने राजनीतिक हितों के लिए उत्तेजित करते हैं। इस तरह की नीतियों वाले राजनीतिक दल भी राष्ट्र निर्माण के मार्ग में रुकावट सिद्ध होते हैं।

6. राजनीतिक अवसरवादिता (Political Opportunism):
भारत में लगभग सभी राजनीतिक दलों में राजनीतिक अवसरवादिता पाई जाती है। राजनीतिक व्यक्ति यह देखते हैं कि उसके दल को राजनीतिक लाभ किस तरह हो सकता है। राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए विरोधी विचारों वाले राजनीतिक दल चुनाव गठबन्धन कर लेते हैं। इसका परिणाम यह निकला है कि अधिकतर नेताओं तथा उनके समर्थकों में अपने स्वार्थी हितों के अतिरिक्त राष्ट्र अथवा समाज के हितों के विषय में सोचने अथवा कुछ करने की कोई रुचि नहीं रही है। ऐसी रुचि का अभाव भी राष्ट्र निर्माण के आदर्श के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है।

7. ग़रीबी तथा निरक्षरता (Poverty and Illiteracy):
भारत में ग़रीबी तथा निरक्षरता व्यापक स्तर पर पाई जाती है। ऐसे लोगों को राष्ट्र निर्माण के अर्थों का ज्ञान शायद तब तक न हो सके जब तक ग़रीबी तथा निरक्षरता से उनकी मुक्ति नहीं हो जाती है।

8. आन्दोलनों तथा हिंसा की राजनीति (Politics of Agitation and Violence):
भारतीय राजनीति वास्तव में आन्दोलनों की राजनीति बन गई है। छोटी-छोटी बातों के लिए भी हड़तालों, धरनों, रैलियों इत्यादि का सहारा लिया जाता है। हिंसक घटनाएं लोगों में एक-दूसरे के प्रति घृणा उत्पन्न करती हैं। इस तरह आन्दोलनों तथा हिंसा की राजनीति भी राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधा सिद्ध हो रही है।

9. अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना (Sence of Insecurity in Minorities):
भारत में अनेक ही धार्मिक, भाषाई तथा सांस्कृतिक अल्पसंख्यक है। संविधान ने इन अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति तथा भाषा की सुरक्षा का अधिकार दिया हुआ है परन्तु इसके बावजूद भारत में रहते अल्पसंख्यकों को असुरक्षा की भावना अनुभव होती है। इस तरह अल्पसंख्यकों तथा बहुसंख्यकों में अविश्वास की भावना बढ़ती जा रही है तथा भावना राष्ट्र निर्माण के लिए बाधा सिद्ध होगी।

10. अपर्याप्त संसाधन (Inadequate Resources):
भारत में धन एवं पर्याप्त संसाधनों की कमी है, जिसके कारण राष्ट्र निर्माण के कार्यों में बाधा पहुंचती है।

प्रश्न 4.
राष्ट्र निर्माण के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए। 2014, 18)
उत्तर:
भारतीय राष्ट्र निर्माण के मार्ग में आने वाली रुकावटों को निम्नलिखित उपायों द्वारा दूर किया जा सकता है

1. शिक्षा प्रणाली में सुधार (Reforms in Educational System):
प्रचलित भारतीय शैक्षिक प्रणाली में क्रान्तिकारी सुधार किए जाने अनिवार्य हैं। शिक्षा को वास्तविक जीवन से सम्बन्धित करने की अति आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त शैक्षिक प्रणाली में ऐसे सुधार करने चाहिए जिनके फलस्वरूप शिक्षा रोज़गार प्रधान (Employment Oriented) हो तथा विद्यार्थियों में हथकरघों का गुण विकसित करे।

शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना ही नहीं होना चाहिए बल्कि विद्यार्थियों में देश-भक्ति तथा राष्ट्रवाद की भावना तथा राष्ट्रीय चरित्र का विकास होना चाहिए। पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो विद्यार्थियों में धर्म-निरपेक्षता का गुण विकसित कर सके तथा उनके दृष्टिकोण को विशाल कर सके।

2. ग़रीबी तथा बेरोज़गारी को दूर करना (Removal of Poverty and Unemployment):
जब तक बेरोज़गारी को समाप्त नहीं किया जाता तब तक ग़रीबी की भी समाप्ति नहीं हो सकती। ये दोनों आर्थिक बुराइयां परस्पर सम्बन्धित हैं तथा दोनों की समाप्ति के बिना राष्ट्र निर्माण का कार्य सफल नहीं हो सकता।

3. सन्तुलित आर्थिक विकास (Balanced Economic Development):
भारत के विभिन्न भागों अथवा क्षेत्रों का सन्तुलित विकास होना अनिवार्य है। यदि कुछ क्षेत्र अधिक विकसित हों तथा कुछ अधिक पिछड़े होंगे तो उनमें ईर्ष्या अथवा पारस्परिक विरोध की भावना उत्पन्न हो सकती है। इस पारस्परिक विरोध के अतिरिक्त पिछड़े हुए क्षेत्रों के लोगों में ऐसा असन्तोष फैलता है कि वह धीरे-धीरे राष्ट्रीय मुख्य धारा से दूर होते जाते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए देश के सभी क्षेत्रों का सन्तुलित विकास होना चाहिए।

4. भाषा की समस्या का समाधान (Solution of Language Problem):
भारत में भाषा की समस्या भी गम्भीर रूप की है। भाषा की समस्या का समाधान करने के लिए तीन भाषाई फार्मूला तैयार किया गया था। इस फार्मूले ने भाषा सम्बन्धी समस्या की गम्भीरता को कुछ कम तो अवश्य किया है परन्तु समस्या पूरी तरह हल नहीं हुई। भाषा सम्बन्धी समस्या को हल किए बिना राष्ट्र निर्माण के आदर्श की प्राप्ति असम्भव है।

5. भारतीय भाषाओं की एक साझी लिपि (Common Script for all Indian Languages):
राष्ट्र निर्माण के कार्य की सफलता के लिए सभी भारतीय भाषाओं की एक सांझी लिपि का विकास करना अनिवार्य है। यूरोप के कई देशों में कई भाषाएं बोली जाती हैं तथा रोमन लिपि को सभी भाषाओं की एक सांझी लिपि के रूप में ग्रहण किया जाता है।

आचार्य विनोबा भावे तथा श्री राज नारायण ने देवनागरी लिपि को सभी भारतीय भाषाओं की सांझी लिपि के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया था। यदि कोई सांझी लिपि ग्रहण कर ली जाए तो विभिन्न भाषाएं बोलने वाले भारतीयों में वह लिपि साझी कड़ी का काम कर सकती है।

6. स्वस्थ राजनीतिक वातावरण (Healthy Political Atmosphere):
यदि देश के राजनीतिक वातावरण में आवश्यक सुधार न किए गए तो राष्ट निर्माण का आदर्श मात्र कल्पना बन कर ही रह जाएगा। इसलिए यह अनिवार्य है कि राजनीतिक बुराइयों को दूर करके राजनीतिक वातावरण स्वस्थ बनाया जाए।

7. स्वच्छ प्रशासन (Clean Administration):
राजनीतिक भ्रष्टाचार ने प्रशासन को भी भ्रष्ट बना दिया है। आज प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार की भरमार है। धन के बल से प्रशासकीय अधिकारियों से गैर-कानूनी कार्य भी करवाए जाते हैं। यह भी सत्य है कि रिश्वत दिए बिना उचित कार्य कम ही होते हैं। प्रशासन में बेइमानी, रिश्वतखोरी को समाप्त करने की आवश्यकता है। ऐसी बुराइयों को समाप्त करने से ही स्वच्छ प्रशासन सम्भव हो सकता है।

8. साम्प्रदायिक राजनीतिक दलों तथा संगठनों पर प्रतिबन्ध (Ban on Communal Parties and Organisations):
राष्ट्र निर्माण की प्राप्ति के लिए यह भी आवश्यक है कि ऐसे राजनीतिक दलों तथा संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाए जो लोगों में साम्प्रदायिकता की घृणा उत्पन्न करते हैं।

9. दल प्रणाली में सुधार (Reforms in Party System):
हमारे देश में बहुदलीय प्रणाली है। ठोस सिद्धान्तों पर आधारित राजनीतिक दलों का अभाव है। दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का भी अभाव है। गुटबन्दी अथवा आन्तरिक धड़ेबन्दी लगभग प्रत्येक भारतीय राजनीतिक दल की विशेषता बन चुकी है। इतने अधिक राजनीतिक दल राष्ट्रीय एकता के लिए स्वयं ही संकट बन जाते हैं। राष्ट्र निर्माण के लिए यह अनिवार्य है कि दल प्रणाली में ऐसे सुधार किए जाएं।

10. भावनात्मक एकीकरण (Emotional Integration):
राष्ट्र निर्माण के लिए भारतीयों में भावनात्मक एकीकरण का होना है। भावनात्मक एकीकरण एक प्रकार की भावना है जिसका स्थान लोगों के मन तथा दिमागों में हैं। भावनात्मक एकीकरण की प्राप्ति सत्ताधारी कानूनों द्वारा नहीं हो सकती। यह तो एक आन्तरिक भावना है जो स्वयं ही विकसित हो सकती है तथा लोगों को जागृत करने से उनके मन में उत्पन्न की जा सकती है। भारतीय राष्ट्र निर्माण के आदर्श की प्राप्ति के लिए भारतीयों में पारस्परिक भावनात्मक साझेदारी विकसित की जानी अनिवार्य है।

प्रश्न 5.
विभाजन की विरासतों का वर्णन करें।
अथवा
1947 में भारत विभाजन से उत्पन्न समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत लगभग 200 वर्षों तक ब्रिटेन के अधीन रहा। एक लम्बे स्वतन्त्रता संग्राम के कारण भारत को 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। परन्तु भारत की स्वतन्त्रता के साथ-साथ भारत का दुःखद विभाजन हो गया तथा पाकिस्तान नाम का एक नया स्वतन्त्र राज्य अस्तित्व में आया। भारत विभाजन के समय हमें बहुत-सी समस्याएं विरासत के रूप में मिलीं। जैसे रिफ्यूजियों के पुनर्वास की समस्या, कश्मीर समस्या, राज्यों के गठन एवं पुनर्गठन की समस्या तथा भाषा से सम्बन्धित राजनीतिक विवाद। इन समस्याओं से निपटने के लिए पं० नेहरू एवं सहयोगियों ने क्या दृष्टिकोण अपनाया, उनका वर्णन इस प्रकार है

1. शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या (Problem of resettlement of Refugee):
भारत के विभाजन के फलस्वरूप जो पहली समस्या हमें विरासत के रूप में मिली, वह थी शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या। जब भारत का विभाजन होना निश्चित हो गया, तो बड़ी संख्या में जो लोग पाकिस्तान को छोड़कर भारत आए, उन्हें ही वास्तव में शरणार्थी कहा जाता है। पाकिस्तान छोड़कर भारत आने वाले लोगों की संख्या लाखों में थी।

अतः सरकार के सामने इन लोगों के पुनर्वास की मुश्किल समस्या सामने थी। भारत सरकार को न केवल इन शरणार्थी लोगों को भारत में रहने के लिए घरों की ही व्यवस्था करनी थी, बल्कि उन्हें मनोवैज्ञानिक आधार पर यह समझाना भी था, कि जिस प्रकार वे पाकिस्तान में सुरक्षित जीवन व्यतीत कर रहे थे, वैसा ही सुरक्षित जीवन उन्हें अब भारत में भी प्रदान किया जायेगा।

परन्तु विभाजन के समय दोनों ओर से जिस प्रकार कत्लेआम किया जा रहा था, वैसी स्थिति में लोगों को किसी भी प्रकार का ढाढस या विश्वास दिलाना मुश्किल था, क्योंकि इस विभाजन के कारण लाखों लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा था यही कारण था, कि विभाजन के समय भारत आने वाले लोग, जिन्हें हम शरणार्थी कहते हैं, काफ़ी डरे हुए थे,

इसके साथ ही इन लोगों को अपनी ज़मीन जायदाद की चिन्ता भी सता रही थी कि बार्डर के दूसरी ओर (हिन्दुस्तान) जाकर हमें हमारी सम्पत्ति एवं जायदाद के मुआवजे के रूप में कुछ प्राप्त भी होगा, या नहीं। शरणार्थियों की इस प्रकार की समस्याओं ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं० नेहरू एवं उनके सहयोगियों के सामने मुश्किलें खड़ी कर रखी थीं तथा पं० नेहरू एवं उनके सहयोगियों के लिए इस प्रकार की समस्या से निपटना एक चुनौती थी।

समस्या का समाधान (Settlement of the Problems) यद्यपि शरणार्थियों की समस्या भारत के विभाजन की सबसे बड़ी समस्या थी, परन्तु भारत सरकार को इस समस्या को निपटाना ही था, अन्यथा भारत में अराजकता की स्थिति पैदा होने का खतरा था, तथा जो लोग अपना सब कुछ छोड़कर भारत आए उन्हें यह लगे कि उन्होंने भारत आकर कोई गल्ती नहीं की।

इस समस्या को हल करने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं० नेहरू ने दूरदर्शिता का परिचय दिया तथा लोगों के पुनर्वास को बड़े ही संयम ढंग से व्यावहारिक रूप प्रदान किया। पं० नेहरू ने शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए सर्वप्रथम एक पुनर्वास मन्त्रालय (Resettlement Ministry) का निर्माण किया, जिसको शरणार्थी लोगों के पुनर्वास की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

शरणार्थियों को अस्थाई तौर पर ठहराने के लिए जगह-जगह कैम्प लगाए। जैसे-जैसे इन लोगों के रहने की पूर्णकालिक व्यवस्था होने लगी, वैसे-वैसे उन्हें इन कैम्पों से निकालकर उन स्थानों पर भेजा जाने लगा। पं० नेहरू ने शरणार्थियों को मुआवजे के रूप में यथा-योग्य जमीन जायदाद प्रदान की। उन्हें सभी प्रकार के राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार प्रदान किये गए। 1955 में नागरिकता कानून बना कर इन शरणार्थियों को भारत का नागरिक बनाया गया। इस प्रकार पं० नेहरू ने अपने सकारात्मक दृष्टिकोण से एक बड़ी ही जटिल समस्या का समाधान किया।

2. कश्मीर की समस्या (The Kashmir Problem)-कश्मीर की समस्या भारत एवं पाकिस्तान के बीच एक प्रमुख समस्या बनी हुई है। भारत के विभाजन स्वरूप कश्मीर समस्या पैदा हुई। स्वतन्त्रता से पहले कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय यह निर्णय लिया गया कि इस बात का फैसला स्वयं कश्मीर करेगा कि वह भारत में शामिल होना चाहता है या पाकिस्तान में या स्वतन्त्र राज्य बनना चाहेगा। कश्मीर के राजा हरि सिंह ने कश्मीर को एक स्वतन्त्र राज्य ही बनाये रखने का निर्णय लिया। परन्तु पाकिस्तान सदैव ही कश्मीर को अपने राज्य में शामिल करने के लिए उत्सुक रहा। अतः उसने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया।

15 अक्तूबर, 1947 को लगभग 5000 आक्रमणकारियों ने कश्मीर के अन्दर ओवन के किले (Fort Owen) की घेराबन्दी शुरू कर दी। 22 अक्तूबर, तक इस घुसपैठ ने एक पूर्ण आक्रमण का रूप धारण कर लिया। यह बात सर्वविदित थी, कि आक्रमणकारियों में अधिकांशतः पाकिस्तानी सैनिक थे। इस आक्रमण से कश्मीर के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया। इससे भारत का चिन्तित होना भी स्वाभाविक था, क्योंकि इस प्रकार की घटना का भारत में अवश्य प्रभाव पड़ता। अत: कश्मीर समस्या का समाधान पं० नेहरू एवं सरदार पटेल के लिए एक मुश्किल चुनौती थी।

समस्या के समाधान का प्रयास (Efforts to resolve the Problem)-कश्मीर के राजा हरि सिंह को जब यह लगने लगा, कि कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा हो जायेगा, तो उसने भारत से सहायता मांगी। भारत ने सहायता का आश्वासन देते हुए कश्मीर को भारत में शामिल होने की बात कही, जिसे राजा हरि सिंह ने मान लिया। इस पर पं० नेहरू एवं सरदार पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर में भेजा, इसके साथ भारत ने पाकिस्तान से यह आग्रह किया कि, वह कश्मीर में अपनी सैनिक गतिविधियां बन्द करें।

परन्तु पाकिस्तान ने इससे इन्कार कर दिया। जब भारत सरकार एवं माऊंटबेटन को यह लगने लगा, कि कश्मीर की समस्या को इस ढंग से नहीं सुलझाया जा सकता तो, पं० नेहरू इस समस्या को संयुक्त राष्ट्र के सामने ले गए, ताकि इसका कोई सर्वमान्य हल निकल सके। परन्तु कश्मीर की समस्या काफ़ी सालों तक बनी रही। अन्तत: 5-6 अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने धारा 370 को समाप्त कर दिया तथा यह स्पष्ट किया, कि अब केवल पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे वाले (पी० ओ० के०-POK) पर ही बातचीत होगी।

3. राज्यों का गठन एवं पुनर्गठन की समस्या-इसके लिए प्रश्न नं० 6 देखें। प्रश्न 6. भारत में राज्यों के पुनर्गठन पर एक विस्तृत लेख लिखें।
उत्तर:
भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप विरासत के रूप में जो दूसरी बड़ी समस्या मिली, वह थी, देशी रियासतों का स्वतन्त्र भारत में विलय करना। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत दो भागों में बंटा हआ था-ब्रिटिश भारत (British India) एवं देशी राज्य (Native States) । ब्रिटिश भारत का शासन तत्कालीन भारत सरकार के अधीन था, जबकि देशी राज्यों का शासन देशी राजाओं के हाथों में था। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के मार्ग में देशी रियासतें सदैव बाधा बनी रहीं। इन देशी रियासतों ने संवैधानिक गतिरोधों को बढ़ावा दिया। जब कभी भी भारत की संवैधानिक समस्या को हल करने का प्रयास किया जाता, तो इन देशी रियासतों के भविष्य की समस्या पैदा हो जाती थी।

स्वतन्त्र भारत के निर्माण के भावी ढांचे में देशी रियासतों के लिए व्यवस्था करना संविधान निर्माताओं के लिए हमेशा सिरदर्द बना रहा। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत में देशी रियासतों की संख्या लगभग 565 थी, इसके अन्तर्गत भारत की जनसंख्या का 20% भाग तथा भारत के क्षेत्रफल का लगभग 45% भाग आता था, अतः इतनी बड़ी जनसंख्या एवं क्षेत्रफल को भारत से अलग नहीं किया जा सकता था और उस स्थिति में तो बिल्कुल नहीं, जब अधिकांश देशी रियासतें भारत के आन्तरिक हिस्सों में विद्यमान थीं।

इन देशी रियासतों में जनसंख्या, क्षेत्र एवं आर्थिक दृष्टिकोण के आधार पर पर्याप्त अन्तर पाए जाते थे, जहां एक ओर कश्मीर, हैदराबाद तथा मैसूर जैसे ऐसे देशी राज्य थे जोकि कई यूरोपीय राज्यों से भी बड़े थे, तो वहीं दूसरी ओर काठियावाड़ तथा पश्चिमी भारत के देशी राज्य नक्शों में सूई की नोक से अधिक बड़े नहीं थे। ये देशी राज्य भारत में विलय को तैयार नहीं थे, जोकि भारत की कानून व्यवस्था के लिए काफ़ी हानिकारक स्थिति थी। वी० पी० मेनन का कहना है, कि, “निराशावादी भविष्यवक्ताओं ने यह भविष्यवाणी की, कि भारतीय स्वतन्त्रता की नौका देशी रियासतों की चट्टानों से टकरा कर चूर-चूर हो जायेगी।” इस प्रकार देशी रियासतों की भारत में विलय की समस्या भारत सरकार के सामने खड़ी थी।

समस्या का समाधान (Resettlement of the Problems) यद्यपि देशी रियासतों की भारत में विलय की समस्या एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी, परन्तु पं० नेहरू एवं तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल ने इस समस्या को बड़े ही सुनियोजित ढंग से सुलझाया। देशी रियासतों की समस्या के हल के लिए पं० नेहरू ने 27 जून, 1947 को एक विभाग की स्थापना की, जिसे राज्य विभाग (State’s Department) कहा जाता है। पं० नेहरू ने सरदार पटेल को इस विभाग का मन्त्री एवं वी० पी० मेनन को इसका सचिव नियुक्त किया।

देशी रियासतों का भारत में विलय तीन चरणों के अन्तर्गत किया गया। प्रथम एकीकरण, द्वितीय-अधिमिलन, तृतीय-प्रजातन्त्रीकरण। एकीकरण (Integration) के अन्तर्गत वे देशी रियासतें आती हैं, जिन्होंने सरदार पटेल के परामर्श पर स्वयं ही भारत में विलय होना स्वीकार कर लिया था। अधिकांश देशी रियासतें इसी आधार पर भारत में शामिल हो गईं।

जबकि अधिमिलन (Accession) के अन्तर्गत जूनागढ़ एवं हैदराबाद जैसी रिय ो शामिल किया गया, क्योंकि इन्होंने स्वेच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था, परन्तु सरदार पटेल ने अपने रणनीतिक कौशल एवं सूझ-बूझ से इन दोनों रियासतों को भारत में विलय होने के लिए मजबूर कर दिया।

तीसरा चरण इन संस्थाओं के प्रजातन्त्रीकरण (Democratisation) से सम्बन्धित है। देशी रियासतों को प्रजातान्त्रिक ढांचे में ढालना भारत सरकार के लिए प्रमुख समस्या थी। इस समस्या के लिए प्रान्तों में प्रजातान्त्रिक एवं प्रतिनिधिक संस्थाओं की स्थापना की गई। इन प्रान्तों में भी संसदीय शासन प्रणाली लागू की गई तथा निर्वाचित विधानसभाओं की व्यवस्था की गई। इस प्रकार पं० नेहरू एवं सरदार पटेल की सूझ-बूझ से देशी रियासतों की समस्या का समाधान हो पाया।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 7.
‘भाषा’ पर राजनीतिक विवाद की समस्या का वर्णन करें।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् संविधान निर्माताओं के सामने एक प्रमुख समस्या सरकारी भाषा को लेकर थी। भारत के बहुत बड़े भाग में हिन्दी भाषा बोली जाती है लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। भाषायी विविधता को देखते हुए भी संविधान निर्माता इस बात पर सहमत थे कि भारत के लिए एक सामान्य भाषा का होना आवश्यक है।

संविधान सभा के बहुत-से सदस्य हिन्दी को सरकारी भाषा बनाने के पक्ष में थे जबकि अहिन्दी भाषी क्षेत्रों से आए सदस्यों ने इसका विरोध किया। इनका मानना था कि यदि हिन्दी को सरकारी भाषा घोषित कर दिया गया तो प्रतियोगी सरकारी नौकरियों में हिन्दी बोलने वाले व्यक्तियों का प्रभुत्व स्थापित हो जाएगा और ग़ैर-हिन्दी भाषी क्षेत्र पिछड़ जाएंगे।

परन्तु हिन्दी भाषा के समर्थकों का विचार था कि, क्योंकि भारत के लगभग 40 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलने वाले हैं, अतः हिन्दी स्वाभाविक रूप से सरकारी भाषा होनी चाहिए। उनका यह भी मानना था कि यदि अंग्रेज़ी को सरकारी भाषा घोषित किया गया तो इससे सरकार और लोगों में दूरियां बढ़ जाएंगी क्योंकि विदेशी भाषा होने के कारण लोग इससे भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाएंगे।

अन्ततः संविधान सभा में यह निर्णय लिया गया कि हिन्दी भारत की सरकारी भाषा होगी। (अनुच्छेद 343) लेकिन अंग्रेजी भाषा अगले 15 वर्षों तक संघीय सरकार के अधिकारिक कार्यों के लिए जारी रहेगी। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 345 में यह भी व्यवस्था की गई कि राज्य विधानमण्डल के कानून द्वारा कोई राज्य अधिकारिक रूप से किसी अन्य भाषा को सरकारी कार्यों के लिए प्रयोग कर सकता है।

यद्यपि अंग्रेजी भाषा संविधान लागू होने के 15 वर्षों तक सरकारी भाषा के रूप में जारी रहनी थी, परन्तु 1955 में श्री जी० बी० खेर (G.B. Kher) की अध्यक्षता में गठित सरकारी भाषा आयोग ने अंग्रेजी भाषा के स्थान पर हिन्दी भाषा का प्रयोग करने पर बल दिया। भाषा आयोग ने और भी कई महत्त्वपूर्ण सिफ़ारिशें कीं। लेकिन भाषा आयोग की सिफारिशों पर गैर-हिन्दी क्षेत्रों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। इसके विरोध में देश के कई स्थानों पर व्यापक प्रदर्शन हुए।

सरकारी भाषा विधेयक, 1963 (Official Language Bill, 1963):
अप्रैल, 1963 में संसद् में औपचारिक रूप से सरकारी भाषा विधेयक प्रस्तुत किया गया। साथ ही प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू को यह भी आश्वासन देना पड़ा कि हिन्दी भाषा को गैर-हिन्दी भाषी क्षेत्रों पर थोपा नहीं जाएगा। हिन्दी का सरकारी भाषा बनना और भाषायी विवाद (Hindi to be an official Language and Lingual Conflicts)-26 जनवरी, 1965 को हिन्दी सरकारी भाषा बन गई।

लेकिन जब इसको लागू करने का प्रश्न आया तो भारत के अधिकांश प्रदेशों में भारी प्रदर्शन एवं दंगे हुए। विशेषतया मद्रास, बंगाल और केरल में हिन्दी विरोधी जबकि उत्तरी राज्यों-राजस्थान, उत्तर-प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि में हिन्दी के समर्थन में प्रदर्शन हुए।

भाषायी विवाद के दिनों में सितम्बर-अक्तूबर, 1961 में दिल्ली में हुए राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में यह सुझाव दिया गया था कि सैकेण्डरी शिक्षा के लिए त्रि-भाषा फार्मूला प्रयोग में लाया जाए। यह कहा गया कि हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी और अंग्रेजी के साथ-साथ एक और आधुनिक भाषा अपनाई जाएगी और गैर-हिन्दी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी भाषा को पढ़ाए जाने की व्यवस्था की जाए।

धीरे-धीरे हिन्दी अंग्रेजी भाषा का स्थान ले लेगी। लेकिन त्रि-भाषीय फार्मूला एक मज़ाक बन कर रह गया। 1965 में हिन्दी विरोधी दंगों को शान्त करने के लिए प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया, कि हिन्दी को सरकारी स्तर पर लाने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है, कि अंग्रेजी को भारत से बाहर निकाला जा रहा है, गैर-हिन्दी भाषी राज्य तब तक अंग्रेजी का प्रयोग करते रहेंगे, जब तक वे हिन्दी प्रयोग के लिए तैयार नहीं हो जाते।

प्रश्न 8.
स्वतंत्र भारत के सामने मुख्य चुनौतियां क्या थीं ?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी निम्नलिखित चुनौतियां थीं

1. राष्ट्रीय एकीकरण की चुनौती-स्वतत्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय एकीकरण की थी। स्वतंत्रता के समय लगभग 565 देशी रियासतों को भारत में शामिल करने की बड़ी चुनौती थी। इन सभी रियासतों की बोली, भाषा, खान-पान, रहन-सहन तथा पहरावा सब कुछ भिन्न-भिन्न था। अधिक अनेकता वाला देश कभी भी एकजुट नहीं रह सकता। इसीलिए देश के नेताओं के सामने देश के भविष्य को लेकर गम्भीर प्रश्न खड़े थे। जिसका हल किया जाना आवश्यक था।

2. विकास की चुनौती-स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी एक अन्य बड़ी चुनौती विकास की थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय लगभग प्रत्येक क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता थी, क्योंकि अंग्रेज़ भारत को बहुत बुरी दशा में छोड़कर गए थे। अतः सभी प्रकार के क्षेत्र में विकास की आवश्यकता थी। साथ ही साथ भारतीय नेताओं को इस बात की भी व्यवस्था करनी थी कि विकास ऐसा हो, जिससे सभी वर्गों का कल्याण हो।

3. लोकतन्त्र की स्थापना की चुनौती-स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में नेताओं के समक्ष लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना की भी चुनौती थी। ताकि समाज के सभी वर्गों को भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिल सके। इसके लिए भारत में संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की व्यवस्था की गई। लोगों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए तथा राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों की व्यवस्था की गई।

प्रश्न 9.
भारत विभाजन के अच्छे व बरे परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत का विभाजन सन् 1947 में हुआ। इस विभाजन के अच्छे एवं बुरे परिणामों का वर्णन इस प्रकार है

(क) भारत विभाजन के अच्छे परिणाम

  • भारत विभाजन से लोगों को आजादी अपेक्षाकृत जल्दी मिल गई।
  • विभाजन के पश्चात् भारत एवं पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करना आसान हो गया।
  • विभाजन के पश्चात् कानून व्यवस्था को लागू करना आसान हो गया।
  • विभाजन के पश्चात् प्रशासन को उचित एवं कुशलतापूर्वक चलाया जाने लगा।

(ख) भारत विभाजन के बुरे परिणाम

  • सन् 1947 में बड़े पैमाने पर एक जगह की आबादी को दूसरी जगह जाना पड़ा।
  • धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदायों के लोगों को बेरहमी से कत्ल किया।
  • भारत विभाजन से महिलाओं को अमानवीय यातनाएं झेलनी पड़ी।
  • भारत विभाजन से देश की एकता एवं अखण्डता को गहरा धक्का लगा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्र निर्माण से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना प्रकट होती है। राष्ट्र निर्माण राजनीतिक विकास के सांस्कृतिक पक्ष पर जोर देता है। इसके अनुसार एक राष्ट्र में ऐसी प्रक्रिया हो जिसके द्वारा लोग अपने छोटे-छोटे कबीलों, गांवों और नगरों के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली को वफ़ादारी प्रदान करें।

साधारण शब्दों में, इसका अर्थ यह है कि परम्परावादी संकुचित वफ़ादारियों को समाप्त होना चाहिए जैसे कि परिवार, जाति, धर्म आदि के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर सम्पूर्ण प्रणाली तथा राष्ट्र के प्रति वफ़ादारी होनी चाहिए। इससे अभिप्राय यह है कि एक देश में राष्ट्रीय एकीकरण (National Integration) हो जहां एक व्यक्ति सीमित वफ़ादारियों की तुलना में राज्य के प्रति वफ़ादारियों को अधिक महत्त्व दें।

प्रश्न 2.
राष्ट्र निर्माण की परिभाषा दें।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण की निम्नलिखित परिभाषाएं हैं

(1) डेविड ए० विल्सन के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय वह सामाजिक प्रक्रिया अथवा प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना उभरती है तथा यह समूह कुछ-न-कुछ संगठित सामाजिक संरचनाओं के माध्यम से समाज के लिए राजनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करते हैं।”

(2) ब्लंटशली के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण मनुष्यों के ऐसे समूह को कहते हैं, जो विशेषतया भाग और रीति-रिवाज द्वारा एक समान सभ्यता में बंधे हुए हैं, जिससे उनमें एकता और समस्त विदेशियों से भिन्नता की भावना उत्पन्न हो।”

(3) लूसियन पाई के मतानुसार, “राष्ट्र निर्माण का अर्थ है वह प्रक्रिया जिसके द्वारा लोग छोटे कबीलों, गांवों, नगरों या छोटी रियासतों के प्रति वफ़ादारी और बन्धनों को विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली की ओर मोड़ लेते हैं।”

(4) प्रेडियर फोडरे के अनुसार, “नस्ल की साझ और भाषा, आदतें, रीति-रिवाज और धर्म की समानता ऐसे तत्त्व हैं, जो राष्ट्र का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 3.
राष्ट्र निर्माण के विषय में लूसियन पाई के विचारों का वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण के विषय में लूसियन पाई के विचारों को तीन भागों में बांटा जा सकता है

1. सामूहिक जन-सम्बन्धी-राजनीतिक विकास को जब जन-सम्बन्धी स्तर से देखते हैं तो इसका अर्थ यह हो जाता है कि लोगों के आदर्श में क्या मुख्य परिवर्तन आया है। वे सरकार और उच्च स्तरीय अधिकारियों इत्यादि के निर्णयों का पालन कैसे करते हैं ? और राजनीतिक निर्णयों में किस तरह और किस हद तक भागीदार है। इसको गण का सिद्धान्त (Principal of Quality) कहा जा सकता है।

2. सरकार के स्तर सम्बन्धी राजनीतिक विकास के साथ प्रजातन्त्र प्रणाली में अधिक शक्ति (सामर्थ्य) उत्पन्न हो जाती है। इसका अर्थ है कि जन सम्बन्धी मामलों के प्रतिबन्ध की सामर्थ्य तथा जन साधारण की मांगों के साथ चलने की सामर्थ्य । एक अविकसित राजनीतिक प्रणाली में इस प्रकार का सामर्थ्य बहुत कम होता है।

3. नीति के संगठन सम्बन्धी-राजनीतिक प्रणाली के संगठन के विषय में यह कहा जा सकता है कि एक विकसित हो रही राजनीतिक प्रणाली में संगठन सम्बन्धी भिन्नता अधिक होती है और भागीदारी संस्थाओं का समूहीकरण भी 15 अधिक होता है। इससे यह पता चलता है कि पाई (Pye) की राजनीतिक विकास की धारणा आल्मण्ड (Almond) के राजनीतिक विकास की धारणा से भिन्न है क्योंकि वह सामर्थ्य का एक नया तत्त्व प्रस्तुत करता है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 4.
राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करो।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन इस प्रकार है

1. औद्योगीकरण. औद्योगीकरण राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करता है। जैसे ही एक देश औद्योगिक उन्नति करता लोगों का जीवन स्तर ऊंचा होता है और वे अपनी परानी आदतों और परम्पराओं को त्याग देते हैं।

2. ध्यम का प्रसार एक राष्ट्र में जन-माध्यम के साधनों का विकास और प्रसार भी राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देता है। जन-माध्यम के साधनों में समाचार-पत्र, प्रसारण, डाक एवं तार प्रबन्ध, सड़कें, रेलें, वायु सेवाएं, चलचित्र, टेलीविज़न आदि शामिल हैं। इन साधनों द्वारा नागरिकों में अधिक जानकारी तथा चेतनता उत्पन्न होती है।

3. धर्म-निरपेक्ष संस्कृति का प्रसार-धर्म-निरपेक्ष संस्कृति भी राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देती है क्योंकि कट्टर धर्म कई बार नागरिकों में फूट और घृणा पैदा करता है। इसके विपरीत यदि एक देश में लोग धर्म-निरपेक्ष संस्कृति को अपना लें तो उनका दृष्टिकोण विशाल हो जाता है।

4. राजनीतिक भागीदारी-राजनीतिक भागीदारी भी राष्ट्र-निर्माण में अपनी भूमिका निभाती है। इसका अर्थ यह है कि लोगों को राष्ट्र की राजनीतिक क्रियाओं में भाग लेना चाहिए। यदि वे राजनीतिक क्रियाओं, जनता के कामों और निर्णयों में भाग लेते रहें तो राष्ट्र निर्माण में वृद्धि होती है। राजनीतिक भागीदारी के साथ अवसरों की समानता भी उत्पन्न होती है। इससे जाति-पाति के प्रभावों को भी पराजित किया जाता है।

प्रश्न 5.
राष्ट्र निर्माण के किन्हीं चार बाधक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्र निर्माण के चार बाधक तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • जातिवाद राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है।
  • भाषावाद ने राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधाएं पैदा की हैं।
  • क्षेत्रवाद ने राष्ट्र निर्माण की भावना को हानि पहुंचाई है।
  • भारत में कुछ सांप्रदायिक दल पाए जाते हैं, जो राष्ट्र निर्माण के मार्ग में रुकावट सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 6.
भारतीय संघ में हैदराबाद को शामिल करने की घटना पर नोट लिखें।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के समय भारत में लगभग 565 देशी रियासतें थीं। ब्रिटिश सरकार ने इन रियासतों को यह निर्णय करने की छूट दे दी थी, कि वे भारत में शामिल हों, या पाकिस्तान में या स्वतन्त्र राज्य के रूप में अपने आपको बनाये रखें। तत्कालीन परिस्थितियों में हैदराबाद के निजाम उसमान अली खान ने हैदराबाद को स्वतन्त्र रखने का निर्णय किया। परन्तु हैदराबाद का निजाम परोक्ष रूप से पाकिस्तान समर्थक था। हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित था। इसका क्षेत्रफल 132000 वर्ग किलोमीटर था।

इसकी जनसंख्या लगभग एक करोड़ चालीस लाख थी। इस जनसंख्या में से लगभग 85% जनसंख्या हिन्दू थी। भारत के गृहमन्त्री सरदार पटेल को यह अन्देशा था कि आने वाले समय में हैदराबाद पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के लिए खतरा पैदा कर सकता है। हैदराबाद के निजाम ने पाकिस्तान से हथियार खरीद कर हिन्दुओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिये।

सरदार पटेल ने लॉर्ड माऊण्टबेटन की मदद से निजाम को यह समझाने का पूरा प्रयास किया कि हैदराबाद को भारत में मिलाने में ही हित है। परन्तु निजाम ने सभी प्रयासों को नकार दिया। तत्पश्चात् सरदार पटेल ने हैदराबाद के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का आदेश दिया। 13 सितम्बर, 1947 से 18 सितम्बर, 1947 तक दोनों पक्षों में युद्ध हुआ परन्तु हैदराबाद के लड़ाकुओं को भारतीय सेना के सामने हथियार डालने ही पड़े। हैदराबाद को भारत में मिला लेने की अनेक मुसलमान नेताओं ने तारीफ की।

प्रश्न 7.
भारतीय संघ में जूनागढ़ को शामिल करने की घटना पर नोट लिखें।
उत्तर:
जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक राज्य था। इसमें बाबरियावाड़, मानावदार तथा मंगरोल नामक जागीरें शामिल थीं। जूनागढ़ की लगभग 80% जनसंख्या हिन्दू थी। जूनागढ़ के नवाब महाबत खान ने पाकिस्तान के साथ शामिल होने का निर्णय किया। सितम्बर, 1947 में जब पाकिस्तान ने जनागढ के शामिल होने की स्वीकृति का अनुमोदन किया तो भारत सरकार को गहरा धक्का लगा।

क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर जूनागढ़ भारत में ही शामिल हो सकता था, परन्तु जूनागढ़ के शासक के न मानने पर सरदार पटेल ने, जूनागढ़ के शासकों के विरुद्ध बल प्रयोग का आदेश दिया। जूनागढ़ में भारतीय सैनिकों का सामना करने की क्षमता नहीं थी। अत: पहले अरजी हुकूमत (अरजी अर्थात् लोगों द्वारा प्रार्थना तथा हुकूमत अर्थात् शासन) को आमन्त्रित किया गया तत्पश्चात् भारतीय सरकार को 1 दिसम्बर, 1947 में करवाये गए जनमत संग्रह में जूनागढ़ के लगभग 99% लोगों ने भारत में शामिल होने की बात कही।

प्रश्न 8.
पाण्डिचेरी तथा गोवा के भारत में शामिल होने की घटना पर नोट लिखें।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् पाण्डिचेरी फ्रांस तथा गोवा पुर्तगाल के अधीन थे। फ्रांस पाण्डिचेरी को भारत में शामिल करने के पक्ष में नहीं था। परिणामस्वरूप भारतीय सैनिकों ने कार्यवाही करके पाण्डिचेरी को भारतीय संघ में शामिल कर लिया। इसी तरह पुर्तगाल भी गोवा पर से अपना अधिकार छोड़ना नहीं चाहता था। अतः पुर्तगाल ने भारत द्वारा पेश किये गए सभी प्रस्तावों का विरोध किया।

परिणामस्वरूप 18 दिसम्बर, 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन व दीयू को पुर्तगाल से मुक्त कराके भारत में शामिल कर लिया। भारतीय प्रधानमन्त्री ने इसे मात्र पुलिस कार्यवाही की संज्ञा दी। लगभग 3000 पुर्तगाली सैनिक युद्धबन्दी बना लिए गए, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया। 1987 में गोवा भारत का 25वां राज्य बन गया।

प्रश्न 9.
कश्मीर समस्या पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और पाकिस्तान की भी स्थापना हुई। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की।

भारत में कश्मीर का विधिवत् विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान का आक्रमण जारी रहा और पाकिस्तान ने कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और अब भी उस क्षेत्र पर जिसे ‘आजाद कश्मीर’ कहा जाता है, पाकिस्तान का कब्जा है। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। भारत सरकार ने कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर का युद्ध विराम हो गया।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर की समस्या को हल करने का प्रयास किया पर यह समस्या काफ़ी सालों तक बनी रही। अन्ततः 5-6-अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने धारा 370 को समाप्त कर दिया तथा यह स्पष्ट किया, कि अब केवल पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे वाले (पी० ओ० के०-POK) पर ही बातचीत होगी।

प्रश्न 10.
‘भाषावाद’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत एक बहु-भाषी देश है। यहां पर सैंकड़ों भाषाएं बोली जाती हैं। संविधान के द्वारा देवनागरी लिपि की हिन्दी भाषा को केन्द्र सरकार की सरकारी भाषा निश्चित किया है। इसके अतिरिक्त संविधान द्वारा हिन्दी सहित 22 भाषाओं को भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। भारतीय लोगों को अपनी मातृ-भाषा के प्रति बहुत ज्यादा लगन और श्रद्धा है। इसीलिए भारत में भाषावाद का विकास हुआ है। भारतीय संघ के राज्यों का संगठन भी भाषा के आधार पर किया गया है।

इस तथ्य ने भी भारत में भाषावाद के विकास को प्रोत्साहित किया है। भाषावाद भारतीय लोकतन्त्र की कार्यशीलता पर बुरे प्रभाव डाल रहा है। कई राजनीतिक दलों का निर्माण भाषा के आधार पर किया गया है।

कई राज्यों के लोग भाषा के आधार पर पृथक् राज्यों के निर्माण की मांग कर रहे हैं। लोगों की भाषा के प्रति निष्ठा राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय भावना के विकास के मार्ग में रुकावट बन रही है। भाषावाद कई लोगों के मत व्यवहार को प्रभावित करता है। दक्षिण भारत के लोगों की विरोधता के कारण हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा सरकारी रूप से नहीं दिया जा सका है। यह पूर्णतया राष्ट्रीय विकास के रास्ते में रुकावट बन रहा है।

प्रश्न 11.
भारत विभाजन के अच्छे परिणाम बताइये।
उत्तर:

  • भारत विभाजन से लोगों को आजादी अपेक्षाकृत जल्दी मिल गई।
  • विभाजन के पश्चात् भारत एवं पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करना आसान हो गया।
  • विभाजन के पश्चात् कानून व्यवस्था को लागू करना आसान हो गया।
  • विभाजन के पश्चात् प्रशासन को उचित ढंग से चलाया जाने लगा।

प्रश्न 12.
भारतीय राजनीति में भाषा की भूमिका पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
भाषा ने भारतीय राजनीति को निम्नलिखित ढंगों से प्रभावित किया है
1. राष्ट्रीय एकता को खतरा-राष्ट्रीय एकता के लिए एक सामान्य भाषा का होना अति आवश्यक है। संविधान निर्माताओं ने यही बात सोचकर हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित किया था। परन्तु भाषा के विवाद ने राष्ट्रीय एकता व अखण्डता को करारी चोट पहुंचायी है। दक्षिण के राज्य और उत्तर के राज्यों में मुख्य विवाद का कारण भाषा ही है।

2. भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन–राज्य पुनर्गठन कानून 1956 के आधार पर भारत को 14 राज्यों तथा 6 संघीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया। परन्तु राज्यों के 1956 के पुनर्गठन से समस्या समाप्त नहीं हुई, बल्कि उसके बाद भी अनेक राज्यों का पुनर्गठन किया गया और आज भारत में 28 राज्य और 8 संघीय क्षेत्र हैं। आज भी अनेक क्षेत्रों के भाषा के आधार पर अलग राज्य बनाने की मांग उठाई जाती है।

3. क्षेत्रवाद की भावना का विकास-भाषा के आधार पर ही लोगों में क्षेत्रवाद की भावना का विकास हुआ है और विभिन्न भाषा बोलने वाले पृथक् राज्य की मांग करते हैं जिससे भारत की एकता खतरे में पड़ सकती है।

4. सीमा विवाद-भाषा के कारण अनेक राज्यों में सीमा विवाद उत्पन्न हुए हैं और आज भी अनेक राज्यों के बीच यह विवाद चल रहे हैं। उदाहरणस्वरूप पंजाब और हरियाणा, महाराष्ट्र और कर्नाटक तथा केरल इत्यादि में सीमा विवाद विद्यमान है।

प्रश्न 13.
राष्ट्र निर्माण के मार्ग की बाधाओं को दूर करने के कोई चार उपाय लिखिए।
उत्तर:

  • राष्ट्र निर्माण के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार करना आवश्यक है। शिक्षा को वास्तविक जीवन से सम्बन्धित करने की आवश्यकता है।
  • बेरोज़गारी एवं ग़रीबी को दूर करना आवश्यक है।
  • राष्ट्र निर्माण की बाधाओं को दूर करने के लिए देश में संतुलित आर्थिक विकास होना चाहिए।
  • राष्ट्र निर्माण की बाधाओं को दूर करने के लिए लोगों को स्वच्छ एवं पारदर्शी प्रशासन दिया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 14.
विभाजन से उत्पन्न किन्हीं चार समस्याओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत विभाजन से उत्पन्न कोई चार समस्याएं लिखें।
उत्तर:

  • विभाजन से उत्पन्न पहली जो समस्या थी, वह थी शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या।
  • भारत के विभाजन की दूसरी समस्या कश्मीर की समस्या है। भारत के विभाजन स्वरूप ही कश्मीर की समस्या पैदा हई है।
  • भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप जो एक अन्य समस्या पैदा हुई, वह थी देशी रियासतों का स्वतन्त्र भारत में विलय करना।
  • भारत के विभाजन के कारण राज्यों के पुनर्गठन की समस्या भी पैदा हुई।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 15.
स्वतन्त्रता के बाद, पिछले छः दशकों में राष्ट्रीय एकता से सम्बन्धित सीखे पाठों में से किन्हीं चार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय एकता के लिए धर्म-निरपेक्षता का होना आवश्यक है, ताकि सभी लोगों को धर्म की स्वतन्त्रता प्राप्त हो।
  • राष्ट्रीय एकता के लिए साम्प्रदायिक सद्भावना का होना भी आवश्यक है।
  • राष्ट्रीय एकता के लिए लोगों का शिक्षित होना आवश्यक है, ताकि उन्हें अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का ज्ञान हो।
  • राष्ट्रीय एकता के लिए राजनीतिक दलों का स्वस्थ आधारों पर संगठित होना आवश्यक है, राजनीतिक दल धर्म या जाति के आधार पर संगठित न होकर राजनीतिक और आर्थिक आधार पर संगठित होने चाहिएं।

प्रश्न 16.
मणिपुर और जूनागढ़ के रजवाड़े भारतीय संघ का अंग कैसे बने ?
उत्तर:
मणिपुर- मणिपुर की विधानसभा में भारत के विलय के प्रश्न पर सहमति नहीं थी। मणिपुर कांग्रेस चाहती थी कि इस रियासत को भारत में मिला दिया जाए, जबकि अन्य पार्टियां इसके विरुद्ध थीं। परन्तु भारत सरकार ने मणिपुर पर भारत में विलय के लिए दबाव डाला, जिसमें उसे सफलता भी मिली। मणिपुर के महाराजा बोधचन्द्र सिंह ने भारत में विलय से सम्बन्धित दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किये। जूनागढ़- इसके लिए प्रश्न नं0 7 देखें।

प्रश्न 17.
राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी नेहरू जी के दृष्टिकोण की व्याख्या करें।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी नेहरू जी के दृष्टिकोण का वर्णन इस प्रकार है

  • संसदीय शासन प्रणाली-राष्ट्र निर्माण के लिए नेहरू जी संसदीय शासन प्रणाली को लागू करना चाहते थे।
  • धर्म-निरपेक्ष राज्य-नेहरू जी राष्ट्र निर्माण के लिए धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना करना चाहते थे।
  • न्याय एवं स्वतन्त्रता-नेहरू जी ने राष्ट्र निर्माण के लिए न्याय एवं स्वतन्त्रता का समर्थन किया।
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था-पं० नेहरू राष्ट्र के निर्माण के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाए जाने के पक्ष थे।

प्रश्न 18.
स्वतन्त्र भारत के सामने उपस्थित किन्हीं चार मुख्य चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्र भारत के सामने राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी निम्नलिखित चुनौतियां थीं

1. राष्ट्रीय एकीकरण की चुनौती-स्वतन्त्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय एकीकरण की थी।

2. विकास की चुनौती-स्वतन्त्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी एक अन्य बड़ी चुनौती विकास की थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय लगभग प्रत्येक क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता थी, क्योंकि अंग्रेज़ भारत को बहुत बुरी दशा में छोड़कर गए थे।

3. लोकतन्त्र की स्थापना की चनौती-स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत में नेताओं के समक्ष लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना की भी चुनौती थी ताकि समाज के सभी वर्गों को भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिल सके।

4. धार्मिक कट्टरता की चुनौती-स्वतन्त्रता के समय धार्मिक कट्टरता भी एक चुनौती थी।

प्रश्न 19.
भारत विभाजन के चार प्रमुख कारण बताइये।
उत्तर:
1. अंग्रेजों की कुटिल नीति – भारत विभाजन का प्रमुख कारण अंग्रेजों की कुटिल नीतियां थीं, क्योंकि अंग्रेज़ जाते-जाते भारत को कमज़ोर करना चाहते थे।

2. जिन्ना की हठधर्मिता – भारत विभाजन का एक अन्य कारण जिन्ना की हठधर्मिता थी।

3. भारतीय नेताओं की शांति की इच्छा – भारत का विभाजन इसलिए भी हुआ, क्योंकि भारतीय नेताओं को यह आशा थी, कि विभाजन के बाद शायद भारत में शांति स्थापित हो जाए।

4. साम्प्रदायिक दंगे – भारत विभाजन का एक अन्य कारण उस दौरान हुए भीषण साम्प्रदायिक दंगे हैं।

प्रश्न 20.
राष्ट्र के किन्हीं चार तत्वों का वर्णन करें।
अथवा
राष्ट्र निर्माण के किन्हीं चार तत्वों का वर्णन करें।
अथवा
राष्ट्र को जन्म देने वाले चार तत्व बताइये।।
उत्तर:
1.सामान्य मातृभूमि-प्रत्येक मनुष्य को अपनी मातृभूमि अर्थात् अपने जन्म-स्थान से प्यार होना स्वाभाविक ही है। एक ही स्थान या प्रदेश पर जन्म लेने वाले व्यक्ति मातृभूमि से प्यार करते हैं और इस प्यार के कारण वे आपस में एक भावना के अन्दर बन्ध जाते हैं।

2. वंश की समानता-कुछ लेखकों ने राष्ट्रीयता के लिए वंश पर जोर दिया है। वंश अथवा जाति की समानता से अभिप्राय व्यक्तियों के उस समूह से है जो एक ही पूर्वजों से सम्बन्धित हैं और वे रूप, आकार, रंग, कद आदि की कुछ शारीरिक समानताएं रखते हैं।

3. सामान्य भाषा-सामान्य भाषा राष्ट्रवाद का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। भाषा के द्वारा ही एक मनुष्य अपने विचारों को प्रकट कर सकता है।

4. सामान्य धर्म-सामान्य धर्म से भी एकता उत्पन्न होती है। धर्म के नाम पर लोग इकट्ठे हो जाते हैं और धर्म के नाम पर अपना जीवन भी बलिदान दे देते हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्र निर्माण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना प्रकट होती है। राष्ट्र निर्माण राजनीतिक विकास के सांस्कृतिक पक्ष पर जोर देता है। इसके अनुसार एक राष्ट्र में ऐसी प्रक्रिया हो जिसके द्वारा लोग अपने छोटे-छोटे कबीलों, गांवों एवं नगरों के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली को वफ़ादारी प्रदान करें।

प्रश्न 2.
राष्ट्र निर्माण की कोई दो परिभाषाएं लिखें।
अथवा
राष्ट्र की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
1. डेविड ए० विल्सन के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय वह सामाजिक प्रक्रिया अथवा प्रक्रियाएं हैं, जिनके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना उभरती है तथा यह समूह कुछ-न-कुछ संगठित सामाजिक संरचनाओं के माध्यम से समाज के लिए राजनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करते हैं।”

2. लुसियन पाई के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण का अर्थ है, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा लोग छोटे कबीलों, गांवों, नगरों या छोटी रियासतों के प्रति वफादारी और बन्धनों को विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली की ओर मोड़ लेते हैं।”

प्रश्न 3.
राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करो।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन इस प्रकार है

1. औद्योगीकरण – औद्योगीकरण राष्ट निर्माण को प्रभावित करता है। जैसे ही एक देश औद्योगिक उन्नति करता है वैसे ही वहां के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा होता है और वे अपनी पुरानी आदतों और परम्पराओं को त्याग देते हैं।

2. जन-माध्यम का प्रसार – एक राष्ट्र में जन-माध्यम के साधनों का विकास और प्रसार भी राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देता है। जन-माध्यम के साधनों में समाचार-पत्र, प्रसारण, डाक एवं तार प्रबन्ध, सड़कें, रेलें, वायु सेवाएं, चलचित्र, टेलीविज़न आदि शामिल हैं। इन साधनों द्वारा नागरिकों में अधिक जानकारी तथा चेतनता उत्पन्न होती है।

प्रश्न 4.
3 जून, 1947 को ब्रिटिश गवर्नर जनरल माऊण्टबेटन ने क्या घोषणा की ?
उत्तर:
3 जून, 1947 का दिन भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन ब्रिटिश गवर्नर जनरल माऊण्टबेटन ने यह घोषणा की, कि ब्रिटिश सरकार जून, 1948 की अपेक्षा अगस्त, 1947 में सत्ता भारतीयों को सौंप देगी।

प्रश्न 5.
हैदराबाद को भारत में किस प्रकार शामिल किया गया ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं भारत के विभाजन के पश्चात् हैदराबाद के निजाम उसमान अली खान ने हैदराबाद को स्वतन्त्र रखने का निर्णय किया। परन्तु परोक्ष रूप से निजाम पाकिस्तान समर्थक था। हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित था तथा इसकी 85% जनसंख्या हिन्दू थी। हैदराबाद कभी भी भारतीय सुरक्षा को खतरा पैदा कर सकता था। अतः सरदार पटेल के काफ़ी मनाने के बाद भी निज़ाम जब नहीं माना तो भारत ने सैनिक कार्यवाही करके हैदराबाद को भारत में मिला लिया।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 6.
जूनागढ़ को भारत में किस प्रकार शामिल किया गया ?
उत्तर:
जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक राज्य था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जूनागढ़ ने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय किया। परन्तु भारत की सुरक्षा की दृष्टि से यह उचित नहीं था। अन्ततः भारत द्वारा बल प्रयोग करने के बाद पहले अरजी हुकूमत को आमन्त्रित किया गया, तत्पश्चात् शासन सम्भालने के लिए भारत को आमन्त्रित किया गया।

प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत द्वारा किन दो चुनौतियों का सामना किया जा रहा था ?
उत्तर:

  • शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या-स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत द्वारा शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या का सामना किया जा रहा था।
  • राज्यों के पुनर्गठन की समस्या-स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय विरासत के रूप जो दूसरी बड़ी समस्या मिली, वह थी देशी रियासतों का स्वतन्त्र भारत में विलय करना।

प्रश्न 8.
उन वास्तविक राज्यों के नाम बताएं, जिनमें से निम्नलिखित राज्य बने
1. मेघालय
2. गुजरात।
उत्तर:

  1. मेघालय- मेघालय, असम राज्य से अलग होकर राज्य बना है।
  2. गुजरात-गुजरात, बम्बई प्रेजीडेंसी से अलग होकर राज्य बना है।

प्रश्न 9.
राज्यों का पुनर्गठन क्या है ? यह कब किया गया ?
उत्तर:
राज्यों के पुनर्गठन का अर्थ है कि राज्यों का भाषा के आधार पर पुनः गठन करना। भारत में राज्यों का पुनर्गठन 1956 में किया गया।

प्रश्न 10.
मुहम्मद अली जिन्नाह के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मुहम्मद अली जिन्नाह का जन्म कराची में 1876 में हुआ। जिन्नाह ने द्वि-राष्ट्र का सिद्धान्त दिया, तथा पाकिस्तान की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 11.
महात्मा गांधी ने 14 अगस्त, 1947 को कहा, “कल का दिन हमारे लिए खुशी का दिन भी होगा और गमी का भी।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
महात्मा गांधी के अनुसार 15 अगस्त, 1947 को खुशी का दिन इसलिए होगा, क्योंकि इस दिन भारत आजाद होगा जबकि गमी का दिन इसलिए होगा, क्योंकि इस दिन भारत का विभाजन होगा।

प्रश्न 12.
भारत के विभाजन के दो मुख्य कारण बताएँ।
उत्तर:

  • भारत के विभाजन का प्रमुख कारण अंग्रेजों की कुटिल नीतियां थीं, जो जाते-जाते भारत को कमज़ोर करना चाहते थे।
  • भारत विभाजन के लिए जिन्नाह की हठधर्मिता भी ज़िम्मेदार थी।

प्रश्न 13.
किस अधिनियम के अन्तर्गत भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई ?
उत्तर:
भारत को भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम 1947 के अन्तर्गत स्वतन्त्रता प्राप्त हुई।

प्रश्न 14.
देश विभाजन के समय कश्मीर का राजा कौन था ?
उत्तर:
देश विभाजन के समय कश्मीर का राजा हरि सिंह था।

प्रश्न 15.
वर्तमान में कितनी भाषाओं को संविधान के द्वारा मान्यता दी गई है ?
उत्तर:
वर्तमान में 22 भाषाओं को संविधान द्वारा मान्यता दी गई है।

प्रश्न 16.
देश के विभाजन के समय भारत के गवर्नर जनरल कौन थे ?
उत्तर:
देश के विभाजन के समय भारत के गर्वनर जनरल लार्ड माऊण्टबेटन थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

1. गुजरात राज्य का निर्माण हुआ
(A) वर्ष 1959 में
(B) वर्ष 1958 में
(C) वर्ष 1960 में
(D) वर्ष 1957 में।
उत्तर:
(C) वर्ष 1960 में।

2. द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त का प्रतिपादन किया
(A) कांग्रेस ने
(B) मुस्लिम लीग ने
(C) हिन्दू महासभा ने
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(B) मुस्लिम लीग ने।

3. विभाजन से पहले भारत की जनसंख्या थी
(A) लगभग 36 करोड़
(B) लगभग 40 करोड़
(C) लगभग 50 करोड़
(D) लगभग 38 करोड़।
उत्तर:
(A) लगभग 36 करोड़।

4. भारत में राष्ट्र निर्माण में निम्न बाधा है
(A) अनपढ़ता
(B) बेरोजगारी
(C) जातिवाद
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

5. हरियाणा राज्य का गठन हुआ
(A) वर्ष 1966 में
(B) वर्ष 1967 में
(C) वर्ष 1968 में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) वर्ष 1966 में।

6. सीमा आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
(A) जवाहर लाल नेहरू
(B) सरदार पटेल
(C) लिरिल रेडक्लिफ
(D) जॉन साइमन।
उत्तर:
(D) लिरिल रेडक्लिफ।

7. भारत के विभाजन से उत्पन्न समस्याएं हैं
(A) भौगोलिक दूरी की समस्या
(B) गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों की समस्या
(C) शरणार्थियों की समस्या
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी।

8. निम्नलिखित में से किसे पुलिस कार्य द्वारा पुर्तगालियों से मुक्त करवाया गया था ?
(A) पांडिचेरी
(B) कारगिल
(C) गोवा
(D) कश्मीर।
उत्तर:
(C) गोवा।

9. निम्नलिखित में से कौन-सा तत्व राष्ट्र निर्माण में बाधा डालता है ?
(A) भौगोलिक एकता
(B) शिक्षा का प्रसार
(C) राजनीतिक भागीदारी
(D) साम्प्रदायिकता।
उत्तर:
(D) साम्प्रदायिकता।

10. निम्नलिखित में से भारत के प्रथम गहमन्त्री कौन थे ?
(A) महात्मा गांधी
(B) डॉ० अम्बेदकर
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(D) सरदार पटेल।

11. राज्य पुनर्गठन अधिनियम को कब लागू किया गया था ?
(A) 10 जून, 1956 को
(B) 15 अगस्त, 1947 को
(C) 20 जनवरी, 1948 को
(D) 1 नवम्बर, 1956 को।
उत्तर:
(D) 1 नवम्बर, 1956 को।

12. हैदराबाद के शासक को कहा जाता था
(A) नवाब
(B) राजा
(C) निजाम
(D) महाराजा।
उत्तर:
(C) निजाम।

13. राज्य बनने से पहले हरियाणा किस राज्य का अंग था ?
(A) मुम्बई
(B) पंजाब
(C) राजस्थान
(D) गुजरात।
उत्तर:
(B) पंजाब।

14. भारतीय संविधान को लागू किया गया
(A) 26 जनवरी, 1948 को
(B) 26 जनवरी, 1950 को
(C) 15 अगस्त, 1947 को
(D) 28 जनवरी, 1949 को।
उत्तर:
(B) 26 जनवरी, 1950 को।

15. भारत में कितनी भाषाओं को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है ?
(A) 22 भाषाओं को
(B) 24 भाषाओं को
(C) 18 भाषाओं को
(D) 25 भाषाओं को।
उत्तर:
(A) 22 भाषाओं को।

16. भारत के पहले प्रधानमंत्री थे
(A) डॉ. मनमोहन सिंह
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू
(C) श्रीमती इंदिरा गांधी
(D) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद।
उत्तर:
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू।

17. विभाजन के समय भारत में कुल देशी रियासतों की संख्या थी :
(A) 560
(B) 562
(C) 565
(D) 665.
उत्तर:
(C) 565.

18. अलग आन्ध्र प्रदेश राज्य का उदय किस वर्ष में हुआ ?
(A) 1957 में
(B) 1956 में
(C) 1952 में
(D) 1959 में।
उत्तर:
(C) 1952 में।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करो

(1) स्वतन्त्रता के बाद सबसे बड़ी चुनौती ……….. की थी।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण

(2) स्वतन्त्रता के समय भारतीय रियासतों की संख्या ………… थी।
उत्तर:
565

(3) हैदराबाद की रियासत के शासक को ……….. कहते थे।
उत्तर:
निजाम

(4) ………… में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ।
उत्तर:
1956

(5) असम से अलग करके 1972 में …………. राज्य बनाया गया।
उत्तर:
मेघालय

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

(6) भारत 15 अगस्त, ………… को स्वतन्त्र हुआ।
उत्तर:
1947

(7) 15 अगस्त, 1947 को लाल किले की प्राचीर से ………… ने ऐतिहासिक भाषण दिया।
उत्तर:
पं० जवाहर लाल नेहरू

(8) स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष कई ……….. थीं।
उत्तर:
चुनौतियाँ

(9) 26 जनवरी, 1950 को भारतीय ………… लागू किया गया।
उत्तर:
संविधान।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
राष्ट्र निर्माण के लिए किन तत्वों का होना अनिवार्य है ?
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण के लिए भाषायी एकता, सामान्य संस्कृति तथा भौगोलिक एकता जैसे महत्वपूर्ण तत्त्वों का होना अनिवार्य है।

प्रश्न 2.
भारत में राष्ट्र निर्माण में कौन-से तत्त्व बाधा डालते हैं ?
उत्तर:
भारत में राष्ट्र निर्माण में अनपढ़ता, बेरोज़गारी तथा जातिवाद इत्यादि जैसे तत्त्व बाधा डालते हैं।

प्रश्न 3.
हजोग, चकमा, सन्थाल तथा अन्य अनेक गैर-बंगाली समूह जिन्होंने पूर्वी पाकिस्तान छोड़ दिया था, वे बसने के लिए कहां गए ?
उत्तर:
भारत।

प्रश्न 4.
भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री कौन थे ?
उत्तर:
भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू थे।

प्रश्न 5.
भारत के प्रथम गृहमन्त्री कौन थे ?
उत्तर:
भारत के प्रथम गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1990 के बाद भारतीय राजनीति में उभरती प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1990 के बाद भारतीय राजनीति में उभरने वाली प्रमुख प्रवृत्तियां इस प्रकार हैं:

1. दलीय प्रणाली का बदला हुआ स्वरूप (Changing Nature of Party System):
भारत में दलीय प्रणाली के स्वरूप में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। नवम्बर 1989, मई-जून 1991, अप्रैल-मई 1996 और फरवरी मार्च 1998 के लोकसभा के चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ जिस कारण चारों बार अल्पमत की सरकार बनी जिन्हें अपने अस्तित्व के लिए विभिन्न दलों पर निर्भर रहना पड़ा। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनाव में किसी भी दल या गठबन्धन को बहुमत नहीं मिला।

कांग्रेस ने अन्य दलों के समर्थन से ‘संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन’ के नाम से सरकार बनाई। 2014 एवं 2019 में हुए 16वीं एवं 17वीं लोकसभा के चुनावों में यद्यपि भाजपा ने अकेले ही (282 सीटें एवं 303 सीटें) लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया, परन्तु भाजपा ने दोनों ही बार श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गठबन्धन सरकार (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन) का ही निर्माण किया। इससे स्पष्ट होता है कि भारत में दलीय प्रणाली के स्वरूप में परिवर्तन आया है।

2. शक्तिशाली विरोधी दल का उदय (Rise of Powerful Opposition Party):
1977 ई० के आम चुनावों के बाद केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और कांग्रेस को केवल 153 सीटें प्राप्त हुईं। कांग्रेस की इस हार से केन्द्र में पहली बार संगठित विरोधी दल का उदय हुआ।

3. राजनीति में जातिवाद की भूमिका (Role of Casteism in Politics):
भारतीय राजनीति में जातिवाद एक महत्त्वपूर्ण तथा निर्णायक तत्त्व रहा है। स्वतन्त्रता के पश्चात् जाति का प्रभाव कम होने की अपेक्षा बढ़ा ही है जो राष्ट्रीय एकता के लिए घातक है। चुनावों के समय उम्मीदवारों का चयन जाति के आधार पर किया जाता है। नेताओं का उत्थान व पतन जाति के समर्थन पर ही निर्भर करता है।

4. बहु-दलीय प्रणाली के साथ-साथ साम्प्रदायिक दलों का अस्तित्व (Existence of Communal parties with Multy Party System):
भारत में साम्प्रदायिक दल भी पाए जाते हैं यद्यपि धर्म-निरपेक्ष राज्य में साम्प्रदायिक दलों का भविष्य उज्ज्वल नहीं है तथा उनके प्रचार और गतिविधियों से देश का राजनीतिक वातावरण दूषित हो जाता है।

5. सरकार के निर्माण में स्वतन्त्र सदस्यों की भूमिका (Role of Independent Members to make Govt.):
भारत में बहु-दलीय व्यवस्था होने के साथ-साथ संसद् तथा राज्य विधानसभाओं में स्वतन्त्र सदस्यों की संख्या बहुत पाई जाती है। स्वतन्त्र सदस्य स्वस्थ प्रजातन्त्र के हित में नहीं है। दल-बदल के लिए स्वतन्त्र सदस्य काफ़ी हद तक ज़िम्मेवार हैं। स्वतन्त्र सदस्य जब चाहे किसी दल के साथ मिल सकते हैं और जब चाहे बाहर आकर फिर स्वतन्त्र हो जाते हैं। लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि स्वतन्त्र उम्मीदवारों को कोई विशेष सफलता नहीं मिलनी चाहिए।

6. चुनावों में हिंसा का प्रयोग (Use of Violence in Elections):
भारत के चुनावों में कुछ राजनीतिक दल अपने राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हिंसक साधनों का प्रयोग करते हैं।

7. भारतीय राजनीति का अपराधीकरण होना (Criminalisation of Indian Politics):
स्वतन्त्रता के बाद भारतीय राजनीति में धीरे-धीरे आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का समावेश होता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार उत्तर प्रदेश की विधानसभा में 200 के लगभग विधायक आपराधिक प्रवृत्ति के हैं। इतनी बड़ी संख्या में अपराधियों का विधानसभा में पहुंचना भारत जैसे लोकतन्त्र के लिए हानिकारक है।

8. असैद्धान्तिक चुनावी गठजोड़ (Non-Principle Alliances of Political Parties):
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में एक मुख्य प्रवृत्ति असैद्धान्तिक चुनावी गठजोड़ का होना है। प्राय: सभी राजनीतिक दल अपने हितों की पूर्ति के लिए सिद्धान्तहीन समझौते करने के लिए तत्पर रहते हैं। अप्रैल-मई, 2019 में हुए 17वीं लोकसभा के चुनावों में प्रायः सभी दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए।

9. प्रादेशिक दलों की भूमिका (Role of Regional Parties):
भारतीय राजनीति में अन्य प्रवृत्ति उभर कर आई है और वह है केन्द्रीय राजनीति में प्रादेशिक दलों की भूमिका। अप्रैल-मई, 2019 में हुए 17वीं लोकसभा के चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों ने कई क्षेत्रीय दलों से चुनावी गठजोड़ किया। यह प्रादेशिक दल लोगों की क्षेत्रीय भावनाओं को भड़का कर राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करते हैं।

10. राष्ट्रीय समस्याओं की जगह क्षेत्रीय समस्याओं पर बल (More importance to Regional Problem than National Problem):
भारतीय राजनीति की एक अन्य प्रवृत्ति यह है कि चुनाव प्रचार अभियान में प्रायः राष्ट्रीय विषयों को पीछे छोड़कर क्षेत्रीय समस्याओं पर बल दिया जाने लगा।

11. राजनीति में भ्रष्टाचार (Corruption in Politics):
भारत की राजनीति में भ्रष्टाचार ने अपना स्थान बना लिया है। प्राय: सभी राजनीतिक दल चुनावों के अवसर पर एक-दूसरे के ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं। राजनीतिज्ञ चुनाव जीतने के लिए प्रायः भ्रष्ट साधनों का उपयोग करते हैं। मन्त्री पद पर आसीन उम्मीदवार अपने पद और शासन की मशीनरी का अनुचित प्रयोग करते हैं।

12. कांग्रेस के आधिपत्य की समाप्ति (End of Congress Party Dominance):
भारत में लम्बे समय तक विशेषकर 1977 तक कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा, परन्तु वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व समाप्त हो चुका है और उसकी जगह अन्य दलों ने ले ली है।

प्रश्न 2.
जनता दल के उदय एवं विभाजन पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
भारतीय राजनीति में वर्ष 1988 का एक विशेष महत्त्व है क्योंकि इस वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर एक नए राजनीतिक दल ‘जनता दल’ का निर्माण किया गया है। जिस प्रकार 1978 में कांग्रेस की एकता स्थिर न रहने के कारण दल दो भागों में विभाजित हो गया था, उसी प्रकार 1987 में एक बार फिर कांग्रेस (आई) के कई प्रमुख नेताओं ने इस दल से त्याग-पत्र दे दिया।

इन नेताओं में भूतपूर्व वित्त मन्त्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, श्री रामधन, श्री अरुण नेहरू, श्री आरिफ मोहम्मद खां जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। कांग्रेस (आई) से पृथक् होकर 2 अक्तूबर, 1987 को श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने ‘जन मोर्चा’ के गठन की घोषणा की। इसका मुख्य उद्देश्य देश के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ढांचे में लोकतान्त्रिक तथा क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने के उद्देश्य से देश व्यापी आन्दोलन छेड़ना था।

इसके साथ ही भारत में काफ़ी लम्बे समय से विपक्षी दल एक ऐसे नये राजनीतिक दल का निर्माण करने का प्रयास कर रहे थे जो कांग्रेस (आई) का सशक्त विकल्प बन सके। ये विपक्षी दल इस दिशा के प्रति निरन्तर प्रयास करते रहे। अन्त में 26 जुलाई, 1988 को चार विपक्षी दलों जनता पार्टी, लोकदल, कांग्रेस (स) और जन मोर्चा के विलय की औपचारिक घोषणा कर दी गई और एक नये राजनीतिक दल को स्थापित किया गया।

इस नये दल का नाम समाजवादी जनता दल रखा गया। इस दल के गठन की घोषणा करने में हरियाणा के मुख्यमन्त्री श्री देवी लाल की प्रमुख भूमिका रही। इसके उपरान्त राजनीति में पिछले महीनों की कशमकश के बाद 11 अक्तूबर, 1988 को बंगलौर में ‘जनता दल’ के गठन की विधिवत् घोषणा कर दी गई।श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को उस नये दल का प्रधान मनोनीत किया गया। इस नये दल का भारतीय राजनीति-नए बदलाव चुनाव चिह्न ‘चक्र के बीच हलधर’ होगा तथा दल का झण्डा हरे रंग का होगा जिस पर चुनाव चिह्न सफ़ेद रंग में ऊपर से अंकित होगा।

जनता दल का विभाजन-23 अक्तूबर, 1990 को भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। भतपूर्व प्रधानमन्त्री वी० पी० सिंह ने त्याग-पत्र देने के स्थान पर लोकसभा में अपना बहमत सिद्ध करने का निर्णय किया। 7 नवम्बर, 1990 को लोकसभा का अधिवेशन बुलाया गया। जनता दल के असन्तुष्ट सांसदों ने नेतृत्व परिवर्तन की मांग की। 5 नवम्बर, 1990 को प्रधानमन्त्री वी० पी० सिंह से इस्तीफा देने की मांग करने वाले जनता दल के असन्तुष्ट सांसदों ने जनता दल संसदीय पार्टी की बैठक का बहिष्कार कर चौधरी देवी लाल के निवास स्थान पर बैठक की और श्री चन्द्रशेखर को अपना नेता चुना।

दूसरी ओर संसदीय पार्टी की नियमित बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए उचित कदम उठाने के लिए अधिकृत किया गया।श्री चन्द्रशेखर सहित जनता दल के तीस असन्तुष्ट सांसदों को पार्टी से निकाल दिया गया। इस प्रकार 5 नवम्बर, 1990 को जनता दल का विधिवत् विभाजन हो गया। फरवरी, 1992 में जनता दल का पुनः विभाजन हो गया, जबकि अजीत सिंह गुट जनता दल से अलग हो गया। 28 जुलाई, 1993 को जनता दल में तीसरा विभाजन हुआ जब जनता दल (अ) के सात सांसदों ने कांग्रेस (इ) के पक्ष में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान किया और अगस्त, 1993 में सभी सांसद् कांग्रेस (इ) में शामिल हो गए।

28 जून, 1994 को जनता दल में चौथा विभाजन हुआ। जनता दल के 14 सदस्य जॉर्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में जनता दल से पृथक् हो गए और उन्होंने जनता दल (ज) का गठन किया। 20 अक्तूबर, 1994 को जनता दल (ज) ने अपने दल का नाम समता पार्टी रख लिया और 23 नवम्बर, 1994 को चुनाव आयोग ने समता पार्टी को राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता प्रदान की।

परन्तु 24 मार्च, 1999 को चुनाव आयोग ने इसकी राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता समाप्त करते हुए इसे राज्य स्तर के दल के रूप में मान्यता प्रदान की। 21 जुलाई, 1999 को जनता दल का सातवीं बार विभाजन हुआ। इस दिन जनता दल के नेता शरद यादव वाले गुट (राम विलास पासवान, जे० एच० पटेल आदि) के साथ समता पार्टी व लोक शक्ति का विलय हो गया।

इस नए दल का नाम जनता दल (यूनाइटेड ) रखा गया। दूसरी ओर जनता दल के दूसरे गुट ने जिसमें मधु दण्डवते, एस० आर० बोम्मई, सी० एम० इब्राहिम आदि सम्मिलित थे, एच० डी० देवेगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल (सैक्यूलर) के नाम से अलग दल बना लिया। 30 सितम्बर, 2000 को चुनाव आयोग ने जनता दल (सैक्यूलर) एवं जनता दल (यूनाइटिड) दोनों की राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता रद्द कर दी।

चुनाव आयोग ने जनता दल के चुनाव चिह्न ‘चक्र’ को जब्त करके जनता दल (सैक्यूलर) को ‘ट्रैक्टर चलाता किसान’ एवं जनता दल (यूनाइटिड) को ‘तीर’ चुनाव चिह्न प्रदान किया। 28 नवम्बर, 2000 को जनता दल का आठवां विभाजन हुआ। इस दिन जनता दल के नेता राम विलास पासवान अपने समर्थकों के साथ जनता दल से अलग हो गए और उन्होंने ‘जनशक्ति’ नाम से एक नई पार्टी बना ली।

प्रश्न 3.
भारतीय जनता पार्टी के उदय पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
यद्यपि जुलाई, 1979 में जनता पार्टी का विभाजन दोहरी सदस्यता के प्रश्न पर हुआ था, परन्तु विभाजन के बाद भी दोहरी सदस्यता का विवाद समाप्त नहीं हुआ। 19 मार्च, 1980 को जनता पाटी के केन्द्र संसदीय बोडे ने बहुमत से फैसला किया कि जनता पार्टी का कोई भी अधिकारी, विधायक और संसद सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रोजमर्रा की गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले सकता। बोर्ड की बैठक में श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लाल कृष्ण अडवानी और श्री नाना जी देशमुख ने बोर्ड के इस निर्णय का विरोध किया और इस सम्बन्ध में तैयार किए गए प्रस्ताव में अपना विमत दर्ज कराया।

बाद में अलग से एक वक्तव्य जारी कर इन नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि भू० पू० जनसंघ घटक अभी पार्टी को भले ही न छोड़े पर वह अपने संख्या बल के आधार पर पार्टी के नेतृत्व को जल्दी ही चुनौती देगा। इस वक्तव्य में जनसंघ घटक ने साफ-साफ कहा कि संसदीय बोर्ड और राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन चुनाव से नहीं हुआ। वे तदर्थ हैं और इनका तथा उनके सभी पदाधिकारियों का शीघ्र चुनाव होना चाहिए, परन्तु पार्टी के अध्यक्ष श्री चन्द्रशेखर ने पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने की मांग को रद्द करते हुए घोषणा की कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी को ऐसे मामलों में फैसला लेने का अन्तिम अधिकार है।

4 अप्रैल को जनता पार्टी का एक और विभाजन प्रायः निश्चित हो गया, जब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने अपने संसदीय बोर्ड के प्रस्ताव का अनुमोदन कर पार्टी के विधायकों और पदाधिकारियों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यों में भाग लेने पर रोक लगा दी। अनुमोदन प्रस्ताव के पक्ष में 17 सदस्यों ने और विरोध में 14 सदस्यों ने मत दिए। श्री अडवानी के शब्दों में, “जनता पार्टी की कार्यसमिति में पहली बार मतदान हुआ और वह भी किसी एक गुट को पार्टी से निकालने के लिए।”

5 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व जनसंघ के सदस्यों ने नई दिल्ली में दो दिन का सम्मेलन किया और एक नई पार्टी बनाने का निश्चय किया। सम्मेलन की अध्यक्षता श्रीमती विजयराजे सिंधिया ने की। 6 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व विदेश मन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी के नाम से एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का गठन किया गया। यद्यपि जनता पार्टी का विभाजन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ, जनसंघ के सम्बन्धों पर हुआ था फिर भी जनसंघ को पुनर्जीवित नहीं किया गया, क्योंकि श्री वाजपेयी के शब्दों में हमारे साथ पिछले तीन वर्ष का अनुभव है, व्यापक सम्पर्क है जिन्हें हम अपने आन्दोलन का भाग बनाएंगे और इसलिए भी कि वे लोग हमारे साथ आएं जो कभी जनसंघ में नहीं थे या जिनका राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से कोई नाता ही नहीं था।

इस गुट को कुछ ऐसे लोगों को भी अपने पक्ष में करने में सहायता मिली जिनका सम्बन्ध राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या जनसंघ से नहीं था। भूतपूर्व आवास मन्त्री सिकन्दर बख्त और भूतपूर्व विधि मन्त्री शान्ति भूषण तथा संसद् सदस्य राम जेठमलानी इनमें प्रमुख थे। इस सम्मेलन में लगभग चार हजार प्रतिनिधि शामिल हुए और दो दिन का यह समारोह एक राजनीतिक दल के वार्षिक अधिवेशन की तरह ही संचालित किया गया। भारतीय जनता पार्टी का प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन 27 दिसम्बर, 1980 को मुम्बई में हआ। इस सम्मेलन में 55 हज़ार प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 6 हजार से भी अधिक स्त्रियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया जो अपने आप में स्वतन्त्रता के बाद किसी राजनीतिक दल के लिए एक कीर्तिमान ही है।

पार्टी की सदस्यता (Membership of Party):
पार्टी के संविधान की धारा 7 के अनुसार कोई भी भारतीय नागरिक जो 18 वर्ष या इससे अधिक आयु का हो और जो संविधान की धारा 2 को स्वीकार करता हो, सदस्यता के फार्म (Annextured) में लिखित घोषणा करने पर एवं वर्णित शुल्क देने पर पार्टी का सदस्य बन सकता है, किन्तु शर्त यह है कि वह व्यक्ति किसी भी अन्य राजनीतिक दल का सदस्य नहीं होना चाहिए।

साधारणतया व्यक्ति अपने स्थायी निवास अथवा उस जगह पर जहां पर यह कार्य करता हो, दल का सदस्य बन सकता है। नवम्बर, 2019 में भारतीय जनता पार्टी की सदस्य संख्या 18 करोड़ से अधिक थी। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री अमित शाह के अनुसार सदस्यता के विषय में भारतीय जनता पार्टी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। जबकि जनसंघ की सदस्य संख्या कभी भी 12 लाख के ऊपर नहीं गई थी।

भारतीय जनता पार्टी का सामाजिक आधार (Social Base of Bharatiya Janata Party):
भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रवादी दल है। नि:संदेह इस पार्टी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्यों का प्रभुत्व है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि इस पार्टी का सामाजिक आधार केवल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तक ही सीमित है। आरम्भ में इस पार्टी को अल्पसंख्यकों का समर्थन न होने के बराबर प्राप्त था क्योंकि यह पार्टी अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति की विरोधी थी। मुसलमान और ईसाइयों का इसका समर्थन बहुत कम प्राप्त है। पर हरिजनों और जनजातियों तथा कबीलों में इस पार्टी की लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ रही है।

मई, 1982 में होने वाले उप-चुनावों में और 1987 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव में इसने सुरक्षित स्थान जीत कर यह प्रमाणित कर दिया कि अनुसूचित जातियों और पिछड़े लोगों में भी इसका प्रभाव है। सरकारी कर्मचारी और शिक्षित वर्ग भारतीय जनता पार्टी के महान् समर्थक हैं। श्रमिकों में इसका समर्थन बढ़ता जा रहा है। भारतीय मजदूर संघ, जिसकी सदस्यता 20 लाख से अधिक है, भारतीय जनता पार्टी के समर्थक हैं। मध्य वर्ग के व्यापारी इसके समर्थक हैं।

ध्येय तथा उद्देश्य (Aims and Objects):
पार्टी संविधान की धारा 2 में कहा गया है-‘पार्टी राष्ट्रीय समन्वय, लोकतन्त्र, सकारात्मक धर्म-निरपेक्ष, गांधीवादी, समाजवाद और मूल्यों पर आधारित राजनीति के लिए कृत-संकल्प है। पार्टी आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण में विश्वास रखती है।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 4.
भारत में क्षेत्रीय दलों का महत्त्व क्यों बढ़ता जा रहा है ?
अथवा
गठबन्धन राजनीति में क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
क्षेत्रीय दल का अर्थ-आमतौर पर राज्य दलों (State Parties) को ही क्षेत्रीय राजनीतिक दल कहा जाता है। किसी राजनीतिक दल को चुनाव आयोग द्वारा राज्य-दल (State Party) के रूप में मान्यता दी जाती है।। चनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों को क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता देने का आधार-इसके लिए अध्याय 8 का लघु उत्तरीय प्रश्न नं० 9 देंखे। राजनीतिक व्यवस्था में क्षेत्रीय दलों का योगदान-भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का महत्त्व दिन-प्रतिदिन अधिक बढ़ रहा है। वर्तमान समय में चुनाव आयोग ने 8 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दल के रूप में तथा 53 राजनीतिक दलों को राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्रदान की हुई है।

पंजीकृत दलों को चुनाव आयोग की मान्यता तो प्राप्त नहीं होती लेकिन उन्हें चुनाव में भाग लेने का अधिकार प्राप्त होता है। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की बढ़ रही महत्ता का अनुमान इस तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि 19 मार्च, 1998 को श्री अटल बिह के नेतत्वाधीन जिस भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्र में सरकार स्थापित की थी उस सरकार में 18 राजनीतिक दल सम्मिलित थे, जिनमें से मात्र दो राजनीतिक दल ही राष्ट्रीय स्तर के थे। इसके अतिरिक्त सितम्बर-अक्तूबर, 1999 में 13वीं लोकसभा के चुनावों से पहले और बाद में भी क्षेत्रीय दलों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही। इन चुनावों से पहले लगभग सभी राष्ट्रीय दलों ने क्षेत्रीय दलों के साथ गठबन्धन किया और उन्हें सत्ता में भागीदार बनाने का वायदा किया।

भारतीय जनता पार्टी ने 24 दलों के साथ मिलकर एक महान् गठबन्धन (Grand Alliance) बनाया जिसे राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन का नाम दिया गया। लोकसभा में बहुमत प्राप्त करने के बाद इस गठबन्धन के अधिकांश सदस्यों को सरकार में भी सम्मिलित किया गया। 2004 के 14वीं लोकसभा चुनावों में भी किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला। जिसके कारण कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (United Progressive Alliance-U.P.A.) का निर्माण किया गया, जिसमें कई क्षेत्रीय दलों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2009 के लोकसभा के चुनावों के पश्चात् भी कांग्रेस ने केन्द्र में सरकार बनाने के लिए कई क्षेत्रीय दलों का समर्थन लिया।

2014 एवं 2019 में भी भारतीय जनता पार्टी द्वारा 16वीं एवं 17वीं लोकसभा के चुनावों में स्पष्ट बहुमत प्राप्त होने के बावजूद भी गठबन्धन सरकार का निर्माण किया गया। केन्द्र में सरकार स्थापित करने के अलावा अनेकों राज्यों में भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने सरकारें बनाई हैं। समय-समय पर पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस, असम में असम गण परिषद्, आन्ध्र प्रदेश में तेलुगू देशम, तमिलनाडु में डी० एम० के० और कई अन्य राज्यों में अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की सरकारें बनी हैं।

क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का अटूट अंग बन गए हैं। आने वाले समय में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में इन दलों की भूमिका और भी अधिक महत्त्वपूर्ण बनेगी और यह दल राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करते रहेंगे। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की महत्ता के कारण ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और अन्य राष्ट्रीय राजनीतिक दल क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से चुनाव गठबन्धन करने के लिए विवश हैं।

प्रश्न 5.
भारत में मिली-जुली या गठबन्धन सरकारों की राजनीति की व्याख्या करें।
अथवा
भारत में गठबन्धन की राजनीति का क्या अर्थ है ? गठबन्धन सरकार के मुख्य लक्षण बताइये।
अथवा
गठबन्धन सरकार से आप क्या समझते हैं ? इसके मुख्य लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू किया गया। जिसके तहत भारत में लोकतान्त्रिक प्रणाली की व्यवस्था की गई है। सन् 1952 से लेकर वर्तमान समय तक भारत में 17 आम चुनाव हो चुके हैं। भारत में मिली-जुली सरकारों के निर्माण का इतिहास भी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ ही जुड़ा है। भारत में मिली-जुली सरकारों की राजनीति के अध्ययन से पूर्व हमें मिली-जुली सरकार के अर्थ से परिचित होना ज़रूरी है।

भारत में मिली-जुली सरकारों के लिए कई शब्दों का प्रयोग होता है, जिनमें मुख्य हैं ‘जनता सरकार’, ‘राष्ट्रीय मोर्चा सरकार’, ‘संयुक्त मोर्चा सरकार’, राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन, संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन तथा ‘मिली-जुली सरकार’ ली-जुली सरकार का साधारण अर्थ है कई दलों द्वारा मिलकर सरकार का निर्माण करना। चुनावों से पूर्व या चुनावों के बाद कई दल मिलकर अपना साझा कार्यक्रम तैयार करते हैं।

उसके आधार पर वे मिलकर चुनाव लड़ते हैं अथवा अपनी सरकार बनाते हैं। मिली-जुली सरकार का निर्माण प्राय: उस स्थिति में किया जाता है, जब प्रायः किसी एक दल को चुनावों के बाद स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हुआ हो। तब दो या दो से अधिक दल मिलकर संयुक्त सरकार का निर्माण करते हैं। ऐसी सरकार में प्राय: सभी राजनीतिक दल अपने दलों के संकीर्ण व विशेष हितों को त्याग कर एक निश्चित कार्यक्रम पर अपनी सहमति प्रकट करते हैं। इन मिली-जुली सरकारों की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित है

1. समझौतावादी कार्यक्रम-मिले-जुले मन्त्रिमण्डलों की पहली विशेषता यह है कि उनका राजनीतिक कार्यक्रम समझौतावादी होता है। सरकार निर्माण के कुछ दिन बाद ही मन्त्रिमण्डल के घटक दलों के शीर्षस्थ नेता मिलकर मिली जुली सरकार के लिए राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक कार्यक्रम तैयार करते हैं, इसके सम्बन्ध में वह समझौता करते हैं, जिसमें कि प्रत्येक दल की बातों को व कार्यक्रम को ध्यान में रखा जाता है। अतः मिले-जुले मन्त्रिमण्डलों की पहली प्रवृत्ति अथवा विशेषता समझौतावादी है।

2. सर्वसम्मत नेता-मिली-जुली सरकार के निर्माण से पूर्व सभी दल मिलकर अपने नेता का चुनाव करते हैं। नेता का चुनाव प्रायः सर्वसम्मत ढंग से किया जाता है। यद्यपि मिली-जुली सरकार का एक सर्वसम्मत नेता होता है, फिर भी घटक दलों के नेता व उनके अस्तित्व को दृष्टि विगत नहीं किया जाता। इसके कारण सरकार में एकता बनी रहती है।

3. सर्वसम्मत निर्णय-मिली-जुली सरकार में शामिल घटक दल किसी भी राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय समस्या का हल सर्वसम्मति से करते हैं। कोई भी राजनीतिक समस्या पैदा होने पर घटक दलों की संयुक्त बैठक बुलाई जाती है, जिससे उक्त समस्या पर घटक दलों की राय जानी जाती है। प्रत्येक दल द्वारा दिए गए सुझावों को विशेष महत्त्व दिया जाता है ताकि कोई दल यह महसूस न करे कि उसके अस्तित्व को अनदेखा कर दिया गया है।

4. मिल-जुल कर कार्य करना-मिली-जुली सरकार में शामिल सभी घटक दल मिल-जुलकर कार्य करते हैं। प्रत्येक दल को कोई न कोई महत्त्वपूर्ण विभाग अवश्य सौंपा जाता है। इस विभाग की कुशलता आदि उस दल के ऊपर निर्भर करती है। एक दल द्वारा किया गया गलत कार्य सभी दलों द्वारा किया गया गलत कार्य समझा जाएगा। इसीलिए सभी दल मिल-जुल कर कार्य करते हैं।

भारत में मिली-जुली सरकारों की राजनीति का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

1. स्वतन्त्रता से पूर्व मिली-जुली सरकार (Coalition Government before Independence):
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में मिली-जली सरकार के निर्माण का इतिहास स्वतन्त्रता प्राप्ति के पर्व से आरम्भ होता है। भारत के लिए नया संविधान बनाने के लिए कैबिनेट मिशन के द्वारा एक अन्तरिम सरकार का गठन किया गया। इस सरकार में भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों कांग्रेस, मुस्लिम लीग, अकाली दल आदि को शामिल किया गया।

2. मिली-जुली सरकार 1952 से 1967 (Coalition Government from 1952 to 1967):
भारत में पहले संसदीय चुनाव सन् 1952 में हुए। इन चुनावों के समय चुनाव आयोग ने 14 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल के रूप में मान्यता दी। इन चुनावों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ, क्योंकि उस समय कोई राजनीतिक दल कांग्रेस के समान स्तर का नहीं था, फिर भी पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने अपने मन्त्रिमण्डल में भारतीय राजनीति-नए बदलाव डॉ० बी० आर० अम्बेदकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, गोपाल स्वामी आयंगर जैसे गैर-कांग्रेसी सदस्य भी सम्मिलित किए। श्री लाल बहादुर शास्त्री व श्रीमती इन्दिरा गांधी के शासन काल में सभी मन्त्री कांग्रेस से ही लिए गए थे।

3. मिली-जुली सरकार की राजनीति 1967 से 1977 तक (Coalition Government Politics from 1967 to 1977):
चौथे आम चुनावों के पश्चात् यद्यपि कांग्रेस को केन्द्र में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ, परन्तु कई राज्यों में मिली-जुली सरकारें बनीं। सन् 1969 में कांग्रेस में विभाजन के पश्चात् इन्दिरा गांधी की सरकार को साम्यवादी दल के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ा। सन् 1967 के चुनाव के पश्चात् बिहार, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि प्रान्तों में मिली-जुली सरकारों के बनने और गिरने का सिलसिला आरम्भ हो गया, परन्तु केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकार बनी।

4. केन्द्र में पहली मिली-जुली सरकार (First Coalition Government in the Centre in 1977):
केन्द्र में पहली मिली-जुली सरकार का निर्माण। मार्च, 1977 में लोकसभा चुनाव हुए और इन चुनावों में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार हुई। जनता पार्टी व उसके सहयोगी दलों को 300 स्थान प्राप्त हुए। केन्द्र में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् गैर-कांग्रेसी सरकार की स्थापना हुई। केन्द्र में यह मिली-जुली सरकार का पहला प्रयोग था। जनता पार्टी की सरकार में कांग्रेस संगठन, भारतीय लोकदल, जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी, विद्रोही कांग्रेस, अकाली दल, द्रमुक आदि दल शामिल हुए।

5. राष्ट्रीय मोर्चा सरकार 1989 (National Front Government 1989):
1989 के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चा की मिली-जुली सरकार बनी। राष्ट्रीय मोर्चा और जनता दल ने मिलकर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में राष्ट्रीय मोर्चे के सबसे महत्त्वपूर्ण घटक जनता दल को 141 स्थान प्राप्त हुए, परन्तु कांग्रेस (स), तेलुगू देशम तथा डी० एम० के० को कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई। विश्वनाथ प्रताप सिंह को राष्ट्रीय मोर्चा संसदीय दल का नेता चुना गया और उन्होंने केन्द्र में दूसरी मिली-जुली सरकार का निर्माण किया।

भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दलों ने राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को बाहर से समर्थन 23 अक्तबर, 1990 को भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपना समर्थन वापस लेने व जनता दल में विभाजन के कारण राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार को लोकसभा में विश्वास मत प्राप्त नहीं हो सका और 7 नवम्बर, 1990 को प्रधानमन्त्री. वी० पी० सिंह ने अपने पद से त्याग–पत्र दे दिया। मई-जून, 1991 को लोकसभा के मध्यावधि चुनावों में यद्यपि किसी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ, परन्तु कांग्रेस को लोकसभा में सबसे अधिक स्थान प्राप्त हुए और कांग्रेस ने अपनी अल्पमत सरकार बनाई और 1996 तक कांग्रेस सत्ता में रही।।

6. संयुक्त मोर्चा सरकार 1996 (United Front Government 1996):
चुनाव आयोग ने कुछ राज्य स्तरीय क्षेत्रीय दलों को भी मान्यता प्रदान की। अप्रैल-मई, 1996 के चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ जिसके कारण मिली-जुली सरकार बनाने की सम्भावनाएं बहुत बढ़ गईं। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और उसे 161 स्थान प्राप्त हुए। दूसरे नम्बर पर कांग्रेस रही, जिसको 140 स्थान प्राप्त हुए। कांग्रेस को इतने कम स्थान पहले कभी भी किसी भी लोकसभा चुनाव में प्राप्त नहीं हुए। जनता दल को 45, मार्क्सवादी पार्टी को 32, भारतीय साम्यवादी दल को 12, समता पार्टी को 8, कांग्रेस (ति०’) को 4 और जनता पार्टी को कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई।

इन चुनावों में क्षेत्रीय दलों को भारी सफलता प्राप्त हुई जिनमें डी० एम० के० को 17, तमिल मनीला कांग्रेस को 20, तेलुगू देशम पार्टी को 16, समाजवादी पार्टी को 16, अकाली दल को 8, शिवसेना को 15, असम गण परिषद् को 5, हरियाणा विकास पार्टी को 3, मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस को 2 और बहुजन समाज पार्टी को 11 स्थान प्राप्त हुए, जिसके कारण सरकार के निर्माण में क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ गई। राष्ट्रपति डॉ० शंकर दयाल शर्मा ने 16 मई, 1996 को लोकसभा में सबसे बड़े दल भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित किया।

16 मई, 1996 को भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों सम दल, शिव सेना और हरियाणा विकास पार्टी के सहयोग से मिली-जुली सरकार का गठन किया, परन्तु इससे पहले 10 मई, 1996 को 10 राजनीतिक दलों जनता दल, भारतीय साम्यवादी दल, भारतीय साम्यवादी दल (मार्क्सवादी), अखिल भारतीय इन्दिरा कांग्रेस (तिवारी), डी० एम० के०, तमिल मनीला कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, मध्य प्रदेश कांग्रेस, मस्लि लीग, जनता पार्टी ने मिलकर संयुक्त मोर्चे का निर्माण किया।

19 मई, 1996 को इस मोर्चे में असम गण परिषद् और तेलुगू देशम पार्टी भी शामिल हो गईं। इस तरह 12 दलों के सहयोग से मिलकर संयुक्त मोर्चे का निर्माण किया गया और श्री हरदन हल्ली डोडेगौड़ा देवेगौड़ा को संयुक्त मोर्चे का नेता चुना गया। इस मोर्चे को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बाहर से बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर दी। परन्तु इससे पूर्व केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया जा चुका था, राष्ट्रपति ने 31 मई, 1996 तक भाजपा को लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने का निर्देश दिया, परन्तु प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 28 मई, 1996 को ही अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया, क्योंकि उन्हें आभास हो गया था कि बहुमत उनके साथ नहीं है।

29 मई को राष्ट्रपति ने संयुक्त मोर्चा के नेता एच० डी० देवेगौड़ा को 1 जून, 1996 को अपनी सरकार बनाने का निमन्त्रण दिया। जून, 1996 को एच० डी० देवेगौड़ा ने 13 दलों द्वारा गठित संयुक्त मोर्चे से मिली-जुली सरकार का निर्माण किया। जनतान्त्रिक गठबन्धन सरकार 1999, 2014 एवं 2019 (National Democratic Alliance Government 1999, 2014 and 2019)-सितम्बर-अक्तूबर, 1999 में 13वीं लोकसभा के चुनाव में किसी भी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ, परन्तु भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन को बहुमत प्राप्त हो गया। 24 राजनीतिक दलों के सहयोग से मिलकर बने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के 70 सदस्यीय मन्त्रिमण्डल ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 अक्तूबर, 1999 को शपथ ग्रहण की।

इस सरकार में अधिकतर क्षेत्रीय दल सम्मिलित हैं। इन चुनावों ने भारतीय राजनीति में मिली-जुली सरकारों के युग का मार्ग और प्रशस्त किया। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं 2019 में हुए 17वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन ने क्रमश: 335 एवं 355 सीटें जीतीं, तथा दोनों बार श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का निर्माण किया। संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन सरकार-2004 एवं 2009 (United Progressive Alliance Government -2004 and 2009)- अप्रैल-मई, 2004 में 14वीं तथा अप्रैल-मई, 2009 में 15वीं लोकसभा के चुनाव हुए।

इन चुनावों में भी किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। अत: दोनों बार कई दलों ने मिलकर कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (United Progressive Alliance-UPA) का निर्माण किया तथा डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि गठबन्धन सरकारों को अपने अस्तित्व के लिए विभिन्न दलों के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ा। इसके कारण ही त्रिशंकु संसद् (Hung Parliament) का जन्म हुआ।

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प्रश्न 6.
भारत में गठबन्धन सरकार की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में गठबन्धन सरकार की उत्पत्ति के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं

1. कांग्रेस के आधिपत्य की समाप्ति-1989 के बाद कांग्रेस के आधिपत्य वाली स्थिति पहले जैसी नहीं रही। इसके विरुद्ध अनेक राजनीतिक दल आ गए जिससे गठबन्धनवादी सरकारों का दौर शुरू हुआ।

2. क्षेत्रीय दलों में वृद्धि-क्षेत्रीय दलों की बढ़ती संख्या के कारण किसी भी एक राष्ट्रीय दल को लोकसभा या विधानसभा में बहुमत मिलना कठिन हो गया है। इससे राजनीतिक दल आपस में गठबन्धन बनाने लगे हैं।

3. दल-बदल-भारत में दल-बदल विरोधी कानून होने के बावजूद भी दल-बदल की प्रवृत्ति पर रोक नहीं लग पाई है। दल-बदल के कारण सरकारों का अनेक बार पतन हुआ और जो नई सरकारें बनीं वे भी गठबन्धन करके बनीं।

4. क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा–प्राय: केन्द्र में बनी राष्ट्रीय दलों की सरकारों ने क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा की है। इससे क्षेत्रीय स्तर के दलों ने मुद्दों पर आधारित राजनीति के अनुसार गठबन्धनकारी दौर की शुरुआत की।

5. राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा-वर्तमान समय में प्रत्येक नेता मन्त्री पद प्राप्त करना चाहता है, इसलिए वह किसी तरह का समझौता करने के लिए तैयार रहता है।

6. लोगों का राष्ट्रीय दलों पर अविश्वास-गठबन्धन सरकारों के बनने का एक कारण यह है कि लोगों का राष्ट्रीय दलों पर विश्वास कम होता जा रहा है तथा वे क्षेत्रीय दलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

प्रश्न 7.
गठबन्धन सरकार के विभिन्न रूपों का वर्णन करें।
उत्तर:
गठबन्धन सरकार के कई रूप हो सकते हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. समान रूप से प्रभावशाली दो विरोधी गठबन्धन-इस प्रकार का गठबन्धन उस समय अस्तित्व में आता है, जब एक राज्य या प्रान्त में दो समान रूप से प्रभावशाली विरोधी गठबन्धन हो तथा उस राज्य या प्रान्त में अन्य छोटे-छोटे दल भी पाए जाते हों । इस प्रकार की स्थिति में दोनों बड़े विरोधी दल अन्य छोटे-छोटे दलों से समझौता करके अधिक-से-अधिक सीटें जीतकर सत्ता में आना चाहते हैं। इस प्रकार की स्थिति द्वि-दलीय व्यवस्था के रूप में कार्य करती है।

2. एक दल की प्रधानता वाला गठबन्धन-गठबन्धन सरकार का एक रूप दल की प्रधानता वाला गठबन्धन है। इस प्रकार के गठबन्धन के सभी छोटे-छोटे दल एक बड़े दल के साथ मिलकर गठबन्धन का निर्माण करते हैं। छोटे-छोटे दल यद्यपि महत्त्वपूर्ण होते हैं, परन्तु वे सरकार को पूर्ण रूप से प्रभावित नहीं कर पाते। इस प्रकार के गठबन्धन में से यदि एक-दो छोटे दल बाहर भी हो जाएं तो भी सरकार के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

3. राष्ट्रीय सरकार-गठबन्धन सरकार का एक रूप राष्ट्रीय सरकार का भी है। राजनीतिक दल संसद में अपने अपने आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर सरकार का गठन करते हैं। इस प्रकार की सरकार का निर्माण किसी राष्ट्रीय संकट या चुनावों से पूर्व किया जाता है।

4. नकारात्मक आधार पर निर्मित गठबन्धन सरकार- इस प्रकार का गठबन्धन प्रायः चुनावों के बाद ही बनता है, तथा सरकार बनाई जाती है। इस प्रकार का गठबन्धन ऐसे दलों का गठबन्धन होता है, जो किसी दूसरे विरोधी दल या गठबन्धन को सरकार बनाने से रोकना चाहते हों। ऐसे गठबन्धन अवसरवादिता के उदाहरण माने जाते हैं।

प्रश्न 8.
2004 के 14वें लोकसभा चुनावों एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
2004 में हुए लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election held in 2004) अप्रैल-मई, 2004 में 14वीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हुए। ये चुनाव पाँच चरणों में कराये गए थे, और इसमें 66 करोड़ मतदाताओं में से 58 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया गया। 14वीं लोकसभा चुनाव पूर्णतः इलेक्ट्रॉनिक चुनाव मशीन द्वारा करवाए गये थे। इस चुनाव में दलीय स्थिति इस प्रकार रहीं

राजनीतिक दलसीटें जीतीं
कांग्रेस गठबन्धन219
कांग्रेस145
डी० एम० के०16
एन० सी० पी०9
टी० आर० एस०5
पी० एम० के०6
एम० डी० एम० के०4
आर० जे० डी०23
जे० एम० एम०5
एल० जे० एन० एस० पी०3
जे० के० पी० डी० पी०1
एम० यू० एल1
आर० पी० भाई०1
(ए) राजग186
भाजपा138
एस० एच० एस०12
टी० डी० पी०5
अकाली दल8
जनता दल (यू)7
ए० आई० टी० सी०2
बी० जे० डी०11
एम० एन० एफ०1
आई० एफ० डी० पी०1
एन० पी० एफ०1
अन्य136
सी॰ पी० आई० (एम)43
सी० पी० आई०10
एस० पी०36
जनता दल (एस०)4
ए० आई० एफ० बी०3
ए० आई० एम० आई० एम०1
बी० एन० पी०1
के० ई० सी०1
इनैलो4
बी० एस० पी०18
आर० एल० डी०3
जे० के० एन०2
एस० जे० पी० (आर०)1
आर० एस० पी०3
ऐ० जी० पी०2
एन० एल० पी०1
एस० डी० एफ०1
एल० टी० एस० पी०1
एस० एच० एस०12

दलीय स्थिति के अध्ययन से पता चलता है कि मतदाताओं ने किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत प्रदान नहीं किया।

संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण (Formation of United Progressive Alliance)-2004 के लोकसभा के चुनावों में जब किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ तब भाजपा गठबन्धन एवं कांग्रेस गठबन्धन ने सरकार बनाने के प्रयास तेज़ कर दिये। अन्ततः अधिकांश गैर कांग्रेस एवं गैर भाजपा गठबन्धन दलों ने कांग्रेस गठबन्धन को समर्थन देने का निर्णय किया जिससे कांग्रेस गठबन्धन के लिए सरकार बनाने का रास्ता साफ़ हो गया।

कांग्रेस एवं सहयोगी दलों ने अपने गठबन्धन को संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (United Progressive Alliance-UPA) का नाम दिया। यद्यपि दलीय स्थिति देखने के पश्चात् हम यह कह सकते हैं कि कांग्रेस एवं भाजपा की सीटों में कोई बहुत बड़ा अन्तर नहीं था, परन्तु अन्य दलों ने कांग्रेस को समर्थन देकर संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार बनाने में मदद की। गठबन्धन के नेता के रूप में श्रीमती सोनिया का प्रधानमन्त्री बनना लगभग तय लग रहा था, परन्तु भाजपा एवं कुछ अन्य वर्गों के विरोध के कारण श्रीमती सोनिया गांधी ने स्वेच्छा से प्रधानमन्त्री बनने भारतीय राजनीति-नए बदलाव से इन्कार कर दिया।

अत: गठबन्धन में कांग्रेस के नेता डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमन्त्री बनाने पर सहमति बनी, परिणामस्वरूप 22 मई, 2004 को डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत के प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली। इस प्रकार लगभग 20 दलों की गठबन्धन सरकार अस्तित्व में आई। संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार को वामपंथियों ने बाहर से समर्थन देने का निर्णय किया। कांग्रेस के पश्चात् वामपंथी दलों ने सर्वाधिक 63 सीटें जीतीं।

अतः गठबन्धन सरकार पर वामपंथी दलों का विशेष प्रभाव है तथा डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार कोई भी नीतिगत निर्णय लेने से पहले वामपंथी दलों से विचार-विमर्श अवश्य करती है। संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन लगभग 20 दलों का एक गठबन्धन है। अत: गठबन्धन ने सभी सहयोगी दलों को खुश करने का प्रयास किया। गठबन्धन ने सर्वप्रथम अपना न्यूनतम सांझा कार्यक्रम (Common Minimum Programme) बनाया, जिसमें सभी दलों की विशेष नीतियों को शामिल किया। मन्त्रिपरिषद् के निर्माण में भी सहयोगी दलों को स्थान दिया गया।

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प्रश्न 9.
2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनावों एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन पर एक नोट लिखें। (Write a note on 15th Lok Sabha Elections and United Progressive Alliance.)
उत्तर:
2009 में हुए लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election held in 2009)
अप्रैल-मई, 2009 में 15वीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हुए, ये चुनाव पांच चरणों में कराये गए थे। इसमें 71 करोड़ 40 लाख मतदाताओं में से लगभग 60 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया था। 15वीं लोकसभा के चुनाव भी पूर्ण रूप से इलैक्ट्रोनिक चुनाव मशीन से करवाए गए थे। इस चुनाव में दलीय स्थिति इस प्रकार रही

राजनीतिक दलसीटें जीतीं
1. कांग्रेस206
2. भाजपा116
3. सपा23
4. बसपा21
5. जद (यू)20
6. टी०एम०सी०19
7. डी०एम०के०18
8. माकपा16
9. बीजद14
10. शिवसेना11
11. एन० सी० पी०9
12. अन्ना द्रमुक9
13. टी० डी० पी०6
14. रालोद5
15. अकाली दल4
16. राजद4
17. भाकपा4
18. नेशनल कान्फ्रेंस3
19. जद (एस)3
20. अन्य23
21. निर्दलीय9

दलीय स्थिति के अध्ययन से पता चलता है कि मतदाताओं ने किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत प्रदान नहीं किया।

संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन द्वारा सरकार का निर्माण (Formation of Govt. by U.P.A.) यद्यपि 2009 के चुनाव में भी किसी एक दल या गठबन्धन को पूर्व बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था, कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील . गठबन्धन को 2004 के चुनावों के मुकाबले में अधिक सीटें मिली थीं। स्वयं कांग्रेस को 1991 के पश्चात् 200 से अधिक सीटें प्राप्त हुई थीं। अतः सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति ने डॉ. मनमोहन को आमन्त्रित किया। डॉ. मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति को अपने समर्थन में 322 सांसदों की सूची सौंपी, जिसमें यू० पी० ए० के दलों के अतिरिक्त राजद, बसपा सपा तथा जनता दल (एस) का भी समर्थन शामिल था।

परिणामस्वरूप 22 मई, 2009 को डॉ. मनमोहन सिंह ने पुनः भारत के प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली। उल्लेखनीय बात यह है कि 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यू०पी०ए० की सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वामपंथी दल इस सरकार में शामिल नहीं हुए।

प्रश्न 10.
सन 2014 में हए 16वीं लोकसभा के चनावों एवं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन पर एक नोट लिखो।
उत्तर:
भारत में 16वीं लोकसभा के चुनाव अप्रैल-मई 2014 में 9 चरणों में करवाए गए। इन चुनावों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

  • इन चुनावों में अब तक सबसे अधिक 66.38% मतदान हुआ।
  • इन चुनावों में 60 लाख मतदाताओं ने नोटा (None of the Above-Nota) बटन दबाया।
  • इन चुनावों में मतदाताओं की संख्या 81 करोड़ 40 लाख थी, जिसमें से लगभग 55 करोड मतदाताओं ने मतदान दिया।
  • इन चुनावों में अधिकतम खर्च सीमा 70 लाख थी।
  • इन चुनावों में 1687 राजनीतिक दलों ने भाग लिया, जिसमें 6 राष्ट्रीय एवं 54 क्षेत्रीय राजनीतिक दल शामिल थे।
  • इन चुनावों में अब तक सर्वाधिक 61 महिलाएं चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची। इन चुनावों के चुनाव परिणाम इस प्रकार रहे

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उपरोक्त चुनाव परिणामों से स्पष्ट है, कि भाजपा ने जहां 282 सीटें जीतीं वहीं इसके गठबन्धन को भाजपा सहित 334 सीटें प्राप्त हुईं। अत: भाजपा एवं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन के नेता श्री नरेन्द्र मोदी को 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। श्री नरेन्द्र मोदी ने 26 मई, 2014 को ही अपनी मंत्रिपरिषद् का भी निर्माण किया, जिसमें कुल 45 मंत्री शामिल थे, इसमें 23 कैबिनेट मंत्री, 10 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री तथा 12 राज्यमंत्री शामिल थे। श्री नरेन्द्र मोदी ने 5 जुलाई, 2016 को अपनी मंत्रिपरिषद् का विस्तार एवं पुनर्गठन किया। इस प्रकार मंत्रिपरिषद् की कुल संख्या 75 हो गई। इसमें 26 कैबिनेट मंत्री, 13 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री तथा 36 राज्यमंत्री शामिल थे।

प्रश्न 11.
सन् 2019 में हुए 17वीं लोकसभा के चुनावों एवं राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन पर एक नोट लिखो।
उत्तर:
भारत में 17वीं लोकसभा के चुनाव अप्रैल-मई, 2019 में 7 तरणों में करवाए गए थे। इन चुनावों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

  • इन चुनावों में 67.11 मतदान हुआ।
  • इन चुनानों में मतदाताओं की गिनती 90 करोड़ थी।
  • इन चुनावों में 2200 से अधिक राजनीतिक दलों ने भाग लिया, जिसमें 7 राष्ट्रीय एवं 59 क्षेत्रीय दल शामिल थे।
  • इन चुनावों में अब तक सर्वाधिक 78 महिलाएं चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची।
  • इन चुनावों के लिए पूरे भारत में कुल 10 लाख मतदाता केन्द्र बनाए गये थे।
  • इन चुनावों से सभी मतदाता केन्द्रों पर ई० वी० एम० मशीनों के साथ-साथ वी० वी० पी० ए० टी० (V.V.P.A.T. Voter Verifiable Paper Anchit Irail) का भी प्रयोग किया गया।
  • इन चुनावों में लगभग 99.3% मतदाताओं के पास पहचान पत्र थे।

इन चुनावों के चुनाव परिणाम इस प्रकार रहे

Result Status
Status Known for 542 out of 542 Constituencies
PartyWon
Aam Aadmi Party1
AJSU Party1
All India Anna Dravida Munnetra Kazhagam1
All India Majlis-E-Ittehadul Muslimeen2
All India Trinamool Congress22
All India United Democratic Front1
Bahujan Samaj Party10
Bharatiya Janata Party303
Biju Janata Dal12
Communist Party of India2
Communist Party of India (Marxist)3
Dravida Munnetra Kazhagam23
Indian National Congress52
Indian Union Muslim League3
Jammu \& Kashmir National Conference3
Janata Dal (Secular)1
Janata Dal (United)16
Jharkhand Mukti Morcha1
Kerala Congress (M)1
Lok Jan Shakti Party6
Mizo-National Front1
Naga Peoples Front1
National People’s Party1
Nationalist Congress Party5
Nationalist Democratic Progressive Party1
Revolutionary Socialist Party1
Samajwadi Party5
Shiromani Akali Dal2
Shivsena18
Sikkim Krantikari Morcha1
Telangana Rashtra Samithi9
Telugu Desam3
Yuvajana Sramika Rythu Congress Party22
Other8
Total542

प्रश्न 12.
भारत में गठबन्धन की राजनीति का क्या अर्थ है ? गठबन्धन सरकार का भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
भारतीय राजनीति पर गठबन्धन सरकार के पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में गठबन्धन राजनीति का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 5 देखें। गठबन्धन सरकार का भारतीय राजनीति पर प्रभाव

1. अस्थाई सरकार:
गठबन्धन सरकारों के कारण भारत में अस्थिरता बढ़ी है क्योंकि विभिन्न दल अपने स्वार्थी हितों की खातिर मिलकर सरकार बनाते हैं। अतः यह पता नहीं होता कि कब वह सरकार से अलग हो जाएं।

2. नीतियों में निरन्तरता का अभाव:
गठबन्धन सरकार द्वारा बनाई जाने वाली नीतियों में निरन्तरता नहीं होती है। मिली-जुली सरकार कभी भी दीर्घकालीन एवं प्रभावशाली नीतियां नहीं बना पाती।

3. राष्ट्रीय एकता को खतरा:
गठबन्धन सरकार में शामिल दल केवल अपने हितों की पूर्ति में ही लगे रहते हैं। उन्हें देश की रक्षा की कोई चिन्ता नहीं होती।

4. प्रधानमन्त्री की कमज़ोर स्थिति:
गठबन्धन सरकार में प्रधानमन्त्री की स्थिति कमजोर होती है, जिसके कारण वह देश को अच्छा नेतृत्व नहीं दे पाता।

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प्रश्न 13.
“1989 के चुनावों के बाद गठबन्धन की राजनीति का युग आरम्भ हुआ, जिसमें राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठ-जोड़ नहीं करते।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीति का वर्तमान दौर गठबन्धन राजनीति का दौर है। वर्तमान समय कोई भी राजनीतिक दल अपने दम पर सरकार नहीं बना सकता। अत: वह अन्य दलों से गठबन्धन करता है। इस गठबन्धन का कोई वैचारिक या नैतिक आधार नहीं होता, बल्कि सत्ता प्राप्ति होता है। इस प्रकार के गठबन्धन की शुरुआत 1989 के पश्चात् शुरू हुई। 1989 के चुनाव के अवसर पर जनता दल ने मार्क्सवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबन्धन किया।

1991, 1996, 1998, 1999, 2004 2009 तथा 2014 के लोकसभा के चुनावों के अवसर पर लगभग सभी दलों ने अवसरवादी समझौते किए। 1996 में तमिलनाडु विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए द्रमुक और तमिल मनीला कांग्रेस (T.M.C.) के बीच सीटों का समझौता हुआ। कांग्रेस (इ) ने अन्ना द्रमुक के साथ समझौता किया।

नवम्बर, 1993 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव के अवसर पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में समझौता हुआ। 1 जून, 1995 को यह समझौता टूट गया और बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी से अपना समर्थन वापस ले लिया। मई, 1996 में 13 दलों ने मिलकर संयुक्त मोर्चे का निर्माण किया। इन 13 दलों के इकट्ठे होने का एक ही उद्देश्य था, सत्ता पर कब्ज़ा करना।

मार्च, 1998 में भारतीय जनता पार्टी तथा उसके सहयोगी दलों ने केन्द्र में सरकार का निर्माण किया। इस सरकार में अनेक ऐसे दल शामिल थे जिसकी नीतियां परस्पर विरोधी थीं। 15 मई, 1999 को भारतीय जनता पार्टी सहित 24 राजनीतिक दलों ने मिलकर राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन नाम से एक महान गठबन्धन बनाया। इस गठबन्धन का उद्देश्य केन्द्र में सत्ता प्राप्त करना था। सितम्बर-अक्तूबर, 1999 में हुए लोकसभा के चुनावों में इस गठबन्धन को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और इसने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई।

इस प्रकार यह गठबन्धन अपने उद्देश्य में सफल रहा। 2004 के 14वीं लोकसभा के चुनाव के अवसर पर भारतीय जनता पार्टी ने जहां अनेक घोटालों में संलिप्त जयललिता से चुनावी समझौता किया, वहीं काग्रेस ने अपने कट्टर विरोधी डी० एम० के० के साथ चुनाव समझौता किया। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं, अप्रैल-मई 2014 में हुए 16वीं एवं अप्रैल-मई 2019 में हुए 17वीं लोकसभा के चुनाव में भी लगभग सभी राजनीतिक दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए थे। उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि विभिन्न राजनीतिक दलों ने जो गठजोड़ किए उनका आधार विचारधारा नहीं बल्कि सत्ता प्राप्ति था।

प्रश्न 14.
साम्प्रदायिकता का क्या अर्थ है ? साम्प्रदायिकता के प्रभावों को दूर करने के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
भारत में साम्प्रदायिकता को समाप्त करने के लिए मुख्य उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता का अर्थ:
साम्प्रदायिकता का अभिप्राय है धर्म अथवा जाति के आधार पर एक-दूसरे के विरुद्ध भेदभाव की भावना रखना। ए० एच० मेरियम (A.H. Merriam) के अनुसार, “साम्प्रदायिकता अपने समुदाय के प्रति वफादारी की अ की ओर संकेत करती है जिसका अर्थ भारत में हिन्दुत्व या इस्लाम के प्रति पूरी वफादारी रखना है।”

डॉ० इ० स्मिथ (Dr. E. Smith) के अनुसार, “साम्प्रदायिकता को आमतौर पर किसी धार्मिक ग्रुप के सीमित स्वार्थी, विभाजकता और आक्रमणशील दृष्टिकोण से जोड़ा जाता है।”

के० पी० करुणाकरण (K.P. Karunakarn) के अनुसार, “भारत में साम्प्रदायिकता का अर्थ वह विचारधारा है जो किसी विशेष धार्मिक समुदाय या किसी विशेष जाति के सदस्यों के हितों के विकास का समर्थन करती है।” साम्प्रदायिकता के प्रभाव को कम करने के उपाय शक्षा द्वारा साम्प्रदायिकता को दर करने का सबसे अच्छा साधन शिक्षा का प्रसार है। जैसे-जैसे शिक्षित की संख्या बढ़ती जाएगी, धर्म का प्रभाव भी कम हो जाएगा और साम्प्रदायिकता की बीमारी भी दूर हो जाएगी।

2. प्रचार के द्वारा समाचार:
पत्रों, रेडियो तथा टेलीविज़न के द्वारा साम्प्रदायिकता के विरुद्ध प्रचार करके भ्रातृ की भावना उत्पन्न की जा सकती है।

3. नागरिक अपना दायित्व पूरा करें:”
नागरिकों को अपने दायित्व के प्रति सचेत होना चाहिए और शान्ति स्थापना में प्रशासन की मदद करनी चाहिए। प्रशासन दंगों को दबा सकता है, नागरिकों की मदद के लिए गश्त की व्यवस्था भी कर सकता है, लेकिन सन्देह का वातावरण खत्म करना नागरिकों का दायित्व है।

4. साम्प्रदायिक दलों का अन्त करके:
सरकार को सभी ऐसे दलों को समाप्त कर देना चाहिए जो साम्प्रदायिकता पर आधारित हों। चुनाव आयोग को साम्प्रदायिक पार्टियों को मान्यता नहीं देनी चाहिए।

5. धर्म और राजनीति को अलग करके:
साम्प्रदायिकता को रोकने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय यह है कि राजनीति को धर्म से अलग रखा जाए।

6. सामाजिक और आर्थिक विकास:
साम्प्रदायिक तत्व लोगों के आर्थिक पिछड़ेपन का पूरा फायदा उठाते हैं। अतः ज़रूरत इस बात की है कि जहां-जहां कट्टरपंथी ताकतों का बोलबाला है वहां की गरीब बस्तियों के निवासियों की आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं के हल के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं।

7. आपसी विवाह के द्वारा:
अन्तर्जातीय विवाह करके साम्प्रदायिकता को समाप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
भारत में बढ़ती हुई म्प्रदायिक प्रवृत्तियों के भारतीय राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता ने निम्नलिखित प्रकार से भारतीय राज्य व्यवस्था को प्रभावित किया है
1. साम्प्रदायिकता और राजनीतिक दल:
भारत में अनेक राजनीतिक दलों का निर्माण साम्प्रदायिकता के आधार पर हुआ है।

2. साम्प्रदायिकता के आधार पर उम्मीदवारों का चयन:
चुनाव में धर्म की भावना महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। चुनाव के समय उम्मीदवारों का चयन करते समय धर्म भी अन्य आधारों में से एक महत्त्वपूर्ण आधार होता है। प्रायः सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों का चुनाव करते समय धर्म को महत्त्व देते हैं और जिस चुनाव क्षेत्र में जिस धर्म के अधिक मतदाता होते हैं प्रायः उसी धर्म का उम्मीदवार उस चुनाव क्षेत्र में खड़ा किया जाता है। प्रायः सभी राजनीतिक दल चुनावों में वोट पाने के लिए धार्मिक तत्त्वों के साथ समझौता करते हैं।

3. धर्म तथा मतदान व्यवहार (Religion and Voting Behaviour):
चुनाव के समय मतदाता भी धर्म से प्रभावित हो कर अपने मत का प्रयोग करते हैं। प्रत्येक धार्मिक सम्प्रदाय के लोग अपनी संख्या के आधार पर अपना महत्त्व समझने लगे हैं। प्रायः यह देखा गया है कि मुस्लिम मतदाता और सिक्ख मतदाता अधिकतर अपने धर्म से सम्बन्धित उम्मीदवार को वोट डालते हैं। मई-जून, 1991 में दसवीं लोकसभा के चुनावों के अवसर पर राम भक्तों ने भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया।

4. दबाव समूह तथा धर्म (Pressure Groups and Religion):
भारतीय राज्य-व्यवस्था में धर्म प्रधान दबाव समूह भी महत्त्वपूर्ण बनते जा रहे हैं। धर्म प्रधान दबाव समूह समय-समय पर शासन की नीतियों को प्रभावित करते रहते हैं। वे अपने सदस्यों के हितों की पूर्ति के लिए नीति निर्माताओं को प्रभावित कर अपने कार्य में सफलता प्राप्त कर लेते हैं। अनेक धर्म प्रधान संगठन राजनीतिक मामलों में विशेष रुचि लेते हैं और अपनी मांगों को स्वीकार करवाने के लिए राजनीतिक दलों से सौदेबाजी करते हैं।

5. धर्म के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग (Demand for States Re-organisation on the basis of Religion):
भारत में कई बार अप्रत्यक्ष रूप से धर्म के आधार पर पृथक् राज्यों की मांग की गई है। पंजाब में अकालियों की पंजाबी सूबा की मांग कुछ हद तक धर्म के प्रभाव का परिणाम थी।

6. धर्म के आधार पर अस्थिरता (Unstability on the basis of Religion):
राजनीति को धार्मिक आधार देकर राष्ट्र में अस्थिरता की स्थिति पैदा करने के प्रयत्न किए जा रहे हैं। धर्म के नाम पर राजनीतिक संघर्ष होते रहते हैं।

प्रश्न 16.
भारत में साम्प्रदायिकता की उत्पत्ति और विकास के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में साम्प्रदायिकता की उत्पत्ति और विकास के निम्नलिखित कारण हैं

1. सांप्रदायिक दल-साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने में साम्प्रदायिक दलों का महत्त्वपूर्ण हाथ है। भारत में अनेक साम्प्रदायिक दल पाए जाते हैं।

2. राजनीति और धर्म-साम्प्रदायिकता का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि राजनीति में धर्म घुसा हुआ है। धार्मिक स्थानों का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया जाता है। पंजाब के धार्मिक स्थानों का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया जाता है जोकि पिछले कई वर्षों से चिंता का विषय बना हुआ है।

3. सरकार की उदासीनता-हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि संघीय और राज्यों की सरकारों ने दृढ़ता से इस समस्या को हल करने का प्रयास नहीं किया है। कभी भी इस समस्या की विवेचना गंभीरता से नहीं की गई।

4. साम्प्रदायिकता शिक्षा-कई प्राइवेट स्कूलों तथा कॉलेजों में धर्म-शिक्षा के नाम पर साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जाता है।

5. पारिवारिक वातावरण-कई घरों में साम्प्रदायिकता की बातें होती रहती हैं जिनका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है और बड़े होकर वे भी साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं।

6. विभिन्न धार्मिक स्थानों का एक स्थान पर होना-कई बार विभिन्न धार्मिक स्थानों का साथ-साथ होना या एक ही स्थान पर मंदिर, मस्जिद का होना साम्प्रदायिकता का कारण बन जाता है। एक स्थान पर पहले एक धार्मिक स्थान होने और बाद में विभिन्न धर्म के धार्मिक स्थान बन जाने से भी साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है। राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद ने साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया है।

प्रश्न 17.
गठबन्धन सरकार की सफलता हेतु मुख्य सुझावों का वर्णन करें।
उत्तर:
गठबन्धन सरकार की सफलता हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं

  • गठबन्धन सरकार का एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम होना चाहिए।
  • गठबन्धन सरकार का एक सर्वसम्मत नेता होना चाहिए।
  • गठबन्धन सरकार में सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिये जाने चाहिए।
  • गठबन्धन सरकार में परस्पर समन्वय बनाकर कार्य करना चाहिए।
  • गठबन्धन सरकार के माध्यम से राजनीतिक अस्थिरता के प्रयास नहीं करने चाहिए।
  • गठबन्धन में शामिल क्षेत्रीय दलों को उचित सम्मान देना चाहिए।
  • गठबन्धन में शामिल क्षेत्रीय दलों को प्रधानमन्त्री पर अनावश्यक दबाव नहीं बनाना चाहिए।
  • गठबन्धन सरकार दल-बदल का मंच नहीं बननी चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
1990 के दशक में सहभागी उमड़ के कोई चार पक्ष लिखें।
उत्तर:
1. लोगों की सहभागिता में वृद्धि-1990 के दशक में लोगों की राजनीतिक सहभागिता में वृद्धि हुई। पिछले दशकों की अपेक्षा इस दशक में लोगों के राजनीतिक ज्ञान, रुचि एवं गतिविधियों में वृद्धि हुई।

2. विभिन्न दलों की सत्ता में भागीदारी-1989 से सत्ता कई दलों में विभाजित रही। इस दौरान जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, डी० एम० के०, अन्ना डी० एम० के०, तेलुगू देशम, नेशनल कान्फ्रेंस, शिरोमणि अकाली दल, इनैलो, शिवसेना, बीजू जनता दल, तृणमूल पार्टी तथा असम गण परिषद जैसे दलों ने भी केन्द्र स्तर पर सत्ता में भागीदारी की।

3. क्षेत्रीय दलों का प्रभाव- भारतीय राजनीति में लोकतान्त्रिक उमड़ का एक पक्ष यह रहा है कि 1990 के दशक में क्षेत्रीय दलों ने भारतीय राजनीति को प्रभावित किया।

4. दलित एवं पिछड़े वर्गों का उभरना-भारतीय राजनीति में लोकतान्त्रिक उमड़ का एक पक्ष अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों की राजनीति का उभरना है।

प्रश्न 2.
जनता दल का निर्माण किन कारणों से हुआ? इसके मुख्य घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1988 में एक नए राजनीतिक दल, जनता दल की स्थापना की गई। 1987 में, कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं ने पार्टी का त्याग करके ‘जन मोर्चा’ का निर्माण किया। इसके साथ ही अनेक नेता एक ऐसे नये राजनीतिक दल का निर्माण करने का प्रयास कर रहे थे, जो कांग्रेस का विकल्प बन सके। 26 जुलाई, 1988 को चार विपक्षी दलों जनता पार्टी, लोकदल, कांग्रेस (स) और जन मोर्चा के विलय से एक नये राजनीतिक दल की स्थापना की गई। इस नये दल का नाम समाजवादी जनता दल रखा गया। 11 अक्तूबर, 1988 को बैंगलोर में समाजवादी जनता दल का नाम बदलकर जनता दल कर दिया गया। श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को जनता दल का प्रधान मनोनीत किया गया।

प्रश्न 3.
जनता दल का कार्यक्रम एवं नीतियां लिखें।
उत्तर:

  • जनता दल का लोकतन्त्र में दृढ़ विश्वास है और उत्तरदायी प्रशासनिक व्यवस्था को अपनाने के पक्ष में है।
  • जनता दल ने भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए सात सूत्रीय कार्यक्रम अपनाने की बात कही है।
  • पार्टी राजनीति में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकपाल की नियुक्ति के पक्ष में है।
  • पार्टी पंचायती राज संस्थाओं को अधिक-से-अधिक स्वायत्तता देने के पक्ष में है।

प्रश्न 4.
भारतीय जनता पार्टी का उदय किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी का उदय (जन्म) 1980 में जनता पार्टी में दोहरी सदस्यता के मुद्दे को लेकर असहमति के कारण हुआ। 19 मार्च, 1980 को जनता पार्टी के केन्द्रीय संसदीय बोर्ड ने बहुमत से फैसला किया कि जनता पार्टी का कोई भी अधिकारी, विधायक और सांसद् राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की दैनिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता। परन्तु बोर्ड की बैठक में श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लाल कृष्ण आडवाणी तथा श्री नाना जी देशमुख ने बोर्ड के इस निर्णय का विरोध किया।

4 अप्रैल, 1980 को जनता पार्टी का एक और विभाजन प्रायः निश्चित हो गया, जब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने अपने संसदीय बोर्ड के प्रस्ताव का अनुमोदन कर पार्टी के विधायकों, सांसदों और पदाधिकारियों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यों में भाग लेने पर रोक लगा दी। 5 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व जनसंघ के सदस्यों ने नई दिल्ली में दो दिन का सम्मेलन किया और एक नई पार्टी बनाने का निश्चय किया। 6 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व विदेश मन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी के नाम से एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का गठन किया गया।

प्रश्न 5.
भारत में गठबन्धन सरकार के उदय के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
1. कांग्रेस के आधिपत्य की समाप्ति-1989 के बाद कांग्रेस के आधिपत्य वाली स्थिति पहले जैसी नहीं रही। इसके विरुद्ध अनेक राजनीतिक दल आ गए जिससे गठबन्धनवादी सरकारों का दौर शुरू हुआ।

2. क्षेत्रीय दलों में वृद्धि-क्षेत्रीय दलों की बढ़ती संख्या के कारण किसी भी एक राष्ट्रीय दल को लोकसभा या विधानसभा में बहुमत मिलना कठिन हो गया है। इससे राजनीतिक दल आपस में गठबन्धन बनाने लगे हैं।

3. दल-बदल-भारत में दल-बदल विरोधी कानून होने के बावजूद भी दल-बदल की प्रवृत्ति पर रोक नहीं लग पाई है। दल-बदल के कारण सरकारों का अनेक बार पतन हुआ और जो नई सरकारें बनीं वे भी गठबन्धन करके बनीं।

4. क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा-प्रायः केन्द्र में बनी राष्ट्रीय दलों की सरकारों ने क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा की है। इससे क्षेत्रीय स्तर के दलों ने मुद्दों पर आधारित राजनीति के अनुसार गठबन्धनकारी दौर की शुरुआत की।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 6.
भारत द्वारा नई आर्थिक नीति अपनाने के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर:
भारत द्वारा निम्नलिखित कारणों से नई आर्थिक नीति अपनाई गई

  • भारत में सन् 1980 तक आर्थिक सुधार की प्रक्रिया बहुत धीमी थी, इस प्रक्रिया को बढ़ाना अवश्यक था।
  • भारत का सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P.) इस दौरान केवल 36% की दर से बढ़ रहा था। इसे बढ़ाने के लिए नई आर्थिक नीति की आवश्यकता थी।
  • भारत में निर्यात की मात्रा कम थी, जबकि आयात की मात्रा अधिक थी, अत: निर्यात की मात्रा बढ़ाने के लिए नई आर्थिक नीति की आवश्यकता थी।
  • भारत पर लगातार बढ़ रहे विदेशी कर्जे को कम करने के लिए भी नई आर्थिक नीति की आवश्यकता थी।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के उदय का वर्णन करें।
उत्तर:
26 अप्रैल, 1999 को मात्र 13 माह पुरानी लोकसभा को राष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह पर भंग कर दिया। सितम्बर-अक्तूबर, 1999 में 13वीं लोकसभा के चुनाव करवाए गए। परन्तु इन चुनावों से पहले मई, 1999 में 24 राजनीतिक दलों ने मिलकर राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन-राजग (National Democratic Alliance—NDA) के नाम से एक महान् गठबन्धन बनाया।

इस गठबन्धन में अधिकतर वे दल ही सम्मिलित थे, जो बारहवीं लोकसभा में भाजपा गठबन्धन सरकार में सम्मिलित थे। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता भी अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री के रूप में पेश किया। इस गठबन्धन ने उन राजनीतिक दलों, जिन्होंने राष्ट्रीय हित से ऊपर राजनीतिक निषेधवाद, संकीर्ण निजी हितों और सत्ता के लालच को अपना स्वार्थ बनाया है, पर आरोप लगाया कि उन्होंने 1999 के चुनाव अनावश्यक रूप से राष्ट्र पर थोप दिये हैं।

राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने सितम्बर-अक्तूबर, 1999 में हुए 13वीं लोकसभा के चुनावों में 297 सीटों पर विजय प्राप्त की तथा श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई। परन्तु 2004 के 14वीं एवं 2009 के 15वीं लोकसभा के चुनावों में इस गठबन्धन को हार का सामना करना पड़ा। परंतु 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनाव जीतकर इस गठबन्धन ने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का निर्माण किया।

प्रश्न 8.
संयक्त प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किस प्रकार हआ ?
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (United Progressive Alliance-UPA) का निर्माण 14वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् हुआ। अप्रैल-मई, 2004 के 14वीं लोकसभा के चुनावों में भी किसी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। अधिकांश गैर भाजपा गठबन्धन तथा गैर कांग्रेस गठबन्धन दलों जैसे भारतीय साम्यवादी दल, भारतीय साम्यवादी दल (मार्क्सवादी), जनता दल (एस०) तथा लोकजन शक्ति पार्टी ने कांग्रेस गठबन्धन को अपना समर्थन दिया।

परिणामस्वरूप 22 मई, 2004 को गठबन्धन के नेता डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिलाई गई। 27 मई, 2004 को कांग्रेस गठबन्धन को विधिवत् रूप से संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन का नाम दिया गया तथा इस गठबन्धन ने अपना एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी जारी किया। भारतीय साम्यवादी दल, भारतीय साम्यवादी दल (मार्क्सवादी) ने इस गठबन्धन को बाहर से समर्थन देने का निर्णय किया।

प्रारम्भिक तौर पर गठबन्धन के नेता के रूप में श्रीमती सोनिया गाँधी का प्रधानमन्त्री बनना लगभग तय माना जा रहा था, परन्तु भाजपा एवं कुछ अन्य वर्गों के विरोध के. कारण श्रीमती सोनिया गांधी ने स्वेच्छा से प्रधानमन्त्री बनने से इन्कार कर दिया। अतः गठबन्धन में कांग्रेस के नेता डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमन्त्री बनाने पर सहमति बनी। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् पुनः इस गठबन्धन की सरकार बनी तथा डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमन्त्री बने। 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनावों में इस गठबन्धन को हार का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 9.
साम्प्रदायिकता से आपका क्या तात्पर्य है ? संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता का अभिप्राय है धर्म जाति के आधार पर एक-दूसरे के विरुद्ध भेदभाव की भावना रखना। . एक धार्मिक समुदाय को दूसरे समुदायों और राष्ट्रों के विरुद्ध उपयोग करना साम्प्रदायिकता है। ए० एच० मेरियम के अनुसार, “साम्प्रदायिकता अपने समुदाय के प्रति वफादारी की अभिवृत्ति की ओर संकेत करती है जिसका अर्थ भारत में हिन्दुत्व या इस्लाम के प्रति पूरी वफ़ादारी रखना है।” के० पी० करुणाकरण के अनुसार, “भारत में साम्प्रदायिकता का अर्थ वह विचारधारा है जो किसी विशेष धार्मिक समुदाय या जाति के सदस्यों के हितों का विकास का समर्थन करती है।”

प्रश्न 10.
भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के कोई चार प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता ने निम्नलिखित ढंगों से भारतीय लोकतन्त्र को प्रभावित किया है-

(1) भारत में अनेक राजनीतिक दलों का निर्माण धर्म के आधार पर हुआ है।

(2) चुनावों में साम्प्रदायिकता की भावना महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। प्राय: सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों का चुनाव करते समय साम्प्रदायिकता को महत्त्व देते हैं और जिस चुनाव क्षेत्र में जिस समुदाय के अधिक मतदाता होते हैं प्राय: सभी राजनीतिक दल चुनावों में वोट डालने के लिए साम्प्रदायिक तत्त्वों के साथ समझौता करते हैं।

(3) राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि मतदाता भी धर्म से प्रभावित होकर अपने मत का प्रयोग करते हैं।

(4) धर्म के नाम पर राजनीतिक संघर्ष और साम्प्रदायिक झगड़े होते रहते हैं।

प्रश्न 11.
भारत में नई आर्थिक नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
भारत की ‘नई आर्थिक नीति’ की कोई चार मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारत में नई आर्थिक नीति की घोषणा सन् 1991 में की गई थी, जिसकी मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं
1. परमिट राज की समाप्ति-1991 की नई आर्थिक के अन्तर्गत परमिट राज की समाप्ति करके भारतीय बाजारों को मुक्त एवं उदारवादी व्यवस्था में परिवर्तित किया गया।

2. राजकोषीय नीति-1991 की आर्थिक नीति की घोषणा के अन्तर्गत राजकोषीय नीति की भी घोषणा की गई, सार्वजनिक खर्चे को नियन्त्रित करके राजस्व को बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया। इस नीति में केन्द्र एवं राज्य सरकार पर सब्सिडी को धीरे-धीरे कम करके राजकोषीय अनुशासन को लागू करने की बात की गई।

3. विदेशी खाते सम्बन्धी नीति-1991 की आर्थिक नीति के अन्तर्गत विदेशी खाते के घाटे को कम करने के लिए विशेष प्रावधान किए गए।

4. कीमत नीति-1991 की आर्थिक नीति के अन्तर्गत सब्सिडी को धीरे-धीरे कम करके कई वस्तुओं जैसे पेट्रोलियम पदार्थों, खादों, रेलवे तथा बसों के किरायों तथा चीनी के दामों में वृद्धि की गई। इसके साथ-साथ सभी क्षेत्रों में कीमत नीतियों को लोचशील बनाने का प्रयास किया गया।

प्रश्न 12.
भारत में साम्प्रदायिकता के कोई चार कारण लिखें।
अथवा
भारत में साम्प्रदायिकता के विकास के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर:
1. साम्प्रदायिक दल-साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने में साम्प्रदायिक दलों का महत्त्वपूर्ण हाथ है। भारत में अनेक साम्प्रदायिक दल पाए जाते हैं।

2. राजनीति और धर्म–साम्प्रदायिकता का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि राजनीति में धर्म घुसा हुआ है। धार्मिक स्थानों का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया जाता है। पंजाब के धार्मिक स्थानों का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया जाता है जोकि पिछले कई वर्षों से चिन्ता का विषय बना हुआ है।

3. सरकार की उदासीनता-हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि संघीय और राज्यों की सरकारों ने दृढ़ता से इस समस्या को हल करने का प्रयास नहीं किया है। कभी भी इस समस्या की विवेचना गम्भीरता से नहीं की गई।

4. साम्प्रदायिक शिक्षा-कई प्राइवेट स्कूलों तथा कॉलेजों में धर्म-शिक्षा के नाम पर साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जाता है।

प्रश्न 13.
भारत में साम्प्रदायिकता को रोकने के कोई चार उपाय लिखें।
उत्तर:

  • साम्प्रदायिकता को रोकने का सबसे अच्छा साधन शिक्षा का प्रसार है।
  • साम्प्रदायिक दलों को समाप्त कर देना चाहिए।
  • धर्म एवं राजनीति को अलग-अलग रखना चाहिए।
  • सरकार को अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए विशेष कदम उठाने चाहिए और उनमें सुरक्षा की भावना पैदा करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
गठबन्धन सरकार के भारतीय राजनीति पर पड़ने वाले कोई चार प्रभावों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  • गठबन्धन सरकार के कारण भारतीय राजनीति में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हुई है।
  • गठबन्धन सरकारों में प्रधानमन्त्री की स्थिति कमजोर हई है।
  • गठबन्धन सरकार में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा है।
  • गठबन्धन सरकारों के कारण दल-बदल को बढ़ावा मिला है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 15.
गठबन्धन सरकार के कोई चार मुख्य लक्षण बताइए।
उत्तर:
1. समझौतावादी कार्यक्रम-गठबन्धन सरकार का पहला लक्षण यह है, कि उनका राजनीतिक कार्यक्रम समझौतावादी होता है। गठबन्धन सरकार का कार्यक्रम बनाते प्रत्येक दल की बातों व कार्यक्रम का ध्यान रखा जाता है।

2. सर्वसम्मत नेता-गठबन्धन सरकार में सभी दल मिलकर अपने नेता का चुनाव करते हैं। नेता का चुनाव प्रायः सर्वसम्मत ढंग से किया जाता है।

3. सर्वसम्मत निर्णय-गठबन्धन सरकार में शामिल घटक दल किसी भी राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय समस्या का हल सर्वसम्मति से करते हैं।

4. मिल-जुल कर कार्य करना-गठबन्धन सरकार में शामिल सभी घटक दल मिल-जुलकर कार्य करते हैं।

प्रश्न 16.
गठबन्धन राजनीति से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
गठबन्धन सरकार का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
गठबन्धन की राजनीति का साधारण अर्थ है कई दलों द्वारा मिलकर सरकार का निर्माण करना। चुनावों से पूर्व या चुनावों के बाद कई दल मिलकर अपना साझा कार्यक्रम तैयार करते हैं। उसके आधार पर वे मिलकर चुनाव लड़ते हैं अथवा अपनी सरकार बनाते हैं । गठबन्धन सरकार का निर्णय प्रायः उस स्थिति में किया जाता है, जब प्राय: किसी एक दल को चुनावों के बाद स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हुआ हो। तब दो या दो से अधिक दल मिलकर संयुक्त सरकार का निर्माण करते हैं। ऐसी सरकार में प्रायः सभी राजनीतिक दल अपने दलों के संकीर्ण व विशेष हितों को त्याग कर एक निश्चित कार्यक्रम पर अपनी सहमति प्रकट करते हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
1990 के दशक में सहभागी उमड़ के कोई दो पक्ष लिखें।
उत्तर:
(1) 1990 के दशक में लोगों की राजनीतिक सहभागिता में वृद्धि हुई। पिछले दशकों की अपेक्षा इस दशक में लोगों के राजनीतिक ज्ञान, रुचि एवं गतिविधियों में वृद्धि हुई है।

(2) 1990 के दशक में जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, डी० एम० के०, अन्ना डी० एम० के०, तेलुगू देशम, नेशनल कान्फ्रेंस, शिरोमणि अकाली दल, इनैलो, शिवसेना, बीजू जनता दल, तृणमूल कांग्रेस तथा असम गण परिषद् जैसे दलों ने भी केन्द्र स्तर पर सत्ता में भागीदारी की।

प्रश्न 2.
जनता दल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1980 के दशक के अन्त में अनेक नेता एक ऐसे नये राजनीतिक दल का निर्माण करने का प्रयास कर रहे थे, जो कांग्रेस का विकल्प बन सके। 26 जुलाई, 1988 में चार विपक्षी दलों जनता पार्टी, लोकदल, कांग्रेस (स) और जन मोर्चा के विलय से एक नये राजनीतिक दल की स्थापना की गई। इस नये राजनीतिक दल का नाम समाजवादी जनता दल रखा गया। 11 अक्तूबर, 1988 को बंगलौर में समाजवादी जनता दल का नाम बदल कर जनता दल कर दिया तथा श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को जनता दल का प्रधान मनोनीत किया।

प्रश्न 3.
भारतीय जनता पार्टी का जन्म किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी का जन्म 1980 में जनता पार्टी में दोहरी सदस्यता के मुद्दे को लेकर असहमति के कारण हुआ। 19 मार्च, 1980 को जनता पार्टी के केन्द्रीय संसदीय बोर्ड ने बहुमत से फैसला किया कि जनता पार्टी का कोई भी अधिकारी, विधायक और सांसद् राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की दैनिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता।

परन्तु बोर्ड की बैठक में श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लाल कृष्ण आडवाणी तथा श्री नाना जी देशमुख ने इस निर्णय का विरोध किया। 5 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व जनसंघ के सदस्यों ने नई दिल्ली में दो दिन का सम्मेलन किया, और एक नई पार्टी बनाने का निश्चय किया। 6 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व विदेशमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी के नाम से एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का गठन किया गया।

प्रश्न 4.
भारत में गठबन्धनवादी सरकारों के निर्माण के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:
(1) 1989 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के आधिपत्य की पूर्ण रूप से समाप्ति हो गई। कांग्रेस के विरुद्ध अनेक राजनीतिक दल आ गए हैं, जिससे गठबन्धनवादी सरकारों का दौर शुरू हुआ।

(2) क्षेत्रीय दलों की बढ़ती संख्या के कारण किसी भी एक राष्ट्रीय दल को लोकसभा या विधानसभा में बहुमत मिलना कठिन हो गया है, इससे राजनीतिक दल आपस में गठबन्धन बनाने लगे हैं।

प्रश्न 5.
राजीव गांधी सरकार ने दल-बदल विरोधी अधिनियम कब पास किया ?
उत्तर:
राजीव गांधी सरकार ने दल-बदल विरोधी अधिनियम सन् 1985 में लागू किया।

प्रश्न 6.
संयुक्त मोर्चे के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
संयुक्त मोर्चे का निर्माण 11 मई, 1996 को किया गया। इस मोर्चे में गैर भाजपा एवं गैर कांग्रेसी दल शामिल हुए, जिनमें जनता दल, भारतीय साम्यवादी दल, भारतीय साम्यवादी दल (मार्क्सवादी), तिवारी कांग्रेस, डी० एम० के०, तमिल मनीला कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा जनता पार्टी प्रमुख थे। 1996 में भाजपा गठबन्धन सरकार गिरने के बाद संयुक्त मोर्चे ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार का निर्माण किया था।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन-राजग (National Democratic Alliance-NDA) का निर्माण मई, 1999 में भारतीय जनता पार्टी एवं इसके सहयोगी दलों ने किया। इस गठबन्धन में अधिकतर वे दल ही सम्मिलित थे, जो बारहवीं लोकसभा में भाजपा गठबन्धन सरकार में सम्मिलित थे। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री के रूप में पेश किया।

इस गठबन्धन ने 1999 में हुए 13वीं लोकसभा के चुनावों में 297 सीटों पर विजय प्राप्त की, तथा श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई। परन्तु, 2004 के 14वीं एवं 2009 के 15वीं लोकसभा के चुनावों में इस गठबन्धन को हार का सामना करना पड़ा। जबकि 2014 एवं 2019 के चुनावों में इस गठबन्धन को ऐतिहासिक जीत प्राप्त हुई।

प्रश्न 8.
साम्प्रदायिकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
साम्प्रदायिकता से अभिप्राय है धर्म अथवा जाति के आधार पर एक-दूसरे के विरुद्ध भेदभाव की भावना रखना, एक धार्मिक समुदाय को दूसरे समुदायों और राष्ट्र के विरुद्ध उपयोग करना साम्प्रदायिकता है। ए० एच० मेरियम (A.H. Merriam) के अनुसार, “साम्प्रदायिकता अपने समुदाय के प्रति वफादारी की अभिवृत्ति की ओर संकेत करती है जिसका अर्थ भारत में हिन्दुत्व या इस्लाम के प्रति पूरी वफादारी रखना है।”

प्रश्न 9.
केन्द्र में इस समय किस राजनीतिक दल की सरकार है ?
उत्तर:
केन्द्र में इस समय भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की सरकार है, और इस गठबन्धन सरकार के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी हैं।

प्रश्न 10.
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन पर नोट लिखें।
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (United Progressive Alliance-UPA) का निर्माण मई, 2004 में कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों ने किया। इस गठबन्धन का अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को बनाया गया तथा कांग्रेस के नेताडॉ० मनमोहन सिंह को प्रधानमन्त्री बनाने का निर्णय लिया, जिन्होंने 22 मई, 2004 को अपनी सरकार बनाई। इस गठबन्धन ने अपना एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी जारी किया, जिसमें सभी सहयोगी दलों की मुख्य नीतियों को शामिल किया। मई, 2009 में भी डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में इस गठबन्धन की सरकार बनी। परंतु 2014 एवं 2019 के चुनावों में इस गठबन्धन को हार का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 11.
अप्रैल-मई 2019 में हुए 17वीं लोक सभा के चुनावों में किस गठबन्धन को सफलता प्राप्त हुई ?
उत्तर:
अप्रैल-मई 2019 में हुए 17वीं लोक सभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन को सफलता प्राप्त हुई। इस गठबन्धन को 355 सीटें प्राप्त हुईं तथा इसने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का निर्माण किया।

प्रश्न 12.
शाहबानो केस क्या था ?
उत्तर:
शाहबानो केस (1985) एक 62 वर्षीया तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो से सम्बन्धित था। उसने अपने भूतपूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने के लिए अदालत में याचिका दायर की। सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया। परन्तु कुछ मुस्लिम नेताओं ने इसे ‘पर्सनल ला’ में हस्तक्षेप माना। अतः सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला कानन (तलाक से सम्बन्धित अधिकारों) पास किया। इस कानन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को निरस्त कर दिया गया।

प्रश्न 13.
त्रिशंकु संसद् से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
त्रिशंकु संसद् का अर्थ यह है कि चुनावों के बाद किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलना। तब दो या दो से अधिक दल मिलकर सरकार का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 14.
1990 के पश्चात् भारतीय राजनीति में उभार के दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • राजनीतिक जागरूकता-1990 के पश्चात् भारतीय राजनीति में उभार का एक प्रमुख कारण लोगों में राजनीतिक जागरूकता का आना था।
  • क्षेत्रीय दलों का उदय-1990 के पश्चात् भारतीय राजनीति में उभार का एक अन्य प्रमुख कारण क्षेत्रीय दलों का उदय था।

प्रश्न 15.
‘गठबन्धन’ का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
उत्तर:
गठबन्धन की राजनीति का साधारण अर्थ है कई दलों द्वारा मिलकर सरकार का निर्माण करना। चुनावों से पूर्व या चुनावों के बाद कई दल मिलकर अपना साझा कार्यक्रम तैयार करते हैं। उसके आधार पर वे मिलकर चुनाव लड़ते हैं अथवा अपनी सरकार बनाते हैं। गठबन्धन सरकार का निर्णय प्रायः उस स्थिति में किया जाता है, जब प्रायः किसी एक दल को चुनावों के बाद स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हुआ हो। तब दो या दो ये अधिक दल मिलकर संयुक्त सरकार का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 16.
‘गठबन्धन सरकार’ की कोई दो विशेषतायें लिखिए।
उत्तर:

  • गठबन्धन सरकार का राजनीतिक कार्यक्रम समझौतावादी होता है।
  • गठबन्धन सरकार में सभी दल मिलकर अपने नेता का चुनाव करते हैं।

प्रश्न 17.
भारत में साम्प्रदायिकता को रोकने के लिए कोई दो सुझाव दीजिये।
उत्तर:

  • भारत में साम्प्रदायिकता को रोकने के लिए शिक्षा का प्रसार करना।
  • साम्प्रदायिक दलों पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. 1990 के दशक में लोकतान्त्रिक उमड़ का क्या कारण है ?
(A) अत्यधिक क्षेत्रीय दलों की उत्पत्ति
(B) राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का बढ़ता महत्त्व
(C) लोगों में राजनीतिक जागरूकता
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

2. जनता दल की स्थापना कब हुई ?
(A) 1989
(B) 1992
(C) 1993
(D) 1995
उत्तर:
(A) 1989

3. 1989 के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में जनता दल ने किसके नेतृत्व में सरकार बनाई ?
(A) एस० आर० बोम्मई
(B) चौ० देवी लाल
(C) श्री वी० पी० सिंह
(D) श्री चन्द्रशेखर।
उत्तर:
(C) श्री वी० पी० सिंह।

4. भारतीय जनता पार्टी की स्थापना कब हुई ?
(A) 1977
(B) 1980
(C) 1982
(D) 1984
उत्तर:
(B) 1980

5. संयुक्त मोर्चा की स्थापना किस वर्ष में हुई ?
(A) 1996
(B) 1998
(C) 1999
(D) 2000
उत्तर:
(A) 1996

6. 1996 में किस दल की सरकार केवल 13 दिन तक चली ?
(A) कांग्रेस
(B) भारतीय जनता पार्टी
(C) संयुक्त मोर्चा
(D) जनता दल।
उत्तर:
(B) भारतीय जनता पार्टी।

7. भारत में नई आर्थिक नीति कब अपनाई गई ?
(A) 1989 में
(B) 1985 में
(C) 1950 में
(D) 1991 में।
उत्तर:
(D) 1991 में।

8. बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं
(A) मायावती
(B) कांशीराम
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) मायावती।

9. राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (N.D.A.) का गठन कब हुआ?
(A) सन् 1977 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1998 में
(D) सन् 1999 में।
उत्तर:
(D) 1999 में।

10. भारत में कौन-सी दलीय प्रणाली पाई जाती है?
(A) एक दलीय प्रणाली
(B) द्विदलीय प्रणाली
(C) बहु दलीय प्रणाली
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) बहुदलीय प्रणाली।

11. संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (UPA) का गठन कब हुआ?
(A) सन् 1998 में
(B) सन् 1999 में
(C) सन् 2004 में
(D) सन् 2009 में।
उत्तर:
(C) सन् 2004 में।

12. 2019 के 17वें लोकसभा चुनावों में किस गठबन्धन की सरकार बनी ?
(A) संयुक्त मोर्चा की
(B) राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की
(C) संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की
(D) साम्यवादी दलों के गठबन्धन की।
उत्तर:
(B) राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की।

13.
2014 के 16वीं लोकसभा के चुनावों में किस गठबन्धन की सरकार बनी?
(A) संयुक्त मोर्चा की
(B) राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की
(C) संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की
(D) वाम पंथी गठबन्धन की।
उत्तर:
(B) राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की।

14. किस वित्त मन्त्री ने नई आर्थिक नीति की घोषणा की ?
(A) जसवंत सिंह
(B) डॉ. मनमोहन सिंह
(C) मुरली मनोहर जोशी
(D) डॉ० प्रणव मुखर्जी।
उत्तर:
(B) डॉ. मनमोहन सिंह।

15. बाबरी मस्जिद का विध्वंस कब हुआ?
(A) 6 दिसम्बर, 1992 को
(B) 11 दिसम्बर, 1992 को
(C) 13 दिसम्बर, 1992 को
(D) 25 नवम्बर, 1990 को।
उत्तर:
(A) 6 दिसम्बर, 1992 को।

16. गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे कब हुए ?
(A) 1990
(B) 2000
(C) 1996
(D) 2002
उत्तर:
(D) 2002

17. गुजरात में साम्प्रदायिक दंगों का मुख्य कारण था
(A) आरक्षण विवाद
(B) गोधरा काण्ड
(C) 1984 के दिल्ली के दंगे
(D) मण्डल आयोग।
उत्तर:
(B) गोधरा काण्ड।

18. सन् 2004 के संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (यू० पी० ए०) सरकार में अधिकतम मंत्री किस दल के थे?
(A) भारतीय जनता पार्टी
(B) कांग्रेस पार्टी
(C) कम्युनिस्ट पार्टी
(D) समाजवादी पार्टी।
उत्तर:
(B) कांग्रेस पार्टी।

19. सन् 2014 में लोकसभा का कौन-सा चुनाव हुआ था ?
(A) चौदहवां चुनाव
(B) पंद्रहवां चुनाव
(C) सोलहवां चुनाव
(D) सत्रहवां चुनाव।
उत्तर:
(C) सोलहवां चुनाव।

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20. केन्द्र में गठबन्धन सरकारों का दौर कब शुरू हुआ था ?
(A) 1989 में
(B) 2009 में
(C) 1996 में
(D) 2004 में।
उत्तर:
(A) 1989 में।

21. जनमोर्चा का गठन किया गया :
(A) 2 अक्टूबर, 1980
(B) 2 अक्टूबर, 1986
(C) 2 अक्टूबर, 1987
(D) 2 अक्टूबर, 1992
उत्तर:
(C) 2 अक्टूबर 1987

22. किसने जनमोर्चा का गठन किया था ?
(A) सोनिया गांधी
(B) नरसिम्हा राव
(C) लाल कृष्ण आडवाणी
(D) वी० पी० सिंह।
उत्तर:
(D) वी० पी० सिंह।

23. जनता दल का प्रथम अध्यक्ष किसे नियुक्त किया गया था ?
(A) वी० पी० सिंह
(B) लाल कृष्ण आडवाणी
(C) डॉ. मनमोहन सिंह
(D) अटल बिहारी वाजपेयी।
उत्तर:
(A) वी० पी० सिंह।

24. भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार से समर्थन कब वापिस लिया था ?
(A) 23 अक्टूबर, 1990
(B) 23 अक्टूबर, 1991
(C) 23 अक्टूबर, 1992
(D) 23 अक्टूबर, 1993
उत्तर:
(A) 23 अक्टूबर, 1990

25. वी० पी० सिंह के पश्चात् देश का प्रधानमन्त्री कौन बना था ?
(A) राजीव गांधी
(B) श्रीमती सोनिया गांधी
(C) चन्द्रशेखर
(D) नरसिम्हा राव।
उत्तर:
(C) चन्द्रशेखर।

26. भारतीय जनता पार्टी का वर्तमान अध्यक्ष कौन है ?
(A) अटल बिहारी वाजपेयी
(B) जे० पी० नड्डा
(C) लाल कृष्ण आडवाणी
(D) सुषमा स्वराज।
उत्तर:
(B) जे० पी० नड्डा।

27. भारत में कितने मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं ?
(A) 5
(B) 6
(C) 7
(D) 8
उत्तर:
(D) 8

28. भारत में मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दल हैं
(A) 40
(B) 42
(C) 43
(D) 53
उत्तर:
(D) 53

29. 2019 के 17वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस को कितनी सीटें मिली ?
(A) 209
(B) 52
(C) 226
(D) 216
उत्तर:
(B) 52

30. 2019 के 17वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को कितनी सीटें मिली ?
(A) 303
(B) 86
(C) 181
(D) 216
उत्तर:
(A) 303

निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) भारत में ……………. के दशक से लोकतान्त्रिक उमड़ एवं गठबन्धनवादी राजनीति में वृद्धि हुई।
उत्तर:
1990

(2) श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या …………… में की गई।
उत्तर:
1984

(3) 1988 में ………….. का गठन हुआ।
उत्तर:
जनता दल

(4) राजग सरकार का गठन …………. में हुआ।
उत्तर:
1999

(5) संप्रग (UPA) सरकार का गठन ………….. में हुआ।
उत्तर:
2004

(6) 1989 में ………… प्रधानमन्त्री बने।
उत्तर:
वी० पी० सिंह

(7) बाबरी मस्जिद का विध्वंस 6 दिसम्बर, ……… को हुआ।
उत्तर:
1992

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
वर्तमान समय में कांग्रेस का चुनाव चिह्न क्या है ?
उत्तर:
वर्तमान समय में कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ है ।

प्रश्न 2.
जनता दल का गठन कब किया गया ?
उत्तर:
जनता दल का गठन 1988 में किया गया।

प्रश्न 3.
‘मण्डल आयोग’ की सिफ़ारिशों को किस प्रधानमन्त्री द्वारा लागू किया गया ?
उत्तर:
श्री० वी० पी० सिंह द्वारा।

प्रश्न 4.
इस समय केन्द्र में किसकी सरकार कार्यरत है ?
उत्तर:
इस समय केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की सरकार कार्यरत है।

प्रश्न 5.
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना सन् 1980 में हुई।

प्रश्न 6.
संयुक्त मोर्चा की स्थापना किस वर्ष हुई ?
उत्तर:
संयुक्त मोर्चा की स्थापना 1996 में हुई।

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प्रश्न 7.
1996 में किस दल की सरकार केवल 13 दिन तक चली ?
उत्तर:
1996 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार केवल 13 दिन तक चली।

प्रश्न 8.
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की स्थापना कब की गई ?
उत्तर:
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की स्थापना सन् 1999 में की गई।

प्रश्न 9.
2019 के 17वें लोकसभा चुनावों में किस गठबन्धन की सरकार बनी ?
उत्तर:
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की।

प्रश्न 10.
वर्तमान में ‘बहुजन समाज पार्टी’ का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन है ?
उत्तर:
कुमारी मायावती।

प्रश्न 11.
वर्तमान में संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (U.P.A.) का अध्यक्ष कौन है ?
उत्तर:
वर्तमान में संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (U.P.A.) की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी है।

प्रश्न 12.
‘बहुजन समाज पार्टी’ का चुनाव चिह्न क्या है ? .
उत्तर:
बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हाथी’ है।

प्रश्न 13.
आजकल भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन हैं ?
उत्तर:
जे० पी० नड्डा।

प्रश्न 14.
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (U.P.A.) का गठन कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 2004 में।

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