HBSE 10th Class Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

HBSE 10th Class History यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Textbook Questions and Answers

Europe Mein Rashtravad Ka Uday 10th Class HBSE History प्रश्न 1.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-
(क) ज्युसेपे मेसिनी
(ख) काउंट कैमिलो दे कावूर
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युग ।
(घ) फ्रेंकफर्ट संसद
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका
उनर-
(क) मेजिनी का योगदान-गिसीपी मेजिनी ने इटली का एकीकारण करने में बहुत अधिक प्रयत्न किये। उसे इटली के एकीकरण का आत्मबल कहा जाता है। उसने गैरीबाल्डी की सहायता से इटली में क्रांतिकारी कार्य करने के लिए ‘यंग इटली’ आन्दोलन आरम्भ किया। उसने इटली के ही नहीं वरन् समस्त यूरोप के नवयुवकों में स्वतन्त्रता प्राप्ति की भावना जागृत की। उसने 1848 ईन में रोम पहुँचकर पोप से उसके पैपल राज्य के नवयुवकों में स्वतन्त्रता प्राप्ति की भावना जागृत की। उसने 1848 ईन में रोम पहुँचकर पोप से उसके पैपल राज्य को स्वतन्त्र होने के लिये प्रोत्साहित किया। परन्तु फ्रांस के सम्राट नैपालियन तृतीय ने उसके साथियों को हराकर रोम तथा इटली पर पोप का पुनः अधिकार करवा दिया। चाहे अपने उपेश्य में उसे पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई परन्तु उसके प्रचार के फलस्वरूप बाद में कैवूर को जनता का पूरा सहयोग प्राप्त हुआ। अपने प्रयत्नों से उसने यूरोप के लोगों को प्रोत्साहित किया कि वे अपने देशों की स्वतन्त्रता के लिये सब कुछ न्योछावर कर दें।

उत्तर-
(ख) कावूर का योगदान-इटली के एकीकरण का वास्तविक श्रेय कावूर को ही जाता हैं 1852 ईन में वह सार्डनिया का प्रधानमंत्री बना तथा इटली के एकीकरण के कार्य में जुट गया। उसने अपनी कूटनीतिक चालों द्वारा इस कार्य को पूर्ण किया। उसने कई युद्धों में भाग लेकर इटली के राज्यों को सार्डनिया के साथ मिलने को अवसर प्रदान किया। लोम्बार्डी, माडेना, पार्मा, टस्कनी आदि राज्य धीरे-धीरे विदेशी सना से छुटकारा प्राप्त कर सार्डनिया में आ मिले। उसकी मृत्यु के समय रोम तथा वेनेशिया के राज्यों को छोड़कर इटली के एकीकरण का काम पूर्ण हो चुका था। इतिहासकार से इटली का बिस्मार्क’ कहते हैं।

उत्तर-
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध-15वीं शताब्दी से ही यूनान आटोमन साम्राज्य का एक भाग था। परन्तु 19वीं शताब्दी में यूरोप में उठने वाले वन्तिकारी राष्टंवाद ने यूनानियों को टर्की से आजाद होने के लिए उकसाया। इस कार्य में यूरोप के ईसाई जगत के अनेक लोगों ने भी यूनानियों का साथ दिया।

यूनानियों द्वारा स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष 1821 ईन में शुरू किया गया। कई स्थानों पर ईसाई लोगों का एक बड़ी मात्रा में वध कर दिया गया जिससे सारा यूरोप काँप उठा। फिर क्या था इंगलैंड, फ्राँस और रूस ने आगे बढ़कर यूनान का साथ दिया। संघर्ष चलता रहा और अन्त में 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि के अनुसार टर्की को यूनान को स्वतन्त्र करना पड़ा। इस प्रकार यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।

उत्तर-(घ) फ्रैंकफर्ट संसद-1848 ईन में जब यूरोप में एक क्रांति की लहर उठी तो जर्मनी में भी क्रांतिकारियों ने विद्रोह शुरू किये तथा वैधानिक सुधारों की मांग की।

क्रांतिकारी यह अच्छी तरह जानते थे कि ऑस्ट्रिया उनका साथ नहीं दे सकता क्योंकि ऑस्टिंया का शासक तथा उसका मंत्री दोनों ही निरंकुश शासन के पक्षपाती थे। इस कारण वंतिकारियों ने 28 मार्च 1848 को फ्रैंकफोर्ट में एक राष्ट्रीय पार्लियामैंट बुलाई जिसमें प्रशिया के सम्राट फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ (Frederick William IV) को जर्मनी का सम्राट-पद स्वीकार करने को कहा गया। परन्तु सम्राट फ्रडरिक ने ऑस्ट्रिया के डर के कारण यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। इस प्रकार जर्मनी के एकीकरण का यह प्रयास असफल रहा।

उत्तर-(ङ) राष्ट्रवादी संघषों में महिलाओं की भूमिका- यूरोप के लगभग सभी राज्यों-फ्रांस, जर्मनी, इटली, आस्ट्रिया-हंगरी में महिलाओं ने राष्ट्रीय आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने देश के एकीकरण, प्रजातन्त्रीय संघर्षों एवं संवैधानिक प्रयत्नों में पूर्ण सहयोग दिया। महिलाओं ने अपने अलग राजनीतिक संगठनों का निर्माण किया और देश में होने वाली राजनीतिक गतिविमिायों और विरोध सभाओं और जलूसों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

फिर भी महिलाओं को वोट के अधिकार से काफी समय तक वंचित रखा गया। वास्तव में महिलाओं को अधिकार दिये जाने के पक्ष में उदारवादी लोग भी नहीं थे।

उदारवादी राजनीतिक कार्ल वेल्कर (Carl Welcker) के शब्द, जो स्वयं फ्रैंकफर्ट संसद के एक निर्वाचित सदस्य थे, पुरुषों और महिलाओं में पायी जाने वाली असमानता की प्रकृति को कैसे स्पष्ट करते हैं: ‘प्रकृति ने पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग कार्य करने के लिए निर्मित किया है-पुरुष जो ज्यादा ताकतवर है, दोनों में से ज्यादा निर्भीक और मुक्त है उसे परिवार का रखवाला और भरण-पोषण करने वाला बनाया गया है और कानून, उत्पादन और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक कार्यो के लिए है। महिला जो कमजोर, निर्भर और दब्बू हैं, उसे पुरुष की सुरक्षा की आवश्यकता है। उसका क्षेत्र घर, बच्चों की देखभाल और परिवार का पालन-पोषण है………।

यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Class 10 HBSE History प्रश्न 2.
फ्रासीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रासीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए?
उत्तर-
फ्रांस के क्रांतिकारियों द्वारा लोगों में एकता और संगठन बनाए रखने की दिशा में उठाए गए कदम-फ्रांस की क्रांति 1789 ईन में शुरू हुई। शीघ्र ही लोगों ने राजा और रानी से छुटकारा पाकर सना की सारी बागडोर अपने हाथ में ले ली। फिर उन्होंने लोगों में एकता और संगठन बनाए रखने के लिए अनेक कदम उठाए।

यूरोप में राष्ट्रवाद प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class History प्रश्न 3.
मैरियान और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया उसका क्या महन्व था?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति के दिनों में कलाकारों ने नारी-रूपकों का प्रयोग अमूर्त विचारों (स्वतन्त्रता, मुक्ति, ईर्ष्या, लालच आदि) को प्रकट करने के लिये किया। कुंछ कलाकारों ने इन महिला-रूपकों का प्रयोग एकता के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में किया। फ्रांस में राष्ट्र के प्रतीक के रूप में लोकप्रिय ईसाई नाम माराआन दिया गया। उसे लाल टोपी, तिरंगा और कलगी के साथ दिखाया गया और उसकी प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौराहों पर लगाई गई ताकि लोगों को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे।
इसी प्रकार जर्मनी में, जर्मन राष्ट्र के प्रतीक के रूप में जर्मेनिया को रूपक माना गया। उसे बलूत वृक्ष के तनों के मुकट से सजाया गया क्योंकि जर्मनी में बलूत को वीरता का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न 4.
जर्मन एकीकरण की प्रव्यिा का संक्षेप में पता लगाएँ।
उत्तर-
जर्मनी का एकीकरण जिन-जिन सोपानों में हुआ उसका विवरण इस प्रकार है और उन सभी सोपानों में प्रशिया के चान्सलर बिस्मार्क की महत्वपूर्ण भूमिका रही:

(1) पहली अवस्था-18वीं शताब्दी से जर्मनी अनेक राज्यों-प्रशिया, बावेरिया, सैकसनी आदि में बंटा हुआ था। इसलिए इसका आर्थिक विकास बहुत धीमा था। राष्ट्रीय चेतना के जागृत होने पर जर्मनी के विभिन्न राज्यों के लोगों ने एकीकरण की मांग करना आरम्भ कर दी। 1815 ईन में जर्मनी के राज्यों को आस्ट्रिया के साथ मिलाकर एक जर्मन महासंघ की स्थापना की कोशिश की। विवश फ्रेकफर्ट में एक राष्ट्रीय पार्लियामेंट बुलाई गयी जिसे संविधान का कार्य सौंपा गया। परन्तु इस पार्लियामेंट को आस्ट्रिया के विरोध के कारण सफलता नहीं मिली।

(2) दूसरी अवस्था-इस क्रान्ति की असफलता के पश्चात् जर्मनी के एकीकरण का काम लोकतंत्र के रूप में न होकर बिस्मार्क द्वारा सैन्यशक्ति एवं कूटनीति के सहारे होने लगा। बिस्मार्क ने अपनी ‘रक्त और लौह’ की नीति द्वारा इस एकीकरण के काम को पूरा किया। सबसे पहले 1864 ईन में बबबिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशिया और डेनमार्क में एक युद्ध हुआ जिसमें प्रशिया की जीत हुई और उसे शैल्सविग का प्रदेश मिला।

(3) तीसरी अवस्था-1866 ईन में प्रक्रिया (या जर्मनी) का आस्ट्रिया के साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध में विजय के पश्चात् प्रक्रिया के साथ अनेक प्रदेश (जैसे हैनोवर, होल्सटीन, लक्समवर्ग, कैसल तथा फ्रेंकफर्ट आदि) आ मिले। जर्मनी से आस्ट्रिया का प्रभाव अब सदा के लिए समाप्त हो गया और इससे जर्मनी के एकीकरण का काम काफी आसान हो गया।

(4) चौथी अवस्था-अन्त में 1870 ईन में फ्रांस के साथ जर्मनी का एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें फ्रांस की करारी हार हुई और उससे आल्सेस और लारेन वे महत्वपूर्ण प्रदेश छीन लिए गए। इन विजयों से प्रभावित होकर बाकी बचे हुए जर्मन प्रदेश भी (जैसे बावेरिया, बर्टमबर्ग, बेडन और दक्षिणी हैस) जर्मन महासंघ में शामिल हो गए और प्रशिया के शासक विलियम प्रथम को 1871 ई. में संयुक्त जर्मनी का सम्राट घोषित कर दिया गया।
इस प्रकार बिस्मार्क के प्रयत्नों से 1871 ईन में जर्मनी के एकीकरण का कार्य पूरा हुआ।

प्रश्न 5.
अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए?
उत्तर-
फ्रांस की क्रांति के समय (1789-1815) जहाँ कहीं भी फ्रांसीसी सेनाएँ गईं उन्होंने राष्ट्रवाद की विचारधारा को अवश्य फैलाया अपने साम्राज्य के इस विस्तृत क्षेत्र-जिसमें हालैंड, बेल्जियम, स्विटजरलैंड, इटली और जर्मनी आदि सम्मिलित थे-नैपालियन ने अनेक प्रशासनिक सुधार किए जो वह पहले अपने देश फ्रांस में कर चुका था। ये सब कुछ उसने प्रशासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने और उसमें कुशलता लाने के लिए किया। उसके यह सुधार 1804 के सिविल कोड के नाम से प्रसिद्ध हैं। कई इतिहासकार इस कानून-संहिता को नैपोलियन कोड (Napolean Code) के नाम से भी पुकारते हैं।

नैपोलियन द्वारा किए गए प्रमुख प्रशासनिक सुधारों में निम्नलिखित विशेषकर उल्लेखनीय है।

(क) जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए और कानून के सामने सबकी बराबरी के नियम को लागू किया गया।
(ख) प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया गया, सामंती व्यवस्था को खत्म किया गया और किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई गई।
(ग) यातायात और संचार व्यवस्था में सुधार किया गया।
(घ) किसानों, मजदूरों कारीगरों और नए उद्योगपतियों को अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतन्त्रता प्रदान की गई।
(ङ) मानक नापतोल के पैमाने चलाए गए और एक राष्ट्रीय मुद्रा चलाई गई।
(च) एक इलाके से दूसरे इलाके में वस्तुओं और पूंजी के आवागमन में सहूलतें दी गई।

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