Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा
HBSE 8th Class Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Textbook Questions and Answers
पाठ से
पाठ 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए? उस फिल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ प्रदर्शित हुई तब उसके पोस्टरों में निम्नलिखित वाक्य छापे गए
- ये सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं।
- अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए।
- उनको बोलते, बातें करते देखो।
- हाँ, पोस्टर पड़कर बताया जा सकता है कि फिल्म में 78 चेहरे थे।
जब सिनेमा ने बोलना सीखा Questions And Answers HBSE 8th Class प्रश्न 2.
पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अवेशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने ‘आलमआरा’ फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया?विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अदेशिर एम. ईरानी को प्रेरणा 1929 में देखी एक हॉलीवुड की बोलती फिल्म ‘शो बेट’ से मिली। इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने भी बोलती फिल्म बनाने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ के लिए पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाया। इसके आधार पर ही फिल्म की पटकथा तैयार की गई। नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों ले लिए गए।
Jab Cinema Ne Bolna Sikha HBSE 8th Class प्रश्न 3.
विट्रल का चयन ‘आलमआरा’ के नायक के रूप में हुआ लेकिन हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुनः नायक होने के लिए क्या किया?विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
‘आलमआरा’ फिल्म के लिए नायक के रूप में विट्ठल का चयन हुआ था। वे उस दौर के सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाले स्टार थे। पर विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किलें आती थीं। उनकी इस कमी के कारण उन्हें नायक से हटाकर मेहबूब को नायक बना दिया। इससे विट्ठल नाराज हो गए। उन्होंने अपना हक पाने के लिए मुकदमा कर दिया। उनका मुकदमा उस दौर के मशहूर वकील मोहम्मद अली जिन्ना ने लडा। इस मुकदमे में विट्ठल जीत गए और भारत की पहली सवाक् फिल्म के नायक बन गए।
जब सिनेमा ने बोलना सीखा प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 4.
पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया, तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था?अर्देशिर ने क्या कहा और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है?लिखिए
उत्तर:
पहली सवाकू फिल्म ‘आलमआरा’ के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को 1956 में फिल्म प्रदर्शन के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सम्मानकर्ताओं ने उन्हें ‘भारतीय सवाक फिल्मों का पिता’ कहा। इस पर अर्देशिर ने विनम्रतावश कहा-“मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।”
इस प्रसंग पर लेखक की टिप्पणी यह थी कि निर्माता-निर्देशक बहुत अधिक विनम्र थे।
पाठ से आगे
1. मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगी अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें। साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।
उत्तर:
मूक सिनेमा में केवल अंगों का संचालन होता है. मुँह से कुछ नहीं बोला जाता अतः संवाद नहीं होते।
अभिनेताओं में यह परिवर्तन आया कि उनका पढ़ा-लिखा होना जरूरी हो गया, क्योंकि अब उन्हें संवाद भी बोलने पड़ते थे।
दर्शकों पर भी अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की लोकप्रियता का खूब असर पड़ने लगा। औरतें अभिनेत्रियों की केश-सज्जा और वेशभूषा की नकल करने लगी।
तकनीकी दृष्टि से भी फिल्मों में काफी सुधार आए। अब गीत-संगीत का महत्त्व बढ़ चला। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ गया। फिल्में ज्यादा आकर्षक बनने लगीं।
2. डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?
उत्तर:
डब फिल्में उन फिल्मों को कहते हैं जिनमें अभिनय तो कोई करता है, पर उसके संवाद दूसरे के द्वारा बाद में बुलवा कर डब किए जाते हैं। ऐसा दो स्थितियों में किया जाता है
- किसी दूसरी भाषा की फिल्म को अन्य भाषा में डब करके प्रदर्शित करने के लिए।
- किसी अभिनेता को दूसरे अभिनेता की आवाज देने के लिए।
यह काम फिल्म बनने के बाद किया जाता है।
- जब एक कलाकार दुसरे कलाकार को बोलते देखकर उसे अपनी आवाज में दोहराता है तब मूल अभिनेता के मुख खोलने तथा डब करने वाली आवाज में कई बार थोड़ा अंतर रह जाता है। दो भिन्न भाषाओं में यह स्थिति अधिक उपस्थित हो जाती है।
अनुमान और कल्पना
1. किसी मूक सिनेमा में बिना आवाज के ठहाकेदार हँसी कैसी दिखेगी? अभिनय करके अनुभव कीजिए।
उत्तर:
मूक सिनेमा में बिना आवाज़ के ठहाकेदार हँसी केवल मुँह के खुलने से ही प्रकट होगी। खिलखिलाहट को आवाज तो सुनाई नहीं देगी।
विद्यार्थी ठहाकेदार हँसी, का अभिनय करके इस स्थिति का अनुभव करें।
2. मूक फिल्म देखने का एक उपाय यह है कि आप टेलीविजन की आवाज़ बंद करके फिल्म देखें। उसकी कहानी को समझने का प्रयास करें और अनुमान लगाएँ कि फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी कितनी है?
उत्तर:
विद्यार्थी टेलीविजन पर फिल्म देखते समय आवाज (Volume) को बंद कर दें। तभी पर्दे पर फिल्म का केवल मूक अभिनय दिखाई देगा। आपका पूरा ध्यान फिल्म की कहानी और अभिनय पर केंद्रित रहना चाहिए।
इससे आप फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी को भली प्रकार समझ सकेंगे।
भाषा की बात
1. ‘सवाक्’ शब्द वाक के पहले ‘स’ लगाने से बना है। ‘स’ उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होनेवाले परिवर्तन को बताएँ। : हित, परिवार, विनय, चित्र, बल, सम्मान।
उत्तर :
स + हित – सहित (हित सहित, साथ)
स + परिवार – सपरिवार (परिवार सहित)
स + विनय – सविनय (विनयपूर्वक)
स + चित्र – सचित्र (चित्र सहित)
स + सम्मान = सम्मान (सम्मान संहित)
2. उपसर्ग और प्रत्यय दोनों ही शब्दांश होते हैं। वाक्य में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में। हिन्दी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं – अ / अन, नि, दु, क / कु, स / सु. अध, बिन औं आदि।
पाठ में आए उपसर्ग और प्रत्यय युक्त शब्दों के कुछ, उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं-
मूल शब्द | उपसर्ग | प्रत्यय | शब्द |
वाक् | स | – | सवाक् |
लोचना | सु | – | सुलोचना |
फिल्म | – | कार | फिल्मकार |
कामयाब | – | ई | कामयाबी |
इस प्रकार के 15-15 उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए।
अन्य उपसर्ग
उपसर्ग | अर्थ | उपसर्ग के योग से बने शब्द |
अति | बहुत अधिक | अत्यंत, अत्युत्तम, अत्याचार। |
अधि | अधिक, श्रेष्ठ | अधिकार, अधिमास, अध्यक्ष, अधिशुल्क, अधिभार, अधिकार। |
अनु | पीछे, समान, प्रत्येक | अमुज, अनुकरण, अनुचर, अनुशासन, अनुभव, अनुकूल, अनुरोध, अनुवाद। |
अप | बुरो, नीचे, विरुद्ध | अपयश, अपकार, अपमान, अपशब्द, अपव्यय, अपकर्ष। |
अभि | सामने, पास | अभिमुख, अभिमान, अभ्यास, अभियान, अभिभाषण, अभ्यागत। |
अव | बुरा, हीन, नीचे | अवगुण, अवनत, अवसान, अवसर, अवनति, अवकाश, अवमूल्यन, अवज्ञा। |
आ | तक, ऊपर, पूर्ण | आजन्म, आजीवन, आरक्षण, आगमन, आकर्षण, आदान। |
उत् | ऊपर, श्रेष्ठ | उत्थान, उत्कर्ष, उच्चारण, उन्नति, उत्सर्ग, उत्तम। |
उप | समीप, गौण, नीचे | उपवन, उपकार, उपदेश, उपस्थित, उपग्रह, उपमंत्री, उपवाक्य, उपनाम, उपप्रधान। |
दुस्/दुर् | कठिन, बुरा | दुस्साहस, दुस्साध्य, दुस्वर, दुर्दिन, दुर्घटना, दुर्दशा, दुर्गुण, दुराचार, दुर्लभ। |
निस्/निर | निषेध | निश्चल, निष्काम, निस्संदेह. निर्जन, निरपराध, निर्दोष। |
नि | रहित | निपूता, निडर, निकम्मा. निवास, नियुक्ति, निषेधा |
परा | उल्टा, पीछे | पराजय, पराभव, पराक्रम, परामर्श, पराधीन। |
परि | चारों ओर | परिचय, परिणाम, परिवर्तन, परिक्रमा, परिधि, पर्यटन। |
प्र | अधिक | प्रबल, प्रसिद्धि प्रयत्न, प्रगति, प्रचार, प्रस्थान, प्राचार्य, प्रभाव, प्राध्यापक। |
प्रति | विरुद्ध | प्रतिकूल, प्रतिध्वनि, प्रत्यक्ष, प्रतिष्ठा, प्रतिनिधि, प्रतिकार, प्रतिदिन, प्रतिवर्ष। |
वि | विशेष, उल्टा | वियोग, विदेश, विनय, विजय, विनाश, विज्ञान, विपक्ष, विमुख। |
सम् (सं) | अच्छा, सामने | सम्मान, सम्मेलन, संशोधन, संपूर्ण, संयम, संगम, संकल्प, संतोष, सम्मुख, सम्मति। |
प्रत्ययों के उदाहरण:
आक – तैराक
दार – देनदार, होनहार
नी – ओड़नी, सूंपनी
आई – पढ़ाई, लिखाई
इया – डिब्बा > डिबिया, खाट > खटिया, दुख > दुखिया, बेटी > बिटिया।
ई – घंटा > घंटी, पहाड़ > पहाड़ी, रस्सा > रस्सी।
डा/री – मुख > मुखड़ा, कोठा > कोठरी।
पन/पा – लड़का > लड़कपन, बच्चा > बचपन, बूढा > बुढ़ापा।
ई – चोर > चोरी, खेत > खेती, दोस्त > दोस्ती, दुश्मन > दुश्मनी।
ता/त्व – मनुष्य > मनुष्यत्व, मानव मानवता।
एरा – साँप > सपेरा, चित्र > चितेरा।
आर – सोना > सुनार, लोहा > लुहार।
वाला – इक्का > इक्केवाला, ताँगा > ताँगेवाला।
वान – गाड़ी > गाड़ीदान, कोच > कोचवान।
कार – कला > कलाकार, फन > फनकार।
क – लिपि > लिपिक, लेख> लेखक।
गर – जादू > आदूगर, सौदा > सौदागर।
दारा – जर्मी > जमींदार, दुकान > दुकानदार।
हारा – लकड़ी > लकड़हारा।
पन/पा – काला > कालापन, मोटा > मोटापा।
ता/त्व – लघु > लधुता/लघुत्व, अपना > अपनत्व।
गरीब > गरीबी, खुश > खुशी, बुद्धिमान > बुद्धिमानी।
आस – मीठा > मिठास, खट्टा > खटास।
आई – अच्छा > अच्छाई, बुरा > बुराई।
ई – गुलाब > गुलाबी, ऊन > ऊनी।
ईला – रस > रसीला, जहर > जहरीला, बर्फ > बर्फीला।
ईन – नमक > नमकीन, रंग > रंगीन, शौक > शौकीन।
आ – भूख > भूखा, प्यास > प्यासा।
HBSE 8th Class Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
भारतीय सिनेमा का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
भारतीय सिनेमा का जनक दादा साहब फाल्के को माना जाता है। सवाक् सिनेमा के जनक थे-अर्देशिर ईरानी।
प्रश्न 2.
‘आलमआरा’ कब और कहाँ पहली बार प्रदर्शित की गई? इस फिल्म का क्या हाल रहा?
उत्तर:
‘आलमआरा’ फिल्म 14 मार्च, 1931 को मुंबई के ‘मजेस्टिक’ सिनेमा में प्रदर्शित हुई। फिल्म 8 सप्ताह तक ‘हाउसफुल’ चली और भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण । करना मुश्किल हो जाया करता था। समीक्षकों ने इसे ‘भड़कीली फैंटेसी’ फिल्म करार दिया था, मगर दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अनोखा अनुभव थी। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी और इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था।
प्रश्न 3.
‘आलमआरा’ फिल्म में कौन-कौन-से कलाकारों ने काम किया?
उत्तर:
‘आलमआरा’ फिल्म की नायिका जुबैदा थी और नायक थे-विट्ठल। इनके अलावा सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर और जगदीश सेठी आदि अभिनेता भी मौजूद थे। आगे चलकर वे फिल्मोद्योग के प्रमुख अभिनेता बने।
केवल पढ़ने के लिए
कंप्यूटर गाएगा गीत हिंदी फिल्मों में गीतों का आगमन आलम आरा (1931) से हुआ और तब से वे अब तक लोकप्रिय सिनेमा का अनिवार्य अंग बने हुए हैं। प्रारंभ से अभिनेताओं को अपने गीत खुद गाने पड़ते थे जो उसी समय रिकॉर्ड किए जाते थे। बाद में जब यह महसूस किया गया कि हर अभिनेता या अभिनेत्री अच्छा गायक भी हो यह जरूरी नहीं तो पार्श्व गायन की प्रथा शुरू हुई और उससे गायन और भी परिष्कृत हुआ। इस बीच रिकॉर्डिंग की तकनीक में भी बहुत सुधार हुआ और उससे भी गायन की शैली में परिवर्तन हुआ। सिनेमा जैसे लोकप्रिय माध्यम में गीत के बोलों का महत्त्व ज्यादा होता है क्योंकि उन्हीं के माध्यम से किसी धुन का भावनात्मक प्रभाव पैदा होता है।
फिल्म संगीत का उद्गम इस सदी के प्रारंभिक वर्षों में शास्त्रीय संगीत के अलावा, कव्वाली, भजन, कीर्तन तथा लोक-संगीत के वातावरण में हुआ। लोक-नाट्य तथा पेशेवर टूरिंग थिएटर कंपनियों का प्रभाव भी शुरू के फिल्मी गीतों पर था। कि उन दिनों माइक्रोफोन तथा लाउडस्पीकर जैसी चीजें नहीं थी, खुली हुई ऊँची स्पष्ट आवाज में गाना सबसे बड़ा और अनिवार्य गुण होता था। गायक को दूर-दूर तक बैठी भीड़ तक अपनी आवाज पहुँचानी होती थी। प्रारंभिक फिल्मों पर थिएटर का असर था, प्रारंभिक बोलती फिल्मों के लिए गायक भी थियेटर से आए। यह थिएटर परंपरागत रूप से पुरुषों का था, जिसमें महिला पात्रों की भूमिकाएँ भी पुरुष ही करते थे। लेकिन सिनेमा कि कहीं अधिक यथार्थवादी माध्यम है, उसमें यह चीज नहीं चल सकती थी। अत: जो गायिकाएँ फिल्मों के लिए आई वे स्वाभाविक ही भिन्न क्षेत्र की थीं। ये उस पेशेवर गायिकाओं के वर्ग से आई जो महफिलों में और शादियों या सालगिरहों पर मुजरे पेश करती थीं।
इस शैली को फिल्म संगीत का पहला चरण कहा जा सकता है। ये गायिकाएँ जरा नाक में बैठी आवाज में गाती थीं। गीतों के बोल भी वे जरा बनावटी ढंग से चबा कर, अदा करती थीं। जल्दी ही गायिकाओं ने सुकून देनेवाली शैली में गाना शुरू कर दिया। नई शैली का उदाहरण काननबाला का गाया ‘जबाब बना गीत,’ ‘दुनिया ये दुनिया तूफानमेल’ था।
फिल्मी गायन के इस दूसरे दौर में ऐसी बहुत प्रतिभाएं सामने आईं, जिन्होंने अपनी आवाज को माइक्रोफोन के अनुकूल स्वाभाविक पिच (सुर) पर ढालने में सफलता पाई। शमशाद बेगम, सुरैया, नूरजहाँ तथा कुंदनलाल सहगल इनमें शामिल थे।
सहगल के साथ ही फिल्मी गायन का दूसरा दौर समाप्त हुआ। माइक्रोफोन के उपयुक्त नई आवाजें आई। मोहम्मद रफी, मुकेश, हेमंत कुमार, मन्नाडे, किशोर कुमार, तलत महमूद सभी मूलतः गायक थे। लता मंगेशकर के साथ गायिकाओं के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत हुई। उनके कंठ की ताजगी और आकर्षण ने गायकी के प्रतिमानों को ही बदल दिया। इनके अतिरिक्त आशा भोसले, गीता दत्त, सुमन कल्याणपुर आदि गायिकाओं ने अपनी खास शैली विकसित की।
भविष्य में क्या होगा? क्या हमारे लोकप्रिय सिनेमा पर गीत अब भी पहले की तरह हावी बने रहेंगे? क्या नित नए उपकरणों के आने के बाद आवाज के सुरीलेपन की जरूरत उतनी नहीं रह जाएगी? और किसे पता किसी दिन कंप्यूटर ऐसी आवाज बना कर रख दे जो किसी भी मानवीय आवाज़ से ज्यादा मुकम्मल हो!
जब सिनेमा ने बोलना सीखा गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ बनानेवाले फिल्मकार थे अर्देशिर एम.ईरानी। अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी और उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जगी। पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर उन्होंने अपनी फिल्म की पटकथा बनाई। इस नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों फिल्म में ले लिए गए। एक इंटरव्यू में अर्देशिर ने उस वक्त कहा था-‘हमारे पास कोई संवाद लेखक नहीं था, गीतकार नहीं था, संगीतकार नहीं था।
‘इन सबकी शुरुआत होनी थी। अर्देशिर ने फिल्म में गानों के लिए स्वयं की धुनें चुनीं। फिल्म के संगीत में महज तीन वाद्य-तबला; हारमोनियम और वायलिन का इस्तेमाल किया गया। आलम आरा में संगीतकार या गीतकार में स्वतंत्र रूप से किसी का नाम नहीं डाला गया। इस फिल्म में पहला पार्श्वगायक बने डब्लू, एम. खाना पहला गाना था-‘दे दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’
प्रश्न:
1. पहली बोलती फिल्म कौन-सी थी और उसे किसने बनाया
2. उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा क्यों जागी?
3. इस फिल्म में गीत-संगीत की क्या दशा थी?
4. इस फिल्म में किन-किन वाद्यों का प्रयोग किया गया?
5. पहले पार्श्वगायक कौन बने तथा उनका पहला गाना कौन-सा था?
उत्तर :
1. पहली बोलती फिल्म थी-‘आलम आरा।’ इस फिल्म को फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी ने बनाया था।
2. अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी थी। उसको देखकर ही उनके मन में अपनी बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जागी।।
3. इस फिल्म के लिए उनके पास कोई गीतकार या संगीतकार नहीं थे।
4. फिल्म में केवल तीन वाद्य तबला, हारमोनियम और वायलिन का इस्तेमाल किया गया था।
5. डब्लू. एम. खान पहले पार्श्वगायक बने। उनका पहला गाना था-दे दे खुदा के मा- पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।
2. जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया, सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई, क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलनेवाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीरवाले, स्टंट करनेवाले और उछल-कूद करनेवाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था।
अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाक्’ दौर की फिल्मों में कई ‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्यादा देसी हुआ। एक तरह की नई आजादी थी। जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा।
प्रश्न:
1. बोलती फिल्मों के लिए किस प्रकार के कलाकारों की आवश्यकता हुई?
2. मूक फिल्मों में कैसे कलाकारों से काम चल जाया करता था?
3. फिल्मों से भाषाओं पर क्या प्रभाव पड़ा?
4. सवाक् फिल्मों में कैसे अभिनेता पर्दे पर नजर आने लगे?
5. फिल्मों में क्या बात उभरने लगी?
उत्तर :
1. बोलती फिल्मों के लिए पढ़े-लिखे कलाकारों की आवश्यकता हुई क्योंकि अब उन्हें संवाद बोलने थे।
2. मूक फिल्मों में पहलवान जैसे शरीर वाले, स्टंट करने वाले और उछल-कूद करने वाले अभिनेताओं से काम चल जाता था।
3. सवाक् फिल्मों से हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ गया। अब जन प्रचलित भाषाओं का दाखिला हुआ।
4. सवाक् फिल्मों में गायक अभिनेता बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। – 5. फिल्मों में हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब बेहतर होकर नसर आने लगा।
जब सिनेमा ने बोलना सीखा Summary in Hindi
जब सिनेमा ने बोलना सीखा पाठ का सार
यह सिनेमा के बारे में है। 14 मार्च, 1931 की तारीख ऐतिहासिक थी क्योंकि इस दिन भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ प्रदर्शित हुई थी। इससे पहले मूक फिल्में बनती थीं। पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ को बनाने वाले फिल्मकार थे-अर्दशिर एम. ईरानी। उन्होंने 1929 में हॉलीवड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी थी। तभी से उनके मन में भी बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जागी।
उन्होंने पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर पटकथा लिखी। उनके पास कोई संवाद लेखक, गीतकार और संगीतकार नहीं था। अत: नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों फिल्म में ले लिए गए। गानों की धुनें उन्होंने स्वयं चुनीं। संगीत में केवल तीन वाद्य-तबला, हारमोनियम और वायलिन का प्रयोग किया गया।
फिल्म के पहले पार्श्वगायक बने-डब्ल्यू. एम. खान। पहला गाना था-‘दे-दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’ फिल्म की शूटिंग रात में करनी पड़ती थी। अतः कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था करनी पड़ी। आर्देशिर की कंपनी ने भारतीय सिनेमा के लिए 150 मूक और लगभग 100 बोलती फिल्में बनाई।
‘आलम आरा’ फिल्म ‘अरेबियन नाइट्स’ जैसी फैंटेसी थी। इसमें गीत, संगीत तथा नृत्य के अनोखे संयोजन थे। फिल्म की नायिका जुबैदा थी और नायक थे-विट्ठल। वे उस दौर के सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाले स्टार थे। विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किल आ रही थी अत: उनकी जगह मेहबूब को नायक बनाया गया। इस पर विट्ठल ने मुकदमा कर दिया। उनका मुकदमा मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा। उनके कारण विटुल मुकदमा जीत गए और पहली बोलती फिल्म के नायक बने। मराठी और हिंदी फिल्मों में वे लंबे समय तक नायक और स्टंटमैन के रूप में सक्रिय रहे। आलम आरा में सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर, याकूब और जगदीश सेठी जैसे अभिनेता भी थे।
यह फिल्म 14 मार्च, 1931 को मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में प्रदर्शित हुई। यह फिल्म आठ सप्ताह तक हाउसफुल चली। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी भौर इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था। अन्य सामाजिक विषयों पर भी सवाक फिल्में बननी शुरू हुई। ऐसी ही एक फिल्म थी-‘खुदा की शान’।
इसका एक पात्र महात्मा गाँधी जैसा था अतः ब्रिटिश सरकार को चुभा। बोलती फिल्मों में संवाद बोलने के लिए पढ़े-लिखे कलाकारों की आवश्यकता हुई। उस दौर की फिल्मों में कई ‘गायक अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की लोकप्रियता का असर दर्शकों पर खूब पड़ रहा था। ‘माधुरी’ फिल्म की नायिका सुलोचना का हेयर स्टाइल उस दौर की औरतों में खूब लोकप्रिय हुआ। ‘आलमआरा’ को भारत के अलावा श्रीलंका, बर्मा तथा पश्चिमी एशिया द्वारा भी पसंद किया गया।
जब सिनेमा ने बोलना सीखा शब्दार्थ
सजीव – जानदार (living, alive), शिखर – सबसे ऊंचे स्थान (peak), मूक – गूंगा (dumb), सवाक – बोलती हुई (talking). लोकप्रिय – प्रसिद्ध (populary, महज- केवल (only), पार्श्वगायक – पीछे से गाने वाले (playback singer), साउंड – आवाज (sound). कृत्रिम – बनावटी (artificial), व्यवस्था – इंतजाम (arrangement), प्रकाश – रोशनी (light). सर्वाधिक – सबसे अधिक (most), पारिश्रमिक – मेहनताना (remuneration), चर्चित – जिसकी चर्चा हो (popular), स्तंभ- खंभा, प्रमुख आधार (pillar), विनम्र – कोम.न, दयालु (humble), खिताब – सम्मान (honour), केश सज्जा – बालों की सजावट (hair dressing).