HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

HBSE 11th Class Political Science धर्मनिरपेक्षता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी बातें धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत हैं? कारण सहित बताइए।
(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।
(ख) किसी धर्म को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता देना।
(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय होना।
(घ) विद्यालयों में अनिवार्य प्रार्थना होना।
(ङ) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति होना।
(च) सरकार द्वारा धार्मिक संस्थाओं की प्रबंधन समितियों की नियक्ति करना।
(छ) किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप।
उत्तर:
(क) यह विचार धर्मनिरपेक्षता के विचार से पूर्णत: संगत है। धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी धार्मिक समूह को दूसरे धार्मिक समूह पर वर्चस्व स्थापित करने की अनुमति नहीं देता है, क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो धार्मिक समानता जैसे सिद्धांत का हनन हो सकता है।

(ङ) यह विचार भी धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत है, क्योंकि सभी अल्पसंख्यक समुदायों को अपने-अपने शैक्षणिक संस्थान बनाने की पूर्ण अनुमति होती है ताकि वे अपने धर्म का प्रचार-प्रसार अच्छी तरह से कर सकें।

(छ) यह विचार भी धर्मनिरपेक्षता के विचार के अनुकूल है, क्योंकि किसी भी मंदिर का दरवाज़ा सभी लोगों के लिए खुला होना चाहिए। मंदिर में दलितों के प्रवेश पर पाबंदी नहीं लगानी चाहिए। इससे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत की अवहेलना होती है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

प्रश्न 2.
धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी और भारतीय मॉडल की कुछ विशेषताओं का आपस में घालमेल हो गया है। उन्हें अलग करें और एक नई सूची बनाएँ।
उत्तर:

पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता भारतीय धर्मनिरपेक्षता
1. धर्म और राज्य का एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति। 1. राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति।
2. विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होना। 2. एक धर्म के विभिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना।
3. अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना। 3. समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना।
4. व्यक्ति और उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्त्व दिया जाना। 4. व्यक्ति और धार्मिक समुदायों दोनों के अधिकारों का संरक्षण।

धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी एवं भारतीय मॉडल की विशेषताओं को क्रमशः निम्नलिखित सूचियों के माध्यम से अलग-अलग रूप में समझा जा सकता है-

पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता भारतीय धर्मनिरपेक्षता
1. धर्म और राज्य का एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति। 1. राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति।
2. एक धर्म के विभिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना। 2. विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होना।
3. व्यक्ति और उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्त्व दिया जाना। 3. अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना।
4. समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना। 4. व्यक्ति और धार्मिक समुदायों दोनों के अधिकारों का संरक्षण।

प्रश्न 3.
धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? क्या इसकी बराबरी धार्मिक सहनशीलता से की जा सकती है?
उत्तर:
धर्म या धर्मनिरपेक्ष शब्द अंग्रेजी भाषा के सेक्युलर (Secular) शब्द का हिन्दी पर्याय है। सेक्युलर शब्द लेटिन भाषा के सरकुलम (Surculm) शब्द से बना है। लेटिन भाषा से उदित इस शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘सांसारिक’ है, अर्थात् राजनीतिक गतिविधियों को केवल लौकिक क्षेत्र तक सीमित रखना है। सेक्युलर (Secular) शब्द के प्रथम प्रयोगकर्ता जॉर्ज जैकब हॉलीओक ने स्पष्ट किया है कि,

“धर्मनिरपेक्षता का अर्थ, इस विश्व या मानव जीवन से सम्बन्धित दृष्टिकोण, जो धार्मिक या द्वैतवादी विचारों से बँधा हुआ न हो।” अतः धर्मनिरपेक्षता को सर्वप्रथम एवं सर्वप्रमुख रूप से ऐसा सिद्धान्त समझा जाना चाहिए जो अन्तर-धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है। यद्यपि यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा के महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से केवल एक है। धर्मनिरपेक्षता का इतना ही महत्त्वपूर्ण दूसरा पहलू अन्तःधार्मिक वर्चस्व यानी धर्म के अन्दर छुपे वर्चस्व का विरोध करना है।

इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा नियामक सिद्धान्त है जी धर्मनिरपेक्ष समाज अर्थात् अन्तःधार्मिक तथा अन्तर-धार्मिक दोनों तरह के वर्चस्वों से रहित समाज बनाना चाहता है। यदि इसी बात को सकारात्मक रूप से कहें तो यह धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देता है।

इसके अतिरिक्त यह भी स्पष्ट है कि धर्मनिरपेक्षता की बराबरी धार्मिक सहनशीलता से नहीं की जा सकती है। यद्यपि सहिष्णुता धार्मिक वर्चस्व की विरोधी नहीं है क्योंकि यह भी हो सकता है सहिष्णुता में हर किसी को कुछ मौका मिल जाए, लेकिन ऐसी आजादी प्रायः सीमित होती है। इसके साथ-साथ सहिष्णुता उन लोगों को बर्दाश्त करने की क्षमता पैदा करती है, जिन्हें हम बिल्कुल पसन्द नहीं करते हैं। यह उस समाज के लिए तो ठीक है जो किसी बड़े गृहयुद्ध से उबर रहा हो मगर शांति के दौरान ठीक नहीं है जहाँ लोग समान मान-मर्यादा के लिए संघर्ष कर रहे हों।

प्रश्न 4.
क्या आप नीचे दिए गए कथनों से सहमत हैं? उनके समर्थन या विरोध के कारण भी दीजिए।
(क) धर्मनिरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है।
(ख) धर्मनिरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अंदर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ है।
(ग) धर्मनिरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिमी तथा ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है।
उत्तर:
(क) इस कथन से हम असहमत हैं क्योंकि धर्मनिरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति देती है। भारत का प्रत्येक व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना सकता है और उसे उसकी धार्मिक पहचान की पूर्ण स्वतंत्रता है।

(ख) हाँ, इस कथन से हम सहमत हैं कि धर्मनिरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अंदर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच किसी भी प्रकार की असमानता का विरोध करती है क्योंकि धर्मनिरपेक्षता सर्वधर्म समभाव के सिद्धांत को अपनाता है जिसमें सभी धर्म बराबर हैं अर्थात् धर्मों के बीच असमानता का कोई स्थान नहीं है।

(ग) यह कथन गलत है क्योंकि वास्तव में पश्चिमी राज्य तब धर्मनिरपेक्ष बने, जब एक महत्त्वपूर्ण स्तर पर, उन्होंने ईसाइयत से संबंध विच्छेद कर लिया। पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में ऐसी कोई ईसाइयत नहीं है। जहाँ इस कथन का सम्बन्ध है कि धर्मनिरपेक्षता भारत के लिए उपयुक्त नहीं है, यह सर्वथा गलत है क्योंकि भारत में विभिन्न धर्म के लोग निवास करते हैं। उन्हें अपनी इच्छानुसार धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतंत्रता है और राज्यसत्ता धर्म के प्रति निरपेक्षता भाव रखती है। अत: धर्मनिरपेक्षता के लिए उपयुक्त है।

प्रश्न 5.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के अलगाव पर नहीं वरन् उससे अधिक किन्हीं बातों पर है। इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
भारत में सच्चे धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गई है क्योंकि भारतीय राज्य न तो धार्मिक हैं न अधार्मिक और न ही धर्मविरोधी, किन्तु यह धार्मिक संकीर्णताओं तथा वृत्तियों से दूर है और धार्मिक मामलों में तटस्थ है। इस प्रकार भारत अपनी धर्मनिरपेक्ष नीति के कारण अमेरिकी शैली में धर्म से विलग भी हो सकता है एवं आवश्यकता पड़ने पर उसके साथ संबंध भी बना सकता है।

स्पष्ट है कि भारतीय राज्य धार्मिक अत्याचार का विरोध करने के लिए धर्म के साथ निषेधात्मक संबंध भी बना सकता है। जो भारत में मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक पर प्रतिबंध जैसी कानूनी कार्रवाइयों में दिखाई देती है।

इसके अतिरिक्त वह जुड़ाव की सकारात्मक विधि भी अपना सकती है; जैसे भारतीय संविधान समस्त धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी स्वयं की शिक्षण संस्थाएँ खोलने तथा चलाने का अधिकार देता है, जिन्हें राज्यसत्ता की ओर से आर्थिक सहायता भी मिल सकती है। इस तरह शांति, स्वतंत्रता तथा समानता के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय राज्यसत्ता ये सारी रणनीतियाँ अपना सकती है।

इसके साथ-साथ भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने अंतः धार्मिक और अंतर-धार्मिक वर्चस्व पर भी एक साथ ध्यान केंद्रित किया। इसने हिंदुओं के अंदर दलितों और महिलाओं के उत्पीड़न और भारतीय मुसलमानों तथा ईसाइयों के अंदर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किए जा सकने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता समस्त धर्मों में राज्यसत्ता के सैद्धांतिक हस्तक्षेप की अनुमति देती है। ऐसा हस्तक्षेप हर धर्म के कुछ विशेष पहलुओं के प्रति असम्मान प्रदर्शित करता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए यह आवश्यक नहीं है कि धर्म के हर पहलू को वह एक जैसा सम्मान प्रदान करे । यह संगठित धर्मों के कुछ पहलुओं के प्रति एक जैसा सम्मान दर्शाने की स्वीकृति भी देता है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

प्रश्न 6.
‘सैद्धांतिक दूरी’ क्या है? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
सैद्धांतिक दूरी का तात्पर्य है कि राज्य को किसी भी धर्म में सक्रिय हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए; जैसे भारत धार्मिक विषयों से सैद्धांतिक दूरी बनाए रखने में विश्वास करता है। दूसरे शब्दों में, वह धर्म से अलग भी हो सकता है और आवश्यकता पड़ने पर ही भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता पर एवं तीन तलाक जैसी कुप्रथा पर प्रतिबंध लगाया है।

भारतीय राज्य ने बाल-विवाह के उन्मूलन और अंतर्जातीय विवाह पर हिंदू धर्म के द्वारा लगाए गए निषेध को खत्म करने हेतु अनेक कानून बनाए हैं। इसी तरह भारत में उभरे मन्दिर-मस्जिद विवाद के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को क्रियान्वित करने के लिए उचित कदम भी निर्णयानुसार उठाए गए हैं। अतः भारतीय धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में सैद्धांतिक दूरी बनाए रखने का अर्थ है-आवश्यकता पड़ने पर धार्मिक विषयों में आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप करना, ताकि पारस्परिक सौहार्द का वातावरण कायम किया जा सके।

धर्मनिरपेक्षता HBSE 11th Class Political Science Notes

→ एक ऐसा लोकतान्त्रिक देश जिसमें विभिन्न संस्कृतियों एवं समूहों के लोग रहते हों उनके बीच समानतायुक्त समाज की स्थापना में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को सबसे उपयुक्त माना गया है।

→ भारतीय संविधान निर्माताओं ने भी एक मुखर एवं जीवन्त लोकतन्त्र की पृष्ठभूमि में पथ-निरपेक्ष भारत का स्वप्न देखा था। सन् 1946 में डॉ० राधाकृष्णन ने कहा था कि, “भारत के लोग हिन्दू हों या मुसलमान, राजा हो या किसान, इसी देश के नागरिक हैं।

→ यह मानना सम्भव नहीं है कि हमारी अलग-अलग पहचान है।” स्पष्ट है कि भारतीय संविधान निर्माता सामाजिक सौहार्द एवं राष्ट्रीय सद्भाव के लिए धर्मनिरपेक्षता को व्यावहारिकता का तकाजा मानते थे और इसीलिए स्वतन्त्र भारत के संविधान में हमने धर्मनिरपेक्षता को संविधान का मूल आधार माना, परन्तु समय के साथ-साथ धर्म-निरपेक्षता का दृष्टिकोण व्यवहार के स्तर पर दलीय जोड़-तोड़, राजनीतिक अवसरवादिता, तुष्टिकरण एवं साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से बुरी तरह ग्रस्त हो गई।

→ इसीलिए भारत में धर्मनिरपेक्षता की स्थिति को लेकर कुछ मामले काफी पेचीदा हैं।

→एक ओर तो आमतौर पर हर राजनेता इसकी शपथ लेता है, हर राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्ष होने की घोषणा करता है, दूसरी ओर तमाम किस्म की चिन्ताएँ और सन्देह धर्मनिरपेक्षता को घेरे रहते हैं।

→ पुरोहितों और धार्मिक राष्ट्रवादियों द्वारा ही नहीं, कुछ राजनीतिज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और यहाँ तक कि शिक्षाविदों द्वारा भी धर्मनिरपेक्षता का विरोध किया जाता है।

→ ऐसे में इस समस्त स्थिति पर चिन्तन करने के लिए यह जानना आवश्यक है कि धर्मनिरपेक्षता या धर्म-निरपेक्षता क्या है? इसके पाश्चात्य एवं भारतीय मॉडल का स्वरूप क्या है ?

→ यह अवधारणा सामाजिक जीवन के किस क्षेत्र से सम्बन्धित है? आधुनिक समय में धर्म-निरपेक्ष राज्य की क्या आवश्यकता है? क्या धर्म-निरपेक्षता भारत के लिए उचित है?

→ भारतीय धर्म-निरपेक्षता के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं? इस अध्याय में हम इन विभिन्न पहलुओं पर दृष्टिपात करते हुए यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में धर्मनिरपेक्षता का क्या महत्त्व है एवं भारतीय धर्मनिरपेक्षता की क्या विशिष्टताएँ हैं?

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