HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण

प्रश्न 1.
वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आये परिवर्तनों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
अरस्तू (Aristotle) ने जीवधारियों को जन्तु तथा पादप में वर्गीकृत किया। इन्होंने जन्तुओं को पुनः इनैइमा (Enaima) तथा ऐनैइमा ( Anaima) में तथा पादपों को शाक, झाड़ी एवं वृक्ष में विभाजित किया। लीनियस ने अपनी पुस्तक सिस्टेमा नेचुरी में जीवधारियों को दो जगतों प्लांटी तथा एनीमेलिया में बाँटा । इनकी इस प्रणाली को द्विजगत प्रणाली कहते हैं। इनके द्वारा प्रतिपादित जन्तु जगत में एककोशिकीय प्रोटोजोआ एवं बहुकोशिकीय जन्तुओं को सम्मिलित किया गया। पादप जगत में सभी हरे पौधे मॉस, समुद्री घास, मशरूम, लाइकेन, कवक तथा जीवाणु को रखा गया है।

द्विजगत पद्धति में प्रोकैरियोटिक और यूकैरियोटिक जीवों को एक साथ रखा गया है। इसमें हरे पादपों एवं कवकों को एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय जीवों को तथा प्रकाशसंश्लेषी एवं अप्रकाशसंश्लेषी जीवों को एक साथ रखा गया। युग्लीना, माइकोप्लाज्मा आदि को कुछ वैज्ञानिक जन्तु जगत में और कुछ पादप जगत में मानते हैं। इसलिए जीव वैज्ञानिक हैकल (Hacckel; 1886) ने एक तीसरे जगत प्रोटिस्टा की स्थापना की। इसमें जीवाणु कवक, शैवाल तथा प्रोटोजोआ को रखा गया। आर. एच. डीटेकर (R. H. Whittaker) ने दो जगत एवं तीन जगत पद्धतियों को दोषमुक्त करने के लिये पाँच जगत वर्गीकरण प्रणाली स्थापित की। इन्होंने जीवधारियों को पाँच जगतों –
(i) मोनेरा
(ii) प्रोटिस्टा
(ii) फंजाई
(iv) प्लान्टी तथा
(v) एनीमेलिया में वर्गीकृत किया। यह वर्गीकरण कोशिका के प्रकार, कोशिकीय या शारीरिक संगठन, पोषण, पारिस्थितिक भूमिका (coological role ) एवं जातिवृत्तीय सम्बन्धों पर आधारित है।

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rRNA के क्रमों (sequences) में समानता के आधार पर कार्ल वीज (Corl Woese) ने तीन डोमेन वर्गीकरण दिया है जिसमें सभी जीवों को डोमेन वैक्टीरिया, डोमेन आर्किया तथा डोमेन यूकैरिया में विभाजित किया है। पाँच जगत वर्गीकरण के जगत् प्रोटिस्टा, फंजाई प्लाण्टी व एनीमेलिया जगत से बड़े संवर्ग डोमेन में सम्मिलित किए गए हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण उपयोगों को लिखिए-
(क) परपोषी बैक्टीरिया (Heterotrophic bacteria)
(ख) आद्य बैक्टीरिया (Archebacteria)
उत्तर:
(क) परपोषी बैक्टीरिया (Heterotrophic Bacteria) – इसके आर्थिक उपयोग निम्नलिखित हैं-
(i) लैक्टोबेसीलस दूध से दही बनाने में तथा अन्य दुग्ध उत्पाद बनाने में प्रयुक्त होते हैं स्ट्रेप्टोमाइसिस से एंटीबायोटिक्स बनती हैं।
(ii) बेसीलस यूरिन्जिएंसिस से प्राप्त जीन को कीटनाशक प्रतिरोधकता हेतु प्रयोग किया जाता है।

(ख) आद्य बैक्टीरिया (Archebacteria) ये विशिष्ट प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं। मीथेनोजन जुगाली करने वाले पशुओं (जैसे- गाय, भैंस) की आन्त्र में पाये जाते हैं, तथा
(i) मेथेन गैस (बायोगैस का उत्पादन होता है।
(ii) वाहितमल उपचार (sewage treatment) में प्रयोग किए जाते हैं।

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प्रश्न 3.
डाएटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण हैं ?
उत्तर:
डाएटम्स (Diatoms) एककोशिकीय प्रकाश संश्लेषी प्रोटिस्ट होते हैं। इनमें कोशिका भित्ति (cell wall) साबुनदानी की भाँति दो अतिछादित कवच (overlapped shell) बनाती है। कोशिका भिति में सेल्यूलोस के साथ अत्यधिक मात्रा में सिलिका कण पाये जाते हैं सिलिका की उपस्थिति के कारण इनका अपघटन आसानी से नहीं होता है। इस प्रकार मृत डाएटम्स अपने वातावरण में कोशिका भित्तियों के अवशेष बड़ी संख्या में छोड़ जाते हैं। लाखों वर्षों में जमा हुए इस अवशेष को डाएटमी भृदा कहते हैं। इस मृदा का प्रयोग अग्निसह ईंटें (fire resistant bricks) तथा सौन्दर्य प्रसाधन, पॉलीशिंग बनाने में किया जाता है।

प्रश्न 4.
‘शैवाल पुष्पन’ (Algal bloom) तथा ‘लाल तरंगें’ (Red-tides) क्या दर्शाती हैं ?
उत्तर:
शैवाल पुष्पन (Algal blooms) जलाशयों एवं पोखरों में जब पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है तो इन पर आश्रित शैवालों की संख्या में भी अपार वृद्धि होती है, इसे शैवाल पुष्पन (algal bloom) कहते हैं। यह शैवाल जल की सतह पर तैरते हैं। इनकी मृत्यु व इनके कार्बनिक पदार्थों पर जीवाणुओं की वृद्धि से जल दुर्गन्धयुक्त हो जाता है तथा यह स्थिति जलाशय के सुपोषीकरण (eutrophication) को जन्म देती है। इससे मछलियों की मृत्यु हो जाती है तथा यह जलाशय में जहरीले पदार्थ भी मुक्त करते हैं 1

लाल तरंगें (Red-tides) – प्रोटिस्ट डाएनोफ्लैजेलेट की संख्या में कभी इतनी वृद्धि होती है कि इन एककोशिकीय जीवों की संख्या एक मिमी. में 30000 तक हो जाती है। ऐसे ही डाएनोफ्लैजेलेट, गोनी आलेक्स (Goryantax) तथा जिम्नोडिनियम ब्रेक्सि (Gymnodinium brevis) के घनत्व में वृद्धि के कारण समुद्र के पानी का रंग लाल हो जाता है, जिसे रेड टाइड (Red tide) कहते हैं। यह एक न्यूरो ऑक्सिन भी बनाता है जिससे मछलियाँ मर जाती हैं।

प्रश्न 5.
वाइरस से वाइरॉइड किस प्रकार भिन्न होते हैं ?
उत्तर:
वाइरस तथा वाइरॉइड में अन्तर (Differences between virus and viroids) –

‘विषाणु (Virus)
1. वाइरस नाभिकीय अम्ल व प्रोटीन कोट के बने होते हैं।
2. इनमें आनुवंशिक पदार्थ DNA या RNA होता है।

वाइरॉइड (Viroid)
ये वाइरस से छोटे होते हैं। इनमें प्रोटीन कोट नहीं होता ।
इनमें आनुवंशिक पदार्थ RNA होता है।

प्रश्न 6.
प्रोटोजोआ के चार प्रमुख समूहों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रोटोजोआ (Protozoans ) –
ये जगत प्रोटिस्टा (Kingdom Protista) के अन्तर्गत आने वाले सुकेन्द्रकीय (eukaryotic), सूक्ष्मदर्शीय, एककोशिकीय, परपोषी तथा सरलतम जन्तुओं का समूह है। इनके चार समूह निम्न प्रकार हैं-

1. अमीबीय प्रोटोजोआ (Amoebic Protozoa) – ये स्वच्छजलीय या समुद्री प्रोटोजोअन्स हैं। इसके कुछ सदस्य गीली मृदा में भी पाये जाते हैं। समुद्री या लवणीय प्रोटोजोअन्स की सतह पर सिलिका का कवच पाया जाता है। प्रचलन कूटपादों (pseudopodia) की सहायता से होता है। एन्टअमीबा हिस्टोलाइटिका (Entamoeba histolytica) परजीवी प्रोटोजोआ है जो अमीबिक पेचिश (amoebic dysentery) रोग उत्पन्न करता है। उदाहरण- अमीबा (Amoeba) ।

2. कशाभी प्रोटोजोआ (Flagellate या Zooflagellates ) – इस समूह के सदस्य प्रायः परजीवी होते हैं। प्रचलन कशाभिकाओं (flagella) द्वारा होता है। ट्रिपेनोसोमा (Trypanosoma), कशाभी प्रोटोजोआ परजीवी होता है और अफ्रीकी निद्रालु रोग (african sleeping sickness) उत्पन्न करता है। लीशमानिया (Leishmania) से काला अजार रोग होता है।

3. पक्ष्माभी प्रोटोजोआ (Ciliate protozoans ) – इस समूह के सदस्य जलीय होते हैं। इनके सम्पूर्ण शरीर पर पक्ष्माभ (cilia) पाये जाते हैं। शरीर पर प्रोटीन का बना एक दृढ़ मगर लचीला आवरण होता है जिसे पेलिकल कहते हैं। पक्ष्माभों की तालबद्ध ( rythmic) गति के कारण भोजन कोशिका मुख में पहुँचता है। उदाहरण- पैरामीशियम (Paramecium)

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4. स्पोरोजोआ प्रोटोजोआ (Sporozoa Protozoa)- ये अन्तःपरजीवी होते हैं जो अन्य जीवों की कोशिका या ऊतकों में पाये जाते हैं। इनमें प्रचलन अंगों का अभाव होता है। इनका जीवन वृत्त जटिल अलैंगिक जनन बहुविभाजन द्वारा होता है। इनमें प्रायः बीजाणु जनन होता है। मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम (Plasmodium) इस समूह का प्रमुख सदस्य है जो मलेरिया (malaria) रोग उत्पन्न करता है।

प्रश्न 7.
पादप स्वपोषी हैं। क्या आप ऐसे कुछ पादपों को बता सकते हैं जो आंशिक रूप से परपोषित हैं ?
उत्तर:
परजीवी पौधे (Parasitic plants) – ये पौधे पूर्ण या आंशिक परजीवी होते हैं जो दूसरे पौधों से भोजन प्राप्त करते हैं। अमरबेल (Cuscata), रैपलीशिया (Rafflesia), गठवा (Orobanche) पूर्ण परजीवी पौधे हैं। चन्दन (Santalum ), विस्कम (Viscum), अपूर्ण या आंशिक परजीवी हैं। निओशिया (Neotia), मोनोट्रोपा (Monotropa) मृतोपजीवी पौधे हैं। नेपेन्थीज (Nepenthes), ड्रासेरा (Drosera), यूटीकुलेरिया (Utricularia) कीटाहारी पौधे हैं।

प्रश्न 8.
शैवालांश तथा कवकांश शब्दों से क्या पता चलता है ?
उत्तर:
शैवालांश ( Phycobionts) तथा कवकांश (Mycobionts), लाइकेन्स (Lichens) के दो जैविक घटक हैं। शैवाल तथा कवक दोनों घटक मिलकर एक सहजीवी संरचना लाइकेन बनाते हैं। लाइकेन का शैवालांश या शैवाल घटक, प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करता है और स्वपोषी भाग कहलाता है। कवकोश, शैवाल घटक को सुरक्षा प्रदान करता है तथा खनिज एवं जल अवशोषण करके शैवाल को उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 9.
कवक (फंजाई) जगत के वर्गों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं पर कीजिए-
(क) पोषण की विधि,
(ख) जनन की विधि
उत्तर:
कवक (फंजाई) जगत के प्रमुख वर्गों का तुलनात्मक विवरण –

फाइकोमाइसिटी (Phycomycetes) वर्ग एस्कोमाइसिटीज (Ascomycetes) वर्ग बेसीडियोमाइसिटीज (Basidiomycetes) वर्ग  

ड्यूटेरोमाइसिटीज (Deuteromycetes) वर्ग

(क) पोषण विधि के आधार पर
1. इस वर्ग के सदस्य उच्च पादपों पर अविकल्पी परजीवी (obligate parasite) होते हैं। उदाहरण मृतजीवी- राइजोपस परजीवी – एल्ब्यूगो इस वर्ग के सदस्य मृतजीवी, अपघटक, परजीवी या शमलरागी (coprophilous) होते हैं। उदाहरण मृतजीवी- मौर्केला, परजीवी क्लेवीसेप्स परप्युरिया इस वर्ग के सभी सदस्य मृतजीवी (Saprabiotic) या (Parasitic ) होते हैं। उदाहरण मृतजीवी – एगेरिकस परजीवी-सक्सीनिआ इस वर्ग के सदस्य भी मृतजीवी या परजीवी होते हैं।

उदाहरण परजीवी – अल्टरनेरिया

(ख) जनन की विधि के आधार पर
2. इनमें अलैंगिक जनन चल बीजाणुओं (zoospores) द्वारा होता है। ये बीजाणुधानी में अन्तर्जातीय उत्पन्न होते हैं। इनमें अलैंगिक जनन कोनीडिया (conidia) द्वारा होता है। इनमें लैंगिक बीजाणुओं का निर्माण प्रायः नहीं होता है। इनमें कोनिडिया द्वारा केवल अलैंगिक जनन होता है।
3. लैंगिक जनन (plasmogamy) समयुग्मकी असमयुग्मकी अथवा विषमयुग्मकी हो सकता है। लैंगिक अवस्था के बीजाणु एस्कोस्पोर कहलाते हैं जो एस्कस में अन्तर्जात (endogenously) रुप से बनते हैं। n +n अवस्था पाई जाती है। लैंगिक जनन के बीजाणु बैसिडियोस्पोर कहलाते हैं जो बैसीडियम पर बहिर्जात ( exogenously) रुप से बनते हैं। अवस्था (द्विकेन्द्रक प्रावस्था) n + n पाई जाती है। लैंगिक जनन ज्ञात नहीं है।
4. युग्मक संलयन करके युग्माणु बनाते हैं। ‘ऐस्कोकार्प (फलनकाय) बनते हैं। इसके फलनकाय को बैसीडियोकार्प कहते हैं। इनमें फलनकाय का निर्माण नहीं होता है।

प्रश्न 10.
युग्लीनॉइड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
युग्लीनॉइड के चारित्रिक लक्षण (Characteristic Features of Euglenoids) –
1. इनके अधिकांश सदस्य स्वच्छ तथा स्थिर जल ( stagnant water) में पाये जाते हैं।
2. इनमें कोशिका भित्ति नहीं पायी जाती किन्तु शरीर पर लचीला, प्रोटीनयुक्त रक्षात्मक आवरण पेलीकल (pellicle) पाया जाता है।
3. इनमें एक चाबुक के समान कशाभ पाया जाता है।
4. उच्च पादपों के समान प्रकाश संश्लेषी वर्णक (pigments) पाये जाते हैं।
5. ये स्वपोषी या जन्तु समभोजी होते हैं। यह इनका एक अनूठा व विशिष्ट गुण है। अतः इन्हें जन्तु एवं पादप के बीच एक कड़ी के रूप में माना जाता है।
उदाहरण: युग्लीना (Euglena)

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प्रश्न 11.
संरचना तथा आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति के सन्दर्भ में वाइरस का संक्षिप्त विवरण दीजिये। वाइरस से होने वाले चार रोगों के नाम भी लिखिए।
उत्तर:
विषाणु (Virus):
ये अतिसूक्ष्म जीवित कण हैं, जो केवल नाभिकीय अम्ल तथा प्रोटीन के बने होते हैं। प्रत्येक वाइरल कण में DNA या RNA का बना एक केन्द्रीय कोर (Core) होता है जो प्रोटीन के एक खोल कैप्सिड (capsid) द्वारा घिरा होता है। किसी भी वाइरस में DNA तथा RNA दोनों एक साथ नहीं पाये जाते हैं। प्रोटीन आवरण छोटी-छोटी उप इकाइयों से बना होता है जिन्हें कैप्सोमीअर कहते हैं। यह गोल, बहुभुजी, छड़ाकार, टैडपोल के आकार के हो सकते हैं।

सभी पादप विषाणुओं में एकरज्जुकी (single stranded ) RNA तथा सभी जन्तु विषाणुओं में एक अथवा द्विरज्जुकी RNA अथवा DNA होता है। जीवाणुभोजी (Bacteriophage) में द्विरज्जुकी (double stranded) DNA होता है। विषाणुओं से होने वाले रोग (Disease caused by virus) – मनुष्य में विषाणुओं द्वारा – एड्स (AIDS), इन्फ्लुएंजा (influenza), मम्प्स (mumps ), हिपेटाइटिस (hepatitis) आदि तथा पादपों में पौधों का मोजैक टमाटर का पूर्ण वेलन, केला का बन्ची टॉप पर्ण कुंचन आदि रोग होते हैं।

विषाणुओं से होने वाले रोग (Disease caused by virus) – मनुष्य में विषाणुओं द्वारा – एड्स (AIDS), इन्फ्लुएंजा (influenza ), मम्प्स (mumps), हिपेटाइटिस ( hepatitis) आदि तथा पादपों में पौधों का मोजैक टमाटर का पर्ण वेलन, केला का बन्ची टॉप, पर्ण कुंचन आदि रोग होते हैं।

प्रश्न 12.
अपनी कक्षा में इस शीर्षक ‘क्या वाइरस सजीव है अथवा निर्जीव पर चर्चा करें।
उत्तर:
विषाणुओं को सजीव तथा निर्जीव के बीच की कड़ी माना जाता है। निर्जीव पदार्थ की तरह क्रिस्टलीकृत किए जा सकने योग्य विषाणुओं में जीवाधारियों के विभेदक लक्षण जैसे – कोशिकीय संरचना, उपापचय आदि नहीं पाये जाते हैं। अतः इस दृष्टि से यह जीवों की श्रेणी में सम्मिलित नहीं किए जा सकते हैं लेकिन चूंकि इनमें पोषक कोशिकीओं के अन्दर गुणन (Multiplication) प्रजनन की क्षमता होती है अतः इन्हें जीव मानना उचित प्रतीत होता है। कुछ वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि विषाणु अत्यधिक विकसित जीव हैं जिनमें अनेक जैविक गुणों का ह्रास हो गया है। यह पोषक कोशिका के आनुवंशिक पदार्थ पर नियन्त्रण कर उसके उपापचय को अपने हित में प्रयोग करते हैं।

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