HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 15 पादप वृद्धि एवं परिवर्धन

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Solutions Chapter 15 पादप वृद्धि एवं परिवर्धन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Solutions Chapter 15 पादप वृद्धि एवं परिवर्धन

प्रश्न 1.
वद्धि विकेदन परिवर्षन निरिमेबन्न पुन्जिकेष्न सीमित वद्धि मेरिसेम तथा वदि दर की परिभापा लिखिए।
उत्तर:
निद्ध (Growth) – पौधों में उनकी उपापचयी क्रियाओं के परिणामस्वरूप होने वाले धनातक परिवर्तन हैं जिनमें पौधे के शुष्क भार एवं आमाप में बढ़ोत्तरी होती है। ये परिवर्तन अनुक्रमणीय होते हैं। इनें इदि (growth) कहते हैं। बढ़ोत्तरी होती है। ये परिवर्तन अनुक्रमणीय होते है। इहें शबि (growth) कहते हैं।

विशेक्ष (Differeatiation) – मूलशीर्ष या परोछरीर्ष (root apex or shoot apex) पर स्थित अमस्थ विभज्दोतक या एधा (cambium) कोशिकाओं से बनने वाली केशिकाएँ विधिन्न कायों के लिए विशिहीकृत्व हो बाती है। इस क्रिया को विषेक्न कहते हैं।

परिवर्षन (Development) – बीज के अंकुजण से लेकर मृत्प ठक होने वाले समस्त परिवर्वन बिसके फलस्वरूप पौछे के जटिल शरीर का गठन होता है, जिसमें पौषे के विभिन्न भाग जैसे-जड़, वना, पतिरों अदि बनवे है, परिखर्षन कहलाता है। परिवर्षन के दो समूह है-वृंदि तथा विषेदन।

निंकिष्द्न (Dedifferentiation) – कोशिकाओं में विभेदीकरण होने के पश्वात् कुछ स्वाई् कोशिकार्ष पुनः विभाजन योग्य हो जाती हैं, इस क्रिया को निधिमेद्न कहते हैं।

पुर्नांधिकेदन (Redifferentiation) – निर्विभेदित कोशिकाओं या ऊतको से बनी कोशिकाएँ अपनी विभाजन क्षमता पुनः खो देती हैं और विशिष कार्य करने के लिए रुपान्तरित हो जाती हैं। इस प्रक्रिया को पुनविभैद्न कहते हैं।

सींिि कद्धि (Determinating Growh) – यह पौधों में वृद्धि का खुला लूप होता है। यह पौषे के विभिन्न भागों में पायी जाती है। इसमें विभज्योतक से उत्पन्न कोशिकाएँ पादप शरीर का गठन करती है, उसे सीकित शब्बि कहते हैं।

मेंस्टेम (Meristem) – मूल तथा प्ररोह के शीर्ष पर स्थित कोशिकाओं के वे समूह जिनमें विभाबन करने की क्षमता होती है मेसिस्टेम कहलाते हैं। इनसे स्थाई, अन्त्रार्विट्ट हरा पार्श्व क्तकों (Permanent, intercallary and lateral tissucs) का निर्माण होता है।

वृद्धि दर (Growth rate) – प्रति इकाई समय में पौर्षो में हुई वृद्धि को उसकी दृद्धि दर कछते हैं। वृद्धि दर को गचितीय डंग से व्यक्त किया जाता है।

प्रश्न 2.
पुद्मित पौधों के जीवन में किसी एक प्राचालिक (Parameter) से ृद्धि को क्षणित नही किया जा सकता है क्यों ?
उत्तर:
वृद्धि के प्राचालिक (Parameter of Growth):
वृद्धि सभी पौरो की एक विशोषता है। पौर्षों में बृद्धि कोशिका विभाजन, कोशिका विवर्षन या दीर्षीकरण तथा कोशिका विभेदन के फलस्वरूप होती है। पौधे की प्राविभाजी कोशिकाओं (meristematic cells) में कोजिका विभाजन की धमता पायी जाती है। सामान्यतया कोशिका विभाजन जड़ तक्षा तने के शीर्ष (apex) पर होते हैं। इसके फलस्वरूप बड़ तथा तने की लम्बाई में वृद्धि होती है। एथा (cambium) वथा कार्क ए्या (cork cambium) के कारण तने और जड़ की मोटाई में वृद्धि होती है। इसे हिजीक्ड वब्षि (secondary growth) कहते हैं। कोशिकीय स्तर पर वृद्धि मुख्यतः जीक्दक्य मात्रा में वर्धन का परिजाम है।

जीवद्रव्य (protoplasm) की वृद्धि की माप कठिन कार्य है। वृद्धि दर का आकलन ताजे भाए में वृद्धि, शुर्क भार में वृद्धि, सम्बाई, मोटाई, क्षेत्रफल, आयतन तषा कोशिकाईं की संख्या के आधार पर किया जा सक्ता है। मक्का की मूल का अमस्य विभज्दोतकृ (apical meristem) प्रति हर्टे लगभग 17,500 कोशिकाओं का निर्माण करता है। तरबूज की केशिकाओं के आकार में लगभग 3,50,000 गुना वृद्धि हो सकती है। पराग नलिका (pollen tube) की लम्बाई में वृद्धि होने से यह वर्तिकाम (stigma), वर्तिका (style) से होती हुई अण्डाशय (ovary) में स्थित बीजाप्ड (ovule) तक प्रवेश करती है।

प्रश्न 3.
चिच्न का सीक्षिप्त वर्णन कीजिए –
(अ) अंकणणितीय वृद्धि
(घ) ज्वामितीय विद्धि
(स) सिम्माइड वृद्धि कात
(द) सन्पूर्ण एवं सापेबा शृद्धि दर
उत्तर:
वृद्धि दर एवं वृद्धिं वक्क (Growth Rate and Growth curve):
समय की प्रति इकाई के दौरान बढ़ी हुई वृद्धि को वृद्धि दर (growth rate) कहा जाता है। वृद्धि दर को विभिन्न रूपों में प्रदर्शित किया जाता है। जैसे-अंकगणितीय वृद्धि, ज्यामितीय वृद्धि, सिग्माइड वृद्धि तथा सम्पूर्ण एवं सापेक्ष वृद्धि दर।
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(अ) अकगणितीय वृद्धि (Arithmetic Growth):
यह वृद्धि का वह प्रकार है जिसमें आरम्भ से ही एक स्थिर दर से वृद्धि होती है। समसूत्री विभाजन (mitosis) के पश्चात् बनने वाली दो संतति कोशिकाओं में से केवल एक कोशिका निरन्तर विभाजित होती रहती है और दूसरी कोशिका विभेदित एवं परिपक्व होती रहती है। अंकगणितीय वृद्धि को हम निश्चित दर पर वृद्धि करती जड़ में देख सकते हैं। यह एक सरलतम अभिव्यक्ति होती है। यदि इस वृद्धि का प्राफ पर आकलन किया जाए तो हमें एक सीधी रेखा प्राप्त होती है। इस वृद्धि को हम गणितीय रूप से व्यक्त कर सकते हैं –
Lt = L0 + rt

(यहाँ Lt = समय t पर लम्बाई,
L0 = समय शून्य पर लम्बाई, r = वृद्धि दर)

उसमितीय वृद्धि (Geometrical Growth):
किसी एक कोशिका, पौधे के एक अंग अथवा पूर्ण पौधे की वृद्धि सदैव एकसमान नहीं होती है अर्थात् बदलती रहती है। प्रारम्भिक अवस्था में वृद्धि धीमी होती है जिसे प्रारम्भिक धीमा वृद्धि काल (initial lag phase) कहते हैं। इसके पश्चात् वद्धि तीव्रतम होकर उच्चतम बिन्दु पर पहुँच जाती है जिसे मध्य तीव्र वृद्धि काल (middle logarithmic phase) कहते हैं। इसके पश्चात् वृद्धि पुन: धीमी होती है और अन्त में स्थिर हो जाती है। इसे अन्तिम धीमा वृद्धि काल (last stationary phase) कहते हैं।

इसे सामूहिक रूप से ज्यामितीय वृद्धि (geometrical growth) कहते हैं। इसमें सूत्री विभाजन (mitosis) से बनी दोनों संतति कोशिकाओं में पुन: विभाजन होता है और इनसे बनी कोशिकाएँ मातृ कोशिकाओं का अनुसरण करती हैं। यद्यपि सीमित पोषण आपूर्ति के साथ वृद्धि दर धीमी होकर स्थिर हो जाती है। समय के प्रति वृद्धि दर को ग्राफ पर अंकित करने पर एक सिग्मॉइड वाक्ष (Sigmoid curve) प्राप्त होता है। यह ‘ $S$ ‘ की आकृति का होता है। ज्यामितीय वृद्धि को गणितीय रूप से निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं –
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wt = w0ert
जहाँ ( w1= अन्तिम आकार, भार, ऊँचाई, संख्या आदि, w0 = प्रारम्भिक आकार वृद्धि के प्रारम्भ में, r = वृद्धि दर, t = समय, e = स्वाभाविक लघुगणक का आधार)। r एक सापेक्ष वृद्धि दर है। यह पौधे द्वारा नई पादप साममी भी निर्माण क्षमता को मापने के लिए है, जिसे एक दक्षता सूछकांक (efficiency index) के रूप में सन्दर्भित किया जाता है, अतः w1 का अन्तिम आकार w0 के प्रारम्भिक आकार पर निर्भर करता है।

(स) सिगॉईड वृद्धि क्s (Sigmoid Growth Curve):
ज्यामितीय वृद्धि को तीन प्रावस्थाओं में बाँटा जा सकता है-
(i) प्रारम्मिक धीमा वृद्धि काल (initial lag phase),
(ii) मध्य तीव्र वृद्धि काल (middle lag phase),
(iii) अन्तिम धीमा वृद्धि काल (last stationary phase)।
यदि समय के सापेक्ष वृद्धि दर का प्राफ खीचा जाय तो ‘S’ की आकृति का वक्क प्राप्त होता है। इसे सिग्मॉइ (sigmoid curve) वक्र कहते हैं।
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एक सिग्मॉइड वक्र में निम्न चार चरण होते है –
(1) पश्चान्त प्रावस्था (Lag phase) – इस प्रावस्था में कोशिका में आन्तरिक परिवर्तन होते हैं, संचित खाद्य पदार्थ के काम आने से इसके शुष्क भार में कमी आती है और वृद्धि बहुत धीमी गति से होती है। इसे मंद वृद्धि काल कहते हैं।
(2) पश्च प्राबस्था (Log phase)- इस प्रावस्था में वृद्धि दर एक साथ तीव्र होती है। इसे ग्राफ में सीधी रेखा से दर्शाया गया है। इसे समग्र वृद्धि काल भी कहते हैं। इसे अधिकतम वृद्धि काल कहते हैं।
(3) घटती प्राकस्था (Decline phase) – इस प्रावस्था में वृद्धि दर क्रमशः कम होने लगती है। इसे न्यून वृद्धि काल कहते हैं।
(4) स्याई प्रावस्था (Steady phase)-इस प्रावस्था में कोशिका के पूर्ण परिपक्व हो जाने से वृद्धि लगभग स्थिर हो जाती है। इसे स्थिर वृद्धि काल कहते हैं।
(द) सम्पूर्ण एवं सापेक वृद्धि दर (Absolute and Relative Growth Rate)
(i) प्रति इकाई समय और मापन में कुल वृद्धि को सम्पूर्ण या परमवृद्धि दर (absolute growth rate) कहते हैं।
(ii) किसी दी गई प्रणाली की प्रति इकाई समय में वृद्धि को सामान्य आधार पर प्रदर्शित करना सापेक्ष वृद्दि दर (relative growth rate) कहलाता है। सम्मुख चित्र में दोनों पत्तियों ने एक निश्चित समय में अपने सम्पूर्ण क्षेत्रफल में समान वृद्धि की है, फिर भी A की सापेक्ष वृद्धि दर अधिक है।
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प्रश्न 4.
प्राकृतिक पाद्य वृद्धि नियामकों के पाँच पुख्य समूक्तों के बारे में लिखिए। इकके आविष्धार, कारिकी प्रभाव तथा कृषि/बागवानी में इनके प्रयोग के बोरे में लिखिए।
उत्तर:
पादप वद्धि नियामक (Plant Growth Regulators):
प्राकृतिक पादप वृद्धि नियामक विशेष प्रकार के कार्ििक यौगिक छोते हैं, जो मुख्य रूप से विकग्योतकों (Meristems) तथा विकासशील पतियों एवं प्रालो में उत्तन्न छोते हैं। इनकी अतिसूक्स माश्रा पौधों के विभिन्न भागों में पुँचकर उनकी विभिन्न उपापषयी क्रियाओं (metabolic processes) को प्रभावित एवं नियन्त्रि करती है। इन्ठं पादी जोंमोंस्स (plant hormones or phytohormones) मी कहोत हैं। अनेक कृत्रिम कार्षनिक योगिक भी पादप हॉर्मोंस्स की तरह कार्य करते हैं। वेन्ट (Went; 1928) के अनुसार वृध्धि नियामक पदार्थों के अभाव में वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव होता है।

पादप हॉर्मोंस्स को निम्नलिखित पाँच समूोों में बाँटा जा सकता है –
(1) ऑक्सिन्स (Auxins)
(2) जिबरेलिन्स (Gibberellins)
(3) साइटोकाइनिन्स (Cytokinins)
(4) ऐस्सिसिक अम्ल (Abscisic acid)
(5) एथिलीन (Ethylene)।

प्रश्न 5.
दीपिकालिता तथा वसंतीकरण क्या हैं ? इनके मंध्राप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दीप्तिकालिता (Photoperiodism):
पौधों के फलने-फूलने, वृद्धि, पुष्पन आदि पर प्रकाश की अवधि (Duration of light = photoperiod) का प्रभाव पड़ता है। पौधों द्वारा प्रकाश की अवधि तथा समय के प्रति अनुक्रिया को दीजिकालिता (photoperiodism) कहते हैं। दूसरे शब्दों में दिन व रात के परिवर्तनों के प्रति पौधों की कार्यात्मक अनुक्रियाएँ दीजिकालिता (photoperiodism) कहलाती हैं।

दीप्तिकालिता शब्द का प्रयोग गार्नर तथा एलाई्ड (Garner and Allard, 1920) ने किया। दीप्तिकालिता के आधार पर पौधों को निम्न तीन समूहों में बाँटा जा सकता है –
(i) अल्प प्रदीफिकाली पौधे (Short day plant = SDP)
(ii) दीर्घ प्रदीधिकाली पौधे (Long day plant = LDP)
(iii) दिकस निरपेक्ष पौधे (Day neutral plant = DNP)

अल्प प्रदीप्तिकाली पौधों को मिलने वाली प्रकाश अवधि को कम करके और दीर्ष प्रदीप्तिकाली पौधों को अतिरिक्त प्रकाश अवधि प्रदान करके शीष्ष पुष्पन कराया जा सकता है। कायिक शीर्षस्थ या कक्षस्य कलिका उपयुक्त प्रकाश अवधि प्राप्त होने पर ही पुष्प कलिका में रूपान्तरित होती है। यह परिवर्तन फ्लोरिजन हॉर्मोन (florigen hormone) के कारण होता है। दिन-रात्रि के अन्तराल के कारण संश्लेषित होता है।

वसन्तीकरण (Vernalization):
कम तापमान द्वारा पुष्पन को त्वरित (accelerate) करने की प्रक्रिया को वसन्तीकरण (vernalization) कहते हैं। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टी. की. लायसेन्को (T. D. Lysenko) ने 1928 में किया। कोआई (Chaurd; 1960) के अनुसार, “द्रुतशीतन उपचार (Chilling treatment) द्वारा पुष्पन की योग्यता के उपार्जन को वसन्तीकरण (vernalization) कहते हैं।”

गेहूँ की शीतकालीन प्रजाति को वसन्त ॠतु में बोने योग्य बनाने के लिए इसके भीगे बीजों को 10-12 दिन तक 3C ताप पर रखते हैं और इनें बसन्त ॠतु में बोये जाने वाले गेहूँ के साथ ही बोया व काटा जा सकता है। ऐसे पौधों में कायिक वृद्धि कम होती है। कम ताप उपचार से पौधों की कायिक अवधि कम हो जाती है। अनेक द्विवर्षी पौधों (Biennial plants) को कम तापक्रम में अनावृत कर दिये जाने से पौधों में दीप्तिकालिता के कारण पुष्पन की अनुक्रिया बढ़ जाती है। वसन्तीकरण (vernalization) के फलस्वरूप द्विवर्षी पौधों में प्रथम वृद्धि काल में ही पुष्पन किया जा सकता है। पौधों में शीत के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ जाती है। वसन्तीकरण (vernalization) द्वारा पौधों को प्राकृतिक कुप्रभावों जैसे-पाला, कुहरा आदि से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 6.
ऐब्सिसिक अम्ल को तनाव हॉर्मोंन कहते हैं, क्यों ?
उत्तर:
ऐब्सिसिक अम्ल (abscisic acid) पत्तियों की बाह्य त्वचा में स्थित रन्ध्रों के बन्द होने को प्रेरित करता है, जिससे वाष्पोत्सर्जन कम हो जाता है । यह पौधों को प्रतिकूल परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार के तनावों (stress) को सहन करने की क्षमता प्रदान करता है। इसलिये इसे तनाव हॉर्मोन (stress hormone) कहते हैं।

प्रश्न 7.
उच्च पादपों में वृद्धि एवं विभेदन खुला होता है। टिमपणी लिखिए।
उत्तर:
पौधों में वृद्धि एवं विभेदन उन्मुक्त होता है। विभज्योतकों (meristems) से निर्मित कोशिकाएँ या ऊतक परिपक्व होने पर विभिन्न रचनाएँ बनती हैं। कोशिका या ऊतक की परिपक्वता के समय अन्तिम संरचना कोशिका के आन्तरिक स्थान पर भी निर्भर करती हैं, जैसे-मूल शीर्ष पर स्थित विभज्योतक (apical meristem) से मूलगोप कोशिकाएँ (rootcap cells) परिधि की ओर मूलीय त्वचा (epiblema) के रूप में विभेदित होती हैं। इसी प्रकार कुछ कोशिकाएँ जाइलम, फ्लोएम, अन्तस्वचा (endodermis), परिरम्भ (pericycle), वल्कुट (cortex), पिथ (pith) आदि के रूप में विभेदित होती हैं। इस प्रकार विभज्योतक (meristem) की क्रियात्मकता से पौधे की विभिन्न कोशिकाओं, उतकों एवं अंगों का निर्माण होता है। इसे वृद्धि का खुला स्वरूप कहते हैं।

प्रश्न 8.
अल्प प्रदीप्तिकाली पौधे और दीर्घ प्रदीजिकाली पौधे किसी एक स्थान पर साथ-साथ फूलते हैं। विस्तित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अल्प प्रदीजिकाली पौधों (SDP) में निर्णायक दीप्तिकाल प्रकाश की वह अवधि है जिस पर या इससे कम प्रकाश अवधि पर पौधे पुष्पन (flowering) करते हैं, परन्तु उससे अधिक प्रकाश अवधि में पौधा पुष्प उत्पन्न नहीं कर सकता। दीर्घ प्रदीप्तिकाली पौधों (LDP) में निर्णायक दीप्तिकाल प्रकाश (critical photoperiod) की वह अवधि है जिससे अधिक प्रकाश अवधि पर पौधे पुष्प उत्पन्न करते हैं, परन्तु उससे कम प्रकाश अवधि में पुष्पन नहीं करते। इससे स्पष्ट है कि SDP और LDP में विभेदन उनमें निर्णायक दीप्तिकाल से कम अवधि पर पुष्पन होना अथवा अधिक अवधि पर पुष्पन होने के आधार पर किया जाता है।

दो भिन्न जातियों के पौधे समान अवधि के प्रकाश में पुष्पन करते हैं, परन्तु इनमें से एक LDP तथा दूसरा SDP हो सकता है। उदाहरणतः औैन्थियम (Xanthium) का निर्णायक दीप्तिकाल \(15 \frac{1}{2}\) घण्टे, जबकि छायोसाइमस नाइणर (Hyoscyanus niger) का निर्णायक दीप्तिकाल 11 घण्टे है। दोनों पौधों को यदि 14 घण्टे प्रकाश अवधि दी जाय तो इन दोनों में पुष्मन हो सकता है। इस आधार पर जैन्थियम SDP है क्योंकि यह निर्णायक दीप्तिकाल से कम प्रकाशीय अवधि में पुष्पन करता है तथा हायोसाइमस LDP है, क्योंकि यह निर्णायक दीप्तिकाल से अधिक प्रकाश अवधि में पुष्पन करता है।

प्रश्न 9.
अगर आपको निम्नलिखित करने को का़ जाए तो एक पादप वृद्धि नियामक का नाम दीजिए-
(क) किसी टहनी में जड़ पैदा करने हेतु,
(ख) फल को जल्दी पकाने हेतु,
(ग) पतियों की जरावस्था को रोकने हेतु,
(घ) कक्षस्थ कलिकाओं में वृद्धि कराने हैंतु,
(ङ) एक रोजेट पौधे में ‘वोल्ट’ हेतु,
(च) पत्तियों के रन्ध्र को तुरन्त बन्द करने हेतु।
उत्तर:
(क) ऑक्सिन (Auxin)
(ख) एथिलीन (Ethylene)
(ग) सायटोकाइनिन (Cytokinin)
(घ) जिब्बरेलिन (Gibberellins)
(ङ) ऐब्सिसिक अम्ल (Abscisic Acid) ।

प्रश्न 10.
क्या एक पर्णकरित पद्पप दीजिकालिता के चक्क से अनुक्रिया कर सकता है ? यदि हौँ या नहीं तो क्यों ?
उत्तर:
पर्णहरित (chlorophyll) पादप दीप्तिकालिता (photoperiodism) के चक्र से अनुक्रिया नहीं करता क्योंकि दीप्तिकालिता के प्रति संवेदनशीलता पत्तियों द्वारा महण किये गये प्रकाश पर निर्भर करती है। पत्तियों में एक पुष्प प्रेरक पदार्थ उत्पन्न होता है। इसे फ्लोरिजन (florigen) कहते हैं। इसके अभाव में पुष्पन नहीं होता है।

प्रश्न 11.
क्या हो सकता है ? अगर –
(क) जीए, (GA3) को धान के नवेद्धिक्दों पर दिया जए।
(ख) विभाजित कोशिका विभेद्न करना बन्द कर दें।
(ग) एक सड़ा फल कच्चे फलों के साथ मिला दिया जाए।
(घ) अगर आप संवर्धन माध्यम में सायटोकीनिस मिलाना भूल जाएँ।
उत्तर:
(क) नवोद्भिद (seedlings) (GA3) के प्रभाव से अधिक लम्बे हो जाते हैं। पत्तियाँ पीली व लम्बी हो जाती हैं इसे बैकन रोग (फूलिश सीडलिंग) कहते हैं।
(ख) अविभेदित कोशिकाओं का समूह बन जायेगा।
(ग) सड़े फलों से एथिलीन गैस निकलती है जो अन्य कच्चे फलों को पकाने का कार्य करती है।
(घ) अविभेदित कैलस (callus) में प्ररोह तथा जड़ का विकास नहीं होगा।

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