HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 9 महिलाएँ, जाति एवं सुधार

Haryana State Board HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 9 महिलाएँ, जाति एवं सुधार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Social Science Solutions History Chapter 9 महिलाएँ, जाति एवं सुधार

HBSE 8th Class History महिलाएँ, जाति एवं सुधार Textbook Questions and Answers

आइए कल्पना करें

मान लीजिए कि आप रुकैया हुसैन द्वारा स्थापित किए गए एक स्कूल में पढ़ाते हैं। आपकी कक्षा में 20 लड़कियाँ हैं। अपनी कल्पना के आधार पर इस स्कूल में किसी एक दिन हुई चर्चाओं का एक विवरण लिखिए।
उत्तर:
मैं कलकत्ता के एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका हूँ। यह विद्यालय मुस्लिम कन्याओं के लिए है। इसकी नींव बेगम रोकेया सखावत हुसेन द्वारा रखी गई थी। एक कन्या छात्रा सुना रही थी कि वह अपनी माता जी के साथ विद्यालय आते हुए किस. प्रकार भयभीत थी। रूढिवादी मस्लिम नेता (उन दिनों) हमारा विद्यालय में आना पसंद नहीं करते थे। वे मुस्लिम महिलाओं को समाज में उचित स्थान देना पसंद नहीं करते थे। रूढ़िवादी हिंदुओं से भी उनके संप्रदाय/धर्म की अनुयायी बालिकाएँ अपने धर्मावलंबियों से भयभीत रहती थीं। वस्तुतः धर्मान्ध धार्मिक नेता औरतों को एक निश्चित स्थान एवं स्थिति में ही रखना चाहते हैं। कुछ लड़कियों ने जोर देकर जोरदार आवाज में कहा कि वे तो अपनी शिक्षा महाविद्यालय तक जारी रखेंगी।

कुछ लड़कियों ने कहा कि वे जीवन में डॉक्टर बनेंगी तो कुछ ने कहा कि वे अध्यापिका बनेंगी तो कुछ ने तो यहाँ तक कहा कि वे वकील बनेंगी। कुछ ने कहा कि वे कुछ वर्षों बाद पुस्तकें लिखेंगी, लेख लिखेंगी तथा उन्हें प्रकाशित करा लेंगी। वे उनमें बताएँगी कि आधुनिक भारतीय समाज में महिलाओं का क्या स्थान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे पश्चिमी देशों की महिलाओं की उन्नत एवं अनुकरणीय स्थिति के बारे में आंकड़े एवं जानकारी इक्ट्ठा करेंगी। विभिन्न देशों की महिला नेताओं की उपलब्धियों एवं अन्य देशों में महिला वैज्ञानिकों के बारे में भी सूचनाएँ प्राप्त करेंगी तथा उनका प्रचार-प्रसार भी करेंगी ताकि भारतीय महिलाएँ पर्दे से बाहर आ सकें, बहुपत्नी प्रथा के विरुद्ध, कन्या वध के विरुद्ध, दहेज प्रथा के विरुद्ध एवं महिला सशक्तिकरण के पक्ष में लड़ सकें।

फिर से याद करें

महिलाएँ, जाति एवं सुधार के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया:
(i) राममोहन राय
(ii) दयानंद सरस्वती
(iii) वीरेशलिंगम पंतुलु
(iv) ज्योतिराव फुले।
(v) पंडिता रमाबाई
(vi) पेरियार
(vii) मुमताज अली
(viii) ईश्वरचंद्र विद्यासागर
उत्तर:
(i) राजा राममोहन राय द्वारा समर्थित सामाजिक विचार:
(क) उन्होंने सामाजिक परिवर्तनों का समर्थन किया, उनको सामाजिक उन्नति के लिए आवश्यक समझा एवं उन्होंने सभी आवश्यक सामाजिक प्रक्रियाएँ चालू कर दी। उन्होंने जोर देकर कहा कि सती प्रथा एक कुरीति है और उसे तुरंत ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

(ख) उन्होंने इस बात का समर्थन किया कि लोगों को पुरानी गलत परंपराओं को तुरंत त्याग देना चाहिए तथा सहर्ष नवीन प्रगतिशील रीति-रिवाजों एवं परंपराओं तथा जीवनशैली को अपना लेना चाहिए।

(ग) उन्होंने कलकत्ता में 1828 में एक सुधारक संगठन/संस्था की नींव रखी जो ब्रह्मो समाज के नाम से जानी गयी (कालांतर में उसे ब्रह्म समाज कहा गया।)

(घ) राजा राममोहन राय पश्चिमी ढंग की शिक्षा को देश में प्रारंभ करने तथा उसके प्रचार-प्रसार के समर्थक थे। वे औरतों को अधिक स्वतंत्रता एवं समानता दिए जाने के पक्षधर थे। उन्होंने इस विषय में लिखा कि किस तरह से औरतों को घरेलू काम के भार को उठाने के लिए बाध्य किया जाता है। उन्हें घर की ही चारदीवारी तक बांध कर रखा जाता है एवं उनकी कार्यशाला रसोईघर है और उन्हें घर से बाहर सुशिक्षित होने के लिए आज्ञा नहीं दी जाती।

(क) राजा राममोहन राय ने औरतों की खराब स्थिति का विरोध किया। उन्होंने विधवाओं को सती किये जाने का विरोध तथा उन्हें पुन:विवाह की कानूनी अनुमति दिए जाने की वकालत की।

(ii) स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा समर्थित सामाजिक विचार:
(क) स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज की नींव रखी। यह एक ऐसी संस्था थी जिसने हिंदू धर्म को सुधारने का बीड़ा उठाया।

(ख) उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।

(ग) उन्होंने वेदों के अध्ययन एवं उनसे ज्ञान प्राप्ति के प्रयासों का जोरदार समर्थन किया।

(घ) उन्होंने हर प्रकार के गलत रीति-रिवाजों तथा अंधविश्वासों का खंडन किया।

(ङ) उन्होंने सभी की शिक्षा एवं सभी में ज्ञान के प्रचार-प्रसार, सत्संग का समर्थन किया।

(iii) वीरसालिंगम पंटूहमर्थित सामाजिक विचार : 19वीं शताब्दी के द्वितीय अर्ध भाग शुरू होने से पूर्व ही नारी सुधार के विचार एवं सुधार आंदोलन देश के अन्य भागों में भी फैल गये। ये आंदोलन मख्यतया विधवाओं के पुनर्विवाह के पक्षधर थे। मद्रास प्रेसिडेंसी क्षेत्र में तेलुगु भाषा-भाषी लोगों में सुधारों को लोकप्रिय | बनाने के लिए वीरसालिंगम पंटूलू ने एक संगठन गठित किया जिसका प्रमुख कार्य विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देना था।

(iv) ज्योतिराव फुले (Jyotirao Phule) द्वारा समर्थित सामाजिक सुधार या विचार : उन्होंने जाति प्रथा पर आधारित समाज की अन्यायपूर्ण व्यवस्थाओं के विरुद्ध हमला बोला। उन्होंने ब्राह्मणों के इस दावे को झूठा बताया और इसका विरोध किया कि वे दूसरों से श्रेष्ठतर हैं। उनके अनुसार, उच्च जातियों को जिस भू-भाग (प्रदेश) में रहने तथा शक्ति का उपयोग करने का अधिकार है, वस्तुतः यह प्रदेश/क्षेत्र तो आदिवासियों या जन-जातियों का ही है, जिन्हें वे (ब्राह्मण) निम्न जातियों का बताते हैं। उन्होंने जाति समानता की वकालत की। उन्होंने किसी भी तरह की दासता का विरोध किया (उसे उन्होंने गुलामगीरी कहा था)। उन्होंने न केवल भारत की दासता बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका में रंग भेदभाव पर आधारित दास प्रथा की भी निंदा एवं विरोध किया।

(v) पंडित रमाबाई : उन्होंने सामाजिक अपराधों की कटु आलोचना की, जो पुरुषों एवं महिलाओं के मध्य होते थे। उन्होंने महसूस किया कि हिंदू धर्म महिलाओं के प्रति उत्पीड़क (क्रूर) है। उन्होंने उच्च जाति की हिंदू औरतों की दयनीय स्थिति के विषय में एक पुस्तक लिखी थी। उन्होंने पूना में एक विधवा गृह की नींव रखी ताकि उन विधवाओं को वहाँ शरण प्राप्त हो सके जिन्हें उनके स्वर्गीय पति के संबंधियों ने बेसहारा छोड़ दिया था। इस विधवा गृह में महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता था ताकि वे आत्मनिर्भर बन सके-आर्थिक रूप से स्वयं अपनी मदद कर सके। कई धर्माध व्यक्तियों ने उनके प्रयासों एवं विचारों का विरोध किया।

(vi) पेरियार : ई.बी. रामास्वामी नायकर (Peryar; E.V. Ramaswami Naickar) : रामास्वामी नायकर पेरियार के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने सामाजिक अन्याय एवं असमानता का विरोध किया। उन्होंने ब्राह्मणों द्वारा अपनी श्रेष्ठता एवं शक्ति का जो भी दावा किया जाता था उसका जोरदार विरोध किया। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की एक दावत में देखा कि स्वयं को सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली मानसिक रूप से – कितनी दूषित थी कि निम्न जाति के कार्यकर्ता तथाकथित उचित जारी के अनेक नेताओं से पर्याप्त दूरी पर अलग बैठने की व्यवस्था की गई थी। उन्होंने कांग्रेस पार्टी ही छोड़ दी तथा आत्मसम्मान आंदोलन चलाया। उन्होंने तर्क दिया कि तथाकथित आछूत लोग ही मौलिक तमिल एवं द्रविड़ संस्कृति को बचाये रखने वाले, उसे बनाये रखने वाले हैं तथा उन्हें ब्राह्मणों ने अपने अधीन कर रखा है।

उन्होंने महसूस किया कि सभी धार्मिक अधिकारीगण सामाजिक विभाजनों एवं असमानताओं को ईश्वर की देन के रूप में देखते हैं। अस्पृश्य लोगों को स्वयं को आजाद करना होगा, इसलिए वे सभी धर्मों से अलग हो गये ताकि उन्हें सामाजिक समानता मिल सके।

(vii) मुमताज अली (Mumtaz All): कुलीन या उच्च मुस्लिम परिवारों में महिलाओं को अरबी भाषा में कुरान पड़ने का अभ्यास कराया जाता था। उन्हें महिलाएँ ही घर पर आकर पढ़ाया करती थीं। कुछ मुस्लिम सुधारक महिलाओं ने मुसलमानों के केवल मात्र पवित्र धार्मिक पुस्तक कुरान की वैज्ञानिक व्याख्या एवं विश्लेषण करते हुए कहा कि कुरान महिलाओं की शिक्षा का पूर्णतया समर्थन करती है। ऐसे ही सुधारकों में मुमताज अली भी एक थीं। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रथम उर्दू उपन्यासों को लिखा जाना शुरू किया गया।, अन्य चीजों के मध्य इनका अर्थ था महिलाओं को उन्हें पढ़ने एवं धार्मिक एवं घरेलू प्रबंध की भाषा, जिसे वे आसानी से समझ सकती थीं, भी पढ़ाया जाने लगा।

(viii) ईश्वरचंद्र विद्यासागर : उन्होंने मुख्यत: स्त्री शिक्षा का समर्थन किया एवं विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए बल दिया। ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने प्राचीन धार्मिक पुस्तकों के माध्यम से ही लोगों को यह समझाने की चेष्टा की कि वे विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति देती हैं। उन्होंने सरकारी अधिकारियों से संपर्क बनाया तथा ब्रिटिश अधिकारी जब उनके विचारों एवं तकों से सहमत हो गये तो 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित किया गया। जो लोग विधवा पुनर्विवाह के विरुद्ध थे, उन्होंने ईश्वरचंद्र विद्यासागर का विरोध किया और यहाँ तक कि उनका बहिष्कार भी किया।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 9 महिलाएँ, जाति एवं सुधार

महिलाएँ, जाति एवं सुधार के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class History प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ:
(क) जब अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्जा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपत्ति उत्तराधिकार आदि के बारे में नए कानून बना दिए। ()
(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर-तरीकों में सुधार के लिए प्राचीन ग्रंथों से दूर रहना पड़ता था। ()
(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलता था। ()
(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम”1829 में, पारित किया गया था। ()
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) सत्य
(ग) असत्य
(घ) असत्य।

आइए विचार करें

महिलाएँ, जाति एवं सुधार Notes HBSE 8th Class प्रश्न 3.
प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली?
उत्तर:
प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन ने देश के सुधारकों को नये कानूनों को बनाने में भरपूर समर्थन दिया।
1. उदाहरणार्थ, प्रसिद्ध धर्म सुधारक राजा राममोहन राय ने प्राचीन हिंदू धार्मिक पुस्तकों अथवा ग्रंथों का अध्ययन किया और उन्होंने अपनी रचनाओं एवं लेखों के माध्यम से उन्हीं ग्रंथों का सहारा लेकर बताया कि वे धार्मिक ग्रंथ विधवाओं को उनके पतियों के शवों के संग जलाने की किसी भी तरह से अनुमति नहीं देते। ऐसे महान समाज सुधारकों को अंग्रेज अधिकारियों ने भी ध्यानपूर्वक सुना एवं 1829 में सती प्रथा पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाने के लिए एक अधिनियम (एक्ट) बना दिया गया।

2. यही रणनीति (strategy यानी प्राचीन हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन का तरीका) राजा राममोहन राय के बाद कई सुधारकों के द्वारा भी अपनाया गया। उदाहरणार्थ ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। उन्होंने सरकार एवं संस्थाओं को आवश्यक कदम उठाने के लिए तथा ब्रिटिश सरकार को 1856 के विधवा विवाह कानून को वैधता देने के लिए राजी कर लिया।

3. इसी तरह अन्य अनेक सुधारकों ने जब कभी भी समाज सुधार के लिए अपने विचार से किसी प्रचलित रीति-रिवाज को गलत समझा और उसे चुनौती देनी चाहिए तो उन्होंने प्राचीन हिंदू धार्मिक ग्रंथों से कोई वाक्य या कथन लिया और उसे अपने निर्णय के समर्थन में प्रस्तुत कर दिया। इसलिए उन्होंने जोर देकर कहा कि जो समाज में रीति उस समय प्रचलित है वस्तुत: वह प्राचीन मौलिक ग्रंथ या धर्मशास्त्र के अनुसार ही नहीं है।

महिलाएँ, जाति एवं सुधार Question Answer HBSE 8th Class प्रश्न 4.
लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण होते थे?
उत्तर:
1. प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत में वस्तुतः स्कूल लड़कियों की पहुंच से बाहर थे। राजाओं, नरेशों, सम्राटों, नवाबों आदि ने लड़कियों के लिए पृथक घर के समीप ही उचित शिक्षा संस्थाएँ न तो बनायी हुई थी तथा न इसके बारे में सोचा ही था। देश के कई हिस्सों में लड़कियों की शिक्षा को अनावश्यक समझते थे। वे कहा करते थे ‘तू पढ़ करके क्या करेगी तूने तो घर में रहकर चूल्हा-चक्की को ही संभालना है। कई और भी दूषित मानसिकता के लोग थे जो समझते थे कि शिक्षित महिलाएं खराब हो जाती हैं, बिगड़ जाती हैं। उन्हें या तो यह मालूम था ही नहीं या वे समझना नहीं चाहते थे कि एक लड़के को शिक्षा देने का अर्थ है केवल एक व्यक्ति को शिक्षित करना जबकि एक लड़की को शिक्षित करने का अर्थ होता है उस लड़की के साथ-साथ आने वाले उसके परिवार को भी शिक्षित करना-माँ बच्चे की प्रथम शिक्षिका एवं उसके शिक्षित होने पर घर एक अच्छी प्राथमिक पाठशाला है।

2. 19वीं शताब्दी के मध्य में जब अनेक समाज सुधारकों तथा संस्थाओं ने लड़कियों की शिक्षा के लिए विद्यालय खोले तो वे (अभिभाषक) डर गये कि शिक्षा उनकी पुत्रियों को उनसे, घर से, घर के काम-काज से दूर कर देगी। वे घर पर सहायक नहीं रहेंगी. इससे उनका दिमाग खराब हो जायेगा। वे हर बात पर भाई एवं परिवार में पुरुषों का विरोध करेंगी। हर बात म हक तथा आजादी की बात करेंगी। वे समझते थे कि लड़कियों को बाहर भेजने का मतलब उनके चरित्र से खिलवाड़ करने का समाज-विरोधी तत्त्वों को छूट या पूरा अवसर देना है। इसलिए उनका स्थान तो घर की चारदीवारी के अंदर ही ठीक है। उन्हें हर सार्वजनिक स्थान जिनमें स्कूल भी शामिल है से दूर रखा जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा ? यदि हाँ तो किस कारण ?
उत्तर:
1. ईसाई मिशनरियों पर अनेक लोगों द्वारा आक्रमण किए गए थे क्योंकि वे उनकी अनेक गतिविधियों को पसंद नहीं करते थे। उदाहरणार्थ अनेक राष्ट्रवादी हिंदू यह महसूस कर रहे थे कि ईसाई के संपर्क में आकर अनेक महिलाएं पश्चिमी रंग-ढंग ग्रहण कर रही थीं और वे हिंदू संस्कृति को भ्रष्ट कर देंगी तथा परिवार के जो सदियों पुराने रीति-रिवाज एवं परंपराएँ हैं उन्हें भी वे त्याग देंगी। वे मानते थे कि ‘लज्जा’ औरतों का गहना है। अनुशासन, पारिवारिक एकता एवं सहयोग के लिए आवश्यक है। वे संयुक्त परिवार को पाश्चात्य एकाकी परिवार से अच्छा मानते थे। धर्मान्ध एवं पिछड़ी मानसिकता वाले मुस्लिम भी ईसाई मिशनरियों के बड़ते प्रभाव से चिंतित थे। वे मानते थे कि खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है। वे परिवर्तन के विरुद्ध थे।

2. हाँ, अनेक लोगों ने ईसाई मिशनरियों का समर्थन भी किया। वे उस समय स्वयं को प्रगतिशील होने का ढोल पीटते थे, वे पश्चिमी संस्कृति एवं प्रगति तथा औरतों को वहाँ मिली स्वतंत्रता से बहुत ही प्रभावित थे। वे स्त्री शिक्षा के साथ-साथ, पुरुषों के बराबर उनके अधिकारों एवं समानता के भी पक्षधर थे।
(i) ईसाई मिशनरियों ने भारतीय महिलाओं की निग्न सामाजिक स्थिति की जोरदार निंदा की। उन्होंने सती प्रथा’ की निंदा की तथा विधवाओं को पुनः विवाह करने की अनुमति न दिए जाने को भी बुरी प्रथा बताया। सभी नारियों को आजादी एवं सामाजिक समानता दिए जाने का ईसाई मिशनरियों ने समर्थन दिया।

(ii) 19वीं शताब्दी में ईसाई मिशनरियों ने भादिवासियों क्षेत्रों तथा दलित बाहुल्य क्षेत्रों को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। वहाँ उन्हें पश्चिमी एवं आधुनिक शिक्षा सुविधाएँ दी ताकि उन्हें ईसाई बनाया | जा सके। उन्हें पश्चिमी सभ्यता तथा संस्कृति में रंगा जा सके। आदिवासियों तथा अनेक दलितों के अभिभावकों ने भी इन मिशनरियों को अपना सहयोग एवं समर्थन दिया।

प्रश्न 6.
अंग्रेजों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन से नए अवसर पैदा हुए जो “निम्न” मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे?
उत्तर:
(क) अनेक समाज सुधारकों ने देश में विद्यमान ऊँच-नीच की भावना तथा उनकी जननी जाति प्रथा की घोर निंदा की। उदाहरणार्थ राजा राममोहन राय ने एक प्राचीन बौद्ध धार्मिक ग्रंथ का सर्वसाधारण लोगों की भाषा में अनुवाद किया तथा बताया कि किस तरह से उसमें जाति प्रथा की आलोचना की गई थी।

(ख) प्रार्थना समाज ने प्राचीन एवं मध्यकालीन भक्ति भावना तथा आंदोलन के एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा, सिद्धांत एवं विश्वास का समर्थन किया कि सभी लोगों में एक ही आत्मा (एको ब्रह्म) होती है। इसलिए सभी जातियों के लोग बराबर है-यही हिंदू धर्म की आत्मा एवं सत्य विश्वास है।

(ग) अनेक लोग इस संस्था तथा अनेक ऐसे अन्य सामाजिक-धार्मिक संगठनों/संस्थाओं के सदस्य थे, वे जन्म से चाहे तथाकथित उच्च जातियों में जन्मे थे परंतु उनका दृष्टिकोण उदार एवं प्रगतिशील था। सामान्यतया वे गुप्त सभाओं को आयोजित. करके, सामूहिक भोजन या लंगरों का आयोजन करके तथा सभी एक साथ बैठकर भोजन करते थे। वे ऊंच-नीच की भावना को छोड़कर परस्पर सौहार्द से कार्य करने की प्रेरणा देते थे ताकि समाज में एकता एवं भाईचारा बना रहे।

(घ) देश में और भी लोग थे जिन्होंने आदिवासियों तथा दलितों के बच्चों की प्रगति के लिए कार्य किया। 19वीं शताब्दी में कई ईसाई मिशनरियों ने आधुनिक स्कूल खोले। इन बच्चों को अपने ही देश एवं समाज में आगे बढ़ने में सहयोग दिया।

(ङ) औद्योगीकरण के विस्तार तथा इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति के दुष्प्रभावों के कारण जब अनेक हस्तशिल्पकार बेरोजगार होकर अपने गाँवों को छोड़कर शहरों में रोजगार की तलाश में आकर रहने लगे तथा वे फैक्ट्रियों में मिलकर काम करने लगे तो जाति प्रथा का अंत हो गया।

प्रश्न 7.
ज्योतिराव फुले और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचनाओं को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर:
1. ज्योतिराव फुले ने अपनी युवा आयु में ही ब्राह्मणों के इस दावे पर आक्रमण करना शुरू कर दिया कि वे अन्य से श्रेष्ठतर हैं क्योंकि वे आर्य हैं। फुले ने उनको जवाब देते हुए कहा कि आर्य विदेशी थे, जो उस महाद्वीप से बाहर से आये थे, उन्होंने देश के सच्चे बच्चों को पराजित किया तथा उन्हें अपने पराधीन बना लिया था उन लोगों को जो आर्यों के आने से भी पहले इस। देश में रह रहे थे। चूँकि आर्यों ने अपना वर्चस्व स्थापित किया था इसलिए उन्होंने पराजित लोगों को घटिया मानते हुए उन्हें हेय दृष्टि से देखना शुरू किया, ऐसा मानने लगे कि वे निम्न जाति के लोग थे।

2. फुले के अनुसार, “उच्च जातियों को वस्तुतः जमीन हथियाने एवं शक्ति रखने का कोई अधिकार है ही नहीं, भूमि का संबंध मूल या आदि निवासियों के पास ही होना चाहिए, जिन्हें . तथाकथित निम्न जातियाँ कहा जाता था”।

3. फुले ने दावा किया कि आर्यों से पूर्व एक ‘स्वर्ण युग’ हुआ करता था जब बहादुर किसान जमीन जोता करते थे, वे ही महाराष्ट्र में शासन किया करते थे. उनका शासन न्याय एवं सुंदर ढंग से चलता था। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि आर्यों के आने से पूर्व के तथाकथित गैर-शूद्र एवं आर्यों द्वारा कहे जाने वाले सभी शूद्र लोग संगठित हो जायें तथा वे मिलकर सभी तरह के जाति भेदभाव को चुनौती दें। ‘सत्यशोधक समाज’ जिसकी एक संगठन के रूप में फुले ने नीव.रखी थी, जाति समानता का प्रचार किया।

प्रश्न 8.
फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगीरी को गुलामों की आजादी के लिए चल रहे अमेरिकी आंदोलन को समर्पित क्यों किया?
उत्तर:
ज्योतिराव फुले एक महान व्यक्तित्व एवं सुधारक थे। उन्होंने भारत में तथाकथित निम्न जातियों के अन्यायपूर्ण एवं निम्न स्थिति का विरोध एवं आलोचना करने के लिए अपनी पुस्तक ‘गुलामगिरी’ लिखी थी। उस रचना से कुछ ही समय पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका में वहाँ के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के राष्ट्रपतित्व काल में अश्वेत लोगों को उनके द्वारा दी गयी समानता के विरुद्ध गृह बुद्ध छिड़ गया। उसका अंत अश्वेतों को पूर्ण आजादी मिलने के साथ हुआ था। फुले अश्वेतों की इस उपलब्धि से बहुत प्रभावित थे।

वह भारत में भी निम्न जातियों को संगठित होकर हर प्रकार के अन्याय एवं असमानता के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देना चाहते थे। वह अमरीका के अश्वेतों द्वारा समानता तथा सामाजिक न्याय के लिए किए गये संघर्ष के समान भारत में भी एक आंदोलन चलाकर तथाकथित निम्न जाति के लोगों को उद्वेलित करना या संघर्ष करने के लिए प्रेरणा देना चाहते थे। फुले अमरीका के उन सभी लोगों को मानवता का मित्र तथा समानता का समर्थक मानते थे। उनकी पुस्तक का नाम ही ‘गुलामगिरी’ था जिसका शाब्दिक अर्थ दासता (slavery) है। अमरीकां का गृह दासता दासता के विरुद्ध लड़ा गया एक लंबा एवं सफल गृह युद्ध था।

प्रश्न 9.
मंदिर प्रवेश आंदोलन के जरिए अम्बेडकर क्या | हासिल करना चाहते थे?
उत्तर:
1. डॉ. भीमराव अंबेडकर महर परिवार (Maher family) में उत्पन्न हुए थे। उन्हें एक बालक के रूप में यह भलीभाँति अनुभव प्राप्त हो चुका था कि जातिगत घृणा एवं ऊँच-नीच का दिन-प्रतिदिन के जीवन में क्या अर्थ होता है। स्कूल में उन्हें कक्षा से बाहर दरवाजे के पास बैठने के लिए विवश किया जाता था। उन्हें जमीन पर ही बैठना पड़ता था और उन्हें उसी नल से पानी नहीं पीने दिया जाता था जिससे उच्च जाति के बच्चे पीते थे।

2. जब उन्होंने विद्यालय स्तर की पढ़ाई पूरी कर ली तो उन्हें अमेरिका में उच्च स्तर की पढ़ाई करने के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी। जब वह भारत में 1919 ई. में वापस आये तो उन्होंने समकालीन (समसामयिक) समाज में ‘उच्च’ जाति की शक्ति के बारे में विस्तृत रूप से लिखा था।

3. 1927 में अंबेडकर ने मंदिर प्रवेश आंदोलन शुरू किया, | जिसमें महर जाति के साथियों ने भाग लिया था। ब्राह्मण पुजारी -क्रोध से पागल हो उठे जब दलितों ने मंदिर के तालाब से पानी पिया।

4. सन् 1927 से 1935 के मध्य अंबेडकर ने तीन बार मंदिर प्रवेश आंदोलन चलाये। उनका उद्देश्य था कि सभी इस बात को देखें जिससे समाज भेदभाव करता है कि उनमें (तथाकथित दलितों में) कितनी ज्यादा शक्ति है।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 9 महिलाएँ, जाति एवं सुधार

प्रश्न 10.
ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना क्यों करते थे? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में किसी तरह की मदद मिली?
उत्तर:
1. ज्योतिराव फुले ने पूरी ताकत के साथ जातिगत व्यवस्था पर आधारित समाज को असंगत एवं विषमतापूर्ण मानते हुए उसके विरुद्ध आवाज उठाई तथा औपनिवेशक व्यवस्था के उस समय देश के उच्च जाति के नेता ही कर रहे थे। उन्होंने शूद्रों को परामर्श दिया, मुसलमानों एवं पारसियों को भी सलाह दी कि हम सभी परस्पर लड़ना-झगड़ना छोड़ें एवं अपने पूर्ण देश को मत बांटे एवं उन्होंने सभी के एक हो जाने के लिए आवाहन किया। वह थे कि भारत के सभी लोग संगठित हुए बिना किसी भी तरह की उन्नति नहीं कर सकते।

निश्चित रूप से लोगों को जो उन्होंने एकता के लिए आवाहन किया, सामाजिक न्याय की बात की और लोगों में एकता एवं समानता उत्पन्न करने में योगदान दिया था, नि:संदेह उसने राष्ट्रीय संघर्ष को बहुत ही बड़े महत्त्वपूर्ण बंग से मदद की थी। ज्योतिराव फुले उच्च जातियों की दयनीय स्थिति के बारे में भी चिंतित थे, श्रमिकों की दयनीय स्थिति के लिए भी चितित थे तथा जो भी तथाकथित निम्न जातियों का अपमान करते थे उनके भी विरुद्ध थे।

2. ई.वी. रामास्वामी नैकर अथवा पेरियार (EL Ramaxwami Naicker or Periyar) : जैसा कि उन्हें संबोधित किया जाता था. वे एक मध्य श्रेणी के परिवार से आते थे। यह जानना बहुत ही रुचिकर है कि वह अपने प्रारंभिक जवन में आस्तिक थे तथा उन्होंने संस्कृत धार्मिक ग्रंथों को बहुत ही सावधानीपूर्वक पढ़ा था। कालांतर में, वह कांग्रेस के सदस्य बन गये थे-इस पार्टी को उन्होंने उस वक्त तुरंत ही छोड़ दिया जब एक दावत के वक्त उन्होंने देखा कि जानबूझकर उच्च जातियों के सदस्यों की अच्छी खासी दूरी पर निम्न जातियों के सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई थी। पेरियार को जब यह पक्का यकीन हो गया कि समाज में न्याय एवं उचित स्थान प्राप्ति के लिए निम्न जातियों को संघर्ष करना ही पड़ेगा, उन्होंने आत्मसम्मान आंदोलन (Self Respect Movement) की नींव रखी।

3. पेरियार ने खुलेआम यह घोषणा की कि अछूत ही तमिल एवं द्रविड़ संस्कृति के मौलिक सच्चे समर्थक हैं जिसे ब्राह्मणों ने अपने अधीन कर लिया है।

4. उन्होंने महसूस किया सभी धार्मिक प्राधिकरण सामाजिक विभाजनों एवं असमानताओं को ईश्वर प्रदत्त ही मानते हैं। अछूतों को स्वयं को स्वतंत्र करना होता था, इसीलिए सभी धर्मों से न्याय या सामाजिक समानता की आशा करना उचित नहीं है।

राष्ट्रीय आंदोलन एवं फुले तथा पेरियार आदि :
(क) उपर्युक्त उल्लेखित विचार, संघर्ष एवं आंदोलन आदि व्यर्थ नहीं गये। दलित समाज सुधारकों ने जो भी सामाजिक न्याय, समानता, धार्मिक आजादी एवं पूजा-अर्चना के अधिकार आदि की मांग की उन सभी विचारों, दर्शन एवं आंदोलनों ने राष्ट्रवादी, प्रबुद्ध नेताओं को राष्ट्रीय आदोलन के दौरान तथा उसके बाद भी संविधान निर्माण आदि के वक्त फुले तथा पेरियार आदि के विचारों से प्रेरणा मिली और उन्होंने राष्ट्रीय हित, लोकतंत्रीय मूल्यों के अनुरूप अपने विचार एवं मार्गदर्शन सिद्धांत बनाये। लेकिन यह भी सत्य है कि राष्ट्रीय आंदोलन के काल से ही फुले तथा पेरियार जैसे विचारों की प्रतिक्रिया संकीर्ण मानसिकता वाले कुछ हिंदुओं में भी हुई। उन्होंने सनातन धर्म सभा, भारत धर्म महामंडल जैसे संगठनों को देश के उत्तरी भाग में मुख्यतया सक्रिय किया। इसी तरह बंगाल में ब्राह्मण सभा का भी गठन हुआ।

(ख) उपर्युक्त अनेक धार्मिक संगठनों ने यह दावा किया कि वर्ण एवं जाति व्यवस्था हिंदू धर्म का एक सभा पत्थर या स्तंभ है तथा उन्होंने भी धार्मिक पुस्तकों से उद्धरण (अवतरण) देकर यह कहा कि जाति प्रथा किस तरह से उचित ठहराई गई है। नि:संदेह जातिप्रथा के विरोध एवं समर्थन में बहस औपनिवेशिक शासन के अत के बाद भी जारी रही और आज हमारे समय में भी जारी है।

HBSE 8th Class History महिलाएँ, जाति एवं सुधार Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सती’ कौन कहलाती है?
उत्तर:
वह विधवा जो अपने पति के मरने के बाद स्वयं को उसकी जलती चिता पर जल जाती है, उसे सती कहते हैं।

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी की प्रारंभिक दशाब्धियों तक सती का अर्थ क्या लिया जाता था?
उत्तर:
19वीं शताब्दी की प्रारंभिक दशाब्दियों (1829 में इसके विरुद्ध कानून बनाया गया था।) तक धर्मान्ध एवं संकीर्ण मानसिकता वाले हिंदुओं द्वारा इस दर्दनाक कुप्रथा की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जाती थी। वे लोग उस विधवा को सती, महान पतिव्रता (एक ही पति को जीवनभर समर्पित रहने वाली) कहा करते थे। जो भी औरत विधवा होने पर स्वेच्छा या जबर्दस्ती पति की जलती हुई चिता पर जल जाती थी या जला दी जाती थी उसे सती कहा जाता था। इस समय प्राय: जोर-जोर से ढोल-नगाड़े बजाये जाते थे। इस प्रथा की ओर समय-समय पर 18वीं शताब्दी में आये विदेशी पर्यटकों का भी ध्यान खींचा।

प्रश्न 3.
उन सामाजिक कुरीतियों के नाम लिखें जो 19वीं शताब्दी के प्रारंभ तक सीधे भारतीय महिलाओं (नारियों) के साथ जुड़ी हुई थीं।
उत्तर:

  • सती
  • बाल कन्या विवाह.
  • सामाजिक अन्याय
  • अशिक्षा या निरक्षरता
  • दहेज
  • महिलाओं को पितृ संपदा में कोई हिस्सा नहीं मिलता था
  • बहुपत्नी विवाह
  • सरलता से तलाक
  • पर्दा प्रथा
  • घर की चारदीवारी में रहना तथा सभी घरेलू कामों को करने के लिए उन्हें प्राय: विवश करना।

प्रश्न 4.
किन दो तरीकों के द्वारा सामाजिक सुधार आंदोलनों ने भारत में राष्ट्रवाद के उदय में योगदान दिया था?
उत्तर:
1. ब्रिटिश सरकार के प्रारंभिक काल में इसके विभिन्न अधिकारियों द्वारा कानून पारित करके भारतीय समाज की कुछ कुरीतियों जैसे कि सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित करना (1829), बाल विवाह निषेध, बाल वध निषेध करना, औरतों के निम्न स्तर के खिलाफ कानून बनाना तथा विधवा विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करना।

2. आधुनिक ढंग की या पाश्चात्य भाषा (अंग्रेजी), साहित्य, शिक्षा व्यवस्था को शुरू करना, प्राचीन भारतीय वर्नाक्यूलर भाषायी विद्यालयों को पुनर्गठित करना ताकि भारतीयों को निम्न स्तरीय प्रशासनिक नौकरियों पर नियुक्त किया जा सके। सरकार ने सोचा कि पाश्चात्य एवं आधुनिक शिक्षा के कारण भारतवासी नये एवं आधुनिक विचारों से संपर्क में आयेंगे और वे स्वयं अनेक कुरीतियों को त्यागते चले जायेंगे।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 9 महिलाएँ, जाति एवं सुधार

प्रश्न 5.
भारतीय समाज में राजा राममोहन राय ने सुधार के जो प्रयल किए थे, उनका संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
‘राजा राममोहन राय ने नारी मुक्ति के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।’ उदाहरण सहित इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1. राजा राममोहन राय ने सती प्रथा की कुरीति को रोकने के लिए जो निरंतर तथा अथक प्रयास किये थे उसी के फलस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अनेक अधिकारीगण पूर्णतया उनके इस तर्क से सहमत हो गये कि कानूनन सती होने की कुप्रथा को तुरंत रोका जाये। वस्तुतः इसीलिए 1829 में लार्ड विलियम बैंटिक जैसे उदार गवर्नर जनरल ने एक कानुन बनाकर सती प्रथा को अमानवीय, गैर-कानूनी तथा दंडनीय अपराध घोषित कर दिया।

2. राजा राममोहन राय ने औरतों की आजादी के लिए उनकी शिक्षा पर निरंतर जोर दिया ताकि उनकी गतिशीलता स्वतंत्र हो तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधरे।

3. राजा राममोहन राय ने बाल विवाह, बहु विवाह एवं विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों का भी पूर्ण शक्ति से विरोध किया।

प्रश्न 6.
आर्य समाज की नींव डालने वाले कौन थे? इस संस्था के द्वारा किये गये सामाजिक-धार्मिक सुधारों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
आर्य समाज ने जिन सामाजिक सुधारों के लिए प्रयास किये, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वामी दयानंद सरस्वती आर्य समाज के जनक (1875 ई.) थे। इस संस्था ने मुख्यतया निम्नलिखित सामाजिक सुधारों के लिए प्रयास किये:
(i) इस संस्था ने जन्म पर आधारित जाति प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई।

(ii) इसने सती प्रथा, बाल विवाह एवं कन्या वध की। आलोचना की तथा इन्हें समाप्त करने के लिए प्रयास जारी रखे।

(ii) इसने विधवाओं को पुनः विवाह की आज्ञा देने का समर्थन किया तथा औरतों (लड़कियों) की शिक्षा का समर्थन किया। कालांतर में आर्य समाज ने देश के हर क्षेत्र में स्कूल, कॉलेज, पुस्तकालयों का जाल बिछा दिया।

प्रश्न 7.
सामाजिक सुधार के क्षेत्र में ज्योतिबा फुले के योगदान की संक्षिप्त व्याख्या करें।
उत्तर:
1. ज्योतिबा फुले महाराष्ट्र के महान सामाजिक सुधारक थे। उन्होंने इस क्षेत्र में दलित वर्गों के उत्थान के लिए बहुत बड़ी भूमिका निभायी थी।

2. 1873 में, उन्होंने सत्यसोधक समाज की नींव रखी। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य उन्होंने बताया कि यह संस्था तथाकथित निम्न जातियों के लोगों को जाग्रत करेगी ताकि वे अपने अधिकारों एवं समानता के लिए संघर्ष करें।

3. उन्होंने ब्राह्मणों को सर्वोच्चता या सर्वश्रेष्ठता एवं हिंदू धार्मिक ग्रंथों के आधिपत्य को चुनौती दी।

4. उन्हें लोग प्रेम तथा सम्मान से महात्मा ज्योतिबा फुले कहा करते थे।

प्रश्न 8.
रामकृष्ण मिशन को किसने स्थापित किया था? इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:

  • स्वामी विवेकानंद ने (अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर ही) सन् 1896 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
  • इस संस्था ने शैक्षिक संस्थाओं को शुरू किया तथा प्राकृतिक विपत्तियों (बाढ़, भूकंप, महामारियों के फूट पड़ने, सूखा आदि) में प्रभावित लोगों की सेवा के लिए अग्रणी भूमिका निभायी।

प्रश्न 9.
स्वामी विवेकानंद का जीवन में क्या मिशन था?
उत्तर:
1. वह वेदांत को सभी मानव जाति के धर्म के रूप में प्रसारित करना चाहते थे। उनके अनुसार यह केवल हिंदुओं का ही धर्म नहीं है। इसी के लिए उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका (यू. एस.ए.) में हुई धर्म संसद में भाग लिया। उन्होंने उस संसद में जिस प्रकार तर्कसंगत एवं प्रभावशाली भाषण दिया उससे उन्हें विश्व-ख्याति प्राप्त हो गई।

2. वह राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक पहलू को सुधारना चाहते थे। विशेष रूप से सर्वसाधारण आम लोगों की हीन आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए ही चितित रहते थे। वे नारियों की निम्न स्थिति को भी सुधारना चाहते थे। वे यह भी चाहते थे कि नौजवान अपने देश पर गर्व करें।

प्रश्न 10.
मुस्लिम समुदाय के लोगों को आधुनिक मुस्लिम समाज बनने के लिए कौन-कौन सी सामाजिक कुरीतियों को विशेष रूप से छोड़ना था?
उत्तर:

  • सर्वप्रथम मुसलमान को अंग्रेजी शिक्षा दी जानी चाहिए थी।
  • उन्हें स्वयं बहुपत्नी विवाह का विरोधकर उसे त्याग देना चाहिए था।
  • उन्हें पर्दा-प्रथा की निंदा करनी चाहिए थी क्योंकि यह एक कुरीति है। महिलाओं को यह घर की चारदीवारी में ही बाँध कर रखती
  • है तथा उनको एक तरह से कुचलती हैं क्योंकि उनके विकास में यह अवरोधक है।
  • आधुनिक विचारों की रोशनी में ही इस्लाम की पुनः व्याख्या की जानी चाहिए।

प्रश्न 11.
सैय्यद अहमद खान ने मुसलमानों के मध्य आधुनिक शिक्षा प्रसार हेतु क्या-क्या कदम उठाये थे?
उत्तर:
1. सर सैय्यद अहमद खान ने सन् 1862 ई. में साइंटिफिक सोसाइटी की स्थापना की थी। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने आधुनिक विज्ञान (विषय स जुड़ा) सबधा सभा रचना॥ को उर्दू में अनुवाद कराया, प्रकाशित किया गया ताकि लोग आधुनिक विज्ञान से परिचित हो सकें।

2. उन्होंने 1875 में अलीगढ़ में मौहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की स्थापना की। यह संस्था मुसलमानों के लिए नये विचार तथा चेतना जागृत करने वाली, अंकुरित करने वाली (कर्म) भूमि हो गयी। (कालांतर में यही संस्था अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में विख्यात हुई)।

3. सैय्यद अहमद खान ने अनेक मदरसे (स्कूल) स्थापित किये तथा साप्ताहिक पत्रिकाएँ उर्दू तथा अंग्रेजी भाषा में निकाली।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा राममोहन राय के प्रगतिशील विचारों के बारे में लगभग पाँच पंक्तियाँ लिखें।
उत्तर:
1. राजा राममोहन राय ने ‘सती’ प्रथा का विरोध किया तथा ब्रिटिश सरकार को इस कुरीति के विरुद्ध अधिनियम पारित करने के लिए बार-बार कहा। उन्हें अपने प्रयास से 1829 में सफलता प्राप्त हुई।

2. राजा राममोहन राय ने विधवाओं के जीवन में पुनः खुशहाली लाने के लिए पुनर्विवाह का समर्थन किया।

3. वह देश में पश्चिमी ढंग की नई आधुनिक शिक्षा तथा अंग्रेजी के समर्थक थे।

4. वे महिलाओं की शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक अधिकारों, न्याय, सशक्तिकरण एवं समानता के पक्षधर थे।

5. राजा राममोहन राय ने कुछ समाचार पत्र/पत्रिकाएँ प्रकाशित की तथा उन्होंने अनेक सम्मेलनों/सभाओं में अपने विचार व्यक्त करते हुए, लेख आदि लिखकर लोगों से यह पूछा कि नारियों को केवल घर की चारदीवारी में ही बाँधकर क्यों रखा जाता था तथा उन्हें घरेलू काम के सारे बोझ को उठाने के लिए मजबूर क्यों किया जाता था, उन्हें केवल घर के आंगन तथा रसोई तक ही क्यों सीमित रखा जाता था? उन्हें बाहर क्यों नहीं जाने दिया जाता, उन्हें शिक्षित क्यों नहीं किया जाता?

प्रश्न 2.
ईश्वरचंद्र विद्यासागर द्वारा नारी उत्थान के लिए किए गए कार्य एवं योगदान पर विचार-विमर्श करें।
उत्तर:
1. ईश्वरचंद्र विद्यासागर को भारत की कुचली गई एवं दयनीय स्थिति में रह रही नारियों के उत्थान हेतु उनके द्वारा किये गये कार्य के लिए याद किया जाता है।

2. उन्होंने नारी शिक्षा के लिए बहुत ज्यादा प्रयास किये। उनकी शिक्षा के अतिरिक्त उन्होंने विधवाओं को पुनर्विवाह का कानूनी अधिकार दिए जाने के लिए अनेक प्रयास किये तथा उल्लेखनीय योगदान दिया।

3. वस्तुत: यह ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयासों का ही फल था कि ब्रिटिश सरकार ने 1856 में हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (The Hindu Widow Remarriage Act) पास किया, जिसने कानूनन हिंदू विधवाओं को दोबारा विवाह करने की अनुमति दे दी।

4. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने बाल विवाह तथा बहु पत्नी विवाह का विरोध किया। उन्होंने सती प्रथा का भी विरोध किया एवं लड़कियों में शिक्षा प्रसार के लिए अपने प्रयास से एक कन्या विद्यालय खोला।

प्रश्न 3.
केशवचंद्र सेन कौन थे? 1830 के उपरांत ब्रह्मो समाज (ब्रह्म समाज) के द्वारा उन्होंने क्या किया?
उत्तर:
I. परिचय : केशवचंद्र सेन एक महान सुधारक थे एवं ब्रह्मो समाज के प्रमुख नेताओं में से एक थे।

II. कार्य : वस्तुतः 1828 में ब्रह्मो समाज (ब्रह्म समाज) की स्थापना राजा राममोहन राय द्वारा की गयी थी जो उनके देहांत के बाद केशवचंद्र सेन के द्वारा संभाला गया। उन्होंने 1830 के दशक से पूर्व ही इस संस्था द्वारा व्यर्थ की परंपराओं, बलिप्रथा का विरोध किया लेकिन उन्होंने प्राचीन उपनिषदों में पूरा विश्वास तथा उनका जी भर के समर्थन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को हिंदू धर्म की अन्य परंपराओं की आलोचना करने से भी रोका। वह मानते थे कि धर्म हर व्यक्ति का निजी मामला है। उसका आधार श्रद्धा, विश्वास, संस्कार एवं आराधना पूजा का अपना-अपना ढंग है। उन्होंने कहा कि किसी को भी धर्मा के नकारात्मक एवं सकारात्मक पहलुओं में बांटकर नहीं देखना चाहिए चाहे वह हिंदू धर्म हो या ईसाई धर्म। हर एक व्यक्ति को मानव मूल्यों एवं अच्छी बातों को ही अपनाना चाहिए।

प्रश्न 4.
डिरोजियो एवं यंग बंगाल मूवमेंट (Young Bengal Movement) पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
डिरोजियो एवं युवा बंगाल आंदोलन:
हेनरी लुइस विवियन डिरोजियो (Henry Louis Vivian Derocio) कलकत्ता स्थित हिंदू कॉलेज में एक अध्यापक (प्राध्यापक) थे। उन्होंने 1820 के दशक से अपने प्रगतिशील क्रांतिकारी विचारों द्वारा अपने विद्यार्थियों एवं नवयुवकों को प्रोत्साहित किया तथा उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि वे सभी अधिकारियों से अपनी जिज्ञासा को तृप्त (शांत) करने के लिए उनसे प्रश्न पूछे। उनके युवा शिष्यों ने युवा बंगाल आंदोलन के कार्यकर्ताओं के रूप में पुरानी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों पर धावा बोल दिया। उन्होंने डिरोजियो के मार्गदर्शन में नारी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ अनुभवों एवं विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की माँग की। शीघ्र ही डिरोजियो की हैजे के कारण मौत हो गयी। कुछ समय के बाद यंग बंगाल आंदोलन भी धीमा पड़ गया।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट (टिप्पणियाँ) लिखिए :
(क) रामकृष्ण मिशन एवं विवेकानंद
(ख) प्रार्थना समाज
(ग) वेद समाज
(घ) सैय्यद अहमद खान एवं अलीगढ़ आंदोलन।
उत्तर:
(क) रामकृष्ण मिशन एवं विवेकानंद : विवेकानंद ने अपने अध्यात्मिक गुरु महान संत रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर सामाजिक सेवा एवं नि:स्वार्थ कार्य करके उसके माध्यम से मुक्ति के आदर्श को प्राप्त करने पर बल दिया।

(ख) प्रार्थना समाज : इसकी स्थापना 1867 में बंबई में हुई थी। प्रार्थना समाज ने जातिगत पाबंदियों को हटाना चाहा। यह संस्था बाल विवाह का उन्मूलन, नारियों की शिक्षा को प्रोत्साहन तथा विधवा विवाह पर पाबंदी को हटाना चाहती थी। इसकी धार्मिक सभाओं में हिंदू, बौद्ध तथा ईसाई धार्मिक ग्रंथों का जिक्र हुआ करता था।

(ग) वेद समाज : इसकी स्थापना मद्रास में 1864 में हुई थी। वेद समाज को ब्रह्म समाज ने प्रेरणा दी थी। इसने जाति भेदभावों को समाप्त करने के लिए कार्य किया था। इसने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन एवं लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया। इसके सदस्यगण एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे। उन्होंने धर्माध हिंदुओं के अंधविश्वासों एवं खोखले रीति-रिवाजों की निंदा की।

(घ) सैय्यद अहमद खान एवं अलीगढ़ आंदोलन : 1875 में सैय्यद अहमद खान ने मोहम्मद एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की अलीगढ़ में स्थापना की, जो कालांतर में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कहलाया। इस संस्था ने मसलमानों को आधनिक शिक्षा दी, जिसमें पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान भी शामिल था। अलीगढ़ आंदोलन ने अनुवाद कार्यों के माध्यम से उर्दू भाषी लोगों में नया ज्ञान, नया दृष्टिकोण तथा शिक्षा के क्षेत्र में प्रचार-प्रसार किया। संक्षेप में अलीगढ़ आंदोलन की शिक्षा का मुसलमानों पर असाधारण प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 6.
1887 में महादेव गोविंद रानाडे द्वारा स्थापित वि इंडियन सोशल कांफ्रेंस की माँगें क्या थी?
अथवा
सामाजिक सुधार के क्षेत्र में महादेव गोबिंद रानाडे के योगदान की चर्चा करें।
उत्तर:
महादेव गोविंद रानाडे अपने समय के एक प्रमुख सुधारक थे। उन्होंने 1887 में ‘दि इंडियन सोशल कांफ्रेंस’ (The Indian Social Conference) को स्थापित किया। इस कांफ्रेंस के निम्न उद्देश्य थे:
1. इसका प्रथम उद्देश्य हिंदू समाज में एकता एवं सद्भावना लाना था जिसके लिए इसने अंतर्जातीय विवाहों के लिए कार्य किया।

2. यह संस्था लड़कों तथा लड़कियों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना चाहती थी। इसलिए इसने विवाह योग्य आयु को बढ़ाने के लिए जोर दिया ताकि लड़कियों एवं लड़कों की शिक्षा पूरी हो सके। वे वैवाहिक जीवन के लिए परिपक्व हों तथा आने वाली संतानें या भावी पीढ़ी स्वस्थ हो।

3. इंडियन सोशल कांफ्रेंस ने जातिप्रथा के उन्मूलन की वकालत की। इससे समाज में समानता, भ्रातत्व, परस्पर प्रेम, सद्भावना आदि को बढ़ावा मिलेगा तथा छुआछूत जैसे निंदनीय/गलत व्यवहार को समाप्त करने में भी मदद मिलती।

4. इस संस्था ने विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए प्रयास किये ताकि उनके जीवन में फिर से खुशियाँ आ सकें। उनके मन-मस्तिष्क से चिंताएँ समाप्त हो सकें।

5. इंडियन सोशल कांफ्रेंस ने नारी शिक्षा के लिए भी कार्य किया। नारी समाज की लगभग आधी जनसंख्या तथा भावी पीढ़ी की जनक एवं पालक होती है। उसकी योग्यता तथा गुण ही राष्ट्र के स्तर को बढ़ाते हैं।

प्रश्न 7.
उन तीन/चार लाभों को लिखिए जो भारतीय समाज को प्रेस (प्रिंटिंग प्रेस) के प्रारंभ होने के बाद प्राप्त हुए थे।
उत्तर:
1. प्रेस ने भारतवासियों को जागृत किया कि उन्हें अपने समाज एवं धर्म को सुधारने की आवश्यकता है।

2. इसने लोगों के मध्य ज्ञान एवं क्रांतिकारी प्रगतिशील विचार (मानवतावाद, स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण) के विचार फैलाए।

3. इसने लोगों में राष्ट्रवादी भावनाएँ फैलाकर एवं जनमत को – सक्रिय करके उन्हें स्वतंत्रता संघर्ष के लिए प्रेरित किया।

4. प्रेस का भारतीय भाषाओं के साथ जब अंग्रेजी में प्रकाशन जारी रहा तो दक्षिण एवं उत्तर के अनेक राष्ट्रीय नेताओं तथा राष्ट्रभक्तों एवं स्वतंत्रता सेनानियों में बिना किसी कठिनाई के विचार-विमर्श या विचारों का आदान-प्रदान होता रहा।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के समाज सुधार के काल में ‘महिलाओं (नारियों) ने महिलाओं’ के बारे में लिखा। इस विषय पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
मुस्लिम औरतों द्वारा औरतों के लिए (या उनके विषय में) लिखी गयी कृतियाँ :
1. 20वीं शताब्दी के प्रारंभ के साथ ही मुस्लिम महिलाओं जैसे कि भोपाल की बेगमों ने मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा प्रसार के कार्य में अहम भूमिका निभायी थी। उन्होंने अलीगढ़ में लड़कियों की शिक्षा के लिए प्राथमिक विद्यालय (प्राइमरी स्कूल) की नींव रखी।

2. दूसरी उल्लेखनीय मुस्लिम महिला बेगम रोकेया सखावत हुसेन (Begum Rokeya Sakherwat Hossain) ने मुस्लिम लड़कियों के लिए एक स्कूल पटना (बिहार) में तथा एक दूसरा इसी तरह का स्कूल कलकत्ता (बंगाल) में खोला। वह धर्माध संकीर्ण मानसिकता वाले मुस्लिम धार्मिक नेताओं की कठोर आलोचक थीं। उन्होंने तर्क दिया कि हर धर्म के नेतागण पता नहीं क्यों महिलाओं को (औरतों को) समाज में घटिया या निम्न स्तर प्रदान करना चाहते हैं।

3. ताराबाई शिंदे का काम : 1880 के दशक के आते-आते. भारतीय महिलाओं ने विश्वविद्यालयों में प्रवेश शुरू कर दिया। उनमें कुछ महिलाएँ डॉक्टर तथा कुछ अध्यापिकाएँ बनीं। अनेक महिला लेखिकाओं ने समाज में
औरतों की जगह के बारे में आलोचनात्मक विचार लिखे तथा उन्हें प्रकाशित किया। ताराबाई शिंदे ने पूना में अपने घर पर रहते हुए, एक पुस्तक जिसका नाम था स्त्री-पुरुष तुलना (Stri-purush tuina) लिखी जिसमें महिलाओं तथा पुरुषों की तुलना की गयी थी, उन दोनों में जो सामाजिक अंतर विद्यमान थे, उनको कड़ी आलोचना की गई थी।

4. पंडिता रमाबाई की साहित्यिक कृति : पंडिता रमाबाई संस्कृत की एक महान विदुषी थीं। उन्होंने महसूस किया कि हिंदू धर्म औरतों के प्रति अन्याय करने वाला था। उन्होंने उच्च वर्गीय हिंदू महिलाओं की दयनीय स्थिति के बारे में लिखा। उन्होंने पूना में विधवाओं की शरण के लिए एक घर की नींव रखी। उस घर में उन विधवाओं को रखा जाता था जिनके साथ उनके स्वर्गीय पति के रिश्तेदारों ने बहुत ही बुरा व्यवहार किया था। यहाँ पर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता था ताकि वे आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी बन सकें।

प्रश्न 2.
‘औरतों ने ही औरतों के विषय में लिखा’ के संदर्भ में बताइए कि नारियों की जागृति का निम्नलिखित पर क्या-क्या प्रभाव पड़ा।
(क) भारतीय समाज के रूढ़िवादियों पर प्रभावा
(ख) अन्य महिलाओं पर प्रभावा
(ग) जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाष चंद्र बोस जैसे राष्ट्रीय नेताओं पर प्रभाव।
उत्तर:
(क) रूढ़िवादियों पर प्रभाव : यह एक स्वीकृत सत्य है कि महिलाओं में आयी जागृति तथा महिलाओं द्वारा लेखिकाओं के रूप में निभायी भूमिका के फलस्वरूप रूढ़िवादी चौकन्ने हो गये। उन्होंने महसूस किया कि भारत की महिलायें पश्चिमी ढंग से जीवन व्यतीत करना शुरू कर रही हैं और उनमें जो पश्चिमी विचार तथा दर्शन प्रवेश कर रहा है उससे हिंदू संस्कृति भ्रष्ट हो जाएगी तथा पारिवारिक मूल्यों पर कुप्रभाव पड़ेगा, वे छिन्न-भिन्न हो जाएंगी। इन परिवर्तनों से मुस्लिम रूढ़िवादी भी बहुत ही चिंतित थे।

(ख) अन्य महिलाओं पर प्रभाव : 19वीं शताब्दी के अंत के साथ ही, महिलाएँ स्वयं सुधार के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रही थीं। उन्होंने पुस्तकें लिखीं, पत्रिकाओं का संपादन किया, स्कूलों की नींव रखी एवं विधवाओं के लिए आश्रम खोलने के साथ-साथ उन्हें प्रशिक्षण देने हेतु केंद्र भी प्रारंभ किये। उन्होंने औरतों के संगठन भी स्थापित किए। 20वीं शताब्दी के शुरू के वर्षों से ही, उन्होंने महिलाओं के दबाव समूह बनाये ताकि महिलाओं को मत देने के अधिकार के साथ-साथ पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल सके तथा सरकार उनकी आवाज को ध्यान से सुने। औपनिवेशिक शासन काल में उन्हें मताधिकार प्राप्त हो और उनके तथा नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए उचित केंद्र खोले जाएँ। 1920 के | दशक से उनमें से कुछ ने विभिन्न राष्ट्रवादी एवं समाजवादी आंदोलनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।

(ग) जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाषचंद्र बोस जैसे नेताओं पर प्रभाव : 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक में जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाषचंद्र बोस जैसे प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं ने महिलाओं से जुड़े मसलों पर उनका सहयोग एवं समर्थन करना शुरू कर दिया। वे चाहते थे कि उन्हें अधिक समानता तथा स्वतंत्रता प्रदान की जाये। राष्ट्रीय नेताओं ने समय-समय पर घोषणा की कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नये भारत में सभी औरतों को पुरुषों की भाँति ही वयस्क मताधिकार प्राप्त होगा तथा उनके साथ कोई भी भेदभाव नहीं किया जायेगा। जो भी हो, उन्होंने उस समय यह कहा कि उस समय देश की सर्वाधिक प्रमुख समस्या दासता से लड़ने की है, विदेशी सरकार को उखाड़ फेंकना है और महिलाओं को भी पुरुषों की भाँति अपने प्रयास इसी बात पर केंद्रित रखने चाहिए।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 9 महिलाएँ, जाति एवं सुधार

महिलाएँ, जाति एवं सुधार Class 8 HBSE Notes

1. बाल-हत्या (Infanticide या कन्या वध) : नवजात शिशुओं को मारने की प्रथा।

2. अस्पृश्य (या अफ्त) (Untouchables) : वे लोग जो सर्वाधिक निम्न जातियों से संबंधित हों।

3. बहुपत्नी विवाह (Polygamy) : एक ही वक्त पर एक से अधिक पलियाँ रखने का रिवाज।

4. अंधविश्वास (Superstition) : आधुनिक दृष्टिकोण का अभाव (कमी)।

5. सती प्रथा (Sati System) : अपने मृत पति के शव के साथ ही जीवित विधवाओं का जलना।

6. दहेज प्रथा (Dowry System): लड़कियों को उनके विवाह के समय मूल्यवान पदार्थों को उपहार में देने की रीति।

7. तलाक (Divorce): शादी के बाद अपने जीवनसाथी को छोड़ देने की रीति।

8. संप्रदाय (Sect) : उन लोगों का एक समूह जो अपने ही धर्म के मानने वाले बड़े समूह से कुछ अलग विश्वास रखते हैं, उन्हें पंथ अथवा संप्रदाय कहते हैं।

9. जिहादी (Crusader) : धर्म के नाम पर संघर्ष (युद्ध) करने वाला (Fighter)

10. कुचला/दलित (Scratched) : दबा कुचला (crushed)

11. उन्मूलन (Eradication) : हटा देना।

12. बालिग या वयस्क (Adults) : वे लड़के एवं लड़कियाँ जिन्होंने अपनी 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।

13. अगड़ी या उच्च जातियाँ (Upper Castes) : ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य को भारत में लोग उच्च वर्ण या जातियों का मानते हैं।

14. शूद्र (Shudras) : संविधान लागू होने से पूर्व तक हिंदुओं में प्रायः तथाकथित निम्न समझी जाने वाली जातियों के लोग शूद्र समझे जाते रहे हैं। उन्हें पहले (26 जनवरी, 1950 से पूर्व) अछूत भी माना जाता रहा था।

15. दूषित या निम्न कार्य (Polluting jobs): गलियों, सड़कों, नालियों की साफ-सफाई जैसे कार्य संकीर्णवादी दृष्टिकोण से निम्न कार्य माने जाते हैं।

16. नारी शिक्षा की स्थिति (Position of Women Education): औपनिवेशिक शासनकाल में 18वीं तथा 19वीं शताब्दियों में भारत में नारी शिक्षा लगभग पूर्णतया उपेक्षित थी।

17. समाज सुधार (Social Reform) : जब अंग्रेजों ने लगभग संपूर्ण भारत को जीत लिया या उसका अधिकांश भाग कंपनी के अधीन आ गया तो भारतीय समाज एवं धर्म में व्याप्त कुछ कुरीतियों की ओर विदेशियों तथा सुधारकों ने ध्यान आकर्षित करना शुरू कर दिया।

18. सुधारकों के प्रमुख बिंदु (Main points of Reformers) : 19वीं शताब्दी में भारत के अधिकांश सामाजिक-धार्मिक सुधारकों ने अपनी संपूर्ण गतिविधियों को दो प्रमुख बिंदुओं-नारी मुक्ति एवं तथाकथित निम्न जातियों (दलितों) के कल्याण हेतु केंद्रित कर दी थी।

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19. राजा राममोहन राय (Raja Rammohan Roy): वे 1810 के बाद के समय से ही एक महान समाज सुधारक के रूप में उभरे। उन्होंने विशेषकर नारी उत्थान के क्षेत्र में बहुत प्रशंसनीय कार्य किया।

20. राजा राममोहन राय ने सती प्रथा, बाल विवाह, बहु पत्नी-विवाह एवं पर्दा प्रथा की निंदा की तथा विधवाओं के पुनर्विवाह पर बल दिया।

21. ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक अन्य महान व्यक्तित्व वाले सुधारक थे जिन्होंने समाज सुधार के लिए लगभग अपना संपूर्ण जीवन ही समर्पित कर दिया। उनका विशेष प्रयास विधवा पुनर्विवाह एवं लड़कियों की शिक्षा से जुड़े हुए थे।

22. सर सैय्यद अहमद खान ने मुस्लिम लोगों में सुधार आंदोलन चलाया। आधुनिकीकरण के अभाव में, मुस्लिम समाज अधिकतर पिछड़ा हुआ ही था।

23. भारत में पारसियों में भी सामाजिक सुधार आंदोलन चले। दादाभाई नौरोजी, नौरोजी फुरदोनजी एवं एस.एस. बंगाली पारसियों के मध्य प्रमुख समाज सुधारक थे।

24. विभिन्नताएँ (Diversities) : हमारे देश की एक प्रमुख विशेषता इसकी विभिन्नताएँ हैं। इसीलिए भारत को विभिन्नताओं वाला राष्ट्र भी कहा जाता है। यहाँ अनेक धर्मों या संप्रदायों के लोग रहते हैं। इसके लोग विभिन्न रीति-रिवाजों एवं परंपराओं का, अनुसरण करते हैं।

25. जाति प्रथा (Claste System): भारत में जाति प्रथा का जन्म कोई हाल ही की अथवा नई बात या घटना नहीं है। अतीत काल से ही भारत में जाति प्रथा, वर्ण व्यवस्था के उदाहरण देखने-सुनने को मिलते रहे हैं।

26. विभिन्न समाज सुधारक एवं जाति प्रथा (Different social reformers and caste system) : भारत में 19वीं शताब्दी की प्रारंभिक दशाब्दियों के बाद से ही अनेक असाधारण एवं महान समाज सुधारक राष्ट्रीय रंगमंच पर दृष्टिगोचर हुए। इनमें राजा राममोहन राय, रानाडे, स्वामी दयानंद सरस्वती, ज्योतिबा फुले आदि ने 9वीं शताब्दी के दौरान सामाजिक सुधार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया।

27. ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule): वह महाराष्ट्र के सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय समाज सुधारकों में से एक थे। उन्हें जनता प्यार एवं सम्मान के साथ महात्मा फुले कहती थी।

28. वीरसलिंगम : उनका पूरा नाम कानडुकुरि वीरसलिंगम था। वह आंध्र प्रदेश के प्रमुख समाज सुधारक थे।

29. नारायण गुरू : वह केरल के महान समाज सुधारक थे। नारायण गुरू ने श्री नारायण धर्मपरिपालनयोगम (SNDP) की नींव डाली ताकि इस संस्था के माध्यम से केरल में सामाजिक सुधार किये जा सकें।

30. सामान्य उद्देश्य (Common Objectives) : संक्षेप में विभिन्न संगठनों का केवल मात्र उद्देश्य था समाज में तथाकथित निम्न समझी तथा कही जाने वाली जातियों की सामाजिक स्थिति सुधार करके हिंदू समाज को परिष्कृत एवं एकीकृत रखा जा सके।

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