HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 16 पानी की कहानी

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 16 पानी की कहानी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 16 पानी की कहानी

HBSE 8th Class Hindi पानी की कहानी Textbook Questions and Answers

पाठ से

Hindi Class 8 Chapter 16 HBSE प्रश्न 1.
लेखक को ओस की बूँद कहाँ मिली?
उत्तर:
लेखक को ओस की बूंद एक बेर की झाड़ी पर से मिली। वह झाड़ी पर से उसके हाथ पर आ गई थी। वह ओस की बूंद उसकी कलाई पर से सरककर उसकी हथेली पर आ गई थी।

Pani Ki Kahani Class 8 HBSE प्रश्न 2.
ओस की बूँद क्रोध और घृणा से क्यों काँप उठी?
उत्तर:
ओस की बूँद पेड़ की प्रवृत्ति बताते हुए क्रोध और घृणा से काँप उठी थी। उसके अनुसार ये पेड़ बड़े निर्दयी होते हैं। वे असंख्य जल-कणों को बलपूर्वक पृथ्वी में से खींच लेते हैं। कुछ को तो वे एकदम खा जाते हैं और अधिकांश को सब कुछ छीनकर बाहर निकाल देते हैं।

पानी की कहानी HBSE 8th Class Hindi प्रश्न 3.
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज पुरखा क्यों कहा?
उत्तर:
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज इसलिए कहा क्योंकि उसका जन्म इन्हीं की रासायनिक क्रिया के परिणामस्वरूप हुआ है। उन्होंने आपस में मिलकर अपना प्रत्यक्ष अस्तित्व गवा दिया और पानी को जन्म दिया।

प्रश्न 4.
‘पानी की कहानी’ के आधार पर पानी के जन्म और जीवन-यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
पानी का जन्म हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक क्रिया के परिणामस्वरूप होता है। उनका अस्तित्व मिटकर ही पानी बनता है। पहले पानी की बूंद भाप के रूप में पृथ्वी के चारों ओर घूमती है। फिर वह ठोस बर्फ का रूप ले लेती है। तब उसका रूप बहुत छोटा हो जाता है। फिर समुद्र में गर्म जलधारा से भेंट होने पर वह पिघल कर पानी बन जाती है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 16 पानी की कहानी

प्रश्न 5.
कहानी के अंत और आरंभ के हिस्से को स्वयं से पढ़कर देखिए और बताइए कि ओस की बूंद लेखक को आपबीती सुनाते हुए किसकी प्रतीक्षा कर रही थी?
उत्तर:
विद्यार्थी कहानी के अंत और आरंभ के हिस्से को स्वयं पढ़ें।
ओस की बूँद सूर्य के निकलने की प्रतीक्षा कर रही थी।

पाठ से आगे

1. जलचक्र के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए और पानी की कहानी से तुलना करके देखिए कि लेखक ने पानी की कहानी में कौन-कौन-सी बातें विस्तार से बताई हैं।
उत्तर:
जल का वर्षा द्वारा पृथ्वी पर आना तथा महासागरों से जल वाष्प के रूप में पुनः वायुमंडल में पहुंचना जलचक्र कहलाता है। यह चक्र निरंतर चलता रहता है और पृथ्वी पर जल की मात्रा को स्थिर बनाए रखता है। ‘पानी की कहानी’ में मुख्यतः जल के विभिन्न रूपों की चर्चा की गई है जिन में हैं ठोस (बर्फ), द्रव (पानी) तथा गैस (भाप)।

2. “पानी की कहानी” पाठ में ओस की बूंद अपनी कहानी स्वयं सुना रही है और लेखक केवल श्रोता है। इस आत्मकथात्मक शैली में आप भी किसी वस्तु का चुनाव करके कहानी लिखें।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

3, समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और गरमी क्यों नहीं पड़ती?
उत्तर:
समुद्रतटीय इलाकों में जल की उपस्थिति दिन में तापमान को अधिक बढ़ने नहीं देती तथा रात में तापमान को अधिक गिरने नहीं देती अत: यहाँ का तापमान सदैव सुहावना बना रहता है। कोलकाता में दिसंबर के आखिर में भी लोग कुर्ता-पायजामें में सैर करते दिखाई पड़ते हैं।

4. पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी कैसे पहुँचता है? इस क्रिया को वनस्पति शास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
विज्ञान की पुस्तक से विद्यार्थी स्वयं यह जानकारी जुटाएँ।

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अनुमान और कल्पना

1. पानी की कहानी में लेखक ने कल्पना और वैज्ञानिक तथ्य का आधार लेकर ओस की बूंद की यात्रा का वर्णन किया है। ओस की बूंद अनेक अवस्थाओं में सूर्य मंडल, पृथ्वी, वायु, समुद्र, ज्वालामुखी, बादल, नवी और नल से होते हुए पेड़ के पत्ते तक की यात्रा करती है। इस कहानी की भाँति आप भी लोहे अथवा प्लास्टिक की कहानी लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी लोहे या प्लास्टिक की कहानी लिखने का प्रयास करें।

2. अन्य पदार्थों के समान जल की भी तीन अवस्थाएँ होती हैं। अन्य पदार्थों से जल की इन अवस्थाओं में एक विशेष अंतर यह होता है कि जल की तरल अवस्था की तुलना में ठोस अवस्था (बर्फ) हल्की होती है। इसका कारण ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
जल की तरल अवस्था से ठोस अवस्था (बर्फ) हल्की होती है क्योंकि इसका घनत्व कम होता है। अत: यह तैरती भी है।

3. पाठ के साथ केवल पढ़ने के लिए दी गई पठन-सामग्री ‘हम पृथ्वी की संतान!’ का सहयोग लेकर पर्यावरण संकट पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
विद्यार्थी ‘पर्यावरण संकट’ पर एक लेख लिखें।

भाषा की बात

1. किसी भी क्रिया को संपन्न अथवा पूरा करने में जो भी संज्ञा आदि शब्द संलग्न होते हैं, वे अपनी अलग-अलग प्रकार की भूमिकाओं के अनुसार अलग-अलग कारकों में वाक्य में दिखाई पड़ते हैं। जैसे – “वह हाथों से शिकार जकड़ लेती थी।
उत्तर:
जकड़ना क्रिया तभी संपन्न हो पाएगी जब कोई व्यक्ति (वह) जकड़ने वाला हो, कोई वस्तु (शिकार) हो जिसे जकड़ा जाए। इन भूमिकाओं की प्रकृति अलग-अलग है। व्याकरण में ये भूमिकाएँ कारकों के अलग-अलग भेदों जैसे-कर्ता, कर्म, करण आदि से स्पष्ट होती हैं।

अपनी पाठ्यपुस्तक से इस प्रकार के पाँच और उदाहरण खोजकर लिखिए और उन्हें भलीभांति परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक से ऐसे पाँच उदाहरण खोजकर लिखें।
अन्य उदाहरण:

  • राम हाथ से रस्सी को पकड़ता था।
  • मैंने मित्र को एक पत्र पेन से लिखा था।
  • वह चाकू से सेब को काटकर खाता है।
  • गीता कलम से सुंदर लेख लिखती है।

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HBSE 8th Class Hindi पानी की कहानी Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पेड़ों के बारे में बूंद ने क्या कहा?
उत्तर:
पेड़ों के बारे में बूंद बोली-“वह जो पेड़ तुम देखते हो म! वह ऊपर ही इतना बड़ा नहीं है. पृथ्वी में भी लगभग इतना ही बड़ा है। उसकी बड़ी जड़ें, छोटी जड़ें और जड़ों के रोएँ हैं। वे रोएँ बड़े निर्दयी होते हैं। मुझ जैसे असंख्य जल-कणों को वे बलपूर्वक पृथ्वी में से खींच लेते हैं। कुछ को तो पेड़ एकदम खा जाते हैं और अधिकांश का सब कुछ छीनकर उन्हें बाहर निकाल देते हैं।”

प्रश्न 2.
बूंद कितने दिनों तक साँसत भोगती रही?
उत्तर:
बूंद लगभग तीन दिन तक यह साँसत भोगती रही। वह पत्तों के नन्हें-नन्हें छेदों से होकर जैसे-तैसे जान बचाकर भागी। उसने सोचा था कि पत्ते पर पहुंचते ही उड़ जाएगी। परंतु, बाहर निकलने पर ज्ञात हुआ कि रात होने वाली थी और सूर्य, जो हमें उड़ने की शक्ति देता है, जा चुका है, और वायुमंडल में इतने जल कण उड़ रहे हैं कि उसके लिए वहाँ स्थान नहीं है, तो वह अपने भाग्य पर भरोसा कर पत्तों पर ही सिकुड़ी पड़ी रही। अभी जब उसने लेखक को देखा तो जान में जान आई और रक्षा पाने के लिए उसके हाथ पर कूद पड़ी।

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केवल पढ़ने के लिए

हम पृथ्वी की संतान! प्रदूषण के महासंकट से निपटने के लिए विश्वभर के राष्ट्रों की एक बैठक 5 जून 1972 को स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुई थी। इस अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गाँधी ने अपने अभिभाषण में ‘माता भूमि पुत्रोदह पृथिव्याः” का संदेश दिया था। इस दिवस की स्मृति में ही प्रत्येक वर्ष 5 जून को हम ‘पर्यावरण दिवस’ मनाते हैं। सन् 1992 में रियो डि जेनेरो (ब्राजील) में एक पृथ्वी सम्मेलन आयोजित किया गया जिसका उद्देश्य यही था – ‘पृथ्वी को बचाओ।’

प्रकृति एक विशाल पारिस्थितिकी तंत्र है जिसमें दो प्रकार के प्रमुख घटक शामिल है-जैविक और अजैविक। जैव मंडल का निर्माण भूमि, गगन, अनिल (वायु), अनल (अग्नि), जल नामक पंच तत्त्वों से होता है जिसमें हम छोटे-बड़े एवं जैव-अजैव विविधताओं के बीच रहते आये हैं। इसमें पेड़, पौधों एवं प्राणियों का निश्चित सामंजस्य और सहअस्तित्व का संबंध है जिसे समन्वयात्मक रूप में पर्यावरण के विभिन्न अवयव कहते हैं। पर्यावरण शब्द ‘परि’ और ‘आवरण’ इन दो शब्दों के योग से बना है। परि और आवरण का सम्यक अर्थ है-वह आवरण जो हमें चारों ओर से ढके हुए है, आवृत किये हुए है।

प्रकृति और मानव के बीच का मधुर सामंजस्य बढ़ती जनसंख्या एवं उपभोगी प्रवृत्ति के कारण घोर संकट में है। यह असंतुलन प्रकृति के विरुद्ध तीसरे विश्वयुद्ध के समान है। विश्वभर में वनों का विनाश, अवैध एवं असंगत उत्खनन, कोयला, पेट्रोल, डीजल के उपयोग में अप्रत्याशित अभिवृद्धि और कल कारखानों के विकास के नाम पर विस्तार आदि ने मानव सभ्यता को महाविनाश के कगार पर ला खड़ा कर दिया है। विश्व की प्रसिद्ध नदियाँ जैसे गंगा, यमुना, नर्मदा, राइन, सीन, मास, टेम्स जैसी नदियाँ भयानक प्रदूषित हो चुकी हैं। इनके निकट बसे लोगों का जीवन दूभर हो गया है।

पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल के स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन गैस की एक मोटी परत है। यह धरती के जीवन की रक्षा कवच है जिससे सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणें रोक ली जाती हैं। किन्तु पृथ्वी के ऊपर जहरीली गैसों के बादल बढ़ते जाने के कारण सूर्य की अनावश्यक किरणें बाह्य अंतरिक्ष में परावर्तित नहीं हो पातीं। जिसके कारण पृथ्वी का तापमान (ग्लोबल वार्मिग) बढ़ता जा रहा है।

इससे छोटे-बड़े सभी द्वीप समूहों एवं महाद्वीपों के तटीय क्षेत्रों के डूब जाने का खतरा बढ़ गया है। इसे ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। यही स्थिति रही तो मुम्बई जैसे महानगर प्रलय की गोद में समा सकते हैं। पृथ्वी पर बढ़ते तापमान के कारण विश्व सभ्यता को अमृत एवं पोषक जल प्रदान करने वाले ग्लेशियर या तो लुप्त हो गये हैं या लुप्त होने की ओर बढ़ते जा रहे हैं। अमृतवाहिनी गंगा अपने उद्गम गंगोत्री के मूल स्थान से कई किलोमीटर पीछे खिसक चुकी है।

प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी के कारण लाखों लोग शरणार्थी बन चुके हैं। विशेषकर अपने भारत में ही बाँधों, कारखानों, हाइड्रोपावर स्टेशनों के बनने के कारण लाखों वनवासी भाई-बहन बेघर होकर शरणार्थी बने हैं।

पर्यावरण के प्रति गहरी संवेदनशीलता प्राचीन काल से ही मिलती है। अथर्ववेद में लिखा है – ‘माता भूमिः पुत्रोदह पृथिव्याः’ अर्थात् भूमि माता है। हम पृथ्वी के पुत्र हैं। एक जगह यह भी विनय किया गया है। कि ‘हे पवित्र करने वाली भूमि! हम कोई ऐसा काम न करें जिससे तेरे हृदय को आघात पहुंचे। हृदय को आघात पहुंचाने को अर्थ है पृथ्वी के परिस्थितिकी तंत्रों अर्थात् पर्यावरण के साथ क्रूर छेड़छाड़ न करना। हमें प्राकृतिक संसाधनों के अप्राकृतिक एवं बेतहाशा दोहम से बचना होगा।

आज आवश्यकता इस बात की है कि विश्व के तमाम राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे को लेकर आपसी मतभेद भुला दें और अपनी-अपनी जिम्मेदारी ईमानदारीपूर्वक निभायें, ताकि समय रहते सर्वनाश से उबरा जा सके। विश्वविनाश से निपटने के लिए सामूहिक एवं व्यक्तिगत प्रयासों की जरूरत है। इस दिशा में अनेक आंदोलन हो रहे हैं। अरण्य रोदन के बदले अरण्य संरक्षण की बात हो रही है। सचमुच हमें आत्मरक्षा के लिए पृथ्वी की रक्षा करनी होगी, ‘भूमि माता है और हम पृथ्वी की संतान’ इस कथन को चरितार्थ करना होगा।

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पानी की कहानी गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. मैं आगे बढ़ा ही था कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूँद मेरे हाथ पर आ पड़ी। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब मैंने देखा कि ओस की बूँद मेरी कलाई पर से सरककर हथेली पर आ गई। मेरी दृष्टि पड़ते ही वह ठहर गई। थोड़ी देर में मुझे सितार के तारों की-सी झंकार सुनाई देने लगी। मैंने सोचा कि कोई बजा रहा होगा। चारों ओर देखा। कोई नहीं। फिर अनुभव हुआ कि यह स्वर मेरी हथेली से निकल रहा है। ध्यान से देखने पर मालूम हुआ कि बूंद के दो कण हो गए हैं और वे दोनों हिल-हिलकर यह स्वर उत्पन्न कर रहे हैं मानो बोल रहे हों।
प्रश्न:
1. लेखक के हाथ पर कब, क्या आ पड़ी?
2. लेखक को कब आश्चर्य हुआ?
3. लेखक को क्या सुनाई देने लगा? उसने क्या सोचा?
4. ध्यान से देखने पर क्या मालूम हुआ?
उत्तर:
1. जब लेखक आगे बढ़ रहा था तब की झाड़ी पर से मोती की एक बूंद उसके हाथ पर आ पड़ी: .
2. उसके आश्चर्य का ठिकाना तब न रहा जब उसने देखा कि ओस की बूँद उसकी कलाई पर से सरक कर हथली पर आ गई है।
3. थोड़ी देर में लेखक को सितार के तारों की-सी झंकार सुनाई देने लगी। तब उसने सोचा कि कोई जजा रहा होगा।
4. ध्यान से देखने पर उसे मालूम हुआ कि बूंद के दो कण हो गए हैं और वे ही हिल-हिलकर स्वर उत्पन्न कर रहे हैं।

2. मैं और गहराई की खोज में किनारों से दूर गई तो मैंने एक ऐसी वस्तु देखी कि मैं चौंक पड़ी। अब तक समुद्र में अंधेरा था, सूर्य का प्रकाश कुछ ही भीतर तक पहुँच पाता था और बल लगाकर देखने के कारण मेरे नेत्र दुखने लगे थे। मैं सोच रही थी कि यहाँ पर जीवों को कैसे दिखाई पड़ता होगा कि सामने ऐसा जीव दिखाई पड़ा मानो कोई लालटेन लिए घूम रहा हो। यह एक अत्यंत सुंदर मछली थी। इसके शरीर से एक प्रकार की चमक निकलती थी जो इसे मार्ग दिखलाती थी। इसका प्रकाश देखकर कितनी छोटी-छोटी अनजान मछलियाँ इसके पास आ जाती थीं और यह जब भूखी होती थी तो पेट भर उनका भोजन करती थी।
प्रश्न:
1. किनारों से दूर जाने पर बूंद क्यों चौंक पड़ी?
2. उस समय समुद्र में कैसा दृश्य था?
3. उसे सामने क्या दिखाई पड़ा?
4. प्रकाश का क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर:
1. किनारों से दूर जाने पर बूंद ने एक ऐसी विचित्र वस्तु देखी कि वह चौंक पड़ी।
2. उस समय समुद्र में अँधेरा था। सूर्य का प्रकाश कुछ ही भीतर तक पहुँच पाता था। उस अंधकार में आँखें भी दुखने लगी थीं।
3. बूंद को सामने एक ऐसा जीव दिखाई पड़ा मानो वह कोई लालटेन लिए हुए घूम रहा हो। वह एक सुंदर मछली थी। उसके शरीर से एक प्रकार की चमक निकल रही थी।
4. उस मछली के शरीर के प्रकाश को देखकर कितनी अन्य छोटी-छोटी मछलियाँ उसके पास आ जाती थीं। जब वह भूखी होती थी तब वह इनका पेट भर भोजन करती थी।

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पानी की कहानी Summary in Hindi

पानी की कहानी पाठ का सार

लेखक आगे बढ़ा ही था कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूंद उसके हाथ पर आ पड़ी। बंद के दो कण हो गए थे और वे दोनों हिल-हिलकर स्वर उत्पन्न कर रहे थे। ओस की बूंद प्रसन्नता से बोली-मैं ओस हूँ। लोग मुझे पानी कहते हैं, जल भी कहते हैं। मैं बेर के पेड़ से आई हूँ। लेखक ने उसे झूठी कहा क्योंकि कहीं बेर के पेड़ से भी पानी का फव्वारा निकलता है? पानी ने अपनी कहानी सुनाई-पृथ्वी से असंख्य जलकणों को पेड़ बलपूर्वक खींच लेते हैं कुछ को तो पेड़ एकदम खा जाते हैं और अधिकांश का सब कुछ छीनकर उन्हें बाहर निकाल देते हैं।

पेड़ों को बड़ा करने में जल बिंदुओं ने अपने प्राण नष्ट किए हैं। बूँद बोली कि मैं भूमि के खनिजों को अपने शरीर में घुलाकर आनंद से फिर रही थी कि दुर्भाग्यवश एक रोएँ से मेरा शरीर छू गया। मैं रोएँ में खींच ली गई। मुझे एक कोठरी में बंद कर दिया गया। कोई मुझे पीछे से धक्का दे रहा था।

एक और बूंद मेरा हाथ पकड़कर ऊपर खींच रही थी। उसने अपनी कहानी सुनाई-मेरे पुरखे हद्रजन (हाइड्रोजन) और ओषजन (ऑक्सीजन) नामक दो गैसें सूर्यमंडल में लपटों के रूप में विद्यमान थे। मेरे पुरखे बड़ी प्रसन्नता से सूर्य के धरातल पर नाचते रहते थे। एक दिन एक प्रचंड प्रकाश पिंड सूर्य की ओर बढ़ रहा था।

उसकी भीषण आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य का एक भाग टूटकर. उसके पीछे चला गया। सूर्य से टूटा हुआ भाग इतना भारी खिंचाव सँभाल न सका और कई टुकड़ों में टूट गया। उन्हीं में एक टुकड़ा हमारी पृथ्वी है। प्रारंभ में यह एक बड़ा आग का गोला थी। फिर यह ग्रह ठंडा होता चला गया। अरबों वर्ष पहले हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक क्रिया के परिणामस्वरूप जल बना। उसके चारों ओर असंख्य साथी बर्फ बने पड़े थे।

तो उनका सौंदर्य निखर उठता था। तब बड़े आनंद का समय था। यह समय लाखों वर्ष तक चला। फिर बूंद बोली-मैं कई मास तक समुद्र में इधर-उधर घूमती रही। फिर एक दिन गर्म धारा से भेंट हो गईं। फलतः मैं पिघल गई और पानी बनकर समुद्र में मिल गई। पहले-पहल मुझे समुद्र का खारापन बिलकुल नहीं भाया। अब सहन होने लगा है। फिर मैंने गहरे में जाना शुरू किया। मार्ग में विचित्र जीव देखे। सामने एक ऐसा जीव दिखाई पड़ा मानो कोई लालटेन लिए हुए घूम रहा हो। यह एक अत्यंत सुंदर मछली थी। इसके शरीर से एक प्रकार की चमक निकल रही थी। वहाँ का सब दृश्य देखने में मुझे कई वर्ष लगे। मेरे ऊपर पानी की कोई तीन मील मोटी तह थी अतः ऊपर लौटना संभव न था।

मैं अपने दूसरे भाइयों के पीछे-पीछे चट्टान में घुस गई। हम एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहाँ ठोस वस्तु का नाम भी न था। बड़ी-बड़ी चट्टानें लाल-पीली पड़ी थीं। फिर एक ऐसा स्थान आया जहाँ पृथ्वी का गर्भ रह-रहकर हिल रहा था। एक बड़े जोर का धड़ाका हुआ और हम बड़ी तेजी से बाहर फेंक दिए गए। हम ऊंचे आकाश में उड़ चले।

हमें पता चला कि पृथ्वी फट गई है और उसमें धुआँ, रेत, पिघली धातुएँ तथा लपटें निकल रही हैं। यह दृश्य बहुत ही शानदार था। लोग उसे ज्वालामुखी कहते हैं। बहुत से भाप जल-कणों के मिलने के कारण हम भारी हो चले थे और नीचे झुक गए और एक दिन बूंद बनकर नीचे कूद पड़े। हम लोग इधर-उधर बिखर गए।

मेरी इच्छा बहुत दिनों से समतल भूमि देखने की थी। इसलिए मैं एक छोटी धारा में मिल गई। बहते-बहते में एक दिन एक नगर के पास पहुंची। मुझे एक मोटे नल में खींच लिया गया। मैं कई दिनों तक नल-नल घूमती रही। मैं एक ऐसे स्थान पर पहुंची जहाँ नल टूटा हुआ था। मैं तुरंत उसमें से निकल भागी और पृथ्वी में समा गई। अंदर-ही-अंदर घूमते-घूमते मैं इस बेर के पेड़ के पास पहुंची। सूर्य निकल आया था। वह बोली-अब मैं तुम्हारे पास नहीं ठहर सकती। तुम मुझे रोककर नहीं रख सकते। वह ओस की बूंद आँखों से ओझल हो गई।

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पानी की कहानी शब्दार्थ

आश्चर्य – हैरानी (Surprise), दृष्टि – नजर (Sight), स्वर – आवाज (Sound), अविश्वास – भरोसा न होना (not belief), बलपूर्वक – ताकत के साथ (forcefully), घृणा = नफ़रत (hatred), प्रयत्न = कोशिश (Effort), शक्ति – ताकत (Power), परिपूर्ण – पूरी तरह भरी (Fully), विद्यमान = मौजूद (Present), प्रचंड – तेज (bold, powerful), अस्तित्व – मौजूदगी (Existence), सौंदर्य – सुंदरता (Beauty), उत्सुकता – जानने की इच्छा (Eagerness), दीर्घजीवी – लंबे समय तक जीवित रहने वाला (Long live), विचित्र = अनोखे (Strange), नेत्र – आँखें (Eyes), चेष्टा – कोशिश (Efforts), ज्वालामुखी (Volcano), ओझल – गायब (Disappear).

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