HBSE 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 न्यायपालिका

Haryana State Board HBSE 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 न्यायपालिका Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 न्यायपालिका

HBSE 8th Class Civics न्यायपालिका Textbook Questions and Answers

अध्याय 5 न्यायपालिका HBSE 8th Class Civics प्रश्न 1.
आप पढ़ चुके हैं कि ‘कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना’ न्यायपालिका का एक मुख्य काम होता है। आपकी राय में इस महत्त्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायापालिका का स्वतंत्र होना क्यों जरूरी है?
उत्तर:
निःसन्देह हमारे देश में न्यायपालिका अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।
प्रथम: यह देश के कानून की सर्वोच्चता को बनाये रखती है।
द्वितीय: यह देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लागू करती है तथा उन्हें संरक्षण प्रदान करती है। इसने समय-समय पर अनेक राज्य सरकारों तथा केन्द्रीय सरकार को निर्देश एवं आदेश दिए हैं कि वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करें।

लेकिन मेरे विचारानुसार न केवल उपर्युक्त उल्लेखित दो कार्य अपितु अपने सभी कार्य दक्षता के साथ न्याय पालिका तभी कर सकती है जबकि वह स्वतंत्र हो। न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ मुख्यतः इस बात से लिया जाता है कि न्यायपालिका कार्यपालिका व विधायिका के प्रभाव से बाहर रहकर स्वतंत्रता और निष्पक्षता से अपने कार्य कर सके। भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए अनेक उपाय किए गए हैं जैसे कि न्यायाधीशों की नियुक्ति निश्चित की गई योग्यताओं के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है परंतु राष्ट्रपति के पास इनको अपने पद से हटाने की शक्ति नहीं है। न्यायाधीशों को उनके पदों से हटाने की विधि अत्यंत कठिन है। इसके अतिरिक्त न्यायाधीशों को काफी अधिक वेतन व भत्ते दिए जाते हैं और उनके निर्णयों व कार्यों पर विवाद नहीं हो सकता।

‘कानून को कायम करना’ और ‘मौलिक अधिकारों को लागू करना’ ये दोनों कार्य एक सच्चे लोकतंत्र की आवश्यक शर्ते हैं। अत: लोकतंत्र में इनके निर्वहन के लिए एक स्वतंत्र तथा निष्पक्ष न्यायपालिका अत्यंत आवश्यक है।

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nyaypalika class 8 HBSE Civics प्रश्न 2.
अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है। उसे फिर पढ़ें। आपके ऐसा क्यों लगता है कि संवैधानिक सुधार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है?
उत्तर:
I. संविधान द्वारा प्रदान किए गये मौलिक अधिकार (Fundamental Rights given in Indian Constitution):
हमारे संविधान में नागरिकों को निम्नलिखित मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं:
1. समानता का अधिकार।
2. स्वतंत्रता का अधिकार।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार।
5. सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार।
6. संवैधानिक सुधारों का अधिकार।।

II. संवैधानिक सुधारों (संरक्षण) का अधिकार (Right to Constitutonal Remedies or Right to Protection of the Fundamental Rights):
संवैधानिक सुधारों का अधिकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों की प्राप्ति की रक्षा का अधिकार है। इस अधिकार के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की प्राप्ति तथा रक्षा के लिए उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय के पास आ सकता है। यदि सरकार किसी मौलिक अधिकार को लागू न करे अथवा कोई व्यक्ति या सरकार इन अधिकारों का उल्लंघन करे तो नागरिक न्यायालय में जाकर न्याय की मांग कर सकता है। विधानमंडल द्वारा पास किए गए कानून अथवा सरकार द्वारा जारी किए गए आदेश मौलिक अधिकारों पर रोक लगाते हैं अथवा उन्हें समाप्त करते हैं, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया जा सकता है।

वास्तव में यह अधिकार न्यायिक समीक्षा से जुड़ा है। जबकि एक नागरिक के किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है (यह अधिकांश मामलों में सरकार के द्वारा किया जाता है) तो न्यायालय में आने के बाद न्यायालय को कई जटिल मामलों में न्यायिक समीक्षा करनी पड़ती है क्योंकि सरकार के पास भी अपने दावे होते हैं। वह भी अपना पक्ष रखती है कि इस मामले में उसने अपने अधिकारों को ही सुपयोग किया है। सर्वोच्च न्यायालय को इस अधिकार का प्रयोग करने से पूर्व संविधान की धाराओं का सूक्षम विश्लेषण करना पड़ता है।

न्यायपालिका Chapter 5 HBSE 8th Class Civics प्रश्न 3.
नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया है। प्रत्येक के सामने लिखिए कि उस न्यायालय ने सुधा गोयल के मामले में क्या फैसला दिया था? अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाबों के साथ मिलाकर देखें।
HBSE 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 न्यायपालिका-1
उत्तर:
सुधा गोयल के मामले में विभिन्न न्यायालयों ने जो फैसले दिए हैं, वे निम्न प्रकार से हैं:
1. निचली अदालत ने लक्ष्मण, उसकी माता शकुंतला एवं उसके जीजा सभाष चन्द्र को दोषी (या अपराधी) करार देते हुए उन तीनों को सजा-ए-मौत की सजा दी गई।

2. उच्च न्यायालय ने सभी तों को सुनने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि सुधा गोयल की मृत्यु एक हादसा थी और स्टोव के मिट्टी के तेल के आग पकड़ने से ही उसकी मृत्यु हुई थी। लक्ष्मण, शकुंतला एवं सुभाष चंद्र को बरी कर दिया गया।

3. सर्वोच्च न्यायालय ने वकीलों के तर्क एवं बहस सुनी और उसने उच्च न्यायालय से भिन्न निर्णय सुनाया। उसने लक्ष्मण और उसकी माँ को तो दोषी पाया लेकिन उसके देवर सुभाषचंद्र को आरोपों से बरी कर दिया क्योंकि उसके विरुद्ध पर्याप्त सबूत नहीं थे। सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाकर जेल भेज दिया। विद्यार्थी अपने जवाब भी बताएँ व चर्चा करों

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प्रश्न 4.
सधा गोयल मामले को ध्यान में रखते हुए नीचे दिए गए बयानों को पढ़िए। जो वक्तव्य सही हैं उन पर सही का निशान लगाइए और जो गलत हैं उनको ठीक कीजिए।
(क) आरोपी इस मामले को उच्च न्यायालय लेकर गए – क्योंकि वे निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं थे।
(ख) वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए।
(ग) अगर अरोपी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो दोबारा निचली अदालत में जा सकती है।
उत्तर:
बयान (क) सही है।
बयान (ख) गलत है। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला पूर्ण व अंतिम होता है फिर अन्य जगह जाने का कोई अर्थ ही नहीं है। – बयान (ग) गलत है। चूंकि सर्वोच्च न्यायालय देश का सबसे बड़ा न्यायालय है अत: उसके फैसले के खिलाफ कहीं भी कोई भी अपील नहीं की जा सकती है।

प्रश्न 5.
आपको ऐसा क्यों लगता है कि 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्त्वपूर्ण कदम थी?
उत्तर:
हम सोचते हैं कि 1980 के दशक में जनहित याचिका की व्यवस्था एक महत्त्वपूर्ण कदम था क्योंकि इसने न्याय तक सभी लोगों की पहुँच का रास्ता खोल दिया था। इस व्यवस्था ने व्यक्ति विशेष एवं संगठनों को यह अनुमति दे दी थी कि वे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में किसी व्यक्तिगत या सार्वजनिक मामले से जुड़े विषय को फाइल कर सकते हैं। वे ऐसा उनकी ओर से कर सकते हैं जिनके अधिकारों का हनन हुआ हो।

जनहित याचिका के अधीन कानूनी प्रक्रिया को बहुत ही सरल कर दिया गया था। यहाँ तक कि केवल मात्र एक पत्र या तार (टेलीग्राम) जो अदालत को संबोधित करके लिखा गया हो या जारी किया गया हो, पर्याप्त माना जाने लगा।

प्रश्न 6.
ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में दिए गए फैसले के अंशों को दोबारा पढ़िएं इस फैसले में कहा गया है कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है। अपने शब्दों में लिखिए कि इस बयान से जजों का क्या मतलब था?
उत्तर:
ओल्गा टेलिस बनाम बंबई नगर निगम नामक मुकदमे के फैसले ने स्थापित कर दिया कि जीविका या आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार (Right to Life) का ही अभिन्न अंग समझा जाना चाहिए। फैसले के उद्धरणों को पढ़ने से पता चलता है कि जजों ने जीवन के अधिकार को आजीविका के अधिकार से किस तरह जोड़कर देखा।

(क) यदि हम संविधान की धारा 21 में दिए गए जीवन के अधिकार को ध्यानपूर्वक पढ़ें तो कुल मिलाकर जीवन का अधिकार केवल जानवरों की तरह अपना अस्तित्व बनाये रखना मात्र नहीं है। इसका अर्थ केवल यह नहीं कि जीवन को समाप्त नहीं किया जा सकता या उसे लिया नहीं जा सकता। उदाहरणार्थ, किसी पर मृत्युदंड को लाद देना या मृत्युदंड की सजा सुना देना सिवाय इसके कि हम उस निर्धारित प्रक्रिया का अनुसरण करें जो कानून ने स्थापित की है।

बल्कि यह जीवन के अधिकार का एक पहलू मात्र है। इस अधिकार का समान रूप से यह पहलू भी महत्त्वपूर्ण है कि उसे (व्यक्ति को) रोजी-रोटी कमाने (आजीविका अर्जित) का भी अधिकार हो क्योंकि कोई भी व्यक्ति क्या जीविका के साधनों के बिना जीवित रह सकता है। इसका अर्थ है रोजी-रोटी या आजीविका को अर्जित करने का हक।

(ख) न्याय में आगे कहा गया कि यदि किसी व्यक्ति को किसी फुटपाथ या गंदी बस्ती से हटाकर उसे उसके जीविका अर्जित करने के स्थल से अलग कर दिया जाता है तो ऐसी स्थिति से जीविका अर्जन की संभावना समाप्त हो सकती है। इस मुकदमे से स्पष्ट है कि एक गरीब व्यक्ति गंदी बस्ती (Slum) में रहता है तथा छोटे से फुटपाथ पर अपनी रोजी-रोटी कमाने का जुगाड़ बनाये हुए है। यदि उसे गंदी बस्ती (Slum) से बाहर कर दिया जायेगा तथा उसे प्लेटफार्म (फुटपाथ) के उस अड्डे से भी अलग कर दिया जायेगा और यदि उसके पास रहने के लिए और कोई भी जगह नहीं है तो नि:संदेह यह उसके जीने के अधिकार को छीनने के बराबर ही होगा।

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प्रश्न 7.
‘न्याय में विलंब यानी न्याय का निषेध’ विषय पर एक कहानी बनाइए।
उत्तर:
हमारे देश का प्रत्येक नागरिक राष्ट्र की न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास रखता है तथा न्यायपालिका का सभी भारतीय नागरिक सम्मान करते हैं लेकिन यह भी एक कठोर सत्य एवं तथ्य है तथा जिसे भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा भी स्वीकार किया गया है कि देश में न्यायाधीशों की अपर्याप्त संख्या तथा न्यायालयों की कमी सामान्य नागरिक की न्याय तक पहुँच को प्रभावित करती है। यह सत्य है जिसकी जानकारी हमें जन संचार माध्यमों के द्वारा मिलती है कि अमुक दंगों से संबंधित मामले को आज करीब 24 वर्ष (1984 से 2008) हो गये हैं। अमुक दोषी को हत्या के मामले में लगभग 15-16 वर्षों बाद (1993-2007-08) सजा मिली।

यह कथन कि ‘न्याय में विलंब यानी न्याय का निषेध’ बहुत ही सटीक है।

इसका एक उदाहरण पिछले दिनों पढ़ने को मिला। आज से करीब 30-35 वर्ष पूर्व इंदिरा गाँधी के शासन काल में रेलमंत्री ललित नारायण मिश्रा की हत्या हुई थी। यह मामला जहाँ से चला था वहीं है, इसका अभी तक कोई भी फैसला नहीं हो सका है। जब एक पूर्व राजनीतिक के मामले का यह हाल है तो आम नागरिक को न्याय उसके जीवन में मिलना मुश्किल है। अतः न्याय में देरी का अर्थ है न्याय न मिलना।

प्रश्न 8.
नीचे दिए शब्द सारणी में दिए गए प्रत्येक शब्द से वाक्य बनाइए।
1. बरी करना.
2. अपील करना.
3. मुआवजा.
4. बेदखली.
5. उल्लंघना
1. बरी करना: सुधा गोयल मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सुभाषचंद्र को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
2. अपील करना: मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से जुड़े मामलों में सीधे ही सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती
3. मुआवजा: अदालत दोषी पाए गए व्यक्तियों या संस्थाओं पर पीड़ित के लिए मुआवजा देने का आदेश भी दे सकती है।
4. बेदखली: जीने के अधिकार के अंतर्गत फुटपाथ पर सामान बेचकर अपनी आजीविका चलाने वालों की बेदखली गैर कानूनी है।
5. उल्लंघन: मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में न्यायालय तत्काल कार्रवाई करता है।

प्रश्न 9.
यह पोस्टर भोजन का अधिकार अभियान द्वारा बनाया गया है। यह पोस्टर क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
भारत एक उदार लोकतांत्रिक देश है। यह लोगों के कल्याण में विश्वास करता है। मानव अधिकारों के साथ-साथ देश का संविधान लोगों को जीवन का अधिकार भी देता है लेकिन कोई भी व्यक्ति बिना पर्याप्त भोजन के लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता। यह सरकार का कर्तव्य है कि वह सभी को या तो नाममात्र की धनराशि लेकर या पूर्णतया मुक्त ही सभी को जीवित रहने के लिए आवश्यक भोजन या खाद्य सामग्री प्रदान करे।
HBSE 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 न्यायपालिका-2
दोपहर का भोजन (Mid-day meal) योजना एक बहुत ही अच्छा उदाहरण है। देश की सरकारें प्राथमिक स्तर तक या माध्यमिक स्तर तक के स्कूली मात्रा में व गुणवत्ता की दृष्टि से ठीक-ठाक भोजन दे रही हैं। इसने बच्चों को भोजन प्राप्ति का अधिकार दिया है एवं उसे लागू कर व्यावहारिक रूप भी दे दिया है।

आज का एक बालक कल का पिता है और आज की एक बालिका कल की माता है। हमारे राष्ट्र की सर्वाधिक मूल्यवान धरोहर हमारे नौनिहाल ही हैं। हिन्दी भाषा के एक कवि ने लिखा है “भूखे भजन न होए गोपाला” अर्थात् अगर पेट में चूहे कूद रहे हैं तो विश्व निर्माता (ईश्वर/गाड/अल्लाह/ वाहेगुरु) भी याद नहीं आता। उसका स्मरण भी नहीं होगा। यदि मजदूरों से काम लेना है तो उन्हें पेट भर अनाज या भोजन दें।

ऊपर दिए पोस्टर में जो वाक्यांश दिया गया है कि “भूखे पेट तथा गोदामों में अनाज भरा पड़ा है।” यह अन्यायपूर्ण स्थिति हम नहीं सहेंगे। विरोधी दल केन्द्र सरकार को चुनौती दे रहे हैं। भाव यही है कि हम उदार लोकतांत्रिक लोकतंत्र में रह रहे हैं तो ऐसे सभ्य समाज में अन्यायपूर्ण स्थिति को कौन सहेगा, कोई भी नहीं। हमें सिख धर्म के प्रवर्तक भारत के मध्यकालीन संत तथा समाज सुधारक गुरु नानक देव जी की यह बात याद रखनी चाहिए ‘वंड खा, ते खंड खा’ (Divide your own food items among others, share with the needies, God (या वाहेगुरु) will grand you sweet.)

भूखा क्या नहीं करता? यदि जमाखोर तथा मुनाफाखोर भरे अनाजों के गोदामों के मुँह नहीं खोलेंगे, सरकार सोई रहेगी तो भूखे लोग कानून को अपने हाथ में लेंगे ही। न्यायालयों में ऐसी जनहित याचिकाएं लगातार आ रही हैं कि जब गोदाम भरे पड़े हैं, उनमें अनाज सड़ रहा है फिर दुर्भिक्ष के कारण मौतें क्यों नहीं रोका जा सकती।

HBSE 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 न्यायपालिका

HBSE 8th Class Civics न्यायपालिका Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायिक प्रणाली क्या है?
उत्तर:
एक न्यायिक प्रणाली में न्यायालयों की कार्यप्रणाली शामिल होती है जिनके पास किसी कानूनी व्यवस्था भंग होने या तोड़ने पर नागरिक जाते हैं।

प्रश्न 2.
राज्य के एक अंग के रूप में न्यायपालिका का क्या महत्त्व है? किस कारण से यह अपनी भूमिका निष्पक्षता से निर्वाह कर सकती है?
उत्तर:
लोकतंत्र में एक राज्य के अंग के रूप में न्यायपालिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। यह ऐसा इसलिए कर सकती है क्योंकि यह पूर्णतया स्वतंत्र होती है (अर्थात् कार्यपालिका या विधायिका पर अवलोबत नहीं होती है). इसे संविधान द्वारा व्यापक अधिकार दिए गए हैं।

प्रश्न 3.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत में सर्वोच्च न्यायालय ही सबसे बड़ा न्यायालय है। देश के अन्य सभी न्यायालय उसके अधीन काम करते हैं जिनमें उच्च न्यायालय, राज्य स्तर पर तथा अधीनस्थ न्यायालय जिला व अन्य स्तरों पर कार्यरत हैं।

प्रश्न 4.
एकीकृत न्यायपालिका से आप क्या समझते
उत्तर:
हमारे राष्ट्र में संपूर्ण देश भर के लिए इकहरी न्याय-व्यवस्था है। न्यायालयों में शक्ति-विभाजन नहीं किया गया है। एक पिरामिड (Pyramid) की भाँति छोटे न्यायालयों के ऊपर प्रत्येक जिले का जिला न्यायालय, उनके ऊपर राज्यों के उच्च न्यायालय और सबसे ऊपर एक सर्वोच्च न्यायालय है। ऊपर का न्यायालय अपने से नीचे के न्यायालयों पर नियंत्रण रखता है।

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प्रश्न 5.
न्यायपालिका की स्वतंत्रता की परिभाषा वीजिए।
उत्तर:
न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि न्यायपालिका किसी व्यक्ति अथवा व्यक्ति-समूह के दबाव अथवा प्रभाव में न हो। वदि विधानमंडल व कार्यपालिका, किसी व्यक्ति अथवा संस्था को न्यायाधीशों पर दबाव डालने का अधिकार दे दिया जाता है, तो न्यायाधीशों के लिए निष्पक्ष न्याय करना कठिन हो जाता है।

भारतीय संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई है कि सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय अपने कार्य को ठीक प्रकार से अर्थात् निष्पक्ष रूप से और स्वतंत्रता से कर सकें। न्यायालयों की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए जो व्यवस्थाएं की गई हैं, उनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं:

न्यायाधीशों की नियुक्ति का एक निर्धारित संवैधानिक तरीका है। उनका कार्यकाल 62 या 65 वर्ष तय किया गया है। इससे पहले सामान्य परिस्थितियों में उन्हें हटाया नहीं जा सकता। उनके पद की सुरक्षा, बहुत ही अच्छे वेतन, भत्ते व अन्य सुविधाएँ भी दी गयी है।

प्रश्न 6.
सर्वोच्च (या उच्चतम न्यायालय को संविधान का संरक्षक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अंतिम व्याख्याता (Final Interpreter) तथा संरक्षक के रूप में कार्य करता है। यदि संसद अथवा कोई राज्य विधान मंडल कोई ऐसा कानून पास करता है अथवा केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार कोई ऐसा आदेश जारी करती है जो संविधान का उल्लंघन करता है, तो सर्वोच्च न्यायालय उसे असंवैधानिक घोषित करके रह कर सकता है।

प्रश्न 7.
“विवादों का निपटारा’ पद की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
हमारी न्याय प्रणाली एक ऐसी व्यवस्था प्रदान करती है जिसके अंतर्गत नागरिकों एवं नागरिकों के मध्य, नागरिकों तथा सरकारों के मध्य, राज्य सरकार तथा केन्द्रीय सरकार के मध्य तथा दो या दो से ज्यादा राज्य सरकारों के मध्य झगड़े सुलझाने के लिए प्रस्ताव पारित होते हैं या निर्णय लिए जाते हैं या आदेश जारी होते

प्रश्न 8.
न्यायिक पुनरावलोकन अथवा न्यायिक समीक्षा को आप कैसे परिभाषित करेंगे?
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review): सर्वोच्च न्यायालय के पास यह बहुत बड़ी शक्ति हैं इसके अंतर्गत देश की कानून बनाने वाली सर्वोच्च संस्था संसद यदि कोई कानून पास करती है किंतु सर्वोच्च न्यायालय की दृष्टि से यह संविधान के मूल ढाँचे के साथ खिलवाड़ है तो वह इसे रद्द कर सकता है।

प्रश्न 9.
अपीलीय क्षेत्राधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है:
1. उच्च न्यायालयों के अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdietion of the High Courts):
इसे अपीलीय क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है जिनके अंतर्गत यह दीवानी और फौजदारी मामलों में अपने अधीनस्थ न्यायालय के विरुद्ध अपील सुन सकता है। फौजदारी मामलों के अपीलीय क्षेत्राधिकार में
(i) सत्र और अपर सत्र जजों के निर्णयों और
(ii) मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें शामिल हैं। उच्च न्यायालय भू-राजस्व या उसकी वसूली से संबंधित मामलों में भी अपीलें सुन सकता है।

2. सर्वोच्च या उच्चतम न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction of the Supreme Court):
सर्वोच्च न्यायालय को राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार को तीन भागों में बाँटा जा सकता है- (क) दीवानी मामले, (ख) फौजदारी मामले, (ग) संवैधानिक मामले।

(क) दीवानी मामले: सर्वोच्च न्यायालय में उस दीवानी मुकदमे की अपील की जा सकती है जब संबंधित उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि यह मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने योग्य है।

(ख) फौजदारी:
फौजदारी मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय में तभी अपील की जा सकती है जब:
(i) किसी निम्न न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील करने पर उच्च न्यायालय ने अपराधी को मृत्युदंड दे दिया हो।
(ii) यदि उच्च न्यायालय ने स्वयं किसी छोटे न्यायालय से मुकदमा अपने पास मंगवा लिया हो और अपराधी को मृत्युदंड दे दिया हो।
(iii) यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने योग्य है।
(iv) इसके अतिरिक्त उच्चतम न्यायालय स्वयं निचले न्यायालय के किसी निर्णय के विरुद्ध अपील प्रस्तुत किए जाने की अनुमति दे सकता है।

(ग) संवैधानिक मामले:
इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय में उन मामलों की अपील की जा सकती है जिनमें कोई उच्च न्यायालय किसी मामले को संविधान से जुड़ा पाए और उसे सर्वोच्च न्यायालयों में ले जाने की संस्तुति कर दे।

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प्रश्न 10.
अधीनस्थ न्यायालय से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts): अधीनस्थ न्यायालयों का संगठन देश भर में लगभग एक जैसा है। प्रत्येक जिले में प्रायः तीन प्रकार के न्यायालय होते हैं:
(क) दीवानी न्यायालय (Civil Courts)
(ख) फौजदारी न्यायालय (Criminal Courts) तथा
(ग) राजस्व न्यायालय (Reveme Courts) ये सभी न्यायालय राज्य के उच्च न्यायालय की देख-रेख में कार्य करते हैं।

(क) जिले के सबसे बड़े न्यायालय को जिला न्यायाधीश (DistrictJudge) का न्यायालय कहा जाता है। जिला न्यायाधीश दीवानी तथा फौजदारी दोनों प्रकार के मुकदमों पर अपने निर्णय देता है। दीवानी मामलों पर निर्णय देते समय उसे जिला न्यायाधीश तथा फौजदारी मुकदमों पर न्याय करते समय उसे सत्र न्यायाधीश (Session Judge) कहा जाता है। जिला न्यायालय में उप-न्यायाधीशों (Sub-judges) के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनी जाती है। दीवानी मुकदमों की सुनवाई करने के लिए जिला न्यायालय के अतिरिक्त उप न्यायाधीशों के न्यायालय, मुंसिफ न्यायालय तथा पंचायतें भी होती हैं।

(ख) फौजदारी मुकदमों (Criminal Cases) को सुनने के लिए सबसे छोटा न्यायालय ग्राम पंचायत है। पंचायत के पश्चात् प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट (Magistrates) के न्यायालय होते हैं। द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के मजिस्ट्रेटों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनने के लिए एक मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (Chief Judicial Magistrate) होता है। इन सबसे ऊपर सत्र न्यायाधीश (Session Judge) होता है।

(ग) राजस्व न्यायालयों (Revenue Courts) में सबसे छोटा न्यायालय नायब तहसीदार का न्यायालय होता है। उससे ऊपर तहसील का न्यायालय होता है। जिले में सबसे बड़ा राजस्व न्यायालय कलेक्टर या जिलाधीश (Collector) का न्यायालय होता है, जिसे कुछ राज्यों में डिप्टी कशिनर (Deputy Commissioner) भी कहा जाता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सर्वोच्च न्यायालय (उच्चतम न्यायालय) के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों को कैसे नियुक्त किया जाता है? उनकी योग्यताएँ भी लिखें।
उत्तर:
I. सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court): उच्चतम न्यायालय भारत का सबसे बड़ा न्यायालय है। सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीश होते हैं। (कुल 26 न्यायाधीश हैं।) इनकी संख्या घटाने बढ़ाने का अधिकार संसद के पास है।

II. न्यायाधीशों की नियुक्ति (Appointment of Judges): सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से परामर्श भी लेता है।

III. न्यायाधीशों की योग्यताएँ (Qualifications of Judges): सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) तथा अन्य न्यायाधीशों की योग्यताएँ निम्न प्रकार हैं:
1. भारत का नागरिक हो।
2. वह भारत के किसी उच्च न्यायालय में कम से कम पाँच वर्ष तक न्यायाधीश रह चुका हो।
अथवा
किसी उच्च न्यायालय में कम से कम 10 वर्ष तक वकील रह चुका हो।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य वायाधीशों की योग्यताएँ निम्न प्रकार हैं:
1. वह भारत का नागरिक हो।
2. वह कम से कम दस वर्ष तक जिला न्यायाधीश अथवा सेशन जज के पद पर कार्य कर चुका हो। अथवा वह दस वर्ष तक किसी राज्य के उच्च न्यायालय में वकील रह चुका हो।
3. राष्ट्रपति की दृष्टि में वह कानून का विद्वान हो।

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प्रश्न 2.
भारत में न्यायालयों का डाँचा या संरचना कैसी
उत्तर:
भारत में न्यायालयों का ढाँचा (Structure of the Courts in India): भारत में मुख्यतया तीन स्तरों पर विभिन्न न्यायालय कार्यरत हैं:
1. निचले स्तर की अदालतें या अधीनस्थ न्यायालय
2. उच्च न्यायालय
3. उच्चतम या सर्वोच्च न्यायालय

निचले स्तर पर बहुत सारी अदालते होती हैं। सबसे ऊपरी स्तर पर केवल एक अदालत है। जिन अदालतोंसे लोगों का सबसे ज्यादा ताल्लुक होता है उन्हें अधीनस्थ न्यायालय या जिला अदालत कहा जाता है। ये अदालतें आमतौर पर जिले या तहसील के स्तर पर या किसी शहर में होती है। ये अदालतें बहुत तरह के मामलों की सुनवाई करती है। प्रत्येक राज्य जिलों में बँटा होता है और हर जिले में एक एक जिला न्यायधीश होता है। प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होता है। यह अपने राज्य का सबसे ऊँचा न्यायालय होता है। उच्च न्यायालय से ऊपर सर्वोच्च न्यायालय होता है। यह देश का सबसे बड़ा न्यायालय है जो नई दिल्ली में स्थित हैं।

दीर्घ उनरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपीलीय क्षेत्राधिकार क्या है? उन तीन प्रकार की अपीलों की व्याख्या कीजिए जो उच्चतम न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय – सुप्रीम कोर्ट) में लाई जा सकती हैं।
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार (The Appealla7te Jurisdiction of the Supreme Court): संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को अपीलीय अधिकार भी दिये हैं:
(i) संवैधानिक (Constitutional):
जिन विवादों में संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून का प्रश्न निहित हो सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

(ii) दीवानी (Civil): सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे सभी दीवानी विवादों की अपील की जा सकती है जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रमाणित कर दिया जाए कि इस विवाद में कानून की व्याख्या से संबंधित प्रश्न निहित है।

(iii) फौजदारी (Criminal):
जिन विवादों में उच्च न्यायालय ने नीचे के न्यायालयों के निर्णयों के विपरीत मृत्युदंड दिया हो अथवा उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील के योग्य है उनकी सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

(iv) विशिष्ट (Special):
कुछ ऐसे मामले हो सकते हैं कि जो उपर्युक्त श्रेणी में नहीं आते लेकिन जिनमें सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप आवश्यक हो सकता है। जैसे कि सर्वोच्च न्यायालय किसी भी न्यायालय या ट्रिब्यूनल के निर्णय के विरुद्ध अपने यहाँ अपील की अनुमति दे सकता है।

HBSE 8th Class Social Science Solutions Civics Chapter 5 न्यायपालिका

प्रश्न 2.
हमारे देश में न्यायपालिका की क्या भूमिका?
उत्तर:
भारत में न्यायपालिका की भूमिका (The Role of the Judiciary in India):
भारत में न्यायपालिका की भूमिका को हम निम्नलिखित बिंदुओं में विभाजित कर सकते हैं:
1. विवादों का निपटारा (Dispute Resolution):
हमारे देश की न्यायपालिका नागरिक-नागरिकों के मध्य नागरिकों तथा सरकार के मध्य, दो राज्य सरकारों तथा केन्द्र या राज्य सरकार तथा केन्द्र के मध्य उठने वाले सभी विवादों का निपटारा करती है।

2. कानून की रक्षा तथा मौलिक अधिकारों की क्रियान्वयन (Upholding the Law and Enforcing Fundamental Rights):
देश का प्रत्येक नागरिक कानून की सर्वोच्चता बनाये रखने, उसकी सुरक्षा तथा उसके अनुसार मदद एवं अपने मौलिक अधिकारों के हनन होने पर सर्वोच्च न्यायालय तक जा सकता है। उदाहरण के लिए हाकिम शेख एक कृषि अमिक था। वह चलती रेलगाड़ी से गिर कर घायल हो गया था। अस्पतालों ने उसका इलाज करने से इंकार कर दिया था।

जब मामला देश के सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया तो माननीय न्यायालय ने संविधान की धारा 21 के अनुसार आदेश दिया कि जीवन का मौलिक अधिकार हर नागरिक को दिया गया है। इसी के अंतर्गत हर नागरिक को स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त करने का भी अधिकार है। न्यायालय ने पश्चिम बंगाल की सरकार को शेख साहिब को उचित क्षतिपूर्ति करने का ही आदेश नहीं दिया बल्कि यह भी हुक्म दिया कि वह प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था की रूपरेखा तैयार करे ताकि संकट की घड़ी में किसी को भी तुरंत चिकित्सा सहायता मिलनी ही चाहिए। जीवन के मौलिक अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार शामिल है।

3. न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review):
यदि केन्द्र या राज्य स्तर पर कोई भी विधायिका कोई ऐसा कानून बना दे जिसे उच्चतम न्यायालय यह मानता है कि वह कानून संविधान के मूलभूत ढाँचे की अवहेलना करता है या उनका हनन करता है तो वह उसे अवैध घोषित कर सकता है। इसे न्यायिक पुनरावलोकन कहते हैं।

प्रश्न 3.
सर्वोच्च न्यायालय ने हमारे देश में न्यायालयों को सभी की पहुँच तक लाने योग्य बनाने हेतु क्या-क्या कदम उठाये हैं?
अथवा
जनहित याचिका (PIL) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हमारे देश में सर्वोच्च न्यायालय ने देश के न्यायालयों को सभी की पहुँच तक लाने योग्य बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये हैं:
1. 1980 के दशक में इस सबसे बड़े न्यायालय ने जनहित याचिका दाखिल करने की प्रक्रिया को शुरू किया। इस कानूनी प्रक्रिया से न्यायालयों तक पहुँचना सभी के लिए बहुत ही सरल हो गया। इस व्यवस्था के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति निजी तौर पर या कोई भी संगठन (या समूह) किसी अन्य व्यक्ति/समुदाय या समूह की ओर से उच्च न्यायालयों या उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका डालकर उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा करने की मांग कर सकता है।

2. उच्चतम न्यायालय ने कानूनी प्रक्रिया को बहुत ही सरल बना दिया। यहाँ तक कि कोई भी पत्र या तार (टेलीग्राम) उच्च न्यायालयों या उच्चतम न्यायालय को संबोधित करके मामले की सुनवाई की मांग कर सकता है।

3. प्रारंभिक वर्षों में बड़ी संख्या में जनहित याचिकाएँ डाली गयीं ताकि बंधुआ मजदूरों को अमानवीय परिस्थितियों से छुड़ाया जा सके तथा उनके लिए न्याय प्राप्त किया जा सके। उन कैदियों या सजा भुगत रहे अपराधियों को भी खुली उवा पें माँस लेने के लिए जनहित यादिका डाली गई जो सजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी सलाखों के पीछे रह रहे थे।

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न्यायपालिका Class 8 HBSE Notes in Hindi

1. बरी करना (Acquit): इस शब्द का अर्थ है कि न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति को किसी आरोप से मुक्त करना जिस पर न्यायालय में मुकदमा चलाया गया हो।
2. अपील करना (To Appeal): इसका अर्थ है कि किसी उच्चतर न्यायालय में निम्नस्तरीय न्यायालय निर्णय के विरुद्ध अपील करना या प्रार्थना पत्र देना। ऐसी अपील प्रायः पूर्व सुने गये मुकदमे के विषय में दिए गए निर्णय के विरुद्ध की जाती है।
3. मुआवजा या क्षतिपूर्ति (Compensation): इस अध्याय में इस शब्द का प्रयोग उस धनराशि के लिए किया गया है जो किसी क्षति या नुकसान की भरपाई के लिए दी जाती है।
4. खाली कराना या बेदखली (Eviction): अध्याय के संदर्भ में इसका अर्थ है किसी व्यक्ति विशेष को उस भूमि या मकान हटा देना, जहाँ वह रह रहा हो।
5. हनन या उल्लंघन (Violation): इस अध्याय के संदर्भ में यह दोनों तरह के हनन की ओर संकेत करता है। यह हनन किसी कानून या कानूनी व्यवस्था का भी हो सकता है तथा मौलिक अधिकारों के विरुद्ध या उनके उल्लंघन से संबंधित हो सकता
6. न्यायाधीशों की संख्या (Number ofJulyws): आजकल सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय) में एक मुख्य न्यायाधीश या अन्य 25 न्यायाधीश है।
7. जज (न्यायाधीश) की नियुक्ति (Appointment of Judge): भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों को भारत का राष्ट्रपति नियुक्त करता है।
8. कार्यकाल (Tenure): एक सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश 65 वर्ष तक अपने पद पर बना रह सकता है।
9. सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ (Powers of the Supreme Court): हमारे देश में यह न्यायिक व्यवस्था के शिखर पर है। इसे संविधान द्वारा अनेक शक्तियों देकर बहुत ही शक्तिशाली बनाया गया है। (i) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार, (ii) अपीलीय क्षेत्राधिकार, (ii) परामर्शदात्री शक्तियाँ (Acivisory Powers) तथा (iv) न्यायिक समीक्षा आदि के अंतर्गत इसकी शक्तियाँ निहित हैं।
10. सिविल केस या दीवानी मुकदमें CHA Cases): जिन मुकदमों का संबंध संपत्ति, करों, समझौतों आदि से होता है।
11. फौजदारी मुकदमें (Criminal Ca): हिंसात्मक गतिविधियों वाले मुकदमें जैसे कि हत्या करना, चोरी करना, डाके डालना, बलात्कार आदि।
12. न्यायिक परिसीमा (Jurisdiction): इसका अर्थ है न्याय की वह सीमाएँ जिनके अंदर कोई अदालत अपने अधिकार का प्रयोग कर सकती है। अधिकार क्षेत्र भी कहते हैं।
13. अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction): निम्न न्यायालयों द्वारा किसी मुकदमें के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय जो अपीलें सुन सकते हैं, वह उसके अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है।
14. प्रारंभिक क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction): उस तरह के मुकदमें जो सीधे ही उच्चतम न्यायालय में दाखिल किये जा सकते हैं। इनके बारे में प्रत्यक्ष और अंतिम तौर पर सर्वोच्च न्यायालय को ही निर्णय देने का अधिकार होता है। इसे उच्चतम न्यायालय का प्रारंभिक क्षेत्राधिकार कहा जाता है।
15. रिकार्ड का न्यायालय (Court of Record): सर्वोच्च न्यायालय तथा सभी उच्च न्यायालयों को रिकार्ड या लेखा न्यायालय भी कहा जाता है क्योंकि इनमें जो भी मुकदमें सुने जाते हैं, उनसे संबंधित न्याय प्रक्रिया के दौरान हुई कार्यवाही संबंधी दस्तावेज तथा मुकदमों के बारे में दिए गये निर्णयों को रिकार्ड के रूप में रखा जाता है। कालांतर में जब उसी तरह का मुकदमा न्यायालय के सामने आये तो उन दस्तावेज संबंधी रिकार्डी तथा फैसले संबंधी प्रतिलिपियों का साक्ष्य या प्रकरण के रूप में प्रत्यक्ष प्रयोग होता है या उन्हें प्रमाणों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
16. लोक अदालत (Lok Adalat): लोक अदालत का अर्थ है लोगों का न्यायालय। इनकी स्थापना का उद्देश्य गरीबों को कम खर्च में न्याय देना, पिछड़े तथा दलितों को शीघ्र न्याय प्रदान करना तथा न्याय में हो रही देरी को रोकना है। इन न्यायालयों का प्रयोग उन लोगों या समूहों द्वारा किया जा सकता है जो तुरंत क्षतिपूर्ति एवं अपने हितों की रक्षा के लिए तैयार में रहते हैं या दोनों पक्ष पारस्परिक सहमति से अपने मुकदमों को शीघ्र निपटाना चाहते हैं।
17. भारत में उच्च न्यायालयों की संख्या: 21
18. जनहित याचिका अथवा पी.आई.एल. (PIL): एक जनहित याचिका अदालत से शीघ्र व सस्ता न्याय पाने के लिए एक तार या पत्र द्वारा भी दी जा सकती है।

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