Class 11

HBSE 11th Class Maths Solutions Chapter 15 सांख्यिकी विविध प्रश्नावली

Haryana State Board HBSE 11th Class Maths Solutions Chapter 15 सांख्यिकी विविध प्रश्नावली Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Maths Solutions Chapter 15 सांख्यिकी विविध प्रश्नावली

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HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धि-प्रकरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Sandhi prakaran सन्धि-प्रकरण Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धि-प्रकरण

मनुष्य की प्रवृत्ति प्रत्येक क्षेत्र में सुविधा शीघ्रता और स्वल्प प्रयत्न से काम चलाने की होती है, इसीलिए भाषा में भी कहीं सुविधा की दृष्टि से, कहीं शीघ्रता के कारण, तो कहीं प्रयत्न की स्वल्पता से आस-पास आने वाले वर्षों में परिवर्तन हो जाता है, उनके । स्थान पर एक नया ही वर्ण आ जाता है, किसी एक वर्ण का लोप हो जाता है, कहीं एक नया वर्ण बीच में आ जाता है, किसी वर्ण को द्वित्व हो जाता है।

ये सभी परिवर्तन बोलचाल में प्रयोग में आने वाली भाषा में स्वाभाविक रूप से हो जाते हैं। व्याकरण के नियमों की खोज करने वाले विद्वान इन परिवर्तनों को एकत्र करके इनका वर्गीकरण और विभाजन करके कुछ नियम निश्चित कर लेते हैं। इन नियमों को सन्धि के नियम कहते हैं। थोड़े से शब्दों में सन्धि की परिभाषा निम्नलिखित रूप में की जा सकती है-

सन्धि की परिभाषा (लक्षण) “व्यवधान रहित दो वर्गों के मेल से जो विकार होता है, उसे सन्धि कहते हैं।” सन्धि और संयोग में अन्तर-दो व्यंजनों के अत्यन्त समीपवर्ती होने पर भी उनका मेल संयोग कहलाता है। संयोग की अवस्था में उन वर्गों के स्वरूप में परिवर्तन नहीं होता, जबकि सन्धि की अवस्था में उन वर्गों के स्वरूप में परिवर्तन हो जाता है।

जैसे-संयोग का उदाहरण-जगत् + तलम् = जगत्तलम्। तत् + कालः = तत्कालः। वाक् + चातुर्यम् = वाक्चातुर्यम्। इनमें वर्गों के स्वरूप में कोई अन्तर नहीं आया है। सन्धि का उदाहरण-रमा + ईशः = रमेशः। इति + आदि = इत्यादि। यहाँ पर वर्गों के स्वरूप में परिवर्तन हो गया है, इसलिए यहाँ सन्धि है।

यह विकार कभी उनमें से एक में ही होता है, कभी-कभी दोनों में हो जाता है। कभी दोनों वर्ण मिलकर किसी नए वर्ण को जन्म दे देते हैं। जैसे इति + उवाच = = इत्युवाच । यहाँ केवल ‘ई’ को ‘य’ हो गया है। तत् + श्रुत्वा = तच्छ्रत्वा । यहाँ ‘त्’ का ‘च’ तथा ‘श’ का ‘छ’ हो गया है। नर + इन्द्रः = नरेन्द्रः यहाँ ‘अ’ तथा ‘इ’ के स्थान पर एक नया वर्ण ‘ए’ हो गया है। यह आवश्यक नहीं कि सभी जगह सन्धि की जाए। कहीं-कहीं प्रयोग करने वाले की इच्छा पर निर्भर है कि वह सन्धि करे अथवा न करे। सन्धि कहाँ अनिवार्य है तथा कहाँ इच्छा पर निर्भर है, इसके लिए भी संस्कृत में कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। उनमें कुछ विशेष नियम निम्नलिखित हैं

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धि-प्रकरण

1. एक पद में सन्धि करना आवश्यक है; जैसे ‘देवाः’ शब्द देव + अस्’ से बना है। इस जगह दीर्घ सन्धि करना आवश्यक है। देव + देव अस् प्रयोग करना अशुद्ध होगा।

2. धातु और उपसर्ग के योग में सन्धि आवश्यक है; जैसे वि + अचिन्तयत् = व्यचिन्तयत्। यहाँ पर ‘वि’ उपसर्ग के बाद अचिन्तयत् धातु से बना रूप है, इसलिए यहाँ पर वि अचिन्तयत् प्रयोग करना अशुद्ध है।

3. समास में सन्धि आवश्यक है; जैसे-नराणां + इन्द्रः = नरेन्द्रः। यहाँ षष्ठी तत्पुरुष समास है अतः यहाँ पर नर + इन्द्रः में गुण सन्धि करके नरेन्द्र प्रयोग करना ही उचित है ‘नरइन्द्रः’ प्रयोग करना ठीक नहीं है।

4. किसी वाक्य में आए हुए पदों की सन्धि करना आवश्यक नहीं है, वहाँ पर प्रयोग करने वाले की इच्छा पर निर्भर है कि वह सन्धि करे अथवा न करे; जैसे-मम अयं पुत्रः वर्तते । इस वाक्य को इसी रूप में रखा जा सकता है अथवा ‘ममायं पुत्रो वर्तते’ इस प्रकार सन्धि करके भी इस वाक्य का प्रयोग किया जा सकता है। अतः यहाँ सन्धि करना आवश्यक नहीं है।

1. सन्धियों के भेद

सन्धि तीन प्रकार की होती है

  1. स्वर सन्धि (अच् सन्धि)
  2. व्यंजन सन्धि (हल् सन्धि)
  3. विसर्ग सन्धि।

1. स्वर सन्धि (अच् सन्धि)-जब एक स्वर के बाद कोई दूसरा स्वर आ जाए, तो उन दोनों के मेल से एक स्वर में या दोनों स्वरों में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर सन्धि या अच सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के निम्नलिखित आठ भेद हैं

  • दीर्घ सन्धि,
  • गुण सन्धि,
  • वृद्धि सन्धि,
  • यण सन्धि,
  • अयादि सन्धि,
  • पूर्वरूप सन्धि,
  • पर रूप सन्धि,
  • प्रकृति भाव।

पूर्वरूप सन्धि, पररूप सन्धि, प्रकृति भाव पाठ्यक्रम में नहीं हैं।

स्वर सन्धि (1) दीर्घ सन्धि-जब ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ से परे वही ह्रस्व या दीर्घ वर्ण आ जाएँ तो उन दोनों के मेल से वह स्वर दीर्घ (आ, ई, ऊ, ऋ) हो जाता है। इसे दीर्घ सन्धि कहते हैं।

(क) ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘अ’ या ‘आ’ होने पर दोनों को मिलकर दीर्घ ‘आ’ हो जाता है; जैसे
अ + अ = आ
मृग + अंकः = मृगांकः। दैत्य + अरिः = दैत्यारिः।
तत्र + अगच्छत् = तत्रागच्छत्। मुर + अरिः = मुरारिः।
परम + अर्थः = परमार्थः। हिम + अचलः = हिमाचलः।

अ + आ = आ
हिम + आलयः = हिमालयः। देव + आलयः = देवालयः।
देव + आनन्दः = देवानन्दः। परम + आनन्दः = परमानन्दः।

आ + अ = आ
विद्या + अर्थीः = विद्यार्थीः। विद्या + अभ्यासः= विद्याभ्यासः।
महा + असुरः = महासुरः। सा + अपि = सापि।

आ + आ = आ
विद्या + आलयः = विद्यालयः। विधवा + आश्रमः = विधवाश्रमः।
दया + आनन्दः = दयानन्दः। लता + आसीत् = लतासीत् ।

(ख) इ या ई से परे इ या ई होने पर दोनों के स्थान में दीर्घ (ई) हो जाती है; जैसे

इ + इ = ई.
कवि + इन्द्रः = कवीन्द्रः। मुनि + इच्छा = मुनीच्छा।
मुनि + इन्द्रः = मुनीन्द्रः। रवि + इन्द्रः = रवीन्द्रः।

इ + ई = ई
गिरि + ईशः = गिरीशः। कवि . + ईश्वरः = कवीश्वरः।
मुनि + ईशः = मुनीशः। दधि + ईहते = दधीहते।

ई + इ = ई
सुधी + इन्द्रः = सुधीन्द्रः।
मही + इन्द्रः = महीन्द्रः।

ई + ई = ई
लक्ष्मी + ईश्वरः .लक्ष्मीश्वरः। मही + ईशः = महीशः।
देवी + ईहते = देवीहते। श्री + ईशः = श्रीशः।

(ग) उ + उ = ऊ
सु + उक्तिः = सूक्तिः । भानु + उदयः = भानूदयः।
लघु + उत्सवः = लघूत्सवः। गुरु + उपदेशः = गुरूपदेशः।

उ + ऊ = ऊ
साधु + ऊर्ध्वम् = साधूर्ध्वम्।
लघु + ऊर्मिः = लघूमिः।

ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सवः = वधूत्सवः।

ऊं + ऊ = ऊ
भू + ऊर्ध्वम् = भूर्ध्वम् ।

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धि-प्रकरण

(घ) ऋ या ऋ से परे यदि ऋ या ऋ आ जाए तो दोनों के स्थान में दीर्घ ऋ हो जाता है, जैसे-ऋ + ऋ = ऋ = पितृ + ऋणम् = पितणम्। मात + ऋद्धि = मातद्धिः। दीर्घ “ऋ” के उदाहरण प्रायः नहीं मिलते। अपवादः-कुछ ऐसे शब्द भी हैं, जिनमें उपर्युक्त नियम के अनुसार दीर्घ नहीं होता है, किन्तु पररूप एकादेश हो जाता है। जैसे

सार + अंगः = सारंगः।
शक + अन्धुः = शकन्धुः।
पत + अंजलिः = पतंजलिः।
मार्त + अण्डः = मार्तण्डः।
कर्क + अन्धुः = कर्कन्धुः।

गुण सन्धि (ए, ओ, अर् अल्)
नियम-यदि हस्व या दीर्घ अ के बाद ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, तृ में से कोई स्वर हो तो अ + इ मिलकर (‘ए’, अ + उ मिलकर ओ’, अ + ऋ मिलकर ‘अर्’ तथा अ + लृ मिलकर ‘अल्’ हो जाता है। इसे गुण सन्धि कहते हैं। (आद्गुणः) जैसे
(क) अ + इ = ए
सुर + इन्द्रः .. = सुरेन्द्रः। गज + इन्द्रः = गजेन्द्रः।
देव + इच्छा = देवेच्छा ।। देव + · इन्द्रः = देवेन्द्रः।

आ + इ = ए
महा + इन्द्रः = महेन्द्रः। तथा + इति = तथेति।
लता + इव = लतेव। महा + इच्छा = महेच्छा।

अ + ई = ए
राज + ईशः = राजेशः। परम + ईश्वरः = परमेश्वरः।
नर + ईशः = नरेशः। सुर + ईशः = सुरेशः।

आ + ई = ए
महा + ईशः = महेशः। उमा + ईशः = उमेशः ।
रमा + ईशः = रमेशः। गंगा + ईश्वरः = गंगेश्वरः।

(ख) अ + उ = ओ
चन्द्र + उदयः = चन्द्रोदयः। पुरुष + उत्तमः = पुरुषोत्तमः।
मंत्र + उच्चारणम् = मन्त्रोच्चारणम् । तस्य + उपरिः = तस्योपरिः।

अ + ऊ = ओ
जल + ऊर्मिः = जलोमिः। . सूर्य + ऊष्माः = सूर्योष्माः।
आ + उ = ओ

महा + उदधिः = महोदधिः। विद्या + उपदेशः = विद्योपदेशः।
गंगा + उदकम् = गंगोदकम्। भार्या + उटजः = भार्योटजः।

आ + ऊ = ओ
गंगा + ऊर्मिः = गंगोर्मिः। लता + ऊर्ध्वम् = लतोर्ध्वम् ।

(ग) अ + ऋ = अर्
सप्त + ऋषिः = सप्तर्षिः। देव + ऋषिः = देवर्षिः।

आ + ऋ = अर्
महा + ऋषिः = महर्षिः ।

(घ) अ + लृ = अल्
तव + लृकारः = तवल्कारः।
आ + लृ = अल् माला + लृकारः = मालाल्कारः।
संस्कृत में दीर्घ ल होती ही नहीं।

अपवादः निम्नलिखित स्थानों पर उपर्युक्त नियमों के होने पर भी गुण सन्धि नहीं होती, किन्तु वृद्धि सन्धि होती है। जैसे

स्वर + ईरः । = स्वैरः।
स्व + ईरिणी = स्वैरिणी।
अक्ष + ऊहिणी = अक्षौहिणी।
प्र + ऋच्छति = प्रार्छति।
सुख + ऋतः = सुखार्तः।
पिपासा + ऋतः = पिपासातः।

वृद्धि सन्धि (ऐ, औ, आर)
नियम-यदि ह्रस्व या दीर्घ ‘अ’ से परे ए’ या ‘ऐ’ हो तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ हो जाते हैं। यदि अ (आ) के बाद ‘ओ’ या ‘औ’ हो तो दोनों मिलकर ‘औ’ हो जाते हैं और अ (आ) के बाद ‘ऋ’ हो तो ‘आर’ हो जाते हैं। यह वृद्धि सन्धि है। (वृद्धिरेचि)। जैसे

(क) अ + ए = ऐ – सम + एव
अ + ऐ = ऐ – देव + ऐश्वर्यम
आ + ए = ऐ – तथा + एव
आ + ऐ = ऐ – महा + ऐरावतः

(ख) अ + ओ = औ – वन + औषधिः = वनौषधिः। जल + ओध: = जलौधः।
अ + औ = औ – तव + औदार्यमू = तवौदार्यम। ब्रह्म + औपनिषद् = ब्रहौपनिषद्।
आ + ओ = औ – महा + ओध: महा + ओजस्वी = महौजस्वी।
आ + औ = औ – महा + औषधम् = महौषधम्। महा + औत्सुक्यम् = महौत्सुक्यमू।
(ग) अ + ऋ = आर – सुख + ऋतः = सुखार्तः। दु:ख + ऋतः = दुखार्तः।
आ + ऋ = आर – पिपासा + ऋतः = पिपासार्तः। बुभुक्षा +ऋतः बुभुक्षार्तः।

अपवादः
प्र + एजते = प्रेजते। उप + ओषति = उपोषति।
शिवाय + ओम् = शिवायोम्। शिव + एहि = शिवेहि।

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धि-प्रकरण

यण् सधि (य, व, र, ल्)
नियम-यदि हस्व अथवा दीर्घ इ, उ, ऋ, लु, से परे कोई भिन्न (विजातीय) स्वर हो तो इ, उ, ऋ, तृ के स्थान पर क्रमशः य व र् ल् (यण) हो जाता है, उसे यण सन्धि कहते हैं। (इकोयणचि)। जैसे

(क) यदि + अपि = यद्यपि। इति + आदि = इत्यादि।
इति + उवाच = इत्युवाच। एहि + एहि = एह्येहि।
नदी + अत्र = नधन। नदी + आवेगः = नद्यावेगः।
गोपी + एषाः = गोप्येषाः। सुधी + उपास्यः = सुद्ध्युपास्यः।

(ख) मधु + अरिः = मध्वरिः। गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः।
मधु + इदम् = मध्विदम् ।
सु + आगतम् = स्वागतम्। अनु + एषणम = अन्वेषणम्।
गच्छतु + एकः = गच्छत्वेकः। तिष्ठतु + आगत्य = तिष्ठत्वागत्य।
वधू + आननम् = वध्वाननम्। वधू + आशयः = वध्वाशयः।
भू + आदिः = भ्वादिः। चमू + ईश्वरः = चम्वीश्वरः।

(ग) मातृ + अंशः = मात्रंशः। धातृ + इच्छा = धात्रिच्छा।
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा। मातृ + औदार्यम् = मात्रौदार्यम्।

(घ) लृ = ल् = लृ + आकृति = लाकृति।

अयादि सन्धि
(‘ए’ को ‘अय’, ‘ऐ’ को ‘आय’, ‘ओ’ को ‘अन्’ तथा ‘औ’ को ‘आव’) नियम-यदि ए, ऐ, ओ, औ स्वरों से परे कोई भिन्न स्वर हो तो इनके स्थान पर क्रमशः ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’ ‘ऐ’ ‘ के स्थान पर ‘आय’, ‘ओ’ के स्थान पर ‘अव’, ‘औ’ के स्थान पर ‘आ’ आदेश हो जाते हैं।

उदाहरण:
(क) ए + अ = अय्। ने + अनम् = नयनम् ।
चे + अनम् = चयनम्।
जे + अति = जयति।
हरे + ए = हरये।
ने + अति = नयति।

(ख) ऐ + अ = आय् । नै + अकः = नायकः।
गै + अकः = गायकः।
ऐ + ए = आये। रै + ए = राये

(ग) ओ + अ = अव। भो + अति (ओ + अ) = भवति।
विष्णो + ए (ओ + ए) = विष्णवे।
साधो + ए (ओ-+ ए) = साधवे

(घ) औ + अ = आव। पौ + अकः = पावकः।
लौ + अकः = लावकः।
नौ + इकः = नाविकः। नौ + ए = नावे।
गौ + औ = गावौ। तौ + उचतुः = तावुचतुः।

व्यंजन (हल) सन्धि
व्यंजन (हल) का किसी व्यंजन के साथ अथवा स्वर के साथ मेल होने पर व्यंजन में जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन (हल). सन्धि कहते हैं। जैसे

तत् + चित्रम् = तच्चित्रम्
तत् + टीकते = तट्टीकते

इन उदाहरणों में त् + च् मिलने से प्रथम अक्षर के स्थान पर च् तथा त् + ट् मिलने से प्रथम अक्षर त् के स्थान पर ट् हो गया है।

व्यंजन सन्धि के अनेक भेद हैं। जैसे
श्चुत्व, जश्त्व, ष्टुत्व, चव तथा अनुस्वार इत्यादि।

श्चुत्व सन्धि
सकार व तवर्ग के स्थान पर शकार व चवर्ग आदेश हो जाता है। यदि स या तवर्ग (त, थ, द, ध, न) से पहले या पीछे . ‘श’ या चवर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) हों तो ‘स’ को ‘श’ और तवर्ग को चवर्ग हो जाते हैं। (स्तोः श्चुनाश्चुः)।

रामस् + चलति = रामश्चलति।
कस् + चित् = कश्चित्।
ततस् + च = ततश्च।
दुस् + चरित्रम् = दुश्चरित्रम्।
देवस् + चिनोति = देवश्चिनोति।
श्रेयस् + च = श्रेयश्च।
अग्निस् + शाम्यति = अग्निशशाम्यति।
रामस् + शेते = रामशशेते।
रामस् + शोभते = रामश्शोभते।

तवर्ग को चवर्ग
उत् + चरति = उच्चरति।
उत् + चारणम् = उच्चारणम्।
तत् + च = तच्च।
सत् + चित् = सच्चित्।
सत् + चरित्र: = सच्चित्रः।
तत् + छत्रम् = तच्छत्रम्।
सद् + जनः = सज्जनः।
उद् + ज्वलः = उज्ज्वलः।
तद् + जयः = तज्जयः।
तद् + जालः = तज्जालः।
तद् + झङ्कारः = तज्झझ्कारः।
राजन् + जयः = राजण्जयः।
तत् + झटिति = तज्झटिति।
यान + चा = याञ्चा ।
राजु + न: = राज + अः = राज्ञः।
यज् + न = यज्ञः।
अपवाद: श् के परे तवर्ग को चवर्ग नहीं होता। जैसे
विश् + नः = विश्नः
प्रश् + नः = प्रश्नः

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धि-प्रकरण

जश्त्व सन्धि

1. प्रथम अक्षर को तृतीय अक्षर होना।
यदि पूर्व पद के अन्त में वर्ग का कोई अघोष अक्षर (क्, च् ट्, त्, प) हों और उससे परे कोई घोष अक्षर वर्ग का तीसरा चौथा पाँचवा अक्षर या य र ल व हो या कोई स्वर वर्ण हो तो उस प्रथम वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है। (झलां जश झशि-सूत्र)

(क) क् को ग् जैसे-
(i) दिक् + अम्बरः = दिगम्बरः
वाक् + ईश्वर: = वागीश्वरः
त्वक् + इन्द्रियम् = त्वगेन्द्रियम्

(ii) दिक् + गजः = दिग्गजः
वाक् + दत्ताः = वार्दत्ताः।
वाक + हरि: = वाग्हरिः।

(ख) च् को जू
(i) अच् + अन्तः = अजन्तः
अच् + आदि = अजादि
(ii) अच् + यणौ = अज्यणौ

(ग) ट् को ड्र
(i) षट् + आननम् = षडाननम्
सम्राट + अयम् = सम्राडयम्
(ii) परिवाट् + याति = परिवाड्ययाति

(घ) त् को द्र
(i) जगत् + ईशः = जगदीशः
चित् + आनन्दः = चिदानन्दः
(ii) जगत् + बन्धु: = जगद्बन्धु:
महत् + वनम् = महद्धनम्
बृहत् + रथः = बृहद्रयः

(ङ) प् को ब्
(i) सुप् + अन्तः = सुबन्तः
(ii) अप् + जम् = अज्ञम्
(iii) अपू + भक्षः = अब्भक्षः

2. वर्ग के प्रथम अक्षर के स्थान पर पाँचवां अक्षर होता है।
यदि वर्ग के प्रथम अक्षर से किसी वर्ग का पाँचवां वर्ण परे हो तो पहले को अपने वर्ग का पाँचवां वर्ण हो जाता है। जैसे-
दिक् + नागः = दिङ्नागः (दिग्नागः)
उदक् + मुखः = उदङ्मुख (उदग्मुखः)
अच् + नास्ति = अस्नास्ति (अभूनास्ति)
षट् + मुखः = षण्मुखः (षड्मुखः)
एतद् + मुरारि = एतत्रारि (एतमुरारि)
अप् + मानम् = अब्मानम् (अब्मानम्)

3. वर्ग के चतुर्थ वर्ण का तृतीय वर्ण होना।
दी महाप्राण वर्ण इकट्ठे नहीं रह सकते। अतः यदि दो महाप्राण वर्ण इकट्ठे हों तो पूर्ववर्ती वर्ण को अल्पप्राण अर्थात् चौथे के बदले तीसरा वर्ण हो जाता है जैसे-
(क) घ् को ग् = दुध् + धः = दुग्ध।
दुध् + धम् = दुग्धम्।

(ख) ध् को द् = शुध् + धिः = शुद्धिः।
युध् + धम् = युद्धम् ।
क्रुध् + ध: = क्रुद्धः।
बुध् + धिः = बुद्धिः।

(ग) भू को ब् = आरभ् + धः = आरब्धः।
क्षुभ् + धः = क्षुब्धः।
लभू + धः = लब्धः ।

ष्टुत्व सन्धि

सकार तवर्ग का शकार चवर्ग।
नियम-यदि स तथा तवर्ग (त, थ, द, ध, न) या ष तथा टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) के साथ आगे-पीछे योग हो, तो स के स्थान पर ष और तवर्ग के स्थान पर टवर्ग हो जाता है। अर्थात् मूर्धन्य वर्ग (प् तथा टवर्ग) के योग होने पर दन्त्यवर्ण (स् तथा त् वर्ग) भी मूर्धन्य हो जाते हैं। अतः इसे मूर्धन्यभाव सन्धि कहते हैं। ष्टुनाष्टुः – सूत्र।

जैसे- स् को ष्-
रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः।
रामस् + टीकते = .. रामष्टीकते।
धनुस् + टङ्कारः = धनुष्टङ्कारः।

तवर्ग को टवर्ग-
(क) तत् + टीका = तट्टीका।
तत् + टङ्कारः = तट्टकारः।
डीयते = उड्डीयते।
मत् + डमरूः = मड्डमरूः।
चक्रिन + ढौकसे = चक्रिण्डौकसे।
इष् + तः द्रष् + ता = द्रष्टा।
हृष् + तः = हृष्टः ।
षष + थः = षष्ठः।
षट् + नवति = षण्णवति।
पुष् + ति = पुष्टिः ।

चर्त्व सन्धि
किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से परे यदि किसी वर्ग का पहला, दूसरा तथा श, ष, स् में से कोई वर्ण हो तो तीसरे और चौथे वर्ण को अपने वर्ग का पहला वर्ण हो जाता है। जैसे-
शरद् + सु = शरत्सु।
कुकुभ् + सु = कुकुप्स ।
विपद् + सु = विपत्सु।
छेद् + ता = छेत्ता ।

(i) पद के अन्त के ङ्, ण, न से पहले यदि हस्व स्वर और उससे परे कोई भी स्वर आ जाए तो ङ्, ण, न को द्वित्व हो जाता है। जैसे-
प्रत्यङ् + आत्मा = प्रत्यङ्ङात्या
सुगण + ईश: = सुगण्णीशः
कुर्बन् + एव = कुर्वन्नेव
तस्मिन + एव = तस्मिन्नेव
गच्छन + एव = गच्छन्नेव

अन्य उदाहरण-
सन् + अच्युतः = सन्नच्युतः
हसन् + आगच्छति = हसन्नागच्छति
कुर्वन् + अस्ति = कुर्वन्नस्ति
पिबन् + इव = पिबन्निव
खादन् + अपि = खादन्नपि
गच्छन् + + अवदत् = गच्छन्नवदत्

(ii) वर्ग के पहले चार वर्णों के पदान्त में होने और उससे परे श् वर्ण होने पर श् को विकल्प से छू हो जाता है। पहला वर्ण यदि तु हो तो उसे नियम के अनुसार च हो जाता है।
तत् + श्रुत्वा = तच्छ्रत्वा, तच्श्रुत्वा
तत् + श्लोकेन = तच्छ्लोकेन, तश्लोकेन
तत् + शिवः = तच्छिवः, तच्शिवः
सत् + शीलः = सच्छीलः, सशीलः
एतत् + श्रुत्वा = एतच्छ्रत्वा, एतच्श्रुत्वा

(iii) ह्रस्व स्वर से परे छ हो तो उसके पहले च जोड़कर उसे च्छ कर दिया जाता है। जैसे-
वृक्ष – + छाया = वृक्षच्छाया
शिव + छाया = शिवच्छाया
स्व + छन्दः = स्वच्छन्दः
गज + छाया = गजच्छाया
स्व + छत्रम् = स्वच्छत्रम्
स्निग्ध + छाया = स्निग्धच्छाया

(iv) पदान्त दीर्घ से परे यदि छ हो तो छ से पहले विकल्प से चु जोड़ा जाता है। जैसे-
लता + छाया = लताच्छाया,
लताछाया लीला + छत्रम् = लीलाच्छत्रम्,
लीलाछत्रम् लक्ष्मी + छाया – लक्ष्मीच्छाया, लक्ष्मीछाया

(v) ल् के परे रहने पर तवर्ग को ल हो जाता है, परन्तु यदि न् से परे ल् हो तो अनुनासिक ल होता है, अर्थात् न् को ल होने पर न से पहले स्वर के ऊपर अनुनासिक चिह्न (*) लगा दिया जाता है। जैसे

उत् + लेख: = उल्लेखः
उत् + लिखितम् = उल्लिखितम्
तत् + लय: = तल्लय:
तत् + लीनः = तल्लीनः
विद्युत् + लता = विद्युल्लता
तडित् + लता = तडिल्लता
विद्धान् + लिखति = विद्वाँल्लिखति
भवान् + लभते = भवाँल्लभते
महान् + लाभः = महाँल्लाभः
भवान् + लघु: = भवॉल्लघुः।

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धि-प्रकरण

विसर्ग सन्धि
जब दो वर्णों के समीप होने पर किसी वर्ण को विसर्ग हो जाता है या विसर्गों को कोई अन्य वर्ण हो जाता है तो उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। इसके निम्नलिखित प्रमुख प्रकार हैं
(क) सत्व सन्धि:
(i) विसर्ग (:) के बाद यदि च् या छ हो तो विसर्ग का श्, ट् या ठ् हो तो ष्, त् या थ् होने पर स् हो जाता है; जैसे
मनः + तापः = मनस्तापः
नमः + तुभ्यम् = नमस्तुभ्यम्।
इतः + तत: = इतस्ततः
विष्णु: + त्राता = विष्णुस्त्राता
शिरः + छेद: = शिरश्छेदः
रामः + चलति = रामश्चलति
नमः + ते = नमस्ते
धनु: + टंकारः = धनुष्टंकारः

(ख) शत्व तथा षत्व:
(ii) विसर्ग के बाद यदि श, ष, स् आए तो विसर्ग (:) का क्रमशः श, ष् और स् हो जाता है; जैसे
हरिः + शेते = हरिशशेते
निः + सारः = निस्सारः
निः + सन्देह = निस्सन्देह:
रामः + षष्ठ = रामष्षष्ठः

(iii) विसर्ग से पहले यदि इ या उ हो और बाद में क, ख या पु, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग (:) के स्थान पर ष हो जाता है; जैसे
निः + फलः = निष्फलः
दुः + कर्मः = दुष्कर्मः
निः + कपटः = निष्कपटः

उत्व

(ग) विसर्ग को उत्व:
(ओ) होना यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और बाद में भी हृस्व अ हो तो विसर्ग को ‘उ’ हो जाता है तथा विसर्ग पूर्व ‘अ’ के साथ मिलकर ‘ओ’ हो जाता है। परवर्ती ‘अ’ का पूर्वरूप हो जाता है और उसके स्थान पर ऽ चिह्न रख दिया
जाता है।
उदाहरण:
पुरुष: + अस्ति = पुरुषोडस्ति।
राम: + अत्र = रामोडत्र
एष + अब्रवीत् = ऐषोडब्रवीत् ।
शिवः + अर्च्य: = शिवोऽर्च्यः।
देवः + अयमू = देवोऽयम् ।
कः + अत्र = कोऽत्र।
सः + अपि = सोऽपि।
प्रथमः + अध्यायः = प्रथमोऽध्यायः।

(घ) विसर्ग सहित:
‘अ’ को यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो किन्तु विसर्ग के बाद किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवां वर्ग हो अथवा य, र, ल, वु, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग सहित ‘अ’ को ओ हो जाता है।
उदाहरण:
रामः + गच्छति = रामो गच्छति।
रामः + घोषति = रामो घोषति।
रामः + जयति = रामो जयति।
रामः + ददाति = रामो ददाति।
रामः + भाति = रामो भाति।
रामः + मन्यते = रामो मन्यते।
रामः + रोचते = रामो रोचते।
शिवः + वन्द्यः = शिवोवन्द्यः।
मनः + रथः = मनोरथः।
मनः + हरेः = मनोहरः।

रुत्व

(ङ) यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ ‘आ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और बाद में कोई घोष वर्ग (वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह) हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘र’ हो जाता है।
उदाहरण:
हरिः + उवाच = हरिरुवाच।
गौः + याति = गौर्याति।
हरेः + इच्छा = हरेरिच्छा।
गौः + इयम् = गौरियम्।
बालैः + हस्यते = बालैर्हस्यते।
पाशैः + बद्ध = पाशैर्बद्ध।
भानुः + उदैति = भानुरुदैति।
नृपतिः + जयति = नृपतिर्जयति।
पितुः + आज्ञा = पितुराज्ञा।
पुनः + अपि = पुनरपि। ।
ऋषिः + वदति = ऋषिर्वदति।

(च) विसर्ग का लोप
निम्नलिखित दशाओं में विसर्ग का लोप हो जाता है।

(i) यदि विसर्ग से पूर्व ह्रस्व ‘अ’ हो और उसके बाद ह्रस्व ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो तो विसर्ग लोप हो जाता है।
उदाहरण:
देवः + आयाति = देव आयाति।
अर्जुनः + उवाच = अर्जुन उवाच।
कः + एति = क एति।
कः + एषः = क एषः।
पयः + इच्छति = पय इच्छति।

(ii) यदि विसर्ग के बाद ‘अ’ को छोड़कर कोई भी वर्ण हो तो ‘सः’ और ‘एषः’ शब्दों के विसर्ग का लोप हो जाता है।
उदाहरण:
सः + इच्छति = स इच्छति।
सः + भाषते = स भाषते।
एषः + कथयति = एष कथयति।
एषः + पठति = एष पठति।

(iii) यदि विसर्ग से पहले ‘आ’ हो और बाद में कोई स्वर या घोष वर्ण (वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह) हों तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
उदाहरण- देवाः + आयान्ति = देवा आयान्ति।

(iv) सः और एषः के पश्चात् कोई व्यंजन हो तो इनके विसर्गों का लोप हो जाता है। जैसे-
सः पठति = स पठति
एषः विष्णुः = एष विष्णुः

(v) यदि सः, एषः के पश्चात् ह्रस्व अ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो उसका भी लोप हो जाता है। जैसे-
सः एति = स एति
एषः एति = एष एति

किन्तु यदि सः, एषः के परे ह्रस्व अ हो तो विसर्ग सहित अ को ओ हो जाता है। जैसे-
सः + अस्ति = सोऽस्ति
एषः + अपि = एषोडपि

(vi) भोः, भगोः के विसर्गों का भी लोप हो जाता है यदि विसर्ग से परे कोई स्वर अथवा वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ तथा य, र, ल, व्, ह् में से कोई वर्ण हो; जैसे-
भोः + लक्ष्मी = भो लक्ष्मी
भगोः + नमस्ते = भगो नमस्ते
अघोः + याहि = अघो याहि

(vii) नमः, पुरः, तिरः शब्दों के विसर्ग को क् या प् के परे होने पर स् हो जाता है।
जैसे
नमः + कारः = नमस्कारः
पुरः + कारः = पुरस्कारः
तिरः + कारः = तिरस्कारः
अयः + कारः = अयस्कारः

णत्व तथा षत्व विधान

1. णत्व विधान-एक पद में र्, ष् के बाद न आए तो ण् हो जाता है; जैसे चतुर्णाम्, पुष्णाति, जीर्णः इत्यादि। यदि ऋ के बाद भी न आए तो उसके स्थान पर भी ण् हो जाता है; जैसे नृणाम्, पितॄणाम्, चतसृणाम् आदि। ऋ, र, ष् तथा न के बीच में कोई स्वर अथवा कवर्ग, पवर्ग तथा ह्, य, व, र् या अनुस्वार हो तो भी न् के स्थान पर ण हो जाता है; जैसे रामेण, मूर्खेण, गुरुणा, रामाणाम्, मूर्खाणाम् तथा हरिणा आदि; किन्तु दृढेन, रसेन, अर्थेन, रसानाम् में ण नहीं होता, क्योंकि यहाँ र्, ऋ तथा न् के बीच उपर्युक्त अक्षरों के अतिरिक्त अक्षर आते हैं। पदान्त के न् का ण् नहीं होता। जैसे देवान, रामान्, हरीन्, गुरून् आदि।

2. षत्व विधान-अ, आ को छोड़कर शेष स्वर तथा ह, य, व, र, ल एवं कवर्ग के बाद में आने वाले अपदान्त प्रत्यय और । आदेश के स् के स्थान पर ष् हो जाता है। जैसे रामेषु, हरिषु, सर्वेषाम्, मातृषु, वधूषु, चतुर्षु इत्यादि। यदि उपर्युक्त वर्णों तथा स् के मध्य में अनुस्वार, विसर्ग और श, ष, स् का व्यवधान भी हो तो भी स् के स्थान पर ष् हो जाता है। जैसे धनूंषि, आयूंषि, आशीःषु, चक्षुःषु, हवींषि।

अभ्यासार्थ प्रश्नाः

I. 1. स्वरसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
2. अयादिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
3. व्यञ्जनसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
4. छत्वसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
5. विसर्गसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।

HBSE 11th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धि-प्रकरण

II. अधोलिखित प्रश्नानां प्रदत्तोत्तरविकल्पेषु शुद्धविकल्पं लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए विकल्पों में से शुद्ध विकल्प लिखिए)

1. ‘गुरुपदेशः’ अस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(A) गुर् + उपदेशः
(B) गुरू + उपदेशः
(C) गुरो + उपदेशः
(D) गुर + उपदेशः

2. ‘पुनरपि’ अस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(A) पुनः + अपि
(B) पुनर + अपि
(C) पुनरा + अपि
(D) पुनः +ऽपि

3. ‘यद्यस्माकम् अस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(A) यद्य + स्माकम्
(B) यदि + अस्माकम्
(C) यय + अस्माकम्
(D) यदा + अस्माकम्

4. ‘जयोऽस्तु’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(A) जयः + अस्तु
(B) ज + अस्तु
(C) जय +तु
(D) जय + स्तु

5. ‘निःश्वास + अन्धः’ अस्य सन्धिः अस्ति
(A) निश्वासन्धः
(B) निश्वासः अन्धः
(C) निःश्वासान्धः
(D) निश्वासऽन्धः

6. ‘पुनः + ताम्’ अस्य सन्धि अस्ति
(A) पुनःताम्
(B) पुनरताम्
(C) पुनऽताम्
(D) पुनस्ताम्

7. ‘अभि + अवहृतम्’ अस्य सन्धिः अस्ति
(A) अभिऽवहतम्
(B) अभीऽवहृतम्
(C) अभ्यवहृतम्
(D) अभीअवहृतम्

8. ‘सुख + अनिलः’ अत्र सन्धियुक्तपदम्
(A) सुखालः
(B) सुखानिलः
(C) सुखनलः
(D) सुखलः

9. ‘कदापि’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(A) क + अपि
(B) कदा + अपि
(C) कदाः + अपि
(D) कद् + अपि

10. ‘प्रति + अहम्’ अत्र सन्धियुक्तपदम् अस्ति
(A) प्रत्यहम्
(B) प्रत्ययः
(C) प्रत्यक्षम्
(D) प्रत्यम्

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HBSE 11th Class Sanskrit अपठित अवबोधनम्

Haryana State Board HBSE 11th Class Sanskrit Solutions Apathit Avbodhnam अपठित अवबोधनम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Sanskrit अपठित अवबोधनम्

(1) अपठित गद्यांश के प्रश्नों के उत्तर लिखने से पूर्व उसे दो तीन बार पढ़ें।
(2) गद्यांश की पंक्तियों में यदि शब्दों के अर्थ स्पष्ट न हो तो उन वाक्यों को ध्यान से पढ़ना चाहिए, जिनमें उक्त शब्दों का प्रयोग हुआ है।
(3) अपठित गद्यांश में दिए गए अव्ययों, विभक्तियों तथा विशेषणों को विशेष ध्यान से पढ़ें, क्योंकि इनका अर्थ पता न होने पर उत्तर गलत हो सकता है।
(4) कुछ अपठित गद्यांशों के शीर्षक के विषय में भी प्रश्न पूछा जाता है। इसके लिए विद्यार्थी को उस अंश को पूरा पढ़कर और सोब-मयझकर तार्यार्येत भीर्षक का चयय करना वाहिए।
(5) अपठित गद्यांश में जिस विषय पर चर्चा की गई हो, वही विषय उसका शीर्षक होता है।

अधोलिखितानां अनुच्छेदानाम् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत पूर्णवाक्येन लिखत

1. ‘दहेज’ इति शब्दः समाजस्य एकः कलंकः अस्ति। विवाहः जीवनस्य एकः अमूल्यो निधिरस्ति। विवाहस्य जीवनेन सह अभिन्नः सम्बन्धः अस्ति। निर्धनानां तु कन्यकाः बहुकालं अविवाहिताः एव भवन्ति। इयं प्रथा अस्माकं देशे जनसामान्ये न पुरा प्रचलिता आसीत् । मध्यकाले सामन्तयुगे राजानः स्वकन्याभ्यः विवाहेषु अपारधनराशीन् सुखसाधनानि च दातुं प्रारभन्त। अद्य तु इयं प्रथाऽस्माकं समाजे दृढपरम्परया विद्यते। दहेजस्य ब्रह्मराक्षसः स्वबाहुपाशे जनसाधारणं सन्निगृह्य जृभ्यते। एकतः पिता स्वकन्यां महादानमिव वराय यच्छति परतः पुनः रुप्यकाणि अपि दीयन्ते। कन्या अपि! रुप्यकाणि अपि! किमर्थं एतावान् महाराशिः शुल्कं वा कन्यायाः पित्रा वरपित्रे दीयते, अयमेव प्रश्नः?

प्रश्नाः
(क) कस्य जीवनेन सह अभिन्नः सम्बन्धः अस्ति?
(ख) दहेजप्रथा अस्माकं देशे जनसामान्ये कदा न प्रचलिता आसीत?
(ग) के स्वकन्याभ्यः अपारधनराशीन् मध्ययुगे दातुं प्रारभन्त?
(घ) जीवनस्य अमूल्यः निधिः कः अस्ति?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) विवाहस्य जीवनेन सह अभिन्नः सम्बन्धः अस्ति।
(ख) दहेजप्रथा अस्माकं देशे जनसामान्ये पुरा न प्रचलिता आसीत्।
(ग) राजानः स्वकन्याभ्यः अपारधनराशीन् मध्ययुगे दातुं प्रारभन्त।
(घ) विवाहः जीवनस्य अमूल्यः निधिः अस्ति।
(ङ) दहेजस्य कुप्रथा।

HBSE 11th Class Sanskrit अपठित अवबोधनम्

2. महाभारते व्यासेन कथितम् अस्ति यत् धर्मः शाश्वतः। अतः अस्य परित्यागः कस्याञ्चिदपि दशायां भयेन लोभेन वा नं कर्तव्यः। अस्मिन् ग्रन्थे युद्धानां वर्णनानि पठनीयानि सन्ति। यतः महाभारतस्य कथा मुख्यरूपेण अर्जुन-भीम-कर्ण द्रोण-भीष्म-दुर्योधनादिकानां व्यक्तिगतवीरतायाः कथा वर्तते, अतः तत्कालीनेषु युद्धेषु व्यक्तिगत वीरत्वस्य प्राधान्यं लक्ष्यते। . कौरवाणां पाण्डवानां च समरे पार्थः प्रायः एकलः एव वीरतां प्रदर्श्य विजय-लक्ष्मी प्राप्नोति। युद्धभूमौ युध्यमानानां वीराणां पारस्परिकः संवादः यदा कदाचित् पूर्ण व्याख्यान रूपे लभ्यते। अनेन शत्रुपक्षस्य दुष्प्रवृत्तिकारणेन तेषां पराभवस्य दैव्याः योजनायाः आकलनं कर्तुं शक्यते। कौटुम्बिकयुद्धानां वर्णनं भीष्मपर्वणि शल्यपर्वणि च उपलभ्यते।

प्रश्ना:
(क) महाभारते व्यासेन किम् कथितम्?
(ख) अस्मिन् ग्रन्थे केषाम् वर्णनानि पठनीयानि सन्ति?
(ग) कस्य कथा व्यक्तिगतवीरतायाः वर्तते?
(घ) भीष्मपर्वणि शल्यपर्वणि च किं उपलभ्यते?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) महाभारते व्यासेन धर्मः शाश्वतः कथितम्।
(ख) अस्मिन् ग्रन्थे युद्धानां वर्णनानि पठनीयानि सन्ति।
(ग) अर्जुन-भीम-कर्ण-द्रोण-भीष्म-दुर्योधनादिकानां व्यक्तिगतवीरतायाः कथा वर्तते।
(घ) कौटुम्बिकयुद्धानां वर्णनं भीष्मपर्वणि शल्यपर्वणि च उपलभ्यते।
(ङ) महाभारतम्।

3. जीवने अनुशासनस्य महत्त्वपूर्ण स्थानम् अस्ति। अनुशासनं विना जनः जीवने एकं पदम् अपि धर्तुं न सक्षमः वर्तते।गृहे समाजे ग्रामे नगरे देशे विदेशे च सर्वत्र अनुशासन सर्वाणि कार्याणि पूर्णानि भवन्ति । यथा कमलेन जलं शोभते तथैव अनुशासनेन मनुष्यजीवनं शोभते। नियमपालनम् एव अनुशासनम्।यत्र नास्ति अनुशासनं तत्र नास्ति उन्नतिः सुखं च। अतः जीवने प्रथम सोपानम् अनुशासनम् उन्नतेः सुखस्य च। अनुशासनपालनाय दण्डम् आवश्यकम् करणीयम्। दण्डः शास्ति प्रजाः सर्वाः कथितं च।

प्रश्नाः
(क) जीवने कस्य स्थानं महत्त्वपूर्ण वर्तते?
(ख) अनुशासनं विना किं धर्तुं जनः सक्षमः नास्ति?
(ग) कुत्र-कुत्र अनुशासनेन कार्याणि भवन्ति?
(घ) कस्य जीवनम् अनुशासनेन शोभते?
(ङ) कस्मै दण्डम् आवश्यकं भवेत्?
उत्तराणि:
(क) जीवने अनुशासनस्य स्थानं महत्त्वपूर्णं वर्तते।
(ख) अनुशासनं विना जनः जीवने एकं पदम् अपि धर्तुं सक्षमः नास्ति।
(ग) गृहे समाजे ग्रामे नगरे देशे विदेशे च सर्वत्र अनुशासनेन कार्याणि भवन्ति।
(घ) यथा कमलेन जलं शोभते तथैव अनुशासनेन मनुष्यजीवनं शोभते।
(ङ) अनुशासनपालनाय दण्डम् आवश्यकं भवेत्।

4. दीपावली प्राचीनतमं पर्व। अस्मिन् दिने सर्वाधिकम् आकर्षकं मनोरञ्जनं भवति स्फोटकानाम् आस्फोटनम् । विचित्राणि वर्णयुक्तिानि स्फोटकानि आकाशे भूमौ च विविधरूपाणि दर्शयन्ति। जनाः तानि दृष्ट्वा तुष्यन्ति। परन्तु अति सर्वत्र वर्जयेत् । रात्रौ आस्फोटकानां शब्दः कर्णौ बधिरीकरोति वायुमण्डलं च दूषयति। पूर्वं तु जनसंख्या सीमिता आसीत्। वृक्षाः वायुं शुद्धं कुर्वन्ति स्म। इदानीम् जनसंख्या प्रवृद्धा, वृक्षसंख्या क्षीणा। विस्फोटकेभ्यः निर्गतः धूमः रुग्णान् पीडयति, नवजातशिशुभ्यः हानिकरः सिध्यति। दीपावली-समये शरदि आकाशः निर्मलः भवति। सर्वत्र पवित्रता विराजते। अतः वयम् आनन्देन दीपावलीम् मानयेम्, वसुन्धरां भूषितां कुर्याम् न तु दूषिताम् । सर्वेषां जीवन सुखमयं भवेत् । किं तेन उत्सवेन यः कस्मैचित् अपि कष्टकरः भवेत् ? ‘मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्’ इति अस्माकम् आदर्शः।

प्रश्नाः
(क) केषाम् आस्फोटनम् सर्वेभ्यः आकर्षकम् मनोरञ्जकम् च?
(ख) दीपावली कदा भवति?
(ग) के वायुं शुद्धं कुर्वन्ति?
(घ) अस्माकम् आदर्शः किम्?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) स्फोटकानाम् आस्फोटनम् सर्वेभ्यः आकर्षकम् मनोरञ्जकम् च।
(ख) दीपावली शरदऋतौ भवति।
(ग) वृक्षाः वायुं शुद्धं कुर्वन्ति।
(घ) ‘मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्’ इति अस्माकम् आदर्शः।
(ङ) दीपावली।

5. बाल्यकाले बालानां सुकुमार हृदये संसर्गस्य प्रभावः अनायासेन भवति। बालः यादृशैः बालैः संगति करिष्यति तादृशः एव सः भविष्यति। सत्संगेन सः सज्जनः भविष्यति कुसंगेन च दुर्जनः। अतो बाल्यकाले ते दुर्जनसंगति रक्षणीयाः। सज्जन संगे च स्थापनीयः। दुर्जन-संगेन सः दुष्टः, दुर्बल शरीरः मन्दबुद्धिश्च भविष्यति पर सत्संगेन सः स्वस्थः, सुबुद्धिः उन्नतिशीलः च भविष्यति। अतः बालानां संगतिः सर्वथा दोषहीनः। गुणिजन संसर्गा च भवितव्या।

प्रश्नाः
(क) बालानां हृदयः कीदृशः भवति?
(ख) सत्संगेन बालः कीदृशः भवति?
(ग) दुर्जन-संगेन बालकः कीदृशः भवति?
(घ) केषां हृदये संसर्गस्य प्रभावः भवति?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) बालानां हृदयः सुकुमारः भवति।
(ख) सत्संगेन बालः सज्जनः भवति।
(ग) दुर्जन-संगेन बालकः दुष्टः, दुर्बल शरीरः मन्दबुद्धिश्च भवति।
(घ) बाल्यकाले बालानां सुकुमार हृदये संसर्गस्य प्रभावः भवति।
(ङ) संसर्गः प्रभावः।

6. दिल्लीनगरं भारतस्य राजधानी वर्तते। एतत् नगरमतीव प्राचीनमैतिहासिकं चास्ति। अस्य पुरातनं नाम इन्द्रप्रस्थः आसीत्। दिल्लीनगरे बहूनि प्राचीनानि नवानि च दर्शनीमानि स्थानानि विद्यन्ते। तथाहि-विरला-मन्दिरम्, संसद्-भवनम्, राष्ट्रपति-भवनम्, राष्ट्रीय-संग्रहालयः, जन्तुशाला कुतुबमीनारश्च। दिल्लीनगरं व्यापारस्य उद्योगानां चापि केन्द्रम् वर्तते। संक्षेपतः इति कथयितुं शक्यते- ‘यत् दिल्लीनगरमतिसमृद्दम् वैभवपूर्णम् चास्ति।

प्रश्नाः
(क) दिल्लीनगरं कस्य राजधानी वर्तते ?
(ख) दिल्लीनगरं केषां केन्द्रम् वर्तते ?
(ग) अस्य पुरातनं नाम किम् आसीत् ?
(घ) संक्षेपतः किं कथयितुं शक्यते?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) दिल्लीनगरं भारतस्य राजधानी वर्तते।
(ख) दिल्लीनगरं व्यापारस्य उद्योगानां केन्द्रम् वर्तते।
(ग) अस्य पुरातनं नाम इन्द्रप्रस्थः आसीत्।
(घ) ‘यत् दिल्लीनगरमतिसमृद्दम् वैभवपूर्णम् चास्ति।’
(ङ) दिल्लीनगरं।

7. राष्ट्रपिता श्रीमोहनदासः कर्मचन्दः गान्धी मम प्रियः नेता अस्ति। तस्य जन्म गुजरातप्रदेशस्य ‘पोरबन्दर’ नामके स्थाने अभवत्। अस्य पिता कर्मचन्दः माता च पुतलीबाई आसीत्। अध्ययनार्थं विदेशं गन्तुकामः सः मातुरादेशप्राप्त्यर्थं प्रतिज्ञात्रयमकरोत् नाहं कदापि मदिरा सेविष्ये, नाहं मांसस्पर्शमपि विधास्यामि, पूर्णरूपेण ब्रह्मचर्यव्रतमाचरिष्यामीति। स्वप्रतिज्ञा पालयन् सः त्रीणि वर्षाणि विधिशास्त्रम् अधीतवान् । स्वदेशम् आगत्य च-मुम्बापुर्यां बैरिस्टरवृत्तिं प्रारभत। शीघ्रमेव दक्षिणाफ्रीकादेशं गत्वा तत्रत्यानां भारतीयानां गौरंगैः कृतां दुर्दशां विलोक्य तेषां समुद्धाराय अहिंसामूलस्य सत्याग्रहस्य उपायस्य प्रयोगम् अकरोत्, तेन च पूर्णां सफलता प्राप्तवान्। तत्र तस्य उपायस्य साफल्यम् अनुभूय स्वदेशोद्धाराय अपि तस्य प्रयोगं कर्तुम् स्वदेशं प्रत्यागच्छत् । तेन अहिंसया भारतदेशः स्वतन्त्रः कृतः।

प्रश्नाः
(क) मोहनदासकर्मचन्दगान्धिनः जन्म गुजरातप्रदेशस्य कस्मिन् स्थाने अभवत् ?
(ख) मोहनदासस्य पिता को आसीत् ?
(ग) विदेशे गान्धी किम त्रीणि वर्षाणि अधीतवान?
(घ) गान्धी अहिंसामूलस्य कस्य उपायस्य प्रयोगं अकरोत् ?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) मोहनदासकर्मचन्दगान्धिनः जन्म गुजरातप्रदेशस्य पोरबन्दर नामके स्थाने अभवत्।
(ख) मोहनदासस्य पिता कर्मचन्दः आसीत्।।
(ग) विदेशे गान्धी विधिशास्त्रम् त्रीणि वर्षाणि अधीतवान्।
(घ) गान्धी अहिंसामूलस्य सत्याग्रहस्य उपायस्य प्रयोगं अकरोत्।
(ङ) राष्ट्रपिता मोहनदासः कर्मचन्दः गान्धी।

HBSE 11th Class Sanskrit अपठित अवबोधनम्

8. संस्कृतगद्यसाहित्यस्य मूलाधारः ऐतिहासिकः तत्र अनेन सह काल्पनिकः अपि अस्ति। यथा ‘कादम्बरी’ बाणभट्टस्य एका काल्पनिककृतिः वर्तते। ‘हर्षचरितम्’ च ऐतिहासिक पृष्ठभूमौ निर्मितम् अस्ति। गद्यसाहित्ये क्लिष्टत्वं भवति । भाषायाः रूपं कृत्रिमम् अधिकं भवति। अस्य कारणमिदं यत् संस्कृतसाहित्यस्य अध्येतारः प्रायेण कुलीनाः मन्यन्ते। गद्यसाहित्यस्य भाषायाम् अलंकारे च पाण्डित्यस्य अपेक्षा बहुला जायते। संस्कृतगद्यसाहित्ये पदे पदे अलंकाराः प्राप्यन्ते। उक्तं च-‘गद्य कवीनां निकषं वदन्ति।’ संस्कृतगद्यसाहित्ये समासशैल्याः दर्शनं बाहुल्येन भवति! तस्मिन् कोमलभावानां विद्यमानत्वमपि अस्ति, परं, तेन साधू ओजोगुणः लभ्यते। कथानकानां मूलानि स्रोतांसि लोककथाः सन्ति। कथितमपि “ओजः समासमूयस्त्वमेतद् गद्यस्य जीवितम्।”

प्रश्नाः
(क) बाणभट्टस्य ग्रन्थयोः नाम लिखत।
(ख) संस्कृतगद्यसाहित्ये पदे पदे के प्राप्यन्ते?
(ग) संस्कृत गद्य साहित्ये कस्या दर्शनम् बाहुल्येनं भवति?
(घ) गद्य साहित्य विषये किम् उक्तम् ?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) बाणभट्टस्य ग्रन्थयोः नाम ‘कादम्बरी’ ‘हर्षचरितम्’ च।
(ख) संस्कृतगद्यसाहित्ये पदे पदे अलंकाराः प्राप्यन्ते।
(ग) संस्कृत गद्य साहित्ये समासशैल्याः दर्शनम् बाहुल्येनं भवति।
(घ) ‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति’ इति गद्य साहित्ये विषये उक्तम्।
(ङ) गद्य साहित्यस्य महत्त्वम्।

9. सर्वेषु धनेषु विद्याधनम् एव उत्तमंधनं मन्यते । विद्यया एव जनाः जानन्ति यत् किं कर्तव्यम् अस्ति किं च अकर्तव्यम्। अनया एव ज्ञायते यत् किम् उचितम् अस्ति किं च अनुचितम् । विद्याधनेन एव वयं जानीमः यत् कःसन्मार्गः अस्ति कः च कुमार्गः। विद्यया एव मनुष्यः संसारे सम्मान प्राप्नोति । विद्याधनाय वारं वारं नमः।

प्रश्नाः
(क) सर्वेषु धनेषु किम् उत्तमं धनं मन्यते?
(ख) कया एव जनाः कर्तव्यम् अकर्तव्यम् वा जानन्ति?
(ग) कया मनुष्यः संसारे सम्मान प्राप्नोति?
(घ) विद्याधनेन वयं किं जानीमः?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) सर्वेषु धनेषु विद्याधनम् उत्तमं धनं मन्यते।
(ख) विद्यया एवं जनाः कर्तव्यम् अकर्तव्यम् वा जानन्ति।
(ग) विद्यया एव मनुष्यः संसारे सम्मानं प्राप्नोति।
(घ) विद्याधनेन वयं जानीमः यत् कः सन्मार्गः अस्ति कः च कुमार्गः।।
(ङ) विद्याधनम्।

10. रामायणे सप्त भागः सन्ति । इमे ‘काण्डानि’ कथ्यन्ते। एतेषां काण्डानां क्रमशः नामानि वर्तन्ते बालकाण्डम्, अयोध्याकाण्डम्, अरण्यकाण्डम्, किष्किन्धाकाण्डम्, सुन्दरकाण्डम्, युद्धकाण्डम् उत्तरकाण्डं च । बहवः विद्वांसः अस्य उत्तरकाण्ड पूर्णतः बालकाण्डं च अंशतः प्रक्षिप्तं मन्यन्ते। रामायणे चतुर्विंशति सहस्रसंख्याकाः श्लोकाः सन्ति, येषु आधिक्यम् अनुष्टुप् छन्दसः वर्तते। सत्यः कविः उत्तमं महाकाव्यं च कीदृशं भवितव्यम्, एतद् अस्माभिः समायणेनैव ज्ञायते। सामान्यः जनः गृहस्थः भवति, परं गार्हस्थ्यस्य साफल्यमति कठिनं. स्था एव जानन्ति। अस्यैव उच्चलक्ष्यस्य सिद्धिमार्गः वाल्मीकिन दशरथ-राम-लक्ष्मण-सीता-भरतादीनां दिव्य चरित्रैः प्रशस्तः। रामायणम् करुणरसप्रधान महाकाव्यम् । एतत् प्राचीनभारतस्य सभ्यतायाः उज्ज्वलं दर्पणम् अस्ति।

प्रश्नाः
(क) रामायणे कति श्लोकाः सन्ति?
(ख) रामायणे कस्य छन्दस्य आधिक्यम् अस्ति?
(ग) रामायणम् कीदृशम् महाकाव्यम् अस्ति?
(घ) रामायणं कस्याः दर्पणं अस्ति?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) रामायणे चतुर्विंशति सहस्र श्लोकाः सन्ति।
(ख) रामायणे अनुष्टुप् छन्दस्य आधिक्यम् अस्ति।
(ग) रामायणम् करुणरसप्रधानम् महाकाव्यम् अस्ति।
(घ) रामायणं प्राचीनभारतस्य सभ्यतायाः उज्ज्वलं दर्पणम् अस्ति।
(ङ) रामायण महाकाव्यम्।

11. अनुशासनस्य महत्त्वं सर्वत्र अस्ति? अनुशासनं विना गृहे, समाजे, नगरे देशे च कुत्रापि कार्यं न सम्पद्यते। यथा कमलेन जलम् विभाति तथैव अनुशासनेन मानवजीवनम् विभाति।अनुशासनस्य पालनाय दण्ड-विधानस्य व्यवस्था अवश्यमेव करणीया। नियम-पालनेन सुखप्राप्तिः भवति?

प्रश्नाः
(क) केन सुखप्राप्तिः भवति?
(ख) अनुशासनस्य महत्त्वं कुत्र अस्ति?
(ग) जलम् केन विभाति?
(घ) मानवजीवनम् केन विभाति?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) नियम-पालनेन सुखप्राप्तिः भवति।
(ख) अनुशासनस्य महत्त्वं सर्वत्र अस्ति।
(ग) जलम् कमलेन विभाति।
(घ) मानवजीवनम् अनुशासनेन विभाति।
(ङ) अनुशासनम्।

12. एकस्य नृपतेः विद्याहीनाः त्रयः पुत्राः आसन् । नृपतिः सचिवान् आहूय अवदत्-भोः! यूयम् अवगच्छथ यत् ममैते पुत्राः शास्त्र-विमुखाः। एतान् अवलोक्य अहं राज्ये अपि सुखं न अनुभवामि। तद् यूयम् किमपि उपायं कुरुत, येन एतेषां बुद्धेः प्रकाशः भवतु। “तदा सुमति नाम सचिवः अकथयत्-“देव! विष्णुशर्मा नाम महान् विद्वान् ब्राह्मणाय समर्पयतु एतान् । स शीघ्रम् एतान् योग्यान् करिष्यति।” नृपः विष्णुशर्माणम् आहूय न्यवेदयत्-“भो भगवन् ! कृपया मम एतान् पुत्रान शीघ्रमेव योग्यान करिष्यति तदा अहम् युष्मभ्यं महद् द्रव्यं दास्यामि।” विष्णुशर्मा नृपाय अकथयत्-“नाहं द्रव्येण विद्यायाः विक्रयं करोमि किन्तु तव प्रार्थनया षष्णां मासानाम् मध्ये तव पुत्रान् नीतिशास्त्रे योग्यान् करिष्यामि।”

प्रश्नाः
(क) नृपतेः पुत्राः कीदृक् आसन् ?
(ख) नृपतिः कान् आहूय अवदत्?
(ग) कः एतान् योग्यान् करिष्यति?
(घ) नृपः कम् आहूय न्यवेदयत्?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) नृपतेः पुत्राः शास्त्र-विमुखाः आसन्।
(ख) नृपतिः सचिवान् आहूय अवदत्।
(ग) विष्णुशर्मा एतान् योग्यान् करिष्यति।
(घ) नृपः विष्णुशर्माणम् आहूय न्यवेदयत्।
(ङ) विष्णुशर्माया विद्वता।

HBSE 11th Class Sanskrit अपठित अवबोधनम्

13. महाभारतं महर्षिणा वेदव्यासेन विरचितः बहुप्रसिद्धः इतिहासः विद्यते। अस्मिन् ग्रन्थे कौरव-पाण्डवानां महायुद्धं मुख्य-विषय-रूपेण वर्णितमस्ति । मानवजीवनस्य धर्मार्थकाममोक्षरूपाः समस्त-पुरुषार्थाः अत्रः सन्निवेशिताः। इदं काव्यं पञ्चमवेदरूपेण प्रसिद्धमस्ति। अस्य काव्यस्य भीष्मपर्वणि श्रीमद्भगवद्गीता विद्यते ।।

प्रश्नाः
(क) महाभारतस्य रचयिता कोऽस्ति?
(ख) महाभारते मुख्य-विषयरूपेण किं वर्णितमस्ति?
(ग) महाभारतस्य कस्मिन् पर्वणि श्रीमद्भगवद्गीता विद्यते?
(घ) महाभारते मानवजीवनस्य के के पुरुषार्थाः सन्निवेशिताः?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) महाभारतस्य रचयिता वेदव्यासेन अस्ति।
(ख) अस्मिन् ग्रन्थे कौरव-पाण्डवानां महायुद्धं वर्णितमस्ति।
(ग) महाभारतस्य भीष्म पर्वणि श्रीमद्भगवद्गीता विद्यते।
(घ) महाभारते मानवजीवनस्य धर्मार्थकाममोक्षरूपाः पुरुषार्थाः सन्निवेशिताः।
(ङ) महाभारतं।

14. राजा जीमूतवाहनः धर्मपुरे राज्यं अकरोत् । एकदा च कस्याश्चित् स्त्रियाः विलापं अशृणोत्। परिज्ञातं यत् सा गरुडस्य आहाराय स्वपुत्रं आनीतवती। राजा तस्य रक्षायै वचनं दत्तवान् । स स्वशरीरं गरुडाय अर्पितवान् । यदा गरुडः वामभागं खादित्वान् राजा दक्षिण भागमपि प्रस्तुतवान् । तस्य धैर्यं दृष्ट्वा सत्यं ज्ञात्वा गरुडः पश्चात्तापं कृतवान् । सः पातालात् अमृतं आनीय राजानं पुनः जीवितवान् । तद् दिनात् आरभ्य स सर्पभक्षण त्यक्तवान् । धन्यः प्रातः स्मरणीय एषः जीमूतवाहनः।

प्रश्नाः
(क) धर्मपुरे कः राज्यं अकरोत् ?
(ख) जीमूतवाहनः कस्याः विलापं अशृणोत्?
(ग) नृपः स्वशरीरं कस्मै अर्पितवान् ?
(घ) किं दृष्ट्वा ज्ञात्वा गरुडः पश्चात्तापः कृतवान् ?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) धर्मपुरे जीमूतवाहनः राज्यं अकरोत् ।
(ख) जीमूतवाहनः स्त्रियाः विलापं अशृणोत्।
(ग) नृपः स्वशरीरं गरुडाय अर्पितवान्।
(घ) नृपस्य धैर्यं दृष्ट्वा सत्यं ज्ञात्वा गरुडः पश्चात्तापः कृतवान्।
(ङ) जीमूतवाहनस्य माहात्म्य।

15. एकस्मिन् देवालये ताम्रचूड नाम पब्रिाजकः वसति स्म । स च प्रत्यहं देशाटनं कृत्वा जीविका निर्वाहं करोति । सर्वां भिक्षा भिक्षापात्रे निद्याय नागदन्ते अवलम्ब्य रात्रौ स्वपिति। अथ एकदा मूषकाः स्व स्वामिनम् अकथयन्-स्वामिन्! वयम् भिक्षां भक्षयितुं न शक्नुमः। भवान् तत्र आरोढुं समर्थः अतः कृपां कुरु। मूषकः भिक्षापात्रं समारुह्य मूषकेभ्यः भिक्षान्नम् अयच्छत् । परिव्राजकः अचिन्तयत् कथं एतं मारयेयम्। सः जर्जरवंशम् आनीय पुनः पुनः ताडयति। एकदा तस्य मित्रं तत्र आगच्छत् । स पब्रिाजकम् अवदत्-यदि त्वं मद्वचनं न शृणोषि तर्हि अन्यत्र यास्यामि। पब्रिाजकः उवाच मा एवं वद। अहं मूषकेण त्रस्तः किं कुर्याम्?

प्रश्नाः
(क) परिव्राजकः किम् कृत्वा निर्वाहं करोति?
(ख) एकदा मूषकाः कम् अकथयन्?
(ग) सः किम् आनीय पुनः पुनः ताडयति?
(घ) परिव्राजकः किम् अचिन्तयत् ?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।
उत्तराणि:
(क) परिव्राजकः देशाटनं कृत्वा जीविका निर्वाहं करोति।
(ख) एकदा मूषकाः स्व स्वामिनम् अकथयन्।
(ग) सः जर्जरवंशम् आनीय पुनः पुनः ताडयति।
(घ) परिव्राजकः अचिन्तयत् यत् कथं एतं मारयेयम्।
(ङ) परिव्राजकः कथा।

अभ्यासार्थ महत्त्वपूर्ण गवाशानि

अधोलिखितानां अनुच्छेदानाम् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत पूर्णवाक्येन लिखत

1. वयं भारतवासिनः स्मः। अस्माकं मातृभूमिः, अस्माकं जन्मभूमिः इदमेव भारतम् । वयं स्वप्रियभारतवर्षे प्राणेभ्योऽप्यधिकं स्निह्यामः। इदं भारतं महत् । अस्य संस्कृतिः महती। इयं सा देवभूमिः, यस्यां जन्मग्रहणाय देवाः अपि उत्सुकाः भवन्ति। अस्याः समक्षं स्वर्गोऽपि नगण्यः अस्ति। उक्तमपि “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।” माता मातृभूमिश्च स्वर्गलोकादपि गरीयसी। विश्वस्य सर्वेषु एव देशेषु भारतवर्षस्य महत्त्वं सर्वाधिकं वर्तते, यतः अस्माकं भारतं निजानेकरूपतायै विश्वविख्यातम् अस्ति। अत्र प्रकृतिः स्वक्रीडां करोति। अत्र सर्वेषामेव षष्णाम् ऋतूनां क्रमो जायते। वसन्त-प्रीष्म-वर्षा-शरद्-हेमन्त-शिशिराः सर्वे एव ऋतवः क्रमेण आगच्छन्ति। इयं धरा प्रकृतेः लीलास्थली। प्रकृतेः मनोरमं रम्यं च स्थलमस्ति।

प्रश्नाः
(क) अस्माकम् देशस्य किं नाम?
(ख) अत्र केषां क्रमो जायते?
(ग) इयं धरा प्रकृतेः कीदृक् स्थलमस्ति?
(घ) षड् ऋतूणाम् नामानि लिखत।।
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

2. अस्मिन् असारे संसारे मानवजीवनं द्वयोः चक्रयोः भ्रमति। इमे द्वे चक्रे स्तः-भाग्यं पौरुषं च। कस्यचन जीवने भाग्यस्य प्राबल्यं भवति स च अस्य वरदानेन किञ्चिदपि कठोरं श्रमं विना जीवनस्य आनन्दं गृह्णाति सततम् । एतद् वैपरीत्येन . कस्यचित् जीवने पौरुषमेव लिखितं भवति। असौ अनवरतं श्रमते, परं स निजोद्यामानुकूलत्वेन फलं न लभते। एतत् सर्वं विधेः विधानम् । केचित् जनाः इदं पूर्वजन्मकृतकर्मणाां फलं मन्यन्ते, केचिच्च एतत् स्वकृतवर्तमानकर्मणां प्रतिफलं स्वीकुर्वन्ति । वस्तुतः भाग्यपुरुषार्थयोः उभयोः एतयोः अत्यद्भुतः संगमः वर्तते। केषांचित् मनुष्याणां विचारः अस्ति यत् एतयोः उभयोः सम्बन्धः मैत्र्याः अस्ति। एतत् प्रतिकूलत्वेन अन्ये नराः इमं सम्बन्धं मित्रतायाः न मत्वा शत्रुतायाः व्याहरन्ति।

प्रश्नाः
(क) द्वे चक्रे के स्तः?
(ख) एतत् सर्वं कस्य विधानम्?
(ग) भाग्यपुरुषार्थयोः कीदृक् संगमः वर्तते?
(घ) केषांचित मनुष्याणां किं विचारः अस्ति?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

3. एकस्मिन् वने एकः विशालः वृक्षः आसीत् । तस्मिन् बहवः खगाः वसन्ति स्म। एकदा ते अतीव बुभुक्षिताः आसन्। अतः भोजनं खादितुम् इतस्ततः भ्रमन्ति स्म। ते दूरं दूरं गच्छन्ति स्म। अन्ते च एकस्मिन् क्षेत्रे तण्डुलकणाम् अपश्यन् । ते तत्र गत्वा प्रसन्नतया तण्डुलान् खादन्ति स्म परन्तु जालेन बद्धाः अभवन् । अधुना किं करणीयम् इति चिन्तयित्वा ते सर्वे जालेन सह एव एकं स्वमित्रम् उपागच्छन् । तेषां मित्रम् एकः मूषकः आसीत्। सः जालं दन्तैः अकर्तयत् । अन्ते सर्वे स्वतन्त्राः भूत्वा अनृत्यन् अगायन् च-सुखं तु एकतायाम् एव विद्यते।

प्रश्नाः
(क) तस्मिन् वने के वसन्ति स्म?
(ख) खगाः भोजनं खादितुम् कुत्र भ्रमन्ति स्म?
(ग) खगानां मित्रम् कः आसीत् ?
(घ) खगाः एकस्मिन् क्षेत्रे कान् अपश्यन्।
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

4. एकदा एकः कर्तव्यपरायणः नगररक्षकः इतस्ततः भ्रमन् एकम् अशीतिवर्षीयं महापुरुषम् अपश्यत्। सः आम्रवृक्षस्य आरोपणे तल्लीनः आसीत् । इदं दृष्ट्वा नगररक्षकः तं महापुरुषम् अवदत्-अवलोकनेन प्रतीयते यत् यदा. एषः वृक्षः फलिष्यति तदा . .भवान् जीवितः न भविष्यति। अतः किमर्थं वृथा परिश्रमं कुर्वन्ति भवन्तः? महापुरुषः हसित्वा अवदत्-पश्यन्तु एतान् फलयुक्तान् वृक्षान् । एतेषाम् आरोपणं मया न कृतं परं फलानि अन्ये खादिष्यन्ति, अहं पुनः प्रसन्नः भविष्यामि। महापुरुषस्य वचनं श्रुत्वा तं च नमस्कृत्य नगररक्षकः उक्तवान्- अनुकरणीया एव सज्जनानां सज्जनता।

प्रश्नाः
(क) नगररक्षकः कम् अपश्यत्?
(ख) महापुरुषः किम् कर्तुम् तल्लीनः आसीत्?
(ग) सज्जनानाम् सज्जनता कीदृशी भवति?
(घ) कः अवदत्-“पश्यन्तु एतान फलयुक्तान वृक्षान्?”
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

HBSE 11th Class Sanskrit अपठित अवबोधनम्

5. राज्ञः शुद्धोदनस्य सिद्धार्थनामा सुशीलः सदृत्तश्च सुतः आसीत्। शैशवात् एव तस्मै राज्यभोगाः न रोचन्ते तदा पिता तस्य सांसारिक वृत्ति उद्भावयितुं तस्य विवाहं यशोधरानामिकया राजकन्यया सह कृतवान् । तस्यां राहुलनामा पुत्रोऽपि सञ्जातः। सांसारिक दुःखेभ्यः अनभिज्ञः सिद्धार्थः एकदा रथेन वनविहाराय निर्गतः। एकां शवयात्रां विलोक्य सारथिमपृच्छत् हे सूत। अयं जनसम्मदः किं नीत्वा कुत्र गच्छति? सूत उवाच कुमार एते जनाः एकं मृतं जनं दाहसंस्काराय श्मशानभूमिं गच्छन्ति।

प्रश्नाः
(क) शुद्धोदनस्य कीदृशः पुत्रः आसीत्?
(ख) तस्य विवाहः कया सह सञ्जातः?
(ग) यशोधरायाः कः नाम सुतः सञ्जातः?
(घ) सूतः कुमारं किम् उवाच?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

6. महाकवेः बाणभट्टस्य पूर्वजाः विश्रुताः विद्वांसः आसन सोनतीरवर्तिनि प्रीतिकूटनगरे च वसन्ति स्म। बाणस्य जन्म वात्स्यायनगोत्रोत्पन्नस्य चित्रभानोः गृहे अभवत् । कुसंगतौ पतित्वा बाणः पूर्वं तु अकर्मण्यः व्यचरत्, परं प्रकृतिम् आपन्ने अति महान् विद्वान् सम्राजः हर्षवर्धनस्य च सभारत्नमभूत् । अस्य मातुर्नाम राज्यदेवी आसीत्। बाल्यकाले एव अस्य पितरौ दिवंगतौ। परिभ्रमन् अयम् अनेकेषां विदुषां ब्राह्मणानां च सम्पर्क प्राप्तवान् । अस्य आचरणेन प्रथमतः हर्षवर्धनः असन्तुष्ट आसीत्। यदा माता श्रीकृष्णः बाणस्य साहाय्यम् अकरोत, तदा हर्षः सन्तुष्टः बाण च स्वराज्यसभायाम् आकारयत्। हर्षवर्धनः पुनरापे एतस्मै उचितं सम्मानं न अयच्छत् । शनैः शनैः बाणेन निज पाण्डित्य बलेन हर्षवर्धनः तोषितः।

प्रश्नाः
(क) बाणभट्टस्य मातुर्नाम किम् आसीत्?
(ख) बाणभट्टस्य पूर्वजाः कस्मिन् नगरे वसन्ति स्म?
(ग) अस्य आचरणेन प्रथमतः कः असन्तुष्टः आसीत्?
(घ) बाणभट्टस्य साहाय्यम् कः अकरोत्?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

7. गंगा सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा अस्ति। सा लोकत्रयस्य कल्याणकारिणी अस्ति। सा भौतिक सुख दृष्ट्या आध्यात्मिक सुख दृष्ट्या कल्याणप्रदा। यं गंगां पूर्णरूपेण समर्पितो-भवति, तस्य जीवनं धन्यं भवति। इह संसारे यः जनः राज्ञा भगीरथेन आनीतां भगवती गंगां सदा वन्दते, स एव शोभनः चतुरः कथ्यते। यः जनः आदरपूर्वकं जहनुतनयां मनसा ध्यायति, स एव सम्यक् तपस्वी भवति। यः गंगायाः नामानि गुणान् च सदा स्मरति, स एव श्रेष्ठः पुरुषः कथ्यते। यस्य जनस्य देवनी प्रति सेवाभावना अस्ति, यथार्थरूपेण स एव कर्मयोगी अस्ति, स एव सर्वेषां स्वामी भवति।

प्रश्नाः
(क) सर्वासां नदीनां श्रेष्ठा नदी का अस्ति?
(ख) इह संसारे गंगां कः आनीतवान् ?
(ग) यः आदरपूर्वकं जहनुतनयां ध्यायति सः किं भवति?
(घ) यस्य देवनदी प्रति सेवाभावना अस्ति, स किम् अस्ति?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

8. सत्संगतिः धियः जाड्यं हरति । वाचि सत्यं सिञ्चति। मानोन्नतिं करोति। पापम् अपाकरोति। मनः प्रसादयति। सर्वत्र यशः तनोति। कथय, मनुष्याणां कृते सत्संगतिः किं न करोति, अर्थात् सर्वेषामेव उत्तमगुणानां विकासं करोति। ईदृशः अस्ति सत्संगतेः महिमा। अयम् एकः स्वाभाविकः अभिप्रायोऽस्ति यत् मनुष्यस्य संगतिः यादृक्प्रवृत्तिधारकेण सह भवति, स तादृश एव भवति । यदि तस्य उत्थानम् उपवेशनं दुष्टैः सह, तदा सोऽपि भविष्यति। परं सज्जनैः साकं संसर्गात् स एव जनः सुजनः भवितुं शक्नोति। प्रभावस्तु अवश्यमेव पतति अन्योऽन्ययोः, एतत् तु स्वीकरणीयमेव जायिष्यते। यदा वयं संगतेः प्रभावं जड़पदार्थेषु पश्यामः, तदा चेतनः प्राणी कथं न प्रभवितुं क्षमते।

प्रश्नाः
(क) सत्संगतिः केषां विकासं करोति?
(ख) सज्जनैः संगतिं जनः कीदृशः भवितुं शक्नोति?
(ग) संगतेः प्रभावः वयं कं पदार्थेषु पश्यामः?
(घ) सत्संगतिः केषां विकासं करोति?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

9. गुरुनानकः स्वशिष्यैः सह सर्वदा देश भ्रमणं करोति स्म। तदुपदेशान् श्रोतुं जनाः एकत्रिताः भवन्ति स्म। एकदा स एकं ग्रामं गतवान्। ग्रामवासिनः महता उत्साहेन सशिष्यस्य गुरुनानकस्य स्वागतम् आतिथ्यं च कृतवन्तः। परमश्रद्धया तस्य उपदेशं श्रुत्वा ते आनन्दिताः जाताः। तेषां हृदयेषु शान्तिः मुखेषु च कान्तिः अराजेताम् । एवं कतिपय दिनानि व्यतीतानि । गुरुनानकः ततः प्रस्थातुम् ऐच्छत् । सर्वे ग्राम वासिनः अप्रार्थयन्-भवान् अन्यत्र मा गच्छन्तु। अत्रैव वसतु।

प्रश्नाः
(क) देश भ्रमणं कः करोति स्म?
(ख) गुरुनानकस्य आतिथ्यं स्वागतञ्च के कृतवन्तः?
(ग) ग्रामवासिनः कम् उषितुम् अप्रार्थयन् ?
(घ) ग्रामवासिनः उत्साहेन किं कृतवन्तः?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

10. आदिकाव्यं रामायणं मम प्रियपुस्तकम् अस्ति। भगवतो मर्यादा पुरुषोत्तमस्य श्रीरामचन्द्रस्य पावनं चरित्रं रामायणे प्राप्यते। अस्य आदिकाव्यस्य लेखकः महर्षिः वाल्मीकिः आसीत् । तस्य रचना ‘आदिकाव्यम्’ इति वेदविदुषां मतम्। अतएव वाल्मीकिः आसीत् आदिकविः। रामायणम् अनुष्टुप् छन्दसि लिखितम् । रामायणे श्लोकसंख्या चतुर्विंशतिसहस्रं वर्तते, अस्मात् कारणात् रामायणं महाकाव्यं ‘चतुर्विंशति-साहस्री-संहिता’ इत्युच्यते विद्वद्भिः। देवर्षिनारदस्य प्रेरणया ब्रह्मणः वचनेन च आदिकविना इदं काव्यं विरचितम् । रामायणे ‘बाल-अयोध्या-अरण्य-किष्किन्धा-सुन्दर-युद्ध-उत्तर’ इति सप्तकाण्डानि विद्यन्ते। रामायणे श्रीरामचन्द्रस्य नारायणावताररूपेण वर्णनं समुपलभ्यते।।

प्रश्नाः
(क) रामायणे कस्य वर्णनं प्राप्यते?
(ख) रामायणे श्रीरामस्य कीदृशं वर्णनं प्राप्यते?
(ग) रामायणे कति काण्डानि विद्यन्ते?
(घ) रामायणस्य सप्तकाण्डानां नामानि लिखत।
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

11. भारतवर्षे षट् ऋतवः भवन्ति। तेषु वसन्तः ऋतुराजः कथ्यते। चैत्रे वैशाखे च मासे वसन्तः ऋतुः भवति। वसन्ते द्वौ प्रमुखौ उत्सवौस्तः-वसन्तोत्सवः, होलिकोत्सवश्व । वसन्ते सर्वत्र प्रमोदः भवति। नराः नार्यः युवानः वृद्धाः च गायन्ति नृत्यन्ति। आम्रवृक्षे कोकिलस्य मधुरध्वनिः सर्वान् आकर्षति। पादपेषु नानावर्णानि पुष्पाणि रम्यं वातावरणं जनयन्ति। सर्वत्र प्रकृतिः विविध वर्णेः कुसुमैः मनोरमपरिधानैः इव दृश्यते। वयं प्रकृतिं नमामः यस्याः रमणीया रचना अलौकिकी अद्भुता च वर्तते।

प्रश्नाः
(क) भारतवर्षे कति ऋतवः भवन्ति?
(ख) ऋतुराजः कः कथ्यते?
(ग) वसन्ते को प्रमुखौ उत्सवौस्तः?
(घ) कस्य ध्वनिः सर्वान् आकर्षति?
(ङ) अस्य अनुच्छेदस्य समुचितं शीर्षकं लिखत।

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HBSE 11th Class Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 5.2

Haryana State Board HBSE 11th Class Maths Solutions Chapter 5 सम्मिश्र संख्याएँ और द्विघातीय समीकरण Ex 5.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

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