Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Chand Prakaranam Sahitya Itihas छन्द प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् छन्द प्रकरणम्
1. छन्दपरिचयः
छन्द श्लोक लिखते समय वर्णों की एक निश्चित व्यवस्था रखनी पड़ती है। यह व्यवस्था छन्द या वृत्त कहलाती है। वृत्त के भेद
प्रायः प्रत्येक श्लोक के चार भाग होते हैं, जो पाद या चरण कहलाते हैं। जिस वृत्त के चारों चरणों में बराबर अक्षर हो, वे समवृत्त कहलाते हैं। जिसके प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण अक्षरों की दृष्टि से समान हों, वे अर्धसमवृत्त हैं। जिसके चारों चरणों में अक्षरों की संख्या समान न हो, वे विषमवृत्त कहे जाते हैं।
गुरु-लघु व्यवस्था
छन्द की व्यवस्था वर्णों पर आधारित रहती है-मुख्यतः स्वर वर्ण पर। ये वर्ण छन्द की दृष्टि से दो प्रकार के होते हैं-लघु एवं गुरु । सामान्यतः ह्रस्व स्वर लघु होता है और दीर्घ स्वर गुरु किंतु कुछ परिस्थितियों में ह्रस्व स्वर लघु न होकर गुरु माना जाता है।
छन्द में गुरु-लघु व्यवस्था का नियम इस प्रकार है
अनुस्वारयुक्त, दीर्घ, विसर्गयुक्त तथा संयुक्त वर्ण के पूर्व वाले वर्ण गुरु होते हैं। शेष सभी वर्ण लघु होते हैं। छंद के किसी पाद का अंतिम वर्ण लघु होने पर भी आवश्यकतानुसार गुरु मान लिया जाता है
सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत्।
वर्णः संयोगपूर्वश्च तथा पादान्तगोऽपि वा। -~छन्दोमञ्जरी 1.11
गुरु एवं लघु के लिए अधोलिखित चिह्न प्रयुक्त होते हैं
गुरु – 5
लघु – ।
लघु वर्ण अधोलिखित चार दशाओं में गुरु वर्ण मान लिया जाता है
s | s
1. अनुस्वार युक्त लघु वर्ण भी गुरु हो जाता है; जैसे- अंशतः ।
यहाँ ‘अ’ लघु होते हुए भी अनुस्वार युक्त ‘अं’ होने के कारण गुरु हो गया है।
s | s
2. विसर्ग युक्त लघु वर्ण भी गुरु हो जाता है; जैसे- अंशतः ।
यहाँ ‘त’ लघु होते हुए भी विसर्ग युक्त ‘तः’ होने के कारण गुरु हो गया है।
s s
3. संयुक्त वर्ण के पूर्व वाला वर्ण भी गुरु हो जाता है; जैसे- रक्तः ।
यहाँ ‘र’ लघु होते हुए भी संयोगपूर्व वाला ‘रक’ होने के कारण गुरु हो गया है।
| s | s s | | s | s s
4. छन्द के पादान्त में लघु वर्ण भी गुरु हो जाता है; जैसे- त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
यहाँ पादान्त में ‘व’ लघु होते हुए भी छन्द की आवश्यकतानुसार गुरु हो गया है।
गण-व्यवस्था
तीन वर्षों का एक गण माना जाता है। गुरु-लघु के क्रम से गण आठ प्रकार के होते हैं
भ – गण s । ।
य – गण । s s
म – गण s s s
ज – गण । s ।
र – गण s । s
न – गण । । ।
स – गण । । s
त – गण s s |
भगण (s।।) आदि गुरु,
जगण (। s ।) मध्य गुरु तथा सगण (।। s ) अन्त गुरु होते हैं। यगण (। s s) आदि लघु,
रगण (s । s) मध्य लघु और तगण (s s |) अन्त लघु होते हैं।
मगण (s s s) में सभी वर्ण गुरु और नगण ( | | ) में सभी वर्ण लघु होते हैं।
आदिमध्यावसानेषु भजसा यान्ति गौरवम्।
यरता लाघवं यान्ति मनौ तु गुरुलाघवम्॥ -छन्दोमजरी
इन गणों को सरलता से याद रखने के लिए नीचे दिया गया गणसूत्र याद कर लेना चाहिए
| s s s | s | | | s
यमाताराजभानसलगा
(क) वैदिक छन्द
वैदिक मन्त्रों में गेयता का समावेश करने के लिए जिन छन्दों का प्रयोग हुआ है; उनमें गायत्री, अनुष्टुप् और त्रिष्टुप् छन्द प्रमुख हैं।
1. गायत्री (आठ अक्षरों के तीन पादों वाला समवृत्त)
जिस छन्द में तीन चरण हों और प्रत्येक चरण में आठ अक्षर हों तथा जिनमें पाँचवाँ अक्षर लघु और छठा अक्षर गुरु हो, वह गायत्री छन्द कहलाता है। अधोलिखित मन्त्र में गायत्री छन्द है
पावका नः सरस्वती,
वाजेभिर्वाजिनीवती।
यज्ञं वष्टु धिया वसुः॥
2. अनुष्टुप् (आठ अक्षरों वाला समवृत्त)
जिस छंद में चार चरण हों और प्रत्येक चरण में आठ अक्षर हों, जिनमें पाँचवाँ अक्षर लघु तथा छठा अक्षर गुरु हो, सातवाँ अक्षर जिसके पहले और तीसरे चरण में गुरु हो, किन्तु दूसरे और चौथे चरण में लघु हो, वह अनुप् छन्द कहलाता है।
उदाहरण
त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
छन्द की पूर्ति के लिए त्र्यम्बकं’ को ‘त्रियम्बकं’ पढ़ते हैं।
3. त्रिष्टुप् (ग्यारह अक्षरों वाला समवृत्त)
जिस छन्द में चार चरण हों और प्रत्येक चरण में ग्यारह अक्षर हों, वह त्रिष्टुप् छन्द कहलाता है।
प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम पाठ का निम्नलिखित मन्त्र त्रिष्टुप् छन्द में है
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया,
समानं वृक्षं परिषस्वजाते।
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्ति,
अनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति॥ -श्वेत०, उ० 2.4.6 तथा मुण्डक० ३.1.1
यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रे
ऽस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय।
तथा विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः
परात्परं पुरुषमुपैति दिव्यम्॥ -मुण्डक० 3.2.8
वैदिक-छन्दों को अधोलिखित तालिका द्वारा सरलता से समझा जा सकता है
(ख) लौकिक छन्द
प्रस्तुत पुस्तक के अनेक पाठों में अनेक लौकिक छन्दों का संकलन है। अतः संकलित छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण प्रस्तुत है
1. अनुष्टुप्
(आठ अक्षरों वाला समवृत्त)
संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण
श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्।
द्विचतुष्पादयोह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥ -श्रुतबोध 10
अनुष्टुप् छन्द के चारों चरणों का पाँचवाँ वर्ण लघु, छठा वर्ण गुरु तथा प्रथम एवं तृतीय चरण का सातवाँ वर्ण गुरु और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण का सातवाँ वर्ण लघु होता है।
प्रस्तुत पुस्तक का द्वितीय पाठ अनुष्टुप् छन्द में है
(i) यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(ii) ययातेरिव शर्मिष्ठा भर्तुर्बहुमता भव।
सुतं त्वमपि सम्राजं सेव पुरूमवाप्नुहि ॥
2. इन्द्रवज्रा
(त त ज ग ग)
(ग्यारहवर्णों वाला समवृत्त)
संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः। -वृत्तरत्नाकर, 3/30
जिस छन्द के प्रत्येक पाद में दो तगण, एक जगण और दो गुरु वर्ण क्रम से हों, वह इन्द्रवज्रा छंद होता है ।
उदाहरणम्- स्वर्गच्युतानामिह जीवलोके
चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे।
दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी
देवार्चनं पण्डित-तर्पणञ्च॥
3. उपेन्द्रवज्रा
(ज त ज ग ग)
(ग्यारहवर्णों का समवृत्त)
संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण
उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ। -वृत्तरत्नाकर, 3/31
जिस छन्द के प्रत्येक पाद में क्रमश: एक जगण, एक तगण, एक जगण और दो गुरु वर्ण हों, वह उपेन्द्रवज्रा छंद होता है।
उदाहरणम्- त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वेमव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
(यहाँ प्रत्येक चरण का अन्तिम वर्ण लघु होते हुए भी छन्द की आवश्यकता के अनुसार गुरु मान लिया गया है।)
4. उपजाति
(ग्यारह वर्गों का समवृत्त)
संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण
अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ पादौ यदीयावुपजातयस्ताः।
इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु वदन्ति जातिष्विदमेव नाम ॥ -वृत्तरत्नाकर, 3/32
इसके प्रथम एवं तृतीय चरण उपेन्द्रवज्रा तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण इन्द्रवज्रा छन्द के अनुसार, है, जिससे यह उपजाति छन्द है।
अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा ( इन्द्रवज्रा )
हिमालयो नाम नगाधिराजः । (उपेन्द्रवज्रा)
पूर्वापरौ तोयनिधि वगाह्य (इन्द्रवज्रा)
स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः ॥ (उपेन्द्रवज्रा)
इसके प्रथम तथा तृतीय पाद इन्द्रवज्रा छन्द में हैं। द्वितीय तथा चतुर्थ पाद उपेन्द्रवज्रा छन्द में हैं। (इसीलिए पूरा श्लोक उपजाति छन्द वाला बन गया है।)
5. वंशस्थ
(ज, त, ज, र)
(प्रतिचरण बारह वर्णों का समवृत्त)
संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण
जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ। -वृत्तरत्नाकर 3.47
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण, तगण, जगण एवं रगण हों, वह वंशस्थ छन्द कहलाता है।
भवन्ति नम्रास्तरवो फलोद्गमैः
नवाम्बुभिर् दूरविलम्बिनो घनाः।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्॥
6. वसन्ततिलका
(चौदह अक्षरों वाला समवृत्त)
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश: तगण, भगण, जगण एवं दो गुरु वर्ण हों तथा 14 अक्षर हों, वह वसन्ततिलका छन्द कहलाता है।
संस्कृत में लक्षण
ज्ञेया ( उक्ता) वसन्ततिलका तभजा जगौ गः
इस पुस्तक के एकादश पाठ का निम्नलिखित पद्य वसन्ततिलका छन्द में है
उदाहरण
पापान्निवारयति योजयते हिताय
गुह्यान् निगृहति गुणान् प्रकटीकरोति।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले
सन्मित्र लक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः॥
7. मालिनी
(पन्द्रह अक्षरों वाला समवृत्त)
जिस छन्द के प्रत्येक चरण (पाद) में क्रमशः दो नगण, एक मगण तथा दो यगण हों और पन्द्रह अक्षर हों वह छन्द मालिनी कहलाता है। इसमें पहली यति (विराम) आठवें वर्ण के बाद और दूसरी यति पन्द्रहवें वर्ण के बाद होती है।
संस्कृत में लक्षण
नन मयययु तेयं मालिनी भोगिलोकैः।
उदाहरण
जयतु जयतु देशः सर्वतन्त्रस्स्वतन्त्रः
प्रतिदिनमिह वृद्धिं यातु देशस्य रागः।
व्रजतु पुनरयं नोदासतामन्ययदीयाम्॥
भवतु धन समृद्धिः सर्वतो भावसिद्धिः।
8. शिखरिणी
(सत्रह अक्षरों वाला समवृत्त)
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमशः यगण, मगण, नगण, सगण, भगण तथा एक लघु और एक गुरु वर्ण हों और सत्रह अक्षर हों वह शिखरिणी छन्द कहलाता है। छठे और सत्रहवें वर्ण के बाद इसमें यति होती है।
संस्कृत में लक्षण
– रसैः रुद्रैश्छिन्ना यमनसभलागः शिखरिणी।
उदाहरण
अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहै
रनाविद्धं रत्तं मधु नवमनास्वादितरसम्
अखण्डं पुण्यानां फलमिह च तद्रूपमनघम्
न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधिः॥
9. शार्दूलविक्रीडितम्
(म, स, ज, स, त, त, ग)
(उन्नीस वर्गों वाला समवृत्त)
लक्षण-सूर्याश्वैर्यदि मः सजौ सततगाः शार्दूलविक्रीडितम्। -छन्दोमंजरी, 2/19
जिस छंद के प्रत्येक पाद में क्रमशः मगण, सगण, जगण, सगण, दो तगण एवं एक गुरु वर्ण हों, वह शार्दूलविक्रीडित छन्द कहलाता है। इसमें बारहवें वर्ण के बाद पहली यति और उन्नीसवें अक्षर के बाद दूसरा यति होती है।
प्रस्तुत पुस्तक के तृतीय पाठ का अधोलिखित श्लोक शार्दूलविक्रीडित छंद में है :
यास्यत्यद्य शंकुन्तलेति हृदयं संस्पृष्टमुत्कण्ठया,
कण्ठः स्तम्भितवाष्पवृत्तिकलषश्चिन्ताजडं दर्शनम्
वैक्लव्यं मम तावदीदृशमिदं स्नेहादरण्यौकसः,
पीड्यन्ते गृहिणः कथं न तनयाविश्लेषदुःखैर्नवैः॥
10. मन्दाक्रान्ता
(म, भ, न, त, त, ग, ग)
(सत्रह अक्षरों वाला समवृत्त)
मगण, भगण, नगण, दो तगणों और दो गुरुओं से मन्दाक्रान्ता छंद होता है। इसमें चौथे अक्षर के बाद पहली यति, छठे अक्षर के बाद दूसरी यति तथा आठवें अक्षर के बाद तीसरी यति होती है।
संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण
मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगैः मो भनौ तौ गयुग्यम्
उदाहरण
‘पश्चात्पुच्छं वहति विपुलं तच्च धूनोत्यजत्रम्
दीर्घग्रीवः स भवति, खुरास्तस्य चत्वार एव।
शष्याण्यत्ति, प्रकिरति शकृत्-पिण्डकानाम्र-मात्रा।
किं व्याख्यानैव्रजति स पुन(रमेयेहि याम॥