HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Samasaha Prakaran समास प्रकरण Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरण

समास-परिचय

समास-परस्पर सम्बद्ध अर्थ वाले दो या दो से अधिक पदों को मिलाकर एक पद बनाने की क्रिया को समास कहते हैं। समास प्रक्रिया द्वारा बने हुए एक पद को समस्त पद कहा जाता है। इसमें शब्दों की पहली विभक्तियों का लोप हो जाता है; जैसे-राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः। यहाँ पर समस्त पद राजपुरुषः में ‘राज्ञः’ की विभक्ति का लोप करके राज (न) शब्द का प्रयोग हुआ है।

विग्रह-जब समस्त-पद के सभी शब्दों को अर्थ बोध के लिए अलग-अलग करके उपयुक्त विभक्तियाँ लगा दी जाती हैं तो उसे विग्रह कहते हैं; जैसे-रामलक्ष्मणौ = रामः च लक्ष्मणः च। समास के भेद-

  1. अव्ययीभाव समास,
  2. तत्पुरुष समास,
  3. कर्मधारय समास,
  4. द्वन्द्व समास,
  5. द्विगु समास,
  6. बहुव्रीहि समास। इनकी परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

1. अव्ययीभाव समास:
अव्ययीभाव समास में पूर्व पद का अर्थ प्रधान होता है तथा पूर्व पद अव्यय होता है। उत्तर पद संज्ञा होता है। पूर्व पद तथा उत्तर पद को मिलाकर समस्त पद भी अव्यय बन जाता है तथा वह सदा नपुंसकलिङ्ग, एकवचन में रहता है; जैसे-यथाशक्ति, प्रतिदिनम्।

2. तत्पुरुष समास:
जब उत्तर पद के अर्थ की प्रधानता होती है और समस्त पद का लिङ्ग और वचन उसी के अनुसार होते हैं तो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे राजपुरुषः में पुरुष के अर्थ की प्रधानता है।

3. कर्मधारय समास:
कर्मधारय ऐसे समास को कहते हैं जिसमें सभी शब्दों का आधार एक ही हो। इसके विग्रह में दोनों पदों में एक ही विभक्ति रहती है। प्रायः इसमें पूर्व पद विशेषण तथा उत्तर पद विशेष्य होता है; जैसे-कृष्णसर्पः।

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरण

4. द्वन्द्व समास:
जिस समास में पूर्व पद तथा उत्तर पद की समान रूप से प्रधानता हो, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं; जैसे रामलक्ष्मणौ।

5. द्विगु समास:
ऐसा समानाधिकरण तत्पुरुष जिसमें पूर्व पद सङ्ख्यावाची हो, उसे द्विगु समास कहते हैं। इसका प्रयोग प्रायः समाहार या समूह अर्थ में होता है; जैसे-त्रिलोकी।

6. बहुव्रीहि समास:
जिस समास में न तो पूर्व पद प्रधान होता है, न ही उत्तर पद प्रधान होता है अपितु कोई अन्य पद ही प्रधान होता है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। बहुव्रीहि समास में दो या अधिक संज्ञा पद होते हैं तथा पदों का समास होने के उपरान्त समस्त पद से किसी अन्य ही संज्ञा का बोध होता है; जैसे-पीताम्बरः।

अव्ययीभाव समास
अव्ययीभाव समास विशेषतः जिन-जिन अर्थों में प्रयुक्त होता है, वे पाणिनि व्याकरण में एक सूत्र में परिगणित किए गए हैं। वे 16 अर्थ हैं-विभक्ति, सामीप्य, समृद्धि, अर्थाभाव, अत्यय, असम्प्रति, शब्द प्रादुर्भाव, पश्चात्, यथा, आनुपूर्व्य, यौगपद्य, सादृश्य, सम्पत्ति, साकल्य तथा अन्त। इन 16 अर्थों में वर्तमान अव्यय का सुबन्त के साथ समास होता है और उस समास को अव्ययीभाव कहते हैं।

प्रश्न-निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह करके समास का नाम लिखिए।

समस्त पद अर्थ विप्रह समास का नाम
अधिहरि हरि में हरौ इति अव्ययीभाव
अध्यात्मम् आत्मा में आत्मनि इति अव्ययीभाव
अधिरामम् राम में रामे इति अव्ययीभाव
अधिवनम् वन में वने इति अव्ययीभाव
अधितटम् तट में तटे इंति अव्ययीभाव
अधिगंगम् गंगा में गंगायाम् इति अव्ययीभाव
उपगंगम् गंगा के समीप गंगायाः समीपे अव्ययीभाव
उपगु गाय के समीप गो: समीपे अव्ययीभाव
उपनगरम् नगर के समीप नगरस्य समीपे अव्ययीभाव
उपकृष्णम् कृष्ण के समीप कृष्णस्य समीपे अव्ययीभाव
उपकूलम् कूल के समीप कूलस्य समीपे अव्ययीभाव
उपगुरु गुरु के समीप गुरोः समीपे अव्ययीभाव
उपनदि नदी के समीप नद्याः समीपे अव्ययीभाव
उपदेवम् देव के समीप देवस्य समीपे अव्ययीभाव
उपवनम् वन के समीप वनस्य समीपे अव्ययीभाव
उपतटम् तट के समीप तटस्य समीपे अव्ययीभाव
उपनयनम् नयन के समीप नयनस्य समीपे अव्ययीभाव
उपदिशम् दिशा के समीप दिशः समीपे अव्ययीभाव
सुमद्रम् मद्रवासियों की समृद्धि मद्राणां समृद्धि: अव्ययीभाव
सुभारतम् भारत का ऐश्वर्य भारतानां समृद्धि: अव्ययीभाव
सबंगम बंग का ऐशवर्ग्र बंगानां समृद्धि: अव्ययीभाव
सुपाञ्चालम् पाज्चाल देश का ऐश्वर्य पाञ्चालानाम् समृद्धि: अव्ययीभाव
सुक्षत्रम् क्षत्रियों की समृद्धि क्षत्राणाम् समृद्धि: अव्ययीभाव
निर्जनम् मनुष्यों का अभाव जनानाम् अभावः अव्ययीभाव
निष्कण्टकम् काँटों का अभाव कण्टकानाम् अभायः अव्ययीभाव
निर्मशकम् मच्छरों का अभाव मशकानाम् अभावः अव्ययीभाव
निर्मक्षिकम् मक्खियों का अभाव मक्षिकाणाम् अभावः अव्ययीभाव
निर्विध्नम् विघ्नों का अभाव विघ्नानामू अभावः अव्ययीभाव
अतिग्रीष्मम् ग्रीष्म की समाप्ति ग्रीष्मस्य अत्ययः अव्ययीभाव
अतिहिमम् हिम की समाप्ति हिमस्य अत्यय: अव्ययीभाव
अतिधनम् धन की समाप्ति धनस्य अत्ययः अव्ययीभाव
अतिपुष्पम् ग्रीष्म की समाप्ति पुष्पाणां अत्यय: अव्ययीभाव
अतियौवनम् हिम की समाप्ति यौवनस्य अत्ययः अव्ययीभाव
अतिशैशवम् धन की समाप्ति शैशवस्य अत्ययः अव्ययीभाव
अतिवसन्तम् फूलों की समाप्ति वसन्तस्य अत्यय: अव्ययीभाव
अतिवैरम् यौवन की समाप्ति वैरं सम्प्रति न युज्यते अव्ययीभाव
इतिहरि शैशव की समाप्ति हरि शब्दस्य प्रकाशः अव्ययीभाव
इतिभारतम् वसन्त की समाप्ति भारत शब्दस्य प्रकाशः अव्ययीभाव
अनुरथम् अब शत्तुता ठीक नहीं रथस्य पश्चात् अव्ययीभाव
अनुविष्णु हरि शब्द का प्रकाश विष्णो: पश्चात् अव्ययीभाव
अनुशम्भु भारत शब्द का प्रकाश शम्भोः पश्चात् अव्ययीभाव
अनुहरि रथ के पश्चात् हरे: पश्चात् अव्ययीभाव
अनुलतम् लता के पश्चात् लताया: पश्चात् अव्ययीभाव
अनुज्येष्ठम् बड़े से छोटे के क्रम से ज्येष्ठस्य आनुपूर्व्येण अव्ययीभाव
अनुवृद्धम् बूढ़े से छोटे के क्रम से वृद्धस्यानुपूर्व्येण अव्ययीभाव
अनुकनष्ठिम् कनिष्ठ के क्रम से कनिष्ठस्य आनुपूर्ण्येण अव्ययीभाव
प्रत्यहम हर दिन अहनि-अहनि अव्ययीभाव
प्रत्यक्षरम् हर अक्षर पर अक्षरम्-अक्षरम् अव्ययीभाव
प्रतिदिनमू हर दिन दिने-दिने अव्ययीभाव
प्रत्येकम् हर एक एकम्-एकम् अव्ययीभाव
प्रतिगृहम् हर घर पर गृहम्-गृहम् प्रति अव्ययीभाव
प्रत्यर्थम् हर अर्थ में अर्थम्-अर्थम् प्रति अव्ययीभाव
प्रतिक्षणम् हर क्षण क्षणे-क्षणे अव्ययीभाव
प्रतिवर्षम हर वर्ष वर्षे-वर्षे अव्ययीभाव
यथाशक्ति शक्ति के अनुसार शक्तिम् अनतिक्रम्य अव्ययीभाव
यथाविधि विधि के अनुसार विधिम् अनतिक्रम्य अव्ययीभाव
यथामति मति के अनुसार मतिम् अनतिक्रम्य अव्ययीभाव
यथानियमम् नियम के अनुसार नियमम् अनतिक्रम्य अव्ययीभाव
सचक्रम् चक्र के साथ चक्रेण युगपद् अव्ययीभाव
सजन्म जन्म के साथ जन्मना युगपद् अव्ययीभाव
सशैशवम् शैशव के साथ शैशवेन युगपद् अव्ययीभाव
सहरि हरि के समान हरे: सादृश्यम् अव्ययीभाव
ससखि मित्र के समान सख्याः सादृश्यम् अव्ययीभाव
सविष्णु विष्णु के समान विष्णोः सादृश्यम् अव्ययीभाव
सक्षत्रम् क्षात्र सम्पदा क्षत्राणाम् सम्पत्ति: अव्ययीभाव
सब्रहूम ब्रह्म सम्पदा ब्रहूमणम् सम्पत्ति: अव्ययीभाव
सतृणम् तिनकों सहित तृणम् अपि अपरित्यज्य अव्ययीभाव
आमुक्ति मोक्ष-प्राप्ति तक आ मुक्तेः अव्ययीभाव
आकुमारम् कमारों तक आ कुमारेभ्यः अव्ययीभाव
आजीवनम् जीवन पर्यन्त जीवनम् यावत् अव्ययीभाव
आबालम् बच्चों तक आ बालेभ्य: अव्ययीभाव
आनगरम् नगर तक आ नगरात् अव्ययीभाव
प्रत्यक्षम् आँखों के सामने अक्ष्णोः प्रति अव्ययीभाव
परोक्षम् आँख के परे अक्ष्णः परम् अव्ययीभाव
अन्वक्षम् आँख के पश्चात् अक्ष्णः पश्चात् अव्ययीभाव
समक्षम् आँखों के सामने अक्ष्णोः सम्मुखम् अव्ययीभाव

तत्पुरुष समास
जिस समास में उत्तर पद प्रधान होता है वह तत्पुरुष समास कहलाता है। यथा राज्ञः पुरुष = राजपुरुषः। यहाँ उत्तर पद ‘पुरुष’ की प्रधानता है, अतः यह तत्पुरुष समास हुआ।

तत्पुरुष समास के भेद-

  1. व्यधिकरण,
  2. समानाधिकरण तथा कर्मधारय तथा द्विगु तत्पुरुष।

कर्मधारय तथा द्विगु तत्पुरुष को समास के मुख्य भेदों में भी मान लिया जाता है। अतः यहाँ केवल व्यधिकरण तत्पुरुष का . ही विचार किया जाएगा।

व्यधिकरण तत्पुरुष व्यधिकरण तत्पुरुष के पुनः चार भेद हैं

  1. विभक्ति तत्पुरुष,
  2. अलुक् तत्पुरुष,
  3. नञ् तत्पुरुष,
  4. उपपद तत्पुरुष।

1. विभक्ति तत्पुरुष-विभक्ति तत्पुरुष के पुनः छः भेद हैं द्वितीया तत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष, चतुर्थी तत्पुरुष, पञ्चमी तत्पुरुष, षष्ठी तत्पुरुष तथा सप्तमी तत्पुरुष।

द्वितीया तत्पुरुष
द्वितीय तत्पुरुष समास में, विग्रह पूर्वपद द्वितीया विभक्ति में होता है तथा उत्तर पद में प्रायः निम्नलिखित पद रहते हैं श्रित, अतीत, पतित, गत, अत्यय, प्राप्त, आपन्न; जैसे

समस्त पद अर्थ विय्रह समास का नाम
कृष्णश्रितः कृष्ण का आश्रय लिए हुए कृष्णं श्रितः द्वितीया तत्पुरुष
रामाश्रितः राम का आश्रय लिए हुए राम श्रितः द्वितीया तत्पुरुष
दुःखातीतः दु:ख से पार गया हुआ दु:खं अतीतः द्वितीया तत्पुरुष
शोकातीतः शोक से परे गया हुआ शोकं अतीतः द्वितीया तत्पुरुष
कष्टातीतः कष्ट से परे गया हुआ कष्टम् अतीतः . द्वितीया तत्पुरुष
जलपतितः जल में गिरा हुआ जलं पतितः द्वितीया तत्पुरुष
अनलपतितः आग में गिरा हुआ अनलं पतितः द्वितीया तत्पुरुष
ग्रामगतः गाँव में गया हुआ ग्रामं गतः द्वितीया तत्पुरुष
गृहगत: घर में गया हुआ गृहं गतः द्वितीया तत्पुरुष
पुस्तकागतः पुस्तक में आया हुआ पुस्तकं आगतः द्वितीया तत्पुरुष
मेघात्यस्तः बादलों के पार पहुँचा हुआ मेघान अत्यस्तः द्वितीया तत्पुरुष

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरण

तृतीया तत्पुरुष
कर्त्ता और करण कारक में विद्यमान ततीया विभक्ति वाले शब्द का समान कृदन्त शब्द के साथ समास होता है; जैसे-

सुखयुक्तः सुख से युक्त सुखेन युक्तः तृतीया तत्पुरुष
देवदत्तः देव से दिया गया देवेन दत्तः तृतीया तत्पुरुष
रामदत्तः राम से दिया गया रामेण दत्तः तृतीया तत्पुरुष
ईशवरदत्तः ईश्वर से दिया गया ईश्वरेण दत्तः तृतीया तत्पुरुष
दिवसपूर्व: दिन से पहले दिवसेन पूर्वः तृतीया तत्पुरुष
हरित्रातः हरि से रक्षा किया गया हरिणा त्रातः तृतीया तत्पुरुष
विद्याहीन: विद्या से रहित विद्यया हीन: तृतीया तत्पुरुष
गुणहीनः गुणों से रहित गुणै: हीनः तृतीया तत्पुरुष
मदशून्य: मद से रहित मदेन शून्य: तृतीया तत्पुरुष
नखभिन्न नखों से काटा हुआ नखै: भिन्न: तृतीया तत्पुरुष
रामहतः राम से मारा हुआ रामेणः हतः तृतीया तत्पुरुष
बाणहतः बाण से मारा हुआ बाणेन हतः तृतीया तत्पुरुष

ततीयान्त शब्दों का खण्ड, अर्थ, पूर्व, अवर, सदृश, सम, अन, निपुण, मिश्र आदि से भी समास होता है; जैसे-

शंकुला खण्ड: सरौते से किया गया टुकड़ा सरौते से किया गया टुकड़ा तृतीया तत्पुरुष
धान्यार्थ: धान्य द्वारा प्राप्त धन धान्य द्वारा प्राप्त धन तृतीया तत्पुरुष
व्यापारार्थ: व्यापार से प्राप्त धन व्यापार से प्राप्त धन तृतीया तत्पुरुष
मास पूर्व: एक महीना पहले एक महीना पहले तृतीया तत्पुरुष
दिवस पूर्वः एक दिन पहले एक दिन पहले तृतीया तत्पुरुष
दिवसावरः एक दिन छोटा एक दिन छोटा तृतीया तत्पुरुष
पितृ सदृशः पिता के समान पिता के समान तृतीया तत्पुरुष
भ्रातृ सदृशः भाई के समान भाई के समान तृतीया तत्पुरुष
मासोनम् एक महीना कम एक महीना कम तृतीया तत्पुरुष
एकोनम् एक कम एक कम तृतीया तत्पुरुष
मित्रसमः मित्र के समान मित्र के समान तृतीया तत्पुरुष

चतुर्थी तत्पुरुष
चतुर्थी विभक्ति वाले शब्दों का तदर्थ, अर्थ, बलि, हित, सुख, रक्षित आदि के साथ समास होता है; जैसे-

यूपदारू यूप के लिए लकड़ी यूपाय दारू चतुर्थी तत्पुरुष
द्विजार्थः सूपः ब्राह्मण के लिए पाल द्विजाय सूप: चतुर्थी तत्तुरुष
कुण्डल हिरण्यम् कुण्डल के लिए सोना कुण्डलाय हिरण्यम् चतुर्थी तत्पुरुष
गोहितम् गौओं की भलाई गोभ्य: हितम् चतुर्थी तत्तुरुष
गोसुखम् गौओं के लिए सुख गोभ्यः सुखम् चतुर्थी तत्पुरुष
भूतबलिः भूतों के लिए अन्न भूतेभ्यः बलिः चतुर्थी तत्पुरुष
पाठशाला पाठ के लिए शाला पाठाय शाला चतुर्थी तत्पुरुष

पञ्चमी तत्पुरुष
पञ्चमी विभक्ति अन्त वाले शब्दों का भयवाचक शब्दों (यथा भयम्, भी) के साथ तथा अपेत, मुक्त, पतित, भ्रष्ट आदि शब्दों के साथा समास होता है; जैसे-

वृकभीति भेड़िए का डर वृकात् भीतिः पख्चमी तत्पुरुष
सिंहभीतिः शेर का डर सिंहात् भीतिः पञ्चमी तत्पुरुष
व्याघ्रभीतिः बाघ का डर व्याघ्रात् भीति: पख्चमी तत्पुरुष
सर्पभीतः साँप से डरा हुआ सर्पात् भीतः पञ्चमी तत्पुरुष
सुखापेतः सुख से वंचित सुखात् अपेतः पख्चमी तत्पुरुष
दुःखापेतः दु:ख से रहित दुःखात् अपेतः पञ्चमी तत्पुरुष
दु:खमुक्तः दु:ख से छूटा हुआ दुःखात् मुक्तः पख्चमी तत्पुरुष
संकट मुक्तः संकट से छूटा हुआ संकटात् पतितः पञ्चमी तत्पुरुष
आकाश पतितः आकाश से गिरा हुआ आकाशात् पतितः पख्चमी तत्पुरुष

षष्ठा तत्पुरुष
षष्ठी विभक्ति वाले शब्द का उत्तर पद के साथ समास होने से षष्ठी तत्पुरुष कहलाता है; जैसे-

विद्यालयः विद्या का स्थान विद्यायाः आलयः षष्ठी तत्पुरुष
देवालयः देवों का स्थान देवानाम् आलयः षष्ठी तत्पुरुष
हिमालय: हिम का स्थान हिमस्य आलय: षष्ठी तत्पुरुष
राजपुरुषः राजा का पुरुष राज्ञः पुरुषः षष्ठी तत्पुरुष
राजपुत्र: राजा का पुत्र राज्ञः पुत्र: षष्ठी तत्पुरुष
राम सेवक: राम का सेवक रामस्य सेवक: षष्ठी तत्पुरुष
स्वर्ण पात्रम् सोने का पात्र स्वर्णस्य पात्रम् षष्ठी तत्पुरुष
पूर्वरात्र: रात्रि का पहला भाग पूर्वं रात्रेः षष्ठी तत्पुरुष
सुखानुभूति सुख की अनुभूति सुखस्य अनुभूति: षष्ठी तत्पुरुष
सत्संगतिः सज्जनों की संगति सतां संगतिः षष्ठी तत्पुरुष

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सप्तमी तत्पुरुष
सप्तमी विभक्ति वाले शब्दों का जब अन्य शौण्ड, धूर्त, प्रवीण, निपुण आदि शब्दों के साथ समास होता है, तब उसे सप्तमी तत्पुरुष कहते हैं; जैसे-

समत्त पद अर्थ विप्रह समास का नाम
अक्षशौण्ड: जुए में प्रवीण अक्षेषु शौण्ड: सप्तमी तत्पुरुष
कर्मप्रवीण: कर्म में प्रवीण कर्मणि प्रवीण: सप्तमी तत्पुरुष
कार्यकुशलः कार्य में कुशल कार्ये कुशलः सप्तमी तत्पुरुष
अक्षधूर्तः जुए में धूर्त अक्षेषु धूर्तः सप्तमी तत्पुरुष
वाक्पटु: बोलने में चतुर वाचि पटु: सप्तमी तत्पुरुष
सभापण्डितः सभा में पण्डित सभायां पण्डितः सप्तमी तत्पुरुष
शास्त्रपण्डित: शास्त्रों में बुद्धिमान शास्त्रेषु पण्डितः सप्तमी तत्पुरुष
वनवासः बन में वास वने वासः सप्तमी तत्पुरुष

अलुक् तत्पुरुष
विभक्ति का लोप न होने पर अलुक् तत्पुरुष समास होता है; जैसे-

दिवड्गतः स्वर्ग को प्राप्त हुआ दिवंगतः द्वि० अलुक् तत्पुरुष
जन्मनान्ध: जन्म से अन्धा जन्मना अन्ध: तृ० अलुक् तत्पुरुष
परस्मैपदम् दूसरे के लिए पद परस्मै पदम् च० अलुक् तत्पुरुष
आत्मनेपदम् अपने लिए पद आत्मने पदम् च० अलुक् तत्पुरुष
दूरादागतः दूर से आया हुआ दूराद् आगतः पं० अलुक् तत्पुरुष
स्तोकान्मुक्तः थोड़े से मुक्त (छोड़ा हुआ) स्तोकात् मुक्तः पं० अलुक् तत्पुरुष
दास्याः पुत्रः दासी का पुत्र दास्याः पुत्र: ष० अलुक् तत्पुरुष

नज् तत्पुरुष
निषेध के अर्थ को बताने के लिए नज् शब्द का किसी भी शब्द के साथ समास हो जाता है। यदि उत्तर पद का प्रथम वर्ण व्यंजन हो तो ‘नज्’ का ‘अ’ शेष रह जाता है; जैसे-न (ज्ञ) + विद्या = अविद्या।

अब्राह्मणः ब्राह्मण नहीं न ब्राह्मण: नज्ञू तत्पुरुष
असत्यमू: सत्य नहीं न सत्यम् नज्ञू तत्पुरुष
अनुचितम् उचित नहीं न उचितम् नज्ञू तत्पुरुष
अनृतम् सच नहीं न ॠ्टमम नज्ञू तत्पुरुष
अनश्व: घोड़ा नहीं न अश्व: नज्ञू तत्पुरुष
अविद्या विद्या नहीं न विद्या: नज्ञू तत्पुरुष
अनेक: एक नहीं न एक. नज्ञू तत्पुरुष
अनुत्साह: उत्साह हीन न उदार नज्ञू तत्पुरुष
अनुदारः उदार नहीं न औचित्यम नज्ञू तत्पुरुष
अनौचित्यम् औचित्य नहीं न आचारः नज्ञू तत्पुरुष
अनाचारः आचार नहीं न आदि नज्ञू तत्पुरुष
अनादि आदि नहीं न ब्राह्मण: नज्ञू तत्पुरुष

उपपद तत्पुरुष
जब तत्पुरुष समास में किसी पद के पहले रहने के कारण किसी धातु से कोई कृत् प्रत्यय होता है, तब प्रथम पद को उपपद कहते हैं और दोनों पदों के समास को ‘उपपद तत्पुरुष’ कहते हैं; जैसे-

कुम्भकारः घड़े को बनाने वाला कुम्भं करोति इति उपपद तत्पुरुष
नगरकारः नगर को बनाने वाला नगरं करोति इति उपपद तत्पुरुष
स्वर्णकार: सोने के आभूषण बनाने वाला स्वर्ण करोति इति उपपद तत्पुरुष
सामग: साम का गायन करने वाला सामं गायति इति उपपद तत्पुरुष
धनद: धन देने वाला (कुबेर) धनं ददाति इतिं उपपद तत्तुरुष
जलदः जल देने वाला (बादल) जलं ददाति इति उपपद तत्पुरुष

प्रादि तत्पुरुष
जिस समस्त पद का पूर्व भाग उपसर्ग (प्रादि) हो, उसे प्रादि तत्पुरुष कहते हैं; जैसे-

कुपुरुष: बुरा पुरुष कुत्सितः पुरुषः प्रादि तत्पुरुष
प्राचार्यः अच्छे आचार्यः प्रगतः आचार्यः प्रादि तत्पुरुष
अतिरथः रथ से आगे रथम् अतिक्रान्तः प्रादि तत्पुरुष
अतिमाल: माला से आगे अतिक्रान्तः मालाम् प्रादि तत्पुरुष

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरण

गति तत्पुरुष
कुछ शब्दों के अनन्तर क्रिया से बने अव्यय लगने पर जो तत्पुरुष समास होता है, उसे गति तत्पुरुष कहते हैं; जैसे-

तिरस्कृत्य अनादर करके तिरः कृत्वा गति तत्पुरुष
अलंकृत्य सजा कर अलम् कृत्वा गति तत्पुरुष
पुरस्कृत्य पुरस्कार देकर पुरः कृत्वा गति तत्पुरुष

कर्मधारय तत्पुरुष
कर्मधारय ऐसे समास को कहते हैं जिसमें सभी शब्दों का आधार एक ही हो। इसके विग्रह वाक्य में दोनों पदों में एक ही विभक्ति रहती है। प्रायः इसमें पूर्व पद विशेषण होता है और उत्तर पद विशेष्य होता है; जैसे-

कृष्णसर्प: काला साँप कृष्णः च असौ सर्प: च विशेष्य कर्मधारय
नीलकमलम् नीला कमल नीलं च तत् कमलम् च विशेष्य कर्मधारय
नीलोत्पलम् नीला कमल नीलं च तत् उत्पलं च विशेष्य कर्मधारय
रक्तकमलम् लाल कमल रक्तं च तत् कमलं च विशेष्य कर्मधारय
पीताम्बरम् पीला कपड़ा पीतं च तत् अम्बरं च विशेष्य कर्मधारय
महारिपु: बड़ा शत्रु महानु च असौ रिपुः च विशेष्य कर्मधारय
महर्षि: महान् ऋषि महान् च असौ ऋषिः च विशेष्य कर्मधारय
परमराजः परम राजा परमः च असौराजा च विशेष्य कर्मधारय
क्षत्रियपत्नी क्षत्रिया पत्नी क्षत्रिया च सा पत्नी कर्मधारय
दीर्घनयनम् बड़ी आँख दीर्घं च तद् नयनं च कर्मधारय
ब्राह्मणभार्या ब्राह्मणी पत्नी ब्राहुमणी च सा भार्या च कर्मधारय

यदि विशेषण-विशेष्य के स्थान पर पूर्व पद तथा उत्तर पद परस्पर उपमान उपमेय हों तो भी कर्मधारय समास होता है; जैसे-

विद्युत् चफ्चला बिजली के समान चञ्चल विद्युत इव चञ्चला उपमानोपमेय
नृसिह: मनुष्य के समान श्रेष्ठ नरः सिंह इव उपमानोपमेय
पुरुषसिंह: पुरुष श्रेष्ठ पुरुषः सिंह इव उपमानोपमेय
घनश्यामः बादल के समान काला घन इव श्यामः उपमानोपमेय
रक्तपीतम् लाल पीला रक्तं च तत् पीतं च उभयपद-विशेषण कर्मधारय

द्विगु समास
यदि कर्मधारय समास का पूर्व पद सड्ख्यावाची शब्द हो तो वह द्विगु समास कहलाता है; जैसे-

त्रिभुवनम् तीनों भवनों का समूह त्रयाणां भुवनानां समाहारः द्विगु समास
त्रिलोकी तीनों लोकों का समूह त्रयाणां लोकानां समाहारः द्विगु समास
सप्ताहम् सात दिनों का समूह सप्तानां अह्नां समाहारः द्विगु समास
चतुर्युगम चारों युगों का समूह चतुर्णाम् युगानां समाहारः द्विगु समास
पख्चवटी पाँच बड़ के वृक्षों का समूह पज्चानां वटानां समाहारः द्विगु समास
पख्चरात्रम् पाँच रात्रियों का समूह पञ्चानां रात्रीणां समाहारः द्विगु समास
पञ्चग्रामम् पाँच गाँवों का समूह पञ्चानां ग्रामाणां समाहारः द्विगु समास

द्वन्द समास
जिस समास में उभय पद (दोनों पदों) की प्रधानता होती है, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। द्वन्द्व समास के तीन भेद होते हैं-
(क) इतरेतर द्वन्द्ध,
(ख) समाहार द्वन्द,
(ग) एकशेष द्वन्द्व।

(क) इतरेतर द्वन्द्ध :
जहाँ सभी पद प्रधान भी होते हैं तथा अपना अस्तित्व भी बनाए रखते हैं और अन्त में सड्ख्या के अनुसार वचन होता है, उसे इतरेतर द्वन्द्व कहते हैं, जैसे-

मातापितरौ माता और पिता माता च पिता च इतरेतर द्वन्द्व
सूर्यचन्द्रौ सूर्य और चन्द्रमा सूर्यः च चन्द्रः च इतरेतर द्वन्द्व
धर्मार्थकाममोक्षाः धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष धर्मः च अर्थः च कामः च मोक्षः च इतरेतर द्वन्द्व
गुरुशिष्यौ गुरु और शिष्य गुरुः च शिष्यः च इतरेतर द्वन्द्व
कन्यापुत्रौ कन्या और पुत्र कन्या च पुत्र: च इतरेतर द्वन्द्व
कृष्णार्जुनौ कृष्ण और अर्जुन कृष्णः च अर्जुनः च इतरेतर द्वन्द्व

(ख) समाहार द्वन्द्ध :
इसमें प्रत्येक पद की प्रधानता नहीं होती, अपितु उसमें एक सामूहिक अर्थ प्रकट होता है। यह समास सदा एकवचन और नपुंसकलिङ्ग में होता है; जैसे-

पाणिपादम्. हाथ और पाँव पाणी च पादौ च तेषां समाहारः समाहार द्वन्द्व
वाक्त्चम् वाणी और त्वचा वाक् च त्वक् च तयोः समाहारः समाहार द्वन्द्व
हस्तमुखमू हाथ और मुख हस्तौ च मुखं च तेषां समाहारः समाहार द्वन्द्व
मुखनेत्रम् मुख और नेत्र मुखं च नेत्रे च तेषां समाहार: समाहार द्वन्द्व
अहर्निशम् दिन और रात अहः च निशा च तयोः समाहारः समाहार द्वन्द्व

(ग) एकशेष द्वन्द:
जहाँ द्वन्द्व समास में केवल एक ही शब्द शेष रहे, वहाँ एकशेष द्वन्द्ध होता है; जैसे-

पितरौ माता और पिता माता च पिता च एकशेष द्वन्द्व
श्वशुरौ सास और ससुर श्वश्रूश्च श्वशुरश्च एकशेष द्वन्द्व
भ्रातरौ भाई और बहिन भ्राता च भगिनी च एकशेष द्वन्द

बहुव्रींहि समास
जिस समास में न तो पूर्व पद प्रधान होता है न उत्तर पद प्रधान होता है अपितु कोई अन्य पद ही प्रधान होता है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। बहुव्रीहि समास में दो या अधिक संज्ञा पद होते हैं तथा पदों का समास होने के उपरान्त समस्त पद से किसी अन्य ही संज्ञा का बोध होता है; जैसे-

समस्त पद अर्थ विग्रह समास का नाम
पीताम्बरः पीले कपड़े वाला पीतानि अम्बराणि यस्य सः बहुर्रीहि
वीरपुरुषः वीर पुरुषों वाला वीराः पुरुषाः यस्मिन् सः बहुत्रीहि
चक्रपाणि: चक्र है हाथ में जिसके चंक्रं पाणौ यस्य सः बहुत्रीहि
कमलनेत्र: कमल के समान आँखों वाला कमलं इव नेत्रे यस्य स: बहुत्रीहि
महानुभावः बड़े अनुभवों वाला महान्तः अनुभावाः यस्य सः बहुत्रीहि
षडाननः छः मुखों वाला षट् आननानि यस्य सः बहुव्रीहि
श्वेताम्बरः श्वेत वस्त्रों वाला श्वेतानि अम्बराणि यस्य सः बहुत्रीहि
प्राप्तोदक: जल को प्राप्त हुआ गाँव प्राप्तं उदकं यं सः बहुत्रीहि
निर्धनः जिसका धन निकल गया है निर्गतं धनं यस्मात् सः बहुत्रीहि
सत्यप्रिय: सत्य है प्रिय जिसको ऐसा सत्यं प्रियं यस्य सः बहुव्रीहि
केशाकेशि बाल पकड़कर हुई लड़ाई केशेषु गृहीत्वा वृत्तं इदं युद्धम् बहुत्रीहि
जगत्र्पिय: जगत् है प्रिय जिसको ऐसा जगत् प्रियं यस्य सः बहुत्रीहि
मृतपुत्रः मर गया है पुत्र जिसका मृतः पुत्रः यस्य सः बहुत्रीहि
महात्मा महान् है आत्मा जिसकी महान् आत्मा यस्य सः बहुव्रीहि
महाशय: महान् है आशय जिसका महानु आशयः यस्य सः बहुत्रीहि
महायशाः महान् है यश जिसका महत् यशः यस्य सः बहुत्रीहि
कमलासनः कमल है आसन जिसका कमलं आसनं यस्य सः बहुत्रीहि
दशवदनः दस हैं मुख जिसके दश वदनानि यस्य सः बहुव्रीहि
आयतलोचना लम्बी हैं आँखें जिसकी आयते लोचने यस्याः सा बहुत्रीहि
महाबलः महानू है बल जिसका महद् बलं यस्य सः बहुत्रीहि
सुहृद् अच्छा है हृदय जिसका शोभनं हृदयं यस्य स: बहुत्रीहि
चन्द्रमुखी चन्द्रमा के समान है मुख जिसका चन्द्र इवं मुखं यस्याः सा बहुव्रीहि
यशोधनः यश ही है धन जिसका वह यशः एव धनं यस्य सः बहुत्रीहि
चन्द्रशेखरः चन्द्र है जिसके शिखर पर चन्द्र: शेखरे यस्य सः बहुत्रीहि
चन्द्रमौलिः चन्द्र है जिसके मस्तक पर चन्द्र: मौलौ यस्य सः बहुत्रीहि
प्राप्तधन: धन प्राप्त हुआ है जिसको वह प्राप्तं धनं यं स: बहुव्रीहि
सत्यधनः संत्य ही है धन जिसका सत्यं एव धनं यस्य स: बहुत्रीहि
खड्गहस्तः तलवार है हाथ में जिसके वह खड्गः हस्ते यस्य सः बहुत्रीहि

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरण

प्रश्न:
निम्नलिखित विग्रह किए गए पदों के समस्त पद बनाकर समास का नाम लिखिए।

विग्रह समस्त पद अर्थ समास का नाम
यमुनायाम् इति अधियमुनम् यमुना में अव्ययीभाव
वैकुण्ठे इति अधिवैकुण्ठम् वैकुण्ठ में अव्ययीभाव
स्वर्गे इति अधिस्वर्गम् स्वर्ग में अव्ययीभाव
वध्वाः समीपे उपवधू वधू के समीप अव्ययीभाव
गजस्य समीपे उपगजम् गज के समीप अव्ययीभाय
गृहस्य समीपे उपगृहम् घर के समीप अव्ययीभाव
पञ्चालानाम् समृद्धि: सुपज्चालम् पंजाबियों की समृद्धि अव्ययीभाव
कलिड्गानाम् समृद्धि: सुकलिड्गम् कलिड्ग देशवासियों की समृद्धि अव्ययीभाव
दोषाणाम् अभावः निर्दोषम् दोषों का अभाव अव्ययीभाव
गोपानाम् अभावः निर्गोपम् गोपों का अभाव अव्ययीभाव
निद्रा सम्प्रति न युज्यते अतिनिद्रम् अब सोना ठीक नहीं अव्ययीभाव
पठनं सम्प्रति न युज्यते अतिपठनम् अब पढ़ना ठीक नहीं अव्ययीभाव
हसनम् सम्प्रति न युज्यते अतिहसनम् अब हँसना ठीक नहीं अव्ययीभाव
राम शब्दस्य प्रकाशः इतिरामम् राम शब्द का प्रकाश अव्ययीभाव
कृष्ण शब्दस्य प्रकाशः इतिकृष्णम् कृष्ण शब्द का प्रकाश अव्ययीभाव
गुणानां योग्यम् अनुगुणम् गुणों के योग्य अव्ययीभाव
रूपस्य योग्यम् अनुरूपम् रूप के योग्य अव्ययीभाव
गंगायाः पश्चात् अनुगंगम् गंगा के पश्चात् अव्ययीभाव
मासं मासं प्रति प्रतिमासम् हर मास अव्ययीभाव
दिशं-दिशं इति प्रतिदिशम् हर दिशा में अव्ययीभाव
स्थानं-स्थानं इति प्रतिस्थानम् हर जगह अव्ययीभाव
कालमनतिक्रम्य यथाकालम् काल के अनुसार अव्ययीभाव
इच्छामनतिक्रम्य यथेच्छम् इच्छा के अनुसार अव्ययीभाव
उक्तमनतिक्रम्य यथोक्तम् कहे अनुसार अव्ययीभाव
पत्रम् अपि अपरित्यज्य सपत्रम् पत्तों सहित अव्ययीभाव
बुसम् अपि अपरित्यज्य सबुसम् बुस सहित अव्ययीभाव
अग्नि-ग्रन्थ पर्यन्तम् साग्नि अग्नि ग्रन्थ तक अव्ययीभाव
आपाटलिपुत्रात् आपाटलिपुत्रम् पांटलिपुत्र तक अव्ययीभाव
आ नगरात् आनगरम् नगर तक अव्ययीभाव
जीविकां आपन्नः जीविकापन्न: जीविका को पाया हुआ द्वितीया तत्पुरुष
शरणं आपन्न: शरणापन्न: शरण में आया हुआ द्वितीया तत्पुरुष
अश्वं आरूढः अश्वारूढ: घोड़े पर चढ़ा हुआ द्वितीया तत्पुरुष
सुखं प्राप्तः सुखप्राप्तः सुख को प्राप्त द्वितीया तत्पुरुष
धनं प्राप्तः धन प्राप्तः धन को प्राप्त हुआ द्वितीया तत्पुरुष
परशुना छिन्नः परशु छिन्न: परशु से काटा हुआ तृतीया तत्पुरुष
हस्ताभ्यां ताडितः हस्तताडितः हाथों से पीटा हुआ तृतीया तत्पुरुष
प्रभुणा दत्तः प्रभुदत्तः प्रभु से दिया गया तृतीया तत्पुरुष
वाचा कलह वाक्कलह: वाणी से कलह तृतीया तत्पुरुष
वाचा युद्धम् वाग्युद्धम् वाणी से युद्ध तृतीया तत्पुरुष
आचारेण कुशल: आचारकुशलः आचार से कुशल तृतीया तत्पुरुष
पुत्राय रक्षितम् पुत्र रक्षितम् पुत्र के लिए रखा हुआ चतुर्थी तत्पुरुष
अजायै सुखम् अजा सुखम् बकरी के लिए सुख चतुर्थी तत्पुरुष
मानवेभ्यः हितम् मानवहितम् मानवों के लिए हित चतुर्थी तत्पुरुष
वृक्षात् पतितः वृक्ष पतितः वृक्ष से गिरा हुआ पञ्चमी तत्पुरुष
स्वर्गात् पतितः स्वर्ग पतितः स्वर्ग से गिरा हुआ पञ्चमी तत्पुरुष
मार्गात् भ्रष्ट: मार्ग भ्रष्ट: मार्ग से भ्रष्ट पञ्चमी तत्पुरुष
पूर्वं कायस्य पूर्वकायः शरीर का पहला भाग षष्ठी तत्पुरुष
भाग्यस्य उदयः भाग्योदय: भाग्य का उदय षष्ठी तत्पुरुष
सूर्यस्य उदयः सूर्योदयः सूर्य का उदय षष्ठी तत्पुरुष
मध्ये अन्तरः मध्यान्तरः बीच में खाली समय सप्तमी तत्पुरुष
चक्रे बन्ध: चक्रबन्धः चक्र में बँधा हुआ सप्तमी तत्पुरुष
कर्मणि कुशलः कर्मकुशलः कर्म में कुशल सप्तमी तत्पुरुष
सरसि जायते इति तत् सरसिजम् कमल सप्तमी अलुक् तत्पुरुष
युधि स्थिरः युधिष्ठिरः युद्ध में स्थिर अलुक् तत्पुरुष
खे चरति सः खेचर: पक्षी अलुक् तत्तुरुष
न उपस्थितः अनुपस्थितः उपस्थित नहीं नज् तत्पुरुष
न आगतः अनागतः न आया हुआ नज् तत्पुरुष
न पुरुषः अपुरुषः पुरुष नहीं नज् तत्पुरुष
विश्वं जयति इति विश्वजित् विश्व को जीतने वाला उपपद तत्पुरुष
इन्द्रं जयति इति इन्द्रजित् इन्द्र को जीतने वाला उपपद तत्पुरुष
खे गच्छति इति खगः आकाश में जाने वाला उपपद तत्पुरुष
प्रकृष्ट: वातः प्रवातः विशेष वायु प्रादि तत्पुरुष
अतिक्रान्तः मात्राम् अति मात्र: मात्रा से अधिक प्रादि तत्पुरुष
सत् कृत्वा सत्कृत्य सत्कार देकर प्रादि तत्पुरुष
साक्षात् कृत्वा साक्षात् कृत्वा साक्षात् करके गति तत्पुरुष
कृष्णः च असौ सखा च कृष्णसख: कृष्णमित्र गति तत्पुरुष
दुष्टः च असौ सर्पः च दुष्ट सर्पः दुष्ट साँप विशेष्य कर्मधारय
सुन्दरी च सा कन्या च सुन्दरकन्या सुन्दर कन्या विशेष्य कर्मधारय
कोमलः च असौ स्वरः च कोमल स्वरः कोमल स्वर विशेष्य कर्मधारय
पुण्यं च तद् अह: च पुण्याह: पुण्य दिवस कर्मधारय
उदारः च असौ जनः च उदारजनः उदार मनुष्य कर्मधारय
कमलम् इव मुखम् कमलमुखम् कमल के समान मुख कर्मधारय
मुखं चन्द्र: इव मुखचन्द्र: चन्द्रमा के समान मुख उपमानोपमेय
शीतं च तद् उष्णं च शीतोष्णम् ठण्डा गर्म उपमानोपमेय
श्वेतं च रक्तं च श्वेतरक्तम् श्वेत लाल उभयपद-विशेषण कर्मधारय
अष्टानां अध्यायानां समाह अष्टाध्यायी आठ अध्यायों का समूह उभयपद-विशेषण कर्मधारय
शतानां अब्दानां समाहारः शताब्दी सौ अब्दियों का समूह द्विगु समास
नवानां ग्रहाणां समाहारः नवग्रहम् नौ ग्रहों का समूह द्विगु समास
दशानां अब्दानां समाहारः दशाब्दी दश अब्दियों का समूह द्विगु समास
पज्चानां तन्त्राणां समाहारः पख्चतन्त्रमु पाँच तन्त्रों का समूह द्विगु समास
राधा च कृष्णः च राधाकृष्णौ राधा और कृष्ण द्विगु समास
रामः च लक्ष्मण: च रामलक्ष्मणो राम और लक्ष्मण इतरेतर द्वन्द्ध
मित्र: च वरुणः च मित्रावरुणौ मित्र औरं वरुण इतरेतर द्वन्द्ध
वृक्ष: च लता च वृक्षलते वृक्ष और बेल इतरेतर द्वन्द्ध
त्वक् च स्रक् च तयो: समाहारः त्वक्स्रजम् त्वचा और माला इतरेतर द्वन्द्ध
सुखं च दुःखं च तयो: समाहारः सुखदु:खम् सुख और दु:ख समाहार द्वन्द्व
हंसी च हंसश्च हंसौ हंस और हंसी समाहार द्वन्द्व
ब्राह्मणी च ब्रहุमणश्च ब्राह्मणौ ब्राह्मण और ब्राह्मणी एकशेष द्वन्द्व
मृगस्य नयने इव नयने यस्या: सा मृगनयनी मृग के समान आँखों वाली एकशेष द्वन्द्व
चन्द्र इव आननं यस्याः सा चन्द्रानना चन्द्रमा के समान मुख वाली बहुव्रीहि
विनयेन सह सविनयम् विनम्रता के साथ बहुत्रीहि
पुण्याः मतिः यस्य सः पुण्यमतिः पुण्य है मति जिसकी बहुव्रीहि
शुष्कं कण्ठं यस्य सः शुष्ककण्ठ: सूखा है गला जिसका बहुव्रीहि
जितानि इन्द्रियाणि येन सः जितेन्द्रिय: जीत ली हैं इन्द्रियाँ जिसने बहुव्रीहि
चत्वारि मुखानि यस्य सः चतुर्मुख: चार हैं मुख जिसके बहुप्रीहि
शोभनः गन्धः यस्य सः सुगन्धि: सुन्दर है गन्ध जिसकी बहुव्रीहि
समानः धर्मः यस्य स: समानधर्मा समान है धर्म जिसका बहुव्रीहि
चित्राः गावः यस्य सः चित्रगु: चित्रित गौ हैं जिसकी बहुव्रीहि

अभ्यासार्थ प्रश्नाः

I. 1. अव्ययीभाव समासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
2. कर्मधारय समासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
3. द्वन्द्व समासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
4. तत्पुरुष समासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
5. बहुव्रीहि समासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।

II. अधोलिखित प्रश्नानां प्रदत्तोत्तरविकल्पेषु शुद्धविकल्पं लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए विकल्पों में से शुद्ध विकल्प लिखिए)

1. ‘देवहितम् अत्र कः समासः?
(A) अव्ययीभावः
(B) कर्मधारयः
(C) तत्पुरुषः
(D) द्वन्द्वः

2. ‘निर्मान’ अत्र कः समासः?
(A) कर्मधारयः
(B) अव्ययीभावः
(C) बहुव्रीहिः
(D) द्वन्द्वः

3. ‘अम्बरस्थः’ अत्र कः समासः?
(A) द्वन्द्वः
(B) द्विगुः
(C) कर्मधारयः
(D) तत्पुरुषः

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरण

4. ‘मृच्छकटिकम्’ अत्र कः समासः?
(A) तत्पुरुषः
(B) कर्मधारयः
(C) बहुव्रीहिः
(D) द्वन्द्वः

5. ‘प्रत्यहम्’ इति पदे कः समासः ?
(A) तत्पुरुषः
(B) अव्ययीभावः
(C) द्वन्द्वः
(D) कर्मधारयः

6. ‘महार्णवः’ इत्यस्य समास विग्रहः अस्ति
(A) महान् च असौ अर्णवः
(B) महत् च अर्णवः
(C) महान् च अर्णवः
(D) महान् च असः अर्णवः

7. ‘अहनि अहनि प्रति’ अत्र किं समस्तपदम्?
(A) प्रत्यहन्
(B) प्रतिहनि
(C) प्रत्यहः
(D) प्रत्यहम्

8. ‘सुवर्णव्यवहारः’ इति समस्तपदस्य विग्रहः अस्ति ?
(A) सुवर्णस्य व्यवहारः
(B) वर्ण व्यवहार
(C) सुवर्ण व्यवहारः
(D) सुवर्ण व्यवहारः

9. ‘भारतानां माता’ इत्यस्य समस्तपदम् अस्ति
(A) भारतांमाता
(B) भारतमाता
(C) भारतानमाता
(D) भारतान्माता

10. ‘अविरुद्धम्’ अत्र किं नाम समासः?
(A) तत्पुरुषः
(B) द्वन्द्व
(C) द्विगुः
(D) नब् तत्पुरुषः

11. ‘यथापूर्वम्’ इति पदे कः समासः?
(A) तत्पुरुषः
(B) द्विगुः
(C) अव्ययीभावः
(D) द्वन्द्वः

12. ‘सुवर्णव्यवहारः’ इति समस्तपदस्य विग्रहः अस्ति?
(A) सुवर्णस्य व्यवहारः
(B) सुवर्ण व्यवहार
(C) सौवर्ण व्यवहार
(D) सुवर्ण व्यवहारे

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