Haryana State Board HBSE 9th Class Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 9th Class Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे
HBSE 9th Class History आधुनिक विश्व में चरवाहे Textbook Questions and Answers
आधुनिक विश्व में चरवाहे के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि घुमंतु समुदायों को बार-बार-एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ
उत्तर-
घुमंतु समुदाय अपनी आजीविका हेतु एक स्थान से दूसरे स्थानों पर आते जाते हैं। मौसम के परिवर्तन के साथ ऐसे समुदाय अपने स्थान भी बदलते रहते जम्मू-कश्मीर _के गुजर बकरवाला सर्दियों में शिवालिक पहाड़ियों के निचले भाग आ जाते हैं तथा गर्मियों में वह पुनः हिमालय की मध्य व उत्तरी पहाड़ियों की ओर चले जाते हैं। प्रायः द्वीपीय एवं रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी वह समय-समय पर अपने स्थान बदलते रहते हैं। वास्तव में उनकी जीविका उनके आवागमन के साथ जुड़ी हुई है।
घुमंतु समुदायों की आने-जाने की गतिविधियों से पर्यावरण को भी लाभ पहुँचता है ऐसे समुदाय अपनी जग बदलने से पूर्व उसे साफ कर देते हैं तथा नयी जगह पर आ बसने पर वहाँ की पर्यावरण सम्बन्धी धूषित वस्तुओं को साफ रखते हैं। अतः स्पष्ट है कि घुमंतु समुदाय पर्यावरण को साफ बनाए रखते हैं।
आधुनिक विश्व में चरवाहे Class 9 Question Answer HBSE प्रश्न 2.
इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? प्रत्येक कानून से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा, यह भी बताइए-.
(i) परती भूमि नियमावली (ii) वन अधिनियम (iii) अपराधी जनजाति अधिनियम (iv) चराई कर।
उत्तर-
(i) परती भूमि नियमावली बना कर औपनिवेशिक सरकार ने उस भूमि पर अधिकार जमा लिया जहाँ खेती नहीं होती थी तथा उस जमीन को अपने पसंद के व्यक्तियों में बाँट दिया। कई स्थानों पर तो उस भूमि क्षेत्र को ले लिया गया जहाँ चरागाह होते थे। इससे चारागाह भूमि निरन्तर कम होती गयी तथा चरावाहा समुदायों की कठिनाईयाँ बढ़ती चली गयीं। इन चरावाहा समुदायों को या तो अपने जरागाह क्षेत्र बदलने पड़े या अपने व्यवसाय को ही बदलना पड़ा।
(ii) वन अधिनियम बना कर औपनिवेशिक सरकार ने चरवाहा समुदायों को चारागाहों से वंचित कर दिया। ऐसे भी नियम बनाए गए कि ऐसे समुदाय कुछेक समय के लिए चारागहों पर रह सकते थे और यदि वह समय से अधिक समय तक रहते थे तो उन्हें दण्ड दिया जाता था या उनके मवेशियों की संख्या कम कर दी जाती थी।
(iii) अपराधी जनजाति अधिनियम द्वारा औपनिवेशिक सरकार द्वारा घुमंतु समदायों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था तथा उनकी आवाज ही पर रोक लगा दी जाती थी। 1871 के इस कानून के अंतर्गत कुछेक समुदायों को अपराधी घोषित कर दिया गया था तथा उन्हें कुछेक निश्चित । ग्रामों में रहने की आज्ञा होती थी जहाँ वे वह आज्ञा-पत्र से ही दूसरी जगह जा सकते थे। ग्राम पुलिस ऐसे समुदायों पर नजर रखती थी।
(iv) चराई कर द्वारा औपनिवेशिक सरकार कुछेक ठेकेदारों को ऐसा कर एकत्रित करने का ठेका देती थी जो चरवाहा समुदायों से एकत्रित किया करते थे।
आधुनिक विश्व में चरवाहे HBSE 9th Class प्रश्न 3.
मासाई समुदाय के चारागाह उससे क्यों छिन गए? कारण बताइए।
उत्तर-
अफ्रीका में मासाई समुदाय के चारागाह छीन लिये जाने के मुख्यतः निम्नलिखित कारण थे-
(1) 1885 में ब्रिटिश केन्या तथा जर्मन तलोनिका में अंतर्राष्ट्रीय सीमा निश्चित किए जाने से मासाई चरवाहों को दक्षिणी केन्या तथा उत्तरी तनजानिया के छोटे-छोटे क्षेत्रों में धकेल दिया था। इस समुदाय को अपनी चारागाह का 60% हिस्सा खो देना पड़ा था तथा अब उन्हें उन क्षेत्रों में धकेल दिया जहाँ वर्षा भी कम होती थी तथा चारागाह क्षेत्र भी सीमित थे।
(2) 19वीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में पूर्वी अफ्रीका में अंगेज औपनिवेशिवादियों ने खेती कार्यों को प्रोत्साहित करना आरम्भ कर दिया। जैसे-जैसे खती क्षेत्र बढ़ते गए, वैसे-वैसे मासाई चरवाहा समुदायों के चरागाह भी सीमित होते गए।
(3) चरागाह के बड़े-बड़े क्षेत्रों को खेल आदि के लिए आरक्षित कर दिया गया। ऐसे क्षेत्रों में मासाई मारा, साम्बुरू राष्ट्रीय पार्क (केन्या) तथा सैटेगीटी पार्क (तनजानिया) आदि का उल्लेख किया जा सकता है। चरागाह समुदाय इन आरक्षित क्षेत्रों में प्रवेश नहीं कर सकते थे, वह इन क्षेत्रों में न तो मवेशियों को मार सकते थे और न ही शिकार कर सकते थे।
आधुनिक विश्व में चरवाहे Class 9 HBSE प्रश्न 4.
आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई, गुड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर-
आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में अनेक परिवर्तनों को जन्म दिया था। इनमें अनेक समानताएँ देखी जा सकती हैं। इनमें दो समानताओं का उल्लेख निम्नलिखित किया जा सकता
(1) औपनिवेशिक सरकार द्वारा चरवाहा समुदायों की आवाजाही पर रोक लगाना ऐसी एक समानता है। उन्हें चारागाहों में पशु चराने की अनुमति नहीं थी और न ही वह उन आश्रित क्षेत्रों में शिकार कर सकते थे।
(2) औपनिवेशिक सरकार ने वैयक्तिक किसानों को खेती कार्यों के लिए चारागाहों को खेतों में बदल दिया।
HBSE 9th Class History आधुनिक विश्व में चरवाहे Important Questions and Answers
Class 9th History Chapter 5 Question Answer In Hindi HBSE प्रश्न 1.
घुमंतु कौन होते हैं?
उत्तर-
वह लोंग जो आजीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक आते-जाते हैं।
प्रश्न 2.
गुजर बक्करवाला कौन हैं? वह भारत के किस क्षेत्र से सम्बन्धित हैं?
उत्तर-
गुजर बक्करवाला बकरियों व भेड़ों को चराने वाला घुमंतु समुदाय है। इस समुदाय का सम्बन्ध भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य से है।
प्रश्न 3.
सर्दियों में गुजर बक्करवाला कहाँ आकर बस जाते हैं?
उत्तर-
शिवालिक की निचली पहाड़ियों में।
प्रश्न 4.
गर्मियों में गुजर बक्करवाला कहाँ जा सकता है?
उत्तर-
ऊपर, उत्तर में हिमालय की पहाड़ियों में।
प्रश्न 5.
गद्दी समुदाय का किस क्षेत्र से सम्बन्ध हैं?
उत्तर-
गद्दी समुदाय हिमाचल प्रदेश का एक घुमंतु समदाय है।
प्रश्न 6.
गद्दी समुदाय के लोग गर्मियों में कहाँ जा सकते हैं?
उत्तर-
लाहौल तथा स्पीति में।
प्रश्न 7.
बुग्याल कौन हैं?
उत्तर-
बुग्याल घास के मैदानों को कहा जाता है।
प्रश्न 8.
भावर का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
गढ़वाल और कुमाऊँ के इलाके में पहाड़ियों के निचले हिस्से के आस-पास पाए जाने वाले शुष्क या सूखे जंगल के इलाके।
प्रश्न 9.
धनगर कौन है?
उत्तर-
महाराष्ट्र के चरवाहा समुदाय से जुड़े लोग।
प्रश्न 10.
धनगर समुदाय के लोगों की आर्थिक गतिविधियाँ बताइए।
उत्तर-
भेड़ चराना, कम्बल आदि बनाना आदि-आदि।
प्रश्न 11.
राइका समुदाय के लोग ऊँटों को कहाँ चराते हैं?
उत्तर-
थार रेगिस्तान में।
प्रश्न 12.
ढूंठ का अर्थ बताइए।
उत्तर-
पौधों की कटाई के बाद जमीन में रह जाने वाली उनकी जड़ को ढूंठ कहा जाता है।
प्रश्न 13.
गोल्ला, कुरूमा तथा कुरूबा समुदायों के कार्य बताइए।
उत्तर-
गोल्ला समुदाय गाय-भैंस पालते हैं। कुरूमा तथा कुरूबा समुदाय भेड़-बकरियाँ पालते हैं।
प्रश्न 14.
राइका समुदाय के लोग क्या करते हैं?
उत्तर-
राइका समुदाय के लोग थोड़ी-बहुत खेती के साथ-साथ चरवाही का काम भी करते हैं।
प्रश्न 15.
किन अधिकारों को पारम्परिक अधिकार कहा जाता है?
उत्तर-
वह अधिकार जो लोगों के पास रीति-रिवाजों व परम्पराओं के चलते मिलते हैं, उन्हें पारम्परिक अधिकार कहा जाता है।
प्रश्न 16.
परती भूमि किसे कहते हैं?
उत्तर-
जिस भूमि पर खेती सम्भव न हो उसे परती भूमि कहा जाता है।
प्रश्न 17.
किन वनों को आरक्षित वन कहा जाता है?
उत्तर-
वह वन जिनको स्थायी रूप से इमारती लकड़ी के उत्पादन के लिए आरक्षित किया जाता है अथवा किसी अन्य वनीय उत्पाद के लिए, उनको आरक्षित वन कहा जाता है।
प्रश्न 18.
सुरक्षित वन किसे कहते हैं?
उत्तर-
कुछेक प्रतिबन्धों के साथ जिन वनों में चराही की अनुमति दी जा सकती है, उनहें सुरक्षित वन कहा जाता
प्रश्न 19.
अपराधी जनजाति अधिनियम कब बनाया गया था?
उत्तर-
भारत में अपराधी जनजाति अधिनियम 1817 ई. में बनाया गया था।
प्रश्न 20.
मासाई चरवाहा समुदाय कहाँ बसा हुआ , था?
उत्तर-
अधिकांश मासाई चरवाहे पूर्वी अफ्रीका में रहते थे जबकि तीन लाख मासाई लोग केन्या में तथा उससे आधे तनजानिया में।
प्रश्न 21.
घुमंतु कौन होते हैं तथा वह कहाँ रहते
उत्तर-
घुमंतु वह लोग होते हैं जो अपनी जीविका कमाने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते रहते हैं। इन लोगों का कोई स्थायी आवास नहीं होता। जहाँ उनहें जीविका के साधन उपलब्ध होते हैं, वह उन क्षेत्रों में जा बसते हैं। जम्मू-कश्मीर के गुजर बक्करवाल सर्दियों में शिवालिक की निचली पहाड़ियों में तथा गर्मियों में ऊपर हिमालय की ओर जा सकते हैं।
प्रश्न 22.
जम्मू-कश्मीर के गुजर बक्करवाल समुदाय के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
जम्मू और कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े रेवड़ रखते हैं। इस समुदाय के अधिकतर लोग अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में भटकते-भटकते उन्नीसवीं सदी में यहाँ आए थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया वे यहीं के होकर रह गए; यहीं बस गए। इसके बाद वे सर्दी-गर्मी के हिसाब से अलग-अलग चरागाहों में जाने लगे। जाड़ों में जब ऊँची पहाड़ियाँ बर्फ से ढक जातीं तो शिवालिक की निचली पहाड़ियों में आकर डेरा डाल लेते। जाड़ों में निचले इलाके में मिलने वाली सूखी झाड़ियाँ ही उनके जानवरों के लिए चारा बन जातीं। अप्रैल के अंत तक वे उत्तर-दिशा में जाने लगते-गर्मियों के चरागाहों के लिए।
प्रश्न 23.
प्रदेश के गद्दी समुदाय के लोगों के विषय में एक नोट लिखें। .
उत्तर-
हिमाचल प्रदेश के इस समुदाय को गद्दी कहते हैं। ये लोग भी मौसमी उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए इसी तरह सर्दी-गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते हुए जाड़ा बिताते थे। अप्रैल आते-आते वे उत्तर-की तरफ चल पड़ते और पूरी गर्मियाँ लाहौल और स्पीति में बिता देते। जब बर्फ पिघलती और ऊँचे दर्रे खुल जाते तो उनमें से बहुत सारे ऊपरी पहाड़ों में स्थित घास के मैदानों में जा पहुँचते थे। सितंबर तक वे दोबारा वापस चल पड़ते।
प्रश्न 24.
गढ़वाल व कुमाऊँ के गुज्जर समुदाय की आवाजाही की चर्चा करें।
उत्तर-
गढ़वाल और कुमाऊँ के गुज्जर चरवाहे सर्दियों में भाबर के सूखे जंगलों की तरफ और गर्मियों में ऊपरी घास के मैदानों-बुग्याल-की तरफ चले जाते थे। इनमें से बहुत सारे हरे-भरे चरागाहों की तलाश में उन्नीसवीं सदी में जम्मू से उत्तर-प्रदेश की पहाड़ियों में आए थे और बाद में यहीं बस गए।
प्रश्न 25.
मौसम के बदलने के साथ चरवाहा समुदायों के स्थान बदलने से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता था? बताइए।
उत्तर-
सर्दी-गर्मी के हिसाब से हर साल चरागाह बदलते रहने का यह चलन हिमालय के पर्वतों में रहने वाले बहुत सारे चरवाहा समुदायों में दिखायी देता था। यहाँ के भोटिया, शेरपा और किन्नौरी समुदाय के लोग भी इसी तरह के चरवाहे थे। ये सभी समुदाय मौसमी बदलावों के हिसाब से खुद को ढालते थे और अलग-अलग इलाकों में पड़ने वाले चरागाहों का बेहतरीन इस्तेमाल करते थे। जब एक चरागाह की हरियाली खत्म हो जाती थी या इस्तेमाल के काबिल नहीं रह जाती थी तो वे किसी और चरागाह की सामन्तों ने व्यक्तिगत रूप में 2 हजार से तीन हजार हेक्टेयर भूमि पर नियन्त्रण किया हुआ था।
गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि नयी प्रौद्योगिकी के साथ जुड़ी हुई थी। कृषि के आधुनिकीकारण ने चकित करने वाला काम किया। नया चलने वाला हल इसी प्रकार का एक उदाहरण है। गरीब किसानों के लिए यह सभी यंत्र दुःख एवं कष्ट लेकर आए थे। फलस्वरूप कुछ ने तो अपने पुराने काम को छोड़ दिया। गेहूँ के उत्पादन की वृद्धि को एक दिन कम होना था। 1920 के दशके आते-आते गेहूँ का उत्पादन इतना बढ़ गया कि बहुत कुछ अतिरिक्त जा लगने लगा। न बिकने वाला स्टोर में पड़ा स्टॉक बढ़ने लगा तथा बहुत-सा अनाज मवेशियों के खाने में बदल गया। जैसे यह सब कुछ काफी नहीं था। प्रकृति से गेहूँ के विशाल मैदानों में धूल-मिट्टी व तूफान आने लगे जिनकी ऊँचाई 7,000से 8,000 फीट होती थी। 1930 के दशक में तो तूफानों की गति तीव्र होती थी। सारा आकाश काले अंधरे में बदल जाता था। लोगों की तकलीफें बढ़ने लगी, जानवर निढाल होने गले तथा मृत्यु की कगार पर आ गए।
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कुछ नया से घर रहा था। 18वीं व 19वीं शताब्दी के दौरान भारत से विश्व बाज़ार के लिए अनेक वस्तुएं बनाई जाती थी। तब अफीम व नील दो व्यवसायिक फसलें प्रसिद्ध थीं। 19वीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में भारत के किसान गन्ना, पटसन, सूत, गेहूँ आदि का निर्यात कर रहे थे।
18वीं शताब्दी तक अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी चीन ‘ से चाय खरीद रही थी। परन्तु इंग्लैंड चीन को कुछ नहीं बेच रहा था। इस प्रक्रिया में इंग्लैंड चीन को सोने व चांदी के रूप में धन ले रहा था जो स्थिति को मंजूर नहीं था। नतीज यह हुआ कि अंग्रेज कम्पनी ने भारत के किसानों को अफीम की खेती करने पर मज़दूर किया तथा भारतीय किसानों को खासा लोभ-लालच भी दिया। अंग्रेज चीन को अफीम बेचने लगे तथा चीनियों को अफीम पीने की आदत में लत कर दिया। जहाँ एक ओर अंग्रेज चीनियों को अफीम प्रयोग की आदत डाल रहा था; वहाँ दूसरी ओर वह भारतीय किसानों को अफीम के उत्पादन पर ज़ोर डाल रहा था। यह एक ओर चीनियों से अफीम के व्यापार में लाभ . कमाने का अवसर था तथा दूसरी ओर भारतीय किसानों का शोषण।
तरफ चले जाते थे। इस आवाजाही से चरागाह जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से भी बच जाते थे और उनमें दोबारा हरियाली व जिंदगी भी लोट आयी थी।
प्रश्न 26.
कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के चरवाहा ‘समुदाय की गतिविधियों का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के गोल्ला समुदाय के लोग गाय-भैंस पालते हैं जबकि कुरुमा व कुरूबा समुदाय । भेड़-बकरियाँ। यह बुने कम्बल बेचते थे। ये लोग जंगलों और छोटे-छोटे खेतों के आसपास रहते थे। वे अपने जानवरों की देखभाल के साथ-साथ दूसरे काम-धंधे भी करते थे। पहाड़ी चरवाहों के विपरीत यहाँ के चरवाहों का एक स्थान से दूसरे स्थान जाना सर्दी-गर्मी से तय नहीं होता था। ये लोग बरसात और सूखे मौसम के हिसाब से अपनी जगह बदलते थे। सूखे महीनों में वे तटीय इलाकों की तरफ चले जाते थे जबकि बरसात शुरू होने पर वापस चल देते थे।
प्रश्न 27.
बंजारों के विषय में आपकी क्या जानकारी
उत्तर-
चरवाहों में एक जाना-पहचाना नाम बंजारों का भी है। बंजारे, उत्तर-प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में रहते थे। ये लोग बहुत दूर-दूर तक चले जाते थे और रास्ते में अनाज और चारहे के बदले गाँव वालों को खेत जोतने वाले जानवर और दूसरी चीजें बेचते जाते थे। वे जहाँ भी जाते अपने जानवरों के लिए अच्छे चरागाहों की खोज में रहते।
प्रश्न 28.
चारावाह समुदायों को अपना जीवन गुजर-बसर करने के लिए किन बातों का ध्यान रखना पड़ता था? .
उत्तर-
चरवाहा समुदायों की जिंदगी कई बातों के बारे में काफी सोच-विचार करके आगे बढ़ती थी। उन्हें ध्यान रखना पड़ता था कि उनके रेवड़ एक इलाके में कितने दिन तक रह सकते हैं और उन्हें कहाँ पानी और चरागाह मिल सकते हैं। उन्हें न केवल एक इलाके से दूसरे इलाके से गुजरने की छूट मिल पाएगी और किन इलाकों से नहीं। सफर के दौरान उन्हें रास्ते में पड़ने वाले गांव के किसानों से भी अच्छे संबंध बनाने पड़ते थे ताकि उनके जानवर किसानों के खेतों में घास चर सकें और उनको उपजाऊ बनाते चलें। अपनी रोजी-रोटी के जुगाड़ में उन्हें खेती, व्यापार और चरवाही ये सारे काम करने पड़ते थे।
प्रश्न 29.
औपनिवेशिक काल में चरवाहा समुदायों के जीवन में कैसे-कैसे बदलाव आए? संक्षेप में बताइए।
उत्तर-
औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में गहरे बदलाव आए। उनके चरागाह सिमट गए, इधर-उधर आने-जाने पर बंदिशें लगने लगीं और उनसे जो लगान वसूल किया जाता था उसमें भी वृद्धि हुई। खेती में उनका हिस्सा घटने लगा और उनके पेशे और हुनरों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा।
प्रश्न 30.
भारत मे अंग्रेजी शासकों ने अपराधी जनजाति कानून क्यों पास किया था?
उत्तर-
अंग्रेजी शासन घुमंतु समुदाय के लोगों को शक की दृष्टि से देखता था। उन्हें ऐसे लोगों से शक्ति भंग करने का खतरा रहता था। उनको अपराधी समझा जाता था। 1871 में सरकार ने अपराधी जनजाति कानून पास किया। इस कानून के तहत दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रख दिया गया। उन्हें कुदरती और जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया। इस कानून के लागू होते ही ऐसे सभी समुदायों को कुछ खास अधिसूचित गाँवों बस्तियों में बस जाने का हुक्म सुना दिया गया। उनकी बिना परमिट आवाजाही पर रोक लगा दी गई ग्राम्य पुलिस उन पर सदा नजर रखन लगी।
प्रश्न 31.
औपनिवेशिक काल में हुए परिवर्तनों ने चरवाहों के जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया था?
उत्तर-
औपनिवेशिक काल में हुए परिवर्तनों से चरागाहों की कमी हो गई। जैसे-जैसे अधिक-से-अधिक चरागाहों को सरकारी कब्जे में लेकर उन्हें खेतों में बदला जाने लगा, वैसे-वैसे चरागाहों के लिए उपलब्ध इलाका सिकुड़ने लगा। इसी तरह, जंगलों के आरक्षण का नजीता यह हुआ कि गड़रिये और पशुपालक अब अपने मवेशियों का जंगलों में पहले जैसी आजादी से नहीं चरा सकते थे। इसके अतिरिक्त चरागाहों की कमी के कारण जानवरों को सही चारा भी प्राप्त नहीं होता था। अकाल आदि के पड़ने से तो चरावहों के जीवन में और कठिनाईयाँ पैदा होने लग गई।
प्रश्न 32.
मासाई समुदाय के विषय में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
मासाई पशुपालक मोटे तौर पर पूर्वी अफीका के निवासी हैं। इनमें से लगभग 3,00,000 दक्षिणी कीनिया में और करीब 1,50,000 तंजानिया में रहते हैं। कानूनों और बंदिशों ने उनकी जमीन उनसे छीन ली बल्कि उनकी आवाजाही पर भी बहुत सारी पाबंदियाँ थोप दी हैं इन …कानूनों के कारण सूखे के दिनों में उनकी जिंदगी गहरे तौर पर बदल गई है और उनके सामाजिक संबंध भी एक नई शक्ल में ढल गए हैं।
प्रश्न 33.
तंजानिया को उसका नाम कैसे मिला? बताइए।
उत्तर-
ब्रिटेन ने पहले विश्व युद्ध के दौरान उस इलाके पर कब्जा कर लिया जिसे जर्मन ईस्ट अफ्रीका कहा जाता था। 1919 में तांगान्यिका ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया। 1961 में उसे आजादी मिली और 1964 में जंजीबार के विलय के बाद उसे तंजानिया का नया नाम दिया गया।
प्रश्न 34.
उदाहरण देकर बताइए कि मासाई चरागाह किस प्रकार नष्ट हो गए?
उत्तर-
बहुत सारे चरागाहों को शिकारगाह बना दिया गया। कीनिया में मासाई मारा व साम्बूरू नेशनल पार्क और तंजानिया में सेरेन्गेटी पार्क जैसी शिकारगाह इसी तरह अस्तित्व में आए थे। इन आरक्षित जंगलों में चरवाहों का आना मना था। इन इलाकों में न तो वे शिकार कर सकते थे और न अपने जानवरों को चरा सकते थे। ऐसे बहुत सारे आरक्षित जंगलों में अब तक मासाई अपने ढोर-डंगर चराया करते थे। मिसाल के तौर पर सेरेनगेटी नेशनल पार्क का 14,760 वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा क्षेत्रफल मासाइयों के चरागाहों पर कब्जा करके बनाया गया था।
प्रश्न 35.
अफ्रीकी क्षेत्रों में चरवाहों पर कैसी-कैसी रुकावटें लगायी जाती थीं? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चरवाहों को गोरों के इलाके में पड़ने वाले बाजारों में दाखिल होने से भी रोक दिया गया। बहुत सोर इलाकों में तो वे कई तरह के व्यापार भी नहीं कर सकते थे। बाहर से आए गोरे और यूरोपीय औपनिवेशिक अफसर उन्हें खतरनाक और बर्बर स्वभाव वाला मानते थे। उनकी नजर में _ये ऐसे लोग थे जिनके साथ कम-से-कम संबंध रखना ही उचित था। इन स्थानीय लोगों से खानों से माल निकालने, सड़कें बनाने और शहर बसाने के लिए काम लिया जाता था।
प्रश्न 36.
महाराष्ट्र के धनगर समुदाय के लोगों की गतिविधियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
धंगर महाराष्ट्र का एक जाना-माना चरवाहा समुदाय है। बीसवीं सदी की शुरुआत में इस समुदाय की आबादी लगभग 4, 67,000 थी। उनमें से ज्यादातर गड़रिये
या चरवाहे थे हालाँकि कुछ लोग कम्बल और चादरें भी बनाते थे जबकि कुछ भैंस पालते थे। धंगर गड़रिये बरसात के दिनों में महाराष्ट्र के मध्य पठारों में रहते थे। यह एक अर्ध-शुष्क इलाका था जहाँ बारिश बहुत कम होती थी और मिट्टी भी खास उपजाऊ नहीं थी। चारों तरफ़ सिर्फ कंटीली झाड़ियाँ होती थीं। बाजरे जैसी सूखी फ़सलों के अलावा यहाँ और कुछ नहीं उगता था। मॉनसून में यह पट्टी धंगरों के जानवरों के लिए एक विशाल चरागाह बन जाती थी। अक्तूबर के आसपास धंगर बाजरे की कटाई करते थे और चरागाहों की तलाश में पश्चिम की तरफ़ चल _पड़ते थे। करीब महीने भर पैदल चलने के बाद वे अपने रेवड़ों के साथ कोंकण के इलाके में जाकर डेरा डाल देते थे। अच्छी बारिश और उपजाऊ मिट्टी की बदौलत इस इलाके में खेती खूब होती थी। कोंकणी किसान भी इन चरवाहों का दिल खोलकर स्वागत करते थे। जिस समय धंगर कोंकण पहुँचते थे उसी समय कोंकण के किसानों को खरीफ की फसल काट कर अपने खेतों को रबी की फसल के लिए दोबारा उपजाऊ बनाना होता था।
प्रश्न 37.
उदाहरण देकर बताइए कि राजस्थान में राइका समुदाय अपना किस प्रकार का गुजर-बसर करता था?
उत्तर-
राजस्थान के रेगिस्तानों में राइका समुदाय रहता था। इस इलाके में बारिश का कोई भरोसा नहीं था। होती भी थी तो बहुत कम। इसीलिए खेती की उपज हर साल घटती-बढ़ती रहती थी। बहुत सारे इलाकों में तो दूर-दूर तक कोई फ़सल होती ही नहीं थी। इसके चलते राइका खेती के साथ-साथ चरवाही का भी काम करते थे। बरसात में तो बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के राइका अपने गाँवों में ही रहते थे क्योंकि इस दौरान उन्हें वहीं चारा मिल जाता था। पर, अक्तूबर आते-आते ये चरागाह सूखने लगते थे। नतीजतन ये लोग नए चरागाहों की तलाश में दूसरे इलाकों की तरफ निकल जाते थे और अगली बरसात में ही वापस लौटते थे। राइकाओं का एक तबका ऊँट पालता था जबकि कुछ भेड़-बकरियाँ पालते थे।
प्रश्न 38.
भारत में अंगेजी सरकार चरागाहों को खेती में क्यों बदलना चाहती थी?
उत्तर-
अंग्रेज़ सरकार चरागाहों को खेती की ज़मीन में तब्दील कर देना चाहती थी। ज़मीन से मिलने वाला लगान उसकी आमदनी का एक बड़ा स्रोत था। खेती का क्षेत्रफल बढ़ने से सरकार की आय में और बढ़ोतरी हो सकती थी। इतना ही नहीं, इससे जूट (पटसन), कपास, गेहूँ और अन्य खेतिहर चीज़ों के उत्पादन में भी इजाफा हो जाता जिनकी इंग्लैंड में बहुत ज्यादा ज़रूरत रहती थी। अंग्रेज़ अफसरों को – बिना खेती की जमीन का कोई मतलब समझ में नहीं आता था : उससे न तो लगान मिलता था और न ही उपज। अंग्रेज़ ऐसी ज़मीन को ‘बेकार’ मानते थे। उसे खेती के लायक बनाना ज़रूरी था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से देश के विभिन्न भागों में परती भूमि विकास के लिए नियम बनाए जाने लगे। इन कायदे-कानूनों के ज़रिए सरकार गैर-खेतिहर ज़मीन को अपने कब्जे में लेकर कुछ खास लोगों को सौंपने लगी। इन लोगों को कई तरह की रियायतें दी गईं और इस. ज़मीन को खेती के लायक बनाने और उस पर खेती करने के लिए जम कर बढ़ावा दिया गया। ऐसे कुछ लोगों को गाँव का मुखिया बना दिया गया। इस तरह कब्जे में ली गई ज़्यादातर ज़मीन चरागाहों की थी जिनका चरवाहे नियमित रूप से इस्तेमाल किया करते थे। इस तरह खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे और चरवाहों के लिए समस्याएँ पैदा होने लगीं।
प्रश्न 39.
19वीं शताब्दी के वन अधिनियमों ने किस प्रकार चरवाहों के जीवन को प्रभावित किया? समझाइए।
उत्तर-
उन्नीसवीं सदी के मध्य तक आते-आते देश के विभिन्न प्रांतों में वन अधिनियम भी पारित किए जाने लगे थे। इन कानूनों की आड़ में सरकार ने ऐसे कई जंगलों को ‘आरक्षित’ वन घोषित कर दिया जहाँ देवदार या साल जैसी कीमती लकड़ी पैदा होती थी। इन जंगलों में चरवाहों के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई। कई जंगलों को ‘संरक्षित’ घोषित कर दिया गया। इन जंगलों में चरवाहों को चरवाही के कुछ परंपरागत अधिकार तो दे दिए गए लेकिन उनकी आवाजाही पर फिर भी बहुत सारी बंदिशें लगी रहीं। औपनिवेशिक अधिकारियों को लगता था कि पशुओं के चरने से छोटे जंगली पौधे और पेड़ों की नई कोपलें नष्ट हो जाती हैं। उनकी राय में, चरवाहों के रेवड़ छोटे पौधों को कुचल देते हैं और कोंपलों को खा जाते हैं जिससे नए पेडों की बढ़त रुक जाती है। वन अधिनियमों ने चरवाहों की जिंदगी बदल डाली। अब उन्हें उन जंगलों में जाने से रोक दिया गया जो पहले मवेशियों के लिए बहुमूल्य चारे का स्रोत थे। जिन क्षेत्रों में उन्हें प्रवेश की छूट दी गई वहाँ भी उन पर कड़ी नज़र रखी जाती थी जंगलों में दाखिल होने के लिए उन्हें परमिट लेना पड़ता था। जंगल में उनके प्रवेश और वापसी की तारीख पहले से तय होती थी और वह जंगल में बहुत कम ही दिन बिता सकते थे। अब चरवाहे किसी जंगल में ज्यादा समय तक नहीं रह सकते थे भले ही वहाँ चारा कितना ही हो, घास कितनी भी क्यों न हो, और चारों तरफ घनी हरियाली हो। उन्हें इसलिए निकलता पड़ता था क्योंकि अब उनकी जिंदगी वन विभाग द्वारा जारी किए परमिटों के अधीन थी। परमिट में पहले ही लिख दिया जाता था कि वह कानूनन कब तक जंगल में रहेंगे। अगर वह समय-सीमा का उल्लंघन करते थे तो उन पर जुर्माना लगा दिया जाता था।
प्रश्न 40.
भारत में अंग्रेजी शासन ग्रामीण क्षेत्रों से अपनी आय बढ़ाने के लिए क्या-क्या कदम उठाते थे?
उत्तर-
अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए अंग्रेजों ने लगान वसूलने का हर संभव रास्ता अपनाया। उन्होंने ज़मीन, नहरों के पानी, नमक, खरीद-फरोख्त की चीज़ों और यहाँ तक कि मवेशियों पर भी टैक्स वसूलने का एलान कर दिया। चरवाहों से चरागाहों में चरने वाले एक-एक जानवर पर टैक्स वसूल किया जाने लगा। देश के ज़्यादातर चरवाही इलाकों में उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था। प्रति मवेशी टैक्स की दर तेजी से बढ़ती चली गई और टैक्स वसूली की व्यवस्था दिनोंदिन मज़बूत होती गई। 1850 से 1880 के दशकों के बीच टैक्स वसूली का काम बाकायदा बोली लगा कर ठेकेदारों को सौंपा जाता था। ठेकेदारी पाने के लिए ठेकेदार सरकार को जो पैसा देते थे उसे वसूल करने और साल भर में ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा बनाने के लिए वे जितना चाहे उतना कर वसूल सकते थे। 1880 के दशक तक आते-आते.सरकार ने अपने कारिंदों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ही कर वसूलना शुरू कर दिया। हरेक चरवाहे को एक ‘पास’ जारी कर दिया गया। किसी भी चरागाह में दाखिल होने के लिए चरवाहों को पास दिखाकर पहले टैक्स अदा करना पड़ता था। चरवाहे के साथ कितने जानवर हैं और उसने कितना टैक्स चुकाया है, इस बात को उसके पास में दर्ज कर दिया जाता था।
प्रश्न 41.
भारत में चरावाहों ने औपनिवेशिक बदलावों का कैसे सामना किया? ।
उत्तर-
इन बदलावों पर चरवाहों की प्रतिक्रिया कई रूपों में सामने आई। कुछ चरवाहों ने तो अपने जानवरों की संख्या ही कम कर दी। अब बहुत सारे जानवरों को चराने के लिए पहले की तरह बड़े-बड़े और बहुत सारे मैदान नहीं बचे थे। जब पुराने चरागाहों का इस्तेमाल करना मुश्किल हो गया तो कुछ चरवाहों ने नए-नए चरागाह ढूँढ लिए। मिसाल के तौर पर, ऊँट और भेड़ पालने वाले राइका 1947 के बाद न तो सिंध में दाखिल हो सकते थे और न सिंधु नदी के किनारे अपने जानवरों को चरा सकते थे। भारत और पाकिस्तान के बीच खींच दी गई नई सीमारेखा ने उन्हें उस तरफ़ जाने से रोक दिया। जाहिर है अब उन्हें जानवरों को चराने के लिए नई जगह ढूँढनी थी। अब वे हरियाणा के खेतों में जाने लगे हैं जहाँ कटाई के बाद खाली पड़े खेतों में वे अपने मवेशियों को चरा सकते हैं। इसी समय खेतों को खाद की भी ज़रूरत रहती है जो उन्हें इन जानवरों के मल-मूत्र से मिल जाती है।
समय गुजरने के साथ कुछ धनी चरवाहे जमीन खरीद कर एक जगह बस कर रहने लगे। उनमें से कुछ नियमित रूप से खेती करने लगे जबकि कुछ व्यापार करने लगे। जिन चरवाहों के पास ज़्यादा पैसा नहीं था वे सूदखोरों से. ब्याज पर कर्ज़ लेकर दिन काटने लगे। इस चक्कर में बहुतों के मवेशी भी हाथ से जाते रहे और वे मज़दूर बन कर रह गए। वे खेतों या छोटे-मोटे कस्बों में मजदूरी करते दिखाई देने लगे।
वस्तुष्ठि प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों में सही (√) व गलत (x) का वयन करें।
(i) घुमंतु एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते थे।
(ii) गद्दी गड़रिये जम्मू-कश्मीर राज्य से सम्बन्धित हैं।
(iii) धनगर महाराष्ट्र का एक चरवाहा समुदाय है।
(iv) रबी सितम्बर के बाद की एक फसल है।
(v) राइका राजस्थान का एक घुमंतु समुदाय है।
(vi) सासाई.पूर्वी अफ्रीका का एक चरवाहा समुदाय
उत्तर-
(i) √,
(ii) x,
(iii) √,
(iv) x,
(v) √,
(vi) √.
प्रश्न 2. निम्नलिखित रिक्त स्थानों को उपयुक्त शब्दों से भरें-
(i) …….. एक अफ्रीका चरवाहा समुदाय है। (मासाई, गुजर)
(ii) ………. एक भारतीय चरवाहा समुदाय है। (सोसाली, धनगर)
(iii) खरीफ एक ………. की फसल है। (शरद, सर्दी)
(iv) राइका मारू ………… को पालते हैं। (हाथी, ऊँट)
(v) पुष्कर ………… राज्य में स्थित है। (राजस्थान, महाराष्ट्र)
(vi) पारस्परिक अधिकार का स्त्रोत ………… है। (कानू, रीति-रिवाज)
उत्तर-
(i) सासाई,
(ii) धनगर,
(iii) सर्दी,
(iv) ऊँट,
(v) राजस्थान,
(vi) रीति-रिवाज।
प्रश्न 3. निम्नलिखित विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए।
(i) निम्नलिखित समदाय जम्मू-कश्मीर का एक चरावाहा समुदाय है-
(a) बक्करवाल
(b) गद्दी
(c) धनगर
(d) बंजारा
उत्तर-
(a) बक्करवाल
(ii) निम्नलिखित का सम्बन्ध राजस्थानी चरवाहा समुदाय से था
(a) कुरूपा
(b) राइका
(c) गाल्ला
(d) कुरूबा
उत्तर-
(b) राइका
(iii) औपनिवेशिक अंग्रेज सरकार ने अपराधी जनजाति कानून निम्नलिखित वर्ष पास किया था
(a) 1869
(b) 1870
(c) 1871
(d) 1872
उत्तर-
(c) 1871
(iv) निम्नलिखित एक अफ्रीकी चरवाहा समुदाय नहीं है
(a) कुरुमा
(b) मासाई
(c) बोरान
(d) तुर्काना
उत्तर-
(a) कुरुमा
आधुनिक विश्व में चरवाहे Class 9 HBSE Notes in Hindi
अध्याय का सार
इस अध्याय में आप घुमंतू चरवाहों के बारे में पढ़ेंगे। घुमंतू ऐसे लोग होते हैं जो किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते बल्कि रोजी-रोटी के जुगाड़ में यहाँ से वहाँ घूमते रहते हैं। देश के कई हिस्सों में हम घुमंतू चरवाहों को अपने जानवरों के साथ आते-जाते देख सकते हैं। चरवाहों की किसी टोली के पास भेड़-बकरियों का रेवड़ या झुंड होता __ है तो किसी के पास ऊँट या अन्य मवेशी रहते हैं। क्या उन्हें देख कर आपने कभी इस बारे में सोचा है कि वे कहा! से आए हैं और कहा! जा रहे हैं? क्या आपको पता है कि वे कैसे रहते हैं, उनकी आमदनी के साधन क्या हैं और उनका अतीत क्या था? चरवाहों को इतिहास की पुस्तकों में विरले ही जगह मल पाती है। जब भी आप अर्थव्यवस्था के बारे में पढ़ते हैं-फिर चाहे वह इतिहास की कक्षा हो या अर्थशास्त्र की- सिर्फ कृषि और उद्योगों के बारे में ही पढते हैं। कभी-कभार इन कक्षाओं में कारीगरों के बारे में भी पढ़ने को मिल जाता है। लेकिन चरवाहों के बारे में पढ़ने-लिखने को ज्यादा कुछ नहीं मिलता। मानो उनकी जिंदगी का कोई मतलब ही न हो। अकसर मान लिया जाता है कि वे ऐसे लोग हैं जिनके लिए आज की आमुनिक दुनिया में कोई जगह नहीं है जैसे उनका दौर बीत चुका हो।
इस अध्याय में आप देखेंगे कि भारत और अफ्रीका जैसे समाजों में चरवाही का कितना महत्त्व है। यहाँ आप जानेंगे कि उपनिवेशवाद ने उनकी जिंदगी पर कितना गहरा असर डाला है और इन समुदायों ने आमानिक समाज के ‘दबावों का किस तरह सामना किया है। इस भाग में हम पहले भारत और उसके बाद अफ्रीका के चरवाहों की जिंदगी का अध्ययन करेंगे।