HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 4 प्राणि जगत

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 4 प्राणि जगत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Solutions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 1.
यदि मूलभूत लक्षण ज्ञात न हों तो प्राणियों के वर्गीकरण में आप क्या परेशानियाँ महसूस करेंगे ?
उत्तर:
प्राणियों के मूलभूत लक्षणों के आधार पर ही उनकी पहचान व वर्गीकरण किया जाता है। यदि मूलभूत लक्षण ज्ञात न हों तो उनकी नये सिरे से पुनः जाँच की जायेगी तभी उनको वर्गीकृत किया जा सकेगा। इन्हीं लक्षणों के आधार पर वह किसी अन्य जीव से समानता व भिन्नता प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 2.
यदि आपको एक नमूना (स्पेसीमेन) दे दिया जाय तो वर्गीकरण हेतु आप क्या कदम अपनाएँगे ?
उत्तर:
वर्गीकरण हेतु किसी नमूने (स्पेसीमेन) के लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। वर्गीकरण हेतु कई आधार बनाये गये हैं। जैसे जीव एक कोशिकीय है या बहुकोशिकीय, कोशिका का प्रकार कैसा है ? शरीर, सममिति, देहगुहा, खंडीभव, शरीर योजना आदि। इन सबकी जानकारी के बाद नमूने की वर्गीकरण की स्थिति स्वयं स्पष्ट हो जायेगी।

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प्रश्न 3.
देहगुहा एवं प्रगुहा का अध्ययन प्राणियों के वर्गीकरण में किस प्रकार सहायक होता है ?
उत्तर:
प्रगुहा या सीलोम (Coelom) – शरीर भित्ति तथा आहार नाल के बीच में पाई जाने वाली गुहा को प्रगुहा या देहगुहा कहते हैं । इस गुहा की उपस्थिति या अनुपस्थिति वर्गीकरण का महत्वपूर्ण आधार है। इस गुहा का निर्माण भ्रूण ( embryo) के मीसोडर्म से होता है तथा इसी से यह गुहा स्तरित होती है। आद्य (primitive) जन्तुओं में इसका पूर्णतः अभाव होता है तथा पूर्ण विकसित जन्तुओं में देहगुहा भी पूर्ण विकसित होती है। लीच के जन्तु देहगुहा विकास की अन्ध विकासीय अवस्था प्रदर्शित करते हैं। देहगुहा शरीर को लचीलापन प्रदान करती है। देहगुहा की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर बहुकोशिकीय जन्तुओं को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है –

(1) अगुहीय या ऐसीलोमेट (Acoelomates) – इन जन्तुओं में शरीर गुहा नहीं पायी जाती है। अतः ये ‘अगुहीय’ कहलाते हैं, जैसे- प्लेटीहेल्मिथीज।

(2) कूटगुहिक या स्यूडोसीलोमेट (Pseudocoelomates) – कुछ प्राणियों में यह गुहा मीसोडर्म से आच्छादित नहीं होती, बल्कि भ्रूण की ब्लास्टोसील से विकसित होती है तथा त्वचा के बीच बिखरी हुई थैली के रूप में पायी जाती है, उन्हें कूटगुहिक कहते हैं, जैसे-ऐस्केल्मिथीज।

(3) प्रगुहीय या सीलोमेट (Coelomates) – जिन प्राणियों में वास्तविक देहगुहा (प्रगुहा या सीलोम) उपस्थित होती है और मीसोडर्म से आच्छादित होती है, उन्हें प्रगुहीय कहते हैं, जैसे-ऐनेलिडा, मोलस्का, आर्थ्रोपोडा, इकाइनोडमेंटा, हेमीकॉर्डेटा तथा कॉडेंटा संघ के प्राणी।

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प्रश्न 4.
अन्तःकोशिकीय एवं बाह्यकोशिकीय पाचन में विभेद करें।
उत्तर:
अन्तः कोशिकीय एवं बाह्य कोशिकीय पाचन में अन्तर (Differences between intracellular and extra- cellular digestion)

अन्तःकोशिकीय पाचन (Intracellular Digestion):
1. प्रोटोजोआ एवं पोरीफेरा संघ के प्राणियों में अन्तः कोशिकीय पाचन होता है। कोशिका के अन्दर होने वाला पाचन अन्तःकोशिकीय पाचन कहलाता है। लाइसोसोम के एंजाइम भोजन के पाचन में मदद करते हैं। पाचन के बाद खाद्य पदार्थ कोशिका द्रव में विसरित हो जाते हैं।
2. अपच खाद्य कोशिका से बाहर निकाल दिए जाते हैं। पचे खाद्यों का कोशिका में ही स्वांगीकरण हो जाता है।

बाह्यकोशिकीय पाचन (Extracellular Digestion):
1. ऐस्केल्मिथीज, ऐनेलिडा मोलस्का, आर्थ्रोपोडा, हेमीकॉर्डेटा, कॉर्डेटा संघ के प्राणियों में बाह्य कोशिकीय पाचन होता है।
2. इसमें भोजन का पाचन कोशिकाओं से बाहर आहार नाल में होता है तथा पचे हुए भोजन का अवशोषण कोशिकाओं द्वारा होता है अर्थात् एन्जाइम कोशिका से बाहर अपना कार्य करते हैं।

प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष परिवर्धन में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष परिवर्धन में अन्तर (Differences between Direct Development and Indirect Development)
प्रत्यक्ष परिवर्धन (Direct Development):
1. प्रत्यक्ष परिवर्धन में निषेचित अण्डे से निकला हुआ शिशु अपने जनकों जैसा होता है।
2. इसमें लार्वा अवस्था नहीं पायी जाती है।
उदाहरण-केंचुआ, जोंक, तितली आदि।

अप्रत्यक्ष परिवर्धन (Indirect Development):
1.अप्रत्यक्ष परिवर्धन में निषेचित अण्डे से निकला हुआ शिशु अपने जनकों से पूर्णतः भिन्न होता है।
2. वयस्क बनने से पूर्व लार्वा अवस्था पायी जाती है। लार्वा वयस्क से पूर्णतः
भिन्न होता है ।
उदाहरण-फीताकृमि (टेपवर्म) मेंढक आदि।

प्रश्न 6.
परजीवी प्लेटिहेल्पिन्थीज के विशेष लक्षण बताएँ।
उत्तर:
परजीवी प्लेटिहोल्मिन्थीज में जीव का शरीर परजीवी जीवन के लिए पूर्णत: अनुकूलित होता है ।

  • इनमें स्वयं का पाचन तन्त्र नहीं होता तथा यह अपनी देहभित्ति के द्वारा पोषक के शरीर से भोजन का अवशोषण करते हैं ।
  • इनके शरीर में प्रजनन इकाइयों की एक श्रृंखला होती है जो बड़ी संख्या में निषेचित अण्डे पैदा कर सकती है। यह पोषक के शरीर से बाहर आ जाते हैं तथा अगले पोषक के शरीर में संदूषित खाद्य या जल के माध्यम से प्रवेश कर जाते हैं।
  • इनमें अवायवीय श्वसन की क्षमता होती है।
  • पुनर्जनन (regeneration) की क्षमता पायी जाती है।
  • टेपकर्म में पोषक के शरीर से चिपकने हेतु चूषक पाये जाते हैं।
  • शरीर लम्बा व चपटा व परजीवी जीवन के अनुकूलित होता है।

प्रश्न 7.
आर्थोपोडा प्राणी समूह का सबसे बड़ा वर्ग है इस कथन के प्रमुख कारण बताइए ।
उत्तर:
आर्थोपोडा (Arthropoda) प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है। इसके सदस्य सभी प्रकार के आवासों— जल, स्थल, वायु, मृदा के नीचे, वृक्षों आदि सभी स्थानों पर पाये जाते हैं।

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आर्थोपोड्स की सफलता के कारण निम्नलिखित हैं –
1. शरीर पर क्यूटिकल के बने बाह्य कंकाल की उपस्थिति हल्का, दृढ़ पदार्थ है जो प्रोटीन व पॉलीसेकेराइड काइटिन (chitin) का बना होता है। खनिज कैल्शियम फास्फेट व कार्बोनेट का जमाव इसे और कड़ा बना देता है। इसे अनेक अंगों को आकार देने हेतु प्रयोग किया जा सकता है। यह पानी के लिए अपारगम्य है अतः इसका बना खोल जीव के शरीर को सूखने से बचाता है। इसी की उपस्थिति के कारण आर्थोपोड्स भूमि के सभी पर्यावरणों में रहने में सक्षम हुए हैं। वह सूखे रेगिस्तान से लेकर समुद्री पर्यावासों में रह सकते हैं।

1. कीट अपने काइटिन के बने पंखों के कारण उड़ने में सक्षम हुए। अतः इन्होंने जल, भूमि व वायु तीनों तरह के आवासों पर आधिपत्य जमा लिया। मुखांग विविध रूप से अनुकूलित होते हैं।

2. भूमि पर रहने वाले सभी आर्थोपोड्स में आन्तरिक निषेचन (internal fertilization) होता है। अतः निषेचित अण्डे के प्रतिकूल पर्यावरण के कारण नष्ट होने की सम्भावना हो जाती है।

3. जटिल आँख (compound eye), संवाद हेतु फेरोमोन का प्रयोग, अनेक संवेदांगों की उपस्थिति ने भी इनकी प्रगति में साथ दिया।

प्रश्न 8.
जल संवहन-तन्त्र किस संघ के मुख्य लक्षण हैं ?
(अ) पोरीफेरा
(ब) टीनोफोरा
(स) एकाइनोडर्मेटा
(द) कॉर्बेटा।
उत्तर:
जल- संवहन तन्त्र एकाइनोडर्मेटा संघ का प्रमुख लक्षण है।

प्रश्न 9.
सभी कशेरुकी (वर्टिब्रेट्स), रज्जुकी (कॉडेंट्स) हैं लेकिन सभी रज्जुकी कशेरुकी नहीं है। इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
सभी कशेरुकी (वर्टिब्रेट्स) रज्जुकी (कॉडेंट्स) हैं, क्योंकि इनमें कॉडेंट्स के समान निम्नलिखित तीन मुख्य लक्षण पाये जाते हैं-
1. सभी कॉडेंट्स प्राणियों के जीवन की किसी न किसी अवस्था में छड़नुमा, लचीली पृष्ठरज्जु (notochord ) पायी जाती है।
2. सभी कॉडेंट्स के शरीर की मध्य पृष्ठ रेखा पर पृष्ठीय नाल तन्त्रिका रज्जु, पृष्ठरज्जु के ऊपर स्थित होती है।
3. जीवन की किसी न किसी अवस्था में प्रसनीय क्लोम दरारें (pharyngeal gills clifts), पायी जाती हैं। सभी रज्जुकी कशेरुकी नहीं होते कुछ कार्डेट्स में नोटोकार्ड, कशेरुक दण्ड में रूपान्तरित नहीं होता है। अतः वह कार्डेट तो हुए लेकिन कशेरुकी नहीं अर्थात् कशेरुकियों (वर्टीब्रेट्स) में कशेरुक दण्ड ( vertebral column) पूर्ण विकसित होता है, जबकि प्रोटोकॉर्डेटा तथा ऐम्मेथा (protochordata and agnatha) के प्राणियों में कशेरुक दण्ड अनुपस्थित या अविकसित होता है। कशेरुक दण्ड का निर्माण पृष्ठरज्जु (नोटोकॉर्ड) से होता है।

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प्रश्न 10.
मछलियों में वायु आशय (एयर ब्लैडर) की उपस्थिति का क्या महत्व है ?
उत्तर:
मछलियों में वायु आशय (Air bladder) का महत्व – वायु आशय अस्थिल मछलियों (bony fishes) में पाया जाता है। यह ग्रासनली (oesophagus) की पृष्ठभित्ति से एक अपवर्ध ( outgrowth) के रूप में निकला रहता है। वायु आशय की भित्ति गैस स्त्रावित करके या गैस को अवशोषित करके हाइड्रोस्टेटिक अंग (hydrostatic organ) का कार्य करती है। इससे मछलियों का सन्तुलन बना रहता है। वायु आशय के प्रभाव से मछलियाँ जल में निरन्तर बिना प्रयास के भी तैरती रहती हैं और डूबने से बची रहती हैं। कुछ मछलियों में वायु आशय श्वसन में भी सहायक होते हैं।

प्रश्न 11.
पक्षियों में उड़ने हेतु क्या-क्या रूपान्तरण हैं ?
उत्तर:
पक्षियों में उड़ने के लिए रूपान्तरण-पक्षियों में वायवीय जीवन के लिए निम्नलिखित विशेष अनुकूलन पाये जाते हैं-
1. अग्रपाद पंखों (wings) में रूपान्तरित होते हैं।
2. शरीर धारारेखीय (streamlined) होता है।
3. शरीर को हल्का बनाने हेतु अस्थियाँ खोखली होती हैं। शरीर में वजन कम करने हेतु निम्नलिखित अनुकूलन भी होते हैं –
(a) मूत्राशय नहीं पाया जाता हैं।
(b) सिर्फ एक अण्डाशय पाया जाता है।
(c) शरीर परों से ढका रहता है जिनके बीच हवा भरी रहती है।
(d) सीने की पेशियाँ अत्यधिक विकसित होती हैं।
(e) हवा में दूर से ही भोजन की तलाश हेतु दृष्टि संवेदन अधिक विकसित होता है।

प्रश्न 12.
अण्डजनक तथा जरायुज द्वारा उत्पन्न अण्डे या बच्चे संख्या में बराबर होते हैं। यदि हाँ तो क्यों ? यदि नहीं तो क्यों ?
उत्तर:
अण्डजनक अधिक संख्या में अण्डे देते हैं। जरायुज अर्थात् शिशु को जन्म देने वाले प्राणियों में जन्म दिए जाने वाले शिशुओं की संख्या सीमित होती है। इसके कारण निम्नलिखित हैं-
अण्डे छोटे होते हैं। अण्डों में परिवर्धन प्रमुखतः जन्तु के शरीर के बाहर सम्पन्न होता है। अतः छोटे अण्डे बड़ी संख्या में दे दिए जाते हैं। शिशु को जन्म देने वाले जन्तुओं में शिशु का विकास शरीर के अन्दर सम्पन्न होता है। युग्मनज (zygote) से भ्रूण व शिशु बनने तक उसका आकार काफी बड़ा हो जाता है अतः केवल कुछ ही शिशु शरीर के अन्दर विकसित हो सकते हैं।

यह सभी पोषण भी प्रारम्भिक अवस्था में माँ के शरीर से ही प्राप्त करते हैं अतः माँ के शरीर से बहुत बड़ी संख्या में होने वाले शिशुओं को पोषण शरीर के अन्दर नहीं प्राप्त कराया जा सकता। चूँकि अण्डे शरीर से बाहर परिवर्धित होते हैं अतः उनके परभक्षियों द्वारा खाये जाने की सम्भावना या प्रतिकूल वातावरण मे नष्ट होने की सम्भावना भी अधिक होती है। अतः इस कमी को पूर्ण करने हेतु अधिक संख्या में पैदा होते हैं। अण्डे देने वाले अनेक जन्तुओं में निषेचन भी बाह्य होता है। इस हेतु बड़ी संख्या में अण्डे देना आवश्यक होता है ताकि निषेचन की सम्भावना को बढ़ाया जा सके।

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प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से शारीरिक खण्डीभवन किसमें पहले देखा गया ?
(अ) प्लेटिहेल्मिन्यीज
(ब) एस्केलमिंन्थीज
(स) ऐनेलिड
(द) आर्थोपोडा।
उत्तर:
(स) शारीरिक खण्डीभवन सबसे पहले ऐनेलिडा (Annelida) में देखा गया।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित का मिलान कीजिये-

(i) प्रच्छद (अ) टीनोफोरा
(ii) पार्श्वपाद (ब) मोलस्का
(iii) शल्क (स) पोरीफेरा
(iv) कंकत पट्टिका (काम्बप्लेट) (द) रेप्टीलिया
(v) रेडूला (ई) ऐनेलिडा
(vi) बाल (फ) साइक्लोस्टोमेटा एवं कॉण्ड्रिक्थीज
(vii) कीप कोशिका (कोएनोसाइट) (ग) मैमेलिया
(viii) क्लोम छिद्र (घ) आस्टिक्थीज

उत्तर:

(i) प्रच्छद (घ) आस्टिक्थीज
(ii) पार्श्वपाद (ई) ऐनेलिडा
(iii) शल्क (द) रेप्टीलिया
(iv) कंकत पट्टिका (काम्बप्लेट) (अ) टीनोफोरा
(v) रेडूला (ब) मोलस्का
(vi) बाल (ग) मैमेलिया
(vii) कीप कोशिका (कोएनोसाइट) (स) पोरीफेरा
(viii) क्लोम छिद्र (फ) साइक्लोस्टोमेटा एवं कॉण्ड्रिक्थीज

प्रश्न 15.
मनुष्यों पर पाये जाने वाले कुछ परजीवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मनुष्यों पर पाये जाने वाले कुछ परजीवी-

संघ परजीवी का नाम
1. आन्तरिक परजीवी: टेपवर्म (टीनिया सोलियम), लिवर फ्लूक, ब्लड फ्लूक, गोलकृमि (ऐस्केरिस), पिनवर्म (एन्टीरोबियस )।
2. बाहा परजीवी जूँ, प्यूबिक माइट्स।

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