Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए
HBSE 8th Class Hindi क्या निराश हुआ जाए Textbook Questions and Answers
आपके विचार से
पाठ 7 क्या निराश हुआ जाए’ के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है, फिर भी वह निराश नहीं है। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
उत्तर:
लेखक इस तथ्य को स्वीकार करता है कि लोगों ने कई अवसरों पर उसे भी धोखा दिया है, पर वह इसी को सभी पर लागू नहीं करना चाहता। स्थिति चिंताजनक अवश्य है, पर निराश होकर बैठ जाने वाली नहीं है। जैसी स्थिति है, उसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाया जाता है। लेखक आशावादी है, वह कुछ बुरे लोगों के आधार पर भविष्य को अंधकारमय नहीं देखता। अभी भी उसका विश्वास जीवन के महान मूल्यों में बना हुआ है। यही कारण है कि वह निराश नहीं है।
HBSE 8th Class Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए प्रश्न 2.
समाचारपत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविजन पर आपने ऐसी अनेक घटनाएं देखी-सुनी होंगी जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की हो या ईमानदारी से काम किया हो। ऐसे समाचार तथा लेख एकत्रित करें और कम से कम दो घटनाओं पर अपनी टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
विद्यार्थी इस प्रकार के समाचार तथा लेख एकत्रित
दो घटनाएँ:
1. पिछले दिनों एक रेलगाड़ी दूसरी खड़ी रेलगाड़ी से बल्लभगढ़ (हरियाणा) के निकट जा टकराई थी। इस टक्कर में शुरू के चार डिब्बे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे। यद्यपि रात का समय था फिर भी दुर्घटना की खबर निकटवर्ती क्षेत्र में तेजी से फैल गई। ग्रामीण लोग अपने-अपने वाहन लेकर घटनास्थल पर आ गए।
सरकारी सहायता तो काफी विलंब से पहुंची, पर ग्रामीणों ने घायलों को निकाल-निकाल कर निकटवर्ती अस्पतालों तक पहुंचाया। उनके इस काम में उनका कोई लालच न था बल्कि उन्होंने मानवीय दृष्टिकोण से यह काम किया था। उनकी तत्परता से कई लोगों की जान बच सकी।
2. दूसरी घटना दिल्ली के महरौली रोड पर घटी। एक मोटर साइकिल सवार को एक कार ने जबर्दस्त टक्कर मारी और भाग गई। बाइक पर पति-पत्नी सवार थे। वे बेहोश, लहू-लुहान अवस्था में दूर जा गिरे थे। तभी एक जीप आकर रुकी। उसमें से दो-तीन व्यक्ति उतरे और घायलों को जीप में लिटाकर सफदरजंग अस्पताल तक ले गए। उन लोगों ने भी यह काम इंसानियत के वशीभूत होकर किया था। उन्हें किसी प्रकार का लालच न था।
प्रश्न 3.
लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई है। आप भी अपने या अपने किसी परिचित के साथ हुई किसी घटना के बारे में बताइए जिसमें किसी ने बिना किसी स्वार्थ के भलाई, ईमानदारी और अच्छाई के कार्य किए हों।
उत्तर:
लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे के टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई है। हमारे जीवन में भी ऐसी घटनाएं घटित होती रहती हैं। पिछले सप्ताह की ही बात है। मैं डी.टी.सी. की बस में सफर कर रहा था कि एक व्यक्ति एक महिला के हाथ से पर्स छीन कर बस से उतर कर भाग निकला। वह महिला सहायता की गुहार लगाती रही, पर लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया।
तभी बस के कंडक्टर ने बस रुकवाई और उत्तर कर उस ठग के पीछे भागने लगा। काफी दूर जाने के बाद कंडक्टर ने उस ठग को पकड़ लिया। तब तक बस भी उस तक पहुंच चुकी थी। उसने उसे धक्का देकर बस में चढ़ाया और बस को पास के थाने में ले गया। वहाँ उसे पुलिस के हवाले किया तथा पर्स उस महिला को दिलवा दिया। सभी सवारियों ने उसके साहस एवं ईमानदारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसने अपने कर्तव्य का पालन बिना किसी लालच के किया था।
पर्दाफाश
प्रश्न 1.
दोषों का पर्दाफाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?
उत्तर:
दोषों का पर्दाफाश करना तब बुरा रूप ले लेता है जब हम इसमें रस लेने लगते हैं। दूसरे के दोषों का उल्लेख चटखारे लेकर नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 2.
आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ कर रहे हैं। इस प्रकार समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए।
उत्तर:
आजकल बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल दोषों का पर्दाफाश कर रहे हैं। हमारे विचार से उनके इस काम का असली कारण अपनी TRP को बढ़ाना है। वे ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुँचने के लिए कई बार पर्दाफाश के नाम पर बात का बतंगड़ बना डालते हैं। जैसे दिल्ली में एक शिक्षिका के बारे में किया गया।
कारण बताइए
निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं ? आपस में चर्चा कीजिए-
उत्तर:
जैसे:”ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है।” परिणाम-भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
1. “सच्चाई केवल भीरू और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।” ……………………
उत्तर:
परिणाम = झूठ का बोलबाला बढ़ेगा, वे ही फले-फूलेंगे। ……………………
2. “झूठ और फरेब का रोजगार करनेवाले फल-फूल रहे हैं।” ……………………
उत्तर:
परिणाम = ईमानदारी की प्रवृत्ति घटती चली जाएगी। ……………………
3. “हर आवमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।”? ……………………
उत्तर:
दोष ज्यादा दिखता है जैसे कालिमा ज्यादा फैलती है। गुणों की चर्चा हम कम करते हैं।
दो लेखक और बस यात्रा
आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पड़ा। इससे पहले भी आप एक बस यात्रा के बारे में पड़ चुके हैं। यदि दोनों बस-यात्राओं के लेखक आपस में मिलते, तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी बातें बताते ? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए।
उत्तर:
पहली बस-यात्रा का लेखक: अरे भाई, हमारी बस तो पहले से ही खटारा लग रही थी। तुम्हारी बस को क्या हो गया?
दूसरी बस-यात्रा का लेखक: हमारी बस भी रुक-रुक कर चल रही थी। अब सुनसान जगह पर आकर बिल्कुल ही रुक
पहली बस-यात्रा का लेखक: हमारी बस का ड्राइवर बड़ा होशियार है। उसने इंजन तक पेट्रोल पहुंचाने का अनोखा उपाय खोज निकाला।
दूसरी बस-यात्रा का लेखक: हमारी बस का कंडक्टर बहुत होशियार है। वह बस अड्डे जाकर नई बस ले आया। साथ ही बच्चों के लिए एक लाटे में दूध भी ले आया।
सार्थक शीर्षक
1. लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा ? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?
उत्तर:
यह शीर्षक इसलिए रखा गया होगा क्योंकि लेखक लोगों के मन से निराशा की भावना को निकालना चाहता है।
अन्य शीर्षक-आशावादी दृष्टिकोण।
2. यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए गए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएंगे ? अपने चुनाव का कारण भी बताइए। -, । .! ? . । = ।…. ।
उत्तर:
क्या निराश हुआ जाए ?
यहाँ प्रश्नवाचक चिह्न उपयुक्त है क्योंकि कवि ने प्रश्नात्मक लहजे में शीर्षक का नाम रखा है। इसका अप्रत्यक्ष अर्थ निकलता है-निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
3. “आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत । हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
हाँ, यह बात सही है कि आदर्शों की बात करना तो आसान है। पर उन पर चलना बहुत कठिन है। आदशों पर चलना कष्टों और बाधाओं को आमंत्रण देना है। हम फिर भी यही कहेंगे कि आदर्शों पर चलकर ही हम अपने व्यक्तित्व को एक नया रूप दे पाएंगे। आदशों से हटकर जीना तो समझौतावादी हो जाएगा। कुछ अच्छा पाने के लिए कष्ट झेलने ही पड़ते हैं।
सपनों का भारत
“हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।”
1. आपके विचार से हमारे महान विद्वानों ने किस तरह के भारत के सपने देखे थे? लिखिए।
2. आपके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए है? लिखिए।
उत्तर:
1. हमारे विचार से हमारे महान विद्वानों ने एक ऐसे भारत के सपने देखे थे जिसमें ईमानदारी, मेहनत, सच्चाई आदि मानवीय आदर्शों की प्रतिष्ठा होगी। यहाँ ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय नहीं समझा जाएगा। लोगों की जीवन के महान मूल्यों में आस्था बनी रहेगी।
2. हमारे सपनों का भारत ऐसा है जिसमें श्रम, ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता हो। मेरे भारत में हेरा-फेरी करने वालों की कोई जगह नहीं होगी। मेरे सपनों के भारत में कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा, स्वास्थ्य की उन्नत अवस्थाएं होंगी। सभी को सुख-सुविधाएँ पाने का अधिकार होगा।
भाषा की बात
1. दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार है- द्वंद्व समास। इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं। जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में द्वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता, जैसे-चरम और परम = चरम-परम, भीरू और बेबस = भीरू-बेबस। दिन और रात = दिन रात।
‘और’ के साथ आए शब्दों के जोड़े को ‘और’ हटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। द्वंद्व समास के बारह उदाहरण ढूँढकर लिखिए।
उत्तर:
द्वंद्व समास के उदाहरण:
1. भाई-बहन
2. दाल-रोटी
3. माँ-बाप
4. भीम-अर्जुन
5. सच्चा -झूठा
6. पाप-पुण्य
7. पी-शक्कर
8. पति-पत्नी
9. दाल-चावल
10. सुख-दुःख
11. नर-नारी
12 ऊंच-नीच
2. पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर:
- व्यक्तिवाचक संज्ञा: रवीन्द्रनाथ ठाकुर, तिलक, महात्मा गाँधी, भारतवर्ष।
- जातिवाचक संज्ञा: समाचारपत्र, समुद्र, कानून, बीमार, मनुष्य, ड्राइवर, कंडक्टर, नौजवानों, यात्री बस।
- भाववाचक संज्ञा: उगी, डकैती, तस्करी, चोरी, ईमानदारी, स्वास्थ्य, विनम्रता।
HBSE 8th Class Hindi क्या निराश हुआ जाए Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार आज के समाज में कौन-कौन सी बुराइयाँ दिखाई देती हैं ?
उत्तर:
लेखक के अनुसार आज के समाज में निम्नलिखित बुराइयाँ दिखाई देती हैं:
- ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार की बुराइयाँ।
- लोग एक-दूसरे के दोष ढूँढते हैं और उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाते हैं।
- सभी को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है।
प्रश्न 2.
क्या कारण है कि आज हर आदमी में दोष अधिक दिखाई दे रहे हैं और गुण कम?
उत्तर:
आजकल कुछ माहौल ऐसा बन गया है कि ईमानदारी से जीविका चलाने वाले पिस रहे हैं और झूठ-फरेब का सहारा लेने वाले फल-फूल रहे हैं। जो आदमी कुछ करता है उसमें दोष खोजे जाते हैं जबकि कुछ न करने वाला सुखी रहता है। आजकल काम करने वाला हर आदमी दोषी दिखाई देता है। उसके गुणों को भुला दिया जाता है।
प्रश्न 3.
लेखक दोषों का पर्दाफाश करते समय किस बात से बचने के लिए कहता है ?
उत्तर:
लेखक दूसरे के दोषों का पर्दाफाश करते समय उसमें रस लेने की प्रवृत्ति से बचने के लिए कहता है। उसे दोष को सामान्य ढंग से ही कहना चाहिए, चटखारे लेकर नहीं।
प्रश्न 4.
कुछ यात्री बस-ड्राइवर को मारने के लिए क्यों उतारू थे ?
उत्तर:
कुछ यात्री बस-ड्राइवर को मारने को इसलिए उतारू थे, क्योंकि उनके विचार से ड्राइवर ने जान-बूझकर बस खराब कहकर रोक दी थी। जब कंडक्टर चुपचाप चला गया तो उन्होंने समझा कि ड्राइवर ने उसे डाकुओं को बुलाने के लिए भेजा है।
प्रश्न 5.
टिकट-चेकर के चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा लेखक को चकित क्यों कर गई ?
उत्तर:
एक बार टिकट लेते समय लेखक ने भूल से बाबू को दस रुपए की जगह सौ का नोट दे दिया। टिकट लेकर वह निश्चिंत होकर रेल के डिब्बे में जा बैठा। बहुत देर बाद टिकट बाबू उसे ढूँढता हुआ आया। उसने लेखक को नब्बे रुपये लौटा दिए और कहा, ‘अच्छा हुआ आप मिल गए।’ उस समय उस बाबू के मुख पर विचित्र संतोष का भाव था। लेखक को इस ईमानदारी पर आश्चर्य हुआ।
प्रश्न 6.
जीवन के महान् मूल्यों के बारे में हमारी आस्था क्यों हिलने लगी है ?
उत्तर:
आज ऐसा वातावरण बन गया है कि ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले भोले लोग पिस रहे हैं और झूठ-फरेब से जीविका चलाने वाले चालाक लोग मौज-मजे उड़ा रहे हैं। सच्चाई सिर्फ बेबस और डरपोक लोगों का काम समझा जाता है। यही कारण है कि जीवन के महान् मूल्यों पर हमारी आस्था डगमगाने लगी है।
प्रश्न 7.
हमारे महापुरुषों के सपने के भारत का क्या स्वरूप था ?
उत्तर:
हमारे महापुरुषों के सपने के भारत का स्वरूप ऐसा था जिसमें धर्म को कानून से बड़ा माना गया था। उसके मूल्य थे-सेवा, ईमानदारी, सच्चाई, आध्यात्मिकता। इस स्वरूप में मनुष्य मात्र से प्रेम था, महिलाओं का सम्मान होता था तथा झूठ और चोरी को गलत समझा जाता था।
प्रश्न 8.
भ्रष्टाचार आदि के विरुद्ध आक्रोश करना किस बात को प्रमाणित करता है ?
उत्तर:
भ्रष्टाचार आदि के विरुद्ध आक्रोश प्रकट करना इस बात को प्रमाणित करता है कि हम ऐसी चीज को गलत समझते हैं और समाज में उन तत्त्वों की प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं, जो गलत तरीके से धन या मान संग्रह करते हैं।
प्रश्न 9.
जो आज ऊपर-ऊपर दिखाई दे रहा है वह कहाँ तक मनुष्य निर्मित नीतियों की त्रुटियों की देन है?
उत्तर:
आज समाज में जो कुछ ऊपर-ऊपर से खराब दिखाई दे रहा है वह मनुष्य द्वारा बनाई गई गलत नीतियों का ही दुष्परिणाम है। मनुष्य की बनाई नौतियाँ कई बार समय-सीमा पर खरी नहीं उतरती अतः उन्हें बदलने की आवश्यकता उपस्थित हो जाती है। कभी-कभी ये परीक्षित आदर्शों से टकराते हैं अत: निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 10.
“वर्तमान परिस्थितियों में हताश हो जाना ठीक नहीं है।” इस कथन की पुष्टि में लेखक ने क्या उदाहरण दिए हैं ?
उत्तर:
पहला उदाहरण: एक बार लेखक टिकट लेते समय दस रुपए की जगह सौ रुपए का नोट दे बैठा। जब वह रेल के डिब्बे में बैठ गया तो बहुत देर बाद क्लर्क ढूँढता-ढूँढता वहाँ आया। उसने लेखक को नब्बे रुपए देते हुए कहा-‘अच्छा हुआ आप मिल गए।’
दूसरा उदाहरण: एक बार लेखक परिवार सहित बस में , कहीं जा रहा था। रात का समय था और रास्ता बहुत खराब था। अचानक एक सुनसान स्थान पर बस खराब हो गई। बस के कंडक्टर ने बस की छत से साइकिल उतारी और कहीं चला गया। यात्री बहुत घबराए। उन्होंने सोचा कि डाकुओं को बुलाने गया है।
सभी यात्रियों ने ड्राइवर को बस से नीचे उतार कर पौटने का निश्चय किया। उनका कहना था कि ड्राइवर ने जान-बूझकर बस रोकी है। वह डाकुओं से मिला हुआ है। लेखक ने ड्राइवर को पीटने से तो बचा लिया, पर मन-ही-मन वह भी डरा हुआ था। उसके बच्चे भूखे और प्यासे चिल्ला रहे थे। तभी सामने से एक खाली बस आई जिसमें उनकी बस का कंडक्टर भी था। कंडक्टर ने आते ही कहा: आप लोगों के लिए दूसरी बस ले आया हूँ। पहली बस तो चलने लायक नहीं थी। इस पर सभी ने कंडक्टर को धन्यवाद दिया और ड्राइवर से क्षमा मांगी। ऐसे अनेक उदाहरण जीवन में मिल जाते हैं, इसलिए निराश होने का कारण नहीं।
प्रश्न 11.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने भगवान से क्या प्रार्थना की और क्यों ?
उत्तर:
रवींद्रनाथ ठाकुर ने भगवान से यह प्रार्थना की कि “संसार में केवल नुकसान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े तो ऐसे अवसरों पर भी हे प्रभो! मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं तुम्हारे ऊपर संदेह न करूं।” उन्होंने ऐसी प्रार्थना इसलिए की क्योंकि वे धोखा तो खा सकते थे, पर किसी को धोखा देना नहीं चाहते थे।
प्रश्न 12.
‘महान भारत को पाने की संभावना बनी हुई है और बनी रहेगी।’ लेखक के इस कथन से हमें क्या संदेश मिलता है?
तर:
लेखक के इस कथन से हमें यह संदेश मिलता है कि भारतवर्ष महान था, अब भी महान है। हमें आशावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में भी निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए:
(क) सामाजिक कायदे-कानून कभी-कभी बुग-युग से परीक्षित आवशों से टकराते हैं।
उत्तर:
मनुष्य-बुद्धि ने परिस्थितियों का सामना करने के लिए कुछ कायदे-कानून बनाए हैं। ये कायदे-कानून सबके लिए बनाए जाते हैं, पर सबके लिए एक ही प्रकार के नियम सुखकर नहीं होते। ये कायदे-कानून कभी-कभी युगों से चले आ रहे जींचे-परखे आदशों से मेल न खाने से टकराते हैं। ऐसा होता आया
(ख) व्यक्ति-चित्त सब समय आवर्शों द्वारा चालित नहीं होता।
उत्तर:
व्यक्ति का चित्त हर समय आदर्शों के अनुसार ही नही चलता। मनुष्य के मन में लोभ, मोह जैसे विकार भी होते हैं, वे उस पर कई बार हावी हो जाते हैं। उस स्थिति में आदर्श पीछे रह जाते हैं।
(ग) धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता है, कानून को बिया जा सकता है।
उत्तर:
भारतवर्ष कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा था, पर अब इस स्थिति में अंतर आ गया है। अब एसा माना जान लगा है कि धर्म तो पवित्र है अत: उसे धोखा नहीं दिया जा सकता। धर्मभीरु लोग भी कानून को धोखा दे देते हैं।
(घ) महान् भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी।
उत्तर:
इसका आशय यह है कि भारतवर्ष की महानता को फिर से स्थापित करना कठिन नहीं है। उसे महान बनाया जा सकता है। हमें वर्तमान परिस्थितियों में निराश नहीं होना चाहिए। वर्तमान कमियाँ क्षणिक हैं, इन पर काबू पाया जा सकता है।
प्रश्न 14.
‘बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है।’ क्यों ?
उत्तर:
सामान्यतः लोग दूसरों की बुराई करने में रस लेते हैं। इसमें उन्हें एक खास प्रकार का मजा आता है। यह एक बुरी प्रवृत्ति है। हम दूसरों की अच्छी बातों को उतनी रुचि के साथ प्रकट नहीं करते, जबकि हमें ऐसा करना चाहिए। अच्छी बातों को प्रकट करना हमारा कर्तव्य है।
प्रश्न 15.
‘क्या निराश हुआ जाए’ पाठ के शीर्षक से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर:
इस पाठ के शीर्षक से हम पूरी तरह सहमत हैं। इसका कारण यह है कि लेखक वर्तमान निराशाजनक परिस्थितियों से लोगों को उबारना चाहता है। वह प्रश्न करके अपनी चिंता अभिव्यक्त करता है। इस शीर्षक का तात्पर्य है- निराश होने की आवश्यकता नहीं है। यह शीर्षक पूरी तरह उचित है।
प्रश्न 16.
किस प्रकार के आचरण को निकृष्ट (घटिया) कहा गया है?
उत्तर:
जो लोग गरीबों के कल्याण के लिए सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं के लिए मिले धन को बीच में ही हड़प लेते हैं.ऐसे नेताओं और अधिकारियों के जीवन को लेखक ने निकृष्ट (नीचतापूर्ण) कहा है।
प्रश्न 17.
‘उनके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया।’ उपर्युक्त पंक्तियों में संकेतित घटना का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर:
एक बार टिकट लेते समय लेखक ने भूल से बाबू को दस रुपये की जगह सौ का नोट दे दिया। टिकट लेकर वह निश्चिंत होकर रेल के डिब्बे में जा बैठा। बहुत देर बाद टिकट बाबू उसे ढूंढता हुआ आया। उसने लेखक को नब्बे रुपये लौटा दिए और कहा, ‘अच्छा हुआ आप मिल गए’। उस समय उस बाबू के मुख पर विचित्र संतोष का गौरव था। लेखक को इस ईमानदारी पर आश्चर्य हुआ।
प्रश्न 18.
समाज में पाई जाने वाली अच्छाइयों में से एक अच्छाई नीचे दी गई है। ऐसी ही तीन अच्छाइयाँ और बताइए समाज महिलाओं का सम्मान करता है।
उत्तर:
अन्य अच्छाइयाँ:
(क) दूसरों की सेवा करने को प्रशंसनीय गुण माना जाता है।
(ख) ईमानदारी की सर्वत्र प्रशंसा की जाती है।
(ग) आध्यात्मिकता को गुण माना जाता है।
प्रश्न 19.
जीवन के मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था क्यों हिलने लगी है ? सही उत्तर छाँटिए:
(क) मानवीय मूल्य के अर्थ बदल गए हैं।
(ख) गाँधी और तिलक का भारत अतीत में डूब गया है।
(ग) श्रमजीवी पिस रहे हैं और फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं।
(घ) आज मानवीय मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं रह गया है।
उत्तर:
(ग) श्रमजीवी पिस रहे हैं और फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं।
क्या निराश हुआ जाए गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने यह समझाने का प्रयास किया है कि हमें जीवन में निराश नहीं होना चाहिए। जीवन के प्रति आशावान बने रहना चाहिए।
व्याख्या:
लेखक का कहना है कि समाचार-पत्रों में विभिन्न प्रकार की बुराइयों के समाचार पढ़कर मन में निराशा आ जाना स्वाभाविक है। चोरी-डकैती, ठगी, तस्करी और भ्रष्टाचार आदि के समाचारों से अखबार भरे रहते हैं। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाता है, बदले में दूसरा व्यक्ति भी वैसा ही करता है।
इस स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि कोई भी आदमी ईमानदार नहीं रह गया है। सभी बेईमान प्रतीत होते हैं। अब हर आदमी, संदेह के घेरे में है। किसी के प्रति आदर-सम्मान रह ही नहीं गया है।
2. यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरू और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक वसंत भाग-3 में संकलित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित हैं। इसके रचयिता हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं।
व्याख्या:
लेखक का कहना है कि भारत का वर्तमान माहौल कुछ निराशाजनक दिखाई देता है। इस माहौल में ईमानदार और मेहनती लोगों को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है। मेहनतकश वर्ग पिस रहा है। इन्हें रोजी-रोटी कमाने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। झूठे एवं धोखेबाज फलते-फूलते नजर आ रहे हैं।
वर्तमान समय में ईमानदारों को मूर्ख समझा जाने लगा है। जो लोग डरपोक और बेबस हैं वे ही सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं। ऐसा वातावरण लोगों को जीवन मूल्यों से डिगाने में सहायक हो रहा है। अब उन मूल्यों से लोगों का विश्वास ही खत्म होता जा रहा है। यह स्थिति सुखद नहीं है।
3. भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है। उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान् आंतरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारों पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक वसंत भाग-3 में संकलित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित हैं। इसके रचयिता हैं-हजारी प्रसाद द्विवेदी। इसमें लेखक ने यह समझाने की कोशिश की है कि हमें वर्तमान परिस्थितियों में निराश नहीं होना चाहिए।
व्याख्या:
लेखक बताता है कि भारतवर्ष में सुख-सुविधाओं की वस्तुओं को जमा करने को कभी महत्त्वपूर्ण नहीं माना गया। यहाँ आध्यात्मिक ज्ञान को पाने का प्रयास किया गया है। मनुष्य के अंदर जो आत्मा के रूप में परम सत्ता विराजमान है उसी को पाने का लक्ष्य रखा गया है तथा उसी को महान माना गया है।
यह सत्य है कि व्यक्ति के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार (बुराइयाँ) विद्यमान रहते हैं. पर उन्हें मुख्य ताकत नहीं मान लेना चाहिए। यदि हम अपने मन और बुद्धि को उन्हीं के इशारों पर चलाने लगेंगे तो यह बहुत घटिया बात होगी। हमें तो इन विकारों पर अपना नियंत्रण रखना है। इन्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है।
4. दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उघाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई को उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-3’ में संकलित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित है। लेखक वर्तमान स्थिति की समीक्षा करते हुए कहता है:
व्याख्या:
दोषों अर्थात् बुराइयों को उजागर करने में कोई गल्लत बात नहीं है, पर ऐसा करते समय हमें उसमें रस नहीं लेना चाहिए। किसी के गलत व्यवहार को सबके सामने बताते समय उसे सामान्य ढंग से ही कहना चाहिए उसे चटखारे लेकर नहीं सुनाना चाहिए। केवल दोषों को उद्घाटित करना ही हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए। यदि किसी की बुराई में तुम रस लेते हो तो उसकी अच्छी बात को भी उतना ही रस लेकर प्रकट करो। यदि तुम ऐसा नहीं करते तो यह एक बुरी प्रवृत्ति है। दूसरों की अच्छाई को भी प्रकट करना चाहिए।
5. कैसे कहूँ कि मनुष्यता एकदम समाप्त हो गई। कैसे कहूँ कि लोगों में दया-माया रह ही नहीं गई। जीवन में न जाने कितनी ऐसी घटनायें हुई हैं जिन्हें मैं भूल नहीं सकता।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-3’ में संकलित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित है। लेखक वर्तमान स्थिति की समीक्षा करते हुए हमसे निराश न होने के लिए कहता है:
व्याख्या:
लेखक के पास ऐसे पर्याप्त उदाहरण मौजूद हैं जो उसे जीवन के प्रति आस्थावान बनाते हैं। लेखक का मत है कि अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है। कि हम मान बैठे कि मनुष्यता बिल्कुल ही समाप्त हो गई है। ऐसा भी कोई कारण दृष्टिगोचर नहीं होता कि हम यह मान बैठे कि लोगों में दया-माया शेष नहीं रह गई है। लेखक के मन-मस्तिष्क पर अनेक ऐसी घटनाएं उपस्थित हैं। जिन्हें वह कभी नहीं भुला सकता अर्थात् उन घटनाओं से वह इतना अधिक अभिभूत है कि उसे विश्वास होता है कि अभी तक समाज में अच्छे लोगों की कमी नही है।
6. ठगा भी गया हूँ, धोखा भी खाया है, परंतु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज मिलती है। केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो जाएगा, परंतु ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण सहायता की है, निराश मन को डाँढस दिया है और हिम्मत बंधाई है।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने वर्तमान परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए आशावादी दृष्टिकोण अपनाने का परामर्श दिया है।
व्याख्या:
लेखक बताता है कि उन्हें स्वयं भी अनेक बार दूसरों ने ठगा है। वे कई बार धोखा भी खा गए हैं। इसके बावजूद विश्वासघात जैसी बात बहुत कम मौकों पर देखने को मिली है। हमें केवल उन्हीं बातों को याद नहीं रखना जिनमें हमने धोखा खाया है। यदि ऐसा किया गया तो हमारा जीवन मुसीबतों से भर जाएगा। हमें अच्छी बातों को ही स्मरण रखना चाहिए। जीवन में ऐसे अवसर भी काफी आते हैं जब दूसरे लोग बिना किसी स्वार्थ के हमारी सहायता करते हैं और मुसीयत की घड़ी में हमारी हिम्मत बंधाते हैं।
भाव यह है कि हमें बुरी बातों को भुलाकर अच्छी बातों को याद रखना चाहिए। इसी से हमारा जीवन सुखमय बन सकेगा।
क्या निराश हुआ जाए Summary in Hindi
क्या निराश हुआ जाए पाठ का सार
हर रोज हम समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी, भ्रष्टाचार आदि के समाचार पढ़ते हैं। लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी नहीं रहा। परंतु लेखक का मत है कि निराश होने की आवश्यकता नहीं। भारत महान था और रहेगा।
एक बड़े आदमी ने लेखक से कहा कि देश में फैली बुराइयों का सबसे बड़ा कारण यह है कि यहाँ जो खून-पसीना एक करके काम करता है, वह भूखों मरता है, धोखे से काम करने, और कुछ काम न करने वाले मौज उड़ाते हैं।
हमारे बनाए कानूनों में भी कुछ भूलें हैं। एक ओर शताब्दियों से चली आई भावनाएँ और मर्यादाएँ हैं, दूसरी ओर गरीबों की भलाई के लिए बनाए गए नये-नये कानून हैं। पुरानी मर्यादाओं और नए कानूनों में जब विरोध और टकराव होता है, तो स्थिति बिगड़ती है।
संसारी सुखों और बाहरी दिखावे को बहुत अधिक महत्त्व देने से भी भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है। भारत में धन को इतना महत्त्व कभी नहीं दिया गया और रिश्वत, लोभ, मोह आदि को कभी अच्छा नहीं माना गया।
यहाँ करोड़ों पिछड़े हुए और कंगाल लोगों की दशा सुधारने के लिए जो प्रयत्न कृषि, दस्तकारी और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे हैं, उनसे वास्तविक उद्देश्य पूर्ण नहीं हो रहा। सारा लाभ बीच के अधिकारी (अफसर) और चालाक धूर्त हड़प लेते हैं। . जितने कानून बनते हैं, उतने उनके छिद्र ढूँढकर, उनसे बचने के उपाय सोच लिए जाते हैं। कुछ लोग लोभ-मोह को ही सब कुछ मानने लगे हैं। पुराने अच्छे आदर्शों और संस्कारों को रूढ़िवादी और घिसा-पिटा मानकर उनकी खूब निंदा की गई। इससे भ्रष्टाचार बढ़ गया।
उपाय: लेखक का मत है कि केवल कानून बनाने और उसके भय से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता। भारत की परंपरा के अनुसार कानून से धर्म को अधिक मान दिया जाना चाहिए। लोग कानून से उतना नहीं डरते, जितना धर्म से डरते हैं। ईमानदारी, दया, सहानुभूति, सत्य, सेवा और भक्ति को अधिक महत्त्व दिया जाए। समाचार पत्रों में जो भ्रष्टाचार के समाचार छपते हैं, उनसे पता चलता है कि लोग तस्करी, रिश्वत, लूटमार आदि से दुःखी और परेशान हैं।
लेखक का कहना है कि बुरे कामों व अनुचित तरीकों का भंडाफोड़ करना अच्छी बात है, पर लोग इन बुरी बातों को पढ़ने में स्वाद (मजा) लेते हैं और यह बहुत बुरी बात है। देश में सैकड़ों अच्छी बातें, ईमानदारी और सच्चाई की घटनाएं होती हैं। पर उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। एक बार लेखक टिकट खरीदते हुए भूल से दस रुपये की जगह सौ का नोट दे आया। बहुत देर बाद टिकट क्लर्क ने ढूंढते हुए आकर उसके नब्बे रुपये लौटाए। एक बार वह परिवार सहित बस द्वारा कहीं जा रहा था। रात थी, जंगल था, डाकुओं का डर था। बस रुकी । कंडक्टर उसकी छत से साइकिल उतारकर कहीं चला गया। लोगों ने समझा, वह डाकुओं को बुलाने गया है।
लोग ड्राइवर को पीटने को उतारू हो गए। लेखक ने ड्राइवर को बचाया। बहुत देर बाद सामने से खाली बस आई। उसी में लेखक वाली बस का कंडक्टर भी था। कंडक्टर ने कहा-यह बस चलने लायक नहीं थी। वह शहर से दूसरी बस लाया है। लेखक ने जीवन में कई बार धोखा खाया, परंतु इसके विपरीत उसे ईमानदार, साहसी और सहारा देने वाले लोग अधिक मिले। इसलिए निराश नहीं होना चाहिए।
क्या निराश हुआ जाए शब्दार्थ
आरोप = दोष (allegation), गुण = विशेषता (quality), अतीत = पुराना बीता हुआ (past), गह्वर = गुफा, गहराई (cave, deep), आदर्श = अनुकरणीय (Ideal), मनीषियों = चिंतन करने वाले (thinker), माहौल = वातावरण (atmosphere), जीविका = गुजारा (livelihood), श्रमजीवी = मेहनत पर जीने वाले (labourer), मूर्खता = बेवकूफी (foolishness), पर्याय = उसी जैसा (synonym), भीरू = डरपोक (coward), आस्था = विश्वास (belief), त्रुटि = भूल (error), विधि = नियम (rule), निषेध = रोक (prohibited), परीक्षित = जाँचे हुए (tested), हताश = निराश (distress), संग्रह में जोड़ना (collection), आंतरिक = भीतरी (internal), विद्यमान = मौजूद (present), प्रधान शक्ति = मुख्य ताकत (main power), निकृष्ट = घटिया (below standard), आचरण , बर्ताव (behaviour), संयम = काबू से (control), प्रयत्न = कोशिश (effort), दरिद्र = गरीब (poor), अवस्था = हालत (condition), लक्ष्य = ध्येय (aim), विस्तृत = अधिक फैले हुए (wide), विकार = बुराई (bad element), मजाक = हँसी (mockery), उपयोगी = लाभदायक (useful), पर्याप्त = काफी (sufficient), प्रमाण = सबूत (evidence), नष्ट = समाप्त (destroy), पीड़ा = दु:ख (pain), आक्रोश = गुस्सा (anger), पर्दाफाश = कलई खोलना (exposed), उजागर = स्पष्ट (clear), चकित = हैरान (surprise), लुप्त = गायब (disappear),अवांछित = जो चाही न जाएँ (unwanted), निर्जन = जहाँ कोई आदमी न हो (lonely), भयभीत = डरा हुआ (terrorised), व्याकुल = बेचैन (restlessness), विश्वासघात = धोखा (treachery), अकारण = बिना वजह (without reason), ज्योति = रोशनी की लौ (light), संभावना = उम्मीद (possibility), निरीह = असहाय, बेचारा (helpless), मूल्य = जीवन मूल्य आदर्श (values of life), विधि-निषेध = करने न करने के नियम, आलोड़ित = उथल-पुथल, हिलोरें करता हुआ (waving), विकार = बुराई, दोष (demerit), दकियानूसी = पुराने विचारों का (orthodox), प्रतिष्ठा = सम्मान (regard), दोषोद्घाटन = बुराइयाँ उजागर करना, अवांछित = अनचाही (unwanted), कातरमुद्रा = डरा हुआ रूप (frightened), वंचना = धूर्तता, जवाब दे देना = खराब हो जाना, हिसाब बनाना = योजना बनाना (toplan), चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना = डर जाना, घबरा जाना (purplexed).