HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् छंद प्रकरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् chhand Prakaran छंद प्रकरण Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Sanskrit व्याकरणम् छंद प्रकरण

छन्द

संस्कृत साहित्य में श्लोकों के लेखन एवं उच्चारण में वर्णों की एक निश्चित व्यवस्था की गई है। इस निश्चित व्यवस्था को ‘छन्द’ या ‘वृत्त’ कहते हैं।

परिभाषा-पद्य लिखते समय वर्णों की एक निश्चित व्यवस्था रखनी पड़ती है। इस व्यवस्था को ही ‘छन्द’ या ‘वृत्त’ कहते हैं। छन्द में ‘यति’, ‘गति’ इत्यादि के भी विशेष नियम होते हैं। गद्य सामान्य बोलचाल की भाषा के अनुसार होता है, जबकि पद्य में गति, लय और यति (विराम) का विशेष ध्यान रखा जाता है, जिससे भाषा में ‘गेयता’ आ जाती है अर्थात् छन्दोबद्ध वाक्य गाने के योग्य हो जाता है। यह गेयता लाने के लिए स्वरों अथवा वर्गों में सीमा-बन्धन करना पड़ता है। इस प्रकार कुछ विशेष नियमों में बद्ध (छन्दयुक्त) रचना को ही पद्य कहते हैं।

भेद:
सामान्यतः छन्द दो प्रकार के होते हैं

  1. वर्णिक छन्द वर्णिक छन्दों में प्रत्येक पाद में वर्गों की संख्या निश्चित होती है, जैसा कि ‘वर्णिक’ शब्द से ही स्पष्ट है; जैसे–इन्द्रवज्रा छन्द।
  2. मात्रिक छन्द-मात्रिक (जाति) छन्दों के प्रत्येक पाद में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है; जैसे-आर्या छन्द। चरण-प्रत्येक श्लोक में चार चरण (पाद या भाग) होते हैं। छन्द के चौथे भाग को चरण कहते हैं।

मात्राएँ गिनने की विधि-मात्राओं की गणना करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि ह्रस्व की एक मात्रा और दीर्घ की दो मात्राएँ होती हैं, परन्तु यदि किसी ह्रस्व से परे संयुक्त व्यंजन हो तो उस ह्रस्व को भी दीर्घ माना जाता है और उसकी भी दो मात्राएँ होती हैं।

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् छंद प्रकरण

गुरु तथा लघु-व्यवस्था
गुरु-अनुस्वारयुक्त (जैसे-क), विसर्गयुक्त (जैसे कः) तथा आ, ई, ऊ, ऋ, लु, ए, ऐ, ओ, औ गुरु (दीघ) होते हैं एवं संयुक्त वर्ण से पूर्व का वर्ण (जैसे-अङ्ग का ‘अ’) ह्रस्व होता हुआ भी दीर्घ माना जाता है और पद के अन्त वाला वर्ण भी गुरु होता है, जैसा कि ‘छन्दोमञ्जरी’ में इसकी व्यवस्था दी गई है-

सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गो च गुरुर्भवेत्।
वर्णः संयोगपूर्वश्च तथा पादान्तगोऽपि वा ॥

लघु इनके अतिरिक्त सभी वर्ण अ, इ, उ, ऋ, लु इत्यादि लघु (ह्रस्व) होते हैं।
गुरु का चिह्न ‘ड’ तथा लघु का चिह्न ।’ लगाया जाता है।

गण तथा गण-चिह्न छन्द में मात्राएँ गिनने के लिए तीन-तीन वर्णों का एक-एक गण बनाया जाता है। ये आठ गण निम्नलिखित हैं

  1. यगण – । ऽ ऽ
  2. मगण – ऽ ऽ ऽ
  3. तगण – ऽ ऽ ।
  4. रगण – ऽ । ऽ
  5. जगण – । ऽ ।
  6. भगण – ऽ । ।
  7. नगण – ऽ । ।
  8. सगण – । । ऽ

भगण आदि गुरु, जगण मध्य गुरु तथा सगण अन्त गुरु होते हैं। यगण आदि लघु, रगण मध्य लघु और तगण अन्त लघु होते हैं। मगण में गुरु और नगण में सभी वर्ण लघु होते हैं। जैसा कि ‘छन्दोमञ्जरी’ में कहा गया है कि

आदिमध्यावसानेषु भजसा यान्ति गौरवम्।
यरता लाघवं यान्ति मनौ तु गुरुलाघवम् ॥

इन गणों को समझने के लिए यह सूत्र याद रखना चाहिए-“यमाताराजभानसलगा”। इसके एक-एक वर्ण से एक-एक गण बनता है। इसमें पहले वर्ण के साथ अगले दो वर्गों को मिलाने से वह गण बन जाता है

‘य’ के साथ ‘मा’, ‘ता’ को मिलाने से ‘यमाता’ यगण । ऽ ऽ
‘मा’ के साथ ‘ता’, ‘रा’ को मिलाने से ‘मातारा’ मगण ऽ ऽ ऽ
‘ता’ के साथ ‘रा’, ‘ज’ को मिलाने से ‘ताराज’ तगण ऽ ऽ ।
‘रा’ के साथ ‘ज’, ‘भा’ को मिलाने से ‘राजभा’ रगण ऽ । ऽ
‘ज’ के साथ ‘भा’, ‘न’ को मिलाने से ‘भगण’ जगण । । ।
‘भा’ के साथ ‘न’, ‘स’ को मिलाने से ‘भानस’ भगण ऽ । ।
‘न’ के साथ ‘स’, ‘ल’ को मिलाने से ‘नसल’ नगण । । ।
‘स’ के साथ ‘ल’, ‘गा’ को मिलाने से ‘सलगा’ सगण । । ऽ

इस प्रकार उपर्युक्त सूत्र को याद करने से इन सभी गणों को उचित प्रकार समझा जा सकता है।

यति-विराम या रुकने को यति कहते हैं। छन्द पढ़ते समय छन्द के अनुसार जहाँ विराम होता है, वहाँ ‘यति’ होती है। यति के कारण स्वर में प्रवाह आता है और अर्थ को समझने में सुविधा रहती है।

वृत्त के भेद प्रायः प्रत्येक श्लोक के चार भाग होते हैं, जो पाद या चरण कहलाते हैं। जिस वृत्त के चारों चरणों में बराबर वर्ण हों, वह समवृत्त कहलाता है। जिस वृत्त के प्रथम एवं तृतीय तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण वर्णों की दृष्टि से समान हों, वह अर्द्ध समवृत्त होता है। जिस वृत्त के चारों चरणों में वर्गों की संख्या समान न हो, वह विषम वृत्त कहलाता है।

1. अनुष्टुप् (आठ वर्णों वाला समवृत्त)

लक्षण-श्लोके षष्ठं गुरुज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम् ।
द्विचतुष्पादयोः ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥

अर्थात् अनुष्टुप् (श्लोक) छन्द के प्रत्येक चरण में पाँचवाँ वर्ण लघु और छठा गुरु होता है। सातवाँ वर्ण दूसरे और चौथे चरणों में लघु होता है, किन्तु अन्य अर्थात् पहले और तीसरे चरणों में गुरु होता है। शेष वर्गों के लिए कोई नियम नहीं है, वे दीर्घ या ह्रस्व हो सकते हैं।

उदाहरण 1.
यगण जगण
। ऽ ऽ । ऽ ।
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
। ऽ ऽ । ऽ ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

उदाहरण 2.
यगण जगण
। ऽ ऽ । ऽ ।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
। ऽ ऽ । ऽ ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

उदाहरण 3.
ययातेरिव शर्मिष्ठा भर्तुर्बहुमता भव।
सुतं त्वमपि सम्राजं सेव पूरुमवाप्नुहि ॥

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2. इन्द्रवज्रा:
(त त ज ग ग ग्यारह वर्णों वाला समवृत्त)
लक्षण-स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः। अर्थात् जिस छन्द के प्रत्येक पाद में दो तगण, जगण और दो गुरु हों, उसे इन्द्रवज्रा छन्द कहते हैं।

उदाहरण 1.
तगण तगण जगण दो गुरु
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
अर्थो हि कन्या परकीय एव
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
तामद्य सप्रेष्य परिग्रहीतुः।
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
जातो ममायं विशदः प्रकामम्
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा॥

उदाहरण 2.
तगण तगण जगण दो गुरु
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
स्वर्गच्युतानामिह जीवलोके
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे।
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
देवार्चनं पण्डिततर्पणञ्च ॥

3. उपेन्द्रवजा:
(ज त ज ग ग ग्यारह वर्णों वाला समवृत्त)
लक्षण-उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ।। अर्थात् जिस छन्द के प्रत्येक पाद में क्रमशः जगण, तगण, जगण और दो गुरु होते हों, उसे उपेन्द्रवज्रा छन्द कहते हैं।

उदाहरण 1.
जगण तगण जगण दो गुरु
। ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
। ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
। ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
। ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥

उदाहरण 2.
जगण तगण जगण दो गुरु ।
। ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
पिता सखायो गुरवः स्त्रियश्च,
। ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
न निर्गुणानां हि भवन्ति लोके।
। ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
अनन्यभक्ताः प्रिय वादिनश्च,
। ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
हिताश्च वश्याश्च भवन्ति राजन् ॥

4. उपजातिः
(ग्यारह वर्णों वाला समवृत्त)
लक्षण-अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ पादौ यदीयावुपजातयस्ताः।
इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु स्मरन्ति जातिष्विदमेव नाम॥ अर्थात् जिस पद्य के चरणों में ‘इन्द्रवज्रा’ और ‘उपेन्द्रवज्रा’, दोनों छन्दों का मिश्रण हो और जिसके प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण हों, उसे उपजाति छन्द कहते हैं।

उदाहरण:
तगण तगण जगण गुरु
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा (इन्द्रवज्रा)
जगण तगण जगण दो गुरु
। ऽ । ऽ ऽ । ऽ । ऽ ऽ
हिमालयो नाम नगाधिराजः। (उपेन्द्रवज्रा).
तगण तग़ण जगण गुरु
ऽ ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य (इन्द्रवज्रा)
जगण तगण जगण गुरु
। ऽ । ऽ ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः ॥ (उपेन्द्रवज्रा)

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5. मालिनी:
(न न म य य पन्द्रह वर्णों वाला समवृत्त)

लक्षण-ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः
अर्थात् जिस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमशः दो नगण, मगण तथा दो यगण हों और पन्द्रह वर्ण हों, वह मालिनी छन्द कहलाता है। इसमें आठवें और पन्द्रहवें वर्ण के बाद यति होती है।

उदाहरण:
नगण नगण मगण यगण यगण
। । । । । । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ
सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि रम्यं,
। । । । । । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ
मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्म लक्ष्मी तनोति।
। । । । । । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ
इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी,
। । । । । । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ
किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।

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