HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़

अति लघूत्तंरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान एक जीवंत प्रलेख के रूप में कैसे कार्य कर रहा है? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की जीवंत निरन्तरता के लिए संविधान निर्माताओं ने भविष्य की आवश्यकता के अनुरूप संशोधन प्रक्रिया का उल्लेख अनुच्छेद 368 में किया जिसके अनुसार संविधान में समाज की आवश्यकता के अनुरूप संशोधन सम्भव हो सके। इसके साथ-साथ संविधान की व्याख्या में बहुत अधिक लचीलेपन ने भी संविधान के वास्तविक कार्यकरण को निरन्तर बनाए रखा। यही कारण है कि भारतीय संविधान एक कठोर, स्थिर संविधान न होकर एक जीवंत प्रलेख के रूप में कार्य कर रहा है।

प्रश्न 2.
विगत लगभग आठ दशकों से हमारा संविधान उसी मूल रूप में कार्य कर रहा है, कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • हमें विरासत के रूप में सशक्त संविधान मिला है और संविधान की मूल संरचना हमारे देश के बहुत अनुकूल है,
  • हमारे संविधान निर्माता बहुत दूरदर्शी थे जिन्होंने भविष्य की आने वाली परिस्थितियों के अनुरूप संविधान में अनेक समाधान किए।

प्रश्न 3.
क्या भारतीय संविधान एक ऐसा पवित्र दस्तावेज है कि कोई इसे परिवर्तित नहीं कर सकता? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान कोई स्थायी एवं कठोर प्रलेख नहीं है। यह प्रत्येक व्यवस्था के सम्बन्ध में अन्तिम शब्द नहीं है। यह अपरिवर्तनीय नहीं है। वास्तव में भारतीय संविधान एक ऐसा पवित्र दस्तावेज है जो समय एवं समाज की आवश्यकता के अनुरूप निश्चित संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार परिवर्तनीय है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन संविधान के किस अनुच्छेद में किया जाता है? भारतीय संविधान लचीला है अथवा कठोर?
उत्तर:
भारतीय संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 368 में किया गया है। भारतीय संविधान न तो पूर्ण रूप से लचीला है और न ही पूर्ण रूप से कठोर है। यह अंशतः लचीला व अंशतः कठोर है।

प्रश्न 5.
ऐसे दो संवैधानिक संशोधन बताओ जिन पर विचार-विमर्श चल रहा है?
उत्तर:

  • संसद तथा राज्य विधानमंडलों में एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित करना,
  • अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों तथा शिक्षा संस्थाओं में स्थान आरक्षित करना। .

प्रश्न 6.
ऐसे चार विषयों के नाम बताओ जिनमें संशोधन करने के लिए संसद की मन्जूरी के साथ-साथ आधे राज्यों की मन्जूरी लेना आवश्यक होता है।
उत्तर:
ऐसे चार विषय इस प्रकार हैं-

  • राष्ट्रपति के चुनाव का ढंग,
  • संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार,
  • राज्यों की कार्यपालिका शक्ति की सीमा,
  • केंद्र द्वारा प्रशासित क्षेत्रों (Union Territories) के लिए उच्च न्यायालयों की व्यवस्था।

प्रश्न 7.
संसद द्वारा साधारण बहुमत से संविधान में संशोधन किए जाने वाले कोई दो विषय लिखिए।
उत्तर:

  • नए राज्यों को भारतीय संघ में शामिल करना, नए राज्यों की स्थापना करना, उनके क्षेत्र, सीमाओं तथा नामों में परिवर्तन करना (अनुच्छेद 2, 3 एवं 4),
  • किसी राज्य की विधानसभा की सिफारिश पर उस राज्य में विधान परिषद् स्थापित करना अथवा उसे समाप्त करना (अनुच्छेद 169)।

प्रश्न 8.
भारतीय संविधान में दो-तिहाई बहुमत द्वारा संशोधन किस भाग में किया जा सकता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के भाग तीन (मौलिक अधिकार) एवं भाग चार (राज्य-नीति के निदेशक सिद्धांत) में संशोधन दो-तिहाई बहुमत वाली विधि से किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान में किए गए संशोधनों को किन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है?
उत्तर:
संशोधनों को दी गई तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है

  • तकनीकी एवं प्रशासनिक समस्याओं से संबंधित संशोधन,
  • न्यायपालिका एवं विधायिका (संसद) के बीच उत्पन्न मतभेद सम्बन्धी संशोधन,
  • राजनीतिक सर्वसम्मति से किए गए संशोधन।

प्रश्न 10.
संविधान के तकनीकी संशोधन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संविधान के तकनीकी या प्रशासनिक संशोधन प्रायः ऐसे संशोधन होते हैं जो संविधान के मूल उपबन्धों को स्पष्ट करने । तथा उनकी व्याख्या करने से संबंधित छोटे-मोटे संशोधन होते हैं। वास्तव में इन संशोधनों से कोई विशेष बदलाव नहीं होते, बल्कि ये संशोधन किन्हीं विशेष परिस्थितियों से निपटने के लिए ही किए गए हैं। इसीलिए इन्हें तकनीकी संशोधनों का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 11.
भारतीय संविधान के किन्हीं दो तकनीकी संशोधनों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) भारतीय संविधान में प्रारम्भ में की गई अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए लोकसभा एवं राज्य की विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण प्रावधान को प्रत्येक 10 वर्षों के बाद विभिन्न संवैधानिक संशोधनों द्वारा सन् 2030 तक बढ़ाना,

(2) 54वें संवैधानिक संशोधन द्वारा सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, पैंशन एवं सेवानिवृत्ति सम्बन्धी प्रावधानों में उल्लेखनीय सुधार करना।

प्रश्न 12.
भारतीय संविधान में राजनीतिक सर्वसम्मति के आधार पर किए गए किन्हीं दो संशोधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • दल-बदल विरोधी कानून, 1985 राजनीतिक सर्वसम्मति के आधार पर हुआ संवैधानिक संशोधन था,
  • मूल संविधान में मतदाता की आयु 21 वर्ष से घटाकर 61वें संवैधानिक संशोधन द्वारा 18 वर्ष करना भी राजनीतिक सर्वसम्मति का ही परिणाम कहा जाता है।

प्रश्न 13.
भारतीय संविधान के किन संशोधनों को अवसरवादी अधिनियम कहकर पुकारा गया?
उत्तर:
स्व० इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व में आपात्काल के दौरान विशेषकर अपने तानाशाही एवं स्वेच्छाचारी व्यवहार के आधार पर विशेषकर 38वें, 39वें एवं 42वें संवैधानिक संशोधनों द्वारा संविधान के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ के आधार पर किए गए संशोधनों को ‘अवसरवादी अधिनियम’ वाले संशोधनों के नाम आलोचकों के द्वारा दिए गए थे।

प्रश्न 14.
38वाँ संवैधानिक संशोधन विशेषतः न्यायपालिका के किस क्षेत्र पर प्रतिबन्ध लगाने वाला था?
उत्तर:
जुलाई, 1975 में पारित 38वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा विशेषकर राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं उप-राज्यपाल के द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों एवं राष्ट्रपति की आपात्कालीन शक्तियों को न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर उनकी शक्तियों पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।

प्रश्न 15.
42वें संवैधानिक संशोधन की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • राष्ट्रपति के लिए संघीय मंत्रिपरिषद् के दिए गए परामर्श को मानना आवश्यक होगा,
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘समाजवाद’ शब्द को जोड़ा गया,
  • लोकसभा एवं राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष किया गया था।

प्रश्न 16.
भारतीय संविधान में किए गए 44वें संशोधन की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • संपत्ति के मूल अधिकार को एक साधारण कानूनी अधिकार में परिवर्तित कर दिया गया,
  • स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1) एफ को भी समाप्त कर दिया गया।

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प्रश्न 17.
संविधान में न्यायिक निर्णयों के परिणामस्वरूप हुए किन्हीं दो संशोधनों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा जनवरी, 2004 को यह व्यवस्था की गई कि भारत में नागरिकों को सम्मान एवं प्रतिष्ठा के साथ राष्ट्रीय ध्वज फहराना संविधान के अनुच्छेद 19(1) में उनका एक मौलिक अधिकार है,

(2) सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार की एक व्यापक व्याख्या करते हुए जीवन के अधिकार के अंतर्गत भोजन का अधिकार, शुद्ध पेयजल का अधिकार एवं आश्रय के अधिकार को भी शामिल किया है।

प्रश्न 18.
भारतीय संविधान के संदर्भ में ‘संविधान समीक्षा’ की बहस क्यों आरम्भ हुई?
उत्तर:
भारतीय संविधान के संदर्भ में नब्बे के दशक में ‘संविधान समीक्षा’ के पक्षधरों का कहना है कि विश्व अर्थव्यवस्था में उदारीकरण के दौर के परिणामस्वरूप देश की परिस्थितियाँ एवं वातावरण भी तेजी के साथ बदल रहा है। ऐसी स्थिति में भारत में सामाजिक-आर्थिक परिपेक्ष्य में संरचनात्मक सुधार के रास्ते में संविधान की अनेक धाराएँ मेल नहीं खाती हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि नवीन परिस्थितियों के अनुरूप पूरे संविधान की ही समीक्षा की जाए।

प्रश्न 19.
भारत सरकार ने कब और किसकी अध्यक्षता में ‘संविधान समीक्षा’ आयोग का गठन किया था?
उत्तर:
भारत सरकार ने 22 फरवरी, 2000 को सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश श्री वेंकटचलैया की अध्यक्षता में 11 सदस्यीय आयोग का गठन किया था।

प्रश्न 20.
भारतीय लोकतंत्र को शक्तिशाली बनाने में किन्हीं दो गैर-संवैधानिक व्यवस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • विपक्षी दलों द्वारा सत्ताधारी दल की अनुचित एवं जनविरोधी नीतियों का डटकर विरोध करना,
  • भारतीय लोगों का संवैधानिक साधनों के प्रति आस्था का होना।

प्रश्न 21.
सामाजिक तनाव एवं हिंसा भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा है, क्यों?
उत्तर:
भारत में जाति, धर्म, धन तथा सामाजिक असमानता के कारण समय-समय पर उत्पन्न हिंसात्मक घटनाओं के कारण जहाँ शांति व्यवस्था भंग होती है, वहाँ लोगों के बीच तनाव एवं वैमनस्यता की भावना होती है जो किसी भी लोकतान्त्रिक पद्धति के लिए खतरे का संकेत होती है। यही बात भारतीय लोकतंत्र पर लागू होती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान लचीला है अथवा कठोर। कारणों सहित बताएँ।
उत्तर:
भारतीय संविधान की एक मुख्य विशेषता यह है कि यह न तो पूर्ण रूप से लचीला है और न ही पूर्ण रूप से कठोर है। यह अंशतः लचीला तथा अंशतः कठोर (Partly Flexible and Partly Rigid) है। इसका कारण यह है कि संशोधन के लिए भारतीय संविधान को तीन भागों में बाँटा गया है, जो इस प्रकार हैं

1. संसद द्वारा साधारण बहुमत द्वारा संशोधन-संविधान की कुछ धाराएँ ऐसी हैं, जिनमें संसद अपने साधारण बहुमत से परिवर्तन कर सकती है। इस दृष्टि से हमारा संविधान लचीला है। इस श्रेणी में शामिल विषय इस प्रकार हैं-

  • नए राज्यों को भारतीय संघ में शामिल करना, नए राज्यों की स्थापना करना, उनके क्षेत्र, सीमाओं तथा नामों में परिवर्तन करना,
  • भारत की नागरिकता सम्बन्धी विषय निश्चित करना,
  • किसी राज्य की विधानसभा की सिफारिश पर उस राज्य में विधानपरिषद् स्थापित करना अथवा उसे समाप्त करना।

2. संसद के विशेष बहुमत तथा आधे राज्यों के विधानमंडल द्वारा स्वीकृति-द्विवतीय ढंग में विधेयक को संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। उसे संसद के प्रत्येक सदन को समस्त संख्या के साधारण बहुमत तथा उपस्थित व मतदान संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़ के रूप में भाग लेने वाले सदस्यों के 2/3 (दो-तिहाई) बहुमत से पारित किया जाना आवश्यक है।

संसद के दोनों सदनों द्वारा जब वह प्रस्ताव पास हो जाता है, तो उसे आधे राज्यों के विधानमंडल द्वारा स्वीकृति मिलनी चाहिए। उसके पश्चात् इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है, जिसकी स्वीकृति मिलने पर वह संशोधन लागू हो जाता है। संविधान संशोधन की यह प्रक्रिया निम्नलिखित विषयों के संबंध में अपनाई जाती है

  • राष्ट्रपति के चुनाव का ढंग,
  • संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार,
  • राज्यों की कार्यपालिका शक्ति की सीमा,
  • केन्द्र द्वारा प्रशासित क्षेत्रों (Union Territories) के लिए उच्च न्यायालयों की व्यवस्था,
  • राज्यों के उच्च न्यायालयों सम्बन्धी व्यवस्था।

3. संसद द्वारा दो-तिहाई बहुमत से संशोधन-संविधान के संशोधन की तीसरी प्रणाली दूसरी प्रणाली से कुछ कम कठोर है। इसके अन्तर्गत संविधान में संशोधन सम्बन्धी बिल संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है और यदि वह सदन की कुल संख्या के साधारण बहुमत द्वारा या उपस्थित व मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत द्वारा पास हो जाता है तो उसे दूसरे सदन में स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। संविधान के जिन विषयों का वर्णन ऊपर प्रथम तथा दूसरे वर्ग में किया गया है, उनको छोड़कर सभी विषयों में परिवर्तन इसी प्रक्रिया से किया जा सकता है।

संसद में बिल पास होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। संविधान में संशोधन 24 के अनुसार राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी पड़ती है। ऊपर दिए गए विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में संविधान संशोधन के लिए संविधान के अलग-अलग भागों के लिए कठोर एवं लचीली प्रक्रिया दोनों अपनाई गई हैं; इसलिए भारतीय संविधान न पूर्ण रूप से लचीला है और न ही पूर्णतः कठोर है। यह अंशतः लचीला तथा अंशतः कठोर है।

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प्रश्न 2.
कोई चार ऐसे संशोधन बताइए जो राजनीतिक सर्वसम्मति से किए गए हैं?
उत्तर:
संविधान के कुछ संशोधन ऐसे भी हैं जो राजनीतिक सर्वसम्मति के आधार पर संविधान के भाग बने हैं। ऐसे संशोधन वास्तव में तत्कालीन राजनीतिक दर्शन एवं समाज की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति माने जाते हैं। ऐसे संशोधनों के कुछ उदाहरण हम निम्नलिखित प्रकार से दे सकते हैं

1. 52वां संवैधानिक संशोधन भारतीय राजनीति को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दल-बदल की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए लाया गया दल-बदल निरोधक कानून, 1985 वास्तव में राजनीतिक आम सहमति का ही परिणाम था। इसके अतिरिक्त 52वें संशोधन की कुछ कमियों को दूर करने के लिए पुनः 91वां संशोधन (2003) भी वास्तव में राजनीतिक सर्वसम्मति की ही देन कहा जा सकता है।

इस संशोधन द्वारा विशेषकर दल-बदल को निरुत्साहित करने के लिए मन्त्रिमंडल के आकार को सीमित किया गया जिसके द्वारा निश्चित किया गया कि मन्त्री पदों की संख्या लोकसभा या राज्य विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। जैसा कि सर्वविदित है दल-बदल का मुख्य कारण सत्ता प्रलोभन रहा है। ऐसे कानून ऐसी प्रवृत्ति के राजनेताओं पर एक महत्त्वपूर्ण अंकुश के रूप में काम करेगा।

2. 61वां संवैधानिक संशोधन इसके द्वारा मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करना भी आम राजनीतिक सहमति का ही परिणाम था।

3. 73वां एवं 74वां संवैधानिक संशोधन-इन संशोधनों के द्वारा संपूर्ण भारत में पंचायती राज को लागू करना भी आम राजनीतिक सहमति का अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है।

4. 93 वां संवैधानिक संशोधन इसके द्वारा उच्च शिक्षण संस्थाओं में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देना भी आम राजनीतिक सहमति का ही उदाहरण कहा जा सकता है।

अतः स्पष्ट है कि संविधान में कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधन राजनीतिक आम सहमति के परिणामस्वरूप किए गए। ऐसे संशोधन तत्कालिक राजनीतिक दर्शन एवं समाज की महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करते हुए संविधान को जीवंत या गतिशील बनाए रखते हैं।

प्रश्न 3.
संविधान के बुनियादी ढाँचे (Basic Structure of the Constitution) पर नोट लिखें।
उत्तर:
बुनियादी या मूलभूत ढाँचा एक सैद्धांतिक बात है जो स्वयं में एक जीवंत संविधान का उदाहरण है। संविधान में इस अवधारणा का कोई उल्लेख नहीं मिलता। वास्तव में यह एक ऐसा विचार है जो न्यायिक व्याख्याओं से उत्पन्न हुआ है। मौलिक अधिकारों से संबंधित केशवानन्द भारती के विवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस सिद्धांत (मूल ढाँचे का सिद्धांत) का प्रतिपादन किया था। इस निर्णय ने संविधान के विकास में निम्नलिखित सहयोग दिया

(1) इस निर्णय द्वारा संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्तियों की सीमाएँ निर्धारित की गईं।

(2) यह निर्णय संविधान के किसी भी या संपूर्ण भागों के किसी भी प्रकार के संशोधन की स्वीकृति देता है। यहाँ तक कि मूल अधिकारों में भी संशोधन की पूर्ण स्वीकृति दी गई है। अतः संविधान के मूल ढाँचे में संशोधन किए बिना संविधान के किसी भी भाग में संसद द्वारा संशोधन या परिवर्तन किया जा सकता है।

(3) इस निर्णय से यह भी स्पष्ट है कि संविधान के मूल ढाँचे में उल्लंघन करने वाले संशोधन के संबंध में अन्तिम निर्णय करने का अधिकार न्यायपालिका का होगा। यद्यपि मूल ढाँचा क्या है? यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अभी स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन समय-समय पर विभिन्न विवादों में दिए गए निर्णयों से संविधान के मूलभूत ढाँचे के सम्बन्ध में कुछ बिन्दु उभरकर सामने आए हैं जो इस प्रकार हैं-

  • संविधान की सर्वोच्चता,
  • संविधान का धर्म-निरपेक्ष स्वरूप,
  • शासन का लोकतन्त्रात्मक एवं गणतन्त्रीय रूप,
  • कानून का शासन एवं न्यायिक समीक्षा,
  • संविधान का संघीय स्वरूप,
  • स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका,
  • कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका के मध्य स्थापित समीकरण,
  • भारत की प्रभुसत्ता,
  • देश की अखंडता आदि।

इस प्रकार मूल संरचना या ढाँचे का सिद्धांत संविधान की कठोरता एवं लचीलेपन की मिश्रित व्यवस्था को इंगित करता है। संविधान के मूल ढांचे को संविधान संशोधन प्रक्रिया के दायरे से बाहर रखने की व्यवस्था संविधान की कठोरता को व्यक्त करता है। दूसरे शब्दों में, संविधान का मल ढाँचे से संबंधित भाग अपरिवर्तनीय रहेगा जिसे कभी भी नहीं बदला जा सकता. जबकि दसरी तरफ संविधान के कुछ भागों को संशोधन प्रक्रिया के अधीन करने की व्यवस्था लचीलेपन को व्यक्त करती है। इस तरह हमारा संविधान अंशतः लचीले एवं अंशतः कठोर स्वरूप वाला कहा जाता है।

प्रश्न 4.
संविधान के मूल ढाँचे पर संविधान समीक्षा की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में नब्बे के दशक के अन्तिम वर्षों में एक अन्य विचार विशेषकर संविधान समीक्षा को लेकर भी उभरा। ऐसा विचार रखने वाले विचारकों का कहना है कि देश का वातावरण एवं परिस्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं और इन विशेष परिस्थितियों से संविधान की अनेक धाराएँ मेल नहीं खाती हैं। इसके अतिरिक्त विश्व अर्थव्यवस्था में भी उदारीकरण का नया दौर प्रारम्भ हुआ है।

इसलिए भारत में भी आर्थिक उदारीकरण के इस दौर में आर्थिक-सामाजिक परिपेक्ष्य में संरचनात्मक सुधार का सिलसिला प्रारंभ करना आवश्यक है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि नवीन परिस्थितियों के अनुरूप पूरे संविधान की ही समीक्षा की जाए। ने 22 फरवरी, 2000 को सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश श्री वेंकटचलैया की अध्यक्षता में 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा हेतु राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया। संविधान समीक्षा आयोग ने 31 मार्च, 2002 को अपना प्रतिवेदन भारत सरकार को सौंप दिया। कुल मिलाकर आयोग की रिर्पोट के 1976 पृष्ठों में 249 सिफारशें की गई हैं।

58 अनुशंसाएँ संविधान में संशोधन करने, 86 अनुशंसाएँ विधायी कार्रवाई करने और 106 अनुशंसाएँ कार्यकारी कार्रवाई के माध्यम से क्रियान्वित करने का सुझाव दिया है। परन्तु इसमें सबसे अधिक ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस आयोग ने संविधान के बुनियादी ढाँचे पर पूर्ण विश्वास जताया है और इसमें किसी ऐसे परिवर्तन की सिफारिश नहीं की जो इसके मूल ढाँचे पर प्रतिकूल प्रभाव डाले। अतः स्पष्ट है संविधान का मूल ढाँचा पूर्व में हुए निर्णयों के अनुरूप अपरिवर्तित ही रहेगा।

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प्रश्न 5.
भारतीय संविधान की संशोधन विधि की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) संविधान में संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है, परंतु संशोधन विधेयक दोनों सदनों में अलग-अलग रूप में पास होना आवश्यक है,

(2) संशोधन विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद होने पर विधेयक गिर जाएगा, क्योंकि असहमति की स्थिति में दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन बुलाने की व्यवस्था का संविधान में उल्लेख नहीं किया गया है,

(3) राज्य विधानमंडलों को संशोधन प्रस्ताव पेश करने का अधिकार नहीं है। राज्यों को केवल तीसरी विधि के अंतर्गत किए गए संशोधनों पर स्वीकृति देने की शक्ति प्रदान की गई है। इसमें भी केवल आधे राज्यों के विधानमंडलों की स्वीकृति की आवश्यकता पड़ती है, परंतु इनके द्वारा दी जाने वाली स्वीकृति के लिए कोई सीमा निश्चित नहीं की गई है,

(4) संसद द्वारा पारित किए गए संशोधन विधेयकों को स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। जिस पर राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी पड़ती है,

(5) संसद संविधान के किसी भी भाग में अनुच्छेद 368 के अधीन संशोधन कर सकती है, बशर्ते ऐसा संशोधन संविधान के मूल ढाँचे में परिवर्तन न करता हो,

(6) संसद द्वारा किए गए संवैधानिक संशोधन की वैधता की न्यायपालिका को जांच करने का अधिकार है,

(7) संविधान में किए जाने वाले संशोधनों पर जनमत संग्रह कराए जाने की व्यवस्था नहीं है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। अथवा भारतीय संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
भारतीय संविधान की एक मुख्य विशेषता यह है कि यह न तो पूर्णरूप से लचीला है और न ही पूर्ण रूप से कठोर। यह अंशतः लचीला तथा अंशतः कठोर (Partly Flexible and Partly Rigid) है। प्रो० वीयर (Prof. Viyar) के शब्दों में, “यह संविधान चरम कठोरता तथा अत्यन्त लचीलेपन में एक अच्छा सन्तुलन स्थापित करता है।”

संविधान के निर्माण के समय श्री जवाहरलाल नेहरू (Sh. Jawaharlal Nehru) ने इस सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा था, “यद्यपि हम इस संविधान को इतना ठोस तथा स्थायी बनाना चाहते हैं जितना कि हम बना सकते हैं, परन्तु संविधान का स्थायी होना वांछनीय है। उसमें कुछ लचीलापन अवश्य होना चाहिए। यदि आप किसी वस्तु को पूर्ण रूप से स्थायी और कठोर बना देंगे तो इससे राष्ट्र का विकास रुक जाएगा क्योंकि राष्ट्र जीवित प्राणियों का समूह है। किसी भी स्थिति में हम अपने संविधान को इतना कठोर नहीं बना सकते कि वह बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप बदल न सके।”

संघीय शासन-व्यवस्था के लिए संविधान का कठोर होना आवश्यक है, ताकि केन्द्रीय सरकार में सत्ताधारी दल उसमें अपनी इच्छानुसार परिवर्तन न कर सके, परन्तु संविधान इतना कठोर भी नहीं होना चाहिए कि बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार उसे बदला न जा सके। इसी कारण से हमारा संविधान न तो पूर्ण रूप से कठोर और न ही पूर्ण रूप से लचीला बनाया गया है।

भारतीय संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया का वर्णन अनुच्छेद 368 के अन्तर्गत किया गया है। इसके अनुसार संशोधन के कार्य के लिए संविधान को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा गया है

1. संसद द्वारा साधारण बहुमत से संशोधन (Amendment by the Parliament bya Simple Majority)-संविधान की कुछ धाराएँ ऐसी हैं, जिनमें संसद अपने साधारण बहुमत से परिवर्तन कर सकती है। इस दृष्टि से हमारा संविधान लचीला है। इस श्रेणी में ये विषय शामिल हैं

  • नए राज्यों को भारतीय संघ में शामिल करना, नए राज्यों की स्थापना करना, उनके क्षेत्र, सीमाओं तथा नामों में परिवर्तन करना,
  • भारत की नागरिकता सम्बन्धी विषय,
  • किसी राज्य की विधानसभा की सिफारिश पर उस राज्य में विधानपरिषद् स्थापित करना अथवा उसे समाप्त करना,
  • राष्ट्रभाषा सम्बन्धी विषय,
  • संसद तथा राज्य विधानमण्डलों के सदस्यों के लिए योग्यताएँ निश्चित करना,
  • संसद के सदस्यों को वेतन, भत्ते तथा अन्य सुविधाएँ प्रदान करना,
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या,
  • अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़े हुए कबीलों के प्रशासन आदि से संबंधित विषयों में परिवर्तन।

2. संसद के बहुमत तथा आधे राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा स्वीकृति (By a Special Majority of Parliament and Ratification by the Legislatures of at least fifty percent States) दूसरी श्रेणी में वे विषय शामिल किए गए हैं जो वास्तव में संघ एवं राज्यों से सम्बन्धित हैं। इनमें संशोधन करने के लिए अत्यन्त कठोर प्रणाली अपनाई गई है।

इन विषयों के सम्बन्ध में संशोधन के प्रस्ताव को दो चरण पार करने होते हैं। सर्वप्रथम, संशोधन विधेयक को संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। उसे संसद के प्रत्येक सदन की समस्त जनसंख्या के साधारण बहुमत तथा उपस्थित व मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के 2/3 (दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना आवश्यक है। संसद द्वारा ऊपर दी गई प्रक्रियानुसार जब वह प्रस्ताव पास हो जाता है तो उसे राज्यों की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है।

उस विधेयक को कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा स्वीकृति मिलनी चाहिए। उसके पश्चात् राष्ट्रपति की स्वीकृति से संविधान में आवश्यक संशोधन लागू होता है। संविधान संशोधन की यह प्रक्रिया दिए गए विषयों के सम्बन्ध में अपनाई जाती है-

  • राष्ट्रपति के चुनाव का ढंग,
  • संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार,
  • राज्यों की कार्यपालिका शक्ति की सीमा,
  • केन्द्र द्वारा प्रशासित क्षेत्रों (Union Territories) के लिए उच्च न्यायालयों की व्यवस्था,
  • राज्यों के उच्च न्यायालयों सम्बन्धी व्यवस्था,
  • संघ तथा राज्यों के विधायी सम्बन्ध,
  • संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व,
  • संघीय न्यायपालिका सम्बन्धी व्यवस्था,
  • संविधान में संशोधन की प्रक्रिया।

3. संसद द्वारा दो-तिहाई बहुमत से संशोधन (Amendment by Parliament by a two-third Majority)-संविधान में संशोधन की तीसरी प्रणाली दूसरी प्रणाली से कुछ कम कठोर है। इसके अन्तर्गत संविधान में संशोधन सम्बन्धी विधेयक संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है और यदि वह सदन की कुल संख्या के साधारण बहुमत द्वारा या

उपस्थित व मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत द्वारा पास हो जाता है तो उसे दूसरे सदन में स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। दूसरे सदन में भी यदि वह ऊपर दिए गए ढंग से पास हो जाता है तो उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। संविधान के जिन विषयों का वर्णन ऊपर प्रथम या दूसरे वर्ग में किया गया है, उनको छोड़कर शेष सभी विषयों में परिवर्तन इसी प्रक्रिया से किया जा सकता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि यद्यपि हमारा संविधान एक कठोर संविधान है, परन्तु यह इतना कठोर नहीं है कि इसमें देश की बदलती परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन न किया जा सके। संशोधन प्रक्रिया की आलोचना (Criticism of the Procedure of Amendment) भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया की निम्नलिखित बातों के आधार पर आलोचना की गई है

(1) संविधान में संशोधन का प्रस्ताव केवल संघीय संसद में ही आरम्भ किया जा सकता है, राज्यों अथवा जनता के पास इस कार्य में पहल करने का अधिकार नहीं है।

(2) संविधान इस बारे में स्पष्ट नहीं है कि प्रस्तावित संशोधन को संसद के द्वारा पास होने के पश्चात् जब राज्यों के पास भेजा जाता है तो उनकी स्वीकृति कितने समय में मिल जानी चाहिए। अमेरिका में जब कांग्रेस किसी संशोधन विधेयक को पास करके राज्यों के पास स्वीकृति के लिए भेजती है तो वह उसके लिए समय निश्चित कर देती है

(3) संविधान में इस बात को भी स्पष्ट नहीं किया गया था कि संविधान में संशोधन का प्रस्ताव जब तक संसद के दोनों सदनों से पास होने के पश्चात् राष्ट्रपति के पास जाता है तो क्या राष्ट्रपति को उस पर निषेधाधिकार (Veto Power) प्राप्त है अथवा उसे स्वीकृति देनी ही पड़ेगी, परन्तु अब संविधान के 24वें संशोधन द्वारा इस अस्पष्टता को दूर कर दिया गया है। इस संवैधानिक संशोधन में यह कहा गया है कि जब कोई संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों से पास होकर राष्ट्रपति के पास उसकी अनुमति के लिए भेजा जाए तो राष्ट्रपति को उस पर अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ेगी।

(4) संविधान में इस बात को भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि यदि किसी संविधान संशोधन के प्रस्ताव को पास करने के बारे में संसद के दोनों सदनों में मतभेद उत्पन्न हो जाए तो उसे कैसे सुलझाया जाएगा। अधिकांश लोगों का विचार है कि उस गतिरोध को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में सुलझाया जाएगा (जैसे किसी साधारण विधेयक के पास करने के सम्बन्ध में किया जाता है)।

(5) संविधान में कुछ अनुच्छेद ऐसे हैं, जिनको संशोधन प्रस्ताव पास किए बिना ही बदला जा सकता है। संघीय सरकार किसी विदेशी सन्धि अथवा समझौते की शर्तों को पूरा करने के लिए राज्य-सूची में दिए गए विषयों के सम्बन्ध में भी कानून बना सकती है। इसी प्रकार यदि राज्यसभा अपने 2/3 बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि राज्य-सूची में दिया गया कोई विषय राष्ट्रीय महत्त्व का हो गया है तो संसद उस पर भी कानून बना सकती है। यह व्यवस्था संघीय प्रणाली के विरुद्ध है।।

निष्कर्ष (Conclusion)-ऊपर दी गई सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हम यही कह सकते हैं कि भारतीय संविधान लचीला भी है और कठोर भी। संकटकाल में यह लचीला और एकात्मक बन जाता है। शान्तिकाल में इसका कुछ भाग काफी लचीला कुछ भाग कठोर हो जाता है। इस प्रकार भारतीय संविधान न तो इंग्लैण्ड के संविधान की तरह पूर्ण रूप से लचीला है और न ही अमेरिकन संविधान की भाँति बहुत कठोर है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान के लागू होने से लेकर अब तक संविधान में कौन-से मुख्य परिर्वतन किए गए हैं? अथवा भारतीय संविधान में हुए परिवर्तनों ने किस प्रकार इसके रूप को बदला है? कुछ उदाहरणों सहित व्याख्या करें।
उत्तर:
जनवरी, 2019 तक हमारे संविधान को लागू हुए लगभग 70 वर्ष से अधिक हो गए हैं। इन थोड़े से वर्षों में ही हमारे संविधान में 104 संशोधन (दिसम्बर, 2019) तक हो चुके हैं। जबकि 1789 में लागू होने वाले अमेरिकन संविधान में मात्र 27 संशोधन ही हुए हैं। यहाँ पर यही प्रश्न हमारे मस्तिष्क में आता है कि इतने थोड़े से समय में भारतीय संविधान में संशोधन करने के क्या कारण रहे हैं और इसके निहितार्थ क्या हैं: यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि संविधान लागू होने के प्रथम दस वर्षों में केवल 9 संशोधन हुए और आगामी 60 वर्षों में लगभग 93 संशोधन हो गए। यदि संविधान संशोधनों के इतिहास पर नजर डालें तो यह भी स्पष्ट हो जाता है कि संविधान में किए जाने वाले संशोधनों का भारत की राजनीतिक परिस्थितियों से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है।

संसद द्वारा संविधान में किया गया प्रत्येक संशोधन समय की आवश्यकता थी। संविधान में संसद द्वारा संशोधन तब ही किए गए जब न्यायिक निर्णयों के द्वारा संविधान के कुछ विशेष अनुच्छेदों में कमी बताई गई या संविधान निर्माताओं की महत्त्वाकांक्षाओं की गलत तरीके से व्याख्या की गई, जैसे संसद द्वारा मूल अधिकारों के सम्बन्ध में किए गए संशोधन का कारण समाजवादी समाज के रास्ते में बाधा का होना रहा तो कुछ संशोधनों का ध्येय राज्य-नीति के निदेशक सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप देना रहा।

कई संशोधन भूमि-सुधार एवं गरीबों को न्यायपालिका की कार्य-पद्धति द्वारा शीघ्र न्याय दिलवाने में असमर्थता के कारण हुए। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि इन विभिन्न संवैधानिक संशोधनों के पीछे केवल सत्ताधारी दल की राजनीतिक सोच ही बहुत मायने नहीं रखती थी, बल्कि विभिन्न सवैधानिक संशोधन उत्पन्न राजनीतिक परिस्थितियों एवं समाज और संविधान के आदर्शों के अनुरूप ही किए गए। हम भारतीय संविधान में हुए संशोधनों की विषय-वस्तु को समझने के लिए इसे अग्रलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित करके स्पष्ट कर सकते हैं

1. तकनीकी एवं प्रशासनिक समस्याओं से संबंधित संशोधन (Amendments Regarding Technical and Administrative Problems)-तकनीकी या प्रशासनिक प्रकृति के संशोधन प्रायः ऐसे संशोधन होते हैं जो संविधान के मूल उपबन्धों को स्पष्ट करने, उनकी व्याख्या करने से संबंधित छोटे-मोटे संशोधन होते हैं।

वास्तव में इन संशोधनों से कोई विशेष बदलाव नहीं होते, बल्कि ये किन्हीं विशेष परिस्थितियों से निपटने के लिए ही किए जाते हैं। इसीलिए इन्हें तकनीकी या प्रशासनिक संशोधनों का नाम दिया जाता है। संविधान में किए गए ऐसे तकनीकी संशोधनों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित रूप में बताए जा सकते हैं

(1) आरक्षण की व्यवस्था से संबंधित भारतीय संविधान में प्रारम्भ में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में सीटों का आरक्षण केवल 10 वर्षों के लिए किया गया था। परंतु इस वर्ग के लोगों के आर्थिक पिछडेपन के मध्यनजर प्रत्येक दस वर्ष के बाद आगामी दस वर्षों तक आरक्षण की अवधि को बढ़ाने के लिए संविधान में पाँच बार संशोधन किए जा चुके हैं।

जैसे 8वाँ संशोधन 1960 में, 23वाँ संशोधन 1969 में, 45वाँ संशोधन 1980 में, 62वाँ संशोधन 1989 में तथा 79वाँ संशोधन 1999 में 95वें संशोधन 2020 में किया गया। वर्तमान में इस वर्ग के आरक्षण प्रावट पान को 104वें संवैधानिक संशोधन (दिसम्बर, 2019) द्वारा 25 जनवरी, 2030 तक रखने की व्यवस्था कर दी गई है।

(2) 15वें संवैधानिक संशोधन द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु को 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष तक करना।

(3) 54वें संवैधानिक संशोधन द्वारा सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन, भत्तों, पेंशन एवं सेवा-निवृत्ति सम्बन्धी प्रावधानों में उल्लेखनीय सुधार करना।

(4) 21वाँ संशोधन, 1966 इस संशोधन के द्वारा संविधान की 8वीं अनुसूची में परिवर्तन करके सिन्धी भाषा को भी राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया जिससे 8वीं अनुसूची में 17 भाषाएँ हो गई थी।

(5) 71वाँ संशोधन, 1992-इस संशोधन के द्वारा मणिपुरी, कोंकणी व नेपाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया जिससे 8वीं अनुसूची में कुल 18 भाषाएँ हो गई थी।

(6) 92वाँ संशोधन, 2003-इस संवैधानिक संशोधन के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में संशोधन किया गया तथा बोडो, डोगरी, मैथिली एवं संथाली भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया है। इस प्रकार अब संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं हो गई हैं।

(7) 96वाँ संशोधन इस संशोधन को राष्ट्रपति द्वारा 23 सितम्बर, 2011 को स्वीकृति दी गई। इस संशोधन द्वारा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में अंकित भाषा ‘ओरिया’ (Oriya) के स्थान पर ‘ओडिया’ (Odia) नाम परिवर्तित किया गया।

(8) 85वाँ संशोधन, 2002-इस संवैधानिक संशोधन (सन् 2002) के द्वारा अनुच्छेद 16 (4A) में परिवर्तन करते हुए सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान किया गया।

(9) 89वाँ संशोधन, 2003–इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 338 के तुरन्त बाद अनुच्छेद 338क जोड़कर अनुसूचित जनजातियों के लिए अलग से राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के गठन करने का प्रावधान किया गया है। इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष एवं तीन अन्य सदस्य होंगे तथा इनकी सेवा शर्तों एवं पदावधि के सम्बन्ध में निर्णय राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।

(10) 41वें संशोधन द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग एवं संयुक्त लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवा-निवृत्ति आयु को 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष करना आदि। अतः उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि उपर्युक्त संशोधनों से संविधान के मूल उपबन्धों में कोई परिवर्तन नहीं आया। इसीलिए हम ऐसे संशोधनों को तकनीकी या प्रशासनिक संशोधनों का नाम देते हैं जो किन्हीं विशेष परिस्थितियों एवं समस्याओं के समाधान हेतु किए गए हैं।

2. राजनीतिक सर्वसम्मति से किए गए संशोधन (Amendments by Political Unanimity):
संविधान के कुछ संशोधन ऐसे भी हैं जो राजनीतिक सर्वसम्मति के आधार पर संविधान के भाग बने हैं। ऐसे संशोधन वास्तव में तत्कालीन राजनीतिक दर्शन एवं समाज की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति माने जाते हैं। ऐसे संशोधनों के कुछ उदाहरण हम निम्नलिखित प्रकार से दे सकते हैं

(1) 52वाँ संवैधानिक संशोधन भारतीय राजनीति को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दल-बदल की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए लाया गया दल-बदल निरोधक कानून, 1985 वास्तव में राजनीतिक आम सहमति का ही परिणाम था। इसके अतिरिक्त 52वें संशोधन की कुछ कमियों को दूर करने के लिए पुनः 91वाँ संशोधन (2003) भी वास्तव में राजनीतिक सर्वसम्मति की ही देन कहा जा सकता है।

इस संशोधन द्वारा विशेषकर दल-बदल को निरुत्साहित करने के लिए मंत्रिमंडल के आकार को सीमित किया गया जिसके द्वारा निश्चित किया गया कि मंत्री पदों की संख्या लोकसभा या राज्य विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। जैसा कि सर्वविदित है, दल-बदल का मुख्य कारण सत्ता प्रलोभन रहा है। ऐसे कानून ऐसी प्रवृत्ति के राजनेताओं पर एक महत्त्वपूर्ण अंकुश के रूप में काम करेगा।

(2) 61वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करना भी आम राजनीतिक सहमति का ही परिणाम था।

(3) 73वाँ एवं 74वाँ सवैधानिक संशोधन-इन संशोधनों के द्वारा सम्पूर्ण भारत में पंचायती राज को लागू करना भी आम राजनीतिक सहमति का अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है।

(4) 102वाँ सवैधानिक संशोधन-राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग विधेयक, 2017 को लोकसभा द्वारा 10 अप्रैल, 2017 तथा राज्यसभा द्वारा 11 अप्रैल, 2017 को राज्यसभा की सिलेक्ट कमेटी को सौंपा गया। जिसने 19 जुलाई, 2017 को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसके उपरान्त 6 अगस्त, 2018 को इसे पास किया गया। इस विधेयक के पारित होने पर आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने के कारण संविधान में अनुच्छेद 342 (क) जोड़कर नए पिछड़े वर्ग आयोग को सिविल न्यायालय के समकक्ष अधिकार प्राप्त होंगे जिसमें आयोग को पिछड़े वर्ग की शिकायतों का निवारण करने का अधिकार भी मिल जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 338
(क) के बाद नया अनुच्छेद 338
(ख) जोड़ा गया।

इसमें सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग नामक एक नया आयोग होगा। संसद द्वारा पास किए गए विधेयक के अधीन इस आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं तीन अन्य सदस्य होंगे। इनकी पदावधि, सेवा एवं शर्ते आदि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित होगी। आयोग को अपनी स्वयं की प्रक्रिया विनियमित करने की शक्ति होगी। आयोग को संविधान के अधीन सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए उपबंधित सुरक्षा उपाय से सम्बन्धित मामलों की जांच और निगरानी करने का अधिकार होगा।

(5) 103वाँ संवैधानिक संशोधन सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10% आरक्षण देने से सम्बन्धित 124वाँ संशोधन विधेयक (संख्या की दृष्टि से 103वाँ संशोधन विधेयक) लोकसभा द्वारा 8 जनवरी, 2019 को 323-3 मतान्तर से एवं राज्यसभा द्वारा 9 जनवरी, 2019 को 165-7 मतान्तर से पास होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा गया जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा 12 जनवरी, 2019 को स्वीकार करने पर सरकारी गजट में इसे 103वाँ संविधान संशोधन अधिनियम के रूप में 14 जनवरी, 2019 को सूचीबद्ध किया गया।

(6) 101वाँ संवैधानिक संशोधन भारतीय संविधान में वस्तु एवं सेवा कर (जी एस टी) से सम्बन्धित 101वाँ संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा द्वारा 8 अगस्त, 2016 को एवं राज्यसभा द्वारा 3 अगस्त, 2016 को सर्वसम्मति के साथ पारित किया गया। संविधान संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति से पूर्व आधे से अधिक राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा इसका समर्थन किया जाना आवश्यक था। इस आवश्यक शर्त की पूर्ति होने के पश्चात् 8 सितम्बर, 2016 को राष्ट्रपति द्वारा इस विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर दी गई। इसी के साथ संविधान का 101वाँ संशोधन अधिनियम, 2016 में लागू हुआ।

(7) 93वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा उच्च शिक्षण संस्थाओं में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देना भी आम राजनीतिक सहमति का ही उदाहरण कहा जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि संविधान में कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधन राजनीतिक आम सहमति के परिणामस्वरूप किए गए। ऐसे संशोधन तत्कालिक राजनीतिक दर्शन एवं समाज की महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करते हुए संविधान को जीवंत या गतिशील बनाए रखते हैं।

3. न्यायपालिका एवं विधायिका (संसद) के बीच उत्पन्न मतभेद सम्बन्धी संशोधन (Amendment Regarding Controversy Arise between Judiciary and Parliament)-न्यायपालिका एवं विधायिका (संसद) के बीच उत्पन्न मतभेद सम्बन्धी संशोधन इस प्रकार हैं-

1. मौलिक अधिकारों सम्बन्धी विवाद-बुनियादी या मूलभूत ढाँचा एक सैद्धान्तिक बात है जो स्वयं में एक जीवंत संविधान का उदाहरण है। संविधान में इस अवधारणा का कोई उल्लेख नहीं मिलता। वास्तव में यह एक ऐसा विचार है जो न्यायिक व्याख्याओं हुआ है। मौलिक अधिकारों से संबंधित केशवानंद भारती के विवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस सिद्धांत (मूल ढाँचे का सिद्धांत) का प्रतिपादन किया था। इस निर्णय ने संविधान के विकास में निम्नलिखित सहयोग दिया

(1) इस निर्णय द्वारा संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्तियों की सीमाएँ निर्धारित की गईं।
संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़ के रूप में

(2) यह निर्णय संविधान के किसी भी या सम्पूर्ण भागों के किसी भी प्रकार के संशोधन की स्वीकृति देता है। यहाँ तक कि मूल अधिकारों में भी संशोधन की पूर्ण स्वीकृति दी गई है। अतः संविधान के मूल ढाँचे में संशोधन किए बिना संविधान के किसी भी भाग में संसद द्वारा संशोधन या परिवर्तन किया जा सकता है।

(3) इस निर्णय से यह भी स्पष्ट है कि संविधान के मूल ढाँचे में उल्लंघन करने वाले संशोधन के सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय करने का अधिकार न्यायपालिका का होगा। यद्यपि मूल ढाँचा क्या है? यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अभी स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन समय-समय पर विभिन्न विवादों में दिए गए निर्णयों से संविधान के मूलभूत ढाँचे के सम्बन्ध में निम्नलिखित कुछ बिंदु उभरकर सामने आए हैं

  • संविधान की सर्वोच्चता,
  • संविधान का धर्म-निरपेक्ष स्वरूप,
  • शासन का लोकतंत्रात्मक एवं गणतन्त्रीय रूप,
  • कानून का शासन एवं न्यायिक समीक्षा,
  • संविधान का संघीय स्वरूप,
  • स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका,
  •  कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका के मध्य स्थापित समीकरण,
  • भारत की प्रभुसत्ता,
  • देश की अखण्डता आदि।

इस प्रकार मूल संरचना या ढाँचे का सिद्धांत संविधान की कठोरता एवं लचीलेपन की मिश्रित व्यवस्था को इंगित करता है। संविधान के मूल ढाँचे को संविधान संशोधन प्रक्रिया के दायरे से बाहर रखने की व्यवस्था संविधान की कठोरता को व्यक्त करता है। दूसरे शब्दों में, संविधान का मूल ढाँचे से संबंधित भाग अपरिवर्तनीय रहेगा जिसे कभी भी नहीं बदला जा सकता। जबकि दूसरी तरफ संविधान के कुछ भागों को संशोधन प्रक्रिया के अधीन करने की व्यवस्था लचीलेपन को व्यक्त करती है। इस तरह हमारा संविधान अंशतः लचीले एवं अंशतः कठोर स्वरूप वाला कहा जाता है।

2. 86वाँ संशोधन, 2002-इस संशोधन के द्वारा शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है। इस संशोधन के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 21 के तुरन्त बाद खण्ड 21क जोड़ा गया। इसमें यह व्यवस्था की गई कि 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार राज्य निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। इसी संशोधन में अनुच्छेद 51क में खण्ड (1) जोड़कर यह भी व्यवस्था की गई कि अभिभावकों का यह कर्त्तव्य है कि वे 6 से 14 वर्ष के अपने बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान करें।

3. 99वाँ संशोधन-99वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए चली आ रही कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर राष्ट्रीय न्यायिक नियक्ति आयोग का गठन किया गया। जिसे लोकसभा एवं राज्यसभा द्वारा पारित करने एवं 30 दिसम्बर, 2014 को राष्ट्रपति द्वारा इसे स्वीकृति देने के बाद केन्द्र सरकार द्वारा 13 अप्रैल, 2015 को अधिसूचित किया गया।

परन्तु इस संशोधन विधेयक को दी गई चुनौतियों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा 16 अक्टूबर, 2015 को इस सवैधानिक संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। इस प्रकार न्यायाधीशों की नियुक्ति सम्बन्धी गठित राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के स्थान पर पूर्व प्रचलित कॉलेजियम प्रणाली को ही कायम रखा गया है।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में किए गए कुछ विवादस्पद संशोधनों (Controversial Amendments) का वर्णन करें।
उत्तर:
यदि हम संवैधानिक संशोधन के दृष्टिकोण से सत्तर से अस्सी के दशक में हुए संशोधनों पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि इस दौरान हुए संशोधनों को लेकर विधि और राजनीति के दायरों में भारी बहस छिड़ी थी। वर्ष 1971 से 1976 के इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में हुए विशेषकर 38वें, 39वें एवं 49वें संशोधनों की विधि-विशेषज्ञों के साथ-साथ विपक्षी दलों ने भी भारी आलोचना की।

कई विद्वानों ने तो ऐसे संशोधनों को ‘अवसरवादी अधिनियम’ (Acts of Opportunism) भी कहकर पुकारा। विपक्षी दलों का तो यहाँ तक मानना था कि ऐसे संशोधनों के माध्यम से सत्तारूढ़ दल संविधान के मूल स्वरूप को ही बिगाड़ना चाहते हैं। इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व में हुए ऐसे संशोधनों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है

(1) 38वां संवैधानिक संशोधन, 1975 जुलाई, 1975 में पारित इस संशोधन ने राष्ट्रपति, राज्यपाल तथा उप-राज्यपाल द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों और राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों को न्यायपालिका के अधिकार-क्षेत्र से बाहर कर दिया।

(2) 39वां संवैधानिक संशोधन, 1975 अगस्त, 1975 में आपातकाल के दौरान पास हुए इस अधिनियम ने राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमन्त्री के चुनाव को न्यायालय के क्षेत्र से बाहर करके उसके लिए संसद की अलग से एक समिति गठित करने की व्यवस्था की। इसने 1951 के जन-प्रतिनिधित्व कानून में 1974 और 1975 में किए गए संशोधनों, आन्तरिक सुरक्षा कानून (MISA) आदि 37 अन्य कानूनों को भी नौवीं अनुसूची में शामिल करके उन्हें न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया।

(3) 40वां संवैधानिक संशोधन, 1975-संविधान का यह संशोधन यह व्यवस्था करता है कि राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री और राज्यों के राज्यपालों के विरुद्ध, उनके कार्यकाल में या अवकाश ग्रहण करने पर, उनके शासन-सम्बन्धी विषयों के बारे में का कोई फौजदारी या दीवानी मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकेगा। वास्तव में ये सभी संशोधन आपातकाल के दौरान विशेषकर जून, 1975 के पश्चात् किए गए। इनमें सबसे अधिक विवादित संशोधन 42वां रहा है, जिसका उल्लेख निम्नलिखित है

(4) 42वां संशोधन, 1976-59 अनुभागों (Sections) वाला यह ‘लघु संविधान’ (Mini Constitution) सन् 1976 में आपातकाल के दौरान पास किया गया। इसने

  • राष्ट्रपति के लिए मन्त्रि-परिषद् की सलाह मानना आवश्यक बनाने,
  • लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल 6 वर्ष करने,
  • संसद की सर्वोच्चता कायम करने,
  • उद्देशिका या प्रस्तावना में समाजवादी, धर्म-निरपेक्षता (Socialist, Secular) शब्द बढ़ाने,
  • केन्द्र-राज्य संबंध में परिवर्तन करने,
  • मौलिक अधिकारों के ऊपर राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों को प्रमुखता देने,
  • न्यायपालिका की न्यायिक पुनर्निरीक्षण की शक्ति को निष्प्रभावी बनाने और
  • राज्यों में सशस्त्र सेनाएँ भेजने तथा देश के किसी एक भाग में आपात स्थिति लागू करने आदि की व्यवस्था की गई।

भूतपूर्व महान्यायवादी सी० के० दफ्तरी और एन० ए० पालकीवाला जैसे कानून शास्त्रियों ने इस संवैधानिक संशोधन कानून को प्रधानमन्त्री पद में पूरी राज्य सत्ता को निहित करना बताया था। इसके अतिरिक्त आलोचकों ने इन संशोधनों को न्यायपालिका की शक्ति को कम करने तथा लोकतन्त्र एवं कानून के शासन को नष्ट करने का एक प्रयास भी बताया।

इस प्रकार इन्दिरा गांधी की तानाशाही एवं स्वेच्छाचारी व्यवहार के अनुरूप किए गए संशोधनों ने राजनीतिक एवं वैधानिक क्षेत्र में नए विवादों को जन्म दिया। परन्तु इन्दिरा गांधी के तानाशाही शासन की समाप्ति के उपरांत सन् 1975 में हुए लोकसभा चुनावों में नवीन सत्तारूढ़ दल ने ऐसे विवादित संशोधनों की व्यवस्थाओं में पुनः संशोधन किया जो विशेषतः 43वें एवं 44वें संशोधन के द्वारा हुआ। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

(5) 43वां संशोधन, 1978-जनता सरकार ने अपनी चुनावी घोषणा के अनुसार 43वां संशोधन बिल पेश किया, परन्तु राज्यसभा के विरोध के कारण उसे वापिस लेना पड़ा। इसलिए 44वां संशोधन बिल पेश किया गया जिसे कि 13 अप्रैल, 1978 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई और जो संविधान का 43वां संशोधन बन गया। इस संशोधन में 10 अनुच्छेद हैं और इसमें कुछ व्यवस्थाएँ निम्नलिखित हैं

(1) 42वें संशोधन द्वारा निर्मित 31D अनुच्छेद को समाप्त कर दिया, जिसके अनुसार संसद राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए कानून बना सकती है,
(2) सर्वोच्च न्यायालय के लिए संसद के कानूनों की वैधानिकता को देखने के लिए कम-से-कम 7 न्यायाधीशों की पीठ की व्यवस्था 42वें संशोधन द्वारा की गई थी, वह समाप्त कर दी गई है,
(3) नए संशोधन बिल के अनुसार राज्य के उच्च न्यायालयों को देखने का अधिकार है,
(4) उच्च न्यायालयों के लिए कानूनों की वैधानिकता देखने के लिए जो 5 न्यायाधीशों की पीठ की व्यवस्था थी, वह समाप्त कर दी गई है।

(vi) 44वां संशोधन, 1979-जनता पार्टी की सरकार ने, जिसने कि मार्च, 1977 के लोकसभा चुनाव में सत्ता प्राप्त की थी, अपने चुनाव घोषणा-पत्र में कांग्रेस सरकार द्वारा पारित 42वें संशोधन को समाप्त करने का जनता को आश्वासन दिया था। उसी के अनुसार 45वां संशोधन बिल मई, 1978 में लोकसभा में पेश किया गया था, जिसमें 45 अनुच्छेद थे।

चूंकि राज्यसभा में विरोधी दलों का बहुमत था, इसलिए उसने इस संशोधन की कुछ धाराओं को अस्वीकृत करके शेष बिल पास कर दिया गया, जो दोबारा लोकसभा द्वारा पास किया गया। तत्पश्चात् संविधान की व्यवस्था के अनुसार इस बिल को 12 राज्यों की विधानसभाओं ने स्वीकृति दे दी। 30 अप्रैल, 1979 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद यह 45वां संशोधन विधेयक संविधान का 44वां संशोधन बन गया। इस संशोधन के अन्तर्गत

(1) सम्पत्ति के अधिकार को कानूनी अधिकार बना दिया गया है। किसी व्यक्ति को उसकी सम्पत्ति से कानून के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है।

(2) अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा तभी कर सकता है, यदि मन्त्रिमण्डल राष्ट्रपति को संकटकाल की घोषणा करने की लिखित सलाह दे। संविधान के अनुच्छेद 352 से आन्तरिक अशान्ति शब्द की जगह सशस्त्र विद्रोह उपबन्ध जोड़ा गया। इस प्रकार अब संकटकाल की घोषणा तभी की जा सकती है, यदि भारत को अथवा भारत के किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध अथवा बाहरी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह (Armed Rebellion) से खतरा हो।

(3) जीवन और स्वतन्त्रता के अधिकार को सुरक्षित बनाने के लिए यह व्यवस्था की गई कि संकटकाल में भी इन अधिकारों के संबंध में न्यायालय में अपील करने के अधिकार को स्थगित नहीं किया जा सकता।

(4) राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित सभी सन्देह और विवादों की जांच तथा निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किए जाएंगे और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अन्तिम होगा।

(5) लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष किए जाने की व्यवस्था की गई।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़

प्रश्न 4.
भारत में लोकतान्त्रिक परम्पराओं को मजबूत बनाने वाले तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्रीय राज्य है जहाँ लोकतन्त्रीय शासन पद्धति अनेक वर्षों से सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। यद्यपि भारत की इस व्यवस्था में ऐसे भी तत्त्व हैं, जो लोकतन्त्र के विकास में बाधक हैं, परन्तु भारत में संवैधानिक और गैर-सवैधानिक ऐसी लोकतन्त्रीय परम्पराएँ विकसित हो रही हैं जो लोकतन्त्र को दृढ़ता प्रदान करती हैं।

दूसरे शब्दों में, भारत में इस प्रकार के तत्त्व पाए जाते हैं जो लोकतन्त्र को सफल बनाने में सहायक होते हैं। गत वर्षों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में लोकतन्त्र इतना मजबूत है कि वह सभी प्रकार की कठिनाइयों-राजनीतिक, अन्तर्राष्ट्रीय, आर्थिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक, क्षेत्रीय तथा आतंकवाद का मुकाबला सफलतापूर्वक कर सकता है। भारतीय लोकतन्त्र को जिन लोकतन्त्रीय परम्पराओं ने शक्तिशाली बनाने में योगदान दिया है, उनका वर्णन निम्नलिखित भागों में किया जा सकता है

(क) संवैधानिक व्यवस्थाएँ (Constitutional System):
संविधान निर्माताओं ने एक पूर्णरूपेण लोकतन्त्रीय संविधान का निर्माण किया। इसके द्वारा जो व्यवस्थाएँ निश्चित की गईं, उनका उल्लेख निम्नलिखित भागों में स्पष्ट किया जा सकता है

1. प्रस्तावना (Preamble):
संविधान की प्रस्तावना द्वारा संविधान के आदर्शों व उद्देश्यों का स्पष्टीकरण होता है। इसके अनुसार भारत एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए दृढ़-संकल्प है। इसके साथ-साथ संविधान सभी नागरिकों को राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक न्याय प्रदान करने की घोषणा करता है।

2. मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (Fundamental Rights and Directive Principles of State Policy):
नागरिकों के विकास के लिए जहां मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, वहां उनकी सुरक्षा के लिए निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है। इस व्यवस्था से जहां नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा होती है वहाँ सरकार पर भी रोक लगती है। आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों द्वारा व्यवस्था की गई है। इस क्षेत्र में कुछ कार्य तो हुआ है, परन्तु अभी और कार्य करना शेष है।’

3. उत्तरदायी शासन (Responsible Government):
लोकतन्त्र शासन में सरकार का जनता के प्रति उत्तरदायी होना बहुत आवश्यक होता है। भारत में संघ तथा राज्यों में संसदीय प्रणाली अपनाई गई है। मन्त्रिपरिषद् अपने शासन-सम्बन्धी कार्यों के लिए जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायी होती है।

4. वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव (Elections based on Adult Franchise):
मौलिक प्रभुसत्ता के सिद्धांत के अनुसार 18 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को मत देने का अधिकार प्राप्त है। एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर प्रत्येक नागरिक चुनाव में भी भाग ले सकता है। इस प्रकार सभी नागरिकों को राजनीतिक समानता प्रदान की गई है जो लोकतन्त्र का एक प्रमुख तत्त्व है।

5. निष्पक्ष चुनाव के लिए निष्पक्ष चुनाव आयोग की व्यवस्था (Provision of Impartial Election Commission):
भारत में सन् 1952 से लेकर अब तक लोकसभा के 16 चुनाव और राज्यों की विधानसभाओं के अनेक चुनाव सफलतापूर्वक हो चुके हैं।

6. कानून का शासन (Rule of Law):
संविधान द्वारा सभी नागरिकों को कानूनी समानता प्रदान की गई है। कानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं। कानून व्यक्ति-व्यक्ति में भेदभाव नहीं करता। इस प्रकार संविधान द्वारा ऐसी व्यवस्थाएँ की गई हैं जो लोकतन्त्रीय परम्पराओं को शक्तिशाली बनाती हैं। इसके अलावा गैर-संवैधानिक संस्थाओं ने भी लोकतन्त्रीय परम्पराओं के विकास में सहायता दी है।

(ख) गैर-सवैधानिक व्यवस्थाएँ (Extra-constitutional Provisions):
ये वे व्यवस्थाएँ एवं परम्पराएँ हैं जिनका प्रत्यक्ष रूप से संविधान में उल्लेख नहीं है। ये इस प्रकार हैं

1. लोकतांत्रिक विरासत (Democratic Legacy):
भारतीय लोकतन्त्र की अब तक सफलता के मूल में भारत की जनता का लोकतन्त्र में अटूट विश्वास निहित है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही हमने लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के विभिन्न रूपों का सफल प्रयोग किया है। सर्वसत्ता-सम्पन्न, केन्द्रीयकृत तथा अधिनायकवादी शासनों का जनता ने सदा ही विरोध किया है। इसी लोकतांत्रिक विरासत (Legacy) के प्रभाव के कारण ही अनेक विपरीत परिस्थितियों तथा समस्याओं के होते हुए लोकतन्त्र का सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं।

2. महान् नेताओं का नेतृत्व (Leadership of Great Leaders):
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय भारत को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल आदि ऐसे महान् नेताओं का नेतृत्व प्राप्त हुआ जो लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखते थे और उन्होंने लोगों में इन मूल्यों के प्रति आस्था पैदा की।

3. भारतीय जनता की जागरूकता (Awakening of Indian People):
भारतीय जनता ने सन् 1952 से 2014 तक हुए सभी चुनावों में पूर्ण जागरूकता का प्रदर्शन किया है। सन् 1975 की संकटकालीन घोषणा के विरोध में जनता ने जो मतदान किया, उससे यह स्पष्ट हो गया था कि वे लोकतन्त्र विरोधी कार्यों को सहन नहीं कर सकेंगे।

4. आर्थिक योजनाएँ (Economic Plans):
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार द्वारा देश के सामाजिक विकास के लिए जो कदम उठाए गए हैं, वे भी लोकतन्त्र में लोगों के विश्वास के लिए उत्तरदायी हैं। देश के आर्थिक विकास के लिए दस पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं और 12वीं पंचवर्षीय योजना भी अप्रैल, 2012 में प्रारम्भ हुई है। संघ तथा राज्यों की सरकारें इस बारे में प्रयत्नशील हैं कि सभी लोगों को रोजगार मिले, कृषि-उत्पादन बढ़े, औद्योगिक विकास हो और सामाजिक तथा आर्थिक असमानता दूर हो।

5. सवैधानिक उपायों में विश्वास (Faith in Constitutional Means):
भारत की जनता की सांस्कतिक धरोहर ने संवैधानिक उपायों का उपयोग करने के लिए निरन्तर प्रेरित किया है। छोटी समस्याओं से लेकर शासन के प्रति आक्रोश तक को यहां सवैधानिक उपायों से ही सुलझाने को समाज की स्वीकृति प्राप्त है।

असवैधानिक व हिंसक उपायों का उपयोग विदेशी विचारधाराओं से प्रेरित लोग करते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि भारत के मूल चिन्तन को बढ़ावा दिया जाए तथा लोकतन्त्र के इस मौलिक सिद्धांत में आस्था को स्थायी बनाया जाए। शान्तिपूर्ण उपायों से हुआ परिवर्तन व विकास स्थायी व कल्याणकारी होता है।

6. विरोधी दलों का योगदान (Contribution byOpposition Parties):
यद्यपि भारत में विरोधी दल बहुत शक्तिशाली नहीं रहे हैं, परन्तु उन्होंने लोकतांत्रिक परंपराओं को बनाए रखने में योगदान अवश्य दिया है। जहां तक भी सम्भव हो सका है उन्होंने सत्ताधारी दल की अनुचित नीतियों का डटकर मुकाबला किया है। दिए गए विवरण से यह स्पष्ट है कि भारत में लोकतांत्रिक परंपराओं को शक्तिशाली बनाने वाले अनेक तत्त्व मौजूद हैं और कसित हो रहे हैं, जिससे यह आशा की जा सकती है कि भारत में लोकतन्त्र पहले से और अधिक मजबूत होगा और लोकतन्त्र के उद्देश्यों एवं लोकतांत्रिक राजनीति के अन्तिम लक्ष्य समाज एवं जनता की समृद्धि एवं जन-कल्याण के व्यापक स्वरूप को व्यावहारिकता दे पाएँगे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेद में किया गया है
(A) अनुच्छेद 372
(B) अनुच्छेद 368
(C) अनुच्छेद 374
(D) अनुच्छेद 376
उत्तर:
(B) अनुच्छेद 368

2. “यह संविधान चरम कठोरता एवं अत्यंत लचीलेपन में एक अच्छा संतुलन स्थापित करता है।” ये शब्द किस विद्वान के हैं?
(A) एम०पी० शर्मा
(B) डी०डी० बसु
(C) प्रो० के०सी० ह्वीयर
(D) वी०एन० शुक्ला
उत्तर:
(C) प्रो. के०सी० बीयर

3. भारतीय संविधान में संशोधन का प्रस्ताव आरंभ किया जा सकता है
(A) केवल संसद में
(B) जनता द्वारा
(C) केवल आधे राज्यों द्वारा
(D) संसद तथा आधे राज्यों द्वारा
उत्तर:
(A) केवल संसद में

4. साधारण बहुमत से निम्नलिखित अनुच्छेद में संवैधानिक संशोधन किया जा सकता है
(A) अनुच्छेद 3 में
(B) अनुच्छेद 343 में
(C) अनुच्छेद 106 में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या 545 निम्नलिखित संशोधन द्वारा निश्चित की गई
(A) 17वें संशोधन द्वारा
(B) 25वें संशोधन द्वारा
(C) 31वें संशोधन द्वारा
(D) 42वें संशोधन द्वारा
उत्तर:
(D) 42वें संशोधन द्वारा

6. निम्नलिखित सवैधानिक संशोधन ने संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी तथा धर्म-निरपेक्ष शब्द जोड़े हैं
(A) 41वें संशोधन द्वारा
(B) 42वें संशोधन द्वारा
(C) 43वें संशोधन द्वारा
(D) 44वें संशोधन द्वारा
उत्तर:
(B) 42वें संशोधन द्वारा

7. भारतीय संविधान में अब तक कुल संशोधन हो चुके हैं
(A) 103
(B) 102
(C) 104
(D) 105
उत्तर:
(C) 104

8. भारतीय संविधान में दो-तिहाई बहुमत द्वारा संशोधन किस भाग में किया जा सकता है?
(A) भाग तीन
(B) भाग पाँच
(C) भाग दो
(D) भाग सात
उत्तर:
(A) भाग तीन

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़

9. निम्नलिखित संशोधन ने मताधिकार की आयु 18 वर्ष की है
(A) 54वाँ संशोधन
(B) 55वाँ संशोधन
(C) 63वाँ संशोधन
(D) 64वाँ संशोधन
उत्तर:
(B) 55वाँ संशोधन

10. निम्नलिखित संशोधन द्वारा अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 2020 तक कर दी है
(A) 54वाँ संशोधन
(B) 55वाँ संशोधन
(C) 95वाँ संशोधन
(D) 78वाँ संशोधन
उत्तर:
(C) 95वाँ संशोधन

11. भारतीय संविधान में संशोधन करने का अधिकार
(A) राष्ट्रपति के पास है
(B) प्रधानमंत्री के पास है
(C) केवल संसद के पास है
(D) संसद तथा राज्यों के विधानमंडल, दोनों इसमें भाग लेते हैं
उत्तर:
(C) केवल संसद के पास है

12. भारतीय संघ में नए राज्यों को शामिल करने से संबंधित संशोधन
(A) संसद अपने दोनों सदनों के साधारण बहुमत से कर सकती है
(B) संसद दोनों सदनों के 2/3 बहुमत से कर सकती है
(C) राष्ट्रपति कर सकता है
(D) संसद के दोनों सदनों के 2/3 बहुमत व आधे राज्यों की स्वीकृति से किया जा सकता है
उत्तर:
(A) संसद अपने दोनों सदनों के साधारण बहुमत से कर सकती है

13. राष्ट्रपति के निर्वाचन के ढंग से संबंधित संशोधन
(A) संसद अपने साधारण बहुमत से कर सकती है
(B) संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत से किया जा सकता है
(C) संसद के दोनों सदनों के 2/3 बहुमत व आधे राज्यों की स्वीकृति से किया जा सकता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) संसद के दोनों सदनों के 2/3 बहुमत व आधे राज्यों की स्वीकृति से किया जा सकता है

14. भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने वाले सामाजिक एवं आर्थिक कारक निम्नलिखित हैं
(A) गरीबी
(B) निरक्षरता
(C) बेरोज़गारी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:

15. लोकतंत्रीय परंपराओं को शक्तिशाली बनाने वाले तत्त्व हैं
(A) प्रस्तावना
(B) लोकतांत्रिक विरासत
(C) आर्थिक योजनाएँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

16. भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में वर्तमान में कितनी भाषाओं को मान्यता दी गई है?
(A) 20 भाषाओं को
(B) 22 भाषाओं को
(C) 24 भाषाओं को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) 22 भाषाओं को

17. संपत्ति के अधिकार का वर्तमान स्वरूप कैसा है?
(A) संवैधानिक अधिकार
(B) नैतिक अधिकार
(C) मूल अधिकार
(D) सामाजिक अधिकार
उत्तर:
(A) संवैधानिक अधिकार

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. कौन-से सवैधानिक संशोधन के द्वारा अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि सन् 2030 तक बढ़ाई गई?
उत्तर:
104वें सवैधानिक संशोधन के द्वारा।

2. क्या संसद मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है?
उत्तर:
हाँ, संसद मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है, परंतु संविधान के मूल ढाँचे में परिवर्तन नहीं कर सकती।

3. संपत्ति के अधिकार का वर्तमान स्वरूप संविधान में कैसा है?
उत्तर:
संपत्ति के अधिकार का वर्तमान स्वरूप संविधान में अब एक कानूनी तथा संवैधानिक अधिकार के रूप में है, मूल अधिकार के रूप में नहीं है।

4. संविधान के किस संशोधन को ‘लघु संविधान’ (Mini Constitution) कहकर पुकारा जाता है?
उत्तर:
संविधान में किए गए 42वें संशोधन को ‘लघु संविधान’ कहकर पुकारा जाता है।

5. भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में वर्तमान में कितनी भाषाओं को मान्यता दी गई है?
उत्तर:
22 भाषाओं को वर्तमान में सवैधानिक मान्यता प्राप्त है।

रिक्त स्थान भरें

1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद ………. में संशोधन विधि का उल्लेख किया गया है।
उत्तर:
368

2. भारतीय संविधान में अब तक कुल ……………. संशोधन हो चुके हैं।
उत्तर:
104

3. दिसम्बर, 2019 में भारतीय संविधान में ………….. संवैधानिक संशोधन हुआ।
उत्तर:
एस.सी. एवं एस.टी आरक्षण सम्बन्धी

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 9 संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़

4. भारतीय संविधान अंशतः …………… और अंशतः ……………. है।
उत्तर:
लचीली एवं कठोर

5. भारतीय संविधान में सम्पत्ति का अधिकार एक …………. है।
उत्तर:
साधारण कानूनी अधिकार

6. ……………. मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है।
उत्तर:
संसद

7. भारतीय संविधान में मतदान आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष ………… संवैधानिक संशोधन द्वारा की गई है।
उत्तर:
61वें

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