Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 अधिकार
HBSE 11th Class Political Science अधिकार Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
अधिकार क्या हैं और वे महत्त्वपूर्ण क्यों हैं? अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार क्या हो सकते हैं?
उत्तर:
अधिकार सामान्य जीवन का एक ऐसा वातावरण है, जिसके बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का विकास कर ही नहीं सकता। अधिकार व्यक्ति के विकास और स्वतंत्रता का एक ऐसा दावा है जो कि व्यक्ति तथा समाज दोनों के लिए लाभदायक है, जिसे समाज मानता है और राज्य लागू करता है। अधिकार एक व्यक्ति की अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध अपनी सुविधा की मांग है। यह समाज पर एक दावा है, परंतु इसे हम शक्ति नहीं कह सकते, जैसा कि ऑस्टिन ने कहा है कि शक्ति हमें प्रकृति से प्राप्त होती है, जिसमें देखने, सुनने और दौड़ने आदि की शक्तियां सम्मिलित हैं।
परंतु यह बात ध्यान देने योग्य है कि व्यक्ति की प्रत्येक मांग को हम ‘दावा’ (Claim) नहीं कह सकते, क्योंकि मांग उचित भी हो सकती है अथवा अनुचित भी, नैतिक भी हो सकती है और अनैतिक भी। एक व्यक्ति की दूसरे को मारने अथवा लूटने की मांग को हम दावा नहीं कह सकते, क्योंकि इस दावे से दूसरे को हानि हो सकती है और समाज ऐसे दावे को कभी स्वीकार नहीं कर सकता।
केवल वही ‘दावा’ ही अधिकार बन सकता है जिसे समाज की स्वीकृति प्राप्त हो, परंतु एक ‘दावे’ के अधिकार बनने के लिए केवल इतना ही काफी नहीं है, समाज द्वारा स्वीकार व्यक्ति का केवल वही ‘दावा’ अधिकार का रूप ले सकता है, जिसे राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त हो जाए अर्थात राज्य उसे लागू करने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दे। बोसांके (Bosanque) ने लिखा है कि
“अधिकार मनुष्य का वह दावा है जिसे समाज स्वीकार करता है तथा राज्य लागू करता है।” व्यक्ति की नैतिक मांगें ही अधिकार बन सकती हैं, अनैतिक मांगें नहीं। जीवित रहने, संपत्ति रखने, विचार प्रकट करने आदि की मांगें नैतिक हैं, परंतु चोरी करने, मारने या गाली-गलौच करने की मांग अनैतिक है। जिन मांगों से व्यक्ति तथा समाज दोनों का ही हित होता हो, वे ही अधिकार कहलाएंगे।
प्रश्न 2.
किन आधारों पर यह अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं?
उत्तर:
अधिकार व्यापक होते हैं। वे किसी एक व्यक्ति या वर्ग के लिए नहीं होते, वरन् समाज के सभी लोगों के लिए समान होते हैं। अधिकारों को प्रदान करते समय किसी के साथ जाति, धर्म, वर्ण आदि का भेदभाव नहीं किया जा सकता; जैसे
(1) समाज में सभी व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप में सम्मानित जीवन जीने का अधिकार है। अतः व्यक्तियों के जीवन को कानून द्वारा पूर्णतः सुरक्षा प्रदान की जाती है। इसी तरह
(2) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भी समाज में रहने वाले सभी व्यक्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसी वजह से अधिकारों की प्रकृति सार्वभौमिक मानी जाती है। इसके अतिरिक्त
(3) शिक्षा का अधिकार हमें उपयोगी कौशल प्रदान करता है और जीवन में सूझ-बूझ के साथ चयन करने में सक्षम बनाता है। व्यक्ति के कल्याण के लिए शिक्षा अनिवार्य है। यही कारण है कि शिक्षा के अधिकार को सार्वभौमिक अधिकार माना गया है।
प्रश्न 3.
संक्षेप में उन नए अधिकारों की चर्चा कीजिए, जो हमारे देश में सामने रखे जा रहे हैं। उदाहरण के लिए आदिवासियों के अपने रहवास और जीने के तरीके को संरक्षित रखने तथा बच्चों के बँधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार जैसे नए अधिकारों को लिया जा सकता है।
उत्तर:
अब विविध समाजों में मानवाधिकारों के संदर्भ में नए-नए खतरे और चुनौतियाँ उभरने लगी हैं और इसी क्रम में उन मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती जा रही है जिनका लोगों ने परिस्थितियों के कारण दावा किया है; जैसे कुछ नए अधिकार निम्नलिखित हैं
(1) स्वच्छ हवा, शुद्ध जल और टिकाऊ विकास जैसे अधिकार की मांग या दावा आम बात हो गई है।
(2) महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए अधिकार की माँग भी आज प्रमुख दावों में सम्मिलित है।
(3) युद्ध या प्राकृतिक संकट के दौरान अनेक लोग, खासकर महिलाएँ, बच्चे या बीमार जिन बदलावों को झेलते हैं, उनके बारे में नई जागरूकता ने आजीविका के अधिकार, बच्चों के अधिकार और ऐसे अन्य अधिकारों की माँग उत्पन्न की है।
(4) महिला सशक्तिकरण के लिए लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की माँग भी निरन्तर बढ़ रही है।
(5) समाज के कमजोर/गरीब तबके के लोगों के लिए शौचालयों की व्यवस्था भी आज के समय में अपरिहार्य मांग बनती जा रही है।
प्रश्न 4.
राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अंतर बताइये। हर प्रकार के अधिकार के उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
नागरिकों के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों के अर्थों के साथ उनके अन्तर को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है
1. राजनीतिक अधिकार राजनीतिक अधिकार से अभिप्राय उन अधिकारों से है जिनमें नागरिक को देश की शासन प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिलता है। राजनीतिक अधिकार व्यक्ति को एक निश्चित योग्यता के आधार पर प्राप्त होता है; जैसे, मत देने के लिए एक निश्चित आयु सीमा निर्धारित की गई है, उसी प्रकार लोकसभा एवं विधानसभा के सदस्य बनने के लिए एक निश्चित आयु सीमा निर्धारित की गई है।
राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रताओं से जुड़े होते हैं। नागरिक स्वतंत्रता का अर्थ है-स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जाँच का अधिकार, विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार तथा प्रतिवाद करने और असहमति प्रकट करने का अधिकार । नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकार मिलकर किसी सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली के सफल संचालन के आधार बनते हैं।
2. आर्थिक अधिकार आर्थिक अधिकार उन सुविधाओं का नाम है जिनके कारण व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को अच्छी बना सकता है। कुछ मुख्य आर्थिक अधिकार हैं-काम करने का अधिकार, उचित मजदूरी पाने का अधिकार, काम के निश्चित घंटों का अधिकार, अवकाश का अधिकार और आर्थिक सुरक्षा का अधिकार आदि।
आर्थिक अधिकार राजनीतिक अधिकार से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि एक मजदूर और भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष करने वालों के लिए अपने-आप में राजनीतिक अधिकार का कोई मूल्य नहीं है। अतः राजनीतिक अधिकारों के उपयोग हेतु आर्थिक समानता आवश्यक है।
3. सांस्कृतिक अधिकार- अब अधिकांश लोकतांत्रिक देशों की सरकारों ने राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के साथ नागरिकों के सांस्कृतिक दावों को भी मान्यता प्रदान की है; जैसे अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार, अपनी भाषा लिपि और संस्कृति के शिक्षण के लिए संस्थाएँ बनाने के अधिकार को बेहतर जिंदगी जीने के लिए आवश्यक माना जा रहा है। हमारे भारतीय संविधान में भी हमने सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार को मूल अधिकार के रूप में प्रदान किया है।
प्रश्न 5.
अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएँ लगाते हैं। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अधिकार हमें केवल यहीं नहीं बताते कि राज्य को क्या करना है बल्कि हमें वे यह भी बताते हैं कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है। दूसरे शब्दों में, अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएँ या अंकुश भी लगाते हैं, जो अग्रलिखित रूप में स्पष्ट कर सकते हैं
(1) राज्य सत्ता केवल अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती। अगर वह किसी को जेल में बंद करना चाहती है, तो उसे इस कार्रवाई को उचित ठहराना पड़ेगा। उसे किसी न्यायालय के समक्ष उस व्यक्ति की स्वतंत्रता के विपरीत बन्दी बनाने का कारण बताना होगा।
(2) किसी को गिरफ्तार करने से पहले गिरफ्तारी का वारंट दिखाना पुलिस के लिए आवश्यक होता है।
(3) गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष अपने आपको दोष मुक्त करने का पूर्ण अधिकार होगा। ऐसा वह स्वयं या वकील की सहायता से भी कर सकता है।
इस प्रकार हमारे अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतंत्रता की मर्यादा का उल्लंघन किए बगैर काम करे। राज्य संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न सत्ता हो सकती है, उसके द्वारा निर्मित कानून बलपूर्वक लागू किए जा सकते हैं लेकिन संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य का अस्तित्व अपने लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति के हित के लिए होता है। अतः सत्तारूढ़ सरकार को जनता के कल्याण की दृष्टि से ही कार्य करना होता है, अन्यथा जनता राज्य सत्ता के विरुद्ध खड़ी हो सकती है।
अधिकार HBSE 11th Class Political Science Notes
→ अधिकार और कर्त्तव्य राजनीतिक विचारकों के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण विषय रहा है। जब से बुद्धिजीवी वर्ग ने संगठन समाज, राज्य, व्यक्ति तथा समाज के संबंधों का गंभीर अध्ययन करना आरंभ किया तब से व्यक्ति के अधिकार और कर्तव्य महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।
→ अधिकार को लेकर ही विश्व में कई क्रांतियां हुईं। अधिकार के प्रश्न पर अनेक वाद लिखे गए हैं। अधिकारों को लेकर ही प्रथम और द्वितीय महायुद्ध हुए। विश्व में अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का गठन भी अधिकारों की सुरक्षा के लिए ही किया गया है।
→ आधुनिक युग के प्रजातांत्रिक समय में अधिकारों की और भी अधिक महत्ता बढ़ गई है। राजनीतिक दल, सरकार, व्यक्ति और संस्थाओं के द्वारा अधिकारों की ही बात की जाती है।
→ प्रजातांत्रिक युग में प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति सजग हो चुका है और अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयत्न करता है। प्रस्तुत अध्याय में हम व्यक्ति के अधिकारों और कर्तव्यों का अध्ययन करेंगे।