HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 लोकगीत

Haryana State Board HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 लोकगीत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 लोकगीत

HBSE 6th Class Hindi लोकगीत Textbook Questions and Answers

निबंध से

पाठ 14 लोकगीत के प्रश्न उत्तर HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant प्रश्न 1.
निबंध में लोकगीतों के किन पक्षों की चर्चा की गई है? बिंदुओं के रूप में उन्हें लिखो।
उत्तर :
लेख में लोकगीतों के निम्नलिखित पक्षों की चर्चा की गई है :

  1. लोकगीतों का महत्त्व
  2. लोकगीतों में संगीत के विविध उपकरण
  3. लोकगीत और शास्त्रीय संगीत
  4. लोकगीतों के प्रकार
  5. लोकगीतों में स्त्रियों की सहभागिता
  6. लोकगीतों को गाने के अवसर
  7. लोकगीतों की लोकप्रियता
  8. लोकगीतों में नाच का पुट।

लोकगीत पाठ के शब्दार्थ HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 प्रश्न 2.
हमारे यहाँ स्त्रियों के खास गीत कौन-कौन से
उत्तर :
हमारे यहाँ स्त्रियों के खास गीत ये हैं :

  1. त्योहारों पर नदियों में नहाते समय के गीत
  2. नहाने जाते हुए रास्ते के गीत
  3. विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले गीत
  4. मटकोड एवं ज्यौनार संबंधी गीत
  5. संबंधियों के लिए प्रेमयुक्त गालियों वाले गीत
  6. जन्म आदि के अवसर पर गाए जाने वाले गीत।

लोकगीत पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 प्रश्न 3.
निबंध के आधार पर और अपने अनुभव के आधार पर (यदि तुम्हें लोकगीत सुनने के कई मौके मिले हैं तो) तुम लोकगीतों की कौन-सी विशेषताएँ बता सकते हो?
उत्तर :
हम लोकगीतों की निम्नलिखित विशेषताएँ बता सकते हैं:

  1. लोकगीतों में जन-जीवन की झलक मिलती है।
  2. इनमें विशेष उत्साह प्रदर्शित होता है।
  3. इन लोकगीतों में समूह गीतों की अधिकता होती है।
  4. लोकगीतों में लोकनृत्य की भी भागीदारी हो जाती है।
  5. लोकगीतों को गाने वाले गायकों में गलेबाजी का विशेष स्थान रहता है।

Class 6 Hindi Chapter 14 HBSE 6th Class Vasant प्रश्न 4.
‘पर सारे देश के….. अपने-अपने विद्यापति हैं’ इस वाक्य का क्या अर्थ है? पाठ पढ़कर मालूम करो और लिखो।
उत्तर :
इस वाक्य का यह अर्थ है कि विद्यापति जैसे लोकगीतों की रचना करने वाले अन्य क्षेत्रों में भी होते हैं। वे अपनी आवश्यकता तथा क्षेत्रीय प्रभाव के अनुसार लोकगीतों की रचना करते हैं। ऐसे स्थानीय कवियों से देश भरा पड़ा है।

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भारत के मानचित्र में

1. भारत के नक्शे में पाठ में चर्चित राज्यों के लोकगीत और नृत्य दिखाओ।
उत्तर :
HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 लोकगीत-1

भाषा की बात

1. ‘लोक’ शब्द में कुछ जोड़कर जितने शब्द तुम्हें सूझें, उनकी सूची बनाओ। इन शब्दों को ध्यान से देखो और समझो कि उनमें अर्थ की दृष्टि से क्या समानता है। इन शब्दों से वाक्य भी बनाओ। जैसे-लोककला।
उत्तर :
लोक + मंच = लोकमंच
लोक + मत = लोकमत
लोक + पाल = लोकपाल
लोक + तंत्र = लोकतंत्र

2. ‘बारहमासा’ गीत में साल के बारह महीनों का वर्णन होता है। नीचे विभिन्न अंकों से जुड़े कुछ शब्द दिए गए हैं। इन्हें पढ़ों और अनुमान लगाओ कि इनका क्या अर्थ है और वह अर्थ क्यों है। इस सूची में तुम अपने मन से सोचकर भी कुछ शब्द जोड़ सकते हो।
इकतारा सरपंच चारपाई सप्तर्षि अठन्नी तिराहा दोपहर छमाही नवरात्र
उत्तर :
इकतारा = एक तार वाला वाद्य यंत्र
तिराहा = जहाँ तीन राह (रास्ते) मिलते हैं
सरपंच = पंचों में प्रमुख
दोपहर = दो पहरों का मिलन
चारपाई = चार पायों वाली
छमाही = छह महीने में होने वाली
सप्तर्षि = सात ऋषियों का समूह
नवरात = नौ रातों का समूह
अठन्नी = आठ आने का समूह (सिक्का)।

3. को, में, से आदि वाक्य में संज्ञा का दूसरे शब्दों के साथ संबंध दर्शाते हैं। पिछले पाठ (झाँसी की रानी) में तुमने का के बारे में जाना। नीचे मंजरी जोशी की पुस्तक ‘भारतीय संगीत की परंपरा’ से भारत के एक लोकवाद्य का वर्णन दिया गया है। इसे पढ़ो और रिक्त स्थानों में उचित शब्द लिखो-
तुरही भारत के कई प्रांतों में प्रचलित है। यह दिखने….अंग्रेजी के एस या सी अक्षर…..तरह होती है। भारत…..विभिन्न प्रांतों में पीतल या काँसे…..बना यह वाद्य अलग-अलग नामों….से जाना जाता है। धातु की नील….को….घुमाकर एस….आकार इस तरह दिया जाता है कि उसका एक सिरा संकरा रहे और दूसरा सिरा घंटीनुमा चौड़ा रहे। फूंक मारने….एक छोटी नली अलग….जोड़ी जाती है। राजस्थान….इसे ब’ कहते हैं। उत्तर प्रदेश….यह तूरी मध्य प्रदेश और गुजरात….रणसिंघा और हिमाचल प्रदेश.. नरसिंघा…. नाम से जानी जाती है। राजस्थान और गुजरात में इसे काकड़सिंधी भी कहते हैं।
उत्तर :
तुरही भारत के कई प्रांतों में प्रचलित है। यह दिखने में अंग्रेजी के एस या सी अक्षर की तरह होती है। भारत के विभिन्न प्रांतों में पीतल या काँसे से बना यह वाद्य अलग-अलग नामों से जाना जाता है। धातु की नली को घुमाकर एस का आकार इस तरह दिया जाता है कि उसका एक सिरा संकरा रहे और दूसरा सिरा घंटीनुमा चौड़ा रहे। फूंक मारने पर एक छोटी नली अलग से जोड़ी जाती है। राजस्थान में इसे बनू कहते हैं। उत्तर प्रदेश में यह तरी, मध्य प्रदेश और गुजरात में रणसिंघा और हिमाचल प्रदेश में नरसिंघा के नाम से जानी जाती है। राजस्थान और गुजरात में इसे काकड़सिंघी भी कहते हैं।

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HBSE 6th Class Hindi लोकगीत Important Questions and Answers

Haryana Ke Gane Lokgeet 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 प्रश्न 1.
जंगल की जातियों के गीत कैसे होते हैं? ये कैसे गाए जाते हैं?
उत्तर :
जंगल की जातियों आदि के भी दल-गीत होते हैं जो अधिकतर बिरहा आदि में गाए जाते हैं। पुरुष एक ओर और स्त्रियाँ दूसरी ओर एक-दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर गाते हैं और दिशाएँ [जा देते हैं। पर इधर कुछ काल से इस प्रकार के दलीय गायन का ह्रास हुआ है।

प्रश्न 2.
स्त्रियों का गीतों से क्या संबंध है? भारतीय और अन्य देशों के गीतों में क्या अंतर है?
उत्तर :
अपने देश में स्त्रियों के गीतों की संख्या बहुत है। ये गीत भी लोकगीत ही हैं और अधिकतर इन्हें औरतें ही गाती हैं। इन्हें सिरजती भी अधिकतर वही हैं। वैसे मर्द रचने वालों या गाने वालों की भी कमी नहीं है, पर इन गीतों का संबंध विशेषतः स्त्रियों से है। इस दृष्टि से भारत इस दिशा में सभी देशों से भिन्न है क्योंकि संसार के अन्य देशों में स्त्रियों के अपने गीत मर्दो या जनगीतों से अलग और भिन्न नहीं हैं, मिले-जुले ही हैं।

प्रश्न 3.
लोकगीतों की भाषा के बारे में बताइए। इनकी क्या विशेषता है?
उत्तर :
लोकगीतों की भाषा के संबंध में कहा जा सकता है कि ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाए जाते हैं। इसी कारण वे बड़े आह्लादकारी और आनंददायक होते हैं। राग तो इन गीतों के आकर्षक होते ही हैं, इनकी समझी जा सकने वाली भाषा भी इनकी सफलता का कारण है।

प्रश्न 4.
स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले गीत प्रमुख रूप से कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
त्योहारों पर, नदियों में नहाते समय के, नहाने जाते हुए राह के, विवाह के, मटकोड़, ज्यौनार के, संबंधियों के लिए प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग-अलग गीत हैं, जो स्त्रियाँ गाती हैं। इन अवसरों पर कुछ आज से ही नहीं, बड़े प्राचीनकाल से वे गाती रही हैं। महाकवि कालिदास आदि ने भी अपने ग्रंथों में उनके गीतों का हवाला दिया है। सोहर, बानी, सेहरा आदि उनके अनंत गानों में से कुछ हैं। बारहमासे पुरुषों के साथ नारियाँ भी गाती हैं।

प्रश्न 5.
पहाड़ियों के गीतों के बारे में बताइए।
उत्तर :
पहाड़ियों के अपने-अपने गीत हैं। उनके अपने-अपने भिन्न रूप होते हुए भी अशास्त्रीय होने के कारण उनमें अपनी एक समान भूमि है। गढ़वाल, किन्नौर, काँगड़ा आदि के अपने-अपने गीत और उन्हें गाने की अपनी-अपनी विधियाँ हैं। उनका अलग नाम ही ‘पहाड़ी’ पड़ गया है।

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प्रश्न 6.
इन लोकगीतों के विषय कहाँ से लेते हैं? इनके रागों के नाम भी बताइए।
उत्तर :
इन देहाती गीतों के रचयिता कोरी कल्पना को इतना मान न देकर अपने गीतों के विषय रोजमर्रा के बहते जीवन से लेते हैं, जिससे वे सीधे मर्म को छू लेते हैं। उनके राग भी साधारणतः पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि हैं। कहरवा, बिरहा, धोबिया आदि देहात में बहुत गाए जाते हैं और बड़ी भीड़ आकर्षित करते

प्रश्न 7.
भोजपुरी में कौन-सा लोकगीत अधिक प्रचार पा गया है? इन गीतों की क्या विशेषता होती है?
उत्तर :
भोजपुरी में करीब तीस-चालीस बरसों से ‘बिदेसिया’ का प्रचार हुआ है। गाने वालों के अनेक समूह इन्हें गाते हुए देहात में फिरते हैं। उत्तर के जिलों में, विशेषकर बिहार में बिदेसिया से बढ़कर दूसरे गाने लोकप्रिय नहीं हैं। इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती है, परदेशी प्रेमी की और इनसे करुणा और विरह का रस बरसता है।

प्रश्न 8.
पहले लोकगीतों की क्या अवस्था थी? अब इनके बारे में क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर :
एक समय था जब शास्त्रीय संगीत के सामने लोकगीतों को हेय समझा जाता था। अभी हाल तक इनकी बड़ी उपेक्षा की जाती थी। पर इधर साधारण जनता की ओर जो लोगों की नजर फिरी है तो साहित्य और कला के क्षेत्र में भी परिवर्तन हुआ है। अनेक लोगों ने विविध बोलियों के लोक-साहित्य और लोकगीतों के संग्रह पर कमर बाँधी है और इस प्रकार के अनेक संग्रह अब प्रकाशित भी हो गए हैं।
अब इनकी लोकप्रियता बढ़ती चली जा रही है।

प्रश्न 9.
लोकगीत किस अर्थ में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं?
उत्तर :
लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी तथा लोकप्रियता की दृष्टि से शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं।

प्रश्न 10.
लोकगीत को गाने में किनकी जरूरत नहीं होती?
उत्तर :
लोकगीत को गाने में वाद्यों (बाजों) जैसे-ढोलक, झाँझ, करताल और बाँसुरी की जरूरत नहीं होती।

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प्रश्न 11.
पहले लोकगीतों को शास्त्रीय संगीत की तुलना में कैसा समझा जाता था?
उत्तर :
पहले लोकगीतों को शास्त्रीय संगीत की तुलना में हेय (घटिया) समझा जाता था तथा इनकी उपेक्षा की जाती थी।

प्रश्न 12.
वास्तविक लोकगीतों का संबंध कहाँ से है?
उत्तर :
वास्तविक लोकगीतों का संबंध देश के गाँवों और देहातों से है।

प्रश्न 13.
भोजपुरी में किस लोकगीत का ज्यादा प्रचार हुआ है?
उत्तर :
पिछले तीस-चालीस वर्ष से भोजपुरी के ‘बिदेसिया’ का काफी प्रचार हुआ है।

प्रश्न 14.
आल्हा का जनक किस कवि को माना जाता
उत्तर :
कवि जगनिक को आल्हा का जनक माना जाता है। वह चंदेल राजाओं का राजकवि था।

प्रश्न 15.
स्त्रियाँ लोकगीत गाते समय किस वाद्य का प्रयोग करती हैं?
उत्तर :
स्त्रियाँ प्रायः ढोलक की मदद से लोकगीत गाती हैं।

प्रश्न 16.
होली के अवसर पर ब्रज में कौन सा लोकगीत गाय जाता है?
उत्तर :
ब्रज में रसिया गाया जाता है।

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लोकगीत गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये, इनके लिए साधना की जरूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ये गाए जाते हैं। सदा से ये गाए जाते रहे हैं और इनके रचने वाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाए जाते हैं।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ भगवतशरण उपाध्याय द्वारा रचित पाठ ‘लोकगीत’ से ली गई हैं। इनमें लेखक लोकगीतों के बारे में बताता है।

व्याख्या :
लेखक बताता है कि लोकगीत शास्त्रीय संगीत से अलग होते हैं। लोकगीतों में लोच, ताजगी और लोकप्रियता होती है। लोकगीतों का सीधा संबंध जनता से होता है। इन्हें घर, गाँवों और नगर का जनता गाती है। ये गीत स्वत: ही उभरते हैं अत: इनके लिए किसी साधना की आवश्यकता नहीं होती।

ये गीत त्योहारों और विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं। ये शुरू से ही गाए जाते रहे हैं। इन गीतों को रचने वाले भी गाँव में रहने वाले ही होते हैं। इन गीतों की रचना में स्त्रियों की विशेष भागीदारी रहती है। इन गीतों को गाने के लिए किन्हीं विशेष प्रकार के वाद्य-यंत्रों की आवश्यकता नहीं पड़ती। इन्हें साधारण ढोलक,झाँझ, करताल और बाँसुरी की मदद से गा लिया जाता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:
1. लोकगीत शास्त्रीय संगीत से किस दृष्टि से भिन्न हैं?
2.लोकगीत किससे जुड़े हैं?
3. लोकगीत कब गाए जाते हैं?
4. लोकगीतों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर :
1. लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता की दृष्टि से शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं।
2. लोकगीत सीधे आम जनता से जुड़े हैं। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं।
3. लोकगीत त्योहारों और विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं।
4.

  • लोकगीतों की रचना गाँव के लोगों ने ही की है।
  • स्त्रियों ने भी इनकी रचना में भाग लिया है।
  • इन्हें बिना बाजों (वाद्यों) के भी गाया जा सकता है।

बहुविकल्पी प्रश्न सही विकल्प चुनकर लिखिए

1. लोकगीत में कौन सी विशेषता नहीं होती?
(क) लोच
(ख) ताजगी
(ग) लोकप्रियता
(घ) शास्त्रीयता
उत्तर :
(घ) शास्त्रीयता

2. लोकगीतों की रचना करने वाले
(क) गाँव के लोग होते हैं।
(ख) शहर के लोग होते हैं।
(ग) नामी कवि होते हैं।
(घ) संगीतकार होते हैं।
उत्तर :
(क) गाँव के लोग होते हैं।

3. इनमें से कौन सी वस्तु वाद्य नहीं है
(क) बाँसुरी
(ख) ढोलक
(ग) करताल
(घ) माइक
उत्तर :
(घ) माइक

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2. एक दूसरे प्रकार के बड़े लोकप्रिय गाने आल्हा के हैं। अधिकतर ये बुंदेलखंडी में गाए जाते हैं। आरंभ तो इसका चंदेल राजाओं के राज कवि जगनिक से माना जाता है जिसने आल्हा-ऊदल की वीरता का अपने महाकाव्य में बखान किया, पर निश्चय ही उसके छंद को लेकर जनबोली में उसके विषय को दूसरे देहाती कवियों ने भी समय-समय पर अपने गीतों में उतारा और ये गीत हमारे गाँवों में आज भी बहुत प्रेम से गाए जाते हैं।

इन्हें गाने वाले गाँव-गाँव ढोलक लिए गाते फिरते हैं। इसी की सीमा पर उन गीतों का भी स्थान है जिन्हें नट रस्सियों पर खेल करते हुए गाते हैं। अधिकतर ये गद्य-पद्यात्मक हैं और इनके अपने बोल हैं।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश भगवतशरण उपाध्याय द्वारा रचित लेख ‘लोकगीत’ से अवतरित है।

व्याख्या :
लेखक लोकगीतों के प्रकार बताते हुए कहता है कि ‘आल्हा’ भी अत्यंत लोकप्रिय गीत है। आल्हा को बुदेलखंडी में गाया जाता है। आल्हा की शुरुआत चंदेल राजाओं के राजकवि जगनिक से मानी जाती है। उसने अपने महाकाव्य में आल्हा-ऊदल की वीरता का बखान किया है। इस महाकाव्य में जिस छंद को अपनाया गया है, उसी छंद को लेकर जनता की बोली में उसके विषय को अन्य ग्रामीण कवियों ने समय-समय पर अपने गीतों के माध्यम से प्रकट किया है।

आज भी ये गीत बड़े प्रेमपूर्वक गाए जाते हैं। इन गीतों को गाने वाले कवि ढोलक लेकर इन्हें गाँव-गाँव गाते फिरते हैं। इसी की सीमा पर उन लोकगीतों का भी स्थान है जिन्हें नट रस्सियों पर खेल दिखाते हुए गाते हैं। प्रायः इस प्रकार के गीत गद्य-पद्य का मिश्रण होते हैं। इन गीतों के बोल अपने ही होते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:
1. आल्हा किसमें गाए जाते हैं?
2. ‘आल्हा’ लोकगीतों की क्या विशेषता है?
3. आल्हा गाने वाले कहाँ मिलते हैं?
4. नटों के गीत किस प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
1. आल्हा अधिकतर बुंदेलखंडी में गाए जाते हैं। ये काफी लोकप्रिय हैं।
2. आल्हा लोकगीतों का आरंभ चंदेल राजाओं के राजकवि जगनिक से माना जाता है। उसने आल्हा-ऊदल की वीरता का बखान अपने महाकाव्य में किया। बाद में देहाती कवियों ने जनबोली में गीतों की रचना की। इन्हें गाँवों में बड़े प्रेम से गाया जाता है।
3. आल्हा गाने वाले गाँव-गाँव में ढोलक लिए आल्हा गाते फिरते हैं।
4. नटों के गीत रस्सियों पर खेल दिखाते हुए गाए जाते हैं। ये गद्य-पद्य का मिला-जुला रूप होते हैं।

बहुविकल्पी प्रश्न सही विकल्प चुनकर लिखिए

1. आल्हा का आरंभ किस कवि से माना जाता है?
(क) जगनिक से
(ख) चंदेल से
(ग) ऊदल से
(घ) सभी से
उत्तर :
(क) जगनिक से

2. इन गीतों में किसकी वीरता का वर्णन है?
(क) चंदेल की
(ख) आल्हा की
(ग) ऊदल की
(घ) आल्हा-ऊदल की
उत्तर :
(घ) आल्हा-ऊदल की

3. ‘देहाती कवियों’-रेखांकित शब्द व्याकरण में क्या है?
(क) संज्ञा
(ख) सर्वनाम
(ग) विशेषण
(घ) क्रिया
उत्तर :
(ग) विशेषण

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3. वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में है। इनका संबंध देहात की जनता से है। बड़ी जान होती है इनमें। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के अन्य पूरबी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाए जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं। पंजाब में माहिया आदि इसी प्रकार के हैं। हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल संबंधी गीत पंजाबी में और ढोला-मारू आदि के गीत राजस्थानी में बड़े चाव से गाए जाते हैं।

प्रसंग : प्रस्तुत पक्तियाँ भगवतशरण उपाध्याय द्वारा रचित लेख ‘लोकगीत’ से ली गई हैं।

व्याख्या :
लेखक बताता है कि लोकगीतों की वास्तविक भूमि गाँवों में, देहातों में है। इन गीतों का संबंध गाँवों से है। इन गीतों में बहुत दम होता है। कुछ गीत जैसे चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के अन्य पूर्वी तथा बिहार के पश्चिमी जिलों में गाए जाते हैं। इसी प्रकार बाउल और भतियाली बंगाल में गाए जाने वाले लोकगीत हैं। पंजाब का प्रसिद्ध लोकगीत माहिया है। हीर-राँझा, सोहनी-महीवाल संबंधी लोकगीत पंजाबी में और ढोला-मारू आदि लोकगीतों को राजस्थानी भाषा में बड़े उत्साहपूर्वक गाया जाता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:
1. वास्तविक लोकगीत कहाँ हैं? इनका संबंध किनसे है?
2. चैता, कजरी, बारहमासा, सावन कहाँ गाए जाते हैं?
3. बंगाल के लोकगीत कौन से हैं?
4. पंजाबी और राजस्थानी लोकगीतों के नाम लिखो।
उत्तर:
1. वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं। इनका संबंध देहात की जनता के साथ है।
2. चैता, कजरी, बारहमासा और सावन आदि लोकगीतों को मिर्जापुर, बनारस, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाया जाता है।
3. बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं।
4. पंजाबी लोकगीत हैं-हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल तथा माहिया राजस्थानी लोकगीत हैं-ढोला-मारू।

बहुविकल्पी प्रश्न सही विकल्प चुनकर लिखिए

1. ‘वास्तविक’ शब्द में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
(क) वा
(ख) वास्तव
(ग) इक
(घ) क
उत्तर :
(ग) इक

2. इनमें से कौन-सा लोकगीत पूर्वी उत्तर प्रदेश का नहीं हैं।
(क) चैता
(ख) कजरी
(ग) बाउल
(घ) बारहमासा
उत्तर :
(ग) बाउल

3. ‘ढोला-मारू’ किस प्रदेश का लोकगीत है?
(क) राजस्थान का
(ख) पंजाब का
(ग) बिहार का
(घ) उत्तर प्रदेश का
उत्तर :
(क) राजस्थान का

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लोकगीत Summary in Hindi

लोकगीत पाठ का सार

इस पाठ में लेखक लोकगीत की विशेषता तथा उसके भेदों के बारे में बताता है। लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता के कारण शास्त्रीय संगीत से भिन्न होता है। यह सीधे जनता का संगीत होता है। इसके लिए साधना की जरूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर इन्हें सदा से गाया जाता रहा है। इनकी रचना भी गाँव के लोग ही करते हैं। स्त्रियों ने भी इसमें भाग लिया है। ये गीत साधारण ढोलक, झाँझ, करताल और बाँसुरी आदि की मदद से ही गाए जाते हैं।

पहले इन्हें शास्त्रीय संगीत की तुलना में घटिया समझा जाता था, पर अब इनकी ओर विशेष ध्यान दिया गया है। अब विविध बोलियों में लोक-साहित्य और लोकगीतों के संग्रह प्रकाशित हो गए हैं। लोकगीतों के कई प्रकार हैं। आदिवासियों के लोकगीत बड़े ओजस्वी और सजीव हैं। मध्य प्रदेश, दक्कन, छोटा नागपुर में गोंड-खोंड, ओराँव-मुंडा, भील-संताल आदि फैले हुए हैं। इनके गीत 20-20, 30-30 आदमियों और औरतों के दल के साथ एक-दूसरे के जवाब में गाए जाते हैं। पहाड़ियों के अपने गीत हैं।

गढ़वाल, किन्नौर, काँगड़ा आदि के गीतों को गाने की अपनी-अपनी विधियाँ हैं। इनका नाम ‘पहाड़ी’ पड़ गया है। लोकगीतों का संबंध आम जनता से है। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के अन्य पूर्वी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाए जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं।

पंजाब में माहिया, हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल गीत हैं तो राजस्थान में ढोला-मारू हैं। ये गीत सीधे मर्म को छू लेते हैं। ये सभी गीत गांवों और इलाकों की बोलियों में गाए जाते हैं। इनकी भाषा सरल होती है। भोजपुरी में 30-40 सालों से ‘बिदेसिया’ का प्रचार हुआ है। इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती है, परदेशी प्रेमी की और इनमें करुणा एवं विरह का रस बरसता है।

जंगल की जातियों के दल-गीत होते हैं। एक-दूसरे प्रकार के लोकप्रिय गाने आल्हा हैं। ये बुंदेलखंडी में गाए जाते हैं। इनका संबंध आल्हा-ऊदल से माना जाता है। इनका प्रारंभ चंदेल राज्य के राजकवि जगनिक से माना जाता है। अपने देश में स्त्रियों के गीतों की भी बड़ी संख्या है। त्योहारों पर नदियों में नहाते समय, विवाह के अवसर पर, त्यौहार पर, संबंधियों को प्रेमयुक्त गाली देने, जन्म आदि अवसरों पर स्त्रियाँ अलग-अलग प्रकार के गीत गाती हैं।

स्त्रियों के द्वारा गाए जाने वाले गीत अकेले नहीं गाए जाते। गाँवों और नगरों में गायिकाएँ भी होती हैं। सभी ऋतुओं में स्त्रियाँ उल्लसित होकर दल बाँधकर गाती हैं। होली और बरसात की कजरी सुनते ही बनती है। पूरब की बोलियों में मैथिल-कोकिल विद्यापति के गीत गाए जाते हैं। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं।

उनके गाने के साथ नाच का भी पुट होता है। इसी प्रकार का दलीय गायन है-गुजरात का गरबा। इसे औरतें घूम-घूमकर गाती हैं तथा साथ ही डंडे भी बजते हैं। होली के अवसर पर ब्रज में रसिया चलता है। गाँवों में गीतों के अनंत प्रकार हैं। इनमें ग्रामीण जीवन इठलाता-लहराता है।

लोकगीत शब्दार्थ

लोच = लचीलापन, लचक (Flexibility)। झाँझ = दो काँसे की तश्तरियों से बना हुआ एक प्रकार का वाद्य यंत्र (A musical instrument)। करताल = एक प्रकार का वाद्य यंत्र (A kind of musical instrument)। हेय = हीन, तुच्छ (Inferior)। ओजस्वी = ओज भरा, प्रभावकारी (Effective) सिरजती = बनाती, सृजन करती (Creative)। आह्वावकर = हर्षकर (Amusing)। कृत्रिम = बनावटी (Artificial)। अबूझ = जो समझने योग्य न हो, क्लिष्ट (Difficult to understand)। बखान = वर्णन, बड़ाई, गुण-कथन (Description)। उल्लसित = खुश (Happy)। उद्दाम = बंधन रहित, बहुत ज्यादा (Boundless)। शास्त्रीय संगीत = नियम-सुर-ताल में बँधे (Classical music)। संग्रह = इकट्ठा (Collection)। परिवर्तन = बदलाव (Changes)। देहात = aग्रामीण (Rural)। ह्रास-गिरावट (Downfall)। दलीय गायन-मिलकर गाना (Group song)। कंठ-गला (Throat)1 लोकप्रिय-लोगों में प्रसिद्ध (Popular)। स्रोत-साधन (Source)।

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