HBSE 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 हाशियाकरण से निपटना

Haryana State Board HBSE 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 हाशियाकरण से निपटना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 हाशियाकरण से निपटना

HBSE 8th Class Civics हाशियाकरण से निपटना Textbook Questions and Answers

हाशियाकरण से निपटना HBSE 8th Class Civics प्रश्न 1.
वो ऐसे मौलिक अधिकार बताइए जिनका दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्ण और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इस सवाल का जवाब देने के लिए पृष्ठ 14वें पर विए गए मौलिक अधिकारों को दोबारा पढ़िए।
उत्तर:
1. समानता का अधिकार एवं
2. स्वतंत्रता का अधिकार।

हाशियाकरण से निपटना प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class Civics प्रश्न 2.
रलम की कहानी और 1989 के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम के प्रावधानों को दोबारा पढ़े। अब एक कारण

बताएँ कि रलम ने इसी कानून के तहत शिकायत क्यों बर्ज कराई?
उत्तर:
मैं सोचता हूँ रत्नम एक सुशिक्षित था। वह अपने मूलभूत अधिकारों को जानता था। उसने सभी तरह के सामाजिक, धार्मिक अन्यायों एवं समानता के अपने अधिकार के लिए आवाज उठाई। भारत में किसी भी संगठन या समूह का शोषण नहीं किया जा सकता था। किसी की इच्छा के विरुद्ध परंपरा के नाम पर उसे काम करने के लिए विवश नहीं किया जा सकता है।

एक उदाहरण:
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 के अंतर्गत गाँव की उच्च जातियों अथवा वर्चस्व समूह के अन्यायपूर्ण व्यवहार के विरुद्ध मुकद्दमा दर्ज किया जा सकता है।

HBSE 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 हाशियाकरण से निपटना

हाशियाकरण से निपटना Notes HBSE 8th Class Civics प्रश्न 3.
सी.के.जानू और अन्य आदिवासी कार्यकर्ताओं को ऐसा क्यों लगता है कि आदिवासी भी अपने परंपरागत – संसाधनों के छीने जाने के खिलाफ 1989 के इस कानून का इस्तेमाल कर सकते है? इस कानून के प्रावधानों में ऐसा क्या खास है जो उनकी मान्यता को पुष्ट करता है?
उत्तर:
1989 का एक्ट (अधिनियम) आदिवासियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। वे उस भूमि पर अपने अधिकार को बनाये रखने के लिए इस अधिनियम का प्रयोग कर सकते हैं जो कभी उनके आधिपत्य में थी।
आदिवासी प्रायः अपनी भूमि से बेदखल होने के लिए तैयार नहीं होते जिससे उन्हें हटाने के लिए उनके विरुद्ध बल का प्रयोग किया जाता है। वे (देश के कानून के अधीन) उन लोगों के खिलाफ सजा की मांग कर सकते हैं जिन्होंने बलपूर्वक आदिवासियों के भू-भागों पर घेराबंदी कर ली है। भारत के संविधान ने आदिवासियों को पहले ही आश्वस्त किया है कि जो भूमि अनुसूचित जनजातियों की है, वह गैर-जनजाति लोगों को न तो बेची जा सकती है तथा न ही उनके द्वारा खरीदी ही जा सकती है।

सी.के.जानू, जो एक आदिवासी कार्यकर्ता है, ने स्पष्ट रूप से दावा किया है कि विभिन्न राज्यों की सरकारों ने ही इस अधिनियम की धज्जियाँ उड़ाई हैं क्योंकि उन्होंने ही आदिवासियों का शोषण करते हुए उनकी भूमियों को टिम्बर सौदागरों (timber merchants) तथा कागज मिलों आदि को दी है। इसी तरह से केन्द्रीय सरकार ने भी उनकी भूमि को आरक्षित वन अथवा अभयारण्य घोषित करके उन्हें वहाँ से बेदखल किया है।

हाशियाकरण से निपटना कक्षा 8 HBSE Civics प्रश्न 4.
इस इकाई में दी गई कविताएं और गीत इस बात का उदाहरण हैं कि विभिन्न व्यक्ति और समुदाय अपनी सोच, अपने गुस्से और अपने दुखों को किस-किस तरह से अभिव्यक्त करते हैं। अपनी कक्षा में ये दो कार्य करें:
(क) एक ऐसी कविता खोजें जिसमें किसी सामाजिक मुद्दे की चर्चा की गई है। उसे अपने सहपाठियों के सामने पेश करें। दो या अधिक कविताएँ लेकर छोटे-छोटे समूहों में बँट जाएँ और उन कविताओं पर चर्चा करें। देखें कि कवि ने क्या कहने का प्रयास किया है।
(ख) अपने इलाके में किसी एक हाशियाई समुदाय का पता लगाएँ। मान लीजिए कि आप उस समुदाय के सदस्य हैं। अब इस समुदाय के सदस्य की हैसियत से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कोई कविता या गीत लिखें या पोस्टर आदि बनाएँ।
उत्तर:
(क) पाठ्यपुस्तक में दी गई दोनों कविताओं का सार तत्व छुआछूत तथा भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था है। दोनों रचनाकारों ने अपने-अपने स्तर पर इस घिनौनी व्यवस्था की निंदा की है। किसी का काम उसकी जाति का आधार नहीं बन सकता। विद्यार्थी कोई कविता खोजकर संबंधित सामाजिक मुद्दे पर चर्चा करें।

(ख)
(i) हमारी बस्ती में कुछ मुसलमान परिवार रहते हैं। उनमें से अधिकांश बहुत ही निर्धन हैं। वे शैक्षणिक दृष्टि से बहुत ही पिछड़े हुए हैं तथा कच्चे घरों में रहते हैं। उनके निवास स्थानों पर बिजली नहीं है। वे नल के जल से दूर हैं। उन्हें हम हाशियाई समुदाय कह सकते हैं।

(ii) यहाँ पर अनेक दलित परिवार भी रहते हैं। वे भी कच्चे घरों में रहते हैं। शैक्षिक दृष्टि से वे बहुत पिछड़े हुए हैं। उन्हें बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं।
हाशियाई समुदाय को समर्पित कुछ पंक्तियाँ
ओ ! मुस्लिम भाइयों, अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए बाहर निकल आओ।
अपने पुत्र एवं पुत्रियों को आधुनिक नई शिक्षा पढ़ने के लिए बाहर भेजो।
आओ आपका परिवार भी काम पर निकले।
जब आपकी कमाई बढ़ जायेगी तो आपकी निर्धनता गायब हो जायेगी।
आपके रहने-सहने के हालत बदल जायेंगे।
आप वह गाना याद रखें-“एक दिन तो सुबह जरूर आएगी।”
अथवा
“हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब, एक दिन।”

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HBSE 8th Class Civics हाशियाकरण की समझ Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“दलित” पद या शब्द के अर्थ की व्याख्या करें।
उत्तर:
“दलित” शब्द या पद का शाब्दिक अर्थ है दबा-कुचला। इसका प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाता है जिनका एक ही धर्मावलंबी होते हुए भी जाति प्रथा के कारण उन जातियों के लोगों को शताब्दियों तक भेदभाव को सहना पड़ा।

प्रश्न 2.
आग्रही शब्द से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इद निश्चयी अथवा आग्रही व्यक्ति अथवा समूह वह होता है जो अपने विचारों को जोरदार ढंग से दृढ़तापूर्वक अभिव्यक्त कर सके।

प्रश्न 3.
मुकाबला करना पद की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आमने-सामने आना या किसी व्यक्ति अथवा स्थिति को चुनौती देना। उदाहरणार्थ कुछ समूहों ने अपने हाशिए पर पहुँचने को चुनौती दी है।

प्रश्न 4.
बहिष्कृत या बहिष्कार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इसका अर्थ है किसी व्यक्ति विशेष या किसी समूह बाहर करना या समाप्त करना। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति एवं परिवार का सामाजिक बहिष्कार करना।

प्रश्न 5.
नीति शब्द का अर्थ बताइए।
उत्तर:
एक घोषित कार्यदिशा जो भविष्य का रास्ता बताती है, लक्ष्य तय करती है या अपनाए जाने वाले सिद्धांतों व दिशानिर्देशों की व्याख्या करती है। इस अध्याय में सरकारी नीतियों का उल्लेख किया है, लेकिन स्कूल, कंपनी आदि अन्य संस्थाओं की भी अपनी नीतियाँ होती हैं।

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प्रश्न 6.
‘नैतिक रूप से निवनीय’ पद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ये ऐसे कृत्य होते हैं जो सभ्यता और प्रतिष्ठा के सारे कायदे-कानूनों के खिलाफ होते हैं। इस शब्द का इस्तेमाल सामान्यतः ऐसे घृणित और अपमानजनक कृत्यों के लिए किया जाता है जो समाज द्वारा स्वीकृत मूल्यों के खिलाफ होते हैं।

प्रश्न 7.
कुछ हाशियाई समूहों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हमारे देश के आदिवासी, दलित, मुसलमान, औरतें एवं अन्य पिछड़े लोग प्रमुख हाशियाई समूह हैं। वे अपने अधिकारों की मांग कर रहे है।

प्रश्न 8.
संविधान के अनुच्छेद 17 व 15 में क्या उल्लेखित है?
उत्तर:
अनुच्छेद 17 में कहा गया है कि अस्पृश्यता या छुआछूत समाप्त हो चुकी है। यह एक दंडनीय अपराध है। अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि भारत के किसी भी नागरिक के साथ किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हाशिए पर पहुँच गये समूहों अथवा सीमा के किनारे पर पहुंचे लोगों के लिए मौलिक अधिकार किस तरह से महत्वपूर्ण हैं? हमारे देश के संविधान ने जो मूलभूत अधिकार अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों अथवा महिलाओं आदि को दिए गए हैं वे किस तरह से उनके लिए महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
भारत का संविधान एवं मूलभूत अधिकार (The Constitution of India and the Fundamental Rights):
हमारे संविधान ने कुछ आदर्श अपने सामने रखे हैं जो देश को एक उदारवादी लोकतंत्रीय देश बनाते हैं। मौलिक अधिकार हमारे संविधान के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। ये अधिकार समान रूप से सभी भारतीय नागरिकों को उपलब्ध हैं। जो लोग निम्नतम सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर पहुंचे हुए हैं या रह रहे हैं या जिन्हें हम हाशिए पर आ गये लोग/समूह या समुदाय मानते हैं उनके लिए ये मौलिक अधिकार दो रूपों में और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
1. प्रथम, उन लोगों ने अपने मौलिक अधिकारों को लागू करने पर जोर दिया। उनके साथ बहुत ही अन्याय हुआ है।
2. दूसरे, उन्होंने अपने मौलिक अधिकारों के संरक्षण की मसँग की। उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि वह नये कानून बनाये। इस बात के लिए उन्होंने संघर्ष भी किये जो मूलभूत अधिकारों की भावना के अनुरूप ही थे।

प्रश्न 2.
संविधान की कौन सी धाराओं के अंतर्गत छुआछूत या भेदभाव के गलत व्यवहार का उन्मूलन किया गया।
उत्तर:
1. भारत के संविधान की धारा 17 कहती है कि भारत से अस्पृश्यता (हुआछूत) का उन्मूलन कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि कोई भी आज के बाद दलितों को शिक्षा ग्रहण करने से रोक नहीं सकेगा, कोई भी उन्हें मंदिर में प्रवेश करने से रोकेगा नहीं तथा न ही कोई उन्हें सार्वजनिक सुविधाओं एवं स्थानों के प्रयोग से ही रोक पायेगा। इसका अभिप्राय यह भी है कि किसी भी रूप में छुआछूत को व्यवहार में लाना गलत होगा। इसे किसी भी रूप में लोकतांत्रिक सरकार द्वारा सहा नहीं कहा जायेगा। वस्तुतः अब छुआछूत एक दंडनीय अपराध हो गया है।

2. हमारे संविधान में कई अन्य भाग तथा उनके उपभाग भी हैं जो छूआछूत के खिलाफ तर्क को सुदृढ़ करते हैं। उदाहरणार्थ: भारतीय संविधान की धारा 15 कहती है कि देश में समानता का अधिकार सभी को प्राप्त है तथा देश के किसी भी नागरिक के साथ लिंग, जन्मस्थान, क्षेत्र, जाति, धर्म, रंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 3.
सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार अल्पसंख्यकों के लिए किस तरह से महत्त्वपूर्ण हैं? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1. अन्य समूहों की भाँति ही हमारे देश में संविधान ने अल्पसंख्यकों को भी छः मौलिक अधिकार दिए हैं। इनमें से दो मौलिक अधिकार (क) धार्मिक स्वतत्रंता और (ख) सांस्कृति एवं शैक्षणिक अधिकार उनके लिए विशेष महत्त्वपूर्ण हैं।
अल्पसंख्यक तथा सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार (Minorities and Education and Cultural Right):

2 शिक्षा तथा संस्कृति संबंधी मूल अधिकार के अंतर्गत नागरिकों के प्रत्येक समूह को जो भारत की भूमि पर रहता है तथा जिसकी अपनी निश्चित भाषा, लिपि तथा संस्कृति है, अपनी भाषा, लिपि तथा संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार है। उदाहरणार्थ: देश के मुसलमानों तथा पारसियों को पूर्ण स्वतंत्रता है कि वे जिस रूप में चाहें अपनी शिक्षा संस्था स्थापित कर अपनी भाषाएँ, बोलियाँ, लिपियों के साथ-साथ अपने गीत-संगीत, साहित्य, परंपराओं, आस्थाओं, संस्कारों का प्रचार-प्रसार तथा संरक्षण भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है कि किसी भी राजकीय अथवा राज्य से आर्थिक सहायता प्राप्त करने वाली शिक्षा-संस्था में किसी भी विद्यार्थी को केवल उसके धर्म, जाति तथा भाषा आदि के आधार पर प्रवेश पाने से नहीं रोका जाएगा।

3. संविधान के अनुच्छेद-30 के अनुसार धर्म अथवा भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वगों को अपनी इच्छा के अनुसार शिक्षा-संस्थाएं स्थापित करने तथा उन्हें चलाने का अधिकार होगा। इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि राज्य द्वारा शिक्षा संस्थाओं को आर्थिक सहायता देते समय उनके साथ इस आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा कि वह अल्पसंख्यकों के प्रबंध के अधीन है।

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प्रश्न 4.
आप क्यों सोचते हैं कि दलित परिवार शक्तिशाली जातियों के गुस्से व भय से ग्रसित रहते हैं?
उत्तर:
1. मैं सोचता हूँ कि दलित परिवार के लोग उच्च वर्गों के लोगों के क्रोधित होने से भयभीत रहते हैं क्योंकि उच्च जाति के लोग गाँव तथा कस्बों में प्राय: अधिक साधन-संपन्न होते हैं तथा वे कभी भी गाँव की पंचायत के माध्यम से दलितों का सामाजिक बहिष्कार कर सकते हैं।

2. गाँवों के उच्च वर्ण या जातियों के लोग अपने बाहुबल तथा पैसे की शक्ति के बल पर अपनी शक्ति का प्रयोग करके उन्हें ग्रामीण बिरादरी या किसी जाति विशेष से बहिष्कृत कराने का दबाव डालकर उन्हें निकलवा सकते हैं। उच्च वर्गों का जिनकी पंचायतों में बड़ी संख्या होगी वे प्रस्ताव पास करके कह देगें कि कोई भी न तो उनसे बातचीत करेगा तथा न ही उन्हें अपने यहाँ नौकरियाँ देगा। भूखा क्या नहीं करता?

3. शक्तिशाली जातियों के लोग दबाव समूह या हित समूह बना सकते हैं। वे मंहगे अत्याधुनिक हथियार खरीद सकते हैं। समय-समय पर दलितों के मोहल्लों, घनी आबादी की बस्तियों में हवाई फायर कराकर उनकी झोंपड़ियों में आग लगवाकर या कानून को अपने हाथों में लेकर उन्हें आतंकित कर सकते हैं। दलित जानते हैं कि 24 घंटे न तो राज्य सरकार न ही उसकी पुलिस उनके माल, जान तथा आन की रक्षा कर सकती है। आड़े वक्त में गाँव का सूदखोर ही उन्हें ब्याज पर धन देगा। उत्सवों में बड़ी जातियां के लोग ही उन्हें उपहार या धन या फसलें दान दे देंगे या उन्हें भूख से तंग आकर आत्महत्या से बचा लेंगे। केन्द्र में बैठी सरकार जब तक जायेगी तब तक तो बहुत देर हो जायेगी।

4. यही नहीं अनेक राज्यों में दलितों की बेटियों तथा उनकी महिला सदस्यों को अपहरण, दुर्व्यवहार एवं बलात्कार का शिकार बनना पड़ता है। भ्रष्ट पुलिस अधिकारी उनकी एफ.आई.आर. (FIR) तक नहीं लिखते। ऐसी असुरक्षा की स्थिति एवं भय से पूर्वजों के गाँवों से पलायन करने के लिए विवश हो जाते हैं। उन्हें अपने परिजनों के साथ ही भागना पड़ता है।

5. दलितों में हर व्यक्ति रत्नम की भाँति सुशिक्षित ही नहीं है और यदि है तो भी हर आदमी उसकी तरह निर्भय नहीं होता। यहाँ तक कि अन्य दलित भी अधिक गरीब दलित को ही अपना समर्थन नहीं देते। वे पुलिस, गाँव के बाहुबलियों, धनाड्य व्यक्तियों, जमींदारों आदि से भयभीत होते हैं।

प्रश्न 5.
हाथ से मैला उठाने की प्रथा से आप क्या समझते हैं? इस कार्य से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हाथ से मैला उठाने की प्रथा (Practice of Manual Scarvengering):
बहुत सारे लोग झाडू, टिन और टोकरियों के सहारे पशुओं इन्सानों के मल-मूत्र को ठिकाने लगाते हैं। वे बिना पानी वाले (सूखे) शौचालयों से गंदगी उठाकर दूर के स्थानों पर फेंककर आते हैं। हाथ से मैला उठाने वाले पौढ़ी दर पीड़ी यही काम करते हैं। यह काम आमतौर दलित औरतों और लड़कियों के हिस्से में आता है।
(i) सिर पर मैला ढोने वाले बेहद अमानवीय स्थितियों में काम करते हैं। इस काम के कारण उनके स्वास्थ्य को गंभीर खतरा बना रहता है। वे लगातार ऐसे संक्रमण के खतरे में रहते हैं जिससे उनकी आँखों, त्वचा, श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र पर असर पड़ सकता है। इस काम के लिए उन्हें बहुत मामूली वेतन मिलता है। नगरपालिकाओं में काम करने वालों को रोजाना 30-40 रुपए मिलते हैं जबकि निजी घरों में काम करने वालों को इससे भी कम पैसा मिलता है।

(ii) जैसा यही नहीं हाथ से मैला उठाने वालों को कई जगह अछूत माना जाता है। गुजरात के भंगी, आंध्र प्रदेश के पाखी और तमिलनाडु के सिक्कलयार इसी श्रेणी में आते हैं। आमतौर पर उन्हें गाँव के किनारे अलग टोलों में रहना पड़ता है। उन्हें मंदिर, सार्वजनिक जल सुविधाओं आदि के पास फटकने भी नहीं दिया जाता है।

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प्रश्न 1.
स्वतंत्रता के उपरान्त सरकार ने सामाजिक न्याय को प्रोत्साहित करने हेतु क्या किया है?
उत्तर:
स्वतंत्रता के उपरांत सामाजिक न्याय को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास (Efforts by the Government for promoting social justice after the country’s independence):

1. संविधान को लागू करने के अपने प्रयास के रूप में दोनों स्तरों की सरकारों (राज्य तथा केन्द्र) ने उन क्षेत्रों में विशिष्ट योजनाओं को लागू करने के प्रयास किए जिनमें दलित जातियों के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। उदाहरण के लिए सरकार ने ऐसे छात्रावास स्थापित किए जहाँ पर दलित जातियों या समूहों तथा आदिवासियों के छात्रों को निशुल्क या नाममात्र की फीस तथा खर्चा आदि उनसे लेकर उन्हें सुविधाएँ प्रदान की जा सकें ताकि वे उच्च शिक्षा प्राप्त करते रहें क्योंकि कई बार उच्च शिक्षा तथा प्रशिक्षण की पर्याप्त सुविधाएँ उनके क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं होती हैं।

2. विशेष तरह की उपयोगी सुविधाएँ प्रदान करने के साथ-साथ सरकार या तो ऐसे नये कानून बनाती है या पुराने कानूनों में संशोधन करती है ताकि आरक्षण संबंधी नीति या अन्य क्षेत्रों में उन्हें समानता नहीं मिल पाती तो वह उन्हें मिलती रहे। ऐसे ही कानूनों/नीतियों की बहुत जरूरत है क्योंकि इनकी आज उन्हें इसकी बहुत आवश्यकता है।

3. वे कानून जो दलितों तथा आदिवासियों के लिए शिक्षा संस्थाओं एवं सरकारी नौकरियों में उनके लिए आरक्षण या स्थान सुरक्षित करने में सहायक है क्योंकि हमारे जैसे समाज में इन दोनों समूहों से अनेक सदियों से भेदभाव तथा उत्पीड़न होता चला आया है। लोकतांत्रिक उदार सरकार को ऐसे कदम उठाने ही चाहिए ताकि उनका शैक्षिक तथा व्यावसागिक तत्थान हो सके तथा दे प्रतियोगिता के इस युग में ज्यादा से ज्यादा अच्छे वेतन के पद एवं स्थान प्राप्त कर सके।

प्रश्न 2.
अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 की प्रमुख व्यवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रत्नम ने अपने गाँव में ऊंची जातियों द्वारा किए जा रहे भेदभाव और हिंसा का विरोध करने के लिए अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई और कानून का सहारा लिया।
(i) यह कानून 1989 में दलितों तथा अन्य समुदायों की मांगों के जवाब में बनाया गया था उस समय सरकार पर इस बात के लिए भरी दबाव पड़ रहा था कि वह दलितों और आदिवासियों के साथ रोजमर्रा में होने वाले दुर्व्यवहार और अपमान पर रोक लगाने के लिए ठोस कार्रवाई करे। यों तो इस तरह का व्यवहार लबे समय से चला आ रहा थ लेकिन सत्तर-अस्सी के दशक में यह समस्या हिंसक रूप लेने लगी थी।

(ii) इस दौरान दक्षिण भरत के कई हिस्सों में अपने हकों का दावा करने वाले बहुत सारे आग्रही दलित संगठन सामने आए और उन्होंने अपने हकों के लिए पुरजोर आवाज उठाई। वे तथाकथित जातीय दायित्वों का निर्वाह करने को तैयार नहीं थे और समानता का अधिकार चाहते थे। उन्होंने दलितों का अपमान व शोषण करने वाली परपंराओं को मानने से इनकार कर दिया था। इसकी वजह से ऊँची जातियों के लोग उनके साथ खुलेआम हिंसा पर उतारू हो गए थे।

(iii) सरकार को इस बात का अहसास कराने के लिए दलित संगठनों ने व्यापक अभियान चलाए कि छुआछूत अभी भी जारी है। उन्होंने इस बात के लिए दबाव बनाया कि नए कानूनों में दलितों के साथ होने वाली विभिन्न प्रकार की हिंसा की सूची बनाई जाए और इस तरह के अपराध करने वालों के लिए सख्त सणा का प्रावधान किया जाए।

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हाशियाकरण से निपटना Class 8 HBSE Notes in Hindi

1. अग्रही अथवा दृढ़ (Assertive): दृढ़ निश्चयी अथवा आग्रही व्यक्ति अथवा समूह वह होता है जो अपने विचारों को जोरदार ढंग से दृढ़तापूर्वक अभिव्यक्त कर सके।
2. मुकाबला करना (Confront): आमने-सामने आना या किसी व्यक्ति अथवा स्थिति को चुनौती देना। उदाहरणार्थ कुछ समूहों ने अपने हाशिए पर पहुंचने को चुनौती दी है।
3. वंचित (Dispossessed): किसी की संपत्ति अथवा स्वामित्व छीन लेना।
4. जाति बहिष्कृत (Ostracise): इसका अर्थ है किसी व्यक्ति विशेष या किसी समूह को बाहर करना या समाप्त करना। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति एवं परिवार का सामाजिक बहिष्कार करना।
5. नैतिक रूप से निंदनीय (Morally reprehensible): ये ऐसे कृत्य होते हैं जो सभ्यता और प्रतिष्ठा के सारे कायदे-कानूनों के खिलाफ होते हैं। इस शब्द का इस्तेमाल सामान्यतः ऐसे घृणित और अपमानजनक कृत्यों के लिए किया जाता है जो समाज द्वारा स्वीकृत मूल्यों के खिलाफ होते हैं।
6. नीति (Policy): एक घोषित कार्यदिशा जो भविष्य का रास्ता बताती है, लक्ष्य तय करती है या अपनाए जाने वाले सिद्धांतों व दिशानिर्देशों की व्याख्या करती है। इस अध्याय में सरकारी नीतियों का उल्लेख किया है, लेकिन स्कूल, कंपनी आदि अन्य संस्थाओं की भी अपनी नीतियाँ होती हैं।
7. भारत के कुछ हाशियाई समूह (Some Marginal Groups of India):

  • आदिवासी
  • दलित (अनुसूचित जाति)
  • मुसलमान
  • महिलाएँ तथा अन्य समूह जिनका सामाजिक-आर्थिक शोषण होता है।

8. दिहाड़ी मजदूर (Daily Wagers): अस्थायी मजदूर जो प्रायः एक दिन की मजदूरी के आधार पर कार्य करते हैं।
9. सोयराबाई (Soyrabat): वह महाराष्ट्र के चौदहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध भक्त कवि चोखा मेला की पत्नी थी।
10. कबीर (Kabir): वह 15वीं शताब्दी के एक महान भक्त कवि, समाज-सुधारक, पंथनिरपेक्षता और मानवतावादी थे।
11. दलित (Depressed): इस शब्द का अर्थ है दबा-कुचला। दलित समूहों ने उनके साथ हो रहे भेदभाव के कारण यह शब्द स्वयं चुना है।

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