HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि

HBSE 8th Class Hindi ध्वनि Textbook Questions and Answers

कहानी से

ध्वनि HBSE 8th Class Hindi  प्रश्न 1.
कवि को ऐसा विश्वास क्यों है कि उसका अंत अभी नहीं होगा?
उत्तर:
कवि को ऐसा विश्वांस इसलिए है कि अभी उसके जीवन में काफी उत्साह और ऊर्जा है। वह युवा पीढ़ी को आलस्य की दशा से उबारना चाहता है। अभी उसे का काम करना है। वह स्वयं को काम के सर्वथा उपयुक्त माना है।

ध्वनि की व्याख्या HBSE 8th Class Hindi प्रश्न 2.
फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि कौन-कौन-सा प्रयास करता है?
उत्तर:
फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि उन्हें कलियों की स्थिति से निकालकर खिले फूल बनाना चाहता है। वह कलियों पर वासंती स्पर्श का हाथ फेरकर खिला देगा। वह युवकों को काव्य-प्रेरणा से अनंत का द्वारं दिखा देमा।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि

Class 8th Vasant Chapter 1 HBSE ध्वनि प्रश्न 3.
कवि पुष्पों की तन्द्रा और आलस्य दूर हटाने के लिए क्या करना चाहता है?
उत्तर:
कवि पुष्पों की तन्द्रा (नींद) और आलस्य को दूर | हटाने के लिए उन पर हाथ फेरेगा और उनको खिला देगा। जो काम वसंत करता है, वही काम कवि भी करेगा। कलियाँ आलस्य में पड़े युवकों की प्रतीक हैं। वह उनके आलस्य को दूर भगा देगा।

कविता से आगे

Class 8 Vasant Chapter 1 HBSE ध्वनि प्रश्न 1.
वसंत को ऋतुराज क्यों कहा जाता है? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
वसंत को ऋतुराज कहा जाता है क्योंकि यह सभी ऋतुओं का राजा है। वसंत को सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना जाता है। इस ऋतु में प्रकृति पूरे यौवन पर होती है। इस ऋतु में उसकी छटा देखते ही बनती है। यह ऋतु मुर्दो में भी जान डाल देती है। यह ऋतु सभी को अच्छी लगती है।

ध्वनि कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2.
वसंत ऋतु में आने वाले त्योहारों के विषय में जानकारी एकत्र कीजिए और किसी एक त्योहार पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
वसंत ऋतु में आने वाले त्योहार – वसंत पंचमी : वसंत पंचमी पर सर्दी घटने लगती है। लोग पीले वस्त्र पहनते हैं तथा पीली वस्तुएँ खाते हैं। बागों में बहार चरम सीमा पर होती है।

महाशिवरात्रि : भगवान शंकर की पूजा-अर्जना की जाती है। यज्ञ तथा मेलों आदि का आयोजन होता है।

होली : यह फागुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह मस्ती भरा त्योहार है। यह रंगों का त्योहार है। भारत विभिन्न ऋतुओं का देश है। वसंत को ऋतुराज की संज्ञा दी जाती है। रंगों का त्योहार होली ऋतुराज वसंत के आने का सूचक है। शीत ऋतु के उपरांत वसंत में प्रकृति अनगिनत रंगों के फूलों से सज जाती है। सर्वत्र प्रकृति के रंग-बिरंगे का ही साम्राज्य होता है। रंग-बिरंगे पुष्प एवं सरसों के पीले पुष्पों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है

और मस्ती में झूम उठता है। इस रंग-बिरंगे वसंत में ही होली का शुभागमन होता है। होली का त्योहार प्रति वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का त्योहार दो दिन तक प्रमुख रूप से मनाया जाता है। पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन होता है। लोग रात को अपने घरों में ही होली जलाते हैं तथा रबी की फसल की जौ और गेहूँ आदि की बालियाँ भूनते हैं। परस्पर भूने अन्न के दानों का आदान-प्रदान करते हुए अभिवादन करते हैं। अगले दिन प्रातः से ही सभी आबाल वृद्ध एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हैं। एक दूसरे के गले मिलते हैं। सभी भेद-भाव भुलाकर रंग डालते हैं। लोगों के चेहरे और कपड़े रंग-बिरंगे हो जाते हैं। लोग मस्ती में गाते, बजाते, नाचते हैं। इस प्रकार होली पारस्परिक प्रेम और सौहार्द का परिचायक है।

रंगों के पर्व होली का पौराणिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष महत्त्व हैं। एक पौराणिक आख्यान के अनुसार हिरण्यकश्यप नामक दैत्यराज था। वह अत्यंत अत्याचारी एवं क्रूर था। उसने भक्त स्वभाव के अपने पुत्र प्रह्लाद पर अनेक अत्याचार किए। हिरण्यकश्यप चाहता था कि प्रह्लाद अपने पिता को ही भगवान् माने। इसलिए वह ईश्वर भक्त प्रहलाद से सदैव कुद्ध रहता था। अनेक अत्याचारों के असफल होने पर उसने एक अंतिम उपाय किया। हिरण्यकश्यप की एक होलिका नाम की बहन थी जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। उसने होलिका के सहयोग से प्रहलाद को जलाने की बात सोची। वह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को प्रह्लाद की गोद में लेकर आग में बैठ गई। भगवान् की कृपा से होलिका तो जल गई परंतु प्रहलाद सकुशल बच गया। कहते हैं कि तभी से इस दिन होलिका का दहन किया जाता है। एक ऐसी भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म किया था। अतः यह पर्व मदन-दहन पर्व बन गया।

रंगों का त्योहार होली हमें पारस्परिक प्रेम एवं सौहार्द का संदेश देता है। इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भूलकर मित्र बन जाते हैं, परंतु कुछ लोग अपनी विकृत मानसिकता का प्रयोग होली में करते हैं। वे शराब पीकर ऊद्यम मचाते हैं, कई बार प्रदूषित रंगों से आँखों एवं चमड़ी के रोग हो जाते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। हमें शालीनता के साथ गुलाल लगाकर प्रेमपूर्वक होली खेलनी चाहिए ताकि समाज में स्नेह एवं प्रेम का सौहार्द बढ़े।

Vasant Chapter 1 HBSE 8th Class ध्वनि प्रश्न 3.
“ऋतु परिवर्तन का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है”-इस कथन की पुष्टि आप किन-किन बातों से कर सकते हैं? लिखिए।
उत्तर:
लोगों के जीवन पर ऋतु-परिवर्तन का बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। शीत ऋतु में हम काँपते रहते हैं तो वसंत ऋतु का आगमन हमें मस्ती एवं उल्लास से भर देता है। फिर ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। धरती तपने लगती है। पसीना छूटता है। लोग वर्षा की कामना करते हैं। वर्षा ऋतु जीवन में उल्लास लेकर आती है। अन्न उपजाने के लिए वर्षा ऋतु की बड़ी आवश्यकता होती है। इस प्रकार सभी ऋतुओं से लोगों का जीवन प्रभावित होता है।

अनुमान और कल्पना

1. कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ पढ़कर बताइए कि इनमें किस ऋतु का वर्णन है?
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर
सभी बंधन छूटे हैं।

कविता की इन पंक्तियों में वसंत ऋत का वर्णन है। वसंत में ही होली का त्योहार आता है। आमों के बौर भी इसी ऋतु में फूटते हैं।

2. स्वप्न भरे कोमल-कोमल हाथों को अलसाई कलियों पर फेरते हुए कवि कलियों को प्रभात के आने का संदेश देता है, उन्हें जगाना चाहता है और खुशी-खुशी अपने जीवन के अमृत से उन्हें सींचकर हरा-भरा करना चाहता है। फूलों-पौधों के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे?
हम फूल-पौधों के लिए ये काम करना चाहेंगे:

  • उन्हें पानी से सीचेंगे।
  • उनमें समय-समय पर खाद डालना चाहेंगे।
  • फूलों को पूरी तरह खिलने देंगे। उनको तोड़ेंगे नहीं।

3. कवि अपनी कविता में एक कल्पनाशील कार्य की बात बता रहा है। अनुमान कीजिए और लिखिए कि उसके बताए कार्यों का और किन-किन संदों से संबंध जुड़ सकता है? जैसे नन्हे-मुन्ने बालक को माँ जगा रही हो…
माँ अपने नन्हें-नन्हें बालक को जगाती है। उस पर प्यार भरा हाथ फेरती है।
→ माली भी पौधों पर अपना प्यार भरा हाथ फेरता है, उन्हें सींचता है, उनका विकास करता है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि

भाषा की बात

1. ‘हरे-भरे’, ‘पुष्प-पुष्प’ में एक शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुई है। कविता के ‘हरे-हरे ये पात’ वाक्यांश में ‘हरे-हरे’ शब्द युग्म पत्तों के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। यहाँ पात शब्द बहुवचन में प्रयुक्त है। ऐसा प्रयोग भी होता है, जब कर्ता या विशेष्य एकवचन में हो और कर्म या क्रिया या विशेषण बहुवचन में; जैसे-वह लंबी-चौड़ी बातें करने लगा। कविता में एक ही शब्द का एक से अधिक अर्थों में प्रयोग होता है-तीन बेर खाती है तीन बेर खाती है।” जो तीन बार खाती थी वह तीन बेर खाने लगी है। एक शब्द ‘बेर’ का दो अर्थ में प्रयोग करने से वाक्य में चमत्कार आ गया। इसे यमक अलंकार कहा जाता है।

कभी-कभी उच्चारण की समानता से शब्दों की पुनरावृत्ति का आभास होता है। जबकि दोनों दो प्रकार के शब्द होते हैं, जैसे-मन का मनका।

ऐसे वाक्यों को एकत्र कीजिए जिनमें एक ही शब्द की पुनरावृत्ति हो। ऐसे प्रयोगों को ध्यान से देखिए और निम्नलिखित पुनरावृत शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-बातों-बातों में, रह-रहकर, लाल-लाल, सुबह-सुबह, रातों-रात, घड़ी-घड़ी।।

काली घटा का घमंड घटा (घटा बादल की घटा, कम हुआ)

  • माँ का लाल गुस्से में लाल हो गया।
  • रात में घड़ी प्रातःकालीन घड़ी की ओर जा रही थी।
  • कनक कनक तै सौ गुनी मादकता अधिकाय।

2. ‘कोमल गात, मृदुल वसंत, हरे-हरे ये पात’:
विशेषण जिस संज्ञा (या सर्वनाम) की विशेषता बताता है, उसे विशेष्य कहते हैं। ऊपर दिए गए वाक्यांशों में गात, वसंत और पात शब्द विशेष्य हैं, क्योंकि इनकी विशेषता (विशेषण) क्रमशः कोमल, मृदुल और हरे-हरे शब्द बता रहे हैं।

हिंदी विशेषणों के सामान्यतया चार प्रकार माने गए हैं – गुणवाचक विशेषण, परिमाणवाचक विशेषण, संख्यावाचक विशेषण और सार्वनामिक विशेषण।

  • गुणवाचक विशेषण – सुंदर बालक, लंबी मेज
  • परिमाणवाचक विशेषण – दो किलो चीनी, थोड़ा चावल
  • संख्यावाचक विशेषण – चार केले, पाँचवाँ बालक
  • सार्वनामिक विशेषण – वह घर, यह बोतल

कविता से आगे

1. वसंत पर अनेक सुंदर कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन तैयार कीजिए।

2. शब्दकोश में ‘वसंत’ शब्द का अर्थ देखिए। शब्दकोश में शब्दों के अर्थों के अतिरिक्त बहुत-सी अलग तरह की जानकारियाँ भी मिल सकती हैं। उन्हें अपनी कॉपी में लिखिए।

वसंत पर कविताएँ:
ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि पद्ममाकर ने अपने शब्दों में वसंत की शोभा का वर्णन करते हुए कहा है –
कूलन में केलिन में कछारन में
कंजन में क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।
कहै पद्ममाकर पराग हूँ मैं, पोन हूँ मैं
पानन में, पीकन में, पलाशन पगंत है।
कछार में, दिशा में, दूनी में, देश-देशन में
बनन में, बागन में बगरयो वसंत है।
श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने तो वसंत की समृद्धता और ऐश्वर्यता की तुलना मठ के प्रधान महंत से की है :
आए महंत वसंत
मखमल के झले पड़े हाथी-सा टीला
बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला
चँवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत
आए महंत वसंत।

शब्दकोश में वसंत के अर्थ:

  • छह ऋतुओं में से एक ऋतु जो चैत्र-वैशाख में आती है
  • कामदेव का सहचर
  • अतिसार
  • एक वृत्त
  • एक राग।

ध्वनि Summary in Hindi

ध्वनि कवि-परिचय

प्रश्न: सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ का जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय : निराला जी का जन्म सन् 1897 ई. में बंगाल के महिषादल राज्य में मेदिनीपुर नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता श्री रामसहाय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के निवासी थे और आजीविका के लिए महिषादल (बंगाल) चले गये थे। निराला की आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी का अध्ययन घर पर ही किया। उनकी साहित्य के अतिरिक्त-दर्शनशास्त्र व संगीत के प्रति रुचि थी। इनकी विचारधारा पर स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का गहरा प्रभाव पड़ा। अपने निराले व्यक्तित्व के कारण ये हिंदी साहित्य जगत में ‘निराला’ उपनाम से प्रसिद्ध हुए।

रचनाएँ : ‘परिमल’, ‘अनामिका’, ‘गीतिका’, ‘अपरा’, ‘नये पत्ते’, ‘राम की शक्ति-पूजा’, ‘तुलसीदास’ (काव्य) अलका’, ‘निरुपमा’, ‘चोटी की पकड़’ (उपन्यास) ‘लिली’, ‘सखी’, ‘चतुरी चमार’ (कहानी संग्रह) प्रबंध की प्रतिमा’, ‘प्रबंध पद्म’ (निबंध : संग्रह) ‘रवींद्र-कविता-कानन’, ‘पतन और पल्लव’ (आलोचना) ‘समन्वय’, ‘मतवाला’, ‘सुधा’ (पत्रिका) आदि।

साहित्यगत विशेषताएँ : यद्यपि निराला हिंदी-साहित्य में कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं तथापि वे गद्य पर समान अधिकार रखते हैं। उनकी बहुमुखी प्रतिभा के दर्शन उनकी काव्य रचनाओं एवं उपन्यास, कहानी, निबंध, रेखाचित्र और आलोचना के क्षेत्र में दिखाई देते हैं। पत्र-संपादक के क्षेत्र में भी लौह-लेखनी ने प्रसिद्धि पाई। उनकी आरंभिक कविताओं में छायावाद के दर्शन होते हैं। इसके अतिरिक्त उनकी गणना उच्च कोटि के रहस्यवादी और प्रगतिवादी कवियों में की जाती है। उन्होंने शृंगार, प्रेम, प्रकृति सौंदर्य, राष्ट्र-प्रेम आदि विषयों पर काव्य रचना की। उनके साहित्य में जहाँ दलित समाज के प्रति सहानुभूति का भाव है, वहाँ शोक शोषक वर्ग पर कटु व्यंग्य है।

भाषा-शैली : निराला ने काव्य की पुरानी परंपराओं को त्याग कर काव्य-शैली को नई दिशा प्रदान की। हिंदी काव्य में ‘स्वच्छंद-छंद’ निराला जी की देन है। निराला की कविताओं में संगीतात्मकता है। यद्यपि उनके साहित्य की भाषा तत्सम प्रधान है, तथापि उनकी प्रगतिवादी रचनाएँ बोलचाल की भाषा में हैं।

ध्वनि कविता का सार

इस कविता में कवि निराला कहते हैं कि अभी उनका अंत नहीं होने वाला है। जो आलोचक यह कह रहे थे कि अब निराला के कवि-जीवन का अंत होने वाला है कवि उनको इस कविता के माध्यम से करारा उत्तर देता है। कवि कहता है कि अभी तो उसके कवि-जीवन का उत्कर्ष हुआ है। उसके जीवन में वसंत की बहार आई हुई है। वह अपनी कविताओं के माध्यम से निद्रामग्न युवा पीढ़ी को आशा का संदेश देकर जागृत करेगा। वह एक-एक फूल अर्थात् एक-एक युवक से आलस्य को दूर भगा देगा और उनके जीवन में अमृत सींच देगा। वह उनको स्वर्ग जैसे सुखों का द्वार दिखा देगा। अभी उसे बहुत कुछ करना है। अभी उसका अंत नहीं आया है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि

ध्वनि काव्याशों की सप्रसंग व्याख्या

1. अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत
अभी न होगा मेरा अंत।
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।

शब्दार्थ : मृदुल – कोमल सुखद (Tender), वन = जंगल, बगीचा, जीवन (Garden), अंत = समाप्ति (End), पात – पत्ते (Leaves), गात – शरीर (Body), निद्रित = नींद में (Drowsy), प्रत्यूष = प्रातःकालीन समय (time of early morning), मनोहर = सुंदर (Beautiful), कर * हाथ (Hands)।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘ध्वनि’ से अवतरित है। इसमें कवि अपने कवि जीवन के उत्कर्ष काल का वर्णन करता है।

व्याख्या : कवि आलोचकों को उत्तर देते हुए कहता है कि अभी मेरे कवि-जीवन का अंत नहीं होने वाला है। अभी-अभी तो मेरे जीवन में वसंत की बहार आई है अर्थात् मेरे कवि-जीवन का उत्कर्ष हुआ है। कवि के वन में अर्थात् जीवन में कोमल वसंत का आगमन अभी ही हुआ है। अतः अभी उसका अंत नहीं होने वाला। – अभी उसका शरीरं यौवन की मस्ती से भरपूर है। कवि अपने कोमल हाथों को इन कलियों पर फेरकर उनमें एक प्रात:कालीन सवेरे को जागृत कर देगा। कवि के कहने का भाव यह है कि जो युवक नींद में पड़े हुए हैं, वह उनको प्रेरित करके उनमें नए उत्कर्ष के स्वप्न जगा देगा। वह उनका आलस्य दूर या गलथा उनमें उत्साह का संचार कर देगा।

विशेष :
1. ‘अभी-अभी’, ‘हरे-हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. ‘कलियाँ कोमल’ में अनुप्रास अलंकार है।

2. पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको।
हैं मेरे वे जहाँ अनंत
अभी न होगा मेरा अंत।

शब्दार्थ : पुष्प – फूल (Flower), तंद्रालस = आलस्य (Laziness sleepness), नव = नया (New), सहर्ष = खुशी के साथ (withjoy), द्वार = दरवाजा (Door), अनंत = जिसका अंत न हो (Endless)।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘ध्वनि’ से अवतरित है। इसमें कवि अपने कवि-कर्म का परिचय देते हुए कहता है :

व्याख्या : कवि कहता है कि मैं एक-एक फूल से आलस्य . को खींच लूँगा अर्थात् आलस्य में पड़े प्रत्येक युवक के मन से आलस्य की भावना को दूर कर दूंगा और उनके मन में नए जीवन का अमृत प्रसन्नतापूर्वक भर दूंगा। (वसंत भी यही काम करता है। वह लोगों में नव जीवन का संचार करता है।)

कवि युवा वर्ग के मन से आलस्य, निराशा की भावना को दूर करके उनको अमरता का द्वार दिखा देगा। कवि के जीवन में अभी वसंत आया ही है। अतः उसका अभी अंत नहीं होने वाला है।

विशेष:
1. ‘पुष्प-पुष्प’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
2. ‘सहर्ष सींच’ में अनुप्रास अलंकार है।
3. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।

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