HBSE 10th Class Social Science Notes History Chapter 8 उपन्यास, समाज और इतिहास

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Notes History Chapter 8 उपन्यास, समाज और इतिहास Notes.

Haryana Board 10th Class Social Science Notes History Chapter 8 उपन्यास, समाज और इतिहास

उपन्यास, समाज और इतिहास Notes HBSE 10th Class

1. उपन्यास का उदय
→ उपन्यास का आगमन छापेखाने के मशीनी आविष्कार से हुआ। अगर में उपन्यास पढ़ना है तो इसका किताब के रूप में छापकर हमारे सामने आना जरूरी है। किताब के रूप में उपन्यास को अधिक रूप से लोकप्रियता मिली तथा पढ़ने वालों के वर्ग में वृद्धि हुई।

→ अब छोटे शहरों में भी उपन्यास का आगमन हो गया था। उपन्यास में कुछ ऐसे प्रसंगों का ध्यान रखा गया जो साधारण रूप से पाठक वर्ग मे एक आम रुचियों का रूप ले। सबसे पहले उपन्यास इंग्लैंड तथा फ्रांस में आया।

→ विकास के रूप में उपन्यास 18वीं सदी में पनपा। इसके पाठक हर वर्ग के लोग थे। लेखकों की आय में वृद्धि भी हुई। अलग-अलग शैलियों का प्रयोग होने लगा। हेनरी फील्डिग, वॅल्टर स्कॉट जैसे अनेक लेखक सामने आये।

→ शुरू-शुरू में गरीब वंग उपन्यास को खरीद नहीं पा रहे थे। 1740 में चलने वाले पुस्ताकालयों को स्थापित किया गया जिससे लोग किराये पर उपन्यास लेने लगे। उपन्यास मनोरंजन का एक नया साधन था। लोगों में इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी।

→ उपन्यास की घटनाओं को लोग असल जिंदगी की घटनाओं से लड़ने लगे। 1836 में चार्ल्स डिन्स का एक उपन्यास धारावाहिक रूप से एक पत्रिका में छपा। पत्रिकाएं सस्ती हुआ करती थीं और यह अपना अलग महत्त्व रखती थीं। लोग उपन्यासों को आपस में एक महत्त्वपूर्ण चर्चा का रूप देने लगे।

→ चार्ल्स डिकेन्स में अपने उपन्यासों में औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को बड़ी सुंदरता के साथ दिखाया है उन्होंने अपने उपन्यास ‘हार्ड आइम्स’ में ऐसा ही वर्णन किया है।

→ उन्होंने अपने अलग-अलग उपन्यासों में अलग-अलग विषयों को चुना। किसी में शहरी जीवन की दुर्दशा का वर्णन है तो कहीं पर किसी गरीब का अमीर होना इत्यादि। परंतु इन उपन्यासों को पढ़कर केवल खुश रहा था, यह सही नहीं था।

→ अधिकांश पाठक वर्ग शहरों के थे। 19वीं सदी के मशहूर उपन्यासकार टॉमस हार्डी ने देहाती समुदाय के बारे में लिखा जो खत्म हो रहा था। मशीनों का बाजार में आना इसका अनुभव हमें हार्डी के उपन्यास ‘मयेर ऑफ कैस्टब्रिज’ को पढ़कर होता है।

→ उपन्यास में साधारण भाषा जो जनता की भाषा होती थी, उसका प्रयोग होता था और आज भी यही होता है। उपन्यास को मिश्रित भाषा का प्रयोग कर लोगों के सामने पेश कर सकते हैं। उपन्यास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू महिलाएँ थीं।

→ महिलाओं को भी अवकाश मिलने पर उपन्यास पढ़ने का समय प्राप्त हुआ। वह उपन्यास लिखने व पढ़ने लगी थीं। जेन ऑस्टिन जैसी लेखिकाएँ उभरकर सामने आई।

→ महिला उपन्यासकारों ने केवल गृहस्थिन चरित्रों को ही नहीं दर्शाया बल्कि समाज में अन्याय के खिलाफ लड़ती महिलाओं को भी उपन्यासों में दिखाया है। (जैन आयर एक ऐसा ही उपन्यास है, युवाओं के लिए) एक सभ्य, आदर्श, मेहनत करने वाले युवा पुरुष, साहसी आदमी के रूप में प्रस्तुत किया गया।

→ पुरुष, प्रधान उपन्यासों में साहस भरे कारनामे साधारण पुरुष जो समय के साथ बदल रहा है। इत्यादि दर्शाया जा रहा था। जी. ए. हेटी के ऐतिहासिक साहसिक उपन्यास बहुत लोकप्रिय हुए प्रेम कहानियों के उपन्यास भी लिखे गये। यूरोप में उपन्यास का आगमन औपनिवेशिकवाद से हुआ था।

Chapter 7 उपन्यास, समाज और इतिहास HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Social Science Notes History Chapter 8 उपन्यास, समाज और इतिहास

2. उपन्यास भारत आया
→ भारत में गद्य कथाओं का चलन शुरू से चला आ रहा है। भारत के आरंभिक उपन्यास बंगाली व मराठी में लिखे गये थे। शुरू में उपन्यासों को अंग्रेजी उपन्यासों के हिंदी अनुवादों में प्रस्तुत किया गया।

→ हिंदी भाषा में उपन्यास को दिल्ली के श्रीनिवास दास लिखा था। परंतु हिंदी उपन्यास का पाठक वर्ग देवकी नंदन खत्री के साथ उत्पन्न हुआ। उनके द्वारा लिखित ‘चद्रकान्ता-संतति’ बहुत लोकप्रिय हुई। प्रेमचंद ने अनेक लोकप्रिय उपन्यास लिखे थे।

→ उन्होंने दहेज, बाल विवाह इत्यादि जैसे प्रसंगों को लिखा था। 19वीं सदी में उपन्यास दो प्रकार से सामने आया-प्रथम रूप से भूतकाल व दूसरा घरेलू परिस्थितियां पर आधारित। बंगाल में अकेले उपन्यास को पढ़ने का चलन हुआ।

→ कभी-कभी समूह में उपन्यास पढ़े जाते थे। बंकिम चद्रं चट्टोपाध्याय बंगाल के मशहूर उपन्यासकार थे। उन्होंने उस गद्य-शैली को अपनाया जो कि आम बोलचाल की भाषा के रूप में प्रयोग होती थी।

3. औपनिवेशिक जमाने में उपन्यास
→ नये उपन्यासों का आगमन हुआ था जो कि गृहस्थी से संबधित थी। इन उपन्यासों में साधारण लोगों से जुड़ी बातें हुआ करती थीं, जैसे-उनकी वेषभूषा, पूजा, संस्कृति आदि। इनमें से कुछ उपन्यासों के अंग्रेजी में अनुवाद भी हुए थे।

→ हिंदुस्तानियों ने उपन्यासों में सामजिक बुराइयों को वर्णित किया और साथ ही उनके समाधान भी खोजने की कोशिश की। समाज का हर व्यक्ति उपन्यास पढ़ सकता था, लेकिन उसे उपन्यास की भाषा जरूर आती हो।

→ औपनिवेशिक काल में कई प्रकार के उपन्यासों ने जगह बनाई। उपन्यास काल्पनिक होते हुए भी असल जिंदगी को पेश करते थे। चंदू मेनन इस प्रकार के ही उपन्यासकार थे।

→ अधिकतर उपन्यासों के नायक व नायिकाएँ आधुनिक दुनिया के ही पात्र हुआ करते थे। ये पुराने समय के पात्रों से बिल्कुल अलग हुआ करते थे। पूरी दुनिया के समान भारत के मध्यवर्ग में भी उपन्यास एक मनोरंजन का साधन बन गया था।

→ उपन्यास पढ़ते समय लोग मौन रहना सीख गये थे। 19वीं सदी के अंत तक लिखित वर्णन को बोलकर पढ़ा जाता था, परंतु अधिकांश रूप से लोग चुप रहकर ही उपन्यास पढ़ते थे।

HBSE 10th Class Chapter 7 उपन्यास, समाज और इतिहास

HBSE 10th Class Social Science Notes History Chapter 8 उपन्यास, समाज और इतिहास

4. महिलाएँ और उपन्यास
→ जनता पर उपन्यासों का गहरा प्रभाव पड़ा रहा था। वे कल्पना को असल जिंदगी से जोड़ते थे। उपन्यासों में तो तत्व हुआ करते थे जिसका असर महिलाओं और बच्चों पर सीधा पड़ता था।

→ उपन्यास हर उम्र के व्यक्ति में प्रचलित हो रहा था, परंतु महिलाएँ केवल पाठिका के रूप में नहीं रह गयी थी। अब उन्होंने उपन्यासों को लिखना शरू कर दिया था।

→ उन्होंने प्रेम-विवाह और स्वतंत्र नारी जैसे विषयों को अपने उपन्यास का भाग बनाया, परंतु महिला उपन्यासकारों को समाज सही नजर से नहीं देखता था।

→ जाति प्रथा से संबंधित एक उपन्यास सामने आया था और वह था-इंदुलेखा। 1892 में पोथेरी कुंजाम्बु ने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था-सरस्वती विजयम। यह उपन्यास भी अछूतों पर था।

→ 1920 में बंगाल में नये प्रकार का उपन्यास आया जिसमें किसान वर्ग और निम्न जाति से जुड़े लोगों की समस्याओं को दिखाया गया था।

5. राष्ट्र और उसका इतिहास
→ औपनिवेशिक इतिहासकारों ने भारतीयों को अत्यन्त कमजोर बताया। उनका विश्वास मुख्यतः इस बात में था कि भारत देश ब्रिटिश राज्य से आजादी चाहता है।

→ बंगाल में अनेक उपन्यास राजपूतों और मराठों पर लिखे गये। इनमें साहस, वीरता व त्याग जैसे आदर्श दिखाई देते थे। ये उपन्यास भारतीयता का अनुभव कराते थे।

→ अंगुरिया बिनिमॉय भूदेव मुखोपाध्याय का सबसे पहला ऐतिहासिक उपन्यास था। इन उपन्यासों में राष्ट्र भावना को इस प्रकार से दर्शाया गया था कि असल जीवन में भी लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिये थे।

→ समाज में विभिन्न सतरों के लोगों को उपन्यासों में दिखाया गया। शक्तिशाली वर्ग से लेकर कमजोर वर्ग तक समाज के हर पहलू को उपन्याकार लिखा करते थे।

→ उपन्यास पश्चिम और भारत के भागों का अहम हिस्सा बन गया। इन उपन्यासों ने उन तथ्यों को सामने रखा जिस मध्यवर्गीय लोग अनजान थे। लोगों के समूहों को उपन्यास के द्वारा पहचान मिली।

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