HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 20 गमन एवं संचलन

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 20 गमन एवं संचलन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Solutions Chapter 20 गमन एवं संचलन

प्रश्न 1.
कंकाल पेशी के एक सार्कोमियर का चित्र बनाइए और विभिन्न भागों को चिह्नित कीजिए ।
उत्तर:
रंग के आधार पर पेशी तन्तु दो प्रकार के होते हैं-
(1) श्वेत पेशी तनु (White Muscle Fibres) – इनमें मायोग्लोबिन (myoglobin) अनुपस्थित होता है जो कि पेशियों को लाक्षणिक लाल रंग प्रदान करता है। इन तन्तुओं में माइटोकॉष्ड्रिया (mitochondria) की संख्या कम होती है। इनमें तीव्र संकुचन पाया जाता है जिससे ऑक्सीजन की आवश्यकता बढ़ जाती है और ऑक्सीजन की कमी होने पर इनमें अवायवीय श्वसन होता है जिसके फलस्वरूप लैक्टिक अम्ल बनता है। पेशियों में लैक्टिक अम्ल के संचयन के कारण ही थकान (fatigue) उत्पन्न होती है। उदाहरण-नेत्र गोलक की पेशियाँ।

(2) लाल पेशी तन्तु (Red Muscle Fibre) – ये पेशी तन्तु मायोग्लोबिन की उपस्थिति के कारण लाल रंग के दिखाई देते हैं। इसमें माइटोकॉण्ड्रिया की संख्या अधिक होती है। लाल पेशी तन्तुओं में धीमी गति से संकुचन होते हैं। इन पेशियों में वायवीय श्वसन होता है जिसके कारण इनमें लैक्टिक अम्ल (lactic acid) का संचय नहीं होता है। इसलिए इन पेशी तन्तुओं में थकान नहीं होती है। इन पेशी तन्नुओं में ऑक्सीजन संग्रहित रहती है। इसीलिए अवायवीय श्वसन नहीं होता है।

लाल पेशीय तन्तु (Red muscle fibres) श्वेत पेशीय तन्तु (White muscle fibres)
1. ये पतले, गहरे, लाल रंग के होते हैं। 1. ये मोटे, चौड़े व हल्के रंग के होते हैं।
2. इनमें मायोग्लोबिन अधिक मात्रा में उपस्थित होता है। 2. इनमें मायोग्लोबिन कम मात्रा में पाया जाता है।
3. इनमें माइटोकॉण्डिया अधिक संख्या में होते हैं। 3. इनमें ‘माइटोकॉष्ड्रिया’ कम संख्या में होते हैं।
4. इनमें ऑक्सीश्वसन द्वारा ऊर्जा प्राप्त होती है। 4. इनमें अनॉक्सीश्वसन द्वारा ऊर्जा प्राप्त होती है।
5. इनमें सार्कोप्लाज्मिक जालिका कम होती है। 5. इनमें सार्कोप्लाज्मिक जालिका अधिक होती है।
6. इनमें रुधिर केशिकाएँ अपेक्षाकृत अधिक संख्या में होती हैं। 6. इनमें रुधि केशिकाएँ अपेक्षाकृत कम संख्या में होती हैं।
7. इन पेशी तन्तुओं में थकावट नहीं होती है। 7. ये पेशी तन्तु शीघ्र ही थक जाते हैं।
8. ये लम्बे समय के लिए धीमा रुका हुआ संकुचन करते हैं। 8. ये कम समय के लिए तेज व भारी संकुचन करते हैं।
9. ये धीरे से संकुचित होते हैं एवं धीरे से मूच्छित हो जाते हैं। 9. ये लेक्टिक अम्ल के कारण शीघ्य ही संकुचित हो जाते हैं एवं शीघ्र ही मूर्चित हो जाते हैं।
10. इनमें लेक्टिक अम्ल नहीं जमता है। 10. इनमें लेक्टिक अम्ल जम जाता है।

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प्रश्न 2.
पेशी संकुचन के सप तन्तु सिद्धान्त को परिभाषित कीजिए।
अथवा
कंकाल (रेखित) पेशी के संकुचन की कार्यविधि समझाइए ।
उत्तर:
पेशी संकुचन की क्रियाविधि को समझाने के लिए हक्सले ( Huxley, 1965) ने सर्पी तन्तु सिद्धान्त (sliding filament theory ) प्रस्तुत किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार, पेशीय रेशों का संकुचन पतले तन्तुओं (एक्टिन तन्तुओं) के मोटे तन्तुओं (माइसिन तन्तुओं) के ऊपर विसर्पण (खिसकने) से होता है। रेखित (कंकाल ) पेशी के संकुचन की कार्यविधि (Contraction Mechanism of Striated Muscle) रेखित पेशियाँ तन्त्रिकीय उत्तेजन पर संकुचित होती हैं।

पेशियों में जाने वाले तन्त्रिका तन्तु अपने सिरों पर ऐसिटिलकोलीन (Acetylcholine) नामक पदार्थ स्त्रावित करके संकुचन की प्रेरणाओं को पेशियों में पहुँचाते हैं। प्रत्येक पेशी तन्तु के अन्दर इन प्रेरणाओं को तन्तुओं तक प्रसारित करने का काम सारको प्लाज्मिक जा करता है। हक्सले के पेशी संकुचन सप सिद्धान्त के अनुसार, पेशी संकुचन के समय ‘A’ पट्टियों की लम्बाई तो यथावत् बनी रहती है किन्तु इसके दोनों ओर की ‘T’ पट्टियों के अर्द्धशों की एक्टिन छड़ें मायोसिन छड़ों के कंटकों पर शीघ्रतापूर्वक बनते-बिगड़ते आड़े रासायनिक सेतु बन्धनों की सहायता से साकोंमियर के मध्य की ओर खिसककर ‘M’ रेखा तक पहुँच जाते हैं या इनके सिरे एक-दूसरे पर चढ़ जाते हैं। इस प्रकार पेशीय खण्डों या साकोंमियर्स के छोटे हो जाने से पेशी तन्तु सिकुड़ते हैं।

प्रेरणास्थान से प्रारम्भ होकर पेशी तन्तु में दोनों ओर संकुचन की लहर सी दौड़ जाती है, किन्तु संकुचन एक ही दिशा की ओर होता है, जिस ओर सम्बन्धित पेशी किसी अचल अस्थि से लगी होती है। अधिकतम संकुचन में दोनों ओर की ‘Z’ रेखाएँ ‘A’ पट्टियों की मायोसिन छड़ों को छूने लगती हैं, अर्थात् ‘T’ पट्टियाँ और ‘H’ क्षेत्र अन्तर्धान हो जाते हैं और पेशी तन्तु की लम्बाई घटकर 2/3 रह जाती है। शिथिलन (Relaxation) में एक्टिन तथा मायोसिन छड़ों को जोड़ने वाले सेतु बन्य सब खुल जाते हैं।

अतः प्रत्येक पेशीखण्ड (साकमियर) की सब एक्टिन छड़ें वापस अपनी सामान्य स्थिति में आ जाती हैं और पेशी संकुचन समाप्त हो जाता है। कार्यविधि के लिए ऊर्जा की आपूर्ति पेशी संकुचन के लिए ऊर्जा की आपूर्ति ATP द्वारा होती है। ATP प्राप्ति का स्त्रोत ग्लाइकोजन है। इसके अपचय (या विघटन) के फलस्वरूप ATP का निर्माण होता है। पेशी संकुचन के समय ATP के जल अपघटन से ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

पेशियों में क्रिएटिन फॉस्फेट नामक एक उच्च ऊर्जा यौगिक उपस्थित होता है। यह भी ATP निर्माण में प्रयुक्त होता है। विश्रामावस्था में ATP द्वारा फिर से क्रिएटिन फॉस्फेट बन जाता है। इस प्रकार पेशी में क्रिएटिन फॉस्फेट का भण्डार बना रहता है, जो आवश्यकता पड़ने पर ATP प्रदान कर सकता है।

प्रश्न 3.
पेशी संकुचन के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पेशी संकुचन के प्रमुख चरण (Main Steps of Muscle Contraction)
पेशी संकुचन की क्रियाविधि को सपतन्तु या छड़ विसर्पण सिद्धान्त द्वारा अच्छी तरह समझाया जा सकता है, जिसके अनुसार पेशीय रेशों का संकुचन पतले तन्तुओं के मोटे तन्तुओं के ऊपर सरकने या विसर्पण से होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार पेशी संकुचन चार चरणों में पूरा होता है-
(1) उत्तेजन (Excitation) – यह पेशी संकुचन का प्रथम चरण है। उत्तेजन में तन्त्रिका आवेग के कारण तत्रिकाक्ष के सिरों द्वारा ऐसीटिलकोलीन (एक तन्त्रिका प्रेषी रसायन), तन्त्रिका पेशी सन्धि पर मुक्त होता है। यह ऐसीटिलकोलीन पेशी प्लाज्मा की Na+ के प्रति पारगम्यता को बढ़ावा देता है जिसके फलस्वरूप प्लाज्मा झिल्ली की आन्तरिक सतह पर धनात्मक विभव उत्पन्न हो जाता है। यह विभव पूरी प्लाज्मा झिल्ली पर फैलकर सक्रिय विभव उत्पन्न कर देता है और पेशी कोशिका उत्तेजित हो जाती है।

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(2) उत्तेजन-संकुचन युग्म (Excitation Contraction Coupling) इस चरण में सक्रिय विभव पेशी कोशिका में संकुचन प्रेरित करता है। यह विभव पेशी प्रद्रव्य में तीव्रता से फैलता है और Ca++ मुक्त होकर ट्रोपोनिन-सी से जुड़ जाते हैं और ट्रोपोनिन अणु के संरूपण में परिवर्तन हो जाते हैं। इन परिवर्तनों के कारण एक्टिन के सक्रिय स्थल पर उपस्थित ट्रोपोमायोसिन एवं ट्रोपोनिन दोनों वहाँ से पृथक् हो जाते हैं। मुक्त सक्रिय स्थल पर तुरन्त मायोसिन तन्तु के अनुप्रस्थ सेतु इनसे जुड़ जाते हैं और संकुचन क्रिया प्रारम्भ हो जाती है।

(3) संकुचन (Contraction ) – एक्टिन तन्तु के सक्रिय स्थल से जुड़ने से पूर्व सेतु का सिरा एक ATP से जुड़ जाता है। मायोसिन के सिरे के ATPase एन्जाइम द्वारा ATP ADP तथा Pi में टूट जाते हैं किन्तु मायोसिन के सिर पर ही लगे रहते हैं। इसके उपरान्त मायोसिन का सिर एक्टिन तन्तु के सक्रिय स्थल से जुड़ जाता है। इस बन्धन के कारण मायोसिन के सिर में संरूपण परिवर्तन होते हैं और इसमें झुकाव उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्वरूप एक्टिन तन्तु सार्कोॉमियर के केन्द्र की ओर खींचा जाता है।

इसके लिए ATP के विदलन से प्राप्त ऊर्जा काम आती है और सिर के झुकाव के कारण इससे जुड़ा ADP तथा Pi भी मुक्त हो जाते हैं। इसके मुक्त होते ही नया ATP अणु सिर से जुड़ जाता है। ATP के जुड़ते ही सिर एक्टिन से पृथक् हो जाता है। पुनः ATP का विदलन होता है। मायोसिन सिर नये सक्रिय स्थल पर जुड़ता है तथा पुनः यही क्रिया दोहराई जाती है जिससे एक्टिन तन्तुक खिसकते हैं और संकुचन हो जाता है।

(4) शिथिलन (Relaxation) पेशी उत्तेजन समाप्त होते ही Ca++ पेशी प्रद्रव्यी जालिका में चले जाते हैं। जिससे ट्रोपोनिन सी Ca++ से मुक्त हो जाती है और एक्टिन तन्तुक के सक्रिय स्थल अवरुद्ध हो जाते हैं। पेशी तन्तु अपनी सामान्य स्थिति में आ जाते हैं तथा पेशीय शिथिलन हो जाता है।

प्रश्न 4.
‘सही’ या ‘गलत’ लिखिए-
(क) एक्टिन पतले तन्तु में स्थित होता है।
(ख) रेखित पेशी रेशे का H क्षेत्र मोटे और पतले दोनों तन्तुओं को प्रदर्शित करता है।
(ग) मानव कंकाल में 206 अस्थियाँ होती हैं।
(घ) मनुष्य में 11 जोड़ी पसलियाँ होती हैं।
(च) उरोस्थि शरीर के अधर भाग में स्थित होती हैं।
उत्तर;
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत
(ङ) सही।

प्रश्न 5.
निम्न में अन्तर बताइए-
(क) एक्टिन और मायोसिन
(ख) लाल और श्वेत पेशियाँ
(ग) अंस और श्रोणि मेखला ।
उत्तर:
(क) एक्टिन और मायोसिन में अन्तर

एक्टिन (Actin) मायोसिन (Myosin)
1. एक्टिन तन्तु ‘ P ‘ ‘बैण्ड में पाये जाते हैं और ‘A’ बैण्ड में भी उभरे रहते हैं। 1. मायोसिन तन्तु केवल ‘ A ‘ बैण्ड में पाये जाते हैं।
2. ये मायोसिन तन्तुओं से पतले होते हैं और इनकी संख्या कम होती है। 2. ये तन्तु एक्टिन की अपेक्षा मोटे होते हैं और इनकी संख्या अधिक होती है।
3. प्रत्येक मायोफाइब्रिल में लगभग 300 एक्टिन तन्तु होते हैं। 3. प्रत्येक मायोफाइबिल में लगभग 1500 मायोसिन तन्तु होते हैं।
4. एक्टिन तन्तुओं का एक सिरा ‘ Z ‘ क्षेत्र में धँसा होता है व दूसरा सिरा मुक्त होता है। 4. मायोसिन तन्तुओं के अन्तिम सिरे मुक्त होते हैं।
5. इनकी सतह लगभग सपाट होती है। 5. इनकी सतह केन्द्रीय ‘ M ‘ धारा को छोड़कर अन्य में उभार रखती है।
6. एक्टिन अणु गोलाकार होते हैं। 6. मायोसिन अणु घुण्डीनुमा एवं तन्तुमय होते हैं।
7. इसका अणुभार लगभग 42,000 डाल्टन होता है। 7. इनका अणुभार लगभग 4,80,000 डाल्टन होता है।
8. पेशी संकुचन के समय एक्टिन तन्तु मायोसिन तन्तुओं पर फिसलते हैं। 8. पेशी संकुचन के समय मायोसिन तन्तु स्थिर बना रहता है।
9. सेत बन्यन (cross bridge) अनुपस्थित होता है। 9. सेतु बन्यन (cross bridge) उपस्थित होते हैं।

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(ख) लाल और श्वेत पेशियों में अन्तर

लाल पेशीय तन्तु (Red muscle fibres) श्वेत पेशीय तन्तु (White muscle fibres)
1. ये पतले, गहर, लाल रंग के होते हैं। 1. ये मोटे, चौड़े व हल्के रंग के होते हैं।
2. इनमें मायोग्लोधिन अधिक मात्रा में उपस्थित होता है। 2. इनमें मायोग्लोजिन कम मात्रा में पाया जाता है।
3. इनमें माइटोकॉण्ड्रिया अधिक संख्या में होते हैं। 3. इनमें ‘माइटोकॉष्ड्रिया’ कम संख्या में होते हैं।
4. इनमें ऑक्सीश्वसन द्वारा ऊर्जा प्राप्त होती है। 4. इनमें अनॉक्सीश्वसन द्वारा ऊर्जा प्राप्त होती है।
5. इनमें सार्कोप्लाज्यिक जासिका कम होती है। 5. इनमें सार्कोप्लाजिक्यिक जालिका अधिक होती है।
6. इनमें रुधिर केशिकाएँ अपेक्षाकृत अधिक संख्या में होती हैं। 6. इनमें रुधिर केशिकाएँ अपेक्षाकृत कम संख्या में होती हैं।
7. इन पेशी तन्तुओं में थकावट नहीं होती है। 7. ये पेशी तन्तु शीघ्र ही थक जाते हैं।
8. ये लम्बे समय के लिए धीमा रुका हुआ संकुचन करते हैं। 8. ये कम समय के लिए तेज व भारी संकुचन करते हैं।
9. ये धीरे से संकुचित होते हैं एवं धीरे से मूच्चित हो जाते हैं। 9. ये लेक्टिक अम्ल के कारण शीष्र ही संकुचित हो जाते हैं एवं शीघ्र ही मूच्चित हो जाते हैं।
10. इनमें लेक्टिक अम्ल नहीं जमता है। 10. इनमें लेक्टिक अम्ल जम जाता है।

(ग) अंसमेखला तथा श्रोणि मेखला में अन्तर

अंसमेखला (Pectoral girdle) श्रोणि मेखला (Pelvic girdle)
1. यह कंधे के क्षेत्र में होती है। 1. यह कूल्हे के क्षेत्र में होती है।
2. इसके दो पृथक अर्द्धांश होते हैं। 2. इसके दो समेकित अर्द्धांश होते हैं।
3. इसके प्रत्येक अर्द्धाश में स्कैपुला एवं क्सैविकल अस्थियाँ होती हैं। 3. इसके प्रत्येक अर्द्धांश में इलियम, इश्चियम और प्यूविस अस्थियाँ होती हैं।
4. चपटे स्कैपुला में ग्लीनॉइड गुहा होती है। इसमें अग्रपाद की ब्यूमरस अस्थि का शीर्ष धँसा होता है। 4. उपर्युक्त अस्थियों के सन्धि तल पर ऐसीटाबुलम गुहा होती है। इसमें पश्चपाद की फीमर अस्थि का शीर्ष धँसा रहता है।
5. प्रत्येक क्लैविकल को सामान्यत: जहुक (कॉलर बोन) कहते हैं। 5. श्रोणि मेखला के दोनों अर्द्धांश मिलकर प्यूबिक सिम्फाइसिस बनाते हैं।

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प्रश्न 6
स्तम्भ 1 का स्तम्भ II से मिलान कीजिए-

स्तम्भ I स्तस्भ II
(i) चिकनी पेशी (क) मायोग्लोबिन
(ii) ट्रोपोमायोसिन (ख) पतले तन्तु
(iii) लाल पेशी (ग) सीवन
(iv) कपाल (घ) अनैच्चिक

उत्तर:
स्तम्भ I एवं स्तम्भ II का मिलान निम्न प्रकार है-

स्तम्भ I स्तम्भ II
(i) चिकनी पेशी (घ) अनैच्छिक
(ii) ट्रोपोमायोसिन (ख) पतले तन्तु
(iii) लाल पेशी (क) मायोग्लोबिन
(iv) कपाल (ग) सीवन

प्रश्न 7.
मानव शरीर की कोशिकाओं द्वारा प्रदर्शित विभिन्न गतियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
मानव शरीर की कोशिकाओं की विभिन्न गतियाँ
मानव शरीर की कोशिकाओं की गतियाँ निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं-
(1) अमीबीय गति (Amoeboid movement ) – मानव शरीर में मिलने वाली श्वेत रुधिराणु (WBCs) एवं महाभक्षकाणु (macrophages) रुधिर में अमीबीय गति प्रदर्शित करती हैं। यह क्रिया जीवद्रव्य की प्रवाही गति द्वारा कूटपाद बनाकर की जाती है।

(2) पक्ष्माभी गति (Ciliary movement) मानव में शुक्रवाहिनियों, अण्डवाहिनियों, श्वास नाल में पक्ष्माभ उपस्थित होते हैं। इनकी गति से शुक्रवाहिनियों में शुक्राणु एवं अण्डवाहिनियों में अण्डाणु का परिवहन होता है। श्वास नाल में पक्ष्माभ ( cilia) श्लेष्मा (mucus) को बाहर की ओर कर देते हैं, जिससे धूल कणों व बाह्य पदार्थों को हटाने में सहायता मिलती है।

(3) पेशीय गति (Muscular movement ) – हमारे अग्र एवं पश्च पादों, जबड़ों, जीभ, नेत्र पेशियों, आहारनाल, हृदय आदि में पेशीय गति होती है। पेशीय गति में कंकाल, पेशियाँ तथा तन्त्रिकाएँ भाग लेती हैं।

  • नेत्रगोलक (Eye ball) – नेत्रकोटर में नेत्रगोलक अरेखित पेशियों द्वारा गति करता है। उपतारा (आइरिस) तथा रोमाभिकाय (सीलियरी बॉडी) पेशियाँ नेत्र में जाने वाले प्रकाश की मात्रा का नियमन करती हैं।
  • हृदय की हदपेशियाँ (Cardiac muscles) – रुधिर वाहिनियों की अरेखित पेशियाँ रुधिर परिसंचरण में सहायक होती हैं।
  • आहारनाल की पेशियों में क्रमाकुंचन गतियों के कारण भोजन आगे की ओर खिसकता है एवं भोजन की लुग्दी ( chyme) बनती है।
  • डायाफ्राम एवं पसलियों के बीच स्थित अरेखित पेशियों के संकुचन और अनुशिथिलन के द्वारा श्वास क्रिया सम्पन्न होती है।
  • कंकालीय पेशियाँ अस्थियों से जुड़ी होती हैं ये प्रचलन एवं अंगों की गति से सीधे ही सम्बन्धित होती हैं। प्रचलन एवं गति इन कंकाल पेशियों या रेखित पेशियों के संकुचन एवं अनुशिथिलन के कारण होती हैं।

प्रश्न 8.
आप किस प्रकार से एक कंकाल पेशी और हद पेशी में विभेद करेंगे ?
उत्तर:
कंकाल पेशी और हृद् पेशी में अन्तर

कंकाल पेशी/रेखित पेशियाँ (Skeletal or striped muscles) हद्द् पेशियाँ (Cardiac muscles)
1. ये पेशियाँ ऐच्छिक होती हैं। 1. ये पेशियाँ अनैच्छिक होती हैं।
2. इसकी कोशिकाएँ अशाखित एवं बेलनाकार होती हैं। 2. इसके पेशी तन्तु शाखित होते हैं और शाखाएँ आपस में एक-दूसरे से मिलकर जाल बनाती हैं।
3. पेशी तन्तु चारों ओर से पेशी चोल (sarcolemma) नामक झिल्ली से स्तरित होता है। 3. पेशीचोल (sarcolemma) स्पष्ट नहीं होता है।
4. प्रत्येक पेशी तन्तु में अनेक केन्द्रक स्थित होते हैं। 4 प्रत्येक पेशी तन्तु में प्रायः एक केन्द्रक होता है।
5. इनमें गहरी व हल्की पट्टियाँ एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होती हैं। 5. इनमें अनुप्रस्थ पट्टियाँ होती हैं।
6. ये अस्थियों से जुड़ी रहती हैं, अतः इन्हें कंकाल पेशी कहते हैं। 6. ये केवल हृदय की भित्तियों में मिलती हैं।
7. ये जन्तु की इच्छा से सिकुड़ती व फैलती हैं, अतः ये ऐच्छिक होती हैं। 7. ये निश्चित क्रम में स्वतः फैलती एवं सिकुड़ती हैं और इच्छा पर निर्भर नहीं करतीं, अतः अनैच्छिक होती हैं।
8. क्रियाशीलता रहने पर इनमें थकान का अनुभव होता है, अतः आराम आवश्यक है। 8. ये जीवनपर्यन्त निरन्तर कार्य करती हैं, फिर भी थकान का अनुभव नही होता है।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित जोड़ों के प्रकार बताइए-
(क) एटलस / अक्ष (एक्सिस)
(ख) अंगूठे के कार्पल / मेटाकार्पल
(ग) फैलेंजेज के बीच
(घ) फीमर / ऐसीटाबुलम
(च) कपालीय अस्थियों के बीच
(छ) श्रोणिमेखला की प्यूबिक अस्थियों के बीच ।
उत्तर:
(क) उपास्थीय जोड़ (सन्धि)
(ख) सैडल जोड़ (सन्धि)
(ग) कब्जेदार सन्धि
(घ) कंदुक खल्लिका सन्धि
(च) अचल सन्धि
(छ) अपूर्ण सन्धि ।

प्रश्न 10.
रिक्त स्थानों को उचित शब्दों से भरिए-
(क) कुछ स्तनधारियों में (कुछ को छोड़कर) …………………… प्रीवा कशेरुक होते हैं।
(ख) प्रत्येक मानव पाद में फैलेंजेज की संख्या ………………………… है।
(ग) मायोफाइब्रिल के पतले तन्तुओं में 2 ‘F’ एक्टिन और दो अन्य दूसरे प्रोटीन, जैसे …………………… और …………… होते हैं।
(घ) पेशी रेशे में कैल्सियम ………………….. में भण्डारित रहता है।
(च) ………………… और …………………. पसलियों की जोड़ियों को प्लावी पसलियाँ कहते हैं।
(छ) मनुष्य का कपाल ……………………… अस्थियों का बना होता है।
उत्तर:
उपर्युक्त रिक्त स्थानों में निम्नलिखित शब्द भरे जायेंगे-
(क) सात,
(ख) चौदह, होती
(ग) ट्रोपोनिन, ट्रोपोमायोसिन,
(घ) सार्कोप्लाज्मिक जालक
(च) 11वीं, 12वीं
(छ) आठ ।

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