HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना

Haryana State Board HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Social Science Solutions History Chapter 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना

HBSE 8th Class History आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना Textbook Questions and Answers

फिर से याद कर

आदिवासी दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना HBSE 8th Class History प्रश्न 1.
रिक्त स्थान भरें:
(क) अंग्रेजों ने आदिवासियों को ………………… के रूप में वर्णित किया।
(ख) झूम खेती में बीज बोने के तरीके को ………………… कहा जाता है।
(ग) मध्य भारत में ब्रिटिश भूमि बंदोबस्त के अंतर्गत आदिवासी मुखियाओं को ………………… स्वामित्व मिल गया।
(घ) असम के ………………… और बिहार के ………………… में काम करने के लिए आदिवासी जाने लगे।
उत्तर:
(क) जंगली घुमंतू काश्तकार, असभ्य शिकारी, संग्राहक
(ख) घुमंतू खेती
(ग) स्थायी
(घ) चाय बागानों, नील बागानों।

HBSE 8th Class History आदिवासी दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना प्रश्न 2.
सही या गलत बताएँ :
(क) झूम काश्तकार ज़मीन की जुताई करते हैं और बीज रोपते हैं।
(ख) व्यापारी संथालों से कृमिकोष खरीदकर उसे पाँच गुना ज्यादा कीमत पर बेचते थे।
(ग) बिरसा ने अपने अनुयायियों का आह्वान किया कि वे अपना शुद्धिकरण करें, शराब पीना छोड़ दें और डायन व जादू-टोने जैसी प्रथाओं में यकीन न करें।
(घ) अंग्रेज आदिवासियों की जीवन पद्धति को बचाए रखना चाहते थे।
उत्तर:
(क) सही
(ख) सही
(ग) सही
(घ) गलत।

आइए विचार करें

प्रश्न 3.
ब्रिटिश शासन में घुमंतू काश्तकारों के सामने कौन सी समस्याएँ थीं?
उत्तर:
ब्रिटिश शासनकाल में घुमंतू काश्तकारों के सामने निम्नलिखित समस्याएँ आई थीं :
(1) घुमंतू समूहों से अंग्रेजों को परेशानी थी जो यहाँ-वहाँ भटकते रहते थे और एक जगह ठहर कर नहीं रहते थे। वे (अंग्रेज) चाहते थे कि आदिवासियों के समूह एक जगह स्थायी रूप से (Permanent Settlers) रहें और खेती करें क्योंकि स्थायी रूप से एक जगह रहने वाले किसानों को नियंत्रित करना (to control) आसान था। दूसरे शब्दों में यों कहें कि अंग्रेज अपने स्वार्थ के लिए आदिवासियों को मजबूर कर रहे थे कि वे अपनी जीवन शैली को बदलें। स्वतंत्र प्राणियों को बाँधकर रखना चाहते थे।

(ii) अंग्रेज अपने शासन के लिए आय का नियमित स्रोत (regular sources) भी चाहते थे। फलस्वरूप उन्होंने जमीन के विषय में कुछ नियम लागू कर दिए। उन्होंने जमीन को मापकर प्रत्येक व्यक्ति का हिस्सा तय कर दिया। उन्होंने यह भी तय कर दिया कि किसे कितना लगान देना होगा। कुछ किसानों को भूस्वामी और दूसरों को पट्टेदार घोषित किया गया। पट्टेदार अपने भूस्वामियों का भाड़ा चुकाते थे और भूस्वामी सरकार को लगान चुकाते थे।

(iii) झूम काश्तकारों को स्थायी रूप से बसाने की अंग्रेजों की कोशिश बहुत सफल नहीं रही। जहाँ पानी कम हो और मिट्टी सूखी हो, वहाँ हलों से खेती करना आसान नहीं होता अर्थात् उन्हें अधिक मेहनत करनी पड़ती थी।

(iv) झूम काश्तकारों को हल की सहायता से खेती करने वाले काश्तकारों को प्राय: आर्थिक हानि भी हुई क्योंकि उनके खेत अच्छी उपज नहीं दे पाते थे। इसलिए पूर्वोत्तर राज्यों के झूम काश्तकार इस बात पर अड़े रहे कि उन्हें परम्परागत ढंग से ही जीने दिया जाए। व्यापक विरोध आदि आदिवासियों को करना पड़ा। व्यापक विरोध के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को आखिरकार उनकी बात माननी पड़ी और ऐसे कबीलों को जंगल के कुछ हिस्सों में घुमंतू खेती की छूट दे दी गई।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना

प्रश्न 4.
औपनिवेशिक शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं की ताकत में क्या बदलाव आए?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन (अर्थात् ब्रिटिश शासन काल में) के अधीन आदिवासी मुखियाओं की ताकत में अनेक तरह के बदलाव आए थे, जो इस तरह हैं:
(i) अंग्रेजों के आने से पहले बहुत सारे इलाकों (क्षेत्रों) में आदिवासियों के मुखियाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता था। उनके पास औरों से ज्यादा आर्थिक ताकत होती थी और वे अपने इलाके पर नियंत्रण रखते थे।

(ii) कई जगह उनकी अपनी पुलिस भी होती थी और वे जमीन एवं वन प्रबंधन के स्थानीय नियम खुद बनाते थे।

(iii) ब्रिटिश शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं के कामकाज और अधिकार काफी बदल गए थे। उन्हें कई-कई गाँवों पर जमीन का मालिकाना (Ownership) तो मिला रहा लेकिन उनकी शासकीय शक्तियाँ छिन गई और उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बनाए गए नियमों को मानने के लिए बाध्य कर दिया।

(iv) उन्हें अंग्रेजों को नजराना देना पड़ता था और अंग्रेजों के प्रतिनिधि की हैसियत से अपने समूहों को अनुशासन में रखना होता था।

(v) पहले उनके पास जो ताकत थी अब वह नहीं रही। वे परंपरागत कामों को करने से विवश हो गए।

प्रश्न 5.
दीकुओं से आदिवासियों के गुस्से के क्या कारण थे?
उत्तर:
आदिवासी बाहरी लोगों को दीक कहा करते थे। इनमें प्रायः सौदागर, व्यापारी, सूदखोर, टिम्बर मर्चेन्टस, उद्योगपति, विदेशी (अंग्रेज आदि) होते थे। कई कारणों से आदिवासियों में दीकुओं के विरुद्ध क्रोध था:
(i) दीकुओं के कारण उनके आस-पास आ रहे बदलावों को वे पसंद नहीं करते थे। उन्हें उनकी परिचित जीवन पद्धतिनष्ट होती दिखाई दे रही थी।

(ii) आदिवासी अंग्रेज शासन के कारण पैदा हो रही समस्याओं से बेचैन थे। अंग्रेजों ने आदिवासियों के मुखियाओं की ताकत छीन ली थी। कई स्थानों पर घुमंतुओं को स्थायी रूप से एक ही स्थान पर रहने तथा हल से खेती करने के लिए मजबूर कर दिया था। उन्हें सूखी मिट्टी वाले इलाकों में पानी के अभाव से एक ओर तो ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी, दूसरी ओर उन्हें पैदावार भी कम मिलती थी।

(iii) ज्यादातर आदिवासी कबीलों के रीति-रिवाज और रस्में | ब्राह्मणों द्वारा निर्धारित रीति-रिवाजों और रस्मों से बहुत अलग थीं। इन समाजों में ऐसे गहरे सामाजिक भेद भी नहीं थे, जो जाति पर
आधारित समाजों में दीकुओं के समाजों में थे। एक कबीले के लोग कुटुम्ब (family) के बंधनों से बंधे होते थे। अनेक आदिवासियों में भी कुछ न कुछ आर्थिक और सामाजिक अंतर थे, लेकिन उन्हें अंग्रेजों के ढंग बिल्कुल पसंद नहीं थे।

(iv) जो आदिवासी झूम खेती करते थे वे जंगलों में बेरोकटोक आवाजाही और अपने ढंग से फसल उगाना चाहते थे। वे जमीन तथा जंगलों में दीकुओं के हस्तक्षेप के विरोधी थे।

प्रश्न 6.
बिरसा की कल्पना में स्वर्ण युग किस तरह का था? आपकी राय में यह कल्पना लोगों को इतनी आकर्षक क्यों लग रही थी?
उत्तर:
I. बिरसा की कल्पना का स्वर्ण युग :
(i) बिरसा की कल्पना में स्वर्ण युग में मुंडा समुदाय को अपने खोये हुए अधिकार वापस मिल जायेंगे। आदिवासी अपनी बुरी आदतें छोड़ देंगे। बिरसा ने आदिवासी समाज को सुधार के लिए मुंडाओं से कहा कि वे शराब पीना छोड़ दें। गाँव को साफ रखें और डायन व जादू-टोने में विश्वास न करें। उसने ईसाई मिशनरियों का विरोध किया वह एक वैष्णव प्रचारक के प्रभाव में आकर वैष्णव बन गए तथा उन्होंने जनेऊ भी धारण किया। लेकिन उसने हिंदू जमींदारों का भी लगातार विरोध किया। वह उन्हें बाहर का मानते थे जो मुंडा जीवनशैली को नष्ट कर रहे थे।

(ii) 1895 में बिरसा ने अपने अनुयायियों से आह्वान किया कि वे अपने गौरवपूर्ण अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए संकल्प लें। वह अतीत के एक ऐसे स्वर्ण युग-सतयुग-की चर्चा करते थे जब मुंडा लोग अच्छा जीवन जीते थे, तटबंध बनाते थे, कुदरती झरनों को नियंत्रित करते थे, पेड़ और बाग लगाते थे, पेट पालने के लिए खेती करते थे।

(iii) बिरसा के उस स्वर्ण युग में या काल्पनिक युग में मुंडा अपने बिरादरों और रिश्तेदारों का खून नहीं बहाते थे। वे ईमानदारी से जीते थे। बिरसा चाहते थे कि लोग एक बार फिर अपनी जमीन पर खेती करें, एक जगह टिक कर रहें और अपने खेतों में काम करें।

II. लोग बिरसा या उसकी कल्पना के प्रति आकर्षित क्यों हुए:
(i) बिरसा स्वयं आदिवासी था। उसका जन्म एक मुंडा परिवार में हुआ था। मुंडा एक जनजातीय समूह था जो छोटानागपुर में ही रहता था। वह कई वर्षों तक जंगलों और गाँवों में घूमता रहा। मुंडाओं के साथ-साथ इलाके के दूसरे आदिवासी जैसे संथाल और उराँव भी उसके अनुयायियों में शामिल हो गये थे।

(ii) स्थानीय आदिवासी अपने आसपास आ रहे बदलावों और अंग्रेजी शासन के कारण पैदा हो रही समस्याओं से बेचैन थे। उनकी परिचित जीवनपद्धति नष्ट होती दिखाई दे रही थी, आजीविका खतरे में थी और धर्म छिन्न-भिन्न हो रहा था।

(iii) लोग कहते थे कि उसके पास चमत्कारी शक्तियाँ हैं-वह सारी बीमारियाँ दूर कर सकता था और अनाज की छोटी सी देरी को कई गुना बढ़ा देता था। बिरसा ने खुद यह ऐलान कर दिया था कि उसे भगवान ने लोगों को दीकुओं की गुलामी से आजाद कराने के लिए भेजा है। कुछ समय के भीतर हजारों लोग बिरसा के पीछे चलने लगे। वे उसे भगवान मानते थे। उन्हें यकीन था कि वह उनकी समस्याएँ दूर करने आया है।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना

आइए करके देखें

प्रश्न 7.
अपने माता-पिता, दोस्तों या शिक्षकों से बात करके बीसवीं सदी के अन्य आदिवासी विद्रोहों के नायकों के नाम पता करें। उनकी कहानी अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
स्वयं अभ्यास करें।
कुछ उपयोगी संकेत (Some useful hints)
1. नोनगखला का तिरहुत सिंह, (Tirot Singh of Nongkhlaw) : खासी समुदाय का मुखिया नोन्गखला का तिरोत सिंह बाहरी लोगों को अपने क्षेत्र से बाहर खदेड़ना चाहता था। उसके अनुयायियों ने अंग्रेजों की बस्तियों में आग लगा दी तथा अपने उन आदिवासियों को छुड़वा लिया जो सड़कों, पुलों, इमारतों आदि के निर्माण में बंधक मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर किए जा रहे थे। उन्होंने असम की ओर मार्च किया तथा चाय बागानों में आदिवासियों की हालत सुधार के लिए बागान मालिकों को विवश किया।

2. असम के उत्तरी पूर्वी क्षेत्र में कुमार रूपचंद ने भी विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया। विभिन्न आदिवासी पहाड़ी लोग जैसे कि खामतीस (Khamtis), नागा (Nagas) एवं गारो (Garos) उसे अपना राजा मानते थे। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठाया। जो सेनायें अंग्रेजों ने असम में तैनात कर रखी थी उन पर आदिवासियों ने धावा बोल दिए।

आइए कल्पना करें

मान लीजिए कि आप उन्नीसवीं सदी के वन गाँव में रहने वाले झूम काश्तकार हैं। आपको कहा गया है कि जहाँ आप पैदा हुए हैं अब वह जमीन आपकी नहीं मानी जाएगी। अंग्रेज अफसरों से मिलकर आप अपनी समस्याओं के बारे में बताना चाहते हैं। आप उन्हें क्या बताएँगे?
उत्तर:
हम अंग्रेजों को निम्न तरह की समस्याओं के विषय में बतायेंगे :
(i) हम प्रकृति एवं प्राकृतिक वातावरण को बहुत ही पसंद करते हैं।

(ii) हम स्वयं को जंगलों में उत्पन्न हुए भाग्यशाली आदिवासी समझते हैं। प्रकृति की गोद में हर एक को रहना नसीब नहीं होता। हमारा अस्तित्व जंगलों तथा स्थानीय संसाधनों पर निर्भर करता है। जल, जमीन तथा जंगल हमारे अस्तित्व का आधार है।

(iii) आप या आपकी कंपनी अथवा उसके एजेंट हमसे जंगल, उनमें रहने, उनमें प्रवेश करने, शिकार करने, संग्रहण आदि के अधिकार छीन लेंगे तो हमारे घर उजड़ जायेंगे। हमारे सामने रोजी-रोटी की विकराल समस्या खड़ी हो जायेगी।

हमारी आर्थिक गतिविधियाँ जैसे महुआ बीनना, भोजन प्राप्त करना, पशुओं को चराना, उन्हें पालना, कुदाल से खेती करना, हल से खेती करना, झूम खेती करना आदि सभी कार्य समाप्त हो जायेंगे।

(iv) आपकी सरकार के संरक्षण में सौदागर, व्यापारी, सूदखोर, टिम्बर मर्चेन्टस आदि हमें बर्बाद कर रहे हैं। हमारी अपनी संस्कृति है, उसे हम प्यार करते हैं। हमारा अपना धर्म है। ईसाई मिशनरियाँ हमें ईसाई क्यों बनाना चाहती हैं? क्या वे ईश्वर को एक नहीं मानते? तो फिर एक ही पैगम्बर को ईश्वर की संतान क्यों कहते हैं? सभी मानव एक ही ईश्वर की संतान हैं तो फिर हमें चर्च में ही क्यों जाने के लिए विवश किया जाता है? हमें अंग्रेजी सीखने के लिए क्यों विवश किया जाता है? हम भारत के जंगलों में रहते हैं। यह हमारा अपना देश है। हम यहाँ शताब्दियों से रह रहे हैं। हमें हमारी जमीन एवं जंगल वापस कर दे।

HBSE 8th Class History आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आदिवासियों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
आदिवासी समाजों के ज्यादातर कबीलों के रीति-रिवाज और रस्में ब्राह्मणों द्वारा निर्धारित रीति-रिवाजों और रस्मों से बहुत अलग थीं। इन समाजों में ऐसे गहरे सामाजिक भेद भी नहीं थे जो जाति पर आधारित समाजों में दिखाई देते हैं। एक कबीले के सारे लोग कुटुंब के बंधनों में बंधे होते थे। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि आदिवासियों के बीच कोई आर्थिक और सामाजिक अंतर नहीं था।

प्रश्न 2.
उड़ीसा में आदिवासी महिलाओं का एक काम लिखिए।
उत्तर:
उड़ीसा की औरतें जंगलों से पत्ते व अन्य सामग्री एकत्र करती हैं व उन्हें स्थानीय बाजारों में बेचती हैं।

प्रश्न 3.
उन दो पेड़ों के नाम लिखें जिन्हें आदिवासियों औषधियों के रूप में उपयोग किया जाता था।
उत्तर:

  • साल-एक पेड़ जिसके बीजों से खाद्य तेल प्राप्त किया जाता है,
  • ‘महुआ : एक फूल जिसे खाया जाता है व शराब (कच्ची) बनाई जाती है।

प्रश्न 4.
कुछ उन कामों के नाम लिखिए जो आदिवासियों द्वारा अपनी जीविका अर्जित करने के लिए किए जाते हैं।
उत्तर:
आदिवासी ग्रामीण अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए निम्नलिखित कार्य करते हैं :

  • पत्तियाँ (पंडानु की पत्तियाँ) तोड़ना तथा उन्हें सिर पर लादकर घर ले जाना तथा उनसे पत्तल तैयार करना। जंगल से लकड़िया चुनना तथा उन्हें गद्गुर बाँधकर सर पर उठाकर ले जाना। पशुओं के लिए चारा एकत्र करना।
  • इमारतें, सड़कों आदि का निर्माण करना।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना

प्रश्न 5.
बैगा शब्द से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  • मध्य भारत का एक आदिवासी समुदाय बैगा कहलाता है
  • मध्य भारत के बैगा-औरों के लिए काम करने से कतराते थे। बैगा खुद को जंगल की संतान मानते थे जो केवल जंगल की उपज पर ही जिंदा रह सकती है। मजदूरी करना बैगाओं के लिए अपमान की बात थी।

प्रश्न 6.
उन आदिवासी समूहों का उल्लेख करें जिन्होंने औपनिवेशिक वन कानूनों के विरुद्ध अपनी प्रतिक्रिया को अभिव्यक्त किया था?
उत्तर:
आदिवासियों के जिन समूहों एवं नेताओं ने औपनिवेशिक सरकार के वन कानूनों के विरुद्ध प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, वे थे :

  • 1906 में असम में संग्राम संगमा का विद्रोह।
  • मध्य प्रान्त में 1930 के दशक में जंगल में हुए सत्याग्रह।

प्रश्न 7.
किस क्षेत्र में संथाल रेशम के कीड़े पालते थे?
उत्तर:
हजारीबाग में संथाल लोग रेशम के कीड़े पालते थे। पहले यह क्षेत्र बिहार में पड़ता था। आजकल यह झारखंड राज्य में आता है।

प्रश्न 8.
उन दो स्थानों के नाम लिखिए जहाँ कोयला निकाला जाता है।
उत्तर :

  • झरिया तथा
  • रानीगंज।

प्रश्न 9.
रावण (Ravana) शब्द/पद की परिभाषा दीजिए। .
उत्तर:
आदिवासी विदेशी लोगों तथा बाहर से आये (देश के अन्य भागों से आये) लोगों को रावण कहते थे। बाहरी लोगों के लिए दीकु (Dikus) शब्द का प्रयोग बार-बार हुआ है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘घुमंतु खेती’ की व्याख्या कीजिए।
अथवा
झूम खेती की परिभाषा कीजिए।
उत्तर:
झूम या घुमंतू खेती:
(क) अर्थ (Meaning) : झूम खेती को घुमंतू खेती भी कहा जाता है। इस तरह की खेती आदिवासियों द्वारा अधिकांशतः जंगलों में छोटे-छोटे भूखंडों पर की जाती थी।

(ख) प्रक्रिया (Process) : आदिवासी लोग जमीन तक धूप लाने के लिए पेड़ों के ऊपरी हिस्से काट देते थे और जमीन पर उगी घास-फूस जलाकर साफ कर देते थे। इसके बाद वे घास-फूस के जलने पर पैदा हुई राख को खाली जमीन पर छिड़क देते थे। इस राख में पोटाश होती थी जिससे मिट्टी उपजाऊ हो जाती थी। वे कुल्हाड़ियों से पेड़ों को काटते थे और कुदालों से जमीन की ऊपरी सतह को खुरच देते थे। वे खेतों को जोतने और बीज रोपने की बजाय उन्हें बस खेत में बिखेर देते थे।

(ग) कटाई (Reaping) : जब एक बार फसल तैयार हो जाती थी तो उसे काटकर वे दूसरी जगह के लिए चल पड़ते थे। जहाँ से उन्होंने अभी फसल काटी थी वह जगह कई साल तक परती पड़ी रहती थी।

(घ) क्षेत्र (Areas) : घुमंतू किसान मुख्य रूप से पूर्वोत्तर और मध्य भारत की पर्वतीय व जंगली पट्टियों में ही रहते थे। इन आदिवासी समुदायों की जिंदगी जंगलों में बेरोकटोक आवाजाही और फसल उगाने के लिए जमीन और जंगलों के इस्तेमाल पर आधारित थी। वे केवल इसी तरीके से घुमंतू खेती कर सकते थे।

प्रश्न 2.
कौन से आदिवासी समूह शिकारी तथा संग्राहक थे? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शिकारी तथा संग्राहक समूह :
(क) बहुत सारे इलाकों में आदिवासी समूह पशुओं का शिकार करके और वन्य उत्पादों को इकट्ठा करके अपना काम चलाते थे। वे जंगलों को अपनी जिंदगी के लिए बहुत जरूरी मानते थे। उड़ीसा के जंगलों में रहने वाला खोंड समुदाय इसी तरह का एक समुदाय था। इस समुदाय के लोग टोलियाँ बना कर शिकार पर निकलते थे और जो हाथ लगता था उसे आपस में बाँट लेते थे।

(ख) वे जंगलों से मिले फल और जड़ें खाते थे। खाना पकाने के लिए वे साल और महुआ के बीजों का तेल इस्तेमाल करते थे। इलाज के लिए वे बहुत सारी जंगली जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करते थे और जंगलों से इकट्ठा हुई चीजों को स्थानीय बाजारों में बेच देते थे। जब भी स्थानीय बुनकरों और चमड़ा कारीगरों को कपड़े व चमड़े की रँगाई के लिए कुसुम और पलाश के फूलों की आवश्यकता होती थी तो वे खोंड समुदाय के लोगों से ही कहते थे।

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प्रश्न 3.
18वीं शताब्दी में रेशम उत्पादकों की समस्याओं पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
(i) रेशम उत्पादकों की समस्यायें (Problems of silk growers) : अठारहवीं सदी में भारतीय रेशम की यूरोपीय बाजारों में भारी मांग थी। भारतीय रेशम की अच्छी गुणवत्ता (Quality) सबको आकर्षित करती थी और भारत का निर्यात तेजी से बढ़ रहा था। जैसे-जैसे बाजार फैला ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसर इस मांग को पूरा करने के लिए रेशम उत्पादन पर जोर देने लगे।

(ii) वर्तमान झारखंड में स्थित हजारीबाग के आसपास रहने वाले संथाल रेशम के कीड़े पालते थे।

(iii) रेशम के व्यापारी अपने एजेंटों को भेजकर आदिवासियों को कर्ज देते थे और उनके कृमिकोषों को इकट्ठा कर लेते थे। एक हजार कृमिकोषों के लिए 3-4 रुपए मिलते थे। इसके बाद इन कृमिकोषों को बर्दवान या गया भेज दिया जाता था जहाँ उन्हें पाँच गुना कीमत पर बेचा जाता था।

(iv) निर्यातकों और रेशम उत्पादकों के बीच कड़ी का काम करने वाले बिचौलियों को जमकर मुनाफा होता था। रेशम उत्पादकों को बहुत मामूली फायदा मिलता था। स्वाभाविक है कि बहुत सारे आदिवासी समुदाय बाजार और व्यापारियों को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगे थे।

प्रश्न 4.
संक्षेप में बिरसा मुंडा के जीवन एवं गतिविधियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
I. बिरसा मुंडा की संक्षिप्त जीवनी:
(i) जन्म (Birsa) : विरसा का जन्म 1870 के दशक के मध्य में एक गरीब परिवार में हुआ था। उसने अपना बचपन एक गड़रिए के रूप में शुरू किया।

(ii) शिक्षा (Education) : वह स्थानीय मिशनरी स्कूल में जाने लगे जहाँ उन्हें मिशनरियों के उपदेश सुनने का मौका मिला। लेकिन उसने ईसाई बनना मंजूर नहीं किया। बाद में बिरसा ने एक प्रसिद्ध वैष्णव (विष्णु की पूजा-अर्चना करने वाले) धर्म प्रचारक के साथ भी कुछ समय बिताया। उन्होंने जनेऊ धारण किया और शुद्धता व दया पर जोर देने लगे।

II. उपलब्धियाँ:
(क) बिरसा के अनुयायियों ने स्वर्ण युग (Golden Age) लाने की बात की ताकि मुंडा लोग दीकुओं के उत्पीड़न से पूरी तरह स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें। वे अपने समुदाय के परंपरागत अधिकार बहाल कराना चाहते थे।

(ख) बिरसा मुंडा ने अपने आंदोलन में आदिवासियों को अपने क्षेत्रों का मूल निवासी बताया और आदिवासियों के लिए जमीन प्राप्ति की लड़ाई को मुल्क की लड़ाई बताया। वे लोगों को याद दिलाते थे कि उन्हें अपना साम्राज्य वापस पाना है।

(ग) बिरसा ने वैष्णव धर्म के प्रचार में भी कुछ समय बिताया ताकि वह आदिवासियों को शराब आदि बुरी आदतों से दूर रख सके। उन्होंने जनेऊ धारण किया और शुद्धता व दया पर जोर दिया।

(घ) बिरसा मुंडा ने इसाई मिशनरियों और हिन्दू जमींदारों का भी लगातार विरोध किया। वह उन्हें बाहर का मानते थे जो मुंडा जीवनशैली को नष्ट कर रहे थे।

(ङ) बिरसा मुंडा अपने नेतृत्व में मुंडा राज स्थापित करना चाहते था। वह ईसाई मिशनरियों द्वारा उनकी परंपरागत संस्कृति की आलोचना को भी पसंद नहीं करते थे। जब उसका आंदोलन फैलने लगा तो अंग्रेजों ने उसे अपना राजनीतिक शत्रु मानकर 1895 में गिरफ्तार किया और दंगे-फसाद के आरोप में दो वर्षों की सजा दे दी।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना

आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना Class 8 HBSE Notes

  • परती (Fallow) : कुछ समय के लिए बिना खेती छोड़ दी जाने वाली जमीन ताकि उसकी मिट्टी दोबारा उपजाऊ हो जाए।
  • साल (Sal) : एक पेड़।
  • महुआ (Mahua): एक फूल जिसे खाया जाता है अथवा शराब बनाने के लिए प्रयोग (इस्तेमाल) किया जाता है।
  • बेवड़ (Bewar) : मध्य प्रदेश में घुमंतू खेती के लिए प्रयोग होने वाला शब्द।
  • स्लीपर (Sleeper) : लकड़ी के क्षैतिज तख्ते (horizontal planks) जिन पर रेल की पटरियाँ बिछाई जाती हैं।
  • वैष्णव (Vaishnav) : विष्णु की पूजा करने वाले वैष्णव कहलाते हैं।
  • बिरसा (Birsa) : बिरसा मुंडा आदिवासी था। उसका जन्म 1870 के दशक के मध्य हुआ था। 1895 में अपने अनुयायियों को आह्वान किया कि वे अपने गौरवपूर्ण अतीत को पुनर्जीवित करें। उसने अंग्रेजों से टक्कर ली।
  • भगवान (Bhagwan) : ईश्वर।
  • दीकु (Dikus) : बाहर से आकर बसे हुए लोग।
  • मुंडा (Munda) : आदिवासियों का एक समूह जो छोटानागपुर क्षेत्र में रहता है।
  • झूम काश्तकार (Jhum Cultivators) : स्थानांतरण खेती-बाड़ी करने वाले लोग।
  • साल तथा महुआ के प्रयोग (Uses of Sal and Mahua) : ये दो पेड़-पौधे हैं जो झाड़ियों के रूप में वनों में मिलते हैं। इनका प्रयोग औषधियाँ बनाने के लिए किया जाता है।
  • संथाल तथा उराँव (Santhals and Darans) : छोटानागपुर के कुछ अन्य आदिवासी जन समुदाय।
  • संथालनुल (Santhalnul) : अपनी स्वतंत्रता के लिए संथालों द्वारा चलाया गया आंदोलन।
  • उलुगान (Ulugan) : मुंडा लोगों का आंदोलन।
  • बेथबेगारी (Bethbegari) : बंधक मजदूरी।

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