HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

अभ्यासः

Class 8 Sanskrit Chapter 14 HBSE प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत-
(क) सूर्यः कस्यां दिशायाम् उदेति?
उत्तरम्:
पूर्वदिशायाम्

(ख) आर्यभटस्य वेधशाला कुत्र आसीत्?
उत्तरम्:
पाटलिपुत्रे

(ग) महान् गणितज्ञ: ज्योतिर्विच्च कः अस्ति?
उत्तरम्:
आर्यभटः

(घ) आर्यभटेन कः ग्रन्थः रचितः?
उत्तरम्:
आर्यभटीयम्

(ङ) अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम किम् अस्ति?
उत्तरम्:
आर्यभटम्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

Sanskrit Class 8 Chapter 14 Pdf HBSE प्रश्न 2.
सन्धिविच्छेदं कुरुत-
ग्रन्थोऽयम् – ______ + _________
सूर्याचलः – ______ + _________
तथैव – ______ + _________
कालातिगामिनी – ______ + _________
प्रथमोपग्रहस्य – ______ + _________
उत्तरम्:
ग्रन्थोऽयम् – ग्रन्थः + अयम्
सूर्याचलः – सूर्य + अचलः
तथैव – तथा + एव
कालातिगामिनी – काल + अतिगामिनी
प्रथमोपग्रहस्य – प्रथम + उपग्रहस्य

Class 8th Sanskrit Chapter 14 आर्यभटः प्रश्न 3.
अधोलिखितपदानां विपरीतार्थकपदानि लिखत-
उदयः – __________
अचल: – __________
अन्धकारः – __________
स्थिरः – __________
समादरः – __________
उत्तरम्:
उदयः – अस्तः
अचल: – चलः
अन्धकारः – प्रकाशः
स्थिरः – अस्थिरः
समादरः – निरादरः

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

Sanskrit Class 8 Chapter 14 आर्यभटः प्रश्न 4.
अधोलिखितानि पदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत-
साम्प्रतम् – _______________
निकषा – _______________
परितः – _______________
उपविष्टः – _______________
कर्मभूमिः – _______________
वैज्ञानिक: – _______________
उत्तरम्:
साम्प्रतम् – (अब) साम्प्रतं क्रीडनीयम्।
निकषा – (निकट) गृह निकषा मन्दिरम् अस्ति।
परितः – (चारों ओर) विद्यालय परितः वृक्षाः सन्ति।
उपविष्टः – (बैठा हुआ) सः उपविष्टः पठति।
कर्मभूमिः – (कर्मभूमि) पठनमेव में कर्मभूमिः।
वैज्ञानिक: – (वैज्ञानिक) अहं वैज्ञानिकः भवितुम् इच्छामि।

Sanskrit Class 8 Chapter 14 HBSE प्रश्न 5.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
नौकाम्, पृथिवी, तदा, चला, अस्तं
(क) सूर्यः पूर्वदिशायाम् उदेति पश्चिमदिशि च __________ गच्छति।
(ख) सूर्यः अचलः पृथिवी च __________।
(ग) __________ स्वकीये अक्षे घूर्णति।
(घ) यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते __________ चन्द्रग्रहणं भवति।
(ङ) नौकायाम् उपविष्टः मानवः __________ स्थिरामनुभवति।
उत्तरम्:
(क) अस्तं
(ख) चला
(ग) पृथिवी
(घ) तदा
(ङ) नौकाम्

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

प्रश्न 6.
उदाहरणानुसारं पदपरिचयं ददत-
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः -1
उत्तरम्:
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः -2

प्रश्न 7.
‘मति’ शब्दस्य रूपाणि पूरयत-
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः -3
उत्तरम्:
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः -4

योग्यता-विस्तारः

आर्यभट को अश्मकाचार्य नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि इनके जन्मस्थान के विषय में विवाद है। कोई इन्हें पाटलिपुत्र का कहते हैं तो कोई महाराष्ट्र का।

आर्यभट ने दशमलव पद्धति का प्रयोग करते हुए π (पाई) का मान निर्धारित किया। उन्होंने दशमलव के बाद के चार अंकों तक π के मान को निकाला। उनकी दृष्टि में π का मान है 3.1416। आधुनिक गणित में π का मान, दशमलव के बाद सात अंकों तक जाना जा सका है, तदनुसार π = 3.14169261

भारतीयज्योतिषशास्त्र- वैदिक युग में यज्ञ के काल अर्थात् शुभ मुहूर्त के ज्ञान के लिए ज्योतिषशास्त्र का उद्भव हुआ। कालान्तर में इसके अन्तर्गत ग्रहों का संचार, वर्ष, मास, पक्ष, वार, तिथि, घंटा आदि पर गहन विचार किया जाने लगा। लगध, आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, बालगंगाधर तिलक, रामानुजन् आदि हमारे देश के प्रमुख ज्योतिषशास्त्री हैं। आर्यभटीयम्, सौरसिद्धान्तः, बृहत्संहिता, लीलावती, पञ्चसिद्धान्तिका आदि ज्योतिष के प्रमुख संस्कृत ग्रन्थ हैं।

आर्यभटीयम्- आर्यभट ने 499 ई. में इस ग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ 20 आर्याछन्दों में निबद्ध है। इसमें ग्रहों की गणना के लिए कलि संवत् (499 ई.में 3600 कलि संवत्) को निश्चित किया गया है।

गणितज्योतिष- संख्या के द्वारा जहाँ काल की गणना हो, वह गणितज्योतिष है। ज्योतिषशास्त्र की तीन विधाओं यथा-सिद्धान्त, फलित एवं गणित में यह सर्वाधिक प्रमुख है।

फलितज्योतिष- इसके अन्तर्गत ग्रह नक्षत्रों आदि की स्थिति के आधार पर भाग्य, कर्म आदि का विवेचन किया जाता है।

वेधशाला- ग्रह, नक्षत्र आदि की गति, स्थिति की. जानकारी जहाँ गणना तथा यान्त्रिक विधि के आधार पर ली जाये वह वेध शाला है। यथा-जन्तर-मन्तर।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

मूलपाठः

पूर्वदिशायाम् उदेति सूर्यः पश्चिमदिशायां च अस्तं गच्छति इति दृश्यते हि लोके। परं न अनेन अवबोध्यमस्ति यत्सूर्यो गतिशील इति। सूर्योऽचल: पृथिवी च चला या स्वकीये अक्षे घूर्णति इति साम्प्रतं सुस्थापितः सिद्धान्तः। सिद्धान्तोऽयं प्राथम्येन येन प्रवर्तितः, स आसीत् महान् गणितज्ञः ज्योतिर्विच्च आर्यभटः।

पृथिवी स्थिरा वर्तते इति परम्परया प्रचलिता रूढिः तेन प्रत्यादिष्टा। तेन उदाहृतं यद् गतिशीलायां नौकायाम् उपविष्टः मानवः नौकां स्थिरामनुभवति, अन्यान् च पदार्थान् गतिशीलान् अवगच्छति। एवमेव गतिशीलायां पृथिव्याम् अवस्थितः मानवः पृथिवीं स्थिरामनुभवति सूर्यादिग्रहान् च गतिशीलान् वेत्ति।

476 तमे ख्रिस्ताब्दे (षट्सप्तत्यधिकचतुःशततमे वर्षे) आर्यभटः जन्म लब्धवानिति तेनैव विरचिते ‘आर्यभटीयम्’ इत्यस्मिन् ग्रन्थे उल्लिखितम्। ग्रन्थोऽयं तेन त्रयोविंशतितमे वयसि विरचितः। ऐतिहासिकस्त्रोतोभिः ज्ञायते यत् पाटलिपुत्र निकषा आर्यभटस्य वेधशाला आसीत्। अनेन इदम् अनुमीयते यत् तस्य कर्मभूमिः पाटलिपुत्रमेव आसीत्।

आर्यभटस्य योगदानं गणितज्योतिषा सम्बद्धं वर्तते यत्र संख्यानाम् आकलनं महत्त्वम् आदधाति। आर्यभटः फलितज्योतिषशास्त्रे न विश्वसिति स्म। गाणितीयपद्धत्या कृतप आकलनमाधृत्य एव तेन प्रतिपादितं यद् ग्रहणे राहु-केतुनामको, दानवौ नास्ति कारणम्। तत्र तु सूर्यचन्द्रपृथिवी इति त्रीणि एव कारणानि। सूर्य परितः भ्रमन्त्याः पृथिव्याः, चन्द्रस्य परिक्रमापथेन संयोगाद् ग्रहणं भवति। यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते तदा चन्द्रग्रहणं भवति। तथैव पृथ्वीसूर्ययोः मध्ये समागतस्य चन्द्रस्य छायापातेन सूर्यग्रहणं दृश्यते।

समाजे नूतनानां विचाराणां स्वीकारे प्रायः सामान्यजनाः काठिन्यमनुभवन्ति। भारतीयज्योतिःशास्त्रे तथैव आर्यभटस्यापि विरोधः अभवत्। तस्य सिद्धान्ताः उपेक्षिताः। स पण्डितम्मन्यानाम् उपहासपात्रं जातः। पुनरपि तस्य दृष्टि: कालातिगामिनी दृष्टा। आधुनिकैः वैज्ञानिकैः तस्मिन्, तस्य च सिद्धान्ते समादरः प्रकटितः। अस्मादेव कारणाद् अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम आर्यभट इति कृतम्।

वस्तुतः भारतीयायाः गणितपरम्परायाः अथ च विज्ञानपरम्परायाः असौ एकः शिखरपुरुषः आसीत्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

सन्धिविच्छेद:
सूर्यो गतिशील इति = सूर्यः + गतिशीलः + इति।
सूर्योऽचलः = सूर्य+ + अचल:।
सिद्धान्तोऽयम् = सिद्धान्तः + अयम्।
ज्योतिर्विच्च = ज्योतिः + विद् + च।
प्रत्याविष्य = प्रति + आदिष्य।
ख्रिस्ताब्दे = ख्रिस्त + अब्दे।
सप्तत्यधिक = सप्तति + अधिक।
तेनैव = तेन + एव।
इत्यस्मिन् = इति + अस्मिन्।
उल्लिखितम् = उत् + लिखितम्।
ग्रन्थोऽयम् = ग्रन्थः + अयम्।
नास्ति = न + अस्ति।
तथैव = तथा + एव।
आर्यभटस्यापि = आर्यभटस्य + अपि।
पुनरपि = पुनः + अपि।

संयोगः
अवबोध्यमस्ति = अवबोध्यम् + अस्ति।
स्थिरामनुर्भवति = स्थिराष्य + अनुभवति।
एवमेव = एवम् + एव।
लब्धवानिति = लब्धवान् + इति।
पाटलिपुत्रमेव = पाटलिपुत्रम् + एव।
आकलनमाधृत्य = आकलनम् + आधृत्य।
समागतस्य = सम् + आगतस्य।
काठिन्यमनुभवन्ति = काठिन्यम् + अनुभवन्ति।
समादरः = सम् + आदरः।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

पदार्थबोध:
उदेति = उदित होता है (उद्गच्छति, चकास्ति)।
लोके = संसार में (संसारे, जगति)।
अवबोध्यम् = जानने योग्य (ज्ञातव्यम्, ज्ञानीयम्)।
अचलः = गतिहीन, स्थिर (स्थिर:)।
चला = अस्थिर, गतिशील (गतिशीला, अस्थिरा)।
स्वकीये = अपने (आत्मीये)।
अक्षे = धुरी पर (ध्रुवके)।
घूर्णति = घूमती है (घूर्णनं करोति)।
सुस्थापितः = भली-भाँति स्थापित (सम्यक् स्थापितः)।
प्राथम्येन = प्राथमिकता से (प्राथमिकतया)।
ज्योतिविद् = ज्योतिषी (ज्योतिष्क:)।
रूढ़िः = प्रथा, परम्परा।
प्रत्यादिष्टा = खण्डन किया (खण्डितवान्)।
ख्रिस्ताब्दे = ईस्वी में (ईस्वीये)।
षट्सप्ततिः = छिहत्तर (षडधिकसप्ततिः)।
वयसि = आयु में (आयौ)।
निकषा = निकट (समीपे)।
वेधशाला = ग्रह-नक्षत्रों को जानने की प्रयोगशाला (ग्रह-ज्ञानशाला)।
आकलनम् = गणना।
आदधाति = रखता है (धारयति)।
भ्रमन्त्याः = घूमने वाली की (घूर्णन्त्याः )।
छायातपेन = छाया पड़ने से (छायावशात्)।
अवरुध्यते = रुक जाता है (अवबाध्यते)।
अपरत्र = दूसरी ओर (अन्यत्र)।
अवस्थितः = स्थित (स्थितः)।
उपेक्षिताः = नहीं माने गए (तिरस्कृताः)।
पण्डितम्मन्यानाम् = स्वयं को अधिक विद्वान् मानने वालों की (विद्वन्मन्यानाम्)।
कालातिगामिनी = समय को लाँघने वाली (कालजयिनी)।
प्रकटितः = प्रकट किया (प्रदर्शितः)।
असौ = वह (स:)।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

सरलार्थ:
सूर्य पूर्व दिशा में उदित होता है और पश्चिम दिशा में अस्त हो जाता है, यह देखा जाता है संसार में। परन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि सूर्य गतिशील है, ऐसा। सूर्य स्थिर है और पृथ्वी गतिशीला है जो अपने अक्ष (धुरी) पर घूमती है यह सिद्धान्त अब पूरी तरह स्थापित है। यह सिद्धान्त सबसे पहले जिसने स्थापित किया वे थे-महान् गणितज्ञ और ज्योतिषी ‘आर्यभट’। ‘पृथ्वी स्थिर है’ इस परम्परा वाली प्रथा को उन्होंने नकार दिया। उन्होंने उदाहरण दिया कि ‘गतिशील नौका में बैठा हुआ व्यक्ति नौका के स्थिर होने का अनुभव करता है और दूसरे पदार्थों को गतिशील समझता है।’ इसी प्रकार गतिशीला पृथ्वी में स्थित मानव पृथ्वी को स्थिर समझता है और सूर्यादि ग्रहों को गतिशील जानता है।

476 ई. सन् में आर्यभट ने जन्म लिया यह उनके द्वारा रचित ‘आर्यभटीयम्’ नामक ग्रन्थ में लिखित है। यह ग्रन्थ उन्होंने तेईसवें (23वें) वर्ष में रचा। ऐतिहासिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) के निकट आर्यभट की वेधशाला थी। इससे यह अनुमान किया जाता है कि उनकी कर्मभूमि पाटलिपुत्र ही थी।

आर्यभट का योगदान गणित-ज्योतिष से सम्बन्धित है, जहाँ संख्याओं का आंकलन (गणना) महत्त्व रखता है। आर्यभट फलित ज्योतिष शास्त्र में विश्वास नहीं करते थे। गणितीय पद्धति से किए गए आंकलन को ही आधार मानकर उन्होंने प्रतिपादित किया कि ग्रहण में राहु व केतु राक्षस कारण नहीं है। इसमें सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी ये तीन ही कारण हैं। सूर्य के चारों ओर घूमती हुई पृथ्वी के व चन्द्रमा के परिक्रमा पथ से संयोग होने के कारण ग्रहण होता है। जब पृथ्वी की छाया पड़ने से चन्द्रमा का प्रकाश रुक जाता है, तब चन्द्रग्रहण होता है। वैसे ही पृथ्वी और सूर्य के बीच आए हुए चन्द्रमा की छाया पड़ने से सूर्यग्रहण दिखाई देता है।

समाज में नए विचारों को अपनाने में प्रायः सामान्य लोग कठिनाई का अनुभव करते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में उसी प्रकार आर्यभट का विरोध भी हुआ। उसके सिद्धान्तों की उपेक्षा की गई। वे स्वयं को विद्वान् मानने वाले लोगों में उपहास के पात्र बने। फिर भी उनकी दृष्टि काल को लाँघने वाली थी। आधनिक वैज्ञानिकों के द्वारा उनमें व उनके सिद्धान्तों में आदर प्रकट किया गया है। इसी कारण से हमारे प्रथम उपग्रह का नाम ‘आर्यभट’ रखा गया।

वास्तव में ये भारतीय गणित-परम्परा तथा विज्ञान-परम्परा के शिखर (श्रेष्ठ) पुरुष थे।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

आर्यभटः Summary

आर्यभटः पाठ-परिचयः

ज्ञान-विज्ञान की सुदीर्घ परम्परा भारतवर्ष की अमूल्य निधि है। इस परम्परा को प्रबुद्ध मनीषियों ने सम्पोषित किया। आर्यभट इन्हीं मनीषियों में अग्रगण्य थे। दशमलव पद्धति आदि के प्रारम्भिक प्रयोक्ता आर्यभट ने गणित को नयी दिशा दी। इन्हें एवं इनके सिद्धान्तों को तत्कालीन रूढ़िवादियों का विरोध झेलना पड़ा। वस्तुतः गणित को विज्ञान बनाने वाले तथा गणितीय गणना पद्धति के द्वारा आकाशीय पिण्डों (नक्षत्रों) की गति का प्रवर्तन करने वाले ये प्रथम आचार्य थे। आचार्य आर्यभट के इसी वैदुष्य का उद्घाटन प्रस्तुत पाठ में है। अधिक जानकारी के लिए योग्यता-विस्तार: द्रष्टव्य है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *