Author name: Prasanna

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

HBSE 10th Class Hindi नेताजी का चश्मा Textbook Questions and Answers

नेताजी का चश्मा गद्यांश HBSE 10th Class प्रश्न 1.
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
उत्तर-
निश्चय ही चश्मे वाला कभी सेनानी नहीं रहा। वह भले ही गरीब एवं अपाहिज था, किंतु उसके मन में देशभक्ति की असीम भावना थी। वह देशभक्त सुभाषचंद्र बोस का सम्मान करता था। वह सुभाष की बिना चश्मे की मूर्ति को देखकर दुःखी हो उठा था। इसलिए उसने सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगा दिया था। उसकी इस देशभक्ति की भावना को देखकर ही उसे सुभाषचंद्र बोस का साथी होने का तथा उनकी सेना का कैप्टन होने का सम्मान दिया था। भले ही उसका यह नाम लोगों ने व्यंग्य में रखा हो। किंतु वास्तविकता यह थी कि वह इस नाम के योग्य भी था।

Netaji Ka Chashma Gadyansh HBSE 10th Class प्रश्न 2.
हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ति पर सरकडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?
उत्तर-
(क) हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे क्योंकि वे चौराहे पर लगी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति को बिना चश्मे के देख नहीं सकते थे। जब से कैप्टन की मृत्यु हुई थी, तब से किसी ने भी नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाया था। इसीलिए जब हालदार साहब कस्बे से गुज़रने लगे तो उन्होंने ड्राइवर से चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना कर दिया था।

(ख) हालदार साहब जब चौराहे से गुज़रे तो नेताजी की मूर्ति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब के मन में यह आशा जगी कि आज के बच्चे ही कल को देश के निर्माण में सहायक होंगे और अब उन्हें कभी भी चौराहे पर नेताजी की बिना चश्मे की मूर्ति नहीं देखनी पड़ेगी।

(ग) कैप्टन की मृत्यु के पश्चात् उन्हें ऐसा लगा था कि अब नेताजी की आँखों पर चश्मा लगाने वाला कोई नहीं बचा। किंतु जब उन्होंने नेताजी की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का बना हुआ चश्मा देखा तो वे भावुक हो उठे कि देश में अभी भी देशभक्ति जीवित है, मरी नहीं। सुभाषचंद्र बोस जैसे नेताओं का आदर करने वाले लोग देश में अभी भी हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

Netaji Ka Chashma Summary HBSE 10th Class प्रश्न 3.
आशय स्पष्ट कीजिए-
“बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।”
उत्तर-
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने देश के भविष्य के प्रति चिंता व्यक्त की है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि जिस कौम व देश के लोग अपने महान देशभक्तों के त्याग का आदर करने की अपेक्षा उसकी हँसी उड़ाते हों तथा अपना स्वार्थ पूरा करने के अवसर की ताक में रहते हों, उस देश का क्या होगा। ऐसे देश की स्वतंत्रता ही खतरे में पड़ जाएगी।

Netaji Ka Chashma Class 10 Solutions HBSE प्रश्न 4.
पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
पानवाला सदा पान चबाता रहता था। वह स्वयं भी चलती-फिरती पान की दुकान-सा प्रतीत होता था क्योंकि उसके मुँह में सदा ही पान ह्सा रहता था। वह पान के कारण कुछ बोल नहीं सकता था। यदि कोई उससे बात करता तो बोलने से पहले उसे दो-बार तो थूकना पड़ता था। उसकी बढ़ी हुई तोंद घड़े के समान लगती थी। वह जब हँसता था तो उसकी तोंद बराबर हिलती रहती थी। वह रसिक स्वभाव वाला व्यक्ति था। उसकी बातों में व्यंग्य रहता था। दूसरों की हँसी उड़ाने में उसे खूब मज़ा आता था। वह सदा अपने स्वार्थ पर निगाह रखता था। वह बातों का धनी था।

Class 10th Netaji Ka Chashma HBSE 10th Class प्रश्न 5.
“वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है पागल!” कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर-
कैप्टन के प्रति पानवाले की यह टिप्पणी उसकी संकीर्ण मानसिकता को व्यक्त करती है। इस टिप्पणी से पता चलता है कि उसके मन में देशभक्तों व उनका आदर करने वालों के प्रति जरा भी सम्मान की भावना नहीं है। उसे कैप्टन पर व्यंग्य करने की अपेक्षा उसके प्रति आदर भाव व्यक्त करना चाहिए था और सहानुभूतिपूर्ण उसका परिचय देना चाहिए था। जो व्यक्ति नेताजी जैसे महान् देश-भक्तों की प्रतिमा में कोई कमी नहीं देख सकता ऐसे व्यक्ति की शारीरिक कमियों की तरफ ध्यान न देकर उसकी भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। अतः पानवाले की यह टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर सकेत करते हैं-
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को निहारते।
(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला-साहब! कैप्टन मर गया।
(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।
उत्तर-
(क) यह वाक्य हालदार साहब की देश-भक्ति की भावना को व्यक्त करता है। हालदार साहब जब चौराहे से गुज़रते तो वहाँ कुछ क्षणों के लिए रुककर सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की ओर आदर भाव से देखते थे। उनके मन में नेताजी के प्रति आदरभाव था। वे बार-बार मूर्ति को चश्मा पहनाने वाले के बारे में पूछते थे। इस बात से पता चलता है कि हालदार साहब एक देशभक्त थे।

(ख) इस वाक्य से पता चलता है कि पानवाला एक संवेदनशील व्यक्ति था। भले ही वह कैप्टन पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करता हो किंतु उसकी मृत्यु का उसे बेहद दुःख था। उसे कैप्टन की मृत्यु के पश्चात् ही उसके जीवन के महत्त्व का पता चला था। उसे ऐसा अनुभव हुआ कि वह महान् देश-प्रेमी था। इसलिए वह अब उस पर कोई व्यंग्यात्मक टिप्पणी भी नहीं करता था।

(ग) कैप्टन को नेताजी की बिना चश्मे वाली प्रतिमा बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। इसलिए वह उसे बार-बार चश्मा पहनाता था। इससे उसकी देश-भक्ति की भावना उजागर होती है।

प्रश्न 7.
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक उनके मानस पटल पर उसका कौन-सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर-
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक वे सोचते थे कि कैप्टन प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला इंसान है। उनके मन में एक गठीले बदन के पुरुष की छवि अंकित थी, जिसकी बड़ी-बड़ी मूंछे थीं। उसकी चाल में फौजियों जैसी मज़बूती और ठहराव था। चेहरे पर तेज़ था। उसका पूरा व्यक्तित्व ऐसा था जिसे देखकर दूसरा व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। इस तरह हालदार साहब के दिल और दिमाग पर एक फौजी की तस्वीर अंकित थी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

प्रश्न 8.
कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी न किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?
(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों?
(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिएँ?
उत्तर-
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने का उद्देश्य यह रहता है कि लोग महान् देशभक्तों के त्याग और देश-भक्ति की भावना को हमेशा याद रखें तथा उनके जीवन से देश-भक्ति की प्रेरणा लें। साथ ही आने वाली पीढ़ियों को भी महान् देशभक्तों का परिचय मिल सके।

(ख) हम अपने इलाके के चौराहे पर उस महान् देशभक्त की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे जिन्होंने अपना जीवन देश के प्रति अर्पित कर दिया है।

(ग) देशभक्तों की मूर्ति के प्रति हमारा पावन कर्त्तव्य है कि हम उसके रख-रखाव का पूरा ध्यान रखें। उसके आस-पास सफाई रखें। उसकी सुरक्षा करें तथा उसके प्रति सम्मान का भाव भी रखें।

प्रश्न 9.
सीमा पर तैनात फौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे-सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि। अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए।
उत्तर-
हमारे जीवन-जगत से जुड़े हुए अनेक ऐसे कार्य हैं, जिनसे किसी-न-किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट होता है। बिजली का उचित ढंग से प्रयोग ही बिजली की बचत है। इस बची हुई बिजली का प्रयोग कल-कारखानों में हो सकता है, जिससे देश का विकास होगा। इसी प्रकार पीने के पानी का सदुपयोग करने से पानी की बचत होती है। पानी की एक-एक बूंद कीमती है। पानी का दूसरा अर्थ है-जीवन। पानी के नल को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। पानी के प्रयोग के बाद नल बंद कर देना चाहिए। ऐसे कार्यों से हमारा देश-प्रेम प्रकट होता है। इसी प्रकार पेट्रोल का उचित प्रयोग करने के लिए हमें निजी वाहनों के प्रयोग की अपेक्षा सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए। इससे जहाँ धन की बचत होगी, वहीं ईंधन की बचत भी होगी, यही ईंधन राष्ट्रीय विकास के कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि हमारे जीवन में अनेक ऐसे कार्य हैं जिनको अमल में लाकर हम देश-प्रेम का परिचय दे सकते हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
उत्तर–
मान लीजिए, कोई ग्राहक आ गया। उसे चौड़े फ्रेम वाला चश्मा चाहिए। कैप्टन कहाँ से लाता। इसलिए ग्राहक को मूर्ति वाला चश्मा दे दिया। मूर्ति पर दूसरा लगा दिया।

प्रश्न 11.
‘भई खूब! क्या आइडिया है।’ इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर-
एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों का प्रयोग किए जाने से भाषा रोचक, व्यावहारिक एवं प्रभावशाली बनती है। जब दूसरी भाषा के शब्द बहुत प्रचलित हो जाते हैं तो उनका प्रयोग अपनी भाषा में किया जाता है। उपरोक्त वाक्य में उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों के एक साथ प्रयोग से भाषा का रूप ही नया बन गया है। यहाँ ‘खूब’, ‘आइडिया’ ऐसे शब्द हैं जिनके प्रयोग से भाषा का रूप ही नया नहीं बना, अपितु उसमें लचीलापन भी देखने को मिलता है।

भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए-
(क) नगरपालिका थी तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
(ग) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुज़रते रहे।
उत्तर-
(क) भी = बाज़ार जा रहे हो तो मेरे लिए भी पुस्तक लेते आना।
(ख) ही = ज्ञान ही मानव को मोक्ष दिलाता है।
(ग) यानी = यानी खाना तो था परंतु स्वादिष्ट नहीं था।
(घ) भी = क्या कहा! तुम भी फेल हो गए हो।
(ङ) तक = पिछले दो सालों से उसने मुझे चिट्ठी तक नहीं लिखी।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए-
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ बता दिया था।
(घ) ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देश-भक्ति का सम्मान किया।
उत्तर-
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले द्वारा नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर द्वारा ज़ोर से ब्रेक मारे गए।
(ङ) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देश-भक्ति का सम्मान किया गया।

प्रश्न 14.
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिएजैसे-अब चलते हैं। -अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
उत्तर-
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
(ख) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।

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पाठेतर सक्रियता

लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया।
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं, लिखिए।
उत्तर-
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के मन में उत्साह का भाव आया होगा। वह मूर्ति बनाने के सामान को एकत्रित करने में जुट गया होगा। उसे लगा होगा कि नगर के सभी लोग उसकी बनाई हुई मूर्ति को देखेंगे। उसे लोगों से अपनी प्रशंसा सुनने को मिलेगी।

(ख) हमें अपने क्षेत्र के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार व अन्य कलाकारों के कार्य की सराहना करके उनके काम को प्रोत्साहन दे सकते हैं। हम शिल्पकारों की बनाई हुई वस्तुओं को खरीद सकते हैं। विभिन्न अवसरों पर संगीत का आयोजन किया जा सकता है। उनका गीत-संगीत सुनकर उनकी तारीफ करनी चाहिए ताकि उनका उत्साह बढ़े। उन्हें समय-समय पर सम्मानित भी करना चाहिए।

आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी हैं। उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएँ, प्रशासन को इस संदर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए।

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
क.ख.ग. विद्यालय,
नई दिल्ली।
विषय : चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों के लिए प्रबंध।
श्री मानजी,

मैं आपका ध्यान अपने विद्यालय के कुछ चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों की समस्याओं की ओर दिलाना चाहता हूँ। हमारे कुछ विद्यार्थी साथी विकलांग हैं। वे भली-भाँति चल नहीं सकते। उनसे सीढ़ियों पर नहीं चढ़ा जा सकता। सीढ़ियों के साथ-साथ रैम्प बना दिया जाए तो वे आसानी से कक्षा में आ जा सकेंगे। कुछ विद्यार्थी अंधे हैं। उनके लिए पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं। उनके लिए ब्रेल लिपि की पुस्तकें मँगवाई जाएँ तो बहुत अच्छा होगा। ऐसे लोगों की सहायता करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य भी है। आशा है कि आप चुनौतीपूर्ण छात्रों की समस्याओं की ओर अवश्य ध्यान देंगे।

सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
मदनलाल
कक्षा दशम ‘ख’
अनुक्रमांक 05
दिनांक 15.05.20…..

कैप्टन फेरी लगाता था।
फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी ज़रूरतों को आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार कीजिए।
उत्तर-
फेरीवाले समाज के जीवन का अभिन्न अंग हैं। फेरीवाले प्राचीनकाल से हमारे समाज के परंपरागत व्यापार में योगदान देते आए हैं। हमारी जिंदगी को सरल एवं आसान बनाने में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। किंतु व्यापार वर्ग में इन्हें नीचा दर्जा दिया जाता है और रेहड़ी वाला कहकर संबोधित किया जाता है। फेरीवालों की वजह से हमारा बहुत समय बच जाता है। हम इस समय को अपने अन्य उपयोगी कार्यों में लगा लेते हैं। फेरीवाले जहाँ समाज के जीवन को सुखद बनाते हैं, वहीं उनको अपने जीवन की समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। उनके पास अधिक धन नहीं होता, इसलिए वे अपनी फेरी के लिए उपयुक्त साधन नहीं अपना सकते। सब्जी मंडी कई कॉलोनियों से बहुत दूर होती हैं। उन्हें अपनी रेहड़ी पर सब्जी लादकर प्रतिदिन कई मील पैदल चलना पड़ता है। इसी प्रकार कई फेरीवाले अपने सामान की गठरी को सिर पर उठाए घूमते हैं। सरकार को चाहिए कि इनके लिए सस्ते दामों पर वाहन उपलब्ध करवाए ताकि उनकी पैदल घूमने की समस्या दूर हो सके। गाँवों व नगरों सभी के लिए फेरीवाले माल पहुँचाते हैं। अतः हमें इनके प्रति सहानुभूति व आदर का भाव रखना चाहिए।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक प्रोजेक्ट बनाइए। उत्तर-विद्यार्थी स्वयं करें।।
अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवाए हैं? हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

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नीचे दिए गए निबंध का अंश पढ़िए और समझिए कि गद्य की विविध विधाओं में एक ही भाव को अलग-अलग प्रकार से कैसे व्यक्त किया जा सकता है-
उत्तर-
देश-प्रेम

देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देश-प्रेम यदि वास्तव में अंतःकरण का कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवास या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा, वह सबको चाहभरी दृष्टि से देखेगा; वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा। जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी आँख भर नहीं देखते कि आम प्रणय-सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे यदि बस बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर देश-प्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके दुख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो, यह कैसे समझे? उनसे कोसों दूर बैठे-बैठे, पड़े-पड़े या खड़े-खड़े तुम विलायती बोली में ‘अर्थशास्त्र’ की दुहाई दिया करो, पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो। प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर भी मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।

हिसाब-किताब से देश की दशा का ज्ञान-मात्र हो सकता है। हित-चिंतन और हित-साधन की प्रवृत्ति कोरे ज्ञान से भिन्न है। वह मन के वेग या भाव पर अवलंबित है, उसका संबंध लोभ या प्रेम से है, जिसके बिना अन्य पक्ष में आवश्यक त्याग का उत्साह हो नहीं सकता।

HBSE 10th Class Hindi नेताजी का चश्मा Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1:
पठित कहानी के आधार पर कस्बे की स्थिति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित कहानी में बताया गया है कि वह कस्बा अधिक बड़ा नहीं था। इसलिए उसे नगर नहीं कहा जा सकता। वहाँ कुछ ही मकान पक्के हैं। एक छोटा-सा बाज़ार है, जिसमें दैनिक जीवन की आवश्यकता की लगभग सभी वस्तुएँ मिल जाती हैं।
यहाँ दो विद्यालय हैं-एक लड़कों के लिए, दूसरा लड़कियों के लिए। दो खुले सिनेमाघर हैं। थोड़ा हटकर एक सीमेंट का कारखाना भी है। एक छोटी-सी नगरपालिका है। कस्बे के बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति स्थापित की गई है।

प्रश्न 2.
हालदार साहब की कैप्टन के प्रति कैसी भावना थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कहानी में दिखाया गया है कि हालदार साहब के मन में कैप्टन के प्रति अत्यंत आदर की भावना थी। नगरपालिका द्वारा लगाई गई सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर चश्मा नहीं बनाया गया था। चश्मे के बिना नेताजी की मूर्ति अधूरी थी। कैप्टन उस कमी को अपने पास से चश्मा लगाकर पूरी करता है। हालदार साहब कैप्टन की इस देश-भक्ति की भावना के प्रति नतमस्तक थे।

प्रश्न 3.
हालदार साहब और कैप्टन की भावनाओं के अंतर को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हालदार साहब जब नेताजी की मूर्ति पर असली का चश्मा लगा हुआ देखते हैं तो वे हैरान रह जाते हैं कि ऐसा किसी ने क्यों किया होगा। पूछने पर पता चला कि ऐसा किसी कैप्टन ने किया और तब उसकी कल्पना किसी तगड़े फौजी अफसर के रूप में करने लगे, किंतु जब उसे देखा तो हैरान रह गए कि वह लँगड़ा और गरीब होते हुए भी देशभक्त है। हालदार साहब का देश-प्रेम शब्दों तक सीमित है, जबकि कैप्टन की देश-भक्ति की भावना में व्यावहारिकता अधिक है। वह बार-बार नेताजी का चश्मा बदल देता है। क्योंकि चश्मे के बिना उसे नेताजी की मूर्ति अधूरी लगती है। जबकि हालदार साहब यह सोचकर कि कैप्टन के मरने के पश्चात् नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के होगी वे उधर न देखने का निर्णय कर लेते हैं। परंतु उन्होंने कोई चश्मा खरीदकर नेताजी की मूर्ति को नहीं लगाया।

प्रश्न 4.
नेताजी का चश्मा क्यों नहीं बन पाया?
उत्तर-
संगमरमर की मूर्ति में टाँक कर चश्मा बनाना मुश्किल कार्य था। स्कूल का ड्राइंग मास्टर कोई पेशेवर मूर्ति बनाने वाला __ नहीं था, इसलिए उससे चश्मा नहीं बन पाया।

प्रश्न 5.
चश्मे वाले का नेताजी की आँखों पर चश्मे का फ्रेम लगाना किस बात को दर्शाता है?
उत्तर-
चश्मे वाला भले ही गरीब व्यक्ति था, परंतु उसके हृदय में देश-प्रेम की भावना थी। बिना चश्मे के मूर्ति अधूरी लगती थी। अतः उसने मूर्ति की आँखों पर चश्मा लगा दिया।

प्रश्न 6.
हालदार साहब के कौतूहल का क्या कारण था?
उत्तर-
हालदार साहब जब भी वहाँ से गुज़रते थे, नेताजी का चश्मा बदला होता था। वे जानना चाहते थे कि आखिर नेताजी का चश्मा क्यों बदल जाता है।

प्रश्न 7.
नेताजी की मूर्ति के चश्मे के बदलने का क्या कारण था?
उत्तर-
वास्तव में नेताजी की संगमरमर की मूर्ति पर चश्मा नहीं बनाया गया था। इसलिए कैप्टन को यह बात बुरी लगी और उसने उस पर असली चश्मा लगा दिया था। किंतु किसी ग्राहक को यदि वह चश्मा पसंद आ जाता तो चश्मा लगाने वाला कैप्टन उस चश्मे को ग्राहक को दे देता था और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता था। इस प्रकार नेताजी की मूर्ति पर चश्मे बदले जाते थे।

प्रश्न 8.
कहानी के आधार पर पानवाले के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कहानी में दिखाया गया है कि पानवाला एक बातूनी व्यक्ति है। वह अत्यधिक मोटा है। बात करते समय व हँसते समय उसकी तोंद हिलती रहती है। उसकी बातों में व्यंग्य व हँसी के साथ यथार्थ भी रहता है। कहीं-कहीं देशभक्तों के प्रति अनादर भाव की बात भी कह देता है। किंतु इतना कुछ होते हुए भी वह संवेदनशील व्यक्ति है। कैप्टन की मृत्यु का उसे गहरा दुःख है। कैप्टन के मरने पर उसकी देश-भक्ति का अहसास होता है।

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विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 9.
‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ में लेखक ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
‘नेताजी का चश्मा’ श्री स्वयं प्रकाश की सुप्रसिद्ध कहानी है। इसमें उन्होंने देश-भक्ति की भावना पर प्रकाश डाला है। उनका मत है कि देश-भक्ति व्यक्त करने के लिए फौजी होना अनिवार्य नहीं है। इसी प्रकार यह भी आवश्यक नहीं है कि देशभक्त शारीरिक व आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो। कहानी में कैप्टन एक विकलांग एवं गरीब व्यक्ति है। उसके मन में देश-भक्ति की भावना है। वह नेताजी की अधूरी मूर्ति को देखकर बेचैन हो जाता है और गरीब होते हुए भी उसको चश्मा लगा देता है। अपने देश के महापुरुषों व देशभक्तों के सम्मान के लिए यदि कोई थोड़ा-सा त्याग भी करता है तो वह देशभक्त है। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी का यही संदेश है कि हमें अपने देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना रखनी चाहिए। यह कार्य हम अपने गाँव या कस्बे में रहकर भी कर सकते हैं।

प्रश्न 10.
नेताजी की मूर्ति को देखकर क्या याद आने लगता है और क्यों?
उत्तर-
नेताजी की मूर्ति कस्बे के बाज़ार के मुख्य चौराहे पर स्थापित की गई थी। लोग जब भी नेताजी की मूर्ति को देखते तो उन्हें नेताजी का आजादी प्राप्ति के दिनों वाला जोश और उत्साह याद आ जाता है। लोगों को नेताजी के नारे याद आ जाते हैं जिससे लोगों के मन में देश-प्रेम की भावना जागृत हो जाती है, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ तथा ‘दिल्ली चलो’ । नेताजी की मूर्ति को देखकर देश-निर्माण की भावना उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 11.
देश-प्रेम किसे कहते हैं और देश-प्रेम किस तरह से व्यक्त होता है- प्रस्तुत कहानी के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
देश-प्रेम एक मानसिक भावना है। यह साथ रहने से उत्पन्न होने वाला प्रेम है। जहाँ हम पैदा हुए, बड़े हुए, वर्षों से रहते आए, उस स्थान, वहाँ की चीजों, लोगों, गली-मुहल्ले के प्रति जो लगाव होता है, वैसा ही देश के प्रति लगाव होना, देश-प्रेम कहलाता है। कहानी में दिखाया गया है कि देश-प्रेम को व्यक्त करने के लिए बड़े-बड़े नारे लगाने की आवश्यकता नहीं तथा न ही फौजी बनने की जरूरत है। देश-प्रेम तो छोटी-छोटी बातों से प्रकट हो सकता है। हम अपने देश की हर कमी को पूरा करके तथा देशभक्तों के प्रति आदर-भाव दिखाकर देश-प्रेम व्यक्त कर सकते हैं। कहानी के पात्र कैप्टन ने नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर ही देश-प्रेम व्यक्त किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर-
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के लेखक का नाम स्वयं प्रकाश है।

प्रश्न 2.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा किसने बनाई थी?
उत्तर-
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा स्कूल के ड्राइंग मास्टर ने बनाई थी।

प्रश्न 3.
हालदार साहब कस्बे में क्यों रुकते थे?
उत्तर-
हालदार साहब कस्बे में पान खाने के लिए रुकते थे।

प्रश्न 4.
‘मूर्ति बनाकर पटक देने का क्या भाव है?
उत्तर-
‘मूर्ति बनाकर पटक देने’ का भाव मूर्ति समय पर बनाना है।

प्रश्न 5.
‘तुम मुझे खून दो’ नेताजी का यह नारा हमें क्या प्रेरणा देता है?
उत्तर-
‘तुम मुझे खून दो’ नेताजी का यह नारा हमें देश के लिए बलिदान देने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 6.
हालदार साहब पहले मायूस क्यों हुए थे?
उत्तर-
मूर्ति पर चश्मा न होने के कारण हालदार साहब पहले मायूस हुए थे।

प्रश्न 7.
चश्मेवाले (कैप्टन) के मन में देशभक्तों के प्रति कैसी भावना थी?
उत्तर-
चश्मेवाले (कैप्टन) के मन में देशभक्तों के प्रति आदर की भावना थी।

प्रश्न 8.
नेताजी की मूर्ति पर बार-बार चश्मा कौन बदल रहा था?
उत्तर-
कैप्टन चश्मे वाला।

प्रश्न 9.
हालदार साहब क्या देखकर दुखी हुए थे?
उत्तर-
हालदार साहब देश भक्तों के प्रति अनादर भाव रखने वालों को देखकर दुखी हुए थे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हालदार साहब कस्बे में क्यों रुकते थे?
(A) आराम करने के लिए
(B) पान खाने के लिए
(C) किसी से मिलने के लिए
(D) कंपनी के काम के लिए
उत्तर-
(B) पान खाने के लिए

प्रश्न 2.
नेताजी की प्रतिमा किसने बनाई थी?
(A) ड्राइवर ने
(B) पान वाले ने
(C) थानेदार ने
(D) ड्राइंग मास्टर ने
उत्तर-
(D) ड्राइंग मास्टर ने

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

प्रश्न 3.
नेता जी की प्रतिमा बनाने वाले मास्टर का क्या नाम था?
(A) मोतीलाल
(B) किशनलाल
(C) प्रेमपाल
(D) सोहनलाल
उत्तर-
(A) मोतीलाल

प्रश्न 4.
नेता जी की मूर्ति वाले कस्बे से हालदार साहब कब गुजरते थे-
(A) हर सप्ताह
(B) हर पन्द्रहवें दिन
(C) हर माह
(D) हर रोज
उत्तर-
(B) हर पन्द्रहवें दिन

प्रश्न 5.
सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा किस वस्तु की बनी थी?
(A) लोहे की
(B) संगमरमर की
(C) मिट्टी की
(D) काँसे की
उत्तर-
(B) संगमरमर की

प्रश्न 6.
नेता जी की मूर्ति के नीचे लिखा हुआ मूर्तिकार का नाम क्या था?
(A) ड्राइंग मास्टर
(B) मोतीलाल
(C) हालदार
(D) स्वयं प्रकाश
उत्तर-
(B) मोतीलाल

प्रश्न 7.
मूर्ति की ऊँचाई कितनी थी?
(A) दो फुट
(B) चार फुट
(C) छह फुट
(D) आठ फुट
उत्तर-
(A) दो फुट

प्रश्न 8.
सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा में क्या कमी रह गई थी? .
(A) टोपी नहीं थी
(B) चश्मा नहीं था
(C) प्रतिमा की ऊँचाई कम थी
(D) रंग उचित नहीं था
उत्तर-
(B) चश्मा नहीं था

प्रश्न 9.
सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा पर चश्मा किसने लगाया था?
(A) मोतीलाल ने
(B) हालदार साहब ने
(C) कैप्टन चश्मेवाले ने
(D) पानवाले ने
उत्तर-
(C) कैप्टन चश्मेवाले ने

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

प्रश्न 10.
कहानी के अंत में नेता जी की मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब की हालत क्या हुई?
(A) आँखें भर आईं
(B) उछल पड़े
(C) हैरान रह गए
(D) होठ फड़कने लगे
उत्तर-
(A) आँखें भर आईं

प्रश्न 11.
पानवाले के उदास होने का क्या कारण था?
(A) मूर्ति पर चश्मा न होना
(B) कैप्टन चश्मेवाले की मृत्यु
(C) सच्चे देशभक्तों की कमी
(D) बिक्री न होना
उत्तर-
(B) कैप्टन चश्मेवाले की मृत्यु

प्रश्न 12.
हालदार साहब किसे देखकर आवाक रह गए थे?
(A) मूर्ति को
(B) चश्मे को
(C) कस्बे को
(D) चश्मेवाले कैप्टन को
उत्तर-
(D) चश्मेवाले कैप्टन को

प्रश्न 13.
मूर्ति पर सरकडे का चश्मा देखकर हालदार साहब कैसे खड़े हो गए?
(A) झुककर
(B) अटेंशन हो गए
(C) हतप्रभ
(D) हाथ जोड़कर
उत्तर-
(B) अटेंशन हो गए

प्रश्न 14.
हालदार साहब ने नेता जी की प्रतिमा के चश्मे के बदलते रहने के बारे में किससे पूछा?
(A) ड्राइवर से
(B) चाय वाले से
(C) पानवाले से
(D) सब्जी वाले से
उत्तर-
(C) पानवाले से

प्रश्न 15.
प्रस्तुत पाठ में कैप्टन कौन है?
(A) हालदार साहब
(B) चाय वाला
(C) पानवाला
(D) चश्मे वाला
उत्तर-
(D) चश्मे वाला

प्रश्न 16.
‘नेताजी का चश्मा’ नामक कहानी में देशभक्तों का अनादर करने वाले पात्र कौन हैं?
(A) हालदार
(B) चाय वाला
(C) कैप्टन
(D) पानवाला
उत्तर-
(D) पानवाला

प्रश्न 17.
‘नेताजी का चश्मा’ शीर्षक पाठ का मूल भाव क्या है?
(A) देश भक्ति
(B) सामाजिक भाव
(C) राजनीतिक जागृति
(D) मूर्ति कला की प्रशंसा
उत्तर-
(A) देश भक्ति

प्रश्न 18.
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में पानवाला कैसा आदमी था?
(A) मोटा
(B) काला
(C) खुशमिज़ाज
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 19.
हालदार साहब को हर बार कस्बे से गुज़रते समय किस बात की आदत पड़ गई थी?
(A) चौराहे पर रुकना
(B) पान खाना
(C) मूर्ति को ध्यान से देखना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 20.
‘वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है पागल!’ ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) पानवाले ने
(B) हालदार ने
(C) ड्राइवर ने
(D) नगरपालिका के अध्यक्ष ने
उत्तर-
(A) पानवाले ने

प्रश्न 21.
नेता जी की मूर्ति टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कितनी ऊँची बताई गई है?
(A) चार फुट
(B) दो फुट
(C) पाँच फुट
(D) तीन फुट
उत्तर-
(B) दो फुट

प्रश्न 22.
देशभक्ति की भावना किस पर निर्भर करती है?
(A) धन पर
(B) बल पर
(C) शान पर
(D) मन पर
उत्तर-
(D) मन पर

नेताजी का चश्मा गद्यांशों  के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज़्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी-पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा, और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मान लीजिए मोतीलाल जी-को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने भर में मूर्ति बनाकर ‘पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे। [पृष्ठ 60]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) वह पूरी बात कौन-सी है जिसका पता नहीं है?
(ग) मूर्ति-निर्माण में नगरपालिका को देर क्यों लगी होगी?
(घ) स्थानीय कलाकार से मूर्ति बनवाने का क्या कारण रहा होगा?
(ङ) मोतीलाल कौन था और उसे क्या काम दिया गया था?
(च) ‘मूर्ति बनाकर पटक देने से क्या तात्पर्य है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

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(ख) कस्बे के मुख्य बाजार के प्रमुख चौराहे पर नगरपालिका द्वारा नेताजी की प्रतिमा बनवाई जानी थी। इसे कैसे और कहाँ से बनवाया जाए, इस बात का पूरा पता नहीं था।

(ग) लेखक का अनुमान है कि नगरपालिका को मूर्ति-निर्माण के कार्य में देर इसलिए लगी होगी कि उन्हें मूर्ति-निर्माण करने वाले अच्छे कलाकारों का पता नहीं होगा। जानकारी मिलने पर धन की कमी बाधा बन गई होगी। काफी समय सोच-विचार और कार्यालय की कार्रवाई में नष्ट हो गया होगा।

(घ) स्थानीय कलाकार से मूर्ति बनवाने के मुख्य दो ही कारण रहे होंगे-प्रथम धन की कमी और कार्यालयी कार्रवाई में देर लगने का कारण-समय का अभाव। इन्हीं कारणों से नेताजी की प्रतिमा स्थानीय कलाकार से बनवाई होगी।

(ङ) मोतीलाल स्थानीय हाई स्कूल में ड्राइंग टीचर थे। उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा बनाने का कार्य दिया गया था। .. (च) ‘मूर्ति बनाकर पटक देने’ से तात्पर्य है कि नगरपालिका द्वारा कस्बे के मुख्य बाजार के चौराहे पर सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की स्थापना करनी थी। इसलिए यह कार्य स्थानीय स्कूल के ड्राइंग मास्टर को दिया गया था। उसने उन्हें विश्वास दिलवाया होगा कि वे एक मास में ही मूर्ति को तैयार कर देंगे।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री स्वयं प्रकाश हैं। इस पाठ में लेखक ने देश के करोड़ों नागरिकों द्वारा देश के निर्माण में दिए गए योगदान का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में कस्बे में सुभाषचंद्र बोस (नेता जी) की बनाई गई संगमरमर की प्रतिमा के विषय में बताया गया है।

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि नगरपालिका के किसी उत्साही प्रशासनिक अधिकारी द्वारा नेताजी की प्रतिमा बनवाई गई होगी। वह कैसे लगी या कैसे बनवाई गई, इसके विषय में पूरी जानकारी तो नहीं है। किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि देश के सफल मूर्तिकारों की जानकारी न होने से अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं ज्यादा होने के कारण काफी समय तक विचार-विमर्श होता रहा होगा अर्थात् जितना धन प्राप्त था मूर्ति पर उससे अधिक धन खर्च होने के कारण बहुत-समय सोच-विचार और चिट्ठी-पत्री लिखने में ही बहुत नष्ट हो गया था। बोर्ड के शासन का समय भी समाप्त होने वाला होगा। इसलिए समय और धन दोनों को ध्यान में रखकर किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय लिया गया होगा अर्थात् किसी स्थानीय मूर्तिकार से नेताजी की मूर्ति बनवाने का निश्चय किया गया होगा। अंत में कस्बे के हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर, जिनका नाम मोतीलाल जी होगा, को ही नेताजी की संगमरमर की बनाने का काम दिया गया होगा, जिसने एक मास तक मूर्ति बनाने का विश्वास दिलाया होगा। इस प्रकार नेता जी की मूर्ति बनाने की घटना का यह छोटा-सा अंश ही आपको बताया गया है।

(2) जैसाकि कहा जा चुका है, मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची। जिसे कहते हैं बस्ट। और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन । फौजी वर्दी में। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो…’ वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था। [पृष्ठ 60]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) मूर्ति किसकी थी और कैसी थी?
(ग) मूर्ति को देखते क्या याद आने लगता है?
(घ) मूर्ति में नेताजी की वर्दी कैसी थी?
(ङ) ‘कमसिन और मासूम’ से क्या तात्पर्य है?
(च) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

(ख) मूर्ति नेताजी सुभाषचंद्र बोस की थी। संगमरमर की बनी यह मूर्ति सुंदर थी। यह कमसिन और मासूम लगती थी।

(ग) मूर्ति को देखते ही नेताजी के ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो’ आदि नारे याद आने लगते थे।

(घ) मूर्ति में नेताजी की फौजी वर्दी थी।।

(ङ) कमसिन का अर्थ है-सुंदर तथा मासूम का अर्थ है-भोलापन।

(च) प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं श्री स्वयं प्रकाश द्वारा रचित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने नेता जी की संगमरमर से बनी मूर्ति की सुंदरता और उनके जीवन के विषय में बताया है। .

आशय/व्याख्या-लेखक ने नेता जी की मूर्ति और उसके प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि मूर्ति संगमरमर की बनी हुई थी। यह मूर्ति टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक लगभग दो फुट ऊँची थी। ऐसी मूर्ति को बस्ट कहते हैं। नेता जी की संगमरमर से बनी यह मूर्ति अत्यंत सुंदर थी। नेता जी मूर्ति के रूप में बहुत अच्छे लग रहे थे। नेता जी कुछ भोले, साधारण स्वभाव वाले तथा सुंदर दिखाई दे रहे थे। नेता जी का चित्र फौजी वर्दी में बनाया गया था। उनकी मूर्ति को देखते ही उनके प्रसिद्ध नारे ‘दिल्ली चलो’, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ आदि याद आने लगते थे। इस दृष्टि से नेता जी की मूर्ति बनाने का यह प्रयास प्रशंसा के योग्य था। कहने का भाव है कि नेता जी की मूर्ति अत्यंत सुंदर एवं प्रभावशाली थी।

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(3) केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुज़रे और चौराहे पर पान खाने रुके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुसकान फैल गई। [पृष्ठ 60-61]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) कौन-सा प्रयास सफल एवं सराहनीय रहा?
(ग) मूर्ति में कौन-सी कमी थी और वह क्यों खटकती थी?
(घ) मूर्ति को कैसा चश्मा पहना दिया गया था?
(ङ) हालदार साहब के चेहरे पर कौतुकभरी मुस्कान क्यों फैल गई?
(च) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

(ख) नगर के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की स्थापना का प्रयास अत्यंत सफल एवं सराहनीय था क्योंकि मूर्ति संगमरमर की बनी हुई थी और सुंदर भी थी।

(ग) नेताजी की मूर्ति में उनकी आँखों पर संगमरमर का चश्मा नहीं बना हुआ था। मूर्ति में यही सबसे बड़ी कमी थी। उसके स्थान पर साधारण फ्रेम का चश्मा पहना दिया गया था। वह संगमरमर की मूर्ति से अलग लगता था। इसलिए यह बात देखने वालों को खटकती थी।

(घ) मूर्ति को काले रंग का चौड़े फ्रेम वाला चश्मा पहना दिया गया था।

(ङ) हालदार साहब ने जब पहली बार चौराहे पर स्थापित नेताजी की मूर्ति को देखा तो लक्षित किया कि इनकी मूर्ति पर । संगमरमर का चश्मा न होकर असली का चश्मा था। यही बात उनकी कौतुकभरी मुस्कान का कारण थी।

(च) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री स्वयं प्रकाश हैं। इस पाठ में उन्होंने देश की स्वतंत्रता और विकास में योगदान देने वाले लोगों को देशभक्त कहकर उनका सम्मान किया है।

आशय/व्याख्या-इन पंक्तियों में बताया गया है कि हालदार साहब को नेता जी की संगमरमर से बनी मूर्ति बहुत ही पसंद आई, किंतु उन्हें इस मूर्ति में एक चीज की कमी भी दिखाई दी जो देखने में अच्छी नहीं लगती थी। वह कमी थी कि नेता जी की आँखों पर चश्मा नहीं था। चश्मा तो था, किंतु मूर्ति के साथ के संगमरमर का नहीं था। मूर्ति को एक सामान्य और वास्तविक चश्मे का चौड़ा और काला फ्रेम पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे में आए और चौराहे पर पान खाने के लिए रुके तब उन्होंने मूर्ति को वास्तविक चश्मा पहनाए जाने की ओर संकेत किया था। इस चश्मे के फ्रेम को देखकर वे आश्चर्यभरी हँसी हँसे थे। कहने का भाव है कि हालदार साहब को मूर्ति तो बहुत पसंद थी, किंतु उन्हें मूर्ति पर संगमरमर के चश्मे की अपेक्षा वास्तविक चश्मे का फ्रेम देखकर हैरानी हुई थी।

(4) हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक रह गए। एक बेहद बूढा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टंगे बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं! फेरी लगाता है! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। पूछना चाहते थे, इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यही इसका वास्तविक नाम है? लेकिन पानवाले ने साफ बता दिया था कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं। ड्राइवर भी बेचैन हो रहा था। काम भी था। हालदार साहब जीप में बैठकर चले गए। [पृष्ठ 62-63]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हालदार साहब को क्या अच्छा नहीं लगा?
(ग) हालदार साहब किस बात से हैरान रह गए थे?
(घ) चश्मेवाला कौन था? उसके जीवन की दो विशेषताएँ लिखिए।
(ङ) हालदार साहब किसे देखकर और क्यों चक्कर में पड़ गए?
(च) हालदार साहब को चश्मे वाले के विषय में अधिक जानकारी क्यों नहीं मिल सकी?
(छ) इस गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

(ख) हालदार साहब को पानवाले द्वारा देशभक्तों का मज़ाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा था। पानवाला चश्मे वाले की देशभक्ति का सम्मान करने की अपेक्षा उसको पागल व लँगड़ा कहता है। हालदार को यही बात चुभ गई थी।

(ग) हालदार साहब को बताया गया था कि नेताजी की मूर्ति पर चश्मा किसी कैप्टन ने लगाया था। उन्होंने कल्पना की होगी कि वह कोई स्वस्थ एवं लंबा फौजी जवान होगा। उसका चश्मों का अच्छा बड़ा कारोबार होगा। किंतु उसने देखा कि जिसका नाम कैप्टन बताया गया था वह एक मरियल और लँगड़ा व्यक्ति था। उसके सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगा हुआ था। उसके एक हाथ में छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में लंबा बाँस था जिस पर चश्मे लटके हुए थे। वह घूम-घूमकर चश्मे बेचता था। यह देखकर हालदार साहब हैरान रह गए थे।

(घ) चश्मे वाला साधारण व्यक्तित्व वाला गरीब व्यक्ति था। उसके मन में देशभक्तों के प्रति आदर की भावना थी। वह गली-गली में घूमकर चश्मे बेचकर गुजारा करता था।

(ङ) हालदार साहब चश्मे वाले (कैप्टन) को देखकर चक्कर में पड़ गए क्योंकि उन्होंने सोचा था कि कैप्टन कोई बहुत तगड़ा या मज़बूत व्यक्ति होगा। किंतु वह एक मरियल-सा बूढ़ा और लँगड़ा व्यक्ति था। वे सोचने लगे कि उसे कैप्टन क्यों कहते हैं, यह उनकी समझ से बाहर था।

(च) हालदार साहब चश्मे वाले को देख चुके थे। वे ऐसे देशभक्त व्यक्ति के विषय में अधिक जानकारी चाहते थे। पानवाले ने उसकी अधिक जानकारी नहीं दी और दूसरा उनके ड्राइवर को भी जल्दी थी। इसलिए हालदार साहब वहाँ अधिक देर तक न रुक सके और न ही किसी अन्य व्यक्ति से कैप्टन के विषय में जानकारी हासिल कर सके।

(छ) इस गद्यांश में लेखक ने बताया है कि देशभक्ति की भावना का होना या न होना मन की स्थिति व भावना पर निर्भर है। कैप्टन गरीब एवं अपाहिज है, किंतु वह देशभक्त है। पानवाला स्वस्थ एवं अच्छा कमाता है, पर उसके मन में देशभक्ति की भावना नहीं है। अपितु वह देशभक्तों का मज़ाक उड़ाता है।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री स्वयं प्रकाश हैं। इस गद्यांश में बताया गया है कि देशभक्ति की भावना का होना या न होना मनुष्य की मनोदशा पर निर्भर करता है।

आशय/व्याख्या-कैप्टन गरीब एवं अपाहिज है, किंतु देशभक्त है। यद्यपि पानवाला स्वस्थ है, तथापि देशभक्त नहीं है। हालदार साहब जब पान खाने के लिए कस्बे के चौराहे पर रूके तो उन्होंने पानवाले से कैप्टन के विषय में पूछा तो उसने कैप्टन के लिए बूढ़ा, कमज़ोर, मरियल लंगड़ा, पागल आदि शब्दों का प्रयोग किया और उसका मज़ाक उड़ाया। किंतु हालदार साहब को किसी देशभक्त का इस प्रकार मज़ाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने मुड़कर देखा तो हैरान रह गए कि एक बहुत ही कमज़ोर बूढ़ा, लंगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे हुए बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था तथा अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। उसके पास अपनी दुकान भी नहीं है। वह तो चश्मे बेचने के लिए फेरी लगाता है। हालदार साहब यह सब देखकर हैरान थे। वे जानना चाहते थे कि फिर इस व्यक्ति को कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यह इसका वास्तविक नाम है, किंतु पानवाले ने उसके विषय में और अधिक बात करना मना कर दिया। उधर ड्राइवर भी बेचैन था और हालदार साहब को काम भी था। अतः वे जीप में बैठकर चले गए। इस प्रकार हालदार साहब को कैप्टन के विषय में अधिक जानकारी नहीं मिल सकी, किंतु यह निश्चित है कि हालदार साहब को देशभक्तों का मज़ाक उड़ाने वाले लोग पसंद नहीं हैं।

(5) बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। दुखी हो गए। पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गुजरे। कस्बे में घुसने से पहले ही खयाल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आँखों . पर चश्मा नहीं होगा।…….. क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया।….. और कैप्टन मर गया। सोचा, आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएँगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे।

लेकिन आदत से मजबूर आँखें चौराहा आते ही मूर्ति की तरफ उठ गईं। कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे। रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते-न-रुकते हालदार साहब जीप से कूदकर तेज़-तेज़ कदमों से मूर्ति की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए।

मूर्ति की आँखों पर सरकडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं।
हालदार साहब भावुक हैं। इतनी-सी बात पर उनकी आँखें भर आईं। [पृष्ठ 63-64]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हालदार साहब क्या सोचकर दुःखी हो गए?
(ग) कैप्टन की मृत्यु का हालदार साहब पर क्या प्रभाव पड़ा?
(घ) हालदार साहब ने ऐसा क्यों सोचा कि सुभाष की प्रतिमा पर चश्मा नहीं होगा?
(ङ) हालदार साहब ने ड्राइवर को क्या आदेश दिया और क्यों?
(च) हालदार साहब ने जीप से उतरकर क्या और क्यों किया?
(छ) हालदार साहब भावक क्यों हो गए थे?
(ज) इस गद्यांश का संदेश क्या है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

(ख) हालदार साहब के मन में देश के प्रति अथाह प्रेम है। देश पर जीवन बलिदान करने वाले देशभक्तों के प्रति भी उनके मन में आदर भाव है। जो लोग देशभक्तों को आदर देने की अपेक्षा उन पर हँसते हैं और अपना स्वार्थ पूरा करने के अवसर की ताक में रहते हैं, उनके व्यवहार को देखकर वह दुःखी होते हैं।

(ग) कैप्टन की मृत्यु का हालदार साहब को बहुत दुःख हुआ। वे अब चौराहे पर पान खाने के लिए भी नहीं रुकना चाहते थे ।

(घ) मास्टर साहब चश्मा बनाना भूल गए थे और जो सज्जन सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति को चश्मा पहनाता था, वह मर चुका था। इसीलिए हालदार साहब इस नतीजे पर पहुंचे थे कि सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं होगा।

(ङ) हालदार साहब ने ड्राइवर को आदेश दिया था कि वह बाजार के चौराहे पर जीप न रोके। क्योंकि वे सुभाष की मूर्ति को बिना चश्मे के देखना नहीं चाहते थे। इसलिए अधिक काम होने का बहाना बना दिया था।

(च) हालदार साहब ने एकाएक जीप रोकने का आदेश दिया और शीघ्रता से जीप से उतरकर तेज गति से चलकर नेताजी की मूर्ति के सामने गए और वहाँ सावधान की स्थिति में खड़े हो गए। उन्होंने नेताजी के प्रति आदर व सम्मान व्यक्त किया।

(छ) हालदार साहब ने देखा कि सुभाष की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। यह देखकर उनका मन भावुक हो उठा कि अभी भी देशभक्ति जीवित है। सुभाषचंद्र बोस जैसे महान् देशभक्तों का आदर करने वाले लोग अभी भी शेष हैं।

(ज) इस गद्यांश के माध्यम से लेखक ने जहाँ मानव मनोविज्ञान का सूक्ष्म विश्लेषण किया है, वहाँ यह सिद्ध किया है कि संसार में अधिकांश लोग पानवाले जैसे स्वार्थी हैं। किंतु कुछ थोड़े-से लोग कैप्टन व हालदार जैसे भी हैं जिनके मन में देशभक्ति का जज्बा है और देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना है। हमें दूसरी प्रकार के लोगों की भाँति व्यक्तिगत स्वार्थ त्यागकर देशभक्त बनना चाहिए।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री स्वयं प्रकाश जी हैं। इस गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि देश में पान बेचने वाले जैसे लोग भी हैं तो कैप्टन और हालदार जैसे देशभक्तों की भी कमी नहीं है।

आशय/व्याख्या-लेखक ने बताया कि हालदार साहब बार-बार इस बात पर सोचते हैं कि उस कौम का क्या होगा जो अपने देश के लिए अपना जीवन, घर-गृहस्थी, पूरी जवानी आदि सब कुछ न्यौछावर करने वालों का मज़ाक उड़ाती है। इतना ही नहीं, अपने आप को चंद पैसों के लिए बेचने के अवसर ढूँढती है। हालदार साहब ऐसा सोचकर बहुत दुखी हो गए थे। हालदार साहब पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे में से गुजरे। कस्बे में प्रवेश करने से पहले उन्हें ख्याल आया कि कस्बे के बीच में सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति तो निश्चित रूप से लगी हुई होगी, किंतु मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं होगा। क्योंकि मूर्तिकार (मास्टर) चश्मा बनाना भूल गया था और मूर्ति को चश्मा पहनाने वाला कैप्टन मर चुका था। हालदार साहब ने मन-ही-मन निश्चय किया कि आज वह मूर्ति के पास वाली पान की दुकान पर पान खाने नहीं रुकेंगे। यहाँ तक कि मूर्ति की तरफ आँख उठाकर देखेंगे भी नहीं। इसलिए ड्राइवर को कह दिया कि आज वे चौराहे पर नहीं रुकेंगे।

पान कहीं आगे जाकर खा लेंगे। वैसे भी आज काम अधिक है। किंतु ज्यों ही हालदार साहब की जीप चौराहे पर पहुँची, उनकी आँखें चौराहे पर लगी मूर्ति की ओर अपने-आप उठ गईं। उन्होंने कुछ ऐसा देखा कि तुंरत ही ड्राइवर को उन्होंने जीप रोकने के लिए कहा। जीप तेज गति से जा रही थी। ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे। आसपास के सभी लोग जीप को देखने लगे। इससे पहले कि जीप रुकती हालदार साहब जीप से कूदे और तेज गति से मूर्ति की ओर चल दिए। नेता जी की मूर्ति के सामने जाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो गए। उन्होंने देखा कि मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का बना चश्मा लगा हुआ था जिस प्रकार बच्चे चश्मा बना लेते हैं। हालदार साहब भावुक हो उठे। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। कहने का भाव है कि हालदार साहब सोचने लगे कि लोगों में अभी देश भक्ति का भाव बचा हुआ है।

नेताजी का चश्मा Summary in Hindi

नेताजी का चश्मा लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री स्वयं प्रकाश का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-स्वयं प्रकाश जी हिंदी के प्रमुख कहानीकार हैं। उन्हें कहानी लेखन में अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। उनका जन्म सन् 1947 में इंदौर में हुआ। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की। उनका बचपन राजस्थान में बीता था और नौकरी भी उन्हें राजस्थान में स्थित एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में ही मिली। उनके जीवन का अधिकांश समय राजस्थान में ही व्यतीत हुआ। अब वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के पश्चात् भोपाल में स्थायी रूप से रह रहे हैं। आजकल वे ‘वसुधा’ नामक पत्रिका के संपादन मंडल से जुड़े हुए हैं।

2. प्रमुख रचनाएँ-कहा जा चुका है कि स्वयं प्रकाश का नाम कहानी के क्षेत्र में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उनके तेरह कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें से प्रमुख कहानी-संग्रह इस प्रकार हैं___’सूरज कब निकलेगा’, ‘आएँगे अच्छे दिन भी’, ‘आदमी जात का आदमी’ तथा ‘संधान’।
उपन्यास-बीच में विनय’ तथा ‘ईंधन’।
प्रमुख पुरस्कार-उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पहल सम्मान, बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री स्वयं प्रकाश की कहानियों एवं उपन्यासों में मध्यवर्ग के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इसलिए विद्वान् उन्हें मध्यवर्गीय जीवन-शैली के महान् चितेरे कहते हैं। उनकी कहानियों में कस्बों की जीवन-शैली का बोध बड़ी कुशलता एवं कलात्मकता से अभिव्यक्त हुआ है। वे देशभक्ति की नारेबाजी के विरुद्ध हैं। वे मनुष्य के आचरण में ही देशभक्ति देखना चाहते हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में जातिगत भेदभाव का जोरदार शब्दों में खंडन किया है। उनकी दृष्टि में सब मनुष्य समान हैं। वे सामाजिक विकास के मार्ग में आने वाली हर बुराई, रूढ़ि व अंधविश्वास को जड़ से उखाड़कर फेंक देना चाहते हैं।

4. भाषा-शैली-स्वयं प्रकाश की कहानियों की भाषा सरल, सहज एवं पात्रानुकूल है। उन्होंने लोक-प्रचलित तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया है। उन्होंने विषय को गहराई से समझने का प्रयास किया है। उन्होंने वर्णनात्मक एवं संवादात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया है। रोचक किस्सागोई शैली में रचित उनकी कहानियाँ हिंदी की वाचक परंपरा को समृद्ध करती हैं।

नेताजी का चश्मा पाठ का सार

प्रश्न-
‘नेताजी का चश्मा’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
लेखक कहता है कि हालदार साहब कंपनी के काम से उस कस्बे में से गुज़रा करते थे। कस्बा छोटा ही था। पक्के मकान बहुत कम थे। वहाँ एक छोटा-सा बाजार भी था। कस्बे में एक नगरपालिका भी थी। नगरपालिका ने नगर के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगवा दी होगी। मूर्ति को देखकर लगता है कि यह किसी स्थानीय मूर्तिकार से बनवाई गई होगी। शायद कस्बे के स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल ने इस मूर्ति को बहुत कम समय में बना दिया होगा। नेताजी की यह मूर्ति टोपी से लेकर कोट के दूसरे बटन तक थी। दो फुट ऊँची यह मूर्ति बहुत सुंदर लग रही थी। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो’ का नारा याद आने लगता था।

हालदार साहब को यह बात बहुत खटकती थी कि नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था अर्थात् संगमरमर का नहीं था। उसके स्थान पर किसी ने एक सचमुच का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया था।

हालदार साहब को वहाँ से गुज़रते समय लोगों का यह प्रयास बहुत अच्छा लगा था। दूसरी बार जब हालदार साहब वहाँ से गुज़रें तो उन्हें मूर्ति का चश्मा बदला हुआ लगा। पहले मोटे फ्रेम वाले चकोर चश्मे के स्थान पर अब तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा था। तीसरी बार हालदार साहब वहाँ से गुज़रे तो प्रतिमा के चश्मे को देखकर हैरान रह गए। उन्होंने सोचा कि यह विचार तो बहुत ही अच्छा है कि यदि मूर्ति के कपड़े नहीं बदले जा सकते तो चश्मा तो आसानी से बदला जा सकता है।

हालदार साहब के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि चश्मा बदलने का रहस्य क्या हो सकता है? चश्मे को बार-बार कौन बदलता है? उन्होंने अपनी जीप रुकवाकर चौराहे पर बैठे पानवाले से पूछा कि नेताजी की मूर्ति का चश्मा कौन बदलता है? पानवाले ने बताया कि यह फ्रेम कैप्टन चश्मेवाला बदलता है। यदि मूर्ति पर लगा चश्मा किसी ग्राहक को पसंद आ जाए तो वह चश्मा ग्राहक को देकर उसके स्थान पर दूसरा फ्रेम लगा देता है। किंतु वह नेताजी की मूर्ति को बिना चश्मे के नहीं देख सकता। जब पानवाले से पूछा कि मूर्ति का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया तो उसने बताया। क्योंकि मूर्ति बनाने वाला ड्राइंग मास्टर चश्मा बनाना भूल गया था। उनका अनुमान सही निकला। क्योंकि यह मूर्ति किसी स्थानीय कलाकार द्वारा बनवाई गई होगी और वह चश्मा बनाना भूल गया होगा अथवा चश्मा बनाने में असफल रहा होगा।

हालदार साहब के मन की जिज्ञासा पूर्णतः शांत नहीं हुई थी। उसने पानवाले से फिर पूछा कि यह चश्मे वाला नेताजी का साथी था या आज़ाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही था? पान वाला हँसता हुआ बोला-वह तो लँगड़ा है, वह फौज में क्या जाएगा? वो देखो, वो आ रहा है। उसका कहीं फोटो-वोटो छपवा दो। पानवाले की यह मजाक भरी बात हालदार साहब को अच्छी नहीं लगी। किसी देशभक्त की हँसी उड़ाना अच्छी बात नहीं है। हालदार साहब ने देखा कि एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए हुआ आ रहा था। उसके एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे बहुत-से चश्मे थे। वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था। हालदार साहब पूछना चाहते थे कि उसका नाम कैप्टन कैसे पड़ा? किंतु यह जानने की किसी को फुर्सत नहीं थी। उस दिन के बाद कई वर्षों तक हालदार साहब आते-जाते नेताजी की मूर्ति पर विभिन्न प्रकार के चश्मे देखते रहे। बिना चश्मे के मूर्ति उन्होंने नहीं देखी।

कुछ समय पश्चात् हालदार साहब वहाँ से गुज़रे तो देखा कि मूर्ति के चेहरे पर चश्मा नहीं था। पूछने पर पता चला कि कैप्टन की मृत्यु हो चुकी थी। यह सुनकर हालदार साहब निराश हो गए और जीप में बैठकर चले गए। वे जीप में बैठकर सोचने लगे कि इस देश का क्या होगा जहाँ के लोग देशभक्तों की बलिदानियों का मज़ाक करते हैं और स्वयं बिकने को तैयार रहते हैं।

कुछ समय पश्चात् हालदार साहब जब बाजार से गुजरे तो उन्होंने निश्चय किया था कि वे नेताजी की बिना चश्मे वाली प्रतिमा की ओर नहीं देखेंगे। किंतु चौराहा आने पर वे रुके बिना न रह सके। उन्होंने देखा कि नेताजी की प्रतिमा पर सरकंडे का चश्मा रखा हुआ था। हालदार साहब की आँखें नम हो गईं। वे भावुक हो उठे।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-60) हालदार = हवलदार। कस्वा = छोटा-सा नगर। ओपन एयर सिनेमाघर = बिना छत का सिनेमाघर। प्रतिमा = मूर्ति। प्रशासनिक = प्रशासन संबंधी। लागत अनुमान = किसी वस्तु के बनाने में खर्च का अंदाजा। उपलब्ध बजट = खर्च करने के लिए जितना धन पास में हो। ऊहापोह = दुविधा। शासनावधि = शासन करने का समय। निर्णय = फैसला। मासूम = भोलापन। संगमरमर = सफेद पत्थर। सराहनीय = प्रशंसा करने योग्य। प्रयास = कोशिश। कसर होना = कमी होना। खटकना = बुरा लगना।

(पृष्ठ-61) लक्षित किया = ध्यान दिया। कौतुकभरी = हैरान कर देने वाली। आइडिया = विचार। निष्कर्ष = परिणाम। चौकोर = चार किनारों वाला। खुशमिज़ाज़ = प्रसन्न स्वभाव वाला। तोंद = पेट। थिरकी = हिली। बत्तीसी = खुले दाँत । दुर्दमनीय = जिसे दबाना कठिन हो। चेंज = बदलना। गिराक = ग्राहक। फ्रेम = चौखट। बिठा दिया = लगा दिया। आहत = दुःखी। असुविधा = परेशानी। फिट करना = लगा देना। दरकार होना = इच्छा होना।

(पृष्ठ-62) ओरिजिनल = मूल, असली। चकित = हैरान। पीक = पान की थूक। द्रवित = पिघलना। वाकई = सचमुच। विचित्र = अद्भुत। ख्याल = विचार। नतमस्तक = सिर झुकाना। भूतपूर्व = पुराना। अवाक् = हैरान। फेरी लगाना = घूम-घूमकर सामान बेचना। चक्कर में पड़ना = हैरान होना।

(पृष्ठ-63) उदास = निराश, दुखी। चुकाकर = देकर। प्रफुल्लता = खुशी। होम = बलिदान करना। बिकने के मौके = अपना स्वार्थ पूरा करने का अवसर।

(पृष्ठ-64) हृदयस्थली = बीच का मुख्य स्थान। प्रतिष्ठापित = स्थापित करना। अटेंशन = सावधान की अवस्था में। आँख भर आना = आँसू बहना। भावुक होना = कोमल भावनाओं से हृदय भर जाना।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

HBSE 10th Class Hindi कन्यादान Textbook Questions and Answers

Class 10 Hindi Chapter 8 HBSE प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर-
माँ के इन शब्दों में लाक्षणिकता विद्यमान है। लड़की होने का तात्पर्य है कि उसमें कोमलता, सुंदरता, शालीनता, सहनशीलता, ममता, माधुर्य आदि स्वाभाविक गुण होते हैं। उसके इन गुणों के कारण ही परिवार बनते हैं और समाज का विकास होता है। माँ के कथन के अनुसार इन गुणों का होना आवश्यक है। किंतु साथ ही माँ का यह कहना लड़की जैसी दिखाई मत देना का तात्पर्य है कि उसमें सामाजिक स्थितियों अथवा अन्याय या शोषण का विरोध करने का साहस भी होना अनिवार्य है। उसमें सचेतता, सजगता आदि गुण भी होने चाहिएँ। उसे डरपोक नहीं होना चाहिए। जहाँ उसके मन में कोमलता, माधुर्य तथा ममता के भाव हैं, वहाँ उसमें अन्याय, शोषण आदि का विरोध करने का साहस भी होना चाहिए।

कन्यादान HBSE 10th Class प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर-
(क) इन पंक्तियों में कवि ने समाज में विवाहित नारी की दशा की ओर संकेत किया है। आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बंधनों की आग बहुओं को बहुत तेजी से निगलती जा रही है। आज वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से अच्छी, सुंदर पढ़ी-लिखी व नौकरी करने वाली कन्या ही नहीं चाहते हैं, अपितु इन सबके साथ-साथ बहुत-सा दहेज भी चाहते हैं। यदि वह दहेज नहीं लाती तो उसके शेष गुण नगण्य हो जाते हैं तथा दहेज न मिलने पर बहू के साथ बुरा व्यवहार किया जाता हैं। उसे हर प्रकार से तंग किया जाता है। इतना ही नहीं, लोभ के चंगुल में फँसकर बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर आग में जलकर मरने के लिए विवश कर देते हैं। कवि ने नारी जीवन के इसी यथार्थ की ओर संकेत किया है। नारी की यह दशा अत्यंत शोचनीय एवं दयनीय है। कवि ने नारी को इस दशा के प्रति सचेत भी किया है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि वह भी अनेक अन्य बहुओं की भाँति आग में अपना जीवन न खो दे। उसे किसी अवस्था में कमजोर नहीं बनना चाहिए। उसे कष्ट पहुँचाने वालों या शोषण करने की कोशिश करने वालों के सामने झुकना नहीं चाहिए। कोमलता नारी का गुण है, किंतु आज की परिस्थितियों से उसे मजबूत बनकर रहने का पाठ अवश्य पढ़ लेना चाहिए, ताकि वह किसी भी विकटतम स्थिति का सामना कर सके।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

कन्यादान पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 3.
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की – कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-
लड़कियाँ सरल स्वभाव की होती हैं। वे छल-कपटपूर्ण व्यवहार को नहीं जानती अर्थात् उनका व्यवहार अति सरल एवं सहज होता है। वे समाज के अनुभव से भी अनभिज्ञ होती हैं। समाज में आज जो कुछ हो रहा है, उसके प्रति उन्हें सचेत करना ही लेखक का परम लक्ष्य है।

प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर-
माँ को अपनी बेटी सच्ची सहेली की भाँति लगती है, क्योंकि वह उसके हर सुख-दुःख की साथी होती है। माँ बेटी के साथ हर प्रकार की बात कर लेती है। बेटी माँ को अच्छी सलाह देती है और हर काम में उसका हाथ बँटाती है। इसलिए बेटी माँ की एकमात्र पूँजी है जो विवाह के पश्चात् अपनी ससुराल चली जाएगी और माँ उसके बाद अकेली पड़ जाएगी।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर-
माँ ने बेटी को सीख देते हुए कहा कि उसे कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर नहीं रीझना चाहिए। क्योंकि वह उसकी कमज़ोरी बन जाएगी और दूसरे उसका लाभ उठाएँगे।
माँ ने उसे यह भी शिक्षा दी कि उसे घर के सब काम करने चाहिएँ, दूसरों को सहयोग भी देना चाहिए, किंतु अत्याचार सहन नहीं करना चाहिए।
माँ ने बेटी को समझाते हुए कहा कि वस्त्रों व आभूषणों के बदले में अपनी स्वतंत्रता का गला नहीं घोंटना चाहिए। अपने व्यक्तित्व की पहचान सदा बनाकर रखनी चाहिए। कभी भी अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट नहीं करना चाहिए जिससे कि लोग उसका गलत ढंग से लाभ उठाएँ।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर-
कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग अनुचित प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि जैसे कन्या कोई वस्तु हो और उसे दान में दिया जा रहा है। मानो कन्या बेजान हो, उसकी अपनी कोई इच्छा न हो। जैसे किसी वस्तु को दान देने के पश्चात् दान करने वाले से उसका कोई संबंध नहीं रहता। कन्यादान करने के पश्चात् मानो माता-पिता का कन्या के साथ कोई संबंध न रह गया हो। वह पराई हो गई हो। इस दृष्टि से कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग उचित नहीं है।

‘दान’ शब्द का एक दूसरा पक्ष भी है। किसी वस्तु को दान करने वाला व्यक्ति किसी सुपात्र को वस्तु का दान करके अपने-आप को धन्य समझने लगता है। ठीक इसी प्रकार किसी सुयोग्य युवक के साथ विवाह के समय माता-पिता अपनी बेटी का कन्यादान करके अपने आपको धन्य समझते हैं। यहाँ इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि कन्यादान के समय कन्या की सहमति होना नितांत आवश्यक है, क्योंकि आज स्थिति बदल चुकी है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

प्रश्न 2.
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटूंगी नहीं
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूंगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाज़े खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
‘भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूंगी नहीं।
उत्तर-
‘कन्यादान’ और ‘मैं लौटूंगी नहीं दोनों कविताओं के केंद्र में नारी है। इसलिए दोनों कविताओं का एक सीमा तक संबंध अवश्य है। किंतु दोनों कविताओं में दृष्टिकोण अलग-अलग हैं। ‘कन्यादान’ कविता में भोली-भाली कन्या के जीवन का वर्णन किया गया है, जो अबोध है, जो वस्त्रों, गहनों, सौंदर्य आदि के मोह के बंधनों में बंधी हुई है। वह अपने शोषण के कारणों से भी अनजान है। किंतु ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता में उस नारी जीवन का वर्णन किया गया है जो जागरूक हो चुकी है। वह जानती है कि सोने के गहने उसके लिए गुलामी की जंजीरों के समान हैं। उसने अपने लक्ष्य व उसकी दिशा को समझ लिया है। अतः स्पष्ट है कि ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता की कन्या ‘कन्यादान’ कविता की कन्या का जागरूक रूप है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

HBSE 10th Class Hindi कन्यादान Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘कन्यादान’ कविता में कौन किसको सीख देता है और क्यों?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती है क्योंकि विवाह से पूर्व कन्या को व्यावहारिक जीवन का बोध नहीं होता। माँ अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों को अपनी बेटी को शिक्षा के रूप में बताती है ताकि उसका भावी जीवन सुखी एवं सुरक्षित बना रह सके। माँ बेटी को परंपरागत संस्कारों से मुक्त होकर स्वतंत्र जीवन जीने का व्यावहारिक ज्ञान देती है ताकि उसे कोई कष्ट न पहुँचा सके तथा उसका शोषण न कर सके।

प्रश्न 2.
समाज में नई बहुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? .
उत्तर-
भारतीय समाज में प्रायः नई बहुओं को सजी-धजी सौंदर्य की गुड़िया समझकर उनसे अच्छा व्यवहार किया जाता है। उसे नए-नए वस्त्र व गहने दिए जाते हैं। लोग उसके नए वस्त्रों, गहनों व रूप-सौंदर्य की प्रशंसा करते हैं। किंतु कुछ लोग दहेज का सामान कम लाने पर या अच्छा सामान न लाने पर व्यंग्य भी करते हैं। दहेज कम लाने पर उसे तंग भी किया जाता है। कभी-कभी तो उसे जलकर मरने पर मजबूर किया जाता है।

प्रश्न 3.
कवि ने स्त्री के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान क्यों कहा है?
उत्तर-
कवि के अनुसार स्त्रियाँ गहनों पर मुग्ध होकर उसी प्रकार भ्रमित हो जाती हैं जिस प्रकार शब्दों के प्रयोग के द्वारा लोगों को भ्रमित किया जाता है। स्त्रियाँ गहनों के प्रति इतनी अधिक आकृष्ट होती हैं कि उनकी प्राप्ति के लिए वे अपनी स्वतंत्रता को भी दाँव पर लगा देती हैं। पुरुष वर्ग उनकी इस कमज़ोरी का फायदा उठाकर मनमानी करता है। इसलिए कवि ने स्त्रियों के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान कहा है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 4.
‘कन्यादान’ नामक कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में माँ की शिक्षा के माध्यम से नारी-जागृति की भावना को उजागर किया गया है। कवि का मुख्य उद्देश्य नारी को उसके बंधन की बेड़ियों और उनके कारणों को समझाना है। कवि का मत है कि नारी का सौंदर्य, प्रशंसा, वस्त्र, गहने आदि उसको गुलाम बनाने के नए-नए ढंग हैं। नारी इन्हीं बंधनों-के-बंधन में फँसकर अपना व्यक्तित्व ही भूल जाती है। कभी-कभी उसे पुरुषों के द्वारा जलकर मरने के लिए विवश किया जाता है या फिर उसे जलाकर मार दिया जाता है। कवि ने संदेश दिया है कि यदि नारी अपनी कोमलता, सरलता और भोलेपन के प्रति सचेत हो जाए और अपने शोषण के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने की थोड़ी-सी हिम्मत अपने में पैदा कर ले तो वह शक्तिशाली बन सकती है।

प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को किस प्रकार का जीवन जीने की शिक्षा दी है?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने कन्यादान के समय अर्थात् विवाह के समय जो परंपरागत बात बताई जाती है, उनसे हट कर शिक्षा दी है। उसे बताया गया है कि वह केवल अपने शारीरिक सौंदर्य व वस्त्रों, आभूषणों की प्राप्ति आदि की ओर ही ध्यान मत दे। उसे चाहिए कि वह सामाजिक परिवर्तन को खुली आँखों से देखे तथा अपने भीतर हिम्मत और साहस उत्पन्न करे ताकि वह अपने प्रति होने वाले अपमान या अन्याय का विरोध कर सके। उसे अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा। यह सजगता ही उसके जीवन में एक नई दिशा दिखाएगी। इसी से उसका जीवन सुखी बन सकेगा।

प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ शीर्षक कविता के आधार पर माँ के जीवन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने माँ के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि वह एक सजग एवं अनुभवशील नारी है। उसने उन्हें अपने जीवन में आने वाले सुख-दुःख को भोगा है और उन्हें प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत भी किया है। वह एक संवेदनशील नारी है। उसने जीवन में जिन सुखों व दुःखों को भोगा है, उनके कारणों को समझा भी है। वह नहीं चाहती थी कि जिन दुःखों को उसने भोगा है, उन्हीं दुःखों को उसकी बेटी भी भोगे। इसलिए एक माँ अपने कर्तव्य का पालन करती हुई अपनी बेटी को जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रति सचेत करती है।

प्रश्न 7.
‘कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?
उत्तर-
कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में विवाहिता नारी के दुःख को प्रामाणिक कहा है। क्योंकि आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बन्धनों की आग बहुओं को तेजी से निगलती जा रही है। लोग लोभ के कारण इतने अन्धे हो चुके हैं कि बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर खुद-कुशी करने के लिए विवश कर देते हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कविवर ऋतुराज का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
कविवर ऋतुराज का जन्म सन् 1940 में हुआ था।

प्रश्न 2.
कविवर ऋतुराज ने अपनी कविताओं में किस वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है?
उत्तर-
कविवर ऋतुराज ने अपनी कविताओं में शोषित वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है।

प्रश्न 3.
‘कन्यादान’ कविता में लड़की को किसकी पाठिका कहा गया है?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में लड़की को धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा गया है।

प्रश्न 4.
कवि ने किसे धुंधले प्रकाश की पाठिका बताया है?
उत्तर-
कवि ने बेटी को धुंधले प्रकाश की पाठिका बताया है।

प्रश्न 5.
नारियों के लिए किसे बंधन बताया गया है?
उत्तर-
नारियों के लिए वस्त्रों एवं आभूषणों को बंधन बताया गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री ऋतुराज।

प्रश्न 7.
‘लड़की जैसी दिखाई न देना’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
‘लड़की जैसी दिखाई न देना’ का तात्पर्य कमजोर मत बनना है।

प्रश्न 8.
‘शाब्दिक भ्रम’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘शाब्दिक भ्रम’ से अभिप्राय है अवास्तविक को वास्तविक दिखाना।

प्रश्न 9.
‘कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को कैसा बताया है?
उत्तर-
कवि ने वस्त्र और आभूषणों को नारी के लिए मोह के बन्धन बताया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर ऋतुराज का जन्म कब हुआ था?
(A) सन् 1940 में
(B) सन् 1945 में
(C) सन् 1950 में
(D) सन् 1952 में
उत्तर-
(A) सन् 1940 में

प्रश्न 2.
श्री ऋतुराज किस प्रदेश के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) पंजाब
(C) राजस्थान
(D) उत्तर प्रदेश
उत्तर-
(C) राजस्थान

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प्रश्न 3.
कविवर ऋतुराज ने किस विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) संस्कृत
(B) अंग्रेज़ी
(C) इतिहास
(D) हिंदी
उत्तर-
(B) अंग्रेज़ी

प्रश्न 4.
कविवर ऋतुराज का व्यवसाय क्या था?
(A) व्यापार
(B) कृषि
(C) अध्यापन
(D) ठेकेदारी
उत्तर-
(C) अध्यापन

प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) नागार्जुन
(D) ऋतुराज
उत्तर-
(D) ऋतुराज

प्रश्न 6.
कविवर ऋतराज ने अपनी कविताओं में किस वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है?
(A) शोषित वर्ग
(B) अमीर वर्ग
(C) अध्यापक वर्ग
(D) उच्च वर्ग
उत्तर-
(A) शोषित वर्ग

प्रश्न 7.
प्रस्तुत कविता में प्रामाणिक किसे कहा गया है?
(A) सुख
(B) दुःख
(C) आनन्द
(D) स्मृति
उत्तर-
(B) दुःख

प्रश्न 8.
माँ की अंतिम पूँजी किसे कहा गया है?
(A) बेटी को
(B) सास को
(C) बेटे को
(D) बहन को
उत्तर-
(A) बेटी को

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

प्रश्न 9.
माँ ने अपनी बेटी को किस रूप में देखा?
(A) विदुषी
(B) महिषी
(C) उपदेशिका
(D) पाठिका
उत्तर-
(D) पाठिका

प्रश्न 10.
‘कन्यादान’ कविता में कवि ने किसको धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है?
(A) पत्नी को
(B) माँ को
(C) बेटी को
(D) बहन को
उत्तर-
(C) बेटी को

प्रश्न 11.
माँ ने किसे देखकर न रीझने का आदेश दिया है?
(A) वस्त्रों को
(B) धन को
(C) चेहरे को
(D) गहनों को
उत्तर-
(C) चेहरे को

प्रश्न 12.
आग का प्रयोग किस कार्य के लिए बताया गया है?
(A) रोटियाँ सेंकने के लिए
(B) स्वयं जलने के लिए
(C) दूसरों को जलाने के लिए
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(A) रोटियाँ सेंकने के लिए

प्रश्न 13.
भारतीय समाज में ‘लड़की का दान’ का अर्थ है
(A) लड़की का दान
(B) लड़की की शिक्षा
(C) लड़की का जन्म
(D) लड़की का विवाह
उत्तर-
(D) लड़की का विवाह

प्रश्न 14.
बेटी का स्वभाव था
(A) चतुर
(B) कठोर
(C) भोला-भोला
(D) प्रवीण
उत्तर-
(C) भोला-भोला

प्रश्न 15.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है’ वाक्य का प्रतीकार्थ है
(A) आग सही जलाना
(B) रोटी न जलाना
(C) रोटी कच्ची न रखना
(D) यथोचित प्रयोग
उत्तर-
(D) यथोचित प्रयोग

कन्यादान पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सख का आभास तो होता था।
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की [पृष्ठ 50]

शब्दार्थ-प्रामाणिक = वास्तविक, सच्चा। सयानी = समझदार। आभास = अनुभव, महसूस। बाँचना = पढ़ना।। धुंधले = अस्पष्ट। लयबद्ध = लय में बँधी हुई।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?
(ङ) माँ की अंतिम पूँजी कौन और कैसे है?
(च) “दुख बाँचने का आशय स्पष्ट कीजिए।
(छ) कवि ने किसे और क्यों धुंधले प्रकाश की पाठिंका कहा है?
(ज) इस पद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(झ) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) प्रस्तुत पद में निहित शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-ऋतुराज। . कविता का नाम कन्यादान।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘कन्यादान’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री ऋतुराज हैं। इस कविता में कवि ने वर्तमान युग में बदलते हुए जीवन-मूल्यों का उल्लेख किया है। माँ अपनी बेटी के लिए केवल भावुकता को ही महत्त्वपूर्ण नहीं मानती, अपितु अपने संचित अनुभवों की पीड़ा का पाठ भी उसे पढ़ाना देना चाहती है। वह उसे भावी जीवन के यथार्थ के विषय में भी बताती है।

(ग) कवि कहता है कि माँ ने अपने जीवन में जिन दुःखों को सहन किया था, उन्हें अपनी बेटी को कन्यादान के समय बताना और समझाना अति आवश्यक था। यह एक सत्य है। कहने का भाव है कि आज के युग में बेटी के विवाह के समय कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उसे जीवन के उन अनुभवों से भी अवगत करा देना उचित होगा जिनको माँ ने अपने जीवन में भोगा था ताकि बेटी अपना जीवन समुचित रूप से जी सके। माँ के लिए बेटी ही तो अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सब सुख-दुःख वह बेटी के साथ बाँटती थी। भले ही वह बेटी का विवाह कर रही थी, किंतु उसकी दृष्टि में बेटी अब भी अधिक समझदार नहीं थी। उसके पास सांसारिक जीवन के अनुभव नहीं थे। वह अत्यंत सरल एवं भोले स्वभाव वाली थी। वह दुःखों की उपस्थिति को अनुभव तो करती थी, किंतु उसे उन्हें पढ़ना नहीं आता था। ऐसा लगता था कि उसे धुंधले प्रकाश में जीवन रूपी कविता की कुछ तुकों व लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ना ही आता था, किंतु उसके अर्थ उसकी समझ में नहीं आते थे। कवि के कहने का भाव है कि कन्या भले ही विवाह के योग्य हो जाती है किंतु उसे उन्हें दुनियादारी की ऊँच-नीच व व्यवहार अभी पूरी तरह समझ में नहीं आते। उसमें इस समय इतनी योग्यता नहीं आ पाती कि वह दुनियावी भेदभाव को समझ सके। इसलिए माँ के द्वारा बेटी को समझाना उचित ही नहीं, नितांत आवश्यक भी है।

(घ) कवि ने माँ के दुःखों को प्रामाणिक कहा है क्योंकि उसने अपने जीवन में उन्हें भोगा एवं अनुभव किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

(ङ) बेटी ही माँ की अंतिम पूँजी है क्योंकि वह अपने जीवन के हर सुख-दुःख को उसी के साथ बाँटती है। बेटी ही माँ के सबसे अधिक निकट होती है। वह उसके सुख-दुःख की सच्ची साथी है।

(च) ‘दुःख बाँचना’ का साधारण अर्थ दुःखों को पढ़ना है। यहाँ दुःख बाँचना का अभिप्राय है-जीवन में आने वाले दुःखों की समझ रखना अर्थात् दुःखों को गहराई से समझना व जानना है।

(छ) कवि ने बेटी को धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है क्योंकि वह अभी जीवन में आने वाले सुख-दुःख को थोड़ा-बहुत अनुभव तो करती है, किंतु उनको गहराई से समझना व उनके कारणों पर विचार करना उसे नहीं आता। इसलिए उसे धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा गया है जोकि उचित है।

(ज) प्रस्तुत पद्यांश का मूल भाव बदलते जीवन-मूल्यों के समय परंपरागत विचारों में भी बदलाव की आवश्यकता को व्यक्त करना है। आज बेटी को कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं अपितु माँ को चाहिए कि वे अपने जीवन के अनुभवों से भी उसे अवगत कराए ताकि वह अपना वैवाहिक जीवन भली-भाँति व्यतीत कर सके।

(झ) कवि ने कन्या की विवाहपूर्व स्थिति का अत्यंत सूक्ष्मता एवं भावनात्मकतापूर्ण वर्णन किया है। कन्या की चिंता में घुलती माँ की मनोदशा का अत्यंत सजीव चित्र अंकित किया गया है।

(ञ)

  • प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अर्थ-लय का सुंदर मिश्रण किया है जिससे काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
  • भाषा, सरल एवं सहज होते हुए भी भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
  • तत्सम शब्दावली का भावानुकूल प्रयोग द्रष्टव्य है।
  • अंतिम पूँजी में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  • ‘दुःख बाँचना’ लाक्षणिक प्रयोग है।
  • ‘धुंधला प्रकाश’, ‘तुक’, ‘समलय पंक्तियाँ’ आदि प्रतीकात्मक प्रयोग हैं।

(ट) कविवर ऋतुराज भाषा के मर्मज्ञ विद्वान हैं। वे भाषा के महत्व को भली-भांति समझते हैं। अतः उन्होंने इस पद्यांश में सरल एवं सहज भाषा के सफल प्रयोग द्वारा विषय को रोचकतापूर्ण अभिव्यक्त किया है। व्यावहारिकता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। भाषा पूर्णतः लोक-जीवन से जुड़ी हुई है।

[2] माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना। [पृष्ठ 50]

शब्दार्थ-रीझना = प्रसन्न होना। रोटियाँ सेंकना = रोटियाँ पकाना। आभूषण = गहने। भ्रम = धोखा।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) माँ ने आग का क्या प्रयोग बताया और क्यों?
(ङ) वस्त्रों एवं आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन क्यों बताया गया है?
(च) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की जैसी दिखाई मत देना?
(छ) माँ ने बेटी को अपने चेहरे पर रीझने के लिए क्यों मना किया है?
(ज) ‘शाब्दिक भ्रम’ का क्या तात्पर्य है?
(झ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत पद्यावतरण में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-ऋतुराज। कविता का नाम-कन्यादान।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘कन्यादान’ नामक कविता से उद्धृत हैं। इनमें कविवर ऋतुराज ने एक माँ के द्वारा विदाई के समय पुत्री को दी जाने वाली शिक्षा का उल्लेख किया है। अकसर नारियों को कोमल, कमज़ोर और असहाय बताया जाता है। माँ अपनी बेटी को इस भ्रम को तोड़कर जीवन जीने की शिक्षा देती है।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती हुई कहती है कि तुम कभी अपने चेहरे को पानी में देखकर अपनी सुंदरता पर प्रसन्न मत होना। कवि के कहने का भाव है कि कभी-कभी उनकी सुंदरता ही उनके लिए बंधन बन जाती है। दहेज के कारण लोग लड़कियों को जला देते हैं। इस भय के कारण माँ बेटी को समझाती है कि आग रोटी पकाने के लिए होती है, स्वयं जलने के लिए नहीं। किसी भी ऐसी घटना से सदा सचेत रहना। देखा गया है कि लड़कियाँ ससुराल वालों के जुल्म सहती रहती हैं और कुछ बोलती भी नहीं। यदि समय रहते उसका विरोध किया जाए तो ऐसी घटना से बचा जा सकता है। अकसर नारी की कोमलता को उसकी कमज़ोरी मान लिया जाता है। नारी को अच्छे वस्त्रों और आभूषणों तक सीमित कर दिया जाता है। नारी के लिए नए-नए आदर्शों की व्याख्या की जाती है। उसे क्या करना है, क्या नहीं करना है आदि। ऐसी बातें या आदर्श उसके बंधन बन जाते हैं। इसीलिए उसकी माँ कहती है कि लड़कियों की तरह रहना, किंतु लड़कियों की तरह दिखाई मत देना। कहने का भाव है कि हर बात को सिर झुकाकर स्वीकार करना, किसी बात का विरोध न करना आदि। लड़कियों के गुणों से ऊपर उठकर अपनी बात को दृढ़ता से औरों के सामने रखना जिससे लोग स्त्री को अबला समझकर उस पर अत्याचार करने की हिम्मत न करें।

(घ) माँ ने अपनी बेटी की विदाई के समय उसे शिक्षा देते हुए बताया है कि आग रोटियाँ सेंकने के लिए है अर्थात आग का प्रयोग भोजन बनाने के लिए होता है, स्वयं जलने के लिए नहीं। दुल्हनों को आग में जलाकर मारने की घटनाएँ प्रतिदिन सुनने को मिलती हैं। अतः माँ ने बेटी को सावधान करते हुए ऐसा कहा है।

(ङ) स्त्री को लोग सौंदर्य की वस्तु समझते हैं। वह अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनकर और भी सुंदर लगती है। इस भावना को स्त्रियाँ भी समझती हैं। इसलिए वे सुंदर वस्त्रों और आभूषणों के प्रति मोह रखती हैं। अतः कवि ने वस्त्रों और आभूषणों को नारी जीवन के लिए बंधन कहा है।

(च) कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि ससुराल वाले लड़की को कमज़ोर समझकर उस पर तरह-तरह के अत्याचार करते हैं और वह उनको सहती रहती है। वह किसी भी तरह का प्रतिवाद नहीं करती। किंतु उसे ऐसा नहीं होने देना चाहिए। उसे अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए। उसे चुप नहीं रहना चाहिए।

(छ) माँ ने बेटी को चेहरे पर रीझने के लिए इसलिए मना किया क्योंकि प्रायः स्त्रियाँ अपनी सुंदरता पर रीझकर हर बंधन को निभा लेती हैं। वे ससुराल वालों की प्रशंसा पाकर उनके हर अत्याचार व अन्याय को भी सहन कर लेती हैं और अपने शोषण का विरोध नहीं करतीं।

(ज) ‘शाब्दिक भ्रम’ का तात्पर्य है कि शब्दों के द्वारा किसी अवास्तविक वस्तु को वास्तविक बताना। किसी वस्तु का शब्दों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करना। इसकी समानता बहू को मिलने वाले सुंदर कपड़ों और आभूषणों से की गई है। ये भी बहू के मन में भ्रम पैदा करते हैं कि उसके ससुराल वाले उससे सचमुच प्यार करते हैं। कहने का भाव है कि माँ अपनी बेटी को ऐसे शाब्दिक भ्रमों से सावधान रहने के लिए कहती है।

(झ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने उन सब बातों व सामाजिक बंधनों के रहस्य को व्यक्त किया है जिनके कारण स्त्री को गुलाम बनाया जाता है। कवि ने नारी की सुंदरता, वस्त्र और आभूषणों के प्रति मोह, झूठी प्रशंसा, आदर्शों की व्याख्या आदि को नारी जीवन की गुलामी के कारण बताया है। इस भाव को अत्यंत कुशलता से अभिव्यक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त लड़कपन का होना भी कभी-कभी स्त्री के शोषण का कारण बन सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि नारी इन बातों का ध्यान रखते हुए अपना जीवन स्वतंत्रतापूर्वक व्यतीत कर सकती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

(ञ)

  • कवि ने नारी को सामाजिक बंधनों से मुक्त रहने के लिए सुझाव दिए हैं।
  • भाषा सांकेतिक है। पानी में झाँकना, लड़की होना, रोटियाँ सेंकना, जलने के लिए नहीं आदि प्रयोग इसके उदाहरण हैं। जो सांकेतिक होते हुए भी अपने में गूढ़ अर्थ समेटे हुए हैं।
  • वाक्य-रचना अत्यंत सरल है।
  • मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
  • लाक्षणिकता का प्रयोग हुआ है।

(ट) कविवर ऋतुराज भाषा के मर्म को समझते हैं। उन्होंने उपर्युक्त पद्यांश में सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा का सफल प्रयोग किया है। ‘रोटियाँ सेकना’ ‘आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह’ आदि भाषिक प्रयोग अत्यन्त सार्थक एवं सटीक बन पड़े हैं। प्रवाहमयता एवं रोचकता भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। इस काव्यांश की भाषा में तद्भव शब्दों का सफल प्रयोग किया गया है।

कन्यादान Summary in Hindi

कन्यादान कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर ऋतुराज का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-ऋतुराज का आधुनिक हिंदी कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका जन्म सन् 1940 में भरतपुर (राजस्थान) में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम०ए० अंग्रेजी की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् उन्होंने अध्यापन का कार्य आरंभ किया। आजकल श्री ऋतुराज सेवानिवृत्त होकर साहित्य-सृजन में लगे हुए हैं।

2. प्रमुख रचनाएँ-कविवर ऋतुराज के अब तक आठ काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं’एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत-निरत’, ‘लीला मुखारविंद’ आदि।
पुरस्कार-कवि श्री ऋतुराज सोमदत्त परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से भी सम्मानित हो चुके हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-ऋतुराज के काव्यों के अध्ययन से पता चलता है कि वे शोषितों, पीड़ितों व उपेक्षितों के कवि हैं। उन्होंने उन लोगों के जीवन पर लेखनी चलाई है जिन्हें समाज ने हाशिए पर खड़ा किया हुआ है अथवा जिन्हें उपेक्षित समझा जाता है। वे अपने काव्य में कल्पना की अपेक्षा यथार्थ को अपनाते हैं। उनका मत है कि आज काव्य को कल्पना की उड़ान भरने की अपेक्षा यथार्थ को आधार बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। कवि ने अत्यंत सहज भाव से अन्याय, दमन, शोषण और रूढ़िग्रस्त जर्जरित संस्कारों का विरोध किया है। कहीं-कहीं उनके विद्रोह की भावना अत्यंत तीखी होकर उभरी है। उन्होंने आज के मानव के संघर्ष को काव्य में स्थान देकर एवं उसको प्रतिष्ठित करके संघर्ष व परिश्रम के प्रति विश्वास व्यक्त किया है। उन्होंने बड़ी-बड़ी दार्शनिक बातें कहने की अपेक्षा दैनिक जीवन के अनुभवों का यथार्थ के धरातल पर जाकर सजीव चित्रण किया है। उन्होंने परंपरा से हटकर नए जीवन-मूल्यों की स्थापना करने का प्रयास किया है। उनकी कविता में कल्पना नहीं, अपितु यथार्थ के दर्शन होते हैं; यथा
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना,
X X X
बंधन हैं स्त्री जीवन के।

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4. भाषा-शैली-कविवर ऋतुराज भाषा के मर्म को समझते हैं। इसलिए उन्होंने जीवन को यथार्थ के धरातल पर चित्रित करने के लिए सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा को माध्यम बनाया है। उनकी भाषा पूर्णतः लोक-जीवन से जुड़ी हुई है। उनकी काव्य भाषा में तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग हुआ है।

कन्यादान कविता का सार

प्रश्न-
‘कन्यादान’ नामक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘कन्यादान’ ऋतुराज की सुप्रसिद्ध रचना है। इस कविता में माँ बेटी को स्त्री के परंपरागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर शिक्षा व सीख देती है। कवि का मत है कि समाज-व्यवस्था में स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं, वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन ही होते हैं। ‘कोमलता’ के गौरव में कमजोरी का उपहास छुपा हुआ है। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार है।

बेटी माँ के सबसे निकट होती है। उसके सुख-दुःख की साथी होती है। इसीलिए माँ के लिए बेटी उसकी अंतिम पूँजी है। प्रस्तुत कविता कोरी कल्पना पर आधारित नहीं है और न ही इसमें भावुकता को आधार बनाया गया है। यह कविता माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। प्रस्तुत कविता में कवि की स्त्री जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता अभिव्यक्त हुई है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

HBSE 10th Class Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers

आत्मकथ्य’ कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर-
कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है क्योंकि उसका जीवन साधारण-सा रहा है। उसमें कुछ भी ऐसा महत्त्वपूर्ण नहीं है जिसे पढ़कर लोगों को सुख व आनंद प्राप्त हो सके। फिर उसके जीवन में दुःख और अभावों की भरमार रही है जिन्हें कवि दूसरों से बाँटना नहीं चाहता। उसके मन में किसी के प्रति अनुरक्ति की भावना थी, उसे भी कवि किसी को बाँटना नहीं चाहता। कवि द्वारा आत्मकथा न लिखने के ये ही कारण रहे हैं।

Class 10 Hindi Chapter Atmakatha Question Answer HBSE प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में, ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर-
कवि द्वारा यह कहना कि ‘अभी समय भी नहीं है’ के दो प्रमुख कारण रहे होंगे-प्रथम, उसने अभी तक कोई महान् कार्य नहीं किया कि उसके बारे में आत्मकथा लिखकर संसार भर को बताया जाए। दूसरा प्रमुख कारण यह हो सकता है कि कवि शांत चित्त है। उसके जीवन में व्यथा-ही-व्यथा है। उन्हें सुनाकर फिर से अपने मन को अशांत क्यों किया जाए।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

आत्मकथ्य कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
जिस प्रकार एक पथिक को यात्रा पूरी करने के लिए मार्ग में पाथेय की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार अपनी लंबी एवं दुःखों से भरी जीवन-यात्रा में कवि ने अपने जीवन की सुखद एवं मधुर स्मृतियों को मन में संजोया है ताकि उनके सहारे वे आगे के पथ में पाथेय का काम करती रहें अर्थात् आने वाला जीवन उन मधुर यादों के सहारे व्यतीत हो सके। .

आत्मकथ्य कक्षा 10 प्रश्न उत्तर HBSE प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर-
(क) कवि ने इन पंक्तियों में स्पष्ट किया है कि उसने जिस सुख का सपना देखा था वह सुख कभी नहीं मिला। उसकी पत्नी या प्रेमिका भी उसके आलिंगन में आते-आते रह गई। वह मुस्कराकर उसकी ओर बढ़ी, किंतु कवि के आलिंगन में न आ सकी। वह उसकी पहुँच से सदा के लिए दूर चली गई। कहने का भाव यह है कि कवि को दांपत्य सुख कभी प्राप्त न हो सका।
(ख) कवि ने अपनी प्रिया की सुंदरता का उल्लेख करते हुए कहा है कि उसके गाल लाल एवं मस्ती भरे थे। ऐसा लगता है कि प्रेममयी भोर की बेला भी अपनी लालिमा उसके मतवाले गालों से लिया करती थी। कवि के कहने का भाव है कि उसकी प्रिया के मुख की सुंदरता प्रातःकालीन लालिमा से अधिक सुंदर थी।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? .
उत्तर-
इस कथन के माध्यम से कवि ने स्पष्ट किया है कि निज प्रेम के मधुर प्रसंगों को सबके सामने प्रकट नहीं किया जाता। मधुर चाँदनी रात में बिताए गए मधुर क्षण कवि को उज्ज्वल गाथा के समान लगते हैं। ऐसी उज्ज्वल गाथा अत्यंत निजी संपत्ति होती है। अतः ऐसे क्षणों को आत्मकथा में लिखकर अपना मजाक बनवाना है। अतः आत्मकथा में उनका लिखना आवश्यक नहीं।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
आत्मकथ्य एक छायावादी कविता है। इसमें कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है अर्थात् इसमें संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया है; जैसे- …
“उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।” कवि ने इस कविता की भाषा में प्रकृति के विभिन्न उपमानों का प्रयोग किया है, जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया है। मधुप, पत्तियाँ, नीलिमा, चाँदनी रात आदि इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त मधुप, रीति गागर आदि प्रतीकों का भी प्रयोग किया गया है। संपूर्ण कविता की भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है। अन्त्यानुप्रास अलंकार के सफल प्रयोग से भाषा में लय बनी रहती है; यथा-

“उसकी स्मृति पाथेय बनी है, थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? ॥”

स्वर मैत्री के कारण भी भाषा संगीतात्मक बन पड़ी है। चित्रात्मकता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता है। कवि ने इसके द्वारा पाठक के मन पर शब्दचित्र अंकित किए हैं जिससे पाठक के मन पर कविता का प्रभाव देर तक बना रहता है।

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने बताया है कि उसने जो सुख का स्वप्न देखा था, वह उसे प्राप्त नहीं कर पाया था। वह स्वप्न अधूरा ही रह गया था। किंतु उस स्वप्न की स्मृति उसके मन की गहराइयों में बसी हुई है। कवि के हृदय में अपनी प्रिया की स्मृति बसी हुई है। कवि के लिए सुख के वे दिन भुलाए नहीं भूलते। उसकी प्यार भरी वे चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे स्मृतियाँ उनके लिए महत्त्वपूर्ण संबल थीं। उसके जीवन में एक अपूर्व आनंद का संचार करती थीं। प्रिया की हँसी का स्रोत तो उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था। कवि उस स्वप्न को प्राप्त नहीं कर पाया। ज्यों हि कवि ने उसे प्राप्त करने के लिए बाँहें फैलायी तो आँख खुल गई और स्वप्न अपना न हो सका। इस प्रकार कवि ने इस कविता में सुख के स्वप्न को मधुर स्मृतियों के रूप में प्रस्तुत किया है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
इस कविता के माध्यम से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद अत्यंत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अंतर्मुखी होते हुए भी यथार्थवादी थे। वे सत्यवादी थे और सच कहने में विश्वास रखते थे। विनम्रता उनके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता थी। वे अपने-आपको एक साधारण व्यक्ति की भाँति समझते थे। इसलिए उन्होंने कहा है
‘तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।’ उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनके जीवन में ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसका वर्णन वे आत्मकथा में लिखें।
वे बीती बातों को कुरेदने के पक्ष में नहीं हैं। वे नहीं चाहते थे कि विगत जीवन की दुःखद घटनाओं को पुनः याद करके दुःखी हों। वे दिखावे व प्रदर्शन के पक्ष में नहीं थे। वे यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने वाले व्यक्ति थे। वे अपने सुख-दुःख के क्षणों को स्वयं ही समभाव से झेलने व बिताने के पक्ष में थे।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर-
हम महान् व्यक्तियों की आत्मकथाएँ पढ़ना चाहेंगे क्योंकि उनकी आत्मकथाओं में उनके जीवन की सफलता के रहस्यों का पता चलता है। उनकी आत्मकथाओं को पढ़कर हम भी उनका अनुसरण करते हुए जीवन में सफल बनने का प्रयास करेंगे। महान् व्यक्तियों की आत्मकथा सदा दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होती है। .

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

पाठेतर सक्रियता

  • किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा कीजिए।
  • बिना ईमानदारी और साहस के .आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर-
इन प्रश्नों के उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

यह भी जानें

प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन् 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन् 1986 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।
बनारसीदास जैन कृत अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। इसकी रचना सन् 1641 में हुई और यह पद्यात्मक है।

आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।
-कवि बच्चन की आत्म-परिचय
कविता का अंश

HBSE 10th Class Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की सोद्देश्य रचना है। इस कविता में उन्होंने अपने जीवन के विषय में संकेत रूप में वह सब कुछ कह दिया है जो बहुत लंबी-चौड़ी आत्मकथा में भी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने अपनी इस कविता में उन लोगों को उत्तर दिया है जो लोग उनको आत्मकथा लिखने का आग्रह कर रहे थे। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में आत्मकथा लिखने योग्य महान् उपलब्धियाँ नहीं हैं। उनका जीवन तो दुःखों व अभावों से भरा पड़ा है। इसलिए अभावों व दुःखों की घटनाओं को दोहराने से मनुष्य सदा दुःखी ही होता रहता है। उनके जीवन के कुछ मधुर एवं प्रसन्नता के पल भी रहे हैं जो उनके जीवन की निजी निधि हैं। उन्हें वे सबके सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। अतः स्पष्ट है कि प्रसाद जी ने अपनी इस कविता में अपने विषय में कुछ न कहकर भी सब कुछ कह दिया है। यही इस कविता का लक्ष्य है। .

प्रश्न 2.
कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को उद्घाटित नहीं करना चाहता और क्यों?
उत्तर-
कवि अपने जीवन में किसी के प्रति किए प्रेमभाव के प्रसंग को लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया ही नहीं अपितु उसने तो सुख का सपना ही देखा था, भला उसे दूसरों के सामने क्या प्रकट करे। वह प्रेम तो उसके लिए भावी जीवन जीने के लिए प्रेरणा बना रहता है अथवा जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 3.
कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथाएँ क्यों नहीं गाना चाहता? .
उत्तर-
कवि मधुर चाँदनी रातों में किए गए मधुर प्रेम की कहानियों को निजी दौलत समझता है। वह उनके विषय में लोगों से कुछ नहीं कहना चाहता। उन मधुर स्मृतियों पर केवल कवि का अधिकार है। वह अपनी उन मधुर यादों के सहारे अपना शेष जीवन जी लेना चाहता है। यही कारण है कि कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथा को नहीं गाना चाहता।

प्रश्न 4.
‘भोली आत्मकथा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
कवि ने ‘भोली आत्मकथा’ के माध्यम से यह समझाने का सफल प्रयास किया है कि उसका जीवन अत्यंत सरल एवं सीधा सादा है। उसने अपना सारा जीवन एक साधारण व्यक्ति की भाँति व्यतीत किया है। उसके जीवन में कहीं किसी प्रकार का छलकपट नहीं है। उनके जीवन में संतुष्टि तो है, किंतु किसी को प्रेरणा देने की क्षमता बहुत कम है।

प्रश्न 5.
पठित कविता के आधार पर कवि की प्रिया के रूप-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित कविता के अध्ययन से पता चलता है कि कवि को अपनी प्रिया से मिलने के बहुत कम क्षण प्राप्त हुए थे। कवि ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनकी प्रिया के गाल लाल और मस्ती भरे थे। ऐसा लगता था मानो प्रातःकाल की लालिमा कवि की प्रिया के गालों की लालिमा से उधार ली हुई है। कहने का तात्पर्य है कि कवि की प्रिया के चेहरे की लालिमा प्रातःकाल की लालिमा से भी अधिक सुंदर है।

सदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. March, 2019 (Set-A, D), 2020 (Set-D)]
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि के जीवन के रहस्यों का आभास मिलता है। कवि स्वयं को एक सामान्य व्यक्ति बताता है। यह उनके व्यक्तित्व की उदारता है। कवि के अनुसार उसका जीवन दुर्बलताओं, अभावों व दुःखों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण बहुत कम आए हैं। कवि ने मधुर सपने देखे किंतु वे पूरा होने से पहले ही मिट गए थे। उसका जीवन अत्यंत सरल एवं साधारण रहा है। कवि ने स्पष्ट किया है कि उसके जीवन में कुछ महान् नहीं है जिसे वह आत्मकथा में लिखकर लोगों के सामने प्रस्तुत करे। उसका जीवन तो अभावों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण भी आए हैं जिन्हें वह किसी दूसरे के सामने प्रकट नहीं करना चाहता। कवि अपनी बातें बताने की अपेक्षा दूसरों की कहानी सुनना अच्छा समझता है।

प्रश्न 7.
“आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के आधार पर बताएँ कि प्रसाद जी का जीवन कैसा रहा?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद का जीवन सरल, सहज एवं विनम्रता से युक्त था। वे दिखावे में जरा भी विश्वास नहीं रखते थे। इस आत्मकथा को लिखकर वे अपनी प्रशंसा के पक्ष में नहीं थे। पठित कविता से पता चलता है कि उनके जीवन में दुःखों एवं अभावों का पक्ष ही भारी रहा। सुख के क्षण बहुत कम थे। इसलिए वे बीते दुःखद जीवन को दोहराना नहीं चाहते थे। उनके जीवन में जो मधुर क्षण थे, उन्हें वे अपनी निजी संपत्ति समझकर दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। इसलिए उन्होंने बताया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ नहीं था जिसे पढ़कर लोग सुख व आनंद अनुभव कर सकें।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 8.
कवि अपनी आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को क्यों ठुकरा देता है?
उत्तर-
कवि का मत है कि आत्मकथा तो महान् लोग ही लिखा करते हैं क्योंकि उनके जीवन की महान् उपलब्धियों को पढ़ने . व सुनने से लोगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती है। किंतु कवि कहता है कि उसके जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसे लिखकर बताया जाए। उसके जीवन में अभाव-ही-अभाव हैं जिन्हें सुनकर किसी को प्रसन्नता नहीं मिल सकती। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा है कि उनके मन में दुःख की स्मृतियाँ थककर सो गई हैं। उन्हें जगाने का अभी उचित समय नहीं है। उन्हें जगाने से मन को पीड़ा ही पहुँचेगी। इसलिए कवि आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को ठुकरा देता है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के कवि जयशंकर प्रसाद हैं।

प्रश्न 2.
कवि ने ‘गंभीर अनंत नीलिमा’ में क्या होने की बात कही है?
उत्तर-
कवि ने ‘गंभीर अनंत नीलिमा’ में असंख्य जीवन-इतिहास होने की बात कही है।

प्रश्न 3.
‘आत्मकथ्य’ कविता में किसकी सीवन को उधेड़कर देखने की बात कही है?
उत्तर-
कवि जयशंकर प्रसाद के जीवन की।

प्रश्न 4.
‘मेरा रस ले अपनी भरने वाले’ में रस का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
इसमें रस का प्रयोग काव्य-रस के लिए किया गया है।

प्रश्न 5.
‘खिल-खिला कर हँसते होने वाली बातें’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर-
‘खिल-खिला कर हँसते होने वाली बातें’ खुशियों से युक्त बात को कहा गया है।

प्रश्न 6.
कवि ने ‘मधुप’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है?
उत्तर-
कवि ने ‘मधुप’ शब्द का प्रयोग मन रूपी भौरे के लिए किया है।

प्रश्न 7.
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि सुख का स्वप्न देखकर जाग गया था।

प्रश्न 8.
‘गागर रीती’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
‘गागर रीती’ से कवि का तात्पर्य है-सुखों से खाली जीवन।

प्रश्न 9.
‘आत्मकथ्य’ कविता में किसकी उज्ज्वल गाथा गाने की बात कही गई है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में मधुर चाँदनी रातों में बिताए गए मधुर क्षणों की उज्ज्वल गाथा गाने की बात कही गई है।

प्रश्न 10.
कवि किसके अरुण-कपोलों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
कवि पत्नी के अरुण-कपोलों की ओर संकेत करता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने ‘आत्मकथ्य’ कविता में संसार को क्या कहा है?
(A) शाश्वत
(B) धनी
(C) नश्वर
(D) सनातन
उत्तर-
(C) नश्वर

प्रश्न 2.
कवि ने ‘मधुप’ किसे कहा है?
(A) मन को
(B) भौंरा को
(C) धन को
(D) आकाश को
उत्तर-
(A) मन को

प्रश्न 3.
‘असंख्य जीवन-इतिहास’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(A) जीवन का वर्णन
(B) आत्मकथा
(C) जीवनी
(D) मानव मन में उत्पन्न विचार
उत्तर-
(D) मानव मन में उत्पन्न विचार

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 4.
कवि ने भावहीन मन को क्या कहा है?
(A) छिछला
(B) कथा
(C) रीतीगागर
(D) शून्य
उत्तर-
(C) रीतीगागर

प्रश्न 5.
कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(A) उसके जीवन में सुख-ही-सुख थे
(B) उसके जीवन में केवल दुर्बलताएँ थीं
(C) उसके जीवन में गरीबी थी
(D) उसका जीवन आदर्श था
उत्तर-
(B) उसके जीवन में केवल दुर्बलताएँ थीं ।

प्रश्न 6.
कवि ने ‘मधुर चाँदनी रात’ किसे कहा है?
(A) अपने जीवन की मीठी यादों को
(B) सुहावनी चाँदनी रात को
(C) आनंददायक रात को
(D) जीवन की खुशी को
उत्तर-
(A) अपने जीवन की मीठी यादों को

प्रश्न 7.
कवि किन्हें खाली करने वाले बताता है?
(A) आत्मकथा लिखवाने वाले मित्रों को
(B) पाठकों को
(C) प्रकाश को
(D) राजनेताओं को
उत्तर-
(B) पाठकों को

प्रश्न 8.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ मधुर चाँदनी रातों की’-इस पंक्ति में कवि ने क्या बताया है?
(A) निज प्रेम प्रसंगों को सबको नहीं बताया जाता
(B) जीवन गाथा को नहीं गाया जाता
(C) चाँदनी रात में गाते नहीं
(D) चाँदनी रात मधुर होती है
उत्तर-
(A) निज प्रेम प्रसंगों को सबको नहीं बताया जाता

प्रश्न 9.
कवि के द्वारा अपनी आत्मकथा न लिखने का क्या कारण है?
(A) उसे आत्मकथा लिखनी नहीं आती
(B) वह अपने जीवन के रहस्य दूसरों को नहीं बताना चाहता
(C) उसका आत्मकथा में विश्वास नहीं
(D) वह आत्मकथा में झूठ नहीं बोलना चाहता
उत्तर-
(B) वह अपने जीवन के रहस्य दूसरों को नहीं बताना चाहता

प्रश्न 10.
कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
(A) धन का
(B) पारिवारिक जीवन का
(C) स्मृतियों का
(D) सुख का
उत्तर-
(D) सुख का

प्रश्न 11.
कवि के आलिंगन में आते-आते कौन मुस्कुराकर भाग गया?
(A) सुख
(B) दुख
(C) दुर्बलता
(D) व्यथा
उत्तर-
(A) सुख

प्रश्न 12.
कवि ने किसकी उज्ज्वल गाथा गाने में असमर्थता व्यक्त की है?
(A) मधुर चाँदनी रातों की
(B) कथा की
(C) मधुमाया की
(D) पथिक की पंथा की
उत्तर-
(A) मधुर चाँदनी रातों की

प्रश्न 13.
कवि के लिए किसकी स्मृति ‘पाथेय’ बन जाती है?
(A) माता की
(B) पिता की
(C) बच्चों की
(D) पत्नी की
उत्तर-
(D) पत्नी की

प्रश्न 14.
‘सीवन उधेड़ना’ का अर्थ है
(A) सीवन खोलना
(B) टाँके तोड़ना
(C) जीवन के रहस्य जानना
(D) सिलाई काटना
उत्तर-
(C) जीवन के रहस्य जानना

प्रश्न 15.
‘सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की’ यहाँ कंथा का अर्थ है-
(A) कथा
(B) कविता
(C) चद्दर
(D) गुदड़ी
उत्तर-
(D) गुदड़ी

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प्रश्न 16.
‘आत्मकथ्य’ कविता में गुन-गुनाकर अपनी कहानी कौन कहता है?
(A) कवि
(B) मधुप
(C) कोकिल
(D) खिलते फूल
उत्तर-
(B) मधुप

प्रश्न 17.
प्रस्तुत कविता में ‘अनंत नीलिमा’ से क्या तात्पर्य है?
(A) नीला आकाश
(B) नीला गगन
(C) अंतहीन विस्तार .
(D) नीला कमल
उत्तर-
(C) अंतहीन विस्तार

प्रश्न 18.
कवि ने अपनी आत्मकथा को कैसी बताया है?
(A) महान
(B) प्रभावशाली
(C) भोली
(D) चंचल
उत्तर-
(C) भोली

प्रश्न 19.
कवि किसे याद करके दुःखी था?
(A) अपने बचपन को
(B) अपने वर्तमान को
(C) अपने दुःख भरे अतीत को
(D) पारिवारिक जीवन को
उत्तर-
(C) अपने दुःख भरे अतीत को

प्रश्न 20.
अभी थककर मौन रूप में क्या सोई हुई है?
(A) व्यथा
(B) कथा
(C) शांति
(D) भ्रांति
उत्तर-
(A) व्यथा

आत्मकथ्य पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।
[पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-मधुप = भौंरा (मन रूपी भौंरा)। घनी = अधिक। अनंत-नीलिमा = अंतहीन विस्तार। असंख्य = जिसकी गिनती न की जा सके। जीवन-इतिहास = जीवन की कहानी। व्यंग्य-मलिन = खराब ढंग से निंदा करना। उपहास = मजाक। दुर्बलता = कमजोरी। गागर = घड़ा। रीती = खाली।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) ‘मधुप’ किसे कहा है और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

(ङ) पत्तियों का मुरझाना किसे स्पष्ट करता है?
(च) ‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ से क्या तात्पर्य है?
(छ) कवि अपनी बीती दुर्बलताओं को क्यों नहीं बताना चाहता है?
(ज) कवि की कहानी जानकर उनको कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वालों को क्या लगा?
(झ) ‘गागर रीती’ से क्या अभिप्राय है?
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य/काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से उद्धृत इस काव्यांश में बताया गया है कि उनके जीवन में आत्मकथा में लिखने योग्य कुछ विशेष नहीं है। उनका मत है कि उनके जीवन में ऐसी सुंदर घटनाएँ या उपलब्धियाँ नहीं हैं जिन्हें सुनकर या पढ़कर पाठक सुख या आनंद प्राप्त कर सकें।

(ग) कवि कहता है कि उसका मन रूपी यह भ्रमर गुन-गुनाकर कह रहा है कि अपनी ऐसी कौन-सी कहानी है जिसे लिखकर दूसरों को बताया जाए। मेरे जीवन की अनेक पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं अर्थात् मैंने जीवन में अनेक दुःखद घटनाएँ देखी हैं, जीवन में अनेक निराशाओं का सामना किया है। मैंने अपने सपनों को मरते देखा है। इस विशाल एवं गहन नीले आकाश पर असंख्य लोगों ने अपने जीवन के इतिहास लिखे हैं। उन्हें पाकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वे स्वयं अपनी बुराइयाँ करके अपने ही जीवन पर कटाक्ष कर रहे हों और अपना ही मजाक उड़ा रहे हों। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं कि ऐसा जान लेने पर भी तुम मुझसे चाहते हो कि मैं अपने जीवन कि कमजोरियाँ बता दूं। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें मेरे जीवन की खाली गागर देखकर सुख मिलेगा। कवि के कहने का भाव है कि मेरे जीवन में दुःखों व अभावों के अतिरिक्त कुछ नहीं है जिसे मैं दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

(घ) कवि ने मधुप मन को कहा है। ‘मधुप’ का यहाँ प्रतीकात्मक प्रयोग है। मन भौरे के समान इधर-उधर उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है।

(ङ) पत्तियों का मुरझाना मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के दुःखों व संकटों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते हैं।

(च) अनंत-नीलिमा जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में न जाने कौन-कौन से भाव अनुभव करता रहता है। वे भाव सुख व दुःख दोनों से संबंधित होते हैं। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न विभिन्न विचार हैं जो विभिन्न घटनाओं के घटित होने के कारण बनते हैं।

(छ) कवि जानता है कि सच्चा आत्मकथा लेखक अपने जीवन की घटनाओं का सच्चा उल्लेख करता है। जीवन में झाँकने पर कवि को अपनी कमजोरियाँ-ही-कमजोरियाँ दिखाई देती हैं। इसलिए कवि जान-बूझकर अपनी दुर्बलताओं को सबके सामने व्यक्त करके अपना मज़ाक नहीं करवाना चाहता। इसलिए कवि अपनी दुर्बलताओं को व्यक्त नहीं करना चाहता।

(ज) कवि की कहानी जानकर कवि को उनकी कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वाले लोगों को लगा कि कवि अपनी आत्मकथा में कुछ ऐसा लिखेगा जिसे पढ़कर उन्हें सुख या आनंद प्राप्त होगा, किंतु कवि ने ऐसा कुछ नहीं लिखा जिसे पढ़कर उन्हें सुख की अनुभूति हुई हो।

(झ) ‘गागर रीती’ से तात्पर्य है कि कवि का जीवन सुख और सुविधाओं से रहित है। उसमें अभाव-ही-अभाव है। अतः ‘गागर रीति’ का प्रयोग प्रतीकात्मक और लाक्षणिक है।

(ञ) कवि ने इस पद्यांश में अत्यंत मार्मिक शब्दों में अपने जीवन के दुःखों, पीड़ाओं और अभावों की व्यथा भरी कहानी की ओर संकेत किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि किसी की भी दुःख भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं हो सकती। कवि ने जीवन के सत्य को सरल एवं सच्चे मन से कहा है।

(ट)

  • इन पंक्तियों में कवि ने अत्यंत कलात्मकतापूर्ण अपने मन के भावों को अभिव्यंजित किया है।
  • लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
  • तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, प्रश्न और रूपक अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
  • करुण रस है।

(ठ) जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिन्दी भाषा का प्रयोग किया गया है। प्रसाद जी छायावादी कवि हैं। उन्होंने भाषा को रोचक एवं आकर्षक बनाने हेतु तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी सार्थक प्रयोग किया है। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य, प्रसाद आदि तीनों गुण हैं। अनेक स्थलों पर चित्रात्मक भाषा का भी प्रयोग किया गया है। उनकी छंद-योजना, स्वर और लय की मिठास से परिपूर्ण है। भाषा भाव को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है।

[2] किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की। [पृष्ठ 28].

शब्दार्थ-विडंबना = उपहास का विषय, निराशा। प्रवंचना = धोखा। उज्ज्वल = पवित्र, सुख से भरी हुई।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश के प्रसंग को स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) प्रस्तुत काठ्यांश के भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(ङ) कवि किसका रस लेने की बात कहता है?
(च) कवि ने ‘खाली करने वाले’ किसे और क्यों कहा है?
(छ) कवि ने किस बात को विडंबना कहा है और क्यों?
(ज) कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(झ) कवि किन उज्ज्वल गाथाओं की बात कहता है?
(ञ) खिलखिलाकर हँसने वाली बातों का क्या अभिप्राय है?
(ट) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। . कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वे अपनी आत्मकथा में लिखें और पाठक उसे पढ़कर सुख या प्रसन्नता अनुभव कर सकें। कवि ने अति यथार्थ रूप में अपने सरल व सहज विचारों को व्यक्त किया है।

(ग) कवि ने प्रस्तुत पद्यावतरण में बताया है कि जो लोग उनके जीवन की दुःखपूर्ण कथा को सुनना चाहते थे, वे यह न समझने लगें कि वही उनके जीवन रूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब पहले अपने-आपको समझें। वे उनके भावों रूपी रस को लेकर अपने-आपको भरने वाले थे। हे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का ही विषय था कि मैं उन पर व्यंग्य । कर रहा था, उनकी हँसी उड़ा रहा था।

कवि पुनः कहता है कि वह आत्मकथा के नाम पर अपनी व औरों की बातें जग-जाहिर नहीं करना चाहता। उसके जीवन में तो पूर्णतः निराशा और पीड़ा की कालिमा ही नहीं है अपितु उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी यादें भी हैं। उन मधुर एवं उज्ज्वल गाथाओं का वर्णन कैसे करूँ? वह अपने जीवन की मधुर एवं उज्ज्वल स्मृतियों में सबको भागीदार नहीं बनाना चाहता, वह उन्हें सबके सामने क्यों अभिव्यक्त करे। जब कभी वह अपनों के साथ खिल-खिलाकर हँसा था अथवा मधुर-मधुर बातों के सुख में डूबा हुआ था और उसका हृदय आनंद से भर उठा था। उन मीठी स्मृतियों को वह दूसरों को क्यों बताए।

(घ) इस पद्यांश में कवि ने स्पष्ट किया है कि आत्मकथा में जीवन की घटनाओं का सच्चा एवं यथार्थ वर्णन किया जाता है। उसके जीवन में सुख कम और दुःख अधिक हैं। वह अपने और दूसरों के दुःखों को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। इसी प्रकार कवि अपनी और दूसरों की भूलों को व्यक्त करके हँसी का पात्र नहीं बनना चाहता।

(ङ) कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है। उसके साहित्यिक मित्र ही उसके रस को लेने की बात करते हैं। कवि ने बताया है कि उसके आस-पास भँवरे की भाँति मंडराने वाले मित्र लोग उनके काव्य रस को चूसकर अपने-आपको उन्नत बनाना चाहते हैं।

(च) कवि ने अपने उन मित्रों को ही ‘खाली करने वाले’ बताया है जिन्होंने उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहा था। कवि के निजी अनुभव बहुत कटु रहे हैं। हो सकता है कि उनके मित्रों ने ही उनकी खुशी में बाधा डाली हो। इस प्रकार उनके जीवन को खुशियों से वंचित कर दिया हो।

(छ) कवि अपने जीवन में दुःखों व कष्टों के लिए किसी को दोष नहीं देना चाहता। वह स्वभाव से अत्यंत सरल था। यदि वह अपनी सरलता को कष्टों का कारण मानता है तो यह उसके लिए विडंबना ही होगी। कवि अपनी सरलता के कारण प्रसन्न है यदि उसे अपनी सरलता के कारण कष्ट या दुःख सहन करने पड़ते हैं तो वह इसका बुरा नहीं मानता।

(ज) कवि आत्मकथा इसलिए नहीं लिखना चाहता क्योंकि आत्मकथा में जीवन संबंधी घटनाओं, विचारों आदि का सच्चाई पूर्ण वर्णन करना पड़ता है। इसलिए कवि अपने जीवन की सरलता को लोगों की हँसी का कारण नहीं बनाना चाहता। वह अपनी भूलों और दूसरों के छलकपट को जग-ज़ाहिर नहीं करना चाहता। कवि अपने प्रेम के सुखपूर्ण क्षणों को भी दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। ये ऐसी बातें है जिनके कारण कवि अपनी आत्मकथा लिखकर इन्हें लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

(झ) कवि ने अपने जीवन के प्रेम के क्षणों और मधुर स्मृतियों को जीवन की उज्ज्वल गाथाओं की संज्ञा दी है। प्रेम के वे क्षण जो कवि ने खिल-खिलाती हुई रातों में बिताए थे वे आज उसे अपने जीवन की उज्ज्वल गाथाएँ-सी प्रतीत होती हैं।

(ञ) खिल-खिलाकर हँसने वाली बातों का अभिप्राय है-प्रेम के अत्यंत मधुर क्षण जो उन्होंने अपनी प्रिया के साथ बिताए थे।

(ट)

  • प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपने जीवन की उन बातों को अत्यंत विनम्रता एवं यथार्थपूर्वक व्यक्त किया है जो उनके व्यक्तिगत प्रेम व सुख से संबंधित थीं। साथ ही उन लोगों के विषय में भी लिखा है जो उनसे आत्मकथा लिखवाना चाहते थे।
  • कवि ने अपनी सरलता का मानवीकरण किया है जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया है।
  • तत्सम शब्दों का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • संकेत-शैली का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  • स्वर मैत्री के कारण भाषा लयात्मक बनी हुई है।

(ठ) भाषा प्रसादगुण संपन्न है। उसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है। भाषा पूर्णतः भावानुकूल है। भाषा में भावों की अभिव्यक्ति करने की पूर्ण क्षमता है।

[3] मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? [पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-स्वप्न = सपना। आलिंगन में = बाँहों में। मुसक्या = मुस्कराकर, हँसकर। अरुण-कपोल = लाल गाल। मतवाली = हँसी से भरी हुई। अनुरागिनी = प्रेम में लीन। उषा = प्रातः। निज = अपना। सुहाग = सुगंध, इत्र। मधुमाया = मधुर मोहकता। पाथेय = रास्ते का भोजन। पथिक = यात्री। पंथा = रास्ता। सीवन = सिया हुआ। उधेड़कर = फाड़कर। कंथा = गुदड़ी, अंतर्मन।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
(ङ) कौन और कैसे भाग गया?
(च) कवि की प्रेमिका के कपोल कैसे थे?

(छ) कवि ने किसको पाथेय माना है?
(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का क्या तात्पर्य है?
(झ) कवि ने भोर को कैसा बताया है?
(ञ) ‘कथा’ से क्या अभिप्राय है?
(ट) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। . . कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धत है। इस कविता के रचयिता छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने अपने जीवन की दुःखभरी कहानी को कभी किसी को न बताने का निश्चय किया था। उन्हें ऐसा लगता था कि उनके जीवन में कुछ भी सुखद नहीं था जिसे सुनकर या पढ़कर कोई सुखी हो सके। उसके जीवन में कष्ट और अभाव ही थे जिन्हें वह किसी को बताना नहीं चाहता था।

(ग) कवि ने बताया है कि उसको जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। उसने स्वप्न में भी जिस सुख को देखा था, नींद से जागने पर उसे वह सुख प्राप्त नहीं हो सका। वह सुख देने वाला स्वप्न भी उसकी बाँहों में आते-आते मुस्कराकर भाग गया अर्थात् कवि को कभी स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं हुआ। सपने में जो सुख का आधार बना था वह अपार सुंदर और मोहक था। उसकी लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हुई थी। कवि के कहने का तात्पर्य है कि. उसकी गालों में प्रातःकालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी डगर पर चलते हुए, थके हुए कवि रूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही सहारा बनी। उसकी यादें ही थके हुए पथिक की थकान कम करने में सहायक बनी थीं। कवि नहीं चाहता कि उसके जीवन की मधुर यादों के विषय में कोई दूसरा जाने। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित कर रहे थे कि क्या आप मेरी अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उसमें छिपे हुए उसके रहस्यों को देखना चाहते हो? कवि के कहने का तात्पर्य है कि वह अपने जीवन के रहस्यों को अपने तक ही सीमित रखना चाहता है उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

(घ) कवि उस स्वप्न को देखकर जाग गया जिसके सुख को वह प्राप्त नहीं कर सका।

(ङ) वह कवि की पत्नी अथवा प्रेमिका हो सकती है जो कवि के आलिंगन में आते-आते उसे छोड़कर चली गई। कवि ने तीन बार विवाह किया। एक के बाद एक पत्नी चल बसी। कवि उन्हीं पत्नियों को याद कर रहा है जिन्हें वह ठीक से अपना भी न सका कि वे सदा के लिए उससे दूर चली गईं। .

(च) कवि की प्रेमिका के कपोल ऐसे लाल-लाल व मतवाले थे कि स्वयं ऊषा की लालिमा भी उनसे लालिमा उधार लेती थी।

(छ) कवि ने अपने जीवन के उन सुखद क्षणों को पाथेय माना है जो स्वप्न की भाँति उसके जीवन में आए और क्षण भर में ही मिट गए।

(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का तात्पर्य जीवन की परतों को खोलना है जिन पर समय के साथ गर्द जम चुकी थी, जिनमें व्यथा के अतिरिक्त और कुछ बहुत कम था।

(झ) कवि ने भोर को प्रेम एवं लालिमा से युक्त बताया है।

(ञ) ‘कथा’ का शाब्दिक अर्थ गुदड़ी है जिसे कवि ने अपने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है।

(ट) कवि ने इस पद्यांश में बताया है कि उसका जीवन सदा दुःखों से घिरा रहा है। कवि के हृदय में निश्चय ही कोई टीस छिपी हुई है जिसको वह प्रकट नहीं करना चाहता। कवि ने अपने जीवन में सुख को स्वप्न की भाँति बताया है। सुख की उन स्मृतियों को ही अपने जीवन रूपी पथ में सहारा बताया है। कवि ने इन सब भावों को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यंजित किया है।

(ठ)

  • कवि ने अपने जीवन के गोपनीय सुखद क्षणों का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है।
  • संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • प्रतीकों एवं बिंबों का प्रयोग किया गया है।
  • अनुप्रास, मानवीकरण, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • वियोग शृंगार है।

(ड) प्रस्तुत काव्य में कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है। विभिन्न प्राकृतिक उपमानों के प्रयोग से भाषा एवं वर्ण्य विषय में रोचकता का विकास हुआ है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

[4] छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा। [पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-कथाएँ = कहानियाँ । मौन = चुप । भोली आत्मकथा = सीधी-सादी जीवन कहानी। मौन व्यथा = वह पीड़ा जिसको कभी व्यक्त नहीं किया गया।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
(ङ) कवि के जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ क्यों नहीं थीं?
(च) कवि को क्या अच्छा लगता था?
(छ) कवि ने अपनी जीवन-कहानी को कैसा बताया है?
(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा किस स्थिति में थी?
(झ) इस कवितांश में निहित भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) इस पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में कवि ने कहा है कि उसके जीवन में दुःख का पलड़ा भारी रहा है। कवि अपने जीवन के सुख की स्मृतियों को आधार बनाकर जीना चाहता है। किंतु कवि अपनी आत्मकथा लिखकर अपने दुःख रूपी जख्मों को पुनः हरा नहीं करना चाहता।

(ग) कवि अपने उन मित्रों, जो उससे आत्मकथा लिखने का आग्रह करते थे, को संबोधित करता हुआ कहता है कि यदि मेरे जीवन की परतों को खोलकर देखोगे तो तुम्हें उसमें कोई बड़ी कहानी नहीं मिलेगी। मेरा छोटा-सा जीवन है। मेरे लिए यही उचित है कि मैं औरों की कथाएँ सुनता रहूँ तथा अपनी व्यथा न ही कहूँ तो अच्छा है। मेरी आत्मकथा सुनकर भला तुम्हें क्या मिलेगा। मेरी कथा सुनने का अभी समय नहीं है। मेरी मौन व्यथा अभी मेरे मन में सोई पड़ी है। इसलिए उसे न ही जगाओ तो अच्छा है।

(घ) कवि ने अपने जीवन को अत्यंत छोटा माना है। इसमें कोई बड़ी कथा नहीं है।

(ङ) कवि का जीवन अत्यंत लघु जीवन है। कवि स्वभाव से अत्यंत विनम्र तथा साहित्य-सेवी है। इसलिए सरल, सहज एवं विनम्र होने के कारण उनके जीवन में बड़ी-बड़ी व्यथाएँ या बड़ी कथाएँ बनाने वाली घटनाएँ भी नहीं घटीं।

(च) कवि को मौन रहकर दूसरों की आत्म-कथाएँ अथवा कथाएँ सुनना अच्छा लगता है।

(छ) कवि ने अपने जीवन की कथा को अत्यंत सरल, सीधी-सादी और भोली माना है।

(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा सुसुप्त (सोई हुई) रूप में थी।

(झ) कवि अपनी जीवन कथा को दूसरों के सामने व्यक्त करने योग्य नहीं समझता क्योंकि उनके विचार से उनके जीवन में ऐसा कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं जो दूसरों को अच्छा लगे। इसलिए कवि चाहता है कि मौन रहकर दूसरों की जीवनकथा सुनना ही उसके लिए उचित है। उसके जीवन में तो व्यथा-ही-व्यथा है। अतः उन्हें कवि अपने मन में छुपाए रखना चाहता है। इन भावों को कवि ने अत्यंत कलात्मक ढंग से व्यक्त किया है।.

(ञ)

  • कवि ने अपने मन के गहन भावों को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है।
  • कवि ने तत्सम प्रधान शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया है।
  • शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • स्वर मैत्री के सार्थक एवं सफल प्रयोग के कारण लयात्मकता बनी हुई है।
  • प्रश्न, रूपक, मानवीकरण, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ट) इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है इसलिए कहीं-कहीं भाषा में जटिलता का समावेश हो गया है। स्वर मैत्री के कारण भाषा में सौंदर्य-वृद्धि हुई है। चित्रात्मक भाषा के प्रयोग से विषय रोचक बन पड़ा है।

आत्मकथ्य Summary in Hindi

आत्मकथ्य कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय छायावाद के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रतिष्ठित वैश्य कुल में सन् 1889 में हुआ था। उनका कुल ‘सुँघनी साहू’ के नाम से विख्यात था। उनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। किशोरावस्था में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। यक्ष्मा रोग का शिकार होकर सन् 1937 में वे 48 वर्ष की आयु में ही इस संसार से विदा हो गए। प्रसाद जी ने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे भारतीय साहित्य और संस्कृति के पुजारी थे तथा राष्ट्र-प्रेम ‘ की भावना उनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। शैव दर्शन से प्रभावित होने के कारण वे नियतिवादी भी थे।

2. प्रमुख रचनाएँ-जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं(क) काव्य-ग्रंथ ‘लहर’, ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘कानन कुसुम’, ‘प्रेम पथिक’, ‘महाराणा का महत्त्व’, ‘करुणालय’, ‘चित्राधार’, ‘कामायनी’ । (ख) उपन्यास-‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (अपूर्ण)। (ग) कहानी-संग्रह ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ और ‘इंद्रजाल’ (कुल 69 कहानियाँ)। (घ) निबंध-संग्रह ‘काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
(ङ) नाटक-‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘अजातशत्रु’, ‘एक घुट’, ‘कल्याणी’, ‘परिचय’, ‘विशाख’, ‘कामना’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’ .. और ‘चंद्रगुप्त’।

3. काव्यगत विशेषताएँ-प्रसाद जी एक प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। वे छायावाद के प्रवर्तक तथा सर्वश्रेष्ठ कवि थे। अतीत के प्रति उनका मोह था, लेकिन वर्तमान के प्रति भी वे जागरूक थे। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं
(i)प्रेम तथा सौंदर्य का वर्णन-प्रसाद जी के काव्य का मुख्य तत्त्व प्रेमानुभूति एवं सौंदर्यानुभूति है। प्रेमानुभूति की दिशा मानव, प्रकृति और ईश्वर तक फैली हुई है। इसी प्रकार से प्रसाद जी ने मानव, प्रकृति और ईश्वर तीनों के सौंदर्य का आकर्षक चित्रण किया है। उनकी सौंदर्य-चेतना परिष्कृत, उदात्त एवं सूक्ष्म है।

(ii) वेदना की अभिव्यक्ति–प्रसाद जी के काव्य में ऐसे अनेक स्थल हैं जो पाठक के हृदय को छू लेते हैं। उनका ‘आँसू’ काव्य कवि के हृदय की वेदना को व्यक्त करता है। इसी प्रकार से ‘लहर’ काव्य-ग्रंथ की ‘प्रलय की छाया’ कविता भी मार्मिक है। ‘कामायनी’ में भी इस प्रकार के स्थलों की कमी नहीं है जो पाठक के हृदय को आत्मविभोर न कर देते हों।

(iii) प्रकृति-वर्णन-प्रसाद जी के काव्य में अनेक स्थलों पर प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है। ‘लहर’ की अनेक कविताएँ प्रकृति-वर्णन से संबंधित हैं। प्राकृतिक पदार्थों पर मानवीय भावों का आरोप करना उनके प्रकृति-चित्रण की अनूठी विशेषता है; जैसे-
बीती विभावरी जाग री,
अंबर पनघट में डुबो रही,
तारा घट उषा-नागरी।
छायावादी काव्य होने के नाते यहाँ पर प्रकृति का मानवीकरण देखने योग्य है। उषा को नायिका के रूप में वर्णित किए जाने से यहाँ प्रकृति का मानवीकरण हुआ है। उन्होंने प्रकृति-वर्णन के अनेक रूपों में से आलंबन, उद्दीपन, दूती, उपदेशिका, रहस्यात्मक, पृष्ठभूमि, मानवीकरण आदि रूपों को चुना है।

(iv) रहस्य भावना-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद सर्वात्मवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं। वे अज्ञात सत्ता के प्रेम-निरूपण में अधिक तल्लीन रहे हैं। उनकी इस प्रवृत्ति को रहस्यवाद की संज्ञा दी जाती है। कवि बार-बार प्रश्न करता है कि वह अज्ञात सत्ता कौन है और क्या है? प्रसाद जी के काव्य में रहस्य-भावना का सुष्ठु रूप देखने को मिलता है। रहस्यसाधक कवि प्रकृति के अनंत सौंदर्य को देखकर उस विराट् सत्ता के प्रति जिज्ञासा प्रकट करता है। तदंतर अपनी प्रिया का अधिकाधिक परिचय प्राप्त करने के लिए आतुरता व्यक्त करता है, उसके विरह में तड़पता है और प्रियतमा के परिचय की अनुभूति का ‘गूंगे के गुड़’ की भाँति आस्वादन करता है। प्रसाद जी के काव्य में रहस्य भावना का रूप निम्नलिखित उदाहरण में देखा जा सकता है
हे अनंत रमणीय! कौन हो तुम? यह मैं कैसे कह सकता। कैसे हो, क्या हो? इसका तो
भार विचार न सह सकता ॥

(v) नारी भावना-छायावादी कवि होने के कारण प्रसाद जी ने नारी को अशरीरी सौंदर्य प्रदान करके उसे लोक की मानवी न बनाकर परलोक की ऐसी काल्पनिक देवी बना दिया जिसमें प्रेम, सौंदर्य, यौवन और उच्च भावनाएँ हैं, लेकिन ऐसे गुण मृत्युलोक की नारी में देखने को नहीं मिलते। ‘कामायनी’ की श्रद्धा इसी प्रकार की नारी है। वह काल्पनिक जगत् की अशरीरी सौंदर्यसंपन्न अलौकिक देवी है जो नित्य छवि से दीप्त है, विश्व की करुण-कामना मूर्ति है और कानन-कुसुम अंचल में मंद पवन से प्रेरित सौरभ की साकार प्रतिमा है। प्रसाद जी की यह नारी भावना छायावादी काव्य के सर्वथा अनुकूल है लेकिन यह नारी भावना आधुनिक युगबोध से मेल नहीं खाती।

(vi) नवीन जीवन-दर्शन-कविवर प्रसाद शैव दर्शन के अनुयायी थे। अतः उनके दार्शनिक विचारों पर शैव दर्शन का स्पष्ट प्रभाव है। वे कामायनी के माध्यम से समरसता और आनंदवाद की स्थापना करना चाहते हैं। उनकी रचनाओं, विशेषकर, ‘कामायनी’ में दार्शनिकता और कवित्व का सुंदर समन्वय हुआ है। वे समरसताजन्य आनंदवाद को ही जीवन का परम लक्ष्य स्वीकार करते हैं। ‘कामायनी’ की यात्रा ‘चिंता’ सर्ग से प्रारंभ होकर ‘आनंद’ सर्ग में ही समाप्त होती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

(vii) राष्ट्रीय भावना-प्रसाद सांस्कृतिक और दार्शनिक चेतना के कवि हैं। यह सांस्कृतिक चेतना उनके राष्ट्रीय भावों की प्रेरक है। उनके नाटकों में कवि का देशानुराग अथवा राष्ट्र-प्रेम अधिक मुखरित हुआ है। उनकी काव्य-रचनाओं में यह राष्ट्र-प्रेम संस्कृति प्रेम के रूप में संकेतित हुआ है। ।
कवि ने अतीत के संदर्भ में वर्तमान का भी चित्रण किया है। ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’ आदि नाटकों में भी इसी दृष्टिकोण को व्यक्त किया गया है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का निम्नलिखित गीत कवि की राष्ट्रीय भावना को स्पष्ट करता है-

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरु शिखा मनोहर,
छिटका जीवन-हरियाली पर मंगल कुमकुम सारा।

(viii) मानवतावादी दृष्टिकोण-मानवतावाद छायावादी कवियों की उल्लेखनीय प्रवृत्ति है। अनेक स्थलों पर कवि राष्ट्रीयता की भाव-भूमि से ऊपर उठकर मानव-कल्याण की चर्चा करता हुआ दिखाई देता है। प्रसाद जी के काव्य में शाश्वत मानवीय भावों और मानवतावाद को प्रचुर बल मिला है। ‘कामायनी’ में कवि ने मनु, श्रद्धा और इड़ा के प्रतीकों के माध्यम से मानवता के विकास की कहानी कही है और इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान के समन्वय पर बल दिया है। समष्टि के लिए व्यक्ति का उत्सर्ग ‘कामायनी’ का संदेश है। श्रद्धा इस बात पर बल देती हुई कहती है

औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ।

‘आनंद’ सर्ग में कवि ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की चर्चा करके विश्व-बंधुत्व की भावना का संदेश दिया है। कवि बार-बार मानव-प्रेम पर बल देता है और मानवतावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है।

4. भाषा-शैली–प्रसाद जी ने प्रबंध और गीति इन दो काव्य-रूपों को ही अपनाया है। प्रेम पथिक’ और ‘महाराणा का महत्त्व’ दोनों उनकी प्रबंधात्मक रचनाएँ हैं। ‘कामायनी’ उनका प्रसिद्ध महाकाव्य है। ‘लहर’, ‘झरना’ और ‘आँसू’ गीतिकाव्य हैं। उनके काव्य में भावात्मकता, संगीतात्मकता, आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, कोमलकांत पदावली आदि सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। प्रसाद जी की भाषा साहित्यिक हिंदी है। फिर भी इसे संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान हिंदी भाषा कहना अधिक उचित होगा। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य और प्रसाद तीनों गुण विद्यमान हैं। उनकी भाषा प्रवाहपूर्ण, प्रांजल, संगीतात्मक और भावानुकूल है। उनकी भाषा की प्रथम विशेषता है लाक्षणिकता। लाक्षणिक प्रयोगों में कवि ने विरोधाभास, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय, प्रतीक आदि उपकरणों के प्रयोग से भाषा में सौंदर्य उत्पन्न कर दिया है। उनकी भाषा की दूसरी विशेषता है- प्रतीकात्मकता। कवि ने प्रकृति के विभिन्न उपादानों को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया है। उनके सभी प्रतीक प्रभावपूर्ण हैं। कवि ने कुछ स्थलों पर चित्रात्मकता और ध्वन्यात्मकता का भी सफल प्रयोग किया है। .

प्रसाद जी की अलंकार योजना उच्चकोटि की है। शब्दालंकारों की अपेक्षा अर्थालंकारों में उनकी दृष्टि अधिक रमी है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, अर्थान्तरन्यास आदि प्रसाद जी के प्रिय अलंकार हैं। प्रसाद जी की छंद योजना स्वर और लय की मिठास से अणुप्राणित है। कुछ स्थलों पर कवि ने अतुकांत और मुक्तक छंदों का भी प्रयोग किया है। इस प्रकार भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से उनका काव्य उच्चकोटि का है।

आत्मकथ्य कविता का सार

प्रश्न-
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की महत्त्वपूर्ण छायावादी कविता है। यह सन् 1932 में ‘हंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कवि के मित्रों ने उन्हें आत्मकथा लिखने के लिए आग्रह किया। उसी आग्रह के उत्तर में प्रसाद जी ने यह कविता लिखी थी।

इस कविता में कवि ने बताया है कि यह संपूर्ण संसार नश्वर है। हर जीवन एक दिन मुरझाई पत्ती-सा झड़कर गिर जाता है। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवनों के इतिहास रचे जाते हैं, किंतु ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर किसी को सुख मिला है। मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ तथा अभावग्रस्त है। इस दुनिया में मानव स्वार्थ से पूर्ण जीवन जीते हैं। इस संसार में लोग दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी जीवन जीने की इच्छा रखते हैं। यही जीवन की विडंबना है।

कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी सुनाने का इच्छुक नहीं है। कवि के पास दूसरों को सुनाने के लिए जीवन की मीठी व मधुर यादें भी नहीं हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मधुर बातें दिखाई नहीं देतीं। उसके जीवन में अधूरे सुख थे जो जीवन के आधे मार्ग में ही समाप्त हो गए। उसका जीवन तो थके हुए यात्री के समान है जिसमें कहीं भी सुख नहीं है। उनके जीवन में जो दुःख से पूर्ण यादें हैं, उन्हें भला कोई क्यों सुनना चाहेगा। उसके इस लघु जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ भी नहीं हैं जिन्हें वह दूसरों को सुना सके। अतः कवि इस आत्मकथ्य के नाम पर चुप रहना ही उचित समझता है। उसे अपनी आत्मकथा अत्यंत सरल एवं साधारण प्रतीत होती है। उसके हृदय की पीड़ाएँ मौन रूप में सोई हुई हैं जिन्हें वह जगाना उचित नहीं समझता। कवि नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने। वह अपने जीवन के कष्टों को स्वयं ही जीना चाहता है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

HBSE 10th Class Hindi उत्साह और अट नहीं रही Textbook Questions and Answers

1. उत्साह

उत्साह और अट नहीं रही प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर-
निश्चय ही बादल अपने जल से इस पृथ्वी के प्राणियों की प्यास बुझाता है और उन्हें प्रसन्न करता है। यही बादल विध्वंस और विप्लव भी मचा सकता है। कवि बादल को गरजने के लिए इसलिए कहता है ताकि सोई हुई आत्माएँ जाग जाएँ तथा उनके मन में क्रांति का संचार हो सके। क्रांति व परिवर्तन से ही नए युग का निर्माण हो सकता है। इसलिए कवि बादल को बरसने की अपेक्षा ‘गरजने’ के लिए कहता है।

उत्साह अट नहीं रही है प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता एक आह्वान गीत है जिसमें कवि ने उत्साहपूर्वक विधि से प्रगतिवादी स्वर को मुखरित किया है। कवि बादल से गरजने के लिए कहता है। ‘गरजन’ बादल की शक्ति को व्यक्त करता है। इसलिए कवि बादल का गरज-गरजकर नई प्रेरणा देने के लिए आह्वान करता है। अतः कवि ने बादल के इस विशेष गुण के आधार पर इस कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रखा है जो अत्यंत उचित एवं सार्थक है।

Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
कविता में बादल कवि की कल्पना शक्ति और क्रांति की भावना की ओर संकेत करता है। बादल एक ओर पीड़ित लोगों की आशाओं और कामनाओं को पूरा करने वाला है तो दूसरी ओर जन-जन के मन में उत्साह और संघर्ष के भाव भरने वाला भी है।

Chapter 5 Hindi Class 10 Kshitij उत्साह और अट नहीं रही प्रश्न 4.
शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर-
कविता में निम्नलिखित शब्दों में नाद-सौंदर्य मौजूद है
घेर घेर घोर गगन।
ललित ललित।
काले धुंघराले।
बाल कल्पना के-से पाले।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र इसे स्वयं करें।

पाठेतर सक्रियता:

बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से बादल संबंधी कविताओं का संकलन करें।

2. अट नहीं रही है

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर-
अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाने की धारणा कविता की निम्नांकित पंक्तियों से व्यक्त होती है
आमा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
x x x x
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,

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प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
उत्तर-
फागुन मास का प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत आकर्षक है। चारों ओर हरियाली छा गई है। वृक्ष हरे-भरे पत्तों और रंग-बिरंगे फूलों से लद गए हैं। पूरा वातावरण मधुर एवं सुगंधित बन गया है। फागुन का यह सौंदर्य प्रकृति में समा नहीं रहा है अर्थात् पूरा वातावरण सौंदर्य से परिपूर्ण है। इसलिए कवि फागुन मास के ऐसे अद्भुत सौंदर्य में पूर्णतः तल्लीन हो गया है और वह अपनी आँख ऐसे सौंदर्य से हटाना नहीं चाहता।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है? अथवा प्रस्तुत कविता के आधार पर प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कवि ने प्रकृति की शोभा को वैभवशाली बताया है क्योंकि उसमें सुंदरता रूपी विविध प्रकार की निधियाँ समाहित हैं। कवि ने बताया है कि फागुन मास में वन, उपवन, बाग, बगीचे आदि सभी स्थानों पर, पेड़ों पर हरे-भरे पत्ते लद गए हैं तथा उन पर तरह-तरह के फूल भी खिल गए हैं जिससे संपूर्ण वातावरण आकर्षक बन गया है। चारों ओर फूलों की सुगंध व्याप्त है। फूलों से लदे हुए पेड़ ऐसे लग रहे हैं मानों उन्होंने अपने गले में सुगंधित फूलों से बनी मालाएँ पहन ली हों।

प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
उत्तर-
फागुन का महीना बसंत ऋतु में आता है। इस मास के आने पर सभी पेड़-पौधों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनके स्थान पर नए पत्ते उग आते हैं। सर्दी की ऋतु समाप्त हो जाती है। मौसम अत्यंत आकर्षक बन जाता है। खेतों में दूर-दूर तक फैली । हुई पीली-पीली सरसों ऐसी लगती है कि मानों धरती पीली चादर ओढ़कर सज गई हो। सभी बाग-बगीचों में खड़े पेड़ भी फूलों से लद जाते हैं। वातावरण पूर्णतः सुगंधित एवं सुहावना बन जाता है पक्षियों की मधुर ध्वनियाँ सुनाई देने लगती हैं। मानव-जीवन में भी स्फूर्ति का संचार होने लगता है। सभी प्राणियों में नया उत्साह भर जाता है। इसलिए फागुन मास अन्य ऋतुओं से भिन्न होता है।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
निराला जी छायावाद के प्रमुख कवि थे। उनकी इन कविताओं में छायावादी काव्य की सभी प्रमुख विशेषताएँ एक साथ देखने को मिलती हैं। उनकी भाषा में मधुर शब्दावली की योजना, संगीतात्मकता, लाक्षणिकता, चित्रात्मकता तथा प्रकृति का मानवीकरण बेजोड़ है। भावपक्ष की भाँति ही उनके काव्य का कलापक्ष भी अत्यंत समृद्ध है। शिल्प के क्षेत्र में उनका विद्रोही रूप भी देखने को मिलता है। उन्होंने छंदमुक्त काव्य-शैली का प्रयोग किया है। अतः स्पष्ट है किं विषय-वस्तु के साथ-साथ निराला जी ने काव्य के शिल्प पक्ष में नवीनता का समावेश किया है। बादल निराला जी को बहुत प्रिय रहा है इसलिए नहीं कि वह सुंदर है बल्कि इसलिए भी कि वह शक्ति का प्रतीक है। ‘उत्साह’ कविता में ललित कल्पना और क्रांति का स्वर समांतर बना हुआ है। ‘अट नहीं रहा है। शीर्षक कविता में देशज शब्दों का प्रयोग भी देखते ही बनता है। निराला जी लघु-लघु शब्दों का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि भाषा की प्रवाहमयता देखते ही बनती है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

पाठेतर सक्रियता

फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर-
यह परीक्षोपयोगी नहीं है।
इस कविता में भी निराला फागुन के सौंदर्य में डूब गए हैं। उनमें फागुन की आभा रच गई है, ऐसी आभा जिसे न शब्दों से अलग किया जा सकता है, न फागुन से।
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर,
सभी बंधन छूटे हैं।
फागुन के रंग राग,
बाग-वन फाग मचा है,
भर गये मोती के झाग,
जनों के मन लूटे हैं। ,
माथे अबीर से लाल,
गाल सेंदुर के देखे,
आँखें हुई हैं गुलाल,
गेरू के ढेले कूटे हैं।

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HBSE 10th Class Hindi उत्साह और अट नहीं रही Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘उत्साह’ कविता के आधार पर बादल की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में कवि ने बादल के मंगलमय रूप को चित्रित किया है। साथ ही बादल के सौंदर्य को भी उजागर किया है। बादल को कवि ने ‘ललित ललित काले बादल’ कहकर उसकी सुंदरता की ओर संकेत किया है। बादल को ‘बाल कल्पना के-से पाले’ बताकर बादल की कोमलता एवं माधुर्य पर प्रकाश डाला है। बादल को बिजली की सुंदरता को हृदय में धारण करने वाला, हृदय में वज्र छुपाने वाला बताकर उसके शक्तिशाली रूप को उजागर किया है। ‘तप्त धरा को जल से फिर शीतल कर दो’ के माध्यम से बादल के मंगलमय रूप को प्रदर्शित किया है। इसी प्रकार ‘उत्साह’ कविता में बादल को नव-जीवन देने वाला बताया गया। है, क्योंकि उसके जल से ही प्राणी मात्र के जीवन में नया उत्साह व सुख मिलता है।

प्रश्न 2.
‘उत्साह’ नामक कविता में ‘नवजीवन वाले’ किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में ‘नवजीवन वाले’ विशेषण का प्रयोग बादल और कवि दोनों के लिए किया गया है। बादल को नवजीवन वाले इसलिए कहा गया है क्योंकि वह अपने जल से मुरझाई हुई-सी धरती को पुनः हरा-भरा करके उसमें नव-जीवन का संचार कर देता है। इसी प्रकार कवि भी अपनी कविता के माध्यम से सोई हुई मानवता को जगाकर उसमें नए-नए विचारों का संचार करता है और नव-जीवन का संदेश देता है।

प्रश्न 3.
फागुन के मदमाते वातावरण का मानव-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
फागुन मास मदभरा मास माना जाता है क्योंकि इस मास में चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य छा जाता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। फूलों की सुगंध से वातावरण सुगंधित बन जाता है। सर्दी की ऋतु के पश्चात् बसंत का आगमन हो जाता है। इस सारे वातावरण का मानव-जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मानव-मन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो जाता है। उसका मन उत्साह से भर जाता है। वह आकाश में उड़ने की उमंग भरने लगता है। वह प्राकृतिक सौंदर्य को देखने में इतना तल्लीन हो जाता है कि अपनी दृष्टि उससे हटाना नहीं चाहता। फागुन मास के आते ही लोग मस्ती से भर उठते हैं और फागुन के गीत गाने लगते हैं। चारों ओर उत्साह का अद्भुत वातावरण बन जाता है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 4.
‘उत्साह’ कविता के केंद्रीय भाव का उल्लेख कीजिए। अथवा
‘उत्साह’ कविता के मूल उद्देश्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में कविवर निराला ने बादल को उत्साह के प्रतीक के रूप में चित्रित किया है। कवि बादल से अनुरोध करता है कि वह सारे आकाश में छा जाए और खूब वर्षा करे ताकि तपती हुई धरती को शीतलता मिल सके। वह किसी संघर्षशील कवि के समान सबके जीवन में उत्साह भर दे। वह अपनी गर्जन से सोई हुई मानवता को जगा दे। उसमें नया जोश व उत्साह भर दे। जब सारी धरा पर लोग व्याकुल व अनमने हों तो बादल जल की धारा बनकर सबको शीतलता प्रदान करें।

प्रश्न 5.
‘अट नहीं रही है’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता में कवि ने छायावादी शैली में प्रकृति की मनोरम छटा का उल्लेख किया है। कवि ने बताया है कि फागुन मास की शोभा अपने आप में समा नहीं रही है। इसलिए वह अनंत शोभा-सी लगती है। हर तरफ हरियाली छाई हुई है। फूलों की सुगंध वातावरण में मिलकर वातावरण को मधुर बना रही है। संपूर्ण प्राकृतिक दृश्य अत्यंत आकर्षक बने हुए हैं। कवि का मन इन सुंदर दृश्यों में इतना तल्लीन है कि वह एक क्षण के लिए भी अपनी आँखों को उनसे हटाना नहीं चाहता।

प्रश्न 6.
‘उत्साह’ कविता में कवि और बादल में क्या समानता दिखाई देती है?
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में बादल एक ओर पीड़ित लोगों की आशाओं और कामनाओं को पूरा करने वाला है तो दूसरी ओर जन-जन के मन में उत्साह और संघर्ष के भाव भरने वाला है। ठीक इसी प्रकार कवि भी दुःखी लोगों के प्रति सहानुभूति रखता है और शोषण के विरुद्ध क्रांति की भावना के विकास के लिए प्रेरित करता है। बादल गरजता है तो कवि कविता के माध्यम से जन-जन को ललकारता है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसकी आभा अट नहीं रही है?
उत्तर-
फागुन की आभा अट नहीं रही है।

प्रश्न 2.
निराला जी का निधन कब हुआ?
उत्तर-
निराला जी का निधन सन् 1961 में हुआ।

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प्रश्न 3.
कवि बादलों के माध्यम से मानव को क्या प्रदान करना चाहता है?
उत्तर-
कवि बादलों के माध्यम से मानव को जीवन की नई-नई प्रेरणाएँ प्रदान करना चाहता है।

प्रश्न 4.
निराला जी का प्रतिकार किसके प्रति व्यक्त हुआ है?
उत्तर-
निराला जी का प्रतिकार शोषक वर्ग के प्रति व्यक्त हुआ है।

प्रश्न 5.
‘तप्त धरा’ का सांकेतिक अर्थ क्या है?
उत्तर-
‘तप्त धरा’ का सांकेतिक अर्थ सांसारिक दुखों से पीड़ित पृथ्वी है।

प्रश्न 6.
फागुन मास के आते ही वृक्ष कैसे लगने लगते हैं?
उत्तर-
फागुन मास के आते ही वृक्ष हरे-भरे लगने लगते हैं।

प्रश्न 7.
कवि की आँख कहाँ से नहीं हट रही है?
उत्तर-
कवि की आँख प्राकृतिक सुंदरता से नहीं हट रही है।

प्रश्न 8.
‘अट नहीं रही है’ कविता में किस मास का वर्णन किया गया है?
उत्तर-
‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन मास का वर्णन किया गया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘निराला’ जी मूलतः किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) पंजाब
(B) उत्तर प्रदेश
(C) हरियाणा
(D) मध्य प्रदेश
उत्तर-
(B) उत्तर प्रदेश

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प्रश्न 2.
निराला की आरंभिक शिक्षा कहाँ हुई?
(A) बनारस में
(B) लखनऊ में
(C) महिषादल में
(D) कोलकाता में
उत्तर-
(C) महिषादल में

प्रश्न 3.
निराला जी के जीवन में सबसे बड़ा दुख क्या था?
(A) गरीब होना
(B) बीमार पड़ना
(C) समाज द्वारा ठुकराया जाना
(D) पत्नी तथा बेटा-बेटी की मृत्यु
उत्तर-
(D) पत्नी तथा बेटा-बेटी की मृत्यु

प्रश्न 4.
निराला जी ने सबसे पहले किस छंद का प्रयोग किया था?
(A) सवैया
(B) दोहा
(C) चौपाई
(D) मुक्त
उत्तर-
(D) मुक्त

प्रश्न 5.
‘उत्साह’ किस प्रकार का गीत है?
(A) प्रेम
(B) विरह
(C) आह्वान
(D) उत्साह
उत्तर-
(C) आह्वान

प्रश्न 6.
‘उत्साह’ कविता में कवि ने किसका आह्वान किया है?
(A) बादल का
(B) पवन का
(C) सूर्य का
(D) वर्षा का
उत्तर-
(A) बादल का

प्रश्न 7.
“उत्साह’ नामक कविता में बादलों में क्या छिपा हुआ है?
(A) गर्जन
(B) वज्र
(C) जल
(D) कालापन
उत्तर-
(B) वज्र

प्रश्न 8.
‘उत्साह’ कविता में किस दिशा से अनंत के घन आने की बात की गई है?
(A) पश्चिम
(B) अज्ञात
(C) पूर्व
(D) ज्ञात
उत्तर-
(B) अज्ञात

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प्रश्न 9.
कवि ने बादल को किसके प्रतीक के रूप में चित्रित किया है?
(A) संदेशवाहक
(B) सैनिक
(C) क्रांतिकारी पुरुष
(D) स्वार्थी व्यक्ति
उत्तर-
(C) क्रांतिकारी पुरुष

प्रश्न 10.
कवि ने बादलों को किसकी कल्पना के समान बताया?
(A) बालकों की
(B) कवि की
(C) सैनिक की
(D) व्यापारी की
उत्तर-
(A) बालकों की

प्रश्न 11.
‘विश्व के निदाघ के सकल जन’, यहाँ सकल का अर्थ है-
(A) सुंदर
(B) सब
(C) अच्छे
(D) दुष्ट
उत्तर-
(B) सब

प्रश्न 12.
वज्र किसके हृदय में छिपा रहता है?
(A) बादल
(B) पवन
(C) सूर्य
(D) आकाश
उत्तर-
(A) बादल

प्रश्न 13.
प्रस्तुत कविता में बादल से किसको शीतल करने की बात कही गई है?
(A) विकल जन
(B) तप्त धरा
(C) विद्युत
(D) जीवन
उत्तर-
(A) विकल जन ।

प्रश्न 14.
विश्व के जन क्यों व्याकुल एवं परेशान थे?
(A) भूख के कारण
(B) बीमारी के कारण
(C) प्रियजनों से दूर जाने के कारण
(D) भयंकर गर्मी के कारण
उत्तर-
(D) भयंकर गर्मी के कारण

प्रश्न 15.
कवि ने बादलों के हृदय में कैसी छवि बताई है?
(A) सुनहरी
(B) काली
(C) सफेद
(D) विद्युत
उत्तर-
(D) विद्युत

प्रश्न 16.
पत्तों से लदी डाल पर कौन-कौन से रंगों की छटा बिखरी हुई है?
(A) हरी, पीली
(B) लाल, पीली
(C) हरी, लाल
(D) पीली, भूरी
उत्तर-
(C) हरी, लाल

प्रश्न 17.
‘अट नहीं रही है’ कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) तुलसीदास
(C) महादेवी वर्मा
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर-
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

प्रश्न 18.
‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि ने किस मास की मादकता का वर्णन किया है?
(A) फागुन मास की
(B) कार्तिक मास की
(C) सावन मास की
(D) आषाढ़ मास की
उत्तर-
(A) फागुन मास की

प्रश्न 19.
किसकी आभा ‘अट’ नहीं रही है?
(A) धूप
(B) फागुन
(C) बसंत
(D) हवा
उत्तर-
(B) फागुन

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प्रश्न 20.
कवि के अनुसार घर-घर में क्या भर जाता है?
(A) धुआँ
(B) जल
(C) फागुन मास की शोभा
(D) वर्षा का पानी
उत्तर-
(C) फागुन मास की शोभा

प्रश्न 21.
‘अट नहीं रही है’ नामक कविता में पाट-पाट पर क्या बिखरी है?
(A) उज्ज्वलता
(B) शोभा-श्री
(C) सुगंध
(D) हरीतिमा
उत्तर-
(B) शोभा-श्री

प्रश्न 22.
‘अट’ शब्द से तात्पर्य है
(A) नष्ट
(B) अटकना
(C) प्रविष्ट
(D) अटना
उत्तर-
(C) प्रविष्ट

प्रश्न 23.
‘अट नहीं रही है’ नामक कविता में हटाने पर भी क्या नहीं हट रही है?
(A) आभा
(B) रोशनी
(C) जाला
(D) आँख
उत्तर-
(D) आँख

प्रश्न 24.
‘मंद-गंध-पुष्प-माल’ का धारक किसे कहा गया है?
(A) चैत्र
(B) बैसाख
(C) जेठ
(D) फागुन
उत्तर-
(D) फागुन

प्रश्न 25.
फागुन मास में कौन-सी ऋतु होती है?
(A) वर्षा
(B) बसंत
(C) ग्रीष्म
(D) सर्दी
उत्तर-
(B) बसंत

उत्साह और अट नहीं रही पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] बादल, गरजो:
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले धुंघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो
बादल, गरजो! [पृष्ठ 33]

शब्दार्थ-घोर = भयंकर। धाराधर = जल की धारा धारण करने वाले। ललित = सुंदर। विद्युत-छबि = बिजली के समान सुंदरता। उर = हृदय। वन = कठोर, भीषण। नूतन = नई।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने बादल का गरजने के लिए आह्वान क्यों किया है?
(ङ) यहाँ बादलों को किसके प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है?
(च) बादल किसकी कल्पना के समय पाले गए हैं?
(छ) बादल मानव-जीवन और कवि को क्या प्रदान करते हैं?
(ज) कवि बादलों से बरसकर क्या करने को कहता है?
(झ) ‘वज्र छिपा’ में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट कीजिए।
(अ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। कविता का नाम-उत्साह।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘उत्साह’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। कवि ने उत्साह एवं शक्ति के प्रतीक बादलों का आह्वान किया है कि वे पीड़ित, दुःखी एवं प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। कवि ने बादलों को अंधविश्वास के अंकुर के विध्वंसक एवं क्रांति की चेतना को जागृत करने वाला कहा है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

(ग) कवि ने क्रांति के प्रतीक बादल को संबोधित करते हुए कहा है कि हे बादल! तुम खूब गरजो। तुम सारे आकाश को घेरकर खूब बरसो। घनघोर वर्षा करो। हे बादल! तुम बहुत ही सुंदर हो। तुम्हारा रूप घने काले और धुंघराले बालों के समान है। तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले हुए हो। तुम अपने हृदय में बिजली की शोभा रखे हुए हो। तुम नई सृष्टि की रचना करने वाले हो। तुम अपने जल द्वारा नया जीवन देने वाले हो। तुम्हारे भीतर वज्र की शक्ति विद्यमान् है। हे बादल! तुम इस संसार को नई-नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने वाले हो। हे बादल! तुम खूब गरजो और सबमें एक बार फिर नया जीवन भर दो।

(घ) कवि ने बादलों का आह्वान गरजने के लिए इसलिए किया है क्योंकि कवि वातावरण में जोश और क्रांति की भावना भर देना चाहता है। बादल की गर्जन को सुनकर सबमें जोश भर जाता है।

(ङ) यहाँ बादलों को क्राँति उत्पन्न करने वाले साहसी व उत्साही वीर पुरुष के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है।

(च) बादल नन्हें अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गए हैं। वे अत्यंत सुंदर एवं कोमल हैं।

(छ) बादल मानव-जीवन और कवि को नई-नई प्रेरणाएँ प्रदान करते हैं। (ज) कवि बादलों को जल बरसाकर प्राणियों को सुख प्रदान करने के लिए कहते हैं। .

(झ) ‘वज्र छिपा’ का तात्पर्य है कि बादलों के भीतर बिजली की कड़क छिपी हुई है। दूसरे शब्दों में, कवि के हृदय में भी उथल-पुथल करने वाली क्रांति की भावना छिपी हुई है।

(ञ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्यासे और पीड़ित लोगों के हृदय की पीड़ा को दूर करके उनकी कामनाओं को पूरा करने . का आह्वान किया है। कवि को बादलों की गर्जन प्रिय है क्योंकि उसमें शक्ति की भावना समाहित है। कवि समाज में क्रांति लाना . चाहता है ताकि समाज में व्याप्त रूढ़िबद्ध परंपराएँ समाप्त हो जाएँ और समाज विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सके।

(ट)

  • प्रस्तुत पद में कवि ने ओजस्वी वाणी में क्रांति के स्वर को मुखरित किया है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • लघु शब्दों की आवृत्ति के कारण जहाँ भाव प्रभावशाली बन पड़े हैं, वहीं कविता में प्रवाह का समावेश भी हुआ है।
  • संबोधन शैली का प्रयोग किया गया है।
  • ‘ललित ललित काले धुंघराले’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘घेर-घेर, ललित-ललित’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  • ‘बाल कल्पना के-से पाले’ में उपमा अलंकार है।
  • ‘बादल गरजो’ में मानवीकरण अलंकार है।

(ठ) कविवर ‘निराला’ ने अपने काव्य में तत्सम प्रधान भाषा का प्रयोग किया है। इस पद्यांश में भी उन्होंने तत्सम प्रधान और ओजस्वी भाषा का प्रयोग किया है। लघु शब्दों की आवृत्ति से भाषा में गति एवं एक लय का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण संपन्न है।

[2] विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो
बादल, गरजो! [पृष्ठ 33]

शब्दार्थ-विकल = बेचैन। उन्मन = अनमना। निदाघ = तपती गर्मी। सकल = सारा। जन = मनुष्य। अज्ञात = अनजान। अनंत = असीम अज्ञान। घन = बादल। तप्त = तपी हुई। धरा = पृथ्वी।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि बादल से क्या प्रार्थना करता है?
(ङ) पृथ्वी पर लोग क्यों बेचैन हो रहे थे?
(च) ‘निदाघ’ किसके प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है?
(छ) बादल कहाँ से आकर आकाश में छा जाते हैं? ।
(ज) ‘तप्त धरा’ का शाब्दिक व सांकेतिक अर्थ लिखिए।
(झ) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’।
कविता का नाम-उत्साह।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘उत्साह’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इस कविता में कवि ने बादलों का दुःख से पीड़ित मानवता को सुख प्रदान करने के लिए आह्वान किया है।

(ग) कवि कहता है कि चारों ओर व्याकुलता और बेचैनी थी। सब लोग परेशान थे तथा सबके मन अनमने व उचाट हो रहे थे। विश्व के सभी लोग भीषण गर्मी से दुःखी एवं पीड़ित थे। तब न जाने किस अज्ञात दिशा से बादल आकाश में छा गए। कवि बादलों को संबोधित करता हुआ कहता है कि हे बादलो! तुम खूब बरसो और गर्मी से पीड़ित लोगों को शीतलता प्रदान करो। खूब बरसो और जन-जन को ठंडक पहुँचाओ। हे बादल! तुम खूब गरजो।

(घ) कवि बादल से प्रार्थना करता है कि वे गर्मी से तपी हुई धरती पर खूब जल बरसाओ और उसे शीतलता प्रदान करो।

(ङ) संपूर्ण पृथ्वी के लोग कष्टों व दुःखों रूपी गर्मी के कारण बेचैन व व्याकुल थे।

(च) कवि ने ‘निदाघ’ अर्थात् भीषण गर्मी का प्रयोग संसार के कष्टों के प्रतीकार्य किया है।

(छ) बादल न जाने असीम आकाश के किस कोने से आकर चारों ओर छाया की भाँति छा जाते हैं।

(ज) ‘तप्त धरा’ का शाब्दिक अर्थ है-गर्मी से तपती हुई धरती तथा इसका सांकेतिक अर्थ है-सांसारिक दुःखों से पीड़ित मानव-जीवन।

(झ) प्रस्तुत कविता में कवि ने बादलों का मानवता को सुख देने के लिए आह्वान किया है। इस धरती पर सांसारिक कष्टों व पीड़ाओं से पीड़ित मनुष्य को सुख प्रदान करके उसे शांति व शीतलता प्रदान करनी चाहिए। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गर्मी से तपती हुई धरती को बादल वर्षा करके ठंडक प्रदान करते हैं। .

(ञ)

  • कवि ने बादलों का मानवीकरण करके विषय को रोचक बना दिया है।
  • भाषा सरल एवं सहज है।
  • ‘अनंत’ के दो अर्थ हैं-ईश्वर और आकाश। इसलिए श्लेष अलंकार है।
  • नाद-सौंदर्य विद्यमान है।
  • ओजगुण सर्वत्र देखा जा सकता है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक बन पड़ी है।

(ट) संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग किया गया है। छोटे-छोटे शब्दों के सार्थक प्रयोग से भाषा में प्रवाह बना हुआ है। संबोधन शैली के प्रयोग से कविता में रोचकता का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण संपन्न है।

[3] अट नहीं रही है
आमा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल
पाट पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है। [पृष्ठ 34]

शब्दार्थ-अट = समाना, प्रविष्ट करना। आभा = सुंदरता। नभ = आकाश। उर = हृदय। मंद-गंध = धीमी-धीमी सुगंध। पुष्प-माल = फूलों की माला। पाट-पाट = जगह-जगह। शोभा-श्री = सुंदरता से परिपूर्ण। पट = न समाना।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किस मास की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है?
(ङ) घर-घर में क्या भर जाता है और क्यों?
(च) कौन किसको उड़ने के लिए प्रेरित करता है?
(छ) कवि की आँख किससे नहीं हटती और क्यों?
(ज) वृक्षों पर किस प्रकार के पत्ते लद गए हैं?
(झ) बन में क्या पट नहीं रही है?
(अ) फागुन के कारण वन-उपवन कैसे लग रहे हैं?
(ट) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पयांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। कविता का नाम-अट नहीं रही है।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘अट नहीं रही है’ नामक कविता से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने फागुन मास की प्राकृतिक छटा का मनोरम चित्रण किया है। कवि ने अपने अनंत प्रिय को संबोधित करते हुए कहा है कि यह सब तुम्हारी शोभा का प्रकाश है जो समा नहीं रहा है।

(ग) कवि कहता है कि फागुन की सुंदरता व चमक कहीं भी समा नहीं रही है। प्रकृति का तन इस फागुनी सुंदरता से जगमगा रहा है। तुम पता नहीं कहाँ से साँस लेते हो और अपनी साँसों की सुगंध से घर भर देते हो अर्थात् कवि को हर जगह अपने प्रिय की साँसों की सुगंध अनुभव होती है। वे तुम्ही हो जो मन को ऊँची कल्पनाओं में उड़ने की प्रेरणा प्रदान करते हो। चारों ओर तुम्हारे सौंदर्य की आभा ही चमक रही है। मैं चाहकर भी इस सौंदर्य से आँख नहीं हटा सकता। कवि का मन प्राकृतिक सौंदर्य से बंधकर रह जाता है।
कवि पुनः कहता है कि फागुन मास में वन एवं उपवन के वृक्ष हरे-भरे, नए-नए पत्तों से लद गए हैं। इन वृक्षों पर विभिन्न रंगों के फूल खिले हुए हैं। कहीं कंठों में मंद सुगंधित पुष्पमालाएँ पड़ गई हैं। हे प्रिय! तुमने तो इस प्रकृति में इस सौंदर्य रूपी वैभव को इस प्रकार भर दिया है कि यह इस प्रकृति में समा नहीं रहा है।

(घ) कवि ने फागुन मास की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।

(ङ) घर-घर में फागुन मास की शोभा और मस्ती भर जाती है। चारों ओर सुंदरता एवं मधुरता का वातावरण बन जाता है। .

(च) फागुन मास पक्षियों को उड़ने की प्रेरणा देता है अर्थात् फागुन मास के आते ही पक्षियों के जीवन में भी क्रियाशीलता अधिक . तीव्रता से उत्पन्न हो जाती है। फागुन मास में मनुष्यों के मनों में भी ताज़गी भर जाती है और वे भी क्रियाशील हो उठते हैं।

(छ) कवि की आँख प्राकृतिक छटा से नहीं हटती क्योंकि कवि को फागुन मास की प्राकृतिक छटा देखना अत्यंत प्रिय लगता है। (ज) फागुन मास के आते ही वृक्षों पर हरे-भरे व लाल-लाल पत्ते लद जाते हैं।

(झ) वन में प्राकृतिक छटा पट (समा) नहीं रही है।

(ञ) फागुन मास के कारण वन-उपवन सब महक उठे हैं। पेड़ों पर हरे-भरे व नए-नए पत्ते लद जाते हैं तथा तरह-तरह के फूल खिल जाते हैं। फूलों से लदे पेड़ ऐसे लगते हैं मानों उन्होंने फूलों से बनी हुई मालाएँ पहन रखी हों। वन-उपवनों में फागुन मास की छटा पट नहीं रही है।

(ट) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने फागुन मास के अपूर्व एवं असीम सौंदर्य का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। कवि के अनुसार प्रकृति की अनंत सुंदरता व शोभा का कोई छोर नहीं है अर्थात् उसे सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता। फागुन मास में प्रकृति का सौंदर्य ऐसा बन जाता है जो बरबस लोक लोचनों को बाँध लेता है।

(ठ)

  • भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
  • अट, सट, पट, पाट आदि लघु-लघु शब्दों के सार्थक प्रयोग से भाषा में प्रवाहमयता बनी हुई है।
  • देशज शब्दों का अत्यंत सुंदर प्रयोग देखते ही बनता है।
  • भाषा माधुर्यगुण संपन्न है।
  • कोमलकांत पदावली है।
  • यमक, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, रूपक, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ड) ‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता में कवि ने शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। लघु शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में जहाँ प्रवाह बना रहता है वहीं लय भी उत्पन्न हुई है, इन काव्य-पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की अन्य विशेषता यह है कि इसमें देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है तथा विशेष वातावरण का निर्माण भी हुआ है।

उत्साह और अट नहीं रही Summary in Hindi

उत्साह और अट नहीं रही कवि-परिचय

प्रश्न-
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का आधुनिक हिंदी कवियों में सर्वश्रेष्ठ स्थान है। वे वास्तव में ही ‘निराला’ थे। निराला जी ने आधुनिक हिंदी काव्य को एक नई दिशा प्रदान की है। उनका जन्म बंगाल के महिषादल नामक रियासत में मेदिनीपुर नामक स्थान पर सन् 1899 में हुआ था। उनके पिता इस राज्य में एक प्रतिष्ठित पद पर कार्य करते थे। उनका बचपन यहीं व्यतीत हुआ। निराला जी की आरंभिक शिक्षा महिषादल में ही संपन्न हुई। संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन उन्होंने घर पर ही किया। दर्शन और संगीत में भी उनकी गहरी रुचि थी। निराला जी का जीवन आरंभ से अंत तक संघर्षों से परिपूर्ण रहा। शैशवावस्था में ही उनकी माता जी का देहांत हो गया। विवाह के कुछ वर्ष पश्चात उनकी पत्नी चल बसी। तत्पश्चात पिता, चाचा तथा चचेरे भाई भी चल बसे। पुत्री सरोज की मृत्यु से उनका हृदय विदीर्ण हो गया। इस प्रकार, संघर्षों से जूझते-जूझते सन् 1961 में निराला जी की जीवन-लीला समाप्त हो गई। निराला जी जीवन के संघर्षों से जूझते हुए भी निरंतर साहित्य सृजन में लगे रहे।

2. प्रमुख रचनाएँ-निराला जी महान साहित्यकार थे। उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
काव्य-‘अनामिका’, ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘तुलसीदास’, ‘अणिमा’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘बेला’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’, ‘गीतागूंज’, ‘नए पत्ते’ ‘जूही की कली’ आदि।
उपन्यास-‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’ ‘चमेली’ आदि।
कहानी-संग्रह ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीवी’ आदि।
रेखाचित्र-‘कुल्ली भाट’, ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ आदि।
जीवनी-साहित्य-‘महाराणा प्रताप’, ‘प्रह्लाद’, ‘ध्रुव’, ‘शकुंतला’, ‘भीष्म’ आदि।
आलोचना और निबंध-‘पद्म-प्रबंध’, ‘प्रबंध-प्रतिमा’, ‘प्रबंध-परिचय’ आदि।

3. काव्यगत विशेषताएँ-निराला जी के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) मानवतावादी दृष्टिकोण-महाकवि निराला जी के मन में दीन-दुखियों के प्रति अत्यधिक सहानुभूति थी। संसार में व्याप्त अव्यवस्था तथा सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को देखकर निराला जी बहुत दुःखी होते थे। उनकी ‘भिक्षुक’ और ‘वह तोड़ती पत्थर’ नामक कविताएँ उनके मानवतावादी विचारों को प्रकट करती हैं।
(ii) राष्ट्रीयता-निराला जी अपने युग के एक सचेत कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में अपने युग में व्याप्त राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को बड़ी यथार्थता से चित्रित किया। उन्होंने तत्कालीन कुप्रथाओं पर जमकर प्रहार किए। उनके साहित्य से एक स्वस्थ समाज बनाने की प्रेरणा मिलती है। अतः कहा जा सकता है कि निराला जी सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय भावना के कवि थे।
(iii) प्रगतिवादी चेतना-निराला जी ने अपने काव्य में एक ओर दीन-दुखियों के जीवन का मार्मिक चित्रण किया तो दूसरी ओर शोषकों के प्रति आक्रोश से भरी आवाज़ बुलंद की

, “अबे सुन बे गुलाब, भूल मत जो पाई खुशबू, रंगो-आब,
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट, डाल पर इतराता है कैपिटलिस्ट।”

(iv) रहस्यवादी दृष्टिकोण-निराला जी के रहस्यवाद का मूल आधार वेदांत है। वे आत्मा और परमात्मा के प्रणय संबंधों पर बल देते हैं। उनके रहस्यवाद में भावना और चिंतन का सुंदर समन्वय है। निराला जी के रहस्यवाद में व्यावहारिकता अधिक है। उनके रहस्यवादी दर्शन के निष्कर्ष शक्ति, करुणा, सेवा, त्याग आदि हैं।

(v) प्रकृति-चित्रण-अन्य छायावादी कवियों की ही भाँति निराला जी ने भी प्रकृति के विविध रूपों को बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित किया है। उनके प्रकृति-चित्रण में प्रकृति के भयानक और मनोरम, दोनों ही रूपों के दर्शन होते हैं। उन्होंने भावनाओं को उद्दीप्त करने वाले प्राकृतिक रूप को अधिक चित्रित किया है।

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(vi) प्रेम और श्रृंगार का वर्णन-निराला जी के आरंभिक काव्य में प्रेम और शृंगार का खूब वर्णन हुआ है लेकिन उनके शृंगार-वर्णन में ऐंद्रियता का अभाव है। ‘जूही की कली’ आदि कविताओं में तो शृंगार स्थूल है लेकिन अन्य कविताओं में यह पावन एवं उदात्त है। उनका प्रेम निरूपण लौकिक होने के साथ-साथ अलौकिक भी है। ऐसे स्थलों पर निराला रहस्यवादी कवि प्रतीत होने लगते हैं। ‘तुम और मैं’, ‘यमुना के प्रति’, ‘कौन तम के पार रे कह!’ आदि कविताओं में उनकी रहस्यवादी भावना व्यक्त हुई है।

4. भाषा-शैली-कविवर निराला ने अपने काव्य में तत्सम प्रधान शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने कोमलकांत पदावली के प्रयोग से अपनी काव्य-भाषा को खूब सजाया है। निराला जी अपने सूक्ष्म प्रतीकों, लाक्षणिक पदावली तथा नवीन उपमानों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके काव्य में संगीतात्मकता के सभी अनिवार्य तत्त्व उपलब्ध हैं।

निराला जी ने अपने काव्य में शब्दालंकार एवं अर्थालंकार, दोनों का सफल प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, उपमा, रूपक, यमक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग देखते ही बनता है।
निराला जी का संपूर्ण काव्य मुक्त छंद में रचित है। मुक्त छंद उनकी काव्य को बहुत बड़ी देन है। अतः स्पष्ट है कि निराला जी का काव्य भाव तथा भाषा दोनों दृष्टियों से अत्यंत सक्षम एवं संपन्न है। निश्चय ही वे आधुनिक हिंदी साहित्य के महान एवं निराले कवि थे।

उत्साह और अट नहीं रही कविता का सार

1. उत्साह

प्रश्न-
‘उत्साह’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
“उत्साह’ शीर्षक कविता में कवि ने समाज में नई चेतना और सामाजिक परिवर्तन के लिए आह्वान किया है। कवि ने जीवन को व्यापक एवं समग्र दृष्टि से देखते हुए अपने मन की कल्पना और क्रांति की चेतना को समानांतर रूप से ध्यान में रखा है। कवि बादलों को गरज-गरजकर बरसने की बात कहता है। सुंदर और काले बादल बालकों की कल्पना के समान हैं। वे नई सृष्टि की रचना करते हैं। उनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। कवि बादलों का आह्वान करता है कि वे पानी बरसाकर तप्त धरती की तपन दूर करके उसे शीतलता प्रदान करें।

2. अट नहीं रही है।

प्रश्न-
‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने फागुन के महीने की प्राकृतिक सौंदर्य से उत्पन्न मादकता का वर्णन किया है। कवि फागुन की सर्वव्यापक सुंदरता को कई संदर्भो में देखता है। कवि का मत है कि जब व्यक्ति के मन में प्रसन्नता हो तो उस समय उसे सारी प्रकृति में सुंदरता फूटती नज़र आती है। हर तरफ से सुगंध अनुभव होती है। मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ फूट पड़ती हैं। वनों के सभी पेड़ नए-नए पत्तों से लद जाते हैं। तरह-तरह के सुगंधित फूल भी खिल जाते हैं। सारे वन में प्राकृतिक छटा का दृश्य अत्यंत मनमोहक बन पड़ा है।

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