HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

Haryana State Board HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

HBSE 9th Class Physical Education योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
“योग भारत की एक विरासत है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
योग का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि भारत का इतिहास। इस बारे में अभी तक ठीक तरह पता नहीं लग सका है कि योग की उत्पत्ति कब हुई? लेकिन प्राम.?णक रूप से यह कहा जा सकता है कि योग का इतिहास भारत के इतिहास जितना ही पुराना है अर्थात् योग भारत की ही देन या विरासत है। इसलिए हमें योग की उत्पत्ति के बारे में जानने के लिए भारतीय इतिहास के कालों को जानना होगा, जिनसे स्पष्ट हो जाएगा कि योग भारत की एक विरासत है। भारतीय इतिहास के विभिन्न कालों का उल्लेख निम्नलिखित है

1. पूर्व वैदिक काल (Pre-Vedic Period):
हड़प्पा सभ्यता के दो प्रसिद्ध नगरों-हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त मूर्तियों व प्रतिमाओं से पता चलता है कि उस काल के दौरान भी योग किसी-न-किसी रूप में प्रचलित था।

2. वैदिक काल (Vedic Period):
वैदिक काल में रचित वेद ‘ऋग्वेद’ में लिखित ‘युनजते’ शब्द से यह अर्थ स्पष्ट होता है कि लोग इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए योग क्रियाएँ किया करते थे। हालांकि वैदिक ग्रंथों में ‘योग’ और ‘योगी’ शब्दों का स्पष्ट रूप से प्रयोग नहीं किया गया है।

3. उपनिषद् काल (Upnishad Period):
योग की उत्पत्ति का वास्तविक आधार उपनिषदों में पाया जाता है। उपनिषद् काल में रचित कठोपनिषद्’ में योग’ शब्द का प्रयोग तकनीकी रूप से किया गया है। उपनिषदों में यौगिक क्रियाओं का भी वर्णन किया गया है।

4. काव्य काल (Epic Period):
काव्य काल में रचित महाकाव्यों में योग के विभिन्न रूपों या शाखाओं के नामों का उल्लेख किया गया है। महाकाव्यों; जैसे ‘रामायण’ व ‘महाभारत’ में यौगिक क्रियाओं के रूपों की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। रामायण के समय योग प्रक्रिया काफी प्रसिद्ध थी। भगवद्गीता’ में भी योग के तीन प्रकारों का वर्णन है।

5. सूत्र काल (Sutra Period):
योग का पितामह महर्षि पतंजलि को माना जाता है, जिन्होंने योग पर आधारित प्रथम पुस्तक ‘योगसूत्र’ की रचना की। उन्होंने इस पुस्तक में योग के अंगों का व्यापक वर्णन किया है।

6. मध्यकाल (Medieval Period):
इस काल में दो संप्रदाय; जैसे नाथ और संत काफी प्रसिद्ध थे जिनमें यौगिक क्रियाएँ काफी प्रचलित थीं। नाथ हठ योग का और संत विभिन्न यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करते थे। इस प्रकार इन संप्रदायों या पंथों में योग काफी प्रसिद्ध था।

7.आधुनिक या वर्तमान काल (Modern or Present Period):
इस काल में स्वामी विवेकानंद, स्वामी योगेन्द्र, श्री अरबिन्दो और स्वामी रामदेव आदि ने योग के ज्ञान को न केवल भारत में बल्कि भारत से बाहर भी फैलाने का प्रयास किया है। स्वामी रामदेव जी आज भी योग को सारे विश्व में लोकप्रिय बनाने हेतु निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):
उपर्युक्त वर्णित कालों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि योग भारतीय विरासत है। योग की उत्पत्ति भारत में ही हुई। आज योग विश्व के विभिन्न देशों में फैल रहा है। इसी फैलाव के कारण 21 जून, 2015 को पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।

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प्रश्न 2.
योग के बारे में आप क्या जानते हैं? इसका क्या उद्देश्य है?
अथवा
योग का अर्थ, परिभाषा तथा उद्देश्य पर प्रकाश डालें।
अथवा
योग क्या है? इसकी परिभाषाएँ बताइए।
उत्तर:
योग का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Yoga):
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की मूल धातु ‘युज’ से हुई है जिसका अर्थ है-जोड़ या एक होना। जोड़ या एक होने का अर्थ है-व्यक्ति की आत्मा को ब्रह्मांड या परमात्मा की चेतना या सार्वभौमिक आत्मा के साथ जोड़ना। महर्षि पतंजलि (योग के पितामह) के अनुसार, ‘युज’ धातु का अर्थ है-ध्यान-केंद्रण या मनःस्थिति को स्थिर करना और आत्मा का परमात्मा से ऐक्य । साधारण शब्दों में, योग व्यक्ति की आत्मा का परमात्मा से मिलन का नाम है। योग का अभ्यास मन को परमात्मा पर केंद्रित करता है। यह व्यक्ति के गुणों व शक्तियों का आपस में मिलना है।

1. कठोपनिषद् (Kathopnishad):
के अनुसार, “जब हमारी ज्ञानेंद्रियाँ स्थिर अवस्था में होती हैं, जब मस्तिष्क स्थिर अवस्था में होता है, जब बुद्धि भटकती नहीं, तब बुद्धिमान कहते हैं कि इस अवस्था में पहुँचने वाले व्यक्ति ने सर्वोत्तम अवस्था वाले चरण को प्राप्त कर लिया है। ज्ञानेंद्रियों व मस्तिष्क के इस स्थायी नियंत्रण को ‘योग’ की परिभाषा दी गई है। वह जो इसे प्राप्त कर लेता है, वह भ्रम से मुक्त हो जाता है।”

2. महर्षि पतंजलि (Maharshi Patanjali):
के अनुसार, “योग: चित्तवृति निरोधः” अर्थात् “मनोवृत्ति के विरोध का नाम ही योग है।”

3. श्री याज्ञवल्क्य (Shri Yagyavalkya):
के अनुसार, “जीवात्मा से परमात्मा के मिलन को योग कहते हैं।”

4. महर्षि वेदव्यास (Maharshi Vedvyas):
के अनुसार, “योग समाधि है।”

5. डॉ० संपूर्णानंद (Dr. Sampurnanand):
के अनुसार, “योग आध्यात्मिक कामधेन है।”

6. श्रीमद्भगवद् गीता (Shrimad Bhagvad Gita):
के अनुसार, “बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।” अर्थात् समबुद्धि युक्त मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे और बुरे कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता है। अत: योग के लिए प्रयत्न करो क्योंकि सारा कार्य-कौशल यही है।

7. भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna):
ने कहा-“योग कर्मसु कौशलम्।” अर्थात् कर्म को कुशलतापूर्वक करना ही योग है।

8. स्वामी कृपालु जी (Swami Kripaluji):
के अनुसार, “हर कार्य को बेहतर कलात्मक ढंग से करना ही योग है।”

इस प्रकार योग आत्मा एवं परमात्मा का संयोजन है। योग का अभ्यास मन को परमात्मा पर केंद्रित करता है और संपूर्ण शांति प्रदान करता है। योग हमें उन कष्टों का इलाज करने की सीख देता है जिनको भुगतने की जरूरत नहीं है और उन कष्टों का इलाज करता है जिनको ठीक नहीं किया जा सकता। बी०के०एस० आयंगर (B.K.S. Iyengar): के अनुसार, “योग वह प्रकाश है जो एक बार जला दिया जाए तो कभी कम नहीं होता। जितना अच्छा आप अभ्यास करेंगे, लौ उतनी ही उज्ज्वल होगी।”

योग का उद्देश्य (Objective of Yoga):
योग का उद्देश्य जीवात्मा का परमात्मा से मिलाप करवाना है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर को नीरोग, फुर्तीला, जोशीला, लचकदार और विशिष्ट क्षमताओं या शक्तियों का विकास करके मन को जीतना है। यह ईश्वर के सम्मुख संपूर्ण समर्पण हेतु मन को तैयार करता है। योग व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक उद्देश्यों की पूर्ति वैज्ञानिक ढंगों से करता है।

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प्रश्न 3.
अष्टांग योग क्या है? अष्टांग योग के विभिन्न अंगों या अवस्थाओं का वर्णन करें।
अथवा
महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से आठ अंग बताए हैं? उनके बारे में संक्षेप में लिखें। अथवा अष्टांग योग के आठ अंगों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अष्टांग योग का अर्थ (Meaning of Asthang Yoga):
महर्षि पतंजलि ने ‘योग-सूत्र’ में जिन आठ अंगों का उल्लेख किया है, उन्हें ही अष्टांग योग कहा जाता है। अष्टांग योग का अर्थ है-योग के आठ पथ या अंग। वास्तव में योग के आठ पथ योग की आठ अवस्थाएँ (Stages) होती हैं जिनका पालन करते हुए व्यक्ति की आत्मा या जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हो सकता है। अष्टांग योग का अनुष्ठान करने से अशुद्धि का नाश होता है, जिससे ज्ञान का प्रकाश चमकता है और विवेक (ख्याति) की प्राप्ति होती है।

अष्टांग योग के अंग (Components of Asthang Yoga): महर्षि पतंजलि ने इसकी आठ अवस्थाएँ (अंग) बताई हैं; जैसे.
1. यम (Yama, Forbearance):
यम योग की वह अवस्था है जिसमें सामाजिक व नैतिक गुणों के पालन से इंद्रियों व मन को आत्म-केंद्रित किया जाता है। यह अनुशासन का वह साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन से संबंध रखता है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग करना सीखता है।

2. नियम (Niyama, Observance):
नियम से अभिप्राय व्यक्ति द्वारा समाज स्वीकृत नियमों के अनुसार ही आचरण करना है। जो व्यक्ति नियमों के विरुद्ध आचरण करता है, समाज उसे सम्मान नहीं देता। इसके विपरीत जो व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत नियमों के अनुसार आचरण करता है, समाज उसको सम्मान देता है। नियम के पाँच भाग होते हैं-शौच या शुद्धि (Purity), संतोष (Contentment), तप (Endurance), स्व-अध्याय (Self-Study) और ईश्वर प्राणीधान (Worship with Complete Faith)। इन पर अमल करके व्यक्ति परमात्मा को पा लेता है और आचारिक रूप से शक्तिशाली बनता है। .

3. आसन (Asana, Posture):
जिस अवस्था में शरीर ठीक से बैठ सके, वह आसन है। आसन का अर्थ है-बैठना। योग की सिद्धि के लिए उचित आसन में बैठना बहुत आवश्यक है। महर्षि पतंजलि के अनुसार, “स्थिर सुख आसनम्।” अर्थात् जिस रीति से हम स्थिरतापूर्वक, बिना हिले-डुले और सुख के साथ बैठ सकें, वह आसन है। ठीक मुद्रा में रहने से मन शांत रहता है।

4. प्राणायाम (Pranayama, Control of Breath):
प्राणायाम में दो शब्द हैं-प्राण व आयाम । प्राण का अर्थ है- श्वास और आयाम का अर्थ है-नियंत्रण व नियमन। इस प्रकार जिसके द्वारा श्वास के नियमन व नियंत्रण का अभ्यास किया जाता है, उसे प्राणायाम कहते हैं अर्थात् साँस को अंदर ले जाने व बाहर निकालने पर उचित नियंत्रण रखना ही प्राणायाम है। इसके तीन भाग हैं
(1) पूरक (Inhalation),
(2) रेचक (Exhalation) और
(3) कुंभक (Holding of Breath)।

5. प्रत्याहार (Pratyahara, Restraint of the Senses):
अष्टांग योग प्रत्याहार से अभिप्राय ज्ञानेंद्रियों व मन को अपने नियंत्रण में रखने से है। साधारण शब्दों में, प्रत्याहार का अर्थ मन व इन्द्रियों को उनकी संबंधित क्रियाओं से हटकर परमात्मा की ओर लगाना है। प्रत्याहार द्वारा हम अपनी पाँचों ज्ञानेंद्रियों (देखना, सुनना, सूंघना, छूना और स्वाद) को नियंत्रित कर लेते हैं।

6. धारणा (Dharna, Steadying of the mind):
अपने मन के निश्चल भाव को धारणा कहते हैं। अष्टांग योग में धारणा’ का बहुत महत्त्व है। धारणा का अर्थ मन को किसी इच्छित विषय में लगाना है। धारणा की स्थिति में हमारा मस्तिष्क बिल्कुल शांत होता है। इस प्रकार की प्रक्रिया से व्यक्ति में एक महान् शक्ति उत्पन्न हो जाती है, साथ ही उसके मन की इच्छा भी पूरी हो जाती है।

7. ध्यान (Dhyana, Contemplation):
धारणा से आगे आने वाली और ऊपरी स्थिति को ध्यान कहते हैं । जब मन पूरी तरह से नियंत्रण में हो जाता है तो ध्यान लगना आरंभ हो जाता है अर्थात् मस्तिष्क की पूर्ण एकाग्रता ही ध्यान कहलाती है। .

8. समाधि (Samadhi, Trance):
समाधि योग की सर्वोत्तम अवस्था है। यह सांसारिक दुःख-सुख से ऊपर की अवस्था है। समाधि योग की वह अवस्था है जिसमें साधक को स्वयं का भाव नहीं रहता। वह पूर्ण रूप से अचेत अवस्था में होता है। इस अवस्था में वह उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है जहाँ आत्मा व परमात्मा का मिलन होता है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि काफी लम्बे समय तक समाधि में बैठते थे। इस विधि द्वारा हम दिमाग पर पूरी तरह अपना नियंत्रण कर सकते हैं।

प्रश्न 4.
योग स्वास्थ्य का साधन है, इस विषय में अपने विचार प्रकट करें। अथवा “योगाभ्यास तंदुरुस्ती का साधन है।” इस कथन पर अपने विचार प्रकट करें। अथवा योगासन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
योग स्वास्थ्य या तंदुरुस्ती का साधन है। इसका उद्देश्य है कि व्यक्ति को शारीरिक तौर पर तंदुरुस्त, मानसिक स्तर पर दृढ़ और चेतन, आचार-विचार में अनुशासित करना है। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) योगाभ्यास करने वाले व्यक्ति की मानसिक जटिलताएँ मिट जाती हैं। वह मानसिक तौर से संतुष्ट और शक्तिशाली हो जाता है।
(2) शरीर के आंतरिक अंगों की सफाई के लिए योगाभ्यास में खास क्रिया विधि अपनाई जाती है। धौती क्रिया से जिगर, बस्ती क्रिया से आंतड़ियों व नेती क्रिया से पेट की सफाई की जाती है।

(3) योग द्वारा कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है; जैसे चक्रासन द्वारा हर्निया रोग, शलभासन द्वारा मधुमेह का रोग दूर किए जाते हैं। योगाभ्यास द्वारा रक्त के उच्च दबाव (High Blood Pressure) तथा दमा (Asthma) जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।

(4) योगाभ्यास द्वारा शारीरिक विकृतियों अर्थात् आसन को ठीक किया जा सकता है; जैसे रीढ़ की हड्डी का कूबड़, घुटनों का आपस में टकराना, टेढ़ी गर्दन, चपटे पैर आदि विकृतियों को दूर करने में योगासन लाभदायक हैं।

(5) योगासनों द्वारा मनुष्य को अपने संवेगों और अन्य अनुचित इच्छाओं पर नियंत्रण पाने की शक्ति मिलती है।

(6) योगाभ्यास द्वारा शारीरिक अंगों में लचक आती है; जैसे धनुरासन तथा हलासन रीढ़ की हड्डी में लचक बढ़ाते हैं।

(7) योग का शारीरिक संस्थानों की कार्यक्षमता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। यह इनकी कार्यक्षमता को सुचारु करता है।

(8) योगाभ्यास करने से बुद्धि तीव्र होती है। शीर्षासन करने से दिमाग तेज़ और स्मरण-शक्ति बढ़ती है।

(9) योगासन करने से शरीर में चुस्ती और ताजगी पैदा होती है।

(10) योगासन मन को प्रसन्नता प्रदान करता है। मन सन्तुलित रहता है। जहां भोजन शरीर का आहार है, वहीं प्रसन्नता मन का आहार है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए दोनों की आवश्यकता होती है।

(11) योगाभ्यास द्वारा शरीर ताल में आ जाता है और योगाभ्यास करने वाले व्यक्ति की कार्यक्षमता बढ़ जाती है।

(12) योगाभ्यास करने वाला व्यक्ति देर तक कार्य करते रहने तक भी थकावट अनुभव नहीं करता। वह अधिक कार्य कर सकता है और अपने लिए अच्छे आहार के बढ़िया साधन प्राप्त कर सकता है। अत: योग शारीरिक तथा मानसिक थकावट दूर करने में सहायक होता है। अतः योग शारीरिक तथा मानसिक थकावट दूर करने में सहायक होता है।

प्रश्न 5.
योग क्या है? योग के प्रमुख सिद्धांत कौन-कौन से हैं?
अथवा
योगासन करते समय किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
अथवा
योगासन करते समय कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिएँ?
उत्तर:
योग का अर्थ (Meaning of Yoga):
योग एक विभिन्न प्रकार के शारीरिक व्यायामों व आसनों का संग्रह है। यह ऐसी विधा है जिससे मनुष्य को अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों को बढ़ाने का अवसर मिलता है। योग धर्म, दर्शन, शारीरिक सभ्यता और मनोविज्ञान का समूह है।

योगासन के सिद्धांत/सावधानियाँ (Principles/Precautious of Yoga): योगासन या योगाभ्यास करते समय अग्रलिखित सिद्धांतों अथवा बातों को ध्या

(1) योगासन का अभ्यास प्रात:काल करना चाहिए।
(2) योगासन एकाग्र मन से करना चाहिए, इससे अधिक लाभ होता है।
(3) योगासन का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
(4) योगासन करते समय शरीर पर कम-से-कम कपड़े होने चाहिएँ, परन्तु सर्दियों में उचित कपड़े पहनने चाहिएँ।
(5) योगासन खाली पेट करना चाहिए। योगासन करने के दो घण्टे पश्चात् भोजन करना चाहिए।
(6) योगासन प्रतिदिन करना चाहिए।
(7) योगासनों का अभ्यास प्रत्येक आयु में कर सकते हैं, परन्तु अभ्यास करने से पहले किसी अनुभवी व्यक्ति से जानकारी ले लेनी चाहिए।
(8) यदि शरीर अस्वस्थ या बीमार है तो आसन न करें।
(9) प्रत्येक आसन निश्चित समयानुसार करें।
(10) योग आसन करने वाला स्थान साफ-सुथरा और हवादार होना चाहिए।
(11) योग आसन किसी दरी अथवा चटाई पर किए जाएँ। दरी अथवा चटाई समतल स्थान पर बिछी होनी चाहिए।
(12) योगाभ्यास शौच क्रिया के पश्चात् व सुबह खाना खाने से पहले करना चाहिए।
(13) प्रत्येक अभ्यास के पश्चात् विश्राम का अंतर होना चाहिए। विश्राम करने के लिए शवासन करना चाहिए।
(14) प्रत्येक आसन करते समय फेफड़ों के अंदर भरी हुई हवा बाहर निकाल दें। इससे आसन करने में सरलता होगी।
(15) योग करते समय जब भी थकावट हो तो शवासन या मकरासन कर लेना चाहिए।
(16) योग आसन अपनी शक्ति के अनुसार ही करना चाहिए।
(17) योग अभ्यास से पूरा लाभ उठाने के लिए शरीर को पौष्टिक व संतुलित आहार देना बहुत जरूरी है।
(18) आसन करते समय श्वास या साँस हमेशा नाक द्वारा ही लें।
(19) हवा बाहर निकालने (Exhale) के उपरांत श्वास क्रिया रोकने का अभ्यास किया जाए।
(20) एक आसन करने के पश्चात् दूसरा आसन उस आसन के विपरीत किया जाए; जैसे धनुरासन के पश्चात् पश्चिमोत्तानासन करें। इस प्रकार शारीरिक ढाँचा ठीक रहेगा।

प्रश्न 6.
दैनिक जीवन में योग के महत्त्व का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। अथवा आधुनिक संदर्भ में योग की महत्ता या उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आधुनिक संदर्भ में योग के महत्त्व या उपयोगिता का वर्णन निम्नलिखित है
(1) हमारा मन चंचल और अस्थिर होता है। योग मन के विकारों को दूर कर उसे शांत करता है। योग का सतत् अभ्यास करके और लोभ एवं मोह को त्याग कर मन को शांत एवं निर्विकार बनाया जा सकता है।

(2) कर्म स्वयं में एक योग है। कर्त्तव्य से विमुख न होना ही कर्म योग है। पूरी एकाग्रता एवं निष्ठा के साथ कर्म करना ही योग का उद्देश्य है। अत: योग से कर्म करने की शक्ति मिलती है।

(3) हमारी वाणी से जो विचार निकलते हैं, वे मन एवं मस्तिष्क की उपज होते हैं। यदि मन में कलुष भरा है तो हमारे विचार भी कलुषित होंगे। जंब हम योग से मन को नियंत्रित कर लेते हैं तो हमारे विचार सकारात्मक रूप में हमारी वाणी से प्रवाहित होने लगते हैं। योग से नकारात्मक विचार सकारात्मक प्रवृत्ति में बदल जाते हैं।

(4) योग शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक पहलुओं में एकीकरण करने में सहायक होता है।

(5) योग में सर्वस्व कल्याण हित है। यह धर्म-मजहब से परे की विधा है।
(6) योग से शरीर की आंतरिक शुद्धता बढ़ती है।

(7) योग हमें उन कष्टों का इलाज करने की सीख देता है जिनको सहन करने की जरूरत नहीं है और उन कष्टों का इलाज करता है जिनको ठीक नहीं किया जा सकता।

(8) योग हमारे जीवन का आधार है। यह हमारी अंतर चेतना जगाकर विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत देता है। यह हमारी जीवन-शैली में बदलाव करने में सहायक है।

(9) योग धर्म, जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, ऊँच-नीच तथा अमीर-गरीब आदि से परे है। किसी के साथ किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं करता।

(10) योग स्वस्थ रहने की कला है। आज सभी का मूल फिट रहना है और यही चाह सभी को योग के प्रति आकर्षित करती है, क्योंकि योग हमारी फिटनेस में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(11) योग मन एवं शरीर में सामंजस्य स्थापित करता है अर्थात् यह शरीर एवं मस्तिष्क के ऐक्य का विज्ञान है।
(12) योग से शरीर में रक्त का संचार तीव्र होता है। इससे शरीर का रक्तचाप व तापमान सामान्य रहता है।
(13) योग मोटापे को नियन्त्रित करने में मदद करता है।
(14) योग से शारीरिक मुद्रा (Posture) में सुधार होता है।
(15) योग से मानसिक तनाव व चिंता दूर होती है। इससे मनो-भौतिक विकारों में सुधार होता है।
(16) योग रोगों की रोकथाम व बचाव में सहायता करता है।
(17) यह शारीरिक संस्थानों की कार्यक्षमता को सुचारु रखने में सहायक होता है।
(18) योग आत्म-विश्वास बढ़ाने तथा मनोबल निर्माण में सहायता करता है।

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प्रश्न 7.
वज्रासन की विधि तथा इसके लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वज्रासन (Vajrasana):
‘वज्र’ शब्द का अर्थ है-दृढ़ एवं कठोर । वज्र के साथ आसन जुड़ने से ‘वज्रासन’ बनता है। इस आसन में पैर की दोनों जंघाओं को ‘वज्र’ के समान दृढ़ करके बैठा जाता हैं । वज्रासन हमेशा बैठकर किया जाता है। स्वच्छं कम्बल या दरी पर बैठकर इस आसन का अभ्यास करें।

विधि (Procedure):
समतल भूमि पर जंघाओं तथा पिंडलियों को परस्पर मिलाकर और पीछे की ओर मोड़कर बैठें। पाँवों के दोनों तलवे आपस में सटाकर रखें। बाईं तथा दाईं हथेलियों को। बाएँ-दाएँ पाँवों के घुटनों पर रखें। कमर, ग्रीवा एवं सिर बिल्कुल सीधे रखें। घुटने मिले हुए हों और, हाथों को घुटनों पर रखें। धीरे-धीरे शरीर को ढीला छोड़े। श्वसन क्रिया करते रहें। वज्रासन को जितना। संभव हो, उतनी देर करें। विशेष रूप से भोजन के तुरंत बाद पाचन क्रिया को बढ़ाने के लिए कम-से-कम 5 मिनट के लिए इस आसन का अभ्यास जरूर करें।
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लाभ (Benefits): वज्रासन करने के लाभ निम्नलिखित हैं
(1) वज्रासन ध्यान केन्द्रित करने वाला आसन है। इससे मन की चंचलता दूर होती है तथा वज्रासन चित्त एकाग्र हो जाता है।
(2) इस आसन को नियमित रूप से करने से जाँघों की माँसपेशियाँ कठोर एवं मजबूत होती हैं।
(3) यह एक ऐसा आसन है जिसे भोजन के बाद किया जाता है। इसे करने से अपच, अम्लपित्त, गैस, कब्ज आदि रोग दूर हो जाते हैं।
(4) इससे पाचन-शक्ति में वृद्धि होती है।
(5) यह मन को एकाग्र करने में सहायक होता है।
(6) इसे करने से रक्त प्रवाह ठीक रहता है।
(7) इस आसन को नियमित रूप से करने से आसन संबंधी विकार दूर हो जाते हैं।
(8) इसे करने से स्मरण-शक्ति बढ़ जाती है।
(9) इसे करने से मोटापा कम होता है।
(10) इसे करने से मेरुदण्ड शक्तिशाली व सुदृढ़ हो जाता है।

प्रश्न 8.
ताड़ासन क्या है? इसकी विधि तथा इसके लाभों का उल्लेख करें।
उत्तर:
ताड़ासन (Tadasana):
ताड़ासन में खड़े होने की स्थिति में धड़ को ऊपर की ओर किया जाता है। इस आसन में शरीर की स्थिति ताड़ के वृक्ष जैसी प्रतीत होती है, इसीलिए इसे ताड़ासन कहा जाता है। यह ऐसा आसन है जो न केवल बड़ी माँसपेशियों को ही बल्कि सूक्ष्म-से-सूक्ष्म माँसपेशियों को भी काफी हद तक लचीला बनाता है। ताड़ासन को विभिन्न नामों से जाना जाता है।

विधि (Procedure):
सबसे पहले आप समतल जमीन पर सीधे खड़े हो जाएँ। फिर अपने दोनों पैरों को मिला लें। आपका शरीर स्थिर रहना चाहिए। आपके दोनों पैरों पर शरीर का वजन बराबर होना चाहिए। अब धीरे-धीरे हाथों को कन्धों के समानांतर लाएँ। दोनों हाथों को ऊपर उठाकर अंगुलियों को सीधे ऊपर की ओर रखें। अब साँस भरते हुए अपने हाथों को ऊपर की ओर खींचें और पंजों

Meaning, Definition and Values of Yoga के बल अधिक-से-अधिक ऊपर उठने का प्रयास करें। इस दौरान आपकी गर्दन सीधी होनी चाहिए। इस अवस्था को कुछ देर के लिए बनाए रखें और श्वसन क्रिया करते रहें। फिर साँस छोड़ते हुए धीरे-धीरे अपने हाथों और शरीर को पहले वाली अवस्था में ले आएँ। इस क्रिया को इसी क्रम में कम-से-कम 7-8 बार दोहराएँ।

लाभ (Benefits)-ताड़ासन करने से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं
(1) ताड़ासन पैरों की समस्याओं को दूर करता है। यह पैरों को मजबूती प्रदान करता है।
(2) इससे एकाग्रता में वृद्धि होती है।
(3) यह पाचन क्रिया को ठीक करता है।
(4) इससे शरीर स्वस्थ, लचीला और सुडौल बनता है।
(5) इससे कमर पतली और लचीली बनती है।
(6) यह पेट के भारीपन को कम करके चर्बी घटाने में सहायक होता है। इससे मोटापा कम होता है।
(7) इसे करने से नाड़ियों एवं माँसपेशियों का दर्द कम होता है। यह आसन नाड़ियों के साथ-साथ माँसपेशियों को मजबूत एवं सबल बनाता है।
(8) यह आसन बवासीर के रोगियों के लिए लाभदायक है।
(9) यह उच्च रक्त-चाप को नियंत्रित करने में सहायक होता है। ताड़ासन
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प्रश्न 9.
निम्नलिखित आसनों पर संक्षिप्त नोट लिखें
(क) चक्रासन
(ख) भुजंगासन
(ग) शीर्षासन
(घ) हलासन
(ङ) धनुरासन।
उत्तर:
(क) चक्रासन (Chakrasana):
कमर के बल ज़मीन पर लेट जाएँ।दोनों टाँगों को पूरी तरह फैलाकर पैरों को थोड़ा-सा खोलें। फिर दोनों कोहनियों को सिर के दोनों ओर ज़मीन पर जमाएँ। इस अवस्था में हाथों की हथेलियाँ धरती से लगनी चाहिएँ। फिर धीरे-धीरे कमर को ऊपर की ओर उठाते हुए शरीर को गोल करें, परन्तु पैर धरती से ही लगे रहने चाहिएँ। कुछ समय तक इस अवस्था में रहें।
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लाभ (Benefits):
(1) इससे शरीर में लचक पैदा होती है।
(2) इस आसन से पेट की चर्बी कम होती है।
(3) इससे रीढ़ की हड्डी लचकदार बनती है।
(4) इस आसन द्वारा घुटने, हाथ, पैर, कन्धे और बाजू की माँसपेशियाँ चक्रासन मज़बूत हो जाती हैं।
(5) इससे पेट की बहुत-सी बीमारियाँ दूर होती हैं।

(ख) भुजंगासन (Bhujangasana):
पेट के बल लेट जाएँ और दोनों पैरों को आपस में मिलाकर पूरी तरह धरती से लगाएँ। अपने पैरों की उंगलियों से लेकर नाभि तक का शरीर धरती से लगाएँ। हाथों को कन्धों के सामने धरती से लगाकर धड़ के ऊपरी भाग को पूरी तरह ऊपर की ओर उठाएँ। इस प्रकार कमर का ऊपरी भाग फनियर साँप जैसा बन जाएगा।
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लाभ (Benefits):
(1) यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला और छाती को चौड़ा बनाता है। भुजंगासन
(2) यह आसन गर्दन, कन्धों, छाती और सिर को अधिक क्रियाशील बनाता है।
(3) यह रक्त-संचार को तेज़ करता है।
(4) यह मोटापे को कम करता है।
(5) इससे शरीर में शक्ति और स्फूर्ति का संचार होता है।
(6) इस आसन से जिगर के रोग दूर होते हैं।

(ग) शीर्षासन (Shirshasana)-
घुटने के बल बैठकर दोनों हाथों की अंगुलियाँ ठीक ढंग से बाँध लें और आसन पर रखें। सिर का आगे वाला भाग ज़मीन पर इस प्रकार रखें कि दोनों हाथ सिर के पीछे हों। टाँगों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएँ। पहले एक टाँग को सीधा करें, फिर दूसरी को सीधा करने के पश्चात् शरीर को सीधा करें। सारा वज़न सिर और भुजाओं पर रहे।
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लाभ (Benefits):
(1) शीर्षासन से मोटापा कम होता है।
(2) यह आसन भूख बढ़ाता है और जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
(3) इस आसन से स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
(4) इससे पेट ठीक रहता है। शीर्षासन

(घ) हलासन (Halasana):
इस आसन में सबसे पहले अपने पैर फैलाकर पीठ के बल ज़मीन परं लेट जाओ। हाथों की हथेलियों को बगल में जमाएँ। कमर के निचले भाग को ज़मीन से धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएँ और इतना ऊपर ले जाएँ कि दोनों पैरों के अंगूठे सिर के पीछे ज़मीन पर लग जाएँ।
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लाभ (Benefits):
(1) इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है।
(2) इस आसन से मोटापा दूर होता है।
(3) यह आसन रक्त संचार को समान करता है।
(4) इस आसन से रीढ़ की हड्डी लचीली होती है। हलासन
(5) यह आसन शरीर को तन्दुरुस्त बनाता है।

(ङ) धनुरासन (Dhanurasana):
इस आसन का आकार धनुष जैसा होता है। इस आसन में सबसे पहले पेट के बल लेट जाएँ। अपने दोनों हाथों के साथ दोनों पैरों की पिण्डलियों को पकड़ें। छाती और पेट के ऊपरी भाग को खींचें। हर्निया के रोगी को यह आसन नहीं करना चाहिए।
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लाभ (Benefits):
(1) यह आसन रीढ़ की हड्डी में लचीलापन लाता है।
(2) यह आसन मूत्र में शर्करा रोग को रोकता है।
(3) इस आसन द्वारा पेट अथवा कमर के आस-पास आया धनुरासन मोटापा दूर होता है।
(4) इस आसन द्वारा कब्ज़ और पेट संबंधी बीमारियाँ दूर होती हैं।
(5) यह आसन पीठ दर्द और कमर दर्द को दूर करता है।
(6) यह आसन करने से बाजुओं और टांगों की माँसपेशियाँ शक्तिशाली बनती हैं।
(7) इससे श्वासनली और फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
(8) यह आसन पेट, आंतड़ियों और जनन के रोगों को दूर करता है।

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प्रश्न 10.
पद्मासन की विधि तथा इसके लाभों का वर्णन करें।
उत्तर:
पद्मासन (Padamasana):
पद्मासन का विशेष महत्त्व है क्योंकि अधिकांश आसन सर्वप्रथम पद्मासन लगाने के बाद ही किए जाते हैं। पद्मासन में पालथी लगाकर बैठा जाता है। किसी साफ-सुथरे कम्बल या दरी पर बैठकर इसका अभ्यास किया जाता है। इस आसन में शरीर की आकृति बहुत हद तक कमल के फूल जैसी हो जाती है। इस कारण इसको ‘Lotus Pose’ भी कहा जाता है।

विधि (Procedure):
समतल स्थान पर चटाई या कम्बल बिछाकर चौकड़ी लगाकर बैठे। बाएँ पाँव की एडी को दाईं जाँघ पर और दाएँ पाँव की एडी को बाईं जाँघ पर रखें। पाँव के तलवे ऊपर की ओर होने चाहिएँ। सामने देखते हुए कमर के ऊपरी भाग को सीधा रखें। दोनों हाथों को ज्ञान-मुद्रा की स्थिति में रखें। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। धीरे-धीरे श्वसन क्रिया करें। 1 से 10 मिनट तक शांत-भाव से इसी मुद्रा में रहने का अभ्यास करें।

लाभ (Benefits)”
पद्मासन के लाभ निम्नलिखित हैं
(1) यह आसन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है।
(2) इसे करने से घुटनों के जोड़ों का दर्द दूर होता हैं।
(3) इसे करने से पेट सम्बन्धी बीमारियाँ दूर होती है और पाचन-शक्ति में वृद्धि होती है।
(4) इसे करने से माँसपेशियाँ मजबूत होती हैं। पद्मासन
(5) इसे नियमित रूप से करने से रीढ़ की हड्डी मजबूत एवं लचीली बनती है।
(6) यह आसन करने से स्मरण-शक्ति, विचार-शक्ति व तर्क-शक्ति बढ़ती है।
(7) इसके नियमित अभ्यास से चित्त में स्थिरता आती है और वीर्य में वृद्धि होती है।
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प्रश्न 11.
सर्वांगासन की विधि तथा इसके लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सर्वांगासन (Sarvangasana):
सर्वांगासन में कंधों के बल शरीर को खड़ा किया जाता है। किसी साफ-सुथरे कम्बल या दरी पर पीठ के बल लेट जाएँ। हथेलियों को नीचे की ओर करके शरीर से सटाए रखें।
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विधि (Procedure):
समतल ज़मीन पर शांत-भाव से पीठ के बल सीधे लेटकर पाँव आपस में मिला लें। धीरे-धीरे पाँवों को ऊपर ले जाते हुए शरीर को भी ऊपर उठाएँ। पाँव इस तरह ऊपर उठाएँ कि टाँगें और नितम्ब कमर के साथ 90 डिग्री का कोण बनाएँ। कुछ देर तक इसी स्थिति में ठहरने के बाद धीरे-धीरे शरीर को नीचे लाकर वापिस सामान्य स्थिति में आ जाएँ। 1 से 5 मिनट तक इस आसन का अभ्यास करें।

लाभ (Benefits):
सर्वांगासन करने के लाभ निम्नलिखित हैं
(1) यह आसन दमा के रोगियों के लिए दवा का कार्य करता है।
(2) इसे करने से शरीर में रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है।
(3) कब्ज, गैस तथा पेट के अन्य रोग भी इस आसन से ठीक हो जाते हैं।
(4) यह आसन भूख में वृद्धि करता है।
(5) इसे करने से पेट की माँसपेशियाँ मजबूत बनती हैं। सर्वांगासन
(6) यह आसन पाचन-शक्ति में वृद्धि करता है।

प्रश्न 12.
शलभासन क्या है? इसकी विधि तथा इससे होने वाले लाभ बताएँ।
उत्तर:
शलभासन (Shalabhasana):
संस्कृत भाषा में ‘शलभ’ टिड्डी नामक कीट को कहते हैं। जिस प्रकार टिड्डी का पिछला भाग ऊपर की ओर उठा रहता है, उसी प्रकार नाभि से निचला भाग ऊपर की ओर उठा होने के कारण इसे शलभासन कहते हैं।
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व 8

विधि (Procedure):
सबसे पहले पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। अपनी हथेलियों को जाँघों के नीचे रखें। अब गहरा श्वास भरकर ठुड्डी, हाथ एवं शलभासन छाती पर शरीर का भार संभालते हुए दोनों पैरों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएँ। पैर मिले हुए और घुटने सीधे रखें। श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे पूर्व स्थिति में आ जाएँ। इस तरह से आप यह क्रिया 3 से 5 बार दोहराएँ।

लाभ (Benefits):
शलभासन के लाभ निम्नलिखित हैं
(1) इस आसन से रक्त-संचार की क्रिया तेज होती है।
(2) इससे रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आता है।
(3) इससे पेट के कई रोग; जैसे गैस बनना, भूख न लगना और अपच या बदहजमी आदि दूर हो जाते हैं। इससे कमर-दर्द भी दूर होता है।
(4) इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है।
(5) इससे रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है।
(6) इससे शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।

प्रश्न 13.
प्राणायाम से क्या अभिप्राय है? इसकी उपयोगिता या महत्ता पर प्रकाश डालिए। अथवा ‘प्राणायाम’ की परिभाषा देते हुए इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए। अथवा प्राणायाम का अर्थ व परिभाषा लिखें। वर्तमान में इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
प्राणायाम का अर्थ (Meaning of Pranayama):
प्राणायाम में दो शब्द हैं-प्राण व आयाम। प्राण का अर्थ हैश्वास और आयाम का अर्थ है-नियंत्रण व नियमन। इस प्रकार जिसके द्वारा श्वास के नियमन व नियंत्रण का अभ्यास किया जाता है, उसे प्राणायाम कहते हैं। अर्थात् साँस को अंदर ले जाने व बाहर निकालने पर उचित नियंत्रण रखना ही प्राणायाम है। महर्षि पतंजलि के अनुसार, “श्वास-प्रश्वास की स्वाभाविक गति को रोकना ही प्राणायाम है।”

प्राणायाम की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Pranayama):
वर्तमान समय में श्री श्री रविशंकर ने जीवन जीने की जो शैली सुझाई है, वह प्राणायाम पर आधारित है। आधुनिक जीवन में प्राणायाम की आवश्यकता एवं महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाती है

(1) प्राणायाम से शरीर का रक्तचाप व तापमान सामान्य रहता है।
(2) इससे शरीर की आंतरिक शुद्धता बढ़ती है।
(3) इससे मन की चंचलता दूर होती है।
(4) इससे सामान्य स्वास्थ्य व शारीरिक कार्य-कुशलता का विकास होता है।
(5) इससे मानसिक तनाव व चिंता दूर होती है।
(6) इससे हमारी श्वसन प्रक्रिया में सुधार होता है।
(7) इससे आँखों व चेहरे में चमक आती है और आवाज़ मधुर हो जाती है।
(8) इससे आध्यात्मिक व मानसिक विकास में मदद मिलती है।
(9) इससे कार्य करने की शक्ति में वृद्धि होती है।
(10) इससे फेफड़ों का आकार बढ़ता है और श्वास की बीमारियों तथा गले, मस्तिष्क की बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
(11) इससे इच्छा शक्ति व स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
(12) इससे श्वास-संस्थान मज़बूत होता है।
(13) प्राणायाम करने से पेट तथा छाती की मांसपेशियाँ मज़बूत बनती हैं।
(14) श्वास ठीक ढंग से आने के कारण शरीर को ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलने लगती है और ऑक्सीजन बढ़ने से रक्त साफ होता है।
(15) इससे रक्त के तेज़ दबाव से नाड़ी संस्थान की शक्ति में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 14.
प्राणायाम करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? एक योगसाधक के लिए आवश्यक निर्देश बताएँ।
उत्तर:
ध्यान रखने योग्य बातें (Things to keep in Mind): प्राणायाम करते समय निम्नलिखि बातों का ध्यान रखना चाहिए
(1) प्राणायाम धीरे-धीरे करना चाहिए।
(2) प्राणायाम का अभ्यास प्रात:काल करना अधिक लाभदायक होता है।
(3) प्राणायाम शुरू करने से पहले अपने योग शिक्षक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
(4) प्राणायाम करते समय श्वास क्रिया नाक से करनी चाहिए।
(5) प्राणायाम करते समय किसी भी तरह का तनाव नहीं होना चाहिए।
(6) प्राणायाम के समय श्वसन क्रिया करते समय श्वसन की आवाज जोर से नहीं करनी चाहिए। श्वास की क्रिया लयात्मक व स्थिर होनी चाहिए।
(7) यदि आप बहुत थके हुए हो तो प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
(8) प्राणायाम के बाद किसी भी तरह का जोरदार अभ्यास नहीं करना चाहिए।
(9) प्राणायाम को जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए।
(10) प्राणायाम हमेशा खुले वातावरण में करना अधिक लाभदायक होता है या एक अच्छे हवादार कमरे में करना चाहिए जिसमें आदि न लगा हो।

एक योगसाधक के लिए आवश्यक निर्देश (Important Instructions of a Yoga Instructor) एक योगसाधक के लिए आवश्यक निर्देश निम्नलिखित हैं
(1) प्राणायाम शुरू करने से पहले योगसाधक को अपनी आंत को साफ कर देना चाहिए।
(2) स्वच्छ एवं हवादार कमरे में प्राणायाम का अभ्यास करें। यदि आप किसी शोरगुल वातावरण में अभ्यास करते हैं तो आपका मन विचलित हो सकता है।
(3) प्राणायाम करने से पहले 2 या 3 घंटे तक कुछ भी न खाएँ।
(4) प्राणायाम का अभ्यास एक ही समय में करना चाहिए अर्थात् प्राणायाम में नियमितता होनी चाहिए।
(5) प्राणायाम करने के लिए आप पदमासन, वज्रासन, सिद्धासन व सुखासन में बैठ सकते हैं।
(6) प्राणायाम करते समय अपनी पीठ बिल्कुल सीधी रखनी चाहिए।
(7) टी०बी० व उच्च रक्तचाप के मरीजों को प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
(8) प्राणायाम के लिए सभी बुनियादी दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए।
(9) प्राणायाम करते समय अपने जीवन की चिंताओं व तनाव आदि को भूल जाएँ और अपनी साँस पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करें।
(10) यदि आपको श्वास से संबंधित कोई बीमारी हो तो अपने चिकित्सक की सलाह या परामर्श से प्राणायाम का अभ्यास करें।

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
योग के इतिहास पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
योग का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि भारत का इतिहास। इस बारे में अभी तक ठीक तरह पता नहीं लग सका कि योग कब शुरू हुआ? परंतु योग भारत की ही देन या विरासत है। भारत में योग लगभग तीन हजार ईसा पूर्व पहले शुरू हुआ। हजारों वर्ष पहले हिमालय में कांति सरोवर झील के किनारे पर आदि योगी ने अपने योग सम्बन्धी ज्ञान को पौराणिक सात ऋषियों को प्रदान किया। इन ऋषियों ने योग का विश्व के विभिन्न भागों में प्रचार किया। परन्तु व्यापक स्तर पर योग को सिन्धु घाटी सभ्यता के एक अमिट सांस्कृतिक परिणाम के रूप में समझा जाता है। महर्षि पतंजलि द्वारा योग पर प्रथम पुस्तक ‘योग-सूत्र’ लिखी गई, जिसमें उन्होंने योग की अवस्थाओं एवं प्रकारों का विस्तृत उल्लेख किया है। हिंदू धर्म के ग्रंथ ‘उपनिषद्’ में योग के सिद्धांतों या नियमों का वर्णन किया गया है। महर्षि पतंजलि के बाद अनेक योग गुरुओं एवं ऋषियों ने इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आधुनिक काल में महर्षि पतंजलि को योग का आदि गुरु माना जाता है। भारत के मध्यकालीन युग में कई योगियों ने योग के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इसने मानवता के भौतिक और आध्यात्मिक विकास में अहम् भूमिका निभाई है।
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प्रश्न 2.
योग करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? अथवा योगासन करते समय ध्यान में रखी जाने वाली मुख्य बातें बताएँ।
उत्तर:
योगासन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(1) योगासन का अभ्यास प्रातः करना चाहिए। योग करते समय हमेशा नाक से साँस लेनी चाहिए।
(2) योगासन, शान्त जगह पर और खुली हवा में करना चाहिए।
(3) योगासन एकाग्र मन से करना चाहिए। इससे अधिक लाभ होता है।
(4) योगासन करते समय शरीर पर कम-से-कम कपड़े होने चाहिएँ, परन्तु सर्दियों में उचित कपड़े पहनने चाहिएँ।
(5) योगासनों का अभ्यास प्रत्येक आयु में कर सकते हैं, परन्तु अभ्यास करने से पहले किसी अनुभवी व्यक्ति से जानकारी ले लेनी चाहिए।
(6) योगासन खाली पेट करना चाहिए। इसके करने के दो घण्टे पश्चात् भोजन करना चाहिए।
(7) योगासन किसी दरी या चटाई पर किए जाएँ। दरी या चटाई किसी समतल जगह पर बिछी होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
योग के लाभों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। अथवा योग अभ्यास का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?
अथवा
योग आसन के मुख्य लाभ लिखें।
उत्तर:
योग धर्म-मजहब से परे की विधा है। जिस तरह से सूर्य अपनी रोशनी करने में किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं करता, उसी प्रकार से योग करके कोई भी इसका लाभ प्राप्त कर सकता है। दुनिया के हर इंसान को योग के लाभ समभाव से प्राप्त होते हैं; जैसे
(1) योग मस्तिष्क को शांत करने का अभ्यास है अर्थात् इससे मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
(2) योग से बीमारियों से छुटकारा मिलता है और हमारे स्वास्थ्य में सुधार होता है।
(3) योग एक साधना है जिससे न सिर्फ शरीर बल्कि मन भी स्वस्थ रहता है।
(4) योग आसन से मानसिक तनाव को भी दूर किया जा सकता है।
(5) योग आसन से सकारात्मक प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
(6) योग आसन तन-मन, चित्त-वृत्ति और स्वास्थ्य-सोच को विकार मुक्त करता है।
(7) योग आसन से आत्मिक सुख एवं शान्ति प्राप्त होती है।
(8) योग आसन से कर्म करने की शक्ति विकसित होती है।

प्रश्न 4.
नियम के भागों को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:
नियम के भाग निम्नलिखित हैं
1. शौच-शौच का अर्थ है-शुद्धता। हमें हमेशा अपना शरीर आंतरिक व बाहरी रूप से साफ व स्वस्थ रखना चाहिए।
2. संतोष-संतोष का अर्थ है-संतुष्टि। हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए जो परमात्मा ने हमें दिया है।
3. तप-हमें प्रत्येक स्थिति में एक-सा व्यवहार करना चाहिए। जीवन में आने वाली मुश्किलों व परिस्थितियों को धैर्यपूर्वक सहन करना तथा लक्ष्य-प्राप्ति की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहना तप कहलाता है।
4. स्वाध्याय-ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों, गीता व अन्य महान् पुस्तकों का निष्ठा भाव से अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है।
5. ईश्वर प्राणीधान-ईश्वर प्राणीधान नियम की महत्त्वपूर्ण अवस्था है। ईश्वर को अपने सभी कर्मों को अर्पित करना ईश्वर प्राणीधान कहलाता है।

प्रश्न 5.
यम क्या है? यम के भागों को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:
यम-यम योग की वह अवस्था है जिसमें सामाजिक व नैतिक गुणों के पालन से इंद्रियों व मन को आत्म-केंद्रित किया जाता है। यह अनुशासन का वह साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन से संबंध रखता है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग करना सीखता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार यम पाँच होते हैं

1. सत्य-सत्य से अभिप्राय मन की शुद्धता या सच बोलने से है। हमें हमेशा अपने विचार, शब्द, मन और कर्म से सत्यवादी होना चाहिए।
2. अहिंसा-मन, वचन व कर्म आदि से किसी को भी शारीरिक-मानसिक स्तर पर कोई हानि या आघात न पहुँचाना अहिंसा कहलाता है। हमें हमेशा हिंसात्मक और नकारात्मक भावनाओं से दूर रहना चाहिए।

प्रश्न 2.
योग करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? अथवा योगासन करते समय ध्यान में रखी जाने वाली मुख्य बातें बताएँ। उत्तर-योगासन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(1) योगासन का अभ्यास प्रातः करना चाहिए। योग करते समय हमेशा नाक से साँस लेनी चाहिए।
(2) योगासन, शान्त जगह पर और खुली हवा में करना चाहिए।
(3) योगासन एकाग्र मन से करना चाहिए। इससे अधिक लाभ होता है।
(4) योगासन करते समय शरीर पर कम-से-कम कपड़े होने चाहिएँ, परन्तु सर्दियों में उचित कपड़े पहनने चाहिएँ।
(5) योगासनों का अभ्यास प्रत्येक आयु में कर सकते हैं, परन्तु अभ्यास करने से पहले किसी अनुभवी व्यक्ति से जानकारी ले लेनी चाहिए।
(6) योगासन खाली पेट करना चाहिए। इसके करने के दो घण्टे पश्चात् भोजन करना चाहिए।
(7) योगासन किसी दरी या चटाई पर किए जाएँ। दरी या चटाई किसी समतल जगह पर बिछी होनी चाहिए।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

प्रश्न 3.
योग के लाभों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
योग अभ्यास का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?
अथवा
योग आसन के मुख्य लाभ लिखें।
उत्तर:
योग धर्म-मजहब से परे की विधा है। जिस तरह से सूर्य अपनी रोशनी करने में किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं करता, उसी प्रकार से योग करके कोई भी इसका लाभ प्राप्त कर सकता है। दुनिया के हर इंसान को योग के लाभ समभाव से प्राप्त होते हैं; जैसे

(1) योग मस्तिष्क को शांत करने का अभ्यास है अर्थात् इससे मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
(2) योग से बीमारियों से छुटकारा मिलता है और हमारे स्वास्थ्य में सुधार होता है।
(3) योग एक साधना है जिससे न सिर्फ शरीर बल्कि मन भी स्वस्थ रहता है।
(4) योग आसन से मानसिक तनाव को भी दूर किया जा सकता है।
(5) योग आसन से सकारात्मक प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
(6) योग आसन तन-मन, चित्त-वृत्ति और स्वास्थ्य-सोच को विकार मुक्त करता है।
(7) योग आसन से आत्मिक सुख एवं शान्ति प्राप्त होती है।
(8) योग आसन से कर्म करने की शक्ति विकसित होती है।

प्रश्न 4.
नियम के भागों को सूचीबद्ध करें। उत्तर-नियम के भाग निम्नलिखित हैं

1. शौच-शौच का अर्थ है-शुद्धता। हमें हमेशा अपना शरीर आंतरिक व बाहरी रूप से साफ व स्वस्थ रखना चाहिए।
2. संतोष-संतोष का अर्थ है-संतुष्टि। हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए जो परमात्मा ने हमें दिया है।
3. तप-हमें प्रत्येक स्थिति में एक-सा व्यवहार करना चाहिए। जीवन में आने वाली मुश्किलों व परिस्थितियों को धैर्यपूर्वक सहन करना तथा लक्ष्य-प्राप्ति की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहना तप कहलाता है।
4. स्वाध्याय-ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों, गीता व अन्य महान् पुस्तकों का निष्ठा भाव से अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है।
5. ईश्वर प्राणीधान-ईश्वर प्राणीधान नियम की महत्त्वपूर्ण अवस्था है। ईश्वर को अपने सभी कर्मों को अर्पित करना ईश्वर प्राणीधान कहलाता है।

प्रश्न 5.
यम क्या है? यम के भागों को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:
यम-यम योग की वह अवस्था है जिसमें सामाजिक व नैतिक गुणों के पालन से इंद्रियों व मन को आत्म-केंद्रित किया जाता है। यह अनुशासन का वह साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन से संबंध रखता है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग करना सीखता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार यम पाँच होते हैं

1. सत्य-सत्य से अभिप्राय मन की शुद्धता या सच बोलने से है। हमें हमेशा अपने विचार, शब्द, मन और कर्म से सत्यवादी होना चाहिए।
2. अहिंसा-मन, वचन व कर्म आदि से किसी को भी शारीरिक-मानसिक स्तर पर कोई हानि या आघात न पहुँचाना अहिंसा कहलाता है। हमें हमेशा हिंसात्मक और नकारात्मक भावनाओं से दूर रहना चाहिए।
3. अस्तेय-मन, वचन व कर्म से दूसरों की कोई वस्तु या चीज न चाहना या चुराना अस्तेय कहलाता है।
4. अपरिग्रह-इंद्रियों को प्रसन्न रखने वाले साधनों तथा धन-संपत्ति का अनावश्यक संग्रह न करना, कम आवश्यकताओं व इच्छाओं के साथ जीवन व्यतीत करना, अपरिग्रह कहलाता है। हमें कभी भी न तो गलत तरीकों से धन कमाना चाहिए और न ही एकत्रित करना चाहिए।
5. ब्रह्मचर्य-यौन संबंधों में नियंत्रण, चारित्रिक संयम ब्रह्मचर्य है। इसके अंतर्गत हमें कामवासना का पूर्णतः त्याग करना पड़ता है।

प्रश्न 6.
योग का आध्यात्मिक विकास (Spiritual Development): में क्या महत्त्व है? अथवा व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में योग की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
योग का अर्थ है-व्यक्ति की आत्मा को परमात्मा की चेतना या सार्वभौमिक आत्मा के साथ जोड़ना। योग तन, मन और आत्मा को एक साथ लाने का कार्य करता है। योग का अभ्यास मन को परमात्मा पर केंद्रित करता है और आत्मिक शांति प्रदान करता है। इसके द्वारा ईश्वर या परमात्मा को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास किया जाता है। योग को नियमित रूप से करने से व्यक्ति को अपने मन पर नियंत्रण प्राप्त करने की योग्यता या क्षमता प्राप्त होती है। मन की शुद्धता एवं स्वच्छता से उसे परमात्मा की ओर लगाया जा सकता है। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जैसे आग में तपाते-तपाते लोहा आग जैसा ही हो जाता है, वैसे ही निरंतर योग का अभ्यास करने से योगी स्वयं को भूलकर परमात्मा में लीन हो जाता है। उसको परमात्मा के अलावा कुछ भी याद नहीं रहता। इस प्रकार योग आध्यात्मिक विकास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। आध्यात्मिक विकास हेतु व्यक्ति को योग के साथ-साथ पद्मासन व सिद्धासन आदि भी करने चाहिएँ।

प्रश्न 7.
हमारे जीवन के लिए योग क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर:
योग उन्नति का द्योतक है। यह चाहे शारीरिक उन्नति हो या आध्यात्मिक। अध्यात्म की मान्यताओं की बात करें तो यह कहा जाता है कि संसार पाँच महाभूतों/तत्त्वों; जैसे पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और वायु के मिश्रण या संयोग से बना है। हमारा शरीर भी पाँच महाभूतों के संयोग से बना है। अत: योग विकास का मूल मंत्र है जिससे हमारे अंतस्थ की उन्नति संभव है। योग से मन की एकाग्रता को बढ़ाया जाता है। योग हमारे भीतर की चेतना को जगाकर हमें ऊर्जावान एवं हृष्ट-पुष्ट बनाता है। योग मन को मौन करने की प्रक्रिया है। जब यह संभव हो जाता है, तब हमारा मूल प्राकृतिक स्वरूप सामने आता है। अतः आज हमारे जीवन के लिए योग बहुत आवश्यक है।

प्रश्न 8.
सूर्य नमस्कार क्या है?
उत्तर:
‘सूर्य’ से अभिप्राय है-‘सूरज’ और ‘नमस्कार’ से अभिप्राय है-‘प्रणाम करना’। इससे अभिप्राय है कि क्रिया करते हुए सूरज को प्रणाम करना। यह एक आसन नहीं है बल्कि कई आसनों का मेल है तथा शरीर और मन को स्वस्थ रखने का उत्तम तरीका है। प्रतिदिन सूर्य को नमस्कार करने से व्यक्ति में बल और बुद्धि का विकास होता है और इसके साथ व्यक्ति की उम्र भी बढ़ती है। सूर्य उदय के समय सूर्य नमस्कार करना अति उत्तम होता है, क्योंकि यह समय पूर्ण रूप से शांतिमय होता है। …

प्रश्न 9.
योग के रक्षात्मक एवं चिकित्सीय प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
योग के बचावात्मक व उपचारात्मक प्रभावों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
योग एंक शारीरिक व्यायाम ही नहीं, बल्कि जीवन का दर्शनशास्त्र भी है। यह वह क्रिया है जो शारीरिक क्रियाओं तथा . आध्यात्मिक क्रियाओं में संतुलन बनाए रखती है। वर्तमान भौतिक समाज आध्यात्मिक शून्यता के बिना रह रहा है, जहाँ योग सहायता कर सकता है। आधुनिक समय में योग के निम्नलिखित उपचार तथा रोकथाम संबंधी प्रभाव पड़ते हैं

(1) योग पेट तथा पाचन तंत्र की अनेक बीमारियों की रोकथाम में सहायता करता है।
(2) योग क्रियाओं के द्वारा कफ़, वात व पित्त का संतुलन बना रहता है।
(3) यौगिक क्रियाएँ शारीरिक अंगों को शुद्ध करती हैं तथा साधक के स्वास्थ्य में सुधार लाती हैं।
(4) योग के माध्यम से मानसिक शांति व स्व-नियंत्रण उत्पन्न होता है। योग से मानसिक शांति तथा संतुलन बनाए रखा जा सकता है।
(5) योग अनेक मुद्रा-विकृतियों को ठीक करने में सहायता करता है।
(6) नियमित व निरंतर यौगिक क्रियाएँ, मस्तिष्क के उच्चतर केंद्रों को उद्दीप्त करती हैं, जो विभिन्न प्रकार के विकारों की रोकथाम करते हैं।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

प्रश्न 10.
प्राणायाम करने की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राणायाम श्वास पर नियंत्रण करने की एक विधि है। प्राणायाम की तीन अवस्थाएँ होती हैं-
(1) पूरक (श्वास को अंदर खींचना),
(2) रेचक (श्वास को बाहर निकालना),
(3) कुंभक (श्वास को कुछ देर अंदर रोकना)।

प्राणायाम में श्वास अंदर की ओर खींचकर रोक लिया जाता है और कुछ समय रोकने के पश्चात् फिर श्वास बाहर निकाला जाता है। इस तरह श्वास को धीरे-धीरे नियंत्रित करने का समय बढ़ा लिया जाता है। अपनी बाईं नाक को बंद करके दाईं नाक द्वारा श्वास खींचें और थोड़े समय तक रोक कर छोडें। इसके पश्चात् दाईं नाक बंद करके बाईं नाक द्वारा पूरा श्वास बाहर निकाल दें। अब फिर दाईं नाक को बंद करके बाईं नाक द्वारा श्वास खींचें और थोड़े समय तक रोक कर छोडें। इसके पश्चात् दाईं नाक बंद करके पूरा श्वास बाहर निकाल दें। इस प्रकार इस प्रक्रिया को कई बार दोहराना चाहिए।

प्रश्न 11.
प्राणायाम की महत्ता पर टिप्पणी कीजिए।
अथवा
प्राणायाम की आवश्यकता एवं महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में श्री श्री रविशंकर जी ने जीवन जीने की जो शैली सुझाई है, वह प्राणायाम पर आधारित है। आधुनिक जीवन में प्राणायाम की आवश्यकता एवं महत्त्व निम्मलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाती है
(1) प्राणायाम से शरीर का रक्तचाप व तापमान सामान्य रहता है।
(2) इससे रक्त के तेज़ दबाव से नाड़ी संस्थान की शक्ति में वृद्धि होती है।
(3) इससे मानसिक तनाव व चिंता दूर होती है। इससे आध्यात्मिक व मानसिक विकास में मदद मिलती है।
(4) इससे आँखों व चेहरे में चमक आती है और आवाज़ मधुर हो जाती है।
(5) इससे फेफड़ों का आकार बढ़ता है और श्वास की बीमारियों तथा गले, मस्तिष्क की बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
(6) इससे इच्छा-शक्ति व स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
(7) प्राणायाम करने से पेट तथा छाती की मांसपेशियाँ मज़बूत बनती हैं।

प्रश्न 12.
योग और प्राणायाम में अंतर स्पष्ट कीजिए। उत्तर-योग और प्राणायाम में निम्नलिखित अंतर हैं
(1) योग एक व्यापक विधा है जबकि प्राणायाम योग का ही एक अंग है।
(2) योग केवल शारीरिक व्यायामों व आसनों की एक प्रणाली ही नहीं, बल्कि यह संपूर्ण और भरपूर जीवन जीने की कला भी है। यह शरीर और मन का मिलन है। प्राणायाम श्वास लेने व छोड़ने की विभिन्न विधियों का संग्रह है।
(3) नियमित योग करने से विभिन्न प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं तथा शरीर में रक्त प्रवाह उचित रहता है। नियमित प्राणायाम से शरीर की विभिन्न कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है। प्राणायाम दमा, सर्दी-जुकाम, गले के रोगों आदि को दूर करने में विशेष रूप से लाभदायक है।

प्रश्न 13.
शवासन करने की विधि बताइए।
उत्तर:
शवासन में शव + आसन शब्दों का मेल है। शव का अर्थ है-मृत शरीर और आसन का अर्थ है-मुद्रा। अतः इस आसन में शरीर मृत शरीर जैसा लगता है, इसलिए इसको शवासन कहा जाता है।
सबसे पहले फर्श पर पीठ के बल सीधे लेट जाएँ। हाथों को आराम की अवस्था में शरीर से कुछ दूरी पर रखें। हथेलियाँ ऊपर की ओर रखें। पैरों के बीच 1 या 2 फुट दूरी रखें। आँखें धीरे-धीरे बंद करें और लयात्मक व यौगिक श्वसन क्रिया करें। श्वसन और आत्मा पर ध्यान केंद्रित करें। इस आसन का अभ्यास प्रत्येक आसन के शुरू में एवं अंत में करना बहुत लाभदायक होता है।
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व
शवासन

प्रश्न 14.
पश्चिमोत्तानासन की विधि तथा इसके लाभ बताइए।
उत्तर:
विधि-सर्वप्रथम, हम दोनों पैरों को आगे की ओर खींचेंगे, जबकि हम फर्श पर बैठे होंगे। तत्पश्चात् पैरों के दोनों अंगूठों को हाथों से पकड़ते हुए धीरे-धीरे श्वास को छोड़ेंगे तथा मस्तक को घुटनों के साथ लगाने का प्रयास करेंगे। फिर, धीरे-धीरे साँस लेते हुए और सिर को ऊपर उठाते हुए, हम पहले वाली स्थिति में लौट आएंगे। पश्चिमोत्तानासन
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लाभ – (1) यह आसन जाँघों को सशक्त बनाता है।
(2) इससे रीढ़ की हड्डी में लचक आती है।
(3) इससे मोटापा घटता है।

प्रश्न 15.
अष्टांग योग में ध्यान का क्या महत्त्व है?
अथवा
ध्यान के हमारे लिए क्या-क्या लाभ हैं? उत्तर-ध्यान के हमारे लिए लाभ या महत्त्व निम्नलिखित हैं
(1) ध्यान हमारे भीतर की शुद्धता के ऊपर पड़े क्रोध, ईर्ष्या, लोभ, कुंठा आदि के आवरणों को हटाकर हमें सकारात्मक बनाता है।
(2) ध्यान से हमें शान्ति एवं प्रसन्नता की प्राप्ति होती है।
(3) ध्यान सर्वस्व प्रेम की भावना एवं सृजन शक्ति को जगाता है।
(14) ध्यान से मन शान्त एवं शुद्ध होता है।

प्रश्न 16.
खिलाड़ियों के लिए योग किस प्रकार लाभदायक है? एक खिलाड़ी की योग किस प्रकार सहायता करता है?
उत्तर:
खिलाड़ियों के लिए योग निम्नलिखित प्रकार से लाभदायक है
(1) योग खिलाड़ियों को स्वस्थ एवं चुस्त रखने में सहायक होता है।
(2) योग से उनके शरीर में लचीलापन आ जाता है।
(3) योग से उनकी क्षमता एवं शक्ति में वृद्धि होती है।
(4) योग उनके मानसिक तनाव को भी कम करने में सहायक होता है।
(5) योग उनके मन की एकाग्रता को बढ़ाता है। इसके फलस्वरूप वह अपने संवेगों को नियंत्रण में रख सकते हैं।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
योग क्या है? अथवा योग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की मूल धातु ‘युज’ से हुई है जिसका अर्थ है-जोड़ या एक होना। जोड़ या एक होने का अर्थ है-व्यक्ति की आत्मा को ब्रह्मांड या परमात्मा की चेतना या सार्वभौमिक आत्मा के साथ जोड़ना। महर्षि पतंजलि (योग के पितामह) के अनुसार, ‘युज’ धातु का अर्थ है-ध्यान-केंद्रण या मनःस्थिति को स्थिर करना और आत्मा का परमात्मा से ऐक्य । साधारण शब्दों में, योग व्यक्ति की आत्मा का परमात्मा से मिलन का नाम है।

प्रश्न 2.
योग को परिभाषित कीजिए।
अथवा
‘श्रीमद्वद् गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण ने योग के बारे में क्या कहा है? उत्तर-योग छिपी हुई शक्तियों का विकास करता है। यह धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान तथा शारीरिक सभ्यता का समूह है।
1. श्रीमद्भगवद्गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण ने योग के बारे में कहा है, “योगकर्मसुकौशलम्” अर्थात् कर्म को कुशलतापूर्वक करना ही योग है।
2. महर्षि पतंजलि ने योग के संबंध में कहा-“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” अर्थात् चित्तवृत्तियों को रोकने का नाम योग है।

प्रश्न 3.
योग का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
योग का उद्देश्य आत्मा का परमात्मा से मिलाप करवाना है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर को नीरोग, फुर्तीला रखना और छिपी हुई शक्तियों का विकास करके, मन को जीतना है। यह शरीर, मन तथा आत्मा की आवश्यकताएँ पूर्ण करने का एक अच्छा साधन है।

प्रश्न 4.
योग के कोई दो सिद्धांत लिखें।
उत्तर:
(1) योगासन एकाग्र मन से करना चाहिए, इससे अधिक लाभ होता है।
(2) योगासन का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।

प्रश्न 5.
योग के प्रमुख प्रकारों का नामोल्लेख कीजिए। अथवा योग को किस प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है?
उत्तर
भारतीय दर्शन शास्त्रों में 40 प्रकार के योगों का उल्लेख है। श्रीमद्भगवद् गीता में 18 प्रकार के योगों का वर्णन किया गया है। योग के इन विभिन्न प्रकारों में से प्रमुख प्रकार हैं
(1) कर्म योग,
(2) राज योग,
(3) ज्ञान योग,
(4) ध्यान योग
(5) सांख्य योग,
(6) हठ योग,
(7) कुंडलिनी योग,
(8) समाधि योग,
(9) नित्य योग,
(10) भक्ति योग,
(11) नाद योग,
(12) अष्टांग योग,
(13) बुद्धि योग,
(14) मन्त्र योग आदि।

प्रश्न 6.
योग को पूर्ण तंदुरुस्ती का साधन क्यों माना जाता है?
उत्तर:
योगाभ्यास को पूर्ण तंदुरुस्ती का साधन माना जाता है, क्योंकि इस अभ्यास द्वारा जहाँ शारीरिक शक्ति या ऊर्जा पैदा होती है, वहीं मानसिक शक्ति का भी विकास होता है। इस अभ्यास द्वारा शरीर की आंतरिक सफाई और शुद्धि की जा सकती है। व्यक्ति मानसिक तौर पर संतुष्ट, संयमी और त्यागी हो जाता है जिस कारण वह सांसारिक उलझनों से बचा रहता है।

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प्रश्न 7.
योग के कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर:
(1) मानसिक व आत्मिक शांति व प्रसन्नता प्राप्त होना,
(2) शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य हेतु लाभदायक।

प्रश्न 8.
विद्यार्थियों के लिए योग व प्राणायाम क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर:
योग चित्तवृत्तियों को रोकने का नाम है और प्राणायाम श्वास पर नियंत्रण व नियमन करने की प्रक्रिया है। विद्यार्थी जीवन में मन चंचल होता है और उन्हें ज्ञान अर्जित करने हेतु स्मरण शक्ति की विशेष आवश्यकता होती है। योग व प्राणायाम से मन को एकाग्र करके स्मरण-शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही उनका शारीरिक और मानसिक विकास किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
योगासन करते समय श्वास क्रिया किस प्रकार करनी चाहिए?
उत्तर:
योगासन करते समय श्वास नाक द्वारा लें। आसन आरंभ करते समय फेफड़ों की अंदरुनी सारी हवा बाहर निकाल दें, इससे आसन आरंभ करने में सरलता होगी। हवा बाहर निकालने के उपरांत श्वास क्रिया रोकने का अभ्यास अवश्य करना चाहिए।

प्रश्न 10.
प्राणायाम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राणायाम में दो शब्द हैं-प्राण व आयाम। प्राण का अर्थ है-श्वास और आयाम का अर्थ है-नियंत्रण व नियमन । इस प्रकार जिसके द्वारा श्वास के नियंत्रण व नियमन का अभ्यास किया जाता है, उसे प्राणायाम कहते हैं अर्थात् साँस को अंदर ले जाने व बाहर निकालने पर उचित नियंत्रण रखना ही प्राणायाम है।

प्रश्न 11.
ध्यानात्मक आसन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ध्यानात्मक आसन वे आसन होते हैं जिनको करने से व्यक्ति की ध्यान करने की क्षमता विकसित होती है अर्थात् ध्यान करने की शक्ति बढ़ती है। इस प्रकार के आसन बहुत ही सावधानीपूर्वक करने चाहिएँ। इनको शांत एवं स्वच्छ वातावरण में स्थिर होकर ही करना चाहिए।

प्रश्न 12.
अष्टांग योग का क्या अर्थ है? अथवा अष्टांग योग से क्या भाव है?
उत्तर:
महर्षि पतंजलि ने ‘योग-सूत्र’ में जिन आठ अंगों का उल्लेख किया है, उन्हें ही अष्टांग योग कहा जाता है। अष्टांग योग का अर्थ है-योग के आठ पथ या अंग। वास्तव में योग के आठ पथ योग की आठ अवस्थाएँ (Stages) होती हैं जिनका पालन करते हुए व्यक्ति की आत्मा या जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हो सकता है। अष्टांग योग का अनुष्ठान करने से अशुद्धि का नाश होता है, जिससे ज्ञान का प्रकाश चमकता है और विवेक (ख्याति) की प्राप्ति होती है। .

प्रश्न 13.
आरामदायक या विश्रामात्मक आसन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आरामदायक आसन वे आसन हैं जो कि शरीर को पूरी तरह आराम की स्थिति में लाकर शरीर के सभी अंग दिमाग और मन को शांत करते हैं। विश्रामात्मक आसन करने से शारीरिक एवं मानसिक थकावट दूर होती है और शरीर को पूर्ण विश्राम मिलता है।

प्रश्न 14.
अष्टांग योग में आसन का क्या भाव है?
अथवा
आसन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जिस अवस्था में शरीर ठीक से बैठ सके, वह आसन है।आसन का अर्थ है-बैठना। योग की सिद्धि के लिए उचित आसन में बैठना बहुत आवश्यक है। महर्षि पतंजलि के अनुसार, “स्थिर सुख आसनम्।” अर्थात् जिस रीति से हम स्थिरतापूर्वक, बिना हिले-डुले और सुख के साथ बैठ सकें, वह आसन है। ठीक मुद्रा में रहने से मन शांत रहता है। आसन करने से शरीर और दिमाग दोनों चुस्त रहते हैं।

प्रश्न 15.
अष्टांग योग में नियम का क्या भाव है?
उत्तर:
अष्टांग योग में नियम से अभिप्राय व्यक्ति द्वारा समाज स्वीकृत नियमों के अनुसार ही आचरण करना है। जो व्यक्ति नियमों के विरुद्ध आचरण करता है, समाज उसे सम्मान नहीं देता। इसके विपरीत जो व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत नियमों के अनुसार आचरण करता. है, समाज उसको सम्मान देता है। नियम के पाँच भाग होते हैं। इन पर अमल करके व्यक्ति परमात्मा को पा लेता है।

प्रश्न 16.
अष्टांग योग में प्रत्याहार से क्या भाव है?
उत्तर:
अष्टांग योग प्रत्याहार से अभिप्राय ज्ञानेंद्रियों व मन को अपने नियंत्रण में रखने से है। साधारण शब्दों में, प्रत्याहार का अर्थ है-मन व इन्द्रियों को उनकी संबंधित क्रियाओं से हटकर परमात्मा की ओर लगाना है।

प्रश्न 17.
अष्टांग योग में समाधि से क्या भाव है?
उत्तर:
समाधि योग की वह अवस्था है जिसमें साधक को स्वयं का भाव नहीं रहता। वह पूर्ण रूप से अचेत अवस्था में होता है। इस अवस्था में वह उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है जहाँ आत्मा व परमात्मा का मिलन होता है।

प्रश्न 18.
अष्टांग योग में यम से क्या भाव है?
उत्तर:
यम योग की वह अवस्था है जिसमें सामाजिक व नैतिक गुणों के पालन से इंद्रियों व मन को आत्म-केंद्रित किया जाता है। यह अनुशासन का वह साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन से संबंध रखता है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग करना सीखता है।

प्रश्न 19.
प्राणायाम के शारीरिक मूल्य क्या हैं?
उत्तर:
प्राणायाम के मुख्य शारीरिक मूल्य हैं-प्राणायाम करने से शारीरिक कार्यकुशलता का विकास होता है। इससे मोटापा नियंत्रित होता है। इससे आँखों व चेहरे पर चमक आती है और शारीरिक मुद्रा (Posture) सही रहती है। .

प्रश्न 20.
आसन कितनी देर तक करने चाहिएँ?
उत्तर:
एक आसन की पूर्ण स्थिति दो मिनट से पाँच मिनट तक बनाकर रखनी चाहिए। आरंभ में आसन शारीरिक क्षमता के अनुसार किए जा सकते हैं। प्रत्येक आसन के पश्चात् और कुल आसन करने के पश्चात् विश्राम का अंतर अवश्य लेना चाहिए।

प्रश्न 21.
पी०टी० (P.T.) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पी०टी० (PT.) को अंग्रेजी में ‘Physical Theraphy’ या ‘Physical Training’ अर्थात् शारीरिक चिकित्सा या परीक्षण कहते हैं। शारीरिक चिकित्सा या परीक्षण संबंधित कसरतें समूह या व्यक्तिगत दोनों रूपों में की जाती हैं। इस प्रकार की कसरतों में किसी भी प्रकार के सामान या उपकरण की आवश्यकता नहीं होती।

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प्रश्न 22.
किन-किन परिस्थितियों में आसन करना वर्जित है?
उत्तर:
निम्नलिखित परिस्थितियों में आसन करना वर्जित है
(1) गर्भावस्था में आसन नहीं करना चाहिए।
(2) बीमारी व कमजोरी में आसन नहीं करना चाहिए।
(3) हृदय रोगियों व उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों को आसन नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 23.
प्राणायाम के आधार या चरण बताएँ। अथवा प्राणायाम की अवस्थाओं के नाम बताएँ।
उत्तर:
प्राणायाम के आधार या चरण निम्नलिखित हैं
(1) पूरक: श्वास को अंदर खींचने की प्रक्रिया को पूरक (Inhalation) कहते हैं।
(2) रेचक: श्वास को बाहर निकालने की क्रिया को रेचक (Exhalation) कहते हैं।
(3) कुंभक: श्वास को अंदर खींचकर कुछ समय तक अंदर ही रोकने की क्रिया को कुंभक (Holding of Breath) कहते हैं।

प्रश्न 24.
पद्मासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है।
(2) इसे करने से घुटनों के जोड़ों का दर्द दूर होता है।

प्रश्न 25.
शलभासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) शलभासन से रक्त-संचार क्रिया सही रहती है।
(2) इससे रीढ़ की हड्डी में लचक आती है।

प्रश्न 26.
चक्रासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) इससे पेट की चर्बी कम होती है।
(2) इससे पेट की बीमारियाँ दूर होती हैं।

प्रश्न 27.
शवासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) शवासन से रक्तचाप ठीक रहता है,
(2) इससे तनाव, निराशा व थकान दूर होती है।

प्रश्न 28.
ताड़ासन के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) ताड़ासन से शरीर का मोटापा कम होता है,
(2) इससे कब्ज दूर होती है।

प्रश्न 29.
सर्वांगासन के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) सर्वांगासन से कब्ज दूर होती है,
(2) इससे भूख बढ़ती है और पाचन क्रिया ठीक रहती है।

प्रश्न 30.
धनुरासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) यह कब्ज, अपच, और जिगर की गड़बड़ी को दूर करने में लाभकारी होता है,
(2) इससे रीढ़ की हड्डी को मजबूती मिलती है।

प्रश्न 31.
शीर्षासन के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) शीर्षासन से मोटापा कम होता है,
(2) इससे स्मरण-शक्ति बढ़ती है।

प्रश्न 32.
मयूरासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) यह कब्ज एवं अपच को दूर करता है,
(2) यह आँखों के दोषों को दूर करने में उपयोगी होता है।

प्रश्न 33.
सिद्धासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) इससे मन एकाग्र रहता है,
(2) यह मानसिक तनाव को दूर करता है।

प्रश्न 34.
मत्स्यासन के कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर:
(1) इससे माँसपेशियों में लचकता बढ़ती है,
(2) इससे पीठ की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं।

प्रश्न 35.
भुजंगासन के कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर:
(1) यह रीढ़ की हड्डी में लचक बढ़ाता है
(2) यह रक्त संचार को तेज करता है।

प्रश्न 36.
मोटापे को कम करने के किन्हीं चार आसनों के नाम बताइए।
उत्तर:
(1) त्रिकोणासन,
(2) पद्मासन,
(3) भुजंगासन,
(4) पश्चिमोत्तानासन।

HBSE 9th Class Physical Education योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से हुई?
उत्तर:
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई।

प्रश्न 2.
महर्षि पतंजलि के अनुसार योग क्या है?
उत्तर:
महर्षि पतंजलि के अनुसार-“मनोवृत्ति के विरोध का नाम योग है।”

प्रश्न 3.
भारत में योग का इतिहास कितना पुराना है?
उत्तर:
भारत में योग का इतिहास लगभग 3000 ईसा पूर्व पुराना है।

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प्रश्न 4.
प्रसिद्ध योगी पतंजलि ने योग की कितनी अवस्थाओं का वर्णन किया है?
उत्तर:
प्रसिद्ध योगी पतंजलि ने योग की आठ अवस्थाओं का वर्णन किया है।

प्रश्न 5.
किस आसन से स्मरण शक्ति बढ़ती है?
अथवा
बुद्धि और याददाश्त किस आसन से बढ़ते हैं?
उत्तर:
स्मरण शक्ति या बुद्धि और याददाश्त शीर्षासन से बढ़ते हैं।

प्रश्न 6.
अष्टांग योग की रचना किसके द्वारा की गई?
उत्तर:
अष्टांग योग की रचना महर्षि पतंजलि द्वारा की गई।

प्रश्न 7.
अष्टांगयोग में यम के अभ्यास द्वारा व्यक्ति क्या सीखता है?
उत्तर:
यम का अभ्यास व्यक्ति को अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता और त्याग करना सीखाता है।

प्रश्न 8.
अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में रखने को क्या कहते हैं?
उत्तर:
अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में रखने को प्रत्याहार कहते हैं।

प्रश्न 9.
श्वास पर नियंत्रण रखने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर:
श्वास पर नियंत्रण रखने की प्रक्रिया को प्राणायाम कहते हैं।

प्रश्न 10.
“योग कर्मसु कौशलम्।” योग की यह परिभाषा किसने दी?
उत्तर:
योग की यह परिभाषा भगवान् श्रीकृष्ण ने दी।

प्रश्न 11.
“योग समाधि है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन महर्षि वेदव्यास का है।

प्रश्न 12.
योग आत्मा किसे कहा जाता है?
उत्तर:
योग आत्मा प्राणायाम को कहा जाता है।

प्रश्न 13.
आसन कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर;
आसन तीन प्रकार के होते हैं
(1) ध्यानात्मक आसन,
(2) विश्रामात्मक आसन,
(3) संवर्धनात्मक आसन।

प्रश्न 14.
रेचक किसे कहते हैं?
उत्तर:
श्वास को बाहर निकालने की क्रिया को रेचक कहते हैं।

प्रश्न 15.
पूरक किसे कहते हैं?
उत्तर:
श्वास को अंदर खींचने की क्रिया को पूरक कहते हैं।

प्रश्न 16.
कुम्भक किसे कहते हैं?
उत्तर:
श्वास को अंदर खींचकर कुछ समय तक अंदर ही रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। \

प्रश्न 17.
‘वज्रासन’ कब करना चाहिए?
उत्तर:
वज्रासन भोजन करने के बाद करना चाहिए।

प्रश्न 18.
योग का जन्मदाता किस देश को माना जाता है?
उत्तर:
योग का जन्मदाता भारत को माना जाता है।

प्रश्न 19.
प्राणायाम में कितनी अवस्थाएँ होती हैं? उत्तर-प्राणायाम में तीन अवस्थाएँ होती हैं।

प्रश्न 20.
अभ्यास करते समय श्वास किससे लेना चाहिए?
उत्तर:
अभ्यास करते समय श्वास नाक से लेना चाहिए।

प्रश्न 21.
मधुमेह रोग को ठीक करने वाले किन्हीं दो आसनों के नाम बताइए।
उत्तर;
(1) शलभासन,
(2) वज्रासन।

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प्रश्न 22.
किस आसन से बुढ़ापा दूर होता है?
उत्तर:
चक्रासन आसन से बुढ़ापा दूर होता है।

प्रश्न 23.
एक आसन करने के पश्चात् दूसरा कौन-सा आसन करना चाहिए? उत्तर-एक आसन करने के पश्चात् दूसरा आसन पहले आसन के विपरीत करना चाहिए; जैसे धनुरासन के बाद पश्चिमोत्तानासन करना।

प्रश्न 24.
योग किसकी प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है?
उत्तर:
योग स्व-विश्वास और आंतरिक शांति की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।

प्रश्न 25.
किन्हीं चार आसनों के नाम लिखें।
उत्तर:
(1) हलासन,
(2) धनुरासन,
(3) भुजंगासन,
(4) ताड़ासन।

प्रश्न 26.
यौगिक व्यायाम में किस प्रकार के कपड़े पहनने चाहिएँ?
उत्तर:
यौगिक व्यायाम करते समय हल्के कपड़े पहनने चाहिएँ।

प्रश्न 27.
भुजंगासन में शरीर की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
भुजंगासन में शरीर की स्थिति फनियर सर्प के आकार जैसी होती है।

प्रश्न 28.
कौन-सा आसन करने से मधुमेह रोग नहीं होता?
उत्तर:
शलभासन करने से मधुमेह रोग नहीं होता।

प्रश्न 29.
आसन करने वाली जगह कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
आसन करने वाली जगह साफ-सुथरी और हवादार होनी चाहिए।

प्रश्न 30.
योग के आदि गुरु कौन हैं?
उत्तर:
योग के आदि गुरु महर्षि पतंजलि हैं।

प्रश्न 31.
योग अभ्यास करने से शरीर में कौन-सी शक्तियाँ आती हैं?
उत्तर;
योग अभ्यास करने से शरीर में एकाग्रता, सहनशीलता, सहजता, संयमता, त्याग और अहिंसा जैसी शक्तियों का विकास होता है। .

प्रश्न 32.
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है।

प्रश्न 33.
पद्मासन में कैसे बैठा जाता है?
उत्तर:
पद्मासन में टाँगों की चौकड़ी लगाकर बैठा जाता है।

प्रश्न 34.
ताड़ासन में शरीर की स्थिति कैसी होनी चाहिए?
उत्तर;
ताड़ासन में शरीर की स्थिति ताड़ के वृक्ष जैसी होनी चाहिए।

प्रश्न 35.
शीर्षासन में शरीर की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
शीर्षासन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते हैं।

प्रश्न 36.
शवासन में शरीर की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
शवासन में पीठ के बल सीधा लेटकर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ा जाता है।

प्रश्न 37.
पेट के बल किए जाने वाले आसन का नाम बताइए।
उत्तर:
धनुरासन पेट के बल किए जाने वाले आसन है।

प्रश्न 38.
क्या योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है?
उत्तर:
हाँ, योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का कार्य होता है।

प्रश्न 39.
सांसारिक चिन्ताओं से छुटकारा पाने के उत्तम साधन कौन-से हैं?
उत्तर:
सांसारिक चिन्ताओं से छुटकारा पाने के उत्तम साधन योग एवं ध्यान हैं।

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प्रश्न 40.
भारतीय व्यायाम की प्राचीन विधा कौन-सी है?
उत्तर:
भारतीय व्यायाम की प्राचीन विधा योग आसन है।

प्रश्न 41.
योग व्यक्ति को किस प्रकार का बनाता है?
उत्तर:
योग व्यक्ति को शक्तिशाली, नीरोग और बुद्धिमान बनाता है।

प्रश्न 42.
योग किन मानसिक व्यधाओं या रोगों का इलाज है?
उत्तर :
योग तनाव, चिन्ताओं और परेशानियों का इलाज है।

प्रश्न 43.
योग आसन कब नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
किसी बीमारी की स्थिति में योग आसन नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 44.
कब्ज दूर करने में कौन-से आसन अधिक लाभदायक हैं? \
उत्तर:
(1) गरुड़ासन,
(2) चक्रासन,
(3) ताड़ासन,
(4) सर्वांगासन।

प्रश्न 45.
शवासन कब करना चाहिए?
उत्तर:
प्रत्येक आसन करने के उपरान्त शरीर को ढीला करने के लिए शवासन करना चाहिए।

प्रश्न 46.
प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कब मनाया गया?
उत्तर:
21 जून, 2015 को प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।

प्रश्न 47.
पेट की बीमारियाँ दूर करने में सहायक कोई दो आसन बताएँ।
उत्तर :
(1) चक्रासन,
(2) हलासन।।

प्रश्न 48.
हमारे ऋषि मुनि किन क्रियाओं द्वारा शारीरिक शिक्षा का उपयोग करते थे?
उत्तर:
योग क्रियाओं द्वारा।

प्रश्न 49.
21 जून, 2019 को कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया?
उत्तर:
21 जून, 2019 को पाँचवाँ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।

प्रश्न 50.
योग के विभिन्न पहलू बताएँ।
उत्तर:
(1) आसन,
(2) प्राणायाम,
(3) प्राण।

प्रश्न 51.
‘प्राणायाम’ किस भाषा का शब्द है?
उत्तर:
‘प्राणायाम’ संस्कृत भाषा का शब्द है।

प्रश्न 52.
राज योग, अष्टांग योग, कर्म योग क्या हैं?

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

उत्तर:
राज योग, अष्टांग योग, कर्म योग, योग के प्रकार हैं।

प्रश्न 53.
‘योग-सूत्र’ पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
‘योग-सूत्र’ पुस्तक महर्षि पतंजलि ने लिखी।

प्रश्न 54.
योग किन शक्तियों का विकास करता है?
उत्तर:
योग व्यक्तियों में मौजूद आंतरिक शक्तियों का विकास करता है।

प्रश्न 55.
योग किसका मिश्रण है?
उत्तर:
योग धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान और शारीरिक सभ्यता का मिश्रण है।

प्रश्न 56.
योग से किस पर नियंत्रण होता है? .
उत्तर:
योग से मनो-भौतिक विकारों पर नियंत्रण होता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न [Multiple Choice Questions]

प्रश्न 1.
‘युज’ का क्या अर्थ है?
(A) जुड़ना
(B) एक होना
(C) मिलन अथवा संयोग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
“मनोवृत्ति के विरोध का नाम ही योग है।” यह परिभाषा दी
(A) महर्षि पतंजलि ने
(B) महर्षि वेदव्यास ने
(C) भगवान् श्रीकृष्ण ने
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) महर्षि पतंजलि ने

प्रश्न 3.
प्रसिद्ध योगी पतंजलि ने योग की कितनी अवस्थाओं का वर्णन किया है?
(A) पाँच
(B) आठ
(C) सात
(D) चार
उत्तर:
(B) आठ

प्रश्न 4.
योग आत्मा कहा जाता है-
(A) आसन को
(B) प्राणायाम को
(C) प्राण को
(D) व्यायाम को
उत्तर :
(B) प्राणायाम को

प्रश्न 5.
श्वास को अंदर खींचने की क्रिया को कहते हैं
(A) पूरक
(B) कुंभक
(C) रेचक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) पूरक

प्रश्न 6.
श्वास को अंदर खींचने के कुछ समय पश्चात् श्वास को अंदर ही रोकने की क्रिया को कहते हैं
(A) पूरक
(B) कुंभक
(C) रेचक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कुंभक

प्रश्न 7.
श्वास को बाहर निकालने की क्रिया को कहते हैं.
(A) पूरक
(B) कुंभक
(C) रेचक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) रेचक

प्रश्न 8.
“योग समाधि है।” यह कथन है
(A) महर्षि वेदव्यास का
(B) महर्षि पतंजलि का
(C) भगवान् श्रीकृष्ण का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) महर्षि वेदव्यास का

प्रश्न 9.
“योग आध्यात्मिक कामधेनु है।” योग की यह परिभाषा किसने दी?
(A) ,भगवान श्रीकृष्ण ने
(B) महर्षि पतंजलि ने
(C) महर्षि वेदव्यास ने
(D) डॉ० संपूर्णानंद ने
उत्तर:
(D) डॉ० संपूर्णानंद ने
(B) श्वास प्रणाली से

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प्रश्न 10.
योग से कब्ज दूर होती है। इसका संबंध किस प्रणाली से है?
(A) रक्त संचार प्रणाली से
(C) माँसपेशी प्रणाली से
(D) पाचन प्रणाली से
उत्तर:
(D) पाचन प्रणाली से

प्रश्न 11.
“योग मस्तिष्क को शांत करने का अभ्यास है।” यह किसने कहा?
(A) महर्षि वेदव्यास ने
(B) महर्षि पतंजलि ने
(C) भगवान श्रीकृष्ण ने .
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) महर्षि पतंजलि ने

प्रश्न 12.
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है
(A) 22 दिसम्बर को
(B) 21 जून को
(C) 30 जनवरी को
(D) 8 नवम्बर को
उत्तर:
(B) 21 जून को

प्रश्न 13.
प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया
(A) 21 जून, 2014 को
(B) 21 जून, 2013 को
(C) 21 जून, 2015 को
(D) 21 जून, 2016 को
उत्तर:
(C) 21 जून, 2015 को

प्रश्न 14.
“श्वास-प्रश्वास की स्वाभाविक गति को रोकना ही प्राणायाम है।” प्राणायाम की यह परिभाषा किसने दी?
(A) महर्षि वेदव्यास ने
(B) महर्षि पतंजलि ने
(C) भगवान श्रीकृष्ण ने
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) महर्षि पतंजलि ने 15. 21 जून, 2018 में कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया था?
(A) पहला
(B) दूसरा
(C) तीसरा
(D) चौथा
उत्तर:
(D) चौथा

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में से अष्टांग योग का अंग है
(A) यम
(B) नियम
(C) प्राणायाम
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 17.
योग के आदि गुरु हैं
(A) महर्षि वेदव्यास
(B) महर्षि पतंजलि
(C) डॉ० संपूर्णानंद
(D) स्वामी रामदेव
उत्तर:
(B) महर्षि पतंजलि 18. 21 जून, 2020 में कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा?
(A) चौथा
(B) पाँचवाँ
(C) छठा
(D) सातवाँ
उत्तर:
(C) छठा

योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व Summary

योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व परिचय

योग का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि भारत का इतिहास। इस बारे में अभी तक ठीक तरह से पता नहीं लग सका कि योग कब शुरू हुआ? परंतु योग भारत की ही देन है। सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो की खुदाई से पता चलता है कि 3000 ईसा पूर्व में इस घाटी के लोग योग का अभ्यास करते थे। महर्षि पतंजलि द्वारा योग पर प्रथम पुस्तक ‘योग-सूत्र’ लिखी गई, जिसमें उन्होंने योग की अवस्थाओं एवं प्रकारों का विस्तृत उल्लेख किया है। हिंदू धर्म के ग्रंथ ‘उपनिषद्’ में योग के सिद्धांतों या नियमों का वर्णन किया गया है। भारत के मध्यकालीन युग में कई योगियों ने योग के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।

हमारे जीवन में शारीरिक तंदुरुस्ती का अपना विशेष महत्त्व है। शरीर को स्वस्थ एवं नीरोग रखने में योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग एक ऐसी विधा है, जो शरीर तथा दिमाग पर नियंत्रण रखती है। वास्तव में योग शब्द संस्कृत भाषा के ‘युज’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है-जोड़ या मेल । योग वह क्रिया है जिसमें जीवात्मा का परमात्मा से मेल होता है। भारतीय संस्कृति, साहित्य तथा हस्तलिपि के अनुसार, योग जीवन के दर्शनशास्त्र के बहुत नजदीक है। बी०के०एस० आयंगर के अनुसार, “योग वह प्रकाश है जो एक बार जला दिया जाए तो कभी कम नहीं होता। जितना अच्छा आप अभ्यास करेंगे, लौ उतनी ही उज्ज्वल होगी।”

योग का उद्देश्य जीवात्मा का परमात्मा से मिलाप करवाना है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर को नीरोग, फुर्तीला, जोशीला, लचकदार और विशिष्ट क्षमताओं या शक्तियों का विकास करके मन को जीतना है। यह ईश्वर के सम्मुख संपूर्ण समर्पण हेतु मन को तैयार करता है।

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