HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 17 बाज और साँप

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 17 बाज और साँप Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 17 बाज और साँप

HBSE 8th Class Hindi बाज और साँप Textbook Questions and Answers

शीर्षक और नायक

बाज और सांप के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
लेखक ने इस कहानी का शीर्षक कहानी के दो पात्रों के आधार पर रखा है। लेखक ने इस कहानी के लिए बाज और साँप को ही क्यों चुना होगा? क्या यही कहानी किसी और पात्रों द्वारा भी कही जा सकती है? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
लेखक ने इस कहानी का शीर्षक कहानी के दो नायकों ‘बाज और साँप’ के आधार पर रखा है। लेखक ने इस कहानी के लिए बाज और साँप को ही निम्नलिखित कारणों से चुना होगा

  • दोनों एक-दूसरे के शत्रु हैं।
  • बाज जहाँ साहस-वीरता का प्रतीक है, वहीं साँप आलस्य एवं कायरता का प्रतीक है।
  • लेखक इन दो विरोधी भावों का संघर्ष दिखाकर साहसपूर्ण जीवन को प्रतिष्ठित करना चाहता था। किन्हीं अन्य नायक-नायिका की संभावना की चर्चा विद्यार्थी आपस में करें।

कहानी से

Baaz Aur Saanp Class 8 HBSE Hindi प्रश्न 1.
घायल होने के बाद भी बाज़ ने यह क्यों कहा, “मुझे कोई शिकायत नहीं है?” विचार प्रकट कीजिए।
उतर:
घायल होने के बाद भी बाज ने यह कहा कि ‘मुझे कोई शिकायत नहीं है।’ उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसने अपनी जिंदगी को भरपूर भोगा। जब तक उसके शरीर में ताकत रही तब तक ऐसा कोई सुख नहीं बचा जिसने उसने न भोगा हो। वह अपने जीवन से पूर्णतः संतुष्ट था।

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Baj Aur Saanp Class 8 HBSE Hindi प्रश्न 2.
बाज जिंदगी भर आकाश में ही उड़ता रहा, फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना क्यों चाहता था?
उत्तर:
बाज जिंदगी भर आकाश में उड़ता रहा, उसने आकाश की असीम ऊँचाइयों को अपने पंखों से नापा। बाज साहसी था। अत: कायर की मौत नहीं मरना चाहता था। वह अंतिम क्षण तक संघर्ष करना चाहता था। वह मरने से पहले अंतिम बार आकाश में उड़ लेना चाहता था। अत: उसने इसके लिए एक अतिम प्रयास किया, भले ही वह असफल हो गया।

बाज और सांप HBSE 8th Class प्रश्न 3.
साँप उड़ने की इच्छा को मूर्खतापूर्ण मानता था। फिर भी उसने उड़ने की कोशिश क्यों की?
उत्तर:
साँप उड़ने की इच्छा को मूर्खतापूर्ण मानता था। उसके लिए उड़ने और रेंगने में कोई अंतर न था। पर जब उसने बाज के मन में आकाश में उड़ने के लिए तड़प देखी तब साँप को भी लगा कि इस आकाश के रहस्य का पता लगाना ही चाहिए। तब उसने भी आकास में एक बार उड़ने की कोशिश करने का निश्चय किया।

प्रश्न 4.
बाज के लिए लहरों ने गीत क्यों गाया था?
उत्तर:
बाज के लिए लहरों ने गीत इसलिए गाया था क्योंकि वे बाज के साहसी, बीस्ता एवं स्वतंत्रता-प्रिय रूप को सलाम करना चाहती थीं। वे बाज के जीवन को अन्य लोगों के लिए प्रेरक के रूप में स्थापित करना चाहती थीं। वे बाज के जीवन को अमर मानती थीं।

प्रश्न 5.
घायल बाज को देखकर सांप खुश क्यों हुआ होगा?
उत्तर:
साँप का शत्रु बाज है। बाज साँप को खा जाता है। जब बाज घायल हो गया तब साँप का खुश होना स्वाभाविक था क्योंकि उसका शत्रु मरने वाला था।

कहाची से आगे

प्रश्न 1.
कहानी में से वे पंकिायाँ चुनकर लिखिए जिनसे स्थावता को प्रेरणा मिलती हो।
उत्तर :
“यदि तुम्हें स्वतंत्रता इतनी प्यारी है तो इस चट्टान के किनारे से ऊपर क्यों नहीं उड़ जाने की कोशिश करते। हो सकता है कि तुम्हारे पैरों में अभी इतनी ताकत बाकी हो कि तुम आकाश में उड़ सको। कोशिश करने में क्या हर्ज है?”

प्रश्न 2.
लहरों का गीत सुनने के बाद साँप ने क्या सोचा होगा? क्या उसने फिर से उड़ने की कोशिश की होगी? अपनी कल्पना से आगे की कहानी पूरी कीजिए।
उत्तर :
लहरों का गीत सुनने के बाद माँप ने यह सोचा होगा कि उसके शत्रु बाज का जीवन व्यर्थ नहीं था। पर उसने फिर से उड़ने की कोशिश नहीं की होगी क्योंकि पहले प्रयास में ही उसे कटु अनुभव हो चुका था। वह तो मरते-मरते बचा था। वह दुबारा अपनी जान को जोखिम में नहीं डाल सकता था।

प्रश्न 3.
क्या पक्षियों को उड़ते समय सचमुच आनंद का अनुभव होता होगा या स्वाभाविक कार्य में आनंद का अनुभव होता ही नहीं ? विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
हाँ, पक्षियों को उड़ते समय सचमुच आनंद का अनुभव होता होगा। वे अपनी उड़ान में किसी भी प्रकार की बाधा सहन नहीं करते। वे उड़ने में आनंद की अनुभूति करते हैं। स्वाभाविक कार्य में भी आनंद का अनुभव होता है। इसके विपरीत थोपे गए अस्वाभाविक कार्य में आनंद का अनुभव नहीं होता।

प्रश्न 4.
मानव ने भी हमेशा पक्षियों की तरह उड़ने की इच्छा मन में रखी है। मनुष्य की इस इच्छा का परिणाम क्या हुआ? आज मनुष्य उड़ने की इच्छा किन साधनों से पूरी करता है?
उत्तर :
मनुष्य ने भी पक्षियों की तरह उड़ने की इच्छा अपने मन में संजो कर रखी है। उसकी इच्छा का परिणाम यह हुआ कि उसने हवाई जहाज का आविष्कार कर दिखाया। आज मनुष्य अपने उड़ने की इच्छा की पूर्ति हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर आदि से करता है।

अनुमान और कल्पना

यदि इस कहानी के पात्र बाज और साँप न होकर कोई और होते तब कहानी कैसी होती ? अपनी कल्पना से लिखिए।
विद्यार्थी स्वयं करें।

भाषा की बात

1. कहानी में से अपनी पसंद के पाँच मुहावरे चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
मुहावरे :

  1. हिम्मत बाँधना-पुलिस के आने पर ही घर के लोगों की हिम्मत बँधी।
  2. अंतिम साँस गिवना-रोगी अस्पताल के बिस्तर पर अंतिम साँसें गिन रहा है।
  3. मन में आशा जागना-संत की बातें सुनकर मेरे मन में आशा जाग गई।
  4. कसर बाकी न रखना-तुम्हारा काम पूरा करने में मैं कोई कसर बाकी न रखूगा।
  5. प्राण हथेली पर रखकर घूमना-वीर पुरुष अपने प्राण हथेली पर रखकर घूमते हैं।

2. ‘आरामदेह’ शब्द में ‘देह’ प्रत्यय है। ‘देह’ ‘देने वाला’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। देने वाला के अर्थ में ‘द’, ‘पद’, ‘दाता’, ‘दाई’ आदि का प्रयोग भी होता है, जैसे-सुखद. सुखदाता, सुखदाई, सुखप्रद। उपर्युक्त समानार्थी प्रत्ययों को लेकर दो-दो शब्द बनाइए।
उत्तर:

  • द – सुखद, दुखद
  • दाता – अन्नदाता धनदात.
  • आई – दुखदाई, कष्टदाई
  • देह – आरामदेह, कष्टदेह

HBSE 8th Class Hindi बाज और साँप Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
जहाँ साँप रहता था, वहाँ कैसा प्राकृतिक दृश्य था?
उत्तर:
समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत की अंधेरी गुफा में एक साँप रहता था। समुद्र की तूफ़ानी लहरें धूप में चमकती, झिलमिलाती और दिनभर पर्वत की चट्टानों से टकराती रहती थीं। पर्वत की अंधेरी घाटियों में एक नदी भी बहती थी। अपने रास्ते पर बिखरे पत्थरों को तोड़ती, शोर मचाती हुई यह नदी बड़े जोर से समुद्र की ओर लपकती जाती थी। जिस जगह पर नदी और का मिलाप होता था, वहाँ लहरें दूध के झाग-सी सफ़ेद दिखाई देती थीं।

प्रश्न 2.
गुफा में बैठा साँप क्या देखता रहता था? वह मन ही मन खुश क्यों होता था?
उत्तर:
अपनी गुफा में बैठा हुआ साँप सब कुछ देखा करता–लहरों का गर्जन, आकाश में छिपती हुई पहाड़ियाँ, टेढ़ी-मेढ़ी बल खाती हुई नदी की गुस्से से भरी आवाजें। वह मन ही मन खुश होता था कि इस गर्जन-तर्जन के होते हुए भी वह सुखी और सुरक्षित है। कोई उसे दुख नहीं दे सकता। सबसे अलग, सबसे दूर, वह अपनी गुफा का स्वामी है। न किसी से लेना, न किसी को देना। दुनिया की भाग-दौड़, छीना-झपटी से वह दूर है। साँप के लिए यही सबसे बड़ा सुख था।

प्रश्न 3.
चट्टान की खोखल में बैठा साँप क्या सोचता रहा? फिर उसने क्या प्रयास किया और उसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
चट्टान की खोखल में बैठा हुआ साँप बड़ी देर तक बाज की मृत्यु और आकाश के लिए उसके प्रेम के विषय में सोचता रहा-
“आकाश की असीम शून्यता में क्या ऐसा आकर्षण छिपा है, जिसके लिए बाज ने अपने प्राण गंवा दिए? वह खुद तो मर गया लेकिन मेरे दिल का चैन अपने साथ ले गया। न जाने आकाश में क्या खजाना रखा है? एक बार तो मैं भी वहाँ जाकर उसके रहस्य का पता लगाऊँगा, चाहे कुछ देर के लिए ही हो। कम-से-कम उस आकाश का स्वाद तो चख लूँगा।”

यह कहकर साँप ने अपने शरीर को सिकोड़ा और आगे रेंगकर अपने को आकाश की शून्यता में छोड़ दिया। धूप में क्षण भर के लिए साँप का शरीर बिजली की लकीर-सा चमक गया। किंतु जिसने जीवन भर रेंगना सीखा था, वह भला क्या उड़ पाता? नीचे छोटी-छोटी चट्टानों पर धप्प से साँप जा गिरा। ईश्वर की कृपा से बेचारा बच गया, नहीं तो मरने में क्या कसर बाकी रही थी।

प्रश्न 4.
बाज के मरने के बाद साँप के आश्चर्य का ठिकाना क्यों न रहा? किसका गीत गूंज रहा था?
उत्तर:
साँप के आश्चर्य का ठिकाना तब नहीं रहा जब उसने सुना, चट्टानों के नीचे से एक मधुर, रहस्यमय गीत की आवाज उठ रही है। पहले उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। कितु कुछ देर बाद गीत के स्वर अधिक साफ सुनाई देने लगे। वह अपनी गुफा से बाहर आया और चट्टान से नीचे झाँकने लगा। सूरज की सुनहरी किरणों में समुद्र का नीला जल झिलमिला रहा था। चट्टानों को भिगोती हुई समुद्र की लहरों में गीत के स्वर फूट रहे थे। लहरों का यह गीत दूर-दूर तक गूंज रहा था।
साँप ने सुना, लहरें मधुर स्वर में गा रही हैं।

प्रश्न 5.
बाज ने मरने से पूर्व एक बार क्या प्रयास किया? उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
याज में एक नई आशा जग उठी। वह दूने उत्साह से अपने पायल शरीर को घसीटता हुआ चट्टान के किनारे तक खींच लाया। खुले आकाश को देखकर उसकी आँखें चमक उठीं। उसने एक गहरी, लंबी साँस ली और अपने पंख फैलाकर हवा में कूद पड़ा।

किंतु उसके टूटे पंखों में इतनी शक्ति नहीं थी कि उसके शरीर का बोझ संभाल सकें। पत्थर-सा उसका शरीर लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा। एक लहर ने उठकर उसके पंखों पर जमे खून को धो दिया, उसके थके-मांदे शरीर को सफेद फेन से ढक दिया, फिर अपनी गोद में समेटकर उसे अपने साथ सागर की ओर ले चली।

बाज और साँप गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. एक दिन एकाएक आकाश में उड़ता हुआ खून से लथपथ एक बाज साँप की उस गुफा में आ गिरा। उसकी धरती पर कितने ही जख्मों के निशान थे, पंख खून से सने थे और वह अधमरा-सा जोर-शोर से हाँफ रहा था। ज़मीन पर गिरते ही उसने एक दर्द भरी चीख मारी और पंखों को फड़फड़ाता हुआ धरती पर लोटने लगा। डर से साँप अपने कोने में सिकुड़ गया। किंतु दूसरे ही क्षण उसने भाँप लिया कि बाज जीवन की अंतिम साँसें गिन रहा है और उससे डरना बेकार है। यह सोचकर उसकी हिम्मत बँधी और वह रेंगता हुआ उस घायल पक्षी के पास जा पहुँचा। उसकी तरफ कुछ देर तक देखता रहा, फिर मन ही मन खुश होता हुआ बोला-“क्यों भाई, इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली?”
प्रश्न:
1. एकाएक क्या हुआ?
2. गिरने वाले की क्या दशा थी?
3. साँप की क्या हालत हुई?
4. साँप बाज से क्या बोला?
उत्तर :
1. एक दिन एकाएक आकाश में उड़ता हुआ बाज घायलावस्था में साँप की गुफा में आ गिरा।
2. बाज के शरीर पर जख्मों के निशान थे, पंख खून से सने थे और वह अधमरा होकर हाँफ रहा था।
3. बाज को देखकर पहले तो साँप अपने कोने में सिकुड़ गया, किंतु दूसरे ही क्षण उसने समझ लिया कि अंतिम साँस गिनते इस बाज से डरना व्यर्थ है। अत: उसमें हिम्मत का संचार हुआ।
4. साँप रेंगता हुआ घायल बाज के पास पहुँचा और मन ही मन खुश होते हुए बोला-क्यों भाई, इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली।

2. “सो उड़ने का यही आनंद है-भर पाया मैं तो! पक्षी भी कितने मूर्ख हैं। धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाइयों को नापना चाहते थे। किंतु अब मैंने जान लिया कि आकाश में कुछ नहीं रखा। केवल ढेर-सी रोशनी के सिवा वहाँ कुछ भी नहीं, शरीर को सँभालने के लिए कोई स्थान नहीं, कोई सहारा नहीं। फिर वे पक्षी किस बूते पर इतनी डींगें हाँकते हैं, किसलिए धरती के प्राणियों को इतना छोटा समझते हैं। अब मैं कभी धोखा नहीं खाऊँगा, मैंने आकाश देख लिया और खूब देख लिया। बाज तो बड़ी-बड़ी बातें बनाता था, आकाश के गण गाते थकता नहीं था। उसी की बातों में आकर मैं आकाश में कूदा था। ईश्वर भला करे, मरते-मरते बच गया। अब तो मेरी यह बात और भी पक्की हो गई है कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कहीं नहीं है। धरती पर रेंग लेता हूँ, मेरे लिए यह बहुत कुछ है। मुझे आकाश की स्वच्छंदता से क्या लेना-देना ? न वहाँ छत है, न दीवारें हैं, न रेंगने के लिए जमीन है। मेरा तो सिर चकराने लगता है। विल काँप-काँप जाता है। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है?”
प्रश्न :
1. ‘सो उड़ने का यही आनंद है-भर पाया मैं तो!’-यह किसने, किससे कहा?
2. साँप ने क्या बात जान ली थी?
3. साँप ने क्या निश्चय प्रकट किया?
4. साँप के लिए सुख की बात क्या है?
उत्तर:
1. यह बात साँप ने अन्य उड़ने वाले पक्षियों को लक्ष्य करके कही थी।
2. साँप ने यह बात जान ली थी कि इस आकाश में कुछ भी नहीं रखा है। वहाँ रोशनी के सिवाय कुछ भी नहीं है। वहाँ तो शरीर को सँभालने तक के लिए कोई स्थान या सहारा तक नहीं
3. साँप ने यह निश्चय प्रकट किया कि अब मैं आकाश के नाम पर कोई धोखा नहीं खाऊँगा। बाज इसके बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता था, पर वास्तविकता इसके उलट है।
4. साँप के लिए यही सुख की बात है कि वह अपनी खोखल में रहे, धरती पर रेंग ले।

बाज और साँप Summary in Hindi

बाज और साँप पाठ का सार

समुद्र के किनारे एक ऊँचे पर्वत की अँधेरी गुफा में एक साँप रहता था। पर्वत की अँधेरे घाटियों में एक नदी भी बहती थी। अपनी गुफा में बैठा साँप सब कुछ देखा करता था। नदी की गरजती लहरों के मध्य भी वह स्वयं को सुखी और सुरक्षित मानता था। वह सबसे अलग था। एक दिन आकाश में उड़ता हुआ खून से लथपथ एक बाज उस साँप की गुफा में आ गिरा।

वह अधमरी अवस्था में था। वह पंखों को फड़फड़ाता धरती पर लोटने लगा। डर के मारे साँप अपने कोने में सिकुड़ गया। पर जब उसने सोचा बाज तो मरने ही वाला है अत: उससे डरना व्यर्थ है। यह सोचकर उसकी हिम्मत बँधी और वह रेंगता हुआ घायल पक्षी के पास जा पहुँचा।

उसने मन में खुश होते हुए बाज से पूछा-“इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली?” बाज ने आह भरकर कहा-“मेरी आखिरी घड़ी आ पहुँची है लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं है। मैंने जिंदगी का सब सुख भोग लिया है। तुम्हारा यह दुर्भाग्य है कि तुम जिंदगी भर आकाश में उड़ने का आनंद कभी नहीं उठा पाओगे?” साँप बोला-“आकाश में रखा ही क्या है। क्या मैं इस आकाश में रेंग सकता हूँ? मेरे लिए तो गुफा ही भली।”

अचानक बाज ने अपना झुका हुआ सिर ऊपर उठाया। चट्टान की दरारों से पानी गुफा में टपक रहा था। गुफा में भयानक दुर्गध फैली थी। बाज के मुँह से एक करुण चीख फूट पड़ी-“काश, मैं सिर्फ एक बार आकाश में उड़ पाता।” साँप ने बाज से कहा-तुम इस चट्टान के किनारे से ऊपर क्यों नहीं उड़ जाने की कोशिश करते। हो सकता है तुम्हारे पैरों में इतनी ताकत बाकी हो कि तुम आकाश में उड़ सको। बाज में आशा जाग गई। वह अपने घायल शरीर को चट्टान के किनारे तक खींच लाया। वह अपने पंख फैलाकर हवा में कूद पड़ा। वह नदी में जा गिरा। समुद्र की लहर ने उसके जमे खून को धो दिया, सफेद फेन ने उसके शरीर को ढक दिया।

फिर लहर उसे सागर की ओर ले चली। धीरे-धीरे बाज आँखों से ओझल हो गया। साँप बड़ी देर तक बाज की मृत्यु और आकाश के लिए उसके प्रेम के विषय में सोचता रहा। फिर साँप ने अपने शरीर को सिकोड़ा और आगे रेंगकर अपने को आकाश की शून्यता में छोड़ दिया। छोटी चट्टानों पर धम्म से साँप जा गिरा। ईश्वर की कृपा से वह बच गया। साँप हँसते हुए कहने लगा-“यदि उड़ने का यह आनंद है तो मैं भर पाया। पक्षी भी कितने मूर्ख हैं। आकाश में कुछ नहीं रखा।

वहाँ शरीर को संभालने के लिए कोई स्थान नहीं है। पक्षी तो डींगें हाँकते रहते हैं। भला मुझे आकाश की स्वच्छंदता से क्या लेना-देना। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है ? बाज तो बड़ा अभागा था जिसने आकाश की आजादी को प्राप्त करने में अपने प्राणों की बाजी लगा दी।” तभी उसने लहरों का स्वर सुना। मानो वे कह रही थीं-हमारा गीत उन साहसी लोगों के लिए है जो अपने प्राणों को हथेली पर रखे हुए घूमते हैं। वे बाज को निडर बताते हुए उसके साहसी जीवन का गुणगान कर रही थीं।

बाज और साँप शब्दार्थ

पर्वत – पहाड़ (Mountain), गर्जन – तेज आवाज़ (Roar), सुरक्षित = बचाव (Safe), जख्म – घाव (Wounds), दुर्गंध – बदबू (Bad smell), वियोग = अलगाव (Departure), व्याकुल = बेचैन (Restless), शक्ति = ताकत (Power), ओझल – गायब (Disappear), असीम – सीमारहित (endless), शून्यता = खालीपन (emptiness), स्वच्छंदता – खुलापन (Freeness), रहस्यमय – रहस्य भरा (Mysterious), साहस = हिम्मत (Courage), वीरता – बहादुरी (Bravery)।

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