HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 9 जैव अणु

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 9 जैव अणु Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Solutions Chapter 9 जैव अणु

प्रश्न 1.
वृहत् अणु क्या हैं ? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वृहत् अणु (Macro molecules) – जीवधारियों में पाये जाने वाले पदार्थ जिनके अणुओं का आण्विक भार अत्यधिक होता है, वृहत् अणु कहलाते । जैसे- प्रोटीन्स (proteins), न्यूक्लिक अम्ल ( nucleic acids), पॉलीसैकेराइड (Polysaccharides)। यह छोटी-छोटी एकलक इकाइयों (Monomer के बहुलक (polymers) होते हैं। इनका आण्विक भार दस हजार डाल्टन (dalton ) या इससे भी अधिक होता है।
units)

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प्रश्न 2.
ग्लाइकोसिडिक, पेप्टाइड तथा फास्फोडाइएस्टर बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्लाइकोसिडिक बन्ध (Glycosidic bond ) – शर्कराओं का मुक्त ऐल्डिहाइड या कीटोन समूह किसी अन्य कार्बनिक पदार्थ के हाइड्रॉक्सिल (एल्कोहॉल) समूह से क्रिया कर ग्लाइकोसिडिक बंध बनाता है। पॉलीसैकेराइड बनाने वाले ग्लाइकोसिडिक बन्ध में एक मोनोसैकेराइड अणु का एल्डिहाइड या कीटोन समूह दूसरे मोनोसैकेराइड अणु के ऐल्कोहॉल या हाइड्रॉक्सिल (-OH) समूह से संयोजित होता है तथा जल का एक अणु निकलता है इसलिए अणुओं के इस प्रकार जुड़ने की प्रक्रिया को निर्जलीकरण संघनन संश्लेषण कहते हैं। ग्लाइकोसिडिक बन्ध उत्क्रमणीय ( reversible) होता है अर्थात् इस प्रक्रिया द्वारा जुड़े दोनों अणु पृथक् हो सकते हैं।

पेप्टाइड बन्ध (Peptide bonds) – प्रोटीन्स लम्बी-लम्बी पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं से निर्मित होती है और यह पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ अनेक अमीनो अम्लों के जुड़ने से बनती हैं। बन्ध (bonds) जिनके द्वारा अमीनो अम्ल आपस में जुड़कर पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ बनाते हैं, पेप्टाइड बन्य (peptide bonds) कहलाते हैं। इसमें एक अमीनो अम्ल का कार्बोक्सिलिक समूह ( – COOH) दूसरे अमीनो अम्ल के एमीनोसमूह (-NH2) से पेप्टाइड बन्ध (peptide bond) द्वारा जुड़ा रहता है। बंध बनते समय इसमें जल का एक अणु मुक्त होता है।

फॉस्फोडाइस्टर बंध (Phosphodiester bonds) : अनेक न्यूक्लिओटाइड्स 5’3′ फास्फोडाइएस्टर बंध द्वारा जुड़कर पॉलीन्यूक्लिओटाइड्स का निर्माण करते हैं। यह बंध एक न्यूक्लिओटाइड की पेंटोज शर्करा के 5′ कार्बन तथा अगले न्यूक्लिओटाइड की पेंटोज के 3′ कार्बन परमाणु के बीच बनता है। शर्करा व फॉस्फेट के बीच का बंध एस्टर बंध (ester bond) कहलाता है तथा फास्फेट समूह द्वारा जो शर्कराओं का जुड़ना फास्फोडाइएस्टर बंध कहलाता है। अतः न्यूक्लिक अम्ल की रीढ़ एकान्तरित क्रम में व्यवस्थित फास्फेट व शर्करा अणुओं की बनी होता है।

प्रश्न 3.
प्रोटीन की तृतीयक संरचना से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
प्रोटीन की तृतीयक संरचना (Tertiary Structure of Protein) – तृतीयक संरचना हेतु द्वितीयक संरचना (secondary structure) वाली लहरदार या ∝ – कुण्डलिनी श्रृंखलाओं का पुनः कुण्डलन (coiling) एवं वलन ( Folding ) होता है। यह वलन पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में दूर-दूर स्थित अमीनो अम्लों की पार्श्व शृंखलाओं (R-समूहों) के बीच में तथा पास-पास आने और मुड़ने से बनते हैं। इसके फलस्वरूप अमीनो अम्लों के अध्रुवीय जल विरागी (non-polar hydrophobic) R- समूह प्रोटीन अणु के अन्दर की ओर छुप जाते हैं तथा धुव्रीय जल स्नेही (Polar hydrophilic ) अमीनो (NH2) समूह प्रोटीन की सतह पर आ जाते हैं। प्रोटीन के सक्रिय भाग सतह पर आ जाते हैं। प्रोटीन को क्रियाशील (functional) होने के लिए उसकी त्रिविमीय संरचना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
10 ऐसे रुचिकर सूक्ष्म जैव अणुओं का पता लगाइए जो कम अणु भार वाले होते हैं व इनकी संरचना बनाइए। ऐसे उद्योगों का पता लगाइए जो इन यौगिकों का निर्माण विलगन द्वारा करते हैं ? इनको खरीदने वाले कौन हैं ? मालूम कीजिए ।
उत्तर:
सूक्ष्म जैव अणु (Micromolecules) – जीवधारियों में पाये जाने वाले कर्म अणुभार सरल आण्विक संरचना तथा उच्च विलेयशीलता (solubility) वाले अणुओं के को जैव अणु कहते हैं ।

रुचिकर सूक्ष्म अणु व उन्हें विलगन से अलग करने वाले उद्योग व उपयोगकर्ता
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प्रश्न 5.
प्रोटीन में प्राथमिक संरचना होती है, यदि आपको जानने हेतु ऐसी विधि दी गई है जिसमें प्रोटीन के दोनों किनारों पर एमीनो अम्ल है तो क्या आप इस सूचना को प्रोटीन की शुद्धता अथवा समांगता (homogenecity) से जोड़ सकते हैं।
उत्तर:
प्रोटीन्स लम्बी-लम्बी पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं की बनी होती हैं। अमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़कर पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला बनाते हैं जो प्रोटीन संरचना के प्राथमिक स्तर को प्रदर्शित करते हैं । पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के एक सिरे पर प्रथम अमीनो अम्ल का खुला अमीनो समूह (-NH2) तथा दूसरे सिरे पर अन्तिम अमीनो अम्ल का खुला हुआ कार्बोक्सिलिक समूह (-COOH) होता है। अगर प्रोटीन केवल अमीनो अम्लों की बनी है तब यह शुद्ध व समांगता (homogeneity) प्रदर्शित करती है। अगर प्रोटीन में अमीनो अम्लों के साथ कोई अन्य यौगिक भी जुड़ा है तब यह प्रोटीन की विषमांगता ( heterogenity) प्रदर्शित करेगा ।

प्रश्न 6.
चिकित्सार्थ अभिकर्ता ( Therapeutic agent) के रूप में प्रयोग में आने वाले प्रोटीन का पता लगाइए व सूचीबद्ध कीजिए । प्रोटीन की अन्य उपयोगिताओं को बताइए। (जैसे- सौन्दर्य प्रसाधन आदि) ।
उत्तर:

प्रोटीन प्रकार उदाहरण
चिकित्सार्थ अभिकर्ता (therapeutic agent)

(a) हार्मोन

(b) एंटीबाडी, इम्यूनोग्लोबिन

(c) इण्टरफेरॉन

(d) एंजाइम

खाद्य सम्पूरक प्रोटीन

रक्त का थक्का घोलने वाली प्रोटीन सौन्दर्य प्रसाधन (cosmetics)

इंसुलिन

विभिन्न एंटीबाडी के वैक्सीन इण्टरफेरान विषाणु उपचार से

 

पाचक एंजाइम डायस्टेज पेप्सिन रेनिन (दुग्ध स्कंदक) आदि

एल्ब्यूमिन, स्टेंप्टोकाइनेज

कोलेजन, ग्लाइकोप्रोटीन जोजोक प्रोटीन, सोयराइटस ल्युपीन, पेप्टाइड

प्रश्न 7.
ट्राइग्लिसराइड के संघटन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ट्राइग्लिसराइड (Triglyceride ) – ग्लिसरॉल ( glycerol) का एक अणु वसीय अम्लों के तीन अणुओं से क्रिया करके वसा का एक अणु बनाता है। ग्लिसरॉल एवं वसीय अम्ल अणुओं के बीच बनने वाले सहसंयोजी बन्ध को एस्टर बन्ध (ester bond) कहते हैं। ग्लिसरॉल एक ट्राइहाइड्रिक ऐल्कोहॉल है, जिसकी कार्बन श्रृंखला के तीनों कार्बन परमाणुओं से एक-एक हाइड्रोक्सिल समूह (OH) जुड़ा होता है जो वसीय अम्लों के तीन अणुओं से क्रिया करते हैं। इसलिए वसा अणु को ट्राइग्लिसरॉइड कहते हैं। इस क्रिया में जल का अणु निकलता है इसलिए इसे निर्जलीकरण संघनन संश्लेषण (dehydration-condensation synthesis) कहते हैं। ट्राइग्लिसराइड के तीनों वसीय अम्ल समान या असमान हो सकते हैं।
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प्रश्न 8.
क्या आप प्रोटीन की अवधारणा के आधार पर वर्णन कर सकते हैं कि दूध का दही अथवा योगर्ट में परिवर्तन किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
दूध में कैसीन (casein) नाम की प्रोटीन प्रमुख रूप से पाई जाती है जो दुग्ध प्रोटीन का 82 प्रतिशत भाग बनाती है। शेष 18% घुलनशील वे प्रोटीन (Whey Proteins) या सीरम प्रोटीन कहलाती हैं। कैसीन के चार रूप होते हैं- अल्फा S1, अल्फा S2, बीटा व कप्पा प्रथम तीन रूप छोटी-छोटी मिसेल (micellae) के रूप में पाये जाते हैं जो पानी में बिखरी रहती हैं। इनका आकार -04-03yum तक होता है। पानी में यह समांगी रूप से वितरित रहती हैं। दही बनते समय कम pH के कारण या रेनिन एंजाइम मिलाने पर कप्पा प्रोटीन का जल अपघटन होता है । मिसेल एक साथ जुड़कर अवक्षेप बना देती हैं। अर्थात् प्रोटीन के क्रियात्मक समूहों में बदलाव होते हैं।

प्रश्न 9.
क्या आप व्यापारिक दृष्टि से उपलब्ध परमाणु मॉडल (बॉल व स्टिक नमूना) का प्रयोग करते हुए जैव अणुओं के उन प्रारूपों को बना सकते
उत्तर:
विभिन्न रंगों की बॉल का प्रयोग परमाणुओं को प्रदर्शित करने के लिए तथा स्टिक का प्रयोग बंधों (bonds) को दिखाने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कार्बन परमाणु को काले रंग की बॉल से हाइड्रोजन को लाल रंग की बॉल से, ऑक्सीजन को सफेद व नाइट्रोजन को पीली बॉल से प्रदर्शित कर सकते हैं। विभिन्न बंधों के लिए भी विभिन्न रंगों की स्टिक का प्रयोग किया जा सकता है। स्टिक का प्रयोग दो बॉल (परमाणुओं) को जोड़ने हेतु किया जाता है।

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प्रश्न 10.
ऐमीनो अम्लों को दुर्बल क्षार से अनुमापन (Titrate) कर एमीनो अम्ल में वियोजी क्रियात्मक समूहों का पता लगाने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
ऐमीनो अम्लों का दुर्बल क्षार से अनुमापन करने पर कार्बोक्सिल समूह (-COOH group) तथा ऐमीनो समूह ( NH2 ) पृथक् हो जाते हैं।

प्रश्न 11.
ऐलैनीन एमीनो अम्ल की संरचना बताइए।
उत्तर:
एलैनीन (alanine) ऐमीनो अम्ल एक उदासीन (neutral) ऐमीनो अम्ल है। इसमें एक कार्बोक्सिलिक ( – COOH) तथा एक ऐमीनो (- NH2) समूह होता है।

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प्रश्न 12.
गोंद किससे बने होते हैं ? क्या फैविकॉल इससे भिन्न है ?
उत्तर:
गोंद (Gum ) : यह द्वितीयक उपापचयी उत्पाद (secondary metabolites) है। रासायनिक रूप से यह ग्लाइकुरोनोगैलेक्टन (glycuronogalactons) तथा ग्लुकुरोनोमैनन्स (glucuronoannans) होते हैं। यह जल में विलेय किन्तु कार्बनिक विलायकों में अघुलनशील होता है। यह जल में घुलकर एक चिपचिपा घोल ( sticky Solution) बनाता है।
इसके विपरीत फैविकॉल (fevicol) एक रासायनिक संश्लेषित कृत्रिम उत्पाद है ।

प्रश्न 13.
प्रोटीन, वसा व तेल, एमीनो अम्लों का विश्लेषणात्मक परीक्षण बताइए एवं किसी भी फल के रस, लार, पसीना तथा मूत्र में इनका परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
प्रोटीन टेस्ट (Protein Test) प्रोटीन टेस्ट बाइयूरेट परीक्षण कहलाता है। परखनली में परीक्षण किये जाने वाले पदार्थ (जैसे अण्डा, दाल) के जलीय घोल में बाइयूरेट विलयन डाला जाता है। बाइयूरेट विलयन नीले रंग का घोल है जो प्रोटीन की उपस्थिति में बैंगनी रंग का तथा छोटी श्रृंखला वाले पॉलीपेप्टाइड की उपस्थिति में गुलाबी रंग का हो जाता है। बाइयूरेट अभिकर्मक के कॉपर आयन पेप्टाइड बंध से क्रिया कर रंग में परिवर्तन कर देते हैं। लार, (saliva), पसीना ( sweat) में प्रोटीन उपस्थित होती हैं। मूत्र में प्रोटीन सामान्य तौर पर नहीं पाई जाती हैं। प्रोटीन की उपस्थिति रोग का परिचायक है।

(i) मूत्र में प्रोटीन का परीक्षण ताप स्कंदन परीक्षण (Heat Coagulation Test) विधि द्वारा भी किया जा सकता है। परखनली में 5 mL मूत्र लेकर उसे गर्म किया जाता है। गर्म करने पर इसमें गंदलापन (turbidity) आना प्रोटीन या फास्फेट की उपस्थिति का परिचायक है। अब इसमें 5% एसीटिक अम्ल की कुछ बूंदें डाली जाती हैं। अगर गंदलापन और बढ़ जाता है व स्कंदित हो जाता है तब यह प्रोटीन की उपस्थिति सुनिश्चित करता है। फॉस्फेट की उपस्थिति से हुआ गंदलापन एसीटिक अम्ल से समाप्त हो जाता है।

(ii) मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति सल्फोसेलिसिलिक अम्ल परीक्षण (Sulphosalicylic acid test) द्वारा भी ज्ञात की जा सकती है। इस परीक्षण हेतु मूत्र को सर्वप्रथम एक बूंद ग्लेसियल ऐसिटिक अम्ल द्वारा अम्लीय बनाया जाता है। अब 2-3mL अम्लीय मूत्र में 2-3 बूंद सल्फोसेलिसिलिक अम्ल की डाली जाती हैं। गंदलापन (turbidity) प्रोटीन की उपस्थिति की परिचायक है। अमीनो अम्ल परीक्षण (Amino Acid Test)

(iii) निनहाइड्रिन परीक्षण (Ninhydrin Test) – 4 से 8 pH में सभी अमीनो अम्ल एक शक्तिशाली ऑक्सीकारक निनहाइड्रिन ( ट्राइकीटो हाइड्रिनडीन हाइड्रेट) से क्रिया कर बैंगनी रंग का पदार्थ डाइकीटोहाइड्रिन (diketohydrin ) बनाते हैं। इसे रयूमैन्स परपल (Rhuemann’s purple) कहा जाता है। यही इस परीक्षण का आधार है।
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(iv) एरोमैटिक अमीनो अम्ल (फिनाइलएलेनीन, टायरोसीन, ट्रिप्टोफन), सान्द्र नाइट्रिक अम्ल की उपस्थिति में पीला रंग देते हैं। क्षारीय pH में यह नारंगी रंग का हो जाता है। इसे जैन्योप्रोटीन अम्ल परीक्षण (Xanthoproteic acid test) कहते हैं।

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(v) राइटोसीन जैसे अमीनो अम्ल मिलन्स अभिकर्मक (Millon’s reagent) के साथ क्रिया कर लाल रंग देते हैं।
वसा परीक्षण (Lipid Test) –
प्रीस स्पॉट परीक्षण (Grease Spot Test)
वसा परीक्षण की यह एक सरल विधि है। वसीय पदार्थ बासी कागज (brown paper ) या किसी भी सादा कागज पर एक चिकना पारभासी धब्बा (greasy transluscent spot) बना देते हैं।

सूडान लाल परीक्षण (Sudan Red Test)- एक परखनली में 2 मिली पानी व परीक्षण किये जाने वाले पदार्थ (तेल आदि) की लगभग 2-3mL मात्रा लेकर उसमें 2-3 बूंद सूडान लाल की डाली जाती हैं। मिश्रण को मिलाने पर सूडान लाल, वसीय अणुओं को भी लाल बना देता है। जलीय मिश्रण में इनको अलग परत के रूप में देखा जा सकता है। मूत्र, लार में वसाएँ नहीं होती ।

प्रश्न 14.
पता लगाइए कि जैवमण्डल में सभी पादपों द्वारा कितने सेलुलोस का निर्माण होता है ? इसकी तुलना मनुष्यों द्वारा उत्पादित कागज से कीजिए। मानव द्वारा प्रतिवर्ष पादप पदार्थों की कितनी खपत की जाती है? इसमें वनस्पतियों की कितनी हानि होती है ?
उत्तर:
सेल्यूलोस पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला प्राकृतिक कार्बोहाइड्रेट (पॉलीसेकेराइड) है। कार्बन स्थरीकरण का वैश्विक मान निम्न प्रकार है-

उष्ण कटिबन्धीय वनों व सवाना द्वारा
अन्य स्थलीय पादपों द्वारा
समुद्री पादपों द्वारा

85 x 109 टन प्रति वर्ष
53 x 109 टन प्रति वर्ष
120 x 109 टन प्रति वर्ष

कुल 258,000,000,000 टन कार्बन डाइ ऑक्साइड का स्थिरीकरण प्रतिवर्ष होता है। यह नेट उत्पादन है। कुल उत्पादन कहीं और अधिक होता है क्योंकि लगभग 46% पौधे श्वसन में खर्च कर देते हैं। पौधों में मुख्य पदार्थ सैल्यूलोस ही होता है लकड़ी (wood) में लगभग 50% व कपास ( cotton) में 90% तक सैल्यूलोस होता है। सन् 2011 में कागज का वैश्विक उत्पादन 398975 मीट्रिक टन था। इसमें पल्प शामिल नहीं है।
लकड़ी का एक बड़ा भाग कागज बनाने में खर्च हो जाता है।

प्रश्न 15.
एन्जाइम के महत्वपूर्ण गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एन्जाइम के महत्वपूर्ण गुण निम्नलिखित हैं-
1. क्रियाधार विशिष्टता ( Substrate specificity)- प्रत्येक एन्जाइम केवल एक निश्चित क्रियाधार ( Substrate) या इसके किसी समूह पर ही क्रियाशील होता है। उदाहरणतः यूरियेज (urease) केवल यूरिया (Urea) पर ही क्रियाशील होता है, यह किसी अन्य पदार्थ के साथ क्रिया नहीं करता। एन्जाइम की क्रिया विशिष्टता इसका प्रमुख गुण
है।
2. इष्टतम तापक्रम (Optimum temperature ) – प्रत्येक एन्जाइम प्रायः तापक्रम के एक सीमित परास ( limited range) में कार्य करता है। प्रत्येक एन्जाइम की क्रियाशीलता एक निश्चित तापक्रम पर सर्वाधिक होती है, इसे एन्जाइम का इष्टतम तापक्रम कहते हैं। एन्जाइम प्राय: 25-35° C पर सर्वाधिक क्रियाशील होते हैं। 60°C से अधिक ताप पर ये विकृत हो जाते हैं ताप 0°C ताप पर ये निष्क्रिय हो जाते हैं।

3. इष्टतम pH (Optimum pH ) – प्रत्येक एन्जाइम की क्रियाशीलता एक विशेष pH पर सबसे अधिक होती है। इसे इष्टतम pH कहते हैं। pH की कमी या अधिकता से एन्जाइम की क्रियाशीलता प्रभावित होती है।

4. एन्जाइम क्रियाधार सम्मिश्रण ( Enzyme substrate complex) – प्रत्येक एन्जाइम (E) पर क्रियाधार (S) को बांधने के लिए सक्रिय स्थान ( active sites) होते हैं जहाँ पर क्रियाधार के जुड़ने से एन्जाइम क्रियाधार सम्मिश्रण ( enzyme substrate complex ESC) बनता है। इसके विघटन से एक नया उत्पाद बनता है तथा एन्जाइम अपरिवर्तित रूप में शेष रह जाता है।

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5. क्रियाथार सान्द्रता ( Substrate concentration) – क्रियाधार की सान्द्रता के बढ़ने के साथ-साथ प्रारम्भ में तो एन्जाइम की क्रिया दर भी बढ़ती है। लेकिन ऐसा केवल एक निश्चित सीमा तक ही होता है। एक बिन्दु ऐसा आता है जब क्रियाधार की सान्द्रता में और अधिक वृद्धि का अभिक्रिया की दर पर कोई प्रभाव नहीं होता। ऐसा इसलिए होता है कि एन्जाइम के अणुओं की संख्या क्रियाधर (substrate) के अणुओं की संख्या से कम होती है। ज्यों-ज्यों क्रियाधर (substrate) की सान्द्रता बढ़ाई जाती है त्यों-त्यों एन्जाइम के अणुओं के सक्रिय स्थल भरने लगते हैं। एक अवस्था ऐसी आती है जब माध्यम में उपस्थित सभी एन्जाइम के अणु संतृप्त हो जाते हैं और अधिक क्रियाधारों से जुड़ने के लिए एन्जाइम उपलब्ध नहीं होते और क्रिया की दर घटने लगती है ।

6. एंजाइम क्रिया अवरोधन (Inhibition of enzyme action) – कुछ विशेष पदार्थों की उपस्थिति में एंजाइम क्रिया या तो मंद पड़ जाती है या पूर्णरूप से अवरोधित हो जाती है।
एन्जाइम के अन्य गुण (Other Properties of Enzymes)
(i) एन्जाइम कम मात्रा में प्रयुक्त होते हैं तथा स्वयं नष्ट हुए बिना अभिक्रिया को उत्प्रेरित करते हैं।
(ii) सभी एन्जाइम प्रोटीन के बने होते हैं। (राइबोजाइम को छोड़कर) ।
(iii) इनकी कार्यक्षमता अत्यधिक होती

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