HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद

HBSE 11th Class Political Science संघवाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
नीचे कुछ घटनाओं की सूची दी गई है। इनमें से किसको आप संघवाद की कार्य-प्रणाली के रूप में चिह्नित करेंगे और क्यों?
(क) केंद्र सरकार ने मंगलवार को जीएनएलएफ के नेतृत्व वाले दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल को छठी अनुसूची में वर्णित दर्जा देने की घोषणा की। इससे पश्चिम बंगाल के इस पर्वतीय जिले के शासकीय निकाय को ज्यादा स्वायत्तता प्राप्त होगी। दो दिन के गहन विचार-विमर्श के बाद नई दिल्ली में केंद्र सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार और सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाले गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

(ख) वर्षा प्रभावित प्रदेशों के लिए सरकार कार्य-योजना लाएगी। केंद्र सरकार ने वर्षा प्रभावित प्रदेशों से पुनर्निर्माण की विस्तृत योजना भेजने को कहा है ताकि वह अतिरिक्त राहत प्रदान करने की उनकी माँग पर फौरन कार्रवाई कर सके।

(ग) दिल्ली के लिए नए आयुक्त। देश की राजधानी दिल्ली में नए नगरपालिका आयुक्त को बहाल किया जाएगा। इस बात की पुष्टि करते हुए एमसीडी के वर्तमान आयुक्त राकेश मेहता ने कहा कि उन्हें अपने तबादले के आदेश मिल गए हैं और संभावना है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अशोक कुमार उनकी जगह संभालेंगे। अशोक कुमार अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिव की हैसियत से काम कर रहे हैं। 1975 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री मेहता पिछले साढ़े तीन साल से आयुक्त की हैसियत से काम कर रहे हैं।

(घ) मणिपुर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा । राज्यसभा ने बुधवार को मणिपुर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया। मानव संसाधन विकास मंत्री ने वायदा किया है कि अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में भी ऐसी संस्थाओं का निर्माण होगा।

(ङ) केंद्र ने धन दिया। केंद्र सरकार ने अपनी ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत अरुणाचल प्रदेश को 553 लाख रुपए दिए हैं। इस धन की पहली किश्त के रूप में अरुणाचल प्रदेश को 466 लाख रुपए दिए गए हैं।

(च) हम बिहारियों को बताएंगे कि मुंबई में कैसे रहना है। करीब 100 शिवसैनिकों ने मुंबई के जे.जे. अस्पताल में उठा-पटक करके रोजमर्रा के कामधंधे में बाधा पहुँचाई, नारे लगाए और धमकी दी कि गैर-मराठियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की गई तो इस मामले को वे स्वयं ही निपटाएँगे।

(छ) सरकार को भंग करने की माँग। काँग्रेस विधायक दल ने प्रदेश के राज्यपाल को हाल में सौंपे एक ज्ञापन में सत्तारूढ़ डमोक्रेटिक एलायंस ऑफ नागालैंड (डीएएन) की सरकार को तथाकथित वित्तीय अनियमितता और सार्वजनिक धन के गबन के आरोप में भंग करने की माँग की है।

(ज) एनडीए सरकार ने नक्सलियों से हथियार रखने को कहा। विपक्षी दल राजद और उसके सहयोगी काँग्रेस तथा सीपीआई (एम) के वॉक आऊट के बीच बिहार सरकार ने आज नक्सलियों से अपील की कि वे हिंसा का रास्ता छोड़ दें। बिहार को विकास के नए युग में ले जाने के लिए बेरोजगारी को जड़ से खत्म करने के अपने वादे को भी सरकार ने दोहराया।
उत्तर:
(क) प्रथम सूची ‘क’ की घटना संघवाद की कार्य-प्रणाली को दर्शाती है, क्योंकि इसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकार सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाले जीएनएलएफ के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

(ख) द्वितीय सूची ‘ख’ की घटना भी संघवाद की कार्य-प्रणाली को चिहनित करती है क्योंकि संविधान के अनुसार संघ सरकार राज्यों के निर्देश देने एवं राहत सहायता देने का अधिकार राज्यों पर रखती है।

(ग) तृतीय सूची ‘ग’ की घटना को भी संघवाद के रूप में चिहनित किया जा सकता है क्योंकि संघीय शासन व्यवस्था में अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का तबादला एक राज्य से दूसरे राज्य में संघीय सरकार करती है अर्थात् यह घटना भी संघवाद की कार्य-प्रणाली को दर्शाती है।

(घ) चौथी सूची ‘घ’ की घटना भी संघवाद की कार्य-प्रणाली को दर्शाती है क्योंकि मणिपुर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने का अधिकार संघीय संसद एवं केंद्र सरकार को है।

(ङ) प्रश्न की पाँचवीं सूची भी संघवाद की कार्य-प्रणाली को दर्शाती है। संघीय ढाँचे में केंद्र सरकार राज्यों को वित्तीय सहायता के रूप में अनुदान सहायता प्रदान कर सकती है।

(च) छठी सूची ‘च’ की घटना संघवाद की कार्य-प्रणाली के प्रतिकूल है, क्योंकि भारतीय संविधान में इकहरी नागरिकता प्रदान की जाती है और देश के किसी भी नागरिक को देश के किसी भी राज्य में रहने और व्यवसाय करने का अधिकार है।

(छ) सातवीं सूची ‘छ’ की घटना संघीय प्रणाली की परिचायक है, क्योंकि संविधान के अनुसार जब किसी राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने लगती है तो केंद्र को अधिकार है कि वह राज्यपाल से राज्य की संवैधानिक स्थिति पर रिपोर्ट माँग सकता है और राज्यपाल की अनुशंसा पर राज्य में सरकार को भंग कर संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन लागू करने की घोषणा कर सकता है।

(ज) प्रश्न की आठवीं अर्थात् अंतिम सूची ‘ज’ संघीय प्रणाली के अनुरूप नहीं है, क्योंकि उक्त घटना राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आती है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद

प्रश्न 2.
बताएँ कि निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही होगा और क्यों?
(क) संघवाद से इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि विभिन्न क्षेत्रों के लोग मेल-जोल से रहेंगे और उन्हें इस बात का भय नहीं रहेगा कि एक की संस्कृति दूसरे पर लाद दी जाएगी।
(ख) अलग-अलग किस्म के संसाधनों वाले दो क्षेत्रों के बीच आर्थिक लेनदेन को संघीय प्रणाली से बाधा पहुँचेगी।
(ग) संघीय प्रणाली इस बात को सनिश्चित करती है कि जो केंद्र में सत्तासीन हैं उनकी शक्तियाँ सीमित रहें।
उत्तर:
प्रश्न में दिए गए उक्त तीनों कथनों में कथन ‘क’ सही होगा, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 1 के अंतर्गत भारत को राज्यों का संघ कहा गया है। यहाँ एक क्षेत्र के लोग दूसरे क्षेत्र के लोगों के साथ आपसी मेल-जोल एवं सहयोग से रह सकते हैं और अपनी-अपनी संस्कृति को बनाए भी रख सकते हैं।

प्रश्न 3.
बेल्जियम के संविधान के कुछ प्रारंभिक अनुच्छेद नीचे लिखे गए हैं। इसके आधार पर बताएँ कि बेल्ज़ियम में संघवाद को किस रूप में साकार किया गया है। भारत के संविधान के लिए ऐसा ही अनुच्छेद लिखने का प्रयास करके देखें। शीर्षक I : संघीय बेल्जियम, इसके घटक और इसका क्षेत्र?
अनुच्छेद-1-बेल्ज़ियम एक संघीय राज्य है जो समुदायों और क्षेत्रों से बना है।
अनुच्छेद-2-बेल्जियम तीन समुदायों से बना है-फ्रैंच समुदाय, फ्लेमिश समुदाय और जर्मन समुदाय।
अनुच्छेद-3-बेल्जियम तीन क्षेत्रों को मिलाकर बना है वैलून क्षेत्र, फ्लेमिश क्षेत्र और ब्रूसेल्स क्षेत्र
अनुच्छेद-4-बेल्ज़ियम में 4 भाषाई क्षेत्र हैं फ्रेंच-भाषी क्षेत्र, डच-भाषी क्षेत्र, ब्रूसेल्स की राजधानी का द्विभाषी क्षेत्र तथा जर्मन भाषी क्षेत्र राज्य का प्रत्येक ‘कम्यून’ इन भाषाई क्षेत्रों में से किसी एक का हिस्सा है।
अनुच्छेद-5-वैलून क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले प्रांत हैं वैलून ब्राबैंट, हेनॉल्ट, लेग, लक्जमबर्ग और नामूर। फ्लेमिश क्षेत्र के अंतर्गत शामिल प्रांत हैं-एंटीवर्प, फ्लेमिश ब्राबैंट, वेस्ट फ्लैंडर्स, ईस्ट फ्लैंडर्स और लिंबर्ग।
उत्तर:
अनुच्छेद-1 : बेल्जियम एक संघीय राज्य है जो समुदायों और क्षेत्रों से बना है। इसी तरह भारत के संविधान का प्रथम अनुच्छेद है-

  • भारत राज्यों का एक संघ है,
  • राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं,
  • भारत के राज्य क्षेत्र में
    (क) राज्यों के राज्य क्षेत्र,
    (ख) पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघराज्य क्षेत्र और,
    (ग) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र जो अर्जित किए जाएँ, समाविष्ट होंगे।

अनुच्छेद-2 : बेल्जियम तीन समुदायों से बना है-फ्रेंच, फ्लेमिश और जर्मन । ठीक इसके विपरीत भारत एक ऐसे समाज की स्थापना के लिए प्रेरित है जो जाति भेद की भावना से ऊपर हो।

अनुच्छेद-3 : बेल्जियम तीन क्षेत्रों से बना है-

  • वैलून क्षेत्र,
  • फ्लेमिश क्षेत्र,
  • ब्रूसेल्स क्षेत्र। ठीक इसी तरह भारत 28 राज्यों तथा 8 केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर बना है। अनुच्छेद-1 के अनुसार भारत राज्यों का संघ होगा। राज्य तथा संघ शासित प्रदेश वे होंगे जो अनुसूची (i) में वर्णित हैं।

अनुच्छेद-4 : बेल्जियम में चार भाषाई क्षेत्र हैं-फ्रेंच भाषी क्षेत्र, डच भाषी क्षेत्र, ब्रूसेल्स की राजधानी का हि जर्मन भाषी क्षेत्र, राज्य के प्रत्येक ‘कम्यून’ इन भाषाई क्षेत्रों में किसी एक का हिस्सा है। भारतीय संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं का उल्लेख संविधान की आठवीं अनुसूची में किया गया है। इस समय अनुसूची में कुल 22 भाषाएँ हैं जो इस प्रकार हैं-असमिया, बंगला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलगु, उर्दू, नेपाली, कोंकणी, मणिपुरी, मैथिली, डोगरी, संथाली तथा बोडो

इस प्रकार आज संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त संवैधानिक भाषाओं की कुल संख्या 22 है। अनुच्छेद 345 के अधीन प्रत्येक राज्य के विधानमंडल को यह अधिकार दिया गया है कि वह संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई भाषाओं में से किसी एक या एक से अधिक सरकारी कार्यों के लिए राज्य की भाषा के रूप में अपना सकता है, परन्तु राज्यों के परस्पर संबंधों तथा संघ और राज्यों के परस्पर संबंधों में संघ की राजभाषा को ही प्राधिकृत भाषा माना जाएगा।

अनुच्छेद-5 : वैलून क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले प्रांत हैं वैलून, ब्राबैंट, हेनॉल्ट, लेग, लक्जमबर्ग, और नामूर। फ्लेमिश क्षेत्र के अंतर्गत शामिल प्रांत हैं-एंटीवर्प, फ्लेमिश ब्राबैंट, वेस्ट फ्लैंडर्स, ईस्ट फ्लैंडर्स और लिंगबर्ग। यहाँ यह स्पष्ट है कि भारतीय संविधान में अलग-अलग क्षेत्रों का उल्लेख नहीं किया गया। यद्यपि इनकी तुलना हम पहाड़ी क्षेत्र, उत्तरी क्षेत्र, पश्चिमी क्षेत्र, दक्षिण क्षेत्र, पूर्वी क्षेत्र, पूर्वोतर भारत तथा मध्य भारत आदि के रूप में कर सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद एक में केवल इतना ही कहा गया है भारत राज्यों का संघ होगा, जिसमें राज्य तथा संघ शासित प्रदेश इस प्रकार सम्मिलित होंगे; जैसे अनुसूची (i) में दिए गए हैं।

प्रश्न 4.
कल्पना करें कि आपको संघवाद के संबंध में प्रावधान लिखने हैं। लगभग 300 शब्दों का एक लेख लिखें जिसमें निम्नलिखित बिंदुओं पर आपके सुझाव हों
(क) केंद्र और प्रदेशों के बीच शक्तियों का बँटवारा,
(ख) वित्त-संसाधनों का वितरण,
(ग) राज्यपालों की नियुक्ति।
उत्तर:
(क) केंद्र और प्रदेशों के बीच शक्तियों का बँटवारा-संघात्मक शासन में दो स्तर की सरकारें होती हैं संघीय स्तर पर संघ की और राज्य स्तर पर संघ की इकाई (राज्य) की। संविधान के अनुच्छेद 246 में अंकित तीन सूचियों के द्वारा इन दोनों सरकारों के बीच शक्ति विभाजन किया गया है। परंतु इस विभाजन में केंद्र को अधिक शक्तियाँ दी गई हैं क्योंकि संघ सूची में संख्या की दृष्टि से 100 विषय (मूलतः 97) दिए गए हैं,

जबकि राज्य सूची में 61 विषय (मूलत : 66) हैं और समवर्ती सूची में 52 विषय (मूलतः 47) हैं। संविधान के अनुसार समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार संघीय संसद और राज्य विधानमंडल दोनों को दिया गया है। परंतु कानून निर्माण की प्रक्रिया में परस्पर विरोध की स्थिति में संघ के कानून मान्य होंगे। इसके अतिरिक्त अवशिष्ट शक्तियाँ भी केंद्र को ही प्रदान की गई हैं।

राज्य सूची के विषय पर भी संघीय संसद को राज्यसभा द्वारा राज्य सूची के किसी विषय में विशेष बहुमत से प्रस्ताव द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का विषय घोषित करने, दो या दो से अधिक राज्यों द्वारा अनुरोध करने एवं राज्य सूची के किसी विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संधि या समझौता करने पर विधि बनाने का अधिकार है।

यहाँ यह भी स्पष्ट है कि मूल संविधान द्वारा संघ और राज्य व्यवस्थापिका के मध्य शक्तियों का जो विभाजन हुआ है, उसमें भी 42वें संशोधन द्वारा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कर दिया गया है और राज्य सूची के पाँच विषयों को समवर्ती सूची में सम्मिलित कर दिया गया है। वे पाँच विषय हैं-शिक्षा, वन, जंगली जानवरों की रक्षा, नाप-तोल तथा जनसंख्या नियंत्रण।

(ख) वित्तीय संसाधनों का वितरण-संविधान के भाग 12 द्वारा संघ तथा राज्यों के बीच वित्तीय शक्तियों अर्थात् आय के साधनों का भी बँटवारा किया गया है। कुछ वित्तीय साधन केवल संघीय सरकार के पास हैं और कुछ राज्य सरकारों के अधीन हैं, परंतु इस विभाजन के अंतर्गत वे सभी विषय जिनसे अधिक आय होती है, संघीय सरकार के अधीन हैं। इस कारण से राज्य सदा ही आर्थिक सहायता के लिए केंद्र की ओर देखते रहते हैं। संघ तथा राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है

1. संघ सरकार द्वारा लगाए जाने वाले प्रमुख कर-कृषि के अतिरिक्त अन्य आय पर आय-कर, निर्यात कर, आयात कर, शराब, अफीम, गांजा, भांग आदि पर उत्पाद कर, संपति कर, समाचार-पत्रों के क्रय-विक्रय पर कर, रेल तथा हवाई जहाजों में यात्रा करने वाले यात्रियों और उनके सामान पर लिया जाने वाला कर, स्टांप कर तथा संघीय सरकार द्वारा संचालित रेलवे, हवाई जहाज, टेलीफोन, बैंक, बीमा आदि से होने वाली आय इत्यादि शामिल हैं।

2. राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले प्रमुख कर भू-राजस्व, कृषि की आय पर आय-कर, खेती की भूमि पर उत्तराधिकार र, समाचार-पत्रों के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं के क्रय-विक्रय पर कर, विज्ञापनों पर कर, सड़कों और जलमार्गों पर आने-जाने वाले माल पर कर, यात्री कर, मनोरंजन कर तथा दस्तावेजों की रजिस्ट्री पर कर तथा राज्य सरकार द्वारा संचालित उद्योगों और कारखानों से होने वाली आय पर कर। राज्यों को दिए गए साधनों से स्पष्ट है कि वे इनकी आवश्यकताओं के लिए बहुत कम हैं, इसलिए वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अन्य साधनों की व्यवस्था की गई है जो इस प्रकार है

(क) कुछ कर ऐसे भी हैं जो संघ द्वारा लगाए जाते हैं, लेकिन राज्य सरकारें उन्हें वसूल करती हैं और अपने ही पास रखती हैं। इस श्रेणी में सौंदर्य प्रसाधनों पर उत्पादन कर, स्टांप शुल्क, दवाइयों तथा नशीले पदार्थों पर कर शामिल हैं।

(ख) कुछ ऐसे कर हैं जो संघ द्वारा ही लगाए जाते हैं और उसी द्वारा वसूल किए जाते हैं, परंतु उनकी कुल आय संघ और राज्यों के बीच बाँट दी जाती है। इस श्रेणी में कृषि संबंधी आय को छोड़कर अन्य आयकर शामिल हैं।

(ग) जूट और उसके निर्यात से होने वाली आय असम, बिहार, ओडिशा तथा बंगाल के राज्यों को एक निश्चित अनुपात में बाँट दी जाती है। संघ राज्यों को उनके विकास में सहायता के लिए अनुदान भी देता है। संघ तथा राज्यों के वित्तीय संबंधों से स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में राज्यों की स्थिति बड़ी दयनीय है। वे अपनी विकास योजनाओं के लिए संघ पर निर्भर रहते हैं। इस व्यवस्था में राज्यों पर संघ का नियंत्रण रहता है।

(ग) राज्यपालों की नियुक्ति-राज्यों में राज्यपाल कार्यपालिका का संवैधानिक मुखिया होता है। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति साधारणतः उसके लिए मंत्रिपरिषद् एवं उसके मुखिया प्रधानमंत्री से परामर्श करता है। आजकल ऐसा देखा जा रहा है कि मंत्रिपरिषद् का मुखिया प्रधानमंत्री भी ऐसे व्यक्ति को राज्यपाल के पद पर नियुक्त करने की अनुशंसा करता है जो उसका विश्वासपात्र होता है।

राज्य के राज्यपाल राष्ट्रपति की इच्छा-पर्यन्त अपने पद पर बने रहते हैं। इस प्रकार राज्यपाल पूरी तरह से राष्ट्रपति या केंद्र के प्रति ही उत्तरदायी रहता है। ऐसी स्थिति में राज्यपाल राज्यों में केंद्र के एजेंट के रूप में कार्य करते हैं। इसके माध्यम से केंद्र राज्यों के शासन पर अंकुश रखते हैं।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन-सा प्रांत के गठन का आधार होना चाहिए और क्यों? (क) सामान्य भाषा, (ख) सामान्य आर्थिक हित, (ग) सामान्य क्षेत्र, (घ) प्रशासनिक सुविधा।
उत्तर:
अंग्रेजों ने भारत के राज्यों का गठन प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से किया था, परंतु आधुनिक युग में भाषाई आधार पर प्रांत का गठन किया जा सकता है। यद्यपि कोई एक इकाई, प्रांत, भाषाई समुदाय के आधार पर संघ का निर्माण नहीं करते हैं। समाज में अनेक विभिन्नताएँ होती हैं और आपसी विश्वास एवं सहयोग के आधार पर संघवाद का कार्य सुचारू रूप से चलाने का प्रयास किया जाता है।

कई इकाई, प्रांत, भाषाई समुदाय आदि मिलकर संघ का निर्माण करते हैं और संघवाद मजबूती के साथ आगे . बढ़े, उसके लिए इकाइयों में टकराव कम-से-कम अर्थात् भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर किया गया है। कोई एक भाषाई समुदाय पूरे संघ पर हावी न हो जाए, इस कारण इकाई क्षेत्रों की अपनी भाषा, धर्म संप्रदाय या सामुदायिक पहचान बनी रहती है और वह इकाई होते हुए भी संघ की एकता में विश्वास रखती है।

प्रश्न 6.
उत्तर भारत के प्रदेशों – राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के अधिकांश लोग हिंदी बोलते हैं। यदि इन सभी प्रांतों को मिलाकर एक प्रदेश बना दिया जाय तो क्या ऐसा करना संघवाद के विचार से संगत होगा? तर्क दीजिए।
उत्तर:
उत्तर भारत के अधिकांश लोग हिंदी भाषी हैं। भाषा के आधार पर उपर्युक्त प्रांतों को मिलाकर यदि एक प्रदेश बना दिया जाए तो यह संघवाद के विचार से संगत नहीं होगा। क्योंकि संघीय प्रणाली में द्वि-व्यवस्थापिका है-एक केंद्र की, दूसरी प्रांत की अर्थात् उसके अंतर्गत लोगों की पहचान दोहरी होती है-प्रथम क्षेत्रीय पहचान, द्वितीय राष्ट्रीय पहचान अर्थात् उपर्युक्त प्रदेशों को केवल हिंदी भाषी होने के कारण एक प्रदेश बनाना तर्कसंगत नहीं लगता।

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान की ऐसी चार विशेषताओं का उल्लेख करें जिसमें प्रादेशिक सरकार की अपेक्षा केंद्रीय सरकार को ज्यादा शक्ति प्रदान की गई है।
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा संघात्मक शासन की व्यवस्था की गई है। यहाँ एक संघ की सरकार होती है और दूसरी इकाई (राज्यों) की। दोनों सरकारों की शक्तियों का विभाजन भी संविधान के अनुसार किया गया है। परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्र को इकाई (राज्यों) की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली बनाया गया है, जिसका उल्लेख यहाँ किया जा रहा है

1. वैधानिक क्षेत्र में संघ की प्रभुता-वैधानिक क्षेत्र में केंद्र को राज्यों के मुकाबले में बहुत ही अधिक शक्तिशाली बनाया गया है। संघीय सूची में 97 विषय हैं जबकि राज्य सूची में 66 विषय रखे गए हैं। समवर्ती सूची में दिए गए विषयों के सम्बन्ध में यद्यपि दोनों (ससंद तथा राज्य विधानमंडल) को ही कानून बनाने का अधिकार दिया गया है, परन्तु इस सम्बन्ध में केंद्र को प्रभुत्व दिया गया है।

इसके अतिरिक्त अवशिष्ट शक्तियाँ (Residuary Powers) केंद्रीय सरकार को सौंप कर उसे और अधिक मजबूत बना दिया गया है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि वैधानिक क्षेत्र में केंद्र को इतना अधिक शक्तिशाली बना दिया गया है कि इससे राज्यों की स्वायत्तता (Autonomy) ही समाप्त हो जाती है।

2. कुछ परिस्थितियों में संसद को राज्य-सूची के विषयों के सम्बन्ध में भी कानून बनाने का अधिकार-संविधान में अनेक ऐसी परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जिनके उत्पन्न होने पर संसद को राज्य-सूची में दिए गए विषयों के सम्बन्ध में भी कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है। ऐसी परिस्थितियाँ निम्नलिखित हो सकती हैं

(1) संविधान के अनुच्छेद 249 के अधीन यदि राज्यसभा अपने उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि राज्य सूची में दिया गया कोई भी विषय अब राष्ट्रीय महत्त्व का बन गया है और उस पर संघीय संसद द्वारा कानून बनाना सारे राष्ट्र के लिए हितकारी होगा, तो संसद को उस विषय पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है।

(2) संविधान के अनुच्छेद 250 के अधीन यदि संसद अपने किसी अंतर्राष्ट्रीय समझौते अथवा सन्धि आदि में निहित उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए राज्य सूची के किसी विषय पर स्वयं कानून आवश्यक समझे तो उसे ऐसा करने का अधिकार प्राप्त है।

(3) संविधान के अनुच्छेद 252 के अधीन, यदि दो या इससे अधिक राज्य सूची के अंकित विषय पर संघीय संसद को ऐसा करने के लिए प्रार्थना करें, परन्तु संसद द्वारा बनाया गया वह कानून केवल उन्हीं राज्यों पर लागू होगा, जिन्होंने संसद से ऐसा करने के लिए प्रार्थना की थी।

(4) यदि अनुच्छेद 352 के अधीन देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा लागू हो तो, ऐसी स्थिति में केंद्रीय संसद राज्य सूची के किसी भी विषयों पर कानून बना सकती है।

(5) यदि अनुच्छेद 356 के अधीन किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए तो, संघीय संसद संबंधित राज्य में राज्य-सूची के किसी भी विषय पर कानून बना सकती है। अतः उपर्युक्त व्यवस्था में संघ की महत्त्वपूर्ण स्थिति भारतीय संघीय प्रणाली की आत्मा के विरुद्ध है।

3. प्रशासकीय सम्बन्धों में भी केंद्र की प्रभुता वैधानिक क्षेत्र की भांति प्रशासनिक क्षेत्र में भी केंद्रीय सरकार बहुत अधिक शक्तिशाली है। राज्यपाल यद्यपि राज्य सरकारों के संवैधानिक मुखिया होते हैं, परन्तु उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। ऐसी स्थिति में वे केंद्रीय सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं और केंद्रीय सरकार राज्यपाल द्वारा राज्य के प्रशासन में हस्तक्षेप कर सकती है।

संविधान में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रत्येक राज्य सरकार अपनी प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग इस प्रकार से करेगी, जिससे संघीय संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन निश्चित रूप से हो सके और संघीय सरकार की प्रशासनिक शक्ति के प्रयोग में किसी प्रकार की बाथा न आए। संघीय सरकार राज्य सरकारों को प्रशासन के सम्बन्ध में निर्देश दे सकती है। यदि कोई राज्य सरकार केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करती तो राष्ट्रपति उस राज्य में संवैधानिक मशीनरी की विफलता की घोषणा करके उस राज्य की समस्त शक्तियाँ केंद्र सरकार को सौंप सकता है।

4. वित्तीय सम्बन्धों में भी केंद्र का प्रभुत्व-वित्तीय क्षेत्र में तो राज्य सरकारों की स्थिति और भी अधिक दयनीय है। राज्यों को विकास कार्यों के लिए धन की अधिक आवश्यकता होती है, परन्तु उनकी आय के साधन बहुत सीमित हैं। इस कारण से राज्यों को अपने विकास सम्बन्धी कार्य करने के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। जिन राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें होती . हैं, केंद्रीय सरकार प्रायः उन राज्यों के साथ भेदभाव करती है और उन्हें उचित वित्तीय सहायता नहीं देती, जिससे उन राज्यों का विकास रुक जाता है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 संघवाद

प्रश्न 8.
बहुत-से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाखुश क्यों हैं?
उत्तर:
संविधान के अनुसार राज्यपाल को राज्य का संवैधानिक मुखिया बनाया गया है। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। उसका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है, परंतु वह राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त अपने पद पर बना रहता है। परंतु हाल के कुछ वर्षों से राज्यपाल की भूमिका, अधिकार क्षेत्र, नियुक्ति के तरीके आदि को लेकर केंद्र और राज्य में मतभेद उत्पन्न हए हैं। विरोधी दल की राज्य सरकारें यह आरोप लगाती रही हैं कि केंद्र सरकार राज्यपाल के माध्यम से उनकी सरकारों का पतन करने में लगी रहती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि सन् 1950 से लेकर अब तक लगभग 127 से भी अधिक बार अनुच्छेद 356 का प्रयोग संघवाद के द्वारा किया जा चुका है।

अधिकांश मामलों में राज्यपाल की भूमिका निन्दा की पात्र बनी है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस तरह की घटनाएँ आए दिन भारतीय राजनीति में घटती रहती हैं जिससे राज्यपाल की भूमिका विवादास्पद बन गई और अन्य लोगों में भी असन्तोष देखने को मिलता है। यद्यपि राज्यपाल का पद बहुत ही गौरव और गरिमा का पद है। इसलिए संविधान के अनुरूप राज्यपाल को अपने पद की प्रतिष्ठा हर प्रकार से बनाए रखनी चाहिए। राज्य को प्रशासन में अपनी भूमिका स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर निभानी चाहिए। इसके अतिरिक्त विशेष परिस्थितियों में उसे भी स्वविवेक की शक्तियाँ दी गई हैं, उसका प्रयोग आवश्यकता पड़ने पर केंद्र के हाथों में कठपुतली बनकर नहीं बल्कि उचित एवं विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिए।

प्रश्न 9.
यदि शासन संविधान के प्रावधानों के अनुकूल नहीं चल रहा, तो ऐसे प्रदेश में राष्ट्रपति-शासन लगाया जा सकता है। बताएँ कि निम्नलिखित में कौन-सी स्थिति किसी देश में राष्ट्रपति-शासन लगाने के लिहाज से संगत है और कौन-सी नहीं? संक्षेप में कारण भी दें
(क) राज्य के विधानसभा के मुख्य विपक्षी दल के दो सदस्यों को अपराधियों ने मार दिया और विपक्षी दल प्रदेश की सरकार को भंग करने की माँग कर रहा है।
(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों के अपहरण की घटनाएँ बढ़ रही हैं। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में इजाफा हो रहा है।
(ग) प्रदेश में हुए हाल के विधान सभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला है। भय है कि एक दल दूसरे दल के कुछ विधायकों से धन देकर अपने पक्ष में उनका समर्थन हासिल कर लेगा।
(घ) केंद्र और प्रदेश में अलग-अलग दलों का शासन है और दोनों एक-दूसरे के कट्टर शत्रु हैं।
(ङ) सांप्रदायिक दंगों में 200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं।
(च) दो प्रदेशों के बीच चल रहे जल विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इनकार कर दिया।
उत्तर:
(क) दिए गए प्रश्नों में ‘क’ के लिए राष्ट्रपति शासन संगत नहीं है। विपक्षी दलों की माँग अनुचित है, क्योंकि सदस्यों को मारे जाने के बदले में अपराधियों को दंडित करना चाहिए न कि सरकार को भंग करने का काम। अन्यथा संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति हेतु अपराधिक घटनाएँ बढ़ सकती हैं।

(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों का अपहरण और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में इज़ाफा को रोकने के लिए राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता नहीं बल्कि अपराधियों को उचित सजा और कानून व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है ताकि राज्य में ऐसी घटनाएँ करने के बारे में कोई सोच भी न सके।

(ग) प्रदेश में हुए हाल के विधान सभा चुनाव में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और विधायकों की खरीद-फरोख्त का के आधार पर राष्ट्रपति शासन लागू करना असंगत है क्योंकि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में भारत के राज्यों में अनेक गठबन्धन सरकारें बनी हैं।

(घ) केंद्र और प्रदेश में अलग-अलग दलों का शासन और दोनों एक-दूसरे के कट्टर शत्रु हैं यह स्थिति राष्ट्रपति शासन के योग्य नहीं है, क्योंकि संघात्मक एवं केंद्रीय सरकार संघ एवं राज्य सत्ता पर अलग-अलग दलों की सरकारों का होना कोई अस्वाभाविक स्थिति नहीं है। अतः यदि केंद्र में एक दल की सरकार है तो राज्य में दूसरे दल की सरकार हो सकती है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति प्रशासन थोपना गलत होगा।

(ङ) सांप्रदायिक दंगों में 200 से ज़्यादा लोग मारे गए यह घटना सरकार की संवैधानिक विफलताओं को दर्शाती है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना न्यायसंगत माना जाएगा।

(च) दो प्रदेशों के बीच चल रहे जल विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इन्कार कर दिया। इस स्थिति में भी राष्ट्रपति शासन उचित नहीं होगा।

प्रश्न 8.
बहुत-से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाखुश क्यों हैं?
उत्तर:
संविधान के अनुसार राज्यपाल को राज्य का संवैधानिक मुखिया बनाया गया है। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती । उसका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है, परंतु वह राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त अपने पद पर बना रहता है। परंतु हाल के कुछ वर्षों से राज्यपाल की भूमिका, अधिकार क्षेत्र, नियुक्ति के तरीके आदि को लेकर केंद्र और राज्य में मतभेद उत्पन्न हुए हैं।

विरोधी दल की राज्य सरकारें यह आरोप लगाती रही हैं कि केंद्र सरकार राज्यपाल के माध्यम से उनकी सरकारों का पतन करने में लगी रहती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि सन् 1950 से लेकर अब तक लगभग 127 से भी अधिक बार अनुच्छेद 356 का प्रयोग संघवाद के द्वारा किया जा चुका है। अधिकांश मामलों में राज्यपाल की भूमिका निन्दा की पात्र बनी है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस तरह की घटनाएँ आए दिन भारतीय राजनीति में घटती रहती हैं जिससे राज्यपाल की भूमिका विवादास्पद बन गई और अन्य लोगों में भी असन्तोष देखने को मिलता है।

यद्यपि राज्यपाल का पद बहुत ही गौरव और गरिमा का पद है। इसलिए संविधान के अनुरूप राज्यपाल को अपने पद की प्रतिष्ठा हर प्रकार से बनाए रखनी चाहिए। राज्य को प्रशासन में अपनी भूमिका स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर निभानी चाहिए। इसके अतिरिक्त विशेष परिस्थितियों में उसे भी स्वविवेक की शक्तियाँ दी गई हैं, उसका प्रयोग आवश्यकता पड़ने पर केंद्र के हाथों में कठपुतली बनकर नहीं बल्कि उचित एवं विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिए।

प्रश्न 9.
यदि शासन संविधान के प्रावधानों के अनुकूल नहीं चल रहा, तो ऐसे प्रदेश में राष्ट्रपति-शासन लगाया जा सकता है। बताएँ कि निम्नलिखित में कौन-सी स्थिति किसी देश में राष्ट्रपति-शासन लगाने के लिहाज से संगत है और कौन-सी नहीं? संक्षेप में कारण भी दें
(क) राज्य के विधानसभा के मुख्य विपक्षी दल के दो सदस्यों को अपराधियों ने मार दिया और विपक्षी दल प्रदेश की सरकार को भंग करने की माँग कर रहा है।
(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों के अपहरण की घटनाएँ बढ़ रही हैं। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में इजाफा हो रहा है।
(ग) प्रदेश में हुए हाल के विधान सभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला है। भय है कि एक दल दूसरे दल के कुछ विधायकों से धन देकर अपने पक्ष में उनका समर्थन हासिल कर लेगा।
(घ) केंद्र और प्रदेश में अलग-अलग दलों का शासन है और दोनों एक-दूसरे के कट्टर शत्र हैं। (ङ) सांप्रदायिक दंगों में 200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। (च) दो प्रदेशों के बीच चल रहे जल विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इनकार कर दिया।
उत्तर:
(क) दिए गए प्रश्नों में ‘क’ के लिए राष्ट्रपति शासन संगत नहीं है। विपक्षी दलों की माँग अनुचित है, क्योंकि सदस्यों को मारे जाने के बदले में अपराधियों को दंडित करना चाहिए न कि सरकार को भंग करने का काम पूर्ति हेतु अपराधिक घटनाएँ बढ़ सकती हैं।

(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों का अपहरण और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में इजाफा को रोकने के लिए राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता नहीं बल्कि अपराधियों को उचित सजा और कानून व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है ताकि राज्य में ऐसी घटनाएँ करने के बारे में कोई सोच भी न सके।

(ग) प्रदेश में हुए हाल के विधान सभा चुनाव में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका के आधार पर राष्ट्रपति शासन लागू करना असंगत है क्योंकि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में भारत के राज्यों में अनेक गठबन्धन सरकारें बनी हैं।

(घ) केंद्र और प्रदेश में अलग-अलग दलों का शासन और दोनों एक-दूसरे के कट्टर शत्रु हैं यह स्थिति राष्ट्रपति शासन के योग्य नहीं है, क्योंकि संघात्मक एवं केंद्रीय सरकार संघ एवं राज्य सत्ता पर अलग-अलग दलों की सरकारों का होना कोई अस्वाभाविक स्थिति नहीं है। अतः यदि केंद्र में एक दल की सरकार है तो राज्य में दूसरे दल की सरकार हो सकती है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति प्रशासन थोपना गलत होगा।

(ङ) सांप्रदायिक दंगों में 200 से ज़्यादा लोग मारे गए यह घटना सरकार की संवैधानिक विफलताओं को दर्शाती है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना न्यायसंगत माना जाएगा।

(च) दो प्रदेशों के बीच चल रहे जल विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इन्कार कर दिया। इस स्थिति में भी राष्ट्रपति शासन उचित नहीं होगा।

प्रश्न 10.
ज्यादा स्वायत्तता की चाह में प्रदेशों ने क्या माँगें उठाई हैं?
उत्तर:
भारत में संघात्मक शासन है और संघ और इकाइयों के अधिकार क्षेत्र संविधान द्वारा बँटे हुए हैं, परंतु केंद्र को अधिक शक्ति प्रदान की गई है। राज्यों में अधिक स्वायत्तता की माँग सन् 1960 के बाद आरंभ हुई। स्वायत्तता का अर्थ स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है कि राज्यों को उनके मामलों में केंद्रीय सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

राज्यों को शक्तियाँ संविधान द्वारा उपलब्ध कराई गई हैं और उन्हें उनका प्रयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। राज्यों को जन-कल्याण की योजनाएँ बनाने एवं उन्हें लागू करने की शक्तियाँ बिना किसी रोक-टोक के प्राप्त होनी चाहिएँ। यही नहीं वित्तीय क्षेत्र में भी राज्य स्वतंत्र होने चाहिएँ। तभी राज्य की स्वायत्तता को लागू किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, केंद्र का राजनीतिक व प्रशासनिक मामलों में न्यूनतम हस्तक्षेप होना चाहिए।

केंद्र का कार्य-क्षेत्र सीमित होना चाहिए। उसे केवल विदेश संबंध, रक्षा, मुद्रा और जन-संचार के विषयों के मामलों में शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिएँ। कराधान के क्षेत्र में भी उनकी शक्तियाँ सीमित होनी चाहिएँ। उन्हें केवल उतने ही कर लगाने का अधिकार दिया जाना चाहिए, जितने उन्हें उपर्युक्त कार्य सम्पन्न करने के लिए आवश्यक हों। राज्यों को कराधान के इतने अधिकार प्रदान किए जाने चाहिएँ, जिससे कि वे साधनों का अभाव महसूस न करें।

प्रश्न 11.
क्या कुछ प्रदेशों में शासन के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिएँ? क्या इससे दूसरे प्रदेशों में नाराज़गी पैदा होती है? क्या इन विशेष प्रावधानों के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता मजबूत करने में मदद जब कुछ प्रदेशों में शासन के लिए विशेष प्रावधान होंगे तो अन्य राज्यों में नाराजगी या असन्तोष पनपना स्वाभाविक है। इसका एक उदाहरण यह है-उत्तराखंड राज्य का दर्जा पाने से पूर्व उत्तर प्रदेश का भाग था और उत्तर प्रदेश के लोग जहाँ चाहे रह सकते थे।

परंतु जब उत्तराखंड को विशेष दर्जा प्राप्त हो गया तो उत्तराखंड के बाहर के लोग वहाँ अचल संपत्ति नहीं खरीद सकते थे जबकि उत्तराखंड के लोग उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहाँ चाहे संपत्ति खरीद सकते हैं। स्थायी रूप से मूल निवासी का दर्जा उत्तराखंड अथवा अन्य किसी विशेष दर्जा प्राप्त अर्थात् विशेष प्रावधानों द्वारा शासित राज्यों में किसी बाहरी राज्य के व्यक्ति को नहीं मिल सकता। अर्थात्न होती है।

संविधान द्वारा संघ एवं राज्यों में शक्तियों का विभाजन समान रूप से किया गया है। परंतु कुछ राज्यों की ऐतिहासिक, सामाजिक तथा जनसंख्या संबंधी अवस्थाओं को देखते हुए विशेष प्रावधान किया गया है। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड आदि राज्य ऐसे हैं जहाँ कुछ विशेष प्रावधान लागू हैं। संघीय व्यवस्था में शक्तियों का विभाजन संघ के सभी प्रांतों में सामान रूप से होना चाहिए। यद्यपि कुछ पिछड़े एवं आदिम जातियों वाले राज्यों के लिए विशेष प्रावधानों का किया जाना भी आवश्यक था। इसीलिए संविधान में अपवादस्वरूप विशिष्ट उद्देश्यों के अंतर्गत ऐसे प्रावधान किए गए हैं।

संघवाद HBSE 11th Class Political Science Notes

→ भूमिका आधुनिक युग में प्रजातन्त्र को शासन का लोकप्रिय स्वरूप माना जाता है। प्राचीन समय में नगर-राज्य होते थे, जिनकी जनसंख्या व उनका क्षेत्र सीमित होता था।

→ वर्तमान काल में राज्यों की जनसंख्या और कार्य-क्षेत्र इतना बढ़ गया है कि उन्हें राष्ट्रीय-राज्य (National State) कहा जाने लगा है। इन राष्ट्रीय-राज्यों का प्रशासन एक-स्थान से चलाना कठिन कार्य है।

→ इसलिए शासन सुविधा की दृष्टि से राज्य को कई इकाइयों (Units) में बाँट दिया जाता है।

→इन इकाइयों में अलग-अलग शासन-व्यवस्था स्थापित कर दी जाती है तथा उन्हें स्थानीय मामलों का प्रबन्ध करने की शक्तियाँ या अधिकार प्रदान कर दिए जाते हैं और राष्ट्रीय स्तर के मामलों का प्रबन्ध केंद्रीय या राष्ट्रीय सरकार को सौंप दिया जाता है।

→ अतः इन इकाइयों की सरकारों व राष्ट्रीय सरकार में क्या संबंध स्थापित होते हैं, इस आधार पर शासन-व्यवस्था को दो भागों एकात्मक व संघात्मक (Unitary and Federal) में बाँटा जाता है।

→ इस अध्याय में संघात्मक या संघवाद व्यवस्था का विवेचन करते हुए इसके अर्थ, लक्षण या आवश्यक तत्त्व, भारतीय संघवाद का स्वरूप एवं संघात्मक स्वरूप में केंद्र को शक्तिशाली बनाने के कारणों तथा संघ एवं राज्यों के बीच संबंधों तथा दोनों के बीच पाए जाने वाले तनाव के कारणों के परिणामस्वरूप राज्यों के बीच उठने वाली स्वायत्तता की माँग से जुड़े विभिन्न प्रश्नों पर भी प्रकाश डाला जाएगा।

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